वातापि

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हिन्दी[सम्पादन]

प्रकाशितकोशों से अर्थ[सम्पादन]

शब्दसागर[सम्पादन]

वातापि संज्ञा पुं॰ [सं॰]

१. एक असुर का नाम । विशेष—आतापि और वातापि दो भाई थे । दोनों मिलकर ऋषियों को बहुत सताया करते थे । वातापि तो भेंड़ बन जाता था और उसका भाई आतापि उसे मारकर ब्राह्मणों को भोजन कराया करता था । जब ब्राह्मण लोग खा चुकते, तब वह वातापि का नाम लेकर पुकारता था और वह उनका पेट फाड़कर निकल जाता था । इस प्रकार उन दोनौं ने बहुत से ब्राह्मणों को मार डाला । एक दिन अगस्त्य ऋषि उन दोनों के घर आए । आतापि ने वातापि को मारकर अगस्त्य को खिलाया और फिर नाम लेकर पुकारने लगा । अगस्त्य जी ने डकार लेकर कहा कि वह तो मेरे पेट में कभी का पच गया, अब कहाँ आता है । यौ॰—वातापिद्विट्, वातापिसूदन, वातापिहा=वातापि को मारने या पचा जानेवाले, अस्गत्य ऋषि ।