वार
प्रकाशितकोशों से अर्थ
[सम्पादन]शब्दसागर
[सम्पादन]वार संज्ञा पुं॰ [सं॰]
१. जल । पानी ।
२. रक्षक । त्राता । प्रति- पालक (को॰) ।
वार ^१ संज्ञा पुं॰ [सं॰]
१. द्वार । दरवाजा । उ॰,—संदेसे ही घर भरय़उ कइ अंगणि कई वार ।—ढोला॰, दू॰ २०० ।
२. अवरोध । रोक । रुकावट ।
३. ढाँकनेवाली वस्तु । आवरण ।
४. कोई नियत काल । अवसर । दफा । मरतबा । जैसे—वारं- वार ।
५. क्षण ।
६. सप्ताह का दिन । जैसे,—आज कौन वार हौ ।
७. कुज वृक्ष ।
८. पानपात्र । मद्य का प्याला ।
९. वाण । तीर ।
१०. नदी या समुद्र का किनारा ।—उ॰ जोय प्रबल अणपार जल वार रह्मा भड़ आन । निडर उलंघण वार- निध, हुवो त्यार हनुमान ।—रघु॰ रू॰, पृ॰ १३६ ।
११. शिव का नाम ।
१२. जलराशि । जलौघ (को॰) ।
१३. पूँछ । दुम (को॰) ।
१४. दाँव । बारी । जैसे—अपना अपना वार है । उ॰—देस देस के भूपति आवै । द्वारे भीर वार नहिं पावै ।—हि॰ क॰ का॰, पृ॰ १८८ । मुहा॰—वार मिलना = फुरसत मिलना । वार सरना = अवसर या मौका मिलना । संभव हो सकना । पार पड़ना । उ॰— सूआ एक संदेसड़उ, वार सरेसी तुभ्झ । प्रीतम वाँसइ जाय नई, मुई सुणावे मुभक्त ।—ढोला॰, दू॰ ३९८ ।
वार ^२ संज्ञा पुं॰ [सं॰ वार(=दाँव, बारी ।) या फ़ा॰] चोट । आघात । आक्रमण । हमला । उ॰—वार नाम वैरी के ऊपर प्रहार चाहैं हैं किंवा वार हैं बाल ताको चाहैं हैं, अर्थात् उत्तम बालक वा वारागंना । x x x अथवा वार मूढ़ को न चाहै ।— दीन॰ ग्रं॰, पृ॰ १७८ । क्रि॰ प्र॰—करना ।—होना । मुहा॰—वार खाली जाना = (१) प्रहार का ठीक स्थान पर न पड़ना । चलाया हुआ अस्त्र न लगना । (२) युक्ति सफल न होना । चली हुई चाल या तदबीर का कुछ नतीजा न होना ।
वार ^३ संज्ञा स्त्री॰ [सं॰ वार, हिं॰ बेर] देर । विलंब । उ॰—चल्या ठकुराल्या न लावीय वार, भोज तणाँ मिलिया असवार ।— बी॰ रासो पृ॰ १६ ।
वार ^४ संज्ञा पुं॰ [हिं॰ उबार] बचाना । रक्षा करना । उ॰—गया हैं हृदय हिल, लो थके को वार ।—आराधना, पृ॰ ४६ ।
वार ^५ संज्ञा पुं॰ [सं॰ वाल] [स्त्री॰ वारा]
१. बालक । बच्चा । शिशु ।
२. अज्ञ या मूर्ख व्यक्ति । उ॰—(क) किवा वार है वाल ताको चाई हैं अर्थात् उत्तम बालक ॰॰०००००००० ।—दीन॰ । ग्रं॰, पृ॰ १७८ । (ख) तीनों अंड भए तिवारा । ता के रूप भए अधिकारा ।—कबीर सा॰, पृ॰ १६ ।
वार ^६ संज्ञा पुं॰ [अं॰] युद्ध । समर । जंग । जैसे,—जर्मन वार । यौ॰—वारफंड = युद्ध के लिये आर्थिक मदद या चंदा आदि का संग्रह ।