विक्षनरी:परिभाषा कोश (अर्थमिति, जनांकिकी, गणितीय अर्थशास्त्र और आर्थिक सांख्यिकी)

विक्षनरी से
  • Abortion -- गर्भपात
तीसरे और सातवें महीने के बीच भ्रूण के निष्कासन को गर्भस्राव कहा जाता है।
  • Abscissa -- भुज
2. किसी बिंदु का x निर्देशांक (coordinate)
  • Absolute value -- निरपक्ष मान
  • Abstinence -- संयम/परिवर्जन
कुछ काल या समय के लिए पति-पत्नी का एक दूसरे से यौन संबंध से परहेज।
यह संयम धार्मिक, व्यक्तिगत अथवा स्वास्थ्य के कारणों से किया जाता है।
कभी-कभी ऐसा परिवर्जन परिवार नियोजन की दृष्टि से भी किया जाता है।
  • Acceleration incentive -- त्वरण प्रोत्साहन
जब यह राशि उसकी उपलब्धि की वृद्धि के दर पर निर्भर करती है तब इसे स्तर को ऊँचा करने वाली अभिप्रेरणा भी कहा जाता है।
  • Acceleration principle -- त्वरण सिद्धांत
किसी प्रदत्त समय पर पूँजी निवेश की मात्रा अथवा माँग व उत्पादन वृद्धि की दर का परस्पर संबंध बताने वाला सिद्धांत जिसे हम हेरड द्वारा दिए गए निम्नलिखित समीकरण या मॉडल के रूप में व्यक्त कर सकते हैं:-
I(t) = g[Y (t)—Y (t-1)]
इस सिद्धांत की दो मान्यताएं हैं। पहली यह कि यथार्थ में किया जाने वाला इच्छित पूँजी निवेश वास्तविक बचत के बराबर होता है और वास्तविक तथा अभिप्रेत बचत दोनों अलग-अलग होते हैं।
दूसरी मान्यता यह है कि पूँजी-स्टाक, और पूँजी प्रवाह ये दोनों संकल्पनाएं भिन्न-भिन्न हैं। जब आय की संवृद्धि का उल्लेख अपेक्षित दर से करते हैं, तो इसे अभीष्ट संवृद्धि कहा जाता है। इसे हम निम्नलिखित समीकरण द्वारा व्यक्त कर सकते हैं :—
इस सिद्धांत से चार निष्कर्ष निकलते हैं :—
  • Acceptance region -- स्वीकरण क्षेत्र
यदि ये बिंदु माध्य के अक्ष से एक नियत क्षेत्र के भीतर हों तब इन्हें स्वीकार किया जाता है और यदि ये बाहर हों तो इन्हें अस्वीकार कर दिया जाता है।
यह आवश्यक नहीं कि इस प्रकार का क्षेत्र माध्य रेखा से दोनों ओर समान अंतर पर हो। कभी-कभी यह पूरे का पूरा इस रेखा के एक ओर भी हो सकता है।
इस संकल्पना का प्रयोग प्रायः परिकल्पना परीक्षण में किया जाता है।
  • Accumulation -- संचयन
  • Action programme -- क्रियात्मक कार्यक्रम
  • Action research -- क्रियानिष्ठ अनुसंधान
  • Active population -- अर्जक जनसंख्या
जनांकिकीय दृष्टि से देश की जनसंख्या को आयुवर्गीय ढाँचे अथवा वय संरचना के अनुसार तीन वर्गों में बाँटा जा सकता है:-­­
1. 15 वर्ष से कम आयु के लोग—आश्रित बच्चे
2. 65 वर्ष से ऊपर की आयु के आश्रित वृद्ध लोग
3. 15 से 65 वर्ष की आयु की अर्जक जनसंख्या
भारतीय जनगणना आयुक्त के अनुसार अर्जक जनसंख्या 15-60 वर्ष का आयु वर्ग माना जाता है।
  • Activity analysis -- सक्रियता विश्लेषण
सक्रियता विश्लेषण उत्पादन व संसाधन आबंटन की ऐसी रैखिक प्रोग्रामन विधि है जिसके अन्तर्गत यह देखा जाता है कि वस्तुओं, प्रौद्योगिकी और सक्रियता, इन तीनों को मिलाकर या अकेले-अकेले इष्टतम प्रतिफल के लिए कैसे प्रयोग किया जा सकता है।
सक्रियताओं की समष्टि से प्रौद्योगिकी का निर्माण होता है। उत्पादन की प्रक्रिया में निरन्तर सक्रियता बढ़ाई जा सकती है या कम की जा सकती है। इसमें भाज्यता का गुण होता है।
सक्रियता के संरचनात्मक गुणांकों में किसी प्रकार का फेर-बदल किए बिना इसे योज्य माना जाता है।
वस्तुओं के अन्तर्गत उत्पादन के मूल कारण, मध्यवर्ती उत्पाद तथा अंतिम वस्तुएं सभी शामिल हैं।
सक्रियता विश्लेषण' को उत्पादन क्रिया के संदर्भ में नियंत्रण की विधियों का अध्ययन भी कहा जा सकता है।
  • Additive functtion -- योज्य फलन
  • Adjoint matrix -- सहखंडज आव्यूह
तुल∘ दे∘ co-factor तथा matrix
  • Adjustment equations -- समायोजन समीकरण
इन समीकरणों द्वारा हमें संतुलन की स्थितियों, उसको बिगाड़ने वाले कारकों और ऐसे तत्वों का ज्ञान होता है, जिनके द्वारा अर्थव्यवस्था पुनः समायोजित होती है एवं संतुलन की ओर आती है।
  • Adolescent sterility -- किशोरकालीन बंध्यता
यह बंध्यता किसी प्रकार के कृत्रिम जन्म निरोध के साधनों के प्रयोग के बावजूद हो सकती है।
  • Age specific death rate -- आयु विशिष्ट मृत्यु दर
  • Age specific fertility rate -- आयु विशिष्ट प्रजनन दर
  • Age specific live birth conception rate (ASLC) -- आयु विशिष्ट जीवित गर्भधारण दर
इस दर का उपयोग वर्ष के दौरान स्थगित जन्मों की संख्या या किसी गर्भनिरोधक उपाय की सफलता को आँकने के लिए किया जाता है जैसे प्रसव के बाद लूप लगवाने वाली स्त्रियों के प्रसंग में वास्तविक दर जानने के लिए पिछले वर्ष की 75 प्रतिशत दर में चालू वर्ष की 25 प्रतिशत दर जोड़ दी जाती है।
  • Aggregation -- समुच्चयन
समष्टि अर्थशास्त्रीय विश्लेषण जैसे, कीमतों का सामान्य स्तर, राष्ट्रीय उत्पादन तथा राष्ट्रीय आय आदि के लिए प्रयोग किए जाने वाले समूह या समुच्चय अथवा समस्त या औसत आँकड़े।
इसके विपरीत व्यष्टि अर्थशास्त्रीय विश्लेषण में वस्तु की कीमत, किसी उद्योग अथवा फर्म का उत्पादन अथवा प्रति व्यक्ति आय आदि पदों का प्रयोग किया जाता है।
पहले वर्ग में हम एक समूह को सकल रूप में लेते हैं तथा अलग-अलग वस्तुओं की कीमतों या उत्पादन की इकाइयों अथवा आय का योग करके उनका औसत निकालकर उन्हें एक इकाई मानते हैं। इस प्रक्रिया को समुच्चयन प्रक्रिया कहा जाता है।
समुच्चयन के लिए भिन्न-भिन्न वस्तुओं तथा इकाइयों के मौद्रिक मूल्यों को उनकी मात्रा से गुणा करके जोड़ लिया जाता है और फिर उनका औसत निकालकर एक सामान्य संकेत निर्धारित कर दिया जाता है जो किसी विशेष समय पर उनकी समष्टिगत मात्रा का द्योतक होता है, जैसे सामान्य कीमत स्तर को p लिख सकते हैं और राष्टीय उत्पादन को x लिख सकते हैं।
समष्टि अर्थशास्त्रीय पद्धति में समुच्चयन की समस्या एक मूलभूत समस्या है क्योंकि आर्थिक मॉडलों में हमारे पास चरों की इतनी संख्या होती है और उनमें परस्पर इतनी अंतर होता है कि उनका एक समूह या समुच्चय बनाये बिना हम उनका विश्लेषण या अध्ययन नहीं कर सकते।
  • Amplitude -- आयाम
किसी फलन का उच्चतम या न्यूनतम मान उसका आयाम कहलाता है।
यदि किसी फलन का आयाम अपने आवर्तकाल में स्थिर रहता है तो इसे नियमित फलन कहा जाता है।
यदि आयाम कम होता जाता है तो फलन को अवमंदित फलन कहा जाता है और यदि आयाम बढ़ता जाता है तो फलन को विस्फोटी फलन कहा जाता है।
  • Analysis of variance -- प्रसरण विश्लेषण
प्रसरण विश्लेषण सार्थकता-परीक्षण की एक उपयोगी व्यावहारिक विधि है।
इस प्रकार के विश्लेषण के लिए नीचे दी गई विधि से सारणी बनाई जाती है :—
प्रसरण-विश्लेषण प्रसरणों के बीच के अन्तर का परीक्षण करने वाली विधि है।
इस विधि द्वारा माध्यों की समांगता की जाँच की जाती है। प्रसरण-विश्लेषण द्वारा हम इस बात का अनुमान लगाते हैं कि प्रत्येक उपादान का कुल विचरण में कितना योगदान है। प्रसरण-विश्लेषण द्वारा आँकड़ों में निहित कुल विचरण का विभिन्न स्रोतों द्वारा हुए घटक-विचरणों में विभाजन किया जाता है।
  • Anticipation -- प्रत्याशा
अर्थमिति में प्रत्याशा का तात्पर्य है पूर्व परिकल्पना अर्थात् किसी चर के बारे में वर्तमान धारणा के आधार पर भविष्य में उसके मान के बारे में कल्पना करना।
यदि कोई व्यवहार चर yt समय t पर इसका नियंत्रण करने वाले व्यक्तियों के भविष्य मान xt^e पर निर्भर करता हो तब हम प्रत्याशा फलन को यों लिख सकते हैं :—
Yt=⍺+βxt^e
यहां पर x प्रत्याशा का भारित औसत है। उक्त प्रत्याशा परिकल्पना को हम इस प्रकार भी व्यक्त कर सकते हैं :—
  • Approximate mean -- सन्निकट माध्य
यदि किसी ऐसे बंटन में कोई आकलक a हो और इसमें Ea का पता हो तब सन्निकट माध्य को हम निम्नलिखित फलन के रूप में लिख सकते हैं:­­­- Ec (a - β) = uo
  • Approximate variance -- सन्निकट प्रसरण
जब परिसीमन बंटन a से संबद्ध प्रसरण a तथा प्रसरण 〖σO〗^2 दोनों ज्ञात होते हैं तब सन्निकट प्रसरण को निम्नलिखित रूप में लिखा जा सकता है:­­­
प्रसरण a ≅ 〖σO〗^2/T^2
  • Approximation -- सन्निकटन
आर्थिक सांख्यिकी में अध्ययन के लिए इकट्ठे किए जाने वाले आँकड़े तथ्य आदि अधिकांशतः शत-प्रतिशत सही नहीं होते इसलिए उनके निकटतम मानों के प्रयोग की विधि को सन्निकटन कहा जाता है।
सन्निकटन के लिए अध्ययन समूह या प्रतिदर्श तैयार करने के हेतु कई प्रकार के सांख्यिकी प्रक्रम किए जाते हैं और उनसे कोई भविष्यवाणी की जाती है।
इस प्रक्रिया में अनेक त्रुटियाँ, चुनाव संबंधी पूर्वाग्रह, परिभाषा की कमियाँ, गुणांकों तथा प्रतिबंधों की अस्पष्टता संबंधी दोष आदि आ जाते हैं।
सन्निकटन की विधि द्वारा हम अपूर्ण समीकरणों व परिवर्तनशील संरचनाओं का गणितीय अध्ययन प्रस्तुत कर सकते हैं।
  • Arithmetic mean -- समांतर माध्य
समांतर माध्य एक ऐसा सांख्यिकीय माप है जो बंटन की केन्द्रीय प्रवृत्ति को दर्शाता है। व्यावहारिक रूप में इसे ‘माध्य’ या औसत भी कहा जाता है।
माध्य वह संख्या है जो पद मानों के योग को पद संख्या द्वारा विभाजित करने से प्राप्त होती है।
माध्य =(पद मानों का योग)/(पद संख्या)
  • Arrow's possibility theorem -- ऐरो का संभावना प्रमेय
  • Arrow's scheme -- ऐरो स्कीम
ऐरो स्कीम जे∘ टिंबर्गन द्वारा प्रतिपादित की गई थी। इसके द्वारा कीमतों और आपूर्ति के मानों को ज्ञात किया जाता है।
इस मॉडल की व्याख्या और परिवर्तित संरचना को निम्न चित्र द्वारा दर्शाया जा सकता है, जिसको ऐरो स्कीम कहा जाता है।
इसमें प्रथम समीकरण इस बात की व्याख्या करता है कि समय t में माँग उसी समय की कीमत (pt) का फलन होती है। प्रथम समीकरण उपभोक्ताओं की माँग की प्रक्रियाओं को दिखाता है जो कीमत परिवर्तन के कारण होती है।
द्वितीय समीकरण यह बताता है कि t समय की पूर्ति गत वर्ष (t-1) की कीमत का फलन होता है।
तृतीय समीकरण माँग के पीछे होने वाले परिवर्तनों की हेतु-हेतुक प्रक्रिया की व्याख्या करता है।
  • Association of attributes -- गुण साहचर्य
अर्थात् (AB)>((A)×(B))/N
  • Asymptotic effciency -- उपगामी दक्षता
यदि कोई प्रसरण V(x₁) किसी दूसरे प्रसरण V(x₂) से उपगामी रूप से कम हो, तो x₁ को x₂ के सापेक्ष अधिक उपगामी दक्षता वाला बंटन कहते हैं।
  • Auto-correlation -- स्वः सहसंबंध
किसी दी हुई काल श्रेणी का जब अपनी ही श्रेणी से पश्च सहसंबंध होता है तो उसे स्वःसहसंबंध कहते हैं। सूत्र रूप में,
∑(ut) (ut - 1)
स्थिर काल श्रेणी में कोई ऐसा सहसंबंध या प्रवृत्ति नहीं होती। जब काल श्रेणी की गति आवर्ती होती है, तब किसी निश्चित अवधि के बाद पहले की स्थिति अवश्य दोहराई जाती है, किन्तु यदि गति अनियमित होती है अर्थात् जहाँ पर अवधि और आयाम स्थिर नहीं होते वहाँ पर आवर्तिता का पाया जाना आवश्यक नहीं।
  • Auto-regressive disturbance -- स्वःसमाश्रयी विक्षोभ
ut = δut - 1 + vt, δ ≠ 0
जब किसी समीकरण में कोई चर निरंतर स्वतंत्र नहीं होता किन्तु अपनी पहली अवधि के मानों पर निर्भर करता है तो ऐसे चर में परिवर्तन होने से समीकरण का जो नया रूप होता है वह स्वःसमाश्रयी विक्षोभ का फल कहा जाता है।
इसके पीछे यह अभिग्रह है कि किसी भी अवधि में होने वाले परिवर्तन दो भागों में बाँटे जा सकते हैं।
पहले प्रकार के परिवर्तनों के गुण पूर्व निर्धारित ut के अनुसार होते हैं। दूसरी प्रकार के परिवर्तन रैखिक एकघाती अविकल समीकरणों के रूप में होते हैं और इनमें vt के यादृच्छिक विक्षोभ को पहले से नहीं देखा जा सकता।
इन समीकरणों का व्यापार चक्र तथा काल श्रेणी के अध्ययनों में प्रयोग किया जाता है।
  • Autonomy=(autonomous equation) -- स्वायत्तता
इस प्रकार के व्यवहार को प्रगट करने वाले समीकरणों को अर्थमिति में स्वायत्त समीकरण कहा जाता है।
  • Average deviation -- औसत विचलन
विचलनों का माध्य या औसत अर्थात् माध्यम से घट-बढ़ों का औसत।
तुल∘ दे∘ mean deviation
  • Baby boom -- शिशु धूम
संयुक्त राष्ट्र के अनुसार यह प्रवृत्ति 1920 से विशेष रूप से दिखाई दे रही है। दूसरे विश्वयुद्ध के बाद 1946 से 1966 तक इस दर में बड़ी त्वरित वृद्धि हुई है जिसे 'शिशु धूम' का युग कहा गया है।
  • Balanced growth -- संतुलित संवृद्धि
यह संकल्पना जर्मनी के गणितीय अर्थशास्त्री वॉन न्यूमैन (Von Neumann) द्वारा दी गई है।
सामान्य संतुलन के मॉडल में जब आर्थिक क्रियाकलाप के सभी क्षेत्रों का निर्गत विस्तार एक ही अनुपात में होता है तब संवृद्धि प्रवाह अधिकतम संतुलित संवृद्धि की स्थिति में पैदा होता है।
इसे न्यूमैन पथ की संज्ञा भी दी जाती है।
सोलो ने संतुलित संवृद्धि की स्थिति में पूँजी श्रम अनुपात का बुनियादी समीकरण इस प्रकार दिया है:—
इसके अनुसार कोई भी अर्थव्यवस्था तब संतुलन की स्थिति में होती है जब इसके सभी आगत और निर्गत एक ही अनुपात में बढ़ते हैं।
  • Bar diagram -- दंड आरेख
यह आरेख छोटी-छोटी ऊँचाई वाली मोटी सरल रेखाओं के रूप में होते हैं। विभिन्न आर्थिक मात्राओं के तुलनात्मक अध्ययन में इन दण्डआरेखों का इस्तेमाल किया जाता है तथा आँकड़ों को दण्ड आरेख द्वारा दिखाया जाता है।
इन दण्डों की ऊँचाई और क्षेत्रफल से आँकड़ों के आयाम का पता लगता है। दो दण्डों के बीच का अन्तर अवधि को प्रगट करता है।
आवश्यकतानुसार इन आरेखों का निरूपण क्षैतिज दंडों के रूप में भी किया जा सकता है।
  • Base population -- आधार जनसंख्या
  • Basic feasible solution -- बुनियादी व्यवहार्य हल/आधारी सुसंगत हल
किसी रैखिक प्रोग्रामन समस्या का ऐसा हल जिसमें सभी मान ऋणेतर हों।
ऐसा हल व्यवहार्य क्षेत्र के किसी एक चरम बिंदु के सुसंगत होता है।
यह इसलिए व्यवहार्य या सुसंगत माना जाता है क्योंकि यह व्यवहार्य क्षेत्र के अंदर होता है और यह सभी प्रतिबंधों और ऋणेतरता की शर्त को पूरा करता है।
यह इसलिए बुनियादी या आधारभूत माना जाता है क्योंकि इसका पाया जाना इस बात पर निर्भर करता है कि समस्या में रैखिक दृष्टि से तीन गुणांक सदिश होने चाहिए जो मिलकर त्रि-विम समष्टि का आधार बनाते हैं।
इस समष्टि को आपेक्षिक समष्टि (requirement space) भी कहते हैं जिसका आकार या परिमाण व्यवरोधों की संख्या पर निर्भर करता है।
  • Basis of space -- समष्टि आधार
  • Behavioural equations -- व्यवहारपरक समीकरण
व्यवहारपरक समीकरण मानव की क्रिया प्रतिक्रिया अथवा संव्यवहार के बीज गणितीय सूत्र होते हैं।
बाजार के संदर्भ में ये माँग एवं पूर्ति संबंधो में वैयक्तिक व्यवहार का उल्लेख करते हैं।
ये फलन अपने सरलतम रूप में रैखिक माने जाते हैं। प्रतियोगी बाजार में व्यवहार के समीकरण इस प्रकार हैं :—
q^d = a + bp
इन समीकरणों की सहायता से हम संतुलन की स्थिति का पता लगा सकते हैं।
यद्यपि इनके बारे में यह पूर्व धारणा है कि इनकी प्रकृति रैखिक होती है तथापि वास्तविक जगत में यह अरैखिक भी हो सकती है।
तुल∘ दे∘ definitional equation
  • Bergson contour -- बर्गसन कन्टूर
बर्गसन कन्टूर (समोच्च रेखा) मात्राओं के समाहार के वैकल्पिक संयोगों को दिखाती है।
बर्गसन एक फ्रांसिसी समाज विज्ञानी थे जिनका मत है कि अनुभव की दो स्थितियों को अंतराल रेखाओं द्वारा स्पष्टतया दिखाया जा सकता है।
उपभोक्ता क्षेत्र में यदि हम दो व्यक्तियों के समाज की कल्पना करें और दो वस्तुओं q₁ q₂ को विचार में लायें तब उनसे मिलने वाली उपयोगिताओं को वितरण के संगत समोच्च रेखाओं द्वारा नीचे दिए चित्र के अनुसार दिखाया जा सकता है।
q₂ की अल्पतम मात्रा जो q₁ की किसी मात्रा की संगत मात्रा होती है, ₂ की उस अल्पतम मात्रा को दिखाती है जो समाज को एक निश्चित कल्याण फलन पर रहने के लिए आश्वासन देती है।
इस चित्र में दिया गया आवरण (envelop) सीटोवस्की (Scitovsky) समोच्च रेखा से मिलता-जुलता है जो Q₁, Q₂ की उन अल्पतम मात्राओं के संयोगों का, जो समाज को एक निश्चित कल्याण फलन पर रखने के लिए आवश्यक है, बिंदुपथ होता है।
यह आवरण (envelop) AB बर्गसन कन्टूर कहलाता है।
  • Best estimator -- श्रेष्ठ आकलक
प्रतिदर्श द्वारा दी गई सूचना के आधार पर किसी समष्टि के प्राचलों का ऐसा आकलन जो यथार्थ या वास्तविकता के निकट होता है श्रेष्ठ आकलक कहा जाता है।
इसका निर्णय समंजन की कसौटी द्वारा किया जाता है। यदि हमारे पास कोई ऐसा निकर्ष होता है, जिसके आधार पर हम दो आकलकों में से यह निर्णय कर सकें कि इनमें से एक आकलक दूसरे से श्रेष्ठ हे तब हम प्रसरण की इसी प्रक्रिया द्वारा यह भी कह सकते हैं कि इसका कोई श्रेष्ठतम आकलक भी हो सकता है।
श्रेष्ठतम आकलक के चयन में जिन निकर्षों का प्रयोग होता है, उनमें प्रमुख हैं—पर्याप्तता, न्यूनतम प्रसरण, संगतता, इत्यादि।
  • Better decision function -- सुष्ठुतर निर्णय फलन
निर्णय फलन के गुण-दोष की परख जोखिम फलन की कसौटी द्वारा की जाती है अर्थात् निर्णय के द्वारा लिये जाने वाले जोखिम का मूल्य कितना है।
जोखिम का तात्पर्य है कि किसी प्रयोग पर हमारी कितनी लागत आएगी और इसमें प्रत्याशित हानि को निकाल कर हमें कुल कितना लाभ होगा।
किसी दी हुई परिस्थिति में प्रत्येक प्रकार के निर्णयों के साथ अलग-अलग हानि फलन जुड़े हुए होते हैं।
निर्णय फलन को तभी दूसरे निर्णय फलन से उत्तम या श्रेष्ठ कहा जा सकता है जबकि उसका जोखिम फलन दूसरे निर्णय के साथ जुड़े हुए जोखिम फलन से अधिक न हो बल्कि कुछ निश्चित मूल्यों पर उसका जोखिम दूसरे से कम हो।
  • Binomial distribution -- द्विपद बंटन
द्विपद बंटन की संकल्पना प्रो∘ जेम्स बर्नूली द्वारा प्रतिपादित की गई है। यदि हम एक सिक्के को उछालें तो हेड ( H या सफलता) प्राप्त करने की सफलता p, 1/2 के बराबर है तथा टेल ( T या असफलता ) की प्रायिकता भी 1/2 है अर्थात् q = 1/2 है।
व्यापक रूप में हम कह सकते हैं कि यदि कुल n स्वतंत्र अभिप्रयोग हों और प्रत्येक अभिप्रयोग के लिए सफलता की प्रायिकताएं p एक समान हों, तो 0,1,2,3,------------ सफलताओं की प्रायिकताएं क्रमशः द्विपद प्रसार (q+p)^n के उत्तरोत्तर पदों द्वारा व्यक्त की जाती है। यह बंटन द्विपद बंटन है।
इसका प्रसार (FORMULA )
होता है तथा माध्य np और प्रसरण npq के बराबर होता है।
  • Birth control -- जन्म नियंत्रण
बच्चों के जन्म पर रोक लगाने की क्रिया जन्म नियंत्रण कहलाती है। यह परिवार नियोजन कार्यक्रमों से संबद्ध है और इसका उपययोग संतानों के बीच उचित अंतराल लाने या उनकी संख्या कम रहने के लिए किया जाता है।
  • Birth rate -- जन्म दर
  • Births prevented -- निरूद्ध जन्म
  • Boundary condition -- परिसीमा प्रतिबंध
  • Bourgeois Pichats method -- बुर्जुआ पिशा विधि
  • Canonical correlation -- विहित सहसंबंध
इस विधि का प्रचलन प्रसिद्ध सांख्यिकीविद् होटलिंग (Hotelling) द्वारा किया गया था।
इस विधि में विचारों के दो समुच्चयों के स्थान पर प्रत्येक समुच्चय में विहित विचारों को रैखिक संयोजन के रूप में लिखा जाता है जिसे विहित विचार कहते हैं। फिर इनके बीच सहसंबंध को अधिकतम बनाया जाता है जिसे विहित सहसंबंध कहते हैं।
  • Capitalization formula -- पूँजीकरण सूत्र
किसी स्थायी आमदनी वाली परिसम्पत् का पूँजीकरण सूत्र इस प्रकार माना जाता है।
वर्तमान मूल्य
  • Census of population -- जनगणना
भारत में जनगणना प्रति दस वर्षों के बाद की जाती है। पहली जनगणना 1872 में की गई थी और अंतिम जनगणना 1971 में। इसके अनुसार भारत की कुल जनसंख्या 54.8 करोड़ थी।
  • Census schedule -- जनगणना अनुसूची
जनगणना के समय सूचनाएँ एकत्रित करने के लिए जो प्रपत्र काम में लाया जाता है उसे जनगणना अनुसूची कहते हैं। इनमें अधिकांश अनुसुचियाँ प्रश्नावलियों के रूप में होती हैं।
दूसरी ओर कुछ ऐसी भी अनुसूचियाँ होती हैं जो कार्यकर्ताओं द्वारा अन्य सूत्रों से प्राप्त सूचनाओं के अधार पर भरी जाती हैं।
अनुसूचियों के आगे उनके प्रयोग के आधार पर भी अनेक भेद किए जा सकते हैं—जैसे व्यक्ति-अनुसूची, आवास अनुसूची, सामूहिक अनुसूची या गणनाकार अनुसूची इत्यादि।
  • Central limit theorem -- केन्द्रीय सीमा प्रमेय
इस सिद्धांत का संबंध प्रायिकता बंटन से है। जैसे-जैसे चरों की संख्या बढ़ती जाती है और जैसे-जैसे वह अपरिमित होते जाते हैं यह बंटन वैसे वैसे पूर्णता की ओर बढ़ता जाता है।
  • Chain base method -- श्रृंखला आधार विधि
इस प्रकार श्रृंखला आधार विधि में प्रत्येक वर्ष के लिए पिछले वर्ष के आधार पर नये अनुपातों की रचना की जाती है जबकि सामान्यतः कोई सूचकांक एक नियत आधार वर्ष के लिए परिकलित किया जाता है।
  • Chain index -- श्रृंखला सूचकांक
श्रृंखला सूचकांकों के रूप में समुच्चयों को भारित करके दिखाने की विधि भी प्रचलित है, जैसे किसी वर्ष में कीमतों और उत्पादन को गुणा करके दिखाना और फिर इन गुणनफलों को प्रतिवर्ष के लिए जोड़ कर पिछले वर्ष के प्रतिशत के रूप में सारणी के अंतिम स्तंभ में दिखाना।
  • Chi square test -- काई वर्ग परीक्षण
यह सार्थकता परीक्षण का एक प्रकार है जिसकी सहायता से किसी परिकल्पना की समंजन-सुष्ठुता की परीक्षा की जाती है।
इस विधि में प्रत्येक वर्ग अंतराल की बारंबारता की तुलना उस बारंबारता से की जाती है जो प्रसामान्य बारंबारता बंटन में उस समय दिखाई देती है जब इन दोनों अंतरालों के माध्य और प्रसरण तथा प्रेक्ष्य बंटन और प्रेक्षणों की संख्या एक समान होती है।
सूत्र में इसे यों दिया जाता है:—
  • Chronological data -- कालानुक्रमी आँकड़े
आँकड़ों को दीर्घ अवधि के लिए कालक्रमानुसार दिखाने की विधि को कालानुक्रमी आँकड़ों की विधि कहते हैं।
ये आँकड़े किन्हीं दो अवधियों में प्रवृत्तियों की तुलना के काम आते हैं।
इसके आधार पर आर्थिक संकेतक तथा उनके आरेख तैयार किए जाते हैं।
  • Circular function -- वृत्तीय फलन
  • Circular test -- वृत्तीय परीक्षण
यह परीक्षण वास्तव में काल-उत्क्रमण परीक्षण का ही विस्तार तथा वहाँ लागू किया जाता है जहाँ दो से अधिक वर्षों के सूचकांक दिए हों।
वृत्तीय परीक्षण के अनुसार—
वृत्तीय परीक्षण की उक्त शर्त तभी पूरी होती है, जब सूचकांकों की गणना सरल ज्यामितीय माध्य के रूप में की गई हो।
  • Classical model -- संस्थापक मॉडल
संस्थापक अर्थशास्त्रियों द्वारा प्रतिपादित अर्थव्यवस्था का मॉडल। इसमें प्राकृतिक साधनों की तुलना में जनसंख्या को बहुत छोटा माना जाता है और लाभ, संचय की दर तथा वेतन इन तीनों की स्थिति बड़ी ऊँची होती है।
इसमें कुल शुद्ध उत्पादन को यों दिखाया जाता है:—
इस मॉडल में प्रारंभिक संतुलन की स्थिति निम्नलिखित चित्र द्वारा दर्शायी जा सकती है।
माल्थस का जनसंख्या सिद्धांत, ह्रासमान प्रतिफलन नियम, संचय के लिए प्रोत्साहन की प्रवृत्ति, मजदूरी का निर्वाह मात्रा नियम इस मॉडल की कुछ विशेषताएं हैं।
इस मॉडल की सहायता से उत्पादन और आबादी के स्तर तथा समय परिपथ में होने वाले उतार-चढ़ाव के अनुसार इनके संतुलन की स्थिति का अध्ययन किया जाता है।
  • Classification -- वर्गीकरण
वर्गीकरण वह प्रविधि है जिसके द्वारा व्यक्तियों, वस्तुओं या मदों को उनके सादृश्य के अनुसार वर्गों में क्रमबद्ध किया जाता है।
यह ऐसी प्रविधि है जिसके द्वारा समरूप व असमरूप तथ्यों को क्रमबद्ध एवं तर्कसंगत ढंग से अलग-अलग वर्गों में समाहित किया जाता है।
वर्गीकरण से आँकड़ों के स्वरूप के बारे में स्पष्ट तथा यथार्थ निर्णय करने में सहायता मिलती है।
भौगोलिक, कालानुक्रमिक, गुणात्मक या संख्यात्मक अभिलक्षणों के आधार पर वर्गीकरण को निम्न चार प्रकार से विभाजित किया जा सकता है:—
  • Cluster -- गुच्छ
  • Cluster sampling -- गुच्छ प्रतिचयन
जब किसी समष्टि की प्रतिचयन इकाई समूह या गुच्छ हो तब प्रतिदर्श का चुनाव भी गुच्छों के रूप में किया जाता है इसे गुच्छ प्रतिचयन कहते हैं।
गुच्छ प्रतिचयन में किसी समष्टि के अवयवों को एक-एक करके नहीं चुना जाता बल्कि उन्हें वर्ग या समूह बताकर एक गुच्छे के रूप में चुना जाता है।
एक ऐसे प्रतिदर्श के प्रसरण में तथा उसी आकार के सरल प्रतिचयन द्वारा चुने गए प्रतिदर्श के प्रसरण में जो अनुपात होता है उसे गुच्छ प्रभाव कहा जाता है।
  • Clustering effect -- गुच्छ प्रभाव
  • Coale & Demeny method -- कोल तथा डेमे विधि
कोल तथा डेमे द्वारा तैयार की गई 326 जीवन-सारणियों के सामंजस्य को क्षेत्रीय आधार पर पूर्वी, पश्चिमी उत्तरी तथा दक्षिणी—4 भागों में विभक्त करके विभिन्न आंतरिक वृद्धि दरों और मर्त्यता स्तरों के अनुसार स्थिर जनसंख्याओं और जीवन-सारणियों की गणना की विधि।
इसमें यह माना जाता है कि कुल जनसंख्या का मॉडल स्थिर प्रकार का है।
इस विधि की सहायता से किसी जनसंख्या के आयु बंटन के आधार पर उस जनसंख्या की जैव दरों की गणना भी की जा सकती है ।
इस विधि में मुख्य समस्या यह रहती है कि किसी विशेष देश के लिए कौन-सी क्षेत्रीय जीवन सारणी का प्रयोग किया जाए।
  • Cobb-Douglas production function -- कॉब-डगलस उत्पादन फलन
उत्पादन सिद्धांत में किसी फर्म का निर्गत उसके उत्पादन कारकों के आगत से संबद्ध होता है।
इस फलनीय संबंध को निम्न प्रकार से व्यक्त किया जा सकता है—
कॉब डगलस ने एक निजी फर्म या सम्पूर्ण उद्योग के लिए इस उत्पादन फलन को सरल रूप में निम्नलिखित समीकरण से व्यक्त किया है:—
  • Cobweb model -- मकड़जाल मॉडल
इसके पीछे दो सामान्य मान्यताओं को स्वीकार किया जाता है कि माँग वक्र अधोमुखी होता है और पूर्ति वक्रि ऊर्ध्वमुखी।
इस मॉडल में यह भी माना जाता है कि यदि किसी वस्तु की कीमत बढ़ती है तो यह प्रत्याशा होती है कि कीमत बढ़ेगी और इसलिए उत्पादन बढ़ता है। अतः कीमतों तथा कीमतों की परिवर्तन दर दोनों को उत्पादन का निर्धारक माना जाता है।
इसका सबसे अच्छा उदाहरण कृषि के क्षेत्र में देखा जाता है जहाँ पर एक साल की फसल की उपज पिछले वर्ष की कीमतों पर निर्भर करती है और इसी प्रकार पिछले वर्ष का उत्पादन उससे पिछले वर्ष की कीमतों पर। इस मॉडल को हम निम्नलिखित रूप में दे सकंते हैं :—
  • Coefficient -- गुणांक
  • Coefficient of association -- साहचर्य गुणांक
यह गुणांक गुणों के स्वातंत्र्य के इस सूत्र पर आधारित होता है :
  • Coefficient of collignation -- संबंधन गुणांक
संबंधन गुणांक साहचर्य का एक प्रकार है।
यह गुणांक γ द्वारा सूचित किया जाता है और साहचर्य गुणांक Q से संबंधित होता है।
संबंधन गुणांक की वही विशेषताएं हैं जो साहचर्य गुणांक की। इसका परिकलन निम्न सूत्र की सहायता से किया जाता है :—
संबंधन गुणांक तथा साहचर्य गुणांक परस्पर निम्न सूत्र द्वारा संबंधित होते है :
  • Coefficient of correlation -- सहसंबंध गुणांक
सहसंबंध गुणांक दो श्रेणियों के बीच सहसंबंध का संख्यात्मक माप होता है तथा γ द्वारा सूचित किया जाता है।
यह दो चरों के बीच सहसंबंध की मात्रा की संख्यात्मक अभिव्यक्ति है। सहसंबंध गुणांक को निम्नलिखित सूत्र की सहायता से परिकलित किया जा सकता है :—
सहसंबंध गुणांक γ का मान +1 और -1 के बीच रहता है अर्थात् γ का मान +1 से अधिक तथा -1 से कम नहीं हो सकता।
  • Coefficient of determination -- निर्धारण गुणांक
तुल० दे० coefficient of correlation
  • Coefficient of dispersion -- विक्षेपण गुणांक
मानक विचलन गुणांक को विचरण गुणांक भी कहते हैं। इस प्रकार;
  • Cofactor -- सहगुणन खंड
  • Cohort -- सहगण
  • Cohort Analysis -- सहगण विश्लेषण
दे. cohort
  • Conjugate transpose -- संयुग्मी परिवर्त
यह एक ऐसी विशेष स्थिति होती है जिसमें किसी आव्यूह के अवयवों का संबंध जटिल संख्याओं के क्षेत्र में होता है।
एक आव्यूह A* को आव्यूह A का तब संयुग्मी परिवर्त कहा जाता है जब इसमें एक शर्त यह होती है कि आव्यूह A* की प्रविष्टि (i, j) आव्यूह A की प्रविष्टि (j, i) की सम्मिश्र संयुग्मी होती है।
इसके संकल्पना के अनुसार दोनों आव्यूहों का परस्पर संबंध निम्न-लिखित समीकरण द्वारा दिखाया जाता है।
(AB)* = B* A*


ऐसी विधि जिसके द्वारा परिवर्तन की दर का फलन ज्ञात किया जाता है।
यह विधि अवकलन की विपरीत विधि है। इसका चिन्ह ʃ है और परिवर्तन की दर ƒ'(x) को समाकल्य कहते हैं।
विशिष्ट सीमाओं के बीच निकाले जाने वाले समाकल को निश्चित समाकल कहा जाता है।
द्विक श्रेणी समाकल का रूप निम्नलिखित है:— (_z^ )ʅ (_x^ )ʅ f(x) dx dz इसी प्रकार त्रिक श्रेणी और बहुश्रेणी समाकल भी होते हैं। --
  • Compensated demand function -- प्रतिपूरित माँग फलन
प्रतिपूरित माँग फलन द्वारा हम यह निश्चय करते हैं कि कोई उपभोक्ता किसी वस्तु पर कर लगाने या आर्थिक सहायता देने के बाद बदली हुई परिस्थितियों में उस हेतु की कितनी मात्रा खरीदेगा।
इस फलन में यह पूर्वधारणा की जाती है कि उपयोगिता का स्तर निश्चित रहता है और दूसरी शर्त यह होती है कि उपभोक्ता अपने व्यय को न्यूनतम रखना चाहता है :—
इस फलन के अनुसार उपभोक्ता के व्यवहार को अथवा वह प्रत्येक वस्तु की कितनी मात्रा खरीदेगा इस बात को निम्नलिखित समीकरण द्वारा दर्शाया जा सकता है :
  • Complete years of Protection (CYP) -- संरक्षण के दम्पत्ति-वर्ष
परिवार-नियोजन कार्यक्रम के अन्तर्गत किसी उपाय या विधि की सफलता आँकने के लिए यह देखा जाता है कि दम्पत्ति को इस उपाय द्वारा कितने वर्ष तक गर्भाधान से संरक्षण प्राप्त हुआ और इस उपाय के प्रयोग द्वारा कितने बच्चों के जन्म को रोका जा सका।
व्यावसायिक जनांकिकीविद् इस प्रकार के विश्लेषण में संरक्षण के दम्पत्ति वर्ष का सूचकांक निकालने के लिए निम्नलिखित सूत्र का प्रयोग करते हैं :—
यहाँ Cn कुल बाँटे गए रूढ़िगत गर्भनिरोधकों की संख्या, TLn स्त्रियों के आपरेशनों की संख्या, Vn पुरूषों के आपरेशनों की संख्या, O = बाँटी गई गोलियों की संख्या, और In लगाए गए लूपों की संख्या है।
  • Completeness rate -- पूर्णता दर
पूर्णता दर का प्रयोग पँजीकृत जन्म व मृत्यु दर के आँकड़ों की पूर्णता बताता है।
  • Complex number -- सम्मिश्र संख्या
ऐसी संख्या जिसमें साधारणतया एक वास्तविक तथा एक अधिकल्पित भाग होता है, यथा a + bi
यहाँ 'a' वास्तविक भाग है तथा bi अधिकल्पित। स्वयं 'b' एक वास्तविक संख्या है और I = √-1
इसकी संयुग्मी संख्या (Conjugate number) a - bi होती है।
  • Component part chart -- घटक चार्ट
  • Concave function -- अवतल फलन
  • Concomitant variable -- सहगामी चर
आर्थिक विश्लेषण में कभी-कभी आश्रित चर और स्वतंत्र चर का भेद करना कठिन होता है। उस विवाद से बचने के लिए सहगामी चरों का प्रयोग किया जाता है।
  • Concurrent deviation -- संगामी विचलन
काल श्रेणियों में अल्पकालीन उच्चावचन की अवस्था में एक बिंदु से निकलकर साथ-साथ होने वाला विचलन।
कार्ल पियर्सन के सहसंबंध गुणांक की अपेक्षा इस प्रकार के विचलन का प्रयोग करना काफ़ी आसान है।
जब हम यह देखना चाहते हैं कि दो चर एक ही दिशा में गतिमान है या विपरीत दिशा में तब हम संगामी या सहगामी विचलनों का उपयोग करते है।
संगामी विचलन के गुणांक का परिकलन निम्म सूत्र से किया जाता है-
यहां c संगामी विचलनों की संख्या है, n कुल विचलनों की संख्या है और n=N-1 है अर्थात् कुल संख्या से एक कम है, क्योंकि पहले पद का विचलन नहीं होता।
  • Conditional cost minimization -- प्रतिबंधित लागत न्यूनीकरण
न्यूनतम लागत पर उत्पादन प्राप्त करने की प्रक्रिया। जब कोई उत्पादक किसी निर्गत x का उत्पादन x_1,x_2,x_3,………x_n आगतों द्वारा करना चाहता है तब उसका उत्पादन फलन इस प्रकार होता है:—
प्रतिबंधित लागत न्यूनीकरण की संकल्पना के अन्तर्गत हम उपर्युक्त फलन को यों भी लिख सकते हैं:—
  • Cone solution -- शंकु हल
रैखिक प्रोग्रामन समस्या में व्यावहार्य हल के परिबद्ध उत्तल सेट के चरम बिन्दु शंकु बिन्दु कहलाते हैं और इनसे संबंधित चरों का मान शंकु हल कहलाता है।
रैखिक प्रोग्रामन समस्या में हलों की खोज बीजगणितीय विधि तथा ज्यामितीय विधि, दोनों प्रकार से की जाती है, पर उनमें समन्वय आवश्यक है। बीजगणितीय विधि से प्राप्त मूल हलों की संख्या तथा ज्यामितीय विधि से प्राप्त शंकु हलों की संख्या में एक-एक संगतता पाई जाती है।
रैखिक प्रोग्रामन समस्या का अनुकूलतम हल, इन्हीं सीमित शंकु हलों में से ही कोई एक (यदि कई हल हों) होता है ।
  • Confidence limit -- विश्वसनीयता सीमा
आकलक के सही होने का प्रतिशत जो किसी पूर्व निर्दिष्ट संख्या द्वारा किया जाता है जैसे 95 प्रतिशत सही आदि।
इसे विश्वसनीयता गुणांक भी कहा जाता है। इसका आधार घटना की प्रायिकता पर निर्भर करता है।
कभी-कभी इन्हें विश्वास्यता सीमा (fiducial limits) भी कहा जाता है। किन्तु इन दोनों में भेद है और जरूरी नहीं ये दोनों सीमाएं समरूप हों।
  • Consistency -- संगति
प्रायिकता बंटन में संगति की संकल्पना के आधार पर ही हम बहु समाश्रयण और सहसंबंधों का अभिकलन करते हैं।
  • Consistent estimator -- संगत आकलक
संगत आकलक वह आकलक है जो प्रतिदर्श परिमाण n के अपरिमित होने की स्थिति में वास्तविक मान के बराबर हो।
किसी प्रतिदर्शज का वास्तविक मान ज्ञात न होने पर उसका आकलक प्रायः प्रतिदर्श के आँकड़ों के आधार पर ज्ञात किया जाता है। इस प्रकार से ज्ञात किए गए आकलकों की सुष्ठता की कसौटी में एक कसौटी उनका संगत होना भी है।
प्रायिकता की शब्दावली में हम उस आकलक को संगत आकलक कहेंगे जिसके मान और वास्तविक मान का अंतर ∑ (अत्यल्प राशि) से कम होने की प्रायिकता 1-n ( n एक दूसरी अत्यल्प राशि है) के बराबर हो, अर्थात्
संगत आकलक अपने सीमांत रूप में सदा अनभिनत होता है और प्रतिदर्श परिमाण की वृद्धि के साथ-साथ उसकी परिशुद्धता में भी बढ़ोत्तरी हो जाती है।
  • Consistent system -- संगत प्रणाली
n अज्ञात समीकरणों वाली असमांगी रैखिक प्रणाली है जिसके एक या अधिक हल हों। यदि किसी प्रणाली का शून्य या कोई हल न हो तब इसे असंगत प्रणाली कहा जाता है।
ऐसी प्रणाली तभी तभी संगत होती है जब इसके गुणांक आव्यूह की कोटि (rank) संबंधित आव्यूह की कोटि के बराबर होती है।
संगत प्रणाली का उपयोग तीन प्रकार से होता है:-
गुण-अध्ययन में आवृत्तियों के मध्य कई असमिकाएं होती हैं, जिनके संतुष्ट होने पर ही कोई भी आवृत्ति ऋणात्तमक होती है।
आगत-निर्गत विश्लेषण में ऐसा मॉडल संगत प्रणाली वाला माना जाता है जिसमें उत्पादन के बदलने पर श्रम-रोजगार का स्तर भी परिवर्तित हो जाये बशर्ते प्राविधिक गुणांक समान तथा दृढ़ बने रहें।
  • Constant -- स्थिराँक
  • Constraint -- व्यवरोध
व्यवरोध का तात्पर्य ऐसे बाह्य परिसीमन या शर्त है जो किसी समुच्चय या फलन को व्यवहार्य बनाने से पहले पूरी करनी होती हैं।
जैसे, किसी साधन का प्रयोग उसकी पूर्ति की मात्रा से अधिक नहीं हो सकता अथवा ‘किन्हीं विचरों की मूल्यों का माध्य शून्य होगा’ अथवा ‘कोई निर्गत ऋणात्मक नहीं हो सकता’ आदि।
आर्थिक मॉडल में इस प्रकार की शर्तों का बड़ा महत्व होता है और किसी भी आर्थिक प्रोग्राम के अधिकतमीकरण या न्यूनतमीकरण में ऐसे सभी व्यवरोधों की गणना पूरी तरह से करना आवश्यक होता है ताकि किसी भी वस्तुनिष्ठ फलन में किसी प्रकार की त्रुटि न रहे और उससे सही निष्कर्ष निकाला जा सके।
  • Consumption function -- उपभोग फलन
  • Contingency table -- आसंग सारणी
इसके मुकाबले जब समष्टि को गुण की विद्यमानता तथा अविद्यमानता के आधार पर दो वर्गों में विभाजित किया जाता है जैसे उत्कृष्ट, योग्य, अयोग्य, स्वस्थ, अस्वस्थ इत्यादि, तब इसे द्विधा वर्गीकरण कहा -जाता है।
आसंग सारणी की रूपरेखा निम्न प्रकार की होती है।
  • Continuous function -- सतत फलन
इसमें किसी भी स्थान पर ‘छिद्र' या रंध्र नहीं होते और न ही इसमें कहीं पर कूदने या ‘फाँदने’ की प्रवृत्ति होती है।
  • Contour -- समोच्च रेखा
किसी फलन की सतह को जब वक्रों द्वारा अनेक अनुभागों या खण्डों में बाँटा जाता है तब इसके धरातल से लेकर समतलों के आर-पार जाने वाली रेखाओं को समोच्च रेखा कहते हैं। यह रेखा ऐसे सभी संयोजनों का रेखापथ होती है।
समोच्च उत्पाद रेखा के प्रत्येक बिन्दु पर उत्पाद की सम मात्रा होती है। ऐसी समोच्च रेखा को समोत्पाद या स्थिर उत्पाद वक्र की संज्ञा भी दी जाती है।
जब एक उत्पाद-सतह क्षैतिज तल (विभिन्न समतल) पर खींची गई रेखाओं से अनेक अनुभागों में बाँटी जाती है तो ऐसी प्रत्येक रेखा को समोच्च उत्पाद रेखा कहते हैं।
समोच्च रेखा की ऊँचाई समान मानी जाती है क्योंकि इसका प्रत्येक बिन्दु एक जैसी मात्रा को दर्शाता है।
  • Contraception technology -- गर्भ निरोधक प्रौद्योगिकी
गर्भ निरोधक उपायों या वस्तुओं संबंधी विज्ञान व तकनीकी विधाएं और उनका बड़े पैमाने पर विनिर्माण व प्रचार प्रसार।
परिवार नियोजन के लिए परंपरागत गर्भ निरोधकों के स्थान पर आधुनिक आविष्कारों के आधार पर कुछ वस्तुओं का बड़े पैमाने पर निर्माण जैसे, रासायनिक अथवा हार्मोनिक गोलियाँ (Pills), विविध प्रकार के लूप (I.U.D.) इंजेक्शन आदि।
इनके संबंध में नए-नए अनुसंधान और गवेषणाएं की जा रही हैं जिनमें डॉक्टर, उद्योगपति, समाजविज्ञानी, आदि सभी सक्रिय सहयोग दे रहे हैं। इस सारे विज्ञान का अब गर्भ निरोध प्रौद्योगिकी के नाम से बड़ी तेजी से विकास हो रहा है।
इसका उद्देश्य यह है कि जनसंख्या विस्फोट को सस्ते दामों पर रोकने के कारगर और निश्चित उपाय ढूँढे जा सकें और साथ ही ये उपाय ऐसे होने चाहिए कि ये प्रयोगकर्ताओं के स्वास्थ्य पर किसी प्रकार का बुरा प्रभाव न डाल सकें।
  • Contraceptive -- गर्भ निरोधक
  • Contract curve -- संकुचन वक्र
एक बाक्सनुमा वक्र जिसमें प्रतिस्थापन विधि द्वारा दो वस्तुओं के आबंटन के अधिकतम लाभ के उद्देश्य से अनधिमान वक्रों द्वारा दर्शाए गए क्षेत्र के अन्तर्गत मात्राओं के अनुपात या वस्तुओं की अदला-बदली को दिखाया जाता हैं।
संकुचन वक्र पर पहुँचकर हम एक ऐसी स्थिति में आ जाते हैं जब वस्तुओं के आदान-प्रदान से कोई और लाभ नहीं हो सकता। इस बिन्दु पर वस्तुओं का केवल पुनर्वितरण मात्र होता है।
संकुचन वक्र एक प्रकार का दक्षता बिन्दुओं का रेखापथ होता है जहाँ पहुँचकर वस्तुओं की उपयोगिताएं एक दूसरे पर निर्भर नहीं करतीं बल्कि पूर्णतः स्वतंत्र हो जाती हैं। यह रेखापथ संकुचन बिन्दु पर बहुत स्पष्ट बन जाता है जैसे कि नीचे चित्र में दिखाया गया है:—
  • Conventional contraceptive -- रूढ़ गर्भ निरोधक
इसके अन्तर्गत निम्नलिखित उपाय शामिल हैं:—
  • Convergence -- अभिसरण
निश्चित सीमा के परे चर के अग्रसर होने को अपसरण कहा जाता है।
  • Convex function -- उत्तल फलन
उपर्युक्त मान-अंतराल में फलन का ग्राफ केन्द्र की ओर उत्तल होता है जैसे नीचे के चित्र में दिखाया गया है:—
  • Correlation -- सहसंबंध
दो चरों के बीच संबंध या संबद्धता को सहसंबंध या सहविचरण कहते हैं।
अर्थात्, जब एक चर के मानों में परिवर्तन होने पर दूसरे चर में भी परिवर्तन होने की प्रवृत्ति हो तो हम कह सकते हैं कि उनमें सहसंबंध या सहविचरण है।
सहसंबंध मुख्यतः दो प्रकार का हो सकता है: (1) अनुलोम सहसंबंध, (2) विलोम सहसंबंध।
  • Correlation ratio -- सहसंबंध अनुपात
इसका सूत्र नीचे दिया जाता है :—
  • Correspondence principle -- संगति सिद्धांत
किसी प्रणाली के संदर्भ में जब संगत वक्रों और फलनों के बारे में हमारी जानकारी अधूरी होती है और हम संतुलन की स्थिति का प्रत्यक्ष रूप से निरूपण नहीं कर सकते तब इस सिद्धांत की सहायता से गतिकीय अर्थशास्त्र संबंधी परिकल्पनाओं के आधार पर हम तुलनात्मक स्थैतिक निष्कर्ष निकाल सकते हैं।
  • Cost benefit analysis -- लागत हितलाभ विश्लेषण
किसी कार्यक्रम या योजना जैसे केन्द्रीय आयोजन प्रणाली में परियोजनाओं के चुनाव, अकाल, सूखे या अन्य प्राकृतिक प्रकोपों के समय किए जाने वाले राहत कार्यों या आर्थिक मंदी के समय रोजगार अथवा आय के पुनर्वितरण के कार्यों आदि की उपादेयता अर्थात् उस पर आने वाली लागत और उससे होने वाले लाभों का लेखा-जोखा या तखमीने की पद्धाति पर किया गया विश्लेषण।
इस प्रकार के विश्लेषण में कुछ ऐसे निदेशक सिद्धांत बनाये जाते हैं जिनके आधार पर साधनों का आबंटन किया जाता है। सामान्य नियम जिनका अनुपालन किया जाता है यह है कि किसी भी उपाय की सीमांत सामाजिक लागत उसके सीमांत सामाजिक लाभ के बराबर होनी चाहिए।
इस पद्धति की मुख्य समस्या यह है कि सामाजिक लाभ और सामाजिक लागत की संकल्पना इतनी अस्पष्ट है कि इनको आँकना या इनका मूल्यांकन करना व्यावहारिक दृष्टि से बहुत ही कठिन होता है।
  • Cost function -- लागत फलन
  • Couple-years of protection (CYP) -- संरक्षण के दम्पति-वर्ष
दम्पति को किसी परिवार नियोजन उपाय द्वारा कितने वर्ष तक गर्भधान से संरक्षण प्राप्त हुआ व इस उपाय से कितने बच्चों के जन्म को रोका जा सका।
व्यावसायिक जनांकिकीविद् इस प्रकार के विश्लेषण में संरक्षण के दम्पति वर्ष का सूचकांक निकालने के लिए निम्नलिखित फार्मूला काम में लाते हैं।
CYPn = Cn/100+0.07690 on
  • Covariance -- सहप्रसरण
दो यादृच्छिक चरों के इस प्रकार के शून्य योगवाले प्रसरण को सहप्रसरण कहते हैं।
  • Cross section models -- अनुप्रस्थ मॉडल
इसमें कम से कम एक समीकरण ऐसा होता है जो विभिन्न फर्मों, उपभोक्ताओं अथवा क्षेत्रों में से एक के लिए अवश्य मान्य होता है। इस समीकरण का प्रयोग किसी फर्म, उपभोक्ता अथवा क्षेत्र की आर्थिक विशेषताओं को बताने के लिए समीचीन ढंग से किया जा सकता है जैसे नीचे दिया गया मॉडल:—
  • Cumulative frequency curve -- संचयी बारंबारता वक्र
संचयी बारंबारता वक्र विभिन्न वर्गों की बारंबारताओं के ग्राफ से तैयार किया जाता है।
यदि यह ज्ञात करना हो कि कितने पद ऐसे हैं जिनका मान एक कथित मान से कम या बराबर है तो संचयी बारंबारता वक्र का प्रयोग किया जाता है। इसे तोरण भी कहा जाता है।
ग्राफ द्वारा निरूपण की इस विधि में वर्ग अंतरालों की उपरि-सीमाओं को क्षैतिज अक्ष पर अंकित किया जाता है और इनकी संचयी बारंबारता को कोट्याक्ष पर आलेखित किया जाता है।
बारंबारता वर्ग बिन्दुओं को मुक्त हस्त वक्र द्वारा मिलाने से यह वक्र तैयार होता है। ऐसे एक वक्र का चित्र का नीचे दिया जाता है:—
  • curve -- वक्र
भिन्न-भिन्न शक्लों के वक्रों की अपनी-अपनी विशेषताएं होती हैं जिनके अनुसार उनके फलन ज्ञात किए जा सकते हैं। इनकी आकृतियों के अनुसार वक्रों के नाम भिन्न-भिन्न होते हैं।
  • Curve fitting -- वक्र आसंजन
वक्र आसंजन से अभिप्राय उस समीकरण को ज्ञात करना है जो दो चरों के संबंध को अच्छी तरह व्यक्त करे।
दो चरों को बीच संबंध को एक बीजीय व्यंजक द्वारा निरूपण करने को वक्र आसंजन कहा जाता है।
यदि वक्र एक सरल रेखा हो, तो यह एकघाती समीकरण द्वारा निरूपित होगा जैसे:—
वक्र सरल रेखा के समीकरण का मानक रूप है।
यदि वक्र परवलय हो तो द्विघाती या त्रिघाती समीकरण इसका निरूपण करेंगे जैसे y=a+bx+〖cx〗^2
  • Cyclical fluctuations -- उच्चावचन
ऐसी व्यापारिक स्थितियाँ या काल-श्रेणियाँ जिनके मान चरम सीमा पर पहुँच कर कुछ समय बाद निम्नतम सीमा पर पहुँच जाते हैं और फिर बढ़ने लगते हैं।
इस प्रकार के उच्चावचन चक्रीय उच्चावचन कहलाते हैं तथा दीर्धकालीन और मौसमी विचरणों से भिन्न होते हैं।
ऐसे उच्चावचन व्यापारिक श्रेणियों में नियमित रूप से पाये जाते हैं।
  • Damped oscillations -- अवमंदित दोलन
व्यवसाय चक्रों में स्थिर संवृद्धि संबंधी व्याख्या में इनका बहुधा प्रयोग किया जाता है।
  • Data collection -- समंक संग्रह
आँकड़े या समंक अन्वेषण का आधार होते हैं। मात्रक अन्वेषण के लिए आँकड़ों का संग्रह मुख्य एवं मूल कार्य है। अंक संग्रह किसी भी अन्वेषण का प्रथम चरण माना जाता है।
संग्रह करने योग्य आँकड़े दो प्रकार के होते हैं:—
आँकड़ों का संग्रह करने में जो विधियाँ काम में लाई जाती हैं उनमें प्रमुख है:—
आँकड़े या तो प्रतिदर्श सर्वेक्षण की सहायता से संगृहीत किए जाते हैं या पूर्ण गणना द्वारा, जैसे जनगणना के समय।
  • Data processing -- आँकड़ों का प्रक्रमण
  • Death function -- मृत्यु फलन
आयु x और x+n के बीच मरने वाले लोगों की संख्या और x आयु पर जीवित लोगों की संख्या के बीच अनुपात को मृत्यु की प्रायिकता (qx) कहा जाता हैं। ये फलन नीचे दी गई विधि से लिखे जाते हैं:—
(1) x और x+n की आयु के बीच मरने वाले व्यक्तियों की संख्या = मृत्यु फलन ndx
  • Death rate -- मृत्यु दर
मृत्यु दर किसी क्षेत्र में एक निश्चित अवधि में मृत्युओं की कुल संख्या को सम्पूर्ण जनसंख्या से भाग करने पर प्राप्त होती है।
मानव-जनसंख्या के लिए यह अवधि सामान्यतः एक वर्ष ली जाती है। चूंकि, जनसंख्या में वृद्धि होती रहती है अतः वर्ष के मध्य में जो जनसंख्या होती है उसी को संपूर्ण जनसंख्या मान लिया जाता है।
इस प्रकार मृत्यु दर अशोधित होती है। यदि इसमें किसी आधार पर संशोधन कर दिया जाये तो वह शोधित या मानक मृत्यु दर कहलाती है।
  • Decreasing function -- ह्रासमान फलन
  • Definitional equation -- परिभाषानिष्ठ समीकरण
परिभाषानिष्ठ मॉडल या समीकरण ऐसे हैं जो केवल पारिभाषिक आर्थिक संबंधों को प्रगट करते हैं जैसे:—
आर्थिक सिद्धांत में समीकरणों को चार भागों में बाँटा गया है:—
व्यवहार समीकरण व्यक्तियों या आर्थिक इकाइयों के व्यवहार को बताते हैं, जैसे उपभोग फलन ।
तकनीकी समीकरण तकनीकी आर्थिक संबंधों को प्रगट करते हैं, जैसे उत्पादन फलन।
संस्थागत समीकरण संस्थागत आर्थिक संबंधों को प्रदर्शित करते हैं, जैसे राजस्व या कर समीकरण।
तुल∘ दे∘ behavioural equation
  • Degeneracy problem -- अपभ्रष्टता समस्या
इस असमंजस की स्थिति (tie) को सुलझाने के लिए ऐसा चर चुनने की कोशिश की जाती है जिसका पादांक न्यूनतम होता है या फिर यादृच्छ संख्याओं की सारणी में जिस चर का पादांक पहले आता है उसे छोड़ दिया जाता है।
  • Degrees of freedom -- स्वातंत्र्य कोटियाँ
स्वातंत्र्य से अभिप्राय है विचरित होने की स्वतंत्रता।
यदि एक प्रतिदर्श में x₁, x2, x₃ .............,xƞ; ƞ प्रेक्षण हों, तो x₁ की अन्य प्रेक्षणों के साथ (x₁ — x₂ ), (x₁ — x ₃ ),.............(x₁ — xƞ) इत्यादि ƞ—1 तुलनाएं होंगी। प्रेक्षणों के बीच यह तुलनाएं ‘स्वात्र्य कोटियाँ’ कहलाती हैं।
दूसरे शब्दों में स्वातंत्र्य कोटियों की संख्या एक समुच्चय में मानों की स्वेच्छ निर्दिष्ट संख्या है।
उदाहरणतया, x₁ , x₂, .........,xƞ पर निर्मित किसी समीकरण में यदि हम x₂, x₃ .......,xƞ के कोई भी मान निर्दिष्ट कर दें तब x₁ का मान स्वतः ही निर्धारित हो जायेगा। x₁ का मान इस प्रकार अन्य ƞ—1 प्रेक्षणों के मानों पर निर्भर करेगा। ये ƞ—1 मान मुक्त मान हैं और इनका वरण स्वतंत्र रूप से होता है।
  • Delimitation -- परिसीमन
परिसीमन का अर्थ है क्षेत्रीय सीमाएं निर्धारित करना।
उदाहरण के लिए जनगणना के संदर्भ में कुल आबादी को गणना योग्य क्षेत्रों में परिसीमित कर दिया जाता है जैसे गाँव, तहसील, ब्लाक, ज़िला, राज्य या प्रदेश आदि।
यह कार्य नियत अवधि पर जनगणना आयुक्त द्वारा किया जाता है। इस प्रकार के क्षेत्रीय परिसीमन में सामाजिक, आर्थिक तथा राजनीतिक इकाइयों को अलग-अलग दिखाने का प्रयत्न किया जाता है।
परिसीमन को क्षेत्रीय वर्गीकरण तथा भौगोलिक वितरण का आधार माना जाता है। परिसीमन करते समय यह ध्यान रखना आनश्यक है कि क्षेत्र का कोई भाग छूट न जाये और कोई भाग दो क्षेत्रों में न आ जाए।
  • Demand curve -- माँग वक्र
माँग वक्र दी हुई आय पर उपयोगिता फलनों के आधार पर परिकलित किए जाते हैं।
किसी वस्तु की कीमत बढ़ जाने पर उसकी माँग दो कारणों से घट सकती है—
माँग वक्र सामान्यतः दाहिनी ओर अधोमुखी होते हैं जब माँग वक्र नीचे की ओर जाता है तो सीमांत आय का वक्र भी अधोमुखी होता है।
  • Demand function -- माँग फलन
माँग फलन का अर्थ माँग मात्रा और कीमत के परस्पर संबंध से है। माँग फलन को औसत आय फलन भी कहते हैं।
सामान्यतः माँग की लोच माँग फलन के झुकाव पर निर्भर करती है जिसे हम निम्न प्रकार से व्यक्त करते हैं—
f=(माँगी गई मात्रा में आनुपातिक परिवर्तन)/(कीमत में आनुपातिक परिवर्तन)
  • Demographic book-keeping -- जनांकिकी बहीखाता पद्धति
जनसंख्या की वृद्धि के बारे में जन्म, मृत्यु, आप्रवासन और उत्प्रवासन आदि कारणों के आधार पर हिसाब-किताब रखने की पद्धति को जनांकिकी बहीखाता पद्धति कहते हैं।
इसके लिए निश्चित समीकरण को जनांकिकी बहीखाता समीकरण कहते हैं जो निम्नलिखित है —
pt = Po+(B—D)+(mi-MO)
  • Demographic data -- जनांकिकी आँकड़े
जनांकिकी आँकड़े जनसंख्या संबंधी ऐसे तथ्यों के आँकड़े होते हैं जिनका मात्रात्मक और गुणात्मक महत्व होता है।
आँकड़े सर्वेक्षण की विधि से अथवा रजिस्ट्रेशन की पद्धति से इकट्ठे किए जाते हैं। संग्रह करने के पश्चात् इनमें से अनिमितताओं को दूर करने के लिए इनकी संवीक्षा या संपादन किया जाता है। तत्पश्चात इनको विभिन्न वर्गों में बाँटकर इनका वर्गीकरण अथवा सारणीयन किया जाता है।
संपादन से लेकर सारणीयन तक की प्रक्रियाओं को परितुलन अथवा मिलान की प्रक्रिया भी कहा जाता है।
प्रारंभिक रूप में इन्हें अशोधित आँकड़े कहा जाता है। इनकी परिशुद्धता की प्रायिकता सिद्धांत के अनुसार परख की जाती है और इनमें से अभिनति तथा त्रुटियों को दूर करके इनको शोधित करके विश्लेषण योग्य बनाया जाता है।
  • Demographic revolution -- जनांकिकी क्रांति
इस क्रांति के मुख्य घटक हैं—औद्योगीकरण, शिक्षा और स्वास्थ्य सेवाओं का प्रचार-प्रसार तथा प्रति व्यक्ति आय या रहन-सहन के स्तर का ऊँचा मानदंड।
  • Demographic study -- जनांकिकीय अध्ययन
इसके अंतर्गत जनसंख्या का आकार, इसके अभिलक्षण तथा स्थानिक वितरण का सांख्यिकी तथा गणितीय विधियों द्वारा विश्लेषण किया जाता है।
इनमें कालिक परिवर्तन लाने वाले कारकों, जन्म, मृत्यु, विवाह, प्रवसन तथा सामाजिक गतिशीलता का अध्ययन भी सम्मिलित है।
  • Demographic transition -- जनांकिकीय संक्रमण
जनांकिकीय संक्रमण की मूल अवधारणा यह है कि जब से मानव धरती पर आया है उसकी संख्या में कब, कैसे और कितनी वृद्धि हुई है।
सन् 1650 के लगभग धरती पर मनुष्यों की संख्या का आकलन 50 करोड़ किया गया था। 1950 में यह संख्या बढ़कर 2.5 अरब हो गई और 1970 में यह संख्या 3.6 अरब तक पहुँच गई। अनुमान लगाया गया है कि सन् 2000 में ‘न्यूनतम वृद्धि दर’ से यह संख्या 5.3 अरब और ‘उच्चतम वृद्धि दर’ से 6.8 अरब के लगभग हो जाएगी।
कालक्रम से जनसंख्या की एक शताब्दी से दूसरी शताब्दी तक की प्रवृत्तियों का अध्ययन जनांकिकी संक्रांति के नाम से विदित है।
संक्रांति अवस्था में तीन तरह की जनसंख्या संरचनाएं सम्मिलित की जाति हैं यथा:—
  • Demography -- जनाँकिकी
मानव-जनसंख्या का सांख्यिकीय तथा गणितीय विधियों से अध्ययन करने वाला विज्ञान जनांकिकी कहलाता है।
इसमें सामान्यतः किसी देश के निवासियों की संख्या एवं उसकी वृद्धि तथा ह्रास, उनके जन्म एवं मृत्यु की दरों तथा प्रजनन मर्त्यता तथा विवाह आदि के आँकड़ों का अध्ययन किया जाता है और इससे संबद्ध सामाजिक समस्याओं का निदान ढूँढ़ने का प्रयास किया जाता है।
जनांकिकी का संबंध जनसंख्या की रचना, जनसंख्या के प्रादेशिक वितरण और आकार तथा इनमें होने वाले परिवर्तनों और उनके कारणों से है।
जनसंख्या संबंधी परिवर्तनों के अन्तर्गत जन्म, मृत्यु, विवाह, प्रवसन तथा सामाजिक गतिशीलता आदि का विशेष रूप से अध्ययन किया जाता है।
जनांकिकी विश्लेषण और जनसंख्या संबंधी अध्ययन को इस आधार पर एक-दूसरे से भिन्न माना जाता है।
  • Dependency ratio -- आश्रितता अनुपात
यह अनुपात ज्ञात करने के लिए भारत में निम्न सूत्र का प्रयोग किया जाता है :—
देश काल के अनुसार अर्जक वर्ग की आयु की निम्न और ऊपरी सीमा भिन्न-भिन्न देशों में अलग हो सकती है।
  • Dependent variable -- आश्रित चर
  • Depopulation -- जनसंख्या ह्रास
आबादी के क्षीण या ह्रास होने की प्रवृत्ति।
आर्थिक विकास में असंतुलन के कारण ग्रामीण क्षेत्रों से जनसंख्या निकटवर्ती औद्योगिक केन्द्रों की ओर जाती रहती है। इसके फलस्वरूप छोटे-छोटे गाँव या कस्बे कुछ काल के बाद इस स्थिति तक पहुंच जाते हैं कि वहाँ आबादी बिलकुल नगण्य रह जाती है।
इस प्रवृत्ति या घटना को निर्जनीकरण की संज्ञा भी दी जाती है।
इसका कारण कभी-कभी दैवी विपत्तिययाँ भी होती हैं जैसे, बाढ़, भूचाल या अन्य भौगोलिक परिवर्तन और युद्ध आदि।
  • Derivative -- अवकलज
किसी बिन्दु पर फलन की तात्क्षणिक परिवर्तन दर।
इसको सुत्र रूप में यों लिखा जाता है
किसी बिन्दु पर वक्र की स्पर्श रेखा का संख्यात्मक ढाल उसके फलन की तात्क्षणिक परिवर्तन दर को प्रगट करता है।
अवकलज की संकल्पना अवकलन-गणित में एक प्रमुख आधारभूत प्रत्यय के रूप में की गई है।
किसी सतत फलन में अवकलन स्वतंत्र चर में परिवर्तन के फलस्वरूप आश्रित चर में परिवर्तन की दर को बतलाता है।
रैखिक संबंधों को प्रगट करने के लिए इसका बहुधा प्रयोग किया जाता है। किसी बिन्दु पर रैखिक संबंध प्रायः लचीले हो सकते हैं।
इस प्रकार अवकलज एक गणितीय फलन का ऐसा चर होता है जो उसको दूसरे फलन के रूप में प्रकट करने में सहायता देता है।
  • Destabilising expectations -- विसंतुलनकारी प्रत्याशा
ऐसी प्रत्याशाएं जो अपने व्यवहार द्वारा अर्थव्यवस्था में अस्थिरता लाती हैं।
जब कोई व्यक्ति मुद्रा के मूल्य में कमी की आशा करता है तब वह अपने पास पड़ी मुद्रा को कम करने का प्रयास करता है। इसके लिए वह अपने धन से वस्तुओं को खरीदता है और अपनी इस प्रत्याशा के कारण कीमतों में वृद्धि के लिए दबाव पैदा करता है।
मुद्रा के मुल्य में वृद्धि की अपेक्षा से वह व्यक्ति इससे विपरीत आचरण करता है और इसले भी संतुलन की स्थिति में गड़बड़ी पैदा हो सकती है।
उपर्युक्त दोनों परिस्थितियों में सटोरियों की अटकल के कारण पैदा होने वाले दबाव को विसंतुलनकारी प्रत्याशा कहा जाता है।
  • Determinants -- सारणिक
/A/=∑± aij a2j ….... amp
  • Diagnostic studies -- नैदानिक अध्ययन
इसका उद्देश्य किसी सामाजिक समस्या जैसे प्रवसन, नगरीकरण तथा परिवार नियोजन आदि के कार्यक्रमों के तकनीकी पहलुऒं तथा कठिनाइयों पर विचार करना होता है और यह पता लगना होता है कि इससे संबंधित नीतियाँ कहाँ तक सफल हुई हैं अथवा उनमें किस प्रकार का परिवर्तन अपोक्षित है।
  • Diagonal matrix -- विकर्ण आव्यूह
तुल∘ दे∘ matrix
  • Difference equation -- अंतर समीकरण
ऐसा समीकरण जो आश्रित चर को स्वतंत्र चर के पश्च मूल्यों से संबंधित करके दिखलाता है जैसे:—
कोई रैखिक या एकघाती अंतर समीकरण तब अंतर समीकरण कहलाता है जब इसमें स्वतंत्र तथा आश्रित चरों के अतिरिक्त कोई स्वतंत्र गुणाक न हो।
इस समीकरण को तब समांगी समीकरण कहा जाता है जब:—
यदि इसमें कोई स्वतंत्र गुणांक हो तो से असमांगी समीकरण कहते हैं यथा:—
  • Difference method -- अंतर विधि
जन्म मरण संबंधी आँकड़ों की एक ऐसी अप्रत्यक्ष विधि जिसकी सहायता से हम किसी भी देश की मृत्यु दर ज्ञात कर सकते हैं।
अंतर विधि का आधार दो भिन्न समय के आयु बंटन होते हैं। इन दोनों के ज्ञात होने पर हम निम्नलिखित फार्मूले की सहायता से किसी दी हुई अवधि में मृत्यु दर निकाल सकते हैं।
D_(t⁄2)^t=P^o-P^t t+
उन देशों में जहाँ रजिस्ट्रेशन प्रणाली से आधार पर जन्म व मृत्यु दरों का परिकलन में कठिनाई होती है, वहाँ इस विधि का आधुनिक जनांकिकी में बहुधा प्रयोग किया जाता है।
0 से t/2 तक की आयु वर्ग में मृत्यु संख्या अन्य विधियों से ज्ञात कर ली जाती है। इन दोनों को जोड़कर कुल मृत्यु संख्या ज्ञात हो जाती है। इसे मध्यावधि की जनसंख्या से भाग करके मृत्यु दर मालूम की जा सकती है।
  • Differential equation -- अवकल समीकरण
यह एक ऐसा समीकरण होता है जिसमें विभिन्न मात्राओं के अवकलज (derivatives) और अवकल (differentials) शामिल होते हैं।
ऐसे समीकरणों को हल करने के लिए हम इनके फलनीय समीकरण बनाते हैं। प्रत्येक अवकल समीकरण का अपना क्रम तथा घात होता है।
ऐसा गुणनखंड जो एक अनकर समीकरण को ठीक-ठीक या यथा-तथ्य रूप में बदल देता है, समकलन गुणनखंड कहलाता है।
  • Differential growth -- विभेदक वृद्धि
  • Differential migration -- भेदक प्रवसन
विभिन्न जनांकिकीय, आर्थिक और सामाजिक वर्गों की जनसंख्या में प्रवसन की दरों के अंतर संबंधी अध्ययन को भेदक प्रवसन कहा जाता है।
विभिन्न प्रवसन प्रवाहों के जनसंख्या संघटन में पाया जाने वाला अंतर भी इस प्रकार के अध्ययन के अंतर्गत सम्मिलित है।
तुल∘ दे∘ migration rate
  • Differentiation -- अवकलन
  • Direct sampling -- प्रत्यक्ष प्रतिचयन
इसके विपरीत जब ये इकाइयां किन्हीं अप्रत्यक्ष साधनों यथा जनगणना के फार्मों या अन्य अभिलेखों से चुनी जाती हैं तो इस विधि को अप्रत्यक्ष प्रतिचयन कहते हैं।
  • Discrete probability distribution -- असंतत प्रायिकता बंटन
किसी असंतत यादृच्छिक चर u के प्रायिकता बंटन का अर्थ एक फलन का आलेख तैयार करना होता है, जिसमें u के प्रत्येक संभव मान के लिए प्रायिकता को दिखाया जाता है।
यह प्रायिकता 0 और 1 के बीच होती है। असंभव घ़नाओं के लिए इसका मान 0 होता है और निश्चित घटनाओं के लिए 1 सभी संभव मानों की प्रायिकताओं का जोड़ एक होता है।
प्रायिकता बंटन को आलेख सारणियों या समीकरण के रूप में दिखाया जाता है जैसे छः अकों वाले एक पासे का प्रायिकता बंटन नीचे के चित्र में दिखाया गया है।
यदि ऐसे दो पासों को इकट्ठा फेंका जाये तो उसके प्रायिकता बंटन का चित्र नीचे देखा जा सकता है।
  • Dispersion -- परिक्षेपण
प्रेक्षण-समुच्चय में विकीर्णन या विचरण को परिक्षेपण कहते हैं।
परिक्षेपण उस सीमा या विस्तार के परिमाण का सूचक है जो कि प्रेक्षणों के बीच में अंतर तथा भिन्नता को व्यक्त करता है।
परिक्षेपण को विचरण या परिवर्तिता भी कहते हैं।
परिक्षेपण समष्टि में स्थित विषमांगता का द्योतक है तथा पदमानों में एक समानता के अभाव का सूचक है।
परिक्षेपण हमें यह बताता है कि कोई एक विचर बंटन अपने केंद्रीय मान के इर्द-गिर्द किस मात्रा तक फैला हुआ है या संकेंद्रित है।
  • Distributed lag -- बंटित पश्चता
गतिकीय अर्थशास्त्रीय मॉडलों में कभी-कभी एक चर का वर्तमान मान किसी दूसरे चर के बहुत से पहले के मानों पर निर्भर करता है। इस प्रकार के संबंध को बंटित पश्चता कहा जाता है।
इसको सूत्र रूप में यों लिखा जाता है :—
  • Distribution studies (population) -- वितरण मूलक अध्ययन (जनसंख्या)
जनसंख्या को भिन्न-भिन्न क्षेत्रों में बाँटकर उसकी विशेषताओं का अध्ययन 'वितरण मूलक अध्ययन’ कहलाता है।
इसमें देश की समस्त जनसंख्या को कई क्षेत्रों और उपक्षेत्रों में बाँट दिया जाता है और फिर इन्हें जनांकिकीय दृष्टि से एक अलग इकाई मानकर वहाँ की जनसंख्या के संबंध में अध्ययन किए जाते हैं।
इन क्षेत्रों या इलाकों का परिसीमन दशाब्दिक जनगणना से पहले कर लिया जाता है। प्रत्येक ऐसे क्षेत्र या इलाके को ‘गणना जिला’ या ‘गणना क्षेत्र’ की संज्ञा दी जाती है।
  • Divorce -- विवाह-विच्छेद/तलाक
यह पृथक्करण से आगे का चरण है क्योंकि पृथक्करण के बाद विवाह-विच्छेद स्वीकृत न होने तक व्यक्ति विवाह नहीं कर सकता।
  • Domain of a function -- फलन का प्रक्षेत्र/फलन का प्रांत
  • Dot map -- बिंदुकित मानचित्र
किसी घटना को क्षेत्रवार दिखाने के लिए बिंदुओं वाले या बिंदु लगे मानचित्र।
इनका प्रयोग सांख्यिकीय दृष्टि से किसी क्षेत्रफल में कितने फार्म हैं या किसी क्षेत्र में वर्षा का क्या अनुपात है जैसे प्रसंगों में किया जाता है।
इन बातों को बिन्दुकित मानचित्र द्वारा दिखाने का तरीका बड़ा सरल और प्रभावी होता है। बिन्दुओं का घनत्व मात्रा या अनुपात का द्योतक होता है।
  • Double k—class estimator -- दोहरा ‘के’ श्रेणी आकलक
  • Dual pricing -- दोहरी कीमतें
इनको रेखा कीमतें तथा प्रतिच्छाया कीमतें भी कहा जाता है। रैखिक समस्या में द्वैत कीमतों को सदिश मानकर उनको चरों के रूप में परिकलित किया जाता है।
सार्वजनिक वितरण प्रणाली, बेरोजगारी और वेतन सिद्धांत में इनका विशेष महत्व माना गया है।
  • Dual programming -- द्वैत प्रोग्रामन
तुल∘ दे∘ duality theorem तथा linear programming
  • Dual record system -- दोहरी अभिलेख पद्धति
दोहरी अभिलेख पद्धति का तात्पर्य है दो विधियों से या दोतरफा रिकार्ड तैयार करना।
जीवन संबंधी प्रमुख घटनाओं (जैसे जन्म, मृत्यु, विवाह आदि) के बारे में आँकड़े इकट्ठे करने के लिए दोहरी अभिलेख पद्धति अपनाई जाती है।
इस पद्धति में दो प्रकार की विधियाँ काम में लाई जाती हैं:—
  • Duality problem -- द्वैत समस्या
द्वैत आद्य मॉडल का विलोम होता है।
प्रत्येक मूल या आद्य (primal), रैखिक प्रोग्राम मॉडल का एक द्वैत (dual) मॉडल होता है। यदि आद्य मॉडल अधिकतमीकरण का हो तो द्वैत न्यूनीकरण का होता है।
द्वैत मॉडल के गुणांक अपने आद्य के स्थिरांक होते हैं। जिस प्रणाली में n चर तथा m प्रतिबंध हों तथा जिसका अपना हल हो उसे न्यूनतम रैखिक समस्या के रूप में n चरों तथा m प्रतिबंधों में परिवर्तित किया जा सकता है।
इस प्रमेय के अनुसार रैखिक प्रोग्रामन समस्या तथा द्वैत समस्या का एक ही हल होता है।
  • Duality theorem -- द्वैत प्रमेय
द्वैत प्रमेय के अनुसार किसी समस्या (यदि उसके हल का अस्तित्व हो) के हल तथा उससे संबंधित द्वैत समस्या का हल समान होता है।
रैखिक प्रोग्रामन समस्या में कई द्वैत प्रमेय हैं जो इन समस्याओं की विशेषताओं को प्रदर्शित करते हैं। जैसे, यदि आद्य समस्या में n चर तथा m प्रतिबंध हों तो द्वैत समस्या में m चर तथा n प्रतिबंध होंगे।
हल हेतु आद्य समस्या में n मूक चर तथा द्वैत समस्या में n मूक चरों का समावेश करना पड़ेगा।
इसी प्रकार एक अन्य द्वैत प्रमेय के अनुसार यदि द्वैत समस्या में कोई समस्या चर yi अनुकूलतम हल में शून्येतर मान ग्रहण करता है तो उससे संबंधित आद्य समस्या का मूक चर शून्य मान ग्रहण करेगा।
  • Dummy variables -- मूक चर
ऐसे न्यून चर या अधिचर जो हमें न्यूनतमीकरण या अधिकतमीकरण के संदर्भ में प्रतिबंधित असिमकाओं को पूर्ण समीकरणों में बदलने में सहायता देते हैं।
ये चर हमें व्यवहार्य प्रक्षेत्र के अंतिम बिन्दुओं का पता लगाने में सहायता करते हैं।
तुल∘ दे∘ slack variable
  • Dynamic analysis -- गति की विश्षलेण
आर्थिक घटनाक्रम की दिशा और मात्राएँ निरंतर बदलती रहती हैं। उत्पादिता और वास्तविक आय घटती-बढ़ती रहती है और इसके फलस्वरूप माँग और पूर्ति के वक्र भी बदलते रहते हैं। भिन्न-भिन्न वस्तुओं के लिए यह परिवर्तन दर अलग-अलग होती है। इस प्रकार आर्थिक संवृद्धि के प्रक्रम में हमें अर्थव्यवस्था के अन्तर्गत साधनों के आबंटन में दक्षता की दृष्टि से सदा फेर-बदल करना पड़ता है। इन सब बातों को ध्यान में रखते हुए आर्थिक क्रिया या व्यवहार का जो अध्ययन किया जाता है उसे गतिकी विश्लेषण कहा जाता है।
इसके अन्तर्गत हम अधिमाँग के कारण होने वाले कीमतों और पूर्ति के परिवर्तनों का अध्ययन करते हैं और बाजार के संतुलन की स्थिति ज्ञात करने का यत्न करते हैं।
  • Dynamic multiplier -- गत्यात्मक गुणक
  • Dynamic theory -- गतिकीय सिद्धांत
गतिकीय सिद्धांत एक प्रकार का काल फलन मॉडल है।
गतिकीय मॉडल में संरचना समीकरणों में एक ऐसा चर अवश्य होता है जिसका मान अलग-अलग समयों पर लिया जाता है जिसे काल अवकलज कहा जाता है।
किसी अवधि में होने वाले परिवर्तन ऐसे हो सकते हैं कि मॉडल की संरचना तथा बहिर्जात चर (काल या अवधि को छोड़कर) स्थिर रहें किंतु इसके अन्तर्जात चर बदल जाएं और इनका अन्य स्थितियों के साथ एकदम समंजन न होकर इनमें कुछ समय लगे। इन्हें गतिकी परिवर्तन की संज्ञा दी जाती है।
इसका एक उदाहरण मकड़जाल का प्रसिद्ध सिद्धांत है जिसमें किसी वस्तु की एक वर्ष में माँग की मात्रा उसकी चालू कीमत पर निर्भर करती है किन्तु पूर्ति की मात्रा पिछले वर्ष की कीमत पर निर्भर करती है।
  • Echelon matrix -- सोपानिक आव्यूह
कोई आव्यूह तभी सोपानिक स्वरूप का होता है, जब यह निम्नलिखित शर्तों को पूरा करता है:—
  • Echo effect = (Renewal theory) -- प्रतिध्वनि प्रभाव
प्रतिध्वनि प्रभाव पूँजी निर्माण सिद्धांत में आवधिक घात या जनांकिकी में मर्त्यता बंटन से संबद्ध होता है। इसमें प्रतिस्थापनों का आवधिक बंटन तथा आवधिक निवेश के चक्र या जनसंख्या चक्र शामिल होते हैं जिनमें मर्त्यता और जन्म दर के चरों का उल्लेख रहता है।
  • Econometrics -- अर्थमिति
अर्थमिति वह विज्ञान है जो अर्थशास्त्र के क्षेत्र में संख्यात्मक मात्राओं का विवेचन करने और आर्थिक सिद्धांतों को सत्यापित करने का प्रयत्न करता है।
इसका आधार आर्थिक सिद्धांत का विकास और पर्यवेक्षण तथा उससे संबद्ध उपयुक्त सांख्यिकीय अनुमिति पद्धति है।
अर्थमिति का उद्देश्य आर्थिक व्यवहार संबंधी प्रेक्ष्य चरों को सरल समीकरणों के फलनों के रूप में दर्शाना होता है और फिर गणितीय विधियों के आधार पर कलन करके उनके संबंध में किसी प्रकार की भविष्य वाणी करना या पूर्वानुमान लगाना होता है।
अर्थमिति में मात्रिक प्रकथनों की व्याख्या बीजगणतीय संकेतों और चिहों के द्वारा की जाती है।
  • Economic analysis -- आर्थिक विश्लेषण
आर्थिक विश्लेषण में कुछ मान्यताओं के आधार पर आर्थिक पद्धति के कार्य कारण संबंधों का अध्ययन किया जाता है।
इसका मुख्य उद्देश्य आर्थिक घटनाओं मात्राओं, व्यवसाय चक्र आदि का निर्वचन करना होता है।
आर्थिक विश्लेषण के अन्तर्गत हम सांख्यिकीय विधियों तथा गणितीय विधियों द्वारा आर्थिक सिद्धांत के नियमों व मनुष्य के अर्थपरक व्यवहार का विश्लेषण करते हैं। इसके तीन भाग होते हैं:—
  • Economic development -- आर्थिक विकास
किसी देश की आर्थिक व्यवस्था में उत्पादन के साधनों जैसे कृषि, उद्योग, श्रम, पूँजी, व्यापार आदि के विकास को आर्थिक विकास की संज्ञा दी जाती है।
आर्थिक विकास का एक ओर जनसंख्या वृद्धि, आयु संरचना और प्राकृतिक साधनों से घनिष्ट संबंध होता है तथा दूसरी ओर इसका संबंध प्रौद्योगिकी से होता है।
विकास को हम वृद्धि दरों के रूप में मापते हैं और इसके स्तर का निर्धारण आर्थिक कल्याण या रहन-सहन के स्तर की तुलना से करते हैं।
जिन देशों का आर्थिक कल्याण का मापांक अथवा सकल या निवल राष्ट्रीय उत्पादन वहाँ की जनसंख्या के अनुपात में कम होता है उन्हें अल्पविकसित देश कहा जाता है।
  • Economic dynamic -- आर्थिक गतिकी
आर्थिक गतिकी पूर्ववर्ती और परवर्ती बदलती स्थितिययों से संबंधित आर्थिक परिघटनाओं का अध्ययन है।
सतत परिस्थितियों के अंतर्गत आर्थिक संबंधों का विश्लेषण और संतुलन की स्थिति का अध्ययन आर्थिक गतिकी कहलाता है।
गतिकी विश्लेषण में परिवर्तन का प्रक्रम बहुत महत्व रखता है। किसी पद्धति को तभी गत्यात्मक माना जाता है जब इसके अन्तर्गत भिन्न-भिन्न समयों पर चरों का मान बदलता रहता है। इस प्रकार के विश्लेषण में समय का योगदान प्रधान होता है।
सैमुअलसन ने इसे 6 वर्गों में बाँटा है:—
  • Economic efficiency -- आर्थिक दक्षता
तकनीकी दक्षता और आर्थिक दक्षता की संकल्पनाओं में भेद है। तकनीकी दक्षता का माप ‘आगत-निर्गत’ की इकाइयों में किया जाता है। संभव है कोई प्रक्रिया तकनीकी दृष्टि से दक्ष होने पर भी आर्थिक दृष्टि से दक्ष न कही जा सके।
  • Economic equation -- आर्थिक समीकरण
आर्थिक समीकरण में यह गुण होने चाहिए :—
इसके गुणांक पूर्णतः सही होने चाहिए ताकि इनके आधार पर भविष्य के बारे में अनुमान लगाया जा सके।
इसका एक उदाहरण नीचा दिया है :—c_t=∝+βy_t+ut
दे∘ equation
  • Economic growth -- आर्थिक संवृद्धि
आर्थिक संवृद्धि का प्रयोग दो अर्थों में किया जाता है:-
(1) जब किसी समुदाय का श्रमबल स्थिर रहता है और वह पूर्ण रोजगार की स्थिति में अपरिवर्तनशील प्रौद्योगिक अवस्था के अन्तर्गत काम करता है व पूँजी संचय से राष्ट्रीय उत्पादन बढ़ाता है। ऐसी स्थिति में पूँजी की सीमांत निवल भौतिक उत्पादिता घनात्मक होती है।
इस स्थिति में पूँजी और श्रम का अनुपात बहुत ऊँचा होता है और प्रति व्यक्ति पूँजी की मात्रा अधिक होती जाती है तथा अतिरिक्त पूँजी के कारण उत्पादन बढ़ता रहता है।
आर्थिक संवृद्धि के फलस्वरूप समाज के सभी व्यक्तियों के रहन-सहन का स्तर निरंतर ऊँचा होता रहता है।
(2) जब किसी समाज का कुल उत्पादन बढ़ता है तथा प्रतिव्यक्ति श्रमिक शक्ति उत्पादिता बढ़ती है और पूँजीगत स्टाक में वृद्धि होती है तब इसे भी संवृद्धि की स्थिति कहा जाता है।
श्रमिक शक्ति और प्रौद्योगिकी की स्थिति दी हुई होने पर आर्थिक संवृद्धि कुछ सीमाओं के अन्दर ही हो सकती है।
  • Economic indicator -- आर्थिक संकेतक
आर्थिक संकेतक सांख्यिकीय श्रेणियाँ या सूचकांक होते हैं जो आर्थिक चरों, जैसे कीमतों, रोजगार, उत्पादन, व्यापार की घट-बढ़ आदि को दर्शाते हैं।
ये भिन्न-भिन्न समयों पर अर्थ-व्यवस्था की सामान्य स्थिति के द्तयोक होते हैं।
ये तीन प्रकार के होते हैं:—
(2) समानुपाती संकेतक —जैसे बेरोज़गारी और बैक के कर्जों आदि के बारे में। यह कुल अर्थव्यवस्था की तुलना में घट-बढ़ को व्यक्त करते हैं ;
(3) पश्चता संकेतक— जैसे पूँजी व्यय। ये व्यापार चक्र के बाद होने वाली घट-बढ़ को दिखाते हैं।
पूर्वानुमान लगाने और आर्थिक कल्याण तथा संवृद्धि की दर आदि के विश्लेषण में आर्थिक संकेतकों का विशेष महत्व है।
  • Economic model -- आर्थिक मॉडल
आर्थिक मॉडल का तार्त्पय कुछ ऐसे पूर्व साध्यों के समुच्चय से है जिसके आधार पर मात्रिक समीकरणों द्वारा आर्थिक सम्बन्धों को व्यक्त किया जाता है।
अर्थशास्त्रियों को प्रायः विशिष्ट आर्थिक परिवर्तनों के प्रभाव के बारे में पूर्वानुमान लगाने के लिए कहा जाता है तथा अपेक्षा की जाती है कि वे कौन से नीति संबंधी परिवर्तनों का सुझाव देना चाहेंगे। इस प्रकार के अध्ययनों के लिए उन्हें किसी मॉडल का विश्लेषण करते समय निम्नलिखित बातों का ध्यान रखना पड़ता है।
(1) अन्तर्जात कारक
इनको दर्शाने वाले विशिष्ट फलनों के निदर्श को आर्थिक मॉडल कहा जाता है।
इसके अन्तर्गत दो प्रकार की समीकरण प्रणाली दी जाती है:—
कुछ मॉडल प्रसंभाव्य प्रकार के होते हैं। इनमें एक से अधिक परिकल्पनाओं का समावेश किया जाता है। इन मॉडलों को बीजगणितीय संकेतो और समीकरणों के रूप में लिखा जाता है।
मॉडल का अभिगृहीत मान्यताओ के आधार पर संक्षिप्त नामकरण निम्नलिखित प्रकार से किया जा सकता है:—
  • Economic statics -- आर्थिक स्थैतिकी
आर्थिक सिद्धान्त की वह शाखा जिसमें समय या काल के अनुसार विश्लेषण नहीं किया जाता।
इस प्रकार के विश्लेषण में स्थिर परिस्थितियों के अन्तर्गत संतुलन की शर्तों का पता लगाया जाता है और इसमें भूत या भविष्य के बारे में यह माना जाता है कि यह संतुलन संबंध हमेशा एक जैसा बना रहता है।
आर्थिक स्थैतिकी को कभी-कभी 'तुलनात्मक स्थैतिकी' भी कहा जाता है क्योंकि इसमें पूर्व और बाद की स्थिति को ही संतुलन की स्थिति माना जाता है।
  • Economic structure -- आर्थिक संरचना
जब किसी फलन या मॉडल की संपूर्ण विशिष्टियाँ दी होती हैं और इनके सभी बहिर्जात चर भी दिए होते हैं तब इस फलन समूह को आर्थिक संरचना कहा जाता है।
गणक विश्लेषण में यह संरचना विचरों और सामान्य कारकों के बीच संबंध का ढाँचा प्रदान करती है।
जो तत्व अध्ययन की अवधि में बदलते रहते है जैसे, कीमतें, उत्पादन या निर्गत, बिक्री, अनबिका माल या स्टॉक, ब्याज की दरें, निवेश, उपभोग, सरकारी खरीद की मात्रा, करों की दरें, आर्थिक सहायता आदि, इन्हें चर कहा जाता है।
आर्थिक संरचना को प्रगट करने वाले समीकरण के संख्यात्मक स्थिरांकों को संरचनागत प्राचल कहा जाता है। इनमें कुछ प्रेक्षणीय होते हैं और कुछ अप्रेक्षणीय। अप्रेक्षणीय चरों को यादृच्छिक चर भी कहा जाता है।
जब संरचना समीकरणों के समुच्चय के सभी प्राचलों का मूल्य ज्ञात होता है तब उनसे कलित किया गया स्वायत्त समीकरणों का समूह उन सभी जटिल आर्थिक विशेषताओं का वर्णन करता है जो किसी दी हुई अवधि में नहीं बदलतीं। इसी प्रकार संरचनात्मक समीकरणों की सहायता से हम सभी अन्तर्जात चरों का संख्यात्मक मान निकाल सकते हैं, जबकि बहिर्जात चर दिए हुए हों।
  • Economy wide macro econometric model -- संपूर्ण अर्थव्यवस्था का अर्थमितीय मॉडल
देश की सम्पूर्ण अर्थव्यवस्था का अर्थमितीय मॉडल। इसे समष्टि मॉडल (macro model) भी कहा जाता है। इसका निर्माण, विश्लेषण और परीक्षण संकेतों और समीकरणों के रूप में किया जाता है।
पहले अर्थव्यवस्था की सामान्य विशेषताओं को लिया जाता है, फिर इसमें प्रसंभाव्य समीकरण लिए जाते हैं। इसमें प्रतिदर्श काल के आँकड़े, उनके प्रारम्भिक अनुमान और न्यूनतम वर्ग आकलन लिए जाते हैं। प्रसंभाव्य समीकरणों के चुनाव और अन्त में लघुकृत समीकरणों के आधार पर पूर्वानुमान प्रस्तुत किए जाते हैं।
ऐसे मॉडल में उपभोग समीकरण, निजी घरेलू निवेश संबंधी व्यवहार समीकरण तथा उपभोग निवेश केन्द्रक से संबंधित कुछ समीकरण भी शामिल किए जाते हैं।
इसमें आय, निर्गत तथा व्यय के वास्तविक आँकड़े और निरपेक्ष तथा सापेक्ष कीमतें, अर्थव्यवस्था की मैट्रिक तथा वित्तीय विशेषताओं, उत्पादन-फलन आदि के संबंध में समीकरण भी शामिल किए जाते हैं।
भारत को सम्पूर्ण अर्थव्यवस्था के लिए 1954-66 की अवधि के लिए सर्वश्री नरसिंहमम वा एम∘ वी∘ रामाशास्त्री आदि द्वारा 1968 में एक ऐसा मॉडल तैयार किया गया है।
  • Effeciency of investment -- निवेश दक्षता
उत्पादन के साधनों को बदलने के लिए राष्ट्रीय अर्थव्यवस्था के कुल उत्पादन में प्रति इकाई निवल निवेश परिव्य के पीछे राष्ट्रीय उत्पाद में जो वृद्धि होती है उसे निवेश दक्षता कहा जाता है।
जैसे यदि वार्षिक राष्ट्रीय उत्पाद x हो और अगले वर्ष में इस उत्पाद की वृद्धि ∆x हो और प्रतिस्थापन निवल निवेश I हो तब निवेश दक्षता ∆x/I) होगी।
निवेश दक्षता को उत्पादन की तकनिकी स्थितियों के आधार पर आगत तथा निर्गत विधि से मापा जाता है।
  • Effective fertility -- प्रभावी प्रजनन दर
इस प्रकार से प्राप्त जन्म दर प्रभावी प्रजनन दर कहलाती है।
  • Efficient resource allocation -- दक्ष साधन आवंटन
साधनों को इस प्रकार से आबंटित करना कि किसी एक वांछित वस्तु के निवल उत्पादन में बढ़ोत्तरी करने से किसी दूसरी वांछित वस्तु के निवल उत्पाद में किसी प्रकार की कमी न हो।
निवल ऋणात्मक उत्पाद का अधिकतमीकरण और निवल धनात्मक उत्पाद का न्यूनतमीकरण दक्ष आबंटन की कसौटी है।
दक्षता की दो आधारों पर गणना की जाती है:—
  • Emigration =(out-migration) -- उत्प्रवासन
एक देश से दूसरे देश में जाकर बसने की स्थिति को उत्प्रवासन कहते हैं।
निवास की अवधि के अनुसार उत्प्रवासन दो प्रकार का होता है:—
स्थायी उत्प्रवासन में व्यक्ति देश से बाहर एक वर्ष से अधिक समय के लिए जाते हैं, जबकि अस्थायी उत्प्रवासन में अवधि एक वर्ष से कम होती है, परन्तु इसमें दूसरे देश में व्यवसाय अथवा नौकरी लेना आश्यक है। उत्प्रवासियों में पर्यटक व कुछ समय के लिए जाने वाले व्यक्ति सम्मिलित नहीं किए जाते हैं।
  • Employment coefficient -- नियोजन गुणाँक
किसी दिए हुए उत्पादन के क्षेत्र में कुछ निर्गत और उस क्षेत्र में लगाई गई श्रमिक शक्ति के अनुपात को नियोजन गुणांक कहते हैं। इसका चिन्ह aoi है।
यह गुणांक किसी क्षेत्र विशेष में निर्गत के प्रति इकाई के पीछे लगाए जाने वाली श्रमिक शक्ति का द्योतक होता है।
इसको हम निम्नलिखित संबंध से व्यक्त करते हैं :—N=∑_(i-1)^n〖aoi Aik〗
  • Employment function -- नियोजन फलन
इन कारकों में मुख्यत: वास्तविक मजदूरी, प्रभावी श्रम पूर्ति एवं राष्ट्रीय आय आदि सम्मिलित होते हैं।
  • Empty set -- रिक्त समुच्चय
तुल∘ दे∘ set
  • Endogeneous variable -- अन्तर्जात चर
  • Enumeration -- गणना
इसमें 10 वर्षों के बाद सारे देश की जनसंख्या की सूचियाँ बनाकर (विधितः) अथवा एक निर्धारित समय पर जहाँ कहीं और जिस किसी भी स्थिति में कोई व्यक्ति मिले उसकी वस्तुतः गिनती की जाती है।
  • Equation -- समीकरण
एक ऐसा बीजगणितीय संबंध या विधि जिसके द्वारा हम यह देखते हैं कि एक चर दुसरे चर पर ठीक-ठीक किस प्रकार से आश्रित है।
समीकरण के दो पक्ष होते हैं। सामान्यतः दाईं तरफ स्वतंत्र चर या चरों को रखा जाता है और बाईं ओर आश्रित चर को समीकरण के दोनों पक्ष चरों के केवल कुछ मानों के लिए ही बराबर होते हैं। समीकरण को संकेतों के रूप में लिखा जाता है।
समीकरण के पदों के घात-मान के अनुसार उसका नामकरण किया जाता है, जैसे एकघाती, द्विघाती, त्रिघाती आदि। प्रत्येक समीकरण का हल अलग-अलग होता है। हल समीकरण को संतुष्ट करता है।
  • Equation system -- समीकरण निकाय
समीकरणों का समाहार। समीकरण निकाय में कई प्रकार के समीकरण हो सकते हैं।
एकघाती समीकरण में आश्रित चर का केवल एक मान होता है।
द्धिघाती समीकरण में आश्रित चर के दो मान होते हैं।
युगपत समीकरण में दो समीकरणों से दो अज्ञात चरों का हल निकाला जाता है।
यदि किसी समीकरण का एक ही हल हो तो उसे अद्धितीय हल (unique solution) कहा जाता है।
यदि किसी समीकरण निकाय में चरों की संख्या के बराबर समीकरण न बन सके तो उसे अनिर्धारित निकाय कहा जाता है और यदि चरों से ज्यादा समीकरणों की संख्या हो तो उसे अतिनिर्धारित कहा जाता है।
  • Equilibrium -- संतुलन
जब साम्यावस्था या विश्राम की स्थिति में अल्प परिवर्तन के बाद आर्थिक शक्तियों के प्रभाव के अधीन फिर से पूर्ववत स्थिति में आने की प्रवृति होती है तो इसे स्थिर संतुलन की स्थिति कहा जाता है।
जब थोड़े से परिवर्तन से संतुलन की स्थिति एक नया रूप धारण कर लेती है तब अस्थिर संतुलन की स्थिति होती है।
संतुलन की स्थिति में हम यह मानकर चलते हैं कि माँग और पूर्ति वस्तुतः या मौद्रिक रूप से स्थिर होती है अर्थात इनकी अनुसूचियों में शून्य अथवा समानुपाती लोच होती है। संतुलन की स्थिति फर्म का एक लक्ष्य है। संतुलन निम्नलिखित में से किसी भी प्रकार का हो सकता है :—
  • Equilibrium price -- संतुलन कीमत
ऐसी कीमत जिस पर किसी वस्तु की माँग और पूर्ति के वक्र एक दूसरे को काटते हैं।
इस कीमत पर पूर्तिकर्ता और माँगकर्ता दोनों ही वस्तु की एक ही मात्रा को बेचने या खरीदने के लिए तैयार होते हैं।
यदि कीमत इस बिन्दु से कमोबेश माँगी जाती है, तो संतुलन की स्थिति में गड़बड़ी पैदा हो जाती है।
ये कीमतें माँग और पूर्ति की शक्तियों के अधीन अपने आप स्थिर होती हैं और स्थिरता तब तक बनी रहती है जब तक बाजार की स्थिति में कोई विशेष परिवर्तन या विक्षोभ न पैदा हो।
  • Ergodic theorem -- अभ्यतिप्राय प्रमेय
अभ्यतिप्राय प्रमेय के अनुसार यदि दो भिन्न जनसंख्याएं, जिनकी आयु संरचना तथा दूसरे अभिलक्षण भिन्न होते हैं, लम्बे काल तक एक ही मर्त्यता एवं जननता को दर्शाती रहें तो अन्त मॆें उनकी आयु संरचना तथा जैव दरें भी एक जैसी होती हैं।
इस प्रमेय के लागू होने की एक शर्त यह है कि जनसंख्या में प्रवसन बिलकुल न हो।
यह प्रमेय स्थिर जनसंख्या की धारणा का संशोधित रूप है।
  • Erroneous match -- त्रुटिपूर्ण मेल
इसमें दोहरी अभिलेख विधि में एक विधि से संगृहीत आँकड़ों तथा दूसरी विधि के इकट्ठे किए गए आँकड़ों में किसी ऐसी घटना का मेल पाया जाता है जो वास्तव में घटी नही होती।
  • Erroneous non-match -- त्रुटिपूर्ण अनमेल
वस्तुतः दूसरी विधि से संगृहीत आँकड़ों में जब पहली विधि का की सुमेल विद्यमान होता है तब इसे त्रुटिपूर्ण अनमेल की संज्ञा दी जाती है।
  • Errors of classification -- वर्गीकरण संबंधी त्रुटियाँ
ये आँकड़ों के प्रक्रमन के दौरान अन्वेषकों की असावधानी के कारण उत्पन्न होती हैं।
  • Errors of coverage -- समावेशन संबंधी त्रुटियाँ
छोड़ने या भूल की त्रुटियाँ इन कारणों से उत्पन्न होती हैं:—
  • Estimated variance -- आकलित प्रसरण
आकलित प्रसरण आव्यूह के स्तम्भों के अन्तर्गत संयोग प्रसरण को मापने की एक विशेष विधि है।
यह दो ,स्तम्भों के बीच प्रसरण x₁, x₂ ........ के अन्तर से प्रभावित नहीं होता। ऐसे विचरण से आकलित प्रसरण निकालने के लिए उपयुक्त स्वतंत्रता की कोटि से भाग देना पड़ता है।
इस विधि से स्तंभ के माध्यों के बीच प्रसरण और स्तंभ के अन्तर्गत माध्यों के बीच प्रसरण की तुलना की जा सकती है और किसी गुण की विशिष्टता ज्ञात की जा सकती है।
  • Estimation -- आकलन
आकलन का तात्पर्य किसी अज्ञात समष्टि के मानों में से, जैसे किसी नमूने में अधूरे आँकड़ों में से, अनुमिति के आधार पर संख्यात्मक मानों का पता लगाना है।
ये मान किन्हीं निश्चित नियमों के आधार पर आकलित किए जाते हैं। ऐसे नियमों या प्रक्रिया को आकलन कहते हैं।
अज्ञात प्राचल के लिए अगर कोई अकेली संख्या निकाली जाती है तो उसे बिन्दु आकल कहा जाता है और यदि इसके लिए किसी अंतराल का अनुमान लगाया जाता है तो उसे अंतराल आकल कहा जाता है।
  • Eugenic sterilisation -- सुजनन बंध्यकरण
समाज के कुछ वर्गों की जनसंख्या का चिकित्सीय आधार पर अनिवार्यतः बंध्यकरण कर दिया जाता है ताकि उनके हानिकर जीन अगली पीढ़ी के लोगों में संक्रमण न कर सकें। इस प्रकार के कार्यक्रम को सुजनन बन्ध्यकरण कहा जाता है।
  • Exogenous variable -- बहिर्जात चर
जैसे, अकाल अथवा वर्षा न होने अथवा राजनीतिक उपद्रवों अथवा ऐतिहासिक कारणों से होने वाले परिवर्तन आदि इस प्रकार के चर माने जाते हैं।
  • Expansion path -- प्रसार पथ
  • Expectation -- प्रत्याशा
किसी आर्थिक चर के भावी माप का अनुमान।
आर्थिक व्यवहार के बारे में पूर्वकथन करने के प्रसंग में आर्थिक प्रत्याशाओं का बहुत महत्व है। इनके कारण पूर्ति और माँग के फलनों पर विपरीत प्रभाव पड़ सकता है। यह व्यवहार आर्थिक क्रिया-कलाप में लगे व्यक्तियों की मनोदशा पर निर्भर होता है और इसका पहले से अनुमान लगाना कठिन होता है जैसे;
(i) व्यवसाय चक्र के समय क्रेता और विक्रेताओं का व्यवहार,
  • Expectation of life -- जीवन प्रत्याशा
यह जीवन सारणी में दिया गया ऐसा स्तंभ होता है जो यह बताता है कि कोई नवजात शिशु औसतन कितने वर्ष तक जिएगा जबकि चालू आयु विशिष्ट मर्त्यता की सूची दी हुई हो।
इसे जीवन सारणी व जनांकिकी मॉडलों में e^o_o द्वारा दिखाया जाता है और इसे अन्तर्राष्ट्रीय मृत्यु दरों की तुलनाओं में आयु-मानकित मृत्यु दर से तरजीह दी जाती है।
दे∘ life table
  • Explicit function -- स्पष्ट फलन
ऐसा फलन जिसमें आश्रित चर स्वतंत्र चरों के पदों के रूप में स्पष्टतया उल्लिखित हों।
ऐसे फलन में एक चर का मान निश्चित रूप से अन्य चर या चरों को दिए गए मानों पर आश्रित होता है।
आश्रित चर को समीकरण के बाएं पक्ष में और स्वतंत्र चरों को दाएं पक्ष में रखा जाता है।
  • Explosive oscillation -- विस्फोटक दोलन
  • Exponential function -- चर घातांकी फलन
  • Exponential growth -- चरघातांकी वृद्धि
जब जनसंख्या की वृद्धि गणितीय चर घातांकी वृद्धि नियम अर्थात P_t=P_(0 ) e^rt के अनुसार होती है।
इस संकल्पना में यह माना जाता है कि आबादी निरंतर एक परिकलित प्रतिशत के अनुसार बढ़ती है तथा वृद्धि की यह दर किसी एक अवधि या जनसंख्या चक्र में स्थिर रहती है।
इस फलन के अनुसार जनसंख्या की वृद्धि के जो अनुमान लगाये जाते हैं उनहे चर घातांकी वृद्धि की संज्ञा दी जाती है।
यह चर घातांकी फलन एक चक्र के रूप में भी दिखाया जा सकता है जिसका समीकरण नीचे दिया जाता है:—
  • Extended family -- विस्तृत परिवार
ऐसे परिवार में पत्नी, बहन या माँ के संबंधी भी सम्मिलित किए जा सकते हैं।
  • F—distributiion -- F-बंटन
अर्थ-मितिक मॉडलों के मूल्यांकन के लिए प्रतिदर्शकों के प्रसामान्य बंटन के अतिरिक्त तीन प्रकार के और बंटनों का प्रयोग किया जाता है:—
F— बंटन के प्रतिदर्शज में हम एक ऐसे अनुपात को लेते हैं जिसका अंश n_1 संख्या वाले स्वतन्त्र यादृच्छिक चरों के z बंटन में वर्गों के माध्य के बराबर होता है और जिसकी हर n_2 संख्या के यादृच्छिक चरों के z बंटन में वर्गों के माध्य के बराबर होती है। इस प्रकार के बंटन को हम निम्नलिखित विधि से दिखा सकते हैं:—
इसका मानक प्रसामान्य बंटन वाले चर से घनिष्ठ संबंध होता है जिसका माध्य 0 होता है और प्रसरण 1 होता है।
इसका दूसरा नाम प्रसरण अनुपात बंटन भी है।
इस बंटन का अध्ययन सबसे पहले फिशर ने किया था जिसके नाम पर इसे फिशर-बंटन भी कहा जाता है।
इसका प्रयोग दो प्रसरण आकलकों तुलना के लिए किया जाता है और इसके आधार पर परिकल्पना की परीक्षा की जाती है। भिन्न की दो संख्याएं N_1 और N_2 को क्रमशः अंश और हर की स्वतंत्रता की कोटि भी कहा जाता है।
प्रतिदर्शज x^2 और t को F की एक विशेष दशा माना जा सकता है और इनके संबंध को निम्नलिखित फार्मूलों द्वारा दिखाया जा सकता है:—
  • Factor reversal test -- उपादान उत्क्रमण परीक्षण
उपादान उत्क्रमण परीक्षण के अनुसार भाव-सूचकांकों के भावों के स्थान पर संगत मात्राएं तथा मात्राओं के स्थान पर संगत भाव रखने से जो मात्रा सूचकांक प्राप्त होता है वह इन सूचकांकों के गुणनफल मान के सूचकांक के बराबर होना चाहिए।
सूचकांक सूत्र में उत्पादनों के उत्क्रमण के फलस्वरूप प्राप्त सूचकांक तथा मूल सूचकांक का गुणनफल मान सूचकांक इस प्रकार होगा:—
सूत्रों में p तथा q का परस्पर विनिमय किया जाता है। उपादान उत्क्रमण परीक्षण के अनुसार:
  • Feasible solution -- व्यवहार्य हल
किसी प्रोग्रामन समस्या का व्यवहार्य हल का वह मान होता है जो उद्धेश्य फलन तथा व्यवरोधों संबंधी असमिकाऒं का समाधान करता है।
इसे सुसंगत हल भी कहा जाता है।
इस प्रकार के हल का क्षेत्र समीकरण का सुसंगत क्षेत्र होता है तथा शेष क्षेत्र असंगत होता है। रैखिक प्रोग्रामन समस्या का हल निकालते समय हम आधारी व्यवहार्य हल से अपनी खोज आरंभ करते हैं।
आधारी व्यवहार्य हल कोई भी ऐसा हल होता है जो व्यवरोधों को संतुष्ट करे। साधारणतया आधारी व्यवहार्य हल में हम कुछ स्वतंत्र चरों का मान शून्य मानते हैं।
  • Fecundity -- प्रजनन-क्षमता
प्रजनन-क्षमता को प्रजनन-दर से भिन्न समझना चाहिए क्योंकि प्रजनन दर विभिन्न अवरोधों या निरोधों के बाद वास्तविक प्रजनन के आधार पर मापी जाती है।
  • Fertility -- जननदर∕ जननता
जननता का तात्पर्य बच्चे को जन्म देना या गर्भ धारण करना है। इसका संबंध जन्म की बारंबारता से है।
जननदर बच्चे के जन्म की प्रायिकता को दर्शाती है।
जननदर उपनति (trend) में कालांतर में जन्मों या गर्भधारणों के स्तर का अध्ययन किया जाता है।
तुल∘ दे∘ fecundity
  • Fertility model (post insertion) -- प्रजनन मॉडल (निवेशन उपरांत)
इस मॉडल का एक नमूना नीचे दिया जाता है:
यह मॉडल श्री ए∘ के∘ जैन और एलबर्ट आई∘ हर्मोलिन द्वारा तैयार किया गया है। इसके आधार पर परिवार नियोजन लूप में (I.U.D.) कार्यक्रम की सफलता के मूल्यांकन के लिए यह देखा जाता है कि निवेश (लूप लगवाने) के बाद प्रजनन पर क्या प्रभाव पड़ता है।
इसमें y (t) औसत जन्म संख्या है, जिसका संबंध बिना किसी प्रकार के गर्भ निरोध के उपायों के विवाहित वर्षों में बच्चों की संख्या से है।
t विवाहित आयु के वर्ष हैं।
a तथा b दो ऐसे प्राचल हैं जिनका मान प्रयोगात्मक आधार पर t के विभिन्न मानों के अनुरूप तथा N का कोई कल्पित मान नुर्धारित कर मॉडल में y (t) के मानों के साथ आसंजित करके परिकलित किया जाता है।
इस मॉडल की सहायता से विवाह की अवधि में विशिष्ट जननता का पता लगाया जा सकता है और देखा जा सकता है कि लूप को स्वीकार करने वालों में कितनी प्रजनन क्षमता कम हुई अर्थात कितने बच्चों के जन्म को टाला जा सकता है तथा इसका जनलंख्या वृद्धि की दर को घटाने पर क्या प्रभाव पड़ा है।
  • fertility rate -- जननता दर
(2) सामान्य जनन दर (GFR)= (वर्ष में कुल जन्म)/(गर्भधारण योग्य स्त्रियों की संख्या)×1000
(3) आयुविशिष्ट जनन दर (ASFR)=(वर्ष में कुल जन्म)/(विशिष्ट आयु की स्त्रियों की संख्या)×1000
(4) कुल जननदर (TFR)
(5) संचयी जनन दर (Cumulative Fertility rate)
(6) मानकित जनन दर (SFR)
  • First order difference equation -- प्रथम कोटि अंतर समीकरण
ऐसा समीकरण जो किसी चर के दो क्रमागत परिमित-काल अन्तरमनों को संबंधित करे प्रथम कोटि अन्तर समीकरण कहलाता है।
उदाहरणतया, यदि 1976 तथा 1975 की राष्ट्रीय आयों को क्रमशः y_(t ) तथा y_(t-1)से प्रदर्शित करें तो:— 〖αy〗_t+βy_(t-1)+y=0 प्रथम कोटि का अन्तर समीकरण होगा।
यदि y शून्य हो तो प्रथम कोटि अन्तर समीकरण समांग कहलायेगा अन्यथा असमांग।
इसका दूसरा रूप निम्नलिखित होता है:—
इसमें εt त्रुटि चर का घोतक है तथा यह यादृच्छि होता है। εt, yt से संबंधित नहीं होता। आपस में स्वसहसंबंधित नहीं हैं। εt का प्रत्याशित मान (माध्य) शून्य होता है:—
इस समीकरण में घातें भिन्न-भिन्न हो सकती हैं। यदि समीकरण में सभी घातें एक हों तो समीकरण रैखिक समीकरण कहलाएगा।
  • Fixed point theorem -- स्थिर बिन्दु प्रमेय
सामान्य संतुलन मॉडलों के संदर्भ में मॉडल की पूर्वधारणा को संतुष्ट करने वाले हल के अस्तित्व के बारे में आश्वस्त होने के लिए स्थिर बिन्दु प्रमेय का सहारा लिया जाता है। हल के अस्तित्व के लिए मॉडल के समीकरणों का संगत होना पर्याप्त शर्त है, आवश्यक नहीं।
ये प्रमेय कई प्रकार के होते हैं।
बराबर के स्थिर बिन्दु प्रमेय के अनुसार किसी बिन्दु परिसीमित उत्तल सेट के सतत संरूपण में एक स्थिर बिन्दु अवश्य होगा यथा F(x) फलन के सेट में एक बिन्दु x का अस्तित्व है जिसके लिए संरूपण को निम्न प्रकार से परिभाषित किया जा सकता है:—
इस प्रकार कम से कम एक बिन्दु स्वयं पर संरूपित हो जाता है और हम एक स्थिर बिन्दु की प्राप्ति के प्रति आश्वस्त हो जाते हैं।
रेखाचित्र में फलन F(x) का संरूपण दिखाया गया है। यह संरूपण अंतराल 0≤x≤1 के लिए परिभाषित है तथा यह बन्द परिसीमित तथा उत्तल सेट है।
वास्तविक बिन्दुओं का यह सेट सरल रेखा से प्रदर्शित किया जाता है। अतः यह संरूपण सतत् भी है। इसमें कम से कम एक बिन्दु ऐसा अवश्य होगा जहाँ फलन F(x) का ग्राफ मूल बिन्दु से 45° वाली सरल रेखा को काटेगा। नीचे के चित्र में ऐसा बिन्दु A है तथा इसके लिए
  • Flow -- प्रवाह
कुछ मात्राएं ऐसी होती हैं जो न्यूनाधिक समय में लगातार घटती-बढ़ती रहती हैं। इनका स्तर किसी काल विशेष जैसे प्रति सप्ताह अथवा प्रति मास के अनुसार मापा जाता है। इन मात्राओं को हम प्रवाह के रूप में व्यक्त करते हैं। उदाहरणार्थ, निवेश, आगत तथा निर्गत, आय, जन्म और मृत्यु दरें आदि।
इनके मुकाबले में हम कुछ मात्राओं को स्टॉक के रूप में मापते हैं जैसे किसी देश के स्वर्ण आरक्षण, परिचालित बैंक नोटों की संख्या अथवा फर्म के पूँजीगत साधन आदि।
प्रवाह संकल्पना में काल दिशा का विशेष महत्व होता है। उदाहरण के रूप में किसी व्यक्ति की आय को प्रवाह और उसके धन को स्टॉक माना जाता है।
  • Flow concept -- प्रवाह संकल्पना
किसी चर के मान या परिमाण में किसी दी हुई अवधि (period of time span) के अन्तर्गत परिवर्तन।
इसमें परिवर्तन दर की संकल्पना निहित है।
तुल∘ दे∘ stock concept
  • Foetal death -- भ्रूण-मृत्यु
गर्भस्थ शिशु की माँ के पेट में मृत्यु को भ्रूण मृत्यु कहते हैं।
इस दशा में बच्चों में गर्भावस्था में ही जीवन के चिन्ह समाप्त हो जाते हैं और प्रसव के समय मृत शिशु ही जन्म लेता है।
इसमें गर्भस्राव, गर्भपात और मृत प्रसव तीनों सम्मिलित होते हैं।
  • Forecast -- पूर्वानुमान
पूर्वानुमान का तात्पर्य किसी घटना अथवा व्यवहार के बारे में कोई ऐसा कथन करना है जिसका अभी तक कोई प्रेक्षण न किया गया हो।
इसमें यह अनुमान लगाते हैं कि भविष्य में स्वतंत्र चरों का मान बदलने पर आश्रित चर का क्या परिमाण होगा।
इसके मुकाबले आकलन में हम केवल किसी वर्तमान चर की भावी मात्रा ही आँकते हैं।
इस प्रकार के कथन प्रायः मात्रात्मक समीकरणों, असमिकाओं, बिन्दु अनुमान तथा अन्तराल अनुमान के रूप में किये जाते हैं। इनमें संख्याओं और गुणांकों का स्पष्टतः उल्लेख किया जाता है।
  • Frequency curve -- बारंबारता वक्र
चित्र 13 (DIAGRAM)
  • Frequency distribution -- बारंबारता बंटन
मात्रात्मक वर्गीकरण की ऐसी विधि जिसमें प्रेक्षण तथा उनकी बारंबारता से निर्मित व्यवस्था को दिखाया जाता है।
ये प्रेक्षण प्रत्यक्ष माँग अथवा अन्तराल संख्याओं के रूप में हो सकते हैं। जितनी बार कोई प्रेक्षण या वर्ग अन्तराल घटित होता है उसे बारंबारता कहा जाता है।
इस बंटन को किसी फलन अथवा सारणी के रूप में दिखाया जाता है। ऐसे बंटन के मानों से आरेख भी खींचे जा सकते हैं तथा इनको बहुभुज के रूप में भी चित्रित किया जाता है।
  • Frequency polygon -- बारंबारता बहुभुज
बारंबारता बहुभुज के आँकड़ों को प्रस्तुत करने की एक आलेखनीय विधि जिसकी रचना निम्न प्रकार से की जाती है:-
(1) वर्ग अन्तरालों के मध्य बिन्दुओं को क्षैतिज अक्ष पर अंकित किया जाता है।
बारंबारता बहुभुज का एक चित्र नीचे दिया जाता है:—
  • Frictional unemployment -- घर्षी बेरोज़गारी
ऐसी बेरोज़गारी जो व्यक्तियों के श्रम शक्ति या श्रमिक बल में प्रवेश करने या बाहर जाने के कारण पैदा होती है।
यह व्यक्तिगत समंजन या पुनर्समंजन के प्रयास की द्तयोक होती है तथा इसका औद्योगिकी परिवर्तनों या व्यवसाय चक्र के उतार-चढ़ाव अथवा उच्चावचन से कोई संबंध नही होता।
तुल∘ दे∘ structural unemployment
  • Full information estimation -- पूर्ण सूचना आकलन
ऐसी विधि जिसमें अनेक प्रारंभिक प्रतिबंधों वाले मॉडल के प्राचलों के मान आकलित करने के लिए लघुगणकीय प्रसंभावना फलन को अधिकतम करते हैं, पूर्ण सूचना आकलन विधि कहलाती है।
यदि केवल कुछ प्रतिबंध ही काम में लाये जाएं तो इस विधि को सीमित सूचना आकलन विधि कहते हैं।
पूर्ण सूचना आकलन, सीमित सूचना आकलन से अधिक दक्ष होते हैं।
  • Full-information maximum likelihood model -- पूर्ण सूचना अधिकतम संभाविता मॉडल
पूर्ण सूचना अधिकतम संभाविता मॉडल को आव्यूह के रूप में निम्न अनुसार लिखा जा सकता है:—
इसमें (FORMULA) आव्यूह जिसमें वर्तमान अंतर्जात चरों के गुणांक शामिल है।
इसमें यह धारणा दी जाती है कि u सदिशों में क्रमिक स्वतंत्रता है तथा अंतर्जात चरों की संभाविता x के मानों पर निर्भर है।
अधिकतम संभाविता फलन यों दिखाया जाता है:-
  • Function -- फलन
जब स्वतंत्र चर के कुछ मान निर्दिष्ट किए जाते हैं तब प्रत्येक ऐसे मान के अनुरूप आश्रित चर के भी मान निर्धारित हो जाते हैं। इस प्रकार के संबंध को आश्रित तथा स्वतंत्र चर का फलन कहा जाता है।
  • Game problem -- खेल समस्या
खेल समस्या में हम यह ज्ञात करते हैं कि क्या किसी शून्य योग खेल में भुगतान आव्यूह का कोई पल्याण बिन्दु है अथवा नहीं तथा क्या इसका कोई इष्टतम फल है या नहीं।
खेल समस्या का उद्देश्य ऐसी इष्टतम युक्तियों (चालों) का पता लगाना होता है जिनको पूर्णतया निर्धारित नहीं किया जा सकता।
ऐसी समस्या को हम उचित समीकरणों तथा न्यूनतापरक चरों की सहायता से रैखिक प्रोग्रमन समस्या में बदल सकते हैं।
  • Game theory -- खेल सिद्धांत
खेल सिद्धांत, ऐसे नियमों, विनियमों, परिपाटियों या रूढ़ियों का समुच्चय है जिनका किसी क्रीड़ा (Play) में अनुपालन किया जाता है।
क्रीड़ा किसी विशेष के नियमों की यथासंभव अनुभूति है। किसी खेल में चाल (Move) एक ऐसा स्थल या बिन्दु होता है जहाँ से कोई खिलाड़ी किन्ही वैकल्पिक उपायों के सेट में से कोई एक विकल्प चुनता है।
यदि किसी खेल में चालों और विकल्पों की संख्या परिमित होती है तो इसे परिमित (Finite) खेल कहा जाता है अन्यथा इसे अपारिमित खेल कहा जाता है।
यदि अपने हितों के अनुसार एक अकेला व्यक्ति खेल के किन्ही नियमों का पालन करता है, तो ऐसे खेल को 'एक व्यक्ति खेल' कहा जाता है। जब एक खेल को कई व्यक्ति खेलते हैं और परस्पर अनन्य सेटों में इस प्रकार बँटे होते हैं कि एक सेट में शामिल सभी व्यक्तियों के हित समरूप होते हैं तब ऐसे खेल को N व्यक्तियों का खेल कहा जाता है। खेल के खिलाड़ियों को जो प्रतिफल मिलता है उसे भुगतान कहा जाता है।
अर्थशास्त्र में खेल सिद्धान्त का प्रयोग विपणन व्यवहार में किया जाता है जिसमें खिलाड़ी के रूप में विभिन्न फर्में अपनी-अपनी चाल चलती हैं। ये चालें या तो प्रतिद्वंद्वी फर्म की प्रतिक्रिया पर निर्भर करती हैं या प्रतिद्वंद्वी की प्रतिक्रिया की परिकल्पना पर।
  • Gauss-Laplace curve -- गाँउस लाप्लास वक्र
इनमें सर्वाधिक बारंबारता की रेखा सामान्यतः माध्य रेखा को माना जाता है। इस प्रकार के बंटन का एक चित्र नीचे दिया जाता है:-
  • Gaussian generator -- गाँउसीय जनक
विक्षोभों का मान निकालने के लिए गाँऊस द्वारा निरूपित जनन की विशेष विधि।
इस विधि द्वारा कृत्रिम प्रतिदर्श बनाकर प्रयोग की विशिष्टियों के अनुसार आकलक के गुणों की परीक्षा की जाती है और फिर उत्तरोत्तर प्रेक्षणों की यादृच्छिक आधार आगे से आगे पुनरावृत्ति कर विक्षोभ को सही मान निकालने के लिए सारणियाँ बनाई जाती हैं।
अगला मान ज्ञात करने के लिए आकलित गुणांकों की वास्तविक गुणांकों से तुलना की जाती है और फिर इस प्रक्रिया को आगे दोहराया जाता है।
  • General fertility rate = (g.f.r.) -- सामान्य प्रजनन दर
  • Geometric mean -- गुणोत्तर माध्य
अतः पदों के गुणनफल का nवाँ मूल उनका गुणोत्तर माध्य कहलाता है। सूत्र रूप में इसे यों लिखा जाता है:-
  • Graph -- आलेख
आलेख में दोनों चरों को दो अक्षों पर मापते हैं। ये आलेख को चार भागों में बाँटते हैं। दोनों कक्ष साधारणतया समकोण पर कटते हैं और उनमें से एक क्षैतिज होता है। क्षैतिज अक्ष पर ही स्वतंत्र चर को दर्शाते हैं।
  • Grass root approval -- आधार मूल समर्थन
आधार मूल समर्थन की संकल्पना को अनेक सामाजिक कार्यों, यथा परिवार नियोजन आदि की सफलता के लिए एक अनिवार्य परिस्थिति माना जाता है।
  • Gross migration -- सकल प्रवसन
तूल∘ दे∘ net migration
  • Growth components (population) -- वृद्धि घटक (जनसंख्या)
किसी भी देश की जनसंख्या की वृद्धि के घटक हैं मृत्युदर, जनन दर तथा प्रवसन।
इनका परस्पर संबंध निम्नलिखित समिकाओं द्वारा दिखाया जा सकता है:
जनांकिकी अनुसंधान के तकनीक व विश्लेषण में जनसंख्या का पूर्वानुमान लगाने के लिए इन सूत्रों का बहुधा प्रयोग किया जाता है।
  • growth model (economic) -- संवृद्धि मॉडल (आर्थिक)
  • Harmonic mean -- हरात्मक माध्य
मान लीजिए एक श्रेणी में x_(1 ),〖 x〗_2,…….x_4 इत्यादि पदमान हैं।
इन पदमानों के व्युत्क्रम क्रमशः 1/x_1 ,1/x_2 ,….1/x_n हैं।
पदमानों के व्युत्क्रम का समांतर माध्य=(1/x_1 + 1/x_2 + 1/x_3….+1/x_n )/N=(Σ 1/x)/n हरात्मक माध्य= n/(Σ 1/x) अथवा= पद संख्या/पदमानों के व्युत्क्रम का योग
  • Hatched map -- रेखाछायित मानचित्र
प्रायः किसी भौगोलिक क्षेत्र में प्राकृतिक संसाधन, व्यवसायों का बँटवारा या जनसंख्या के आवागमन संबंधी तथ्यों को ऐसे मानचित्रों की विधि से दिखायाजाता है। छायित क्षेत्रफल को हल्के या गहरे छाया वर्गों या भिन्न-भिन्न रंगों द्वारा ऐसे आँकड़ों के अनुपात के अनुरूप दिखाया जाता है।
  • Hermit canonical matrix -- हर्मिट विहित आव्यूह
ऐसा आव्यूह जिसमें H²=H होता है। इसमें वर्गसम जैसे लक्षण दिखाई देते हैं।
जब एक वर्ग आव्यूह A, m कोटि का होता है और इस आव्यूह के अंतर्गत एक ऐसा नियमित या व्यूत्क्रमणीय आव्यूह C होता है जिसका कोटि m हो और जब CA=H होता है, तब हम मैट्रिक्स को हर्मिट विहित स्वरूप वाला आव्यूह (वर्गसम) कहते हैं।
हर्मिट विहित शक्ल में आव्यूह का प्रमुख विकर्ण केवल 0 और 1 होता है और इस विकर्ण के नीचे के सभी अवयव शून्य होते हैं। जब विक्रर्ण का अवयव शून्य होता है तब सपूर्ण पंक्ति शून्यों की होती है और जब विकर्ण का अव्यव 1 होता है तब उस स्तंभ में शेष सभी अवयव शून्य होते हैं।
  • Heteroscedasticity -- विषमविसारिता
सूत्र रूप में इसे निम्न रूप में लिखा जा सकता है:
  • Histogram -- आयत चित्र
आयत की ऊँचाई इतनी होनी चाहिए जिससे क्षेत्रफल वर्ग की बारंबारता के आनुपातिक हो। इसका एक नमूना नीचे के चित्र में दर्शाया गया है ।
  • Homogenoeus area -- समजातीय क्षेत्र
  • Household -- गृहवास
यह एक घराने के रूप में सामाजिक आर्थिक इकाई मानी है।
इसमें एक स्थान पर इकट्ठे रहने वाले एक या अधिक व्यक्ति भोजन तथा जीवन की अन्य आवश्यकताओं के लिए किसी साँझी व्यवस्था पर निर्भर होते हैं।
कुछ गृहवास पारिवारिक किस्म के होते हैं और कुछ संस्थागत या गैर-पारिवारिक।
कुछ गृहवासी बिना घर के भी होते हैं।
  • Identification -- अभिनिर्धारण
किसी दिए गए मॉडल के पर्याप्त प्रेक्षित आँकड़ों के आधार पर मॉडल के संरचना प्राचलों के मानों का अद्वितीय रूप से निर्धारण।
यदि मॉडल का ऐसा निर्धारण न हो सके (भले ही कितने प्रेक्षित आँकड़े क्यों न हों ) तो इसे अभिनिर्धार्य कहते हैं।
अभिनिर्धारण के कारण दो प्रकार से उदित होते हैं:—
साधारणतया अभिनिर्धारण की समस्या प्रतिबंधों को लेकर उठती है। यदि प्रतिबंध इतने हों कि प्राचल समूह का केवल एक आकलन प्राप्त हो सके तो मामला अभिनिर्धारण का कहा जाता है।
  • Identity -- तत्समक/सर्वसमिका
ऐसा समीकरण जिसके दोनों पक्ष या पार्श्व चरों के सभी मानों के लिए समान हों।
तत्समक चरों के बीच किसी फलनीय संबंध को नहीं दर्शाता। यह मात्र एक स्वयंसिद्धि होता है। तत्समक को निर्धारित शर्तों के अधीन समीकरण के रूप में बदला जा सकता है।
ऐसा समीकरण चरों के प्रत्येक मान के लिए सही होता है।
किसी भी सर्वसमिका का समीकरण अवकलन के पश्चात भी सत्य माना जाता है, बशर्ते कि वह समीकरण एक सर्वसमिका हो और इससे व्युत्पन्न फलन उसी चर से संबंधित हों।
  • Illegitimacy rate -- अवैधता दर
  • Immegration= (in-migration) -- आप्रवासन
  • Implicit function -- निस्पष्ट फलन
ऐसा फलन जिसमें आश्रित चर का संबंध स्वतंत्र चरों से स्पष्टतया व्यक्त नहीं होता, जैसे:—
इसमें x के किसी भी मान के लिए y का मान और y के किसी भी मान के लिए x का मान निकाला जा सकता है।
यह स्पष्ट फलन से केवल इस अर्थ में भिन्न है कि स्पष्ट फलन के अंतर्गत x के मानों के लिए y के मान तो निकाले जा सकते हैं किंतु y के मानों के दिए होने पर x के मान नहीं निकाले जा सकते।
  • Incidence rate (Public Health) -- आपातित रोग दर (जन स्वास्थ्य)
  • Income effect -- आय प्रभाव
तु∘ दे∘ substitution effect
  • Increasing function -- वर्धमान फलन
  • Independent variable -- स्वतंत्र चर
जब किसी चर का मान हेतुक दृष्टि से संबद्ध चरों के मान से मुक्त रहकर निर्दिष्ट किया जा सकता है तब उस चर को स्वतंत्र चर कहते हैं।
  • Index number -- सूचकांक
इनका उपयोग विभिन्न समयों पर या एक ही समय में विभिन्न स्थानों पर किसी विशेष घटना के स्तर की तुलना करने के लिए किया जाता है।
सूचकांकों की गणना करने के लिए जो सूत्र सामान्यतः प्रयोग में लाये जाते हैं वे इस प्रकार हैं :—
(2) पाशे सूचकांक: I_p=(〖ΣP〗^n q^n)/(〖Σp〗^o q^n )×100
(3) ड्राबिश सूचकांक: I_p=1/2[(〖ΣP〗^n q^n)/(〖Σp〗^o q^n )×100+(〖ΣP〗^n q^n)/(〖Σp〗^o q^0 )×100]
मार्शल ऐजबक सूचकांक: I_p =(〖ΣP〗^n 〖(q〗^0+q^n))/(〖Σp〗^o 〖(q〗^0+q^n))×100
(5) फिशर का आदर्श सूचकांक: I_p=√(〖ΣP〗^n q^0)/(〖Σp〗^o q^0 )×100)(〖ΣP〗^n q^n)/(〖Σp〗^o q^n )×100) )
  • Index of dissimilarity -- असमानता सूचकांक
तुलना करने के लिए किसी गुण का विभिन्न वर्गों में प्रतिशत बंटन मालूम करके एक दूसरे का अंतर ज्ञात किया जाता है तथा समान चिन्हों वाले अन्तर को जोड़कर यह सूचकांक ज्ञात कर लिया जाता है।
  • Indifference curve -- अनधिमान वक्र
दो वस्तुओं के भिन्न-भिन्न संयोजनों को, जिनके लिय उपभोक्ता समान वरीयता रखता है या किसी संयोजन के प्रति अन्य संयोजनों की तुलना में अधिक वरीयता नहीं रखता है, एक ऐसी आरेखीय विधि द्वारा दिखाया जा सकता है जिसे अनधिमान वक्र की संज्ञा दी जाती है।
इस वक्र पर प्रत्येक बिन्दु पर उपभोक्ता दोनों में से किसी भी वस्तु को एक दूसरे से अदला-बदली कर सकता है। उपभोक्ता किसी वस्तु की एक अतिरिक्त इकाई लेने पर किसी दूसरी वस्तु की कितनी मात्रा का त्याग करेगा उसको सीमान्त प्रतिस्थापन दर कहते हैं। यह दर ह्रासमान मानी जाती है अर्थात् जैसे-जैसे पहली वस्तु का स्टॉक उपभोक्ता के पास बढ़ता जायेगा उसकी अगली इकाई मिलने पर वह दूसरी वस्तु की क्रमागत मात्रा का त्याग करेगा।
अनधिमान वक्र केन्द्र की ओर उत्तल होता है ओर नीचे की ओर गिरता है।
संतुलन की अवस्था में, सीमान्त प्रतिस्थापन दर वस्तुओं की कीमतों के अनुपात के बराबर होती है।
  • Infant mortality rate -- शिशु मृत्यु दर
शिशु मृत्यु के अन्तर्गत और बहिर्जात कारणों का पता लगाने के लिये यह दर विशेष महत्व रखती है। इस दर को निकालने के लिए निम्नलिखित सूत्र का प्रयोग करते हैं:—
  • Input-out put model -- आगत-निर्गत मॉडल
यह मॉडल निम्न प्रकार का हो सकता है।
( i) खुले प्रकार के मॉडल में उद्योगों के अलावा एक खुला क्षेत्र (जैसे पारिवारिक क्षेत्र) होता है जो बहिर्जात रूप से अंतिम माँग का निर्धारण करता है जिसे आगतेतर (non-input) माँग भी कहा जाता है। यह माँग प्रत्येक उस उद्योग के लिए अलग-अलग होती है जो इसके लिए प्राथमिक आगत (जैसे श्रम) की पूर्ति करता है। इस आगत का स्वतः उद्योगों द्वारा निर्माण नहीं किया जाता।
  • Institutional population -- संस्थागत जनसंख्या
वे व्यक्ति जो किसी संस्था में एक साथ रहते हों।
जैसे छात्रावासों में रहने वाले विद्यार्थी, अस्पतालों में रहने वाले रोगी, कैदी, सैनिक छावनियों के कर्मचारी आदि।
किन्हीं प्रशासकीय कारणों से इन संस्थाओं में रहने वाले लोगों की गणना अलग से की जाती है।
  • Institutional restraints -- संस्थागत अवरोध
इस प्रकार के अवरोधों को अर्थमितीय मॉडल के संरचनात्मक समीकरणों के माध्यम से दिखाया जाता है।
  • Instrumental variable -- साधनभूत चर
यदि किसी मॉडल में उसके प्रचलों को संगत रूप से अकलित करना असंभव हो और मॉडल के यादृच्छिक चर उसके स्वतंत्र चरों से संबंधित हों तो उस परिस्थिति में हम जिन बहिर्जात चरों की सहायता से प्राचलों को संगत रूप से आकलित करते हैं उन्हे साधनभूत चर कहा जाता है।
उपगामी संदर्भ में ऐसे बहिर्जात चरों में निम्न विशेषताएं वांछनीय हैं:
अर्थमितिक आकलन में साधनभूत चरों का प्रयोग विशेष रूप से पश्चता बंटित (distributed lag) तथा त्रुटितचर मॉडलों में किया जाता है।
  • Integrated area -- एकीकृत क्षेत्र
एक ही क्षेत्र के अंतर्गत रखे जाने वाले इलाके।
वितरण मूलक अध्ययन करने के लिए कभी कभी जनसंख्या को कार्यशः एकीकृत क्षेत्रों में बाँटा जाता है। एक दूसरे पर निर्भर ऐसे इलाके जो आर्थिक गतिविधियों की दृष्टि से या प्रशासकीय दृष्टि से एक दूसरे से एक सूत्र में बंधे रहते हैं। ज्यादातर एकीकृत क्षेत्र का विकास ऐसे केन्द्रों के इर्द-गिर्द बस्तियों या उपनगर के रूप में होता है जो यातायात, औद्योगिक अथवा व्यापारिक केन्द्र होते हैं।
केन्द्रीय क्षेत्र को मुख्य नगर माना जाता है और इसके इद-गिर्द के इलाकों को उपनगरीय क्षेत्र माना जाता है।
  • Integration -- समाकलन
  • International migration -- अंतर्राष्ट्रीय प्रवसन
अंतर्राष्ट्रीय प्रवसन का तात्पर्य अपने देश सीमा से बाहर जाकर किसी दूसरे देश में स्थायी रूप से रहने लगना है।
यह प्रवसन अकेले व्यक्ति का भी हो सकता है अथवा कुछ समूहों में भी।
बाहर जाने वाले व्यक्तियों को उत्प्रवासी कहा जाता है और जिस देश में वे पहुँचते हैं उन्हें वहाँ पर आप्रवासी कहा जाता है।
अंतर्राष्ट्रीय प्रवसन के संबंध में विभिन्न देशों की सरकारें अपने देश की जनसंख्या का नियंत्रण पुनर्वितरण प्रवसन नीति द्वारा करती हैं।
तुल∘ दे∘ migration
  • Interpolation -- अन्तर्वेशन
संपूर्ण आँकड़ों की अनुपस्थिति में किसी फलन के अज्ञात मान के सन्निकट आकलन प्राप्त करने की विधि को अन्तर्वेशन कहते हैं।
सांख्यिकी में अन्तर्वेशन का अर्थ किसी स्वतंत्र चर के दत्त मान के तदनुरूप किसी आश्रित चर के अज्ञात मान के आकलन का पता लगाना है।
अन्तर्वेशन की कुछ प्रमुख विधियाँ ये हैं:— (1) आलेखीय विधि, (2) बीजीय विधि, (3) न्यूटन विधि, (4) लागरांजी विधि तथा (5) विभक्त अंतरों की विधि।
  • Intertemporal theory = (atemporal theory) -- अंतरकालिक सिद्धांत
उत्पाद सिद्धांत से संबंधित वह संकल्पना जिसके अंतर्गत प्रत्येक पण्य या वस्तु के बारे में समय बिंदु के अनुसार अलग-अलग विचार किया जाता है। इसमें आज के एक श्रम घंटे को कल के एक श्रम घंटे से अलग माना जाता है।
इस सिद्धांत के मूल में प्रौद्योगिकी की विस्तृत विशिष्टियाँ तथा विशेषीकरण का प्रक्रम निहित रहता है जिसके फलस्वरूप उतपादन कारक के रूप में स्थायी पूँजी का समावेश किया जा सकता है।
पूँजी सिद्धांत की प्रसिद्ध संकल्पनाएं यथा पूँजी परिसंपत, पूँजी सेवाएं और निवेश को भी अनिवार्यतः हम इसी सिद्धांत के अंतर्गत शामिल कर सकते हैं।
  • Interval estimation -- अंतराल आकलन ∕ परास आकलन
किसी अज्ञात प्राचल के दो प्रकार के आकलक होते हैं:—(1) बिन्दु आकलक तथा (2) अंतराल या परास आकलक
बिन्दु आकलन में प्राचल का केवल एक ही मान निकलता है जबकि परास आकलन में दो सीमा मानों के बीच प्राचल आकलक रखा जाता है।
ये दो सीमाएं (नीचली और ऊपरी ) ऐसी होती हैं कि प्राचल के सही मान की इन दो सीमाओं के अन्दर होने की प्रायिकता दी गई प्रायिकता (इच्छित प्रायिकता) के बराबर होती है। इच्छित प्रायिकता को विश्वास गुणांक भी कहते हैं।
किसी भी ज्ञातव्य गुणांक के संदर्भ में प्राचल के परास आकलन अनेक हो सकते हैं। यह एक समस्या रह जाती है कि इनमें से किसको चुना जाये। बिन्दु आकलक की अपेक्षा परास आकलक को इसलिए पसंद किया जाता है क्योंकि बिन्दु आकलक सदैव लगभग सही नहीं होते, जबकि परास आकलक की सीमाओं के अंतर्गत सही प्राचल मान के होने की प्रायकता अधिक होती है।
जैसे यदि हम औसत आय (y) की 95% विश्वास गुणांक से संबंधित परास अंतराल ज्ञात करना चाहें तो किसी दिए हुए आकार के यादृच्छिक प्रतिदर्श से आय की मानक त्रुटि (ey) ज्ञात करने फार्मूला यह होगाः
  • Inverse matrix -- व्युत्क्रम आव्यूह
इसे 〖A〗^(-1) भी लिखा जाता है। AX=Y का हल X=〖AY〗^(-1) होता है। दूसरे रूप में इसे यों भी लिखा जाता है:—
  • Irregular fluctuations -- अनियमित उच्चावन
ऐसे असाधारण या बेकायदा संचलन जिनकी व्याख्या मौसमी विचरणों या चक्रीय उच्चावचन के अंतर्गत नहीं की जा सकती।
इनका कोई प्रतिरूप नहीं होता और न ही इनमें किसी प्रकार का पुनरावर्तन होता है।
इस प्रकार के विचरण आकस्मिक या अवशिष्ट होते हैं। इन संचलनों का पूर्वानुमान नहीं लगाया जा सकता। इसीलिए उन्हें अनियमित उच्चावचन कहते हैं।
  • Iso-frquency curve -- सम आवृत्ति वक्र
यह वक्र परवलय की शक्ल के होते हैं और y अक्ष को मूल बिंदु पर स्पर्श करते हैं। इसका सामान्य समीकरण यह है:
  • Iso-stability curve -- समस्थिरता वक्र
किसी आर्थिक मॉडल के आचरण की स्थिरता के संबंध में निम्नलिखित अवकल समीकरण के आधार पर खींचा गया वक्र समस्थिरता वक्र कहलाता है:
इस अवकलक समीकरण के गुणांकों में कोई भी परिवर्तन जिसके कारण यह वक्र मूलबिन्दु की दिशा में जाता है इसकी स्थिरता को बढ़ाने वाला होता है अर्थात वक्र की बाईं ओर ले जाने वाले सभी परिवर्तन स्थिरता लाने वाले होते हैं।
  • Isoquant -- समोत्पाद वक्र
समोत्पाद वक्र उत्पाद की एक जैसी मात्राओं या आगतों के अनेक संयोजनों को प्रकट करते हैं।
प्रत्येक संयोजन को रेखाचित्र पर एक बिन्दु द्वारा प्रदर्शित किया जा सकता है और विभिन्न संयोजनों को प्रदर्शित करने वाले ऐसे बिन्दुओं के बिन्दुपथ को समोत्पाद वक्र कहते हैं।
यदि y से उत्पाद दर्शित करें तथा x₁, x₂ आगतों के प्रतीक हों तो समोत्पाद वक्र का समीकरण इस प्रकार होगा:
  • Kurtosis -- ककुदता
ककुदता किसी वक्र की शिखरता या चपटपन को कहते हैं।
ऐसा वक्र जिसका उपरितल चपटा तथा पुच्छ छोटी हो चर्पट ककुदी वक्र कहलाता है।
जिस वक्र का शिखिर तीक्ष्ण तथा पुच्छ लम्बी हो, उसे तुंग-ककुदी वक्र कहते हैं।
कार्ल पियर्सन ने ककुदता का माप निम्न सूत्र से दिया है:
  • Labour force -- श्रम शक्ति
रोजगार में लगे व्यक्तियों तथा बेरोजगारों की कुल संख्या।
किसी समय विशेष में 15 से 65 वर्ष के बाद सभी काम करने योग्य व्यक्तियों की संख्या जो या तो रोजगार में लगी हो या फिर काम की तलाश में हो।
श्रम शक्ति देश में आर्थिक वस्तुओं और सेवाओं का उत्पादन करती है। इसमें बिना वेतन के काम करने वाले परिवार के सदस्य भी शामिल किए जा सकते हैं परंतु घरेलू काम-काज करने वाले सदस्यों जैसे गृहणियों आदि को शामिल नही किया जाता।
  • Lagrangian multiplier -- लग्रांजी गुणक
इस गुणक का प्रयोग गणित में व्यवरूद्ध उच्चिष्ठ और अल्पिष्ट सिद्धांत में किया जाता है।
लग्रांज एक फ्रंसीसी गणितज्ञ थे। उन्होंने अपने नाम से नीचे दिया गया एक समीकरण दिया है जिसमें एक अनिशिचत गुणक λ की पुनः स्थापना की गई है:
उपर्युक्त फलन को यदि हम क्रमशः अवकलित करें तो हमें निम्नलिखित तीन समीकरण प्राप्त होंगे:—
लग्रांजी गुणक का प्रयोग इसलिए किया जाता है क्योंकि व्यवरूद्ध अधिकतमीकरण और न्यूनमीकरण में अज्ञात प्राचलों से उनका निर्धारण करने वाले व्यववरूद्धों की संख्या अधिक होती है।
लंग्राजी समीकरणों का प्रयोग आर्थिक विश्लेषण में अधिकतमीकरण अरचयन संबंधी नीति निर्णय के समय किया जाता है। उद्यमकर्ताओं और फर्म को प्रायः अनेक विकल्पों में से एक का चयन करना होता है जब कि समय और साधन सीमित होते हैं और लक्ष्य अनेक। रेखीय प्रोग्रामन विधि में भी इस तकनीक का बड़ा महत्व है।
  • Law of growth (Production Technology) -- संवृद्धि नियम (उत्पादन प्रोद्योगिकी)
एक प्रकार का वक्र या फलन जिसमें किसी नए उद्योग की वृद्धि का पथ दिखाया जाता है।
जब कोई नया उद्योग बनता है तो उसके उत्पादन की तकनीकी विधियों का भली भाँति विकास नहीं हुआ होता। प्रारंभ में इसकी उत्पादन ताकत भी ऊँची होती है। इसी प्रकार उस वस्तु की बाजार माँग भी धीरे-धीरे विकसित होती है। निर्माण विधि में पूर्णता लाने और बड़े पैमाने पर वस्तु के उत्पादन से उसकी माँग के बाजार की वृद्धि होती है। यह माँग एक स्तर पर जाकर संतृप्ति बिन्दु पर पहुँच जाती है। इस प्रकार वस्तु के उत्पादन और माँग के विकास को हम वृद्धि घात वक्र अथवा संवृद्धि नियम के रूप में निम्नलिखित फलन द्वारा व्यक्त कर सकते है:
  • Leontief dynamic system model -- लियोन्तीफ गतिकी प्रणाली मॉडल
इस मॉडल के दो रूप होते हैं:— (क) बन्द मॉडल (ख) खुला मॉडल
इसमें सर्वप्रथम Sij को परिभाषित किया करता है:— Sij=i उद्योग का उत्पाद जो कि j उद्योग में स्टॉक के रूप में रखा है। यह bij × j के बराबर होता है। यहां bij पूँजीगत गुणाक है, t के सापेक्ष अवकलित करने पर dij/dt=bij (d×j)/dt
i उद्योग का संतुलन समीकरण खुले मॉडल में निम्नलिखित होगा: xi=∑_(j=1)^2▒xij+ci+∑_(j=1)^2▒dSij/dt x_1=∑_(j=1)^2▒〖x_1 j〗+ci+∑_(j=1)^2▒dSij/dt अथवा X_1=x_11+x_12+c_1+(ds_11)/dt+(ds_12)/dt या X_1=x_11+x_12+c_1+b_11 (dx_1)/dt+b_12 (dx_2)/dt (क) इसी प्रकार X_2=x_21+x_22+c_2+b_21 (dx_1)/dt+b_22 (dx_2)/dt
या (क) समीकरण सैट लियोन्तीफ गतिकीय खुले प्रणाली मॉडल दो उद्योगों की व्याख्या करता है। लियोन्तीफ गतिकी बन्द प्रणाली के मॉडल में अंतिम माँग नहीं लिखी जाती है, अतएव i उद्योग का संतुलन समीकरण निम्न होगा:
  • Leontief static system model -- लियोन्तीफ स्थैतिक प्रणाली मॉडल
लियोन्तीफ स्थैतिक प्रणाली मॉडल दो या अधिक उद्योगों के कुल उत्पादन तथा माँग को एक तालिका के रूप में दर्शाता है।
यदि अर्थव्यवस्था में केवल दो उद्योग यथा कृषि तथा बड़े स्तर पर उत्पादन करने वाले निर्माणीय उद्योग हों तो इस मॉडल के अनुसार यह माना जाएगा कि कृषि उद्योग उत्पादन की माँग, निर्माणीय उद्योग, उपभोग तथा कृषि उद्योग द्वारा की जाती है।
इसी प्रकार निर्माणीय उद्योग के उत्पादन की माँग कृषि उद्योग, उपभोग तथा स्वयं निर्माणीय उद्योग द्वारा की जाती है।
इस मॉडल में दी गई तालिका में उद्योग अपनी पंक्तियों के अनुसार संतुलन को प्रकट करता है तथा स्तंभ उद्योग की तकनीक को दर्शाते हैं:—
बिना श्रम का उपयोग किए उत्पादन संभव नहीं है, अतएव श्रम प्रारंभिक आगत कहलाता है। अन्तिम उपभोग समांग को अलग कालम में लिखने के कारण उपर्युक्त मॉडल खुला स्थैतिक लियोन्तीफ प्रणाली मॉडल कहलाता है। यह मॉडल दो से अधिक उद्योगों की व्याख्या भी कर सकता है तब इसे उद्योग वाला खुला स्थैतिक लियोन्तीफ प्रणाली का मॉडल कहा जाएगा।
जब अंतिम उपभोग अलग स्तंभ में प्रदर्शित नहीं किया जाता है तथा श्रम को गृह क्षेत्र के उत्पादन के रूप में दिखाते हैं तब उपर्युक्त मॉडल को स्थैतिक लियोन्तीफ प्रणाली वाला मॉडल कहा जाता है। इसकी एक तालिका नीचे दी जाती है:—
  • Life table -- जीवन सारणी
जीवन सारणी में गणितीय संबंधों द्वारा जीवन की भिन्न-भिन्न आयु पर मृत्यु फलन, उत्तरजीविता फलन और इनकी प्रायिकताओं तथा तात्कालिक मृत्यु अथवा मर्त्यतादर को दर्शाया जाता है। इसका दूसरा नाम मर्त्यता सारणी भी है।
जीवन सारणियाँ जन्म के समय प्रत्याशित आयु का अनुमान लगाने में बहुत महत्व रखती हैं और इस प्रकार इनका जनांकिकी संक्रमण की दृष्टि से विशेष अध्ययन किया जाता है।
जीवन सारणी का एक नमूना नीचे दिया जाता है। इसमें 7 स्तंभ दिए हए हैं:—
  • Linear combination -- रैखिक संयोजन
यदि एक ही क्रम वाले सदिश दिए हों और उन्हें क्रमशः एक-एक अदिश से गुणा करके जोड़ लिया जाये तो योग को रैखिक संयोजन कहते हैं।
उदाहरणार्थ यदि सदिश v_1,v_2,….v_n हों और अदिश λ_1,λ_2,….λ_n तो इनका रैखिक संयोजक होगा—
  • Linear dependence -- रैखिक आश्रितता
यदि सभी अदिश शून्य हों तो सदिश समूह 'रैखिक मुक्त' कहलाता है।
  • Linear model -- रैखिक मॉडल
रैखिक मॉडल से तात्पर्य एक ऐसे मॉडल से है जिसमें सभी समीकरणों के पद स्थिरांकों के रूप में या प्राचलों के रूप में दिए होते हैं और चरों के गुणनफल भी स्थिरांकों या प्राचलों के रूप में होते हैं।
ऐसा मॉडल तभी रैखिक चरों वाला कहलाता है जब इसका कोई भी चर पहले घात से अधिक न हो और न ही उसको किसी अन्य चर से गुणा या विभाजन करके दिखाया गया हो।
ऐसे मॉडल में जब कोई भी प्राचल किसी घात या गुणनफल या किसी दुसरे प्राचल के भागफल के रूप में नहीं दिखाया जाता तब इसे अज्ञात प्राचल वाला रैखिक मॉडल कहा जाता है।
कोई मॉडल चरों की दृष्टि से रैखिक हो सकता है परन्तु प्राचलों की दृष्टि से अरैखिक हो सकता है।
  • Linear programming -- रैखिक प्रोग्रामन
रैखिक प्रोग्रामन एक गणितीय विधि है जिसके द्वारा किसी रैखिक ध्येय फलन को व्यवरूद्ध समताओं को ध्यान में रखकर अधिकतम अथवा न्यूनतम किया जा सकता है।
व्यवरूद्ध समतायें तथा असमतायें रैखिक होती हैं तथा जिस किसी ध्येय फलन को अधिकतम या न्यूनतम करना होता है उसके लिए रैखिक असमताओं तथा समताओं की सहायता से पहले उनका व्यवहार्य क्षेत्र ज्ञात किया जाता है। इस व्यवहार्य क्षेत्र के कोण बिन्दुओं पर ध्येय (लक्ष्य) फलन के समान्तर रेखाएं खींचकर केन्द्र से अधिकतम लम्बवत दूरी वाली समान्तर रेखा के कोण बिन्दु को समस्या का हल माना जाता है।
रैखिक प्रोग्रमन समस्या में यह अभीगृहीत रहता है कि उसका हल एकल है। यदि ध्येय फलन को न्यूनतम करना होता है तो व्यवहार्य क्षेत्र के उस कोने वाले बिन्दु को हल मानते हैं जिस पर समान्तर रेखा सबसे नीचे रहती है।
  • Linear transformation -- रैखिक अंतरण
रैखिक अंतरण का आव्यूह सिद्धांत में बड़ा महत्व है।
  • Liquidity function -- तरलता फलन
तुल∘ दे∘ liquidity trap
  • Liquidity trap -- तरलता जाल
मुद्रा की माँग का वह गुण जिसके अनुसार द्रव्य की माँग तब तक निरंतर बढ़ती जाती है जबतक कि ब्याज की दर शून्य नहीं हो जाती।
इस दर पर पहुँच कर प्रत्येक व्यक्ति धन को तरल रूप में अपने पास रखने की इच्छा करता है।
इस संकल्पना का प्रयोग सबसे पहले कीन्स ने अपने मुद्रा सिद्धांत में किया था।
  • Live birth -- जीवित जन्म
गर्भस्थ शिशु का जीवित अवस्था में जन्म या जिंदा प्रसव।
जन्म के समय बच्चा जिन्दा भी हो सकता है और मरा हुआ भी। जब शिशु में जन्म के उपरांत जीवन के चिन्ह मौजूद होते हैं तो इसे जीवित जन्म कहा जाता है।
जन्म दर और प्रजनन संबंधी अध्ययनों में जीवित जन्मों संबंधी आँकड़ों का विशेष महत्व होता है।
  • Logarithmic function -- लघुगणकीय फलन
y=〖log〗_e x ; e^y=x ;y=f(log⁡〖x)〗 log⁡y=log⁡a+x log⁡〖b ; 〗 y=ab ; log⁡〖y=f(x)〗 log⁡y=log⁡a+b log⁡〖x ; 〗 log⁡〖y=f(log⁡x)〗सामान्यतया y=f(log ⁡x) को ही लघुगणकीय फलन कहते हैं।
  • Logistic curve -- वृद्धिघात वक्र
सर्वप्रथम इसका निरूपण 1835 में क्वेले (Quetelet) ने किया था। इसका दूसरा नाम 'पर्लरीड' (Pearl-Reed) वक्र भी है।
इस वक्र का समीकरण निम्नलिखित है : Y_c=k/〖1+e〗^(a+bk)
  • Loss function -- हानि फलन
इसे संकेत रूप में यों लिखा जा सकता है:—
  • Machine tabulations -- मशीन सारणीयन
मशीनों द्वारा सारणीयन की प्रक्रिया। कई बार यह आँकड़ा—कार्डों को पंच करके पूरी की जाती है।
जनसंख्या संबंधी आँकड़े कई बार ऐसे प्रलेखों से उद्घृत किये जाते हैं जो मुख्यतः इस प्रयोजन से तैयार नहीं किये होते। इसके लिए बुनियादी प्रलेखों पहले कूट संकेतों या संख्याओं का प्रयोग किया जाता है। फिर एक कूट योजना के अंतर्गत इनको कुछ शीर्षों के अंतर्गत कुँजी या बटन दबाकर वर्गीकृत किया जाता है।
मशीन द्वारा सारणियाँ तैयार करने की पद्धति निम्नलिखित हैं:—
उपर्युक्त कार्यों के लिए जोड़ करने वाली मशीनों, परिकलन मशीनों, गुणा करने वाली मशीनों, डेस्क मशीनों और कम्प्यूटरों आदि का बहुधा प्रयोग किया जाता है।
  • Magnificent dynamics -- राजसी गतिकी
संस्थापक अर्थशास्त्रीय सिद्धांतों की प्रणाली को विलियम ज∘ बाऊमल द्वारा गया नाम।
इस प्रणाली का नामकरण क्लासिकीय अर्थशास्त्रियों द्वारा अपनायी जाने वाली पद्धति के कारण किया गया है। इन अर्थशास्त्रियों ने व्यापक सामान्य नियमों के आधार पर सरल निष्कर्षों के रूप में अर्थशास्त्र के जो नियम प्रतिपादित किए हैं राजसी गतिकी के अंतर्गत उनका अध्ययन किया जाता है।
इसमें सम्मिलित विषयों का विश्लेषण सम्पूर्ण अर्थव्यवस्था के दीर्घ-कालीन विश्लेषण से भिन्न होता है।
राजसी गतिकी का प्रक्रम या अनुक्रमी विश्लेषण से अन्तर उनकी क्रिया पद्धतियों के कारण किया जाता है।
राजसी गतिकी में निगमन विश्लेषण विधियों द्वारा सामान्यीकृत आर्थिक निष्कर्षों को ज्ञात करते हैं जबकि प्रक्रम विश्लेषण में आगमन विधियों (गणितीय नियमों, पुनरूक्ति, सांखिकीय विश्लेषण) का उपयोग किया जाता है।
  • Maintained hypothesis -- सुस्थापित परिकल्पना
प्रारंभिक ज्ञान पर आधारित सांख्यिकी निष्कर्षों या कथनों का समूह या मॉडल सुस्थापित संकल्पना के नाम से जाना जाता है।
सुस्थापित संकल्पना विश्लेषण का पहला चरण है। इसे प्रायः सत्य माना जाता है तथा सांख्यिकीय निष्कर्ष निकालने की प्रक्रिया के दौरान इस पर किसी किस्म का संदेह नहीं व्यक्त किया जाता है।
विश्लेषण के दूसरे चरण में प्रेक्षणों के आधार पर प्रायिकता सिद्धांत की सहायता से इसके बारे में अन्य निष्कर्ष निकाले जाते हैं।
यदि प्रायिकता सिद्धांत का प्रयोग किया जाता है तो सुस्थापित परिकल्पना के साथ-साथ कम से कम यह स्पष्ट करना चाहिए कि अन्य प्रेक्षण यादृष्छिक विधि से चुने गए हैं।
  • Malthusian population theory -- माल्थस का जनसंख्या सिद्धांत
माल्थस का जनसंख्या सिद्धांत अपने जन्मदाता थॉमस माल्थस (1766-1834) द्वारा प्रतिपादित किया गया था।
इसके अनुसार “मानव जनसंख्या पर यदि कोई रोक न लगाई जाये तो वह गुणोत्तर श्रेणी में बढ़ती है। जबकि जीवन निर्वाह के साधन विशेषतः खाद्यान्न का उत्पादन समांतर श्रेणी के अनुसार बढ़ता है।”
अतः जनसंख्या की तुलना में जीवन निर्वाह के साधनों की कमी होती जाती है और उनपर जनसंख्या का दबाव बढ़ता जाता है।
जनसंख्या के इस दबाव को रोकने के लिए आवश्यकता इस बात की है कि जनसंख्या को निर्बाध गति से बढ़ने न दिया जाये और उसके लिए नियंत्रण के उपाय काम में लाये जायें।
यदि ऐसा नहीं किया जाता तो स्वतः प्राकृतिक शक्तियाँ— जैसे अकाल, बाढ़ या युद्धों के माध्यम से, जनसंख्या तथा खाद्यान्न में संतुलन स्थापित कर देतीं हैं।
  • Mapping -- प्रतिचित्रण
फलन का दूसरा नाम। कभी-कभी इसे रूपांतरण भी कहा जाता है।
प्रतिचित्रण में फलन की भाँति दो पदों का संबंध दिखाया जाता है। इसके लिए आलेखीय या बीजगणितीय विधियों का प्रयोग किया जाता है जैसे:
तुल∘ दे∘ function
  • Marginal population -- उपांत जनसंख्या
रोजगार या जीविका की तलाश में शहरों में या अधिक विकसित क्षेत्रों में जाने वाली जनसंख्या।
बहुत से क्षेत्रों में जनसंख्या की वृद्धि बड़ी तेजी से होती है किन्तु आर्थिक प्रगति अपेक्षाकृत कम होती है। आर्थिक दृष्टि से कमजोर वर्ग के लोग या ऐसी जनसंख्या उपांत जनसंख्या कहलाती है। जब इन लोगों को नगरों में काम मिल जाता है तो ये वहाँ रहते हैं और जब काम नहीं मिलता तो अपने ग्रामीण क्षेत्र में वापस आ जाते हैं।
किसी भी देश की उपांत जनसंख्या बहुत निर्धन होती है और भुखमरी के स्तर या गरीबी की सीमारेखा से नीचे रहने वाली मानी जाती है।
  • Marital status -- वैवाहिक स्थिति
ऐसी विवाहित स्त्रियाँ जिनके पति सामान्यतः उनके साथ रहते हैं वर्तमानतः विवाहित स्त्रियों (currently married women) की श्रेणी में आती हैं। प्रजनन विश्लेषण में संख्या अलग से गिनी जाती है।
  • Mark sensing -- चिन्ह बोधन
इस संक्रिया द्वारा पंचिंग और पड़ताल दोनों काम एक साथ किए जा सकते हैं।
  • Marriage age = (age at marriage) -- विवाह आयु
ऐसी विशिष्ट आयु का अन्तराल जिस पर विवाह करने के लिए अधिकांश लोग या जनसंख्या लालायित रहती है अथवा जिस आयु पर विवाह करने के लिए अधिकतर लोगों की भीड़ लगी रहती है।
यह आयु देश काल के अनुसार पुरूषों और स्त्रियों के लिए भिन्न-भिन्न हो सकती है।
इस संकल्पना का एक चर के रूप में प्रजनन दर व जनसंख्या वृद्धि पर बड़ा प्रभाव पड़ता है।
  • Marriage rate -- विवाह दर
  • Marriageable population -- विवाह योग्य जनसंख्या
विवाह योग्य जनसंख्या में ऐसे सभी व्यक्ति सम्मिलित होते हैं जो कानूनी तौर पर विवाह के लिए करार कर सकते हैं।
भारत में विवाह की न्यूनतम आयु लड़के और लड़की के लिए क्रमशः 18 व 15 वर्ष थी। अब इसे बढ़कर 21 व 18 करने का प्रस्ताव है।
इसके विपरीत गैर विवाह योग्य जनसंख्या वह होती है जो इस प्रकार का करार नहीं कर सकती।
विधुर, विधवाएं या तलाकशुदा व्यक्ति दुबारा विवाह कर सकते हैं किन्तु उनके विवाह का अंतर स्पष्ट करने के लिए (पुनर्विवाह) की संज्ञा दी जाती है।
  • Match rate -- सुमेल दर
  • Maternity and child welfare services -- प्रसूति और शिशु कल्याण सेवाएं
इनमें प्रसवपूर्व और प्रसवोपरांत दोनों प्रकार की सेवाएं सम्मिलित होती हैं। जनांकिकी अध्ययन के अंतर्गत लोक स्वास्थ्य संबंधी इन सेवाओं को कल्याण कार्यक्रमों का महत्वपूर्ण अंग माना जाता है।
  • Mathematical economics -- गणितीय अर्थशास्त्र
गणितीय चिन्हो एवं गणितीय विधियों के आधार पर आर्थिक समस्याओं का विश्लेषण गणितीय अर्थशास्त्र कहलाता है।
गणितीय विधियों के अन्तर्गत रेखागणित, बीजगणित, निर्देशांक ज्यामिति, गतिकी, कलन, अवकल-अंतर समीकरण, मैट्रिक्स, सदिश, सारणिक आदि का प्रयोग किया जाता है।
गणितीय अर्थशास्त्र अर्थमिति से इस अर्थ में भिन्न है कि गणितीय अर्थशास्त्र में प्राचल दिए होते हैं जबकि अर्थमिति में प्राचलों का आकलन किया जाता है।
  • Matrix -- आव्यूह
एक बीजगणितीय विधि जिसमें किसी क्षेत्र से संबद्ध pq अवयवों को एक विशेष व्यवस्था के अन्तर्गत लिखा जाता है।
आव्यूह के अंतर्गत इन अवयवों को p पंक्तियों और q स्तंभों के रूप में दिखाया जाता है। प्रत्येक अवयव की पहचान युग्म (i, j) द्वारा की जाती है जो क्रमशः उस अवयव की पंक्ति या स्तंभ संख्या का द्योतक होता है।
आव्यूह को आमतौर पर चिह्ह [A] द्वारा दिखाया जाता है अथवा संकेत (aij) के रूप में लिखा जाता है जिसमें aij अविष्टि (aij) का द्योतक होती है।
  • Maximum likelihood estimation -- अधिकतम संभावित आकलन
यह आकलन की एक ऐसी विधि है जिसमें प्राचलों के लिए ऐसे को चुना जाता है जिनसे प्रेक्षित प्रतिदर्श का जनन किया जा सके।
इस विधि द्वारा जनित आकलक अधिक संगत तथा उपगामी दृष्टि से प्रसामान्य और दक्ष होते हैं।
इस विधि में मॉडल के संभावित फलन को अधिकतम बनाने का यत्न किया जाता हैं।
फलन के लघुगणकों को अधिकतम बनाने से मॉडल का अधिकतम संभाविता आकलक ज्ञात किया जा सकता है।
  • Mean deviation -- माध्य विचलन
एक माध्य (समांतर माध्य, माध्यिका या बहुलक) से पदमानों के विचलन।
व्यवहार में यह विचलन प्रायः माध्यिका से लिया जाता है क्योंकि माध्यिका से पद-मानों के विचलन का योग न्यूनतम होता है। साथ ही विचलन का योग करते समय हम उसके धनात्मक या ऋणात्मक चिन्ह की उपेक्षा करके छोड़ देते हैं।
इस प्रकार
  • Mean population -- औसत जनसंख्या
यदि अवधि कलैंडर वर्ष की हो तो वर्ष के मध्य अर्थात 30 जून की जनसंख्या को औसत जनसंख्या माना जाएगा।
  • Measure of central tendency -- केन्द्रिय प्रवृत्ति का माप
यह संख्या उक्त बंटन की केंद्रीय प्रवृत्ति का माप होती है तथा उसके परिमाण को बताती है। इस माप के निम्नलिखित रूप होते है:—
  • Measure of economic welfare (MEW) -- आर्थिक कल्याण मापाँक
किसी देश की संपन्नता का सूचकाँक। इसमें सकल राष्ट्रीय उत्पाद (GNP) मुख्य तत्व होता है।
आर्थिक संवृद्धि के तीन निर्धारक होते हैं:—1. श्रम शक्ति, 2. तकनीकी व्यवस्था तथा 3. पूँजी का स्टॉक।
इन्हीं के आधार पर संवृद्धि की वार्षिक दर तथा दीर्घावधिक प्रवृत्तियाँ निकाली जाती हैं।
सकल राष्ट्रीय उत्पाद के सूचकांक में राष्ट्रीय खपत के कुछ आवश्यक तत्वों को छोड़ दिया जाता है जिनका आर्थिक कल्याण से घनिष्ठ संबंध है।
अतः नीति निर्देशक तत्व के रूप में अब यह स्वीकार किया जाने लगा है कि सकल राष्ट्रीय उत्पाद के स्थान पर आर्थिक कल्याण के मापाँक (MEW) को जिसमें प्रति व्यक्ति उपभोग के स्तर को शामिल किया जाता है, देश की समृद्धि का सूचक माना जाना चाहिए।
साधारणतः आर्थिक कल्याण का यह मापाँक सकल राष्ट्रीय उत्पाद (GNP) के (2/3) के बराबर होता है और इसका वास्तविक मापाँक कई बार पूँजी की खपत और समृद्धि की उपेक्षाओं के अनुसार अवधार्य मापाँक से बढ़ सकता है या कम हो सकता है। जब यह वर्धमान हों तब अर्थव्यवस्था भावी नियोजन के मार्ग पर अग्रसर मानी जानी जाती है और उसमें चालू उपभोग का स्तर ऊँचा माना जाता है। साथ ही यह समझा जाता है कि लोग भविष्य की तुलना में वर्तमान उपभोग को तरजीह देना चाहते हैं। इस मापाँक को निवल आर्थिक कल्याण (NEW) की संज्ञा भी दी जाती है।
  • Median -- माध्यिका
माध्यिका एक केन्द्रीय मान होता है।
यह परिमाण के आरोही या अवरोही क्रम में दी गई सारणी के केन्द्रीय पद का माप है।
माध्यिका, मध्य-पद का मान है तथा श्रेणी को दो समान भागों में विभाजित करता है अर्थात् माध्यिका उस पद का माप है जिसके पूर्ववर्ती भी उतने ही पद हैं जितने यह उसके परवर्ती या बाद में हैं। केन्द्रीय पद स्वयं माध्यिका नहीं है, बल्कि उसका परिणाम माध्यिका कहलाता है।
कुल पदों में से आधे पद उससे बड़े तथा आधे उससे छोटे होते हैं।
  • Median expectation of life -- माध्यिका जीवन प्रत्याशा
ऐसी आयु जिसमें 100,000 सहगणों में से उसके आधे अर्थात् 50,000 सहगण ही जीवित बचते हैं।
यह एक ऐसी आयु होती है जिस पर मनुष्य के जीने और मरने की बराबर-बराबर संभावना होती है।
जीवन की संभावना की यह गणना प्रायः जन्मकाल से प्रारंभ की जाती है।
  • Method of least squares -- न्यूनतम वर्ग विधि
इस विधि के अनुसार एक रेखा तभी श्रेष्ठतम आसंजन की रेखा होगी जब इस रेखा से बिन्दुओ के विचलनों की उर्ध्वाधर दूरियों के वर्गों का जोड़ किसी अन्य रेखा से उन बिन्दुओं के विचलनों के वर्गों के जोड़ की अपेक्षा कम होगा। अर्थात् जब उस रेखा से बिन्दुओ के उर्ध्वाधर विचलनों (दूरियों ) के वर्गों का योग न्यूनतम होगा।
  • Metropolitan area -- महानगर क्षेत्र
महानगर ऐसे बड़े-बड़े शहर हैं जिनमें आसपास के सभी प्रदेशों से लोग आकर नौकरी या कारोबार के लिए बस जाते हैं और जहाँ अंतर्राष्ट्रीय आवागमन होता रहता है।
जनसंख्या की दृष्टि से एक महानगर की आबादी 10 लाख से ऊपर होनी चाहिए।
महानगरों के क्षेत्र के अन्तर्गत नियमित क्षेत्र तथा छोटी-छोटी बस्तियाँ व उपनगर होते हैं जहाँ से लोग केन्द्रीय स्थानों में पहुँचकर जीविकोपार्जन और कारोबार करते हैं।
शहरी भूमि अधिकतम सीमा अधिनियम 1976 के अनुसार कलकत्ता, मुम्बई, दिल्ली और मद्रास इन चार शहरों को 'क' श्रेणी के महानगर क्षेत्र माना गया है।
  • Migration -- प्रवसन
प्रवसन किसी व्यक्ति या समूह का एक भौगोलिक इकाई से दूसरी भौगोलिक इकाई में जाकर बसने का प्रक्रम है।
निवास स्थान का यह परिवर्तन स्थायी भी हो सकता है और अस्थायी भी।
जब प्रवसन एक देश की सीमा में होता है, तो उसे अन्तर्राष्ट्रीय प्रवसन कहते हैं और जब यह देश के भीतर हो, तो उसे आंतरिक प्रवसन कहते हैं।
  • Migration adjustment factor -- प्रवसन समायोजन गुणांक
यह अनुपात प्रवास करने वाले लोगों की दर का उपयोग करके निकाला जाता है।
  • Migration boundaries -- प्रवसन सीमाएं
ऐसे परिसीमत क्षेत्र जिन के बीच दो समुदायों या जनसंख्या वर्गों अथवा समूहों का प्रवसन होता है।
आवश्यक नहीं ये सीमाएं देश की भीतरी या बाहरी कानूनी सीमाओं के अनुरूप हों।
इन क्षेत्रों की व्याप्ति प्रवसन के परिमाण के अनुसार परिभाषित की जाती है। ऐसा परिसीमन स्थानीय इकाईयों से भिन्न भी हो सकता है।
  • Migration interval -- प्रवसन अन्तराल
किसी अवधि में एक स्थान से दूसरे स्थान पर आने-जाने वाले लोगों की संख्या।
प्रवसन एक ऐसी घटना है जो किसी निशिचत समय पर घटित होती है। इसलिए जब हम प्रवसन का उल्लेख करते हैं तो उसका कालनिर्धारण भी आवश्यक हो जाता है जैसे 10 वर्ष या 15 वर्ष। यह अवधि जितनी बड़ी होगी, प्रवसन करने वाले लोगों की औसत संख्या उतनी ही कम होगी।
प्रवसन की इन अवधियों को प्रवसन अंतराल कहा जाता है।
  • Migration rate -- प्रवसन दर
प्रवसन की आपेक्षिक बारंबारता।
बाहर जाने वाले लोगों की संख्या (0)
I-O
I+O
  • Minimax theorem -- अल्पमहिष्ठ सिद्धांत
तुल∘ दे∘ Game theory
  • Minor -- उपसारणिक
ऐसा आव्यूह जो A₁₁ द्वारा व्यक्त किया जाता है और जिसमें सभी (n - i)! पूर्णांकों के क्रमचयों का संकलन किया जाता है।
इसमें पंक्ति और स्तंभ दोनों का अनुलग्न 1,1 होता है और वे सभी प्राकृतिक क्रम से होते हैं। उपसारणिक का चिन्ह (β, γ,…..μ) द्वारा दर्शाया जाता है।
तुल दे∘ determinant
  • Mismatch -- बेमेल
  • Mobile population -- चल जनसंख्या
ऐसी जनसंख्या जिसने पिछले दस या पाँच वर्षों में या जनगणना से एक वर्ष पूर्व भिन्न-भिन्न नगरों या स्थानों पर आवास किया हो।
इनमें दो तरह के लोग आते हैं। एक वे जो एक ही जिले या राज्य के अन्दर रहे हों और दुसरे वे जो पड़ोस के अन्य राज्यों से आये हों।
उक्त प्रकार की नियतकालिक गतिशीलता के अतिरिक्त जीवन के प्रारंभ से या पिछले निवास स्थान से भी गतिशीलता मापी जा सकती है। इस प्रकार की गतिशीलता परिवर्तनशील कालावधि की चल जनसंख्या का आकल होती है।
  • Mode -- बहुलक
बहुलक किसी श्रेणी के उस चर का मान होता है जिसकी बारंबारता अधिकतम हो। अर्थात् यह वह पद मान है जो श्रेणी में सबसे अधिक बार घटित होता है।
श्रेणी के दूसरे सब चर-मान बहुलक की तुलना में कम बार घटित होते हैं।
बहुलक सामान्य तथा व्यापक प्रयोग वाला एक प्रतिरूपी मान तथा माध्य है। निरीक्षण मात्र से इसका स्थान निर्धारण किया जा सकता है।
बहुलक चरम विचरणों द्वारा प्रभावित नहीं होता है। यह अमात्रात्मक आँकड़ों के लिए भी उपयुक्त है।
  • Model -- मॉडल
तुल∘ दे∘ structural equation
  • Modulus -- मापांक
  • Moment -- आघूर्ण
माध्य या अन्य किसी स्थिरांक के सापेक्ष किसी चर के विचलनों के nवें घात के माध्य को उसका nवाँ आघूर्ण कहते हैं। सूत्र रूप में
माध्य के सापेक्ष द्वितीय आघूर्ण प्रसरण कहलाता है।
आघूर्ण किन्ही दो चरों के विचलनों के अनुप्रस्थ गुणनफल का जोड़ होता है। प्रमुख आघूर्ण समीकरण निम्नलिखित हैं:—
यहाँ घात 2 होने के कारण उक्त आघूर्ण द्विधाती आघूर्ण कहलाते हैं। आघूर्ण प्राचलों से भिन्न होते हैं। ये चरों के परोक्ष मूल्यों से सीधे कलित किए जाते हैं।
  • Monotonic function -- एक दिष्ट फलन
ऐसा फलन जिसका व्युत्पन्न f'(x) हमेशा x से सभी मानो के लिए एक ही जैसा बीजीय चिन्ह (शून्येतर) रखता है।
ऐसे फलन का ढाल सदा ऊपर की ओर होता या फिर सदा नीचे की ओर होता है।
तुल∘ दे∘ derivative function
  • Monte Carlo studies -- मांटे कार्लो अध्ययन
ऐसी सांख्यिकीय अध्ययन विधि जिसमें प्रस्तावित बंटनों से संबंधित विभिन्न प्राचलों के मानों की कल्पना की जाती है और उनसे अनेक प्रतिदर्श प्राप्त किए जाते हैं।
फिर इन प्रतिदर्शों पर विभिन्न आकलन विधियों का प्रयोग करके इन से प्राप्त आकलनों की सही प्राचलों से तुलना की जाती है।
इस विधि से विभिन्न आकलन विधियों की दक्षता का अध्ययन किया जाता है।
  • Morbidity -- रुग्णता
जनांकिकी और जन स्वास्थ्य संबंधी अध्ययनों के रुग्णता संबंधी आँकड़े विशेष महत्व रखते हैं।
  • Mortality -- मर्त्यता
मर्त्यता अर्थात् मृत्यु एक ऐसा घटक है जिससे जनसंख्या में कमी और उसकी संरचना में परिवर्तन होता है।
मर्त्यता को अशोधित मृत्यु दर, आय विशिष्ट मृत्यु दर अथवा मानंकित मृत्यु दर के रूप में मापा जाता है।
तुल∘ दे∘ death rate
  • Mortality rate -- मर्त्यता दर
प्रति हजार जनसंख्या के संदर्भ में किसी वर्ष में हुई कुल मृत्यओं व मध्यवर्ष की जनसंख्या का अनुपात।
कुल मृत्युएं
तुल∘ दे∘ death rate, life table
  • Multicollinearity -- बहुसंरेखता
इस स्थिति का यद्यपि पूर्वानुमान पर कोई प्रभाव नहीं पड़ता तथापि इस प्रभाव के अधीन प्राचलों के आकलों का प्रसरण इतना अधिक होता है कि उनपर विश्वास नहीं किया जा सकता।
अर्थमिति में रैखिक संबंधों की यह एक मूल समस्या है।
  • Multiple axis chart -- बहु अक्षीय चार्ट
इन वक्रों को एक दूसरे के काफी निकट रखा जाता है लेकिन इनमें से कोई एक दूसरे को नहीं काटता। उपभोक्ता मूल्य सूचकांक संबंधी मासिक आँकड़ों के अध्ययन के लिए इस विधि का बहुधा प्रयोग किया जाता है। ऐसे एक चार्ट का नमूना नीचे दिया जाता है: (DIAGRAM)
  • Multiple births -- बहुजन्म
जनसांख्यिकी में ऐसी घटनाओं की अलग से गणना की जाती है क्योंकि यदि यह न की जाये तो कुल जन्म लेने वाले शिशुओं (जीवित अथवा मृत, दोनों ) और प्रसवों की संख्या में अंतर का समाधान नहीं हो पायेगा।
  • Multiple correlation -- बहु सहसंबंध
बहुसहसंबंध गुणांक निकालने के लिए निम्नलिखित सूत्र का प्रयोग किया जाता है:—
  • Multiple valued function -- बहुमान फलन
यदि y=f(x) कोई फलन हो तथा x का एक मान रखने पर y के एक से अधिक मान प्राप्त हों तो हम y को x का बहुमान फलन कहेंगे।
यदि y के दो या तीन मान प्राप्त हों तो हम द्वि मान फलन या त्रिमान फलन भी कह सकते हैं उदाहरणार्थ:—
y^2=x+5 में y, x का द्विमान फलन है तथा y^3=x^2+4x+10 में y, x का त्रिमान फलन है। y^n=χ^p+χ^(p-2)+χ^(p-5)+ ……..+c में x तथा p कोई भी संख्याएं, परन्तु n>1 हो तो y, x का बहुमान फलन होता है।
  • Multistage sampling -- बहुचरणी प्रतिचयन
ऐसा प्रतिचयन जिसमें पहले समष्टि को एक चरण की इकाईयों में बाँटा जाता है फिर इनमें से यादृच्छिक प्रतिदर्श चुना जाता है और इस यादृच्छिक प्रतिदर्श के सदस्यों को द्वितीय चरण की इकाईयों में बाँट दिया जाता है।
अगले चरण में इनमें से कुछ इकाइयों को यादृच्छया चुन कर फिर एक प्रतिदर्श की रचना की जाती है।
इसी प्रकार तृतीय व चतुर्थ चरणों में भी वरण किया जा सकता है।
  • Natality -- जन्मदर
  • Nationals -- राष्ट्रिक
राष्ट्रिक का अर्थ है किसी देश के नागरिक या देशवासी।
जनांकिकी अध्ययनों में किसी देश में रहने वाली जनसंख्या को उनकी राष्ट्रीयता के अनुसार वर्गीकृत करने की प्रथा है। इसमें सबसे पहले देशवासी आते हैं।
इसके पश्चात दूसरे देशवासियों या विदेशियों की गणना की जाती है। जिन लोगों का किसी राज्य से संबंध नहीं होता उन्हें राष्ट्रहीन लोगों के वर्ग में रखा जाता है। एक से अधिक देशों से संबंधित लोगों की बहुदेशी नागरिक माना जाता है।
विदेशी लोग किसी देश में लगातार निर्धारित अवधि तक रहने के बाद वहीं के नागरिक अधिकारों को प्राप्त करके वहाँ की राष्ट्रीयता अपना सकते हैं।
  • Necessary and sufficient condition -- आवश्यक और पर्याप्त प्रतिबंध
यह एक गणितीय संकल्पना अथवा तर्क की विधि है।
जब हम यह कहते हैं कि किसी साध्य अ में ब निहित है तब इसका यह अर्थ होता है कि जब अ सत्य होगा तब ब भी सत्य होगा। परन्तु इससे यह अर्थ ध्वनित नहीं होता कि जब अ असत्य होगा, तो ब का क्या होगा।
दूसरे शब्दों में जब हम यह कह सकते हैं कि अ में ब निहित है, तो इसका यह अर्थ होता है कि अ, ब के लिए पर्याप्त प्रतिबंध है अर्थात् अ के बिना ब का कोई अस्तित्व नहीं या ब के लिए अ आवश्यक प्रतिबंध है।
इसी प्रकार जब हम यह कहते हैं कि ग, घ के लिए आवश्यक और पर्याप्त प्रतिबंध है तो इसका तात्पर्य यह होता है कि घ में ग निहित है (आवश्यक भाग) और ग में घ निहित है (पर्याप्त भाग)।
इस संकल्पना के अनुसार जिन दो कथनों की तुलना की जाती है उन्हें हम तुल्य भी मान सकते हैं।
  • Negative feed back -- ऋणात्मक प्रतिपुष्टि
ऐसे प्रभाव जिनके अधीन कोई आर्थिक प्रणाली संतुलन की दिशा की ओर मुड़ती है ऋणात्मक प्रतिपुष्टि कहलाते हैं।
जब किसी बाजार में पूर्ति की तुलना में माँग बढ़ जाती है तब वस्तु की कीमत भी बढ़ जाती है और इसके विपरीत जब पूर्ति माँग से बढ़ जाती है तब इसकी कीमत कम होने लगती है।
इस प्रभाव के अधीन हम यह देखते हैं कि कीमतों में कितनी मात्रा या किस सीमा तक संतुलन की दिशा की और जाने की प्रवृत्ति है।
  • Neo-Malthusianism -- नवमाल्थसवाद
यह माल्थस के जनसंख्या सिद्धांत के प्रसंग में आबादी की वृद्धि पर रोक लगाने के लिए केवल प्राकृतिक उपायों पर बल न देकर उसका नवीन एवं परिवर्धित आधुनिक स्वरूप है।
  • Net migration -- शुद्ध प्रवसन
किसी क्षेत्र में आने वाले और वहाँ से बाहर जाने वाले लोगों का अन्तर।
यदि बाहर जाने वाले लोगों की संख्या अधिक हो तो इसे ऋणात्मक माना जाता है।
तुल∘ दे∘ migration
  • Net reproduction rate -- शुद्ध प्रजनन दर
एक स्त्री जन्म-सहगण से औसतन पैदा होने वाली लड़कियों की संख्या।
इस दर का परिकलन करते समय प्रचलित मृत्यु दर, जनन दर विवाह दर तथा विवाह भंग दरों को स्थिर या अपरिवर्तित माना जाता है।
तुल∘ दे∘ reproduction rate
  • Non-linear correlation -- अरैखिक सहसंबंध
इस संकल्पना की सहायता से हम किसी समष्टि के सहसंबंध का आकलन करते हैं। दो चरों के बीच का संबंध जब सरल रेखा से प्रदर्शित नहीं किया जा सकता तो हमें उनके बीच अरैखिक सहसंबंध की संकल्पना की आवश्यकता पड़ती है।
  • Non-linear model -- अरैखिक मॉडल
ऐसा मॉडल जिसमें समस्या के व्यवहार्य संबंध रैखिक प्रकार के न हों।
यह मॉडल लघुगणक फलन, घात फलन, द्विघात फलन इत्यादि प्रकार का भी हो सकता है।
  • Non-linearity -- अरैखिकता
अधिकांश अरैखिक संबंधों को जो बहुपदीय नहीं होते लघुगणक प्रणाली के माध्यम से रैखिक संबंधों में रूपांतरित किया जा सकता है उदाहरणार्थ कॉब-डगलस का अरैखिक उत्पादन फलन-- X=〖AL〗^∝ K^β U
इसे लघुगणकीय प्रणाली से रैखिक रूप में भी लिखा जा सकता है अर्थातः
  • Non-match -- अनमेल
  • Nonsingularity -- व्युत्क्रमणीयता
जब किसी वर्ग आव्यूह का प्रतिलोम आव्यूह होता है तो उसके इस गुण को व्युत्क्रमणीयता कहा जाता है।
जब कोई प्रतिलोम नहीं होता तब उसे अव्युत्क्रमणीय (Singular) कहा जाता है।
तुल∘ दे∘ singular matrix
  • Normal distribution -- प्रसामान्य बंटन
कोई यादृच्छिक चर x तब प्रसामान्यतः बंटित कहा जाता है जब उसका प्रायिकता घनत्व फलन निम्नलिखित हो:--
प्रसामान्य बंटन वस्तुतः द्विपद बंटन का ही सीमांत रूप है। जब q-p का अन्तर बहुत कम हो अर्थात् q-p लगभग शून्य हो व n अभिप्रयोगों की संख्या बहुत अधिक हो (अर्थात् n>-∞), तो N_(〖(q-p)〗^n ) द्विपद बंटन का सीमांत रूप प्रसामान्य बंटन कहलाता है तथा y(x)=1/(σ√2π) 〖e̅-(x-m)〗^2/〖2σ〗^2 द्वारा निश्चित किया जाता है । उक्त समीकरण में m तथा σ क्रमशः माध्य व मानक विचलन को प्रगट करते है।
प्रसामान्य बंटन का आलेखी निरूपण प्रसामान्य वक्र कहलाता है तथा यह एक मसृण संतत पूर्ण सममित घण्टाकार वक्र होता है। इसका चित्र नीचे दिया जाता है: (DIAGRAM)
एक प्रसामान्य बंटन में माध्य ± σ वे सीमाएं हैं, जिनके वास्तविक माध्य के विचरण होने की संभावना है और इनसे बाहर जाने की प्रायिकता बहुत ही कम (0.0026) है।
  • Nubile, marriage rate -- विवाह्य दर
ऐसे लोग जो किसी दिए वर्ष में विवाह के घेरे में बंध सकते हैं विवाह जनसंख्या के अन्तर्गत आते हैं। यह विवाह योग्य लोगों की औसत जनसंख्या होती है। इस वर्ग में आने वाले लोगों की न्यूनतम आयु 15 वर्ष मानी जाती है। इस दर को सूत्र रूप में यों लिखा जाता है:—
वर्ष के दौरान विवाहों की संख्या
तुल∘ दे∘ marriage rate
  • Nuisance variable -- कंटक चर
ऐसे चर जो एक कंटक के समान किसी मॉडल में चुभन या अटपटापन पैदा करते है तथा विशेष महत्व रखते हैं।
प्राचलों का आकलन करते समय इनको नजर-अंदाज नहीं किया जा सकता।
जैसे खाद्य सामग्री के उपभोग के अध्ययन में सर्वाधिक महत्वपूर्ण चर “परिवार का आकार” माना जाएगा।
  • Null hypothesis -- निराकरणीय परिकल्पना
जैसे हम यह परिकल्पना कर सकते हैं कि प्रतिदर्श माध्य तथा समष्टि माध्य में सार्थक अंतर नहीं है। या प्रतिदर्श माध्य का समष्टि माध्य से विचलन सार्थक रूप में शून्य से भिन्न नहीं है, आदि।
  • Nuptiality -- वैवाहिकता
वैवाहिकता का तात्पर्य किसी जनसंख्या में विवाह की दर है।
विवाह की आयु का जनसंख्या पर विशेष प्रभाव पड़ता है। प्रजनन दर अथवा परिवार नियोजन के संदर्भ में विवाह दर का (जिसमें विवाह भंग अथवा तलाक और पृथक्करण, पुनर्विवाह भी शामिल है) विशेष महत्व होता है।
विवाह दर आयु और लिंग विशिष्टता के अनुसार अलग-अलग निकाली जाती है और जनांकिकी अध्ययन के लिए इनकी अलग सारणियाँ भी बनाई जाती हैं।
तुल∘ दे∘ fertility rate
  • Occupational mobility -- व्यावसायिक गतिशीलता
व्यक्तियों द्वारा अपनी नौकरी या व्यवसाय बदलने की प्रवृत्ति व अवसर अर्थात एक पेशे को छोड़कर दूसरे पेशे में जाना।
इसे श्रम-शक्ति का प्रत्यावर्त भी कहा जाता है। श्रम-शक्ति विश्लेषण व बेरोजगारी का अध्ययन करने के लिए इस संकल्पना का बहुधा प्रयोग किया जाता है।
श्रमिक गतिशीलता औद्योगिक व सामाजिक दोनों प्रकार के परिवर्तनों के कारण हो सकती है। यह व्यवसायों और उद्योग के भीतर व बाहर दोनों प्रकार से हो सकती है।
  • Occupational structure -- व्यावसायिक संरचना
इसके अंतर्गत हम उन बातों का अध्ययन करते हैं जिनके कारण संपूर्ण व्यवासायिक ढाँचा निर्मित होता है।
  • One way match -- एक तरफा सुमेल
  • Open population -- खुली जनसंख्या
खुली जनसंख्या वह है जिसमें प्रवसन के कारण पर्याप्त प्रभाव पड़ता हो।
इसके विपरीत वह जनसंख्या जिसमें प्रवसन का प्रभाव नगण्य हो, बंद जनसंख्या कहलाती है।
यदि प्रवसन इस प्रकार का हो कि आप्रवासन और उत्प्रवासन करने वालों की संख्या समान होने से कुल संख्या पर प्रभाव शून्य हो तब भी जनसंख्या खुली हो सकती है क्योंकि प्रवसन के फलस्वरूप जनसंख्या का संरचना में फेर-बदल हो सकता है।
  • Opinion leaders -- अभिमत नेता
ये लोग इन कार्यक्रमों के उद्देश्यों और इनसे होने वाले लाभों व इनके अन्तर्गत मिलने वाल सुविधाओं के बारे में अपने क्षेत्र के लोगों में जाकर प्रचार-प्रसार करने में बड़ी सहायता प्रदान करते हैं व अन्य लोगों को प्रेरित करते हैं।
  • Optimal growth model -- इष्टतम संवृद्धि मॉडल
  • Optimization problem -- इष्टतमीकरण समस्या
इष्टतमीकरण की समस्या वस्तुओं या प्रक्रमों के चयन या चुनाव से संबंध रखती है जिसमें से प्रत्येक के कई विकल्प होते हैं।
इस समस्या के अन्तर्गत यह देखा जाता है कि इन विकल्पों में से कौन सा किसी निकष या कसौटी के अनुसार उद्देश्य प्राप्ति के लिए अधिक वांछनीय होगा।
इष्टतमीकरण का तात्पर्य अधिकतमीकरण न होकर सर्वोत्तम उपलब्ध विकल्प होता है।
  • Optimum factor proportion -- इष्टतम कारक अनुपात
इस पद का तात्पर्य यह है कि उत्पादन के भिन्न-भिन्न कारकों का किस अनुपात में संयोजन किया जाए कि उनकी लागत न्यूनतम आये और उनसे अधिकतम उत्पादन हो सके।
इस विधि में हम उत्पादन के उस स्तर के लिए कारकों के संयोजन का पता लगाते हैं जिनसे कुल लागता न्यूतम हो।
इसे हम न्यूनतम बजट रेखा वाला संयोजन भी कहते हैं और यह किसी विशेष समोत्पाद रेखा को स्पर्श करने वाला बिन्दु होता है।
इसे ज्ञात करने की एक दूसरी विधि यह भी है कि हम व्यय के स्तर को दिया हुआ मानकर कारकों के संयोजन का ऐसा अनुपात ढूँढे, जिसमें अधिकतम उत्पादन हो सके।
इष्टतम संयोजन कारक संक्रिया के बड़े या छोटे आकार पर निर्भर नहीं करता बल्कि कारकों के सापेक्ष मूल्यों पर अधिक निर्भर करता है।
  • Optimum population -- इष्टतम जनसंख्या
इष्टतम जनसंख्या एक आर्थिक संकल्पना है। इसका यह तात्पर्य है कि किसी भी क्षेत्र में जनसंख्या वहाँ के प्राकृतिक और आर्थिक संसाधनों के अनुकूल होनी चाहिए और यह संख्या ऐसी होनी चाहिए कि इन संसाधनों का सर्वोत्तम आर्थिक उपयोग किया जा सके। दूसरे शब्दों में रहन-सहन का स्तर ऊँचा हो या प्रति व्यक्ति वास्तविक आय अधिकतम हो।
इष्टतम जनसंख्या एक बदलती हुई संख्या होती है और यह तकनीकी विकास और विज्ञान की प्रगति के साथ भिन्न-भिन्न समयों में अलग-अलग हो सकती है।
  • Orthogonal matrix -- लांबिक आव्यूह
यदि A एक m x n कोटि का आव्यूह हो और m≥n हो तब यदि इसके भीतर एक ऐसा लांबिक आव्यूह B बन सकता हो, जिसकी कोटि m x n के बराबर हो और यदि BA=( ) हो तथा T ऊपरी त्रिकोण का आव्यूह हो और इसकी कोटि n और o तब हम कह सकते हैं कि इसमें (m-n)×n कोटि का एक ऐसा आव्यूह है जिसमें केवल शून्य होंगे। इस प्रकार के आव्यूह को लांबिक आव्यूह कहा जाता है।
  • Orthogonal transformation -- लांबिक अंतरण
किसी रैखिक अंतरण Y=Cx को तब लांबिक कहा जाता है, जब Cc=1 तथा /c/² =1 हो।
इस प्रकार का अंतरण ध्युत्क्रमणीय होता है। इसका तात्पर्य यह है कि C के पंक्ति सदिश एक दूसरे से लांबिक हैं और उनकी लंबाई 1 है अथवा वे R^n समष्टि की o, n, b, समष्टि के बराबर हैं।
  • Over determined system -- अतिनिर्धार्य निकाय
यदि किसी निकाय में चरों के बीच स्वतंत्र संबंधों की संख्या चरों की संख्या से अधिक हो तो यह निकाय अति निर्धार्य निकाय कहलाता है। जैसे वेलरस के सामान्य संतुलन विश्लेषण में बाजारों के संतुलन के लिए प्रत्येक माँग पूर्ति के बराबर होनी चाहिए। पर यह सिद्ध किया जा सकता है कि यदि n--1 बाजार संतुलन में है, तो nवाँ बाजार स्वतः संतुलन में होगा। इस प्रकार nवें बाजार की माँग, पूर्ति संतुलन समीकरण निकाय को अतिनिर्धार्य बना देती है। इसमें चरों और संबंधों की संख्या को बराबर रखा जाता है ताकि अद्वितीय हल (यदि कोई हो तो) प्राप्त हो सके। सामान्यतः अतिनिर्धार्य निकाय में बहुत से हलों की संभावना प्रबल होती है।
  • Over population -- जन अतिरेक⁄अति जनसंख्या
जब किसी देश या क्षेत्र में कुछ जनसंख्या के कम होने या कुछ लोगों के चले जाने से प्रतिव्यक्ति आय उत्पादिता या रहन-सहन का स्तर बढ़ जाता है या उसके बढ़ने की संभावना होती है तब हम यह कहते हैं कि इस देश या क्षेत्र में जन अतिरेक या जनसंख्या का आधिक्य है।
ऐसी दशा में जनसंख्या इष्टतम जनसंख्या से अधिक होती है।
जन अतिरेक और जन अल्पता का संबंध किसी देश की कुल आबादी और उसके साधनों के बीच अनुपात का द्योतक होता है। यह संकल्पना देश के विकास के स्तर तथा वर्तमान प्रौद्योगिकी की स्थितियों के अनुसार भिन्न-भिन्न समयों में बदल भी सकती है।
  • Parameter -- प्राचल
ऐसे पद जो किसी समीकरण में स्थिर होते हैं। इनके बदलने पर फलन के वक्र की स्थिति बदल जाती है।
सांख्यिकी में प्राचलों से हमारा तात्पर्य समष्टि में बंटन के गुणाकों से होता है।
  • Pareto curve -- परेटो वक्र
आय वितरण का अध्ययन एक विशेष प्रकार के वितरण वक्र के द्वारा किया जाता है जिसका प्रतिपादन इटली के अर्थशास्त्री परेटो ने सबसे पहले किया था।
परेटो वक्र का निर्माण संचयी बारंबातरता बंटन के आधार पर किया जाता है। इसमें इस बात का ध्यान रखा जाता है कि आय श्रेणी में लिए गए अंकों में से कितने लोगों की आय एक निश्चित रकम से कम नही थी। इसके आधार पर क्षैतिज अक्ष पर आय को लिया जाता है और उदग्र अक्ष पर उन व्यक्तियों की संख्या का उल्लेख किया जाता है जिनकी आय निर्धारित रकम से कम होती है|
यह वक्र एक अतिपरिवलय के आकार का होता है। इसका सूत्र निम्नलिखित है--
  • Partial correlation -- आंशिक सहसंबंध
दो विचरों का ऐसा सहसंबंध जिसमें अन्य विचरों का प्रभाव निरस्त कर दिया गया हो आंशिक सहसंबंध कहलाता है।
जब हम दो से अधिक विचरों का अध्ययन करते हैं तो एक विचर से दूसरे विचर का एकमात्र संबंध ज्ञात करने के लिए हमें अन्य विचरों के प्रभावों को निरस्त करना पड़ता है या उनको स्थिर तथा अपरिवर्तित मानना पड़ता है।
इस प्रवृत्ति के अन्तर्गत स्वतंत्र चर तथा आश्रित चर में संबंध स्थिर या अपरिवर्तनशील रहता है। इस प्रकार तीन विचरों की स्थिति में आंशिक सहसंबंध यों होगा:--
  • Pay-off matrix -- भुगतान आव्यूह
किसी खेल में प्रत्येक खिलाड़ी के सामने चालों संबंधी निर्णय के कई विकल्प होते हैं। प्रत्येक खिलाड़ी के विकल्प के अन्य खिलाड़ियों के विकल्पों से भिन्न-भिन्न विकल्प समुच्चय बनते हैं। प्रत्येक ऐसे विकल्प समुच्चय के लिए किसी एक खिलाड़ी को जो भुगतान मिलता है उसके आव्यूह को भुगतान आव्यूह कहा जाता है।
यदि x_1 और x_2 दो खिलाड़ी हों जिनके क्रमशः 1, 2,........n तथा 1, 2,.... m विकल्प हों, तो P_1 का भुगतान आव्यूह निम्नलिखित होगा:
  • Pearl's formula -- पर्ल फार्मूला
यह फार्मूला, वास्तविक परिस्थितियों में जिनमें कि भूल-चूक करने वाले साधारण मनुष्यों द्वारा कोई प्रयोग किया जाता है जैसे, सामान्य गर्भ निरोधकों के प्रसंग में निरोध, लूप, गर्भरोधी गोलियों आदि के प्रभाव को दिखाता है।
इस फार्मूले के अंतर्गत यह पता लगाने का प्रयत्न किया जाता है कि प्रति सौ वर्ष के पीछे किसी उपाय के प्रयोग करने पर कितनी बार उसमें विफलता मिली अर्थात् उपर्युक्त परिवार नियोजन के प्रसंग में कितनी बार ऐसे उपाय के बाद भी अकस्मात गर्भधान हुआ।
यह फर्मूला इस प्रकार लिखा जा सकता है:—
  • Period -- आवर्तकाल
किसी फलन की वह अवधि जिसके बाद इसका व्यवहार दुबारा पहले जैसा हो जाता है फलन का आवर्तकाल कहलाता है।
ऐसे फलन जो एक निश्चित आवर्तकाल के बाद अपनी प्रवृति को दोहराते हैं उन्हे दोलनी फलन कहा जाता है।
  • Period analysis -- आवर्तकालिक विश्लेषण
आर्थिक गतिकी का असतत काल के संदर्भ में अध्ययन आवर्तकालिक विश्लेषण कहलाता है।
आवर्तकाल का तात्पर्य वह अवधि है जो किसी चर y का मान बदलने में लगती है।
इस प्रकार के विश्लेषण में काल को समय बिंदु (point of time) न मानकर समय अंतराल (period of time) माना जाता है। यथा t-1, t-2 आदि।
  • Periodic data -- आवधिक आँकड़े
आवधिक आँकड़ों को आर्थिक इकाइयों, जैसे बिक्री, उत्पादन, कीमतों, मजदूरी या वेतन आदि के रूप में प्रति सप्ताह, मास अथवा वर्ष के संदर्भ में दिखाया जाता है।
इस प्रकार के आँकड़ों के आधार पर काल श्रेणियों के वक्र तैयार किए जाते हैं तथा सारणियाँ बनाई जाती हैं।
  • Phase -- प्रावस्था
किसी आवर्ती फलन का मूलबिन्दु पर शिखर उसकी प्रावस्था कहलाता है।
प्रावस्था का माप सामान्यतया कोण के रूप में दर्शाया जाता है यथा:--
इसमें ϕ को प्रावस्था कहते हैं।
  • Pictograph -- चित्रालेख
एक ऐसी विधि जिसके द्वारा छोटी-छोटी तस्वीरों के ज़रिए आर्थिक तथ्यों का प्रभाव दृश्य माध्यम से डालने के लिए उनकी संख्या और आकार के अनुकूल चित्रालेख तैयार किए जाते हैं जैसे, किसी कारखाने में एक वर्ष में कितनी कारें या ट्रैक्टर बने या कितने आवासों का निर्माण किया गया, आदि।
आम लोगों के मन पर आँकड़ों की अपेक्षा इन चित्रों का शीघ्र प्रभाव पड़ता है। इसलिए सांख्यिकीय तथ्यों के व्यापक प्रभाव के लिए यह विधि अपनाई जाती है।
  • Pie -- पाई
गुणा के अर्थ में पाई अक्षर अपने बड़े (Capital) रूप में लिखा जाता है। छोटे रूप (π) में यह किसी वृत्त की परिधि और व्यास के अनुपात को प्रदशित करता है, अर्थात π=22/7
  • Pie diagram -- वृत्तआरेख
भिन्न-भिन्न आँकड़ों या अनुपातों को दर्शाने लिए एक वृत्त के अंशों या भागों के रूप में बाँट कर दिखाया गया चित्र।
वृत्त आरेख के अंदर अनुपातों के परस्पर संबंध को प्रदर्शित करने वाले आँकड़े लिख दिए जाते हैं। ऐसे आरेख को प्रभावी बनाने के लिए वृत्त के भागों में अलग-अलग रंग भी भर दिए जाते हैं।
सरकारी व्यय, राजस्व, करों के प्रभाव आदि को दिखाने लिए वृत्त आरेखों की विधि का सांख्यिकीविदों द्वारा बहुधा प्रयोग किया जाता है।
वृत्ताकार आरेख बनाने के लिए वर्गमूलों को त्रिज्या मानकर वृत्तों की रचना की जाती है। इसके लिए सब वृत्तों के केन्द्र एक ही सरल रेखा में होने चाहिए और वृत्तों के बीच एक जैसा खाली स्थान रखना चाहिए।
इसके नमूने का एक चित्र नीचे दिया जाता है:—
  • Pilot survey -- मार्गदर्शी सर्वेक्षण
ऐसा सर्वेक्षण जो मूलतः किसी बड़े पैमाने या बृहत सर्वेक्षण की दक्षता बढ़ाने के उद्देश्य से छोटे स्तर पर चुने गए नमूने या क्षेत्रीय आधार पर सूचना एकत्रित करने के लिए किया जाता है।
इस विधि का उपयोग किसी वृहत योजना की उपयुक्तता की जाँच करने या प्रतिचयन की इकाई का प्रभावकारी परिणाम आदि जानने के लिए किया जाता है।
  • Pin map -- पिन मानचित्र
इस प्रकार के चित्र गत्ते पर या कार्क पर बनाये जाते हैं और इनमें भरी जाने वाली सूचना पिनों के निशानों द्वारा दी जाती है। इन पिनों के सिर शीशे के या रंग-बिरंगे तथा भिन्न-भिन्न आकार के होते हैं। जैसे ही आँकड़ों में कोई फेर-बदल होता हैं, इनमें नई पिनें लगा दी जाती हैं या पिनों का आकार बदल दिया जाता है।
गतिशील या परिवर्तनशील सांख्यिकी घटनाक्रम को प्रदर्शित करने के लिए इस मानचित्र विधि का मुख्यालयों में आमतौर पर प्रयोग किया जाता है।
  • Point data -- समय बिंदु आँकड़े
यह ऐसे आँकड़ो का वर्ग होता है जो सप्ताह के किसी दिन, किसी तारीख या वर्ष की किसी तिमाही, छमाही आदि किसी विशेष समय के लिए सूचना देता है।
इनके अंतर्गत माल की तालिकाओं, स्टॉक के मूल्य, भाव या दामों आदि आर्थिक तथ्यों का उल्लेख किया जाता है।
इन आँकड़ों के समय को क्षैतिज अक्ष पर दिखाया जाता है और आर्थिक जिन्स को उदग्र अक्ष पर।
  • Point of inflexion -- नति परिवर्तन बिन्दु
ऐसा बिन्दु जिस पर स्पर्श रेखा का ढाल न तो बढ़ता और न घटता है। इस बिन्दु पर फलन स्थिर होता है परन्तु उसका कोई चरम मान नहीं होता।
चरम बिंदु किसी फलन या संबंध को दर्शाने वाले ऐसे स्थल होते हैं जहाँ पर फलन का मान तो प्राप्त हो जाता है किन्तु वह उच्चतम या न्यूनतम की शर्त को पूरा नहीं करता।
  • Poisson's distribution -- प्वासों बंटन
प्वासों बंटन द्विपद बंटन का एक विशिष्ट रूप है।
जब n काफी अधिक हो और np=m एक स्थिरांक हो अर्थात अभिप्रयोगों की संख्या बहुत अधिक हो और सफलता की प्रायिकता अति अल्प हो, तो n के अपरिमित होने पर द्विपद बंटन, प्वासों बंटन का रूप ग्रहण कर लेता है।
इस बंटन में समस्त संभावनाओं की प्रायिकता
(FORMULA) से प्रदर्शित की जा सकती है।
प्वासों बंटन का माध्य और प्रसरण दोनों m के बराबर होते हैं।
  • Polynomial function -- बहुपद फलन
एक प्रकार का विकृत असतत फलन जिसमें अनेक पद होते हैं तथा जिसका निम्न रूप होता है:--
y=a_0+a_1 x+a_2 x^(2 )+⋯…..a_n x^n
  • Population (universe) -- समष्टि
सांख्यिकी में समष्टि की संकल्पना का तात्पर्य एक ऐसा समुच्चय है जिसमें वस्तुतः अलग-अलग इकाइयाँ, वस्तुएं संख्याएं अथवा घटनाएं सम्मिलित हो सकती हैं।
समष्टियाँ कई प्रकार की हो सकती हैं। आर्थिक समष्टियों में प्रमुखतया उपभोक्ता द्वारा खर्च की गई इकाइयाँ, राष्ट्रीय आय के वार्षिक आँकड़े अथवा वर्षवार जनसंख्या में घट-बढ़ आदि आती है।
एक समष्टि के अंतर्गत संख्याएं निर्धारित प्रायिकता के आधार पर बंटित होती हैं और उन्हें एक फलन के रूप में व्यक्त किया जा सकता है तथा उनके लिए अनेक स्थिर प्राचल नियत किए जा सकते हैं।
कोई समष्टि परिमित अथवा अपरिमित हो सकती है ।
कोई समष्टि परिमित अथवा अपरिमित हो सकती है।
  • Population analysis -- जनसंख्या विश्लेषण
जनसंख्या विश्लेषण के अन्तर्गत हम जनसंख्या की मुख्य प्रवृत्तियों जैसे आयु संरचना, वैवाहिक स्थिति, शैक्षणिक योग्यता तथा व्यावसायिक संरचना आदि का क्रमबद्ध अध्ययन करते हैं।
यह अध्ययन समाजिक विज्ञानों जैसे समाजशास्त्र, अर्थशास्त्र, राजनीतिशास्त्र आदि की संगति में किया जाता है और इसके अन्तर्गत यह देखने का प्रयत्न किया जाता है कि इन प्रवृत्तिय़ों का सामाजिक, आर्थिक और राजनीतिक दृष्टियों से क्या प्रभाव पड़ेगा और इन समस्याओं का हल कैसे ढूँढा जाना चाहिए।
इस विश्लेषण की प्रमुख विशेषता जनसंख्या संबंधी आँकड़ों और प्रवृत्तियों का निर्वचन और समस्याओं का निदान और हल प्रस्तुत करना है।
  • Population change -- जनसंख्या परिवर्तन
दो बार की जनगणनाओं में प्राप्त जनसंख्याओं का अंतर।
जब दो देशों की तुलना करनी होती है तब जनसंख्या परिवर्तन को प्रतिशत में मापा जाता है और उसकी गणना प्रतिवर्ष के आधार पर की जाती है।
औसत वार्षिक परिवर्तन दर का गणितीय सूत्र इस प्रकार होता है:--
  • Population composition -- जनसंख्या संघटन
जनसंख्या संघटन संबंधी अध्ययन के अन्तर्गत लिंग, आयु, धर्म, जाति वैवाहिक संबंध, शिक्षा का स्तर, व्यवसायगत वर्गीकरण और आय वर्गीकरण आदि विशेषताएं आती हैं।
इन चरों का जनसंख्या संबंधी विशिष्ट अध्ययनों में अलग-अलग महत्व होता है और इनके आधार पर जनसंख्या की विशेषताओं का अनुमान लगाया जाता है तथा जनसंख्या संबंधी नीतियाँ बनाई जाती हैं।
  • Population cycle -- जनसंख्या चक्र
ऐतिहासिक दृष्टि से बाँटी गई विभिन्न अवधियाँ जिनमें जनसंख्या की सामान्य वृद्धि या ह्रास को दिखाया जाता है।
जनसंख्या वृद्धि विश्लेषण द्वारा यह पता चलता है कि भिन्न-भिन्न सभ्यताओं में जनसंख्या की वृद्धि (या ह्रास) विशेष प्रकार की अवधियों में अलग-अलग ढंग से कैसे हुई या बिल्कुल रूक गई या बहुत तेजी से हुई।
इस प्रकार के चक्र की अवधि वृद्धि दर के अनुसार छोटी भी हो सकती है और बड़ी भी, नियमित भी और अनियमित भी। जनसंख्या चक्रों के पीछे नैसर्गिक, राजनैतिक, आर्थिक अथवा सामाजिक कई प्रकार के कारण हो सकते हैं।
  • Population density -- जनसंख्या घनत्व
जनसंख्या घनत्व एक ऐसा सूचकांक है जिससे किसी क्षेत्र की प्रति वर्ग किलोमीटर जनसंख्या का पता चलता है।
इसकी गणना कुल जनसंख्या को क्षेत्रफल से भाग देकर की जाती है।
कभी-कभी इसको प्रति एकड़ या प्रति वर्ग मील के पीछे आकलित भी किया जाता है।
  • Population distribution (spatial) -- जनसंख्या वितरण (स्थानिक)
जनसंख्या का स्थानीय आधार पर ऐसा बँटवारा जो भौगोलिक इकाइयों या निर्धारित सीमा क्षेत्रों के रूप में दिखाया जाता है। ऐसे वितरण के अंतर्गत संपूर्ण देश या राष्ट्र को राज्यों में बाँटा जाता है जिन्हें राजनीतिक प्रशासनिक इकाई माना जाता है। इस प्रकार के वितरण को स्थानिक वितरण कहा जाता है।
स्थान संबंधी इकाइयों में प्रदेश, प्रभाग, क्षेत्र, जिला, नगर, गाँव आदि आते हैं। इसमें नगर क्षेत्र और छावनी क्षेत्र अलग-अलग दिखाए जाते हैं। महानगरों की जनसंख्या के आँकड़े उनकी समस्याओं के विशेष अध्ययन के लिए अलग से तैयार किए जाते हैं।
इसी प्रकार उपनगर और ग्रामीण क्षेत्रों की जनसंख्या तथा संस्थागत जनसंख्या को भी अलग-अलग दिखाया जाता है। इस स्तर पर जनसंख्या को ग्रामीण और नगरीय क्षेत्रों में बाँटकर दिखाया जाता है।
  • Population dynamics -- जनसंख्या गतिकी
जनसंख्या गतिकी के अन्तर्गत जनसंख्या परिवर्तन की प्रक्रिया का अध्ययन किया जाता है। इस संदर्भ में जन्म, मरण, विवाह, प्रवसन इत्यादि के प्रभावों का विश्लेषण किया जाता है।
  • Population explosion -- जनसंख्या विस्फोट
जब प्रभावी आर्थिक विकास के अभाव में प्रजनन दर में कमी नहीं आती किन्तु मृत्यु दर में तेजी से गिरावट के कारण जनसंख्या वृद्धि की दर बढ़ जाती है अर्थात् जब आबादी अत्यधिक दर से बढ़ने लगती है, जैसे 2 प्रतिशत वार्षिक या अधिक और जनसंख्या अबाध गति से बढ़ने लगती है तो इस स्थिति को जनसंख्या विस्फोट की स्थिति कहते हैं।
  • Population forecast -- जनसंख्या पूर्वानुमान
दे∘ (Population projection)
  • Population growth -- जनसंख्या वृद्धि
जनसंख्या वृद्धि का आशय जन्मदर का मृत्यु दर से अधिक होना है।
व्यष्टि स्तर पर इसका संबंध परिवार नियोजन, कल्याण और स्वास्थ्य तथा शिक्षा से होता है।
विश्वजनीन रूप से इसका संबंध खाद्य समस्या तथा आर्थिक विकास से जोड़ा जाता है।
  • Population growth model -- जनसंख्या वृद्धि मॉडल
जनांकिकीय, सामाजिक, सांस्कृतिक एवं आर्थिक चरों के संदर्भ में जनसंख्या वृद्धि की व्याख्या करने के लिए जो मॉडल प्रयोग में लाया जाता है उसे जनसंख्या वृद्धि मॉडल कहते हैं।
  • Population influencing policy -- जनसंख्या प्रभावी नीति
इसके अंतर्गत निम्नलिखित छः प्रकार की नीतियाँ आती हैं:—
  • Population pattern -- जनसंख्या संरूप
किसी देश की जनसंख्या का ऐसा विवरण जो निम्नलिखित तीन प्रकार से जाना जा सकता है:—
  • Population policy -- जनसंख्या नीति
जनसंख्या नीति का तात्पर्य ऐसे उपाय और कार्यक्रम तैयार करना है जो समाज कल्याण संबंधी उद्देश्यों की पूर्ति करे।
इसके अंतर्गत क्रांतिक जनांकिकी चरों पर नियंत्रण करने के लिए, जैसे जनसंख्या के आकार और वृद्धि की दर, जनसंख्या के भौगोलिक वितरण (राष्ट्रीय और अन्तर्राष्ट्रीय दोनों), जन्मदर तथा मृत्युदर पर नियंत्रण, शिशु मृत्युदर, पौष्टिक आहार, परिवार नियोजन शिशु तथा मातृत्व सेवाएं, स्वास्थ्य तथा कल्याण आदि संबंधी अनेक प्रकार के कार्यक्रम शामिल किए जा सकते हैं।
  • Population pressure -- जनसंख्या दबाव
इस पद का प्रयोग कई अर्थों में होता है। माल्थस के जनसंख्या सिद्धांत के अनुसार जब किसी देश या क्षेत्र में जीवन निर्वाह के साधनों के अनुपात में वहाँ की जनसंख्या बढ़ जाती है तो हम कहते हैं कि इस क्षेत्र में जनसंख्या दबाव बढ़ गया है।
दूसरी ओर साधनों के बढ़ने से जनसंख्या में वृद्धि की प्रवृत्ति पैदा होती है। इन दोनों शक्तियों के प्रभाव के अधीन एक जनसंख्या संतुलन पैदा होता है जो फिर से इस दबाव को निर्वाह स्तर की ओर झुका देता है।
  • Population projection -- जनसंख्या प्रक्षेपण
भविष्य में किसी निर्धारित समय पर मर्त्यता, प्रजनन एवं प्रवसन की दरों के बारे में किन्हीं निश्चित पूर्वधारणाओं के आधार पर जनसंख्या का आकलन करने की विधि को जनसंख्या प्रक्षेपण करते हैं।
इससे भिन्न जब जनसंख्या का आकलन जनांकिकीय चरों के अतिरिक्त सामाजिक, आर्थिक चरों में संभावित परिवर्तनों के संदर्भ में किया जाता है तो उसे जनसंख्या पूर्वानुमान कहते हैं।
  • Population pyramid -- जनसंख्या स्तूप
जनसंख्या स्तूप की रचना जनसंख्या के लिंग तथा आयु बंटन के प्रतिशत कलन द्वारा की जाती है।
स्त्रियों के प्रतिशत को पिरामिड के दाहिनी ओर दिखाया जाता है और पुरूषों के प्रतिशत को बाईं ओर।
पिरामिड की आकृति से हमें तत्काल यह पता चल सकता है कि जनसंख्या का वय-संघटन कैसा है। यदि किसी पिरामिड का आधार बहुत बड़ा और शीर्ष पतला है तो वह उस जनसंख्या की अत्यधिक प्रजनन दर को दर्शाता है।
  • Population structure -- जनसंख्या संरचना
जनसंख्या संरचना में आयु को मुख्य चर माना जाता है। बहुधा इस चर के साथ कुछ दूसरे चर जैसे शिक्षा का स्तर, व्यवसायगत वर्गीकरण आदि भी जनसंख्या संरचना दर्शाते हैं।
  • Population theory -- जनसंख्या सिद्धांत
जनसंख्या सिद्धांत' पद का दो अर्थों में प्रयोग होता है:
इस अर्थ में यह एक अंतःशास्त्रीय ज्ञान का रूप धारण कर लेता है और इसका ज्यादातर संबंध उपलब्ध साधनों और वस्तुओं और सेवाओं के उत्पादन से जुड़ा रहता है।
  • Populationist -- जनविस्तारवादी
ऐसे व्यक्ति जो जनसंख्या की वृद्धि की नीतियों का समर्थन करते हैं।
इन लोगों का विश्वास जनसंख्या को बढ़ाने या विस्तार करने में होता है और आमतौर पर ये ऐसे कार्यक्रमों का समर्थन करते हैं जिनसे जन्मदर और बढ़े।
  • Portfolio composition -- निवेश संरूपण
पूँजी को विभिन्न रूपों में रखने की प्रक्रिया।
प्रत्येक व्यक्ति अथवा परिवार अपनी पूँजी का निवेश उससे प्राप्त होने वाली आय के अनुसार करने की चेष्टा करता है। पूँजी निवेश के विभिन्न स्वरूपों के बीच वह कैेसे चुनाव करता है उसके इस व्यवहार का अध्ययन निवेश संरूपण सिद्धांत के अंतर्गत किया जाता है।
निवेशों के संरूप पर व्यक्तिगत आयकर, करों की औसत सामाजिक प्रतिफल दर, तथा जोखिम व आय का विशेष प्रभाव पड़ता है।
  • Positive checks -- प्राकृतिक निरोध
जनसंख्या की वृद्धि को रोकने के लिए ऐसे तत्व जो मृत्यु पर प्रभाव डालकर आबादी को बढ़ने से रोकते हैं।
इनके अंतर्गत युद्ध, महामारियाँ, अकाल तथा अन्य प्राकृतिक या दैवी विपत्तियाँ सम्मिलित हैं।
  • Positive feed back -- घनात्मक प्रतिपुष्टि
अर्थव्यवस्था के संतुलन की स्थिति से दूर हटने की प्रवृत्ति।
जब अर्थव्यवस्था प्रारंभ में एक बार अपने संतुलन की स्थिति को विचलित होने के बाद नई शक्तियों के अधीन अपने संतुलन की स्थिति से और आगे हटती जाती है तब इन सब शक्तियों को घनात्मक प्रतिपुष्टि कहा जाता है।
  • Prediction -- पूर्व कथन
किसी विचर के भावी परिमाण के बारे में अनुमान।
यह समस्या दो भिन्न स्थितियों में पैदा होती है:—
पहली स्थिति में वहिर्जात चरों का अंतर्गत चरों पर जो प्रभाव होता है उसे हम पर्यवेक्षण की अवधि के आँकड़ों से निकाल सकते हैं तथा अन्तर्जात चरों के संबंध में आवश्यक शर्तें निर्धारित कर सकते हैं जिनके अधीन यह संरचना पूर्वकथन की अवधि में मान्य हो सकती है।
दूसरी दशा में जब कोई संरचना परिवर्तनशील या परिवर्तित होती है। कोई पूर्वकथन करना तब तक कठिन होता है जब तक हमें इस संरचना की विशेषताओं और होने वाले परिवर्तनों के संबंध में पूरा-पूरा ज्ञान न हो।
  • Predictor -- व्याख्यात्मक चर
व्याख्यात्मक चर एक ऐसा प्रतिदर्श होता है जो किसी प्रेक्षित नमूने में दिए गए आँकड़ों का कोई फलन होता है।
यह फलन इस दिए गए नमूने के आधार पर प्रागोक्ति करने के लिए किसी नियम की व्याख्या करता है।
ऐसी प्रागोक्ति को व्याख्यात्मक चर के मान का परिणाम माना जाता है। कुछ व्याख्यात्मक चर अंतराल के रूप में और कुछ विशिष्ट बिन्दुओं के रूप में होते हैं।
इनमें से जिस चर के बारे में प्रागोक्ति की जानी होती है उसके वास्तविक प्रेक्षित मूल्यों का भी उल्लेख किया जाता है। इनका प्रयोग परिकल्पना परीक्षण या प्राचलों के आकलन में किया जाता है।
इस प्रतिदर्शज के प्रायिकता बंटन का पूर्णतः निर्देश किया जाता है तथा इस बात का स्पष्टतः उल्लेख किया जाता है कि किन अभिगृहीतों के अन्तर्गत परिकल्पना सत्य होगी। समाश्रयण विश्लेषण के अन्तर्गत किसी मॉडल की जाँच में ऐसे व्याख्यात्मक चर का बहुधा प्रयोग किया जाता है।
  • Pregnancy wastage -- गर्भक्षय
गर्भक्षय का तात्पर्य प्रति 100 गर्भों के पीछे मृत, प्रसव, गर्भपात और गर्भस्राव की संख्या है।
इस दर को जनन क्षमता का परिकलन करने के लिए एक विशेष चर के रूप में दिखाया जाता है। यह दर विभिन्न सामाजिक स्तरों के व्यक्तियों के लिए अलग-अलग होती है।
  • Prervalence rate -- वर्तमान रोग दर
एक निर्धारित समय पर किसी क्षेत्र या देश में किसी खास रोग से ग्रस्त कुल लोगों की संख्या और उस वर्ष की जनसंख्या का अनुपात वर्तमान रोग दर कहलाती है।
जनांकिकी अध्ययन के अन्तर्गत जन-स्वास्थ्य संबंधी कार्यक्रम तैयार करने के लिए इस दर का विशेष महत्व होता है।
  • Preventive checks -- कृत्रिम निरोध
इनते अंतर्गत ऐसे उपाय सम्मिलित होते हैं जो गर्भाधान को प्रभावित कर जनसंख्या की वृद्धि को रोकते हैं जैसे, संयम, संभोग स्थगन, बड़ी आयु में विवाह करना, गर्भ निरोध के उपाय आदि।
  • Primal programming -- आद्य प्रोग्रामन
तुल∘ दे∘ (Linear programming)
  • Primary sterility -- प्राथमिक बंध्यता
ऐसी स्त्रियाँ जो कभी गर्भवती न हुई हों 'प्राथमिक बंध्यता' की कोटि में आती हैं।
अनुमानतः इनकी संख्या कुल जनसंख्या के तीन प्रतिशत से साढ़े चार प्रतिशत तक आँकी गई है।
  • Principal minor -- मुख्य उपसारणिक
किसी आव्यूह A32 में तीसरी पंक्ति और दूसरे स्तंभ को छोड़कर कलित किया गया उपसारणिक।
यदि सभी मुख्य उपसारणिक घनात्मक हों तो आव्यूह को घनात्मक निश्चित समघात (positive definite form) वाला कहा जाता है।
तुल∘ दे∘ minor तथा determinant
  • Probability -- प्रायिकता
प्रायिकता से अभिप्राय उस संभावना से है जिसके अनुसार कोई प्रतिचयन किया जाता हैं।
यदि एक घटना m प्रकार से सफल हो सकती है और n प्रकार से (घटित होने में) असफल रहती है, जबकि ये सब प्रकार से समप्रायिक एवं परस्पर अपवर्जी हों, तब उस घटना की प्रायिकता m/(m+n) होगी।
  • Process analysis -- प्रक्रम विश्लेषण
प्रक्रम विश्लेषण सांख्यिकीय सिद्धांत का वह भाग है जिसमें विश्लेषण की विधि गणितीय होती है।
अर्थमिति के प्रसंग में आर्थिक संकल्पनाओं का वर्गीकरण और परिभाषाएं तथा गणितीय मॉडलों को मान्यताएं सामान्य आर्थिक सिद्धांत से ली जाती हैं तथा स्थैतिक आर्थिक संबंधों का समय सापेक्षी विश्लेषण गणितीय मॉडलों की सहायता से किया जाता है।
  • Production function -- उत्पादन फलन
उत्पादन फलन द्वारा निर्गत के परिमाण का पता लगाया जाता है। इसका सूत्र निम्न प्रकार है:— (FORMULA)
  • Progressive economy -- प्रगतिशील अर्थव्यवस्था
यह आर्थिक गतिकी में अर्थव्यवस्था की ऐसी आरंभिक स्थिति है जिसके अंतर्गत निवेश अथवा संचय का बहुत ऊँचा स्तर होता है और कुल उत्पादन तथा वेतन निरंतर बढ़ते रहते हैं तथा जिनमें जनसंख्या में भी बढ़ने की प्रवृत्ति होती है।
इसके विपरीत जब आबादी अधिक बढ़ जाती है और भूमि कि मात्रा स्थिर होने के कारण उस पर ह्रासमान औसत प्रतिफल का नियम लागू होता है और इन दोनों कारणों से वेतन घटने लगते हैं और निवेश के प्राप्त लाभ की मात्रा कम हो जाती है तब अर्थव्यवस्था में ठहराव या गतिरोध (Stagnation) की स्थिति पैदा हो जाती है।
  • Pull factors (migration) -- अपकर्षक कारक (प्रवसन)
अंतर प्रवसन के संदर्भ में ऐसे कारक, जो व्यक्तियों को किसी क्षेत्र या देश से बाहर जाने से रोकते हैं जैसे नौकरी के ज्यादा व श्रेष्ठ अवसर, आमदनी बढ़ने के अवसर, वांछित विशिष्ट शिक्षा व प्रतिक्षण के अवसर, अनुकूल जलवायु व आवास संबंधी सुविधाएं आदि।
तुल∘ दे∘ migration व Push factors
  • Purposive sample -- सोद्देश्य प्रतिदर्श
ऐसा प्रतिदर्श जिसमें इकाइयों का चुनाव किसी उद्देश्य को ध्यान में रखकर किया जाए। इस प्रकार के प्रतिदर्श में व्यक्तिगत रूचि के कारण अभिनति उत्पन्न हो सकती है।
  • Push factors (migration) -- प्रेरक कारक (प्रवसन)
बाह्य प्रवसन को बढ़ावा देने वाले आर्थिक तथा सामाजिक परिवर्तन भेद-भाव, जाति या समुदाय बहिष्कार आदि:
तुल∘ दे∘ migration Push factors
  • Quartile -- चतुर्थक
चतुर्थक किसी श्रेणी को चार भागों में विभाजित करते हैं।
यदि हम श्रेणी को दो भागों में बाँटे और तदोपरांत निम्न तथा उपरि भागों को आगे दो-दो भागों में और विभाजित करें तो हमारे पास चार भाग हो जाते हैं।
लघु चतुर्थक या प्रथम चतुर्थक वह चतुर्थक है जिससे एक चौथाई भाग छोटा तथा तीन चौथाई भाग बड़ा है। अर्थात् 25 प्रतिशत पदों का मान इससे छोटा तथा 75 प्रतिशत पदों का मान इससे बड़ा होता है।
द्वितीय चतुर्थक वास्तव में माध्यिका है तथा तृतीय या गुरू चतुर्थक वह चतुर्थक है जिससे तीन चौथाई भाग छोटा तथा एक चौथाई भाग बड़ा है।
  • Quartile deviation -- चतुर्थक विचलन
विश्लेषण का एक माप जिसकी गणना चतुर्थकों के आधार पर की जाती है अर्थात्:-- Q= (Q_3=Q_1)/2
चतुर्थक विचलन को अर्थ अन्तश्चतुर्थक परिसर भी कहते हैं क्योंकि यह गुरू तथा लघु चतुर्थकों के अंतर को दो से भाग करने पर प्राप्त होता है।
  • Radius vector -- ध्रुवांतर रेखा- /-ध्रुवांतर सदिश
ऐसी रेखा जो बाण या शर की तरह मूल बिंदु ( 0, 0 ) से निकल कर घड़ी की सुईयों की भाँति एक चक्र या वृत्त बनाती है। इस सदिश की मिश्रित लंबाई व दिशा होती है।
यह सदिश गंतव्य बिंदु तक पहुँचने के लिए एक अद्वितीय सीधा मार्ग प्रशस्त करता है।
  • Random error -- यादृच्छिक त्रुटि
वह त्रुटि जिसकी प्रकृति विचर की भाँति होती है।
वस्तुतः यह त्रुटि वास्तविक मान और प्रेक्षित मान के अन्तर के बराबर होती है और इसका बंटन प्रायिकताओं के आधार पर निर्धारित किया जाता है।
  • Random variable -- यादृच्छिक चर
ऐसा चर जिसका मान भिन्न-भिन्न समयों पर अलग-अलग होता है।
इस मान का निर्धारण यादृच्छिक आधार पर इस प्रकार होता है जैसे पाँसा फेंकने पर उसका कोई भी तल ऊपर आ सकता है। इस चर के प्रत्येक मान के लिए एक विशिष्ट प्रायिकता होती है।
ऐसे चरों को अर्थमिति में ग्रीक अक्षरों ε अथवा μ द्वारा प्रगट किया जाता है तथा इस प्रकार की यादृच्छिक घटना के संभव परिणामों को दिखाने वाली प्रायिकता सूची को, जिसमें प्रत्येक संभावना का उल्लेख किया जाना है, प्रायिकता बंटन की संज्ञा दी जाती है।
यह बंटन आरेखों अथवा सारणियों के रूप में भी दिखाया जा सकता है।
  • Range -- परिसर
विक्षेपण का सबसे सरल माप।
यह चर के सबसे बड़े तथा सबसे छोटे मान का अन्तर होता है।
समष्टि की निम्न सीमा, तथा उपरि सीमा के बीच के विस्तार को परिसर कहते हैं।
इसे दो चरम पदों के बीच का अंतर भी माना जा सकता है अर्थात परिसर=उच्चतम मान-निम्नतम मान
न्यूनतम मान निम्न परिसीमा और अधिकतम मान ऊपरी परिसीमा कहलाती है।
  • Range chart -- परिसर चार्ट
यह एक ऐसी सांख्यिकीय विधि है जिसमें चौड़ी पट्टियों द्वारा किसी आर्थिक तथ्य, जैसे उत्पादित माल या स्टॉक की कीमतों आदि को दिखाया जाता है।
यदि परिसर बड़ा होता है तो पट्टी का फैलाव ज्यादा होता है और जब कीमतों का परास थोड़ा होता है तब यह पट्टी सिकुड़ जाती है।
इस प्रकार के चार्ट में श्वेत रेखा बन्द भावों को दिखाती है। इसका एक नमूना नीचे दिया जाता है:-- (DIAGRAM)
  • Range of a function -- फलन का परिसर
किसी फलन का y अक्ष पर प्रक्षेपण उसका परास या परिसर कहलाता है।
  • Rank correlation -- कोटि सहसंबंध
कोटि सहसंबंध में श्रेणियों के वास्तविक परिणामों का उपयोग नहीं होता। इनमें पदों का उनके परिमाण के अनुसार कोटि-निर्धारण किया जाता है। कोटि सहसंबंध चरों को कोटि-निर्धारण द्वारा ज्ञात किया जाता है।
कई बार वास्तविक परिमाणों के स्थान पर युग्मित कोटियाँ पहले से दी होती हैं और उनके आधार पर निम्न सूत्र की सहायता से कोटि सहसंबंध गुणांक का परिकलन किया जाता है:— (FORMULA)
यहा dR संगत पदों की कोटियों का अंतर है तथा N युग्मित कोटियों की संख्या है।
  • Rank of a matrix -- आव्यूह की कोटि
आव्यूह की कोटि स्वतंत्र रूप से लिखित पंक्तियों की संख्या के बराबर होती है अथवा उतने स्वतंत्र स्तंभों के बराबर होती है जो आव्यूह में दिए गए होते हैं।
आव्यूह कुछ स्तंभों (अथवा पंक्तियों) का समुच्चय होता है जिसमें पंक्तियाँ एक विशिष्ट क्रम में लिखे गए सदिशों के समुच्चय के बराबर होती हैं।
  • Rate of inflation -- स्फीति दर
स्फीति दर एक अर्थशास्त्रीय संकल्पना है। इसके अनुसार यदि किसी चर (कीमतों) के परिवर्तन की दर दो भिन्न-भिन्न समयों में मालूम करनी हो तब यह देखा जाता है कि कालांतर में अधिमाँग के फलस्वरूप कीमतों में होने वाले परिवर्तन की दर में कितनी वृद्धि हुई है। यह अनुपात स्फीति दर कहलाता है।
इसे हम समय-पथ पर काल अक्ष के ढाल या उसकी स्पर्श रेखा द्वारा व्यक्त कर सकते हैं। स्फीति का सामान्य फलन P= f(t) होता है और परिवर्तन की दर को हम dp/dt अथवा P^1द्वारा व्यक्त करते हैं।
जब P^1=O होता है, तो कीमतें स्थिर होती हैं और जब P^1 < O होता है, तब अवस्फीति की स्थिति होती है। और जब P^1> O होता है, तब स्फीति के बढ़ने की स्थिति होती है।
  • Rational function -- परिमेय फलन
ऐसा फलन जिसमें y को x चरों वाले दो बहुपदों के अनुपात के रूप में व्यक्त किया जाता है यथा:—
तुल∘ दे∘ function
  • Recall lapse -- स्मरण भूल
घटनाओं या अभिलक्षणों के बारे में पूछे गए प्रश्नों के उत्तर स्मरण शक्ति के आधार पर ठीक से न दे पाना।
कुछ घटनाएं रिकार्ड होने से बिलकुल छूट जाती हैं या उन घटनाओं का समय सही निर्धारित न हो पाने के कारण या तो उन्हें छोड़ दिया जाता है या उन्हें गलत रिकार्ड कर लिया जाता है।
स्मरण भूल की यह मात्रा घटनाओं के प्रकारों के अनुसार बदलती रहती है और उसमें इन्टरव्यू की प्रणाली के अनुसार भी परिवर्तन होता रहता है। घटना को घटित हुए यदि अधिक समय बीत गया हो और सर्वेक्षण बाद में किया जाए तो स्मरण भूल की आशंका अधिक बढ़ जाती है।
  • Recording procedures -- अभिलेखन विधि
दोहरी अभिलेखन पद्धति में एक विधि जिसके अनुसार अभिलेखकर्ता किसी निर्धारित क्षेत्र में लगातार प्रेक्षण कार्य करता रहता है और उस क्षेत्र की जैव घटनाओं को चुन कर नोट करता रहता है।
इसके लिए विविध प्रकार की प्रेक्षण विधियाँ काम में लाई जाती हैं।
  • Reduced form equation -- समानीत रूप समीकरण
युगपत् समीकरण मॉडल में परिणाम या हल समीकरण।
इसमें समानयन विधि द्वारा, अंततोगत्वा समीकरण को लघु रूप में दिखाया जाता है। इसमें अन्तर्जात चरों के युगपत समीकरण, प्राचलों और बहिर्जात चरों सभी के समानयन के पश्चात् अंत में मॉडल का जो रूप शेष रह जाता है उसे हो समानीत रूप कहा जाता है।
समानीत समीकरण वह समीकरण है जो युगपत् समीकरण मॉडल को हल करके इस प्रकार लिखा जाता है कि स्वतंत्र चर बाईं ओर दिखाए जाएं।
यह समीकरण आश्रित चरों की स्वतंत्र चरों के रूप में व्याख्या करता है। उदाहरणार्थ यदि युगपत् समीकरण मॉडल
  • Registration -- पंजीकरण
देश के निर्धारित अधिकारियों द्वारा जैव घटनाओं का विधिवत अभिलेख।
इसके लिए जन्म रजिस्टर, मृत्यु रजिस्टर, विवाह रजिस्टर आदि अलग-अलग रजिस्टरों का प्रयोग किया जाता है। संबंधित घटनाओं को इन रजिस्टरों में दर्ज करने की प्रक्रिया को पंजीकरण कहते हैं।
इनका कानूनी महत्व होता है और इनके उद्धरणों को कानून द्वारा ग्राह्य साक्ष्य माना जाता है।
  • Regression -- समाश्रयण
एक वस्तु पर अन्य वस्तु के आश्रित होने की स्थिति को समाश्रयण कहते हैं।
सांख्यिकी में समाश्रयण दो चरों की एक-दूसरे पर आश्रितता का अध्ययन करता है। सरल रेखा के रूप में हम किन्हीं दो समाश्रयण संबंधों को निम्न रूप से मालूम कर सकते हैं:—
  • Regression equation -- समाश्रयण समीकरण
समाश्रयण समीकरण स्वतंत्र (कारण) और आश्रित (प्रभाव) चरों के बीच एक संबंध को प्रदर्शित करता है।
इसके अन्तर्गत रैखिक सरल व बहुविध समाश्रयण और अरैखिक सरल व बहुविध समाश्रयण, ये सभी विधियाँ सम्मिलित है।
समाश्रयण समीकरण में किसी भी यादृच्छिक चर Y का पूर्वानुमान लगाना होता है जबकि स्वतंत्र चर X का मान पूर्वज्ञात होता है और इसके साथ ही X और Y के संबंध में कुछ प्राचलों α और β का भी आकलन करना होता है।
यदि α आनुभविक सामाश्रयण स्थिरांक हो और β आनुभविक समाश्रयण गुणांक हो तो हम Y और X उपर्युक्त संबंध को निम्न प्रकार से लिख सकते हैं।
(1) (1) y=α+βx
  • Regular oscillation -- नियमित दोलन
ऐसी स्थिति जिसमें अर्थव्यवस्था में न तो विस्फोटक दोलनों की स्थिति होती है और न ही अवमंदित दोलनों की। माँग वक्र और पूर्ति वक्र दोनों का ढलान बराबर होता है तथा इन वक्रों के फासले में न कोई वृद्धि होती हैं और न कोई कमी।
ऐसी स्थिति में नियमित काल या अवधि के बाद मूल असंतुलन की स्थिति दिखाई देती है।
  • Relaxation cycle -- शिथिलताचक्र
निवेश रोजगार, उपभोग अथवा कीमतों आदि के उतार-चढ़ाव में ऐसे अरैखिक चक्र जो अर्थव्यवस्था में अचानक परिवर्तनों के कारण पैदा होते हैं और समय-पथ पर आयाम को एक अवस्था से दूसरी अवस्था तक पहुँचाते हैं।
  • Replacement deliveries -- प्रतिस्थापन सुपुर्दगी
आगत निर्गत विश्लेषण में अन्तर्क्षेत्रीय आधार पर वस्तुओं का आदान प्रदान।
अर्थव्यवस्था के एक क्षेत्रक द्वारा अपने कुल उत्पादन में से दूसरे क्षेत्रक द्वारा दी गई वस्तुओं सेवाओं के बदले में उसे अंतिम सुपुर्दगी के रूप में दी गई वस्तुएं।
इनके आधार पर अन्तःक्षेत्रीय निवेश की सारणियाँ बनाई जाती हैं और बाद में इनके आधार पर एक प्रसारित आगत-निर्गत सारणी बनाई जाती है।
एक ऐसी सारणी का नमूना नीचे दिया जाता है:—(TABLE)
उपर्युक्त सारणी में कुछ क्षेत्रों को राष्ट्रीय अर्थव्यवस्था के विशेष क्षेत्रों के कुल उत्पादन के लिए प्रयुक्त किए गए उत्पादन साधनों को बदलने (प्रतिस्थापन) के लिए उन्हें अन्य क्षेत्रों के उत्पाद की कुछ मात्रा का दिया जाना आवश्यक है। इस मात्रा को प्रतिस्थापन सुपुर्दगी कहा जाता है।
इसी प्रकार राष्ट्रीय अर्थव्यवस्था के विभिन्न क्षेत्रकों को अलग-अलग क्षेत्रों द्वारा अपने उत्पादन साधनों का स्टॉक बढ़ाने के लिए जो मात्राएं अन्य क्षेत्रों द्वारा दी जाती हैं, उन्हें निवेश सुपुर्दगियाँ कहा जाता है।
  • Replacement index (J-ratio) -- प्रतिस्थापन सूचकांक (जे-अनुपात)
प्रतिस्थापन सूचकांक मालूम करने के लिए हम निम्न लिखित दो अनुपातों की गणना करते है:—
प्रतिस्थापन दर में उपवास और आप्रावास के कारण होने वाले जनसंख्या के फेरबदल भी शामिल किए जाते हैं। इसलिए यह प्रजनन दर भिन्न होती है।
कभी-कभी J अनुपात 1वर्ष से कम आयु के बच्चों के लिए भी मालूम किया जाता है।
  • Reproduction rate -- प्रजनन दर
जनांकिकी में दर का तात्पर्य परिवर्तन घटक है।
प्रजनन दर जनसंख्या में वृद्धि की एक घटक मानी जाती है।
अशोधित जन्म दर निकालने का सूत्र इस प्रकार है:—
प्रजनन दर के कारण जनसंख्या में होने वाला परिवर्तन जनसंख्या और मृत्यु संख्या के अंतर को मध्यवर्ष की जनसंख्या से भाग करके निकाला जाता है। शुद्ध प्रजनन दर (net reproduction ratio) वर्तमान प्रजनन दर व मृत्यु दर की अनुसूचियों के आधार पर जनसंख्या की दीर्घावधि वृद्धि को दर्शाती है।
यदि यह अनुपात 1होता है तो जनसंख्या केवल अपनी वर्तमान संख्या पर स्थिर मानी जाती है किन्तु यदि यह अनुपात 1से अधिक होता है तो उसे वर्धमान माना जाता है और यदि यह अनुपात 1से कम होता है तो उसे ह्रासमान माना जाता है।
  • Reproductive wastage -- प्रजनन क्षय
प्रति 1000 जन्मों के पीछे मृत प्रसव या प्रति 1000 गर्भवती स्त्रियों में गर्भपात करने वाली स्त्रियों की संख्या। इन दोनों का परिमाप प्रजनन क्षय की दर को दर्शाता है।
मृत प्रसवों और गर्भपातों, चाहे ये प्राकृतिक हों या डाक्टरी या अन्य किसी ढंग से, की संख्या को क्षय माना जाता है।
परिवार नियोजन कार्यकर्ता इन सूचकांकों का प्रयोग प्रायः अपने मॉडलों में करते हैं।
  • Residual variation -- अवशिष्ट विचरण
स्तंभ माध्यों और पंक्ति माध्यों के बीच विचरण के जोड़ और संपूर्ण विचरण के अंतर को अवशिष्ट विचरण की संज्ञा दी जाती है।
इसे शेष के रूप में निकाला जाता है। इसे ज्ञात करने का सूत्र इस प्रकार है:—
  • Respondent -- उत्तरदाता
ऐसा व्यक्ति जो किसी सर्वेक्षण या आँकड़े एकत्रित करने के प्रयोजन से लिखित या मौखिक रूप से पूछे गए प्रश्नों के उत्तर देता है या कोई प्रश्नावली भर कर देता है।
  • Revenue function -- संप्राप्ति फलन
फर्म को एक निश्चित उत्पादन की मात्रा से होने वाली आय या आमदनी का फलन।
यह फलन उत्पादन की मात्रा और संप्राप्तियों का संबंध बताता है।
किसी फर्म की औसत संप्राप्तियों का सामान्य फलन इस प्रकार होता है:—
  • Reverse flow (migration) -- प्रतिवर्ती प्रवाह (प्रवसन)
प्रत्येक प्रवसन प्रवाह का कोई न कोई विपरीत अथवा उलटा या प्रतिवर्ती प्रवाह होता है।
प्रवसन का यह एक महत्वपूर्ण सिद्धान्त है कि एक स्थान से दूसरे स्थान पर जाने वाले लोगों का प्रवाह केवल एक ही दिशा में नहीं होता विपरीत दिशा में जाने वाले लोगों में ऐसे व्यक्ति हो सकते हैं जो नए स्थान पर जाकर न खप सके हों या अपने आपको वहाँ पर ठीक से स्थिर न कर सके हों। ऐसे लोग नए क्षेत्र से पुराने क्षेत्र को वहाँ पर अर्जित पूँजी और नये शिल्पों को अपने साथ लेकर वापस जाते हैं।
इस प्रकार के प्रवाह के कई कारण हो सकते हैं: भौगोलिक, राजनीतिक, सामाजिक, सांस्कृतिक या आर्थिक।
  • Reverse survival ratio method -- प्रतिलोभ उत्तरजीविता विधि
ऐसी विधि जिसके द्वारा यह मालूम किया जाता है कि 0-4 और 5-9 वर्ष की आयु के बीच बच्चों की संख्या 5 वर्ष तक की आयु वाले अथवा जनगणनों में 5-10 वर्ष की आयु वर्ष में दिखाये गये बच्चों की संख्या का कौन सा विशिष्ट अनुपात है।
ऐसे बच्चों की उत्तरजीविता का अनुपात निकालने के लिए उपयुक्त वय सारणियों और मॉडल वय सारणियों की सहायता ली जाती है। जनगणना की दो अवधियों के बीच प्रतिवर्ष पैदा होने वाले बच्चों को इस अवधि के बीच आकलित जनसंख्या के औसत से भाग करके और 1000 से गुणा करके इस विधि की सहायता से कुल जन्म दर निकाली जाती है।
  • Rural-urban classification -- ग्राम नगर वर्गीकरण
दे∘ urban—rural classification
  • Saddle point -- पल्याण बिन्दु / काठी बिन्दु
जब किसी खेल समस्या में एक फलन z=f(x,y) होता है और x और y का परास सतत होता है और इसमें 1≥x तथा y≥0 के बराबर होता है तब इस फलन का आरेख बनाने पर उसकी सतह पर एक ऐसा बिन्दु बनता है जिसे पल्याण या काठी बिन्दु कहा जाता है।
यहाँ पर दोनों खिलाड़ियों की युक्तियाँ संगत तथा स्थिर होती हैं और यह बिन्दु इस फलन का संगत तथा स्थाई हल माना जाता है।
किसी आव्यूह में एक काठी बिन्दु होता है, किसी में दो और किसी में कोई नहीं। इन बिन्दुओं के आधार पर समस्या का हल ढूंढने के लिये इष्टतम बिन्दुओं का चुनाव किया जाता है।
  • Sample -- प्रतिदर्शी
समष्टि या सम्मुच्चय का एक अंश जिसका चयन किसी यादृच्छिक अथवा अन्य विधि से समष्टि या समुच्चय के बारे में जानकारी प्राप्त करने के उद्देश्य से किया जाता है।
  • Sample drawing -- प्रतिदर्श चयन
समष्टि में से कुछ प्रतिनिधि इकाइयों के चयन की प्रक्रिया।
यह बहुधा प्रायिकता के सिद्धान्तों के अनुरूप लागू की जाती है।
प्रतिदर्श चुनने की कई विधियाँ प्रचलित हैं जिनमें एक विधि यादृच्छिक प्रतिचयन की है। इसमें प्रतिदर्श के चुनाव के नियमों या विशिष्टियों का स्पष्टतः उल्लेख किया जाता है तथा प्रतिदर्श का चुनाव यादृच्छिक संख्याओं की एक सूची के आधार पर किया जाता है जिन्हें टिपेट संख्याएं कहते हैं।
  • Sample size -- प्रतिदर्श परिमाण
प्रतिदर्श में सम्मिलित कुछ इकाइयों की संख्या को प्रतिदर्श परिमाण कहते हैं।
बहुचरणी प्रतिदर्श में प्रतिदर्श परिमाण से आशय अंतिम चरण पूरा होने तक सम्मिलित कुल इकाइयों की संख्या से होता है।
  • Sample survey -- प्रतिदर्श सर्वेक्षण
ऐसा सर्वेक्षण जो किसी प्रतिचयन विधि का प्रयोग करके किया जाए।
प्रतिदर्श सर्वेक्षण में इस प्रकार की पूरी समष्टि के स्थान पर केवल प्रतिदर्श की इकाइयों का सर्वेक्षण किया जाता है।
  • Sampling distribution -- प्रतिचयन बंटन
विभिन्न प्रतिदर्शों के माध्य मानों का उनकी बारंबारताओं के अनुसार वर्गीकरण प्रतिचयन बंटन कहलाता है।
प्रतिचयन बंटन दत्त परिमाण के सरल प्रतिदर्शों की एक बड़ी संख्या से परिकलित एक विशेष प्रतिदर्शज के मानों का बारंबारता बंटन होता है तथा उस प्रतिदर्शज में विचरण का वर्णन करता है।
यह एक सतत बंटन है तथा समष्टि की प्रकृति तथा प्रतिदर्श के परिमाण द्वारा निर्धारित होता है।
  • Scalar -- आदिश
आदिश एक ऐसी राशि है जिसमें दिशा का आयाम नहीं होता। इसका प्रयोग अमूर्त बीजगणित में किया जाता है।
सदिश बीजगणित में यदि सादिश ν हो और उसको λ से गुणा करें तो λν में λ को अदिश कहेंगे।
  • Scatter diagram -- प्रकीर्ण आरेख
दो चरों वाले रैखिक सहसंबंध को दिखाने के लिए बिन्दुओं की विधि से प्रेक्षणों के आधार पर तैयार किया गया आरेख।
इसमें एक चर को x-अक्ष पर और दूसरे चर को y-अक्ष पर दिखाया जाता है। फिर इन बिन्दुओं का समंजन करके इन्हें एक रेखा पर दिखाया जाता है।
जब दो चरों के बीच में कार्यकारण संबंध स्पष्ट नहीं होता, तब जिस चर का आकलन करना होता है, उसे y-अक्ष पर लिया जाता है और स्वतंत्र चर को x-अक्ष पर। इस प्रकार के आरेख का चित्र नीचे दिया जाता है:— (DIAGRAM)
  • Seasonal variation -- ऋतुनिष्ठ विचरण
ऐसे अल्पकालीन विचरण जो किसी श्रेणी में एक वर्ष के अन्दर होते हैं।
इस प्रकार के विचरण मुख्यतः जलवायु तथा रीति-रिवाज आदि के कारण उत्पन्न होते हैं।
उदाहरण के लिए गेहूँ के मूल्यों में मई व जून के महीने में कमी हो जाती है। इसी प्रकार दीवाली के अवसर पर फुटकर बिक्री चरम सीमा पर पहुँच जाती है। कृषक की आय सारे वर्ष एक सी नहीं रहती। फसल के बिकने पर वह अधिक वस्तुओं का क्रय करता है, आदि।
  • Second cross-partial derivative -- द्विघाती अनुप्रस्थ आंशिक अवकलज
ऐसी गणितीय विधि जिसके द्वारा एकघाती आंशिक चरों में परिवर्तन की दर को मापा जाता है।
इन चरों को मूलतः स्थिर परिवर्तन वाला माना जाता है। और अवकलन की इस विधि द्वारा माँग फलन का अध्ययन किया जाता है।
इस प्रकार के फलन को नीचे लिखे रूप में लिखा जाता है:—
  • Secondary sterility -- गौण बंध्यता
ऐसी स्त्रियां जो कम से कम एक बार गर्भवती हुई हों परन्तु बाद में फिर कभी गर्भवती न हुई हो 'गौण बंध्यता' की कोटि में आती हैं।
इस प्रकार की स्त्रियों के बारे में मान्यता है कि वे प्रायः अपने प्रजनन जीवन के प्रारंभ से जननक्षम्य होती हैं किन्तु बाद में वे इस कोटि में प्रवेश कर जाती हैं।
कुछ जनांकिकीविदों का कहना हैं कि इस कोटि में आने के लिए कम से कम एक जीवित प्रसव होना आवश्यक है।
  • Secular trend -- दीर्घकालिक उपनति
दीर्घकालिक उपनति एक ऐसा अनुत्क्रमणीय संचलन होता है जो किसी श्रेणी में मूल वृद्धि या ह्रास की प्रवृत्ति का वर्णन करता है तथा अपनी दिशा को जल्दी-जल्दी नहीं बदलता।
दीर्घकालिक उपनति में वृद्धि या ह्रास की दर कभी कम या कभी अधिक हो सकती है, परन्तु मुख्य बात यह है कि दीर्घकालिक उपनति में एक नियमित व्यवहार मिलता है।
  • Segmentality -- सखण्डता
जब किसी मॉडल के छोटे-छोटे खण्ड हो सकते हों और उनमें से प्रत्येक खण्ड अपने आप में एक पूर्ण मॉडल हो और वह शेष मॉडल की सहायता के बिना स्वतः कुछ चरों का निर्धारण कर सकता हो तब यह कहा जाता है कि इस प्रकार के मॉडलों में सखण्डता है।
इन तीनों अलग-अलग समीकरणों के तारतम्य को हम तीरों का निशान लगाकर एक मॉडल द्वारा दिखा सकते हैं जिसके ये सहखंड होते हैं:—
  • Sensitivity coefficient -- संवेदना गुणांक
समष्टि अर्थशास्त्रीय गतिकी अध्ययनों में बहुमुखी बाजारों के मॉडलों के विश्लेषण में प्रयोग किये जाने वाले गुणांक जो यह दिखाते हैं कि कीमतों का त्वरण (accerelation) उनके वेग (velocity) पर कैसे निर्भर करता है।
अर्थात्, कीमतों के फेर-बदल से वस्तु के स्टॉक पूर्ति पर कैसे प्रभाव पड़ता है या बाजार की माँग कीमतों के प्रत्युत्तर में कितनी घटती-बढ़ती है।
  • Sequence -- अनुक्रम
अनुक्रम का तात्पर्य संस्थाओं के एक सेट से है जिसमें पहली, दूसरी, तीसरी संख्या आदि की संज्ञा दी जा सकती है।
अगर किसी अनुक्रम की अंतिम संख्या निश्चित होती है तो इसे 'परिमित अनुक्रम' कहते हैं और दूसरी स्थिति में इसे 'अपरिमित अनुक्रम' कहा जाता है।
अनुक्रमी संख्याओं से कई प्रकार की श्रेणियाँ, जैसे समांतर श्रेणी, गुणोत्तर श्रेणी और हरात्मक श्रेणी बनाई जा सकती है।
  • Series -- श्रेणी
किसी अनुक्रम में जब पद किसी विशेष नियम के अनुसार होते हैं तब वह अनुक्रम श्रेणी कहलाती है।
श्रेणी में अनंत पद भी हो सकते हैं। कभी-कभी श्रेणी शब्द का उपयोग पदों में रैखिक योगफल के लिए भी किया जाता है जैसे e के प्रसार:
  • Set -- समुच्चय
ऐसा संपूर्ण समूह जिसमें कल्पित या दृष्टिगोचर होने वाले सुपरिभाषित अवयव या सदस्य सम्मिलित हों। इसे इस प्रकार लिखा जाता है:—
एक बड़े समुच्चय को उपसमुच्चयों में बाँटा जा सकता है। दो समुच्चयों के संयोग को यों दिखाया जाता है:—
उपसमुच्चयों, सम्मिलन और प्रतिच्छेदों को 'वेन आरेखों' द्वारा दिखाया जाता है।
  • Sex ratio -- लिंगानुपात
किसी देश की जनसंख्या के पुरूषों की संख्या और स्त्रियों की संख्या का अनुपात।
यहाँ अनुपात आमतौर पर प्रतिशत के रूप में दिया जाता है और इसका फार्मूला इस प्रकार होता है:—
लिंगानुपात का प्रजनन दर, मृत्यु दर और प्रवसन दर तीनों से गहरा संबंध है और इसे जनांकिकी अध्यययन का महत्वपूर्ण चर माना जाता है।
भारत में लिंगानुपात को प्रति सहस्त्र पुरूषों की संख्या के पीछे स्त्रियों की संख्या से मालूम किया जाता है।
  • Sigma -- सिग्मा
सिग्मा (Σ ) योग का चिन्ह है । यथा x_1+x_2+x_3 को सिग्मा पद्धति में इस प्रकार लिखा जाएगा:—
  • Silhouette chart -- सिलुएट चार्ट
आर्थिक घटनाओं को आरेखों के रूप में दिखाने की एक विशेष विधि।
इसमें कुल राशि तथा निवल राशि के दो वक्र एक दूसरे के साथ-साथ बनाए जाते हैं और इन दोनों के बीच के क्षेत्र को हलके या गहरे रंगों द्वारा अलग दिखा दिया जाता है ताकि आर्थिक घट-बढ़ का सम्पूर्ण चित्र एकदम प्रस्तुत किया जा सके।
इन्हें पार्श्व छाया चित्र भी कहा जाता है। इस विधि द्वारा ऋण और धन दोनों प्रकार की प्रवृत्तियों का एक साथ अवलोकन किया जा सकता है।
  • Simplex criteria -- सिम्प्लेक्स निकष
ऐसी शर्तें जिनके आधार पर नए चरों के शामिल होने से सुसंगत हल में सुधार होने का निर्णय किया जाता है।
इस निकष के अनुसार नई नीति निर्धारित की जाती है तथा इष्टतमीकरण अथवा पुनरावृत्ति की जाँच की जाती है और मूल विधि में फेर-बदल किया जाता है।
सिम्प्लेक्स निकष की विधि में केवल उस चर को आविष्ट किया जाता है जिसका धन मूल्य अधिकतम होता है। इसकी सामान्य सारणी का एक नमूना नीचे दिया जाता है:—
  • Simplex method -- सिम्प्लेक्स विधि
इस विधि में सर्वप्रथम किसी प्रोग्रामन समस्या के आधारी सुसंगत हल को लिया जाता है। फिर व्यवहार्य-हल की परिसीमा रेखा के अन्य बिन्दुओं के लिये उद्देश्य फलन के मान निकालकर अध्ययन किया जाता है। जिस बिन्दु से संबद्ध हल का उद्देश्य फलन मान अधिकतम होता है वही अन्तिम हल माना जाता है।
  • Single valued function -- एक मान फलन
यदि y=f(x) एक फलन हो और x के एक मान के लिये y का केवल एक ही मान प्राप्त हो तब y को x का एक मान फलन कहेंगे:—
यह आवश्यक नहीं है कि एक मान फलन का व्युत्क्रम भी एक मान फलन ही हो जैसा कि दूसरे उदाहरण से स्पष्ट है।
  • Singular matrix -- अव्युतक्रमणीय आव्यूह
ऐसा आव्यूह जिसमें कम से कम एक उपसारणिक शून्य न हो और इस प्रकार जिसकी योजना में स्वतंत्रता की n कोटि की वृद्धि की जा सके अर्थात् जिसमें D≠0 तथा स्वतंत्रता की n कोटियाँ हों।
तुल∘ दे∘ matrix तथा minor
  • Skewness -- वैषम्य
बारंबारता वक्र में सममिति के अभाव को वैषम्य कहते हैं।
वैषम्य किसी बारंबारता बंटन में सममिति से विकृति की कोटि को मापता है। इसका संबंध वक्र की आकृत्ति से होता है वक्र के परिमाण से नहीं।
वैषम्य की कोटि को निम्न गुणाँकों से मापा जाता है, जिन्हें वैषम्य गुणांक कहते है।:—
जब वैषम्य गुणांक शून्य होता है तब वक्र सममिति होता है, अन्यथा वैषम्य धनात्मक या ऋणात्मक होता है जैसा कि नीचे के चित्रों में दिखाया गया है:— (DIAGRAM)
  • Slack variable -- न्यूनतापूरक चर
ऐसे चर जो असमिकाओं को समीकरणों में बदलने के लिए उनमें जोड़े जाते हैं। इनके गुणांक मात्रक सादिश होते हैं तथा इनका प्रयोग एकधा विधि में किया जाता है।
  • Slope -- प्रवणता
तुलनात्मक स्थैतिकी में जब एक बिन्दु पर सखंडता अथवा रैखीकरण संभव नहीं होता तब ऐसे फलनों का विश्लेषण अन्तर कलन के आधार पर ढाल या प्रवणता की ज्यामितीय विधि द्वारा किया जाता है।
किसी वक्र का एक बिन्दु पर ढलान उस सीधी रेखा के ढाल के बराबर होता है जो वक्र उस बिन्दु पर स्पर्श करती है। अर्थात् ढलान या प्रवणता ऐसी सीधी रेखा और क्षैतिज अक्ष के बीच कोण के स्पर्शज्या के बराबर होती है।
  • Slutsky equation -- स्लत्स्की समीकरण
वस्तुओं की कीमतों में फेरबदल से उपभोक्ता की आय में परिवर्तन तथा वस्तुओं के प्रतिस्थापन संबंधी समीकरण।
प्रतिस्थापन और आय प्रभावों के अन्तर्गत उपभोक्ता अपने नए बजट के अनुसार किसी वस्तु की कितनी मात्रा खरीदेगा उसके इस व्यवहार का पता हमें स्लत्स्की समीकरण से चलता है। इसका स्वरूप निम्नानुसार है:—
इस समीकरण को पहली बार स्वीडन के प्रसिद्ध अर्थशास्त्री स्लत्स्की ने दिया था।
  • Social stratificatin -- सामाजिक स्तरीकरण
सामाजिक अध्ययन के अन्तर्गत किसी देश की आबादी को विभिन्न आर्थिक और जैविक वर्गों में बाँटकर दिखाने की प्रक्रिया।
आमदनी, व्यवसाय या शिक्षा की दृष्टि से अथवा धर्म, जाति, नस्ल आदि की दृष्टि से वर्ग या समूह बनाकर जनसंख्या का सामाजिक, आर्थिक अध्ययन इसका उद्देश्य होता है।
समाज को इस प्रकार के वर्गों, समूहों या स्तरों में बाँटकर इनके विशिष्ट गुणों और इनकी समस्याओं का अध्ययन भी इसकी अंतर्गत समाविष्ट होता है।
  • Spectral analysis -- स्पेक्ट्रमी विश्लेषण
इस प्रकार विश्लेषण के अंतर्गत हम मुख्य घटकों के दोलनों की बारंबारता को, जो उस समय अन्तर्जात चरों में दिखाई देती है जबकि बहिर्जात चर दिए हुए होते हैं, प्रमुख रूप से सामने रखते हैं और इसका वर्तमान समय की पश्चताओं से घनिष्ठ संबंध जोड़ने का प्रयत्न करते हैं।
स्पेक्ट्रमी विश्लेषण से अवास्तविक पश्चता से बचा जा सकता है जिसके शिकार अर्थमिति विशेषज्ञ प्रायः होते हैं।
अर्थशास्त्र के मॉडलों के संबंध में यह गणितीय विधि पूर्वज्ञान पर आधारित होती है तथा इस प्रकार के विश्लेषण को स्पेक्ट्रमी विश्लेषण कहा जाता है।
  • Square matrix -- वर्ग आव्यूह
ऐसी सारणी जिसमें N क्रम वाली N पंक्तियाँ और स्तंभ हों।
इसे N कोटि वाला आव्यूह भी कहा जाता है।
  • Squatter Settlement -- झुग्गी-झोंपड़ी क्षेत्र
बड़े शहरों में निर्माण में लगे और कारखानों में काम करने के इच्छुक मजदूरों वा कारीगरों की झुग्गियों व झोपड़ियों वाली बस्तियाँ जिनमें प्रायः स्थानहीन लोग रहते हैं व जिन्हें नगर के भीतरी या बाहरी भागों के गंदे इलाके माना जाता है। ऐसे लोगों की बस्तियों को झुग्गी-झोंपड़ी क्षेत्र कहा जाता है।
इस प्रकार के क्षेत्रों में जनजीवन का स्तर बहुत नीचा होता है और इनकी अनेक मानवीय समस्याएं होती हैं। इनकी अपनी आर्थिक व सामाजिक समस्याएं भी नगर के शेष विकसित इलाकों से भिन्न प्रकार की होती हैं।
  • Stable population -- स्थायी जनसंख्या
स्थाई जनसंख्या में जन्म दर तथा मृत्यु दर लम्बे काल तक स्थिर रहती हैं तथा इसमें किसी प्रकार का प्रवसन नहीं होता। इसके प्रभावस्वरूप आयु संरचना स्थिर हो जाती है।
ऐसी जनसंख्या की वृद्धि-दर स्थिर रहती है और कभी यह शून्य या ऋणात्मक भी हो सकती है। परन्तु यह आवश्यक नहीं है कि इस जनसंख्या के आकार में किसी प्रकार की घट-बढ़ न हो।
यह स्थिर जनसंख्या (Stationary population) से भिन्न होती है जिसमें आयु संरचना और जनसंख्या का आकार होता है इनमें किसी प्रकार की घट-बढ़ नहीं होती।
  • Stagnation -- गतिरोध
जब किसी अर्थ व्यवस्था में धीरे-धीरे ऐसी स्थिति आ जाती है कि उसमें निवेश के अवसर लगातार कम होते जाते हैं और अंत में पूँजी लगाने की प्रतिक्रिया बिलकुल समाप्त है जाती है तब ऐसी स्थिति को गतिरोध या ठहराव की स्थिति कहा जाता है।
  • Standard deviation -- मानक विचलन
विचलन का ऐसा वर्ग माध्य-मूल जिसमें पदों का विचलन समांतर माध्य से लिया जाता है।
  • Standard error -- मानक त्रुटि
किसी प्रतिदर्शज के प्रति चयन बंटन के प्रसरण का घनात्मक वर्ग मूल।
  • Standard population -- मानक जनसंख्या
किसी निश्चित काल तथा क्षेत्र की वह जनसंख्या जिसे किसी अन्य काल या क्षेत्र की जनसंख्या से तुलना करने के काम में लाया जा सके।
मानकीकृत जन्म एवं मृत्यु दरों की गणनाओं में मानक जनसंख्या की सहायता ली जाती है।
  • Standard rates -- मानक दरें
जनांकिकी के घटकों के रूप में आयु, लिंग व अन्य विशिष्ट दरों की संख्या बहुत अधिक होती है इनको संपूर्ण जनसंख्या पर लागू करना कठिन होता है।
इसके लिए अशोधित दरों को प्रत्यक्ष अथवा अप्रत्यक्ष विधियों द्वारा मानकीकृत (Standardized) बनाया जाता है ताकि उन्हें सामान्य रूप से लागू किया जा सके। ऐसी दरों को मानक दरें कहा जाता है।
  • Standard urban area -- मानक नगर क्षेत्र
मानक नगर क्षेत्र ऐसे समस्त नगर क्षेत्रों की समष्टि है जिनकी जनसंख्या 50,000 से अधिक होती है।
जनगणना आँकड़ों के लिए यह अभीष्ट माना जाता है कि किसी भी नगर क्षेत्र की लगातार तीन जनगणनाओं के आँकड़ों की परस्पर तुलना की जा सके। इसमें केवल उन्हीं क्षेत्रों को शामिल किया जाता है जो निम्नलिखित चार बातों में से एक या अधिक शर्ते पूरी करते हैं:—
  • Stationary population -- स्थिर जनसंख्या
दे∘ (Stable population)
  • Stationary State = (Steady State) -- स्थिरता की स्थिति = (स्थायी स्थिति)
अर्थव्यवस्था की ऐसी स्थिति जिसमें दीर्घकाल तक पूँजी श्रम अनुपात में कोई परिवर्तन न हो या पूँजी की वृद्धि दर श्रम की वृद्धि दर से तीव्र हो।
जब अर्थव्यवस्था में संतुलन की प्रवृत्ति धीरे-धीरे समाप्त होने लगती है और पूँजी तथा श्रम की वृद्धि की दर बराबर होने लगती है तब अपने आप ऐसी स्थिरता की स्थिति पैदा हो जाती है।
स्थायी (Steady) स्थिति में सभी संबंधित चरों की वृद्धि एक ही जैसी दर से होती है जबकि स्थिरता (Stationary) की स्थिति में सभी चर स्थिर रहते हैं या उनकी वृद्धि दर शून्य होती है।
स्थिरता की स्थिति सामान्य प्रकार की मानी जा सकती है और स्थायी स्थिति उसका एक विशेष रूप हैं।
तुल∘ दे∘ (Stagnation)
  • Statistic -- प्रतिदर्शज
विचर के प्रतिदर्श बंटन के किसी पक्ष का वर्णन करने वाली संख्या प्रतिदर्शज कहलाती है।
प्रतिदर्श से संबंधित विभिन्न माध्यों या मापों को भी प्रतिदर्शज कहते हैं।
ये माध्य व संख्यात्मक माप प्रतिदर्शी से परिकलित किए जाते हैं और प्रतिचयन उच्चावपन के अधीन होते हैं।
किसी प्रतिदर्श का माध्य या मानक विचलन प्रतिदर्श कहलाता है जबकि समष्टि का माध्य या मानक विचलन प्राचल कहलाता है।
प्रतिदर्शज एक प्रकार से प्राचल का वह आकल होता है जो प्रतिदर्शज में से परिकलित किया जाता है।
  • Statistical hypohesis -- सांख्यिकी परिकल्पना
सांख्यिकी परिकल्पना अनुमिति सिद्धांत की एक महत्वपूर्ण संकल्पना है।
यह केवल आँकड़ों से ही अवकलित या व्युत्पन्न न होकर अभिकथन की एक विशेष शैली होती है जिसमें सांख्यिकी खोज के आधार पर स्वतंत्र रूप से निष्कर्ष प्रस्तुत किए जाते हैं जो कि आम तौर पर आर्थिक सिद्धान्त में निहित तथ्य माने जाते हैं।
इस प्रकार की परिकल्पना करते समय हमें दो त्रुटियों से बचने का प्रयत्न करना चाहिए:
  • Statistical inference -- सांख्यिकीय अनुमिति
इस विधि का प्रयोग कुछ सीमित घटनाओं या पर्यवेक्षणों के आधार पर आगमनिक विधि द्वारा जानकारी प्राप्त करने के लिए किया जाता है।
इस विधि में हम कुछ अभिकथनों के समुच्चय से आरम्भ करके, जिसे हम प्रागानुभव या अनुभव-निरपेक्ष अथवा मॉडल या अनुरक्षित परिकल्पना कहते हैं और जिसे हम सही मानते हैं, अनुमिति की प्रक्रिया से आगे बढ़ते हैं तथा आँकड़ों का पर्यवेक्षण करते हैं और प्रायिकता सिद्धांत तथा अनुरक्षित परिकल्पना के अनुरूप अनुमान लगाने का कार्य करते हैं।
इसमें यह आवश्यक है कि हम आँकड़ों का चुनाव यादृच्छिक प्रक्रिया से करें।
  • Statistical significance -- सांख्यिकीय सार्थकता
किसी परिकल्पना की सांख्यकीय सार्थकता से अभिप्राय उस प्रायिकता के प्रतिशत से है जो वास्तविक प्राचल मानों के किन्हीं सीमाओं के भीतर या बाहर होने के आधार पर निर्धारित किया जाता है।
उदाहरण के लिए हम जानते हैं कि प्राचल के प्रतिदर्शज से बाहर जाने की प्रायिकता 0.0026 तथा प्रतिदर्शज ± 2 ⇚ से बाहर जाने की प्रायिकता 0.0455 होती है, अतः इस बात की सार्थकता क्रमशः 0.26 तथा 4.55 प्रतिशत होगी।
  • Statistics -- सांख्यिकी
सांख्यिकी वह विज्ञान है जो सांख्यिकीय विधियों तथा किसी भी अन्वेषण में उनके अनुप्रयोग का अध्ययन करता है।
साख्यिकी के विज्ञान को दो विभागों में विभाजित किया जा सकता है:—
शुद्ध सांख्यिकी, सांख्यिकी की वह शाखा है जो व्यापक सिद्धान्तों, नियमों एवं विधियों से संबंधित है। इसमें सांख्यिकीय विधियाँ, सूत्र, समीकरण तथा उनकी व्युत्पन्नता सम्मिलित है। दूसरी ओर सांख्यिकी की वह शाखा जो अनुप्रयोगों का अध्ययन करती है, अनुप्रयुक्त सांख्यिकी कहलाती है। इसमें आर्थिक, व्यापारिक, सामाजिक तथा प्रशासनिक आँकड़ों का अध्ययन किया जाता है।
  • Stochastic difference equation -- प्रसंभाव्य अंतर समीकरण
प्रथम कोटि का ऐसा अंतर समीकरण जिसका रूप निम्न प्रकार का होता है।
इस प्रकार के समीकरणों में यादृच्छिक चर का माध्य शून्य और प्रसरण σ^2 से कोई सहसंबंध नहीं होता और इनमें एक काल इकाई के पीछे केवल एक ही पश्चता होती है।
तुल∘ दे∘ Difference equation तथा Equation system
  • Stochastic model -- प्रसंभाव्य मॉडल
समीकरणों का ऐसा सेट जिसमें कुछ यादृच्छिक चर या विचर शामिल होते हैं।
इस मॉडल में यादृच्छिक चरों का बंटन पूरी तरह से दिया हो सकता है अथवा नहीं भी दिया हो सकता है। इसमें विक्षोभों का बंटन निर्दिष्ट होने पर समीकरणों की प्रकृति संकुचित या प्रतिबंधित मानी जाती है।
प्रसंभाव्य मॉडल निर्धारित मॉडल से इस अर्थ में भिन्न है कि उसमें यादृच्छिक चर सम्मिलित होता है और प्राचलों को आकलित किया जाता है।
  • Stock concept -- स्कंध संकल्पना
किसी चर का एक दत्त समय (Point of time) पर प्रभाव या संग्रह की मात्रा अथवा परिमाण
तुल∘ दे∘ (Flow concept)
  • Strategy -- युक्ति
युक्ति का अर्थ खेल सिद्धान्त के अन्तर्गत किसी खिलाड़ी के संदर्भ में एक ऐसा फलन है जो उस खिलाड़ी के प्रत्येक सूचना सेट को निश्चित करता है और जिसका मान उसको उपलब्ध प्रत्येक विकल्प को दर्शाता है।
इस प्रकार कोई युक्ति खिलाड़ी को यह बताती है कि प्रत्येक संभव जानकारी के आधार पर वह कौन सा कदम उठा सकता है।
युक्तियाँ दो प्रकार की होती हैं:—
  • Stratified sampling -- स्तरित प्रतिचयन
जब समष्टि विषमाँगी हो तो पहले उसे कई सजातीय उपवर्गों या स्तरों में विभाजित किया जाता है और प्रत्येक उपवर्ग या स्तर से उसके परिमाण का आनुपातिक एक यादृच्छिक प्रतिदर्श चुन लिया जाता है। प्रत्येक उपवर्ग से वरण किए नए तत्वों को मिलाकर जिस प्रतिदर्श की रचना होती है वह उसका प्रतिनिधि माना जाता है।
स्तरित प्रतिचयन सोद्देश्य प्रतिचयन तथा यादृच्छिक प्रतिचयन के संयोग का परिणाम है।
उपवर्ग या स्तर एक विशिष्ट लक्ष्य को लेकर बनाए जाते हैं और समाँगता को सुनिश्चित करने के लिए प्रत्येक उपवर्ग के प्रतिदर्श यादृच्छया चुनें जाते हैं।
  • Structural equation -- संरचनात्मक समीकरण
किसी फलन के स्वायत्त समीकरणों का समुच्चय।
इनमें स्पष्ट रूप से किसी समीकरण या असमिका के ज्ञात और अज्ञात अन्तर्जात चरों का संबंध दिखाया जाता है। कभी-कभी ये व्युत्पन्न समीकरणों के रूप में भी दिए जाते हैं, तब इनमें केवल एक अन्तर्जात चर होता है और इसका अन्य अन्तर्जात चरों या प्रचलों से संबंध दिखाया जाता है।
संचरना का तात्पर्य ऐसा घटक समूह या क्षेत्र भी होता है जिसका प्रत्येक अवयव किसी न किसी स्वायत्त समीकरण द्वारा प्रकट किया जा सकता है। किसी मॉडल का सूत्रण संरचनात्मक समीकरणों के रूप में ही किया जाता है।
  • Structural model -- संरचनागत मॉडल
आर्थिक परिभाषाओं में निहित संबंधों को जब मात्रात्मक आधार पर एक दूसरे से जोड़ा जाता है तो संरचनागत मॉडल तैयार होता है।
इस मॉडल द्वारा किसी व्यवसाय या आर्थिक संबंध या प्रवृत्ति का अध्ययन किया जाता है।
ऐसे मॉडलों का विषय उत्पादन फलन, पूर्ति फलन, माँग फलन, कीमत और माँग की लोच, आय और माँग की लोच, उपभोग की सीमांत प्रवृत्ति तथा सीमांत उत्पादिता आदि जैसे संबंध होते हैं।
इन फलनों में संरचनागत प्राचलों का अध्ययन किया जाता है जिनका आकलन सांख्यिकी विधियों द्वारा किया जाता है।
  • Structural parameter -- संरचना प्राचल
ऐसे प्राचल जो संरचनात्मक समीकरण के गुणांक होते हैं।
इनके आधार पर आर्थिक नीति के प्रभावों और परिणामों का अध्ययन किया जाता है, जैसे कीमतों संबंधी आँकड़े, पूर्ति और माँग की अनुसूचियाँ, सरकारी हस्तक्षेप तथा प्रायोजनाओं के प्रभावों की सफलता या असफलता के संबंध में इकट्ठे किए गए तथ्य आदि।
संरचना प्राचलों का आर्थिक विश्लेषण में विशेष महत्व होता है।
  • Structural relationship -- संरचनात्मक संबंध
ऐसे संबंध या फलन जो अर्थव्यवस्था में व्यक्तियों या इकाइयों के आचरण को दर्शाते हैं जैसे, उत्पादन फलन, पूर्ति व माँग फलन आदि।
इन संबंधों को हम ऐसे प्राचलों द्वारा दर्शाते हैं जिनका आकलन सांख्यिकीय विधियों द्वारा किया जाता है।
तुल∘ दे∘ Structure
  • Structural unemployment -- संरचनात्मक बेरोजगारी
अर्थव्यवस्था में दीर्घकालीन अवृत्तियों व प्रौद्योगिकी परिवर्तनों के कारण होने वाली बेरोज़गारी।
यह आर्थिक संरचना में मूलभूत रद्दोबदल से पैदा होती है। इसे आर्थिक कल्याण के माप का एक संवेदनशील चर माना जाता है।
तुल∘ दे∘ Frictional Unemployment
  • Structure -- संरचना
ऐसी समीकरण प्रणाली जिसमें सभी प्राचलों के संख्यात्मक मान विशेष रूप से निर्दीष्ट होते हैं।
तुल∘ दे∘ Model तथा Structural equations
  • Substitution effect -- प्रतिस्थापन प्रभाव
वस्तुओं की कीमतों में घट-बढ़ होने से उपभोक्ता के अपने बजट के अनुसार एक वस्तु के स्थान पर दूसरी वस्तु का इस्तेमाल करना। इस प्रकार के प्रभाव का तुलनात्मक स्थैतिकी में विशेष महत्व होता है।
तुल∘ दे∘ (Income effect) तथा Slutsky equation
  • Substitution theorem -- प्रतिस्थापन प्रमेय
अर्थव्यवस्था में सकल उत्पाद सदिशों की पूर्ति हेतु, प्रतिस्थापन की प्रक्रिया का नियम जिसके अनुसार आगत-निर्गत विश्लेषण के दौरान वस्तुओं का उत्पादन एक निश्चित स्थिर गुणांक उत्पादन फलन के अनुकूल होता है।
इस प्रमेय के अनुसार आगतों के मध्य जिस प्रकार प्रतिस्थापन्नता की उपेक्षा की जाती है वह आगत-निर्गत विश्लेषण की आर्थिक समस्या न होकर मात्र प्राविकि समस्या बन जाती है।
सैमुअल्सन ने इस प्रमेय के बारे में यह सिद्ध किया है संभावित प्रतिस्थापन्नता को देखते हुए यह सिद्धांत इन दो शर्तों के अनुसार लागू होता है:—
  • Sufficiency theorem -- पर्याप्तता सिद्धांत
इष्टतमीकरण की समस्या से संबद्ध सिद्धान्त जिसमें किसी चरमबिंदु तक पहुँचने के लिए पर्याप्त शर्तों का उल्लेख करना पड़ सकता है। इनके लिए द्धितीय आवश्यकताओं का प्रयोग किया जाता है। इनका संबंध उद्देश्य फलन की अवतलता तथा उत्तलता से होता है।
इस सिद्धान्त का अरैखिक प्रोगमन में बहुधा प्रयोग किया जाता है।
  • Survival ratio -- उत्तरजीविता अनुपात
किसी जनसंख्या का ऐसा अनुपात जिसमें किसी प्रकार का प्रवसन न होने पर x+n आयु का सहगण n वर्ष पहले के x आयु के सहगणों के उत्तरजीवी माने जाते हैं।
उदाहरणार्थ, 1971 में 20 वर्ष की आयु के उतने ही व्यक्ति होंगे जो 1961 में 10 वर्ष की आयु के उत्तरजीवी होंगे।
उक्त दो सहगणों के अनुपात को n वर्षों में x+n आयु का उत्तरजीविता अनुपात कहते हैं।
उत्तरजीविता अनुपात का प्रयोग उन देशों में बहुतायत से होता है जिसमें जन्म मृत्यु आँकड़े या दो दोषपूर्ण हैं या उपलब्ध नहीं हैं।
जीवन सारणी की सहायता से इसकी गणना (Lx+n)/1x के सूत्र द्वारा की जा सकती है।
  • Survival ratio method -- उत्तरजीविता अनुपात विधि
इस विधि द्वारा हम विभिन्न क्षेत्रों के लिए शुद्ध प्रवसन का मान ज्ञान करते हैं। इसके लिए प्रत्येक क्षेत्र के लिये दो जनगणनाओं के आयु बंटन का होना आवश्यक है।
प्रारंभिक वर्ष के किसी दिए गए क्षेत्र के विशिष्ट आयु वर्ग पर देश अथवा उस क्षेत्र के लिये बनी जीवन-सारणी के उसी आयु वर्ग के उत्तरजीविता अनुपात से गुणा करने पर दस वर्ष बाद के आयु वर्ग में जीवित व्यक्तियों की संख्या निकाली जाती है। दूसरी जनगणना के उसी आयु वर्ग में से संकलित की गई संख्या घटाने पर शुद्ध प्रवसन का परिकलन होता है।
  • T distribution -- टी (t) बंटन
इस बंटन का प्रयोग एक सामान्य समष्टि के नमूने में उसके औसत (मूल माध्य से) तथा प्रतिदर्श के प्रसरण के अनुपात को मापने के लिये किया जाता है। जिसका फार्मूला रूप यह है:— t= (βi-βi)/(Σ〖ei〗^2 \n-k( a̅i̅i̅) )
यह अपने मूल प्राचल के मापक्रम से पूर्णतः स्वतंत्र होता है।
इसकी सहायता से हम विश्वसनीयता अंतराल की सीमा निर्धारित कर सकते हैं और यह देख सकते हैं कि कोई आकलन तथा परिकल्पना ठीक है अथवा नहीं।
इस प्रकार के बंटन को t सारणियों के रूप में दिया जाता है, जिसमें स्वीकृति के क्षेत्र के बिन्दु भी दिए रहते हैं। इस प्रकार का बंटन उपगामी सामान्यता वाला होता है।
इसका सबसे पहले प्रयोग स्टूडेंट, (Student), जिसका असली नाम डब्ल्यू∘ एस∘ गोसेट था, द्वारा 1908 में किया गया था। बाद में फिशर ने इसका और आगे विकास किया। t बंटन के अनुसार यदि x प्रसामान्यतः बंटित ऐसा विचर हो जिसका माध्य u और प्रसरण σ^2 हो, u का बंटन k स्वातंत्रय-कोटि वाला कोई वर्ग बंटन हो, और यदि x व u स्वतंत्र रूप से बंटित हो तो t=(〖( x-u〗^σ ))/√μK का बंटन निम्नलिखित होगा:— (FORMULA)
  • Tabulation -- सारणीयन
सारणीयन का अर्थ है सारणियों की रचना।
बिखरी हुई सामग्री को प्राथमिक सारणियों में एकत्रित करने वाली प्रविधि को सारणीयन कहते हैं।
सारणीयन का उद्देश्य मूल रूप से आँकड़ों के प्रमुख लक्षणों को रेखांकित करना है। अतः जब हम उन्हें सारणीबद्ध अर्थात् पंक्तियों व स्तंभों में प्रस्तुत करते हैं, तो यह उद्देश्य पूरा हो जाता है।
  • Technological restraints -- प्रौद्योगिकी अवरोध
उत्पादन बढ़ाने के लिए वर्तमान प्रौद्योगिकी जैसे, नई मशीनें, वैज्ञानिक आविष्कार तथा नवीन उत्पादन विधियों और इंजीनियरी संबंधी ज्ञान आदि से संबद्ध उत्पादन की कुल क्षमता पर जो अवरोध लग सकते हैं और जिनके फलस्वरूप उत्पादन को सीमित स्तर तक ही बढ़ाया जा सकता है इन्हें प्रौद्गियोकी अवरोध कहा जाता है।
इन अवरोधों को अर्थमिति में फलनों या समीकरणों के माध्यम से व्यक्त किया जाता है।
  • Test statistic -- परीक्षण प्रतिदर्शज
ऐसा प्रतिदर्शज जो प्रसरण विश्लेषण मॉडल में प्रारंभिक परिकल्पना तथा सकल संबंधों की परख के लिये अभिकलित किया जाता है या यह दर्शाता है कि क्या एक चर का दूसरे चर पर कोई प्रभाव पड़ता है अथवा नहीं तथा किसी संबंध में किस दर्जे तक स्वतंत्रता है।
इसके अभिकलन की कई विधियाँ होती हैं और यह चर की बंटन प्रणाली पर निर्भर करता है।
सामान्य रैखिक मॉडल के लिए उपर्युक्त परीक्षण प्रतिदर्शज के दो नमूने नीचे दिचे जाते हैं:—
  • Testing of hypothesis -- परिकल्पना परीक्षण
सांख्यिकी अनुमिति की एक विधि।
इसके द्वारा हम किसी परिकल्पना को स्वीकार या अस्वीकार करने के लिए अपने अभिकथन के प्राचलों का परीक्षण करते हैं। यथा जब हम प्रारंभ में कथन के रूप में यह मानकर चलते हैं कि किसी जनसंख्या का माध्य u है और किसी चुने हुए मान अर्थात् q के बराबर है तो हम इन दत्त अंकों और आनुभविक सूचना को मिलाकर इस निर्णय पर पहुँचना चाहते हैं कि क्या हम इन तथ्यों के आधार पर अपनी परिकल्पना को स्वीकार कर सकते हैं या नहीं।
अनुमिति की इस विधि का नाम परिकल्पना परीक्षण है। इस परीक्षण के तीन प्रकार हैं:—
  • Thompson's index -- थॉमसन सूचकांक
थॉमसन सूचकांक का प्रयोग जन्म और मृत्यु दरों को निकालने के लिए किया जाता है। इसका संबंध स्थिर जनसंख्या सिद्धान्त से है। कभी-कभी इसे प्रतिस्थापन सूचकांक की संज्ञा भी दी जाती है।
इस सूचकांक को तैयार करने के लियये 15-44 वर्ष की आयु की स्त्रियों और 5 वर्ष से कम आयु के बच्चों का अनुपात मालूम होना चाहिए। इस अनुपात की तुलना उसी जनसंख्या की जीवन सारणियों से प्राप्त अनुपात से करके यह सूचकांक निकाला जाता है। इसका सूत्र निम्नलिखित है:—
  • Three stage least square estimation -- त्रिस्तरीय न्यूनतम वर्ग आकलन
इस विधि में सर्वप्रथम मॉडल के प्रत्येक संरचानात्मक समीकरण को अलग से द्विस्तरीय न्यूनतम वर्ग विधि से आकलित किया जाता है। प्रत्येक संरचनात्मक समीकरण को अभिनिर्धारण अवरोधों को संतुष्ट करना होता है।
दूसरे स्तर पर आकलित गुणांकों का योग प्रत्येक संभाव्य संरचनात्मक समीकरणों में अवशिष्ट आकलन करने में किया जाता है। यह आव्यूह संरचनात्मक विक्षोभ प्रकट करता है।
तीसरे स्तर पर सभी समीकरणों के गुणांकों को एक साथ सामान्य न्यूनतम वर्ग विधि से आकलित करते हैं। इस हेतु दूसरे स्तर पर आकलित प्रसरण सहप्रसरण आव्यूह तथा गुणांकों पर सभी अभिनिर्धार्य अवरोधों का प्रयोग किया जाता है।
  • Time reveral test -- काल-उत्क्रमण परीक्षण
काल-विपर्यय (उत्क्रमण) परीक्षण के अनुसार, एक सूचकांक में काल अवधियों के उत्क्रमण के फलस्वरूप प्राप्त सूचकांक तथा मूल सूचकांक का गुणनफल 1 होना चाहिए। अर्थात्:—
इस परीक्षण द्वारा सूचकांक की सुष्ठता के आधार पर वह सूचकांक सूत्र उत्तम माना जाता है जिसमें यदि काल अवधियों का उत्क्रमण किया जाए तो परिणामी सूचकांक मूल सूचकांक का व्युत्क्रम हो।
  • Time series -- काल-श्रेणी
काल-श्रेणी से तात्पर्य कालक्रम के अनुसार दिए गए आँकड़ों की सारणी है।
काल श्रेणी अध्ययन एक ही देश या क्षेत्र के लिये कालांतर में इकट्ठे किए गए आँकड़ों के आधार पर किए जाते हैं। इन आँकड़ों को भिन्न-भिन्न कालों में बाँटकर मासिक, तिमाही या वार्षिक ढंग से सारणीबद्ध किया जाता है और फिर इसके आधार पर समान अंतराल से होने वाली घटनाओं के बारे में पुर्वानुमान तैयार किए जाते हैं तथा किसी आर्थिक घटना का चक्रीय अध्ययन किया जाता है।
जब ये आँकड़े भिन्न-भिन्न देशों, क्षेत्रों या समष्टियों से एक काल के लिए लिये जाते हैं, तब इसे वर्गगत अध्ययन कहा जाता है। कभी-कभी काल-श्रेणी और वर्गगत दोनों प्रकार के आँकड़ों को मिलाकर भी आर्थिक अध्ययन किये जाते हैं।
गतिकी अर्थशास्त्र में काल-श्रेणी के अध्ययनों का बहुत महत्व है, क्योंकि इन्हीं के आधार पर नीति-निर्णय लिए जाते हैं और पूर्वानुमान लगाए जाते हैं।
  • Tolerance interval -- सहयता- अंतराल
यह एक सांख्यिकी-संकल्पना है जो एक बिन्दु आकलक के गिर्द सममितिक आधार पर निर्भर करती है।
इसका उद्देश्य एक कथित प्रायिकता Y को मालूम करना होता है जिसमें कम से कम किसी विवेच्य जनसंख्या P में व्यक्तियों का एक विशिष्ट अनुपात निकालना होता है।
इसकी सहायता से हम एक दिए हुए P आकार के जनसंख्या के नमूने में से भविष्य में इसके मान Y का पूर्वानुमान करते हैं।
सहायता अंतराल वह अंतराल है जो दी हुई प्रायिकता के अनुसार बनाया गया है। यह प्रायिकता किसी समष्टि में कम से कम एक निर्धारित अवयवों के अनुपात को दर्शाती है।
  • Total variation -- संपूर्ण विचरण
महामाध्य से सभी वर्गीकृत विचलनों का जोड़ संपूर्ण विचरण कहलाता हैं।
यह〖Ns〗^2 के बराबर होता है जहाँ पर s मानक विचलन का द्योतक है। इसका सूत्र इस प्रकार है:
संपूर्ण विचरण स्तंभ माध्यों के बीच तथा उनके अन्दर के विचरण के जोड़ के बराबर होता है।
  • Transformation curve (production possibility curve) -- रूपांतरण वक्र (उत्पादन संभावना वक्र)
किन्हीं दो आगतों के बीच तथा किसी एक आगत और निर्गत के बीच अनुपातों का विश्लेषण रूपांतरण वक्र की विधि द्वारा किय़ा जाता हैं।
इस विधि में एक निर्गत को क्षैतिज अक्ष पर दिखाया जाता है। जब सभी आगत और निर्गत ज्ञात होते हैं तब हम इस वक्र को नीचे के चित्र के अनुसार दिखा सकते हैं।
रूपांतरण वक्र का दूसरा नाम उत्पादन संभावना वक्र है।
  • Transformation of variable -- चर रूपांतरण
एक चर को किसी गणितीय समीकरण से जोड़कर दूसरे चर के रूप में बदलना।
यह इस प्रयोजन से किया जाता है कि किसी चर के बंटन के फलन को पूर्णतः अथवा निकटतम रूप से किसी ऐसे दूसरे विचर के रूप और गुणों के बंटन के रूप में दिखाना होता है जिसका फलन हमें ज्ञात होता है। इस तरह यह अज्ञात विचर को ज्ञात फलन के रूप में दिखाने की एक गणितीय विधि है।
  • Transverse of matrix -- आव्यूह परिवर्त
यदि किसी आव्यूह (मैट्रिक्स) की पंक्तियों और स्तंभों को आपस में अदल-बदलकर लिखा जाता है, तो इस प्रकार से जो नया आव्यूह बनता है वह मूल आव्यूह का परिवर्त कहलाता है।
इसमें उतने ही अवयव होते हैं जितने कि मूल में जैसे नीचे मैट्रिक्स x का परिवर्त x' है
एक सममित वर्ग-आव्यूह ही अपने परिवर्त का सममित होता है।
  • Triagnometric function -- त्रिकोणमितीय फलन
जब चरों को त्रिकोणमितीय रूपों में रखकर इनका आपसी संबंध प्रदर्शित करते हैं तब फलन को त्रिकोणमितीय फलन कहते है।
साधारणतया त्रिकोणमितीय फलन में आश्रित चर अपने मूल रूप में ही रहता है जैसे:—
y = a Sin (bx+c)
  • Triangular matrix -- त्रिकोणीय आव्यूह
निम्न प्रकार का आव्यूह
जब आव्यूह का रूप इस प्रकार होता है:—
तब इसे अर्ध-त्रिकोणीय (Quasi-triangular) आव्यूह कहा जाता है।
तुल∘ दे∘ (matrix)
  • Triangular reduction -- त्रिकोणीय लघुकरण
यदि A, m कोटि का वर्ग-आव्यूह हो और इसके अन्दर m x m आकार का एक ऐसा व्युत्क्रमणीय आव्यूह हो जिसमें BA एक त्रिकोण के आकार का बन जाए अर्थात् ऐसे आव्यूह में विकर्ण से नीचे के सभी अवयव शून्य हों तब इस प्रकार के समानयन को त्रिकोणीय लघुकरण कहा जाता है।
  • Turnpike theorem -- टर्नपाइक प्रमेय / प्रतिवर्त प्रमेय
पूँजी संचयन से संबंधित स्थायी संवृद्धि का सिद्धांत।
इस सिद्धांत का सर्वप्रथम प्रतिपादन डार्फमैन (Dorfmen) सेमुअलसन (Samuelson) और सोलो (Solow) ने 'रैखिक प्रोग्रमन और आर्थिक विश्लेषण' के अन्तर्गत किया है। इसका वान न्यूमैन (Von Neumann) द्वारा अधिकतम संवृद्धि के संदर्भ में और आगे विकास किया गया है।
इस प्रमेय के अनुसार यदि हम दीर्घावधिक संवृद्धि के लिए आयोजन कर रहे हों तब भले ही जहाँ कहीं से भी प्रारंभ करे और जहाँ तक मर्जी जाना चाहें, हमें इस प्रक्रम के दौरान, ऐसी मध्यवर्ती अवस्थाओं में से गुजरना पड़ेगा जो एक ऐसी टर्नपाइक (नाका या प्रतिवर्त बिन्दु) की तरह होंगी जो सामान्तया लघुमार्गों या सड़कों द्वारा घिरा होगा।
इस मार्ग पर हमें दो, बिन्दुओं के बीच तीव्रगति वाले पथ का अनुसरण करना होगा। यदि ये दोनों बिन्दु एक दूसरे के काफ़ी नजदीक हों चाहे ये नाके या प्रतिवर्त बिंदु से कितनी दूर क्यों न हो तब हमें इन दोनों के बीच वह रास्ता चुनना पड़ेगा जो चाहे प्रतिवर्त बिदु को न भी छूता हो किन्तु तीव्रतम गति से पूरा किया जा सकता हो। भले यह रास्ता लंबा हो परंतु अस्थायी रूप से यहीं इष्टतम संवृद्धि का मार्ग होगा।
  • Two stage least square estimation -- द्विस्तरीय न्यूनतम वर्ग आकलन
द्विस्तरीय न्यूनतम वर्ग आकलन विधि सीमित सूचना पद्धति का एक विकल्प है। इसकी सहायता से दो या अधिक संयुक्त आश्रित चरों वाले अधिचिह्नित समीकरणों का आकलन किया जाता है। इसके अन्तर्गत निम्नलिखित क्रियाएं की जाती हैं:—
यह विधि नीदरलैंड के प्रसिद्ध अर्थमितिज्ञ प्रो∘ हेनरी थायल द्वारा प्रतिपादित की गई है। इसकी सहायता से दो या अधिक संयुक्त आश्रित चरों वाले युगपत् समीकरणों के अति अभिज्ञात निकाय का आकलन किया जाता है। इसके अन्तर्गत निम्नलिखित क्रियाएं की जाती हैं:—
दोनों स्तरों पर अन्तर्जात चरों को उनके लघुकृत रूप में न्यूनतम वर्ग विधि से निम्नलिखित ढंग से आकलित किया जाता है:
दूसरे स्तर पर दाईं ओर आए अन्तर्जात चरों के प्रेषित मानों को उनके लघुकृत आकलित मानों द्वारा पुनः स्थापित करते हैं।
इस विधि का मुख्य लाभ यह है कि यदि युगपत समीकरण को सीधे न्यूनतम वर्ग विधि द्वारा आकलित किया जाए तो उसके प्राचलों के आकलक असंगत होते हैं जबकि द्विस्तरीय न्यूनतम वर्ग आकलक संगत होता है इस प्रकार द्विस्तरीय न्यूनतम वर्ग विधि एक प्रकार से बहुत से अन्तर्विरोधी आकलन हेतु समीकरणों के औसतीकरण की विधि है। यह अन्तर्विरोधि समीकरणों अतिअभिज्ञात निकाय में तब उदय होते हैं जब सभी पूर्वनिर्धारित चरों को साधन चर रूप में प्रयोग कर साधनभूत चर विधि का प्रयोग किया गया हो।
  • Two way matc -- दुतऱफा सुमेल
यह एक ऐसी सुमेलन क्रिया है जो तब तक जारी रखी जाती है जब तक कि दोहरी अभिलेख विधि के सभी अभिलेखों का सुमेलन दोनों तरफ से पूरा नहीं कर लिया जाता।
  • Unbiasedness -- अनभिनति
यदि प्रत्येक आकार के प्रतिदर्श के लिए हमें E_a मिलता है और वह प्राचल x के तुल्य होता है तो हम यह कहते हैं कि आकलक a प्राचल x का अनभिनत आकलक है।
प्राचल x के आकलक a के प्रायिकता बंटन का कोई माध्य न होने पर इसे E_a द्वारा व्यक्त किया जाता है। जरूरी नहीं है कि प्रत्येक आकलक का ऐसा माध्य हो ही।
यदि प्रतिदर्श में E_a तो हो पर x वह के तुल्य नहीं हो तब हम यह कहते हैं कि उसमें E_(a-x) की अभिनति है।
इस संकल्पना का अर्थमिति और सांख्यिकी में किसी निष्कर्ष या अनुमिति के लिए बहुत महत्व होता है। कोई भी आर्थिक पूर्वानूमान प्रतिदर्श के इस गुणदोष पर निर्भर करता है कि उसमें किसी तरह की अभिनति है या नहीं और यदि है तो वह किस मात्रा तक है।
ऐसी अभिनति को दूर करने के लिए अनेक गणितीय या कलन की विधियाँ प्रचलित हैं।
  • Unchanged structure -- अपरिवर्तित संरचना
ऐसे समीकरणों का समुच्चय जिसमें संरचनागत प्राचलों के मान संभाव्य मान और विक्षोभों की प्राथमिकता में किसी प्रकार का परिवर्तन नहीं होता।
इसमें प्रत्येक समीकरण में लघुकृत रूप में प्रागोक्ति की अवधि में एक यादृच्छिक घटक होता है।
ऐसी संचरना के व्यस्थित या क्रमबद्ध प्राचलों के ज्ञात होने पर भी निश्चयपूर्वक कोई भविष्यवाणी करना कठिन होता है।
  • Under determined system -- अल्पनिर्धारित निकाय
जब किसी रेखीय मॉडल में ऐसे समीकरण या संबंध दिए हुए हों जिनके मानों को ग्रॉफ पर अंकित करने से ऐसे आरेख बनें जो परस्पर एक दूसरे को कहीं न काटते हों तब यह कहा जाता है कि इन सभी युगपत् संबंधों को एक साथ पूरा करना असंभव है अर्थात इन समीकरणों का कोई हल नहीं ढूंढा जा सकता। ऐसी प्रणाली को अल्पनिर्धारित निकाय माना जाता है।
  • Under population -- जन अल्पता/अल्प जनसंख्या
जब किसी क्षेत्र में जनसंख्या की वृद्धि से या कुछ और लोगों के आने से रहन-सहन का स्तर अथवा प्रति व्यक्ति आय बढ़ती है तो हम कहते है कि उस क्षेत्र में जनअल्पता है।
जब इनमें किसी प्रकार की वृद्धि या ह्रास नहीं होता तब हम यह कहते हैं कि यहाँ की जनसंख्या इष्टतम है।
  • Unemployment rate -- बेरोजगारी दर
किसी काम पर न लगे हुए बेरोजगार व्यक्तियों के कुल कार्य योग्य व्यक्तियों के प्रतिशत को बेरोजगारी दर कहा जाता है।
कुल बेरोजगारों की संख्या को श्रम शक्ति की कुल संख्या से भाग करके 100 से गुणा करके यह दर निकाली जाती है।
  • Unit matrix -- मात्रक आव्यूह
ऐसा विकर्ण आव्यूह जिसके प्रमुख विकर्ण के अवयवों का मान 1 होता है जैसे:
तुल∘ दे∘ matrix
  • Unit vector -- मात्रक सदिश
द्वि-विम कार्तीय (Cartesian) प्रणाली में जब निर्देशांक x और y समष्टि में किसी बिन्दु P(x, y) का मान (0, 1) अथवा (1, 0) होता है तो उसे मात्रक सदिश कहा जाता है।
P (1, 1) भी एक अर्थ में मात्रक सदिश होता है। P (0, 0), को शून्य सदिश कहा जाता है।
  • Urban agglomeration -- नगरीय संकुलन
नगरीय संकुलन मानक नगर क्षेत्रों से सटा हुआ ऐसा नगरीकृत इलाका या बस्ती होती है जिसकी जनसंख्या 2500 या उससे अधिक हो। अथवा यदि 2500 से कम आबादी हो तो इसमें कम से कम 100 या उससे अधिक मकान या आवास हों।
  • Urban-rural classification -- नगर-ग्राम वर्गीकरण
समस्त विश्व में भूमि क्षेत्र को दो वर्गों में बाँटा गया है:—
इस वर्गीकरण का मूलाधार यह है कि किसी क्षेत्र की अधिकांश जनसंख्या खेती में लगी है या इससे बाहर अन्य धंधों में।
नगर ग्राम वर्गीकरण के विश्व के अलग-अलग भागों में कुछ दूसरे मानदंड भी हैं।
भारत में स्थानीय स्वायत्तशासी संस्थाओं के अन्तर्गत सम्मिलित क्षेत्र नगर-क्षेत्र कहलाते हैं। शेष क्षेत्रों के वर्गीकरण करते समय इन बातों का ध्यान रखा जाता है:
1961 और बाद में 1971 की जनगणना के समय भारत में जिस वर्गीकरण को मान्यता दी गई है उसके अनुसार नगर क्षेत्र के अन्तर्गत निम्नलिखित क्षेत्र आते है:
  • Urbanisation -- नगरीकरण
भारी संख्या में लोगों का ग्रामीण क्षेत्रों से बाहर जाकर शहरी क्षेत्रों में बसना।
इस घटना या प्रक्रिया को वर्तमान युग की एक प्रमुख जनांकिकीय प्रवृत्ति माना जाता है जिसके चिन्ह हमें विश्व के सभी देशों तथा क्षेत्रों में दिखाई देते हैं।
नगरों की वृद्धि और महानगरों का निर्माण इसी प्रवृत्ति के द्योतक हैं।
  • Utility function -- उपयोगिता फलन
उपभोक्ता को विभिन्न वस्तुओं की अलग अलग मात्राओं से होने वाली उपयोगिता को दर्शाने वाला फलन ।
गणितीय पदों में इसे दो वस्तुओं के संदर्भ में इस प्रकार प्रगट किया जाता है:—
उपर्युक्त फलन में यह पूर्वधारणा की गई है कि यह फलन सतत है। इसके प्रथम कोटि तथा द्वितीय कोटि के आंशिक अवकलन निकाले जा सकते हैं। यह फलन अद्वितीय नहीं है तथा इस फलन को किसी निर्दिष्ट समय के लिए ही उपभोक्ता के व्यवहार का द्योतिक माना जा सकता है। भिन्न-भिन्न समयों पर उसकी तुष्टि का स्तर तथा व्यवहार अलग प्रकार का होगा। इस फलन में उपभोक्ता के व्यय को एक काल से दूसरे काल में अंतरित करने की कोई संभावना नहीं रहती।
  • Utility index -- उपयोगिता सूचकांक
एक दिया हुआ उपयोगिता फलन U (x_1,x_2 ) जो बजट-तल के प्रत्येक बिन्दु पर परिभाषित होता है, उपयोगिता सूचकांक कहलाता है।
यह सूचकांक फलन निम्न स्थिति में एकदिश रूपांतर होता है:—
यह सूचकांक तभी बनाया जा सकता है जब उपभोक्ता का व्यवहार निम्न पाँच स्वयंसिद्धियों के अनुसार हो:—
  • Value added -- मान योजित/मूल्य योजन
सांख्यिकी में इस संकल्पना का यह तात्पर्य होता है कि किसी दिए हुए क्षेत्रक द्वारा एक दूसरे क्षेत्रक के उत्पादन के साधनों से प्राप्त वस्तुओं द्वारा कितना मूल्य जोड़ा गया है या बढ़ाया गया है।
इसे हम सूत्र रूप में xoi+mi के योग या जोड़ के रूप में व्यक्त करते हैं।
इस संकल्पना के अनुसार प्रत्येक क्षेत्रक का प्रवाह दूसरे क्षेत्रकों को अंतिम रुप से दी जाने वाली वस्तुओं तथा उनसे प्राप्त होने वाली वस्तुओं तथा उनके मान योजन के बराबर होता है।
  • Variable -- चर
ऐसा अज्ञात या बुनियादी संकेत जिसका विश्लेषण में कोई भी मान हो सकता है या जो ग्राह्य मानों के एक सेट का रूप धारण कर सकता है।
चर संतत भी हो सकता है और असंतत भी।
संतत चर निर्दिष्ट परास के भीतर ऐसा कोई भी मान धारण का सकता है कि दो क्रमिक मानों का अंतर यथासंभव अत्यल्प हो।
अंसतत चर का मान निर्दिष्ट परिसर के अन्दर निश्चित मान तक घट-बढ़ सकता है।
ऐसे संख्यात्मक अभिलक्षण जिनका परिमाण भिन्न-भिन्न व्यक्तियों के लिए भिन्न होता है चर कहलाते हैं। अर्थात् चर वे गुण या अभिलक्षण हैं जो परिणाम में अक्षरों को प्रदर्शित करते है और एक विस्तार के अन्तर्गत परिवर्तित या विचलित होते है।
  • Variance -- प्रसरण
बंटन से संबद्ध एक मान।
इसे var x या σ^2 द्वारा व्यक्त किया जाता है।
यह मानक विचलन के वर्ग के बराबर होता है अथवा माध्य से वर्गित विचलन मानों के प्रत्याशित मान के बराबर होता है।
तुल∘ दे∘ standard deviation
  • Variate transformation -- विचर रूपांतरण
कई बार एक विचर को किसी गणितीय समीकरण से जोड़कर दूसरे विचर के रूप में बदल दिया जाता है।
यह इस प्रयोजन से किया जाता है कि किसी विचर के बंटन के फलन को पूर्णतः अथवा निकटतम रूप से किसी ऐसे दूसरे विचर के रूप और गुणों के बंटन के रूप में दिखाना होता है जिसका फलन हमें ज्ञात होता है।
इस तरह यह अज्ञात विचर को ज्ञात फलन के रूप में दिखाने की एक गणितीय विधि है।
  • Variation between column means -- स्तंभ माध्यों के बीच विचरण
दो स्तंभों में दिए गए आँकड़ों के औसत या माध्यों का विचरण ज्ञात करने की विधि।
इसके लिए प्रत्येक स्तंभ के माध्य x̅_(1,) x̅_2…..... और उसके सभी मानों के समांतर माध्य अर्थात सकल माध्य (x̅) के अन्तर को निकाल कर उनका वर्ग लिया जाता है और फिर प्रत्येक स्तंभ में दी गई संख्या से गुणा करके उनका जोड़ निकाला जाता है। इस प्रकार स्तंभ के माध्यों का विचरण ज्ञात किया जाता है।
इसका सूत्र इस प्रकार है:—
  • Variation within columns -- स्तंभ अन्तर्गत विचरण
स्तंभ के मूल्यों से स्तंभ के माध्यों के बीच विचरण ज्ञात करने की विधि।
इसको निकालने की विधि यह है कि प्रत्येक स्तंभ में दिए गए अंक और उस कालम के माध्य के बीच के अंतर को लिया जाता है और फिर इस अंतर का वर्ग निकाला जाता है। तत्पश्चात् उस सारे स्तंभ के वर्गीकृत अंतरों को जोड़ लिया जाता है। यह प्रक्रिया बारी-बारी से सभी स्तंभों के लिए की जाती है और फिर सभी स्तंभों का अलग से जोड़ निकाला जाता है।
इसका सूत्र नीचे दिया है —
  • Vector -- सदिश
ऐसी रेखा जो एक समतल में बिन्दु P को एक नियत मूल के साथ मिलाती है सदिश कहलाती है।
इसका मूलबिन्दु तथा दिशा निश्चित होती है।
  • Vector space -- सदिश समष्टि
किसी आव्यूह के स्तंभों द्वारा जनित समष्टि।
सदिश समष्टि की संकल्पना का उपयोग आव्यूह कोटि की परिभाषा करने में किया जाता है और आव्यूह को सामान्यतः पंक्तियों और स्तंभों की आकृति के रूप में दिखाया जाता है।
यदि हम आव्यूह को M(X) द्वारा दिखायें, जिसे हम समष्टि का परिसर भी कहते है, तब हम किसी समष्टि Em में Z सदिशों की उपसमष्टि को XZ=O द्वारा दिखा सकते हैं।
उपर्युक्त XZ=O को शून्य समष्टि कहा जाता है तथा इसे N(X) द्वारा लिखा जाता है।
  • Ven Neumann model -- वॉन न्यूमैन मॉडल
वॉन न्यूमैन द्वारा बहुक्षेत्रक संवृद्धि के लिए तैयार किया गया मॉडल।
यह मॉडल विस्तार सिद्धांत के विश्लेषण के लिए मानक उपकरण माना जाता है।
इस मॉडल की शुरूआत अनेक निर्गतों और उत्पादन प्रक्रियाओं से होती है। n क्षेत्रकों में से प्रत्येक में पिछली अवधि में अपने द्वारा तथा दूसरे क्षेत्रकों द्वारा तैयार की गई निर्गतों का आगत के रूप में प्रयोग किया जाता है।
इस मॉडल का उद्देश्य अर्थव्यवस्था में स्थिर दर पर संतुलित संवृद्धि की संभावनाओं का पता लगाना होता है। इसकी रूप-रेखा यों दी जा सकती है:—
  • Vetal event -- जैव घटना
इसमें जीवित-जन्म, मृत्यु भ्रूण-मृत्यु, विवाह, तलाक, दत्तक-ग्रहण, विधि-सम्मतन, विधिमान्यता देना, विवाहोच्छेदन अथवा कानुनी पृथक्करण आदि जीवन संबंधी अनेक विशिष्ट घटनाएं सम्मिलित हैं।
इनमें जन्म तथा मृत्यु को विशेष महत्वपूर्ण माना जाता है।
  • Vital rates -- जैव दर
ये जैव घटनाओं जैसे जन्म, मृत्यु, भ्रूण-मृत्यु, विवाह, तलाक, दत्तक-ग्रहण आदि की प्रति सहस्र व्यक्तियों की बारंबारता होती है।
इसकी सूचना, रजिस्ट्रेशन-विधि, आवधिक सर्वेक्षण-विधि, या संगणना-विधि द्वारा तैयार जाती है।
जैव-दरों के परिकलन में आयु बंटन का विशेष महत्व होता है।
  • Vital registration -- जन्म-मरण पंजीकरण
दे∘ — (Vital rates)
  • Vital statistics -- जन्म-मरण संबंधी आँकड़े
दे∘ — (Vital rates)
  • Von Neumauns ratio -- वॉन न्यूमैन अनुपात
इस अनुपात में किसी श्रेणी के प्रसरण और उसके वर्ग माध्य के उत्तरोत्तर अन्तर को एक प्रतिदर्शज के रूप में दिया जाता है। इस अनुपात की सहायता से किसी क्रमित श्रेणी में किए जाने वाले निरन्तर प्रेक्षणों की स्वतंत्रता की परख की जाती है जबकि ऐसी श्रेणी का बंटन सामान्य होता है।
इस अनुपात का प्रयोग सबसे पहले वॉन न्यूमैन (1944) द्वारा किया गया था। बड़े प्रतिदर्शजों में जिन्हें यादृच्छिक श्रेणियों के बंटन में से लिया जाता है, यह अनुपात उस स्थिति में सामान्य माना जाता है जब इसका माध्य 2 होता है और प्रसरण 4 (n—2) /(n2—1) होता है तथा जब प्रेक्षणों की संख्या n होती है।
  • Weighted average -- भारित माध्य
ऐसे अंक या संख्याएं, जो विभिन्न पदों के आपेक्षिक महत्व को प्रगट करती हैं भार कहलाती हैं।
विभिन्न पदों के लिए उनको आपेक्षिक महत्व के अनुसार भार नियक्त करना भार-बंटन कहलाता है।
इस प्रकार से परिकलित माध्य को भारित माध्य कहते हैं।
इसे उस समय प्रयोग में लाया जाता है जब प्रेक्षित मानों में सभी का महत्व एक समान न हो । सूत्र रूप में:—

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