वाजसनेय

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हिन्दी[सम्पादन]

प्रकाशितकोशों से अर्थ[सम्पादन]

शब्दसागर[सम्पादन]

वाजसनेय संज्ञा पुं॰ [सं॰]

१. यजुर्वेद की एक शाखा का नाम । विशेष—इसे याज्ञवल्क्य ने अपने गुरु वैशंपायन पर क्रुद्ध होकर उनकी पढ़ाई हुई विद्या उगलने पर सूर्य के तप से प्राप्त की थी । मत्स्य पुराण के अनुसार वैशंपायन के शाप से वाजसनेय शाखा नष्ट हो गई । पर आजकल शुक्ल यजुर्वेद की जो संहिता मिलती है, वह वाजसनेय संहिता कहलाती है । यजुर्वेद के दो पाठ हैं शुक्ल और कृष्ण । शुक्ल में १५ शाखा है; कराव, माध्यंदिन; जाबाल, बुधेय, शाकेय, तापनीय, कापीस, पौंड्रवहा, आवर्त्तिक, परमावर्त्तिक, पाराशरीय, वैनेय, बौधेय, औघेय और गालव । यह सब एकत्रित होकर वाजसनेयी शाखा भी कहलाती हैं ।

२. याज्ञवल्क्य ऋषि जो सूर्य के छात्र थे ।