वा
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प्रकाशितकोशों से अर्थ
[सम्पादन]शब्दसागर
[सम्पादन]वा ^१ अव्य॰ [सं॰] विकल्प या संदेहवाचक शब्द । या । अथवा ।
वा पु ^२ सर्व॰ [हिं॰ वह] ब्रजभाषा में प्रथम पुरुष का वह एकवचन रूप, जो कारकचिह्न लगने के पहले उसे प्राप्त होता है । जैसे,—वाने वाको, वासे, वासो इत्यादि । उ॰—(क) वा सुरतरु महँ अवर एक अदभुत छबि छाजै । साखा दल फल फूलनि हरि प्रतिबिंब बिराजै ।—नंद॰ ग्रं॰, पृ॰ ६ । (ख) रहै देह वाके परस याहि द्दगन ही देखि ।—बिहारी (शब्द॰) । (ग) और प्रभु जब किवाड़ खोलन पधारते त ब ओ ठाकुर जी वा इ पुकार सों पूछते ।—दो सौ बावन॰, भा॰ १, पृ॰ १०१ ।
वा ^३ वि॰ [फा़॰] कुशादा । खुला या फैला हुआ । खुले । उ॰—दिन के वा दतुण्न के दर्बार में रौनक अफरोज हुए ।—प्रेमघन॰, भा॰ २, पृ॰ १७ ।
वा रनाथ संज्ञा पुं॰ [सं॰]
१. वरुण ।
२. समुद्र ।
३. बादल । मेघ ।
४. नाग लोक जहाँ सर्पों का निवास माना जाता है (को॰) ।