विक्षनरी:छत्तीसगढ़ी कहावत कोश
- कौवा के रटे ले ढोर नइ मरै। -- कौवों के रटने से पशु नहीं मरते।
- व्याख्या : दुष्टों के प्रलाप से अन्यों का नुकसान नहीं होता।
- प्रयोग अनुकूलता : यदि कोई दुष्ट व्यक्ति किसी के अनिष्ट की कामना करता है और यह भाव लोगों के सामने व्यक्त करता है, तो श्रोता उसे इस कहावत के द्वारा चुप कर देते हैं।
- शब्दार्थ : नइ-नहीं, मरै-मरना ले-के
- कौवा भए चलाचल, मितान ला दोस लगाय। -- जब कौवे को जाना हुआ, तब उसने अपने मित्र पर दोष लगाया।
- व्याख्या : कौवे को जब तक अपने मित्र की गरज थी, तब तक वह उस के साथ रहा। गरज समाप्त हो जाने पर वह अपने मित्र से छुटकारा पाने के लिए उसे दोषी बताकर चला गया।
- प्रयोग अनुकूलता : जब कोई गरजमंद व्यक्ति किसी की खुशामद करता है और गरज समाप्त हो जाने पर उसकी बुराई करता है, तब यह कहावत कही जाती है।
- शब्दार्थ : चलाचल-जाना, मितान-दोस्त, दोस-दोष
- खर गुर ए के भाव। -- नमक और गुड़ एक ही भाव।
- व्याख्या : नमक और गुड़ एक ही भाव से नहीं बिकता। नमक सस्ता तथा गुड़ महँगा होता है।
- प्रयोग अनुकूलता : जब योग्य और अयोग्य व्यक्ति को समान इज्जत मिले, तब यह कहावत कही जाती है।
- शब्दार्थ : खर-नमक, गुर-गुड़, एके-एक ही
- खरिखा बर पैरा नइ पूरै। -- जानवरों के झुंड के लिए पैरा भी पूरा नहीं पड़ता।
- व्याख्या : अधिक व्यक्तियों के लिए सरलता से उपलब्ध वस्तु भी कम पड़ जाती है।
- प्रयोग अनुकूलता : सामान कम हो, उपयोग करने वाले व्यक्ति अधिक संख्या में हों, तो यह कहावत कही जाती है।
- शब्दार्थ : खरिखा-जानवरों का झुंड, बर-के लिए, नइ-नहीं, पूरै-पूरना
- खरी बिनौला सड़वा खाय, जोते फाँदे बड़वा जाय। -- खली-बिनौला साँड़ खाता है तथा जोतने फाँदने के लिए पूँछ कटा बैल होता है।
- व्याख्या : साँड़ बढ़िया खाना पाता है, जो खेती का कोई काम नहीं करता तथा काम करने वाले बैल को कुछ भी नहीं मिलता।
- प्रयोग अनुकूलता : इस कहावत का प्रयोग तब होता है, जब परिश्रम कोई और करता है तथा फल किसी और को मिलता है।
- शब्दार्थ : सड़वा-सांड, खाय-खाना, बड़वा-पूंछ कटा बैल
- खसू बर तेल नहीं, घोरसार बर दिया। -- खुजली में लगाने के लिए तो तेल नहीं है, पर घोड़ा बाँधने वाले स्थान में दीपक कहाँ से जलाया जाए।
- व्याख्या : खुजली से आराम पाने के लिए उसमें लगाने के लिए तेल की आवश्यकता है, तो उसे कहाँ से दिया जाए।
- प्रयोग अनुकूलता : आवश्यक कार्य की पूर्ति के लिए पैसे नहीं है, फिर अनावश्यक कार्य के लिए कहाँ से पैसे खर्च किए जाएँ। ऐसी परिस्थितियों के लिए यह कहावत कही जाती है।
- शब्दार्थ : खसू-खुजली, बर-के लिए, घोरसार-घोड़ा बांधने का स्थान
- खाँड़ा गिरै कोंहड़ा माँ, त कोंहड़ा जाय। -- कोंहड़ा गिरै खाँड़ा माँ, त कोंहड़ा जाय।
- व्याख्या : यदि तलवार कुम्हड़े पर गिरेगी, तो कुम्हड़ा ही नष्ट होगा और कुम्हड़ा तलवार पर गिरेगा, तो भी कुम्हड़ा ही नष्ट होगा।
- प्रयोग अनुकूलता : चाहे कमजोर व्यक्ति शक्तिशाली से टकराए अथवा शक्तिशाली कमजोर से टकराए, दोनों ही स्थितियों में नुकसान कमजोर का ही होगा। कुछ ऐसे ही परिपेक्ष्य में यह कहावत कही जाती है।
- शब्दार्थ : कोंहड़ा-कद्दू, जाय-जाना
- खाई मीठ त माई मीठ। -- मीठा-मीठा खाना देने पर माँ मीठी लगती है।
- व्याख्या : माँ भी तभी प्यारी है, जब वह बढ़िया खाना खिलाती है।
- प्रयोग अनुकूलता : वही व्यक्ति अच्छा लगता है, जो हमेशा कुछ-न-कुछ देता रहता है। ऐसी स्थितियों के लिए यह कहावत कही जाती है।
- शब्दार्थ : माई-मां
- खाए के बेर भाई भतीज, जूझे के बेर देवर ससुर। -- खाने के वक्त भाई-भतीजे, लड़ने-भिड़ने के वक्त देवर-ससुर।
- व्याख्या : स्त्रियाँ स्वभावतः मैहर वालों का पक्ष लेती हैं। वे खाना खिलाने के मामले में मैहर वालों को तथा काम लेने के मामले में ससुराल वालों को प्राथमिकता देती हैं।
- प्रयोग अनुकूलता : किसी स्त्री के द्वारा उसके मैहर वाले को कुछ लाभ मिलते देखकर यह कहावत कही जाती है।
- शब्दार्थ : बेर-वक्त, भतीज-भतीजा
- खाए त खाए फेर थारी ल काबर -- खाना खाए तो खाए, पर थाली क्यों फोड़े।
- व्याख्या : ऐसा व्यक्ति जो किसी से कुछ पाकर भी उसका नुकसान पहुँचाए, वह व्यक्ति कृतघ्न है।
- प्रयोग अनुकूलता : कृतघ्न व्यक्ति के लिए यह कहावत उपयोग में लायी जाती है।
- शब्दार्थ : फेर-फिर, काबर-क्यों, फोरे-फोड़ना
- खाट मेहरिया भुँइ भतार। -- पत्नी खाट पर तथा पति जमीन पर।
- व्याख्या : ऐसी पत्नी जो पति की परवाह न करके केवल अपनी सुख-सुविधा का ध्यान रखती है, वह स्वार्थी कही जाती है।
- प्रयोग अनुकूलता : जो व्यक्ति अपने से बड़ों की इज्जत नहीं करता, उस के लिए यह कहावत कही जाती है।
- शब्दार्थ : मेहरिया-पत्नी, भुइ-जमीन, भतार-पति
- खातू परे त खेती, नहिं त नदिया के रेती। -- खाद से खेती, नहीं तो नदी का रेत।
- व्याख्या : खाद पड़े तो खेती करने से ही अच्छी उपज होती है, अन्यथा जमीन नदी की रेत के समान अनुपजाऊ हो जाती है।
- प्रयोग अनुकूलता : खेती के लिए खाद का महत्व बताने के लिए यह कहावत कही जाती है।
- शब्दार्थ : खातू-खाद, परे-पड़ना, नहिं-नहीं, रेती-रेत
- खाए के आन, देखाए के आन। -- खाने का दूसरा तथा दिखाने का दूसरा।
- व्याख्या : हाथी के दाँत दो प्रकार के होते हैं- एक दिखाने के और दूसरे खाने के।
- प्रयोग अनुकूलता : जो व्यक्ति कहते कुछ हैं और करते कुछ और हैं, उन के लिए यह कहावत कही जाती है।
- शब्दार्थ : आन-दूसरा, देखाए-दिखाए
- खाय गहूँ के गादा, बिसर गे दाई-ददा। -- गेहूँ की रोटी खाने को मिलने पर माँ-बाप भी भुला दिए जाते हैं।
- व्याख्या : यदि किसी व्यक्ति को कहीं बढ़िया खाना मिल जाए, तो वह माँ-बाप को भूल कर वहीं टिक जाता है।
- प्रयोग अनुकूलता : परदेश में सुखी जीवन-यापन करने वाले व्यक्ति के द्वारा स्वदेश को भुला देने पर यह कहावत कही जाती है।
- शब्दार्थ : खाय-खाना, गहूं-गेहूं, गादा-आटा, बिसर-भूल, दाई-माता, ददा-पिता
- खाय बर खरी, बताय पर बरी। -- खाने के लिए खली, बताने के लिए बड़ी।
- व्याख्या : खली की सब्जी खाकर बड़ी की सब्जी बताने वाले असलियत को छिपाते हैं।
- प्रयोग अनुकूलता : अपनी गरीबी को छिपाकर बड़प्पन का प्रदर्शन करने वाले ढोंगी होते हैं, ऐसे व्यक्तियों के लिए यह कहावत चरितार्थ होती है।
- शब्दार्थ : खरी-खली, बरी-बड़ी, हर-के कारण, बताय-बताना
- खावय तउन ओंठ चाबय, नइ खाय तउन जीभ चाँटय। -- जो खाए, सो होंठ काटे, जो न खाए, सो जीभ चाटे।
- व्याख्या : खाने वाला घटिया चीज खाकर पछताता है और न खाने वाला उसका मजा न पाने के कारण पछताता है। तब किसी काम को करने वाले और उसे न करने वाले दोनों को नुकसान होता है।
- प्रयोग अनुकूलता : जब किसी काम को करने वाले और उसे न करने वाले दोनों को नुकसान होता है, तब यह कहावत कही जाती है।
- शब्दार्थ : ओंठ-होंठ, चाबरय-चबाना, नइ-नहीं, चांटय-चांटना
- खीरा के चोरी माँ, फाँसी के सजा। -- ककड़ी की चोरी, और फाँसी की सजा।
- व्याख्या : अपराध छोटा और दंड बहुत बड़ा।
- प्रयोग अनुकूलता : यदि कोई व्यक्ति छोटी-मोटी गलती कर बैठे, तो वह क्षम्य होता है। परंतु उस गलती को बड़ा अपराध मानकर जब उस व्यक्ति को कठोर दंड दिया जाए, तब यह कहावत कही जाती है।
- शब्दार्थ : खीरा-ककड़ी
- खीरा चोर जोंधरी चोर, धीरे-धीरे सेंध फोर। -- ककड़ी और भुट्टे चुराने वाला व्यक्ति आगे सेंध लगाता है।
- व्याख्या : प्रारंभ में ककड़ी और भुट्टे की चोरी करने वाला व्यक्ति बाद में दीवार में छेद करने लगता है।
- प्रयोग अनुकूलता : ऐसे व्यक्ति जो बुराई में लगातार बढ़ते जाते हैं, उन के लिए यह कहावत कही जाती है।
- शब्दार्थ : जोंधरी-भुट्टा, सेंध-दीवार में छेद करना, फोर-फोड़ना
- खीरे बेपारी गेरू लादै। -- जिसकी पूँजी घट गई हो, ऐसा व्यापारी गेरू ही लाद लेता है।
- व्याख्या : जब किसी व्यक्ति की आर्थिक स्थिति अधिक खराब हो जाती है, तब वह निम्न स्तर का कार्य करने लग जाता है, जिससे वह लोगों की सहानुभूति का पात्र हो जाता है।
- प्रयोग अनुकूलता : किसी धनी व्यक्ति को धनाभाव के कारण छोटे-मोटे कार्य करते देखकर यह कहावत कही जाती है।
- शब्दार्थ : खीरे-जिसकी पूँजी घट गई हो, बेपारी-व्यापारी, लादै-लादना
- खुल-खुल हाँसे कुम्हरा के पूत, कबले करवट लेहै ऊँट। -- कुम्हार का लड़का प्रसन्न होकर हँसता है, परंतु उसका साथी (रूई वाला) सोचता है कि ऊँट कब करवट बदलेगा।
- व्याख्या : रूई वाले के नुकसान से कुम्हार का पुत्र प्रसन्न होता है। रूई वाला उसे हँसते देखकर सोचता है कि ऊँट यदि करवट बदले, तो उसके भी मिट्टी के बर्तन फूट जाएँगें, जिससे उसकी हँसी बंद हो जायेगी।
- प्रयोग अनुकूलता : दूसरों की नुकसानी देखकर प्रसन्न होने वाले व्यक्तियों के लिए यह कहावत कही जाती है।
- शब्दार्थ : हांसे-हंसना, पूत-लड़का, कबले-कब, लैहै-लेगा
खेढ़ा साग बुढ़वा मन के। -- खेढ़े की सब्जी बूढ़ों की।
- व्याख्या : दाँत न होने पर भी बूढ़े लोग खेढ़े को चूस सकते हैं। यह सब्जी शक्तिवर्धक नहीं होती, अतः इसे लोग पसंद न करते हुए कह देते हैं कि यह बूढों के लिए है।
- प्रयोग अनुकूलता : किसी घटिया वस्तु को स्वयं पसंद न कर के परिवार के अन्य लोगों को देने पर यह कहावत कही जाती है।
- शब्दार्थ : खेढ़ा-एक प्रकार की सब्जी, साग-सब्जी, बुढ़वा-बूढ़ा
- खेत चरे गदहा, मार खाय जोलहा। -- गदहा खेत चरता है और जुलाहे को मार पड़ती है।
- व्याख्या : हानि कोई और करे तथा दंड कोई और भोगे।
- प्रयोग अनुकूलता : इस कहावत का प्रयोग ऐसे अवसर पर होता है, जब अनुचित कार्य कोई और करता है तथा उसका दंड किसी और को भोगना पड़ता है।
- शब्दार्थ : गदहा-गधा, जोलहा-जुलाहा
- खेती अपन सेती। -- खेती अपने बूते पर होती है।
- व्याख्या : यदि खेती करने वाला व्यक्ति नौकरों पर आश्रित रहे, तो उसका काम ठीक समय पर न होने से बिगड़ जाता है। उसे स्वयं देख-भाल करनी पड़ती है।
- प्रयोग अनुकूलता : दूसरे पर आश्रित रहने वाले के लिए यह कहावत कही जाती है।
- शब्दार्थ : अपन-अपना, सेती-कारण
- खेती करै न बनिजै जाय, विद्या के बल बैठे खाय। -- न तो खेती करता है और न व्यापर, विद्या के भरोसे बैठे-बैठे खाता है।
- व्याख्या : पढ़े-लिखे व्यक्ति को इधर-उधर भटकना नहीं पड़ता। वह अपने ज्ञान के भरोसे जहाँ रहता है, वहाँ कमा लेता है।
- प्रयोग अनुकूलता : विद्या को खेती तथा व्यापार से श्रेष्ठ बताने के लिए यह कहावत कही जाती है।
- शब्दार्थ : बनिजै-व्यापार
- खेलाय-कुदाय के नाव नहीं, गिराय-पराय के नाव। -- खेलाने-कुदाने का नाम नहीं, गिराने का नाम।
- व्याख्या : दूसरे किसी के बच्चे को कोई व्यक्ति कितना भी प्यार करे, उस के माँ-बाप तथा अन्य लोग प्यार करने वाले व्यक्ति की प्रशंसा नहीं करते। परंतु उसे यदि कोई चोट लग जाए, तो लोग उसकी निंदा करने लग जाते हैं।
- प्रयोग अनुकूलता : जब कोई व्यक्ति किसी का बहुत सारा काम कर देता है, तब उसकी प्रशंसा न करके थोड़ा सा काम न करने पर यदि वह उसकी बुराई करे, तब यह कहावत कही जाती है।
- शब्दार्थ : खेलाय-खेलना, कुदाय-कूदाना, नाव-नाम, गिराय-गिराना, पराय-पड़ाय
- खेलो न जुवां, झाँको न कुँवा। -- जुआ मत खेलो तथा कुँआ मत झाँको।
- व्याख्या : जिस व्यक्ति को जुआं खेलने की आदत पड़ जाए, वह जुए में अपनी सारी पूंजी भी हार सकता है। कुएँ में झाँकने वाला व्यक्ति धोखे से कुएँ में गिर सकता है।
- प्रयोग अनुकूलता : बच्चों को सीख देने के लिए यह कहावत कही जाती है।
- शब्दार्थ : जुवां-जुआं, कुंवा-कुंआ
- खोंटनी भाजी कस खोंट-खोंट खाय। -- खोंटनी भाजी के समान तोड़-तोड़ कर खाता है।
- व्याख्या : खोंटनी भाजी से पत्ते तोड़ने पर उसमें शीघ्र नए-नए पत्ते लग जाते हैं, जिससे उसके पत्तों की सब्जी खाने के लिए बार-बार मिलती रहती है।
- प्रयोग अनुकूलता : जब कोई व्यक्ति अपने किसी रिश्तेदार अथवा हितैषी से बार-बार पैसे माँगकर अपना खर्च पूरा करता है, तब उसके लिए यह कहावत कही जाती है।
- शब्दार्थ : खोंटनी भाजी-एक प्रकार की भाजी, खोंट-तोड़, खाय-खाना
- खाये बर करछूल नहिं, हेर मारे तलवार। -- खाना बनाने के लिए करछी तक नहीं है और तलवार निकाल कर मारता है।
- व्याख्या : लोहे के नाम पर घर में करछी तक तो है नहीं, परंतु बात करता है, तलवार निकाल कर मारने की।
- प्रयोग अनुकूलता : अपनी वास्तविक स्थिति को छिपाकर डींग मारने वालों के लिए यह कहावत कही जाती है।
- शब्दार्थ : करछूल-करछी, खाये बर-खाने के लिए, नहिं-नहीं, हेर-निकालना
- खोरवा कनवा बड़ा उपाई। -- लँगड़े तथा काने बड़े उपद्रवी होते हैं।
- व्याख्या : लँगड़े तथा काने व्यक्ति का मन विध्वंसात्मक कायों में अधिक लगता है। उनका अंग-भंग होने के कराण उनकी शक्ति संभवतः अन्यों को अपने जैसा बनाने के मनोविज्ञान के कारण तोड़-फोड़ वाले कामों में खर्च होती है।
- प्रयोग अनुकूलता : गलत कार्यों में मन लगाने वाले व्यक्ति को ताना देते हुए यह कहावत कही जाती है।
- शब्दार्थ : खोरवा-लँगड़ा
- खोरी के एक गोड़ उठेच हे। -- लँगड़ी का एक पैर उठा ही रहता है।
- व्याख्या : किसी स्त्री के लँगड़ी होने के कारण उसका एक पैर हमेशा उठा ही रहता है, जिससे वह हमेशा चलने को तैयार दिखती है।
- प्रयोग अनुकूलता : जो व्यक्ति हर काम के लिए हमेशा तैयार रहे, उसके लिए यह कहावत कही जाती है।
- शब्दार्थ : खोरी-लँगड़ी, गोड़-पैर, उठेच-उठा ही
- खोरी गोड़ मां चुरवा। -- लँगड़ी पैर में चूड़ा।
- व्याख्या : लँगड़ी होने के कारण किसी स्त्री को चलने में तकलीफ होती है। यदि ऊपर से वह चूड़ा पहन ले, तो उसका चलना और भी दूभर हो जाता है।
- प्रयोग अनुकूलता : एक तो स्वाभाविक कठिनाई हो, ऊपर से कोई विध्न पड़ जाने पर कार्य करना और भी मुश्किल हो, तब यह कहावत प्रयुक्त होती है।
- शब्दार्थ : चुरवा-पैर में पहनने का आभूषण
- गंगा गेए हाड़ नइ बहुरै। -- गंगा तक ले जाई गई हड्डी वापस नहीं लौटती।
- व्याख्या : सर्व विदित है कि गंगाजी में अस्थि-प्रवाह किया जाता है। जो व्यक्ति अस्थि-प्रवाह के लिए जाता है, वह येन-केन-प्रकारेण अस्थि-प्रवाह करके ही लौटता है।
- प्रयोग अनुकूलता : जब किसी विदेश गए व्यक्ति के लौटने की कोई आशा नहीं, तब यह कहावत कही जाती है।
- शब्दार्थ : हाड़-हड्डी, बहुरै-वापस लौटना
- गठरी के रोटी अउ पनही के गोंटी रहासी नइ परै। -- गठरी में रोटी और जूते में कंकड़ नहीं रह पाती।
- व्याख्या : गठरी में रोटी रखकर चलने वाला व्यक्ति उसे बहुत समय तक गठरी में नहीं रहने देता, उसकी इच्छा उसे जल्दी खाने की होती है। उसी प्रकार, जूते में कंकड़ घुस जाने पर वह पैर को कष्ट पहुँचाता है, जिससे उसे जल्दी निकालने की इच्छा होती है।
- प्रयोग अनुकूलता : जब पास रखी किसी वस्तु के लिए कोई लोभ संवरण न कर पाए, तब यह कहावत कही जाती है।
- शब्दार्थ : पनही-जूता, अउ-और, गोंटी-कंकड़, रहासी-रहना, नइ-नहीं, पै-पड़ना
- गत न गरहन, सूपा भर ओरहन। -- सूरत न शक्ल, सूपे भर गहने।
- व्याख्या : रंग-रूप ठीक नहीं होने पर खूबसूरत बनने के लिए ढेर सारे आभूषण पहन लेना बहुत हास्यास्पद लगता है।
- प्रयोग अनुकूलता : व्यक्ति अपने किसी ऐब को ढकने के लिए विभिन्न आडंबर रचाए, तो यह कहावत कही जाती है।
- शब्दार्थ : गत-गरहन-सूरत-शकल, ओरहन-आभूषण, सूपा-सूप
- गदहा के मूड़ माँ सींग। -- गदहे के सिर पर सींग।
- व्याख्या : गइहे के सिर पर सींग नहीं होते। मूर्ख व्यक्ति के सिर पर भी सींग नहीं होते।
- प्रयोग अनुकूलता : किसी की मूखर्तापूर्ण बातों को सुनकर यह कहावत कही जाती है।
- शब्दार्थ : गदहा-गधा, मूड़-सिर
- गया नइ गिस त काबर भइस। -- गया नहीं गए, तो पैदा क्यों हुए।
- व्याख्या : हिंदुओं में पिंड-दान करने के लिए गया को महत्वपूर्ण स्थान बताया गया है। माँ-बाप के ऋण से छुटकारा पाने के लिए उनकी मृत्यु के उपरांत पुत्र को गया जाकर पिंड-दान कराना चाहिए।
- प्रयोग अनुकूलता : जो लड़का माँ-बाप की सेवा न कर सका, वह पुत्र किस काम का। ऐसे पुत्रों को ताना देते हुए यह कहावत कही जाती है।
- शब्दार्थ : नइ-नहीं, गिस-गया, बर-के कारण
- गहूँ के रोटी टेड़गो मीठ। -- गेहूँ की रोटी टेढ़ी भी मीठी होती हे।
- व्याख्या : गेहूँ की रोटी अन्य अनाजों की रोटी की तुलना में मीठी होने के कारण अधिक अच्छी लगती है, इसलिए यदि वह टेढ़ी भी हो जाए, तो उसकी बुराई की ओर ध्यान नहीं दिया जाता।
- प्रयोग अनुकूलता : किसी अच्छी वस्तु में कोई खराबी आ जाए, तो वह त्याज्य नहीं होती, ऐसे समय में यह कहावत कही जाती है।
- शब्दार्थ : गहूं-गेहूं, टेड़गो-टेड़ी
- गहूँ के संग माँ किरवा रमजाय। -- गेहूँ के साथ कीड़ा पिस गया।
- व्याख्या : बड़ों के साथ रहने के करण छोटों का भी नुकसान हो जाता है।
- प्रयोग अनुकूलता : किसी बड़े आदमी के साथ रहने में यदि उस व्यक्ति का नुकसान होता है, तो साथ में रहने वाले को भी नुकसान झेलना पड़ता है। किसी के आश्रित रहने वाले व्यक्ति को आश्रय दाता सहित संकट में पड़े देखकर यह कहावत कही जाती है।
- शब्दार्थ : किरवा-कीड़ा, रमजाय-पिस जाना
- गाँठ माँ न कौड़ी, नाक छेदावन दौड़ी। -- पास में कौड़ी भी नहीं है और नाक छिदाने के लिए दौड़ रही है।
- व्याख्या : पास में पैसे तो नहीं है, परंतु शौक पूरा करने की उत्कट अभिलाषा है।
- प्रयोग अनुकूलता : औकात न होने पर भी शौक करने की इच्छा वाले व्यक्तियों के लिए यह कहावत कही जाती है।
- शब्दार्थ : गांठ मां-पास में
- गाँठ माँ पैसा नहिं, आँखी काबर मारे? -- गाँठ में पैसे नहीं है, तो आँख क्यों मारे?
- व्याख्या : किसी स्त्री को अपनी ओर आकर्षित करने के लिए ईशारा करने से पहले देख लेना चाहिए कि उसकी माँगें पूरी करने के लिए पैसे हैं या नहीं।
- प्रयोग अनुकूलता : बिना आधार के कोई काम हल कर डालने की चाह रखने वालों के लिए इस कहावत का प्रयोग होता है।
- शब्दार्थ : आंखीं-आंख, काबर-के कारण
गाँठ माँ पैसा है, त संगी के का दुकाल। -- गाँठ में पैसे हैं, तो साथी की क्या कमी।
- व्याख्या : जिस के पास पैसे हों, उसे साथियों की कमी नहीं रहती, क्योंकि अन्य लोग उसके पैसे के कारण साथी बन जाते हैं।
- प्रयोग अनुकूलता : पैसों से अनेक पिछलग्गू बन जाते हैं। ऐसे लोगों के लिए यह कहावत कही जाती है।
- शब्दार्थ : संगी-दोस्त, दुकाल-कमी
- गाँड़ा कस बछवा किंजरत हे। -- गाँड़े के बछड़े के समान घूमता है।
- व्याख्या : गाँड़ा गाँव का चौकीदार होता है। सामान्य लोगों पर उसकी धाक होती है। यदि उसका बछड़ा किसी की फसल चर डाले, तो भी उससे कोई शिकायत नहीं करता, जिससे उसका बछड़ा स्वतंत्रतापूवर्क घूमता है।
- प्रयोग अनुकूलता : किसी शक्तिशाली व्यक्ति का पुत्र लोगों के साथ अनुचित व्यवहार करता है, तो यह कार्य निंदनीय होने पर भी लोग उसकी शिकायत नहीं करते। ऐसे परिपेक्ष्य में यह कहावत कही जाती है।
- शब्दार्थ : बछवा-बछड़ा, कस-के समान, किंजरत-घूमना
- गँडवा घर गाय नइ ए, एक ठन बाय हे। -- गाँड़े के घर गाय नहीं है, एक बला है।
- व्याख्या : गाँडे की गाय को डर से लोग छेड़ते नहीं है, जिससे वह फसल बरबाद कर डालती है।
- प्रयोग अनुकूलता : किसी शक्तिशाली व्यक्ति की ज्यादती को लक्ष्य कर के यह कहावत कही जाती है।
- शब्दार्थ : नइ-नहीं, ठन-नग, बाय-बला
- गाँडू बैठे, गद्दी, साधू चले किनार। सती बिचारी भूख मरै, लडुवा खाय छिनार। -- गाँडू गद्दी पर बैठता है। साधू इधर-उधर भटकता है।
- व्याख्या : सती बेचारी भूखों मरती है और छिनाल लड्डू खाती है।
- प्रयोग अनुकूलता : योग्य व्यक्तियों के कष्टों तथा अयोग्य व्यक्तियों के ऐश-आराम को देखकर यह कहावत कही जाती है।
- शब्दार्थ : बिचारी-बेचारी, लडुवा-लड्डू
- गाँव के कुकुर गाँवे डाहर भूँकही। -- गाँव का कुत्ता गाँव की तरफ ही भौकता है।
- व्याख्या : जब कुत्तों में आपस में लड़ाई होती है, तब किसी गाँव के कुत्ते एक-दूसरे का पक्ष लेकर बाहर से आए हुए कुत्ते को लड़कर भगाने की चेष्टा करते हैं।
- प्रयोग अनुकूलता : जब कोई व्यक्ति अपने किसी परिचित व्यक्ति या रिश्तेदार आदि का पक्ष लेता है, तब उसके लिए यह कहावत कही जाती है।
- शब्दार्थ : डाहर-की ओर, भूंकही-भूंकना
- गाँव के जोगी जोगड़ा, आन गाँव के सिद्ध। -- गाँव का जोगी जोगड़ा, दूसरे गाँव का सिद्ध।
- व्याख्या : व्यक्ति का आदर बाहर ही होता है, अपने गाँव में नहीं।
- प्रयोग अनुकूलता : इस कहावत का प्रयोग तब होता है, जब बाहर के किसी सामान्य व्यक्ति को प्रतिष्ठा दी जाती है और अपने गाँव के विद्वान का आदर नहीं किया जाता।
- शब्दार्थ : आन-दूसरा
- गाँव गए गँवार कहाए। -- गाँव गए, गँवार कहलाए।
- व्याख्या : यदि कोई व्यक्ति अपने गाँव से बाहर चला जाता है, जहाँ उसे वहाँ के लोग नहीं समझ पाते और धोखे से उसकी बेइज्जती कर बैठते हैं, तो ऐसा व्यक्ति वहाँ के लोगों के लिए मूर्ख हो जाता है।
- प्रयोग अनुकूलता : कहीं किसी योग्य व्यक्ति को लोग धोखे से मूर्ख समझ बैठें, तो यह कहावत कही जाती है।
- शब्दार्थ : कहाए-कहलाना
- गाँव भर सोवै, त फकिड़ रोटी पोव। -- गाँव के सब लोग सो जाते हैं, तो फकीर रोटी बनाता है।
- व्याख्या : परिवार वाले लोगों का जीवन नियमित होता है, परंतु फकीर अपनी मर्जी के अनुसार काम करता है, क्योंकि न तो वह किसी पर आश्रित होता है और न ही कोई उस पर आश्रित होता है।
- प्रयोग अनुकूलता : फकीर व्यक्ति की स्वच्छंदता पर टिप्पणी करने के लिए यह कहावत कही जाती है।
- शब्दार्थ : सावै-सोना, पोव-बनाना
- गाड़ा कतको टूट जाही, तभो गाड़ी के पाचर के पुरती होबे करही। -- गाड़ा कितना भी टूट जाए, तो भी उससे गाड़ी के पुर्जे बनाए जा सकते हैं।
- व्याख्या : किसी बड़ी वस्तु के अवशेष उससे मिलती-जुलती छोटी वस्तु के लिए उपयोगी होते हैं।
- प्रयोग अनुकूलता : अनुपयोगी सामानों से उपयोगी सामान बना लेने की जुगत के लिए यह कहावत कही जाती है।
- शब्दार्थ : गाड़ा-बड़ी गाड़ी, ककतो-कितना ही, तभो-तब भी, पाचर-पुर्जे पुरती-पूरा, होबे-होना
- गाय चरावै राउत, दूध खाय बिलैया। -- रावत गाय चराता है, दूध बिल्ली पी जाती है।
- व्याख्या : गाय चराने का काम राउत जाति करती है, लेकिन उसको दूध का लाभ नहीं होता, क्योंकि बिल्ली दूध पी जाती है।
- प्रयोग अनुकूलता : मेहनत कोई और करे तथा फल कोई और पा जाए, तब यह कहावत कही जाती है।
- शब्दार्थ : राउत-रावत जाति, चरावै-चराना, खाय-खाना, बिलैया-बिल्ली
- गाय न घोरी, सुख सोवै कोरी। -- गाय न घोड़ी, सुख से सोवे कोरी।
- व्याख्या : किसी के भरण-पोषण का भार न होने पर चिंता नहीं होती , जिससे ऐसे लोग सुख की नींद सोते हैं।
- प्रयोग अनुकूलता : परिवार-विहीन लोगों की निश्चिंतता को देखकर यह कहावत कही जाती है।
- शब्दार्थ : कोरी-एक जाति
- गाए बर रमाय न पोथी, कीरा परै भीतरी कोती। -- गाने के लिए रामायण-पोथी, कीड़े हैं हृदय में।
- व्याख्या : दिखने में कुछ और, अंदर से कुछ और।
- प्रयोग अनुकूलता : रामायण आदि धार्मिक ग्रंथों को पढ़ने वाले व्यक्ति को धार्मिक व्यक्ति समझा जाता है, परंतु यदि वह धर्म की आड़ में कुकर्म करने लगे, तो अन्य लोग उसकी निंदा करते हैं कि उसके भीतर रामायण-पोथी का कोई अच्छा प्रभाव नहीं है ‘मुख में राम बगल में छुरी’
- शब्दार्थ : बर-के कारण, रमाय-रामायण, कीरा-कीड़ा, परै-पड़ना
- गिर परे के हर गंगा। -- गिर पड़े तो हर गंगा।
- व्याख्या : यदि कोई व्यक्ति गंगा में गिर पड़े, तो वह अपनी खीझ मिटाने के लिए ‘हर गंगा’ कहते हुए हुबकी लगा लेता है।
- प्रयोग अनुकूलता : इसी प्रकार, धोखे से कोई काम बन जाने पर यह कहावत कही जाती है।
- शब्दार्थ : परे-पड़े
- गीदर गादर सोवै, मरजाद वाले रोवै। -- फटे-पुराने चीथड़े वाला गरीब सुख से सोता है, परंतु प्रतिष्ठावान रोता है।
- व्याख्या : गरीब आदमी अपने फटे-पुराने कपड़ों में ही संतोष कर लेता है, परन्तु बड़ा आदमी कीमती वस्त्रों के अभाव में रोता रहता है।
- प्रयोग अनुकूलता : आवश्यकता से अधिक पाने की चाह रखने वालों के लिए यह कहावत कही जाती है।
- शब्दार्थ : गीदर-गादर-फटे-पुराने, मरजाद-प्रतिष्ठावान
- गुनिया के डौकी ठगड़ी। -- गुनिया की पत्नी बाँझ।
- व्याख्या : गुनिया व्यक्ति संतानहीन लोगों के लिए संतान पैदा होने के लिए अपनी गुनियाई करता है, परंतु ऐसी गुनियाई स्वयं के लिए नहीं कर सकता, जिससे उसकी स्त्री बाँझ रहती है।
- प्रयोग अनुकूलता : जो दूसरों को लाभ पहुँचाता है, परन्तु स्वयं के लिए कुछ नहीं कर सकता, जिससे उस के लिए यह कहावत कही जाती है।
- शब्दार्थ : डौकी-पत्नी, ठगड़ी-बांझ
- गुर खाय गांगू, मार खाय टुकना। -- गूँगा गुड़ खाता है और मार टोकने को सहनी पड़ती है।
- व्याख्या : गूँगा टोकनी में रखे गुड़ को खा लेता है और इशारा टोकनी की ओर करता है, जससे गुड़ का मालिक टोकनी को दोषी समझकर उसे दंड देता है।
- प्रयोग अनुकूलता : यदि अपराध करने वाला व्यक्ति बच जाए तथा निर्दोष व्यक्ति पकड़ जाए, तो यह कहावत कही जाती है।
- शब्दार्थ : गांगू-गूँगा, टुकना-टोकरी, गुर-गुड़
- गुर खाय अउ गुलगुला ले परहेज। -- गुड़ खाए, गुलगुले से परहेज करे।
- व्याख्या : गुड़ खाकर गुड़ से बने गुलगुले से परहेज करने वाला व्यक्ति वास्तव में ढोंग करता है। यदि कोई व्यक्ति घूँस के नाम पर पैसे न ले, परंतु बदले में कोई उपहार ले ले, तो उसका यह ढोंग ही है।
- प्रयोग अनुकूलता : जब व्यक्ति एक वस्तु स्वीकार करता है और उससे मिलती-जुलती किसी वस्तु से इंकार करता है, तब इस कहावत का प्रयोग किया जाता है।
- शब्दार्थ : गुर-गुड़, अउ-और, गुलगुला-एक प्रकार का मीठा भजिया, ले-के
- गुरू तो गुर रहिगे, चेला सक्कर होगे। -- गुरू तो गुड़ ही रहा चेला शक्कर हो गया।
- व्याख्या : ज्ञान देने वाले ने तो कोई प्रगति नहीं की, परंतु ज्ञान पाने वाला व्यक्ति आगे बढ़ गया।
- प्रयोग अनुकूलता : किसी से सीख कर आगे बढ़ने वाले के लिए यह कहावत कही जाती है।
- शब्दार्थ : गुर-गुड़, सक्कर-शक्कर
- गुह के भाई पाद। -- गू का भाई पाद।
- व्याख्या : अनैतिक या वर्जित कार्य चाहे छोटा हो या बड़ा, उसे करने वाले व्यक्ति एक ही दर्जे में रखे जाते हैं।
- प्रयोग अनुकूलता : ऐसे लोगों को एक जैसा बताने के लिए यह कहावत कही जाती है।
- शब्दार्थ : गुह-गू
- गुह हँसे गोबर ला। -- गू गोबर को हँसता है।
- व्याख्या : दोनों समान अनैतिक कार्य करते हैं, पर एक दूसरे पर हंसते हैं।
- प्रयोग अनुकूलता : जब दो अनैतिक कार्य करने वालों में से पहला दूसरे की खिल्ली उड़ाता है, तब यह कहावत कही जाती है।
- शब्दार्थ : गुह-गू, ला-को
गोकुल के बिटिया मथुरा के गाय, करम छाँड़े त अंते जाय। -- गोकुल की बेटी और मथुरा की गाय कर्म खोटे होने पर अन्यत्र जाती है।
- व्याख्या : मथुरा में गाय को चारे की तथा गोकुल की लड़की को वहाँ अनेक प्रकार के आमोद-प्रमोद की सुविधा रहती है। यदि इन्हें ऐसा स्थान छोड़ना पड़े, तो उनका दुर्भाग्य है।
- प्रयोग अनुकूलता : सुख-सुविधा छोड़कर अन्यत्र चले जाने वाले के लिए यह कहावत कही जाती है।
- शब्दार्थ : करम-कर्म, अंते-अन्यत्र, जाय-जाना
- गोठियाए आवय तेखर अँकर बेचाय, नइ गोठियाए आवय तेखर गहूँ लहुट जाय। -- जिसे बात करना आता है, उसकी अँकरी बिक जाती है और जिसे बात करना नहीं आता, उसका गेहूँ भी लौट आता है।
- व्याख्या : व्यापार करने वाले को बातचीत में प्रवीण होना चाहिए।
- प्रयोग अनुकूलता : भोले-भाले देहाती अपनी वस्तुओं को ठीक रूप में प्रस्तुत नहीं कर पाते, जिससे उन्हें उनका उचित मूल्य नहीं मिल पाता। ऐसे व्यक्तियों के लिए यह कहावत कही जाती है।
- शब्दार्थ : अँकरी-एक प्रकार का निकृष्ट अनाज, आवय-आना, तेखर-उसका, बेचाय-बिकना, नइ-नहीं, गोठियाए-बातचीत करना, गहूँ-गेहूं, लहुट-लौटना, जाय-जाना
- गोड़ के बोझा ल मूँड़ माँ पटके। -- पैर के बोझ को सिर पर पटकता है।
- व्याख्या : जो व्यक्ति अपने पैरों को सिर पर धर लेगा, तो काम क्या खाक करेगा या जो काम उसे अपने पैरों से करना चाहिए, वह उसे सिर पर लाद देगा, तो वह अपना ही नुकसान करेगा।
- प्रयोग अनुकूलता : जब कोई व्यक्ति अपने ही हाथों अपना ही नुकसान करता हैं तब यह कहावत कही जाती है।
- शब्दार्थ : गोड़-पैर, बोझा-वजन, ल-को, मूंड़-सिर, पटके-पटकना
- गोड़ धो के माढ़ गे हे। -- पैर धोकर बैठ गया है।
- व्याख्या : बिना कहे हाथ-पैर धोकर खाना खाने के लिए बैठ गया है।
- प्रयोग अनुकूलता : जब कोई व्यक्ति अनावश्यक रूप से दूसरों का बोझ बन जाता है, तब यह कहावत कही जाती है।
- शब्दार्थ : गोड़-पैर, माढ़-बैठ
- गोबर कीरा कस सनसनात हे। -- गोबर के कीड़े के समान सन-सन की आवाज करता है।
- व्याख्या : गोबर के कीड़े चूँकि अधिक संख्या में उत्पन्न होने के कारण एक साथ छाकर खूब भिनभिनाते हैं, इसलिए उनसे व्यक्ति परेशान हो उठता है।
- प्रयोग अनुकूलता : यदि किसी के लगातार जल्दी-जल्दी बच्चे पैदा होने लगे, तो उन के शोरगुल से परेशान होकर यह कहावत कही जाती है।
- शब्दार्थ : कीरा-कीड़ा, कस-जैसे, सनसनात-सनसनाना, हे-है
- घर के परसोइया, अउ आँधियारी रात। -- घर का परोसने वाला और अँधेरी रात।
- व्याख्या : एक तो घर का ही व्यक्ति खाना परोसने वाला हो और ऊपर से अँधेरी रात हो, तो चाहे जितना खाओ, चाहे जितना बाँधकर ले जाओ, कोई देखने वाला नहीं होता।
- प्रयोग अनुकूलता : मनमौजी कार्यों के लिए यह कहावत कही जाती है।
- शब्दार्थ : परसोइया-परोसने वाला, अउ-और, अंधियारी-अंधेरी
- घर के पिसान ला कुकुर खाय, परिथन बर माँगे जाय। -- घर के आटे को कुत्ता खाता है, पलेथन के लिए दूसरे से आटा माँगना पड़ता है।
- व्याख्या : अपनी चीजों को संरक्षित न रख पाना।
- प्रयोग अनुकूलता : अपनी वस्तु को सुरक्षित न रख कर दूसरों से किसी वस्तु को माँगने वालों के लिए यह कहावत कही जाती है।
- शब्दार्थ : पिसान-आटा, परिथन-पलेथन
- घर के भेदी, लंका छेदी। -- घर का भेदी, लंका ढाए।
- व्याख्या : घर का भेद देने वाला घर वालों का जड़-मूल से नाश करता है।
- प्रयोग अनुकूलता : जब किसी से मिला हुआ व्यक्ति उस के दुश्मन से मिलकर भेद बता देता है, तब उसे नीचा दिखाने में उसके दुश्मन को आसानी हो जाती है। यह कहावत विभीषण के राम-भक्त होने और लंका के ढह जाने के कारण प्रचलित हुई।
- शब्दार्थ : छेदी – छेद करने वाला।
- घर के मुर्गी, दार बराबर। -- घर की मुर्गी, दाल बराबर।
- व्याख्या : जो वस्तु सुलभ हो, उसका मूल्य घट जाता है।
- प्रयोग अनुकूलता : इस कहावत का प्रयोग ऐसेअवसर पर किया जाता है, जब कोई विसक्त सहज ही उपलब्ध वस्तु की मूल्य घट जाए
- शब्दार्थ : मुरगी-मुर्गी,
- घर गोसइयाँ ला पहुना डरवावै। -- घर-मालिक को मेंहमान डराता है।
- व्याख्या : जब कोई मेहमान किसी का वस्तुओं को अपना मानकर उनका उपयोग करने लगता है, लब उसके कार्य से घर वाला को तकलीफ होने लगती है।
- प्रयोग अनुकूलता : जब कोई व्यक्ति किसी का वस्तु पर अधिकार कर लेता है, तब यह कहावत कही जाती है।
- शब्दार्थ : पहुना-मेहमान, गोसइया-पति, डरवाव-डरवाना
- घर दुवार तोर बहुरिया, डहरी मा पाँव झन देहा। -- बहू, घर-द्वार तुम्हारा है, परतु देहली से बाहर कदम न रखना।
- व्याख्या : किसी बहू को घर-द्वार सौंप देने का अर्थ उसे घर में बंद कर देना हो गया, कयोंकि उसे घर देने के बहाने उससे अधिकार को छीन लिया गया।
- प्रयोग अनुकूलता : किसी के अधिकार को छीनकर उसे अधिकार देने की बात पर यह कहावत कहीं जाती है।
- शब्दार्थ : NA
- घर देख बहुरिया निरवारै। -- बहू घर के अनुरूप हो जाती है।
- व्याख्या : जब कोई बहू ससुराल जाकर वहाँ के लोगों के स्वभाव के अनुसार ढल जाती है, तब उसके स्वभाव मे हुए परिवर्तन को देखकर यह कहावत कही जाती है।
- प्रयोग अनुकूलता : समय को देखकर अपने स्वभाव में परिवर्तन कर लेने वालो के लिए यह कहावत कहा जाता है।
- शब्दार्थ : बहुरिया-बहू, निरवारै-अनुरूप
- घर माँ खाय सीट्ठा साग, बाहर मा रेंगै अलगे डारि। -- घर में सीठी सब्जी खाना, बाहर अलग रास्ते पर चलना।
- व्याख्या : घर में तो खाने के लिए नमक तक नहीं हैं, परंतु, बाहर रौब दिखाना।
- प्रयोग अनुकूलता : गरीबी को छिपाकर अपने को बड़ा आदमी बताने का ढोंग करने वालों के लिए यह कहावत कही जाता है।
- शब्दार्थ : खाय-खाना, सीट्ठा-बिना स्वाद का, साग-सब्जी, बाहिर-बाहर, रेंगै-चलना, अलगे-अलग, डार-की ओर
- घर माँ बल करे, खोर मा पाँव परै। -- घर मे बल प्रदशित करतां है, गली में पैर पड़ता है।
- व्याख्या : घर में आरा के सहारे अकड़ने तथा बाहर अपनी सामर्थ्य की वास्तविकता जानकर पैर पड़ने वाले।
- प्रयोग अनुकूलता : झूठा शक्ति दिखाने वालो के लिए यह कहावत कही जाती है।
- शब्दार्थ : खोर-बाहर, परै-पड़ना
- घर माँ भूँजी भाँग नहिं, पिछोत मेंछा अइठय -- घर मे भूंजी भाग नही, पीछे मूछ ऐठना।
- व्याख्या : घर में खाने के लिए वस्तु का अभाव है, फिर भी मूँठ ऐंठते हुए अपने को धनवान कहता है।
- प्रयोग अनुकूलता : इस कहावत का प्रयोग ऐसे व्यक्तियों के लिए होता है, जिनके पास होता तो कुछ भी नहीं है, परंतु प्रदर्शन ऐसा-करते हैं, जिससे लोग उन्हें धनी समझें।
- शब्दार्थ : पिछोत-घर के पीछे, मेंछा-मूँछ, नहिं-नहीं, अइठय-ऐंठना
- घर माँ भूँजी भाँग नहिं, सुल्तान बलाय ला जाय। -- घर में भूँजी भाँग नहीं, और सुल्तान को बुलाना।
- व्याख्या : घर में खाने के लिए कुछ नहीं होने पर भी ठाटबाट का दिखावा करना।
- प्रयोग अनुकूलता : इस कहावत का प्रयोग ऐसे लोगों के लिए किया जाता है, जिनके घर में खाने के लिए कुछ होता नहीं है और अपने को अमीर दिखाने के लिए वे ठाटबाट से रहने की चेष्टा करते हैं।
- शब्दार्थ : नहिं-नहीं, बलाय-बुलाना, जाय-जाना
- घर राखै अउ छेना थोपै। -- घर की रखवाली करे और कंडा थापे।
- व्याख्या : घर की रखवाली करते हुए कंडे थापने का कार्य करना ‘एक पंथ दो काज’ के समान है।
- प्रयोग अनुकूलता : एक निमित्त से दो कार्य करने वालों के लिए यह कहावत प्रयुक्त होती है।
- शब्दार्थ : राखै-रखना, अउ-और, छेना-कंडा
- घरे माँ नेवरा, घरे माँ बिलैया। -- घर में नेवला, घर में बिल्ली।
- व्याख्या : जब दो ऐसे व्यक्ति, जिनमें आपस में विरोध हों, एक साथ रह रहे हों, तब उनमें किसी भी समय लड़ाई हो सकती है।
- प्रयोग अनुकूलता : उन दोनों के पास-पास रहने के कारण भविष्य के खतरे को बतलाने के लिए यह कहावत कही जाती है।
- शब्दार्थ : नेवरा-नेवला, घरे-घर, बिलैया-बिल्ली
- घरे नाग पूजै नहिं, भिंभोरा पूजे जाय। -- घर में आए हुए नाग की पूजा न करके नाग के बिल की पूजा करने जाता है।
- व्याख्या : मिले हुए अवसर का लाभ न लेना।
- प्रयोग अनुकूलता : इस कहावत का प्रयोग ऐसे लोगों के लिए होता है, जो अवसर का लाभ न उठाकर अच्छे अवसर की प्रतीक्षा करते हैं, जिससे मिलने वाला लाभ भी चला जाता है।
- शब्दार्थ : भिंभौंरा-ऐसा स्थान जहाँ साँप रहता है, पूजै-पूजना, नहिं-नहीं, जाय-जाना
- घसिया के बूती घोड़वा नइ बेचाय। -- सईस के बल-बूते पर घोड़ा नहीं बिकता।
- व्याख्या : अपना कार्य स्वयं करने से होता है।
- प्रयोग अनुकूलता : जब कोई काम किसी को करने के लिए कहा जाए और उससे वह काम न हो सके, जिस प्रकार सईस के भरोसे रहने से घोड़ा नहीं बिकता, तब यह कहावत कही जाती है।
- शब्दार्थ : घसिया-सईस, बूती-बूते, घोड़वा-घोड़ा, नइ-नहीं, बेचाय-बेचना
घाट-घाट के पानी पीए हे। -- घाट-घाट का पानी पिए हुए।
- व्याख्या : कई जगह का अनुभव प्राप्त।
- प्रयोग अनुकूलता : ऐसी स्त्री जो कई पति कर चुकी हो और कहीं स्थायी रूप से न रह पाई हो, उसकी चरित्रहीनता को लक्ष्य करके या इसी प्रकार स्थान-स्थान पर दाँव-पेंच खेलने वाले चालू आदमी के लिए यह कहावत कही जाती है।
- शब्दार्थ : पीए-पीना
- घानी कस बइला किंजरत हे। -- कोल्हू के बैल के समान घूमता है।
- व्याख्या : गोल-गोल घूमना और कोई काम नहीं करना।
- प्रयोग अनुकूलता : कोई काम न करके इधर उघर घूमकर समय बरबाद करने वालों के लिए यह कहावत कही जाती है।
- शब्दार्थ : कस-जैसे बइला-बैल, किंजरत घुमना
- घी देत बाँभन नरियाय। -- मिलते हुए घी को न लेने से ब्राह्मण चिल्लाता है।
- व्याख्या : मिलते हुए अवसर के प्रति उदासीनता।
- प्रयोग अनुकूलता : जब कोई व्यक्ति किसी को कोई वस्तु ऐसी प्रदान करता है, जो उसे प्रिय है और उसे उस वस्तु लेने के लिए आशा के अनुसार मना नहीं करना चाहिए, लेकिन वह उसे लेने से इनकार कर देता है, तब यह कहावत कही जाती है।
- शब्दार्थ : नरियाय-चिल्लाता है, बांभन-ब्राम्हण, देत-देना
- घी ढरक गे पिसान माँ। -- घी आटे में गिर गया।
- व्याख्या : यदि घी आटे में गिर जाए, तो घी का नुकसान तो हो जाता है, परंतु वह उपयोग में भी आ जाता है।
- प्रयोग अनुकूलता : काम में किसी को नुकसान हो जाए और नुकसान होने वाले व्यक्ति के हितैषियों को उससे लाभ हो जाए तो ऐसा नुकसान विशेष कष्टदायक नहीं होता।
- शब्दार्थ : ढरक-ढरकना, पिसान-आटा
- घोड़-घोड़ी आन के पूछी थनवार के। -- घोड़ा-घोड़ी दूसरे की तथा पुंछ सईस की।
- व्याख्या : सईस किसी दूसरे व्यक्ति के घोड़े की सेवा करता है, उस पर उसका कोई अधिकार नहीं होता। अलबत्ता उसकी पूँछ पर वह अधिकार करता है, क्योंकि उस के काट लेने पर भी घोड़े का मुल्य यथावत रहता है।
- प्रयोग अनुकूलता : घोड़े की पूँछ के समान किसी भी बेकार वस्तु पर अधिकार व्यक्त करने के लेए यह कहावत कही जाती है।
- शब्दार्थ : आन-दूसरा, पूछी-पूंछ, थनवार-सईस
- घोड़वा के रोग बेंदरवा माँ जाय। -- घोड़े का रोग बंदर को जाए, तो वैद्य अपने उपचार से वही रोग बंदर को स्थानांतरित करके घोड़े को ठीक कर देता है।
- व्याख्या : NA
- प्रयोग अनुकूलता : जब किसी के क्रोध का शिकार एक के बदले दूसरा हो जाता है, तब यह कहावत कही जाती है।
- शब्दार्थ : घोड़वा-घोड़ा, बेंदरवा-बंदर जाय-जाना
- घोडवा बेच के सोवै। -- घोड़ा बेच कर सोता है।
- व्याख्या : घोड़ा बेचने के लिए चिंतित व्यक्ति उसके बिक जाने पर निश्चिंत सोता है।
- प्रयोग अनुकूलता : ऐसे ही किसी काम के पूर्ण हो जाने पर निश्चित होने वाले व्यक्ति तथा बहुत गहरी नींद में देर तक सोने वाले व्यक्ति के लिए यह कहावत प्रयुक्त होती है।
- शब्दार्थ : सौवे-सोना
- घोड़ी के लात ला घोड़े सहै। -- घोड़ी के पैर का आधात घोड़ा ही सहन करता है।
- व्याख्या : घोड़ी के पैर का आघात मनुष्य बर्दाश्त नहीं कर सकता।
- प्रयोग अनुकूलता : किसी पत्नी के अनावश्यक शौक आदि के खर्च का भार गरीब व्यक्ति सहन नहीं कर सकता। घोड़ी की भार घोड़ा ही बर्दाश्त करता है, उसी प्रकार किसी पत्नी की फिजूलखर्ची को संपन्न व्यक्ति ही बर्दाश्त कर सकता है।
- शब्दार्थ : ला-को, सहै-सहना
- चट मँगनी, पट बिहाव। -- चट मँगनी, पट ब्याह।
- व्याख्या : तुरंत कार्य।
- प्रयोग अनुकूलता : किसी बात की उतावली करने या काम बहुत शीघ्र कर डालने पर इस कहावत का प्रयोग होता है।
- शब्दार्थ : बिहाव-विवाह
- चटकन के का उधार। -- थप्पड़ की क्या उधार।
- व्याख्या : जब किसी कारणवश किसी को मारने का अवसर आ पड़ता है, तब उसे मारा ही जाता है, ‘बाद में मार लूँगा’ कहकर छोड़ा नहीं जाता। जब किसी बात के कहने का समय हो, तो उसे उसी समय कहना चाहिए।
- प्रयोग अनुकूलता : किसी बात का तुरंत जवाब देने के लिए यह कहावत कही जाती है।
- शब्दार्थ : चटकन-थप्पड़
- चढ़ाय बहुरिया चिंगरी माँ झोर माँगै। -- सिर चढ़ाई हुई बहू चिंगरी में शोरवा माँगती है।
- व्याख्या : ज्यादती करना।
- प्रयोग अनुकूलता : किसी व्यक्ति को अधिक बढ़ावा देने पर उसके द्वारा ज्यादती होते देखकर यह कहावत कही जाती है।
- शब्दार्थ : चिंगरी-एक प्रकर की मछली, बहुरिया-बहू, झोर-शोरवा
- चढ़ौ पाँडे चड़ौ तिवारी, घोड़वा गइस पराय। -- पांडे चढ़ौ, तिवारी चढ़ो, घोड़ा भाग गया।
- व्याख्या : पांडे जी चढ़िए तिवारी जी चढ़िए’ कहते रहने में घोड़ा भाग चला।
- प्रयोग अनुकूलता : जब कोई व्यक्ति झूठे शिष्टाचार में “आप पहले, आप पहले” कहता रहता है उससे समय तथा वस्तु की बरबादी होती है, तब यह कहावत कही जाती है।
- शब्दार्थ : गइस-गया, पराय-दूसरा
- चतुरा के चातर, के राँचर। -- चतुर की हानि, घर के किवाड़ को खलिहान के दरवाजे में लगाना।
- व्याख्या : अधिक चतुराई करने से लाभ होने के बजाय हानि हो जाती है।
- प्रयोग अनुकूलता : चतुर व्यक्ति ने बचत के लिए घर का फाटक खलिहान में लगवा दिया, जिससे उसे फसल काटने पर फाटक छोटा पड़ने के कारण दूसरा लगवाना पड़ा। ऐसे परिपेक्ष्य में यह कहावत कही जाती है।
- शब्दार्थ : चतुरा-चतुर, चातर-हानि, फरिका-किवाड़, रांचर-खलिहान का दरवाजा
- चमड़ी जाय, फेर दमड़ी झन जाय। -- चमड़ी जाए, पर दमड़ी न जाए।
- व्याख्या : अत्याधिक लालची होना।
- प्रयोग अनुकूलता : इस कहावत का प्रयोग ऐसे लोगों के लिए होता है, जो अपने शरीर की हानि की चिंता न करते हुए पैसों की चिंता करते हैं।
- शब्दार्थ : जाय-जाना, झन_ नहीं
- चलनी माँ गाय दूहै, करम ला दोस दै। -- चलनी में गाय दुहता है और भाग्य को दोष देता है।
- व्याख्या : स्पष्ट रूप से गलत कार्य कर के भाग्य का दोष बतलाना।
- प्रयोग अनुकूलता : इस कहावत का प्रयोग ऐसे लोगों के लिए किया जाता है, जो बिना सोचे-समझे कोई कार्य करतें हैं और विपरीत फल मिलने पर भाग्य को दोष देते हैं।
- शब्दार्थ : दूहै-दुहना, करम कर्म, दोस दोष
- चार आना के कुकरी, बारा आना फुदगौनी। -- चार आने की मुर्गी, बारह आने की सफाई।
- व्याख्या : मूल वस्तु की कीमत से उँसकी मरम्मत आदि —-खर्च करना।
- प्रयोग अनुकूलता : किसी सस्ती चीज की देख भाल या मरम्मत अधिक कीमत लगने पर इस कहावत का प्रयोग होता है।
- शब्दार्थ : कुकरी मुर्गी बारा बारह फुदगौनी सफाई
- चार ठन बरतन रइथे, तिहाँ ठिक्की लागबे करथे। -- चार बर्तन होने पर टकराएँगे ही
- व्याख्या : जहाँ चार आदमी इकट्ठे रहते हैं, वहाँ आपस में खटपट हो ही जाया करती है।
- प्रयोग अनुकूलता : परिवार के व्यक्तियों में झगड़ा हो जाने पर इस कहावत का प्रयोग होता है।
- शब्दार्थ : ठिक्की-टकराना, ठन नग, रइथे रहना, तिहां वहां लागबे लगना करथे करना
- चार दिन के राम-राम चेंदए। -- चार दिनों के लिए दूसरों से आदर पाना।
- व्याख्या : जब कोई व्यक्ति कुछ ही दिनों के लिए कोई पद पा जाता है, जिससे उसकी प्रतिष्ठा बढ़ जाती है तब वह पद के लिए अभिमान में अमर्यादित कार्य करने लगता है।
- प्रयोग अनुकूलता : किसी व्यक्ति को कोई पद मिल जाए और वह उसका दुरूपयोग करने लगे, तो उसके लिए यह कहावत कही जाती है।
- शब्दार्थ : राम-राम-नमस्कार का तरीका
- चार पैसा के परइ गिस कुकुर के जात पहिचाने गिस। -- चार पैसे का हंडी का ढक्कन मया, परंतु कुत्ते की जाति पहचानी गई।
- व्याख्या : व्यक्ति के स्वभाव का पता थोड़ी हानि से ही हो गया।
- प्रयोग अनुकूलता : कोई लालची व्यक्ति जब छोटे-मोटे लाभ के लिए अपना ईमान खो देता है और अन्यों को उसकी असलियत का पता चल जाता है, तब इस कहावत का प्रयोग होता है।
- शब्दार्थ : परइ-हंडी के ऊपर का ढक्कन, गिस-गया, कुकुर-कुत्ता, पहिचाने-पहचान
- चार बेटा राम के, कौड़ी के न काज के। -- चार बेटे राम के, कोड़ी के न काम के।
- व्याख्या : यदि किसी व्यक्ति के सभी पुत्र अकर्मण्य हो, तो उनसे घर के लोग तंग आ जाते हैं।
- प्रयोग अनुकूलता : ऐसे अकर्मण्य पुत्रों के लिए यह कहावत कही जाती है।
- शब्दार्थ : काज-काम
चाल सुभाव छुटे नहि, टाँग उठा के मूतै नहिं। -- चाल-स्वभाव छूटता नहीं है, जिससे पैर उठाकर पेशाब करने की आदत नहीं छोड़ता।
- व्याख्या : कुत्ते अपनी आदत नहीं छोड़ते, जिससे वे हमेशा पैर उठाकर पेशाब करते हैं।
- प्रयोग अनुकूलता : इसी प्रकार दुष्ट व्यक्ति भी अपनी दुष्टता नहीं छोड़ते। किसी दुष्ट व्यक्ति को दुष्टता पूर्ण कार्य करते हुए देखकर यह कहावत कही जाती है।
- शब्दार्थ : मूतै-पेशाब करना, सुभाव-स्वभाव, नहिं-नहीं
- चित्रा गहूँ, अर्द्रा धान, ओखर संदरी न एखर घाम। -- चित्रा नक्षत्र में गेहूँ तथा आर्द्रा नक्षत्र में धान बोने से न तो गेहूँ को सेंदरी नामक बीमारी लगती है और न ही धान को धूप से क्षति होती है।
- व्याख्या : अवसर के अनुसार कार्य करना।
- प्रयोग अनुकूलता : अवसर के अनुसार कार्य करने वालों के लिए यह कहावत कही जाती है।
- शब्दार्थ : सेंदरी-गेहूँ में लगने वाली एक प्रकार की बीमारी
- चिपरी तउन माँ आँखी आए। -- एक ते आँख में कीचड़ वाली स्त्री, ऊपर से आँख आ गई।
- व्याख्या : एक तो यों ही आँखों में कीचड़ है, और आँख दुख जाने से कीचड़ अधिक आने लगी।
- प्रयोग अनुकूलता : यदि पहले से मुसीबत में फंसे हुए व्यक्ति पर और मुसीबत आ पड़े, तो यह कहावत कही जाती है।
- शब्दार्थ : चिपरी-जिसकी आँख में कीचड़ हो, तउन-तब, आंखी-आंख, आए-आना
- चिरइ के खाय माँ धान नइ सिराय। -- चिड़ियों के खाने से धान समाप्त नहीं होता।
- व्याख्या : ढेर सारी वस्तुओं में से थोड़ी-बहुत दान कर देने से उस वस्तु में कमी नहीं आ जाती।
- प्रयोग अनुकूलता : किसी बड़े आदमी से कुछ माँगने के लिए लोग इस कहावत का प्रयोग करते हैं।
- शब्दार्थ : चिरइ-चिड़िया, खाय-खाना, नइ-नहीं, सिराय-खत्म होना
- चिरइ माँ कौवा, आदमी माँ नौवा। -- पक्षियों में कौवा और मनुष्यों में नाई।
- व्याख्या : पक्षियों में कौवा और मनुष्यों में नाई धूर्त होते हैं।
- प्रयोग अनुकूलता : नाई की चालाकी के लिए यह कहावत कही जाती है।
- शब्दार्थ : चिरइ-चिड़िया, नौंवा-नाई
- चिरहा गोंदरा लइका सियान के, पाके अँगोछी पट्ठा जवान के। -- फटे-पुराने कपड़े बच्चों और बूढ़ों के लिए, पका अंगोछा जवान के लिए।
- व्याख्या : घटिया वस्तुएँ बच्चे बूढ़ों के लिए और बढ़िया वस्तुएँ जवानों के लिए होती है।
- प्रयोग अनुकूलता : जवान व्यक्ति स्वयं कमाता है, इसलिए अच्छी वस्तुएँ अपने लिए ले लेता है तथा पुरानी वस्तुएँ बच्चे-बूढ़े को दे देता है। ऐसे परिपेक्ष्य में यह कहावत कही जाती है।
- शब्दार्थ : चिरहा-गोंदरा-फटे-पुराने वस्त्र।
- चिलम चूना चूत, ए माँ नइ ए छूत। -- चिलम, चूना, और चूत में कोई छूत नहीं है।
- व्याख्या : चिलम, चूना और चूत का स्पर्श किसी भी जाति के लोग करें, इनमें छुआ-छूत नहीं होती।
- प्रयोग अनुकूलता : पराई स्त्री पर कुदृष्टि रखने वाले व्यक्ति अपनी बचत के लिए इस कहावत का प्रयोग करते हैं।
- शब्दार्थ : नइ-नहीं
- चीख-चीख के खा, चाहे बोर-बोर के खा। -- चख-चख कर खाए, चाहें डुबो-डुबो कर खाए।
- व्याख्या : यदि कोई वस्तु बहुत थोड़ी मात्रा में हो, तो उसे चाहे जल्दी-जल्दी खाकर समाप्त कर दिया जाए अथवा थोड़ा थोड़ा इस्तेमाल कर के बहुत दिनों तक चलाया जाए।
- प्रयोग अनुकूलता : चीज अपकी है और आपको कब तक इस्तेमाल करना है, कुछ ऐसे ही परिस्थितियों के लिए यह कहावत कही जाती है।
- शब्दार्थ : बोर-बोर-डुबो-डुबो
- चोर के जीव पुतकी माँ। -- चोर का जी पुड़िया में।
- व्याख्या : चोरी करने वाला व्यक्ति पकड़ जाने के भय से शंकित रहता है। उसे यह भय बना रहता है कि उसकी चोरी को कोई जान तो नहीं गया। चोर किसी बात का विरोध निर्भय होकर नहीं कर सकता।
- प्रयोग अनुकूलता : चोर की मन स्थिति को बताने के लिए यह कहावत कही जाती है कि उसका मन पुड़िया के समान छोटा होता है।
- शब्दार्थ : पुतकी-पुड़िया
- चोर के डौकी ला रोय नइ सकाय। -- चोर की पत्नी रो नहीं सकती।
- व्याख्या : चोर के पकडे जाने पर उसकी पत्नी रोकर ——— नहीं कर सकती, क्योंकि रोने से मुहल्ले के लोगों पर भेद खुल जाएगा और वे उसे चोर की पत्नी कहकर व्यंग्य कगे।
- प्रयोग अनुकूलता : अपराध करने वाले से संबधित व्यक्ति चाहकर भी, अपराधी के प्रति सहानुभूति नहीं व्यक्त कर सकते। ऐसे ही परिपेक्ष्य के लिए यह कहावत कही जाता है।
- शब्दार्थ : डौको पत्नी, रोय रोना, नइ नहीं, सकाय सकना
- चोर के धन ला चडाल खाय, पापी हात मलते रहि जाय। -- चोर के धन को चांडाल खा जाती है और पापी हाथ मलता रह जाता है।
- व्याख्या : चोर किसी के धन को चुराता है, परतु चंडाल चोर से वह धन छीन लेता है, जिससे चोर पाप करके भी उसका उपभोग न कर सकने के कारण पछताता ही रहता है।
- प्रयोग अनुकूलता : अनैतिक कार्य करने वाले को फल न मिलकर किसी अन्य व्यक्ति को उसका फल मिल जाए, तब यह कहावत कही जाती है।
- शब्दार्थ : चंडाल चांडाल, खाय खाना, हांत हाथ, रहि रहना
- चोर के भाई गरकट्टा। -- चोर का भाई गला काटने वाला।
- व्याख्या : चोर तथा किसी से कोई वस्तु जबरदस्ती ले लेने वाला बराबर होते हैं।
- प्रयोग अनुकूलता : चोर किसी का धन छुपकर ले जाता है तथा गरकट्टा किसी का धन प्रकट रूप में चालबाजी से तथा जबरदस्ती करके ले जाता है। ऐसे व्यक्ति के लिए यह कहावत कही जाती है।
- शब्दार्थ : किसी को फं —-
- चोर घर ढेंकी। -- चोर के घर मे ढ़ेकी।
- व्याख्या : चोर के घर ढ़ेका होने से औरते उसके घर आकर असलियत जान लेती हैं, क्योंकि वह बाहर से धान लाकर कूटता है, अपनी खेती का धान उसके पास नहीं होता।
- प्रयोग अनुकूलता : अनैतिक कार्य करने वालों को पकड़ने के लिए कुछ न कुछ वस्तु मिल जाती है। ऐसे परिपेक्ष्य में यह कहावत कही जाती है।
- शब्दार्थ : ढेंकी धन
- चोर-चोर के ए के सैला, भूती नापिन दू-दू पैला। -- चोर-चोर में आपस में समझौता होने के कारण हनि-लाभ का बँटवारा बराबर होता है।
- व्याख्या : अनैतिक कार्य करने वालों की मित्रता सच्ची होती है।
- प्रयोग अनुकूलता : गलत कार्यों करने वालों में दोस्ती ज्यादा होती है, ऐसे लोगों के लिए यह कहावत कही जाती है।
- शब्दार्थ : एकै-एक ही, सैला-समझौता, दू-दो
- चोर मिलै, चंडाल मिलै, दगाबाज झन मिलै। -- चोर मिले, चांडाल मिले, परंतु दगाबाज न मिले।
- व्याख्या : चोर या चांडाल से भले ही कोई काम पड़ जाए, परंतु धोखेबाज से काम नहीं पड़ना चाहिए, क्योंकि चोर और चांडाल से एक ही बार कष्ट उठाना पड़ेगा, परंतु धोखेबाज से तो बार-बार कष्ट मिलेगा।
- प्रयोग अनुकूलता : धोखेबाज से कष्ट उठाने पर यह कहावत कही जाती है।
- शब्दार्थ : झन-नहीं, मिलै-मिले
- चोर ला कहै चोरी कर, साव ला कहै जागत रहिबे। -- चोर से चोरी करने के लिए तथा शाह से जागते रहने के लिए कहना।
- व्याख्या : दोनों पक्षों को भिड़ाए रखना।
- प्रयोग अनुकूलता : यह कहावत ऐसे व्यक्ति पर लागू होता है, जो दोनों पक्षों से भला बना रहे और इधर-उधर की भिड़ाकर दोनों को एक-दूसरे से लड़ाते हुए अपना काम निकालता रहे।
- शब्दार्थ : कहै-कहना, जागत-जागना, रहिबे-रहना
- चोर ला खँधैया पा के नहकावै। -- चोर को कंधे पर बैठाकर पार कराना।
- व्याख्या : यदि शक्तिशाली व्यक्ति मारता है, तो भी डर के कारण चुप रह जाना पड़ता है।
- प्रयोग अनुकूलता : चोर और बदमाश से डर कर उसकी खुशामद करनी पड़ती है।
- शब्दार्थ : खँधैया-कंधे पर बैठाना, पाके-गोदी में बैठाना, नहकावै-पार कराना
- चोर ला चाबे बर सिखोय। -- चोर को काटने के लिए सिखाना।
- व्याख्या : चोर को यदि दाँत से काटना सिखा दिया जाए, तो वह पकड़ा जाने पर काट कर भाग जाएगा, जिससे आगे चलकर वह बेधड़क चोरी करना शुरू कर देगा।
- प्रयोग अनुकूलता : अनैतिक कार्य करने वाले को अन्य गलत कार्य करने के लिए प्रेरित करने पर यह कहावत कही जाती है।
- शब्दार्थ : ला-को, चाबे-चबाना, बर-के कारण, सिखोय-सिखोना
- चोर ले मोटरा उतियइल। -- चोर से अधिक गठरी उतावली।
- व्याख्या : जब किसी कार्य को करने के लिए उसका मालिक जल्दी न करे तथा अन्य लोग दौड़-धूप प्रारंभ कर दें, तब मालिक को चुप तथा लोगों को उतावला देखकर यह कहावत कही जाती है।
- प्रयोग अनुकूलता : उतावले व्यक्तियों के लिए यह कहावत कही जाती है।
- शब्दार्थ : मोटरा-गठरी, उतियइल-उधमी
- चोरी करै तउन लात खाय, भूती करै तउन भात खाय। -- चोरी करने वाला मार खाता है, मजदूरी करने वाला भात खाता है।
- व्याख्या : चोर पकड़ा जाने पर मार खाता है तथा मजदूरी करने वाला संतोष रखकर उसे जितना मिलता है, उससे ही उदर-पोषण करता है।
- प्रयोग अनुकूलता : किसी चोर के पकड़े जाने पर उसकी दुर्गति को देखकर उपदेशार्थ यह कहावत कही जाती है।
- शब्दार्थ : भूती-मजदूरी, भात-पका हुआ चांवल
छाती के डाह बुतागे। -- क्रोध शांत हो गया।
- व्याख्या : दो विरोधी व्यक्तियों में से किसी एक का अहित हो जाने पर दूसरे का प्रसन्न हो जाना एक सामान्य सांसारिक बात है।
- प्रयोग अनुकूलता : दुश्मन का अहित होने से व्यक्ति को होने वाली प्रसन्नता को देखकर यह कहावत कही जाती है।
- शब्दार्थ : डाह-क्रोध, बुतागे-बुझना
- छान्ही माँ चढ़ के होरा भूँजे। -- छप्पर पर चढ़कर होला भूनता है।
- व्याख्या : यदि कोई व्यक्ति छप्पर पर चढ़कर होला भूने, तो इससे छप्पर पर आग लगने से किसी का घर बरबाद हो सकता है।
- प्रयोग अनुकूलता : जब कोई व्यक्ति अत्याचार करता है, तब उसकी ज्यादती को देखकर इस कहावत का प्रयोग करते हैं।
- शब्दार्थ : होरा-चना, गेहूँ आदि को पौधे सहित उखाड़कर भूनना, छान्ही-खप्पर
- छिन माँ घर जरै, अढ़ई घरी के भदर। -- क्षण भर की देरी में घर जल जाएगा, भद्रा नक्षत्र तो अढ़ाई घड़ी तक बना रहेगा।
- व्याख्या : थोड़े से विलंब से कार्य बिगड़ जाता है, इसलिए सोच-विचार करते हुए समय बिताने से क्या लाभ।
- प्रयोग अनुकूलता : ज्यादा सोचने वालों के लिए यह कहावत उपयोग में लायी जाती है।
- शब्दार्थ : छिन-क्षण, जरै-जलना, अढ़ई-अढ़ाई, भदरा-भद्रा
- छींकत माँ नाक कटाय। -- छींकने में नाक कटाता है।
- व्याख्या : छींकने में बेइज्जती होगी, ऐसा सोच कर कोई छींक रोकने का प्रयत्न करे, तो यह मूखर्ता है।
- प्रयोग अनुकूलता : जब कोई व्यक्ति बात-बात में संकोच दिखाता है, तब उस के संकोच से ऊबकर यह कहावत कही जाती है।
- शब्दार्थ : कटाय-कटाना
- छींचे बर न कोड़े बर, धरे बर खोखसा। -- न तो पानी सींचना और न जमीन खोदकर बाँध बनाना, परंतु खोखसा पकड़ने के लिए तैयार रहना।
- व्याख्या : काम न करना, कामचोरी।
- प्रयोग अनुकूलता : काम न कर के फल पाने के लिए पहुँच जाने वाले के लिए यह कहावत कही जाती है।
- शब्दार्थ : छींचे-सिंचाई, बर-के कराण, कोड़े-खुदाई, धरे-पकड़ाना
- छी ! छी ! करै, अउ छितका अकन खाय। -- छि ! छि ! करता है और टोकरी भर खाता है।
- व्याख्या : उसी चीज से घृणा करना और उसी चीज को अपना लेना।
- प्रयोग अनुकूलता : इस कहावत का प्रयोग ऐसे लोगों के लिए किया जाता है, जो किसी वस्तु के लिए पहले तो ना-ना करते हैं, परंतु उस के मिल जाने पर उसे निःसंकोच ग्रहण कर लेते हैं।
- शब्दार्थ : छितका-टोकरी
- छेरिया के मूँड़ मां खड़फड़ी। -- बकरी के सिर पर खड़फड़ी।
- व्याख्या : बकरी अधिक नहीं भागती, यदि उसके भाग जाने की आशंका से उसकी गर्दन पर लकड़ी का बोझ डाल दिया जाए, तो उसे आसानी से पकड़ा जा सकता है।
- प्रयोग अनुकूलता : किसी स्वतंत्र व्यक्ति के जिम्मे कोई काम डाल दिया जाए, तो उसकी स्वतंत्रता घट जाती है, ऐसे परिपेक्ष्य में यह कहावत कही जाती है।
- शब्दार्थ : खड़फड़ी-लकड़ी का बोझ, छेरिया-बकरी, मूंड़-सिर
- छेरिया छाटा मारत हे। -- बकरी अपने पिछले पैर से मारती है।
- व्याख्या : बकरी यदि किसी व्यक्ति को अपने पिछले पैर से मारना चाहती है, तो उससे किसी व्यक्ति का कोई नुकसान नहीं होता।
- प्रयोग अनुकूलता : ऐसा व्यक्ति जिससे लाभ की कोई आशा न हो, यदि वह कड़ी बात करे, तो लोग व्यंग्य कसने के लिए इस कहावत का प्रयोग करते हैं।
- शब्दार्थ : छाटा-पिछले पैर से मारना, छेरिया-बकरी
- छेरिया बियावै बिधवा बर। -- बकरी चीते के लिये बच्चे उत्पन्न करती है।
- व्याख्या : बकरी के परिश्रम के फल अर्थात् उसके बच्चों को चीता हड़प लेता है।
- प्रयोग अनुकूलता : यदि किसी के परिश्रम का फल कोई दूसरा हड़प ले, तो यह कहावत कही जाती है।
- शब्दार्थ : बिघवा-चीता, छेरिया-बकरी, बर-के कारण
- छै-पाँच नइ जानै। -- छल-कपट से दूर रहता है।
- व्याख्या : छल कपट से दूर रहने वाला।
- प्रयोग अनुकूलता : जब किसी व्यक्ति के विषय में यह बात प्रसिद्ध हो जाती है कि वह सज्जन और छल-कपट से कोसों दूर रहने वाला है, किन्तु कोई व्यक्ति उसे उकसा कर उससे धूतर्तापूर्ण कार्य कराना चाहता है, तब इस कहावत का प्रयोग होता है।
- शब्दार्थ : नइ-नहीं
- छोटकुन कहनी, सारी रात उसनिंदा। -- छोटी सी कहानी, सारी रात उनींदा।
- व्याख्या : छोटी-सी कहानी में सारी रात बिता दी।
- प्रयोग अनुकूलता : जब कोई व्यक्ति सामान्य सी बात बताने में बहुत समय लगा देता है, तब यह कहावत प्रयुक्त होती है।
- शब्दार्थ : उसनिंदा-उनींदा, छोटकुन-छोटी सी
- छोटे मुँहू बड़े-बड़े बात। -- छोटा मुँह, बड़ी-बड़ी बातें।
- व्याख्या : औकात नहीं पर औकात से ज्यादा बात करना।
- प्रयोग अनुकूलता : जब कोई आदमी बड़े लोगों की बराबरी की बातें करता है, तब इस कहावत का प्रयोग किया जाता है।
- शब्दार्थ : मुंहूं-मुख
- छोड़ती कमइया के नौ हाँत तुतारी। -- काम छोड़ने वाले नौकर की नौ हाथ लंबी तुतारी।
- व्याख्या : जब किसी नौकर को अपने मालिक से हमदर्दी नहीं रह जाती, तब वह अपने मालिक के पशुओं को बेरहमी से पीटता है।
- प्रयोग अनुकूलता : काम छोड़ने वाले उक्त नौकर की दुष्टता को देखकर यह कहावत कही जाती है।
- शब्दार्थ : हांत-हाथ, तुतारी-जानवरों को हांकने की लाठी जिसके सिरे पर कील होती है, छोड़ती-छोड़ने वाली, कमइया-काम करने वाली
- जइसे असी, तइसे खसी। -- जैसे असी, वैसे खसी।
- व्याख्या : जैसे इतना किया, वैसे थोड़ा और कर के देख लिया जाए।
- प्रयोग अनुकूलता : जब कोई व्यक्ति किसी काम में खूब मेहनत करता है और पैसे खर्च करता है और तब भी अनेकानेक कठिनाइयों के कराण काम पूरा नहीं होता, तब वह इस कहावत का प्रयोग कर के अपना आशय स्पष्ट करता है कि जब इतना कुछ किया, तब थोड़ा और करके देख लिया जाए।
- शब्दार्थ : असी-इतना, खसी-थोड़ा, जइसे-जैसा ही, तइसे-वैसा ही
- जइसे उरई तइसे धान, एखर चुटइ न ओखर कान। -- जैसे उरई वैसे धान, न इसकी चोटी और न उसका कान।
- व्याख्या : उरई और धान के पौधे एक जैसे होते हैं, परंतु उनमें असमानता भी होती है। न तो उरई की बेलें होती है और न धान के चौड़े पत्ते होते हैं।
- प्रयोग अनुकूलता : जब दो अयोग्य व्यक्ति आपस में अपने को एक-दूसरे से श्रेष्ठ बताते हैं, तब यह कहावत कही जाती है। दोनों समान भी हैं और किसी में कोई दुर्गण है, किसी में कोई अन्य।
- शब्दार्थ : उरई-धान जैसा एक पौधा, जइसे-जैसे, तइसे-वैसे, एखर-इसका, चुटइ-चोटी, ओखर-उसका
- जइसे नोनी के नाचा, तइसे बाबू के बाजा। -- जैसा लड़की का नाच होगा, वैसा लड़के का बाजा बजेगा।
- व्याख्या : जैसा काम कोई करता है, उसकी अच्छी या बुरी इच्छा को देखकर दूसरा भी उस के अनुकूल काम करता है।
- प्रयोग अनुकूलता : दूसरों को देखकर काम करने वालों के लिए यह कहावत कही जाती है।
- शब्दार्थ : नोनी-लड़की, जइसे-जैसा, नाचा-नाच, तइसे-वैसा
- जइसे ममा घर, तइसे डूमर तरी। -- जैसे मामा के घर, वैसे गूलर के नीचे।
- व्याख्या : जिस प्रकार मामा के घर खाने के लिए कुछ नहीं है, उसी प्रकार गूलर वृक्ष के नीचे भी खाने को कुछ नहीं मिलता।
- प्रयोग अनुकूलता : जिस व्यक्ति का निर्वाह न घर में हो और न ही मामा के घर, अर्थात् दोनों ओर उसे लाले पड़े, तब यह कहावत कही जाती है।
- शब्दार्थ : डूमर-गूलर, जइसे-जैसा, ममा-मामा, तइसे-वैसा, तरी-नीचे
- जगत कहे भगत बइहा, भगत कहे जगत बइहा। -- जगत भक्त को पागल कहता है, भक्त जगत को पागल कहता है।
- व्याख्या : दो भिन्न-भिन्न दृष्टिकोणों वाले व्यक्तियों के विचार आपस में नहीं मिलते। उनमें से प्रत्येक अपने विचार को ही सही मानता है तथा दूसरे के विचार को गलत। उनमें से दोनों की ही बातें उन के अपने-अपने दृष्टिकोण से ठीक होती हैं।
- प्रयोग अनुकूलता : एक-दूसरे के विचारों को न मानने वाले लोगों के लिए यह कहावत कही जाती है।
- शब्दार्थ : बइहा-पागल
- जँगरौता के खेत-खार, ठलहा के धनवारा। -- शक्तिशाली का खेत, निठल्ले की कोठी।
- व्याख्या : शक्तिशाली व्यक्ति खेत में परिश्रम करता है, परंतु निठल्ले व्यक्ति का ध्यान कोठी के धान में रहता है।
- प्रयोग अनुकूलता : निठल्ले व्यक्ति की अकर्मण्यता के लिए यह कहावत कही जाती है।
- शब्दार्थ : धनवारा-कोठी, जिसमें धान रखते हैं, ठलहा-निठल्ला, जंगरौता-शक्तिशाली
- जत के ओढ़ना, तत के जाड़। -- जितना वस्त्र, उतनी ठंड।
- व्याख्या : अधिक वस्त्र पहनने वाला व्यक्ति ठंड खाने से अभ्यस्त न होने के कारण ठंड महसूस करता है, परंतु जिनके पास वस्त्र नहीं होते, वे ठंड सहने के अभ्यस्त हो जाते हैं, जिससे वे उससे परेशान नहीं होते।
- प्रयोग अनुकूलता : गरीब लोगों के पास कपड़े न होने पर भी ठंड में अपना काम करते हैं और अमीर गरम कपड़ों से लदे होकर भी ठंड का अनुभव करते हैं। ऐसे लोगों के लिए यह कहावत कही जाती है।
- शब्दार्थ : जतके-जितना, ओढना-ओढ़ने का वस्त्र, ततके-उतना ही, जाड़-ठंड
जतके गुर, ततके मीठ। -- जितना गुड़, उतना मीठा।
- व्याख्या : जितना गुड़ डाला जाएगा, वस्तु उतनी ही मीठी होगी। इसी प्रकार जो जितना मेहनत करेगा, उसे उतना ही अच्छा फल मिलेगा।
- प्रयोग अनुकूलता : लोगों के परिश्रम के अनुसार उन्हें परिणाम मिलने पर इस कहावत का प्रयोग है।
- शब्दार्थ : जतके-जितना, गुर-गुड़, ततके-उतना, मीठ-मीठा
- जनम के ररूहा, तेमाँ भूतहा हाड़ा पागे। -- जन्मजात दरिद्र को भूतहा हड्डी मिल गई।
- व्याख्या : एक तो जन्म से ही दरिद्र है, ऊपर से भूतहा हड्डी मिलने से उसकी दरिद्रता और बढ़ गई। जब कोई व्यक्ति पहले से ही किसी मुसीबत में फँसा हो तथा उस पर कोई मुसीबत और आ पड़े, तब उसकी कठिनाई और बढ़ जाती है।
- प्रयोग अनुकूलता : मुसीबत में फँसे हुए ऐसे व्यक्ति के लिए यह कहावत कही जाती है।
- शब्दार्थ : भूतहा हाड़ा-ऐसी हड्डी, जिसमें भूत का निवास हो, जनम-जन्म, ररूहा-दरिद्र, तेमां-उसमें, पागे-पाना
- जब के आमा, तब के लबेदा। -- जब आम, तब डंडे।
- व्याख्या : जब आम आएँगे, तब डंडे से मारकर गिराए जाएँगे।
- प्रयोग अनुकूलता : जब कोई व्यक्ति भविष्य के संबंध में अनेक कल्पित बातें करता है, तब उसे भविष्य की अनिश्र्चतता या समय आने तक प्रतीक्षा बताने के लिए यह कहावत कही जाती है।
- शब्दार्थ : लबेदा-डंडा, आमा-आम
- जब धर लीस झोरी, त का बाँभन का कोरी। -- जब झोली ही ले ली, तो क्या ब्राह्मण और क्या कोरी।
- व्याख्या : जब भीख माँगने के लिए झोली पकड़ ली, तब ऊँची या नीची जाति के लोगों से माँगने का भेद करना व्यर्थ है।
- प्रयोग अनुकूलता : ऐसा कर्म जिसे नहीं करना चाहिए, यादि कोई व्यक्ति करना स्वीकार कर ले, तो उसमें शर्म की क्या बात। ऐसे परिपेक्ष्य में यह कहावत कही जाती है।
- शब्दार्थ : कोरी-एक निम्न जाति, झोरी-झोली, बांभन-ब्राम्हण
- जब बोवै धान, तब देख के राखै बान। -- जब धान बोए, तब नौकर देख कर रखें।
- व्याख्या : धान बोने वाले को सावधान रहना पड़ता है, अतः उसे सोच विचारकर समझदार नौकर रखना चाहिए, ताकि वह धान की खेती को समझ सके।
- प्रयोग अनुकूलता : धान की खेती के लिए योग्य व्यक्तियों की आवश्यकता पर प्रकाश डालने के लिए यह कहावत कही जाती है।
- शब्दार्थ : बान-नौकर, राखै-रखना, बोवै-बोना
- जब ले गुदगुदी, तबले हँसी। -- जब तक गुदगुदी है, तब तक हँसी है।
- व्याख्या : जब तक गुदगुदी रहती है, तभी तक हँसी आती है। यदि गुदगुदी न लगे, तो हँसी भी नहीं आएगी।
- प्रयोग अनुकूलता : जब तक कोई व्यक्ति मर्यादा में बँधा होता है, तब उसके कार्य सर्यादित होते हैं, परंतु मर्यादा की सीमा का अतिक्रमण करने पर अमर्यादित कार्य करने में कोई संकोच नहीं होता। ऐसे परिपेक्ष्य में यह कहावत कही जाती है।
- शब्दार्थ : तबले-तब से
- जर न ताप, कीचक मरे आपे-आप। -- न बुखार, न जलन, कीचक आप ही आप मर गया।
- व्याख्या : दुष्ट व्यक्ति अपने आप मर गया, किसी को उसे मारने की आवश्यकता नहीं पड़ी। दूसरों को कष्ट देने वाला दूसरों के आघात के बिना ही स्वयं मर जाता है।
- प्रयोग अनुकूलता : दुष्टों की मृत्यु पर प्रसन्नता व्यक्त करते हुए यह कहावत कही जाती है।
- शब्दार्थ : कीचक-दुष्ट व्यक्ति
- जरगे फेर अँइठ नइ गिस। -- जल कर नष्ट हो गया, परंतु ऐंठ न गया।
- व्याख्या : बर्बाद होने पर भी अकड़ का न जाना।
- प्रयोग अनुकूलता : जब कोई व्यक्ति अपनी जिद के कारण बरबाद हो जाए, फिर भी अपनी जिद न छोड़े, तब उस के लिए यह कहावत कही जाती है।
- शब्दार्थ : जरगे-जलकर नष्ट हो गया, अँइठ-ऐंठ, नइ-नहीं
- जरे ओ सोन, जेमाँ कान टूटे। -- वह सोना जल जाए, जिससे कान टूटे।
- व्याख्या : मूल्यवान होने पर भी हानिप्रद वस्तु त्याग देने के लायक होती है।
- प्रयोग अनुकूलता : जब किसी प्रिय वस्तु या व्यक्ति के द्वारा कोई आर्थिक या शारीरिक क्षति हो, तब इस कहावत का प्रयोग होता है।
- शब्दार्थ : सोन-सोना, जेमां-जिससे
- जलघस उँटवा पहाड़ नइ चढ़े, तलघस भरभस नइ टूटै। -- जब तक ऊँट पहाड़ पर नहीं चढ़ता, तब तक उसका घमंड दूर नहीं होता।
- व्याख्या : ऊँट जब तक पहाड़ पर नहीं चढ़ता, तब तक उसे अपनी ऊँचाई का आभास नहीं होता। उसे अपने अधिक ऊँचा होने का गर्व था, जो पहाड़ के सामने टूट गया। ऐसा व्यक्ति जो अपने को ज्ञानी समझता है, किसी अधिक ज्ञानी से मुकाबला हो जाने पर अपनी वास्तविकता को समझ जाता है।
- प्रयोग अनुकूलता : अपने को बुद्धिमान समझने वाले घमंडी व्यक्ति के लिए यह कहावत कही जाती है।
- शब्दार्थ : भरभस-अभिमान, जलघस-जब तक, तलघस-तब तक
- जलघस लइका नइ रोवै, तलघस दाई दूध नहीं पियावै। -- बच्चा जब तक नहीं रोता, तब तक माँ दूध नहीं पिलाती।
- व्याख्या : जब बच्चा भूखा होता है, तब दूध माँगने के लिए रोता है।
- प्रयोग अनुकूलता : किसी वस्तु को चाहने वाले को भी माँगने पर ही वह वस्तु मिल पाती है। अपनी आवश्यकता की पूर्ति माँगने पर ही होती है, ऐसे परिपेक्ष्य में यह कहावत कही जाती है।
- शब्दार्थ : दाई-माँ, लइका-बच्चा, नइ-नहीं
- जस हरदी के रंग, तस परदेसी के संग। -- जैसा हल्दी का रंग, वैसा परदेशी का संग।
- व्याख्या : जिस प्रकार हल्दी का रंग पक्का नहीं होता, उसी प्रकार परदेशी का साथ भी कुछ ही दिनों का होता है। हल्दी के रंग के समान परदेशी का साथ भी कुछ दिनों तक ही टिकता है।
- प्रयोग अनुकूलता : किसी परदेशी व्यक्ति से अधिक दोस्ती बेकार है। यह बताने के लिए इस कहावत का प्रयोग होता है।
- शब्दार्थ : जस-जितना, हरदी-हल्दी, तस-उतना, परदेसी-परदेशी
- जहर पिए न माहुर खाय, मरे के होय त मातिन जाय। -- जहर पीने या माहुर खाने की क्या आवश्यकता, मरना हो, तो मातिन जाए।
- व्याख्या : संस्कृति आधारित कहावत।
- प्रयोग अनुकूलता : मातिन गाँव की दूषित जलवायु को बताने के लिए यह कहावत प्रचलित हो गई।
- शब्दार्थ : माहुर-एक विशेष प्रकार का विष, मातिन-एक गाँव का नाम
- जाँगर चलै न जँगरौटा, खाय गहूँ के रोटा। -- हाथ-पैर से शारीरिक शक्ति का काम होता नहीं है, परंतु खाने के लिए गेहूँ की रोटी चाहिए।
- व्याख्या : कामचोरी करना और अच्छे खाने की इच्छा रखना।
- प्रयोग अनुकूलता : आलसी व्यक्ति द्वारा बढ़िया खाना पाने की इच्छा करने वाले के लिए यह कहावत कही जाती है।
- शब्दार्थ : जाँगर-शक्ति, गहूं-गेहूं, रोटा-रोटी
- जाए ले मया, अउ खाए ले सगा। -- जाने से प्रेम और खाने से बिरादरी।
- व्याख्या : आते-जाते रहने से प्रेम का संबंध बना रहता है तथा साथ खाते-पिते रहने से बिरादरी का संबंध बना रहता है।
- प्रयोग अनुकूलता : मेल-जोल बनाए रखने के लिए उपदेशार्थ यह कहावत कही जाती है।
- शब्दार्थ : मया-प्रेम, अउ-और, सगा-मेहमान
- जात जाने पीठ कबरा। -- विशिष्ट जाति के लोगों की पीठ में धब्बा होता है।
- व्याख्या : अलग-अलग जाति वाले लोगों के चाल-ढाल, स्वभाव, रहन सहन आदि में अंतर होता है।
- प्रयोग अनुकूलता : जाति-विशेष उसकी संस्कृति से पहचान ली जाती है। इसी परिपेक्ष्य में यह कहावत कही जाती है।
- शब्दार्थ : कबरा-धब्बा
- जात देख जात गुराय। -- जाति वाले को देखकर जाति वाला गुरार्ता है।
- व्याख्या : अपनी ही जाति के प्रति विरोध स्वर।
- प्रयोग अनुकूलता : अपनी जाति के लोगों को पसंद न करके उनसे विरोध रखने वाली जाति के लोगों के लिए यह कहावत कही जाती है।
- शब्दार्थ : गुराय-गुर्राना
- जादा के जोगी मठ उजार। -- ज्यादा योगी मठ उजाड़।
- व्याख्या : किसी मठ में अधिक योगी इकट्ठे हो जाएँ, तो खाद्य पदार्थ की कमी हो जाएगी, जिससे वह मठ उजाड़ हो जाएगा।
- प्रयोग अनुकूलता : जहाँ कमाने वाले कम और खाने वाले अधिक हो, वहाँ खर्च की मुसीबत को देखकर यह कहावत कही जाती है।
- शब्दार्थ : जादा-ज्यादा, उजार-उजाड़
- जान सुन के माछी लीलै। -- जान-सुन कर मक्खी निगलता है।
- व्याख्या : हानि होने पर भी कार्य जारी रखना।
- प्रयोग अनुकूलता : जो व्यक्ति हानि होने की बात को समझाते हुए भी कार्य करता है, उसके लिए यह कहावत कही जाती है।
- शब्दार्थ : माछी-मक्खी
- जियत पिता माँ दंगी-दंगा, मरे पिता पहुँचावे गंगा। -- जिते हुए पिता से दंगा-फसाद करना और मरने पर उसे गंगा पहुँचाना।
- व्याख्या : पिता की बात न मानना और पिता के मरने पर पितृ भक्ति का दिखावा करना।
- प्रयोग अनुकूलता : ऐसा पुत्र जो अपने पिता के जीते जी उसे परेशान करता है तथा उसके मरने के बाद गंगा में उसकी अस्थि को प्रवाहित करके पितृ भक्ति होने का ढोंग करता है, वास्तव में निंदा का पात्र है। ऐसे पुत्रों पर व्यंग्य कसने के लिए यह कहावत कही जाती है।
- शब्दार्थ : जियत-जीते जी
जिहाँ खाई मीठ, तिहाँ माई मीठ। -- जब मीठी चीज खाने को मिलती है, तब माँ भी मीठी लगती है।
- व्याख्या : सभी प्रकार के संबंधों के मूल में पेट ही प्रधान कारण होता है। अच्छा खाना खिलाने के कारण ही माँ भी प्यारी लगती है। माँ यदि खाना न दे, तो पुत्र उससे अपना संबंध नहीं रखेगा।
- प्रयोग अनुकूलता : मतलब के संसार के इस कटु सत्य को स्पष्ट करने तथा पारस्परिक संबंधों के मूल में रहने वाली पेट की समस्या को बताने के लिए यह कहावत कही जाती है।
- शब्दार्थ : जहां-जहां, खाई-खाया, मीठ-मीठा, तिहां-वहां, माई-मां
- जहाँ गुर, तिहाँ चाँटी। -- जहाँ गुड़, वहाँ चींटी।
- व्याख्या : लोग वहीं जाते हैं, जहाँ उनका स्वार्थ सधता है।
- प्रयोग अनुकूलता : जिधर कुछ मिलता है, उधर ही लोगों के आकर्षण को देखकर यह कहावत कही जाती है।
- शब्दार्थ : जिहां-जहां, गुर-गुड़, तिहां-वहां, चांटी-चींटी
- जिहाँ चार बाँभन, तिहाँ परै लाँघन। -- जहाँ चार ब्राह्मण, वहाँ पड़े लंघन।
- व्याख्या : जहाँ चार ब्राह्मण होंगे, वहाँ प्रत्येक दूसरे के जिम्मे खाना बनाने का काम छोड़ देता है, जिससे खाना कोई बनाता नहीं।
- प्रयोग अनुकूलता : जब आपस के लोग मिल कर किसी काम में गड़बड़ी उत्पन्न कर लेते हैं, तब यह कहावत कही जाती है।
- शब्दार्थ : जिहां-जहां, बांभन-ब्राम्हण, तिहां-वहां, परै-पड़ना, लांघन-भूखा रहना
- जिहाँ-जिहाँ दार-भात, तिहाँ-तिहाँ माधोदास। -- जहाँ-जहाँ दाल-भात, वहाँ-वहाँ माधोदास।
- व्याख्या : स्वार्थी लोग हर जगह अपना काम निकाल लेते हैं।
- प्रयोग अनुकूलता : इस कहावत का प्रयोग ऐसे स्वार्थी लोगों के लिए होता है, जो अपना स्वार्थ साधने के लिए जहाँ लाभ दीखता है, वहाँ पहुँच जाते हैं।
- शब्दार्थ : जिहां-जहां, दार-दाल, भात-पका हुआ चांवल, तिहां-वहां
- जिहाँ बरदी, तिहाँ बरदा उपास। -- जहाँ बरदी, वहाँ बरदा उपवास।
- व्याख्या : जहाँ अधिक गायें होती हैं, वहाँ वे पहले से पहुँच कर चारा समाप्त कर देती हैं। बैल काम से लौटते हैं, तो वहाँ चारा नहीं मिलता।
- प्रयोग अनुकूलता : जहाँ अधिक स्त्रियाँ होती है, वहाँ मर्दों को समय पर भोजन नहीं मिल पाता, क्योंकि हर स्त्री यही सोचती है कि मैं क्यों खाना बनाऊं, वह बनायेगी, कुछ ऐसे ही परिपेक्ष्य में यह कहावत कही जाती है।
- शब्दार्थ : बरदी-मवेशियों का झुंड, जिहां-जहां, तिहां-वहां, उपास-उपवास
- जिहाँ राम रमाय न, तिहाँ कुकुर कटाय न। -- जहाँ राम-रामायण, वहाँ कुत्तों की चिल्लाहट।
- व्याख्या : जहाँ हरि चर्चा हो रही हो, वहाँ कुत्तों का भौंकना खल जाता है।
- प्रयोग अनुकूलता : जब किसी चर्चा के बीच कोई व्यक्ति विघ्न उत्पन्न कर दै, तब यह कहावत कही जाती है।
- शब्दार्थ : कुकुर-कुत्ता, जिहां-जहां, रमाय-रामायण, तिहां-वहां, कटाय-कटाना
- जिहाँ होइस बिहान, तिहाँ धरिस धियान। -- जहाँ सुबह हुई, वहाँ अपने ध्यान में लगा।
- व्याख्या : सुबह हुई नहीं कि अपने व्यर्थ के काम में लग जाता है।
- प्रयोग अनुकूलता : सुबह हुई नहीं अपने खाने-पीने के पीछे लग जाने वाले व्यक्ति को कुछ काम न करते हुए देखकर यह कहावत कही जाती है।
- शब्दार्थ : बिहान-सुबह, जिहां-जहां, होइस-होना, तिहां-वहां, धियान-ध्यान
- जुच्छा गर ले घोंघी नीक। -- खाली गले से घोंघी की माला अच्छी।
- व्याख्या : कुछ न होने से अच्छा-बुरा कुछ भी हो, वही अच्छा है।
- प्रयोग अनुकूलता : किसी वस्तु के अभाव में उसका थोड़-बहुत या अच्छा-बुरा कुछ भी होना श्रेयस्कर है। यह बताने के लिए इस कहावत का प्रयोग किया जाता है।
- शब्दार्थ : घोंघी-तालाब, नदी, आदि में मिलने वाली सीप जैसी गोल वस्तु, जुच्छा-खाली
- जुन्ना ल घुना खइस त नवा मुलमुलाइस, नवा ल घुना खइस त जुन्ने काम अइस। -- पुराने को घुन लगा, तो नया सामने आया, नए को घुन लगा, तो पुराना ही काम आया। ‘नया नौ दिन, पुराना सौ दिन।’
- व्याख्या : नया कुछ दिनों के लिए होता है, परंतु पुराना ही हमेशा साथ देता है।
- प्रयोग अनुकूलता : नई वस्तु की चार दिनों की चमक-दमक के लिए यह कहावत कही जाती है।
- शब्दार्थ : जुन्ना-पुराना, घुना-घुन, खइस-खाना, नवा-नया, मुलमुलाइस-आगे आना
- जेखर घर डौकी सियान, तेखर मरे बिहान। -- जिसके घर में पत्नी की चलती हो, वहाँ पति मृत्युवत् हो जाता है।
- व्याख्या : पत्नी, पति के बाह्य क्रिया-कलापों में हस्तक्षेप शुरू कर देती है, जिससे पति की स्वतंत्रता तथा उसके कार्य पर असर पड़ता है, जो लोगों की दृष्टि में अच्छा नहीं समझा जाता।
- प्रयोग अनुकूलता : जिसके घर में पत्नी का वर्चस्व हो, वहाँ पति की बातें नहीं चलती, जिससे उसके दोस्तों के बीच उसकी खिल्ली उड़ती है। ऐसे परिपेक्ष्य में यह कहावत कही जाती है।
- शब्दार्थ : जेखर-जिसका, डौकी-पत्नी, सियान-बुर्जुग, तेखर-उसका
- जेखर घर माँ, तेखर बन माँ। -- जिसके घर में है, उसके लिए वन में भी है।
- व्याख्या : पैसे वाले को सब जगह आदर मिलता है।
- प्रयोग अनुकूलता : धनी व्यक्ति को मिलने वाली सुख-सुविधा को देखकर यह कहावत कही जाती है।
- शब्दार्थ : जेखर-उसका, तेखर-उसका, बन-वन
- जेखर जइसे दाई-ददा, तेखर तइसे लइका। जेखर जइसे घर-दुवार, तेखर तइसे फरिका। -- जिसके जैसे माँ-बाप, उस के वैसे बच्चे। जसके जैसे घर-दरवाजे, उस के वैसे फाटक।।
- व्याख्या : संतान अपने माता-पिता के ही अनुरूप होती है।
- प्रयोग अनुकूलता : जब किसी बच्चे में उस के माँ-बाप के अच्छे अथवा बुरे गुण दिखाई पड़े, तब यह कहावत कही जाती है।
- शब्दार्थ : फरिका-घास-फूस तथा सूखी-पतली लकड़ियों आदि से बनाया गया छोटा फाटक, जेखर-जिसका, जइसे-जैसे, दाई-माता, ददा-पिता, लइका-बच्चा
- जेखर देखे छाती फाटे, तेखर जाय बरात। -- जिससे दुश्मनी हो, उसी की बारात में जाना।
- व्याख्या : दुश्मन का ही काम करना।
- प्रयोग अनुकूलता : जब समाज में डर से दुश्मन का भी साथ देना पड़ जाए, अर्थात् उसकी बारात में जाना पड़ जाए, तब उसकी मनोदशा को स्पष्ट करने के लिए लोग इस कहावत का प्रयोग करते हैं।
- शब्दार्थ : छाती फाटै-दुश्मनी, जेखर-जिसका, तेखर-उसका, बरात-बारात
- जेखर पाँव न फटे बेंवाई, ते का जाने पीर पराई। -- जिसके पैर में बेवाई न फटी हो, वह दूसरों की पीड़ा को क्या समझे।
- व्याख्या : जिसे किसी प्रकार के कष्ट का अनुभव न हुआ हो, उसे दूसरों के कष्ट क्या ज्ञान होगा।
- प्रयोग अनुकूलता : स्वयं दुःख भोगने वाला ही अन्यों के दुख को समझ सकता है। कुछ ऐसे ही परिपेक्ष्य में यह कहावत कही जाती है।
- शब्दार्थ : जेखर-जिसका, बेंवाई-बेवाई, पीर-पीड़, पराई-दूसरों का
- जेखर बेंदरा, तेखर ले नाचै। -- जिसका बंदर, उसी से नाचे।
- व्याख्या : बंदर अपने स्वामी के कहने के अनुसार काम करता है।
- प्रयोग अनुकूलता : जब कोई व्यक्ति अपने आश्रय दाता की इच्छानुसार कार्य करता है और अन्य का कहना नहीं मानता, तब यह कहावत कही जाती है।
- शब्दार्थ : जेखर-जिसका, बेंदर, तेखर-उसका, नाचै-नाचना
- जेखर भाँटा रफै, तउन पानी डारै। -- जिसका भटा जले, वही पानी डाले।
- व्याख्या : जिसका काम हो, उसे वही करे। जिसकी गरज हो, वही उसे करे।
- प्रयोग अनुकूलता : दूसरे व्यक्ति उसके कार्य को क्यों करेंगे। यदि किसी का काम बिगड़ रहा हो, तो उसके कर्ता को ही उसे सुधारने के लिए जाना पड़ता है। ऐसी स्थिति में यह कहावत कही जाती है।
- शब्दार्थ : जेखर-जिसका, भांटा-भटा, तउन-वही, डारै-डालना
- जेखर रहे लोहा के दाँत, तउन खाय ससुरार के भात। -- जिसके लोहा के दाँत हों, वहु ससुराल का भात खाए।
- व्याख्या : पहले शादी-ब्याह के कारण लड़ाइयां होती थी। आल्हा-ऊदल प्रभृति क्षत्रिय राजाओं का इतिहास शादी के लिए होने वाली लड़ाइयों से भरा पड़ा है। आज भी शादी में छोटी-छोटी बातों में लड़ाई हो जाती है। लेकिन आजकल स्थिति बदल गई है, जिससे शादी में तलवार चलने की नौबत प्रायः नहीं होती। ससुराल के भात को खाने के लिए पहले शादी कर लेना आवश्यक है, जिसके लिए प्राचीन काल में लोहे के चने चबाने पड़ते थे, परंतु अब शादी आसानी से निपट जाती है, जिससे ससुराल के भात को खाने में कोई बाधा नहीं होती।
- प्रयोग अनुकूलता : जब कोई कार्य बहुत कष्ट साध्य होता है, तब उसकी कठिनाइयों को देखकर यह कहावत कही जाती है।
- शब्दार्थ : जेखर-जिसका, तउन-उसका, ससुरार-ससुराल, भात-पका चांवल
- जेखर लाठी, तेखर भैंस। -- जिसकी लाठी, उसकी भैंस।
- व्याख्या : यह बात आम तौर पर चरवाहे और फसल वाले व्यक्ति के बीच होने वाली लड़ाइयों में देखी जाती है। चरवाहा अपनी लाठी के दम पर खेत चराता है और लड़ाई करके अपने पशुओं को घर ले आता है।
- प्रयोग अनुकूलता : शक्तिशाली व्यक्ति किसी आवश्यक वस्तु के लिए होने वाली लड़ाई में जीत कर उस पर अपना अधिकार कर लेता है। ऐसे परिपक्ष्य में यह कहावत कही जाती है।
- शब्दार्थ : जेखर-जिसका, तेखर-उसका
- जेखर लूब-लाब, तेखर संबलपुर। -- जो “टिप-टाप” रहता हो, उसके लिए संबलपुर है।
- व्याख्या : जो साफ-सुथरा हो तथा ढंग से कपड़े पहनता हो, ऐसे फैशन परस्त लोगों के रहने के लिए संबलपुर नामक शहर उपयुक्त स्थान है, जहाँ उसकी आवश्यकताएँ पूरी हो सकती है।
- प्रयोग अनुकूलता : फैशन परस्त लोगों को शहर में रहने के लिए प्रेरित करने हेतु यह कहावत कही जाती है।
- शब्दार्थ : जेखर-जिसका, तेखर-उसका
- जेठ चलै पुरवाई, त सावन धूल उड़ाई। -- जेठ में पूर्व दिशा से हवा चले, तो श्रावण में धूल उड़ेगी।
- व्याख्या : पूर्वजों ने यह अनुभव किया है कि यदि जेठ के महीने में पूर्व दिशा से हवा चलेगी, तो सावन में धूल उड़ेगी। जिससे वर्षा के अभाव में अकाल पड़ने की आशंका होगी।
- प्रयोग अनुकूलता : सावन के महीने में वर्षा न होने पर लोगों के बीच होने वाली बातचीत में किसी व्यक्ति के द्वारा यह कहावत कही जाती है।
- शब्दार्थ : पुरवाई-पूर्व दिशा से चलने वाली हवा
जैठ-बैसाख तुमरी, सावन-भादो खुमरी। -- जेठ-वैशाख के महीनों में तुमड़ी, सावन-भादों के महीनों में खुमरी।
- व्याख्या : जेठ-बैशाख अर्थात् गर्मी के दिनों में तुमड़ी तथा सावन-भादों अर्थात् वर्षा के दिनों में खुमरी लेकर चलना चाहिए। प्यास लगने पर पानी पी सकते हैं और वर्षा होने पर खुमरी से भींगने से बच सकते हैं।
- प्रयोग अनुकूलता : गर्मी और वर्षा में आवश्यक वस्तुओं को साथ लेकर चलने के लिए यह कहावत कही जाती है।
- शब्दार्थ : तुमरी-सूखी लौकी, खुमरी-एक विशेष प्रकार का छतरी
- जेतका के कमइ नहिं, तेतका के गँवइ। -- जितने की कमाई नहीं, उतने की गुमाई।
- व्याख्या : मजदूरी की अपेक्षा अधिक नुकसान होना।
- प्रयोग अनुकूलता : जब किसी कार्य को करने में किसी की आय से अधिक हानि हो जाए, तब इस कहावत का प्रयोग किया जाता है।
- शब्दार्थ : जेतका-जितना, कमइ-कमाई, नहिं-नहीं, तेतका-उतना, गंवइ-गंवाना
- जेवन के बिगड़े ले दिन भर पछताय, डौकी बिगड़े ले जनम भर पछताय। -- भोजन के बिगड़ जाने से दिन भर पछताना पड़ता है तथा स्त्री के बिगड़ी होने से उम्र भर पछताना पड़ता है।
- व्याख्या : जिस प्रकार भोजन अच्छा न होने से दिन भर मन अच्छा नहीं रहता, ठीक उसी प्रकार स्त्री के अच्छी न होने से जीवन भर कष्ट का सामना करना पड़ता है।
- प्रयोग अनुकूलता : अच्छी स्त्री के न होने पर यह कहावत ताना देते हुए कही जाती है।
- शब्दार्थ : जेवन-भोजन, डौकी-पत्नी, जनम-जन्म
- जेवन बिगड़ गे तउन दिन बिगड़ गे। -- भोजन बिगड़ गया, वह दिन बिगड़ गया।
- व्याख्या : जिस दिन भोजन बिगड़ जाए, वह दिन खाने के नाम पर बिगड़ जाता है।
- प्रयोग अनुकूलता : कहावत से मन प्रसन्न रहने के लिए अच्छे खाने का महत्व स्पष्ट होता है।
- शब्दार्थ : जेवन-भोजन, तउन-वह
- जैंसन बोही, तैसन लूही। -- जैसा बोएगा, वैसा काटेगा।
- व्याख्या : कार्य के अनुसार फल की प्राप्ति होती है। अच्छे कार्यों का फल अच्छा तथा बुरे कार्यो का फल बुरा मिलता है।
- प्रयोग अनुकूलता : इस कहावत का प्रयोग प्राय: बुरे कर्म के अनुसार बुरा फल मिलने के लिए होता है।
- शब्दार्थ : जैंसन-जैसे, बोही-उगाना, तैसर-वैसे ही, लूही-काटना
- जैसन ला तैसन मिलै, सुन राजा भील। लोहा ला घुना लग गे, लइका ल लेगे चील। -- जैसे को तैसा मिले, सुन राजा भील। लोहे के घुन लग गया, बच्चे को चील ले गया।
- व्याख्या : जैसे को तैसा व्यवहार मिलना चाहिए।
- प्रयोग अनुकूलता : दूसरों का अनिष्ट करने वाले दुष्ट लोगों के लिए यह कहावत कही जाती है।
- शब्दार्थ : जैसन-जैसा, तैसन-वैसा, लइका-बच्चा
- जोग माँ साख नहिं, आँखी माँ भभूत आँजे। -- योग में शक्ति नहीं है, आँखों में भभूत लगाता है।
- व्याख्या : ढोंग करने वाले योगी के योग में कोई शक्ति नहीं है, परन्तु वह अपने योग का सच्चा सिद्ध करने के लिए अपनी आँखों में भभूत लगाता है। ढोंगी व्यक्ति अपने ढोंग को छिपाने के लिए ऐसा कार्य करते हैं, जिससे उसकी प्रतिष्ठा बढ़े।
- प्रयोग अनुकूलता : जब लोगों को ढोंग मालूम हो जाता है, तब यह कहावत कही जाती है।
- शब्दार्थ : भभूत-पवित्र राख, नहिं-नहीं, आंखी-आंख, आंजे-काजल लगाना
- जोगी के भीख माँ कौवा हागे। -- योगी की भीख में कौवा हगे।
- व्याख्या : योगी ने भीख माँगकर कुछ भोजन इकट्ठा कर लिया था, परन्तु वह कौवे के हग देने से अपवित्र तथा दूषित हो गया, जिससे वह खाने के लायक न रह गया।
- प्रयोग अनुकूलता : कठिन परिश्रम करके कोई व्यक्ति किसी काम को करे तथा उसके पूरा होते-होते ही कोई ऐसा विध्न पड़ जाए, जिससे वह काम बिगड़ जाए, तब यह कहावत कही जाती है।
- शब्दार्थ : हगे-मल त्याग करना
- जौन कोती चोर के घर, तौन कोती बइला भागे जाय। -- जिधर चोर का घर है, उधर बैल भाग कर जाता है।
- व्याख्या : बैल के चोर के घर की ओर भागने से उस के चोरी हो जाने की संभावना बढ़ जाती है। चोर ने यदि बिना स्वामी के बेल को देख लिया, तो वह उसे चुरा कर बेच देगा।
- प्रयोग अनुकूलता : यदि कोई व्यक्ति पैसे लेकर उधर-चले, जिधर अनैतिक कार्य (जुआ, शराब) होता हो, तो उस के पैसे बरबाद होने की आशंका को जानकर यह कहावत कही जाती है।
- शब्दार्थ : जौन-जिधर, कोती-की ओर, तौन-उधर, बइला-बैल
- जौन गरजथे, तौन बरसै नहिं। -- जो (बादल) गरजता है, सो बरसता नहीं।
- व्याख्या : कहने वाला करता नहीं है।
- प्रयोग अनुकूलता : जब कोई व्यक्ति बार-बार किसी कार्य को करने की स्वीकृति प्रदान करता रहे, परंतु उसे पूरा न करे, तब इस का प्रयोग करके उसे लज्जित किया जाता है।
- शब्दार्थ : जौन-जो, गरजथे-गरजना, तौन-वह, बरसै-बरसना, नहिं-नहीं
- जौन घर नौ सौ गाय, तौन मही माँगे जाय। -- जिसके घर नौ सौ गायें, वह मठा माँगने जाए।
- व्याख्या : जिसके घर नौ सौ गायें हो, उसके यहाँ-दूध-दही की कमी नहीं होती। ऐसे व्यक्ति का दूसरे का दूसरे से मठा माँगना आश्चर्य की बात है।
- प्रयोग अनुकूलता : ऐसा व्यक्ति जिसके पास कोई वस्तु हो, यदि वह वही वस्तु किसी से माँगता है या बाजार से खरीदता है, तो लोगों को आश्चर्य होता है, ऐसे परिपेक्ष्य में यह कहावत कही जाती है।
- शब्दार्थ : मही-मठा, जौन-जो, तौन-वह, मही-मट्ठा, जाय-जाना
- जौन जागै, तौन पहट ढीलै। -- जो जगे, सो पहट बाहर निकाले।
- व्याख्या : जो व्यक्ति रात में जागेगा, वही अपने पशुओं को चराने के लिए बाहर निकालेगा। सोने वाले व्यक्ति के पशु घर में बंद रहने के कारण भूखे रहेंगे।
- प्रयोग अनुकूलता : जो व्यक्ति अपना काम समय में कर लेता है, वह लाभान्वित होता है और काम न करने वालों को उस काम का फल नहीं मिलता।
- शब्दार्थ : पहट-मवेशियों का झुंड, जौन-जो, जागै-जगना, तौन-वह, ढीलै-ढीलना
- जौन तपही, तौन खपबे करही। -- जो अत्याचार करेगा, सो नष्ट होगा।
- व्याख्या : अति करने वाला मारा जाता है।
- प्रयोग अनुकूलता : अत्याचार करने वाले व्यक्ति के अत्याचार से ऊबकर उसका नाश होने की बात करते हुए यह कहावत कही जाती है।
- शब्दार्थ : तपही-अत्याचार करेगा, खपही-नष्ट होगा, जौन-जो, तौन-वो, खपबे-खपना, करही-करना
- जौन निहर के परोसे, तौन जाने। -- जो झुककर परोसता है, वही जानता है।
- व्याख्या : जो व्यक्ति जिस कार्य को करता है, वही उस कार्य की कठिनाइयों को समझता है। देखने वाले के लिए वह कार्य सहज लगता है।
- प्रयोग अनुकूलता : जब कोई व्यक्ति किसी को कार्य करते देखकर उस कार्य को बहुत साधारण बताता है, तब उसे समझने वाला व्यक्ति उसकी गंभीरता को बताने के लिए उस कहावत का प्रयोग करता है, जिससे कार्य को साधारण कहने वाले के अज्ञान पर भी प्रकाश पड़ता है।
- शब्दार्थ : निहर-झुककर, परोसे-परोसना, तौन-वह
- जौन माँ गाड़ा रेंगय, तौन माँ गाड़ी रेंगबेच करही। -- जिसमें गाड़ा चलता है, उसमें गाड़ी चलेगी ही।
- व्याख्या : जिस रास्ते में गाड़ा चल सकता है, उसमें गाड़ी चलेगी ही, क्योंकि जब बड़ी गाड़ी के लिए रूकावट नहीं है, तब छोटी गाड़ी के रूकने का प्रश्न ही नहीं उठता।
- प्रयोग अनुकूलता : जिस युक्ति या साहस से बड़े-बड़े कार्य हो सकते हैं, तब उससे छोटे-मोटे कार्य होने के संबंध में कोई शंका नहीं होती। ऐसे परिपेक्ष्य में यह कहावत कही जाती है।
- शब्दार्थ : जौन-जो, गाड़ा-बैलगाड़ी, रेंगय-चलना, तौन-वहां, रेंगबेच-चलना ही, करही-करना
- जौन माँ बूड़े टाँड़ी, तौन माँ होय खाँड़ी। -- जिसमें टाँड़ी डूब जाए, उसमें खंडी होता है।
- व्याख्या : ओनहारी फसल (गेहूँ, चने) से संबंधित जिस खेत में टाँड़ी डूब जाए, उसमें एक काठा बीज से एक खंडी फसल पैदा होगी। टाँड़ी डूब जाने का अभिप्राय यह है कि पौधों के सघन एवं खूब फैले होने के कारण उसमें अधिक दाने लगेंगे, इसलिए पैदावार भी अधिक होगी।
- प्रयोग अनुकूलता : संस्कृति आधारित कहावत है।
- शब्दार्थ : जौन-जिसमें, बूड़े-डूबना, तौन-उसमें, खांड़ी-खंडी
- जौन न रोगिया खोजै, तौन ला बैद बताय। -- जिसे रोगी खोजे, उसे वैद्य बताए।
- व्याख्या : जिस वस्तु की चाह रोगी को होती है, यदि उसे वैद्य ले लेने के लिए कह दे, वह रोगी को पसंद आता है।
- प्रयोग अनुकूलता : किसी व्यक्ति को जिस चीज की आवश्यकता हो, उसके मिल जाने की युक्ति कोई सुझा दे, तब यह कहावत कही जाती है।
- शब्दार्थ : जौन-जिसे, रोगिया-रोगी, तौन-उसमें, बैद-वैद्य, बताय-बताना
- जौने थाँग ला धरै, तौने टूटै। -- जिस डाल को पकड़े, वही टूट जाए।
- व्याख्या : जब कोई व्यक्ति किसी काम को करने में सफल नहीं होता, तब वह दूसरा काम करता है। उस काम में भी असफल होने पर वह किसी अन्य काम को शुरू करता है, उसमें उसे असफलता मिलती है।
- प्रयोग अनुकूलता : यदि किसी व्यक्ति को हर काम में असफलता मिले, तो यह कहावत कही जाती है।
- शब्दार्थ : थाँगा-डाल, जौने-जिस, धरै-धरना, तौने-वही
- झन साँप मरै, झन लाठी टूटै। -- न साँप मरे, न लाठी टूटे।
- व्याख्या : न काम बिगड़ने पाए और न किसी प्रकार की हानि सहनी पड़े।
- प्रयोग अनुकूलता : हिंदी में इस के विपरीत साँप मर जाए और लाठी न टूटे कहावत मिलती है, जिसका अर्थ है ‘काम बन जाए और लाठी न टूटे’। छतीसगढ़ी में साँप न मरना काम का न बिगड़ना अर्थात् काम का बनना है।
- शब्दार्थ : झन-मत
- झाँठ उखाने ले, मुर्दा हरू नइ होय। -- झाँट उखाड़ने से मुर्दा हल्का नहीं होता।
- व्याख्या : छोटी-सी कमी करने से भार हल्का नहीं होता। नाम मात्र के सहारे से कोई बड़ा काम पूरा नहीं होता।
- प्रयोग अनुकूलता : इस कहावत का प्रयोग ऐसे अवसरों पर होता है, जब कोई व्यक्ति किसी कार्य के लिए नाम मात्र का सहयोग प्रदान करता है।
- शब्दार्थ : झाँठ-जननेन्द्रिय के ऊपर उगने वाले बाल, उखाने-उखाड़ना, हरू-हल्का, नइ-नहीं, होय-होना
अंडा के लकड़ी ला हंडा फोरे माँ का लगे हे। -- अंडी की लकड़ी को हंडा फोड़ने फोड़ने में क्या लगता है।
- व्याख्या : अंडी की लकड़ी बहुत ही कमजोर तथा पतली होती है। उससे फोड़ी जाने वाली वस्तु पीतल का बड़ा भारी गुंडी हो, तो उस पर उसके आघातों कोई असर नहीं होता, उल्टे वह लकड़ी ही टूट जाती है।
- प्रयोग अनुकूलता : जब कोई सामान्य व्यक्ति किसी बहुत बड़े काम को संपन्न करने की बात करता है, तब उसे लज्जित करने के लिए यह कहावत कही जाती है।
- शब्दार्थ : हंडा-पीतल का बड़ा गुंड, फोरे-फोड़ना।
- अंडा बन माँ बिलरा बाघ। -- अंडी के जंगल में बिलौटा ही बाघ।
- व्याख्या : मूर्खो के बीच अल्पज्ञानी भी श्रेष्ठ समझा जाता है।
- प्रयोग अनुकूलता : जहाँ किसी बात को न समझने वाले लोग होते हैं ( जो उस बात को न समझने के कारण अंधों के समान हैं), वहाँ उसे थोड़ा-बहुत समझने वाला व्यक्ति अंधों के बीच काने समान हो जाता है। किसी बात को कुछ भी न समझने वालों के बीच उसे थोड़ा समझने वाले के लिए यह कहावत कही जाती है।
- शब्दार्थ : बन-वन, बिलरा- बिलौटा
- अँधरा पादै, भैरा जोहारै। -- अंधा पादे, बहरा जुहार करे।
- व्याख्या : जब कोई व्यक्ति किसी की बात को कुछ का कुछ समझता है, तब यह कहावत कही जाती है।
- प्रयोग अनुकूलता : जब कोई व्यक्ति किसी को अपनी बात समझाने का भरसक प्रयास करता है, परंतु सामने वाला उस बात को किसी दूसरे अर्थ में ले जाकर समझ लेता है, तब यह कहावत कही जाती है।
- शब्दार्थ : पादै-अधोवायु छोड़ना, जोहारै-नमस्ते करना
- अँधरा बर दइ सहाय। -- अंधे का ईश्वर सहायक।
- व्याख्या : ईश्वर निर्बल की सहायता करता है।
- प्रयोग अनुकूलता : जब किसी असहाय व्यक्ति की समस्या हल हो जाती है, तब इस कहावत का प्रयोग किया जाता है।
- शब्दार्थ : अंधरा-अंधा, दइ-भगवान
- अँधरी बछिया, पैरा के गोड़ाइत। -- अंधी बछिया के लिए पैरे की रस्सी का बंधन।
- व्याख्या : यदि किसी अंधी बछिया के पैर में कमजोर रस्सी बँधी हुई हो, तो वह उसे न देख पाने के कारण मजबूत समझकर तोड़कर नहीं भागती।
- प्रयोग अनुकूलता : जब कोई व्यक्ति इसी प्रकार भ्रमवश वास्तविकता को न समझकर अपने को बँधा हुआ अनुभव करता है, तब यह कहावत कही जाती है।
- शब्दार्थ : पैरा-धान के सूखे डंठल, गोड़ाइत-पैर में लगाया गया रस्सी का बंधन
- अँधरा खोजै, दू आँखी। -- अंधा खोजे, दो आँखें।
- व्याख्या : मनचाही वस्तु मिल जाने पर अत्याधिक प्रसन्नता होती है।
- प्रयोग अनुकूलता : किसी व्यक्ति को उस के लिए आवश्यक वस्तु सहज ही उपलब्ध हो जाने या उसकी आशा होने पर इस कहावत का प्रयोग किया जाता है।
- शब्दार्थ : अंधरा-अंधा, आंखी-आंख
- अँधवा माँ, कनवा राजा। -- अंधों में काना राजा।
- व्याख्या : मूर्खो के बीच अल्पज्ञानी भी श्रेष्ठ समझा जाता है।
- प्रयोग अनुकूलता : जहाँ किसी बात को न समझने वाले लोग होते हैं ( जो उस बात को न समझने के कारण अंधों के समान हैं), वहाँ उसे थोड़ा-बहुत समझने वाला व्यक्ति अंधों के बीच काने समान हो जाता है। किसी बात को कुछ भी न समझने वालों के बीच उसे थोड़ा-मोड़ा समझने वाले के लिए यह कहावत कही जाती है।
- शब्दार्थ : अंधवा-अंधा, कनवा-काना
- अइस रे मुड़ढ़क्की रोग, बाढ़े बेटा ला लागे जोग। -- सिर ढकने वाला रोग आने से पुत्र को योग लग गया।
- व्याख्या : शादी होने के बाद जवान पुत्र अपनी पत्नी के साथ अधिक रहने के कारण परिवार के अन्य सदस्यों को कम समय दे पाता है, जिससे वह अन्य लोगों की आलोचना का पात्र होता है।
- प्रयोग अनुकूलता : पत्नी के प्रति विशेष आकर्षण होने से आगे चलकर ऐसे लोगों को ‘पत्नी का गुलाम’ कहा जाता है।
- शब्दार्थ : मुड़ढ़क्की-सिर ढकने वाला।
- अइसन बहुरिया चटपट, खटिया ले उठै लटपट। -- बहू ऐसी चंचल है कि वह खाट से मुश्किल से उठ पाती है।
- व्याख्या : ऐसी बहू, जो घर का कार्य समय में नहीं कर पाती, क्योंकि वह सुबह देर तक सोती रहती है, खाट से मुश्किल से उठ पाती है।
- प्रयोग अनुकूलता : आलसी बहुओं पर व्यंग कसने के लिए यह कहावत कही जाती है।
- शब्दार्थ : अइसन-ऐसी, बहुरिया-बहू
- अइसन होतिस कातन हारी, काहे फिरतिस टाँग उघारी। -- ऐसी कातने वाली होती, तो नंगे बदन क्यों घूमती।
- व्याख्या : यदि काम करने में चतुर होते, तो लोग सम्मान करते।
- प्रयोग अनुकूलता : यदि कोई किसी बात की जानकारी रखता हो, तो उसे उसके संबंध में किसी अन्य से कुछ पूछ्ने की आवश्यकता नहीं होती, परंतु उसे दूसरे व्यक्ति से उस बात की जानकारी लेते देखकर उसके अनजान होने के संबंध में यह कहावत कही जाती है।
- शब्दार्थ : अइसन-ऐसा ही, होतिस-होना, कातन-कातना, फिरतिस-फिरना, टांग-पैर, उघारी-नंगा बदन
- अकल हे, बुध हे, पैसा नइ ए, त कुछु नइ ए। -- अकल है, बुद्धि है, परंतु पैसा न होने से कुछ भी नहीं है।
- व्याख्या : कई ऐसे व्यक्ति होते हैं, जिनके पास अक्ल और बुद्धि रहती है, परंतु पैसा नहीं होने के कारण कुछ नहीं कर पाते।
- प्रयोग अनुकूलता : पैसे के अभाव में कुछ न कर सकने की असमर्थता दिखाते हुए यह कहावत कही जाती है।
- शब्दार्थ : बुध-बुद्धि, कुछ-कुछ
- अकिल बड़े के भैंस। -- अक्ल बड़ी या भैंस।
- व्याख्या : अक्ल के सम्मुख शक्तिशाली भी अपनी हार स्वीकार कर लेता है।
- प्रयोग अनुकूलता : यदि कोई व्यक्ति अपनी बुद्धि से किसी शक्तिशाली व्यक्ति पर विजय प्राप्त कर लेता है, तो शारीरिक शक्ति से बुद्धि की शक्ति को श्रेष्ठ बताने के लिए यह लोकोक्ति कही जाती है।
- शब्दार्थ : अकिल -अक्ल
- अक्का काहत बक्का निकरे। -- अकार कहते-कहते बकार कह पड़ना।
- व्याख्या : बातचीत का विषयवस्तु ठीक चल रही हो, पर अचानक सम्मुख व्यक्ति के डर के कारण कुछ का कुछ कह डालना।
- प्रयोग अनुकूलता : जब कोई व्यक्ति जिससे बातचीत करता हो, उससे डरने के कारण कुछ का कुछ बोलता है, तब उस के संबंध में यह लोकोक्ति कही जाती है।
- शब्दार्थ : अक्का-अकार, बक्का-बकार
- अट के बनिया नवसेरा। -- गरजमंद व्यक्ति को बनिए से ऊल-जलूल भाव पर सौदा प्राप्त होता है।
- व्याख्या : मजबूरी का लाभ हर बदमाश व्यक्ति ले लेता है।
- प्रयोग अनुकूलता : यदि किसी व्यक्ति को किसी वस्तु की आवश्यकता हो और दूसरा कोई उसकी आवश्यकता को समझ जाए, तो वह उसकी मजबूरी का फायदा उठाने के लिए उसे दबाता है। गरजमंद व्यक्ति को दूसरे व्यक्ति द्वारा दबाए जाते देखकर यह कहावत कही जाती है।
- शब्दार्थ : अटके-अटक जाना
दंत-कथा: एक जाकीरदार का घोड़ा बीमार हो गया। उसने हर प्रकार का इलाज किया, परंतु घोड़ा अच्छा नहीं हुआ। एक बूढ़े वैद्य ने उसके इलाज के लिए इमली का बीज मँगाया। बहुत खोजने के बाद इमली का बीज एक बनिए के पास मिला। चालाक बनिया समझ गया कि जागीरदार का नौकर किसी भी भाव से सौदा खरीदेगा। बनिए ने जरूरतमंद नौकर को बताया कि इमली का बीज रूपए का नौ सेर मिलेगा। बनिए द्वारा गरजमंद को तेज भाव से सौदा दिए जाने से यह कहावत प्रचलित हो गई।
- अड़की जनिक आदमी, अउ मूते बर आगी। -- इतना छोटा व्यक्ति और आग मूतता है।
- व्याख्या : किसी भी क्षेत्र विशेष में अल्प व्यक्ति ही ज्यादा बढ़-चढ़ कर बात करता है।
- प्रयोग अनुकूलता : सामान्य हैसियत का कोई व्यक्ति किसी बड़े आदमी की मुँहजोरी करे, तो उसका ऐसा करना बड़े आदमी को चुभ जाता है, तब यह कहावत कही जाती है।
- शब्दार्थ : अड़की-इतना, अउ-और, मूते-पेशाब करना, बर-के कारण, आगी-आग
- अड़हा के लेखे डड़हे डड़हा। -- निरक्षर के लिए सभी अक्षर एक-जैसे होते हैं।
- व्याख्या : अपढ़ व्यक्ति किसी लेख के अक्षरों में भेद नहीं कर पाता, जिससे सभी अक्षरों को एक-जैसा समझता है।
- प्रयोग अनुकूलता : किसी कार्य को न समझने वाला व्यक्ति जब उसकी सूक्ष्मता को न जान सके, तब उस के लिए यह कहावत कही जाती है।
- शब्दार्थ : अड़हा-निरक्षर, लेखे-लेख
- अड़हा वैद प्रानघातका। -- अनाड़ी वैद्य प्राण लेने वाला होता है।
- व्याख्या : झोलाझाप डॉक्टर का ईलाज प्राणलेवा भी होता है। कोई अनाड़ी वैद्य रोग को न समझकर कुछ-का-कुछ दवाई दे देता है, जिससे रोगी को लाभ होने के बदले हानि हो जाती है।
- प्रयोग अनुकूलता : इसी प्रकार जब कोई व्यक्ति किसी ऐसे कार्य को जिसे वह नहीं समझता,अपने अज्ञान के कारण बनाने के बदले बिगाड़ डाले, तब यह कहावत कही जाती है।
- शब्दार्थ : अड़हा-अनाड़ी
- अदरा बरसै पुनरबस तपै, तेखर अन्न कोउ खा न सकै। -- आर्द्रा नक्षत्र में वर्षा हो, पुनबर्सु नक्षत्र में गर्मी पड़े, तो अनाज इतना होता है कि कोई खा नहीं सकता।
- व्याख्या : आर्द्रा नक्षत्र में वर्षा होने से धान की फसल को ठीक समय में पानी मिल जाता है तथा पुनबर्सु नक्षत्र में गर्मी पड़ने से धान के पौथे पानी मिलने के बाद धूप पाने से अधिक पुष्टता से बढ़ते हैं।
- प्रयोग अनुकूलता : अनुकूल वर्षा और धूप मिलने से खूब धान पैदा होता है। धान की उपज के संबंध में यह कहावत कही जाती है।
- शब्दार्थ : अदरा-आर्द्रा नक्षत्र, बरसै-बरसना, तपै-तपना, तेखर-उसका, पुनरबस-पुनवर्सु नक्षत्र, कोउ-कोई
- अपन-अपन कमाय, अपन-अपन खाय। -- अपना-अपना कमाना, अपना-अपना खाना।
- व्याख्या : सामान्यतः जब परिवार में सभी कमाने वाले हो जाते हैं और सम्मिलित रूप से घर का खर्चा चलते तो रहता है, परंतु खटपट भी होने लगता है। ऐसे समय में अपने-अपने कमाई से खर्चा चलाने की नसीहत बुर्जुग देते हैं।
- प्रयोग अनुकूलता : सम्मिलित परिवार में कमाने वाले कम तथा खाने वाले अधिक होते हैं। काम को बिना बाँटे करने में उस के प्रति कार्यकर्ताओं का आकर्षण कम हो जाता है, इसलिए कार्य का बँटवारा करने तथा उससे मिलने वाला लाभ भी अलग-अलग होने के लिए यह लोकोक्ति कही जाती है, ताकि न तो किसी का लेना पड़े और न किसी को देना पड़े।
- शब्दार्थ : अपन-अपना, कमाय-कमाना, खाय-खाना
- अपन आँखी माँ नींद आथे। -- अपनी आँखों में नींद आती है।
- व्याख्या : नींद लगती है, तो आँखें भी बंद होने लगती हैं। जिसे नींद आती है, उसी की आँखें बंद होती है। आँख और नींद का संबंध एक ही व्यक्त पर लागू होता है।
- प्रयोग अनुकूलता : अपना कार्य जब दूसरे व्यक्ति नहीं कर पाते, तब स्वयं के करने से होता है। जब कोई व्यक्ति अपना काम दूसरे को सौंप दे और वह उसे न कर पाए, तब अपना कार्य स्वयं करने से होता है, यह बताने के लिए इस कहावत का प्रयोग किया जाता है।
- शब्दार्थ : अपन-अपना, आंखी-आंख, आथे-आना
- झोली माँ झांठ नहिं, सराय माँ डेरा। -- झोली में झाँट नहीं, सराय में डेरा।
- व्याख्या : यदि सराय में निवास करने के इच्छुक व्यक्ति की झोली में कुछ न हो, तो वह सराय में ठहरने के लिए किराया क्या देगा?
- प्रयोग अनुकूलता : ऐसा व्यक्ति जिसके पास पैसे न हो और वह किसी बड़े कार्य का बीड़ा उठाना चाहता है, उसके लिए यह कहावत कही जाती है।
- शब्दार्थ : झाँठ-जननेन्द्रिय के ऊपर उगने वाले बाल, नहिं-नहीं
- टठिया न लोटिया, फोकट के गौंटिया। -- थाली न लोटा मुफ्त के गौंटिया।
- व्याख्या : घर में कुछ है नहीं, अपने को झूठ-मूठ ही मालगुजार कहता है। किसी गाँव का मालगुजार उस गाँव का संपन्न व्यक्ति होता था। ऐसा व्यक्ति, जो अपने को मालगुजार कहे, उस के पास थाली, लोटा आदि ढेर सारी वस्तुएँ होनी चाहिए। यदि उस के पास थाली, लोटा जैसी आवश्यक वस्तुएँ भी न हो, तो वह झूठा व्यक्ति है।
- प्रयोग अनुकूलता : झूठी तड़क-भड़क दिखाने वालों के लिए इस कहावत का प्रयोग होता है।
- शब्दार्थ : टठिया-कटोरा, लोटिया-लोटा, फोकट-मुफ्त
- टेटका के चिन्हारी बारी ले। -- गिरगिट की पहचान बाड़ी तक।
- व्याख्या : जिस प्रकार सताए जाने पर गिरगिट भाग कर बाड़ी में अपनी प्राण-रक्षा करता है, उसी प्रकार आवश्यकता पड़ने पर सामान्य व्यक्ति किसी विशिष्ट व्यक्ति की शरण में पहुँच जाता है।
- प्रयोग अनुकूलता : उसे बार – बार एक ही व्यक्ति की शरण में जाते देखकर यह कहावत कही जाती है।
- शब्दार्थ : टेटका-गिरगिट, चिन्हारी-पहचान, बारी-बाड़ी
- ठलहा बनिया का करै, ए कोठी के धान ला ओ कोठी माँ करै। -- निठल्ला बनिया क्या करे, इस कोठी के धान को उस कोठी में रखे।
- व्याख्या : निठल्ला व्यक्ति अपने को व्यस्त दिखाने के लिए अनावश्यक कार्य करता है।
- प्रयोग अनुकूलता : इस कहावत का प्रयोग निठल्ले व्यक्तियों के लिए किया जाता है, जो समय काटने के लिए इधर-उधर का कुछ काम करते हैं।
- शब्दार्थ : कोठ-धान रखने के लिए मिट्टी का बना हुआ गोला या चौकान कोठा, ए-इस, ओ-उस
- ठाकुर देव ला मटिया ठगै। -- ठाकुर देव को मटिया ठगती है।
- व्याख्या : ठाकुर देव ग्राम देव जैसा एक देवता माना जाता है। मटिया ठाकुर देव की बराबरी नहीं कर सकती और न ही सामान्यतया उसे ठग सकती है। यदि मटिया ठाकुर देव को ठग ले, तो यह आश्चर्य की बात है।
- प्रयोग अनुकूलता : इसी प्रकार यदि कोई सामान्य बुद्धि का व्यक्ति किसी चालाक व्यक्ति को बेवकूफ बनाकर उससे कुछ ले जाए, तो यह कहावत कही जाती है।
- शब्दार्थ : ठाकुर देव-एक प्रकार का देवता, मटिया-बिल्ली के समान छोटी क प्रेतात्मा, ठगै-ठगना
- ठिनिन-ठिनिन घंटी बाजै, सालिक राम के थापना। मालपुवा झलका के, मसक दिए अपना।। -- ठन-ठन घंटी बाजै, शालिग्राम की स्थापना। मालपुवा दिखाकर, स्वयं खा गए।।
- व्याख्या : घंटे, घड़ियाल, आदि बजाकर शालिग्राम की स्थापना की गई। उसके लिए मालपुवे का भोग लगाया गया, जिसे पुजारी ने लोगों को दिखाकर बाद में स्वयं खा लिया। भगवान का वह प्रसाद लोगों को नहीं मिला।
- प्रयोग अनुकूलता : पुजारी के समान जब कोई व्यक्ति किसी काम को करने के लिए अन्य लोगों की सहायता लेता है और काम पूरा हो जाने पर उससे मिलने वाले लाभ का हिस्सा किसी को नहीं देता, तब वह उस व्यक्ति की स्वाथर्परता को लक्ष्य करके यह कहावत कही जाती है।
- शब्दार्थ : ठिनिन-ठन, बाजै-बजना, सालिक राम-शालिग्राम, थापना-स्थापना, मालपुवा-भगवान, झलका-दिखाना, मसक-मसकनार
- ठूँठवा मारै ठूँठ माँ, त गदगद हाँसी आवै। राजा मारै फूल माँ त रोवासी आवै।। -- लूला ठूँठ से मारै, तो हँसी आवे। राजा फूल से मारै, तो रोना आवे।।
- व्याख्या : लूला व्यक्ति की कोहनी की मार यद्यपि राजा के फूल की मार से भारी होती है, तथापि वह हास्य-विनोद की मार होती है, जिससे उससे हँसी जाती है। राजा के फूल की मार यद्यपि महसूस नहीं होती, तथापि राजा के क्रोध के डर से रोना आ जाता है। हास्य-विनोद में शारीरिक आघात की ओर भी ध्यान नहीं जाता, किंतु व्यंग्य में बहुत छोटी-सी बात भी चुभ जाती है।
- प्रयोग अनुकूलता : हास्य विनोद से युक्त कहावत है।
- शब्दार्थ : ठूँठवा-लूला व्यक्ति, हांसी-हंसी, आवै-आना, रोवासी-रोना
- डहर के खेती, अउ राँड़ी के बेटी। -- रास्ते की खेती, और राँड़ की बेटी।
- व्याख्या : रास्ते की खेती सुरक्षित नहीं रहती, क्योंकि उसे रास्ता चलते मनुष्य तथा पशुओं से प्रायः नुकसान हो जाता है। इसी प्रकार रांड़ की बेटी भी होती है, जिसके घर के बाहर सुरक्षा के लिए उसका पिता नहीं होता।
- प्रयोग अनुकूलता : सांस्कृतिक कहावत है।
- शब्दार्थ : डहर-रास्ता, अउ-और
- डहर माँ हागै, अउ आँखी गुड़ैरै। -- रास्ते में मल्य त्याग करना और आंख दिखाना।
- व्याख्या : गलती स्वयं की, पर टोकने वाले को आंख दिखाना।
- प्रयोग अनुकूलता : इस कहावत का प्रयोग ऐसे व्यक्तियों के लिए किया जाता है, जो स्वयं अपराध करते हैं, परंतु पकड़े जाने पर पकड़ने वाले को डाँटते हैं।
- शब्दार्थ : हागै-मल त्याग करना, आँखी गुड़ैरै-गुस्सा से आँख दिखाना, अउ-और
- डाँगी कस बोकरा बँधाए हे। -- खंभे से बँधे बकरे के समान बँधा है।
- व्याख्या : ऐसे बकरे को जिसकी बलि देनी होती है, किसी खंभे से बाँधकर रखा जाता है। इसी प्रकार, जो मनुष्य किसी ऐसे जाल में फंसा हुआ होता है, जिसमें से निकलने का कोई रास्ता नहीं होता, तो वह खंभे से बँधे बकरे के समान असहाय हो जाता है।
- प्रयोग अनुकूलता : जब कोई व्यक्ति किसी के चंगुल में फँस जाए, तो यह कहावत कही जाती है।
- शब्दार्थ : डाँगी-बाँस का खंभा, कस-जैसे, बोकरा-बकरी, बंधाए-बंधाना
- डाढ़ी वाले बोकरा गै, त एक मूँठा नून अउरो जाय। -- दाढ़ी वाला बकरा गया, तो मुट्ठी भर नमक और चला जाए।
- व्याख्या : दाढ़ी वाला बकरा खो गया, तो उसको खोजने के लिए मुट्ठी भर नमक और खर्च करके उसे खोज लिया जाए। यदि वह मिल जाए, तो अच्छा है, अन्यथा मुट्ठी भर नमक का नुकसान सही।
- प्रयोग अनुकूलता : जब कोई काम बिगड़ जाए और उसके सुधरने की आशा कम हो, तब भी उसे सुधारने के लिए थोड़ा धन और लगाकर देख लेने के लिए यह कहावत कही जाती है।
- शब्दार्थ : मूँठा-मुट्ठी, नून-नमक, डाढ़ी-दाढ़ी, अउलो-और
- डार के चू के बेदरा, अउ असाढ़ के चू के किसान। -- डाल से चूकने वाला बंदर और असाढ़ में चूकरने वाला किसान।
- व्याख्या : बंदर एक डाल से दूसरी डाल पर उछलते समय चूक जाए और असाढ़ महीने में किसान खेती का काम करने में चूक जाए, तो फिर उनका सँभलना मुश्किल हो जाता है।
- प्रयोग अनुकूलता : समय में काम न करने से चूक जाने वाले व्यक्ति के लिए यह कहावत कही जाती है।
- शब्दार्थ : डार-डाल, चूके-चूकना, बेंदरा-बंदर, अउ-और, असाढ़-आषाढ़
- डिड़वा घर माँ चिड़वा बासी। -- डिड़वे के घर अधप के चांवल की बासी होती है।
- व्याख्या : स्त्री के न होने से भोजन बनाने में पुरूष को कठिनाई होती है, जिससे उसे अधप के चावल की बासी खानी पड़ती है।
- प्रयोग अनुकूलता : जिसकी स्त्री न हो और उसे भोजन की दिक्कत हो उसके लिए यह कहावत कही जाती है।
- शब्दार्थ : डिंड़वा-जिसकी स्त्री न हो (कुवाँरा भी और भी रँडुआ भी), चिड़वा-अधपका चावल
- डेढ़ बोड़ के चाकरी, बकायन तरी डेरा। -- डेढ़ बोड़ की नौकरी, बकायन के नीचे डेरा।
- व्याख्या : डेढ़ बोड़ की नौकरी करने वाले व्यक्ति को बहुत कम पैसे मिलते हैं और काम बहुत कष्ट का करना पड़ता है।
- प्रयोग अनुकूलता : जब किसी व्यक्ति को थोड़े से पैसे में दूर-दूर भटक कर खूब मेहनत का काम करना पड़े, तब उस नौकरी को खराब बताने के लिए यह कहावत कही जाती है।
- शब्दार्थ : बोड़-किसी जमाने में प्रचलित एक प्रकार का सिक्का, बकायन-एक प्रकार का छोटा वृक्ष, तरी-नीचे
- डोंगा के अगाड़ी, गाड़ी के पिछाड़ी। -- नाव के अगले भाग में, गाड़ी के पिछले भाग में।
- व्याख्या : नदी पार करते समय नाव में आगे की ओर बैठना चाहिए। यदि नाव नदी में डूबने लगे, तो आगे बैठने वाले को पीछे वाले की अपेक्षा नदी का दूसरा किनारा जल्दी मिलेगा। गाड़ी में पीछे बैठने वाला व्यक्ति किसी दुघर्टना में बच सकता है, क्योंकि गाड़ी का अगला भाग ही दुघर्टना से अधिक प्रभावित होता है।
- प्रयोग अनुकूलता : नियम की बात कहते हुउ उपरोक्त परिस्थिति की कहावत है।
- शब्दार्थ : डोंगा-नाव, पिछाड़ी-पिछला हिस्सा
- डोकरी मरिस छोकरी होइस, बरोबर के बरोबर। -- बूढ़ी मरी, बच्ची हुई, बराबर की बराबर।
- व्याख्या : बूढ़ी मर गई और बच्ची पैदा हो गई, जिससे घर में परिवार वालों की संख्या बराबर ही रही।
- प्रयोग अनुकूलता : जब आने और जाने वालों की संख्या बराबर रहती है, तब यह कहावत कही जाती है।
- शब्दार्थ : डोकरी-बूढ़ी, छोकरी-बच्ची, मरिस-मरना, होइस-होना, बरोबर-बराबर
- डौकी के बुध नाक माँ। -- स्त्री की बुद्धि नाक में।
- व्याख्या : औरतों में बुद्धि की कमी होती है।
- प्रयोग अनुकूलता : इस कहावत का प्रयोग तब किया जाता है, जब औरत कोई गलत कार्य कर बैठती है।
- शब्दार्थ : डौकी-स्त्री, बुध-बुद्धि
- डौकी के रेंगना देख ले, फेर रँधना देखबे। -- स्त्री की चाल देख लो, फिर खाना पकाना देखना।
- व्याख्या : किसी स्त्री के चलने से यह मालूम हो जाता है कि वह कैसी है। उसकी चाल से यह पता लग जाता है कि वह खाना कैसा बनाएगी। चंचल स्त्री का काम अच्छा होगा और मंद स्त्री का कार्य ढीला-ढाला होगा।
- प्रयोग अनुकूलता : किसी स्त्री के स्वभाव का पता उस के चलने की गति से हो जाता है। इसी परिपेक्ष्य में यह कहावत कही जाती है।
- शब्दार्थ : डौकी-पत्नी, रेंगना-चलना, रंधना-खाना बनाना, देखबे-देख लेना
- डौकी टमरे कन्हिया, अउ महतारी टमरे पेट। -- स्त्री कमर टटोलती है और माँ पेट टटोलती है।
- व्याख्या : स्त्री अपने पति की कमर टटोलती है, जिससे वह उसकी शक्ति जानना चाहती है और माँ बच्चे के पेट को देखती है कि उसका बच्चा भूखा तो नहीं है।
- प्रयोग अनुकूलता : पत्नी का प्रेम स्वाथर्वश होता है, परंतु माँ का प्रेम निःस्वार्थ होने से श्रेयस्कर माना है। इसी परिपेक्ष्य में यह कहावत कही जाती ह।
- शब्दार्थ : डौकी-पत्नी, टमरे-टटोलना, कन्हिया-कमर, अउ-और, महतारी-मां
- तइहा के बात ल बइहा लेगे। -- तब की बात को पागल ले गया।
- व्याख्या : जब एक पीढ़ी पहले का व्यक्ति अपने उस युग की बात करता है, जिसे सुनने वाले व्यक्ति नहीं जानते, तब उसकी बातों पर अविश्वास करते हुए कहते हैं कि उसे तो पागल ले गया अर्थात् वे बातें पागलपन की हैं। अब वैसी बातें नहीं होती।
- प्रयोग अनुकूलता : पुरानी बातों पर अविश्वास करने वाले लोग इस कहावत को कहते हैं।
- शब्दार्थ : बइहा-पागल, तइहा-तब
तजेंव पूछी, तजेंव कान, चौहर बिन कइसे रहिहै प्रान। -- पूँछ छोड़ दी, कान छोड़ दिया, लेकिन मुँह के बिना प्राण कैसे बचेंगे।
- व्याख्या : पूँछ और कान किसी को देकर काम चला लिया परंतु मुँह को देने से प्राण नहीं बचेंगे, इसलिए उसे नहीं दिया जा सकता। जितना परोपकार संभव था, तब किया, अब आगे कुछ नहीं किया जा सकता।
- प्रयोग अनुकूलता : जब कोई व्यक्ति किसी से उत्तरोत्तर अपनी माँग पेश करता है, तब उसकी ज्यादती को देखकर यह कहावत कही जाती है।
- शब्दार्थ : चौहर-मुँह, तजेंव-छोड़ दी, प्रान-प्राण
- तन बर नइ ए लत्ता, जाए बर कलकत्ता। -- शरीर पर कपड़े नहीं है और जाने के लिए कलकत्ता।
- व्याख्या : ऐसे गरीब व्यक्ति, जिनके पास पहनने के लिए वस्त्र न हों, यदि कलकत्ता जाने का शौक करे, तो यह हास्यास्पद लगता है।
- प्रयोग अनुकूलता : गरीबी में भी शौक करना, ऐसे परिपेक्ष्य में यह कहावत कही जाती है।
- शब्दार्थ : बर-के कारण, नइ-नहीं, लत्ता-कपड़ा
- तात भात असन दबा लेथे। -- गरम भात जैसा मुँह में दबा लेता है।
- व्याख्या : गरम भात खाने मे ताजेपन का जायका मिलता है। वह मुलायम होता है। जिससे उसे खाने वाले व्यक्ति को चबाने के लिए विशेष प्रयत्न नहीं करना पड़ता।
- प्रयोग अनुकूलता : किसी दूसरे की वस्तु को आसानी से हजम करने वाले व्यक्ति के लिए यह कहावत कही जाती है।
- शब्दार्थ : तात-गरम, भात-पका हुआ चांवल, असन-जैसा, लेथे-लेता है
- ताते खाँव, अउ पहुना सँग जाँव। -- गरम-गरम खाऊँ और मेहमान के साथ जाऊँ।
- व्याख्या : गरम खाना खाकर मेहमान के साथ जाने को उत्सुक व्यक्ति बाहर जाने की जल्दी करता है।
- प्रयोग अनुकूलता : इस कहावत का प्रयोग तब होता है, जब कोई व्यक्ति किसी काम के लिये निश्चित समय से भी अधिक शीघ्रता करता है।
- शब्दार्थ : ताते-गरम, खांव-खाना, अउ-और, पहुना-मेहमान, संग-साथ, जांव-जाना
- तितूर फँस गे लावा फँस गे, तैं कस फँसे बटेर। प्रेम-प्रीत के कारन, आँखी ल देए लड़ेर। -- तीतर फँस गया, लवा फँस गया, तू क्यों फँसी बटेर? प्रेम-प्रीत के कारण, आँखें उलट दी।
- व्याख्या : तीतर लवा पक्षी तो जाल में फँस जाते हैं, परंतु बटेर का फँसना नामुमकिन है। बटेर अन्य पक्षियों के साथ प्रेम में उन्हें छोड़कर नहीं भागती, जिससे अन्यों के साथ वह भी मारी गई।
- प्रयोग अनुकूलता : बुरे लोगों के साथ रहने के कारण जब निर्दोष व्यक्ति भी कष्ट भोगता है, तब यह कहावत कही जाती है।
- शब्दार्थ : आंखी-आंख, तितूर-तीतर
- तीन कौड़ी के तितरी, बाहिर के ना भीतरी। -- तीन कौड़ी का तीतर, बाहर का न भीतर का।
- व्याख्या : तीतर तो सस्ती मिल गई, परंतु वह न तो मेहमानों के लिए पर्याप्त हो पाया और न ही घर के लोगों के लिए।
- प्रयोग अनुकूलता : जब कोई व्यक्ति थोड़ी कीमत की वस्तु में शौक पूरा करता है और बड़प्पन का दिखावा करता है, तब उस के इस स्वभाव पर व्यंग्य कसने के लिए यह कहावत कही जाती है।
- शब्दार्थ : तितरी-तीतर, बाहिर-बाहर, भीतरी-भीतर
- तीन माँ न तेरा माँ, ढोल बजावै डेरा माँ। -- तीन में न तेरह में, अपनी झोपड़ी में ढोल बजाता है।
- व्याख्या : ऐसा व्यक्ति जो किसी के पचड़े में न पड़ कर अपनी झोपड़ी में मस्त रहता है, उसका जीवन अपने ही कार्यो में व्यतीत होता है। अन्य लोगों के विवाद में न पड़ने वाला व्यक्ति अपनी झोपड़ी में आनंदित रहता है।
- प्रयोग अनुकूलता : स्वयं में मजे में रहने वाले व्यक्ति के लिए यह कहावत कही जाती है।
- शब्दार्थ : तेरा-तेरह
- तुलसा माँ मुतही, तउन किराबे करही। -- तुलसी में पेशाब करने वाले को कीड़े लगेगें ही।
- व्याख्या : जो व्यक्ति तुलसी के पौधे पर पेशाब करेगा, उसके अंग में कीड़े लगेंगे। तुलसी के पौधे पर पेशाब करना वर्जित है, जो व्यक्ति अनैतिक कार्य करेगा, उसे उसका दुष्परिणाम भोगना पड़ेगा।
- प्रयोग अनुकूलता : अनैतिक कार्यों को करने वाले के लिए यह कहावत कही जाती है।
- शब्दार्थ : तुलसा-तुलसी, मुतही-पेशाब करना, तउन-तब, किराबे-कीड़ा पड़ना
- तेंदू के अँगरा, बरे के न बुताय के। -- तेंदू की लकड़ी न तो जलती है और न बुझती है।
- व्याख्या : तेंदू की लकड़ी धुआँ देकर नेत्रों को कष्ट पहुँचाती है। इसी प्रकार दुष्ट व्यक्ति अकारण दूसरों को नुकासान पहुँचाते हैं।
- प्रयोग अनुकूलता : दूसरों को परेशान करने वाले दुष्ट व्यक्ति के लिए यह कहावत कही जाती है।
- शब्दार्थ : अंगरा-अंगार, बरे-जलना, बुताय-बुझना
- तेल न तेलइ, बरा-बरा नरियइ। -- तेल न कड़ाही, ‘बड़ा’, ‘बड़ा’ चिल्लाना।
- व्याख्या : न तो तेल है और न कड़ाही। ऐसी स्थिति में ‘बड़े’ नामक व्यंजन की माँग करना फिजूल है।
- प्रयोग अनुकूलता : जब उचित प्रबंध न होने पर कोई व्यक्ति किसी वस्तु की माँग करता है, तब यह कहावत कही जाती है।
- शब्दार्थ : तेलइ-मिट्टी की कड़ाही, बरा-बड़ा, नरियइ-चिल्लाना
- तैं जा डेढ़ संग में रोटी खाँव तेल संग। -- तुम बड़े साले या बड़ी साली के साथ जाओ, मैं तेल के साथ रोटी खाऊँ।
- व्याख्या : तुम बड़े साले या बड़ी साली के साथ जाओ, जिससे मुझे तेल के साथ रोटी खाने को मिलेगी, अन्यथा रोटी का बँटवारा हो जाएगा।
- प्रयोग अनुकूलता : खाने का बंटवारा न हो, इसलिए दूसरों को भगा देने वाले व्यक्ति के लिए यह कहावत कही जाती है।
- शब्दार्थ : डेढ़-बड़ा साला, खांव-खाना, तैं-तुम
- तोर गरी, मोर कान के बारी। -- तुम्हारी गाली, मेरे कान की बाली।
- व्याख्या : तुम्हारी कड़वी बातों का स्वागत है, जो मेरे कल्याण के लिए है।
- प्रयोग अनुकूलता : जब कोई व्यक्ति अपने हितैषी पर रूष्ट होता है, तब वह इस कहावत का प्रयोग करता है।
- शब्दार्थ : बारी-कान में पहनने का आभूषण बाली, तोर-तुम्हारा, मोर-मेरा
- तोर तेल ला भुँया माँ घर, तैं मोला ठेकवा दे। -- अपने तेल को जमीन में रखो, तुम मुझे अपना ठेकवा दो।
- व्याख्या : अपने काम की वस्तु (ठेकवा) दूसरे को दो और अपने काम के लिए कुछ भी करो।
- प्रयोग अनुकूलता : इस कहावत का प्रयोग ऐसे लोगों के लिए किया जाता है, जो दूसरों के हित-अहित का ख्याल न करते हुए केवल अपना हित चाहते है।
- शब्दार्थ : तोर-तेरा, भुंया-जमीन, तैं-तुम, मोला-मेरे को
- तोर नाक फरा असन, तैं मोला फरा दे। -- तुम्हारी नाक फरा जैसी है, तुम मुझे फरा दो।
- व्याख्या : तुम्हारी नाक फरा के समान है। मुझे फरा खाने की इच्छा है, इसलिए तुम मेरी इच्छा पूरी करो।
- प्रयोग अनुकूलता : जब कोई व्यक्ति किसी से कुछ लेना चाहे और वह उसे सीधे न माँगकर व्यक्ति को अप्रत्यक्ष रूप उसे देने को बाध्य करता है, तब यह कहावत कही जाती है।
- शब्दार्थ : फरा-एक प्रकार का नए चांवल आटे को उबाल कर बनाया गया व्यंजन, तोर-तेरा, तैं-तुम, मोला-मेरा
- तोर मन ले मन पटेलिन, भाजी राँधस के भाँटा। -- पटेलिन ! तुम्हारी इच्छा, चाहे भाजी बनाओ या भटा।
- व्याख्या : पटेलिन के पास भाजी और भटा दोनों है। वह अपने पति से पूछती है कि कौन सी सब्जी बनाई जाए। उसका पति उसी की इच्छा के अनुसार सब्जी बनाने के लिए कह देता है।
- प्रयोग अनुकूलता : जब कोई व्यक्ति दो वस्तुओं में से किसी एक को लेने के लिए अन्य व्यक्ति से पूछता है और उसे पूछने वाले की इच्छा पर छोड़ दिया जाता है, तब यह कहावत कही जाती है।
- शब्दार्थ : तोर-तुम्हारा, रांधस-पकाना, भांटा-भटा
- तोरे खाय तूहीं ला बिजराय। -- तुम्हारा खाना और तुम्हीं को दिखाकर चिढ़ाना।
- व्याख्या : कोई व्यक्ति किसी के घर की कोई चीज खाता है और वह उसे ही चीज को दिखाकर चिढ़ाता है, तब चिढ़ाने वाले का अभिप्राय यह होता है कि वह खा रहा है और उस चीज का मालिक देख रहा है।
- प्रयोग अनुकूलता : यदि कोई व्यक्ति किसी की चीज लेकर उसी को वंचित रखे, तो यह कहावत कही जाती है।
- शब्दार्थ : बिजराय-चिढ़ाना, तोरे-तुम्हारा, तूहीं-तुम्हारा
- थाना-थाना सेमी लगावै, टोरे बर ढोम्हाँ भर। -- ठौर-ठौर में सेम लगाए, तोड़े तो अंजली भर।
- व्याख्या : कई जगहों पर सेम लगाई, परंतु उनमें इतने कम फल निकले कि तोड़ने पर वह मुट्ठी भर ही हुए।
- प्रयोग अनुकूलता : बहुत परिश्रम कर के किसी कार्य को किया, परंतु परिश्रम के अनुपात में फल न मिलने पर यह कहावत कही जाती है।
- शब्दार्थ : ढोम्हाँ-अंजली, थाना-ठौर, सेमी-सेम, टोरे-तोड़ना
- थू के थूक माँ लड़वा बाँधे। -- थूक-थूक से ही लड्डू बाँधता है।
- व्याख्या : थूक से लड्डू नहीं बाँधा जाता। उससे लड्डू बाँधना असंभव कार्य है।
- प्रयोग अनुकूलता : जब कोई व्यक्ति कल्पना के सहारे भविष्य की योजनाएँ बनाए, जिस के कार्यान्वयन होने के लिए आवश्यक वस्तुएँ भी न हो, तब यह कहावत कही जाती है।
- शब्दार्थ : लड़वा-लड्डू
- थूक ले-ले तिल बटोरा, ए के फाँका। -- थूक ले-लेकर तिल इकट्ठे किए, जो एक बार में ही मुँह के अंदर चले गए।
- व्याख्या : थोड़ा-थोड़ा कर के तिल इकट्ठे किए गए, जो एक ही बार में समाप्त कर दिया गया।
- प्रयोग अनुकूलता : जब मनुष्य बड़े परिश्रम से किसी कार्य को करता है और कहीं वह एकदम बिगड़ जाता है, तब यह कहावत कही जाती है।
- शब्दार्थ : एके-एक बार में
- थेथेर-थेथेर थेथ ले, नइ पतियावस त देख ले। -- लुंज-पुंज व्यक्ति थेथ-थेथ करता है, विश्वास न हो तो देख लो।
- व्याख्या : लुंज-पुंज व्यक्ति अपने क्रिया से ही थोथा दिखाई पड़ता है, जिसे उसके थोथे होने का विश्वास न हो, वह उस के कार्यकलाप को प्रत्यक्ष रूप से देख ले।
- प्रयोग अनुकूलता : ढीला-ढाला व्यक्ति को ताना देते हुए यह कहावत कही जाती है।
- शब्दार्थ : थेथेर-लुंज-पुंज, पतियाना-विश्वास करना, नइ-नहीं
थैली के चोट ल बनिया जानै। -- थैली की चोट को बनिया ही जाने।
- व्याख्या : बनिए का कितना नुकसान हुआ, यह बनिया ही जान सकता है, औरों को उसका क्या अंदाज होगा।
- प्रयोग अनुकूलता : जब किसी व्यक्ति का नुकसान हो जाता है और वह उसे इसलिए छिपाता है कि बताने से भी कुछ वापस तो मिलना नहीं हैं, लेकिन वह मन-ही मन चिंतित रहता है, तब उस के लिए यह कहावत कही जाती है।
- शब्दार्थ : जानै – जानना
- थोरे खाय, बहुते डेकारै। -- थोड़ा खाता है, परंतु डकार अधिक लेता है।
- व्याख्या : थोड़ा-सा खाना खाकर डकार लेते हुए यह सिद्ध करने की चेष्टा करता है कि सारा खाना खाया है।
- प्रयोग अनुकूलता : जब कोई व्यक्ति थोड़ा काम कर के बहुत काम करने की शेखी बघारता है, तब यह कहावत कही जाती है।
- शब्दार्थ : थोरे-थोड़ा, खाय-खाना, डकारे-खा जाना
- दइ लेगे-लेगे, दमाद-लेगे। -- ईश्वर ले गया, तो ले गया, दामाद ले गया तो ले गया।
- व्याख्या : लड़की पराया धन होती है, उस के मरने पर यह कहते हैं कि उसे तो जाना ही था, चाहे भगवान के घर जाए या दामाद के घर।
- प्रयोग अनुकूलता : परंपरा पर आधारित कहावत है।
- शब्दार्थ : दइ-ईश्वर, दमाद-दामांद, लेगे-ले गया
- दगा कहूँ के सगा नहिं। -- धोखा किसी का सगा नहीं होता।
- व्याख्या : प्रत्येक व्यक्ति धोखा खा सकता है।
- प्रयोग अनुकूलता : किसी व्यक्ति के धोखे में पड़ जाने पर यह कहावत कही जाती है कि वह किसी का भी अपना नहीं है, अर्थात् उससे कोई भी व्यक्ति नहीं छूटता।
- शब्दार्थ : दगा-धोखा, कहूं-किसी का, सगा-मेहमान
- दहरा के भरोसा माँ, केवट बाढ़ी खाय। -- दहरे के भरोसे केवट उधार ले कर खाता है।
- व्याख्या : केवट दहरे में से मछली मारकर अपना जीविकोपार्जन करता है। दहरे के भरोसे से उधार ले कर खा जाए और उसे मछली न मिले, तो उसकी मुसीबत हो जाती है।
- प्रयोग अनुकूलता : जब कोई व्यक्ति अनिश्चित भविष्य के सहारे कार्य करता है, तब यह कहावत कही जाती है।
- शब्दार्थ : बाढ़ी-उधार
- दहरा माँ मछरी, भाँठा माँ मोल। -- दहरे में मछली, जमीन में मूल्य।
- व्याख्या : अथाह जल में रहने वाली उस मछली का मूल्य पानी से दूर सूखी जमीन पर आँका जा रहा हो, जिसके संबंध में खरीददारों को कुछ पता नहीं है।
- प्रयोग अनुकूलता : जब बिना देखे किसी वस्तु का सौदा किया जाता हो, तक इस कहावत का प्रयोग होता है।
- शब्दार्थ : भाँठा-विशेष प्रकार की मिट्टी वाली जमीन, मछरी-मछली
- दही के भोरहा माँ कपसा लीलै। -- दही के धोखे में कपास निगल जाता है।
- व्याख्या : मिलते-जुलते चीजों से धोखा खा जाना।
- प्रयोग अनुकूलता : जब कोई व्यक्ति कुछ मिलती जुलती बातों के कारण धोखा खाकर नुकसान उठाता है, तब यह कहावत कही जाती है।
- शब्दार्थ : साखी-साक्षी, बिलइया-बिल्ली
- दाँत हे त चना नहिं, चना हे त दाँत नहिं। -- दाँत है तो चने नहीं, चने हैं तो दाँत नहीं।
- व्याख्या : जब जिस चीज की आवश्यकता होती है, तब वह चीज उपलब्ध नहीं होती।
- प्रयोग अनुकूलता : काल-परिवर्तन के कारण जब स्थिति परिवर्तित हो जाए, जिससे अवसरोचित साधनों का अभाव हो जाए, तब यह कहावत प्रयुक्त होती है।
- शब्दार्थ : नहिं-नहीं
- दाँते टूटिस, मुँहे बनिस। -- दाँत टूटे, मुँह बना।
- व्याख्या : यदि कुछ दाँत टूट जाएँ तथा कुछ बने रहें, तो इससे मुँह का आकार बिगड़ जाता है। पूरे दाँत टूट जाने पर मुँह का आकार नकली दाँतों से पुनः बन जाता है।
- प्रयोग अनुकूलता : जब किसी कार्य में नुकसान होता है, परन्तु उस नुकसान से आगे चलकर लाभ होने की संभावना हो जाती है, तब यह कहावत कही जाती है।
- शब्दार्थ : बनिस – बनना
- दाई – ददा आन, तेखर लइका कइसन। -- माँ – बाप दूसरे हों, उनके बच्चे कैसे होंगे?
- व्याख्या : माँ एक प्रकार की हो और बाप बिल्कुल दूसरे प्रकार का, तब उनसे उत्पन्न बालक भी भिन्न प्रकार का होगा।
- प्रयोग अनुकूलता : बेमेल कार्यों का परिणाम कैसा होगा, यह बतलाने के लिए इस कहावत का प्रयोग होता है।
- शब्दार्थ : दाई – मां, ददा – पिता, तेखर – उसका, लइका – बच्चा, कइसन – कैसा
- दाइ मरै धिया बर, धिया मरै पिया बर। -- माँ अपनी पुत्री के लिए चिंतित रहती है, पुत्री अपने पति के लिए चिंतित रहती है।
- व्याख्या : सामान्यता मां अपनी पुत्री के लिए और पुत्री अपने पति की चिंता में ही व्यस्त रहती है।
- प्रयोग अनुकूलता : जब कोई व्यक्ति किसी के लिए बहुत कुछ करता है, परंतु बदले में वह उस के लिए कुछ न कर के किसी और के लिए करता है, तब यह कहावत कही जाती है।
- शब्दार्थ : दाई-मां, धिया-पुत्री, बर-के कारण, पिया-पति
- दारी के धन हो जाथे, तभो बाई नइ कहाय। -- वेश्या के पास धन हो जाए, तब भी वह कुलीन नारी नहीं कहला सकती।
- व्याख्या : नीच व्यक्ति धनी बन जाने पर भी कुलीन व्यक्तियों के समान प्रतिष्ठा प्राप्त नहीं कर सकता।
- प्रयोग अनुकूलता : अनैतिक कार्य करने वाले व्यक्ति कभी प्रतिष्ठा प्राप्त नहीं कर सकते, कुछ ऐसे ही परिपेक्ष्य में यह कहावत कही जाती है।
- शब्दार्थ : दारी -वैश्या, तभो-तब भी
- दिन भर एती-तेती, रात के जाँव केती। -- दिन भर इधर-उधर, रात में जाऊँ किधर।
- व्याख्या : काम के समय काम न करना।
- प्रयोग अनुकूलता : जो व्यक्ति काम के समय कुछ न करके इधर-उधर घूमकर समय व्यतीत करता है और कुसमय में कुछ करने की बात कहता है, उस के लिए यह कहावत कही जाती है।
- शब्दार्थ : पीशै-मेहनत करना
- दिखब माँ साग असन, उठे माँ बाघ असन। -- दिखने में साग जैसे, उठने में बाघ जैसे।
- व्याख्या : दिखने का कुछ और, अंदर से कुछ और।
- प्रयोग अनुकूलता : जो व्यक्ति ऊपर से सहृदय हो तथा भीतर से पाषाण हृदय, उसके लिए यह कहावत प्रयुक्त होती है।
- शब्दार्थ : दिखब-दिखना, असन-जैसे
- दीखत माँ इंद्रावन, चीखे माँ करू। -- दिखने में सुंदर पर अत्यंत क्रोधित व्यवहार।
- व्याख्या : अंदर से कुछ और बाहर से कुछ और।
- प्रयोग अनुकूलता : दिखने में इंद्रावन जैसा सुंदर, परंतु मन से खराब हो, उसके लिए यह कहावत प्रयुक्त होती है।
- शब्दार्थ : इंद्रावन-एक प्रकार का चिकना और सुंदर जंगली फल, करू-कड़वा।
- दुबबर बर दू अषाढ। -- दुबले के लिए दोस असाढ़
- व्याख्या : विपत्ति पर और विपत्ति।
- प्रयोग अनुकूलता : जब कोई व्यक्ति कोई विपत्ति में पड़ा हो और दूसरी विपत्ति आ पड़े तो दुबले के लिए दो आषाढ़ के समान होती है जिसे काटना बहुत मुश्किल होती है ऐसे परिपेक्ष्य में यह कहावत कहीं जाती है।
- शब्दार्थ : दुबबर दुबले दू दो
- दुलहिन बर पतरी नइ ए, बजनिया बर थारी। -- दुलहन के लिए पत्तल नहीं है, बाजा बजाने वाले के लिए थाली।
- व्याख्या : नई बहू को खाना देने के लिए पत्तल भी नहीं है। ऐसी स्थिति में यदि बाजा बजाने वाला अपने खाने के लिए थाली माँगे, तो उसे थाली कहाँ से दी जाए।
- प्रयोग अनुकूलता : कोई आवश्यक वस्तु परिवार के सदस्यों को ही पूरी न पड़े, किंतु उसे अन्य कोई व्यक्ति माँगे, तब यह कहावत प्रयुक्त होती है।
- शब्दार्थ : दुलहिन-वधू, बर-लिए, पतरी-पत्तल, नइ-नहीं, बजनिया-बजाने वाला, थारी-थाल
- दुलौरा बेटा मूँड़ माँ मूतै। -- अधिक प्यारा बेटा सिर सर पेशाब करता है।
- व्याख्या : अधिक लाड़-प्यार से बच्चे बिगड़ जाते हैं।
- प्रयोग अनुकूलता : कोई व्यक्ति किसी को आवश्यकता से अधिक महत्व देता है, तो इसके परिणामस्वरूप वह गलत काम करने लग जाता है। उसकी हरकतों के कारण को समझकर लोग इस कहावत का प्रयोग करते हैं।
- शब्दार्थ : दुलौरा-प्यारा, मूंड़-सिर, मूतै-पेशाब करना
- दू कोतरी दे दै, फेर दहरा ला झन बतावै। -- दो कोतरी दे दे, परंतु दहरा का पता न बताए।
- व्याख्या : मछली चाहने वाले व्यक्ति को दो कोतरी (मछलियाँ) दे देना अच्छा है, किंतु मछली प्राप्त का स्थान बताना उचित नहीं है। यदि किसी को मछली प्राप्ति का स्थान बता दिया जाए, तो वह स्वयं मछली मार लेगा, जिससे बताने वाले को उतनी मछलियाँ नहीं मिल पाएँगी, जितनी पहले मिलती थीं।
- प्रयोग अनुकूलता : ऐसे व्यक्ति की, जो किसी व्यापार की गुप्त बातें जानना चाहे, कुछ बताकर छुट्टी कर देनी चाहिए, अन्यथा वह स्वयं ही बताने वाले का व्यापार करने लग जाएगा। ऐसे परिपेक्ष्य में यह कहावत कही जाती है।
- शब्दार्थ : दू-दो, कोतरी-एक प्रकार की मछली, झन-नहीं
- दू ठन डोंगा माँ पाँव धरही, तौन बोहाबे करही। -- दो नावों में पैर रखने वाला बहेगा ही।
- व्याख्या : दो नावों में पैर रखने वाला व्यक्ति नावों के अलग-अलग हो जाने पर दोनों में से किसी पर न रह सकने के कारण नदी में डूब कर मर जाता है। दो प्रतिद्वंदियों में से एक को न चुनकर दोनों को चुनने वाला नुकसान उठाता है।
- प्रयोग अनुकूलता : ऐसा व्यक्ति जो विरोधी व्यक्तियों में से किसी एक की तरफ न होकर दोनों तरफ रहता है, उसकी दुर्दशा को देखकर यह कहावत कही जाती है।
- शब्दार्थ : दू-दो, ठन-नग, डोंगा-नांव, पांव-पैर, धरही-रखना, तौन-तब, बोहाबे-बह जाना
दू दाँत के बछिया के का भरोसा। -- दो दाँतों वाली बछिया का क्या भरोसा।
- व्याख्या : छोटी बछिया का क्या भरोसा मरेगी या बचेगी। उसे गाय बनने के लिए काफी समय लगेगा। इस बीच पता नहीं परिस्थितियाँ बनती हैं या बिगड़ती हैं।
- प्रयोग अनुकूलता : नन्हें से बालक का क्या भरोसा कि बड़ा होकर मदद करेगा या नहीं। ऐसे परिपेक्ष्य में यह कहावत कही जाती है।
- शब्दार्थ : दू-दो, बछिया-बछड़ा
- दूध के जरे ह, मही ला फूँक के पीथे। -- दूध का जला छाछ को फूँककर पीता है।
- व्याख्या : दूध से जला हुआ व्यक्ति मठा पाने पर उसे दूध के समान गरम समझकर फूँक-फूँक कर पीता है। दूध से जलने के बाद वह ठंडी वस्तु को भी पहले गरम ही समझता है।
- प्रयोग अनुकूलता : किसी व्यक्ति का किसी काम में नुकसान हो जाने पर वह जब कभी दूसरा काम करता है, तो उसमें उसे नुकसान हो जाने का भय बना रहता है। उसे नए काम से डरते हुए देखकर यह कहावत कही जाती है।
- शब्दार्थ : जरे-जला, मही-मट्ठा, पीथे-पीना
- दूध दोहनी दूनों गै। -- दूध-दोहनी दोनों गए।
- व्याख्या : दोहनी के फूट जाने से दूध भी गिर गया। इस प्रकार एक के फूटने से दो नुकसान एक साथ हो गए।
- प्रयोग अनुकूलता : जब किसी कार्य में वस्तु और धन दोनों की बरबादी हो जाती है, तब यह कहावत कही जाती है।
- शब्दार्थ : दूनों-दोनों
- दुधारी गरूवा के लातो मीठ। -- दुधारू गाय की लात मीठी।
- व्याख्या : काम करने वाले आदमी की दो बातें भी सहनी पड़ती हैं। दूध देने वाली गाय की लात मीठी लगती है।
- प्रयोग अनुकूलता : ऐसा व्यक्ति जो अपनी कमाई से अपने परिवार के सदस्यों का भरण पोषण करता है, यदि कोई कड़वी बात कह देता है, तो परिवार के सदस्य उसकी कड़वी बात की ओर ध्यान नहीं देते, क्योंकि वह दूधारू गाय के समान होता है। ऐसे परिपेक्ष्य में यह कहावत कही जाती है।
- शब्दार्थ : दुधारी-दुधारू, गरूवा-गाय, लातो-लात, मीठ-मीठा
- दूनों डाहर ले गइन पाँडे, हलुवा मिलिस न माँड़े। -- पाँड़े दोनो तरफ से गए, न तो हलुवा मिला और न माढ़।
- व्याख्या : दोनों तरफ से नुकसान होना।
- प्रयोग अनुकूलता : जब कोई व्यक्ति लोभवश सामान्य को छोड़कर विशेष की ओर बढ़ता है और उसे न तो कुछ विशेष ही मिलता है और न सामान्य तब उस के लिए यह कहावत कही जाती है।
- शब्दार्थ : दूनों-दोनों, डाहर-की ओर, गइन-गए, हलुवा-हलवा, मिलिस-मिलना, मांड़े-मांड़
- दुबी माँ गाड़ा अरझावै। -- दूब से बड़ी गाड़ी को रोक पाना संभव नहीं है।
- व्याख्या : कार्य में अकारण बाधा डालना।
- प्रयोग अनुकूलता : कोई व्यक्ति किसी बहुत बड़े पैमाने पर होने वाले कार्य को दो चार-मजदूरों को अलग कर या आवश्यक कागजात को दबाकर उस कार्य को रोक लेना चाहे, तो ऐसा संभव नहीं है। ऐसे व्यक्ति की इन हरकतों को देखकर यह कहावत कही जाती है।
- शब्दार्थ : दूबी-दूब, गाड़ा-बैलागाड़ी, अरझावै-रोकना
- दूरिहा के ढोल सुहावन। -- दूर के ढोल सुहावने लगते हैं।
- व्याख्या : ढोल दूर से सुहावने लगते हैं। पास से देखने पर उसमें अमर्यादित पोल दिखाई पड़ती है।
- प्रयोग अनुकूलता : जब किसी व्यक्ति की अमर्यादित प्रशंसा होती रहे और अगर इस बीच उसकी पोल खुल जाए, तब यह कहावत कही जाती है। ऐसे व्यक्ति दूर से ही अचछे लगते हैं, पास आने पर वे बुरे लगने लगते हैं।
- शब्दार्थ : दूरिहा-दूर
- दूसर के नरियर माँ भेट करै। -- दूसरे के नारियल से भेंट करना।
- व्याख्या : किसी दूसरे व्यक्ति का नारियल लेकर किसी को भेंट करने वाले को तीर्थयात्री से भेंट करने का पुण्य मिल जाता है।
- प्रयोग अनुकूलता : जब कोई व्यक्ति दूसरे की वस्तु से स्वयं लाभान्वित होता है, तब यह कहावत कही जाती है।
- शब्दार्थ : भेंट-तीर्थ यात्रा से लौटे व्यक्ति का सम्मान, नरियर-नारियल
- दूसर ला सिखौना देय, अपन बैठ रौनिया लेय। -- दूसरों को शिक्षा देता है, स्वयं धूप में बैठता है।
- व्याख्या : दूसरों को यह उपदेश देता है कि धूप में बैठने से तबियत बिगड़ाती है, लेकिन स्वयं धूप का सेवन करता है।
- प्रयोग अनुकूलता : कोई काम स्वयं करके दूसरों को उसे न करने के लिए उपदेश देना। ऐसे लोगों के लिए यह कहावत कही जाती है।
- शब्दार्थ : रोनिया-धूप, दूसर-दूसरा, सिखौना-शिक्षा, अपन-अपना
- दे देवै देवा देवै, ओतको नइ बनै, त रस्ता बता देवै। -- किसी को कुछ दे दे, या दिला दे, उतना भी न हो सके, तो रास्ता बता दे।
- व्याख्या : कुछ चाहने वाले व्यक्ति को थोड़ी-बहुत सहायता दे देनी चाहिए
- प्रयोग अनुकूलता : परोपकार करने के लिए यह कहावत कही जाती है।
- शब्दार्थ : देवा देवै-दिला देना, दे देवै-दे देना, ओतको-उतना हो, नइ-नहीं, बनै-बनना, रस्ता-रास्ता।
- देखब माँ गुजगुज, छुवे माँ कठोर। -- देखने में मुलायम, परंतु छूने में कठोर।
- व्याख्या : ऐसा व्यक्ति जो सर्प के समान गुजगुजा दिखाई पड़े, परंतु स्पर्श करने पर अनिष्ट कर दे, उससे बहुत धोखा रहता है।
- प्रयोग अनुकूलता : जब कोई व्यक्ति बाह्य कार्य-कलाप से सज्जन मालूम पड़ता हो, किंतु काम पड़ने पर दुष्टता दिखाता हो, तब उसके लिए यह कहावत कही जाती है कि वह साँप के समान है।
- शब्दार्थ : गुजगुज-मुलायम, देखब-दिखने में, छुवे-छूना।
- देखे देवता पूजा माँगथे। -- देवता देखकर पूजा माँगता है।
- व्याख्या : ऐसा व्यक्ति जो किसी देवता की मनौती करता है, यदि उसकी मनौती न करे तो वह उस पर रूष्ट हो जाता है।
- प्रयोग अनुकूलता : जो व्यक्ति उसकी कभी मनौती नहीं करते, उन लोगों पर उसके रूष्ट होने का प्रश्न ही नहीं उठता। जिस के साथ जैसा व्यवहार किया जाता है, वह वैसे ही व्यवहार की अपेक्षा करता है। ऐसे लोगों के लिए यह कहावत कही जाती है।
- शब्दार्थ : देखे-देखना
- देसे जाना भेसा, कुला-कुला व्यवहार। -- देश के अनुसार वेश-भूषा, अलग-अलग कुल में अलग-अलग व्यवहार।
- व्याख्या : भिन्न-भिन्न देशों की वेश-भूषा भिन्न-भिन्न होती है तथा भिन्न-भिन्न कुल के व्यवहार भिन्न-भिन्न होते है।
- प्रयोग अनुकूलता : जब एक ही जाति बिरादरी वालों में शादी-बयाह आदि के रस्म-रिवाजों में अंतर मिलता है, तब इस कहावत का प्रयोग कर उनमें मिलने वाली भिन्नता की बात पुष्ट की जाती है।
- शब्दार्थ : देसे-देश, भेसा-वेश, कुला-कुल
- देसी घोड़ी, परदेसी लगाम। -- देशी घोड़ी, परदेशी लगाम।
- व्याख्या : अपने देश के रिवाजों को छोड़कर दूसरे देश के रीति-रिवाजों का अनुकरण करना।
- प्रयोग अनुकूलता : यह कहावत ऐसे लगों के लिए प्रयुक्त होती है, जो अपने देश के रिति-रिवाज को छोड़कर दूसरे देश के रीति-रिवाजों को अपनाते हैं।
- शब्दार्थ : देसी-देशी।
- धन धरावै तीन नाँव, परसू, परसोत्तम, परसराम। -- धन के तीन नाम, परसू, परसोत्तम, परसराम।
- व्याख्या : मनुष्य का आदर धन के अनुसार ही होता है। जब धन नहीं होता , तो लोग ‘परसू’ कहकर पुकारते हैं। जब कुछ धन हो जाता है, तो ‘परसोत्तम’ कहते हैं, और अधिक धन हो जाते पर वे ‘परशुराम’ कहलाने लगते हैं।
- प्रयोग अनुकूलता : धन के अनुसार व्यक्ति की महत्ता होती है, ऐसे परिपेक्ष्य में यह कहावत कही जाती है।
- शब्दार्थ : धरावै-धराना
- धन हे, त धरम हे। -- धन है, तो धर्म है।
- व्याख्या : धन ही धर्म है।
- प्रयोग अनुकूलता : धर्म के लिए धन की आवश्यकता होती है। इस बात को पुष्ट करने के लिए यह कहावत प्रयुक्त होती है।
- शब्दार्थ : धरम-धर्म
- धनी के धन जाय, भंडारी के गाँड़ फाटय। -- धनवान व्यक्ति का धन खर्च होता है, भंडारी को पीड़ा होती है।
- व्याख्या : दूसरे का खर्च होना, पर पीड़ा दूसरे को होना।
- प्रयोग अनुकूलता : जब कोई व्यक्ति खर्च करता है, परंतु उसके खर्च से किसी दूसरे व्यक्ति को पीड़ा होती है, तब अन्य लोग इस कहावत का प्रयोग करते हैं।
- शब्दार्थ : जाय – जाना
- धाँय धूपे तेरा, घर बैठे बारा। -- दोड़-धूप कर तेरह, घर बैठे बारह।
- व्याख्या : इधर-उधर भटकने के बाद मिलने वाले तेरह रूपयों की अपेक्षा घर बैठे बारह पा जाना ही श्रेयस्कर है।
- प्रयोग अनुकूलता : बाहर जाकर अनेक कष्टों के बाद थोड़ा अधिक प्राप्त करने वालों के लिए यह कहावत प्रयुक्त होती है।
- शब्दार्थ : बारा-बारह, धूपे-धूप
- धान के सुखाय ले, पानी छेंके के का काम। -- धान सूख जाने के बाद पानी रोकने से क्या फायदा।
- व्याख्या : धान का पौधा सूख जाए, तो पानी देने से पौधा हरा नहीं हो सकता। उसी प्रकार कोई काम बिगड़ जाने पर उस पर खर्च करने से कोई लाभ नहीं हो सकता।
- प्रयोग अनुकूलता : काम बिगड़ जाने के बाद उसको सुधारने के उपाय करने वालों के लिए यह कहावत कही जाती है।
- शब्दार्थ : सुखाय-सूखना, छेंके-रोकना
- धान नो हे पान ए, डौकी असन बात ए। -- धान नहीं पान है, स्त्रियों जैसी बात है।
- व्याख्या : स्त्रियों की बातों में सच्चाई नहीं होती। धान के पौधे के साथ उगने वाली घास-फूस को धान कहना गलता है। वस्तुतः वह तो घास-फूस के पत्ते हैं, धान के नहीं। स्त्रियों की बातें भी घास-फूस के समान महत्वहीन होती हैं।
- प्रयोग अनुकूलता : जब किसी की बात में कोई तथ्य नहीं होता, तब यह कहावत कही जाती है।
- शब्दार्थ : डौकी-पत्नी, असन-जैसा
धना, पान, अउ खीरा, ए तीनों पानी के कीरा। -- धान, पान और ककड़ी ये तीनों पानी के कीड़े हैं।
- व्याख्या : धान, पान और ककड़ी को अधिक पानी की आवश्यकता होती है।
- प्रयोग अनुकूलता : अधिक पानी चाहने वाली फसलों की चर्चा में यह कहावत प्रयुक्त होती है।
- शब्दार्थ : अउ-और, कीरा-कीड़ा
- धारन पोठ नइ ए त गेरवा ह का करही। -- धारन मजबूत न हो, तो गेरवा क्या करेगा।
- व्याख्या : यदि किसी कमजोर खंभे में रस्सी से जानवर को बाँधा जाए, तो जानवर के जोर लगाने पर रस्सी न टूटकर खंभा ही टूट जाता है। जानवर के भागने में रस्सी का कोई दोष नहीं है। किसी कार्य का स्वामी ही उस कार्य के प्रति उदासीन हो, तो अन्य लोग क्या कर सकते हैं।
- प्रयोग अनुकूलता : कार्य के प्रति प्रमुख व्यक्ति की उदासीनता को देख कर यह कहावत कही जाती है।
- शब्दार्थ : धारन-लकड़ी का खंभा, जिसे जमीन में गाड़कर रखा जाता है, गेरवा-मवेशियों को बाँधने के लिए प्रयुक्त रस्सी, नइ-नहीं, करही-करना
- धुर्रा के बेठ बरत हे। -- धूल को बटकर रस्सी बनाया है।
- व्याख्या : धूल को बटकर रस्सी नहीं बनाई जा सकती, परंत जो व्यक्ति कल्पना के आधार पर कोई काम करना चाहता है, वह धूल से रस्सी बनाने की बात करता है।
- प्रयोग अनुकूलता : जो व्यक्ति अपनी हठधर्मो से किसी काम को करने के लिए कहता है, जिसे अन्य लोग कहते हैं कि वैसा नहीं हो सकता, उस व्यक्ति के लिए यह कहावत कही जाती है।
- शब्दार्थ : बेठ बरत हे-बट कर रस्सी बनाता है, धुर्रा-धूल
- धोए मुरइ के उही मोल, बिन धोए मुरइ के उही मोल। -- धुली हुई मूली का वही मूल्य, बिना धुली हुई मूली का वही मूल्य।
- व्याख्या : धुली हुई तथा न धुली हुई मूली की कीमत अलग-अलग होनी चाहिए। एक मूल्य होने से धुली मूली साफ दिखने के कारण बिक जाएगी और न धोने वाले विक्रेता की मूली जल्दी नहीं बिकेगी।
- प्रयोग अनुकूलता : जब कोई व्यक्ति लोगों में भेद नहीं कर पाता और सबको एक सा समझता है, तब यह कहावत प्रयुक्त होती है।
- शब्दार्थ : मुरइ-मूली, धोए-धोना, उही-वही
- धोए हाँत माँ अइसे, त गोबर हाँत माँ कइसे। -- धुल हुए हाथ में ऐसी, गोबर हाथ में कैसी।
- व्याख्या : बदसूरत स्त्री जो धूले हुए हाथ होने पर ऐसी बदसूरत दिखलाई पड़ती है, तो गोबर हाथ में लिए कितनी बदसूरत दिखलाई पड़ेगी। साफ-सुथरी तथा सजी-धजी होने पर जो इतनी कुरूप लगती है, वह सामान्य स्थित में कितनी कुरूप दिखती होगी।
- प्रयोग अनुकूलता : सजने संवरने के बाद थोड़ी सुंदर दिखती है। नहीं सजने पर कैसी दिखाई देगी। ऐसा ताना देते हुए यह कहावत कही जातीहै।
- शब्दार्थ : हांत-हाथ, अइसे-ऐसी, कइसे-कैसी
- न उधो के लेना, न माधो के देना। -- न उधो का लेना, न माधो का देना।
- व्याख्या : हर प्रकार से निश्चिंत रहना। न किसी व्यक्ति से कुछ लेना है औरन किसी को कुछ जाती है।
- प्रयोग अनुकूलता : जिसको किसी से कुछ लेना देना न हो, उसके लिए यह कहावत कही जाती है।
- शब्दार्थ : न-न तो
- न कर्रा घर जाँव, न कटारी के मार खाँव। -- न तो कर्रा के घर जाना है, न कटारी की मार खाना है।
- व्याख्या : कर्रा लोग कटारी से बाँस छीलकर टोकरी आदि बनाते हैं। कर्रा के हाथ में प्रायः सदैव कटारी होती है। यदि उससे किसी का झगड़ा हो जाए, तो वह कटारी से मारता है। न गलत काम करना, न नुकसान उठाना। पहले से ही सावधानी बरतना।
- प्रयोग अनुकूलता : किसी चक्कर में न पड़कर अपना काम करने वाला इस कहावत का प्रयोग करता है।
- शब्दार्थ : कर्रा – एक जाति, जो बाँस से टोकनी आदि बनाने का कार्य करती है। खांव-खाना
- न खाहौं, न खान देहौं। -- न खाऊँगा, न खाने दूँगा।
- व्याख्या : न तो कोई काम स्वयं करना और नही दूसरों को करने देना।
- प्रयोग अनुकूलता : इस कहावत का प्रयोग ऐसे लोगों के लिए होता है, जो स्वयं तो कोई काम नहीं करते हैं, उल्टे दूसरों के काम में अड़ंगा लगाते हैं।
- शब्दार्थ : खाहौं-खाऊंगा, खान देहौं-खाने दूंगा
- न गाँव माँ घर, न खार माँ खेत। -- न गाँव मे घर, न खार मे खेत।
- व्याख्या : जिसका गाँव में घर न हो तथा बाहर खेत न हो, ऐसा व्यक्ति प्रायः गाँव का मजदूर होता है, जो अपने मालिक के दिए घर में रहकर मजदूरी करता है।
- प्रयोग अनुकूलता : निर्धन व्यक्ति की स्थति बतलाने के लिए कि उसका घर, खेत आदि कुछ भी नहीं है, यह कहावत कही जाती है।
- शब्दार्थ : खार-गाँव के बाहर की भूमि
- न जीव छूटब, न चटपटी जाय। -- न प्राण छूटता है, न कष्ट दूर होता है।
- व्याख्या : जब किसी बीमारी ग्रस्त व्यक्ति को खूब कष्ट मिल रहा हो, तब वह कष्ट से मुक्ति पाने के लिए मर जाना ही उचित समझता है।
- प्रयोग अनुकूलता : उसी प्रकार, जब कोई किसी मुसीबत से मुक्त होने के लिए प्रयत्न करता है, पर कामयाब नहीं हो पता, तब इस कहावत का वह प्रयोग करता है।
- शब्दार्थ : चटपटी जाय-कष्ट दूर होना
- न धरे बर पूछी, न खजुवाय बर कान। -- न पकड़ने के लिए पूँछ और न खुजलाने के लिए कान।
- व्याख्या : यदि किसी के पास मवेशी हो, तभी वह उसकी पूँछ पकड़ सकता है और उसे प्यार करने के बहाने उसका कान खुजला सकता है, अन्यथा नहीं, इसी प्रकार जिस व्यक्ति के पास न तो रहने के लिए मकान हो और न काम प्रारंभ करने के लिए पूँजी, तो वह इनके अभाव में कुछ नहीं कर सकता।
- प्रयोग अनुकूलता : ऐसे व्यक्ति को जब कोई आदमी व्यापार आदि करने कीबात कहता है, तब वह अपनी परिस्थिति को बताते हुए इस कहावत का प्रयोग करता है।
- शब्दार्थ : पूछी-पूंछ, खजुवाय-खुजलाना, बर-के कारण
- न दाई के जन, न दादा के सँगोड़। -- न माता-पक्ष का कोई संबंधी और न पिता पक्ष का।
- व्याख्या : जब किसी से उसकी रिश्ते दारी के संबंध में कुछ पूछा जाता है, तब वह कहावत कहकर अपने एकाकीपन को स्पष्ट करता है।
- प्रयोग अनुकूलता : जो व्यक्ति पारिवारिक दृष्टि से बिलकुल निराश्रित होता है, वह अपने संबंध में इस कहावत का प्रयोग करता है।
- शब्दार्थ : सँगोड़-संबंधी, जन-स्वजन, दाई-मां
- न मरै न मोटाय। -- न मरता है, न मोटा होता है।
- व्याख्या : न जीता है और न मरता है। न लाभ है और न ही हानि।
- प्रयोग अनुकूलता : जो व्यक्ति लगातार बीमार रहे, किसी भी उपचार से अच्छा न हो, उससे तंग आकर उसकी सेवा करने वाले इस कहावत का प्रयोग करते है।
- शब्दार्थ : मोटाय-मोटा होना
- न सावन सूखा, न भादो हरियर। -- न सावन सूखा, न भादो हरा।
- व्याख्या : सावन के महीने में भादो की अपेक्षा कम वर्षा होती है, परंतु सावन में यदि सूखा न रहा हो अर्थात् अच्छी वर्षा हुई हो, तो भादो में अधिक हरियाली दिखाई पड़नी चाहिए, परंतु सावन और भादो की हरियाली में कोई अंतर नहीं मिला। सावन के बाद आने वाले माह भादो में हरियाली में वृद्धि होना स्वाभाविक है।
- प्रयोग अनुकूलता : इसी प्रकार जिसकी आर्थिक या अन्य स्थिति में तब और अब में कोई अन्तर नहीं पड़ा हो, वह इस कहावत के द्वारा अपनी स्थिति एक-समान रहने, अर्थात् न बिगड़ने और न बनने, की बात को स्पष्ट करता है।
- शब्दार्थ : हरियर-हरा भरा
- न हँसे लाज, न थूँके लाज। -- न हँसी से लज्जा, न थूकने से लज्जा।
- व्याख्या : ऐसा व्यक्ति जिस पर लोग हँसते हों तथा थूकते हों और तब भी वह लज्जित न होता हो, वह बहुत बेशर्म व्यक्ति होता है।
- प्रयोग अनुकूलता : निर्लज्ज व्यक्ति के लिये यह कहावत कही जाती है।
- शब्दार्थ : हंसे-हंसना
- न हगै, न धुरवा छोड़ै। -- न मल-त्याग करता है, न घूरा छोड़ता है।
- व्याख्या : जो न हगता है औऱ न घूरा छोड़ता है, वह दूसरों के लिए बाधक है। उसके घूरा छोड़ने से कम से कम दूसरे लोगों को हगने का मौका मिलेगा।
- प्रयोग अनुकूलता : जो व्यक्ति न तो स्वयं कुछ करता है ओर न ही दूसरों को करने देता है, उस के लिए यह कहावत कही जाती है।
- शब्दार्थ : हगै-मल त्याग करना,धुरवा-घूरा
- नकटा के नाक कटै, सवा हाँत बाढ़ै। -- नकटे की नाक कटी, परंतु वह सवा हाथ बढ़ गई।
- व्याख्या : ऐसा व्यक्ति जिस पर दूसरों की बात का असर न हो।
- प्रयोग अनुकूलता : ऐसा निर्लज्ज व्यक्ति जिस पर अन्य लोगों की बातों का कोई प्रभाव नहीं पड़ता, वह उल्टे और निर्लज्जतापूर्वक कार्य करता है, तब ऐसे व्यक्ति के लिए यह कहावत कही जाती है।
- शब्दार्थ : हांत-हाथ, बाढ़ै-बढ़ना
- नकटा के नाक माँ रूख जामै, कहै मोला छैंहा हे। -- नकटे की नाक पर वृक्ष उगा, वह कहता है, मुझे छाया मिली।
- व्याख्या : निर्लज्ज व्यक्ति को निर्लज्जता प्राकृतिक संकटों के आने पर भी दूर नहीं होती। निर्लज्जता की नाक पर यदि वृक्ष पैदा हो जाए, तो वह बेशर्मो से कहता है कि उसे छाया ही मिला।
- प्रयोग अनुकूलता : बेशर्म को लज्जित करने पर वह और बेशर्म हो जाता है। ऐसे घोर बेशर्म लोगों के लिए इस कहावत का प्रयोग होता है।
- शब्दार्थ : रूख-वृक्ष, जामै-उगना, मोला-मेरा, छैंहा-छाया
- नकटा बूचा, सबले ऊँचा। -- नकटा बूचा, सबसे ऊँचा।
- व्याख्या : नकटे और कनकटे व्यक्तियों को सामान्य व्यक्तियों की अपेक्षा मान-मर्यादा का ध्यान कम रहता है। ऐसे लोग किसी भी कार्य को करने में मान-मान-मर्यादा का ध्यान कम रहता है। ऐसे लोग किसी भी कार्य को करने में मान-मर्यादा का ध्यान नहीं रखते, इसलिए किसी बुरे कार्य में ये पहले दिखाई पड़ते हैं।
- प्रयोग अनुकूलता : अंग-भंग व्यक्तियों की धूर्तता को देखकर यह कहावत कही जाती है।
- शब्दार्थ : बूचा-जिस के कान कटे हो, सबले-सबसे
- नकटी के लगन, नौ सौ वियोग। -- नकटी के लगन में नौ सौ बाधाएँ।
- व्याख्या : भाग्य हीन लोगों के कार्य में अनेक विघ्न आते हैं।
- प्रयोग अनुकूलता : किसी अभागे व्यक्ति के शुभ कार्यो में अमंगल होते दिखलाई पड़ने पर इस कहावत का प्रयोग किया जाता है।
- शब्दार्थ : वियोग-बाधाएं
नख के लागत ले, नहन्नी नइ लगाँय। -- नख के लगते तक नहन्नी की क्या आवश्यकता।
- व्याख्या : सरलातापूर्वक कार्य का संपन्न हो जाना।
- प्रयोग अनुकूलता : जब कोई काम सरलतापूर्वक हो सकता है, तब उसके लिए विशेष प्रयत्न करने की आवश्यकता नई रहती।इस बात को पुष्ट करने के लिए यह कहावत कहीं जाती है।
- शब्दार्थ : नहन्नी-नख काटने का औजार
- नंगरा के नौ ठन नांगर, देखबे त एको नहिं। -- नंगे के पास नौ हल, परंतु देखने पर एक भी नहीं।
- व्याख्या : नंगा व्यक्ति अपनी प्रशंसा के लिए अपने पास नौ हल होने की बात कहता है, परंतु उस के पास एक भी हल नहीं होता।
- प्रयोग अनुकूलता : नंगे लोगों की बेबुनियाद बातों के लिए यह कहावत कही जाती है।
- शब्दार्थ : नगरा-नंगा, नांगर-हल, एको-एक भी, नहिं-नहीं
- नवा नौ दिन, जुन्ना सब दिन। -- नया नौ दिन, पुराना सब दिन।
- व्याख्या : नई वस्तु की नवीनता अस्थाई होती है और पुरानी वस्तु नष्ट होते तक साथ देती है।
- प्रयोग अनुकूलता : किसी नई वस्तु और पुरानी वस्तु के संबंध में यह कहावत कही जाती है।
- शब्दार्थ : जुन्ना-पुराना
- नवा बइला चिकिन सींग, नाच रे बइला टींगे टींग। -- नए बैल के चिकने सींग, नाच रे बैल टींग-टींग।
- व्याख्या : नए बैल को कितना काम करना है, इसका उसे अंदाज नहीं होता। वह काम शुद्ध करते ही उसमें पूरी शक्ति लगा देता है। उसे तेजी से काम करते देखकर यह समझा जाता है कि ऐसा उस के नएपन के कारण हो रहा है।
- प्रयोग अनुकूलता : जो व्यक्ति नया-नया कोई कार्य करता है, वह विशेष जोश के साथ उसे करता है। उस के कार्य-कलाप के लिए यह कहावत प्रयुक्त होती है।
- शब्दार्थ : नव-नया, बइला-बैल, चिकन-चिकना
- नहिं निदान माँ नाती भतार। -- पति के न रहने पर नाती ही पति।
- व्याख्या : जिस स्त्री का पति न हो, वह निराश्रित हो जाती है। ऐसी बूढ़ी स्त्री अपने नाती को ही अपना पति कहती है, जिस के द्वारा उसका भरण-पोषण होता है।
- प्रयोग अनुकूलता : बिलकुल निराश्रित रहने की अपेक्षा किसी का सहारा लेकर रहना अच्छा है। ऐसे परिपेक्ष्य में यह कहावत कही जाती है।
- शब्दार्थ : नहिं-नहीं
- नागर ले तुतारी गरू। -- नागर से तुतारी वजनी।
- व्याख्या : हल चलाने वाले व्यक्ति को हल ले जाना पड़ता है, इसलिए वह उसके वजन की और ध्यान नहीं देता, परंतु तुतारी को रखना उसके लिए भार-स्वरूप हो जाता है।
- प्रयोग अनुकूलता : किसी निकटस्थ रिश्तेदार को घर में रखना भार-स्वरूप नहीं होता, परंतु उस रिश्तेदार के रिश्तेदारों को (भले ही उन पर नाम-मात्र का खर्च हो) रखना भार-स्वरूप हो जाता है। इसी परिपेक्ष्य में यह कहावत कही जाती है।
- शब्दार्थ : नांगर-हल, तुतारी-जानवरों को हांकने की लाठी जिसके सिरे पर कील लगी होती है, गरू-वजन
- नाचे ल आवे नहीं, मँड़वा ला दोस दे। -- नाच ना आवे और मंडप को दोष दे।
- व्याख्या : अपनी गलती न समझकर दूसरों की गलती बताना मूर्खता है।
- प्रयोग अनुकूलता : इस कहावत का प्रयोग तब किया जाता है, जब कोई व्यक्ति स्वयं किसी काम को नहीं समझता और अपने बिगड़े काम के लिए दूसरों को दोष देता है।
- शब्दार्थ : नहिं-नहीं, मंड़वा-मंडप, दोस-दोष
- नानकुन टूरी के दू लुगरा, तभो ले ओखर पीठ उघरा। -- छोटी लड़की है, दो साड़ी पहनी है, परंतु पीठ ढक नहीं पाती है।
- व्याख्या : छोटी-सी लड़की दो सड़ियाँ पहनी है, तब भी वह अपने अंगों को ढक नहीं पाती।
- प्रयोग अनुकूलता : जब किसी साधारण व्यक्ति को बहुत सा देने पर भी उसकी इच्छा पूर्ण नहीं होती, तब यह कहावत कही जाती है।
- शब्दार्थ : नानकुन टूरी-छोटी सी लड़की, दू-दो, लुगरा-साड़ी, तभो-तब भी, ओखर-उसका, उघरा-खुला हुआ
- नानकुल मुँह बड़े-बड़े बात। -- छोटा सा मुँह, बड़ी बातें।
- व्याख्या : औकात नहीं है, परंतु बातें बड़ी-बड़ी करता है।
- प्रयोग अनुकूलता : जब कोई सामान्य व्यक्ति बड़ों के बीच बढ़-बढ़कर बात करने लगता है, तब उस व्यक्ति के लिए यह कहावत कही जाती है।
- शब्दार्थ : नानकुन-छोटा सा
- नाम निर्मलदास अउ देह भर दादे-दाद। -- नाम पहाड़सिंग और शरीर मुर्गी के बच्चे के समान।
- व्याख्या : नाम बड़ा भारी पर काम उसके ठीक विपरीत।
- प्रयोग अनुकूलता : आदमी के नाम से विपरीत गुण होते पर यह कहावत कही जाती है।
- शब्दार्थ : चियाँ-मुर्गी का बच्चा, अउ-और, अस-जौसा
- नाम हे धनसाय, भीख माँगे जाय। -- नाम ‘धनसाय’ है, परंतु भीख माँगता है।
- व्याख्या : नाम के विपरीत गुण।
- प्रयोग अनुकूलता : नाम के निवीग गुण वाले व्यक्तियों के लिए यह कहावत कही जाती है।
- शब्दार्थ : जाय-जाना
- नाम हे लछमिन बाई, अउ छेना बीने जाय। -- नाम ‘लक्ष्मी बाई’ है, और कंडे इकट्ठे करने को जाती है।
- व्याख्या : नाम के विपरीत गुण।
- प्रयोग अनुकूलता : नाम के विपरीत गुण वाले व्यक्तियों के लिए यह कहावत कही जाती है।
- शब्दार्थ : अउ-और, छेना-कंडा
- नामी चोर सरनामी बनिया। -- चोर से बड़ा चोर बनिया।
- व्याख्या : चोर तो चोरी करने के लिए प्रसिद्ध होता है, परंतु उससे बड़ा चोर बनिया होता है, जिसे कोई चोर नहीं कहता।
- प्रयोग अनुकूलता : चोरी, पर छिपा के, करने वाले के लिए यह कहावत कही जाती है।
- शब्दार्थ : सरनामी-जिसका नाम हो
- निहथिया का नाम दतगिंजरा। -- निहत्थे का नाम दतगिंजरा।
- व्याख्या : जो व्यक्ति अपने हाथ से कोई कार्य नहीं करता, वह गलियों में घूम-फिर कर अपना समय बिता देता है।
- प्रयोग अनुकूलता : अकर्मण्य व्यक्ति के लिए यह कहावत कही जाती है।
- शब्दार्थ : दतगिंजरा-हँसने और घूमने वाला, निहथिया-निहत्था
- नीच जात पदवी पाय, हागत खानी गीत गाय। -- यदि नीच जाति का व्यक्ति पद पा जाए, तो शौच करते हुए गीत गाता है।
- व्याख्या : छोटे लोग थोड़ा सा अधिकार मिल जाने पर घमंडी हो जाते हैं।
- प्रयोग अनुकूलता : नीच व्यक्ति अधिकार पा जाने पर बहुत अभिमानी हो जाता है। ऐसे परिपेक्ष्य में यह कहावत कही जाती है।
- शब्दार्थ : हागत-हगते हुए, खानी-के दौरान
- नेवइ के जोगी, कलिंदर के खप्पर। -- नया योगी, तरबूज का खप्पर।
- व्याख्या : नया बना योगी खप्पर न होने पर तरबूज को ही खप्पर बना लेता है, जिसमें रंग तथा आकार की समानता दिखलाई पड़ती है।
- प्रयोग अनुकूलता : जब कोई व्यक्ति नया-नया किसी काम को करता है, तब उसके नियमों आदि में अति करने लगता है। ऐसी स्थिति में इस कहावत का प्रयोग होता है।
- शब्दार्थ : कलिंदर-तरबूज
- नेवई के जोगी, गाँड़ माँ जटा। -- नए जोगी, की गुदा में जटा।
- व्याख्या : नए योगी को जटाएँ बढ़ाने का शौक होता है, जिससे वह अपनी गुदा में भी जटा रखता है।
- प्रयोग अनुकूलता : किसी कार्य को पहले-पहले करने वाला व्यक्ति उसमें अति करता है। उनके लिए यह कहावत प्रयुक्त होती है।
- शब्दार्थ : नेवई-नया, जोगी-योगी, गांड़-गुदा, मां-उसमें
- नोनी ल देख ले, फेर दाइज परही। -- लड़की को देख लो, फिर दहेज मालूम हो जाएगा।
- व्याख्या : लड़की को देखकर दहेज का अंदाज लगाया जा सकता है। लड़की बदसूरत है, जिससे उसके प्रति आकर्षण न होने के कारण लोगों से उसे दहेज भी नहीं मिलेगा।खूबसूरत लड़की के प्रति सहज आकर्षण होने से उसे अधिक दहेज मिलता है।
- प्रयोग अनुकूलता : किसी व्यक्ति के चेहरे को देखने से पता लग जाता है कि वह कोई कार्य कर सकता है या नहीं।
- शब्दार्थ : नोनी-बिटिया, फेर-फिर, दाइज-दहेज, परही-मालूम हो जाना
- नोहर छोहर के बाबू होइस, तेखरो आँखी नहिं। -- ले-देकर लड़का हुआ भी, तो उसकी आँखें नहीं।
- व्याख्या : बहुत-कुछ करने के बाद लड़का पैदा हुआ, वह भी अंधा हुआ, जिससे उसका होना या न होना बराबर ही रहा।
- प्रयोग अनुकूलता : ले-देकर कोई कार्य संपन्न भी हो और उससे कोई लाभ न मिले, तब यह कहावत कही जाती है।
- शब्दार्थ : नोहर छोहर-ले देकर, होइस-होना, तेखरो-उसका आंखीं-आंख, नहिं-नहीं
- नौ मन तेल, सिंगारे माँ जर गे। -- नौ मन तेल श्रृंगार करने में जल गया।
- व्याख्या : ऐसी स्त्री जो श्रृंगार करने में इतना अधिक समय लगाती है तथा इतना अधिक प्रकाश चाहती है कि जिससे नौ मन तेल खर्च हो जाए, फिर भी उसका श्रृंगार न हो पाए।
- प्रयोग अनुकूलता : जो व्यक्ति किसी काम को न समझकर उस के लिए आवश्यक उत्पादन में इतने अधिक खर्च करे, जितने में एक क्या कई काम पूरे हो जाएँ, तब भी वह काम न कर पाए, तब यह कहावत कही जाती है।
- शब्दार्थ : सिंगारे-श्रृंगार, जर-जलना
नौ हाँत के लुगरा पहिरे, तभो टाँग उघरा। -- नौ हाथ लंबी साड़ी पहनने के बाद भी पैर नंगे।
- व्याख्या : किसी स्त्री को नौ हाथ लंबी साड़ी पहनने के लिए दी जाए, तब भी वह उस के लिए छोटी पड़ जाए।
- प्रयोग अनुकूलता : यदि किसी व्यक्ति को पर्याप्त वस्तु दी जाए और वह उस के अपव्यय के कारण पूरी न पड़े, तब ऐसे व्यक्ति के लिए यह कहावत कही जाती है।
- शब्दार्थ : लुगरा-साड़ी, हांत-हाथ, पहिरे-पहनना, तभो-तब भई, टांग-पैर, उघरा-खुला हुआ।
- नौकरी नौकर करी। -- नौकरी झुक कर करनी पड़ती है।
- व्याख्या : नौकरी करने वाले व्यक्ति को मालिक के आदेशों का पालन करना पड़ता है।
- प्रयोग अनुकूलता : नौकरी करने के संबंध में उपदेश देने हेतु यह कहावत कही जाती है।
- शब्दार्थ : नौकर-चाकर, करी-करना
- पंछी माँ कौवा,आदमी माँ नौंवा। -- पक्षियों में कौवा, मनुष्यों में नाई।
- व्याख्या : कौवा और नाई चतुर होते हैं। मनुष्यों में नाई तथा पक्षियों में कौवा चतुर होते हैं।
- प्रयोग अनुकूलता : यह कहावत नाई की चतुराई को लक्ष्य करके कही जाती है।
- शब्दार्थ : नौंवां-नाई
- पठेरा कस कौड़ी दाँत निपौरे। -- आले की कौड़ी के समान दाँत निकालता है।
- व्याख्या : कोई व्यक्ति हर समय दांत निकाल कर अपनी उपस्थिति दर्ज करा देता है
- प्रयोग अनुकूलता : जब कोई व्यक्ति बात-बात में अकारण दाँत निकाला करता है, तब उसे अपमानित करने के लिए इस कहावत का प्रयोग किया जाता है।
- शब्दार्थ : पठेरा-आला, कस-उसी जैसा, निपौरे-निपोरना
- पढ़े फारसी बेचे तेल। -- फारसी पढ़कर भी तेल बेचता है।
- व्याख्या : ज्यादा पढ़-लिख कर भी छोटा काम करता है।
- प्रयोग अनुकूलता : जब अधिक पढ़ा-लिखा व्यक्ति अपनी पढ़ाई के अनुकूल कार्य नहीं कर के कोई निम्न स्तर का कार्य करता है, तब लोग उसके लिए इस कहावत का प्रयोग करते है।
- शब्दार्थ : मेहरिया-पत्नी, अउ-और, दू-दो, साध-इच्छा करना
- पर भरोसा कंचन बाई। -- कंचन बाई को दूसरों का भरोसा।
- व्याख्या : हमेशा दूसरों पर भरोसा करना।
- प्रयोग अनुकूलता : जो व्यक्ति दूसरों पर अवलंबित रहकर अपना कार्य करता है, उसके लिए यह कहावत कही जाती है।
- शब्दार्थ : पर-दूसरा
- पराय के धन अउ मँगनी के एँहवात। -- दूसरे का धन और माँगा हुआ सौभाग्य।
- व्याख्या : दूसरे का धन और माँगा हुआ सौभाग्य किसी व्यक्ति को नहीं लगता। व्यक्ति को अपने ही भाग्य के अनुसार भोगना पड़ता है।
- प्रयोग अनुकूलता : दूसरों पर भरोसा करने वालों के लिए यह कहावत कही जाती है।
- शब्दार्थ : एँहवात-सौभाग्य, पराय-दूसरे का, अउ-और, मंगनी-मांगा हुआ
- पराय के भरोसा माँ तीन परोसा। -- दूसरों के भरोसे तीन परोसे खाता है।
- व्याख्या : जो व्यक्ति स्वयं काम न करके दूसरे की कमाई खाता है, यह परावलंबी होता है।
- प्रयोग अनुकूलता : ऐसा व्यक्ति जिसे स्वयं कोई अधिकार न हो तथा जो दूसरे के अधिकारों का दूरूपयोगग करे, उसपर टिप्पणी करते हुए यह कहावत कही जाती है।
- शब्दार्थ : पराय-दसूरे का
- परै चक्कर भोलानाथ के, त कंडा बिनत दिन जाय। -- किसी फक्कड़ के चक्कर में पड़कर कंडे इकट्ठो करते हुए दिन बिताना।
- व्याख्या : बेकार आदमी के चक्कर में पड़ जाना।
- प्रयोग अनुकूलता : जो स्त्री किसी फक्कड़ व्यक्ति के बहकावे में आ जाती है, उसे भोजन तक नसीब नहीं होता। ऐसी स्त्रियों की दुर्दशा को देखकर यह कहावत कही जाती है।
- शब्दार्थ : बिनत-बिनना, जाय-जाना
- परोसी के बूती साँप नइ मरै। -- पड़ोसी के बल-बूते पर साँप नहीं मरता।
- व्याख्या : अपना काम स्वयं करने से होता है। पड़ोसी के द्वारा अपनी कोई कार्य नहीं होता।
- प्रयोग अनुकूलता : जब किसी व्यक्ति से कोई काम करने के लिए कहा जाए और वह उसे न करे, तब यह कहावत कही जाती है।
- शब्दार्थ : परोसी -पड़ोसी, बूती-बूते, नइ-नहीं, मरे-मरना
- पलोप पानी अउ सिखोय बुधह के दिन पूरही। -- सींचा हुआ पानी और सिखाई गई बुद्धि कितने दिन चलेगी।
- व्याख्या : वर्षा के पानी से सिंचाई होती है तथा अपनी बुद्धि से काम करने से अनुभव मिलता है। सींचा हुआ पानी जल्दी सूख जाता है, इसलिए वह फसल के लिए वर्षा के पानी की तुलना में कम काम आता है। दूसरों के कहने से कोई काम करते रहने से अपनी बुद्धि कुंठित हो जाती है। खेती को वर्षा का पानी चाहिए तथा व्यक्ति के विकास के लिए अपनी बुद्धि से काम करने की आदत होनी चाहिए।
- प्रयोग अनुकूलता : जब कोई व्यक्ति किसी के बहकावे में आकर काम करता है, तब उस के लिए यह कहावत प्रयुक्त होती है।
- शब्दार्थ : पलोय-सींचा हुआ, अउ-और, सिखोय-सीखा हुआ, बुधह-बुद्धि, पूरही-चलना
- पहार ले गिरे, पथरा के घाव। -- पहाड़ के गिरा पत्थर का घाव।
- व्याख्या : पहाड़ से गिरने वाले व्यक्ति को ऊँचाई से गिरने के कारण चोट लगती है। यदि वह नीचे पत्थर से टकरा जाए, तो दुहरी चोट पड़ती है।
- प्रयोग अनुकूलता : बाहर से परेशान होकर लौटे हुए किसी व्यक्ति को घर में भी किसी मुसीबत का सामना करना पड़े, तो यह पहाड़ से गिरने और पत्थर से टकराने के समान हो जाता है। ऐसी स्थिति में यह कहावत कही जाती है।
- शब्दार्थ : पहार-पहाड़, पथरा-पत्थर
- पहार हर दूरिहा ले सुघ्घर दिखथे। -- पहाड़ दूर से सुंदर दिखलाई पड़ता है।
- व्याख्या : पहाड़ दूर से सुंदर लगता है, पहाड़ पर चढ़ने में पत्थर से ठोकर लगने जैसी मुसीबतें झेलनी पड़ती है।
- प्रयोग अनुकूलता : जब तक किसी काम में हाथ नहीं लगा हो, तब तक वह अच्छा ही लगता है। उस कार्य के संबंध में अनुभवी व्यक्ति इस कहावत के प्रयोग से उसकी कठिनाइयों का आभास करा देते हैं।
- शब्दार्थ : पहार-पहाड़, दूरिहा-दूर से, सुघ्घर-सुंदर, दिखथे-दिखाई देता है।
- पाँच कौर भीतर, सब देव पीतर। -- पाँच ग्रास भीतर, सब देव पितर।
- व्याख्या : पेट भरने पर ही देव-पितर आदि की चिंता की जाती है।
- प्रयोग अनुकूलता : ऐसे व्यक्ति जो अपना पेट भरनी की चिंता पहले और देवता, पितर आदि की चिंता बाद में करते हैं, उन के लिए यह कहावत कही जाती है।
- शब्दार्थ : कौर-ग्रास, पीतर-पितर
- पाँड़ के पोथी-पत्र, पँड़ाइन के मुखग्रा। -- पांड़े के पोथी-पत्रा, पंड़ाइन की मुँह जबानी।
- व्याख्या : पाँडे जो बातें पंचाँगा देखकर बताते हैं, उसे पंडाइन मुखाग्र बता देती है।
- प्रयोग अनुकूलता : किसी स्त्री से अधिक चतुर बनने की बात को देखकर यह कहावत कही जाती है।
- शब्दार्थ : मुखग्रा-मुख से
- पाँड़े घर के बिलइया सियान। -- पांड़े के घर की बिल्ली चतुर।
- व्याख्या : पांडे के घर में रहने वाली बिल्ली भी पांडे की चतुराई को देखकर चतुर हो जाती है।
- प्रयोग अनुकूलता : संगत के प्रभाव से सामान्य व्यक्ति के चतुर बन जाने पर यह कहावत कही जाती है।
- शब्दार्थ : बिलइया-बिल्ली, सियान-बुर्जुग व्यक्ति
- पादे बर पातर राग, बाँटा बटाय बर बरोबर भाग। -- अधोवायु पतली आवाज के साथ छोड़ने वाला बराबर हिस्सा बँटवाता है।
- व्याख्या : कमजोर व्यक्ति काम-काज नहीं कर पाता, परंतु लाभ का बँटवारा बराबर चाहता है, क्योंकि वह भी संपत्ति का उत्तराधिकारी है।
- प्रयोग अनुकूलता : अकर्मण्य व्यक्ति के लाभ में बराबर हिस्सा चाहने पर उसके लिए यह कहावत कही जाती है।
- शब्दार्थ : बर-के कारण, पातर-पतला, बांटा -बंटवारा, बरोबर-बराबर
- पानी के हगे उफलाबे करही। -- पानी में त्यागा हुआ मल पानी में तैरता हुआ दिखालाई पड़ता है।
- व्याख्या : पानी के भीतर मल त्याग करने पर वह कुछ देर पानी के अंदर रहकर ऊपर आ जाता है।
- प्रयोग अनुकूलता : जब कोई व्यक्ति खराब काम करता है, तब वह कुछ दिनों तक औरों की निगाहों में छिपा रहता है, परंतु बाद में प्रकट हो जाता है। उस कुकर्म की जानकारी हो जाने पर यह कहावत कही जाती है।
- शब्दार्थ : हगे-मल विसर्जन करना, उफलाबे-उफलाना
- पानी गए पार बाँधत हे। -- पानी निकल जाने के बाद बाँध बाँधता है।
- व्याख्या : पानी निकल जाने के बाद बाँध बाँधने से क्या लाभ।
- प्रयोग अनुकूलता : जो होना था, सो हो चुका। अब प्रयत्न करने से क्या होता है। कुछ ऐसे ही परिपेक्ष्य में यह कहावत कही जाती है।
- शब्दार्थ : बांधत-बांधना
- पानी नोहै जलसो ए, डौकी नोहै संसो ए। -- पानी नहीं मृग तृष्णा है, स्त्री नहीं चिंता है।
- व्याख्या : पानी की जगह मृग तृष्णा का भ्रम और अच्छी पत्नी की जगह सिर दर्द वाली पत्नी का भ्रम।
- प्रयोग अनुकूलता : जब कोई पत्नी पति के लिए सिर-दर्द हो, तब यह कहावत पत्नी की वास्तविकता को व्यक्त करने के लिए कही जाती है।
- शब्दार्थ : जलसो-मृग तृष्णा, संसो-चिंता, डौकी-पत्नी, नौहै-नीहं है।
पानी पीए छान के, गुरू बनावै जान के। -- पानी छानकर पीना, गुरू जानकर बनाना चाहिए।
- व्याख्या : सही चुनाव जरूरी होता है।
- प्रयोग अनुकूलता : योग्य गुरू बनाने के लिए सीख देने हेतु यह कहावत कही जाती है।
- शब्दार्थ : पीए-पीना, बनावै-बनाना
- पानी पी के जात पूछत हे। -- पानी पीकर जाति पूछता है।
- व्याख्या : पानी पीने के बाद पानी पिलाने वाले व्यक्ति की जाति पूछने में कोई औचित्य नहीं है, क्योंकि छुआछूत मानने वाले व्यक्ति को पानी के पहले ही उसकी जाति पूछ लेनी चाहिए।
- प्रयोग अनुकूलता : जब कोई व्यक्ति किसी कार्य को प्रारंभ करने के बाद उस के हानि-लाभ के संबंध में सोचता है, तब यह कहावत कही जाती है।
- शब्दार्थ : जात-जाति
- पानी बरसे आधा पूस, आधा गहूँ आधा भूँस। -- आधे पूस में पानी बरसने से आधा गेहूँ और आधा भूस मिलता है।
- व्याख्या : पूस महीने के मध्य में पानी गिरने से गेहूँ की फसल बरबाद हो जाती है। इन दिनों गेहूँ लगभग पक जाता है। पानी पड़ने से पौधे गिर जाते हैं तथा दाने झड़ जाते हैं। इसलिए पूरा बीज न मिलकर आधा ही मिलता है।
- प्रयोग अनुकूलता : कृषि-संबंधी चर्चा में यह कहावत गेहूँ की उपज के संबंध में कही जाती है।
- शब्दार्थ : पूस-पौष, गहूं-गेंहू, भूंस-भूंसा
- पानी माँ बस के मगरा ले बैर। -- पानी में बस कर मगर से बैर।
- व्याख्या : जहाँ रहना हो, वहाँ के सत्ताधारी व्यक्तियों से मिलकर रहना चाहिए। पानी में रहने वाले जीवधारियों को वहाँ के रहने वाले मगर से बैर नहीं करना चाहिए। मगर शक्तिशाली होता है, इसलिए वह बैर करने वाले का नाश कर सकता है।
- प्रयोग अनुकूलता : जहाँ रहना हो या काम करना हो, वहाँ के शक्तिशाली लोगों से दुश्मनी नहीं करनी चाहिए, अन्यथा उनसे अनिष्ट होने की संभावना रहती है।
- शब्दार्थ : मगरा-मगरमच्छ
- पाप ह छान्हीं माँ चढ़ के नाचथे। -- पाप छत पर चढ़कर नाचता है।
- व्याख्या : अपराधी को अपराध करने के बाद मानसिक पीड़ा होती है, जिससे वह अपने को संयत नहीं रख पाता। उसका कुकर्म अन्य लोगों पर प्रकट हो जाता है। अपराध करने के बाद भयभीत होने के कारण वह छिपता-फिरता है, जिससे लोगों को उसके कार्यों के प्रति शंका हो जाती है।
- प्रयोग अनुकूलता : अपराधी व्यक्ति अपने क्रिया-कलापों से पकड़ में आ जाता है। इस प्रकार उसका पाप प्रकट हो जाता है। ऐसी ही परिपेक्ष्य में यह कहावत कही जाती है।
- शब्दार्थ : छान्हीं-खप्पर, चढ़के-चढ़ना, नाचथे-नाचना
- पापी के जीव परासचित माँ लगे हे। -- पापी का मन प्रायश्चित में लगा है।
- व्याख्या : पाप करने के बाद अधिकांश व्यक्ति प्रायश्चित करते हैं।
- प्रयोग अनुकूलता : कुकर्म करने वाले व्यक्ति के पछतावे को देखकर यह कहावत कही जाती है।
- शब्दार्थ : परासचित-प्रायश्चित
- पारे बर बाट, अउ लूटे बर सुसा भाजी -- रास्ते में चोरी करना, परंतु लूट में सूखी भाजी पाना।
- व्याख्या : बाजार से सब्जी बेचकर लौटने वाले व्यक्ति को रास्ते में चोर ने लूट लिया। लूट में उसे पैसे नहीं मिले। सब्जी बेचने वाले के पास सूखी भाजी बच गई थी। चोर ने उसे ही लूट कर संतोष किया। चोरी का कार्य किया और सूखी भाजी पाई।
- प्रयोग अनुकूलता : किसी को नौकरी से न निकालने के संबंध में यह कहावत कही जाती है।
- शब्दार्थ : ल-को, लै-ले, त-भले ही, फेर-परंतु, झिन-नहीं
- पूख के बियासी माँ धान रूख। -- पुष्य नक्षत्र की बियासी में धान के पौधे वृक्ष के समान बढ़ते हैं।
- व्याख्या : अनुकूल समय में ही किसानी के कार्य संपन्न करने चाहिए।
- प्रयोग अनुकूलता : धान की बियासी कब होनी चाहिए, इस संबंध में अपेक्षित जानकारी इस कहावत से मिल जाती है।
- शब्दार्थ : पूख-पुष्य, बियासी-धान की वृद्धि के लिए छोटे पौधों की जुताई
- पूख न बइए, कूट के खइए। -- पुष्य नक्षत्र में धान न बोने वाला कूट कर खाता है।
- व्याख्या : धान बोने के लिए अंतिम नक्षत्र पुष्य है। इस नक्षत्र तक जो धान नहीं बो सका, उसे कुछ भी नहीं मिलता, जिससे उसे अपने घर के पुराने रखे हुए धान को ही खाना पड़ता है।
- प्रयोग अनुकूलता : धान बोने के संबंध में यह कहावत कही जाती है।
- शब्दार्थ : पूख-पुष्य, खइए-खाना
- पून के गरूवा के दाँत नइ देखैं। -- पूण्य की गाय के दाँत नहीं देखते।
- व्याख्या : गाय-बैल के दाँतों से उनकी आयु का पता लगता है, ऐसी गाय जो पुण्य में मिली हो, उसकी आयु जानने के लिए दाँत देखने की आवश्यकता नहीं होती, क्योंकि उसे पाने के लिए कुछ व्यय नही करना पड़ता। वह अच्छी-बुरी जैसी भी हो, अपने को प्राप्त हो जाती है।
- प्रयोग अनुकूलता : पुण्य की वस्तु के गुण-दोष नहीं देखे जाते। ऐसे परिपेक्ष्य में यह कहावत कही जाती है।
- शब्दार्थ : पून-पुण्य, गरूवा-गाय, नइ-नहीं, देखै-देखना
- पूस बरी, कीरा परी। -- पूस बड़ी, कीड़ा पड़ी।
- व्याख्या : पूस माह में बड़ियाँ नहीं बनानी चाहिए, क्योंकि इस माह में बनाई गई बड़ी में कीड़े लग जाते हैं। इसीलिए बड़ियाँ प्रायः कार्तिक अगहन तथा माघ के महिने में बनाई जाती है।
- प्रयोग अनुकूलता : बड़ी बनाने के सही समय के चुनाव हेतु यह कहावत प्रयोग में लायी जाती है।
- शब्दार्थ : पूस-पौष, कीरा-कीड़ा
- पेज बर पूरै नीहं, पहुना कहै पसा दे। -- पेज तो पूरा नहीं पड़ता, मेहमान चांवल पसाने की बात करता है।
- व्याख्या : घर में खाने के लिए चांवल का माढ़ भी नहीं है और मेहमान चावल पकाने की बात करता है। जिसके पास स्वयं के लिए ही कोई वस्तु नहीं है, वह किसी दूसरे व्यक्ति के लिए उससे भी बढ़िया वस्तु कहाँ से लाएगा। ऐसी माँग निरर्थक है। यदि किसी से उसकी सामर्थ्य के अनुसार वस्तु माँगी जाए, तो वह उसे देने का प्रयत्न करेगा।
- प्रयोग अनुकूलता : यदि किसी की सामर्थ्य से अधिक उससे माँगा जाए, तो यह कहावत कही जाती है।
- शब्दार्थ : पेज-पके चांवल का माढ़, पहुना-मेहमान, पसा-चांवल पकाकर माढ़ निकालना
- पेट परै गुन देही। -- पेट में पड़ने से गुण करेगा।
- व्याख्या : यदि भूख न हो, तो कुछ खा कर बाहर जाने से वह समय-कुसमय में भी काम आ जाता है। माता अपने बेटे को अधिक से अधिक खाना खिलाना चाहती है। बेटे को भूख न होने पर भी उसकी माँ इस कहावत के प्रयोग से भोजन करने का कारण बता देती है।
- प्रयोग अनुकूलता : कुछ खाकर बाहर जाने के लिए यह कहावत कही जाती है।
- शब्दार्थ : परै-पड़ना, गुन-गुण, देही-देना
- पेट बोज अउ मोट बाँध। -- पेट भर खाना और गठरी बाँधना।
- व्याख्या : भरपेट खाने के बाद बाँधकर ले जाना।
- प्रयोग अनुकूलता : ऐसे व्यक्ति जो किसी के घर में रहकर खूब गुलछर्रे उड़ाते है और जाते-जाते बहुत कुछ अपने साथ भी ले जाते हैं, उन के लिए वह कहावत कही जाती है।
- शब्दार्थ : बोज-खाना, अउ-और, मोट-गठरी, बांध-बांधना
- पेट भरै न पुरखा तरै। -- पेट भरे न पुरखा तरे।
- व्याख्या : इतने कम भोजन से न तो खाने वाले का पेट भरेगा और न ही पुण्य लाभ होने से पूर्वज कृतार्थ होंगे।
- प्रयोग अनुकूलता : यदि कोई व्यक्ति थोड़ा सा खाने के लिए देता है, तब यह कहावत कही जाती है।
- शब्दार्थ : पुरखा-पूर्वज, तरै-तृप्त होना
- पेट माँ बाबू च बाबू, बिन डौका के का करौं। -- पेट में बच्चे ही बच्चे हैं, बिना पति के क्या करूँ।
- व्याख्या : किसी स्त्री को ऐसा लगता है कि उसके बहुत बच्चे हो सकते हैं, परंतु पति न होने के कारण उसके बच्चे नहीं हो सकते।
- प्रयोग अनुकूलता : किसी व्यक्ति को कोई दूसरा व्यक्ति यदि कोई कार्य करने के संबंध में सलाह दे, तो वह व्यक्ति इस कहावत का प्रयोग करके अपना आशय स्पष्ट करता है कि उसकी अनेकानेक इच्छाएँ हैं, वह बहुत कुछ कर सकता है, परंतु पैसे के बिना नहीं कर सकता।
- शब्दार्थ : बाबू-बच्चा, च-और, बिन-बिना, डौका-पति, करौं-करूं
- पेट ले परमेश्वर। -- पेट से परमेश्वर।
- व्याख्या : भूखे भजन न होइ गोपाला’ के समानांतर यह कहावत है। भगवान का ध्यान भूखे पेट नहीं हो सकता। पेट भरने के बाद ही भाँति-भाँति की बातें सुझती हैं। भूखे व्यक्ति को केवल भूख मिटाने की चिंता होती है।
- प्रयोग अनुकूलता : मजदूरी कर के उदर पोषण करने वाले को तीर्थ यात्रा करने की बात कहने पर वह इस कहावत का प्रयोग करता ह।
- शब्दार्थ : ले-से
- पैधे गाय, कछारे जाय। -- बार-बार एक ही जगह जाने वाली गाय कछार ही जाती है।
- व्याख्या : कछार में हरी-हरी घास खाने वाली गाय जब भी घर से निकलती है, सीधे कछार जाती है। मुफ्त का माल खाने की आदत पड़ जाने पर व्यक्ति बार-बार उसी जगह जाता है, जहाँ उसे खाने को मिलता है।
- प्रयोग अनुकूलता : इस कहावत का प्रयोग ऐसे लोगों के लिए किया जाता है, जो बार-बार एक ही जगह जाकर फायदा उठाते हैं।
- शब्दार्थ : पैधे -बार बार एक ही जगह जाने की आदत, कछारे-कछार, जाय-जाना
- पैसा के पौवा भर, अधेला के झौंहा भर। -- पैसे में पाव भर, अधेले में टोकरी भर।
- व्याख्या : कभी-कभी उपयोगी चीज कम पैसों में ज्यादा मात्रा में मिल जाती है।
- प्रयोग अनुकूलता : जब कोई वस्तु पैसों से कम मात्रा में तथा बिना पैसों के अधिक मात्र में मिले, तब यह कहावत कही जाती है।
- शब्दार्थ : झौंहा-टोकरी
- पैसा न कौड़ी, हुदक दे लौठी। -- पैसे -कौड़ी नहीं, लाठी से धक्का देता है।
- व्याख्या : जिस व्यक्ति के पास पैसे न हों, उसे दूसरे किसी से लड़ाई नहीं करनी चाहिए, परंतु यदि ऐसा व्यक्ति किसी को जबरदस्ती मारता है, तो वह अपने नंगेपन का परिचय देता है। वह आगे आने वाली उलझनों की चिंता नहीं करता, क्योंकि किसी अमीर का प्रश्रय रहता है, जिसके कहने पर वह झगड़ा करता है। किसी गरीब व्यक्ति के अकारण झगड़ा मोल लेने में कोई राज छिपा होता है।
- प्रयोग अनुकूलता : जब कोई गरीब व्यक्ति किसी बड़े आदमी का जान-बूझकर नुकसान करता है, तब उसके पीछे रहस्य को स्पष्ट करने के लिए यह कहावत कही जाती है।
- शब्दार्थ : हुदक-धक्का देना, लौठी-लाठी
पोंडा पाँव ऊँच कपार, तउन खाय अपन भतार। -- पोले पैर तथा ऊँचे मस्तक वाली स्त्री अपने पति को खा जाती है।
- व्याख्या : जिस स्त्री के पैर के नीचे चलते समय रिक्त स्थान दिखलाई पड़े तथा उसका ऊँचा कपाल हो, उसका पति जल्दी मर जाता है। स्त्रियों के ये कुलक्षण हैं। शादी-ब्याह के पूर्व किसी लड़की को देखते समय इन कुलक्षणों को ध्यान में रखा जाता है।
- प्रयोग अनुकूलता : जिस लड़की में ऐसे लक्षण हों, उसे बहू न बनाने के लिए यह कहावत कही जाती है।
- शब्दार्थ : पोंडा-पोला, पांव-पैर, ऊंच-ऊंचा, कपार-मस्तक, तउन-वह, खाय-खाना, अपन-अपना, भतार-पति
- पोंसे डिंगरा खरही माँ आग लगावे। -- दूसरों के द्वारा पाला-पोसा व्यक्ति खरही में आग लगाता है।
- व्याख्या : किसी दूसरे के बच्चे को पाल-पोस कर बड़ा किया। यदि वह अपने पालक के इकट्ठा किए हुए धान के पौधों में आग लगा दे, तो वह कृतघ्न है।
- प्रयोग अनुकूलता : ऐसा व्यक्ति, जिसने कभी किसी बच्चे को अत्यधिक स्नेह दिया हो, यदि वह बड़ा हो जाने पर अपने पालक का अहित करे, तो यह कहावत कही जाती है।
- शब्दार्थ : डिंगरा-किसी का बच्चा, जिसे दूसरे व्यक्ति ने पाला हो, खरही-काटकर एकत्रित किए गए पके धान के पौधे
- फूटे काँस कसेरे जाय, बिगड़े बिटिया मैहर जाय। -- काँस के फूटे हुए बर्तन कसेर के घर तथा चरित्रहीन लड़की मायका जाती है।
- व्याख्या : चरित्रहीन लड़की ससुराल से भगा दी जाने पर मायका में आश्रय पाती है।
- प्रयोग अनुकूलता : परंपरा के अनुसार यह कहावत कही जाती है।
- शब्दार्थ : मैहर-मायका
- फोकटइहा के चंदन, घिस भइ लल्लू। -- मुफ्त का चंदन, लल्लू भाई घिस लो।
- व्याख्या : यदि किसी व्यक्ति को किसी दूसरे की वस्तु मुफ्त में मिल जाए, तो उस के प्रति विशेष दायित्व न मानने से उसका दुरूपयोग होता है।
- प्रयोग अनुकूलता : किसी को मुफ्त की मिली वस्तु का दुरूपयोग करते देखकर यह कहावत कही जाती है।
- शब्दार्थ : फोकटइहा-मुफ्त
- फोकट मिलै त बाप पूत आवै, पैसा लगे ल बलाय ले नइ आवै। -- खाने का मिल जाए,तो खाने के लिए पिता-पुत्र दों आ जाते हैं, परंतु यदि पैसे खर्च करने पड़े,तो बुलाने से भी नहीं आते हैं।
- व्याख्या : दूसरों के पैसे से ऐश करने वाले बहुतेरे लोग मिलते हैं।
- प्रयोग अनुकूलता : इस कहावत का प्रयोग ऐसे व्यक्तियों के लिए होता है, जो दूसरों के पैसे से ऐश करने में चतुर होते हैं।
- शब्दार्थ : फोकट-मुफ्त, मिलै-मिलना, पूत-पुत्र, बलाय-बुलाने से, नइ-नईं, आवै-आना
- बइगा के डौकी बाँझ परै। -- गुनिया की स्त्री बाँझ।
- व्याख्या : गुनिया अन्य लोगों की स्त्रियों को अपने मंत्रादि से ठीक करता है, जिससे उनको बच्चे हो जाते हैं, परंतु उसका इलाज अपनी पत्नी पर कोई असर नहीं करता।
- प्रयोग अनुकूलता : जब कोई व्यक्ति औरों की सहायता करता है, परंतु अपने लिए कुछ नहीं कर सकता, तब यह कहावत कही जाती है।
- शब्दार्थ : बइगा -बैगा, डौकी-पत्नी, परै-पड़ना
- बइठे बिगारी सही। -- बैठे से बेगार ही सही।
- व्याख्या : निठल्ला रहने की अपेक्षा कुछ न कुछ काम करना अच्छा होता है।
- प्रयोग अनुकूलता : जब कोई व्यक्ति खाली न बैठकर कोई छोटा-मोटा काम कर लेता है, तब इस कहावत का प्रयोग होता है।
- शब्दार्थ : बइठे-बैठे ही, बिगारी -बेकारी
- बइला अउ बेटी के घर नइ ए। -- बैल और बेटी का घर नहीं होता।
- व्याख्या : बैल को जिसे बेच दिया जाए, उसी के साथ उसे जाना पड़ता है तथा बेटी की शादी जिससे कर दी जाए, उसी के साथ उसे रहना पड़ता है।
- प्रयोग अनुकूलता : लड़कियाँ पराया धन होती हैं यह बताने के लिए इस कहावत का प्रयोग किया जाता है।
- शब्दार्थ : बइला-बैल, अउ-और, नइ-नहीं, ए-है
- बइला के ओधा माँ बगुला चरै। -- बैल की आड़ में बगुले चरे।
- व्याख्या : बैल के आड़ में बगुले छिप जाते हैं, जिससे उन के ऊपर लोगों की दृष्टि नहीं जाती।
- प्रयोग अनुकूलता : जब कोई व्यक्ति किसी की ओट में शिकार करता ह, तब यह कहावत कही जाती है।
- शब्दार्थ : बइला-बैल, ओधा-आड़, चरै-चरना
- बखत परे बाँका, त गदहा ल कहे काका। -- वक्त पड़ने पर गधे को भी काका कहना पड़ता है।
- व्याख्या : आवश्यकता पड़ने पर क्षुद्र व्यक्ति की भी खुशामद करनी पड़ती है। नीच व्यक्ति से काम निकालने के लिए उसे सिर पर चढ़ाना पड़ता है, उसकी बातों को शिरोर्धाय करना पड़ता है।
- प्रयोग अनुकूलता : किसी अच्छे व्यक्ति को निम्न व्यक्ति की खुशामद करते देखकर यह कहावत कही जाती है।
- शब्दार्थ : बखत-वक्त, परे-पड़ने पर, गदहा-गधा, ल-को
- बड़ तिस मार खाँ के बेटा आय। -- बड़ा तीस मार खाँ का बेटा है।
- व्याख्या : ऐसा सामान्य व्यक्ति जो अन्य लोगों पर रोब जमाता है, उसकी हरकतों से तंग आकर लोग उससे कहते हैं कि बड़ा आया है रोब जमाने वाला।
- प्रयोग अनुकूलता : उसके चले जाने पर उसके रोब जमाने की चर्चा करते हुए यह कहावत कही जाती है कि वह ऐसे बहादुर का बेटा है, जिसने तीस मक्खियाँ मार डाली हों।
- शब्दार्थ : बड़-बड़ा, तिस-तीस, आय-है
- बड़का के लात मूँड़ माँ। -- बड़े आदमी का पैर सिर पर।
- व्याख्या : बड़े आदमियों के मार भी बड़ी होती है।
- प्रयोग अनुकूलता : जब कोई धनी व्यक्ति किसी से नाराज होता है, तो वह उसे तबाह कर देता है, ऐसी स्थिति में यह कहावत कही जाती है।
- शब्दार्थ : बड़का-बड़ा, मूंड़-सिर
- बड़का मारै रोन न देय। -- बड़ा आदमी मारता है और रोने भी नहीं देता।
- व्याख्या : बड़े आदमी जिस किसी व्यक्ति को परेशान करते हैं, वह अपनी व्यथा दूसरों को बता भी नहीं सकता, क्योंकि इससे और अधिक परेशानी में पड़ने का उसे भय रहता ह।
- प्रयोग अनुकूलता : सामथ्यर्वान का क्रोध सामान्य लोगों के लिए बहुत दुखद होता है, यह बताने के लिए यह कहावत कही जाती है।
- शब्दार्थ : बड़का-बड़ा, मारै-मारना, रोन-रोना, देय-देना
- बड़वा बइला, तरेंगा के खेती। -- बिना पूँछ का बैल, तरेंगा की खेती।
- व्याख्या : तरेंगा गाँव की खेती बहुत अधिक जमीन में होती है, जिसके लिए अनेक बैलों की आवश्यकता होती है। अकेले पूँछ कटे बैल से क्या हो सकता है?
- प्रयोग अनुकूलता : बहुत बड़े कार्य के लिए बहुत लोगों की आवश्यकता होती है। ऐसी स्थिति में थोड़े से व्यक्तियों को देखकर यह कहावत कही जाती है।
- शब्दार्थ : तरेंग-एक गाँव, जहाँ का मालिक हजारों एकड़ भूमि का स्वामी था, बड़वा-ऐसा बैल जिसकी पूंछ न हो, बइला-बैल
- बड़े संग माँ खाय बीरो पान, छोटे संग माँ कटाय दूनों कान। -- बड़े के साथ पान खाना, छोटे के साथ कान कटाना।
- व्याख्या : बड़ों के साथ रहने से प्रतिष्ठा बढ़ती है तथा छोटों के साथ रहने से बेइज्जती होती है।
- प्रयोग अनुकूलता : छोटों से मिलकर न रहकर बड़ों के साथ रहने के लिए सीख देने के लिए यह कहावत कही जाती है।
- शब्दार्थ : खाय-खाना, कटाय-कटाना, दूनों-दोनों
- बड़े-बड़े गिन, खमरछठ अइन। -- बड़े-बड़े गए, हलषष्ठी आई।
- व्याख्या : बड़े-बड़े त्यौहारों के सामने हलषष्ठी की क्या औकात। बड़ों के सामने छोटों की क्या गिनती।
- प्रयोग अनुकूलता : जब बड़े-बूढ़े के सामने कोई छोटा व्यक्ति बड़ी-बड़ी बातें करता है, तब इस कहावत का प्रयोग करने से वह ठंडा पड़ जाता है।
- शब्दार्थ : खमरछठ-हलषष्ठी इसका व्रत स्त्रियाँ भादो के कृष्ण पक्ष में षष्ठी को रखती हैं, गिन-गए, अइन-आए
- बड़े ला टाँक दे, छोटे ला छिटका दे। -- बड़े को टाँका लगाए छोटे को छिड़क दे।
- व्याख्या : बड़ों का समुचित आदर-सत्कार करने तथा छोटों को केवल आदर का ढंग मात्र दिखाकर टाल देने पर यह कहावत प्रयुक्त होती है।
- प्रयोग अनुकूलता : ऐसे व्यक्ति जो बड़ों का आदर करते हैं और अपने से कम है हैसियत वालों को केवल आदर का ढंग कर टाल देने वाले लोगों के लिए यह कहावत कही जाती है।
- शब्दार्थ : टाँक दे-टाँका लगा देना, छिटका दे-छिड़क देना
- बढ़ई के डौकी भूँया माँ सूतै। -- बढ़ई की पत्नी जमीन पर सोए।
- व्याख्या : बढ़ई औरों के लिए पलंग तैयार करता है, परंतु उसेक घर में खाट भी न होने से उसकी पत्नी जमीन पर सोती है।
- प्रयोग अनुकूलता : जब व्यक्ति दूसरों की सहायता करता है, परंतु अपने लिए कुछ नहीं कर पाता, तब इस कहावत का प्रयोग किया जाता है।
- शब्दार्थ : डौकी-पत्नी, भूंया-जमीन, सूतै-सोना
- बतर किरवा असन झपावत हे। -- बतर कीड़े के समान गिरता है।
- व्याख्या : धान बोने के दिनों में रात में प्रकाश के पास कीड़े अधिक संख्या में आते हैं।
- प्रयोग अनुकूलता : जब किसी लालच में पड़कर एक के बाद एक कई व्यक्ति हानि उठाते हैं, तब इस कहावत का प्रयोग करते हैं।
- शब्दार्थ : बतर किरवा-धान बोने के दिनों में दिखलाई पड़ने वाले कीड़े, असन-जैसे, झंपावत-झपना
- बद-बद राखे नरियर, अउ फोर चढ़ावे बेल। -- नारियल चढ़ाने की मनौती करना और काम हो जाने पर बेल चढ़ाना।
- व्याख्या : कष्ट से छुटकारा पाने के लिए कोई व्यक्ति नारियल चढ़ाने की मनौती करता है, परंतु कष्ट दूर हो जाने पर वह नारियल के बदले बेल चढ़ाता है।
- प्रयोग अनुकूलता : काम अटकने पर ऊँची-ऊँची बातें करने तथा काम निकल जाने पर सब बातें भूल जाने वाले व्यक्ति के लिए यह कहावत प्रयुक्त होती है।
- शब्दार्थ : राखे-रखना, नरियर-नारियल, अउ-और, फोर-फोड़ना, चढ़ावे-चढ़ाना
बन्निन के रीझे, आवे हाँत हर्रा। -- बनिए की पत्नी प्रसन्न हो जाए,तो उससे हर्रा ही मिल सकता है।
- व्याख्या : कंजूस की पत्नी से उसके प्रसन्न होने पर भी कुछ पाने की आशा रखना व्यर्थ है।
- प्रयोग अनुकूलता : कंजूस, उस पर उसकी पत्नी कंजूस ऐसे लोगों के लिए यह कहावत कही जाती है।
- शब्दार्थ : बन्निन-बनिया, आवे-आना, हांत-हाथ
- बने-बने बजार के, गिनहा मरार के। -- अच्छी वस्तुएँ बाजार की खराब वस्तुएँ मरार की।
- व्याख्या : सब्जी बेचने वाला मरार अच्छी वस्तुओं को बाजार में बेचता है तथा बची हुई खराब वस्तुओं को स्वयं खाता है।
- प्रयोग अनुकूलता : अच्छी वस्तुओं का स्वयं उपभोग न कर बेच देने वालों के लिए यह कहावत कही जाती है।
- शब्दार्थ : बने-अच्छा, बजार-बाजार, गिनहा-खराब, मरार-एक प्रकार की जाति जो सब्जी उगाने और बेचने का काम करती है
- बबा घर माँ, लइकोरी बन माँ। -- बाब घर में, बच्चे वाली वन में।
- व्याख्या : जिसे काम करना चाहिए, वह घर में आराम करता है तथा जिसे आराम करना चाहिए, वह जंगल में काम करती है।
- प्रयोग अनुकूलता : ऐसे आलसी व्यक्तियों के लिए यह कहावत कही जाती है, जिस के उदर-पोषण की चिंता में उनकी पत्नियों को काम करना पड़ता है।
- शब्दार्थ : बबा-बाबा, लइकोरी-जिसका छोटा बच्चा हो, बन-वन
- बम्हरी लगाय ले आमा के साध नई भरय। -- बबूल लगाने से आम खाने की इच्छा पूरी नहीं होती।
- व्याख्या : कोई व्यक्ति बुरा कार्य करके अच्छे फल की आशा करे, तो ऐसा संभव नहीं है। जो जैसा करेगा, उसे उसके अनुसार ही फल मिलेगा।
- प्रयोग अनुकूलता : जो व्यक्ति करता कुछ और है तथा चाहता कुछ और है, उसके लिए यह कहावत कही जाती है। कांटे बोने वाले को कांटे ही मिलेंगे, रसीले फल नहीं मिल सकते।
- शब्दार्थ : बम्हरी-बबूल, लगाय-लगाना, आमा-आम, नई-नहीं, भरय-भरना
- बर न बिहाव, छट्ठी बर धान कुटाय। -- शादी न ब्याह, छठी के लिए धान कुटाना।
- व्याख्या : शादी तो हुई नहीं है, बच्चे की छठी कराने के लिए धान कुटाने की तैयारी हो गई।
- प्रयोग अनुकूलता : जब कोई व्यक्ति किसी कार्य को समय से पहले प्रारंभ कर देता है, तब यह कहावत कही जाती है।
- शब्दार्थ : छट्ठी-बच्चे के जनम से छठे दिन का उत्सव, बिहाव-विवाह, बर-के कारण, कुटाय-कुटाना
- बरदी बर पेरा। -- झुंड के लिए पैरा।
- व्याख्या : मवेशियों के झुंड के लिए पैरा भी पर्याप्त नहीं हो पाता।
- प्रयोग अनुकूलता : सामान्य रूप से पर्याप्त मात्रा में उपलब्ध वस्तु के भी जब बहुत से ग्राहक या चाहने वाले हों, तब यह कहावत कही जाती है।
- शब्दार्थ : बरदी-गाय, बैल व भैसों का झुंड,बर-के लिए, पेरा-पैरा
- बरा के तेला बरी माँ निकारे। -- बड़े के तेल को बड़ी में निकालना।
- व्याख्या : बड़े में अधिक तेल लग जाने से उसकी पूर्ति बड़ी के लिए कम तेल खर्च करके बड़ी से करना।
- प्रयोग अनुकूलता : किसी कार्य में हुए नुकसान की पूर्ति दूसरे कार्य से करने पर यह कहावत प्रयुक्त होती है।
- शब्दार्थ : बरा-बड़ा, बरी-बड़ी, निकारे-निकालना
- बरी बरंदर कौन करै, मोर डिड़वे नीक। -- बड़ी बनाने का कार्य कौन करे, मेरा क्वाँरा रहना ही अच्छा।
- व्याख्या : बड़ी बनाने का कार्य बंधन वाला, समय खाऊ और कष्टसाध्य है, जिसे स्त्रियाँ ही कर पाती हैं। बड़ी बनाना फक्कड़ आदमी के बूते के बाहर है।
- प्रयोग अनुकूलता : कुंवारा व्यक्ति अपना कार्य जैसे-तैसे करके संपन्न करता है, उससे कोई बढ़िया पकवान बनाने आदि की बातें करता है, तब वह इस कहावत का प्रयोग करता है।
- शब्दार्थ : बरी-बड़ी, करै-करना, मोर-मेरा, डिड़वे-कुआंरा, नीक-अच्छा
- बरी पूट नून नइ डारै। -- प्रत्येक बड़ी के लिए अलग-अलग नमक नहीं डाला जाता।
- व्याख्या : सभी चीजों के लिए एक प्रकार का ही नमक उपयोग में लाया जाता है।
- प्रयोग अनुकूलता : एक ही काम केलिए भिन्न-भिन्न तरह से अलग-अलग खर्च नहीं किया जाता।
- शब्दार्थ : बरी-बड़ी, नून-नमक, नइ-नहीं, डारै-डालना
- बहुत मीठ माँ कीरा परै। -- बहुत मीठे में कीड़े पड़ते हैं।
- व्याख्या : अत्यंत घनिष्ठता होने पर विरोध की संभावना होती है।
- प्रयोग अनुकूलता : ज्यादा नजदीकियों के होने पर झगड़ा हो जाने की स्थिति में यह कहावत उपयोग में लायी जाती है।
- शब्दार्थ : कीरा-कीड़ा, परै-पड़ना
- बहेरा कस भूत किंजरत हे। -- बहेरा के भूत के समान घूमता है।
- व्याख्या : बेराजगार व्यक्ति घूमता ही रहता है।
- प्रयोग अनुकूलता : जब कोई व्यक्ति समय काटने के लिए इधर-उधर भटका करता है, तब ऐसे व्यक्ति के लिए यहकहावत कही जाती है।
- शब्दार्थ : बहेरा-एक प्रकार का वृक्ष, कस-जैसे, किंजरत-घूमना
- बाँटे भाई परोसी। -- बँटवारा लिया भाई पड़ोसी।
- व्याख्या : बँटवारा लिया हुआ भाई, जो अलग रहने लगता है, पड़ोसी के समान ही हो जाता है।
- प्रयोग अनुकूलता : एक बार संबंध-विच्छेद हो जाने पर फिर व्यक्ति से कोई मतलब नहीं रह जाता, जिससे एक भाई दूसरे भाई की मदद नहीं करता। कुछ इन्हीं परिस्थितियों में यह कहावत कही जाती है।
- शब्दार्थ : परोसी-पड़ोसी
- बाँध लीस झोरी, त का बाँभन का कोरी। -- जब झोली पकड़ ली, तब क्या ब्राह्मण और क्या कोली।
- व्याख्या : जब बेशर्मी का काम कर लिया, तो शर्म क्या? भीख माँगने के लिए जब झोली पकड़ ली, तब ब्राह्मण और कोली अर्थात् ऊँची-नीची जाति का भेद-भाव क्या माँगने वाला आखिर माँगने वाला है, अब वह चाहे किसी से भी माँगे।
- प्रयोग अनुकूलता : किसी भी कुछ भी मांगते रहने वाले के लिए यह कहावत कही जाती है।
- शब्दार्थ : बांध लीस-बांध लिया, झोरी-झोली, बांभन-ब्राम्हण, कोरी-कोली
- बाँह बल, अउ टँगिया चोख। -- भुजा में शक्ति और पैनी कुल्हाड़ी।
- व्याख्या : यदि शरीर में शक्ति हो तथा कुल्हाड़ी पैनी हो, तो पेट की चिंता नहीं होती, क्योंकि तब लकड़ी काटकर जीवकोपार्जन किया जा सकता है।
- प्रयोग अनुकूलता : हृष्ट-पुष्ट व्यक्तियों को चिंतित न होने की शिक्षा देने के लिए यह कहावत कही जाती है।
- शब्दार्थ : अउ-और, टंगिया-कुल्हाड़ी
- बाढ़ही नहिं त रक्खयाही तो। -- बढ़ेगा नहीं, तो कुम्हलाएगा अवश्य।
- व्याख्या : पौधा यदि बढ़ेगा नहीं, तो उस के कुम्हलाने से मालूम हो जाएगा कि वह बेकार है। काम करने या न करने वालों की परीक्षा काम करते समय हो जाती है।
- प्रयोग अनुकूलता : किसी व्यक्ति की किसी कार्य के प्रति रूचि-अरूचि होने या न होने के संबंध में यह कहावत कही जाती है।
- शब्दार्थ : बाढ़ही-बढ़ना, नहिं-नहीं, रक्खयाही-कुम्हलाना
- बाढ़े बर बाढ़े, फेरा अंडा असन ठाढ़े। -- बढ़ तो गया है, परंतु अंडी के पेड़ के समान खड़ा है।
- व्याख्या : बच्चा बढ़ तो गया है, परंतु उसमें बुद्धि नहीं है। अंडी के पेड़ में न तो मजबूती होती है और न उससे छाया मिलती है।
- प्रयोग अनुकूलता : बड़े होकर भी जो व्यक्ति अपने परिवार वालों की कोई सहायता नहीं कर पाता, उसके लिए यह कहावत कही जाती है।
- शब्दार्थ : बाढ़े-बढ़ना, असन-जैसा, ठाढ़े-खड़ा रहना
- बात करै बतासा खाय, चटकन परै त लडुवा खाय। -- बात कर के बताशा खाता है, थप्पड़ पड़ने पर लड्डू खाता है।
- व्याख्या : मार पड़ती है तभी काम करता है।
- प्रयोग अनुकूलता : जो व्यक्ति मार पड़ते ही कोई काम करता है तथा जिसे बातों का कोई असर नहीं होता, उस के लिए यह कहावत कही जाती है।
- शब्दार्थ : बतासा-बताशा, खाय-खाना, चटकन-मार, परै-पड़ना, लडुवा-लड्डू
- बात के लबालब, काम के चोर, खइन बहुत, उपजाइन थोर। -- कामचोर बड़ी-बड़ी बातें करता है, खाता बहुत है, और पैदा कम करता है।
- व्याख्या : कामचोर व्यक्ति काम नहीं करता, केवल बातों का धनी है।
- प्रयोग अनुकूलता : कामचोर व्यक्ति के चरित्र पर टिप्पणी करने के लिए यह कहावत प्रयुक्त होती है।
- शब्दार्थ : खइन-खाना, उपजाइन-उपजाना, थोर-कम
- बात बर चोला, हगे बर कोला। -- बातें करने के लिए शरीर, मल त्याग करने के लिए बाड़ी।
- व्याख्या : जिस व्यक्ति का प्रधान कार्य बातें करना, खाना तथा मल विसर्जन हो, वह अन्य कार्य नहीं करता। वह अपना जीवन बैठे-बैठे गप्पें मारने में व्यतीत करता है।
- प्रयोग अनुकूलता : ऐसे अकर्मण्य लोगों के लिए यह कहावत कही जाती है, जो घर का कोई काम नहीं करते।
- शब्दार्थ : बार-के कारण, चोला-शरीर, हगे-हगना, कोला-बाड़ी
- बात बर मैं, बल बर मोर कका। -- बात करने के लिए मैं, बल करने के लिए मेरा चाचा।
- व्याख्या : जिसमें शारीरिक न हो तथा जो बात करने में होशियार हो।
- प्रयोग अनुकूलता : जो लड़ाई-झगड़े की बातें तो करता है, परंतु उसमें शक्ति नहीं होती और जब लड़ाई-झगड़ा हो जाता है, तब वह भाग खड़ा होता है, वह अपनी कमजोरी बताने के लिए इस कहावत का प्रयोग करता है।
- शब्दार्थ : मोर-मेरा, बर-के कारण
अपन करनी करै, दूसर ला दोस दै। -- स्वयं करतूत करना तथा दूसरे पर दोष मढ़ना।
- व्याख्या : व्यक्ति कार्य तो स्वयं करता है, जब परिणाम पक्ष में नहीं होते तो दूसरों पर दोष डालने की कोशिश की जाती है।
- प्रयोग अनुकूलता : ऐसे व्यक्ति जो स्वयं गलत काम कर के उस के परिणाम का भागी दूसरों को बताते हैं, उन के लिए यह लोकोक्ति प्रयुक्त होती है।
- शब्दार्थ : अपन-अपना, करनी-कार्य, दूसर-दूसरा, ला-को दोस-दोष, दै-देना
- अपन कुरिया घी के पुरिया। -- अपना घर घी की पुड़िया के समान होता है।
- व्याख्या : शारीरिक शक्ति की अभिवृद्धि के लिए घी का विशेष महत्व है। घी मूल्यवान होने से हर किसी के लिए सहज ही सुलभ नहीं होता।
- प्रयोग अनुकूलता : स्वयं का घर भी घी के समान मूल्यवान होता है, क्योंक्ति अपने घर में व्यक्ति स्वतंत्रतापूर्वक रह सकता है। अपनी सामान्य वस्तु भी अपने लिए उपयोगी होने के कारण घी के समान मूल्यवान होती है।
- शब्दार्थ : अपन-अपना, कुरिया-कमरा, पुरिया-पुड़िया
- अपन फूला ला देखे नहिं, दूसर के टेटरा ला हाँसै। -- अपना फूला न देखकर, दूसरों की टेंट को हँसना।
- व्याख्या : स्वयं का दोष न देखकर, दूसरों की त्रुटि पर हँसना।
- प्रयोग अनुकूलता : अपनी आँख का ‘फूला’ न देखकर दूसरे की टेंट पर हँसना उसी प्रकार है, जिस प्रकार अपने दोष को न देखकर दूसरे के उससे कम दोष पर हँसना।
- शब्दार्थ : फूला-आँख पर उभरा हुआ सफेद धब्बा, जो चोट लगने से, चेचक से या आँख की एक बीमारी से पैदा हो जाता है, दूसर-दूसरा, ला-को, टेटर-आँख पर का उभरा हुआ माँस-पिंड, हांसै-हंसना
- अपन मराय, काला बताय। -- अपनी मराई, किसे बताएं।
- व्याख्या : अपनी संभोग-संबंधी बातें किसी दूसरे को कैसे बताए। जिस व्यक्ति ने किसी से अवांछनीय मैथुन-कार्य कराया हो, वह अपने इस कार्य को किसे बताए। इसे बताने पर उसकी निंदा होगी।
- प्रयोग अनुकूलता : जब अपने द्वारा कोई हानि का काम हो गया हो, तब उस हानि के संबंध में पूछे जाने पर हानि उठाने वाले के द्वारा यह कहावत कही जाती है।
- शब्दार्थ : अपन-अपना, मराय-संभोग कार्य, किसी कार्य में पिस जाना, काला-किसे, बताय-बताना।
- अपन मरे बिन सरग नई दिखै। -- अपने मरे बिना स्वर्ग दिखाई नहीं देता।
- व्याख्या : अपना काम स्वयं करने से ही पूर्ण होता है।
- प्रयोग अनुकूलता : जब कोई व्यक्ति अपना कार्य किसी अन्य को करने के लिए कहता है और वह व्यक्ति उसे नहीं कर पाता, तब वह काम उसे स्वयं हाथ में लेकर पूरा करना पड़ता है, ऐसी स्थिति में यह कहावत कही जाती है।
- शब्दार्थ : अपन-अपना, मरे-मरना, बिन-बिना, सरग-स्वर्ग, नई-नहीं, दिखै-दिखे
- अपन ला तोपै, दूसर के ला उघारे। -- अपना छिपाना और दूसरों का प्रकट करना।
- व्याख्या : कोई व्यक्ति अपनी किसी खराबी को छिपा लेता है तथा दूसरे की वैसे ही खराबी को प्रकट कर देता है।
- प्रयोग अनुकूलता : स्वयं की काली-करतूतों को ढकने के लिए जब कोई व्यक्ति दूसरों की बुराइयों को प्रकट करने लगता है, तब उस व्यक्ति के लिए यह कहावत कही जाती है।
- शब्दार्थ : अपन-अपना, तोपै-ढकना, दूसर-दूसरा, उघारे-उघाड़ना
- अपन हाथ, जगन्नाथ। -- अपना हाथ, जगन्नाथ।
- व्याख्या : यदि अपने हाथ से किसी वस्तु को लेना हो तो जितनी चाहो ले लो, ईश्वर से उसे माँगने की क्या आवश्यकता।
- प्रयोग अनुकूलता : किसी वस्तु को चाहने वाला व्यक्ति यदि उसे दूसरे से न पाकर स्वयं ही ले ले, तो वह उसे मन माफिक ले लेता है। इच्छित वस्तु मनचाही मात्रा में मिलने पर यह कहावत कही जाती है।
- शब्दार्थ : अपन-अपना
- अम्मठ ले निकल के चुर्रूक माँ पड़ गे। -- खट्टे से निकलकर अधिक खट्टे में पड़ गया।
- व्याख्या : जब कोई व्यक्ति किसी सामान्य मुसीबत से मुक्त होकर बड़ी मुसीबत में फँस जाए तो उसका ऐसा फँसना खट्टे से निकलकर अधिक खट्टे में फँसने के समान है।
- प्रयोग अनुकूलता : किसी एक छोटी सी मुसीबत से निकलकर बड़ी मुसीबत में पड़ जाने वाले व्यक्ति के परिपेक्ष्य में यह बात कही जाती है।
- शब्दार्थ : अम्मठ -खट्टा, चुरूर्क-अधिक खट्टा
- अरोसी सीख परोसी घर सीख जेठानी। -- बाहर अड़ोस-पड़ोस से तथा घर में जेठानी से शीखना।
- व्याख्या : ऐसी स्त्री जो पड़ोस की बातें मानती है तथा घर में जेठानी की बातों को सुनती है, सही मार्ग पर नहीं चलती। वस्तुतः उसे घर में सास की बातों को सुनना चाहिए।
- प्रयोग अनुकूलता : अपने शुभचिंतकों की बातों को न मानकर औरों के बहकावे में आकर तदनुकूल करने वालों के लिए यह कहावत कही जाती है।
- शब्दार्थ : अरोसी-अड़ोस, सीख-सीखना, परोसी-पड़ोस, ले-उनसे
- अलकर के घाव, अउ कुराससुर के बैदइ। -- कुठौर में फोड़ा और ज्येष्ठ का इलाज।
- व्याख्या : किसी लज्जाजनक बात को किसी के आगे प्रकट न किया जा सके, जिससे कष्ट सहना पड़ता है।
- प्रयोग अनुकूलता : छोटे भाई की पत्नी ज्येष्ठ से पर्दा करती है। ज्येष्ठ वैद्य है, जिन्हें गुप्त स्थान का फोड़ा इलाज करने के लिए कैसे दिखाया जा कसता है।
- शब्दार्थ : अलकर-कुठौर, कुराससुर-ज्येष्ठ
- अलकर माँ परिस भालू, त ज्ञान बतावै कोल्हू। -- भालू मुसीबत में पड़ गया, तो कोल्हू ने उसे ज्ञान बताया।
- व्याख्या : समर्थ व्यक्ति के मुसीबत में पड़ते ही असमर्थ लोग सलाह देना प्रारंभ कर देते हैं।
- प्रयोग अनुकूलता : मुसीबत में पड़े व्यक्ति की मजाक छोटे-छोटे लोग भी उड़ाते हैं। ऐसे व्यक्ति के प्रति छोटों को मजाक करते देखकर यह कहावत कही जाती है।
- शब्दार्थ : अलकर-मुसीबत
- आँख रोवै मन गदकत जाय, डोला चढ़ के चमकत जाय। -- आँखों से रोती है, परंतु मन में प्रसन्न होती है। डोले में चढ़कर चमकते हुए जाती है।
- व्याख्या : मन में कुछ और, बाहर प्रदर्शन कुछ और।
- प्रयोग अनुकूलता : ऐसी लड़की जो अपनी शादी से अत्याधिक प्रसन्न रहती है, केवल दिखावे के लिए रोती है।
- शब्दार्थ : गदकत-प्रसन्नतापूर्वक
- आँखी कान के ठिकाना नइ ए, बंदन के हरक्कत। -- आँख-कान ठीक न होने पर बंदन लगाना, उसका दुरूपयोग करना है।
- व्याख्या : बदशकल स्त्री यदि खूब सजे भी तो उससे वस्तु की बरबादी ही होती है, क्योंकि इससे उसकी सुंदरता बढ़ने के बजाय घट जाती है।
- प्रयोग अनुकूलता : जो लोग किसी काम को करने में समर्थ नहीं होते, परंतु वस्तुओं की बरबादी करते हैं, उन के लिए यह कहावत कही जाती है।
- शब्दार्थ : हरकित-नुकसान, बंदन-लाल रंग का एक पदार्थ (सिंदूर), जिसे विवाहित स्त्रियाँ अपनी माँग में लगाती हैं।
- आँखी दिखै न कान, भूँज-भूँज खाय आन। -- न तो आँखों से दिखलाई पड़ता है और न ही कानों से सुनाई पड़ता है, जिससे दूसरे लोग भून-भून कर खाते हैं।
- व्याख्या : ऐसा व्यक्ति जो अँधा और बहरा हो, उसके चने को यदि की उसके सामने ही भून कर खा जाए, तो भी वह न तो उसे देख सकता है और नही फूटने की आवाज सुन सकता है।
- प्रयोग अनुकूलता : किसी व्यक्ति की मौजूदगी में दूसरे व्यक्ति उसकी चीज का दुरूपयोग करें और वह उसे न जान पाए, तो वह आँख-कान होते हुए भी अंधों-बहरों के समान है।
- शब्दार्थ : आंखी-आंख, दिखै-दिखना, भूंज-भूनना, खाय-खाना
- आँखी देख मानुस करै, अउ करम ला दोस दै। -- अपनी आँखों से देखकर पति बनाया और कर्म को दोष देती है।
- व्याख्या : सामान्यतः कुंवारी लड़की को एक बार होने वाले पति को दिखाकर उसकी राय ली जाती है, लड़की के हां कहने पर ही रिशता तय किया जाता है।
- प्रयोग अनुकूलता : स्वयं देखभाल कर कोई कार्य करने और गलत परिणाम निकलने पर कर्म को दोष देने वालों के लिए यह कहावत कही जाती है।
- शब्दार्थ : आंखी-आंख, मानुस-पति, अउ-और, करम-कर्म, दोस-दोष, दै-देना
- आँखी फूटिस, पीरा हटिस। -- आँख फूटी, पीड़ा दूर हुई।
- व्याख्या : यदि किसी की आँख में कष्ट हो, तो वह उससे पीड़ित रहता है, परंतु आँख के नष्ट हो जाने पर उससे होने वाला कष्ट भी दूर हो जाता है।
- प्रयोग अनुकूलता : विपत्ति का कारण दूर होने पर विपत्ति से भी छुट्टी मिल जाती है।
- शब्दार्थ : आंखी-आंख, फूटिस-फूटना, पीरा-पीड़ा, हटिस-हटना
- आए नाग पूजै नहि, भिंभोरा पूजे जाय। -- आए हुए नाग की पूजा न कर के उसके बिल की पूजा करने के लिए जाता है।
- व्याख्या : घर में आए हुए नाग की पूजा न करके उस के बिल में नाग न हो, तब पूजा का कोई अर्थ नहीं रह जाता।
- प्रयोग अनुकूलता : कोई व्यक्ति उपलब्ध विद्वान का आदर न करके किसी अन्य व्यक्ति की प्रशंसा करता है, तब यह कहावत कही जाती है।
- शब्दार्थ : भिंभोरा-साँप का बिल, पूजे-पूजना
- आग जानै, लोहार जानै धुकना के लुवाठ जानै। -- आग जाने लुहार जाने, धौंकनी का ठेंगा जाने।
- व्याख्या : यदि किसी लोहे के औजार को बनाते समय कोई गलती हो जाती है, तो उसका दोषी या तो लुहार है या आग। लुहार इसलिए कि उसने धौकनी अधिक क्यों नहीं चलाई और आग इसलिए कि उस के अधिक जलने से औजार बिगड़ गया। धौंकनी तो दोनों तरफ से निर्दोष है।
- प्रयोग अनुकूलता : कुछ लोगो द्वारा मिलकर किया हुआ कार्य बिगड़ जाता है तब उनमें से अपने को निर्दोष वाला व्यक्ति इस कहावत का प्रयोग करता है।
- शब्दार्थ : लोहार-लुहार, धुकना-धौंकनी, लुवाठ-ठेंगा
- आगी लगै तोर पोथी माँ, जीव लगै मोर रोटी माँ। -- तुम्हारी पोथी में आग लगे, मेरा जी तो रोटी में लगा है।
- व्याख्या : भूख के सामने पढ़ाई नहीं सूझती।
- प्रयोग अनुकूलता : भूख के समय कोई पढ़ने-लिखने की बात करता है, तब यह कहावत कही जाती है। ज्ञान-विज्ञान की बातें खाली पेट नहीं होती।
- शब्दार्थ : आगी-आग, लगै-लगना, तोर-तुम्हारा, पोथी-पढ़ने की सामग्री जीव-जी, मोर-मेरा
- आगी खाही, तउन अँगरा हगबे करही। -- जो आग खाएगा, वह अंगार हगेगा ही।
- व्याख्या : जो जैसा भोजन करेगा, उसे वैसा ही मल त्याग करना पड़ेगा। आग खाने वाले को अंगारे का ही मल त्याग करना पड़ेगा।
- प्रयोग अनुकूलता : हर कार्य की क्रिया-प्रतिक्रिया होती है। यदि कोई व्यक्ति असामान्य कार्य करेगा, तो उसे असामान्य ही परिणाम मिलेंगे। इस कहावत को ‘जैसे करनी, वैसी भरनी’ के समान समझा जा सकता है।
- शब्दार्थ : अँगरा-अंगार, खाही-खाना, तउन-वह, हगबे-मल विसर्जित करना, करही-करना
बात-बात माँ बात बाढ़ै, तेल-फूल माँ लइका बाढ़ै। -- बातों ही बातों में बात बढ़ती है तथा तेल आदि से बच्चे बढ़ते हैं।
- व्याख्या : बातों ही बातों में कोई बात इतनी बढ़ जाती है कि वह झगड़े का रूप धारण कर लेती है। बच्चा तेल लगाने, मालिश करने आदि से जल्दी-जल्दी बढ़ता है।
- प्रयोग अनुकूलता : जब झगड़े का कोई आधार न हो, वह केवल बात के बढ़ने से ही हो जाए, तब यह कहावत कही जाती है।
- शब्दार्थ : लइका-बच्चा, बाढ़ै-बढ़ना
- बात वाले ला बात लगै ऊँच घर ल पवन लागै। -- बात वाले को ही बात लगती है, ऊँचे घर को हवा का सामना करना पड़ता है।
- व्याख्या : बात का असर ऐसे लोगों पर होता है, जिन्हें बात चुभ जाती है। ऊँचे घर में ऊँचाई के कारण हवा अधिक आती है। हवा के आघात से छोटे-छोटे घर बच जाते हैं, उसी प्रकार बात का असर भी सामान्य लोगों पर नहीं पड़ता।
- प्रयोग अनुकूलता : जो किसी बात के पीछे बरबाद हो जाते हैं, ऐसे लोगों के लिए यह कहावत कही जाती है।
- शब्दार्थ : लगै-लगना, ऊंच-ऊंचा, ल-को
- बात सुने ले गदहा ल जर आथे। -- बात सुनकर गदहे को भी बुखार हो जाता है।
- व्याख्या : जो व्यक्ति कड़वी बात कहता है, उसकी बातों का असर प्रत्येक व्यक्ति पर होता है।
- प्रयोग अनुकूलता : कड़वी बात का प्रभाव बताने के लिए यह कहावत कही जाती है।
- शब्दार्थ : जर-बुखार, आथे-आना
- बादर बेरा दिखै नहिं, कुहरी के घर लिपाय नहिं। -- बदली के कारण समय का अंदाज नहीं होता, जिससे आलसी स्त्री घर की लिपाई नहीं कर पाती।
- व्याख्या : आलसी स्त्रियों को बदली छा जाने से समय का अंदाज न होने से काम न करने का बहाना मिल जाता है।
- प्रयोग अनुकूलता : आलसी स्त्रियों को बहाना करते देख यह कहावत कही जाती है।
- शब्दार्थ : बादर-बादल, बेरा-वक्त, दिखै-दिखना, नहिं-नहीं, कुहरी-बदली, लिपाय-लीपना
- बाप के बानी पठान के घोड़ा, बहुत नहिं त थोड़ा-थोड़ा। -- बाप की बानी का और पठान के घोड़े का ज्यादा नहीं तो थोड़ा असर अगामी पीढ़ी पर होता है।
- व्याख्या : बाप के स्वभाव, गुण आदि का असर पुत्र में और मुसलमान के घोड़े का असर उसके बच्चे मे ज्यादा या कम अवश्य पड़ता है।
- प्रयोग अनुकूलता : किसी पुत्र में पिता के गुण-दोष मिलने पर इस कहावत का प्रयोग होता है।
- शब्दार्थ : बानी-वाणी, नहिं-नहीं
- बाप के भरोसा, मार ले परोसा। -- बाप के भरोसे पेट भर खाना खा लो।
- व्याख्या : बाप की कमाई खाना और खुद कुछ काम नहीं करना।
- प्रयोग अनुकूलता : ऐसे लड़के जो बाप की कमाई से गुलछर्रे उड़ाते हैं, स्वयं कोई काम नहीं करते, उनके अधिक खर्च को देखकर यह कहावत कही जाती है।
- शब्दार्थ : परोसा-पेट भर खाना
- बाप खाय घी रोटी, बेटा ल कहै सूँघ ले। -- बाप घी-रोटी, खाता है और बेटे को सूँघ लेने के लिए कहता है।
- व्याख्या : स्वार्थी व्यक्ति केवल अपनी चिंता करता है, दूसरों की नहीं।
- प्रयोग अनुकूलता : जो व्यक्ति अपने परिवार वालों की चिंता न करके स्वयं की चिंता करते हैं, वे अपने लिए बढ़िया जीवन-यापन की व्यवस्था करते हैं। ऐसे व्यक्तियों की स्वार्थपरता के लिए यह कहावत कही जाती है।
- शब्दार्थ : खाय-खाना, कहै-कहना, सूंघ-सूंघना
- बाप देखा नइ त पिंडा परा। -- बाप दिखाओ या पिंड-दान कराओ।
- व्याख्या : किसी तीर्थ-स्थान में गए, हुए व्यक्ति को देखकर पंडे यह समझते हैं कि वह पिंडदान कराएगा। पिंडदान के लिए बाध्य किए जाने पर वह अपने बाप के जीवित होने की बात कहता है, तो पंडे उससे बाप दिखाने के लिए कहते हैं।
- प्रयोग अनुकूलता : जब कोई व्यक्ति किसी कार्य को करने के लिए बहाना करता है और अपनी बात की सच्चाई के लिए प्रमाण नहीं दिखाता, तब उस के बहाने को समझकर यह कहावत कही जाती है।
- शब्दार्थ : पिंड-पिंड, परा-कराना, नइ-नहीं तो
- बाप बेटा सौकिन, कमरा के उरमाल। -- बाप-बेटे शौकीन, कंबल का रूमाल।
- व्याख्या : बेमेल शौक।
- प्रयोग अनुकूलता : जब कोई व्यक्ति अपने श्रृंगार के लिए किसी बेमेल चीज का प्रयोग कर बैठता है, तब उस के प्रति इस कहावत का प्रयोग होता है।
- शब्दार्थ : सौकिन-शौकीन, उरमाल-रूमाल
- बाप मारिस मेंढ़की, बेटा तीरंदाज। -- बाप ने मेंढक मारी, बेटा तीरंदाज हो गया।
- व्याख्या : दूसरों के कार्य से अपने को बड़ा बताना।
- प्रयोग अनुकूलता : जब कोई व्यक्ति किसी दूसरे के किए हुए छोटे-मोटे कार्य के भरोसे अपने को बड़ा बतलाता है, तब उसकी ऊँची बातों को सुनकर उसे लज्जित करने के लिए यह कहावत कही जती है।
- शब्दार्थ : मारिस-मारना, मेंढकी-मेंढक
- बाप ला मारै, बेटा ला साखी दै। -- बाप को मारे, बेटे को साक्षी दे।
- व्याख्या : किसी सामर्थ्यवान व्यक्ति के भय से बाप के पीटे जाने पर भी उसका लड़का चुप रहता है।
- प्रयोग अनुकूलता : जब खुद को हानि होने पर भी कोई व्यक्ति अपनी बात किसी भय के कारण बता न सके, तब यह कहावत कही जाती है।
- शब्दार्थ : ला-को, मारै-मारना, साखी-साक्षी
- बाप ले बेटा सवाई -- बाप से बेटा सवा गुना।
- व्याख्या : बाप जितना कुछ गलत करता है, उससे अधिक उसका लड़का करता है।
- प्रयोग अनुकूलता : जब किसी लड़के में उसके बाप से अधिक अवगुण मिले, तब उसकी निंदा करते हुए यह कहावत कही जाती है।
- शब्दार्थ : सवाई-सवा गुना, ले-से
- बाबू ले बहुरिया गरू। -- लड़के से बहू वजनी।
- व्याख्या : जितना खर्च लड़के के लिए करना पड़ता है, उससे अधिक खर्च बहू के लिए करना पड़ रहा है।
- प्रयोग अनुकूलता : किसी एक व्यक्ति के भरण-पोषण की चिंता कम होती है, परंतु उस के पीछे कोई और व्यक्ति आ जाए, तो खर्च बढ़ जाता है। ऐसे अधिक खर्च से परेशान होकर यह कहावत कही जाती है।
- शब्दार्थ : बहुरिया-बहू, गुरू-वजनी
- बारा कुँवा माँ बाँस नावै। -- बारह कुओं में बाँस डालना।
- व्याख्या : बारह कुओं में बाँस डालकर पानी की थाह लेता है। यदि कुएँ की थाह नहीं मिली, तो दूसरे को देखता है। इस प्रकार क्रमशः बढ़ते जाता है, परंतु थाह नहीं पाता।
- प्रयोग अनुकूलता : जो व्यक्ति कई प्रकार के कार्य करता है, परंतु कभी भी सफल नहीं होता, उसके लिए यह कहावत कही जाती है।
- शब्दार्थ : बारा-बारह, कुंवा-कुंआ, नावै-डालना
- बारह बरीस के छोकरी अउ नौ महीना के पेट। -- बारह वर्ष की लड़की औ नौ महीने का गर्भ।
- व्याख्या : बारह वर्ष की लड़की सामान्यतः कम ऊँची होती है। यदि उसका पेट नौ महीने के गर्भ-जैसा बढ़ जाए, तो वह बेडौल दिखाई पड़ती है।
- प्रयोग अनुकूलता : जब कोई छोटी अवस्था का व्यक्ति अपने मोटापे के कारण बेढंगा दिखता है, तब व्यंग्य के रूप में इस कहावत का प्रयोग होता है।
- शब्दार्थ : बरीस-वर्ष, छोकरी-लड़की, अउ-और
- बारा बाँभन तेरा चूल्हा। -- बारह ब्राह्मण, तेरह चूल्हे।
- व्याख्या : ब्राह्मणों में छुआछूत की पराकाष्ठा।
- प्रयोग अनुकूलता : ब्राह्मणों में यह पाया जाता है कि वे अपनी ही जाति के लोगों के साथ इतना अधिक भेदभाव और छूआछूत मानते हैं कि जितने ब्राह्मण होते हैं, उससे अधिक चूल्हे जलाए जाते हैं,ताकि एक का स्पर्श किया हुआ भोजन दूसरे को न मिले।
- शब्दार्थ : बारा-बारह, बांभन-ब्राम्हण
- बासी के नून नइ हिटै। -- बासी का नमक नहीं निकलता।
- व्याख्या : बासी खाने में नामक डालने पर वह उसमें घुल जाता है, जिससे उसे पुनः वापस नहीं लिया जा सकता।
- प्रयोग अनुकूलता : किसी की प्रतिष्ठा चली जाए, तो वह वापस नहीं आ सकती है, कुछ ऐसे ही परिपेक्ष्य में यह कहावत कही जाती है।
- शब्दार्थ : नून-नमक, नइ-नहीं, हिटै-निकलना, बासी-एक प्रकार का व्यंजन जिसे रात के पक चांवल में पानी डालकर बनाया जाता है
- बिगरे बात के तना-नना। -- बिगड़ी बात इधर-उधर हो जाती है।
- व्याख्या : जब कोई काम बिगड़ना होता है, तब उसमें इधर-उधर से अनेक व्यवधान आते हैं।
- प्रयोग अनुकूलता : एक तरफ काम को बिगड़ते देखकर तथा दूसरी तरफ बाधाओं को पड़ते हुए देखकर यह कहावत कही जाती है।
- शब्दार्थ : बिगरे-बिगड़ी, तना-नना-इधर-उधर
- बिन देखे चोर भाई बरोबर। -- बिना पैसा वाला नाव पर पहले चढ़ता है।
- व्याख्या : चोर को जब तक चोरी करते हुए पकड़ न लिया जाए, तब तक वह भाई के समान ही होता है।
- प्रयोग अनुकूलता : भले ही आप जानते हों कि उसने चोरी किया है, पर जब तक उसे चोरी करते रंगे हाथों पकड़ न लें, तब तक आरोप नहीं लगा सकते, कुछ ऐसे ही परिपेक्ष्य में यह कहावत कही जाती है।
- शब्दार्थ : बिना-बिना, देखे-देखना, बरोबर-बराबर
- बिन पैसा के आगू डोंगा चढ़े। -- बिना पैसा वाला नाव पर पहले चढ़ता है।
- व्याख्या : जिस व्यक्ति के पास पैसे नहीं है, वह किसी की परवाह किए बिना नाव को तैयार देखकर उसमें बैठ जाता है। नाव चलने के बाद पैसा न मिलने पर भी नाविका न तो उसे उतार ही सकेगा और न नाव वापस लाएगा।
- प्रयोग अनुकूलता : अनाधिकारी व्यक्ति की किसी कार्य को करने की उतावली को देखकर यह कहावत कही जाती है।
- शब्दार्थ : बिन-बिना, आगू-आगे, डोंगा-नांव, चढ़े-चढ़ना
बिन रोए दाइ दूध नइ पियावै। -- बच्चे के रोए बिना माँ दूध नहीं पिलाती।
- व्याख्या : बिना माँगे कोई वस्तु नहीं मिलती।
- प्रयोग अनुकूलता : आवश्यकता की कोई वस्तु किसी से माँगने पर ही मिलती है। यदि कोई व्यक्ति अपनी आवश्यकता की वस्तु किसी से न माँगे और उसे पाने की इच्छा व्यक्त करे तो यह कहावत कही जाती है।
- शब्दार्थ : बिन-बिना, रोए-रोना, दाइ-मां, नइ-नई, पियावै-पिलाना
- बिना करम काम नइ होय। -- बिना भाग्य के कोई काम नहीं होता।
- व्याख्या : कार्य में किस्मत का हाथ होता ही है।
- प्रयोग अनुकूलता : जब कोई व्यक्ति किसी काम को करता है और वह काम पूरा नहीं हो पाता, तब वह अपनी असमर्थता प्रकट करने के लिए इस कहावत का सहारा लेता है।
- शब्दार्थ : करम-कर्म, नइ-नहीं
- बिया त बिया, नइ त बाँझ पर। -- या तो बच्चे पैदा करो या बाँझ पड़ो।
- व्याख्या : काम करना है तो करो नहीं तो नहीं
- प्रयोग अनुकूलता : जब कोई व्यक्ति किसी को तत्काल काम करने के लिए बाध्य करता है, तब यह कहावत कही जाती है।
- शब्दार्थ : नइ-नहीं
- बियावै तउन ललावै, परोसी लइका खेलावै। -- जो बच्चा पैदा करे वह तरसे और पड़ोसी बच्चा खिलाए।
- व्याख्या : कई बार मेहनत का फल कोई और ले लेता है।
- प्रयोग अनुकूलता : मेहनत कोई और करे तथा फल का उपभोग कोई और करे, तब मेहनत करने वाले को फल के उपभोग से वंचित देखकर यह कहावत कही जाती है।
- शब्दार्थ : बियावै-पैदा करना, तउन-वह, ललावै-ललचाना, परोसी-पड़ोसी, लइका-बच्चा, खेलावै-खेलाना
- बिलइ के भाग माँ सींका टूटै। -- बिल्ली के भाग्य से छींका टूटा।
- व्याख्या : छींके के टूट जाने से उसमें रखा दूध-दही बिखर गया, जिसे पास में बैठी बिल्ली को खाने के लिए मिल गया। वह छींका जैसे बिल्ली के भाग्य से ही टूटा हो।
- प्रयोग अनुकूलता : जब किसी व्यक्ति को अचानक कोई लाभ मिल जाए, तबयह कहावत कही जाती है।
- शब्दार्थ : बिलइ-बिल्ली, सींका-सींक, टूटै-टूटना
- बिलइ के झपटती, सींका के टूटती। -- बिल्ली का झपटना, छींके का टूटना।
- व्याख्या : बिल्ली झपट रही थी कि छींका टूट गया।
- प्रयोग अनुकूलता : संयोग से कोई कार्य बन जाए, तब यह कहावत प्रयुक्त होती है।
- शब्दार्थ : बिलइ-बिल्ली, सींका-सींक
- बिहाव नइ होय, त घुरवा माँ चढ़ के देखे होहि। -- विवाह नहीं किया, तो बरात तो गए हैं।
- व्याख्या : खूद का विवाह नहीं हुआ, तो क्या? दूसरों का विवाह तो कूड़े पर चढ़कर देखा ही होगा।
- प्रयोग अनुकूलता : कोई काम स्वयं नहीं किया, तो क्या हुआ, उसकी जानकारी तो है। कुछ ऐसे ही परिस्थितियों में यह कहावत कही जाती है।
- शब्दार्थ : घुरवा-कूड़ा, बिहाव-विवाह, देखे-देखना, होहि-होना
- बीछी के मंतर नई जानै, साँप के बिला माँ हाँत डारै। -- बिच्छू का मंत्र नहीं जानता और साँप के बिल में हाथ डालता है।
- व्याख्या : बिच्छु का मंत्र नहीं जानने वाला व्यक्ति यदि साँप के बिल में हाथ डालेगा, तो साँप के काटने से मर जाएगा। योग्यता से अधिक काम करने का दुस्साहस करना।
- प्रयोग अनुकूलता : ऐसे व्यक्ति जो अपनी योग्यता से अधिक काम करने की डींग हाँकते हैं, उनके लिए इस कहावत का प्रयोग होता है।
- शब्दार्थ : बीछी-बिच्छू, नई-नहीं, जानै-जानना, बिला-बिल, हांत-हाथ, डारै-डालना
- बीमार सहिन अराम नहीं, कब, जब मरै झन। जुंआ सहिन रोजगार नहीं, कब, जब हारै झन।। -- बीमार-जैसा आराम नहीं, परंतु कब, जब नहीं मरे। जुंआ-जैसा रोजगार नहीं, परंतु कब, जब नहीं हारे।।
- व्याख्या : बीमार पड़ने वाला मरता है और जुंआ खेलने वाला कभी न कभी हारता है।
- प्रयोग अनुकूलता : जुंआ न खेलने के लिए शिक्षा देने वाली यह कहावत नकारात्मक ढंग से कही जाती है, जिससे श्रोता पर स्थायी प्रभाव पड़े।
- शब्दार्थ : सहिन-सहित, अराम-आराम, झन-नहीं
- बूड़ मरै नहकौनी दै। -- डूबकर मरना और पार कराने की मजदूरी देना।
- व्याख्या : एक तो चीज का नुकसान हो जाए और उसके बदले कीमत भी चुकानी पड़े।
- प्रयोग अनुकूलता : सामान भी चला जाए और उसकी कीमत भी देनी पड़े, कुछ ऐसे ही परिस्थितियों में यह कहावत कही जाती है।
- शब्दार्थ : नहकौनी-पार कराने की मजदूरी, बूड़-डूबना, मरै-मरना
- बूढ़ कलेवा, भीति माँ लेवा। -- बूढ़े को पकवान, दीवार को छबाई।
- व्याख्या : बूढ़े व्यक्ति को बढ़िया भोजन मिलता रहे, तो वह ज्यादा दिनों तक जीवित रहेगा तथा कमजोर दीवार की छबाई की जाए, तो वह नहीं गिरेगी।
- प्रयोग अनुकूलता : किसी वस्तु की यदि देखभाल तथा मरम्मत होती रहे, तो वह जल्दी खराब नहीं होती। ऐसे में यह कहावत कही जाती ह।
- शब्दार्थ : बूढ़-बूढ़े, कलेवा-पकवान, भीति-दीवार, लेवा-छबाई
- बूढ़ बिहाव, परोसी सुख। -- बुढ़ापे की शादी, पड़ोसियों का सुख।
- व्याख्या : बूढ़ा व्यक्ति अपनी जवान पत्नी को संतुष्ट नहीं कर पाता, जिससे उसकी पत्नी पर पड़ोसियों की कुदृष्टि पड़ जाती है।
- प्रयोग अनुकूलता : बुढ़ापे में शादी करने के कुपरिणाम को लक्ष्य करके यह कहावत कही जाती है।
- शब्दार्थ : बूढ़-बुढ़ापा, बिहाव-विवाह, परासी-पड़ोसी
- बूढ़ होके बेढ़े जाय। -- बूढ़ा होकर कुकर्म करता है।
- व्याख्या : उम्र का लिहाज न कर गलत कार्य करना।
- प्रयोग अनुकूलता : बूढ़ा हो जाने पर अवस्था के प्रभाव से उसे अनैतिक कार्य नहीं करना चाहिए, परंतु जो व्यक्ति ऐसा करते हैं, उनके लिए यह कहावत कही जाती है।
- शब्दार्थ : बेढ़े जाय-अनैतिक काम करता है
- बूढ़इ आगे, खोटइ नइ गिस। -- बुढ़ापा आ गया, परंतु खोटा कार्य करना नहीं छोड़ा।
- व्याख्या : उम्रदराज होकर टोपी पहनाने वाला कार्य करते रहना।
- प्रयोग अनुकूलता : जब कोई व्यक्ति अपनी अवस्था के प्रतिकूल अनैतिक कार्य करता है, तब यह कहावत कही जाती है।
- शब्दार्थ : बूढ़इ-बुढ़ापा, आगे-आना, खोटइ-खोट, नइ-नहीं, गिस-जाना
- बूढ़त काल के लइका सब के दुलरवा। -- बुढ़ापे का बच्चा सबका प्यारा होता है।
- व्याख्या : यदि किसी व्यक्ति को बुढ़ापे में बच्चा मिले, तो उसके लिए माँ-बाप का प्यार अधिक होता है। घर के अन्य लोगों को भी उसके प्रति विशेष ममत्व होता है।
- प्रयोग अनुकूलता : बहुत दिन बाद जन्म लिए बच्चे के प्रति मोह ज्यादा होता है, ऐसे परिपेक्ष्य में यह कहावत कही जाती है।
- शब्दार्थ : बूढ़त-बूढ़ा, लइका-बच्चा, दुलरवा-प्यारा
- बेजतन के बीरवा बाढ़े जाय, जतन के बीरवा ला कीरा खाय। -- बिना यत्न का पौधा बढ़ जाता है तथा जिस पौधे की सँभाल की जाती है, उसे कीड़ा खाता है।
- व्याख्या : कभी-कभी देखभाल के बावजूद पौधे मर जाते हैं।
- प्रयोग अनुकूलता : जब किसी वस्तु की चिंता की जाए, वह बिगड़ रही हो तथा बिना देखरेख की वस्तु को कुछ नहीं हो रहा हो, तब यह कहावत कही जाती है।
- शब्दार्थ : बेजतन-बिना जतन का, बीरवा-पौधा, बाढ़े-बढ़ना, जाय-जाना, कीरा-कीड़ा, खाय-खाना
- बेटा के नाव सलीम राखे, तभे बम्हनौटी चिन्हागे। -- लड़के का नाम सलीम रखने से ब्राह्मणत्व का पता चल गया।
- व्याख्या : किसी ब्राह्मण ने अपने लड़के का नाम सलीम रखा उसके इस नाम से यह पता लग गया कि ब्राह्मण में ब्राह्मणत्व कितना है।
- प्रयोग अनुकूलता : यदि कोई व्यक्ति अपने को अमीर बतलाता है, तो उस के रहन-सहन आदि के तौर-तरीके से ही मालूम हो जाता है कि वह अमीर है यह नहीं। किसी व्यक्ति की असलियत का पता उस के कार्य-कलापों से हो जाता है।
- शब्दार्थ : बम्हनौटी-ब्राह्मणत्व, तभे-तभी, चिन्हागे-पहचान हो गयी।
- बेटी के दाइ बनिस रानी, बूढ़त काल माँ भरिस पानी। -- लड़की की माँ रानी बन गई, बुढ़ापे में पानी भरना पड़ा।
- व्याख्या : कोई बूढ़ी स्त्री अपनी ऐसी लड़की के कारण, जो घर का सब काम स्वयं कर डालती है, रानी के समान हो गई। लड़की ने उसे रानी के समान सुख दिया। परंतु लड़की के ससुराल चली जाने से तथा घर में बहू आ जाने से उसे बाहर से पानी लाना पड़ा, क्योंकि नई बहू को पानी लाने के लिए बाहर कैसे भेजें।
- प्रयोग अनुकूलता : बहू आने से आराम मिलना चाहिए था, परंतु उल्टे सास का काम बढ़ गय। सास को बहू आने के बाद काम करते देखकर यह कहावत कही जाती है।
- शब्दार्थ : दाइ-मां, बनिस-बनना, बूढ़त-बुढ़ापा, भरिस-भरना
- बेंदर का जाने आदा के स्वाद। -- बंदर क्या जाने अदरक का स्वाद।
- व्याख्या : बंदर को अदरक का स्वाद थोड़े ही पता होता है।
- प्रयोग अनुकूलता : इस कहावत का प्रयोग ऐसे लोगों के लिए किया जाता है, जो किसी वस्तु या व्यक्ति की कद्र न समझता हो।
- शब्दार्थ : आदा-अदरक, बेंदरा-बंदर, जाने-जानना
- बेंदरा जब गिरही डारा धर के। -- बंदर जब गिरेगा, डाल पकड़ कर।
- व्याख्या : बंदर एक डाल से दूसरी डाल पर कूदता है। कूदते समय वह पहली डाल को छोड़ता है और दूसरी डाल को पकड़ लेता है। कूदते समय यदि वह चूक जाए, तब भी उस के हाथ में डाल होती है। इसी प्रकार बनिए के संबंध में कहा जाता है कि वह जब जहाँ-कहीँ भी गिरेगा, कुछ देखकर ही गिरेगा।
- प्रयोग अनुकूलता : जो व्यक्ति अपनी जाति-स्वभाव के अनुसार कार्य करता है, उस के लिए यह कहावत कही जाती है।
- शब्दार्थ : बेंदरा-बंदर, गिरही-गिरना, डारा-डाल, धर-पकड़
बैठन दे, त पीसन दे। -- बैठने दो, तो पीसने दो।
- व्याख्या : थोड़ा सहारा पाकर गले पड़ जाना। यदि किसी स्त्री को बैठने का स्थान मिल जाए, तो वह पीसने का कार्य प्रारंभ कर देती है।
- प्रयोग अनुकूलता : किसी व्यक्ति की उदारता के कारण उसकी किसी वस्तु पर आंशिक अधिकार मिलते ही उस पर अधिकाधिक आधिपत्य जमाने की चेष्टा करने वाले के लिए इस कहावत का प्रयोग किया जाता है।
- शब्दार्थ : पीसन-पीसना, बैठन-बैठना
- बैरी अउ बँधना माँ कसर झन राखै। -- दुश्मन और गाँठ में कमी नहीं करनी चाहिए।
- व्याख्या : दूश्मन को पूरी तरह कुचल डालने तथा गाँठ को अच्छी तरह कसने में कमी नहीं करनी चाहिए, क्योंकि इन्हें जरा सी ढील मिलने में धोखा दे सकते हैं। में कमी नहीं करनी चाहिए, क्योंकि इन्हें जरा सी ढील मिलने में धोखा दे सकते हैं।
- प्रयोग अनुकूलता : दुश्मन को मजा चखा ही दो, कुछ ऐसे ही परिपेक्ष्य में यह कहावत कही जाती है।
- शब्दार्थ : बैरी-दुश्मन, अउ-और, बंधना-बंधन, झन-नहीं, राखै-रखना
- बैरी बर ऊँच पीढ़ा। -- दुश्मन के लिए ऊँचा आसन।
- व्याख्या : जब कोई व्यक्ति किसी के घर पहुँच जाता है, तब उसका सम्मान किया जाता है। यदि दुश्मन आ जाए, तो उसका सम्मान करना अच्छा समझा जाता है।
- प्रयोग अनुकूलता : घर आए व्यक्ति का सम्मान करना भारतीय समाज में आवश्यक माना जाता है। इस नीति को स्पष्ट करने के लिए यह कहावत कही जाती है।
- शब्दार्थ : बैरी-दुश्मन, बर-के कारण, ऊंच-ऊंचा, पीढ़ा-आसन
- बोकरा के जीव छूटै, खवइया ला अलोना। -- बकरे के प्राण गए, खाने वालों के लिए अलोना हो गया।
- व्याख्या : बकरे के प्राण गए और खाने वालों को मजा नहीं आया।
- प्रयोग अनुकूलता : इस कहावत का प्रयोग ऐसे व्यक्तियों के लिए किया जाता है, जिनके लिए कोई आदमी मर मिटे तब भी वे उस के प्रति कृतज्ञ न हों।
- शब्दार्थ : अलोना-नमकरहित, बोकरा-बकरा, छूटै-छूटना, खवइया-खाने वाला।
- बोदरी हाट बर पागा। -- बोदरी बाजार के लिए पगड़ी।
- व्याख्या : पास के गाँव के बाजार के लिए विशेष सजने की क्या आवश्यकता।
- प्रयोग अनुकूलता : थोड़ी दूर जाने के लिए किसी को विशेष तैयारी करते देखकर यह कहावत कही जाती है।
- शब्दार्थ : बोदरी-एक छोटा सा गाँव, पागा-पगड़ी,बर-के कारण
- बोवै कुसियार, त रहै हुसियार। -- गन्ना बोने वाले को सावधान रहना चाहिए।
- व्याख्या : गन्ने की खेती करने वाले को विशेष सर्तक रहना पड़ता है, क्योंकि उसे जितनी आवश्यकता हो, उतना ही पानी देना पड़ता है, न कम न ज्यादा। गेहूँ, चने आदि के लिए ऐसी सावधानी बरतने की आवश्यकता नहीं पड़ती।
- प्रयोग अनुकूलता : गन्ने की खेती के संबंध में यह कहावत कही जाती है।
- शब्दार्थ : बोवै-बोना, कुसियार-गन्ना, हुसियार-होशियार
- बोवे गहूँ, त रहै कहूँ। -- गेहूँ बोए, तो कहीं भी रहे।
- व्याख्या : गेहूँ बोने के बाद उसकी विशेष देख-रेख की आवश्यकता नहीं पड़ती, अतः गेहूँ बोने वाला व्यक्ति निश्चिंत होकर घूम सकता है।
- प्रयोग अनुकूलता : बिना चिंता की अवस्था के लिए यह कहावत उपयोग में लायी जाती है।
- शब्दार्थ : बोवै-बोना, गहूं-गेहूं, रहै-रहना, कहूं-कहीं भी
- बृंदावन माँ साधू बसै, अपने पादै अपने हँसै। -- बृंदावन का साधु, स्वयं अधोवायु छोड़ता है और स्वयं हँसता है।
- व्याख्या : बृंदावन का साधु अपने को सिद्ध पुरूष बताने के लिए पादकर हँसता है, ताकि लोग उसका मतलब पूछें, जिससे वह अपना ज्ञान बताकर लोगों को प्रभावित करे।
- प्रयोग अनुकूलता : अपने को बड़ा सिद्ध करने के लिए जो पेश आते हैं, उनके लिए यहकहावत कही जाती है।
- शब्दार्थ : बृंदावन-वृंदावन, साधू-साधू, बसै-बसना, पादै-पादना, हंसै-हंसना
- भगवान घर देर हे, अंधेर नइ ए। -- भगवान के घर देर है, अंधेर नहीं।
- व्याख्या : ईश्वर अन्यायी व्यक्तियोंग को समय आने पर अवश्य दंड देता है।
- प्रयोग अनुकूलता : अन्यायी व्यक्तियों को गुलछर्रे उड़ाते देखकर यह कहावत कही जाती है।
- शब्दार्थ : नइ-नहीं
- भज मन सीताराम, कौड़ी लगै न दामा। -- सीताराम, भजने में पैसे-कौड़ी नहीं लगते।
- व्याख्या : कुछ कार्यों में पैसे की जरूरत होती ही नहीं।
- प्रयोग अनुकूलता : भगवान का नाम जपने की सीख देने के लिए यह कहावत कही जाती है।
- शब्दार्थ : लगै-लगना, दामा-दाम
- भरे ला भरे, जुच्छा ला ढरकाय। -- भरे हुए भरता है तथा खाली को गिराकर और खाली कर देता है।
- व्याख्या : ईश्वर धनी को और अधिक धन देता है तथा गरीब को अधिक गरीब बना देता है।
- प्रयोग अनुकूलता : किसी की लगातार उन्नति-अवनति को लक्ष्य करके लोग इस कहावत का प्रयोग करते हैं।
- शब्दार्थ : जुच्छा-खाल, ढरकाय-ढरकाना
- भल बर मरै, अनभल के टेटरा निकलै। -- भलाई के लिए मरै, अनभल की टेटे निकले।
- व्याख्या : भलाई के बदले बुराई मिलना।
- प्रयोग अनुकूलता : जब कोई व्यक्ति किसी की भलाई करता है और बदले में उसे उससे बुराई मिलती है, तब यहकहावत कही जाती है।
- शब्दार्थ : भल-अच्छाई, बर-के कारण, अनभल-बुराई, टेटरा-टेट, निकलै-निकलना
- भल बर मरै, अनभल होय। -- भलाई के लिए जान देने वाले की बुराई होती है।
- व्याख्या : जग में कई बार भलाई करने वाले की ही बुराई हो जाती है।
- प्रयोग अनुकूलता : किसी की भलाई के लिए कुरबानी करने वाले को उल्टे यदि बुराई हाथ लगे, तब यह कहावत कही जाती है।
- शब्दार्थ : भल-भलाई, बर-के कारण, अनभल-बुराई, होय-होना
- भाँवर मछरी दहरा माँ कूदे। -- भाँवर के वक्त कन्या मल त्याग करना चाहती है।
- व्याख्या : भाँवर में बैठी हुई लड़की को भाँवर पड़ते तक बैठे रहना पड़ता है। इस बीच उठना वर्जित है। परंतु वह उठने के लिए टट्टी जाने का बहाना करती है। इससे उसकी शादी के बारे में अनिच्छा का पता लगता है।
- प्रयोग अनुकूलता : जब कोई व्यक्ति ठीक काम के वक्त पर टाल-मटोल करता है, तब यह कहावत कही जाती है।
- शब्दार्थ : भांवर-पाणिग्रहण, बेरा-वक्त, हगासी-मल त्याग करने की इच्छा
- भाई के भरोसा माँ डौकी चलावे। -- भाई के भरोसे पत्नी चलाना।
- व्याख्या : ऐसा व्यक्ति जो स्वयं कुछ काम नहीं करता, वह अपने भाई के भरोसे अपना उदर-पोषण करता है। पत्नी आ जाने पर भी वह कुछ न करके अपने भाई पर अवलंबित रहता है, जबकि उसे अपनी पत्नी के खर्च के लिए स्वयं कमाना चाहिए।
- प्रयोग अनुकूलता : जो व्यक्ति दूसरों के भरोसे कोई कार्य करता है, उस के लिए यह कहावत कही जाती है।
- शब्दार्थ : डौकी-पत्नी, चलावे-चलाना
- भागती भूत कथरिया लादै। -- भागते भूत की गोदरी लादै।
- व्याख्या : भूत भाग गया, परंतु भागते समय गोदरी छोड़ गया। उसमें ही संतोष कर लेना चाहिए।
- प्रयोग अनुकूलता : जिससे कुछ भी आशा न हो, उससे जो कुछ मिल जाए, उसे ही ठीक मान लेना चाहिए। ऐसे परिपेक्ष्य के लिए यह कहावत कही जाती है।
- शब्दार्थ : कथरिया-गोदरी, लादै-लादना
- भागे मछरी जाँघ असन मोंठ। -- भगी हुई मछली जाँघ जैसी मोटी थी।
- व्याख्या : पानी के अंदर जाल में आई हुई मछली यदि भाग जाए, तो उसके लिए पछतावा होता है। पछताने वाला किसी के द्वारा पूछे जाने पर उसे जाँघ जितनी मोटी बताता है।
- प्रयोग अनुकूलता : कोई चीज हाथ से निकल जाने पर अधिक अच्छी मालूम पड़ने लगती है। ऐसी वस्तु की प्रशंसा सुनकर लोग इस कहावत का प्रयोग करते हैं।
- शब्दार्थ : भागे -भागी हुई, मछरी-मछली, असन-ऐसा ही, मोंठ-मोटा
- भालू के मुँह माँ डूमर बोजै, तभो उगल दै। -- भालू के मुँह में गूलर डाल दिया, तब भी उसे उसने उगल दिया।
- व्याख्या : जरूरत होने पर भी कोई व्यक्ति कभी-कभी वह चीज नहीं लेता।
- प्रयोग अनुकूलता : किसी व्यक्ति के बिना प्रयास के कोई चीज दी जाए और फिर भी वह उसे लेने से इन्कार कर दे, तब उसके लिए यह कहावत कही जाती है।
- शब्दार्थ : डूमर-गूलर, बोजै-डालना, तभो-तब भी, उगल दै-उगलना
- भीख माँगै, अऊ आँखी गुडेरै। -- भीख माँगता है और आँख दिखाता है।
- व्याख्या : भीख माँगने वाले व्यक्ति को नम्रतापूर्व पेश आना चाहिए। उसकी इस नम्रता से प्रभावित होकर उसपर दया की जा सकती है। परंतू यदि कोई भीख माँगे और डाँट भी बताए, तो उससे चिढ़ने के कारण उसे भीख नहीं मिल सकती।
- प्रयोग अनुकूलता : जब कोई व्यक्ति किसी पर रोब डालकर कोई चीज चाहता है, तब उसकी इस गुस्ताखी को देखकर यह कहावत कही जाती है।
- शब्दार्थ : अउ-और, आंखी_आंख, गुड़ेरै-गुर्राना
- भीखा ले के भीख दै, तीनों तीरिथ ला जीत लै। -- भीख लेकर भीख देने वाला तीनों तीर्थों को जीत लेता है।
- व्याख्या : भीख माँगकर किसी को भीख देने वाला इतना बड़ा त्याग करता है कि उसे तीनों तीर्थों के दर्शन के बराबर पुण्य-लाभ हो जाता है।
- प्रयोग अनुकूलता : अपनी आवश्यकता की वस्तु दूसरों को दे देने वाले के त्याग के संबंध में यह कहावत कही जाती है। स्वयं भूखा रहकर दूसरे को अपना भोजन देने जैसे त्याग की पौराणिक कथाएँ भी प्रसिद्ध हैं।
- शब्दार्थ : तीरिथ-तीरथ, ला-को
भूँजे मछरी दहरा माँ कूदे। -- भुनी हुई मछली अथाह जल में कूद गई।
- व्याख्या : विपत्ति पड़ने पर हाथ में आई हुई वस्तु भी चली जाती है। भूनकर रखी गई मछली बर्तन साफ करते समय हाथ से छूटकर अथाह जल में चली गई।
- प्रयोग अनुकूलता : जब विपत्ति आती है, तो अनहोनी बात होते देखकर यह कहावत कही जाती है।
- शब्दार्थ : मछरी-मछली, दहरा-अथाल
- भूँया न भारा, लपर-लपर मारै गाँड़ा। -- जमीन न जायदाद, गँड़वा बढ़-बढ़ कर बात करता है।
- व्याख्या : गँड़वा जाति के व्यक्ति के पास जमीन, जायदाद कुछ भी नहीं है, फिर भी वह बढ़-चढ़कर बातें करता है। उसकी ये बातें लोगों को अच्छी नहीं लगती हैं।
- प्रयोग अनुकूलता : किसी व्यक्ति को खूब बढ़-चढ़कर बातें करते देखकर उसके लिए यह कहावत प्रयुक्त कर उसका मुँह बंद कर दिया जाता है।
- शब्दार्थ : भूँया-जमीन, भारा-जायदाद या पके धान की बांधी हुई गठरी, लपर-लपर-बढ़-चढ़ कर, गांड़ा-गंड़वा
- भूँया माँ सूत, तौनो माँ घूँच। -- जमीन में सोओ, फिर भी खिसको।
- व्याख्या : जमीन में सोने वाले के लिए स्थान की कमी नहीं होती। किसी के पास जमीन में सोया हुआ व्यक्ति स्वयं न खिसक दूसरे को खिसकने के लिए कहता है, जिसका अभिप्राय दूसरे को परेशान करना होता है।
- प्रयोग अनुकूलता : यदि कोई व्यक्ति अलग रहकर अपना काम करता है, और फिर भी कोई उसे परेशान करता है, तब यह कहावत कही जाती है
- शब्दार्थ : भूंया-जमीन, सूत-सोना, तौनो-तो भी, घूंच-हटना
- भूख न चीन्हे जात-कुजात, नींद न चीन्हे अवघट-घाट। -- भूख जात-कुजात की और नींद अच्छे-बुरे स्थान की पहचान नहीं करती।
- व्याख्या : भूखा व्यक्ति अपनी क्षुधा शांत करने के लिए किसी भी जाति के व्यक्ति के घर खा लेता है और नींद में भरा हुआ व्यक्ति रास्ते-कुरास्ते की पहचान न कर कहीं भी सो जाता है।
- प्रयोग अनुकूलता : अवसर के हिसाब से काम करने वाले व्यक्ति के लिए यह कहावत कही जाती है।
- शब्दार्थ : चीन्हे-पहचानना, अवघट-घाट-अच्छा बुरा स्थान
- भूत जान नइ लय, हलाकान जरूर करथे। -- भूत प्राण नहीं लेता, परेशान अवश्य करता है।
- व्याख्या : एक प्रकार से इस कहावत के द्वारा किसी को भूत कहकर उसकी दुष्टता बताई जाती है।
- प्रयोग अनुकूलता : जब कोई व्यक्ति छोटे लोगों को तंग करता है, तब उस के लिए यह कहावत कही जाती है।
- शब्दार्थ : नइ-नहीं, करथे-करता है।
- भैरा हाँसे दू बेर। -- बहरा दो बार हँसता है।
- व्याख्या : बहरा व्यक्ति अपने बहरेपन को छिपाने के लिए हँस देता है और लोगों के हँसने पर भी साथ देने के लिए हँसता है। वस्तुतः लोगों की हँसी का कारण बहरे की अकारण हँसी होती है।
- प्रयोग अनुकूलता : अपने अवगुण को छिपाने वाले व्यक्ति के उस अवगुण के पकड़ पर यह कहावत कही जाती है।
- शब्दार्थ : भैरा-बहरा, हांसे-हंसना, दू-दो, बेर-वक्त
- भैंस के आगू बेन बाजै, भैंस बैठ पगुराय। -- भैंस के आगे बीन बजे, तब भी भैंस पागुर (जुगाली) करते बैठी रहती है।
- व्याख्या : भैंस बीन की मधुर आवाज का आनंद नहीं ले सकती, जिससे उसका ध्यान बीन की आवाज की ओर नहीं जाता। वह अपने पागुर करने में मस्त रहती है। भैंस के लिए बीन बजना कोई अर्थ नहीं रखता।
- प्रयोग अनुकूलता : मूर्खों के सामने यदि अच्छी बात कही जाए, तब भी उसका उन पर कोई असर नहीं होता।
- शब्दार्थ : आगू-आगे, बेन-बीन, बाजै-बजना, पगुराय-पगुराना
- भैंस के आगू बेन बाजै, भैंस बैठ पगुराय। -- भैंस के आगे बीन बजे, तब भी भैंस पागुर (जुगाली) करते बैठी रहती है।
- व्याख्या : भैंस बीन की मधुर आवाज का आनंद नहीं ले सकती, जिससे उसका ध्यान बीन की आवाज की ओर नहीं जाता। वह अपने पागुर करने में मस्त रहती है। भैंस के लिए बीन बजना कोई अर्थ नहीं रखता।
- प्रयोग अनुकूलता : मूर्खों के सामने यदि अच्छी बात कही जाए, तब भी उसका उन पर कोई असर नहीं होता।
- शब्दार्थ : आगू-आगे, बेन-बीन, बाजै-बजना, पगुराय-पगुराना
- भैंस के बदला माँ जावा। -- भैंस के बदले जवा।
- व्याख्या : यदि कोई व्यक्ति अपनी भैंस किसी से बदलना चाहता है, तो बदले में उसे उसकी बराबरी के मूल्य की कोई वस्तु मिलनी चाहिए। भैंस बदलने वालों की मजदूरी को जानकार यदि कोई उसे जौ देने की बात कहता है औऱ दोनों में काले रंग की बराबरी बताता है, तो उसकी चतुराई को समझकर भैंस बदलने वाला आश्चर्य में पड़ जाता है।
- प्रयोग अनुकूलता : जब कोई व्यक्ति किसी को अच्छी चीज देता है और उस के बदले में दूसरा व्यक्ति उसे खराब वस्तु देता है, तब यह कहावत कही जाती है।
- शब्दार्थ : जावा-जौं
- भैंस बड़े के अकिल। -- भैंस बड़ी या अक्ल।
- व्याख्या : भैंस केवल आकार में बड़ी होती है, किंतु अक्ल के प्रयोग से बड़े-बड़े काम संपन्न हो जाते हैं, भैंस दिखने में भले ही बड़ी दिखे, परंतु उससे अक्ल की क्या तुलना। भैंस शारीरिक शक्ति का प्रतीक है। शारीरिक शक्ति से बुद्धि श्रेष्ठ होती है।
- प्रयोग अनुकूलता : किसी की मूखर्तापूर्ण बातों को सुनकर स्थूल शरीर की अपेक्षा बुद्धि की श्रेष्ठता बताने के लिए यह कहावत कही जाती है।
- शब्दार्थ : अकिल-अक्ल
- भैंस बियावै, पँडरू के गाँड़ फाटय। -- भैंस बच्चा जने, पँड़िया के चूतड़ फटे।
- व्याख्या : भैंस बच्चा जनती है, तो उसे प्रसव कष्ट होता है। उसके कष्ट को देखकर पँड़िया को दुःख होता है।
- प्रयोग अनुकूलता : अन्य किसी के कष्ट को देखकर व्यर्थ ही दुःख की अनुभूति प्रकट करने वालों के प्रति यह कहावत प्रयक्त होती है।
- शब्दार्थ : पंडरू-भैंस का बच्चा, पँड़िया
- भैंसा के सींग ह, भैंस ल गरू रथे। -- भैंसे के सींग भैंस को ही वजनी होते हैं।
- व्याख्या : भैंसे के सींग वजनी होते हैं, परंतु भैंसा ही उस भार को वहन करता है।
- प्रयोग अनुकूलता : किसी परिवार का कोई व्यक्ति निकम्मा हो जाए, तो दूसरे उसके भरण-पोषण का भार उस परिवार के प्रमुख व्यक्ति के सिर पर होता है। ऐसा भार स्वरूप नहीं होना चाहिए।
- शब्दार्थ : गरू-वजन
- भैंसे के लेवना, अउ भैंसे के सींग। -- भैंस का मक्खन और भैंस की सींग।
- व्याख्या : भैंस के मक्खन का प्रयोग व्यक्ति अपने खाने के लिए करता है। यदि उसका मक्खन उसी के सींगों पर लगा दिया जाए, तो वह उसी के हित में लग जाता है।
- प्रयोग अनुकूलता : जब किसी व्यक्ति की आमदनी दूसरों के लिए खर्च न करके उसी व्यक्ति के लिए खर्च की जाए, तब यह कहावत कही जाती है।
- शब्दार्थ : लेवना-मक्खन
- माँगता के का खँगता। -- माँगने वाले को किस बात की कमी।
- व्याख्या : माँगने वाला व्यक्ति अपना समय माँगने में बिताता है। कई जगह से माँगने पर उसे बहुत-कुछ मिल जाता है, इसलिए उसके पास किसी वस्तु की कमी नहीं होती।
- प्रयोग अनुकूलता : अपनी आवश्यकता की वस्तु जहाँ दिखलाई पड़ती है, वहाँ से माँगकर लाता है, ऐसे लोगों के लिए यह कथन कही जाती ह।
- शब्दार्थ : मांगता-मांगने वाला, खंगता-कमी
- मँगता घर मँगता जाय, मरत ले मार खाय। -- माँगने के घर माँगने वाला जाए और मरते तक मार खाए।
- व्याख्या : यदि किसी माँगने वाले के पास कोई दूसरा माँगने वाला व्यक्ति जाकर कुछ माँगे, तो वह उसे कुछ नहीं देता, बल्कि उसे मार-पीट कर अपने घर से ही नहीं, गाँव से भी भगा देता है। वह ऐसा इसलिए करता है कि यदि माँगने वाले बढ़ जावेंगे, तो उसका हिस्सा बँट जाएगा।
- प्रयोग अनुकूलता : जब किसी स्थान में कोई व्यवसाय करने वाला व्यक्ति किसी दूसरे अपने ही प्रकार के व्यवसायी को वही व्यवसाय शुरू करते देखा है, तो उसे लड़कर भगाने की चेष्टा करता है। उस के इस कार्य को देखकर यह कहावत कही जाती है।
- शब्दार्थ : मंगता-मांगने वाला, मरत-मरना, खाय-खाना
- मँगनी के बइला घरजिया दमाद, मरे के बाचै जोते के काम। -- माँगकर लाए हुए बैल और घर में रहने वाले दामाद से मरते दम तक काम लिया जाता है।
- व्याख्या : अपने काम के लिए किसी व्यक्ति से बैल माँगकर लाने वाला व्यक्ति उस बैल से अधिक से अधिक काम लेता है, जिससे उसका काम जल्दी पूरा हो जाए। वह उस के खाने-पीने तथा आराम की चिंता न करके केवल अपने काम की चिंता करता है। घर में रहने वाले दामाद से भी खाना देने के बदले में खूब काम कराया जाता है।
- प्रयोग अनुकूलता : दूसरों की वस्तु पर अपना खर्च होने पर उसका बेरहमी से उपयोग करने वाले के लिए यह कहावत कही जाती है।
- शब्दार्थ : मंगनी-मांगकर लाया हुआ, बइला-बैल, घरजिया-घर में रहने वाला, दमाद-दामांद, मरे-मरना, बाचै-बचना, जोते-जुताई
- मँगनी के नाव मनोहर। -- माँगने का नाम मनोहर।
- व्याख्या : माँगने वाले को कुछ न कुछ मिल जाता है।
- प्रयोग अनुकूलता : उसे पाते देखकर माँगने के कार्य को बढ़िया मान कर लोग इस कहावत का प्रयोग करते हैं।
- शब्दार्थ : मंगनी-मांगने वाला, नाव-नाम
- मँगनी के पान माँ मुँह नइ रचै। -- माँगे हुए पान से मुँह लाल नहीं होता।
- व्याख्या : दूसरों से माँगकर काम चलाए जाने वाले की उन्नति नहीं हो सकती। हो सकता है कि कोई आवश्यक वस्तु समय पर न मिले, जिससे काम बिगड़ जाए।
- प्रयोग अनुकूलता : अपनी उन्नति करने के लिए अपने को ही सामर्थ्यवान बनाने की सीख देने के लिए यह कहावत कही जाती है।
- शब्दार्थ : मंगनी-मांगा हुआ, नइ-नहीं, रचै-रचना
- मँड़वा माँ नाचै, दमदवा के भाई। -- मंडप में दामाद का भाई नाचता है।
- व्याख्या : मंडप में दामाद की आवश्यकता रहती है, उसका भाई वहाँ के लिए अनावश्यक व्यक्ति होता है।
- प्रयोग अनुकूलता : जहाँ जिसकी आवश्यकता होती है, वहाँ उसके बदले किसी दूसरे अनावश्यक व्यक्ति को देखकर यह कहावत कही जाती है।
- शब्दार्थ : मंड़वा-मंडप, नाचै-नाचना, दमदवा-दामांद
- मटासी माँ बापपूत कन्हार माँ कोनो नहिं। -- मटासी में बाप-बेटे, कन्हार में कोई नहीं।
- व्याख्या : मटासी में खेती करना कन्हार की अपेक्षा कम कष्ट साध्य है, अतः वहाँ हर कोई काम करने के लिए तैयार रहता है और कन्हार जमीन में कड़ी मेहनत करनी पड़ती है, इसलिए वहाँ काम करने के लिए हिचक होती है।
- प्रयोग अनुकूलता : कृषि-संबंधी यह कहावत जमीन के भेद को बताने के लिए कही जाती है।
- शब्दार्थ : मटासी-एक प्रकार की उपजाउ मिट्टी, बापपूत-बाप और बेटा, कन्हार-एक प्रकार की काली मिट्टी जिसमें उपज ज्यादा होती है, कोनो-कोई, नहिं-नहीं
मन करै कृतिया त बाघ धरै, नहिं त छेनहरा तरी ले नइ टरै। -- कृतिया की इच्छा हो, तो बाघ को पकड़े अन्यथा कंडों के ढेर से न हिले।
- व्याख्या : कुतिया अपनी इच्छा के अनुसार काम करती है। यदि उसकी इच्छा हुई, तो वह बाघ को पकड़ने के लिए दौड़ पड़ती है तथा इच्छा न होने पर कंडों के ढेर के पास बैठी रह जाती है।
- प्रयोग अनुकूलता : जो व्यक्ति इच्छा होने पर खूब काम करे अन्यथा इधर-उधर भटकते रहे उसे कार्य करने की प्रेरणा देने हेतु यह कहावत कही जाती है।
- शब्दार्थ : छेनहरा-कडों की ढेरी, धरै-पकड़ना, नहिं-नहीं, तरी-नीचे, नइ-नहीं, टरे-हटना
- मन के बात गड़रिया जाने। -- मन की बात गड़रिया जाने।
- व्याख्या : भेंड़ चराने वाला गड़रिया है तो मूर्ख, इसी प्रकार कोई धूर्त व्यक्ति जो किसी के चाल को समझने की बात कहता है, उस के लिए व्यंग्य में यह कहावत कही जाती है।
- प्रयोग अनुकूलता : किसी व्यक्ति के मन की बात स्वयं वही जान सकता है, दूसरा। जब कोई व्यक्ति किसी बात को छिपा लेता है, तब यह कहावत कही जाती है।
- शब्दार्थ : गड़रिया-भेड़ चराने वाला
- मन भर धावै, करम भर पावै। -- इच्छानुसार दौड़े, कर्मानुसार पाए।
- व्याख्या : कोई ऐसा व्यक्ति, जो अधिक कमाने की इच्छा रखता है, खूब परिश्रम करता है तथा इधर-उधर भाग-दौड़ मचाता है, फिर भी यदि उसकी इच्छानुसार उसे कमाई नहीं हो, तो भाग्य के अनुसार फल मिलने की बात कही जाती है।
- प्रयोग अनुकूलता : जो व्यक्ति इधर-उधर भटकने के बाद भी मनवांछित फल नहीं पाता, उसके लिए यह कहावत कही जाती है।
- शब्दार्थ : धावै-दौड़ना, पावै-प्रास करना
- मन हे आन, करम हे गड़िया। लेत रहेंव पड़िया, ले डारेंव हँड़िया।। -- मन में कुछ और है, परंतु भाग्य खोटा है। पँड़िया ले रहा था, परंतु हंडी ले डाली।
- व्याख्या : किसी व्यक्ति की इच्छा कोई कार्य करने की थी, परंतु वह कार्य न होकर कुछ दूसरा हो गया, जिससे उसे लाभ के बदले हानि हो गई।
- प्रयोग अनुकूलता : मनुष्य अपने हित-अहित को सोच कर कार्य करता है। यदि उसे किसी कार्य से लाभ हो जाता है, तो वह अपनी प्रशंसा करता है और यदि हानि हो जाती है, तो वह भाग्य को दोष देता है।
- शब्दार्थ : गड़िया-खोटा, करम-कर्म, लेत-लेना, रहेंव-रहना, डारेंव-कर
- मनखेच नइ रइहीं, त लक्ष्मी ल कोन पूछही। -- व्यक्ति ही न होंगे, तो लक्ष्मी को कौन पूछेगा।
- व्याख्या : मनुष्य ही देवी-देवता की इज्जत करते हैं। हिंदू-धर्म में गाय की पूजा की जाती है। उसे महत्व देने के लिए लक्ष्मी कहा जाता है। गाय का महत्व तभी है, जब मनुष्य हैं। यदि दुनिया में मनुष्य जाति न हो, तो गाय की पूजा कौन करेगा। देवी-देवताओं का अपना महत्व है, परंतु मनुष्य इनसे कम महत्वपूर्ण नहीं है।
- प्रयोग अनुकूलता : किसी प्रतिष्ठित व्यक्ति को बहुत महत्व देने पर तथा उस के द्वारा साधारण व्यक्तियों का निरादर होने पर यह कहावत कही जाती है।
- शब्दार्थ : मनखेच-व्यक्ति, नइ-नहीं, रइहीं-रहना, कोन-कौन, पूछहीं-पूछना
- ममा घर सुघराय, कका घर दुबराय। -- मामा के घर सुंदर रहता है, पर चाचा के घर दूर्बल हो जाता है।
- व्याख्या : मामा के घर खूब खाने तथा निश्चिंत घूमने के कारण स्वास्थ्य बढ़िया रहता है। चाचा के घर खूब काम करने तथा भोजन कम मिलने के कारण स्वास्थ्य बिगड़ जताता है।
- प्रयोग अनुकूलता : मामा के घर मिलने वाली सुख-सुविधाओं के संबंध में यह कहावत कही जाती है।
- शब्दार्थ : ममा-मामा, सुघराय, सुंदर होना, कका-चाचा, दुबराय-दुबला होना
- मरे नइ पादे। -- मरा हुआ व्यक्ति अधो वायु नहीं छोड़ता।
- व्याख्या : मरे हुए व्यक्ति से पादने जैसी आवाज नहीं सुनी जा सकती। इसी प्रकार, शक्तिहीन व्यक्ति कोई भारी बोझ नहीं उठा सकता।
- प्रयोग अनुकूलता : जब किसी व्यक्ति को कोई काम सौंपा जाए और वह उसे पूरा न कर सके, तब उस पर व्यंग्य कसने के लिए यह कहावत कही जाती है कि इस मरियल से क्या काम होगा।
- शब्दार्थ : मरे-मरा हुआ, पादे-अधो वायु छोड़ना
- मर मर मरै बरदवा, बाँधे खाय तुरंग। -- बैल मरते दम तक मेहनत करता है, बँधे हुए घोड़े के लिए खाना वहीं पहुँच जाता है।
- व्याख्या : अनाज पैदा करने के लिए बैल को खूब मेहनत करनी पड़ती है। इतनी अधिक मेहनत करने पर भी उसे पर्याप्त मात्रा में खाना नहीं मिलता। परंतु कृषि-कार्य में योगदान न देने पर घोड़े की खूब खाना मिलता है।
- प्रयोग अनुकूलता : जब खूब मेहनत करके कोई व्यक्ति कुछ प्राप्त करे तथा कोई दूसरा उसका उपभोग करे, तब यह कहावत कही जाती है।
- शब्दार्थ : बरदवा-बैल, मरै-मरना, खाय-खाना, तुरंग-घोड़ा
- मरत ला दू लाठी मार दै, फेर बचावै झन। -- मरते हुए को दो लाठी मार दे, परंतु बचाना नहीं चाहिए।
- व्याख्या : मरते हुए व्यक्ति को दो लाठी मार दे, जिससे उसकी मृत्यु जल्दी हो जाए, अन्यथा अधमरे व्यक्ति की देख-रेख करने में बहुत लोगों को परेशानी होगी। वह केवल भार-स्वरूप होगा।
- प्रयोग अनुकूलता : समाज के लिए अनुपयोगी व्यक्तियों की सहायता नहीं करनी चाहिए, जिससे उनका अंत हो जाए। कुछ इसी परिपेक्ष्य में यह कहावत का उपयोग किया जाता है।
- शब्दार्थ : दू-दो, फेर-फिर, बचावै-बचाना, झन-नहीं
- मरही बछिया बाँभन ला दान। -- दुबली-कमजोर बछिया ब्राह्मण को दान में दी गई।
- व्याख्या : गो-दान का पुण्य पाने के लिए किसी ब्राह्मण को बछिया दी गई। परंतु अपना नुकसान न करने के लिए सबसे कमजोर उसे सौंप दी गई। दान करने वाले का कुछ नुकसान भी नहीं हुआ तथा उसे गो-दान का पुण्य भी मिल गया।
- प्रयोग अनुकूलता : ऐसी वस्तुओं का दान करना, जो अनुपयोगी हो, उनके लिए यह कहावत कही जाती है।
- शब्दार्थ : मरही-कमजोर, बछिया-बछड़ा, बांभन-ब्राम्हण, ला-को
- मरे के बेर डौकी ला दाई कहै। -- मृत्यु के समय पत्नी को माँ कहता है।
- व्याख्या : मृत्यु के समय व्यक्ति को खूब कष्ट मिलता है। किसी व्यक्ति के लिए सर्वाधिक चिंता उसकी माँ की होती है। कष्ट के समय सेवा करने के लिए पत्नी की खुशामद करनी पड़ती है, जिससे उसे आदर देने के लिए माँ कहना पड़ता है।
- प्रयोग अनुकूलता : किसी मुसीबत में पड़े हुए व्यक्ति को अपने से छोटे व्यक्ति की खुशामद करते देखकर यह कहावत कही जाती है
- शब्दार्थ : बेर-समय, डौकी-पत्नी, ला-को, दाई-मां
- मरे बाघ के मेंछा उखानत हे। -- मरे हुए बाघ की मूँछ उखाड़ता है।
- व्याख्या : यदि कोई व्यक्ति किसी मरे हुए बाघ की मूँछ उखाड़े, तो इसमें कोई बहादूरी नहीं है। यह कार्य तो कोई भी व्यक्ति कर सकता है। जीवित बाघ की मूँछें उखाड़ने में बहादुरी है।
- प्रयोग अनुकूलता : जब कोई डरपोक व्यक्ति अपने संबंध में बहादुर होने कीबात करता है, तब इस कहावत का प्रयोग कर उसकी बहादुरी की असलियत को स्पष्ट किया जाता है।
- शब्दार्थ : मरे-मरा हुआ, मेंछा-मूंछ, उखानत-उखाड़ना
- मरे ल जाय मल्हार गावै, परे-परे आल्हा गावै। -- मारने वाला मल्हार राग गाता है तथा बिस्तर में पड़ा हुआ आल्हा गाता है।
- व्याख्या : आलसी व्यक्ति बिस्तर पर लेटे-लेटे शूरवीरों की बात करता है और मरने वाला व्यक्ति मल्हार राग का आलाप कर रहा है।
- प्रयोग अनुकूलता : यदि कोई व्यक्ति बहाना बनाकर बिस्तर में पड़े-पड़े मौज करता है, तो उसके लिए व्यंग्य में यह कहावत कही जाती है।
- शब्दार्थ : मरे-मरना, गावै-गाना, परे-पड़ना
- मरै ल मारय, जियत ला पा लागय। -- मरे हुए को मारना तथा जीते हुए को प्रणाम करना।
- व्याख्या : ऐसा व्यक्ति जो किसी कमजोर व्यक्ति को इसलिए दबाता है कि वह उसका कुछ बिगाड़ नहीं सकता तथा शक्तिशाली व्यक्ति की खुशामद इसलिए करता है कि उससे उसका कभी कोई हित सध सकता है, वह केवल अपने हित के लिए काम करता है।
- प्रयोग अनुकूलता : ऐसे किसी स्वार्थी व्यक्ति की दुरंगी हरकतों पर व्यंग्य करने के लिए यह कहावत कही जाती है।
- शब्दार्थ : मरै-मरा हुआ, मारय-मारना, जियत-जीता हूआ, पा लागय-प्रणाम करना
- मरै न माचा छोड़ै। -- न तो मरता है और न ही खाट छोड़ता है।
- व्याख्या : ऐसा व्यक्ति जो न तो मरता हो और न ही खाट छोड़ता हो, उससे घर के अन्य लोग तंग आ जाते हैं।
- प्रयोग अनुकूलता : जब कोई व्यक्ति किसी वस्तु का उपयोग स्वयं न करे तथा दूसरों को भी न करने दे, तब यह कहावत कही जाती है।
- शब्दार्थ : माचा-खाट
- मरै न मोटाय। -- मरता है न मोटा होता है।
- व्याख्या : कई बार किसी कार्य में न तो लाभ होता है और न नुकसान।
- प्रयोग अनुकूलता : जब कोई वस्तु न तो घटती हो और न बढ़ती हो,तब उसके लिए परिश्रम करने वाला व्यक्ति निराश होकर अपनी व्यथा प्रकट करने के लिए इस कहावत का प्रयोग करता है।
- शब्दार्थ : मरै-मरना, मोटाय-मोटा होना
- महतारी के परूसे, मघा के बरसे। -- माँ का परोसना, मेघा की वर्षा।
- व्याख्या : क्षुधा पूर्ति का प्रबंध न होने से तृप्ति संभव नहीं है। मेघा नक्षत्र में घनघोर वर्षा होती है, जिससे पृथ्वी तृप्त हो जाती है। इसी प्रकार, माँ के द्वारा खाना खिलाए जाने पर पुत्र भरपेट भोजन करता है।
- प्रयोग अनुकूलता : भरपूर तृप्ति होने पर यह कहावत कही जाती है।
- शब्दार्थ : महतारी -माता, परूसे-परोसा हुआ, मघा-मेघा
- महतारी के पेट, कुम्हार के आवा। -- माँ का पेट, कुम्हार की भट्ठी।
- व्याख्या : जिस प्रकार माँ के पेट से काले और गोरे दोनों रंगों के बच्चे उत्पन्न होते हैं, उसी प्रकार कुम्हार की भट्ठी से कच्चे और पक्के दोनों प्रकार के पात्र निकलते हैं।
- प्रयोग अनुकूलता : जब किसी कार्य के परिणाम का आध- आधा पूर्वानुमान हो, तब यह कहावत कही जाती है।
- शब्दार्थ : महतारी-मां
- महतारी बेटी-मंदिर अमइन, अपन-अपन एँहवात मनाइन। -- माँ और बेटी मंदिर गई, उन्होंने अपने-अपने सौभाग्य की कामना कीं।
- व्याख्या : मंदिर में प्रवेश करके माँ और बेटी दोनों अपने-अपने स्वार्थ की कामना को ध्यान में रखकर भगवान से अपने-अपने सौभाग्य की कामना करती हैं। प्रत्येक व्यक्ति अपने स्वार्थ को पहले देखता है। माँ और बेटी साध होकर भी एक दूसरे की भलाई के लिए प्रार्थना न करके अपने-अपने पति की भलाई के लिए प्रार्थना करती है।
- प्रयोग अनुकूलता : जब कोई व्यक्ति अपने संबंधी, हितैषी, आदि की चिंता छोड़कर सिर्फ अपना ही हित देखता है, तब यह कहावत प्रयुक्त होती है।
- शब्दार्थ : महतारी-मां, अमइन-गई, एंहवात-सौभाग्य, मनाइन-कामना
- मही माँगे, अउ ठेकवा लुकावै। -- मठा माँगना और ठेकवा छिपाना।
- व्याख्या : किसी व्यक्ति से मठा जैसा सामान्य पदार्थ माँगते हुए लज्जा होती है। यदि कोई व्यक्ति मठा माँगते देख लेगा, तो उसमें हँसी होगी। ऐसा सोच कर वह ठेकवे को छिपाता है।
- प्रयोग अनुकूलता : यदि कोई व्यक्ति निम्न स्तर का कार्य करता है, तो अपनी हँसी उड़ने के भय से वह उस कार्य को छिपकर करता है। ऐसे छिपकर कार्य करने वाले के लिए यह कहावत कही जाती है।
- शब्दार्थ : ठेकवा-मिट्टी का पात्र, जो लोटे से आकार-प्रकार में मिलता-जुलता होता है, अउ-और, मही-मट्ठा, लुकावै-छुपाना
माँग-माँग के खाय, अउ बजार माँ डेकारै। -- माँग-माँ कर खाता है और बाजार में डकारता है।
- व्याख्या : जिस व्यक्ति के पास खाने के लिए अनाज न हो, वह दूसरों से माँग कर खाता है और अपनी गरीबी को छिपाने के लिए बाहर आकर यह बाताना चाहता है कि उसने घर का अनाज खाया है।
- प्रयोग अनुकूलता : ऐसा व्यक्ति जो दूसरों से उधार लेकर अपना काम चलाए तथा स्वयं दूसरों को उधार देने की बात करे, उसके लिए यह कहावत कही जाती है।
- शब्दार्थ : खाय-खाना, अउ-और, बजार-बाजार, मां-में, डकारे-डकारना
- माँगत बहू सोनवा, बिहावत बहू रूपवा। -- लइकोरी बहू झिथरी, जरगे बाहिर भीतरी।
- व्याख्या : माँगते समय बहू सोने के तथा शादी करते समय रूपए के समान होती है। बच्चे वाली बहू अस्त-व्यस्त बालों वाली हो जाती है, उसकी शान शौकत घट जाती है। सगाई के समय बहू सोने के समान मूल्यवाती होती है। शादी के समय उसके प्रति आकर्षण कम हो जाने से उसका मूल्य घटकर चाँदी के समान रह जाता है। बच्चों वाली बहू के प्रति कोई आकर्षण न होने से वह मूल्यहीन हो जाती है।
- प्रयोग अनुकूलता : कोई नई वस्तु जब तक प्राप्त नहीं होती, तब तक अधिक आकर्षक लगती है तथा प्राप्त हो जाने के बाद उस के लिए कोई आकर्षण नहीं रह जाता।
- शब्दार्थ : झिथरी-ऐसी स्त्री जिस के बाल अस्त व्यस्त हों, सोनवा-सोने के समान, रूपवा-रूपए, मांगत-मांगना, बिहावत-विवाह करना।
- माई मरै पूत बर, दिया बारै लगवार बर। -- माता पुत्र पाने के लिए तो मरती है, पर अपने पति के मरने की मनौती करती है।
- व्याख्या : यदि पुत्र पाने के लिए प्रयत्नशील स्त्री अपने पति के अनिष्ट की कामना करे और वह मर जाए, तो उसकी इच्छा पूरी नहीं हो सकती।
- प्रयोग अनुकूलता : ऐसा व्यक्ति जो किसी से कुछ पाने की आशा रखे, पर उसके अनिष्ट की कामना करे, तो वह अपने हाथों से अपने पैरों पर कुल्हाड़ी मारता है।
- शब्दार्थ : माई-मां, मरै-मरना, पूत-पुत्र, दिया-दीपक, बौर-जलाना, लगवार-पति, बर-के कारण
- माछी खोजै घाव, राजा खोजै दाँव। -- मक्खी फोड़ा खोजती है, राजा मौके की तलाश करता है।
- व्याख्या : मक्खी किसी व्यक्ति की ऊपरी चमड़ी को नहीं काट पाती, इसलिए किसी फोड़े की तलाशा में रहती है। राजा जिस व्यक्ति से नाराज हो जाता है, उससे बदला लेने के लिए उपयुक्त अवसर की तलाश करता है, क्योंकि वह अकारण उस पर नाराजगी प्रकट करे, तो इससे उसकी अपकीर्ति होगी।
- प्रयोग अनुकूलता : जब कोई व्यक्ति किसी से बदला लेने के लिए मौके की तलाश में रहता है, तब उसके लिए यह कहावत कही जाती है।
- शब्दार्थ : माछी-मक्खी, खोजै-खोजना
- माटी के चूल्हा, घर-घर हाबय। -- घर-घर मिट्टी के चूल्हे हैं।
- व्याख्या : सभी गृहस्थों के यहाँ समस्याएँ होती हैं। इसमें बड़े-छोटे के अंतर का भ्रम नहीं करना चाहिए।
- प्रयोग अनुकूलता : गृहस्थ की चिंता में चिंतित व्यक्ति को इस कहावत के द्वारा सांत्वना प्रदान की जाती है।
- शब्दार्थ : माटी-मिट्टी, हाबय -होना
- मान मनौवा मानते जाय, जूठा पतरी ल चाँटते जाय। -- नाराज होने वाला व्यक्ति अंत में स्वयं जूठी पत्तल चाटने जाता है।
- व्याख्या : अंत में हारकर वही कार्य करना, जिसे करने से पहले इनकार कर दिया गया हो।
- प्रयोग अनुकूलता : जो व्यक्ति किसी काम को करने से पहले इनकार कर के बाद में लाचार होकर उसी काम को करते हैं, उनके लिए यह कहावत कही जाती है।
- शब्दार्थ : खाय-खाना, अउ-और, बजार-बाजार, मां-में, डकारे-डकारना
- मानै त देवता, नहिं त पथरा। -- मानोंतो देवता, नहीं तो पत्थर।
- व्याख्या : भावना-प्रधान इस कहावत में व्यक्ति के विश्र्वास की प्रधानता है। पत्थर की मूर्ति में देवत्व के आरोप के पीछे विश्र्वास ही प्रधान कारण है। विश्र्वास न होने पर उसमें और पत्थर में कोई भेद नहीं रह जाता।
- प्रयोग अनुकूलता : किसी व्यक्ति पर विश्वास सिद्ध करते हुए यह कहावत कही जाती है।
- शब्दार्थ : नहीं-नहीं, पथरा-पत्थर
- माय के पड़वा, दुकाल के गँड़वा। -- माता की बीमारी के लिए पाँड़ा, अकाल के लिए गँड़वा।
- व्याख्या : माता (चेचक) की बीमारी के शिकार प्रायः पाँड़ा ही होते हैं, तथा अकाल पड़ने पर गँड़वे को भूखे मरना पड़ता है, क्योंकि गाँव के निवासी उसे अनाज नहीं दे पाते।
- प्रयोग अनुकूलता : मजबूरी दर्शाने के लिए इस कहावत का प्रयोग करते हैं।
- शब्दार्थ : पाँड़ा-भैंस का बच्चा।
- मार के टरक जाय, खाके ढरक जाय। -- मारकर भाग जाना चाहिए और खाकर पड़ जाना चाहिए।
- व्याख्या : मारकर भाग जाने वाला व्यक्ति मार खाने से बच जाता है और खाकर बिस्तर में पड़ जाना स्वास्थ्य के लिए हितकर है।
- प्रयोग अनुकूलता : सीख देने के लिए इस कहावत का प्रयोग होता है।
- शब्दार्थ : टरक-भागना, ढरक-सोना, जाय-जाना
- मार के देखे भुतवा काँपै। -- मार से भूत भी काँपता है।
- व्याख्या : बदमाश से बदमाश व्यक्ति भी शारीरिक यंत्रणा से ठीक हो जाते हैं।
- प्रयोग अनुकूलता : किसी बदमाश व्यक्ति को मार पड़ने पर उसके द्वारा अपने अपराध को स्वीकार करते सुनकर लोग इस कहावत का प्रयोग करते हैं।
- शब्दार्थ : भुतवा-भूत
- मारै मन बोधै, अउ अंडा पान माँ सोधै। -- मारकर सात्वना दे तथा अंडी पत्ते से सेंके।
- व्याख्या : आवेश में आकर मारने वाला व्यक्ति आवेश शांत होने पर पिटे हुए व्यक्ति को सांत्वना प्रदान करता है तथा चोट वाले स्थान को अंडी की पोटली बनाकर सेंकता है।
- प्रयोग अनुकूलता : कोई व्यक्ति किसी को दंड देकर पुचकारने लगे, तब उसके लिए यह कहावत कही जाती है।
- शब्दार्थ : अउ-और, सौधै-सेंकना
- मिरगा कूदै, भूँये पाँव। -- हिरण कितना भी कूदै, उसके पैर जमीन पर ही पड़ेंगे।
- व्याख्या : हिरण कितना भी उछले, अंततः उसके पैर जमीन पर ही पड़ेंगे।
- प्रयोग अनुकूलता : कोई व्यक्ति जब अपने संबंध में एकाकी जीवन तथा समाज की अवहेलना की बात करता है, तब उसके लिए किसी बुजुर्ग द्वारा यह कहावत कही जाती है। कहने वाले का आशय यही होता है कि वह कुछ भी बोले, अंततः उसे समाज की शरण लेनी पड़ेगी।
- शब्दार्थ : मिरगा-हिरण
- मीठ-मीठ गप-गप, करू-करू थू-थू। -- मीठ-मीठ गप-गप, कडुवा-कडुवा थू-थू।
- व्याख्या : मीठी वस्तु खा जाता है और कड़वी वस्तु थूक देता है।
- प्रयोग अनुकूलता : इस कहावत का प्रयोग ऐसे लोगों के लिए किया जाता है,जो अच्छी वस्तुओं को अपने लिए चुन लेते हैं तथा खराब वस्तुओं को दूसरों के लिए छोड़ देते हैं।
- शब्दार्थ : मीठ-मीठा, गप-गप-खाना, करू-कडुवा, थू-थूकना
- मुँह चिकिन लइकोरी के, डेहरी चिकिन ठगड़ी के। -- बच्चे वाली का मुँह चिकना, बाँझ की देहली चिकनी।
- व्याख्या : बच्चे वाली स्त्री बच्चे की तंदुरूस्ती के लिए अपने खान-पान में चौकन्नी रहती है। बाँझ स्त्री का घर साफ-सुथरा होता है, क्योंकि उसके घर में बच्चे नहीं होते, जिनकी उछल-कूद से घर गंदा हो जाता है। उसके पास घर की सफाइ के लिए समय भी अधिक होता है।
- प्रयोग अनुकूलता : बाँझ और बच्चे वाली स्त्री के क्रिया-कलाप के संबंध में यह कहावत कही जाती है।
- शब्दार्थ : चिकिन-चिकना, लइकोरी-बच्चे वाली मां, डेहरी-द्वार, ढगड़ी-बांझ
- मुसवा बिदा मागत हावै। -- चूहा बिदा माँगता है।
- व्याख्या : चूहे घर में तब तक रहते हैं, जब तक वहाँ उन्हें खाने को कुछ मिलता रहे।
- प्रयोग अनुकूलता : घर में खाने के लिए कुछ न होने पर इस कहावत का प्रयोग होता है।
- शब्दार्थ : मुसवा-चूहा, मांगत-मांगना
- मूँड़ अउ गोड़ के बरोबरी करत हे। -- सिर और पैर की बराबरी करता है।
- व्याख्या : शरीर के अवयवों में सिर का दर्जा ऊँचा है, जिसकी बराबरी पैर नहीं कर सकता।
- प्रयोग अनुकूलता : सामाजिक कार्यों में जहाँ बड़े बूढ़ों की आवश्यकता होती है, उनके बदले युवकों को नहीं रखा जा सकता। उनके बदले यदि कोई कम उम्र के व्यक्तियों को स्थान देने की बात कहता है, तो इस कहावत के प्रयोग से उसकी बात का खंडन कर दिया जाता है।
- शब्दार्थ : गोड़-पैर
- मूँड़ कटावै काहू के, लइका सीखै नाऊ के। -- किसी के सिर में खरोंच लगे, नाई का लड़का सीखता है।
- व्याख्या : यदि किसी के सिर में उस्तरे से चोट लग जाए, तो इससे नाई का क्या बिगड़ता है। उसका लड़का तो बाल बनाना सीखता है।
- प्रयोग अनुकूलता : जब कोई नव सिखिया जबरदस्ती किसी दूसरे के काम में हाथ डालकर उसे बिगाड़ डाले, तब यह कहावत कही जाती है।
- शब्दार्थ : मूंड़-सिर, लइका-बच्चा, नाऊ-नाई, कटावै-कटाना
- मूँड़ के नाव कपार। -- सिर का नाम कपाल।
- व्याख्या : यदि कोई सिर को सिर न कहकर कपाल कहे, तो दोनों में कोई अंतर नहीं पड़ता।
- प्रयोग अनुकूलता : जब तक व्यक्ति जो बात कहता है वही दूसरा भी अदल-बदल कर कहे, तब इस कहावत का प्रयोग होता है।
- शब्दार्थ : मूंड़-सिर, नाव-नाम, कपार-कपाल
- मूँड़ के राहत ले गोड़ माँ पागा नइ बाँधै। -- सिर के होते हुए पैर पर पगड़ी नहीं बाँधी जाती।
- व्याख्या : बड़े-बूढ़ों के होते हुए छोटों को प्रतिष्ठा नहीं दी जा सकती।
- प्रयोग अनुकूलता : समाज में वयोवृद्ध को इज्जत देने के लिए यह कहावत कही जाती है।
- शब्दार्थ : मूंड-सिर, गोड़-पैर, पागा-पगड़ी, नइ-नहीं
- मूँड़ मूँड़ा के बेल बँधाय। -- सिर घुटा कर बेल बँधाना।
- व्याख्या : किसी व्यक्ति को साधू बनने के लिए सिर घुटाना तथा कान में कुंडल, आदि आभूषण पहनने पड़ते हैं।
- प्रयोग अनुकूलता : जो व्यक्ति घर कर काम नहीं करता, उसे साधु बन जाने के लिए व्यंग्य करते हुए यह कहावत कही जाती है कि सिर घुटा लो और कान में बेल (आभूषण के बदले) बाँध लो।
- शब्दार्थ : मूंड़-सिर, बंधाय-बंधा हुआ
मूँड़ मूँड़ाहै, तौन छूरा ल थोरे डरार्है। -- सिर घुटाएगा, वह उस्तरे से थोड़े ही डरेगा।
- व्याख्या : यदि किसी व्यक्ति को सिर घुटाना हो, तो वह उस्तरे से डरकर सिर घुटाना नहीं रोकता।
- प्रयोग अनुकूलता : जब कोई व्यक्ति किसी कठिन काम को करना शुरू कर देता है और उसके सामने कठिनाइयाँ आती हैं, तब इस कहावत का प्रयोग होता है।
- शब्दार्थ : छूरा-उस्तरा
- मूँड़ ले मूँड़ौनी जादा। -- सिर से अधिक पैसे सिर घुटाने के लिए खर्च होते हैं।
- व्याख्या : सिर के मूल्य से उसे घुटाने में ज्यादा पैसे खर्च करने पड़ते हैं।
- प्रयोग अनुकूलता : मूल वस्तु से अधिक खर्च उस के सुधार आदि के लिए माँगा जाने पर यह कहावत प्रयुक्त होती है।
- शब्दार्थ : मूँड़-सिर, मुड़ौनी-घुटाने का मूल्य
- मुंडी गरूवा सदा कलोर। -- बिना सींग वाली गाय हमेशा युवती मालूम पड़ती है।
- व्याख्या : कम उम्र वाली गाय के सिर पर सींग न उगे और वह अधिक उम्र की हो जाए, तो सींग न होने के कारण वह कम उम्र की लगती है।
- प्रयोग अनुकूलता : कम ऊँचाई वाली औरत कई बच्चों की माँ होकर भी नवयुवती सी दिखाई पड़ती है। ऐसी औरतों के लिए यह कहावत प्रयुक्त होती है।
- शब्दार्थ : मुंड़ी-बिना सींग वाली, कलोर-युवती गाय
- मूँड़ मूँड़ावत देरी नइ ए, करा बरसे लागिस। -- सिर मुँड़ाए देरी नहीं हुई, ओले बरसने लगे।
- व्याख्या : कार्य प्रारंभ होने पर भारी विपत्ति का आ जाना।
- प्रयोग अनुकूलता : किसी व्यक्ति के कोई कार्य आरंभ करते ही उसमें विघ्न पड़ जाने पर यह कहावत कही जाती है।
- शब्दार्थ : मूंड़-सिर, मूंड़ावत-मुंडन, नइ-नहीं, कर-ओला, बरसे-बरसना, लागिस-लगना
- मूत माँ दिया बारै। -- पेशाब से दीपक जलाना।
- व्याख्या : दीपक जलाने के लिए तेल की आवश्यकता होती है। यदि कोई व्यक्ति अपने पेशाब से दीपक जलाना चाहे, तो यह संभव नहीं है। पेशाब निषिद्ध वस्तु है, जिससे दीपक जलाने जैसा पवित्र कार्य करना अनैतिक है।
- प्रयोग अनुकूलता : जो व्यक्ति लोक मर्यादा का अतिक्रमण करते हुए कोई कार्य करता है, उस के लिए यह कहावत कही जाती है।
- शब्दार्थ : मूत-पेशाब, दिया-दीपक, बारै-जलाना
- मूरख के हितवारती ले ओखर बैर बने। -- मूर्ख की मित्रता से उसकी दुश्मनी अच्छी।
- व्याख्या : यदि किसी व्यक्ति की किसी मूर्ख से मित्रता हो जाए और वह आवश्यकता पड़ने पर उससे परामर्श ले, तो मूर्ख द्वारा उसे अनुचित सलाह मिलेगी। ऐसे व्यक्ति से दूर रहना ही श्रेष्ठ है।
- प्रयोग अनुकूलता : जब किसी मूर्ख के कारण कोई बनता हुआ कार्य बिगड़ जाय, तब यह कहावत कही जाती है।
- शब्दार्थ : मूरख-मूर्ख, ओखर-उसका, बने-अच्छा
- मैं नोहौं, मेकरा के जाल आँव। -- मैं नहीं हूँ, मकड़ी का जाल हूँ।
- व्याख्या : किसी व्यक्ति ने दूसरे को फँसाने के लिए जाल बिछाया, जिसमें वह स्वयं ही फँस गया, क्योंकि जिसे वह फँसाना चाहता था, वह उसकी धूर्तता से निपटने के लिए पहले से तैयार था।
- प्रयोग अनुकूलता : जब कोई व्यक्ति किसी का अहित करना चाहता है, परंतु दूसरे की बुद्धिमानी से उसका अहित हो जाता है, तब यह कहावत कही जाती है।
- शब्दार्थ : मेकरा-मकड़ी
- मोर पूत बड़ सपूत, इहाँ ले काढ़ के उहाँ छूट। -- मेरा पुत्र बड़ा सुपुत्र है, यहाँ से उधार लेकर वहाँ अदा कर देता है।
- व्याख्या : यदि कोई पुत्र सुपुत्र हो, तो वह अपने पिता को शिकायत का अवसर नहीं देता। एक जगह से कर्ज लेकर दूसरी जगह कर्ज अदा करने वाले की आर्थिक स्थिति में कोई अंतर नहीं पड़ता। ऐसा करने वाला व्यक्ति सपूत नहीं कहला सकता।
- प्रयोग अनुकूलता : जब कोई व्यक्ति अपने कार्य से किसी जिम्मेदार व्यक्ति को संतुष्ट नहीं कर पाता, तब यह कहावत कही जाती है।
- शब्दार्थ : काढ़-कर्ज।
- मोर पूत राउर, धान के करि आइन चाँउर। -- मेरा बेटा राजा है, जिसने धान का चांवल बना दिया।
- व्याख्या : किसी पिता ने अपने पुत्र को धान दिया, जिसे उसके पुत्र ने चांवल बनाकर लौटा दिया। पिता की इच्छा थी कि वह उससे अधिक धान उत्पन्न करेगा। किंतु वैसा न होने से पुत्र की अकर्मण्यता को समझकर उसे दुख हुआ।
- प्रयोग अनुकूलता : जब कोई व्यक्ति किसी बताए गए काम को अपने आलस्य के कारण जैसा-तैसा है, तब उसकी अकर्मण्यता को समझकर यह कहावत कही जाती है।
- शब्दार्थ : मोर-मेरा, राउर-राजा, चांउर-चांवल
- मोर पेट हाहू, मैं नइ दँव काहू। -- मेरा पेट भूखा है, मैं किसी और को नहीं दूंगा।
- व्याख्या : यदि किसी भूखे व्यक्ति को खाने के लिए भोजन परोसा जाए, तो वह अपना हिस्सा किसी दूसरे को न देकर स्वयं खा जाता है।
- प्रयोग अनुकूलता : यदि किसी लोभी व्यक्ति को बहुत सा धन मिल जाए, जिसमें से थोड़ा-सा भाग उसके संबंधी आदि अन्य लोग भी चाहे और उन्हें कुछ भी देने से इनकार कर दे, तो यह कहावत कही जाती है।
- शब्दार्थ : मोर-मेरा, नइ-नहीं, कांहू-किसी को
- मोर मारे पानी बूड़े नइ बाँचै। -- मुझसे पानी में डूबने पर भी नहीं बचेगा।
- व्याख्या : यदि कोई व्यक्ति किसी ऐसे व्यक्ति को जो पकड़ में नहीं आ रहा हो, खोज निकालने के लिए चुनौती देता है, तो वह अफनी योग्यता और शक्ति का परिचय देता है।
- प्रयोग अनुकूलता : जब कोई व्यक्ति किसी का अहित करने की बात करता है, तब उसका सहायक उसके सहायर्ताथ काम पूरा करने के लिए अपनी सामर्थ्य बताते हुए इस कहावत का प्रयोग करता है।
- शब्दार्थ : मोर-मेरा, नइ-नहीं
- मोर हाँत लोई, मोर हें सब कोई। -- मेरे हाथ में लोई होने से सब मेरे वश में हैं।
- व्याख्या : मेरे हाथ में लोई है। इससे मैं सबको रोटी खिला सकती हूँ। जिससे खाने वाले सभी लोग मेरे वश में हैं।
- प्रयोग अनुकूलता : जब कोई सामान्य व्यक्ति किसी सत्ताधारी व्यक्ति से दोस्ती करके बड़े-बड़े लोगों पर अपना अधिकार जमा लेता है, तब यह कहावत कही जाती है।
- शब्दार्थ : लोई-गूँथा हुआ आटा, जिससे रोटियाँ बनती हैं
- मौसी के मेंछा होतिस त ममा कहितेन। -- मौसी की मूँछे होतीं, तो उसे मामा कहते।
- व्याख्या : यदि मौसी की मूँछ होती, तो वह मामा कहलाती। मूँछें न होने के कारण वह स्त्री हो गई।
- प्रयोग अनुकूलता : जब किसी कारण से कोई कार्य बिगड़ जाता है और जब उस कारण के बदले दूसरे कारण से उस कार्य के बनने की बात कही जाती है, तब इस कहावत का प्रयोग होता है।
- शब्दार्थ : मेंछा-मूंछ, ममा-मामा
- रंग न ढंग चीपरा के संग। -- रंग ढंग नहीं, ऐसे आँखों में कीचड़वाले का साथ
- व्याख्या : जिसकी आँखों में कीचड़ हो, तथा जिसके रहने का ढंग बेढंग हो, ऐसे व्यक्ति के साथ रहने से कोई लाभ नहीं होता।
- प्रयोग अनुकूलता : जब कोई व्यक्ति किसी अयोग्य व्यक्ति के साथ मिलकर कोई कार्य करता है या उसके साथ निरंतर रहता है, तब यह कहावत कही जाती है।
- शब्दार्थ : चीपरा-जिसकी आँखों में कीचड़ हो
- रखही राम त लेगही कोन, लेगही राम त रखही कोन। -- राम रखेगा, तो कौन ले जा सकता है, राम ले जाएगा, तो कौन रख सकता है।
- व्याख्या : सब कुछ ईश्वर की मर्जी के अनुसार होता है, ईश्वर की इच्छा के विरूद्ध मनुष्य की शक्ति व्यर्थ है।
- प्रयोग अनुकूलता : जब मनुष्य किसी काम को बनाने के लिए पूरी शक्ति लगा देता है, फिर भी वह बिगड़ जाता है अथवा कोई काम अनिच्छा से किए जाने पर भी बन जाता है, तब यह कहावत कही जाती है।
- शब्दार्थ : कोन-कौन, रखही-रखना
- रटंत विद्या, खोदंत पानी। -- रटने से विद्या और खोदने से पानी।
- व्याख्या : रटने से विद्या आती है, खोदने से पानी मिलता है। मेहनत करने से किसी कार्य का अच्छा परिणाम मिलता है।
- प्रयोग अनुकूलता : मेहनत को बढ़ावा देने के उद्देश्य से यह कहावत कही जाती है।
- शब्दार्थ : रटंत-रटना, खोदंत-खोदना
- रन माँ बाँभन, बन माँ पीपर। -- युद्धभूमि में ब्राह्मण, जंगल में पीपल।
- व्याख्या : ब्राह्मण तथा पीपल पूज्य माने जाते हैं, परंतु युद्ध में ब्राह्मण को तथा जंगल काटते समय पीपल को नहीं छोड़ा जाता। युद्ध-भूमि में सब बराबर होते हैं।
- प्रयोग अनुकूलता : देश, काल और परिस्थिति के अनुसार व्यक्ति का मूल्यांकन करने के उद्देश्य से इस कहावत का प्रयोग किया जाता है।
- शब्दार्थ : रन-युद्ध, बांझन-ब्राम्हण, पीपर-पीपल
- ररूहा बेंदरा ला चीपरा अमोल। -- दरिद्र बंदर को कीचड़ ही बहुमूल्य।
- व्याख्या : दरिद्र व्यक्ति के लिए बहुत सामान्य वस्तु भी कीमती होती है।
- प्रयोग अनुकूलता : गरीबी में चीजों का मूल्य समझाने के उद्देश्य से यह कहावत कही जाती है।
- शब्दार्थ : ररूहा-दरिद्र, बेंदरा-बंदर, चीपरा-कीचड़
- ररूहा ला कसार कलेवा। -- कंगाल के लिए कसार ही कलेऊ है।
- व्याख्या : गरीब आदमी मामूली चीज को ही श्रेष्ठ समझता है।
- प्रयोग अनुकूलता : गरीबी में चीजों के महत्व को समझाने के लिए यह कहावत उपयोग में लाया जाता है।
- शब्दार्थ : कसार-चांवल को भूनकर बनाया गया व्यंजन
- ररूहा बैरागी डूमर के माला, खाही ओला त पहिरही काला। -- दरिद्र योगी के गले में गूलर की माला है, यदि वह उसे खा जेगा, तो पहनेगा किसे।
- व्याख्या : गरीबी में एकाध वस्तु की महत्ता भी सर्वाधिक होती है।
- प्रयोग अनुकूलता : इस कहावत का प्रयोग तब होता है, जब कोई व्यक्ति किसी छोटी-मोटी चीज के कारण प्रतिष्ठा पा रहा हो। यदि वह उसे छोड़ दे, तो उसकी इज्जत कौन करेगा।
- शब्दार्थ : डूमर-गूलर
रस्ता के खेती, राँड़ी के बेटी। -- रास्ते की खेती, राँड़ की बेटी।
- व्याख्या : रास्ते की खेती राह चलते हुए व्यक्तियों और पशुओं द्वारा बरबाद हो जाती है तथा राँड़ की बेटी पर चरित्रहीन लोगों की कुदृष्टि पड़ती है। असुरक्षित वस्तु का लोग फायदा उठाते हैं।
- प्रयोग अनुकूलता : जब कोई वस्तु देख-रेख के अभाव में बरबाद हो जाती है, तब यह कहावत कही जाती है। (इस कहावत को ‘राँड़ी के बेटी, रस्ता के खेती’ कर के भी बोला जाता है।)
- शब्दार्थ : रस्ता-रास्ता, रोड़ी-रोड़
- राई के भाव रात के निकल गे। -- राई का भाव रात में निकल गया।
- व्याख्या : सही समय पर सही निर्णय।
- प्रयोग अनुकूलता : जब किसी लेन-देन के संबंध में कोई बात होती है और वह बात उस समय तय नहीं हो पाती, तब वह बात वहीं समाप्त हो जाती है। परंतु जब बात करने वालों में से कोई व्यक्ति लाभ की आशा से उस बात को पुनः छेड़ता है, तब दूसरा व्यक्ति अपनी हानि को समझकर उस बात को आगे न बढ़ाकर अपनी असहमति प्रकट करते हुए इस कहावत का प्रयोग होता है।
- शब्दार्थ : राई-सरसों, के-को, निकल-गुजर जाना
- राँड़ के बेटा साँड़। -- राँड़ का बेटा साँड़।
- व्याख्या : राँड़ का पुत्र साँड़ के समान स्वच्छंद होता है, क्योंकि उस पर अंकुश नहीं होता।
- प्रयोग अनुकूलता : जब कोई निरंकुश व्यक्ति कोई काम न करके स्वतंत्रतापूर्वक इधर-उधर घूमता है, तब यह कहावत कही जाती है।
- शब्दार्थ : सांड़-सांड
- राँड़ी के बिहाव चुप्पे-चुपपे। -- राँड़ी का व्याह चुपके-चुपके।
- व्याख्या : छत्तीसगढ़ में राँड़ का व्याह होता तो है, किंतु उतनी धूम-धाम से नहीं होता, जितनी किसी कुंआरी लड़की का।
- प्रयोग अनुकूलता : जब कोई काम चोरी-छिपे करता है, तब यह कहावत कही जाती है।
- शब्दार्थ : बिहाव-विवाह, चप्पे-चुपचाप
- राँड़ी के पूत खदाही घोड़ा, खाय बहुत उपजावै थोरा। -- राँड़ी का पुत्र और पेटू घोड़े खाते अधिक हैं तथा उत्पन्न कम करते हैं।
- व्याख्या : निरंकुश व्यक्ति काम नहीं करता, परंतु खाता अधिक है।
- प्रयोग अनुकूलता : जो व्यक्ति किसी की चिंता किए बिना अपनी इच्छा के अनुसार खेल-कूद में समय बिताता है तथा घर के कार्य में कोई सहायता नहीं करता, उसके लिए यह कहावत कही जाती है।
- शब्दार्थ : खाय-खाना, उपजावै-उपजाना, थोरा-थोड़ा
- राँड़ी डरवायै काँड़ी बर, आवे दुखहइ मूसर बर। -- जब राँड़ अपनी काँड़ी के लिए डराती है, तब दूसरी स्त्री गाली देते हुए कहती है कि मूसल के लिए आना।
- व्याख्या : धानादि कूटने के लिए काँड़ी तथा मूसल दोनों की आवश्यकता होती है। राँड़ के घर काँड़ी होने के कारण वह दूसरी स्त्रियों पर रोब डालती है। परंतु दूसरी स्त्री उस के गर्व को खंडित करने के लिए उसे गाली देते हुए कहती है कि मूसल के लिए मेरे यहाँ आना तब बताऊँगी।
- प्रयोग अनुकूलता : ओछे लोग जो अपनी तुच्छ वस्तु पर गर्व करते हैं, उन के लिए यह कहावत प्रयुक्त होती है।
- शब्दार्थ : काँड़ी-खल के बदले प्रयुक्त पात्र, जो पत्थर का बना हुआ होता है तथा जिसे जमीन में गाड़कर रखते हैं, मूसर-मूसल
- राँड़ी रोय त रोय, संगभतारी कस रोय। -- राँड़ रोए तो रोए, सधवा क्यों रोए।
- व्याख्या : राँड़ का रोना तो ठीक है, परंतु सधवा का रोना आश्चर्य की बात है। दुखी तो रोते हैं, परंतु सुखी उनसे भी अधिक रोते हैं।
- प्रयोग अनुकूलता : यह कहावत ऐसे ऐश्वर्य-संपन्न व्यक्तियों के लिए कही जाती है, जो अपने पास अभाव की बातें करते हैं।
- शब्दार्थ : संगभतारी-पति के साथ रहने वाली, सधवा
- राँड़े सोच न बाँझे सोच। -- न तो राँड़ को चिंता और न बाँझ को।
- व्याख्या : पति के मर जाने से राँड़ तथा बच्चे न होने से बाँझ निश्चिंत होती हैं।
- प्रयोग अनुकूलता : जब किसी के पास जवाबदारी का कोई काम नहीं होता, जिससे वह निश्चित होता है, तब उस के लिए यह कहावत कही जाती है।
- शब्दार्थ : रांड़े-रांड़
- राँधे साग नइ पउलाय। -- पकी हुई सब्जी नहीं काटी जा सकती।
- व्याख्या : सब्जी काटकर पकाई जाती है। पकाने के बाद उसे काटा जाना संभव नहीं है।
- प्रयोग अनुकूलता : यदि किसी कार्य को पूरा कर लिया गया हो और उसमें परिवर्धन की गुंजाइश न हो, तब यह कहावत कही जाती है।
- शब्दार्थ : रांधे-पकाना, पउलाय-काटना
- राखही राम त लेगही कोन, लेगही राम त राखही कोन। -- ईश्वर जिसे रखेगा, उसे कौन ले जा सकता है तथा ईश्वर जिसे ले जाएगा, उसे कौन रख सकता है।
- व्याख्या : भगवान ही सबका रखवाला है।
- प्रयोग अनुकूलता : जब कोई व्यक्ति किसी दुघर्टना का शिकार होने पर मरते-मरते बच जाता है, तब ‘ईश्वर ने ही उसे बचा लिया’ ऐसा कहने के लिए इस कहावत का प्रयोग किया जाता है।
- शब्दार्थ : राखही-बचा लेना, लेगही-ले जाना, कोन-कौन
- राख पत, त रखा पत। -- इज्जत रखोगे, तो इज्जत मिलेगी।
- व्याख्या : जो व्यक्ति किसी दूसरे की इज्जत करता है, वह दूसरों से इज्जत पाता है तथा दूसरों की जो इज्जत नहीं करता, वह दूसरों से इज्जत नहीं पाता।
- प्रयोग अनुकूलता : जो जैसा व्यवहार करेगा, उसे बदले में वैसा ही व्यवहार मिलेगा। ऐसी सीख देने के लिए यह कहावत कही जाती है।
- शब्दार्थ : पत-इज्जत
- राजा के अगाड़ी, घोड़ा के पिछाड़ी झन रहै। -- राजा के आगे, घोड़े के पीछे न रहे।
- व्याख्या : राजा के आगे रहने पर डाँट-फटकर पड़ने की आशंका बनी रहती है तथा घोड़े के पीछे रहने पर उसकी लात खाने की आशंका बनी रहती है।
- प्रयोग अनुकूलता : यह कहावत उपदेर्शाथ प्रयुक्त होती है।
- शब्दार्थ : झन-नहीं
- राजा के मरगे हाथी, परजा के मरगे घोड़। राँड़ी के मरगे कुकरी, तीनों बरोबर होय। -- राजा का हाथी मर गया, प्रजा का घोड़ा मर गया। राँड़ी के मूर्गी मर गई, तिनों बराबर हो गए।
- व्याख्या : जितना मूल्य राजा के हाथी का है, उतना ही मूल्य प्रजा के घोड़े का है तथा राँड़ के लिए मूर्गी का है।
- प्रयोग अनुकूलता : किसी अमीर व्यक्ति के बहुत पैसों की क्षति किसी गरीब व्यक्ति के कम पैसों की क्षति के बराबर होती है। ऐसे परिपेक्ष्य में यह कहावत कही जाती है।
- शब्दार्थ : परजा-प्रजा, घोड़-घोड़ा, कुकुरी-मुर्गी, बरोबर-बराबर
- राजा घर मोती के का दुकाल। -- राजा के घर मोती की क्या कमी।
- व्याख्या : राजा के घर मोती की कमी नहीं होती। मोती यद्यपि मूल्यवान रत्न है, तथापि राजा के लिए उतना मूल्य विशेष अर्थ नहीं रखता। राजा जितना चाहे, उन्हें इकट्ठा कर सकता है, परंतु सामान्य व्यक्ति के लिए वह सुलभ नहीं होता।
- प्रयोग अनुकूलता : जब किसी व्यक्ति के पास कोई वस्तु प्रचुर मात्रा में हो, जिसकी अन्य किसी को आवश्यकता हो, तब माँगने वाला व्यक्ति अपनी माँग को देने वाले के लिए सामान्य सिद्ध करने के लिए इस कहावत का प्रयोग करता है।
- शब्दार्थ : दुकाल-कमी
- राजा नल पर विपत परी, भूँजे मछरी दहरा माँ परी। -- राजा नल पर विपत्ति पड़ी, भुनी मछली मँझधार में पड़ी।
- व्याख्या : विपत्ति के कारण भुनी हुई मछली भी मँझधार में चली गई। किसी व्यक्ति के मुसीबत में फँसे हुए होने से बना-बनाया काम भी बिगड़ जाता है।
- प्रयोग अनुकूलता : मुसीबत पड़ने पर बनते हुए कार्य के बिगड़ जाने पर यह कहावत प्रयुक्त होती है।
- शब्दार्थ : मछरी-मछली, दहरा-नदी का गहरा भाग
- रात भर गाड़ा जोतिस, कुकदा के कुकदा। -- रात भर गाड़ी चलाई, जहाँ के तहाँ।
- व्याख्या : यदि कोई व्यक्ति रात भर गाड़ी चलाए, तो वह काफी दूर जा सकता है अथवा बहुत-सी वस्तुओं को ढो सकता है परंतु रातभर गाड़ी चलाने वाला न तो दूर जा सका और न ही वस्तुओं को ढो सका, जिससे गाड़ी चलाने का परिश्रम व्यर्थ हो गया।
- प्रयोग अनुकूलता : जब कोई व्यक्ति कड़ी मेहनत करने पर भी अपना काम पूरा नहीं कर पाता, तब यह कहावत कही जाती है।
- शब्दार्थ : कुकदा-जहां
- रात भर रमायन पढ़िस, बिहनिया पूछिस राम-सीता कोन ए, त भाई-बहिनी। -- रात भर रामायण पढ़ी, सुबह पूछा कि राम-सीता कौ हैं, तो बतलाया कि भाई-बहन हैं।
- व्याख्या : किसी बात को सुनकर भी न समझना।
- प्रयोग अनुकूलता : जो किसी व्यक्ति की बात को सावधानी से न सुने और फिर उसके संबंध में प्रश्न करे, तो व्यंग्य में उसके लिए इस कहावत का प्रयोग किया जाता है।
- शब्दार्थ : बिहनिया-सुबह
- रानी के बानी, अउ चेरिया के सुभाव नइ छूटै। -- रानी का हठ तथा चुगली करने वाले का स्वभाव नहीं छूटता।
- व्याख्या : रानी जिस बात के लिए हठ करती है, उसे पूरा कर के ही छोड़ती है तथा चुगली करने वाला भी बिना चुगली किए चैन नहीं पाता।
- प्रयोग अनुकूलता : किसी हठी व्यक्ति के हठ करने पर व्यंग्य में यह कहावत कही जाती है।
- शब्दार्थ : अउ-और, सुभाव-स्वभाव
- रानी रिसाहै त सोहाग लेहै, राजा रिसाहै त राज लेहै। -- रानी नाराज होगी, तो सौभाग्य लेगी, राजा नाराज होगा तो राज्य लेगा।
- व्याख्या : यदि कोई व्यक्ति किसी बात से नाराज हो, तो वह अपनी नाराजगी उससे संबंधित व्यक्ति पर प्रकट करेगा। उससे अन्य लोगों का कोई संबंध नहीं होता।
- प्रयोग अनुकूलता : जब किसी प्रतिभा-संपन्न व्यक्ति के प्रसन्न अथवा अप्रसन्न हो जाने पर बहुत से लोग लाभ या हानि होने की आशंका में चिंतित हो जाते हैं, तब इस कहावत का प्रयोग किया जाता है।
- शब्दार्थ : रिसाहै-नाराज होना, सोहाग-सौभाग्य
- राम रमायन, तिहाँ कुकुर कटायन। -- जहाँ रामायण हो, वहाँ कुत्तों का भौंकना।
- व्याख्या : भगवान कथा में कुत्तों के भौंकने से विघ्न पड़ता है, जिसे श्रोतागण बुरा मानते हैं।
- प्रयोग अनुकूलता : यदि किसी स्थान पर कुछ लोगों में किसी विषय पर चर्चा हो रही हो और सब लोगों का ध्यान उस चर्चा में केन्द्रित हो, तो बाहर से आकर व्यवधान डालने वाले व्यक्ति के लिए यह कहावत कही जाती है। आपस की बातचीत में कोई व्यवधान डाले, तब यह कहावत कही जाती है।
- शब्दार्थ : तिहां-वहां, कुकुर-कुत्ता
रुपिया दे के बैरी होय, के बिटिया दे के बैरी होय। -- रूपए देकर दुश्मन हुए या लड़की देकर दुश्मन हुए।
- व्याख्या : यदि किसी व्यक्ति को रूपए उधार दिए गए हों, और वह उन्हें वापस न कर पाए, तो माँगने पर वह दुश्मन हो जाता है तथा शादी के बाद लड़की ससुराल से विदा कराने और वापस ससुराल भेजने में गतिरोध उत्पन्न होने से कभी-कभी दुश्मनी हो जाती है।
- प्रयोग अनुकूलता : जब कोई व्यक्ति किसी पर एहसान करे और बदले में एहसान लेने वाला उसका अहित करे, तब यह कहावत कही जाती है।
- शब्दार्थ : रूपिया-रूपया, बैरी-दुश्मनी
- रूपया ला रूपया कमाथे। -- रूपए को रूपया कमाता है।
- व्याख्या : पैसा आने से सारे काम सधते जाते हैं।
- प्रयोग अनुकूलता : धनवान व्यक्ति की निरंतर बढ़ती हुई आमदनी को देखकर यह कहावत कही जाती है।
- शब्दार्थ : रुपया-रुपए
- रेंगिस नइ रेंगिस मेढ़ फोरत। -- चलता नहीं और चलता है, तो मेंड़ फोड़ते हुए।
- व्याख्या : आलसी बैल हल में चलता नही है, बैठ जाता है और यदि चलता है, तो जिधर उसकी मर्जी आती है, उधर चलता है।
- प्रयोग अनुकूलता : आलसी व्यक्ति कुछ करता नहीं है और करता भी है, तो नुकसान करता है औसे परिप्रेक्ष्य में यह कहावत कही जाती है।
- शब्दार्थ : रेगिंस-रेंगना, मेढ़-मेंढ़
- रेंमटी तौन माँ जूड़ धरे। -- एक तो नाक बहाने वाली, ऊपर से सर्दी।
- व्याख्या : स्वाभाविक रूप से नाक बहाने वाली स्त्री को यदि सर्दी हो जाए, तो उसे नाक बहाने का बहाना मिल जाता है।
- प्रयोग अनुकूलता : किसी कामचोर व्यक्ति को यदि बहाना मिल जाए, जिसे बताकर वह काम करने से इन्कार करे, तो यह कहावत कही जाती है।
- शब्दार्थ : रेंमटी-नाक बहाने वाली, जूड़-सर्दी
- रेंमटी बहुरिया ला धुंगिया के ओढ़र। -- नाक बहाने वाली बहू धुएँ का बहाना करती है।
- व्याख्या : नाक बहाने वाली बहु को धुएँ का बहाना मिल जाता है, जिससे वह नाक बहने के अपने दुर्गुण को छिपाती है।
- प्रयोग अनुकूलता : जब कोई व्यक्ति अपने अवगुणों को छिपाने के लिए दूसरे व्यक्ति के साथ होने का बहाना करता है, तब यहकहावत कही जाती है। जब कोई व्यक्ति अपने अवगुणों को दूसरे पर मढ़ता है, तब यह कहावत प्रयुक्त होती है।
- शब्दार्थ : धुंगिया-धुंआ
- रोए माँ राम नइ मिलै। -- रोने से राम नहीं मिलता।
- व्याख्या : हिम्मत हारने से काम नहीं चलता।
- प्रयोग अनुकूलता : इस कहावत के द्वारा हिम्मत हारकर थके व्यक्ति को काम करने की प्रेरणा दी जाती है।
- शब्दार्थ : नइ-नहीं
- रोग माँ जोग। -- रोग में जोग।
- व्याख्या : किसी रोग में कुपथ्य उस के बढ़ने का कारण होता है।
- प्रयोग अनुकूलता : यदि किसी कुकर्म करने वाले व्यक्ति को वैसा ही कार्य करने वाला अन्य व्यक्ति मिल जाए, तो यह कहावत कही जाती है।
- शब्दार्थ : रोग-बिमारी
- रोज-रोज चोरवा भूँक-भूँक खाय, एक दिन चोरवा बाँधे जाय -- चोर रोज चोरी करके खाता है, परंतु एक दिन पकड़ा जाता है।
- व्याख्या : यदि चोरी करने वाला व्यक्ति पकड़ा जाए, तो उसकी सारी मस्ती दूर हो जाती है, और उसे अनेक कष्ट भोगने पड़ते हैं।
- प्रयोग अनुकूलता : अनैतिक कार्य करने वाले जब पकड़ में आ जाते हैं, तब उन्हें भरपूर दंड मिल जाता है। ऐसी स्थिति में यह कहावत कही जाती है।
- शब्दार्थ : चोरवा-चोर
- लंका माँ सोना के भूती। -- लंका में सोने की मजदूरी।
- व्याख्या : लंका में सोना अधिक है, तो उसे मजदूरी में नहीं दिया जाता।
- प्रयोग अनुकूलता : यदि किसी व्यक्ति के पास कोई अच्छी वस्तु अधिक मात्रा में होती है, तो वह उसे बहुत सामान्य कार्यों में खर्च नहीं कर डालता। ऐसे परिपेक्ष्य में यह कहावत कही जाती है।
- शब्दार्थ : भूती-मजदूरी
- लइका जाँघ माँ हग देथे, त जाँघ ला थोरे काट देबे। -- बच्चा यदि जाँघ पर मल-त्याग कर दे, तो जाँघ को थोड़े ही काट देंगे।
- व्याख्या : यदि किसी काम में थोड़ी त्रुटि हो जाए, तो भी काम बंद नहीं कर दिया जाता, यह बात इस कहावत के माध्यम से कही जाती है।
- प्रयोग अनुकूलता : गलती पर भी काम को जारी रखने की सीख देते हुए यह कहावत कही जाती है।
- शब्दार्थ : लइका-बच्चा, थोरे-थोड़े
- लपर-लंड चार दुवार, तेखर मान होय अगाड़ी-अगाड़। -- इधर-उधर की भिड़ाने वाला चार लोगों के दरवाजे जाता है, जहाँ उसकी आगे-आगे इज्जत होती है।
- व्याख्या : चुगलखोर स्वयं का हर काम साध लेता है।
- प्रयोग अनुकूलता : किसी चुगलखोर को इज्जत मिलने पर उसके लिए यह कहावत कही जाती है।
- शब्दार्थ : दुवार-द्वार, तेखर-उसका, होय-होना
- लबरा के नौ नागर, देखबे त एको नहिं। -- झूठे के नौ हल, परंतु देखने पर एक भी नहीं।
- व्याख्या : झूठ बोलने वाला व्यक्ति अपनी प्रशंसा में अपने पास नौ हल होने की बात कहता है, परंतु उसके घर जाकर देखने पर उसके पास एक भी हल नहीं मिलता।
- प्रयोग अनुकूलता : इस कहावत का प्रयोग ऐसे व्यक्तियों के लिए होता है, जो झूठ बोलने में माहिर होते हैं।
- शब्दार्थ : लबरा-झूठ बोलने वाला, देखने-देखना, नहिं-नहीं
- लबरा के खाय, तभे परियाय। -- झूठे की खाए, तभी विश्वास करे।
- व्याख्या : झूठा व्यक्ति जो कुछ बोलता है, वह अविश्वसनीय होता है, यदि वह अपनी बात सिद्ध कर दे, तभी उस पर विश्वास किया जा सकता है, अन्यथा नहीं।
- प्रयोग अनुकूलता : झूठे व्यक्ति पर तभी विश्वास किया जा सकता है, जब वह कार्य संपन्न करे दे, ऐसे परिपेक्ष्य में यह कहावत कही जाती है।
- शब्दार्थ : लबरा – झूठा, पतियाय – विश्वास करना।
- लबरा के मुँह ला बजार माँ मारै। -- झूठ बोलने वाले के मुँह को बाजार में बंद कर देना चाहिए।
- व्याख्या : झूठ बोलने वाले व्यक्ति को अनेक लोगों के बीच लज्जित करना चाहिए।
- प्रयोग अनुकूलता : दूसरों का अहित करने वाले व्यक्ति की बेइज्जती अनेक लोगों के बीच करनी चाहिए, जिससे अन्य लोग उसकी हरकतों से वाकिफ हो जाएँ और उससे धोखा न खाएँ। ऐसे परिपेक्ष्य में यह कहावत कही जाती है।
- शब्दार्थ : बजार – बाजार, लबरा – झूठा व्यक्ति
- लबरा देवता खरी के अठवाही। -- झूठा देव, खल्ली का भोग।
- व्याख्या : जैसे झूठे देव हैं, वैसा ही उसका भोग है। जो जैसा होता है, उसके अनुसार ही लोग व्यवहार करते हैं।
- प्रयोग अनुकूलता : ऐसे सामथ्यर्वान व्यक्ति जो दूसरों को उल्लू बनाते हैं, अन्य लोग भी उनका अप्रत्यक्ष रूप से अनादर करते हैं। ऐसे परिपेक्ष्य में यह कहावत कही जाती है।
- शब्दार्थ : खरी – खल्ली, अठवाही – नवरात्री पक्ष में आठवें दिन लगाए जाने वाला भोग
- लरगर माँ ऊँट बदनाम। -- लश्कर में ऊँट बदनाम।
- व्याख्या : लश्कर में ऊँट अपनी ऊँचाई के लिए बदनाम होता है। वह दूर से दिखाई पड़ जाता है। पर घर में परिवार के प्रमुख को किसी काम के बिगड़ जाने पर दोषी ठहराया जाता है।
- प्रयोग अनुकूलता : जब परिवार के किसी व्यक्ति की कोई शिकायत होती है, तब परिवार के प्रमुख को दोष दिया जाता है। ऐसी स्थिति में यह कहावत कही जाती है।
- शब्दार्थ : लस्गर-लश्कर, मां-में
- लहर के मारे डहर नइ मिलै। -- लालच में पड़ जाने पर रास्ता नहीं मिलता।
- व्याख्या : किसी लालच में पड़ जाने के कारण फल-प्राप्ति के अन्य उपाय नहीं सूझते हैं। यदि कोई व्यक्ति किसी को किसी वस्तु के मिलने का लालाच दे, तो वह व्यक्ति उस के बताए हुए मार्ग के अनुसार ही काम करता है औऱ अन्य कार्यों को छोड़ देता है।
- प्रयोग अनुकूलता : जब कोई व्यक्ति किसी लालच में पड़कर कोई कार्य बहुत तल्लीनतापूर्वक करता है, तब यह कहावत कही जाती है।
- शब्दार्थ : डहर-रास्ता, नइ-नहीं
- लहुटे बराती, अउ गुजरे गवाही। -- लौटा हुआ बराती और अदालत में गवाही देकर आया हुआ व्यक्ति।
- व्याख्या : बरात से लौटे बराती और अदालत से गवाही देकर आए हुए गवाह की इज्जत नहीं होती। जब तक उससे गरज रहती है, तभी तक उसकी इज्जत होती है, गरज समाप्त हो जाने पर उसकी कोई इज्जत नहीं करता।
- प्रयोग अनुकूलता : जब किसी व्यक्ति का काम कोई अन्य व्यक्ति पूरा कर देता है, तब काम करने वाले की इज्जत काम लेने वाले के द्वारा न किए जाने पर यह कहावत प्रयुक्त होती है।
- शब्दार्थ : बराती-बाराती, लहुटे-लौटना
- लागे भैंस के चस्का, दूहै भावै न गाय। -- जिसे भैंस दुहने का शौक लग गया हो, उसे गाय दुहना अच्छा नहीं लगता।
- व्याख्या : भैंस से गाय की अपेक्षा अधिक दूध मिलता है।
- प्रयोग अनुकूलता : भैंस से गाय की अपेक्षा अधिका दूध मिलता है। जो बड़े कार्य करने का अभ्यास्त हो, उसे छोटे-मोटे कार्य करने में आनंद नहीं आता।
- शब्दार्थ : दूहै-दूहना
- लात के देवता, बात माँ नइ मानै। -- लात का देव, बात से नहीं मानता।
- व्याख्या : मार से समझने वाला व्यक्ति बातों से नहीं समझता। यदि किसी व्यक्ति को कोई काम करने के लिए बार-बार कहा जाए और वह उसे टाल जाए, तो वह उसे गुस्सा दिखाने पर करता है।
- प्रयोग अनुकूलता : जब कोई व्यक्ति सीधे ढंग से पेश आने पर काम नहीं करता, तब उस के साथ कड़ाई की जाती ह। ऐसी स्थिति में यह कहावत कही जाती है।
- शब्दार्थ : लात-पैर
लाद दे लदा दे, छै कोस अमरा दे। -- लाद दो, लदा दो, छह कोस पहुँचा दो।
- व्याख्या : माल लदवा दो, लादने की मजदूरी दो, और ले जाने वाले को काफी दूर तक पहुँचाने भी जाओ।
- प्रयोग अनुकूलता : जब कोई व्यक्ति एक के बाद एक करके अनेक सुविधाएँ माँगता है, तब इस कहावत का प्रयोग होता है।
- शब्दार्थ : छै-छह, अमरा-पहुंचाना
- लेना न देना, हाँत भर छेना। -- लेना न देना, एक हाथ लंबा कंडा।
- व्याख्या : चूल्हें में जलाने के लिए कंडे छोटे-छोटे बनाए जाते हैं। कोई व्यक्ति यदि कंडे के हाथ भर लंबे होने की बात कहे, तो उससे वैसा कंडा दिखाने को कहा जाता है, परंतु वह वैसा दिखा नहीं पाता।
- प्रयोग अनुकूलता : ऐसा व्यक्ति जो किसी बात को बढ़ा-चढ़ाकर कहता है, उससे यदि सिद्ध करने के लिए कहा जाए, तो वह सिद्ध नहीं कर पाता, ऐसे व्यक्ति के लिए व्यंग्य में यह कहावत कही जाती है।
- शब्दार्थ : छेना-कंडा
- संगे पादै आधा लाज। -- साथ में अधोवायु छोड़ने से आधी लाज।
- व्याख्या : गलत काम करने वाला दूसरे के साथ उसे करने में संकोच नहीं करता, क्योंकि कोई कार्य साथ-साथ करने में हानि आधी हो जाती है।
- प्रयोग अनुकूलता : गलत कार्य में दूसरे का साथ लेने वाले व्यक्ति के परिपेक्ष्य में यह कहावत कही जाती है।
- शब्दार्थ : पादै-पादना
- संझा के झड़ी, बिहनिया के झगरा। -- शाम की झड़ी, सुबह का झगड़ा।
- व्याख्या : यदि शाम को झड़ी लग जाए, तो वह प्रायः रात तक चलती है। उसके शीघ्र बंद होने की आशा नहीं होती।
- प्रयोग अनुकूलता : सुबह का झगड़ प्रायः दिनभर चलता है। ऐसे परिपेक्ष्य में यह कहावत कही जाती है।
- शब्दार्थ : झड़ी-लगातार वर्षा, बिहनिया-सुबह
- संझा के मरे ला कतेक ले रोहीं। -- सायंकाल के मरे हुए के लिए कितना रोना।
- व्याख्या : यदि कोई व्यक्ति संध्या के समय मर जाए, तो उसके लिए सुबह ले जाते तक रोना पड़ना है।
- प्रयोग अनुकूलता : यदि किसी काम के प्रारंभ में ही खराब लक्षण दिखलाई पड़ने लगे, तो उस के पूरा होने की आशा नहीं रहती, क्योंकि उसे कितना सुधारा जाएगा। ऐसी स्थिति में यह कहावत कही जाती है।
- शब्दार्थ : संझा-शाम, कतेक-कितना
- संसा पंजा माँ परगे। -- श्र्वास पंजे में पड़ गया।
- व्याख्या : मुसीबत में पड़ गया, जिससे मुक्ति पाना कठिन है। यदि श्र्वास के मार्ग में कोई रूकावट आ जाए, तो व्यक्ति का जीवन संकट में पड़ जाता है। चूहा यदि बिल्ली के पंजे में फँस गया, तो उससे उसका छुटकारा पाना मुश्किल हो जाता है।
- प्रयोग अनुकूलता : मनुष्य के किसी मुसीबत में फँस जाने पर उसकी स्थिति को स्पष्ट करने के लिए यह कहावत कही जाती है।
- शब्दार्थ : संसा-श्वास
- सक्कर वाले ला सक्कर, टक्कर वाले ला टक्कर। -- शक्कर वाले को शक्कर, टक्कर वाले को टक्कर।
- व्याख्या : जो जैसा करता है, वह वैसा ही पाता है।
- प्रयोग अनुकूलता : कार्य के अनुसार फल मिलने पर यह कहावत कही जाती है।
- शब्दार्थ : सक्कर-शक्कर
- सगरी जाड़ नहक गे, त बाँभन कमरा बिसाइस। -- ठंड बीत गई, तब ब्राह्मण ने कंबल खरीदा।
- व्याख्या : समय गुजार जाने के बाद काम करना।
- प्रयोग अनुकूलता : कारण की समाप्ति के बाद कार्य करने वालों के लिए यह कहावत कही जाती है।
- शब्दार्थ : कमरा-कंबल
- सगा माँ साढू, कलेवा माँ लाडू। -- संबंधियों में साढू, पकवान में लूडू।
- व्याख्या : संबंधियों में अधिक साढू तथा पकवान में अधिक स्वादिष्ट लड्डू होता है।
- प्रयोग अनुकूलता : यदि किसी व्यक्ति का ससुराल-पक्ष की ओर आकर्षण हो, तो यह कहावत कही जाती ह।
- शब्दार्थ : साढू-साली का पति
- सत्यानास तौन माँ साढ़े सत्यानास। -- सत्यानाश में साढ़े सत्यानाश।
- व्याख्या : जब कोई काम बिगड़ जाता है, तब उसे सुधारने के लिए अंतिम प्रयास किया जाता है, जिससे वह य तो सुधर जाए अथवा अगर बिगड़ना हो, तो और अधिक बिगड़ जाए।
- प्रयोग अनुकूलता : ऐसी स्थिति में अंतिम प्रयास करते हुए यह कहावत कही जाती है।
- शब्दार्थ : सत्यानास-सत्यानाश, तौन-उसमें
- सब कुकुर गंगा चल देहीं, त पतरी ला कोन चाँटही। -- सब कुत्ते गंगा चल देंगे, तो पत्तल कौन चाटेगा।
- व्याख्या : यदि छोटे आदमी बड़े काम करने लगेंगे, तो फिर छोटों के काम कौन करेंगे।
- प्रयोग अनुकूलता : इस कहावत का प्रयोग ऐसे वक्त पर किया जाता है, जब कोई निम्न वर्ग का व्यक्ति उच्च वर्ग के व्यक्ति की बराबरी की बात करता है।
- शब्दार्थ : कुकुर-कुत्ता, पतरी-पत्तल, कोन-कौन
- सब के ढूँढ़वा माँ तेल, त एखर मुँह माँ तेल। -- सब के ढुँढ़वा में तेल, तो इस के मुँह में तेल।
- व्याख्या : तेल किसी पात्र में रखा जाता है, परंतु मुँह में तेल रखने की बात कहने वाला मुँह को ही पात्र बताकर अपनी बात को सत्य सिद्ध कर देता है।
- प्रयोग अनुकूलता : कोई बातूनी व्यक्ति किसी असत्य बात को भी अपने ऊल-जलूल तर्कों से सत्य सिद्ध कर दे, तो यह कहावत कही जाती है।
- शब्दार्थ : ढुँढ़वा-तेल रखने का मिट्टी का पात्र
- सब सोवे त फक्कड़ रोटी पौवे। -- सब सो जाते हैं, तब फक्कड़ रोटी बनाता है।
- व्याख्या : फक्कड़ व्यक्ति को किसी बात की चिंता नहीं होती, इसलिए वह जिस काम में लगा रहता है, वहीं अपना समय बिता डालता है। गृहस्थी में कार्य का बँटवारा होने से खाना निश्चित समय पर बन जाता है, परंतु फक्कड़ के अकेले होने से सब काम उसे ही करने होते हैं, जिससे उसके कार्य समय पर नहीं हो पाते।
- प्रयोग अनुकूलता : एकाकी जीवन बिताने वाले व्यक्ति को समय पर अपना काम न करते हुए देखकर यह कहावत कही जाती है।
- शब्दार्थ : पौवे-बनाना
- सबे अँगरी बरोबर नइ होय। -- सभी उँगलियाँ बराबर नहीं होतीं।
- व्याख्या : जब कई व्यक्ति एक ही काम को अलग-अलग करते हैं, तब उसे कोई जल्दी और कोई देरी से समाप्त करता है। प्रत्येक की गति भिन्न-भिन्न होती है।
- प्रयोग अनुकूलता : सब एक से नहीं होते, इस बात को स्पष्ट करने के लिए यह कहावत कही जाती है।
- शब्दार्थ : अंगरी-अंगुली, बरोबर-बराबर, नइ-नहीं
- सबे डढ़ियारे डढ़ियारा, आगी कोन फूँकै। -- सभी दाढ़ी वाले तो आग कौन फूँके।
- व्याख्या : काम को संपन्न करने की इच्छा न रखना।
- प्रयोग अनुकूलता : जब उपस्थित व्यक्तियों में से कोई भी व्यक्ति किसी काम को नहीं करना चाहता, क्योंकि उसे करने से वह औरों की दृष्टि में छोटा माना जाएगा, तब (कार्य न होने की स्थिति में) यह कहावत कही जाती है।
- शब्दार्थ : डढ़ियारे-दाढ़ी वाला, आगी-आग, कोन-कौन
- सबे धान बाइस पसेरी। -- सब धान बाइस पसेरी।
- व्याख्या : सभी प्रकार के धानों का भाव एक जैसा।
- प्रयोग अनुकूलता : जब अच्छे-बुरे, गुणी-अवगुणी को न परखकर सभी के साथ एक-सा व्यवहार किया जाता है, तब इस कहावत का प्रयोग होता है।
- शब्दार्थ : सबै-सभी
- सरग देख के गगरी फोरत हे। -- आकाश से गिरे, मोंगरा फूल के घाव।
- व्याख्या : आकाश से गिरने पर फूल से भी चोट लगी।
- प्रयोग अनुकूलता : यदि कोई व्यक्ति किसी फल की आशा से कहीं जाए और वहाँ फल के बदले पत्ते भी न मिलें, अर्थात् घोर निराशा हो, तो ऐसी परिस्थिति में यह कहावत कही जाती है।
- शब्दार्थ : सरग-स्वर्ग, गिरै-गिरना
- सरबस देखिस जात, त आधा देइसा बाँट। -- सब-कुछ जाता दीखे, तो आधे को बाँट देना चाहिए।
- व्याख्या : यदि सारी संपत्ति नष्ट हो रही हो, तो आधे को बाँटकर आधे को बचा लेना बुद्धिमानी है।
- प्रयोग अनुकूलता : सीख देने के लिए यह कहावत कही जाती है।
- शब्दार्थ : सरबस -सब कुछ
- सरहा माँस बर मसाला खइता। -- सड़े मांस के लिए मसाले आदि की बरबादी।
- व्याख्या : सड़े हुए माँस को पकाने में मसाले आदि की बरबादी हो जाती है क्योंकि पकाने के बाद वह सब्जी खाने में अच्छी नहीं लगती।
- प्रयोग अनुकूलता : जब किसी घटिया किस्म के कार्य के लिए बहुत समय या पैसे लगें, तो यह कहावत कही जाती है।
- शब्दार्थ : सरहा-सड़ा हुआ, खइता-बरबादी
- सरहा मूँड़ नाउ ला दोस। -- सड़ा हुआ सिर, नाई को दोष।
- व्याख्या : यदि किसी के सिर का माँस मजबूत न हो और बाल काटते समय नाई से यह कट जाए, तो इसमें नाई का कोई दोष नहीं हैं।
- प्रयोग अनुकूलता : कोई व्यक्ति ऐसी पुरानी वस्तु को इस्तेमाल करता है, जो पुरानेपन के कारण खराब हो जाती है, तो उस व्यक्ति को दोष देने पर कहावत कही जाती है।
- शब्दार्थ : सरहा-सड़ा हुआ, नाउ-नाई
आगू के करू बने होथे। -- सामने का कड़ुआ अच्छा होता है।
- व्याख्या : किसी बात को पीठ-पीछे न कहकर सामने कह देने में द्वेष तो बढ़ सकता है, परंतु ऐसा करना अच्छा होता है।
- प्रयोग अनुकूलता : किसी बात को आमने-सामने स्पष्ट कर लेना ठीक रहता है, जिससे आगे चलकर मतभेद न हो।
- शब्दार्थ : आगू-आगे, करू-कहुवा, बने-बढ़िया, होथे-होना
- आगू के भइंसा पानी पिए, पिछू के चिखला। -- आगे का भैंसा पानी पीता है, पीछे रहने वालों को कीचड़ मिलती है।
- व्याख्या : खाने-पीने में आगे रहने वालों को ठीक-ठीक खाना-पीना मिलता है, पीछे आने वालों को वस्तुओं की कमी हो जाने का कराण ठीक-ठीक भोजन न मिल पाना पीछे के भैंसे को कीचड़ मिलने के समान है।
- प्रयोग अनुकूलता : किसी व्यक्ति को हर दशा में अव्वल रहने की सीख देने हेतु यह कहावत प्रयोग में लायी जाती है।
- शब्दार्थ : आगू-आगे, भइंसा-भैंसा, पिए-पीना, पिछू-पिछला, चिखला-कीचड़
- आगे कलि के मेवा, सास करै बहुरिया के सेवा। -- कलियुग का यह प्रसाद है कि सास बहू की सेवा करती है।
- व्याख्या : बहू को घर का सब काम करना चाहिए। परन्तु कलियुग के प्रभाव में नीति की बात भूलकर अपने आराम की चिंता में बहू सास से काम लेती है। बहू का ऐसा कार्य लोक-मर्यादा के विरूद्ध होता है।
- प्रयोग अनुकूलता : बड़ी-बूढ़ी माताओं को कार्य करते हुए तथा जवान बहू को आराम करते हुए देखकर यह कहावत कही जाती है।
- शब्दार्थ : कलि-कलियुग, मेवा-प्रसाद, बहुरिया-बहू
- आगे मनुवा मानै नहि, पाछू पतरी चाँटै। -- मनुष्य पहले नहीं मानता, पीछे पत्तल चाटता है।
- व्याख्या : कोई मनुष्य किसी के बार-बार कहने पर भी खाना नहीं खाता, किंतु भूख लगने पर स्वयं पहुँच कर बचा-खुचा खाना खा लेता है।
- प्रयोग अनुकूलता : जो दूसरों के कहे हुए कार्य को नहीं करता और अपनी इच्छा का ऐसा कार्य करता है, जिससे उसे हानि होती है और बाद में हार कर उसी कार्य को करता है, जिसे करने के लिए लोगों ने कहा था, तब यह कहावत कही जाती है।
- शब्दार्थ : मनुवा-मनुष्य, पाछू-पिछला, पतरी-पतल
- आज के बासी काली के साग, अपन घर माँ का के लाज। -- आज का बासी चांवल और कल की सब्जी अपने घर में खाने में किस बात की लज्जा ?
- व्याख्या : अपने घर में चांवल और सब्जी खाने में कोई लज्जा नहीं है, क्योंकि जिसकी आर्थिक स्थिति जैसी होगी, वह उसी प्रकार अपने खाने की व्यवस्था करेगा, कौन किस प्रकार अपना उदर-पोषण कर रहा है, इससे दूसरों को क्या मतलब है।
- प्रयोग अनुकूलता : अपने घर में कोई व्यक्ति कैसे भी खाए तथा कैसे भी रहे, इससे अन्य लोगों का कोई संबंध नहीं होता, इसलिए इसमें लाज की कोई बात नहीं होती। इस प्रकार अपनी कोई वस्तु अन्य लोगों से छिपाने वाले के लिए इस कहावत का प्रयोग किया जाता है। प्रयोगकर्ता से छिपाने वाले की वास्तविक स्थिति छिपी नहीं होती।
- शब्दार्थ : बासी-पिछले दिनों का पका चांवल, जिसे रात में पानी में डुबो कर रख दिया जाता है और दूसरे दिन खाया जाता है, काली-कल, साग-सब्जी, अपन-अपना
- आज मूँड़ मूँड़ाइस, काली महंत होगे। -- आज सिर घुटाया, कल महंत हो गया।
- व्याख्या : किसी महंत का शिष्य बनने के लिए पहले मुंडन आदि कार्य करना पड़ता है। अनेक बातों का अनुभव हो जाने के बाद ही शिष्य महंत बनता है। आज मुंडन होने और कल महंत होने से समय के पूर्व ही फल प्राप्ति की बात ध्वनित होती है।
- प्रयोग अनुकूलता : समय से पहले अच्छा परिणाम मिलने पर यह कहावत कही जाती है।
- शब्दार्थ : मुँड़-सिर, मूँड़ाइस-घुटाना, काली-कल, महंत-मंदिर का अधिकारी
- आती के धोती, जाती के निगौटी। -- आना होता है, तो धोती तथा जाना होता है, तो लंगोट।
- व्याख्या : जब अच्छे दिनो में कुछ मिलना होता है, तब धोती जैसी बड़ी-बड़ी वस्तुएँ भी सहज रूप में मिल जाती हैं, परंतु बुरे दिनों में कुछ बिगड़ना होता है, तो लंगोट जैसी छोटी-छोटी वस्तुएँ भी हाथ से चली जाती हैं।
- प्रयोग अनुकूलता : अच्छे दिनों में अनायास ही बड़ी-बड़ी चीजें प्राप्त हो जाती हैं और बुरे दिनों में छोटी-छोटी वस्तुएँ भी नहीं बच पातीं। सुदिन-दुर्दिन में किसी व्यक्ति को प्रसन्न-अप्रसन्न देखकर यह कहावत कही जाती है।
- शब्दार्थ : आती-आना, जाती-जाना, निगौटी-लंगोट
- आदमी-आदमी माँ अंतर, कोनो हीरा कोनो कंकर। -- व्यक्ति-व्यक्ति में अंतर, कोई हीरा कोई कंकड़।
- व्याख्या : मनुष्यों के स्वभाव में अंतर होता है। किसी-किसी परिवार के सदस्यों के स्वभाव में भी जमीन-आसमान का अंतर मिलता है। अपने स्वभाव के कारण कोई हीरे के समान तथा कोई कंकड़ के समान समझा जाता है।
- प्रयोग अनुकूलता : विद्या, धन, आदि की दृष्टि से दो समान-व्यक्तियों के स्वभाव में बहुत मिलने पर एक को हीरे के समान मूल्यवान तथा दूसरे को कंकड़ के समान मूल्यहीन बताने के लिए यह कहावत कही जाती है।
- शब्दार्थ : कोनो-कोई, कंकर-कंकड़
- आदमी ला जानै बसे माँ, सोना ला जानै कसे माँ। -- व्यक्ति की परख साथ रहने से तथा सोने की परख कसौटी पर कसने से होती है।
- व्याख्या : सोने की परख तो उसे कसौटी पर कसने से हो जाती है, परन्तु किसी व्यक्ति को परखना इतना आसान नहीं होता। उसे परखने के लिए उसके साथ लगातार रहना आवश्यक है।
- प्रयोग अनुकूलता : इस कहावत का प्रयोग यही जानने के लिए किया जाता है कि व्यक्त को समझ पाना आसान काम नहीं है।
- शब्दार्थ : जानै-जानना, कसै-कसौटी
- आधा अंग के महमाई। -- आधे अंग की महामाई।
- व्याख्या : जिस देवी में आधे अंग उसके हों तथा आधे दूसरे के हों, अर्थात् कुछ लोगों के लिए उसका स्वरूप कुछ हो तथा कुछ लोगों के लिए कुछ और, उससे वरदान पाने की आशा व्यर्थ है। हाँ उससे अनिष्ट की आशंका जरूर होती है। ऐसी देवी का स्वभाव दुष्टों के स्वभाव से मेल खाता है, अर्थात् जो किसी के लिए अच्छे हैं, किसी के लिए बुरे, जबकि देवी-देवताओं को सभी के लिए अच्छा होना चाहिए।
- प्रयोग अनुकूलता : दुष्ट लोगों के लिए यह कहावत कही जाती है।
- शब्दार्थ : महमाई-महामाया देवी।
- आधा माँ जगधर, आधा माँ घर भर। -- आधे में अकेला और आधे में घर के शेष लोग।
- व्याख्या : जब किसी चीज के अर्ध भाग को कोई व्यक्ति अकेले ही ले ले और शेष वस्तु सारे सदस्यों में वितरित करे, ऐसा व्यक्ति अपनी स्वार्थ को ध्यान में रखकर करता है।
- प्रयोग अनुकूलता : व्यक्ति की स्वार्थपरता को लक्ष्य करके यह कहावत कही जाती है।
- शब्दार्थ : जगधर-ऐसा व्यक्ति, जो किसी वस्तु का आधा भाग स्वयं हड़प जाए
- आन गाँव जाय, आन नाव धराय। -- अन्य गाँव जाना, अन्य नाम रखाना।
- व्याख्या : जब कोई व्यक्ति अपना गाँव छोड़कर किसी अन्य गाँव में जाकर रहने लगता है, तब वहाँ के लोग उसकी अच्छाई-बुराई शीघ्र नहीं समझ पाते, ऐसी स्थिति में यदि गुणी व्यक्ति की बेइज्जती होने लगे या अवगुणी व्यक्ति को इज्जत मिलने लगे तब इस धोखे के कारण वहाँ के लोग उसे कुछ का कुछ नाम देने लगते हैं।
- प्रयोग अनुकूलता : परदेश में किसी की प्रतिष्ठा अपेक्षाकृत बढ़ जाने अथवा घट जाने पर यह कहावत कही जाती है।
- शब्दार्थ : आन-दूसरा, जाय-जाना, नाव-नाम, धराय-धराना
- आन बियाय, आन पथ खाय। -- कोई बच्चा पैदा करे और कोई पथ्य खाए।
- व्याख्या : प्रसव करने वाली स्त्री को पौष्टिक सामग्री से बनाए गए लड्डुओं का सेवन कराया जाता है, जिससे उसका खून बढ़े और स्वास्थ्य सुधरे। अन्य किसी स्त्री द्वारा ऐसे लड्डुओं का सेवन किया जाना निष्प्रयोजन तथा दूसरे का हक छीनना है।
- प्रयोग अनुकूलता : कष्ट पाने वाले या वास्तविक अधिकारी को उससे संबंधित फल न मिलकर किसी और को मिलने पर यह कहावत कही जाती है।
- शब्दार्थ : आन-दूसरा, बियाय-प्रसव करना, पथ-पथ्य, खाय-खाना
- आप जाय जजिमानो ला ले जाय। -- स्वयं जाना तथा यजमान को भी ले जाना।
- व्याख्या : पंडित जी अपने साथ अपने यजमान को ले डूबे, जिससे उनकी हानि तो हुई ही, यजमान को भी हानि का भागीदार बनना पड़ गया।
- प्रयोग अनुकूलता : जब कोई व्यक्ति पंडित जी के समान अपना नुकसान तो कराता ही है, साथ अपने मित्रों का भी नुकसान कराता है, तब उस व्यक्ति के लिए यह कहावत कही जाती है।
- शब्दार्थ : जाय-जाना, जजिमान-यजमान
- आप राज न बाप राज, मूँड़ मुँड़ाय दमाद के राज। -- न अपना राज्य, न अपने बाप का राज्य, दामाद के राज्य में सिर घुटाया।
- व्याख्या : कोई व्यक्ति अपने और अपने बाप के कार्य-क्षेत्र में की कार्य न कर के दामाद के कार्य-क्षेत्र में उस कार्य को करते हुए हानि उठाता है।
- प्रयोग अनुकूलता : किसी अपरिचित स्थान में या ऐसे क्षेत्र में जिसमें स्वयं का कोई अनुभव न हो तो अपना व्यापार प्रारंभ कर के घाटा उठाने पर यह कहावत कही जाती है।
- शब्दार्थ : मूंड़-सिर, मुंड़ाय-मुंडन, दमाद-दामांद
- आप रूप भोजन, पर रूप सिंगार। -- भोजन अपनी पसंद से और श्रृंगार दूसरों की पसंद से।
- व्याख्या : भोजन अपनी इच्छा के अनुसार करना चाहिए और श्रृंगार दूसरों की पसंद के अनुसार करना चाहिए।
- प्रयोग अनुकूलता : श्रृंगार के संबंध में सीख देने के लिए इस कहावत का प्रयोग होता है कि सजावट दूसरों को दिखाने के लिए होती है और भोजन निजी स्वास्थ्य के लिए होता है।
- शब्दार्थ : सिंगार-श्रृंगार
- आपन कारन मलिया जेंवावै खीर। -- अपनी गरज के लिए मनुष्य महाब्राम्हण को खीर खाने के लिए आमंत्रित करता है।
- व्याख्या : व्यक्ति की गरज महाब्राम्हण से होने के कारण उसके लिए परोसी गई खीर वह स्वयं न खाकर महाब्राम्हण को खाने के लिए कहता है, जिससे वह उस पर प्रसन्न होकर आवश्यकता पूरी कर दे।
- प्रयोग अनुकूलता : जब कोई व्यक्ति किसी वस्तु के लिए अटक जाता है, तब वह निम्न स्तर वाले की खुशामद करता है। ऐसे परिपेक्ष्य में यह कहावत कही जाती है।
- शब्दार्थ : आपन-अपना, कारन-कारण, मलिया-महाब्राम्हण, जेंवावै-भोजन कराना
- आमा के झरती, भोभला के मरती। -- आम का झड़ना, पोपला का मरना।
- व्याख्या : पके आम मिलने पर पोपला बहुत प्रसन्न होता है। जब तक आम पकते रहे, तब तक पोपला उन्हें खाकर आनंदित रहा। आम झड़ते ही पोपला भी मर गया। पोपले को मरना तो था ही, परंतु वह उचित अवसर पर मरा अर्थात् पके आमों का स्वाद लेने के बाद ही।
- प्रयोग अनुकूलता : जब संयोगवश कोई काम बन जाए, तब यह कहावत कही जाती है।
- शब्दार्थ : आमा-आम, झरती-झरना, भोभला-पोपला, मरती-मरना
- आमा गेदरावत हे, भोभला मेंछरावत हे। -- आम पक रहे हैं, पोपला व्यक्ति खुश हो रहा है।
- व्याख्या : पोपले के लिए सबसे बढ़िया खाद्य पदार्थ आम है, जिसे पकता देखकर वह बहुत प्रसन्न होता है।
- प्रयोग अनुकूलता : मनचाहे काम को पूरा होते देखकर जो व्यक्ति प्रसन्न होता है, उस के लिए यह कहावत कही जाती है।
- शब्दार्थ : आमा-आम, भोभला-पोपला, गेदरावत हे-पक रहा है, मेंछरावत हे-प्रसन्न होता है।
- आय न जाय, चतुरा कहाय। -- आता-जाता तो कुछ नहीं, चतुर कहलाता है
- व्याख्या : कई व्यक्ति ऐसे होते हैं जिन्हें अपने काम के संबंध में कुछ भी पता नहीं होता पर वे चालाक समझे जाते हैं।
- प्रयोग अनुकूलता : ऐसा व्यक्ति जो किसी काम के संबंध में नहीं जानता, परंतु उस काम के लिए अपने को होशियार कहता है, उसकी बातों को समझ जाने पर उस के लिए यह कहावत कही जाती है।
- शब्दार्थ : आय-आना, जाय-जाना, चतुरा-चतुर, कहाय-कहना
सरही मछरी तलाब भर ला बसवाथे। -- सड़ी मछली पूरे तालाब मे दुर्गंध फैलाती है।
- व्याख्या : जब कोई व्यक्ति ओछा कार्य कर के अपने परिवार वालों की बेइज्जती कराता है, तब उसके लिए यह कहावत कही जाती है।
- प्रयोग अनुकूलता : किसी कार्यालय का एक लिपिक गबन करे, तो उससे कायार्लय में काम करने वालों की बदनामी होती है। ऐसे परिपेक्ष्य में यह कहावत कही जाती है।
- शब्दार्थ : सरही-सड़ी हुई, तलाब-तालाब
- सस्ती के चाँउर, अउ मौसी के श्राद्ध। -- सस्ते में चांवल मिल जाए, तो उसे मौसी के श्राद्ध में खर्च करने में कोई तकलीफ नहीं होती।
- व्याख्या : सस्ते में मिले चीज का कोई मोल नहीं होता।
- प्रयोग अनुकूलता : किसी व्यक्ति के पास कोई वस्तु बहुत अधिक हो, जिसे वह मनमाने ढंग से जिस किसी को भी लुटाए, तो ऐसी स्थिति में यह कहावत कही जाती है।
- शब्दार्थ : सस्ती-सस्ता, चांउर-चांवल
- सस्ती रोवै बार बार, मँहगी रोवै एक बार। -- सस्ती बार-बार तथा महँगी एक बार रोती है।
- व्याख्या : सस्ती वस्तु खरीदने पर वह बार-बार बिगड़ जाती है, जिससे हमेशा कष्ट मिलता है, परंतु मँहगी वस्तु कभी कभार बिगड़ती है, जिससे कष्ट भी एकाध बार ही होता है।
- प्रयोग अनुकूलता : टिकाऊ औऱ मजबूत वस्तु मँहगी होने पर भी खरीदने की सीख देने के लिए यह कहावत कही जाती है।
- शब्दार्थ : सस्ती-सस्ता, रोवै-रोना
- ससुर के लाम-लाम, बहु के का काम। -- श्र्वसुर का लंबा है, तो बहू के लिए किस काम का।
- व्याख्या : श्र्वसुर की जननेद्रिय यदि लंबी है, तो वह बहू के लिए किसी काम की नहीं हैं। यदि किसी व्यक्ति के पास कोई अच्छी वस्तु हो, तो वह उसके निजी उपयोग के लिए होती है।
- प्रयोग अनुकूलता : जब अन्य कोई व्यक्ति उपयोग करने के लिए उसके किसी संबंधी से कहता है, तब उसके न मिलने की स्थिति में यह कहावत कही जाती ह।
- शब्दार्थ : लाम-लंबा
- सहर के मितान, गँवइ के चिन्हार। -- शहर का मित्र, देहात का परिचित।
- व्याख्या : शहर में जहां मित्र की इज्जत नहीं होती, वहाँ देहात में सामान्य रूप से परिचित व्यक्ति का भी आदर होता है। शहरी और देहाती जीवन में बहुत अंतर मिलता है। जो काम देहात में सामान्य परिचय के आधार पर पूरा हो जाता है, वही शहर में घनिष्ट मित्र के द्वारा भी नहीं हो पाता।
- प्रयोग अनुकूलता : शहर और देहात के जीवन के अंतर को स्पष्ट करने के लिए यह कहावत कही जाती है।
- शब्दार्थ : सहर-शहर, मितान-दोस्त
- सहराय बहुरिया डोम घर जाय। -- प्रशंसित बहू डोम के घर जाती है।
- व्याख्या : नई बहू को अधिक इज्जत देने से वह स्वतंत्र हो जाती है, जिससे वह मन चाहे स्थानों में घूमती-फिरती है और किसी व्यक्ति के प्रेम में फँसकर उसके साथ भाग जाती है। उसके इस कार्य से बदनामी होती है। यदि किसी व्यक्ति की आवश्यकता से अधिक प्रशंसा की जाए, तो वह दंभी हो जाती है, जिससे आगे चलकर वह बुराई में फँस जाता है तथा बिगड़ जाता है।
- प्रयोग अनुकूलता : प्रशंसा पाने के कारण उस के बिगड़ जाने पर यह कहावत कही जाती है।
- शब्दार्थ : सहराय-प्रशंसा करना, जाय-जाना
- सहै तौन लहै। -- जो सहन-शील है, वह निभ जाता है।
- व्याख्या : सहनशील व्यलक्ति औरों के साथ निभ जाता है। मालिक की बातों का बुरा न मानने वाला व्यक्ति अपनी नौकरी पर बना रहता है। तथा उसकी बातों को बर्दाश्त न करके सवाल-जवाब करने वाला नौकरी से हाथ धो बैठती है।
- प्रयोग अनुकूलता : सेवा करने वाला मेवा पाता है’ का भाव इस कहावत से स्पष्ट होता है।
- शब्दार्थ : लहै-निभना
- साँकुर गली, समधियान जघा। -- सँकरी गली, समधी लोगों का स्थान।
- व्याख्या : समधी से पर्दा करने वाली स्त्री को उससे दूर रहना पड़ता है। परतु जहाँ समधी लोग है, वहाँ गली सँकरी होने के कारण दूर हटने के लिए स्थान भी नही है। ऐसी स्थिति में दुविधापूर्ण स्थिति उत्पन्न हो जाती है। यदि स्त्री उधर से जाती है, तो समधी लोगों के पास से निकलना पड़ेगा और यदि नहीं जाती है, तो काम बिगड़ता है।
- प्रयोग अनुकूलता : जब कोई व्यक्ति संकोच के कारण कोई आवश्यक कार्य नहीं कर पाता, तब यह कहावत कही जाती है।
- शब्दार्थ : सांकुर-संकरी, जघा-जगह
- साँझे खेती, बिहाने गाय। -- शाम को खेती सुबह गाय।
- व्याख्या : खेती की निगरानी शाम को करनी चाहिए, ताकि आवश्यक कार्य दूसरे दिन किया जा सके। गाय की निगरानी सुबह करनी चाहिए, क्योंकि यदि उस कोई बीमारी आदि हो, तो उसे समय पर दवाई दी जा सके, अन्यथा वह दिन भर के लिए बाहर चली जाएगी।
- प्रयोग अनुकूलता : खेती करने वालों को उसकी निगरानी करने की सीख देने के यह कहावत कही जाती है कि समय पर न देखते रहने से बिगड़ जाती है।
- शब्दार्थ : सांझे-शाम, बिहाने-सुबह
- साँड़-साँड़ के लड़इ, चिरकुट होगे बारी। -- साँड-साँड की लड़ाई में बाड़ी की बरबादी।
- व्याख्या : दो वरिष्ट लोगों के टकराने में छोटों का नुकसान होता है।
- प्रयोग अनुकूलता : जब दो शक्तिशाली व्यक्ति आपस में टकराते हैं, तब उसका असर अन्य लोगों पर पड़ते देखकर लोग इस कहावत का प्रयोग करते हैं।
- शब्दार्थ : लड़इ-लड़ाई, चिरकुट-बरबादी
- साँप के मूड़ी, तिहाँ बाबू के झुलेना। -- जहाँ साँप का सिर, वहाँ बच्चे का झूला।
- व्याख्या : जहाँ सर्प का सिर है, वहाँ यदि बच्चे का झूला बँधा हो, तो सर्प कभी भी बच्चे को डस सकता है।
- प्रयोग अनुकूलता : यदि कोई व्यक्ति किसी ऐसे स्थान में निवास कर रहा हो, जहाँ उसके दुश्मन उसे कभी भी मार सकते हों, तो ऐसी स्थिति में यह कहावत कही जाती है।
- शब्दार्थ : मूड़ी-सिर, तिहां-वहां
- साँप चाबिस, साँप के मुँह जूच्छा। -- साँ ने काटा, फिर भी उसका मुँह खाली ही रहा।
- व्याख्या : नुकसान पहुंचाने पर भी कुछ नहीं बिगाड़ना।
- प्रयोग अनुकूलता : जब कोई व्यक्ति किसी को नुकसान पहुँचाता है और उससे उसे कुछ लाभ नहीं होता, तब यह कहावत प्रयुक्त होती है।
- शब्दार्थ : चाबिस-चाबना, जुच्छा-खाली
- साँप निकल गे, लकीर न पीटत रह। -- साँप निकल गया, लकीर को पीटते रहो।
- व्याख्या : साँप तो निकल गया, अब लकीर को पीटने से क्या लाभ। जो कुछ होना था, सो तो हो गया।
- प्रयोग अनुकूलता : जब कोई काम बिगड़ जाता है, तब उस के बारे में पछताने वाले के लिए यहकहावत कही जाती है।
- शब्दार्थ : निकल गे-निकल गया
- साख माँ जर नहिं, बरमत नाँव। -- साख कुछ भी नहीं, परंतु नाम बरमत।
- व्याख्या : जिसकी बाजार में कोई साख नहीं हो, पर उसका नाम ‘धनी’ हो।
- प्रयोग अनुकूलता : नाम के विपरित गुण मिलने पर यह कहावत कही जाती है।
- शब्दार्थ : नांव-नाम, नहिं-नहीं
- साझी के बइला किरा के मरै। -- साझे का बैल कीड़े पड़कर मरता है।
- व्याख्या : साझे का काम सदैव बिगड़ता है।
- प्रयोग अनुकूलता : जब कोई काम साझे में किया जाता है और उससे नुकसान उठाना पड़ता है, तब यह कहावत कही जाती है।
- शब्दार्थ : बइला-बैल, किरा-कीड़ा
- साझी के सूजी साँगा माँ जाय। -- साझे की सुई साँगे में जाती है।
- व्याख्या : साझे की सुई को कोई नहीं उठाता। उसे भारी मानकर साँगे से उठाया जाता है। जब हुई जैसी अत्यंत हल्की वस्तु साझे के कारण बहुत भारी हो जाती है, तब भारी वस्तु के संबंध में क्या कहा जाए।
- प्रयोग अनुकूलता : जब साझे का कोई साझेदार लोग स्वयं करने से कतराते हैं, तब यह कहावत कही जाती है।
- शब्दार्थ : साँगा-मोटी लंबी लकड़ी में रस्सी से किसी वस्तु का फँसाया जाना।
- साढू करे नौ बेटा। -- साढू को मिलाकर नौ बेटे।
- व्याख्या : जिसके कम बेटे हों, वह अपने पुत्रों को अधिक बताने के लिए साढू के पुत्रों को जोड़ देता है, इसलिए संख्या बढ़ जाती है।
- प्रयोग अनुकूलता : जब किसी व्यक्ति के पास किसी वस्तु की कमी हो और वह उसे अधिक बताता है, तब वह दूसरों की वस्तु को भी अपनी वस्तु के साथ जोड़ लेता है। ऐसी स्थिति में यह कहावत कही जाती है।
- शब्दार्थ : करै-करना
- सात-पाँच के लकड़ी, एक झने का बोझ। -- सात-पाँच की लकड़ी, एक व्यक्ति का बोझा।
- व्याख्या : कई लोगों के सहयोग से एक का सरलता से निर्वाह हो जाता है। जो काम एक व्यक्ति नहीं कर सकता, उसे कई लोग मिलकर आसानी से कर डालते हैं।
- प्रयोग अनुकूलता : ऐसे समय में जब काम नहीं हो पाता और उसके लिए अन्य लोगों की आवश्यकता होती है, तब इस कहावत का प्रयोग होता है।
- शब्दार्थ : झने-व्यक्ति
- साबर के चोरी करै, अउ सूजी के दान दै। -- सब्बल की चोरी करना और सुई का दान करना।
- व्याख्या : सब्बल जैसी वस्तु को चुराने वाला व्यक्ति यदि सुई जैसी छोटी-मोटी वस्तु का दान कर दे, तो इससे उसका कुछ नहीं घटता।
- प्रयोग अनुकूलता : किसी बेईमान व्यक्ति को छोटे-छोटे हितकारी कार्य करते देखकर यहकहावत कही जाती है।
- शब्दार्थ : साबर-सब्बल, सूजी-सुई
- साव के दाँव हाट माँ, अउ चोर के दाँव बाट माँ। -- बनिए का दाँव बाजार में और चोर का दाँव मार्ग में।
- व्याख्या : बनिया बाजार में सौदा अधिक कीमत में देकर अपना दाँव मारता है और चोर बाजार से लौटते हुए बनिए को लूटकर बाजार में उससे ठगे जाने का बदला चुकाता है।
- प्रयोग अनुकूलता : किसी व्यक्ति के द्वारा किसी अन्य का अहित हो और समय मिलने पर वह उससे बदला चुका ले, तो यहकहावत कही जाती है।
- शब्दार्थ : साव-बनिया।
साव बहुत रीझिन, न दीन सरहा सुपारी। -- बनिए ने बहुत प्रसन्न होने पर भी सड़ी सुपारी ही दी।
- व्याख्या : कंजूस व्यक्ति को यदि प्रसन्न कर लिया जाए, तब भी उससे कुछ पाने की आशा करना व्यर्थ है।
- प्रयोग अनुकूलता : जब किसी कंजूस व्यक्ति से कुछ काम की वस्तु नहीं मिलती, तब यह कहावत कही जाती है।
- शब्दार्थ : साव-बनिया
- सावन-भादो करिस गोतरी, कातिक खेलिस जुआ। घर जाके डौकी ले पूछिस, धान कितना हुआ। -- सावन-भादो गाँव घूमा, कार्तिक में जुआ खेला। घर जाकर पत्नी से पूछा, धान कितना हुआ।
- व्याख्या : सावन-भादो के महीने में धान बोने और बियासी करने का कार्य करना पड़ता है तथा कातिक के महीने में कटाई होती है। धान बोने से लेकर काटने तक का कार्य यदि कोई व्यक्ति न देखे, तो उसे नुकसान उठाना पड़ता है।
- प्रयोग अनुकूलता : यदि कोई व्यक्ति किसी कार्य के महत्वपूर्ण दिनों में अनुपस्थित रहे, तो वह कार्य जैसा होना चाहिए नहीं हो पाता। ऐसी स्थिति में यह कहावत कही जाती है।
- शब्दार्थ : कातिक-कार्तिक, डौकी-पत्नी
- सावन माँ आँखी फूटिस, हरियर के हरियर। -- सावन के अंधे को हर-हरा सूझता है।
- व्याख्या : सुख-संपत्ति में पले हुए व्यक्ति को सदैव सुख के स्वप्न आते हैं।
- प्रयोग अनुकूलता : धनी परिवार में पैदा होने वाला व्यक्ति अपने संपर्क में आने वाले निर्धन को भी बेकार का खर्च करने को बात कहता है या जहाँ सुख नहीं होता, वहाँ भी सुख की कल्पना करता है, तब यह कहावत प्रयुक्त होती है।
- शब्दार्थ : सावन-श्रवण, आंखी-आंख
- सावन माँ पुरवैया, भादो माँ पछियाव। हरवाहा हर छोड़ के, लइका जाय जियाव। -- सावन में पूर्व की हवा, भादो में पश्चिम की। खेती कार्य को छोड़ के, गृहस्थ कार्य करना।
- व्याख्या : सावन में पूर्व की हवा तथा भादों में पश्चिम की हवा चलने से हल चलाने वाले को हल छोड़कर बच्चों के पालन-पोषण के लिए बाहर जाना पड़ता है।
- प्रयोग अनुकूलता : खेती के संबंध में यह कहावत कही जाती है कि यदि सावन में पूर्व दिशा से तथा भादों मे पश्चिम दिशा से हवा चले, तो निश्चित रूप से अकाल पड़ेगा।
- शब्दार्थ : हरवाहा-हल चलाना, लइका-बच्चा
- सास के कठौती बहू बर माढे रइथे। -- सास की कठौती बहू के लिए रखी रहती है।
- व्याख्या : सास जैसा व्यवहार करती है, वैसा ही उसकी बहू भी करती है। यदि कोई स्त्री अपनी सास को कष्ट दे, तो उसकी बहू भी कष्ट देगी।
- प्रयोग अनुकूलता : जो व्यक्ति जैसा करता है, उसे बदले में वैसा ही मिलता है।
- शब्दार्थ : कठौती-क्रिया-कलाप
- सास लइकोरी, बहू लइकोरी, सगा अइस तउनो लइकोरी। -- सास बच्चे वाली, बहू बच्चे वाली, मेहमान आई, वह भी बच्चे वाली।
- व्याख्या : बच्चे वाली स्त्री घर के कामों में पूरा समय नहीं दे पाती।
- प्रयोग अनुकूलता : जब सब कोई एक जैसे कामचोर हो जाएँ और कार्य न हो, तब यह कहावत कही जाती है।
- शब्दार्थ : सगा-मेहमान, लइकोरी-बच्चे वाली मां
- सिकार के बेरा कुतिया हगावै। -- शिकार के वक्त कुतिया हगावे।
- व्याख्या : बहाना बनाना।
- प्रयोग अनुकूलता : जब कोई व्यक्ति ठीक काम के वक्त बहाना बनाए या उसके कारण वास्तव में काम में व्यवधान पड़े, तब यह कहावत कही जाती है।
- शब्दार्थ : बेरा-समय, हगावै-मल विसर्जन कराना
- सिखाय पूत दरार नइ चढ़ै। -- सिखाया हुआ पुत्र दरबार नहीं चढ़ता।
- व्याख्या : सहज बुद्धि के बिना कोई काम केवल सिखाने से नहीं किया जा सकता।
- प्रयोग अनुकूलता : जब किसी व्यक्ति को समझा-बुझाकर भेजा जाता ह और वह अपनी बुद्धि का उपयोग न करके ठीक काम नहीं कर पाता, तब इस कहावत का प्रयोग होता है।
- शब्दार्थ : नइ-नहीं, पूत-पुत्र
- सिखोय बुध अउ चलाय पानी, कतेक दिन पुरही। -- सिखाई हुई बुद्धि और सींचा हुआ पानी कितने दिनों तक चलेगा।
- व्याख्या : दूसरे की बुद्धि से काम करना।
- प्रयोग अनुकूलता : जब कोई व्यक्ति दूसरे के बहकावे में आकर कोई कार्य करता है, तब उसके लिए यह कहावत कही जाती है। (यह कहावत उलटकर ‘पलोय पानी अउ सिखोय बुध कतेक दिन पुरही’ के रूप में भी बोली जाती है।)
- शब्दार्थ : अउ-और, कतेक-कितना
- सियान बिना धियान नइ होय। -- सयानों के बिना ध्यान नहीं होता।
- व्याख्या : किसी कार्य को संपन्न करने के लिए अनुभवी व्यक्तियों की आवश्यकता होती है।
- प्रयोग अनुकूलता : यदि किसी अनुभवी व्यक्ति के अभाव में कोई काम बिगड़ जाए, तो यह कहावत कही जाती ह।
- शब्दार्थ : बिलइया-बिल्ली
- सींका के टूटती बिलइया के झपटती। -- छींके का टूटना और बिल्ली का झपटना।
- व्याख्या : जिस समय छींके की वस्तु को पाने के लोभ में बिल्ली उस पर झपट रही थी, उसी समय संयोग से छींका टूट गया, जिससे बिल्ली की इच्छा पूरी हो गई।
- प्रयोग अनुकूलता : जब कोई कार्य संयोग से बन जाए, तब इस कहावत का प्रयोग किया जाता है।
- शब्दार्थ : बिलइया-बिल्ली
- सीता मरै पेटे के चिंता। -- सीता पेट की चिता में मरती है।
- व्याख्या : स्त्री हमेशा जीवीकोपार्जन की चिंता करती है।
- प्रयोग अनुकूलता : जो स्त्री हमेशा खाने-पीने की बातें करती है, उसके लिए यह कहावत कही जाती है।
- शब्दार्थ : मरै-मरना
- सीतापती अन्नाखाती, दूलहादेख दतौना करती। -- अन्न खाई हुई स्त्री अपने पति को देखकर दतौन करती है।
- व्याख्या : खूब खा पीकर भी कोई स्त्री अपने पति के आने पर दतौन इसलिए करती है कि वह अपने को पतिव्रता बताना चाहती है।
- प्रयोग अनुकूलता : यहकहावत पति पर झूठ-मूठ का विश्वास जमाने की चेष्ठा करने वाली स्त्रियों के लिए कही जाती है।
- शब्दार्थ : दतौना-दातून
- सील न सिलौटी, देखइया के आँखी फूटै। -- सिल-सिलौटी कुछ नहीं है, देखने वाली की आँखें फूटे।
- व्याख्या : जिसके घर अन्य आवश्यक वस्तुएँ तो दूर रहें, पत्थर की सिल तक नहीं है, उसकी ओर यदि कोई ललचाई निगाहों से देखता है, तो उसकी आँखें फूट जाएँ। एक तो स्वयं ही गरीब हैं, फिर भी कोई व्यक्ति यदि उसकी बुराई सोचे, तो उसका अनिष्ट होना ही चाहिए।
- प्रयोग अनुकूलता : दूसरों का सदा अनिष्ट चाहने वालों के लिए यह कहावत कही जाती है।
- शब्दार्थ : आंखी-आंख
- सुखि कठवा ठाँय करै, त बुढ़वा भालू हाय करै। -- सूखी लकड़ी आवाज करे, तो बूढ़ा भालू हाय करे।
- व्याख्या : सूखी लकड़ी की आवाज से बूढ़ा भालू किसी खतरे की आशंका से भयभीत हो जाता है। बूढ़ा तथा कंजूस व्यक्ति रात में जरा सी आवाज सुनने पर किसी चोर की आशंका से सजग हो जाता है।
- प्रयोग अनुकूलता : ऐसे व्यक्ति जो किसी लालच में पड़ने के कारण जरा सी बात से डर जाते हैं, उसके लिए यह कहावत कही जाती है।
- शब्दार्थ : कठवा-लकड़ी, ठाँय-लकड़ी की आवाज
- सुक्खा कुवाँ ल कतेक ले पाटही। -- सूखे कुएँ में कितनी मिट्टी डाली जाएगी।
- व्याख्या : सूखे कुएँ को पाटने के लिए बहुत अधिक मिट्टी की आवश्यकता होती है, इसलिए उसे एकाएक भर पाना आसान नही है। इसी प्रकार, यदि किसी निर्धन व्यक्ति के पास कुछ भी वस्तु न हो, तो उसकी पूर्ति के लिए बहुत पैसों की जरूरत होती है। यदि कोई व्यक्ति उसे कुछ देना चाहे, तो कितना देगा।
- प्रयोग अनुकूलता : किसी निर्धन व्यक्ति को लगातार सहायता कर के तंग आ जाने पर यह कहावत कही जाती है।
- शब्दार्थ : सुक्खा-खाली, पाटही-पाटना
- सुक्खा मैया पा लागी, जीवौ पूत लबार। -- माताजी को बिना किसी भेंट के प्रणाम, झूठे पुत्र, जिओ।
- व्याख्या : माताजी को सूखा ही प्रणाम करने पर वह भी बदले में पुत्र को झूठा कहते हुए जीते रहने का आशीवार्द देती है।
- प्रयोग अनुकूलता : जब कोई व्यक्ति किसी को कुछ आश्वासन देकर भी उसे पूरा नहीं करता, तब उसकी झूठी बात को स्पष्ट करने के लिए यह कहावत कही जाती है।
- शब्दार्थ : सुक्खा-खाली
- सुत्खा सुपारी बटुरा हुम, कहाँ जाहू लपरहा तुम। -- सूखे मटर को सुपारी कहकर देने वाले लपरहा कहाँ जाओगे।
- व्याख्या : अत्यधिक झूठ बोलना।
- प्रयोग अनुकूलता : कोई व्यक्ति यदि किसी सुपारी के स्थान पर सूखे मटर खिलाए, तथा बड़ों की बातों का जवाब दे, तो उसकी यह हरकतें बड़े-बूढ़ों को खल जाती है।
- शब्दार्थ : लपरहा-जो बड़ों की बातों का खंडन करे
- सुक्सी भाजी खाय, अउ ओट माँ घी लजाय। -- सूखी भीजी खाना और आड़ में घी को शरमाना।
- व्याख्या : जो व्यक्ति अपने घर में सूखी भाजी खाते हैं तथा बाहर अच्छी-अच्छी वस्तुएँ चाहते हैं और मनचाही वस्तुओं की व्यवस्था न होने पर खिलाने वाले की बदनामी करते हैं, वे ढोंगी होते हैं।
- प्रयोग अनुकूलता : किसी व्यक्ति को इस प्रकार ढोंग करते देख यह कहावत कही जाती है।
- शब्दार्थ : सुक्सी-सुखाई गई
- सुनै सब के करै अपन मन के। -- सुने सबकी और करे मन की।
- व्याख्या : कार्य अपनी पसंद से करना चाहिए, किंतु लोगों कीबातें सुनने में कोई हानि नहीं। जब कोई व्यक्ति कार्य प्रारंभ करता है, तबउसे अनेक लोग परार्मश देते हैं। लोगों की बातें सुनकर उनके अनुभवों से लाभ उठाया जा सकता है, लेकिन भला-बुरा, सोच-समझकर निर्णय स्वयं करना चाहिए।
- प्रयोग अनुकूलता : अन्यों के कहने में न आ जाने की सीख देने के लिए यह कहावत कही जाती है।
- शब्दार्थ : अपन-अपना
सूते के बेर मूते ल जाय, उठ-उठ के घुघरी खाय -- सोने के वक्त पेशाब करने के लिए जाता है और उठ-उठ कर घुघरी खाता है।
- व्याख्या : दूसरे के काम में बाधा डालना।
- प्रयोग अनुकूलता : जो व्यक्ति काम करने के समय में काम नहीं कता तथा दूसरों के काम में रोड़ा अटकाता है, उसके लिए यह कहावत कही जाती है।
- शब्दार्थ : घुघरी-भीगा हुआ चना, मसूर, मटर आदि
- सूपा के बजइ ह फब जथे, फेर चलनी के बजइ ह अर्राए। -- सूप का बजना शोभा देता है, परंतु चलनी का बजना अशोभनीय है।
- व्याख्या : स्वयं अवगुणों से भरा हुआ व्यक्ति यदि दूसरों के दोष देखे, तो यह हँसी की बात है। सूप और चलनी दोनों अन्न का कूड़ा-करकट निकालने के लिए व्यवहार में आते हैं। सूप सार ग्रहण कर के थोथे को छिटका देता है, जबकि चलनी से सार छिटक जाता है, और कूड़ा-कर्कट उसी में रह जाता है। सारग्राही व्यक्ति की बातें प्रभावशील होती हैं, परंतु दोषी व्यक्ति की बातों को कौन सुनेगा।
- प्रयोग अनुकूलता : किसी पतित व्यक्ति द्वारा दूसरों की आलोचना किए जाने पर इस कहावत का प्रयोग होता है।
- शब्दार्थ : सूपा-सूप, फब-शोभा, बजइ-बजाना
- सूपा के बजार माँ हाथी चमकै। -- सूपों के बाजार में हाथी घबड़ाए।
- व्याख्या : हाथी के कान सूप के समान होते हैं। बाजार में ढेर के ढेर सूपों को देखकर हाथी चौक जाता है। सूपों से हाथी का कुछबिगाड़ नहीं हो सकता, जिससे उसका चौंकना व्यर्थ है।
- प्रयोग अनुकूलता : जब किसी सामथ्यर्वान व्यक्ति की आलोचना छोटे लोग करते हैं, जो उसका कुछ नहीं बिगाड़ सकते और उस आलोचना से सामर्थ्यवान व्यक्ति परेशान हो जाता है, तब यह कहावत कही जाती है।
- शब्दार्थ : सूपा-सूप, बजार-बाजार
- सूरज ह उथे त गुहे भर ला नइ सुखावै। -- सूरज उगता है, तो केवल मल को ही नहीं सुखाता।
- व्याख्या : सूर्य के उदय होने से किसी एक व्यक्ति को लाभ नहीं होता, उससे सब लोगों को समान रूप से लाभ मिलता है वह केवल गू को सुखाने के लिए ही नहीं होता।
- प्रयोग अनुकूलता : किसी सामर्थ्यवान व्यक्ति से एक व्यक्ति को ही लाभ नहीं होता। यदि कोई व्यक्ति उससे अकेले ही अपने लाभ की आशा करे, तो वह व्यर्थ है। ऐसे व्यक्ति की बातों को सुनकर उस पर व्यंग्य करने के लिए यह कहावत कही जाती ह।
- शब्दार्थ : उथे-उगना
- सोच विचार के करै, ढेला माँ झन परै। -- सोच-विचर कर काम करना चाहिए, ढेले में नहीं पड़ना चाहिए।
- व्याख्या : किसी काम को खूब सोच-विचार कर करना चाहिए, ताकि उससे नुकसान न हो। यदि कोई काम बिना सोचे किया जाए, तो उसके बिगड़ जाने पर मिट्टि के ढेले के समान मूल्यहीन हो जाता है।
- प्रयोग अनुकूलता : यह कहावत बिना सोचे कोई काम करने वालों को सीख देने के लिए प्रयुत्त होती है।
- शब्दार्थ : झन-नहीं
- सोझ अँगठी माँ घी नइ हिटै। -- सीधी उँगली से घी नहीं निकलता।
- व्याख्या : सीधेपन से काम नहीं चलता।
- प्रयोग अनुकूलता : जब कोई व्यक्ति सज्जनतापूर्वक पेश आने से काम नहीं करता, तब उसके साथ कड़ाई की जाती है, जिससे वह काम करता है। ऐसी हालत में यह कहावत कही जाती है।
- शब्दार्थ : सोझ-सीधा, अंगठी-अंगुली
- सोजवा के डौकी, सब के भौजी। -- शरीफ की बीबी, सबकी भाभी।
- व्याख्या : निर्धन व्यक्ति को सब दबाते हैं। समाज में निर्बल व्यक्ति की पत्नी से हर कोई विनोद करता है।
- प्रयोग अनुकूलता : निधर्नो की दयनीय दशा का दिग्दर्शन कराने के लिए यह कहावत कही जाती है।
- शब्दार्थ : डौकी-पत्नी, सोझवा-सीधा
- सोन के कुदारी माँ घुरवा नइ कोड़ै। -- सोने की कुदाल से कूड़ा नहीं खोदते।
- व्याख्या : कुदाल से मिट्टी खोदी जाती है, परंतु सोने की कुदाल से मिट्टि नहीं खोदी जाती। वह तो केवल शोभा की वस्तु होती है, जिसे मिट्टी खोदकर खराब नहीं किया जाता।
- प्रयोग अनुकूलता : जब किसी अच्छी वस्तु को बहुत साधारण कार्य में प्रयुक्त किया जाता है, तब यह कहावत कही जाती है।
- शब्दार्थ : घुरवा-कूड़ा
- सोनार के सौ घाँ, लोहार के एक घाँ। -- सौ सुनार की, एक लुहार की।
- व्याख्या : बलवानों का एक प्रहार दुर्बलों के कई प्रहारों से भी बढ़कर होता है।
- प्रयोग अनुकूलता : कमजोर व्यक्ति यदि किसी शक्तिशाली व्यक्ति पर बार-बार प्रहार करता है, तो इससे उसका कुछ भी नहीं बिगड़ता, परंतु शक्तिशाली व्यक्ति का एक ही प्रहार दुर्बल व्यक्ति के लिए घातक हो जाता है। ऐसी स्थिति में यह कहावत कही जाती है।
- शब्दार्थ : सोनार-सुनार, घां-की
- सोवै तौन खोवै, जागै तौन पावै। -- सोए सो खोए, जागै सो पाए।
- व्याख्या : जो व्यक्ति किसी फल की प्राप्ति के समय सो जाता है, वह उसकी प्राप्ति से वंचित रह जाता है और जागने वाला उसे पा जाता है।
- प्रयोग अनुकूलता : समय पर उपस्थित न रहने वाले को नुकसान उठाना पड़ता है। ऐसी स्थिति में यह कहावत कही जाती है।
- शब्दार्थ : सौवे-सोना, तौन-वह, खौवे-खोना, जागै-जागना
- सौ ठन पीकरी झन खाए, एक ठन डूमर खा लय। -- सौ पीकरी न खाकर उस के बदले एक गूलर खाना चाहिए।
- व्याख्या : सौ पीकरी खाने वाला व्यक्ति संख्या की दृष्टि से अधिक खाता है, परंतु एक गूलर खाने वाला स्वाद तथा मात्र की दृष्टि से अधिक पा जाता है।
- प्रयोग अनुकूलता : थोड़ी आय वाले कई काम न करके अधिक आय वाला एक काम करना अच्छा है। ऐसे परिपेक्ष्य में यह कहावत कही जाती है।
- शब्दार्थ : पीकरी-पीपल का फल, ठन-नग, झन-नहीं, खाए-खाना, डूमर-गूलर
- सौ माँ पान सहस माँ रोरा, ले लै गाँव त बाँधे घोड़ा। -- सौ में पान तथा सहस्त्र में रोड़ है, गाँव ले लो, तब घोड़ा बाँधना।
- व्याख्या : सौ रूपए पान के लिए पूरे नहीं पड़ सकते, यदि हजार हों, तो भी रोड़ा है। गाँव खरीदने हेतु पर्याप्त साधन हो जाने पर ही घोड़ा खरीदना उचित है। घोड़ा बाँधना थोड़े-मोड़े आय वाले व्यक्ति के वश का नहीं है, क्योंकि उसे खरीद लेना तो आसान है, परंतु बाँधकर खिलाना कठिन है।
- प्रयोग अनुकूलता : जब कोई व्यक्ति अपनी हैसियत से बाहर काम करने लगता है, तब यह कहावत कही जाती है।
- शब्दार्थ : सहस-सहस्त्र, रोरा-रोड़ा, त-तब
- सौ माँ सती, कोट माँ जती। -- सौ में सती, करोड़ में यती।
- व्याख्या : सैकड़ों स्त्रियों में कोई एक सती होती है, तथा करोड़ों पुरूषों में कोई एक यती होता है।
- प्रयोग अनुकूलता : किसी व्यक्ति के विलक्षण गुणों को देखकर यह कहावत कही जाती है।
- शब्दार्थ : कोट-करोड़, जती-यती
- सौ माँ सूर सहस माँ काना, सवा लाख माँ ऐंचाताना। सब मिलकर करिन विचार, कर्रा ले सब मानिन हार। कर्रा ओखर ले मानिस हार, जेखर छाती माँ नइ ए बाल।। -- सौ में अंधा, हजार में काना, सवा लाख में ऐंचाताना उत्तरोत्तर धूर्त होते हैं, धूर्तता में ये सब कंजी आँख वाले से हार मान लेते हैं। कंजी आँख वाला जिसकी छाती पर बाल नहीं होते, उससे हार मान लेता है।
- व्याख्या : सौ व्यक्तियों में अंधे की, हजार में काने की तथा सवा लाख में ऐंचातने की धूर्तता प्रसिद्ध है। इन सबसे अधिक धूर्त कंजी आँखों वाला होता है, परंतु जिस के वक्ष स्थल पर बाल नहीं होते, वह सर्वाधिक धूर्त माना जाता है।
- प्रयोग अनुकूलता : शारीरिक लक्षणों को स्पष्ट करने के लिए यह कहावत प्रयुक्त होती है।
- शब्दार्थ : सहस-सहस्त्र, काना-जिसको एक आंख से दिखाई न दे, ऐंचाताना-तिरछी नजर वाला, करिन-करना, विचारा-विचार, कर्रा-कंजी आंख वाला, ओखर-उससे, मानिस-मानना, जेखर-जिसका, नइ-नहीं
- सौत भल, सौत के लइका अनभल। -- सौत भली, सौत के बच्चे अनभले।
- व्याख्या : किसी स्त्री को उसकी सौत ही कष्ट देती है, परंतु सौत के बच्चे तो स्त्री के बच्चों से भि झगड़ते हैं, जिससे परेशानी अधिक बढ़ जाती है।
- प्रयोग अनुकूलता : किसी बराबर वाले की दुश्मनी बर्दाश्त की जाती है, परंतु उसके गुणों की बातें बर्दाश्त नहीं होती। कुछ ऐसी ही परिस्थितियों के संबंध में यह कहावत कही जाती है।
- शब्दार्थ : भल-भला, लइका-बच्चा, अलभल-भला न होना
- हँड़िया के एक ठन सित्थाह टमरे जाथे। -- हंडी का एक चांवल देखा जाता है।
- व्याख्या : हंडी के एक चांवल को देखकर पता लगाया जा सकता है कि चांवल पक गए हैं या नहीं।
- प्रयोग अनुकूलता : जब किसी एक उदाहरण से उससे संबद्ध सभी बातें स्पष्ट हो जाती हैं, तब इस कहावत का प्रयोग किया जाता है।
- शब्दार्थ : हंड़ियां-हंडी, ठन-नग, सित्थाह-पका हुआ एक चांवल, टमरे-पता लगाना, जाथे-जाना
- हँड़िया के मुँह माँ परइ तोपै, आदमी के मुँह माँ का तोपै। -- हंडी के मुँह को परई से बंद किया जा सकता है, परंतु आदमी के मुँह को कैसे बंद किया जा सकता है
- व्याख्या : आवश्यकता पड़ने पर हंडी के मुँह को ढक्कन लगा कर बंद किया जा सकता है, परंतु मनुष्यों के मुँह को बंद करने के लिए किसी ढक्कन का प्रयोग नहीं किया जा सकता। मनुष्य बोलने के मामले में स्वतंत्र होता है।
- प्रयोग अनुकूलता : जब कोई व्यक्ति बात करने से बाज नहीं आता, तब उसे चुप कराने के लिए यह कहावत कही जाती है।
- शब्दार्थ : हंड़ियां-हंडी, परइ-ढक्कन मिट्टी का, तोपै-ढकना
- हगरा लइका के चिन्हारी आँखी डहर ले। -- बार-बार टट्टी करने वाले (कामचोर) बच्चे की पहचान उसकी आँखों के माध्यम से हो जाती है।
- व्याख्या : किसी कार्य को न करने वाले व्यक्ति का पता उसकी भाव भंगिमा से चल जाता है।
- प्रयोग अनुकूलता : आलसी लोगों के संबंध में यह कहावत कही जाती है।
- शब्दार्थ : हगरा-बार बार दीर्घ शंका जाने वाला व्यक्ति, लइका-बच्चा, चिन्हारी-चिन्ह, आंखी-आंख, डहर-की ओर
- हगरी के खाय त खाय, फेर उटकी के झन खाय। -- जो वसूल कर ले, ऐसे लोगों की वस्तु भले ही खा ली जाए, परंतु जो खिलाकर उसका प्रचार करे, ऐसे लोगों की वस्तु नहीं खानी चाहिए।
- व्याख्या : ऐसा व्यक्ति जो किसी को कुछ खिलाकर उसे उससे उगलवा ले, उसकी वस्तु खाना अच्छा है, परंतु जो व्यक्ति कुछ खिलाकर उसे बार-बार लोगों से कहता फिरता है, उसकी वस्तु को खाना उचित नहीं है। ऐसे व्यक्ति का अहसान नहीं लेना चाहिए, जो उसे हमेशा कहता फिरे।
- प्रयोग अनुकूलता : सीख देने के लिए यह कहावत कही जाती है।
- शब्दार्थ : हगरी-बार-बार दीर्घ शंका जाने वाली महिला या गंदी जगह, खाय-खाना, फेर-फिर, उटकी-उगलने वाला, झन-नहीं
- हगरी ला बाड़ी ओढ़र। -- हगने वाली को बाड़ी का बहाना।
- व्याख्या : बार-बार हगने वाली स्त्री बाड़ी जाने का बहाना करती है, ताकि वह अपना यह दुगुर्ण छिपा सके।
- प्रयोग अनुकूलता : कामचोर व्यक्ति कोई काम न करने के लिए जब कोई बहाना बनाता है, तब यह कहावत कही जाती है।
- शब्दार्थ : हगरी-बार-बार दीर्घ शंका जाने वाली महिला, बाड़ी-घर के पीछे का स्थान जहां छोटा बगीचा होता है, ओढ़र-बहाना
हथौड़ा के घाव, निहइ के माथे। -- हथौड़े का आघात निहइ के ऊपर पड़ता है।
- व्याख्या : हथौड़े से यदि किसी लोहे के टुकड़े को पीटा जाए, तो उसका आघात जिस पर वह रखकर पीटा जाता है, उस पर पड़ता है। हथौड़े के आघात को अंततः निहइ को सहना पड़ता है।
- प्रयोग अनुकूलता : जब कोई व्यक्ति किसी ऐसे व्यक्ति को दंड दे, जो किसी अन्य व्यक्ति का कार्यकर्ता हो, तब उस दंड की प्रतिक्रिया मूल व्यक्ति पर होती है।
- शब्दार्थ : निहइ-लोहे से बनी वस्तु जिस पर लोहे के टुकड़ों को हथौड़े से पीटा जाता है, माथे-मस्तक
- हपटे बन के पथरा, फोरे घर के सील। -- बन के पत्थर से ठोकर खाना और घर की सील को फोड़ना।
- व्याख्या : जंगल के पत्थर से ठोकर खाकर लौटा हुआ व्यक्ति घर की सिल को तोड़ कर उसका बदला चुकाता है।
- प्रयोग अनुकूलता : जब कोई व्यक्ति किसी के क्रोध का शिकार हो जाता है, तब वह अपने आवेश को शांत करने के लिए अपने से कमजोर व्यक्ति पर अपना क्रोध प्रकट करता है। ऐसी स्थिति में यह कहावत कही जाती है।
- शब्दार्थ : हपटे-हपटना, बन-वन, पथरा-पत्थर, फोरे-फोड़ना, सील-बड़ा पत्थर जिसमें चटनी पीस कर बनाया जाता है।
- हर्रा लगै न खिटकिरी, रंग चोखा। -- हर्रा लगा न फिटकरी, रंग चोखा।
- व्याख्या : खर्च कुछ भी न करना और काम बढ़िया चाहना।
- प्रयोग अनुकूलता : जब कोई व्यक्ति मुफ्त में ही अपना काम करवाना चाहता है या किसी का काम बिना व्यय किए ही बन जाता है, तब यह कहावत कही जाती है।
- शब्दार्थ : खिटकरी-फिटकरी, चोखा-बढ़िया
- हरही गरूवा, पैरा के गोड़ाय त। -- भागने वाली गाय और पैरे का बंधन।
- व्याख्या : यदि किसी भागने वाली गाय को पैरे की रस्सी से बाँध दिया जाए, तो वह उस कमजोर रस्सी को तोड़कर भाग जाती है। कुकर्म में प्रवृत्त व्यक्ति पर यदि कड़ा अंकुश न रखा जाए, तो उसका कुकर्म और बढ़ जाता है।
- प्रयोग अनुकूलता : किसी की कुकर्मो पर अंकुश न होने से उसकी बढ़ती हुई बुराइयों को देखकर यह कहावत कही जाती है।
- शब्दार्थ : हरही-भागने वाली या वाला, गरूवा-गाय, गोड़ाय-बंधन
- हरियर खेती, गाभिर गाय, जभै खाय तभे पतियाय। -- हरी खेती का विश्वास उसे खाने के बाद और गाभिन गाय का विश्वास उसका दूध पीने के बाद ही होता है।
- व्याख्या : किसी बिगड़ सकने वाली बात का भरोसा पहले से नहीं करना चाहिए। खेती में अनेक विघ्न पड़ने से हरी फसल नष्ट हो सकती है और गभर्पात आदि विघ्नों का गर्भिणी गाय शिकार बन सकती है, जिससे उनके प्रति संशय बना रहना स्वाभाविक है।
- प्रयोग अनुकूलता : कोई व्यक्ति अनिश्चित भविष्य को निश्चित मानकर उसके संबंध में कोई कार्य करता है, तो यह कहावत कही जाती है।
- शब्दार्थ : हरियर-हरी, गाभिन-गर्भवती, जभै-जब, खाय-खाना, तभे-तभी
- हाँत के अलाली, मुँह माँ मेछा जाय। -- हाथ के आलस्य से मुँह में मूँछें चली जाती हैं।
- व्याख्या : थोड़े आलस्य के कारण नुकसान उठाना पड़ता है।
- प्रयोग अनुकूलता : जब कोई व्यक्ति आलस्य के कारण कोई काम नहीं करता, जिससे उसे कुछ नुकसान हो जाता है, तब यह कहावत कही जाती है।
- शब्दार्थ : हांत-हाथ, अलाली-आलस्य, मेछा-मूंछ, जाय-जाना
- हात के सुवा उड़ागे। -- हाथ का तोता उड़ा गया।
- व्याख्या : यदि हाथ में आया हुआ तोता उड़ जाए, तो तोता पकड़ने वाले को उसके उड़ने का दुःख होता है।
- प्रयोग अनुकूलता : कोई बना-बनाया काम बिगड़ जाए, तो उससे दुःख होता है। ऐसी स्थिति में यह कहावत कही जाती है।
- शब्दार्थ : सुवा-तोता, हाथ-हाथ
- हाँत चलै मुँह बाजै तौन कलउ माँ नाँदै। -- हाथ चले, मुँह बजे, वही कलियुग में टिके।
- व्याख्या : कलियुग में वही व्यक्ति सफल हो सकता है, जो गाली-गलौज तथा मार पीट कर के अपना काम बना लेता है। ऐसे दुर्जन व्यक्ति से बचने के लिए सज्जन लोग उसका काम कर देते हैं।
- प्रयोग अनुकूलता : छल या बल से अपना काम बना लेने वालों की धूर्तता को देखकर यह कहावत कही जाती है।
- शब्दार्थ : हांत-हाथ, चलै-चलना, बाजै-बजना, तौन-वही, कलउ-कलियुग, नांदै-टिकना
- हाँत न हथियार, कामाँ काटै कुसियार। -- हाथ में हथियार नहीं है, गन्ना किससे काटा जाए।
- व्याख्या : गन्ने काटने के लिए तैयार हैं, पर औजार की कमी है।
- प्रयोग अनुकूलता : किसी कार्य को संपन्न करने के लिए साधन की कमी को देखकर यह कहावत कही जाती है।
- शब्दार्थ : कुसियार-गन्ना,हांत-हाथ, कामां-किसमें, काटै-काटना
- हाथी के दू ठन दाँत, खाय के आन, देखाय के आन। -- हाथी के दो दाँत, एक खाने का तथा दूसरा दिखाने का।
- व्याख्या : हाथी के दो प्रकार के दाँत होते हैं। एक प्रकार के दाँत खाने के लिए तथा दूसरे प्रकार के दिखाने के लिए होते हैं। बाहर से दिखाने वाले दाँतों में वह खाता नहीं है।
- प्रयोग अनुकूलता : जो व्यक्ति कहता कुछ और है तथा करता कुछ और है, उसके लिए यह कहावत कही जाती है।
- शब्दार्थ : दू-दो, ठन-नग, खाय-खाना, आन-दूसरा, देखाय-दिखाना
- हाथी के पेट सोहारी माँ नइ भरय। -- हाथी का पेट पूड़ी से नहीं भरता।
- व्याख्या : हाथी का पेट बड़ा होता है, इसलिए उसे खाने के लिए बहुत बड़ी मात्रा में खाद्य पदार्थ की आवश्यकता होती है। दस-बीस व्यक्तियों के लिए पर्याप्त पूड़ियों से भी उसका पेट नहीं भरता।
- प्रयोग अनुकूलता : जब किसी व्यक्ति को कोई चीज थोड़ी मात्रा में दी जाती है, तब उसे उतनी-सी चीज से तसल्ली नहीं होती। किसी चीज कीकमी के कारण उसे अप्रसन्न देखकर यह कहावत कही जाती है।
- शब्दार्थ : सोहारी-पूड़ी, नइ-नहीं, भरय-भरना
- हाथी के माँ सिया देवे। -- क्या हाथी के चूतड़ में रखकर सिलवा दोगे?
- व्याख्या : हाथी के चूतड़ बहुत बड़े होते हैं, किसी व्यक्ति को उनके बीच रखकर सी देने से उसकी मृत्यु हो सकती है। परंतु ऐसा कार्य असंभव है।
- प्रयोग अनुकूलता : कोई व्यक्ति किसी पर नाराज हो जाए और वह उसका कुछ बिगाड़ न पाए, तो इस कहावत के प्रयोग से दूसरा व्यक्ति अपना आशय स्पष्ट करता है।
- शब्दार्थ : सिया-सिलाई, देवे-दोगे
- हाथी बुलक गे, पूछी सकट गे। -- हाथी निकल गया, पूँछ अटक गई।
- व्याख्या : जहाँ हाथी-जैसा विशालकाय जानवर निकल जाए, वहाँ उसकी पूँछ भी आसानी से निकल सकती है। ऐसे में यदि पूँछ अटक जाए तो बड़ा दुःख होता है।
- प्रयोग अनुकूलता : जब कार्य पूर्ण होते-होते अटक जाए, तब यह कहावत कही जाती है।
- शब्दार्थ : बुलक-निकल जाना, पूछी-पूंछ, सटक-अटक जाना
- हाथी ह कतकोन सुखाही, तभो घोड़ा ले मोठ रइही। -- हाथी कितना भी सूखे, वह घोड़े से मोटा ही रहेगा।
- व्याख्या : जो जैसा है वो वैसा ही रहेगा।
- प्रयोग अनुकूलता : किसी पूँजीपति की पूँजी घट जाने पर उससे कुछ माँगने पर यदि वह अपनी असमर्थता प्रकट करे, तो माँगने वाला व्यक्ति औरों से उसकी अधिक अच्छी स्थिति को बताता है। ऐसी परिस्थिति में यह कहावत कही जाती है।
- शब्दार्थ : कतकोन-कितना ही, सुखाही-सूख जाना, तभो-तब भी, मोठ-मोटा, रइही-रहना
- हारै जुंवारी बाघ बरोबर। -- हारा हुआ जुंवारी बाघ-बराबर होता है।
- व्याख्या : हारा हुआ जुंवारी बाघ के समान भयंकर हो जाता है।
- प्रयोग अनुकूलता : यदि किसी व्यक्ति का कोई बड़ा नुकसान हो जाए, तो उसका चित्त ठिकाने नहीं रहता, जिससे वह हर किसी पर बल पड़ता है। नुकसान उठाए हुए व्यक्ति की मनःस्थिति को देखकर यह कहावत कही जाती है।
- शब्दार्थ : हारै-हारा हुआ, जुंवारी-जुआंड़ी, बरोबर-बराबर
- हावै पूछी हावै जात, नइ ए पूछी नइ ए जात। -- पूँछ है, तो जाति है, पूँछ नहीं है, तो जाति नहीं है।
- व्याख्या : प्रतिष्ठावान व्यक्ति अपनी इज्जत को बनाए रखने के लिए प्रयत्नशील रहता है। यदि इज्जत चली जाए, तो जैसे उसका सब-कुछ चला जाता है।
- प्रयोग अनुकूलता : प्रतिष्ठावान के लिए उसकी प्रतिष्ठा को बनाए रखने के संबंध में यह कहावत कही जाती है।
- शब्दार्थ : हावै-है, पूछी-पूंछ, जात-जाति, नइ-नहीं
- हाय रे मोर बोरे बरा, किंजर फिर के मोरे करा। -- हाय रे! मेरा डुबोया हुआ बड़ा, घूम-फिरकर मेरे पास ही आया।
- व्याख्या : चीजों का घूम कर वापस स्वयं के पास आ जाना।
- प्रयोग अनुकूलता : जब किसी व्यक्ति के द्वारा कोई चीज किसी को दे दी जाती है और कुछ समय के बाद वही चीज उस व्यक्ति के पास वापस आ जाती है, तब वह इस कहावत का प्रयोग करता है।
- शब्दार्थ : बोरे बरा-डुबाया हुआ दही-बड़ा, मोर-मेरा, किंजर-घूमना, मोरे-मेरे, करा-पास
- हिजगा माँ बाबू जनमाय। -- देखा-देखी लड़का पैदा करना।
- व्याख्या : जब कोई व्यक्ति किसी दूसरे के यहाँ लड़का पैदा होते देखकर अपने यहाँ भी लड़का ही पैदा करने की बात करता है, तब वह अपने वश केबाहर की बात कहकर दूसरों के उपहास का कारण बनता है।
- प्रयोग अनुकूलता : दूसरों से गलत बराबरी करने वालों के लिए यह कहावत कही जाती है।
- शब्दार्थ : हिजगा-दूसरों को देखकर उसकी बराबरी करना, जनमाय-पैदा करना
- हिनहर होगे बिलया, मुसवा टेवैं कान। -- बिल्ली कमजोर हो गई, जिससे चूहा बेधड़क हो गया।
- व्याख्या : यदि बिल्ली कमजोर हो जाए, तो चूहे उससे नहीं डरते और उसकी असमर्थता को जानकर उस के सामने भी उछल-कूद मचाते हैं।
- प्रयोग अनुकूलता : यदि किसी शक्तिशाली व्यक्ति की शक्ति क्षीण हो जाए, तो उसके अधीन रहने वाले व्यक्ति स्वतंत्र हो जाते हैं। ऐसी स्थिति में यह कहावत कही जाती है।
- शब्दार्थ : हिनहर-कमजोर, बिलइया-बिल्ली, मुसवा-चूहा, टेवैं-ध्यान से सुनना
- हीले रोजी बहाना मौत। -- खुशामद से नौकरी, बहाने से मौत।
- व्याख्या : नौकरी खुशामद करने पर मिलती है तथा मौत के लिए कुछ न कुछ बहाना हो जाता है। जिस प्रकार मौत किसी न किसी कारण से होती है, उसी प्रकार नौकरी भी किसी न किसी की खुशामद करने पर मिलती है।
- प्रयोग अनुकूलता : नौकरी प्राप्त करने तथा मृत्यु हो जाने के संबंध में यह कहावत कही जाती है।
- शब्दार्थ : हीले-खुशामद, रोजी-नौकरी
होती बिरवा के चिक्कन पात। -- तैयार होने वाले पौधे के पत्ते चिकने रहते हैं।
- व्याख्या : जो व्यक्ति आगे चलकर अच्छा होगा, उसके अच्छे लक्षण बचपन में ही दिखलाई पड़ते हैं।
- प्रयोग अनुकूलता : किसी बच्चे में अच्छे गुणों को देखकर उसके लिए भविष्य में अच्छा बनने के संबंध में यह कहावत कही जाती है।
- शब्दार्थ : होती-होना, चिक्कन- चिकना, पात-पत्ते
आल माल खोखरी, माल गोसइन फोकली। -- सब माल किसी और को मिल जाए तथा स्वामिनी को कुछ भी हाथ न लगे।
- व्याख्या : मालिक ही कभी-कभी अपने सामान का उपयोग नहीं कर पाता।
- प्रयोग अनुकूलता : किसी चीज को पैदा करने वाला उसका उपभोग न कर पाए तथा अन्य लोग उससे लाभान्वित हों, तब यह कहावत कही जाती है।
- शब्दार्थ : आल-सभी, माल-वस्तु, खोखरी-अन्यों का, फोकली-कुछ न मिले
- आवन लगिस बरात, त ओटन लगिस कपास। -- जब बरात आने लगी, तब कपास औटना।
- व्याख्या : पहले से प्रबंध न रखकर काम बिगड़ जाने पर प्रयत्न करना।
- प्रयोग अनुकूलता : जब कोई काम बिलकुल सिर पर आ जाता है, तब उस के लए प्रयत्न करने पर इस कहावत का प्रयोग किया जाता है।
- शब्दार्थ : आवन-आना, लगिस-लगना, बरात-बारात, त-तब ओटन-औटना
- उड़री मेहरिया ला धुँगिया ओढ़र। -- भागने वाली स्त्री के लिए धुएँ का बहाना।
- व्याख्या : किसी को जब भागना ही होता है तो वह कोई भी बहाना बना देता है।
- प्रयोग अनुकूलता : जब कोई स्त्री ससुराल से भागकर मायके चली आती है तथा अपने भागने का कारण ससुराल में अधिक धुँआ होना बताती है, तब उस के झूठे बहाने को सुनकर यह कहावत कही जाती है।
- शब्दार्थ : उड़री-भागने वाली, मेहरिया-स्त्री, धुँगिया-धुँआ
- उधार के खवइ, अउ भुर्री के तपइ। -- उधार का खाना और फूस का तापना।
- व्याख्या : जिस प्रकार फूस की आग अधिक देर नहीं ठहरती, उसी प्रकार उधार लेकर खाना भी बहुत दिनों तक नहीं चलता, क्योंकि इससे अधिक खर्च करने की आदत बढ़ जाती है, जिससे कर्ज बढ़ते जाता है।
- प्रयोग अनुकूलता : उधार लेने वालों को सीख देने के लिए यह कहावत कही जाती है।
- शब्दार्थ : खवइ-खाना, अउ-और, भुर्री-फूस, तपइ-तपना
- उपर माँ राम-राम भीतर माँ कसइ काम। -- ऊपर से राम-राम कहना और भीतर कसाई का कार्य करना।
- व्याख्या : ऊपर से मीठी-मीठी बातें करना, किंतु मन में कपट रखना।
- प्रयोग अनुकूलता : किसी पाखंडी व्यक्ति के चरित्र के बारे में बतलाने के लिए यह कहावत प्रयुक्त होती है।
- शब्दार्थ : उपर-ऊपर, कसइ-कसाई
- उपास न धास, फरहार बर लपर-लपर। -- उपवास तो है नहीं, परंतु फलाहार के लिए पहले तैयार।
- व्याख्या : काम-काज तो करना नहीं, खाने को बहादुर हैं।
- प्रयोग अनुकूलता : इस कहावत का प्रयोग ऐसे लोगों के लिए किया जाता है, जो काम तो करते नहीं, परंतु खाने के लिए पहले पहुँच जाते हैं।
- शब्दार्थ : उपास-उपवास, धास-अनुरणात्मक शब्द, फरहार-फलाहार, लपर-जल्दी।
- उबरे भात के सगा। -- बचे हुए चावल के लिए मेहमान।
- व्याख्या : जब कोई व्यक्ति कुसमय में किसी रिश्तेदार के घर पहुँच जाता है, तब उसे जो कुछ बचा-खुचा खाना होता है, उसे ही दे दिया जाता है।
- प्रयोग अनुकूलता : कुसमय में आए हुए सामान्य मेहमान के लिए पुनः खाना नहीं बनाया जाता। उस के महत्व को स्पष्ट करने के लिए यह कहावत कही जाती है।
- शब्दार्थ : उबरे-बचे हुए, भात-पका हुआ चांवल, सगा-मेहमान
- उरई तरी के सगा ए। -- दूर के संबंधी हैं।
- व्याख्या : धनवान व्यक्ति की पूछ-परख ज्यादा होती है, गरीबी में कोई सुध लेने वाला नहीं होता।
- प्रयोग अनुकूलता : गरीबी में व्यक्ति को कुटुंबी जन भी नहीं पूछते, परंतु धनी हो जाने पर लोग उससे अपनी-अपनी नातेदारी बताने वालों के लिए यह कहावत कही जाती है।
- शब्दार्थ : उरई-धान के समान एक पौधा, तरी-नीचे, सगा-नातेदार
- उलटा-पुलटा भइ संसारा, नाउ के मूँड़ ला मूँड़े लोहारा। -- संसार के नियम उलट गए, जिससे लुहार नाई का सिर मूँड़ता है।
- व्याख्या : नाई अन्य जाति वालों के समान ही लुहार के भी बाल काटता है। नाई के बाल दूसरा नाई काटता है। यदि नाई के बाल लुहार काटे, तो यह लौकिक नियम के विरूद्ध बात है।
- प्रयोग अनुकूलता : किसी लौकिक नियम के विरूद्ध होने वाले कार्य को देखकर यह कहावत कही जाती है।
- शब्दार्थ : नाउ-नाई, मूंड़-सिर, मूंड़े-मुंडन करना, लोहारा-लोहार
- ऊँट के गर ह लंबा होथे, त बेरी-बेरी हलात नइ रहै। -- ऊँट की गर्दन लंबी होती है, तो वह उसे बार-बार नहीं हिलाता।
- व्याख्या : ऊँट अपनी गरदन को लंबा होने के कारण बार-बार नहीं हिलाता, बल्कि जरूरत होने पर ही उसे हिलाता है।
- प्रयोग अनुकूलता : किसी व्यक्ति की सज्जनता का फायदा उठाकर उसे बार-बार तंग किए जाने पर वह रूष्ट हो सकता है। किसी सज्जन के संकोच का लाभ उठाते देखकर यह कहावत कही जाती है।
- शब्दार्थ : बेरी-बेरी-बार-बार, नही-नहीं, हलात-हिलाना, गर-गरदन
- ऊँट के चोरी अउ सूपा के ओधा। -- ऊँट की चोरी और सूप की आड़।
- व्याख्या : बड़े काम चोरी-छिपे नहीं होते
- प्रयोग अनुकूलता : कोई व्यक्ति जब यह तरकीब सुझाता है कि मैं यह कार्य लोगों के देखते-देखते इस प्रकार कर दूँगा कि किसी को पता नहीं चलेगा, तो उस के लिए यह कहावत कही जाती है।
- शब्दार्थ : सूपा-सूप, ओधा-आड़
- ऊँट के मुँहू मा जीरा। -- ऊँट के मुँह में जीरा।
- व्याख्या : यदि ऊँट जैसे बड़े जानवर को खाने के लिए जीरा दिया जाए, तो इससे उसका पेट नहीं भरता। अधिक भोजन करने वाले किसी व्यक्ति को यदि कम मात्रा में भोजन दिया जाए, तो उससे उस व्यक्ति को तृप्ति नहीं होती।
- प्रयोग अनुकूलता : जब किसी व्यक्ति को कोई चीज अधिक मात्रा में चाहिए और यदि उसे वह थोड़ी मात्रा में मिले, तो यह कहावत कही जाती है।
- शब्दार्थ : मुंहूं-मुख, मा-में
- ऊँट चरावै खाल्हे-खाल्हे। -- ऊँट नीची जमीन में चराना।
- व्याख्या : ऊँट जैसे जानवर को नीची भूमि पर कितना भी छिपा कर चराया जाए, छिप नहीं सकता।
- प्रयोग अनुकूलता : कोई व्यक्ति जब कोई काम बड़े पैमाने पर गुप्त रूप से करता है, परंतु प्रगट हो जाता है, तब यह कहावत कही जाती है।
- शब्दार्थ : चरावै-चरना, खाल्हे-नीचे
- ए अंधेर कब तक चलही। -- यह अंधेर कब तक चलेगा।
- व्याख्या : गलत कार्य आखिर कब तक चलेगा ?
- प्रयोग अनुकूलता : जब कोई सबल व्यक्ति लगातार अत्याचार किए जाता है, तब लोग उसके अत्याचार से तंग आकर उसी चर्चा करते हुए इस कहावत का प्रयोग करते हैं।
- शब्दार्थ : ए-यह, अंधेर-गलत कार्य, चलही-चलना
- एक के एक्कइस करथे। -- एक का इक्कीस करता है।
- व्याख्या : किसी बात को खूब बढ़ा-चढ़ाकर कहने वाले के लिए एक का इक्कीस करने की बात कही जाती है।
- प्रयोग अनुकूलता : बढ़ा-चढ़ाकर बात करने वालों के लिए यह कहावत प्रयुक्त की जाती है।
- शब्दार्थ : एक्कइस-इक्कीस, करथे-करना
- एक कोलिहा हुँआ-हुँआ, त सबो कोलिहा हुँआ-हुँआ। -- एक सियार हुँआ बोला, तो सभी सियार हुँआ बोलने लगे।
- व्याख्या : किसी सियार की आवाज सुनकर दूसरे सियार भी आवाज करते हैं। उसकी आवाज एक-दूसरे की सहमति का द्योतक समझी जाती है।
- प्रयोग अनुकूलता : कोई व्यक्ति कुछ बोले और अन्य व्यक्ति बिना कुछ सोचे-विचारे उसकी हाँ-में-हाँ मिलाने लग जाए, तब यह कहावत प्रयुक्त होती है।
- शब्दार्थ : कोलिहा-सियार, हुंआ-हुंआ-सियार के चिल्लाने की आवाज, त-तो, सबो-सब
- एक गिरै सहर माँ, क गिरै पहर माँ। -- या तो शहर में गिरता है या पहाड़ पर।
- व्याख्या : वर्षा शहर में या पहाड़ पर होने पर उसका विशेष उपयोग नहीं हो पाता। खेती के लिए जहाँ पानी अधिक चाहिए, वहाँ पर्याप्त वर्षा न होकर अन्यत्र भी हो जाता है।
- प्रयोग अनुकूलता : किसी वस्तु की आवश्यकता एक स्थान पर हो, लेकिन वहाँ वह उपलब्ध न हो और अन्यत्र बरबाद होती रहे, तब इस कहावत का प्रयोग किया जाता है।
- शब्दार्थ : पहर-पहाड़, गिरै-गिरना, सहर-शहर
- एक घरही रहै, तेमाँ बइला चढ़ के आवै। -- एक घर वाला व्यक्ति है, उस पर भी बैल पर चढ़कर आता है।
- व्याख्या : व्यक्ति अपनी जाति का गाँव में अकेला है, तब भी वह अपने को बड़ा सिद्ध करने के लिए बैल पर चढ़ कर आता है।
- प्रयोग अनुकूलता : दुर्बल व्यक्ति के द्वारा झूठा प्रदर्शन करने पर यह कहावत प्रयुक्त होती है।
- शब्दार्थ : घरही-घर, रहै-रहना, तेमां-उसमें, बइला-बैल, चढ़-चढ़ना, आवै-आना
- एक छाक पिइस त मतवार, दू छाक पिइस त मतवार। -- एक घूँट पीए तो भी मतवाले, दो घूँट पीए तो भी मतवाले।
- व्याख्या : कोई व्यक्ति शराब चाहे थोड़ी पीए या ज्यादा, देखने वाले तो उसे शराबी ही कहेंगे। उन्हें इससे क्या मतलब कि उसने शराब कितनी पी है?
- प्रयोग अनुकूलता : जब कोई व्यक्ति उदाहरणार्थ यह कहता है कि उसने तो एकाध बार ही झगड़ा किया है, तब भी लोग उसे झगड़ालू कहते हैं। किसी भी कुकर्म का थोड़ा भी किया जाना आदमी को कुकर्मी बना देता है।
- शब्दार्थ : छाक-घूंट, पिइस-पीना, मतवार-शराबी, दू-दो
- एक जंगल माँ दू ठिन बघवा नइ रहै। -- एक जंगल में दो बाघ नहीं रहते।
- व्याख्या : दो शक्तिशाली आपस में मिलकर नहीं रह सकते। प्रत्येक एक दूसरे को समाप्त कर देने का प्रयत्न करता है, ताकि उसकी ही अधिकार रहे।
- प्रयोग अनुकूलता : दो शक्तिशाली लोगों के विरोध को देखकर यह कहावत कही जाती है।
- शब्दार्थ : दू-दो, ठिन-नग, बघवा-बाघ, नइ-नहीं, रहै-रहना
एक ठन लइका, गांव भर टोनही। -- अकेला बच्चा और गाँव भर जादूगरनी।
- व्याख्या : किसी एक बच्चे का नुकसान करने वाली अनेक जादूगरनियाँ हैं।
- प्रयोग अनुकूलता : जब किसी एक वस्तु के अनेक ग्राहक हों, तब यह कहावत कही जाती है।
- शब्दार्थ : टोनही-जादूगरनी, ठन-नग, लइका-बच्चा, गांव भर-पूरे गांव में
- एक ठन हर्रा गाँव भर खोंखी। -- एक हर्रा, गाँव भर खाँसी।
- व्याख्या : एक वस्तु के अनेक ग्राहक।
- प्रयोग अनुकूलता : जब किसी एक वस्तु को चाहने वाले अनेक लोग हो जाते हैं, तब यह कहावत कही जाती है। इसका आशय ‘एक अनार, सौ बीमार’वाला है।
- शब्दार्थ : खोंखी-खाँसी, ठन-नग, गांव भर-पूरे गांव में
- एक तो अइसने भैरी, तउन माँ बाजा बाजै। -- एक तो ऐसे ही बहरी, ऊपर से बाजा बज रहा है।
- व्याख्या : बहरी स्त्री के कुछ न सुनने पर बाजा पर बाजा बजने का बहाना मिल जाए, उसी प्रकार स्वभाव से अकर्मण्य व्यक्ति को यदि कोई बहाना मिल जाए, तो फिर क्या कहना।
- प्रयोग अनुकूलता : बहाना खोज लेने वाले कामचोर लोगों के लिए यह कहावत कही जाती है।
- शब्दार्थ : भैरी-बहरी, अइसने-ऐसा ही, तउन-उसमें, मां-ही, बाजा-वाद्य यंत्र, बाजै-बजना
- एक दौरी माँ हाँकत हे। -- एक दौरी में हाँकता है।
- व्याख्या : फसल की मिंजाई करने के लिए बैलों को रस्सी से एक साथ जोड़कर गोल घुमाते हुए मिंजाई करते हैं। इसमें प्रयुक्त बैलों में कमजोर और शक्तिशाली बैलों का महत्व बराबर होता है।
- प्रयोग अनुकूलता : जब कभी अच्छे-बुरे लोगों को बराबर महत्व दिया जाता है, तब यह कहावत कही जाती है।
- शब्दार्थ : दौरी-मिंजाई के लिए प्रयुक्त बैलों को एक में जोड़ने वाली विशेष प्रकार की रस्सी, हांकत-हांकना
- एक बूँद मही माँ छीर सागर नइ कल्थय। -- एक बूँद मठे से क्षीर सागर का कुछ नहीं बिगड़ता।
- व्याख्या : दूध के समुद्र में एक बूँद मठा डाल दिया जाए, तो उसमें का दूध फटता नहीं है।
- प्रयोग अनुकूलता : अच्छाइयों की खान में छुटपुट-बुराई यों ही छिप जाती है। सौ सज्जनों का एक दुर्जन कुछ नहीं बिगाड़ पाता। एक किलो शहद में नीम की एक पत्ती कडुवाहट नहीं ला सकती। ऐसे ही प्रसंगों में इस कहावत का प्रयोग होता है।
- शब्दार्थ : कल्थय-बिगड़ना, मही-मट्ठा, छीर-क्षीर, नइ-नहीं
- एक राज करै राजा, के दूसर करै परजा। -- एक तो राजा राज्य करता है, दूसरे प्रजा राज्य करती है।
- व्याख्या : राजा तो राज्य करता है, परंतु प्रजा की बात राजा मानता है, इसलिए अप्रत्यक्ष रूप से प्रजा का राज्य होता है।
- प्रयोग अनुकूलता : जहाँ सभी की बात चलती है और सभी को संतोष होता है, वहाँ के लिए यह कहावत कही जाती है।
- शब्दार्थ : दूसर-दूसरा, करै-करना, परजा-प्रजा
- एक रात के अढ़इ हर्रा बेचागे। -- एक रात में अढ़ाई हर्रा बिक गया।
- व्याख्या : हर्रे की आवश्यकता अचानक इतनी अधिक हो गई कि उसका मूल्य खूब चढ़ गया, परंतु थोड़ी देर बाद ही उसकी आवश्यकता समाप्त हो गई, अचानक किसी रात में यह घटना घटित हो गई।
- प्रयोग अनुकूलता : इसी प्रकार यदि कोई असामान्य बात हो जाए, तो उसे बताने के लिए यह कहावत कही जाती है।
- शब्दार्थ : अढ़इ-अढ़ाई, बेचागे-बिक गया
- एक लाँघन, पाँच फरहार। -- एक लंघन, पाँच फलाहार।
- व्याख्या : किसी व्यक्ति के पास खाद्य पदार्थ का अभाव है। वह अपने अभाव की पूर्ति के लिए मजदूरी करता है। मजदूरी से प्राप्त पैसों से वह कभी अनाज खरीद पाता है और कभी नहीं, जिससे वह कभी खाना पा जाता है और कभी नहीं पाता।
- प्रयोग अनुकूलता : किसी ऐसे गरीब व्यक्ति की स्थिति जिसे खाने के विषय में “एक बार उपवास करना पड़ता है और पाँच बार अपूर्ण पेट रहना पड़ता है।” यह कहावत कहकर स्पष्ट की जाती है।
- शब्दार्थ : लांघन-लंघन, फरहार-फाहार
- एक ला माँय, एक ला मोसी। -- एक को माँ, एक को मौसी।
- व्याख्या : समान रूप से सक्षम दो व्यक्ति के साथ कोई व्यक्ति एक के साथ अधिक प्यार और दूसरे के साथ कम करता है।
- प्रयोग अनुकूलता : जब कोई व्यक्ति किन्हीं दो व्यक्तियों में से एक के प्रति सगा तथा दूसरे के प्रति सौतेला व्यवहार करता है, तब यह कहावत कही जाती है।
- शब्दार्थ : मांय-मां, ला-को, मोसी-मौसी
- एक सिकहर हालै, त सौ घर ला घालै। -- एक सींक हिले, तो सौ घर को नुकसान करे।
- व्याख्या : सींक के समान किसी छोटी सी वस्तु से बहुतों का नुकसान हो जाना।
- प्रयोग अनुकूलता : यों तो आश्र्चयर्जनक है, किंतु किसी सामान्य सी बात या छोटे से आदमी के कारण कभी-कभी बड़ा भारी नुकसान हो जाता है, जैसे छोटा सा छेद बड़े-से-बड़े जहाज को डुबो सकता है। ऐसा होने पर यह कहावत प्रयुक्त होती है।
- शब्दार्थ : सिकहर-सींक, हालै-हिलना, त-तो, ला-को, घालै-नुकसान करना
- एक हाँत खीरा के नौ हाँत बीजा। -- एक हाथ ककड़ी का नौ हाथ बीज।
- व्याख्या : एक हाथ लंबी ककड़ी का बीज नौ हाथ लंबा नहीं हो सकता।
- प्रयोग अनुकूलता : यह बात केवल बढ़ा-चढ़ाकर कही गई है, जो असंभव है। इसी प्रकार, कोई व्यक्ति जब किसी बात को बढ़ा-चढ़ाकर कहता है, तब यह कहावत कही जाती है।
- शब्दार्थ : हांत-हाथ, बीजा-बीज
- एक हाँत माँ रोटी नइ पोवाय। -- एक हाथ से रोटी नहीं बनती।
- व्याख्या : जिस प्रकार एक हाथ से रोटी नहीं बन सकती, उसी प्रकार दो पक्षों के बिना झगडा नहीं हो सकता।
- प्रयोग अनुकूलता : झगड़ा दोनों ओर से होता है, ऐसी ही परिपेक्ष्य में यह कहावत कही जाती है।
- शब्दार्थ : हाँत-हाथ, पोवाय-बनती
- ओखी के खोखी, नकटी के जूड़ी। -- बहाने की खाँसी, नकटी की सर्दी।
- व्याख्या : नकटी स्त्री सर्दी होने का बहाना कर के खांसती है।
- प्रयोग अनुकूलता : जब कोई व्यक्ति झूठ-मूठ का बहाना बनाकर अपना प्रयोजन सिद्ध करना चाहता है, तब यह कहावत कही जाती है।
- शब्दार्थ : ओखी-बहाना, खोखी-खाँसी, जूड़ी-सर्दी
- ओढ़े बर ओढ़ना नहिं, बिछाय बर बिछौना। -- बिहाव बर बाट देखै, रतनपुर के कैना।
- व्याख्या : ओढ़ने-बिछाने के लिए तो वस्त्र नहीं है और रतनपुर की कन्या शादी का बाट जोह रही है। घर में गरीबी है, तब भी लड़की बड़े शहर में बसने के कारण शहरी बड़प्पन मानते हुए शादी का इंतजार करती है।
- प्रयोग अनुकूलता : जब कोई गरीब व्यक्ति अपने बड़प्पन की बातें (वंश, जाति, स्थान, आदि की) करता है, तो यह कहावत कही जाती है। किन्हीं दिनों शादी-ब्याह में कुलीन वंश में शादी करने की बात कही जाती थी, किंतु इधर पैसों का महत्व बढ़ जाने से कुल आदि की बातों की ओर लोग ध्यान नहीं देते।
- शब्दार्थ : ओढ़े-ओढ़ना, बर-के लिए, ओढ़ना-ओढ़ने का चादर, बिछाय-बिछाना, बिछौना-बिछाने का चादर
- ओतिहा ला धोतिया गरू। -- आलसी को धोती भी वजनी।
- व्याख्या : आलसी व्यक्ति को अपने पहनने के लिए धोती भी भारस्वरूप लगती है।
- प्रयोग अनुकूलता : आलसी व्यक्ति के लिए हर काम भारी पड़ता है, कुछ ऐसे ही परिपेक्ष्य में यह कहावत कही जाती है।
- शब्दार्थ : ओतिहा-आलसी, गरू-वजनी
- ओरिया के पानी बरेंडी नइ चढ़ै। -- ओलाती (छप्पर के नीचे का भाग) का पानी बरेंडी (छप्पर के ऊपर का भाग) पर नहीं चढ़ता।
- व्याख्या : छप्पर के ऊपरी हिस्से का पानी ढुलककर छप्पर के नीचे की ओर आता है। ओलाती नीची होने के कारण पानी ऊपर नहीं चढ़ सकता।
- प्रयोग अनुकूलता : जो कार्य कदापि नहीं हो सकता, उसके होने के संबंध में यदि कोई कहे, तो उसकी बात को गलत सिद्ध करने के लिए यह कहावत कही जाती है।
- शब्दार्थ : ओरिया-छप्पर का निचरला हिस्सा, जिससे वर्षा का पानी नीचे गिरता है, बरेंडी-छप्पर का ऊपरी भाग, नइ-नहीं, चढ़े-चढ़ना
- ओले अइन, पोले गइन। -- ओले के समान आए और घुल कर नष्ट हो गए।
- व्याख्या : ओले गिरते हैं, जिससे कई प्रकार की क्षति होती है, परंतु वे घुलकर जल्दी समाप्त भी हो जाते हैं।
- प्रयोग अनुकूलता : जो जोर-शोर से कोई कार्य प्रारंभ करता है और कुछ दिनों बाद कार्य बंद कर देता है, उस के लिए यह कहावत प्रयक्त होती है।
- शब्दार्थ : अइन-आए, पोले-घुल जाना, गइन-जाना
- ओस चटाय माँ लइका नइ जिए। -- ओस चटने से बालक नहीं जीता।
- व्याख्या : किसी बालक को जीवित रखने के लिए दूध, पानी, आदि की आवश्यकता होती है, ओस चाटने से वह जीवित नहीं रह सकता।
- प्रयोग अनुकूलता : वास्तविकता को छिपाकर कोई किसी को भुलावे में डालकर कोई काम करना चाहे, तो उसमें उसे सफलता नहीं मिल सकती।
- शब्दार्थ : चटाय-चटाना, लइका-बच्चा, नइ-नहीं, जिए-जीना
- औंघात रहे जठना पागे। -- ऊँघ रहा था, बिस्तर पा गया।
- व्याख्या : अनुकूल परिस्थिति अनायास ही मिल गई।
- प्रयोग अनुकूलता : किसी व्यक्ति की इच्छा जिस काम को पूरा करने की हो, उस के लिए उसे यदि अनुकूल या उपयुक्त अवसर और साधन उपलब्ध हो जाए, तब यह कहावत कही जाती है।
- शब्दार्थ : जठना-बिस्तर औंघात-उंघना, पागे-पा लिया
- कथरी ओढ़े, घीव खाय। -- कत्थर ओढ़ना और घी खाना।
- व्याख्या : जो व्यक्ति फटे-पुराने वस्त्र पहनकर लोगों को भुलावे में डालता है कि गरीबी के कारण उसकी ऐसी स्थिति है, जबकि वास्तविकता इस के विरूद्ध हो, अर्थात् घी खाता हो, तब उसके लिए कहा जाएगा कि वह अपनी वास्तविक स्थिति को छिपाकर लोगों को भुलावे में डालता है। ऐसे बहानेबाजों के लिए यह कहावत कही जाती है।
- प्रयोग अनुकूलता : वास्तविकता को छुपाने वाले लोगों के लिए यह कहावत कही जाती है।
- शब्दार्थ : कथरी-कत्थर, ओढ़े-ओढ़ना, घीव-घी, खाय-खाना
कतको करै, गुन के न जस के। -- कितना भी करे, गुण का न यश का।
- व्याख्या : किसी व्यक्ति को मदद करते रहो पर वह अहसान भी नहीं मानता।
- प्रयोग अनुकूलता : जब कोई व्यक्ति किसी की भलाई के लिए रात-दिन लगा रहता है, परन्तु दूसरा व्यक्ति उसकी परवाह नहीं करता, तब उसकी मनःस्थिति को स्पष्ट करने के लिए भलाई करने वाला व्यक्ति इस कहावत का प्रयोग करता है।
- शब्दार्थ : कतको-कितना ही, करै-करना, गुन-गुण, जस-जश
- कन्हार जोतै, कुल बिहावै। -- कन्हार जोतना, कुलीन वंश में विवाह करना।
- व्याख्या : अन्य प्रकार की भूमि की अपेक्षा कन्हार जमीन में खेती करने से फसल खराब होने की संभावना कम होती है तथा कुलीन वंश में शादी करने से प्रतिष्ठा घटने की संभावना कम रहती है।
- प्रयोग अनुकूलता : शादी तय करते समय खानदान की छान-बीन करने के लिए तथा शादी के बाद लड़की खराब निकल जाने पर यह कहावत कही जाती है।
- शब्दार्थ : कन्हार-काली मिट्टी वाली जमीन, जिसमें उपज ज्यादा होती है, जोतै-जुताई, बिहावै-विवाह करना
- कनखजूर के एक गोड़ टूट जाथे, तभो खोरवा नइ होय। -- कानखजूरे का एक पैर टूट जाने पर भी वह लँगड़ा नहीं होता।
- व्याख्या : यदि बड़े आदमी का थोड़ा-बहुत नुकसान हो जाए, तो वह उसे नहीं अखरता।
- प्रयोग अनुकूलता : इस कहावत का प्रयोग ऐसे बड़े लोगों के लिए होता है, जिनका थोड़ा-मोड़ा नुकसान कुछ अर्थ नहीं रखता।
- शब्दार्थ : गोड़-पैर, खोरवा-लँगड़ा, कनखजूर-कानखजूर, जाथे-जाना, तभो-तब भी, नइ-नहीं, होय-होना
- कनवा के रोटी ला कुकुर खाय। -- काने की रोटी को कुत्ता खाता है।
- व्याख्या : काने व्यक्ति के न देख सकने के कारण उसकी रोटी को कुत्ता खा जाता है।
- प्रयोग अनुकूलता : जो व्यक्ति अपनी वस्तुओं की निगरानी नहीं करता, उसकी वस्तुओं का उपभोग दूसरे लोग करते हैं, कुछ ऐसे ही परिपेक्ष्य में यह कहावत कही जाती है।
- शब्दार्थ : कनवा-काना, ला-को, कुकुर-कुत्ता, खाय-खाना
- कनवा के सहे, फेर फूला पेर के झन सहे। -- काने की बातें भले ही बर्दाश्त कर ले, किंतु फुल्ली पड़ी आँखों वाले की बातें कभी बर्दाश्त न करे।
- व्याख्या : पूर्ण अपराधी को फुल्ली पड़ी आँखों के समान तथा छोटे-मोटे अपराधी को काने के समान समझते हुए इस कहावत में कहा गया है कि व्यक्ति किसी सामान्य अपराधी को भले ही माफ कर दे, उसे भयंकर अपराधी को कभी माफ नहीं करना चाहिए।
- प्रयोग अनुकूलता : अपराध की सजा मिलनी ही चाहिए, इस परिपेक्ष्य में यह कहावत कही जाती ह।
- शब्दार्थ : फूला-आँख की पुतली पर का सफेद धब्बा, जिस के कारण कुछ दिखाई नहीं पड़ता, कनवा-काना, झन-लोग
- कनवा राजा के नौ ठन कानून। -- काने राजा के नौ कानून।
- व्याख्या : काने व्यक्ति धूर्त होते हैं, इसलिए अपनी मर्जी के अनुसार काना राजा भी कानून बदलता रहता है।
- प्रयोग अनुकूलता : जो व्यक्ति अपनी मर्जी के अनुसार कुछ-का-कुछ कहता और करता है, वह काने राजा के समान है।
- शब्दार्थ : कनवा-काना, ठन-नग
- कब के खेमइ घी खवइया। -- खेमइ कब से घी खाने लगा है।
- व्याख्या : कंजूस व्यक्ति को घी खाते हुए देखकर आश्चर्य होता है।
- प्रयोग अनुकूलता : कोई व्यक्ति जब अपने स्वभाव के विपरीत कार्य करते हुए दिखलाई पड़ता है, तब आश्चर्य के साथ उस के लिए यह कहावत कही जाती है।
- शब्दार्थ : खेमइ-कंजूस व्यक्ति, खवइया-खाने वाला
- कब के टिटही, कब के छचाँद। -- कभी की टिटही, कभी का छचाँद।
- व्याख्या : टिटही जैसा सामान्य पक्षी कब से छचाँद जैसा शक्तिशाली हो गया।
- प्रयोग अनुकूलता : कोई सामान्य व्यक्ति धन या पद आदि पा जाने पर यदि अपना रोब जमाने लगे, तो लोग आश्चर्य के साथ उस के लिए इस कहावत का प्रयोग करते हैं।
- शब्दार्थ : टिटही-टिटिहरी, तालाब में रहने वाला एक पक्षी, छचाँद-बाज, एक शक्तितशाली पक्षी, जो अन्य पक्षियों को मार खाता है, कब-कभी
- कब बबा मरही त कब बरा खाबो। -- कब बाबा मरेगा, कब बड़े खाएँगे।
- व्याख्या : मृत्यु-भोज में बड़ा नामक व्यंजन छत्तीसगढ़ में अनिवार्य रूप से बनाया जाता है। बाबा बूढ़ा हो गया है, अतः उसके जल्दी मरने की संभावना है।
- प्रयोग अनुकूलता : बड़े खाने की इच्छा बाबा के मरने पर पूरी हो सकती है, परंतु बाबा के मरने के कोई लक्षण न होने से बड़े खाने की इच्छा भी पूरी नहीं हो सकती। इस प्रकार की निराशापूर्ण स्थिति में यह कहावत कही जाती है कि कब बाबा मरेगा और कब बड़े खाएँगे।
- शब्दार्थ : बबा-बुर्जुग व्यक्ति, मरही-मरना, बरा-बड़ा, खाबो-खाना
- कब मोर सासू, कब आवै आँसू। -- कब मेरी सास होगी और कब आँसू आवेंगे।
- व्याख्या : शादी होने के बाद ही लड़की को ससुराल में सास मिलेगी। सास से तंग आकर वह आँसू बहाएगी। आँसू बहाने का अवसर शादी होने पर ही मिल सकता है। शादी में विलंब होने से यह अवसर जल्दी नहीं आ सकता।
- प्रयोग अनुकूलता : इसी प्रकार किसी कार्य में विलंब होने पर उससे मिलने वाले फल की आशा में भी विलंब देखकर यहा कहावत कही जाती है।
- शब्दार्थ : मोर-मेरा, सासू-सास, आवै-आना
- कभू काल के करिस उधवा, तेखर कूला ला चाबिस घुघवा। -- कभी कोई कार्य किया भी तो उस के चूतड़ को उल्लू ने काट खाया।
- व्याख्या : किसी व्यक्ति ने ले-दे कर कोई कार्य प्रारंभ किया। कार्य प्रारंभ करते ही उस के चूतड़ को उल्लू ने काट लिया, जिससे उसका कार्य रूक गया।
- प्रयोग अनुकूलता : यदि व्यक्ति कोई कार्य प्रारंभ करे और प्रारंभ करते ही उसमें अनेक विध्न-बाधाएँ पड़ जाएँ, तो इस कहावत का प्रयोग किया जाता है।
- शब्दार्थ : घुघवा-उल्लू, कभू-कभी, करिस-किया, कूला-चूतड़, चाबिस-चाबना, घुघवा-उल्लू
- कभू काल के खाइस, दाँत निपोरिस गइस परान। -- कभी पान खाया भी तो दाँत निपोर कर मर गया।
- व्याख्या : ऐसा व्यक्ति जिसने कभी पान न खाया हो, वह पान खाने के तरीके से अनभिज्ञ होता है।
- प्रयोग अनुकूलता : अकस्मात् यदि उसे खाने के लिए मिल जाए, तो वह उसे चांवल, रोटी आदि परिचित खाद्य पदार्थ के समान खाते हुए पान में पड़ी हुई नशीली वस्तुओं की पीक घुटक जाने से उसकी स्थिति असामान्य हो जाती है। उससे कभी-कभी बेहोशी की स्थिति भी आ जाती है। इसी प्रकार किसी कार्य के रहस्य को न समझने वाला व्यक्ति उस कार्य मे हाथ डालने पर खतरे में पड़ जाता है। ऐसे में यह कहावत कही जाती है।
- शब्दार्थ : कभू-कभी, खाइस-खाना, निपोरिस-निपोरना, परान-प्राण
- कभू घी घना, कभू मुट्ठी भर चना, कभू उहू मना। -- कभी घी घना, कभी मुट्ठी भर चना, कभी वह भी मना।
- व्याख्या : समय हमेशा एक-सा नहीं रहता। कभी तो उपभोग के लिए अच्छी वस्तु पर्याप्त मात्रा में मिल जाती है, कभी सामान्य वस्तु भी अल्प मात्रा में ही मिलती है, और कभी कुछ भी प्राप्त नहीं होता।
- प्रयोग अनुकूलता : विपरीत परिस्थितियों में भी संतोष करना पड़ता है। प्रतिकूल परिस्थिति में इस कहावत का प्रयोग किया जाता है।
- शब्दार्थ : कभू-कभी, घना-घनघोर, उहू-वो भी
- कमाय निंगोटी वाले, खाय टोपी वाले। -- कमाए लँगोट वाले, खाए टोपी वाले।
- व्याख्या : कमावे कोई और तथा खाए कोई और। लँगोट पहनने वाले ग्रामीण कृषक कमाते हैं तथा टोपीधारी नेतागण खाते हैं।
- प्रयोग अनुकूलता : नेताओं के ऐश-आराम को देखकर यह कहावत कही जाती है।
- शब्दार्थ : कमाय-कमाना, निंगोटी-लंगोट, खाय-खाना
- करथस रिस त, सील लोढ़ा ल पिस। -- क्रोध करते हो, तो सिल-लोढ़े को घिसो।
- व्याख्या : क्रोध करने वाले व्यक्ति के लिए क्रोध-शमन करने के लिए सिल-लोढ़े को घिसने के लिए कहा गया है।
- प्रयोग अनुकूलता : क्रोध करने से स्वयं की हानि होती है। सिल लोढ़े को घिसने से हाथ थकने पर क्रोध शांत हो जाएना तथा बुद्धि ठिकाने आ जाएगी। ऐसे परिपेक्ष्य में यह कहावत कही जाती है।
- शब्दार्थ : रिस-क्रोध, करथस-करते हो, पिस-पीसना
- करनी करैया बाँच गे, फरिका उघरैया के नाव। -- अनुचित कार्य का कर्ता कोई और हो, किन्तु फल किसी और के सिर पड़े।
- व्याख्या : जिसने अपराध किया, वह पकड़ में नहीं आया। अपने पकड़े जाने का संदेह होने पर वह भाग खड़ा हुआ, परंतु फाटक खोलने वाला अपने को अपराधी न मानने के कारण वहाँ खड़ा रहा, जिससे वह पकड़े में आ गया और दोषी माना गया।
- प्रयोग अनुकूलता : इस कहावत का प्रयोग ऐसे समय में होता है, जब असली व्यक्ति गिरफ्त में नहीं आता और निर्देष व्यक्ति पकड़ा जाता है।
- शब्दार्थ : करनी-किया हुआ, करैया-करने वाला, बांच-बचना, फरिका-फाटक, उघरैया-खोलने वाला, नाव-नाम
- करनी दिखै, मरनी के बेर। -- करतूत मरते वक्त दिखलाई पड़ती है।
- व्याख्या : बुरे कर्म मरने के समय याद आते हैं।
- प्रयोग अनुकूलता : कुकर्म करने वाला व्यक्ति खाट में पड़कर अनेक कष्टों को भोगते हुए मरता है। मनुष्य को अपना किया गलत कार्य विपत्ति के समय याद आता है, सुख के दिनों में उसे अपने द्वारा किए कुकर्म याद नहीं आते।
- शब्दार्थ : दिखै-दिखाई देना, मरनी-मरना, बेर-वक्त
- करनी ना कूत, बाँहना माँ मूत। -- करनी कुछ नहीं, बाँहने में पेशाब करना
- व्याख्या : ऐसा व्यक्ति जो काम कुछ नहीं करता तथा अपनी लंबी-चौड़ी फरमाइशें पेश करता है, जब माँग पूरी नहीं होती, तो वह क्रोध दिखाने के लिए बाँहने में पेशाब कर देता है।
- प्रयोग अनुकूलता : जब व्यक्ति की क्षमता न हो और बड़ी चीज की मांग करें, ऐसे समय में यह कहावत कही जाती है।
- शब्दार्थ : करनी-कर्म, कूत-औकात, बांहना-बांहना, मूत-मूतना
- करम करै बैजू, बाँधे जाय बैजनाथ। -- बैजू कुकर्म करता है, बैजनाथ पकड़ा जाता है।
- व्याख्या : अपराध कोई और करता है, पकड़ में कोई दूसरा आता है।
- प्रयोग अनुकूलता : जब कुकर्म करने वाला व्यक्ति बच जाता है और उस के धोखे में निर्दोष व्यक्ति को दंड मिलता है, तब यह कहावत कही जाती है।
- शब्दार्थ : करम-कर्म, करै-करना, जाय-जाना
- करम के नांगर ला भूत जोतै। -- कर्म के हल को भूत जोतता है।
- व्याख्या : भाग्यवान व्यक्ति के खेत में भूत हल चला देते हैं, जिससे उसका कार्य औरों से पहले हो जाता है।
- प्रयोग अनुकूलता : जिसका काम आप-ही-आप बन जाता है, उसके बने हुए काम को देख कर यह कहावत कही जाती है।
- शब्दार्थ : करम-भाग्य, नांगर-हल
करिया आखर भैंस बरोबर। -- काला अक्षर भैंस बराबर।
- व्याख्या : निरक्षर होना।
- प्रयोग अनुकूलता : इस कहावत का प्रयोग अशिक्षित व्यक्तियों के लिए होता है, जो भैंस की परख कर उसे समझ सकते हैं, किंतु अक्षरों को समझ नहीं पाते। उनकी मोटी बुद्धि में भैंस जैसा विशालकाय जानवर आ जाता है, परंतु छोटे-छोटे अक्षर नहीं आते।
- शब्दार्थ : करिया-काला, बरोबर-बराबर
- करेला तेमाँ लीम चढ़े। -- एक तो करेला, ऊपर से नीम चढ़ा।
- व्याख्या : करेला कड़वा होता है। यदि वह नीम जैसे कड़वे वृक्ष पर चढ़ जाए, तो और भी कड़वा हो जाता है।
- प्रयोग अनुकूलता : जब किसी में कोई बुरी आदत हो तथा वह कुसंगत में पड़कर दूसरी बुरी आदत का भी शिकार हो जाए, तब यह कहावत कही जाती है।
- शब्दार्थ : लीम-नीम, तेमां-उसमें, चढ़े-चढ़ना
- करै कूदै तउन उपरी, नून डारै तउन बपरी। -- करने-कूदने वाली अलग रह गई, नमक डालने वाली बेचारी (सहानुभूति की पात्रा) हो गई।
- व्याख्या : मेहनत कर के खाना बनाने वाली थी का नाम नहीं लिया गया और नमक डालने वाली का नाम हो गया।
- प्रयोग अनुकूलता : जब परिश्रम कर के किसी कार्य को संपन्न करने वाले व्यक्ति को यश न मिले, किन्तु उस कार्य के अंत में किंचित योग देने वाले को यश मिल जाए, तब यह कहावत प्रयुक्त होती है।
- शब्दार्थ : करै-करना, कूदै-कूदना, तउन-वह, उपरी-अलग हो जाना, नून-नमक, डारै-डालना, बपरी-बेचारी।
- करे खेत के, सुने खलियान के। -- करना खेत की और सुनना खलिहान की।
- व्याख्या : खेत की बात सुनने से काम नहीं चलता, उसे तो सुनकर तुरंत करना पड़ता है, अन्यथा खेती बरबाद हो सकती है। फसल पैदा होने के संबंध में बातें खलिहान की सुनी जा सकती है, क्योंकि खेती कट चुकी होती है और काम करने को कम बच जाता है।
- प्रयोग अनुकूलता : खेती की बात मात्र सुनकर मान लेने वालों के लिए सीख देने के लिए यह कहावत कही जाती है।
- शब्दार्थ : करे-करना
- कलजुग के बेटा करे कछेरी, बाप ला खेत जोंतावत हे। ओखर बाई रानी होगे, डोकरी ला पानी भरावत हे। -- कलयुग का बेटा कचहरी में, पिता खेत में। पत्नी रानी है, मां पानी भर रही है।
- व्याख्या : कलियुगी लड़का स्वयं कचहरी का काम करता है और अपने बाप को खेती का काम कराता है, वह अपनी पत्नी को रानी बनाकर अपनी माँ से पानी भराता है।
- प्रयोग अनुकूलता : आजकल के लड़के स्वयं आमोद-प्रमोद में समय बिताते हैं तथा माँ-बाप से काम लेते हैं। जवान लड़कों को मस्ती करते तथा माँ-बाप को काम करते देखकर यह कहावत कही जाती है।
- शब्दार्थ : कलजुग-कलयुग, कछेरी-कचहरी, जोंतावत-रगड़ के काम करना
- कलजुग के लइका करे कछेरी, बुढ़वा जोते नांगर। -- कलयुग का लड़का कचहरी में पिता खेत में।
- व्याख्या : कलियुग का लड़का स्वयं कचहरी का काम करता है अर्थात् परिश्रम का काम नहीं करता, तथा उसका बूढ़ा बाप हल चलाता है।
- प्रयोग अनुकूलता : आजकल के विलासी नवयुवकों पर व्यंग्य कसने के लिए यह कहावत कही जाती है।
- शब्दार्थ : कलजुग-कलयुग, लइका-लड़का, कछेरी-कचहरी, बुढ़वा-बूढ़ा, नागर-हल
- कलेवा माँ लाडू, सगा माँ साढू। -- पकवान में लड्डू, रिश्तेदारों में साढू।
- व्याख्या : पकवान में लड्डू को श्रेष्ठ माना जाता है तथा रिश्तेदार में साढू को।
- प्रयोग अनुकूलता : अपने परिवार वालों को छोड़कर ससुराल वालों की ओर झुकने वाले व्यक्ति के लेए यह कहावत कही जाती है।
- शब्दार्थ : साढू-साली का पति, कलेवा-पकवान, सगा-मेहमान
- कहाँ गेए, कहूँ नहीं, का लाए, कुछु नहीं। -- कहाँ गए, कहीं नहीं, क्या लाए, कुछ नहीं।
- व्याख्या : काम के लिए तो निकले थे, पर काम ही नहीं किए।
- प्रयोग अनुकूलता : जो व्यक्ति बाहर जाकर भी कुछ कार्य कर के नहीं लौटता, उस के लिए यह कहावत प्रयक्त होती है।
- शब्दार्थ : गेए-गए, कहूं-कहीं, कुछु-कुछ
- कहाँ जाबे भागे, करम जाही आगे। -- भाग कर कहाँ जाओगे, भाग्य वहाँ पहले पहुँच जाएगा।
- व्याख्या : जो व्यक्ति चिंतित अवस्था में इधर-उधर मारा-मारा फिरता है और कहीं सहारा नहीं पाता, वह अभागा है।
- प्रयोग अनुकूलता : जहाँ कहीं भी वह जाता है, उसका भाग्य उससे पहले वहाँ उपस्थित होकर उसका दुख दूर नहीं होने देता। दुर्दिन में हर कार्य में हानि होते देख कर यह कहावत कही जाती है।
- शब्दार्थ : जाबे-जाएगा, करम-कर्म
- कहाँ राजा भोज, कहाँ भोजवा तेली। -- कहाँ राजा भोज, कहाँ भोजवा तेली।
- व्याख्या : विशेष व्यक्ति या वस्तु की समानता साधारण व्यक्ति या वस्तु से नहीं हो सकती।
- प्रयोग अनुकूलता : राजा भोज जैसे बड़े राजा की बराबरी सामान्य सा भोजवा तेली कैसे कर सकता है। जब दो व्यक्तियों अथवा दो वस्तुओं में कोई समानता न हो, तब यह कहावत कही जाती है।
- शब्दार्थ : तेली-एक प्रकार की तेल निकाल कर आजीविका चलाने वाली जाति
- कहाँ सिवरी नरायन, अउ कहाँ दूल्हा देव। -- कहाँ शिवरीनारायण और कहाँ दूल्हा देव।
- व्याख्या : शिवरीनारायण नामक तीर्थ स्थान की बराबरी दूल्हा देव जैसा छोटा देव नहीं किया जा सकता।
- प्रयोग अनुकूलता : जब कोई व्यक्ति किसी सामान्य कार्य की तुलना किसी बड़े कार्य से करता है, तब यह कहावत प्रयुक्त होती है।
- शब्दार्थ : सिवरी नरायन-शिवरीनारायण, अउ-और
- कहे त माय मारे जाय, नहिं त बाप कुत्ता खाय। -- सच्चाई बता देने से माँ मारी जाएगी, नहीं तो बाप को कुत्ता खाना पड़ेगा।
- व्याख्या : यदि किसी की पत्नी ने कुत्ते का माँस पकाया हो, जिसे उसका पुत्र जानता हो, तो वह इस बात को अपने पिता को बताने या न बताने की उलझन में पड़ जाता है। यदि वह इसे बताता है, तो माँ पर फटकार पड़ेगी और यदि नहीं बताता है, तो बाप को कुत्ते की सब्जी खानी होती है।
- प्रयोग अनुकूलता : द्विविधापूर्ण स्थिति में जब किसी का नुकसान दोनों तरफ से हो रहा हो, तब यह कहावत प्रयुक्त होती है।
- शब्दार्थ : माय-मां, नहिं-नहीं, खाय-खाना
- का ओढ़र बैठे जाँव, छेना दे आगी ले आँव। -- किस बहाने से बैठने जाऊँ, कंडे दो, आग ले लाऊँ।
- व्याख्या : ऐसी औरत जिसे पड़ोस के घर में बैठने के लिए जाना हो, वह उस के यहाँ से आग लाने का बहाना करती है।
- प्रयोग अनुकूलता : जब कोई व्यक्ति बहाना बनाकर कहीं जाना चाहता है, तब उस के बहाने को समझकर उस के लिए यह कहावत कही जाती है।
- शब्दार्थ : ओढ़र-बहाना, जांव-जाऊं, छेना-कंडा, आगी-आग, आंव-ले आउं
- का कहत का होगे, मूंड़ माँ घाव होगे। -- क्या कहते-कहते क्या हो गया, सिर में घाव हो गया।
- व्याख्या : सिर में हुई छोटी फुंसी को अनुष्टकारी न समझकर इलाज नहीं किया गया, जिससे उसने बढ़कर बहुत बड़े फोड़े का रूप धारण कर लिया और अनिष्ट का कराण बन गया। उसके संबंध में पहले से ही ध्यान दिया गया होता , तो ऐसी नौबत न आती।
- प्रयोग अनुकूलता : किसी बाँध में छोटा सा छेद हो जाए और उसे ठीक करने के लिए बात टाल दी जाए, जिससे वह बढ़कर इतना बड़ा हो जाए कि उसका ठीक करना मुश्किल हो जाए, तो ऐसी परिस्थिति में यह कहावत कही जाती है।
- शब्दार्थ : होगे-होना, मूंड़-सिर
- का कानी के सूते, अऊ का भैरी के जागे। -- कानी औ बहरी का क्या सोना और क्या जागना।
- व्याख्या : कानी स्त्री के जागते हरने पर उसके न देख पाने के कारण भी चोरी हो सकती है तथा बहरी स्त्री के जागते रहने पर भी तोड़-फोड़ का कोई काम किया जा सकता है। इनकी उपस्थिति से किसी वस्तु की सुरक्षा संभव नहीं है।
- प्रयोग अनुकूलता : यदि किसी आलसी व्यक्ति की उपस्थिति में कोई काम बिगड़ जाए, तो यह कहावत कही जाती है।
- शब्दार्थ : कानी-एक आंख से अंधी स्त्री, अऊ-और, भैरी-बहरी स्त्री
- का नंगरा के नहाय, का नंगरा के निचोय। -- नंगे का क्या नहाना और क्या निचोड़ना।
- व्याख्या : ऐसा व्यक्ति जिसके पास कपड़े न हों, वह क्या नहाएगा और क्या निचोड़ेगा। इसी प्रकार, ऐसा व्यक्ति जिसकी कोई प्रतिष्ठा न हो, यदि वह कोई खराब कार्य करे, तो इससे उसकी प्रतिष्ठा क्या घटेगी।
- प्रयोग अनुकूलता : किसी अप्रतिष्ठित व्यक्ति के असम्मानित कार्य करने पर यह कहावत कही जाती है।
- शब्दार्थ : नगरा-नंगा, निचोय-निचोड़ना
- का माछी मारे, का हाथ गन्धाय। -- क्या मक्खी मारे, क्या हाथ गंधाय।
- व्याख्या : मक्खी मारने से उसे मारने वाले के ही हाथ में बदबू होगी। इससे मारने वाले की प्रतिष्ठा बढ़ने के बदले घटती है।
- प्रयोग अनुकूलता : यदि कोई सामर्थ्यहीन व्यक्ति से किसी सामर्थ्यहीन व्यक्ति को परेशान करने के लिए कहे, तो यह कहावत कही जाती है।
- शब्दार्थ : माछी-मक्खी, गंधाय-बदबू मारना
- काँचा नीक के आदमी। -- व्यक्ति जिसे कोई बात काँटे के समान चुभ जाए।
- व्याख्या : काँटे के चुभने से काफी तकलीफ होती है। ऐसी ही तकलीफ किसी-किसी व्यक्ति को बात लग जाने से होती है।
- प्रयोग अनुकूलता : यदि कोई व्यक्ति दूसरों की छोटी-मोटी त्रुटियों को बर्दाशत न कर सके, तो यह कहावत कही जाती है।
- शब्दार्थ : कांटा-शूल
- काँड़ी नहीं मूसर, तैं नहीं दूसर। -- काँड़ी नहीं तो मूसल, तुम नहीं, तो दूसरा कोई।
- व्याख्या : धान कूटने के लिए यदि कोई व्यक्ति काँड़ी नहीं देता, तो दूसरे से मूसल माँगकर धान कूट लिया जाता है।
- प्रयोग अनुकूलता : यदि कोई सामर्थ्यवान व्यक्ति किसी व्यक्ति का कोई कार्य न करे, तो किसी दूसरे व्यक्ति से काम पूरा करा लिया जाता है। इस तरीके से यद्यपि काम विलंब से होता है, तथापि उस सामर्थ्यवान व्यक्ति की खुशामद नहीं करनी पड़ती।
- शब्दार्थ : काँड़ी-मूसल के बदले धान कूटने का एक विशेष प्रकार का उपकरण, मूसर-मूसल, तैं-तुम, दूसर-दूसरा
- काँद ल खनै त ओखर चेचरा ल घलो खनै। -- यदि कंद को खोदकर निकालना हो, तो उसे जड़ से खोदकर निकालना चाहिए।
- व्याख्या : यदि किसी व्यक्ति का अहित करना हो, तो उसे सपरिवार नष्ट कर देना चाहिए, ताकि उस के बचे हुए संबंधी बदला न ले सकें।
- प्रयोग अनुकूलता : किसी शत्रु को निर्मूल नष्ट कर देने के लिए यह कहावत कही जाती है।
- शब्दार्थ : चेचरा-कंद के नीचे की अनेक पतली-पतली जड़ें, खनै-खनना, ओखर-उसका, घला-उसको भी
काना ल भावौं नहिं, काना बिना रहौं नहिं। -- काने को पसंद नहीं करती, काने के बिना रह नहीं सकती।
- व्याख्या : ऐसी स्त्री जो काने को पसंद नहीं करती, परन्तु उसके बिना रह भी नहीं सकती, उसकी स्थिति मजबूरी की होती है।
- प्रयोग अनुकूलता : जब कोई व्यक्ति किसी को नहीं चाहते हुए भी उस के साथ रहने के लिए मजबूर हो जाता है, तब यह कहावत कही जाती है।
- शब्दार्थ : भावौं-पसंद करना, रहौं-रहना, नहिं-नहीं
- कानी आँखी तउन माँ काजर आँजै। -- कानी आँखों में काजल लगाती है।
- व्याख्या : कानी स्त्री जिसे आँख से देख नहीं सकती, यदि काजल लगाए, तो इससे उसकी बदसूरती और भी बढ़ जाती है।
- प्रयोग अनुकूलता : जब कोई बदसूरत स्त्री श्रृंगार करती है, तब उस पर व्यंग्य कसने के लिए यह कहावत कही जाती है।
- शब्दार्थ : आंखी-आंख, तउन-तब, काजर-काजल, आंजैं-लगाना
- कानी कुतिया गले लगावै, दे पिलवा के माथे। -- कानी कुतिया को पालने से उस के बच्चों को भी पालना पड़ जाता है।
- व्याख्या : कानी कुतिया को पालने से उस के बच्चों को भी पालना पड़ता है।
- प्रयोग अनुकूलता : किसी असहाय व्यक्ति का भार-वहन करने वालों को उस के परिवार का भी भार वहन करना पड़ जाए, तो यह कहावत कही जाती है।
- शब्दार्थ : पिलवा-पिल्ला
- कानी कुतिया ला कोड़हा अमोल। -- कानी कुतिया के लिए कोड़हा भी मूल्यवान।
- व्याख्या : कानी कुतिया के लिए कोढ़ा जैसी मूल्य हीन वस्तु भी न देख पाने के कारण दुलर्भ हो जाती है।
- प्रयोग अनुकूलता : गरीब व्यक्ति यदि बहुत साधारण वस्तु पा जाए, तो वह उसे मूल्यवान समझता है। ऐसे परिपेक्ष्य में यह कहावत कही जाती है।
- शब्दार्थ : कोड़हा-धान बारीक भूसा
- कानी गाय के अलगे कोठा। -- कानी गाय के लिए अलग कमरा।
- व्याख्या : जब कानी गाय से कोई लाभ होने वाला नहीं है, तब उसे अलग कमरे में रख कर खिलाना-पिलाना व्यर्थ है।
- प्रयोग अनुकूलता : कोई अकर्मण्य व्यक्ति अपने लिए विशेष सुख-सुविधा चाहे, तो उसके लिए यह कहावत कही जाती है।
- शब्दार्थ : अलगे-अलग, कोठा-गाय को बांधने का स्थान
- काम कमई पागी ढील, कूढ़ा अकन आगू लील। -- काम करने में कमर के वस्त्र ढीले पड़ जाते हैं, परंतु खाने के लिए पहले से पहुँच कर खूब सारा खाना खा लेता है।
- व्याख्या : आलसी व्यक्ति खाने के लिए पहले पहुँच जाता है।
- प्रयोग अनुकूलता : किसी दफ्तर में काम करने वाला लिपिक यदि अपना काम न करके प्रायः घूमता-फिरता रहे और पहली तारीख को वेतन लेने के लिए सबसे पहले आ जाए, तो ऐसे व्यक्ति के लिए यह कहावत चरितार्थ होती है।
- शब्दार्थ : कूढ़ा-ढेर, पागी-काँछ, कमई-कमाई, अकन-जैसे, आगू-पहले, लील-खा जाना
- काम के न धाम के, दौरी बर बजरंगा। -- काम-धाम का तो है नहीं, परंतु दौरी के लिए शूरवीर।
- व्याख्या : आलसी बैल जोतने-फाँदने के काम से जी चुराते हैं, परंतु दौरी में जुतने के लिए तैयार रहते हैं, क्योंकि वहाँ उन्हें खाने के लिए मिलता है।
- प्रयोग अनुकूलता : ऐसे कामों में रूचि दिखाना जिसमें लाभ हो, तो ऐसे परिपेक्ष्य में यह कहावत कही जाती है।
- शब्दार्थ : दौरी-धान मिंजाई के लिए बैलों को चक्कर लगवाना
- काम बूता कहूँ जाय, खाय के बेर पहुँच जाय। -- काम करे या न करे, परंतु खाने के लिए पहले पहुँच जाता है।
- व्याख्या : जो व्यक्ति काम नहीं करता, इधर-उधर घूम-फिर कर अपना समय बरबाद कर देता है, परंतु खाने के लिए सबसे पहले पहुँच जाता है, वह उपेक्षा का पात्र होता है।
- प्रयोग अनुकूलता : कोई कामचोर व्यक्ति यदि पारिश्रमिक लेने के समय हाय-तौबा मचाए, तो उस पर व्यंग्य कसने के लिए यह कहावत कही जाती है।
- शब्दार्थ : बूता-काम, कहूं-कहीं भी, खाय-खाना, बेर-वक्त, जाय-जाना
- काम सर गे दुख बिसरा गे। -- काम समाप्त हो गया, दुःख भूल गया।
- व्याख्या : अवसरवादिता।
- प्रयोग अनुकूलता : इस कहावत का प्रयोग ऐसे लोगों के लिए होता है, जो मतलब सधते तक दोस्ती रखते हैं तथा मतलब सध जाने पर पूछते तक नहीं।
- शब्दार्थ : बिसर गे-भूल जाना
- कारी बिलइ लमचोंची चिरइ। -- काली बिल्ली और लंबी चोंच वाली चिड़िया।
- व्याख्या : शारीरिक कुरूपता।
- प्रयोग अनुकूलता : किसी स्त्री की कुरूपता को स्पष्ट करने के लिए ( जो बिल्ली के समान काली तथा चिड़िया की चोंच के समान लंबे मुँह वाली हो) यह कहावत कही जाती है।
- शब्दार्थ : चिरइ-पक्षी, बिलइ-बिल्ली, लमचोंची-जिसका चोंच बड़ा हो
- काहाँ जाबे धमना, काबर बुल के एहि अँगना ? -- धमना, इस आँगन को पार कर के कहाँ जाओगे?
- व्याख्या : तुम हमें छोड़कर कहाँ जाओगे, यदि तुम्हारा कोई और होता, तभी जा सकते थे।
- प्रयोग अनुकूलता : जिसका एक के सिवाय कोई और नहीं होता, उस के लिए यह कहावत कही जाती है।
- शब्दार्थ : धमना-व्यक्ति-विशेष के लिए संबोधन, अँगना-आँगन, काबर-के कारण, एहि-यही
- किराय कुकुर कस किंजरत है। -- कीड़े-पड़े हुए कुत्ते के समान घूमता है।
- व्याख्या : किसी कुत्ते के घाव में कीड़े पड़ जाने पर वह पागल हो जाता है।
- प्रयोग अनुकूलता : पागल के समान इधर-उधर भटकने वाले व्यक्ति के लिए यह कहावत कही जाती है।
- शब्दार्थ : किंजरत है-घूमना
- कुँआ के मेंचका, कुँवे के हाल ला जानही। -- कुएँ का मेंढक कुएँ की ही बातों को जानेगा।
- व्याख्या : कुएँ में रहने वाला मेंढक बाहर की बातों को नहीं जानता।
- प्रयोग अनुकूलता : सीमित ज्ञान वाला व्यक्ति अपनी सीमा से अधिक कुछ नहीं जानता। ऐसे व्यक्तियों के लिए ‘कूप मंडूक’ के अर्थ में यह कहावत कही जाती है।
- शब्दार्थ : मेंचका-मेंढक
- कुँवार कस कुकुर बेवाँय हे। -- क्वाँर के कुत्ते के समान बौरा हो गया है।
- व्याख्या : क्वाँर के महीने में कुत्ते कामांध रहते है।
- प्रयोग अनुकूलता : ऐसे व्यक्ति जो बुरी नियत से लड़कियों से छेड़-छाड़ करते हुए दिखाई पड़ते हैं, उन के लिए यह कहावत कही जाती है।
- शब्दार्थ : बेवाँय-बौर, कुंवार-क्वांर, कुकुर-कुत्ता
- कुकरी के पेट माँ हीरा। -- मुर्गी के पेट में हीरा।
- व्याख्या : बेकार में अच्छी चीज।
- प्रयोग अनुकूलता : कद में मुर्गी के समान छोटी और बदसूरत दिखाई पड़ने वाली स्त्री के पेट से खूबसूरत बच्चे पैदा होने पर यह कहावत कही जाती है।
- शब्दार्थ : कुकरी-मुर्गी
- कुकरी ह खूब मिठाथे त ओला कच्चा नइ खय। -- मुर्गी खाने में बहुत अच्छी लगती है, तो उसे कच्चा नहीं खाते।
- व्याख्या : यदि कोई व्यक्ति किसी की मदद करता है, तो उसका अधिक शोषण नहीं किया जाता।
- प्रयोग अनुकूलता : अच्छे व्यक्ति पर ज्यादा जुल्म न ढहने की स्थिति में यह कहावत कही जाती है।
- शब्दार्थ : कुकरी-मुर्गी, मिठाथे-स्वाद लगना, ओला-उसको, नइ-नहीं, खाय-खाना
- कुकुर अपन पूछी ल टेड़गा कब कहिथे? -- कुत्ता अपनी पूंछ को टेढ़ा कब कहता है ?
- व्याख्या : कोई व्यक्ति अपनी वस्तु को खराब नहीं कहता।
- प्रयोग अनुकूलता : सभी अपनी चीजों को अच्छा बताते हैं, इसी परिपेक्ष्य में यह कहावत कही जाती है।
- शब्दार्थ : टेड़गा-टेढ़ा, कुकुर-कुत्ता, अपन-अपना, पूछी-पूंछ
- कुकुर के पूछी जब रइहीं टेड़गा। -- कुत्ते की पूंछ जब भी रहेगी टेढ़ी।
- व्याख्या : बुरा मनुष्य कभी सुधर नहीं सकता। इसके लिए कबीर की यह उक्ति प्रसिद्ध है ‘कोयला होय न उजला, सौ मन साबुन धोए’। आदत मनुष्य का अंग बन जाती है, अतः जानते हुए भी, उससे बचना संभव नहीं होता।
- प्रयोग अनुकूलता : ऐसे व्यक्ति जो समझाने पर भी नहीं समझते, उन के लिए किंचित रोष के साथ यह कहावत कही जाती है।
- शब्दार्थ : कुकुर-कुत्ता, पूछी-पूंछ, टेड़गा-टेड़ा
- कुकुर गुह लीपे के न पोते के। -- कुत्ते का गू, न लीपने का और न पोतने का। सवर्था अनुपयोगी एवं घृणास्पद वस्तु।
- व्याख्या : गुऊ के गोबर को पवित्र एवं कृमिनाशक मानते हैं। हिंदू लोग इससे चौके की लिपाई करते हैं। परंतु कुत्ता जो सहज ही अपावन है, उसका गू उससे अधिक अपवित्र होता है, जिससे कोई उपयोग नहीं होता।
- प्रयोग अनुकूलता : कोई व्यक्ति जब किसी काम में हाथ नहीं बँटाता, तब उसकी अकर्मण्यता को लक्ष्य कर के इस कहावत का प्रयोग किया जाता है।
- शब्दार्थ : कुकुर-कुत्ता, गुह-मल
- कुकुर भूँ के हजार, हाथी चलै बाजार। -- कुत्ता कितना भी भौंके, हाथी अपने मार्ग पर ही चलता है।
- व्याख्या : प्रभुता-संपन्न व्यक्ति छोटे-मोटे लोगों की बातों से घबड़ाकर अपने दायित्व का परित्याग नहीं करता।
- प्रयोग अनुकूलता : सामर्थ्यवान व्यक्ति अपनी आलोचनाओं से नहीं घबराता और अपना काम करते ही रहता है, इसी परिपेक्ष्य में यह कहावत कही जाती है।
- शब्दार्थ : कुकुर-कुत्ता
कुकुर सहराय अपन पूछी। -- कुत्ता अपनी पूँछ की प्रशंसा करता है।
- व्याख्या : यद्यपि कुत्ते की पूँछ टेढ़ी रहती है, तथापि वह अपनी पूँछ को टेढ़ा न कहते हुए उसकी प्रशंसा करता है।
- प्रयोग अनुकूलता : व्यक्ति अपनी खराब वस्तु को भी अच्छा कहता है, इसी परिपेक्ष्य में यह कहावत कही जाती है।
- शब्दार्थ : सहराय-प्रशंसा करना, कुकुर-कुत्ता, पूछी-पूंछ
- कुधरा के पेरे ले तैल नइ निकलै। -- रेत को पेरने से तेल नहीं निकलता।
- व्याख्या : कोई कितना भी प्रयत्न करे रेत से तेल नहीं निकल सकता।
- प्रयोग अनुकूलता : जब लाख प्रयत्न करने पर भी कंजूस व्यक्ति से कानी कौड़ी भी नहीं मिलती, तब यह कहावत कही जाती है।
- शब्दार्थ : कुधरा-रेत, पेरे-पेरना, तैल-तेल, नइ-नहीं, निकलै-निकलना
- कुल बिहावै, कन्हार जोतै। -- अच्छे कुल में शादी और कन्हार की खेती।
- व्याख्या : विवाह अच्छे कुल में करना चाहिए तथा खेती कन्हार जमीन में करना चाहिए। ऐसा करने से व्यक्ति को धोखा नहीं मिलता।
- प्रयोग अनुकूलता : सोच समझकर कार्य करने के लिए यह कहावत प्रयोग में लायी जाती है।
- शब्दार्थ : बिहावै-विवाह करना, कन्हार-खेती किसानी हेतु एक प्रकार की अच्छी उपजाऊ मिट्टी, जोतै-जोतना
- कुँवार करेला, कातिक दही, मरही नहिं न परही सही। -- क्वाँर में करेला और कार्तिक में दही खाने वाला यदि मरेगा नहीं तो बीमार अवश्य पड़ेगा।
- व्याख्या : क्वाँर में करेला और कार्तिक में दही खाना स्वास्थ्य के लिए हानिकारक होता है।
- प्रयोग अनुकूलता : स्वास्थ्य संबंधी सीख देने के लिए यह कहावत कही जाती है।
- शब्दार्थ : कुँवार-क्वांर, कातिक-कार्तिक, मरही-मरना, नहिं-नहीं तो,परही-पड़ना
- कुसियार ह जादा मिठाथे, त जरी ल नई चुहकैं। -- गन्ना खूब मीठा लगता है, तो उसकी जड़ को नहीं चूसते।
- व्याख्या : यदि कोई व्यक्ति अधिक मदद करता है, तो उससे बार-बार लाभ उठाना उचित नहीं है।
- प्रयोग अनुकूलता : मदद देने वाले को लोग ज्यादा शोषण करते हैं, ऐसी स्थिति में यह कहावत कही जाती है।
- शब्दार्थ : कुसियार-गन्ना, जादा-ज्यादा, मिठाथे-स्वाद लगना, जरी-जड़, नई-नहीं, चुहकैं-चूसना
- केरा पान कस हालत हे। -- केले के पत्ते के समान हिल रहा है।
- व्याख्या : दम न होना।
- प्रयोग अनुकूलता : ऐसा व्यक्ति जो जरा सा दबाव पड़ने पर इधर-उधर होता रहता है, उस के मन की अस्थिरता को लक्ष्य करके यह कहावत कही जाती है।
- शब्दार्थ : केरा-केला, पान-पत्ता, कस-जैसे, हालत-हिलना
- केहे माँ धोबी गदहा माँ नइ चढ़ै। -- कहने से धोबी गदहे पर नहीं चढ़ता।
- व्याख्या : धोबी गदहे पर कपड़े लाद कर चलता है। यदि कोई उसे गदहे पर बैठने के लिए कहता है, तो नहीं बैठता, किसी के न कहने पर वह स्वयं बैठ जाया करता है।
- प्रयोग अनुकूलता : किसी की सलाह पर अमल न करके उसे महत्वहीन मानने, लेकिन उसीके अनुसार स्वेच्छा से काम करने वाले व्यक्ति पर यह कहावत कही जाती है।
- शब्दार्थ : केहे-कहने से, गदहा-गधा, नइ-नहीं
- कोचइ छोलौं के कुला खजुवावौं। -- घुइयाँ छिलूँ या चूतड़ खुजलाऊँ।
- व्याख्या : घुइयाँ छिलने में लगे हुए व्यक्ति को चूतड़ खुजलाने के कारण छिलने का कार्य बंद करना पड़ता है, क्योंकि एक समय में एक ही काम हो सकना संभव है।
- प्रयोग अनुकूलता : जब कोई व्यक्ति किसी काम में व्यस्त हो तब वह दूसरा काम नहीं कर सकता। ऐसी परिस्थिति में यह कहावत कही जाती है।
- शब्दार्थ : कोच-घुइयाँ, कुला-चूतड़, छोलौं-छिलना, खजुवावों-खुजाना
- कोठी माँ धान नहिं, बरमत नाव। -- कोठी में धान नहीं है, परन्तु नाम बरमत है।
- व्याख्या : घर में खाने को नहीं है, परंतु नाम ‘ धनी ‘ अर्थ का द्योतक है।
- प्रयोग अनुकूलता : नाम के धनी, पर काम के नहीं, ऐसे लोगों के लिए यह कहावत कही जाती है।
- शब्दार्थ : कोठी-जिसमें धान रखा जाता है, नहिं-नहीं, नाव-नाम
- कोड़हा के रोटी दूसर के मुँह माँ खूब मिठाथे। -- कोड़हे की रोटी दूसरों को मीठी लगती है।
- व्याख्या : कोड़हे की रोटी अच्छी नहीं लगती, इसलिए खाने वाला व्यक्ति उसे दूसरों को दे देता है। घटिया वस्तु दूसरों के लिए अच्छी होती है, लेकिन स्वयं के लिए नहीं।
- प्रयोग अनुकूलता : यदि कोई व्यक्ति घटिया किस्म का काम स्वयं न करे और उसे दूसरों के लिए अच्छा कहे, तो उस के लिए यह कहावत कही जाती है।
- शब्दार्थ : मिठाथे-स्वाद लगना
- कोदो-राहेर के का संग? -- कोदो और अरहर का क्या साथ?
- व्याख्या : कोदो और अरहर एक ही खेत में साथ-साथ बोए जाते हैं, परंतु कोदो जल्दी पक जाता है और अरहर काफी समय के बाद पकता है, इसलिए इनका साथ छूट जाता है।
- प्रयोग अनुकूलता : दो व्यक्तियों में से यदि एक पैदल चले तथा दूसरा साइकिल पर हो, तो उनका साथ नहीं हो सकता। ऐसी परिस्थिति में यह कहावत कही जाती है।
- शब्दार्थ : राहेर-अरहर
- कोदो लुवत ले भाँटो, नहिं त ठेंगवा चाँटो। -- कोदो काटते तक जीजाजी, बाद में अँगूठा चाटो।
- व्याख्या : काम निकालना।
- प्रयोग अनुकूलता : काम होते तक खुशामद करने तथा काम हो जाने पर परवाह न करने वालों के लिए यह कहावत कही जाती है।
- शब्दार्थ : लुवत-काटना, भांटो-जीजाजी, नहिं-नहीं, ठेंगवा-अंगूठा, चांटो-चाटना
- कोनो के गर भर माला, कोनो के सुमरनी बर नहिं। -- किसी के लिए गले भर माला और किसी के लिए भगवान का स्मरण करने के लिए भी माला नहीं।
- व्याख्या : असमान वितरण।
- प्रयोग अनुकूलता : यदि कोई आवश्यक वस्तु किसी के पास बहुत अधिक हो तथा किसी के पास बिलकुल न हो, तो यह कहावत कही जाती है।
- शब्दार्थ : सुमरनी-भगवान का नाम स्मरण, कोनो-कोई, गर-गला, बर-के कारण, नहिं-नहीं
- कोनो मरै लाज के मारे, कोनो कहै डेरात ह। -- कोई व्यक्ति लज्जा के कारण संकोच करता है, परंतु अन्य कोई कहता है कि वह डर रहा है।
- व्याख्या : शर्मदार ने तो दूसरे का लिहाज किया, परंतु बेशर्म ने समझा कि यह मुझसे डर गया।
- प्रयोग अनुकूलता : जब किसी व्यक्ति के मौन हो जाने पर उस के मौन होने के वास्तविक कारण को न समझ कर कुछ अन्य अर्थ लगाया जाता है, तब यह कहावत कही जाती है।
- शब्दार्थ : कोनो-कोई, मरै-मरना, लाज-शर्म, कहै-कहना, डेरात-डराना
- कोनो ल भाँटा पथ, कोनो ल भाँटा बैर। -- किसी को बैंगन पथ्य तथा किसी को हानिप्रद।
- व्याख्या : एक ही वस्तु किसी के लिए हानिकारक और किसी के लिए गुणकारी होती है।
- प्रयोग अनुकूलता : किसी भी चीज के लाभ और हानि के पहलू को दर्शाते हुए यह कहावत कही जाती है।
- शब्दार्थ : भांटा-बैंगन, पथ-पथ्य, बैर-अपथ्य
- कोरा माँ लइका, गाँव गोहार। -- गोद में लड़का और गाँव में शोर।
- व्याख्या : समीप में रखी हुई वस्तु पर ध्यान न देकर उसे अन्यत्र ढूँढ़ना।
- प्रयोग अनुकूलता : पास में रखी हुई वस्तु को पास ही न खोजकर इधर-उधर खोजने पर इसका प्रयोग किया जाता है।
- शब्दार्थ : कोरा-गोद, गोहा-शोर, लइका-बच्चा
- कोरे गाँथे, बेटी, नीदे कोड़े खेती। -- कंघी करके सँवारे हुए बालों वाली बेटी तथा साफ-सुथरी खेती।
- व्याख्या : कंघी करके सजाई हुई बेटी और निंदाई-खुदाई की गई खेती आकर्षक लगती है। किसी बच्ची को साफ-सुथरी देखकर उसी प्रकार प्रसन्नता होती है, जिस प्रकार कृषक अपने खेती की घास-फूस निकाल देने के बाद लहलहाते पौधों को देखकर प्रसन्न होता है।
- प्रयोग अनुकूलता : स्वच्छ चीजों की प्रशंसा करते हुए यह कहावत प्रयोग में लायी जाती है।
- शब्दार्थ : कोरे गाँथे-कंघी करके बालों को सजाकर बांधे हुए, नीदे कोड़े-निंदाई कोड़ाई किया हुआ
- कोरी के बल माँ गाड़ा जोते। -- कोड़े के भरोसे गाड़ी चलाना।
- व्याख्या : कोड़े से बैलों को पीट-पीट कर गाड़ी चलाने वाला चालक अच्छा नहीं कहा जाता। गाड़ी चलाने के लिए बैलों को पीटने के बदले अन्य बातों की ओर ध्यान अधिक देना आवश्यक होता है। बैलों की चाल गाड़ी के वजन पर भी निर्भर करती है, जिसे चालक को सोचना चाहिए।
- प्रयोग अनुकूलता : जो बिना सोचे-विचारे दूसरों के भरोसे कार्य करते हैं, उन के लिए यह कहावत कही जाती है।
- शब्दार्थ : कोरी-कोड़े
- कोलिहा बुढ़ावै त फेकारी होय, गँड़वा बुढ़ावै त बैद होय। -- गीदड़ बूढ़ा होने पर फे-फे की आवाज करता है, तथा गाँड़ा बूढ़ा होने पर वैद्य हो जाता है।
- व्याख्या : गीदड़ बूढ़ा हो जाने पर एक विशेष प्रकार की आवाज करता है, जिससे धोखा खाकर उसके लिए कोई शिकार फँस जाए। गँड़वा बूढ़ा होने पर जीवन में इधर-उधर घूमने के कारण प्राप्त अनुभव के आधार पर वैद्य बन जाता है। वस्तुतः गीदड़ और गँड़वे का ऐसा कार्य केवल ढोंग है।
- प्रयोग अनुकूलता : ढोंग कर के अपना उल्लू सीधा करने वाले व्यक्तियों के लिए यह कहावत प्रयुक्त होती है।
- शब्दार्थ : कोलिहा-गीदड़, बुढ़ावै-बुढ़ापा, गंड़वा-गांड़ा, बैद-वैद्य
- कौंवा कान ला लेगे, त कान टमर के देख। -- कौवा कान ले गया, तो कान छूकर देख लो।
- व्याख्या : यदि कोई व्यक्ति बात करता है, तो उसकी असलियत जानकर ही उस पर विश्वास करना चाहिए।
- प्रयोग अनुकूलता : जो दूसरों की बात को बिना जाने-बूझे मान लेते हैं, ऐसे लोगों के लिए यह कहावत कही जाती है।
- शब्दार्थ : ला-को, लेगे-ले गया, टमर-छूकर
स्रोत
[सम्पादन]- छत्तीसगढ़ी मुहावरे (भारतवाणी)