वसिष्ठ

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हिन्दी[सम्पादन]

प्रकाशितकोशों से अर्थ[सम्पादन]

शब्दसागर[सम्पादन]

वसिष्ठ संज्ञा पुं [सं॰]

१. एक प्राचीन ऋषि, जिनका उल्लेख वेदों से लेकर रामायण, महाभारत, पुराणों आदि तक में है । विशेष—वेदों में ये मित्र और वरुण के पुत्र कहे गए हैं । यज्ञ- स्थल में एक बार उर्वशी को देखकर मित्र और वरुण का वीर्यपात हो गया । वह वीर्य एक यज्ञकुंभ में रखा गया । कुंभ से वसिष्ठ और अगस्त्य का जन्म हुआ । 'बृहद्देवता' में लिखा है कि कुंभ के जल में मत्स्य, स्थल में वसिष्ठ और कुंभ में अगस्त्य उत्पन्न हुए थे । ऋग्वेद के अनुसार ये वसिष्ठ गांधार और काबुल की आर राज्य करनेवाले त्रित्सु वंश के राजा दिवीदास के पौत्र और पिजवन के पुत्र सुदास के पुरोहित थे । सुदास ने इनको बहुत कुछ दान दिया था । एक बार सुदास ने यज्ञ करने के लिये विश्वामित्र को बुलाया, इसपर वसिष्ठ बहुत क्रुद्ध हुए । उन्होंने अपन अन्य यजमानो, भरतों के द्वारा विश्वामित्र को बहुत तग किया । विश्वामित्र तो चले आए, पर सुदास के पुत्रों ने वसिष्ठ के सौ पुत्रों का नाश कर दिया । फिर वसिष्ठ ने 'एकस्मान्न' इत्यादि ५० मंत्रों द्वारा यज्ञ करके सौदासों को पराभूत किया । पुराणों में वसिष्ठ ब्रह्मा के मानसपुत्र कहे गए हैं । राजा निमि और वसिष्ठ के बीच एक बार झगड़ा हुआ । वसिष्ठ ने निमि को और निमि ने वसिष्ठ को शाप दिया । निमि तप करके शरीररहित होकर अमर हुए और उनका वंश विदेह कहलाया । वसिष्ठ ने शरीर को त्यागकर मित्रावरुण के वीर्य से जन्म ग्रहण किया । कामघेनु के लिये वसिष्ठ और विश्वामित्र (जो पहले राजा थे) से बहुत दिनों तक झगड़ा होता रहा । विश्वामित्र के सौ पुत्रों को वसिष्ठ ने केवल हुंकार से जला दिया था । विश्वामित्र अंत में हारकर ब्राह्मणत्व प्राप्त करने के लिये तप करने लगे । पुराणों में वसिष्ठ को अनेक पत्नियों के नाम मिलते हैं, जिनमें से. एक अरुंधती थी. जो कर्दम की कन्या थी और वसिष्ठ को सबसे प्रिय थी । इनकी एक और स्त्री अक्षमाला नीच जाति की थी । किसी और पत्नी से इन्हें शक्तृ नामक एक पुत्र हुआ था जो गोत्रकार ऋषि हुआ । ऋग्वेद के अनेक मंत्रों के द्रष्टा वसिष्ठ हैं । सप्तम मंडल के द्रष्टा ये ही माने जाते हैं ।

२. सप्तर्षिमंडल का एक तारा जिसके पास का छोटा तारा अरुंधती कहलाता है ।

३. मांस ।

४. एक स्मृतिकार (को॰) ।