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वश

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प्रकाशितकोशों से अर्थ

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शब्दसागर

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वश ^१ संज्ञा पुं॰ [सं॰]

१. इच्छा । चाह ।

२. एक व्याक्त पर दूसरे का ऐसा प्रभाव कि दूसरा उसके साथ जो चाहे कर सके, या उससे जो चाहे करा सके । काबु । इख्तियार । अधिकार । जैसे,—(क) इस समय वह तुम्हारे वश में है; जो चाहो करा लो । (ख) मैं उसके वश में हूँ; जैसा वह कहेगा, वैसा करूँगा । (ग) उसपर मेरा कोई वश नहीं है । मुहा॰—(किसी का किसी के) वश में होना=(१) अधिकार में होना । कावू में होना । कब्जे में होना । अधीन होना । (२) कहे में होना । आज्ञानुवर्ती होना । दबाव मानना । किसी पर वश होना=किसी पर अधिकार होना । किसी पर ऐसा प्रभाव होना कि उसे इच्छानुकूल चलाया जा सके । जैसे,—उस लड़के पर हमारा कोई वश नहीं है । वश का=जिसपर अधिकार हो । जो इच्छानुसार चलाया जा सके । अधीन । जैसे,—अब वह सयाना हुआ; हमारे वश का नहीं है ।

३. किसी वस्तु या बात को अपने अनकूल घटेत करने का सामर्थ्य । शक्ति की पहुँच । काबू । जैसे,—(क) जो अपने वश की बात नहीं उसके लिये शोक क्या ? । (ख) हार जीत अपने वश की बात नहीं । मुहा—वश का=इच्छा के अधीन । वश चलना=शक्ति काम करना । कुछ करने का सामर्थ्य होना । काबू चलना । जैसे,— यदि मेरा वश चलता, तो मैं उसे निकाल देता ।

४. अधीन करने का भाव । अधिकार । कब्जा । प्रभुत्व । उ॰— हरि कछु ऐसो टोना जानत । सबके मन अपने वश आनत ।—सूर (शब्द॰) ।

५. जन्म ।

६. वेश्याओं के रहने का स्थान । चकला ।

७. आर्यों का एक समूह । उ॰—मध्यदेश में कुरुओं और पंचालों के अलावा वश और उशीनर भी थे ।— हिंदु॰ सभ्यता, पृ, ७७ ।

वश ^२ वि॰

१. अधीन ।

२. आज्ञाकारी ।

३. मुग्ध [को॰] ।

वश ^३ प्रत्य॰ [फा॰] समान । तुल्य ।