वाण
प्रकाशितकोशों से अर्थ
[सम्पादन]शब्दसागर
[सम्पादन]वाण संज्ञा पुं॰ [सं॰] धारदार फल लगा हुआ छड़ी के आकार का छोटा अस्त्र जो धनिष की डोरी पर खींचकर छोड़ा जाता है । तीर । विशेष—बृहत् शर्ङ्गधर में धनुष और वाण बनाने के सबंध में बहुत स नियम दिए गए हैं । उसमें लिखा है कि वाण या तीर का फल शुद्ध लौह का होना चाहिए । फल कई आकार के बनाए जाते थे, जैसे,—आरामुख, क्षुरु्प्र, गोपुच्छ, अधचद्र, सूचीमुख, भल्ल, वत्सदत, द्विभल्ल, कीर्णक और काकतुंड । ये सब भिन्न भिन्न कामों के लिये होते थे । जंसे,—आरामुख वाण वर्म (बकतर) भेजने के लिये, अधंचंद्र सिर काटने के लिये, आरामुख और सूचीमुख ढाल छेदने के लिये, क्षुरप्र धनुष काटने के लिये, भल्ल हृदय भेदने के लिये, द्विभल्ल धनुष की डोरी काटने के लिये, आदि । वाण के फल पर अच्छी जिला होनी चाहिए । पीपल, सेंधा नमक और गुड़ को गोमूत्र में पीसकर फल पर लेप करे, फिर फल को आग्न में तपाकर तेल में बुझावे, तो अच्छी जिला होगी । शर कैसा होना चाहिए, इसके संबंध में भी बहुत सी बातें हैं । वाण ठीक सीधा जाय, रास्ते में इधर उधर न हो, इसके लिये पिछले भाग में कुछ दूर तक कौवे, हंस, बगले, गीध और मयूर आदि किसी पक्षी के पर लगाने चाहिए । विशेष विवरण के लिये देखिए 'वनुर्वेद' और 'बाण' शब्द ।