वानप्रस्थ

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हिन्दी[सम्पादन]

प्रकाशितकोशों से अर्थ[सम्पादन]

शब्दसागर[सम्पादन]

वानप्रस्थ संज्ञा पुं॰ [सं॰]

१. महुए का पेड़ । मधूक वूक्ष ।

२. पलाश ।

३. प्राचीन भारतीय आर्यों के अनुसार मनुष्य के चार विभागों या आश्रमों में से तीसरा विभाग या आश्रम । विशेष—यह आश्रम गार्हस्थ्य के पीछे और संन्यास के पहले पड़ता है । शास्त्र के अनुसार पचास वर्ष के ऊपर हो जाने पर और गार्हस्थ्य़ आश्रम से चत्त हट जाने पर मनुष्य इस आश्रम का अधिकारी होता है । इस आश्रम में प्रवेश करनेवाले को नगर, गाँव या बस्ती से अलग वन में रहना, जंगली फल खाना, और उन्हीं से पंचमहायज्ञादि करना चाहिए शय्या, वाहन, वस्त्र, पलंग आदि सब त्याग देना चाहिए । स्त्री को चाहे पुत्र के पास छोड़े, चाहे अपने साथ वन में ले जाय । जब इस आश्रम में रहकर मनुष्य पूर्ण वैराग्यसपन्न हो जाय, तब उसे संन्यास लेना चाहिए ।

४. उदासी । वैरागी । साधु (को॰) ।