वरण
प्रकाशितकोशों से अर्थ
[सम्पादन]शब्दसागर
[सम्पादन]वरण ^१ संज्ञा पुं॰ [सं॰]
१. किसी को पसंद करके किसी कार्य के लिये नियुक्त करना । किसी को किसी काम के लिये चुनना या मुकर्रर करना । क्रि॰ प्र॰—करना ।—होना ।
२. मंगल कार्य के विधान में होता आदि कार्यकर्ताओं को नियत करके दान आदि से उनका सत्कार करना ।
३. मगल कार्य में नियत किए हुए होता आदि के सत्कारार्थ दी हुई वस्तु या दान । जैसे,—विवाह में ११ आदमियों को वरण मिला है । क्रि॰ प्र॰—देना ।—पाना ।—मिलना ।
४. कन्या के विवाह में वर को अंगीकार करने की रीति ।
५. पूजा । अर्चना । सत्कार ।
६. ढकने या लपेटने की वस्तु । आवरण । आच्छादन । वेष्ठन ।
७. किसी स्थान के चारों ओर धेरी हुई दीवार ।
८. ऊँट ।
९. वरुण वृक्ष ।
१०. पुल । सेतु ।
११. धनुष की सज्जा या अलंकार (को॰) ।
१२. इंद्र (को॰) ।
१३. एक प्रकार का अस्र का मंत्र (को॰) ।
१४. वृक्ष । पेड़ (को॰) ।
१५. याचना । प्रार्थना ।
वरण पु ^२ संज्ञा पुं॰ [सं॰ वर्ण]
१. रंग । दे॰ 'वर्ण' ।
२. मनुष्यों के चार विभाग या वर्ण । उ॰—जो कोइ भक्त हमारा होई । जात वरण को त्यागै सोई ।—कबीर सा॰, पृ॰ ८२० ।