वर्णसंकर

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हिन्दी[सम्पादन]

प्रकाशितकोशों से अर्थ[सम्पादन]

शब्दसागर[सम्पादन]

वर्णसंकर संज्ञा पुं॰ [सं॰ वर्णसंङ्कर]

१. वह व्यक्ति या जाति जो दो भिन्न भिन्न जातियों के स्त्री पुरुष के संयोग से उत्पन्न हो । विशेष—स्मृतियों में ऐसी बहुत सी जातियाँ गिनाई गई हैं । इस विषय में एक दूसरे के मत भी नहीं मिलते । वर्णसंकर दो प्रकार के कहे गए हैं, अनुलोमज और दूसरा प्रतिलोमज । अनुलोमज का पिता माता से श्रेष्ठ वर्ण का होता है और प्रतिलोमज की माता पिता से श्रेष्ठ वर्ण की होती है । प्रातलोमज सकर प्राचीन काल में निषिद्ध माने जाते थे । अनुलोम विवाह का प्रचार प्राचीन काल में था; पर पीछे बंद हो गया । धर्मशास्त्रों में यद्यपि वर्णसंकरता के ये कारण गिनाए गए हैं—(१) व्यभिचार, (२) अवेद्यावेदन और (३) स्वकर्मत्याग; पर लोक में अतिम बात पर ध्यान नहीं दिया जाता ।

२. वह व्यक्ति जो ऐसे स्त्री पुरुष के संयोग से उपत्न्न हुआ हुआ हो, जो धर्मानुसार विवाहित न हों । व्यभिचार से उत्पन्न मनुष्य । दोगला ।