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विक्षनरी:प्राकृत-हिन्दी शब्दकोश/भाग-१

विक्षनरी से


 :: पुं [अ] १ प्राकृत वर्ण-माला का प्रथम अक्षर (हे १, १; प्रामा) २ विष्णु, कृष्ण (से १, १)

 :: देखो च अ (श्रा १४, जी २; पउम ११३, १४; कुमा)

 :: [दे] देखो इव; 'चंदो अ' (प्राकृ ७९)

अ° :: अ [अ°] निम्न-लिखित अर्थों में से, प्रकरण के अनुसार, किसी एक को बतलानेवाला अव्यय — १ निषेध, प्रतिषेध; 'अद्दंसण' (सुर ७, २४८) ; 'सव्वनिसेहे मओऽकारो' (विसे १२३२) २ विरोध, उल्टापन; 'अधम्म' (खाया १, १८) ३ अयोग्यता, अनुचितपन; 'अयाल' (पउम २२, ८५) ४ अल्पता, थोड़ापन; 'अधण' (गउड) ; 'अचेल' (सम ४०) ५ अभाव, अविद्यमानता; 'अगुण' (गउड) ६ भेद, भिन्नता; 'अमणुस्स' (णंदि) ७ सादृश्य, तुल्यता; 'अचक्खुदंसण' (सम १५) ८ अप्रशस्तता, बुरापन; 'अभाइ' (चारु २६) ९ लघुपन, छोटाई; 'अतड' (बृह १)

°अ :: पुं[क] १ सुर्य, सूरज (से ७, ४३) २ अग्नि, आग । ३ मयूर, मोर (से ९, ४३) ४ न. पानी, जल (से १, १) ५ शिखर, टोंच (से ९, ४३) ६ मस्तक, सिर (से ९, १८)

°अ :: वि [°ज] उत्पन्न, जात (गा ९७१)।

अअंख :: वि [दे] स्‍नेह-रहित, सूखा (दे १, १३)

अअर :: देखो अवर (पि १६५)

अअर :: देखो आयर (पि १६५)

अइ :: अ [अयि] १-२ संभावना और आमंत्रण अर्थ का सूचक अव्यय (हे २, २०५; स्वप्‍न ५८)

अइ :: अ [अति] यह अव्यय नाम और धातु के पूर्व में लगता है और नीचे के अर्थें में से किसी एक को सूचित करता है — १ अतिशय, अतिरेक; 'अइउण्ह', 'अइउत्ति', 'अइचिंतंत' (श्रा १४, रंभा, गा २१४) २ उत्कर्ष, महत्त्व; 'अइवेग' (कप्प) ३ पूजा, प्रशंसा; 'अइजाय' (ठा ४) ४ अतिक्रमण, उल्लंघन; 'अइउक्कसो' (दस ५, ४, ४२) ५ ऊपर, ऊँचा; 'अइमंच', 'अइपडागा' (औप, णाया १, १) ६ निन्दा; 'अइपंडिय' (बृह १)

अइ :: अ [अति] सामर्थ्य-सूचक अव्यय; 'अइवहइ' (सूअ १, २, ३, ५)।

अइ :: सक [आ + इ] आगमन करना, आ गिरना; 'अइंति नाराया' (स ३८३)

अइइ :: स्त्री [अदिति] पुनर्वसु नक्षत्र का अधिष्ठाता देव (सुज्ज १०)

अइइ :: सक [अति+इ] १ उल्लंघन करना । २ गमन करना । ३ प्रवेश करना । वकृ. अइंत (से ६, २३, कप्प) । संकृ. अइच्च (सूअ १, ७, २८)

अइउट्ट :: वि [अतिवृत्त] अतिगत, प्राप्त (सूअ १, ५, १, १२)

अइंच :: सक [अति + अञ्च‍्] १ अभिषेक करना, स्थानापन्न करना । २ उल्लंघन करना । ३ अक. दूर जाना (से १३, ८; ८६)

अइंचिअ :: वि [अत्यञ्चित] १ अभिषिक्‍त, स्थानापन्न किया हुआ (से १३, ८) २ उल्लंघित, अतिक्रान्त (से १३, ८) ३ दूर गया हुआ (से १३, ८६)

अइंछ :: देखो अइंच (से १३, ८)

अइंछिअ :: देखो अइंचिअ (से १३, ८)

अइंछण :: न [अत्यञ्चन] १ उल्लंघन (से १३, ३८) २ आकर्षणा, खींचाव (स ८, ९४)

अइंत :: देखो अइइ = अति + इ ।

अइंत :: वि [अनायत्] १ नहीं आता हुआ । २ जो जाना न जाता हो; 'गाहाहि पणइणीहि य खिजइ चितं अइंतीहि' (वज्जा ४)

अइंदिय :: वि [अतीन्द्रिय] इंद्रियों से जिसका ज्ञान न हो सके वह (विसे २८९८)

अइंमुत्त :: देखो अइमुत्त (प्राकृ ३२)

अइकम :: अक [अतिक्रम्] गुजरना, बीतना; 'देवच्चणस्स समओ अइकमइ दुद्धरस्स रायस्स' (सम्मत्त १७४)। देखो अइक्‍कम = अति +क्रम् ।

अइकाय :: पुं [अतिकाय] १ महोरग - जातीय देवों का एक इन्द्र (ठा २) २ रावण का एक पुत्र (से १९, ५९) ३ वि. बड़ा शरीरवाला (णाया १.९)

अइक्‍कंत :: वि [अतिक्रान्त] १ अतीत, गुजरा हुआ; 'अइक्‍कंतजोव्वणा' (ठा ५) २ तीर्णा, पार पहुँचा हुआ (आव) ३ जिसने त्याग किया हो वह; 'सव्वसिणेहाइक्‍कंता' (औप)

अइक्कम :: सक [अति+क्रम्] १ उल्लंघन करना । २ व्रत-नियम का आंशिक रूप से खण्डन करना; 'अइक्‍कमइ' (भग) । वकृ- अइ- क्कमंत, अइक्कममाण (सुपा २३८; भग) । कृ. अइक्कमणिज्ज (सूअ, २, ७)

अइक्कम :: पुं [अतिक्रम] १ अल्लंघन (गा ३४८) २ व्रत या नियम का आंशिक खण्डन (ठा ३, ४)

अइक्कमण :: न [अतिक्रमण] ऊपर देखो (सुपा २३८)

अइक्ख :: वि[अतीक्ष्ण] तीक्ष्णतारहित; 'अइक्खा वेयरणी' (तंदु ४६)

अइक्ख :: वि [अनीक्ष्य] अदृश्य; 'अइक्खा वेयरणी' (तंदु ४६)

अइगच्छ, अइगम :: अक [अति+गम्] १ गुजरना, बीतना । २ सक. पहुंचना । ३ प्रवेश करना । ४ उल्लंघन करना । ५ जाना, गमन करना । वकृ. अइगच्छमाण (णाया १, १) । संकृ. अइयच्च (आचा); 'अइगंतूण अलोगं' (विसे ६०४)

अइगम :: पुं [अतिगम] प्रवेश (विसे ३८६)

अइगमण :: न [अतिगमन] १ प्रवेश-मार्ग (णाया १, २) २ उत्तरायण, सूर्य का उत्तर दिशा में जाना (भग)

अइगय :: वि [दे] १ आया हुआ । २ जिसने प्रवेश किया हो वह (दे १, ५७); 'ससुरकुलम्मि अइगओ, दिट्ठा य सगउरवं तत्थ' (उप ५९७ टी) ३ न. मार्गका पीछला भाग (दे १, ५७)

अइगय :: वि [अतिगत] अतिक्रान्त, गुजरा हुआ; 'हिडंतस्स अइगयं वरिसमेगं' (महा; से १०, १८; विसे ७ टी)

अइगय :: वि [अतिगत] प्राप्त; 'एवं बुंदिमइगओ गब्भे संवसइ दुक्खिओ जीवो' (तंदु १३)

अइचिरं :: अ [अतिचिरम्] बहुत काल तक (गा ३४६)

अइच्च :: देखो अइइ = अति + इ ।

अइच्छ :: सक [गम्] जाना, गमन करना । अइच्छइ (हे ४, १३२)

अइच्छ :: सक [अति+क्रम्] उल्लंघन करना । अइच्छइ (ओघ ५१८) । वकृ. अइच्छंत (उत्त १८)

अइच्छा :: स्त्री [अदित्सा] १ देने की अनिच्छा । २ प्रत्याख्यान विशेष (विसे ३५०४)

अइच्छिय :: वि [गत] गया हुआ, गुजरा हुआ (पउम ३, १२२; उप पृ १३३)

अइच्छिय :: वि [अतिक्रान्त] अतिक्रान्त, उल्लंघित (पाअ; विसे ३५८२)

अइजाय :: पुं [अतिजात] पिता से अधिक संपत्ति को प्राप्त करनेवाला पुत्र (ठा ४)

अइट्ठ :: वि [अदृष्ट] १ जो न देखा गया हो वह । २ न. कर्म, दैव, भाग्य (भवि) । °उव्व, °पुव्व वि [°पूर्व] जो पहले कभी न देखा गया हो वह (गा ४१४; ७४८)

अइट्ठ :: वि [अदृष्ट] जो देखा न गया हो वह (हास्य १४६)

अइट्ठ :: वि [अनिष्ट] १ अप्रिय । २ खराब, दुष्ट; 'जो पुणु खलु खुद्दु अइट्ठसंगु, तो किमब्भत्थउ देइ अंगु' (भवि)

अइट्ठा :: सक [अति+स्था] उल्लंघन करना । संकृ. अइट्ठिय (उत्त ७)

अइट्ठिय :: वि [अतिष्ठित] अतिक्रान्त, उल्लंघित (उत्त ७)

अइण :: न [दे] गिरि-तट, तराई, पहाड़ का निम्‍न भाग (दे १, १०)।

अइण :: न [अजिन] चर्म, चमड़ा (पाअ)

अइणिय :: वि [दे. अतिनीत] आनीत, लाया हुआ (दे १, २४)

अइणिय, अइणीय :: वि [अतिनीत] १ फेंका हुआ (से ६, ५९) २ जो दूर ले जाया गया हो (प्राप)

अइणीअ :: वि [अतिगत] गत, गया हुआ (सुख २, १३)।

अइणीय :: वि [दे. अतिनीत] आनीत, लाया हुआ (महा)

अइणु :: वि [अतिनु] जिसने नौका का उल्लंघन किया हो वह, जहाज से उतरा हुआ (षड्)।

अइतह :: वि [अवितथ] सत्य, सच्चा (उप १०३१ टी)

अइतेया :: स्त्री [अतितेजा] पक्ष की चौदहवीं रात (सुज्ज १०, १४)।

अइदंपज्ज :: न [ऐदंपर्य] तात्पर्य, रहस्य, भावार्थ(उप ८६४; ८७६)

अइदुसमा, अइदुस्ममा, अइदूसमा :: स्त्री [अतिदुष्षमा] देखो दुस्समदुस्समा (पउम २०, ८३; ९०; उप पृ १४७)

अइद्दंपज्ज :: देखो अइदंपज्ज (पंचा १४)

अइधाडिय :: वि [अतिध्राटित] फिराया हुआ, घुमाया हुआ (पण्ह १, ३)

अइनिट्ठुहावण :: वि [अतिविष्टम्भन] स्तब्घ करनेवाला, रोकनेवाला (कुमा)

अइन्न :: न [अजीर्ण] १ बदहजमी, अपच । २ वि. जो हजम न हुआ हो वह । ३ जो पुराना न हुआ हो, नूतन (उव)

अइन्न :: वि [अदत्त] नहीं दिया हुआ । °याण न [°दान] चोरो (आचा)

अइपंडुकंबलसिला :: स्त्री [अतिपाण्डुकम्बलशिला] मेरु पर्वंत पर स्थित दक्षिण दिशा की एक शिला (ठा ४)

अइपडाम :: पु [अतिपताक] १ मत्स्य की एक जाति (विपा १, ८) २ स्त्री. पताका के ऊपर की पताका (णाया १, १)

अइपरिणाम :: वि [अतिपरिणाम] आवश्यकता न रहने पर भी अपवाद-मार्ग का ही आश्रय लेनवाला, शास्त्रोक्त अपवादों की मर्यादा का उल्लंघन करनेवाला; 'जो दव्वखेत्तकालभावकयं जं जहिं जया काले । तल्लेसुस्सुतमई, अइपरिणामं वियाणाहि' (बृह १)

अइपाइअ :: वि [अतिपातिक] हिंसा करनेवाला (सूअ २, १, ५७)

अइपास :: पुं [अतिपार्श्‍व] भगवान् अरनाथ के समकालिक ऐरवत क्षेत्र के एक तीर्थंकरदेव (तित्थ)

अइपास :: सक [अति+दृश्] अतिशय देखना, खूब देखना । अइपासइ (सुअ १, १, ४, ६)

अइप्पगे :: अ [अतिप्रगे] पूर्व-प्रभात, बड़ी सबेर (सुर ७, ७८)

अइप्पमाण :: वि [अतिप्रमाण] १ तृप्त न होता हुआ भोजन करनेवाला । २ न. तीन बार से अधिक भोजन (पिंड ६४७)

अइप्पसंग :: पुं [अतिप्रसङ्ग] १ अतिपरिचय (पञ्चा१०) २ तर्क-शास्त्र में प्रसिद्ध अतिव्याप्ति-नामक दोष (स १६६; उवर ४८)

अइप्पसंगि :: वि [अतिप्रसङ्गिन्] अतिप्रसंग दोषवाला (अज्भ १०)

अइप्पहाय :: न [अतिप्रभात] बड़ी सबेर (गा ६८)

अइबल :: वि [अतिबल] १ बलिष्ठ, शक्ति-शाली (औप) २ न. अतिशय बल, विशेष सामर्थ्य । ३ बड़ा सैन्य (हे ४, ३५४) ४ पुं. एक राजा, जो भगवान् ऋषभदेव के पूर्वीय चतुर्थ भव में पिता या पितामह था (आचू) ५ भरत चक्रवर्ती का एक पौत्र (ठा ८) ६ भरत क्षेत्र में आगामी चौबीसी में होनेवाला पाँचवां वासुदेव (सम ५) ७ रावण का एक योद्धा (पउम ५६, २७)

अइभद्दा :: स्त्री [अतिभद्रा] भगवान् महावीर के प्रभास नामक म्यारहवें गणधर की माता (आचू)

अइभूइ :: पुं [अतिभूति] एक जैन मुनि, जो पंचम वासुदेव के पूर्व-जन्म में गुरु ये (पउम २०, १७६)

अइभूमि :: स्त्री [अतिभूमि] १ परम प्रकर्ष । २ बहुत जमीन (से३, ४२) ३ गृहस्थों के घर का वह भाग, जहाँ साधुओं का प्रवेश करने की अनुज्ञा न हो; 'अइभूमिं न गच्छेज्जा, गोयरग्गगओ मुणी' (दस ५, १, २४)

अइमट्टिया :: स्त्री [अतिमृत्तिका] कीचवाली मट्टी (जीव ३)

अइमत्त, अइमाय :: वि [अतिमात्र] बहुत, परिमाण से अधिक (उव ठा ९)

अइमुंक, अइमुंत, अइमुंतय, अइमुत्त, अइमुत्तय :: पुं [अतिमुक्त, °क] १ स्वनाम ख्यात एक अन्तकृद् (उसी जन्म में मुक्ति पानेवाला) जैन मुनि, जो पोलासपुर के राजा विजय का पुत्र था और जिसने बहुत छोटी ही उम्र में भगवान् महावीर के पास दीक्षा ली थी (अन्त) २ कंस का एक छोटा भाई (आव) ३ वृक्ष-विशेष (पउम ४२, ८) ४ माधवी लता (पाअ; स ३५) ५ न. अन्तगड़दसा नामक अंग-ग्रन्थ का एक अघ्ययन (अन्त) । (हे १, २६; १७८, पि २४६)

अइय :: वि [अतिग] १ अतिकान्त; 'अव्वो अइअम्मि तुमे, णवरँ जइ सा न जूरिहिइ' (हे २, २०४) २ करनेवाला; 'ठाणाइय' (औप)

अइय :: वि [अतिग] प्राप्त (राय १३४)

°अइय :: वि [दयित] १ प्रिय, प्रीतिपात्र । २ दया-पात्र, दया करने योग्य (से ९, ३१)

अइयच्च :: देखो अइगच्छ ।

अइयण :: न [अत्यदन] बहुत खाना, अधिक भोजन करना (वव २)

अइयय :: वि [अतिगत] गया हुआ (स ३०३)

अइयर :: सक [अति+चर्] १ उल्लंघन करना । २ व्रत को दूषित करना । वकृ अइयरंत (सुपा ३५४)

अइया :: सक [अति+या] जाना, गुजरना (उत्त २०)

अइया :: स्त्री [अजिका] बकरी, छागी (उप २३७)

°अइया :: स्त्री [दयिता] स्त्री, पत्‍नी (से ९, ३१)

अइयाण :: न [अतियान] १ गमन, गुजरना । २ राजा वगैरह का नगर आदि में धूम-घाम से प्रवेश करना (ठा ४)

अइयाय :: वि [अतियात] गया हुआ, गुजरा हुआ (अत्त २०)

अइयार :: पुं [अतिचार] १ उल्लंघन, अतिक्रमण (भवि) २ गृहीत व्रत या नियम में दूषण लगाना (श्रा ६)

अइर :: अ [अचिर] जल्दी, शीघ्र (स्वप्‍न ६७)

अइर :: न [अजिर] आंगन, चौक (पाअ)

अइर :: पुं [दे] आयुक्त, गांवका राज-नियुक्त मुखिया (दे १, १६)

अइर :: न [दे. अतर] देखो अयर = अतर (सुपा ३०)

अइर :: वि [दे] अतिरोहित (पिड ५६०; ५६१)

अइरजुवइ :: स्त्री (दे) नई बहू, दुलहिन (दे १, ४८)

अइरत्त :: पुं [अतिरात्र] अधिक तिथि, ज्योतिष की गिनती से जो दिन अधिक होता है वह (ठा ६)

अइरत्त :: वि [अतिरक्त] १ गाढा लाल । २ विशेष रागी । °कंबलसिला, °कंबला स्त्री °कम्बलशिला, कम्बला मेरु पर्वत के पांड्डक वन में स्थित एक शिला, जिसपर जिनदेवों का जन्माभिषेक किया जाता है (ठा २, ३)।

अइरा :: अ [अचिरात्] शीघ्र, जल्दी (से ३, १५)

अइरा, अइराणी :: स्त्री [अचिरा] पांचवे चक्रवर्ती और सोलहवें तीर्थंकर-देव की माता (सम १५२; पउम २०, ४२)

अइराणी :: स्त्री [दे] १ इन्द्राणी । २ सौभाग्य के लिए इन्द्राणी-व्रत करनेवाली स्त्री (दे १, ५८)

अइरावण :: पुं [ऐरावण] इन्द्र का हाथी (पाअ)

अइरावय :: पुं [ऐरावत] इन्द्र का हाथी (भवि)

अइराहा :: स्त्री [अचिराभा] बिजली, चपला (दे १, ३४ टी)

अइरि :: न [अतिरि] घन या सुवर्ण का अतिक्रमण करनेवाला, धनाढ्य (षड्)

अइरिंप :: पुं [दे] कथाबन्ध, बातचीत, कहानी (दे १, २६)

अइरित्त :: वि [अतिरिक्त] १ बचा हुआ, अवशिष्ट (पउम ११८, ११६) २ अधिक, ज्यादा (ठा २, १); 'पवद्धमाणाइरित्तगुणनिलओ' (सार्ध ६३) । °सिज्जासणिय वि [शय्यासनिक] लम्बी-चौड़ी शय्या और आसन रखनेवाला (साधु) (आचू)

अवरूव :: वि [अतिरूप] १ सुरूप, सुडौल (पउम २०, ११३) २ पुं. भूत-जातीय देवविशेष (पण्ण १)

अइरेइय :: वि [अतिरेकित] अतिरेक-युक्त, अतिप्रभूत (राय ७८ टी)

अइरेग :: पुं [अतिरेक] १ आधिकय, अधिकता; 'साइरेगअट्ठवासजाययं' (णया १, ५) २ अतिशय (जीव ३)

अइरेण, अइरेणं :: अ [अचिरेण] जल्दी, शीघ्र (गा १३५; पउम ९२, ४; उवर ४३)

अइरेय :: देखो अइरेग (णाया १, १)

अइव :: अ [अतीव] अतिशय, अत्यन्त; 'रित्तं अइव महंतं, चिट्ठइ मज्झम्मि तस्स भवणस्स । ता तं सव्वं सुपुरिस ! अप्पायत्तं करेज्जासु ।।' (महा)

अइवट्टण :: न [अतिवर्त्तन] उल्लंयन, अतिक्रमण (आचा)

अइवत्त :: सक [अति+वृत्] अतिक्रमण करना । अइवत्तइ (आचा)

अइवत्तिय :: वि [अतिव्रतिक] १ जिसका उल्लंघन किया गया हो वह । २ प्रधान, मुख्य । ३ उल्लंघन करनेवाला (आचा)

अइवय :: सक [अति+वृत्] उल्लंघन करना । संकृ. अइवइत्ता (सुअ २, २, ६५)

अइवय :: सक [अति+व्रज्] १ उल्लंघन करना । २ संमुख जाना । ३ प्रवेश करना । अइवयंति (पण्ह १, १) । वकृ. 'नियगवयणं अइवयंतं गयं सुमिणे पासित्ताणँ पडिबुद्धा' (णाया १, १; कप्प)

अइवय :: सक [अति+पत्] उल्लंघन करना । २ सम्बन्ध करना । ३ प्रवेश करना । ४ अक. मरना । ५ गिरजाना; 'अवरे रण-सीस-लद्ध-लक्खा संगामम्मि अइवयंति' (पण्ह १, ३); 'लोभघत्था संसारं अइवयंति' (पण्ह १, ५) । वकृ. 'जरं वा सरीररूव-विणासिंणिं सरीरं वा अइवयमाणिं निवारेसि' (णाया १, ०); अइवयंत (कप्प) । प्रयो. अइवाएमाण (आचा; ठा ७)

अइवह :: सक [अति+वह] वहन करने में समर्थ होना । अइवहइ (सूअ १, २, ३, ५)

अइवाइ :: वि [अतिपातिन्] १ हिंसक (सूअ १, ५) । विनश्‍वर (विसे १५७८)

अइवाइत्तु :: वि [अतिपातयितृ] मारनेवाला (ठा ३, २)

अइवाइय :: वि [अतिपातिक] ऊपर देखो (सूअ २, १)

अइवाएत्तु :: देखो अइवाइत्तु (ठा ७)

अइवाएमाण :: देखो अइवय = अति + पत् ।

अइवाय :: पुं [अतिपात] १ हिंसा आदि दोष (ओध ४६) २ विनाश; 'पाणाइवाएणं' (णाया १, ५)

अइवाय :: पुं [अतिवात] १ उल्लंघन । २ भयंकर पवन, तूफान (उप ७६८ टी)

अइवाह :: सक [अति+वाहय्] बीताना, गुजारना; 'सो अइवाहेइ दुन्‍नि दिणे' (धर्मवि ३३)

अइविरिय :: वि [अतिवीर्य] १ बलिष्ठ, महापराक्रमी । २ पुं. इक्ष्वाकु वंश का एक राजा (पउम ५, ५) ३ नन्दावर्त नगर का एक राजा (पउम ३७, ३)

अइविसाल :: वि [अतिविशाल] १ बहुत बड़ा, विस्तीर्ण । २ स्त्री. यमप्रभ नामक पर्वत के दक्षिण तरफ की एक नगरी (दीव)

अइस :: [अप] वि [ईदृश] ऐसा, इस तरह का (हे ४, ४०३)

अइसइ :: वि [अतिशयिन्] अतिशय वाला, विशिष्ट, आश्चर्य-कारक (सुपा २५७)

अइसइअ :: वि [अतिशयित] ऊपर देखो (पाअ)

अइसंधण :: देखो अइसंघाण; 'भितगाणति-संधणं न कायव्वं' (पंचा ७, २१)

अइसंधाण :: [अतिसंधान] ठगाई, वंचना; 'भियगाणइसंवाणं सासयवुड्‍ढी य जयणा य' (पंचा ७)।

अइसक्कणा :: स्त्री [अतिष्वष्कणा] उत्तेजना, प्रेरणा, बढ़ावा (निसी)

अइसय :: सक [अति+शी] मात करना । वकृ. 'परबलम् अइसयंतो' (पउम ९०, १०)

अइसय :: पुं [अतिशय] १ श्रेष्ठता, उत्तमता (कुमा १, ५) २ महिमा, प्रभाव; 'वयणाइसओ' (महा) ३ बहुत, अत्यन्त (सुर, १२, ८१) ४ चमत्कार (उर १, ३) । °भरिय वि [°भृत] पुर्ण, पूरा भरा हुआ (पाअ)

अइसरिय :: न [ऐश्‍यर्य] वैभव, संपत्ति, गौरव (हे १, १५१)

अइसाइ :: वि [अतिशायिन] १ श्रेष्ठ (धम्म ९ टी) २ दूसरे को मात करनेवाला । स्त्री. °णी (सुपा ११४)

अइसायण :: न [अतिशायन] उत्कृष्टता, उत्कर्ष (चेइय ५३३)

अइसार :: पुं [अतिसार] संग्रहणी रोग, जठर की व्याघि-विशेष (लहुअ १५)

अइसेस :: पुं [अतिशेष] १ महिमा, प्रभाव, आध्यात्मिक सामर्थ्य (सम ५६) २ बचा हुआ, अवशिष्ट (ठा ४, २) ३ अतिशय वाला (विसे ५५२)

अइसेसि :: वि [अतिशेषिन्] १ प्रभावशाली, महिमान्वित । २ समृद्ध (राज)

अइसेसि :: वि [अतिशेषिन्] १ महिमान्वित । २ समृद्ध, ज्ञान आदि के अतिशय से सम्पन्‍न (सट्ठि ४२ टी)

अइसेसिय :: वि [अतिशेषित] ऊपर देखो (ओघ ३०)

अइसेसिय :: वि [अतिशेषित] ज्ञात, जाना हुआ (वव १)

अइहर :: पुं [अतिभर] हद, अवधि, मर्यादा; 'सत्तीय को अइहरो ?' (अच्चु २३)

अइहारा :: स्त्री [दे] बिजली, चपला (दे १, ३४)

अइहि :: पुं [अतिथि] जिसके आने की तिथि नियत न हो वह, पाहुन, यात्री, भिक्षुक, साधु (आचा)। °सविभाग पुं [°संविभाग] साधु को भोजन आदि का निर्दोंष दान (धर्म ३)

अई :: सक [गम] जाना, गमन करना । अईइ (हें ४, १६२; कुमा); अइंति (गउड)

अईअ :: पुं [अतीत] १ भूतकाल (पच्च६०) २ वि.जो बीत चुका हो, गुजरा हुआ; 'जे अ अईआ सिद्धा' (पडि) ३ अतिक्रान्त (सूअ १, १०; सार्ध ४; विसे ८०८ ) ४ जो दूर हो गया हो (उत्त १५)

अईअ, अईव :: अ [अतीव] बहुत, विशेष, अत्यन्त (भग २, १; पण्ह १, २)

अईसंत :: वि [अ+दृश्यमान] जो दिखता न हो (से १, ३५)

अईसय :: देखो अइसय (पउम ३, १०५; ७५, २९)

अईसार :: पुं [अतीसार] रोग-विशेष, संग्रहणी रोग (सुख १, ३)

अईसार :: पुं [अतीसार] १ संग्रहणी रोग । २ इस नाम का एक राजा (ठा ५, ३)

अउ :: देखो आउ = स्त्री; 'उल्लसिओ तमरूवो वलयागारो अउक्‍काओ' (पव २५५)

अउअ :: न [अयुत] १ दस हजार की संख्या । २ 'अउअंग' को चौरासी लाख से गुणने पर जो संख्या लब्ध हो वह (ठा २, ४)

अउअंग :: न [अयुताङ्ग] 'अच्छणिउर' को चौरासी लाख से गुणने पर जो संख्या लब्ध हो वह (ठा २, ४)

अउंठ :: वि [अकुण्ठ] निपुण, कार्य-दक्ष (गउड)

अउचित्त :: न [औचित्य] उचितपन (प्राकृ १०)

अउज्झ :: वि [अयोध्य] १ युद्ध में जिसका सामना न किया जा सके वह (सम १३७) २ जिस पर रिपु-सैन्य आक्रमण न कर सके ऐसा किला, नगर आदि (ठा ४)

अउज्झा :: स्त्री [अयोध्या] नगरी-विशेष, इक्ष्वा- कुवंश के राजाओं की राजधानी, विनीता, कोसला, साकेतपुर आदि नामोंसे विख्यात नगरी, जो आजकल भी अयोध्या नाम से ही प्रसिद्ध है (ठा २)

अउण :: वि [एकोन] जिसमें एक कम हो वह । यह शब्द बीस से लेकर तीस, चालीस आदि दहाई संख्या के पूर्व में लगता है और जिसका अर्थ उस संख्या से एक कम होता है । °टि्ठ स्री [°षष्टि] उनसाठ, ५९ (कप्प) । °त्तरि स्त्री [°सप्तति] उनसत्तर, ६९ (कप्प) °त्तीस स्त्रीन [°त्रिशत्] उनतीस, २९ (णाया १, १३) । °सट्ठि स्त्री [°षष्टि] उनसाठ, १९ (कप्प) । °पन्‍न, °वन्‍न स्त्रीन [पञ्चाशत्] उनपचास, ४९ (जी ३०; पउम १०२, ७०) । देखो एगूण ।

अउणतीसइ :: स्त्री देखो अउण-त्तीस (उत्त ३६, २४०)

अउणप्पन्न :: देखो अउणापन्न (जीवस २०८)

अउणासट्ठि :: देखो अउण-सट्ठि (सुज्ज ९)

अउणोणिउत्ति :: स्त्री [अपुनर्निवृत्ति] अन्तिम निवृत्ति, मोक्ष (अव्वु १०)

अउण्ण, अउन्‍न :: न [अपुण्य] १ पाप (सुर ६, २०) २ वि. अपवित्र । ३ पुण्यरहित, पापी (पउम २८, ११२; सुर २, ५१)

अउम :: देखो ओम (गुभा १४)

अउमर :: वि [अद्‍मर] खानेवाला, भक्षक (प्राकृ २८)

अउल :: वि [अतुल] असाधारण, अद्वितीय (उप ७२८ टी; पण्ह १, ४)

अउलीन :: वि [अकुलीन] कुल-हीन, कुजाति, संकर (गा २५३)

अउव्व :: वि [अपूर्व] अनोखा, अद्वितीय (गा ११६)

अउस :: पुं [दे] उपासक, पूजारी (प्रयौ ८२)

अए :: अ [अये] आमन्त्रण-सूचक अव्यय (कप्पू)

अओ :: अ [अतस्] १ यहां से लेकर (सुपा ४७८) २ इसलिए, इस कारण से (उप ७३०)

अओ° :: [अयस्°] लोह । °घण पुं [घन] लोहे का हथौड़ा; 'सीसंपि भिदंति अओघ- णेहिं' (सुअ १, ५, २, १४) । °मय वि [°मय] लोहे की बनी हुई चीज (सूअ २, २) । °मुह पुं [°मुख] १-२ इस नाम का अन्तर्द्वीप और उसके निवासी (ठा ५) । ३ वि. लोहे की माफिक मजबूत सुंह वाला; 'पक्खीहिं खज्जंति अओमुहेहिं' (सुअ १, ५, २, ४) । °मुही स्त्री [°मुखी] एक नगरी (उप ७९४)

अओग्ग :: वि [अयोग्य] नालायक (स ७६४)

अओज्झा :: देखो अउज्झा (प्रति ११५)

अं :: अ [दे] स्मरण-द्योतक अव्यय; 'अं दट्ठव्वा मालइलआ' (प्राकृ ८०)

अंक :: पुं [अङ्क] १ उत्संग, कोला (स्वप्‍न २१९) २ रत्‍न की एक जाति (कप्प) ३ नौ की एक संख्या; 'कासी विक्कमवच्छरम्मि य गए बाणंकसुन्नोडुवे' (सुर १६, २४९) ४ संख्या-दर्शक चिह्न; १, २, ३ (पण्ण २) ५ नाटक का एक अंश; 'सुण्णा मणुस्सभवणाड़एसु निज्झाइआ अंका' (धण ४५) ६ सफेद मणि की एक जाति (उत्त ३४) ७ चिह्न, निशान (चंद २०) ८ मनुष्य के बत्तीस प्रशस्त लक्षणों में से एक (पण्ह १, ४) ९ आसन-विशेष (चंद ४) । °कण्ड पुंन. [काण्ड] रत्‍नप्रभा पृथ्वी के खर-काण्ड का एक हिस्सा, जो अंक रत्‍नों का है (ठा १०) । °अरेल्लुग, °करेल्लुअ पुं [°करेल्लुक] पानी में होनेवाली एक जाति की वनस्पति (आचा) । °ट्ठिइ स्त्री [°स्थिति] अंक रेखाओं की विचित्र स्थापना, ६४ कलाओं में एक कला (कप्प) । °धर पुं [°धर] चन्द्रमा (जीव ३) । °धाई स्त्री [°धात्री] पांच प्रकार की धाई-माताओं में से एक, जिसका काम बालक को उत्संग में ले उसका जी बहलाना है (णाया १, १) । °लिवि स्त्री [°लिपि] अठारह लिपियों में की एक लिपि, वर्णमाला-विशेष (सम ३५) । °वणिय पुं [°वणिक्] अंक- रत्‍नों का व्यापारी (राय) । °वालि, °वाली स्त्री [°पालि, °पाली] आलिंगन (काप्र १९४) । °हर देखो °धर (जीव ३)

अंक :: [दे अङ्क] निकट, समीप, पास (दे १, ५)

अंक :: /?/पुंन. [अङ्क] एक देव-विमान (देवेन्द्र १३२)

अंककरेलुअ :: , °ग देखो अंक-करेल्लुअ (आचा २, १, ८, ५)

अंकण :: न [अङ्कन] १ चिह्नित करना (आव) २ बैल आदि पशुओं को लोहे की गरम सलाई आदि से दागना (पण्ह १, १) ३ वि. अंकित करनेवाला, गिनती में लानेवाला; 'अंकणं जोइसस्स सुरं' (कप्प)

अंकणा :: स्त्री [अङ्कना] ऊपर देखो (णाया १, १७)

अंकदास :: पुं [अङ्कदास] बालक को उत्संग में लेकर उसका जी बहलानेवाला नौकर (सम्मत्त २१७)

अकवाणिय :: देखो अंक-वणिय (राय १२९)

अंकार :: पुं [दे] सहायता, मदद (दे १, ९)

अंकावई :: स्त्री [अङ्कावती] १ महाविदेह क्षेत्र के रम्य नामक विजय की राजधानी (ठा २) । मेरु की पश्चिम दिशा में बहती हुई शीतोदा महानदी की दक्षिण दिशा में वर्तमान एक वक्षस्कार पर्वत (ठा ५, २)

अंकिअ :: न [दे] आलिंगन (दे १, ११)

अंकिअ :: वि [अङ्कित] चिह्नित, निशानवाला (औप)

अंकिइल्ल :: पुं [दे] नट, नर्तक, नचवैया (णाया १, १)

अंकुडग :: पुं [अङ्कुटक] नागदन्तक, खूँटी, ताख (जं १)

अंकुर :: पुं [अङ्कुर] प्ररोह, फुनगी (जी ९)

अंकुरिय :: वि [अङ्कुरित] अंकुर-युक्त, जिसमें अंकुर अत्पन्न हुए हों वह (उवा)

अंकुस :: पुं [अङ्कुश] १ आंकडी, लोहे का एक हथियार, जिससे हाथी चलाये जाते हैं; 'अंकुसेण जहा णागो धम्मे संपडिवाइओ' (उत्त २२) २ ग्रह-विशेष (ठा २, ३) ३ सीता का एक पुत्र, कुस (पउम ९७, १९) ४ नियन्त्रण करनेवाला, काबू में रखनेवाला (गउड) ५ एक देव-विमान (राज) ६ पुंन.गुरु-वन्दन का एक दोष (पव २)

अंकुस :: पुंन [अङ्कुश] १ एक देव-विमान (देवेन्द्र १४०) २ पुं. अंकुशाकार खूँटी (राय ३७)

अंकुसइय :: न [दे. अंकुशित] अंकुश के आकारवाली चीज (दे १, ३८; से ६, ६३)

अंकुसय :: पुं [अङ्कुशक] देखो अंकुस । २ संन्यासी का एक उपकरण, जिससे वह देव- पूजा के वास्ते वृक्ष के पल्लवों को काटता है (औप)

अंकुसा :: स्त्री [अङ्कुशा] चौदहवें तीर्थकर श्री अनन्तनाथ भगवान् की शासन-देवी (पव २८)

अंकुसिअ :: वि [अङ्कुशित] अंकुश की तरह मुड़ा हुआ (से १४, २९)

अंकुसी :: स्त्री [अङकुशी] देखो अंकुसा (संति १०)

अंकूर :: देखो अंकुर; 'सा पुण विरतमित्ता निबंकूरे विसेसेइ' (सूअनि ६१ टी)

अंकेल्लण :: न [दे] घोड़ा आदि को मारने का चाबुक, कोड़ा, औंगी (जं ४)

अंकेल्लि :: पुं [दे] अशोक-वृक्ष (दे१, ७)

अंकोल्ल :: पुं [अङ्कोठ] वृक्ष-विशेष (हे १, २००)

अंग :: ब. पुं [अङ्ग] १ इस नाम का एक देश, जिसको आजकल बिहार कहते हैं (सूर २, ६७) २ रामका एक सुभट (पउम ५९, ३७) ३ न. आचाराग सूत्र आदि बारह जैन आगमग्रंथ (विपा २, १) ४ वेदांग, वेद के शिक्षादि छः अंग (आचू) ५ कारण, हेतु (पव १) ६ आत्मा, जीव (भवि) ७ पुंन. शरीर (प्रासू ८४) ८ शरीर के मस्तक आदि अवयव (कम्म १, ३४) ९ अ. मित्रता का आमन्त्रण, सम्बोधन (राय) १० वाक्यालंकार में प्रयुक्त किया जाता अव्यय (ठा ४) । °इ पुं [°जित्] इस नामका एक गृहस्थ, जिसने भगवान् पार्श्‍वनाथ के पास दीक्षा ली थी (निर) । °इसि पुं [°र्षि] चंपा नगरी का एक ऋषि (आचू) । [°चूलिया] स्त्री [°चूलिका] अंग-ग्रंथों का परिशिष्ट (पक्खि) । °च्छहिय वि [°छिन्‍नाङ्ग] जिसका अंग काटा गया हो वह (सूअ २, २, ६३) । °जाय वि [°जात] बच्चा, लड़का (उप ३४८) । °द देखो °य = °द (ठा ८) । °पविट्ठ न [°अविष्ट] १ बारह जैन अंग-ग्रन्थों में से कोई भी एक (कम्म १, ६) । २ अंग- ग्रंथों का ज्ञान (ठा २, १) । °बाहिर न [°बाह्य] १ अंग-ग्रंथों के अतिरिक्त जैन आगम (आचू) । २ अंग-ग्रंथों से भिन्न जैन आगमों का ज्ञान (ठा २) । °मंग न [°ङ्ग] १ अंग-प्रत्यंग (राय) । २ हर एक अवयव (षड्) । °मंदिर न [°मन्दिर] चम्पा नगरी का एक देव-गृह (भग १, १) । °मद्द, °मद्दय पुं [°मर्द, °मर्दक] १ शरीर की चंपी करनेवाला नौकर । २ वि. शरीर को मलनेवाला, चंपी करनेवाला (सुपा १०८; महा; भग ११, १) । °य पुं [°द] १ ताली नामक विद्याधरराज का पुत्र (पउम १०, १०; ५९, ३७) । २ न. बाजू बंद, केहुंटा (पण्ह १, ४) । °य वि [°ज] १ शरीर में उत्पन्न । २ पुं. पुत्र, लड़का (उप १३४ टी) । °या स्त्री [°जा] कन्या, पुत्री (पाअ) । °रक्ख, °रक्खग वि [°रक्ष, °रक्षक] शरीर को रक्षा करनेवाला (सुपा ५२७; इक) । °राग, °राय पुं [°राग] शरीर में चन्दनादि का विलेपन (औप; गा १८९) । °राय पुं [°राज] १ अंगदेश का राजा (उप ७९५) । अंग देश का राजा कर्ण (णाया १, १६; वेशी १०४) । °रिसि देखो °इसि । °रुइ वि [°रुह] देखो °य = °ज (सुपा ५१२; पउम ५९, ३२) । °रुहा स्त्री [°रुहा] पुत्री, लडकी (सुपा १५०) । °विज्जा स्त्री [°विद्या] १ शरीर के स्फुरण का शुभा- शुभ फल बतलानेवाली विद्या (उत्त ८) । २ उस नाम का एक जैन ग्रंथ (उत्त ८) । °वियार पुं [°विचार] देखो पूर्वोक्त अर्थ (उत्त १५) । °संभूय वि [°संभूत] संतान, बच्चा (उप ६४८) । °हारय पुं [°हारक] शरीर के अवयवों के विक्षेप, हाव-भाव (अजि ३१) । °दाण न [°दान] पुरुषेन्द्रिय, पुरुष-चिह्न (निसी)

अंग :: पुं [अङ्ग] भगवान् आदिनाथ के एक पुत्र का नाम (ती १४) । २ न. लगातार बारह दिनों का उपवास (संबोध ५८) । °ज देखो °य (धर्मवि १२६) । °हर वि. [°धर] अङ्ग- ग्रंथों का जानकार (विचार ४७३)

अंग :: पुं [अङ्ग] भगवान् आदिनाथ के एक पुत्र का नाम (ती १४) । २ न. लगातार बारह दिनों का उपवास (संबोध ५८) । °ज देखो °य (धर्मवि १२६) । °हर वि. [°धर] अङ्ग- ग्रंथों का जानकार (विचार ४७३)

अंग :: वि [आङ्ग] १ शरीर का विकार (ठा ८) २ शरीर-संबंधी, शारीरिक (सुअ २, २) ३ न. शरीर के स्फुरण आदि विकारों के शुभाशुभ फल को बतलानेवाला शास्त्र, निमित्त- शास्त्र (सम ४९)

°अंग :: वि [चङ्ग] सुन्दर, मनोहर (भवि)

अंगइया :: स्त्री [अङ्गदिका] एक नगरी, तीर्थ- विशेष (उप ५५२)

अंगंगीभाव :: पुं [अङ्गाङ्गीभाव] अभेद-भाव, अभिन्नता; ‘अंगंगीभावेण परिणएणन्नसरिस- जिणधम्मे’ (सुपा २१८)

अंगण :: न [अङ्गण] आंगन, चौक (सुर ३, ७१)

अंगणा :: स्त्री [अङ्गना] स्त्री, औरत (सुर ३, १८)

अंगदिआ :: देखो अङ्गइया (ती)

अंगवड्‌ढण :: न [दे] रोग, बीमारी (दे १, ४७)

अंगवलिज्ज :: न [दे] शरीर को मोड़ना (दे १, ४२)

अंगार :: पुं [अङ्गार] १ जलता हुआ कोयला (हे १, ४७) २ जैन साधुओं के लिए भिक्षा का एक दोष (आचा) । °मद्दग पुं [°मर्दक] एक अभव्य जैन-आचार्य (उप २५४) । °वई स्त्री [°वती] सुंसुमार नगर के राजा धुन्धुमार की एक कन्या का नाम (धम्म ८ टी)

अंगारग, अंगारय :: पुं [अङ्गारक] १-२ ऊपर देखो (गा २६१) ३ मंगल-ग्रह (पण्ह १, ५) ४ पहला महाग्रह (ठा २) ५ राक्षस-वंश का एक राजा (पउम ५, २६२)

अंगारिय :: वि [अङ्गारित] कोयले की तरह जला हुआ, विवर्ण (नाट; आचा)

अंगाल :: देखो अंगार; 'निदड्‌ढंगालनिभं' (पिंड ६७५)

अंगालग :: देखो अंगारग (राज)

अंगालिय :: न [दे] ईख का टुकड़ा (दे १, २८)

अंगालिय :: देख अंगारिय (आचा)

अंगि :: पुं [अङ्गिन्] १ प्राणी, जीव (गण ८) २ वि. शरीरवाला । ३ अंग-ग्रन्थों का ज्ञाता (कप्प)

अंगिरस :: न [अङ्गिरस] एक गोत्र, जो गोतम- गोत्र की शाखा है (ठा ७)

अंगिरस :: वि [आङ्गिरस] १ अंगिरस-गोत्र में उत्पन्न (ठा ७) २ पुं. एक तापस (पउम ४, ८६)

अंगीकड, अंगीकय :: वि [अङ्गीकृत] स्वीकृत (ठा ५; सुपा ५२६)।

अंगीकर, अंगीकुण :: सक [अङ्गी + कृ] स्वीकार करना । अंगीकरेइ (महा; नाट) । अंगीकरेहि (स ३०६) संकृ. अंगीकरेऊण (विसे २६४२)

अंगुअ :: पुं [इङ्गुद] १ वृक्ष-विशेष । २ न. इंगुद वृक्ष का फल (हे १, ८६)

अंगुठ्ठ :: पुं [अङ्गुष्ठ] अंगूठा (ठा १०) °पसिण पुं [°प्रश्‍न] १ एक विद्या । २ 'प्रश्न-व्याकरण' सुत्र का एक लुप्त अध्ययन (ठा १०)

अंगुट्ठी :: स्त्री [दे] सिरका अवगुण्ठन, घूंघट (दे १, ६; स २८४)

अंगुत्थल :: न [दे] अंगुठी, अंगुलीय (दे १, ३१)

अंगुब्भव :: वि [अङ्गोद्भव] संतान, बच्चा (उप २६४)

अंगुम :: सक [पूपय्] पूर्ति करना, पूरा करना । अंगुमइ (हे ४, ६८)

अंगुमिय :: वि [पूरित] पूर्ण किया हुआ (कुमा)

अंगुरि :: , °री स्त्री [अङ्गुलि, °ली] उंगली (गा २७७)

अंगुल :: न [अङ्गुल] यव के आठ मघ्यभाग के बराबर का एक नाप, मान-विशेष (भग ३, ७) । °पोहत्तिय वि [°पृथक्त्विक] दो से लेकर नव अंगुल तक का परिमाण वाला (जीव १)

अंगुलि :: स्त्री [अङ्गुलि] उंगली (कुमा ।)

°कोस :: पुं [°कोश] अंगुलि-त्राण, दास्ताना (राय) । °प्फोडण न [°स्फोटन] उंगली फोड़ना, कड़ाका करना (तंदु)

अंगुलिअ, अंगुलिज्जक, अंगुलिज्जग :: न [अङ्गुलीयक] अंगुठी (दे ५, ९; कप्प; पि २५२)

अंगुलिणी :: स्त्री [दे] प्रियंगु, वृक्ष-विशेष (दे १, ३२)

अंगुली :: स्त्री [अङ्गूली] देखो अंगुलि (कप्प)

अंगुलीय, अंगुलीयग, अंगुलीयय, अंगुलेज्जक, अंगुलेयय :: पुंन [अङ्गुलीयक] अंगुठी (सुर १०, ९४); 'पायवडिएण सामिय ! समप्पिओ अंगलीयओ तीए' (पउम ५४, ६; सुर १, १३२; पि २५२; पउम ४९, ३०)

अंगुलेयग :: देखो अंगुलेयय (सुख २, २९)

अंगुवंग, अंगोवंग :: न [अङ्गोपाङ्ग] १ शरीर के अवयव (पण्ण २३) २ नख वगैरह शरीर के छोटे-छोटे अवयव; 'नहकेसमं- सुअंगुलीओट्ठा खलु अंगोवंगाणि' (उत्त ३) । °णाम न [°नामन्] शरीर के अवयवों के निमणि में कारण-भूत कर्म-विशेष (कम्म १, ३४; ४८)

अंगोहलि :: स्त्री [दे] शिर को छोड़कर बाकी शरीर का स्‍नान (उप पृ २३)।

अंघो :: अ [अङ्ग] भय-सूचक अव्यय (प्रति ३९; प्रयौ २०५)

अंच :: सक [कृष्] १ खींचना । २ जोतना, चास करना । ३ रेखा करना । ४ उठाना । अंचइ (हे ४, १८७) । संकृ. अंचेइत्ता (आव)

अंच :: सक [अञ्च्] पूजना, पूजा करना । अंचए (भवि)

अंच :: सक [अञ्च‍्] जाना । अंचति (पंचा १६, २३); 'अञ्चु गइ पूयणम्मि य', 'सोधीए पारमंचइ' (बृह ४)

अंचल :: पुं [अञ्‍चल] कपड़े का शेष भाग (कुमा)

अंचि :: पुं [अञ्चि] गमन, गति (भग १५)

अंचि :: पुं [आञ्चि] आगमन, आना (भग १५)

अंचिय :: वि [अञ्चित] १ युक्त, सहित (सुर ४, ६७) २ पूजित (सुपा २१८) ३ प्रशस्त, श्लाघित (प्रासू १८) ४ न. एक प्रकार का नृत्य (ठा ४, ४; जीव ३) ५ एक बार का गमन (भग १५) । °यंचि पुं [°ञ्चि] १ गमनागमन, आना-जाना (भग १५) । २ ऊँचा-नीचा होना (ठा १०)

अंचियरिभिय :: न [अञ्चितरिभित] एक तरह का नाट्य (राय ५३)

अंचिया :: स्त्री [अञ्चिका] आकर्षण (स१०२)

अंछ :: सक [कृष्] १ खींचना; 'अंछंति वासुदेवं अगडतडम्मि ठियं संतं' (विसे ७९४) २ अक. लम्बा होना । वकृ. अंछमाण (विसे ७९०) । प्रयो. अंछावेइ (णाया १, १)

अंछण :: न [कर्षण] खींचाव (पण्ह २, ५)

अंछिय :: वि [दे] आकृष्ट, खींचा हुआ (दे १, १४)

अंज :: सक [अञ्ज्] आंजना । कृ. अंजियव्व (स ५४३)

अंजण :: पुं [अञ्‍जन] १ कृष्ण पुद्‌गल-विशेष (सुज्ज २०) २ देव-विशेष (सिरि ६६७)

अंजण :: पुं [अञ्जन] १ पर्वत-विशेष (ठा ५) २ एक लोकपाल देव (ठा ४) ३ पर्वत-विशेष का एक शिखर, जो दिग्हस्ती कहा जाता है (ठा २, ३, ८) ४ वृक्ष-विशेष (आव) ५ न. एक जाति का रत्‍न (णाया १, १) ६ देवविमान-विशेष (सम ३५) ७ काजल, कजल (प्रासू ३०) ८ जिसका सुरमा बनता है ऐसा एक पार्यिव द्रव्य (जी ४) । ९ आंखको आंजना (सूअ १, ९) । १० तैल आदि से शरीर की मालिश करना (राज) । ११ लेप (स ५८२) । १२ रत्‍नप्रभा पृथिवी के खर-काण्ड का दशवाँ अंश-विशेष (ठा १०) । °केसिया स्त्री [°केशिका] वनस्पति-विशेष (पण्ण १७; राय) । °जोग पुं [°योग] कला-विशेष (कप्प) । °दीव पुं [°द्वीप] द्वीप-विशेष (इक) । °पुलय पुं [°पुलक] एक जाति का रत्‍न (ठा १०) । २ पर्वत-विशेष का एक शिखर (ठा ८) । °प्पहा स्त्री [°प्रभा] चौथी नरक-पृथिवी (इक) । °रिट्ठ पुं [°रिष्ट] इन्द्र-विशेष (भग ३, ८) । °सलागा स्त्री [°शलाका] १ जैन-मूर्तिकी प्रतिष्ठा । २ अंजन लगाने की सलाई (सूअ १, ५) । °सिद्ध वि [°सिद्ध] आंख में अंजन- विशेष लगाकर अदृश्य होने की शक्तिवाला (निसी) । °सुन्दरी स्त्री [°सुन्दरी] एक सती स्त्री, हनुमान् की माता (पउम १५, १२)।

अंजणइसिआ :: स्त्री [दे] वृक्ष-विशेष, श्याम तमाल का पेड़ (दे १, ३७)

अंजणई :: स्त्री [दे] वल्ली-विशेष (पण्ण१)

अंजणईस :: न [दे] देखो अंजणइसिआ (दे १, ३७)

अंजणग :: देखो अंजण ।

अंजणा :: स्त्री [अंजना] १ हनुमान की माता (पउम १, ६०) २ स्वनाम-ख्यात चौथी नरक-पृथिवी (ठा २, ४) ३ एक पुष्करिणी (जं ४) । °तणय पुं [°तनय] हनुमान् (पउम ४७, २८) । °सुन्दरी स्त्री [°सुन्दरी] हनुमान् की माता (पउम १८, ५८)

अंजणाभा :: स्‍त्री [अञ्जनाभा] चौथी नरकपृथिवी (इक)

अंजणिआ :: स्‍त्री [दे] देखो अंजणइसिआ (दे १, ३७)

अंजणी :: स्‍त्री [अञ्जनी] कज्जल का आधारपात्र (सूअ १, ४)

अंजलि :: , °ली पुंस्‍त्री [अञ्जलि] १ हाथ का संपुट (हे १, ३५) । एक या दोनों संकुचित हाथों को ललाट पर रखना; 'एगेण वा दोहि वा मउलिएहिं हत्थेहिं णिडालसंसितेहिं अंजली भण्णति' (निचू) ३ कर-संपुट, नमस्कार रूप विनय, प्रणाम (प्रासू ११०; स्वप्‍न ६३) । °उड पुं [°पुट] हाथ का संपुट (महा) । °करण न [°करण] विनय-विशेष, नमन (दे) । °पग्गह पुं [°प्रग्रह] १ नमन, हाथ जोड़ना (भग १४, ३) । २ संभोग-विशेष (राज)

अंजस :: वि (दे) ऋृजु, सरल (दे १, १४)

अंजिय :: वि [अञ्जित] आंजा हुआ, अंजन-युक्त किया हुआ (से ६, ४८)

अंजु :: वि [ऋजु] १ सरल, अकुटिल; 'अंजुधम्मं जहा तच्‍चं, जिणाणं तह सुणेह मे' (सूअ १, १; १, १, ४, ८) २ संयम में तत्पर, संयमी; 'पुट्ठोवि नाइवत्तइ अंजू' (आचा) ३ स्पष्ट, व्यक्त (सूअ १, १)

अंजुआ :: स्‍त्री [अञ्ज‍ुका] भगवान् अनन्तनाथ की प्रथम शिष्या (सम १५२)

अंजू :: स्‍त्री [अञ्ज‍ू] १ एक सार्थवाह की कन्या (विपा १, १०) २ 'विपाकश्रुत' का एक अघ्ययन (विपा १, १) ३ एक इन्द्राणी (ठा ८) ४ 'ज्ञाताधर्मकथा' सूत्र का एक अघ्ययन (णाया २)

अंठि :: पुंन [अस्थि] हड्डी, हाड़ (षड्); 'अहिअमहुरस्स अंबस्स अजोग्गदाए अण्ठी न भक्खीअदि' (चारु ६)

अंड, अंडअ, अंडग :: न [अण्ड, °क] १ अंडा (कप्प; औप) २ अंड-कोश (महानि ४) ३ 'ज्ञाताध र्मकथा' सूत्र का तृतीय अध्ययन (णाया १, १) । °कड वि [°कृत] जो अण्डे से वनाया गया हो; 'बंभणा माहणा एगे, आह अण्डकडे जगे' (सुअ १, ३) । °बंध पुं [°बन्ध] मन्दिर के शिखर पर रखा जाता अण्डाकार गोला (गउड) । °वाणियय पुं [°वाणि- जक] अण्डों का व्यापारी (विपा १, ३)

अंडग, अंडय :: वि [अण्डज] १ अण्डे से पैदा होनेवाले जंतु; पक्षी, साप, मछली वगैरह (ठा ३, १; ८) २ रेशम का धागा । ३ रेशमी वस्‍त्र (उत्त २९) ४ शण का वस्‍त्र (सूअ २, २)

अंडय :: पुं [दे, अण्डज] मछली, मत्स्य (दे १, १६)

अंडाउय :: वि [अण्डज] अण्डे से पैदा होनेवाला (पउम १०२, ६७)

अंत :: पुं [अन्त] १ स्वरूप, स्वभाव (से ९, १८) २ प्रान्त भाग (से ९, १८) ३ सीमा, हद (जी ३३) ४ निकट, नजदीक (विपा १, १) ५ भग, विनाश (विसे ३४५४, जी ४८) ६ निर्णय, निश्चय (ठा ३) ७ प्रदेश, स्थान; 'एगंतमंतमवक्कमइ' (भग ३, २) ८ राग और द्वेष; 'दोहिं अंतेहि अदिस्समाणो' (आचा) ९ रोग, बीमारी (विसे ३४५४) १० वि. इन्द्रियों को प्रतिकूल लगनेवाली चीज, असुन्दर, नीरस वस्तु (पण्ह २, ४) ११ मनोहर, सुन्दर (से ९, १८) १२ नीच, क्षुद्र, तुच्छ (कप्प) । °कर वि [°कर] उसी जन्म में मुक्ति पानेवाला (सूअ १, १५) । °करण वि [°करण] नाशक (पण्ह १, ६) । °काल पुं [°काल] १ मृत्यु काल । २ प्रलय काल (से ५, ३२) । °किरिया स्‍त्री [°क्रिया] मुक्ति, संसार का अन्त करना (ठा ४, १) । °कुल न [°कुल] क्षुद्र कुल (कप्प) । °गड वि [°कृत्] उसी जन्म में मुक्ति पानेवाला (उप ४६१) । °गडदसा स्‍त्री [°कृद्दशा] जैन अंग-ग्रंथों में आठवाँ अंग-ग्रंथ (अणु १) । °चर वि [°चर] भिक्षा में नीरस पदार्थो की ही खोज करनेवाला (पण्ह २, १)

अंत :: वि [अन्त्य] अन्तिम, अन्त का (पण्ण १५) । °क्खरिया स्‍त्री [°खरिका] १ ब्राह्मी लिपि का एक भेद (पण्ण १) २ कला-विशेष (कप्प)

अंत :: न [अन्त्र] आंत (सुपा १८२, गा ५८५)

अंत :: अ [अन्तर्] मघ्य में, बीच में (हे १, १४) । °उर न [°पुर] देखो अंतेउर (नाट) । °करण, °क्करण [°करण] मन, हृदय; 'करुणारसपरवसंतकरणेण' (उप ६ टी; नाट) । °ग्गय वि [°गत] मघ्यवर्ती, बीचवाला (हे १, ६०) । °द्धा स्‍त्री [°धा] १ तिरोधान । २ नाश (आचू) । °द्धाण न [°धान] अदृश्य होना, तिरोहित होना (उप १३९ टी) । °द्धाणी स्‍त्री [°र्धानी] जिससे अदृश्य हो सके ऐसी विद्या (सूअ २, २) । °द्धाभूअ वि [°धाभूत] नष्ट, विगत; 'नट्ठेत्ति वा विगतेति वा अंतद्धाभूतेत्ति वा एगट्ठा' (आचू) । °प्पाअ पुं [°पात] अन्तर्भाव, समावेश (हे २, ७७) । °भाव पुं [°भाव] समावेश (विसे) । °मुहुत्त न [°मुहूर्त] कुछ कम मुहूर्त्त, न्यून मुहूर्त्त (जी १४) । °रद्धा स्‍त्री [°धा] १ तिरीधान । २ नाश, 'वुड्‍ढी सइअन्तरद्धा' (श्रा १९) । °रद्धा स्‍त्री [°अद्धा] मघ्य-काल, बीच का समय (आचा) । °रप्प पुं [°आत्मन्] आत्मा, जीव (हे १, १४) । °रहिय, °रिहिद (शौ) वि [°हित] १ व्यवहित, अंतराल-युक्त (आचा) । २ गुप्त, अदृश्य (सम ३९; उप १६९ टी; अभि १२०) । °वेइ पुं [°वेदि] गंगा और यमुना के बीच का देश (कुमा) । °अंत वि [°कान्त] सुन्दर, मनोहर (से १, ५९)

अंतअ :: वि [आयात्] आता हुआ (से ९, ४९)

अंतअ :: वि [अन्तग] पार-गामी, पार-प्राप्त (से ९, १८)

अंतअ :: वि [अन्तद] १ अविनाशी, शाश्वत । २ जिसकी सीमा न हो वह (से ९, १८)

अंतअ, अंतग :: वि [अन्तक] १ मनोहर, सुन्दर (से ९, १८) २ अन्तर्गत, समाविष्ट (सूअ १, १५) ३ पर्यन्त, प्रांन्त भाग; 'जे एवं परिभासंति अन्तए ते समाहिए' (सूअ १, ३) ४ यम, मृत्यु (से ९, १८; उप ९९६ टी); 'समागमं कंखति अन्तगस्स' (सूअ १, ७)

अंतग :: वि [अन्तग] १ पार-गामी । २ दुस्त्यज, जो कठिनाई से छोड़ा जा सके; 'चिच्चाण अन्तगं सोयं निरवेक्खो परिव्वए' (सूअ १, ९)

अंतगय :: देखो अंत-ग्गय (वव १)

°अंतण :: न [यन्त्रण] बन्घन, नियन्त्रण (प्रयौ २४)

अंतद्धाण :: वि [अन्तर्धान] तिरोधान-कर्त्ता (पिंड ५००)

अंतब्भाव :: देखो अंत-भाव (अज्भ १४२)

अंतर :: न [अन्तर] १ मघ्य, भीतर; 'गामंतरे पविट्ठो सो' (उप ६ टी) २ भेद, विशेष, फरक (प्रासू १६८) ३ अवसर, समय (णाया १, २) ४ व्यवधान (जं १) ५ अवकाश, अन्तराल (भग ७, ८) ६ विवर, छिद्र (पाअ) ७ रजोहरण । ८ पात्र । ९ पुं. आचार, कल्प । १० सूत के कपड़े पहनने का आचार, सौत्र कल्प (कप्प) । °कप्प पुं [°कल्प] जैन साघु का एक आत्मिक प्रशस्त आचरण (पंचू) °कंद पुं [°कन्द] कन्द की एक जाति, वनस्पति-विशेष (पण्ण१) । °करण न [°करण] आत्मा का शुभ अध्य- वसाय-विशेष (पंच) । °गिह न [°गृह] १ घर का भीतरी भाग । २ दो घरों के बीच का अंतर (बृह ३) । °णई स्‍त्री [°नदी] छोटी नदी (ठा ६) । °दीव पुं [°द्वीप] १ द्वीप-विशेष (जी २३) । २ लवण समुद्र के बीच का द्वीप (पण्ण १) । °सत्तु पुं [°शत्रु] भीतरी शत्रु, काम-क्रोधादि (सुपा ८५)

अंतर :: सक [अन्तरय्] व्यवघान करना, बीच में डालना । अंतरेहि, अंतरेमि (विक्र १३९)

अंतर :: वि [आन्तर] १ अभ्यन्तर, भीतरी; 'सय-लसुराणंपि अंतरो अप्पाणो' (अच्चु २०) २ मानसिक (उवर ७१)

अंतरंग :: वि [अन्तरङ्ग] भीतरी (विसे २०२७)

अंतरंजी :: स्‍त्री [आन्तरञ्जी] नगरी-विशेष (विसे २३०३)

अंतरपल्ली :: स्‍त्री [अन्तरपल्ली] मूल स्थान से ढाई गव्यूत की दूरी पर स्थित गाँव (पव७०)

अंतरमुहुत्त :: देखो अंत-मुहुत्त (पंच २, १३)

अंतरा :: अ [अन्तरा] १ मघ्य में, बीच में (उप ६५४) २ पहले, पूर्व में (कप्प)

अंतराइय :: न [आन्तरायिक] १ कर्म-विशेष, जो दान आदि करने में विघ्न करता है (ठा २) २ विघ्न, रुकावट (पण्ह २, १)

अंतराईय :: न [अन्तरायीय] ऊपर देखो (सुपा ६०१)

अंतरापह :: पुं [अन्तरापथ] रास्ता का बीचला भाग (सुख १, १५)

अंतराय :: पुंन. [अन्तराय] देखो अंतराइय (ठा २, ४; स २०३)

अंतराल :: पुं [अन्तराल] अंतर, बीच का भाग (अभि ८२)

अंतरावण :: पुंन [अन्तरापण] दूकान, हाट (चारु ३)

अंतरावास :: पुं [अन्तरवर्ष, अन्तरावास] वर्षा-काल (कप्प)

अंतरिक्ख :: पुंन [अन्तरिक्ष] अन्तराल, आकाश (भग १७, १०, स्वप्‍न ७०) । °जाय वि [°जात] जमीन के ऊपर रही हुई प्रासाद, मंच आदि वस्तु (आचा २, ५) । °पासणाह पुं [°पार्श्वनाथ] खानदेश में अकोला के पास का एक जैन-तीर्थ और वहाँ की भगवान श्रीपार्श्‍वनाथ की सूर्ति (ती)

अंतरिक्ख :: वि [आन्तरिक्ष] १ आकाशसंबंधी, आकाश का (जी ५) २ ग्रहों के परस्पर युद्ध और भेद का फल बतलानेवाला शस्‍त्र (सम ४९)

अंतरिज्ज :: न [अन्तरीय] १ वस्‍त्र, कपड़ा । २ शय्या का नीचला वस्‍त्र; 'अंतरिज्जं णाम णियंसणं, अहवा अंतरिज्जं नाम सेज्जाए हेट्ठिल्लं पोत्तं' (निचू १५)

अंतरिज्ज :: न [दे] करधनी, कटीसूत्र (दे १, ३५)

अंतरिज्जिया :: स्‍त्री [अन्तरीया] जैनीय वेशवाटिक गच्छ की एक शाखा (कप्प)

अंतरित, अंतरिय :: वि [अन्तरित] व्यवहित, अंतरवाला (सुर ३, १४३; से १, २७)

अंतरिया :: स्‍त्री [दे] समाप्ति, अंत (जं २)

अंतरिया :: स्‍त्री [अन्तरिका] छोटा अन्तर, थोड़ा व्यवधान (राय)

अंतरीय :: न [अन्तरीप] द्वीप, 'सरवरगिहंत- राले जिणभवणं आसि अंतरीयं व' (धर्मवि १४३)

अंतरेण :: अ [अन्तरेण] बिना, सिवाय (उत्त १)

अंतरेण :: अ [अन्तरेण] बीच में, मघ्य में (स ७६७)

अंतलिक्ख :: देखो अंतरिक्ख (णाया १, १; चारु ७)

°अंति :: देखो पंति (से ६, ६९)

अंतिम :: वि [अन्तिम] चरम, शेष, अन्त्य (ठा १)

अंतिय :: न [अन्तिक] १ समीप, निकट (उत्त १) २ अवसान, अंत; 'अह भिक्खू गिलाएज्जा आहारस्सेव अंतिया' (आचा १, ८) ३ अन्तिम, चरम (सूअ २, २)

अंतीहरी :: स्‍त्री [दे] दूती (दे १, ३५)

अंतेआरि :: वि [अन्तश्चारिन्] बीच में जानेवाला, बीचक (हे १, ६०)

अंतेउर :: न [अन्तःपुर] १ राजस्‍त्रियों का निवासगृह । २ रानी, 'सणंकुमारो वि तेसि वंदणत्थं संतेउरो गओ तमुज्जाणं' (महा)

अंतेउरिगा, अंतेउरिया, अंतेउरी :: स्‍त्री [आन्तःपुरिकी, °री] अन्तःपुर में रहनेवाली स्‍त्री, राज्ञी (उप ६ टी; सुपा २२८, २८९) २ रोगी का नाममात्र लेने से उसको नीरोग बनानेवाली एक विद्या (वव ५)

अंतेल्ली :: स्‍त्री [दे] १ मध्य, बीच । २ उदर, पेट । ३ कल्लोल, तरंग (दे १, ५५)

अंतेवासि :: वि [अन्तेवासिन्] शिष्य (कप्प)

अंतेवुर :: देखो अतेउर (प्रति ५७)

अंतो :: अ [अन्तर्] बीच, भीतर; 'गामंतो संपत्ता' (उप ६ टी; सुर ३, ७४) । °खरिया स्‍त्री [°खरिका] नगर में रहनेवाली वेश्या (भग १५) । °गइया स्‍त्री [°गतिका] स्वागत के लिए सामने जाना, 'सव्वाए विभूईए अंतोगइयाए तणयस्स' (सुर १५, १६१) । °गय वि [°गत] मध्यवर्ती, समाविष्ट (उप ९८६ टी) । °णिअंसणी स्‍त्री [°निवसनी] जैन साध्वियों को पहनने का एक वस्‍त्र (बृह ३) । °दहण न [°दहन] हृदय-दाह (तंदु) । °मज्भाव- साणिय पुंन [°मध्यावसानिक] अभिनय का एक भेद (राय) । °मुहुत्त न [°मुहूर्त्त] कम मुहूर्त्त, ४८ मिनिट से कम समय (कप्प) । °वाहिणी स्‍त्री [°वाहिनी] क्षुद्र नदी (ठा २, ३) । °वीसंभ पुं [°विश्रम्भ] हार्दिक विश्वास (हे १ ६०) । °सल्ल न [°शल्य] १ भीतरी शल्य, घाव (ठा ४) । २ कपट, माया (औप) । °साला स्‍त्री [°शाला] घरका भीतरी भाग, 'कोलालभंडं अंतोसालाहिंतो बहिया नीणेइ' (उवा; पि ३४३)। °हुत्त वि [°मुख] भीतर, 'अंताहुत्तं डज्भइ जायासुण्णो घरे हलिअउत्तो' (गा ३७३)

अंतोहुत्त :: वि [दे] अधोमुख, औंधा मुंह वाला (दे १, २१)

अंत्रडी :: (अप) स्‍त्री [अन्त्र] आंत, आंतो (हे ४, ४४५)

°अंद :: पुं [चन्द्र] १ चन्द्रमा, चांद 'पसुवइणो रोसारुणपडिमासंकंतगोरिमुहअंदं' (गा १) २ कपूर (से ९, ४७) । °राअ पुं (°राग) चन्द्रकान्त मणि (से ९, ४७)

°अंदरा :: स्‍त्री [°कन्दरा] गुफा (से ९, ४७)

°अंदल :: पुं [कन्दल] वृक्ष-विशेष (से ७, ४७)

°अंदावेदि :: (शौ) देखो अंतावेइ (हे ४, २८६)

अंदु, अंदुया :: स्‍त्री [अन्दु] श्रृंखला, जंजीर (औप, स ५३०)

अंदेउर :: (शौ) देखो अंतेउर (हे ४, २६१)

अंदोल :: अक [अन्दोल्] १ हिंचकना, भूलना । २ कंपना, हिलना । ३ संदिग्ध होना, 'अंदोलइ दोलासु व माणो गरुओवि विलयाणं' (स ५२१) । वकृ. अंदोलंत, अंदोलिंत, अंदो- लमाण (से ८, ५१, ११, २५; सुर ३, ११९)

अंदोल :: सक [अन्दोलय्] कंपाना, हिलाना । वकृ. अंदोलंत (सुर ३, ६७)

अंदोलग :: पुं [आन्दोलक] हिंडोला (राय)

अंदोलण :: न [आन्दोलन] १ हिंचकना, भुलना (सुर ४, २२५) २ हिंडोला । ३ मार्ग-विशेष (सूअ १, ११)

अंदोलय :: देखो अंदोलग (सुर ३, १७५)

अंदोलि :: वि [आन्दोलिन्] हिलानेवाला, कंपानेवाला (गा २३७)

अंदोलिर :: वि [आन्दोलितृ] भुलनेवाला (सुपा ७८)

अंदोल्लण :: देखो अंदोलण ।

अंध :: वि [अन्ध] १ अन्धा, नेत्र-हीन (विपा १, १) २ अज्ञान, ज्ञानरहित 'एए णं अंधा मूढा तमप्पइट्ठा' (भग ७, ७) । °कंटइज्ज न [°कण्टकीय] अंध पुरुष के कंटक पर चलने के माफिक अविचारित गमन करना (आचा) । °तम न [°तमस] निबिड अन्ध- कार (सुअ १, ५) । °पुर न [°पुर] नगर- विशेष (बृह ४)

अंध :: पुं [अन्ध] पांचवॅा नरक का चौथा नरकेन्द्रक, एक नरक-स्थान (देवेन्द्र ११)

अंध :: पुं. ब. [अन्ध्र] इस नाम का एक देश (पउम ९८, ६७)

अंध :: वि [आन्ध्र] आन्ध्र देश का रहनेवाला (पण्ह १, १)

अंधंधु :: पु [दे] कूप, कुँआ (दे १, १८)

अंधकार :: देखो अंधयार (चंद ४ ।

अंधग :: पुं [दे] वृक्ष, पेड़ (भग १८, ४) । °वण्हि पुं [°वह्नि] स्थूल अग्‍नि (भग १८, ४)

अंधग :: देखो अंध (भग १८, ४) । °वण्हि पुं [°वह्नि] सूक्ष्म अग्‍नि (भग १८, ४) । °वण्हि पुं (°वृष्णि) यदुवंश का एक राजा, जो समुद्रविजयादि के पिता था (अंत २)

अंधय, अंधयग :: पुं [अन्धक] १ अंधा, नेत्रहीन (पण्ह १, २) २ वानरवंश का एक राज कुमार (पउम ६, २८६)

अंधयार :: पुंन [अन्धकार] अंधेरा, अंधकार (कप्प; स ४२९) । °पक्ख पुं [°पक्ष] कृष्णपक्ष (सुज्ज १३)

अंधयारण :: न [अन्धकार] अन्धेरा (भवि)

अंधयारिय :: वि[अन्धकारित] अंधकारवाला (से १, १५; ५३)

अंधरअ, अंधल :: वि [अन्ध] अंधा, नेत्रहीन (गा ७०४; हे २, १७३)

अंधलरिल्ली :: स्‍त्री [अन्धयित्री] अंध बनानेवाली एक विद्या (सुपा ४२८)

अंधार :: पुं [अन्धकार] अंघेरा (ओध १११, २७०)

अंधार :: सक [अन्धकारय्] अन्धकार-युक्त करना । कर्म. 'मेहच्छन्‍ने सूरे अंधारिज्जइ न किं भुवणं' (कुप्र ३८७)

अंधारिय :: वि [अन्धकारित] अंधकार वाला (सुपा ५४, सुर ३, २३०)

अंधाव :: सक [अन्धय्] अंधा करना । अंधा- वेइ (विक्र ८४)

अंधिअ :: वि [अन्धित] अन्ध बना हुआ (सम्मत्त १२१)

अधिआ :: स्‍त्री [अन्धिका] द्युत-विशेष (दे २, १)

अंधिआ :: स्‍त्री [अन्धिका] चतुरिन्द्रिय जंतु की एक जाति (उत्त ३६, १४७)

अंधिल्लग :: वि [अन्ध] अन्धा, जन्मान्ध (पण्ह २, ५)

अंधिल्लय :: देखो अंधिल्लग; (पिंड ५७२)

अंधीकिद :: (शौ) वि [अन्धीकृत] अंध किया हुआ (स्वप्‍न ४९)

अंधु :: पुं [अन्धु] कूप, कुंआ (प्रामा; दे १, १८)

अंधेल्लग :: देखो अंधिल्लग (पिण्ड)

°अंप :: पुं [कम्प] कंपन (से ५, ३२)

अंब :: पुं [अम्ब] एक जात के परमाधार्मिक देव, जो नरक के जोवों को दुख देते हैं (सम २८)

अंब :: पुं [आम्र] १ आम का पेड । २ न. आम, आम्र-फल (हे १, ८४) । °गट्ठिया स्‍त्री [दे] आम की आठी, गुठली (निचू १५) । °चोयग न [दे] १ आम का रुंछा (निचू १५) २ आम की छाल (आवा २, ७, २) । °डगल न [दे] आम का टुकड़ा (निचू १५) °डालग न [दे] आम का छोटा टुकड़ा (आचा २, ७, २) । °पेसियास्‍त्री [°पेशिका] आम का लम्बा टुकड़ा (निचू १५) । °भित्त न [दे] आम का टुकड़ा (निचू १५) । °सालग न [दे] आम को छाल (निचू १५) । °सालवण न [°शालवन] चैत्य-विशेष (राय)

अंब :: न [अम्ल] १ तक्र, मट्ठा (जं ३) २ खट्टा रस । ३ खट्टी चीज (विसे) ४ वि. निष्‍ठुर वचन बोलनेवाला (बृह १)

अंब :: वि [आम्ल] १ खट्टी वस्तु । २ मट्ठे से संस्कृत चीज (जं ३)

अंब :: वि [ताम्र] लाल, रक्‍तवर्णवाला (से ३, ३४)

अंबग :: देखो अंब = आम्र (अणु) °ट्ठिया स्‍त्री [°।स्थि] आम की गुठली (अणु)

अंबट्ठ :: पुं [अम्बष्ठ] १ देश-विशेष (पउम ९८, ६५) २ जिसका पिता ब्राह्मण और माता वैश्य हो वह (सूअ १, ९)

अंबड :: पुं [अम्बड] १ एक परिव्राजक, जो महाविदेह क्षेत्र में जन्म लेकर मोक्ष जायगा (औप) २ भगवान् महावीर का एक श्रावक, जो आगामी चौबीसी में २२ वाँ तीर्थंकर होगा (ठा ९)

अंबड :: वि [दे] कठिन (दे १, १६)

अंबधाई :: स्‍त्री [अम्बाधात्रो] धाई माता (सुपा २६८)

अंबमसी :: स्‍त्री [दे] कठिन और वासी कनिक (दे १, ३७)

अंबय :: देखो अंब (सुपा ३३४)

अंबर :: पुंन [अम्बर] एक देव-विमान (देवेन्द्र १४४)

अंबर :: न [अम्बर] १ आकाश (पाअ; भग २, २) २ वस्‍त्र, कपड़ा (पाअ; निचू १) । °तिलय पुं [°तिलक] पर्वत-विशेष (आव) । °वत्थ न [°वस्त्र] स्वच्छ वस्‍त्र (कप्प)

अंबरस :: पुंन [अम्बरस] आकाश, गगन (भग २०, २ — पत्र ७७५)

अंबरिस :: पुंन [अम्बरीष] १ भट्ठी, भाड़ (भग ३, ६) २ कोष्ठक (जीव) ३ पुं. नारक- जीवों को दुःख देनेवाले एक प्रकार के परमा- धार्मिक देव (पव १८०)

अंबरिसि :: पुं [अम्बऋषि] १ ऊपर का तीसरा अर्थ देखो (सम २८) २ उज्जयिनी नगरी का निवासी एक ब्राह्मण (आव)

अंबरीस :: देखो अंबरिस ।

अंबरीसि :: देखो अंबरिसि ।

अंबसमिआ, अंबसमी :: देखो अंबमसी।

अंबहुंडी :: स्‍त्री [अम्बहुण्डी] एक देवी (महानि २)

अंबा :: स्‍त्री [अम्बा] १ माता, मां (स्वप्‍न २२४) २ भगवान् नेमिनाथ की शासनदेवी (संति १०) ३ वल्लो-विशेष (पण्ण १)

अंबाड :: सक [खरण्ट्] खरडना, लेप करना; 'चमढेति खरण्टेति अंबडिति त्ति वुत्तं भवति' (निचू ४)

अंबाड :: सक [तिरस् + कृ] उपालंभ देना, तिरस्कार करना; 'तओ हक्‍कारिय अंबाडिआ भणिआ य' (महा)

अंबाडग, अबाडय :: पुं [आम्रातक] १ आमला का (पण्ण १; पउम ४२, ६) २ न. आमला का फल (अनु ६)

अंबाडिय :: वि [तिरस्कृत] १ तिरस्कृत (महा) २ उपालब्ध (स ५१२)

अंबिआ :: स्‍त्री [अम्बिका] १ भगवान् नेमिनाथ की शासनदेवी (ती १०) २ पांचवें वासुदेव की माता (पउम २०, १५४) । °समय पु [°समय] गिरनार पर्वत पर का एक तीर्थ स्थान (ती ४)

अंबिर :: न [आम्र] आम का फल (दे १, १५)

अंबिल :: पुं [आम्ल] १ खट्टा रस (सम ४१) २ वि. खटाई वाली चीज, खट्टी वस्तु (ओघ ३४०) ३ नामकर्म-विशेष (कम्म १, ४१)

अंबिलिया :: स्‍त्री [अम्लिका] १ इमली का पेड़ (उप १०३१ टी) २ इमली का फल (श्र २०)

अंबु :: न [अम्बु] पानी, जल (पाअ) । °अ, °ज न [°ज] कमल, पद्‍म (अच्च‍ु ५५; कुमा) । °णाह पुं [°नाथ] समुद्र (वव ६) । °रुह न [°रुह] कमल (पाअ) । °वह पुं [°वह] मेघ, वारिस (गडड) । °वाह पुं [°वाह] मेघ, वारिस (गउड)

अंबुपिसाअ :: पुं [दे] राहु (गा ८०४)

अंबुसु :: पुं [दे] श्वापद जन्तु विशेष, हिंसक पशु-विशेष, शरभ (दे १, ११)

अंबेट्टिआ, अंबेट्टी :: स्‍त्री [दे] एक प्रकार का जुआ, मुष्टि-द्यूत (दे १, ७)

अंबेसि :: पुं [दे] द्वार-फलक, दरवाजे का तख्ता (दे १, ८)

अंबोच्‍ची :: स्‍त्री [दे] फूलों को बिननेवाली स्‍त्री (दे १, ९; नाट)

अंभ :: पुं [अम्भस्] पानी, जल (श्रा १२)

अंभु :: (अप) पुं [अश्मन्] पत्थर, पाषाण (षड्)

अंभो :: पुं [अम्भस्] पानी, जल । °अ न [°ज] कमल (दे ७, ३८) । °इणी स्‍त्री [°जिनी] कमलिनी, पदि्‌मनी (मै ६१) । °निहि पुं [°निधि] समुद्र (श्रा १२) । °रुह न [°रुह] कमल, पद्‍म; 'कुंभंभोरुहसर- जलनिहिणो, दिव्वविमाणरयणगणसिहिणो' (उप ६ टी)

अंभोहि :: पुं [अम्भोधि] समुद्र (कुप्र २७१)

अंस :: पुं [अंश] १ भाग, अवयव, खंड, टुकड़ा (पाअ) २ भेद, विकल्प (विसे) ३ पययि, धर्म, गुण (विसे)

अंस :: पुं [अंश] विद्यमान कर्म, सत्ता-स्थित कर्म; 'अंस इति संतकम्मं भन्नई' (कम्म ६, ९) । °हर वि [°धर] भागीदार (उत्त १३, २२)

अंस, अंसलग :: पुं [अंस] कान्ध, कंधा (णाया १, १८; तंदु)

अंसि :: देखो अस = अस् ।

अंसि :: स्‍त्री [अश्रि] १ कोण, कोना (उप पृ ९८) २ धार, नोक (ठा ८)

अंसिया :: स्त्री [अंशिका] भाग, हिस्सा (बृह ३)

अंसिया :: स्‍त्री [अर्शिका] १ बवासीर का रोग (भग १६, ३) २ नासिका का एक रोग (निचू ३) ३ फुनसी, फोड़ा (निचू ३)

अंसु :: पुं [अंशु] किरण (लहुअ ९) । °मालि पुं [°मालिन्] सूर्य, सूरज (रयण १)

अंसु :: देखो अंसुय = अंशुक (पंच ३, ४०)

अंसु :: पुं [अंशु] किरण । °मंत, °वंत वि [°मत्] १ किरणवाला । २ पुं. सूर्य (प्राकृ ३५)

अंसु :: न [अश्रु] आँसू, नेत्र-जल । °मंत, °वंत वि [°मत्] अश्रुवाला (प्राकृ३५)

अंसु, अंसुय :: न [अश्रु] आंसू, नेत्र-जल (हे १, २६; कुमा)

अंसुय :: न [अंशुक] १ वस्‍त्र, कपड़ा (से ९, ८२) २ बारीक वस्‍त्र (बृह २) ३ पोशाक, वेश (कप्प)

अंसोत्थ :: देखो अस्सोत्थ (पि ७४, १५२, ३०९)

अंह :: पुंन [अंहस्] मल, 'मउयं व वाहिओ सो निरंहसा तेण जलपवाहेण' (धर्मवि १४९)

अंहि :: पुं [अंह्नि] पाद, पाँव (कप्पू)

अकइ :: वि [अकति] असंख्यात, अनन्त (ठा ३)

अकंड :: देखो अयंड (गा ६६५)

अकंडतलिम :: वि [दे] १ स्‍नेह रहित । जिसने शादी न की हो वह (दे १, ६०)

अकंपण :: वि [अकम्पन] १ कंप रहित । २ पुं. रावण का एक पुत्र (से १४, ७०)

अकंपिय :: वि [अकम्पित] १ कम्परहित २ पुं. भगवान् महावीर का आठवाँ गणधर (सम १९)

अकज्ज :: देखो अकय = अकृत्य (उव)

अकण्ण, अकन्न :: वि [अकर्ण] १ कर्ण रहित । २-३ पुं. स्वनामख्यात एख अतं- र्द्वीप और उसमें रहनेवाला (ठा ४, २)

अकप्प :: पु [अकल्प] अयोग्य आचार, शास्‍त्रोक्त विधि-मर्यादा से बाहर का आचरण (कप्प)

अकप्प :: वि [अकल्प्य] अनाचरणीय, शास्‍त्र- निषिद्ध आहार-वस्‍त्र आदि अग्राह्य वस्तु (वव १)

अकप्पिय :: पुं [अकल्पिक] जिसको शास्‍त्र का पूरा-पूरा ज्ञान न हो ऐसा जैन साधु (वव १)

अकप्पिय :: देखो अकप्प = अकल्प्य (दस ५)

अकम :: वि [अक्रम] १ क्रम रहित । २ क्रिवि. एक साथ (कुमा)

अकम्म, अकम्मग :: न [अकर्मन्, °क] १ कर्म का अभाव (बृह १) २ पुं मुक्त, सिद्ध जीव (आचा) ३ कृषि आदि कर्म रहित (देश, भूमि वगैरह) (जी २४) । °भूमग, °भूमय वि [°भूमक] अकर्म-भूमि में उत्पन्न होनेवाला (जीव १) । °भूमि, °भूमी स्‍त्री [°भूमि, भूमी] जिस भूमि में कल्प वृक्षों से ही आवश्यक वस्तुओं की प्राप्ति होने से कृषि वगैरह कर्म करने की आवश्यकता नहीं है वह, भोग-भूमि (ठा ३, ४) । °भूमिय वि [°भूमिज] अकर्म-भूमि में उत्पन्न (ठा ३, १)

अकम्हा :: अ [अकस्मात्] अचानक, निष्का- रण (सूपा ५६९)

अकय :: वि [अकृत] नहीं किया हुआ (कुमा) । °मुह वि [°मुख] अपठित, अशिखित (बृह ३) । °त्थ वि [°।र्थ] असफल (नाट)

अकय :: वि [अकृत्य] १ — २ करने के अयोग्य या अशक्य । ३ न. अनुचित काम । °कारि वि [°कारिन्] अकृत्य को करनेवाला (पउम ८०, ७१)

अकय्य :: (मा) ऊपर देखो (नाट)

अकरण :: न [अकरण] १ नहीं करना (कस) २ मैथुन, 'जइ सेवंति अकरणं पंचण्हवि बाहिरा हुंति' (वव ३)

अकाइय :: वि [अकायिक] १ शारीरिक चेष्टा से रहित । २ पुं. मुक्तात्मा (भग ८, २)

अकाम :: पुं [अकाम] १ अनिच्छा (सूअ २, ६) २ वि. इच्छारहित, निष्काम (सुपा २०९) । °णिज्जरा स्‍त्री [°निर्जरा] कर्म-नाश की अनिच्छा से बुभुक्षा आदि कष्टों को सहन करना (ठा४, ४)

अकामग, अकामय :: [अकामक] ऊपर देखो । ३ अवांछनीय, इच्छा करने के अयोग्य (पण्ह १, १; णाया १, १)

अकामिय :: वि [अकामिक] निराश (विपा १, १)

अकाय :: वि [अकाय] १ शरीररहित । २ पुं मुक्तात्मा (ठा २, ३)

अकार :: पुं [अकार] 'अ' अक्षर, प्रथम स्वर वर्ण (विसे ४६५)

अकारग :: पुं [अकारक] १ अरुचि, भोजन की अनिच्छा रूप रोग (णाया १, १३) २ वि. अकर्ता (सूअ १, १) । °वाइ वि [°वादिन्] आत्मा को निष्क्रिय माननेवाला (सूअ १, १)

अकासि :: अ [दे] निषेध-सूचक अव्यय, अलम्; 'अकासि लज्जाए' (दे १, ८)

अकिंचण :: वि [अकिञ्चन] १ साधु, मुनि, भिक्षुक (रण्ह २, ५) २ गरीब, निर्धन, दरिद्र (पाअ)

अकिट्ठ :: वि [अकृष्ट] नहीं जोती हुई जमीन 'अकिट्ठजाय-' (पउम ३३, १४)

अकिट्ठ :: वि [अक्लिष्ट] १ क्लेशरहित, बाघा- रहित; पेच्छामि तुज्भ्त कंतं, संगामे कइवएसु दियहेसु। मह नाहेण विणिहयं, रामेण अकिट्ठधम्मेणं' (पउम ५३, ५२)

अकिरिय :: वि [अक्रिय] १ आलसी, निरुद्यम। २ अशुभ व्यापार से रहित (ठा ७) ३ परलोक-विषयक क्रिया को नहीं माननेवाला, नास्तिक (णंदि) । °।य वि [°।त्मन्] आत्मा को निष्क्र्यि माननेवाला, सांख्य (सूअ १, १०)

अकिरिया :: स्‍त्री [अक्रिया] १ क्रिया का अभाव (भग २९, २) २ दुष्ट क्रिया, खराब व्यापार (ठा ३, ३) ३ नास्तिकता (ठा ८) । °वाइ वि [°वादिन्] परलोक-विषयक क्रिया को नहीं माननेवाला, नास्तिक (ठा ४, ४)

अकीरिय :: देखो अकिरिय, 'जे केइ लोगम्मि अकीरियाया, अन्‍नेण पुट्ठा धुयमादिसंति' (सूअ १, १०)

अकुइया :: स्‍त्री [अकुचिका] देखो अकुय ।

अकुओभय :: वि [अकुतोभय] जिसको किसी तरफ से भय न हो वह, निर्भय (आचा)

अकुंठ :: वि [अकुण्ठ] अपने कार्य में निपुण (गउड)

अकुय :: वि [अकुच] निश्चल, स्थिर (निचू १) । स्‍त्री. अकुइया (कप्प)

अकोप्प :: वि [अकोप्य] रम्य, सुन्दर (पण्ह १, ४)

अकोप्प :: पुं [दे] अपराध, गुनाह (षड्)

अकोस :: देखो अक्कोस = अक्रोश।

अकोसायंत :: वि [अकोशायमान] विकसता हुआ, 'रविकिरणतरुणबोहियअकोसायंतपउम- गभीर वियडणमि' (औप)

अक्क :: पुं [अर्क] १ सूर्य, सूरज (सुर १०, २२३) २ आक का पेड़ (प्रासू १६८) ३ सुवर्ण, सोना; 'जेण अन्‍नुन्नसरिसो विहिओ रयणक्कसंजोगो' (रयण ५४) । रावण का एक सुभट (पउम ५९, २) । °तूल न [°तूल] आक को रूई (पण्ण १) । °तेअ पुं [°तेजस्] विद्याधर वंश का एक राजा (पउम ५, ४६) । °बोंदीया स्‍त्री [°बोन्दिका] वल्ली-विशेष (पण्ण १)

अक्व :: पुं [दे] दूत, संदेश-हारक (दे १, ६)

°अक्व :: देखो चक्र (गा ५३०, से १, ५)

अक्कअ :: वि [अकृत] नहीं किया गया । °पुव्व वि [°पूर्व] जो पहले कभी न किया गया हो (से १२, ५०)

अक्कंड :: देखो अकंड (आउ ५३)

अक्कंत :: वि [आक्रान्त] १ बलवान् के द्वारा दबाया हुआ (णाया १, ८) २ घेरा हुआ, ग्रस्त (आचा) ३ परास्त, अभिभूत (सूअ १, १, ४) ४ एक जाति का निर्जोव वायु (ठा ५, ३) ५ न. आक्रमण, उल्लंघन (भग १, ३) ।°दुक्ख वि [°दुःख] दुःख से दबा हुआ (सूअ १, १, ४)

अक्वंत :: वि [दे] बढ़ा हुआ, प्रवृद्ध (दे १, ९)

अक्कंत :: वि [अकान्त] अनिष्ट, अनभिलषित, अनभिमत (सूअ १, १, ४, ९)

अक्कंद :: अक [आ+क्रन्द] रोना, चिल्लाना (प्रामा) । वकृ. अक्कंदंत (सुपा ५७४)

अक्कंद :: (अप) देखो अक्कम = आ + क्रम् । अक्कंदइ; संकृ. अक्कंदिऊण (सण)

अक्कंद :: पुं [आक्रन्द] रोदन, विलाप, चिल्ला- कर रोना (सुर २, ११४)

अक्कंद :: वि [दे] त्राण करनेवाला, रक्षक (दे १, १५)

अक्कंदावणय :: वि [आक्रन्दक] रुलानेवाला (कुमा)

अक्कंदिय :: न [आक्रन्दित] विलाप, रोदन (से ४, ६४, पउम ११०, ५)

अक्कम :: सक [आ+क्रम्] १ आक्रमण करना, दबाना। २ परास्त करना । वकृ अक्वमंत (पि ४८१) । संकृ. अक्कमित्ता (पण्ह १, १)

अक्कम :: पुं [आक्रम] १ दबाना, चढ़ाई करना । २ पराभव (आव)

अक्कमण :: न [आक्रमण] १ — २ ऊपर देखो (से १४, ६६) ३ पराक्रम (विसे १०४९) ४ वि. आक्रमण करनेवाला (से ९, १)

अक्कमिअ :: देखो अक्कंत = आक्रान्त (काप्र १७२; सुपा १२७)

अक्कसाला :: स्‍त्री [दे] १ वलात्कार, जबरदस्ती। २ उन्मत्त-सी स्‍त्री (दे १, ५८)

अक्का :: स्‍त्री [दे] बहिन (दे १, ६)

अक्का :: स्‍त्री [अक्का] कुट्टती, दूती (कुप्र १०)

अक्कासी :: स्‍त्री [अक्कासी] व्यन्तर-जातीय एक देवी (ती ९)

अक्किज्ज :: वि [अकेय] खरीदने के अयोग्य (ठा ९)

अक्किट्ठ :: वि [अक्लिष्ट] १ क्लेश-वर्जित (जीव ३) २ बाधारहित (भग ३, २)

अक्किट्ठ :: वि [अकृष्ट] अविलिखित (भग ३, २)

अक्किय :: वि [अक्रिय] क्रियारहित (विसे २२०६)

अक्कुट्ठ :: वि [दे] अध्यासित, अधिष्ठित (दे १, ११)

अक्कुस :: सक [गम्] जाना। अक्कुसइ (हे ४, १६२)

अक्कुहय :: वि [अकुहक] निष्कपट, मायारहित (दस ९, २)

अक्‍कूर :: वि [अक्रूर] क्रूरतारहित, दयालु (पव २३९)

अक्‍केज्ज :: देखो अक्किज्ज ।

अक्‍केल्लय :: वि [एकाकिन्] अकेला, एकाकी (नाट)

अक्कोड :: पुं [दे] छाग, बकरा (दे १, १२)

अक्कोडण :: न [आक्रोडन] इकट्ठा करना, संग्रह करना (विसे)

अक्कोस :: न [अक्रोश] जिस ग्राम के अति नज- दीक में अटवी, श्वापद या पर्वतीय नदी आदि का उपद्रव हो वह; 'खेत्तं चलमचलं वा, इंदमणिदं सकोसमक्कोसं। वाघातम्मि अकोसं, अडवीजले सावए तेणे' (बृह ३)

अक्कोस :: सक [आ+क्रुश्] आक्रोश करना । वकृ. अक्कोसितं (सुर १२, ४०)

अक्कोस :: पुं [आक्रोश] कटु वचन, शाप, भर्त्सना (सम ४०)

अक्कोसग :: वि [आक्रोशक] आक्रोश करनेवाला (उत्त २)

अक्कोसणा :: स्‍त्री [आक्रोशना] अभिशाप, निर्भ- र्त्सना (शाया १, १६)

अक्कोसिअ :: वि [आक्रोशित] कटु वचनों से जिसकी भर्त्सना की गई हो वह (सुर ६, २३४)

अक्कोह :: वि [अक्रोध] १ अल्प-क्रोधी (जं २) २ क्रोधरहित (उत्त २)

अक्ख :: पुं [अक्ष] १ ज़ीव, आत्मा (ठा १) २ रावण का एक पुत्र (से १४, ६५) ३ चन्दनक, समुद्र में होनेवाला एक द्वीन्द्रिय जन्तु, जिसके निर्जीव शरीर को जैन साधु लोग स्थापनाचार्य में रखते हैं (श्रा १) ४ पहिया की धुरी, कील (ओघ ५४६) ५ चौसर का पासा (धण ३२) ६ बिभीतक, बहीड़ा का वृक्ष (से ९, ४४) ७ चार हाथ या ९६ अंगुलों का एक मान (अणु; सम) ८ रुद्राक्ष (अणु ३) ९ न. इन्द्रिय (विसे ९१; धण ३२) १० द्यूत, जुआ (से ९, ४४) । °चम्म न [°चर्मन्] पखाल, मसक; 'अक्खचम्मं उट्ठगंडदेसं' (णाया १, ६) । °पाडय न [°पादक] कील का टुकड़ा, 'राइणा हाहारवं करेमाणेण पहओ सो सुणओ अक्खपाडएणंति' (स २५५) । °माला स्‍त्री [°माला] जपमाला (पउम ६६, ३१) । °लया स्‍त्री [°लता] रुद्राक्ष की माला (दे) । °वत्त न [°पात्र] पूजा का पात्र, 'तो लोओ। गहियक्खवत्तहत्थो एइ गिहे....... .... वद्धावणत्थं (सुपा ५८५) । °वलय न [°वलय] रुदाक्ष की माला (दे २, ८१) । °वाअ पुं [°पाद] नैयायिक मत के प्रवर्तक गौतम ऋषि (विसे १५०८) । °वाडग पुं [°वाटक] अखाड़ा (जीव ३) । °सुत्तमाला स्‍त्री [°सूत्रमाला] जपमाला (अणु३)

अक्ख :: देखो अक्खा = आ + ख्या । अक्खइ (सण)

अक्खइय :: वि [आख्यात] उक्त, कथित (सण)

अक्खउहिणी :: देखो अक्खोहिणी (प्राकृ३०)

अक्खंड :: वि [अखण्ड] १ संपूर्ण। २ अखण्डित । ३ निरन्तर, अविच्छिन्न; 'अक्ख- ण्डपयाणेहि रहवीरपुरे गओ कुमरो' (सुपा २९६)

अक्खंडल :: पुं [आखण्डल] इन्द्र (पाअ) । अक्खंडिअ वि [अखण्डित] १ संपूर्ण, खण्ड रहित (से ३, १२) २ अविच्छिन्न, निरन्तर (उर ८, १०)

अक्खंत :: देखो अक्खा = आ + ख्या ।

अक्खड :: सक [आ + स्कन्द्] आक्रमण करना, 'अक्खडइ पिया हिअए, अण्णं महिलाअणं रमंतस्स' (गा ४४)

अक्खणवेल :: न [दे] १ मैथुन, संभोग । २ शाम, संध्या काल (दे १, ५९)

अक्खणिआ :: स्‍त्री [दे] विपरीत मैथुन (पाअ)

अक्खम :: वि [अक्षम] १ असमर्थ (सुपा- ३७०) २ अयुक्त, अनुचित (ठा ३, ३)

अक्खय :: वि [अक्षत] १ घावरहित, व्रण शून्य (सुर २, ३३) २ अखण्डित, संपूर्ण (सुर ९, १११) ३ पुं. ब. अखण्ड चावल (सुपा ३२६)

°।यार :: वि [°।चार] निर्दोंष आचरणवाला (वव ३)

अक्खय :: वि [अक्षय] १ क्षय का अभाव (उवर ८३) २ जिसका कभी नाश न हो वह (सम १)

°निहि :: पुंन [°निधि] एक प्रकार की तपश्चर्या (पव २७१) । °तइया स्‍त्री [°तृतीया] वैशाख शुक्ल तृतीया (आनि)

अक्खर :: पुंन [अक्षर] १ अक्षर, वर्ण (सुपा ६५९) २ ज्ञान, चेतना, 'नक्खरइ अणुव- ओगेवि, अक्खरं, सो य चेयणाभावो' (विसे ४५५) ३ वि अविनश्वर, नित्य (विसे ४५७) । °त्थ पुं [°।र्थ] शब्दार्थ (अभि १५१) । °पुट्ठिया स्‍त्री [°पुष्ठिका] लिपि- विशेष (सम ३५) । समास पुं [°समास] १ अक्षरों का समूह। २ श्रुत-ज्ञान का एक भेद (कम्म १, ७)

अक्खल :: पुं [दे] १ अखरोट वृक्ष। २ न. अखरोट वृक्ष का फल (पण्ण १६)

अक्खलिय :: वि [दे] १ जिसका प्रतिशब्द हुआ हो वह, प्रतिध्वनित (दे १, २७) २ आकुल, व्याकुल (सुर ४, ८८)

अक्खलिय :: वि [अस्खलित] १ अबाधित, निरुपद्रव (कुमा) २ जो गिरा न हो वह, अपतित (नाट)

अक्खवाया :: स्‍त्री [दे] दिशा (दे १, ३५)

अक्खा :: सक [आ+ख्या] कहना, बोलना । वकृ. अक्खंत (सण; धर्म ३) । कवकृ अक्खिज्जंत (सुर ११, १६२) । कृ. अक्खेअ, अक्खाइयव्व (विसे २६४७; गा २४२) । हेकृ अक्खाउं (दस ८; सत्त ३ टी)

अक्खा :: स्‍त्री [आख्या] नाम (विसे १९११)

अक्खाइ :: वि [आख्यायिन्] कहनेवाला, उपदेशक; 'अधम्मक्खाई' (णया १, १८; विपा १, १)

अक्खाय :: न [आख्यातिक] क्रियापद, क्रिया- वाचक शब्द (विसे)

अक्खाइय :: वि [अक्षितिक] स्थायी, अनश्वर, शाश्वत; 'एवं ते अलियवयणदच्छा परदोसुप्पाय- णपसत्ता वेढंति अक्खाइयबीएण अप्पाणं कम्मबंधणेण' (पण्ह १, २)

अक्खाइया :: स्‍त्री [आख्यायिका] उपन्यास, वाती, कहानी (कप्पू; भास ५०)

अक्खाउ :: वि [आख्यातृ] कहनेवाला (सूअ १, १, ३, १३)

अक्खाग :: पुं [आख्याक] म्लेच्छों की एक जाति (सूअ १, ५)

अक्खाडग, अक्खाडय :: पुं [अक्षवाटक] १ जुआ खेलने का अड्डा । २ अखाड़ा, व्यायाम-स्थान (उप पृ १३०) ३ प्रेक्षकों को बैठने का आसन (ठा ४, २)

अक्खाण :: न [आख्यान] १ कथन, निवेदन (कुमा) २ वार्ता, उपकथा (पउम ४८, ७७)

अक्खाणय :: न [आख्यानक] कहानी, वार्ता (उप ५९७ टी)

अक्खाय :: वि [आख्यात] १ प्रतिपादित, कथित (सुपा ३९५) २ न. क्रियापद (पण्ह २, २)

अक्खाय :: न [अखात] हाथी को पकड़ने के लिए किया जाता गढ़ा, खड्डा (पाअ)

अक्खाया :: स्‍त्री [आख्याता] एक प्रकार की जैन दीक्षा; 'अक्खायाए सुदंसणो सेट्ठी सामिणा पडिबोहिओ' (पंचू)

अक्खि :: त्रि [अक्षि] आंख, नेत्र (हे १, ३३, ३५; स २; १०४; प्राप्र; स्वप्‍न ६१)

अक्खिअ :: वि [आक्षिक] पासा से जूआ खेलनेवाला, जुआड़ी (दे ७, ८)

अक्खिअ :: वि [आख्यात] प्रतिपादित, कथित (श्रा १४)

अक्खिंतर :: न [अक्ष्यन्तर] आंख का कोटर (विपा १, १)

अक्खिज्जंत :: देखो अक्खा = आ + ख्या ।

अक्खित्त :: वि [आक्षिप्त] सब तरह से प्रेरित (सिरि ३९६)

अक्खित्त :: वि [आक्षिप्त] १ व्याकुल । २ जिस पर टीका की गई हो वह । ३ आकृष्ट, खींचा हुआ (सुर ३, ११५) ४ सामर्थ्य से लिया हुआ (से ४, ३१)

अक्खित्त :: न [अक्षेत्र] मर्यादित क्षेत्र के बाहर का प्रदेश (निचू १)

अक्खिव :: सक [आ+क्षिप्] १ आक्षेप करना, टीका करना, दोषारोप करना। २ रोकना। ३ गँवाना। ४ व्याकुल करना। ५ फेंकना। ६ स्वीकार करना, 'अक्खिवइ पुरि- सगारं' (उवर ४९) । हेकृ. अक्खिविउं (निर १, १); 'तओ न जुत्तमिह कालम् अक्खिविउं' (स २०५; पि ५७७) । कर्म. 'अक्खिप्पइ य मे वाणी' (स २३; प्रामा)

अक्खिव :: सक [आ+क्षिप्] आक्रोश करना। अक्खिवंति (सिरि ८३१)

अक्खिवण :: न [आक्षेपण] व्याकुलता, घब- राहट (पण्ह १, ३)

अक्खीण :: वि [अक्षीण] १ ह्रास-शून्य, क्षय- रहित, अखूट (कप्प) २ परिपूर्ण, संपूर्ण (कुमा) । °महाणसिय वि [°महानसिक] जिसको निम्‍नोक्त अक्षीण महानसी शक्ति प्राप्त हुई हो वह (पण्ह २, १) °महाणसी स्‍त्री [°महानसी] वह अद्भुत आत्मिक शक्ति जिससे थोड़ा भी भिक्षान्न दूसरे सैकड़ों लोगों को यावत्-तृप्ति खिलाने पर भी तबतक कम न हो, जबतक भिक्षान्न लानेवाला स्वयं उसे न खाय (पव २७०) । °महालय वि [°महालय] जिससे थोड़ी जगह में भी बहुत लोगों का समावेश हो सके ऐसी अद्भुत आत्मिक शक्ति से युक्त (गच्छ २)

अक्खुअ :: वि [अक्षत] अक्षीण, त्रुटि-शून्य, 'अक्खुआयारचरित्ता' (पडि)

अक्खुडिअ :: वि [अखण्डित] संपूर्ण, अखण्ड, त्रुटिरहित; 'अक्खुडिओ पक्खुडिओ छिक्‍कंतोवि सबालबुड्‍ढजणो' (सुपा ११९)

अक्खुण्ण :: वि [अक्षुण्ण] जो टूटा हुआ न हो, अविच्छिन्न (बृह १)

अक्खुद्द :: वि [अक्षुद्र] १ गंभीर, अतुच्छ (दव्व ५) २ दयालु, करुण (पंचा२) ३ उदार (पंचा ७) ४ सूक्ष्म बुद्धिवाला (धर्म २)

अक्खुद्द :: न [अक्षौद्रय] क्षुद्रता का अभवा (उप ९१५)

अक्खुपुरी :: स्‍त्री [अक्षपुरी] नगरी-विशेष (णया २)

अक्खुब्भमाण :: वि [अक्षुभ्यमान] जो क्षोभ को प्राप्त न होता हो (उप पृ ६२)

अक्खुभिय :: देखो अक्खुहिय (णंदि ४९)

अक्खुहिय :: वि [अक्षुभित] क्षोभरहित, अक्षुब्ध (सण)

अक्खूण :: सि [अक्षूण] अन्यून, परिपूर्ण; 'भोयणवत्थाहरणं संपायंतेण सव्वमक्खूणं' (उप ७२८ टी)

अक्खेअ :: देखो अक्खा=आ+ख्या।

अक्खेव :: पुं [अ+क्षेप] शीघ्रता, जल्दी (सुपा १२६)

अक्खेव :: पुं [आक्षेप] १ आकर्षण, खींच कर लाना (पण्ह १, ३) २ सामर्थ्य, अर्थ की संगति के लिए अनुक्त अर्थ को बतलाना (उप १००२) ३ आशंका, पूर्वपक्ष (भग २, १; विसे १४३६) ४ उत्पत्ति, 'दइवेण फलक्खेवे अइप्पसंगो भवे पयडो' (उवर ४८)

अक्खेवग :: पुं [आक्षेपक] १ खींचकर लानेवाला, आकर्षक। २ समर्थक पद, अर्थसंगति के लिए अनुक्त अर्थ को बतलानेवाला शब्द (उप ९९९) ३ सान्निघ्यकारक (उवर १८८)

अक्खेवणी :: स्‍त्री [आक्षेपणी] श्रोताओं के मन को आकर्षण करनेवाली कथा (औप)

अक्खेवि :: वि [आक्षेपिन्] आकर्षण करनेवाला, खींचकर लानेवाला (पण्ह १, ३)

अक्खोड :: सक [कृष्] म्यान से तलवार को खीचना, बाहर करना । अक्खोडइ (हे४, १८७)

अक्खोड :: सक [आ+स्फोटय्] थोड़ा या एक बार भटकना । अक्खोडिज्जा । वकृ. अक्खोडंत (दस ४)

अक्खोड :: पुं [अक्षोट] १ अखरोट का पेड़ । २ न. अखरोट वृक्ष का फल (पण्ण १७; सण) ३ राजकुल को दी जाती सुवर्ण आदि की भेंट (वव १ टी)

अक्खोड :: पुं [आस्फोट] प्रतिलेखन की क्रिया- विशेष (पव २)

अक्खोडिय :: वि [कृष्ट] खीचा हुआ, बाहर निकला हुआ (खड्ग) (कुमा)

अक्खोभ, अक्खोह :: पुं [अक्षोभ] १ क्षोभ का अभाव, घबराहट का अभाव (णाया १, ९) २ यदुबंश के राजा अन्धकवृष्णि का एक पुत्र, जो भगवान् नेमि- नाथ के पास दीक्षा लेकर शत्रुंजय पर मोक्ष गया था (अंत १, ७) ३ न. 'अन्तकृद्दशा' सूत्र का एक अध्ययन (अंत १, ७) ४ वि. क्षोभरहित, अचल, स्थिर (पण्ह २, ५; कुमा)

अक्खोहणिज्ज :: वि [अक्षोभणीय] जो क्षुब्ध न किया जा सके (सुपा ११४)

अक्खोहिणी :: स्‍त्री [अक्षौहिणी] एक बड़ी सेना, जिसमें २१८७० हाथी, २१८७० रथ, ६५६१० घोड़े और १०९३५० पैदल होते हैं (पउम ५५, ७; ११)

अखंड :: वि [अखण्ड] परिपूर्ण, खण्डरहित (औप)

अखंडल :: पुं [आखण्डल] इन्द्र (पउम ४६, ४४)

अखंडिय :: वि [अखण्डित] नहीं टूटा हुआ, परिपूर्ण (पंचा १८)

अखंपण :: वि [दे] स्वच्छ, निर्मल; 'आयव- त्ताइं। धारिंति, ठविंति पुरो अखम्पणं दप्पणं केवि' (सुपा ७४)

अखज्ज :: वि [अखाद्य] जो खाने लायक न हो (णाया १, १६)

अखत्त :: न [अक्षात्र] क्षत्रिय-धर्म के विरुद्ध, जुलुम, 'यंपइ विज्जाबलिओ, अहह अखत्तं करेइ कोइ इमो' (धम्म ८ टी)

अखम :: देखो अक्खम (कुमा)

अखरय :: पुं [दे] भृत्य-विशेष, एक प्रकार का दास (पिंड ३६७)

अखलिअ :: देखो अक्खलिय = अस्खलित (कुमा)

अखादिम :: वि [अखाद्य] खाने के अयोग्य, अभक्ष्य; 'कुपहे धावंति, अखादिमं खादंति' (कुमा)

अखाय :: वि [अखात] नहीं खुदा हुआ । °तल न [°तल] छोटा तलाव (पाअ)

अखिल :: वि [अखिल] १ सर्व, सकल, परिपूर्ण (कुमा) २ ज्ञान आदि गुणों से पूर्ण; 'अखिले अगिद्धे अणिएअचारी' (सूअ १, ७)

अखुट्ट :: वि [दे] अखूट (भवि)

अखुट्टिअ :: वि [अतुडित] अखूट, परिपूर्ण (कुमा)

अखुडिअ :: देखो अक्खुडिअ (कुमा)

अखेयण्ण :: वि [अखेदज्ञ] अकुशल, अनिपुण (सूअ १, १०)

अखोड :: देखो अक्खोड+आस्फोट (पव २ टी)

अखोहा :: स्‍त्री [अक्षोभा] विद्या-विशेष (पउम ७, १६७)

अग :: पुं [अग] १ वृक्ष, पेड़। २ पर्वत, पहाड़ (से ९, ४१); 'उच्चागयठाणलट्ठसंठियं' (कप्प)

अगइ :: स्‍त्री [अगति] १ नीच गति, नरक या पशु-योनि में ज़न्म (ठा २, २) २ निरुपाय (अच्चु ९९)

अगंठिम :: न [अग्रन्थिम] १ कदली-फल, केला (बृह १) २ फल की फाँक, टुकड़ा (निचू १६)

अगंडिगेह :: वि [दे] यौवनोन्मत्त, जवानी से उन्मत्त बना हुआ (दे १, ४०)

अगंडूयग :: वि [अकण्डूयक] नहीं खुजलानेवाला (सूअ २, २)

अगंथ :: वि [अग्रन्थ] १ घनरहित । २ पुंस्‍त्री. निर्ग्रन्थ, जैन साधु; 'पावं कम्मं अकुव्वमाणे एस सहं अगंथे विआहिए' (आचा)

अगंधण :: पुं [अगन्धन] इस नाम की सर्पों की एक जाति, 'नेच्छंति वंचयं भोत्तुं कुले जाय । अगंधणे' (दस २)

अगड :: पुं [दे. अवट] कूप, इनारा (सुर ११, ८९; उव) । °तड त्रि [°तट] इनारा का किनारा (विसे) । °दत्त पुं [°दत्त] इस नाम का एक राजकुमार (उत्त) । दद्दुर पुं [°दर्दुर] कुंए का मेढ़क, अल्पज्ञ, वह मनुष्य जो अपना घर छोड़ बाहर न गया हो (णाया १, ८)

अगड :: पुं [अवट] कूप के पास पशुओं के जल पीने के लिए जो गर्त बनाया जाता है वह (उप २०५)

अगड :: वि [अकृत] नहीं किया हुआ (वव ६)

अगणि :: पुं [अग्नि] आग (जी ६) । °काय पुं [°काय] अग्‍नि के जीव (भग ७, १०) । °मुह पुं [°मुख] देव, देवता (आचू)

अगणिअ :: वि [अगणित] अवगणित, अप- मानित (गा ४८४; पउम ११७, १४)

अगणिज्जंत :: वि [अगण्यमान] जो गुणने में न आता हो, जिसकी आवृत्ति न की जाती हो; 'अगणिज्जंती नासे विज्जा' (प्रासू ६६)

अगन्थि, अगत्थिय :: पुं [अगस्ति, °क] १ इस नाम का एक ऋषि। २ वृक्ष-विशेष (दे ६, १३३; अनु) ३ एक तारा, अठासी महाग्रहों में ५४ वाँ महाग्रह (ठा २, ३)

अगन्न :: वि [अगण्य] १ जिसकी गिनती न हो सके वह (उप ७२८ टी)

अगन्न :: वि [अकर्ण्य] नहीं सुनने लायक, आश्रव्य (भवि)

अगम :: पुं [अगम] १ वृक्ष, पेड़; 'दुमा य पायवा रुक्खा आ (? अ) गमा विडिमा तरू' (दसनि १, ३५) २ वि. स्थावर, नहीं चलने वाला (महानि ४)

अगम :: न [अगम] आकाश, गगन (भग २०, २)

अगमिय :: वि [अगमिक] वह शास्‍त्र, जिसमें एक सदृश पाठ न हो, या जिसमें गाथा वगैरह पद्य हो; 'गाहाइ अगमियं खलु कालियसुयं' (विसे ४४९)

अगम्म :: वि [अगम्य] १ जाने के अयोग्य। २ स्‍त्री. भोगने के अयोग्य, भगिनी, पर स्‍त्री आदि (भवि; सुर १२, ५२) । °गामि वि [°गामिन्] पर स्‍त्री को भोगनेवाला, पार- दारिक (पण्ह १, २)

अगय :: न [अगद] औषध, दवाई (सुपा ४४७)

अगय :: पुं [दे] दैत्य, दानव (दे १, ६)

अगर :: पुंन [अगरु] सुगन्धि काष्ठ-विशेष (पण्ह २, ५)

अगरल :: वि [अगरल] सुविभक्त, स्पष्ट; 'अग- रलाए अमस्खणाए..............भासाए भासेइ' (औप)

अगरु :: देखो अगर (कुमा)

अगरुअ :: वि [अगरुक] बड़ा नहीं, छोटा, लघु (गउड)

अगरुलहु :: वि [अगुरुलघु] जो भारी भी न हो और हलका भी न हो वह; जैसे आकाश, परमाणु वगैरह (विसे) । °णाम न [°नामन्] कर्म-विशेष, जिससे जीवों का शरीर न भारी न हलका होता है (कम्म १, ४७)

अगलदत्त :: पुं [अगडदत्त] एक रथिक-पुत्र (महा)

अगलय :: देखो अगर (औप)

अगहण :: पुं [दे] कापालिक, एक ऐसे संप्रदाय के लोग, जो माथे की खोपड़ी में ही खाने-पीने का काम करते हैं (दे १, ३१)

अगहिल्ल :: वि [अग्रहिल] जो भूतादि से आविष्ट न हो, अंपागल (उप ५९७ टी)

°राय :: पुं [°राज] एक राजा, जो वास्तव में पागल न होने पर भी पागल-प्रजा के आक्रण से बनावटी पागल बना था (ती २१)

अगाढ :: वि [अगाध] अथाह, बहुत गहरा; 'अगाढपण्णोसु वि भाविअप्पा' (सुअ १, १३)

अगामिय :: वि [अग्रामिक] ग्रामरहित, 'अगा- मियाए.... अडवीए' (औप)

अगार :: पुं [अकार] 'अ' अक्षर (विसे ४८४)

अगार :: न [अगार] १ गृह, घर (सम ३७) २ पुं. गृहस्थ, गृही, संसारी (दस १) °त्थ वि [°स्थ] गृही, (आचा) । °धम्म पुं [°धर्म] गृहि-धर्म, श्रावक-धर्म (औप)

अगारग :: वि [अकारक] अकर्ता (सूअनि ३०)

अगारि :: वि [अगारिन्] गृहस्थ, गृही (सूअ २, ६)

अगारी :: स्‍त्री [अगारिणी] गृहस्थ स्‍त्री (वव ४)

अगाल :: देज़ो अयाल (स ८२)

अगाह :: वि [अगाध] गहरा, गंभीर (पाअ)

अगिणि :: देखो अग्गि (संक्षि १२)

अगिला :: स्‍त्री [अग्लानि] आखन्नता, उत्साह (ठा ५, १)

अगिला :: स्त्री [दे] अवज्ञा, तिरस्कार (दे १, १७)

अगीय :: वि [अगीत] शास्‍त्रों का पूरा ज्ञान जिसको न हो वैसा (जैन साधु) (उप ८३३ टी)

अगीयत्थ :: वि [अगीतार्थ] ऊपर देखो (वव १)

अगुज्भहर :: वि [दे] गुप्त बात को प्रकाशित करनेवाला (दे १, ४३)

अगुण :: देखो अउण (पि २६५)

अगुण :: वि [अगुण] १ गुणरहित, निर्गुण (गउड) २ पुं. दोष, दूषण (दस ५)

अगुणासी :: देखो एगूणासी (पव २४)

अगुणि :: वि [अगुणिन्] गुण-वर्जित, निर्गुण (गउड)

अगुरु, अगुरुअ :: वि [अगुरु] १ बड़ा नहीं सो, छोटा, लघु। २ पुंन. सुगन्धि काष्ठ विशेष, अगुरु-चन्दन; 'घुवेण कि अगुरुणो किमु कंकणेण' (कप्पू; पउम २, ११)

अगुरुलहु, अगुरुलहुअ :: देखो अगुरुलहु (सम ५१, ठा १०)

अगुलु :: देखो अगुरु; 'संखतिणिसागुलुचंदणाइं' (निचू २)

अग्ग :: न [अग्रव] प्रकर्ष (उत्त २०, १५)

अग्ग :: पुंन [दे] १ परिहास। २ वर्णन (संक्षि ४७)

अग्ग :: न [अग्र] १ आगे का भाग, ऊपर का भाग (कुमा) २ पूर्वभाग, पहले का भाग (निचू १) ३ परिमाण, 'अग्गं ति वा परि- माणं ति वा एदट्ठा' (आचू १) ४ वि. प्रधान, श्रेष्ठ (सूपा २४८) ५ प्रथम, पहला (आव १) । °क्खंध पुं [°स्कन्ध] सैन्य का अग्र भाग (से ३, ४०) । °गामिग वि [°गामिक] अग्रगामी, आगे जानेवाला (स १४७) । °ज देखो °य (दे ६, ४६) । °जम्म [°जन्मन्] देखो °य (उप ७२८ टी) । °जाय [°जात] देखो °य (आचा) । °जीहा स्‍त्री [जिह्वा] जीभ का अग्न-भाग। °णिय, °णी वि [°णी] अगुआ, मुखिया, नायक (कप्प; नाट) । °तावस पुं [°तापस] ऋषि-विशेष का नाम (सुज्ज १०) । °द्ध न [°।र्ध] पूर्वार्ध (निचू १) । °पिंड पुं [°पिण्ड] एक प्रकार का भिक्षान्न (आचा) । °प्पहारि वि [°प्रहारिन्] पहले प्रहार करनेवाला (आव १) । °बीय वि [°बीस] जिसमें बीज पहले ही उत्पन्न हो जाता है या जिसकी उत्पत्ति में उसका अग्र- भाग ही कारण होता है; जैसे आम, कोरंटक आदि वनस्पति (पण्ण १; ठा ४, १) । °मणि पुं [°मणि] मुख्य. श्रेष्ठ, शिरोमणि (उप ७२८ टी) । °महिसी स्‍त्री [°महिषी] पट- रानी (सुपा ४६) । °य वि [°ज] १ आगे उत्पन्न होनेवाला। २ पुं. ब्राह्मण। ३ बड़ा भाई। ४ स्‍त्री. बड़ी बहन (नाट) । °लोग पुं [°लोक] मुक्तिस्थान, सिद्धि-क्षेत्र (श्रा १२) । °हत्थ पुं [°हस्त] १ हाथ का अग्र-भाग (उवा) । २ हाथ का अवलम्बन, सहारा (से ४, ३) । ३ अंगुली (प्राप)

अग्ग :: न [अग्र] १ प्रभूत, बहु। २ उपकार (आचानि २८५) । °भाव न [°भाव] धनिष्ठा-नक्षत्र का गोत्र (जं ७, पत्र. ५००) । °माहिसी देखो °महिसी (उत्त १९, १)

अग्ग :: वि [अग्र्य] १ श्रेष्ठ, उत्तम (से ८, ४४) २ प्रधान, मुख्य (उत्त १४)

अग्गओ :: अ [अग्रतस्] सामने, आगे (कुमा)

अग्गंथ :: वि [अग्रन्थ] १ धनरहित। २ पुं. जैन साधु (औप)

अग्गक्खंध :: पुं [दे] रणभूमि का अग्रभाग (दे १, २७)

अग्गल :: न [अर्गल] १ किवाड़ बन्द करने की लकड़ी, आगल (दस ५, २) २ पुं. एक महा- ग्रह (सुज्ज २०) । °पासय पुं [°पाशक] जिसमें आगल दिया जाता है वह स्थान (आचा २, १, ५) । °पासाय पुं [°प्रासाद] जहाँ आगल दिया जाता है वह घर (राय)

अग्गल :: वि [दे] अधिक, 'वीसा एक्कग्गला' (पिंग)

अग्गला :: स्‍त्री [अर्गला] आगल, हुड़का (पाअ)

अग्गलिअ :: वि [अर्गलित] जो आगल से बन्द किया गया हो वह (सुर ६, १०)

अग्गवेअ :: पुं [दे] नदी का पूर (दे १, २९)

अग्गह :: पुं [आग्रह] आग्रह, हठ, अभिनिवेश (सूअ १, १, ३; स ५ १३)

अग्गहण :: न [अग्रहण] १ अज्ञान (सुर १२, ४६) २ नहीं लेना (से ११, ९८)

अग्गहण :: न [दे. अग्रहण] अनादर, अवज्ञा (दे १, १७; से ११, ९८)

अग्गहणिया :: स्‍त्री [दे] सीमंतोन्नयन, गर्भाधान के बाद किया जाता एक संस्कार और उसके उपलक्ष्य में मनाया जाता उत्सव, जिसको गुज- राती भाषा में 'अग्घयणी' कहते हैं (सुपा २३)

अग्गहि :: वि [आग्रहिन्] आग्रही, हठी (सूअ १, १३)

अग्गहिअ :: वि [दे] १ निर्मित, विरचित। २ स्वीकृत, कबूल किया हुआ (षड्)

अग्गाणी :: वि [अग्रणी] मुख्य, प्रधान, नायक; 'दक्खि न्नदयाकलिओ अग्गाणी सयलवणिय- सत्थस्स' (सुर ६, १३८)

अग्गारण :: न [उद्‌गारण] वमन, वान्ति (चारु ७)

अग्गाह :: वि [अगाध] अगाध, गंभीर; 'खीरा- दहिणुव्व अग्गाहा' (गुरु ४)

अग्गाहार :: पुं [अग्राधार] ग्राम-विशेष का नाम (सुपा ५४५)

अग्गाहार :: पुं [दे. अग्राहार] उच्च जीविका (सुख २, १३)

अग्गि :: पुं [अग्नि] नरकावास-विशेष, एक नरक-स्थान (देवेन्द्र २७) । °मंत, °वंत वि [°मत्] अग्‍निवाला (प्राकृ ३५) । °हुत्त देखो °होत्त (उत्त २५, १६; सुख २५, १६)

अग्गि :: पुं स्‍त्री [अग्नि] १ आग, वह्नि (प्रासू २२); 'एस पुण कावि अग्गी' (सट्ठि ६१) २ कृत्तिका नक्षत्र का अधिष्ठायक देव (ठा २, ३) ३ लोकान्तिक देव-विशेष (आवम)

°आरिआ :: स्‍त्री [°कारिका] अग्‍नि-कर्म, होम (कप्पू) । °उत्त पुं [°पुत्र] ऐरवत क्षेत्र के एक तीर्थंकर का नाम (सम १५३) । °कुमार पुं [°कुमार] भवनपति देवों की एक अवा- न्तर जाति (पण्ण १) । °कोण पुं [°कोण] पूर्व और दक्षिण के बीच की दिशा (सुपा ९८) । °जस पुं [°यशस] देव-विशेष (दीव) । °ज्जोय पुं [°द्योत] भगवान् महा- वीर का पूर्वोय बीसवें ब्राह्मण-जन्म का नाम (आचू) । °ट्ठ वि [°स्थ] आग में रहा हुआ (हे ४, ४२९) । °ट्ठोम पुं [°ष्टोम] यज्ञ-विशेष (पि १०; १५६) । °थंभणी स्‍त्री [°स्तम्भनी] आग की शक्ति को रोकनेवाली एक विद्या (पउम ७, १३९) । °दत्त पुं [°दत्त] १ भगवान् पाश्वंनाथ के समकालीन ऐरवत क्षेत्र के एक तीर्थकर देव (तित्थ) । २ भद्रबाहु स्वामी का एक शिष्य (कष्प) । °दाण पुं [°दान] सातवें वासुदेव के पिता का नाम (पउम २०, १८२) । °देव पुं [°देव] देव- विशेष (दीव) । °भूइ पुं [°भूति] १ भग- वान् महावीर का द्वितीय गणधर (कप्प) २ भगवान् महावीर का पूर्वीय अठारहवें ब्राह्मण- जन्म का नाम (आचू) । °माणव पुं [°माणव] अग्‍निकुमार देवों का उत्तर-दिशा का इन्द्र (ठा २, ३) । °माली स्‍त्री [°माली] एक इन्द्राणी (दीव) । °वेस पुं [°वेश] १ इस नाम का एक प्रसिद्ध ऋषि (णंदि) । २ न. एक गोत्र (कप्प) । °वेस पुं [°वेश्मन्] १ चतुर्दशी तिथि (जं) । २ दिवस का बाइसवा मुहूर्त (चंद १०) । °वेसायण पुं [°वैश्यायन] १ अग्‍निवेश ऋषि का पौत्र (णंदि; स २२५) २ अग्‍निवेश-गोत्र में उत्पन्न (कप्प) ३ गोशा- लक का एक दिक्चर (भग १५) ४ दिन का बाइसवाँ मुहूर्त (सम ५१) । °सक्कार पुं [°संस्कार] विधि-पूर्वक जलाना, दाह देना (आवम) । °सप्पभा स्‍त्री [°सप्रभा] भग- वान् वासुपूज्य की दीक्षा समय की पालकी का नाम (सम) । °सम्म पुं [शर्मन्] एक प्रसिद्ध तपस्वी ब्राह्मण (आचा) । °सिह पुं [°शिख] १ सातवें वासुदेव का पिता (सम १५२) २ अग्‍निकुमार देवों का दक्षिण- दिशा का इन्द्र (ठा २, ३) । °सिह पुं [°सिंह] एक जैन मुनि (उप ४८६) । °सिहा- चारण पुं [°शिखाचारण] अग्‍नि-शिखा में निर्बाधतया गमन करने की शक्ति वाला साधु (पव ६८) । °सीह पुं [°सिंह] सातवें वासु- देव के पिता का नाम (ठा ९) । °सेण पुं [°षेण] ऐरवत क्षेत्र के तीसरे और बाईसवें तीर्थंकर (तित्थ, सम १५३) । °होत्त न [°होत्र] १ अग्न्याधान, होम (विसे १६४०) । २ पुं. ब्राह्मण (पउम ३५, ९) । °होत्तवाइ वि [°होत्रवादिन्] होम से हो स्वर्ग की प्राप्ति माननेवाला (सूअ १, ७) । °होत्तिय वि [°होत्रिक] होम करनेवाला (सुपा ७०)

अग्गिअ :: पुं [अग्निक] १ यमदग्‍नि नामक एक तापस (आचू) २ भस्मक रोग, जिससे जो कुछ खाय वह तुरन्त ही हजम हो जाता है (विपा १, १; विसे २०४८)

अग्गिअ :: पुं [दे] इन्द्रगोप, एक जातिका क्षुद्र कीट (दे १, ५३) । २ वि. मन्द (दे १, ५३)

अग्गिआय :: पुं [दे] इन्द्रगोप, क्षुद्र कीट-विशेष (षड्)

अग्गिच्च :: वि [आग्‍नेय] १ अग्‍नि-सम्ब न्धी। २ पुं. लोकान्तिक देवों की एक जाति (णाया १, ८) ३ न. गोत्र-विशेष, जो गोतम मोत्र की शाखा है (ठा ७)

अग्गिच्चाभ :: न [आग्‍नेयाभ] देव-विमान विशेष (सम १४)

अग्गिज्भ :: वि [अग्राह्य] लेने के अयोग्य (पउम ३१, ५४)

अग्गिम :: वि [अग्रिम] १ प्रथम पहला (कप्पू) २ श्रेष्ठ, प्रधान, मुख्य (सुपा १)

अग्गियय :: पुं [आग्‍नेयक] इस नाम का एक राजपुत्र (उप ९३७)

अग्गिल :: देखो अग्गिल्ल=अग्‍निल (सुज्ज २०)

अग्गिलिय :: देखो अग्गिम (पंचव २)

अग्गिल्ल :: पुं [अग्निल] एक महाग्रह (ठा २, ३)

अग्गिल्ल :: वि [अग्रिम] अग्रवर्ती (सिरि ४०९)

अग्गीय :: देखो अगीय (उप ८४०)

अग्गीवय :: न [दे] घर का एक भाग (पउम १६, ६४)

अग्गुच्छ :: वि [दे] प्रमित, निश्चित (षड्)

अग्गे :: अ [अग्रे] आगे, पहले (पिंग) । °यण वि [तन] आगे का, पहले का (आवम) । °सर वि [°सर] अगुआ, मुखिया, नायक (श्रा २८)

अग्गेई :: स्‍त्री [आग्‍नेयी] अग्‍निकोण, दक्षिण- पूर्व दिशा (धण १८)

अग्गेणिय :: न [अग्रायणीय] दूसरा पूर्व, बार- हवें जैनागम का दूसरा महान् भाग (सम २६)

अग्गेणी :: देखो अग्गेई (आवम)

अग्गेणीय :: देखो अग्गेणिय (णंदि)

अग्गेय :: वि [आग्‍नेय] अग्‍नि (कोण) सम्बन्धी >(अणु २१५)

अग्गेय :: वि [आग्‍नेय] १ अग्‍नि-सम्बन्धी, अग्‍नि का (पउम १२, १२६; विसे १९९०) २ न. शस्‍त्र-विशेष (सुर ८, ४१) ३ एक गोत्र, जो वत्स गोत्र की शाखा है (ठा ७) ४ अग्‍नि-कोण, दक्षिण-पूर्व दिशा (भवि)

अग्गोदय :: न [अग्रोदक] समुद्रीय वेला की वृद्धि और हानि (सम ७६)

अग्घ :: अक [राज्] विराजना, शोभना, चम- कना। अग्घइ (हे ४, १००)

अग्घ :: सक [आ-घ्रा] सुँघना। संकृ. अग्घे- ऊण (सम्मत्त १४२)

अग्घ :: सक [अर्ह्] योग्य होना, लायक होना; 'कलं ण अग्घइ' (णया १, ८)

अग्घ :: सक [अर्घ्] १ अच्छी कीमत से बेचना। २ आदर करना, सम्मान करना; 'पहिएण पुणो भणियं, तुब्भेहिं सिट्ठि! कम्मि नयरम्मि। गंतव्वं सो साहइ, पणियं अग्घिस्सए जत्थ' (सुपा ५०१) । वकृ. अग्घायमाण (णाया १, १)

अग्घ :: पुं [अर्घ] १ एक देव-विमान (देवेन्द्र १, २) २ पूजा (राय १००)

अग्घ :: पुं [अर्घ] १ मछली की एक जाति (जीव ३) २ पूजा-सामग्री (णाया १, १६) ३ पूजा में जलादि देना (कुमा) ४ मूल्य, मोल, कीमत (निचू २) । °वत्त न [°पात्र] पूजा का पात्र (गाउड)

अग्घ :: वि [अर्ध्य] १ पूजा में दिया जाता जलादि द्रव्य (कप्पू) २ कीमती, बहुमूल्य (प्राप)

अग्घव :: सक [पूर्] पूर्ति करना, पूरा करना। अग्घवइ (हे ४, ६९)

अग्घविय :: वि [पूर्ण] १ भरा हुआ, संपूर्ण। २ पूरा किया गया (सुपा १०६, कुमा)

अग्घविय :: वि [अर्घित] पूजित, सत्कृत, सम्मानित (से ११, १९; गउड)

अग्घा :: सक [आ+घ्रा] सूंघना। वकृ. अग्घाअंत, अग्घायमाण (गा ५६५; णाया १, ८) । कवकृ. अग्घाइज्जमाण (पण्ण २८)

अग्घाइ :: वि [आघ्रायिन्] सूँघनेवाला, 'सभ- मरपउमग्वाइणि ! वारियवामे ! सहसु इण्हिं' (काप्र २९४)

अग्घाइअ :: वि [आघ्रात] सूंघा हुआ (गा ९७)

अग्घाइज्जमाण :: देखो अग्घा।

अग्घाइर :: वि [आघ्रातृ] सूंघनेवाला। स्त्री. °री (गा ८८६)

अग्घाड :: सक [पूर्] पूर्ति करना, पूरा करना। अग्घाडइ (हे ४, १६९)

अग्घाड, अग्धाडग :: पुं [दे] वृक्ष-विशेष, अपामार्गं, चिचड़ा, लटजीरा (दे १, ८; पण्ण १)

अग्घाण :: वि [दे] तृप्त, संतुष्ट (दे १, १८)

अग्घाय :: वि [आघ्रात] सूंघा हुआ (पाअ)

अग्घायमाण :: देखो अग्घ=अर्घ् ।

अग्घायमाण :: देखो अग्घा।

अग्घिय :: वि [राजित] विराजित, शोभित (कुमा)

अग्घिय :: वि [अर्घित] १ बहुमूल्य, कीमती; 'अग्घियं नाम बहुमोल्लं' (निचू २) २ पूजित (दे १, १०७; से २०२)

अग्घोदय :: न [अर्घोदक] पूजा का जल (अभि ११८)

अघ :: न [अघ] १ पाप, कुकर्म (कुमा) २ वि. शोचनीय, शोक का हेतु; 'अघं बम्हणभावं' (प्रयौ ८०)

अघो :: देखो अहो (नाट)

अचक्खु :: पुंन [अचक्षुस्] १ आँख के सिवाय बाकी इन्द्रियाँ और मन (कम्म १, १०) २ आँख को छोड़ बाकी इन्द्रिय और मन से होनेवाला सामान्य ज्ञान (दं १९) ३ वि. अंवा, नेत्रहीन (कम्म ४) । °दंसण न [दर्शन] आँख को छोड़ बाकी इन्द्रियां और मनसे होनेवाला सामान्य ज्ञान (सम १५) । °दंसणावरण न [°दर्शनावरण] अचक्षुर्दर्शन को रोकनेवाला कर्म (ठा ९) । °फास पुं [°स्पर्श] अंधकार, अंधेरा (णाया १, १४)

अचक्खुस :: वि [अचाक्षुष] जो आँख से देखा न जा सके (पण्ह १, १)

अचक्खुस्स :: वि [अचक्षुष्य] जिसको देखने का मन न चाहता हो (बृह ३)

अचर :: वि [अचर] पृथिव्यादि स्थिर पदार्थ, स्थावर (दंस)

अचल :: वि [अचल] १ निश्चल, स्थिर (आचा) २ पुं. यदुवंश के राजा अन्धकवृष्णि के एक पुत्र का नाम (अंत ३) । एक बलदेव का नाम (पव २०९) ४ पर्वत, पहाड़ (गउड १२०) ५ एक राजा, जिसने रामचन्द्र के छोटे भाई के साथ जैन दीक्षा ली थी (पउम ८५, ४) । °पुर न [°पुर] ब्रह्म-द्वीप के पास का एक नगर (कप्प) । °प्प न [°।त्मन्] हस्तप्रहेलिका को ८४ लाख से गुणने पर जो संख्या लब्ध हो वह, अन्तिम संख्या (इक) । °भाय पुं [°भ्रातृ] भगवान् महावीर का नववाँ गणधर (कप्प)

अचल :: पुं [अचल] छठवाँ रुद्र पुरुष (विचार ४७२)

अचल :: न [दे] १ घर। २ घर का विछला भाग। ३ वि. कहा हुआ। ४ निष्‍ठुर, निर्दय। ५ नीरस, सूखा (दे १, ५३)

अचला :: स्‍त्री [अचला] पृथिवी। २ एक इन्द्राणी (णाया २)

अचिंत :: वि [अचिन्त] निश्चिन्त, चिन्तारहित।

अचिंत :: वि [अचिन्त्य] अनिर्वचनीय, जिसकी चिन्ता भी न हो सके वह, अद्भुत (लहुअ ३)

अचिंतणिज्ज, अचिंतणीअ :: वि [अचिन्तनीय] ऊपर देखो (अभि २०३; महा)

अचिंतिय :: वि [अचिन्तित] आकस्मिक, असंभावित (महा)

अचित्त :: वि [अचित्त] जीव-रहित, अचेतन; 'चित्तमचित्तं वा णेव सयं अजिन्‍नं गिण्हेज्जा' (दस ४)

अचियंत, अचियत्त :: वि [दे] १ अनिष्ट, अप्रीतिकर (सूअ २, २; पण्ह २, ३) २ न. अप्रीति, द्वेष (ओघ २६१)

अचिरजुवइ :: देखो अइरजुवइ (दे १, १८ टी)

अचिरा :: देखो अइरा (पउम ३७, ३७)

अचिराभा :: स्‍त्री [अचिराभा] बिजली, विद्युत् (पउम ४२, ३२)

अचिरेण :: देखो अइरेण (प्रारू)

अचेयण :: वि [अचेतन] चैतन्यरहित, निर्जीव (पण्ह १, २)

अचेल :: न [अचेल] १ वस्‍त्रों का अभाव। २ अल्प-मूल्यक वस्‍त्र। ३ थोडा वस्‍त्र (सम ४०) ४ वि. वस्‍त्र-रहित, नग्न। ५ जीर्ण वस्‍त्र वाला। ६ अल्प वस्‍त्र वाला। ७ कुत्सित वस्त्र वाला, मैला; 'तह थोव-जुन्न-कुत्थियचेले- हिवि भण्णए अचेलोत्ति' (विसे २६०१) । °परिसह, °परीसह पुं [°परिषह, °परीषह] वस्त्र के अभाव से अथवा जीर्ण, अल्प या कुत्सित वस्त्र होने से उसे अदीन भाव से सहन करना (सम ४०; भग ८, ८)

अचेलग, अचेलय :: वि [अचेलक] १ वस्त्र-रहित, नग्न। २ फटा-टूटा वस्त्र वाला। ३ मलिन वस्त्र वाला। ४ अल्प वस्त्र वाला। ५ निर्दोष वस्त्र वाला; ६ अनियत रूप से वस्त्र का उपभोग करनेवाला (ठा ५, ३); 'परिसुद्धजिण्ण-कुच्छियथोवानिय- यत्तभोगभोगेहिं'। मुणओ मुच्छारहिया, संतेहिं अचेलया हुंति' (विसे २५९९)

अच्च :: सक [अर्च्] पूजना, सत्कार करना। अच्‍चेइ (औप) । अच्च (दे २, ३५ टी) । कवकृ- अच्चिज्जंत (सुपा ७८) । कृ. अच्चणिज्ज (णाया १, १)

अच्च :: पुं [अर्च्य] १ लव (काल-मान) का एक भेद (कप्प) २ वि. पूज्य, पूजनीय (हे १, १७७)

अच्चंग :: न [अत्यङ्ग] विलासिता के प्रधान अंग, भोग के मुख्य साधन; 'अच्चंगाणं च भोगओ माणं' (पंचा १)

अच्चंत :: वि [अत्यन्त] हद से ज्यादा, अत्यधिक, बहुत (सुर ३, २२) । °थावर वि [°स्थावर] अनादि-काल से स्थावर-जाति में रहा हुआ (आवम) । °दूसमा स्त्री [°दुष्षमा] देखो दुस्समदुस्समा (पउम २०, ७२)

अच्चंतिअ :: वि [आत्यन्तिक] १ अत्यन्त, अधिक, अतिशयित। २ जिसका नाश कभी न हो वह, शाश्वत (सूअ २, ६)

अच्चग :: वि [अर्चक] पूजक (चैत्य १२)

अच्चग्गल :: वि [अत्यर्गल] निरंकुश, अनियंत्रित (मोह ८७)

अच्चण :: न [अर्चन] पूजा, सम्मान (सुर ३, १३; सत्त १२ टी)

अच्चणा :: स्त्री [अर्चना] पूजा (अच्च‌ु ५७)

अच्चणिया :: स्त्री [अर्चनिका] अर्चन, पूजा (राय १०८)

अच्चत्त :: वि [अत्यक्त] नहीं छोड़ा हुआ, अप- रित्यक्त (उप पृ १०७)

अच्चत्थ :: वि [अत्यर्थ] १ अतिशयित, बहुत (पण्ह १, १) २ गंभीर अर्थ वाला (राय) । ३ क्रिवि. ज्यादा, अत्यंत (सुर १, ७)

अच्चब्भुय :: वि [अत्यद्भ‍ुत] बड़ा आश्चर्य-जनक (प्रासू ४२)

अच्चय :: पुं [अत्यय] १ विपरीत आचरण (बृह ३) । विनाश, मरण (उव)

अच्चय :: वि [अर्चक] पूजक, 'अणच्चयाणं च चिरंतणाणं, जहारिहं रक्खणवद्धणंति' (विवे ७० टी)

अच्चर, अच्चरिअ, अच्चरीअ :: न [आश्चर्य] विस्मय, चमत्कार (विक्र ९४; प्रबो १७; रंभा; भवि; नाट)

अच्चहम :: वि [अत्यधम] अति नीच (कप्पू)

अच्चा :: स्त्री [अर्चा] पूजा, सत्कार (गउड)

अच्चा :: स्त्री [अर्चा] १ शरीर, देह (सूअ १, १३, १७; १, १५, १८; २, २, ६; ठा १, पत्र १९) २ लेश्या, चित्त-वृत्ति (सूअ १, १३, १७; १, १५, १८) ३ ऐश्वर्य (ठा ३, १ — पत्र ११७)

अच्चासण :: पुं [अत्यशन] पक्ष का बारहवां दिन, द्वादशी तिथि (सुज्ज १०, १४)

अच्चासणया :: स्त्री [अत्यासनता] खूब बैठना, देर तक या बारंबार बैठना (ठा ९)

अच्चासणया :: स्त्री [अत्यशनता] खूब खाना (ठा ९)

अच्चासण्ण, अच्चासन्न :: न [अत्यासन्न] अति समिप, खूब नजदीक (भग १, १; उवा)

अच्चासाइय, अच्चासादिय :: वि [अत्याशातित] अपमा- नित, हैरान किया गया (ठा १०; भग ३, २)

अच्चासाय :: सक [अत्या+शातय्] अपमान करना, हैरान करना। वकृ. अच्चासाएमाण (ठा १०) । हेकृ. अच्चासाइत्तए (भग ३, २)

अच्चाहिअ, अच्चाहिद :: वि [अत्याहित] १ महा-भीति, बड़ा भय। २ झूठा, असत्य (स्पप्‍न ४७) ३ ऐसा जखमी कार्य, जिसमें प्राण- हानि की सम्भावना हो (अभि ३७)

अच्चि :: स्त्री [अर्चिस्] १ कान्ति, तेज (भग २, ५) २ अग्‍नि की ज्वाला (पण्ण १) ३ किरण (राय) ४ दीप की शिखा (उत्त ३) ५ न. लोकान्तिक देवों का एक विमान (सम १४) । °मालि पुं [°मालिन्] १ सूर्य, रवि (सूअ १, ६) २ वि. किरणों से शोभित (राय) ३ न. लोकान्तिक देवों का एक विमान (सम १४) । °माली स्त्री [°माली] १ चन्द्र और सूर्य की तृतीय अग्र- महिषी का नाम (ठा ४, १) २ 'ज्ञातासूत्र' के द्वितीय श्रुतस्कन्ध के एक अध्ययन का नाम (णाया २) ३ शक्रेन्द्र की तृतीय अग्रमहिषी की राजधानी का नाम (ठा ४, २) । °मालिणी स्त्री [°मालिनी] चन्द्र और सूर्य की एक अग्र- महिषी का नाम (भग १०, ५; इक)

अच्चिअ :: वि [अर्चित] १ पूजित, सत्कृत (गा १५०) २ न. विमान-विशेष (जीव ३, पत्र १३७)

अच्चित्त :: देखो अचित्त (ओघ २२; सुर १२, २७)

अच्चीकर :: सक [अर्ची+कृ] १ प्रशंसा करना। २ खुशामद करना। अच्चीकरेइ। वकृ. अच्चीकरंत (निचू ५)

अच्चीकरण :: न [अर्चीकरण] १ प्रशंसा। २ खुशामद, 'अच्चीकरणं रण्णो, गुणवयणं तं समासओ ढुविहं। संतमसंतं च तहा, पच्चक्खपरोक्खमेक्‍केक्कं।' (निचू ५)

अच्चुअ :: पुं [अच्युत] १ विष्णु (अच्वु ५) २ बारहवां देवलोक (सम ३९) ३ ग्यारहवां और बारहवां देवलोक का इन्द्र (ठा २, ३) ४ अच्युत-देवलोकवासी देव, 'तं चेव आरण- च्‍चुय ओहिण्णाणेण पासंति' (विसे ६९६) । °नाह पुं [°नाथ] बारहवां देवलोक का इन्द्र (भवि) । °वइ पुं [°पति] इन्द्र-विशेष (सुपा ६१) । °वडिंसग न [°।वतंसक] विमान-विशेष का नाम (सम ४९) । °सग्ग पुं [°स्वर्ग] बारहवां देवलोक (भवि)

अच्च‌ुअ :: पुंन [अच्युत] एक देव-विमान (देवेन्द्र १३५)

अच्च‌ुआ :: स्त्री [अच्युता] छठवें और सतरहवें तीर्थंकर की शासनदेवी (संति ९; १०)

अच्च‌ुइंद :: पुं [अच्युतेन्द्र] ग्यारहवां और बार- हवां देवलोक का स्वामी, इन्द्र-विशेष (पउम ११७, ७)

अच्च‌ुक्कड :: वि [अत्युत्कट] अत्यन्त अग्र (आवम)

अच्च‌ुग्ग :: वि [अत्युग्र] ऊपर देखो (पव २२४)

अच्‍चुच्च :: वि [अत्युच्च] खूब ऊँचा, विशेष उन्नत (उप ९८६ टी)

अच्च‌ुट्ठिय :: वि [अत्युत्थित] अकार्य करने को तैय्यार (सूअ १, १४)

अच्च‍ुण्ह :: वि [अत्युष्ण] खूब गरम (ठा ५, ६)

अच्च‍ुत्तम :: वि [अत्युत्तम] अति श्रेष्ठ (कप्पू)

अच्च‌ुदय :: न [अत्युदक] १ बड़ी वर्षा (ओघ ३०) २ प्रभूत पानी (जीव ३)

अच्‍चुदार :: वि [अत्युदार] अत्यन्त उदार (स ६००)

अच्‍चुन्नय :: वि [अत्युन्नत] बहुत ऊँचा (कप्प)

अच्‍चुब्भड :: वि [अत्युद्भट] अति-प्रबल (भवि)

अच्चुवयार :: पुं [अत्युपकार] महान् उपकार (गा ५१४)

अच्‍चुवयार :: पुं [अत्युपचार] विशेष सेवा- सुश्रूषा (गा ५१४)

अच्चुव्वाय :: वि [अत्युद्वात] अत्यन्त थका हुआ (बृह ३)

अच्चुसिण :: वि [अत्युष्ण] अधिक गरम (आचा २, १, ७)

अच्‍चे :: अक [अति+इ] १ अतिक्रान्त होना, गुजरना। २ सक. उल्लंघन करला। अच्‍चेइ (उत १३, ३१; सूअ १, १५, ८)

अच्‍चे :: सक [अत्या+इ] त्याग करवाना। अच्‍चेही (सूअ १, २, ३, ७)

अच्‍चेअर :: न [आश्चर्य] आश्चर्य, विस्मय (विक्र १५)

अच्छ :: अक [आस्] बैठना। अच्छइ (हे १, २१४) । वकृ. अच्छंत, अच्छमाण (सुर ७, १३; णाया १, १) । कृ. अच्छि- यव्व, अच्छेयव्व (पि ५७०; सुर १२ २२८)

अच्छ :: सक [आ+छिद्] १ काटना, छेदना। २ खींचना। अच्छे (आचा १, १, २, ३) । संकृ. अच्छित्तु (श्रावक २२५), अच्छेत्तु (पिंड ३६८)

अच्छ :: वि [अच्छ] १ स्वच्छ, निर्मल (कुमा) २ पुं. स्फटिक रत्‍न (पव २७५) ३ पुं. ब. आर्य देश-विशेष (प्रव २७५)

अच्छ :: पुं [ऋक्ष] रीछ, भालू (पण्ह १, १)।

अच्छ :: वि [आच्छ] अच्छे देश में उत्पन्न (पण्ण ११)।

अच्छ :: पुं [अच्छ] मेरु पर्वक (सुज्ज ५)। २ न. तीन बार औटा हुआ स्वच्छ पानी (पडि)।

अच्छ :: न [दे] १ अत्यन्त, विशेष। २ शीघ्र, जल्दी (दे १, ४९)

°अच्छ :: वि [अक्षि] आंख, नेत्र (कुमा)।

°अच्छ :: पुं [कच्छ] १ अधिक पानीवाला प्रदेश। २ लताओं का समूह । ३ तृण, घास (से ९, ४७)

°अच्छ :: पुं [वृक्ष] वृक्ष, पेड़ (से ९, ४७)।

अच्छअ :: पुं [अक्षक] बहेड़ा का वृक्ष। २ न. स्वच्छ जल (से ९, ४७)

अच्छअर :: न [आश्रर्य] विस्मय, चमत्कार (कुमा)।

अच्छंद :: वि [अच्छन्द] जो स्वाधीन न हो, पराधीन; 'अच्छंदा जे ण भुंजंति ण से चाइत्ति वुच्चइ' (दस २)।

अच्छक्क :: देखो अत्थक्‍क (गउड)।

अच्छण :: न [आसन] १ बैठना (णाया १, १) २ पालकी वगैरह सुखासन (ओघ ७८)। °घर न [°गृह] विश्राम स्थान (जीव ३)

अच्छण :: न [दे] १ सेवा, शुश्रूषा (बृह ३) २ देखना, अवलोकन (वव १) ३ अहिंसा, दया (दस ८)

अच्छणिउर :: न [अच्छनिकुन] अच्छनि- कुरांग को चौरासी लाख से गुणने पर जो संख्या लब्ध हो वह (ठा २, १)।

अच्छणिउरंग :: न [अच्छनिकुराङ्ग] संख्या-विशेष, नलिन को चौरासी लाख से गुणने पर जो संख्या लब्ध हो वह (ठा २, १)।

अच्छण्ण :: वि [अच्छन्न] अगुप्त, प्रकट (बृह ३)।

अच्छभल्ल :: पुं [ऋक्षभल्ल] रीछ, भालू (दे १, ३७; पण्ह १, १)।

अच्छभल्ल :: पुं [दे] यक्ष, देव-विशेष (दे १, ३७)।

अच्छरआ :: देखो अच्छरा (षड्)।

अच्छरय :: पुं [आस्तरक] शय्या पर बिछाने का वस्त्र-विशेष (णाया १, १)।

अच्छरसा, अच्छरा :: स्त्री [अप्सरस्] १ इन्द्र की पटरानी (ठा ९) २ 'ज्ञाता- धर्मकथा' का एक अध्ययन (णाया २) ३ देवी (पउम २, ४१) ४ रूपवती स्त्री (पण्ह १, ४)

अच्छरा :: स्त्री [दे. अप्सरा] चुटकी, चुटकी का आवाज (सूअ २, २, ५४)।

अच्छराणिवाय :: पुं [दे] १ चुटकी। २ चुटकी बजाने में जितना समय लगता है वह, अत्यल्प समय (पण्ण ३६)

अच्छरिअ, अच्छरिज्ज, अच्छरीअ :: न [आश्रर्य] विस्मय, चम- त्कार (हे १, ५८; प्रयौ ४२)।

अच्छल :: न [अच्छल] निर्दोषता, अनपराध (दे १, १०)।

अच्छवि :: वि [अच्छवि] जैन-दर्शन में जिसको स्‍नातक कहते हैं वह, जीवनन्मुक्त योगी (भग २५, ६)।

अच्छविकर :: पुं [अक्षपिकर] एक प्रकार का मानसिक विनय (ठा ८)।

अच्छहल्ल :: पुं [ऋक्षभल्ल] रीछ, भालू (पाअ)।

अच्छा :: स्त्री [अच्छा] वरुण देश की राज- धानी (पव २७५)।

°अच्छा :: स्त्री [कक्षा] गर्व, अभिमान (से ९, ४७)।

अच्छाइ :: वि [आच्छादिन्] ढकनेवाला, आच्छादक (स ३५१)।

अच्छायण :: न [आच्छादन] १ ढकना (दे ७, ४५) २ वस्त्र, कपड़ा (आचा)

अच्छायणा :: स्त्री [आच्छादना] ढकना, आच्छा- दित करना (वव ३)।

अच्छायंत :: वि [अच्छातान्त] तीक्ष्ण, धार- दार (पाअ)।

अच्छि :: त्रि [अक्षि] आँख, नेत्र (हे १.३३; ३५)।

°चमढण :: न [°मलन] आँख का मलना (बृह २)।

णिमीलिय :: न [निमीलित] १ आँख को मूँदना, मींचना। २ आँख मिंचने में जो समय लगे वह, 'अच्छिणिमीलियमेत्तं, णात्थि सुहं दुक्खमेव अणुबद्धं। णरए णेरइआणं, अहोणिसं पच्च- माणाणं' (जीव ३)। °पत्त न [°पत्र] आँख का पक्ष्म, पपनी (भग १४, ८)। °वेहग पुं [°वेधक] एक चतुरिन्द्रिय जन्तु, क्षुद्र जीव- विशेष (उत्त ३६)। °रोडय पुं [°रोडक] एक चतुरिन्द्रिय जन्तु, क्षुद्र कीट-विशेष (उत ३६)। °ल्ल वि [°मत्] १ आँख वाला प्राणी। २ चतुरिन्द्रिय जन्तु (उत ३६)। °मल पुं [°मल] आँख का मैल, कीट्ट (निचू ३)

अच्छिंद :: सक [आ+छिद्] १ थोड़ा छेद करना । २ एक बार छेद करना । ३ बलात्कार से छीन लेना। वकृ अच्छिंदमाण (भग ८, ३)

अच्छिंद :: पुं [अक्षीन्द्र] गोशालक के एक दिक्‌चर (शिष्य) का नाम (भग १५)।

अच्छिंदण :: न [आच्छेदन] १ एक बार छेदना (निचू ३) २ छीनना। ३ थोड़ा छेद करना, थोडा काटना (भग १५)

अच्छिक्क :: वि [दे] अस्पृष्ट, नहीं छुआ हुआ (वव १)।

अच्छिघरुल्ल :: वि [दे] अप्रीतिकर। २ पुं वेश, पोशाक (दे १, ४१)

अच्छिज्ज :: वि [आच्छेद्य] १ जबरदस्ती जो दूसरे से छीन लिया जाय (पिंड) २ पुं. जैन साधु के लिए भिक्षा का एक दोष (आचा)

अच्छिज्ज :: वि [अच्छेद्य] जो तोड़ा न जा सके (ठा ३, २)।

अच्छित्ति :: स्त्री [अच्छित्ति] १ नाश का अभाव, नित्यता। २ वि. नाश-रहित (विसे) °णय पुं [°नय] नित्यता-वाद, वस्तु को नित्य माननेवाला पक्ष (पव)।

अच्छिद्द :: वि [अच्छिद्र] १ छिद्र-रहित, निबिड, गाढ़ (जं २) २ निर्दोष (भग २, ५)

अच्छिण्ण, अच्छिन्न :: वि [आच्छिन्न] १ बलात्कार से छीना हुआ। २ छेदा हुआ, तोड़ा हुआ (पाअ)

अच्छिण्ण, अच्छिन्न :: वि [अच्छिन्न] १ नहीं तोड़ा हुआ, अलग नहीं किया हुआ (ठा १०) २ अव्यवहित, अन्तर-रहित (गउड)

अच्छिप्प :: वि [अस्पृश्य] छूने के अयोग्य (सुपा २८१)।

अच्छिप्पंत :: वि [अस्पृशत] स्पर्श नहीं करता हुआ (श्रा १२)।

अच्छिय :: वि [आसित] बैठा हुआ (पि ४८०, ५६५)।

अच्छिवडण :: न [दे] आँख का र्मूदना (दे १, ३९)।

अच्छिविअच्छि :: स्त्री [दे] परस्पर-आकर्षण, आपस की खींचतान (दे १, ४१)।

अच्छिहरिल्ल, अच्छिहरुल्ल :: देखो अच्छिघरुल्ल (दे १, ४१)।

अच्छी :: देखो अच्छि (रंभा)।

अच्छुक्‍क :: न [दे] अक्षि-कूप-तुला, आँख का कोटर (सुपा २०)।

अच्छुत्ता :: स्त्री [अच्छुप्ता] १ एक विद्याधि- ष्ठात्री देवी (ति ८) २ भगवान् मुनिसुव्रत स्वामी की शासनदेवी (संति १०)

अच्छुद्धसिरी :: स्त्री [दे] इच्छा से अधिक फल की प्राप्ति, असंभावित लाभ (षड्)।

अच्छुल्लूढ :: वि [दे] निष्कासित, बाहर निकाला हुआ, स्थान-भ्रष्ट किया हुआ (बृह १)।

अच्छेज्ज :: देखो अच्छिज्ज (ठा ३, २; ४)।

अच्छेर, अच्छेरग, अच्छेरय :: न [आश्चर्य] १ विस्मय, चमत्कार (हे १, ५८) २ पुंन. विस्मय-जनक घटना, अपूर्व घटना (ठा १०, १३८)। °कर वि [°कर] विस्मय-जनक, चमत्कार उपजानेवाला (श्रा १४)

अच्छोड :: सक [आ+छोटय्] १ पटकना, पछाड़ना। २ सिंचना, छिटकना; 'अच्छोडेमि सिलाए, तिलं तिलं किं नु छिंदामि' (सूर १५, २३; सुर २, २४५)

अच्छोड :: पुं [आच्छोट] १ सिंचन। २ आस्फालन करना, पटकना (ओघ ३५७)

अच्छोडण :: न [आच्छोटन] १ सिंचन। २ आस्फालन (सुर १३, ४१; सुपा ५९३; वेणी १०९) ३ मृगया, शिकार (दे १, ३७)

अच्छोडाविय :: वि [दे. आच्छोटित] बंधित, बंधाया हुआ (स ५२५; ५२६)।

आच्छोडिअ :: वि [दे] आकृष्ट, खींचा हुआ; 'अच्छोडिअवत्थद्धं' (गा १६०)।

अच्छोडिअ :: वि [आच्छोटित] सिक्त, सिंचा हुआ (सुर २, २४५)।

अच्छोडिअ :: वि [आच्छोटित] पटका हुआ, आस्फालित (कुप्र ४३३)।

अछिप्प :: वि [अस्पृश्य] स्पर्श करने के अयोग्य, 'सो सुणओव्व अछिप्पो कुलुग्गयाणं, न उण पुरिसो' (सुपा ४८७)।

अज :: देखो अय=अज (पउम ११, २५, २६)।

अजगर :: देखो अयगर (भवि)।

अजड :: पुं [दे] जार, उपपति (षड्)।

अजड :: वि [अजड] १ पक्व, विकसित (गउड) २ निपुण, चतुर (कुमा)

अजम :: वि [दे] १ सरल, ऋजु (षड्) २ जमाईन (पभा १५)

अजय :: वि [अयत] १ पाप-कर्म से अविरत, नियम-रहित (कम्म ४) २ अनुद्योगी, यत्‍न- रहित (अघो ५४) ३ उपयोग-शून्य, बेख्याल (सुपा ५२२) ४ किवि. बे-ख्याल से, अनुप- योग से; अजयं चरमाणो य पाणभूयाइ हिसइ (दस ४; उवर ४ टी।

अजय :: पुं [अजय] षट्पद छंद का एक भेद (पिंग)।

अजयणा :: स्त्री [अयतना] अनुपयोग, ख्याल नहीं रखना, गफलती (गच्छ ३)।

अजर :: वि [अजर] १ वृद्धावस्था-रहित, बुढ़ापा- वर्जित। २ पुं. देव, देवता (आवम) ३ मुक्त आत्मा (ओघ)

अजराउर :: वि [दे] उष्ण, गरम (दे १, ४५)।

अजरामर :: वि [अजरामर] १ बुढ़ापा और मृत्यु से रहित, 'णत्थि कोइ जगम्मि अजरा- मरो' (महा) २ न. मुक्ति, मोक्ष। ३ स्त्री. °रा विद्या-विशेष (पउम ७, १३९)

अजस :: पुं [अयशस्] १ अपयश, अपकीर्ति (उप ७६८)। °ोकित्तिणाम न [°कीर्ति- नामन्] अपकीर्ति का कारण-भूत एक कर्म (सम ६७)।

अजस्स :: क्रिवि [अजस्र] निरन्तर, हमेशा; 'आमरणंतमजस्सं संजमपरिपालणं विहिणा' (पंचा ७)।

अजा :: देखो अया (कुमा)।

अजाण :: वि [अज्ञान] अनजान, मूर्ख (रयण ८५)।

अजाणअ :: वि [अज्ञायक] अनजान, जानकारी- रहित (काल)।

अजाणणा :: स्त्री [अज्ञान] जानकारी-रहित बे- समभी; 'अधाणणाए तज्जत्ती न कया तम्मि' (श्रा २८)।

अजाणुय :: वि [अज्ञायक] अज्ञ, नहीं जाननेवाला (ठा ३, ४)।

अजाय :: वि [अजात] अनुत्पन्न, अनिष्पन्न। °कप्प पुं [°कल्प] शास्त्रों को पूरा-पूरा नहीं जाननेवाला जैन साधु, अगीतार्थ; 'गीयत्थ जायकप्पो अगीआं खलु भवे अजाओ अ' (धर्म ३)। °कप्पिय पुं [°कल्पिक] अगीतार्थ जैन साधु (गच्छ १)।

अजिअ :: वि [अजित] १ अपराजित, अपरा- भूत। २ पुं. दूसरे तीर्थकर का नाम (अजि १) ३ नववेँ तीर्थकर का अधिष्ठाता देव (संति ७) ४ एक भावी बलदेव (ती २१)। °बला स्री [°बला] भगवान् अजितनाथ की शासनदेवी (पव २७)। °सेण पुं [°सेन] १ एक प्रसिद्ध राजा (आव) २ चौथा कुलकर (ठा १०) ३ एक विख्यात जैन मुनि (अंत ४)

अजिअ :: पुं [अजित] भगवान् मल्लिनाथ का प्रथम श्रावक (विचार ३७८)।

°नाह :: पुं [°नाथ] नववां रुद्र पुरुष (विचार ४७३)।

अजिअ :: वि [अजीव] जीव-रहित, अचेतन (कम्म १, १५)।

अजिअ :: वि [अजय्य] जो जीता न जा सके (सुपा ७५)।

अजिया :: स्त्री [अजिता] १ भगवान् अजित- नाथ की शासन देवी (संति ९ । २ चतुर्थ तीर्थकर की एक मुख्य शिष्या (तित्थ)

अजिण :: न [अजिन] १ हरिण आदि पशुओं का चमड़ा (उत्त ५; दे ७, २७) २ वि. जिसने राग-द्बेष का सर्वथा नाश नहीं किया है वह (भग १५) ३ जिन भगवान् के तुल्य सत्योपदेशक जैन शाधु, 'अजिणा जिणसंकासा, जिणा इवावितहं वागरेमाणा' (औप)

अजिण्ण :: देखो अइन्न=अजीर्ण (आव)।

अजियंधर :: पुं [अजितधर] ग्यारह रुद्रों में आठवां रुद्र पुरुष (विचार ४७३)।

अजिर :: न [अजिर] आँगन, चौक (सण)।

अजीर, अजीरय :: देखो अइन्न=अजीर्ण (वव १; णाया १, १३)।

अजीव :: पुं [अजीव] अचेतन, निर्जीव, जड़ पदार्थ (नव २)। °काय पुं [°काय] धर्मा- स्तिकाय आदि अजीव पदार्थ (भग ७, १०)।

अजुअ :: पुं [दे] वृक्ष-विशेष, सप्तच्छद, सतौना (दे १, १७)।

अजुअ :: न [अयुत] दश हजार, 'दोण्णि सहस्सा रहाणं, पंच अजुयाणि हयाणं' (महा)।

अजुअलवण्ण :: पुं [अयुगलपर्ण] सतौना (दे १, ४८)।

अजुअलवण्णा :: स्त्री [दे] इमली का पेड़ (दे १, ४८)।

अजुत्त :: वि [अयुक्त] अयोग्य, अनुचित (विसे)। °कारि वि [°कारिन्] अयोग्य कार्य करनेवाला (सुपा ६०४)।

अजुत्तीय :: वि [अयुक्तिक] युक्ति-शून्य, अन्याय्य (सुर १२, ५४)।

अजुय :: देखो अउअ; 'पंच अजुयाणि हयाणं सत कोडीओ पाइक्कजणाण' (सुख ९, १)।

अजेअ :: वि [अजय] जो जीता न जा सके, 'सो मउडरयणपहावेण अजेआ दोमुहराया' (महा)।

अजोग :: पुं [अयोग] मन, वचन और काया के सब व्यापारों का जिसमें अभाव होता है वह सर्वोत्कृष्ट योग, शैलेशी-करण (औप)।

अजोग :: वि [अयोग्य] अयोग्य, लायक नहीं वह (नीचू ११)।

अजोगि :: पुं [अयोगिन्] १ सर्वोत्कृष्ट यीग को प्राप्त योगी। २ मुक्त आत्मा (ठा २, १; कम्म ४, ४७; ५०)

अज्ज :: सक [अर्ज्] पैदा करना, उपार्जन करना, कमाना। अज्जइ (हे ४, १०५)। संकृ. अज्जिय (पिंग)।

अज्ज :: वि [अर्य] १ वैश्य। २ स्वामी, मालिक (दे १, ५)

अज्ज :: वि [आर्य] १ निर्दोष। २ आर्य-गोत्र में उत्पन्न (णंदि ४९) ३ शिषृ-जनोचित, 'अज्जाइं कम्माइं करेहि रायं' (उत १३, ३२)। °खउड पुं [°खपुट] एक जैन आचार्य (कुप्र ४४०)

अज्ज :: वि [आर्य] १ उत्तम, श्रेष्ठ (ठा ४, २) २ मुनि, साधु (कप्प) ३ सत्यकार्य करनेवाला (वव १) ४ पूज्य, मान्य (विपा १, १) ५ पुं. मातामह (निसी) ६ पितामह (णाया १, ८) ७ एक ऋषि का नाम (णंदि) ८ न. गोत्र-विशेष (णंदि) ९ जैन साधु, साध्वी और उनकी शाखाओं के पूर्व में यह शब्द प्रायः लगता है, जैसे अज्जवइर, अज्जचंदणा, अज्जपोमिला (कप्प)। °उत्त पुं [°पुत्र] १ पति, भर्ता (नाट) २ मालिक का पुत्र (नाट)। °घोस पुं [°घोष] भगवान् पार्श्वनाथ का एक गणधर (ठा ८)। °मंगु पुं [°मङ्ग] एक प्राचीन जैनाचार्य (सार्ध २२)। °मिस्स वि [°मिश्र] पूज्य, मान्य (अभि १३)। °समुद्द पुं [°समुद्र] एक प्रसिद्ध जैनाचार्य (साधं २२)

अज्ज :: अ [अद्य] आज (सुर २, १६७)। °त्त वि [°तन] अधुनातन, आजकल का (रंभा)। °त्ता स्त्री [°ता] आज कल (कप्प)। °प्पभिइ अ [°प्रभृति] आज से ले कर (उवा)।

अज्ज :: पुं [दे] जिनेन्द्र देव। २ बुद्ध देव (दे १, ५)

अज्ज :: न [आज्य] घी, घृत (पाअ)।

अज्ज° :: देखो रि=ऋ।

अज्जं :: अ [अद्य] आज (गा ५८)।

अज्जंत :: वि [आयत्] आगामी। °काल पुं [°काल] भविष्य काल (पाअ)।

अज्जंहिज्जो :: अ [अद्यह्यः] आजकल (उप पृ ३३४)।

अज्जकालिअ :: वि [अद्यकालिक] आजकल का (अणु १५८)।

अज्जग :: देखो अज्जय=अर्जक; 'अज्जगतरुमंज- रिव्व' (सुपा ५३)।

अज्जग :: देखो अज्जय=आर्यक (निर १, १)।

अज्जण :: सक [अर्ज्] उपार्जन करना। संकृ. अज्जणित्ता (सुअ १, ५, २, २३)।

अज्जण, अज्जणण :: [अर्जन] उपार्जन, पैदा करना (श्र १२; सत १८); 'रज्जं केरिस- मेवं करेसुवायं तदज्जणणे' (उप ७ टी)।

अज्जम :: पुं [अर्यमन्] १ सूर्य (पि २६१) २ देव-विशेष (जं ७) ३ उत्तरा- णाल्गुनी नक्षत्र का अधिष्ठायक देव (ठा २, ३) ४ न. उत्तरा-फाल्गुनी नक्षत्र (ठा २, ३)

अज्जय :: पुं [आर्यक] १ मातमह, मां का बाप (पउम १०, २) २ पितामह, पिता का पिता (भग ९, ३३); 'जं पुण अज्जय-पज्जय- जणयज्जियअत्थमज्भओ दाणं परमत्थओ कलंकं तयं तु पुरिसाभिमामीणं' (सूर १, २२०)

अज्जय :: वि [अर्जक] १ उपार्जन करनेवाला, पैदा करनेवाला (सुपा १२४) २ पुं. वृक्ष-विशेष (पण्ण १)

अज्जय :: पुं [दे] १ सुरस नामक तृण। २ गुरेटक नामक तृण (दे १, ५४) ३ तृण, घास (निचू ११)

अज्जल :: पुं [आर्यल] म्लेच्छों की एक जाति (पण्ण १)।

अज्जव :: न [आर्जव] सरलता, निष्कपटता (नव २९)।

अज्जव :: (अप) देखो अज्ज=आर्य। °खंड पुं [खण्ड] आर्य-देश (भवि)।

अज्जवया :: स्त्री [आर्जव] ऋजुता, सरलता (पक्खि)।

अज्जवि :: वि [आर्जविन्] सरल, निष्कपट (आचा)।

अज्जविय :: न [आर्जव] सरलता (सूअ १, ५, २, २३)।

अज्जा :: स्त्री [आर्या] १ साघ्वी (गच्छ २) २ गौरी, पार्वती (दे १, ५) ३ आर्या छन्द (जं २) ४ भगवान् मल्लिनाथ की प्रथम शिष्या (सम १५२) ५ मान्या, पूज्या स्त्री (पि १०६, १४३, १४५) ६ एक कला (औप)

अज्जा :: स्त्री [आज्ञा] आदेश, हुकुम (हे २, ८३)।

अज्जाय :: वि [अजात] अनुत्पन्न, 'अज्जायस्सि- यरस्सवि एस सहावो त्ति दुग्घडं जाए' (धर्मसं २७०)।

अज्जाव :: सक [आ+ज्ञापय्] आज्ञा करना, हुकुम फरमाना। कृ. अज्जावेयव्व (सूअ २, १)।

अज्जिअ :: वि [अर्जित] उपार्जित, पैदा किया हुआ (श्रा १४)।

अज्जिआ :: स्त्री [आर्यिका] १ मान्या, पूज्या स्त्री। २ साघ्वी, संन्यासिनी (सम ६५; पि ४४८) ३ माता की माता (दस ७) ४ पिता की माता (स २५५)

अज्जिड्डीअ :: वि [दे] दत्त, दिया हुआ (वंव १ टी)।

अज्जिणण :: देखो अज्जणण (उप ९९४)।

अज्जीव :: देखो अजीव, 'धम्माधम्मा पुग्गल, नह कालो पंच हुंति अज्जीवा' (नव १०)।

अज्जु :: (अप) अ [अद्य] आज (हे ४, ३४३; भवि; पिंग)।

अज्जुअ :: (शौ) देखो अज्ज=आर्य (नाट)।

अज्जुआ :: (शौ) देखो अज्जा=आर्या (पि १०५)।

अज्जुण :: पुं [अर्जुन] १ तीसरापाण्डव (णाया १, १६) २ वृक्ष-विशेष (णाया १, ९; औप) ३ गोशालक के एक दिक्चर (शिष्य) का नाम (भग १५) ४ न. श्‍वेत सुवर्ण, सफेद सोना; 'सव्वज्जुणसुवण्णग्गमई' (औप) ५ तृण-विशेष (पण्ण १) ६ अर्जुन वृक्ष का पुष्प (णाया १, ९)

अज्जुणग, अज्जुणय :: [अर्जुनक] १-६ ऊपर देखो। ७ एक माली का नाम (अंत १८)

अज्जू :: स्त्री [आर्या] सास, श्वश्रू (हे १, ७७)।

अज्जोग :: देखो अजोग=अयोग (पंच १)।

अज्जोगि :: देखो अजोगि (पंच १)।

अज्जोरुह :: न [दे] वनस्पति-विशेष (पण्ण १)।

अज्भक्ख :: वि [अध्यक्ष] अधिष्ठाता (कप्पू)।

अज्भ :: पुं [दे] यह (पुरुष, मनुष्य) (दे १, ५०)।

अज्भत्त :: देखो अज्भप्प (सूअ १, २, २, १२)।

अज्भत्थ :: वि [दे] आगत, आया हुआ (दे १, १०)।

अज्भत्थ, अज्भप्प :: न [अध्यात्म] १ आत्मा में, आत्म- संबंधी, आत्म-विषयक; (उत्त १; आचा) २ मन में, मन संबंधी, मनो-विषयक (उत्त ६; सूअ १, १६, ४) ३ मन, चित्त; 'अज्भप्पसाणयणं' (दसनि १, २९) ४ शुभ- घ्यान, 'अज्भप्प-रए सुसमाहि-अप्पा, सुत्तत्थं च विआणइ जे स भिक्खु' (दस १०, १५) ५ पुं. आत्मा (ओघ ७४५)। °जोग पुं [°योग] योग-विशेष, चित्त की एकाग्रता (सूअ १, १६, ४)। °दोस पुं [°दोष] आघ्यात्मिक दोष — क्रोघ, मान, माया और लोभ (सूअ १, ६)। °वत्तिय वि [°प्रत्ययिक] चित्त-हेतुक, मन से ही उत्पन्न होनेवाला शोक, चिन्ता आदि (सूअ २, २, १६)। °विसोहि स्त्री [°।वशिुद्धि] आत्म-शुद्धि (ओघ ७४५)। °संवुड वि [°संवृत] मतो-निग्रही, मन को काबु में रखनेवाला (आचा)। °सुइ स्त्री [°श्रुति] अध्यात्म- शास्त्र, आत्म-विद्या, योग-शास्त्र (पण्ह २, १)। °सुद्धि स्त्री [°शुद्धि] मन की शुद्धि (आचू १)। °सोहि स्त्री [°शुद्धि] मनः-शुद्धि (आचू १)

अज्झत्थिय :: वि [आघ्यात्मिक] आत्म-विषयक, आत्मा या मन से संबंध रखनेवाला (विपा १, १; भग २, १)।

अज्भत्थीअ :: देखो अज्भत्थिय (पव १२१)।

अज्भप्पिअ :: वि [आध्यात्मिक] १ अध्यात्म का जानकार (अज्भ २) २ अघ्यात्म-सम्बन्धी (सूअनि ९४)

अज्भय :: वि [दे] प्रातिवेश्मिक, पड़ोसी (दे १, १७)।

अज्भयण :: पुंन [अध्ययन] १ शब्द, नाम (चंद १) २ पढ़ना, अभ्यास (विसे) ३ ग्रन्थ का एक अंश (विपा १, १)

अज्भयणि :: वि [अध्ययनिन्] पढ़नेवाला, अभ्यासी (विसे १४९५)।

अज्भयाव :: सक [अधि+आप्] पढ़ाना, सीखाना।। अज्भयाविंति (विेसे ३१९९)।

अज्भवस :: /?/सक [अध्यव+सो] विचार करना, चिंतन करना। वकृ. अज्भवसंत (सुपा ५९५)।

अज्भवसण, अज्भवसाण :: न [अध्यवसान] चिन्तन, विचार, आत्म-परिणाम; 'तो कुमरेणं भणियं, मुणिपुंगव ! रइसुहज्भवस- णंपि। किं इयफलयं जायइ ?' (सुपा ५९५; प्रासू १०४; विपा १, २)।

अज्भवसाय :: पुं [अध्यवसाय] विचार, आत्म- परिणाम, मानसिक संकल्प (आचा; कम्म ४, ८२)।

अज्भवसिय :: वि [अध्यवसित] निश्चित, (धर्मसं ४२८)।

अज्भवसिय :: वि [अध्यवसित] १ जिसका चिन्तन किया गया हो वह (औप) २ न. चिन्तन, विचार (अणु)

अज्भवसिय :: न [दे] मुंड़ा हुआ मुंह (दे १, ४०)।

अज्भसिय :: वि [दे] देखा हुआ, दृष्ट (दे १, ३०)।

अज्भस्स :: सक [आ+क्रुश] आक्रोश करना, अभिशाप देना। अज्भस्सइ (दे १, १३)।

अज्भस्स, अज्भस्सिय :: वि [आकुष्ट] जिस पर आक्रोश किया गया हो वह (दे १, १३)।

अज्भहिय :: वि [अध्यधिक] अत्यंत, अतिश- यित (महा)।

अज्झा :: स्त्री [दे] १ असती, कुलटा। २ प्रशस्त स्त्री । ३ नवोढ़ा, दुलहिन। ४ युवती स्त्री। ५ यह (स्त्री) (दे १, ५०; गा ८३८, ८९८; वज्जा ६४)

अज्भा, अज्भाअ :: सक [अधि+इ] अघ्यन करना, पढ़ना। अज्भामि; (सुख २, १३)। हेकृ. अज्भाइउं (सुख २, १३)।

अज्भाअ :: सक [अघ्यापय्] पढ़ाना। कर्म. अज्भाइज्जइ (सुख २, १३)।

अज्भाइअव्व :: वि [अध्येतव्य] पढ़ने योग्य, 'सुअं मे भविस्सइ त्ति अज्भाइअव्वं भवइ' (दस ९, ४, ३)।

अज्भाय :: पुं [अध्याय] १ पठन, अभ्यास (नाट) २ ग्रन्थ का एक अंश (विसे १११९; प्राप)

अज्भारुह :: पुं [अध्यारुह] १ वृक्ष-विशेष। २ वृक्षों के ऊपर बढ़नेवाली वल्ली या शाखा वगैरह (पण्ण १)

अज्भारोव :: पुं [अध्यारोप] आरोप, उपचार (धर्मसं ३५२; ३५३)।

अज्भारोवण :: न [अध्यारोपण] १ आरोपण, ऊपर चढ़ाना। २ पूछना, प्रश्न करना (विसे २९२८)

अज्भारोह :: पुं [अध्यारोह] देखो अज्भारुह (सुअ २, ३, ७, १८, १९)।

अज्भाव :: देखो अज्भाअ=अघ्यापय्। अज्भा- वेइ (सुख २, १३)। वक अज्भावअंत (हास्य १२४)।

अज्भावग :: देखो अज्भावय (दसनि १, १टी)।

अज्भावण :: न [अध्यापन] पाठन (सिरि २७)।

अज्भावणा :: स्त्री [अध्यापना] पढ़ाना (कम्म १, ६०)।

अज्भावय :: वि [अध्यापक] पढ़ानेवाला, शिक्षक, गुरु (वसु; सुर ३, २६)।

अज्भावस :: अक [अध्या+वस्] रहना, वास करना। वकृ अज्भावसंत (उवा)।

अज्भास :: पुं [अध्यास] १ ऊपर बैठना। २ निवास-स्थान (सुपा २०)

अज्भासणा :: स्त्री [अध्यासना] सहन करना (राज)।

अज्भासिअ :: वि [अध्यासित] १ आश्रित, अधिष्ठित। २ स्थापित, निवेशित (नाट)

अज्भाहय :: वि [अध्याहत] १ उत्तेजित, 'सिय- लेणं सुरहिगंधमट्टियागंघेणं हत्थी अज्भाहओ वणं संभरेइ' (महा)

अज्भीण :: वि [अक्षीण] १ अक्षय, अखूट। २ न. अघ्ययन (विसे ९५८)

अज्भुववज्ज :: देखो अज्झोववज्ज (पि ७७; औप)।

अज्भुववण्ण :: देखो अज्भोववण्ण (विपा १, १)।

अज्भुववाय :: देखो अज्भोववाय (उप पृ २८१)।

अज्भुसिअ :: वि [अध्युषित] आश्रित (पिंड ४५०)।

अज्भुसिर :: वि [अशुषिर] छिद्र-रहित (ओघ ३१३)।

अज्भेउ :: वि [अध्येतृ] पढ़नेवाला (विसे १४९५)।

अज्भेल्ली :: स्त्री [दे] दोहने पर भी जिसका दोहन हो सके ऐसी गैया (दे १, ७)।

अज्भेसणा :: स्त्री [अध्येषणा] अधिक प्रार्थना, विशेष याचना (राज)।

अज्भोयरग, अज्भोयरय :: पुं [अध्यवपूरक] १ साधु के लिए अधिक रसोई करना। २ साधु के लिए बढ़ाकर की हुई रसोई (औप; पव ६७)

अज्भोल्लिआ :: स्त्री [दे] वक्षः-स्थल के आभू- षण में की जाती मोतियों की रचना (दे १, ३३)।

अज्भोवगमिय :: वि [आभ्युपगमिक] स्वेच्छा से स्वीकृत (पण्ण ३४)।

अज्भोववज्ज :: अक [अध्युप+पद्] अत्यासक्त होना, आसक्ति करना। अज्भोववजइ (पि ७७)। भविअज्भोववजिहिइ (औप)।

अज्भोववण्ण, अज्भोववन्न :: वि [अध्युपपन्न] अत्यंत आसक्त (विपा १, २; णाया १, २; महा; पि ७७)।

अज्भोववाय :: पुं [अध्युपपाद] अत्यन्त आस- क्ति, तल्लीनता (पण्ह २, ५)।

अभावणा :: देखो अज्भावणा; 'पसमो पसन्नव- यणो विहिणा सव्वाणभावणाकुसलो' (संबोध २४)।

अट, अट्ट :: सक [अट्] भ्रमण करना, घुमना। अटइ (षड्; हे १, १९५); परिअट्टइ (हे ४, २३०)।

अट्ट :: सक [क्वथ्] क्वाथ करना। अट्टइ (हे ४, ११९; षड्; गउड)।

अट्ट :: अक [शुष्] सूखना, शुष्क होना। अट्टंति (से ५, ६१)। वकृ. अट्टंत (से ५, ७३)।

अट्ट :: वि [आर्त] १ पीड़ित, दुःखित (विपा १, १) २ ध्यान-विशेष — इष्ठ-संयोग, अनिष्ट- वियोग, रोग-निवृत्ति और भविष्य के लिए चिन्ता करना (ठा ४, १)। °ण्ण वि [°ज्ञ] पीड़ित की पीड़ा को जाननेवाला (षड्)

अट्ट :: वि [ऋत] गत, प्राप्त (णाया १, १; भग १२, २)।

अट्ट :: पुंन [अट्ट] १ दूकान, हाट (श्रा १४) २ महल के ऊपर का घर, अटारी (कुमा) ३ आकाश (भाग) २०, २)

अट्ट :: वि [दे] १ कृश, दुर्बल। २ बड़ा, महान्। ३ निर्लज्ज, बैशरम। ४ आलसी, सुस्त। ५ पुं. शुक, तोता। ६ शब्द, आवाज। ७ न.सुख। ८. भूठ, असत्योक्ति (दे १, ५०)

अट्टट्ट :: वि [दे] गया हुआ, गत (दे १, १०)।

अट्टट्टहास :: पुं [अट्टट्टहास] देखो अट्टहास (उव)।

अट्टण :: न [अट्टन] १ व्यायाम, कसरत (औप) २ पुं. इस नाम का एक प्रसिद्ध सल्ल (उत्त ४)। °साला स्त्री [°शाला] व्यायाम-शाला, कसरत-शाला (औप; कप्प)

अट्टण :: न [अटन] परिभ्रमण (धर्म ३)।

अट्टणा :: स्त्री [आवर्तना] आवृत्ति (प्राकृ ३१)।

अट्टमट्ट :: वि [दे] निरर्थक, व्यर्थ, निकम्मा (सुख ५, ८)।

अट्टमट्ट :: पुं [दे] १ आलवाल, कियारी (हे २, १७४) २ अशुभ संकल्प-विकल्प, पाप-संबद्ध अव्यवस्थित विचार; 'अणवट्ठियं मणो जस्स भाइ बहुयाइं अट्टमट्टाइं। तं चितियं च न लहइ, संचिणुइ य पावकम्माइं' (उव)

अट्टय :: पुं [अट्टक] १ हाट, दूकान (श्रा १२) २ पात्र के छिद्र को बन्द करने में उपयुक्त द्रव्य-विशेष (बृह १)

अट्टयक्‍कली :: स्त्री [दे] कमर पर हाथ रखकर खड़ा रहना (पाअ)।

अट्टहास :: पुं [अट्टहास] बहुत हंसना, खिल- खिला कर हंसना (पि २७१)।

अट्टालग, अट्टालय :: पुंन [अट्टालक] महल का उपरि- भाग, अटारी (सम १३७; पउम २, ९)।

अट्टि :: स्त्री [आर्ति] पीड़ा, दुःख (आचा)।

अट्टिय :: वि [आर्तित] शोकादि से पीड़ित, 'अट्टा अट्टियचित्ता, जह जीवा दुक्खसागरमुवेति' (औप)।

अट्टिय :: वि [अर्दित] व्याकुल, व्यग्र; 'अट्टदुह- ट्टियचित्ता' (औप)।

अट्ठ :: पुं [अर्थ] संयम (सूअ १, २, २, १९)।

अट्ठ :: पुंन [अर्थ] ५ वस्तु, पदार्थ (उवा २; अच्‍चु); 'अट्ठदंसी' (सूअ १, १४), 'अट्ठाइं, हेऊइं, पसिणाइं' (भग २, १) २ विषय, 'इंदियट्ठा' (ठा ६) ३ शब्द का अभिघेय, वाच्य (सूअ १, ६) ४ मतलब, तात्पर्य (विपा २, १; भास १८) ५ तत्त्व, परमार्थ, 'तुब्भे- त्थ भो भारहरा गिराणं, अट्ठं न याणाह अहिज्ज वेए' (उत्त १२, ११); 'इओ चुएसु दुहमट्ठ- दुग्गं' (सूअ १, १०, ९) ६ प्रयोजन, हेतु (हे २, २३) ७ अभिलाष, इच्छा; 'अठ्ठो भंते। भागेहिं, हंता अट्ठो' (णाया १, १९; उत्त ३) ८ उद्देश्य, लक्ष्य (सूअ १, २, १) ९ घन, पैसा (श्र १४; आचा) १० फल, लाभ; 'अट्ठजुत्ताणि सिक्खेज्जा णिरट्ठाणि उ वज्जए' (उत्त १) ११ मोक्ष, मुक्ति (उत्त १)। °कर पुं [°कर]। १ मंत्री। २ निमित्त शास्त्र का विद्वान् (ठा ४, ३)। °जाय वि [°जातार्थ] जिसकी आवश्यकता हो, जिसका प्रयोजन हो वह; 'अट्ठेण जस्स कज्जं संजातं एस अट्ठजाओ य' (वव २)। °जाय वि [°याच] धनार्थी, धन की चाहवाला (वव २)। °सइय वि [°शतिक] सौ अर्थवाला, जिसका सौ अर्थहो सके ऐसा (वचन आदि) (जं २)। °सेण पुं [°सेन] देखो अट्ठिसेण, देखो अत्थ=अर्थ।

अट्ठ :: त्रि.ब. [अष्ठन्] संख्या-विशेष, आठ, ८ (जी ४१)। °चत्ताल वि [°चत्वारिंश] अठतालीसवाँ (पउम ४८, १२६)। °चत्तालीस त्रि [°चत्वारिंशत्] अठतालीस (पि ४४५)। °ट्ठमिया स्त्री [°।ष्टमिका] जैन साधुओं का ६४ दिन का एक व्रत, प्रतिमा-विशेष (सम ७७)। °तालीस वि [°चत्वारिंशत्] अठ- तालीस (नाट)। °तीस त्रि [°।त्रिंशत्] संख्या-विशेष, अठतीस (सम ६५; पि ४४२; ४४५)। °तीसइम वि [°।त्रिंश] अठतीसवाँ (पउम ३८, ५८)। °त्तरि स्त्री [°सप्तति] अठत्तर, ७८ की संख्या (पि ४४६)। °त्तीस त्रि [°।त्रिंशत्] अठतीस (सुपा ६५९; पि ४४५)। °दस त्रि [°।दशन्] अठारह, १८ (संति ३)। °दसुत्तरसय वि [°।दशोत्तर- शत्] एक सौ अठारहवाँ (पउम ११८, १२०)। °दह त्रि [°।दशन] अठारह, १८ की संख्या (पिंग)। °पएसिय वि [°प्रदेशिक] आठ अव- यव वाला (ठा १०)। °पया स्त्री [°पदा] एक वृत, छन्द-विशेष (र्पिग) °पाहरिअ वि [प्राह- रिक] आठ प्रहर संबंधी (सुर १५, २१८)। °माइया स्त्री [°भागिका] तरल वस्तु नापने का बत्तीस पलों का एक परिमाण (अणु)। °म न [°म] तेला, लगातार तीन दिनों का उपवास (सुर ४, ५५)। °मंगल पुंन [°मङ्गल] स्वस्तिक आदि आठ मांगलिक वस्तु (राय)। °मभत्त पुंन [°मभक्त] तेला, लगातार तीन दिनों का उपवास (णाया १, १)। °मभत्तिय वि [°मभक्तिक] तेला करनेवाला (विपा २, १)। °मी स्त्री [°मी] तिथि-विशेष, अष्टमी (विपा २, १)। °मुत्ति पुं [°मूर्ति] महादेव, शिव (ठा ९)। °याल त्रि [°चत्वारिंशत्] अठतालीस (भवि)। °वन्न त्रि [°पञ्चाशत्] संख्या-विशेष, अट्ठावन, ५८ (कम्म १, ३२)। °वरिस, °वारिस वि [°वार्षिक] आठ वर्ष की उम्र का (सुर २, १४६; ८, १०१)। °विह वि [°विध] आठ प्रकार का (जी २४)। °वीस स्त्रीन [°।विंशति] अट्ठाईस (कम्म १, ५)। °सट्ठि स्त्री [षष्टि] संख्या-विशेष, अठसठ (पि ४४२-६)। °समइय वि [°सामयिक] जिसकी अवधि आठ 'समय' की हो वह (औप)। °सय न [°शत] एक सौ आठ, १०८ (ठा १०)। °सहस्स न [सहस्र] एक हजार और आठ (औप)। °सामइय देखो °समइय (ठा ८)। °सिर वि [°शिरस्, °सिर] अष्ट-कोण, आठ कोण वाला (औप)। °सेण पुं [°सेन] देखो अट्ठिसेण। °हत्तर वि [°सप्ततितम] अठत्तरवाँ (पउम ७८, ५७)। °हत्तरि स्त्री [°सप्तति] अठतर की संख्या, ७८ (सम ८६)। °हा अ [°धा] आठ प्रकार का (पि ४५१)।

°अट्ठ :: न [काष्ठ] काष्ठ, लकड़ी (प्रयौ ७४)।

अट्ठंग :: वि [अष्टाङ्ग] जिसका आठ अँग हो वह। °णिमित्त न [°निमित्त] वह शास्त्र जिसमें भूमि, स्वप्‍न, शरीर, स्वर आदि आठ विषयों के फलाफल का प्रतिपादन हो (सूअ १, १२)। °महाणिमित्त न [°महानिमित्त] अनन्तर-उक्त अर्थ (कप्प)।

अट्ठंस :: वि [अष्ठास्र] अष्ट-कोण (सूअ २, १, १५)।

अट्ठदिट्ठि :: स्त्री [अष्टदृष्टि] योग की आठ दृष्टियाँ, वे ये हैं: — मित्रा, तारा, बला, दीप्रा, स्थिरा, कान्ता, प्रभा और परा (सिरि ९२३)।

अट्ठय :: न [अष्टक] आठ का समूह (वव १)।

अट्ठा :: स्त्री [अष्टा] १ मुष्टि, 'चउहि अट्ठार्हि लोयँ करेइ' (जं २; स १८१) २ मुट्ठीभर चीज (पंचव २)

अट्ठा :: स्त्री [आस्था] श्रद्धा, विश्वास (सूअ २, १)।

अट्ठा :: स्त्री [अर्थ] लिए, वास्ते; 'तइया य मणी दिव्वो, समप्पिओ जीवरक्खट्ठा' (सुर ९, ९; ठा ५, २)। °दंड पुं [°दण्ड] कार्य के लिए की गई हिंसा (ठा ५, २)।

अट्ठाइस :: वि [अष्टाविंश] अठाईसवाँ (पिग)।

अट्ठाइस, अट्ठाईस :: स्त्रीन [अष्टाविंशति] संसंख्या-विशेषख्या- विशेष, अठाईस (पिंग; पि ४४२)।

अट्ठाण :: न [अस्थान] १ अयोग्य स्थान (ठा ६; विसे ८४५) २ कुत्सित स्थान, वेश्या का मुहल्ला वगैरह (वव२) ३ अयोग्य, गैरव्याजबी 'अट्ठाणमेयं कुसला वयंति, दगेण जे सिद्धिमुया- हरंति' (सूअ १, ७)

अट्ठाण :: न [आस्थान] सभा, सभा-गृह (ठा ५, १)।

अट्ठाणउइ :: स्त्री [अष्टानवति] अठानबे, ९८ (सम ९९)।

अट्ठाणउय :: वि [अष्टानवत] अठानबेवाँ, ९८ वाँ (पउम ९८, ७८)।

अट्ठाणवइ :: देखो अट्ठाणउइ (कुप्र २१६)।

अट्ठाणिय :: वि [अस्थानिक] अपात्र, अनाश्रय; 'अट्ठाणिए होइ बहू गुणाणं, जेण्णाणसंकाइ मुसँ वएज्जा' (सूअ १, १३)।

अट्ठायमाण :: वकृ [अतिष्ठत्] नहीं बैठता हुआ (पंचा १६)।

अट्ठार, अट्ठारस :: त्रि. ब. [अष्ठादशन्] संख्या विशेष, अठारह (पउम ३५, ७९; संति १)। °विह वि [°विध] अठारह प्रकार का (सम ३५)।

अट्ठारसग :: न [अष्टादशक] १ अठारह का समूह (पंचा १४, ३) २ वि. जिसका मूल्य अठारह मुद्रा हो वह (पव १११)

अट्ठारसम :: वि [अष्टादश] १ अठारहवाँ (पउम १८, ५८) २ न. लगातार आठ दिनों का उपवास (णाया १, १)

अट्ठारसिय :: वि [अष्टादशिक] अठारह वर्ष की उम्र का (वव ४)।

अट्ठारह, अट्ठाराह :: देखो अट्ठार (षड्; पिंग)।

अट्ठावण्ण, अट्ठावन्न :: स्त्रीन [अष्टापञ्चाशत्] संख्या-विशेष, पचास और आठ, ९८ (पि २६५; सम ७४)।

अट्ठावन्न :: वि [अष्टापञ्चाश] अठावनवाँ (पउ- म ५८, १९)।

अट्ठावय :: पुं [अष्टापद] १ स्वनाम-ख्यात पर्वत- विशेष, कैलास (पण्ह १, ४) २ न. एक जाति का जुआ (पण्ह १, ४) ३ द्यूत-फलक, जिस पर जुआ खेला जाता है वह (पण्ह १, ४) ४ सुवर्ण, सोना (धण ८)। °सेल पुं [°शैल] १ मेरु-पर्वत। २ स्वनाम-ख्यात पर्वत- विशेष, जहाँ भगवान् ऋषभदेव निवणि पाये थे; 'जम्मि तुमँ अहिसित्तो, जत्थ य सिवसुक्ख- संपयं पत्तो। ते अट्ठावयसेला, सीसामेला गिरि- कुलस्स' (धण ८)

अट्ठावय :: न [अर्थपद] गृहस्थ (दस ३, ४)।

अट्ठावय :: न [अर्थपद] अर्थ-शास्त्र, संपत्ति-शास्त्र (सूअ १, ९ पण्ह १, ४)।

अट्ठावीस :: स्‍त्रीन [अष्टाविशति] अठाईस, २८ (पि ४४२, ४४५)।

अट्ठावीसइ :: स्त्री [अष्टाविशति] संख्या-विशेष, अठाईस, २८। °विह वि [°विध] अठाईस प्रकार का (पि ४५१)।

अट्ठावीसइप :: वि [अष्टाविंश] १ अठाईसवाँ (पउम २८, १४१) २ न. तेरह दिनों के लगातार उपवास (णाया १, १)

अट्ठासट्ठि :: स्त्री [अष्टाषष्टि] संख्या-विशेष, अठ- सठ, ६८ (पिंग)।

अट्ठासि, अट्ठासीइ :: स्त्री [अष्टाशीति] संख्या-विशेष अठासी, ८८ (पिंग; सम ७३)।

अट्ठासीय :: वि [अष्टाशीत] अठासीवाँ (पउम ८८, ४४)।

अट्ठाह :: न [अष्टाह] आठ देन (णाया १, ८)।

अट्ठाहिया :: स्त्री [अष्टाहिका] १ आठ दिनों का एक उत्सव (पंचा ८) २ उत्सव (णाया १, ८)

अट्ठि :: वि [अर्थिन्] प्रार्थी, गरजवाला, अभि- लाषी (आचा)।

अट्ठि :: पुं [अस्थि] १ हड्डी, हाड़; 'अयं अट्ठी' (सूअ २, १, १६) २ फल की गुट्टी (दस ५, १, ७३)

अट्ठि, अट्ठिग, अट्ठिय :: स्त्रीन [अस्थि, °क] १ हड्डि, हाड़ (कुमा; पण्ह १, ३) २ जिसमें बीज उत्पन्न न हुए हों ऐसा अपरि- पक्‍व फल (बृह १) ३ पुं. कापालिक, 'अट्ठी विज्जा कुच्छियभिक्खू' (बृह १; वव २) °मिजा स्त्री [°मिञ्जा] हड्डी के भीतर का रस (ठा ३, ४)। °सरक्ख पुं [°सरजस्क] कापा- लिक (वव ७)। °सेण न [°षेण] १ वत्स- गोत्र की शाखारूप एक गोत्र। २ पुं. इस गोत्र का प्रवर्तक पुरुष और उसकी सन्तान (ठा ७)

अट्ठिय :: वि [अर्थिक] १ गरजू, याचक, प्रार्थी (सूअ १, २, ३) २ अर्थ का कारण, अर्थ सम्बन्धी। ३ मोक्ष का हेतु मोक्ष का कारण- भूत; 'पसन्ना लाभइस्संति विउलं अट्ठियं सुयं' (उत्त १)

अट्ठिय :: वि [आर्थिक] १ अर्थ का कारण, अर्थ- सम्बन्धी। २ मोक्ष का कारण (उत्त १)

अट्ठिय :: वि [अर्थित] अभिलषित, प्रार्थित (उत्त १)।

अट्ठिय :: वि [अस्थित] १ अव्यव स्थित, अनि- यमित (पण्ह १, ३) २ चंचल, चपल (से २, २४)

अट्ठिय :: वि [आस्थिक] हड्डी-सम्बन्धी, हाड़ का; 'अट्ठियं रसं सुणआ' (भत १४२)।

अट्ठिय :: वि [आस्थित] स्थित, रहा हुआ, (से १, ३५)।

अट्ठिय :: पुं [अस्थिक] १ वृक्ष-विशेष। २ न. फल-विशेष, अस्थिक वृक्ष का फल (दस ५, १, ७३)

अट्ठिल्लय :: पुं [अस्थि] फल की गुट्ठी (पिंड ६०३)।

अट्ठुत्तर :: वि [अष्टोत्तर] आठ से अधिक (औप)। °सय न [°शत] एक सौ और आठ (काल)। °सय वि [°शततम] एक सौ आठवाँ (पउम १०८, ५०)।

अठ, अड :: देखो अट्ठ=अष्टन् (पिंग; पि ४४२; १४९; भग; सम १३४)।

अड :: सक [अट्] भ्रमण करना, फिरना; 'अडंति संसारे' (पण्ह १, १)। वकृ. अडमाण (णाया १, १४)।

अड :: पुं [अवट] १ कूप, अनारा (पाअ) २ कूप के पास पशुओं के पानी पीने के लिए जो गर्त किया जाता है वह (हे १, २७१)। °अड देखो तड=तट (गा ११७; से १, ५५)

अडइ, अडई :: स्त्री [अटवि, °वी] भयानक जंगल, वन (सुपा १८१, नाट)।

अडडज्भिय :: न [दे] विपरीत मैथुन (दे १, ४२)।

अडखम्म :: सक [दे] संभालना, रक्षण करना। कर्म, 'अडखम्मिज्जंति सवरिआहि पणे' (दे १, ४१)।

अडखम्मिअ :: वि [दे] संभाला हुआ, रक्षित (दे १, ४१)।

अडड :: न [अटट] 'अटटांग' को चौरासी लाख से गुणने पर जो संख्या लब्ध हो वह (ठा ३, ४)।

अडडंग :: न [अटटाङ्ग] संख्या-विशेष, 'तुडिय' या 'महातुडिय' को चौरासी लाख से गुणने पर जो संख्या लब्ध हो वह (ठा ३, ४)।

अडण :: न [अटन] भ्रमण, घूमना (ठा ६)।

अडणी :: स्त्री [दे] मार्ग, रास्ता (दे १, १६)।

अडपल्लण :: न [दे] वाहन-विशेष (जीव)।

अडयणा, अडया :: स्त्री [दे] कुलटा, व्यभिचारिणी स्त्री (दे १, १८; पाअ; गा २७४; ६६२; वज्जा ८६)।

अडयाल :: न [दे] प्रशंसा, तारीफ (पण्ण २)।

अडयाल, अडयालीस :: स्त्रीन [अष्टचत्वारिंशत्] अठ- तालीस, ४८ की संख्या (जीव ३; सम ७०)। °सय न [°शत] एक सौ और अठतालीस, १४८ (कम्म २, २५)।

अडवडण :: न [दे] स्खलना, रुक-रुक चलना, 'तुरयावि परिस्संता अडवडणं काउमारद्धा' (सुपा ६४५)।

अडाव, अडवी :: स्त्री [अटवि, °वी] भयंकर जंगल, गहरा वन (पण्ह १, १; महा)।

अडसट्ठि :: स्त्री [अष्टषष्टि] अठसठ (पि ४४२)। °म वि [°तम] अठसठवाँ (पउम ६८, ५१)।

अडाड :: पुं [दे] बलात्कार, जबरदस्ती (दे १, १९)।

अडिल्ल :: पुं [अटिल] एक जाति का पक्षी (पण्ण १)।

अडिल्ला :: स्त्री [अडिल्ला] छन्द-विशेष (पिंग)।

अडोलिया :: स्त्री [अटोलिका] १ एक राज- पुत्री, जो युवराज की पुत्री और गर्दभराज की बहिन थी। २ मूषिका, चूही (बृह १)

अडोविय :: वि [अटोपित] भरा हुआ (पण्ह १, ३)।

अड्ड :: वि [दे] जो आड़े आता हो, बीच में बाधक होता हो वह; 'सो कोहाडओ अड्डो आवडिओ' उप १४९ टी)।

अड्डक्ख :: सक [क्षिप्] फेंकना, गिराना। अड्डक्खइ (हे ४, १४३; षड्)।

अड्डक्खिय :: वि [क्षिप्त] फेंका हुआ (कुमा)।

अड्डण :: न [अड्डन] १ चर्म, चमड़ा। २ ढाल, फलक; 'नवमुग्गवण्णअड्डणढक्किआजाणुभीस- णसरीरा' (सुर २, ५)

अड्डिअ :: वि [दे] आरोपित (वव १ टी)।

अड्डिया :: स्त्री [अड्डिका] मल्लों की क्रिया-विशेष (विसे ३३५७)।

अड्‍ढ :: देखो अद्ध=अर्ध (हे २, ४१; चंद १०; सुर ६, १२९; महा)।

अड्‍ढ :: वि [आढय] १ संपन्न, वैभव-शाली, धनी (पाअ; उवा) २ युक्त, सहित (पंचा १२) ३ पूर्ण, परिपूर्ण; 'विगुणमवि गुणड्‍ढं' (प्रासू ७१)

अड्‍ढअक्‍कली :: स्त्री [दे] देखो अट्टयक्‍कली (दे १, ४५)।

अड्‍ढत्त :: वि [आरब्ध] शुरू किया हुआ, प्रारब्ध (से १३, ६)।

अड्‍ढाइज्ज, अड्‍ढाइय :: वि [अर्धतृतीय] ढ़ाई (सम १०१; सुर १, ४४; भवि; विंस १४०१)।

°अडि्ढय :: वि [कृष्ट] खींचा हुआ (से ५, ७२)।

अड्ढुट्ठ :: वि [अर्धचतुर्थ] साढ़े तीन, 'अड् ढु- ट्ठाइं सयाइं' (पि ४५०)।

अड्‍ढेज्ज :: न [आढयत्व] धनीपन, श्रीमंताई (ठा १०)।

अड्‍ढेज्जा :: स्त्री [आढयेज्या] श्रीमंत से किया हुआ सत्कार (ठा १०)।

अड्‍ढोरुग :: पुं [अर्धोरुक] जैन साध्वियों के पहनने का एक वस्त्र (ओघ ३१५)।

अढ :: (अप) देखो अट्ठ=अष्टन् (पि ६७; ३०४; ४४२; ४४५)।

अढाइस :: (अप) स्त्रीन [अष्टाविंशति] संसंख्या-विशेष, अठाईस, २८ (पि ४४५)।

अढारसग :: देखो अट्ठारसग (पिंड ४०२)।

अढारसम :: देखो अट्ठारसम (भग १८; णाया १, १८)।

अण :: अ [°अ, अन्°] देखो अ° (हे २, १९०; से ११, ६४)।

अण :: सक [अण्] १ आवाज करना। २ जाना। ३ जानना। ४ समझाना। अणइ (विसे ३४४१)

अण :: पुं [अण] १ शब्द, आवाज। २ गमन, गति (विसे ३४४०) ३ कषाय, क्रोध आदि आन्तर शत्रु (विसे १२८७) ४ गाली, आक्रोश, अभिशाप (तंदु) ५ न. पाप (पण्ह १, १) ६ कर्म (आचा) ७ वि. कुत्सित, खराब (विसे २७९७ टी)

अण :: पुं [अन] देखो अणंताणुबंधि (कम्म २, ५; १४; २६)।

अण :: पुं [अनस्] शकट, गाड़ी (धर्म २)।

अण :: देखो अण्ण=अन्य; 'अणहिअआवि पिआणं' (से ११, १९; २०)।

अण :: न [ऋण] १ करजा, ऋण (हे १, १४१) २ कर्म (उत्त १) °धारग वि [°धारक] करजदार, ऋणी (णाया १, १७)। °बल वि [°बल] उत्तमर्ण, लेनदार (पण्ह १, २)। °भंजग वि [°भञ्जक] देउलिया (पण्ह १, ३)।

°अण :: देखो गण (से ६, ६९)।

°अण :: देखो जण; 'अण्णं महिलाअणं रमंतस्स' (गा ४४); 'गुरुअणपरवस पिअ किं (काप्र ९१); 'दासअणाणं' (अच्चु ३२)।

°अण :: देखो तण (से ६, ६९)।

°अणअरद :: देखो अणवरय (नाट)।

अणइवर :: वि [अनतिवर] जिससे बड़कर दूसरा न हो, सर्वोत्तम; 'अच्छराओ अणइवरसोमचारुरूवाओ' (औप)।

अणइवुट्ठि :: स्त्री [अनतिवृष्टि] अवृष्टि, वर्षा का अभाव; 'दुब्भिक्खडमरदुम्मारिईइअइवुट्ठी अणइ- वुट्ठी य' (संबोध २)।

अणईइ :: वि [अनीति] ईति-रहित, शलभादि- कृत उपद्रव से रहित 'अणईइपत्ता' (औप)।

अणंग :: पुं [अनङ्ग] १ काम, विषयाभिलाष, रमणोच्छा (श्रा १६; आव ६) २ कामदेव, मन्मथ (गा २३३; गउड; कप्पू) ३ एक राज- कुमार, जो आनन्दपुर के राजा जीतारि का पुत्र था (गच्छ २) ४ न. विषय-सेवन के मुख्य अंगो के अतिरिक्त स्तन, कुक्षि, मुख आदि अंग (ठा ५, २) ५ बनावटी लिंग आदि (ठा ५, २) ६ बारह अंग-ग्रन्थों से भिन्न जैन शास्त्र (विसे ८४४) ७ वि. शरीर-रहित, अंग-हीन, मृत, 'पहरइ कह णु अणंगो, कह णु हु विंधंति कोसुमा बाणा' (गउड); 'पईवमज्झे पडई पयंगो, रूवाणुरत्तो हवई अणंगो' (सत्त ४८)। °घरिणी स्त्री [°गृहिणी] रति, कामदेव की पत्नी (सुपा ६९७) °पडिसेविणी स्त्री [°प्रतिषेविणी] अमर्यादित रीति से विषय-सेवन करनेवाली स्त्री (ठा ५, २)। °पविट्ठ न [°प्रविष्ट] बारह अंग-ग्रन्थों से भिन्न जैन ग्रन्थ (विसे ५२७)। °बाण पुं [°बाण] काम के बाण (गा ७४८)। °लवण पुं [°लवन] रामचन्द्रजी का एक पुत्र, लव (पउम ९७, ९)। °सर पुं [°शर] काम के बाण (गा १०००)। °सेणा स्त्री [°सेना] द्वारका की एक विख्यात गणिका (णाया १, ५, १६)।

अणंत :: पुं [अनन्त] चालू अवसर्पिणी काल के चौदहवें तीर्थंकर-देव, 'विमलगणंतं च जिणं' (पडि)। २ विष्णु, कृष्ण (पउम ५, १२२) ३ शेष नाग (से ९, ८९) ४ जिसमें अनन्त जीव हों ऐसी वनस्पति कन्द-मूल वगैरह (ओघ ४१) ५ न. केवल-ज्ञान (णाया १, ८) ६ आकाश (भग २०, २) ७ वि. नाश-वर्जित, शाश्वत (सूअ १, १, ४; पण्ह १, ३) ८ निःसीम, अपरिमित, असंख्य से भी कहीं अधिक (विसे) ९ प्रभूत, बहुत, विशेष (प्रासू २६; ठा ४, १)। °काइय वि [°कायिक] अनन्त जीववाली वन- स्पति, कन्द-मूल आदि (धर्म २)। °काय पुं [°काय] कन्द-मूल आदि अनन्त जीववाली वनस्पति (पण्ण १)। °खुत्तो अ [°कृत्वस्] अनन्त बार (जी ४४)। °जीव पुं [°जीव] देखो °काइय (पण्ण १)। °जीविय वि [°जीविक] देखो °काइय (भग ८, ३)। °णाण न [°ज्ञान] केवल-ज्ञान (दस २)। °णाणि वि [°ज्ञानिन्] केवल-ज्ञानी, सर्वज्ञ (सूअ १, ६)। °दंसि वि [°दर्शिन्] सर्वज्ञ (सूअ १, ६)। °दंसि वि [°दर्शिन्] सर्वज्ञ (पउम ४८, १०५)। °पासि वि [°दर्शिन्] ऐरवत क्षेत्र के बीसवें जिन-देव (तित्थ)। °मिस्सिया स्त्री [°मिश्रिका] सत्यमिश्र भाषा का एक भेद; जैसे अनन्तकाय से भिन्न प्रत्येक वनस्पति से मिली हुई अनन्तकाय को भो अनन्तकाय कहना (पण्ण ११)। °मीसय न [°मिश्रक] देखो °मिस्सिया (ठा १०)। °रह पुं [°रथ] विख्यात राजा दशरथ के बड़े भाई का नाम (पउम २२, १०१)। °विजय पुं [°विजय] भरतक्षेत्र के २४ वे और ऐरवत क्षेत्र के बीसवें भावी तीर्थं- कर का नाम (सम १२४)। °वीरिय वि [°वीर्य] १ अनन्त बलबाला। २ पुं. एक केवलज्ञानी मुनि का नाम (पउम १४, १५८) ३ एक ऋषि, जो कार्तवीर्य के पिता थे (आचू १) ४ भरतक्षेत्र के एक भावी तीर्थंकर का नाम (ती २१)। °संसारिय वि [°संसारिक] अनन्त काल तक संसार में जन्म-मरण पानेवाला (उप ३८४)। °सेण पुं [°सेन] १ चौथा कुलकर (सम १५०) २ एक अन्तकृद् मुनि (अंत ३)

अणंतइ :: पुं [अनन्तजित्] चालू काल के चौद- हवें जिन-देव; (पउम ५, १४८)।

अणंतग, अणंतय :: १ देखो अणंत (ठा ५, ३) २ न. वस्त्र-विशेष (ओघ ३९) ३ पुं. ऐरवत क्षेत्र के एक जिनदेव (सम १५३)

अणंतय :: न [अनन्तक] वस्त्र, कपड़ा (पव २)।

अणंतर :: वि [अनन्तर] १ व्यवधान-रहित, अव्य- वहित; 'अणंतरं चयं चइत्ता' (णाया १, ८) २ पुं. वर्तमान समय (ठा १०) ३ क्रिवि. बाद में, पीछे (विपा १, १)

अणंतरहिय :: वि [अनन्तर्हित] १ अव्यवहित, व्यवधान-रहित (आचा) २ सजीव, सचित्त, चेतन (निचू ७)

अणंतसो :: अ [अनन्तशस्] अनन्त बार (दं ४५)।

अणंताणुबंधि :: पुं [अनन्तानुबन्धिन्] अनन्त काल तक आत्मा को संसार में भ्रमण करानेवाले कषायों की चार चौकड़ियो में प्रथम चौकड़ी, अतिप्रचंड क्रोध, मान, माया और लोभ (सम १६)।

अणंस :: वि [अनंश] अखण्ड (धर्मसं ७०९)।

अणक्क :: पुं [दे] १ एक म्लेच्छ देश। २ एक म्लेच्छ जाति (पण्ह १, १)

अणक्ख :: पुं [दे] १ रोष, गुस्सा, क्रोध (सुपा १३; १३०; ६१०; भवि) २ लज्जा (स ३७६)

अणक्खर :: न [अनक्षर] श्रुत-ज्ञान का एक भेद — वर्ण के बिना संपर्क के, छोंकना, चुटकी बजाना, सिर हिलाना आदि संकेतों से दूसरे का अभिप्राय जानना (णंदि)।

अणगार :: वि [अनगार] १ जिसने घर-बार त्याग किया हो वह, साधु, यति, मुनि (विपा १, १; भग १७, ३) २ घर-रहित, भिक्षुक, भीखमँगा (ठा ६) ३ पुं. भरतक्षेत्र के भावी पांचवें तीर्थंकर का एक पूर्वभवीय नाम (सम १५४)

°सुय :: न [°श्रुत] 'सूत्रकृतांग' सूत्र का एक अध्य- यन (सूअ २, ५)।

अणगार :: वि [ऋणकार] १ करजा करनेवाला। २ दुष्ट शिष्य, अपात्र (उत्त १)

अणगार :: वि [अनाकार] आकृति-शून्य, आकार- रहित; 'उवलंभव्ववहाराभावओ नाणगारं च' (विसे ६५)।

अणगारि :: पुं [अनगारिन्] साधु, युति, मुनि (सम ३७)।

अणगारिय :: वि [आनगारिक] साधु-संबन्धी, मुनि का (विसे २६७३)। अणगाल पुं [अकाल] दुर्भिक्ष, अकाल (बृह ३)

अणगिण :: वि [अनग्न] १ जो नंगा न हो, वस्रों से आच्छादित। २ पुं. कल्पवृक्ष की एक जाति, जो वस्त्र देता है (तंदु)

अणग्घ :: देखो अनघ (कुप्र १)।

अणग्घ :: वि [ऋणघ्‍न] ऋण-नाशक, कर्म- नाशक (दंस)।

अणग्घ, अणग्घेय :: वि [अनर्घ्य] १ अमूल्य, बहुमूल्य, कीमती (आव ४); 'रयणाइं अणरघेयाइं हुंति पंचप्पयारवण्णाइं' (उप ५९७ टी; स ८०) २ महान्, गुरु। ३ उत्तम, श्रेष्ठ; 'तं भगवंतं अणहं नियसतीए अणग्घभ- त्तीए, सक्कारेमि' (विवे ६५; ७१)

अणघ :: वि [अनघ] शुद्ध, निर्मल, स्वच्छ (पंचव ४)।

अणच्छ :: देखो करिस=कृष्। अणच्छइ (हे ४, १८७)।

अणच्छिआर :: वि [दे] अच्छित्र, नहीं छेदा हुआ (दे १, ४४)।

अणज्ज :: वि [अन्याय्य] अयोग्य, जो न्याय- युक्त नहीं (रण्ह १, १)।

अणज्ज :: वि [अनार्य] आर्य-भिन्न, दुष्ट, खराब, पापी (पण्ह १, १; अभि १२३)।

अणज्जव :: (अप) ऊपर देखो। °खंड पुं [°खण्ड] अनार्य देश, (भवि ३१२, २)।

अणज्भवसाय :: पुं [अनघ्यवसाय] अव्यक्त ज्ञान, अति सामान्य ज्ञान (विसे ६२)

अणज्भाय :: पुं [अनध्याय] १ अध्ययन का अभाव। २ जिसमें अध्ययन निषिद्ध है वह काल (नाट)

अणट्ट :: वि [अनार्त] आर्त-घ्यान से रहित, 'अणट्टा किति पव्वए' (उत्त १८, ५०)।

अणट्ठ :: पुं [अनर्थ] १ नुकसान, हानि (णाया १, ९; उप ६ टी) २ प्रयोजन का अभाव (आव ६) ३ वि. निष्कारण, वृथा, निष्फल (निचू १; पण्ह २, १) °दंड पुं [°दण्ड] निष्कारण हिंसा, बिना ही प्रयोजन दूसरे की हानि (सूअ २, २)।

अणड :: पुं [दे] जार, उपपति (दे १, १८; षड्)।

अणड्‍ढ :: वि [अनर्ध] विभाग-रहित, अखण्ड (ठा ३, ३)।

अणण्ण :: वि [अनन्य] १ अभिन्न, अपृथग्भूत (निचू १) २ मोक्ष-मार्ग, 'अणण्णं चरमाणो से ण छण्णे ण छणावए' (आचा) ३ असा- धारण, अद्वितीय (सुपा १८९; सुर १, ७)। °तुल्लवि [°तुल्य] असाधारण, अनुपम (उप ६४८ टी)। °दंसि वि [°दर्शिन्] पदार्थ को सत्य-सत्य देखनेवाला (आचा)। °परम वि [°परम] संयम, इन्द्रिय-निग्रह; 'अणण्णपरमे णाणी, णो पमाए कयाइवि' (आचा)। °मण, °मणस वि [°मनस्क] एकाग्र चित्तवाला, तल्लीन (औप; पउम ९, ६३)। °समाण वि [°समान] असाधारण, अद्वितीय (उप ५९७ टी)

अणत्त :: वि [अनात्त] अगृहीत, अस्वीकृत (ठा २, ३)।

अणत्त :: वि [अनार्त्त] अपीडित, 'दव्वावइमाईसुं अत्तमणते गवेसणं कुणइ' (वव १)।

अणत्त :: वि [ऋणार्त्त] ऋण से पीड़ित (ठा ३, ४)।

अणत्त :: वि [अनात्र] दुःखकर, सुख-नाशक; 'णेरइआणं भंते! किं अत्ता पोग्गला अणत्ता वा' (भग १४, ९)।

अणत्त :: न [दे] निर्मांल्य, देवोच्छिष्ट द्रव्य (दे १, १०)।

अणत्थ :: देखो अणट्ठ (पउम ६२, ४; श्रा २७; सण)।

अणथंत :: वकृ [अतिष्ठत्] १ नहीं रहता हुआ। २ अस्त होता हुआ, 'अणथंते दिवसयरे जो चयइ चउव्विहंपि आहारं' (पउम १४ १३४)

अणन्न :: देखो अणण्ण (सुपा १८९; सुर १, ७; पउम ९, ९३)।

अणपन्निय :: देखो अणवण्णिय (भग १०, २)।

अणप्प :: वि [अनर्प्य] अर्पण करने के अयोग्य या अशक्य (ठा ९)।

अणप्प :: वि [अनल्प] अधिक, बहुत (औप)।

अणप्प :: पुं [अनात्मन्] निज से भिन्न, आत्मा से परे (पउम ३७, २२)। °ज्ज वि [°ज्ञ] १ निबोंध, मूर्ख। २ पागल, भूताविष्ट, पराधीन (निचू १)। °वसग वि [°वश] परवश, पराधीन (पउम ३७, २२)

अणप्प :: पुं. [दे] खड्ग, तलवार (दे १, १२)।

अणप्पिय :: वि [अनर्पित] १ नहीं दिया हुआ। २ साघारण, सामान्य, अविशेषित (ठा १०)। °णय पुं [°नय] सामान्य-ग्राही पक्ष (विसे)

अणब्भंतर :: वि [अनभ्यन्तर] भीतरी तत्त्व को नहीं जाननेवाला, रहस्य-अनभिज्ञ; 'अणब्भं- तरा खु अम्हे मदणगदस्स वुत्तंतस्स' (अभि ९१)।

अणभिग्गह :: न [अनभिग्रह] 'सर्वे देवा वन्द्या:' इत्यादि रूप मिथ्यात्व का एक भेद (श्रा ६)।

अणभिग्गहिय :: न [अनभिग्रहिक] ऊपर देखो (ठा २, १)।

अणभिग्गहिय :: वि [अनभिगृहीत] १ कदा- ग्रह-शून्य (श्रा ६) २ अस्वीकृत (उत २८)

अणभिण्ण, अणभिन्न :: वि [अनभिज्ञ] अजान, निर्बोध (अभि १७४; सुपा १६८)।

अणभिलप्प :: वि [अनभिलाप्य] अनिर्वच- नीय, जो वचन से न कहा जा सके (लहुअ ७)।

अणमिस :: वि [अनिमिष] १ विकसित, खिला हुआ (सुर ३, १४३) २ निमेष-रहित, पलक-वर्जित (सुपा ३५४)

अणय :: पुं [अनय] अनीति, अन्याय (श्रा २७; स ५०१)।

अणयार :: देखो अणगार (पउम ११, ७)।

अणरण्ण :: पुं [अनरण्य] साकेतपुर का एक राजा जो, पीछे से ऋषि हुआ था (पउम १०, ८७)।

अणरह, अणरिह, अणरुह :: वि [अनर्ह] अयोग्य, नालायक, (कुमा); 'णवि दिर्ज्जति अणरिहे, अणरिहत्ते तु इमो होइ' (पंचभा)।

अणरहू :: स्त्री [दे] नवोढ़ा, दुलहिन (षड्)।

अणरामय :: पुं [दे] अरति, बेचैनी (दे १, ४५; भवि)।

अणराय :: वि [अराजक] राज-शून्य, जिसमें राजा न हो वह (बृह १)।

अणराह :: पुं [दे] सिर में पहनी जाती रंग- बिरंगी पट्टी (दे १, २४)।

अणरिक्क :: वि [दे] अवकाश-रहित, फुरसत- रहित (दे १, २०)। २ दधि, क्षीर आदि गोरस भोज्य (निचू १६)

अणरिह, अणरुह :: वि [अनर्ह] अयोग्य, नालायक (णाया १, १)।

अणलं :: अ [अनलम्] असमर्थ (आचा २, ५, १, ७)।

अणल :: पुं [अनल] १ अग्‍नि, आग (कुमा) २ वि. असमर्थ। ३ अयोग्य, 'अणलो अपच्च- लोत्ति य होंति अजोगो व एगट्ठा' (निचू ११)

अणव :: वि [ऋणवत्] १ करजदार। पुं. दिवस का छब्बीसवाँ मुहूर्त (चंद)

अणवकय :: वि [अनपकृत] जिसका अपकार न किया गया हो वह (उव)।

अणवगल्ल :: वि [अनवग्लान] ग्लानि-रहित, निरोग; 'सट्ठस्स अणवगल्लस्स, निरुवकिट्ठस्स, जंतुण एगे ऊसासनीसासे एस पाणुति वुच्चइ' (ठा २, ४)।

अणवच्च :: वि [अनपत्य] सन्तान-रहित, निर्वंश (सुपा २५९)।

अणवज्ज :: न [अनवद्य] १ पाप का अभाव, कर्मं का अभाव (सूअ १, १, २) २ वि. निर्दोष, निष्पाप (षड्)

अणवज्ज :: वि [अणवर्ज्य] ऊपर देखो (विसे)।

अणवट्ठप्प :: वि [अनवस्थाप्य] १ जिसको फिरसे दीक्षा न दी जा सके ऐसा गुरु अपराध करनेवाला (बृह ४) २ न. गुरु प्रायश्चित्त का एक भेद (ठा ३, ४)

अणवट्ठिय :: वि [अनवस्थित] १ अव्यवस्थित, अनियमित (प्रासू १३७; सुर ४, ७६) २ चंचल, अस्थिर; 'अणवट्ठियं च चित्तं' (सुर १२, १३८) ३ पल्य-विशेष, नाप-विशेष (कम्म ४, ७३)

अणवण्णिय :: पुं [अणपन्निक, अणपणिक] वानव्यंतर देवों की एक जाति (पण्ह १, ४; भग १०, २)।

अणवत्थ :: वि [अनवस्थ] अव्यवस्थित, अनि- यमित, असमंजस (दे १, १३९)।

अणवत्था :: स्त्री [अनवस्था] १ अवस्था का अभाव (उव) २ एक तर्क-दोष (विसे) ३ अव्यवस्था, 'जणणी जायइ जाया, जाया माया पिया य पुत्तो य। अणवत्था संसारे, कम्मवसा सव्वजीवाणं' (पिवे १०७)

अणवदग्ग :: वि [दे] अनन्त, अपरिमित, निस्सीम (भग १, १) २ अविनाशी (सुअ २, ५)

अणवद्द :: वि [अनवद्य] निष्पाप, निर्दोंष, शुद्ध (प्राकृ २१)।

अणवन्निय :: देखो अणवण्णिय (औप)।

अणवयग्ग :: देखो अणवदग्ग (सम १२५; पण्ह १, ३; प्राप)।

अणवयमाण :: वकृ [अनपवदत्] १ अप- वाद नहीं करता हुआ। २ सत्यवादी (वव ३)

अणवरय :: वि [अनवरत] १ सतत, निरन्तर, अविच्छिन्न। २ न. सदा, हमेशा (गा २८०; ९)

अणवराइस :: (अप) वि [अनन्यादृश] असा- धारण, अद्वितीय (कुमा)।

अणवसर :: वि [अनवसर] आकस्मिक, अचि- न्तित (पाअ)।

अणवाह :: वि [अबाघ] बाधा-रहित, निबधि (सुपा २६८)।

अणवेक्खिय :: वि [अनपेक्षित] उपेक्षित, जिसकी परवाह न हो।

अणवेक्खिय :: वि [अनवेक्षित] १ नहीं देखा हुआ। २ अविचारित, नहीं सोचा हुआ। °कारि वि [°कारिन्] साहसिक। °कारिया स्त्री [°कारिता] साहस कर्म (उप ७६८ टी)

अणसण :: न [अनशन] आहार का त्याग, उप- वास (सम ११९)।

अणसिय :: वि [अनशित] उपोषित, उपवासी (आवम)।

अणह :: वि [अनघ] निर्दोष, पवित्र (औप; गा २७२; से ६, ३)।

अणह :: वि [दे] अक्षत, क्षति-रहित, व्रण- शून्य (दे १, १३; सुपा ९, ३३; सण)।

अणह :: न [अनभस्] भूमि, पृथिवी (से ६, ३)

अणहप्पणय :: वि [दे] अनष्ट, विद्यमान (दे १, ४८)

अणहवणय :: वि [दे] तिरस्कृत, भर्त्सित (षड् )

अणह :: स्त्री [अधुाना] इस समय (प्राकृ ८० )

अणहारय :: पुं [दे] खल्ल, खला, जिसका मध्य- नीचा हो वह जमीन (दे १, ३८ )

अणहिअअ :: वि [अहृदय] हृदय-रहित, निष्‍ठुर, निर्दय (प्राप; गा ४१ )

अणहिगय :: वि [अनधिगत] १ नहीं जाना हुआ। २ पुं. वह साधु, जिसको शास्त्रो का ज्ञान न हो, अगीतार्थ (वव १)

अणहिण्ण :: देखो अणभिण्ण [(प्राप)]।

अणहियास :: वि [अनध्यास] असहिष्णु, सहन नहीं करनेवाला ( उव )।

अणहिल, अणहिल्ल :: न [अणहिल्ल] गुजरात देश की प्राचीन राजधानी, जो आजकाल 'पाटन' नाम से प्रसिद्ध है (ती २६; कुमा)। °वाडय न [पाटक] देखो अणहिले (गु १०; मुणि १०८८८ )

अणहीण :: वि [अनधीन] स्वतन्त्र , अनायत्त (संग १९१)

अणहुल्लिय :: वि [दे] जिसका फल प्राप्त न हुआ हो वह (सम्मत्त १४३ )

अणाइ :: वि [अनादि] आदि-रहित, नित्य (सम १२५ )। °णिहण, निहण [°निधन] आद्यन्त-वर्जित, शाश्‍वत (उव; सम्म ९५; आव ४ )। °मंत, °वंत वि [मत्] अनादि काल से प्रवृत्त (पउम ११८, ३२; भवि)

अणाइज्ज :: वि [अनादेय] १ अनुपादेय, ग्रहण करने के अयोग्य। २ नाम-कर्म का एक भेद, जिसके उदय से जीव का वचन, युक्त होने पर भी ग्राह्य नहीं समझा जाता है (कम्म १, २७)

अणाइय :: वि [अनादिक] आदि-रहित, नित्य (सम १२५)

अणाइय :: वि [अज्ञातिक] स्वजन-रहित, अकेला (भग १, १)

अणाइय :: वि [अणातीत] पापी, पापिष्ठ (भग १, १)

अणाइय :: पुं [ऋणातीत] संसार, दुनिया (भग १, १)।

अणाइय :: वि [अनादृत] जिसका आदर न किया गया हो वह (उफ ८३३ टी )

अणाइल :: वि [अनाविल] १ अकलुषित, निर्मल (पण्ह २, १)

अणाईअ :: देखो अणाइय (उप १०३१ टी; पि ७०)।

अणाउ, अणाउय :: पुं [अनायुष्क] १ जिन-देव (सूअ १, ६) २ मुक्तात्मा, सिद्ध (ठा १)

अणाउल :: वि [अनाकुल] अव्याकुल, धीर (सुअ १, २, २; णाया १, ८)।

अणाउत्त :: वि [अनायुक्त] उपयोग-शून्य, बे- ख्याल, असावधान (औप)।

अणाएज्ज :: देखो अणाइज्ज (सम १५९)।

अणागय :: पुं [अनागत] १ भविष्य काल, 'अणागयमपस्संता, पच्चुप्पन्नगवेसगा। ते पच्छा परितप्पंति, खीणे आउम्मि जोव्वणे' (सूअ १, ३, ४) २ वि. भविष्य में होनेवाला (सुअ १, २)। °द्धा स्त्री [°द्धा] भविष्य काल (नव ४२)

अणागलिय :: वि [अनर्गलित] नहीं रोका हुआ (उवा)

अणागलिय :: वि [अनाकलित] १ नहीं जाना हुआ, अलक्षित (खाया, १, ९) २ अपरिमित, 'अणागलियतिव्वचंडरोसं सप्परूवं विउव्वइ' (उवा)

अणागार :: वि [अनाकार] १ आकार-रहित, आकृति-शून्य (ठा १०) २ विशेषता-रहित (कम्म ४, १२) ३ न. दर्शन, सामान्य ज्ञान (सम ६५)

अणाजीव :: वि [अनाजीव] १ आजीविका- रहित। २ आजीविका की इच्छा नहीं रखनेवाला। ३ निःस्पृह, निरीह (दस ३)

अणाजीवि :: वि [अनाजीविन्] ऊपर देखो, 'अगिलाई अणाजीवी' (पडि; निचु १)।

अणाड :: पुं [दे] जार, उपपति (दे १, १८)

अणाढिय :: वि [अनादृत] १ जिसका आदर, न किया गया हो वह. तिरस्कृत (आंव ३) २ पुं. जम्बुद्वीप का अधिष्ठायक एक देव (ठा २, ३) ३ स्त्री. जम्बुद्वीप के अधिष्ठायक देव की राज- धानी (जीव ३)

अणाणुगामिय :: वि [अनानुगामिक] १ पीछे नहीं जानेवाला (ठा ५, १) २ न. अवधि-ज्ञान का एक भेद (णंदि)

अणादि :: देखो अणाइ (स ६८३)।

अणादिय, अणादीप :: देखो अणाइय (इक; पण्ह १, १; ठा, ३, १)।

अणादेज्ज :: देखो अणाइज्ज (पराह १, ३)।

अणाभिग्गह :: न [अनाभिग्रह] मिथ्यात्व का एक भेद (पंच ४, २)

अणाभोग :: पुं [अनाभोग] १ अनुपयोग, बे- ख्याली, असावधानी (आव ४ ) २ न. मिथ्यात्व- विशेष (कम्म ४, ५१)

अणामिय :: वि [अनामिक] १ नाम-रहित। २ पुं. असाध्य रोग (तंदु) ३ स्त्री, कनिष्ठागुंली के ऊपर की अंगुली।

अणाय :: वि [अज्ञात] नहीं जाना हुआ, अपरि- चित (पउम २४, १७)।

अणाय :: पुं [अनाक] मर्त्यलोक, मनुष्य-लोक (से १, १)।

अणाय :: पुं [अनात्मन्] आत्म-भिन्न; आत्मा से परे (सम १)

अणायग :: वि [अनायक] नायक-रहित (पउम ५९, ७०)

अणायग :: वि [अज्ञातक] स्वजन-रहित, अकेला (निचू ९)

अणायग :: वि [अज्ञायक] अज्ञान, निर्बोध (निचू ११)

अणायतण, अणाययण :: न [अनायतन] १ वेश्या आदि नीच लोगों का घर (दस ५, १) २ जहाँ सज्जन पुरुषों का संसर्ग न होता हो वह स्थान (पण्ह २, ४) ३ पतित साधुओं का स्थान (आव ३) ४ पशु, नपुंसक वगैरह के संसर्गवाला स्थान (ओघ ७६३)

अणायत्त :: ति [अनायत्त] पराधीन (पउम २९, २६)

अणायर :: पुं [अनादर] अ-बहुमान, अपमान (पाअ)

अणायरण :: न [अनाचरण] अनाचार, खराब आचरण।

अणायरणया :: स्त्री [अनाचरण] ऊपर देखो (सम ७१)।

अणायरिय :: देखो अणज्ज = अनार्य (पणह १, १; पउम १४, ३०)।

अणायार :: देखो अणागार = अनाकार (विसे)।

अणायार :: पुं [अनाचार] १ शास्त्र-निषिद्ध आचरण (स १८८) २ गृहीत नियमों का जान-बूझ कर उल्लंघन करना, व्रत-भङ्ग (वव १)

अणारिय :: देखो अणज्ज = अनार्य (उवा)।

अणारिस :: वि [अनार्ष] जो ऋषि-प्रणीत न हो वह ( पउम ११, ८०)।

अणारिस :: वि [अन्यादृश] दूसरे के जैसा (नाट )।

अणालत्त :: वि [अनालपित] अनुक्त, अकथित, नहीं बुलाया हुआ (उवा)।

अणालवय :: पुं [अनालपक] मौन, नहीं बोलना (पाअ)।

अणाव :: सक [आ + नायय्] मंगवाना, अणा वेमि (सिरि ९४९)।

अणावरण :: वि [अनावरण] १ आवरण-रहित। २ न. केवल-ज्ञान (सम्म ७१)

अणाविअ :: वि [आनायित] मंगवाया हुआ (सिरि ६९; ७१८)।

अणाविट्ठि, अणावुट्ठि :: स्त्री [अनावृष्टि] वर्षा का अभाव (पउम २०, ८७; सम ६०)।

अणाविल :: वि [अनाविल] १ निर्मल, स्वच्छ, (गउड)

अणासंसि :: वि [अनाशंसिन्] अनिच्छु, निस्पृह (बृह १)।

अणासण :: देखो अणसण (सुअ १, २, १, १४)।

अणासय :: पुं [अनाश, °क] अनशन, भोजना- भाव; 'खारस्स लोणस्स अणासएणं' (सुअ १, ७, १३)।

अणासव :: वि [अनाश्रव] १ आश्रव-रहित। २ पुं. आश्रव का अभाव, संवर। ३ अहिंसा, दया (पणह २, १)

अणासिय :: वि [अनशित] भुखा (सुअ १, ५, २)।

अणाह :: वि [अनाथ] २ शरण-रहित (निचू ३) २ स्वामि-रहित, मालिक-रहित। ३ रंक, गरीब, बेचारा, (णाया १, ८) ४ पुं. एक जैन मुनि (उत्त २०)

अणाहार :: पुं [अनाहार] एक दिन का उपवास (संबोध ५८)।

अणाहि, अणाहिय :: वि [अनाधि, °क] मानसिक पीड़ा से रहित (से ३, ४४; पि ३६५)।

अणाहिट्ठि :: पुं [अनाधृष्टि] एक अन्तकृद् मुनि (अन्त ३)।

अणिइण :: देखो अणगिण (विचार २२)।

अणिइय :: वि [अनियत] १ अनियमित, अव्य- वस्थित। २ पुं, . संसार (भग ९, ३३)

अणिउंचिय :: वि [अनिकुञ्चित] टेढ़ा नहीं किया हुआ, सरल (गउड)

अणिउँत, अणिउँतय, अणिउँत्तय :: देखो अइमुत्त (दे ४, ३८; हे १, १७८; कुमा)।

अणिएय :: वि [अनियत] अनियमित, अप्रति- बद्ध; 'अखिले अगिद्धे अणिएयचारी, अभयंकरे भिक्खू अणाविलप्पा' (सुअ १, ७, २८)।

अणिंदिय :: वि [अनिन्दित] १ जिसकी निन्दा न की गई वह, उत्तम (धर्म १) २ पुं. किन्नर देव की एक जाति (पणण १)

अणिंदिय :: वि [अनिन्द्रिय] १ इंद्रिय-रहित। २. पुं मुक्त जीव। ३ केवलज्ञानी (ठा १०) ४ वि. अतीन्द्रीय, जो इंद्रियों से जाना न जा सके; 'नय विज्जइ तग्गहणे लिंगंपि अणिंदियत्त- णओ' (सुर १२, ४८; स १६८; विसे १८६२)

अणिंदिया :: स्त्री [अनिन्दिता] ऊर्घ्व लोक में रहनेवाली एक दिक्कुमारी देवी (ठा ८)

अणिक्क :: वि [अनेक] एक से ज्यादा (नव ४३)। °।वाइ वि [°वादिन्] अक्रियवादी (ठा ८)

अणिक्किणी :: स्त्री [अनीकिनी] ऐसी सेना जिसमें २१८७ हाथी, २१८७ रथ, ६५६१ घोड़े और १०९३५ प्यादें हौ (पउम ५६, ६)।

अणिक्खित्त :: वि [अनिक्षिप्त] नहीं छोड़ा हुआ, अपरित्यक्त, अविच्छिन्न; 'अणिक्खितेणं तवोकम्मेणं संजमेणं तवसा अप्पाणं भावेमाणे विहरइ' (उवा; औप)।

अणिगण, अणिगिण :: देखो अणगिण (जीव ३; सम १७)।

अणिग्गह :: वि [अनिग्रह] स्वच्छन्द, असंयत (पणह १, २)

अणिच्च :: वि [अनित्य] नश्वर, अस्थायी (नव २४; प्रासू ९५)। °भावणा स्त्री [°भावना] सांसारिक पदार्थों की अनित्यता का चिन्तन (पव ६७)। °।णुप्पेहा स्त्री [°।नुप्रेक्षा] देखो पूर्वोंक्त अर्थ (ठा ४, १)।

अणिट्ठ :: वि [अनिष्ट] अप्रीतिकर, द्वेष्य (उव)।

अणिट्ठिय :: वि [अनिष्ठित] असंपूर्ण (गउड)।

अणिण :: देखो अणिरिण (नाट)।

अणिदा :: स्त्री [दे. अनिदा] १ बिना ख्याल किये कि गई हिंसा (भग १९, ५) २ चित्त की विकलता। ३ ज्ञान का अभाव (भग १, २)

अणिमा :: पुंस्त्री [अणिमन्] आठ सिद्धियों में एक सिद्धिं, अत्यन्त छोटा बन जाने की शक्ति (पउम ७, १३६)।

अणिमिस :: न [अनिमिष] फल-विशेष (दस ५, १, ७३)।

अणिमिस, अणिमेस :: वि [अनिमिष, °मेष] १ निमेष शून्य (सुर ३, १७३) २ पुं. मत्स्य, मछली (दस ५, १) ३ देव, देवता (वव १; श्रा १६)। °नयण पुं [नयन] देव, देवता (विसे ३४८९)

अणिय :: न [अनीक] सैन्य, लश्कर (कप्प)।

अणिय :: न [अनृत] असत्य, झूठ (ठा १०)।

अणिय :: न [दे] धार, अग्र-भाग (पणह २, २)

अणिय :: वि [अनित्य] अस्थिर, अनित्य (उव)

अणियट्ट :: पुं [अनिवर्त] १ मोक्ष, मुक्ति (आचा १, ५, १) २ एक महाग्रह (ठा २, ३)

अणियट्ठि :: वि [अनिवर्तिन्] १ निवृत्त नहीं होनेवाला, पीछे नहीं लौटनेवाला (औप) २ न. शुक्ल-ध्यान का एक भेद (ठा ४, १) ३ पुं. एक महाग्रह (चंद २०) ४ आगामी उत्सर्पिणी काल में होनेवाले एक तीर्थंकर देव का नाम (सम १५४)

अणियट्टि :: वि [अनिवृत्तिं] १ निवृत्ति-रहित, व्यावृत्ति-वर्जित (कर्म २, २) २ नववाँ गुण- स्थानक (कर्म २)। °करण न [°करण] आत्मा का विशुद्ध परिणाम-विशेष (आचा) °बादर न [°बादर] १ नववां गुण-स्थानक। २ नववें गुण-स्थानक में प्रवृत्त जीव (आव ४)

अणियण :: देखो अणगिण (जीव ३)।

अणियय :: वि [अनियत] १ अव्यवस्थित, अनि- यमित (उव) २ कल्पवृक्ष की एक जाति, जो वस्त्र देती है (ठ १०)

अणिया :: देखो अणिदा (पिंड)।

अणिया :: स्त्री [दे] धार, अग्र-भाग, गुजराती में 'अणी', 'संखाणियाइ पइया' (धर्मवि १७)

अणिरिक्क :: वि [दे] परतन्त्र, पराधीन। (काप्र ५४; गा ९६१)।

अणिरिण :: वि [अनृण] तृण-वर्जित, उऋण, अनृणी (अभि ४९; चारु ६६)

अणिरुद्ध :: वि [अनिरुद्ध] १ अप्रतिहत, नहीं रोका हुआ। (सुअ १, १२) २ एक अन्त- कृद् मुनि (अन्त १)

अणिल :: पुं [अनिल] १ वायु, पवन (कुमा) २ एक अतीत तीर्थकर का नाम (तित्थ) ३ राक्षस-वंशीय एक राजा (पउम ५, २६४)

अणिला :: स्त्री [अनिला] बाईसवें तीर्थंकर की एक शिष्या (पव ९)

अणिल्ल :: न [दे] प्रभात, सबेरा (दे १, १९)

अणिंस :: न [अनिश] निरन्तर, सदा, हमेशा (गा २६२, प्रासू २९)

अणिसट्ठ, अणिसिट्ठ :: वि [अनिसृष्ट] १ अनिक्षिप्त। २ असंमत, अननुज्ञात। ३ ऐसी भिक्षा, जिसके मालिक अनेक हों और जो सब की अनुमति से ली न गई हो; साधु की भिक्षा का एक दोष (पिंड; औप)

अणिसीह :: वि [अनिशीथ] शास्त्र-विशेष, जो प्रकाश में पढ़ा या पढ़ाया जाय (आवम)।

अणिस्सकड :: वि [अनिश्रीकृत] जिस पर किसी खास व्यक्ति का अधिकार न हो, सर्व- साधारण (धर्म २)।

अणिस्सा :: स्त्री [अनिश्रा] अनासक्ति, आसक्ति का अभाव (उव)

अणिस्सिय :: वि [अनिश्रित] १ अनासक्त, आसक्तिरहित (सुअ १, १६) २ प्रतिबन्ध- रहित, रुकावटरहित (दस १) ३ अनाश्रित, किसी के साहाय्य को इच्छा न रखनेवाला (उत्त १९) ४ न. ज्ञान-विशेष, अवग्रह-ज्ञान का एक भेद, जो लिंग या पुस्तक बिना ही होता है (ठआ ६)

अणिह :: वि [अनीह] १ धीर, सहिष्णु (सुअ, १, २, २) २ निष्कपट, सरल (सुअ १, ८) ३ निर्मम, निःस्पृह (आचा)

अणिह :: वि [अस्‍निह] स्तेहरहित (सुअ १, २, २, ३०)

आणह :: वि [दे] १ सदृश, तुल्य। २ न मुख, मुँह (दे १, ५१)

अणिहय :: वि [अनिहत] अहत, नहीं मारा हुआ। °रिउ पुं [°रिपु] एक अन्तकृद् मुनि (अन्त ३)।

अणीइस :: वि [अनीदृश] इस माफिक नहीं, विलक्षण (स ३०७)।

अणीय :: न [अनीक] सेना, लश्कर (औप)।

अणीयस :: पुं [अनीयस] एक अन्तकृद् मुनि का नाम (अन्त ३)।

अणीस :: वि [अनीश] असमर्थ (अभि ६०)

अणीसकड :: देखो अणिस्सकड (धर्म २)।

अणीहारम :: वि [अनिर्हारिम] गुफा आदि में होनेंवाला मरण-विशेष (भग १३, ८)।

अणु :: अ [अनु] यह अव्यय नाम और धातु के साथ लगता है और नीचे के अर्थों में से किसी एक को बतलाता है; १ समीप, नजदीक; 'अणुकुंडल' (गउड) २ लचु, छोटा; 'अणु- गाम' (उत्त ३) ३ क्रम, परीपाटी; 'अणुगुरु' (बृह १) ४ में, भीतर; 'अणुजन' (महा ) ५ लक्ष्य करना, 'अणु जिंणं अकारि संगीयं इत्थीहिं' (कुमा); 'अणु धारं' संदेठ्ठे भमोत्तिए तुह असिम्मि सच्चविया' (गउड) ६ योग्य, उचित; 'अणुजुत्ति' (सुअ १, ४, १) ७ वीप्सा, 'अणुदिण' (कुमा) ८ बीच का भाग, 'अणु- दिसी' (पि ४१३) ९ अनुकूल, हितकर; 'अणुधम्म' (सुअ १, २, १)| १० प्रतिनिधि, 'अणुप्पभु' (निचु २) ११ पीछे, बाद; 'अणु- मज्जण' (गउड) १२ बहुत, अत्यंत; 'अणुवंक' (मा ६२) १३ मदद करना, सहायता करना; 'अणुपरिहारि' (ठा ३, ४) १४ निरर्थक भी इसका प्रयोग होता है, देखो 'अणुक्कम', 'अणु- सरिस'।

अणु :: वि [अणु] १ थोड़ा, अल्प (पणह २, ३) २ छोटा (आचा) ३ पुं. परमाणु (सम्भ १३६)। °मय वि [°मत ] उत्तम कुल, श्रेष्ठ वंश (कप्प)। °वरइ स्त्री [°विरति ] देखो देसविरइ (कम्म १, १८)

अणु :: पुं [दे] धान-विशेष, चावल की एक जाति (दे १, ५)

°अणु :: स्त्री [तनु] शरीर, 'सुअणु' (गा २६९)।

अणुअ :: देखो अणु = अणु (पाअ)।

अणुअ :: वि [अज्ञ] अजान, मूर्ख (गा १८४, ३४५)

अणुअ :: पुं [दे] १ आकृति, आकार। २ पुंस्त्री, धान्य-विशेष (दे १, ५२; श्रा १८)

अणुअ :: वि [अनुग] अनुसरण करनेवाला, 'अधम्माणुए' (विपा १, १)

अणुअ :: वि [अनुज] १ पीछे से उत्पन्ना। २ पुं. छोटा भाई। ३ स्त्री. छोटी बहिन (अभि ८२; पउम २८, १००)

अणुअंच :: सक [अनु+कृष्] पीछे खींचना। संकृ, अणुअंचिवि (भवि)।

अणुअंप :: सक [अनु+ कम्प्] दया करना। कृ. अणुअंपणिज्ज (हास्य १४४)।

अणुअंपा :: स्त्री [अनुकम्पा] दया, करुणा (से ५, २४; गा १९३)।

अणुअंपि :: वि [अनुकम्पिन्] दयालु, करुणा करनेवाला (अभि १७३)।

अणुअत्तय :: वि [अनुवर्त्तक] अनुकूल आचरण करनेवाला, अनुसरण करनेवाला (विसे ३४०२)।

अणुअत्ति :: देखो अणुवत्ति (पुप्फ ३२९)।

अणुअर :: वि [अनुचर] १ सहायताकारी, सह- चर (पाअ) २ सेवक, नौकर (प्रामा)

अणुअर :: वि [ अनुचर ] अनुसरण-कर्ता (हास्य १२१)।

अणुअल्ल :: न [दे] प्रभात, सुबह (दे १, १९)।

अणुआ :: स्त्री [दे] लाठी (दे १, ५२)।

अणुआर :: पुं [अनुकार] अनुकरण (नाट)।

अणुआरि :: वि [अनुकारिन्] अनुकरण करनेवाला (नाट)।

अणुआस :: पुं [अनुकास] प्रसार, विकास (णाया १ १)।

अणुइअ :: पुं [दे] धान्य-विशेष, चना (दे १, २१)।

अणुइअ :: देखो अणुदिय।

अणुइण्ण :: वि [अनुकीर्ण] १ व्याप्त, भरा हुआ। २ नहीं गिरा हुआ, अपतित; 'अवाइण्णपत्ता अणुइण्णपत्ता निद्ध‍ु यजरढपंडुपत्ता (औप)

अणुइण्ण :: वि [अनुद्‍गीर्ण] बाहर नहीं निकला हुआ औप)।

अणुइण्ण :: देखो अणुचिण्ण।

अणुइण्ण :: देखो अणुदिण्ण।

अणुऊल :: वि [अनुकूल] अप्रतिकूल, अनुकुल (गा ५२३)।

अणुऊल :: सक [अनुकूलय्] अनुकूल करना। भवि. अणुऊलइस्सं (पि ५२८)।

अणुओअ :: पुं [अनुयोग] १ व्याख्या, टीका, सूत्र का विस्तार से अर्थ-प्रतिपादन (औघ २) २ पृच्छा, प्रश्न (अभि ४४)

अणुओइय :: वि [अनुयोजित] प्रवर्तित, प्रवृत्त कराया हुआ णंदि)।

अणुओग :: देखो अणुओअ (विसे ६)।

अणुओग :: पुं [अनुयोग] सम्बन्ध (गु १७)।

अणुओगि :: पुं [अनुयोगिन्] सूत्रों का व्या- ख्याता आचार्य, 'अणुओगी लोगाणं कल संसय- णासओ दढं होइ' (पंचव ४)

अणुओगिअ :: विं [अणुयोगिक] दीक्षित, मुनि- शिष्य णंदि)।

अणुओयण :: न [अनुयोजन] संबन्धन, जोड़ना (विसे १३५८)

अणुकंप :: सक [अनु+कम्प्] १ दया करना। २ भक्ति करना। ३ हित करना। वकृ. अणु- कंपंत नाट)। कृ. अणुकंपणिज्ज, अणु- कंपणीअ (अभि ९४; रयण १५)

अणुकंप :: वि [अनुकम्प्य] अनुकम्पा के योग्य (दे १, २२)।

अणुकंप, अणुकंपय :: वि [अनुकम्प, °क] १ दयालु, करुण। २ भक्त, भक्तिमान् (उत्त १२; 'हिआणुकंपएण देवेणं हरिणगमेसिणा' कप्प) ३ हितकर, 'आयाणुकंपए णाममेगे, नो पराणुकंपए' (ठा ४, ४)

अणुकंपण :: न [अनुकम्पन] १ दया, कृपा (वव ३) २ भक्ति, सेवा; 'माउअणुकंपणट्ठाए' कप्प)

अणुकंपा :: स्त्री [अनुकम्पा] ऊपर देखो णाया १, १); 'आयरियणुकंपाए गच्छो अणुकंपिओ महाभागो' कप्प-टी)। °दाण न [°दान] करुणा से गरीबों को अन्न आदि देना, 'अणु- कंपादाणं सड्‍ढयाण न कहिंपि पडिसिद्धं' (धर्म २)।

अणुकंपि :: वि [अनुकम्पिन्] १ दयालु, कृपालु (माल ७२) २ भक्ति करनेवाला (सूअ १, ३, २)

अणुकंपिअ :: वि [अनुकम्पित] जिस पर अनु- कम्पा की गई हो वह नाट)।

अणुकड्‍ढ :: सक [अनु+कृष्] १ खींचना। २ अनुसरण करना। वकृ. अणुकड्‍ढमाण, अणुकड्‍ढेमाण (विपा १, १; णंदि)

अणुकडि्ढ :: स्त्री [अनुकृष्टि] अनुवर्तन, अनु- सरण (पंच ५)।

अणुकडि्ढय :: वि [अनुकृष्ट] अनुकृत, अनुसृत (स १८२)।

अणुकप्प :: पुं [अनुकल्प] १ बड़े पुरुषों के मार्ग का अनुकरण। २ वि. महापुरुषों का अनुकरण करनेवाला, 'णाणचरणड्‍ढगाणं पुव्वायरियाण अणुकिर्त्ति कुणइ, अणुगच्छइ गुणधारी, अणु- कप्पं तं वियाणाहि' पंचभा)

अणुकम :: पुं [अनुक्रम] परिपाटी, क्रम महा)। °सो अ [°शस्] क्रम से, परिपाटी से (जी २८)।

अणुकर :: सक [अनु+ कृ] अनुकरण करना, नकल करना। अणुकरेइ (स ४३९)।

अणुकरण :: न [अनुकरण] नकल (वव ३)।

अणुकह :: सक [अनु+कथय्] अनुवाद करना, पीछे बोलना।

अणुकहण :: न [अनुकथन] अनुवाद (सुअ १, १३)।

अणुकार :: पुं [अनुकार] अनुकरण, नकल कप्पू)।

अणुकारि :: वि [अनुकारिन्] अनुकरण करनेवाला, 'किन्नराणुकारिणा महुरगेएण' महा)।

अणुकिइ :: स्त्री [अनुकृति] अनुकरण, नकल; पुव्वायारियाणां नाणग्गहणेण य तवोविहाणेसु य अणुकिइं करेइ' पंचू)

अणुकिण्ण :: वि [अनुकीर्ण] व्याप्त, भरा हुआ (पउम ९१, ७)।

अणुकित्तण :: न [अनुकीर्तन] वर्णन, प्रशंसा, श्‍लाघा (पउम ६३, ७३)।

अणुकित्ति :: देखो अणुकिइ पंचमा)।

अणुकुइय :: वि [अनुकुचित] १ पीछे फेंका हुआ। २ ऊंचा किया हुआ (निचू ८)

अणुकुण :: सक [अणु+कृ] अनुकरण करना। अणुकुणइ (विक्र १२९)।

अणुकूल :: देखो अणुऊल (हे २, २१७)।

अणुकूलण :: न [अनुकूलन] अनुकूल करना, प्रसन्‍न करना; 'तं कहइ। तम्मज्झे जिट्ठमुणी तच्चित्तणुकूलणत्थं जं' (सुपा २३४)

अणुकूलि :: वि [अनुकूलिन्] अनुकुल-कारक, 'सुहथिरजोगाणुकूलिणो भणिया' (संबोध ५)।

अणुक्‍कंत :: वि [अन्वाक्रान्त] आचरित, अनु- ष्ठित आचा)।

अणुक्कंत :: वि [अनुक्रान्त] आचरित, विहित, अनुष्ठित ; 'एस विही अणुक्कंते माहणेणं मइ- मया आचा)।

अणुक्कम :: सक [अनु+ क्रम्] क्रम से कहना। भवि. अणुक्कमिस्सामि (जीवस १)।

अणुक्कम :: सक [अनु + क्रम्] अतिक्रमण करना। वकृ. अणुक्‍कमंत (सुअ १, ५, १, ७)।

अणुक्‍कम :: देखो अणुकम (महा; नव १६)।

अणुक्‍कमण :: न [अनुक्रमण] गमन, गति, (सुअ १, ५, २, २१)।

अणुक्कुइअ :: वि [अनुकुचित] थोड़ा संकुचित (पव ६२)

अणुक्‍कोस :: पुं [अनुक्रोश] दया, करुणा (ठा, ४, ४)

अणुक्‍कोस :: पुं [अनुत्कर्ष] १ उत्कर्षं का आभाव। २ वि. २ उत्कर्षरहित (भग ८, १०)

अणुक्खित्त :: वि [अनुत्क्षिप्त] ऊंचा न किया हुआ, 'दिट्ठं धणुक्खित्तमुहं एसो मग्गो कुल- वहूणं' (गा ५२६)।

अणुग :: वि [अनुग] अनुचर, नौकर (दे ७, ६६)।

अणुग :: वि [अनुग] अनुसरण-कर्तां (गच्छ ३, ३१)।

अणुगंतव्व :: देखो अणुगम = अनु + गम्।

अणुगंपा :: स्त्री [अनुकम्पा] करुणा, दया (स १५८)

अणुगंपिय :: वि [अनुकम्पित] जिस पर करुणा की गई हो वह (४७५)।

अणुगच्छ :: देखो अणुगम = अनु + गम् । अणु- गच्छइ; वकृ. अणुगच्छंत, अणुगच्छमाण (नाट; सुअ १, १४)। कवकृ. °अणुगच्छिज्जंत (णाया १, २)। संकृ. अणुगच्छित्ता (कप्प)

अणुगच्छण :: देखो अणुगमण (पुप्फ ४०८)।

अणुगच्छिर :: वि [अनुगामिन्] अनुसरण करनेवाला (सण)।

अणुगज्ज :: अक [अनु+गर्ज्] प्रतिव्वनि करना, प्रतिशब्द करना। वकृ. अणुगज्जे- माण (णाया १, १८)।

अणुगम :: सक [अनु+गम्] १ अनुसरण करना, पीछे-पीछे जाना। २ जानना, सम- झना। ३ व्याख्या करना, सूत्र के अर्थों का स्पष्ठीकरणा करना। कर्म. अणुगम्मइ (विसे ९१३)। ववकृ. अणुगम्मंत, अणुगम्ममाण (उप ६ टी; सुपा ७८; २०८)। संकृ. अणुगम्म (सुअ १, १४)। कृ. अणुगंतव्व (सुर ७, १७६; पराण १)

अणुगम :: पुं [अनुगम] १ अनुसरण, अनुवर्त्तन (दे २, ६१) २ जानना, ठीक-ठीक समझना, निश्‍चय करना (ठा १ ) ३ सूत्र की व्याख्या, सूत्र के अर्थ का स्पष्टीकरण (वव १) ४ अन्वय, एक की सत्ता में दूसरे की विद्यमानता (विसे २९०) ५ व्याख्या, टीका (विसे १३ ५७); अणुगम्मइ तेण तर्हि, तओ व अणुगम- णमेव वाणुगमो। 'अणुणोणुरूवओ वा, जं सुत्तत्थाणमणुसरणं' (विसे ९१३)

अणुगमण :: न [अनुगमन] ऊपर देखो।

अणुगमिअ :: वि [अनुगत] अनुसृत (कुप्र ४३)।

अणुगमिर :: वि [अनुगन्तृ] अनुसरण करनेवाला (दे ६, १२७)।

अणुगय :: वि [अनुगत] १ अनुसृत, जिसका अनुसरण किया गया हो वह (पराह १, ४) २ ज्ञात, जामा हुआ (विसे) ३ अनुवृत्त, जो पूर्व से बराबर चला आया हो (पणह १, ३) ४ अतिक्रान्त (विसे ९५६)

अणुगर :: देखो अणुकर। अणुगरेइ (स ३३४)। वकृ. अणुगरिंत (स ६८)।

अणुगरण :: देखो अणुंकरण (कुप्र १७९)।

अणुगवेस :: सक [अनु+गवेष्] खोजना, शोधना, तलाश करना। अणुगवेसइ (कस)। वकृ. अणुगवेसेमाण (भग ८, ५)। कृ अणुगवेसियव्व (कस)।

अणुगह :: देखो अणुग्गह = अनु+ग्रह् (नाट्)।

अणुगहिअ :: देखो अणुगिहिअ (दे ८, २६)।

अणुगाम :: पुं [अणुग्राम] १ छोटा गाँव; (उत्त ३) २ उपपुर, शहर के पास का गाँव (ठा ५, २) ३ विवक्षित गाँव से दूसरा गाँव, 'गामाणुगामं दुइज्जमाणे' (विपा १, १; औप; आचा)

अणुगामि, अणुगामिय :: वि [अनुगामिन्, ° मिक] १ अनुसरण करनेवाला, पीछे- पीछे जानेवाला (औप) २ निर्दोष हेतु, शुद्ध कारण (ठा ३, ३) ३ अवधिज्ञान का एक भेद (कम्म १, ८) ४ अनुचर, सेबक (सुअ १, २, ३)

अणुगारि :: वि [अनुकारिन्] अनुकरण करनेवाला, नकालची (महा ; धर्म; ५; स ६३०)।

अणुगिइ :: स्त्री [अनुकृति] अनुकरण, नकल (श्रा १)।

अणुगिण्ह :: देखो अणुग्गह = अनु + ग्रह । वकृ. अणुगिण्हमाण, अणुगिण्हेमाण (निर १, १; णाया , १६)।

अणुगिद्ध :: वि [अनुगृद्ध] अत्यन्त आसक्त, लोलुप (सुअ १, ७)।

अणुगिद्धि :: स्त्री [अनुगृद्धि] अत्यासक्ति (उत्त ३२)।

अणुगिल :: सक [अनु+ गृ] भक्षण करना। संकृ. अणुगिलित्ता (णाया १, ७)।

अणुगिहीअ :: वि [अनुगृहीत] जिस पर मेह- रबानी की गई हो वह (स १४; १६३)।

अणुगीय :: वि [अनुगीत] १ पीछे कहा हुआ, अनुदित। २ पूर्व ग्रन्थकार के भाव के अनुकूल किया हुआ ग्रन्थ, व्याख्यान आदि (उत १३) ३ जिसका गान किया गया हो वह, कीर्त्तित, वर्णित। ४ न. गाना, गीत; 'उज्जाणे... मत्त- भिंगाणुगीए' (पउम ३३, १४८)

अणुगुण :: वि [अनुगुण] १ अनुकूल, उचित, योग्य (नाट) २ तुल्य, सदृश गुणवाला; जाण अलंकारसमो, विहवो मइलेइ तेवि वड्‍ढंतो। विच्छाएइ मियंकं, तुसार- वरिसो अणुगुणेवि' (गउड)

अणुगुरु :: वि [अनुगुरु] गुरु-परम्परा के अनु- सार जिस विषय का व्यवहार होता हो वह (बृह १)।

अणुगूल :: वि [अनुकूल] अनकूल (स ३७८)।

अणुगेज्झ :: वि [अनुग्राह्य] अनुग्रह के योग्य, कृपा-पात्र (प्राप)।

अणुगेण्ह :: देखो अणुग्गह = अनु + ग्रह्। अणुगेण्हंतु (पि ५१२)।

अणुग्गह :: सक [अनु+ ग्रह्] कृपा करना, मेहरबानी करना। कृ अणुग्गहइदव्व, अणु- ग्गाहिदव्व (शौ) (नाट)।

अणुग्गह :: पुं [अनुग्रह्] १ कृपा, मेहरबानी (कप्पू) २ उपकार (औप) ३ वि. जिस पर अनुग्रह किया जाय वह (वव १)

अणुग्गह :: पुं [अनवग्रह] जैन साधुओं को रहने के लिए शास्त्र-निषिद्ध स्थान, 'णो गोयरे णो वणगोणियाणं, णो बद्ध दुज्झेंति य जत्थ गावो। अण्णत्थ गोणोहिसु जत्थ खुण्णं, स उग्गहो सेसमणुग्गहो तु' (बृह ३)।

अणुग्गहिअ, अणुग्गहीअ, अणुग्गहीअ :: वि [अनुगृहीत] जिस पर कृपा की गई हो वह, आभारी (महा; सुपा १९२; स ६७)।

अणुग्घाइम :: न [अनुद्धातिम] १ महा-प्राय- श्चित का एक भेद (ठा ३, ४) २ वि. महा- प्रायश्चित का पात्र (ठा ३, ४)

अणुग्घाइय :: वि [अनुद्धातिक] १ अनुद्‍घातिक नामक महा-प्रायश्चित का पात्र (ठा ५, ३) २ न. ग्रन्थांश-विशेष, जिसमें अनुद्‍घातिक प्रायश्चित का वर्णन है (पणह २, ५)

अणुग्घाय :: वि [अनुद्धात] १ उद्‍घात-रहित। २ न. निशीथ सूत्र का वह भाग, जिसमें अनु- द्‍घातिक प्रायश्चित का विचार है; 'उग्घायम- णुग्घायं आरोवण तिविहमो निसीहं तु' (आव ३)

अणुग्घाय :: न [अनुद्‍घात] गुरु-प्रायश्चित्त (वव १)।

अणुग्घायण :: न [अणोद्धातन] कर्मों का नाश (आचा)।

अणुग्घास :: सक [अनु + ग्रासय्] खीलाना, भोजन कराना; 'असणं वा पाणं वा खाइमं वा साइमं वा अणुग्घासेज्ज वा अणुपाएज्ज वा' (नीसी ७) । वकृ. अणुग्घासंत (निचू ७)।

अणुचय :: पुं [अनुचय] फैलाकर इकठ्ठा करना (उप पृ १५)।

अणुचर :: सक [अनु+चर्] १ सेवा करना। २ पीछे-पीछे जाना, अनुसरण करना। ३ अनुष्ठान करना। अणुचरइ (आरा ९)। अणु- चरंति (स १३०)। कर्म अणुचरिज्जइ। (विसे २५५४)। वकृ. अणुचरंत (पुप्फ ३१३) संकृ. अणुचरित्ता (चउ १४)

अणुचर :: देखो अणुअर (उत २८)।

अणुचरग :: वि [अनुचरक] सेवा करनेवाला (पव ६९)

अणुचरिय :: वि [अनुचरित] अनुष्ठित, विहित, किया हुआ (कप्प)

अणुचि :: सक [अनु + च्य्] मरना, एक जन्म से दूसरे जन्म में जाना। संकृ. अणुचि- ऊण (महा)

अणुचिंत :: सक [अनु + चिन्त्] विचारना, याद करना, सोचना। अणुचिंते (संखा ९६)। वकृ. अणुचिंतेमाण (णाया १, १)। संकृ. अणुचीइ, अणुचीति, अणुवीइ (आचा; सूअ १, १, ३, १३; दस ७)

अणुचितण :: न [अनुचिन्तन] सोच-विचार, पर्यालोचन (आव ४)

अणुचिंता :: स्त्री [अनुचिन्ता] ऊपर देखो (आव ४)।

अणुचिट्ठ :: सक [अनु + स्था] १ अनुष्ठान करना। २ करना। अणुचिट्ठइ। (महा)

अणुचिण्ण :: वि [अनुचीर्ण] १ अनुष्ठित, आच- रित, विहित; 'मोहतिगिच्छा य कया, विरिया- यारो य अणुचिण्णो' (ओघ २४९) २ प्राप्त, मिला हुआ; 'कायसंफासमणुचिण्णा एगइया पाणा उद्दाइया' (आचा) ३ परिणामित (जीव १)

अणुचिण्णव :: वि [अणुचीर्णवत्] जिसने अनुष्ठान किया हो वह (आचा)।

अणुचिन्न :: देखो अणुचिण्ण (सुपा १६२; रयण ७५; पुप्फ ७५)।

अणुचिय :: वि [अनुचित] अयोग्य (बृह १)।

अणुचीइ, अणचीति :: देखो अणुचिंत।

अणुच्च :: वि [अनुच्च] ऊंचा नहीं, नीचा।

°।कुइय :: वि [°।कुचिक] नीची और अस्थिर शय्या वाला (कप्प)।

अणुच्छहंत :: वि [अनुत्सहमान] उत्साह नहीं रखता हुआ (पउम १८, १८)।

अणुच्छित्त :: वि [अनुत्क्षिप्त] नहीं छोड़ा हुआ, अत्यक्त (गउड २३८)

अणुच्छित्त :: वि [अनुत्थित] १ गर्व-रहित, विनीत। २ स्फीत, समृद्ध। ३ सब से उन्‍नत, सर्वोच्च; 'पडिबद्धं नवर तुमे, नरिदचक्कं पयाव- वियडंपि। गहवलयमणुच्छित्ते धुवेव्व; परियत्तइ णरिंद' (गउड)

अणुच्छूढ :: वि [अनुत्क्षिप्त] अत्यक्त, नहीं छोड़ा हुआ (गा ५२६)।

अणुज :: पुं [अनुज] छोटा भाई (स ३८८)।

अणुजत्त :: न [अनुयात्र] यात्रा में, 'अण्णया अणुजत्तं निग्गओ पेच्छइ कुसुमियं चूयं' (महा)।

अणुजत्ता :: स्त्री [अनुयात्रा] निर्गम, निःसरण (पिंड ८८)।

अणुजा :: सक [अनु+ या] अनुसरण करना, पीछे चलना। अणुजाइ (विसे ७१६)।

अणुजाइ :: वि [अनुयायिन्] अनुसरण करनेवाला (सुपा ४०५)।

अणुजाइ :: स्त्री [अनुयाति] अनुसरण (धर्म- वि ४९)।

अणुजाण :: न [अनुयान] १ पीछे-पीछे चलना। २ महोत्सव-विशेष, रथयात्रा (बृह १)

अणुजाण :: सक [अनु + ज्ञा] अनुमति देना, सम्मति देना। अणुजाणइ (उव)। भुका, अणुजाणित्था (पि ५१७) । हेकृ अणुजा- णित्तए (ठा २, १)।

अणुजाणण :: न [अनुज्ञान] अमुमति, सम्मति (सुअ १, १)।

अणुजाणावण :: न [अनुज्ञापन] अनुमति लेना, अणुजाणावणविहिणा' (पंचा ९, १३)।

अणुजाणिय :: वि [अनुज्ञात] सम्मत, अनुमत (सुपा ५८४)

अणुजाय :: वि [अनुयात] १ अनुगत, अनुसृत (उप १३७ टी)

अणुजाय :: वि [अनुजात] १ पीछे से उत्पन्न। २ सदृश, तुल्य; 'वसभाणुजाए' (सुज्ज १२)

अणुजीव :: सक [अनु+ जीव्] आश्रय करना। अणुजीवंति (उत्त १८, १४)।

अणुजीवि :: वि [अनु जीविन्] १ आश्रित, नौकर, सेवक; 'पयईए च्चिय अणुजीविवच्छले' (सुपा ३३७; पाअ; स २४३)। °त्तण न [°त्व ] आश्रय, नौकरी (पि ५९७)

अणुजुंज :: सक [अनु+ युज्] प्रश्न करना। कर्म. अणुजुज्जते (धर्मसं २९३)।

अणुजुत्ति :: स्त्री [अनुयुक्ति] योग्य युक्ति, उचित न्याय (सुअ १, ३, ३)।

अणुजेट्ठ :: वि [अनुज्येष्ठ] १ बड़े के नजदीक का (आवम) २ छोटा, उतरता (पउम २२, ७९)

अणुजोग :: देखो अणुओअ (ठा १०)।

अणुज्ज :: वि [अनुर्ज] उत्साह-रहित, अनुत्साही, हताश (कप्प)।

अणुज्ज :: वि [अनोजस्क] तेजरहित, फीका; 'अणुज्जं दीणवयणं बिहरइ' (कप्प)।

अणुज्ज :: वि [अनूद्य] उद्देश्य, लक्ष्य (धर्म १)।

अणुज्जा :: स्त्री [अनुज्ञा] अनुमति, सम्मति (पउम ३८, २४)

अणुज्जा :: देखो अणोज्जा (आचा २, १५, ३)।

अणुज्जिय :: वि [अनूर्जित] बल-रहित, निर्बल (बृह ३)।

अणुज्जुय :: वि [अनृजुक] असरल, वक्र, कपटी (गा ७८९)।

अणुज्भा :: सक [अनु + ध्या] चिन्तन करना, ध्यान करना। संकृ. अणुज्झाइत्ता (आवम)।

अणुज्झाण :: न [अनुध्यान] चिन्तन, विचार (आवम)।

अणुझा :: देखो अणुज्झा। वकृ. अणुज्झायंत (कुमा)।

अणुभ्झिअअ :: वि [दे] १ प्रयत, प्रयत्‍न-शील। २ जागता, सावधान (षड्)

अणुज्झिज्जिर :: वि [अनुक्षयिन्] क्षीण होनेवाला (वज्जा १, २)।

अणुट्ठ :: वि [अनुत्य] नहीं उठा हुआ, स्थित (ओघ ७०)।

अणुट्ठा :: सक [अनु+स्था] १ अनुष्ठान करना, शास्त्रोक्त विधान करना। २ करना। कृ. अणु- ट्ठियव्व, अणुट्ठेअ (सुपा ५३७; सुर १४, ८५)

अणुट्ठाइ :: वि [अनुष्ठायिन्] अनुष्ठान करनेवाला (आचा)।

अणुट्ठाण :: न [अनुष्ठान] १ कृति। २ शास्त्रोक्त विधान (आचा)

अणुट्ठाण :: न [अनुत्यान] क्रिया का अभाव (उवा)।

अणुट्ठावण :: न [अनुष्टापन] अनुष्ठान कराना (कस)।

अणुट्ठिय :: वि [अनुष्ठित] विधि से संपादित, विहित, किया हुआ (षड्; सुर ४, १९९)।

अणुट्ठिय :: वि [अनुत्थित] १ बैठा हुआ। २ आलसी, प्रमादी (आचा)

अणुट्ठियव्व :: देखो अणुट्ठा।

अणुट्‍ठुभ :: न [अनुष्टुप्] एक प्रसिद्ध छंद, 'पच्चक्खरगणणाए अणुट् ठुभाणं हबंति दस सहस्सा (सुपा ६५९)।

अणुट्ठेअ :: देखो अणुट्ठा

अणुण :: देखो अणुणी। अणुणह (भवि)।

अणुणंत :: देखो अणुणी।

अणुणय :: पुं [अनुनय] विनय, प्रार्थना (महा ; अभि ११९)।

अणुणाइ :: वि [अनुनादिन्] प्रतिध्वनि करने वाला, 'गाज्जियसद्दस्स अणुणाइणा' (कप्प)।

अणुणाय :: पुं [अनुनाद] प्रतिध्वनि, प्रतिशब्द (विसे ३४०४)।

अणुणाय :: वि [अनुज्ञात] अनुमत, अनुमोदित (पंचू)।

अणुणास :: पुंन [अनुनास] अनुनासिक, जो नाक से बोला जाता है बह अक्षर। २ वि. सानुस्वार, अनुस्वार-युक्त (ठा ७); कागस्सर- मणुणासं च' (जीव ३ टी)

अणुणासिअ :: पुं [अनुनासिक] देखो ऊपर का पहला अर्थ (वज्जा ६)।

अणुणी :: सक [अनु+नी] १ अनुनय करना, विनय करना, प्रार्थना करना। २ समज्झाना, दिलासा देना, सान्त्वना देना। वकृ. अणुणंत; 'पुरोहियं तं कमसोणुणंतं' (उत्त १४; भवि); अणुणेंत (गा ९०२)। कवकृ. अणुणिज्जंत, अणुणिज्जमाण, अणुणीअमाण (सुपा ३६७; से २, १६, पि ५३६)

अणुणीअ :: वि [अनुनीत] जिसका अनुनय किया गया हो वह (दे ८, ४८)।

अणुणेंत :: देखो अणुणी।

अणुण्णय :: वि [अनुन्नत] १ नीचा, नम्र (दस ५, १) २ गर्वरहित, निरभिमानी; 'एत्थवि भिक्खु अणुण्णए विणीए' (सुअ १, १६)

अणुण्णव :: सक [अनु + ज्ञापय्] १ अनु- मति देना। २ आज्ञा देना, हुकुम देना। कर्म अणुण्णविज्जइ (उवा)। वकृ. अणुण्णवेमाण (ठा ६)। कृ. अणुण्णवेयव्व (ओघ ३८५ टी)। संकृ. अणुण्णवित्ता, अणुण्णविय (आवम; आचा २, २, ६)

अणुण्णवणया, अणुण्णवणा :: स्त्री [अनुज्ञापना] १ अनु- मति, सम्मति। २ आज्ञा, फरमाइश (सम ४४; ओघ ३८४ टी)

अणुण्णवणी :: स्त्री [अनुज्ञापनी] अनुमति-प्रका- शक भाषा अनुमति लेने का वाक्य (ठा ४, ३)।

अणुण्णा :: स्त्री [अनुज्ञा] १ अनु मति, अनुमोदन (सुअ २, २) २ आज्ञा। °कप्प पृं [°कल्प] जैन साधुओं के लिए वस्त्र-पात्रादि लेने के विषय में शास्त्रीय विधान (पंचमा)

अणुण्णा :: स्त्री [अनुज्ञा] १ पठन-विषयक गुरु-आज्ञा-विशेष (अणु ३) २ सूत्र के अर्थ का अध्ययन (वव १)

अणुण्णाय :: वि [अनुज्ञात] १ जिसको आज्ञा दी गई हो वह। २ अनुमत, अनुमोदित (ठा ३, ४)

अणुण्ह :: वि [अनुष्ण] ठंडा, जो गरम नहीं है वह (पि ३१२)।

अणुतड :: पुं [अनुतट] भेद, पदार्थों का एक जाति का पृथक्करण; जैसे संतप्त लोहे को हथौड़े से पीटने से स्फुलिंग (चिनगारी) पृथक् होते हैं (ठा ५)।

अणुतडिया :: स्त्री [अनुतटिका] १ ऊपर देखो (पण्ण ११) २ तलाव, द्रह आदि का भेद (भास ७)

अणुतप्प :: अक [अनु+ तप्] अनुताप करना, पछताना। अणुतप्पइ (स १८४)।

अणुतप्पि :: वि [अनुतापिन्] पश्चात्ताप करनेवाला (वव)।

अणुताव :: सक [अनु + तापय्] तपाना। संकृ. अणुतावित्ता (सुअ २, ४, १०)।

अणुताव :: पुं [अनुताप] पश्चात्ताप (पाअ; स १८४)।

अणुतावय :: वि [अनुतापक] पश्चात्ताप करानेवाला (सुअ २, ७, ८).

अणुतावि :: देखो अणुतप्पि (उफ ७२८ टी)।

अणुत्त :: वि [अनुक्त] अकथित (पंच ५)।

अणुत्तंत :: देखो अणुवत्त।

अणुत्तप्प :: वि [अनुत्त्रप्य] १ परिपूर्ण शरीरा। २ पूर्ण शरीरवाला, 'होइ अणुत्तप्पो सो अवि- गलइंदियपडिप्पुण्णो' (वव २)

अणुत्तर :: वि [अनुत्तर] १ सर्वश्रेष्ठ, सर्वोत्तम (ठा १०) २ एक सर्वोत्तम देवलोक का नाम (अनु) ३ छोठा, 'अणुत्तरो भाया' (पउम ९, ४)। °ग्गा स्त्री [°।ग्रया ] एक पृथिवी, जहाँ मुक्त जीवों का निवास है (सुअ १, ६)। °णाणि वि [°ज्ञानिन् ] केवलज्ञानी (सुअ १, २, ३)। °विमाण न [° विमान ] एक सर्वोत्कृष्ट देवलोक (भग ६, ६)। °वोवाइय वि [°पोपातिक ] अनुत्तर देवलोक में उत्पन्न (अनु)। °वोवाइयदसा स्त्री. ब. [°पोपातिकदशा ] नववो जैन अंग-ग्रंथ (अनु)

अणुत्याण :: देखो अणुट्ठाण (स ६४९)।

अणुत्थारय :: वि [अनुत्साह] हतोत्साह, निराश (कुमा)।

अणुदत्त :: पुं [अनुदात्त] नीचे से बोला जानेवाला स्वर (बृह १)।

अणुदय :: पुं [अनुदय] १ उदय का अभाव। २ कर्म-फल के अनुभव का अभाव (कम्म २, १३, १४, १५)

अणुदवि :: न [दे] प्रभात, सुबह (दे १, १९)।

अणुदिअ :: वि [अनुदित] जिसका उदय न हुआ हो (भग)।

अणुदिअस :: न [अनुदिवस] प्रतिदिन, हमेशा (नाट)।

अणुदिज्जंत :: वि [अनुदीयमान] उदय में न आता हुआ (भग)।

अणुदिण :: न [अनुदिन] प्रतिदिन, हमेशा (कुमा)।

अणुदिण्ण, अणुदिन्न :: वि [अनुदित] १ उदय को अप्राप्त। २ फल-दान में अतत्पर (कर्म) (भग १, २, ३); 'उदिण्ण = उदित' (भग १, ४, ७ टी)

अणुदिण्ण, अणुदिन्न :: व [अनुदीरित] १ जिसकी उदीरणा दूर भविष्य में हो। २ जिसकी उदीरणा भविष्य में न हो (भग १, ३)

अणुदिय :: वि [अनुदित] उदय को अप्राप्त 'मिच्छत्तं जमुदिन्‍नं तं खीणं अणुदियं च उव- संतं' (भघ १, ३ टी)।

अणुदियह :: न [अनुदिवस] प्रतिदिन, हेमेशा (सुर १, ११५)।

अणुदिव :: न [दे] प्रभात, प्रातःकाल (षड्)।

अणुदिसा, अणुदिसी :: स्त्रौ [अनुदिक्] विदिक्, ईशान कोण आदि विदिशा (विसे २७०० टी; पि ६८, ४१३, कप्प)।

अणुद्दिट्ठ :: वि [अनुद्दिष्ट] जिसका उद्देश्य न किया गया हो वह (पणह २, १)।

अणुद्ध :: वि [अनूर्ध्व] ऊंचा नहीं, नीचा (कुमा)।

अणुद्धय :: वि [अनुद्धत] सरल, भद्र, विनयी (उप ७६८ टी)।

अणुद्धरि :: पुं [अनुद्धरिन्] एक क्षुद्र जन्तु, कुंथु (कप्प)।

अणुद्धिय :: वि [अनुद्‌ धृत] १ जिसका उद्धार न किया गया हो वह। २ बाहर नहीं निकाला हुआ, 'जं कुणइ भावसल्लं अणुद्धियं इत्थ सव्वदुहमूलं' (श्रा ४०)

अणुद्‍धुय :: वि [अनुद्‍धूत] अपरित्यक्त, नहीं छोड़ा हुआ (कप्प)।

अणुधम्म :: पुं [अणुधर्म] गृहस्थ-धर्म (विसे)।

अणुधम्म :: पुं [अनुधर्म] अनुकूल — हितकर धर्म; 'एसोणुधम्मो मुणिणा पवेइआ' (सुअ १ २, १)। °चारि वि [°चारिन् ] हित- कर धर्म का अनुयायी, जैन-धर्म (सुअ १, २, २)।

अणुधम्मिय :: वि [अनुधार्मिक] धर्म के अनु- कूल, धर्मोचित; 'एयं खु अणुधम्मियं तस्स' (आचा)।

अणुधाव :: सक [अनु+धाव्] पीछे दौड़ना। वकृ. अणुधावंत (से ४, २१)।

अणुधावण :: सक [अनुधावन] पीछे दौड़ना (मुपा ५०३)।

अणुधाविर :: वि [अनुधावितृ] पीछे दौड़नेवाला (उस ७२८ टी)।

अणुनाइ :: विं [अनुनादिन्] प्रतिध्वनि करनेवाला (कप्प)।

अणुनाय :: वि [अनुज्ञात] अनुमत, जिसको अनुमति दि गई हो वह; 'आहवणे मोक्कलयं अणुनायाए तए नाह' (सुपा ४७७)।

अणुनास :: देखो अणुणास (जीव ३ टी)।

अणुन्नव :: देखो अणुण्णव। वकृ. अणुन्नवेमाण (ठा ५, ३)। कृ. अणुन्नवेयव्व (कस)। सँकृ. अणुन्नवेत्ता (कस)।

अणुन्नवणा :: देखो अणुण्णवणा (ओघ ६३०; कस)।

अणुन्नवणी :: देखो अणुण्णवणी (ठा ४, १)।

अणुन्ना :: देखो अणुण्णा (सुर ४, १३३; प्रासू १८१)।

अणुन्नाय :: दोखो अणुण्णाय (ओघ १; महा)।

अणुपंथ :: पुं [अनुपथ] १ समीप का मार्ग (कस) २ मार्ग के समीप, रास्ता के पास (बृह २)

अणुपत्त :: वि [अनुप्राप्त] प्राप्त, मिला हुआ (सुर ४, २११)।

अणुपन्न :: वि [अनुपन्न] प्राप्त (कुप्र ४०१)।

अणुपयट्ट :: वि [अनुप्रवृत्त] अनुसृत, अनुगत (महा )।

अणुपयाण :: न [अनुप्रदान] दान का बहला प्रतिग्रहण (संबोध ३४)।

अणुपरियट्ट :: सक [अनुपरि + अट्] घूमना, परिभ्रमण करना। संकृ. अणुपरियट्टित्ताणं; 'देवे णं भंते महिडि्ढए, . . . . . . पभू लवणस- मुद्दं अणुपरियट्टित्ताणं हव्वसागच्छित्तए ?' (भग १८, ७)। कृ. अणुपरियट्टियव्व (णाया १, ९)। हेकृ. अणुपरियट्टेउं (णाया १, ९)।

अणुपरियट्ट :: अक [अनुपरि + वृत्] फिरना, फिरते रहना; 'दुक्खाणमेव आवट्ट अणुपरिय- ट्टइ'। (आचा)। वकृ. अणुपरियट्टमाण आचा)। संकृ अणुपरियाट्टित्ता (औप)।

अणुपरियट्टण :: न [अनुपर्यटन] परिभ्रमण (सुअ १, १, २)।

अणुपरियट्टण :: न [अनुपरिवर्तन] परिवर्तन, फिरना (भग १, ९)।

अणुपरिवट्ट :: देखो अणुपरियट्ट = अनुपरि + वृत्। वकृ. अणुपरिवट्टमाण (पि २८९)।

अणुपरिवाडि :: °डी स्त्री [अनुपरिपाटि, ° टी] अनुक्रम (से १५, ६६; पउम २०, ११, ३२, १९)।

अणुपरिहारि :: वि [अणुपरिहारिन्] 'परि- हारी' को मदद करनेवाला, त्यागी मुनि की सेवा-शुश्रूषा करनेवाला (ठा ३, ४)।

अणुपरिहारि :: वि [अनुपरिहारिन्] ऊपर देखो (ठा ३, ४)।

अणुपवन्न :: वि [अनुप्रपन्न] प्राप्त (सूअ २, ३, २१)।

अणुपवाएत्तु :: वि [अनुप्रवाचयितृ] पढ़ानेवाला, पाठक, उपाध्याय (ठा ५, २)।

अणुपवाय :: देखो अणुप्पवाय=अनुप्र+ वाचय्।

अणुपविट्ठ :: वि [अनुप्रविष्ट] पीछे से प्रविष्ट (णाया १, १; कप्प)।

अणुपविस :: सक [अनुप्र + विश्] १ पीछे से प्रवेश करना। २ प्रवेश करना, भीतर जाना। अणुपविसइ (कप्प)। वकृ. अणुप विसंत (निचू २)। संकृ अणुपविसित्ता (कप्प)

अणुपवेस :: पुं [अनुप्रवेश] प्रवेश, भीतर जाना। (निचु ७)।

अणुपस्स :: सक [अनु+ दृश्] पर्यालोचन करना, विवेचना करना। संकृ. अणुपस्सिय (सुअ १, २, २)।

अणुपस्सि :: वि [अनुदर्शिन्] पर्यालोचक, विवेचक (आचा)।

अणुपाल :: सक [अनु+ पालय्] १ अनुभव करना। २ रक्षण करना। ३ प्रतिक्षा करना, राह देखना। अणुपालेइ (महा); वकृ, 'साया- सोक्खम् अणुपालंतेण' (पक्खि); अणुपालिंत, अणुपालेमाण (महा)। संकृ. अणुपालेऊण, अणुपालित्ता, अणुपालिय (महा; कप्प; पि ५७०)

अणुपालण :: न [अनुपालन] रक्षण, प्रति- पालन (पंचभा)।

अणुपालणा :: देखो अणुवालणा (विसे २५२० टी)।

अणुपालिय :: वि [अनुपालित] रक्षित, प्रति- पालित (ठा ८)।

अणुपास :: देखो अणुपस्स। वकृ. अणुपासमाण (दसचू २)।

अणुपिट्ठ :: न [अनुपृष्ठ] अनुक्रम, 'अणुपिट्ठ- सिद्धाइं' (सम्म)।

अणुपिहा :: देखो अणुपेहा (द्रव्य ३५)।

अणुपुंख :: न [अनुपुङ्ख] मूल तक, अन्त-पर्यन्त; 'अणुपुंखमावडंतावि आवया तस्स ऊसवा हुंति' (कुप्र ३३)।

अणुपुव्व :: वि [अनुपूर्व्व] क्रमवार, आनुक्रमिक (ठा ४, ४)। क्रिवि. क्रमशः (पाअ)। °सो [शस्] अनुक्रम से (आचा)।

अणुपूव्व :: न [आनुपूर्व्य] क्रम, परिपाटी, अनु- क्रम (राय)।

अणुपुव्वी :: स्त्री [आनुपूर्वी] ऊपर देखो (पाआ)।

अणुपेक्खा :: स्त्री [अनुप्रेक्षा] भावना, चिन्तन, विचार (पउम १४, ७७)।

अणुपेहण :: न [अनुप्रेक्षण] ऊपर देखो (उप १४२ टी)।

अणुपेहा :: स्त्री [अनुप्रेक्षा] ऊपर देखो (पि ३२३)।

अणुपेहि :: वि [अनुप्रेक्षिन्] चिन्तन-कर्ता (सुअ १, १०, ७)।

अणुप्पइन्न :: वि [अनुप्रकीर्ण] एक दूसरे से मिला हुआ, मिश्रित (कप्प)।

अणुप्पणी :: सक [अनुप्र+ णी] १ प्रणय करना। २ प्रसन्न करना। वकृ. अणुप्पणंत (उप पृ २८)

अणुप्पगंथ :: [अणुप्रग्रन्थ] सन्तोषी, अल्प परि- ग्रह वाला (ठा ९)।

अणुप्पगंथ :: वि [अनुप्रग्रन्थ] उपर देखो (ठा९)

अणुप्पप्ण :: वि [अनुत्पत्र] अविद्यमान (नीचू ५)।

अणुप्पत्त :: देखो अणुपत्त (कप्प)।

अणुप्पदा :: सक [अनुप्र+ दा] दान देना, फिर- फिर देना। अणुप्पदेइ (कस)। कृ. अणुप्प- दायव्व (कस )। हेकृ. अणुप्पदाउं (उवा)।

अणुप्पदाण :: न [अनुप्रदान] दान, फिर-फिर दान देना (आव ६)।

अणुप्पभु :: पुं [अनुप्रभु] स्वामी के स्थानापन्न, प्रतिनिधि (निचू २)।

अणुप्पया :: देखो अणुप्पदा। अणुप्पएइ (कस)। हेकृ. अणुप्पयाउं (उवा)।

अणुप्पयाण :: देखो अणुप्पदाण (आचा)।

अणुप्पवत्त :: सक [अनुप्र + वृत्] अनुसरण करना। हेकृ. अणुप्पवत्तए (विसे २२०७)।

अणुप्पवाइत्तु, अणुप्पवाएत्तु :: वि [अनुप्रवाचयितृ] अध्यापक, पाठक, पढ़ानेवाला (ठा ५, १; गच्छ १)।

अणुप्पवाद :: पुं [अनुप्रवाद] कथन (सूअ २, ७, १३)।

अणुप्पवाय :: सक [अनुप्र + वाचय्] पढ़ाना। वकृ. अणुप्पवाएमाण (जं ३)।

अणुप्पवाय :: न [अनुप्रवाद] नववां पूर्व, बार- हवें जैन अंग-ग्रन्थ का एक यंश-विशेष (ठा ९)।

अणुप्पविट्ठ :: देखो अणुपविट्ठ (कस)।

अणुप्पवित्ति :: स्त्री [अनुप्रवृत्ति] अनुप्रवेश, अनुगम (विसे २१९०)।

अणुप्पविस :: देखो अणुपविस। अणुप्पविसइ (उवा)। संकृ. अणुप्पवेसेत्ता (निचू १)।

अणुप्पवेस :: देखो अणुपवेस (नाट)।

अणुप्पवेसण :: न [अनुप्रवेशन] देखो अणुप- वेस (नाट)।

अणुप्पसाद :: (शौ) सक [अनुप्र + सादय्] प्रसन्न करना। अणुप्पसादेदि (नाट)।

अणुप्पसूय :: वि [अनुप्रसूत] उत्पन्न, पैदा किया हुआ (आचा)।

अणुप्पाइ :: वि [अनुपातिन्] युक्त, संबद्ध, संबन्धी (निचू १)।

अणुप्पिय :: वि [अनुप्रिय] अनुकूल, इष्ट (सुअ १, ७)।

अणुप्पेंत :: वि [अनुत्प्रयत्] दूर करता, हटाता हुआ; जम्मि अविसरणहिययत्तणेण ते गारवं वलग्गंति। तं विसममणुप्पेंतो गरुयाण विही खलो होइ' (गउड)।

अणुप्पेच्छ :: देखो अणुप्पेह; 'तह पुव्विं किं न कयं, न वाहए जेण मे समत्थोवि। एण्हिं किं कस्स व कुप्पिमोत्ति धीरा ! अणुप्पेच्छ' (उव)।

अणुप्पेसिय :: वि [अनुप्रेषित] पीछे से भेजा हुआ (नाट)।

अणुप्पेह :: सक [अनुप्र + ईक्ष्] चिन्तन करना, विचारना अणुप्पेहंति (पि ३२३)। कृ. अणु- प्पेहियव्व (पंसू १)।

अणुप्पेहा :: स्त्री [अनुप्रेक्षा] चिन्तन, भावना, विचार, स्वाध्याय-विशेष (उत्त २९)।

अणुप्फास :: पुं [अनुस्पर्श] अनुभाव, प्रभाव; 'लोहस्सेव अणुप्फासो मन्न अन्नयरामवि' (दस ६)।

अणुफुसिय :: वि [अनुप्रोञ्छित] पोंछा हुआ, साफ किया हुआ (स ३४४)।

अणुबंध :: सक [अनु + बन्ध] १ अनुसरण करना। २ संबन्ध बनाये रखना। अणुबंधंति (उत्तर ७१)। वकृ. अणुबंधंत (वेणी १८३)। कवकृ. अणुबंधीअमाणः अणुबंधिज्जमाण (नाट)। हेकृ. अणुबंधिटुं (शौ) (मा ६)

अणुबंध :: पुं [अनुबन्ध] १ सततपत, निरन्त- रता, विच्छेद का अभाव (ठा ६; उवर १२८) २ संबन्ध (स १३८; गउड) ३ कर्मो का संबन्ध (पंचा १५) ४ कर्मों का विपाक, परिणाम (उवर ४; पंचा १८) ५ स्‍नेह, प्रेम (स २७९), 'नयणाण पडउ वज्जं, अहवा वज्जस्स वड्डिलं किंपि। अमुणियजणेवि दिट्ठे, अणुबंधं जाणि कुव्वंति' (मुर ४, २०) ६ शास्त्र के आरम्भ में कहने लायक अधिकारी, विषय, प्रयोजन और संबन्ध (आव १) ७ निर्बन्ध, आग्रह (स ४५८)

अणुबंधअ :: वि [अनुबन्धक] अनुबन्ध करनेवाला (नाट)।

अणुबंधण :: न [अनुबन्धन] अनुकूल बन्धन (उत्त २९, ४५; सुख २९, ४५)।

अणुबंधणा :: स्त्री [अनुबन्धना] अनुसन्धान, विस्मृत अर्थ का सन्धान (पंचा १२, ४५)।

अणुबंधि :: वि [अनुबन्धिन्] अनुबन्धवाला, अनुबन्ध करनेवाला (धर्म २; स १२७)।

अणुबंधिअ :: न [दे] हिक्का-रोग, हिचकी (दे १, ४४)।

अणुबंधेल्ल :: वि [अनुबन्धिन्] विच्छेद-रहित, अनुगमवाला, अविनश्वर (उप २३३)।

अणुबज्झ, अणुबद्ध :: वि [अनुबद्ध] १ बंधा हुआ, संबद्ध (से ११, ६०) २ सतत, अविच्छिन्न; 'अणुबद्धतिव्ववेरा परोप्परं वेयणं उदी रेंति' (पण्ह १, १) ३ व्याप्त (णाया १, २) ४ प्रतिबद्ध (णाया १, २) ५ अत्यंत, बहुत; 'अणुबद्धनिरंतरवेयणासु' (पण्ह १, १) ६ उत्पन्न (उत्तर ९२)

अणुबद्ध :: वि [अनुबद्ध] १ अनुगत (पंचा ६, २७) २ पीछे बंधा हुआ (सिरि ४४४)

अणुबूह :: देखो अणुबूह।

अणुब्भूड :: वि [अनुद्‍भट] अनुद्धत, अनुल्वण (उत्त २)।

अणुब्भूय :: वि [अनुद्‍भूत] अप्रकट, अनुत्पन्न (नाट)।

अणुभअ :: देखो अणुभव = अनुभव (नाट)।

अणुभव :: सक [अनु + भू] १ अनुभव करना, जानना, समझना। २ कर्मफल को भोगना। अणुभवंति (पि ४७५)। वकृ, अणुभवंत (पि ४७५)। संकृ. अणुभविअ, अणुभवित्ता (नाट; पणह १, १)। हेकृ. अणुभविउं (उत्त १८)

अणुभव :: पुं [अनुभव] १ ज्ञान, बोध, निश्चय (पंचा ५) २ कर्म-फल का भोग (विसे)

अणुभवण :: न [अनुभवन] ऊपर देखो (आव ४; विसे २०६०)।

अणुभवि :: वि [अनुभविन्] अनुभव करनेवाला (विसे १६५८)।

अणुभव्य :: वि [अनुभव्य] आसन्न भव्य (संबोध ५४)।

अणुभाग :: पुं [अनुभाग] १ प्रभाव, माहात्म्य (सुअ १, ५, १) २ शक्ति, सामर्थ्य (पण्ण २) ३ कर्मों का विपाक — फल (सुअ १, ५, १) ४ कर्मों का रस, कर्मों में फल उत्पन्न करने की शक्ति; 'ताण रसो अणुभागो' (कम्म १, २ टी; नव ३१)। °बंध पुं [°बन्ध] कर्म-पुदगलों में फल उत्पन्न करने की शक्ति का बनना (ठा ४, २)

अणुभाय, अणुभाव :: पुं [अनुभाव] १-४ ऊपर देखो (प्रासू ३५; ठा ३, ३; गउड; आचा; सम ९) ५ मनोगत भाव की सूचक चेष्टा, जैसे भौंह का चढ़ाना वगैरह (नाट) ६ कृपा, मेहरबानी (स ३५५)

अणुभावग :: वि [अनुभावक] बाधोक, सूचक; (आवम)।

अणुभास :: सक [अनु + भाष्] १ अनुवाद करना, कही हुई बात को उसी शब्द में, शब्दा- न्तर में या दूसरी भाषा में कहना। २ चिन्तन करना, 'अणुभासइ गुरुवयणं' (आचू ६; वव ३)। वकृ अणुभासयंत, अणुभासमाण (स १८४; विसे २५१२)

अणुभासण :: न [अनुभाषण] अनुवाद, उक्त बात का कहना (नाट)।

अणुभासणा :: स्त्री [अनुभाषणा] ऊपर देखो (ठा ५, ३; विसे २५२० टी)।

अणुभासय :: वि [अनुभाषक] अनुवादक, अनु- वाद करनेवाला (विसे ३२१७)।

अणुभासयंत :: देखो अणुभास।

अणुभुंज :: सक [अनु+भुज्] भोग करना। वकृ. अणुभुंजमाण (सं १९)।

अणुभूइ :: स्त्री [अनुभूति] अनुभव (विसे १६११)।

अणुभूय :: वि [अनुभूत] ज्ञात निश्चित (महा)। °पुव्व वि [°पूर्व] पहले ही जिसका अनुभव हो गया हो वह (णाया १, १)।

अणुभूस :: सक [अनु + भूष्] भूषित करना। शोभित करना। अणुभूसेदि (शौ) (नाट)।

अणुमइ :: स्त्री [अनुमति] अनुमोदन, सम्मति (श्रा ९)।

अणुमंतव्व :: देखो अणुमण्ण (विसे १६६०)।

अणुमग्ग :: न [द] पीछे-पीछे, 'एवं विचिंतयंती अणुमग्गेणेव चलिया हं' (सुर ४, १४२; महा)। °गामि वि [°गामिन्] पीछे-पीछे जानेवाला (पि ४०५)।

अणुमज्ज :: सक [अनु + मस्ज्] विचार करना। संकृ अणुम ज्जत्ता (जीवस १६६)।

अणुमण्ण, अणुमन्न :: सक [अनु + मन्] अनुमति देना, अनुमोदन करना। अणु- मण्णे, अणुमन्नइ (पि ४५७; महा)। वकृ. अणुमण्णमाण (उवर ३१)। संकृ. अण- मन्निऊण (महा)।

अणुमन्निय, अणुमय :: वि [अनुमत] अनुमोदित, सम्मत (उप पृ २९१)।

अणुमर :: अक [अनु + मृ] १ मरना। २ सती होना, पति के मरने से मर जाना ; 'जं केव- लिणो अणुमरंति' (आउ ३५)। भवि. अणु- मरिहिइ (पि ५२२)

अणुमर :: अक [अनु + मृ] क्रम से मरना, पीछे- पीछे मरना ; 'इय पारंपरमण्णे अणुमरइ सह- स्ससो जाव' (पिंड २७४)।

अणुमरण :: न [अनुमरण] ऊपर देखो (गउड)।

अणुमहत्तर :: वि [अनुमहत्तर] मुखिया का प्रतिनिधि (निचू ३)।

अणुमाण :: न [अनुमान] १ अटकल-ज्ञान, हेतु के द्वारा अज्ञात वस्तु का निर्णय (गा ३४५; ठा ४, ४)

अणुमाण :: न [अनुमान] १ अभिप्राय-ज्ञान (सुअ १, १३, २०) २ अनुसार (तंदु २७)

अणुमाण :: सक [अनु+मानय्] अनुमान करना। संकृ. अणुमाणइत्ता (वव १ )।

अणुमाय :: वि [अणुमात्र] बहुत थोड़ा, थोड़ा परिमाणवाला (दस ५, २)।

अणुमाल :: अक [अनु+मालय्] शोभित होना, चमकना। संकृ. अणुमालिवि (भवि)।

अणुमिण :: सक [अनु+मा] अटकल से जानना। कर्म अणमिणिज्जइ (धर्मसं १२१६), अणुमीयए (४, ३०)।

अणुमेअ :: वि [अनुमेय] अनुमान के योग्य (मै ७३)।

अणुमेरा :: स्त्री [अनुमर्यादा] मर्यादा, हद (कस)।

अणुमोइय :: वि [अनुमोदित] अनुमत, संमत, प्रशंसित (आउर, भवि)।

अणुमोय :: सक [अनु + मुद्] अनुमति देना, प्रशंसा करना। अणुमोयइ (उव)। अणुमोएमो (चउ ५८)।

अणुमोयग :: वि [अनुमोदक] अनुमोदन करने वाला (विसे)।

अणुमोयण :: न [अनुमोदन] अनुमति, सम्मति, प्रशंसा (उव; पंचा ९)।

अणुम्मुक्क :: वि [अनुन्मुक्त] नहीं छोड़ा हुआ (पणह १, ४)।

अणुम्मुह :: वि [अनुन्मुख] अ-संमुख, विमुख, 'किह साहुस्स अणुम्मुहो चिट्ठामि त्ति' (महा)।

अणुय :: पुं [अणुक] धान्य-विशेष (पव १५६)।

अणुयंपा :: देखो अणुकंपा (गउड; स २६४)।

अणुयत्त :: देखो अणुवत्त = अनु + वृत्। अणु- यतइ (भवि)। वकृ. अणुयत्तंत, अणुयत्त- माण (पंचभा; विसे १४५१)। संकृ. अणु- यत्तिऊण (गउड)।

अणुयत्त :: देखो अणुवत्त = अनुवृत्त (भवि)।

अणुयत्तणा :: स्त्री [अणुवर्तना] १ बीमार की सेवा-श्रुश्रुषा करना (बृह १)२ अनुसरण। ३ अनुकूल वर्तन (जीव १)

अणुयत्तिय :: वि [अनुवृत्त] अनुकूल किया हुआ, प्रसादित (सुपा १३०)।

अणुयरिय :: वि [अनुचरित] आचरित, अनु- ष्ठित (णाया १, १)।

अणुया :: देखो अणुण्णा (सुअ २, १)।

अणुयाव :: देखो अणुताव (स १८३)।

अणुयास :: पुं [अनुकाश] विशेष विकास (णाया १, १)।

अणुरंगा :: स्त्री [दे] गाड़ी (बृह १)।

अणुरंगि :: वि [अनुरङ्गिन्] अनुकरण-कर्ता (सुज्ज १०, ८)।

अणुरंगिय :: वि [अनुरङ्गित] रंगा हुआ (भवि)।

अणुरंज :: सक [अनु + रञ्जय्] अनुरागी करना, प्रीणित करना। वकृ. अणुरंजअंत (नाट)। संकृ. अणुरंजिअ (नाट)।

अणुरंजण :: न [अनुरञ्जन] राग, आसक्ति (विसे २९७७)।

अणुरंजिएल्लय, अणुरंजिय :: वि [अनुरञ्जित] अनुरक्त किया हुआ, अनुरागी बनाया हुआ (जं ३; महा)।

अणुरक्क :: वि [अनुरक्त] अनुराग-प्राप्त, प्रेम- प्राप्त (नाट)।

अणुरज्ज :: अक [अनु + रञ्‍ज्] अनुरक्त होना, प्रेमी होना; 'अणुरज्जंति खणेणं जुवईउ खणेण पुण विरजंति' (महा)।

अणुरत्त :: देखो अणुरक्क (णाया १, १६)।

अणुरसिय :: वि [अनुरसित] बोलाया हुआ, आहुत (णाया १, ६)।

अणुराइ, अणुराइल्ल :: वि [अनुरागिन्] अनुरागवाला, प्रेमी (स ३३°; महा; सुर १३, १२०)|

अणुराग :: पुं [अनुराग] प्रेम, प्रीति (सुर ४, २२८)।

अणुरागय :: वि [अन्वागत] १ पीछे आया हुआ।२ ठीक-ठीक आया हुआ।३ न. स्वागत (भग २, १)

अणुरागि :: देखो अणुराइ (महा)।

अणुराय :: देखो अणुराग (प्रासू १११)।

अणुराहा :: स्त्री [अनुराधा] नक्षत्र-विशेष (सम ९)।

अणुरंध :: सक [अनु + रुध्] १ अनुरोध करना।२ स्वीकार करना।३ आज्ञा का पालन करना। ४ प्रार्थना करना। ५ अक अधोन होना। कर्म. अणुरंधिज्जइ (हे ४, २४८ प्रामा)

अणुरुअ, अणुरुव :: वि [अनुरुप] १ योग्य, उचित (से ९, ३६) २ अनुकूल (सुपा ११२) ३ सदृश, तुल्य (णाया १, १६) | ४ न. समानता, योग्यता (सम्म)

अणुरोह :: पुं [अनुरोध] १ प्रार्थना, 'ता ममा- णुरोहेण एत्थ घरे निच्चमेव आगंतव्वं' (महा) २ दाक्षिणय, दक्षिणता (पाअ)

अणुरोहि :: वि [अनुरोधिन्] अनुरोध करनेवाला (स १२१)।

अणुलग्ग :: वि [अनुलग्र] पीछे लगा हुआ (गा ३४५; सुर ३, २२९; सुक्त ७)।

अणुलद्ध :: वि [अनुलब्ध] १ पीछे से मिला हुआ। २ फिर से मिला हुआ (नाट)

अणुलाव :: पुं [अनुलाप] फिर-फिर बोलना (ठा ७)।

अणुलिंप :: सक [अनु + लिप्] १ पोतना, लेप करना। २ फिर से पोतना। संकृ. अणु- लिंपित्ता (पि ५८२)। हेकृ. अणुलिपित्तए (पि ५७८)

अणुलिपण :: न [अनुलेपन] लेप, पोतना (पणह २, ३)।

अणुलित्त :: वि [अनुलिप्त] लिप्त, पोता हुआ (कप्प)।

अणुलिह :: सक [अनु + लिह्] १ चोटना। २ छूना। वकृ. अणुलिहंत (सम १३१); 'गयणयलमणुलिहंतं' (पउम ३९, १२)

अणुलेवण :: न [अनुलेपन] १ लेप, पोतना (स्वप्‍न ९४) २ फिर से पोतना (पण्ण २)

अणुलेविय :: वि [अनुलेपित] लिप्त, पोता हुआ; 'कम्मणुलेविओ सो' (पउम ८२, ७८)।

अणुलोम :: सक [अनुलोमय्] १ क्रम से रखना। २ अनुकूल करना। संकृ. अणुलोम- इत्ता (ठा ६)

अणुलोम :: न [अनुलोम] १ अनुक्रम, यथाक्रम; 'वत्थं दुहाणुलोमेण तह य पडिलोमओ भवे वत्थं' (सुर १६, ४८)

अणुलोम :: वि [अनुलोम] सीधा, अनुकूल (जं २)।

अणुल्लग :: देखो अणुल्लय (सुख ३६, १३०)।

अणुल्लण :: वि [अनुल्बण] अनुद्धत, अनुद्भट (बृह ३)।

अणुल्लय :: पुं [अनुल्लक] एक द्वीन्द्रिय क्षुद्र जन्तु (उत्त ३६)।

अणुल्लाव :: पुं [अनुल्लाप] खराब कथन, दुष्ट उक्ति (ठा ३)।

अणुव :: पुं [दे] बलात्कार, जबरदस्ती (दे १, १९)।

अणुवइट्ठ :: वि [अनुपदिष्ट] १ अ-कथित, अ- व्याख्यात। २ जो पूर्व-परम्परा से न आया हो, 'अणुवइट्ठं नाम जं णो आयरियपरंपरागयं' (नीचू ११)

अणुवउत्त :: वि [अनुपयुक्त] असावधान (विसे)।

अणुवएस :: पुं [अनुपदेश] १ अयोग्य उपदेश (पंचा १२) २ उपदेश का अभाव। ३ स्वभाव (ठा २, १)

अणुवओग :: वि [अनुपयोग] १ उपयोग-रहित। २ उपयोग का अभाव, असावधानता (अणु)

अणुवंक :: वि [अनुवक्र] अत्यंत वक्र, बहुत टेढ़ा; 'जाव अंगारओ रासि विअ अणुवंकं परि- गमणं णु करेदि' (माल ६२)।

अणुवंदण :: न [अनुवन्दन] प्रति-नमन, प्रति- प्रणाम (सार्धं ३९)।

अणुवक्क :: देखो अणुवंक (पि ७४)।

अणुवक्ख :: वि [अनुपाख्य] नाम-रहित, अनि- र्वचनीय (बृह १)।

अणुवक्खड :: वि [अनुपस्कृत] संस्कार-रहित (पाक) (निचू १)।

अणुवच्च :: सक [अनु + व्रज्] अनुसरण करना, पीछे-पीछे जाना। अणुवच्चइ (हे ४, १०७)।

अणुवच्चिअ :: बि [अनुव्रजित] अनुसृत (कुमा)।

अणुवजीवि :: वि [अनुपजीविन्] १ अना- श्रित। २ आजीविका-रहित (पंचा १५)

अणुवजुत्त :: वि [अनुपयुक्त] असावधान, ख्याल-शून्य (अभि १३१)।

अणुवज्ज :: सक [गम्] जाना। अणुवज्जइ (हे ४, १६२)।

अणुवज्ज :: सक [दे] सेवा-श्रुश्रुषा करना (दे १, ४१)।

अणुवज्जण :: न [दे] सेवा-श्रुश्रूषा (दे १, ४१)।

अणुवज्जिअ :: वि [दे] जिसकी सेवा-श्रुश्रुषा की गई हो वह (दे १, ४१)।

अणुवज्जिअ :: वि [दे] गत, गया हुआ (दे १, ४१।

अणुवट्ट :: देखो अणुवत्त = अनु+ वृत्। कृ. अणुवट्टणीअ (नाट)।

अणुवट्टि :: देखो अणुवत्ति = अनुवर्तिन् (विसे २४१७)।

अणुवड :: सक [अनु + पत्] अभिन्न होना। अणुवडइ (उवर ७१)।

अणुवडिअ :: वि [अनुपतित] पीछे गिरा हुआ (हम्मीर ५०)।

अणुवत्त :: सक [अनु + वृत्] १ अनुसरण करना। २ सेवा-शुश्रुषा करना। ३ अनुकूल बरतना। ४ व्याकरण आदि के पूर्वं सूत्र के पद का, अन्वय के लिए नीचे के सूत्र में जाना। अणुवत्तइ (स ४२)। वकृ. अणुत्तंत, अणुवत्तंत, अणुवत्तमाण (प्राप्त; विसे ३५६८; नाट)। कृ. अणुवट्टणीअ, अणु- वत्तणीअ, अणुवत्तियव्व (नाट; उप १०३१ टी)

अणुवत्त :: वि [अनुद्‍वृत्त] अनुत्पन्न (पिंड १८)।

अणुवत्त :: वि [अनुवृत्त] १ अनुसृत, अनुगत। २ अनुकूल किया हुआ। ३ प्रवृत्त (वव २)

अणुवत्तग :: वि [अनुवर्त्तक] अनुकूल प्रवृत्ति करनेवाला, सेवा करनेवाला (उव)।

अणुवत्तग :: वि [अनुवर्तक] अनुसरण-कर्ता (सुअ १, २, २, ३२)।

अणुवत्तण :: न [अनुवर्त्तन] १ अनुसरण (स २३९) २ अनुकूल प्रवृत्ति (गा २६५) ३ पूर्व सूत्र के पद का अन्वय के लिए नीचे के सू्त्र में जाना (विसे ३५६८)

अणुवत्तणा :: स्त्री [अनुवर्त्तना] ऊपर देखो (उवर १४८)।

अणुवत्तय :: देखो अणुवत्तग; 'अन्नमन्नच्छंदाणु- वत्तया' (णाया १, ३)।

अणुवत्ति :: स्त्री [अनुवृत्ति] १ अनुसरण (स ४५६) २ अनुकूल प्रवृत्ति। ३ अनुगम (विसे ७०५)

अणुवत्ति :: वि [अनुवर्त्तिन्] अनुकूल प्रवृत्ति करनेवाला, भक्त, सेवक; 'तुह चंडि ! चलणकमलाणुवत्तिणो कह णु संजमिज्जंति। सेरिहवहसंकियमहिसहीरमाणेण व जमेण' (गउड)।

अणुवत्ति :: वि [अनुवर्त्तिन्] ऊपर देखो (धंभवि ५२; मोह १०२)।

अणुवम :: वि [अनुपम] उपमा-रहित, बेजोड़, अद्वितीय (श्रा २७)।

अणुवमा :: स्त्री [अनुपमा] एक प्रकार का खाद्य द्रव्य (जीव ३)।

अणुवमिय :: वि [अनुपमित] देखो अणुवम (सुपा ६८)।

अणुवय :: देखो अणुव्वय (पउम २, ९२)।

अणुवय :: सक [अनु + वद्] अनुवाद करना, कहे हुए अर्थ को फिर से कहना। वकृ. अणु- वयमाण (आचा)।

अणुवरय :: वि [अनुपरत] १ असयत, अनि- ग्रही (ठा २, १) २ क्रिवि. निरन्तर, हमेशा (रयण २५)

अणुबलद्धि :: स्त्री [अनुपलब्धि] १ अभाव, अप्राप्ति। २ अभाव-ज्ञान; 'दुविहा अणुबलद्धीउ' (विसे १६८२)

अणुबलब्भमाम :: वि [अनुपलभ्यमान] जो उपलब्ध न होता हो, जो जानने में न आता हो (दसनि १)।

अणुवलेवय :: वि [अनुपलेपक] उपलेप-रहित, अलिप्‍त (पणह १, २)।

अणुवसंत :: वि [अनुपशान्त] अशान्त, कुपित (उत १९)।

अणुवसम :: पुं [अनुपशम] उपशम का अभाव (उव)।

अणुवसु :: वि [अनुवसु] रागवाला, प्रीतिवाला (आचा)।

अणुवह :: न [अनुपथ] पीछे, 'कुमराणुबहेण सो लग्गो' (उप ६ टी)।

अणुवहण :: न [अनुवहन] वहन, 'तववहाणं- सुयाणमणुवहणं' (श्रु १३५)।

अणुवहय :: वि [अनुपहत] अविनाशित (पिंड)।

अणुवहुआ :: स्त्री [दे] नवोढ़ा स्त्री, दुलहिन (दे १, ४८)।

अनुवाइ :: वि [अनुपातिन्] १ अनुसरण करनेवाला (ठा ९) २ सम्बन्ध रखनेवाला (सम १५)

अणुवाइ :: वि [अनुवादिन्] अनुवाद करनेवाला, उक्त अर्थँ को कहनेवाला (सुअ १, १२; सत्त १४ टी)।

अणुवाइ :: वि [अनुवाचिन्] पढ़नेवाला, अभ्यासी; 'संपुन्नवीसवरिसो अणुवाई सव्वसु- त्तस्स' (सत्त १४ टी)।

अणुवाएज्ज :: वि [अनुपादेय] ग्रहण करने के अयोग्य ; (आवम)।

अणुवाद :: देखो अणुवाय =अनुवाद (विसे ३५७७)।

अणुवादि :: देखो अणुवाइ = अनुपातिन् (उत्त १६, ९)।

अणुवाय :: पुं [अनुपात] १ अनुसरण (पणण १७) २ संबन्ध, संयोग (भग १२, ४) ३ आगमन (पंचा ७)

अणुवाय :: पुं [अनुवात] १ अनुकूल पवन (राय) २ वि. अनुकूल पवन वाला प्रदेश------- स्थान (भग १६, ६)

अणुवाय :: वि [अनुपाय] उपाय-रहित, निरू- पाय (उप पृ १४)।

अणुवाय :: पुं [अनुवाद] अनुभाषण, उक्त बात को फिर से कहना (उवा; दे १, १३१)।

अणुवायण :: न [अनुपातन] अवतारण, उता- रना (धर्म २)।

अणुवायय :: बि [अनुवाचक] कहनेवाला, अभिधायक, 'पोसहसद्दो रूढीए एत्थ पव्वाणु- वायओ भणिओ' (सुपा ६१९)।

अणुवाल :: देखो अणुपाल। वकृ. अणुवालेंत (स २३)। संकृ. अणुवालिऊण (स १०२)।

अणुवालण :: न [अनुपालन] रक्षण, परिपालन (आचा)।

अणुवालणा :: स्त्री [अनुपालना] १ ऊपर देखो (पंचू) २ °कप्प पुं [°कल्प] साधु-गण के नायक की अकस्मात् मृत्यु हो जाने पर गण की रक्षा के लिए शास्त्रीय विधान (पंचभा)

अणुवालय :: वि [अनुपालक] १ रक्षक, परि- पालक। २ पुं. गोशालक के एक भक्त का नाम (भग २४, २०)

अणुवास :: सक [अनु + वासय्] व्यवस्था करना। अणुवासेज्जासि (आचा)।

अणुवास :: पुं [अनुवास] एक स्थान में अमुक काल तक रह कर फिर वहीं वास करना (पंचभा)।

अणुवासण :: न [अनुवासन] १ ऊपर देखो। २ यन्त्र-द्वारा तेल आदि को अपान से पेट में चढ़ाना (णाया १, १३)

अणुवासणा :: स्त्री [अनुवासना] ऊपर देखो (पंचभा; णाया १, १३) °कप्प पुं [°कल्प] अनुवास के लिए शास्त्रीय व्यवस्था (पंचभा)।

अणुवासग :: वि [अनुपासक] १ सेवा नहीं करनमेवाला। २ पुं. जैनेतर गृहस्थ (निचू ८)

अणुवासर :: न [अनुवासर] प्रतिदिन, हमेशा (सुर १, २४१)।

अणुवित्ति :: स्त्री [अनुवृत्ति] १ अनुकूल वर्तन (कुमा) २ अनुसरण (उप ८३३ टी)

अणुविद्ध :: वि [अनुविद्ध] संबद्ध, जुड़ा हुआ (से ११, १५)।

अणुविस :: सक [अनु + विश्] प्रवेश करना। अणुविसंति (सिक्खा ७७)।

अणुविहाण :: न [अनुविधान] १ अनुकरण। २ अनुसरण (विसे २०७)

अणुवीइ :: स्त्री [अनुवीचि] अनुकूलता, 'वेया- णुवीइं मा कासि चोइच्जंती गिलाइ से भज्जो' (सुअ १, ४, १, १९)।

अणुवीइ, अणुवीई, अणुवीति, अणुवीतिय :: अ [अनुविचिन्त्य] विचार कर, पर्यालोचना कर (पि ५९३; आचा; दस ७)। देखो अणु- चिंत।

अणुवीइत्तु, अणुवीय :: देखो अणुवीई (सुअ १, १२, २; १, १०, १)।

अणुवूह :: सक [अनु + बृंह्] अनुमोदन करना, प्रशंसा करना। अणुवूहेइ (कप्प)।

अणुवूहेत्तु :: वि [अनुबृंहितृ] अनुमोदन करने वाला (ठा ७)।

अणुवेद :: सक [अन + वेदय्] अनुभव करना। वकृ. अणुवेदयंत (सुअ १, ५, १)।

अणुवेध, अणुवेह :: पुं [अनुवेध] १ अनुगम, अन्वय, सम्बन्ध (धमंसं ७१२; ७१५) २ संमिश्रण (पिंड ५६)

अणुवेयण :: न [अनुवेदन] फल-भोग, अनुभव (स ४०३)।

अणुवेल :: अ [अनुवेल] निरन्तर, सदा (पाअ)।

अणुवेलंधर :: पुं [अनुवेलवन्धर] नाग-कुमार देवों का एक इन्द्र (सम ३३)।

अणुवेह :: देखो अणुप्पेह। वकृ. अणुवेहमाण (सुअ १, १०)।

अणुव्वइय़ :: वि [अनुव्रजित] अनुसृत (स ६८७)।

अणुव्वज :: सक [अनु + व्रज्] १ अनुसरण करना। २ सामने जाना। अणुव्वजे (सुअ १, ४, १, ३)

अणुव्वय :: न [अणुव्रत] छोटा व्रत, साधुओं के महाव्रतों की अपेक्षा लघु व्रत, जैन गृहस्थ के पालने के नियम (ठा ५, १)।

अणुव्वय :: न [अनुव्रत] ऊपर देखो (ठा ५, १)।

अणुव्वय :: पुं [अणुव्रत] शावक-धऱ्मं (पंचा १०, ८)।

अणुव्वयण :: न [अनुव्रजन] अनुगहन (धर्मवि ५४)।

अणुव्वयव :: वि [अनुव्रजक] अनुसरण करनेवाला, 'अन्नमन्नमणुव्वया' (णाया १, ३)।

अणुव्वया :: स्त्री [अनुव्रता] पतिव्रता स्त्री (उत्त २०)।

अणुव्वस :: वि [अनुवश] अधीन, आयत्त, 'एवं तुब्भे सरागत्था अन्नमन्नमणुव्वसा' (सुअ १, ३, ३)।

अणुव्वाण :: वि [अनुद्वान] १ अ-बन्ध, खुला हुआ (उप २११ टी) २ स्‍निग्ध, चिकना; 'पव्वाण किंचिउव्वाणमेव किंचिच्च होअणु- व्वाण' (ओघ ४८८)

अणुव्विग्ग :: वि [अनुद्‌विग्र] अ-खिन्न, खेद- रहित (णाया १, ८; गा २८५)।

अणुव्विवाग :: न [अनुविपाक] विपाक के अनुसार 'एक तिरिक्खे मणुयासुरेसु चउरंतणंतं तयणुव्विवागं (सुअ १, ५, २)।

अणुव्वीइय :: देखो अणुवीइ (जीव)

अणुसंकम :: सक [अनुसं + क्रम्] अनुसरण करना। अणुसंकमंति (उत्त १३, २५)।

अणुसंग :: पुं [अनुषङ्ग] १ प्रसंग, प्रस्ताव (प्रासू ३६, भवि) २ संसर्ग, सोहवत; 'मज्भ्क्तठिई पुण एसा; अणुसङ्‌ गेणं हवन्ति गुण-दोसा' (सट्ठि २८; २७)

अणुसंगिअ :: वि [आनुषङ्गिक] प्रासङ्गिक (प्रवि १५)।

अणुसंचर :: सक [अनुसं + चर्] १ परि- भ्रमण करना। २ पीछे चलना। अणुसंचरइ (आचा ; सुअ १, १०)

अणुसंज :: देखो अणुसज्जा अणुसंजंति (पव ९८)।

अणुसंध :: सक [अनुसं + धा] १ खोजना, ढुंढना, तलाश करना। २ विचार करना। ३ पूर्वापर का मिलान करना। अणुसंधेमि (पि ५००)। संकृ. अणुसंधिवि (भवि)

अणुसंधण, अणुसंधाण :: न [अनुसंधान] गवेषणा, खोज (संबोध ४४)। २ पूर्वा- पर की संगति (धर्मसं ३०३)

अणुसंधण, अणुसंधाण :: न [अनुसंधान] १ खोज, शोध। २ विचार, चिन्तन; 'अत्ताणुसंधणपरा सुसावगा एरिसा हुंति' (श्रा २०) ३ पूर्वापर का मिलान (पंचा १२)

अणुसंधिअ :: न [दे] अविच्छिन्न हिक्का, निरन्तर हिचकी (दे १, ५९)।

आणुसंभर :: सक [अनु + स्मृ] याद करना। अणुसंभरइ (दसनि ४, ५५)।

अणुसंवेयण :: न [अनुसंवेदन] १ पीछे से जानना। २ अनुभव करना (आचा)

अणुसंसर :: सक [अनुसं + सृ] गमन करना, भ्रमण करना; 'जो इमाओ दिसाओ वा विदिसाओ वा अणुसंसरइ' (आचा)।

अणुसंसर :: सक [अनुसं + स्मृ] स्मरण करना, याद करना। अणुसंसरइ (आचा)।

अणुसज्ज :: अक [अनु + संज्] १ अनुसरण करना, पूर्वं काल से कालान्तर में अनुवर्तन करना। २ प्रीति करना। ३ परिचय करना। अणुसज्जन्ति (स)। भूका. अणुसज्जित्था (भग ६, ७)

अणुसज्जणा :: स्त्री [अनुसज्जना] अनुसरण, अनुवर्तन (वव १)।

अणुसट्ठ :: वि [अनुशिष्ट] जिसको शिक्षा दी गई हो वह, शिक्षित (सुर ११, २६)।

अणुसट्ठि :: वि [अनुशिष्टि] १ शिक्षण, सीख, उपदेश (ठा ३, ३) २ स्तुति, श्लाधा; 'अणुसट्ठी य थुइ त्ति एगट्ठा' (वव १) ३ आज्ञा, अनुज्ञा, सम्मति; 'इच्छामो अणुसट्ठिं पव्व ज्जं देह में भयवं' (सुर ६, २०९)

अणुसमय :: न [अनुसमय] प्रतिक्षण (भग ४१, १)।

अणुसय :: पृं [अनुशय] १ पश्‍चात्ताप, खेद (से २, १६) २ गर्व, अभिमान (अणु)

अणुसर :: सक [अनु + सृ] पीछा करना, अनुवर्तन करना। अणुसरइ (सण)। वकृ. अणुसरंत (महा)। कृ. अणुसरियव्व (ठा ५, १)।

अणुसर :: सक [अनु + स्मृ] याद करना, चिन्तन करना। वकृ. अणुसरंत (पउम ९९, ७) कृ. अणुसरियव्व (आवम)।

अणुसरण :: न [अनुसरण] १ पीछा करना। २ अनुवर्तन (विसे ९१३)

अणुसरण :: न [अनुस्मरण] अनुचिन्तन, याद करना (पंचा १; स २३१)।

अणुसरि :: देखो अणुसारि; 'आसायण परिहारो भत्तो सत्तीइ पवयणणुसरी' (संबोध ४)।

अणुसरिउ :: वि [अनुस्मर्तृ] याद करनेवाला (विसे ९२)।

अणुसरिच्छ, अणुसरिस :: वि [अनुसदृश] १ समान, तुल्य (पउम ९४, ७०) २ योग्य, लायक (से ११, ११५; पउम ८५, २९)

अणुसार :: पुं [अनुस्वार] १ वर्णं-विशेष, बिन्दी। २ वि. अनुनासिक वर्ण (विसे ५०१)

अणुसार :: पुं [अनुसार] अनुसरण, अनुवर्तन (गउड; भवि)। २ माफिक, मुताबिक; 'कहिया- णुसारओ सव्वमुवगयं सुमइणा सम्मं' (सार्ध १४४)

अणुसारि :: वि [अनुसारिन्] अनुसरण करने वाला (गउड; स १०१; सार्ध २९)।

अणुसास :: सक [अनु + शास्] १ सीख देना, उपदेश देना। २ अज्ञा करना। ३ शिक्षा करना, सजा देना। अणुसांसति (पि १७२)। वकृ. अणुसासंत (पि ३९७)। कवकृ. अणुसासिज्जंत (सुपा २७३)। कृ. अणुसा- सणि्ज्ज (कुमा)। हेकृ. अणुसासिउं (पि ५७६)

अणुसासण :: न [अनुशासन] १ सीख, उप- देश (सुअ १, १५। २ आज्ञा, हुकुम (सुअ १, २, ३) ३ शिक्षा, सजा (पंचा ९) ४ अनुकम्पा, दया ; 'अणुकंप त्ति वा अणुसासणंति वा एगट्ठा' (पंचचू)

अणुसासणा :: स्त्री [अनुशासना] ऊपर देखो (णाया १, १३)।

अणुसासिय :: वि [अनुशासित] शिक्षित (उत्त १; पि १७३)।

अणुसिक्खिर :: वि [अनुशिीक्षित्तृ] सीखनेवाला, 'जं जं करेसि जं जं. जंपलि जह जह तुमं निअच्छेसि। तं तं अणुसिक्खिरीए, दीहो दिअहो ण संपडइ'। (गा ३७८)।

अणुसिट्ठ :: देखो अणुसट्ठ (सुअआ १, ३, ३)।

अणुसिट्ठि :: देखो अणुसट्ठि (ओघ १७३; बृह १; उत्त १०)।

अणुसिण :: वि [अनुष्ण] गरम नहीं वह, ठरडा (कम्म १, ४६)।

अणुसील :: सक [अनु + शीलय्] पालन करना, रक्षण करना। अणुसीलइ (सण)।

अणुसुत्ति :: वि [दे] अनुकुल (दे १, २५)।

अणुसुमर :: सक [अनु + स्मृ] याद करना। अणुसुमरइ (धर्मवि ५६)। प्रयो. अणुसुमरावेइ (धऱ्मवि ९५)।

अणुसुय :: अक [अनु + स्वप्] सोने का अनु- करण करना। अणुसुयइ (तंदु १३)।

अणुसूआ :: स्त्री [दे] शीघ्र ही प्रसव करनेवाली स्त्री (दे १, २३)।

अणुसूय :: वि [अनुस्यूत] अनुबिद्ध, मिला हुआ (सुअ २, ३)।

अणुसूयण :: वि [अनुसूचक] जासूस की एक श्रेणी, 'सूयग तहाणुसूयग-पडिसूयग-सव्वसूयगा एव। पूरिसा कयवित्तीया, वसंति सामंतनगरेसु। महिला कयवित्तीया, वसंति सामंतनगरेसु।' (वव १)।

अणुसेढि :: स्त्री [अनुश्रेणी] १ सीधी लाइन। २ न. लाइनसर (पि ६६; ३०४)

अणुसोय :: पुं [अनुस्रोतस] १ अनुकूल प्रवाह (ठा ४, ४) २ वि. अनुकूल, 'अणु- सोयसुहो लोगो पडिसोओ आसमो सुविहियाणं; (दसचू २) ३ न. प्रवाह के अनुसार, अणु- सोयपट्ठिए बहुदणम्मि पडिसोयलद्धतक्खेणं'। पडिसोयमेव अप्पा, दायव्वो होउकामेणं।; (दसचू २)

अणुसोय :: सक [अनु + शुच्] सोचना, चिन्ता करना, अफसोस करना। वकृ. अणुसोयमाण (सुपा १३३)।

अणुस्सर :: देखो अणुसर = अनु + स्मृ। संकृ. अणुस्सरित्ता (सुअ १, ७, १६)।

अणुस्सर :: देखो अणुसर = अनु + सृ। वकृ. अणुस्सरतं (स १४०)।

अणुस्सरण :: न [अनुस्मरण] चिन्तन करना, याद करना (उव; स ८३५)।

अणुस्सार :: पुं [अनुस्वार] १ अनुस्वार, बिन्दी। २ वि. अनुस्वारवाला अक्षर, अनुस्वार के साथ जिसका उच्चारण हो वह (णंदि ; विसे ५०३)

अणुस्सुय :: वि [अनुत्सुक] उत्कण्ठा-रहित (सुअ १, ९)।

अणुस्सुय :: वि [अनुश्रुत] १ अवधारित (उत्त ५) २ सुना हुआ (सुअ १, २, २) ३ न. भारत.-आदि पुराण-शास्त्र (सुअ १, ३, ४)

अणुहर :: सक [अनु + हृ] अनुकरण करना, नकल करना। अणुहरइ (पि ४७७).

अणुहरिय :: वि [अनुहृत] जिसका अनुकरण किया गया हो वह, अनुकृत; 'अणुहरियं धीर तुमे, चरियं निययस्स पुव्वपुरिसस्स। भरह-महानरवइणो, तिहुयणाविक्खाय-कित्तिस्स' (महा)।

अणुइव :: सक [अनु + भू] अनुभव करना। अणुहवइ (पि ४७५)। वकृ. अणुहवमाण (सुर १, १७१)। कृ. अणुहवियव्व, अणु- हवणीय (पउम १७, १४; सुपा ५८१)। संकृ. अणुहवेऊण अणुहविउं (प्रारू ; पंचा २)।

अणुहवण :: न [अनुभवन] अनुभव (स २८७)।

अणुहविय :: वि [अनुभूत] जिसका अनुभव किया गया हो वह (सुपा ९)।

अणुहारि :: वि [अनुहारिन्] अनुकरण करने वाला, नक्कालची (कुमा)।

अणुहाव :: देखो अणुभाव (स ४०३; ६५६)।

अणुहियासण :: न [अन्वध्यासन] धैर्य से सहन करना (जं २)।

अणुहु :: सक [अनु + भू] अ नुभव करना। वकृ. अणुहुंत (पउम १०३, १५२)।

अणुहुंज :: सक [अनु + भुञ्ज्] भोग करना, भोगना। अणुहूंजइ (भवि)।

अणुहुत्त :: देखो अणुहूअ (गा ६५९)।

अणुहूअ :: वि [अनुभूत] १ जिसका अनुभव किया गया हो वह (कुमा) २ न. अनुभव (से ४, २७)

अणुहो :: सक [अनु + भू] अनुभव करना। अणुहोंति (पि ४७५)। वकृ. अणुहोंत (पउम १०९, १७)। कवकृ. अणुहोइअंत, अणु- होइज्जंत, अणुहोइज्जमाण; अणुहोईमाण (पड्)। कृ. अणुहोदव्व (शौ) (अभि १३१)।

अणुकप्प :: देखो अणुकप्प; 'एत्तो वोच्छं अणु कप्पं' (पंचभा)।

अणुण :: वि [अनून] कम नहीं, अधिक (कुमा)।

अणुय, अणूवे :: पुं [अनुप] अधिक जलवाला देश, जल-बहुत स्थान (विसे १७०३; वव ४)।

अणेअ :: वि [अनेक] देखो अणेक्क (कुमा अभि २४९)।

अणोकज्भक्त :: वि [दे] चञ्चल, चपल (दे १, ३०)।

अणेक्क, अणेग :: वि [अनेक] एक से अधिक, बहुत (औप; प्रासू ५३)। °करण न [°करण] पर्याय, धर्म, अवस्था (सम्म १०९)। ° राइय वि [°रात्रिक] अनेक रातों में होने वाला, अनेक रात संबन्धी (उत्सवादि) (कस)। ° सो अ [°शस्] अनेक बार (श्रा १४)।

अणेगंत :: पुं [अनेकान्त] अनिश्चय, नियम का अभाव (विसे)। वाय पुं [वाद] स्याद्वाद, जैनो का मुख्य सिद्धान्त, सत्व-असत्व आदि अनेक विरुद्ध धर्मों का भी एक वस्तु में सापेक्ष स्वीकार, 'जेण विणा लोगस्सवि, ववहारो सव्वहा न निव्वडइ। तस्स भुवणेक्कगुरुणो नमो अणो गंतवायस्स' (सम्म १६६)।

अणेगंतिय :: वि [अनैकान्तिक] ऐकान्तिक नहीं, अनिश्चित, अियमित (भग १, १)।

अणेगावाइ :: वि [अनेकवादिन्] पदार्थों को सर्वथा अलग-अलग माननेवाला, अक्रियावाद- मत का अनुयायी (ठा ८)।

अणेच्छंत :: वि [अनिच्छत्] नहीं चाहता हुआ (उप ७६८ टी)।

अणेज :: वि [अनेज] निश्चल, निष्कम्प (आक)। अणेज्ज वि [अज्ञेय] जानने के अयोग्य, जानने के अशक्य (महा)।

आणेलिस :: वि [अनीदृश] अनुपम, असाधारण, 'जे धम्मं सुद्धमक्खाति पडिपुरणमणेलिसं' (सुअ १, ११)।

अणेवंभूय :: वि [अनेवम्भूत] विलक्षण, विचित्र 'अणेवंभूयंपि वेयणं वेदंति' (भग ५, ५)।

अणेस :: देखो अण्णेस। वकृ. अणेसंत (नाट)।

अणेसण :: न [अन्वेषण] खोज, तलाश (महा)।

अणेसणा :: स्त्री [अनेषणा] एषणा का अभाव (उवा)।

अणेसणिज्ज :: वि [अनेषणीय] अकल्पनीय, जैन साधुओं के लिए अग्राह्य (भिक्षा-आदि) (ठा ३, १; णाया १, ५)।

अणोउया :: स्त्री [अनृतुका] जिसको ऋतु-धर्मं न आता हो वह स्त्री (ठा ५, २)।

अणोक्कंत :: वि [अनवक्रान्त] जिसका पराभव न किया गया हो वह, अजित, 'परवाईहिीं अणोक्कंता' (औप)।

अणोग्गह :: देखो अणुग्गह = अनवग्रह; 'नाग- रगो संवट्टो अणोग्गहो' (बृह ३)।

अणोग्घसिय :: वि [अनवधर्षित] नहीं घिसा हुआ, अमार्जित (राय)।

अणोज्ज :: वि [अनवद्य] निर्दोष, शुद्ध (णाया १, ८)।

अणोज्जंगी :: स्त्री [अनवद्याङ्गी] भगवान् महा- वीर की पुत्री का नाम (आचु)।

अणोज्जा :: स्त्री [अनवद्या] ऊपर देखो (कप्प)।

अणोणअ :: वि [अनवनत] नहीं भुका हुआ (से १, १)।

अणोत्तप्प :: देखो अणुत्तप्प (पव ६४)।

अणोम :: वि [अनवम] हीन-रहित, परिपूर्ण (आचा)।

अणोमाण :: न [अनपमान] अनादार का अभाव, सत्कार; 'एवं उग्गमदोसा विजढा पइरिक्कया अणोमाणं। मोहतिगिच्छा य कया, विरियायारो य अणुचिण्णो' (ओघ २४९)।

अणेरपार :: वि [दे] १ प्रचुर, प्रभूत (आवम) २ अनादिअनन्त (पंचा १५; जी ४४) ३ अति विस्तीर्ण (पणह १, ३)

अणोरुम्मिअ :: वि [अनद्वान] अ-शुष्क, गीला (कुमा)।

अणोलय :: न [दे] प्रभात, प्रातःकाल (दे १, १९)।

अणोवणिहिया :: स्त्री [अनौपनिधिकी] आनु- पूर्वो का एक भेद, क्रम-विशेष (अणु)।

अणोवणिहिया :: स्त्री [अनुपनिहिता] ऊपर देखो (पि ७७)।

अणोल्ल :: वि [अनोर्द्र] १ शुष्क, सुखा हुआ (गा ५४१)। मम वि [मनस्क] अकरुण, निष्ठुर, निर्दय (काप्र ८९)

अणोवगग्ग :: वि [अनवदग्र] अनन्त (सुअ १, १२, ६)।

अणोवम :: वि [अनुपम] उपमा-रहित, अद्वि- तीय (पउम ७६, २६; सुर ३, १३0)।

अणोवमिय :: वि [अनुपमित] ऊपर देखो (पउम २, ६३)।

अणोवसंखा :: स्त्री [अनुपसंख्या] अज्ञान, सत्य ज्ञान का अभाव (सुअ २, १२)।

अणोवहिय :: वि [अनुपधिक] १ परिग्रह- रहित, संतोषी। २ सरल, अकपटी (आटा)

अणोवाहणग, अणोवाहणय :: वि [अनुपानत्क] जूता- रहित, जो जुता न पहिना हो (औप ; पि ७७)।

अणोसिय :: वि [अनुषित] १ जिसने वास न किया हो। २ अव्यवस्थित, 'अणोसिएणं न करेइ णाचा' (धर्म ३; सुअ १, १४)

अणोहतंर3वि :: [अनोधन्तर] पार जाने के लिए असमर्थ, 'मुणिणा हु एयं पवेइयं अणो- हंतरा एए नो य ओहं तरित्तए' (आचा)।

अणोहट्टय :: वि [अनपघट्टक] निरंकुश, स्व- च्छन्दी (णाया १, १६)।

अणोहीण :: वि [अनवहीन] हीनता-रहित (पि १२०)।

अण्ण :: सक [भुज्] भोजन करना, खाना। अण्णइ (षड्)।

अण्ण :: स [अन्य] दूसरा, पर (प्रासू १३१)। °उत्थिय वि [°तिर्थिक, °यूथिक] अन्य दर्शन का अनुयायी (सम ६०)। °ग्गहण न [°ग्रहण] १ गाने के समय होनेवाला एक प्रकार का मुख-विकार। १ पुं. गानेवाला, गान्घर्विक गवैया (निचू १७)। °धम्मिय वि [°धार्मिक] भिन्न धर्म वाला (ओच १५)।

अण्ण :: न [अन्न] १ नाज, चावल आदि धआन्य (सुअ १, ४, २) २ भक्ष्य पदार्थ (उत्त २०) ३ भक्षण, भोजन (सुअ १, २)। °इलाय, °गिलाय वि [°ग्लायक] बासी अन्न को खानेवाला (ओप; भग १६, ३)। °विहि पुंस्त्री [°विधि] पाक-कला (औप)

अण्ण :: न [अर्णस्] पानी, जल (उत्त ५)।

अण्ण :: वि [दे] १ आरोपित। २ खण्डित (षड्)

°अण्ण :: देखो कण्ण= कर्णं (गा ५९४, कप्पू)।

अण्णअ :: पुं [दे] १ जवान, तरुण। २ धूर्त, ठग। ३ देवल (दे १, ५५)

अण्णइअ :: वि [दे] १ तृप्त (दे १, १९) २ सब विषयो में तृप्त, सर्वार्थ-तृप्त (षड्)

अण्णओ :: अ [अन्यतस्] दूसरे से, दूसरी तरफ (उत्त १)। देखो अन्नओ।

अण्णण्ण :: वि [अन्योन्य] परस्पर, आपस में (षड्)।

अण्णण्ण :: वि [अन्यान्य] और और, अलग- अलग; 'अण्णण्णाइं उवेंता, संसारवहम्मि णिरवसाणम्मि। मण्णंति धीरहियआ, वसइट्ठाणाइंव कुलाडं' (गउड)।

अण्णत्त :: अ [अन्यत्र] दूसरे में, भिन्न स्थान में (गा ६५५)।

अण्णत्ति :: स्त्री [दे] अवज्ञा, अपमान, निरादर (दे १, १७)।

अण्णोत्तो :: देखो अण्णओ (गा ९३९)।

अण्णत्थ :: देखो अण्णत्त (विपा १, २)।

अण्णत्थ :: वि [अन्यस्थ] दूसरे (स्थान) में रहा हुआ (गा ५५०)।

अण्णत्थ :: वि [अन्वर्थ] यथार्थ, यथा नाम तथा गुण वाला; 'ठियमण्णत्थे तयत्थनिर- वेक्खं' (विसे)।

अण्णमण्ण :: देखो अण्णण्ण = अन्योन्य; 'अण्ण- मण्णमणुरत्तया' (णाया १, २)।

अण्णमय :: वि [दे] पुनरुक्त, फिर से कहा हुआ (दे १, २८)

अण्णय :: देखो अन्नय (धर्मसं ३९२)।

अण्णयर :: वि [अन्यतर] दो में से कोई एक (कप्प)।

अण्णया :: अ [अन्यदा] कोई समय में (उप ६ टी)।

अण्णव :: पुं [अर्णव] १ समुद्र। २ संसार, 'अण्णवंसि महोघंसि एगे तिण्णे दुरुत्तरे' (उत्त ५)

अण्णव :: न [ऋणवत्] एक लोकोत्तर मुहुर्त्त का नाम (जं ७)।

अण्णह :: न [अन्वह] प्रतिदिन, हमेशा (धर्म १)।

अण्णह :: देखो अण्णत्त (षड्)|

अण्णह, अण्णहा :: अ [अन्यथा] अन्य प्रकार से, विपरीत रीति से, उलटा (षड् ; महा)। °भाव पुं [°भाव] वैपरीत्य, उलटा- पन (बृह ४)।

अण्णहि :: देखो अण्णत्त (षड्)।

अण्णा :: स्त्री [आज्ञा] आज्ञा, आदेश (गा २३; अभि ६३; मुद्रा ५७)।

अण्णाइट्ठ :: वि [अन्वादिष्ट] आदिष्ट, जिसको आदेश दिया गया हो वह ; 'अज्जुणए मालागारे मोग्गरपाणिणा जक्खेणं अण्णाइट्ठे समाणे' (अंत २०)।

अण्णाइट्ठ :: वि [अन्वाविष्ट] १ व्याप्त (भग १४, १) २ परीधीन, परवश (भघ १८ ६)

अण्णाइस :: /?/(अप) वि [अन्यादृश] दूसरे के जैसा (पि २४५)।

अण्णाण :: न [अज्ञान] १ अज्ञान, अजानकारी, मुर्खता (दे १, ७) २ मिथ्या ज्ञान, झूठा ज्ञान (भग ८, २)| ३ वि. ज्ञान-रहित, मुर्ख (भग १, ९)

अण्णाण :: न [दे] दाय, विवाह-काल में वधू को अथवा वर को जो दान दिया जाता है वह (दे १, ७)।

अ्णाणि :: वि [अज्ञानिन्] १ ज्ञान रहित, मुर्ख (सुअ १, ७) २ मिथ्या-ज्ञानी (पंच १) ३ अज्ञान को ही श्रेयस्कर माननेवाला, अज्ञान-वादी (सुअ १, १२)

अण्णाणिय :: वि [आज्ञानिक] १ अज्ञानवादी, अज्ञानवाद का अनुयायी (आव ६; सम १०९) २ मुर्ख, अज्ञानी (सुअ १, १, २)

अण्णाय :: वि [अज्ञात] अविदित, नहीं जाना हुआ (पणह २ १)।

अण्णाय :: पुं [अन्याय] न्याय का अभाव (श्रा १२)।

अण्णाय :: वि [दे] आर्द्र, गीला (से ४, ९)।

अण्णाय :: वि [अन्याय्य] न्याय से च्युत, न्याय-विरुद्ध; 'जे विग्गहीए अण्णायभासी, न से समे होइ अझंझपत्ते' (सुअ १, १३)।

अण्णाय्य :: शौ ऊपर देखो (मा २०)।

अण्णारिच्छ :: वि [अन्यादृक्ष्] दूसरे के जैसा (प्रामा)।

अण्णारिस :: वि [अन्यादृश] दूसरे के जैसा (पि २४५)।

अण्णासय :: वि [दे] विस्तृत, बिछाया हुआ (षड्)।

अण्णिज्जमाण :: देखो अण्णे।

अण्णिय :: वि [अन्वित] युक्त, सहित (सुअ १, १०; नाट)।

अण्णिया :: स्त्री [दे] देखो अण्णी (दे १, ५१)।

अण्णिया :: स्त्री [अन्निका] एक विख्यात जैन मुनि की माता का नाम (ती ३६)। °उत्त पुं [°पुत्र] एक विख्यात जैन मुनि (ती ३६)।

अण्णी :: स्त्री [दे] १ देवर की स्त्री। २ पति की बहिन, ननद। ३ फूफा, पिता की बहिन (दे १, ५१)

अण्णु, अण्णुअ :: वि [अज्ञ] अजान्, निर्बोध, मुर्ख (षड्; गा १८४)।

अण्णुण्ण :: वि [अन्योन्य] परस्पर, आपस में (गउड)।

अण्णूअ :: वि [अन्यून] परिपूर्ण (उप प- २२४)।

अण्णो :: सक [अनु+ इ] अनुसरण करना। अण्णेइ (विसे २५२९)। अण्णेति (पि ४९३)। कवकृ. अण्णिज्जमाण; (अन्वीयमान) (विपा १, १)।

अण्णेस :: सक [अनु + इष्] १ खोजना, ढूँढना, तहकीकात करना। २ चाहना, वांछना। ३ प्रार्थना करना। अण्णेसइ (पि १६३)। वकृ. अण्णेसंत, अण्णेसअंत, अण्णेसमाण (महा; काल)

अण्णेसण :: न [अन्वेषण] खोज, तलाश, तहकीकात (उप ६ टी)।

अण्णेसणा :: स्त्री [अन्वेषणा] १ खोज, तह- कीकात (प्राप) २ प्रार्थना (आचा) ३ गृहस्थ से दी जाती भिक्षा का ग्रहण (ठा, ३, ४)

अण्णेसय :: वि [अन्वेषक] गवेषक (पव (७१)।

अण्णेसि :: वि [अन्वेषिन्] खोज करनेवाला (आचा)।

अण्णेसिय :: वि [अन्वेषित] जिसकी तहकी- कात की गई हो वह, 'अण्णेसिया सव्वओ तुब्भे न कहिंचि दिट्ठा' (महा)।

अण्णोण्ण :: देखो अण्णुण्ण, 'अण्णोण्णसमुणु- बद्धं णिच्छयओ भणियविसयं तु' (पंचा ६; स्वप्‍न ५२)।

अण्णोसरिअ :: वि [दे] अतिक्रान्त, उल्लंघित (दे , १, ३९)।

अण्ह :: सक [भुज्] १ खाना, भोजन करना। २ पालन करना। ३ ग्रहण करना। अणहइ (हे ४, ११०; षड्)। अणहाइ (औप)। अणहए (कुमा)

°अण्ह :: न [अहन्] दिसव, दिन; 'पूर्व्वावरणह- कालसमयंसि' (उवा)।

अण्हग, अण्हय :: पुं [आश्रव] कर्म-बन्ध के कारण हिंसादि (पणह १, १; ५; औप)। °अण्हा स्त्री [तृष्णा] , प्यास (गा ६३)। अण्हेअण वि [दे] भ्रान्त, भूला हुआ (दे १, २१)।

अतक्किय :: वि [अतर्कित] १ अचिन्तित, आक- स्मिक; 'अतक्कियमेव एरिसं वसणमहं पत्ता' (महा) २ ठीक-ठीक नहीं देखा हुआ, अप- रिलक्षित (वव ८) ३ क्रिवि. 'अतक्कियं चेव. . . . . . विहरिओ रायहत्थी' (महा)

अतड :: त्रि [अतट] छोटा किनारा, 'अतडुव- वातो सो चेव मग्गो' (बृह १)।

अतण्हाअ :: वि [अतृष्णाक] तृष्णा-रहित, निःस्पृह (अच्चु ९४)।

अतत्त :: न [अतत्व] असत्य, झुठ, गौरव्याजबी (उप ५०८)।

अतत्थ :: वि [अत्रस्त] नहीं डरा हुआ, निर्भीक (कुमा)।

अतत्थ :: वि [अतथ्य] असत्य, झुठा (आचा)।

अतर :: देखो अयर (पव १; कम्म ५; भवि)।

अतव :: पुंन [अतपस्] १ तपश्चर्या का अभाव (उत्त २३) २ वि. तप-रहित (बृह ४)

अतव :: पुं [अस्तव] अ-प्रशंसा, निन्दा (कुमा)। अतसी देखो अयसी (पण्ण १)।

अतह :: वि [अतथ] असत्य, अ-वास्तविक, झुठा (सुअ १, १, २; आचा)।

अतह :: वि [अतथा] उस माफिक नहीं, 'जाओ च्चिय कायव्वे उच्छाहेंति गरुयाण कित्तीओ। ताओ च्चिय अतह-णिवेयणेण अलसेंति हिययाइं' (गउड)।

अतार :: वि [अतार] तरने को अशक्य (णाया १, ६; १४)।

अतारिम :: वि [अतारिम] ऊपर देखो (सुअ १, ३, २)।

अतउट्ट :: अक [अति + त्रुट्] १ खुब टूटना, टूट जाना। २ सब बन्धन से मुक्त होना। अतिउट्टइ (सुअ १, १५, ५)

अतिउट्ट :: सक [अति + वृत्] १ उल्लंघन करना। २ व्याप्त होना। °तिउट्टइ (सुअ १, १५, ६ टी)

अतिउट्ट :: वि [अतिवृत्त्] १ अतिक्रान्त। २ अनुगत, व्याप्‍त; 'जंसी गुहाए जलणेतिउट्ट अविजाणओ डज्झइ लुत्तपण्णो' (सुअ १, ५, १, १२)

अतित्थ :: न [अतीर्थ] १ तीर्थं (चतुर्विध संघ)। का अभाव, तीर्थं की अनुत्पत्ति। २ वह काल, जिसमें तीर्थं की प्रवृत्ति न हुइ हो या उसका अभाव रहा हो (पण्ण १) °सिद्ध वि [°सिद्ध] अतीर्थ काल में जो मुक्त, हुआ हो वह, 'अतित्थसिद्धा य मरुदेवी' (नव ५६)। अतिहि देखो अइहि।

अतीगाढ़ :: वि [अतिगाढ] १ अति-निबिड। २ क्रिवि. अत्यंत, बहुत; 'अतीगाढं भीओ जक्खाहिवो' (पउम ८, ११३)

अतुल :: वि [अतुल] अनुपम, असाधारण (पणह १, १)।

अतुलिय :: वि [अतुलित] आसाधारण, अद्वि- तीय (भवि)।

अत्त :: देखो अप्प = आत्मन् (सुर ३, १७४; सम ५७; णंदि)। °लाभ पुं [°लाभ] स्वरूप की प्राप्ति, उत्पत्ति (कम्म २, २५)।

अत्त :: वि [आर्त्त] पीड़ित, दुःखित, हैरान् (सुर ३, १४३; कुमा)।

अत्त :: वि [आत्त] १ गृहीत, लिया हुआ (णाया १, १) २ स्वीकृत, मंजुर किया हुआ (ठा २, ३) 3 पुं. ज्ञानी मुनि (बृह १)

अत्त :: वि [आप्त] १ ज्ञानादि-गुण-संपन्न, गुणी। २ राग-द्वेष वर्जित, वीतराग। ३ प्रायश्चित्त- दाता गुरु, 'नाणमादीणि अत्ताणि, जेण अत्तो उसो भवे। रागद्दोसपहीणो वा, जे व इट्ठा विसोहिए' (वव १०) ४ मोक्ष, मुक्ति (सुअ १, १०) ५ एकान्त हितकर (भग १४, ९) ६ प्राप्त, मिला हुआ (वव १०); 'अत्तप्पसणणलेस्से' (उत्त १२)

अत्त :: वि [आत्र] दुःख का नाश करनेवाला, सुख का उत्पादक (भग १४, ९)।

अत्त :: अ [अत्र] यहां, इस स्थान में (नाट)। °भग वि [°भवन्] पूज्य, माननीय (अभि ६१; पि २९३)।

अत्तअ :: देखो अच्चय =अत्यय (प्राकृ २१)।

अत्तकम्म :: वि [आत्मकर्मन्] १ जिससे कर्म- बन्धन हो वह। २ पुं. आधाकर्म दोष (पिंड ९५)

अत्तट्ठ :: वि [आत्मार्थ] १ आत्मीय, स्वकीय (धर्म २) २ पुं. स्वार्थ, 'इह कामनियत्तस्स अत्तट्ठे नावरज्झइ' (उत्त ८)

अत्तट्ठिय :: वि [आत्मार्थिक] १ आत्मीय। २ जो अपने लिए किया गया हो, 'उवक्खडं भोयण माहणाणं अत्तट्ठियं सिद्धमहेगपक्खं' (उत्त १२)

अत्तण, अत्तणअ :: देखो अप्प = आत्मन् (मृच्छ २३६। °केरक वि [आत्मीय] निजी, स्वकीय (नाट ; पि ४०१)।

अत्तणअ, अत्तणक :: (शौ वि [आत्मीय] स्वकीय, अपना, निजका (पि २७७; नाट)।

अत्तणिज्जिय :: वि [आत्मीय] स्वकीय (ठा ३, १)।

अत्तणीअ :: /?/(शौ) ऊपर देखो (स्वप्‍न २७)।

अत्तमाण :: देखो आवत्त = आ + वृत्।

अत्तय :: पुं [आत्मज] पुत्र, लड़का। °या स्त्री [°जा] पुत्री, लड़की (विपा १. १)।

अत्तव्व :: वि [अत्तव्य] खाने लायक, भक्ष्य (नाट)।

अत्ता :: स्त्री [दे] १ माता, माँ (दे १, ५१; चारु ७०) २ सासू (दे १, ५१; गा ६६७; हेका ३०) ३ फूफा। ४ सखी (दे १, ५१)। °अत्ता देखो जत्ता (प्रति ८२)

अत्ताण :: देखो अत्त =आत्मन्; (पि ४०१)।

अत्ताण :: वि [अत्राण] १ शरण-रहित, रक्षक- वर्जित (पणह १, १) २ पुं. कन्धे पर लाठी रखकर चलनेवाला मुसाफिर। ३ फटे-टूटे कपड़े पहनकर मुसाफिरी करनेवाला यात्री (बृह १)

अत्ति :: पुं [अत्रि] इस नाम का एक ऋषि (गउड)।

अत्ति :: स्त्री [अर्त्ति] पीड़ा, दुःख (कुमा; सुपा १८५)। °हर वि [°हर] पीड़ा-नाशक, दुःख का नाश करनेवाला (अभि १०३)।

अत्तिहरि :: स्त्री [दे] दूती, समाचार पहुंचानेवाली स्त्री (षड़्)।

अत्तीकर :: सक [आत्मी +कृ] अपने अघीन करना, वश करना। अत्तीकरेइ ; वकृ. अत्ती- करंत (निचू ४)।

अत्तीकरण :: न [आत्मीकरण] अपने वश करना (निचू ३)।

अत्तुक्करिस, अत्तुक्कोस :: पुं [आत्मोत्कर्ष] अभिमान, गर्व; 'तम्हा अत्तुक्करिसो वज्जे- यव्वो यइजण्णेणं' (सुअ १, १३; सम ७१)।

अत्तुक्कोसिय :: वि [आत्मोत्कर्षिक] गर्विष्ठ, अभिमानी (औप)।

अत्तेय :: पुं [आत्रेय] १ अत्रि ऋषि का पुत्र (पि १०; ८३) २ एक जैन मुनि (विसे २७६९)

अत्तो :: अ [अतस्] १ इससे, इश हेतु से (गउड) २ यहां से (प्रामा)

अत्थ :: देखो अट्ठ = अर्थ (कुमा ; उप ७२८; ८८४ टी ; जी १; ६५; गउड); 'अरोइ- अत्थे कहिए विलावो' (गोय ७); 'अत्थसद्दो फलत्थोयं' (विसे १०३६; १२४३)। °जोणि स्त्री [°योनि] घनोपार्जन का उपाय, साम, दाम, दण्ड रूप अर्थ-नीति (ठा ३, ३)। °णय पुं [°नय] शब्द को छोड़ अर्थ को ही मुख्य वस्तु माननेवाला पक्ष (अणु)। °सत्थ न [शास्त्र] अर्थ-शास्त्र, संपत्ति-शास्त्र (णाया १, १)। °वइ पुं [°पति] १ धनी। २ कुबेर (वव ७)। °वाय पुं [°वाद] १ गुणवर्णन। २ दोष-नुरूपण। ३ गुण-वाचक शब्द। ४ दोष-वाचक शब्द (विसे)। °वि वि [°वित्] अर्थ का जानकार (पिंड १ भा)। °सिद्ध वि [°सिद्ध] १ प्रभूत धनवाला (जं ७)। २ पुं. ऐरवत क्षेत्र के एक भावी जिनदेव (तित्थ)। °लिय न [°लीक] धन के लिए असत्य बोलना (पणह १, २)। °लोयण न [°लोचन] पदार्थ का सामान्य ज्ञान (आचू १)। °लियोण न [°लोकन] पदार्थ का निरीक्षण, 'अत्थालोयण-तरला, इयरकईणं भमंति बुद्धीओ। अत्थच्चेय निरारम्भमेंति हिययं कइन्दाणं।।' (गउड)

अत्थ :: पुं [अस्त] १ जहां सूर्य अस्त होता है वह पर्वत (से १०, १०)) २ मेरु पर्वत (सम ६५) ३ वि. अविद्यमान (णाया १, १३)। °गिरि पुं [°गिरि] अस्ताचल (सुर ३, २७७; पउम १६, ४५)। °संल पुं [°शैल] अस्ताचल (सुर ३, २२९)। °चिल पुं [°चिल] अस्त-गिरि (कप्पू)

अत्थ :: न [अस्त्र] हथियार, आयुध (पउम ८, ५०; से १४, ६१)।

अत्थ :: सक [अर्थय्] मांगना, याचना करना, प्रार्थना करना, विज्ञप्ति करना। अत्थयए (निचू ४)।

अत्थ :: अक [स्था] बैठना। अत्थइ (आरा ७१)।

अत्थ, अत्थं :: देखो अत्त = अत्र (कप्प ; पि २९३, ३६१)।

अत्थंडिल :: वि [अस्थण्डिल] साधुओं के रहने के लिए अयोग्य स्थान, क्षुद्र जन्तुओं से व्याप्त स्थान (ओघ १३)।

अत्थंत :: वकृ [अस्तं यत्] अस्त होता हुआ (वज्जा २२)।

अत्थकिरिआ :: स्त्री [अर्थक्रिया] वस्तु का व्यापार, पदार्थ से होनेवाली क्रिया (धर्मंसं ४६९)।

अत्थक्क :: न [दे] १ अकाराड, अकस्मात्, बे- समय (उप ३३०; से ११, २४; श्रा ३०; भवि); 'अत्थक्कगज्जिउब्भंतहित्थहिअआ पहिअ- जाआ' (गा ३८६) २ वि. अखिन्न (वज्जा ६) ३ किवि. अनवरत, हमेशा (गउड)

अत्थग्घ :: वि [दे] १ मध्य-वर्ती, बीच का; 'समय अत्थग्घे वा ओइण्णेसुं घणं पट्टं' (ओघ ३४) २ अगाध, गंभीर। ३ न. लम्बाई, आयाम। ४ स्थान, जगह (दे १, ५४)

अत्थण :: न [अर्थन] प्रार्थना, याचना (उप ७२८ टी)।

अत्थणिऊर :: पुंन [अर्थनिपूर] देखो अच्छ- णिउर (अणु ९९)।

अत्थणिऊरंग :: पुंन [अर्थनिपूराङ्गं] देखो अच्छणिउरंग (अणु ९९)।

अत्थत्थि :: वि [अर्थार्थिन्] धन की इच्छावाला (उव १३९)।

अत्थम :: अक [अस्तम् +इ] अस्त होना, अदृश्य होना। अत्थमइ (पि ५५८)। वकृ. अत्थमंत (पउम ८२, ५९)।

अत्थमण :: न [अस्तमयन] अस्त होना, अदृश्य होना (ओघ ५०७; से ८, ८५; गा २८४)।

अत्थमाविय :: वि [अस्तमापित] अस्त कर- वाया हुआा (सम्मत्त १६१)।

अत्थमिय :: वि [अस्तमित] १ अस्त हुआ, डुब गया, अदृश्य हुआ (ओघ ५०७, महा; सुपा १५५) २ हीन, हानि-प्राप्त (ठा ४, ३)। अत्थयारिआ स्त्री [दे] सखी, वयस्या (दे १ १६)

अत्थर :: सक [आ+ स्तृ] बिछाना, शय्या करना, पसारना। अत्थरइ (उव)। संकृ, अत्थरिऊण (महा)।

अत्थरण :: न [आस्तरण] १ बिछौना, शय्या (से १४, ५०) २ बिछाना, शय्या करना (विसे २३२२)

अत्थरय :: वि [आस्तरक] १ आच्छादन करनेवाला (राय) २ पुं. बिछौने के ऊपर का वस्त्र (भग ११, ११; कप्प)

अत्थरय :: वि [अस्तरजस्क] निर्मल, शुद्ध (भघ ११, ११)।

अत्थवण :: देखो अत्थमण (भवि)।

अत्थसिद्धं :: पुं [अर्थसिद्ध] पक्ष का दशवाँ दिवस, दशमी तिथि (सुज्ज १०, १४)।

अत्था :: देखो अट्ठा = आस्था।

अत्था, अत्थाअ :: सक [अस्ताय्] अस्त होना, डुब जाना, अदृश्य होना। अत्थाह ; अत्थाए (पउम ७३, ३५)। अत्थाअंति (से ७, २३)। वकृ. अत्थाअंत (से ७, ६६)।

अत्थाअ :: वि [अस्तमित] अस्त हुआ, डुबा हुआ; 'तावच्चिय दिवसयरो अत्थाओ विगयकि- रणसंघाओ' (पउम १०, ६९; से ९, ५२)।

अत्थाइआ :: स्त्री [दे] गोष्ठी-मण्डप (स ३६)।

अत्थाण :: न [आस्थान] सभा, सभा-स्थान (सुर १, ५०)।

अत्थाणिय :: वि [अस्थानिन्] गैर-स्थान में लगा हुआ, 'अत्थाणियनयणहिं' (भवि)।

अत्थाणी :: स्त्री [आस्थानी] सभा-स्थान (कुमा)।

अत्थाणीअ :: वि [आस्थानीय] सभा-संबन्धी (कुप्र ७८)।

अत्थाम :: वि [अस्थामन्] बल-रहित, निर्बल (णाया १, १)।

अत्थार :: पुं [दे] सहायता, साहाय्य (दे १, ९; णाअ)।

अत्थारिय :: पुं [दे] नौकर, कर्मचारी (वव ६)।

अत्थावग्गइ :: देखो अत्थुग्गह (पण्ण ५)।

अत्थावत्ति :: स्त्री [अर्थापत्ति] अनुक्त अऱ्थं को अटकल से समझना, एक प्रकार का अनुमान- ज्ञान; जैसे 'देवतत्त पुष्ट है और दिन में नहीं खाता है' इस वाक्य से 'देवदत्त रात में खाता है' ऐसा अनुक्त अर्थ का ज्ञान (उफ ९९८)।

अत्थाह :: वि [अस्ताघ] १ अथाह, थाह-रहित, गंभीर (णाया १, १४) २ नासिका के ऊपर का भाग भी जिसमें डुब सके इतना गहरा जलाशय (बृह ४) ३ पुं. अतीत चौबीसी में भारत में समुत्पन्न इस नाम के एक तीर्थकर- देव (पव ६)

अत्थाह :: वि [दे] देखो अत्थग्घ (दे १, ५४; भवि)।

अत्थि :: वि [अर्थिन्] १ याचक, माँगनेवाला (सुर १०, १००) २ धनी, धनवाला (पंचा) ३ मालिक; स्वामी (विसे) ४ गरजु, चाहनेवाला; 'घराओ घणत्थियाणं, कारत्थीणं च सव्वकामकरो। सग्गापवग्गसंगमहेऊ जिणदेसिओ धम्मो।।' (महा)

अत्थि :: न [अस्थि] हाड़, हड्डी (महा)।

अत्थि :: अ [अस्ति] १ सत्त्व-सूचक अव्यय है, 'अत्थेगइआ मुंडा भवित्ता अगाराओ अणगारियं पव्वइया' (औप) ; 'अत्थि णं भंते ! विमाणाइं' (जीव ३) २ प्रदेश, अवयव; 'चत्तारि अत्थि- काया' (ठा ४, ४)। °अवत्तव्व वि [°अव- क्तव्य] सप्तभङ्गी का पाचंवाँ भङ्ग, स्वकीय द्रव्य आदि की अपेक्षा से विद्यमान और एक ही साथ कहने को अशक्य पदार्थं; 'सब्भावे आइट्ठो देसो देसो अ उभयहा जस्स। तं अत्थिअवत्तव्वं च होइ दविअं विअप्पवसा' (सम्म ३८)। °काय पुं [°काय] प्रदेशों का---अवयवों का समूह (सम १०)। °णत्थवत्तव्व वि [°नास्त्यवक्तव्य] सप्तभङ्गी का सातवाँ भङ्ग, स्वकीय द्रव्यादि की अपेक्षा से विद्यमान, परकीय द्रव्यादि की अपेक्षा से अविद्यमान और एक ही समय में दोनों धर्मों से कहने को अशक्य पदार्थ; 'सब्भावासब्भावे, देसो देसो अ उभयहा जस्स। तं अत्थिणत्थवत्तव्वयं च दविअं विअप्पवसा' (सम्म ४०)| °त्त न [°त्व] सत्व, विद्यमानता, हयाती (सुर २, १४२)। °त्ता स्त्री [°ता] सत्व, हयाती (उफ पृ ३७४)। °त्तिनय पुं [°इति- नय] द्रव्यार्थिक नय (विसे ५३७)। °नत्थि वि [°नास्ति] सप्तभङ्गी का तीसरा भङ्ग---- प्रकार, स्वद्रव्यादि की अपेक्षो से विद्यमान और परकीय द्रव्यादि की अपेक्षा रो अविद्य- मान वस्तु; 'अह देसो सब्भावे देसोसब्भावपज्जवे निअओ। तं दविअमत्थिनत्थि अ, आएसविसेसिअं जम्हा' (सम्म ३७)

°नत्थिप्पवाय :: न [°नास्तिप्रवाद] बारहवें जैन अङ्ग-ग्रन्थ का एक भाग, चौथा पूर्व (सम २६)।

अत्थिक्क :: न [आस्तिक्य] आस्तिकता, आत्मा- परलोक आदि पर विश्वास (श्रा; पुप्फ ११०)।

अत्थिय :: देखो अत्थि = अर्थिन् (महा ; औप)।

अत्थिय :: वि [अर्थिक] धनी, धनवान् (हे २, १५९)।

अत्थिय :: न [अस्थिक] १ हुड्डी, हाड़। २ पुं. वृक्ष-विशेष। ३ न. बहु बीजवाला फल-विशेष (पण्ण १)

अत्थिय :: वि [आस्तिक] आत्मा, परलोक आदि की हयाती पर श्रद्धा रखनेवाला (धऱ्म २)।

अत्थिर :: देखो अथिर (पंचा १२)।

अत्थीकर :: सक [अर्थी + कृ] प्रार्थना करना, याचना करना। अत्थीकरेइ (निचु ४)। वकृ. अत्थीकरंत (निचु ४)।

अत्थीकरण :: न [अर्थीकरण] प्रार्थना, याचना (निचु ४)।

अत्थु :: सक [आ + स्तृ] बिछाना, शय्या करना। कर्म. अत्थुव्वइ ; कवकृ. अत्थुव्वंत (विसे २३२१)।

अत्थुअ :: वि [आस्तृत] बिछाया हुआ पाअ; विसे २३२१)।

अत्थुग्गह :: पुं [अर्थावग्रह] इन्द्रियाँ और मन द्वारा होनेवाला ज्ञान-विशेष, निर्विकल्पक ज्ञान (सम ११; ठा २, १)।

अत्थुग्गहण :: न [अर्थावग्रहण] फल का निश्चय (भग ११, ११)।

अत्थुड :: वि [दे] लघु, छोटा; (दे १, ९)

अत्थुरण :: न [दे. आस्तरण] बिछौना (स ६७)।

अत्थुरिय :: वि [दे. आस्तृत] बिछाया हुआ (स २३९; दे १, ११३)।

अत्थुवड :: न [दे] भल्लातक, भिलावाँ वृक्ष का फल (दे १, २३)।

अत्थेक्क :: वि [दे] आकस्मिक, अचिन्तित (से १२, ४७)।

अत्थोग्गह :: देखो अत्थुग्गह (सम ११)।

अत्थोग्गहण :: देखो अत्थुग्गहण (भग ११, ११)।

अत्थोडिग :: वि [दे] आकृष्ट, खींचा हुआ (महा)।

अत्थोभय :: वि [अस्तोभक] 'उत', 'वैा' आदि निरर्थक शब्दों के प्रय़ोग से अदूषित (सूत्र) (बृह १)।

अत्थोवग्गह :: देखो अत्थुग्गह (पण्ण १५)।

अथक्क :: न [दे] १ अकारड, अनवसर, अक- स्मात् (षड्) २ वि. पसरनेवाला, फैलनेवाला (कुमा)

अथव्वण :: पुं [अथर्वण] चौथा वेद-शास्त्र (कप्प; णाया १, ५)।

अथिर :: वि [अस्थिर] १ चंचल, चपल (कुमा) २ अनित्य, विनश्वर (कुमा) ३ अदृढ़, शिथिल (ओघ) ४ निर्बल (वव २) ५ मजबूती से नहीं बैठा हुआ, नहीं जमा हुआ (अभ्यास; 'अथिरस्स पुव्वगहियस्स, वत्तणा जं इह थिरीकरणं' (पंचा १२)। °णाम न [°नामन्] नाम-कर्म का एक भेद (सम ६७)

अद :: सक [अद्] खाना, भोजन करना। अदइ, अदए (षड्)।

अदंसण :: देखो अद्दंसण (पंचभा)।

अदंसण :: पुं [दे] चोर, डाकु (दे १, २९; षड्)।

अदंसिया :: स्त्री [अदंशिका] एक प्रकार की मीठी चीज (पण्ण १७)।

अदक्खु :: वि [अदृष्ट] १ नहीं देखा हुआ। २ असर्वज्ञ (सुअ १, २, ३)

अदक्खु :: वि [अदक्ष] अनिपुण, अकुशल (सुअ १, २, ३)।

अदक्खु :: वि [अदृश्य] १ नहीं देखनेवाला, अन्धा। २ असर्वँज्ञ, 'अदक्खुव ! दक्खुवाहियं सदृहसु अदक्खुदंसणा' (सुअ १, २, ३)

अदण :: न [अदन] भोजन (बृह १)।

अदत्त :: वि [अदत्त] नहीं दिया हुआ (पण्ण १, ३)। °हार वि [°हार] चोर (आचा)। °हारि वि [°हारिन्] चोर (सुअ १, ५, १)। °दाण न [°दान] चोरी (सम १०)। °दाणवेरभण न [°दानविरमण] चोरी से निवृत्ति, तृतीय त्रत (पणह २, ३)।

अदन्न :: देखो अद्रण्ण (सिरि ३१०)।

अदब्भ :: वि [अदभ्र] अनल्प, बहुत (जं ३)।

अदय :: वि [अदय] निर्दय, निष्ठुर (निचु २)।

अदिइ :: देखो अइइ (ठा २, ३)।

अदिण्ण :: देखो अदत्त (ठा १)।

अदित्त :: वि [अदृप्त] १ दर्प-रहित, नम्र (बृह १) २ अहिंसक (ओघ ३०२)

अदिन्न :: देखो अदत्त (सम १०)।

अदिस्स :: देखो अद्दिस्स (सम ६० ; सुपा १५३)।

अदिहि :: स्त्री [अधृति] अघीराई, धीरज का अभाव (पाअ)।

अदीण :: वि [अदीन] दीनता-रहित। °सत्तु पुं [°शत्रु] हस्तिनापुर का एक राजा (णाया १, ८)।

अदु :: अ [दे] १ आनन्तर्यं-सूचक अव्यय, अब (आचा) २ इससे (सुअ १, २, २)

अदु :: अ [दे] १ अथवा, या (सुअ १, ४, २, १५; उत्त ८, १२; दसचू २, १४) २ अधिकारान्तर का सूचक (सुअ १, ४, २, ७)

अदुत्तरं :: अ [दे] आनन्तर्य-सूचक अव्यय, अब, बाद (णाया १, १)।

अदुय :: न [अद्रुत] अ-शीघ्र, धीरे-धीरे (भग ७, ९) °बंधण न [°बन्धन] दीर्घ काल के लिए बन्धन (सुअ २, २)।

अदुव, अदुवा :: अ [दे] या, अथबा, और; 'हिंसेज पाणाभूयाइं, तसे अदुव थावरे' (दस ५, ५; आचा)।

अदेलि, अदोलिर :: वि [अदोलिन्] स्थिर, निश्चल, (कुमा)।

अदृ :: वि [आर्द्र] १ गीला, भीगा हुआ, अक- ठिन (कुमा) २ पुं. इस नाम का एक राजा। ३ एक प्रसिद्ध राजकुमार और पीछे से जैन मुनि। ४ वि. आर्द्रराजा के वंशज। ५ नगर-विशेष (सुअ २, ६)। °कुमार पुं [°कुमार] एक राजकुमार और बाद में जैन मुनि; 'अद्दकुमारो दढप्पहारी अ' (पडि)। °मुत्था स्त्री [°मुस्ता] कन्द-विशेष, नागर मोथा (श्र २))। °मलग न [°मलक] १ हरा आमला। २ पीलु-वृक्ष की कली (धर्म २)। ३ शण वृक्ष की कली (पव ४)। °रिट्ठ पुं [°रिष्ट] कमल कौआ (आवम)

अद्द :: पुं [अब्द] १ मेघ, वर्षा, बारिश (हे २, ७९) २ वर्ष, संवत्सर, संवत् (सुर १३, ७०)

अद्द :: पुं [अर्द] आकाश (भग २०, २)।

अद्द :: पुंन [दे] १ परिहास। २ वर्णन (संक्षि ४७)

अद्द :: सक [अर्द्] मारना, पीटना (वव १०)।

अद्दइअ :: न [अद्वैत] १ भेद का अभाव। २ वि. भेद-रहित ब्रह्मा वगैरह (नाट)

अद्दइज्ज :: वि [आर्द्रीय] १ आर्द्रकुमार-सम्बन्धी। २ इस नाम का 'सूत्रकृताङ्ग' सूत्र का एक अव्ययन (सुअ २, ६)

अद्दंसण :: न [अदर्शन] १ दर्शन का निषेध, नहीं देखना (सुर ७, २४८) २ वि. परोक्ष, जिसका दर्शन न हो; 'एक्कपएच्चिय हाहिंति मज्झ अद्‌दसणा इणिह' (सुपा ६१७) ३ नहीं देखनेवाला, अन्धा। ४ 'थीणाद्धी' या अधम निद्रा वाला (गच्छ १; पव १०७) °भूअ, °हूय वि [°भूत] जो अदृश्य हुआ हो (सुर १०, ५६; महा)

अद्दण, अद्दण्ण :: वि [दे] आकुल, व्याकुल (दे १, १५; बृह १; निचु १०)।

अदन्न :: देखो अद्दण्ण (सुख १, १४)।

अद्दव :: वि [आद्रव] गला हुआ (आव ६)।

अद्दव्व :: न [अद्रव्य] अवस्तु, वस्तु का अभाव; (पंचा ३)।

अद्दह :: सक [आ + द्रह] उबालना, पानी-तैल वगैरह को खुब गरम करना। अद्दहेइ, अद्द- हेमि; संकृ. अद्दद्देत्ता (उवा)।

अद्दहिय :: वि [आहित] रखा हुआ, स्थापित (विपा १, ६)।

अद्दा :: स्त्री [आर्द्रा] १ नक्षत्र-विशेष (सम २) २ छन्द-विशेष (पिंग)

अद्दाअ :: पुं [दे] १ आदर्श, दर्पण (दे १, १४; पण्ण १५; निचु १३)। °पसिण पुं [°प्रश्न] विद्या-विशेष, जिससे दर्पण में देवता का आग- मन होता है (ठा १०)। °विज्जा स्त्री [°विद्या] चिकित्सा का एक प्रकार, जिससे बीमार को दर्पंण में प्रतिबिम्बित कराने से वह नीरोग होता है (वव ५)

अद्दाइअ :: वि [दे] आदर्शं वाला, आदर्शं से पवित्र (बृह १)।

अद्दाग :: [दे] देखो अद्दाअ (सम १२३)।

अद्दि :: पुं [अद्रि] पहाड़, पर्वत (गउड)।

अद्दिट्ठ :: वि [अदृष्ट] १ नहीं देखा हुआ (सुर १, १७२) २ दर्शन का अविषय (सम्म ६६)

अद्दिय :: वि [आर्द्रित] आर्द्रं किया हुआ भिंगाय हुआ (विक्र २३)।

अद्दिय :: बि [अर्दित] पीटा हुआ, पीड़ित (वव १०)।

अद्दिस्स :: वि [अद्दश्य] देखने के अयोग्य या अशक्य (सुर ९, १२०; सुपा ८५; श्रा २७)।

अद्दिस्संत, अद्दिस्समाण :: वकृ. [अदृश्यमान] नहीं दिखाता हुआ (सुपा १५४; ४५७)।

अद्दीण :: वि [अद्रीण] क्षोभ को अप्राप्त, अक्षुब्ध, निर्भीक (पणह २, १)।

अद्दीण :: देखो अदीण (ओघ ५३७)।

अद्‍दुमाअ :: वि [दे] पू्र्ण, भरा हुआ (षड़्)।

अद्देस :: वि [अद्दश्य] देखने के अशक्य (स १७०)।

अद्देसीकारिणी :: स्त्री [अद्दश्यीकारिणी] अद्दश्य बनानेवाला विद्या (सुपा ४५४)।

अद्देस्सीकरण :: वि [अद्दश्यीकरण] १ अद्दश्य करना। २ अदृश्य करनेवाली विद्या, 'किंपुण विज्जासिज्झा अद्देस्सीकरणसंगओ वावि' (सुपा ४५५)

अद्दोहि :: वि [अद्रोहिन्] द्रोह-रहित, द्वेष- वर्जित (धर्म ३)।

अद्ध :: पुंन [अर्ध] १ आधा (कुमा) २ खराड, अंश (पि ४०२)। °करिस पुं [°कर्ष] परि- माण-विशेष, फल का आठवाँ भाग (अणु)। °कुडव, °कुलव पुं [°कुडव, °कुलव] एक प्रकार का धान्य का परिमाण (राय)। °क्खेत्त न [°क्षेत्र] एक अहोरात्र में चन्द्र के साथ योग प्राप्त करनेवाला नक्षत्र (चंद १०) °खल्ला स्त्री [°खल्वा] एक प्रकार का जूता (बृह ३)। °घडय पुं [°घटक] आधा परिमाणवाला, घड़ा, छोटा घड़ा (उचा)। °चंद पुं [°चंन्द्र] १ आधा चन्द्र (गा ५७१) २ गल-हस्त, गला पकड़ कर बाहर करना (उप ७२८ टी) ३ न. एक हथियार (उप पृ ३९५) ४ अर्ध चन्द्र के आकारवाले सोपान (णाया १, १) ५ एक तरह का बाण, 'एसो तुह तिक्खेणं सीसं छिंदामि अद्ध- चंदेण' (सुर ८, ३७)। °चक्कवाल न [°चक्रवाल] गति-विशेष (ठा ७)। °चक्कि पुं [°चक्रिन्] चक्रवर्ती राजा से अर्धं विभूति वाला राजा, वासुदेव (कम्म १, १२)। °च्छट्ठ, °छट्ठ वि [°षष्ठ] साढ़े पाँच (पि ४५०; सम १००)। °ट्ठम वि [°ष्टमि] साढ़े् सात (ठा ९)। °णाराय न [°नाराच] चौथा संहनन, शरीर के हाड़ो की रचना- विशेष (जीव १)। °णारीसर पुं [°नारीश्वर] शिव, १ महादेव (कप्पु)। °तइय वि [°तृतीय] ढ़ाई (पउम ४८, ३५)। °तेरस वि [°त्रयो- दश] साढ़े बारह (भग)। °तेवन्न वि [°त्रिप- ञ्चाश] साढ़े बावन (सम १३४)। °द्ध वि [°र्ध] चौथा भाग, पौआ (बृह ३)। °नवम वि [°नवम] साढ़े आठ (पि ४५०)। °नाराय देखो °णाराय (कम्म १, ३८)। °पंचम वि [°पञ्चम] साढ़े चार (सम १०२)। °पलिअंक वि [°पर्यङ्क] आसन- विशेष (ठा ५, १)। °पहर पुं [°प्रहर] ज्यौतिष शास्त्र प्रसिद्ध एक कुयोग (गण १८)। °बब्बर पुं [°बर्बर] देश-विशेष (पउम २७, ५)। °मागहा, °ही स्त्री [°मागधी] प्राचीन जैन साहित्य की प्राकृत भाषा, जिसमें मागधी भाषा के भी कोई २ नियम का अनुसरण किया गया है; 'पोराण- मद्धमागहभासनिययं हवइ सुत्तं' (हे ४, ३५७; पि १६; सम ६०; पउम २, ३४)। °मास पुं [°मास] पक्ष; पनरह दिन (दे १०)। °मासिय वि [°मासिक] पाक्षिक, पक्ष- सम्बन्धी (महा)। °यंद देखो °चंद (उप ७२८) टी)। °रज्जिय वि [°राज्यिक] राज्य का आधा हिस्सादार, अर्ध राज्य का मालिक (विपा १, ६)। °रत्त पुं [°रात्र] मध्य रात्रि का समय, निशीय (गा २३१)। °वेयाली स्त्री [°वेताली] विद्या-विशेष (सुअ २, २)। °संकासिया स्त्री [°मां/?/अश्यिका] एक राज-कन्या का नाम (आव ४)। °सम न [°सम] एक वृत्त, छन्द-विशेष (ठा ७)। °हार पुं [°हार] १नवसरा हार (राय; औप)। २ इस नाम का एक द्वीप। ३ समुद्र- विशेष (जीव ३)। °हारभद्द [°हारभद्र] अर्धहार-द्वीप का अधिष्ठाता देव (जीव ३)। °हारमहाभद्द पुं [हारमहाभद्र] पूर्वोक्त ही अर्थ (जीव ३)। °हारमहावर पुं [°हार- महावर] अर्धहार समुद्र का एक अधिष्ठायक देक (जीव ३)। °हारवर पुं [°हारवर] १ द्वीप-विशेष। २ समुद्र-विशेष। ३ उनका अधिष्ठायक देव (जीव ३)। °हारवरभद्द पुं [°हारवरभद्र] अर्धहारवर द्वीप का एक अधिष्ठाता देव (जीव ३)। °हारवरमहावर पुं [°हारवरमहावर] अर्धहारवर समुद्र का एक अधिष्ठाता देव (जीव ३)। °हारोभास पुं [°हारावभास] १ द्वीप-विशेष। २ समुद्र- विशेष (जीव ३)। हारोभासभद्द पुं [°हारा- वभासभद्र] अर्धहारावभास नामस द्वीप का एक अधिष्ठाता देव (जीव ३)। °हारोभास- महाभद्द पुं [°हारवभासमहाभद्र] पूर्वोक्त ही अर्थ (जीव ३)। °हारोभासमहावर पुं [°हारावभासमहावर] अर्धहारावभास नामक समुद्र का एक अधिष्ठाता देव (जीव ३)। °हारोभासवर पुं [°हारावभासवर] देखो पूर्वोक्त अर्थं (जीव ३)। °ढ़िय पुं [°ढ़िक] एक प्रकार का परिमाण, आढ़क का आधा भाग (ठा ३, १)

अद्ध :: पुं [अध्वन्] मार्ग, रास्ता (महा ; आचा)।

अद्धंत :: पुं [दे] १ पर्यन्त, अन्त भाग (दे १, १८; से ६, व ३२; पाअ); 'भरिज्जंतसिद्धपहद्धंतो (विक्र १०१) २ पुं. ब. कतिपय कईएक (से १३, ३२)

अद्धक्खण :: न [दे] १ प्रतीक्षा करना, राह देखना (दे १, ३४) २ परीक्षा करना (दे १, ३४)

अद्धक्खिअ :: न [दे] १ संज्ञा करना, इशारा करना, संकेल करना (दे १, ३४)

अद्धक्खिअ :: वि [अर्धाक्षिक] विकृत आंख वाला (महानि ३)।

अद्धजंघा, अद्धजंघी :: स्त्री [दे. अर्धजङ्घा] एक प्रकार का जुता, मोचक नामक जुता, जिसे गुजराती में 'मोजड़ी' कहते हैं (दे १, ३३; २, ५; ६, १३९)।

अद्धद्धा :: स्त्री [दे. अद्धाद्धा] दिन अथवा रात्री का एक भाग (सत्त ९ टी)।

अद्धपेडा :: स्त्री [अर्धपेटा] सन्दुक के अर्ध भाग के आकारवाली गृह-पंक्ति में भिक्षाटन (उत्त ३०, १९)।

अद्धर :: पुं [अध्वर] यज्ञ, याग (पाअ)।

अद्धर :: वि [दे] प्रच्छन्न, गुप्त; 'तम्हा एयस्स चिट्ठियमद्धरट्ठिओ चेब पिच्छामि, तओ राया तप्पिट्ठिलग्गो' (सम्मत्त १६१)।

अद्धविआर :: न [दे] १ मण्डन, भुषा ; 'मा कुण अद्धविआरं' (दे १, ४३) २ मंडल, छोटा मंडल (दे १, ४३)

अद्धा :: स्त्री [दे. अद्धा] १ काल, समय, वक्त, (ठा २, १; नव ४२) २ संकेत (भग ११ ११) ३ लब्धि, शक्ति-विशेष (विसे) ४ अ. तत्त्वतः वस्तुतः। ५ साक्षात्, प्रत्यक्ष (पिंग) ६ दिवस। ७ रात्रि (सत्त ९ टी)। °काल पुं [°काल] सूर्य आदि की क्रिया (परि- भ्रमण) से व्यक्त होनेवाला समय, 'सूरकिरिया- विसिट्ठो गोदोहाइकिरियासु निरवेक्खो। अद्धा- कालो भण्णई' (विसे)। °छेय पुं [°छेद] समय का एक छोटा परिमाण, दो आवलिका परिमित काल (पंच)। °पंच्चक्खाण न [°प्रत्याख्यान] अमुक समय के लिए कोई व्रत या नियम करना (आचु ६)। °मीसय न [°मिश्रक] एक प्रकार की सत्य-मृषा भाषा (ठा १०)। मीसिया स्त्री [°मिश्रिता] देखो पुर्वोक्त अर्थ (पण्ण ११)। °समय पुं [°समय] सर्व-सूक्ष्म काल (पण्ण ४)

अद्धाण :: पुं [अध्वन्] मार्ग, रास्ता (णाया १, १४; सुर ३, २२७)। °सीसय न [°शीर्षक] मार्ग का अन्त, अटवी आदि का अन्त भाग (वव ४, बृह ३)।

अद्धाण :: पुं [अध्वन्] मार्गं, रास्ता; 'हवइ सलाभं नरस्स अद्धाणं' (सुख ८, १३)।

°सीसय :: न [°शीर्षक] जहाँ पर संपूर्ण सार्थं के लोग आगे जाने के लिए एकत्र हों वह मार्गं-स्थान (वव ४)।

अद्धाणिय :: वि [आध्विक] पथिक, मुसाफिर (बृह ४)।

अद्धासिय :: वि [अध्यासित] १ अधिष्ठित, आश्रित (सुर ७, २१४; उप २६४ टी) २ आरूढ (स ६३०)

अद्धि :: देखो इडि्ढ; 'धण्णा बहिरंधरआ, ते च्चिअ जीअंति माणुसे लोए। ण सुणंति खलवअणं, खलाण अद्धिं न पेक्खंति' (गा ७०४)।

अद्धिइ :: स्त्री [अधृति] धीरज का अभाव, अधीरज (पउम ११८, ३६)।

अद्‍धुइअ :: वि [अर्धोदित] थोड़ा कहा हुआ (पि १५८)।

अद्‍धुग्घाड :: वि [अर्धोद्‍घाट] आधा खुला, 'अद्धोग्घाडा थणाया' (पउम ३८, १०७)।

अद्‌धुट्ठ :: वि [अर्धचतुर्थ] साढ़े तीन (सम १०१; विसे ६९३)।

अद्‍धुत्त :: वि [अर्धोक्त] थोड़ा कहा हुआ (वव १०)।

अद्‌धुव :: वि [अध्रुव] १ चंचल, अस्थिर, विनश्वर (स ३३९; पंचा १६; पउम २९, ३०) २ अनियत (आचा)

अद्‌धेअद्ध :: वि [अर्धार्ध] १ द्विधा-भूत, दो टुकड़ेवाला, खण्डित। २ क्रिवि. आधा-आधा जैसे हो, 'अद्धेअद्धप्फुडिआ, अद्धेअद्धकडउक्खअसिलावेढ़ा। पवअभुआहअविसढ़ा, अद्धेअद्धसिहरा पडंति महिहरा।।' (से ६, ६६)

अद्धोरु, अद्धोरुग :: देखो अड्‍ढोरुग (दे ३, ४५; ओध ६७६)।

अद्धोवमिय :: वि [अद्धौपम्य, अद्धौपमिक] काल का वह परिमाण जो उपमा से समझाया जा सके, पल्योपम आदि उपमा-काल (ठा २, ४; ८)।

अध :: अ [अधस्] नीचे (आचा; पि १९०)।

अध :: (शौ) अ [अथ] अब, बाद (कप्पू)।

अधइं :: (शौ) [अथाकम्] १ हाँ। २ और क्या। ३ जरूर, अवश्य (कप्पू)

अधं :: अ [अधस्] नीचे (पि ३४८)।

अधट्ठ :: वि [अधृष्ट] अ-ढीठ (कुमा)।

अधण :: वि [अधन] निर्धन, गरीब; 'रमइ विहवी विसेसे, थिइमेत्तं थोयवित्थरो महइ। मग्गइ सरीरमधणो, रोई जीए च्चिय कयत्थो।।' (गउड ; सण)।

अधणि :: वि [अधनिन्] धन-रहित, निर्धन (शअरा १४)।

अधण्ण :: वि [अधन्य] अकृतार्थ, निन्द्य (पणह १, १)।

अधम :: देखो अहम (उत्त ९)।

अधमण्ण, अधमन्न :: वि [अधमर्ण] करजदार, देनदार, (धर्मवि १४६; १३५)।

अधम्म :: पुं [अधर्म] १ पाप-कार्य, निषिद्ध कर्म, अनीति; 'अधम्मेण चेव वित्तिं कप्पेमाणे विह- रइ' (णाया १, १८) २ एक स्वतन्त्र और लोक-व्यापी अजीव वस्तु, जो जीव वगैरह को स्थिति करने में सहायता पहुँचाती है (सम २; नव ५) ३ वि. धर्म-रहित, पापी (विपा १, १)। °केउ पुं [°केतु] पापिष्ठ (णाया १, १८)। °क्खाइ वि [°ख्याति] प्रसिद्ध पापी (विपा १, १)। °क्खाइ वि [°ख्यायिन्] पाप का उपदेश देनेवाला (भग ३, ७)। °त्थिकाय पुं [°स्तिकाय] अधम्म का दूसरा अर्थ देखो (अणु)। °बुद्धि वि [°बुद्धि] पापी, पापिष्ठ (उप ७२८ टी)

अधम्मिट्ठ :: वि [अधर्मिष्ठ] १ धर्म को नहीं करनेवाला (भग १२, २) २ महा-पापी, पापिष्ठ (णाया १, १८)

अधम्मिट्ठ :: वि [अधर्मेष्ट] अधर्म-प्रिय, पाप- प्रिय (भग १२, २)।

अधम्मिठ्ठ :: वि [अधर्मोष्ट] पापियों का प्यारा (भग १२, २)।

अधम्मिय :: देखो अहम्मिय (ठा ४, १)।

अधर :: देखो अहर (उवा; सुपा १३८)।

अधवा :: /?/(शौ) देखो अहवा (कप्पू)।

अधा :: स्त्री [अधस्] अधो-दिशा, नीचली दिशा (ठा ६)।

अधि :: देखो अहि = अधि।

अधिइ :: देखो अद्धिइ (सुपा ३५६)।

अधिकरण :: देखो अहिगरण (पणह १, २)।

अधिग :: वि [अधिक] विशेष, ज्यादा (बृह १)।

अधिगम :: देखो अहिगम (धर्म २; विसे २२)।

अधिगरण :: देखो अहिगरण (निचु १)।

अधिगरणिया :: देखो अहिगरणिया (पणण २१)।

अधिगार :: देखो अहिगार (सुअनि ५८)।

अधिण्ण, अधिन्न :: (अप)वि [अधीन] आयत्त, परवश (पि ९१; हे ४, ४२७)।

अधिमासग :: पुं [अधिमासक] अधिक मास (निचु २०)।

अधिरोविअ :: वि [अधिरोपित] आरोपित, 'सुलाधिरोविओ सो' (धर्मवि १३७)।

अधीगार :: देखो अहिगार (सुअनि १८०)।

अधीय :: देखो अहीय (उत्त २०, २२)।

अधीस :: वि [अधीश] नायक, अधिपति (कुम्मा २३)।

अधुव :: देखो अद्‍धुव णाया, १, १, पउम ९५, ४९)।

अधो :: देखो अहो = अधस् (पि ३४५)।

अनेदि :: स्त्री [अनन्दि] अमङ्गल, अकुशल; 'तं मोएउ अनंदि' (अजि ३७)।

अनन्न :: देखो अणण्ण (कुमा)।

अनय :: देखो अणय (सुपा ३७१)।

अनल :: देखो अणल (हे १, २२८; कुमा)।

अनागय :: देखो अणागय (भग)।

अनागार :: देखो अणागार (भग)।

अनाय :: देखो अणाय (सुपा ४७०; पि ३८०)।

अनालंफ :: (चूपै)वि [अनारम्भ] पाप-रहित (कुमा)।

अनालंफ :: /?/(चूपै) /?/वि [अनालम्भ] अहिंसक, दयालु (कुमा)।

अनिगिण :: देखो अणगिण (सम १७)।

अनिदाया, अनिद्दाया :: देखो अणिदा (पण्ण ३४)।

अनिमित्ती :: स्त्री [अनिमित्ती] लिपि-विशेष (विसे ४६४ टी)।

अनियमिय :: वि [अनियमित] १ अव्यव- स्थित। २ असंयत, इन्द्रियों का निग्रह नहीं करनेवाला; 'गओ य नरयं अनियमियप्पा' (पउम ११४, २९)

अनियट्टि :: देखो अणियट्टि ( २६; कम्म २; सत्त ७१ टी)।

अनियय :: देखो अणियय (ओघ २)।

अनिीरुद्ध :: देखो अणिरुद्ध (अंत १४)।

अनिल :: देखो अणिल (हे १, २२८; कुमा)।

अनिसट्ठ :: देखो अणिसठ्ठ (ठा ३, ४)।

अनिहारिम, अनीहारिम :: देखो अणीहारिम (भग; ठा २, ४)।

अनु :: /?/(अप) देखो अण्णहा (कुमा)।

अनुकूल :: देखो अणुकूल (सुपा ४७४)।

अनुग्गह :: देखो अणुग्गह (अभि ४१)।

अनुटिट्ठिय :: देखो अणुट्ठिय (स १५)।

अनुज्जुय :: देखो अणुज्जुय (पि ५७)।

अनुहव :: देखो अणुहव = अनु + भू। वकृ अनुहवंत (रंभा)।

अन्न :: देखो अण्ण (सुपा ३९०; प्रासू ४३; पणह २, १; ठा ३, २; ५, १; श्रा ६)।

अन्नइय :: देखो अण्णइय (भवि)।

अन्नओ :: देखो अण्णओ। °हुत्त क्रिवि [°मुख] दूसरी तरफ (सुर ३, १३६)।

अन्नत्तो :: देखो अण्णत्तो (कुमा)।

अन्नत्थ, अन्नत्थं :: देखो अण्णत्थ (आचा; स १५०; कुमा)।

अन्नदो :: देखो अण्णत्तो (कुमा)।

अन्नमन्न :: देखो अण्णमण्ण (णाया १, १)।

अन्नन्न :: देखो अण्णण्ण (महा ; कुमा)।

अन्नय :: पुं [अन्वय] एक की सत्ता में ही दूसरे की विद्यमानता, जैसे अग्‍नि की हयाती में ही घूम की सत्ता, नियमित सम्बन्ध (उप ४१३; स ६५१)।

अन्नयर :: देखो अण्णयर (सुपा ३७०)।

अन्नया :: देखो अण्णया (महा)।

अन्नव :: देखो अण्णव (सुपा ८५; ५२६)।

अन्नह :: देखो अण्णह (सुर १, १५९; कुमा)।

अन्नहा :: देखो अण्णहा (पउम १००, २४; महा; सुर १, १४३; प्रासू ७)।

अन्नहि :: देखो अण्णहि (कुमा)।

अन्न :: स्त्री [दे] माता, जननी (दस ७, १६; १९)।

अन्नाइट्ठ :: वि [अन्वाविष्ट] आक्रान्त, 'तुमं णं आउसो कासवा! ममं तवेणं अन्नाइट्ठे समाणे अंतो छणहं मासाणं पित्तज्जरपरिणयसरीरे दाह- वक्कंतीए छउमत्थे चेव कालं करेस्ससि' (भग १५)।

अन्नाण :: देखो अण्णाण = (कुमा; सुर १, १५; महा; उबर ९५; कम्म ४, ६; ११)।

अन्नाणि :: देखो अण्णाणि (उव; सुपा ५८८)।

अन्नाणिय :: देखो अण्णाणिय (पउम ४, २७)।

अन्नाय :: देखो पहला और दूसरा अण्णाय (सुर ६, २; सुपा २५६; सुर २, ९; २०२; सम्म ६६; सुपा २३३; सुर २, १९५; सुपा, ३०८); 'नाएण जं न सिद्धं को खलु सहलो तयत्थमन्नाओ ?' (उप ७१८ टी)।

अन्नारिस :: देखो अण्णारिस (हे १, १४२; महा)।

अन्नाहुत्त :: वि [दे] पराङ्‍मुख (सुख २, १७)।

अन्नि :: वि [अन्यदीय] परकीय, 'अन्‍नं वा अन्‍निं वा' (सुअ २, २, ९)।

अन्निज्जमाण :: देखो अण्णिज्जमाण (णाया १, १६)।

अन्निय :: देखो अण्णिय।

अन्नियसुय :: पुं [अन्निकासुत] एक विख्यात जैन मुनि (उब)।

अन्निया :: देखो अण्णिया (संथा ५६)।

अन्‍नुत्ति :: स्त्री [अन्योक्ति] साहित्य-प्रसिद्ध एक अलङ्कार (मोह ३७; सम्मत्त १४५)।

अन्‍नुन्न, अन्‍नुमन्न :: देखो अण्णुण्ण (हे १, १५६; कप्प)।

अन्‍नूण :: वि [अन्यून] अन्हीन (धर्मवि १२६)।

अन्नेस :: देखो अण्णेस। वकृ. अन्‍नेसमाण (उप ६ टी)।

अन्‍नेसण :: देखो अण्णेसण (सुर १०, २२८; सण)।

अन्‍नेसणा :: देखो अण्णेसणा (ठा ३, ४)।

अन्नेसय :: वि [अन्वेषक] गवेषक, खोज करनेवाला (स ५३५)।

अन्‍नेसि, अन्‍नेसिय :: देखो अण्णेसि (पि ५१६; आचा)।

अन्नोन्न :: देखो अण्णोण्ण (कुमा; महा)।

अप :: स्ंत्री. ब. [अप्] पानी, जल (सुज्ज) १०)। °काय पुं [°काय] पानी के जीव (दं १३)।

अपइट्ठाण :: देखो अप्पइट्ठाण (आचा; ठा ४, ३)।

अपइट्ठिअ :: पुं [अप्रतिष्ठित] १ नरक-स्थान विशेष (देवेन्द्र २९)। देखो अप्पइट्ठिअ।

अपइठ्ठिय :: देखो अप्पइठ्ठिय (ठा ४, १)।

अपएस :: वि [अप्रदेश] १ निरंश, अवयव- रहित (भग २०, ५) २ पुं. खराब स्थान (पंचा ७)

अपंग :: पुं [अपाङ्गं] १ नेत्र का प्रान्त भाग। २ तिलक। ३ वि. हीन अंग वाला (नाट)

अपंडिअ :: वि [दे] अ-नष्ट, विद्यमान (षड्)।

अपंडिअ :: [अपण्डित] १ सद्‍बुद्धि-रहित (बृह १) २ मूर्ख (अच्चु ५)

अपकारिस :: पुं [अपकर्ष] ह्लास (धर्मंसं ८३७)।

अपगंड :: वि [अपगण्ड] १ निर्दोष। २ न. फेन, पानी का झाग (सुअ , ३)

अपचय :: पुं [अपचय] अपकर्ष, हीनता (उत्त १)।

अपच्च :: देखो अवच्च ; 'अपच्चणिव्विसेसाणि सत्ताणि' (पि ३६७)।

अपच्चय :: पुं [अप्रत्यय] अविश्वास (पणह १, २)।

अपच्चल :: वि [अप्रत्यल] १ असमर्थ। २ अयोग्य (नचू ११)

अपच्छ :: वि [अपथ्य] १ अ-हितकर (पउम ८२, ७२) २ न. नहीं पचनेवाला भोजन, 'थेवेण अपच्छसेवणेण रोगुव्व वड्‍ढइ' (सुपा ४३८)

अपच्छिम :: वि [अपश्चिम] अन्तिम (णंदि; पाअ; उप २६४ टी)।

अपज्जत्त, अपज्जत्तग :: वि [अपर्याप्त] १ अपर्याप्त, असमर्थ (गउड) २ पर्याप्ति (आहारादि ग्रहण करने की शक्ति) से रहित (ठा २, १; नव ४)। °नाम न [°नामन्] नाम-कर्म का एक भेद (सम ६७)

अपज्जवसिय :: वि [अपर्यवसित] १ नाश- रहित (सम्म ६१) २ अन्त-रहित (ठा १)

अपडिच्छिर :: वि [दे] जड़-बुद्धि, मूर्ख (दे १, ४३)।

अपडिण्ण, अपडिन्न :: वि [अप्रतिज्ञ] १ प्रतिज्ञा- रहित, निश्चय-रहित (आचा) २ राग-द्वेष आदि बन्धनों से वर्जित (सुअ १, ३, ३) ३ फल की इच्छा न रखकर अनु- ष्ठान करनेवाला, निष्काम; 'गन्धेसु वा चन्दण- माहु सेट्ठं, एवं मुणीणं अपडिन्नमाहु' (सुअ १, ६)

अपडिपोग्गल :: वि [अप्रतिपुद्‍गल] दरिद्र, निर्धन (निचु ५)।

अपडिबद्ध :: वि [अप्रतिबद्ध] १ प्रतिबन्ध- रहित, बेरोक; 'अपडिबद्धो अनलो व्व' (पणह २, ५) २ आसक्ति-रहित )पव १०४)

अपडिवाइ :: देखो अप्पडिवाइ (ठा ६; ओघ ५३२; णंदि)।

अपडिसंलीण :: वि [अप्रतिसंलीन] असंयत, इन्द्रिय आदि जिसके काबु में न हों (ठा ४, २)।

अपडिहट्‍टु :: अ [अप्रतिहृत्य] न दे कर (कस ; बृह ३)।

अपडिहय :: देखो अप्पडिहय (णाया १, १६)।

अपडीकार :: वि [अप्रतीकार] इलाज-रहित, उपाय-रहित (पणह १, १)।

अपडुप्पण्ण, अपडुप्पन्न :: वि [अप्रत्युत्पन्न] १ अ-वर्तं- मान, अ-विद्यमान (पि १६३) २ प्रतिपत्ति में अ-कुशल (वव ६)

अपणट्ठ :: वि [अप्रनष्ट] नाश को अप्राप्त (सुर ४, २४०)।

अपत्त :: देखो अप्पत्त (बृह १; ठा ५, २; सुअ १, १४)।

अपत्तिअंत :: वकृ. [अप्रतियत्] विश्‍वास नहीं करता हुआ (गा ६७८; पि ४८७)।

अपत्तिय :: देखो अप्पत्तिय (भग १६, ३; पंचा ७)।

अपत्थ :: देखो अपच्छ (उत्त ७; पंचा ७)।

अपभासिय :: देखो अवभासिय = अपभाषित (वव १)।

अपमत्त :: देखो अप्पमत्त (आचा)।

अपमाण :: न [अप्रमाण] १ झुठा, असत्य (श्रा १२) २ वि. ज्यादा, अधिक (उत्त २४)

अपमाय :: वि [अप्रमाद] १ प्रमाद-रहित। २ पुं. प्रमाद का अभाव, सावधानी (पणह २, १)

अपय :: वि [अपद] १ पाँव-रहित, वृक्ष, द्रव्य, भूमि वगैरह पैर रहित वस्तु (णाया १, ८) २ पुं. मुक्तात्मा, 'अपयस्स पयं नत्थि' (आचा) ३ सूत्र का एक दोष (बृह १; विसे)

अपय :: स्त्री [अप्रज] सन्तानरहित (बृह १)।

अपर :: देखो अवर (निचू २०)। २ वैशेषिक दर्शन में प्रसिद्ध अवान्तर सामान्य (विसे २४९१)।

अपरच्छ :: वि [अपराक्ष्] असमक्ष, परोक्ष (पणह १, ३)।

अपरद्ध :: देखो अवरज्झ (कप्प)।

अपरंतिया :: स्त्री [अपरान्तिका] छन्द-विशेष (आजि ३४)।

अपराइय :: वि [अपराजित] १ अ-परिभूत (पणह १, ४) २ पुं. सातवें बलदेव के पूर्वं- जन्म का नाम (सम १५३) ३ भरनक्षेत्र का छठ.वाँ प्रतिवासुदेव (सम १५४) ४ उत्तम-पंक्ति के देवों की एक जाति (सम ५६) ५ भगवान् ऋषभदेव का एक पुत्र (राज) ६ एक महाग्रह (ठा २, ३) ७ न. अनुत्तर देव- लोक का एक विमान---देवावास (सम ५६) ८ रुचक पर्वंत का एक शिखर (ठा ८) ९ जम्बुद्वीप की जगती का उत्तर द्वार (ठा ४, २)

अपराइया :: स्त्री [अपराजिता] १ विदेह-वर्षं की एक नगरी (ठा २, ३) २ आठवें बलदेव की माता (सम १५२) ३ अंगारक ग्रह की एक पटरानी का नाम (ठा ४, १) ४ एक दिशा-कुमारी देवी (ठा ८) ५ ओषधि-विशेष (ती ७) ६ अञ्जनाद्रि पर्वत पर स्थित एक पुष्करिणी (ती २)

अपराजिय :: देखो अपराइय (कप्प; सम ५६; १०२; ठा २, ३)।

अपराजिया :: देखो अवराइया (ठा २, ३)।

अपराजिया :: स्त्री [अपराजिता] १ भगवान मल्लिनाथ की दीक्षा-शिविका (विचार १२९) २ पक्ष की दशवीं रात (सुज्जद १०, १४)

अपरिग्गह :: वि [अपरिग्रह] १ धन-धान्य आदि परिग्रह से रहित (पणह २, ३) २ ममता-रहित, निर्मम; 'अपरिग्गहा अणरंभा भिक्खु ताणं परिव्वए' (सुअ १, १, ४)

अपरिग्गहा :: स्त्री [अपरिग्रहा] वेश्या (वव २)।

अपरिग्गहिआ :: स्त्री [अपरिगृहीता] १ वेश्या, कन्या वगैरह अविवाहिता स्त्री [पडि)]। २ पति-हीना स्त्री, विधवा (धर्म २) ३ घर- दासी। ४ पनहारी। ५ देव-पुत्रिका, देवता को भेंट की हुइ कन्या (आचू ५)

अपरिच्छण्ण, अपरिच्छन्न :: वि [अपरिच्छन्न] १ नहीं ढका हुआ, अनावृत (वव ३) २ परिवार रहित (वव १)

अपरिणय :: वि [अपरिणत] १ रूपान्तर को अप्राप्त (ठा २, १) २ जैन साधु की भिक्षा का एक दोष। (आचा)

अपरित्त :: वि [अपीरत] अपरिमित, अनन्त (पण्ण १८)।

अपरिसेस :: वि [अपरिशेष] सब, सकल, निःशेष (पणह १, २; पउम ३, स १४०)।

अपरिहारिय :: वि [अपरिहारिक] १ दोषों का परिहार नहीं करनेवाला । (आचा) २ पुं. जैनेतर दर्शन का अनुयायी गृहस्थ (निचु २)

अपवग्ग :: पुं [अपवर्ग] मोक्ष, मुक्ति (सुर ८, १०९; सत्त ११)।

अपविद्ध :: वि [अपविद्ध] १ प्रेरित (से ७, ११) २ न. गुरु-वन्दन का एक दोष, गुरु को वन्दन करके तुरन्त ही भाग जाना (गुभा २३)

अपह :: वि [अप्रभ] निस्तेज (दे १, १६४)।

अपहत्थ :: देखो अवहत्थ (भवि)।

अपहारि :: वि [अपहारिन्] अपहरण करनेवाला (स २१७)।

अपहिय :: वि [अपहृत] छीना हुआ (पउम ७९, ५)।

अपहु :: वि [अप्रभु] १ असमर्थ। २ नाथ- रहित, अनाथ (पउम १०१, ३५)

अपाइय :: वि [अपात्रित] पात्र-रहित, भाजन- वर्जित; 'नो कप्पइ निग्गंथीए अपाइयाए होत्तए' (कस)।

अपाउड :: वि [अपावृत] नहीं ढका हुआ, वस्त्र-रहित, नग्न (ठा ५, १)।

अपादाण :: न [अपादान] कारक-विशेष, जिसमें पञ्चमी विभक्ति लगती है (विसे २११७)।

अपाण :: न [अपान] १ पान का अभाव। (उप ८४५) २ पानी जैसा ठंढा पेय वस्तु- विशेष। (भग १५) ३ पुंन. अपान वायु। ४ गुदा (सुपा ६२०) ५ वि. जल-वर्जित, निर्जल (उपवास); 'छट्‍ठेणं भत्तेणं अपाणएणं' (जं २)

अपायावगम :: पुं [अपायापगम] जिनदेव का एक अतिशय (संबोध २)।

अपार :: वि [अपार] पार-रहित, अनन्त (सुपा ४५०)।

अपारमग्ग :: पुं [दे] विश्राम, विश्रान्ति (दे १, ४३)।

अपात्र :: वि [अपाप] १ पाप-रहित (सुअ १, १, ३) २ न. पुण्य (उव)

अपावा :: स्त्री [अपापा] नगरी-विशेष, जहां भगवान् महावीर का निर्वाण हुआ था, वह आजकल 'पावापुरी' नाम से प्रसिद्ध है और बिहार से आठ माईल पर है (राज)।

अपिट्ट :: वि [दे] पुनरुक्त, फिरसे कहा हुआ (पड्)।

अपिय :: वि [अप्रिय] अनिष्ट (जीव १)।

अपिह :: अ [अपृथक्] अ-भिन्न (कुमा)।

अपुणबंधग, अपुणबंधय :: वि [अपुनर्बन्धक] फिर से उत्कृष्ट कर्मबन्ध नहीं करने वाला, तीव्र भाव से पाप को नहीं करने वाला (पंचा ३; उफ २५३; ९५१)।

अपुणब्भव :: पुं [अपुनर्भव] १ फिर से नहीं होना। २ वि. जिससे फिर जन्म न हो वह, मुक्ति-प्रद (पणह २, ४)

अपुणब्भाव :: वि [अपुनर्भाव] फिर से नहीं होनेवाला (पंच १)।

अपुणभव :: देखो अपुणब्भव (कुमा)।

अपुणरागम :: पुं [अपुनरागम] १ मुक्त आत्मा। २ मुक्ति, मोक्ष (दसचू १)

अपुणरावत्तग, अपुणरावत्तय :: पुं [अपुनरावर्त्तक] १ फिर नहीं धूमनेवाला, मुक्त आत्मा। २ मोक्ष, मुक्ति (पि ३४३; औप; भग १ १)

अपुणरावत्ति :: पुं [अपुनरावर्तिन्] मुक्त आत्मा (पि ३४३)।

अपुणरावित्ति :: पुं [अपुनरावृत्ति] मोक्ष, मुक्ति (पडि)।

अपुणरुत्त :: वि [अपुनरुक्त] फिर से अकथित, पुनरुक्ति-दोष से रहित; 'अपुणरुत्तेहिं महा- वित्तेहिं संथुणइ' (राय)।

अपुणागम :: देखो अपुणरागम (पि ३४३)।

अपुणागमण :: न [अपुनरागमन] १ फिर से नहीं आना। २ फिर से अनुत्पत्ति; 'अपुण- गमणाय व तं तिमिरं उम्मूलिअं रविणा' (गउड)

अपुण्ण :: न [अपुण्य] १ पाप। २ वि. पुण्य- रहित, कम-नसीब, हत-भाग्य (विपा १, ७)

अपुण्ण :: वि [अपूर्ण] अधूरा, अपरिपूर्णं (विपा १, ७)।

अपुण्ण :: वि [दे] आक्रान्त (षड्)।

अपुत्त, अपुत्तिय :: वि [अपुत्र, °क] १ पुत्र-रहित, (सुपा ४१२; ३१४) २ स्वजन- रहित, निर्मम, निःस्पृह (आचा)

अपुन्न :: देखो अपुण्ण (णाया १, १३)।

अपुम :: न [अपुंस्] नपुंसक (ओघ २२३)।

अपुल्ल :: देखो अप्पुल्ल (चंड)।

अपुव्व :: वि [अपूर्व] १ नूतन, नवीन। २ अद्‍भूत, आश्चर्यकारक। ३ असाधारण, अद्वितीय (हे ४, २७०; उप ६ टी)। °करण न [°करण] १ आत्मा का एक अभूतपूर्व शुभ परिणाम (आचा)। २ आठवाँ गुण- स्थानक (पव २२४; कम्म २, ९)

अपूय, अपूव :: पुं [अपूप] एक भक्ष्य पदार्थ, पुआ, पूड़ी (औप; पण्ण ३६; दे १, १३४; ६, ८१)।

अपेक्ख :: सक [अप+ इक्ष्] अपेक्षा करना, राह देखना। हेकृ. अपेक्खिदुं (शौ) (नाट)।

अपेच्छ :: वि [अप्रेक्ष्य] १ देखमे के अशक्य। २ देखने के अयोग्य (उव)

अपेय :: वि [अपेय] पीने के अयोग्य, मद्य आदि (कुमा)।

अपेय :: वि [अपेत] गया हुआ, नष्ट; 'अपेय- चक्खु' (बृह १)।

अपेहय :: वि [अपेक्षक] अपेक्षा करनेवाला (आव ४)।

अपोरिसिय, अपोरिसीय :: वि [अपौरुषिक] पुरुष से ज्यादा परिमाण वाला, अगाध (णाया १, ५; १४)।

अपोरिसीय :: वि [अपौरुषेय] पुरुष से नहीं बनाया हुआ, नित्य (ठा १०)।

अपोह :: सक [अप+ ऊह्] निश्चय करना, निश्चय रूप से जानना। अपोहए (विसे ५६१)।

अपोह :: पुं [अपोह] १ निश्चय-ज्ञान (विसे ३९६) २ पृथग्भाव, भिन्नता (ओघ ३)

अप्प :: देखो अत्त आप्त; 'अप्पोलंभनिमित्तं पढमस्स णायज्झयणस्स अयमट्ठे पण्णत्तेति बेमि' (णाया १, १)।

अप्प :: वि [अल्प] १ थोड़ा, स्तोक (सुपा २८०; स्वप्‍न ६७) २ अभाव (जीव ३; भग १४, १)

अप्प :: पुं [आत्मन्] १ आत्मा, जीव, चेतन (णाया १, १) २ निज, स्व; 'अप्पणा अप्पणो कम्मक्खएं करित्तए' (णाया १, ५) ३ देह, शरीर (उत्त ३) ४ स्वभाव, स्वरूप (आचा)। °घाइ वि [°घातिन्] आत्म-हत्या करनेवाला (उप ३५७ टी)। °छंद वि [°च्छन्द] स्वैरी, स्वच्छन्दी (उप ८३३ टी)। °ज्ज वि [°ज्ञ] १ आत्मज्ञ (हे २, ८३)। २ स्वाधीन (निचु १)। °ज्जोइ पुं [°ज्योतिस्] ज्ञानस्वरूप, 'किंजोइरयं पुरिसो अप्पज्जोइ त्ति णिद्दिट्ठो' (विसे)। °ण्णु वि [°ज्ञ] आत्म-ज्ञानी (षड्)। °वस वि [वश] स्वतन्त्र, स्वा- धीन (पाअ; पउम ३७, २२)। °वह पुं [°वध] आत्म-हत्या, अपघात (सुर २, १९६; ५, २३७)। °वाइ वि [°वादिन्] आत्मा के अतिरिक्त दूसरे पदार्थ को नहीं माननेवाला (णंदि)

अप्प :: पुं [दे] पिता, बाप (दे १, ६)।

अप्प :: सक [अर्पय्] अर्पण करना, भेंट करना। अप्पेइ (हे १, ६३)। अप्पअइ (नाट)। संकृ. अप्पिअ (सुपा २८०)। कृ. अप्पेयव्व (सुपा २६५; ५१९)।

अप्पआस :: देखो अप्पगास (नाट)।

अप्पआस :: सक [श्लिष्] आलिङ्गन करना। अप्पआसइ (षड्)।

अप्पइट्ठाण :: पुंन [अप्रतिष्ठान] १ मोक्ष, मुक्ति (आचा) २ सातवीं नरक-भूमि का बीचला आवास (सम २; ठा ५, ३)

अप्पइट्ठिअ :: वि [अप्रतिष्ठित] १ अप्रति- बद्ध। २ अशरीरी, शरीर-रहित (आचा २, १६, १२)। देखो अपइट्ठिअ।

अप्पउलिय :: वि [अपक्बौषधि] नहीं पकी हुई फल-फळहरी स ५०)।

अप्पओजग :: वि [अप्रयोजक] अ-गमक, अ-निश्चायक (हेतु) (धर्मसं १२२३)।

अप्पंभरि :: वि [आत्मम्भरि] अकेलपेटू, स्वार्थी (उप ५७०)।

अप्पकंप :: वि [अप्रकम्प] निश्चल, स्थिर (ठा १०)।

अप्पकेर :: वि [आत्मीय] स्वकीय, निजी (प्रामा)।

अप्पक्क :: वि [अपक्व] नहीं पका हुआ, कच्चा (सुपा ४१३)।

अप्पग :: देखो अप्प (आव ४ ; आचा)।

अप्पगास :: पुं [अप्रकाश] प्रकाश का अभाव, अन्धकार (निचु १)।

अप्पगुत्ता :: स्त्री [दे] कपिकच्छु, कौंच वृक्ष (दे १, २९)।

अप्पजाणुअ :: वि [आत्मज्ञ] आत्मा का जानकार (प्राकृ १८)।

अप्पजाणुअ :: वि [अल्पज्ञ] अज्ञ, मूर्ख (प्राकृ १८)।

अप्पज्झ :: वि [दे] आत्म-वश, स्वाधीन (दे १, १४)।

अप्पडिआर :: वि [अप्रतिकार] इलाज-रहित, उपाय-रहित (मा ४३)।

अप्पडिकंटय :: वि [अप्रतिकण्टक] प्रतिपक्ष- शून्य, प्रतिस्पर्धि-रहित (राय)।

अप्पडिकम्म :: वि [अप्रतिकर्मन्] संस्कार- रहित, परिष्कार-वर्जित; 'सुण्णागारे व अप्प- डिकम्मे' (पणह २, ५)।

अप्पडिक्कंत :: वि [अप्रतिक्रान्त] दोष से अनिवृत, व्रत-नियम में लगे हुए दूषणों की जिसने शुद्धि न की हो वह (औप)।

अप्पांडकुट्ठ :: वि [अप्रतिक्रुष्ट] अनिवारित, नहों रोका हुआ (ठा २, ४)।

अप्पडिचक्क :: वि [अप्रचिक्र] अतुल्य, असमान (णंदि)।

अप्पडिण्ण, अप्पडिन्न :: देखो अपडिण्ण (आचा)।

अप्पडिबंध :: पुं [अप्रतिबन्ध] १ प्रतिबन्ध का अभाव। २ वि. प्रतिबन्ध-रहित (सुपा ६०८)

अप्पडिबद्ध :: देखो अपडिबद्ध (उत्त २९; पि २१८)।

अप्पडिबुद्ध :: वि [अप्रतिबुद्ध] १ अ-जागृत। २ कोमल, सुकुमार (अभि १९१)

अप्पडिम :: वि [अप्रतिम] असाधारण, अनु- पम (उप ७६८ टी ; सुपा ३५)।

अप्पडिरूव :: वि [अप्रतिरूप] ऊपर देखो (उप ७२८ टी)।

अप्पडिलद्ध :: वि [अप्रतिलब्ध] अप्राप्त (णाया १, १)।

अप्पडिलेस्स :: वि [अप्रतिलेश्य] असाधारण मनो-बलवाला (औप)।

अप्पडिलेहण :: न [अप्रतिलेखन] अपर्यवे- क्षण, अनवलोकन, नहीं देखना (आव ६)।

अप्पडिलेहणा :: स्त्री [अप्रतिलेखना] ऊपर देखो (कप्प)।

अप्पडिलेहिय :: वि [अप्रतिलेखित] अ-पर्यंवे- क्षित, अनवलोकित, नहीं देखा हुआ (उवा)।

अप्पडिलोम :: वि [अप्रतिलोम] अनुकुल (भग २५, ७; अभि २४)।

अप्पडिबरिय :: पुं [अप्रतिवृत] प्रदोष काल (बृह १)।

अप्पडिवाइ :: वि [अप्रतिपातिन्] १ जिसका नाश न हो ऐसा, नित्य (सुर १४, २६) २ अवधिज्ञान का एक भेद, जो केवल ज्ञान को बिना उत्पन्न किये नहीं जाता (विसे)

अप्पडिहत्थ :: वि [अप्रतिहस्त] असमान, अद्वितीय (से १३, १२)।

अप्पडिहय :: वि [अप्रतिहत] १ किसी से नहीं रुका हुआ (पणह २, ५) २ अखण्डित, अबाधित ; 'अप्पडिहयसासणे' (णाया १, १६) ३ विसंवाद-रहित 'अप्पडिहयवरनाणदंसणघरे' (भग १, १)

अप्पडीबद्ध :: देखो अपडिबद्ध; 'निम्ममनिरहं- कारा निअयसरीरेवि अप्पडीबद्धा' (संथा ६०)।

अप्पडि्ढय :: वि [अल्पर्द्धिक] थोड़ी ऋृद्धि-, वाला, अल्प वैभववाला (सुपा ४३०)।

अप्पण :: न [अर्पण] १ भेंट, उपहार, दान (श्रा २७) २ प्रधान रूप से प्रतिपादन (विसे १८४३)

अप्पण :: देखो अप्प = आत्मन् (आचा ; उत्त १; महा; हे ४, ४२२)।

अप्पण :: वि [आत्मीय] स्बकीय, निजका; 'नो अप्पणा पराया गुरुणो कइयावि होंति सुद्धाणं' (सट्ठि १०५)।

अप्पणय :: वि [आत्मीय] स्वकीय, निजी (पउम ५०, १६; सुपा २७९; हे २, १५३)।

अप्पणा :: अ [स्वयम्] स्वयं, आप, निज, खुद (षड्)।

अप्पणिज्ज, अप्पणिज्जिय :: वि [आत्मीय] स्वकीय, स्वीय (ठा १; आवम)।

अप्पणो :: अ [स्वयम्] आप, खुद, निज; 'विअसंति अप्पणो चेव कमलसरा' (हे २, २०९)।

अप्पण्ण :: देखो अक्कम = आ+ क्रम्। अप्पण्णाइ (प्राकृ ७३)।

अप्पण्णुअ :: देखो अप्पजाणुअ = आत्मज्ञ, अल्पज्ञ (प्राकृ १८)।

अप्पतक्किय :: वि [अप्रतिर्कित] अविरर्कित, असंभावित (स ५३०)।

अप्पत्त :: पुंन [अपात्र] १ अयोग्य, नालायक, कुपात्र; 'अण्णोवि हु अप्पत्ता पररिद्धिं नेय विसहंति' (सुर ३, ४५; गा १५७) २ वि. आधार-रहित, भाजन-शून्य (सुर १३, ४५)

अप्पत्त :: वि [अपत्र] १ पत्ता से रहित (वृक्ष) (सुर ३, ४५) २ पांख से रहित (पक्षी) (सुअ १, १४)

अप्पत्त :: वि [अप्राप्त] अलब्ध, अनवाप्त (सुर १३, ४५; ओघ ५६)। °कारि वि [°कारिन्] वस्तु का बिना स्पर्श किये ही (दूर से) ज्ञान उत्पन्न करनेवाला, 'अप्पत्तकारि णयणं' (विसे)।

अप्पत्ति :: स्त्री [अप्राप्ति] नहीं पाना (सुर ४, २१३)।

अप्पत्तिय :: पुंन [अप्रत्यय] अविश्वास (स ६६७; सुपा ५१२)।

अप्पत्तिय :: न [अप्रीति] १ अप्रीति, प्रेम का अभाव (ठा ४, ३) २ क्रोध, गुस्सा (सुअ १, १, २) ३ मानसिक पीड़ा (आचा)। ४ अपकार (निचु १)

अप्पत्तिय :: वि [अपात्रिक] पात्र-रहित, आधार-वर्जित (भग १६, ३)।

अप्पत्तियण :: न [अप्रत्ययन] अविश्वास, अश्रद्धा (उप ३१२)।

अप्पत्थ :: वि [अप्रार्थ्य] १ प्रार्थना करने के अयोग्य। २ नहीं चाहने लायक (सुपा ३३६)

अप्पत्थण :: न [अप्रार्थन] १ अयाञ्चा। २ अनिच्छा, अचाह (उत्त ३२)

अप्पत्थिय :: वि [अप्रार्थित] १ अयाचित। २ अनभिलषित, अवांछित (जं ३)। °पत्थय, °पत्थिय वि [°प्रार्थक, °र्थिक] मरणार्थी, मौत का चाहनेवाला; 'कीस णं एस अप्पत्थिय- पत्थए दुरंतपंतलक्खणे' (भग ३, २; णाया १, ९; पि ७१)

अप्पत्थुय :: वि [अप्रस्तुत] प्रसंग के अनुपयुक्त, विषयान्तर (सुपा १०९)।

अप्पदुट्ठ :: वि [अप्रतिद्विष्ट] जिसपर द्वेष न हो वह, प्रीतिकर (ओघ ७४४)।

अप्पदुस्समाण :: वकृ [अप्रद्विष्यत्] द्वेष नहीं करता हुआ (अंत १२)।

अप्पप्प :: वि [अप्राप्य] प्राप्त करने के अशक्य (विसे २६८७)।

अप्पभाय :: न [अप्रभात] १ बड़ी सबेर। २ वि. प्रकाश-रहित, कान्ति-बर्जित; 'अज्ज पुण अप्पभाए गयणे' (सुर ११, ११०)

अप्पभु :: वि [अप्रभु] १ असमर्थ (भग) २ पुं, मालिक से भिन्न, नौकर वगैरह (धर्म ३)

अप्पमज्जिय :: वि [अप्रमार्जित] साफ नहीं किया हुआ (उवा)।

अप्पमत्त :: वि [अप्रमत्त] प्रमाद-रहित, साव- धान, उपयोगवाला (पणह २, ५; हे १, २३१; अभि १८५)। °संजय पुंस्त्री [°संयत] १ प्रमाद-रहित मुनि। २ न. सातवां गुण-स्थानक (भग ३, ३)

अप्पमाण :: देखो अपमाण (बृह ३; पणह २, ३); 'अइक्कमित्ता जिणरायआणं, तवंति तिव्वं तवमप्पमाणं। पढंति नाणं तह दिंति दाणं, सर्व्वपि तेसिं कयमप्पमाणं' (सत्त २०)

अप्पमाय :: पुं [अप्रमाद] प्रमाद का अभाव (निचु १)।

अप्पमेय :: विं [अप्रमेय] १ जिसका माप न हो सके, अनन्त (पउम ७५, २३) २ जिसका ज्ञान न हो सके (धर्म १) ३ प्रमाण से जिसका निश्चय न किया जा सके वह (पणह १, ४)

अप्पय :: देखो अप्प (उव; पि ४०१)।

अप्परिचत्त :: वि [अपरित्यक्त] नहीं छोड़ा हुआ, अपरिमुक्त (सुपा ११०)।

अप्परिवडिय :: वि [अपरिपतित] अनष्ट, विद्यमान (श्रा ६)।

अप्पलहुअ :: वि [अप्रलधुक] महान्, बड़ा (से १, १)।

अप्पलीण :: वि [अप्रलीन] असंबद्ध, सङ्ग- वर्जित (सुअ १, १, ४)।

अप्पलीयमाण :: वकृ [अप्रलीयमान] आसक्ति नहीं करता हुआ (आचा)।

अप्पवित्त :: वि [अप्रवृत्त] प्रवृत्ति-रहित (पंचा १४)।

अप्पवित्ति :: स्त्री [अप्रवृत्ति] प्रवृत्ति का अभाव (धर्म १)।

अप्पसंत्त :: वि [अप्रशान्त] अशान्त, कुपित (पंचा २)।

अप्पसंसणिज्ज :: वि [अप्रशंसनीय] प्रशंसा के अयोग्य (तंदु)।

अप्पसज्झ :: वि [अप्रसह्य] १ सहने के अश- क्य। २ सहन करने के अयोग्य (वव ७)

अप्पसण्ण :: वि [अप्रसन्न] उदासीन (नाट)।

अप्पसत्थ :: वि [अप्रशस्त] अचारु, असुन्दर, खराब (ठा ३, ३; भग; श्रा ४)।

अप्पसत्तिय :: वि [अल्पसत्त्विक] अल्प सत्त्व वाला, 'सुसमत्थाविसमत्था कीरंति अप्पसत्तिया पुरिसा' (सुअ १, ४, १)।

अप्पसारिय :: वि [अप्रसारिक] निर्जन, विजन (स्थान) (उप १७०)।

अप्पहवंत :: वकृ [अप्रभवत्] समर्त नहीं होता हुआ, नहीं पहुंच सकता हुआ (स ३०५)।

अप्पहिय :: वि [अप्रथित] १ अविस्तृत। २ अप्रसिद्ध (सुपा १२५)

अप्पअप्पि :: स्त्री [दे] उत्कण्ठा, औत्सुक्य (पिंग)।

अप्पउड :: वि [अप्रावृत] अनाच्छादित, नग्‍न (सुअ २, २)।

अप्पाउय :: वि [अल्पायुष्क] थोड़ा आयुवाला (ठा ३, ३; पउम १४, ३०)।

अप्पाउरण :: वि [अप्रावरण] १ नग्‍न। २ न. वस्त्र का अभाव। ३ वस्त्र नहीं पहनने का नियम (पंचा ५; पव ४)

अप्पाण :: देखो अप्प = आत्मन् (पणह १, २; ठा २, २; प्राप्त; हे ३, ५६)। °रक्खि वि [°रक्षिन्] आत्मा की रक्षा करनेवाला (उत्त ४)।

अप्पबहु, अप्पाबहुय :: न [अल्पबहुत्व] न्यूनाधिकता, कम-बेशीपन (नव ३२; ठा ४, २)।

अप्पावय :: वि [अप्रावृत] १ वस्त्र-रहित, नग्‍न (पणह २, १) २ खुला हुआ, बन्द नहीं किया हुआ (सुअ १, ५, १)

अप्पाविय :: वि [अर्पित] दिया हुआ (सुपा ३३१)।

अप्पाह :: सक [सं + दिश्] संदेश देना, खबर पहुंचाना। अप्पाहइ (षड् ; हे ४, १८०)। अप्पाहेइ (गा ६३२)। संकृ. अप्पाहट्‍टु, अप्पाहिवि (पि ५७७; भवि)।

अप्पाह :: सक [आ + भाप्] संभाषण करना। अप्पाहइ (प्राकृ ७०)।

अप्पाह :: सक [अधि + आपय्] पढ़ाना, सीखाना। कर्म अप्पाहिज्जइ (से १०, ७४)। चकृ. अप्पाहेंत (से १०, ७५)। हेकृ. अप्पा- हेउं (पि २८६)।

अप्पाहणी :: स्त्री [दे] संदेश, समाचार (पिंड ४३०)।

अप्पाहण्ण :: न [अप्राधान्य] मुख्यता का अभाव, गौणता (पंचा १; भास ११)।

अप्पहिय :: वि [संदिष्ट] संदेश दिया हुआ (भवि)।

अप्पाहिय :: वि [अध्यापित] १ पाठित, शिक्षित (से ११, ३८; १४, ६१) २ न. सीख, उपदेश, 'अप्पाहियसरणं' (उप ५६२ टी)

अप्पिडि् :: विढय [अल्पर्द्धिक] अल्प संपत्ति वाला (भग ; पउम २, ७४)।

अप्पिण :: सक [अर्पय्] अर्पण करना, भेंट करना, देना; 'अहीरोवि वारगेण अप्पिणइ' (आक)। अप्पिणामि (पि ५५७)। अप्पि- णंति (विसे ७ टी)।

अप्पिणण :: न [अर्पण] दान, भेंट (उप १७४)।

अप्पिणिच्चिय :: वि [आत्मीय] स्वकीय, निजी (भग)।

अप्पिय :: वि [अर्पित] १ दिया हुआ, भेंट किया हुआ (बिपा १, २; हे १, ६३) २ विवक्षित, प्रतिपादन करने को इष्ट; 'जह दवियमप्पियं तं तहेव अत्थित्ति पज्जवनयस्स' (सम्म ४२) ३ पुं पर्यायार्थिक नय, अप्पि- यमयं विसेसो सामन्नमणप्पिनयस्स' (विसे)

अप्पिय :: वि [अप्रिय] १ अनिष्ट, अप्रतिकर (भग १, ५; विपा १, १) २ न मन का दुःख। ३ चित्त की शंका, 'अंदु णाईणं व सुहीणं वा अप्पियं दट्‍ठु एगता होंति' (सुअ १, ४, १, १४)

अप्पीइ :: स्त्री [अप्रीति] अप्रेम, अरुचि (सुपा २६४)।

अप्पीकय :: वि [आत्मीकृत] आत्मा से संबद्ध (विसे)।

अप्पुट्ठ :: वि [अस्पृष्ट] नहीं छुआ हुआ, असं- युक्त; 'जं अप्पुट्ठा भावा ओहिनाणस्स हुंति पच्चक्खा' (सम्म ८१)।

अप्पुट्ठ :: वि [अपृष्ट] नहीं पूछा हुआ (सुपा १११)।

अप्पुण्ण :: वि [दे. आपूर्ण] पूर्ण (षड्)।

अप्पुल्ल :: वि [आत्मीय] आत्मा में उत्पन्न (हे २, १६३; षड्; कुमा)।

अप्पुव्व :: देखो अपुव्व; 'अप्पुव्वो पडिबंघो जीवियमवि चयइ मह कज्जे' (सुपा ३११)।

अप्पेयव्व :: देखो अप्प = अपँय्।

अप्पेलि :: स्त्री [अप्रज्वलिता] कच्ची फल- फुलहरी (श्रा २१)।

अप्पोल्ल :: वि [दे] पील-रहित, नक्कर (बृह ३)।

अप्फडिअ :: वि [आस्फलित] आस्फलित, आहत (विसे २९८२ टी)।

अप्फाल :: सक [आ + स्फालय्] १ आस्फो- टन करना, हाथ से आघात करना। २ ताडना, पीटना। ३ ताल ठोकना। अप्फालेइ (महा)। कवकृ. अप्फालिज्जंत (राय)। संकृ. अप्फा- लिऊण (काप्र १८९; महा)

अप्फालण :: न [आस्फलन] १ ताल ठोकना। २ ताड़न, आघात (गा ५४८; से ५, २२ ; सुपा ८७)

अप्फालिय :: वि [आस्फलित] १ हाथ से ताडित, आहत (पि ३११) २ वृद्धि प्राप्त, उन्नत (राज)

अप्फुंद :: सक [आ + कम] १ आक्रमण करना। २ जाना, 'संझाराओ व्व णहं अप्फुंदइ मलिअरविअरं कुसुमरओ' (से ६, ५७)

अप्फुडिय :: देखो अफुडिय (जं २; दस ६)।

अप्फुण्ण :: वि [दे. आक्रान्त] आक्रान्त, दबाया हुआ (हे ४, २५८)।

अप्फुण्ण :: वि [अपूर्ण] अपूर्ण, अधूरा (गउड)।

अप्फुण्ण, अप्फुन्न :: वि [दे. आपूर्ण] पूर्ण, भरा हुआ (दे १, २० ; सुर १०, १७०; पाअ); 'महया पुत्तसोएणं अप्फुन्ना समाणी' (निर १, १)।

अप्फुल्लय :: देखो अप्पुल्ल (गउड)।

अप्फोआ :: स्त्री [दे] वनस्पति-विशेष (पण्ण १)।

अप्फोड :: सक [आ + स्फोटय्] १ आस्फा- लन करना, हाथ से ताल ठोकना। २ ताड़न करना। वकृ. अप्फोडत (णाया १, ८; सुर १३, १८२)

अप्फोडण :: न [आस्फोटन] आस्फालन (गउड)।

अप्फोडिय, अप्फोलिय :: वि [आस्फोटित] १ आस्फा- लित, आहत। २ न. आस्फा- लन, आघात (पणह १, ३; कप्प)

अप्फोया :: स्त्री [दे] वनस्पति-विशेष (राय ८० टी)।

अप्फोव :: वि [दे] वृक्षादि से व्याप्त, गहन, निबिड (उत्त १८)।

अफल :: वि [अफल] निष्फल, निरर्थक (द्र १)।

अफाय :: पुं [दे] भूमि-स्फोट, बनस्पति-विशेष (पण्ण १)।

अफास :: वि [अस्पर्श] १ स्पर्शं-रहित (भग) २ खराब स्पर्श वाला (सुअ १, ५, १)

अफासुय :: वि [अप्रासुक] १ सचित, सजीव (भग ५, ६) २ अग्राह्य (भिक्षा) (ठा ३, १)

अफुड :: वि [अस्फुट] अस्पष्ट, अव्यक्त (सुर ३, १०९; २१३; गा २९६; उप ७२८ टी)।

अफुडिअ :: वि [अस्फुटित] अखण्डित, नहीं टुटा हुआ (कुमा)।

अफुस :: वि [अस्पृश्य] स्पर्श करने के अयोग्य (भग)।

अफुसिय :: वि [अभ्रान्त] भ्रम-रहित (कुमा)।

अफुस्स :: देखो अफुस (ठा ३, २)।

अबंभ :: न [अब्रह्म] मैथुन, स्त्री-सङ्ग (पणह १, ४) °चारि वि [°चारिन्] ब्रह्मचर्य नहीं पालनेवाला (पि ४०५; ५१५)।

अबद्धिय :: पुं [अबद्धिक] 'कर्मो का आत्मा से स्पर्शं ही होता है, न कि क्षीर-नीर की तरह ऐक्य' ऐसा माननेवाला एक निह्णव-- जैनाभास। २ न. उसका मत (ठा ७; विसे)

अबल :: वि [अबल] बल रहित, निर्बल (पउम ४८, ११७)।

अबला :: स्त्री [अबला] स्त्री, महिला, जानना (पाअ)।

अबस :: पुं [अबश] वडवानल (से १, १)।

अबहिट्ठ :: न [दे. अबहत्थि] मैथुन, स्त्री-सङ्ग (सुअ १, ९)।

अबहिम्मण :: वि [अबहिर्मनस्क] धर्मिष्ठ, धर्म-तत्पर (आचा)।

अबहिल्लेस, अबहिल्लेस्स :: वि [अबहिलेश्य] जिसकी चित्त-वृत्ति बाहर न घूमती हो, संयत (भग; पणह २, ५)।

अबाधा :: देखो अबाहा (जीव ३)।

अबाह :: पुं [अबाह] देश-विशेष (इक)।

अबाहा :: स्त्री [अबाधा] १ बाध का अभाव (ओघ ५२ भा; भग १४, ८) २ व्यवधान, अन्तर (सम १९) ३ बाध-रहित समय (भग)

अबाहिर :: अ [अबहिस्] बाहर नहीं, भीतर (कुमा)।

अबाहिरय :: वि [अबाह्य] भीतरी, आभ्यन्तर (वव १)।

अबाहिरिय :: वि [अबाहिरिक] जिसके किले के बाहर वसति न हो ऐसा गाँव या शहर (बृह १)।

अबीय :: देखो अवीय (कप्प)।

अबुज्झ :: अ [अबुद्‍ध्वा] नहीं जान कर, 'केसिंचि तक्काइ अबुज्झ भावं' (सुअ १, १३, २०)।

अबुद्ध :: वि [अबुध] १ अजान, मुर्खं। (दस २) २ अविवेकी (सुअ १, ११)

अबुद्धिय, अबुद्धीय :: वि [अबुद्धिक] बुद्धि-रहित, मुर्खं (णाया १, १७; सुअ १, २, १; पउम ८, ७४)।

अबुह :: वि [अबुध] १ अजान। (सुअ १, २, १; जी १) २ मुर्ख, बेवकूफ (पणह १, १)

अबोह :: वि [अबोध] १ बोध-रहित, अजान। २ पुं. ज्ञान का अभाव (धऱ्म १)

अबोहि :: पुंस्त्री [अबोधि] १ ज्ञाान का अभाव (सुअ २, ६) २ जैन धर्म की अप्राप्ति। ३ बुद्धि- विशेष का अभाव (भग १, ९) ४ मिथ्या- ज्ञान, 'अबोर्हि परियाणामि बोहिं उवसंप- ज्जामि' (आव ४) ५ वि. बोधि-रहित (भग)

अबोहिय :: न [अबोधिक] ऊपर देखो (दस ६; सुअ १, १, २)।

अबं° :: स्त्री. ब. [अप्°] पानी, जल (श्रा २३)।

अब्बंभ :: देखो अबंभ (सुपा ३१०)।

अब्बंभण्ण, अब्बम्बण्ण :: न [अब्रह्यण्य] ब्रह्मण्य का अभाव (नाट; ७९)।

अब्बीय :: देखो अवीय (चेइय ७३८)।

अब्बुद्धसिरी :: स्त्री [दे] इच्छा से भी अधिक फल की प्राप्ति (दे १, ४२)।

अब्बुय :: पुं [अर्बुद] पर्वत-विशेष, जो आज- कल 'आबु' नाम से प्रसिद्ध है (राज)।

अब्बुय :: न [अर्बुद] जमा हुआ शुक्र और शोणित (तंदु ७)।

अब्भ :: न [अभ्र] १ आकाश। (राय ; पाअ) २ मेघ, बादल (ठा ४, ४; पाअ)

अब्भ :: सक [आ + भिद्] भेदन करना। अब्भे (आचा १, १, २, ३)।

अब्भंग :: सक [अभि+ अञ्ज्] तैल आदि से मर्दन करना, मालिश करना। अब्भंगइ, अब्भंगेइ (महा)। संकृ. अब्भंगिउं, अब्भं- गेत्ता, अब्भंगित्ता (ठा ३, १; पि २३४)। हेकृ. अब्भंगेत्तए (कस)।

अब्भंग :: पुं [अभ्यङ्ग] तैल-मर्दन, मालिश (निचु ३)।

अब्भंगण :: न [अभ्यञ्जन] ऊपर देखो (णाया १, १; महा)।

अब्भंगिएल्लय, अब्भंगिय :: वि [अभ्यक्त] तैलादि से मर्दित, मालिश किया हुआ (ओघ ८२; कप्प)।

अब्भंतर :: न [अभ्यन्तर] १ भीतर में (गा ६२३) २ वि. भीतर का, भीतरी (राय ; (महा। ३ समीप का, नजदीक का (सम्बन्धी) (ठा ८)। °ठाणिज्ज वि [°स्थानीय] नजदीक के सम्बन्धी, कौटुम्बिक लोग (विपा १, ३)। °तव पुं [°तपस्] विनय, वैया- वृत्य, प्रायश्चित, स्वाध्याय, ध्यान और कायो- त्सर्ग रूप अन्तरंग तप (ठा ६)। °परिसा स्त्री [°परिषद्] मित्र आदि समान जनो की सभा (राय)। °लद्धि स्त्री [°लब्धि] अवधि- ज्ञान का एक भेद (विसे)। °संबुक्का स्त्री स्त्री [°शम्बूका] भिक्षा की एक चर्या, गति- विशेष (ठा ६)। °सगडुद्धिया स्त्री [°शक- टोर्द्धिका] कायोत्सर्ग का एक दोष (पव ५)

अब्भंतर :: वि [अभ्यन्तर] भीतरी, भीतर का (जं ७; ठा २, १; पण्ण ३६)।

अब्भंसि :: वि [अभ्रंशिन्] १ भ्रष्ट नहीं होनेवाला (नाट) २ अनष्ट (कुमा)

अब्भक्खइज्ज :: देखो अब्भक्खा

अब्भक्खण :: न [दे] अकीर्त्ति, अपयश (दे १, ३१)।

अब्भक्खआ :: सक [अभ्या + ख्या] झुठा दोष लगाना, दोषारोप करना। अब्भक्खाइ (भग ५; ७)। कृ. अब्भक्खइज्ज (आचा)।

अब्भक्खाण :: न [अभ्याख्यान] झुठा अभि- योग, असत्य दोषारोप (पणह १, २)।

अब्भट्ठ :: देखो अब्भत्थिय; 'उ' (? अ) ब्भट्ठपरि- न्नायं' (पिंड २८१)।

अब्भड :: अ [दे] पीछे जाकर (हे ४, ३९५)।

अब्भणुजाण :: सक [अभ्यनु + ज्ञा] अनुमति, देना, सम्मति देना। अब्भणुजाणिस्सदि (शौ) (पि ५३४)।

अब्भणुण्णा :: [अभ्यनुज्ञा] अनुमति, सम्मति (राज)।

अब्भणुण्णाय :: वि [अभ्यनुज्ञान] अनुमत, संमत (ठा ५, १)।

अब्भणुन्ना :: देखो अब्भणुण्णा।

अब्भणुन्नाय :: देखो अब्भणुण्णाय (णाया १, १; कप्प; सुर ३, ८८)।

अब्भण्ण :: न [अभ्यर्ण] १ निकट, नजदीक। २ वि. समीपस्थ (पउम ९८, ५८)। °पुर न [°पुर] नगर-विशेष (पउम ९८, ५८)

अब्भत्त :: वि [अभ्यक्त] १ तैलादि से मर्दित, मालिश किया हुआ। २ सिक्त, सींचा हुआ ; 'दिसि-दिसि चब्भत्तभूरिकेयारो, पत्तो वासा- रत्तो' (सुर २, ७८)

अभ्यस्थ :: वि [अभ्यस्त] पठित, शिक्षित (सुपा ९७)।

अब्भत्थ :: सक [अभि + अर्थय्] १ सत्कार करना। २ प्रार्थना करना। अब्भत्थम्ह (पि ४७०)। संकृ. अब्भत्थइअ, अब्भत्थिअ (नाट)। कृ. अब्भत्थणीय (अभि ७०)

अब्भत्थण :: न [अभ्यर्थन] १ सत्कार। २ प्रार्थना (कप्पू; हे ४, ३८४)

अब्भत्थणा, अब्भत्थणिया :: स्त्री [अभ्यर्थना] १ आदर, सत्कार (से ४, ४८) २ प्रार्थना, विज्ञाप्ति (पंचा ११; सुर १, १९); 'न सहइ अब्भत्थणियं, असइ गयाणंपि पिट्ठिमंसाइ। दट् ठुण भासुरमुहं, खलसीहं को न बीहेइ' (वज्जा १२)

अब्भत्थिय :: वि [अभ्यर्थित] १ आदृत, सत्कृत। २ प्रार्थित (सुर १, २१)

अब्भन्न :: देखो अब्भण्ण (पाअ)।

अब्भपडल :: न [दे] उपधातु-विशेष, भोडल, अभ्रक, अबरक (उत्त ३६, ७५)।

अब्भपिसाअ :: पुं [दे. अभ्रपिशाच] राहु (दे १, ४२)।

अब्भय :: पुं [अर्भक] बालक, बच्चा (पाअ)।

अब्भय :: पुं [अभ्रक] अबरख (जी ४)।

अब्भरहिय :: वि [अभ्यर्हित] सत्कार-प्राप्त, गौरवशाली (बृह १)।

अब्भवहरिय :: वि [अभ्यवहृत] भुक्त (सुख २, १७)।

अब्भवहार :: पुं [अभ्यवहार] भोजन, खाना (विसे २२१)।

अब्भवालुया :: स्त्री [दे] अभ्रक का चूर्ण (उत्त ३६, ७५)।

अब्भव्व :: देखो अभव्व; 'अब्भव्वाणं सिद्धा णंतगुणा णंतया भव्वा' (पसं ८४)।

अब्भस :: सक [अभि + अस्] सीखना, अभ्यास करना। वकृ. अब्भसंत (स ६०६)। कृ. अब्भसियव्व (सुर १४, ८५)।

अब्भसण :: न [अभ्यसन] अभ्यास (दसनि १)।

अब्य़सिय :: वि [अभ्यस्त] सीखा हुआ (सुर १, १८०; ६, १९)।

अब्भहर :: पुं [दे] अभ्रक (पंच ३, ३९)।

अब्भहिय :: वि [अभ्यधिक] विशेष, ज्यादा (सम २; सुर १, १७०)।

अब्भाअच्छ :: वि [अभ्या + गम्] संमुख आना, सामने आना। अब्बाअच्छइ (षड्)।

अब्भाइक्ख :: देखो अब्भक्खा। अब्भाइक्खइ, अब्भाइक्खेजा (आचा)।

अब्भागम :: पुं [अभ्यागम] १ संमुखागमन। २ समपी स्थिति (निचु २)

अब्भागमिय, अब्भागय :: वि [अभ्यागत] १ संमु- खागत। २ पुं. आगन्तुक, पाहुन, अतिथि (सुअ १, २, ३; सुपा ५)

अब्भायत्त, अब्भायत्थ :: वि [दे] प्रत्यागत, वापस आया हुआ (दे १, ३१)।

अब्भास :: /?/पुं. अभ्यास गुणकार (अणु ७४; पिंड ८५५)।

अब्भास :: न [अभ्यास] १ निकट, नजदीक (से ९, ६०; पाअ) २ वि. समीपवर्ती, पार्श्‍व- स्थित (पाअ) ३ पुं. शिक्षा, पढ़ाई, सीख। ४ आवृत्ति (पाअ ; बृह १) ५ आदत (ठा ४, ४) ६ आवृत्ति से उत्पन्न संस्कार (धर्म २) ७ गणित का संकेत-विशेष (कम्म ४, ७८; ८३);

अब्भास :: सक [अभि + अस्] अभ्यास करना, आदत डालना; 'जं अब्भासइ जीवो, गुणं च दोसं च एत्थ जम्मम्मि। तं पावइ पर-लोए, तेण य अब्भास-जोएण' (धर्म २ ; भवि)।

अब्भाहय :: वि [अभ्याहत] आघात-प्राप्त (महा)।

अब्भिग :: देखो अब्भंग = अभि + अंज्। प्रयो. अब्भिंगावेइ (पि २३४)।

अब्भिंग :: देखो अब्भंग = अभ्यंग (णाया १, १८)।

अब्भिंगण :: देखो अब्भंगण (कप्प)।

अब्भिंगिय :: देखो अब्भांगय (कप्प)।

अब्भितर :: देखो अब्भंतर (कप्प; सं ७; पणह ३, ५; णाया १, १३)।

अब्भितरओ :: अ [अभ्यन्तरस] १ भीतर से। २ भीतर में (आवम)

अब्भितरिय :: वि [आभ्यन्तरिक] भीतर का, अन्तरंग (सम ६७; कप्प; णाया १, १)।

अब्भिंतरुद्धि :: पुं [अभ्यन्तरोर्ध्विन्] कायो- त्सर्ग का एक दोष, दोनों पैर के अंगुठों को मिलाकर और पृश्‍नियों को बाहर फैलाकर किया जाना ध्यान-विशेष (चेइय ४८७)।

अब्भिट्ठ :: वि [दे] संगत, सामने आकर भिड़ा हुआ; 'हत्थी हत्थीण समं अब्भिट्ठो रहवरो सह रहेणं (पउम ६, १८२; ९८, २७)।

अब्भिड :: सक [सं + गम्] संगति करना, मिलना। अब्भिडइ (कुमा ; हे ४, १६४)। अब्भिडसु (सुपा १५२)।

अब्भिडिअ :: वि [संगत] संगत, युक्त (पाअ; दे १, ७८)।

अब्भिडिअ :: वि [दे] सार, मजबूत (दे १, ७८)।

अब्भिण्ण :: वि [अभिन्न] भेदरहित (धर्म २)।

अब्भुअअ :: देखो अब्भुदय (से १५, ९५; स ३०)।

अब्भुक्ख :: सक [अभि + उक्ष्] सींचन करना। वकृ. अब्भुक्खंत (वज्जा ८६)।

अब्भुक्खण :: न [अभ्युक्षण] सिंचन करना, छिड़काब (स ५७९)।

अब्भुक्खणीया :: स्त्री [अभ्युक्षणीया] सीकर, आसार, पवन से गिरता जल (बृह १)।

अब्भुक्खिय :: वि [अभ्युक्षित] सिक्त (स ३४०)।

अब्भुगम :: पुं [अभ्युद्रम] उदय, उन्नति (सुअ १, १४)।

अब्भुग्गय :: वि [अभ्युद्नत] १ उन्नत। २ उत्पन्न (णाया १, १) ३ ऊँचा किया हुआ, उठाया हुआ (औप) ४ चारों तरफ फैला हुआ (चंद १८)

अब्भुग्गय :: वि [अभ्रोद्‌गत] ऊँचा, उन्नत (भग १२, ५)।

अब्भुच्चय :: पुं [अभ्युच्चय] समुच्चय (भास ९५)।

अब्भुज्जय :: वि [अभ्युद्यत] १ उद्यत, उद्यम- युक्त (णाया १, ५) २ तैयार (णाया १, १; सुपा २२२) ३ पुं. एकाकी विहार (घम्म १२ टी) ४ जीनकल्पिक मुनि (पंचव ४)

अब्भुट्ठ :: उभ [अभ्युत +स्था] १ आदर करने के लिए खड़ा होना। २ प्रयत्‍न करना। ३ तैयारी करना। अब्भुट्‌ठेइ (महा)। वकृ. अब्भुट्ठमाण (स ४१६)। संकृ. अब्भुट्ठित्ता (भग)। हेकृ. अब्भुट्ठित्तए (ठा २, १)। कृ. अब्भुट्ठेयव्व (ठा ८)

अब्भुट्ठण :: न [अभ्युत्थान] आदर के लिए खड़ा होना (से १०, ११)।

अब्भुट्ठा :: देखो अब्भुट्ठ।

अब्भुट्ठाण :: देखो अब्भुट्ठण (सम ५१; सुपा ३७६)।

अब्भुट्‍ठिय :: वि [अभ्युत्थित] १ सम्मान करने के लिए जो खड़ा हुआ हो (णाया १, ८) २ उद्यत, तैयार; 'अब्भुट्ठिएसु मेहेसु' (णाया १, १; पडि)

अब्भुट्‌ठेत्तु :: [अभ्युत्थातृ] अभ्युत्थान करनेवाला (ठा ५, १)।

अब्भुण्णय :: वि [अभ्युन्नत] १ उन्नत, ऊँचा (पणह १, ४)

अब्भुण्णयंत :: वकृ. [अभ्युन्नयत्] १ ऊंचा करता हुआ। २ उत्तेजित करता हुआ, 'तीएवि जलंर्तिं जीववत्तिमब्भुणणअंतीए' (गा २६४)

अब्भुत्त :: अक [स्‍ना] स्‍नान करना। अब्भुत्तइ (हे ४, १४)। वकृ. अब्भुत्तंत (कुमा)।

अब्भुत्त :: अक [प्र + दीप्] १ प्रकाशित होना। २ उत्तेजित होना। अब्भुत्तइ (हे ४, १५२)। अब्भुत्तए (कुमा)। प्रयो. अब्भुत्तेंति (से ५, ५९)

अब्भुत्तिअ :: वि [प्रदीप्त] १ प्रकाशित। २ उत्तेदित (से १५, ३८)

अब्भुत्थ :: वि [अभ्युत्थ] उत्पन्न, 'पुव्वभवब्भु- त्थसिणोहाओ' (महा)।

अब्भुत्थ, अब्भुत्था :: देखो अब्भुट्ठा। वकृ. अब्भुत्थंत (से १२, १८)। संकृ. अब्भु- त्थित्ता (काल)।

अब्भुदय :: पुं [अभ्युदय] १ उन्नति, उदय (प्रयौ २९); 'अब्भुयभूयब्भूदयं लद्‌घूणं नरभवं सुदीहद्धं' (उप ७६८ टी)

अब्भुद्धर :: सक [अभ्युद् + धृ] उद्धार करना। अब्भुद्धरामि (भवि)।

अब्भुद्धरण :: न [अभ्युद्धरण] १ उद्धार (स ५४३) २ वि. उद्धार-कारक (हे ४, ३६४)

अब्भु्न्नय :: देखो अब्भुण्णय णाया १, १)।

अब्भुब्भड :: वि [अभ्युद्भट] अत्युद्भट, विशेष उद्धत (भवि)।

अब्भुय :: न [अद्‍भुत] १ आश्चर्य, विस्मय (उप ७६८ टी) २ वि. आश्चर्य-कारक (राय ; सुपा; ३५) ३ पुं. साहित्य शास्त्र प्रसिद्ध रसों में से एक; 'विम्हयकारो अपुव्वो, अभूयपुव्वो य जो रसो होइ। हरिसविसाउप्पत्ती, लक्खणओ अब्भुओ नाम' (अणु)

अब्भुवगच्छ :: सक [अभ्युप + गम्] १ स्वीकार करना। २ पास जाना। प्रयो. संकृ. अब्भुवगच्छाविय (पि १६३)

अब्भुवगच्छाविअ :: वि [अभ्युपगमित] स्वीकार कराया हुआ, 'ताहे तेहिं कुमारेहिं संबो मज्जं पाएत्ता अब्भुवगच्छाविओ विगयमओ चिंतेइ' (आफ पृ ३०)।

अब्भुवगम :: पुं [अभ्युपगम] १ स्वीकार, अङ्गीकार (सम १४५; स १७०) २ तर्क- शास्त्र-प्रसिद्ध सिद्धान्त-विशेष (बृह १; सुअ १, १२)

अब्भुवगमणा :: स्त्री [अभ्युपगमना] स्वीकार, अङ्गीकार (उप ८०५)।

अब्भुवगय :: वि [अभ्युपगत] १ स्वीकृत (सुर ६, ५८) २ समीप में गया हुआ (आचा)

अब्भुववण्ण :: वि [अभ्युपपन्न] अनुग्रह-प्राप्त, अनुगृहीत (नाट; पि १६३; २७९)।

अब्भुववत्ति :: स्त्री [अभ्युपपत्ति] अनुग्रह, मेहरबानी अभि १०४)।

अब्भुवे :: सक [अभ्युप + इ] स्वीकार करना। अब्भुवेज्जामि (णाया १, १६ टी, पत्र २०५)।

अब्भो :: देखो अव्वो (षड्)।

अब्भोक्खिय :: वि [अभ्युक्षित] सिक्त; सींचा हुआ (सुर ९, १९१)।

अब्भोज्ज :: वि [अभोज्य] भोजन के अयोग्य (पिंड १९०)।

अब्भोय :: (अप) देखो आभोग (भवि)।

अब्भोवगमिय :: वि [आभ्युपगमिक] स्वेच्छा से स्वीकृत। °स्त्री [°।] स्वेच्छा से स्वीकृत तपश्चर्यादि की वेदना (ठा ४, ३)।

अब्हिड :: देखो अब्भिड। अब्हिडइ (षड्)।

अब्हुत्त :: देखो अब्भुत्त अब्हुत्तइ (षड्)।

अभग्ग :: वि [अभग्न] १ अखण्डित, अत्रुटित (पडि) २ इस नाम का एक चोर (विपा १, १)

अभत्त :: वि [अभक्त] १ भक्ति नहीं करनेवाला (कुमा) २ न. भोजन का अभाव (वव ७)। °ट्ठ पुं [°र्थ] उपवास (आचु; पडि; सुपा ३१७)। °ट्ठिय वि [°र्थिक] उपोषित, जिसने उपवास किया हो वह (पंचव २)

अभय :: न [अभय] १ भय का अभाव, धैर्य (राय) २ जीवित, मरण का अभाव (सुअ १, ६) ३ वि. भय-रहित, निर्भीक (आचा) ४ पुं. राजा श्रेणिक का एक विख्यात पुत्र और मन्त्री, जिसने भगबान् महावीर के पास दीक्षा ली थी (अनु १; णाया १, १)। °कुमार पुं [°कुमार] देखो अनन्तरोक्त अर्थ (पडि)। °दय वि [°दय] भय-विनाशक, जीवित-दाता (पडि)। °दाण न [°दान] जीवित-दान (पणह २, ४)। °देव पुं [°देव] कईएक विख्यात जैनाचार्य और ग्रन्थकारों का नाम (मुणि १०८७४; गु १४; ती ४०; सार्ध ७३)। °प्पदाण न [°प्रदान] जीवित का दान (सुअ १, ६)। °वत्त न [°वत्त्व] निर्भयता, अभय (सुपा १८)। °सेण पुं [°सेन] एक राजा का नाम (पिंड)

अभयंकर :: वि [अभयंकर] अभय देनेवाला, अहिंसक (सुअ १, ७, २८)।

अभयकरा :: स्त्री [अभयकरा] भगवान् अभि- नन्दन की दीक्षा-शिविका (विचार १२९)।

अभया :: स्त्री [अभया] १ हरीतकी, हर्रे, हरडई (निचु १५) २ राजा दधिवाहन की स्त्री का नाम (ती ३५)

अभयारिट्ठ :: न [अभयारिष्ट] मद्य-विशेष (सुअ १, ८)।

अभवसिद्धिय, अभवसिद्धीय :: पुं [अभवसिद्धिक] अभव्य, मुक्ति के लिए अयोग्य जीव (ठा २, २; णंदिच; ठा १)।

अभविय, अभनव्व :: वि [अभव्य] १ असुन्दर, अचारु (विसे) २ पुं. मुक्ति के लिये अयोग्य जीव (विसे; कम्म ३, २३)

अभाअ :: वि [अभाग] अस्थान, अयोग्य स्थान (से ८, ४२)।

अभाइ :: वि [अभागिन्] अभागा, हत-भाग्य, कमनसीब (चारु २६)।

अभागधेज्ज :: वि [अभागधेय] ऊपर देखो (पउम २८, ८९)।

अभाव :: पुं [अभाव] १ ध्वंस, नाश (बृह १) २ अविद्यमानता, असत्व (पंचा ३) ३ असम्भव (दस १) ४ अशुभ परिणाम (उत्त १)

अभाविय :: वि [अभावित] अयोग्य, अनुचित (ठा १०; बृह ३)।

अभावुग :: वि [अभावुक] जिसपर दूसरे के संग की असर न पड़ सके वह, 'विसहरमणी अभावुगदव्वं जीवो उ भावुगं तम्हा' (सुपा १७५; ओघ ७७३)।

अभासग, अभासय :: वि [अभाषक] १ बोलने की शक्ति जिसको उत्पन्न न हुई हो वह। २ नहीं बोलनेवाला। ३ पुं. केवल त्वग्- इन्द्रियवाला, एकेन्द्रिय जीव। ४ मुक्त आत्मा (ठा २, ४ ; भग; अणु)

अभासा :: स्त्री [अभाषा] १ असत्य वचन। २ सत्य-मिश्रित असत्य वचन (भग २५, ३)

अभिअ :: [अभि] निम्‍न-लिखित अर्थों में से किसी एक को बतलानेवाला अव्यय-१ संमुख, सामने; 'अभिगच्छणाया' (औप) २. चारों ओर, समन्तात्; 'अभिदो' (स्वप्‍न ४२) ३ बलात्कार, 'अभिओग' (धर्म २) ४ उल्लंघन, अतिक्रमण; 'अभिक्कंत' (आचा) ५ अत्यन्त, ज्यादा; 'अभिदुग्ग' (सुअ १, ५, २) ६ लक्ष्य, 'अभिमुहं' । ७ प्रतिकूल, 'अभिवाय' (आचा) ८ विकल्प। ९ संभावना (निचु १) १० निरर्थक भी इस अव्यय का प्रयोग होता है, 'अभिमंतिय' (सुर १६, ६२)

अभिअण :: पुं [अभिजन] १ कुल। २ जन्म- भूमि (नाट)

अभिआवण्ण :: वि [अभ्यापन्न] संमुख-आगत (सुअ १, ४, २)।

अभिइ :: स्त्री [अभिजित्] नक्षत्र-विशेष (ठा २, ३)य़

अभिइ :: सक [अभि+ इ] सामने जाना, संमुख जाना। वकृ. अभिइंत (उप १४२ टी)।

अभिउंज :: देखो अभिजुंज। संकृ. अभि- उंजिय (ठा ३, ४; दस १०)।

अभिओअ, अभिओग :: पुं [अभियोग] १ आज्ञा, हुकुम (औप; ठा १०) २ बलात्कार, 'अभिओगे अ निओगे' (श्रा ५) ३ बलात्कार से कोई भी कार्यं में लगाना (धर्म २) ४ अभिभव, पराभव (आव ५) ५ कार्मण-प्रयोग, वशीकरण, वश करने का चूर्णं या मन्त्र-तन्त्रादि; 'दुविहो खलु अभिओगो, दव्वे भावे य होइ नायव्वो। दव्वम्मि होइ जोगो, विज्जा मंता या भावम्मि' (ओघ ५९७) ६ गर्व, अभिमान (आव ५) ७ आग्रह, हठ (नाट)। °पण्णत्ति स्त्री [°प्रज्ञाप्ति] विद्या- विशेष (णाया १, १६)। देखो अहिओय।

अभिओग :: पुं [अभियोग] उद्यम, उद्योग (सिरि ५८)।

अभिओगी :: स्त्री [आभियोगी] भावना-विशेष, ध्यान-विशेष, जो अभियोगिक देव-गति (नौकर- स्थानीय देव-जाति) में उत्पन्न होने का हेतु है (बृह १)।

अभिओयण :: न [अभियोजन] देखो अभि- ओग (आव; पण्ण २०)।

अभिंगण, अभिंजण :: देखो अब्भंगण (नाट; रंभा)।

अभिकंख :: सक [अभि + काङ्‌क्ष्] इच्छा करना, चाहना। अभिक्खेज्जा (आचा)। वकृ, अभिकंखमाण (दस ९, ३)।

अभिकंखा :: स्त्री [अभिकाङ्‌क्षा] अभिलाषा, इछ्छा (आचा)।

अभिकंखि, अभिकंखिर :: वि [अभिकाङि् क्षन्] अभि- लाषी, इच्छुक (पि ४०५; सुपा १२६)।

अभिक्कंत :: वि [अभिक्रान्त] १ गत, अति- क्रान्त; 'अणभिक्कंतं च खलु वयं संपेहाए' (आचा) २ संमुख गत। ३ आरब्ध। ४ उल्लंघित (आचा ; सुअ २, २)

अभिक्कम :: सक [अभि + क्रम्] १ जाना, गुजरना। २ सामने जाना। ३ उल्लंघन करना। ४ शुरू करना। वकृ, अभिक्कममाण (आचा)। संकृ. अभिक्कब्म (सुअ १, १, २)

अभिक्कम :: पुं [अभिक्रम] १ उल्लंघन। २ प्रारम्भ। ३ संमुख-गमन। ४ गमन, गति (आचा)

अभिक्ख, अभिक्खण :: अ [अभीक्ष्ण] बारंबार (उप १४७ टी ; ठा २, ४; वव ३)।

अभिक्खा :: स्त्री [अभिख्या] नाम (विसे १०४८)।

अभिगच्छ :: सक [अभि + गम्] प्राप्त करना। अभिगच्छइ (दस ४, २१, २२, ९, २, २)।

अभिगच्छ :: सक [अभि + गम्] सामने जाना। अभिगच्छंति (भघ २, ५)।

अभिगच्छणया :: स्त्री [अभिगमन] संमुख- गमन (औप)।

अभिगच्छणा :: देखो अभिगच्छणया (बव १)।

अभिगज्ज :: अक [अभि + गर्ज्] गर्जना, खुब जोर से आवाज करना। वकृ. अभि- गज्जंत (णाया १, १८; सुर १३, १८२)।

अभिगम :: देखो अभिगच्छ। कृ. अभिगम- णीय (स ६७९)।

अभिगम :: पुं [अभिगम] १ प्राप्ति, स्वीकार (पक्खि) २ आदर, सत्कार (भग २, ५) ३ (गुरु का्) उपदेश, सीख (णाया १, १) ४ ज्ञान, निश्चय (पव १४९) ५ सम्य- क्त्व का एक भेद (ठा २, १) ६ प्रवेश (से ८, ३३)

अभिगमण :: न [अभिगमन] ऊपर देखो (स्वप्‍न १९; णाया १, १२)।

अभिगमि :: वि [अभिगमिन्] १ आदर करनेवाला। २ उपदेशक। ३ निश्चय-कारक। ४ प्रवेश करनेवाला ५ स्वीकार करने बाला, प्राप्त करनेवाला (पणण ३४)

अभिगय :: वि [अभिगत] १ प्राप्त। २ सत्कृत। ३ उपदिष्ट। ४ प्रविष्ट (बृह १) ५ ज्ञात, निश्चित (णाया १, १)

अभिगहिय :: न [अभिग्रहिक] मिथ्यात्व- विशेष कम्म ४, ५१)।

अभिगिज्झ :: अक [अभि + गृध्] अति लोभ करना, आसक्त होना। वकृ. अभि- गिज्झंति (सुअ २, २)।

अभिगिण्ह, अभिगन्ह :: सक [अभि + ग्रह्] ग्रहण करना, स्वीकारना। अभि- गिणहइ (कप्प)। संकृ. अभिगिन्हित्ता, अभिगिज्झ (पि ५८२; ठा २, १)।

अभिग्गह :: पुं [अभिग्रह] १ प्रतिज्ञा, नियम। (ओघ ३) २ जैन साधुओं का आचार- विशेष (बृह १) ३ प्रत्याख्यान, (नियम- विशेष) का एक भेद (आव ६) ४ कदा- ग्रह, हठ (ठआ २, १) ५ एक प्रकार का शारीरिक विनय (बब १)

अभिग्गहणी :: स्त्री [अभिग्रहणी] भाषा का एक भेद, असत्य-मृषा वचन (संबोध २१)।

अभिग्गहिय :: वि [अभिग्रहिक] अभिग्रह वाला (ठा २, १; पव ६)।

अभिग्गहिय :: वि [अभिगृहीत] १ जिसके विषय में अभिग्रह किया गया हो वह (कप्प ; पव ६) २ न. अवधारण, निश्चय (पणण ११)

अभिघट्ट :: सक [अभि + घट्ट] वेग से जाना। कवकृ, अभिघट्टिज्जमाण (राय)।

अभिघाय :: पुं [अभिघात] प्रहार, मार-पीट, हिंसा (पणह १, १; बृह ४)।

अभिचंद :: पुं [अभिचन्द्र] १ यदुवंश के राजा अन्धकवृष्णि का एक पुत्र, जिसने जैन दीक्षा ली थई (अंत ३) २ इस नाम का एक कुलकर पुरुष (पउम ३, ८५) ३ मुहुर्त-विशेष)। (सम ५१)

अभिजण :: देखो अभिअण (स्वप्‍न २६)।

अभिजस :: न [अभियशस्] इस नाम का एक जैन साधुओं का कुल (एक आचार्य की संतति) (कप्प)।

अभिजाइ :: स्त्री [अभिजाति] कुलीनता, खानदानी (उत्त ११)।

अभिजाण :: सक [अभि + ज्ञा] जानना। वकृ. अभिजाणमाण (आचा)।

अभिजात :: पुं [अभिजात] पक्ष का ग्यारहवाँ दिन (सु्ज्ज १०, १४)।

अभिजाय :: वि [अभिजात] १ उत्पन्न, 'अभि- जायसडढो' (उत्त १४) २ कुलीन (राज)

अभिजुंज :: सक [अभि + युज्] १ मन्त्र- तन्त्रादि से वश करना। २ कोई कार्य में लगाना। ३ आलिंगन करना। ४ स्मरण कराना, याद दिलाना। संकृ, अभिजुंजिय, अभिजुंजियाणं, अभिजुंजित्ता (भग २, ५; सुअ १, ५, २; आचा; भग ३, ५)

अभिजुत्त :: वि [अभियुक्त] १ व्रत-नियम में जिसने दूषण न लगाया हो वह (णाया १, १४) २ जानकार, पण्डित (णंदि) ३ दुश्‍मन से घिरा हुआ (वेणी १२०)

अभिज्झा :: स्त्री [अभिध्या] लोभ, लोलुपता, आसक्ति (सम ७१; पणह १, ५)।

अभिज्झिय :: वि [अभिध्यित] अभिलषित, वांछित (पणण २८)।

अभिट्ठिअ :: वि [अभीष्ट] अभिलषित (वज्जा १६४)।

अभिट्‍ठुय :: वि [अभिष्टुत] वर्णित, श्ला- र्घित, प्रशंसित (आव २)।

अभिड्‍डुय :: देखो अभिद्‍दुय (सुअ १, २, ३)।

अभिणअंत, अभिणइज्जंत :: देखो अभिणी

अभिणंद :: सक [अधि + नन्द्] १ प्रशंसा करना, स्तुति करना। २ आशीर्वाद देना। ३ प्रीति करना। ४ खुशी मनाना। ५ चाहना, इच्छा करना। ६ बहुमान करना, आदर करना।

अभिणंदइ :: (स १६३)। वकृ. अभिणंदंत (औप; णाया १, १; पउम ५, १३०)। कबकृ. अभिणंदिज्जमाण (ठा ९; णाया १, १)।

अभिणंदिय :: वि [अभिनन्दित] जिसका अभिनन्दन किया गया हो वह (सुपा ३१०)।

अभिणंदण :: न [अभिनन्दन] १ अभिनन्दन। २ पुं. वर्तमान अबसर्पिणीकाल के चतुर्थं जिनदेव (सम ४३) ३ लोकोत्तर श्रावणमास। (सुज १०)

अभिणय :: पुं [अभिनय] शारीरीक चेष्टा के द्वारा हृदय का भाव प्रकाशित करना, नाट्य- क्रिया (ठा ४, ४)।

अभिणव :: वि [अभिनव] नूतन, नया (जीव ३)।

अभिणिक्खंत :: वि [अभिनिष्क्रान्त] दीक्षीत, प्रव्रजित (स २७८)।

अभिणिगिण्ह :: सक [अभिनि + ग्रह्] रोकना, अटकाना। संकृ. अभिणिगिज्झ (पि ३३१, ५९१)।

अभिणिचारिया :: स्त्री [अभिनिचारिका] भिक्षा के लिए गति-विशेष (वव ४)।

अभिणिपया :: स्त्री [अभिनिप्रजा] अलग- अलग रही हुई प्रजा (वव ९)।

अभिणिबुज्झ :: सक [अभिनि + बुध्] जानना, इन्द्रिय आदि द्वारा निश्चित रूप से ज्ञान करना। अभिणिबुज्झए (विसे ८१)।

अभिणिबोह :: पुं [अभिनिबोध] ज्ञान-विशेष, मति-ज्ञान (सम्म ८६)।

अभिणियट्टण :: न [अभिनिवर्त्तन] पीछे लौटना, वापस जाना (आचा)।

अभिणिविट्ठ :: वि [अभिनिविष्ट] १ तीव्र रूप से निविष्ट। २ आग्रही (उत्त १४)

अभिणिवेस :: पुं [अभिनिवेश] आग्रह, हठ (णाया १, १२)।

अभिणिवेसि :: वि [अभिनिवेशिन्] कदा- ग्रही (अज्झ १५७)।

अभिणिवेह :: पुं [अभिनिवेध] उलटा मापना (आवम)।

अभिणिव्वागड :: वि [दे. अभिनिर्व्याकृत] भिन्न परिधि वाला, पृथग्भूत (घर वगैरह (वव १, ६)।

अभिणिव्वट्ट :: सक [अभिनि + वृत्] रोकना, प्रतिषेध करना; 'से मेहावी अभि- णिव्वट्टेज्जा कोहं च माणं च मायं च लोभं च पेज्जं च दोसं च मोहं च गब्भं च जम्मं च मारं ट नरयं च तिरियं च दुक्खं च' (आचा)।

अभिणिव्वट्ट :: सक [अनिर् + वृत्] १ संपादित करना, निष्पन्न करना। २ उत्पन्न करना। संकृ---अभिणिव्वट्टित्ता, (भग ५, ४)

अभिणिव्वट्ट :: वि [अभिनिर्वृत्त] १ निष्पन्न। २ उत्पन्न, 'इह खलु अत्तत्ताए तेहिं तेहिं कुलेहिं अभिसेएण अभिसंभूआ अभि- संजाया अभिणिव्वट्टा अभिसंबुड्‍ढा अभिसंबुद्धा अभिनिक्खंता अणुपुव्वेण महामुणी' (आचा)

अभिणिव्वुड :: वि [अभिनिर्वृत्त] १ मुक्त, मोक्ष-प्राप्त (सुअ १, २, १) २ शान्त, अकुपित (आचा) ३ पाप से निवृत्त (सुअ १, २, १)

अभिणिसज्जा :: स्त्री [अभिनिषधा] जैन साधुओं के रहने का स्थान-विशेष (वव १)

अभिणिसट्ट :: देखो अभणिस्ट्ट (सुज्ज ९)

अभिणिसिट्ट :: वि [अभिनिसूष्ट] बाहार निकला हुआ (जीव ३)

अभिणिसेहिया :: स्त्री [अभिनैषेधिकी] जैन साधुओं के स्वाध्याय करने का स्थान-विशेष (वव १)।

अभिणिस्सव :: अक [अभिनिर् + स्रु] निकलना। अभिणिस्सवंति (राय ७४)।

अभिणी :: सक [अभि + नी] अभिनय करना, नाट्य करना। वकृ. अभिणअंत (मै ७५)। कवकृ. अभिणइज्जंत (सुपा ३५९)।

अभिणूम :: न [अभिनूम] माया, कपट (सुअ १, २, १)।

अभिण्ण :: वि [अभिज्ञ] जानकार, निपुण (उप ५८०)।

अभिण्ण :: वि [अभिन्न] १ अत्रुटित, अवि- दारित, अखण्डित (उवा ; पंचा ११) २ भेदरहित, अपृथग्भूत (बृह ३)

अभिण्णपुड :: पुं [दे] खाली पुड़िया, लोगों को ठगने के लिए लड़के जिसको रास्ता पर रख देते हैं (दे १, ४४)।

अभिण्णाण :: न [अभिज्ञान] निशानी, चिह्न (श्रा १४)।

अभिण्णाय :: वि [अभिज्ञात] जाना हुआ, विदित (आचा)|

अभितज्ज :: सक [अभि + तर्ज्] तिरस्कार करना, ताड़न करना। वकृ. अभितज्जेमाण (णाया १, १८)।

अभितत्त :: वि [अभितप्त] १ तपाया हुआ, गरम किया हुआ (सुअ १, ४, १, २७)

अभितव :: सक [अभि + तप्] १ तपाना। २ पीड़ा करना, 'चत्तारि अगणिओ समार- भित्ता जेहि कूरकम्मा भितविंति, बालं' (सुअ १, ५, १, १३)। कवकृ. अभितप्पमाण; 'ते तत्थ चिट्‍ठंतिभितप्पमाण मच्छा व जीवं- तुवजोतिपत्ता' (सुअ १, ५, १, १३)

अभिताव :: सक [अभि + तापय्] १ तपाना, गरम करना। २ पीडित करना। अभितावयंति (सुअ १, ५, १, २१, २२)

अभिताव :: पुं [अभिताप] १ दाह। २ पीड़ा (सुअ १, ५, १, २, ६)

अभितास :: सक [अभि + त्रासय्] त्रास उपजाना, भयभीत करना। वकृ, अभितासे- माण (णाया १, १८)।

अभित्थु :: सक [अभि + स्तु] स्तुति करना, श्‍लाघा करना, वर्णन करना। अभित्थुणंति, अभित्थुणामि (पि ४९४; विसे १०५४)। वकृ. अभित्थुणमाण (कप्प)। कवकृ. अभित्थुव्वमाण (रयण ९८)।

अभित्थुय :: वि [अभिष्टुत] स्तुत, श्‍लाघित (संथा)।

अभिथु :: देखो अभित्थु। वकृ. अभिथुणंत (णाया १, १)। कवकृ, अभिथुव्वमाण (कप्प; ठा ९)।

अभिदुग्ग :: वि [अभिदुर्ग] १ दुःखोत्पादक स्थान। २ अतिविषम स्थान (सुअ १, ५, १, १७)

अभिदो :: (शौ) अ [अभितः] चारों ओर से (स्वप्‍न ४२)।

अभिद्दव :: सक [अभि + द्रु] पीड़ा करना, दुःख उपजाना, हैरान कराना; 'नु दंति वायर्हि अभिद्दवं णरा' (आचा २, १६, २)।

अभिद्दविय :: वि [अभिद्रुत] उपद्रुत, हैरान किया हुआ (सुर १२, ६७)।

अभिद्‍दुय :: देखो अभिद्दविय (णाया १, ९; स ५६)।

अभिधाइ :: वि [अभिधायिन्] वाचक, कहनेवाला (विसे ३४७२)।

अभिधार :: सक [अभि +धारय्] १ चिन्तन करना। २ स्पष्ट करना। अभिधारए (स ५, २, २५; उत्त ३, २१); अभिधारयामो (सुअ २, ६, १६)। वकृ. अभिधारयंत (उत्तनि ३)

अभिधारण :: न [अभिधारण] धारणा, चिन्तन (बृह ३)।

अभिधेज्ज, अभिधेय :: पुं [अभिधेय] अर्थ, वाच्य, पदार्थ (विसे १ ट)।

अभिनंद :: देखो अभिणंद। वकृ. अभिनंद- माण (कप्प)। कवकृ. अभिनंदिज्जमाण (महा)।

अभिनंदण :: देखो अभिणंदण (कप्प)।

अभिनंदि :: स्त्री [अभिनंदि] आनन्द, खुशी; 'पावेउ अ नंदिसेणमभिनंदि' (आजि ३७)।

अभिनिक्खत :: देखो अभिणिक्खंत (आचा)।

अभिनिक्खम :: अक [अभिनिर् + क्रम्] दीक्षा (संन्यास) लेना, दीक्षा लेने की इच्छा करना, गृहवास से बाहर निकलना। वकृ. अभिनिक्खमंत (पि ३९७)।

अभिनिगिण्ह :: देखो अभिणिगिण्ह (आचा)।

अभिनिबुज्झ :: देखो अभिणिबुज्झ। अभिनि- बुज्झइ (विसे ९८)।

अभिनिबट्ट :: स्त्री [अभिणिवट्ट।] संकृ. अभि- निवट्टित्ताणं (पि ५८३)।

अभिनिविट्ठ :: देखो अभिणिविट्ठ (भग)।

अभिनिवेस :: सक [अभिनि + वेश्य्] १ स्थापन करना। २ करना। अभिनिवेसए (दस ८, ५९)

अभिनिवेसिय :: न [अभिनिवेशिक] मिथ्या- त्व का एक प्रकार, सत्य वस्तु का ज्ञान होने पर भी उसे नहीं मानने का दुराग्रह (श्रा ६; कम्म ४, ५१)।

अभिनिव्वट्ट :: देखो अभिणिव्वट्ट (कप्प; आचा)।

अभिनिव्वट्ट :: अक [अभिनि + वृत्] पृथक् होना। वकृ. अभिनिव्वट्टमाण (सुअ २, ३, २१)।

अभिनिव्वट्ट :: सक [अभिनिर् + वृत्] खींचना। संकृ. 'कोसाओ असिं अभिनिव्व- ट्टित्ता (सुअ २, १, १६)।

अभिनिव्वागड :: वि [अभिनिर्व्याकृत] विभिन्न द्वार वाला [मकान]। (वव १ टी)।

अभिनिव्विट्ठ :: वि [अभिनिर्विष्ट] संजात, उत्पन्न (कप्प)।

अभिनिव्वुड :: देखो अभिणिव्वुड (पि २१९)।

अभिनिसढ :: वि [अभिमिःसट] जिसका स्कन्ध प्रदेश बाहर निकल आया हो वह (भग १५, पत्र ६६९)।

अभिनिस्सव :: देखो अभिणिस्सव अभि- निस्सवंति (राय ७५)।

अभिनिस्सव :: अक [अभिनि + स्त्रु] टपकना, झरना। अभिनिस्सवइ (भग)।

अभिन्न :: देखो अभिण्ण (प्राप्त)।

अभिन्नाण :: देखो अभिण्णाण (ओघ ४३९; सुर ७, १०१)।

अभिन्नाय :: देखो अभिण्णोय (कप्प)।

अभिपल्लाणिय :: वि [अभिपर्याणित] अध्या- रोपित, ऊपर रखा हुआ (कुमा)।

अभिपवुट्ठ :: वि [अभिप्रवृष्ट] बरसा हुआ (आचा २, ३, १, १)।

अभिपाइय :: वि [आभिप्रायिक] अभिप्राय सम्बन्धी, मनःकल्पित (अणु)।

अभिप्पाय :: पुं [अभिप्राय] आशय, मन- परिणाम (आचा ; स ३४; सुपा २६२)।

अभिप्पेय :: वि [अभिप्रेत] इष्ट; अभिमत (स २३)।

अभिभव :: सक [अभि + भू] पराभव करना, परास्त करना। अभिभवइ (महा)। संकृ. अभिभविय, अभिभूय (भग ९, ३३; पणह १, २)।

अभिभव :: पुं [अभिभव] पराभव, पराजय, तिरस्कार (आचा ; दे १, ५७)।

अभिभवण :: न [अभिभवन] ऊपर देखो (सुपा ४७९)।

अभिभास :: सक [अभि + भाष्] संभाषण करना। अभिभासे (पि १६६)।

अभिभूइ :: स्त्री [अभिभूति] पराभव, अभिभव (द्र ३०)।

अभिभूय :: वि [अभिभूत] पराभूत, पराजित (आचा; सुर ४, ७५)।

अभिमंजु :: देखो अभिमण्णु (हे ४, ३०५)।

अभिमंत :: सक [अभि + मन्त्रय्] मंत्रित करना, मन्त्र से संस्कारना। संकृ. अभि- मंतिऊण, अभिमंतिय (निचू १; आवम)।

अभिमंतिय :: वि [अभिमन्त्रित] मन्त्र से संस्कारित (सुर १६, ६२)।

अभिमन्न :: सक [अभि + मन्] १ अभि मान करना। २ सम्मत करना। अभिमन्नइ (विसे २१९०, २९०३)

अभिमय :: वि [अभिमत] इष्ट, अभिप्रेत (सुअ २, ४)।

अभिमाण :: पुं [अभिमान] अभिमान, गर्व (निचू १)।

अभिमार :: पुं [अभिमार] वृक्ष विशेष (राज)।

अभिमुह :: वि [अभिमुख] १ संमुख, सामने स्थित। २ क्रिवि. सामने (भग)

अभिमुहिय :: वि [अभिमुखित] संमुख किया हुआ (सुअनि १४६)।

अभियागम :: पुं [अभ्यागम] संमुख आगमन (सुअ १, १, ३, २)।

अभियावन्न :: वि [अभ्यापन्न] संमुख प्राप्त (सुअ १, ४, २, २८)।

अभिरइ :: स्त्री [अभिरति] १ रति, संभोग| २ प्रीति, अनुराग, (विसे ३२२३)

अभिरम :: अक [अभि + रम्] १ क्रीड़ा करना, संभोग करना। २ प्रीति करना। ३ तल्लीन होना, आसक्ति करना। अभिरमइ (महा)। वकृ. अभिरमंत, अभिरममाण (सुपा १२०; णाया १, २; ४)

अभिरमिय :: वि [अभिरमित] अनुरक्त किया हुआ, 'अभिरमियकुमुयवणसंडं ससिमंडलं पलो- यइ' (सुपा ३४)।

अभिरमिय :: वि [अभिरमित] संभुक्त, 'जेणा- भिरमियं पलकलत्तं' (धर्मंवि १२८)।

अभिरमिय, अभिरय :: वि [अभिरत] १ अनुरक्त (सुपा ३४) २ तल्लीन, तत्पर ; 'साहू तवनियमसंजमाभिरया' (पउम ३७, ६३; स १२२)

अभिराम :: वि [अभिराम] सुन्दर, मनोहर (णाया १, १३ ; स्वप्‍न ४५)।

अभिराम :: सक [अभि + रामय्] तत्परता से कार्य में लगाना। अभिरामयंति (दस ९, ४, १)।

अभिरुइय :: वि [अभिरुचित] पसंद, मन का अभिमत (णाया १, १; उवा; सुपा ३४४; महा)।

अभिरुय :: सक [अभि + रुच्] पसंद पड़ना, रुचना। अभिरुयइ (महा)।

अभिरूयंसि :: वि [अभिरूपिन्] सुन्दर रूप वाला, मनोहर (आचा २, ४, २, १)।

अभिरुह :: सक [अभि + रुह्] १ रोकना। २ ऊपर चढ़ना, आरोहना। संकृ. 'चत्तारि साहिए मासे बहवे पाणजाइया आगम्म। अभिरुज्झ कार्य विहरिंसु, आरुहिया णं तत्थ हिंसिंसु' (आचा)

अभिरोहिय :: वि [अभिरोधित] चारों ओर से निरुद्ध, रोका हुआ (णाया १, ९)।

अभिरोहिय :: वि [अभिरोहित] ऊपर देखो, 'परचक्करायाभिरोहिता; ('परचक्राजेनापरसै- न्यनूपतिनाभिरोहिता: सर्वंतः कृतानिरोधा या सा तथा' टी) (णाया, १, ९)।

अभिलंघ :: सक [अभि + लङ्‍घ्] उल्लं- घन करना। वकृ. अभिलंघमाण (णाया १, १)।

अभिलप्प :: वि [अभिलाप्य] कथन-योग्य, निर्वंचनीय (आचू १)।

अभिलस :: सक [अभि + लष्] चाहना, वाञ्छना। अङिलसइ (उव)ष

अभिलाअ, अभिलाव :: पुं [अभिलाप] १ शब्द, ध्वनि (ठा ३, १; भास २७) २ संभाषण (णाया १, ८; विसे)

अभिलास :: पुं [अभिलाष] इच्छा, चाह (णाया १, ९; प्रयौ ६१)।

अभिलासि, अभिलासिण :: वि [अभिलाषिन्] चाहने वाला, इच्छुक (वसु; स ६५४; पउम ३१, १२८)।

अभिलासुग :: वि [अभिलाषुक] अभिलाषी (उफ ३५७ टी)।

अभिलोयण :: न [अभिलोकन] जहाँ खड़े रह कर दूर की चीज देखी जाय वह स्थान (पणह २, ४)।

अभिलोयण :: न [अभिलोचन] ऊपर देखो (पणह २, ४)।

अभिवंद :: सक [अभि + वन्द्] नमस्कार करना, प्रणाम करना। वकृ. अभिवंदंत (पउण २३, ६); कृ. 'जे साहुणो ते अभि- वंदियव्वा' (गोय १४); अभिवंदणिज्ज (विसे २९४३)।

अभिवंदणा :: स्त्री [अभिवन्दना] प्रणाम, नम- स्कार (चेइय ६३९)।

अभिवंदय :: वि [अभिवन्दक] प्रणाम करने वाला (औप)।

अभिवड्‍ढ :: अक [अभि + वृध्] बढ़ना, बड़ा होना, उन्नत होना। अभिवड्‍ढमो; भूका अभिवड्‍ढित्था (कप्प)। वकृ. अभिवड्‍ढे़माण (जं ७)।

अभिवडि्ढ :: देखो अभिवुडि्ढ (इक)।

अभिवडि्ढ :: देखो अहिवडि्ढ (सुज्ज १० १२ टी)।

अभिवडि्ढय :: वि [अभिवर्धित] १ बढ़ाया हुआ। २ अधिक मास। ३ अधिक मासवाला वर्षं (सम ५६; चन्द ११)

अभिवड्‍ढे :: सक [अभि + वर्धँय्] बढ़ाना।

अभिड्‍ढेति :: (सुज्ज ६)। वकृ. अभिवड्‍ढेमाण (सुज्ज ६)। संकृ. अभिवड्‍ढेत्ता (सुज्ज ६)।

अभिवत्त :: वि [अभिव्यक्त] आविर्भूंत (धर्मसं ८८)।

अभिवत्ति :: स्त्री [अभिव्यक्ति] प्रादुर्भाव (उप २८५)।

अभिवय :: सक [अभि + व्रज्] सामने जाना। वकृ. अभिवयंत (णाया १, ८)।

अभिवाइय :: वि [अभिवादित] प्रणत, नम- स्कृत (सुपा ३१०)।

अभिवात :: पुं [अभिवात] १ सामने का पवन। २ प्रतिकूल (गरम या रूक्ष) पवन (आचा)

अभिवाद, अभिवाय :: सक [अभि + वादय्] प्रणाम करना, नमस्कार करना। अभि- वाएइ (महा)। अभिवादये (विसे १०५४)। वकृ. अभिवायमाण (आचा)। कृ. अभि- वायणिज्ज (सुपा ५६८)।

अभिवाय :: देखो अभिवात (आचा)।

अभिवायण :: न [अभिवादन] प्रणाम, नम- स्कार (आचा; दसवू)।

अभिवाहरण :: न [अभिव्याहरण] बुलाहट, पुकार (पंचा २)।

अभिवाहार :: पुं [अभिव्याहार] प्रश्नोत्तर, सवाल-जवाब (बिसे ३३९६)।

अभिविहि :: पुंस्त्री [अभिविधि] मर्यादा, व्याप्ति (पंचा १५; विसे ८७४)।

अभिवुट्ठि :: स्त्री [अभिवृष्टि] वृष्टि, वर्षा (पव ४०)।

अभिवुड्‍ढ :: देखो अभिवड्‍ढ। संकृ. [अभि- वुडि्ढत्ता] (सुज्ज १)।

अभिवुडि्ढ :: स्त्री [अभिवृद्धि] १ वृद्धि, बढ़ाव। २ उत्तरभाद्रपद नक्षत्र का अधिष्ठाता देव (जं ७)

अभिवुड्‍ढे :: देखो अभिवड्‍ढे। संकृ. अभि- वुड्‍ढेत्ता (सुज्ज ६)।

अभिवेदणा :: स्त्री [अभिवेदना] अत्यन्त पीड़ा (सुअ १, ५, १, १६)।

अभिव्वंजण :: न [अभिव्यञ्जन] देखो अभ- वत्ति (सुअ १, १, १)।

अभिव्याहार :: देखो अभिवाहार (विसे ३४१२)।

अभिसंकण :: न [अभिशङ्कन] शंका, वहम (संबोध ४९)।

अभिसंका :: स्त्री [अभिशङ्का] संशय, संदेह (सुअ १, ६, १, १४)।

अभिसंकि :: वि [अभिशङ्किन्] १ संदेह करनेवाला। २ भीरु, ड़रनेवाला; 'उज्जु मारा- भिसंकी मरणा पमुच्चति' (आचा ; णाया १, १८)

अभिसंग :: पुं [अभिष्वङ्ग] आसक्ति (ठा ३, ४)।

अभिसंजाय :: वि [अभिसंजात] उत्पन्न (आचा)।

अभिसंथुण :: सक [अभिसं + स्तु] स्तुति करना, वर्णन करना। वकृ. अभिसंथुणमाण (णाया १, ८)।

अभिसंधारण :: न [अभिसंधारण] पर्या- लोचन, विचारना (आचा)।

अभिसंधि :: पुंस्त्री [अभिसंधि] आशय, अभि- प्राय (उप २११ टी)।

अभिसंधिय :: वि [अभिसंहित] गृहीत, उपात्त (आचा)।

अभिसंभूय :: वि [अभिसंभूत] उत्पन्न, प्रादु- र्भूत (आचा)।

अभिसंबुद्ध :: वि [अभिसंबुद्ध] ज्ञान-प्राप्त, बोध-प्राप्त (आचाा)।

अभिसंवुड्‍ढ :: वि [अभिसंवृद्ध] बढ़ा हुआ, उन्नत अवस्था को प्राप्त (आचा)।

अभिसमण्णागय, अभिसमन्नागय :: वि [अभिसमन्वागत] १ अच्छी तरह जाना हुआ, सुनिर्णीत (भग ५, ४) २ व्यवस्थित (सुअ २, १) ३ प्राप्त, लब्ध (भग १५; कप्प; णाया १, ८)

अभिसमागम :: सक [अभिसमा + गम्] १ सामने जाना। २ प्राप्त करना। ३ निर्णय करना, ठीक-ठीक जानना। संकृ. अभिसमा- गम्म (आचा ; दस ५)

अभिसमागम :: पुं [अभिसमागम] १ संमुख गमन। २ प्राप्ति। ३ निर्णय (ठा ३, ४)

अभिसमे :: सक [अभिसमा + ई] देखो अभि- समागम = अभिसमा+ गम्। अभिसमेइ (ठा ३, ४)। संकृ. अभिसमेच्च (आचा)।

अभिसर :: सक [अभि + सृ] प्रिय के पास जाना। वकृ. अभिसंरत (मोह ९१)।

अभिसरण :: न [अभिसरण] १ सामने जाना, संमुख गमन (पणह १, १) २ प्रिय के पास जाना (कुमा)

अभिसव :: पुं [अभिषव] १ मद्य आदि का अर्क। २ मद्य-मांस आदि से मिश्रित चीज (पव ६)

अभिसारिआ :: देखो अहिसारिआ (गा ८७१)।

अभिसिच :: सक [अभि + सिच्] अभिषेक करना। अभिसिंचति (कप्प)। कवकृ. अभि- सिच्चमाण (कप्प)। प्रयो. हेकृ. अभिसिंचा- वित्तए (पि ५७८)।

अभिसित्त :: वि [अभिषिक्त] जिसका अभि- षेक किया गया हो वह (आवम)।

अभिसेण, अभिसेग :: पुं [अभिषेक] १ राजा, आचार्य आदि पद पर आरूढ़ करना (संथा ; महा) २ स्‍नान-महोत्सव, 'जिणाभिसेगे' (सुपा ५०) ३ स्‍नान (औप ; स ३२) ४ जहां पर अभिषेक किया जाता है वह स्थान (भग) ५ शुक्र-शोणित का संयोग, 'इह खलु अत्तत्ताए तेहिं तेहिं कुलेहिं अभिसेएण अभि- संभूया' (आचा १, ६, १) ६ वि. आचार्य आदि पद के योग्य (बृह ३) ७ अभिषिक्त (निचू १५)

अभिसेगा :: स्त्री [अभिषेका] १ साध्वी, संन्या- सिनी (निचू १५) २ साध्वियों की मुखिया, प्रवर्त्तिनी (धर्म ३; निचू ९)

अभिसेज्जा :: स्त्री [अभिशय्या] देखो अभि- णिसज्जा (वव १)।२ भिन्न स्थान (विसे ३४६१)

अभिसेवण :: न [अभिषेवण] पूजा, सेवा, भक्ति (पउम १४, ४९)।

अभिसेवि :: वि [अभिषेविन्] सेवा-कर्ता (सुअ २, ६, ४४)।

अभिस्संग :: पुं [अभिष्वङ्‍ग] आसक्ति (विसे २९६४)।

अभिहट्‍टु :: अ [अभिहृत्य] बलात्कार करके, जबरदस्ती करके (आचा ; पि ५७७)।

अभिहड :: वि [अभिहृत] १ सामने लाया हुआ (पंचा १३) २ जैन साधुओं की भिक्षा का एक दोष (ठा ३, ४)

अभिहण :: सक [अभि + हन्] मारना, हिंसा करना (पि ४९९)। वकृ. अभिहणमाण (जं ३)।

अभिहणण :: न [अभिहनन] अभिघात, हिंसा (भग ८, ७)।

अभिहय :: वि [अभिहत] मारा हुआ, आहत (पडि)।

अभिहा :: स्त्री [अभिधा] नाम, आख्या (सण)।

अभिहाण :: न [अभिधान] १ नाम, आख्या (कुमा) २ वाचक, शब्द (वव ९) ३ कथन, उक्ति (विसे)

अभिहाण :: न [अभिधान] १ उच्चारण (सुअनि १३८) २ कथन, उक्ति (अमंसं ११११) ३ कोशग्रन्थ (चेइय ७४)

अभिहिय :: वि [अभिहित] कथित, उक्त (आचा)।

अभिहेअ :: वि [अभिधेय] वाच्य, पदार्थं (विसे ८४१)।

अभीइ, अभीजि :: स्त्री [अभिजित्] १ नक्षत्र- विशेष (सम ८, १५) २ पुं. एक राजकुमार (भग १३, ६) ३ राजा श्रेणिक का एक पुत्र, जिसने जैन दीक्षा ली थी (अनु)

अभीरु :: वि [अभीरु] १ निडर, निर्भीक (आचा) २ स्त्री. मध्यम ग्राम की एक मूर्च्छना (ठा ७)

अभेज्झा :: देखो अभिज्झा (पणह १, ३)।

अभोज्ज :: वि [अभोज्य] भोजन के अयोग्य (णाया १, १६)। °घर न [°गृह] भिक्षा के लिए अयोग्य घर, धोबी आदि नीच जाति का घर (बृह १)।

अम :: सक [अम्] १ जाना। २ आवाज करना। ३ खाना। ४ पाँडना। ५ अक. रोगी होना, 'अम गच्चाईसु' (विसे ३४५३); 'अम रोगो वा' (विसे ३४५४)। अमइ (विसे ३४५३)

अमग्ग :: पुं [अमार्ग] १ कुमार्ग, खराब रास्ता (उव) २ मिथ्यात्व, कषाय आदि हेय पदार्थ; 'अमग्गं परियाणामि मग्गं उपसंपज्जामि' (आव ४) ३ कुमत, कुदर्शन (दंस)

अमग्घाय :: पुं [अमाघात] १ द्रव्य का अ- हरण। २ मारिनिबारण, अभय-घोषणा (पंचा ९)

अमच्च :: पुं [अमात्य] मन्त्री, प्रधान (औप; सुर ४, १०४)।

अमच्च :: पुं [अमर्त्य] देव, देवता (कुमा)।

अमज्झ :: वि [अमध्य] १ मध्य रहित, अखण्ड (ठा ३, २) २ परमाणु (भग २०, ६)

अमन :: न [अमन] १ ज्ञान, निर्णय (ठा ३, ४) २ अन्त, अवसान (विसे ३४५३)

अमण, अमणक्ख :: वि [अमनस्क] १ अप्रितिकर, अभीष्ट (ठा ३, ३) ३ मनरहित (आव ४ ; सुअ २, ४, २)

अमणाम :: वि [अमनआप] अनिष्ट, अमनोहर (सम १४९; विपा १, १)।

अमणाम :: वि [अमनोम] ऊपर देखो (भग; विपा १, १)।

अमणाम :: वि [अवनाम] पीड़ा-कारक, दुःखो- त्पादक (सुअ २, १)।

अमणुस्स :: पुं [अमनुष्य] १ मनुष्य-भिन्न देव आदि (णंदि) २ नपुंसक (निचु १)

अमत्त :: न [अमत्र] भाजन, पात्र (सुअ १, ९)।

अमम :: वि [अमम] १ ममता-रहित, निःस्पृह (पणह २, ५; सुपा ५००) २ पुं. आगामी काल में होनेवाले एक जिनदेव का नाम (सम १५३) ३ युग्म रूप से होनेवाले मनुष्यों की एक जाति (जं ४)। दिन के २५ वाँ मुहुर्त का नाम (चंद १०)। °त्तं वि [°त्व] निःस्पृह, ममता-रहित (पंचव ४)

अमय :: वि [अमय] विकार-रहित, 'अमओ य होइ जीवो, कारणविरहा जहेव आगासं। समयं च होअनिच्चं, मिम्मयवडतुंतुपमाईयं (विसे)।

अमय :: न [अमृत] १ अमृत, सुधा (प्रासू ६९) २ क्षीर समुद्र का पानी (राय) ३ पुं. मोक्ष, मुक्ति (सम्म १६७; प्रामा)| ४ वि. नहीं मरा हुआ, जीवित; 'अमओ हं नय विमु़्ञ्चामि (पउम ३३, ८२)। °कर पुं [°कर] चन्द्र, चन्द्रमा (उप ७६८ टी)। °किरण पुं [°किरण] चन्द्र (सुपा ३७७)। °कुंड पुं [°कुंण्ड] चन्द्र, चाँद (श्रा २७)। °घोस पुं [°घोष] एक राजा का नाम (संथा)। °फल न [°फल] अमृतोपम फल (णाया, १, ९)। °मइय--°मय वि [°मय] अमृत-पूर्ण (कुमा ; सुर ३, १२१; २३३)। °मऊह पुं [°मयूख] चन्द्र (मै ६८)। °वल्लरि, °वल्लरी स्त्री [°+वल्लरि, °री] अमृतलता, वल्ली-विशेष, गुडुची। °वल्लि, °वल्ली स्त्री [°वल्लि, °ल्ली] वल्ली-विशेष, गुडुची (श्रा २० ; पव ४)। °वास पुं [°वर्ष] सुधा-वृष्टि (आचा)। देखो अमिय = अमृत।

अमय :: पुं [दे] १ चन्द्र, चन्द्रमा (धे १, १५) २ असुर, दैत्य (षड्)

अमयघडिअ :: पुं [दे. अमृतघटित] चन्द्रमा, चाँद (कुप्र २१)।

अमयणिग्गम :: पुं [दे. अमृतनिर्गम] १ चन्द्र, चन्द्रमा (दे १, १५)

अमर :: वि [आमर] दिव्य, देव-सम्बन्धी; 'अमरा आउहभेया' (पउम ६१, ४९)।

अमर :: पुं [अमर] १ देव, देवता (पाअ) २ मुक्त आत्मा (औप) ३ भगवान् ऋषमदेव का एक पुत्र (राज) ४ अनन्तवीर्य नामत भावी जिनदेव के पूर्वजन्म का नाम (ती २१) ५ वि. मरणरहित, 'पावंति अविग्धेणं जीवा अयरामरां ठणं' (पडि)। °कंका स्त्री [°कङ्का] एक नगरी का नाम (उप ६४८ टी)। °केउ पुं [°केतु] एक राजकुमार (दंस)। °गिरि पुं [°गिरि] मेह पर्वत (पउम ९५, ३७)। °गेह न [°गेह] स्वर्ग (उप ७२८ टी)। °चन्दण न [°चन्दन] १ हरि- चन्दन वृक्ष। २ एक प्रकार का सुगन्धित काष्ठ (पाअ)। °तरु पुं [°तरु] कल्पवृक्ष (सुपा ४४)। °दत्त पुं [°दत्त] एक श्रेष्ठि-पुत्र का नाम (धम्म)। °नाह पुं [°नाथ] इन्द्र (पउम १०१, ७५)। °पुर न [°पुर] स्वर्ग (पउम २, १४)। °पुरी स्त्री [°पुरी] स्वर्गपुरी, अम- रावती (उप पृ १०५)। °पभ पुं [°प्रभ] वानर-द्वीप का एक राजा (पउम ६, ६९)। °वइ पुं [°पति] इन्द्र (पउम १०१, ७०; सुर १, १)। °वहू स्त्री [°वधू] देवी (महा). °सामि पुं [°स्वामिन्] इन्द्र (विसे १४३९ टी)। °सेण पुं [°सेन] १ एक राजा का नाम (दंस)। २ एक राज- कुमार का नाम (णाया १, ८)। °लिय त्रि [°लिय] स्वर्ग, 'चविउममरालयाए' (उप ७२८ टी ; सुपा ३५)। °विई स्त्री [°वती] १ देव-नगरी, स्वर्गं-पुरी (पाअ)। २ मर्त्य लोक की एक नगरी, राजा श्रीसेन की राजधानी (उप ९८६ टी)

अमरंगणा :: स्त्री [अमराङ्गना] देवी (श्रा २७)।

अमरिदं :: पुं [अमरेन्द्र] देवों का राजा, इन्द्र (भवि)।

अमरिस :: पुं [अमर्ष] १ असहिष्णुता (हे २, १०५) २ कदाग्रह (उत्त ३४) ३ क्रोध, गुस्सा (पणह १, ३ ; पाअ)

अमरिसण :: न [अमर्षण] १--३ ऊपर देखो। ४ वि. असहिष्णु; क्रोधी (पणह १, ४) ५ सहिष्णु, क्षमाशील (सम १५३)

अमरिसण :: वि [अमसृण] उद्यमी, उद्योगी (सम १५३)।

अमरिसिय :: वि [अमर्षित] १ मत्सरी, अस- हिष्णु (आवम; स ५९५)

अमरी :: स्त्री [अमरी] देवी (कुमा)।

अमरीस :: पुं [अमरेश] इन्द्र (चेइय ३१०)।

अमल :: वि [अमल] १ निर्मंल, स्वच्छ (उव; सुपा ३४) २ पुं. भगवान् ऋषभदेव के एक पुत्र का नाम (राज)

अमला :: स्त्री [अमला] शक्र की एक अग्र- महिषी का नाम, इन्द्राणी-विशेष (ठा ८)।

अमवस्ला :: देखो अमावस्सा (पंचा १९, २०)।

अमाइ, अमाइल्ल :: वि [अमायिन्] निष्कपट, सरल (आचा; ठा १०; द्र ४७)।

अमाघाय :: देखो अमग्घाय (उवा)।

अमाण :: वि [अमान] १ गर्वररहित, नम्र (कप्प) २ असंख्य, 'ठाणट्ठाणविलोइज्जमा- णमाणोसहिसमूहो' (उव ६ टी)

अमाय :: वि [अमात] नहीं समाया हुआ; 'सुसाहुवग्गस्स मणे अमाया' (सत्त ३५)।

अमाय :: वि [अमाय] निष्कपट, सरल (कप्प)।

अमायि :: देखो अमाइ (भग)।

अमारि :: स्त्री [अमारि] हिंसा-निवारण, जीवित- दान (सुपा ११२)। °घोस पुं [°घोष] अहिंसा की घोषणा (सुपा ३०९)। °पडह पुं [°पटह] हिंसा-निषेध का डिण्डिम, 'अमा रिपडह च घोसावेइ' (रयण ९०)।

अमावसा, अमावस्सा, अमावासा :: स्त्री [अमावास्या] तिथि- विशेष, अमावस (कप्प; सुपा २२६; णाया १, १०; चंद १०)।

अमिज्ज :: वि [अमेय] माप करने के लिए अशक्य, असंख्य (कप्प)।

अमिज्झ :: न [अमेध्य] १ अशुचि वस्तु 'भरि- यममिज्झस्स दुरहिगंधस्स' (उप ७२८ टी) २ विष्ठा (सुपा ३१३)

अमित्त :: पुंन [अमित्र] रिपु, दुश्‍मन (ठा, ४, ४; से ५, १७)।

अमिय :: देखो अमय = अमृत (प्रासू १; गा २; विसे; आवम; पिंग)। °कुंड न [°कुण्ड] नगर विशेष का नाम (सुपा ५७८)। °गइ स्त्री [°गति] एक छन्द का नाम (पिंग)। °णाणि पुं [°ज्ञानिन्] ऐरवत क्षेत्र के एक तीर्थकर देव का नाम (सम १५३)। °भूय वि [भूत] अमृत-तुल्य (आउ)। °मेह पुं [°मेघ] अमृतवर्षा (जं ३)। °रुइ पुं [°रुचि] चन्द्र, चन्द्रमा (श्रा १६)।

अमिय :: वि [अमित] परिमाण-रहित, असंख्य, अनन्त (भग ५, ४; सुपा ३१; श्रा २७)। °गइ पुं [°गति] दक्षिण दिशा के एक इन्द्र का नाम, दिक्कुमारो का इन्द्र (ठा २, ३)। °दस पुं [°यशस्] एक चक्रवर्ती राजा का नाम (महा)। °णाणि वि [°ज्ञानिन्] १ सर्वज्ञ (विसे) २ ऐरवत क्षेत्र के एक जिन- देव का नाम (सम १५३)। °तेय पुं [°तेजस्] एक जैन मुनि का नाम (उप ७६८ टी)। °बल पुं [°बल] इक्ष्वाकु वंश के एक राजा का नाम (पउम ५, ४)। °वाहइ पुं [°वाहन] दिक्कुमार देवों के एक इन्द्र का नाम (ठा २, ३)। °वेग पुं [°वेग] राक्षस वंश के एक राजा का नाम (पउम ५, २६१)। °सणिय वि [°सनिक] एक स्थान पर नहीं बैठनेवाला, चंचल (कप्प)

अमिल :: न [दे] ऊन का बना हुआ वस्त्र (श्रा १८)। २ पुं. मेष, भेड़ (ओघ ३६८ )।

अमिल :: वि [दे. आमिल] अमिल देश में बना हुआ (आचा २, ५, १, ५)।

अमिला :: स्त्री [अमिला] १ बीसवें जिनदेव की प्रथम शिष्या (सम १५२) २ पीाड़ी, छोटी भैंस (बृह १)

अमिलाण, अमिलाय :: वि [अम्लान] १ म्लान- रहित, ताजा, हृष्ट (सुर ३, ९५; भग ११, ११) २ पुं. कुण्णटक वृक्ष। ३ न कुण्णटक वृक्ष का पुष्प (दे १, ३७)

अमु :: स [अदस्] वह, अमुक (पि ४३२)।

अमुअ :: स [अमुक] वह, कोई, अमका-ढमका (ओघ ३२ भा ; सुपा ३१४)।

अमुअ :: देखो अमय = अमृत (प्रासु ५१; गा ९७६)।

अमुअ :: देखो अमय = अमय (काप्र ७७७)।

अमुअ :: वि [अस्मृत] स्मरण में नहीं आया हुआ (भग ३, ६)।

अमुइ :: वि [अमोचिन्] नहीं छोड़नेबाला (उव)।

अमुग :: देखो अमुअ = अमुक (कुमा)।

अमुगत्थ :: वि [अमुत्र] अमुक स्थान में (सुपा ६०२)।

अमुण :: वि [अज्ञ] अजान, मूर्ख (बृह १)।

अमुणिय :: वि [अज्ञान] अविदित (सुर ४, २०)।

अमुणिय :: वि [अज्ञान] मुर्खं, अजान (पणह १, २)।

अमुत्त :: वि [अमुक्त] अपरित्यक्त (ठा १०)।

अमुत्त :: वि [अमूर्त्त] रूपरहित, निराकार (सुर १४, ३६)।

अमुदग्ग, अमुयग्ग :: न [अमुदग्र] १ अतीन्द्रिय मिथ्याज्ञान विशेष, जैसे जेवताओं के पुद्‍गलरहित शरीर को देखकर जीव का शरीर पुद्‍गल से निर्मित नहीं है ऐसा निर्णय (ठा ७)

अमुस :: वि [अमृष] सच्चा, सत्य ; 'अमुसे वरे' (सुअ १, १०, १२)।

अमुसा :: स्त्री [अमृषा] सत्यवचन (सुअ १, १०)। °वाइ वि [°वादिन्] सत्यवादी (कुमा)।

अमुह :: वि [अमुख] निरुत्तर (वव ९)।

अमुहरि :: वि [अमुखरिन्] अवाचाल, मित- भाषी (उत्त १)।

अमूढ :: वि [अमूढ] अमुख, विचक्षण (णाया १, ९)। °णाण न [°ज्ञान] सत्य-ज्ञान (आवम)। °दिट्ठि स्त्री [°दृष्टि] १ सम्यग्दर्शन (पव ६) २ अविचलित बुद्धि (उत्त २) ३ वि. अविचलित दृष्टि वाला, सम्यग्दृष्टि (गच्छ १)

अमूस :: वि [अमृष] सत्यवादी (कुमा)।

अमेज्ज :: देखो अमिज्ज (भग ११, ११)।

अमेज्झ :: देखो अभिज्झ (महा)।

अमोल्ल :: वि [अमूल्य] जिसकी कीमत न हो सके वह, बहूमूल्य (गउड ; सुपा ५१९)।

अमोसलि :: न [दे. अमुशलि] वस्त्रादि निरी- क्षण का एक प्रकार (औघ २६५)।

अमोसा :: देखो अमुसा (कुमा)।

अमोह :: वि [अमोघ] १ अवन्ध्य, सफल (सुपा ८३; ५७५) २ पुं. सूर्य के उदय और अस्त के समय किरणों के विकार से होने वाली रेखा विशेष (भग ३, ६)। एक यक्ष का नाम (विपा १, ४)। °दंसि वि [°दर्शिन्] १ ठीक-ठीक देखनेवाला (दस ६) २ न. उद्यान-विशेष। ३ पु. यक्ष-विशेष (विपा १, ३)। °पहारि वि [°प्रहारिन्] अचूक प्रहार करनेवाला, निशानबाज (महा)। °रह पुं [°रथ] इस नाम का एक रथिक (महा)

अमोह :: पुं [अमोह] १ मोह का अभाव, सत्य- ग्रह (विसे) २ रुचक पर्वत का एक शिखर (ठा ८) ३ वि. मोहरहित, निर्मोह (सुपा ८३)

अमोह :: पुं [अमोघ] १ सूर्य-बिम्ब के नीचे कभी-कभी दीखती श्याम आदि वर्णवाली रेखा (अणु १२१) २ पुंन एक देवविमान (देवेन्द्र १४४)

अमोहण :: न [अमोहन] १ मोह का अभाव (वव १०) २ वि. मुग्ध नहीं करनेवाला (कप्प)

अमोहा :: स्त्री [अमोघा] १ एक जम्बूवृक्ष, जिसके नाम से यह जम्बुद्वीप कहलाता है (जीव ३) २ एक पुष्करिणी (दीव)

अम्म :: देखो अंब = आम्ल (उर २, ९)।

अम्मएव :: पुं [आम्रदेव] एक जैन आचार्यं (पव २७६; गा ६०९)।

अम्मगा :: देखो अम्मया (उवा)।

अम्मच्छ :: वि [दे] असंबद्ध (षड्)।

अम्मड :: देखो अंबड (औप)।

अम्मडी :: (अप) स्त्री [अम्बा] माता, माँ (हे ४, ४२४)।

अम्मणुअंचिय :: न [दे] अनुगमन, अनुसरण (दे १, ४९)।

अम्मधाई :: देखो अंबधाई (विपा १, ९)।

अम्मया :: स्त्री [अम्बा] १ माता, जननी (उवा) २ पांचवें वासुदेव की माता का नाम (१५२)

अम्महे :: (शौ) अ. हर्षं-सूचक अव्यय (हे ४, २८४)।

अम्मा :: स्त्री [दे. अम्बा] माता, माँ (दे १, ५)। °पिइ, °पिउ, °पियर, °पीइ पु. ब. [°पितृ] माँ-बाप, माता-पिता (वव ३; कप्प; सुर ३, ८३; ठा ३, १; सुर ३, ८८; ७, १७०)। °पेइय वि [°पैतृक] माँ-बाप-संबन्धी (भग १, ७)।

अम्माइआ :: स्त्री [दे] अनुसरण करनेवाली स्त्री, पीछे-पीछे जानेवाली स्त्री (दे १, २२)।

अम्मो :: अ [?] १ आश्चर्य-सूचक अब्यय (हे २, २०८; स्वप्‍न २६) २ माता का संबोधन, हे माँ (उवा ; कुमा)

अम्मोगइया :: स्त्री [दे] संमुख-गमन, स्वागत करने के लिए सामने जाना; 'राया सयमेव अम्मोगइयाए निग्गओ' (सुख २, १३)।

अम्मोस :: वि [अमर्ष्य] अक्षम्य, क्षमा के अयोग्य (सुपा ४८७)।

अम्ह :: स [अस्प्रत्] हम, निज, खुद (हे २, ९९; १४२)। °केर, °क्केर, °च्चय वि [°य] अस्मदीय, हमारा (हे २, ९९; सुपा ४९६)।

अम्हत्त :: वि [दे] प्रमृष्ट, प्रमार्जित (षड्)।

अम्हार, अम्हारय :: (अप) वि [अस्मदीय] हमारा (षड; कुमा)।

अम्हारिच्छ :: वि [अस्मादृक्ष्] हमारे जैसा (प्रामा)।

अम्हारिस :: वि [अस्मादृश] हमारे जैसा (हे १, १४२; षड्)।

अम्हेच्चय :: वि [अस्माक] अस्मदीय, हमारा (कुमा ; हे २, १४९)।

अम्हो :: अ [अहो] आश्चर्यं-सूचक अव्यय (षड्)।

अय :: पुं [अग] १ पहाड़, पर्वंत। २ साँप, सर्प। ३ सूर्य, सूरद (श्रा २३)

अय :: पुं [अज] १ छाग, बकरा (विपा १, ४) २ पूर्वंभाद्रपद नक्षत्र का अधिष्ठायक देव (ठा २, ३) ३ महादेव। ४ विष्णु। ५ राम- चन्द्र। ६ ब्रह्मा। ६ कामदेव। ८ महाग्रह-विशेष (ठा ९) ९ बीजोत्पादक शक्ति से रहित घान्य (पउम ११, २५)। °करक पुं [°करक] एक महाग्रह का नाम (ठा २, ३)। °वाल पुं [°पाल] आभीर (श्रा २३)

अय :: पुं [अय] १ गमन, गति (विसे २७९३; श्रा २३) २ लाभ, प्राप्ति। ३ अनुभव (विसे) ४ न. पुण्य (ठा १०) ५ भाग्य, नसीब (श्रा २३)

अय :: न [अक] १ दुःख। २ पाप (श्रा २३)

अय :: न [अयस्] लोहा, लोह (ओघ ६२)। °आगर पुं [°आकर] १ लोहे के खान (निचु ५) २ लोहे का कारखाना (ठा ८)। °कंत, °+क्खंत पुं [°कान्त] लोह-चुम्बक (आवम)। °कडिल्ल न [दे. °कडिल्ल] कटाह (ओघ)। कुंडी स्त्री [°कुण्डी] लोहे का भाजन-विशेष (विपा १, ६)। °कोट्ठय पुं [°कोष्ठक] लोहे का कुशूल, लोहे का गोला; 'पोट्टं अयकोट्ठआ व्व वट्टं' (उवा) । °गोलय पुं [°गोलक] लोहे का गोला (श्रा १९)। °दव्वी स्त्री [°दर्वी] लोहे की कड़छी या कर- छुल, जिससे दाल, कढ़ी आदि हिलाया जाता है (दे २, ७)। °पाय न [°पात्र] लोहे का भाजन। °सलागा स्त्री [°शलाका] लोहे की सलाई (उप २११ टी)

अय :: सक [अय्] १ गमन-करना, जाना। २ प्राप्त करना। ३ जानना। वकृ, अयमाण (सम ९३)

अयंछ :: सक [कृष्] १ खींचना। २ जोतना, चास करना। ३ रेखा करना। अयंछइ (हे ४, १८७)

अयंछिर :: वि [अर्षिन्] कर्षणशील, खींचनेवाला (कुमा)।

अयंड :: पुं [अकाण्ड] १ अनुचित समय (महा) २ अकस्मात्, हठात् (पउम ५, १९४; से ४४; गउड) ३ क्रिवि. अनधारित, अतर्कित (पाअ)

अयंत :: वकृ [आयत्] आता हुआ, प्रवेश करता हुआ (आवम)।

अयंतिय :: वि [अयन्त्रित] अनादरणीय (उत्त २०, ४२)।

अयंपिर :: वि [अजल्पितृ] नहीं बोलनेवाला, मौनी (पि २९६; ५९६)।

अयंपुल :: पुं [अयंपुल] गोशालक का एक शिष्य (भग ८, ५)।

अयंस :: पुं [आदर्श] दर्पण, काँच। °मुह पुं [°मुख]१ इस नाम का एक द्वीप। २ द्वीप- विशेष का निवासी (इक)

अयंसंधि :: वि [इदंसंधि] उपयुक्त कार्यं को यथासमय करनेवाला (आचा)।

अयकरय :: पुं [अयकरक] एक महाग्रह (सुब २०)।

अयक्क, अयग :: पुं [दे] दानव, असुर (दे, १६)।

अयगर :: पुं [अजगर] अजगर, मोटा साँप (पणह १, १; पउम ६३, ५४)।

अयड :: पुं [दे. अवट] कूप, कुँआ (दे १, १८)।

अयण :: न [अतन] सतत होना, निरन्तर होना (विसे ३५७८)।

अयण :: न [अयन] १ गमन। २ प्राप्ति, लाभ (विसे ८३) ३ ज्ञान, निर्णय (विसे ८३) ४ गृह, मन्दिर; 'चंडियायणं' (स ४३५) ५ वि. प्रापक, प्राप्त करनेवाला (विसे ९६०) ६ पुंन. वर्ष का आधा भाग, जिसमें सूर्यं दक्षिण से उत्तर में या उत्तर से दक्षिण में जाता है (ठा २, ४); 'एक्के अअणे दिअहा, बीए रअणीओ होंति दीहाओ। विरहाअणो अउव्वो, इत्थ दुवे च्चेअ वड्‍ढंति' (गा ८४६)

अयण :: न [अदन] १ भक्षण। २ खुराक, भोजन, (स १३०; उ ८, ७)

अयणु :: वि [अज्ञ्] अजान, मूर्खं (सुर ३, १९९)।

अयणु :: वि [अतनु] स्थूल, मोटा, महान् (सण)।

अयतंचिअ :: वि [दे] पुष्ट, उपचित (दे १, ४७)।

अयर :: वि [अजर] वृद्धावस्थारहित 'अयरामरं ठाणं' (पडि; उव)।

अयर :: पुंन [अतर] १ सागर, समुद्र (दं २८) २ समय का मान-विशेष, सागरोपम (संग २१, २५; घण ४३) ३ वि. तरने के अशक्य (बृह १) ४ असमर्थ, अशक्त (निचु १) ५ ग्लान, बीमार (बृह १)

अयरामर :: वि [अजरामर] १ जरा और मरण से रहित (नव २) २ न. मुक्ति, मोक्ष (पउम ८, १२७)

अयल :: देखो अचल = अचल (पाअ ; गउड; उप पृ १०५; अंत ३ ; पउम ८५, ४; सम ८८; कप्प; सम १९)।

अयला :: देखो अचला (पउम १२०, १५९)।

अयस :: देखो अजस (गउड; प्रासू २३; १५३; गा १७८)।

अयसि :: वि [अयशस्विन्] अजसी, यशो- रहित, कीर्ति-शून्य (गउड)।

अयसि, अयसी :: स्त्री [अतसी] धान्य-विशेष, अलसी, तीसी (भग; ठा ७; णाया १ ५)।

अया :: स्त्री [अजा] १ बकरी। २ माया, अविद्या। ३ प्रकृति, कुदरत (हे ३, ३२; षड्)। °किवाणिज्ज पुं [°कृपाणीय] न्याय- विशेष; जैसे बकरी के गले पर अनधारी छुरी पड़ती है उस माफिक अनधारा किसी कार्यं का होना (आचा)। °पाल पुं [°पाल] आभीर, बकरी चरानेवाला (स २६०)। °वय पुं [°व्रज] बकरी का बाड़ा (भग १९, ३)

अयागर :: देखो अय-आगर (ठा ८)।

अयाण :: न [अज्ञान] ज्ञान का अभाव (सत्त ६३)।

अयाण :: वि [अज्ञ, अज्ञान] अजान. अज्ञानी, मुर्खं (ओघ ७४; पउम २२, ८३; गा २७५; दे ७, ७३)।

अयाणअ :: वि [अज्ञायक] ऊपर देखो (पाअ ; भवि)।

अयाणंत :: देखो अजाणंत (ओघ ११)।

अयाणमाण :: देखो अजाणमाण (नव ३९)।

अयाणिय :: देखो अजाणिय (उप ७२८ टी)।

अयाणुय :: देखो अजाणुय (सुर ३, १६८; सुपा ५४३)।

अयार :: पुं [अकार] 'अ' अक्षर (विसे ४७८)।

अयाल :: पुं [अकाल] अयोग्य समय, अनुचित काल (पउम २२, ८५)।

अयालि :: पुं [दे] दुर्दिन, मेघाच्छन्न दिवस (दे १, १३)।

अयालिय :: वि [अकालिक] आकस्मिक, अकाण्डोत्पन्न; 'पडउ षडउ एयस्स हत्थतले अयालिया विज्जू' (रंभा)।

अयि :: देखो अइ = अयि (हे २, २१७)।

अयुजरेवइ :: स्त्री [दे] अचिर-युवति, नवोढा, दुलदिन (षड्)।

अयोमय :: देखो अओ-मय (अंत १९)।

अय्यावत्त :: (शौ)पुं [आर्यावर्त] भारत, हिन्दुस्तान (कुमा)।

अय्युण :: (मा) देखो अज्जुण (हे ४, २९२)।

अर :: पुं [अर] १ धुरी, पहिये के बीचका काष्ठ। २ अठारहवाँ जिनदेव और सातवाँ चक्रवर्ती राजा; 'सुमिणे अरं महरिहं पासइ जणणो अरो तम्हा' (आव २; सम ५ ३; उत्त १८) ३ समय का एक परिमाण, कालचक्र का बारहवाँ हिस्सा। (ती २१)

°अर :: पुं [°कर] १ किरण। गा ३४३; से १, १७) २ हस्त, हाथ (से १, २८) ३ शुल्क, चुंगी (से १, २८)

अरइ :: स्त्री [अरति]अर्श, मसा (आचा २, १२, १)।

अरइ :: स्त्री [अरति] १ बेचैनी। (भग ; आचा; उत्त २)। °कम्म न [°कर्मन्] अरति करा हेतुभूत कर्मविशेष (ठा ९)। °परिसह, °परीसह पुं [°परिषह, °परोषह] अरति का सहन करना (पंच ८)। °मोहणिज्ज न [°मोह- नीय] अरति का उत्पादक कर्म-विशेष (कम्म १)। °रइ स्त्री [°रति] सुख-दुःख (ठ १)

°अरंग :: देखो तरंग (से २, २९)।

अरंजरं :: पुंन [अरञ्जर]घड़ा, जल-घट (ठा ४, ४)।

°अरक्ख :: देखो वरक्ख (से ९, ४४)।

अरक्खरी :: स्त्री [अरोक्षरी]नगरी-विशेष (आक)।

अरग :: देखो अर (पणह २, ४; भग ३, ५)।

अरज्झिय :: वि [अरहित]निरन्त, रसतत; 'अरज्झियाभितावा' (सुअ १, ५, १)।

अरडु :: पुं [अरटु]वृक्ष-विशेष (उप १०३१ टी)।

अरण :: न [अरण]हिंसा (उव)।

अरणि :: पुं [अरणि] १ वृक्ष-विशेष। २ इस वृक्ष की लकड़ी, जिसको घिसने पर अग्नि जल्दी पैदा होती है (आवम; णाया १, १८)

अरणि :: पुंस्त्री [दे] १ रास्ता, मार्ग। २ पंक्ति, कतार। (षड्)

अरणिया :: स्त्री [अरणिका]वनस्पति-विशेष (आचा)।

अरणेट्टय :: पुं [दे. अरणेटक]पत्थरों के टुकड़ों से मिली हुई सफेद मिट्टी (जी ३)।

अरण्ण :: वि [आरण्य]जंगल में रहनेवाला (सुअ १, १, १, १९)।

अरण्ण :: न [अरण्य]वन, जंगल (हे १, ६६)। °वडिंसग न [°वतंसक] देवविमान विशेष (सम ३९)। °साण पुं [°श्वन्] जंगली कुत्ता (कुमा)।

अरण्णय :: वि [आरण्यक]जंगली, जंगल-वासी (अभि ५२)।

अरत्त :: वि [अरक्त]राग-रहित, नीराग (आचा)।

अरन्न :: देखो अरण्ण (कप्प ; उव)।

अरबाग :: पुं [दे]एक अनार्य देश, अरब देश (पव २७४)।

अरमंतिया :: स्त्री [अरमन्तिका] अरमणता, कार्य में अतत्परता (उवा)|

अरय :: देखो अर (खेत्त १०८)।

अरय :: वि [अरजस्] १ रजोगुण-रहित (पउम ६, १४६) २ एक महाग्रह का नाम (ठा २, ३) ३ वि. घूलीरहित, निर्मल (कप्प) ४ न. पांचवें देव लोत का एक प्रतर (ठा ६) ५ रजोगुण का अभाव; 'अरो य अरयं पत्तो पत्तो गइमणुतरं' (उत्त १८)

अरय :: वि [अरत] अनासक्तः, निःस्पृह (आचा)।

अरय :: पुंन [अरजस्] एक देवविमान (देवेन्द्र १४१)।

अरया :: स्त्री [अरजा] कुमुद नामक विजय की राजधानी (जं ४)।

अरयणि :: पुं [अरत्‍नि] परिमाण विशेष, खुली अंगुलीवाला हाथ (ठा ४, ४)।

अरर :: न [अरर] १ युद्ध। २ ढकना। °कुरी स्त्री [°कुरी] नगरी-विशेषे (धम्म ९ टी)

अररि :: पुंन [अररि] किवाड़, द्वार (प्रामा)।

अरल :: न [दे] १ चीरी, कीट-विशेष। २ मशक, मच्छड़ (दे १, ५३)

अरलाया :: स्त्री [दे] चीरी, कीट-विशेष (दे १, २६)।

अरलु :: देखो अरडु (पउम ४२स ८)।

अरविंद :: न [अरविन्द] कमल, पद्म (पणह २, ४)।

अरविंदर :: वि [दे] दीर्घं, लम्बा (दे १, ४५)।

अरस :: पुं [अरस] रसरहि, नीरस्स (णाया १, ५)।

अरस :: पुं [अर्शन] व्याधि-विशेष, बवासोर (श्रा २२)।

अरस :: न [अरस] तप-विशेष, निर्विकृति तप (संबोध ५८)।

अरह :: वि [अर्हत्] १ पूजा के योग्य, पूज्य (पड् ; हे २, १११) २ पुं. जिनदेव, तीर्थकर (सम्म ६७)। °मित्त पुं [°मित्र] एक व्यापारो का नाम (गच्छ २)

अरह :: देखो अरिह = अर्ह। अरहइ (प्राकृ २८)।

अरह :: वि [अरहस्] १ प्रकट। २ जिससे कुछ भी न छिपा हो। ३ पुं. जिनदेव, सर्वज्ञ (ठा ४, १, ९)

अरह :: वि [अरथ] परिग्रहरहित (भग)।

अरहंत :: वकृ [अर्हत] १ पूजा के योग्य, पूज्य (षड् ; हे २, १११; भग ८, ५) २ पुं. जिन भगवान्, तीर्थकरदेव (आचा; ठा ३, ४)

अरहंत :: वि [अरहोन्तर्] १ सर्वज्ञ, सब कुछ जाननेवाला। २ पुं. जिन भगवान् (भग २, १)

अरहंत :: वि [अरथान्त] १ निःस्पृह, निर्मम। २ पुं. जिनदेव (भग)

अरहंत :: वकृ [अरहयत्] १ अपने स्वभाव को नहीं छोड़नेवाला। २ पुं. जिनेश्वर देव (भग)

अरहट्ट :: पुं [अरघट्ट] अरहट, रहट, पानी का चरखा, पानी निकालने का यन्त्र विशेष (गा ४९०; प्रासू ५५); 'भमिओ कालमणंतं अर- हट्टघडिव्व जलमज्झे' (जीवा १)।

अरहट्ठिय :: वि [अरघट्टिक] अरहट चलानेवाला (कुप्र ५४)।

अरहणा :: स्त्री [अर्हणा] १ पूजा। २ योग्यता (प्राकृ २८)

अरहण्णय :: पुं [अरहन्नक] एक व्यापारो का नाम (णाया १, ८)।

अरहन्न :: पुं [अर्हन्न] एक जैन मुनि का नाम (सुख २, ९)।

अराइ :: पुं [अराति] रिपु, दुश्‍मन (कुमा)।

अराइ :: स्त्री [अरात्रि] दिन, दिवस (कुमा)।

अरागि :: वि [अरागिन्] रागरहित, वीतराग (पउम ११७, ४१)।

अरि :: देखो अरे (तंदु ५०; ५२ टी)।

अरि :: पुं [अरि] दुश्‍मन, रिपु (पउम ७३, १९)। °छव्वग्ग पुं [°षड्‍वर्ग] छः आन्तरिक — काम, क्रोध, लोभ, मोह, मद, मात्सर्य (सुअ १, १, ४)। °दमण वि [°दमन] १ रिपु विना शक। २ पुं. इक्ष्वाकु वंश के लिए राजा का नाम (पउम ५, ७) ३ एक जैन मुनि जो भग वान् अजितनाथ के पूर्वंजन्म के गुरू थे (पउम २०, ७)। °दमणी स्त्री [°दमनी] विद्या विशेष (पउम ७, १४५)। °विद्धंसी स्त्री [°विध्वं- सिनी] रिपु का नाश करनेवाली एक विद्या (पउम ७, १४०)। °संतास पुं [°संत्रास] राक्षसवंश में उत्पन्न लङ्का का एक राजा (पउम ५, २६५)। °हंत वि [°हन्तृ] १ रिपु-विनाशक। २ पुं. जिनदेव (आवम)

अरिअल्लि :: पुंस्त्री [दे] व्याघ्र, शेर (दे १, २४)।

अरिंजय :: पुं [अरिञ्जय] १ भगवान् ऋषभदेव का एक पुत्र। २ न. नगर-विशेष (पउम ५, १०९; इक; सुर ५, १०३)

अरिट्ठ :: पुं [अरिष्ट] १ वृक्ष-विशेष (पणण १) २ पनरहवें तीर्थकर का एक गणधर (सम १५२) ३ पुंन. एक देवविमान (देवेन्द्र १३३) ४ न. गोत्र-विशेष, जो माणडव्य गोत्र की शाखा है (ठा ७) ५ रत्‍न की एक जाति (उत्त ३४, ४; सुपा ६) ६ फल-विशेष, रीठा (पणण १७; उत्त ३४, ४) ७ अनिष्ट- सूचक उत्पात (आचू)। °णोमि, °नेमि पुं [°नेमि] वर्तमान काल के बाईसवें जिनदेव (सम १७; अंत ५; कप्प; पडि)

अरिट्ठा :: स्त्री [अरिष्टा] कच्छ नामक विजय की राजधानी (ठा २, ३)।

अरित्त :: न [अरित्र] पतवार, कन्हर, नाव की पीछे का डांड़, जिससे नाव दाहिने-बांये घुमायी जाती है (धर्मंवि १३२)।

अरिरिहो :: अ [अरिरिहो] पादपूरक अव्यय (हे २, २१७)।

अरिस :: देखो अरस (णाया १, १३)।

अरिसल्ल, अरिसल्ल :: वि [अर्शस्वत्] बबासीर रोगवाला (पाअ; विपा १, ७)।

अरिह :: वि [अर्ह] १ योग्य, लायक (सुपा २६९; प्राप्त) २ पुं. जिनदेव (औप)

अरिह :: सक [अर्ह्] १ योग्य होना। २ पूजा के योग्य होना। ३ पूजा करना। अरिहइ (महा)। अरिहेति (भग)

अरिह :: देखो अरह = अर्हत (हे २, १११; षड्)। °दत्त, °दिण्ण पुं [°दत्त] जैन मुनि-विशेष का नाम (कप्प)।

अरिहणा :: देखो अरहणा (प्राकृ २८)।

अरिहंत :: देखो अरहंत = अर्हत (हे २, १११; षड्; णाया १, १)। °चेइय न [°चैत्य] १ जिन-मन्दिर (उवा; आचु)। °सांसण न [°शासन] १ जैन आगम-ग्रन्थ। २ जिन- आज्ञा। (पणह २, ५)।

°अरु :: देखो तरु (से २, १९, ५, ८५)।

अरु :: वि [अरुज्] रोग-रहित (तंदु ४६)।

अरु :: देखो अरूव (तंदु ४६)।

अरुग :: न [दे. अरुक] व्रण, घाव; 'अरुगं इहरा कुत्थइ' (बृह ३)।

अरुंतुद :: वि [अरुन्तुद] १ मर्म-वेधक। २ मर्म-स्पर्शी; 'इय तदरुतुदवायावाणेहिं विंधि- यस्सावि' (सम्मत्त १५८)

अरुण :: पुं [अरुण] १ सूर्य, सूरज (से ३, ६) २ सूर्यं का सारथी। ३ संध्याराग, सन्ध्या की लाली (से ८, ७) ४ द्वीप- विशेष। ५ समुद्र-विशेष, 'गंतुण होइ अरुणो अरुणो दीवो तओ तदही' (दीव) ६ एक ग्रह-देवता का नाम (ठा २, ३; पत्र ७८) ७ गन्धावती-पर्वत का अधिष्ठाता देव (ठा २, ३; पत्न ६९) ८ देव-विशेष (णंदि) ९ रक्त रंग, लाली। (गउड) १० न. विमान-विशेष (सम १४) ११ वि. रक्त, लाल (गउड)। °कतं न [°कान्त] देवविमान-विशेष (उवा)। [°कील] न [°कील] देवविमान-विशेष (उवा)। °गंगा स्त्री [°गङ्गा] महाराष्ट्र- देश की एक नदी (ती २८)। °गव न [°गव] देवविमान-विशेष (उवा)। °ज्झय न [°ध्वज] एक देवविमान का नाम (उबा)। °प्पभ, °प्पह न [°प्रभ] इस नाम का एक देवविमान (उवा)। °भद्द पुं [°भद्र] एक देवता का नाम (सुज्ज १९)। °भूय न [°भूत] एक देवविमाना (उवा)। °महामद्द पुं [°महाभद्र] देव-विशेष (सुज्ज १९)। °महावर पुं [°महावर] १ द्वीप- विशेष। २ समुद्र-विशेष (इक)। °वडिंसय न [°वतंसक] एक देवविमान (उबा)। °वर पुं [°वर] १ द्वीप-विशेष। २ समुद्र- विशेष (सुज्ज १९)। °वरोभास पुं [°वरावभास] १ द्वीप-विशेष। २ समुद्र- विशेष (सुज्ज १९)। °सिट्ठ न [°शिष्ट] एक देवविमान (उवा)। °भि न [°भि] देवविमान-विशेष (उवा)

अरुण :: न [दे] कमल, पद्‍म (दे १, ८)।

अरुण :: पुंन [अरुण] १ एक देव-विमान। (देवेन्द्र १३१)। °प्पभ पुं [°प्रभ] १ अनुवेलन्धर नामक नागराज का एक आवास- पर्वत। २ उस पर्वंत का निवासी देव। (ठा ४, २; पत्र २२६)। °भि पुं [°भि] कृष्ण पुद्‍गल-विशेष (सुज्ज २०)

अरुणिम :: पुंस्त्री [अरुणिमन्] लाली, रक्तता; 'पाणिपल्लवारुणिमरमणीयं' (सुपा ५८)।

अरुणिय :: वि [अरुणित]रक्त, लाल (गउड)।

अरुणुत्तरवडिंसग :: न [अरुणोत्तरावतंसक] अस नाम का एक देवविमान (सम १४)।

अरुणोद :: पुं [अरुणोद] समुद्र-विशेष (सुज्ज १९)।

अरुणोदय :: पुं [अरुणोदक] समुद्र-विशेष (भग)।

अरुणोववाय :: पुं [अरुणोपपात] ग्रन्थ-विशेष का नाम (णंदि)।

अरुय :: वि [अरुष्] व्रण, घाव (सुअ १, ३, ३)।

अरुय :: वि [अरुज्] निरोगी, रोगरहित (सम १; अजि २१)।

अरुह :: देखो अरह = अर्हत् (हे २, १११; षड; (भवि)।

अरुह :: वि [अरुह] १ जन्मरहित। २ पुं. मुक्त आत्मा (पव २७५; भग १, १) ३ जिन देव (पउम ५, १२२)

अरुह :: देखो अरिह = अर्ह्। अरुहसि (अभि १०४)। वकृ. अरुहमाण (षड्)।

अरुह :: वि [अर्ह] योग्य (उत्तर ८४)।

अरुहंत :: देखो अरहंत = अर्हत (हे २, १११; षड्)।

अरुहंत :: वि [अरोहत्] १ नहीं उगता हुआ, जन्म नहीं लेता हुआ (भग १, १)

अरूव :: वि [अरूप] रूपरहित, अमूर्त्तं; (पउम ७५, २६)।

अरूवि :: वि [अरूपिन्] ऊपर देखो (ठा ५, ३; आचा; पणण १)।

अरे :: अ [अरे] १ — २ संभाषण और रति- कलह का सूचक अव्यय (है २, २०१; षड्)

अरे :: अ [अरे] इन अर्थों का सूचक अव्यय — १ आक्षेप। २ विस्मय, आश्‍चर्य। ३ परिहास, ठट्ठा (संक्षि ३८, ४७)

अरोअ :: क [उत् + लस्] उल्लास पाना, विकसित होना। अरोअइ (हे ४, २०२; कुमा)।

अरोअअ :: पुं [अरोचक] रोग-विशेष, अन्न की अरुचि (श्रा २२)।

अरोइ :: वि [अरोचिन्] अरुचि वाला, रुचि- रहित; 'अरोइ अत्थे कहिए विलावो' (गोय ७)।

अरोग :: वि [अरोग] रोगरहित (भग १८, १)। °या स्त्री [°ता] आरोग्य, नीरोगता (उप ७२८ टी)।

अरोगि :: वि [अरोगिन्] नीरोग, रोग-रहित। °या स्त्री [°ता] आरोग्य, तंदुरुस्ती (महा)।

अरोग्ग, अरोय :: देखो आरोय = आरोग्य (आचा २, १५, २)।

अरोस :: वि [अरोष] १ गुस्सा-रहित। २ — ६ पुं. एक म्लेच्छ देश और उसमें रहनेवाली म्लेच्छ जाति (पणह १, १)

अल :: न [अल] १ बिच्छु के पुच्छ का अग्र भाग, 'अलमेव विच्छुआणं, मुहमेव अहीणं तह य मंदस्स। दिट्ठि-बियं पिसुणाणं, सव्वं सव्वस्स भय-जणयं' (प्रासू १९) २ अलादेवी का एक सिंहासन (णाया २) ३ वि. समर्थ (आचा)। °पट्ट न [°पट्ट] बिच्छु की पुँछ जैसे आकारवाला एक शस्त्र (विपा १, ६)

°अल :: देखो तल (गा ७५; से १, ७८)।

अलं :: अ [अलम्] १ पर्याप्त, पूर्णं; 'अलमा- णंदं जणंतीए' (सुर १३, २१) २ प्रतिषेध, निवारण, बस (उप २, ७)

अलं :: अ [अलम्] अलङ्कार, भूषा (सुअनि २०२)।

अलंकर :: सक [अलं + कृ] भूषित करना, विराजित करना। अलंकरेंति (पि ५०९)। बकृ. अलंकरंत (माल १४३)। संकृ. अलं- करिअ (पि ५८१)। प्रयो. कर्म. अलंकरा- वीयउ (स ६४)।

अलंकरण :: न [अलङ्करण] १ आभूषण, अलं- कार (रयण ७४, भवि) २ वि. शोभा- कारक, 'मज्झमलोअस्स अलंकरणिं सुलोअणिं' (विक्र १४)

अलंकरिय :: वि [अलंकृत] सुशोभित, विभूषित; 'किं नयरमलंकरियं जम्ममहेणं तए महापुरिस'। (सुपा ५८४; सुर ४, ११८)।

अलंकार :: पुं [अलङ्कार] १ शास्त्र-विशेष, साहित्यशास्त्र (सिरि ५५; सिक्खा २) २ पुंन. एक देवविमान (देवैन्द्र १३५)

अलंकार :: पुं [अलंकार] १ भूषण, गहना (औप; राय) २ भूषा, शोभा (ठा ४, ४)। °सह स्त्री [°सभा] भूषा-गृह, श्रृङ्गार-धर (इक)

अलंकारिय :: पुं [अलंकारिक] नापित, नाई, हजाम (णाया १, १३)। °कम्म न [°कर्मन्] हजामत्, क्षौर कर्म (णाया १, १३)। °सहा स्त्री [°+सभा] हजामत बनाने का स्थान (णाया १, १३)।

अलंकिय :: वि [अलंकृत] १ विभूषित, सुशो- भित (कप्प; महा) २ न. संगीत का एक गुण (जीव ३)

अलंकुण :: देखो अलंकर। अलंकुणंति (रयण ५२)।

अलंघ :: वि [अलङ्ध्य] १ उल्लंघन करने के अयोग्य (सुर १, ४१) २ उल्लंघन करने के अशक्य (उप ५६७ टी)

अलंघणिय, अलंघणीय :: वि [अलङ्घनीय] ऊपर देखो (महा ; सुपा ६०१; पि ९६; नाट)।

अलंपु :: पुं [दे] कुक्कुट, मुर्गा (दे १, १३)।

अलबुसा :: स्त्री [अलम्बुषा] १ एक दिक्कुमारी देवी का नाम। (ठा ८) २ गुल्म-विशेष। (पाअ)

अलंभि :: स्त्री [अलाभ] अप्राप्ति (औष २३; भा)।

अलका :: स्त्री [अलका] नगरी-विशेष, पहले प्रतिवासुदेव की राजधानी (पउम २०, २०१)। देखो अलया।

अलक्ख :: पुं [अलक्ष] १ इस नाम का एक राजा, जिसने भगवान् महावीर के पास दीक्षा लेकर मुक्ति पाई थी (अंत १८) २ न. 'अंतगडदसा' सुत्र के एक अध्ययन का नाम। (अंत १८)

अलक्ख :: वि [अलक्ष्य] लक्ष्य में न आ सके (अंत १८)।

अलक्ख :: वि [अलक्ष्य] लक्ष्य में न आ सके ऐसा (सुर ३, १३६; महा)।

अलक्खमाण :: वि [अलक्ष्यमाण] जो पहि- चाना न जा सकता हो, गुप्त (उप ५९३ टी)।

अलक्खिय :: वि [अलक्षित] १ अज्ञात, अपरिचित। (से १३, ४५) २ न पहचाना हुआ। (सुर ४; १४०)

अलग :: देखो अलय = अलक (महा)।

अलगा :: देखो अलया (अंत १)।

अलग्ग :: न [दे] कलंक देना, दोष का झुठा आरोप (दे १, ११)।

अलचपुर :: न [अचलपुर] नगर-विशेष (कुमा)।

अलज्ज :: वि [अलज्ज] निर्लज्ज, बेशरम (पणह १, ३)।

अलज्जिर :: वि [अलज्जालु] ऊपर देखो (गा ९०; ४४५; ६६१; महा)।

अलट्टपल्लट्ट :: न [दे] पार्श्व का परिवर्तन (दे १, ४८)।

अलत्त :: पुं [अलक्त] आलता, स्त्रियाँ हाथ- पैर की लाल करने के लिए जो रंग लगाती हैं वह (अनु ५)।

अलत्तय :: पुं [अलक्तक] १ ऊपर देखो। (सुपा ४०६) २ वि. आलता से रंगा हुआ (अनु)

°अलधोय :: देखो कलधोय (से ६, ४६)।

अलमंजुल :: वि [दे] आलसी, सुस्ते (दे १, ४६)।

अलमंथु :: वि [अलमस्तु] १ समर्थं। २ निषेधक, निवारक। (ठा ४, २)

अलमल :: पुं [दे] दुदन्ति बैल (दे १, २५)।

अलमलवसह :: पुं [दे] उन्मत्त बैल (दे १, २५।

अलय :: न [दे] विद्रुम, प्रवाल (दे १, १६; भवि)।

अलय :: पुं [अलक] १ बिच्छु का कांटा। (विपा १, ६) २ केश, घुंघराले बाल। (पाअ; स ६६)

अलया :: स्त्री [अलका] कूबेर की नगरी (पाअ; णाया १, ४)। देखो अलका।

अलव :: वि [अलप] मौनी, नहीं बोलनेवाला (सुअ २, ६)।

अलवलवसह :: पुं [दे] धूर्तं बैल (षड्)।

अलस :: वि [अलस] १ आलसी, सुस्त (प्रासु ७) २ मन्द, धीमा (पाअ) ३ पुं. क्षुद्र कीट-विशेष, भू-नाग, वर्षाऋतु में साँप सरीखा लाल रंग का जो लम्बा जन्तु उत्पन्न होता है वह (जी १५; पुप्फ २६५)

अलस :: वि [दे] १ मधुर आवाजवाला, 'खं अलसं कलमंजुलं' (पाअ) २ कुसुम्भ रंग से रंगा हुआ। ३ न. मोम (दे १, ५२)

°अलस :: देखो कलस (से १, ६; ११, ४०; गा ३६९)।

अलसग, अलसय :: पुं [अलसक] १ बिसूचिका रोग (उवा) २ श्वयथु, सूजन (आचा)

अलसाइअ :: वि [अलसायित] जिसने आलसी की तरह आचरण किया हो, मन्द (गा ३५२)।

अलसाय :: अक [अलसाय्] आलसी होना, आलसी की तरह काम करना। अलसाअइ (पि ५५८)। वकृ. अलसायंत, अलसाय- माण (से १४, १; उप पृ ३१५; गच्छ १)।

अलसी :: देखो अयसी (आचा; षड्; हे २, ११)।

अला :: स्त्री [अला] १ इस नाम की एक देवी (ठा ६) २ एक इन्द्राणिी का नाम (णाया २)। °वडिंसग न [°वतंसक] अलादेवी का भवन (णाया २)

°अला :: देखो कला (गा ६५७)।

अलाउ :: न [अलाबु] तुम्बी फल, लौकी, तुम्बा (औप प्रासू १५१)।

अलाऊ, अलाबू :: स्त्री [अलाबू] तुम्बो-लता (कुमा; षड्)।

अलाय :: न [अलात] १ उल्मुक, जलता हुआ काष्ठ (दे १, १०७; ओघ २१ भा) २ अङ्गार, कोयला (से ३, ३४)

अलावणी :: स्त्री [अलाबुवीणा] वीणा-विशेष (प्राकृ ३७)।

अलावु :: देखो अलाउ (जं ३)।

अलावू :: देखो अलाऊ (पि १४१; २०१)।

अलाह :: पुं [अलाभ] नुकसान, गैरलाभ; 'वव- हरमाणण पुणो होइ सुलाहो कयावलाहो वा' (सुपा ४४६)।

अलहि :: देखो अलं उव ७२८ टी; हे २, १८९; णाया १, १; गा १२७)।

अलि :: पुं [अलि] भ्रमर (कुमा)। °उल न [°कुल] भ्रमरों का समूह (हे ४, २५३)। °विरुय न [°विरुत] भ्रमर का गुजारूब (पाअ)।

अलि :: पुंस्त्री [अलि] वृश्चिक राशि (विचार १०६)।

अलिअल्लि :: स्त्री [दे] १ कस्तुरी। २ व्याघ्र, शेर (दे १, ५६)

अलिआ :: स्त्री [दे] सखी (दे १, १६)।

अलिआर :: न [दे] दुध (दे १, २३)।

अलिंजर :: न [अलिञ्जर] १ घड़ा, कुम्भ (ठा ४, २) २ कुंड, पात्र-विशेष (दे १, ३७)

अलिजरअ :: पुं [अलिञ्जरक] १ घड़ा (उवा)। रंगने का कुंडा, रंग-पात्र (पाअ)

अलिंद :: न [अलिन्द] पात्र-विशेष, एक प्रकार का जलपात्र (ओघ ४७६)।

अलिंदग :: पुं [अलिन्दक] १ द्वार का प्रकोष्ठ (स ४७६) २ घर के बाहर के दरवाजे का चौक। ३ बाहर का अग्र भाग (बृह २; राज)

अलिदय :: पुंन [आलिन्दक] धान्य रखने का पात्र-विशेष (अणु १५१)।

अलिण :: पुं [दे] वृश्चिक, बिच्छु (दे १, ११)।

अलिणी :: स्त्री [अलिनी] भ्रमरी (कुमा)।

अलित्त :: न [अरित्र] नौका खेवने का डाँड़, चप्पू (आचा २, ३ १)।

अलिय :: न [अलिक] कपाल (पाअ)।

अलिय :: न [अलीक] १ मृषावाद, असत्य वचन (पाअ) २ वि. झुठा, खोटा; 'अलिअ- पोरुसालाव' — (पाअ) ३ निष्फल, निरर्थक (पणह १, २)। °वाइ वि [°वादिन्] मृषा- वादी (पउम ११, २७; महा)

अलिल्ल :: सक [कथय्] कहना, बोलना। अलिल्लह (पिंग)।

अलिल्लह :: न [दे] १ छन्द विशेष का नाम। २ वि. अप्रयोजक, नियमरहित (पिंग)

अलिल्ला :: स्त्री [अलिल्ला] इस नाम का एक छन्द (पिंग)।

अलीग, अलीय :: देखो अलिय = अलीक (सुर ४, २२३; सुपा ३००; महा)।

अलीवहू :: स्त्री [अलिवधू] भ्रमरी (कुमा)।

अलीसअ :: स्त्री पुं [दे] शाक-वृक्ष, साग का पेड़ (दे १, २७)।

अलुक्खि :: वि [अरूक्षिन्] कोमल (भग ११, ४)।

अलेसि :: वि [अलेश्यिन्] १ लेश्यारहित। २ पुं. मुक्त आत्मा (ठा ३, ४)

अलोग :: पुं [अलोक] जीव-पुद्नल आदि रहित आकाश (भग)।

अलोणिय :: वि [अलवणिक] लुणरहित, नमक- शून्य; 'नय अलोणियं सिलं कोइ चट्टेइ' (महा)।

अलोय :: देखो अलोग (सम १)।

अलोभ :: पुं [अलोभ] १ लोभ का अभाव, संतोष। २ वि. लोभरहित, संतोषी (भग; उव)

अलोल :: वि [अलोल] अलम्पट, निर्लोभ (दस १०; पि ८५)।

अलोह :: देखो अलोभ (कप्प)।

अल्ल :: न [दे] दिन, दिवस (दे १, ५)।

अल्ल :: देखो अद्द (हे १, ८३)।

अल्ल :: अक [नम्] नमना, नीचे झुकना। ओअल्लंति (से ६, ४३)।

अल्लई :: स्त्री [आर्द्रकी] लता-विशेष, आर्द्रक- लता (पणण १७)।

अल्लग :: देखो अल्लय = आर्द्रक (धर्म २)।

अल्लत्थ :: सक [उत् + क्षिप्] ऊँचा फेंकना। अल्लत्थइ (हे ४, १४४)।

अल्लत्थ :: न [दे] १ जलार्द्रा, गीला पंखा। २ केयूर, भूषण-विशेष (दे १, ५४)

अळ्लत्थिअ :: वि [उत्क्षिप्त] ऊँचा फेंका हुआ (कुमा)।

अल्लय :: न [आर्द्रक] आदी, अदरक (जी ९)। °तिय न [°त्रिक] आदी, हल्दी और कचूर (जी ९)।

अल्लय :: वि [दे] परिचित, ज्ञात (दे १, १२)।

अल्लय :: पुं [अल्लक] इस नाम काम एक विख्यात जैन मुनि और ग्रन्थकार, उद्‍द्योतन- सूरि का उपाध्याय-अवस्था का नाम (सुर १६, २३९)।

अल्लल्ल :: पुं [दे] मयूर, मोर (दे १, १३)।

अल्लविय :: [अप] देखो आलत्त = आलपित (भवि)।

अल्ला :: स्त्री [दे] माता, माँ (दे १, ५)।

अल्लि, अल्लिअ :: देखो अल्ली। अल्लिइ (षड्)। अल्लिग्रह (दे १, ५८; हे ४, ५४)। वकृ. अल्लिअंत (से १२, ७२; पउम १२, ५१)।

अल्लिअ :: सक [उप + सृप्] समपी में जाना। अल्लिअइ (हे ४, १३९)। वकृ. अळ्लि- अंत (कुमा)। प्रयो. अल्लियावेइ (पि ४८२; ५८१)।

अल्लिअ :: वि [आर्द्रित] गीला किया हुआ (गा ४४०)।

अल्लियावण :: न [आलायन] आलीन करना, श्लिष्ट करना, मिलान (भग ८, ९)।

अल्लिल्ल :: पुं [दे] भमरा (षड्)।

अल्लिव :: सक [अर्पय्] अर्पण करना। अल्लिवइ (हे ४, ३९; भवि; पि १९६; ४८५)।

अल्ली, अल्लीअ :: सक [आ + ली] १ आना। २ प्रवेश करना। ३ जोड़ना। ४ आश्रय करना। ५ आलिंगन करना। ६ अक. संगत होना। अल्लीअइ (हे ४, ५४)। भूका. अल्लीसी (प्रामा) हेकृ. अल्लीउं (बृह ६)

अल्लीण :: वि [आलीन] १ आश्लिष्ट। २ आगत। ३ प्रविष्ट। ४ संगत। ५ योजित। ६ थोड़ा लीन (हे ४, ५४) ७ आश्रित (कप्प) ८ तल्लीन, तत्पर (वव १०)

अल्लेस :: वि [अलेश्य] लेश्यारहित (कम्म ४, ५०)।

अल्लोग :: देखो अलोग (द्रव्य १९)।

अल्हाद :: पुं [आह्‍ लाद] खुशी, प्रमोद, आनन्द (प्राप्त)।

अव :: अ [अप] इन अर्थो का सूचक अव्यय — १ विपरीतता, उल्टापन; 'अवकय, अवंगुय'। २ वापसी, पीछेपन; 'अवक्कमइ'। ३ बुरापन, खराबपन; 'अवमग्ग, अवसद्द'। ४ न्यूनता, कमी; 'अवड्‍ढ'। ५ रहितपन, वियोगः 'अव- बाण'। ६ बाहरपन; 'अवक्कमण'।

अव :: अ [अव] निम्‍नलिखित अर्थो का सूचक अव्यय — १ निम्‍नता, 'अवइणण'। २ पीछेपन; 'अवचुल्ली'। ३ तिरस्कार, अनादर; 'ୱ- गणत'। ४ खराबी, बुराई; 'अवगुण'। ५ गमन। ६ अनुभव (राज) ७ हानि, ह्नास; 'अवक्कास'। ८ अभाव, 'अवलद्धि'। ९ मर्यादा (विसे ८२) १० निरर्थक भी इसका प्रयोग होता है, 'अवपुट्ठ, अवगल्ल'।

अव :: सक [अव्] १ रक्षण करना; 'अवंतु मुणिणो य पयकमलं' (रयण ९) २ जाना, गमन करना। ३ इच्छा करना। ४ जानना। ५ प्रवेश करना। ६ सुनना। ७ माँगना, याचना। ८ करना, बनाना। ९ चाहना। १० प्राप्त करना। ११ आलिङ्गन। १२ मारना, हिंसा करना। १३ जलाना। १४ अक. प्रीति करना। १५ तृप्त होना। १६ प्रकाशना। १७ बढ़ना। अव (श्रा २३; विस २०२०)

अव :: पुं [अव] शब्द, आवाज (श्रा २३)।

अवअक्ख :: सक [दृश्] देखना। अवअक्खइ (हे ४, १८१; कुमा)।

अवअक्खिअ :: न [दे] निवापित मुख, मुँड़ाया हुआ मुंह (दे १, ४०)।

अवअच्छ :: न [दे] कक्षा-वस्त्र (दे १, २६)।

अवअच्छ :: अक [ह्‍ लाद्] आनन्द पाना, खुश होना। अवअच्छइ (हे ४, १२२)।

अवअच्छ :: सक [ह्‍लादय्] खुश करना। अवअच्छइ (हे ४, १२२)।

अवअच्छिअ :: [दे] देखो अवअक्खिअ (दे १, ४०)।

अवअच्छिअ :: वि [ह्‍लादित] १ हृष्ट, आह्‍लाद प्राप्त। २ खुश किया हुआ, हर्षित (कुमा)

अवअज्झ :: सक [दृश्] देखना। अवअज्झइ (षड्)।

अवअणिअ :: वि [दे] असंघटित, असंयुक्त (दे १, ४३)।

अवअण्ण :: पुं [दे] ऊखल, गूगल (दे १, २६)।

अवअत्त :: वि [अपवृत्त] स्खलित (से १०, १८)।

अवआस :: सक [दृश्] देखना। अवआसइ (हे ४, १८१; कुमा)।

अवइ :: वि [अव्रतिन्] व्रतशून्य, अविरत, असंयत (बृह १)।

अवइण्ण :: वि [अवतीर्ण] १ उतरा हुआ, नीचे आया हुआ। २ जन्मा हुआ (कप्पू ; पउम ७९, २८)

अवइद :: (शौ) वि [अवचित] एकत्रित, इकट्ठा किया हुआ (अभि ११७)।

अवइद :: (शौ) वि [अपकृत] १ जिसका अहित कियागया हो वह। २ न. अपकार, अहित (चारु ४०)

अवइन्न :: देखो अवइण्ण (सुर ३, १२२)।

अवउज्ज :: सक [अबकुब्ज्] नीचे नमना। संकृ. अवउज्जिय (आचा २, १, ७)।

अवउज्झ :: सक [अप+ उज्झ्] परित्याग करना। छोड़ देना। संकृ. अवउज्झिऊण (बृह ३)।

अवउज्भ+ :: देखो अववह।

अवउडग, अवउडय :: देखो अवओडग (णाया १, २; अनु)।

अवउंठण :: न [अवगुण्ठन] १ ढकना। २ मुँह ढकने का वस्त्र, घुँघट (चारु ७०)

अवऊढ :: वि [अवगूढ] आलिंगित, 'संझावहू- अवऊढो णाववरिहरोव्व विज्जुलापडिभिन्नो' (हे २, ६; स ४९६)।

अवऊसण :: न [अपवसन] तपश्चर्या-विशेष (पंचा १९)।

अवऊसण :: न [अपजोषण] ऊपर देखो (पंचा १९)।

अवऊहण :: न [अवगूहन] आलिङ्गन (गा ३३४; ५५९; वज्जा ७४)।

अवएड :: पुं [अवएज] तापिका-हस्त, पात्र- विशेष (णाया १, १ टी — पत्र ४३)।

अवएस :: पुं [अपदेश] बहाना, छल (पाअ)।

अवओडग :: न [अवकोटक] गले को मरोड़ना, कृकाटिका को नीचे ले जाना (विपा १, २)। °बंधण न [°बन्धन] १ हाथ और सिर को पृष्ठ भाग से बाँधना (पणह १, २) २ वि. रस्सी से गला और हाथ को मोड़कर पृष्ठ भाग के साथ जिसको बांधा जाय वह (विपा १, २)

अवंग :: पुं [अपाङ्गं] नेत्र का प्रान्त भाग (सुर ३, १२४; ११, ६१)।

अवंग :: पुं [दे] कटाक्ष (दे १, १५)।

अवंगु, अवंगुय :: वि [दे. अपावृत] नहीं ढका हुआ, खुला (औप; पणह २, ४)।

अवंगुण :: सक [दे] खोलना। अवंगुणेज्जा (आचा २, २, २, ४)।

अवंचिअ :: वि [अवाञ्चित] अधोमुख, अवाङ्- मुख (वज्जा १०)।

अवंचिअ :: वि [अवञ्चित] नहीं ठगा हुआ (वज्जा १०)।

अवंझ :: वि [अवन्ध्य] सफल, अचूक (सुपा ३२५)। °पवाय न [°प्रवाद] ग्यारहवाँ पूर्व, जैन ग्रन्थांश-विशेष (सम २६)।

अवंतर :: वि [अवान्तर] भीतरी, बीच का (आवम)।

अवंति :: पुं [अवन्ति] भगवान् आदिनाथ का एक पुत्र (ती १४)।

अवंति, अवंती :: स्त्री [अवन्ति, °न्ती] १ मालव देश। २ मालव देश की राजधानी, जो आजकल राजपूताना में 'उज्जैन' नाम से प्रसिद्ध है (महा ; सुपा ३९६; आवम)। °गंगा स्त्री [°गङ्गा] आजीविक मत में प्रसिद्ध काल- विशेष (भग २४, १)। °वड्‍ढण पुं [°वर्धन] इस नाम का एक राज (आव ४)। °सुकु- माल पुं [°सुकुमाल] एक श्रेष्ठि-पुत्र, जो आर्यसुहस्ति आचार्य के पास दीक्षा लेकर देव-लोक के नलिनीगुल्म विमान में उत्पन्न हुआ है (पडि)। °सेण पुं [°पेण] एक राजा (आक)

अवंदिम :: वि [अवन्द्य] वन्दन करने के अयोग्य, प्रणाम के अयोग्य (दसचू १)।

अवक्खं :: सक [अव + काङ्‍क्ष्] १ चाहना। २ देखना। अवकंखइ (भग)। वकृ. अव- कंखमाण (णाया १, ९)

अवकंत :: देखो अवक्कंत; 'कुमरोवि सत्थराओ उट्ठेत्ता सणियमवकंतो' (महा)।

अवकप्प :: सक [अव + कल्पय्] कल्पना करना, मान लेना। अवकप्पंति (सुअ १, ३, ३, ३)।

अवकय :: वि [अपकृत] १ जिसका अपकार किया गया हो वह (उव) २ अपकार, अहित (सुपा ६४१)

अवकर :: सक [अप + कृ] अहित करना। अवकरेंति (सुअ १, ४, १, २३)।

अवकरिस :: पुं [अपकर्ष] अपकर्षं, ह्नास, हानि (सम ६०)।

अवकलुसिय :: वि [अपकलुषित] मलिन (गउड)।

अवकस :: सक [अव + कृष्] त्याग करना। संकृ. अवकसित्ता (चउ १४)।

अवकारि :: वि [अपकारिन्] अहित करने वाला (पउम ९, ८५)।

अवकिण्ण :: वि [अवकीर्ण] परित्यक्त (दे १, १३०)।

अवकिण्णग, अवकिण्णव :: पुं [अपकीणैक] करकण्डू नामक एक जैन महर्षि का पूर्व नाम (महा)।

अवकित्ति :: स्त्री [अपकीर्त्ति] अपयश (दे १, ६०)।

अवकिदि :: स्त्री [अपकृत्ति] अपकार, अहित (प्राकृ १२)।

अवकीरण :: न [अवकरण] छोड़ना, त्याग, उत्सर्गं (आव ५)।

अवकीरिअ :: वि [दे. अवकीर्ण] विरहित, वियुक्त (दे १, ३८)।

अवकीरियव्व :: वि [अवकरितव्य] त्याज्य, छोड़ने लायक (पणह १, ५)।

अवकूजिय :: न [अवकूजित] हाथ को ऊँचा- नीचा करना (निचु १७)।

अवकेसि :: पुं [अवकेशिन्] फल-वन्ध्य वन- स्पति (उर २, ८)।

अवकोडक :: देखो अवओडग (पणह १, १)।

अवक्कंत :: वि [अपक्रान्त] १ पीछे हटा हुआ, वापस लौटा हुआ (सुपा २९२; उप १३४ टी; महा)। २ निकृष्ट, जघन्य (ठा ६)

अवक्कंत :: पुं [अवक्रान्त] प्रथम नरक भूमि का ग्यारहवाँ नरकेन्द्रक — नरक-स्थान विशेष (देवेन्द्र ५)।

अवक्कंति :: स्त्री [अपक्रान्ति] १ अपसरण। २ निर्गमन (णाया १, ८)

अवक्वंति :: स्त्री [अवक्रान्ति] गमन गति (आचा)।

अवक्कम :: अक [अप + क्रम] १ पीछे हटना। २ बाहर निकलना। अवक्कमइ (महा, कप्प)। वकृ. अवक्कममाण (विपा १, ९)। संकृ. अवक्कमइत्ता, अवक्कम्म (कप्प, वव १)

अवक्कम :: सक [अव + क्रम्] जाना। अवक्क- मइ (भग)। संकृ. अवक्कमित्ता (भग)।

अवक्कमण :: न [अपक्रमण] १ बाहर निकलना (ठा ५, २) २ पलायन, भागना; 'निग्गमण- मवक्कमणं निस्सरणं पलायणं च एगट्ठा' (वव १०)। ३ पीछे हटना (णाया १, १)

अवक्कमण :: न [अपक्रमण] अवतरण, 'उत्त- रावक्कमणं' (भग ९, ३३)।

अवक्कय :: पुं [अवक्रय] भाड़ा, भाटि (बृह १)।

अवक्कय :: वि [अपकृत] जिसका अहित किया गया हो वह (चंड)।

अवक्करस :: पुं [दे] दारु, मद्य (दे १, ४६; पाअ)।

अवक्करिस, अवक्कास :: पुं [अपकर्ष] हानि, अपचय (विसे १७९९; भग १२, ५)।

अवक्कास :: पुं [अवकर्ष] ऊपर देखो (भग १२, ५)।

अवक्कास :: पुं [अप्रकाश] अन्धकार, अँधेरा (भग १२, ५)।

अवक्कोस :: पुं [अवक्रोश] मान, अहंकार (सम ७१)|

अवक्ख :: सक [दृश्] देखना। अवक्खइ (षड्)। अवक्खए (भवि)। वकृ. अव- क्खंत (कुमा)।

अवक्खंद :: पुं [अबरस्कन्द] १ शिबिर, छावनी, सैन्य का पड़ाव। २ नगर का रिपु-सैन्य द्वारा वेष्टन, घेरा (हे २, ४; स ४१२)

अवक्खर :: पुं [अवस्कर] पुरीष, विष्ठा (प्राकृ २१)।

अवक्खारण :: न [अपक्षारण] १ निर्भँर्त्सँना, कठोर बचन। २ सहानुभूति का अभाव (पणह १, २)

अवक्खेव :: पुं [अवक्षेप] विघ्‍न, बाघा (विपा १, ९)।

अवक्खेवण :: न [अवक्षेपण] १ बाधा, अन्त- राय। २ क्रिया-विशेष नीचे जाना। (आवम; विसे २४९२)

अवखेर :: सक [दे] १ खिन्न करना। २ तिर- स्कार करना। अवखेरइ (भवि)। वकृ. अव- खेरंत (भवि)

अवग :: पुंन [दे. अवक] जल में होनेवाली वनस्पति-विशेष (सुअ २, ३, १८)।

अवगइ :: स्त्री [अपगति] १ खराब गति। २ गोपनीय स्थान (सुपा ३४५)

अवगंड :: न [अवगण्ड] १ सुवर्णं। २ पानी का फेन (सुअ १, ६)

अवगंतव्व :: देखो अवगम =अवगम्।

अवगच्छ :: सक [अव + गम्] जानना। अवगच्छइ (महा)। अवगच्छे (स १५२)।

अवगच्छ :: अक [अप + गम्] दूर होना, निकल जाना। अवगच्छइ (महा)।

अवगण, अवगण्ण :: सक [अव + गणय्] अनादर करना, तिरस्कारना। वकृ. अव- गणंत (श्रा २७)। संकृ. अवगण्णिय (आरा १०५)।

अवगणणा :: स्त्री [अवगणना] अवज्ञा, अनादर (दे १, २७)।

अवगणिय, अवगण्णिय :: वि [अवगणित] अवज्ञात, तिरस्कृत (दे; जीव १)।

अवगद :: वि [दे] विस्तीर्णं, विशाल (दे १, ३०)।

अवगन्न :: देखो अवगण। अवगन्नइ (भवि)। संकृ. अवगन्निवि (भवि)।

अवगन्निय :: देखो अवगण्णिय (सुपा ४२१; भवि)।

अवगम :: पुं [अपगम] १ अपसरण (सुपा ३०२) २ विनाश (स १५३; विसे ११८२)

अवगम :: सक [अव + गम्] १ जानना। २ निर्णय करना। संकृ. अवगमित्तु (सार्ध ६३)। कृ. अवगंतव्व (स ५२६)

अवगम :: पुं [अवगम] १ ज्ञान। २ निर्णंय, निश्चय (विसे १८०)

अवगमण :: न [अवगमन] ऊपर देखो (स ६७०; विसे १८६; ४०१)।

अवगमिअ, अवगय :: वि [अवगत] १ ज्ञात, विदित (सुपा २१८) २ निश्चित, अव- धारित (दे ३, २३; स १४०)

अवगय :: वि [अपगत] गुजरा हुआ, विनष्ट (णाया १, १; दस १०, १६)।

अवगर :: सक [अप + कृ] अपकार करना, अहित करना। अवगरेइ (स ६३६)।

अवगरिस :: देखो अवक्करिस विसे (१५८३)।

अवगल :: वि [दे] आक्रान्त (षड्)।

अवगल्ल :: वि [अवग्लान] बीमार (ठा २, ४)।

अवगहण :: न [अवग्रहण] निश्चय, अवधारण (पव २७३)।

अवगाढ :: देखो ओगाढ (ठा १; भग; स १७२)।

अवगाढु :: वि [अवगाहितृ] अवगाहन करने वाला (विसे २८२२)।

अवगार :: पुं [अपकार] अपकार, अहित-करण (सुर २, ४३)।

अवगारय :: वि [अपकारक] अपकार-कारक (स ६९०)।

अवगारि :: वि [अपकारिन्] ऊपर देखो (स (६९०)।

अवगास :: पुं [अवकाश] १ फुरसत (महा) २ जगह, स्थान (आवम) ३ अवस्थान, अव- स्थिति (ठा ४, ३)

अवगाह :: सक [अव + गाह्] अवगाहन करना। अवगाहइ (सण)।

अवगाह :: पुं [अवगाह] १ अवगाहन। २ अवकाश (उत्त २८)

अवगाहण :: न [अवगाहन] अवगाहन, 'तित्था- वगाहणत्थं आगंतव्वं तए तत्थ' (सुपा ५६३)।

अवगाहणा :: देखो ओगाहणा (ठा ४, ३; विसे २०८८)।

अवगिंचण :: न [दे. अवचेचन] पृथक्करण (उप पृ ९६)।

अवगिज्झ :: देखो ओगिज्झ। संकृ. अव- गिज्झिय (कप्प)।

अवगीय :: वि [अवगीत] निन्दित (उप पृ १८१)।

अवगुंठण :: देखो अवउंठण (दे १, ६)।

अवगुंठिय :: वि [अवगुण्ठित] आच्छादित (महा)।

अवगुण :: पुं [अवगुण] दुर्गुण, दोष (हे ४, ३९५)।

अवगुण :: सक [अव + गुणय्] खोलना, उद्‍घाटन करना। अबगुणेजा (आचा २, २, २, ४)। अवगुणंति (भग १५)।

अवगूढ :: वि [अवगूढ] १ आलिंगित (हे २, १६८) २ व्याप्त (णाया १, ८)

अवगूढ :: न [दे] व्यलीक, अपराध (दे १, २०)।

अवगूहण :: न [अवगूहन] आलिंगन (सुर १४, . २२०; पउम ७४, २४)।

अवगूहाविय :: वि [अवगूहित] आश्लेषित (स ६९९)।

अवग्ग :: वि [अव्यक्त] १ अस्पष्ट। २ पुं. अगीतार्थं, शास्त्रानभिज्ञ साधु (उप ८७४)

अवग्गह :: देखो उग्गह (पव ३०)।

अवग्गहण :: न [अवग्रहण] देखो उग्गह (विसे १८०)।

अवच :: देखो अवय = अवच (भग)।

अवचइय :: वि [अपचयिक] अपकर्षप्राप्त, ह्रासवाला (आचा)।

अवचय :: पुं [अपचय] ह्नास, अपकर्ष (भग ११, ११; स २८२)।

अवचय :: पुं [अवचय] इकट्ठा करना (कुमा)।

अवचयण :: न [अवचयन] ऊपर देखो (दे ३, ५६)।

अवचि :: अक [अप + चि] हीन होना, कम जाना। अवचिज्जइ (भग)। अवचिज्जंति (भग २५, २)।

अवचि, अवचिण :: सक [अव + चि] इकट्ठा करना (फुल आदि का वृक्ष से तोड कर)। अवचिणइ (नाट)। भवि. अवचिणिस्सं (पि ५३१)। हेकृ. अवचिणेदुं (शौ) (पि ५०२).

अवचिय :: वि [अवचित] हीन, ह्नासप्राप्त (विसे ८९७)।

अवचिय :: वि [अपचित] इकट्ठा किया हुआ (पाअ)।

अवचुण्णिय :: वि [अवचूरर्णित] तोड़ा हुआ, चूर-चूर किया हुआ (महा)।

अवचुल्ल :: पुं [अवचुल्ल] चुल्हे का पीछला भाग (पिंडभा ३४)।

अवचूल :: देखो ओऊल (णाया १, १६, पत्र २१९)।

अवच्च :: वि [अवाच्य] १ बोलने के अयोग्य। २ बोलने के अशक्य (धर्मसं ६९८)

अवच्च :: न [अपत्य] संतान, बच्चा (कप्प ; आव १; प्रासू ८३)। °व वि [°वत्] संतानवाला (सुपा १०६)।

अवच्चिज्ज :: देखो अवच्चीय (सुअनि २०५)।

अवच्चीय :: वि [अपत्यीय] संतानीय, संतान- संबन्धी (ठा ९)।

अवच्छुण्ण :: न [दे] क्रोध से कहा जाता मार्मिक वचन (दे १, ३९)।

अवच्छेय :: पुं [अवच्छेद] विभाग, अंश (ठा ३, ३)।

अवछंद :: वि [अपच्छन्दस्क] छन्द के लक्षण से रहित, छन्ददोष-दुष्ट (पिंग)।

अवजस :: पुं [अपयशस्] अपकीर्ति (उप पृ १८७)।

अवजाण :: सक [अप + ज्ञा] १ अपलाप करना, 'बालस्स मंदयं बीयं जं च कडं अवजाणई भुज्जो' (सुअ १, ४, १, २९)

अवजाय :: पुं [अपजात] पिता की अपेक्षा हीन वैभववाला पुत्र (ठा ४, १)।

अवजिब्भ :: पुं [अपजिह् व] दूसरी नरक- पृथिवी का आठवां नरकेन्द्रक — नरक — स्थान विशेष (देवेन्द्र ६)।

अवजीव :: वि [अपजीव] जीवरहित, मृत, अचेतन (गउड)।

अवजुय :: वि [अवयुत] पृथग्भूत, भिन्न (वव ७)।

अवज्ज :: न [अवद्य] १ पाप (पणह २, ४) २ वि. निन्दनीय (सुअ १, १, २)

अवज्जस :: सक [गम्] जाना, गमन करना। अवज्जसइ (हे ४, १६२)। वकृ. अवज्जसंत (कुमा)।

अवज्जा :: स्त्री [अवज्ञा] अनादर (स ६०४)।

अवज्झ :: वि [अवध्य] मारने के अयोग्य (णाया १, १६)।

अवज्झ :: सक [दृश्] देखना (संक्षि ३६)।

अवज्झस :: न [दे] १ कटी, करम। २ वि. कठिन (दे १, ५६)

अवज्झा :: स्त्री [अवध्या] १ अयोध्या नगरी (इक) २ विदेह वर्षं की एक नगरी (ठा २, ३)

अवज्झाण :: न [अपध्यान] बुरा चिन्तन, दुर्ध्यान (सुपा ५४९; उप ४९६; सम ५०; विसे ३०१३)।

अवज्झाण, अवझाण :: पुंन [अपध्यान] दुर्ध्यान, 'चउ- व्विहो अवज्झाणो' (श्रावक २९०; पंचा १, २३; संबोध ४५)।

अवज्झाय :: वि [अपध्यात] १ दुर्ध्यनि का विषय। २ अवज्ञात, तिरस्कृत (णाया १, १४)

अवज्झाय :: (अप) देखो उवज्झाय (दे १, ३७)।

अवट्ट :: सक [अप + वृत्] घुमाना, फिराना; 'अवट्ट अवट्ट त्ति वाहरंते कणणहारे रज्जुपरि- वत्तणुजएसुं निज्जामएसुं अयंडम्मि चेव गिरि- सिहरनिवडियं पिव विवन्‍नं जाणवत्तं' (स ३५५)।

अवट्ट :: अक [अप + वृत्] पीछे हटना। अव- ट्टइ (प्राकृ ७२)

अवट्टा :: स्त्री [आवर्त्ता] राजमार्गं से बाहर की जगह (उप ९९१)।

अवट्टंभ :: पुं [अवष्टम्भ] अवलम्बन, आश्रय (पउम २९, २७; स ३३१)।

अवट्ठंभ :: पुं [अवष्टम्भ] दृढ़ता, हिम्मत (धर्मंवि १४०)।

अवट्ठंभ :: देखो अवठंभ। कर्मं, अवट्ठब्भंति (स ७४९)।

अवट्‍ठभण, अवट्ठहण :: न [अवष्टम्भन] अवलम्बन, सहारा (स ७४९ टी; ७४९)।

अवट्ठद्ध :: वि [अवष्टब्ध] रोका हुआ (द्रव्य २७)।

अवट्ठद्ध :: वि [अवष्टब्ध] १ अवलम्बित। २ आक्रान्त, 'अवट्ठद्धा महाविसाएणं' (स ५८४)

अवठ्ठव :: सक [अव +स्तम्भ्] अवलम्बन करना, सहारा लेना। संकृ. अवट्ठविअ (विक्र ९४)।

अवट्ठाण :: न [अवस्थान] १ अवस्थिति, अवस्था। २ व्यवस्था (बृह ५)

अवट्ठिअ :: वि [अवस्थित] १ अवगाहन करके स्थित (सुअ १, ६, ११) २ कर्मं-बन्ध विशेष, प्रथम समय में जितनी कर्मँ-प्रकृतियो का बन्ध हो द्वितीय आधि समयो में भी उतनी ही प्रकृतियों का जो बन्ध हो वह (पंच ५, १२)

अवट्ठिअ :: वि [अवस्थित] १ स्थिर रहनेवाला (भग) २ नित्य, शाश्वत (ठा ३, ३) ३ जो बढ़ता-घटता न हो (जीव ३)

अवट्ठिइ :: स्त्री [अवस्थिति] अवस्थान (ठा ३, ४; विसे ७५८)।

अवठंभ :: सक [अव + स्तम्भ्] अवलम्बन करना। संकृ. 'घाएण मओ, सद्देण मई, चोज्जेण वाहवहुयावि। अवठंभिऊण घणुहं वाहेणवि मुक्किया पाणा' (वज्जा ४६)।

अवठंभ :: पुं [दे] ताम्बुल, पान (दे १, ३६)।

अवड :: पुं [अवट] कूप, कुँआ (गउड)।

अवड, अवडअ :: पुं [दे] १ कूप, कुँआ। २ आराम, बगीचा (दे १, ५३)

अवडअ :: पुं [दे] १ चञ्चा, घास-फूल का पुतला, तृण-पुरुष (दे १, २०)

अवडंक :: पुं [अवटंङ्क] प्रसिद्धि, ख्याति; 'जण- कयावडंकेण निग्घिणसम्मो णाम' (महा)।

अवडक्किअ :: वि [दे] कूप आदि में गिरकर मरा हुआ, जिसमे आत्म-हत्या की हो वह (दे १, ४७)।

अवडाह :: सक [उत् + क्रुश्] ऊँचे स्वर से रुदन करना। अवडाहेमि (दे १, ४७)।

अवडाहिअ :: न [दे] १ ऊंचे स्वर से रोदन (दे १, ४७) २ वि. उत्कृष्ट (षड्)

अवडिअ :: वि [दे] खिन्न, परिश्रान्त (दे १, २१)।

अवडु :: पुं [अवटु] कृकाटिका, घंटी या घांटी, कण्ठमणि (पाअ)।

अवडुअ :: पुं [दे] उदुखल, उलुखल (दे १, २६)।

अवडुल्लिअ :: वि [दे] कूप आदि में गिरा हुआ (षड्)।

अवड्डा :: स्त्री [दे] कृकाटिका, घट्टी, गर्दन का ऊँचा हिस्सा (भग १५, पत्र ६७९)।

अवड्‍ढ :: वि [अपार्ध] १ आधा (सुज्ज १०) २ आधा दिन , 'अवड्‍ढ पच्चक्खाइ' (पडि; भग १६, ३) ३ आधे से कम (भग ७, १; नव ४१) °क्खेत्त न [°क्षेत्र] १ नक्षत्र-विशेष (चंद १०) २ मूहुर्तं-विशेष (ठा ६)

अवण :: पुं [दे] १ पानी का प्रवाह। २ घर का फलहक (दे १, ५५)

अवण :: न [अवन] १ गमन। २ अनुभव (णंदि ; विसे ८३)

अवणण :: देखो अवणयण (पिंड़ ४७३)।

अवणद्ध :: वि [अवनद्ध] १ संबद्ध, जोड़ा हुआ (सुर २, ७) २ आच्छादित (भग)

अवणम :: अक [अव + नम] नीचे नमना। वकृ. अवणमंत (राय)।

अवणमिय :: वि [अवनत] अवनत (सुपा ४२९)।

अवणमिय :: वि [अवनमित] नीचे किया हुआ, नमाया हुआ (सुर २, ४१)।

अवणय :: वि [अवनत] नमा हुआ (दस ५)।

अवणय :: पुं [अपनय] १ अपनय, हटाना (ठा ८) २ निन्दा (पव १४०; विसे १४०३ टी)

अवणयण :: न [अपनयन] हटाना, दूर कराना (सुपा ११; स ४८३; उप ४९६)।

अवणाम :: पुं [अवनाम] ऊर्ध्व गमन, ऊँचा जाना; 'तुलाए णामावणामव्व' (धर्मसं २४२)।

अवणि :: स्त्री [अवनि] पृथिवी, भूमि (उप ३३९ टी)।

अवणित :: देखो अवणी = अप + नी।

अवणिंद :: पुं [अवनीन्द्र] राजा, भूप (भवि)।

अवणिय :: देखो अवणीय; 'तं कुणसु चित्तनि- वसणमवणियनीसेसदोसमलं' (विवे १३८)।

अवणी :: देखो अवणि (सुपा ३१०)। °सुर पुं [°श्वर] राजा, भूमिपति (भवि)।

अवणी :: सक [अप + नी] दूर करना, हटाना। अवणेइ, अवणेमि (महा)। वकृ. अवणिंत, अवणेंत (निचु १; सुर २, ८)। कवकृ. अवणेज्जंत (उप १४९ टी)। कृ. अवणेअ (द्र ३७)।

अवणीय :: वि [अपनीत] दूर किया हुआ (सुपा ५४)।

अवणीयवयण :: न [अपनीतवचन] निन्दा- वचन (आचा २, ४, १, १)।

अवणेंत :: देखो अवणी = अप+ नी।

अवणोय :: पुं [अपनोद] अपनयन, हटाना (विसे ६८२)।

अवणोयण :: न [अपनोदन] अपनयन, दूरी- करण (स ६२१)।

अवण्ण :: वि [अवर्ण] १ वर्णरहित, रूपरहित (भग) २ पुं. निन्दा (पंचव ४) ३ अपकीर्ति (ओघ १८४ भा)। °व व [°वत्] निन्दक, 'तेसिं अवणणवं बाले महामोहं पकुव्वइ' (सम ५१)। °वाय पुं [°वाद] निन्दा (द्र २९)

अवण्ण :: न [दे] अवज्ञा, निरादर (दे १, १७)।

अवण्णा :: स्त्री [अवज्ञा] निरादर, तिरस्कार (औप)।

अवण्हअ :: पुं [अपह्रव] अपलाप (षड्)।

अवण्हवण :: न [अपह्रवन] अपलाप (आचा)।

अवण्हाण :: न [अवस्‍नान] साबुन आदि से स्‍नान करना (णाया १, १३; विपा १, १)।

अवतंस :: देखो अवयंस =अवतंस (कुमा)।

अवतंस :: पुं [अवतंस] मेरुपर्वत (सुज्ज ५)।

अवतंसिय :: वि [अवतंसित] विभूषित (कुमा)।

अवतट्ठ :: वि [अवतष्ट] तनूकृत, छिला हुआ (सुअ १, ५, २)।

अवतट्ठि :: देखो अवयट्ठि = अवतष्टि (सुअ १, ७)।

अवतारण :: न [अवतारण] १ उतारना। २ योजना करना (विसे ९४०)

अवतासण :: न [अवत्रासन] डराना (पव ७३ टी)।

अवतित्थ :: न [अपतीर्थ] कुत्सित घाट, खराब किनारा (सुपा १५)।

अवत्त :: वि [अव्यक्त] १ अस्पष्ट (विसे) २ कम उमर वाला (बृह १) ३ असंस्कृत (गच्छ १) ४ पुं, देखो अवग्ग (निचु २)

अवत्त :: वि [अवात] पवनरहित (गच्छ १)।

अवत्त :: वि [अवाप्त] प्राप्त, लब्ध।

अवत्त :: न [अवत्र] आसन-विशेष (निचु १)।

अवत्तय :: वि [दे] विसंस्थुल, अव्यवस्थित (दे १, ३४)।

अवत्तव्व :: वि [अवक्तव्य] १ वचन से कहने के अशक्य, अनिर्वचनीय। २ सप्तभंगी का चतुर्थ भंग; 'अत्थंतरभूएहि अ नियएहिं दोहिं समयमाईहिं। वयणविसेसाईअं दव्वमव्वत्तयं पडई' (सम्म ३६)

अवत्तिय :: न [अव्यक्तिक] १ एक जैनाभास मत, निह्रवप्रचालित एक मत। २ वि. इश मत का अनुयायी (ठा ७)

अवत्थंतर :: न [अवस्थान्तर] जुदी दशा, भिन्न अवस्था (सुर ३, २०९)।

अवत्थग :: वि [अपार्थक] १ निरर्थक, व्यर्थ। २ असम्बद्ध अर्थवाला (सूत्र वगैरह) (विसे)

अवत्थद्ध :: वि [अवष्टब्ध] अवलम्बन-प्राप्त, जिसको सहारा मिला हो वह (णाया १, १८)।

अवत्थय :: वि [अपार्थक] निरर्थक (विसे ९९९ टी)।

अवत्थरा :: स्त्री [दे] पाद-प्रहार, लात मारना (दे १, २२)।

अवस्था :: स्त्री [अवस्था] दशा, अवस्थिति (ठा ८, कुमा)।

अवत्थाण :: न [अवस्थान] अवस्थिति (ठा ४, १; स ६२७; महा; सुर १, २)।

अवत्थाव :: सक [अव + स्थापय्] १ स्थिर करना, ठहरना। २ व्यवस्थित करना। हेकृ. अवत्थाविदुं; अवस्थावइदुं (शौ)। (पि ५७३; नाट)

अवत्थाविद :: (शौ) वि [अवस्थापित] अवस्थित किया हुआ (नाट)।

अवत्थिय :: देखो अवट्ठिय (महा; स २७४)।

अवत्थिय :: वि [अवस्तृत] फैलाया हुआ, प्रसारित (णया १, ८)।

अवत्थु :: न [अवस्तु] १ अभाव, असत्त्व (भवि; आवम) २ वि. निरर्थक, निंष्फल (पणह १, २)

अवर्धम :: देखो अवठंभ। संकृ. अवथंभिय (चेइय ४८१)।

अवदग्ग :: देखो अवयग्ग (सुअ २, २; ५)।

अवदल :: वि [अपदल] १ निःसार, सार- रहित। २ कच्चा, अपक्‍व (ठा ४, ४)

अवदहण :: न [अवदहन] दम्भन, गरम लोहे के कोश आदि से चर्म (फोड़े आदि) पर दागना (णाया १, ४)।

अवदाण :: न [अवदान] शुद्ध कर्मँ (ती १५)।

अवदाय :: वि [अवदात] १ पवित्र, निर्मल; 'दिण्यकरावदायं मतं पेहित्तु चक्खुणा सम्मं' (सुपा ४९१) २ श्‍वेत, सफेद (पणह १, ४; पाअ)

अवदार :: न [अपद्वार] १ छोटी खिड़की। २ गुप्त द्वार (उप ९९१)

अवदाल :: सक [अव + दलय्] खोलना। अवदालेइ (औप)। संकृ. अवदालेत्ता (औप)।

अवदालिय :: वि [अवदलित] विकसित, विजृ- म्भित, 'अवदालियपुंडरीयनयणे' (औप; पणह १, ४; उवा)।

अवदिसा :: स्त्री [अपदिक्] भ्रान्त दिशा (स ५२६)।

अवदेस :: देखो अवएस (अभि ७६)।

अवद्दार, अबद्दाल :: देखो अवदार (णाया १, २; प्रारू)।

अवद्दाहणा :: स्त्री. देखो अवदहण (विपा १, १)।

अवद्‍दुस :: न [दे] उलुखल आदि घर का सामान्य उपकरण, गुजराती में जिसको 'राच- रचिलु' कहते हैं (दे १, ३०)।

अवद्धंस :: पुं [अवध्वंस] विनाश (ठा ४, ४)। अवधंसि वि [अपध्वंसिन्] विनाशकारक (उत्त ४, ७)।

अवधार :: सक [अव + धारय्] निश्चय करना। कृ. अवधारियव्व (पंचा ३)।

अवधारण :: न [अवधारण] निश्चय, निर्णय (श्रा ३०)।

अवधारणा :: स्त्री [अवधारणा] दीर्घकाल तक याद रखने की शक्ति (सम्मत्त ११८)।

अवधारिय :: वि [अवधारित] निश्चित, निर्णीत (वसु)।

अवधारियव्व :: देखो अवधार।

अवधाव :: सक [अप + धाव्] पीछे दौड़ना। अवधावइ (सण)। वकृ. अवधावंत (स २३२)।

अबधिका :: स्त्री [दे] उपदेहिका, दीमक (पणह १, १)।

अवधीरिय :: वि [अवधीरित] तिरस्कृत, अप- मानित (बृह १, ४)।

अवधुण, अवधूण :: सक [अव + धू] १ परित्याग करना। २ अवज्ञा करना। संकृ. अवधूणिअ, अवधूणिअ (माल २३२; वेणी ११०)

अवधूय :: वि [अवधूत] १ अवज्ञात, तिकस्कृत (ओघ १८ भा. टी) २ विक्षित (अव ४)

अवनिद्दय :: पुं [अपनिद्रक] उजागर, निद्रा का अभाव (सुर ६, ८३)।

अवन्न :: देखो अवण्ण = अवर्ण (भग ; उव; ओघ ३५१)।

अवन्ना :: देखो अवण्णा (ओघ ३८२ भा; सुर १६, १३१; सुपा ३७२)।

अवपंगुण, अवपंगुर :: सक [दे] खोलना। अवपंगुणे (सुअ १, २, २, १३)। अव- पंगुरे (दस ५, १, १८)।

अवपक्का :: स्त्री [अवपाक्या] तापिका, तबी, छोटा तवा (णाया १, १ टी — पत्र ४३)।

अवपुट्ठ :: वि [अवसपृष्ट] जिसका स्पर्शं किया गया हो वह, 'जीए ससिकंतमणिमंदिराई निसि ससिकराबपुट्ठाइं। वियलियबाहजलाई रोयंतिव, तरणितवियाइं' (सुपा ३)।

अवपुसिय :: वि [दे] संघटित, संयुक्त (दे १, ३९)।

अवपूर :: सक [अव + पूरय्] पूर्ण करना। अबपूरंति (स ७१२)।

अवपेक्ख :: सक [अवप्र + ईक्ष्] अवलोकन करना। अवपेक्खह (उत्त ९, १३)।

अवप्पओग :: पुं [अपप्रयोग] उलटा प्रयोग, विरुद्ध औषंधियों का मिश्रण (बृह १)।

अवप्फार :: पुं [अवस्फार] विस्तार, फैलाव; 'ता किमिमिणा अहोपुरिसियावप्फारपाएणं' (स २८८)।

अबबंध :: पुं [अबबन्ध] बन्ध, बन्धन (गउड)।

अबबद्ध :: वि [अबबद्ध] बंधा हुआ, नियन्त्रित (धर्म ३)।

अवबाण :: वि [अपबाण] बाणरहित (गउड)।

अबबुज्झ :: सक [अव + बुध्] १ जानना। २ समझना, 'जत्थ तं मुज्झसी रायं, पेच्चत्थं नावबुज्झसे' (उत्त १८, १३)। वकृ. अव- बुज्झमाण (स ८५)। संकृ. अवबुज्झेऊण (स १६७)

अबबोह :: पुं [अवबोध] १ ज्ञान, बोध (सुपा १७) २ विकास (गउड) ३ जागरण (धर्म २) ४ स्मरण, याद (आचा)

अबबोहय :: वि [अबबोधक] अबबोध-कारक, 'भवियकमलावबोहय, मोहमहातिमिरपसरभर- सूर' (काल)।

अवबोहि :: पुं [अवबोधि] १ ज्ञान। २ निश्चय, निर्णय (आचू १, विसे ११५४)

अबभास :: अक [अव + भास्] चमकना, प्रकाशित होना।

अवभास :: पुं [अवभास] प्रकाश (सुज्ज ३)।

अवभास :: पुं [अवभास] ज्ञान (धर्मंसं १३३३)।

अबभासण :: वि [अवभासन] प्रकाश-कर्त्ता (सुख १, ४०)।

अवभासय :: वि [अवभासक] प्रकाशक (विसे ३१७; २०००)।

अवभासि :: वि [अपभासिन्] देदीप्यमान, प्रकाशनेवाला (गउड)।

अवभासिय :: वि [अवभासित] प्रकाशित (विसे)।

अवभासिय :: वि [अपभाषित] आकृष्ट, अभिशप्त (वव १)।

अवम :: देखो ओम (आचा)।

अवमग्ग :: पुं [अपमार्ग] कुमार्ग, खराब रास्ता (कुमा)।

अवमग्ग :: पुं [अपामार्ग] वृक्ष-विशेष, चिचड़ा, लटजीरा (दे १, ८)।

अवमच्चु :: पुं [अपमृत्यु] अकाल मृत्यु, बिना मौत मरण (दे ६, ३; कुमा)।

अवमज्ज :: सक [अव + मृज्] पोंछना, झाड़ना, साफ करना। संकृ. अवमज्जिऊण (स ३४८)।

अवमण्ण :: सक [अव + मन्] तिरस्कार करना। अबमण्णंति (उवर १२२)।

अवमद्द :: पुं [अबमर्द] मर्दन, विनाश (पणह १, २)।

अवमद्दग :: वि [अवमर्दक] मर्दन करनेवाला (णाया १, १६)।

अवमन्न :: सक [अव + मन्] अवज्ञा करना, निरादर करना। अवमन्नइ (महा)। वकृ. अवमन्नंत (सुअ १, ३, ४) संकृ. अवमन्नि- ऊण (महा)।

अवमन्निय, अवमय :: वि [अवमत] अवज्ञात, अव- गणित (सुर १६, १२७; महा; उव)।

अवमाण :: पुं [अपमान] तिरस्कार (सुर १, २३५)।

अवमाण :: पुंन [अवमान] १ अवज्ञा, तिर- स्कार। २ परिमाण (ठा ४, १)

अवमाण :: सक [अव + मानय्] अवगणना करना। अवमाणइ (भवि)।

अवमाणण :: न [अवमानन] अनादर, अवज्ञा (पणह १, ५; औप)।

अवमाणण :: न [अपमानन] तिरस्कार, अप- मान (स १०)।

अवमाणणा :: स्त्री [अवमानना] अवगणना (काल)।

अवमाणि :: वि [अवमानिन्] अवज्ञा करने वाला (अभि ९९)।

अवमाणिय :: वि [अपमानित] तिरस्कृत (से १०, ६६; सुपा १०५)।

अवमाणिय :: वि [अवमानित] १ अवज्ञात, अनादृत (सुर २, १७९) २ अपूरित, 'अव- माणियदोहला' (भग ११, ११)

अवमार :: पुं [अपस्मार] भयंकर रोग-विशेष पागलपन (आचा)।

अवमारिय :: वि [अपस्मारित, °रिक] अप- स्मार रोग वाला (आचा)।

अवमारुय :: पुं [अवमारुत] नीचे चलता पवन (गउड)।

अवमिच्चु :: देखो अवमच्चु (प्रारू)।

अवमिय :: वि [दे] जिसको घाव हो गया हो वह, व्रणित (बृह ३)।

अवमुक्क :: वि [अवमुक्त] परित्यक्त (पि ५६६)।

अवमेह :: वि [अपमेघ] मेघ-रहित (गउड)।

अवय :: देखो अपय =अपद (सुअ १, ८; ११)।

अवय :: न [अब्ज] कमल, पद्म (पणण १)।

अवय :: वि [अवच] १ नीचा, अनुच्च (उत्त ३) २ जघन्य, हीन, अश्रेष्ठ (सुअ १, १०) ३ प्रतिकूल (भग १, ९)

अवयंस :: पुं [अवतंस] १ शिरोभूषण विशेष (कुमा; गा १७३) २ कान का आभूषण (पाअ)

अवयंस :: सक [अवतंसय्] भूषित करना। अवअंसअंति (पि १४२; ४९०)।

अवयक्ख :: सक [अप + ईक्ष्] अपेक्षा करना, राह देखना। अवयक्खह (णाया १, ९)। वकृ. अवयक्खंत, अवयक्खमाण (णाया १, ९; भग १०, २)।

अवयक्ख :: सक [अव + ईक्ष्] १ देखना। २ पीछे से देखना। वकृ. अवयक्खंत (ओघ १८८ भा)

अवयक्खा :: स्त्री [अपेक्षा] अपेक्षा (णाया १, ९)।

अवयग्ग :: न [दे] अन्त, अवसान (भग १, १)।

अवयच्छ :: सक [अव + गम्] जानना। अव- यच्छइ (स ११३)। संकृ. अवयच्छिय (स २१०)।

अवयच्छ :: सक [दृश्] देखना। अवयच्छइ (हे ४, १८१)। वकृ. अवयच्छंत (कुमा)। अवयच्छिय वि [दृष्ट] देखा हुआ (णाया १, ८)।

अवयच्छिय :: वि [दे] प्रसारित, 'फु'कारपव- णपिसुणियमवयच्छियमयगरमहा य' ( ११३)।

अवयज्झ :: सक [दृश्] देखना। अवयज्झइ (हे ४, १८१)। संकृ. अवयज्झिऊण (कुमा)। अवयट्ठि स्त्री [अवतष्टि] तनूकरण, पतला करना (आचा)।

अवयट्ठि :: वि [अवस्थायिन्] अवस्थिति करने वाला, स्थिर रहनेवाला (आचा)।

अवयट्ठि :: स्त्री [अवकृष्टि] आकर्षण (आचा)।

अवयड्‍ढिअ :: वि [दे] युद्ध में पकड़ा हुआ (दे १, ४६)।

अवयण :: न [अवचन] कुत्सित वचन, दूषित भाषा (ठा ६)।

अवयर :: सक [अव+ तृ] १ नीचे उतरना। २ जन्म ग्रहण करना। अवयरइ (है १, १७२)। वकृ. अवयरंत, अवयरमाण पउम ८२, ६३; सुपा १८१)। संकृ. अव- यरिउं (प्रासू)

अवयरिअ :: पुं [दे] वियोग, विरह (दे १, ३६)।

अवयरिअ :: वि [अपकृत] १ जिसका अपकार किया गया हो वह। २ न. अपकार, अहित- करण; 'को हेऊ तुह गमणे तुह अवयरियं मए किं व' (सुपा ४२१)

अवयरिअ :: वि [अवतीर्ण] १ जन्मा हुआ। २ नीचे उतरा हुआ (सुर ६, १८९)

अवयव :: पुं [अवयव] १ अंश, विभाग। २ अनुमान-प्रवोग का वाक्यांश (दसनि १; हे १, २४५)

अवयवि :: वि [अवयविन्] अवयव वाला (ठा १; विसे २३५०)।

अवयाढ :: देखो ओगाढ (नाट; गडउ)।

अवयाण :: न [दे] खींचने की डीरी, लगाम (दे २, २४)।

अवयाय :: पुं [अववाय] अपराध, दोष (उप १०३१ टी)।

अवयाय :: वि [अवदात] निर्मंल (सिरि १०२७)।

अवयार :: पुं [अपकार] अहित-करण (स ४३७; कुमा; प्रासू ६)।

अवयार :: पुं [अवतार] १ उतरना। २ देहा- न्तर-धारण, जन्म-ग्रहण। ३ मनुष्य रूप में देवता का प्रकाशित होता; 'अज्ज ! एवं तुमं देवावयारो विय आगईए' (स ४१६; भवि)| ४ संगति, योजना (विसे १००८) ५ प्रवेश (विसे १०४३)

अबयार :: पुं [अवतार] समावेश (पव ८६)।

अवयार :: पुं [दे] माघ-पूर्णिमा का एक उत्सव, जिसमें इस से दतवन आदि किया जाता है (दे १, ३२)।

अवयारण :: न [अवतारण] उतारना (सिरि १००४)।

अवयारय :: देखो अवगारय (स ६९०)।

अवयारि :: वि [अपकारिन्] अपकार करने वाला (स १७६; विवे ७९)।

अवयालिय :: वि [अवचालित] चलायमान किया हुआ (स ४२)।

अवयास :: सक [श्लिष्] आलिंगन करना। अवयासइ (हे ४, १९०)। कवकृ. अव- यासिज्जमााण (औप)। संकृ. अवयासिय (णाया १, २)।

अवयास :: तक [अव + काश्] प्रकट करना। संकृ. अवयासेऊण (तंदु)।

अवयास :: देखो अवगास (गउड, कुमा)।

अवयास :: पुं [श्लेष] आलिंगन (ओघ २४४ भा)।

अवयासण :: न [श्लेषण] आलिंगन (बृह १)।

अवयासाविय :: वि [श्लेषित] आलिंगन कराना हुआ (विपा १, ४)।

अवयासिय :: वि [श्लिष्ट] आलिंगित (कुमा; पाअ)।

अवयासिणी :: स्त्री [दे] नासा-रज्जु, नाक में डाली जाती डोर (दे १, ४६)।

अवर :: वि [अपर] अन्य, दूसरा, तद्भिन्न (श्रा २७; महा)। °हा अ [°था] अन्यथा (पंचा ८)।

अवर :: स [अपर] १ पिछला काल या देश (महा) २ पिछले काल या देश में रहा हुआ, पाश्चात्य (सम १३; महा) ३ पश्चिम दिशा में स्थित, 'अवरद्दारेणं' (स ६४६)। °कंका स्त्री [°कङ्का] १ घातकी-खंड के भरतक्षेत्र की एक राजधानी। २ इस नाम के 'ज्ञातधर्म- कथा' सुत्र का एक अव्ययन (णाया १, १६)। °ण्ह पुं [°ह्रि] १ दिन का अन्तिम प्रहर ठा ४, २)। २ दिन का उत्तरी भाग (आचू १; गा २९९; प्रासू ५४)। °दाहिण पुं [°दाक्षण] १ नैऋत्य कोण। २ वि. नैऋत्य जागा में स्थित (पंचा २)। °दाहिणा स्त्री [°दक्षिणा] पश्चिम और दक्षिण दिशा के बीच की दिशा, नैऋत कोण (वव ७)। °फाणु स्त्री [°पार्ष्ण] एड़ी, अड्डी का पिछला भाग; (वव ८)। °राय पुं [°रात्र] देखो अवरत्त= अपरराव; (आचा)। °विदेह पुं [°विदेह] महाविदेह नामक वर्ष का पश्चिम भाग (ठा २, ३ पडि)। °विदेहकूड न [°विदेहकूट] पर्वत-विशेष का शिखर-विशेष (जं ४)। देखो अपर।

अवर :: स [अवर] ऊपर देखो (महा ; णाया १, १६ वव ७; पंचा २)।

अवरमुद्द :: वि [अपराङ् मुख] १ संमुख। २ तत्पर (पि २६९)

अवगच्छ :: देखो अपरच्छ (पणह १, ३)।

अवरज्ज :: पुं [दे] १ गत दिन। २ आगामी दिन। ३ प्रभात, सुबह (दे १, ५६)

अवरज्झ :: अक [अप + राध्] १ अपराध करना, गुनाह करना। २ नष्ट होना। अव- रज्झइ (महा ; उव)। वकृ. अवरज्झंत (राज)

अवरत्त :: पुं [अपररात्र, अवररात्र] रात्रि का पिछला भाग (भग; णाया १, १)।

अवरत्त :: वि [अपरक्त] १ विरक्त, उदास (उव पृ ३०८) २ नाराज, नाखुश (मुद्रा २६७)

अवरत्तअ, अवरत्तेअ :: पुं [दे] पश्चाताप, अनुताप (दे १, ४५; पाअ)।

अवरदक्खिणा :: देखो अवर-दाहिणा (पव १०६)ष

अवरद्ध :: न [अपराद्ध] १ अपराध, गुनाह (सुर २, १२१) २ वि. जिसने अपराध किया हो वह, अपराधी; 'सगडे दारए ममं अतेउंरसि अवरद्धे' (विपा १, ४; स २८) ३ विना- शित, नष्ट किया हुआ (णाया १, १)

अवरद्धिग :: वि [अपराधिक] १ अपराधी, दोषी। २ पुं. लूता-स्फोट। ३ सर्पादि-दंश (पिंड १४)

अवरद्धिग, अवरद्धिय :: पुंस्त्री [अपराधिक] १ सर्प- दंश। २ फुनसी, छोटा फोड़ा (ओघ ३४१; पिंड)

अवरा :: स्त्री [अपरा] विदेहवर्षं की एक नगरी (ठा २, ३)।

अवरा :: स्त्री [अपरा] पश्चिम दिशा (पव १०६)।

अवराइया :: देखो अपराइया (पउम २५, १; जं ४; ठा २, ३)।

अवराइस :: देखो अण्णाइस (षड्; हे ४, ४१३)।

अवराजिय :: देखो अपराइय (इक)।

अवराजिया :: देखो अपराइया (इक)।

अवराह :: पुं [अपराध] १ अपराध, गुनाह (आव १) २ अनिष्ट, बुराई; 'अवराहेसु गुणेसु य निमित्तमेत्तं परो होइ' (प्रासू १२२)

अवराह :: पुं [दे] कटी, कमर (दे १, २८)।

अवराहिय :: न [अपराधित] १ अपराध, गुनाह; 'जंपइ जणो महल्लं कस्सवि अवराहियं जायं' (पउम ९४, २५; स ३२०) २ अप- कार, अनिष्ट अङित; 'सिरि चडिआ खंति प्फलइं, पुणु डालइं मोडति। तोवि महद्‍दुम सउणाहं, अवराहिउ न करंति' (हे ४, ४४५)

अवराहिल्ल :: वि [अपराधिन्] अपराधी (प्राकृ ५०)।

अवराहुत्त :: वि [अपराभिमुख] १ पराङ्- मुख। २ पश्चिम दिशा की तरफ मुँह किया हुआ (आव ४)

अवरि, अवरिं :: अ [उपरि] ऊपर (दे १, २६; प्राप्त)।

अवरिक्क :: वि [दे] अवसररहित, अनसवर (दे १, २०)।

अवरिगलिअ :: वि [अपरिगलित] पूर्ण, भरपूर (से ११, ८८)।

अवरिज्ज :: वि [दे] अद्वितीय, असाधारण (दे १, ३६; षड्)।

अवरिल्ल :: वि [उपरि] उत्तरीय वस्त्र, चादर (हे २, १६६; कुमा; गउड; पाअ)।

अवरिल्ल :: वि [अपरीय] पाश्चात्य, पश्चिम दिशा संबन्धी, 'तो णं तुब्भे अवरिल्लं वणसंडं गच्छे- ज्जाह' (णाया १, ९)।

अवरिहड्‍ढपुसण :: न [दे] १ अकीर्त्ति, अजस। २ असत्य, झुठ। ३ दान (दे १, ६०)

अवरुंड :: सक [दे] आलिङ्गन करना। अवरुंडइ (दे १, ११; सुर ३, १८२; भवि)। कर्मं. अव- रंडिज्जइ (दे १, ११)। संकृ. अवरुडिऊण (दे १, ११; स ४२१)।

अवरुंडण, अवरंडिअ :: न [दे] आलिङ्गन, (भवि; पाअ; दे १, ११)।

अवरुत्तर :: पुं [अपरोत्तर] १ वायय्य कोण। २ वि. वायव्य कोण में स्थित (भग)

अवरुत्तरा :: स्त्री [अपरोत्तरा] वायव्य दिशा, पश्‍चिम और उत्तर के बीच की दिशा (वव ७)।

अवरुद्ध :: वि [अवरुद्ध] घिरा हुआ (विसे २९७५)।

अवरुप्पर :: देखो अवरोप्पर (कुमा; रंभा)।

अवरुह :: अक [अव + रुह्] नीचे उतरना। अवरुहेहि (मै १४)।

अवरूव :: देखो अपुव्व (प्राकृ ८५)।

अवरोप्पर, अवरोवर :: वि [परस्पर] आपस में (हे ४, ४०९; गउड; सुपा २२; सुर ३, ७६; षड्)।

अवरोह :: पुं [अवरोध] १ अन्तःपुर, जनान- खाना (सुपा ९३) २ अन्तःपुर में रहनेवाली स्त्री (विपा १, ४) ३ नगर को सैन्य से घेरना (निचू ८) ४ संक्षेप (विसे ३५५५)। ५ प्रतिबन्ध, 'कहँ सव्वत्थित्तावरोहोत्ति' (विसे १७२३)। °जुवइ स्त्री [°युवति] अन्तःपुर की स्त्री (पि ३८७)

अवरोह :: पुं [अवरोह] उगनेवाला (तृण आदि) (गउड)।

अवरोह :: पुं [दे] कटि, कमर (दे १, २८)।

अवलंब :: सक [अव + लम्ब्] १ सहारा लेना, आश्रय लेना। २ लटकना। अवलंबइ (कस)। अवलंबेइ (महा)। वकृ. अवलंब- माण (सम्म ५८)। कवकृ. अवलंबिज्जंत (पि ३९७)। संकृ. अवलंबिऊण, अवलं- बिय (आव ५; आचा २, १, ६)। हेकृ- अवलंबित्तए (दसा ७)। कृ. अबलंबणिय, अवलंविअव्व (से १०, २९)

अवलंब, अवलंबग :: पुं [अवलम्ब, °क] १ सहारा, आश्रय (श्रा १६) २ वि. लट- कनेवाला (औप; वव ४) ३ सहारा लेनेवाला (पच्च ८०)

अबलंबण :: न [अवलम्बन] १ लटकना। २ आश्रय, सहारा (ठा ५, २; राय)

अवलंबणया :: स्त्री [अवलम्बनता] अवग्रह- ज्ञान (णंदि १७५)।

अवलंबि :: वि [अवलम्बिन्] अवलम्बन करनेवाला (गउड; विसे २३२९)।

अवलंबिय :: वि [अबलम्बित] १ लटका हुआ। २ आश्रित (णाया १, १)

अवलंबिर :: देखो अवलंबि (गा ३६७)।

अवलक्खण :: न [अपलक्षण] खराब लक्षण, बुरी आदत (भवि)।

अवलग्ग :: वि [अवलग्‍न] १ आरूढ़। २ लगा हुआ, संलग्‍न (महा)

अवलत्त :: वि [अपलपित] अपहृत, छिपाया हुआ (स २१२)।

अवलद्ध :: वि [अपलब्द्ध] अनादर से प्राप्त (ठा ९)।

अवलद्धि :: स्त्री [अवलब्धि] अप्राप्ति (भग)।

अवलय :: न [दे] घर, मकान (दे १, २३)।

अवलव :: सक [अप + लप्] १ असत्य बोलना। २ सत्य को छिपाना। कवकृ. अवलविज्जंत (सुपा १३२)। कृ. अवलव- णिज्ज (सुपा ३१५)

अवलाव :: पुं [अपलाप] अपहृव (निचू १)।

अवलिअ :: न [दे] असत्य, झुठ (दे १, २२)।

अवलिंब :: पुं [अवलिम्ब] जीव या पुद्‍गलों से व्याप्त स्थान-विशेष (ठा २, ४)।

अवलिच्छअ :: वि [दे] अप्राप्त, अनासादित (से ९, ७८)।

अवलित्त :: वि [अवलिप्त] व्याप्त (सुअ १, १३, १४)।

अवलित्त :: वि [अवलिप्त] १ लिप्त। २ गर्वित; 'आसो सढोवलित्तो, आलंबण-तप्परो अइपमाई। एवं ठिओवि मन्नइ, अप्पाणं सुट्ठिओ मित्ति' (उव)

अवलुअ :: देखो अवल्लय (आचा २, ३, १, ९)।

अवलुआ :: स्त्री [दे] क्रोध, गुस्सा (दे १, ३६)।

अबलुत्त :: वि [अवलुप्त] लोप-प्राप्त (नाट)।

अवलेअ, अवलेव :: पुं [अवलेप] १ अहंकार, गर्व। २ लेप, लेपन (पाअ; महा; नाट) ३ अवज्ञा, अनादर (गउड)

अवलेह :: पुं [अवलेह] चटनी (वज्जा १०४)।

अवलेहणिया :: स्त्री [अवलेखनिका] १ बांस का छिलका (ठा ४, २) २ धूलि आदि झाड़ने का एक उपकरण (निचु १)

अवलेहि, अवलेहिया :: स्त्री [अवलेखि, °का] १ बांस का छिलका (कम्म १, २०) २ लेह्य विशेष (पव ४) ३ चावल के आटा के साथ पकाया हुआ दुध (पभा ३२)

अवलेअ :: सक [अव + लोक्] देखना, अव- लोकन करना। वकृ. अवलोअंत, अवलोए- माण (रयण ३६; णाया १, १) संकृ. अव- लोइऊण (काल)। कृ. अवलोयणीय (सुपा ७०)।

अवलोग, अवलोय :: पुं [अवलोक] अवलोकन, दर्शन (उप ९८६ टी; सुपा ९; ल २७९; गउड)।

अवलोयण :: न [अवलोकन] १ दर्शन, विलो- कन (गउड) २ स्थान-विशेष, 'तुंगं' अव- लोयणं चेव (पउम ८०, ४) ३ शिकर-विशेष (ती ४)

अवलोयणी :: स्त्री [अवलोकनी] देवी-विशेष (सम्मत्त १६०)।

अवलोव :: पुं [अपलोप] छिपाना, लोप करना (पणह १, २)।

अवलोवणी :: स्त्री [अपलोपनी] विद्या-विशेष (पउम ७, १३९)।

अवलोह :: वि [अपलोह] लोहरहित (गउड)।

अवल्लय :: न [दे. अवल्लक] नौका खेवने का उपकण-विशेष (आचा २, ३, १)।

अवल्लाव, अवल्लावय :: पुं [दे. अपलाप] असत्यकथन, अपलाप (दे १, ३८)।

अवव :: न [अवव] संख्या-विशेष, 'अववाङ्ग' को चौरासी लाख से गुणने पर जो संख्या लब्ध हो वह (ठा २, ४)।

अववंग :: न [अववाङ्ग] संख्या-विशेष, 'अडड' को चौरासी लाख से गुणने पर जो संख्या लब्ध हो वह (ठा २, ४)।

अववक्कल :: वि [अपवल्कल] त्वचारहित (गउड)।

अववक्का :: स्त्री [अवपाक्या]]तापिका, छोटा तवा (भग ११, ११)।

अववग्ग :: पुं [अपवग] मोक्ष, मुक्ति (आवम)।

अववट्टण :: न [अपवर्तन] १ अपसरण। २ कर्मपरमाणुओं की दीर्घँ स्थिति को छोटी करना (पंच ५)

अववट्टणा :: स्त्री [अपवर्तना] ऊपर देखो (पंच ५)।

अववत्त :: वि [अपवृत्त] १ वापस लौटा हुआ। २ अपसृत (दे १, १५२)

अववरक :: पुं [अपवरक] कोठरी, छोटा घर (मुद्रा ८१)।

अववह :: सक [अप + वह्] बाहर फेंकना, दूर हटाना। कर्म. अ उज्झइ (पंचा १६, ९)।

अववाइअ :: वि [आपेवादिक] अपवाद-संबंधी (अज्झ १०८)।

अववाइय :: वि [अपवादिक] अपवादवाला (नाट)।

अववाय :: पुं [अपवाद] १ विशेष नियम, अप- वाद (उप ७८१) २ निन्दा, अवर्ण-वाद (पणह २, २) ३ अनुज्ञा, संमति (निचु १) ४ निश्चय, निर्णय वाली हकीकत (निचू ५)

अववास :: सक [अव + काश्] अवकाश देना, जगह देना। अववासइ (प्राप्त)।

अववाह :: सक [अव +गाह्] अवगाहन करना। अववाहइ (प्राप्त)।

अवविह :: पुं [अवविध] गोशालक के एक भक्त का नाम (भग ८, ५)|

अववीड :: पुं [अवपीड] निष्पीड़न, दबाना, (गउड)।

अववीडण :: न [अवपीडन] ऊपर देखो (गउड)।

अवस :: वि [अवश] १ अस्वाधीन, पराधीन (सुअ १, ३, १) २ स्वतन्त्र, स्वाधीन (से १, १)

अवस :: वि [अवश] अकाम, अनिच्छु (धर्मंसं ७००)।

अवसं :: अ [अवश्यम्] अवश्य, जरूर, निश्‍चय (हे ४, ४२७)।

अवसउण :: न [अपशकुन] अनिष्ट-सूचक निमित्त, खराब शकुन (ओघ ८१ भा; गा २६१; सुपा ३६३)।

अवसंकि :: वि [अपशङ्किन्] अपसरण- कर्ता (सुअ १, १२, ४)।

अवसक्क :: सक [अव + ष्वष्क] पीछे हट जाना। अवसक्केज्जा (आचा)।

अवसक्कण :: न [अवष्वष्कण] अपसरण, पीछे हटना (पंचा १३)।

अवसक्कि :: वि [अवष्वष्किन्] पीछे हटने वाला (आचा)।

अवसण्ण :: वि [दे] झरा हुआ, टपका हुआ (षड्)।

अवसण्ण :: वि [अवसन्न] निमग्‍न, 'नागो जहा पंकजलावसणणो' (उत्त १३, ३०)।

अवसद्द :: पुं [अपशब्द] १ अशुद्ध शब्द (सुर १६, २४८) २ खराब वचन (हे १, १७२) ३ अपकीर्त्ति, अपयश (कुमा)

अवसप्प :: अक [अव +सृप्] पीछए हटाना। २ निवृत्त होना। ३ उतरना। अवसप्पंति (पि १७३)

अवसप्पण :: न [अपसर्पण] अपसरण, अप- वर्तन (पउण ५६, ७८)।

अवसप्पि :: वि [अपसर्पिन] १ पीछे हटनेवाला। २ निवृत्त होनेवाला (सुअ १, २, २)

अवसप्पिय :: वि [अपसर्पित] १ अपसृत। २ निवृत्त। ३ अवतीर्णं (भवि)

अवसप्पिणी :: देखो ओसप्पिणी (भग ३, २; भवि)।

अवसमिआ :: (दे) देखो अंबसमी (दे १, ३७)।

अवसय :: वि [अपशद] नीच, अधम (ठा ४, ४)।

अवसर :: अक [अप + सृ] १ पीछे हटना। २ निवृत्त होना। अवसरइ (हे १, १७२)। कृ. अवसरियव्व (उप १४९ टी)

अवसर :: सक [अव + सृ] आश्रय करना। संकृ. 'ओसरणम् अवसरित्ता' (चउ १८)।

अवसर :: पुं [अवसर] १ काल, समय (पाअ) २ प्रस्ताव, मौका (प्रासू ५७; (महा)

अवसरण :: देखो ओसरण (पव ६२)।

अवसरण :: न [अपसरण] १ पीछे हटना। २ निवृत्ति (गडउ)

अवसरिय :: वि [आवसरिक] सामयिक, सम- योपयुक्त (सण)।

अवसरीर :: पुं [अपशरीर] रोग, व्याधि; 'सव्वावसरीरहिओ' (उप ५९७ टी)।

अवसवस :: वि [अपस्ववश] पराधीन, पर- तन्त्र (णाया १, १६)।

अवसव्व :: न [अपसव्य] वाम पार्श्‍व (णंदि १५९)।

अवसव्वय :: न [अपसव्यक] शरीर का दहिना भाग (उप पृ २०८)।

अवसह :: पुं [आवसथ] घर, मकान (उत्त ३२)।

अवसह :: न [दे] १ उत्सव। २ नियम (दे १, ५८)

अवसाइअ :: वि [अप्रसादित] प्रसन्न नहीं किया हुआ (से १०, ६३)।

अवसाण :: न [अवसान] १ नाश। २ अन्त भाग (गडउ; पि ३६६)

अवसाय :: पुं [अवश्याय] हिम, बर्फ (गडउ)।

अवसारिअ :: वि [अप्रसारित] न फैला हुआ, अविस्तारित (से, १)।

अवसारिअ :: वि [अपसारित] १ आकृष्ट, खींचा हुआ (से १, १) २ दूर किया हुआ, हटाया हुआ (सुपा २२२)

अवसावण :: न [अवस्रावण] १ काँजी (बृह १) २ भात वगैरह का पानी (सूक्त ८९)

अवसावणिया :: स्त्री [अवस्वापनिका] सुलानेवाली विद्या (धर्मवि १२४)।

अवसिअ :: वि [अपसृत] पीछे हटा हुआ (से १३, ९३)।

अवसिअ :: वि [अवसित] १ समाप्त, परि- पूर्ण। २ ज्ञात, जाना हुआ (विसे २४८२)

अवसिज्ज :: अक [अव + सद्] हारना, पराजित होना; 'एक्कोवि नावसिज्जइ' (विसे २४८४)।

अवसित्त :: वि [अवसिक्त] सींचा हुआ (रंभा ३१)।

अवसिद :: (शौ) वि [अवसित] समाप्त, पूर्णं (अभि १३३, प्रति १०९)।

अवसिद्धंत :: पुं [अपसिद्धान्त] दूषित सिद्धांत (विसे २४५७; ९)।

अवसीय :: अक [अव + सद्] क्लेश पाना, खिन्‍न होना। वकृ. अवसीयंत (पउम ३३, १३१)।

अवसुअ :: अक [उद् + वा] सुखना, शुष्‍क होना। अवसुअइ (षड्)।

अवसेअ :: पुं [अवसेक] सिंचन, छिड़काव (अभि २१०)।

अवसेअ :: वि [अवसेय] जानते योग्य (विसे २९७१)।

अवसें :: (अप) देखो अवसं (हे ४, ४२७)।

अवसेण :: देखो अवसं; 'अवसेण भुंजियव्वा (पउम १०२, २०१)।

अवसेय :: पुं [अवशेष] १ अवशिष्ट, बाकी (सुपा ७७) २ वि. सब, सर्वं (उप २११ टी)

अवसेसिय :: वि [अवशेषित] १ समाप्त किया हुआ, पार पहुँचाया हुआ (से ४, ४७) २ बाकी का, अवशिष्ट (भग)

अवसेह :: सक [गम्] जाना। अवसेहइ (हे ४, १६२)। अवसेहंति (कुमा)।

अवसेह :: अक [नश्] भागना; पलायन करना। अवसेहइ (हे ४, १७८; कुमा)।

अवसोइया :: स्त्री [अवस्वापिका] निद्रा (सुपा ६०९)।

अवसोग :: वि [अपशोक] १ शोक-रहित। २ देव-विशेष (दीव)

अवसोण :: वि [अपशोण] थोड़ा लाल (गउड)।

अवसोवणी :: स्त्री [अवस्वापनी] निद्रा (सुपा ४७)।

अवस्स :: वि [अवश्य] जरूरी, नियत (आवम, आव ४)। °कम्म न [°कर्मन्] आवश्यक क्रिया (आचू १)। °करणिज्ज वि [°करणीय] अवश्य करने लायक कर्मं, सामयिक आदि। °किरिया स्त्री [°क्रिया] आवश्यक अनुष्ठान (आचू १)। °किच्च वि [°कृत्य] आवश्यक कार्यं (दे)।

अवस्सं :: अ [अवश्यम्] जरूर, निश्‍चय (पि ३१५)।

अवस्सप्पिणी :: देखो अवसप्पिणी (संबोध ४८)।

अवस्साअ :: देखो अवसाय (विक्र)।

अवस्सिय :: वि [अवाश्रित] आश्रित, अवलग्‍न (अनु ६)।

अवह :: सक [रच्] निर्माण करना, बनाना। अवहइ (हे ४, ९४)।

अवह :: स [उभय] दोनों, युगल (हे २, १३८)।

अवह :: वि [अवह] न बहता हुआ, जो चालू नहीं है, बंद, 'ओसप्पिणीइ अवहो इमाइ जाओ तऔ य सिद्धिपहो (धर्मवि १५१)।

अवहइ :: स्त्री [अपहनि] विनाश (विसे २०- १५)।

अवहट्ट :: वि [दे] अभिमानी, गर्वित (दे १, २३)।

अवहट्टु :: देखो अवहर = अप + हृ।

अवहड :: वि [अपहृत] ले लिया गया, छीना हुआ (सुपा २९६; पणह १, ३)।

अवहड :: वि [अवहृत] ऊपर देखो (प्रारू)।

अवहड :: न [दे] मुसल (दे १, ३२)।

अवहण्ण :: पुं [दे] ऊखल, ओखल, उदूखल (दे १, २६)।

अपहत्थ :: पुं [अपहस्त] मारने के लिए या निकाल बाहर करने के लिए ऊँचा किया हुआ हाथ, 'अवहत्थेण हओ कुमरो' (महा)।

अवहत्थ :: सक [अपहस्तय्] १ हाथ को ऊँचा करना। २ त्याग करना, छोड़ देना। अवहत्थेइ (महा)। संकृ. अवहत्थिऊण, अवहत्थेऊण (पि ५८६; महा)

अवहत्थरा :: स्त्री [दे] लात मारना, पाद-प्रहार (दे १, २२)।

अवहत्थिय :: वि [अपहस्तित] परित्यक्त, दूर किया हुआ (महा; काप्र ५२४; गा ३५३; सुपा १९३; णंदि)।

अवहय :: वि [अपहत] नष्ट, नाश-प्राप्त (से १४, २८)।

अवहय :: वि [अघातक] अहिंसक (ओघ ७५०)।

अवहर :: सक [गम्] जाना। अवहरइ (हे ४, १६२)।

अवहर :: अक [नश्] भाग जाना, पलायन करना। अवहरइ (हे ४, १७८; कुमा)।

अवहर :: सक [अप + हृ] १ छीन लेना, अप- हरण करना। २ भागाकार करना, भाग देना। अवहरइ (महा) अवहरेज्जा (उवा)। कवकृ. अवहरिज्जंत, अवहीरमाण (सुर ३, १४२; भग २५, ४; णाया १, १८)। संकृ. अवहरिऊण, अवहट्टु (महा; आचा; भग)

अवहर :: सक [अप + हृ] परित्याग करना। संकृ. अवहट्टु (सुअ १, ४, १, १७)।

अवहर :: वि [अपहर] अपहारक, छीन लेनेवाला (गा १५६)।

अवहरण :: न [अपहरण] छीन लेना (कुमा; सुपा २५०)।

अवहरिअ :: वि [गत] गया हुआ (कुमा)।

अवहरिअ :: वि [अपहृत] छीन लिया हुआ (सुर ३, १४१; कुम्मा ९)।

अवहस :: सक [अव, अप + हस्] तुच्छ करना, तिरस्कार करना, उपहास करना। अव- हसइ (णामा १, १८)।

अवहसिय :: वि [अप°, अवहसित] तिरस्कृत, उपहसित (णाया १, ८; सुर १२, ६७)।

अवहाउ :: सक [दे] आक्रोश करना। अवहाडेमि (दे १, ४७ टी)।

अवहाडिअ :: वि [दे] उत्कृष्ट, जिस पर आक्रोश किया गया हो वह (दे १, ४७)।

अवहाण :: न [अवधान] १ ख्याल, उपयोग (सुर १०, ७१; कुमा) २ ज्ञान, जानना (विसे ८२)|

अवहाय :: पुं [दे] विरह, वियोग (दे १, ३६)।

अवहाय :: अ [अपहाय] छोड़ कर, त्याग कर (भग १५)।

अवहार :: सक [अव +धारय्] निर्णय करना, निश्चय करना। कर्मं. अवहारिज्जइ (स १६९)। हेकृ. अवहारेउं (भास १६)।

अवहार :: (अप) देखो अवहर = अप + हृ। अवहारइ (भवि)। संकृ. अवहारिवि (भवि)।

अवहार :: पुं. [अपहार] १ अपहरण (पणह १, ३; सुपा २७५) २ दूर करना, परित्याग (णाया १, ९) ३ चोरी (सुपा ४४६) ४ बाहर करना, निकलना (निचू ७) ५ भागा- कर (भग २५, ४) ६ नाश, विनाश (सुर ७, १२५)

अवहार :: पुं [अवधार] निश्चय, निर्णंय। °व वि [वत्] निश्चय वाला (ठा १०)।

अवहार :: पुं [अवधार्य] ध्रुव राशि, गणित- प्रसिद्ध राशिविशेष (सुज्ज १०, ६ टी)।

अवहारण :: न [अवधारण] निश्चय, निर्णय (से ११, १५; स १६९)।

अवहारय :: वि [अपहारक] छीननेवाला, अप- हरण करनेवाला (सुर ११, १२)।

अवहारि :: वि [अपहारिन्] अपहारक, छीननेवाला (सुपा ५०३)।

अवहारिय :: वि [अवधारित] निश्चित (स ५७६; पउम २३, ९; सुपा ३३१)

अवहाव :: सक [क्रप्] दया करना, कृपा करना। अवहावेइ (षड्; हे ४, १५१)। अवहावसु (कुमा)।

अवहाविअ :: वि [अवधावित] गमन के लिए प्रेरित (सिरि ४३४)।

अवहास :: पुं [अवभास] प्रकाश, तेज (गउड; प्राप्त)।

अवहासिणी :: स्त्री [अवहासिनी] नासारज्जु, 'मोत्तव्वे जोत्तअपग्गहम्मि अवहासिणी मुक्का' (गा ६९४)।

अवहासिय :: वि [अवभासित] प्रकाशित (सुपा १४२)।

अवहि :: देखो ओहि (सुपा ८६; ५७८; विसे ८२; ७३७)।

अवहिट्ठ :: वि [दे] दर्पित, अभिमानी, गर्वित (षड्)।

अवहिट्ठ :: न [दे] मैथुन, संभोग (सुअ १, ९, १०)।

अवहिय :: वि [अपहृत] छीन लिया हुआ (पउम २०, ६६; सुर ११, ३२; सुपा ४१३)।

अवहिय :: वि [अपहित] अहित (चंड)।

अवहिय :: वि [अवधृत] नियमित (विसे २९३३)।

अवहिय :: न [अवधृत] अवधारण (वव १)।

अवहिय :: वि [अवहित] सावधान, ख्यालवाला (पाअ; महा; णाया १, २; पउम १०, ६५; सुपा ४२३)। °मण वि [°मनस्] तल्लीन, एकाग्र-चित्त (सुपा ९)।

अवहिय :: वि [रचित] निर्मित, बनाया हुआ (कुमा)।

अवहीण :: वि [अवहीन] हीन, उतरता, कम दरजा वाला (नाट; पि १२०)।

अवहीय :: वि [अपधीक] निन्द्य बुद्धिवाला, दुर्बुद्धि (पणह १, २)।

अवहीर :: सक [अव + धीरय्] अवज्ञा करना, तिरस्कार करना। अवहीरेइ (महा)। वकृ. अवहीरंत (सुपा ३१२)। कवकृ. अवहीरिज्जंत (सुपा ३७६)। संकृ. अव- हीरिऊण (महा)।

अवहीरण :: न [अवधीरण] अवहेलना, तिर- स्कार (गा १४६; अभि ९८; गउड)।

अवहीरणा :: स्त्री [अवधीरणा] ऊपर देखो (से १३, १६; वेणी १८)।

अवहीरमाण :: देखो अवहर = अप + हृ।

अवहीरिअ :: वि [अवधीरित] अवज्ञात, तिर- स्कृत (से ११, ७; गउड)।

अवहील :: देखो अवहीर।अबहीलह (सण)।

अवहीला :: स्त्री [अबहेला] अनादर (सिरि १७६)।

अवहूय :: वि [अवधूत] मार भगाया हुआ (संबोध ५२)।

अवहेअ :: वि [दे] दया-योग्य, कृपा-पात्र (दे १, २२)।

अवहेड :: सक [मुच्] छोड़ना, त्याग करना। अवहेडइ (हे ४, ९१)। संकृ. अवहेडिउं (कुमा)।

अवहेडग, अवहेडय :: पुंन [अवहेटक] आधे सिर का दर्दं, आधा सीसी रोग (उत्तनि ३)।

अवहेडिय :: वि [दे] नीचे की तरफ मोड़ा हुआ, अवमोटित (उत्त १२)।

अवहेरि, अवहेरी :: स्त्री [अवहेला] अवगणना, तिर- स्कार (उप २९०, ५९७ टी; भवि; सुपा २९१, महा)।

अवहेलअ :: वि [अवहेलक] तिरस्कारक (सुपा १०६)।

अवहेलण :: वि [अवहेलन] उपेक्षा करनेवाला (सुअ २, ६, ५३)।

अवहोअ :: पुं [दे] विरह, वियोग (षड्)।

अवहोडय :: देखो अवओडग; 'सो बद्धो अवहोड- एण' (सुख २, २५)।

अवहोमुह :: वि [उभयमुख] दोनों तरफ मुंह वाला (प्राकृ ३०)।

अवहोल :: अक [अव + होलय्] १ झुलना। २ संदह करना। वकृ. अवहोलन (णाया १, ८)

अवाइ :: वि [अपायिन्] १ दुःखी। २ दोषी, अपराधी; 'निब्भिच्चसच्चावाई होइ अवाई य नेह- लोएवि' (सुपा २७५)

अवाईण :: वि [अवाचीन] अधोमुख (णाया १, १)।

अवाईण :: वि [अवातीन] वायु से अनुपहत (णाया १, १)।

अवाउड :: वि [अ-व्यापृत] किसी कार्य में न लगा हुआ (उप पृ ३०२)।

अवाउड :: वि [अप्रावृत] अनाच्छादित, नग्‍न, दिगम्बर (णाया १, १; ठा ५, १)।

अवाडिअ :: वि [दे] वञ्चित, प्रतारित (षड्)।

अवाण :: देखो अपाण (पाअ; विपा १, ९)।

अवाय :: पु [अपाय] पानी का आगमन (श्रा २३)।

अवाय :: वि [अपाय] भाग्यरहित (श्रा २३)।

अवाय :: वि [अपाग] वक्षरहित (श्रा २३)।

अवाय :: वि [अपाक] पापरहित (श्रा २३)।

अवाय :: पुं [अवाय] प्राप्ति (श्रा २३)।

अवाय :: पुं [अपाय] १ अनर्थ, अनिष्ट (ठा १) २ दोष, दूषण (सुर ४, १२०) ३ उदाहरण- विशेष (ठा ४, ३) ४ विनाश (धर्म १) ५ वियोग, पार्थक्य (णंदि) ६ संशय-रहित निश्चयात्मक ज्ञान-विशेष (ठा ४, ४; णंदि)। °दंसि वि [°दर्शिन्] भावी अनर्थों को जाननेवाला (ठा ८; द्र ४९)। °विजय न [°विचय, °विजय] ध्यान-विशेष (ठा ४, २)

अवाय :: पुं [अवाय] संशय-रहित निश्चयात्मक ज्ञान-विशेष, मति ज्ञान का एक भेद (ठा ४, ४; णंदि)।

अवाय :: वि [अम्लान] अम्लान, म्लानरहित, ताजा; 'अवायमल्लमंडिया' (स ३७२)।

अवायाण :: न [अपादन] कारक-विशेष, स्था- नान्तरीकरण (ठा ८; विसे २०९९)।

अवार :: वि [अपार] पार-रहित, अनन्त (मै ६८)।

अवार :: पुं [दे] दूकान, हाट (दे १, १२)।

अवारी :: स्त्री [दे] ऊपर देखो (दे १, १२)।

अवालुआ :: स्त्री [दे] होठ का प्रान्त भाग (दे १, २८)।

अवाव :: पुं [अवाप] रसोई, पाक। °कहा स्त्री [°कथा] रसोई-सम्बन्धी कथा (ठा ४, २)।

अवास, अवासें :: (अप) देखो अबसें (षड्)।

अवाह :: पुं [अवाह] देश-विशेष (इक)।

अवाहा :: देखो अबाहा (औप)।

अवि :: अ [अपि] निम्‍नलिखित अर्थोँ का सूचक अव्यय — १ प्रश्‍न (से ५, ४) २ अवधारण, निश्चय, (आचा; गा ५०२) ३ समुच्चय (विसे ३५५१; भग १, ७) ४ संभावना (विसे ३५४८; उत्त ३) ५ विलाप (पाअ)। ६ — ७ वाक्य के उपन्यास और पादपूर्त्ति में भी इसका प्रयोग होता है (आचा; पउम ८, १४९; षड्)

अवि :: पुं [अवि] १ अज। २ मेष (विसे १७७४)

अविअ :: वि [दे] उक्त, कथित (दे १, १०)।

अविअ :: वि [अवित] रक्षित (दे ५, ३५)।

अविअ :: अ [अपिच] विशेषण-सूचक अव्यय (पंचा ७, २१)।

अविअ :: अ [अपिच] समुच्चय-द्योतक अव्यय (सुर २, २४६; भग ३, २)।

अविअ :: पुं [अधिक] मेष, भेड़ (आचा)।

अविउ :: वि [अवित्] अज्ञ, मूर्ख (सट्ठि ४९)।

अविउक्कंतिय :: वि [अव्युत्क्रान्तिक] उत्पत्ति- रहित (भग)।

अविउसरण :: न [अव्युत्सर्जन] अपरित्याग, पास में रखना (भग)।

अविकंप :: वि [अविकम्प] निश्चल (पंचा १८, ३५)।

अविकरण :: न [अविकरण] गृहीत वस्तुओं को यथास्थान न रखना (बृह ३)।

अविक्ख :: देखो अवेक्ख। अविक्खइ (महा)। हेकृ. अविक्खिउं (स ३०७)। कृ. अवि- क्खणिज्ज (विसे १७१६)।

अविक्खग :: वि [अपेक्षक] अपेक्षा करनेवाला (विसे १७१६)।

अविक्खण :: न [अवेक्षण] अवलोकन, निरी- क्षण (भवि)।

अविक्खण :: न [अपेक्षण] अपेक्षा, परवाह (बिसे १७१६)।

अविक्खा :: देखो अवेक्खा (कुमा)।

अविक्खिय :: वि [अपेक्षित] १ अपेक्षित। २ न. अपेक्षा, परवह; 'नावक्कियं सभाए' (श्रा १४)

अविक्खिय :: वि [अवेक्षित] अवलोकित (सुपा ७२)।

अविगइय :: वि [अविकृतिक] घृत आदि विकार-जनक वस्तुओं का त्यागी (सुअ २, २)।

अविगडिय :: वि [अविकटित] अनालोचित (वव १)।

अविगप्प :: देखो अवियप्प (सुर ४, १८९)।

अविगप्पग :: वि [अविकल्पक] १ विकल्प- रहित। २ न. कल्पना-रहित प्रत्यक्ष ज्ञान (धर्मंसँ ७४०)

अविगल :: वि [अविकल] अखण्ड, पूर्ण (उप २८३)।

अविगिच्छ :: वि [अविचिकिंत्स्य] जिसका इलाज न हो सके ऐसा, असाध्य व्याधि; 'तालपुडं गरलाणं, जह बहुवाहीण खित्तिओ वाही। दोसाणमसेसाणं, तह अविगिच्छो मुसादोसो' (श्रा १२)।

अविगीय :: पुं [अविगीत] अगीतार्थं, शास्त्रों के रहस्य का अनभिज्ञ साधु (वव ३)।

अविग्गह :: वि [अविग्रह] १ शरीर-रहित। २ युद्ध-रहित, कलह-वर्जित (सुपा २३४) ३ सरल, सीधा (भग)। °ग्गइ स्त्री [°गति] अकुटिल गति (भग १४, ५)|

अविच्छ :: वि [अवीप्स्य] वीप्सारहित, व्याप्ति रहित (षड्)।

अविजाणय :: वि [अविज्ञायक] अनजान, मूर्खँ (सुअ १, ५, १)।

अविज्ज :: वि [अबीज] बीजशक्ति से रहित (पउम ११, २५)।

अविणय :: पुं [अविनय] विनय का अभाव (ठा ३, ३)।

अविणयवइ, अविणयवर :: पुं [दे] जार, उपपति (दे १, १८)।

अविणयवई :: स्त्री [दे] अतती, कुलटा (दे १, १८)।

अविणिद्द :: वि [अविनिद्र] निद्रा-विच्छेदरहित (गा ६६)।

अविण्णा :: स्त्री [अविज्ञा] अनुपयोग, ख्याल का अभाव (सुअ १, १, १)।

अवितह :: वि [अवितथ] सत्य, , सच्चा (महा; उव)।

अविद, अविदा :: अ [अविद, °दा] विषाद-सूचक अव्यय (पि २२; स्वप्‍न ५८)।

अविधि :: पुंस्त्री [अविधि] १ विरुद्ध विधि। २ विधि का अभाव (बृह ३; आचु १)

अविन्नाण :: वि [अविज्ञान] १ अजान। २ अज्ञात, अपरिचित (पउम ५, २१९)

अवियड्‍ढ :: वि [अविदग्ध] अनिपुण (सुपा ५८२)।

अवियत्त :: न [अप्रितिक] १ प्रीति का अभाव (ठा १०) २ वि. अप्रीतिकारक (पणह १, १)

अवियत्त :: वि [अव्यक्त] अस्फुट, अस्पष्ट; 'अवियत्तं दंसणं अणागारं' (सम्म ६५)।

अवयप्प :: वि [अविकल्प] १ भेदरहित, 'वंजणपज्जायस्स उ पुरिसो पुरिसो त्ति निच्च- मवियप्पो' (सम्म ३५) २ क्रिवि. निःसंशय, संशयरहित; 'सविअप्पनिव्विअप्पं इय पुरिसं जो भणिज्ज अवियप्पं' (सम्म ३५)

अवियाउरी :: स्त्री [दे. अविजनयित्री]वन्ध्या स्त्री (णाया १, २)।

अवियाणय :: देखो अविजाणय (आचा)।

अविरइ :: स्त्री [अविरति] १ विराम का अभाव, अनिवृत्ति। २ पाप कर्म से अनिवृत्ति (सम १०; पणह २, ५) ३ हिंसा (कम्म ४) ४ अब्रह्म, मंथुन (ठा ६) ५ विरति-परिणाम का अभाव (सुअ २, २) ६ वि. विरतिरहित (नाट)। °वाय पुं [°वाद] १ अविरति की चर्चा। २ मैथुन-चर्चा (ठा ६)

अविरइय :: वि [अविरतिक] विरति से रहित, पापनिवृत्ति से बर्जित, पाप कर्म में प्रवृत्त (भग; कस)।

अविरत्त :: वि [अविरक्त] वैराग्यरहित (णाया १, १४)।

अविरय :: वि [अविरत] १ विरामरहित, अविच्छिन्न (गा १५५) २ पाप निवृत्ति से रहित (ठा २, १) ३ चतुर्थँ गुणास्थानक वाला जीव (कम्म ४, ६३) ४ क्रिवि. सदा, हमेशा (पाअ)। °सम्मदिट्ठि स्त्री [°सम्य- ग्दृष्टि] चतुर्थ गुणस्थानक (कम्म २, २)

अविरल :: वि [अविरल] निविड, धन (णाया १, १)।

अविरहि :: वि [अविरहिन्] विरहरहित (कुमा)।

अविराम :: वि [अविराम] १ विरामरहित। २ क्रिवि. निरन्तर, हमेशा (पाअ)

अविराय :: वि [अविलीन] अभ्रष्ट (कुमा)।

अविराहिय :: वि [अविराधित] अखण्डित, आराधित (भग १५)।

अविरिय :: वि [अवीर्य] बीर्यरहित (भग)।

अविल :: पुं. [दे] १ पशु। २ वि. कठिन (दे १, ५२)

अविलंबिय :: वि [अविलम्बित] विलम्ब- रहित, शीघ्र (कप्प)।

अविला :: स्त्री [अविला] मेषी, भेड़ी (प्राअ)।

अविवेग :: पुं [अविवेक] १ विवेक का अभाव। २ वि. विवेकरहित। °वंत बि [°वत्] अविवेकी (पउम ११३, ३९)

अविसंधि :: वि [अविसंधि] पूर्वापर विरोध से रहित, संगत, संबद्ध (औप)।

अविसंवाइ :: वि [अविसंवादिन्] बिसंवाद- रहित, प्रमाण भूत, सत्य (कुमा; सुर ९, १७८)।

अविसम :: वि [अविषम] सदृश, तुल्य (कुमा)।

अविसाइ :: वि [अविषादिन्] विषादरिहत (पणह २, १)।

अविसेस :: वि [अविशेष] तुल्य, समान (ठा २, ३; उप ८७७)।

अविसेसिय :: वि [अविशेषित] (ठा १०)।

अविस्स :: न [अविश्र] मांस और रुधिर (पव ४०)।

अविस्साम :: वि [अविश्राम] १ विश्रामरहित (पणह १, १) २ क्रिवि. निरन्तर, सदा (उप ७२८ टी)

अविहड :: पुं [दे] बालक, बच्चा (बृह १)।

अविहव :: वि [अविभव] दरिद्र (गउड)।

अविहवा :: स्त्री [अविधवा] जिसका पति जिवित हो वह स्त्री, सधवा (णाया १, १)।

अविहा :: देखो अविदा (अभि २२४)।

अविहाड :: वि [अविघाट] अविकट (वव ७)।

अविहाविअ :: वि [दे] १ दीन, गरीब। २ न. मौन (दे १, ५९)

अबिहाविअ :: वि [अविभावित] अनोलचित (गउड)।

अविहि :: देखो अविधि (दस १)।

अविहिअ :: वि [दे] मत्त, उन्मत्त (षड्)।

अविहिंत :: वकृ. [अविध्नत्] नहीं मारना हुआ, हिंसा नहीं करता हुआ; 'वज्जेमित्ति परिणओ, संपत्तीए विमुच्चई वेरा। अविहिंतोवि न मुच्चइ, किलिट्ठभावोत्ति वा तस्स' (ओघ ६०)।

अविहिंस :: वि [अविहिंस] अहिंसक (आचा)।

अविहिंसा :: स्त्री [अविहिंसा] अहिंसा (सुअ १; २, १)।

अविहीर :: वि [अप्रतीक्ष] प्रतीक्षा नहीं करने वाला (कुमा)।

अविहेडय :: वि [अविहेटक] आदर करनेवाला (दस १०, १०)।

अवी :: देखो अवि (उत्त २०, ३८)।

अवीइय :: अ [अविविच्य] अलग न हो कर (भग १०, २)।

अवीइय :: [अविचिन्त्य] विचार न कर (भग १०, २)।

अवीय :: वि [अद्वितीय] १ असाधारण, अनुपम (कुमा) २ एकाकी, असहाय (विपा १, २)

अवुक्क :: सक [वि + ज्ञपय्] विज्ञप्ति करना, प्रार्थंना करना। अवुक्कइ (हे ४, ३८)। वकृ. अवुक्कंत (कुमा)।

अवुड्‍ढ :: वि [अवृद्ध] तरुण, जवान (कुमा)।

अवुग्गह :: देखो अविग्गह (ठा ५, १)।

अवुह :: देखो अबुह (सण)।

अवूह :: देखो अवोह (णाया १, १)।

अवे :: सक [अव + इ] जानना। अवेसि (विसे १७७३)।

अवे :: अक [अप + इ] दूर होना, हटना। अवेइ (स २०)। अवेह (मुद्रा १९१)।

अवेक्ख :: सक [अप + ईक्ष] अपेक्षा करना। अवेक्खइ (महा)।

अवेक्ख :: सक [अव + र्ईक्ष्] अवलोकन करना। अवेक्खाहि (स ३१७) संकृ. अवेक्खिऊण (स ५२७)।

अवेक्खा :: स्त्री [अपेक्षा] अपेक्षा, परवाह (सुर ३, ८४; स ५९२)।

अवेक्खि :: वि [अपेक्षिन्] अपेक्षा करनेवाला (गउड)।

अवेक्खिय :: वि [अपेक्षित] जिसकी अपेक्षा हुई हो वह (अभि २१९)।

अवेक्खिय :: वि [अवेक्षित] अवलोकित (अभि १६९)।

अवेय :: वि [अपेत] रहित, वर्जित (विसे २२१३)। °रुइ वि [°रुचि] रुचि-रहित, निरीह (उप ७२८ टी)।

अवेय, अवेयग :: वि [अवेद, °क] १ पुरुष-वेदादि वेद से रहित (पणण १) २ मुक्त, मोक्ष-प्राप्त (ठा २, १)

अवेसि :: देखो अंबेसि (दे १, ८; पाअ)।

अवेह :: देखो अवेक्ख = अव + ईक्ष्। अबेहइ (सुअ ९)।

अवोअड :: वि [अव्याकृत] अव्यक्त, अस्पष्ट (भास ७९)।

अवोच्छिण्ण :: देखो अव्वोच्छिण्ण (आचा)।

अवोच्छित्ति :: देखो अव्वोच्छित्ति (ठा ५, ३)।

अवोह :: सक [अप + ऊह्] १ विचार करना। २ निर्णंय करना। अवोहए (आवम)|

अवोह :: पुं [अपोह] १ विकल्पज्ञान, तर्कं-विशेष। २ त्याग, वर्जन (उप ९६७) ३ निर्णंय, निश्चय (णंदि)

अव्वईभाव :: पुं [अव्ययीभाव] व्याकरण-प्रसिद्ध एक समास (अणु)।

अव्वंग :: वि [अव्यङ्ग] अक्षत, अखण्ड (वव ७)।

अव्वंग :: न [अव्यङ्ग] १ पूर्णं अंग, पूरा शरीर। २ वि. अविकल, अन्यून, संपूर्णं; 'परि- हियअव्वंगधोयसियवसणा' (धर्मंवि १७, १५)

अव्वक्खित्त :: वि [अव्याक्षिप्त] १ विक्षेप- रहित। २ तल्लीन, एकाग्र (उत्त २०)

अव्वग्ग :: वि [अव्यग्र] व्यग्रताशून्य, अनाकुल (उत्त १५)।

अव्वत्त, अव्वतय :: वि [अव्यक्त] १ अस्पष्ट, अस्फुट उप ७६८ टी; सुर ४, २१४; श्रा २७) २ छोटी उमर का बालक, बच्चा (निचु १८) ३ अगीतार्थ, शास्त्र-रहस्यान- भिज्ञ (साधु) (धर्म २ ; आचा) ४ पुं अव्यक्त मत का प्रवर्तंक एख जैनाभास मुनि (ठा ७) ५ न सांख्य मत में प्रसिद्ध प्रकृति (आवम)। °मय न [°मत] एक जैनाभास मत (विसे)

अव्वत्तव्व :: वि [अवक्तव्य] १ अवचनीय। २ पुं. कर्मबन्ध विशेष, जब जीव सर्वथा कर्म- बन्धरहित होकर फिर जो कर्मबन्ध करे वह (पव ५, १२)

अव्वत्तिय :: देखो अवत्तिय (औप; विसे; आवम)।

अव्वभिचारि :: वि [अव्यभिचारिन्] ऐका- न्तिक (पंचा २, ३७)।

अव्यय :: न [अव्यय] 'च' आदि निपात (चेइय ६८३)।

अव्वय :: न [अव्रत] १ व्रत का अभाव (श्रा १९; सम १३२) २ वि. व्रतरहित (विसे २५४२)

अव्वय :: वि [अव्यय] १ अक्षय, अखुट (सुपा ३२१) २ नित्य, शाश्‍वत (भग २, १)

अव्ववसिय :: वि [अव्यवसित] १ अनिश्चित, संदिग्ध। २ अपराक्रमी (ठा ३, ४)

अव्वसण :: वि [अव्यसन] १ व्यसन-रहित। २ पुंन. लोकोत्तर रीति से १२ वाँ दिन (जं ७)

अव्वह :: वि [अव्यथ] १ व्यथरहित। २ न. निश्‍चल ध्यान (ठा ४, १; औप)

अव्वहिय :: वि [अव्यथित] १ अपीडित (पंचा ५) २ निश्‍चल (बृह १)

अव्वा :: स्त्री [अर्वाक्] पर से भिन्न, 'णो हव्वाए णो पाराए' (सुअ २, १, ६)।

अव्वा :: स्त्री [दे. अम्बा] माता, जननी (दे १, ५; (षड्)।

अव्वाइद्ध :: वि [अव्याविद्ध] १ अविपर्यंस्त, अविपरीत। २ न. सूत्र का एक गुण, स अक्षरो की उलट-पुलट का अभाव (बृह १; गच्छ २)

अव्वागड :: वि [अव्याकृत] अव्यक्त, अस्फुट (आचा; सत्त ९ टी)।

अव्वाण :: वि [आव्यान] थोड़ा स्‍निग्ध (ओघ ४८८)।

अव्वाबाह :: वि [अव्यावाध] १ हरज-रहित, बाधा-वर्जित (आव ३) २ न. रोग का अभाव (भग १८, १०) ३ सुख (आवम) ४ मेोक्ष-स्थान, मुक्ति (भग १, १) ५ पुं. लोकान्तिक देव-विशेष (णाया १, ८)

अव्वाबाह :: पुंन [अव्याबाध] एक देवविमान (देवेन्द्र १४५)।

अव्वावड :: वि [अव्यावृत] १ जो व्यवहार में न लाया गया हो, व्यापार-रहित। २ एक प्रकार का वास्तु (बृह ३)

अव्वावन्न :: वि [अव्यापन्न] अविनष्ट, नाश को अप्राप्त (भग १, ७)।

अव्वावार :: वि [अव्यापार] व्यापार-वर्जित (स ५०)।

अव्वाहय :: वि [अव्याहत] १ रुकावट-वर्जित (टा ४, ४; सुपा ८६) २ अनुपहल, आघात- रहित (णंदि)। °पूब्बावरत्त न [°पूर्वा- परत्व] जिसमें पूर्वापर का विरोध या असंगति न हो ऐसा (वचन) (राय)

अव्वाहार :: पुं [अव्याहार] न बोलना, मौन (पाअ)।

अव्वाहिय :: वि [अव्याहृत] न बुलाया हुआ (जीव ३; आचा)।

अव्विरय :: वि [अविरत] विरति-रहित (सट्ठि ८)।

अव्वो :: अ. नीचे के अर्थों में से, प्रकरण के अनु- सार, किसी एक अर्थ का सूचक अव्यय — १ सूचना। २ दुःख। ३ संभाषण। ४ अपराध। ५ विस्मय। ६ आनन्द। ७ आदर। ८ भय। ९ खेद। १० विषाग। ११ पश्चात्ताप; 'अव्वो हरंति हिययं तहवि न वेसा हवंति जुवईण। अव्वो किंपि रहस्सं, मुणंति धुत्ता जणब्भहिआ। अव्वो सुपहायमिणं, अव्वो अज्जम्ह सप्फलं जीअं। अव्वो अइअम्मि तुमे, नवरं जइ सा न जूरिहिइ।।' (हे २, २०४)

अव्वोगड :: वि [अव्याकृत] १ अविशेषित (बृह २) २ फैलाव-रहित (दसा ३) ३ नहीं बांटा हुआ। ४ अस्फुट, अस्फष्ट। ५ न. एक प्रकार का वास्तु (बृह ३)

अव्वोच्छिण्ण :: वि [अव्युच्छिन्न, अव्यव- च्छिन्न] १ आन्तर-रहित, सतत, विच्छेद- वर्जित (वव ७) २ नित्य। ३ अव्याहर (गउड)

अव्वोच्छित्ति :: स्त्री [अव्युच्छित्ति, अव्यव- च्छित्ति] १ सातत्य, प्रवाह, बीच में विच्छेद का अभाव, परंपरा से बराबर चला आना (आवम)। °नय पुं [°नय] वस्तु को किसी न किसी रूप से सथायी माननेवाला पक्ष, द्रव्यार्थिक नय (भग ७, ३)

अव्वोच्थिन्न :: देखो अव्वोच्छिण्ण (ओघ ३२२; स २५६)।

अव्वोयड :: देखो अव्वोगड (भग १०, ४; भास ७१)।

अस :: सक [अश्] व्याप्त करना। असइ, असए (षड्)।

अस :: अक [अस्] होना। अस्सि; 'हाहा हओहमस्सि त्ति कट्टु' (भग १५)। अंसि (प्राप)। अत्थि (हे ३, स १४६; १४७; १४८)। भूका, आसि, आसी (भग; उवा)।

अस :: सक [अश्] भोजन करना, खाना। असइ, 'भव्वमणोसालूरं' नासइ दोसोवि जत्थाही[ (सार्ध १०९; भवि)। वकृ. असंत (भवि)। कृ. असियव्व (सुपा ४३८)।

अस :: वकृ [असत्] अविद्यमान, असत; 'दुहओ ण विणस्संति, नो य उप्पज्जए असं' (सुअ १, १, १, १६)।

असइ :: स्त्री [असृति] १ उलटा रखा हुआ हस्त तल। २ धान्य मापने का एक परिमाण। ३ उससे मापा हुआ धान्य (अणु ; णाया १, ७)

असइ :: स्त्री [दे. असत्त्व] अभाव, अविद्यमानता; 'पढमं जईण दाऊण, अप्पणा पणमिऊण पारेई। असईय सुविहियाणं, भुंजेइ य कयदिसालोओ' (उबा)।

असइ, असइं, असई :: अ [असकृत्] अनेकबार, बारं- बार (भवि; आचा; उप ८३३ टी)।

असई :: स्त्री [असती] १ कुलटा, व्यभिचारिणी स्त्री (सुपा ६) २ दासी (भग ८, ९)। °पोस [पुं पोष] धन के लिए दासी, नपुंसक या पशुओं का पालन; 'असईपोसं च वज्जिज्जा' (श्रा २२)। °पोसणया स्त्री [°पोषणा] देखो अनन्तरोक्त अर्थ (पडि)

असउण :: पुंन [अशकुन] अपशकुन (पंचा ७)।

असंक :: वि [अशङ्क] १ शङ्का-रहित, असं- दिग्ध। २ निडर, निर्भय (आच; सुर २, २९)

असंकल :: वि [अश्रृङ्खल] श्रृङ्खला-रहित, अनियन्त्रित (कुमा)।

असंकि :: वि [अशळङ्किन्] संदेह न करनेवाला (सुअ १, १, २)।

असंकिलिट्ठ :: वि [असंक्लिष्ट] १ संक्लेश- रहित। २ विशुद्ध, निर्दोष (औप; पणह २, १)

असंख :: वि [असंख्य] संख्या-रहित, परिमाण- रहित (सुपा ५६९; जी २७; ४०)।

असंख :: न [असंख्य] सांख्य मत से भिन्न दर्शन (सुपा ५६९)।

असंखड :: स्त्रीन [दे] कलह, झगडा; 'जत्थ य समणीणमसंखडाइं गच्छम्मि नेव जायंति' (गच्छ ३, ११)। स्त्री. °डी (पव १०६)।

असंखड :: न [दे] कलह, झगड़ा (निचु १)।

असंखडिय :: वि [दे] कलह करनेवाला, झगड़ाखोर (बृह १)।

असंखय :: देखो असंख = असंख्य (सं ८५)।

असंखय :: वि [असंस्कृत] १ संस्कार-हीन। २ संधान करने के अशक्य (राज)

असंखिज्ज :: वि [असंख्येय] गिनती या परि- माण करने के अशक्य (नव ३५)।

असंखिज्जय :: देखो असंखेज्जय (अणु)।

असंखेज्ज :: देखो असंखिज्ज (भग)।

असंखेज्जइ° :: वि [असंख्येय] असंख्यातवां। °भाग पुं [°भाग] असंख्यातवां हिस्सा (औप; भग)।

असंखेज्जय :: पुंन [असंख्येयक] गणना-विशेष (अणु)।

असंग :: वि [असङ्ग] १ निस्सङ्ग, अनासक्त (पणण २) २ पुं. आत्मा (आचा) ३ मुक्त जीव। ४ न. मोक्ष, मुक्ति (पंचव ३; औप)

असंगय :: न [दे] वस्त्र, कपड़ा (दे १, ३४)।

असंगहिय :: वि [असंगृहीत] १ जिसका संग्रह न किया गया हो वह। २ अनाश्रित (ठा ८)

असंगहिय :: वि [असंग्रहिक] १ संग्रह न करने वाला। २ पुं. नैगम नय का एक भेद (विसे)

असंगिअ :: पुं [दे] १ अश्व, घोड़ा। २ वि. अनवस्थित, चञ्चल (दे १, ५५)

असंघयण :: वि [असंहनन] संहनन से रहित। २ वज्र, ऋषभ, नाराच आधि प्राथमिक तीन संघयणों से रहित (निचु २०)

असंजण :: न [असञ्जन] निःङ्गता, अनासक्ति (निचु १)।

असंजम :: वि [असंयम] १ हिंसा, झुठ आदि सावद्य अनुष्ठान (सुअ १, १३) २ हिंसा आदि पाप-कार्योँ से अनिवृत्ति (धर्म ३) ३ अज्ञान (आचा)| ४ असमाधि (वव १)

असंजय :: वि [असंयत] १ हिंसा आदि पाप कार्यो से अनिवृत्त (सुअ १, १०) २ हिंसा आदि करनेवाला (भग ६, ३)| ३ पुं. साधु- भिन्न, गृहस्थ (आचा)

असंजल :: पुं [असंज्वल] १ ऐरवत वर्षं के एक जिनदेव का नाम (सम १५३)

असंजोगि :: वि [असंयोगिन्] १ संयोग[- रहित। २ पुं. मुक्त जीव, मुक्तात्मा (ठा २, १)

असंत :: वकृ. [असत्] १ अविद्यमान (नव ३३) २ झुठ, असत्य (पणह १, २) ३ असुंदर, अचारु (पणह २, २)

असंत :: देखो अस = अश्।

असंत :: त्रि [अशान्त] शान्तरहित, क्रुद्ध (पणह २, २)।

असंत :: वि [असत्त्व] सत्त्व-रहित, बल-शून्य (पणह १, २ )।

असंथड :: वि [दे. असंस्तृत] अशक्त, असमर्थ (आचा ; बृह ५)।

असंथरंत :: वकृ. [दे. असंस्तरत्] १ समर्थ न होता हुआ। २ खोज न करता हुआ (वव ४) ३ तृप्त न होता हुआ (ओघ १८२)

असंश्वरण :: न [दे. असंस्तरण] १ निर्वाह का अभाव (बृह १) २ पर्याप्त लाभ का अभाव (पंचव ३) ३ असमर्थता, अशक्त अवस्था (धर्म ३; निचु १)

असंथरमाण :: वकृ [दे. असंस्तरमाण]देखो असंथरंत (वव ४; ओघ १८१)।

असंधिम :: वि [असंधिम] संधान-रहित, अखण्ड (बृह ५)।

असंभंत :: पुं [असंभ्रान्त] प्रथम नरक का छठवाँ नरकेन्द्रक — नरक-स्थान विशेष (देवेन्द्र ४)।

असंभव्व :: वि [असंभाव्य] जिसकी संभावना न हो सके ऐसा (श्रा १२)।

असंभावणीय :: वि [असंभावनीय] ऊपर देखो (महा)।

असंलप्प :: वि [असंलप्य] अनिर्वचनीय (अणु)।

असंलोय :: पुं [असंलोक] १ अप्रकाश। २ वह स्थान जीसिमें लोगों का गमनागमन न हो, भीड़रहित स्थान (आचा)

असंवर :: पुं [असंवर] आश्रव, संवर का अभाव (ठा ५, २)।

असंवरीय :: वि [असंवृत] १ अनाच्छादित। २ नहीं रुका हुआ (कुमा)

असंवुड :: वि [असंवृत] असंयत, पाप-कर्म से अनिवृत्त (सुअ १, १, ३)।

असंसइय :: वि [असंशयित] असंदिग्ध (सुअ २, २)।

असंसट्ठ :: वि [असंसृष्ट] १ दूसरे से न मिला हुआ (बृह २) २ लेप-रहित (औप) ३ स्त्री. पिण्डैषणा का एक भेद (पव ९६)

असंसत्त :: वि [असंसक्त] १ अमिलित (उत्त २) २ अनासक्त (दस ८; उत्त ३)

असंसय :: वि [असंशय] १ संशय-रहित (बृह १) २ क्रिवि. निःसंदेह, नक्की (अभि ११०)

असंसार :: पुं [असंसार] संसार का अभाव, मोक्ष (जीव १)।

असंसि :: वि [अस्रंसिन्] अविनश्वर (कुमा)।

असक्क :: वि [अशक्य] जिसको न कर सके वह (सुपा ६५१)।

असक्क :: वि [अशक्त] असमर्थ (कुमा)।

असक्कय :: वि [असंस्कृत] संस्कार-रहित (पणह १, २)।

असक्कय :: वि [असत्कृत] सत्कार-रहित (पणह १, २)।

असक्कणिज्ज :: वि [अशकनीय] अशक्य (कुमा)।

असगाह, असग्गह, असग्गाह :: पुं [असद्‍ग्रह्] १ कदाग्रह (उप ६७२; सुपा १३४) २ अति- निबँन्ध, विशेष आग्रह (भवि)

असच्च :: न [असत्य] १ झुठ वचन (प्रासू १५१) २ वि. झुठा (पणह १, २)। °मोस न [°मृष्] झुठ से मिला हुआ सत्य (द्र २२)। °वाइ वि [°वादिन्] झुठ बोलनेवाला (सम ५०; पउम ११, ३४)। °मोस न [°मृष्] न सत्य और न झुठ ऐसा वचन (आचा)। °मोसा स्त्री [°मृषा] देखो अनन्तरोक्त अर्थं (पंच १)। °संध वि [°संध] १ असत्य- प्रतिज्ञ। २ असत्य अभिप्राय वाला (महा; पणह १, २)

असज्ज, असज्जमाण :: वकृ. [असजत्] संग न करता हुआ (आचा; उत्त १४)।

असज्झाइय :: वि [अस्वाध्यायिक] पठन-पाठन का प्रतिबन्धक कारण (पव २६८)।

असज्झाय :: पुं [अस्वाध्याय] अनध्याय, वह काल जिसमें पठन-पाठन का निषेध किया गया है (गच्छ ३, ३०)।

असड्‍ढ :: वि [अश्रद्ध] श्रद्धारहित (कुमा)।

असढ :: वि [अशठ] सरल, निष्कपट (सुपा ५५०)। °करण वि [°करण] निष्कपट भाव से अनुष्ठान करनेवाला (बृह ६)।

असण :: न [अशन] १ भोजन, खाना (निचु ११) २ जो खाया जाय वह, खाद्य पदार्थ (पव ४)

असण :: पुं [असन] १ बीजक नामक वृक्ष (पणण १; णाया १, १; औप; पाअ; कुमा)। २ न. क्षेपण, फेंकना (विसे २७९५)

असणि :: पुंस्त्री [अशनि] १ एक प्रकार की बिजली (सुज्ज २०) २ पुं. एक नरक-स्थान (देवेन्द्र २६)

असणि :: पुंस्त्री [अशनि] १ वज्र (पाअ) २ आकाश से गिरता अग्नि-कण (पणण १) ३ वज्र का अग्न (जी ६) ४ अग्नि (स ३३२) ५ अस्त्रविशेष (स ३८५)। °प्पह पुं [°प्रभ] रावण के मामा का नाम (से १२, ६१)। °मेह पुं [°मेघ] १ वह वर्षा जिसमें ओले गिरते हैं। २ अति भयकरं वर्षा, प्रलय-मेघ (भग ७, ६)। °वेग पुं [°वेग] विद्याघरों का एक राजा (पउम ६, १५७)

असणी :: स्त्री [अशनी] एक इन्द्राणी (ठा ४, १)।

असणी :: स्त्री [अशनी] जिह्वा, जीभ; 'अवखा- रासणी कम्माण मोहणं तह वयाण बंभं च' (सुख २, ४२)।

असण्ण :: वि [असंज्ञ] संज्ञारहित, अचेतन (लहुअ ९)।

असण्णि :: वि [असंज्ञिन्] १ संज्ञि-भिन्न, मनोज्ञान से रहित (जीव) (ठा २, २) २ सम्यग्दृष्टि भिन्न, जैनेतर (भग १, २)। °सुय न [°श्रुत] जैनेतर शास्त्र (णंदि)

असत्त :: वि [अशक्त] असमर्थं (सुर ३, २४४; १०, १७४)।

असत्त :: वि [असक्त] अनासक्त (आचा)।

असत्त :: न [असत्त्व] अभाव, असत्ता (णंदि)।

असत्ति :: स्त्री [अशक्ति] सामर्थ्य का अभाव। °मत वि [°मत्] असमर्थं, अशक्त (पउम ६९, ३९)।

असत्थ :: वि [अस्वस्थ] अतंदुरुस्त, बीमार (सुर ३, १२७)।

असत्थ :: न [अशस्त्र] १ शस्त्र-भिन्न। २ संयम, निर्दोष अनुष्ठान (आचा)

असद्द :: पुं [अशब्द] १ अकीर्त्ति, अपयश (गच्छ २) २ वि. शब्दरहित (बृह ३)

असद्ध :: वि [अश्रद्ध] श्रद्धारहित। स्त्री द्धी (उप पृ ३९४)।

असन्नि :: देखो असण्णि (भग; जी ४३)।

असबल :: वि [अशबल] १ अमिश्रित। २ निर्दोष, पवित्र (पणह २, १)

असब्भ :: वि [असभ्य] अशिष्ट, जंगली (स ६५०)। °भासि वि [भाषिन्] असभ्य- भापी (सुर ९, २१५)।

असब्भाव :: पुं [असद्भाव] १ यथार्थता का अभाव, झुठ (पिंड) २ वि. असत्य, अययार्थ (उत्त ३; औप)

असब्भावि :: वि [असद्भाविन्] झुठा, असत्य (महा)।

असब्भूय :: वि [असद्‍भूत] असत्य (भग)।

असम :: वि [असम] १ असमान, असाधारण (सुर ३, २४) २ एक, तीन, पांच आदि एकाई संख्या वाला, विषम। °सुर पुं [°शर] कामदेव (गउड)

असमवाइ :: न [असमवायिन्] नैयायिक और वैशेषिक मत प्रसिद्ध कारण-विशेष (विसे २०९९)।

असमजस :: वि [असमञ्जस] १ अव्यवस्थित, गैरव्याजबी (आचा; सुर २, १३१; सुपा ६२३; उप १०००) २ क्रिवि. अव्यवस्थित रूप से (पाअ)

असमिक्खिय :: वि [असमाक्षित] अना- लोचित, अविचारित (पणह १, २)। °कार वि [°कारिन्] साहसिक। °कारिया स्त्री [°कारिता] साहस कर्म (उप ७६८ टी)।

असरासय :: वि [दे] निर्दय, निष्ठुर हृदय वाला (दे १, ४०)।

असलील :: वि [अश्लील] असभ्य भाषा (मोह ८७)।

असव :: पुं [असु] प्राण, 'विउत्तासवो विअ ठिओ कंचि कालं' (स ३५७)।

असवण्ण :: वि [असवर्ण] असमान, असाधारण (सणण)।

असवार :: पुं [अश्ववार] घुड़सवार (धर्मवि ४१)।

असह :: वि [असह] १ असहिष्णु (कुमा; सुपा ६२०) २ असमर्थ (वव १)| ३ खेद करने वाला (पाअ)

असहण :: वि [असहन] असहिष्णु, क्रोधी (पाअ)।

असहाय :: वि [असहाय] १ सहायरहित (भग) २ एकाकी (बृह ४)

असहिज्ज :: वि [असाहाय्य] १ सहायता- रहित। २ सहायता का अनिच्छुक (उवा)

असहीण :: वि [अस्वाधीन] परतन्त्र, पराधीन (दस ८)।

असहु :: वि [असह] १ असहिष्णु (उव) २ असमर्थ, अशक्त (ओघ ३६; भा) ३ बीमार, ग्लान (निचु १) ४ सुकुमार, कोमल (ठा ३, ३)

असहेज्ज :: देखो असहिज्ज (भग)।

असागारिय :: वि [असागहारिक] गृहस्थों के आवागमन से रहित स्थान (वव ३)।

असाढभूइ :: पुं [अषाढभूति] एक जैन मुनि (पिंड ४७४)।

असाढय :: न [असाढक] तृण-विशेष (पणणँ १, पत्र ३३)।

असाय :: न [असात] दुःख, पीड़ा (पणह १, १); 'रागंधा इह जीवा, दुल्लहलोयम्मि गाढ़मणुरत्ता। जं वेइंति असायं, कत्तो तं हृंदि नरएवि' (सुर ८, ७६)।

°वेयणिज्ज :: न [°वेदनीय] दुःख का कारण- भूत कर्म (ठा २, ४)।

असार, असारय :: वि [असार, °क] निस्सार, सार- रहित (महा ; कुमा)।

असारा :: स्त्री [दे] कदली-वृक्ष, केला का पेड़ (दे १, १२)।

असालिय :: पुंस्त्री [दे] सर्प की एक जाति (सुअ २, ३, २४)।

असासय :: वि [अशाश्वत] अनित्य, विनश्वर (णाया १, १; गा २४७)।

असाहण :: न [असाधन] असिद्धि (सुर ४, २४८)।

असाहारण :: वि [असाधारण] अतुल्य, अनुपम (भग; दंस)।

असि :: पुं [असि] १ खड्‍ग, तलवार (पाअ) २ इस नाम की नरकपाल देवों की एक जाती (भग ३, ६) ३ स्त्री. बनारस की एक नदी का नाम (ती ३८)। °कुंड न [°कुण्ड] मथुरा का एक तीर्थ-स्थान (ती ७)। °घाय पुं [°घात] तलवार का घाव (पउम ५६, २५)। °चम्मपाय न [°चर्मपात्र] तलवार की म्यान, कोश (भग ३, ५)। °धारा स्त्री [°धारा] तलवार की धार (उत्त १९)। °धेणु, °धेणुआ स्त्री [°धेनु, °धेनुका] छुरी (गउड; पाअ)। °पत्त न [°पत्र] १ तलवार (विपा १, ६)। २ तलवार के जैसा तीक्ष्ण पत्र (भग ३, ६)। ३ तलवार की पतरी (जीव ३)। ४ पुं. नरकपाल देवों की एक जाति (सम २९)। °पुत्तगा स्त्री [°पुत्रिका] छुरी (उप पृ ३३४)। °मुट्ठि स्त्री [°मुष्टि] तलवार की मुठ (पाअ)। °रयण न [°रत्न] चक्रवर्ती राज की एक उत्तम तलवार (ठा ७)। °लट्ठि स्त्री [°यष्टि] खड्‍ग-लता, तलवार (विपा १, ३)। °वण न [°वन] खड्‍गाकार पत्ते वारे वृक्षों का जंगल (पणह १, १)। °वत्त देखो [°पत्त] (से ३, ४२)। °हर वि [°धर] तलवार-धारक, योद्धा (से ९, १८)। °हारा देखो °धारा (उव)

असिइ :: (अप) देखो असीइ (सण)।

असिण :: न [अशन] भोजन, खाना; 'अग्ग- पिंडं परिट्ठविज्जमाणं पेहाए, पुरा असिणा हत्रा अवहारा इवा' (आचा २, १, ५, १)।

असित्थ :: न [असिक्थ] आटा लगे हुए हाथ या बर्तन का कपड़े से छना हुआ धोवन (पडि)।

असिद्ध :: वि [असिद्ध] १ अनिष्पन्न। २ तर्कं- शास्त्र प्रसिद्ध दुष्ट हेतु (विसे २८२४)

असिय :: वि [अशित] भुक्त; खादित (पाअ; सुपा २१२)।

असिय :: वि [असित] १ कृष्ण, श्‍वेतरहित (पाअ) २ अशुभ (विसे) ३ अबद्ध, अ- यन्त्रित (सुअ १, २, १); 'सिया एगे अणउ- गच्छंति, असिया एगे अणुगच्छंति' (आचा)। °क्ख पुं [°क्षि्] यक्ष-विशेष (सण)

असिय :: न [दे] दात्र, दाँती (दे १, १४)।

असियव्व :: देखो अस = अश्।

असिलेसा :: स्त्री [अश्लेषा] नक्षत्र-विशेष (सम ११)।

असिलोग :: पुं [अश्लोक] अकीर्त्ति, अजस (सम १२)।

असिव :: न [अशिव] १ विनाश। २ असुख। ३ देवतादि कृत उपद्रव (ओघ ७) ४ मारी रोग (वव ४)

असिविण :: पुं [अस्वप्‍न] देव, देवता (प्रामा)।

असिव्व :: देखो असिय (वव ७; प्राप्त)।

असिसुई :: स्त्री [अशिश्वी] शिशुरहित स्त्री (प्राकृ २८)।

असिह :: वि [अशिख] शिखारहित (वव ४)।

अशीइ :: स्त्री [अशीति] संख्या-विशेष, अस्सी, ८० (सम ८८)। °म वि [°तम] अस्सीवाँ, ८० वाँ (पउम ८०, ७४)।

असीइग :: वि [अशीतिक] अस्सी वर्षं की उम्र वाला (तंदु १७)।

असीम :: वि [असीमन्] निस्सीम, 'असीमंत- भत्तिराएण' (उफ ७२८ टी)।

असील :: वि [अशील] १ दुःशील, असदा- चारी (पणह १, २) २ न. असदाचार, अब्रह्मचर्य। °मंत वि [°वत्] १ अब्रह्मचारी (ओघ ७७७)। २ असंयत (सुअ १, ७)

असु :: पुं. ब. [असु] १ प्राण (स ३५३) २ न. चित्त। ३ ताप (प्राप्त; वृष ५१)

असु :: दोख अंसु (प्राप्त)।

असुइ :: वि [अशुचि] १ अपवित्र, अस्वच्छ, मलिन (औप; वव ३) २ न. अमेध्य, विष्ठा (ठा ९; प्रासू १६९)

असुइ :: वि [अश्रुति] शास्त्रश्रवण-रहित (भग ७, ६)।

असुईकय :: वि [अशुचीकृत] अपवित्र किया हुआ (उप ७२८ टी)।

असुग :: पुं [असुक] देखो असु = असु (हे १, १७७)।

असुज्झंत :: वि [अदृश्यमान] नहीं दिखाता हुआ, 'अन्‍नंपि जं असुज्झंतं। भुजंतएण रत्तिं' (पउम १०३, २५)।

असुणि :: स्त्री [अश्रोतृ] न सुननेवाला, 'अलि- यपयंपिरि अणिमित्तकोवणे असुणि सुणसु मह वयणं' (वज्जा ७२)।

असुद्ध :: वि [अशुद्ध] १ अस्वच्छ, मलिन, २ न. मैला, अशुचि। °विसोहय पुं [°विशो- धक] भंगी, मेहतर (सुर १६, १९५)

असुभ :: देखो असुह = अशुभ (सम ६७; भग)।

असुय :: वि [अश्रुत] न सुना हुआ (ठा ४, ४)। °णिस्सिय न [°निश्रित] शास्त्र-श्रवण के बिना ही होनेवाली बुद्धि — ज्ञान (णंदि)। °पुव्व वि [°पूर्व] पहले कभी नहीं सुना हुआ (महा; णाया १, १; पउम ६५, १४)।

असुय :: वि [असुत] पुत्ररहित (उत्त २)।

असुर :: पुं [असुर] १ दैत्य, दानव (पाअ) २ देवजाति-विशेष, भवनपति और व्यन्तर देवों की जाति (पणङ १, ४) ३ दास-स्था- नीय देव (ओउ ३९)। °कुमारं पुं [°कुमार] भवनपति दोवों की एक अवान्तर जाति (ठा १, १; महा)। °राय पुं [°राज] असुरों का इन्द्र (पि ४००)। °वंदि पुं [°बन्दिन्] राक्षस (से ९; ५०)

असुरिदं :: पुं [असुरेन्द्र] असुरों का राजा, इन्द्र-विशेष (णाया १, ८; सुपा ७७)।

असुह :: न [अशुभ] १ अमंगल, अनिष्ट (सुर ४, १९३) २ पाप-कर्मं (ठा ४, ४) ३ वि. खराब, असुन्दर (जीव १; कुमा)। °णाम न [°नामन्] अशुभ फल देनेवाला कर्म-विशेष (स ६७)

असुह :: न [असुख] दुःख (ठा ३, ३)।

असुअ :: सक [असूय्] असूया करना। असू- एहि (मै ७)।

असूया :: स्त्री [असूचा] १ सूचना का अभाव। २ दूसरे के दोषों को न कह कर अपना ही दोष कहना (निचू १०)

असूया :: स्त्री [असूया] असूया, असहिष्णूता (दंस)।

असूरिय :: वि [असूर्य] १ सूर्यरहित, अन्ध- कारमय स्थान। २ पुं. नरक-स्थान (सुअ १, ५, १)

असेव्व :: देखो असिव (प्राप्त)।

असेव्व :: वि [असेव्य] सेवा के अयोग्य (गउड)।

असेस :: वि [अशेष] निःशेष, सर्वं (प्राप)।

असोअ, असोग :: पुं [अशोक] १ देव-विशेष (राय ८१) २ पुंन. एक देवविमान (देवेन्द्र १४२) ३ शक्र आदि इन्द्रों का एक आभाव्य विमान (देवेन्द्र २६३)। °वडिंसय पुंन [°वतंसक] सौधर्म देवलोक का एक विमान (राय ५९)

असोग :: पुं [अशोक] १ सुप्रसिद्ध वृक्ष-विशेष (औप) २ महाग्रह-विशेष (ठा २, ३)। हरा रंग (राय) ४ भगवान्, मल्लिनाथ का चैत्य-वृक्ष (सम १५२) ५ देव-विशेष (जीव ३) ६ न. तीर्थ-विशेष (ती १०) ७ यक्ष-विशेष (विपा १, ३) ८ वि. शोक रहित। °चंद पुं [°चन्द्र] १ राजा श्रेणिक का पुत्र, राजा कोणिक (आवम)। २ एक प्रसिद्ध जैनाचार्य (सार्ध ७७)। °ललिय पुं [°ललित] चतुर्थ बलदेव का पूर्वं-जन्मीय नाम (सम १५३)। °वण न [°वन] अशोक वृक्षों वाला वल (भग)। °वणिया स्त्री [°वनिका] अशोक वृक्ष वाला बगीचा (णाया १, १६)। °सिरि पुं [°श्री] इस नाम का एक प्रख्यात राजा, सम्राट् अशोक (विसे ८६२)

असोगा :: स्त्री [अशोका] १ इस नाम की एक इन्द्राणी (ठा ४, १) २ भगवान् श्री शीतल- नाथ की शासनदेवी (पव २७) ३ एक नगीर का नाम (पउम २०, १८९)

असोभण :: वि [अशोभन] असुन्दर, खराब (पउम ९९, १९)।

असोय :: देखो असोग (भग; महा; रंभा)।

असोय :: पुं [अश्‍वयुक्] आश्विन् मास (सम २९)।

असोय :: वि [अशौच] १ शौचरहित (महा) २ न. शौच का अभाव, अशुचिता। °वाइ वि [°वादिन्] अशौच को ही माननेवाला (ओघ ३१८)

असोयणया :: स्त्री [अशोचनता] शेोक का अभाव (पक्खि)।

असोया :: देखो असोगा (टा २, ३; संति ९)।

असोल्लिय :: वि [अपक्क] कच्चा (उचा)।

असोहि :: स्त्री [अशोधि] १ अशुद्धि। २ विरा- धना (ओघ ७८८)। °ठाण न [°स्थान] १ पाप-कर्मं। २ अशुद्धि स्थान। ३ दुर्जन का संसर्गं। ४ अनायतन (ओघ ७६३)

अस्स :: न [आस्य] मुख, मुँह (गा ९८६)।

अस्स :: वि [अस्व] १ द्रव्यरहित, निर्धंन। २ २ निर्ग्रन्थ, साधु, मुनि (आचा)

अस्स :: पुं [अश्‍व] १ घोड़ा (उप ७६८ टी) २ अश्‍विनी नक्षत्र का अधिष्ठायक देव (ठा २, ३) ३ ऋषि-विशेष (जं ७)। °कण्ण पुं [°कर्ण] १ एक अन्तर्द्वीप। २ इस अन्त- र्द्वीप का निवासी (णंदि)। °कण्णी स्त्री [°कर्णी] वनस्पति-विशेष (पणण १)। करण न [°करण] जहाँ घोड़ा रखने में आता हो वह स्थान, अस्तबल (आचा २, १०, १४)। °ग्गीव पुं [°ग्रीव] पहले प्रति- वासुदेव का नाम (सम १५३)। °तर पुंस्त्री [°तर] खच्चड़ (पणण १)। °मुह पुं [°मुख] १-२ इस नाम का एक अन्तर्द्वीप और उसके निवासी (णंदि; पणण १)। °मेह पुं [°मेघ] यज्ञ-विशेष, जिसमें अश्‍व मारा जाता है (अणु)। °सेण पुं [°सेन] १ एक प्रसिद्ध राजा, भगवान् पार्श्‍वनाथ का पिता (पव ११)। २ एक महाग्रह का नाम (चन्द २०)। °यर पुं [°दर] विद्याधर वंश के एक राजा का नाम (पउम ५, ४२)

अस्स :: न [अस्र] १ अश्रु, आँसु। २ रुधिर, खून (प्राकृ २६)

अस्संख :: वि [असंख्य] संख्या-रहित (उप १७)।

अस्संगिअ :: वि [दे] आसक्त (षड्)।

अस्संघयणि :: वि [असंहननिन्] संहनन रहित, किसी प्रकार के शारीरिक बन्ध से रहित (भग)।

अस्संजम :: देखो असंजम (उव)।

अस्संजय :: वि [अस्वयत] १ गुरु की आज्ञा- नुसार चलनेवाला, अस्वच्छंदी (श्रा ३१)

अस्संजय :: देखो असंजय (उव)।

अस्संदम :: पुं [अश्वन्दम] अश्व-पालक (सुपा ६४५)।

अस्सच्च :: देखो असच्च; 'सुरिणो हवउ वयण- मस्सच्चं' (उप १४९ टी)।

अस्सण्णि :: देखो असण्णि (विसे ५१६)।

अस्सत्थ :: पुं [अश्वत्थ] वृक्ष-विशेष, पीपल (नाट)।

अस्सत्थ :: वि [अस्वत्थ] रोगी, बीमार (सुर ३, १५१; माल ६५)।

अस्सन्नि :: देखो असण्णि (सुर १४, ६६; कम्म ४, २; ३)।

अस्सम :: पुं [आश्रम] १ स्थान, जगह। २ ऋषियों का स्थान (अभि ६६; स्वप्‍न २५)

अस्समिअ :: वि [अश्रमित] श्रमरहित; अन- भ्यासी (भग)।

अस्सवार :: देखो असवार (सम्मत्त १४२)।

अस्सस :: अक [आ + श्‍वत्] आशअवासन लेना। हेकृ. अस्ससिदुं (शौ) (अभि १२०)।

अस्साइय :: वि [आस्वादिन] जिसका आस्वादन किया गया हो वह (दे)।

अस्साएमाण :: देखो अस्साय = आस्वादय्।

अस्साद :: सक [आ + सादय्] प्राप्त करना। अस्सादेंति; अस्सादेस्सामो भग १५)।

अस्साद :: सक [आ + स्वादय्] आस्वादन करना।

अस्सादण :: देखो अस्सायण (सुज्ज १०, १६)।

अस्सादिय :: वि [आसादित] प्राप्त किया हुआ (भग १५)।

अस्साय :: देखो अस्साद =आ + सादय्।

अस्साय :: देखो अस्साद = आ+ स्वादय्। वकृ. अस्साएमाण (भग १२, १)। कृ. अस्सा- यणिज्ज (णाया १, १२)।

अस्साय :: देखो असाय (कम्म २, ७; भग)।

अस्सायण :: पुं [आश्‍वायन] १ अश्व ऋषि का संतान (जं ७) २ अश्विनी नक्षत्र का गोत्र (इक)

अस्सावि :: वि [आस्राविन्] झरना हुआ, टप- कता हुआ, सच्छिद्र; 'जहा अस्साविणिं नावं जाइअंधो दुरूहए' (सुअ १, १, २)।

अस्सास :: सक [आ+ श्वासय्] आश्वासन देना, दिलासा देना। अस्सासअदि (शौ) (पि ४९०)। अस्सासि (उत्त २, ४०; पि ४६१)।

अस्सासण :: पुं [आश्‍वासन] एक महाग्रह (सुज्ज २०)।

अस्सि :: स्त्री [अश्रि] १ कोण, घर आदि का कोना (ठा ६) २ तलवार आदि का अग्र- भाग — धार (उप पृ ९९)

अस्सि :: पुं [अश्विन्] अश्विनी नक्षत्र का अधि- ष्ठायक देव (ठा २, २)।

अस्सिणी :: स्त्री [अश्विनी] इस नाम का एक नक्षत्र (सम ८)।

अस्सिय :: वि [आश्रित] आश्रय-प्राप्‍त, 'विराग- मेगमस्सिओ' (वसु; ठा ७; संथा १८)।

अस्सु :: पुंन [अश्रु] आँसु, 'अस्सू' (संक्षि १७)।

अस्सु :: (शौ) न [अश्रु] आँसु (अभि ५९; स्वप्‍न ८५)।

अस्सुंक :: वि [अशुक्ल] जिसकी चुंगी या फीस माफ की गई हो वह (उप ५९७ टी)।

अस्सुद :: (शौ) देखो असुय = अश्रुत (अभि १९३)।

अस्सुय :: वि [अस्मृत] याद नहीं किया हुआ (भग)।

अस्सेसा :: देखो असिलेसा (सम १७; विसे ३४०८)।

अस्सोई :: स्त्री [आश्वयुजी] आश्विन् मास की पूर्णिमा (चंद १०)।

अस्सोई :: स्त्री [आश्वयुजी] आश्विन मास की अमाबस (सुज्ज १०, ६ टी) देखो आसोया।

अस्सोक्वंता :: स्त्री [अश्वोत्क्रान्ता] संगीत-शास्त्र प्रसिद्ध मध्यम ग्राम की पांचवीं मूर्च्छना (ठा ७)।

अस्सोत्थ :: देखो अस्सत्थ (पि ७४; १५२; ३०९)।

अस्सोयव्व :: वि [अश्रोतव्य] सुनने के अयोग्य (सुर १४, २)।

अह :: अ [अथ] इन अर्थों का सूचक अव्यय — १ अब, बाद (स्वप्‍न ४३; दं ३१; कुमा) २ अथवा, और; 'छिज्जउ सीसं अह होउ बंधणं चयउ सव्वहा लच्छी। पडिवन्नपालणे सुपुरिसाण जँ होइ तं होउ।।' (प्रासू ३) ३ मंगल (कुमा) ४ प्रश्‍न। ५ समुच्चय। ६ प्रतिवचन, उत्तर (बृह १) ७ विशेष (ठा ७) ८ यथार्थता, वास्तविकता (विसे १२७९) ९ पूर्वपक्ष (विसे १७८३) १०-११ वाक्य की शोभा बढ़ाने के लिए और पाद-पूर्त्ति में भी इसका प्रयोग होता है (सुअ १, ७; पंचा १९)

अह :: न [अहन्] दिवस, दिन (श्रा १४; पाअ)।

अह :: अ [अधम्] नीचे (सुर २, ३८)। °लोग पुं [°लोक] पाताल-लोक (सुपा ४०)। °त्थ वि [°स्थ] नीचे रहा हुआ, निम्‍न-स्थित (पउम १०२, ६५)।

अह :: स [अदस्] यह, वह (पाअ)।

अह :: न [दे] दुःख (दे १, ६)।

अह :: न [अघ] पाप (पाअ)।

अह° :: देखो अहा (हे १, २४५; कुमा)। °क्कम, °क्कमसो ओ [°क्रम] क्रम के अनुसार, अनुक्रम से ओघ ५ भा; स ६)। °क्खाय, °खाय न ख्यात निर्दोष चरित्र, परिपूर्ण संयम (ठा ५, २; नव २६; कुमा)। °क्खायसंजय वि [°ख्यातसंयत] परिपूर्ण संयम वाला (भग २५, ७)। °च्छंद देखो अहाछंद; (सं ९ °त्थ वि [°स्थ] ठीक-ठीक रहा हुआ, यथास्थित (ठा ५, ३)। °त्थ वि [°र्थ] स्तविक (ठा ५, ३)। °प्पहाण अ [°प्रधान] प्रधान के हिसाब से (भग १५)। हिइं अ [अथकिम्] स्वीकार-सूचक अव्यय — हाँ, अच्छा (नाट; प्रयौ ५)।

अहंकार :: पुं [अहंकार] अभिमान, गर्व (सुअ १, ९; स्वप्‍न ८२)।

अहंकारि :: वि [अहंकारिन्] अभिमानी, गर्विष्ट (गउड)।

अहिंणिस :: न [अहर्निश] रात-दिन, सर्वदा (पिंग)।

अहकम्म :: देखो अहेकम्म (पिंड १३५)।

अहण :: वि [अधन] निर्धन, धनरहित (विसे २८१२)।

अहण्णिस :: न [अहर्निश] रात-दिन, निरन्तर (नाट)।

अहत्ता :: अ [अधस्तात्] नीचे (भग)।

अहन्न :: वि [अधन्य] अप्रशस्य, हतभाग्य (सुर २, ३७)।

अहन्निस :: देखो अहण्णिस (सुपा ४६२)।

अहम :: वि [अधम] अधम, नीच (कुमा)।

अहमंति :: वि [अहमन्तिम्] अभिमानी, गर्विष्ट (ठ १०)।

अहमहमिआ, अहमहमिगया, अहमहमिगा :: स्त्री [अहमहमिका] मैं इससे पहले हो जाऊं ऐसी चेष्टा, अत्युत्कण्ठ (गा ५८०; सुपा ५४; १३२; १४८)।

अहमिंद :: पु [अहमिन्द्र] १ उत्तम-श्रेणीय पूर्ण स्वाधीन देवजाति विशेष, ग्रैवेयक और अनुत्तर विमान के निवासी देव (इक) २ अपने को इन्द्र समझनेवाला, गर्विष्ट; 'संपइ पुण रायणो नरिंद! सव्वेवि अहिमिदा' (सुर १, १२९)

अहम्म :: देखो अधम्म (सुअ १, १, २; भग; नव ६; सुर २, ४४; सुपा २५८; प्रासू १३६)।

अहम्म :: वि [अधर्म्य] धर्मच्युत, धर्मरहित, गैरव्याजबी (सण)।

अहम्माणि :: वि [अहम्मानिम्] अभिमानी (आवम)।

अहम्मि :: वि [अधर्मिन्] धर्मे रहित, पापी (सुपा १७२)।

अहम्मिट्ठ :: देखो अधम्मिट्ठ (भग १२, २; (राय)।

अहाम्मय :: वि [अधार्मिक] अधर्मी, पापी (विपा १, १)।

अहय :: वि [अहत] १ अनुबद्ध, अव्यवच्छिन्न (ठा ८, पत्र ४१८) २ अक्षत, अखण्डित (सुअ २, २) ३ जो दूसरी तरफ लिया गया हो (चंद १९) ४ नया, नूतन (भग ८, ६)

अहर :: वि [दे] अशक्त, असमर्थ (दे १, १७)।

अहर :: पुं [अधर] १ होठ, ओष्ठ (णंदि) २ वि. नीचे का, नीचला (पणह १, ३) ३ नीच, अधम (पणह १, २) ४ दूसरा, अन्य (प्रामा)। °गइ स्त्री [°गति] अघोगति, दुंर्गंति, नीच गति; 'अहरगइं निंति कम्माइं' (पिंड)

अहरिय :: वि [अधरित] तिरस्कृत (सुपा ४७)।

अहरी :: स्त्री [अधरी] पेषण-शिला, जिस पर मसाला वगैरह पीसा जाता है वह पत्थर, सिलवट (उवा)। °लोट्ठ पुं [°लोष्ट] जिससे पीसा जाता है वह पत्थर, लोढ़ा (उवा)।

अहरीकय :: वि [अधरीकृत] तिरस्कृत, अव- गणित (सुपा ४)।

अहरीभूय :: वि [अधरीभूत] तिरस्कृत, 'उयरेण धरंतीए नररयणमिमं महप्पहं देवि ! अहरीभूयमसेसं, जयंपि तुह रयणगब्भाए' (सुपा ३५)।

अहरुट्ठ :: पुंन [अधरोष्ठ] नीचे का होठ (पणह १, ३; हे १; ८४; षड्)।

अहरेम :: देखो अहिरेम। अहरेमइ (हे ४, १६९)।

अहरेमिअ :: वि [पूरित] पूरा किया हुआ (कुमा)।

अहल :: वि [अफल] निष्फल, निरर्थंक (प्रासू १३५; रंभा)।

अहलंद :: न [यथालन्द] पाँच रात का समय (पव ७०)।

अहलंदि :: देखो अहालंदि (पव ७०)।

अहव :: देखो अहवा (हे १, ६७)।

अहवइ :: (अप) देखो अहवा (कुमा)

अहवण, अहवा :: अ [अथवा] १ वाक्यालंकार में प्रयुक्त किया जाता अव्यय (अणु; सुअ २, २) २ या, अथवा (बह १; निचु १; पंचा ३; हे १, ६७)

अहव्व :: देखो अभव्व (गा ३९०)।

अहव्वण :: पुं [अथर्वन्] चौथा वेद-शास्त्र (औप)।

अहव्वा :: स्त्री [दे] असती, कुलटा स्त्री (दे १, १८)।

अहह :: अ [अहह] इन अर्थँ का सूचक अव्यय--१ आमन्त्रण। २ खेद। ३ आश्चर्यं। ४ दुःख। ५ अधिक्य, प्रकर्ष (हे २, २१७; श्रा १४; कप्पू; गा ९५६)

अहा° :: अ [यथा] जैसे, माफिक, अनुसार (हे १, २४५)। °छन्द वि [°च्छन्द] १ स्वच्छन्दी, स्वैरीा (उप ८३३ टी) २ न. मरजी के अनुसार (वव ५)। °जाय वि [°जात] १ नग्र, प्रावरण -रहित (हे १, १४५६) २ न. जन्म के अनुसार । ३ जैन साधुओं में दीक्षा काल के परिमाण के अनुसार किया जाता वन्दन — नमस्कार (धर्म २)। °णुपुव्वी स्त्री [नुपूर्बी] यथाक्रम, अनुक्रम (णाया १, १; पउग १, ८)। °तच्च न [°तत्त्व] तत्त्व के अनुसार (भग २, १)। °तच्च न [°तथ्य] सत्य-सत्य (सम १६)। °पडिरूव वि [°प्रतिरूप] १ उचित, योग्य (औप) २ /?/वि. यथायोग्य (विपा १, १)। °पवत्त वि [°प्रवृतत] १ पूर्वं की तरह ही प्रवृत्त, अपरिवर्त्तित (णाया १, ५) २ न. आत्मा का परिणाम-विशेष (स ४७)। °पवित्तिकरण न [°प्रवृत्तिकरण] आत्मा का परिणाम-विशेष (कम्म ५)। °बायर वि [°बादर] नित्सार, सार-रहित (णाया १, १)। °भूय वि [°भूत] तात्त्विक, वास्तविक (ठा १, १)। °राइणिय, °रायणिय न [°रात्निक] यथा- ज्येष्ठ, बडे के क्रम से (णाया १, १; आचा)। °रिय न [ऋतु] सरलता के अनुसार (आचा)। °रिह न [°र्ह] यथोचित (ठा २, १)। २ वि. उचित, योग्य (धर्म १)। °रीय न [°रीत] १ रीति के अनुसार। २ स्वभाव के माफिक (भग ५, २)। °लंद पुं [°लन्द] काल का एक परिमाण, पीना से भींजा हुआ हाथ जितने समय में सुख जाय उतना समय कप्प)। °वगास, न [°वकाश] अवकाश के अनुसार (सुअ २, ३)। °वच्च वि [°पत्य] पुत्र-स्थानीय (भग ३, ७)। °संथडृ वि [°संस्तृत] शयन के योग्य (आचा)। °संवि- भाग पुं [°संविभाग] साधु को दान देना (उवा)। °सच्च न [°सत्य] वास्तविकता, सचाई (आचा)। °सत्ति न [°शक्ति] शक्ति के अनुसार (पंसु ४)। °सुत्त न [°सुत्र] आगम के अनुसार (सम ७७)। °सुह न [°सुख] इच्छानुसार (णाया १, १; भग)। °सुहुम वि [°सूक्ष्म] सारभूत (भग ३, १)। देखो अह°।

अहालंद :: वि [यथालन्द] यथानुज्ञात (काल), इच्छानुसार (समय) (आचा २, ७, १, २)।

अहालंदि :: पुं [यथालन्दिन्] 'यथालन्द' अनु- ष्ठान करनेवाला मुनि (पव ७०)।

अहासंखड :: वि [दे] निष्काम्प, निश्चल (निचु २)।

अहासल :: वि [अहास्य] हास्य-रहित (सुपा ६१०)।

अहाह :: अ [अहाह] देखो अहह (हे २, २१७)।

अहि :: देखो अभि (गउड; पाअ ; पंचव ४)।

अहि :: अ [अधि] इन अर्थोँ का सूचक अव्यय — १ आधिक्य, विशेषता; 'अहिगंध, अहिमास'। २ अधिकार, सत्ता; 'अहिगय'। ३ एश्वर्य, 'अहिट्ठाण'। ४ ऊँचा, उपर 'अहिट्ठा'।

अहि :: पुं [अहि] १ सर्प, साँप (पणण १; प्रासू १९; ३९; १०५) २ शेष नाम (पिंग)। °च्छत्ता स्त्री [°च्छत्रा] नगरी-विशेष (णाया १, १६; ती ७)। °मड पुंन [°मृतक] , साँप का मुर्दा (णाया १, ९)। °वइ पुं [°पति] शेष नाग (अच्चु ६०)। °विछिअ पुं [°वृश्चिक] सर्प के मुत्र से उत्पन्न होना वाली वृश्चिक जाति (कुमा)

अहिअल :: न [दे] क्रोध, गुस्सा (दे १, ३६; षड्)।

अहिआअ :: न [अभिजात] कुलीनता, खान- दानी (गा ३८)।

अहिआइ :: स्त्री [अभिजाति] कुलीनता (षड्)।

अहिआर :: पुं [दे] लोक-यात्रा, जीवन-निर्वाह (दे १, २९)।

अहिउत्त :: वि [दे] व्याप्त, खचित (गउड)।

अहिउत्त :: वि [अभियुक्त] १ बिद्वान्, पण्डित। २ उद्यत, उद्योगी (पाअ) ३ शत्रु से घिरा हुआ (वेणी १२३ टी)

अहिऊर :: सक [अभि + पूरय्] पूर्ण करना, व्याप्त करना। कर्मं, अहिऊरिज्जंति (गउड)।

अहिऊल :: सक [दह्] जलाना, दहन करना। अभिऊलइ (हे ४, २०८; षड्; कुमा)।

अहिओय :: पुं [अभियोग] १ संबन्ध (गउड) २ दोषारपण (स २२६)। देखो अभिओअ (भवि)

अहिंद :: पुं [अहीन्द्र] १ सर्पो का राजा, शेष नाग (अच्चु १) २ श्रेष्ठ सर्प (कुमा)। °वुर न [°पुर] वासुकि-नगर। °वुरणाह पुं [°पुरनाथ] विष्णु, अच्युत (अच्चु २६)

अहसग :: वि [अहिंसक] हिंसा न करने वाला (ओघ ७४७)।

अहिंसण :: न [अहिंसन] अहिंसा (धर्म १)।

अहिंसय :: देखो अहिंसग (पणह २, १)।

अहिंसा :: स्त्री [अहिंसा] दूसरे को किसी प्रकार से दुःख न देना (निचु २; धर्म ३; सुअ १, ११)।

अहिंसिय :: वि [अहिंसित] अमारित, अपी- डिंत (सुअ १, १, ४)।

अहिकंख :: देखो अभिकंख वकृ. अहिकंखंत (पंचव ४)।

अहिकंखिर :: वि [अभिकांक्षिन्] अभिलाषी, इच्छुक (सण)।

अहिकखि :: देखो अहिकंखिर (सुअ १, १२, २२)।

अहिकय :: वि [अधिकृत] जिसका अधिकार चलता हो बह, प्रस्तुत (विसे १५८)।

अहिकरण :: देखो अहिगरण (निचु ४)।

अहिकरणी :: /?/देखो अहिगरणी (ठा ८)।

अहिकार :: देखो अहिगार (उत्त १४, १७)।

अहिकारि :: देखो अहिगारि (रंभा)।

अहिकिच्च :: अ [अधिकृत्य] अधिकार कर, उद्देश्य कर (आचू १)।

अहिक्खण :: न [दे] उपालंभ, जलहना (दे १, ३५)।

अहिक्खित्त :: वि [अधिक्षिप्त] १ तिरस्कृत। २ निन्दित। ३ स्थापित। ४ परित्यक्त। ५ क्षिप्त (नाट)

अहिक्खिव :: सक [अधि + क्षिप्] १ तिरस्कार करना। २ फेंकना। ३ निन्दना। ४ स्थापित करना। ५ छोड़ देना। अहिक्खि- वइ (उव)। अहिक्खिवाहि (स ३२६)। वकृ. अहिक्खिवंत (पउम ६५, ४४)

अहिक्खेव :: पुं [अधिक्षेप] १ तिरस्कार। २ स्थापन। ३ प्रेरणा (नाट)

अहिखिव :: देखो अहिक्खिव वकृ. अहिखिवंत (स ५७)।

अहिग :: देखो अहिय = अधिक (विसे १९४३ टी)।

अहिखीर :: सक [दे] १ पकड़ना। २ आघात करना। अहिखीरइ (भवि)

अहिगंध :: वि [अधिगन्ध] अधिक गन्ध वाला (गउड)।

अहिगम :: सक [अधि +गम्] १ जानना। २ निर्णय करना। ३ प्राप्त करना। कृ. अहिगम्म (सम्म १६७)

अहिगम :: सक [अभि +गम्] १ सामने जाना २ आदर करना। कृ. अहिगम्म (सण)

अहिगम :: पुं [अधिगम] १ ज्ञान (विसे ९०८)। 'जीवाईणमहिगमो मिच्छत्तस्स खओवसमभावे' (धर्म २) २ उपलम्भस, प्राप्ति (दे ७, १४) ३ गुरु आदि का उपदेश (विसे २६७५) ४ सेवा, भक्ति (सम ५१) ५ न. गुरु आदि के उपदेश से होनेवाली सद्धर्म-प्राप्ति — सम्य- क्त्व (सुपा ६४८)। °रुइ स्त्री [°रुचि] १ सम्यक्त्व का एक भेद। २ सम्यक्त्व वाला (पव १४५)

अहिगम :: देखो अभिगम (औप; से ८, ३३; गउड)।

अहिगमण :: न [अधिगमन] १ ज्ञान। २ निर्णंय। ३ प्राप्ति, उपलम्भ (विसे)

अहिगमय :: वि [अधिगमक] जाननेवाला, बतलानेवाला (विसे ५०३)।

अहिगमिय :: वि [अधिगत] १ ज्ञात। २ निश्चित (सुर १, १८१)

अहिगम्म :: देखो अहिगम = अधि + गम्।

अहिगम्म :: देखो अहिगम = अभि + गम्।

अहिगय :: वि [अधिकृत] १ प्रस्तुत (रयण ३९) २ न. प्रस्ताव, प्रसंग (राज)

अहिगय :: वि [अधिगत] १ उपलब्ध, प्राप्त (उत्त १०) २ ज्ञात (दे ६, १४८) ३ पुं. गीतार्थ मुनि, शास्त्राभिज्ञ साधु (वव १)

अहिगर :: पुं [दे] अजगर (जीव १)।

अहिगरण :: पुंन [अधिकरण] १ युद्ध, लड़ाई (उप पृ २६८) २ असंयम, पाप-कर्म से अनिवृत्ति (उप ८७२) ३ आत्म-भिन्न बाह्य वस्तु (ठा २, १) ४ पाप जनक क्रिया (णाया १, ५) ५ आधार (विसे ८४) ६ भेंट, उपहार (बृह १) ७ कलह, विवाद (बृह १) ८ हिंसा का उपकरण, 'मोहंधेण य रइयं हलउक्खलमुसलपमुहमहिगरणं' (विवे ९१)। °कड़, °कर वि [°कर] कलहकारक (सुअ १, २, २; आचा)। °किरिया स्त्री [°क्रिया] पाप-जनक कृति, दुर्गति में ले जानेवाली क्रिया (पणह १, २)। °सिद्धंत पुं [°सिद्धान्त] आनुषंगिक सिद्धि करनेवाला सिद्धान्त (सुअ १, १२)

अहिगरणी :: स्त्री [अधिकरणी] लोहार का एक उपकरण (भग १६, १)। °खोडि स्त्री [°खोटि] जिसपर अधिकरणी रखी जाती है वह काष्ठ (भग १६, १)।

अहिगरणिया, अहिगरणीया :: स्त्री [अधिकरणिकी] देखो अहिगरण-किरिया (सम १०; ठा २, १; नव १७)।

अहिगरी :: [दे] अजगरिन, स्त्री अजगर (जीव २)।

अहिगार :: पुं [अधिकार] १ वैभव, संपत्ति; 'नियअहिगारणुरूवं जम्मणमहिमं विहिस्सामो' (सुपा ४१) २ हक. सत्ता (सुपा ३५०) ३ प्रस्ताव, प्रसंग (विसे ४८७) ४ ग्रन्थ- विभाग (वसु) ५ योग्यता, पात्रता (प्रासू १३५)

अहिगारि, अहिगारिय :: वि [अधिकारिन्] १ अमल- दार, राज-नियुक्त सत्तावीश; 'ता तप्पुराहिगारी समागओ तत्थ तम्मि खणे' (सुपा ३५०; श्रा २७) २ पात्र, योग्य (प्रासू १३५; सण)

अहिगिच्च :: अ [अधिकृत्य] अधिकार करके (उवर ३९; ९९)।

अहिघाय :: पुं [अभिघात] आस्फालन, आघात (गउड)।

अहिछत्ता :: स्त्री [अहिच्छत्रा] नगरी-विशेष, कुरुजंगल देख की प्राचीन राजधानी (सिरि ७८)।

अहिजाइ :: स्त्री [अभिजाति] कुलीनता (प्राप्त)।

अहिजाण :: सक [अभि + ज्ञा] पहिचानना। भवि. अहिजाणिस्सदि (शौ) (पि ५३४)।

अहिजाय :: वि [अभिघात] कुलीन (भग ९, ३३)।

अहिजुंज :: देखो अभिजुंज। संकृ. अहिजुंजिय (भग)।

अहिजुत्त :: देखो अभिजुत्त (प्रबो ८४)।

अहिज्ज :: सक [अधि + इ] पढ़ना, अभ्यास करना। अहिज्जइ (अंत २)। वकृ. अहिज्जंत, अहिज्जमाण (उप १९९ टी; उवा)। संकृ. अहिज्जित्ता, अहित्ता (उत्त १; सुअ १स, १२)। हेकृ. अहिज्जिंउं (दस ४)।

अहिज्ज :: वि [अधिज्य] धनुष की डोरी पर चड़ाया हुआ (बाण) (दे ७, ९२)।

अहिज्ज, अहिज्जग :: वि [अभिज्ञ] जानकार, निपुण (पि २९६; प्रारू; दस)।

अहिज्जण :: न [अध्ययन] पठन, अभ्यास (विसे ७ टी)।

अहिज्जाण :: (शौ) देखो अहिण्णाण (प्राकृ ८७)।

अहिज्जाविय :: वि [अध्यापित] पाठित, पढ़ाया हुआ (उप पृ ३३)।

अहिज्जिय :: वि [अधीत] पठित, अभ्यस्त (सुर ८, १२१; उप ५३० टी)।

अहिज्झिय :: वि [अभिध्यित] लोभ-रहित, अलुब्ध (भग ६, ३)।

अहिट्ठ :: सक [अधि + ष्ठा] करना। अङिट्ठए (दस ९, ४, २)।

अहिट्ठग :: वि [अधिष्ठक] अधिष्ठाता, विधायक, कारक; 'नासंदीपलिअंकेसु, न निसिज्जा न पीढए। निग्गंथापडिलेहाए, बुद्धवुत्तमहिट्ठगा' (दस ६, ५५)।

अहिट्ठण :: देखो अहिट्ठाण (पंचा ७, ३३)।

अहिट्ठा :: सक [अ धि + स्था] १ ऊपर चलना। २ आश्रय लेना। ३ रहना, निवास करना। ४ शासन करना। ५ करना। ६ हराना। ७ आक्रमण करना। ८ ऊपर चड़ बैठना। ९ वश करना। अहिट्ठेइ (निचु ५); 'ता अहि- ट्ठेहि इमं रज्जं' (स २०४)। अहिट्ठेज्जा (पि २५२; ४६६)। वकृ. अहिट्ठंत (निचु ५)। कबकृ. अहिट्ठिज्जमाण (ठा ४, १)। संकृ. अहिट्ठेइत्ता (निचु १२)। हेकृ. अहिट्ठित्तए (बृह ३)

अहिट्ठाण :: न [अधिष्ठान] १ बैठना (निचु ५) २ आश्रयण (सुअ १, २, ३) ३ मालिक बनना (आचा) ४ स्थान, आश्रय (स ४९६)

अहिट्ठायग :: वि [अधिष्ठायक] अध्यक्ष, अधि- पति (कुप्र २१९)।

अहिट्ठावण :: न [अधिष्ठापन] ऊपर रखना (निचु ५)।

अहिट्ठिय :: वि [अधिष्ठित] १ अध्यासित (णाया १, १४) २ अधीन किया हुआ (णाया १, १४) ३ आक्रान्त, आचिष्ट (ठा ५, २)

अहिठाण :: न [अधिष्ठान] अपान-प्रदेश (पव १३५)।

अहिड्डय :: वि [दे. अभिद्रुत] पीड़ीत, 'अहिड्डयं पीडिअं परद्धं च' (पाअ)।

अहिणंद :: देखो अभिणंद। वकृ. अहिणंद- माण (पउम ११, १२०) कवकृ. अहिणं- दिज्जमाण, अहिणंदीअमाण (नाट; पि ५६३)।

अहिणंदण :: देखो अभिणंदण (पउम २०, ३०; भविं)।

अहिणंदि :: न [अभिनन्दिन्] आनन्द मानने वाला (स ६७७)।

अहिणंदिय :: देखो अभिणंदिय (पउम ८, १२३; स १४)।

अहिणय :: देखो अभिणय (कप्पु; सण)।

अहिणव :: पुं [अभिनव] १ सेतुबन्ध काव्य का कर्ता राजा प्रवरसेन (से १, ९) २ वि. नूतन, नया (णाया १, १; सुपा ३३०)

अहिणवेमाण :: देखो अहिणी।

अहिणवेमाण :: देखो अहिणु।

अहिणाण :: देखो अहिण्णाण (भवि)।

अहिणिबोह :: पुं [अभिनिबोध] ज्ञान-विशेष, मतिज्ञान (पणण २९)।

अहिणिवस :: सक [अभिनि + वस्] वसना, रहना। वकृ. अहिणिवसमाण (मुद्रा २३१)।

अहिणिविट्ठ :: वि [अभिनिविष्ट] आग्रह-ग्रस्त (स २७३)।

अहिणिवंस :: पुं [अभिनिवेश] आग्रह, हठ (स ९२३; अभि ९५)।

अहिणिवेसि :: वि [अभिनिवेशिन्] आग्रही (पि ४०५)।

अहिणी :: स्त्री [अहि] नागिन (वज्जा ११४)।

अहिणी :: देखो अभिणी वकृ. अहिणवेमाणँ (सुर ३, १५०)।

अहिणील :: वि [अभिनील] हरा, हरा रंग वाला (गउड)।

अहिणु :: सक [अभि + नु] स्तुति करना, प्रशंसना। वकृ. अहिणवेमाण (सुर ३, ७७)।

अहिण्ण :: वि [अभिन्न] भेदरहि, अपृथग्भूत (गा २६५; ३८०)।

अहिण्णाण :: न [अभिज्ञान] चिज्ञ, निशानी (अभि १३)।

अहिण्णु :: वि [अभिज्ञ] निपुण, ज्ञाता (हे १, ५६)।

अहितत्त :: वि [अभितप्त] तापित, संतापित (उत्त २)।

अहित्ता :: देखो अहिज्ज = अधि + इ।

अहिदायग :: वि [अभिदायक] देनेवाला, दाता (सुपा ५४)।

अहिदेवया :: स्त्री [अधिदेवता] अधिष्ठाता देव (सुपा ६०; कप्पू)।

अहिद्दव :: सक [अभि + द्र] हैरान करना। अहिद्दवंति (स ३९३)। भवि. अहिद्दविस्सइ (स ३९६)।

अहिद्‍दुय :: वि [अभिद्रुत] हैरान किया हुआ (स ५१४)।

अहिधाव :: सक [अभि + धाव्] दौड़ना, सामने दौड़ कर जाना। वकृ. अहिधावंत (से १३, २९)।

अहिनाण, अहिन्नाण :: देखो अहिण्णाण (श्रा १६; सुपा २५०)।

अहिनिवेस :: देखो अहिीणिवेस (स १२५)।

अहियच्चुअ :: सक [ग्रह्] ग्रहण करना। अहिपच्चुअइ (हे ४, २०९; षड्)। अहि- पच्चुअंति (कुमा)।

अहिपच्चुअ :: सक [आ + गम्] आना। अहि- पच्चुअइ (हे ४, १६३)।

अहिपच्चुइअ :: वि [आगत] आयात (कुमा)।

अहिपच्चपइअ :: न [दे] अनुगमन, अनुसरण (दे १, ४९)।

अहिपड :: सक [अभि + पत्] सामने आना। अहिपडंति (पव १०६)।

अहिपास :: सक [अधि + दृश्] १ अधिक देखना। २ समान रूप से देखना। अहिपासए (सुअ १, २, ३, १२)

अहिप्पाय :: देखो अभिप्पाय (महा; कप्पू)।

अहिप्पेय :: देखो अभिप्पेय (उप १०३१ टी; स ३४)।

अहिभव :: देखो अभिभव (गउड)।

अहिमंजु :: पुं [अभिमन्यु] अर्जुन के एक पुत्र का नाम (कुमा)।

अहिमंतण :: वि [अभिमन्त्रण] मन्त्रित करता, मन्त्र से संस्कारना (भवि)।

अहिमंतिअ :: वि [अभिमन्त्रित] मन्त्र से संस्कृत (महा)।

अहिमज्जु, अहिमण्णु, अहिमन्‍नु :: देखो अहिमंजु (कुमा; षड्)।

अहिमय :: वि [अभिमत] संमत, इष्ट (स २००)।

अहिमयर :: पुं [अहिमकर] सूर्यं, रवि (पाअ)।

अहिमर :: पुं [अभिमर] धनादि के लोभ से दूसरे को मारने का साहस करनेवाला (सलुर १, ६८)। २ गजादिघातक (विसे १७६४)।

अहिमाण :: पुं [अभिमान] गर्व, अहंकार (प्रासू १७; सण)।

अहिमाणि :: वि [अभिमानिन्] अभिमानी, गर्विष्ठ (स ४३१)।

अहिमार :: पुं [अभिमार] वृक्ष-विशेष, 'एगं अहिमारदारुअं अग्गी' (उत्तनि ३)।

अहिमास, अहिमासग :: पुं [अधमास, °क] अधिक मास (आव १; निचु २०)।

अहिमुह :: वि [अभिमुख] संमुख, सामने रहा हुआ (से १, ४४; पउम ८, १९७; गउड)।

अहिमुहिहूअ, अहिमुहीहूअ :: वि [अभिमुखीभूत] सामने आया हुआ (पउम १२, १०५ ४५, ६)।

अहिय :: वि [अधिक] १ ज्यादा, विशेष (औप; जी २७; स्वप्‍न ४०) २ क्रिवि. बहुत अत्यन्त (महा)

अहिय :: वि [अहित] अहितकर, शत्रू, दुश्मन (महा; सुपा ९९)।

अहिय :: वि [अधीत] पठित, अभ्यस्त; 'अहिय- सुओ पड़िवाज्जिय एगल्लविहारपडिमं सो' (सुर ४, १५४)।

अहिया :: स्त्री [अधिका] भगवान् श्रीनमिनाथ की प्रथम शिष्या (सम १५२)।

अहियाइ :: देखो अहिजाइ (षड्)।

अहियाय :: देखो अहिजाय (पाअ)।

अहियार :: पुं [अभिचार] शत्रु के वध के लिए किया जाता मन्त्रादि-प्रयोग (गउड)।

अहियार :: देखो अहिगार (स ५४३; पाअ; मुद्रा २६९; सट्ठि ७ टी; भवि; दे ७, ३२)।

अहियारि :: देखो अहिगारि (दते ६, १०८)।

अहियास :: सक [अधि + आस्, अधि + सह्] सहन करना, कष्टों को शान्ति से झेलना। अहियासइइ. अहियासए, अहियासेइ (उव; महा)। कर्मं. अहियासिज्जंति (भग)। वकृ. अहियासेमाण (आचा)। संकृ. अहि- यासित्ता, अहियासेत्तु (सुअ १, ३, ४; आचा) हेकृ. अहियासित्तए (आचा)। कृ. अहियासियव्व (उप ५४३)।

अहियास :: वि [अध्यास, अधिसह] सहिष्णु (बृह १)।

अहियासण :: न [अध्यासन अधिसहन] सहन करना (उप ५३६; स १६२)।

अहियासण :: न [अधिकाशन] अधिक भोजन, अजीर्णं (ठा ९)।

अहियासिय :: वि [अध्यासित, अधिषोढ] सहन किया हुआ (आचा)।

अहिर :: पुं [आभीर] अहीर, गोवाला (गा ८११)।

अहिरम :: देखो अभिरम। वकृ. अहिरमंत (समु १५४)।

अहिरम :: अक [अभि + रम्] क्रीड़ा करना, संभोग करना। अहिरमदि (शौ) (नाट)। हेकृ. अभिरमिदुं (शौ) (नाट)।

अहिरम्म :: वि [अभिरम्य] सुन्दर, मनोहर (भवि)।

अहिराम :: वि [अभिराम] सुन्दर, मनोहर (पाअ)।

अहिरामिण :: वि [अभिरामिन्] आनन्द देने वाला (सण)।

अहिराय :: पुं [अधिराज] १ राजा (बृह ३) २ स्वामी, पति (सण)

अहिराय :: न [अधिराज्य] राज्य, प्रभुत्व (सट्ठि ७)।

अहिरिय :: देखो अहिरीअ (पिंड ६३१)।

अहिरीअ :: वि [अह्रीक] निर्लज्ज, बेशरम् (हे २, १०४)।

अहिरीअ :: वि [दे] निस्तेज, फीका (दे १, २७)।

अहिरीमाण :: वि [दे. अहारिन्, अह्वीमनस्] १ अमनोहर, मन को प्रतिकूल। २ अलजा- कारक, 'एगयरे अन्नयरे अभिन्नाय तितिक्ख- माणे परिव्वए, जे य हिरी, जे य अहिरीमाणा' (आचा १, ६, २)

अहिरूव :: वि [अभिरूप] १ सुन्दर, मनोहर (अभि २११) २ अनुरूप, योग्य (विक्र ३८)

अहिरेम :: सक [पृ] पूरा करना, पूर्त्ति करना। अहिरेमइ (हे ४, १६९)।

अहिरोइअ :: वि [दे] पूर्ण (षड्)।

अहिरोहण :: न [अधिरोहण] ऊपर चढ़ना, आरोहण (मा ४०)।

अहिरोहि :: वि [अधिरोहिन्] ऊपर चड़ने वाला (अभि १७०)।

अहिरोहिणी :: स्त्री [अधिरोहिणी] निःश्रेणी, सीढ़ी (दे ८, २६)।

अहिल :: वि [अखिल] सकल, सब (गउड; रंभा)।

अहिलंख, अहिलंघ, अहिलक्ख :: सक [काङ्‍क्ष] चाहना, अभि- लाष करना। अहिलंखइ, अहि- लंघइ (हे ४, १९२); 'अहिल- क्खंति मुअंति अ रइवावारं विलासिणीहिअ- आइं' (से १०, ५७)।

अहिलक्ख :: वि [अभिलक्ष्य] अनुमान से जानने योग्य (गउड)।

अहिलव :: सक [अभि + लप्] संभाषण करना, कहना। कवकृ. अहिलप्पमाण (स ८४)।

अहिलस :: सक [अभि +लष्] अभिलाष करना, चाहना। अहिलसइ (महा)। वकृ. अहिलसंत (नाट)।

अहिलसिय :: वि [अभिलषित] बाच्छित (सुर ४, २४८)।

अहिलसिर :: वि [अभिलाषित] अभिलाषी, इच्छुक (दे ६, ५८)।

अहिलाण :: न [अभिलान] मुख का बन्धन विशेष (णाया १, १७)।

अहिलाव :: पुं [अभिलाप] शब्द, आवाज (ठा २, ३)।

अहिलास :: पुं [अभिलाष] इच्छा, वाञ्छा, चाह (गउड)।

अहिलासि :: वि [अभिलाषिन्] चाहनेवाला (नाट)।

अहिलिअ :: न [दे] १ पराभव। २ क्रोध, गुस्सा (दे १, ५७)

अहिलिह :: सक [अभि + लिख्] १ चिन्ता करना। २ लिखना। अहिलिहंति (मु्द्रा १०८)। संकृ. अहिलिहिअ (वेणी २५)

अहिलोयण :: न [अभिलोकन] ऊँचा स्थान (पणह २, ४)।

अहिलोल :: वि [अभिलोल] चपल, चञ्चल, (गउड)।

अहिलोहिआ :: स्त्री [अभिलोभिका] लोलुपता, तृष्णा (से ३, ४७)।

अहिल्ल :: वि [दे] धनवान्, धनी (दे १, १०)।

अहिल्लिया :: स्त्री [अहिल्या] एक सती स्त्री (पणह १, ४)।

अहिव :: अधिप १ ऊपरी, मुखिया (उप ७२८ टी) २ मालिक, स्वामी (गउड) ३ राजा, भूप; 'दुट्ठाहिवा दंडपरा हवंति' (गोय ८)

अहिवइ :: वि [अधिपति] ऊपर देखो (णाया १, ८; गउड; सुर ६, ६२)।

अहिवंजु :: देखो अहिमंजु (षड्)।

अहिवंदिय :: वि [अभिवन्दित] नमस्कृत (स ६४१)।

अहिवज्जु :: देखो अहिमंजु (षड्)।

अहिवड :: अक [अधि +पत्] क्षीण होना। वकृ. 'एवं निस्सारे माणुसत्तणे जीविए अहि- वड़ंते' (तंदु ३३)।

अहिवड :: सक [अधि +पत्] आना। वकृ. अहिवडंत (राज)।

अहिवड्‍ढ :: देखो अभिवड्‍ढ अहिवड्‍ढामो (कप्प)।

अहिवडि्ढ, अहिवद्धि :: स्त्री [अभिवृद्धि] उत्तर प्रोष्ठ- पदा नक्षत्र का अधिष्ठाता देवता (सुज्ज १०, १२; जं ७ — पत्र ४९८)।

अहिवडि्ढय :: वि [अभिवर्धित] बढ़ाया हुआ (स २४७)।

अहिवण्ण :: वि [दे] पीला और लाल रंग वाला (दे १, ३३)।

अनिवण्णु, अहिवन्नु :: देखो अहिमंजु (षड्; कुमा)।

अहिवल्ली :: स्त्त्री [अहिवल्ली] नाग-वल्ली (सिरि ८७)।

अहिवस :: सक [अधि + वस्] निवास करना, रहना। वकृ., अहिवसंत (स २०८)।

अहिवाइय :: वि [अभिवादित] अभिनन्दित (स ३१४)।

अहिवायण :: देखो अभिवायण (भवि)।

अहिवाल :: वि [अधिपाल] पालक, रक्षक (भवि)।

अहिवास :: पुं [अधिवास] बासना, संस्कार (दे ७, ८७)

अहिवासण :: न [अधिवासन] संस्काराधान (पंचा ८)।

अहिवासि :: वि [अधिवासिन्] निवासी (चेइय ६८७)।

अहिवासिअ :: वि [अधिवासित] सजाया हुआ, तय्यार किया हुआ (दस ३, १ टी)।

अहिविण्णा :: स्त्री [दे] कृत-सापत्न्या स्त्री, उप- पत्नी (दे १, २५)।

अहिसंका :: स्त्री [अभिशङ्का] भ्रम, संदेह (पउम ४२, २१)।

अहिसंका :: स्त्री [अभिशङ्का] भय, डर (सुअ १, १२, १७)।

अहिसंजमण :: न [अभिसंयमन] नियन्त्रण (गउड)।

अहिसंधारण :: न [अभिसंधारण] अभिप्राय (पंचा ६, ३९)।

अहिसंधि :: पुंस्त्री [अभिसंधि] अभिप्राय, आशय (पणह १, २; स ४९३)।

अहिसंधि :: पुं [दे] बारंबार (दे १, ३२)।

अहिसक्कण :: पुंन [अभिष्वष्कण] संमूख गमन (पव २)।

अहिसर :: सक [अभि + सृ] १ प्रवेश करना। २ अपने दयित — प्रिय के पास जाना। प्रयो., कर्म. अभिसारीअदि (शौ) (नाट)। हेकृ. अभि- सारिदुं (शौ) (नाट)

अहिसरण :: न [अभिसरण] प्रिय के समीप गमन (स ५३३)।

अहिसरिअ :: वि [अभिसृत] १ प्रिय के समीप गत। २ प्रविष्ट (आवम)

अहिसहण :: न [अधिसहन] सहन करना (ठा ६)।

अहिसाअ :: देखो अक्कम = आ + कम्। अहि- साअइ (प्राकृ ७३)।

अहिसाम :: वि [अभिशाम] काला, कृष्ण वर्णं वाला (गउड)।

अहिसाय :: वि [दे] पूर्णं, पूरा (दे १, २०)।

अहिसारण :: न [अभिसारण] १ आनयन (से १०, ६२) २ पति के लिए, संकेत स्थान पर जाना (गउड)

अहिसारिअ :: वि [अभिसारित] आनीत (से १, १३)।

अहिसारिआ :: स्त्री [अभिसारिका] नायक को मिलने के लिए संकेत स्थान पर जानेवाली स्त्री (कुमा)।

अहिसिअ :: न [दे] १ अनिष्ट ग्रह की आशंका से खेद करना — रोना (दे १, ३०) २ वि. अनिष्ट ग्रह से भयभीत (षड्)

अहिसिंच :: देखो अभिसिंच। अहिसिंचइ (महा)। संकृ. अहिसिचिऊण (स ११६)।

अहिसिंचण :: न [अभिषेचन] अभिषेक (सम १२५)।

अहिसित्त :: देखो अभिसित्त (महा; सुर ८, ११९)।

अहिसेअ :: देखो अभिसेअ (सुपा ३७; नाट)।

अहिसोढ़ :: वि [अधिसोढ] सहन किया हुआ (उप १४७ टी)।

अहिस्संग :: पुं [अभिष्वङ्ग] आसक्ति (नाट)।

अहिहय :: वि [अभिहत] १ आघात-प्राप्त (से ५, ७७) २ मारित, व्यापादित (से १४, १२)

अहिहर :: सक [अभि + हृ] १ लेना। २ उठाना। ३ अक. शोभना, विराजना। ४ प्रतिभास होना, लगना; 'वीयाभरणा अकयणणमंडणा अहिहरंति रमणीओ। सुणणओ व कुसुमफलंतरम्मि सहयारवल्लीओ। इह हि हलिद्दाहयदविडसा- मलीगंडमंडलानीलं। फलमसअलपरिणामावलंबि अहिहरइ चूयाणा' (गउड)

अहिहर :: न [दे] १ देवकुल, पुराना देवमन्दिर। २ वल्मीक (दे १, ५७)

अहिहव :: सक [अभि + भू] पराभव करना, जीतना। अहिहवंति (स १९८) कर्म. अहिह- वीयंति (स ६६८)।

अहिहाण :: न [दे. अभिधान] वर्णंन, प्रशंसा (दे १, २१)।

अहिहाण :: देखो अभिहाण (स १६५; गउड; सुर ३, २५; पाअ)।

अहिहू :: देखो अहिहव। कवकृ. अहिहूअमाण (अभि ३७)।

अहिहूअ :: वि [अभूभूत] पराभूत, परास्त (दे १, १५८)।

अही :: सक [अधि + इ] पढ़ना। कर्मं. अही- यइ (विसे ३१९९)।

अही :: स्त्री [अही] नागिन, सर्पिणी (जीव २)।

अहिकरण :: न [अधिकरण] कलह, झगड़ा (निचु १०)।

अहीगार :: देखो अहिगार, 'सेसेसु अहीगारो उवगरणसरीरमुक्खेसू' (आचामि २५४)।

अहीण :: वि [अधीन] आयत्त, अधीन (पणह २, ४)।

अहीण :: वि [अ-हीन] अन्यून, पूर्ण (विपा १, १; उवा)।

अहीय :: देखो अहिय = अधिक (पव १९४)।

अहीय :: वि [अधीत] पठित, अभ्यस्त; 'वेया अङीया ण भवंति ताणं' (उत्त १५, १२; णाया १; १४; सं ७८)।

अहीरग :: वि [अहीरक] तन्तुरहित (फलादि) (जी १२)।

अहीरु :: वि [अभीरु] निडर, निर्भीक (भवि)। अहीलास देखो अभिलास; 'देहम्मि अहिलासो' (तंदु ४१)।

अहिसर :: पुं [अधीश्‍वर] परमेश्वर (प्रामा)।

अहुआसेय :: वि [अहुताशेय] अग्नि के अयोग्य (गउड)।

अहुआ :: अ [अधुना] अभी, इस समय, आज- कल (ठा ३, ३; नाट)।

अहुणि :: (पै) देखो अहुणा (प्राकृ १२७)।

अहुलण :: वि [अमार्जक] अनाशक (कुमा)।

अहुल :: वि [अफुल्ल] अविकसित (कुमा)।

अहुवंत :: वकृ [अभवत्] न होता हुआ (कुमा)।

अहूण :: देखो अहीण = अहीन (कुमा)।

अहूव :: वि [अभूत] जो न हुआ हो °पुव्व वि [°पूर्व] जो पहले कभी न हुआ हो (कुमा)।

अहे :: अ [अधस्] नीचे (आचा)। °कम्म न [कर्मन्] आधाकर्म, भिक्षा का एक दोष (पिंड)। °काय पुं [°काय] शरीर का नीचला हिस्सा (सुअ १, ४, १)। °चर वि [°चर] बिल आदि में रहनेवाले सर्व वगैरह जन्तु (आचा)। °तारग पुं [°तारक] पिशाच- विशेष (पणण १)। °दिसा स्त्री [°दिक्] नीचे की दिशा (आचा)। °लोग पुं [°लोक] पाताल-लोक (ठा २, २)। °वाय पुं [°वात] नीचे बहनेवाला वायु (पणण १)। २ अपान- वायु, पर्दन (आवम)। °वियड वि [°विकट] भित्त्यादिरहित स्थान, खुला स्थान; 'तंसि भगवं अपडिन्ने अहेवियडे अहियासए दविए' (आचा)। °सत्तमा स्त्री [°सप्तमी] सातवीं या अन्तिम नरकभूमि (सम ४१; णाया १, १६; १९)। देखो अहो = अधस्।

अहे :: देखो अह = अथ (भग १, ६)।

अहेउ :: पुं [अहेतु] १ सत्य हेतु का विरोधी, हेत्वाभास (ठा ५, १) २ वि. कारणरहित, नित्य (सुअ १, १, १ )। °वाय पुं [°वाद] आगमवाद, जिसमें तर्क — हेतु को छोड़कर केवल शास्त्र ही प्रमाण माना जाता हो ऐसा वाद (सम्म १४०)

अहेउय :: वि [अहेतुक] हेतुवर्जित, निष्कारण (पउम ९३, ४)।

अहेकम्म :: पुंन [अधः कर्मन्] १ अधोगति में ले जानेवाला कर्म। २ भिक्षा का आधाकर्म दोष (पिंड ९५)

अहेसणिज्ज :: वि [यथैषणीय] संस्काररहित, कोरा; 'अहेसाणिज्जाइं वत्थाइं जाएज्जा' (आचा)।

अहेसर :: पुं [अहरीश्वर] सूर्यं, सूरज (महा)।

अहो :: देखो अह = अधस् (सम ३६; ठा २, २; ३, १; भग; णाया १, १; फउम १०२, ८१; आव ३)।

°करण :: न [°करण] कलह, झगड़ा (निचु १०)। °गइ स्त्री [°गति] १ नरक या तिर्यञ्च- योनि। २ अवनति (पउम ८०, ४६)। °गामि वि [°गामिन्] दुर्गति में जानेवाला (सम १५३; श्रा ३३)। °तरण न [°तरण] कलह, झगड़ा (निचु १०)। °मुह वि [°मुख] अघोमुख, अवनत मुख, लज्जित (सुर २, १५८; ३, १३५; सुपा २४२)। °लोइय वि [°लौकिक] पाताल लोक से संबन्ध रखनेवाला (सम १४२)। °हि वि [°अवधि] १ नीचे दर्जा का अवधिज्ञान वाला (राय)। २ पुंस्त्री. नीचे दर्जी का अवधिज्ञान, अव- धिज्ञान का एक भेद (ठा २, २)।

अहो :: अ [अहनि] दिवस में, 'अहो य राओ य सिवाभिलासिणो' (पउम ३१; १२८; पणह २, १)।

अहो :: अ [अहो] इन अर्थों का सूचक अव्यय — १ विस्मय, आश्चर्यं। २ खेद, शोक। ३ आम- न्त्रण, संबोधन। ४ वितर्कं। ५ प्रशंसा। ६ असूया, द्वेष (हे २, २१७; आचा; गउड)। °दाण न [°दान] आश्चर्यं-कारक दान (उत्त २; कप्प)। °पुरसिगा, °पुरिसिया स्त्री [°पुरुषिका] गर्वं, अभिमान (स १२३; २८८)। °विहार पुं [°विहार] संयम का आश्चर्यंजनक अनुष्ठान (आचा)

अहो :: अ [अहो] दीनता-सूचक अव्यय (अणु १९)।

अहो° :: पुंन [अहन्] दिन, दिवस (पिंग)। °णिस, निस, निसि न [°निश] रात और दिन, दिन-रात; 'णिरए णोरइयाण अहोणिसं पञ्चमाणाणं' (सुअ १, ५, १; 'श्रा ५०), 'अंत अहोनिसिस्स उ' (विस (८७३)। °रत्त पुं [°रात्र] १ दिन और रात्रि परिमित काल, आठछ प्रहर (ठा २, ४); 'तिणिण अहोरत्ता पुण न खामिया कयंतेण' (पउम ४३, ३१)। २ चार-प्रहर का समय (जो २)। °राइया स्त्री [°रात्रिकी] ध्यानप्रधान अनुष्ठान-विशेष (पंचा १८; आव ४; सम २१)। °राइंदिय न [°रात्रिन्दिव] दिनरात (भग ; औप)।

अहोरण :: न [दे] उत्तरीय वस्त्र, चादर (दे १, २५; गा ७७१)।

 :: पुं [आ] १ प्राकृत वर्णंमाला का द्वितीय स्वर-वर्णं (प्रामा)। इन अर्थों का सूचक अव्यय — २ अ. मर्यादा, सीमा; 'आस- मुद्दं' (गउड; विसे ८७४) ३ अभिविधि, व्याप्ति; 'आमूलसिरं फलिहथंभाओ' (कुमा; विसे ८७४) ४ थोड़ापन, अल्पता; 'आणीलकक्करुद्दंतुरं वरणं' (गउड); 'आअंब' (से ९, ३१; विसे १२३५) ५ समन्तात्, चारों ओर; 'अणुकंडलमा विवइणणसरस- कवरीविलंधियंसम्मि' (गउड; विसे ८७५)। ६ अधिकता, विशेषता; 'आदीण' (सुअ १, ५)। ७ स्मरण, याद (षड्)। ८ विस्मय, आश्चर्य (ठआ ५)। ९-१० क्रियाशब्द के योग में अऱ्थंविस्तृति और विपर्यंय; 'आरुहइ', 'आगच्छंत' (षड्; कुमा)। ११ वाक्य की शोभा के लिए भी इसका प्रयोग होता है (णाया १, २)। १२ पादपूर्ति में प्रयुक्त किया जाता अव्यय (षड् २, १, ७६)

 :: अ [आ] निचे, अधः राय ३५, ३६।

 :: अ [आस्] इन अर्थों का सूचक अव्यय-- १ खेद गा ९२६ २ दुःख। ३ गुस्सा, क्रोध कप्पू

 :: सक [या] जाना। 'अव्वो ण आमि छेत्तं' गा ८२१।

आअ :: वि [दे] १ अत्यंत, बहुत। २ दीर्घ, लम्बा। ३ विषम, कठिन। ४ न. लोह, लोहा। ५ मुसल, मूषल दे १, ७३

आअ :: वि [आगत] आया हुआ, 'पत्थंति आअरोसा' से १२, ९८; कुमा।

आअअ :: वि [आगत] आया हुआ से ३, ४, १२, १८; ३०१।

आअअ :: वि [आयत] लम्बा, विस्तीर्णं से ११, ११; 'मरगयसूईँविद्धं व मोत्तिअं पिअइ आअअग्गीवो। मोरो पाउसआले तणग्गलग्गं उअअबिंदुं गा ३९४।

आअंछ :: सक [कृप्] १ खींचना। २ जोतना, चास करना। ३ रेखा करना। आअंछइ षड्

आअंतव्व :: देखो आगम = आ + गम्।

आअंतुअ :: देखो आगंतुय स्वप्‍न २०; अभि १२१।

आअंपिअ :: देखो आकंपिय से १०, ५१।

आअंब :: वि [आताम्र] थोड़ा लाल से ९, ३१; सूर ३, ११०।

°आअंब :: पुं [कादम्ब] हंस, पक्षि-वि्शेष से ९, ३१।

आअक्ख :: सक [आ + चक्ष्] कहना, बोलना, उपदेश करना। आयक्खाहि भग। कर्म. आअक्खीअदि शौ नाट। भूकृ. आअ- क्खिद शौ नाट।

आअच्छ :: देखो आगच्छ। आअच्छइ षड्। संकृ. आअच्छिअ, आअच्छिऊण नाट; पि ५८१; ५८४।

आअड्ड :: अक [दे] परबश होकर चलना। आअड्डइ दे १, ६९।

आअड्ड :: अक [व्या + पृ] व्यापृत होना, काम में लगना। आअहुइ सण; षड्। आअड्डेइ हे ४, ८१।

आअड्डिअ :: वि [दे] परवशचलित, दूसरे की प्रेरणा से चला हुआ दे १, ६८।

आअड्डिअ :: वि [व्यापृत] कार्यं में लगा हुआ कुमा।

आअण्णण :: देखो आयन्नण गा ६५९।

आअत्ति :: देखो आयइ पिंग।

आअद :: /?/देखो आगयप्राकृ १२; संक्षि ९।

आअम :: /?/देखो आगम अच्चु ७; अभि १८४; गा ४७६; स्वप्‍न ४८; मुद्रा ८३।

आअमण :: देखो आगमण से ३, २०; मुद्रा १८७।

आअर :: सक [आ + दृ] आदर करना, सत्कार करना। आअरइ षड्।

आअर :: न [दे] १ उदुखल, ऊखल। २ कूर्चं दे १, ७४

आअल्ल :: पुं [दे] १ रोग, बीमारी दे १, ७५; पाअ २ वि. चंचल, चपल दे १, ७५। देखो आयल्लया।

आअल्लि, आअल्ली :: स्त्री [दे] झाड़ी, लताओं से निबिड प्रदेश दे १, ६१।

आअव्व :: अक [वेप्] काँपना। आअव्वइ षड्।

आआमि :: देखो आगामि अभि ८१।

आआस :: देखओ आयंस षड्।

आआसतअ :: [दे] देखो आयासतल षड्।

आइ :: सक [अ + दा] ग्रहण करना, लेना। आइएज्जा सुअ १, ७, २९। आइयत्ति भग। कर्मं. आइयइ कस। संकृ. आइत्तूण, आयइत्ता, आइत्तु आचा; सुअ १, १२; पि ५७७। प्रयों आइयवेंति सुअ २, १। कृ. आइयव्व कस।

आइ :: पुं [आदि] १ प्रथम, पहला सुर २, १३२ २ वगैरह, प्रभृति जी ३ ३ समीप, पास। ४ प्रकार, भेद। ५ अवयव, अंश। ६ प्रधान, मुख्य; 'इअ आसंसंति निसीह! सिंहदत्ताइणो दिआ तुज्झ' कुमा; सुअ १, १५ ७ उत्पत्ति सम्म ९५। ८ संसार, दुनिया सुअ १, ७। °गर वि [°कर] १ आदि प्रवर्त्तक सम १। २ पुं. भगवान् ऋषभदेव पउम २८, ३९। °गुण पुं [°गुण] सहभावी गुण आव ४। °णाह पुं [°नाथ] भगवान् ऋषभदेव आवम। °तित्थथर पुं [°तीर्थंकर] भगवान् ऋषभदेव णंदि। °देव पुं [°देव] भगवान् ऋषभदेव सुर २, १३२। °म पुं [°म] प्रथम, आद्य, पहला आव ५। °मूल न [°मूल] मुख्य कारण आचा °मोक्ख पुं [°मोक्ष] संसार से छुटकारा, मोक्ष। २ शीघ्र ही मुक्त होनेवाली आत्मा; 'इत्थओ जे ण सेवंति आइमोक्खा हि ते जणा' सुअ १, ७। °राय पुं [°राज] भगवान् ऋषभदेव ठा ६। °वराह पुं [°वराह] कृष्ण, नारायण से ७, २

आइ :: वि [आदिन्] खानेवाला पंचा १८, ३९।

आइ :: स्त्री [आजि] संग्राम, लड़ाई संथा।

आइअंतिय :: देखो अच्चंतिय भग १२, ६।

आइं :: अ [दे] वाक्य की शोभा के लिए प्रयुक्त किया जानेवाला अव्यय भग ३, २।

आइंखणा, आइंखणिया, आइंखिणिया :: स्त्री [दे] १ देवता-विशेष, कर्णं-पिशाचिका देवी पव २; ७३ टी--पत्र १८२; बृह १ २ डोमिनी, चांडाली बृह १

आइंग :: न [दे] वाद्य-विशेष पउम ३, ८७; ९६, ६।

आइंच :: देखो आयंच। आइंचइ उवा।

आइंच :: देखो अक्कम = आ + क्रम्। आइंचइ प्राकृ ७३।

आइंचवार :: पुं [आदित्यवार] रविवार कुप्र ४११।

आइंचिय :: वि [आदित्यिक] आदित्य-संबन्धी सुअनि ८ टी।

आइंछ :: देखो आअंछ। आइंछइ हे ४, १८७।

आइक्ख :: सक [आ + चक्ष्] कहना, उप- देश देना, बोलना; आइक्खइ उवा। वकृ. आइक्खमाण णाया १, १२। हेकृ. आइ- क्खित्तए उवा।

आइक्खग :: वि [आख्यायक] कहनेवाला, वक्ता पणह २, ४।

आइक्खण :: न [आख्यान] कथन, उपदेश बृह ३।

आइक्खइय :: वि [आख्यात] उक्त, उपदिष्ट स ३२।

आइक्खिया :: स्त्री [आख्यायिका] १ वार्त्ता, कहानी णाया १, १ २ एक प्रकार की मैली विद्या, जिससे चाण्डालिनी भूत-काल आदि की परोक्ष बातें कहती हैं ठा ९

आइग्ग :: वि [आविग्न] उद्विग्न, खिन्न पाअ।

आइग्घ :: सक [आ + घ्रा] सूँघना। आइग्घइ, आइग्घाइ षड्। हेकृ. आइग्घिउं कुमा।

आइच्च :: अ [दे] कदाचित्, कोईबार पणण १७--पत्र ४८५।

आइच्च :: पुं [आदित्य] १ सूर्यं, सूरज, रवि सम ५६ २ लोकान्तिक देव-विशेष णाया १, ८ ३ न. देवविमान-विशेष। ४ पुं. तन्निवासी देव पव ५ वि. आद्य, प्रथम सुज्ज २० ६ सूर्य-संबन्धी; 'आइच्चे णं मासे' सम ५६। °गइ पुं [°गति] राक्षस वंश के एक राजा का नाम पउण ५, २६१। °जस पुं [°यशस्] भरत चक्रवर्ती का एक पुत्र, जिससे इक्ष्वाकु वंश की शाखारूप सूर्यवंश की ऊत्पत्ति हुई थी पउम ५, ३; सुर २, १३४। °पभ न [°प्रभ] इस नाम का एक नगर पउम ५, ८२। °पीढ न [°पीठ] भगवान् ऋषभदेव का एक स्मृतिचिह्न--पाद- पीठ आवम। °रक्ख पुं [°रक्ष] इस नाम का लङ्गा का एक राजपुत्र पउम ५, १६६। °रय पुं [°रजस्] वानर वंश का एक विद्याधर राजा पउम ८, २३४

आइज्ज :: देखो आएज्ज नव १५।

आइज्जमाण :: वकृ [आर्द्रीक्रियमाण] आर्द्र किया जाता, भींजाया जाता आचा।

आइज्जमाण :: देखो आढा = आ + दृ।

आइट्ठ :: वि [आदिष्ट] १ उक्त, उपदिष्ट सुर ४, १०१ २ विवक्षित सम्म ३८

आइट्ठ :: वि [आविष्ट] अधिष्ठित, आश्रित कस।

आइट्ठि :: स्त्री [आदिष्टि] धारणा ठा ७।

आइडि्‍ढ :: स्त्री [आत्मद्धि] आत्मा की शक्ति, आत्मीय सामर्थ्य भग १०, ३।

आइडि्ढय :: वि [आत्मर्द्धिक] आत्मीय शक्ति- संपन्न भग १०, ३।

आइडि्ढय :: वि [आकृष्ट] खींचा हुआ हम्मीर १७।

आइण्ण :: देखो आइन्न = दे तंदु २०।

आइण्ण :: देखो आइन्न औप; भग ७, ८; हे ३, १३४।

आइत्त :: वि [आदीप्त] थोड़ा प्रकाशित-ज्व- लित णाया १, १।

आइत्त :: वि [आयत्त] अधीन, वशीभूत; 'तुज्झ सिरी जा परस्स आइत्ता' जीवा १०।

आइत्तु :: वि [आदातृ] ग्रहण करनेवाला ठा ७।

आइत्तूण :: देखो आइ = आ + दा।

आइत्थ :: न [आतिथ्य] अतिथि-सत्कार प्राकृ २१।

आइदि :: स्त्री [आकृति] आकार प्राप्त; स्वप्‍न २०।

आइद्ध :: वि [आविद्ध] १ प्रेरित से ७, १० २ स्पष्ट, छुआ हुआ से ३, ३५ ३ पहना हुआ, परिहित आक ३८

आइद्ध :: वि [आदिग्ध] व्याप्त णाया १, १।

आइन्न :: वि [आकीर्ण] १ व्याप्त, भरा हुआ सुर १, ४९; ३, ७१ २ पुं. वस्त्र दायक कल्पवृक्ष ठा १०

आइन्न :: वि [आचीर्ण] आचरित, विहित आचा; चैत्य ४९।

आइन्न :: वि [आदीर्ण] उद्विग्‍न, खिन्न; 'आइ- न्नाइं पियराइं तीए पुच्छंति दिव्व-देवन्‍नं' सुपा ५९७।

आइन्न :: पुं [दे] जात्यश्‍व, कुलीन घोड़ा पणह १, ४।

आइप्पण :: न [दे] १ आटा गा १६६; दे १, ७८ २ घर की शोभा के लिए जो चूना आदि की सफेदी दी जातो है वह। ३ चावल के आटा का दुध। ४ घर का मण्डन--भूषण दे १, ७८

आइय :: अप वि [आयात] आया हुआ भवि।

आइय :: वि [आचित] १ संचित, एकत्रीकृत। २ व्याप्त, आकीर्णं। ३ ग्रथित, गुम्फित कप्प; औप

आइय़ :: वि [आदृत] आदरप्राप्त कप्प।

आइयण :: न [आदान] ग्रहण, उपादान पणह १, ३।

आइयणया :: स्त्री [आदान] ग्रहण, उपादान ठा २, १।

आइरिय :: देखो आयरिय = आचार्य हे १, ७३।

आइल :: वि [आविल] मलिन, कलुष, अस्वच्छ पणह १, ३।

आइल्ल, आइल्लिय :: वि [आदिम] प्रथम, पहला सम १२९; भग। 'आइल्लियासु तिसु लेसासु' पणण १७; विसे २६२४।

आइवाहिअ :: पुं [आतिवाहिक] देव-विशेष, जो मृत जीव को दूसरे जन्म में ले जाने के लिए नियुक्त है; 'काहे अमाणवंता अग्गिमुहा, आइवाहिआ तव पुरिसा। अइलंघेहिति ममं अच्चुआ! तमगहणनिउणयरकंतारं' अच्चु ८५।

आइवाहिग :: पुं [आतिवाहिक] मार्गंदर्शंक वासुदेवहिंडी पत्र १५।

आइस :: सक [आ + दिश्] आदेश करना, हुकुम करना, फरमाना। आइसह पि ४७१। वकृ. आइसंत सुर १६, १३।

आइसण :: वि [दे] उज्झित, परित्यक्त दे १, ७१।

आईण :: वि [आदीन] १ अतिदीन, बहुत गरीब सुअ १, ५ २ न. दूषित भिक्षा सुअ १, १०

आईण :: पुं [दे] जातिमान् अश्‍व, कुलीन घोड़ा णाया १, १७।

आईण, आईणग :: न [आजिन, °क] १ चमड़े का बना हुआ वस्त्र णाया १, १; आचा २ पुं. द्वीप-विशेष। २ समुद्र विशेष जीव ३। °भद्द पुं [°भद्र] आजिन-द्वीप का अधिष्ठाता देव जीव ३। °महाभद्द पुं [°महाभद्र] देखो पूर्वोक्त अर्थ जीव ३। °महावर पुं [°महावर] आजिन और आजिनवर नामक समुद्र का अधिष्ठाता देव जीव ३। °वर पुं [°वर] १ द्वीप-विशेष। २ समुद्र-विशेष। ३ आजिन और अजिनवर समुद्र का अधिष्ठाता देव जीव ३। °वरभद्द पुं [°वरभद्र] आजिनवरद्वीप का अधिष्ठाता देव जीव ३। °वरमहाभद्द पुं [°वरमहाभद्र] देखो अनन्तर उक्त अर्थं जीव ३। °वरोभास पुं [°वरावभास] १ द्वीप-विशेष। २ समुद्रृ विशेष जीव ३। °वराभासभद्द पुं [°वराभासभद्र] उक्त द्वीप का अधिष्ठायक देव जीव ३। °वरोभासमहाभद्द पुं [°वरावभासमहाभद्र] देखो पूर्वोक्त अर्थं जीव ३। °वरोभासमहावर पुं [वराव- भासमहावर] अजिनवराभास नामक समुद्र का अधिष्ठाता देव जीव ३। °वरोभासवर [°वरावभासवर] देखो अनन्तरोक्त अर्थं जीव ३

आईनीइ :: स्त्री [आदिनीति] सामरूप पहली राजनीति सुपा ४६२।

आईय :: देखो आइ = आदि जी ७; काल।

आइय :: वि [आतीत] १ विशेष-ज्ञात। २ संसार-प्राप्त, संसार में घूमनेवाला आचा

आईल :: पुंन [आचील] पान का थूकना पव।

आईव :: अक [आ +दीप्] चमकना। वकृ़. आईवमाण महानि।

आईसर :: पुं [आदीश्वर] भगवान् ऋषभदेव सिरि ५५१।

आउ :: स्त्री [दे] १ पानी, जल दे १, ६१ २ इस नाम का एक नक्षत्र-देव ठा २, ३। °काय, °क्काय पुं [°काय] जलव का जीव उप ६८५; पणण १। °काइय, °क्काइय पुं [°कायिक] जल का जीव पणण १; भग २४, १३। °जीव पुं [°जीव] जल का जीव सुअ १, ११। °बहुल वि [°बहुल] १ जल-प्रचुर। २ रत्‍नप्रभा पृथिवी का तृतीय काण्ड सम ८८

आउ :: अ [दे] अथवा, या; 'आउ पलोहेइ मं अज्जउत्तवेसेण कोइ अमाणुसो, आउ सच्चयं चेव अजउत्तेत्ति' स ३४६।

आउ, आउअ :: न [आयुष्] १ आयु, जीवन- काल कुमा; रयणा १६ २ उमर, वय गा ३२ ३ आयु के कारणभूत कर्मं- पुद्‍गल ठा ८। °क्काल पुं [°काल] मरण, मृत्यु आचा। °क्खय पुं [°क्षय] मरण; मौत विपा १, १०। °क्खेम न [°क्षेम] आयु-पालन, जीवन आचा। °विज्जा स्त्री [°विद्या] वैद्यकशास्त्र, चिकित्साशास्त्र, आव। °व्वेय पुं [°वेद] वैद्यक, चिकित्सा- शास्त्र विपा १, ७

आउंच :: सक [आ + कुञ्चय्] संकुचित करना, समेटना। संकृ. आउंचिवि अप भवि।

आउंचण :: न [आकुञ्चन] संकोच, गात्रसंक्षेप कस।

आउंचणा :: स्त्री [आकुञ्चना] ऊपर देखो धर्मं ३।

अउंचिअ :: वि [आकुञ्चित] १ संकुचित। २ उठा कर धारण किया हुआ से ६, १७

आउंजि :: वि [आकुञ्चिन्] १ संकुचनेवाला। २ निश्चल गउड

आउंट :: देखो आउट्ट = अ-वर्त्तय्। आउंटावेमि णाया १, ५।

आउंट :: अक [आ + कुञ्‍च्] संकोचना; प्रयो. संकृ. आउंटावित्तु पव ५।

आउंटण :: न [आकुण्टन] आवर्जन पंचा १७, १९।

आउंटण :: न [आकुञ्चन] संकोच, गात्र-संक्षेप हे १, १७७।

आउंबालिय :: वि [दे] आप्लावित, डुबाया हुआ, पानी आदि द्रवपदार्थं से व्याप्त पाअ।

आउक्क, आउग :: देखो आउ = आयुष् सुपा ६५५; भग ६, ३।

आउच्छ :: सक [आ + प्रच्छ्] आज्ञा लेना, अनुज्ञा लेना। वकृ. आउच्छंत, आउच्छमाण से १२, २१; ४७। संकृ. आउच्छिऊण, आउच्छिय महा; सुपा ९१।

आउच्छण :: न [आप्रच्छन] आज्ञा, अनुज्ञा गा ४७, ५००।

आउच्छणा :: स्त्री [आप्रच्छना] प्रश्‍न पंचा १२, २६।

आउच्छा :: स्त्री [आपृच्छा] आज्ञा कुप्र १२४।

आउच्छिय :: वि [आपृष्ट] जिसकी आज्ञा ली गई हो वह से १२, ६४।

आउज्ज :: देखो आओज = आतोद्य हे १, १५६।

आउज्ज :: पुं [आवर्ज] १ संमुख करना। २ शुभ क्रिया पणण ३६

आउज्ज :: वि [आवर्ज्य] सम्मुख करने योग्य आवम।

आउज्ज :: वि [आयोज्य] जोड़ने योग्य, सम्बन्ध करने योग्य विसे ७४ ३२९६।

आउज्जिय :: वि [आतोद्यिक] वाद्य बजानेवाला सुपा १९९।

आउज्जिय :: वि [आयोगिक] उपयोगवाला, सावधान भग २, ५।

आउज्जिय :: वि [आवर्जित] संमुख किया हुआ वणण ३६।

आउज्जिया :: स्त्री [आवर्जिका] क्रिया, व्यापार आवम। °करण न [°करण] शुभ व्यापार- विशेष पणण ३६।

आउज्जीकरण :: न [आवर्जीकरण] शुभ व्यापार-विशेष पणण ३६।

आउट्ट :: सक [आ +धृत्] १ करना। २ भूलाना। ३ व्यवस्था करना। ४ अक. संमुख होना, तत्पर होना। ५ निवृत होना। ६ घूमना, फिरना। आउट्टइ, आउट्टंति भग ७, १; निचू ३। बकृ. आउट्टंत सम २२। संकृ. आउट्ठिऊण राज। हेकृ. आउट्टित्तए कप्प। प्रयो. आउट्टावेमि णाया १, ५ टी

आउट्ट :: सक [आ + कुटट्] छेदन करना, हिंसा करना। आउट्टामो आचा।

आउट्ट :: वि [आवृत्त] १ निवृत्त, पीछे फिरा हुआ उप ६६८, 'दप्पकए वाउट्टे जइ खिंसति तत्थवि तहेव' बृह ३ २ भ्रामित, भुलाया हुआ उप ९०० ३ ठीक-ठीक व्यवस्थित आचा ४ कृत, विहित राज

आउट्ट :: पुं [आकुट्ट] छेदन, हिंसा सुअ १, १।

आउट्ट, आउट्टिअ :: वि [आदृत] आदर-युक्त पिंड ३१९; पव ११२।

आउट्टण :: न [आकुट्टन] हिंसा सुअ १, १।

आउट्टण :: न [आवर्त्तन] १ आराधन, सेवा, भक्ति वव १, ९ २ अभिमुख होना; तत्पर होना सुअ १, १० ३ अभिलाषा, इच्छा आचा ४ घूमाना, भ्रमण। ५ निवृति सुअ १, १० ६ करना, क्रिया, कृति राज

आउट्टणया :: स्त्री [आवर्त्तनता] अपायज्ञान णंदि।

आउट्टणा :: स्त्री [आवर्त्तना] ऊपर देखो निचू २।

आउट्टावण :: न [आवर्त्तन] अभिमुख करना, तत्पर करना आचा २।

आउट्टि :: स्त्री [आकुट्टि] १ हिंसा, मारना आचा; उव २ निर्दंयता आप १८

आउट्टि :: स्त्री [आवृत्ति] देखो आउट्टण = आवर्तंन वव १, १; २, १०; सुअ १, १; आचाा। ५ बार-बार करना, पुनः पुनः क्रिया सुज्ज १२।

आउट्टि :: वि [आकुट्टिन्] १ मारनेवाला, हिंसक; 'जाणं काएण णाउट्टी' सुअ २ अकार्य-कारक दसा

आउट्टि :: वि [दे] साढ़े तीन, 'एगे पुण एवमा- हंसु ता आउट्टिं चंदा आउट्टि सूरा सव्वलोयं ओभासेंति सुज्ज १९।

आउट्टिम :: वि [आकुट्‍टय] कूटकर बैठाने योग्य जैसे सिक्के में अक्षर दसनि २, १७।

आउट्टिय :: देखो आउट्ट = आवृत्त दसा।

आउट्टिय :: पुं [आकुट्टित] दण्ड-विशेष भत्त २७।

आउट्टिय :: वि [आकुट्टित] छिन्न, विदारित सुअ।

आउट्टिया :: स्त्री [आकुट्टिका] पास में आकर करा पंचा १५, १८।

आउट्ठ :: वि [आतुष्ट] संतुष्ट निचु १।

आउड :: सक [आ + जोडय्] संबन्ध करना, जोड़ना। कबकृ, आउडिज्जमाण भग ५, ४।

आउड :: सक [आ + कुट्] १ कूटना, पीटना। २ ताडन करना, आघात करना। आउडेइ जं ३। कबकृ. आउडिज्जमाण भग ५, ४

आउड :: सक [लिख्] लिखना, 'इति कट्‍ठु णामगं आउडेइ' संकृ. आउडित्ता जं ३ — पत्र २५०।

आउडिय :: वि [आकुटित] आहत, ताडित जं ३ — पत्र २२२।

आउड्ड :: अक [मस्ज्] मज्जन करना, डुबना। आउड्डइ हे ४, १०१; षड्।

आउड्डिअ :: वि [मग्‍न] डुबा हुआ, तल्लीन कुमा।

आउण्ण :: वि [आपूर्ण] पूर्णं, भरपूर, व्याप्त; 'कुसुमफलाउणणहत्थेहिं' पउम ८, २०३।

आउत्त :: वि [आयुक्त] १ उपयोग वाला, सावधान कप्प २ क्रिवि. उपयोग-पूर्वंक भग ३ न. पुरीषोत्सर्गं, फरागत जाना ?। उप ६८५ ४ पुं. गाँव का नियुक्त किया हुआ मुखिया दे १, १६

आउत्त :: वि [आगुप्त] १ संक्षिप्त ठा ३, १ २ संयत भग

आउत्त :: वि [आत्मोत्थ] आत्म-कृत वव ४।

आउर :: वि [आतुर] १ रोगी, बीमार णंदि २ उत्कण्ठित। ३ दुखित, पीडित प्रासू २८; ६५

आउर :: न [दे] १ लड़ाई युद्ध। २ बि. बहुत। ३ गरम दे १, ६५, ७६

आउरिय :: वि [आतुरित] दुःखित, पीडित आचा।

आउल :: वि [आकुल] १ व्याप्त औप २ व्यग्र आव ३ व्याकुल, दुःखित। ४ संकीर्ण स्वप्‍न ७३ ५ पुं. समूह विसे ७००

आउल :: सक [आकुलय्] १ व्याप्त करना। २ व्यग्र करना। ३ दुःखी करना। ४ संकीर्णं करना। ५ प्रचुर करना। कवकृ — आउ- लिज्जंत. आउलीअमाण महा; पि ५६३

आउलि :: स्त्री [आतुलि] वृक्ष-विशेष दे ५, ५।

आउलिअ :: वि [आकुलित] आकुल किया हुआ गा २५; पउम ३३, १०६; उप पृ ३२।

आउलीकर :: सक [आखुली + कृ] देखो आउल = आकुलय्। आउलीकरेंति भग। कवकृ. आउलीकिअमाण नाट।

आउलीभू़त :: वि [आकुलीभूत] घबड़ाया हुआ सुर २, १०।

आउल्लय :: न [दे] जहाज चलाने का काष्ठमय उपकरण सिरि ४२४।

आउस :: अक [आ + वस्] रहना, वास करना। वकृ. आउसंत सम १।

आउस :: सक [आ + क्रुश्] आक्रोश करना, शाप देना, निष्ठुर वचन बोलना। आउसइ भग १५। आउसेज्ज, आउसेसि उवा।

आउस :: सक [आ +मृश्] स्पर्शं करना, छुना। वकृ. आउसंत सम १।

आउस :: सक [आ +जुष्] सेवा करना। वकृ. आउसंत सम १।

आउस :: न [दे] कूचँ दे १, ६५। क्षुरकर्म नंदीटि. टिप्पनक।

आउस :: देखो आउ = आयुष् कुमा।

आउस, आउसंत :: वि [अयुष्मत्] चिरायु, दीर्धायु सम २९; आचा।

आउसणा :: स्त्री [आक्रोशना] अभिशाप, निर्भ- र्त्संन णाया १, १८; भग १५।

आउस्स :: देखो आउस = आ + क्रुश्। आउ- स्सति णाया १, १८।

आउस्स :: पुं [आक्रोश] दुर्वंचन, असभ्य वचन सुअ १, ३, ३, १८।

आउस्सिय :: वि [आवश्यक] १ जरूरी। २ क्रिवि. जरूर, अवश्य पणण ३६। °करण न [°करण] १ मन, वचन और काया का शुभ व्यापार। २ मोक्ष के लिए प्रवृत्ति पणण ३६

आउह :: न [आयुध] १ शस्त्र, हथियार कुमा २ विद्याधर वंश के एक राजा का नाम पउम ५, ४४। °घर न [°गृह] शस्त्रशाला जं। °घरमाला स्त्री [°गृहशाला] देखो अनन्तर- उक्त अर्थं जं। °घरिय वि [°गृहिक] आयुघशाला का अध्यक्ष — प्रधान कर्मंचारी जं। °गार न [°गार] शस्त्रगृह औप

आउहि :: वि [आयुधिन्] योद्धा, शस्त्रधारक विसे।

आउड :: अक [दे] जुए में पण करना। आउ- डइ दे १, ६९।

आउडिय :: न [दे] द्युत-पण, जुए में की जात प्रतिज्ञा दे १, ६८।

आऊर :: सक [आ +पूरय्] भरना, पूर्त्ति करना, भूरपूर करना। आऊरेइ महा। कृ. आऊरयंत, आऊरमाण पउम १०२, ३३; से १२, २८। कवकृ. आऊरिज्जमाण पि ५३७। संकृ. आऊरिवि अप भवि।

आउरिय :: वि [आपूरित] भरा हुआ, व्याप्त सुर २, १६९।

आऊसिय :: वि [आयूषित] १ प्रविष्ट। २ संकुचित णाया १, ८

आएज्ज :: वि [आदेय] ग्रहण करने के योग्य उपादेय। °णाम, °नाम न [°नामन्] कर्मं- विशेष, जिसके उदय से किसी का कोई भी वचन ग्राह्य माना जाता है सम ६७।

आएस :: वि [ऐष्यत्] आगामी, भविष्य में होनेवाला सुअ १, २, ३, २०।

आएस :: पुं [आदेश] १ अपेक्षा। २ प्रकार, रीति णंदि १८४ ३ वि. नीचे देखो पिंड २३०

आएस :: देखो आवेस भग १४, २।

आएस, आएसग :: पुं [आदेश] १ उपदेश, शिक्षा। २ आज्ञा, हुकुम महा ३ विवक्षा, सम्मति सम्म ३७ ४ अतिथि, मेहमान सुअ २, १, ५६ ५ प्रकार, भेद; 'जीवे णं भंते। कालाएसेणं किं सपदेसे अपदेसे' भग ६, ४; जीव २; विसे ४०३ ६ निर्देश निचु ७ प्रमाण, 'जीव न बहुप्पसन्‍नं ता मीसं एस इत्थ आएसो' पिंड २१ ८ इच्छा, अभि- लाषा; देखो आएसि। ९ दृष्टान्त, उदाहरण; 'वाघाइयमाएसो अवरद्धो हुज अन्नतर एणं' आचानि २६७ १० सूत्र, ग्रन्थ, शास्त्र विसे ४०५ ११ उपचार, आरोप; 'आएशो उवयारो' विसे ३४, ८८ १२ शिष्ट सम्मत, 'बहुसुयमाएइणं तु, न बाहियणणेहिं जुगप्पहाणेहिं। आएसो सो उ भवे, अहवावि नयंतरविगप्पो' वव २, ८

आएसण :: न [आदेशन] ऊपर देखो महा।

आएसण :: न [आदेशन, आवेशन] लोहा वगैरह का कारखाना, शिल्पशाला आचा २, २, २, १०; औप।

आएसि :: वि [आदेशिन्] १ आदेश करनेवाला। २ अभिलाषी, इच्छुक आचा

आएसिय :: वि [आदिष्ट] जिसको आज्ञा दी गई हो वह भवि।

आएसिय :: वि [आदेशिक] १ आदेश संबन्धी। २ विवाह आदि के जिमन में बचे हुए वे खाद्य-पदार्थं जिनको श्रमणों में बाँट देने का संकल्प किया गया हो पिंड २२९

आओ :: अ [दे] अथवा, या; 'हंत किमेयंति, किं ताव सुविणओ, आओ इंदजालं, आओ मइविब्भमो, आओ सच्चयं चेवत्ति' स ४५४।

आओग :: पुं [आयोग] १ लाभ, नफा औप २ अत्यधिक सूद के लिए करजा देना भग ३ परिकर, संरजाम औप

आओग :: पुं [आयोग] अर्थोपाय, अर्थोपार्जन का साधन सुअ २, ७, २।

आओग्ग :: पुं [आयोग्य] परिकर, संरजाम औप।

आओज्ज :: पुंन [आयोग्य] वाद्य, बाजा महा; षड्।

आओज्ज :: वि [आयोज्य] संबन्ध-योग्य, जोड़ने योग्य विसे २३।

आओड :: सक [आ + खोटय्] प्रवेश कराना, घुसेड़ना। आओडावेंति विपा १, ६। आओडण न [आकोलन] मजबूत करना से ९, ६।

आओडिअ :: वि [दे] ताड़ित, मारा हुआ से ९, ६।

आओध :: अक [आ + युध्] लड़ना। आओ- घेहि वेणी १११।

आओस :: सक [आ + क्रुश्, क्रोशय्] आक्रोश करना, शाप देना। आओसइ निर १, १ आओसेज्जसि, आओसेमि उवा। कवकृ. आओसेज्जमाण अंत २२।

आओस :: पुं [दे] प्रदोष-समय, सन्ध्या-काल ओघ ९१ भा।

आओसणा :: स्त्री [आक्रोशना] निर्भर्त्सना, तिरस्कार निर १, १।

आओहण :: न [आयोधन] युद्ध, लड़ाई उप ६४८ टी; सुर ९, २२०।

आंत :: वि [अन्त्य] अन्त का पंचा १८, ३९।

आकंख :: सक [आ + काङ्क्ष्] चाहना, इच्छना। आकंखिहि भवि।

आकंखा :: स्त्री [आकाङ्कक्षा] चाह, इच्छा, अभिलाषा विसे ८५६।

आकंखि :: वि [आकाङ्क्षिन्] अभिलाषी, इच्छुक आच।

आकंद :: अक [आ +क्रन्द्] रोना, चिल्लाना। आकंदामि पि ८८।

आकंदिय :: न [आक्रन्दित] १ आक्रन्दन, रोदन। २ वि. जिसने आक्रन्दन किया हो वह दे ७, २७

आकंप :: अक [आ + कम्प्] १ थोड़ा काँपना। २ तत्पर होना। ३ आराधन करना। संकृ. आकंपइत्ता, आकंपइत्तु राज

आकंप :: पुं [आकम्प] १ थोड़ा काँपना। २ आराधन वव ३ तत्परता, आवर्जंन राज

आकंपण :: न [आकम्पन] ऊपर देखो वव; धर्मं।

आखंपिय :: वि [आकम्पित] ईषत् चलित, कम्पित उप ७२८ टी।

आकंपिय :: वि [आकम्पित] आवर्जित, प्रसन्न किया हुआ पिंड ४३६।

आकड्‍ढ :: पुं [आकर्ष] खींचाव। °विकडि्ढ स्त्री [°विकृष्टि] खींच-तान भग १५।

आकड्‍ढण :: न [आकर्षण] खींचाव निचु।

आकडि्ढय :: वि [दे] बाहर निकाला हुआ, 'पुव्वं व वच्छ तीए निब्भच्छिया ता धरित्तु गलयम्मि। पच्छिमओसोगवणियादारेणाकडि्ढया झत्ति।।' धर्मंवि १३३।

आकण्णण :: न [आकर्णन] श्रवण नाट।

आकण्णिय :: वि [आकर्णित] श्रुत, सुना हुआ आचा।

आकदि :: देखो आकिदि संक्षि ९।

आकम्हिय :: वि [आकस्मिक] अकस्मात् होनेवाला, विना ही कारण होनेवाला; 'बज्झनि- मित्ताभावा जं भयमाकम्हियं तंति' विसे ३४५१।

आकर :: पुं [आकर] १ खान। २ समूह कुमा

आकस :: देखो आगम। आकसिस्सामो आचा २, ३, १, १५ हेकृ. आकसित्तए आचा २, ३, १, १५।

आकार :: देखो आगार कुमा; दं १३।

आकास :: देखो आगास भग।

आकासिय :: वि [दे] पर्याप्त, काफी षड्।

आकिइ :: स्त्री [आकृति] स्वरूप, आकार हे १, २०९।

आकिंचण :: न [आकिञ्चन्य] निस्पृहता, निष्परिग्रहता; 'आकिंचणं च बंभं च जइ- धम्मो' नव २३।

आकिंचणया :: स्त्री [आकिञ्चनता] ऊपर देखो सम १२०।

आकिंचणिय, आकिंचन्न :: देखो आकिंचण आचू; सुपा ६०८।

आकिट्ठि :: स्त्री [आकृष्टि] आकर्षँण धर्मं वि १५।

आकिदि :: देखो आकिइ कुमा।

आकुंच :: सक [आ + कुञ्चय] संकोच करना। आकुंचइ ; संकृ. आकुंचिवि अप भवि।

आकुंचण :: न [आकुञ्चन] संकोच, संक्षेप सम्म १३३; विसे २४९२।

आकुंचिय :: वि [आकुञ्चित] संकुचित, 'रुद्धं गलयं आकुंचियाओ घमणीओ पसरिया वियणा' सुर ४, २३८।

आकुट्ठ :: न [आक्रुष्ट] १ आक्रोश। २ वि. जिस पर आक्रोश किया गया हो वह दे ३, ३२

आकुल :: दे आउल कप्प।

आकूय :: न [आकूत] १ इङ्गित, इशारा उप ७२८ टी २ अभिप्राय विसे ९२८

आकेवलिय :: वि [आकेवलिक] असंपूर्णं आचा।

आकोडण :: न [आकोटन] कूट कर घुसेड़ना पणह १, ३।

आकोस :: देखो अक्कोस = आक्रोश पंच ४, २३।

आकोसाय :: अक [आकोशाय्] विकसित होना। बकृ. आकोसायंत पणह १, ४।

आक्कंद :: मा देखो आकंद। आक्कंदामि पि ८८।

आखंच :: अप सक [आ + कृष्] पीछे खींचना। संकृ. आखंचिवि भवि।

आखंडल :: पुं [आखण्डल] इन्द्र सुपा ४७। °धणुह न [°धनुष्] इन्द्रधनुष् उप ९८६ टी। °भूइ पुं [°भूति] भग- वान् महावीर के मुख्य शिष्य गौतम-स्वामी पउम ११८, १०२।

आगइ :: स्त्री [आगति] आगमन आचा; विसे २१४६।

आगइ :: देखो आकिइ महा।

आगंतव्व :: देखो आगम = आ + गम्।

आगंतगार, आगंतार :: न [आगन्त्रगार] धर्मंशाला, मुसाफिरखाना औप; आचा।

आगंतु :: वि [आगन्तृ] आनेवाला सुअ।

आगन्तु :: देखो आगम = आ + गम्।

आगंतुग, अगंतुय :: वि [आगन्तुक] १ आनेवाला। २ अतिथि स ४७१; चारु २४; सुपा ३३६; ओघ २१६ ३ कृत्रिम, अस्वा- भाविक सुर १२, १०

आगंतूण :: देखो आगम = आ + गम्।

आगंप :: सक [आ +कम्पय्] कँपाना, हिलाना। वकृ. आगंपयंत स ३३१; ४४३।

आगंपिय :: देखो आकंपिय पउम ३४, ४३।

आगच्छ :: सक [आ +गम्] आना, आग- मन करना। आगच्छइ महा। भवि. आगच्छिस्सइ पि ५२३। वकृ. आगच्छंत, आगच्छमाण काल; भग। हेकृ. आग- च्छित्तए पि ५७८।

आगत :: देखो आगय सुर २, २४८।

आगत्ती :: स्त्री [दे] कूप-तुला दे १, ६३।

आगम :: सक [आ + गम्] १ आना आगमन करना। २ जानना। भवि. आगमिस्सं पि ५२३; ५६०। वकृ. आगममाण आचा। संकृ. आगंतूण, आगमेत्ता, आगम्म पि ५८१; ५८२; औप। कृ. आगंतव्व सुपा १२। हेकृ. आगंतुं काल

आगम :: पुं [आगम] १ समागम पंच, १४५ २ ज्ञान, जानकारी; 'चोद्दसंविज्जाटाणाणं आगमे कए' सुख २, १३

आगम :: पुं [आगम] १ आगमन से १४, ७५ २ शास्त्र, सिद्धान्त जी ४८। °कुसल, वि [°कुशल] सिद्धान्तों का जानकार उत्त। °ज्ज वि [°ज्ञ] शास्त्रों का जानकार प्रारू। °णीइ स्त्री [°नीति] आगमोक्त विधि धर्म २। °ण्णु वि [°ज्ञ] शास्त्रों का जानकार प्रारू। °परतंत वि [°परतन्त्र] सिद्धान्त के अधीन पंचव। °वलिय वि [°बलिक] सिद्धान्तों का अच्छा जानकार भग ८, ८। °ववहार पुं [°व्यवहार] सिद्धान्तानुमोदित व्यवहार वव

आगम :: सक [आ +गम्] प्राप्त करना। संकृ. आगमिता सुअ २, ७, ३६।

आगमण :: न [आगमन] आगमन श्रा ४।

आगमि :: वि [आगमिन्] आनेवाला, आगामी विसे ३१५४।

आगमिअ :: वि [आगमित] विदित, ज्ञात; 'तत्थ अच्छंतो आगमिओ' सुख १, ३।

आगमिय :: वि [आगमिक] १ शास्त्र-संबन्धी, शास्त्र-प्रतिपादित उवर १५१ २ शास्त्रोक्त वस्तु को ही माननेवाला सम्म १४२

आगमिर :: वि [आगन्तृ] आनेवाला, आगमन करनेवाला सण।

आगमिस्स :: वि [आगमिष्यत्] १ आगामी, होनेवाला पउम ११८, ६३ २ आनेवाला सम १५३

आगमिस्सा :: स्त्री [आगमिष्यन्ती] भविष्य- काल, 'अइअकालम्मि आगमिस्साए' पच्च ६०।

आगमेस, आगमेसि :: देखो आगमिस्स अंत १६; औप।

आगम्म :: देखो आगम = आ + गम्।

आगय :: वि [आगत] १ आया हुआ प्रासू ५ २ उत्पन्न णाया १, ७

आगर :: देखो आकर = आकर आचा; उप ८३३ टी।

आगर :: वि [आकरिन्] खान का मालिक, खान का काम करनेवाला पणह १, २।

आगरिस :: पुं [आकर्ष] १ ग्रहण, उपादान बिसे २७८०; समं १४७ २ खींचाव विसे २७८०; हे १, १७७ ३ ग्रहण कर छोड़ देना आचू ४ प्राप्ति भग २५, ७

आगरिस :: सक [आ +कृष्] खींचना। वकृ. आगरिसंत धर्मंसं ३७२।

आगरिसग :: वि [आकर्षक] १ खींचनेवाला। २ पुं. अयस्कान्त, लोह-चुम्बक आवम

आगरिसण :: न [आकर्षण] खींचाव सम्मत्त २१५।

आगरिसणी :: स्त्री [आकर्षणी] विद्या-विशेष सुर १३, ८१।

आगरिसिय :: वि [आकृष्ट] खींचा हुआ सुपा १६६; महा।

आगल :: सक [आ + कलय्] १ जानना। २ लगाना। ३ पहुँचाना। ४ संभावना करना। आगलेइ उव। आगलेंति भग ३, २।ष संकृ. 'हत्थिं खंभम्मि आगलेऊण' महा

आगल्ल :: वि [आग्लान] ग्लान, बीमार बृह १।

आगस :: सक [आ + कृष्] खींचना। आग- साहि आचा २, ३, १, १४। संकृ. आग- सिउं विसे २२२।

आगह :: देखो आगाह। संकृ, आगहइत्ता दस ५, १, ३१।

आगहिअ :: वि [आगृहीत] संगृहीत विसे २२०४।

आगाढ :: वि [आगाढ] १ प्रबाल, दुःसाध्य; 'कडुगोसहंव आगाढरोगिणो रोगसमदच्छं' उप ७२८ टी; 'नो कप्पइ निग्गंथाण वा निग्गं- थीण वा अन्नमन्नस्स मोए आइइत्तए, नन्नत्थ आगढेहिं रोगायंकेहिं' कस २ अपवाद, खास कारण पंचभा ३ अत्यन्त गाढ निचू। °जोग पुं [°योग] योग-विशेष, गणि-योग ओघ ५४८। °पण्ण न [°प्रज्ञ] शास्त्र, आगम; 'आगाढपणणंसु य भवियप्पा' वव। °सूय न [°श्रुत] आगम-विशेष निचू

आगामि :: वि [आगामिन्] आनेवाला सुपा ९।

आगार :: सक [आ + कराय्] बुलाना, आह्वान करना। संकृ. आगारेऊण आव।

आगार :: न [आगार] १ घर, गृह णाया १, १; महा २ वि. गृहस्थ, गृही ठा। °त्थं वि [°स्थ] गृही पि ३०९

आगार :: पुं [आकार] १ अपवाद उप ७२८ टी ; पडि २ इंगित, चेष्टा-विशेष सुर ११, १६२ ३ आकृति, रूप सुपा ११५

आगारिय :: वि [आगारिक] गृहस्थ-संबन्धी विसे।

आगारिय :: वि [आकारित] १ आहूत। २ उत्साहित, परित्यक्त आव

आगाल :: पुं [आगाल] १ समान प्रदेश में रहना। २ सम भाव से रहना आचा ३ उदीण्णा-विशेष राज

आगास :: पुंन [आकाश] आकाश, अन्तराल उवा। °गमा स्त्री [°गमा] विद्या-विशेष, जिसके बल से आकाश में गमन कर सकता है पउम ७, १४४। °गामि वि [°गामिन्] आकाश में गमन करनेवाला, पक्षि-प्रभृति आचा। °जोइणी स्त्री [°योगिनी] पक्षि- विशेष, 'आगासजोइणीए निसुओ सद्दोवि वाम- पासम्मि' सुपा १८५। °त्थिकाय पुं [°स्तिकाय] आकाश-प्रदेशों का समूह, अखण्ड आकाश-द्रव्य पणण १। °थिग्गलन [दे] मेघरहित आकाश का भाग आवम। °फलिह, °फालिय पुं [°स्फटिक] निर्मंल स्फटिक-रत्‍न राय; औप। °फालिया स्त्री [°फालिका] एक मीठा द्रव्य पणण १७।

°इवाइ :: वि [°तिपातिन्] विद्या आदि के बल से आकाश में गमन करनेवाला औप।

आगासिय :: वि [आकाशित] आकाश को प्राप्त औप।

आगासिय :: वि [आकर्षित] खींचा हुआ औप।

आगासिया :: स्त्री [आकाशिकी] आकाश में गमन करने की लब्धि-शक्ति सुअनि १६३।

आगाह :: सक [अव + गाह्] अवगाहन करना, स्‍नान करना। आगाहइत्ता दस ५, १, ३१।

आगिइ :: स्त्री [आकृति] आकार, रूप, मूर्त्ति सुर २, २२; विपा १, १।

आगिट्ठि :: स्त्री [आकृष्टि] आकर्षंण सुपा २३२।

आगी :: देखो आगिइ; 'छिण्णवलिरुयगागी- दिसासु सामाइयं न जं तासु' विसे २७०७।

आगु :: पुं [आकु] अभिलाष, इच्छा आक। आघं देखो आघव। 'सूत्रकृतांग' सूत्र के प्रथम श्रुतस्कन्ध का दसवाँ अध्यसन सुअ १, १०।

आधंस :: सक [आ + घृष्] घर्षंण करना निचु।

आघंस :: सक [आ + घृष्] घिसाना, थोड़ा, घिसाना। आघंसिज्ज आचा २, २, १, ४।

आघंस :: वि [आघर्ष] जल के साथ घिसकर जो पिया जो सके वह पिंड ५०२।

आघंसण :: न [आघर्षण] एक बार का घर्षंण निचु।

आघयण :: न [दे] वध-स्थान णाया १, ९ — पत्र १६७।

आघव :: सक [आ + ख्या] १ कहना, उपदेश देना। २ ग्रहण करना। आघवेइ ठा। कवकृ. आघविज्जए भग। भूका. आर्घं सुअ ; पि ८८। वकृ. आघवेमाण पि ४४। हेकृ. आघवित्तए पि ८८

आघवणा :: स्त्री [आख्यान] कथन, उक्ति णाया १, ९।

आघवइत्तु :: वि [आख्यायक] कथक, वक्ता, उपदेशक ठा ४, ४।

आघविय :: वि [आख्यात] उक्त, कहा हुआ पि ४४।

आघविय :: वि [दे] गृहीत, स्वीकृत अणु २०।

आघवेत्तग :: वि [आख्यापयितृक] उपदेष्टा, वक्ता आचा।

आघस :: सक [आ + घस्] थोड़ा घिसना। आघसावेज निचु।

आघा :: सक [आ + ख्या] कहना। आचा।

आघा :: सक [आ + घ्रा] सूँघना। बकृ. आघा- यंत उप ३५७ टी।

आघाय :: वि [आख्यात] कथित, उक्त आचा।

आधाय :: वि [आख्यात] १ उक्त, कथित सुअ १, १३, २ २ न. उक्ति, कथन सुअ १, १, २, १

आघाय :: पुं [आघात] १ एक नरक-स्थान देवेन्द्र २६ २ विनाश उक्त ५, ३२; सुख ५, ३२

आघाय :: पुं [आघात] १ वध। २ चोट, प्रहार कुमा; णाया १, ९

आघायंत :: देखो आघा = आ + घ्रा।

आघाव :: देखो आघव। आघावेइ पि ८; २०२।

आघुट्ठ :: वि [आघुष्ट] घोषित, जाहिर किया हुआ भवि।

आधुम्म :: अक [आ + घूर्ण] डोलना, हिलना, काँपना, चलना।

आघुम्मिय :: वि [आघूर्णिंत] डोला हुआ, कम्पित, चिलत; 'आघुम्मियनयणजुओ' पउम १०, ३२; ८७, ५६।

आघोस :: सक [आ + घोषय्] घोषणा करना, ढिंढोरा पिटवाना। आघोसेह स ९०।

आघोसण :: न [आघोषण] ढिंढोरा, घोषणा महा।

आचक्ख :: सक [आ + चक्ष्] कहना। वकृ. आचक्खंत पि २५; ८८; नाट।

आचक्खिद :: शौ वि [आख्यात] उक्त, कथित अभि २००।

आवरिय :: वि [आचरित] १ अनुष्ठित, विहित। २ न. आचरण प्रासू १११

आचाम :: सक [आ + चामय्] चाटना, खाना, पीना। वकृ. आचामंत कुप्र ३६।

आचार :: देखो आयार = आचार कुमा।

आचारिअ :: दोखो आयरिय = आचार्य प्राप।

आचिक्ख :: सक [आ + चक्ष्] कहना। कृ. आचिक्खणीय स ४०।

आचिक्खिय :: वि [आख्यात] कथित, उक्त स ११९।

आचुण्णिअ :: वि [आचूर्णित] १ चूर-चूर किया हुआ पउम १७, १२०

आचेलक्क :: न [आचेलक्य] १ वस्त्र का अभाव कप्प २ वि. आचार विशेष; 'आचेलक्को धम्मो' पंचा

आच्छेदण :: न [आच्छेदन] १ नाश। २ वि. नाशक कुमा

आजत्थ :: देखो आगम + आ = गम्। आजत्थइ प्राकृ ७४।

आजाइ :: देखो आयाइ ठा; स १७८।

आजि :: देखो आइ = आजि कुमा; दे १, ४६।

आजीरण :: पुं [आजीरण] स्वनामख्यात एक जैन मुनि, 'आजीरणो य गीओ' संथा ६७।

आजीव, आजीवग :: पुं [आजीव] १ आजीविका, जीवन-निर्वाह का उपाय; 'आजी- वमेयं तु अबुज्जमाणो पुणो पुणो पिप्परिया- सुवेंति' सुअ १ जैन साधु के लिए भिक्षा का एक दोष — गृह्थ को अपनी जाति, कुल आदि की समानता बतलाकरे उससे भिक्षा ग्रहण करना ठा ३, ४ ३ गोशआलक मत का अनुयायी साधु पव ४ धन का समूह सुअ

आजीवग :: पुं [आजीवक] १ धन का गर्व सुअ २ सकल जीव जीव ४ टी। देखो आजीवय।

आजीवण :: न [आजीवन] १ आजीविका, जीवन-निर्वाह का उपाय। २ जैन साधु के लिए भिक्षा का एक दोष वव

आजीवणा :: स्त्री [आजीवना] ऊपर देखो दंस; जीत।

आजीवय :: देखो आजीवग; 'आजीवयदिट्ठ तेणं चउरासीतिजातिकुलकोडीजोणिपमुहसयसहस्सा भवंतीतिमक्खाया' जीव ३।

आजीविय :: वि [आजिविक] गोशालक के मत का अनुयायी पणण २०; उवा।

आजिविया :: स्त्री [आजीविका] १ निर्वाह आव २ जैन साधु के लिए भिक्षा का एक दोष उत्त

आजुत्त :: वि [आयुक्त] अप्रमादी निचू।

आजुज्झ :: अक [आ + युध्] लड़ना। हेकृ. आजुज्झिदुं शौ वेणी १२४।

आजुह :: न [आयुध] हथियार मै २४।

आजोज्ज :: देखो आओज्ज विसे १५०३।

आडंबर :: पुं [आडम्बर] १ आटोप, ऊपरी दिखाव पाअ २ वाद्य की आवाज ठा ३ यक्ष-विशेष आचू ४ न. यक्ष का मन्दिर पव

आडंबर :: पुं [आडम्बर] वाद्य-विशेष, पटह अणु १२८।

आडंबरिल्ल :: वि [आडम्बरवत्] आडम्बरी पाअ।

आडविय :: वि [दे] १ चूर्णित, चूर-चूर किया हुआ षड्

आडविय :: वि [आटविक] जंगल में रहनेवाला, जंगली स १२१।

आडह :: सक [आ + दह्] चारों ओर से जलाना। आडहइ पि २२२; २२३। आड- हंति पि २२२; २२३।

आडह :: सक [आ + धा] स्थापन करना, नियुक्त करना। आडहइ। संकृ. आडहेत्ता औप।

आडाडा :: स्त्री [दे] वलात्कार, जबरदस्ती दे १, ६४।

आडासेतीय :: पुं [आडासेतीक] पक्षि-विशेष पणह १, १।

आडि :: स्त्री [आटि] १ पक्षि-विशेष। २ मत्स्य- विशेष दे ८, २४

आडियत्तिय :: पुं [दे] शिविका-बाहक पुरुष ? स ५३७; ५४१।

आडुआल :: सक [दे] मिश्र करना, मिलाना। आडुआलइ दे १, ६९।

आडुआलि :: पुं [दे] मिश्रता, मिलावट दे १, ६९।

आडोय :: देखो आडोव = आटोप सुपा २६२।

आडोलिय :: वि [दे] रुद्ध, रोका हुआ णाया १, १८।

आडोव :: सक [आ + टोपय्] १ आडंबर करना। २ पवन द्वारा फूलाना। आडोवेइ भग। संकृ. आडेवेत्ता भग

आडोव :: पुं [आटोप] आडम्बर उवा ; सण।

आडेविअ :: वि [दे] आरोपित, गुस्सा किया हुआ दे १, ७०।

आडोविअ :: वि [आटोपिक] आटोपवाला, स्फारित पणह १, ३।

आढई :: स्त्री [आढकी] वनस्पति-विशेष पणण १।

आढग :: पुंन [आढक] १ चार प्रस्थ सेर का एक परिमाण। २ चार सेर परिमित चीज औप; सुपा ९७

आढत्त :: वि [दे] आक्रान्त, 'एत्थंतरम्मि विजय- वम्मनरवइणा आढत्तो लच्छिनिलयसामी सूर- तेओ नाम नरवई स १४०।

आढत्त :: वि [आरब्ध] शूरू किया हुआ, प्रारब्ध ओघ ४८२ ; हे २, १३८।

आढत्तिअ, आढविअ :: वि [आरब्ध] प्रांरभ किया हुआ मंगल २३; चेइय १४८।

आढप्प° :: देखो आढव।

आढय :: देखो आढग मह; ठा ३, १।

आढव :: सक [आ + रभ्] आरंभ करना, शुरू करना। आढवइ हे ४, १५५ ; धम्म २२। कर्मं. आढप्पइ, आढवीअइ हे ४, २५४।

आढा :: सक [आ + दृ] आदर करना, मानना। आढाइ उवा। वकृ. आढामाण, आढायमाण पि ५००; आचा। कवकृ. आइज्जमाण आचा।

आढा :: स्त्री [आदर] संमान पव २ — गाथा १५५; संबोध ५५।

आढिअ :: वि [आदृत] सत्कृत, सम्मानित हे १, १४३।

आढिअ :: वि [दे] १ इष्ट, अभीष्ट। २ गणनीय, माननीय। ३ अप्रमत्त, उद्युक्त। ४ गाढ़, निबिड दे १, ७४

आण :: सक [ज्ञा] जानना, 'किंव न आणह एअं' से १३, ३। आणसि से १५, २८ ; 'अमिअं पाइअकव्वं पढिउं सोउं च जे ण आणंति' गा २। आणे अभि १९७।

आण :: सक [आ + णी] लाना, आनयन करना, ले आना। आणइ पि १७; भवि। वकृ. आणमाणे णाया १, १६। हेकृ. आणिवि अप भवि।

आण :: पुं [आन] १ श्‍वासोच्छ्‍वास, सांस। २ श्‍वास के पुद्‍गल पणण

°आण :: देखो जाण = यान चारु ८।

आणंछ :: देखो आअंछ। आणंछइ षड्।

आणंत :: देखो आणी।

आणंतरिय :: न [आनन्तर्य] १ अविच्छेद, व्यवधान का अभाव ठा ४, ३ २ अनुक्रम, परिपाटि; 'आणंतरियंति वा अणुपरिवाडित्ति वा अउणक्कमेत्ति वा एगठ्ठा' आचू

आणंद :: अक [आ + नन्द्] आनन्द पाना, खुश होना।

आणंद :: सक [आ + नन्दय्] खुश करना। आणंदेदि शौ। नाट। कृ. आणंदिअव्व रयण १०।

आणंद :: पुं [आनन्द] १ अहोरात्र का सोल- हवाँ मूहुर्त सुज्ज १०, १३ २ एक देव- विमान देवेन्द्र १३१

आणंद :: पुं [आनन्द] १ हर्षं, खुशी कुमा २ भगवान् शीतलनाथ के मुख्य-शिष्य सम १५२ ३ पोतनपुर नगर का एक राजा, जो भगवान् अजितनाथ का मातामह था पउम ५, ५२ ४ भावी छठवाँ बलदेव सम १५४ ५ नागकुमार-जातीय देवों के स्वामी घरणेन्द्र के एक रथ-सैन्य का अधिपति देव ठा ५, १ ६ मुहूर्त्तं-विशेष सम ५१ ७ भगवान् ऋषभदेव का एक पुत्र राज ८ भगवान् महावीर के एक साधु शिष्य का नाम कप्प ९ भगवान् महावीर के दस मुख्य उपासकों श्रावक-शिष्य में पहला उवा १० देव-विशेष जं ; दीव ११ राजा श्रेणिक के एक पौत्र का नाम निर २, १ १२ 'उपासगदसा' सूत्र का एक अध्ययन उवा १३ 'अणुत्तरोपुपातिक दसा' सूत्र का सातवाँ अध्ययन भग १४ 'निरयावली' सूत्र का एक अध्ययन निर २, १ १५ ब. देश-विशेष पउण ९८, ६६। °पुर न [°पुरप] नगर-विशेष बृह। °रक्खिय पुं [°रक्षित] स्वमामख्यात एक जैन साधु भग

आणंदण :: न [आनन्दन] १ खुशी, हर्षं सुपा ४४० २ वि. खुश करनेवाला, आनन्द- दायक स ३१३ ; रयण ३; सण

आणंदवड, आणंदवस :: पुं [दे] पहली बार की रज- स्वला का रक्त वस्त्र गा ४५७ ; दे १, ७२ ; षड्।

आणंदा :: स्त्री [आनन्दा] १ देवी-विशेष, मेरु की पश्चिम दिशा में स्थित रुचक पर्वंत पर रहनेवाली एक दिक्कुमारी ठा ८ २ इस नाम की एक पुष्करिणी राज

आणंदिय :: वि [आनन्दित] १ हर्षंप्राप्त औप २ रामचन्द्र के भाई भरत के साथ दीक्षा लेनेवाला एक राजा पउम ८५, ३

आणंदिर :: वि [आनन्दिन्] आनन्दी, खुश रहनेवाला भवि।

आणक्ख :: सक [परि + ईक्ष्] परीक्षा करना। हेकृ. आणक्खेउं ओघ ३६।

आणच्छ :: देखो आअंछ। आणच्छइ षड्।

आणट्ठ :: वि [आनष्ट] सर्वथा नष्ट उत्त १८, ५०; सुख १८, ५०।

आणण :: न [आनन] मुख, मुँह कुमा।

आणण :: न [आनयन] लाना महा।

आणत्त :: वि [आज्ञप्त] आदिष्ट, जिसको हुकुम दिया गया हो वह णाया १, ८ ; सुर ४, १००।

आणत्ति :: स्त्री [आज्ञप्ति] आज्ञा, हुकुम अभि ८१। °अर वि [°कर] आज्ञाकारक, नौकर से ११, ९५। °किंकर वि [°किङ्कर] नौकर पणह। °हर वि [°हर] आज्ञा- वाहक, संदेश-वाहक अभि ८१।

आणत्तिया :: स्त्री [आज्ञप्तिका] ऊपर देखो उवा; पि ८८।

आणत्थ :: न [आनर्थ्य] अनर्थता समु १५०।

आणप :: अंशो देखो आणव = आ + ज्ञपय्। आणपयति पि ४।

आणपाण :: देखो आणापाण नव ६।

आणप्प :: वि [आज्ञाप्य] आज्ञा करने योग्य सुअ १, ४, २, १५।

आणम :: अक [आ + अन्] श्‍वास लेना। आणमंति भग।

आणमणी :: देखो आणवणी भास १८; पि ८८; २४८।

आणय :: पुंन [आनत] १ देवलोक-विशेष सम ३५ २ पुं. उस देवलोक-बासी देव उत्त

आणय :: पुंन [आनत] एक देवविमान देवेन्द्र १३५।

आणयण :: न [आनयन] लाना, आनना श्रा १४; स ३७६।

आणव :: सक [आ + ज्ञपय्] आज्ञा देना, फरमाना। आणवइ, आणवेसि पउम ३३, १००; ९८। वकृ. आणवेमाण पि ५५१। कृ. आणवेयव्व महा।

आणव :: देखो आणव = आ + नायय्।

आणवण :: न [आज्ञपन] आज्ञा, आदेश, फर- माइश उवा; प्रामा।

आणवण :: न [आनायन] मँगवाना सुपा ५७८।

आणवणिय :: वि [आज्ञापनिक] आज्ञा फर- मानेवाला राय २५।

आणवणिया :: स्त्री [आज्ञापनिका, आनाय- निका] देखो दोनों आणवणी ठा २, १।

आणवणी :: स्त्री [आज्ञापनी] १ क्रिया-विशेष, हुकुम करना। २ हुकुम करने से होनेवाला कर्मबन्ध नव १९

आणवणी :: स्त्री [आनायनी] १ क्रिया-विशेष, मँगवाना। २ मँगवाना से होनेवाला कर्म-बन्ध नव १९

आणा :: स्त्री [आज्ञा] आदेश, हुकुम ओघ ९०।२ उपदेश, 'एसा आणा निग्गंधिया' आचा ३ निर्देश, 'उववाओ णिद्देसो आणा विणओ य होंति एगट्ठा' वव ४ आगम, सिद्धान्त विसे ८९४; णंदि ५ सूत्र की व्याख्या औप। °ईसर पुं [°ईश्‍वर] आज्ञा फरमानेवाला मालिक विपा १, १। °जोग पुं [°योग] १ आज्ञा का सम्बन्ध पंचा। २ शास्त्र के अनुसार कृति, 'पावं विसाइतुल्लं आणाजोगो अ मंतसमो' पंचव। °रुइ स्त्री [°रुचि] सम्यक्त्व-विशेष उत्त। २ वि. आगमों पर श्रद्धा रखनेवाला पंच। °व वि [°वत्] आज्ञा माननेवाला पंचा। °वत्त न [°पत्र] आज्ञापत्र, हुकुमनामा से १, १८। °ववहार पुं [°व्यवहार] व्यवहार- विशेष पंचा। °विजय न [°विचय, °विजय] धर्मध्यान-विशेष, जिसमें आज्ञा — आगम के गुणों का चिन्तन किया जाता है औप

आणाइ :: पुं [दे] शकुनि, पक्षी दे १, ६४।

आणाइत्त :: वि [आज्ञावत्] आज्ञा माननेवाला पंचा।

आणाइय :: वि [आनायित] मँगाया हुआ कुमा २, २१।

आणापाण :: पुं [आनप्राण] १ श्‍वासोच्छ्‍वास प्रासू १०४ २ श्‍वासोच्छ्‍वास-परिमित समय अणु। °पज्जत्ति स्त्री [°पर्याप्ति] श्‍वासोच्छ्‍वास लेने की शक्ति भग ६, ४

आणापाणु :: स्त्री [आनप्राण] ऊपर देखो; 'आणापाणुओ' भग २५, ५।

आणापाणुय :: पुं [आनप्राणक] श्‍वासो- च्छ्‍वास-परिमित काल कप्प।

आणाम :: पुं [आनाम] श्‍वास, अन्तःश्‍वास भग।

आणामिय :: वि [आनामित] १ थोड़ा नमाया हुआ पणह १, ४ २ अधीन किया हुआ पउम ९८, ३७

आणाल :: पुं [आलान] १ बन्धन। २ हाथी बाँधने की रज्जु — डोरी। ३ जहाँ पर हाथी बाँधा जाता है वह स्तम्भ, कील हे २, १७७; प्रामा। °क्खंभ, °खंभ पुं [°स्तम्भ] जहाँ हाथी बाँधा जाता है वह स्तम्भ हे २, ११७

आणाव :: देखो आणव = आ + ज्ञपय्। आणा- वेइ स १२६। कवकृ. आणाविज्जंत. सुपा ३२३। कृ. आणावेयव्य आचा।

आणाव :: सक [आ + नायय्] मँगवाना। आणावइ भवि। संकृ. आणाविय नाट।

आणाव :: अप सक [आ + नी] लाना। आणावइ प्राकृ १२०।

आणावण :: न [आनायन] दूसरे से मँगवाना, 'सयमाणयणे पढमा बीया आणावणेण अन्‍नेहिं संबोध ७।

आणावण :: न [आज्ञापन] आज्ञा, हुकुम षड्।

आणाविय :: वि [आज्ञापित] जिसको हुकुम किया गया हो वह, फरमाया हुआ सुपा २५१।

आणाविय :: वि [आनायित] मँगवाया हुआ सुपा ३८५।

आणि :: देखो आणी। कृ. आणियव्व रयण ९। संकृ. आणिय नाट।

आणिअ :: वि [आनीत] लाया हुआ हे १, १०१।

आणिअ :: [दे] देखो आढिअ दे १, ७४।

आणिक्क :: वि [दे] टेढ़ा, वक्र से ९, ८६।

आणिक्क :: न [दे] तिर्यक्, मैथुन दे १, ६१।

आणी :: सक [आ + नी] लाना। कर्मं. आणीअइ पि ५४८। वकृ. 'आणंतीए गुणेसु, दोसेसु परंमुहं कुणंतीए' मुद्रा २३६। संकृ. आणीय विसे ९१६। कवकृ. आणिज्जंत सुपा १९३।

आणीय :: वि [आनीत] लाया हुआ हे १, १०१; काल।

आणुअ :: न [दे] १ मुख, मुँह दे १, ६२; षड् २ आकार, आकृति दे १, ६

आणुओगिअ :: वि [आनुयोगिक] व्याख्या- कर्त्ता णंदि ५१।

आणुकंपिय :: वि [आनुकम्पिक] दयालु, कृपालु राज।

आणुगामि :: वि [अनुगामिन्] नीचे देखो विसे ७३९।

आणुगामिय :: वि [आनुगामिक] १ अनुसरण करनेवाला, पीछे-पीछे जानेवाला भग २ न. अवधिज्ञान का एक भेद आवम

आणुगुण्ण, आणुगुन्न :: न [आनुगुण्य] १ औचित्य, अनुरूपता पंचा ९, २९ २ अनुकूलता धर्मसं ११८६

आणुधम्मिय :: वि [आनुधर्मिक] इतर धर्म- वालों को भी अभीष्ट, सर्वधर्म-सम्मत आचा।

आणुपाणु :: देखो आणापाणु कम्म ५, ४०।

आणुपुव्व :: न [आनुपुर्व्य] अनुक्रम, परिपाटी निर १, १।

आणुपुव्वी :: स्त्री [आनुपूर्वी] क्रम, परिपाटी अणु। °णाम, °नाम न [°नामन्] नाम- कर्म का एक भेद सम ६७।

आणुलोमिअ :: वि [आनुलोमिक] अनुलोम, अनुकूल, मनोहर दस ७, ५६।

आणुवित्ति :: स्त्री [अनुवृत्ति] अनुसरण सं ६१।

आणूग :: पुंन [अनूप] सजलप्रदेश धर्मसं ६२९।

आणूव :: पुं [दे] श्वपच, डोम दे १, ६४।

आणे :: सक [आ + नी] लाना, ले आना। आणेइ महा। कृ. आणेयव्व सुपा १९३। संकृ. आणेऊण महा।

आणे :: सक [ज्ञा] जानना। आणेइ नाट।

आणेसर :: देखो आणा =ईसर श्रा २०।

आत :: देखो आय = आत्मन् ठा १।

आतंब :: देखो आयंब = आताम्र स २६१।

आतित्थ :: देखो आइत्थ कुप्र १००; २८६।

आत्त :: देखो अत्त = आत्मन्; 'आत्तहियं खु दुहेण लब्भइ' सुअ १, २, २, ३०।

आत्त :: देखो अत्त = आत्त अणु २१।

आत्त :: वि [आत्मीय] स्वकीय अणु २१।

आदंस, आदंसग :: देखो आयंस गा २०४; प्रति ८; सुअ १, ४।

आद :: शौ देखो अत्त = आत्मन् द्रव्य ९।

आद :: देखो आइ = आ+ दा। आदए सुअ १, ८, १९।

आदण्ण, आदन्न :: वि [दे] आकुल, व्याकुल, घब- ड़ाया हुआ उप पृ २२१; हे ४, ४२२।

आदयाण :: वि [आददान] ग्रहण करता हुआ श्रु १३८।

आदर :: देखो आयर =आ + दृ । आदरइ हे ४, ८३।

आदरिस :: देखो आयंस कुमा; दे २, १०७।

आदाउ :: वि [आदातृ] ग्रहण करनेवाला विसे १५६८।

आदाण :: देखो आयाण ठा ४, १; 'गब्भा- दाणेण संझुयासि तुमं' पउम ९५, ६०; उवा।

आदाण :: न [आर्द्रहण] उबाला हुआ, गरम किया हुआ जल तैल आदि उवा।

आदाणिय :: न [आदानीय] लाभ, नफा सुख ४, ९।

आदाणीय :: देखो आयाणीय कप्प।

आदाय :: देखो आया = आ+ दा।

आदि :: देखो आइ = आदि कप्प; सुअ १, ५।

आदिच्च :: देखो आइच्च ठा ५, ३, ८।

आदिच्छा :: स्त्री [आदित्सा] ग्रहण करने की इच्छा आव।

आदिज्ज :: देखो आएज्ज भग।

आदिट्ठ :: देखो आइट्ठ अभि १०९।

आदित्त :: देखो आइच्च वज्जा १६०।

आदित्तु :: वि [आदातृ] ग्रहण करनेवाला ठा ७।

आदिय :: सक [आ + दा] ग्रहण करना। आदियइ उवा। प्रयो. आदियावेंति सुअ २, १।

आदिल्ल, आदिल्लग :: देखो आइल्ल पि ५९५।

आदी :: स्त्री [आदी] इस नाम की एक महानदी ठा ५, ३।

आदीण :: वि [आदीन] १ अत्यंत दीन, बहुत गरीब सुअ १, ५ २ न. दूषित भिक्षा। °भोइ वि [°भोजिन्] दूषित भिक्षा को लेनेवाला, 'आदीणभोईवि करोति पावं' सुअ १, १०

आदीणिय :: वि [आदीनिक] अत्यन्त दीन- संबन्धी, 'आदीणियं दुक्कडियं पुरत्था' सुअ १, ५।

आदु :: शौ देखो अदु त्रि ९०।

आदेज्ज :: देखो आएज्ज पणह १, ४।

आदेस :: देखो ओएस = आदेश कुमा; वव २, ८।

आदेस :: पुं [आदेश] व्यपदेश, व्यवहार सुअ १, ८, ३। देखो आएस = आदेश सुअ २, १, ५६।

आधरिस :: सक [आ + धर्षय्ं] परास्त करना, तरिस्कारना। आधरिंसहि आवम।

आधा :: देखो आहा पिंड।

आधार :: देखो आहार = आधार पणह २, ५।

आधोरण :: पुं [आधोरण] हस्तिपक, महावत, हाथीवान् धर्मवि १३६।

आनय :: देखो आणय अनु।

आनामिय :: देखो आणामिय पणह १, ४।

आपण :: देखो आवण अभि १८८।

आपण्ण :: देखो आवण्ण अभि ६५।

आपत्ति :: स्त्री [आपत्ति] प्राप्ति संबोध ३५; पव १४९।

आपाइय :: वि [आपादित] १ जिसकी आपत्ति की गई हो वह। २ उत्पादित, जनित विसे १७४९

आपायण :: न [आपादन] संपादन श्रावक ८२; पंचा ९, १९।

आपीड :: पुं [आपीड] शिरोभूषण श्रा २८।

आपीण :: देखो आवीण गउड।

आपुच्छ :: सक [आ + प्रच्छ्] आज्ञा लेना, सम्मति लेना। आपुच्छइ महा। वकृ. आपुच्छंत पि ३९७। कृ. आपुच्छणीय णाया १, १। संकृ. आपुच्छित्ता, आपु- च्छित्ताणं, आपुच्छिऊण, आपुच्छिउं, आपुच्छिय पि ५८२; ५८३; कप्प; ठा ५, १।

आपुच्छण :: न [आप्रच्छन] आज्ञा, अनुमति णाया १, ९।

आपुट्ठ :: वि [आपृष्ट] जिसकी आज्ञा या सम्मति ली गई हो वह सुर १०, ५१।

आपुण्ण :: वि [आपूर्ण] पूर्णं, भरपूर दे १, २०।

आपूर :: पुं [आपूर] पूरनेवाला, 'मयणसरा- पूरं'. . . ससिं' कप्प।

आपूर :: देखो आऊर। कर्म. आपूरिज्जइ महा। वकृ. आपूरमाण, आपूरेमाण भग; राय।

आपेड, आपेड्ड, आपेल्ल :: देखो आपीड पि १२२, महा।

आप्पण :: न [दे] पिष्ट, आटा षड्।

आफंस :: पुं [आस्पर्श] अल्प स्पर्श हे १, ४४।

आफर :: पुं [दे] द्युत, जुआ दे १, ६३।

आफाल :: सक [आस्फालय्] आस्फालन करना, आघात करना। संकृ. आफालित्ता, आफालिऊण पि ५८२; ५८६।

आफालण :: देखो अप्फालण गा ५४९।

आफुण्ण :: वि [दे] आक्रान्त अणु १९२।

आफोडिअ :: न [आस्फोटित] हाथ पछाड़ना पणह १, ३।

आबंध :: सक [आ +बन्ध्] मजबूत बाँधना। वकृ. आबंधत हे १, ७। संकृ. आबं- धिऊण पि ५८६।

आबंध :: पुं [आबन्ध] संबन्ध, संयोग गउड।

आबद्ध :: वि [आबद्ध] बँधा हुआ स ३५८।

आबाहा :: स्त्री [आबाधा] १ अल्प बाधा णाया १, ४ २ अन्तर सम १५ ३ मानसिक पीड़ा बृह

आभंकर :: पुं [आभङ्कर] १ ग्रह-विशेष ठा २, ३ २ न. विमान-विशेष सम ८

°पभंकरं :: न [°प्रभङ्कर] विमान-विशेष सम ८।

आभक्खाण :: देखो आब्भक्खाण उवा।

आभट्ठछ :: वि [आभाषित] १ कयित, उक्त सुपा १५१ २ संभाषित सुर २, २४८

आभरण :: न [आभरण] अलंकार, आभूषण पि ६०३।

आभव्व :: वि [आभव्य] होने योग्य, संभाव्य वव; सुपा ३०७।

आभा :: स्त्री [आभा] प्रभा, कान्ति, तेज कुमा; औप।

आभागि :: वि [आभागिन्] भोक्ता, भोगी; 'अणेगाणं जन्मरणाणं अभागी भवेज्ज' वसु; णाया, १८।

आभार :: पुं [आभार] बोझ, भार सुपा २३६।

आभास :: सक [आ +भाष्] कहना, संभा- षण करना। आभासइ हे ४, ४४७।

आभास :: पुं [आभास] १ जो वास्तविक में वह न होकर उसके समान लगता हो। २ विपरीत, 'करणभासेहिं' कुमा

आभासिय :: पुं [आभाषिक] १ इस नाम का एक म्लेच्छ देश। २ उसमें रहनेवाली म्लेच्छ जाति पणह १, १ ३ एक अन्तर्द्वीप। ४ उस में रहनेवाल, 'कहि णं भंते! आभा- सियमणुयाणं आभपसियदीवे नाम दीवे' जीव ३; ठा ४, २

आभासिय :: देखो आभट्ठ निर।

आभिओइय :: देखो आभिओगिय महा।

आभिओग :: पुं [आभियोग्य] १ किंकर- स्थानीय देव-विशेष ठा ४, ४ २ नौकर, किंकर राय ३ किंकरता, नौकरी दस ९, २

आभिओगा :: स्त्री [आभियोग्या] आभियोगिक भावना उत्त ३६, २५५।

आभिओगि :: वि [आभियोगिन्] किंकर- स्थानीय देव दस ९।

आभिओगिय :: वि [आभियोगिक] १ मन्त्र आदि से आझिविका चलानेबाला पणण २० २ नौकर स्थानीय देव-विशेष णाया १, ८ ३ वशीकरण, दूसरे को वश में करने का मन्त्रादि-कर्मं पंचा; महा

आभिओगिय :: वि [आभियोगित] वशीकरण आदि से संस्कृत आव।

आभिओग्ग :: देखो आभिओग पण २०।

आभिग्गहिअ :: वि [आभिग्रहिक] १ अभिग्रह- संबन्धी पंचा ४, ८ २ न. मिथ्यात्व- विशेष पंच ४, २

आभिग्गहिय :: वि [आभिग्रहिक] १ प्रतिज्ञा से संबन्ध रखनेवाला। २ प्रतिज्ञा का निर्वाह करनेवाला आव ३ न. मिथ्यात्व-विशेष श्रा ६

आभिणिंदिय :: पुं [आभिनन्दित] श्रावण मास चंद।

आभिट्ट, आभिडिय :: वि [दे] प्रवृत्त, 'आभिट्टं पर- मरणं' पउम ४, ४२; ६, १९२; वज्जा ४२।

आभिणिबोहिग :: देखो आभिणिबोहिय धर्मसं ८२३।

आभिणिबोहिय :: न [आभिनिबोधिक] इन्द्रिय और मन से होनेवाला प्रत्यक्षज्ञान-विशेष सम ३३।

आफिप्पाइअ :: वि [आभिप्रायिक] अभिप्रायवाला अणु १४५।

आभिसेक्क :: वि [आभिषेक्य] १ अभिषेक के योग्य निर १, १ २ मुख्य, प्रधान; 'आभइ- सेक्कं हत्थिरयणं पडिकप्पेह' औप

आभर, आभिरिय :: पुं [आभीर] एक शुद्र-जाति, अहीर, गोवाला सुअ १, ८; सुर ९, ६२।

आभूअ :: वि [आभूत] उत्पन्न निर १, १।

आभेडिय :: [दे] देखो आभिट्ट उप पृ ४२।

आभोइअ :: वि [आभोगित] देखो हुआ कप्प।

आभोग :: पुं [आभोग] १ विलोकन, देखना उप १४७ २ प्रदेश, स्थान सुर २, २२१ ३ उपकरण, साधन ओघ ३६ ४ प्रति- लेखन ओघ ३ ५ उपयोग, ख्याल भग ६ विस्तार णाया १, १ ७ ज्ञान, जानना भग २५, ६; ठा ४। देखो आभोय = आभोग।

आभोगण :: न [आभोगन] ऊपर देखो णंदि।

आभोगि :: वि [आभोगिन्] परिपूर्णं, 'जह कमलो निरवाओ जाओ जसविहवाभोगी' सुपा २७५। °णी स्त्री [°नी] मानसिक निर्णय उत्पन्न करानेवाली विद्या-विशेष बृह।

आभोय :: सक [आ +भोगय्] १ देखना। २ जानना। ३ ख्याल करना। आभोएइ उवा; णाया। वकृ. आभोएमाण कप्प। संकृ. आभोइत्ता, आभोएऊण, आभोइअ दस ५; महा; पंचव

आभोय :: पुं [आभोग] १ सर्पं की फणा स ६१० २ देखो आभोग आव; महा; सुर ३, ३२

आम :: अ [आम] अनुमति प्रकाशक अव्यय — हाँ गा ४१७; सुर २, २४५; स ४५६।

आम :: अ [भवत्] आप प्राकृ ८१।

आम :: पुं [आम] १ रोग, पीड़ा से ९, ४४ २ वि. अपक्ख, कच्चा श्रा २० ३ अशुद्ध, अपवित्र आचा। °जर पुं [°ज्वर] अजीर्णं से उत्पन्न बुखार गा ५१

आमइ :: वि [आमयिन्] रोगी वव १।

आमं :: अ [आम] १ स्वीकार-सूचक अव्यय — हाँ सुख २, १३ २ अतिशय, अत्यन्त धर्मंसं ६४९

आमंड :: न [दे] बनावटी आमला का फल, कृत्रिम आमलक उप पृ २१४; उप १४५ टी।

आमंडण :: न [दे] भाण्ड, पात्र दे १, ६८।

आमंत :: सक [आ + मन्त्रय्] १ आह्वान करना, संबोधन करना। २ अभिनन्दन करना। वकृ. आमंतमाण आचा। संकृ. आमंतित्ता कप्प; आमंतिय सुअ १, ४

आमंतण :: न [आमन्त्रण] आह्वान, संबोधन वव। °वयण न [°वचन] संबोधन-विभक्ति विसे ३४५७।

आमंतणी :: स्त्री [आमन्त्रणी] १ संबोधन की भाषा, आह्वान की भाषा दस ६ २ आठवीं संबोधन-विभक्ति ठा ८

आमंतिय :: वि [आमन्त्रित] संबोधित विपा १, ९।

आमग :: देखो आम णाया १, ९।

आमघाय :: पुं [अमाघात] अमारि-प्रदान, हिंसा- निवारण पंचा ९, १५; २०; २१।

आमज्ज :: सक [आ + मृज्] एक बार साफ करना। आमज्जेज आचा। वकृ. आमज्जंत निचु। प्रयो. आमज्जावंत निचू।

आमद्द :: पुं [आमर्द] संघर्षं, आघात कुमा।

आमय :: पुं [आमय] रोग, दर्द स ५६६; स्वप्‍न ६०। °करणी स्त्री [°करणी] विद्या- विशेष सुअ २, २।

आमय :: वि [आमत] संमत, अनुमत विवे १३६।

आमराय :: पुं [आमराज] एक प्रसिद्ध राजा ती ७।

आमरिस :: पुं [आमर्ष] स्पर्श विसे ११०६।

आमल :: पुंन [आमलक] आमला का फल सम्मत्त १५६।

आमलई :: स्त्री [आमलकी] आमला का पेड़ दे।

आमलकप्पा :: स्त्री [आमलकप्पा] नगरी-विशेष णाया २, १।

आमलग :: पुं [आमरक] १ चारों ओर से मारना। २ विपाक-श्रुत का एक अध्ययन ठा १०

आमलग, आमलय :: पुंन [आमलक] १ आमला का पेड़ ठा ४ २ आमला का फल, 'मुक्खोवाओ आमलगो विव करतले देसिओ भगवया' वसु; कुमा

आमलय :: न [दे] नूपुर-गृह, नूपुर रखने का स्थान दे १, ६७।

आमसिण :: वि [आमसृण] १ थोड़ा चिकना। २ उल्लसित से १२, ४३

आमिल्ल :: सक [आ + मुच्] छोड़ना। आमिल्लइ भवि।

आमिस :: न [आमिष] नैवेद्य पंचा ६, २६; कुप्र ४२३; ती १३।

आमिस :: न [आमिष] १ मांस णाया १, ४ २ वि. मनोहर, सुन्दर से ९, ३१ ३ आसक्ति का कारण, 'आमिसं सव्वमुज्झित्ता विहरिस्सामो निरामिसा' उत्त १४ ४ आहार, फलादि भोज्य वस्तु पंचा ६

आमुंच :: सक [आ + मुच्] १ छोड़ना। २ उतारना। ३ पहनना। वकृ. आमुंचंत आक ३८

आमुक्क :: वि [आमुक्त] १ त्यक्त गा ५३९; गउड २ उतारा हुआ आक ३८ ३ परि- हित वेणी १११ टी

आमुट्ठ :: वि [आमृष्ट] १ स्पृष्ट। २ उलटा किया हुआ ओघ

आमुय :: सक [आ + मुच्] छोड़ना, त्यागना। आमुयइ गउड।

आमुस :: सक [आ + मृश्] थोड़ा या एक बार स्पर्शं करना। वकृ.आमुसंत, आमुस- माण ठा १; आचा; भग ८, ३।

आमेडणा :: स्त्री [आम्रेडना] विपर्यस्त करना, उलटा करना पणह १, ३।

आमेल :: पुं [दे] लट, जटा दे १, ६२।

आमेल, आमेलग, आमेलय :: पुं [आपीड़] फूलों की मला, जो मुकुट पर धारण की जाती है, शिरोभूषण हे १, १०५; पि १२२; भग ९, ३३।

आमेल्ल :: देखो आमेल = आपीड़ उवा २०६।

आमेल्लिअ :: वि [आपीडित] अवतंसित, शिरो- भूषण से विभूषित से ९, २१।

आमोअ :: अक [आ + मुद्] खुश होना। संकृ. आमोएवि अप भवि।

अमोअ :: पुं [दे. आमोद] हर्षं, खुशी दे १, ६४।

आमोअ :: पुं [आमोद] सुगन्ध, अच्छी गन्ध से १, २३।

आमोअ :: पुं [आमोद] वाद्य-विशेष राय ४६।

आमोअअ :: वि [आमोदक] १ सुगन्ध उत्पन्न करनेवााला। २ आनन्द-जनक से ९, ४०

आमोअअ :: वि [आमोदद] सुगन्ध देनेवाला से ९, ४०।

आमोइअ :: वि [आमोदित] हृष्ट, हर्षित भवि।

आमोक्ख :: पुं [आमोक्ष] मोक्ष, मुक्ति, पूर्णं छुटकारा सुअ १, १; ४, १३।

आमोक्खा :: स्त्री [आमोक्ष] १ छुटकारा। २ परित्याग सुअ १, ३; पि ४६०

आमोड :: पुं [दे] जूट, लट, समूह दे १, ६२।

आमोडग :: न [आमोटक] १ वाद्य-विशेष आचू २ फूलों से बालों का एक प्रकार का बन्धन उत्तनि ३

आमोडण :: न [आमोटन] थोड़ा मोड़ना पणह १, १।

सामोडिअ :: वि [आमोटित] मर्दित माल ९०।

आमोद, आमोय :: देखो आमोअे स्वप्‍न ५२; सुर ३, ४१; काल।

आमोय :: पुं [आमोक] कतवार-पुज्ज, कतवार का ढेर, कूड़े का पुञ्‍ज आचा २, ७, ३।

आमोरअ :: वि [दे] विशेषज्ञ, अच्छा जानकार दे १, ६६।

आमोस :: पुं [आमर्श, °र्ष] स्पर्श, छूना; 'संफ- रिसणमामोसा' पणह २, १टी; विसे ७८१।

आमोस :: पुं [आमोष] चोर उत्त ९, २८।

आमोसग :: वि [आमोषक] १ चोर, चोरी करनेवाला ठा ५, २ २ चोरों की एक जाति उर २, ६

आमोसहि :: पुं [आमोर्शौषधि] लब्धि-विशेष, जिसके प्रभाव से स्पर्श मात्र से ही सब रोग नष्ट होते हैं पणह २, १; औप।

आय :: पुं [आय] १ लाभ, प्राप्ति, फायदा अणु २ वनस्पति-विशेष पणम १ ३ कारण, हेतु विसे १२२९; २९७९ ४ अध्ययन, पठन विसे ९५८। ५ गमन विसे २७९२

आय :: पुं [आय] अध्ययन, शास्त्रांश-विशेष अणु २५०।

आय :: वि [आज] १ अज-सम्बन्धी। २ बकरे के बाल से उत्पन्न वस्त्रादि आचा

आय :: वि [आगत] आया हुआ काल।

आय :: वि [आत्त] गृहीत, 'आयचरित्तो करेइ णामणणं, संथा ३६।

आय :: पुं [आगस्] १ पाप। २ अपराध, गुनाह श्रा २३

आय :: पुंस्त्री [आत्मन्] १ आत्मा, जीव सम १ २ निज, स्वयं; 'अहालहुस्सगाइं रयणाइं गहाय आयाए एगंतमंतं अवक्कामंति' भग ३, २ ३ शरीर, देह णाया १, ८ ४ ज्ञान आदि आत्मा के गुण आचा। °गुत्त वि [°गुप्त] संयत, जितेन्द्रिय; 'आयगुत्ता जिइं- दिया' सुअ। °जोगि वि [°योगिन्] मूमुक्षु, ध्यानी सुअ। °ट्ठि वि [°र्थिन्] मुमुक्षु, 'एवं से भिक्खु आयट्ठी' सुअ। °तंत वि [°तन्त्र] स्वाधीन, स्वतन्त्र राज। °तत्त न [°तत्त्व] परम पदार्थ, ज्ञानादि रत्‍न-त्रय आचा। °प्पमाण वि [°प्रमाण] साढ़े तीन हाथ की परिमाण वाला पव। °प्पवाय न [°प्रवाद] बारहवें जैन आङ्ग ग्रन्थ का एक भाग, सातवाँ पूर्व सम २६। °भाव पुं [°भाव] १ आत्म-स्वरूप। २ निज अभिप्राय भग ३ विषयासक्ति, 'विणइजओ सव्वह आयभाव' सुअ। °य पुं [°ज] पुत्र, लड़का भवि। °रक्ख वि [°रक्ष्] अङ्गरक्षक णाया १, ८। °व वि [°वत्] ज्ञानादि आत्मगुणों से संपन्न आचा। °हम्म वि [°घ्र] आत्मा को अधोगति में ले जानेवाला। २ देखो आहाकम्म पिंड

आय° :: देखो आवइ; 'किंचायरक्खिओ जो पुरिसो सो होइ वरिससयआऊ' सुपा ४५३।

आयइ :: स्त्री [आयति] भविष्य काल सुर ४, १३१।

आयइजणग :: न [आयतिजनक] तपश्चर्या- विशेष पव २७१।

आयइत्ता :: देखो आइ = आ + दा।

आयंक :: पुं [आतङ्क] १ दुःख। २ पीड़ा आचा ३ दुःसाध्य रोग, आशु-घाती रोग औप

आयंकि :: वि [आतङ्किन्] रोगी, रोग-युक्त ठा ५, ३, टी — पत्र ३४२।

आयंगुल :: न [आत्माङ्गुल] परिमाण का एक भेद, 'जेणं जया मणूसा, तेसिं जं होइ माणरूवं तु। तं भणियमिहायंगुलमणिययमाणं पुण इमं तु'। विसे ३४० टी।

आयंच :: सक [आ + तञ्‍च्] सींचना, छिड़कना। आयंचइ, आयंचामि उवा।

आयंचणिया :: स्त्री [आतञ्चनिका] कुम्भकार का पात्र-विशेष, जिसमें वह पात्र बनाने के समय मिट्टीवाला पानी रखता है भग १५।

आयंचणी :: स्त्री [आतञ्चनी] ऊपर देखो भग १५।

आयंत :: वि [आचान्त] जिसने आचमन किया हो वह णाया १, १; स १८९।

आयंत :: देखो आयो = आ + या।

आयंतम :: वि [आत्मतम] आत्मा को खिन्न करनेवाला ठा ४, २।

आयंतम :: वि [आत्मतमस्] १ अज्ञानी, अजान। २ क्रोधी ठा ४, २

आयंदम :: वि [आत्मदम] १ आत्मा का शान्त रखनेवाला, मन और इन्द्रियों का निग्रह करनेवाला। २ अश्व आदि को संयत रहने का सिखानेवाला ठा ४, २

आयंप :: पुं [आकम्प] १ काँपना, हिलना। २ कँपानेवाला पउम ६९, १८

आयंपिय :: वि [आकम्पित] कँपाया हुआ स ३५३।

आयंब :: अक [वेप्] काँपना, हिलना। आयंबइ हे ४, १४७।

आयंब, आयंबिर :: वि [आताम्र] थोड़ा लाल ओप; सुर ३, ११०, सुपा ६, १४४।

आयंबिल :: न [आचाम्ल] तपो-विशेष, आंबिल णाया १, ८। °वड्‍ढमाण न [°वर्धँमान] तपश्चर्या-विशेष अंत ३२; महा।

आयंबिलिय :: वि [आचाम्लिक] आम्बिल-तप का कर्ता ठा ७; पणह २, १।

आयंभर, आयंभरि :: वि [आत्मम्भरि] स्वार्थी, अकेल- पेटु ठा ४, ३।

आयंव :: अक [आ + कम्प्] काँपना, हिलना प्रामा।

आयंस, आयंसग :: पुं [आदर्श] १ दर्पण पणह १, ४; सुअ १, ४ २ बैल आदि के गले का भूषण-विशेष अणु। °मुह पुं [°मुख] १ एक अन्तर्द्वीप। २ उसके निवासी मनुष्य ठा ४, २

आयक्ख :: देखो आइक्ख। आयक्खाहि भग।

अयग :: वि [आजक] देखो आय = आज आचा।

आयज्झ :: अक [वेप्] काँपना, हिलना। आयज्झइ हे ४, १४१; षड्। वकृ. आयज्झंत कुमा।

आयट्ट :: सक [आ + वर्त्तय्] १ फिराना, घुमाना। २ उबालना। वकृ. आअट्टंत से ५, ७५; ८, १६। कवकृ. आयट्टिज्जमाण णाया १, ९

आयट्टण :: न [आवर्त्तन] फिराना सुपा ५३०।

आयड्‍ढ :: सक [आ + कृष्] खींचना। आयड्‍ढइ महा। कवकृ. आअडि्‍ढज्जंत से ५, २८। संकृ. आयडि्ढऊण महा।

आयड्‍ढण :: न [आकर्षण] आकर्षंण, खींचाव सुाप १२, ७९; गा ११८।

आयडि्ढ :: स्त्री [आकृष्टि] ऊपर देखो गउड; दे ६, २१।

आयडि्ढ :: पुं [दे] विस्तार दे १, ६४।

आयडि्ढय :: वि [आकृष्ट] खींचा हुआ काल; कप्पू।

आयण्ण :: सक [आ +कर्णय्] सुनना, श्रवण करना। आअणणेइ गा ३६५। वकृ. आअण्णंत से १, ६५; गा ४६५; ६४३। संकृ. आयण्णिऊण उवा।

आयण्णण :: न [आकर्णन] श्रवण महा।

आयण्णिय :: वि [आकर्णित] सुना हुआ उवा।

आययंत :: वकृ [आददत्त] ग्रहण करता हुआ सुअ २, १।

आयत्त :: वि [आयत्त] अधीन, स्ववश गा ३७९।

आयन् :: देखो आयण्ण। वकृ. आयन्नंत सुर १, २४७।

आयन्नण :: देखो आयण्णण सुर ३, २१०।

आयम :: सक [आ + चम्] आचमन करना, कुल्ला करना। हेकृ. आयमित्तए कप्प। वकृ. आयममाण ठा ५।

आयमण :: न [आचमन] शुद्धि, शौच श्रा १२; गा ३३०; निचु ४; स २०६; २५२।

आयमिअ :: देखो आगमिअ हे १, १७७।

आयमिणी :: स्त्री [आयमिनी] विद्या-विशेष सुअ २, २।

आयय :: वि [आयत] १ लम्बा, विस्तृत उवा; पउम ८, २१५ २ पुं. मोक्ष सुअ १, २

आयय :: सक [आ +दद्] ग्रहण करना। आयए, आययंति दस ५, २, ३१; उत्त ३, ७। वकृ. आययमाण पिंड १०७।

आययण :: न [आयतन] १ प्रकटीकरण सुअ १, ९, १६ २ उपादान कारण सुअ १, १२, ५

आययण :: न [आयतन] १ घर, गृह गउड २ आश्रय, स्थान आचा ३ देव-मन्दिर आवम ४ धार्मिक जनों का एकत्र होने का स्थान, 'जत्थ साहम्मिया बहवे सीलवंता बहुस्सुया। चरित्तायारसंपणणा आययणं तं वियाण हु' धम्म ५ कर्मं-बन्ध का कारण आचा ६ निर्णंय, निश्चय सुअ १, ९ ७ निर्दोष स्थान सार्धं १०६

आयर :: सक [आ + चर्] आचरना, करना। आयरइ महा; उव। वकृ, आयरंत, आयरमाण भग। कृ. आयरियव्व स १।

आयर :: पुं [आकर] १ खानि, खान। २ समूह काल ; कप्पू

आयर :: देखो आयार = आचार पुप्फ ३५६।

आयर :: पुं [आदर] १ सत्कार, सम्मान गउड २ परिग्रह, असंतोष पणह १, ५ ३ ख्याल, संभाल कप्पू

आयरंग :: पुं [आयरङ्ग] इस नाम का एक म्लेच्छ राजा पउम २७, ६।

आयरइ :: न [आचरण] प्रवृत्ति, अनुष्ठान पडि।

आयरण :: न [आदरण] आदर भग १२, ५।

आयरणा :: स्त्री [आचरणा] परंपरा का रिवाज चेइय २५।

आयरणा :: स्त्री [आचरणा] आचरण, अनुष्ठान सट्ठि १४५; उवर १४५।

अयरिय :: वि [आचरित] १ अनुष्ठित, विहित कृत उवा २ न. शास्त्र-सम्मत चाल-चलन; 'असढेण समाइन्‍नं जं कत्थइ केणइ असावज्जं। न निवारियमन्‍नेहि य, बहुमणुमयमेयमायरियं' उप ८१३

आयरिय :: पुं [आचार्य] १ गण का नायक, मुखिया आवम २ उपदेशक, गुरु, शिक्षक भग १, १ ३ अर्थं पढ़ानेवाला भग ८, ८

आयरिस :: देखो आयंस हे २, १०५।

आयल्ल :: अक [लम्ब्] १ व्याप्त होना। २ लटकना; 'केसकलाउ खंधि ओणल्लइ, परि- मोक्कलु नियंबि आयल्लइ' भवि

आयल्लया :: स्त्री [दे] बेचैनी, 'मयणसरबिहु- रियंगी सहसा आयल्लयं पत्ता' पउम ८, १८९; 'विद्धो अणंगबाणोहिं झत्ति आयल्लयं पत्तो' सुर १६, ११०; 'किं उण पिअव- अस्स मअणाअल्लअें अत्तणो उइदेहिं अक्खरोहिं णिवेदेमि' कप्पू। देखो आअल्ल।

आयल्लिय :: वि [दे] आक्रान्त, व्याप्त उप १०३१ टी; भवि।

आयव :: पुं [आतपवत्] अहोरात्र का २४ वाँ मूहुर्त सुज्ज १०, १३।

आयव :: वि [आतप] १ उद्योत, प्रकाश गा ४९ २ ताप, घाम उत्त ३ न. मूहुर्तं- विशेष सम ५१। °णाम, °नाम न [°नामन्] नामकर्मं का एक भेद सम ६७

आयवत्त :: न [आतपत्र] छत्र, छाता णाया १, १।

आयवत्त :: पुं [आर्यावर्त्त] भारत, हिंदुस्तान इक।

आयवा :: स्त्री [आतपा] १ सूर्यं की एक अग्र- महिषी — पटरानी। २ इस नाम का 'ज्ञाता- धर्मकथा' सूत्र का एक अध्ययन णाया २, १|

आयस :: वि [आयस] लोहे का, लोह-निर्मित गउड; निचु १।

आयसी :: स्त्री [आयसी] लोहे का कोश पणह १, १।

आया :: देखो आय = आत्मन्।

आया :: सक [आ +या] आना, आगमन करना। आयंति सुपा ५७। आयाइंति, आयाइंसु कप्प। वकृ. आयंत।

आया :: सक [आ + दा] ग्रहण करना, स्वीकार करना। आयइज्ज उत्त ६। कृ. आया- णिज्ज ठा ६। संकृ. आयाए, आदाय, आयाय कस; कप्प; महा।

आयाइ :: स्त्री [आजाति] १ उत्पत्ति, जन्म ठा १० २ जाति, प्रकार। ३ आचार, आचरण आचा। °ट्ठाण न [°स्थान] १ संसार, जगत्। २ 'आचाराङ्ग' सूत्र के एक अध्ययन का नाम ठा १०

आयाइ :: स्त्री [आयाति] १ आगमन। २ उत्पत्ति, गर्भं से बाहर निकलना ठा २, ३ ३ आयति, भविष्य काल दसा

आयाए :: देखो आया = आ + दा।

आयाण :: पुंन [आदान] १ ग्रहण, स्वीकार आचा २ इन्द्रिय भग ५, ४ ३ जिसका ग्रहण किया जाय वह, ग्राह्य वस्तु ठा ४; सुअ २, ७ ४ कारण, हेतु; 'संति मे तउ आयाणा जेहिं कीरइ पावगं' सुअ १, १; 'किंवा दुक्खायाणं अट्टज्झाणं समारुहसि' पउण ९५, ४८। ५ आदि, प्रथम अणु

आयाण :: न [आदान] १ संयम, चरित्र सुअ १, १२, २२ २ वि, आदेय, उपादेय सुअ १, १४, १७; तंदु २०। °पय न [°पद] ग्रन्थ का प्रथम शब्द अणु १४०

आयाण :: न [आयान] १ आगमन। २ अश्‍व का एक आभरण-विशेष गउड

आयाम :: सक [आ +यमय्] लम्बा करना। कवकृ. आआमिज्जंत से १०, ७। संकृ. आयामेत्ता, आयामेत्ताणं भग; पि ५८३।

आयाम :: सक [आ +यम्] शौच करना, शुद्धि करना। आयामइ पव १०६ टी।

आयाम :: सक [दा] देना, दान करना। आया- मेइ भग १५। संकृ. आयामेत्ता भग १५।

आयाम :: पुं [आयाम] लम्बााई, दैर्ध्य सम २; गउड।

आयाम :: पुं [दे] बल, जोर दे १, ६५।

आयाम :: न [आचाम्ल] तपो-विशेष, आयंबिल; 'नाइविगिट्ठो उ तवो छम्मासे परिमियं तु आयामं' आचानि २७२; २७३।

आयाम, आयामग :: न [आचाम] अवस्त्रावण, चावल आदि का पानी ओघ ३५९; उत्त १५।

आयामणया :: स्त्री [आयामनता] लम्बाई भग।

आयामि :: वि [आयामिन्] लम्बा गउड।

आयामुही :: स्त्री [आयामुखी] इस नाम की एक नगरी स ४३१।

आयाय :: देखो आया =आ + दा।

आयाय :: वि [आयात] आया हुआ पउम १४, १३०; दे १, ६९; कुम्मा १६।

आयार :: सक [आ +कारय्] बुलाना, आह्वान करना। आआरेदि शौ नाट। संकृ, आआ- रिअ, आयारेऊण नाट; स ५७८।

आयार :: पुं [आकार] १ आकृति, रूप णाया १, १ २ इङ्गित, इशारा पाअ

आयार :: पुं [आकार] 'अ' अक्षर कु्प्र ३२।

आयार :: पुं [आचार] १ आचरण, अनुष्ठान ठा २, ३; आचा २ चाल-चलन, रीत-भात पउम ९३, ८ ३ बारह जैन आङ्गग्रन्थों में पहला ग्रन्थ, 'आयारपढमसुत्ते' उप ६८० ४ निपुण शिष्य भग १, १। °क्खेवणी स्त्री [°क्षिपणी] कथा का एक भेद ठा ४। °भडंग, °भंडय न [°भाण्डक] ज्ञानादि का उपकरण — साधन णाया १, १, १६

आयारिमय :: न [आचारिमक] विवाह के समय दिया जाता एक प्रकार का दान स ७७।

आयारिय :: वि [आकारित] १ आहूत, बुलाया हुआ पउम ६१, २५ २ न. आह्वान-वचन, आक्षेप-वचन से १३, ८०; अभि २०५

आयाव :: सक [आ + तापय्] सूर्यं के ताप में शरीर को थोड़ा तपाना। २ शीत, आथप आदि को सहन करना। वकृ. आयावंत पउम ९, ६१; आयाविंत काल; आयावेंत पउम २६, २१; आयावेमाण महा; भग। हेकृ. आयावेत्तए कस। संकृ. आयाविय आचा

आयाव :: पुं [आताप] असुरकुमार-जातीय देव- विशेष भग १३, ६।

आयाव :: पुं [आताप] आतप-नामकर्मं पंच ५, १३७।

आयावग :: वि [आतापक] शीत आदि को सहन करनेवाला सुअ २, २।

आयावण :: न [आतापन] एक बार या थोड़ा आतप आदि को सहन करना णाया १, १६। °भूमि स्त्री [°भूमि] शीतादि सहन करने का स्थान भग ९, ३३।

आयावणया, आयावणा :: स्त्री [आतापना] ऊपर देखो ठा ३, ५।

आयावय :: वि [आतापक] शीत आदि को सहन करनेवाला पणह २, १।

आयावल, आयावलय :: पुं [दे] सबेर का तड़का, बालातप दे १, ७०; पाअ।

आयावि :: वि [आतापिन्] देखो आयावय ठा ४।

आयास :: सक [आ + यासय्] तकलीफ देना, खिन्न करना। आआसंति पि ४६०। संकृ. आआसिअ मा ४५।

आयास :: पुं [आयास] १ तकलीफ, परिश्रम, खेद गउड २ परिग्रह, असन्तोष पणह १, ५। °लिवि स्त्री [°लिपि] लिपि-विशेष पणह १

आयास :: देखो आयंस षड्।

आयास :: देखो आगास पउम ९६, ४०; हे १, ८४। °तिलय न [°तिलक] नगर- विशेष भवि।

आयासइत्तिअ :: वि [आयासयितृ] तकलीफ देनेवाला अभि ९३।

आयासतल :: न [आकाशतल] चन्द्रशाला, घर के ऊपर की खुली छत कुप्र ४५२।

आयासतल :: न [दे] प्रासाद का पृष्ठ भाग दे १, ७२।

आयासलव :: न [दे] पक्षिगृह, नीड़ दे १, ७२।

आयासिअ :: वि [आयासित] परिश्रान्त, खिन्न गा १६०।

आयाहम्म :: वि [आत्मघ्न] १ आत्मविनाशक। २ न. आधाकर्म दोष पिंड ९५

आयाहिण :: न [आदक्षिण] दक्षिण पार्श्वं से भ्रमण करना उवा। °पयाहिण वि [°प्रदक्षिण] दक्षिण पार्श्वं से भ्रमण कर दक्षिण पार्श्वं में स्थित होनेवाला विपा १, १। °पयाहिणा स्त्री [°प्रदक्षिणा] दक्षिणा पार्श्व से परिभ्रमण, प्रदक्षिणा ठा १।

आयु :: देखो आउ = आयुष्। °वंत वि [°वत्] चिरायुष्क, दीर्घँ आयुवाला पणह १, ४।

आर :: पुं [आर] १ इह-लोक, यह जन्म सुअ १, २, १, ८ ; १६, २८; १, ८, ६ २ मनुष्य- लोक सुअ १, ६, २८ ३ नुकीली लोहे की कील कुप्र ४३४ ४ न. गृहस्थपन सुअ १, २, १, ८

आर :: पुं [आर] १ मंगल-ग्रह पउम १७, १०८; सुरे १०, २२४ २ चौथा नरक का एक नरकावास ठा ६ ३ वि. अर्वाक्तन, पूर्वं का सुअ १, ६

°आरअ :: वि [कारक] कर्त्ता, करनेवाला गा १७९; ३४८।

आरओ :: अ [आरतस्] १ पूर्व, पहले, अर्वाक् सुअ १, ८; स ६४३ २ समीप में, पास में उप ३३१ ३ शुरू कर के, प्रारम्भ कर के विसे २२८५

आरओ :: अ [आरतस्] पीछे से णंदि २४९ टी।

आरंदर :: वि [दे] १ अनेकान्त। २ संकट, व्याप्त दे १, ७८

आरंभ :: सक [आ + रभ्] १ शुरू करना। २ हिंसा करना। आरंभइ हे ४, १५५। वकृ. आरंभंत गा ४२, से ८, ८२। संकृ. आरंभइत्ता, आरंभिअ नाट

आरंभ :: पुं [आरम्भ] १ शुरूआत, प्रारम्भ हे १, ३० २ जीव-हींसा, वध श्रा ७ ३ जीव, प्राणी पणह १, १ ४ पाप-कर्मं आचा। यं वि [°ज] पाप-कार्य से उत्पन्न आचा। °विणय पुं [°विनय] आरंभ का अभाव। °विणइ वि [°विनयिन्] आरंभ से विरत आचा

आरंभग, आरंभय :: पुं [आरम्भक] १ ऊपर देखो सुअ २, ६ २ वि. शुरू करनेवाला विसे ६२८; उप पृ ३ ३ हिंसक, पाप-कर्मं करनेवाला आचा

आरंभि :: वि [आरम्भिन्] १ शुरू करनेवाला गउड २ पाप-कार्यं करनेवाला उप ८६६

आरंभिअ :: पुं [दे] मालाकार, माली दे १, ७१।

आरंभिअ :: वि [आरब्ध] प्रारब्ध, शुरू किया हुआ भवि।

आरंभिअ :: देखो अरंभ = आ + रभ्।

आरंभिया :: स्त्री [आरम्भिकी] १ हिंसा से सम्बन्ध रखनेवाली क्रिया। २ हिंसक क्रिया से हेनोवाला कर्मं-बन्ध ठा २, १; नव १७

आरक्ख :: न [आरक्ष्य] कोतवाल का ओहदा, कोतवाली, आरक्षकरता सुख ३, १।

आरक्ख :: वि [आरक्ष] १ रक्षण करनेवाला दे १, १५ २ पुं. कोतवाल, नगर का रक्षक पाअ

आरक्खग :: वि [आरक्षक] १ रक्षण करनेवाला, त्राता कप्प; सुपा ३५१ २ पुं. क्षत्रियों का एक वंश। ३ वि. उस वंश में उत्पन्न ठा ६

आरक्खि :: वि [आरक्षिन्] रक्षक, त्राता ठा ३, १, ओघ २६०।

आरक्खिग, आरक्खिय :: वि [आरक्षिक] १ रक्षक, त्राता। २ पुं. कोतवाल निचु १, १६; सुपा ३३६; महा; स १२७, १५१

आरज्झ :: सक [आ + राध्] आराधन करन। आरज्झइ प्राकृ ९८।

आरज्झ :: वि [आराध्य] पूज्य, माननीय अच्चु ७१।

आरड :: सक [आ + रट्] १ चिल्लाना, बूम मारना। २ रोना। वकृ. आरडंत उप १२८ टी। संकृ. आरडिऊण महा

आरडिअ :: न [दे] १ विलाप, क्रन्दन। २ वि. चित्र-युक्त दे १, ७५

आरण :: पुं [आरण] १ देवलोक-विशेष अनु; सम ३९; इक २ उस देवलोक का निवासी देव; 'तं चेव आरणच्चुय ओहिनाणेण पासंति' संग २२१; विसे ६९६

आरण :: पुंन [आरण] एक देवविमान देवेन्द्र १३५।

आरण :: न [दे] १ अधर, होंठ। २ फलक दे १, ७६

आरणाल :: न [आरनाल] कांजी, साबूदाना दे १, ६७।

आरणाल :: न [दे] कमल, पद्म दे १, ६७।

आरण्ण :: वि [आरण्य] जंगली, जंगल-निवासी से ८, ५९।

आरण्णग, आरण्णय :: वि [आरण्यक] १ जंगली, जंगल- निवासी, जंगल में उत्पन्न उप २२९; सा २ न. शास्त्र-विशेष, उपनिषद्- विशेष, पउम ११, १०

आरण्णिय :: वि [आरण्यिक] जंगल में बसनेवाला तापस आदि सुअ २, २।

आरत :: वि [आरत] १ थोड़ा रक्त आचा २ अत्यन्त अनुरक्त पणह २, ४

आरत्तिय :: न [आरात्रिक] आरती सुर १०, १६; कुमा।

आरद्व :: वि [आरब्ध] प्रारब्ध, शुरू किया हुआ काल।

आरद्व :: वि [दे] १ बड़ा हुआ। २ सतृष्ण, उत्सुक। ३ घर में आया हुआ दे १, ७५

आरनाल :: देखो आरणाल =आरनाल पाअ।

आरनाल :: न [दे] कमल, पद्म षड्।

आरन्निय :: देखो आरण्णिय सुअ २, २, २१।

आरब :: देखो आरव।

आरब्भ :: नीचे देखो।

आरभ :: देखो आरंभ = आ + रभ्। आरभइ हे ४, १५५; उवर १०। वकृ. आरभंत, आरभमाण ठा ७। संकृ. आरब्भ विसे ७६५।

आरभड :: न [आरभट] १ नृत्य का एक भेद ठा ४, ४ २ इस नाम का एक मूहुर्त्त; 'छच्चेव य आरभडो सोमित्तो पंचअंगुलो होइ' गणि

आरभड :: न [आरभट] एक तरह की नाट्य- विधि राय ५४। °भसोल न [°भसोल] नाट्यविधि-विशेष राय ५४।

आरभडी :: स्त्री [आरभटा] प्रतिलेखना-विशेष ओघ १६२ भा।

आरभिय :: न [आरभित] नाट्यविधि-विशेष राय।

आरय :: वि [आरत] १ उपरत। २ अपगत सुअ १, १५

आरय :: वि [आऽरत] उपरत, सर्वंथा निवृत्त सुअ १, ४, १, १; १, १०, १३।

आरव :: पुं [आरव] शब्द, आवाज, ध्वनि सण।

आरव :: पुं [आरब] इस नाम का एक प्रसिद्ध म्लेच्छ-देश पणह १, १।

आरव, आरवग :: वि [आरब] अरब देश में उत्पन्न, अरब देश का निवासी। स्त्री. °वी णाया १, १।

आरविंद :: वि [आरविन्द] कमल-सम्बन्धी गउड।

आरस :: सक [आ + रस्] चिल्लाना, बूम मारना। वकृ. आरसंत उत्त १९। हेकृ. आरसिउं काल।

आरसिय :: न [आरसित] १ चिल्लाहट; बूम। २ चिल्लाया हुआ विपा १, २

आरसिय :: पुं [आदर्श] दर्पंण कहावली।

आरह :: देखो आरभ। आरहइ षड्। संकृ, आरहिअ आभि ९०।

आरहंत, आरहंतिय :: वि [आर्हत] अर्हन् का, जिन- देव सम्बन्धी; 'आरहंतेहि' दस ९, ४, ४; पव २ — गाथा १७०।

आरा :: स्त्री [आरा] लोहे की सलाई, पैने में डाली जाती लोहे की खीली पणह १, १; स ३८।

आरा :: अ [आरात] १ अर्वाक्, पहले दे १, ६३ २ पूर्व-भाग विसे १७४०

आराइअ :: वि [दे] १ गृहीत, स्वीकृत। २ प्राप्त दे १, ७०

आराडि :: स्त्री [आराटि] चीत्कार, चिल्लाहट सुख २, १५।

आराडी :: स्त्री [दे] देखो, आरडिअ दे १, ७५।

आराम :: पुं [आराम] बगीचा, उपवन औप; णाया १, १।

आराम :: पुंन [आराम] बगीचा, उपवन; 'आरा- माणी' आचा २, १०, २।

आरामिअ :: पुं [आरामिक] माली कुमा।

आराव :: पुं [आराव] शब्द, आवाज स ५७७; गउड।

आराह :: सक [आ + राधय्] १ सेवा करना, भक्ति करना। २ ठीक-ठीक पालन करना। आराहइ, आराहेइ महा; भग। वकृ. आराहंत रयण ७०। संकृ. आरा- हित्ता, आराहेत्ता, आराहिऊण कप्प; भग; महा। हेकृ. आराहिउं महा

आराह :: वि [आराध्य] आराधन-योग्य आरा ११।

आराहग :: वि [आराधक] १ आराधन करनेवाला। २ मोक्ष का साधक भघ ३, १

आराहण :: न [आराधन] १ सेवना आरा ११ २ अनशन राज

आराहणा :: स्त्री [आराधना] १ सेवा, भक्ति। २ परिपालन णाया १, १२; पंचा ७ ३ मोक्ष-मार्गं के अनुकूल वर्त्तन पक्खि ४ जिसका आराधन किया जाय वह आरा १

आराहणा :: स्त्री [आराधना] आवश्यक, साम- यिक आदि षट्-कर्म अणु ३१।

आराहणी :: स्त्री [आराधनी] भाषा का एक प्रकार दस ७।

आराहिय :: वि [आराधित] १ सेवित, परि- पालित सम ७० १ अनुरूप, योग्य स ६२३

आरिट्ठ :: वि [दे] यात, गत, गुजरा हुआ षड्।

आरिय :: न [आऋत] आगमन राय १०१।

आरिय :: वि [आरित] सेवित, 'आरिओ आय- रिओ सेवितो वा एगट्ठत्ति' आचू।

आरिय :: वि [आकारित] आहूत, बुलाया हुआ; 'आरिओ आगारिओ वा एगट्ठा' आव।

आरिया :: देखो अज्जा = आर्या प्रारू।

आरिल्ल :: वि [दे] अर्वाक्, उत्पन्न, पहले जो उत्पन्न हुआ हो दे १, ६३।

आरिस :: वि [आर्ष] ऋषि-सम्बन्धी कुमा।

आरिहय :: देखो आरहंत दस १, १ टी।

आरुग्ग :: देखो आरोग्ग = आरोग्य; 'आरुग्ग- बोहिलाभं समाहिवरमुत्तमं दिंतु' पडि।

आरुट्ठ :: वि [आरुष्ट] क्रुद्ध, रुष्ट पउम ५३, १४१।

आरुण्ण :: अप सक [आ + श्लिष्] आलिङ्गन करना। आरुण्णइ प्राकृ ११९।

आरुभ :: देखो आरुह = आ + रुह्। वकृ. आरुभमाण कस।

आरुवणा :: देखो आरोवणा विसे २९२८।

आरुस :: सक [आ + रुष्] क्रोध करना, रोष करना। संकृ. आरुस्स सुअ १, ५।

आरुसिय :: वि [आरुष्ट] क्रुद्ध, कुपित णाया १, २।

आरुह :: सक [आ + रुह्] ऊपर चढ़ना, ऊपर बैठना। आरुहइ षड्; महा। आरुहेइ भग। वकृ. आरुहंत, आरुहमाण से ५, १९; श्रा ३६। संकृ. आरुहिऊण, आरुहिय महा; नाट। हेकृ. आरुहिउं महा।

आरुह :: वि [आरुह] उत्पन्न, उद्‍भूत, जात; 'गामारुह म्हि गामे, वसामि नअरट्ठिइं ण अणामि। णाअरिआणं पइणो हरेमि जा होमि सा होमि' गा ७०५।

आरुहण :: न [आरोहण] ऊपर बैठना णाया १, २; गा ६३०; सुपा २०३; विपा १, ७ गउड।

आरुहण :: न [आरोहण] आरोपण, ऊपर चढ़ाना पव १५५; राय १०६।

आरुहिय :: वि [आरोपित] १ स्थापित। २ ऊपर बैठाया हुआ से ८, १३

आरुहिय, आरुढ :: वि [आरूढ] १ ऊपर चढ़ा हुआ महा २ कृत, विहित; 'तीए पुरओ पइणणा आरुहिया दुक्करा मए सामि' पउम ८, १९१

आरेइअ :: वि [दे] १ मुकुलित, संकुचित। २ भ्रान्त। ३ मुक्त दे १, ७७ ४ रोमना- ञ्‍चित, पुलकित दे १, ७७; पाअ

आरेण :: अ [आरेण] १ समपी, पास उप ३३९ टी २ अर्वाक, पहले विसे ३५१७ ३ प्रारम्भ कर विसे २२८४

आरोअ :: अक [उत् + लस्] विकसित होना, उल्लास पाना। आरोअइ हे ४, २०२।

आरोअणा :: देखो आरोवणा ठा ४, १; विसे २९२७।

आरोइअ :: [दे] देखो आरेइअ षड्।

आरोग्ग :: सक [दे] खाना, भोजन करना, आरोगना। आरोग्गइ दे १, ६९।

आरोग्ग :: न [आरोग्य] एकासन तप संबोध ५८।

आरोग्ग :: न [आरोग्य] १ नीरोगता, रोग का अभाव ठा ४, ३; उव १ वि. रोग- रहित, नीरोग कप्प ३ पुं. एक ब्राह्मणो- पासक का नाम उप ५४०

आरोग्गरिअ :: वि [दे] रक्त, रँगा हुआ षड्।

आरोग्गिअ :: वि [दे] भुक्त, खाया हुआ दे १, ६९।

आरोद्ध :: वि [दे] १ प्रवृद्ध, बढ़ा हुआ। २ गृहागत, घर में आया हुआ षड्

आरोय :: न [आरोग्य] १ क्षेम, कुशल। २ नीरोगता; 'आरोयारोयं पसूया' आचा २, १५, ६

आरोल :: सक [पुञ्‍ज्] एकत्र करना, इकट्ठा करना, आरोलइ हे ४, १०२; षड्।

आरोलिअ :: वि [फुञ्जित] एकत्रित, इकट्ठा किया हुआ कुमा।

आरोव :: सक [आ + रोपय्] १ ऊपर चढ़ाना, ऊपर बैठाना। २ स्थापन करना। आरोवेइ हे ४, ४७। संकृ. आरोवेत्ता, आरोविउं, आरोविऊण भग; कुमा; महा

आरोवण :: न [आरोपण] ऊपर चढ़ाना सुपा २४६। २ सम्भावना दे १, १७४।

आरोवणा :: स्त्री [आरोपणा] १ ऊपर चढ़ाना। २ प्रायश्चित्त-विशेष वव १ ३ प्रारूपणा, व्याख्या का एक प्रकार। ४ प्रश्‍न, पर्यनुयोग विसे २९२७, २९२८

आरोविय :: वि [आरोपित] १ चढ़ाया हुआ। २ संस्थापित महा; पाअ

आरोस :: पुं [आरोष] १ म्लेच्छ देश-विशेष। २ वि. उस देश का निवासी पणह १, १; कस

आरोसिअ :: वि [आरोषित] कोपित, रुष्ट, किया हुआ से ६, ९९; भवि; दे १, ७०।

आरोह :: सक [आ + रुह्] ऊपर चढ़ना, बैठना। आरोहइ कस।

आरोह :: सक [आ + रोहय्] ऊपर चढ़ाना। कृ. आरोहइयव्व वव १।

आरोह :: पुं [आरोह] १ सवार; हाथी, घोड़ा आदि पर चढ़नेवाला से १३, ७५ २ ऊँचाइ बृह ३ लम्बाई वव १, ५

आरोह :: पुं [दे] स्तन, थन, चुँची दे १, ६३।

आरोहग :: वि [आरोहक] १ सवार होनेवाला। २ हस्तिपक, पीलवान, हाथी का रक्षख औप

आरोहि :: वि [आरोहिन्] ऊपर देखो गउड।

आरोहिय :: वि [आरुढ] ऊपर बैठा हुआ, ऊपर चढ़ा हुआ भवि।

आल :: न [दे] अनर्थक, मुधा सिरि ८६४।

आल :: न [दे] १ छोटा प्रवाह। २ वि. कोमल, मृदु दे १, ७३ ३ आगत रंभा

आल :: न [आल] कलंकारोप, दोषारोपण स ४३३; 'न दिज कस्सवि कूडआलं' सत्त २।

°आल :: देखो काल गा ५५; से १, २६; ५, ८५; ६, ५६।

°आल :: देखो जाल से ५, ८५; ६, ५६।

°आल :: देखो ताल; 'समविसमं णमंति हरिआल- वंकियाइं से ६, ५६।

आलइअ :: वि [आलगित] यथास्थान स्थापित, योग्य स्थान में रखा हुआ कप्प।

आलइअ :: वि [आलयिक] गृही, आश्रयवाला आचा।

आलइय :: वि [आलगित] पहना हुआ आचा २, १५, ५।

आलंकारिय :: वि [आलङ्कारिक] १ अलंकार- शास्त्र-ज्ञाता। २ अलंकार-संबन्धी। ३ अलं- कार के योग्य; 'आलंकारियं भंडं उवणेह' जीव ३

आलंकिअ :: वि [दे] पंगु किया हुआ दे १, ६८।

आलंद :: न [आलन्द] समय की परमाण- विशेष, पानी से भींजा हुआ हाथ जितनें समय में सुख जाय उतने से लेकर पाँच अहोरात्र तक का काल विसे।

आलंदिअ :: वि [आलन्दिक] उपर्युक्त समय का उल्लंघन न कर कार्यं करनेवाला विसे।

आलंब :: सक [आ + लम्ब्] आश्रय करना, सहारा लेना। संकृ. आलंबिय भास ११।

आलंब :: पुं [आलम्ब] आश्रय, आधार सुपा ६३५।

आलंब :: न [दे] भूमि-छत्र, वनस्पति विशेष जो वर्षा में होता है दे १, ६४।

आलंबण :: न [आलम्बन] १ आश्रय, आधार, जिसका अवलम्बन किया जाय वह णाया १, १ २ कारण, हेतु, प्रयोजन आवम; आचा

आवंबणा :: स्त्री [आलम्बना] ऊपर देखो पि ३६७।

आलंबि :: वि [आलम्बित] अवलम्बन करने वाला, आश्रयी गउड।

आलंभिय :: न [आलम्भिक] १ नगर-विशेष ठा १ २ भगवती सूत्र के ग्यारहवें शतक का बहाहवाँ उद्देश भघ ११, १२

आलंभिया :: स्त्री [आलम्भिका] नगरी-विशेष भग ११, १२।

आलक्क :: पुं [दे] पागल कुत्ता भत्त १२५।

आलक्ख :: सक [आ + लक्षय्] १ जानना। २ चिह्न से पहिचानना। आलक्खिमो गउड

आलक्खिय :: वि [आलत्रित] १ ज्ञात, परि- चित। २ चिह्न से जाना हुआ गउड

आलग्ग :: वि [आलग्न] लगा हुआ, संयुक्त से ५, ३३।

आलत्त :: वि [आलपित] संभाषित, आभाषित पउम १६, ४२; सुपा २०८; श्रा ६।

आलत्तय :: देखो अलत्त गउड, गा ९४६।

आलत्थ :: पुं [दे] मयूर, मोर दे १, ६५।

आलद्ध :: वि [आलब्ध] १ संसृष्ट। २ संयुक्त। ३ स्पृष्ट, छुआ हुआ। ४ मारा हुआ नाट

आलप्प :: वि [आलाप्य] कहने के योग्य, निर्वचनीय; 'सदसदणभिलप्पालप्पमेगं अणेगं' लहुअ ८।

आलभ :: सक [आ + लभ्] प्राप्त करना। आलभिज्जा उवर ११।

आलभण :: न [आलभन] विनाशन धर्मसं ८८२।

आलभिया :: स्त्री [आलभिका] नगरी-विशेष उवा, भग ११, २।

आलय :: पुंन [आलय] गृह, घर, स्थान मह; गा १३५।

आलय :: पुंन [आलय] बौद्धदर्शन-प्रसिद्ध विज्ञान-विशेष धर्म ६९५, ६९६, ६९७।

आलयण :: न [दे] वास-गृह, शय्या-गृह दे १, ६६, ८, ५८।

आलव :: सक [आ + लप्] १कहना, बात- चीत करना। २ थोड़ा या एक बार कहना। वकृ. आलवंत गा ११८, अभि ३८, आल- वमाण ठा ४। आलविऊण महा, आलविय नाट

आलवण :: न [आलपन] संभाषण, बातचीत, वार्त्तालाप ओघ ११३, उप १२८ टी; श्रा १६; दे १, ५६; स ६६।

आलवाल :: न [आलवाल] कियारी, थाँवला पाअ।

आलस :: वि [आलस] आलसी, सुस्त भघ १२, २। °त्त न [°त्व] आलस, सुस्ती शअरा २३।

आलसिय :: वि [आलसित] आलसी, मन्द भग १२, २।

आलसुय :: देखो आलसिय; 'सावि सायसीला आलसुया कुडिला' सम्मत्त ५३।

आलस्स :: पुंन [आलस्य] सुस्ती, 'आलस्सो रणरणओ' वज्जा १६२।

आलस्स :: न [आलस्य] आलस, सुस्ती कुमा; सुपा २५१।

आलस्सि :: वि [आलस्यिन्] आलसी, सुस्त गच्छ २, १।

आलाअ :: देखो आलाव गा ४२८, ६१९; मै १६।

आलाण :: देखो आणाल फाअ, से ५, १७; महा।

आलाणिय :: वि [आलानित] नियन्त्रित, मज- बुती से बाँधा हुआ; 'दढभुयदंडालाणियकमला- करिणी निवो समरसीहो' सुपा ४।

आलाव :: पुं [आलाप] १ संभाषण, बातचीत श्रा ६ २ अल्प भाषण ठा ५ ३ प्रथम भाषण ठा ४ ४ एक बार की उक्ति भग ५, ४

आलावक :: देखो आलावग सुज्ज ८।

आलावग :: पुं [आलापक] पैरा, पैराग्राफ, परिच्छेद, ग्रन्थ का अंश-विशेष ठा २, २।

आलावण :: न [आलापन] बाँधने का रज्जु आदि साधन, बन्धन-विशेष। °बंध पुं [°बन्ध] बन्ध-विशेष भग ८, ९।

आलावण :: न [आलापन] आलाप, संभाषण वज्जा १२४।

आलावणी :: स्त्री [आलापनी] वाद्यविशेष वज्जा ८०।

आलास :: पुं [दे] वृश्चिक, बिच्छु दे १, ६१।

आलाहि :: देखो अलाहि षड्।

आलि :: पुं [अलि] भ्रमर, भमरा, भौंरा पडि।

आलि :: देखो आली राय; पाअ।

आलिंग :: सक [आ + लिङ्‍ग्] आलिङ्गन करना, भेंटना, गले लगाना। आलिंगइ महा। संकृ. आलिंगिऊण महा। हेकृ. आलिंगिउं महा।

आलिंग :: पुं [आलिङ्ग] वाद्य-विशेष राय।

आलिंग :: वि [आलिङ्‍ग्य] १ आलिङ्गन करने योग्य। २ पुं. वाद्य-विशेष जीव ३

आलिंगण :: न [आलिङ्गन] आलिंगन, भेंट कप्पू। °वट्टि स्त्री [°वृत्ति] गाल या कपोल का उपधान — तकिया, शरीर-प्रमाण उपधान भग ११, ११।

आलिंगणिया :: स्त्री [आलिङ्गनिका] देखो आलिंगणवट्टि जीव ३।

आलिंगिणी :: स्त्री [आलिङ्गिनी] जानु आधि के नीचे रखने का तकिया पव ८४।

आलिंगिय :: वि [आलिङ्गित] आश्लिष्ट, जिसका आलिंगन किया गया हो वह काल।

आलिंद :: पुं [आलिन्द] बाहर के दरबाजे के चौकट्ठें का एक हिस्सा अभि १५९; अवि २८।

आलिंप :: सक [आ + लिप्] पोतना, लेप करना। आलिंपइ उव। हेकृ. आलिं- पित्तए कस। वकृ. आलिंपंत। प्रयो. आलिंपावंत निचु ३।

आलिंपण :: न [आलोपण] १ लेप करना, विले- पन रयण ५५ २ जिसका लेप होता है वह चीज निचु १२

आलिगा :: देखो आवलिआ पंच ५, १४५।

आलित्त :: न [आलित्र] जहाज चलाने का काष्ठ-विशेष आचा २, ३, १, ९।

आलित्त :: वि [आलिप्त] खरणिटत, खरड़ा हुआ, लिपा हुआ पिंड २३४।

आलित्त :: वि [आदीप्त] १ चारों ओर से जला हुआ, 'जह आलित्ते गेहे कोइ पसुत्तं नरं तु बोहेज्जा' वव १, ३; णाया १, १, १४ २ न. आग लगनी, आग से जलना; 'कोट्टिमघरे बसंते आलित्तम्मिम वि न डज्झइ' वव ४

आलिद्ध :: वि [आश्‍लिष्ट] आलिंगित भग १९, ३; सुर ३, २२२।

आलिद्ध :: वि [आलीढ] चखा हुआ, आस्वादित से ६, ५६।

आलिंसंदग :: पुं [दे. आलिसन्दक] धान्य- विशेष ठा ५, ३; भग ६, ७।

आलिसिंदय :: पुं [दे. आलिसिन्दक] ऊपर देखो ठा ५, ३।

आलिह :: सक [स्पृश्] स्पर्श करना, छुना। आलिहइ हे ४, १८२। वकृ. आलिहंत नाट।

आलिह :: सक [आ + लिख्] १ विन्यास करना, स्थापन करना। २ चित्र करना, चितरया या चित्र बनाना। वकृ. आलिहमाण सुर १२, ४०

आलिहिअ :: वि [आलिखित] चित्रित सुर १, ८७।

आली :: सक [आ + ली] १ लीन होना, आसक्त होना। २ आलिंगन करना। ३ निवास करना। वकृ. आलीयमाण गउड

आली :: स्त्री [आली] १ पंक्ति, श्रेणी। २ सखी, वयस्या हे १, ८३ ३ वनस्पति- विशेष णाया १, ३

आलीढ :: वि [आलीढ] १ आसक्त, 'आमूलालो- लधूलीबहुलपरिमलालीढलोलालिमाला' पडि २ न. आसन-विशेष वव १

आलीढ :: पुंन [आलीढ] योद्धा का युद्ध समय का आसन-विशेष वव १।

आलीण :: वि [आलीन] १ लीन, आसक्त, तत्पर पउम ३२, ९ २ आलिंगित, आश्लिष्ट कप्प

आलीयग :: वि [आदीपक] जलानेवाला, आग सुलगानेवाला णाया १, २।

आलीयमाण :: देखो आली = आ + ली।

आलील :: न [दे] समीप का भय, पास का डर दे १, ६५।

आलीवग :: देखो आलीयग पणह १, ३।

आलीवण :: न [आदीपन] आग लगाना दे १, ७१; विपा १, १।

आलीविय :: वि [आर्दीपित] आग से जलाया हुआ पि २४४।

आलु :: पुंन [आलु] कन्द-विशेश, आलु श्रा २०।

आलुई :: स्त्री [आलुकी] वल्ली-विशेष पव १०।

आलुंख :: सक [दह्] जलाना, दाह देना। आलुंखइ हे ४, २०८; षड्।

आलुंख :: सक [स्प़ृश्] स्पर्शं करना, छूना। आलुंखइ हे ४, १८२।

आलुंखण :: न [स्पर्शना] स्पर्श, छूना गउड।

आलुंखिअ :: वि [स्पृष्ट] स्पृष्ट, छुआ हुआ से १, २१; पाअ।

आलु्ंखिअ :: वि [दग्ध] जला हुआ सुर ९, २०३।

आलुंघ :: सक [स्पृश्] छुना। आलुंघइ प्राकृ ७४।

आलुंप :: वि [आलुम्प] अपहारक, हरण करनेवाला, छीन लेनेवाला आचा।

आलुग :: देखो आलु पणण १।

आलुगा :: स्त्री [दे] घटी, छोटा घड़ा उप ९६०।

आलुयार :: वि [दे] निरर्थक, व्यर्थ निष्प्रयोजन; 'ता दंसिमो समग्गं अन्नह किं आलुयारभणि- एहिं' सुपा ३४३।

आलेक्ख, आलेक्खिय :: वि [आलेख्य] चित्रित, 'रत्तिं परिवट्टेउं लक्खं आलेक्खदिणय- राणवि न खमं' अच्चु २५; से २, ४५; गा ६४१; गउड।

आलेटट्ठुं, आलेटठुअं :: देखो आसिलिस।

आलेव :: पुं [आलेप] विलेपन, लेप; 'आलेव- निमित्तं च देवीओ वलयालंकियबाहाओ घसंति चंदणं महा।

आलेवण :: न [आलेपन] १ लेप, विलेपन। २ जिसका लेप किया जाता है वह वस्तु; 'जे भिक्खु रत्तिं आलेवणजायं पडिग्गाहेत्ता' निचु १२

आलेसिय :: वि [आश्‍लेषित] आलिंगन कराया हुआ चेइय ३७६।

आलेह :: पुं [आलेख] चित्र आवम।

आलेहिअ :: वि [आलेखित] चित्रित महा।

आलेअ :: सक [आ + लोक्] देखना, बिलोकन करना। वकृ. आलोअंत, आलो- इंत, आलोएमाण गा ५४६; उप पृ ४३; आचा। कवकृ. आलोक्कंत से १, २५। संकृ. आलोएऊण, आलोइत्ता काल; ठा ९।

आलोअ :: सक [आ + लोच्] १ देखना। २ गुरू को अपना अपराध कह देना। ३ विचार करना। ४ आलोचना करना। आलोएइ भग। वकृ. आलोअंत पडि। संकृ. आलोएत्ता, आलो-इअ भग; पि ५८२। हेकृ. आलोइत्तए ठा २, १। कृ., आलो- एयव्व, आलोएइयव्व उप ६८२; ओघ ७९६

आलोअ :: पुं [आलोक] १ तेज, प्रकाश से २, १२ २ विलोकन, अच्छी तरह देखना ओघ ३ ३ पृथ्वी का समान-भाग, सम भू-भाग ओघ ५९५ ४ घवाक्षादि प्रकाश- स्थान आचा ५ जगत्, संसार आव ६ ज्ञान पणह १, ४

आलोअग, आलोअय :: वि [आलोचक] आलोचना करनेवाला श्रा ४०; पुप्फ ३५५; ३६०।

आलोअण :: न [आलोकन] विलोकन, दर्शंन, निरीक्षण ओघ ५६ भा; 'अत्थालोअणतरला, इअरकईणं भमंति बुद्धीओ। त एव निरारंभं, एंति हिययं कइंदाणं' गउड़।

आलोअण :: न [आलोचन] नीचे देखो पणह २, १; प्रासू २४।

आलोअणा :: स्त्री [आलोचना] १ देखना, बतलाना। २ प्रायश्चित के लिए अपने दोषों को गुरु को बता देना। ३ विचार करना भग १७, २; श्रा ४२; स ५०९

आलोइअ :: वि [आलोचित] दृष्ट, निरीक्षित से ६, ९४।

आलोइअ :: वि [आलोचित] प्रदर्शित, गुरु को बताया हुआ पडि।

आलोइअ :: देखो आलोअ = आ+ लोच्।

अलोइत्तु :: वि [आलोकयितृ] देखनेवाला, द्रष्टा सम १५।

आलोइल्ल :: वि [आलोकवत्] प्रकाश-युक्त वज्जा १६०।

आलोक्कंत :: देखो आलोअ = आ + लोक्।

आलोग :: देखो आलोअ = आलोक ओघ ५९५। °नयर न [°नगर] नगर-विशेष पउण ९८, ५७।

आलोच :: देखो आलोअ = आ+ लोच्। वकृ. आलोचंत सुपा ३०७। संकृ. आलो- चिऊण स११७।

आलोचण :: देखो आलोअण उप ३३२।

आलोड :: सक [आ + लोडय्] हिलोरना, मथन करना। संकृ. आलोडिवि अप सण।

आलोडिय, आलोलिय :: वि [आलोडित] मथित, हिलोरा हुआ; 'आलोडिया य नयरी' पउण ५३, १२६; उप १४२ टी।

आलोयण :: न [आलोकन] गवाक्ष उत्त १९, ४।

आलोव :: सक [आ + लेपय्] आच्छादित करना। कवकृ. आलोविज्जमाण स ३८२।

आलोव :: देखो आलोअ = आलोक; मंते अत्थालोवे भेसज्जे भोयणे पियागमणे रंभा।

आलोपिय :: वि [आलोपित] आच्छादित, ढका हुआ णाया १, १।

आव :: वि [यावत्] जितना। आवंति पि ३९६।

आव :: अ [यावत्] जब तक, जब लग। °कह वि [°कथ] देखो °कहिय विसे १२६३; श्रा १। °कहं अ [°कथम्] यावज्जीव, जीवन-पर्यंन्त (आव)। °कहा स्त्री [°कथा] जीवन-पर्यंन्त, 'धणणा आवकहाए गुरुकलवासं न मुंचंति' (उप ६८१)। °कहिय वि [°कथिक] यावज्जीविक, जीवन-पर्यंन्त रहनेवाला (ठ ६; उप ५२०)।

आव :: पुं [आप] १ प्राप्ति, लाभ (पणह २, १) २ जल का समूह। °बहुल न [°बहुल] देखो आउ-बहुल (कस)

आव :: सक [आ+या] आना, आगमन करना; 'वणबसिराणवि निच्चं आवइ निद्दासुहं ताण' (सुपा ६४७)। आवेइ (नाट)। आवंति (संग १९२)।

आवआस :: सक [उप+गृह्] आलिंगन करना। आवआसइ (प्राक ७४)।

आवइ :: स्त्री [आपद्] आपत्ति, विपत्, संकट (सम ५७; सुपा ३२१; सुर ४, २१५; प्रासू ५, १५९)।

आवंग :: पुं [दे] अपमार्ग, वृक्ष विशेष, लटजीरा (दे १, ६२)।

आवंडु :: वि [आपाण्डु] थोड़ा सफेद, फीका (गा २९५)।

आवंडुर :: वि [आपाण्डुर] ऊपर देखो (से ६, ७४)।

आवंत :: देखो जावंत; 'आवंती के यावंती लोगंसि समणा य माहणा य' (आचा १, ४, २, ३; १, ५, २, १; ४; पि ३५७)।

आवग्गण :: न [आवल्गन] अश्व पर चढ़ने की कला (भवि)।

आवच्चेज्ज :: वि [अपत्यीय] अपत्य-स्थानीय (कप्प)।

आवज्ज :: देखो आओज्ज (हे १, १५६)।

आवज्ज :: अक [अ+पद्] प्राप्त होना, लानू होना। आवज्जइ (कस)। कृ. आवज्जियव्व (पणह २, ५)।

आवज्ज :: सक [आ+वर्ज्] १ संमुख करना। २ प्रसन्न करना; 'आवज्जंति गुणा खलु अबुहंपि जणं अमच्छरियं' (स ११)

आवज्ज :: सक [आ+पद्] प्राप्त करना। आवज्जइ (उत्त ३२, १०३)। आवज्जे (सुअ १, १, २, १९; २०), आवज्जसु (सुख २, ९)।

आवज्ज, आवज्जग :: वि [आवर्ज, °क] प्रीत्युत्पादक (पिंड ४३८)।

आवज्जण :: न [आवर्जन] १ संमुख करना। २ प्रसन्न करना (आचू) ३ उपयोग, ख्याल। ४ उपयोग-विशेष। ५ व्यापार-विशेष (विसे ३०५१)

आवज्जिय :: वि [आवर्जित] १ प्रसन्न किया हुआ। २ अभिमुख किया हुआ (महा; सुर ६, ३१; सुपा २३२)। °करण न [°करण] व्यापार-विशेष (आचू)

आवज्जिय :: देखो आउज्जिय = आतोद्यिक (कुमा)।

आबज्जीकरण :: न [आवर्जीकरण] उपयोग- विशेष या व्यापार-विशेष का करना, उदीर- णवलिका में कर्मं-प्रक्षेप रूप व्यापार (औप; विसे ३०५०)।

आवट्ट :: अक [आ+वृत्] १ चक्र की तरह घूमना, फिरना। २ विलीन होना। ३ सक. शोषण करना, सुखाना। ४ पीड़ना, दुःखी करना। आवट्टइ (हे ४, ४१९; सुअ १, ५, २)। वकृ. आवट्टमाण (से ५, ८०)

आवट्ट :: देखो आवत्त (आचा; सुपा ९४; सुअ १, ३)।

आवट्टणा :: स्त्री [आवर्तना] आवर्तन (प्राकृ ३१)।

आवट्टिआ :: स्त्री [दे] १ नवोढ़ा, दुलहिन। २ परतन्त्र स्त्री (दे १, ७७)

आवड :: देखो आवत्त = आवर्त्तं (राय ३०)।

आवड :: सक [आ+पत्] १ आना, आगमन करना। २ आ लगना। वंकृ. आवडंत (प्रासू १०६)

आवडण :: न [आपतन] १ गिरना (से ६, ४२) २ आ लगना (स ३८४)

आवणवीहि :: स्त्री [आपणवीथि] १ हट्ट-मार्गं, बाजार। २ रथ्या-विशेष, एक तरह का मुहल्ला (राय १००)

आवडिअ :: वि [आपतित] १ गिरा हुआ (महा) २ पास में आया हुआ (से १४, ३)

आवडिअ :: वि [दे] १ संगत, संबद्ध (दे १, ७८, पाअ) २ सार, मजबूत (दे १, ७८)

आवण :: पुं [आपण] १ हाट, दूकान (णाया १, १, महा) २ बाजार (प्रामा)

आवणिय :: पुं [आपणिक]सौदागर, व्यापारी (पाअ)।

आवण्ण :: वि [आपन्न] १ आपत्ति-युक्त। २ प्राप्त (गा ४६७)। °सत्ता स्त्री [°सत्त्वा] गर्भिणी, गर्भवती स्त्री (अभि १२४)

आवण्ण :: वि [आपन्न] आश्रित (सुअ १, १, १, १९)।

आवत्त :: सक [आ+वृत्] आना, 'नावत्तइ नागच्छइ पुणो भवे तेण अपुणरावित्ति' (चेइय ३५६)।

आवत्त :: अक [आ+वृत्] १ परिभ्रमण करना। २ बदलना। ३ चक्रकार घूमना। ४ सक. पठित पाठ को याद करना। ५ घुमाना। आवत्तइ (सुक्त ५१)। वकृ. अत्तमाण, आवत्तमाण (हे १, २७१, कुमा)

आवत्त :: पुं [आवर्त्त] १ चक्राकार परिभ्रमण (स्वप्‍न ५९) २ मुहूर्त्तं-विशेष (सम ५१) ३ महाविदेह क्षेत्रस्थ एक विजय (प्रदेश) का नाम (ठा २, ३) ४ एक खुरवाला पशु- विशेष (पणह १, १) ५ एक लोकपाल का नाम (ठा ४, १) ६ पर्वतविशेष (ठा ९) ७ मणि का एक लक्षण (राय) ८ ग्राम- विशेष (आवम) ९ शारीरिक चेष्टा-विशेष, कायिक व्यापार-विशेष; 'दुवालसावत्ते किति- कम्मे' (सम २१)। °कूड न [°कूट] पर्वंत- विशेष का शिखर-विशेष (इक)। °यंत वकृ. [°यमान] दक्षिण की तरफे चक्राकार घूमनेवाला (भग ११, ११)

आवत्त :: पुंन [आवर्त्त] १ एक तरह का जहाज (सिरि ३५३) २ न. लगातार २५ दीनों का उफवास (संबोध ५८)

आवत्त :: न [आतपत्र] छत्र, छाता (पाअ)।

आवत्तण :: न [आवर्त्तन] चक्राकार-भ्रमण (हे २, ३०)। °पेढिया स्त्री [°पीठिका] पीठिका- विशेष (राय)।

आवत्तय :: पुं [आवर्त्तक] देखो आवत्त। १० वि. चक्राकार भ्रमण करनेवाला (हे २, ३०)।

आवत्ता :: स्त्री [आवर्त्ता] महाविदेह-क्षेत्र के एक विजय (प्रदेश) का नाम (इक)।

आवत्ति :: स्त्री [आपत्ति] १ दोष-प्रसंग, 'सव्व- विमोक्खावत्ती' (विसे १६३४) २ आपदा, कष्ट। ३ उत्पत्ति (विसे ६९)

आवत्ति :: स्त्री [आपत्ति] प्राप्ति (धर्मंसं ४७३)।

आवदि :: स्त्री [आवृति] आवरण (संक्षि ९)।

आवन्न :: देखो आवण्ण (पउम ३४, ३०; णाया १, २; स २५९; उवर १६०)।

आवय :: पुं [आवर्त्त] देखो आवत्त; 'कि ति- कम्मं बारसावयं' (सम २१)।

आवय :: देखो आवड। वकृ. आवयंत, आवय- माण (पउम ३३, १३; णाया , १, १, ८)।

आवया :: स्त्री [आपगा] नदी (पाअ; स ६१२)।

आवया :: स्त्री [आपद्] आपदा, विपद्, दुःख (पाअ; धण ४२); 'न गणंति पुव्वनेहं, न य नीइं नेय लोय-अववायं। नय भाविआवयाओ, पुरिसा महिलाण आयत्ता' (सुर २, १८६)।

आवर :: सक [आ+वृ] आच्छादन करना, ढाकना। कर्म. आवरिज्जइ (भग ९, ३३)। कवकृ, आवरिज्जमाण (भग १५)। संकृ. आवरित्ता (ठा)।

आवरण :: न [आवरण] १ आच्छादन करनेवाला, ढकनेवाला, तिरोहित करनेवाला (सम ७१; णाया १, ८) २ वास्तु-विद्या (ठा ९)

आवरणिज्ज :: वि [आवरणीय] १ आच्छा- दनीय। २ ढकनेवाला, आच्छादन करनमेवाला (औप)

आवरिय :: वि [आवृत] आच्छादित, तिरो- हित; 'आवरिओ कम्मेहिं' (निचू १)।

आवरिसण :: न [आवर्षण] छिड़कना, सिंचन (बृह १)।

आवरिसण :: न [आवर्षण] सुगंध जल की वृष्टि (अणु २५)।

आवरेइया :: स्त्री [दे] करिका, मद्य परोसने का पात्र-विशेष (दे १, ७१)।

आवलण :: न [आवलन] मोड़ना (पणह १, १)।

आवलि :: स्त्री [आवलि] १ पङि्क्ति, श्रेणी (महा) २ पुं. एक विदयार्थी का नाम (पउम ५, ९५)

आवलिआ :: स्त्री [आवलिका] १ पंक्ति, श्रेणी (राय) २ क्रम, परिपाटी (सुज्ज १०) ३ समय-विशेष, एक सूक्ष्म काल-परिमाण (भग ६, ७)। °पविट्ठ वि [°प्रविष्ट] श्रेणी से व्यवस्थित (भग)। °बाहिर वि [°बाह्य] विप्रकीर्णं, श्रेणी-बद्ध नहीं रहा हुआ (भग)। आवलिय वि [आवलित] वेष्टित (सुअनि २००)

आवली :: स्त्री [आवली] १ पंक्ति, श्रेणी (पाअ) २ रावण की एक कन्या का नाम (पउम ९, ११)

आवस :: सक [आ+ वस्] रपहना, वास करना। आवसेज्जा (सुअ १, १२)। वकृ. 'आगारं आवसंता वि' (सुअ १, ९)।

आवसह :: पुं [आवसय] १ घर, आवय, स्थान (सुअ १, ४) २ मठ, संन्यासियों का स्थान (पणह, हे २, १८७)

आवसहिय :: पुं [आवसथिक] १गृहस्थ, गृही (सुअ २, २) २ संन्यासी (सुअ २, ७)

आवसिय, आवस्सग, आवस्सय :: वि [आवश्यक] १ अवश्य-कर्त्तव्य, जरूरी। २ न. सामयिकादि धर्मा- नुष्ठान, नित्य-कर्म (उव; दस १०; णंदि) ३ जैन ग्रन्थ-विशेष, आवश्यक सूत्र (आवम)। °णुआंग पुं [°नुयोग] आव- श्यक सूत्र को व्याख्या (विसे १)

आवस्सय :: पुंन [आपाश्रय] १ — ३ ऊपर देखो। ४ आधार, आश्रय (विसे ८७४)

आवस्सिया :: स्त्री [आवश्यकी] सामाचारी- विशेष, जैन साधु का अनुष्ठान-विशेष (उत्त २६)।

आवह :: सक [आ+वह्] धारण करना, वहन करना; 'थेवोवि गिहिपसंगो जइणो सुद्धस्स पंकमावहइ' (उव); 'णो पूयणं तवसा आवहेज्जा' (सू १, ७)।

आवह :: वि [आवह] धारण करनेवाला (आचा)।

आवा :: सक [आ+पा] १ पीना। २ भोग में लाना, उपभोग करना। हेकृ. 'वंतं इच्छसि आवेउं, सेयं ते मरणं भवे' (दस २, ७)

आवइया :: स्त्री [आवापिका] प्रधान होम, 'पत्थुयाए पक्खावाइयाए' (स ७५७)।

आवाग :: पुं [आपाक] आवा, मिट्टी के पात्र पकाने का स्थान (उप ६४८; विसे २४९ टी)।

आवाड :: पुं [आपात] भीलों की एक जाति, 'तेणं कालेणं तेणं समएणं उत्तरड्‍ढभरहे वासे बहवे आवाडा णामं चिलाया परिवसंति (जं ३)।

आवायण :: न [आपाणक] दूकान, 'भिन्नाइं आवाणयाइं' (स ५३०)।

आवाय :: पुंन [आपात] अभ्यागम, आगमन (पव ९१; ९१ टी)।

आवाय :: देखो आवाग (श्रा २३)।

आवाय :: पुं [आपात] १ प्रारम्भ, शुरूयात (पाअ; से ११, ७५) २ प्रथम मेलन (ठा ४, १) ३ तत्काल, तुरंत (श्रा २३) ४ पतन, गिरना (श्रा २३) ५ सम्बन्ध, संयोग (उव; कस)

आवाय :: पुं [आवाप] १ आवा, मिट्टी के पात्र पकाने का स्थान। २ आलवाल। ३ प्रक्षेप, फेंकना। ४ शत्रु की चिन्ता। ५ बोना, वपन (श्रा २३)

आवायण :: न [आपादन] सम्पादन, (धर्मसं १०९८)।

आवाल :: देखो आलवाल (धर्मवि १६; ११२)।

आवाल, आवालय :: न [दे] जल के निकट का प्रदेश (दे २, ७०)।

आवाव :: देखो आवाय = आवाप। °कहा स्त्री [°कथा] रसोई, सम्बन्धी कथा, वि कथा-विशेष (ठा ४, २)।

आवास :: पुं [आवास] १ वास-स्थान (ठा ९; पाअ) २ निवास, अवस्थान, रहना (पणह १, ४; औप) ३ पक्षि-गृह, नीड (वव १, १) ४ पड़ाव, डेरा (सुपा ३५६; उप पृ १३०)। °पव्वय पुं [°पर्वत] रहने का पर्वत (इक)

आवास, आवासग :: देखो आवस्सय = आवश्यक (पिं ३४८; ओघ ६३८; विसे ८५०)।

आवासणिया :: स्त्री [आवासनिका] आवास- स्थान (स १२२)।

आवासय :: न [आवासक] १ आवश्यक, जरूरी। २ नित्य-कर्त्तव्य धर्मानुष्ठान (हे ८, ४३; विसे ८५८) ३ पुं. पक्षि-गृह, नीड़ (वव १, १) ४ वि. संस्काराधायक, वासक। ५ आच्छादक (विसे ५७५)

आवासि :: वि [आवासिन्] रहनेवाला, 'एगंतनियावासी' (उव)।

आवासिय :: वि [आवासित] संनिवेशित, पड़ाव डाला हुआ (सुपा ४५९; सुर २, १)।

आवाह :: सक [आ+वाहय्] १ संनिध्य के लिए देव या देवाधिष्ठित चीज को बुलाना। २ बुलाना। संकृ. आवाहिवि (अप) (भवि)

आवाह :: पुं [आबाध] पीड़ा, बाधा (विपा १, ९)।

आवाह :: पुं [आवाह] १ नव-परिणीता वधू को वर के घर लाना (पणह २, ४) २ विवाह के पूर्व किया जाता पान देने का एक उत्सव (जीव ३)

आवाहण :: न [आवाहन] आह्वान (विसे १८८३)।

आवाहिय :: वि [आवाहित] १ बुलाया हुआ, आहूत (भवि) २ मदद के लिए बुलाया हुआ देव या देवाधिष्ठित वस्तु; 'एवं च भणंतेणं आवाहियाइं सत्थाइं' (सुर ८, ४२)

आवि :: न [दे] १ प्रसव-पीड़ा। २ वि. नित्य, शाश्‍वत। ३ दृष्ट, देखा हुआ (दे १, ७३)

आवि :: अ [चापि] समुच्चय-द्योतक अव्यय (कप्प)।

आवि :: अ [आविस्] प्रकटता-सूचक अव्यय (सुर १४, २११)।

आविअ :: सक [आ+पा] पीना, 'जहा दुमस्स पुप्फेसु भमरो आविअइ रसं' (दस १, २)।

आविअ :: वि [आवृत] आच्छादित (से ६, ६२)।

आविअ :: पुं [दे] १ इन्द्रगोप, क्षुद्र कीट-विशेष। २ वि. मथित, आलोडित (दे १, ७६) ३ प्रोत (दे १, ७६; पाअ; षड्)

आविअ :: वि [आविच] आविच-देशोत्पन्न (राय)।

आविअज्झा :: स्त्री [दे] १ नवोढ़ा, दुलहिन। २ परतन्त्रा, पराधीन स्त्री (दे १, ७७)

आविंध :: सक [आ+व्यध्] १ विंधना। २ पहनना। ३ मन्त्र से अधीन करना। आविंध (आक ३८)। आविंधामो (पि ४८९); 'पालंबं वा सुवण्णसुत्तं वा आविं- घेज्ज पिणिधेज्ज वा' (आचा २, १३, २०)। कर्मं. आविज्झइ (उव)

आविंधण :: न [आव्यधन] १ पहनना। २ मन्त्र से आविष्ट करना, मन्त्र से अधीन करना (पणह १, २; आक ३८)

आविकम्म :: पुंन [आविष्कर्मन्] प्रकट-कर्मं, प्रकटरूप से किया हुआ काम (आचा २, १५, ५)।

आविग्ग :: वि [आविग्‍न] उद्विग्‍न, उदासीन (से ९, ८६; १३, ९३; दे ७, ६३)।

आविट्ठ :: वि [आविष्ट] १ आवृत, व्याप्त (सम ५१; सुपा १८७) २ प्रविष्ट (सुअ १, ३) ३ अधिष्ठित, आश्रित (ठा ५; भास ३९)

आविट्ठ :: वि [आविष्ट] भूत आदि के उपद्रव से युक्त (सम्मत्त १७३)।

आविद्ध :: वि [आविद्ध] परिहित, पहना हुआ (कप्प)।

आविद्ध :: वि [दे] क्षिप्त, प्रेरित (दे १, ६३)।

आविब्भाव :: पुं [आविर्भाव] १ उत्पत्ति। २ प्रादुर्भव, आभव्यक्ति; 'आविब्भावतिरोभाव- मेत्तपरिणामिदव्वमेवायं' (विसे)

आविब्भूय :: वि [आविर्भूत] १ उत्पन्न। २ प्रादुर्भूंत (कप्प) ३ अभिव्यक्त (सुर १४, २११)

आविल :: वि [आविल] १ मलिन, अस्वच्छ (सम ५१) २ आकुल, व्याप्त (सुअ १, १५)

आविलिअ :: वि [दे] कुपित, क्रुद्ध (षड्)।

आविलुंपिअ :: वि [आकाङ्‍क्षित] अभिलाषित (दे १, ७२)।

आविस :: सक [आ+विश्] प्रवेश करना, घुसना। आविसेइ (सम्मत्त १७३)।

आविस :: अक [आ+विश्] १ संबद्ध होना युक्त होना। २ सक उपभोग करना, सेवना; 'परदारमाविसामिति' (विसे ३२५९); 'जं जं समयं जीवो, आविसई जेणं जेण भावेण। सो तम्मि तम्मि समए, सुहासुहं बंधए कम्मं' (उव)

आविहव :: अक [आविर्+भू] १ प्रकट होना। २ उत्पन्न होना। आविहवह (स ४८)

आविहूअ :: देखो आविब्भूय (स ७१८)।

आवी :: देखो आवि = आविस्; 'र्आवी या जइ वा रहस्से' (उत्त १, १७; सुख १, १७)। °कम्म देखो आविकम्म (आचा २, १५, ५)।

आवीअ :: वि [आपीत] १ पीत। २ शोषित (से १३, ३१)

आवीइ :: वि [आवीचि] निरन्तर, अविच्छिन्न; 'गब्भप्पभिइमावीइसलिलच्छेए सरं व सूसंतं। आणुसमयं मरमाणे, जीयंति जणो कहं भणइ ?' (सुपा ६५१)। °मरण न [°मरण] मरण-विशेष (भग १३, ७)।

आवीकम्म :: न [आविष्कर्मन्] १ उत्पत्ति। २ अभिव्यक्ति (ठा ९, कप्प)

आवीड :: सक [आ+पीड्] १ पीड़ना। २ दबाना। आवीडइ (सण)

आवीण :: न [आपीन] स्तन, थन (गउड)।

आवील :: देखो आमेल = आपीड (स ३१५)।

आवील :: देखो आवीड। संकृ. आवीलियाण (आचा २, १, ८, १)।

आवीलण :: न [आपीडन] समूह, निचय (गउड)।

आवुअ :: पुं [आवुक] नाटक की भाषा में पिता, बाप (नाट)।

आवुण्ण :: वि [आपूर्ण] पूर्णं, भरपूर (दे २, १०२)।

आवुत्त :: पुं [दे] भगिनी-पति (अभि १८३)।

आवुद :: वि [आवृत] ढका हुआ (प्राकृ ८, १२)।

आवुदि :: स्त्री [आवृति] आवरण (प्राकृ ८, १२)।

आवूर :: देखो आपूर = आ +पूरय्। वकृ. आवूरेंत (पउम ७६, ८)। कवकृ. आवूरिज्ज- माण (स ३८२)।

आवूरण :: न [आपूरण] पूर्त्ति (स ४३९)।

आवूरिय :: देखो आऊरिय (पउम ९४, ५२; स ७७)।

आवेअ :: सक [आ+वेदय्] १ विनति करना, निवेदन करना। २ बतलाना। आवे- एइ (महा)

आवेअ :: पुं [आवेग] कष्ट, दुख (से १०, ५७, ११, ७२)।

आवेउं :: देखो आवा।

आवेडिढय :: वि [आवेष्टित] वेष्टित, घिरा हुआ (गा २८)।।

आवेड, आवेडय :: देखो आमेल (हे २, २३४, कुमा)।

आवेढ :: पुं [आवेष्ट] १ वेष्टन। २ मण्डलाकार करना (से ७, २७)

आवेढण :: न [आवेष्टन] ऊपर देखो (गउड, पि ३०४)।

आवेढिय :: वि [आवेष्टित] १ चारों ओर से वेष्टित (भग १६, ६; उप पृ ३२७) २ एक बार वेष्टित (ठा)

आवेयण :: न [आवेदन] निवेदन, मनो-भाव का प्रकाश-करण (गउड; दे ७, ८७)।

आवेवअ :: वि [दे] १ विशेष आसक्त। २ प्रवृद्ध, बढ़ा हुआ (षड्)

आवेस :: सक [आ+ वेशय्] भूताविष्ट करना। संकृ. आवेसिऊण (स ९४)।

आवेस :: पुं [आवेश] १ अभिनिवेश। २ जोश। ३ भूतग्रह। ४ प्रवेश (नाट)

आवेसण :: न [आवेशन] शून्यगृह, 'आवेसण- सभापवासु पणियसालासु एगया वासो' (आचा)।

आस :: देखो अस्स = अस्त्र (प्राकृ २६)।

आस :: अक [आस्] बैठना। वकृ. 'अजयं आसमाणो य पाणभूयाइं हिंसइ' (दस ४)। हेकृ. आसित्तए, आसइत्तए, आसइत्तु (पि ५७८, कस, दस ६, ५४)।

आस :: पुं [अश्‍व] १ अश्व, घोड़ा (णाया १, १७) २ देव-विशेष, अश्विनी नक्षत्र का अधि- ष्ठायक देव (जं) ३ अश्विनी नक्षत्र (चंद २०) ४ मन, चित्त (पणण २) °कण्ण, °कन्न पुं [°कर्ण] १ एक अन्तर्द्वीप। २ उसका निवासी (ठा ४, २) °ग्गीव पुं [°ग्रीव] एक प्रसिद्ध राजा, पहला प्रतिवासुदेव (पउम ५, १५६)। °तर पुं [°तर] खच्चर (श्रा १८)। °त्थाम पुं [°स्थामन्] द्रोणाचार्य का प्रख्यात पुत्र (कुमा)। °द्धअ पुं [°ध्वज] विद्‍याधर वंश का एक राजा (पउम ५, ४२)। °धम्म पुं [°धर्म] देखो पूर्वोक्त अर्थ (पउम ५, ४२)। °धर वि [°धर] अश्वों को धारण करनेवाला (औप)। °पुर न [°पुर] नगर-विशेष (इक)। °पुरा, °पुरी स्त्री [°पुरी] नगरी-विशेष (कस, ठा २, ३)। °मक्खिया स्त्री [°मक्षिका] चतुरिन्द्रिय जीव-विशेष (ओघ ३६७)। °मद्दग, °मद्दय पुं [°मर्दक] अश्व का मर्दन करनेवाला (णाया १, १७)। °मित्त पुं [°मित्र] एक जैनाभास दार्शनिक, जो महागिरि के शिष्य कौण्डिन्य का शिष्य था और जिसने सामुच्छेदिक पथं चलाया था (ठा ७)। °मुह पुं [°मुख] १ एक अन्तर्द्वीप। २ उसका निवासी (ठा ४, २) °मेह पुं [°मेघ] यज्ञ- विशेष (पउम ११, ४२)। °रह पुं [°रथ] घोड़ा-गाड़ी (णाया १, १)। °वार पुं [°वार] गुड़-सवार, घुड-चढ़ैया (सुपा २१४)। °वाह- णिया स्त्री [°वाहनिका] घोड़े की सवारी, घोड़े पर सवार होकर फिरना (विपा १, ९)। °सेण पुं [°सेन] १ भगवान्, पार्श्वनाथ के पिता (कप्प) २ पाँचवें चक्रवर्ती का पिता (सम १५२)। °रोह पुं [°रोह] घुड़-सवार, घुड़-चढ़ैया (से १२, ९६)

आस :: पुंस्त्री [आश] भोजन, 'समासाए पाय- रासाए' (सुअ २, १)।

आस :: पुं [आस] क्षेपण, फेंकना (विसे २७९५)।

आस :: न [आस्य] मुख, मुँह (णाया १, ८)।

आसइ :: वि [आश्रयिन्] आश्रय-स्थित, 'थंभा- सइणी जाया सा देवी सालभंजिव्व' (धर्मंवि १४७)।

आसंक :: सक [आ+शङ्‌क्‌] १ संदेह करना, संशय करना। २ अक. भयभीत होना। आसंकइ (स ३०)। वकृ. आसंकंत, आसं- कमाण (नाट, माल ८३)

आसंका :: स्त्री [आशङ्का] शङ्का, भय, वहम, संशय (सुर ९, १२१; महा; नाट)।

आसंकि :: वि [आशङ्किन्] आशह्का करनेवाला (गा २०५)।

आसंकिय :: वि [आशङ्कित] १ संदिग्ध, संश- यित। २ संभावित (महा)

आसंकिर :: वि [आशङ्कितृ] आशंका करने- बाला, वहमी (सुर १४, १७; गा २०६)।

आसंग :: पुं [दे] वास-गृह, शय्या-गृह (दे १, ६६)।

आसंग :: पुं [आसङ्ग] १ आसक्ति, अभिष्वंग। २ संबन्ध। (गउड) ३ रोग (आचा)

आसंगि :: वि [आसङ्गिन्] १ आसक्त। २ संबन्धी, संयोगी (गउड)। स्त्री. °णी (गउड)

आसंघ :: सक [सं+भावय्] १ संभावना करना। २ अध्यवसाय करना। ३ स्थिर करना, निश्चय करना। आसंघइ (से १५, ६०)। वकृ. आसंघंत (से १५, ९२)

आसंघ :: पुं [दे] १ श्रद्धा, विश्‍वास (सुपा ५२६; षड्) २ अध्यवसाय, परिणाम (से १, १५) ३ आशंसा, इच्छा, चाह (गउड)

आसंघा :: स्त्री [दे] १ इच्छा, वाञ्छा (दे १, ६३) २ आसक्ति (मै २)

आसंघिअ :: वि [दे] १अध्यवसित। २ अव- धारित (से १०, ६६) ३ संभावित (कुमा; स १३७)

आसंजिअ :: वि [आसक्त] पीछे लगा हुआ (सुर ८, ३०; उत्तर ९१)।

आसंदय :: न [आसन्दक] आसन-विशेष (आचा; महा)।

आसंदय :: पुंन [आसन्दक] आसन-विशेष, मंच (सुख ९, १)।

आसंदाण :: न [आसन्दान] अवष्टम्भन, अव- रोध, रुकावट (गउड)।

आसंदिआ :: स्त्री [आसन्दिका] छोटा मञ्च (सुअ १, ४, २, १५; गा ६९७)।

आसंदी :: स्त्री [आसन्दी] आसन-विशेष, मञ्च (सुअ १, ९; दस ६, ५४)।

आसंधी :: स्त्री [अश्वगन्धी] वनस्पति-विशेष (सुपा ३२४)।

आसंबर :: वि [आशाम्बर] १ दिगम्बर, नग्‍न (प्रामा) २ जैन का एक मुख्य भेद। ३ उसका अनुयायी (सं २)

आसंसइय :: वि [असंशयित] संशय-रहित (सुअ २, २, १६)।

आसंसण :: न [आशंसन] इच्छा, अभिलाषा (भास ९५)।

आसंसा :: स्त्री [आशंसा] अभिलाषा, इच्छा (आचा)।

आसंसि :: वि [आशांसिन्] अभिलाषी, इच्छा करनेवाला (आचा)।

आसंसिअ :: वि [आशंसित] अभिलषित (गहा ७६)।

आसक्खय :: पुं [दे] प्रशस्त पक्षि-विशेष, श्रीवद (दे १, ६७)।

आसग :: देखो आस = अश्‍व (णाया १, १२)।

आसगलिअ :: वि [दे] आक्रान्त, 'आसगलिओ तिव्वकम्मपरिणईए' (स ४०४)।

आसगलिअ :: वि [दे] प्राप्त, 'एवं विसयविसुद्ध- चिंतणेण खविओ कम्मसंघाओ, आसगलियं बोधिबीयं' (स ६७६)।

आसज्ज :: अ [आसाद्य] प्राप्त करके (विसे ३०)।

आसड :: पुं [आसड] विक्रम की तेरहवीं शताब्दी का स्वनाम-ख्यात एक जैन ग्रन्थकार (विवे १४३)।

आसण :: न [आसन] १ जिसपर बैठा जाता है वह चौकी आदि (आव ४) २ स्थान, जगह (उत्त १, १) ३ शय्या (आचा) ४ बैठाना, उपवेशन (ठा ९)

आसणिय :: वि [आसनित] आसन पर बैठाया हुआ (स २६२)।

आसण्ण :: न [आसन्न] १ समीप, पास। २ वि. समीपस्थ (गउड)। देखो आसन्न।

आसत्त :: वि [आसक्त] लीन, तत्पर (महा; प्रासू ६४)।

आसत्त :: वि [आसक्त] १ नीचे लगा हुआ (राय ३५) २ पुं. नपुंसक का एक भेद, वीर्यंपात होने पर भी स्त्री का आलिंगन कर उसके कक्षादि अंगों में जुड़कर सोनेवाला नपुंसक (पव १०९)

आसत्ति :: स्त्री [आसक्ति] अभिष्वङ्ग, तल्लीनता (कुमा)।

आसत्थ :: पुं [अश्वत्थ] पीपल का पेड़ (पउम ५३, ७९)।

आसत्थ :: वि [आश्वस्त] १ आश्वासन-प्राप्त, स्वस्थ। २ विश्रान्त (णाया १, १; सम १५२; पउम ७, ३८; दे ७, २८)

आसन्न :: देखो आसण्ण (कुमा; गउड)। °वत्ति वि [°वर्त्तिन्] नजदीक में रहनेवाला (सुपा ३५१)।

आसम :: पुं [आश्रम] तापस आदि का निवास स्थान, तीर्थं-स्थान (पणह १, ३; औप)। २ ब्रह्मा- चर्यं, गार्हस्थ्य, वानप्रस्थ और भैक्ष्य (संन्यास) ये चार प्रकार की अवस्था (पंचा १०)

आसमपय :: न [आश्रमपद] तापसों के आश्रम से उपलक्षित स्थान (उत्त ३०, १७)।

आसमि :: वि [आश्रमिन्] आश्रम में रहनेवाला, ऋषि, मुनि वगैरह (पंचव १)।

आसय :: अक [आस्] बैठाना। आसयंति (जी ३)।

आसय :: सक [आ+श्री] १ आश्रय करना, अवलम्बन करना। २ ग्रहण करना। आसयइ (कप्प)। वकृ. आसयंत (विसे ३२२)

आसय :: पुं [आशक] खानेवाला (आचा)।

आसय :: पुं [आश्रय] आधार, अवलम्बन (उप ७१४, सुर १३, ३९)।

आसय :: पुं [आशय] १ मन, चित्त, हृदय (सुर १३, ३९; पाअ) २ अभिप्राय (सुअ १, १५)

आसय :: न [दे] निकट, समीप (दे १, ६५)।

आसरिअ :: वि [दे] संमुख-आगत, सामने आया हुआ (दे १, ६९)।

आसव :: अक [आ+स्रु] धीरे-धीरे झरना, टपकना। वकृ. आसावमाण (आचा)।

आसव :: सक [आ+स्रु] आना, 'आसवदि जेण कम्मं परिणामेणप्पणो स विणणोओ भावा- सवो' (द्रव्य २९)।

आसव :: पुं [आश्रव] सूक्ष्म छिद्र, देखो; 'सया- सव' (भग १, ६)।

आसव :: पुं [आसव] मद्य दारू (उप ७२८ टी)।

आसव :: पुं [आश्रव] १ कर्मों का प्रवेश-द्वार, जिससे कर्मंबन्ध होता है वह हिंसा आदि (ठा २, १) २ वि. श्रोता, गुरु-वचन को सुननेवाला (उत्त १)। °सक्कि वि [°सक्तिन्] हिंसादि में आसक्त (आचा)

आसवण :: न [दे] वास-गृह, शय्या-घर (दे १, ६६)।

आसवाहिया :: स्त्री [अश्ववाहिका] अश्व-क्रीडा (धर्मंवि ४)।

आसाअ :: सक [आ+सादय्] स्पर्शं करना, छुना। आसएज्जा। वकृ. आसायमाण (आचा २, ३, २, ३)।

आसस :: अक [आ+श्वस्] आश्वासन लेना, विश्राम लेना। आससइ, आसससु (पि ८८, ४६९)।

आससण :: न [आशसन] विनाश, हिंसा (पणह १, ३)।

आससा :: स्त्री [आशंसा] अभिलाषा, 'जेसिं तु परिमाणं, तं दुट्ठं आससा होइ' (विसे २५१९)।

आससिय :: वि [आश्वस्त] आश्वासन-प्राप्त (स ३७८)।

आसा :: स्त्री [आशा] १ आशा, उम्मीद (औप; से १, २६; सुर ३, १७७) २ दिशा (उप ६४८ टी) ३ उत्तर रुचक पर बसनेवाली एक दिक्कुमारी, देवी-विशेष (ठा ८)

आसाअ :: सक [आ+स्वाद्] स्वाद लेना, चखना, खाना। आसायंति (भग)। वकृ. आसाअअंत, आसाएंत, आसायमाण (नाट; से ३, ४५; णाया १, १)।

आसाअ :: सक [आ+सादय्] प्राप्त करना। वकृ, आसाएंत (से ३, ४५)।

आसाअ :: सक [आ+शातय्] अवज्ञा करना, अपमान करना। आसाएज्जा (महानि ५)। वकृ. आसायंत, आसाएमाण (श्रा ६; ठा ४)।

आसाअ :: पुं [आस्वाद] १ स्वाद, रस (गा ५९३; से ६, ६८; उप ७६८ टी) २ तृप्ति (से १, २६)

आसाअ :: पुं [आऽस्वाद] स्वाद का बिलकुल अभाव (तंदु ४५)।

आसाअ :: देखो आसय = आश्रय (तंदु ४५)।

आसाअ :: पुं [आसाद] प्राप्ति (से ६, ६८)।

आसाइअ :: वि [आशातित] १ अवज्ञात, तिरस्कृत (पुप्फ ४५४) २ न. अवज्ञा, तिर- स्कार (विवे ६२)

आसाइअ :: वि [आस्वादित] चखा हुआ, थोड़ा खाया हुआ (से ५, ४६)।

आसाइअ :: वि [आसादित] प्राप्त, लब्ध (हेका ३०; भवि)।

आसाढ :: पुं [आषाढ] १ आसाढ़ मास (सम ३५) २ एक निह्नव, जो अव्यक्तिक मत का उत्पादक था (ठा ७)। °भूइ पुं [°भूति] एक प्रसिद्ध जैन मुनि (कुम्मा २६)

आसाढा :: स्त्री [आषाढा] नक्षत्र-विशेष (ठा २)।

आसाढी :: स्त्री [आषाढी] आषाढ़ मास की पूर्णिमा (सुज्ज)।

आसाढी :: स्त्री [आषाढी] १ आषाढ़ मास की पूर्णिमा। २ आषाढ़ मास की अमावस (सुज्ज १०, ६)

आसादेत्तु :: वि [आस्वादयितृ] आस्वादन करनेवाला (ठा ७)।

आसामर :: पुं [आशामर] सातबें वासुदेव और बलदेव के पूर्वभवीय धर्मंगुरु का नाम (सम १५३)।

आसायण :: न [आस्वादन] स्वाद लेना, चखना (पउम २२, २७; णाया १, ९; सुपा १०७)।

आसायण :: न [आशातन] १ नीचे देखो (विवे ६९) २ अनन्तानुबन्धि कषाय का वेदन (विसे)

आसायणा :: स्त्री [आशातना] विपरीत वर्त्तन, अपमान, तिरस्कार (पड़ि)।

आसार :: सक [आ+सारय्] तंदुरस्त करना, वीणा को ठीक करना। संकृ. आसारेऊण (सिरि ७९४)।

आसार :: पुं [आसार] समीकरण, वीणा को ठीक करना (कुप्र १३९)।

आसार :: पुं [आसार] वेग से पानी का बरसना, (से १, २०; सुपा ६०६)।

आसारिय :: वि [आसारित] ठीक किया हुआ, 'आसारिया कुमारेण वीणा' (कुप्र १३९)।

आसालिय :: पुंस्त्री [आशालिक] १ सर्प की एक जाति (पणह १, १) २ स्त्री. विद्‍या- विशेष (पउम १२, ६४; ५२, ६)

आसावल्ली :: स्त्री [आशापल्ली] एक नगरी (ती १५)।

आसावि :: वि [आस्राविन्] झरनेवाला, सच्छिद्र (सुअ १, ११)।

आसास :: सक [आ+शास्] आशा करना, उम्मीद रखना। आसासदिी (वेणी ३०)।

आसास :: अक [आ+श्वासय्] आश्‍वासन देना, सान्त्वना करना। आसासइ (वज्जा १६)। वकृ. आसासंत, आसासिंत (से ११, ८७; श्रा १२)।

आसास :: पुं [आश्वास] १ आश्‍वासन, सान्त्वना (ओग ७३; सुपा ८३; उप ९६२) २ विश्राम (ठा ४, ३) ३ द्वीप-विशेष (आचा)

आसासअ :: पुं [आश्वासक] विश्राम-स्थान, ग्रन्थ का अंश, सर्गं, परिच्छेद, अध्याय (से २, ४६)। २ वि. आश्वासन देनावाला; 'नाणं आसासयं सुमित्तुव्व' (पुप्फ ३८)

आसासग :: पुं [आशासक] बीजक-नामक वृक्ष (औप)।

आसासण :: न [आश्वासन] १ सान्त्वना, दिलास (सुर ९, ११०; १२, १५; उप पृ ५७) २ ग्रहों के देव-विशेष (ठा २, ३)

आसासण :: पुं [आश्वासन] १ एक महाग्रह (सुज्ज २०) २ वि. आश्वासन-दाता (कुप्र ११०)

आसासिअ :: वि [आश्वासित] जिसको आश्वा- सन दिया गया हो वह (से ११, स १३६; सुर ४, २८)।

आसि :: सक [आ+श्रि] आश्रय करना। संकृ. आसिज्ज (आरा ६६)।

आसि :: देखो अस = अस्।

आसि :: वि [आशिन्] खानेवाला, भोजक (सट्ठि १३)।

आसिअ :: वि [आश्विक] अश्व का शिक्षक, 'दुट्ठेविय जो आसे दमेइ तं आसियं बिंति' (वव ४)।

आसिअ :: वि [आशित] खिलाया हुआ, भोजित (से ८, ६३)।

आसिअ :: वि [आश्रित] आश्रय-प्राप्त (कप्प; सुर ३, १७; से ६, ६५; विसे ७५९)।

आसिअ :: वि [आसित] १ उपविष्ट, बैठा हुआ (से ८, ६३) २ रहा हुआ, स्थित (पउम ३२, ६६)

आसिअ :: देखो आसित्त (णाया १, १; कप्प; औप)।

आसिअअ :: वि [दे] लोहे का, लोह-निर्मित (दे १, ६७; सूत्र कृ° चूर्णीं सू° गा २८५)।

आसिआ :: स्त्री [आसिका] बैठना, उपवेशन (से ८, ६३)।

आसिआ :: देखो आसी = आशिष् (षड्)।

आसिंच :: सक [आ+सिच्] सींचना। कर्मं. आसिच्चंत (चेइय १५१)।

आसिण :: वि [आशिन्] खानेवाला, भोक्ता; 'मंसाणिणस्स' (पउम २६, ३७)।

आसिण :: पुं [आश्विन] आश्‍विन मास (पाअ)।

आसित्त :: वि [आसिक्त] १ थोड़ा सिक्त (भग ९, ३३) २ सिक्त, सींचा हुआ (आवम) ३ पुं. नपुंसक का एक भेद (पुप्फ १२८)

आसित्तिया :: स्त्री [दे] खाद्य-विशेष, 'विसा- हाहि्े आसित्तियाओ भोच्चा कज्जं साधेंती' (सुज्ज १०, १७)।

आसियावाय :: देखो आसीवाय (सुअ १, १४, १९)।

आसिल :: पुं [आसिल] एक महर्षि (सुअ १, ३, ४, ३)।

आसिलिट्ठ :: वि [आश्लिष्ट] आलिंगन (नाट)।

आसिलिस :: सक [आ+श्लिष्] आलिंगन करना। हेकृ. आलेट्‍ठुअं, आलोट्‍ठुं (हे २, १६४)।

आसिसा :: देखो आसी = आशिष् (महा; अभि १३३)।

आसी :: देखो अस् = अस्।

आसी :: स्त्री [आशी] दाढ़ा (विसे)। °विस पुं [°विष] १ जहरिला साँप, 'आसी दाढा प्रासू १२०))। २ पर्वंत-विशेष का एक शिखर (ठा २, ३) ३ निग्रह और अनुग्रह करने में समर्थं, लब्धि-विशेष का प्राप्त (भग ८, १)

आसी :: स्त्री [आशिष्] आशीर्वाद (सुर १, १३८)। °वयण न [°वचन] आशीर्वाद (सुपा ४९०)। °वाय पुं [°वाद] आशीर्वाद (सुर १२, ४३; सुपा १७४)।

आसीण :: वि [आसीन] बैठा हुआ, 'नमिऊण आसीणा तओ' (वसु)।

आसीवअ :: पुं [दे] दरजी, कपड़ा सीनेवाला (दे १, ६९)।

आसीसा :: देखो आसी = आशिष् (षड्)।

आसु :: पुंन [अश्रु] आँसु (संक्षि १७)।

आसु, आसुं :: अ [आशु] शीघ्र, तुरंत, जल्दी (सार्धं १८; महा; काल)। °क्कार पुं [°कार] १ हिंसा, मारना। २ मरने का कारण, विसू- चिका वगैरह (आव) ३ शीघ्र उपस्थित; 'आसुक्कारे मरणे, अच्छिन्नाए य जीवियासाए' (आउ ६) °पण्ण वि [°प्रज्ञ] १ शीघ्र- बुद्धि। २ दिव्य-ज्ञानी, केवल-ज्ञानी (सुअ १, ६; १४)

आसुर :: वि [आसुर] असुर-संबन्धी (ठा ४, ४; आउ ३९)।

आसुरत्त :: न [आसुरत्व] क्रोधिपन, गुस्सा (दस ८, २५)।

आसुरिय :: पुं [आसुरिक] १ असुर, असुर रूप से उत्पन्न (राज) २ वि. असुर-संबन्धी (सुअ २, २, २७)

आसुरीय :: वि [असुरीय] असुर-संबन्धी, 'आसुरीय दिसं बाला गच्छंति अवसातमं' (उत्त ७, १०)।

आसुरुत्त :: वि [आशुरुप्त] १ शीघ्र-क्रुद्ध। २ अति कुपित (णाया १, १)

आसुरुत्त :: वि [आसुरोक्त] अति-कुपित (णाया १, १)।

आसुरुत्त :: वि [आशुरुष्ट] अति-कुपित (विपा १, ९)।

आसुणि :: न [आशूनिन्] १ बलिष्ठ बनानेवाली खुराक। २ रसायन-क्रिया (सुअ १, ९)

आसणी :: स्त्री [आशूनी] श्‍लाघा, प्रशंसा (सुअ १, ९, १५)।

आसूणिय :: वि [आशूनित] थोड़ा स्थूल किया हुआ (पणह १, ३)।

आसूय :: न [दे] औपयाचितक, मनौती (पिंड ४०५)।

आसेअणय :: वि [आसेचनक] जिसको देखने से मन को तृप्ति न होती हो वह (दे १, ७२)।

आसेव :: सक [आ+सेव्] १ सेवना। २ पालना। ३ आचरना। आसेवए (आप ६७)

आसेवण :: न [आसेवन] १ परिपालन, संरक्षण (सुपा ४३८) २ आचरण (स २७१) ३ मैथुन, रतिसंभोग (दसचू; पव १७०)

आसेवणया, आसेवणा :: स्त्री [आसेवना] १ परिपालन (सुअ १, १४) २ विपरीत आचरण (पव) ३ अभ्यास (आचू) ४ शिक्षा का एक भेद (धर्म ३)

आसेवा :: स्त्री [आसेवा] ऊपर देखो (सुपा १०)।

आसेविय :: वि [आसेवित] १ परिपालित। २ अभ्यस्त (आचा) ३ आचारित, अनुष्ठित (स ११८)

आसोअ :: पुं [अश्वयुक्] आश्विन मास (रयण ३९)।

आसोअ :: वि [आशोक] अशोक वृक्ष संबन्धी (गउड)।

आसोइया :: स्त्री [दे. आसोतिका] ओषधि- विशेष, 'आसोडयाइमीसं चोलं धुसिणं कुसुभसं- मीसं' (सुपा ३६७)।

आसोई :: स्त्री [आश्वयुजी] आश्विन पूर्णिमा (इक)।

आसोई, आसोया :: स्त्री [आश्वयुजी] १ आश्‍विन मास की पूर्णिमा। २ आश्विन मास की आमावस (सुज्ज १०, ७; ६)

आसोकंता :: स्त्री [आशोकान्ता] मध्यम ग्राम की एक मूर्च्छना (ठा ७)।

आसोत्थ :: पुं [अश्वत्य] पीपल पा पेड़ (पणण १; उप २३९)।

आह :: सक [व्रूञ्] कहना। भूका — आहंसु, आहु (कप्प)।

आह :: सक [काङ्‍क्ष्] चाहना, इच्छा करना। आहइ (हे ४, १९२; षड्)। वकृ. आहंत (कुमा)।

आहंडल :: देखो आखंडल (हम्मीर १५)।

आहंतुं :: देखो आहण।

आहच्च :: अ [दे] १ अन्यथा। २ निष्कारण (वव १)। °भाव पुं [°भाव] कादाचित्कना (पव १०७ टी)

आहच्च :: न [दे] १ अत्यर्थं, बहुत, अतिशय (दे १, ६२) २ अ. शीघ्र, जल्दी (आचा) ३ कदाचित्, कभी (भग ६, १०) ४ उप- स्थित होकर (आचा) ५ व्यवस्था कर (सुअ २, १) ६ विभक्त कर (आचा) ७ छीन कर (दसा)

आहच्चा :: स्त्री [आहत्या] प्रहार, आघात (भग १५)।

आहट्ट :: न [दे] देखो आहट्‌टु = दे (पव ७३ टी)।

आहट्‌टु :: स्त्री [दे] प्रहेलिका, पहेलियाँ, बुझौ वल; 'तेसु न विम्हयइ सयं आहट्‌टुकुहेडएहिं व' (पव ७३)।

आहट्‍टु :: देखो आहर = आ+हृ।

आहड :: [आहृत] १ छीन लिया हुआ। २ चोरी किया हुआ (सुपा ६४३) ३ सामने लाया हुआ, उपस्थापित (स १८८)

आहड :: न [दे] सीत्कार, सुरत-शब्द (षड्)।

आहण :: सक [आ+हन्] आघात करना, मारना। आहणामि (पि ४९९)। संकृ. आहणिअ, आहणिऊण, आहणित्ता (पि ५९१, ५८५, ५८२)। हेकृ. आहंतुं (पि ५७६)।

आहण :: सक [आ+हन्] उठाना। संकृ. आहु [? ह] णिय (राय १८; २१)।

आहणण :: न [आहनन] आघात (उप ३६६)।

आहणाविय :: वि [आघातित] आहत कराया हुआ (स ५२७)।

आहत्तहीय :: न [याथातथ्य] १ यथावस्थित- पन, वास्तविकता। २ तथ्य-मार्ग-सम्यग्ज्ञान आदि। ३ 'सूत्रकृताङ्ग' सूत्र का तेरहवाँ अध्ययन (सुअ १, १३; वि ३३५)

आहम्म :: सक [आ+हम्म्] आना, आगमन करना। आहम्मइ (हे ४, १६२)।

आहम्मिअ :: वि [अधार्मिक] अधर्मं-संबन्धी (दस ८, ३१)।

आहम्मिय :: वि [अधार्मिक] अधर्मी, पापी (सम ५१)।

आहय :: वि [आहत] आघात प्राप्त, प्रेरित (कप्प)।

आहय :: वि [आहृत] १ आकृष्ट, खींचा हुआ। २ छीना हुआ (उप २११ टी)

आहर :: सक [आ+हृ] १ छीनना, खींच लेना। २ चोरी करना। ३ खाना, भोजन करना। आहरइ (पि १७३)। कवकृ. आहरिज्जमाण (ठा ३)। संकृ. आहट्‌टु (पि २८९)। हेकृ. आहरित्तए (तंदु)

आहर :: सक [आ+हृ] लाना। आहाराहि (सुअ १, ४, २, ४), आहरेमो (सुअ २, २, ५५)।

आहरण :: पुंन [आहरण] १ उदाहरण, दृष्टान्त (ओघ ५३९; उप २६३; ९५१) २ आह्वान, बुलाना (सुपा ३१७) ३ ग्रहण, स्वीकार। ४ व्यवस्थापन (आचा) ५ आनयन, लाना (सुअ २, २)

आहरण :: पुंन [आभरण] भूषण, अलंकार; 'देहे आहरणा बहू' (श्रा १२; कप्पू)।

आहरणा :: स्त्री [दे] खरटि, नाक का खरखर शब्द (ओघ २)।

आहरिसिय :: वि [आघर्षित] तिरस्कृत, भर्त्सित; 'आहरिसिओ दूओ संभंतेण नियन्तिओ' (आवम)।

आहल्ल :: (अप) अक [आ+चल्] हिलना, चलना; 'नवाइ दंतपंतो आहल्लइ, खलइ जीहा' (भवि)।

आहल्ला :: स्त्री [आहल्या] विद्याधर-राज की एक कन्या (पउम १३, ३५)।

आहव :: सक [आ+ह्‍वे] बुलाना। आह (धर्मंवि ८)। संकृ. आहविउं, आहविऊण (धर्मवि ६८; सम्मत्त २१७)।

आहव :: पुं [आहव] युद्ध, लड़ाई (पाअ; सुपा २८८; आरा ४१)।

आहवण, आहव्वण :: न [आह् वान] १ बुलाना। २ ललकारना (श्रा १२; सुपा ९०; पउम ६१, ३०; स ६४)

आहविअ :: देखो आहूअ = आहूत (ती ४)।

आहव्व :: वि [आभाव्य] शास्त्रोक्त क्षेत्रादि (पंचा ११, ३०; पव १०५)।

आहव्वणी :: स्त्री [आह्वानी] विद्या-विशेष (सुअ २, २)।

आहा :: सक [आ+ख्या] कहना। कर्मं. आहिज्जइ (पि ५४५); आहिंज्जंति (कप्प)।

आहा :: सक [आ+धा] स्थापन करना। कर्मं. आहिज्जइ (सुअ २, २)। हेकृ. आहेउं (सुअ १, ९)। संकृ. आहाय (उत्त ५)।

आहा :: स्त्री [आभा] कान्ति, तेज (कप्पू)।

आहा :: स्त्री [आधा] १ आश्रय, आधआर (पिंड) २ साधु के निमित्त आहार के लिए मनः- प्रणिधान (पिंड) °कड वि [°कृत] आधा- कर्म-दोष से युक्त (स १८८)। °कम्म न [°कर्मन्] १ साधु के लिए आहार पकाना। २ साधु के निमित्त पकाया हुआ भोजनस जो जैन साधुओं के लिए निषिद्ध है (पणह २, ३; ठा ३, ४। °कम्मिय वि [°कर्मिक] देखो पूर्वोक्त अर्थं (अनु)

आहाण :: न [आघान] १ स्थापन। २ स्थान, आश्रय; 'सव्वगुणहाणं' (आव ४ ; उवर २६)

आहाण, आहाणय :: न [आख्यान, °क] १ उक्ति, वचन। २ किंवदन्ती, कहावत, लोकोक्ति (सुर २, ९६; उप ७२८ टी)

आहातहिय :: वि [याथातथ्य] सत्य, वास्त- विक (सुअ २, १; २७)। देखो आहत्तहीय।

आहार :: सक [आ +हारय्] खाना, भोजन करना, भक्षण करना। आहारइ, आहारेंति (भग)। वकृ. आहारेमाण (कप्प)। भकृ. आहारिज्जस्समाण (भग)। हेकृ. आहा- रित्तए, आहारेत्तए (कप्प)। कृ. आहारे- यव्व (ठा ३)।

आहार :: पुं [आहार] १ खुराक, भोजन (स्वप्‍न ६०; प्रासू १०४) २ खाना, भक्षण (पव) ३ न. देखो आहारग (पउम १०२, ९८) °पञ्‍जत्ति स्त्री [°पर्याप्ति] भुक्त आहार को खल और रस के रूप में बदलने की शक्ति (भग ६, ४)। °पोसह पुं [°पोषध] व्रत विशेष, जिसमें आहार का सर्वंथा या आंशिक त्याग किया जाता है (आव ६)। °सण्णा स्त्री [°संज्ञा] आहार करने की इच्छा (ठा ४)। आहार पुं [आधार] १ आश्रय, अधिकरण (सुपा १२८; संथा १०३) २ आकाश (भग २०, २) ३ अवधारण, याद रखना (पुप्फ ३५६)

आहारग :: न [आहारक] १ शरीर-विशेष, जिसको चौदह-पूर्वी, केवलज्ञानी के पास जाने के लिए बनाता है (ठा २, २) २ वि. भोजन करनेवाला (ठा २, २) ३ आहारक-शरीरवाला (विसे ३७५) ४ आहारक शरीर उत्पन्न करने का जिसे सामर्थ्यं हो वह (कप्प)। °जुगल न [°युगल] आहारक शरीर और उसके अंगोपाङ्ग (कम्म २, १७; २४)। °णाम न [°नामन्] आहारक शरीर का हेतू-भूत कर्मं (कम्म १, ३३)। °दुग न [°द्विक] देखो °जुगल (कम्म २, ३, ८, १७)

आहारण :: वि [आधारण] १ धारण करनेवाला। २ आधार-भूत (से ९, ५०)

आहारण :: वि [आहारण] आकर्षंक (से ९, ५०)।

आहारय :: देखो आहारग (ठा ९, भग; पणण २८; ठा ५, १; कर्म १, ३७)।

आहाराइणिया :: स्त्री [याथारात्रिकता] यथा- ज्येष्ठ, ज्येष्ठानुक्रम (कस)।

आहारि :: वि [आहारिन्] आहार-कर्त्ता (अज्झ १११)।

आहारिम :: वि [आहार्य] १ खाने योग्य। २ जल के साथ खाया जा सके ऐसा योग्य चूर्णं- विशेष (पिंड ५०२)

आहारिम :: वि [आहार्य] आहार के योग्य, खाने लायक (निचु ११)।

आहारिय :: वि [आहारित] १ जिसने आहार किया हो वह, 'तस्स कंडरीयस्स रणणो तं पणीयं पाणभोयणं आहारियस्स समाणस्स' (णाया १, १९) २ भक्षित, भुक्त (भग))।

आहावणा :: स्त्री [आभावना] अपरिगणना, गणना का अभाव (राज)।

आहवणा :: स्त्री [आभावना] उद्देश्य (पिंड ३९१)।

आहाविअ :: वि [आधावित] दौड़ा हुआ (सिरि ७५२)।

आहाविर :: वि [आधावितृ] दौड़नेवाला (सण)।

आहास :: देखो आभास = आ+भाष्। संकृ. आहासिवि (अप) (भवि)।

आहाह :: अ [आहाह] आश्चर्य-द्योतक अव्यय (हे २, २१७)।

आहि :: पुंस्त्री [आधि] मन की पीड़ा (धम्म १२ टी)।

आहिआइ :: स्त्री [आभिजाति] कुलीनता, खानदानी (से १, ११)।

आहिआई :: स्त्री [आभिजाती] कुलीनता (गा २८५)।

आहिंड :: सक [आ+हिण्ड्] १ गमन करना, जाना। २ परिश्रम करना। ३ घूमना, परिभ्रमण करना। वकृ. आहिडंत, आहिं- डेमाण (उप २६४ टी; णाया १, १)। संकृ. आहिंडिय (महा; स १९३)

आहिंडग, आहिंडय :: वि [आहिण्डक] चलनेवाला, परिभ्रमण करनेवाला (ओघ ११५; ११८; औप)।

आहिक्क :: न [आधिक्य] अधिकता (विसे २०८७)।

आहिजाइ :: देखो आहिआइ (महा)।

आहिजाई :: देखो आहिआइ (गा २४)।

आहितुंडिअ :: पुं [आहितुण्डिक] गारुडिक, सपहरिया, सपेरी (मुद्रा ११९)।

आहित्थ :: वि [दे] १ चलित, गत। २ कुपित, क्रुद्ध (दे १, ७६; जीव ३ टी) ३ आकुल, घबड़ाया हुआ (दे १, ७६; से १३, ८३; पाअ); 'आहित्थं उप्पिच्छं च आउलं रोस- भरियं च' (जीव ३ टी)

आहिद्ध :: वि [दे] १ रुद्ध, रुका हुआ। २ गलित, गला हुआ (षड्)

आहिपत्त :: न [आधिपत्य] मुखियापन, नेतृत्व (उप १०३१ टी)।

आहिय :: वि [आहित] १ स्थापित, निवेशित, (ठा ४) २ सम्पूर्णं हितकर (सुअ) ३ विरचित, निर्मित (पाअ)। °ग्गि पुं [°ग्‍नि] अग्‍नि- होत्रीय ब्राह्मण (पउम ३५, ५)

आहिय :: वि [आहित] १ व्याप्त, 'आचिरेणा- हिओ एस जलोयरवाहिणा' (कुप्र ४३) २ जनित, उत्पादित। ३ प्रथित, प्रसिद्धि-प्राप्त (सुअ १, २, २, २९) ४ सर्वथा हितकारी (सुअ १ २, २, २७)

आहिय :: वि [आख्यात] कहा हुआ, प्रति- पादित, उक्त (पणण ३३; सुज्ज १९)।

आहियार :: पुं [आधिकार] अधिकार, सत्ता, हक (पउम ५५, ८)।

आङिवत्त :: देखो आहिपत्त (काल)।

आहिसारिअ :: वि [अभिसारित] नायक-बुद्धि से गृहीत, पति-बुद्धि से स्वीकृत (से १३, १७)।

आहीर :: पुं [आहीर] १ देश-विशेष (कप्प) २ शूद्र जाति विशेष, अहीर (सुअ १, १) ३ इस नाम का एक राजा (पउम ९८, ६४)। स्त्री. °री — अहीरिन (सुपा ३६०)

आहु :: सक [आ+हवे] बुलाना। कृ. आहु- णिज्ज (औप)।

आहु :: [आ+हु] दान करना, त्याग करना। कृ. आहुणिज्ज (णाया १, १)।

आहु :: अ [आहु] अथवा, या (नाट)।

आहु :: पुं [दे] धूक, उल्लु (दे १, ६१)।

आहु :: देखो आह = ब्रूञ्।

आहुइ :: वि [आहोतृ] दाता, त्यागी (णाया १, १)।

आहुइ :: स्त्री [आहुति] १ हवन, होम (गउड) २ होम का पदार्थ, बलि (स १७)

आहुंदर, आहुंदुरु :: पुं [दे] बालक, बच्चा (दे १, ६६)।

आहुड :: न [दे] १ सीत्कार, सुरत समय का शब्द। २ पणित, विक्रय, बेचना (दे १, ७४)

आहुड :: अक [दे] गिरना। आहुडइ (दे १, ६९)।

आहुडिअ :: वि [दे] निपतित, गिरा हुआ (दे १, ६९)।

आहुण :: सक [आ+धु] कँपाना, हिलाना। कवकृ. आहुणिज्जमाम (णाया १, ९)।

आहुणिय :: वि [आधुनिक] १ आजकल का, नवीन। २ पुं. ग्रह-विशेष (ठा २, ३)

आहुत्त :: न [दे. अभिमुख] सम्मुख, सामने; 'कुमरोवि पहाविओ तयाहुत्तं' (महा; भवि)।

आहूअ :: वि [आहूत] बुलाया हुआ (पाअ)।

आहूअ :: पुं [आहूक] पिशाच-विशेष (इक)।

आहूअ :: वि [आभूत] उत्पन्न, जात; 'आहूओ से गब्भो' (वसू)।

आहेउं :: देखो आहा = आ+घा।

आहेड़, आहेडग :: पुंन [आखेड, °क] शिकार, मृगया (सुपा १९७; स ९७; दे)।

आहेडिीय :: वि [आखेटिक] मृगया-सम्बन्धी, 'आहेडियभसणेण' (सम्मत्त २२९)।

आहेण :: न [दे] विवाह के बाद वर के घर वधू के प्रवेश होने पर जो जिमाने का उत्सव किया जाता है वह (आचा २, १, ४)।

आहेय :: वि [आधेय] १ स्थाप्य। २ आश्रित (विसे ९२४)

आहेर :: देखो आहीर (विसे १४५४)।

आहेवच्च :: न [आधिपत्य] नेतृत्व, मुखियापन (सम ८६)।

आहेवण :: न [आक्षेपण] १ आक्षेप। २ क्षोम उत्पन्न करना (पणह १, २)

आहोअ :: देखो आभोग (से १, ४९; ६, ३; गा ८८; गउड)।

आहोअ :: देखो आभोय = आ+भोजय्। संकृ. आहोइऊण (स ५५)।

आहोइअ :: वि [आभोगित] ज्ञात, दृष्ट (स ४८५)।

आहोइअ :: वि [आभोगिक] उपयोग ही जिसका प्रयोजन हो वह, उपयोग-प्रधान (कप्प)।

आहोड :: सक [ताडय्] ताड़न करना, पिटना आहोडइ (हे ४, २७)।

आहोरण :: [आधोरण] हस्तिपक, महावत (पाअ; स ३६९)।

आहोहि, आहोहिय :: वि [आधोवधिक] अवधि- ज्ञानी की एक भेद, नियत क्षेत्र को अवधिज्ञान से देखनेवाला (भग; सम ६६)।

 :: पुं [इ] १ प्राकृत वर्णमाला का तृतीय स्वरवर्ण (प्रामा) २-३ वाक्यालङ्कार और पाद- पुर्त्ति में प्रयुक्त किया जाता अव्यय (कप्प; हे २, ११७; षड्)

 :: देखो इइ (उवा)।

 :: सक [इ] १ जाना, गमन करना। २ जानना। एइ, एंति (कुमा)। वकृ. एंत (कुमा)। संकृ. इच्चा (आचा)। हेकृ. इत्तए, एत्तए (कप्प; कस)

इअहरा :: देखो इयरहा (प्राकृ ३७)।

इइ :: अ [इति] इन अर्थों का सूचक अव्यय — १ समाप्ति (आचा) २ अवधि, हद (विसे) ३ मान, परिमाण (पव ८४) ४ निश्चय (निचु २, १५) ५ हेतु, कारण (टा ३) ६ एवम, इस तरह, इस प्रकार (उत्त २२)। देखो इति।

इओ :: अ [इतस्] १ इससे, इस कारण (पि १७४) २ इस तरफ (सुपा ३९४) ३ इस (लोक) में (विसे २६८२)

इओअ :: अ [इतश्च] प्रसंगान्तर-सूचक अव्यय (श्रा २८)।

इंखिणिया :: स्त्री [दे. इङ्‍खिनिका] निन्दा, गर्हा (सुअ १, २)।

इंखिणी :: स्त्री [दे. इङ्खिनी] ऊपर देखो (सुअ १, २)।

इंगार, इंगाल :: देखो अंगार (पि १०२; जी ६; प्राप्त)। °कम्म न [°कर्मन्] कोयला आदि उत्पन्न करने का और बेचने का व्यापार (पडि)। °सगडिया स्त्री [°शकटिका] अंगीठी, आग रखने का बर्तन (भग)।

इंगारडाह :: पुंन [अङ्गारदाह] आवा, मिट्टी के पात्र पकाने का स्थान (आचा २, १०, २)।

इंगाल :: वि [आङ्गार] अङ्गार-संबन्धी (दस ५)।

इंगालग :: देखो अंगारग (ठा २, ३)।

इंगालय :: देखो इंगालग (सुज्ज २०)।

इंगाली :: स्त्री [दे] ईख का टुकड़ा, गंडेरी (दे १, ७९; पाअ)।

इंगाली :: स्त्री [आङ्गारी] देखो इंगाल-कम्म (श्रा २२)।

इंगिअ :: न [इङ्गित] इशारा, संकेत, अभिप्राय के अनुरूप चेष्टा (पाअ)। °ज्ज, °ण्ण, ण्णु वि [°ज्ञ] इशारे से समझनेवाला (प्राप्त; हे २. ८३; पि २७६)। °मरण न [°मरण] मरण-विशेष (पंचा)।

इंगिअजाणुअ :: देखो इंगिअज्ज (प्राकृ १८)।

इंगिणी :: स्त्री [इङ्गिनी] मरण-विशेष, अनशन- क्रिया-विशेष (सम ३३)।

इंगुअ :: न [इङ्गुद] इंगुदी वृक्ष का फल (कुमा; पउम ४१, ९)।

इंगुई, इंगुदी :: स्त्री [इङ्गुदी] वृक्ष-विशेष, इसके फल तैलमय होते हैं, इसका दूसरा नाम व्रण-विरोपण भी है, क्योंकि इसके तैल से व्रण बहुत शीघ्र अच्छे होते हैं (आचा; अभि ७३)।

इंघिअ :: वि [दे] घ्रात, सूँघा हुआ (दे १, ८०)।

°इणर :: देखो किण्णर (से ८, ६१)।

इंत :: देखो ए = आ+इ।

इंद :: पुं [इन्द्र] १ देवताओ का राजा, देवराज (ठा २) २ श्रेष्ठ, प्रधान, नायक; 'णरिद' (गउड), 'देविंद' (कप्प) ३ परमेश्वर, ईश्वर (ठा ४) ४ जीव, आत्मा; 'इंदो जीवो सव्वो- वलद्धिभोगपरमेसरत्तणओ' (विसे २९९३) ५ ऐश्वर्यं-शाली (आवम) ६ विद्याघरों का प्रसिद्ध राजा (पउम ६, २; ७, ८) ७ पृथ्वीकाय का एक अधिष्ठायक देव (ठा ५, १) ८ ज्येष्ठा नक्षत्र का अधिष्ठायक देव (ठा २, ३) ९ उन्नीसवें तीर्थंकर के एक स्वनाम-ख्यात गणधर (सम १५२) १० सप्तमी तिथि (कप्प) ११ मेघ, वर्षा; 'किं जयइ सव्वत्था दुब्भिक्खं अह भवे इंदो' (दसनि १०५) १२ न. देवविमान-विशेष (सम ३७) °इ पुं [°जित्] १ इस नाम का राक्षस वंश का एक राजा, एक लंकेश (पउम ५, २६२) २ रावण के एक पुत्र का नाम (से १२, ५८)। °ओव देखो °गोव (पि १६८) °काइय पुं [°कायिक] त्रीन्द्रिय जीव-विशेष (पणण १)। °कील पुं [°कील] दरवाजा का एक अवयव (औप)। °कुंभ पुं [कुम्भ] १ बड़ा कलश (राय) २ उद्यान-विशेष (णाया १, ९) °कोउ पुं [°केतु] इन्द्र-ध्वज, इन्द्र-यष्टि (पणह १, ४; २, ४)। °खील देखो °कील (औप; पि २०६)। °गाइय देखो °काइय (उत्त २६)। °गाह पुं [°ग्रह] इन्द्रावेश, किसी के शरीर में इन्द्र का अधिष्ठान, जो पागलपन का कारण होता है; 'इंदगाहा इवा खंदगाहा इवा' (भग ३, ७)। °गोव, °गोवग, °गोवय पुं [°गोप] वर्षा ऋतु में होनेवाला रक्त वर्णं का क्षुद्र जन्तु-विशेष, जिसको गुजराती में 'गोकुल गाय' कहते हैं (उव ३२; सुर २, ८७; जी १७; पि १६८)। °ग्गह पुं [°ग्रह] ग्रह- विशेष (जीव ३)। °ग्गि पुं [°ग्‍नि] १ विशाखा नक्षत्र का अधिष्ठायक देव (अणु) २ महाग्रह-विशेष (ठा २, ३)। °ग्गीव पुं [ग्रीव] ग्रहाधिष्ठायक देव-विशेष (ठा २, ३)। °जसा स्त्री [°यशस्] काम्पिल्य नगर के ब्रह्मराज की एक पत्‍नी (उत्त १३)। °जाल न [°जाल] माया-कर्म, छल, कपट (स ४५४)। °जालि, °जालिअ वि [°जालिन्, °क] मायावी, बाजीगर (ठा ४; सुपा २०३)। °जुइण्ण पुं [°द्युतिज्ञ] स्वनाम-ख्यात इक्ष्वाकु-वंश का एक राजा (पउम ५, ६)। °ज्झय पुं [ध्वज] बड़ी ध्वजा (पि २९९)। °ज्झया स्त्री [°ध्वजा] इन्द्र द्वारा भरतराज को दिखाई हुइ अपनी दिव्य अङ्गुलि के उपलक्ष में राजा भरत से उस अङ्गुलि के समान आखृति की की हुई स्थापना और उसके उपलक्ष में किया गया उत्सव (आचू २०)। °णील पुंन [°नील] नीलम, नीलमणि, रत्‍न-विशेष (गउड; पि १६०)। °तरु पुं [°तरु] वृक्ष-विशेष, जिसके नीचे भगवान् संभवनाथ को केवल-ज्ञान हुआ था (पउम २०, २८)। °त्त न [°त्व] १ स्वर्गं का आधिपत्य, इन्द्र का असाधारण धर्मे। २ राजत्व। ३ प्राधान्य (सुपा २५३) °दत्त पुं [°दत्त] इस नाम का एक प्रसिद्ध राजा (उप ९३६)। २ एक जैन मुनि (विपा २, ७)। °दिण्ण पुं [°दिन्न] स्वनाम-ख्यात एक जैन आचार्य (कप्प) °धणु न [°धनुष्] १ शक्र-धनु, सूर्य की किरण मेघों पर पड़ने से आकाश में जो धनुष का आकार दीख पड़ता है वह। २ विद्याधर-वंश के एक राजा का नाम (पउम ८, १८६) °नील देखो °णील (पउम ३, १३२)। °पाडिवया स्त्री [°प्रतिपत्] कार्त्तिक (गुजराती आश्विन) मास के कृष्णपक्ष की पहली तिथि (ठा ४)। °पुर न [°पुर] १ इन्द्र का नगर, अमरावती (उप पृ १२६) २ नगर-विशेष, राजा इन्द्रदत्त की राजधानी (उप ९३६) °पुरग न [°पुरक] जैनीय वेशवाटिक गण के चौथे कुल का नाम (कप्प)। °प्पभ पुं [°प्रभ] राक्षस वंश के एक राजा का नाम, जो लङ्का का राजा था (पउम ५, २६१)। °भूण पुं [°भूति] भगवान् महावीर का प्रथम — मुख्य शिष्य, गौतमस्वामी (सम १९; १५२)। °मह पुं [°मह] १ इन्द्र की आराधना के लिए किया जाता एक उत्सव। २ आश्विन पूर्णिमा (ठा ४, २)। °माली स्त्री [°माली] राजा आदित्य की पत्‍नी (पउम ९, १)। °मुद्धाभिसित्त पुं [°मूर्द्धाभिषिक्त] पक्ष की सातवीं तिथि, सप्तमी (चंद्र १०) °मेह पुं [°मेघ] राक्षस वंश में उत्पन्न एक राजा (पउम ५, २६१)। °य पुं [°क] १ देखो इन्द्र (ठा ६) २ नरक-विशेष। ३ द्वीप-बिशेष। ४ न. विमान-विशेष (इक)। °याल देखो °जाल (महा)। °रह पुं [°रथ] विद्याधर वंश के एक राजा का नाम (पउम ५, ४४)। °राय पुं [°राज] इन्द्र (तित्थ)। °लट्ठि स्त्री [°यष्टि] इन्द्र-घ्वज (णाया १, १)। °लेहा स्त्री [°लेखा] राजा त्रिकसंयत की पत्‍नी (पउम ५, ५१)। वंज्जा स्‍त्री [°वज्रा] छन्द-विशेष का नाम, जिसके एक पाद में ग्यारह अक्षर होते हैं (पिंग)। °वसु स्त्री [°वसु] ब्रह्मराज की एक पत्‍नी (राज)। °वाय पुं [°वात] एक माण्डलिक राजा (भवि)। °वारण पुं [°वारण] इन्द्र का हाथी, ऐरावत (कुमा)। °सम्म पुं [°शर्मन्] स्वनाम-ख्यात एक ब्राह्मण (आवम)। °सामणिय पुं [°सामानिक] इन्द्र के समान ऋद्धिवाला देव (महा)। °सिरी स्त्री [°श्री] राजा ब्रह्मदत्त की एक पत्‍नी (राज) °सुअ पुं [°सुत] इन्द्र का लड़का, जयन्त (दे ६, १९)। °सेणा स्त्री [°सेना] १ इन्द्र का सैन्य। २ एक महानदी (ठा ५, ३)। °हणु देखो °धणु (हे १, १८७)। °।उह न [°।युध] इन्द्रधनु (णाया १, १)। °।उहप्पभ पुं [°।युधप्रभ] वानरद्वीप का एक राजा (पउम ६, ६६)। °।मअ पुं [°।मय] राजा इन्द्रायुधप्रभ का पुत्र, वानरद्वीप का एक राजा (पउम ६, ६७)

इंद :: पुंन [इन्द्र] एक देवविमान (देवेन्द्र १४१)।

इंद :: वि [ऐन्द्र] १ इन्द्र-संबन्धी (णाया १, १) २ न. संस्कृत का एक प्राचीन व्याकरण (आवम)

अंदगाइ :: पुं [दे] साथ में संलग्‍न रहनेवाले कीट-विशेष (दे १, ८१)।

इंदग्गि :: पुं [दे] बर्फ, हिम (दे १, ८०)।

इंदग्गिधूम :: न [दे] बर्फ, हिम (दे १, ८०)।

इंदड्‍ढलअ :: पुं [दे] इन्द्र का उत्थापन (दे १, ८२)।

इंदमह :: वि [दे] १ कुमारी में उत्पन्न। २ न. कुमारता, यौवन (दे १, ८१)

इंदमहकामुअ :: पुं [दे. इन्द्रमहकामुक] कुत्ता, श्वान (दे १, ८२; पाअ)।

इंदा :: स्त्री [इन्द्रा] १ एक महानदी (ठा ५, ३) २ घरणोन्द्र की एक अग्र-महिषी (णाया २)

इंदा :: स्त्री [ऐन्द्री] पूर्व-दिशा (ठा १०)।

इंदाणी :: स्त्री [इन्द्राणी] १ इन्द्र की पत्‍नी (सुर १, १७०) २ एक राज-पत्‍नी (पउम ६, २१९)

इंदासणि :: पुं [इन्द्राशनि] एक नरक-स्थान (देवेन्द्र २६)।

इंदिंदिर :: पुं [इन्दिन्दिर] भ्रमर, भमरा, भौंरा (पाअ; दे १, ७९)।

इंदिय :: पुंन [इन्द्रिय] १ आत्मा का चिह्न, ज्ञान के साधन-भूत इन्द्रिय — श्रोत्र, चक्षु, घ्राण, जिह्वा, त्वक् और मन; 'तं तारिसं नो पयलेंति इंदिया' (दसचू १, १९; ठा ६) २ अंग, शरीर के अवयव; 'नो निग्गंथे इत्थीणं इंदियाइं मणोहराइँ मणोरमाइं आलोइत्ता निज्झाइत्ता भवइं' (उत्त १९)। °अवाय पुं [°।पाय] इन्द्रियों द्वारा होनेवाला वस्तु का निश्चयात्मक ज्ञान-विशेष (पण्ण १५)। °ओगाहणा स्त्री [°।वग्रहणा] इन्द्रियों द्वारा उत्पन्न होनेवाला ज्ञान-विशेष (पण्ण १५) °जय पुं [°जय] १ इन्द्रियों का निग्रह, इन्द्रियों को वश में रखना; 'अजि- इंदिएहि चरणं, कट्ठं व घुणेहि कीरइ असारं। तो धम्मत्थीहि दड्ढं, जइअव्वं इंदियजयम्मि' (इंदि ४) २ तपो-विशेष (पव २७०)। °ट्ठाण न [°स्थान] इन्द्रियों का उपादान कारण, जैसे श्रौत्रेन्द्रिय का आकाश, चक्षु का तेज वगैरह (सूअ १, १)। °णिव्वत्तणा स्त्री [°निर्वर्त्तना] इन्द्रियों के आकार की निष्पत्ति (पण्ण १५)। °णाण न [°ज्ञान] इन्द्रिय-द्वारा उत्पन्न ज्ञान, प्रत्यक्ष ज्ञान (वव १०)। °त्थ पुं [°।र्थ] इन्द्रिय से जानने योग्य वस्तु, रूप-रस-गन्ध वगैरह (ठा ६) °पज्जत्ति स्त्री [°पर्याप्ति] शक्ति-विशेष, जिसके द्वारा जीव धातुओं के रूप में बदले हुये आहार को इन्द्रियों के रूप में परिणत करता है (पण्ण १)। °विजय पुं [°विजय] देखो °जय (पंचा १८)। °विसय पुं [°विषय] देखो °त्थ (उत्त ५)।

इंदिय :: न [इन्द्रिय] लिंग, पुरुष-चिह्न (घर्मसं ९८१)।

इंदियाल :: देखो इंद-जाल (सुपा ११७; महा)।

इंदियाल, इंदियालि :: देखो इंद-जालि; 'तुह कोउयत्थ- मित्थं विहियं मे खयरइंदियालेण' (सुपा २४२); 'जह एस इंदियाली, दंसइ खणनस्सराइं रूवाइं' (सुपा २४३)। इंदियालीअ देखो इंद-जालिअ; 'न भवामि अहं खयरो नरपुंगव ! इंदियालीओ' (सुपा २४३)।

इंदिर :: पुं [इन्दिर] भ्रमर, भमरा, भौंरा; 'झंकारमुहरिंदिराइं' (विक्र २९)।

इंदिरा :: स्त्री [इन्दिरा] लक्ष्मी (सम्मत्त २२६)।

इंदीवर :: न [इन्दीवर] कमल, पद्‌म (पउम १०, ३६)।

इंदु :: पुं [इन्दु] चन्द्र, चन्द्रमा (पाअ)।

इंदुत्तरवडिंसग :: न [इन्द्रोत्तरावतंसक] देव- विमान-विशेष (सम ३७)।

इंदुर :: पुंस्त्री [उन्दुर] चूहा, मूषक (नाट)।

इंदोकंत :: न [इन्दुकान्त] विमान-विशेष (सम ३७)।

इंदोव :: देखो इंद-गोव (पाअ; दे १, ७६)।

इदोवत्त :: पुं [दे] इन्द्रगोप, कीट-विशेष (दे १, ८१)।

इंद्र :: देखो इंद=इन्द्र (पि २६८)।

इंध :: न [चिह्न] निशानी, चिह्न (हे १, १७७; २, ५०; कुमा)।

इंधण :: न [इन्धन] १ ईंधन, जलावन, लकड़ी वगैरह दाह्य-वस्तु (कुमा) २ अस्र-विशेष (पउम ७१, ६४) ३ उद्दीपन, उत्तेजन (उत्त १४) ४ पलाल, पुआल, तृण वगैरह, जिससे फल पकाये जाते हैं (निचू १५)। °साला स्त्री [°शाला] वह घर, जिसमें जलावन रक्खे जाते हैं (निचू १६)

इंधिय :: वि [इन्धित] उद्दीपित, प्रज्वलित (बृह ४)।

इक :: न [दे] प्रवेश, पैठ; 'इकमप्पए पवेसणं' (विसे ३४८३)।

इक्क :: देखो एक्क (कुमा; सुपा ३७७; दं ४०; पाअ; प्रासू १०; कस; सुर १०, २१२; श्रा १०; दं २१; रयण २; श्रा ९; पउम ११, ३२)।

इक्कड :: पुं [इक्कड] तृण-विशेष (पण्ह २; ३; पण्ण १)।

इक्कड :: वि [ऐक्कड] इक्कड़ तृण का बना हुआ (आचा २, २, ३, १४)।

इक्कण :: वि [दे] चोर, चुरानेवाला (दे १, ८०); 'बाहुलयामूलेसुं रइयाओ जणमणोक्कणाओ उ। बाहुसरियाउ तीसे' (स ७६)।

इक्कार :: देखो एक्कारह (कम्म ६, ६९)।

इक्किक्क :: वि [एकैक] प्रत्येक (जी ३३; प्रासू ११८; सुर ८, ४२)।

इक्किल :: स्त्रीन [एकचत्वारिंशत्] एकचालीस, ४१ (कम्म ६, ५६)।

इक्कुस :: न [दे] नीलोत्पल, कमल (दे १, ७९)।

इक्ख :: सक [ईक्ष्] देखना। इक्खइ (उव)। इक्ख (सूअ १, २, १, २१)।

इक्खअ :: वि [ईक्षक] देखनेवाला (गा ५५७)।

इक्खण :: न [ईक्षण] अवलोकन, प्रेक्षण (पउम १०१, ७)।

इक्खाउ :: देखो इक्खागु (विक्र ६४)।

इक्खाग :: वि [ऐक्ष्वाक] इक्ष्वाकु नामक प्रसिद्ध क्षत्रियवंश में उत्पन्न (तित्य)।

इक्खाग, इक्खागु :: पुं [इक्ष्वाकु] १ एक प्रसिद्ध क्षत्रिय राजवंश, भगवान् ऋषभदेव का वंश। २ उस वंश में उत्पन्न (भग ९, ३३; कप्प; औप; अजि १३) ३ कोशल देश (णाया १, ८) °भूमि स्त्री [°भूमि] अयोध्या नगरी (आव २)।

इक्खु :: पुं [°इक्षु] १ ईख, ऊख (हे २, १७; पि ११७) २ धान्य-विशेष, 'बरट्टिका' नाम का धान्य (श्रा १८) °गंडिया स्त्री [गण्डिका] गंडेरी, ईख का टुकड़ा (आचा)। °घर न [°गृह] उद्‍यान-विशेष (विसे)। °चोयग न [दे] ईख का कुच्चा (आचा)। °डालग न [°दे] १ ईख की शाखा का एक भाग (आचा) २ ईख का छेद (निचू १) °पेसिया स्त्री [°पेशिका] गण्डेरी (निचू १६)। °भिति स्त्री [दे] ईख का टुकड़ा (निचू १६)। °मेरग न [°मेरक] गण्डेरी, कटे हुए ऊख के गुल्ले (आचा)। °लाट्ठ स्‍त्री [°यष्टि] ईख की लाठी, इक्षु-दण्ड (आचू)। °वाड पुं [°वाट] ईख का खेत, 'सुचिरं' पि अच्छमाणो नलथंभो इच्छुवाडमज्झम्मि' (आव ३)। °सालग न [दे] १ ईख की लम्बी शाखा (आचा) २ ईख की बाहर की छाल (निचू १६)। देखो उच्छु।

इग :: देखो एक्क (कम्म १, ८, ३३; सुपा ४०९; श्रा १४; नव ८; पि ४४५; श्रा ४४; सम ७५)।

इगयाल :: स्त्रीन [एकचत्वारिंशत्] एकचालीस, ४१ (कम्म ६, ५६)।

इगवीसइम :: वि [एकविंश] एक्‍कीसवाँ (पव ४६)।

इगुचाल :: वि [एकचत्वारिंशत्] संसंख्या-विशेषख्या- विशेष, ४१ — चालीस और एक (भग; पि ४४५)।

इगुणवीस :: वि [एकोनविंश] उन्नीसवाँ (पव ४६)।

इगुणीस, इगुवीस :: स्त्री [एकोनविंशति] उन्नीस (पव १८; कम्म ६, ५९)।

इगुसट्ठि :: स्त्री [एकोनषष्टि] उनसठ (कम्म ६, ६१)।

इग्ग :: वि [दे] भीत, डरा हुआ (दे १, ७९)।

इग्ग :: देखो एक्क (नाट)।

इग्घिअ :: वि [दे] भर्त्सित, तिरस्कृत (दे १, ८०)।

इच्चा :: देखो इ सक।

इच्चाइ :: पुंन [इत्यादि] वगैरह, प्रभृति (जी ३)।

इच्चेवं :: अ [इत्येवम्] इस प्रकार, इस माफिक (सूअ १, ३)।

इच्छ :: सक [इष्] इच्छा करना, चाहना। इच्छइ (उव; महा)। वकृ. इच्छंत, इच्छमाण (उत्त १; पंचा ५)।

इच्छ :: सक [आप् + स् = ईप्स्] प्राप्त करने को चाहना। कृ- इच्छियव्व (वव १)।

इच्छकार :: देखो इच्छा-कार (पडि)।

इच्छक्कार :: पुं [इच्छाकार] 'इच्छा' शब्द (पंचा १२, ४)।

इच्छा :: स्‍त्री [इच्छा] पक्ष की ग्यारहवीं रात्रि, 'जयंति-अपराजिया य ग (? इ) च्छा य' (सुअ १०, १४)।

इच्छा :: स्‍त्री [इच्छा] अभिलाषा, चाह, वाञ्छा (उवा; प्रासू ४८)। °कार पुं [°कार] स्वकीय- इच्छा, अभिलाष (पडि)। °छंद वि [°च्छन्द] इच्छा के अनुकूल (आव ३)। °णुलोम वि [°नुलोम] इच्छा के अनुकूल (पण्ण ११)। °णुलोमिय वि [°नुलोमिक] इच्छा के अनुकूल (आचा)। °पणिय वि [°प्रणीत] इच्छानुसार किया हुआ (आचा)। °परिमाण न [°परिमाण] परिग्राह्य वस्तुओं के विषय की इच्छा का परिमाण करना, श्रावक का पांचवां व्रत (ठा ५)। °मुच्छा स्‍त्री [°मूर्च्छा] अत्यासक्ति, प्रबल इच्छा (पण्ह १, ३)। °लोभ पुं [°लोभ] प्रबल लोभ (ठा ६)। °लोभिय वि [°लोभिक] महालोभी (ठा ६)। °लोल पुं [°लोल] १ महान् लोभ। २ वि. महा- लोभी (वृह ६)

°इच्छा :: स्‍त्री [दित्सा] देने की इच्छा (आव)।

इच्छिय :: [इष्ट] इष्ट, अभिलषित, वाञ्छित (सुर ४, १५३)।

इच्छिय :: वि [ईप्सित] प्राप्त करने को चाहा हुआ, अभिलषित (भग; सुपा ६२५)।

इच्छिय :: वि [इच्छित] जिसकी इच्छा की गई हो वह (भग)।

इच्छिर :: वि [एषितृ] इच्छा करनेवाला (कुमा)।

इच्छु :: देखो इक्खु (कुमा; प्रासू ३३)।

इच्छु :: वि [इच्छु] अभिलाषी (गा ७४०)।

इज्ज :: सक [आ+इ] आना, आगमन करना। वकृ. इज्जंत, 'विणयम्मि जो उवाएणं, चोइओ कुप्पई नरो। दिव्वं सो सिरिमिज्जंर्ति, दंडेण पडिसेहए।।' (दस ९, २, ४)।

इज्ज :: पुंन [इज्या] यज्ञ, याग; 'भिक्खट्ठा बंभ- इज्जमि' (उत्त १२, ३)।

इज्जा :: स्‍त्री [इज्या] १ याग, पूजा। २ ब्राह्मणों का सन्ध्यार्चन (अणु ठा १०)

इज्जा :: स्‍त्री [दे] माता, जननी (अणु)।

इज्जिसिय :: वि [इज्यैषिक] पूजा का अभिलाषी (भग ९, ३३)।

इज्झा :: अक [इन्ध्] चमकना (हे २, २८)। वकृ. इज्झमाण (राय)।

इट्टग :: पुं [दे] सेवइँ, गु° सेव (विंडनि° गा° ४६१, ४६६)।

इट्टगा :: स्‍त्री [इष्टका] नीचे देखो (पण्ह २, २; र्पिड)।

इट्टगा :: स्‍त्री [दे] खाद्य-विेशेष, सेव (र्पिड ४६१; ४९९; ४७२)।

इट्टवाय :: देखो इट्टा-वाय (सम्मत्त १३७)।

इट्टा :: स्‍त्री [इष्टका] ईंट (गउड; हे २, ३४)। °पाय, °वाय पुं [°पाक] इँटों का पकना। २ जहाँ पर ईटे पकाई जाती हैं वह स्थान (ठा ८)।

इट्टाल :: न [इट्टाल] इंट का टुकड़ा (दस ५, १, ६५)।

इट्ठ :: वि [इष्ट] १ अभिलषित, अभिप्रेत, वाञ्छित (विपा १, १; सुपा ३७०) २ पूजित, सत्कृत (औप) ३ आगमोक्त, सिद्धान्त से अविरुद्ध (उप ८८२)

इट्ठ :: न [इष्ट] १ स्वाभ्युपगत, स्व-सिद्धान्त (धमंसं ५१९) २ न. तपो-विशेष, निर्विकृति-तप (सम्बोध ५८) ३ यागक्रिया (स ७१३)

इट्ठि :: स्त्री [इष्टि] १ इच्छा, अभिलाषा, चाह (सुपा २४६) २ याग-विशेष (अभि २२७)

°इट्ठि :: स्त्री [कृष्टि] खींचाव, खींचना (गा १८)।

इडा :: स्त्री [इडा] शरीर के बाएँ भाग में स्थित नाड़ी (कुमा)।

इड्डर :: न [दे] गाड़ी (ओघ ४७६)।

इड्डरग, इड्डरय :: न [दे] रसोई ढकने का बड़ा पात्र (राय १४०)।

इड्डरिया :: स्त्री [दे] मिष्टान्न-विशेष, एक प्रकार की मिठाई (सुपा ४८५)।

इड्‍ढ :: वि [ऋद्ध] ऋद्धि-सम्पन्न (भग)।

इडि्ढ :: स्त्री [ऋद्धि] १ वैभव, ऐश्वर्य, सम्पत्ति (सुर ३, १७) २ लब्घि, शक्ति, सामर्य्य (उत्त ३) ३ पदवी (ठा ३, ४)। °गारव न [°गौरव] सम्पत्ति या पदवो आदि प्राप्‍त होने पर अभिमान और प्राप्‍त न होनेपर उसकी लालसा (सम २; ठा ३, ४)। °पत्त वि [°प्राप्त] ऋद्धिशाली (पण्ण ११; सुपा ३६०)। °म, °मंत वि [°मत्] ऋद्धिवाला (निचू १; ठा ६)

इडि्ढसिय :: वि [दे] याचक-विशेष, माँगन की एक जाति (भग ९, ३३ टी)।

इणं, इणमो :: अ [एतत्] यह (दे १, ७९)।

°इण्ण :: देखो दिण्ण (से ४, ३५)।

°इण्ण :: देखो किण्ण (से ८, ७१)।

इण्ह :: न [चिह्न] चिह्न, निशान (से १, १२; षड्)।

°इण्हा :: स्त्री [तृष्णा] तृष्णा, प्यास, स्पृहा (गा ९३)।

इण्हिं :: अ [इदानीम्] इस समय, इस वक्त (दे १, ७९; पाअ)।

इतरेतरासय :: पुं [इतरेतराश्रय] तर्कशास्त्र- प्रसिद्ध एक दोष, परस्पर एक दूसरे की अपेक्षा (धर्मसं ११५८)।

इति :: देखो इइ (पि १८)। °हास पुं [°हास] पूर्ववृत्तान्त, अतीतकाल की घटनाओं का विवरण, पुरावृत्त (कप्प)। २ पुराणशास्त्र (भग)

इत्तए :: देखो इ सक।

इत्तर :: वि [इत्वर] १ अल्प, थोड़ा (अणु) २ अल्प-कालिक, थोड़े समय के लिए जो किया जाता हो वह (ठा ६) ३ थोड़े समय तक रहनेवाला (श्रा १६)। °परिग्गहा स्त्री [°परिग्रहा] थोड़े समय के लिए रक्खी हुई वेश्या, रखैल, रखात आदि (आव ६)

°परिग्गहिया :: स्त्री [°परिमृहीता] देखो

°परिग्गहा :: (आव ६)।

इत्तरिय :: वि [इत्वरिक] ऊपर देखो (निचू २; आचा; उवा; पंचा १०)।

इत्तरिय :: देखो इयर (सूअ २, २)।

इत्तरी :: स्त्री [इत्वरी] थोड़े काल के लिए रखी हुई वेश्या आदि (पंचा १)।

इत्तहे :: अप अ [अत्र] यहां पर (कुमा)।

इत्ताहे :: अ [इदानीम्] इस समय, इस वक्त, अधुना (पाअ)।

इत्ति :: देखो इइ (कुमा)।

इत्तिय :: वि [इयत्, एतावत्] इतना (हे २, १५६; कुमा; प्रासू १३८ षड्)।

इत्तिरिय :: वि [इत्वरिक] अल्पकालिक, जो थोड़े समय के लिए किया जाता हो (स ४९; विसे १२६५)।

इत्तिल :: देखो इत्तिय (हे २, १५६)।

इत्तो :: देखो इओ (श्रा १७)।

इत्तोभ :: देखो इओअ (श्रा १४)।

इत्तोप्पं :: [दे] यहाँ से लेकर, इतःप्रभृति (पाअ)।

इत्थ :: अ [अत्र] यहाँ, इसमें (कप्प; कुमा; प्रासू १४१)।

इत्थं :: अ [इत्थम्] इस तरह, इस प्रकार (पण्ण २)। °थ वि [°स्थ] नियत आकार- वासा, नियमित (जीव १)।

इत्थंथ :: वि [इत्थंस्थ] इस तरह रहा हुआ (दस ९, ४, ७)।

इत्थत्थ :: पुं [इत्यर्थ] वह अर्थ (भग)।

इत्थत्थ :: पुं [स्त्र्यर्थ] स्त्री-विषय (पि १६२)।

इत्थयं :: देखो इत्थ (श्रा १२)।

इत्थि :: स्त्रीन [स्त्री] महिला, नारी; 'इत्थीणि वा पुरिसाणि वा' (आचा २, ११, ३)।

इत्थि, इत्थी :: स्त्री [स्त्री] जनाना, औरत, महिला (सूअ २, २; हे २, १३०)। °कला स्त्री [°कला] स्त्री के गुण, स्त्री को सीखने योग्य कला (जं २)। °कहा स्त्री [°कथा] स्त्री-विषयक वार्तालाप (ठा ४)। °णपुंसग पुंन [°नपुंसक] एक प्रकार का नपुंसक (निचू १)। °णाम न [°नामन्] कर्म-विशेष, जिसके उदय से स्त्रीत्व की प्राप्‍ति होती है (णाया १, ८)। °परिसह पुं [°परिषह] ब्रह्मचर्य (भग ८, ८)। °विप्पजह वि [°विप्रजह] १ स्त्री का परित्याग करनेवाला। २ पुं. मुनि, साधु (उत्त ८) °वेद, °वेय पुं [°वेद] १ स्त्री को पुरुष संग की इच्छा। २ कर्म-विशेष, जिसके उदय से स्त्री को पुरुष के साथ भोग करने की इच्छा होती है (भग; पण्ण २३)

इत्थेण :: त्रि [स्रैण] स्त्रियों का समूह, स्त्री-जन; 'लज्जसि किं न महंतो दीणाओ मारिसित्येणा' (उप ७२८ टी)।

इदाणिं :: देखो इयाणिं (आचा)।

इदाणि :: (शौ) देखो इयाणिं (प्राकृ ८७)।

इदाणीं, इदाणी :: देखो इदाणिं (संक्षि १९)।

इदिवित्त :: (शौ) न [इतिवृत्त] इत्तिहास (मोह १२८)।

इदुर :: न [दे] धान्य रखने का एक तरह का पात्र (अणु १५१)।

इद्‍दंड :: पुं [दे] भौंरा, मधुकर (दे १, ७९)।

इद्धग्गिधूम :: न [दे] तुहिन, हिम (षड्)।

इद्धि :: देखो इडि्ढ (षड्)।

इध :: (शौ) देखो इह (हे ४, २६८)।

इब्भ :: पुं [इभ्य] धनी, आत्य (पाअ)।

इब्भ :: पुं [दे] वणिक्, व्यापारी (१, ७९)।

इभ :: पुं [इभ] हाथी, हस्ती (जं २; कुमा)।

इभपाल :: पु [इभपाल] महावत (सम्मत्त १५७)।

इम :: स [इदम्] यह (हे ३, ७२)।

इमेरिस :: वि [एतादृश] ऐसा, इसके जैसा (सण)।

इय :: देखो इम (महा)।

इय :: देखो इइ (षड्; हे १, ९१; औप)।

इय :: न [दे] प्रवेश, पैठ (आवम)।

इय :: वि [इत] १ गत, गया हुआ (सूअ १, ६) २ प्राप्‍त; 'उदयमिओ जस्सीसो जयम्मि चंदुव्व जिणचंदो' (सार्ध ७१; विसे) ३ ज्ञात, जाना हुआ (आचा)

इयण्हिं :: अ [इदानीम्] हाल में, इस समय, अधुना (ठा १, ३)।

इयर :: वि [इतर] १ अन्य, दूसरा (जी ४६; प्रासू १००) २ हीन, जघन्य (आचा १, ६, २)

इयरहा :: अ [इतरथा] अन्यथा, नहीं तो, अन्य प्रकार से (कम्म १, ६०)।

इयरेयर :: वि [इतरेतर] अन्योन्य, परस्पर (राज)।

इयाणि, इयाणि :: अ [इदानीम्] हाल में, इस समय (भग; पि १४४)।

इर :: देखो किल (हे २, १८६; नाट)।

इरमंदिर :: पुं [दे] करभ, ऊँट (दे १, ८१)।

इराव :: पुं [दे] हाथी (दे १, ८०)।

इरावदी :: (शौ) स्त्री [इरावती] नदी-विशेष (नाट)।

°इरि :: देखो गिरि; 'विझइरिपवरसिहरे' (पउम १०, २७)।

इरिण :: न [ऋण] करजा, ऋण (चारु ६६)।

इरिण :: न [दे] कनक, सूवर्ण (दे १, ७९; गउड)।

इरिय :: सक [ईर्] जाना, गति करना। इरियामि (उत्त १८, २६; सुख १८, २६)।

इरिया :: स्त्री [दे] कुटी, कुटिया (दे १, ८०)।

इरिया :: स्त्री [ईर्या] गमन, गति, चलना (आचा)। °वह पुं [°पथ] १ मार्ग में जाना (ओघ ५४) २ जाने का मार्ग, रास्ता (भग ११, १०) ३ केवल शरीर से होनेवाली क्रिया (सूअ २, २) °वहिय न [°पथिक] केवल शरीर की चेष्टा से होनेवाला कर्मबन्घ, कर्म-विशेष (सूअ २, २; भग ८, ८)। °वहिया स्‍त्री [°पथिकी] कषाय- रहित केवल कायिक क्रिया, क्रिया-विशेष (पडि; ठा २)। °समिइ स्‍त्री [°समिति] विवेक से चलना, दूसरे जीव को किसी प्रकार की हानि न हो ऐसा उपयोग-पूर्वक चलना (ठा ८)। °समिय वि [°समित] विवेक-पूर्वक चलनेवाला (विपा २, १)।

हल :: पुं [इल] १ वाराणसी का वास्तव्य स्वनाम-ख्यात एक गृहपति — गृहस्थ (णाया २) २ न. इलादेवी के सिंहासन का नाम (णाया २)। °सिरी स्‍त्री [°श्री] इल नामक गृहस्थ की स्‍त्री (णाया २)

°इलंतअ :: देखो किलंत (से ३, ४७)।

इला :: स्‍त्री [इला] १ पृथिवी, भूमि (से २, ११) २ धरणोन्द्र की एक अग्र-महिषी (णाया २) ३ इल नामक गृहस्थ की पुत्री (णाया २) ४ रुचक पर्वत पर रहनेवाली एक दिवकुमारो (ठा ८) ५ राजा जनक की माता (पउम २१, ३३) ६ इलावर्धन नगर में स्थित एक देवता (आवम)। °कूड न [°कूट] इलादेवी के निवास-भूत एक शिखर (ठा ४)। °पुत्त पुं [°पुत्र] इलादेवी के प्रसाद से उत्पन्न एक श्रेष्ठि-पुत्र, जिसने नटिनी पर मोहित होकर नट का पेशा शीखा और अन्त में नाच करते-करते ही शुद्ध भावना से केवलज्ञान प्राप्‍त कर मुक्ति पाई (आचू)। °वइ पुं [°पति] एलापत्य गोत्र का आदि पुरुष (णंदि)। °वडंसय न [°।वतंसक] इलादेवी का प्रासाद (णाया २)

इलाइपुत्त :: देखो इला-पुत्त; 'धन्नो इलाइपुत्तो चिलाइपुत्तो अ बाहुमुणी' (पडि)।

इलिया :: स्‍त्री [इलिका] क्षुद्र जीव-विशेष, चीनी और चावल में उत्पन्न होनेवाला कीट-विशेष (जो १७)।

इली :: स्‍त्री [इली] शस्‍त्र-विशेष, एक जाति की तलवार की तरह का हथियार (पण्ह १, ३)।

इल्ल :: पुं [दे] १ प्रतीहार, चपरासी। २ लवित्र, दाँती। ३ वि. दरिद्र, गरीब। ४ कोमल, मृदु। ५ काला, कृष्ण वर्णवाला (दे १, ८२)

इल्लपुलिंद :: पुं [दे] व्याघ्र, शेर (चंड)।

इल्लि :: पुं [दे] १ शार्दूल, व्याघ्र। २ सिंह। ३ छाता (दे १, ८३)

इल्लिय :: वि [द] आसिक्त, उप्पेलणफुल्लाविअहल्ल- अफुल्लासवेल्लिअमल्लिआअक्खतल्लएण' (विक्र २३)।

इल्लिया :: स्‍त्री [इल्लिका] क्षुद्र जीव-विशेष, अन्न में उत्पन्न होनेवाला कीट-विशेष (जी १६)।

इल्लीर :: न [दे] १ आसन-विशेष। २ छाता। ३ दरवाजा, गृह-द्वार (दे १, ८३)

इव :: अ [इव] इन अर्थों का द्योतक अव्यय- १ उपमा। २ सादृश्य, तुलना। ३ उत्प्रेक्षा (हे २, १८२; सण)

इसअ :: वि [दे] विस्तीर्ण (षड्)।

इसणा :: देखो एसणा (रंभा)।

इसाणी :: स्‍त्री [ऐशानी] ईशान कोण, पूर्व और उत्तर के बीच की दिशा (नाट)।

इसि :: पुं [ऋषि] १ मुनि, साधु, ज्ञानी, महात्मा (उत्त १२; अवि १४) २ ऋषिवादि-निकाय का दक्षिण दिशा का इन्द्र, इन्द्र-विशेष (ठा २, ३) °गुत्त पुं [°गुप्त] १ स्वनाम-ख्यात एक जैन मुनि (कप्प) २ न. जैन मुनियों का एक कुल (कप्प) °गुत्तिय न [°गुप्तीय] जैन मुनियों का एक कुल (कप्प)। °दास पुं [°दास] १ इस नाम का एक सेठ, जिसने जैन दीक्षा ली थी। २ 'अनुतरोववाइदसा' सूत्र का एक अध्ययन (अनु २) °दत्त, °दिण्ण पुं [°दत्त] एक जैन मुनि (कप्प)। °पालिय पुं [°पालित] ऐरवत क्षेत्र के पाँच वें तीर्थकर का नाम (सम १५३)। °पालिया स्‍त्री [°पालिता] जैन मुनियों की एक शाखा (कप्प)। °भद्दपुत्त पुं [भद्रपुत्र] एक जैन श्रावक (भग ११, १२)। °भासिय न [°भाषित] १ अंगग्रन्थों के अतिरिक्त जैन आचार्यों के बनाए हुए उत्तराध्ययन आदि शास्‍त्र (आवस) २ 'प्रश्‍नव्याकरण' सूत्र का तृतीय अध्ययन (ठा १०) °वाइ, °वाइय, °वादिय पुं [वादिन्] व्यन्तरों की एक जाति (औप; पण्ह १, ४)। °वाल पुं [°पाल] १ ऋषिवादि-व्यन्तरों का उत्तर दिशा का इन्द्र (ठा २, ३) २ पाचवें वासुदेव का पूर्वभवीय नाम (सम १५३)। °वालिय पुं [°पालित] ऋषिवादिव्यन्तरों के एक इन्द्र का नाम (देव)

इसिण :: पुं [इसिन] अनार्य देश-विशेष (णाया १, १)।

इसिणय :: वि [इसिनक] इसिन-नामक अनार्य देश में उत्पन्न (णाया १, १; इक)।

इसिया :: स्त्री [इषिका] सलाई, शलाका (सुअ २, १)।

इसु :: पुं [इषु] बाण (पाअ)।

इस्स :: वि [एष्यत्] १ भविष्य काल, 'जुत्तं संपयमिस्सं' (विसे) २ होनेवाला, भावी; 'संभरइ भूय मिस्सं' (विसे ५०८)

इस्सर :: देखो ईसर (प्राप्र; पि ८७; ठा २, ३)।

इस्सरिय :: देखो ईसरिय (पउम ५, २७०; सम १३; प्रासू ७५)।

इस्सा :: स्त्री [ईर्ष्या] द्रोह, असूया (उत ३४, २३)।

इस्सास :: पुं [इष्वास] १ धनुष, कार्मुक, शरा- सन। २ बाण-क्षेपक, तीरंदाज (प्रारू)

इह :: पुं [इभ] हाथी, हस्ती (प्रारू)।

इह :: अ. [इदानीम्] इस समय, अधुना (प्राकृ ८०)।

इह :: अ [इह] यहाँ, इस जगह (आचा; स्पप्‍न २२)। °पारलोइय वि [ऐहिकपारलौकिक] इस और परलोक से सम्बन्ध रखनेवाला (स १५९)। °भविय वि [ऐहभविक] इस जन्म संबन्धी (भग)। °लोअ, °लोग पुं [°लोक] वर्तमान जन्म, मनुष्य-लोक (ठा ३; प्रासू ७५; १५३)। °लोय, °लोइय वि [ऐह- लौकिक] इस जन्म-संबन्धी, वर्त्तमान-जन्म- संबन्धी (कप्प; सुपा ४०८; पण्ह १, ३; स ४८१); 'इहलोयपारलोइयसुहाइं सव्वाइं तेण दिन्नाइं' (स १५५)।

इहअ, इहइं :: ऊपर देखो (षड्; पउम २१, ७)।

इहइं :: अ [इदानीम्] हाल, संप्रति, इस समय (पाअ)।

इहं, इहयं :: देखो इह=इह (औप; श्रा १४)।

इहरहा, इहरा :: देखो इयर-हा (उप ८६०; भत ३६; हे २, २१२)।

इहरा :: देखो इहइं=इदानीम् (गउड)।

इहामिय :: देखो ईहामिय (पि १४)।

इहिं :: अ [इह] यहाँ (रंभा)।

 :: पुं [ई] प्राकृत वर्णमाला का चतुर्थ वर्ण, स्वर-विशेष (प्रामा)।

ईअ :: स [एतत्, इदम्] यह (पि ४२६; ४२९)।

ईअ :: अ [इति] इस तरह, 'ईय मणोविसईणं' (विसे ५१४)।

ईइ :: पुंस्त्री [ईति] धान्य वगैरह को नुकसान पहुँचानेवाला चूहा आदि प्राणि-गण (औप)।

ईइस :: वि [ईदृश] ऐसा, इस तरह का, इसके समान (महा; स १५)।

ईजिह :: अक [ध्रा] तृप्त होना। ईजिहइ (प्राकृ ६५)।

°ईड :: देखो कीड=कीट; 'दुद्दंसणर्णिबर्इडसारि- व्छं' (गा ३०)।

ईडा :: स्त्री [ईडा] स्तुति (चेइय ८६८)।

ईण :: वि [ईन] प्रार्थो, अभिलाषी; 'आहाकडं चेव निकाममीणे' (सूअ १, १०, ८)।

°ईण :: देखो दीण (से ८, ६१)।

ईति :: देखो ईइ (सम ६०)।

ईदिस :: देखो ईइस (स १४०; अभि १८२; कप्पू)।

ईर :: सक [ईर्] १ प्रेरणा करना। २ कहना। ३ गमन करना। ४ फेंकना। ईरेइ (विसे १०६०); कृ. 'ठाणगमणगुणजोगजुंजण- जुगंतरनिवातियाए दिट्ठीए ईरियव्वं' (पण्ह २, १)। भूकृ. ईरिद (शौ) (अभि ३०)

ईरिय :: वि [ईरित] प्रेरित (विसे ३१४४)।

ईरिया :: देखो इरिया (सम १०; ओघ ७४८; सुर २, १०४)।

ईरिस :: देखो ईइस (कुमा; स्वप्‍न ५५)।

ईस :: न [दे] खूँटा, खीला, कीलक (दे १, ८४)।

ईस :: सक [ईर्ष्] ईर्ष्या करना, द्वेष करना। ईसाअंति (गा २४०)।

ईस :: पुं [ईश] देखो ईसर=ईश्वर (कुमा; पउम १०२, ५८)। २ न. ऐश्वर्य, प्रभुता (पण्ण २)

ईस :: देखो ईसि (कप्पू)।

ईसअ :: पुं [दे] रोझ, हरिण की एक जाति (दे १, ८४)।

ईसत्थ :: न [इष्वस्त्रशास्त्र] धनुर्वेद, बाण- विद्या (औप; पण्ह १, ५); 'विन्नाणनाण- कुसला ईसत्थकयस्समा वीरा' (पउम ९८, ४०; पि ११७)।

ईसर :: पुं [दे] मन्मथ, कामदेव (दे १, ८४)।

ईसर :: पुं [ईश्‍वर] १ परमेश्वर, प्रभु (हे १, ८४) २ महादेव, शिव (पउम १०९, १२) ३ स्वामी, पति (कुमा) ४ नायक, मुखिया (विपा १, १) ५ देवताओं का एक आवास, बेलंधर देवों का आवास-विशेष (सम ७३) ६ एक पाताल कलश (ठा ४, २) ७ आढ्य, धनो (सुपा ४३९) ८ ऐश्वर्य-शाली, वैभवी (जीव ३) ९ युवराज। १० माण्डलिक, सामन्त-राजा। ११ मन्त्री (अणु) १२ इन्द्र-विशेष, भूतवादि-निकाय का इन्द्र (ठा २, ३) १३ पाताल-विशेष (ठा ४) १४ एक राजा का नाम। १५ एक जैन मुनि (महानि ६) १६ यक्ष-विशेष (पव २७)

ईसर :: पुं [ईश्वर] अणिमा आदि आठ प्रकार के ऐश्वर्य से सम्पन्न (अणु २२)।

ईसरिय :: न [ऐश्‍वर्य] वैभव, प्रभुता, ईश्वरपन (पउम ८९, ६३)।

ईसा :: स्त्री [ईषा] १ लोकपालों की अग्रमहि- षियों की एक पार्षदा (ठा ३, २) २ पिशा- चेन्द्र की एक परिषद् (जीव ३) ३ हल का एक काष्ठ (दे २, ९९)

ईसा :: स्त्री [ईर्षा] ईर्ष्या, द्रोह (गउड)। °रोस पुं [°रोष] क्रोध, गुस्सा (कप्पू)।

ईसाइय :: वि [ईर्ष्यायित] जिसको ईर्ष्या हुई हो वह (सुपा ६१)।

ईसाण :: पुं [ईशान] १ देवलोक-विशेष, दूसरा देवलोक (सम २) २ दूसरे देवलोक का इन्द्र (ठा २, ३) ३ उत्तर और पूर्व के बीच की दिशा, ईशान-कोण (सुपा ९८) ४ मुहूर्त्त- विशेष (सम ५१) ५ दूसरे देवलोक के निवासी देव (ठा १०) ६ प्रभु, स्वामी (विसे)। °वडिंसग न [°।वतंसक] विमान-विशेष का नाम (सम २५)

ईसाण :: पुं [ईशान] अहोरात्र का ग्यारहवाँ मुहू्र्त (सुज १०, १३)।

ईसाणा :: स्त्री [ऐशानी] ईशान-कोण (ठा १०)।

ईसाणी :: स्‍त्री [ऐशानी] १ ईशान-कोण। २ विद्या-विशेष (पउम ७, १४१)

ईसालु :: वि [ईर्ष्यालु] ईर्ष्यालु, असहिष्णु, द्वेषी (महा; गा ६३४; प्राप्र)। स्‍त्री. °णी (पउम ३६, ४५)।

ईसास :: देखो इस्सास; 'ईसासठ्ठाण' (निर; पि १६२)।

ईसि :: अ [ईषत्] १ थोड़ा, अल्प (पण्ण ३६) २ पृथिवी-विशेष, सिद्धि-क्षेत्र, मुक्त- भूमि (सम २२)। °पब्भार वि [°प्राग्भार] थोड़ा अवनत (पंचा १८)। °पब्भारा स्‍त्री [°प्राग्‌भारा] पृथिवी-विशेष, सिद्धि-क्षेत्र (ठा ८; सम २२)

ईसिअ :: न [ईर्ष्यित] १ ईर्ष्या, द्वेष (गा ५१०) २ वि. जिसपर ईर्ष्या की गई हो वह (दे २, १६)

ईसिअ :: न [दे] १ भील के सिर पर का पत्र- पुट, भीलों की एक तरह की पगड़ी। २ वि. वशीकृत, वश किया हुआ (दे १, ८४)

ईसिं, ईसीं :: देखो ईसि (महा; सुर २, ९६; कस; पि १०२)।

ईह :: सक [ईक्ष्, ईह्] १ देखना। २ विचारना। ३ चेष्टा करना। ईहए (विसे ५६१)। वकृ. ईहंत, ईहमाण (गउड; सुपा ८८; विसे २५८); संकृ. 'अनिआणो ईहि- ऊण मइपुव्वं' (पच्च ८९; विसे २५७)

ईहण :: न [ईहन] नीचे देखो (आचू १)।

ईहा :: स्त्री [ईहा] १ विचार, ऊहापोह, विमर्श (णाया १, १; सुपा ५७२) २ चेष्टा, प्रयत्‍न (ओघ ३) ३ मति-ज्ञान का एक भेद (पण्ण १५; ठा ५) ४ इच्छा (स ६१२)। °मिग, °मिय पुं [°मृग] १ वृक, भेड़िया (णाया १, १, भग ११, ११) २ नाटक का एक भेद (राय)

ईहा :: स्त्री [ईक्षा] अवलोकन, विलोकन (औप)।

ईहिय :: वि [ईहित] चेष्टित (सूअ १, १, ३)। २ विमर्शित, विचारित, ईहा-विषयीकृत (विसे २५७)।

 :: पुं [उ] प्राकृत वर्णमाला का पञ्चम अक्षर, स्वर-विशेष (प्रामा)। २ उपयोग रखना, ख्याल करना; 'उति उवओगकरणे' (विसे ३१९८) ३ गति-क्रिया (आवम)

 :: अ [उ] निम्‍नोक्त अर्थो का सूचक अव्यय — १ संबोधन, आमन्त्रण। २ कोप-वचन, क्रोधोक्ति। ३ अनुकम्पा, दया। ४ नियोग, हुकुम। ५ विस्मय, आश्रर्य। ६ अंगीकार, स्वीकार। ७ प्रश्‍न, पृच्छा (हे २, २१७)

 :: अ [तु] इन अर्थे का सूचक अव्यय — १ विशेषण। २ कारण (वव १)

 :: अ [तु] इन अर्थो का द्योतक अव्यय — १ समुचय, और (कप्प) २ अवधारण, निश्चय (आवम) ३ किन्तु, परन्तु (ठा ३, १) ४ नियोग, आज्ञा। ५ प्रशंसा। ६ विनिग्रह। ७ शंका की निवृति (उव) ९ पादपूर्त्ति के लिए भी इसका प्रयोग होता है (उव)

 :: देखो उव; 'उओ उपे' (षड् २, १, ६८)।

उ° :: अ [उत्] निम्‍नोक्त अर्थो का सुचक अव्यय — १ ऊँचा, ऊर्घ्व; 'उक्कमंत' (आवम) २ विप- रीत, उलटा; 'उक्कम' (विसे) ३ अभाव, रहितता; 'उक्कर' (णाया १, १) ४ ज्यादा, विशेष; 'उक्कोविय' (उप पू ७८; विसे ३५७९)

उअ :: अ [दे] विलोकन करो, देखो (दे १, ८६ टी; हे २, २ ११)।

उअ :: अ [उत] इन अर्थों का सूचक अव्यय — १ विकल्प, अथवा। २ वितर्क, विमर्श (कुमा) ३ प्रश्‍न, पृच्छा। ४ समुच्चय। ५ बहुत, अति- शय (हे १, १७२)

उअ :: अ [दे] ऋजु, सरल (षड्)।

उअ :: देखो उव (गा ५०; से ६, ६)।

उअ :: न [उद] पानी, जल। °सिंधु पुं [°सिन्धु] समुद्र, सागर (पि ३४०)।

उअ :: वि [उदञ्‍च्] उतर, उतर दिशा में स्तित। °महिहर पुं [°महिधर] हिमाचल- पर्वत (गउड)।

उअअ :: न [उदक] पानी, जल (गा ५३; से ९, ८८)।

उअअ :: देखो उदय (से १०, ३१)।

उअअ :: न [उदर] पेट, उदर (से ९, ८८)।

उअअ :: वि [दे] ऋजु, सरल, सीधा (दे १, ८८)।

उअअद :: (शौ) देखो उवगय (नाट)।

उअआरअ :: वि [उपकारक] उपकार करनेवाला (गा ५०)।

उअआरि :: वि [उपकारिन्] ऊपर देखो (विक २५)।

उअइव्व :: वि [उपजीव्य] आश्रय करने योग्य, सेवा करने योग्य (से ६, ६)।

उअऊह :: सक [उप+गूह्] आलिंगन करना। संकृ. उअऊहेऊण (पि ५८६)।

उअएस :: देखो उवएस (गा १०१)।

उअंचण :: न [उदञ्‍चन] १ ऊँचा फेंकना। २ ढकने का पात्र, आच्छादक पात्र (दे ४, ११)

उअंचिद :: (शौ) वि [उदञ्चित] १ ऊँचा उठाया हुआ, ऊँचा फेंका हुआ (नाट)

उअंत :: पुं [उदन्त] हकीकत, वृत्तान्त, समाचार (पाअ; प्रामा)।

उअकिद :: (शौ) वि [उपकृत] जिसपर उपकार किया गया हो वह (पि ९४)।

उअक्किअ :: वि [दे] पुरस्कृत, आगे किया हुआ (दे १, १०७)।

उअगअ :: देखो उवगय (गा ६४४)।

उअचित्त :: वि [दे] अपगत, निवृत्त (दे १, १०८)।

उअजीवि :: वि [उपजीविन्] आश्रित (अभि १८६)।

उअज्झाअ :: देखो उवज्झाय (नाट)।

उअट्टी :: स्त्री [दे] नीवी, स्त्री के कटि-वस्त्र की नाडी; 'उअट्टी उच्चओ नीवी' (पाअ)।

उअट्ठिअ :: देखो उवट्ठिय (प्राप)।

उअणिअ, उअणीअ :: देखो उवणीय (प्राकृ ६)।

उअण्णास :: देखो अवण्णास (नाट)।

उअत्तंत :: देखो उव्वट्ट=उद्+वृत्।

उअत्थाण :: देखो उवट्ठाण (नाट)।

उअत्थिअ :: देखो उवट्ठिय (से ११, ७८)।

उअदिट्ठ :: देखो उवइट्ठ (नाट)।

उअभुत्त :: देखो अवभुत्त (रंभा)।

उअभोग :: देखो अवभोग (नाट)।

उअमिज्जंत :: वकृ [उपमीयमान] जिसकी तुलना की जाती हो वह (काप्र ८९६)।

उअर :: न [उदर] पेट (कुमा)।

उअरिं, उअरि :: देखो उवरि (गा ६४; से ८, ७५)।

उअरी :: स्त्री [दे] शाकिनी, देवी-विशेष (दे १, ९८)।

उअरुज्झ :: देखो उवरुज्झ। उअरुज्झदि (शौ) (नाट)।

उअरोअ, उअरोह :: देखो उवरोह (प्राप; नाट)।

उअलद्ध :: देखो उवलद्ध (नाट)।

उअविट्ठअ :: न [औपविष्टक] आसन (प्राकृ १०)।

उअविय :: वि [दे] उच्छिष्ट, 'इहरा भे णिसि- भत्तं उअवियं चेव गुरुमादी' (बृह १)।

उअसप्प :: देखो उवसप्प। उअसप्प (रुक्मि ५१)।

उअसम, उअसम्म :: देखो उवसम=उव+शम्। उअसमइ, उवसम्मइ (प्राकृ ६९)

उअइ :: अ [दे] देखो, देखिए (दे १, ९८; प्राप्र)।

उअहस :: देखो उवहस। उअहसइ (प्राकृ ३४)।

उअहार :: देखो उवहार (नाट)।

उअहारी :: स्त्री [दे] दोग्घ्री, दोहनेवाली स्त्री (दे १, १०८)।

उअहि :: पुं [उदधि] १ समुद्र, सागर (गउड) २ स्वनाम-ख्यात एक विद्याधर राजकुमार (पउम ५, १६६) ३ काल परिमाण, साग- रोपम (सुर २, १३६) ४ स्वनाम ख्यात एक जैन मुनि (पउम २०, ११७)। देखो उदहि।

उअहि :: देखो उवहि=उपधि (पच्च ९)।

उअहुज्जंत :: देखो उवभुंज।

उअहोअ :: देखो उवभोग (प्रबो ३०; नाट)।

उआअ :: देखो उवाय (नाट)।

उआअण :: देखो उवायण (माल ४९)।

उआर :: देखो उराल (सुपा ६०७; कप्पू)।

उआर :: देखो उवयार (षड्, गउड)।

उआलंभ :: देखो उवालंभ=उपा+लभ्। कृ उआलंभणिज्ज (नाट)।

उआलंभ :: देखो उवालंभ=उपालम्भ (गा २०१)।

उआलभ :: देखो उआलंभ=उपा+लभ्। उआलभेमि (त्रि ८२)।

उआलि :: स्त्री [दे] अवतंस, शिरोभूषण (दे १, ९०)।

उआस :: वि [उदास] नीचे देखो (पिंग)।

उआस :: देखो उवास=उपा+आस् । कवकृ- उआसिजमाण (हास्य १४०)।

उआसीण :: वि [उदासीन] १ उदासी, दिल- गीर। २ मघ्यस्थ, तटस्थ (स ५४९; नाट)

उआहरण :: देखो उदाहरण (मन ३)।

उइ :: सक [उप+इ] समीप जाना। उएइ, उएउ (पि ४९३)।

उइ :: अक [उद्+इ] उदित होना। उएइ (रंभा)। वकृ. उइयंत (रंभा)।

उइ :: देखो उउ; 'अन्‍नोवि हुंतु उइओ सरिसा परं ते' (रंभा)। °राय पुं [°राज] वसन्त ऋतु (रंभा)।

उइअ :: वि [उदित] १ उदय प्राप्त, उद्‍गत (सुपा १२७) २ उक्त, कथित (विसे २३३; ८४६) °परक्कम पुं [°पराक्रम] इक्षाकु- वंश के एक राजा का नाम (पउम ५, ६)।

उइअ :: वि [उचित] गोग्य, लायक (से ८, १०३)।

उइंतण :: न [दे] उत्तरीय वस्त्र, चादर (दे १, १०३; कुमा)।

उइंद :: पुं [उपेन्द्र] इन्द्र का छोटा भाई, विष्णु का वामन अवतार, जो अदिति के गर्भ से हुआ था (हे १, ६)।

उइट्ठ :: वि [अपकृष्ट] हीन, संकुचित; 'आउसिय- अक्खचम्मउइट्ठगंडदेसं' (णाया १, ८)।

उइण्ण :: देखो उदिण्ण (ठा ५, विसे ५०३)।

उइण्ण :: वि [उदीच्य] उत्तर दिशा-सम्बन्धी, उत्तर दिशा में उत्पन्न (आवम)।

उइन्न :: देखो ओइण्ण (सम्मत्त ७७)।

उइयंत :: देखो उइ=उद्+इ।

उईण :: देखो उदीण (राय)।

उईर :: देखो उदीर; 'उईरेइ अइपीडं' (श्रा २७)। वकृ. इईरंत (पुप्फ १३)। संकृ. उईरइत्ता (सूअ १, ६)।

उईरण :: देखो उदीरण (ठा ४; पुप्फ १९५)।

उईरणया, उईरणा :: देखो उदीरणा (विसे २५१५; टी; कम्मप १५८; विसे २९६२)।

उईरिय :: देखो उदीरिय (पुप्फ २१६)।

उउ :: त्रि [ऋतु] १ ऋतु, दो मास का काल विशेष, वसन्त आदि छ: प्रकार का काल (औप; अन्त ७); 'उऊए', 'उऊइं' (कप्प) २ स्त्री-कुसुम, रजो-दर्शन, स्‍त्री-धर्म (ठा ५, २)। °बद्ध पुं [°बद्ध] शीत और उष्णकाल, वर्षा-काल के अतिरिक्त आठ मास का समय (ओघ २६; २९१; ३४८) °मास पुं [°मास] १ श्रावण मास (वव १ टी) २ तीस दिनवाला मास (सम)। °य वि [°ज] ऋतृ में उत्पन्न, समय पर उत्पन्न होनेवाला (पण्ह २, ५; णाया १, १); 'उयअगुरुवर- पवरधूवणउउयमल्लाणुलेवणविहीसु। गंघेसु रज्जमाणा रमंति घार्णिदियवसट्टा' (णाया १, १७)

°संधि :: पुंस्‍त्री [°संधि] ऋतु का सन्धि-काल, ऋतु का अन्त समय (आचा)। °संवच्छर पुं [°संवत्सर] वर्ष-विशेष (ठा ५)। देखो उइ=उउ।

उउंबर :: देखो उंबर=उदुम्बर (कुमा; हे १, २७०; षड्)।

उउवहिय :: न [ऋतुबद्ध] मास-कल्प, एक मास तक एक स्थान में साधु का निवासा- नुष्ठान (आचा २, २, ७)।

उऊखल, उऊहल :: पुंन [उदूखल] उलूखल, गूगल (कुमा; षड्; हे १, १७१)

उएट्ट :: पुं [दे] शिल्प विशेष (अणु १४९)।

उओग्गिअ :: वि [दे] सम्बद्ध, संयुक्त (षड्)।

उं :: अ [दे] इन अर्थों का सूचक अव्यय — १ क्षेप, निन्दा। २ विस्मय। ३ खेद। ४ वितर्क। ५ सूचन (प्राकृ ७९)

उंघ :: अक [नि+द्रा] नींद लेना। उंघइ। (हे ४, १२)।

उंचहिआ :: स्‍त्री [दे] चक्रधारा (दे १, १०९)।

उंछ :: पुंन [उञ्छ] भिक्षा (सूअ १, २, ३ १४)।

उंछ :: पुं [उञ्छ] भिक्षा, माधुकरी (उप ६७७; ओघ ४२४)।

उंछअ :: पुं [दे] वस्‍त्र छापने का काम करने वाला शिल्पी, छापी; जो कपड़ा छापता है, छोट बनाता है वह (दे १, ९८; पाअ)।

उंज :: सक [सिच्] सींचना, छीड़कना। उंजिज्जा (राज)। भवि — उंजिस्सइ (सुपा १३६)।

उंज :: सक [युज्] प्रयोग करना, जोड़ना; 'अहमवि उंजेमि तह किंपि' (धम्म ८ टी)।

उंजायण :: न [उञ्जायन] गोत्र-विशेष, जो वशिष्ठ-गोत्र की एक शाखा है (ठा ७)।

उंजिअ :: वि [सिक्त] सिक्त, छीड़का हुआ (सुपा १३९)।

उंड, उंडग, उंडय :: वि [दे] १ गभीर, गहरा (दे १, ८५; सुपा १५; उप १४७ टी; ठा १०; श्रा १६) २ पुं. पिण्ड; 'बालाई मंसउडग मज्जाराई विराहेज्जा' (ओघ २४६ भा) ३ चलते समय पाँव में पिण्ड रूप से लग जाय उतना गहरा कीचड़, कर्दम (ओघ ३३ भा) ४ शरीर का एक भाग, मांस पिंड; 'हिययउंडए' (विपा १, ५)

उंडग, उंडुअ :: न [दे] स्थंडिल, स्थान, जगह (दस ४, १, ५, १, ८७)।

उंडल :: न [दे] १ मञ्च, मचान, उच्चासन। २ निकर, समूह (दे १, १२९)

उंडिया :: स्‍त्री [दे] मुद्रा-विशेष (राज)।

उंडी :: स्‍त्री [दे] पिण्ड, गोलाकार वस्तु; 'तत्थ णं एगा वरमऊरी दो पुट्ठे परियागते पिट्ठुं- डीपंडुरे निव्वणे निरुवहए भिन्नमुट्ठिप्पमाणे मऊरीअंडए पसवति' (णाया १, ३)।

उंदर, उंदुर :: पुंस्‍त्री [उन्दुर] मूषक, चूहा (गउड; पण्ह १, १; उवा; दे १, १०२)।

उंदु :: न [दे] मुख, मुँह (अणु २९)। °रुक्क न [दे] मुँह से वृषभ आदि की तरह आवाज करना (अणु २९)।

उंदुरअ :: पुं [दे] लम्बा दिवस (दे २, १०५)।

उंदुरु :: पुंस्‍त्री [उन्दुरु] मूषक, चूहा (दस २, ७)।

उंब :: पुं [उम्ब] वृक्ष-विशेष, 'निबंबउंबउँबर' (उप १०३१ टी)।

उंबर :: पुं [उदुम्बर] १ वृक्ष-विशेष, नूलर का पेड़ (पण्ण १) २ न. गूलर का फल (प्राप्र) ३ देहली, द्वार के नीचे की लकड़ी (दे १, ९०)। °दत्त पुं [°दत्त] १ यक्ष- विशेष (विपा १, ७) २ एक सार्थवाह का पुत्र (विपा १, ७)। °पंचग, °पणग न [°पञ्चक] बड़, पीपल, गूलर, प्लक्ष और काकोदुम्बरी इन पांच वृक्षों के फल (सुपा ४६; भग ९, ३३)। °पुप्फ न [°पुष्प] गूलर का फूल (भग ९, ३३)

उंबर :: वि [दे] बहुत, प्रचुर (दे १, ९०)।

उंबरउप्फ :: न [दे] नवीन अभ्युदय, अपूर्व उन्नति (दे १, ११९)।

उंबरय :: पुं [दे] कुष्ठ रोग का एक भेद (सिरि ११४)।

उंबा :: स्त्री [दे] बन्धन (दे १, ८६)।

उंबी :: स्त्री [दे] पका हुआ गेहूँ (दे १, ८६; सुपा ४७३)।

उंबेभरिया :: स्‍त्री [दे] वृक्ष-विशेष (पण्ण १)।

उंभ :: सक [दे] पूर्त्ति करना, पूरा करना (राज)।

उकिट्ठ :: देखो उक्किट्ठ (पिंग)।

उकुरुडिया :: [दे] देखो उक्‍कुरुडिया (निर १, १)।

उक्क :: वि [उत्क] १ उत्सुक, उत्कण्ठित (सुर ३, ५३)। एक विद्याधर राजा का नाम (पउम १०, २०)

उक्क :: वि [उक्त] कथित (पिंग)।

उक्क :: न [दे] पाद-पतन, पांव पर गिर कर नमस्कार करना (दे १, ८५)।

उक्कअ :: वि [दे] प्रसृत, फैला हुआ (षड्)।

उक्कंचण, उक्कंचणया :: न [दे] झूठी प्रशंसा करना, खुशामद (णाया १, २) २ ऊँचा करना, उठाना (सूअ २, २) ३ झाडू निकालना (निचू ५) ४ घूस, रिशवत (दसा २) ५ मूर्ख पुरुष को ठगनेवाले धूर्त्त का, समीपस्थ विचक्षण पुरुष के भय से थोड़ी देर के लिए निश्‍चेष्ट रहना (औप)। °दीव पुं [°दीप] ऊँचा दंडवाला प्रदीप (अन्त)

उक्कंछण :: न [दे] देखो उक्कंबण (राज)।

उक्‍कंठ :: अक [उत्+कण्ठ्] उत्कण्ठा करना, उत्सुक होना। उक्‍कंठेहि (मै ७३)। वकृ. उक्‍कंठंत (मै ६३)। हेकृ. उक्‍कंठिदुं (शौ) (अभि १४७)।

उक्‍कंठा :: स्त्री [उत्कण्ठा] उत्सुकता, औत्सुक्य (हे १, २५; ३०)>

उक्‍कंठिय, उक्‍कंठिर, उक्‍कंठुलय :: वि [उत्कण्ठित] उत्सुक (गा ५४२; सुर ३, ८९; पउम ११, ११८; वज्जा ९०)।

उक्‍कंड :: वि [उत्कण्डित] खूब छटा हुआ, विशेष कण्डित (र्पिड १७१)।

उक्‍कंडय :: सक [उत्कण्टय्] पुलकित करना, 'दियसेवि भूअसंभावणाए उक्‍कंटयंति अंगाइं' (गउड)।

उक्‍कंडय :: वि [उत्कण्टक] पुलकित, रोमाञ्‍चित (गउड)।

उक्‍कंडा :: स्त्री [दे] घूस, रिशवत (दे १, ९२)।

उक्‍कंडिअ :: वि [दे] १ आरोपित। २ खण्डित (षड्)

उक्‍कंत :: वि [उत्क्रान्त] ऊँचा गया हुआ (भवि)।

उक्‍कंति, उक्‍कंती :: स्त्री [दे] देखो उक्‍कंदा (दे १, ८७)।

उक्‍कंद :: वि [दे] विप्रलब्ध, ठगा हुआ, वञ्‍चित (षड्)।

उक्‍कंदल :: वि [उत्कन्दल] अंकुरित (गउड)।

उक्‍कंदि, उक्‍कंदी :: स्त्री [दे] कूपतुला (दे १, ८७)।

उक्‍कंप :: अक [उत्+कम्प्] काँपना, हिलना।

उक्‍कंप :: पुं [उत्कम्प] कम्प, चलन (सण; गा ७३५)।

उक्‍कंपिय :: वि [उत्कम्पित] १ चञ्‍चल किया हुआ (राज) २ न. कम्प, हिलन; 'णीसासुक्‍कंपिअपुलइएहिं जाणंति णच्चिउं धण्णा। अम्हारिसीहिं दिट्‍ठे, पिअम्मि अप्पावि वीसरिओ' (गा ३६१)

उक्‍कंपिय :: वि [दे] घवलित, सफेद किया हुआ (कप्प)।

उक्‍कंबण :: न [दे.अवकम्बन] काठ पर काठ के हाते से घर की छत बाँधना, घर का संस्कार-विशेष (बृह १)।

उक्‍कंबिय :: वि [दे. अवकम्बित] काठ से बाँधा हुआ (राज)।

उक्‍कच्छ :: वि [उत्कच्छ] स्फुट, स्पष्ट (पिंग)।

उक्‍कच्छा :: स्त्री [उत्कच्छा] छन्द-विशेष (पिंग)।

उक्‍कच्छिआ :: स्त्री [औपकक्षिकी] जैन साघ्वियों को पहनने का वस्त्र-विशेष (ओघ ६७७)।

उक्‍कज्ज :: वि [दे] अनवस्थित, चञ्‍चल (षड्)।

अक्‍कट्ठि :: स्त्री [अपकृष्टि] अपकर्ष, हानि (वव १)।

उक्कट्ठि :: स्‍त्री [उत्कृष्टि] उत्कर्ष, 'महता उक्कट्ठिसीहणादकलकलरवेणं' (सुज्ज १९ — पत्र २७८)। देखो उक्‍किट्ठि।

उक्‍कड :: वि [उत्कट] १ तीव्र, प्रचण्ड, प्रखर (णंदि; महा) २ विशाल, विस्तीर्ण (कप्प; सुर १, १०९) ३ प्रबल (उवा; सुर ९, १७२)

°उक्‍कड :: देखो दुक्‍कड (उप ६४६)।

उक्‍कडिय :: वि [दे] तोड़ा हुआ, छिन्‍न (पाअ)।

अक्‍कडिय :: देखो उक्‍कुडुय (कस)।

उक्‍कड्‍ढ :: सक [उत्+कर्षय्] उत्कृष्ट करना, बढ़ाना। उक्कड्‍ढए (कम्म ५, ९८ टी)।

उक्‍कड्‍ढग :: पुं [अपकर्षक] १ चोर की एक- जाति — जो घर से धन आदि ले जाते हैं । २ जो चोरों के बुलाकर चोरी कराते हैं । ३ चोर की पीठ ठोकनेवाले, चोर के सहायक (पण्ह १, ३ टी)

उक्‍कडि्‍ढय :: वि [उत्कर्षित] १ उत्पाटित, उठाया हुआ। २ एक स्थान से उठा कर अन्यत्र स्थापित (पिंड ३९१)

उक्‍कण्ण :: वि [उत्कर्ण] सुनने के लिए उत्सुक (से ९, १६)।

उक्‍कत्त :: सक [उत्+कृत्] काटना, कतरना। वकृ. उक्‍कत्तंत (सुपा २१६)।

उक्‍कत्त :: वि [उत्कृत्त] कटा हुआ, छिन्‍न (विपा १, २)।

उक्‍कत्तण :: न [उत्कर्त्तन] काट डालना, छेदन (पुफ्फ ३८४)।

उक्‍कत्तिय :: देखो उक्‍कत्त=उत्कृत्त (पउम ५९, २४)।

उक्‍कत्थण :: न [उत्कत्थन] उखाड़ना (पण्ह १, १)।

उक्‍कप्प :: पुं [उत्कल्प] शास्‍त्र-निषिद्ध आचरण (पंचभा)।

उक्‍कनाह :: पुं [दे] उत्तम अश्‍व की एक जाति (सम्मत्त २१६)।

उक्‍कम :: सक [उत्+क्रम] १ ऊँचा जाना। २ उलटे क्रम से रखना। वकृ. उक्‍कमंत (आवम)। संकृ. उक्‍कमिऊणं (विसे ३५३१)

उक्‍कम :: पुं [उत्क्रम] उलटा क्रम, विपरीत क्रम (विसे २७१)।

उक्‍कमण :: न [उत्क्रमण] ऊर्घ्व गमन। २ बाहर जाना (समु १७२)

उक्‍कमित :: वि [उपक्रान्त] १ प्रारब्ध। २ क्षीण; 'अब्भागमितम्मि वा दुहे, अहवा उक्कमिते भवंतीए। एगस्स गती य आगती, विदुमं ता सरणं ण मन्‍नइ।' (सुअ १, २, ३, १७)

उक्‍कर :: सक [उन्+कृ] खोदना। कवकृ उक्‍करिज्जमाण (आवम)।

उक्‍कर :: पुं [उत्कर] १ समूह, संघात; 'सक्‍क- रुक्‍कररसड्‍ढे' (सुपा ५१८) २ कर-रहित, राज-देय शुल्क से रहित (णाया १, १)

उक्‍करड :: देखो उक्‍कर=उत्कर; 'कस्सावि उत्तरीयं गहिऊण कओ अ उक्‍करडो' (सिरि ७९५)।

उक्‍करड :: पुं [दे] १ अशुचि-राशि। २ जहाँ मैला इकट्ठा किया जाता है वह स्थान (श्रा २७; सुपा ३५५)

उक्‍करिअ :: वि [दे] १ विस्तीर्ण, आयत। २ आरोपित। ३ खण्डित (षड्)

उक्‍करिअ :: वि [उत्कीर्ण] खोदित, खोदा हुआ; 'टंकुक्‍करियव्व निच्चलनिहितलोयणा' (महा)।

उक्‍करिद :: (शौ) वि [उत्कृत] ऊँचा किया हुआ (स्वप्‍न ३९)।

उक्‍करिया :: स्त्री [उत्करिका] जैसे एरण्ड के बीज से उसका छिलका अलग होता है उस तरह अलग होना, भेद-विशेष (भग ५, ४)।

उक्‍करिस :: सक [उत्+कृष्] १ खींचना। २ गवं करना, बड़ाई करना। वकृ. उक्‍करिसंत (से १४, ९)

उक्‍करिस :: देखो उक्‍कस्स=उत्कर्ष (उव; विसे १७९९)।

उक्‍करिसण :: न [उत्कर्षण] १ उत्कर्ष, बड़ाई, महत्व। २ स्थापन, आधान; 'उम्मिल्लइ लायण्णं पययच्छायाए सक्‍कय वयाणं। सक्‍कयसक्‍कारुक्‍करिसणेण पययस्सवि पहावो ।।' (गउड)

उक्‍करिसिय :: वि [उत्कृष्ट] खींच निकाला हुआ, उन्मूलित (से १४, ३)।

उक्‍कल :: देखो उक्‍कड (ठा ५, ३)।

उक्‍कल :: अक [उत्+कल्] उत्कट रूप से बरतना। उक्‍कलइ (सुख २, ३७)।

उक्‍कल :: वि [उत्कल] १ धर्म-रहित। २ न. तोरी (रण्ह १, ३, टी) २ पुं. देश-विशेष, जिसको आजकल 'उड़िया' या 'उड़ीसा' कहते हैं (प्रबो ७८)

उक्‍कलंब :: सक [उत्+लम्वय्] फाँसी लटकाना। उक्कलंबेमि (स ९३)।

उक्‍कलंबण :: न [उल्लम्बन] फाँसी लटकाना। (स ३५८)।

उक्‍कला :: देखो उक्‍कलिया (उत्त ३६, १३८)।

उक्‍कलिय :: वि [दे] उबला हुआ; गुजराती में 'उकलेलुं'; 'उसिणोदगं तिदंडुक्‍कलियं' (विचार २१७)।

उक्‍कलिया :: स्त्री [उत्कलिका] १ लूता, मकड़ी एक प्रकार का कीड़ा जो जाल बनाता है; 'उक्‍कलियंडे' (कप्प) २ नीचे की तरफ बहनेवाला वायु (जी ७) ३ छोटा समुदाय, समूह-विशेष (ठा ३, १) ४ लहरी, तरंग (राज) ५ ठहर-ठहर कर तरंग की तरह चलनेवाला वायु (आचा)

उक्‍कस :: सक [गम्] जाना, गमन करना। उक्‍कसइ (हे ४, १६२; कुमा)। प्रयो. उक्‍कसावेइ। वकृ. उक्‍कसावंत (निचू १०)।

उक्‍कस :: देखो ओकस। वकृ. उक्‍कसमाण (कस)। हेकृ. उक्‍कसित्तए (आचा २, ३, १, १५)।

उक्कस :: देखो उक्कुस (कुमा)।

उक्‍कस :: देखो उक्‍कस्स=उत्कर्ष (सूअ १, १, ४, १२); 'तवस्सी अइउक्‍कसो' (दस ५, २, ४२)।

उक्‍कसण :: न [उत्कर्षण] १ अभिमान करना (सुअ १, १३) २ ऊँचा जाना। ३ निवर्तन, निवृत्ति। ४ प्रेरणा (राज)

उक्‍कसाइ :: वि [उत्कशायिन्] सत्कारादि के लिए उत्कण्ठित (उत ३)।

उक्कसाइ :: वि [उत्कषायिन्] प्रबल कषायवाला (उत १५)।

उक्‍कस्स :: अक [अप+कृष्] १ ह्रास प्राप्‍त होना, हीन होना। २ फिसलना, गिरना, पैर रपटने से गिर जाना। वकृ. उक्कस्समाण (ठा ५)

उक्कस्स :: पुं [उत्कर्ष] १ गर्व, अभिमान (सू अ १, १, ४, २) २ अतिशय, उत्कृषृता (भवि)

उक्‍कस्स :: वि [उत्कर्षवत्] १ उत्कृष्ट, ज्यादा से ज्यादा; 'उक्‍कस्सठिईयाणं' (ठा १, १); 'उक्‍कस्सा उदीरणया' (कम्मप १६६) २ अभिमानी, गर्विष्ठ (सुअ १, १)

उक्‍का :: स्त्री [उल्का] १ लूका, आकाश से जो एक प्रकार का अंगार सा गिरता है (ओघ ३१० भा; जी ६) २ छिन्न-मूल दिग्दाह (आचू) ३ अग्‍नि-पिण्ड (ठा ८) ४ आकाश-वहि (दस ४) °मुह पुं [°मुख] १ अन्तर्द्वीप-विशेष। २ उसके निवासी लोक (ठा ४, २)। °वाय पुं [°पात] तारा का गिरना, लूका गिरना। (भग ३, ६)

उक्‍का :: स्त्री [दे] कूप-तुला (दे १, ८७)।

उक्‍काम :: सक [उत्+क्रामय्] दूर करना, पीछे हटाना; 'उक्‍कामयंति जीवं धम्माओ तेण ते कामा' (दसनि २ — पत्र ८७)।

उक्कारिया :: देखो उक्‍करिया (पण्ण ११; भास ७)।

उक्कालिय :: वि [उत्कालिक] वह शास्‍त्र, जिसका अनुक समय में ही पढ़ने का विधान न हो (ठा २, १)।

उक्‍कास :: देखो उक्कस्स=उत्कर्ष (भग १२, ५)।

उक्कास :: वि [दे] उत्कृष्ट, ज्यादा से ज्यादा (षड्)।

उक्कासिअ :: वि [दे] उत्थित, उठा हुआ (दे १, ११४)।

उक्‍किट्ठ :: वि [उत्कृष्ट] १ ज्यादा (पव — गा १५) २ पुंन. इमली आदि के पतों का समूह (दस ५, १, ३४) ३ लगातार दो दिन का उपवास (संबोध ५८)

उक्‍किट्ठ :: वि [उत्कृष्ट] १ उत्कृष्ट, उत्तम (हे १, १२८; दं २६) २ फल का शस्‍त्र द्वारा किया हुआ टुकड़ा (दस ५, १, ३४)

उक्‍किट्ठि :: स्त्री [उत्कृष्टि] हर्षघ्वनि, आनन्द की आवाज (औप; भग २, १)। देखो उक्‍कट्ठि।

उक्किण्ण :: वि [उत्कीर्ण] १ खोदित, खोदा हुआ (अभि १८२) २ नष्ट (आचू २)

उक्कित्त :: वि [उत्कृत्त] कटा हुआ (से ५, ५१)।

उक्कित्तण :: न [उत्कीर्त्तन] १ कथन (पउम ११८, ३६) २ प्रशंसा, श्‍लाघा (चउ १)

उक्कित्तिय :: वि [उत्कीर्त्तित] कथित, कहा हुआ (सुज्ज २० टी)।

उक्किन्न :: वि [उत्कीर्ण] १ चर्चित, उपलिप्त; 'चंदणोक्‍किन्‍नणायशरीरे' (तंदु २९) २ खोदा हुआ (दसनि २, १७)

उक्किर :: सक [उत्+क्दृ] खोदना, पत्थर आदि पर अक्षर वगैरह का शस्त्र से लिखना। उक्‍किरइ (पि ४७७)।

उक्किरणग :: न [उत्करणक] अक्षत आदि से बढ़ाना, बधावा, वर्घापन; 'पुप्फारुहणगाइं उक्‍किरणगाइं। पूयं च चेइयाणं तेवि सरज्जेसु कारिंति' (धर्मवि ४९)।

उक्किरिय :: देखो उक्करिअ=उत्कीर्ण (श्रा १४; सुपा ५१८)।

उक्कीर :: देखो उक्किर। उक्‍कीरसि (अणु)। वकृ. उक्कीरमाण (अणु)।

उक्कीरिअ :: देखो उक्करिअ=उत्कीर्ण (उप पृ ३१५)।

उक्कीलिय :: न [उत्क्रीडित] उत्तम क्रीड़ा (पउम ११५, ६)।

उक्कीलिय :: वि [उत्कीलित] कीलक से नियंत्रित, 'उक्‍कीलिउव्व परिथंभिउव्व सुन्‍नुव्व मुक्‍कजीउव्व' (सुपा ४७५)।

उक्‍कुंचण :: न [उत्कृञ्चन] ऊँचे चढ़ाना (सूअ २, २, ६२)।

उक्कुंड :: वि [दे] मत्त, उन्मत्त (दे १, ९१)।

उक्‍कुक्कुर :: अक [उत्+स्था] उठना, खड़ा होना। उक्कुक्कुरइ (हे ४, १७, षड्)।

उक्कुज्ज :: अस [उत् + कुब्ज्] ऊँचा होकर नीचा होना। संकृ. उक्कुज्जिय (आचा)।

उक्कुज्जिय :: न [उत्कुजित] अव्यक्त शब्द (नीचू)।

उक्कुट्ठ :: न [उत्कुष्ट] वनस्पति का कूटा हुआ चूर्ण (आचा; निचू १, ४)।

उक्कूट्ठ :: वि [उत्क्रुष्ट] उँचे स्वर से आक्रुष्ट (दे १, ४७)।

उक्कुडुग, उक्कुडुय :: वि [उत्कुटुक] आसन-विशेष, निषद्या-विशेष (भग ७, ६; ओघ १५९ भा; णाया १, १)। स्त्री. उक्कुडुई (ठा ५, १)। °सिणिय वि [°सनिक] उत्कुटुक-आसन से स्थित (ठा ५, १)।

उक्कुद्द :: अक [उत् + कूर्द्] कूदना, उछलना। उक्कुद्दइ (उत्त २७, ५)।

उक्कुरुआ :: देखो उक्कुरुडिया (ती ११)।

उक्कुरुड :: पुं देखो उक्कुरुडी (कुप्र ५५)।

उक्कुरुड :: पुं [दे] राशि, ढेर (दे १, ११०)।

उक्कुरुडिगा, उक्कुरुडिया :: स्त्री [दे] घूरा, कूड़ा, डालने की जगह (उव ५९३ टी; विपा १, १, णाया १, २; दे १, ११०)।

उक्कुस :: सक [गम्] जाना, गमन करना। उक्कुसइ (हे ४, १६२)।

उक्कुस :: वि [उत्कृष्ट] उत्तम, श्रेष्ठ (कुमा)।

उक्कूइय :: न [उत्कूजित] अव्यक्त, महा-ध्वनि (पणह १, १)।

उक्कूल :: वि [उत्कूल] १ सन्मार्ग से भ्रष्ट करनेवाला। २ किनारे से बाहर का। ३ न. चोरी (पणह १, ३)

उक्कुव :: अक [उत् + कूज्] अव्यक्त आवाज करना, चिल्लाना। वकृ. उक्कूवमाण (विपा १, ८; निर ३, १)।

उक्केर :: पुं [उत्कर] १ समूह, राशि, ढेर (कुमा; महा) २ करण-विशेष, कर्मों की स्थित्यादि को बढ़ाना (विसे २५१४) ३ भिन्‍न, एरण्ड के बीज की तरह जो अलग किया गया हो वह (राज)

उक्केर :: पुं [दे] उपहार, भेंट (दे १, ९६)।

उक्केल्लाविय :: वि [दे] उकेलाया हुआ, खुलवाया हुआ; 'राइणा उक्केलियाइं चोल्ल- याइं, निरुवियाइं समन्तओ, बाव दिट्‍ठं कत्थइ सुवणणं, कत्थइ रुप्पयं, कत्थइ मणि- मोत्तियपवालाइं' (महा)।

उक्कोट्टिय :: वि [दे] अवरोध-रहित किया हुआ, घेरा उठाया हुआ (स ६३९)।

उक्कोड :: न [दे] राज-कुल में दातव्य द्रव्य, राजा आदि का दिया जाता उपहार (वव १ टी)।

उक्कोडा :: स्त्री [दे] घूस, रिशवत (दे १, ९२; पणह १, ३; विपा १, १)।

उक्कोडिय :: वि [दे] घूस लेकर कार्यं करनेवाला, घूसखोर (णाया १, १; औप)।

उक्कोडी :: स्त्री [दे] प्रतिशब्द, प्रतिध्वनि (दे १, ९४)।

उक्कोय :: वि [उत्कोप] प्रखर, उत्कट (सण)।

उक्कोयण :: देखो उक्कोवण (भवि)

उक्कोया :: स्त्री [उत्कोचा] १घूस, रिशवत। २ मूर्ख को ठगने में प्रवृत्त धूर्त पुरुष का, सीपस्थ विचक्षण पुरुष के भय से थोड़ी देर के लिए अपने कार्यं की स्थगित करना (राज)

उक्कोल :: पुं [दे] घाम, घूपु, गरमो (दे १, ८७)।

उक्कोवण :: न [उक्कोपन] उद्दीपन, उत्तेजन; 'मयणुक्कोवण' (भवि)।

उक्कोविअ :: वि [उत्कोपित] अत्यंत क्रुद्ध किया हुआ (उप पृ ७८)।

उक्कोस :: सक [उत् + क्रुश्] १ रोना; चिल्लाना। २ तिरस्कार करना। वकृ. उक्कोसंत (राज)

उक्कोस :: वि [उत्कर्ष] उत्कृष्ट, प्रधान, मुख्य (पंचा १, २)।

उक्कोस :: पुं [उत्कर्ष] १प्रकर्षं, अतिशय; 'उक्कोसजहन्‍नेणं अंतमुहुत्तं चिय जियंति' (जी ३८; औप) २ गर्व, अभिमान (सुअ १, २, २, २९; सम ७१; ठा ४, ४ — पत्र २७४।

उक्कोस :: वि [उत्कृष्ट] उत्कृष्ट, अधिक से अधिक; 'सुरनेरइयाण ठिई उक्कोसा सागराणि तित्तीसं' (जी ३६); 'कोसतिगं च भणुस्सा उक्कोससरीरमाणेणं' (जी ३२); 'तओ वियड- त्तीओ पडिगाहित्तए, तं जहा — उक्कोसा, मज्झिमा, जहणणा' (ठा ३; उव)।

उक्कोस :: पुं [उत्कोश] १ कुरर, पक्षि-विशेष (पणह १, १) २ वि. जोर से चिल्लानेवाला (राज)

उक्कोसण :: न [उत्क्रोशन] १ क्रन्दन। २ निर्भंर्त्संन, तिरस्कार; 'उक्कोसणतज्जणताडणाओ अवमाणहीलणाओ य। मुणिणो मुणियपरभवा दढप्पहारिव्व विसंहंति' (उव)

उक्कोसा :: स्त्री [उत्कोशा] कोशानामक एक प्रसिद्ध वेश्या (धर्म वि ९७)।

उक्कोसिअ :: वि [उत्क्रोशित] भर्त्सिंत, तिरस्कृत, दुतकारा हुआ (उप पृ ७८)।

उक्कोसिअ :: वि [उत्कर्षिन्] देखो उक्कोस = उत्कृष्ट (कप्प; भत्त ३७)।

उक्कोसिअ :: पुं [उत्कौशिक] १ गोत्र-विशेष का प्रवर्त्तक एक ऋषि। २ न. गोत्र-विशेष; 'थेरस्स णं अज्जवइरसेणस्स उक्कोसियगोत्तस्स (कप्प)

उक्कोसिअ :: वि [दे] पुरस्कृत, आगे किया हुआ (षड्)।

उक्कोसिया :: स्त्री [उत्कृष्टि] उत्कर्षं, आधिक्य (भग)।

उक्कोस्स :: देखो उक्कोस = उत्कृषअट (विसे ५८७)।

उक्ख :: सक [उक्ष्] सींचना (सुअ २, २, ५५)।

उक्क :: [उक्ष्] १ संबद्ध (राज) २ जैन साध्वियों के पहनने के वस्त्र-विशेष का एक अंश (बृह १)

उक्ख :: देखो उच्छ = उक्षन् (पाअ)।

उक्खइअ :: वि [उत्खचित] व्याप्त, भरा हुआ (से १, ३३)।

उक्खंड :: सक [उत् + खण्डय्] तोड़ना, टुकड़ा करना। वकृ. उक्खंडंत (नाट)।

उक्खंड :: पुं [दे] १ संघात, समूह। २ स्थपुट, विषमोन्‍नत प्रदेश (दे १, १२६)

उक्खंडण :: न [उत्खण्डन] उत्कर्त्तन, विच्छेदन (विक्र २८)।

उक्खंडिअ :: वि [उत्खण्डित] खण्डिंत, छिन्‍न (से ५, ४३)।

उक्खंडिअ :: वि [दे] आक्रान्त, दबाया हुआ (से १, ११२)।

उक्खंद :: पुं [अवस्कन्द] १ घेरा डालना। २ छल से शत्रु-सैन्य को मारना (पणह १, २)

उक्खंभ :: पुं [उत्तम्भ] अवलम्ब, , सहारा (संथा)।

उक्खंभिय :: देखो उत्थंभिय (भवि)।

उक्खंभिय :: न [औत्तम्भिक] अवलम्ब, सहारा (राज)।

उक्खडमड्डा :: अ [दे] पुनः पुनः, बारंबार; 'उक्खडमड्डति वा भुज्जो भुज्जोत्ति वा पुणो पुणोत्ति वा एगट्ठा' (वव १)।

उक्खण :: सक [उत् + खन्] उखाडना, उच्छेदन करना, काटना। उक्खणाहि (पणह १, १)। संकृ, उक्खणिऊण (नीचू १)। कर्म. उक्खम्मंति (पि ५४०)। कवकृ. उक्खम्मंत (से ७, २८)। कृ. उक्खम्मिअव्व (से १०, २९)।

उक्खण :: सक [दे] खांड़ना, मुसल वगैरह से व्रीहि आदि का छिलका दूर करना (दे १, ११५)।

उक्खण :: वि [दे] अवकीर्णं, चूर्णित (षड्)।

उक्खणण :: न [उत्खनन] उन्मुलन, उत्पाटन (वणह १, १)।

उक्खणण :: न [दे] खाँड़ना, निस्तुषीकरण (दे १, ११५ टी)।

उक्खणिअ :: न [दे] खण्डित, निस्तुषीकृत (दे १, ११५)।

उक्खत्त :: देखो उक्खय (पि ९०; १९३; ५६६)।

उक्खम्म° :: देखो उक्कण = उत् + खन्।

उक्खय :: वि [उत्खात] १ उखाड़ा हुआ, उन्मुलित (णाया १, ७; हे १, ६७; षड्; महा) २ खुला हुआ, उद्‍घाटित; 'एत्थन्तरम्मि पत्तो, सुदाढविज्जाहरो तहिं भवणे। उक्खयखग्गा दिट्ठा, जूयारा तेणवि दुवारे' (सुवा ४००)

उक्खल, उक्खलग :: देखो उऊखल (हे २, ९०; सुअ १, ४, २, १२)।

उक्खलिय :: वि [दे. उत्खण्डित] उन्मुलित, उत्पाटित (से ६, २९)।

उक्खलिया, उक्खली :: स्त्री [दे] थाली, पात्र-विशेष (दे १, ८८); 'उक्खलिया थाली जा साधुणिमित्तं सा आहाकम्मिया' (निचू १)।

उक्खा :: स्त्री [ऊखा] स्थाली, भाजन-विशेष (आचा २, १, १)।

उक्खाइद :: (शौ) वि [उत्खातित] उद्‍धृत (उत्तर ९७)।

उक्खाय :: देखो उक्खय (हे १, ६७; गा २७३)।

उक्खाल :: सक [उत् + खन्, खालय्] उखाड़ना, उन्मुलन करना। उक्खल- इत्ता (रंभा)।

उक्खिण :: देखो उक्खण = उत् + खन्। उक्खि- णमि (भवि)। संकृ, उक्खिणिवि (अप) (भवि)।

उक्खिण्ण :: वि [दे] १ अवकीर्णं, ध्वस्त, चूर्णित। २ आछन्न, गुप्त। ३ पार्श्‍व में शिथिल, एक तरफ से ढीला (दे १, १३०)

उक्खित्त, उक्खित्तय :: वि [उत्क्षिप्त] १ फेंका हुआ। २ ऊँचा उड़ाया हुआ (पाअ) ३ ऊँचा किया हुआ (णाया १, १) ४ उन्मुलित, उत्पाटित (राज) ५ बाहर निकाला हुआ (पणह २, १) ६ उत्थित (पिंग) ७ न. गेय-विशेष (राय; ठा ४, ४)। °चरय वि [°चरक] पाक पात्र से बाहर निकाले हुए भोजन को ही ग्रहण करने का नियमवाला (साधु) (पणह २, १)

उक्खिप्प :: देखो उक्खिव = उत्+ क्षिप्।

उक्खिय :: वि [उक्षित] सिक्त, सींचा हुआ; 'चंदणोक्खियगायसरीरे' (सुअ २, २, ५५; कप्पू)।

उक्खिल्ल :: सक [दे] उखाड़ना। प्रयो., हेकृ. 'उक्खिल्लाविउ माढत्तो थूभो' (ती ७)।

उक्खिव :: सक [उप + क्षिप्] स्थापन करना, 'सुयस्स य भगवओ चेक नामं उक्खि- विस्सामो' (स १९२)।

उक्खिग :: सक [उत् + क्षिप्] १ फेंकना। २ ऊँचा फेंकना। ३ उड़ाना। ४ बाहर करना। ५ काटना। ६ उठाना। उक्खिवेइ (सुक्त ५६)। वकृ. 'पाएवि उक्खिवंती न लज्जति णट्टिया सुणेवत्था' (बृह ३)। संकृ. उक्खिविउं; उक्खिप्प (पि ५७५; आचा २, २, ३)। कवकृ. उक्खइप्पंत, उक्खइ- प्पमाण (से ६, ३५; पणह १, ४)ष उच्छिप्पंत (से २, १३)

उक्खिवण :: न [उत्क्षेपण] १ फेंकना, दूर करना। २ वि. दूर करनेवाला (कुमा)

उक्खिवणा :: स्त्री [उत्क्षेपणा] बाहर करना, दूर करना (बृह १)।

उक्खिविय :: देखो उक्खित्त (सुर २, १८०)।

उक्खुंड :: पुं [दे] १ उल्मुक, अलात, मशाल। २ समूह। ३ वस्त्र का एक अंश, अञ्चल (दे १, १२५)

उक्कुड :: सक [तुड्] तोड़ना, टुकड़ा करना। उक्खुडइ (हे ४, ११६)।

उक्खुडिअ :: वि [तुडित] १ खण्डित, छिन्न भिन्न (कुमा; से ४, २१; सुपा २६२) २ व्यय किया हुआ, खर्च किया हुआ; 'एत्तियकाला इणिंह, स उक्खुडियं सालिमाइयं नाउं। तुह जोग्गं तो सहसा, पुणो पुणो कुट्टियं हिययं' (सुपा १५)

उक्खुत्त :: वि [दे. उत्कुत्त] काटा हुआ, 'रणणुं दुरदंतुक्खुत्तविसंवलियं तिलच्छेत्तं' (गा ७६९)।

उक्खुब्भ :: अक [उत् + क्षुभ्] क्षुब्ध होना। उक्खुब्भइ (प्राकृ ७५)।

उक्खुरुहुंचिअ :: वि [दे] उत्क्षिप्त, फेंका हुआ (दे १, ४)।

उक्खुलंप :: सक [दे] खुजवाना। संकृ. उक्खु- लंपिय (आचा २, १, ६, २)।

उक्खुहिअ :: वि [उत्क्षुब्ध] क्षुब्ध, क्षोभ-प्राप्त (से ७, १६)।

उक्खेव :: पुं [उत्क्षेप] १ उत्पाटन, उन्मुलन (औप) २ ऊँचा करना (गउड) ३ जो उठाया जाय वह; 'उक्खेवे निक्खेवे महल्ल- भाणम्मि' (पिंड ५७०)

उक्खेव :: पुं [उपक्षेप] उपोद्‍घात, भूमिका (उवा; विपा १, २, ३, ४)।

उक्खेवग :: वि [उत्क्षेपक] १ ऊँचा फेंकनेवाला। २ पुं. एक जाति का पंखा, व्यजन- विशेष (पणह २, ५)

उक्खेवण :: न [उत्क्षेपण] १ फेंकना (पउम ३७, ५०) २ उन्मुलन, उत्पाटन (सुअ २, १)

उक्खेविअ :: वि [उत्क्षेपित] जलाया हुआ (घूप) (भवि)।

उक्खोडिअ :: वि [उत्खोटित] १ उत्क्षिप्त, उड़ाया हुआ (पाअ) २ छिन्न, उखाड़ा हुआ (दे १, १०५; १११)

उग :: अक [उत् + गम्] उदित होना। उगइ (नाट)।

उग :: (अप) वि [उद्‍गत] उदित (पिंग)।

उगाहिअ :: वि [दे] उत्क्षिप्त, फेंका हुआ (षड्)।

उगुणपन्न :: स्त्रीन [एकोनपञ्चाशत्] ऊनप- चास, ४९ (सुज्ज १०, ६ टी)।

उगुणवीसा :: स्त्री [एकोनविंशति] उन्नीस, १९ (सुज्ज १०, ६ टी)।

उगुणुत्तर :: न [एकोनसप्तति] उनहत्तर, ६६; 'उगुणुत्तराइं' (सुज्ज १०, ६ टी)।

उगुनउइ :: स्त्री [एकोननवति] नवासी, ८९ (कम्म ६, ३०)।

उगुसीइ :: स्त्री [एकोनाशीति] उनासी, ७९ कम्म ६, ३०)।

उग्ग :: अक [उद्+ गम्] उदित होना। उग्गे (पिंग)। वकृ. उग्गंत; 'देव ! पणयज- णकल्लाणकंदुट्ठविसट्टणुग्गंतमिह-(? हि)। राणु- गारिणो' (धऱ्मा ५)।

उग्ग :: सक [उद् + घाटय्] खोलना। उग्गइ (हे ४, ३३)।

उग्ग :: वि [उग्र] १ तेज, तीव्र, प्रबल (पउम ८३, ४) २ पुं. क्षत्रिय की एक जाति, जिसको भगवान् आदिदेव ने आरक्षक-पद पर नियुक्त की थी (ठा ३, १)। °वई स्त्री [°वती] ज्योतिः-शास्त्र-प्रसिद्ध नन्दा-तिथि की रात (जं ७)। °सिरि पुं [°श्रीक] राक्षस वंश का एक राजा, स्वनाम-ख्यात एक लंकेश (पउम ५, २६४)। °सेण पुं [°सेन] मथुरा नगरी का एक यदुवंशीय राजा (णाया १, १६; अंत)

उग्गंठ :: सक [उत् + ग्रन्थ्] खोलना, गाँठ खोलना। संकृ, उग्गंठिऊण (हम्मीर १७)।

उग्गंध :: वि [उद्‍गन्ध] अत्यन्त सुगन्धित (गउड)।

उग्गच्छ, उग्गम :: अक [उद् + गम्] उदय होना। उग्गच्छदि (शौ) (नाट)। उग्गमइ (वज्जा १६)। उग्गमेज्ज (काल)। वकृ. उग्गमंत, उग्गमाण (सुपा ३८; पणण १)।

उग्गम :: पुं [उद्‍गम] १ उत्पत्ति, उद्‍भव; 'तत्थुग्गमो पुसूई पभवो एमाई होंति एगट्ठा' (राज) २ उदयः 'सुरुगमो' (सुर ३, २५०) ३ उत्पत्ति से सम्बन्ध रखनेवाला एख भिक्षा-दोष (ओघ ९५; ५३० भा; ठा १०)

उग्गमण :: न [उद्‍गमन] उदय (सिरि ४२८; सुज्ज ९)।

उग्गमिय :: वि [उद्‍गमित] उपार्जित (निचू २)।

उग्गय :: वि [उद्‍गत] उत्पन्न, जात (आव ३)। २ उदित, उदय-प्राप्त (सुर ३, २४७) ३ व्यवस्थित (राज)

उग्गह :: सक [रचय्] रचना, बनाना, निर्माण करना। करना। उग्गहइ (हे ४, ९४)।

उग्गह :: सक [उद् + ग्रह] ग्रहण करना। उग्गहेइ (भग)। संकृ. उग्गहित्ता (भग)।

उग्गह :: पुं [अवग्रह] इन्द्रिय द्वारा होनेवाला सामान्य ज्ञान-विशेष (विसे)। २ अवधारण, निश्‍चय (उत्त) ३ प्राप्ति, लाभ (आचू) ४ पात्र, भाजन (पंचा ३) ५ साध्वियों का एक उपकरण (ओघ ६६६; ६७६) ६ योनिद्वार (बृह ३) ७ ग्रहण करने योग्य वस्तु (पणह १, ३) ८ आश्रय, आवास- स्थान, वसति (आचा); 'आहापडिरूवं उग्गहं ओगिन्हित्ता' (णाया १, १) ९ वह वस्तु, जिसपर अपना प्रभुत्व हो, अधीन चीज (बृह ३) १० देव या गुरु से जितनी दूरी पर रहने का शास्त्रीय विधान है उतनी जगह, मर्यादित भू-भाग, गुर्वादि को चारों तरफ की शरीर-प्रमाण जीमन; 'अणुजाणह मे मिउ- ग्गहं' (पडि)। °णंत, °णंतग न [°निन्त, °क] जैन साध्वियों का एक गुह्याच्छादक वस्त्र, जांघिया, लँगोट; 'छादंतोग्गहणंतं' (बृह ३)। °पट्ट, °पट्टग पुंन [°पट्ट, °क] देखो पूर्वोक्त अर्थं; 'नो कप्पइ निग्गंथाणं उगग्हणंतगं वा उग्गहपट्टगं वा धारित्तए वा परिहरित्तए वा' (बृह ३)

उग्गह :: पुं [अवग्रह] परोसने के लिए उठाया हुआ भोजन (सुअ २, २, ७३)।

उग्गहण :: न [अवग्रहण] इन्द्रिय द्वारा होनेवाला सामान्य ज्ञान; 'अत्थाणं उग्गहणं अवग्गहं' (विसे १७९)।

उग्गहिअ :: वि [रचित] १ निर्मित, विहित (कुमा)

उग्गहिअ :: वि [अवगृहीत] १ सामान्य रूप से जात। २ परोसने के लिए उठाया हुआ (ठा १) ३ गृहीत। ४ आीत। ५ मुख में प्रक्षिप्त; 'तिविहे उग्गहिए परणत्ते; — जं च उग्गिणहइ, जं च साहरइ, जं च आसगम्मि पक्खिवति' (वव २, ८)

उग्गहिअ :: वि [दे] निपुण-गृहीत, अच्छी तरह लिया हुआ (दे १, १०४)।

उग्गा :: सक [उद् + गै] १ ऊँचे स्वर से गान करना। २ वर्णंन करना। ३ श्‍लाघा करना; 'उग्गाइ गाइ हसइ, असंवुडो सय करेइ कंदप्पं। गिहिकज्जचिंतगो वि य, ओसन्‍ने देइ गेणहइ वा' (उव)। वकृ. उग्गायंत (सुर ८, १८९)। कवकृ. उग्गीयमाण (पउम २, ४१)

उग्गाढ :: वि [उद्‍गाढ] १ अति गाढ़, प्रबल (उप ९८६ टी; सुपा ९४) २ स्वस्थ, तन्दुरुस्त (बृह १)

उग्गामिय :: वि [उद्रमित] ऊपर उठाया हुआ, ऊँचा किया हुआ (सुख १, १४)।

उग्गायंत :: देखो उग्गा।

उग्गार, उग्गाल :: पुं [उद्‍गार] १ वचन, उक्ति; 'ते पिसुणा जे ण सहंति णिग्गुणा परगुणुग्गारे' (गउड) २ शब्द, आवाज, ध्वनि; 'तियसरहपेल्लियघणो णहदुंदुहिबहल- गाज्जिउग्गारो' 'अहिताडियकंसुग्गारझंझणा- पडिरवाहोओ' (गउड) ३ डकार। ४ वमन, ओकाई (नाट; कस); 'जिणझाणलण- डज्झतमयणघूमुग्गारेणं पिव. . . केसकलावेणं (स ३१३; निचू १०) ५ जल का छोटा प्रवाह; उग्गलो छिंछालो' (पाअ) ६ रोमन्थ, पगुराना; 'रोमंथो उग्गालो' (पाअ)

उग्गाल :: पुं [दे. उद्राल] पान की पिचकारी (पव ३८)।

उग्गाल :: पुं [उद्रार] विनिर्गम, बाहर निक- लना (वव १)।

उग्गाह :: सक [उद् + ग्रह्] ग्रहण करना; 'भायणवत्थाइं पमज्जइ, पमज्जइत्ता भायणाइं उग्गाहेइ' (उवा)। संकृ. 'उग्गाहेत्ता जेणेव समणं भगवं महावीरे तेणेव उवागच्चइ' (उवा)।

उग्गाह :: सक [अव + गाह्] अवगाहन करना, 'उग्गाहेंति नाणाविहाओ चिगिच्छा- संहियाओ' (स १७)।

उग्गाह :: सक [उद् + ग्राहय्] १ तगादा करना। २ ऊँचे से चलना। उग्गाहइ (प्राकृ ७२)

उग्गाह :: /?/पुं. देखो उग्गाहा (पिंग)।

उग्गाहण :: न [उद्‍ग्राहण] तगादा, दी हुई चीज की माँग (सुपा ५७८)।

उग्गाहणिआ :: स्त्री [उद्‍ग्राहणिका] ऊपर देखो, 'उज्जाणपालयाणं पासम्मि गओ तया सोवि। उग्गाहणियाहेउं' (सुपा ६३२)।

उग्गाहणी :: स्त्री [उद्‍ग्राहणी] ऊपर देखो (द्र ९)।

उग्गाहा :: स्त्री [उद्‍गाथा] छन्द-विशेष (पिंग)।

उग्गाहिअ :: वि [दे. उद्‍ग्राहित] १ गृहीत, लिया हुआ। २ उत्क्षिप्त, फेंका हुआ। ३ प्रवर्तित (दे १, १३७) ४ उच्चिलित, ऊँचे से चलाया हुआ (पाअ; स २१३)

उग्गाहिम :: वि [अवगाहिम] तली हुई वस्तु। (पणह २, ५)।

उग्गिण्ण, उग्गिन्न :: वि [उद्‍गीर्ण] १ उक्त, कथित (भवि) २ वान्त, उद्‍गीर्णं (णाया १, १) ३ उठाया हुआ, ऊपर किया हुआ; 'उग्गिन्‍नखग्गमबलं अवलोइय नरवईवि विम्हइओ। चित्तेइ अहो घट्ठा, मज्झ वहट्ठा इह पविट्ठा' (सुर १६, १४७); 'निद्दय' ! नियंबिणीवह- कलंकमलिणोव्व रे तुमं जाओ। उग्गिन्‍नखग्गपसरंतकंतिसा- मलियसव्वंगो' (सुपा ५३८)

उग्गिर :: देखो उग्गिल । उग्गिरेइ (मुद्रा १२१)। वकृ. उग्गिरंत (काल)।

उग्गिरण :: न [उद्‍गरण] १ वान्ति, वमन, कय। २ उक्ति, कथन; 'माणंसिणोवि अवमाणवंचणा ते परस्स न करेंति। सुहदुक्खुग्गिरणत्थं, साहू उयहिव्व गंभीरा' (उव)

उग्गिल :: सक [उद् + गृ] १ कहना, बोलना। २ डकार करना। ३ उलटी करना, वमन करना। ४ उठाना। वकृ. 'अग्गिजालुग्गिलंत वयणं' (णाया १, ८)। संकृ. उग्गिलित्ता (कस), उग्गिलेत्ता (निचू १०)

उग्गिलिअ :: देखो उग्गिण्ण (पाअ)।

उग्गीय :: वि [उद्‍गीत] १ उच्च स्वर से गाया हुआ (दे १, १६३) २ न. संगीत, गीत, गान (से १, ६५)

उग्गीयमाण :: देखो उग्गा।

उग्गीर :: देखो उग्गिर। वकृ. 'खग्गं उग्गीरंतो इत्थिवहत्थं, हयासलोयाणं' (सुपा १५८)।

उग्गीरिअ :: देखो उग्गिण्ण; 'उग्गीरिओ ममो- वरि, जमजीहादीहतरलकरवालो' (सुपा १५८)।

उग्गीय :: वि [उद्‍ग्रीव] उत्कण्ठित, उत्सुक (कुमा)। °किय वि [°कृत] उत्कण्ठित किया हुआ (उप १०३१ टी)।

उग्गुलुंछिआ :: स्त्री [दे] हृदय-रस का उछलना, भावोद्रेक (दे १, ११८)।

उग्गोव :: सक [उद् + गोपय्] १ खोजना। २ प्रकट करना। ३ विमुग्ध करना। वकृ. 'इत्थी वा पुरिसे वा सुविणंते एगं महं किणहसुत्तगं वा जाव सुकिल्लसुत्तगं वा पासमाणे पासति उग्गोवेमाणे उग्गोवेइ' (भग १६, ६)

उग्गोवणा :: स्त्री [उद्‍गोपना] १ खोज, गवेषणा; 'एसण गवेसणा लग्गणा य उग्गोवणा य बोद्धव्वा। एए उ एसणाए नामा एगठ्ठिया होंति' (पिंड ७३) २ देखो उग्गम; 'उग्गम उग्गोवण मग्गणा य एगठ्ठियाणि एयाणि' (पिंड ८५)

उग्गोविय :: वि [उद्‍गोपित] विमोहित, भ्रान्त; 'उग्गोवियमिति अप्पाणं मन्‍नति' (भग १६, ६)।

उग्घ :: देखो उंव। उग्घइ (षड्)।

उग्घट्टि, उग्घट्टी :: स्त्री [दे] अवतंस, शिरो-भूषण (दे १, ९०)।

उग्घड :: सक [उद्‍ + घाटय्] खोलना (प्रामा)।

उग्घड :: अक [उद्‍ + घट्] खुलना। उग्घडइ (सिरि ५०४)। उग्घडंति (धर्मं वि ७६)।

उग्घडिअ :: वि [उद्‍घाटित] खुला हुआ (धर्मं वि ७७)।

उग्घडिअ :: वि [उद्‍घाटित] खुला हुआ। २ छिन्‍न, नष्ट किया हुआ (से ११, १३०)

उग्घर :: वि [उद्‍गृह] गृह-त्यागी, जिसने घरवार छोड़ कर संन्यास लिया हो वह, साधु; 'चंदोव्व कालपक्खे परिहाइ पए पए पमायपरो। तह उग्घरविग्घरनिरंगणो वि नय इच्छियं लहइ' (णाया १, १० टी)।

उग्घवं :: देखो अग्घव। उग्घवइ (हे ४, १६९ टि; राज)।

उग्घसिय :: न [अवघर्षित] घर्षंण (राय ६७)।

उग्घाअ :: पुं [दे] १ समूह, संघात (दे १, १२६; स ७७; ४३६; गउड; से ५, ३४) २ स्थपुट, विषमोन्‍नत प्रदेश (दे १, १२६)

उग्घाअ :: पुं [उद्‍घात] १ आरम्भ, प्रारम्भ; 'उग्घाओ आरंभो' (पाअ) २ प्रतिघात ठोकर लगना। ३ लघुकरण, भाग-पात (ठा ३) ४ उपोद्‍घात, भूमिका (विसे १३४८) ५ ह्नास (ठा ५, २) ६ न. प्रायश्‍चित-विशेष। ७ निशीथ सूत्र का एक अंश, जिसमें उक्त प्रायश्‍चित्त का वर्णन् है; 'उग्वायमणुग्वायं आरोवण तिविहमो निसीहं तु' (आव ३)

उग्घाअ :: सक [उद्‍ +घातय्] विनाश करना। उग्घाएइ (उत्त २९, ६)।

उग्घाइम :: वि [उद्‍घातिम] १ लघु, छोटा। २ न. लघु प्रायश्‍चित्त (ठा ३)

उग्घाइय :: वि [उद्धातित] १ विनाशित (ठा १०) २ न. लघु प्रायश्‍चित्त (ठा ५)

उग्घाइय :: वि [उद्‍घातित] लघु प्रायश्‍चित्त वाला (वव १)।

उग्घाइय :: न [उद्‍घातिक] लघु प्रायश्‍चित्त (कस)।

उग्घाड :: सक [उद्‍ + घाटय्] १ खोलना। २ प्रकट करना। ३ बाहर करना। उग्घाडइ (हे ४, ३३)। उग्घाडए (महा)। संकृ. उग्घाडिऊण (महा)। कृ. उग्घाडिअव्व (श्रा १६)। कवकृ. उग्घाडिज्जंत (से ५, १२)

उग्घाड :: पुं [उद्‍घाट] प्रकट, प्रकाश; 'किंतु कओ बहुएहिं उग्घाडो निययकम्माणं' (सिरि ५२८)।

उग्घाड :: देखो उग्घाड = उद् + घाट्‍य। हेकृ. 'तं जिणहरस्स दारं केणवि नो सक्कियं उघाडेउं' (सिरि ५२८)।

उग्घाड :: वि [उद्‍घाट] १ खुला हुआ, अनाच्छादित (पउम ३९, १०७) २ थोड़ा बन्द किया हुआ; 'उग्घाडकवाडउग्घाडणाए' (आव ४) ३ व्यक्त, प्रकट। ४ परिपूर्ण, अन्यून; 'एत्थंतरम्मि उग्घाडपोरिसीसूयगो बली पत्तो' (सुपा ९७)

उग्घाडण :: न [उद्‍घाटन] १ खोलना (आव ४) २ बाहर करना, बाहर निकालना (उप पृ ३९७)

उग्घाडणा :: स्त्री [उद्‍घाटना] ऊपर देखो (आव ४)।

उग्घाडिअ :: वि [उद्‍घाटित] १ खुला हुआ। २ प्रकटित, प्रकाशित (से २, ३७)

उग्घायण :: न [उद्‍घातन] १ नाश, विनाश (आचा) २ पूज्य-स्थान, उत्तम जगह। ३ सरोवर में जाने का मार्गं (आचा २, ३)

उग्घार :: पुं [उद्‍घार] सिञ्‍चन, छिड़काव; 'विणिंतरुहिरुग्घारं निवडिओ धरणिवट्टे' (स ५९८)।

उग्घिट्ठ, उग्घुट्ठ :: वि [उद्‍घृष्ट] संघृष्ट, 'नमिरसुर- कीरिडुग्घट्ठपायारविंदे' (लहुअ ४; से ९, ८०)।

उग्घुट्ठ :: वि [उद्‍घुष्ट] घोषित, उद्‍घोषित (सुर १०, १४; सण); 'अमरवहुग्घुट्ठजयजयारवं' (महा)।

उग्घुट्ठ :: वि [दे] उत्प्रोञ्छित, लुप्त, दूरीकृत, विनाशित (दे १, ९९); 'उरघालिरेवणीमुह- थणलग्गुघुट्ठमहिरआ जणअसुआ' (से ११, १०२)।

उग्घुस :: सक [मृज्] साफ करना, मार्जन करना। उग्घुसइ (हे ४, १०५)।

उग्घुस :: सक [उद् + घुष्] देखो उग्घोस। संकृ. उग्घुसिअ (नाट)।

उग्घुसिअ :: वि [मृष्ट] मार्जित, साफ किया हुआ (कुमा)।

उग्घोस :: सक [उद + घोषय्] घोषणा करना, ढिंढ़रो पिटवाना, जाहिर करना। उग्घोसेह (विपा १, १)। वकृ. उग्घोसेमाण (विपा १, १; णाया १, ५)। कवकृ. उग्घोसिज्जमाण (विपा १, २)।

उग्घोस :: पुं [उद्‍घोष] नीचे देखो (स्वप्‍न २१)।

उग्घोसणा :: स्त्री [उद्‍घोषणा] डुग्गी पिटवाना, ढिंढोरा पिटवा कर जाहिर करना (विपा १, १)।

उग्घोसिय :: वि [मार्जित] साफ किया हुआ, 'उग्घोसियसुनिम्मलं व आयंसमंडलतलं' (पणह २, ५)।

उग्घोसिय :: वि [उद्‍घोषित] जाहिर किया हुआ, घोषित (भवि)।

उघूण :: वि [दे] पूर्ण, भरपूर (षड्)।

उचिय :: वि [उचित] योग्य, लायक, अनुरूप (कुमा; महा)। °ण्णु वि [°ज्ञ] विवेकी (उप ७६८ टी)।

उच्च :: न [दे] नाभि-तल (दे १, ८६)।

उच्च, उच्चअ :: वि [उच्च, °क, उच्चैस्] १ ऊँचा (कुमा) २ उत्तम, उत्कृष्ट (हे २, १५४; सुअ १, १०) °च्छंद वि [°च्छन्दस्] स्वैर, स्वेच्छाचारी (पणह १, २)। °णागरी देखो °नागरी (कप्प)। °त्त न [त्व] १ ऊँचाई (सम १२; जी २८) २ उत्तमता (ठा ४, १)। °त्तभयग, °त्तभ- यय पुं [°त्वभृतक] जिससे समय और वेतन का इकरार कर यथासमय नियत काम लिया जाय वह नौकर (राज; ठा ४, १)। °त्तरिया स्त्री [°त्तरिका] लिपि-विशेष (सम ३५)। °त्थवणय न [°स्थापनक] लम्बगोलाकार वस्तु-विशेष, 'धणणस्स णं अणगारस्स गीवाए अयमेयारूवे तवरूवलावन्‍ने होत्था, से जहानामए करगगीवा इवा कुंडिया- गीवा इवा उच्चत्थवणए इवा' (अनु)। °वचिआ स्त्री [°वचिका] ऊँचा-नीचा करना, जैसे- तैसे रखना; 'कह तंपि तुइ ण णाअं जह सा आसंदिआण बहुआणं। काऊण उच्चवचिअं तुह दंसणलेहला पडिआ' (गा ६९७)। °वाय पुं [°वाद] प्रशंसा, श्‍लाघा (उप ७२८ टी)। देखो उच्चा।

उच्चइअ :: वि [उच्चयित] एकत्रीकृत, इकट्ठा किया हुआ (काल)।

उच्चडिय :: वि [दे] ऊँचा चढ़ाया हुआ (हम्मीर २८)।

उच्चंतय :: पुं [उच्चन्तग] दन्त-रोग, दाँत में होनावाला रोग-विशेष (राज)।

उच्चंपिअ :: वि [दे] १ दीर्घं, लम्बा, आयत (दे १, ११६) २ आक्रान्त, दबाया हुआ, रोंद हुआ; 'सीसं उच्चंपिअं' (तंदु)

उच्चड्डिअ :: वि [दे] उत्क्षिप्त, ऊँचा फेंका हुआ (दे १, १०६)।

उच्चत्त :: वि [उत्त्यक्त] पतित, त्यक्त (पाअ)।

उच्चत्तवरत्त :: न [दे] १ दोनों तरफ का स्थूल भाग। २ अनियमित भ्रमण, अव्यवस्थित विवर्त्तन (दे १, १३९) ३ दोनों तरफ से ऊँचा-नीचा करना (पाअ)

उच्चत्थ :: वि [दे] दृढ़, मजबूत (दे १, ९७)।

उच्चदिअ :: वि [दे] मुषित, चुराया हुआ (षड्)।

उच्चप्प :: वि [दे] आरूढ़, ऊपर बैठा हुआ (दे १, १००)।

उच्चय :: सक [उत् + त्यज्] त्याग देना, छोड़ देना। कृ. उच्चयणिज्ज (पउम ६९, २८)।

उच्चय :: पुं [उच्चय] १ समूह, राशि; 'रयणो- च्चयं विसालं' (सुपा ३४; कप्प) २ ऊँचा ढेर करना (भग ८, ९) ३ नीवी, स्त्री के कटी-वस्त्र की नाड़ी (पाअ)। °बंध पुं [°बन्ध] बन्ध-विशेष, ऊपर ऊपर रख कर चीजों को बाँधना (भग ८, ९)

उच्चय :: पुं [अवचय] इकट्ठा करना, एकत्री- करण (दे २, ५६)।

उच्चर :: सक [उत् + चर्] १ पार जाना, उत्तीर्ण होना।२ कहना, बोलना।३ अक. समर्थ होना, पहुँच सकना।४ बाहर निक- लना। उच्चरए (सूक्त ४६); 'मूलदेवेण य निरूवियाइं पासाइं जावन दिट्ठं निसियासि- हत्थेहिं वेढ़ियमताणर्यं मणूसेहिं। चिंतियं च; 'णाहमेएसिं उच्चरामि, कायव्वं च मए वइरनिज्जायणं; निराउहो संपयं, ता न पोरिसस्सावसरोत्ति चिंतिय भणियं' (महा)। वकृ. 'भरिउच्चरंतपरिअपिअसंभरणपिसुणो बराईए। परिवाहो विअ दुक्खस्स वहइ णअणट्ठिओ वाहो' (गा ३७७)

उच्चरण :: न [उच्चरण] कथन, उच्चारण; 'सिद्ध- समक्खं सोहिं वय-उच्चरणाइ काऊण' (सुपा ३१७)।

उच्चरिय :: वि [उच्चरित] १ उत्तीर्ण, पार-प्राप्त; 'तीए हत्थिसंभुमुच्चरियाए उज्झिऊण भयं, जीवियदायगोत्ति मुणिऊण तुमं साहिलासं पलोइओ' (महा)२ उच्चरित, कथित, उक्त (विसे १०८३)

उच्चलण :: न [उच्चलन] उन्मर्दन, उत्पीड़न (पाअ)।

उच्चलिय :: वि [उच्चलित] चलित, गत (भवि)। उच्चल वि [दे] १ अध्यासित, आरूढ़।२ विदारित, छिन्न (षड्)

उच्चल्ल :: सक [उत् + चल्] १ चलना, जाना।२ समीप में आना।

उच्चल्लिय :: वि [उच्चलित] १ गत, गया हुआ। २ समीप में आया हुआ; 'जिणभवणदुवारट्ठियउच्चल्लिय- फुल्लमालिओहस्स। फुप्फा इं गेणहंतो, अंतो विहिणा पविट्ठो हं (सुर ३, ७४)

उच्चा :: अ [उच्चैस्] १ ऊँचा, 'तो तेण दुट्ठ- हरिणा उच्चा हरिऊण लोय-पच्चक्खं। उव- णीओ सो रणणे' (महा)२ उत्तम, श्रेष्ठ (ठआ २, १) °गोत्त, °गोय न [°गोत्र] १ उत्तम गोत्र, श्रेष्ठ-वंश।२ कर्मं विशेष, जिसके प्रभाव से जीव उत्तम माने-जाते कुल में उत्पन्न होता है (ठा २, ४; आचा) °वय न [°व्रत] १ महाव्रत (उत्त १)२ वि. महाव्रतधारी (उत्त १५)

उच्चाअ :: वि [दे] १ श्रान्त, थका हुआ (ओघ ५१८)२ पुं. आलिंगन, परिरम्भ (सुपा ३३२)

उच्चाइय :: वि [दे. उत्त्याजित] उत्थापित, उठाया हुआ; 'उच्चाइया नंगरा' (स २०६)।

उच्चाग :: पुं [उच्चाग] हिमाचल पर्वंत। °य वि [°ज] हिमाचल में उत्पन्न; 'उच्चागयठाण- लट्ठसंठियं' (कप्प)।

उच्चाड :: वि [दे] विपुल, विशाल (दे १, ९७)।

उच्चाड :: सक [दे] १ रोकना, निवारना।२ अक. अफसोस करना, दिलगीर होना (हे २, १९३ टी)

उच्चाडण :: न [उच्चाटन] १ एक स्थान से दूसरे स्थान में उठा ले आना, स्व-स्थान से भ्रष्ट करना।२ मन्त्र-विशेष, जिसके प्रभाव से वस्तु अपने स्थान से उड़ायी जा सकती है; 'उच्चाडणयंभणमोहणाइ सर्व्वेपि मह करगयं व' (सुपा ५९९)

उच्चाडणी :: स्त्री [उच्चाटनी] विद्या-विशेष जिसके द्वारा वस्तु अपने स्थान से उड़ायी जा सकती है (सुर १३, ८१)।

उच्चाडिर :: वि [दे] १ रोकनेवाला, निवारण करनेवाला।२ अफसोस करनेवाला, दिलगीर; 'किं उल्लावेंतीए, उअ जूरंतीए किं नु भीआए। उच्चाडिरीए वेव्वेत्ति, तीए भणिअं न विम्हरिमो' (हे २, १९३)

उच्चार :: सक [उत् + चारय्] १ बोलना, उच्चारण करना।२ मलोत्सर्ग करना, पाखाना जाना। उच्चारेइ (उवा)। वकृ, उच्चारयंत (स १०७)। उच्चारेमाण (कप्प; णाया १, १)। कृ. उच्चारेयव्व (उवा)

उच्चार :: पुं [उच्चार] १ उच्चारण।२ विष्ठा, मलोत्सर्ग (सम १०; उवा; सुपा ६११)

उच्चार :: वि [दे] विमल, स्वच्छ (दे १, ९७)।

उच्चारण :: न [उच्चारण] कथन, 'इसिं हस्स- पंचक्खरूच्चारणद्धाए' (औप)।

उच्चारिअ :: वि [दे] गृहीत, उपात्त (दे १, ११४)।

उच्चारिअ :: वि [उच्‍चारित] १ कथित, उक्त। २ पाखाना गया हुआ (राज)

उच्चाल :: सक [उत् + चालय्] १ ऊँच। फेंकना।२ दूर करना। संकृ. 'उच्चालइय निहाणिंसु अदुवा आसणओ खलइंसु' (आचा)

उच्चालइय :: वि [उच्चालयितृ] दूर करनेवाला त्यागनेवाला; 'जं जाणेज्जा उच्चालइयं तं जाणेज्जा दूरालइयं (आचा)।

उच्चालिय :: वि [उच्चालित] उठाया हुआ, ऊँचा किया हुआ, उत्थापित; 'उच्चालियम्मि पाए इरियासमियस्स संकमट्ठाए' (ओघ ७४८; दसनि ४५)।

उच्चाव :: सक [उच्चय्] ऊँचा करना, उठाना। संकृ. उच्चावइत्ता; 'दोवि पाए उच्चावइत्ता सव्वओ समंत समभिलोएज्ज' (पणण १७)।

उच्चावय :: वि [उच्चावच] १ ऊँचा और नीचा (णाया १, १; पणण ३४)२ उत्तम और अधम (भग १५)३ अनुकूल और प्रतिकूल (भग १, ९)४ असमञ्जस, अव्य- वस्थित (णाया १, १६)५ विविध, नाना- विध; 'उच्चावयाहिं सेज्जाहिं तवस्सी भिक्खु यामवं' (उत्त ८)६ उत्कृष्टतर, विशेष उत्तम; 'तए णं तस्स आणंदस्स समणोवासगस्स उच्चावएहिं सीलव्वयगुणमेरमणपञ्चक्खाणपोस- होववासोहिं अप्पणं भावेमाणस्स' (उवा; औप)

उच्चाविय :: वि [उच्चित] ऊँचा किया हुआ (वज्जा १३२)।

उच्‍चिट्ठ :: अक [उत् + स्था] खड़ा होना। उच्चिट्ठ (काल)।

उच्चिडिम :: वि [दे] मर्यादा-रहित, निर्लज्ज; 'उच्चिडिमं मुक्कमज्जायं' (पाअ)।

उच्चिण :: सक [उत् + चि] फूल वगैरह को तोड़ कर एकत्रित करना, इकट्ठा करना। उच्चि- णइ (हे ४, २४१)। वकृ. उच्चिणंत (भवि)।

उच्चिणण :: न [उच्चयन] अवचयन, एकत्रीकरण (सुपा ४९९)।

उच्चिणिय :: वि [उच्चित] इकट्ठा किया हुआ, अवचित (पाअ)।

उच्चिणिर :: वि [उच्चेतृ] फूल वगैरह को चूननेवाला (कुमा)। उच्चिय देखो उचिय; 'तस्स सुओच्चियपन्न- त्तणेण संतोसमणुपत्ता' (उप १६९ टी)।

उच्चिवलय :: न [दे] कलुषित जल, मैला पानी (पाआ)।

उच्चुंच :: वि [दे] दृप्त, गर्विष्ठ, अभिमानी (दे १, ९९)।

उच्चुग :: वि [दे] अनवस्थित (षड्)।

उच्चुड़ :: अक [उत् + चुड्] अपसरण करना, हटना। वकृ. उच्चुडंत (गउड ७३३)।

उच्चुप्प :: सक [चट्] चढ़ना, आरूढ़ होना, ऊपर बैठना। उच्चुप्पइ (हे ४, २५९)।

उच्चुप्पिअ :: वि [दे. चटित] आरूढ़, ऊपर चढ़ा हुआ (दे १, १००)।

उच्चुरण :: [दे] [उच्छिष्ट, जूठा] (षड्)।

उच्चुलउलिअ :: न [दे] कुतूहल से शीघ्र शीघ्र जाना (दे १, १२१)।

उच्तुल्ल :: वि [दे] १ उद्विग्‍न, खिन्न।२ अधि- रूढ, आरूढ।३ भीत, डरा हुआ (दे १, १२७)

उच्चूढ :: पुं [उच्चुड] निशान का नीचे लट- कता हुआ श्रंगारित वस्त्रांश (उव ४४६)।

उच्चूर :: वि [दे] नानाविध, बहुविध (राज)।

उच्चूल :: पुं [अवचूल] १ निशान का नीचे लटकता हुआ श्रृङ्गारित वस्त्रांश (उप ४४६ टी)२ औघा-सिर — पैर ऊपर और सिर नीचे कर — खड़ा किया हुआ (विपा १, ६)

उच्चे :: देखो उच्चिण। उच्चेइ (हे ४, २४१)। हेकृ. उच्चेउं (गा १५९)।

उच्चेय :: वि [उच्चेतस्] चिन्तातुर मनवाला (पाअ)।

उच्चेल्लर :: न [दे] १ ऊसर भूमि।२ जघन- स्थानीय केश (धे १, १३६)

उच्चेय :: वि [दे] प्रकट, व्यक्त (दे १, ९७)।

उच्चोड :: पुं [दे] शोषण, 'चंदुणुच्चोडकारी चंडो देहस्स दाहो' (कप्पू ; प्राप)।

उच्चोदय :: पुं [उच्चोदय] चक्रवर्ती का एक देव- कृत प्रासाद (उत्त १३, १३)।

उच्चोल :: पुं [दे] १ खेद, उद्वेग।२ नीवीस स्त्री के कटी-वस्त्र की नाड़ी (दे १, १३१)

उच्छ :: पुं [उक्षन्] बैल, वृषभ (हे २, १७)।

उच्छ :: पुं [दे] १ आँत का आवरण (दे १, ८५)२ वि. न्यून, हीन; 'उच्छत्तं वा न्यून- त्वम्' (पणह २, १)

उच्छअ :: पुं [उत्सव] क्षण, उत्सव (हे २, २२)।

°उच्छअ :: वि [पृच्छक] प्रश्‍न-कर्ता (गा ५०)।

उच्छइअ :: वि [उच्छदित] आच्छादित, 'पालंबउच्छइयवच्छयलो' (काल)।

उच्छंखल :: वि [उच्छङ्खल] १ श्रृङ्खला-रहित, अवरोध-वर्जित, बन्धन-शून्य।२ उद्धत, निरं- कुश (गउड)

उच्छंखलिय :: वि [उच्छङ्खलिन] अवरोध- रहित किया हुआ, खुला किया हुआ; 'उच्छं- खलियवणाणं सोहग्गं किंपि पवणाणं' (गउड)।

उच्छंग :: पुं [उत्सङ्ग] मध्य भाग; 'मउड्ठच्छंग- परिग्गहमियंकजोणहावभासिणो पसुवइणो' (गउड; से १०, २)। २ क्रोड, गोद, कोरा (पाअ); 'उच्छंगे णिविसेत्ता' (आवम)३ पृष्ट देश (औप)

उच्छंगिअ :: वि [उत्साङ्गित] कोरा, कोली या गोद में लिया हुआ (उप ६४८ टी)।

उच्छंगिअ :: वि [दे] आघे किय हुआ, आगे रखा हुआ (दे १, १०७)।

उच्छंघ :: देखो उत्थंघ (हे ४, ३६ टी)।

उच्छंद :: पुं [दे] भड़प से की हुई चोरी (दे १, १०१; पाअ)।

उच्छट्ट :: पुं [दे] चोर, डाकू (दे १, १०१)।

उच्छडिअ :: वि [दे] चुराई हुई चीज, चोरी का माल (दे १, ११२)।

°उच्छण :: न [प्रच्छन] प्रश्‍न, पूछना (गा ५००)।

उच्छण्ण :: देखो उच्छन्न (हे १, ११४)।

उच्छत :: न [अपच्छत्र] १ अपने दोख को ढकने का व्यर्थं प्रयत्‍न, गुजराती में 'ढांकपि- छोडो'।२ मृषावाद, झुठ वचन (पणह १, २)

उच्छन्न :: वि [उत्सन्न] छिन्न, खण्डित, नष्ट (कुमा; सुपा ३८४)।

उच्छप्प :: सक [उत् + सर्पय्] उन्नत करना, प्रभावित करना। उच्छप्पइ (सुपा ३५२)। वकृ. उच्छप्पंत (सुपा २९६)।

उच्छप्पण :: न [उत्सर्पण] उन्नति, अभ्युदय (सुपा २७१)।

उच्छप्पणा :: स्त्री [उत्सर्पणा] ऊपर देखो, 'जिणपवयणम्मि उच्छप्पणाउ कारेइ बिवि- हाओ' (सुपा २०६; ६४९)।

उच्छल :: अक [उत् + शल्] १ उछलना, ऊँचा जाना।२ कूदना।३ पसरना, फैलना। वकृ. उच्छलंत (कप्प ; गउड़)

उच्छलण :: न [उच्छलन] उछलना (दे १, ११८; ६, ११५)।

उच्छलिअ :: वि [उच्छलित] उछला हुआ, ऊँचा गया हुआ (गा ११७; ६२४; गउड)। २ प्रसृत, फैला हुआ; 'ता ताण वरगंधो। उच्छालियो छलिउं पिव गध गोसासचंदणव- णस्स' (सुपा ३८४)

उच्छलिर :: वि [उच्छलितृ] उछलनेवाला (धर्मंवि १४; कुप्र ३७३)।

उच्छल :: देखो उच्छल। उच्छल्लइ (पि ३२७); 'उच्छल्लंति समुद्दा' (हे ४, ३२६)।

उच्छल :: वि [उच्छल] उछलनेवाला (भवि)।

उच्छल्लणा :: स्त्री [दे] अपवर्त्तना, अपप्रेरणा; 'कप्पडप्पहारिनिद्दयआारक्खियखरफरुसवयणत- जणगलच्छल्लुच्छल्लणाहिं विमणा चारगवसहिं पवेसिया' (पणह १, ३)।

उच्छल्लिअ :: देखो उच्छलिअ (भवि)।

उच्छल्लिअ :: वि [दे] जिसकी छाल काटी गई हो वह, 'तरुणो उच्छल्लिआ य दंतीहिं' (दे १, १११)।

उच्छव :: देखो उच्छअ (कुमा)।२ उत्सेक (भवि)|

उच्छविअ :: न [दे] शय्या, बिछौना (दे १, १०३)।

उच्छह :: सक [उत् +; सह्] उद्यम करना। वकृ. उच्छहं (दस ९, ३, ६)।

उच्छह :: अक [उत् + सह्] उत्साहित होना। वकृ. उच्छहंत (भवि)।

उच्छाहय :: वि [उत्सहित] उस्ताहयुक्त (सण)।

उच्छाइअ :: वि [अवच्छादित] आच्छादित, ढका हुआ (पउम ६१, ४२; सुर ३, ७१)।

उच्छाडिअ :: (अप) वि [अवच्छादित] ढका हुआ (भवि)।

उच्छाण :: देखो उच्छ = उक्षन् (प्रामा)।

उच्छाय :: पुं [उच्छ्राय] उत्सेघ, ऊगई (ठा ७)।

उच्छाय :: सक [अव + छादय्] आच्छादन करना, ढकना। संकृ. उच्छाइऊण (चेइय ४८५)।

उच्छायण :: वि [अवच्छादन] आच्छादक, ढकनेवाला (स ३२३)।

उच्छायण :: वि [उच्छादन] नाशक (स ३२३; ५९३)।

उच्छायणया, उच्छायणा :: स्त्री [उच्छादना] १ उच्छेद, विनाश (भग १५)२ व्यव- च्छेद, व्यावृत्ति (राज)

उच्छार :: देखो उत्थार = आ + क्रम् (हे ४, १६० टी)।

उच्छाल :: सक [उत् + शालय्] उछालना, ऊँचा फेंकना। वकृ. उच्छालिंत (कुम्मा ४)।

उच्छालण :: न [उच्छालन] उछालना, उत्क्षे- पण (कुमा ५)।

उच्छालिअ :: वि [उच्छालित] फेंका हुआ, उत्क्षिप्त (सुपा ९७)।

उच्छास :: देखो भसास (मै ६८)।

उच्छाह :: सक [उत् + साहय्] उत्साह दिलाना, उत्तेजित करना। उच्छाहइ (सुपा ३५२)।

उच्छाह :: पुं [उत्साह] १ उत्साह (ठा २, १) २ दृढ़ उद्यम, स्थिर प्रत्यत्‍न (सुज्ज २०)३ उत्कंठा, उत्सुकता (चंद २०)४ पराक्रम, बल।५ सामर्थ्यं, शक्ति (आचू १; हे १, ११४; २, ४८; पउम २०, ११८)

उच्छाह :: पुं [दे] सूत का डोरा (दे १, ९२)।

उच्छाहण :: न [उत्साहन] उत्तेजन, प्रोत्साहन (उप ५९७ टी)।

उच्छाहिय :: वि [उत्साहित] प्रोत्साहित, उत्तेजित (पिंड)।

उच्छिंद :: सक [उत् + छिद्] उन्मुलन करना, उखाड़ना। संकृ. उच्छिंदिअ (सूक्त ४४)।

उच्छिंदण :: न [दे] उधार लेना, करजा लेना, सूद पर लेना (पिंड ३१७)।

उच्छिंपग :: वि [अवच्छिम्पक] चोरों को खान-पान वगैरह की सहायता देनेवाला (पणह १, ३)।

उच्छिंपण :: न [ऊत्क्षेपण] १ ऊपर फेंकना। २ बाहर निकालना (पणह १, १)

उच्छिट्ठ :: वि [उच्छिष्ट] जूठा, उच्छिष्ट (सुपा ११७; ३७५; प्रास १५८)।

उच्छिट्ट :: वि [उच्छिष्ट] अशिष्ट, असभ्य (दस ३, १ टी)।

उच्छिण्ण :: वि [उच्छिन्न] उच्छिन्न, उन्मुलित (ठा ५)।

उच्छित्त :: वि [दे] १ उत्क्षिप्त, फेंका हुआ। २ विक्षिप्त, पागल (दे १, १२४)

उच्छित्त :: वि [उत्क्षिप्त] फेंका हुआ (ले ५, ६१; पाअ)|

उच्छित्त :: देखो उट्ठिय (से २, १३; गउड)।

उच्छित्त :: वि [उत्सिक्त] सींचा हुआ, सिक्त (दे १, १२३)।

उच्छिन्न :: देखो उच्छिण्ण (कप्प)।

उच्छिप्पंत :: देखो उक्खिव।

उच्छिय :: वि [उच्छ्रित] उन्नत, ऊँचा (राज)।

उच्छिरण :: वि [दे] उच्छिष्ट, जूठा (षड्)।

उच्छिल्ल :: न [दे] १ छिद्र, विवर (दे १, ९५)२ वि. अवजीर्णं (षड्)

उच्छु :: देखो इक्खु (पाअ; गा ५४१; पि १७७; ओघ ७७१; दे १, ११७)। °जंत न [°यंत्र] ईख पेरने का सांचा (दे ६, ५१)।

उच्छु :: पुं [दे] पवन, वायु (दे १, ८५)।

उच्छुअ :: वि [उत्सुक] उत्कण्ठित (हे २, २२)।

उच्छुअ :: न [दे] डरते-डरते की हुई चोरी (दे १, ९५)।

उच्छुअरण :: न [दे] ईख का खेत (दे १, ११७)।

उच्छुआर :: वि [दे] सँछन्न, ढका हुआ (दे १, ११५)।

उच्छुंडिअ :: वि [दे] १ बाण वगैरह से आहत।२ अपहृत, छीना हुआ (दे , १३५)

उच्छुग :: देखो उच्छुअ (सुर ८, ९१)। °भूय वि [°भूत] जो उत्कण्ठित हुआ हो (सुर २, २१४)।

उच्छुच्छु :: वि [दे] दृप्त, अभिमानी (दे १, ९९)।

उच्छुण्ण :: वि [उत्क्षुण्ण] १ खण्डित, तोड़ा हुआ, 'उच्छुण्णं मद्दिअं च निद्दलिअं' (पाअ) २ आक्रान्त, 'रइणावि अणुच्छुणणा, वीसत्थं मारुएण वि अणालिद्धा। तिअसोहिंवि परिहरिआ, पवंगमेहिं मलिआ सुवेलुच्छंगा' (से १०, २)

उच्छुद्ध :: वि [दे] १ विक्षिप्त।२ पतित (ओघ २२० भा)

उच्छुभ :: सक [अप + क्षिप्] आक्रोश करना, गाली देना। उच्छुभह (भग १५)।

उच्छुभण :: न [उत्क्षेपण] ऊँचा फेंकना (पव ७३ टी)।

उच्छुर :: वि [दे] अविनश्‍वर, स्थायी (दे १, ९०)।

उच्छुरण :: न [दे] १ ईख का खेत।२ ईख, ऊख (दे १, ११७)

उच्छुल्ल :: पुं [दे] १ अनुवाद।२ खेद, उद्वेग (दे १, १३१)

उच्छूढ :: वि [दे] आरूढ़, ऊपर बैठा हुआ (षड्)।

उच्छूढ :: वि [उत्क्षिप्त] १ त्यक्त, उज्झित (णाया १, १ उव)२ मुषित, चुराया हुआ (राज)३ निष्कासित, बाहर निकाला हुआ (औप)

उच्छूढ :: वि [उत्क्षुब्ध] ऊपर देखो; 'उच्छुढ- सरीरघरा अन्‍नो जीवो सरीरमन्‍नं ति' (उ पि ६६)।

उच्छुर :: देखो उल्लूर = तुड़ (हे ४, ११६ टी)।

उच्छुल :: देखो उच्चूल (उव)।

उच्छेअ :: पुं [उच्छेद] १ नाश, उन्मूलन; 'एगंतुच्छेअम्मिवि सुहदुक्खविअप्पणमजुत्तं' (सम्म १८)२ व्यवच्छेद, व्यावृर्त्ति; 'उच्छेओ सुत्तत्थाणं ववच्छेउत्ति वुत्तं भवति' (नीचु १)

उच्छेयण :: न [उच्छेदन] विनाश, उन्मूलन; 'चिंतेइ एस समओ एयस्सुच्छेयणे मज्झ' (सुपा ३३५)।

उच्छेर :: अक [उत् + श्रि] १ ऊँचा होना, उन्‍नत होना।२ अधिक होना, अतिरिक्त होना। वकृ. उच्छेरंत (काप्र १९४)

उच्छेव :: पुं [उत्क्षेप] १ ऊँचा करना, उठाना। २ फेंकना (वव २, ४)

उच्छेव :: पुं [उत्क्षेप] प्रेक्षेप (वव ४)।

उच्छेवण :: न [उत्क्षेपण] ऊपर देखो (से ६, २४)।

उच्छेवण :: न [दे] घृत, घी (दे , ११६)।

उच्छेह :: पुं [उत्सेध] ऊँचाई (दे १, १३०)।

उच्छोडिय :: वि [उच्छोटित] छुड़ाया हुआ, मुक्त किया हुआ; 'उच्छोडिय-बंधो सो रन्‍ना भणिओ य भद्द ! उवविससु' (सुर १, १०५); 'पासट्ठियपुरसेहिं तक्खणमुच्छोडिया य से बंधा' (सुर २, ३९)।

उच्छोभ :: वि [उच्छोभ] १ शोभा-रहित। २ न. पिशुनता, चुगली (राज)

उच्छोल :: सक [उत् + मूलय्] उन्मूलन करना, उखाड़ना। वकृ. उच्छोलंत (राज)।

उच्छोल :: सक [उत् + क्षालय्] प्रक्षालन करना, धोना। वकृ. उच्छोलंत (निचू १७)। प्रयो., वकृ. उच्छोलावंत (निचू १६)।

उच्छोलण :: न [उत्क्षालन] प्रभूत जल से प्रक्षालन, 'उच्छोलणं च कक्कं च तं निज्जं परियाणिया' (सूअ १, ९; औप)।

उच्छोलणा :: स्त्री [उत्क्षालना] प्रक्षालन (दस ४)।

उच्छोला :: स्त्री [दे] प्रभूत जल, 'नहदंतकेसरो मे जमेइ उच्छोलधोयणो अजओ' (उव)।

उच्छोलित्तु :: वि [उत्क्षालयितृ] डूबोनेवाला, निमग्‍न करनेवाला (सुअ २, २, १८)।

उजु :: देखो उज्जु (आचा; कप्प)।

उजुअ :: देखो उज्जुअ (नाट)।

उज्ज :: देखो ओय = ओजस् (कप्प)।

उज्ज :: न [ऊर्ज] १ तेज, प्रताप।२ बल (कप्प)

उज्जअणी, उज्जइणी :: स्त्री [उज्जयनी, °यिनि] नगरी-विशेष, मालव देश की प्राचीन राजधानी, आजकल भी यह 'उज्जैन' नाम से प्रसिद्ध है (चारु ३९; ' पि ३८६)।

उज्जंगल :: न [द] बलात्कार, जबरदस्ती। २ वि. दीर्घ, लम्बा (दे १, १३५)

उज्जगरय :: पुं [उज्जागरक] १ जागरण, निद्रा का अभाव; 'जत्थ न उज्जगरओ जत्थ न ईसा विसूरणं माणं। सब्भावचाडुयं जत्थ, नत्थि नेहो तहि नत्थि' (वज्जा ६८)

उज्जग्गिर :: न [उज्जागर] जागरण, निद्रा का अभाव (दे १; ११७; वज्जा ७४)।

उज्जग्गुज्ज :: वि [दे] स्वच्छ, निर्मल (दे १ ११३)।

उज्जड :: वि [दे] उजाड़, वसति-रहित (दे १, ९६); 'उक्खिणणरयभरोणयत- लजज्जरभूविसट्टबिलविसमा थोउज्जडक्कविडवा इमाओ ता उन्दरथलीओ' (गउड)।

उज्जणिअ :: वि [दे] वक्र, टेढ़ा (दे १; १११)।

उज्जम :: अक [उद् + यम्] उद्यम करना, प्रयत्‍न करना। उज्जमइ (धम्म १४)। उज्जमह (उव)। वकृ. उज्जमंत, उज्जम- माण (पणह १, ३); 'ण करेइ दुक्खमोक्खं उज्जममाणावि संजमतवेसु' (सुअ १, १३)। कृ. उज्जमिअव्व, उज्जमेयव्व (सुर १४, ८३; सुपा २८७; २२४)। हेकृ. उज्जमिउं (उव)।

उज्जम :: पुं [उद्यम] उद्योग, प्रयत्‍न (उव ; जी ५०; प्रासू ११५)।

उज्जमण :: (अप) न [उद्यापन] उद्यापन, व्रत- समाप्ति-कार्य (भवि)।

उज्जमि :: वि [उद्यमिन्] उद्योगी (कुप्र ४१९)।

उज्जमिय :: (अप) वि [उद्यापित] समापित (व्रत) (भवि)।

उज्जम्ह :: अक [उत् + जृम्भ्] जोर से जँमाई लेना। उज्जम्हइ (प्राकृ ६४)।

उज्जय :: हि [उद्यत] उद्योगी, उद्युक्त, प्रयत्‍न- शील (पाअ; काप्र १६९; गा ४४८)। [°मरण न °मरण] मरण-विशेष (आचा)।

उज्जयंत :: पुं [उज्जयन्त] गिरनार पर्वत, 'इय उज्जयंतकप्पं, अवियप्पं जो करेइ जिणभत्तो' (ती; विवे १८); 'ता उज्जयंतसत्तुंजएसु तित्थेसु दोसुवि जिणिंदे' (मुणि १०९७५)।

उज्जर :: वि [दे] १ मध्य-गत, भीतर का। २ पुं. निर्जंरण, क्षय (तंदु ४१)

उज्जल :: अक [उद् + ज्वल्] १ जलना। २ प्रकाशित होना, चमकना। उज्जलंति (विक्र ११४)। बकृ. उज्जलंत (णंदि)

उज्जल :: वि [उज्ज्वल] १ निर्मंल, स्वच्छ (भग ७, ८; कुमा)२ दीप्त, चमकीला (कप्प; कुमा)

उज्जल :: वि [दे] देखो उज्जल्ल (हे २, १७४ टी)।

उज्जलण :: वि [उज्ज्वलन] चमकीला, देदीप्य- मान; 'जालुज्जलणगअंबरंव कत्थइ पयंतं अइवेगचंचलं सिहिं' (कप्प)।

उज्जलिअ :: पुं [उज्ज्वलित] तीसरी नरक-भूमि का सातवाँ नरकेन्द्रक — नरक-स्थान विशेष (देवेन्द्र ८)।

उज्जलिअ :: वि [उज्ज्वलित] १ उद्दीप्त, प्रका- शित (पउम ११८, ८८; औप)२ ऊँची ज्वालाओं से युक्त (जीव ३)३ न. उद्दीपन (राज)

उज्जल्ल :: वि [दे] स्वेद-सहित, पसीनावाला, मलिन; 'मुंडा कंडूविणट्‍ठंगा उज्जल्ला असमाहिया' (सुअ १, ३)। २ बलवान्, बलिष्ठ (हे २, १७४)

उज्जल्ल :: न [औज्ज्वल्य] उज्ज्वलता (गा ९२९)।

उज्जल्ला :: स्त्री [दे] बलत्कार, जबरदस्ती (दे १, ९७)।

उज्जव :: अक [उद् + यत्] प्रयत्‍न करना। वकृ. 'सुट्‍ठुवि उज्जवमाणं पंचेव करंति रित्तयं समणं' (उव)।

उज्जवण :: देखो उज्जावण (भवि)।

उज्जह :: सक [उद् + हा] प्रेरणा करना। संकृ. उज्जाहित्ता (उत्त २७, ७)।

उज्जाअर, उज्जागर :: पुं [उज्जागर] जागरण, निद्रा का अभाव (गा ४८२; वज्जा ७६)।

उज्जाडिअ :: वि [दे] उजाड़ किया हुआ (भवि)।

उज्जाण :: न [उद्यान] उद्यान, बगीचा, उपवन (अणु; कुमा)। °जत्ता स्त्री [°यात्रा] गोष्ठी, गोठ (णाया १, १)। °पालअ, °वाल वि [पालक, °पाल] बगीचा का रक्षक, माली (सुपा २०८; ३०५)।

उज्जाणिअ :: वि [औद्यानिक] उद्यान-संबंधी, बगीचा का (भग १४, १)।

उज्जाणिअ :: वि [दे] निम्‍नीकृत, नीचा किया हुआ (दे १, ११३)।

उज्जाणिआ, उज्जाणिगा :: स्त्री [औद्यानिका] गोष्ठी, गोठ; 'उज्जाणं जत्थ लोगो उज्जाणिआए वच्‍चइ' (निचू ८; स १५१)।

उज्जाणी :: स्त्री [औद्यानी] गोष्ठी, गोठ (सुपा ४८५)।

उज्जायण :: न [उद्यायन] गोत्र-विशेष (सुज्ज १०, १ टी)।

उज्जाल :: सक [उत् + ज्वालय्] उज्ज्वल करना, विशेष निर्मल करना। संकृ. उज्जा- लियं (श्रावक ३७९)।

उज्जाल :: सक [उद् + ज्वालय्] १ उजाला करना।२ जलाना। संकृ. उज्जालिय, उज्जालित्ता (दस ५; आचा)

उज्जालण :: न [उज्ज्वालन] जलाना (दस ५)।

उज्जालण :: न [उज्ज्वालन] उज्ज्वल करना (सिरि ९८०)।

उज्जालय :: वि [उज्ज्वालक] आग सुलगानेवाला (सुअ १, ७, ५)।

उज्जालिअ :: वि [उज्ज्वालित] जलाया हुआ, सुलगाया हुआ (सुर ९, ११७)।

उज्जावण :: न [उद्यापन] व्रत का समाप्‍ति- कार्यं (प्रारू)।

उज्जाविय :: वि [दे] विकासित (सण)।

उज्जिंत :: देखो उज्जयंत (णाया १, १६); 'उज्जिंतसेलसिहरे, दिक्खा नाणं निसीहिआ जस्स। तं धम्मचक्कवट्टिं, अरिट्ठनेमिं नमंसामि' (पडि)।

उज्जीरिअ :: वि [दे] निर्भर्त्सिंत, अपमानित, तिरस्कृत (दे १, ११२)।

उज्जीवण :: न [उज्जीवन] १ पुनर्जीवन, जिलाना; 'तस्सपभावो एसो कुमरस्सुज्जीवणे जाओ' (सुपा ५०४)२ उद्दीपन (सण)

उज्जीविय :: वि [उज्जीवित] पुनर्जीवित, जिलाया हुआ (सुपा २७०)।

उज्जु :: वि [ऋजु] सरल, निष्कपट, सीधा (औप; आचा)। °कड़ वि [°कृत] १ निष्कपट तवस्वी (आचा; उत्त) °कड़ वि [°कृत्] माया-रहित आचरणवाला (आचा)। °जड़, °जड्ड वि [°जड़] सरल किन्तु मूर्ख, तात्पर्य को नहीं समझनेवाला (पंचा १९; उत्त २६)। °मइ स्त्री [°मति] १ मनः पर्यवं ज्ञान का एक भेद, सामान्य मनोज्ञान, सामान्य रीति से दूसरों के मनोभाव को जानना।२ वि. उक्त मनो-ज्ञानवाला (पणह २, १; औप)। °वालिया स्त्री [°वालिका] नदी-विशेष, जिसके किनारे भगवान् महावीर को केवल-ज्ञान उत्पन्‍न हुआ था (कप्प; स ४३२)। °सुत्त पुं [°सूत्र] वर्तमान वस्तु को ही माननेवाला नय-विशेष (ठा ७)। °सुय पुं [°श्रुत] देखो पूर्वोक्त अर्थ; 'पच्चुप्पन्नग्गाही उज्जुसुओ रायविही मुणेअव्वो' (अणु)। °हत्थ पुं [°हस्त] दाहिना हाथ (ओघ ५११)

उज्जु :: पुं [ऋजु] संयम (सुअ १, १३, ७)।

उज्जुअ :: वि [ऋजुक] ऊपर देखो (आचा; कुमा; गा १५९; ३५२)।

उज्जुआइअ :: वि [ऋजुकारित] सरल किया हुआ (से १३; २०)।

उज्जुग :: देखो उज्जुअ (पि ५७)।

उज्जुत्त :: वि [उद्युक्त] उद्यमी, प्रयत्‍नशील (सुर ४, १५; पाअ)।

उज्जुरिअ :: वि [दे] १ क्षीण, नष्ट।२ शुष्क, सुखा (दे १, ११२)

उज्जूढ :: वि [उद्‍व्यूढ] धारण किया हुआ (संबोध ५३)।

उज्जेणग :: पुं [उज्जयनक] श्रावक-विशेष, एक उपासक का नाम (आचू ४)।

उज्जेणी :: देखो उज्जइणी (महा; काप्र ३३३)।

उज्जोअ :: सक [उद् +; द्योतय्] प्रकाश करना, उद्योत करना। उज्जोएइ (महा)। वकृ. उज्जोयंत, उज्जोइंत, उज्जोयमाण, उज्जो- एमाण (णाया १, १; सुपा ४७; सुर ८, ८७; सुपा २४२; जीव ३)।

उज्जोअ :: पुं [उद्योग] प्रयत्‍न, उद्यम (पउम ३, १२६; सुक्त ३९ पुप्फ २८; २९)।

उज्जोअ :: पुं [उद्‍द्योत] १ प्रकाश, उजेला। °गर वि [°कर] प्रकाशक; 'लोगस्स उज्जो- अगरे, धम्मतित्थयरे जिणे' (पडि; पाअ; हे १, १७७)२ उद्‍द्योत का कारण-भूत कर्म- विशेष (सम ६७; कम्म १)। °त्थ न [°स्त्र] शस्त्र-विशेष (पउम १२, १२८)

उज्जोअग :: वि [उद्‍द्योतक] प्रकाशक, 'सव्व जगुज्जयोगस्स' (णंदि)।

उज्जोअण :: न [उद्‍द्योतन] १ प्रकाशन, अव- भासन।२ वि. प्रकाश करनेवाला (उप ७२८ टी)३ पुं. सूर्य, रवि। ४ एक प्रसिद्ध जैनाचार्य (गु ७; सार्ध ६२)

उज्जोअय :: वि [उद्‍द्योतक] १ प्रकाशक। २ प्रभावक, उन्नति करनेवाला (उर ८, १२)

उज्जोइंत :: देखो उज्जोअ = उद् + द्योतय्।

उज्जोइय :: वि [उद्‍द्योतित] प्रकाशित (सम १५३; सुपा २०५)।

उज्जोएमाण :: देखो उज्जोअ = उद् + द्योतय्।

उज्जोमिआ :: स्त्री [दे] रश्‍मि, रस्सी (दे १, ११५)।

उज्जोव :: देखो उज्जोअ = उद् + द्योतय्। वकृ. उज्जोवंत, उज्जोवयंत, उज्जोवेंत, उज्जो- वेमाण (पउम २१, १५; स २०७; ६३१; ठा ८)।

उज्जोवण :: न [उद्‍द्योतन] प्रकाशन (स ६३१)।

उज्जोविय :: देखो उज्जोइय (कप्प; णाया १, १; पणह १, ४; पउम, १६०; स ३९)।

उज्झ :: सक [उज्झ्] त्याग करना, छोड़ देना। उज्जइ (महा)। कवकृ. उज्झिजमाण (उप २११ टी)। संकृ. उज्झिअ, उज्झिउं, उज्झिऊण (अभि ६०; पि ५७६; राज)। हेकृ. उज्झित्तए (णाया १, ८)। कृ. उज्झि- यव्व (उप ५९७ टी)।

उज्झ :: पुं [उज्झ, उद्‍ध्य] उपाध्याय, पाठक (विसे ३१९८)।

उज्झअ, उज्झग :: वि [उज्झक] त्याग करनेवाला, छोड़नेवाला (सुअ १, ३; उप १७९ टी)।

उज्झण :: न [उज्झन] परित्याग (उप १७९; पृ ४०३; पउम १, ६०; औप)।

उज्झणया, उज्जणा :: स्त्री [उज्झना] परित्याग (उप ५६३; आव ४)।

उज्झणिअ :: वि [दे] विक्रीत, बेचा हुआ। २ निम्‍नीकृत, नीचा किया हुआ (षड्)

उज्झमण :: न [दे] पलायन, भागना (दे १, १०३)।

उज्झमाण :: वि [दे] पलायित, भागा हुआ (षड्)।

उज्झर :: पुं [निर्झर] पर्वत से गिरनेवाला जल- प्रवाह, पहाड का झरना (णाया १, १; गउड; गा ६३६)। °वण्णौ स्त्री [°पर्णी] उदक-पात, जल-प्रपात (निचू ५)।

उज्झरिअ :: वि [दे] टेढ़ी नजर से देखा हुआ। २ विक्षिप्त। ३ क्षिप्त, फेंका हुआ। ४ परि- त्यक्त, उज्झित (दे १, १३३)

उज्झल :: वि [दे] प्रबल, बलिष्ठ (षड्)।

उज्झलिअ :: वि [दे] १ प्रक्षिप्त, फेंका हुआ। २ विक्षिप्त (षड्)

उज्झस :: पुं [दे] उद्यम, उद्योग, प्रयत्‍न (दे १, ९५)।

उज्झसिअ :: वि [दे] उत्कृष्ट, उत्तम (षड्)। °उज्झा देखो अउज्झा (उप पृ ३७४)।

उज्झाय :: पुं [उपाव्याय] विद्या-दाता गुरु, शिक्षक, पाठक (महा; सुर १, १८०)।

उज्झासि :: वि [उद्भासिन्] चमकनेवाला, देदीप्यमान, 'कंकणुज्झासिहत्था' (रंभा)।

उज्झिंखिअ :: न [दे] १ वचनीय, लोकापवाद। २ वि. निन्दनीय। ३ कथनीय (दे ३, ५५)

उज्झिय :: वि [उज्झित] १ परित्यक्त, विमुक्त (कुमा) २ भिन्न (आव ४) ३ न. परित्याग (अणु)। °य पुं [°क] एक सार्थंवाह का पुत्र (विपा १, २)

उज्झिय :: वि [दे] १ शुष्क, सूखा हुआ। २ निम्‍नीकृत, नीचा किया हुआ (षड्)

उज्झिया :: स्त्री [उज्झिना] एक सार्थंवाह- पत्‍नी (णाया १, ७)।

उट्ट :: पुंस्त्री [उष्ट्र] ऊँट, करभ (विपा १, ६; हे २, ३४; उवा)। स्त्री. उट्टी (राज)।

उट्टार :: पुं [अवतार] घाट, तीर्थ, जलाशय का तट; 'अह ते तुरउट्टारे बहुभडमयरे सुसत्थकमलवणे। लीलायंति जहिच्छं समरतलाए कुमारगया' (पउम ६८, ३०)।

उट्टिगा :: देखो उट्टिया (धर्मसं ७८)।

उट्टिय, उट्टियय :: वि [औष्ट्रिक] ऊँट सम्बन्धी। ऊँट के रोओं का बना हुआ (ठा ५, ३; ओघ ७०९)। ३ पुं. भृत्य, नौकर (कुमा)। ४ घड़ा, घट (उवा)।

उट्टिया :: स्त्री [उष्ट्रिका] घड़ा, घट, कुम्भ (विपा १, ६; उवा)। °समण पुं [°श्रमण] आजी- विक-मत का साधु, जो बड़े घड़े में बैठ कर तपस्या करता है (औप)।

उट्ठ :: अक [उत् + स्था] उठना, खड़ा होना। उट्ठइ (हे ४, १७; महा)। उट्ठेइ (पि ३०९)। वकृ. उट्ठंत (गा ३८२; सुपा २९९), उट्ठिंत (सुर ८, ४३; १३, ५३)। संकृ. उट्ठाय, उट्ठित्तु, उट्ठित्ता, उट्ठेत्ता (राज; आचा; पि ५८२)। हेकृ. उट्ठिउं (उप पृ २५८)।

उट्ठ :: वि [उत्थ] उत्थित, उठा हुआ (ओघ ७० उवा)। °बइस अप [°पवेश] उठ-बैठ (हे ४, ४२३)।

उट्ठ :: पुं [ओष्ठ] ओठ, अधर (सम १२५; सुपा ५२३)।

उट्ठ :: पुं [उष्ट्र] जलचर जंतु-विशेष (सुअ १, ७, १५)।

उट्ठण :: देखो उट्ठाण (धर्मंवि १३०)।

उट्ठंभ :: सक [अव + स्तभ्] १ आलम्बन देना, सहारा देना। २ आक्रमण करना कर्म. उट्ठब्भइ (हे ४, ३६५)। संकृ. 'उट्ठं- भिया एगया कायं' (आचा १, ९, ३, ११)

उट्ठवण :: न [उत्थापन] उत्थापन, ऊँचा करना, उठाना (ओघ २१४; दे १, ८२)।

उट्ठविय :: वि [उत्थापित] उत्पाटित, उठाया हुआ, खड़ा किया हुआ; 'सा सणियं उट्ठविया भणइ किमागणकारणं सुणहे' (सुर ६, १६०)।

उट्ठा :: देखो उट्ठ = उत् + स्था (प्रामा)।

उट्ठा :: स्त्री [उत्था] उत्थान, उठान; 'उट्ठाए उट्‍ठेइ' (णाया १, १; औप)।

उट्ठाइ :: वि [उत्थाइन्] उठनेवाला (आचा)।

उट्ठाइअ :: वि [उत्थित] १ जो तैयार हुआ हो, प्रगुण (पउम १२, ९६) २ उत्पन्न, उत्थित (स ३७९)

उट्ठाइअ :: देखो उट्ठाविअ (उवा)।

उट्ठाण :: न [उत्थान] १ उठान, ऊँचा होना (उव); 'मअसलिलेहिं घडासु अ वोच्छिज्जइ पसरिअं महिरउट्ठाणं' (से १३, ३७) २ उद्भव, उत्पत्ति (णाया १, १४) ३ आरम्भ, प्रारम्भ (भग १५) ४ उद्वसन, बाहर निक- लना (णंदि)। °सुय न [°श्रुत] शास्त्र-विशेष (णंदि)

उट्ठाय :: देखो उट्ठ = उत् + स्था।

उट्ठाव :: सक [उत् + स्थापय्] उठाना। उट्ठावेइ (महा)।

उठ्ठावण :: देखो उट्ठवण (कस)।

उट्ठावण :: देखो उवट्ठावण; 'पव्बावणविहिमुट्ठा- वणं च अज्जाविहि निरवसेसं' (उव)।

उट्ठावणा :: देखो उवट्ठावणा (भत्त २५)।

उट्ठाविअ :: वि [उत्थापित] १ उठाया हुआ, खड़ा किया हुआ (नाट) २ उत्पातित; 'तुमए उट्ठाविओ कली एस' (उप ६४८ टी)

उट्ठिउं, उट्ठित, उट्ठित्ता, उट्ठित्तु :: देखो उट्ठ = उत् + स्था।

उट्ठिय :: वि [उत्थित] उत्थित, खड़ा हुआ (सुर ३, ९९)। २ उत्पन्न, उद्‍भूत (पणह १, ३); 'विहीसिया कावि उट्ठिया एसा' (सुपा ५४१) ३ उदित, उदय-प्ताप्‍त; 'उट्ठियम्मि सूरे' (अणु)। उद्यत, उद्युक्त (आचा)। ५ उद्वसित, बाहर निकला हुआ (ओघ ६५ भा)

उट्ठिर :: वि [उत्थातृ] उठनेवाला (सण)।

उट्ठिसिय :: वि [उद्‍घुषित] पुलकित, रोमा- ञ्चित (ओघ; कुमा)।

उट्ठीअ :: (अप) देखो उट्ठिय (पिंग)।

उट्‍ठुभ, उट्‍ठुह :: अक [अव + ष्ठीव्] थूकना। उट्‍ठुभंति, उट्‍ठुभह (पि १२०), उट्‍ठुहह (भग १५)। संकृ. उट्‍ठुहइत्ता (भग १५)।

उठिअ :: (अप) देखो उठ्ठिय (पिंग — पत्र ५८१)।

°उड :: पुंन [कुट] घट, कुम्भ; 'पडिवक्खमणणुपुंजे लावणणउडे अणंगगअकुंभे। पुरिससअहिअअधरिए कीस थणंती थणे बहसि' (गा २६०)।

°उड :: पुं [कूट] समूह, राशि; 'सप्पी जहा अंडउडं भत्तारं जो विहिंसइ' (सम ५१)।

°उड :: देखो पुड (उवा; महा; गउड; गा ६६०; सुर २, १३; प्रासू ३९)।

उडंक :: पुं [उटङ्क] एक ऋषि, तापस-विशेष (निचू १२)।

उडंब :: वि [दे] लिप्त, लिपा हुआ (षड्)।

उडज, उडय, उडव :: पुं [उटज] ऋषि-आश्रम, पर्णं- शाला, पत्तों से बना हुआ घर (अभि १११; प्रति ८४; अभि ३७; स १०); 'उडवो तावसगेहं' (पाअ); 'जमहं दिया य राओ य, हुणामि महुसप्पिसं। तेण मे उडओ दड्‍ढो, जायं सरणओ भयं' (निचू १)।

उडाहिअ :: वि [दे] उत्क्षिप्त, फेंका हुआ (षड्)।

उडिअ :: वि [दे] अन्विष्ट, खोजा हुआ (षड्)।

उडिउ :: पुं [दे] उड़िद, उरद, माष, धान्य-विशेष (दे १, ९८)।

उडु :: पुं [उडु] एक देव-विमान (देवेन्द्र १३१)। °प्पभ पुंन [°प्रभ] उडु नामक विमान के पूर्व तरफ स्थित एक देव-विमान (देवेन्द्र १३८)। °मज्झ पुंन [°मध्य] उड्डविमान के दक्षिण तरफ का एक देव-विमान (देवेन्द्र १३८)। °यावत्त पुंन [°कावर्त] उडुविमान के पश्चिम तरफ का एक देव-विमान (देवेन्द्र १३८)। °सिट्ठ पुंन [°सृष्ट] उडुविमान के उत्तर तरफ का एक देव-विमान (देवेन्द्र १३८)।

उडु :: न [उडु] १ नक्षत्र (पाअ)। २ विमान-विशेष (सम ६९)। °प, °व पुं [°प] १ चन्द्र, चन्द्रमा (औप; सुर १६, २४९) २ जहाज, नौका (दे १, १२२) ३ एक की संख्या (सुर १६, २४९)। °वइ पुं [°पति] चन्द्र (सम ३०; पणह १, ४)। °वर पुं [°वर] सूर्य (राज)

उडु :: देखो उउ (ठा २, ४; ओघ १२३ भा)।

उडंबारज्जिया :: स्त्री [उदुम्बरीया] जैन मुनियों की एक शाखा (कप्प)।

उडुहिअ :: न [दे] १ विवाहिता स्त्री का कोप। २ वि. उच्छिष्ट, जूठा (दे १, १३७)

उडुखल, उडूहल :: पुंन [उडुखल] उलुखल, उदूखल (पिंड ३६१; प्राकृ ७)।

उड्ड :: पुं [उड्र] १ देश-विशेष, उत्कल, ओड़, ओड्र नामों से प्रसिद्ध देश, जिसको आजकल उड़ीसा कहते हैं (स २८६) २ इस देश की निवासी, उड़िया; 'सगजवण-बब्बर-गाय मुरुं- डोड्ड भडग — ' (पणह १, १)

उड्ड :: वि [दे] कुँआ आदि को खोदनेवाला, खनक (दे १, ८५)।

उड्डण :: पुं [दे] १ बैल, साँड़। २ वि. दीर्घ, लम्बा (दे १, १२३)

उड्डंस :: देखो उद्दंस (उत्त ३६, १३८)।

उड्डस :: पुं [दे] खटमल, खटकीरा, उड़िस (दे १, ६९)।

उड्डहण :: पुं [दे] चोर, डाकू (दे १, ९१)।

उड्डाअ :: पुं [दे] उद्‍गम, उदय, उद्भव (दे १, ९१)।

उड्डाण :: न [उड्डयन] उड़ान, उड़ना; 'मोरोवि अहव घिप्पइ, हंत तइज्जम्मि उड्डाणे' (सुर ८, ५२)।

उड्डाण :: पुं [दे] १ प्रतिशब्द, प्रतिध्वनि। २ कुरर, पक्षि-विशेष। ३ विष्ठा, पुरीष। ४ मनोरथ, अभिलाष। ५ वि. गर्विष्ठ, अभिमानी (दे १, १२८)

उड्डामर :: वि [उड्डामर] उद्भट, प्रबल (कुप्र १४५)।

उड्डामर :: वि [उड्डामर] १ भय, भीति। २ आडम्बरवाला, टीपटापवाला (पाअ)

उड्डामरिअ :: वि [उड्डामरित] भय-भीत किया हुआ (कप्पू)।

उड्डाव :: सक [उद् + ढायय्] उड़ाना। उड्डावइ (भवि)। वकृ. उड्डावंत (हे ४, ३५२)।

उड्डाव :: वि [उड्डायक] उड़ानेवाला (पिंड ४७१)।

उड्डावण :: न [उड्डायन] १ उड़ाना, 'मत्तजल- वायसुड्डावणेण जलकलुसणं किमिमं' (कुमा) २ आकर्षण; 'हियउड्डावणे' (णाया १, १४)

उड्डाविअ :: वि [उड्डायित] उड़ाया हुआ (गा ११०; पिंग)।

उड्डाविर :: वि [उड्डायितृ] उड़ानेवाला (वज्जा ९४)।

उड्डास :: पुं [दे] संताप, परिताप (दे १, ९९)।

उड्डाह :: पुं [उद्दाह] १ भयङ्कर दाह, जला देना (उफ २०८) २ मालिन्य, निन्दा, उप- घात (ओघ २२१)

उड्डिअ :: वि [औड्र] उड़ीसा देश का निवासी (नाट)।

उड्डिअ :: वि [दे] उत्क्षिप्त, फेंका हुआ (षड्)।

उड्डिअंत :: देखो उड्डी = उत् + डी।

उड्डिआहरण :: न [दे] छुरी पर रक्खे हुए फूल को पाँव की दो उँगलियों से लेते हुए चल जाना; 'छुरिअग्गमुक्कपुप्फं घेत्तुअ पायंगुलीहि उप्पयणं। तं उड्डिआहरणं' 'कुंसुमं यत्रोड्डीय, क्षुरिकाग्राल्लाघवेन संगृह्य। पादाङ्गुलिभिर्गच्छति, तद्विज्ञातव्यमुड्डिआहरणं' (दे १, १२१)।

उड्डिय :: वि [उड्डीत] उड़ा हुआ; 'तरुउड्डिय- पक्खिणुव्व पगे' (धर्मंवि १३९)।

उड्डिहिअ :: वि [दे] ऊपर फेंका हुआ (पाअ)।

उड्डी :: अक [उद् + डी] उड़ना। उड्डेइ, उड्डिंति (पि ४७४)। वकृ. उड्डिअत, उड्डेंत (दे ६, ६४; उप १०३१ टी)। संकृ. उड्डेऊण, उड्डेवि (पि ५८६; भवि)।

उड्डी :: स्त्री [औड्री] लिपि-विशेष, उत्कल देश की लिपि (विसे ४६४ टी)।

उड्डीण :: वि [उड्डीन] उड़ा हुआ (णाया १, १; पाअ; सुपा ४९४)।

उड्‍डुअ :: पुं [दे] डकार, उद्‍गार; 'जंभाइएणं उड्‍ड्डएणं वायनिसग्गेणं' (पडि)।

उड्‍डुइय, उड्डोअ :: पुं [दे] देखो उड्‍डुअ (चेइय ४३४; ४३७)।

उड्‍डवाडिय :: पुं [उड्‍डुवाटिक] भगवान् महावीर के एक गण का नाम (कप्प)। देखो उद्दवाइअ।

उड्‍डुहिअ :: देखो उडुहिअ (दे १, १३७)।

उड्डोय :: देखो उड् डुअ (राज)।

उड्‍ढ :: न [ऊर्ध्व] १ ऊपर, ऊँचा (अणु) २ वमन, उलटी; 'उड्‍ढणिरोहो कुट्ठं' (बृह ३) ३ वि. उत्तम, मुख्य; 'अहत्ताए नो उड्‍ढत्ताए परिणमंति' (भग ६, ३; आवम) ४ खड़ा, दण्डायमान; 'खाणुव्व उड्‍ढदेहो काउस्सग्गं तु ठाइज्जा' (आव ६) ५ ऊपर का, उपरितन (उवा)। °कंडूयग पुं [°कण्डूयक] तापसों का एक सम्प्रदाय जो नाभि के ऊपर भाग में ही खुजलाते हैं (भग ११, ९)। °काय पुं [°काय] शरीर का उपरितन भाग (राज)। °काय पुं [°काक] काक, वायस; 'ते उड्‍ढ- काएहिं पखजमाण अवरेहि खज्जंति सणप्फ- एहिं' (सुअ १, ५, २, ७)। °गम वि [°गम] ऊपर जानेवाला (सुपा ४५९)। °गामि वि [°गामिन्] ऊपर जानेवाला (सम १५३)। °चर वि [°चर] ऊपर चलनेवाला, आकाश में उड़नेवाला (गृध्रादि) (आचा)। °दिसा स्त्री [°दिश्] ऊर्ध्व दिशा (उवा; आव ६)। °रेणु पुं [°रेणु] परिमाण-विशेष, आठ श्लक्ष्णश्लक्षणिका (इक)। °लोग, °लोय पुं [°लोक] स्वर्गं, देव-लोक (ठा ५, ३; भग)। °वाय पुं [°वात] ऊँचा गया हुआ वायु, वायु-विशेष (जीव १)

उड्‍ढ :: /?/ऊपर देखो; 'उड्‍ढजाण अहोसिरि झाण- कोट्ठोवगए' (भग १, १; महा; श्रा ३३)।

उड्‍ढक :: न [दे] मार्गं का उन्नत भू-भाग (सुअ १, २)।

उड्‍ढल, उड़्‍ढल्ल :: पुं [दे] उल्लास, बिकास (दे १, ९१)।

उड्‍ढविय :: वि [ऊर्ध्विन्] ऊँचा किया हुआ (बज्जा १४६)।

उड्‍ढा :: स्त्री [ऊध्वा] ऊर्ध्वं-दिशा (ठा ६)।

उड्‍ढि :: [दे] देखो उद्धि (सुज्ज १०, ८)।

उड्‍ढि :: देखो वुडि्ढ (षड्)।

उडि्ढ :: देखो इद्धि (षड्)।

उडि्ढय :: देखो उद्धरिअ = उद्‍धृत (रंभा)।

उडि्ढया :: स्त्री [दे] १ पात्र-विशेष (स १७३) २ कम्बल वगैरह ओढ़ने का वस्त्र (स ५८६)

उणं :: देखो पुण = पुनर् (पिड ८२)।

उण :: न [ऋण] ऋण, करजा (षड्)।

उण, उणा, उणाइ :: देखो पुण (प्रामा; प्रासू ६१; कुमा; हे १, ६५)।

उणपन्न :: स्त्रीन [एकोनपञ्चाशत्] उनचास, ४९ (देवेन्द्र ९६)।

उणाइ :: पुं [उणादि] व्याकरण का एक प्रकरण (पणह २, २)।

उणाइ :: पुं [दे] प्रिय, पति, नायक; 'उणाइ- साहढोल्लाः प्रियार्थे' (संक्षि ४७)।

उणो :: देखो पुण (गउड; पि ३४२; हे १, ६५)।

उण्ण :: न [ऊर्ण] भेड़ या बकरी के रोम, रोआँ। देखो उन्न। °कप्पास पुं [°कार्पास] ऊन, भेड़ के रोम (निचू १)। °णाभ पुं [°नाभ] मकड़ी, कीट-विशेष (राज)।

°उण्ण :: देखो पुण्ण = पूर्ण (से ८, ६१; ६५)।

उण्णअ :: सक [उद् + नद्] पुकारना, आह्वान करना। उण्णअइ (प्रकृ ७४)।

उण्णइ :: स्त्री [उन्नत] उन्नति, अभ्युदय (गा ४६७)।

उण्णइज्जमाण :: देखो उण्णो।

उण्णम :: अक [उद् + नम्] ऊँचा होना, उन्नत होना। वकृ. उण्णमंत (पि १६९)। संकृ. उण्णमिय (आचा २, १, ५)।

उण्णम :: वि [दे] समुन्नत, ऊँचा (दे १, ८८)।

उण्णय :: वि [उन्नत] १ उन्नत, ऊँचा (अभि २०९) २ गुणवान्, गुणी (णाया १, १) ३ अभिमानी (सुअ १, १६) ४ न. अभि- मान, गर्वं (भग १२, ५)

उण्णय :: पुं [उन्नय] नीति का अभाव (भग १२, ५)।

उण्णा :: स्त्री [ऊर्णा] ऊन, भेड़ के रोम (आवम)। °पिपीलिया स्त्री [°पिपीलिका] चींटी, जन्तु-विशेष (दे ६, ४८)।

उण्णाअक :: वि [उन्नायक] १ उन्नति-कारक। २ पुन. छन्दःशास्त्र प्रसिद्ध मध्य-गुरु चतुष्कल की संत्रा (पिंग)

उण्णाग :: पुं [उन्नाक] ग्राम-विशेष (आवम)।

उण्णाम :: पुं [उन्नाम] १ उन्नति, ऊँचाई (से ६, ५९) २ गर्व, अभिमान। १ गर्वं का कारण-भूत कर्म (भग १२, ५)

उण्णाम :: सक [उद् + नमय्] ऊँचा करना (से ४, ५६)।

उण्णामिय :: वि [उन्नमित] ऊँचा किया हुआ (गा १६; २५६; से ६, ७१)।

उण्णाल :: सक [उद् + नमय्] ऊँचा करना। उण्णालइ (प्राकृ ७५)।

उण्णालिय :: वि [दे] १ कृश, दुर्बल। २ उन्‍नमित, ऊँचा किया हुआ (दे १, १३६)

उण्णिअ :: वि [उन्नीत] वितर्कित; विचारित (से १३, ७७)।

उण्णिअ :: वि [और्णिक] ऊन का बना हुआ (ठा ६, ३; ओघ ७०९; ८९ भा)।

उण्णिद्द :: वि [उन्निद्र] १ विकसित, उल्लसित (गउड) २ निद्रा-रहित (माल ८५)

उण्णी :: सक [उद + नी] १ ऊँचा ले जाना। २ कहना। भवि. उण्णेहं (विसे ३५८५)। कवकृ. उण्णइज्जमाण (राज)

उण्णुइअ :: पुं [दे] १ हुँकार। २ आकाश की तरफ मुँह किए हुए कुत्ते की आवाज (दे १, १३२) ३ वि. गर्वित; 'एवं भणिओ संतो उण्णुइओ सो कहेइ सव्वं तु' (वव २, १०)

उण्ह :: पुं [उष्ण] १ आतप, गंरमी (णाया १, १) २. वि. गरम, तप्त (कुमा)

उण्हवण :: न [उष्णन] गरम करना (पिंड २४०)।

उण्हिआ :: स्त्री [दे] कृसर, खिंचड़ी (दे १, ८८)।

उण्हीस :: पुंन [उष्णीष] पगड़ी, मुकुट (हे २, ७५)।

उण्होदयभंड :: पुं [दे] भ्रमर, भमरा, भौंरा (दे १, १२०)।

उण्होला :: स्त्री [दे] कीट-विशेष (आवम)।

उताहो :: अ [उताहो] अथवा, या (वि ८५)।

उत्त :: वि [उक्त] कथित, अभिहित (सुर १०, ७६; स ३७६)।

उत्त :: वि [उप्त] १ बोया हुआ। २ निष्पादित, उत्पादित; 'देवउत्ते अए लोए बंभउत्तेति यावरे' (सुअ १, १, ३)

उत्त :: पुं [दे] वनस्पति-विशेष (राज)।

°उत्त :: वि [गुप्त] रक्षित (सुअ , १, ३, ५)।

उत्त :: देखो पुत्त (गा ८४; सुर ७, १५८)।

उत्तइय, उत्तुइय :: वि [उत्तेजित] (दश° नि° गा° १११. अग°)।

उत्तंघ :: देखो उत्थंघ = रुध्। उत्तवइ (हे ४, १३३)।

उत्तंघ :: देखो उत्तंभ। उत्तंघइ (प्राकृ ७०)।

उत्तंत :: देखो वुत्तंत (षड् ; विक्र ३९)।

उत्तंपिअ :: वि [दे] खिन्‍न, उद्विग्‍न (दे १, १०२)।

उत्तंभ :: सक [उत् + स्तम्भ्] १ रोकना। २ अवलम्बन देना, सहारा देना। कर्मं. उत्तंभिज्जइ, उत्तंभिज्जेंति (पि ३०८)

उत्तंभण :: न [उत्तम्भन] १ अवरोध। २ अवलम्बन (उप पृ २२१)

उत्तंभय :: वि [उत्तम्भक] १ रोकनेवाला। २ अवलम्बन देनेवाला, सहायक (उप पृ २२०)

उत्तंस :: पुं [अवतंस] शिरो-भूषण, अवतंस (गउड; दे २, ५७)।

उत्तंस :: पुं [उत्तंस] कर्णंपूरक, कनफूल, कर्ण- भूषण (पाअ)।

उत्तइय :: वि [दे] उत्तेजित, अधिक दीपित (दसनि ३, ३५)।

उत्तण :: वि [दे] गर्वित (सट्ठि ५६ टी)। देखो उत्तुण।

उत्तण :: वि [उत्तृण] तृणवाली जमीन, 'खित्तखिलभूमिवल्लराइं उत्तणघडसंकडाइं डज्झंतु' (पणह १, १)।

उत्तणुअ :: वि [उत्तनुक] अभिमानी, गर्विष्ठ (पाअ)।

उत्तत्त :: वि [उत्तप्त] अति-तप्त, बहुत गरम (सुपा ३७)।

उत्तत्त :: वि [दे] अव्यासित, आरूढञ (षड्)।

उत्तत्थ :: वि [उत्त्रस्त] भय-भीत, त्रास-प्राप्त (पणह १, ३; पाअ)।

उत्तद्व :: देखो उत्तरद्ध (पिंग)।

उत्तप्प :: वि [दे] १ गर्वित, अभिमानी (दे १, १३१; पाअ)। अधिक गुणवाला (दे १३१)

उत्तप्प :: वि [उत्तप्त] देदीप्यमान (राज)।

उत्तम :: पुं [उत्तम] एक दिन का उपवास (संबोध ५८)।

उत्तम :: वि [उत्तम] १ श्रेष्ठ, प्रशस्त, सुन्दर (कप्प; प्रासू ६) २ प्रधान, मुख्य (पंचा ४) ३ परम, उत्कृष्ट; 'उत्तमकट्ठपत्ते' (भग ७, ६) ४ अन्त्य, अन्तिम (राज) ५ पुं. मेरु-पर्वत (इक) ६ संयम, त्याग (दसा ५) ७ राक्षस वंश का एक राजा, स्वनाम-ख्यात एख लंकेश (पउम ५, २६४) °ट्ठ पुं [°र्थ] १ श्रेष्ठ वस्तु। २ मोक्ष (उत्त २) ३ मोक्ष- मार्ग; 'जीवा ठिया परमट्ठम्मि' (पउम २, ८१) ४ अनशन, मरण (ओघ ७)। °ण्ण वि [°र्ण] लेनदार (नाट)

उत्तम :: वि [उत्तमस्] अज्ञान-रहित, 'तिविहतमा उम्मुक्का, तम्हा ते उत्तमा हुंति' (आवनि ५५; कप्प)।

उत्तमंग :: न [उत्तमाङ्ग] मस्तक, सिर (सम ५०; कुमा)।

उत्तमा :: स्त्री [उत्तमा] १ 'णायाधम्मकहा' का एक अध्ययन (णाया २, १) २ इन्द्राणी (णाया २, १; ठा ४, १)

उत्तमा :: स्त्री [उत्तमा] पक्ष की प्रथम रात्रि (सुज्ज १०, १४)।

उत्तम्म :: अक [उत् + तम्] खिन्‍न होना, उद्विग्‍न होना। उत्तम्मइ (स २०३)। वकृ. उत्तम्मंत; उत्तम्ममाण (नाट)। संकृ. उत्तम्मिअ (नाट)।

उत्तम्मिअ :: वि [उत्तान्त] खिन्‍न, दिलगीर (दे १, १०२; पाअ)।

उत्तर :: अक [उत् + तृ] १ बाहर निकलना। २ सक. पार करना। उत्तरिस्सामो (स १०१)। वकृ. उत्तरंत; 'पेच्छंति अणिमिसच्छा पहिआ हलिअस्स पिट्ठपंडुरिअं। धुअं दुद्धसमुद्‍दुत्तरंतलच्छिं विअ सअणहा' (गा ३८८); 'उत्तरंताण य मरुं, खंघवारो तिसाए मरिउ- मारद्धो' (महा)। संकृ. उत्तरित्तु (वि ५७७)। हेकृ. उत्तरित्तए (पि ५७८)

उत्तर :: अक [अव + त] उतरना, नीचे आना। वकृ. उत्तरमाण, 'उत्तरमाणस्स तो विमा- णाओ' (सुपा ३४०)। उत्तर वि [उत्तर] १ श्रेष्ठ, प्रशस्त (पउम ११८, ३०) २ प्रधान, मुख्य (सुअ १, ३) ३ उत्तर-दिशा में रहा हुआ (जं १) ४ उपरि-वर्त्ती, उपरितन (उत्त २) ५ अधिक, अतिरिक्त; 'अट् ठुत्तर — ' (औप; सुअ १, २) ६ अवान्तर, भेद, शाखा; 'उत्तरपगइ' (कम्म १) ७ ऊन का बना हुआ वस्त्र, कम्बल वगैरह (कप्प) ८ न. जवाब, प्रत्युत्तर (वव १) ९ वृद्धि (भग १३, ४) १० पुं. ऐरवत क्षेत्र के बाईसवें भावी जिनदेव का नाम (सम १५४) ११ वर्षा कल्प (कप्प) १२ एक जैन मुनि, आर्य-महागिरि के प्रथम शिष्य (कप्प)। °कंचुय पुं [°कञ्चुक] बख्तर-विशेष (विपा १, २)। °करण न [°करण] उपस्कार, संस्कार, विशेष-गुणाधान; 'खंडियविराहियाणं, मूलगुणाणं सउत्तरगुणाणं। उत्तरकरणं कीरइ, जह सगड-रहंग-गेहाणं' (आव ५)

°कुरा :: स्त्री [°कुरु] स्वनाम-ख्यात क्षेत्र-विशेष, 'उत्तरकुणए णं भंते! कुराए केरिसए आगर- भावपाडोयारे पणणत्ते' (जीव ३)। °कुरु पुं [°कुरु] १ वर्षं-विशेष; 'उत्तरकुरुमाणु- सच्छरावो' (पि ३२८; सम ७०; पणङ १, ४; पउम ३५, ५०) २ देव-विशेष (जं २) °कुरुकूड न [°कुरुकूट] १ माल्यवंत पर्वंत का एक शिखर (ठा ९) २ देव-विशेष (जं ४)। °कोडि स्त्री [°कोटि] संगीतशास्त्र- प्रसिद्ध गान्धार-ग्राम की एक मूर्च्छंना (ठा ७)। °गंधारा स्त्री [°गान्धारा] देखो पूर्वोक्त अर्थं (ठा ७)। °गुण पुं [°गुण] शाखा गुण, अवान्तर गुण (भग ७, ३)। °चावाला स्त्री [°चावाला] नगरी-विशेष (आवम)। °चूल [°चूड] गुरु-वन्दन का एक दोष, गुरु को वन्दन कर बड़े आवाज से 'मत्थ- एण वंदामि' कहना (धर्म २)। °चूलिया स्त्री [°चूलिका] देखो अनन्तर-उक्त अर्थ (बृह ३; गुभा २५)। °ड्‍ढ न [°र्ध] पिछला आधा भाग उत्तरार्ध (जं ४)। °दिसा स्त्री [°दिश्] उत्त दिशा (सुर २, २२८)। °द्ध न [°र्ध] पिछला आधा भाग (पिंग)। °पगइ, °पयडि स्त्री [°प्रकृति] कर्मों के अवान्तर भेद (उत्त ३३; सम ६६)। °पच्चत्थिमिल्ल पुं [°पा- श्चात्य] वायव्य कोण (पि)। °पट्ट पुं [°पट्ट] बिछौना के ऊपर का वस्त्र (ओघ १५६ भा)। °पारणग न [°पारणक] उपवासादि व्रत की समाप्ति, पारण (काल)। °पुरच्छिम, °पुरत्थिम पुं [°पौरस्त्य] ईशान कोण, ऊत्तर और पूर्व के बीच की दिशा (णाया १, १; भग; पि ६०२)। °पोट्ठवया स्त्री [°प्रौष्ठपदा] उत्तरा भाद्रपदा नक्षत्र (सुज्ज ४)। °फग्गुणी स्त्री [°फाल्गुनी] उत्तर-फाल्गुनी नक्षत्र (कप्पू; पि ६२)। °बलिस्सह पुं [°बलिस्सह] १ एक प्रसिद्ध जैन साधु (कप्प) २ उत्तर बलिस्सह नामक स्थविर से निकाला हुआ एक गण, भगवान् महावीर का द्वितीय गण — साधु-संप्रदाय (कप्प; ठा ९)। °भद्दवया स्त्री [भाद्रपदा] नक्षत्र-विशेष (ठा ९)। °मंदा स्त्री [°मन्दा] मध्यम ग्राम की एक मूर्च्छना (ठा ७)। °महुरा स्त्री [°मथुरा] नगरी विशेष (दंस)। °वाय पुं [°वाद] उतरवाद (आचा)। °विक्किय, °वेउव्विय वि [°वैक्रिय] स्वभाविक-भिन्‍न वैक्रिय, बनावटी वैक्रिय (कम्म १; कप्प)। °साला स्त्री [°शाला] १ क्रीडा-गृह। २ पीछे से बनाया हुआ घर। ३ वाहन-गृह, हाथी-घोड़ा आदि बाँधने का स्थान, तबेला (निचू ८)। °साहग, °साहय वि [°साधक] विद्या, मन्त्र वगैरह का सावन करनेवाला का सहायक (सुपा १५१; स ३६६)। देखो उत्तरा°।

उत्तरओ :: अ [उत्तरतः] उत्तर दिशा की तरफ (ठा ८; भग)।

उत्तरंग :: न [उत्तरङ्ग] १ दरवाजे का ऊपर का काष्ठ (कुमा) २ वि. चपल, चंचल (मुद्रा २६८)

उत्तरकुरु :: पुं. ब. [उत्तरकुरु] १ देव-भूमि, स्वर्गं (स्वप्‍न ६०) २ स्त्री. भगवान् नमिनाथ की दीक्षाशिविका (विचार १२९)

उत्तरण :: न [उत्तरण] १ उतरना, पार करना (ठा ५, स ३९२) २ अवतरण, नीचे आना (ठा १०)

उत्तरणवरंडिया :: स्त्री [दे] उडुप, जहाज, डोंगी (दे १, १२२)।

उत्तरविउव्विय :: वि [उत्तरवैक्रियिक] उत्तर- वैक्रियनामक लब्धि से सम्पन्‍न (पंच २, २०)।

उत्तरसंग :: देखो उत्तरा-संग (पव ३८)।

उत्तरा :: स्त्री [उत्तरा] १ उत्तर दिशा (ठा १०) २ मध्यम ग्राम की एक मूर्च्छना (ठा ७) ३ एक दिशा-कुमारी देखी (ठा ८)| ४ दिगम्बर-मत-प्रवतंक आचार्यं शिवभूति की स्वनाम ख्यात भगिनी (विसे) ५ अहिच्छत्रा नगरी की एक वापी का नाम (ती) °णंदा स्त्री [°नन्दा] एक दिक्कुमारी देवी (राज)। °पह पुं [°पथ] उत्तर-दिशा-स्थित देश, उत्त- रीय देश (आचू २)। °फग्गुणी देखो उत्तर- फग्गुणी (सम ७; इक)। °भद्दवया देखो उत्तर-भद्दवया (सम ७; इक)। °यण न [°यण] उत्तरायण, सूर्य का उत्तर दिशा में गमन, माघ से लेकर छः महीना (सम ५३)। °यया स्त्री [°यता] गान्धार-ग्राम की एक मूर्च्छना (ठा ७)। °वह देखो °पह (महा; उव १४२ टी)। °संग पुं [°संग] उत्तरीय वस्त्र का शरीर में न्यास-विशेष, उत्तरासण (कप्प; भग; औप)। °समा स्त्री [°समा] मध्मम ग्राम की एक-मूर्च्छना (ठा ७)। °साढा स्त्री [°षाढा] नक्षत्र-विशेष (सम ९; कस)। °हुत्त न [°भिमुख] १ उत्तर की तरफ। २ वि. उत्तर दिशा की तरफ मुँह किया हुआ (ओघ ६५०; आव ४)

उत्तरिज्ज, उत्तरिय :: न [उत्तरीय] चादर, दुरट्टा (उवा; प्राप्त; हे १, २४८); 'जरजिन्नं उत्तरियं' (सुपा ५४६),

उत्तरिय :: वि [उत्तीर्ण] १ उतरा हुआ, नीचे आया हुआ (सुर ६, १५९) २ पार पहुँचा हुआ (महा)

उत्तरिय :: वि [औत्तरिक, औत्तराह] देखो उत्तर (ठा १०; विसे १२४५)।

उत्तरिल्ल :: वि [औत्तराह] उत्तर दिशा या काल में उत्पन्न या स्थित, उत्तर-सम्बन्धी, उत्तरीय; 'अह उत्तरिल्लरुयगे' (सुपा ४२; सम १००; भग)।

उत्तरीअ :: देखो उत्तरिय = उत्तरीय (कुमा ; हे १, ३४८; महा)।

उत्तरीकरण :: न [उत्तरीकरण] उत्कृष्ट बनाना, विशेष शुद्ध करना; 'तस्स उत्तरीकरणेणं' (पडि)।

उत्तरोट्ठ :: पुं [उत्तरौष्ठ] १ ऊपर का ओठ (पि ३६७) २ श्मश्रु, मूँछ (राज)

उत्तलहअ :: पुं [दे] विटप, अंकुर (दे १, ११९)।

उत्तव :: वि [उक्तवत्] जिसने कहा हो वह (पि ५६९)।

उत्तस :: अक [उत् + त्रस्] १ त्रास पाना, पीड़ित होना। २ डरना, भयभीत होना। वकृ. उत्तसंत (सुर १, २४६; १०, २२०)

उत्तसिय :: वि [उत्त्रस्त] १ भयभीत। २ पीड़ित (सुर १, २४६)

उत्ताड :: सक [उत् + ताडय्] १ ताड़ना, ताड़न करना। २ वाद्य बजाना। कवकृ. 'उत्ताडिज्जंताणं दद्दरियाणं कुडवाणं' (राय)

उत्ताडण :: न [उत्ताडन] १ ताड़ना करना (कुमा) २ वाद्य बजाना (राज)

उत्ताण :: वि [उत्तान] १ उन्मुख, उँर्ध्व-मुख (पंचा १८) २ चित्त (विपा १, ६; ठा ४, ४) ३ विस्फारित; 'उत्ताणणयणपेच्छ- णिज्जा पासादीया दरिसणिज्जा' (औप) ४ अनिपुण, अकुशल; 'उत्ताणमई न साहए धम्मं' (धम्म ८)। °साइय वि [°शायिन्] चित्त सोनेवाला (कस)

उत्ताणअ, उत्ताणग :: ऊपर देखो (भग; गा ११०; कस)।

उत्ताणपत्तय :: वि [दे] एरण्ड-सम्बन्धी (पत्ती वगैरह); (दे १, १२०)।

उत्ताणिअ :: वि [उत्तानित] १ चित्त किया हुआ (से ९, ८९; गा ४९०) २ चित सोनेवाला (दसा)

उत्तार :: सक [अव + तारय्] नीचे उता- रना। वकृ. उत्तारेमाण (ठा ५)।

उत्तार :: सक [उत् + तारय्] १ पार पहुँ- चाना। २ बाहर निकलना। ३ दूर करना; 'देहो...नईए खित्तो, तओ एए जइ नो उत्ता- रिंता तो हं मरिऊण' (सुअ ३५७; काल)

उत्तार :: पुं [उत्तार] १ उतरना, पार करना; 'अणुसोओ संसारो पडिसोओ तस्स उत्तारो' (दस २); णइउत्ताराइ' (उवर ३२) २ परित्याग (विसे १०४२) ३ उतारनेवाला, पार करानेवाला; 'भवसयसहस्सदुलहे, जाइजरामरणसागरोत्तारे। जिणवयणम्मि गुणायर ! खणमवि मा काहिसि पमायं' (प्रासू १३४)

उत्तार :: पुं [दे] आवास-स्थान, गुजराती में 'उतारो' (सिरि ७००)।

उत्तारण :: न [उत्तारण] १ उतारना २ दूर करना। ३ बाहर निकालना। ४ पार करना; 'ता अज्जवि मोहमहाअहिविसवेगा फुरंति तुह बाढं। ताणुत्तारणहेउं, तम्हा जत्तं कुणसु भद्द'।। (सुपा ५५७; विसे १०४०)

उत्तारय :: वि [उत्तारक] पार उतारनेवाला (स ६४७)।

उत्तारिअ :: वि [उत्तारित] १ पार पहुँचाया हुआ। २ दूर किया हुआ। ३ बाहर निकाला हुआ; 'तेणवि उत्तारिओ भूमिविवराओ' (महा)

उत्ताल :: वि [उत्ताल] १ महान्, बड़ा; 'उताल- तालयाणं वणिएहिं दिज्जमाणाण' (सुपा ५०२) २ उतावला, शीघ्रकारी; 'कहवि उत्ताले अप्पडिलेहियसेज्जं गिणहंतो' (सुपा ६२०) ३ उद्धत (दे १, १०१) ४ बेताल, ताल विरुद्ध गान का एक दोष; 'गायंतो भा पगाहि उत्तालं' (ठा ७); 'भीयं दुयमुप्पिच्छ- त्थमुत्तालं च कमसो मुणेयव्वं' (जीव ३)

उत्ताल :: न [दे] लगातार रुदन, अन्तर-रहित क्रन्दन की आवाज (दे १, १०१)।

उत्तालण :: देखो उत्ताडण।

उत्तावल :: न [दे] उतावल, शीघ्रता। २ वि. शीघ्रकारी, आकुल; 'हल्लुत्तावलिगिहदासिवि- हियतक्कालकरणिज्जे' (सुर १०, १)

उत्तास :: सक [उत् + त्रासय्] १ भयभीत करना, डराना। २ पीड़ना, हैरान् करना। उत्तासेदि (शौ) (नाट)। कृ. उत्तासणिज्ज (तंदु)

उत्तास :: पुं [उत्त्रास] १ त्रास, भय। २ हैरानी (कप्पू)

उत्तासइत्तु :: वि [उत्त्रासयितृ] १ भय-भीत करनेवाला। २ हैरान करनेवाला (आचा)

उत्तासणअ, उत्तासणग :: वि [उत्त्रासनक] १ भयंकर, उद्वेग-जनक। २ हैरान करनेवाला (पउण २२, ३५; णाया १, ८)

उत्तासिय :: वि [उत्त्रासित] १ हैरान् किया हुआ। २ भयभीत किया हुआ (सुर १, २४७; आव ४)

उत्ताहिय :: वि [दे] उत्क्षिप्‍त, फेंका हुआ (दे १, १०६)।

उत्ति :: स्त्री [उक्ति] वचन, वाणी (श्रा १४; सुपा २३; कप्पू)।

उत्तिंग :: पुं [उत्तिङ्ग] १ गर्दभाकार कीट-विशेष (धर्म २; निचू १३) २ चींटियों का बिल; 'उत्तिंगपणगदगमट्टीमक्कडासंताणासंक- मणे' (पडि) ३ चींटियों की सन्तान (दसा ३) ४ तृण के अग्रभाग पर स्थित जल-बिंदु (आचा) ५ वनस्पति-विशेष, सर्पंच्छत्रा, गुजराती में जीसको 'बिलाडी नी टोप' कहते हैं; 'गहणेसु न चिट्‍ठज्जा, बीएसु हरिएसु वा। उदगम्मि तहा निच्चं, उत्तिंगपणगेसु वा' (दस ८, ११)। ६ न. छिद्र, बिवर, रन्ध्र (निचू १८; आचा २, ३, १, १९)। °लोण न [°लयन] कीट-विशेष का गृह — बिल (कप्प)

उत्तिंगपणग :: पुंन [उत्तिङ्गपनक] कीटिका- नगर, चीटियों का बिल (दास ५, १, ५९)।

उत्तिट्ठ :: अक [उत् + स्था] १ उठाना। २ उदित होना। वकृ. 'उत्तिट्ठन्ते दिवायरे' (उत्त ११, २४)

उत्तिण :: वि [उत्तृण] तृण-शून्य; 'झंझावाउतिणवरविवर- पलोट्‍टंतसलिलधाराहिं। कुडुलिहिओहिदिअहं रक्खइ अज्जा करअलेहिं' (गा १७०)।

उत्तिणिअ :: वि [उत्तृणित] तृण-रहित किया हुआ, 'झंझावाउत्तिणिए घरम्मि' (गा १३५)।

उत्तिण्ण :: वि [उत्तीर्ण] १ बाहर निकला हुआ, 'उत्तिणणा तलागाओ' (महा)। दिट्‍ठं च महा- सरवरं, मज्जिओ जहाविहिं तम्मि, उत्तिणणो य उत्तरपच्छिमतीरे' (महा) २ पार पहुँचा हुआ, पार-प्राप्त (स ३३२); 'उत्तिणणा समुद्दं, पत्ता वीयभयं' (महा) ३ जो कम हुआ हो; 'संचरइ चिरपडिग्गहलायणणुत्ति- सणणवेससोहग्गो' (गउड) ४ रहित, 'सोहइ अदोसभावो गुणोव्व जइ होइ मच्छरुत्तिणणों (गउड) ५ निपटा हुआ; जिसने कार्यं समाप्‍त किया हो वह; 'णहाणुत्तिणणाए' (गा ५५५) ६ उल्लंघित, अतिक्रान्त' (राज)

उत्तिण्ण :: वि [अवतीर्ण] १ नीचे उतरा हुआ, 'रायादक्खो, तेण साहा गहिया, उत्तिणणो, निणणंदो किंकायव्वविमूढो़ गओ चं पं' (महा)

उत्तित्थ :: पुंन [उत्तीर्थ] कुपथ, अपमार्ग (भवि)।

उत्तिम :: देखो उत्तम (षड्; पि १०१; हे १, ४१; निचू १)।

उत्तिमंग :: देखो उत्तमंग (महा; पि १०१)।

उत्तित्र :: देखो उत्तिण्ण (काप्र १४६; कुमा)।

उत्तिरिविडि, उत्तिवडा :: स्त्री [दे] भाजन वगैरह का ऊँचा ढेर, भाजनों की थप्पी; गुजराती में जीसको 'उतरेवड' कहते हैं (दे १, १२२); 'फोडेइ बिरालो लोलयाए सारेवि उत्तिवडं' (उफ ७२८ टी)।

उत्तुंग :: वि [उत्तुङ्ग] ऊँचा, उन्‍नत (महा; कप्पू; गउड)।

उत्तुंड :: वि [उत्तुण्ड] उन्मुख, ऊर्ध्वं-मुख (गउड)।

उत्तुण :: वि [दे] गर्व-युक्त, दृप्‍त अभिमानी (दे १, ९९; गउड)।

उत्तुप्पिय :: वि [दे] स्‍निग्ध, चिकना (विपा १, २)।

उत्तुय :: सक [उत् + तुद] पीड़ा करना, हैरान करना। वकृ. उत्तुयंत (विपा १, ७)।

उत्तुरिद्धि :: स्त्री [दे] गर्व, अभिमान। २ वि. गर्वित, अभिमानी (दे १, ९९)।

उत्तुर्व :: वि [दे] दृष्ट, देखा हुआ (षड्)।

उत्तुहिअ :: वि [दे] उत्खाटित, छिन्‍न, नष्ट (दे १, १०५; १११)।

उत्तूह :: पुं [दे] किनारा-रहित इनारा, तट- शून्य कूप (दे १, ९४)।

उत्तेअ :: वि [उत्तेजस्] १ तेजस्वी, प्रखर। २ पुं. मात्रावृत्त का एक भेद (पिंग; नाट)

उत्तेअण :: न [उत्तेजन] उत्तेजन (मुद्रा १९८)।

उत्तेइअ, उत्तेजिअ :: वि [उत्तेजित] उद्दीपित, प्रोत्सा- हित, प्रेरित (दस ३; पाअ)।

उत्तेड, उत्तेडय :: पुं [दे] बिन्दु (पिण्ड १९); 'सितो य एसो घडउत्तडएहि' (स २६४)।

उत्थ :: न [उक्थ] १ स्तोत्र-विशेष। २ योग- विशेष (विसे)

उत्थ :: वि [उत्थ] उत्पन्‍न, उत्थित (सुपा १९६; गउड)।

उत्थ :: (शौ) देखो उट्ठ = उत्त् + स्था। उत्थेदि (प्राकृ ९४)।

उत्थइय :: वि [अवस्तृत] १ व्याप्‍त (से ४, ३८) २ प्रसारित, फैलाया हुआ। ३ आच्छादित; 'अच्छरगमउयमसूरगउच्छ- (? त्थ)-इयं भद्दासणं रयावेइ' (णाया १, १; पि ३०९)

उत्थंगिअ :: देखो उत्थंघिअ = उत्तम्भित (पि ५०५)।

उत्थंघ :: सक [उद् + नमय्] ऊँचा करना, उन्‍नत करना। उत्थंघइ (हे ४, ३६)।

उत्थंघ :: सक [उत् + स्तम्भ्] १ उठाना। २ अवलम्बन देना। ३ रोकना (गउड; से ५, ६)। उत्थंघेइ (गा ७२४)

उत्थँघ :: सक [उत् + क्षिप्] ऊँचा फेंकना। उत्थंघइ (हे ४, १४४)। संकृ. उत्थंघिअ (कुमा)।

उत्थंघ :: सक [ऱुध्] रोकना। उत्थंघइ (हे ४, १३३)।

उत्थंघ :: पुं [उत्तम्भ] ऊर्ध्वं-प्रसरण, ऊँचा फैलाना (से ६, ३३)।

उत्थंघण :: न [उत्तम्भन] ऊपर देखो (गउड)।

उत्थंघि :: वि [उत्क्षेपिन्] ऊँचा फेंकना (गउड)।

उत्थंघिअ :: वि [उन्नमित] ऊँचा किया हुआ, उन्‍नत किया हुआ (कुमा)।

उत्थंघिअ :: वि [रुद्ध] रोका हआ (कुमा)।

उत्थंघिअ :: वि [उत्तम्भित] उत्थापित, उठाया हुआ (से ५, ६०)।

उत्थंभि :: वि [उत्तम्भिन्] १ आघात-प्राप्‍त, अवलम्बन करनेवाला; 'घारिज्जइ जलनिहीवि कल्लोलौत्थंभिसत्तकुलसेलो । न हु अन्‍नजम्मनिम्मअ- सुहासुहो कम्म-परिणामो'। (प्रासू १२७)

उत्थंभिअ :: वि [उत्तम्भित] १ अवलम्बित। २ रुका हुआ, स्तम्भित; 'अइपीणत्थणउत्थं- भिअणणे सुअणु सुणसु मह वअणं' (गा ९२४) ३ बन्धन-मुक्त किया हुआ (स ५९८)

उत्थंभिर :: देखो उत्तंभि (वज्जा १५२)।

उत्थग्ध :: पुं [दे] संमर्द, उपमर्दं (दे १, ९३)।

उत्थप्पण :: देखो उट्ठयण (कुप्र ११७)।

उत्थय :: देखो उत्थइण (कप्प); 'निवडंति तणोत्थयकूपियासु तुंगावि मायंगा' (उप ७२८ टी)।

उत्थर :: सक [आ + क्रम्] आक्रमण करना। संकृ. उत्थरिवि (अप) (भवि)।

उत्थर :: सक [अव + स्तृ] १ आच्छादन करना, ढकना। २ पराभव करना। वकृ. उत्थरंत, उत्थरमाण (पणह १, ३; राज)

उत्थर, उत्थल्ल :: सक [उत् + स्तृ] आच्छादन करना (?) । उत्थरइ, उत्थल्लइ (प्राकृ ७५)।

उत्थरिअ :: वि [आक्रान्त] आक्रान्त, दबाया हुआ; 'उत्थरिओवग्गिआइं अक्‍कंतं' (पाअ; भवि)।

उत्थरिय :: वि [दे] १ निस्सृत, निर्गत (स ४७३)। 'अच्छुक्कुत्थरियमहल्लवाह- भरनीसहा पडिया' (सुपा २०) २ उत्थित, उठा हुआ (दे ७, ९२)

उत्थल :: न [उत्स्थल] १ ऊँची धूल राशि, उन्नत रजःपुञ्‍ज (भग ७, ६ टी) २ उन्मार्गं, कुपथ (से ८, ९)

उत्थलिअ :: न [दे] १ घर, गृह। २ वि. उन्मुख-गत, ऊँचा गया हुआ (दे १, १०७; स १८०)

उत्थल्ल :: अक [उत् + शल्] उछलना, कूदना। उत्थल्लइ (षड्)।

उत्थल्लपत्थल्ला :: स्त्री [दे] दोनों पाश्‍वों से टपरिवर्त्तन, उथल-पुथल (दे १, १२२)।

उत्थल्ला :: स्त्री [दे] १ परिवर्त्तन (दे १, ९३) २ उद्वर्त्तन (गउड)

उत्थल्लिअ :: वि [उच्छलित] उछवा हुआ, 'उत्थल्लिअं उच्छलिअं' (पाअ)।

उत्थाइ :: वि [उत्थायिन्] उठनेवाला (दे ८, १९)।

उत्थाइय :: वि [उत्थापित] उठाया हुआ, 'पुव्वुत्थाइयनरवरदेसे दंडाहिवं ठवइ महणं' (सुपा ३५२)।

उत्थाण :: न [उत्थान] १ वीर्य, बल, पराक्रम (विसे २८-२९) २ उत्थान, उत्पत्ति; 'बंछावाही असज्झो न नियत्तइ असोहेहिं कएहिं। तम्हा तीउत्थाणं निरुंभियव्बं हिएसीहिं' (सुपा ४०४)

उत्थामिय :: (अप) वि [उत्थापित] उठाया हुआ (भवि)।

उत्थार :: सक [आ + क्रम्] आक्रमण करना, दबाना। उत्थारइ (हे ४, १६०; षड्)।

उत्थार :: देखो उच्छाह = उत्साह (हे २, ४८; षड्)।

उत्थारिय :: वि [आक्रान्त] आक्रान्त, दबाया हुआ; 'उत्थारिअअंतरंगरिउवग्गो' (कुमा; सुपा ५४६)।

उत्थिय :: देखो उत्थइअ (पंचा ८)।

°उत्थिय :: वि [°तीर्थिक] मतानुयायी, दर्शना- नुयायी (उवा; जीव ३)।

°उत्थिय :: वि [°यूथिक] यूथ-प्रविष्ट, 'अणण- उत्थिय — ' (उवा; जीव ३)।

उत्थुभण :: न [अवस्तोभन] अनिष्ट को शान्ति के लिए किया जाता एक प्रकार का कौतुक, थू-थू आवाज करना। (बृह १)।

उद :: न [उद] जल, पानी; 'अवि साहिए दुवे वासे सीओदं अभोच्चा निक्खंते' (आचा; भग ३, ६)| °उल्ल °ओल्ल वि [°र्द्र] पानी से गीला। (ओघ ४८६; पि १६१)। °गत्ताभ न [°गर्त्ताभ] गोत्र-विशेष (ठा ७)।

उदइय :: देखो ओदइय (अणु)।

उदइल्ल :: वि [उदयिन्] उदयवान्, उन्‍नति- शील; 'सिरिअभयदेवसूरी अपुव्वसूरो सयावि उदइल्लो' (सुपा ६२२)।

उदंक :: पुं [उदङ्क] जल का पात्र-विशेष, जिससे जल ऊँचा छिड़का जाता है (जं २)।

उदंच :: सक [उद् + अञ्‍च्] ऊंचा जाना (कुमा)|

उदंचण :: प [उदच्चन] १ उँचा फेंकना। २ वि. ऊँचा फेंकनेवाला (अणु)

उदंचिर :: वि [उदञ्चितृ] ऊँचा जानेवाला (कुमा)।

उदंत :: पुं [उदन्त] हकीकत, समाचार, वृत्तान्त; 'णिअमेऊण कइबलं बीओंदंतो व्व राहवस्स उवणिओ' (से ४, ५५; स ३०; भग)।

उदंप :: पुं [उद्‍दृप्त] कृष्णराज पुत्र उदय (नल- दव° रास° ऋषिवर्धन)।

उदग :: पुंन [उदक] जल पानी; 'चत्तारि उदगा पणणत्ता' (ठा ४; जी ५)। २ वनस्पति-विशेष (दस ८, ११) ३ जलाशय (भग १, ८) ४ पुं. स्वनाम-ख्यात एक जैन साधु। ५ सातवें भावी जिनदेव (सुअ २, ७) °गब्भ पुं [गर्भ] बादल, अभ्र (भग २, ५)। °दोणि स्त्री [°द्रोणि] १ जल रखने का पात्र-विशेष, ढंढा करने का लिए गरम लोहा जिसमें डाला जाता है वह (भग १६, १) २ जो अरघट्ट में लगाया जाता है वह छोटा घड़ा (दस ७)। °पोग्गल न [पौद्‍गल] बादल, मेघ (ठा ३, ३)। °मच्छ पुं [°मत्स्य] इन्द्र-धनुष का खण्ड, उत्पात-विशेष (भग ३, ६)। °माल पुंस्त्री [°माल] जल का ऊपर चढ़ता तरंग, उदक- शिखा, वेला (ठा १०; जीव ३)। °वत्थि स्त्री ['वस्ति] दृति, पानी भरने का मशक (णाया १, १८)। °सिहा स्त्री [°शिखा] वेला (ठा १०)। °सीम पुं [°सीमन्] पर्वंत-विशेष (इक)

उदग्ग :: वि [उदग्र] १ सुन्दर, मनोहर; 'तत्तो दट्‍ठुं तीए रूवं तह जोव्वणमुदग्गं' (सुर १, १२२) २ उग्र, उत्कट, प्रखर (ठा ४, २; णाया १, १; सत्त ३०) ३ प्रधान, मुख्य; 'उदग्गचारित्ततवो महेसी' (उत्त १३)

उदड्‍ढ :: पुं [उद्दग्ध] एक नरक-स्थान (देवेन्द्र २७)।

उदत्त :: वि [उदात्त] उदार, अकृपण (संबोध ३८)।

उदत्त :: वि [उदात्त] स्वर-विशेष, जो उच्च स्वर से बोला जाय वह स्वर (विसे ८५२)।

उदन्ना :: स्त्री [उदन्या] तृषा, तरस, पिपासा (उप १०३१ टी।

उदय :: देखो उदग (णाया १, ८; सम १५३; उप ७२८ टी; प्रासू ७२; पणण १)।

उदय :: पुं [उदय] लाभ (सुअ २, ६, २४)।

उदय :: पुं [उदय] १ अभ्युदय, उन्‍नति; 'जो एवंविहंपि कज्जं आयरइ, सो कि बंभदत्त- कुमारस्स उदयं इच्छह ?' (महा) २ उत्पत्ति (विसे) ३ विपाक, कर्म-परिणाम; 'वहमारणअब्भक्खाणदाण परधरविलोवणाईणं। सव्वजहन्‍नो उदओ दसगुणिओ एक्कसि क्याणं' (उव) ४ प्रादुर्भाव, उद्‍गम; 'आइच्चोदए चंदगहा इव निप्पभा जाया सुरा' (महा); 'उदयम्मिवि अत्थमणेव धरइ रत्तत्तणं दिवसनाहो। रिद्धीसु आवईसुवि तुल्लच्चिय णूण सप्पुरिसा।' (प्रासू १२) ५ भरतक्षेत्र के भावी सातवें जिनदेव (सम १५३) ६ भरतक्षेत्र में होनेवाले तीसरे जिनदेव का पूर्व-भवीय नाम (सम १५४) ७ स्वमाम-ख्यात एक राजकुमार (पउम २१, ५६)। °यिल पुं [°चल] पर्वत-विशेष, जहाँ सूर्यं उदित होता है (सुपा ८८)

उदयंत :: देखो उदि।

उदयण :: पुं [उदयन] १ राजा सिद्धराज का प्रसिद्ध मंत्री (कुप्र १४३)

उदयण :: पुं [उदयन] एज राजकुमार, कोशाम्बी नगरी के राजा शतानीक का पुत्र (विपा १, ५) २ एक विख्यात जैन राजा (कप्प) ३ न. उन्नति, उदय। ४ वि. उन्नत होनेवाला, प्रवर्धंमान (ठा ५, ३)

उदर :: न [उदर] १ पेट, जठर (सुअ १, ८) २ पेट की बीमारी; 'खयजरवणालुआसाससो- सोदराणि' (लहुअ १५)

उदरंभरि :: वि [उदरम्भरि] स्वार्थी, अकेलपेटू (पि ३७९)।

उदरि :: वि [उदरिन्] पेट की बीमारीवाला (पणह २, ५)।

उदरिय :: वि [उदरिक] ऊपर देखो (विपा १, ७)।

उदवाह :: वि [उदवाह] १ पानी वहन करनेवाला, जल-वाहक। २ पुं. छोटा प्रबाह (भग ३, ६)

उदसी :: [दे] [उदश्चित् ?] तक

उदहि :: पुं [उदधि] १ समुद्र, सागर (कुमा) २ भवनपति दोवों की एक जाति, उदधिकुमार (पणह १, ४)। °कुमार पुं [°कुमार] देवों की एक जाति (पणण १)। देखो उअहि।

उदाइ :: पुं [उदायिन्] १ एक जैन राजा, महाराजा कोणिक का पुत्र, जिसको एक दुष्ट ने जैन साधु बनकर धर्मच्छल से मारा था और जो भविष्य में तीसरा जिनदेव होगा (ठा ९; ती) २ पुं. राजा कृणिक का पट्ट- हस्ती (भग १६, १)

उदाइण :: देखो उदायण (कुलक २३)।

उदात्त :: देखो उदत्त (णंदि १७४ टी)।

उदायण :: पुं [उदायन] सिन्धु-देश का एक राजा, जिसने भगवान् महावीर के पास दीक्षा ली थी (ठा ८; भग ३, ६)।

उदार :: देखो उराल (उप पृ १०८)।

उदासि :: वि [उदासिन्] उदास, उदासीन। °व न [°त्व] औदासीन्य (रंभा; स ४५९)।

उदासीण :: वि [उदासीन] १ मध्यस्थ, तटस्थ (पणह १, २) २ उपेक्षा करनेवाला (ठा ६)

उदाहड :: वि [उदाहृत] कथित, दृष्टान्तित (राज)।

उदाहर :: सक [उदा + हृ] १ कहना। २ दृष्टान्त देना। उदाहरंति (पि १४१); 'भासं मुसं नेव उदाहरिज्जा' (सत्त ४३)। भूका, उदाहु (आचा; उत्त १४, ६), उदाहु (सुअ १, १२, ४)। वकृ. उदाहरंत (सुअ १, १२, ३)

उदाहरण :: न [उदाहरण] १ कथन, प्रति- पादन। २ दृष्टान्त (सुअ १, १२; विसे)

उदाहिय :: वि [उदाहृत] १ कथित, प्रति- पादित। २ दृष्टान्तित (आचा; णाया १, ८)

उदाहिय :: वि [दे] उत्क्षिप्त, फेंका गया (षड्)।

उदाहु :: देखो उदाहर।

उदाहु :: अ [उताहो] अथवा, या (उवा)।

उदाहू :: देखो उदाहर।

उदाहो :: देखोो उदाहु = उताहो (स्वप्‍न ७०)।

उदि :: अक [उद् + इ] १ उन्नत होना। २ उत्पन्न होना। (विसे १२९६; जीव ३)। वकृ. उदयंत (भग; पउम ८२, ५९; सुपा १९८)। कवकृ. उदिज्जंत (विसे ५३०)

उदिक्खिअ :: वि [उदीक्षित] अवलोकित (दे ६, १४४)।

उदिण्ण :: वि [उदीच्य] उत्तर-दिशा में उत्पन्न (आवम)।

उदिण्ण, उदिन्न :: वि [उदीर्ण] १ उदित, उदय-प्राप्त (ठा ५); 'इक्को वि इक्को विसओ उदिन्नो' (सत्त ५२) २ फलोन्मुख (कर्म) (पणण १९; भग) ३ उत्पन्न; 'जहा उदिणणो नणु कोवि वाही' (सत्त ५; श्रा २७) ४ उत्कट, प्रबल; 'अणुत्तरोववाइयाणं भंते ! देवा किं उदिणण मोहा, उवसंतमोहा, खीणमोहा ?' (भग ५, ४)

उदिय :: वि [उदित] १ उदित, उद्‍गत (सम ३६) २ उन्नत (ठा ४) ३ उक्त, कथित (विसे ३५७६)

उदीण :: वि [उदीचीन] १ उत्तर दिशा से संबन्ध रखनेवाला, उत्तर दिशा में उत्पन्न (आचा; पि १६५)। °पाईणा स्त्री [°प्राचीना] ईशान-कोण (भग ५, १)

उदीणा :: स्त्री [उदीचीना] उत्तर दिशा (ठा १, १)।

उदीर :: सक [उद् + ईरय्] १ प्रेरणा करना। २ कहना, प्रतिपादन करना। ३ जो कर्म उदय-प्राप्त न हो उसको प्रयत्‍न-विशेष से फलोन्मुख करना। उदीरइ, उदीरेंति (भग; पंनि ७८)। भूका. उदीरिसुं, उदीरेंसु (भग)। भवि. उदीरिस्संति (भग)। वक-ृ. उदीरेंत (ठा ७); 'कुसलवइमुदीरंतो' (उप ६०४)। कवकृ. उदीरिज्जमाण (पणण २३)। हेकृ. उदीरेत्तए (कस)

उदीरग :: देखो उदीरय (पंच ५, ५)।

उदीरय :: न [उदीरण] १ कथन, प्रतिपादन। २ प्रेरणा। ३ काल-प्राप्त न होने पर भी प्रयत्‍न-विशेष से किया जाता कर्म-फल का अनुभव (कम्म २, १३)

उदीरणया, उदीरणा :: स्त्री [उदीरणा] ऊपर देखो (कम्म २, १३; १); 'जं करणे- णोकड्ढिय उदए दिज्जइ उदीरणा एसा' (कम्मप १४३; १६६)।

उदीरय :: वि [उदीरक] १ कथक, प्रतिपादक। २ प्रेरक, प्रवर्तक; 'एकमेक्कं विसयविसउदरीएसु' (पणह १, ४) ३ उदीरणा करनेवाला, काल- प्राप्त न होने पर भी प्रयत्‍न-विशेष से कर्म- फल का अनुभव करनेवाला (कम्मप १५९)

उदीरिद :: देखो उदीरिय (राय ७४)।

उदीरिय :: वि [उदीरित] १ प्रेरित, 'चालियाणं घट्टियाणं खोमियाणं उदीरियाणं केरिसे सद्दो भवति' (राय; जीव ३) २ कथित, प्रति- पादित; 'धोरे धम्मे उदीरिए' (आचा) ३ जनित, कृत; 'समद्दफासा फरुसा उदीरिया' (आचा) ४ समय-प्राप्त न होने पर भी प्रयत्‍न-विशेष से खींच कर जिसके फल का अनुभव किया जाय वह (कर्म) (पणण २३; भग)

उदु :: देखो उउ (प्राप; अभि १८९; पि ५७)।

उदुंबर :: देखो उंबर (कस)।

उदुरुह :: सक [उद् + रुह्] ऊपर चढ़ना। उदुरुहइ (पि ११८)।

उदूखल :: देखो उऊखल (पि ६६)।

उद्वग :: पुंन [दे] पृथिवी-शिला (पंचा ८, १० टी)।

उदूलिय :: वि [दे] अवनत, नीचा नाम हुआ (षड्)।

उदूहल :: देखो उऊहल (आचा; पि ६६)।

उद्द :: न [दे] १ जल-मानुष। २ ककुद, बैल के कंधे का कूबड़ (दे १, १२३) ३ मस्त्य- विशेष। ४ उसके चर्मं का बना हुआ वस्त्र (आचा)

उद्द :: वि [आर्द्र] गीला, आर्द्र (षड्)।

उद्दअ :: वि [उद्यत] उद्यम-युक्त (प्राकृ २१)।

उद्‍दंड, उद्दंडग :: वि [उद्दण्ड] १ प्रचण्ड, उद्धत (कुमा; गउड) २ पुं. हाथ में दण्ड को ऊँचा रखकर चलनेवाला तापसों की एक जाति (औप; निचू १)

उद्दुंत्तर :: वि [उद्दुन्तुर] १ जिसका दाँत बाहर आया हो वह। २ ऊँचा (गउड)

उद्दंभ :: पुं [उद्दम्भ] छन्द का एक भेद (पिंग)।

उद्‍दंस :: पुं [उद्‍दंश] मधुमक्षिका, मत्कुण आदि छोटा कीट (कप्प)।

उद्दड्‍ढ :: पुं [उद्दग्ध] रत्‍नप्रभा नरक-पृथिवी का एक नरकावास (ठा ६)। °मज्झिम पुं [°मध्यम] रत्‍नप्रभा पृथिवी का एक नरकावास (ठा ६)। °वित्त पुं [°वर्त्त] देखो पूर्वोक्त अर्थं (ठा ६)। °वसिट्ठ पुं [°वशिष्ट] देखो पूर्वोक्त अर्थं (ठा ६)।

उद्दद्दर :: न [दे. ऊर्ध्वदर] सुभिक्ष, सुकाल (बृह १)।

उद्दम :: /?/पुंन. देखो उज्जम = उद्यम (प्राकृ २१)।

उद्दरिअ :: वि [दे] १ उत्खात, उखाड़ा हुआ (दे १, १००) २ स्फुटित, विकसित; 'फुडिअं फलिअं च दलिअं उद्दरिअं' (पाअ)

उद्दरिअ :: वि [उद् + दृफ्त] गर्वित, उद्धत, अभिमानी (णंदि)।

उद्दलण :: न [उद्दलन] विदारण (गउड)।

उद्दव :: सक [उद् उप + द्र] १ उपद्रव करना, पीड़ा करना। २ मारना, विनाश करना, हिंसा करना; 'तए णं सा रेवई गाहा- वईणी अन्नया कयाइ तासिं दुवालसणहं सवत्तीणं अंतरं जाणित्ता छ सवत्तीओ सत्थप्प- ओगेणं उद्दवेइ, उद्दवेइत्ता छ सवत्तीओ विसप्पओगेणं उद्दवेइ, उद्दवेइत्ता तासिं दुवालसणहं सवत्तीणं कोलघरियं एगमेगं हिरणणकोडिं एगमेगं वयं सयमेव पडिवज्जेइ, २ त्ता महासयएणं समणोवसएणं सद्धिं उरा- लाइ भोगभोगाइ भुंजमाणी विहरइ' (उवा)। भवि. उद्दवेहिइ (भग १५)। कवकृ. उद्द- विज्जमाण (सुअ २, १)। कृ. उद्दवेयव्व (सुअ २, ३)

उद्दवअ :: पुं [उद्‍द्रव, उपद्रव] १ उपद्रव। २ विनाश, हिंसा; 'आरंभो उद्दवओ' (श्रा ७)

उद्दवइत्तु :: वि [उद्‍द्रोतृ, उपद्रोतृ] १ उपद्रव करनेवाला। २ हिंसक, विनाशक; 'से हंता छेता भेत्ता लुपित्ता उद्दवइत्ता विलुपित्ता अकडं करिस्सामि त्ति मन्नमाणे' (आचा)

उद्दवण :: न [उद्‍द्रवण, उपद्रवण] १ उपद्रव, हरकत; 'उद्दवणं पुण जाणसु अइवायवि वज्जियं' (पिंड; औप) २ विनाश, हिंसा (सं ८४; आचा)

उद्दवण :: न [अपद्रावण] मृत्यु को छोड़कर सब प्रकार का दुःख, 'उद्दवणं पुण जाणसु अइवायाविवज्जियं पोड' (पिंडभा २५; पिंड ९७)।

उद्दवणया, उद्दवणा :: स्त्री [उद्‍द्रवणा, उपद्रवणा] ऊपर देखो (भग; पणह १, १)।

उद्दवाइअ :: देखो उड्‍डुवाइय; 'समणस्स णं भगवओ महावीरस्स णव गणा हुत्था, तं° — गोदासे गणे उत्तरबलिस्सहगणे उद्देहगणे चारणगणे उद्दवातित-(इअ)-गणे विस्सवाति- (इअ)-गणे कामडि्ढ़त-(अ)-गणे माणवगणे कोडितगणे' (ठा ९)।

उद्दविअ :: वि [उद्‍द्रुत, उपद्रुत] १ पीड़ित; 'संघाइआ संघट्टिआ परियाविआ किलामिआ उद्दविया ठाणाओ ठाणं संकामिया' (पडि) २ विनाशित; 'नाऊण विभंगेणं नियजिट्ठसुयस्स विलसियं, तो सो सुकुटुंबो उद्दविओ' (सुपा ४०९)

उद्दवेत्तु :: देखो उद्दवइत्तु (आचा)।

उद्दा :: सक [उद् + दा] बनाना, निर्माण करना। उद्दाइ (भग)।

उद्दा :: अक [अव + द्रा] मरना। उद्दाई, उद्दायाति (भग)। संकृ. उद्दाइत्ता (जीव ३; ठा १०; भाग)।

उद्दाइआ :: स्त्री [उद्‍द्रोती, उपद्रोत्री] उपद्रव करनेवाली स्त्री; 'ताए वा उद्दाइआए कोइ संजओ गहितो होज्जा' (ओघ १८ भा टी)।

उद्दाइंत :: देखो उद्दाय = शुभ् ।

उद्दाइत्ता :: देखो उद्दा = अव + द्रा।

उद्दाण :: स्त्री [दे] चूल्हा, चूल्ली, जिसपर रसोई पकाई जाती है (दे १, ८७)।

उद्दाण :: वि [अवद्रात] मृत, 'उद्दाणे भोइयम्मि चेइयाइं वंदामि' (सुख १, ३)।

उद्दाम :: वि [उद्दाम] १ स्वैर, स्वच्छन्द (पाअ) २ प्रचण्ड, प्रखर; 'ता सजलजल- हरुद्दामगहिरसद्देण ताण तं कहइ' (सुपा २३४) ३ अव्यवस्थित (हे १, १७७)

उद्दाम :: पुं [दे] १ संघात, समूह। २ स्थपूट, विषमोन्‍नत प्रदेश (दे १, १२६)

उद्दामिय :: वि [उद्दामित] लटकटा हुआ, प्रलम्बित; 'तत्थ णं बहवे हत्थी पासति सणणद्धबद्धवम्मियगुडिते उप्पीलियकच्छे उद्दा- मियघंटे' (विपा १, २)।

उद्दाय :: अक [शुभ्] शोभना, शोभित होना, अच्छा मालूम देना। वकृ. 'उववणेसु परहुय- रुपपरिभितसंकुलेसु उद्दायंत रत्तइंदगोव यथोवयकारुन्‍नविलविएसु' (णाया १, १)। उद्दाइंत (णाया १, १ टी)।

उद्दार :: देखो उराल = उदार; 'देमि न कस्सवि जंपइ उद्दारजणस्स विविहरयणाइं' (वज्जा १२०)।

उद्दरिअ :: वि [दे] १ युद्ध से पलायित, रण- द्रुत। २ उत्थात, उन्मुलित (षड्)

उद्दाल :: सक [आ + छिद्] खींच लेना, हाथ से छीन लेना। उद्‍दालइ (हे ४, १२५; षड्; महा)। हेकृ. उद्दालेउं (पि ५७७)।

उद्दाल :: पुं [अवदाल] १ दबाब, अवलदन; 'तंसि तारिसगंसि सयणिज्जंसि...गंगापुलिण- वालुअउद्दालसालिसए' (कप्प; णाया १, १) २ वृक्ष-विशेष (जीव ३) ३ अवसर्पिणी काल का प्रथम आरा — समय-विशेष (जं २)

उद्दालिय :: वि [आच्छिन्न] छीना हुआ, खींच लिया गया (पाअ; कुमा; उप पृ ३२३); 'दो सारबलिद्‍दावि हु तेहिं उद्‍दालिया' (सुपा २३८)।

उद्दावणया :: स्त्री [उपद्रावणा] उपद्रव, हैरानी (राज)।

उद्दाह :: पुं [उद्दाह] १ प्रखर दाह। २ आग (ठा १०)

उद्दाहग :: वि [उद्दाहक] आग लगानेवाला (पणह १, ३)।

उद्दिट्ठ :: वि [उद्दिष्ट] १ कथित, प्रतिपादित (विपा २, १) २ निर्दिष्ट (दस) ३ दान के लिए संकल्पित (अन्‍न, पानादि); 'णाय- पुत्ता उद्दिट्ठभत्तं परिवज्जयंति' (सुअ २, ६) ४ लक्षित (सुअ २, ९) ५ न. उद्देश (पंचा १०)। °कड वि [°कृत] साधु के उद्देश से बनाया हुआ, साधु के निमित्त किया हुआ (भोजनादि) (दस १०)

उद्दिट्ठा :: स्त्री [दे. उद्दिष्टा] तिथि-विशेष, अमावास्या (औप)।

उद्दित्त :: वि [उदीप्त] प्रज्वलित (बृह १)।

उद्दिस :: सक [उद् + दिश्] आज्ञा करना। कर्मं. उद्दिसिज्जंति (अणु ३)।

उद्दिस :: सक [उद् + दिश्] १ नाम निर्देश-पूर्वक वस्तु का निरूपण करना। २ देखना। ३ संकल्प करना। ४ लक्ष्य करना। ५ अंगीकार करना। ६ सम्मति लेना। ७ समाप्त करना। ८ उपदेश देना। उदि्दसइ (वव २, ७)। कर्म. 'दस अज्झयणा एक्‍क- सरगा दससु चेव दिवसेसु उदि्दस्संति' (उवा)। कवकृ. उद्दिसिज्जंत (आवम)। संकृ. 'गओ तासिं समीवं, पुच्छियं महुरवाणीए एक्कं कन्‍नगं उद्दिसिऊण, कओ तुब्भे' (महा; वव ७); 'तदवसाणे य एक्का पवरमहिला बंधुमइं उद्दिस्स कुमारउत्तमंगे अक्खए पक्खिवइ (महा); उद्दिसिय (आचा २, १; अभि १०४)। हेकृ. उद्दिसिउं, उद्दि- सित्तए (वव १० भा; ठा २, १)। प्रयो. उद्दिसावित्तए, उद्दिसावेत्तए (बह १; कस)

उद्दिसिअ :: देखो उद्दिट्ठ (आचा २)।

उद्दिसिअ :: वि [दे] उत्प्रेक्षित, वितर्कित (दे १, १०९)।

उद्दीरणा :: देखो उदीरणा; 'उद्‍दीरणउदयाणं जं नाणात्तं तय वोच्छं' (पंच ५, ९८)।

उद्दीवण :: न [उद्दीपन] १ उत्तेजन। २ वि. उत्तेजक (मै ५८; रंभा)

उद्दीवणिज्ज :: वि [उद्दीपनीय] उद्दीपक, उत्तेजक; 'मयणुद्‍दीवणिज्जेहिं विविहेहिं भूसणेहिं' (रंभा)।

उद्दीविअ :: वि [उद्दीपित] प्रदीपित, प्रज्वालित (पाअ); 'चीयाए पक्खिविउ तत्तो उद्‍दीविओ जलणो' (सुर ९, ८८)।

उद्‍दुय :: वि [उद्‍द्रुत] पलायित (पउम ९, ७०)।

उद्‍दुय :: वि [उपद्रुत] हैरान किया हुआ (स १३१)।

उद्देस :: देखो उद्दिस उद्‍देसइ (भवि)।

उद्देस :: पुं [उद्देश] १ पठन-विषयक गुर्वाज्ञा (अणु ३) २ नाम का उच्चारण (सिरि १०९०) ३ बाचन, सूत्र-प्रदान, सूत्रों के मूल पाठ का अध्यापन (पव १)

उद्देस :: पुं [उद्देश] १ नाम-निर्देश पूर्वक वस्तु- निरूपण (विसे) २ शिक्षा, उपदेश; 'उद्‍देसो पासगस्स णत्थि'। ३ व्यपदशे, व्यवहार (आचा) ४ लक्ष्य। ५ अभिप्राय, मतलब (विसे) ६ ग्रन्थ का एक अंश (भघ १, १) ७ प्रदेश, अयव; 'खुब्भंति खुहिअमअरा आवाआलगहिरा समद्‍दुददेसा' (स ५, १९; १, २०) ८ गुरुप्रतिज्ञा, गुरु-वचन (विसे)। ९ जगह, स्थान (कप्पू)

उद्देस :: वि [औद्देश] देखो उद्देसिय = औद्‍देशिक (पिंड २३०)।

उद्देसण :: न [उद्देशन] १ पाठन, बाचना, अध्यापन; 'उदि्दसण वायणत्ति पाठणाया चेव एगट्ठा' (पंचभा; पणह २, ५) २ अधिकारिता, योग्यता (ठा ४, ३)

उद्देसणकाल :: पुं [उद्देशनकाल] मूलसूत्र के अध्यापन का समय (णंदि २०९)।

उद्देसणा :: स्त्री [उद्देशना] ऊपर देखो (पंचभा)।

उद्देसिय :: न [औद्देशिक] १ भिक्षा का एक दोष, साधु के लिए भोजन-निर्माण। २ वि. साधु निमित्त बनाया हुआ (भोजन)। (कस); 'उद्‍देसियं तु कम्मं एत्थं उदि्दस्स कीरए जंति' (पंचा १७; ठा ९; अंत)

उद्देसिय :: वि [औद्देशिक] १ उद्‍देश-सम्बन्धी उद्‍देश से किया हुआ। २ विवाह आदि के उपलक्ष्य में किए गए जीमन में निमन्त्रितों के भोजन की समाप्ति के अनन्तर बचे हुए वि खाद्य द्रव्य जिनको सर्वंजातीय भिक्षुओं को देने का संकल्प किया गया हो (पिंड २२९)

उद्देह :: पुं [उद्देह] भगवान् महावीर का एक गण — साधु समुदाय (ठा ९; कप्प)।

उद्देहलिया :: स्त्री [उद्देहलिका] वनस्पति-विशेष (राज)।

उद्देहिया, उद्देही :: स्त्री [दे] उपदेहिका, दीमक, त्रीन्द्रिय जन्तु-विशेष (जी १६; स ४३५; ओघ ३२३); 'उवदेहीइ उद्देही' (दे १, ९३)।

उद्दोहग :: वि [उद्‍द्रोहक] घातक, हिंसक (पणह १, ३)।

उद्ध :: देखो उड्‍ढ (से ३, ३३; पि ८३; महा; हे २, ५९; ठा ३, २)।

उद्धअ :: वि [उद्धत] १ उन्मत्त (से ४, १३; पाअ) २ गर्वित, अभिमानी (भग ११, १०) ३ उत्पाटित (णाया १, १)। ४ अतिप्रबल; 'उद्धततमंघकार — ' (पणह १, ३)

उद्धअ :: देखो उद्धरिअ = उद्‍घृत; 'पावल्लेण उवेच्च व उद्धयपयधारणा उ उद्धारो' (वव १०)।

उद्धअ :: वि [दे] शान्त, ढंढ़ा (षड्)।

उद्धंत :: देखो उद्धा।

उद्धंस :: सक [उत् + धृष्] १ मारना। २ आक्रोश करना, गाली देना। उद्धंसेइ (भग १५)। उद्धंसेंति (णाया १, १६)

उद्धंस :: सक [उद् + ध्वंस्] विनाश करना। संकृ. उद्धंसिऊण (स ३९२)।

उद्धंसण :: न [उद्धर्षण] १ आक्रोश, निर्भर्सन। २ वध, हिंसा (राज)

उद्धसणा :: स्त्री [उद्धर्षणा] ऊपर देखो (ओघ ३८ भा); 'उच्चावयाहिं उद्धसणाहिं उद्धसेंति, (णाया १, १६)।

उद्धंसिय :: वि [उद्धर्षित] आक्रुष्ट, जिसपर आक्रोश किया गया हो वह (निचू ४)।

उद्धच्छवि :: वि [दे] विसंवादित, अप्रमाणित (दे १, ११४)।

उद्धच्छविअ :: वि [दे] सज्जित, तैयार (दे १, ११९)।

उद्धच्छिअ :: वि [दे] निषिद्ध, प्रतिषिद्ध (दे १, १११)।

उद्धट्‍टु :: देखो उद्धर।

उद्धड :: वि [उद्‍धृत] उठा कर रखा हुआ (धर्म ३)।

उद्धण :: वि [दे] उद्धत, अविनीत (षड्)।

उद्धत्थ :: वि [दे] विप्रलब्ध, वञ्चित (दे १, ९६)।

उद्धदेहिय :: न [और्ध्वदेहिक] अग्‍नि-संस्कार आदि अन्त्येष्टि क्रिया (स १०९)।

उद्धम :: सक [उद् + हन्] १ शंख वगैरह फूँकना, वायु भरना। २ ऊँचा फेंकना, उड़ाना। कवकृ. उद्धम्मंताणं संखाणं सिंगाणं संखियाणं खरमुहीणं' (राय); 'पायालसहस्स- वायवसवेगसलिलउद्धम्ममाणदगरयरयंधकारं (रयणागरसागरं)' (पणह १, ३; औप)

उद्धर :: सक [उद् + हृ] १ फँसे हुए को निकालना, ऊपर उठाना। २ उन्मुलन करना। ३ दूर करना। ४ खींचना। ५ जीर्णं मन्दिर वगैरह का परिष्कार-संस्कार करना। ६ किसी ग्रंथ या लेख के अंश-विशेष को दूसरी पुस्तक या लेख में अविकल नकल करना। भवि. उद्धरिस्सइ (स ५६९)। वकृ. पइनगरं पइगामं पायं जिणमंदिराइं पूयंतो, जिन्‍नाइं उद्धरिंतो[ (सुपा २२४); 'जयइ धरमुद्धरंतो भरणीसारियमुहग्गचलणेण। णियदेहेण करेण व पंचंगुलिणा महाकुम्मो'। (गउड)। संकृ. उद्धरिउं, उद्धरिऊण, उद्धरित्ता, उद्धरित्तु, उद्धटुटु (पंचा १६; प्रारू); 'तं लयं सव्वसो छित्ता, उद्धरित्ता समूलया' (उत्त २३; पंचा १६); 'बाहू उद्धट्‍टु कक्ख- मणुव्वजे' (सुअ १, ४); 'तसे पाणे उद्धट्‍टु पाद रीइज्जा' (आचा २, ३, १, ४)

उद्धर :: /?/(अप) देखो उद्धुर (भवि)।

उद्धरण :: न [उद्धरण] १ ऊपर उठाना। २ फँसे हुए को निकालना (गउड); 'दीणुद्धरणम्मि धणं न पउत्तं' (विवे १३५) ३ उन्मुलन। ४ अपनयन (सुअ १, ४; ९)

उद्धरण :: वि [दे] उच्छिष्ट, जूठा (दे १, १६९)।

उद्धरिअ :: वि [उद्‍धृत] १ उत्पाटित, उत्क्षिप्त; 'हक्खुत्तं उच्छूढं उक्खित्त-उप्पाडिआइं उद्धरिअं' (पाअ) २ किसी ग्रन्थ या लेख के अंश- विशेष को दूसरे पुस्तक या लेख में अविकल नकल कर देना; 'एसो जीववियारो, संखेरूईण जाणणा-हेउं। संखित्तो उद्धरिओ, रुंदाओ सुय-समुद्दाओ' (जो ५१); 'जेण उद्धरिया विज्जा, आगासगमा महापरिणणाओ' (आवम) ३ आकृष्ट, खींचा हुआ। ४ निष्कासित, बाहर निकाला हुआ; 'उद्धरियसव्वसल्ल — ' (पंचा १६) ५ जीर्णं वस्तु का परिष्कार करना; 'जिणमंदिरं न उद्धरिअं' (विवे १३३)

उद्धरिअ :: वि [दे] अर्दित, विनाशित (षड्)।

उद्धल :: पुं [दे] दोनों तरफ की अप्रवृत्ति (षड्)।

उद्धव :: पुं [उद्धव] ऊधो, श्रीकृष्ण का चाचा, मित्र और भक्त (रुक्मि ४६)।

उद्धवअ :: वि [दे] उत्क्षिप्‍त, फेंका हुआ (दे १, १०६)।

उद्धविअ :: वि [दे] अर्धित, पूजित (दे १, १०७)।

उद्धा, उद्धाअ :: सक [उद् + धाव्] १ दौड़ना, वेग से जाना। २ ऊँचे जाना। उद्धाइ (पि १६५)। वकृ. उद्धंत, उद्धाअंत, उद्धायमाण (कप्प; से ९, ६९; १३, ९१; औप)

उद्धाअ :: अक [ऊर्ध्वाय्] ऊँचा होना। वकृ. उद्धाअमाण (से १३, ९१)।

उद्धाअ :: वि [उद्धाव] उद्धावित, ऊँचा गया हुआ; 'छिणणकडए वहंतं उद्धाअणिअत्तगरुड- मग्गिअसिहरे' (से ९, ३९)।

उद्धाअ :: पुं [दे] १ विषमोन्नत प्रदेश। २ समूह। ३ वि. थका हुआ, श्रान्त (दे १, १२४)

उद्धाइअ :: वि [उद्धावित] १ फैला हुआ, विस्तीर्णं, प्रसृत (से ३, ५२) २ ऊँचा दौड़ा हुआ (से २, २२)

उद्धार :: पुं [उद्धार] १ त्राण, रक्षण (कुमा) २ ऋण देना, उधार देना (सुपा ५६७; श्रा १४) ३ अपहरण (अणु) ४ अपवाद (राज) ५ धारणा, पढ़े हुए पाठ को नहों भूलना; 'पाबल्लेण उवेच्च च व उद्धयपयधारणा उ उद्धारो' (वव १०)। °पलिओवम न [°पल्योपम] समय का एक परिमाण (अणु)। °समय पुं [°समय] समय-विशेष (अणु)। °सागरोवम न [°सागरोपम] समय का एक दीर्धं परिमाण (अणु)

उद्धरय :: वि [उद्धारक] उद्धार-कारक (कुप्र २)।

उद्धाव :: देखो उद्धा।

उद्धवण :: न [उद्धावन] नीचे देखो (श्रा १)।

उद्धावणा :: स्त्री [उद्धावना] १ प्रबल प्रवृत्ति। २ दूर-गमन, दूर क्षेत्र में जाना (धर्म ३) ३ कार्य की शीघ्र सिद्धि (वव १)

°उद्धि :: देखो बुद्धि (षड्)।

उद्धि :: स्त्री [दे] गाड़ी का एख अवयव, गुजराती 'उंध' (सुज्ज १०, ८ टी; ठा ३, २ टी-पत्र १३३)।

उद्धिअ :: देखो उद्धरिअ = उद्‍धृत (श्रा ४०; औप; राय; वव १; औप; पच्च २८)।

उद्धीमुह :: वि [ऊर्ध्वीमुख] मुँह ऊँचा किया हुआ (चंद ४)।

उद्‍धुंघलिय :: वि [दे] धुँधलाया हुआ (सण)।

उदुधुंणिय :: देखो उद्धुय (सण)|

उद्‍धुम :: सक [पु] पूर्णं करना, पूरा करना। उद्धुमइ (हे ४, १५९)।

उद्‍धुमा :: सक [उद् + ध्मा] १ आवाज करना। २ जोर से धमनी को चलाना। उद्धुमाइ उद्धु- माअइ (षड्; प्रामा)

उद्‍धुमाइअ :: वि [उद्‍ध्मापित] ठंढा किया हुआ, निर्वापित (से १, ८)।

उद्‍धुमाय :: वि [दे] १ परिपूर्ण; 'मायाइ उद्भु- माया' (कुमा); 'पडिहत्थमुद्धुमायं आर्हिरेइयं च जाण आउणणे' (णंदि) २ उन्मत; 'मअरंदरसुद्धुमाअमुहलमहुअरं' (से ६, ११)

उद्‍धुय :: वि [उद्‍धूत] १ पवन से उड़ा हुआ (से ७, १४) २ प्रसूत, फैला हुआ; 'गंधुद्धु- याभिरामे' (औप) ३ प्रकम्पित; 'वाउद्दुय- विजयवेजयंती' (जीव ३) ४ उत्कट, प्रबल (सम १३७) ५ व्यक्त, प्रकट (कप्प)

उद्‍धुर :: वि [उद्‍धुर] १ ऊँचा, उच्च; उद्धुरं उच्चं' (पाअ) २ प्रचण्ड, प्रबल (सुर ३, ३९; १२, १०९)

उद्‍धुव्वंत, उद्‍धुव्वामाण :: देखो उद्‍धू।

उद्‍धुमिय :: वि [उद्‍धुषित] १ रोमाञ्च, 'अन्नोन्नजंपिएहिं हसिउद्‍धु सिएहिं खिप्पमाणो य' (उव) २ वि. रोमाञ्चित, पूलकित (दे १, ११५; २, १००); 'उद्धसियरोमकूवो सीयलअनिलेण संकुइयगत्तो' (सुर २, १०१); 'उद्‍धुसियकेसरसढं' (महा)

उद्‍धू :: सक [उद् + धू] १ कँपाना, चलाना। २ चामर वगैरह बीजना, पंखा करना। कवकृ. उद्‍धूव्वंत, उद्‍धुव्वमाण (पउम २, ४०; कप्प)

उद्‍धूणिय :: देखो उद्‍धुय (सण)।

उद्‍धूद :: /?/(शौ) देखो उद्‍धुय (चारु ३५)।

उद्‍धूल :: सक [उद् + धूलय्] १ व्याप्त करना। २ धूलि लगाना। उद्‍धूलेइ (हे ४, २९)

उद्‍धूलण :: न [उद्‍धूलन] धूलि को अङ्ग पर लगाना; 'जारमसाणसमुब्भवभूइसुहप्फंसिज्जिरंगीए। ण समप्पइ णावकावालिआइ उद्‍धूलणारंभो।' (गा ४०८)।

उद्‍धूलिय :: वि [उद्‍धूलिन] १ धूलि से लपेटा हुआ। २ व्याप्‍त; 'तिमिरोद्‍धूलिअभवणं' (कुमा)

उद्‍धूवणिया :: स्त्री [उद्‍धूपनिका] धुप देना, 'केवि हु बिरालतन्नयपुरीसमीसेहि गुग्गुलाइहिं। उव्वरियम्मि खिवित्ता उद्धूवणियं पयच्छंति।' (सुर १४, १७४)।

उद्‍धूविअ :: वि [उद्‍धूपित] जिसको धूप किया गया हो वह (विक्र ११३)।

उद्धोस :: पुं [उद्धर्ष] उल्लास, ऊँचा होना (सट्ठि ९५); 'जं जं इह सुहुमबुद्धीए चिंतिज्जइ तं सव्वं रोमुद्धोसं जणेइ मह अम्मो' (सुपा ६४)।

उन्न :: न [ऊर्ण] ऊन, भेड़ या बकरी के रोम। °मय वि [°मय] ऊन का बना हुआ, 'गोवालियाण विदं नच्चावइ फारमुत्तियाहारं। उन्नमयवासनिवसणपीणुन्नयथणहरा भोगं।।' (सुपा ४३२)।

उन्न :: (अप) वि [विषण्ण] विषाद-प्राप्‍त, खिन्न (षड्)।

उन्नइ :: देखो उण्णइ (काल; सुपा २५७; प्रासू २८; सार्ध ३४)।

उन्नइज्जमाण :: देखो उन्ना।

उन्नइय :: वि [उन्नीत] ऊँचा लिया हुआ (पउम १०५, ५७)।

उन्नंद :: सक [उद् + नन्द्] अभिनन्दन करना। कवकृ. 'हिययमालासहस्सेहिं उन्नंदिज्जमाणे' (कप्प)।

उन्नय :: देखो उण्णय (सुपा ४७६; सम ७१; कप्प)।

उन्ना :: देखो उण्णा। °मय वि [°मय] ऊन का बना हुआ (सुपा ६४१)।

उन्नाडिय :: न [उन्नाटित] हर्षं-द्योतक आवाज (स ३७६)।

उन्नाम :: पुं [उन्नाम] १ ऊँचाई। २ अभिमान, गर्व (सम ७१)

उन्नामिअ :: वि [उन्नमित] ऊँचा किया हुआ (पाअ; महा, स ३७७)।

उन्नालिअ :: वि [दे] देखो उण्णालिअ; 'उन्ना- लिअं उन्नामिअं' (पाअ)।

उन्नाह :: पुं [उन्नाह] ऊँचाई (पाअ)।

उन्निअ :: देखो उण्णिअ = और्णिक (ओघ ७०५)।

उन्निक्ख :: सक [उन्नि + खन्] उखाड़ना, उन्मू- लन करना। भवि. उन्निक्खिस्सामि (सुअ २, १, ६)। कृ. उन्निक्खेयव्व (सुअ २, १, ७)।

उन्निक्खमण :: न [उन्निष्क्रमण] दीक्षा छोड़ कर फिर गृहस्थ होना, साधुपन छोड़कर फिर गृहस्थ बनना (उप १३० टी; ३९६)।

उन्नी :: देखो उण्णी। कवकृ. उन्नइज्जमाण (कप्प)।

उन्हाल :: (अप) पुं [उष्णकाल] ग्रीष्म ऋतु (भवि)।

उपक्खर :: न [उपस्कर] घर का उपकरण (उत्त ६, ६)।

उपंत :: न [उपान्त] १ पिछला या पीछे का भाग। २ वि. समीपस्थ (गा ९६३)

उपरि, उपिरि :: देखो उवरि (विसे १०२१; षड्)।

उपरिल्ल :: देखो उवरिल्ल (षड्)।

उपवज्जमाण :: देखो उववाय = उप + वादय्।

उपसप्प :: देखो उवसप्प। उपसप्पइ (षड्)। संकृ. उपसप्पिय (नाट)।

उपाणहिय :: पुंस्त्री [उपानत्] जूता, 'अन्न- दिणे जंपाणेपाणहिए मुत्तमारुढा' (सुपा ३९२); 'तह तं निउपाणहियाउवि वाहिस्सं' (सुपा ३९२)।

उप्प :: देखो ओप्प = अर्पय्। उप्पेइ (पि १०४; हे १, ३६९)।

उप्पइअ :: वि [उत्पतित] ऊँचा गया हुआ, उड़ा हुआ; 'सेवि य आगासे उप्पइए' (उवा; सुर ३, ६६)।२ उन्नत, ऊँचा (आचा) ३ उद्‍भूत, उत्पन्न (उत्त २) ४ न. उत्पतन, उड़ना (औप)

उप्पइअ :: वि [उत्पाटित] उत्थापित, उठाया हुआ; 'खुडिउप्पइअमुणालं दट्‍ठूण पिअं व सिढिलवलअं णलिणिं' (से १, ३०)।

उत्पइअव्व, उप्पइउं :: देखो उप्पय = उत् + पत्।

उप्पंक :: वि [दे] १ बहु, अत्यन्त। २ पुं. पङ्क, कीचड़, काँदो। ३ उन्नति (दे १, १३०) ४ समूह, राशि (दे १, १३०; पाअ; गउड; स ४३७)

उप्पंग :: पुं [दे] समूह, राशि; 'णवपल्लवं विसणणा, पहिआ पेच्छंति चूअरुक्खस्स। कामस्स लोहिउप्पंगराइअं हत्थभल्लं व।।' (गा ५८५)।

उप्पज्ज :: अक [उत् + पद्] उत्पन्न होना। उप्पज्जंति (कप्प)। वकृ. उप्पज्जंत, उप्पज्ज- माण (से ८, ५५; सम्म १३४; भग; विसे ३३२२)।

उप्पड :: सक [उत् + पत्] उड़ना, ऊँचा जाना, कूदना (प्रामा)।

उप्पड :: पुं [उत्पट] त्रीन्द्रिय जन्तु-विशेष, क्षुद्र कीट-विशेष (राज)।

उप्पडिअ :: देखो उप्पइअ (नाट)।

उप्पण :: सक [उत् + पू] धान्य वगैरह को सूप आदि से साफ-सुथरा करना। कर्म. 'साली वीही जवा य लुव्वंतु मलिज्जंतु उप्पणिज्जंतु य' (पणह १, २)।

उप्पणण :: न [उत्पवन] सूप आदि से धान्य वगैरह को साफ-सुथरा करना (दे १, १०३)।

उप्पण्ण :: वि [उत्पन्न] उत्पन्न, संजात, उद्‍भूत (भग; नाट)।

उप्पत्त :: वि [दे] १ गलित। २ विरक्त (षड्)

उप्पत्ति :: वि [उत्पत्ति] उत्पत्ति, प्रादुर्भाव (उव)।

उप्पत्तिया :: स्त्री [औत्पत्तिकी] बुद्धि-विशेष, बिना शास्त्राभ्यासादि के ही होनेवाली बुद्धि, स्वभाविक मति (ठा ४, ४; णाया १, १)।

उप्पन्न :: देखो उप्पण्ण (उवा; सुर २, १६०)।

उप्पय :: सक [उत् + पत्] उड़ना, कूदना। उप्पयइ (महा)। वकृ. उप्पयंत, उप्पयमाण (उप १४२ टी; णाया १, १९)। संकृ. उप्प- इत्ता (औप)। कृ. उप्पइअव्व (से ६, ७८)। हेकृ. उप्पइउं (सुर ६, २२२)।

उप्पय :: देखो उप्पव। वकृ. उप्पअंत (से ५, ५६)।

उप्पय :: पुं [उत्पात] १ उत्पतन, ऊँचे जाना, कूदना, उड्डयन। २ उत्पत्ति; 'अवट्ठिए चले मंदपडिवाउप्पयाई य' (विसे ५७७) °निवय पुं [°निपात] १ ऊँचा-नीचा होना; 'खरपवणुद्‍धुयसायरतरंगवेगेहिं हीरए नावा। गुरुकुल्लोलवसुट्ठियनंगरनियरेण धरियावि।। अणवरयतरंगेहिं उप्पयनिवयं कुणंतिया वहइ' (सुर १३, १९७)। २ नाट्य-विधि का एक प्रकार (जीव ३)

उप्पयण :: न [उत्पतन] ऊँचा जाना, उड्डयन (ठा १०; से ६, २४)।

उप्पयण :: न [उत्प्लवन] जल को लाँघना, तैरना (से ५, ६०)।

उप्पयणी :: स्त्री [उत्पतनी] विद्या-विशेष (सूअ २, २, २७)।

उप्परि :: (अप) देखो उवरि (हे ४, ३३४; पिंग)।

उप्परिवाडि :: °डी स्त्री [उत्परिपाटि, °टी] उलटा क्रम, विपर्यास, विपर्ययः 'उप्परिवाड़ी- वहणे चाउम्मासा भवे लहुगा' (गच्छ १)।

उप्परोप्पर :: अ [उपर्युपरि] ऊपर-ऊपर (स १४०)।

उप्पल :: न [उत्पल] १ कमल, पद्म (णाया १, १; भग) २ विमान-विशेष; (सम ३८) ३ संख्या-विशेष, 'उप्पलंग को चौरासीलाख से गुणने पर जो संख्या लब्ध हो वह (ठा २, ४) ४ सुगन्धि द्रव्य-विशेष; 'परमुप्पलगंधिए' (जं ३) ५ पुं. परिव्राजक-विशेष (आचू १) ६ द्वीप-विशेष। ७ समुद्र-विशेष (पणण १५)। °वेंटग पुं [°वृन्तक] आजीविक मत का एक साधु-समाज (औप)

उप्पलंग :: न [उत्पलङ्क] संख्या-विशेष, 'हुहुय' को चौरीसी लाख से गुणने पर जौ संख्या लब्ध हो वह (ठा २, ४)।

उप्पला :: स्त्री [उत्पला] १ एक इन्द्राणी, काल नामक पिशाचेन्द्र की एक अग्र-महिषी (ठा ४, १) २ इस नाम का 'ज्ञाताधर्मकथा' का एक अध्ययन (णाया २, १) ३ स्वनाम ख्यात एक श्राविका (भग १२, १) ४ एक पुष्करिणी (जीव ३)

उप्पलिणी :: स्त्री [उत्पलिनी] कमलिनी, कमल का गाछ या पौधा (पणण १)।

उप्पल्ल :: वि [दे] अध्यासित, आरूढ़ (षड्)।

उप्पव :: सक [उत् + प्लु] १ लाँघना, पार करना, तैरना। २ ऊँचा जाना, उड़ना। वकृ. उप्पवंत, उप्पवमाण (से ५, ६१; ८, ८६)

उप्पवइय :: वि [उत्प्रव्रजित] जिसने दीक्षा छोड़ दी हो वह, साधु होकर फिर गृहस्थ बना हुआ (स ४८५)।

उप्पह :: पुं [उत्पथ] उन्मार्ग, कुमार्ग; 'पंथाउ उप्पहं नेंति' (निचू ३; से ४, २६; हेका २५९). °जाइ वि [°यायिन्] उलटे रास्ते जानेवाला, विपथ-गाम (ठा ४, ३)।

उप्पा :: स्त्री देखो उप्पाय = उत्पाद (ठा १ — पत्र १९; ठा ५, ३ — पत्र ३४६)।

उप्पाइ :: वि [उत्पादिन्] उत्पन्न होनेवाला (विसे २८१९)।

उप्पाइत्ता :: देखो उप्पाय = उत् + पादय्।

उप्पाइत्तु :: वि [उत्पादयितृ] उत्पादक, उत्पन्न करनेवाला (ठा ७)।

उप्पाइय :: न [औत्पातिक] भूकंप आदि उत्पातों का सूचक शास्त्र (सुअ १, १२, ९)।

उप्पाइय :: वि [उत्पादित] उत्पन्न किया हुआ, 'उप्पाइयाविच्छिणणकोउहलत्ते' (राय)।

उप्पाइय :: वि [औत्पातिक] १ अस्वाभाविक, कृत्रिम; 'उप्पाइयपव्वयं व चंकमंतं'। २ आक- स्मिक, अकस्मात् होनावाला; 'उप्पाइया वाही' (राज) ३ न. अनिष्ट-सूचक आकस्मिक उपद्रव, उत्पाद; 'भो भो नावियपुरिसा सकन्नधारा समु- ज्जया होह। दीसइ कयंतवयणं व भीममुप्पाइयं जेण' (सुर १३, १८९)

उप्पाएउं, उप्पाएंत, उप्पाएत्तए :: देखो उप्पाय = उत् + पादय्।

उप्पाड :: सक [उत् + पाटय्] १ ऊपर उठाना। २ उखाड़ना, उन्मुलन करना। उप्पा- डेह (पणह १, १; ९५; काल)। कृ. उप्पा- डणिज्ज (सुपा २४६)। संकृ. उप्पाडिय (नाट)

उप्पाड :: सक [उत् + पादय्] उत्पन्न करना। संकृ. उप्पाडिऊण (विसे ३३२ टी)।

उप्पाड :: पुं [उत्पाट] उन्मूलन, उत्फनन; 'नयणोप्पाडो' (उप १४९ टी; ९८६ टी)।

उप्पाडण :: न [उत्पाटन] १ उत्थापन, ऊपर उठाना। २ उन्मुलन, उत्खनन (स २६९; राज)

उप्पाडिय :: वि [उत्पाटित] १ ऊपर उठाया हुआ (पाअ; प्रारू) २ उन्मुलित (आक)

उप्पाडिय :: वि [उत्पादित] उत्पन्न किया हुआ; 'उप्पाडियणाणाणं खंदगसीसाण तेसिं नमो' (भाव १३)।

उप्पादअ :: वि [उत्पादक] उत्पन्न कर्त्ता (प्रयौ १७)।

उप्पादीअमाण :: देखो उप्पाय = उत् + पादय्।

उप्पाय :: सक [उत् + पादय्] उत्पन्न करना, बनाना। उप्पाएहि (काल)। वकृ. उप्पाएंत, उप्पायंत (सुर २, २२; ९, १३)। संकृ. उप्पाएत्ता (भग)। हेकृ. उप्पाइत्ता, उप्पा- एउं, उप्पाएत्तए (राज, पि ४६५; णाया १, ४)। कवकृ. उप्पादिअमाण (शौ) (नाट)।

उप्पाय :: पुंन [उत्पात] १ उत्पतन, ऊर्ध्वं-गमन; 'नं सग्गं गंतुमणा सिक्खंति नहंगणुप्पायं' (सुपा १८०) २ आकस्मिक उपद्रव; 'पव- हणं च पासइ समुद्दमज्झे उप्पाएण छम्मासे भमंतं ताहे अणेण तं उत्पायं उवसामियं' (महा) ३ आकस्मिक उपद्रव का प्रतिपादक शास्त्र, निमित्त-शास्त्र-विशेष (ठा ९; सम ४७; पणह १, ४)। °निवाय पुं [°निपात] चढ़ना और उतरना (स ४११)

उप्पाय :: पुं [उत्पाद] उत्पत्ति, प्रादुर्भाव (सुपा ९; कुमा)। °पव्वय पुं [पर्वत] एक प्रकार के पर्वंत, जहां आकर कई व्यन्तर-जातीय देव- देवियां क्रीड़ा के लिए विचित्र प्रकार के शरीर बनाते हैं (सम ३३; जीव ३)। °पुव्व न [°पूर्व] प्रथमपूर्वं, ग्रन्थाश-विशेष, बारहवें जैन अङ्ग-ग्रन्थ का एक भाग (सम २६)।

उप्पायग :: वि [उत्पादक] १ उत्पन्न करनेवाला। २ पुं. त्रीन्द्रिय जन्तु-विशेष, कीट-विशेष (वव ८)

उप्पायण :: न [उत्पादन] १ उत्पादन, उपार्जन (ठा ३, ४) २ वि. उत्पादक, उपार्जंक (पउम ३०, ४०)

उप्पायणया, उप्पायणा :: स्त्री [उत्पादना] १ उपार्जन, उत्पन्न करना। जैन साधु की भिक्षा का एक दोष (ओघ ७४६; ठा ३, ४; पिण्ड १)

उप्पायय :: वि [उत्पादक] उत्पन्न-कर्ता (सुख २, २५)।

उप्पाल :: सक [कथ्] कहना, बौलना। उप्पा- लइ (हे ४, २)। उप्पालसु (कुमा)।

उप्पाव :: सक [उत् + प्लावय्] १ लँघाना, तैराना। २ कुदाना, उड़ाना। उप्पावेइ (हे २, १०६). कवकृ. उप्पियमाण (उवा)

उप्पास :: सक [उत्प्र + अस्] हँसी करना। उप्पसिंति (सुख १, १६)।

उप्पाहल :: न [दे] उत्कंठा, उत्सुकता (पाअ)।

उप्पि :: सक [अर्पय्] देना। उप्पिउ (कप्प)।

उप्पिं :: अ [उपरि] ऊपर; 'कहि णं भंते ! जोइ- सिआ देवा पुरिवसंति ? गोयमा! उप्पि दीव- समुद्दाणं इमीसे रयणप्पभाए पुढ़वीए' (जीव ३; णाया १, ६; ठा ३, ४; औप)।

उप्पिंगलिआ :: स्त्री [दे] हाथ का मध्य भाग, करोत्संग (दे १, ११८)।

उप्पिंजल :: न [दे] १ सुरत, संभोग। २ रज, धूली। ३ अपकीर्त्ति, अपयश (दे १, १३५)

उप्पिंजल :: वि [उत्पिञ्जल] अति-आकुल, व्याकुल (कप्प)।

उप्पिंजल :: अक [उत्पिञ्जलय्] आकुल की तरह आचरण करना। वकृ. उप्पिंजलमाण (कप्प)।

उप्पिच्छ :: [दे] देखो उप्पित्थ; 'आहित्थं उप्पिच्छं च आउलं रोसभरियं च' 'भीयं दुय- मुप्पिच्छमुत्तालं च कमसो मुणोयव्वं' (जीव ३); 'हत्थी अह तस्स सवडहुत्तो पहाविओ आय- रुप्पिच्छो', 'रक्खससेन्‍नंपि आयरूप्पिच्छं' (पउम ८, १७५; १२, ८७); 'उप्पिच्छमंथरगईहिं' (भत्त ११६)।

उप्पिण :: देखो उप्पण। वकृ. उप्पिणिंत (सुपा ११)।

उप्पित्थ :: वि [दे] १ त्रस्त, भीत (दे १, १२९; से १०, ६१; स ५७४; पुप्फ ४४३; गउड); 'किं कायव्वविमूढ़ा सरणबूहूणा भयुप्पित्था' (सुर १२, १६०) २ कूपित, क्रुद्ध। ३ विधुर, आकुल (दे १, १२९; पाअ)

उप्पित्थ :: वि [दे] स्वास-युक्‍त (गीत) (राय ७७ टी)।

उप्पिय :: सक [उत् + पा] १ आस्वादन करना। २ फिर-फिर स्वास लेना। वकृ. उप्पियंत (पणह १, ३ — पत्र ५५; राज)

उप्पिय :: वि [अर्पित] अर्पण किया हुआ (हे १, २६९)।

उप्पियण :: न [उत्पान] फिर-फिर स्वास लेना (राज)।

उप्पियमाण :: देखो उप्पाव।

उप्पिलण :: न [उत्प्लावन] लाँघना (पिंड ४२२)।

उप्पिलाव :: देखो उप्पाव। उप्पिलावेइ। वकृ. उप्पिलावंत; 'जे भिक्खू सणणं नावं उप्पि- लावेइ, उप्पिलावंतं वा साइज्जइ' (निचू १८)।

उप्पीड :: पुं [दे. उत्पीड] समूह, राशि (से ४, ३७; ८, ३)।

उत्पीडण :: न [उत्पीडन] १ कस कर बाँधना। २ दबाना (से ८, ६७)

उप्पील :: सक [उत् + पीडय्] १ कस कर बाँधना। २ उठवाना; 'सणणं वा णावं उप्पीलावेज्जा (आचा २, ३, १, ११)। उप्पीलवेज्जा (पि २४०)

उप्पील :: पुं [दे] १ संघात, समूह (दे १, १२६; सुपा ९१; सुर ३, ११६; वज्जा ९०; पुप्फ ७३; धम्म १२ टी); 'हुयासणो दहे सव्वं जालुप्पीलो विणसए' (महा) २ स्थपुट, विषमोन्‍नत प्रदेश (दे १, १२६)

उप्पीलण :: न [उत्पीडन] पीड़ा, उपद्रव (स २७३)।

उप्पीलिय :: वि [उत्पीडन] कस कर बाँधा हुआ, 'उप्पीलियचिंघपट्टगहियाउहपहरणा' (पणह १, ३; विपा १, २)।

उप्पुअ :: वि [उत्प्लुत] उच्छलित, कूदा हुआ (से ६, ४८; पणह १, ३)।

उप्पुंसिअ :: देखो उप्पुसिअ (से ६, ८५)।

उप्पुणिअ :: वि [उत्पूत] सूप से साफ-सूथरा किया हुआ (पाअ)।

उप्पुण्ण :: वि [उत्पूर्ण] पूर्णं, व्याप्‍त (स २५)।

उप्पुलइअ :: वि [उत्पुलकित] रोमाञ्चित (स २८१)।

उप्पुसिअ :: वि [उत्प्रोञ्छित] लुप्‍त, प्रोञ्छित (से ६, ८५ गउड)।

उप्पूर :: पुं [उत्पूर] १ प्राचुर्य (पणह १, ३) २ प्रकृष्ट-प्रवाह (औप)

उप्पेक्ख :: (अप) देखो उविक्ख। उप्पेक्ख (पिंग)।

उप्पेक्ख :: सक [उत्प्र + ईक्ष्] संभावना करना, कल्पना करना। उप्पेक्खामि (स १४७)। उप्पेक्खेमि (स ३४६)।

उप्पेक्खा :: स्त्री [उत्प्रेक्षा] १ अलंकार-विशेष २ वितर्कणा, संभावना (गा ३३९)

उप्पेक्खिअ :: वि [उत्प्रेक्षित] संभावित, विकल्पित (दे १, १०९)।

उप्पेय :: न [दे] अभ्यंग, तैलादि की मालिश; 'पुव्वं च मंगलट्‍ठा उप्पेयं जइ करेइ गिहियाणं' (वव ६)।

उप्पेल :: सक [उद् + नमय्] ऊँचा करना, उन्‍नत करना। उप्पेलइ (हे ४, ३६)।

उप्पेलिअ :: वि [उन्नमित] ऊँचा किया हुआ, उन्‍नत किया हुआ (कुमा)।

उप्पेल्ल :: पुं [उन्नमन] ऊँचा करना (पउम ८, २७२)।

उप्पेस :: पुं [उत्पेष] त्रास, भय, डर (से १०, ६१)।

उप्पेहड :: वि [दे] उद्‍भट, आडम्बरवाला (दे १, ११६; पाअ; स ४४९)।

उप्फ :: देखो पुप्फ (गा ६३९)।

उप्फण :: सक [उत् + फण्] छाँटना, पवन में धान्य आदि का छिलका दूर करना। उप्फणंति, भूका. उप्फणिसु, भवि. उप्फ- णिंस्संति (आचा २, १, ६, ४)।

उप्फंदोल :: वि [दे] चल, अस्थिर (दे १, १०२)।

उप्फाल :: पुं [दे] खल, दुर्जंन (दे १, ९०; पाअ)।

उप्फाल :: सक [उत् + पाटय्] १ उठाना। २ उखाड़ना। उप्फालेइ (हे २, १७४)

उप्फाल :: सक [कथ्] कहना, बोलना। उप्फालेइ (हे २, १७४)।

उप्फाल :: वि [कथक] कहनेवाला, सूचक (स ६४४)।

उप्फालिअ :: वि [कथित] १ कथित। २ सूचित (पाअ; उप ७२८ टी; स ४७८)

उप्फिड :: अक [उत् + स्फिट्] कुण्ठित होना, असमर्थं होना। उप्फिडइ, उप्फेडइ; 'एमाइबिगप्पणेहिं वाहिज्जमाणो उप्फि-(ण्फे)- डइ परसू' (महा)।

उप्फिड :: अक [उत् + स्फिट्] मंडूक की तरह कूदना, उड़ना। उप्फिडइ (उत्त २७, ५)। वकृ. उप्फिडंत (पव २)।

उप्फिडण :: न [उत्स्फेटन] कुण्ठित होना (स ६९८)।

उप्फिडिय :: वि [उत्स्फिटित] १ कुण्ठित। २ बाहर निकला हुआ; 'कत्थइ नक्कुक्क- त्तियसिप्पिपुडुप्फिडियमोत्तियाइनो' (सुर १३, २१३)

उप्फुंकिआ :: स्त्री [दे] धोबिन, कपड़ा धोनेवाली (दे १, ११४)।

उप्फुंडिअ :: वि [दे] आस्तृत, बिछाया हुआ (दे १, ११३)।

उप्फुण्ण :: वि [दे] आपूर्ण, भरा हुआ, व्याप्‍त (दे १, ९२; सुर १, २३३; ३, २१५)।

उप्फुन्न :: वि [दे] स्पृष्ट, छुआ हुआ (पव १५८ टी)।

उप्फुल्ल :: वि [उत्फुल्ल] विकसित (पाअ; से ६, ९६)।

उप्फुल्लिआ :: स्त्री [उत्फुल्लिका] क्रीड़ा-विशेष, पाँव पर बैठ कर बारंबार ऊँचा-नीचा होना; 'उप्फुलिआइ खेल्लउ, मा णं वारेहि होउ परिऊढा। मा जहणभारगरुई, पुरिसाअंतो किलिम्मिहिइ' (गा १९६)।

उप्फुस :: सक [उत् + स्पृश्] सिंचना, छिड- कना। संकृ. उप्फुसिऊण (राज)।

उप्फेणउप्फेणिय :: क्रिवि [दे] क्रोध-युक्‍त प्रबल वचन से; 'उप्फेणउप्फेणियं सीहरायं एवं वयासी' (विपा १, ९ — पत्र ९०)।

उप्फेस :: पुं [दे] १ त्रास, भय (दे १, ९४) २ मुकुट, पगड़ी, शिरोवेष्टन; 'पंच रायककुहा पणणता, तं जहा--खग्गं छत्तं उप्फेसं उवाहणाउ बालवियणी' (ठा ५, १ — पत्र ३०३; औप; आचा २, ३, २, २)

उप्फेसण :: न [दे] डराना, भयोत्पादन (सुख ३, १)।

उप्फोअ :: पुं [दे] उद्‍गम, उदय (दे १, ९१)।

उबुस :: सक [भृज्] मार्जन करना, शुद्धि करना, साफ करना। उबुसइ (षड्)।

उब्बंध :: सक [उद् + बन्ध्] १ फाँसी लगाना, फाँसी लगा कर मरना। २ वेष्टन करना। वकृ. 'जलनिहितडम्मि दिट्ठा उब्बं धंती इहप्पाणं' (सुपा १६०)। संकृ. उब्बंधिअ, उब्बंधिऊण (नाट; पि २७०; स ३४६)

उब्बंधण :: न [उद्‍बन्धन] फाँसी लगाना, उल्लम्बन (पणह २, ५)।

उब्बण :: बि [उल्बण] उत्कुट (पि २९६)।

उब्बद्ध :: वि [उद्‍बद्ध] १ जिसने फाँसी लगाई हो वह, फाँसी लगा कर मरा हुआ। २ वेष्ठित; 'भुअंगसंघायउब्बद्धो' (सुर ८, ५७) ३ शिक्षक के साथ शर्त्तोँ से बँधा हुआ, शिक्षक के आयत्त (ठा ३); 'सिप्पाई सिक्खंतो सिक्खाबेंतस्स देइ जा सिक्खा। गहियम्मिवि सिक्खम्मि, जं चिरकालं तुं उब्बद्धो' (बृह)

उब्बिंब :: वि [दे] १ खिन्‍न, उद्विग्‍न। २ शून्य ३ क्रान्त। ४ प्रकट वेष वाला। ५ भीत, डरा हुआ। ६ उद्‍भट (दे १, १२७; वज्जा ६२)

उब्बिंबल :: वि [दे] कलुष जलवाला (दे १११ टी)।

उब्बिंबल :: न [दे] कलुष जल, मैला पानी (दे १, १११)।

उब्बिबिर :: वि [दे] खिन्‍न, उद्विग्‍न (कप्पू)।

उब्बुक्क :: सक [उद् + बुक्क्] बोलना, कहना। उब्बुक्कइ (हे ४, २)।

उब्बुक्क :: न [दे] १ प्रलपित, प्रलाप। २ संकट। ३ बलात्कार (दे १, १२८)

उब्बुड :: अक [उद् + ब्रूड्] तैरना।

उब्बुड, उब्बुड्ड :: पुं [उद्‍ब्रूड़] तैरना। °निबुड, °निब्बुड्डण न [निब्रूड, °ण] उभचुभ करना (पणह १, ३; उप १२८ टी)।

उब्बुड्ड :: वि [उद्‍ब्रूडित] उन्मग्‍न, तीर्णं (गा ३७; स ३९०)।

उब्बुड्डण :: न [उद्‍ब्रुडन] उन्मज्जन (कप्पू)।

उब्बुह :: अक [उत् + क्षुभ्] संक्षुब्ध होना। उब्बुहइ (प्राकृ ७५)।

उब्बूर :: वि [दे] १ अधिक, ज्यादा। २ पुं. संघात, समूह। ३ स्थपूट, विषमोन्‍नत प्रदेश (दे १, १२६)

उब्भ :: सक [ऊर्ध्वय्] ऊँचा करना, खड़ा करना। उब्भेउ (वज्जा ९४)। उब्भेह (महा)।

उब्भ :: देखो उड्‍ढ (हे २, ५६; सुर २, ६; षड्)।

उब्भंड :: पुं [उद्‍भाण्ड] १ उत्कट भाँड़, बहुरूपा, निर्लज्ज हंड़ा, उग्र विदूषक; 'खरउत्ति कहं जाणसि देहागारा कहिंसि से हिंदि। छिक्कोवण उब्भंडो णीयासि दारुणसहावो।' (ठा ६ टी) २ न. गाली, कुत्सित-वचन; 'उब्भंडवयण- (भवि)

उब्भंत :: वि [दे] ग्लान, बीमार (दे १, ९५; महा)।

उब्भंत :: वि[उद्‍भ्रान्त १ आकुल, व्याकुल, खिन्‍न (दे १, १४३); 'अवलंबह मा संकह ण इमा गहलंघिआ परिब्भमइ। अत्थक्कगज्जिउब्भंतहित्थहिअआ पहिअजाआ' (सा ३८६); 'भवभमणुब्भंतमा- णसा अम्हे' (सुर १५, १२३) २ मूर्च्छित (से १, ८) ३ भ्रान्तियुक्त, भौचक्का, चकित (हे २, १६४)

उब्भंत :: पुं [उद्‍भ्रान्त] प्रथम नरक-पृथिवी का चौथा नरकेन्द्रेक — एक नरक-स्थान (देवेन्द्र ३)।

उब्भग्ग :: वि [दे] गुण्ठित; व्याप्‍त; 'तिमि- रोब्भग्गणिसाए' (दे १, ९५; नाट)।

उब्भज्जि :: स्त्री [दे] कोद्रव-समूह (राज)।

उब्भड :: वि [उद्‍भट] १ प्रबल, प्रचण्ड; 'उब्भडपवणपकं पिरजयप्पडागाइ अइपयडं' (सुपा ४६); 'उब्भडकल्लोलभीसणारावे' (णामि ४) २ भयंकर, विकराल (भग ७, ६) ३ उद्धत, आडंबरी (पाअ); 'अइरोसो अइतोसो अइहासो दुज्जणेहिं संवासो। अइउब्भडो य वेसो पंचवि गरुयंपि लहुअंति।' (धम्म)

उब्भम :: पुं [उद्‍भ्रम] १ उद्वेग २ परिभ्रमण (नाट)

उब्भव :: अक [उद् + भू] उत्पन्न होना। उब्भवइ (पि ४७५; नाट)। वकृ. उब्भवंत (सुपा ५७१; ६५६)।

उब्भव :: अक [ऊर्ध्वर्य] ऊँचा करना, खड़ा करना।

उब्भव :: पुं [उद्‍भव] उत्पत्ति, प्रादुर्भाव (विसे; णाया १, २)।

उब्भविय :: वि [ऊर्ध्विन्] ऊँचा किया हुआ (उप पृ १३०; वज्जा १४)।

उब्भाअ :: वि [दे] शान्त, ढंढा; (दे १, ९६)।

उब्भाम :: सक [उद् + भ्रामय्] घुमाना। उब्भामेइ (राय १२९)।

उब्भाम :: पुं [उद्‍भ्राम] १ परिभ्रमण (ठा ४) २. वि. परिभ्रमण करनेवाला (वव १)

उब्भामइल्ला :: स्त्री [उद्‍भ्रामिणी] स्वैरिणी, कुलटा स्त्री (वव ४; बृह ६)।

उब्भामय :: पुं [उद्‍भ्रामक] जार, उपपति (पिंड ४२०)।

उब्भामग :: पुं [उद्‍भ्रामक] १ पारदारिक, परस्त्री-लम्पट (ओघ ९० भा) २ वायु-विशेष, जो तृण वगैरह को ऊपर ले उड़ता है (जो ७) ३ वि. परिभ्रमण करनेवाला (वव १)

उब्भामिगा, उब्भामिया :: स्त्री [उद्‍भ्रामिका] कुलटा स्त्री, स्वैरिणी (वव ६; उप पृ २९४)।

उब्भालण :: न [दे] १ सूप आदि से साफ- सुथरा करना, उत्पवन। २ वि. अपूर्व, अद्धि- तीय (दे, १, १०३)

उब्भालिअ :: वि [दे] सूप आदि से साफ किया हुआ, उत्पूत; 'उब्भालिअं उप्पुणिअं' (पाअ)।

उब्भाव :: अक [रम्] क्रीड़ा करना, खेलना। उब्भावइ (हे ४, १६८; षड्)। वकृ़. उब्भा- वंत (कुमा)।

उब्भावणया, उब्भावणा :: स्त्री [उद्‍भावना] १ प्रभा- वना, गौरव, उन्नति; 'पवयण- उब्भावणया' (ठा १० — पत्र ५१४) २ उत्प्रेक्षा, वितर्कणा; 'असब्भावउब्भावणाहिं' (णाया १, १२ — पत्र १७४) ३ प्रकाशन, प्रकटीकरण (णंदि)

उब्भाविअ :: न [रमण] सुरत, क्रीड़ा, संभोग (दे १, ११७)।

उब्भास :: सक [उद् + भासय्] प्रका- शित करना। वकृ. उब्भासंत, उब्भासेंत (पउम २८, ३६; ३, १५५)।

उब्भासिय :: वि [उद्‍भासित] प्रकाशित (हेका २८२); 'भवणाओ नीहरंते जिणम्मि चाउव्विहेहिं देवेहिं। इंतेहि य जंतेहि य कहमिव उब्भासियं गयणं।।' (सुपा ७७)।

उब्भासुअ :: वि [दे] शोभाहीन (दे १, ११०)।

उब्भासेंत :: देखो उब्भास

उब्भि :: देखो उब्भिय = उदि्भद् (आचा)।

उब्भिउडि :: वि [उद्‍भ्रुकुटि] भौंह चढ़ाया हुआ (गउड)।

उब्भिज्जा :: स्त्री [उद्‍भेद्या] भाजी, एक तरह का शाक (पिंड ६२४)।

उब्भिंद :: सक [उद् + भिद्] १ ऊँचा करना, खड़ा करना। २ विकसित करना। ३ अंकु- रित करना। ४ खोलना। कर्म. उब्भिज्जंति। वकृ. उब्भिंदमाण (आचा २, ७)। कवकृ. 'भत्तिभरनिब्भरुब्भिज्जमाणघणपुलय- पूरियसरीरा' (सुपा ६५६ ६७; भग १६, ६)।। संकृ., उब्भिंदय, उब्भिंदिउं (पंचा १३; पि ५७४)

उब्भिग :: देखो उब्भिय = उदि्भद् (पणह १, ४)।

उब्भिडण :: ४ [उद्‍भेदन] लग कर अलग होना, आघात कर पीछे हटना; 'जेसुं चिय कुंठिज्जइ, रहसुब्भिडणमुहलो महिहरेसु। तेसुं चेय णिसिज्जइ, पहिरोहंदोलिरो कुलिसो' ।। (गउड)।

उब्बिण्ण, उब्भिन्न :: वि [उद्‍भिन्न] १ अंकुरित (ओघ ११३); उब्भिन्‍ने पाणियं पडियं' (सुर ७, ११४) २ उद्‍घाटित, खोला हुआ। ३ न. जैन साधुओं के लिए भिक्षा का एक दोष, मिट्टी वगैरह से लिप्‍त पात्र को खोलकर उसमें से दी जाती भिक्षा; 'छगणाइ- णोवउत्तं उब्भिंदिय जं तमुब्भिणणं' (पंचा १३; ठा ३, ४) ४ वि. ऊँचा हुआ, खड़ा हुआ; 'हरिसवसुब्भिन्नरोमंचा' (महा)

उब्भिय :: वि [उद‍भिद्] पृथ्वी को फाड़कर उगनेवाली वनस्पति (पणह १, ४)।

उब्भिय :: वि [ऊर्ध्विन्] ऊँचा किया हुआ, खड़ा किया हुआ (सुपा ८९; महा; वज्जा ८८)।

उब्भिय :: न [उदि्ेभद्] १ लवण-विशेष, समुद्र के किनारे पर क्षार जलके संसर्गं से होनेवाला नोन (आचा २, १, ६, ५) २ पुंन. खंजरीट, शलभ आदि प्राणी (संबोध २०; धर्मंसं ७२; सुअ १, ९, ८)

उब्भीकय :: वि [ऊर्ध्वीकृत] ऊँचा किया हुआ, 'उब्भीकयबाहुजुओ' (उप ५९७ टी)।

उब्भुअ :: अक [उद् + भू] उत्पन्न होना। उब्भिअइ (हे ४, ६०)।

उब्भुआण :: वि [दे] १ उबलता हुआ, अग्‍नि से तप्‍त जो दूध वगैरह उछलता है वह (दे १, १०५; ७, ८१)

उब्भुग्ग :: वि [दे] चल, अस्थिर (दे १, १०२)।

उब्भुत्त :: सक [उत् + क्षिप्] ऊँचा फेंकना। उब्भुत्तइ (हे ४, १४४)।

उब्भुत्तिअ :: वि [उत्क्षिप्त] ऊँचा फेंका हुआ (कुमा)।

उब्भुत्तिअ :: वि [द] उद्दीपित, प्रदीपित (पाअ)।

उब्भूअ :: वि [उद्‍भूत] १ उत्पन्न (सुर ३, २३६) २ आगन्तुक कारण (विसे १४७६)

उब्भूइआ :: स्त्री [औद्‍भूतिकी] श्रीकृष्ण वासु- देव की एक भेरी जो किसी आगन्तुक प्रयो- जन के उपस्थित होने पर बजाई जाती थी (विसे १४७६)।

उब्भेअ :: पुं [उद्‍भेद्] उद्‍गम, उत्पत्ति; 'उम्हा- अंतगिरियडडंसीमाणिव्वडियकंदलुब्भेयं' (गउड); 'अभिणवजोव्वणउब्भेयसुन्दरा सयलमणहरा- रावा' (सुर ११, ११६)।

उब्भेइम :: वि [उद्‍भेदिम] स्वयं उत्पन्न होनेवाला, उब्भेइमं पुण सयंरुहं जहा सामुद्दं लोणं' (निचू ११)।

उभ :: पुं [उभ] उभय, दोनों (पंच ६, ५८)।

उभओ :: अ [उभयतस्] द्विधा, दोनों तरह से, दोनों ओर से (उव; औप)।

उभज्जायण :: देखो ओमज्जायण (सुज्ज १०, १६)।

उभय :: वि [उभय] युगल, दो, दोनों (ठा ४, ४)। °त्थ अ [°त्र] दोनों जगह (सुपा ६४८)। °लोग पुं [°लोक] यह और पर जन्म (पंचा ११)। °हा अ [°था] दोनों तरफ से, द्विधा (सम्म ३८)।

उमच्छ :: सक [वञ्‍च्] ठगना, धूर्त्तना। उमच्छइ (हे ४, ९३)। वकृ. उमच्छंत (कुमा)।

उमच्छ :: सक [अभ्या + गम्] सामने आना। उमच्छइ (षड्)।

उमा :: स्त्री [उमा] गौरी, पार्वंती (पाअ)।२ द्वितीय वासुदेव की माता (सम १५२) ३ देव-गणिका-विशेष (आचू) ४ स्त्री-विशेष (कुमा)। °साइ [°स्वाति] स्वनाम धन्य एक प्राचीन जैनाचार्य और विख्यात ग्रन्थकार (सार्धं ५०)

उमाण :: न [दे] प्रेवश (आचा २, १, ९)।

°उमार :: देखो कुमार (अच्चु २९)।

उमीस :: वि [उन्मिश्र] मिश्रित, 'पलिलसिर- पलिअपीवलकरणघुसणुमीसणहवणजलं' (कुमा)।

उमुय :: सक [उद् + मुच्] छोड़ना। वकृ. उमुयंत (उत्त ३०, २३)।

उम्मइअ :: वि [द] १ मूढ, मूर्ख (दे १, १०२) २ उन्मत्त (गा ४९८; वज्जा ४२)

उम्मऊह :: वि [उन्मयूख] प्रभाशाली (गउड)।

उम्मंड :: पुं [दे] १ हठ। वि. उद्‍वृत्त (दे १, १२४)

उम्मंथिय :: वि [दे] दग्ध, जला हुआ (वज्जा ५२)।

उम्मग्ग :: वि [उन्मग्न] १ पानी के ऊपर आया हुआ, तीर्ण (राज) २ न. उन्मज्जन, तैरना, जल के ऊपर आना (आचा)। °जला स्त्री [°जला] नदी-विशेष, जिसमें पत्थर वगैरह भी तैर सकते हैं (जं ३)

उम्मग्ग :: पुं [उन्मार्ग] १ कुपथ, उलटा रास्ता, विपरीत मार्ग (सुर १, २४३; सुपा ९५) २ छिद्र, रन्ध्र (आचा) ३ अकार्यं करना (आचा)

उम्मग्गणा :: स्त्री [उन्मार्गणा] छिद्र, विवर (आचा)।

उम्मच्छ :: न [दे] १ क्रोध, गुस्सा (दे १, १२५; से ११, १९; २०) २ वि. असंबद्ध; ३ प्रकारान्तर से कथित (दे १, १२५)

उम्मच्छर :: वि [उन्मत्सर] १ ईर्ष्यालु, द्वेषी (से ११, १४) २ उद्‍भट (गा १२७; ६७५)

उम्मच्छविअ :: वि [दे] उद्‍भट (दे १, ११६)।

उम्मच्छिअ :: वि [दे] १ रुषित, रुष्ट; २ आकुल, व्याकुल (दे १, १३७)

उम्मज्ज :: न [उन्मज्जन] तरण, तैरना। °णिमज्जिया स्त्री [°निमज्जिका] उभचुभ करना; पानी में ऊँचा-नीचा होना (ठा ३, ४)।

उम्मज्जग :: वि [उन्मज्जक] १ उन्मज्जन करनेवाला, गोता लगानेवाला। २ उन्मज्जन से ही स्‍नान करनेवाले तापसों की एक जाति (और; भग ११, ९)

उम्मड्डा :: स्त्री [दे] १ बलात्कार, जबरदस्ती (दे १, ९७) २ निषेध, अस्वीकार (उप ७२८ टी)

उम्मनण :: वि [उन्मनस्] उत्कण्ठित, उत्सुक (उप पृ ५८)।

उम्मत्त :: पुं [दे] १ धतुरा, वृक्ष-विशेष। २ एरण्ड, वृक्ष-विशेष (दे १, ८९)

उम्मत्त :: वि [उन्मत्त] १ उद्धत, उन्माद-युक्त (बृह १) २ पागल, भूताविष्ट (पिंड ३८०)। °जला स्त्री [°जला] नदी-विशेष (ठा २, ३)

उम्मत्तय :: न [दे] धतूरे का फल; 'उम्मत्तय- रसरसिओ पिच्छइ नन्‍नं बिणा कणयं' (मोह २२)।

उम्मत्थ :: सक [अभ्या + गम्] सामने आना। उम्मत्थइ (हे ४, १६५; कुमा)।

उम्मत्थ :: वि [दे] अघो-मुख, विपरीत (दे १, ९३)।

उम्मर :: पुं [दे] देहली, द्वार के नीचे की लकड़ी (दे १, ९५)।

उम्मरिअ :: वि [दे] उत्खात, उन्मूलित (दे १, १००; षड्)।

उम्मल :: वि [दे] स्त्यान, कठिन, घट्ट (दे १, ९१)।

उम्मलण :: न [उन्मदर्न] मसलना (पाअ)।

उम्मल्ल :: पुं [दे] १ राजा, नृप। २ मेघ, बारिश। ३ बलात्कार। ४ वि. पीवर, पुष्ट (दे १, १३१)

उम्मल्ला :: स्त्री [दे] तृष्णा (दे १, ९४)।

उम्महण :: वि [उन्मथन] नाशक, विनाशकारी (सुर ३, २३१)।

उम्माइअ :: वि [उन्मादित] उन्मत्त किया हुआ (पउम २४, १५)।

उम्माडिय :: न [दे] उल्मुक, जलता काष्ठ, गुज- राती में 'उबाडुं' (सिरि ९८०)।

उम्माण :: न [उन्मान] १ माप, माशा आदि तूला-मान (ठा २, ४) २ जो तौला जाता है वह (ठा १०)

उम्माद :: देखो उम्माय (भग १४, २)।

उन्मादइत्तअ :: (शौ) वि [उन्मादयितृ] उन्माद करानेवाला (अभि ४२)।

उम्माय :: अक [उद् + मद्] उन्माद करना, उन्मत्त होना। वकृ. उम्मायंत (उप ९८६ टी)।

उम्माय :: पुं [उन्माद] १ चित्त-विभ्रम, पागल- पन (ठा ६; महा) २ कामोधीनता, विषय में अत्यन्तासक्ति (उत्त १६) ३ आलिङ्गन (विसे)

उम्माल :: देखो ओमाल (पाअ)।

उम्मालिय :: वि [उन्मालित] सुशोभित (भवि)।

उम्माह :: पुं [उन्माथ] विनाश, 'निसेविज्जंतावि (कामभोगा) करेंति अहियगुम्माहयं' (महा)।

उम्माहय :: वि [उन्माथक] विनाशक; 'अहो उम्माहयत्तं बिसयाणं' (महा; भवि)।

उम्माहि :: वि [उन्माथिन्] विनाशक (महा- टि)।

उम्माहिय :: वि [उन्माथित] विनाशित (भवि)।

उम्मि :: पुंस्त्री [ऊर्मि] १ कल्लोल, तरंग (कुमा; दे ३, ६) २ भीड़, जन-समुदाय (भग २, १)। °मालिणी स्त्री [°मालिनी] नदी-विशेष (ठा २, ३)

उम्मिंठ :: वि [दे] हस्तिपक-रहित, माहवत- रहित, निरंकुश; 'उम्मिंठकरिवरो इव उम्मू- लइनयसमूहं सो' (सुपा ३४८; २०३)।

उम्मिण :: सक [उद् + मी] तौलना, नाप करना। कर्म. उम्मिणिज्जइ (अणु १५३)।

उम्मिय :: वि [उन्मित] प्रमित, 'कोडाकोडि- जुगुम्मियावि विहिणो हाहा विचित्ता गदी' (रंभा)।

उम्मिलिर :: वि [उन्मीलितृ] बिकासी 'तत्थ य उम्मिलिरपढमपल्लबारुणियसयलसाहस्स' (सुपा ८६)।

उम्मिल्ल :: अक [उद् + मील्] १ विकसित होना। २ खुलना। ३ प्रकाशित होना। उम्मिल्लइ (गउड)। वकृ. उम्मिल्लंत (से १०, ३१)

उम्मिल्ल :: वि [उन्मील] १ विकसित (पाअ; से १०, ५०; स ७६) २ प्रकाशमान (से ११, ६४; गउड)

उम्मिल्लण :: न [उन्मीलन] विकास, उल्लास (गउड)।

उम्मिल्लिय :: वि [उन्मीलित] १ बिकसित, उल्लसित। २ उद्धाटित, खुला हुआ; 'तओ उम्मिल्लियाणि तस्स नयणाणि' (आवम; स २८०) ३ प्रकाशित। ४ बहिष्कृत; 'पंजरुम्मिल्लियमणिकणगथूभियागे' (जीव ४) ५ न. विकास (अणु)

उम्मिस :: अक [उद् + मिष्] खुलना, विकसना। वकृ. उम्मिसंत (विक्र ३४),

उम्मिसिय :: वि [उन्मिषित] १ विकसित, प्रफुल्ल (भग १४, १) २ न. विकास, उन्मेष (जीव ३)

उम्मिस्स :: देखो उम्मीस (पव ६७)।

उम्मीलण :: देखो उम्मिल्लण (कुमा; गउड)।

उम्मीलणा :: स्त्री [उन्मीलना] प्रभव, उत्पत्ति (राज)।

उम्मीलिय :: देखो उम्मिल्लिय (राज)।

उम्सीस :: वि [उन्मिश्र] मिश्रित, युक्त (सुपा ७८; प्रासू ३२)।

उम्मुअ :: देखो उमुय। वकृ. 'जणाम्मि पीऊसमि- वुम्मुअंतं चक्खुं पसणणं सइ निक्खिवेज्जा' (उप पृ २०)।

उम्मुअ :: न [उल्मुक] अलात, लूका (पाअ)।

उम्मुच :: सक [उद् + मुच्] परित्याग करना। वकृ. उम्मुचंत (विसे २७५०)।

उम्मुक्क :: वि [उन्मुक्त] १ विमुक्त; रहित; 'ते वीरा बंधाणुम्मुक्का नावकंखंति जीवियं' (सुअ १, ९) २ उत्क्षिप्‍त (औप) ३ परित्यक्त (आवम)

उम्मुग्ग :: वि [उन्मग्न] १ जल के ऊपर तैरा हुआ। २ न. तैरना। °निमुग्गिया स्त्री [°निमग्‍नता] उभचुभ करना; 'से भिक्खू वा° उद्‍गंसि पवमाणे नो उम्मुग्गनिमुग्गियं करेज्जा' (आचा २, ३, २, ३)

उम्मुग्गा, उम्मुज्जा :: स्त्री. देखो उम्मग्ग = उन्मग्‍न (पणह १, ३; पि १०४, २३४; आचा)।

उम्भुट्ठ :: वि [उन्मृष्ट] स्पृष्ट, छुआ हुआ (पाअ)।

उम्मुद्दिअ :: वि [उन्मुद्रित] १ विकसित, प्रफुल्ल (गउड; कप्पू) २ उद्‍घाटित, खोला हुआ; 'उम्मुदि्दओ समुग्गो, तम्मज्झे लहुस- मुग्गयं नियइ' (सुपा १४४)

उम्मुयण :: न [उन्मोचन] परित्याग, छोड़ देना (सुर २, १९०)।

उम्मुयणा :: स्त्री [उन्माचना] त्याग, उज्झन (आव ५)।

उम्मुह :: वि [दे] दृप्त, अभिमानी (दे १, ९९; षड्)।

उम्मुह :: वि [उन्मुख] १ संमुख (उप पृ १३४) २ ऊर्ध्व-मुख (से ६, ८२)

उम्मूढ :: वि [उन्मूढ] विशेष मूढ़, अत्यन्त मुग्ध। °विसूइया स्त्री [°विसूचिका] रोग- विशेष, हैजा (सुपा १६)।

उम्मूल :: वि [उन्मूल] उन्मूलन करनेवाला, विनाशक (गा ३५५)।

उम्मूल :: सक [उद् + मूलय्] उखाड़ना, मूल से उखाड़ फेंकना। उम्मूलेइ (महा)। वकृ. उम्मूलंत, उम्मूलयंत (से १, ४; स ५६६)। संकृ. उम्मूलिऊण (महा)।

उम्मूलण :: न [उन्मूलन] उत्पाटन, उत्खनन (पि २७८)।

उम्मूलणा :: स्त्री [उन्मूलना] ऊपर देखो (पणह १, १)।

उम्मूलिअ :: वि [उन्मूलित] उत्पाटित, मूल से उखाड़ा हुआ (गा ४७५; सुर ३, २४५)।

उम्मेंठ :: [दे] देखो उम्मिठ (पउम ७१, २९; स ३३२)।

उम्मेस :: पुं [उन्मेष] उन्मीलन, विकास (भग १३, ४)।

उम्मोयणी :: स्त्री [उन्मोचनी] विद्या-विशेष (सुर १३, ८१)।

उम्ब :: पुंस्त्री [ऊष्मन्] १ संताप, गरमी, उष्णता; 'सरीरऊम्हाए जीवइ सयावि' (उप ५९७ टी; णाया १, १; कुमा) २ भाफ, बाष्प (से २, ३२; हे २, ७४)

उम्हइअ, उम्हविय :: वि [ऊष्मायित] संतप्‍त, गरम किया हुआ (से ४, १; पउम २, ९९; गउड)।

उम्हाअ :: अक [ऊष्माय्] १ गरम होना। भाफ निकलना। वकृ. उम्हाअंत, उम्हाअमाण (से ९, १०; पि ५५८)

उम्हाल :: वि [ऊष्मवत्] १ गरम, परितप्‍त। २ बाष्प युक्त (गउड)

उम्हाविअ :: न [दे] सुरत, संभोग (दे १, ११७)।

उयचिय :: वि [दे] देखो उविअ = परिकर्मित; 'उयचियखोमदुगुल्लपट्टपडिच्छणणे' (णाया १, १ — पत्र १३)।

उयट्ट :: देखो उव्वट्ट = उद् + वृत्। उयट्ठेंति; भूका. उयट्टिंसु (भग)।

उयट्ट :: देखो उव्वट्ट = उद्धृत्त।

उयत्त :: अक [अप + वृत्] हटना। उय- त्तति (दस ३, १ टी)।

उयर :: वि [उदार] श्रेष्ठ, उत्तम; 'देवा भवंति विमलोयरकंतिजुत्ता' (पउम १०, ८८)।

उयरिया :: स्त्री [अपवारिका] छोटा कमरा (सम्मत्त ११९)।

उयविय :: देखो उविअ = (दे) (राय ९३ टी)।

उयाइय :: न [उपयाचित] मनौती (सुपा ८; ५७८)।

उयाय :: वि [उपयात] उपगत (राज)।

उयारण :: न [अवतारण] निछावर, उतारा, हर्षं-दान, गुजराती में 'उवारणुं' (कुप्र ६५)। उयाहु देखो उदाहु (सुर १२, ५६; काल; विसे १६१०)।

उय्यकिअ :: वि [दे] इकट्ठा किया हुआ (षड्)।

उय्यल :: वि [दे] अध्यासित, आरूढ़ (षड्)।

उर :: पुंन [उरस्] वक्षःस्थल, छाती (हे १, ३२)। °अ, °ग पुंस्त्री [°ग] सर्प, साँप (काप्र १७१); 'उरगगिरिजलणसागरनह- तलतरुगणसमो अ जो होइ। भमरमियघरणिजलरुहरविपव- णसमो अ सो समणो'। (अणु)। °तव पुं [°तपस्] तप-विशेष (ठा ४)। °त्थ न [°स्त्रि] अस्त्र-विशेष, जिसके फेंकने से शत्रु सर्पों से वेष्टित होता है (पउम ७१, ६६)। °परिसप्प पुंस्त्री [°परिसर्प] पेट से चलानेवाला प्राणी (सर्पादि) (जा २०)। °सुत्तिया स्त्री [°सूत्रिका] मोतियों की हार (राज)।

उर :: न [दे] आरम्भ, प्रारम्भ (दे १, ८६)।

उरंउरेण :: अ [दे] साक्षात (विपा १, ३)।

उरत्त :: वि [दे] खण्डित, विदारित (दे १, स ९०)।

उरत्थ :: वि [उरःस्थ] १ छाती में स्थित। २ छाती में पहनने का आभूषण (आचा २, १३, १)

उरत्थय :: न [दे] वर्म, बख्तर, कवच (पाअ)।

उरब्भ :: पंस्त्री [उरभ्र] मेष, भेड़ (णाया १, १; पणह १, १)।

उरब्भिअ :: वि [औरभ्रिक] भेड़ चरानेवाला (सुअ २, २, २८)।

उरब्भिज्ज, उरब्भिय :: वि [उरभ्रीय] १ मेष-सम्बन्धी। २ उत्तराध्ययन सूत्र का एक अध्ययन; 'ततो समुद्धियमेयं उरब्भिज्जंति अज्झयणं' (उत्तनि; राज)

उरय :: पुं [उरज] बनस्पति-विशेष (राज)।

उररि :: पुं [दे] पशु, बकरा (दे १, ८८)।

उरल :: देखो उराल (कम्म १; भग; दं २२)।

उरविय :: वि [दे] १ आरोपित। २ खण्डित, छिन्‍न (षड्)

उरसिज :: पुं [उरसिज] स्तन, थन (धर्मवि ६६)।

उरस्स :: वि [उरस्य] १ सन्तान, बच्चा (ठा १०) २ हार्दिक, आभ्यन्तर; 'उरस्सबल- समणणगय — ' (राय)

उराल :: वि [उदार] १ प्रबल (राय) २ प्रधान, मुख्य (सुज्ज १) ३ सुन्दर, श्रेष्ठ (सुअ १, ९) ४ अद्‍भूत (चन्द २०) ५ विशाल, विस्तीर्ण (ठा ५) ६ न. शरीर- विशेष, मनुष्य और तिर्यञ्च् (पशु पक्षी) इन दोनों का शरीर (अणु)

उराल :: वि [उदार] स्थूल, मोटा (सुअ १, १, ४, ९)।

उराल :: वि [दे] भयंकर, भीष्म (सुज्ज १)।

उरालिय :: न [औदारिक] शरीर-विशेष (सण)।

उरिआ :: स्त्री [उड्रिका] लिपि-विशेष (सम ३५)।

उरितिय :: न [दे. उरसि-त्रिक] तीन सरवाला हार (औप)।

°उरिस :: देखो पुरिस (गा २८२)।

उरु :: वि [उरु] विशाल, विस्तीर्ण (पाअ)।

उरुपुल्ल :: पुं [दे] १ अपूप, पूआ। २ खिचड़ी (दे १, १३४)

उरुमल्ल, उरुमिल्ल, उरुसोल्ल :: वि [दे] प्रेरित (षड्; दे १, १०८)।

उरोरुह :: पुं [उरोरुह] स्तन, थन (पव ६२)।

उरोरुह :: न [उरोरुह्] १ स्तन, थन। २ जैन साध्वियों का उपकरण-विशेष (ओघ ३१७ भा)

°उल :: देखो कुल (से १, २६; गा ११६; सुर ३, ४१; महा)।

उलय, उलव :: पुंन [उलप] तृण-विशेष (सुपा २८१; प्राप्त)।

उलवी :: स्त्री [उलपी] तृण-विशेष; 'उलवी वीणणं' (पाअ)।

उलिअ :: वि [दे] असंकुचित नजरवाला, स्फार दृष्टि (दे १, ८८)।

उलित्त :: न [दे] ऊँचा कुँआ (दे १, ८९)।

°उलीण :: देखो कुलीण (गा २५३)।

उलुउंडिअ :: वि [दे] प्रलुठित, विरेचित (दे १, ११९)।

उलुओसिअ :: वि [दे] रोमाञ्चित, पुलकित (षड्)।

उलुकसिअ :: वि [दे] ऊपर देखो (दे १, ११५)।

उलुखंड :: पुं [दे] उल्मुक, अलात, लूका (दे १, १०७)।

उलुग :: पुं [उलूक] १ उल्लु, पेचक। २ देश- विशेष (पउम ९८, ६६)

उलुग :: पुं [उलूक] उल्लू, घूक, पेचक (धर्मंसं ६७१; १२६५)।

उलुगी :: स्त्री [औलूकी] विद्या-विशेष (विसे २४५४)।

उलुग्ग :: वि [अवरुग्ग] बीमार (महा)।

उलुग्ग :: वि [दे] देखो ओलुग्ग (महा)।

उलुफुंटिअ :: वि [दे] १ विनिपातित, विना- शित। २ प्रशान्त (दे १, १३८)

उलुय :: देखो उलूअ; 'अह कह दिणमणितेयं, उलुयाणं हरइ अंघत्तं' (सट्ठि १०८; सुर १, २६; पउम ९७, २४)।

उलुहंत :: पुं [दे] काक, कौआ (दे १, १०९)।

उलुहलिअ :: वि [दे] अतृप्‍त, तृप्‍तिरहित (दे १, ११७)।

उलुहुलअ :: वि [दे] अवितृप्‍त, तृप्‍तिरहित (षड्)।

उलूअ :: पुं [उलूक] १ उल्लू, पेचक (पाअ) २ वैशेषिक मत का प्रवर्तक कणाद मुनि (सम्म १४६; विसे २५०८)

उलूखल :: देखो उऊखल (कुमा)।

उलूल :: पुं [उलूलु] मङ्गल ध्वनि (रंभा)।

उलूहल :: देखो उऊखल (हे १, १७१; महा)।

उल्ल :: वि [आर्द्र] गीला, आर्द्र (कुमा; हे १, ८२)। °गच्छ पुं [°गच्छ] जैन मुनियों का गण-विशेष (कप्प)।

उल्ल :: सक [आर्द्रय्] १ गीला करना, आर्द्रं करना। २ अक. आर्द्र होना। उल्लेइ (हे १, ८२)। वकृ. उल्लंत, उल्लिंत (गउड)। संकृ. उल्लेत्ता (महा)

उल्ल :: न [दे] ऋण, करजा; 'तो मं उल्ले धरिऊण' (सुपा ४८९)।

उल्लअण :: न [उल्लयन] अर्पण, समर्पण (से ११, ५१)।

उल्लंक :: पुं [उल्लङ्क] काष्ठ-मय चारक (निचू १२)।

उल्लंघ :: सक [उत् + लङ्घ्] उल्लंघन करना, अतिक्रमण करना। उल्लंघेज्ज (पि ४५९)। हेकृ. उल्लंघित्तए (भग ८, ३३)।

उल्लंघ :: पुं [उल्लङ्घ] उल्लंघन, अतिक्रमण (संबोध ६)।

उल्लंघण :: न [उल्लङ्घन] १ अतिक्रमण, उत्प्लवन (पणण ३६) २ वि. अतिक्रमण करनेवाला; 'उल्लंघणे य चंडे य पावसमणे त्ति वुच्चइ' (उत्त ८)

उल्लंठ :: वि [उल्लण्ठ] उद्धत; 'जंपंति उल्लंठ- वयणाइं' (काल)।

उल्लंडग :: पुं [उल्लण्डक] छोटा मृदंग, वाद्य- विशेष (राज)।

उल्लंडिअ :: वि [दे] बहिष्कृत, बाहर निकाला हुआ (पाअ)।

उल्लंबण :: न [उल्लम्बन] उद्‍बन्धन, फाँसी लगा कर लटकना (सम १२५)।

उल्लक :: वि [दे] १ भग्‍न, टूटा हुआ। २ स्तब्ध; 'उल्लक्कं सिराजालं' (स २६४)

उल्लट्ट :: देखो उव्वट्ट = उद्-वृत्। उल्लट्टइ (प्राकृ ७२)।

उल्लट्ट :: वि [दे] उल्लुण्ठित, खाली किया हुआ (दे ७, ८१)।

उल्लटिय :: देखो उल्लट्ट — (दे); 'सो पुण नरो पविट्टो भट्ठो सत्थाउ तं महाअडविं। उल्लट्टिय- कूवोदगमिव कंठगएहिं पाणेहिं' (धर्मंवि १२४)।

उल्लण :: वि [उल्बण] उत्कट (पंचा २)।

उल्लण :: न [आर्द्रीकरण] गीला करना (उवा ओघ ३९; से २, ८)।

उल्लण :: न [दे] खाद्य वस्तु-विशेष, ओसामन (पिंड ६२४)।

उल्लणिया :: स्त्री [आर्द्रयणिका] जल पोंछने का गमछा, टोपिया (उवा)।

उल्लद्दिय :: वि [दे] भाराक्रान्त, जिसपर बोझ लादा गया हो वह; 'अह तम्मि सत्थलोए उल्लद्दियसयलवसहनियरम्मि' (सुर २. २)।

उल्लरय :: न [दे] कौड़ियों का आभूषण (दे १, ११०)।

उल्लल :: अक [उत् + लल्] १ चलित होना, चञ्चल होना। २ उँचा चलना। ३ उत्पन्न होना। उल्ललइ (से ११, १३)।वकृ. उल्ललंत (काल)

उल्ललिअ :: वि [उल्ललित] १ चञ्चल (गा ५९६) २ उत्पन्न (से ९, ६८)

उल्ललिअ :: वि [दे] शिथिल, ढ़ीला (दे १, १०४)।

उल्लव :: सक [उत् + लप्] १ कहना। २ बकना, बकवाद करना, खराब शब्द बोलना; 'जं वा तं वा उल्लवइ' (महा)। वकृ. उल्लवंत, उल्लवेमाण (पउम ६४, ८; सुर १, १९९)

उल्लव :: सक [उद् + लू] उन्मूलन करना। संकृ. उल्लविऊण। हेकृ. उल्लविउं। कृ. उल्लविअव्व (प्राकृ ६९)।

उल्लवण :: न [उल्लपन] १ बकवाद २ कथन; 'जइवि न जुज्जइ जह तह मणवल्लहनामल्ल- वणं' (सुपा ४६८)

उल्लविय :: वि [उल्लपित] १ कथित, उक्त। २ न. उक्ति, वचन; 'अंगपच्‍चंगसंठाणं चारुल्लविय- पेहणं' (उत्त)

उल्लविर :: वि [उल्लपितृ] १ वक्ता, भाषक। २ बकवादी, वाचाट (गा १७२ सुपा २२९)

उल्लस :: अक [उत् + लस्] १ विकसित होना। २ खुश होना। उल्लसइ (षड्)। वकृ. उल्लसंत (गा ५९०; कप्प)

उल्लस :: देखो उल्लास (गउड)।

उल्लसिअ :: वि [उल्लसित] १ विकसित। २ हर्षित (षड्; निचू)

उल्लसिअ :: वि [दे. उल्लसित] पुलकित, रोमाञ्चित (दे १, ११५)।

उल्लाय :: वि [दे] लात मारना, पाद-प्रहार (तंदु)।

उल्लाय :: वि [उल्लाप] १ वक्र वचन। २ कथन (भग)

उल्लाल :: सक [उत् + नमय्] १ ऊँचा करना। २ ऊपर फेंकना। उल्लालइ (हे ४, ३६)। वकृ. उल्लालेमाण (अंत २१)

उल्लाल :: सक [उत् + लालय्] ताडन करना, बजाना। वकृ. उल्लालेमाण (राज)।

उल्लाल :: पुंन [उल्लाल] छन्द-विशेष (पिंग)।

उल्लालिअ :: वि [उन्नमित] १ ऊँचा किया हुआ, ऊपर फेंका हुआ (कुमा; हे ४, ४२२)

उल्लालिय :: वि [उल्लालित] ताडित (राज)।

उल्लाव :: सक [उत् + लप्, लापय्] १ कहना, बोलना। २ बकवाद करना। ३ बुलवाना। ४ बकवाद करना। वकृ. उल्लावंत, उल्लावेंत (से ११, १०; गा ५३६; ६५१; हे २, १९३)

उल्लाव :: पुं [उल्लाप] १ शब्द, आवाज (से १, ३०) २ उत्तर, जवाब (ओघ ५६ भा; गा ५१४) ३ बकवाद, विकृत वचन। ४ उक्ति, कथन (पउण ७०, ५८) ५ संभाषण; 'नयणेहिं को न दीसइ; केण समाणं न होंति उल्लावा। हिययाणंदं जं पुण, जणेइ तं माणुसं बिरलं।।' (महा)

उल्लाविअ :: वि [उल्लपित] १ उक्त, कथित। २ न. उक्ति, वचन (गा ५८९)

उल्लाविर :: वि [उल्लपितृ] १ बोलनेवाला, भाषक (हे २, १९३; सुपा २२९)

उल्लासग :: वि [उल्लासक] १ विकसित होनेवाला। २ आनन्दजनक (श्रा २७)

उल्लासण :: न [उल्लासन] विकास (सिरि ५३९)।

उल्लासि, उल्लासिर :: वि [उल्लासिन्] ऊपर देखो (कप्पू; लहुअ १; प्रासू ६९)।

उल्लाह :: सक [उत् + लाघय्] कम करना, हीन करना। वकृ. उल्लाहअंत (उत्तर ९१)।

उल्लिअ :: वि [दे] उपसर्पित; उपागत (षड्)।

उल्लिअ :: वि [आर्द्रित] गीला किया हुआ (गउड; हे ३, १६)।

उल्लिअ :: वि [दे] १ चीरा हुआ, फाड़ा हुआ (उत्त १९, ६४) २ उपालब्ध, उलाहना दिया हुआ (सम्मत्त ५२)

उल्लिंच :: सक [उद् + रिच्] खाली करना। हेकृ. 'उल्लिचिऊण य समत्थो हत्थउडेहिं समुद्‍दं' (पुप्फ ४०)।

उल्लिंचिय :: वि [दे] उद्रिक, खाली किया हुआ; 'तह नाहिदहो जुव्वणघणेण लायन्नवारिणा भरिओ। नहु निट्ठइ जह उल्लिंचिओवि पियनयणकलसेहिं' (सुपा ३३)।

उल्लिक्क :: न [दे] दुश्‍चेष्टित, खराब चेष्टा (षड्)।

उल्लिंगण :: वि [उल्लिंङ्गन] उपदर्शक (पव १)।

उल्लिंपण :: न [उपलेपन] उपलेप (पिंड ३५०)।

उल्लिया :: स्त्री [दे] राधा-वेध का निशाना, 'विधेयव्वा विवरीयभमंतद्धचक्कोवरिथिउल्लिया' (स १६२)।

उल्लिर :: वि [आर्द्र] गीला (वज्जा ११२)।

उल्लिह :: सक [उद् + लिह्] १ चाटना। २ खाना, भक्षण करना; 'उक्खलिउणिहअमुररी उअ रोरघरम्मि उल्लिहइ' (दे १, ८८)

उल्लिह :: सक [उद् + लिख्] १ रेखा करना २ लिखना। ३ घिसना।

उल्लिहण :: न [उल्लेखन] १ घर्षण (सुपा ४८) २ विलेखन; 'वहुआइ नहुल्लिहणे' (हे १, ७)

उल्लिहिय :: वि [उल्लिखित] १ घृष्ट, घिसा हुआ (णाया १, २) २ छिला हुआ, तक्षित (पाअ) ३ रेखा किया हुआ (सुपा १९३; प्रासू ७)

उल्ली :: स्त्री [दे] १ चूल्हा (दे १, ८७) २ दाँत का मैल; 'उल्ली दंतेसु दुग्गंधा' (महा)

उल्लीण :: वि [उपलीन] प्रच्छन्‍न, गुप्‍त (आचा २, २, ३, ११)।

उल्लुअ :: वि [दे] १ पुरस्कृत, आगे किया हुआ। २ रक्त, रँगा हुआ (षड्)

उल्लुअ :: वि [दे. उद्रत] उदय-प्राप्त (प्राकृ. ७७)।

उल्लुअ :: वि [उल्लून] १ उन्मुलित। २ न. उन्मूलन (प्राकृ ७०)

उल्लुंचिअ :: वि [उल्लुञ्चित] उखाड़ा हुआ, उन्मुलित; 'मुट्ठीहिं कुंतलकलावा उल्लुंचिया' (सुपा ८०; प्रबो ९८)।

उल्लुंटिअ :: वि [दे] संचूर्णित, टूकड़ा-टूकड़ा किया हुआ (दे १, १०९)।

उल्लुंठ :: वि [उल्लुण्ठ] उल्लंठ, उद्धत (सुपा ४९५; सुर ९, २१५)।

उल्लुंड :: अक [वि + रेचय्] झरना, टपकना, बाहर निकलना। उल्लुंडइ (हे ४, २६)। प्रयो. वकृ. उल्लुंडावंत (कुमा)।

उल्लुक :: वि [दे] त्रुटित, टूटा हुआ (दे १, ९२)।

उल्लुक :: सक [तुड्] तोड़ना। उल्लुक्कइ (हे १, ११६; षड्)।

उल्लुक्किअ :: वि [तुडित] त्रोटित, तोड़ा हुआ (कुमा)।

उल्लुग°, उल्लुगा :: स्त्री [उल्लुका] १ नदी-विशेष (विसे २४२६) २ उल्लुका नदी के किनारे का प्रदेश (विसे २४२५)। °तीर न [°तीर] उल्लुका नदी के किनारे बसा हुआ एक नगर (विसे २४२४; भग २६, ३)

उल्लुज्झण :: न [दे] पुनरुत्थान, कटे हुए हाथ पाँव की फिर से उत्पत्ति (उप ३८१)।

उल्लुट्ट :: अक [उत् + लुट्] नष्ट होना, ध्वंस पाना। वकृ. 'तहवि य सा रायसिरी उल्लुट्टंती न ताइया ताहिं' (उव)।

उल्लुट्ट :: वि [दे] मिथ्या, असत्य, झुठा (दे १, ८९)।

उल्लुरुह :: पुं [दे] छोटा शङ्खं (दे १, १०५)।

उल्लुलिअ :: वि [उल्लुलित] चलित (गा ५९७)।

उल्लुव :: देखो उल्लव = उद् + लू। उल्लुवइ; संकृ. उल्लुविऊण (प्राकृ ६९)।

उल्लुह :: अक [निस् + सृ] निकला। उल्लुहइ (हे ४, २५९)।

उल्लुहुंडिअ :: वि [दे] उन्‍नत, उच्छित (षड्)।

उल्लुढ :: वि [दे] १ आरूढ़ (दे १, १००; षड्) २ अङ् कुरित (दे १, १००; पाअ)

उल्लूढ :: सक [आ + रुह्] चढ़ना। उल्लूढइ (प्राकृ ७३)।

उल्लूर :: सक [तुड्] १ तोड़ना। २ नाश करना। उल्लूरइ (हे ४, ११६; कुमा)

उल्लूरण :: न [तोडन] छेदन, खण्डन (गा १६६)।

उल्लूरिअ :: वि [तुडित] विनाशित, 'उल्लूरिअ- पहिअसत्थेसु' (णामि १०; पाअ)।

उल्लूह :: वि [दे] शुष्क, सूखा; 'उल्लूहं च नलवणं हरियं जायं' (ओघ ४४९ टी)।

उल्लेत्ता :: देखो उल्ला = आर्द्रय्।

उल्लेव :: पुं [दे] हास्य, हंशी (दे १, १०२)।

उल्लेहड :: वि [दे] लम्पट, लुब्ध (दे १, १०४; पाअ)।

उल्लइय :: न [दे] १ पोतना, भीत को चूना वगैरह से सफेद करना (औप) २ वि. पोता हुआ (णाया १, १; सम १३७)

उल्लोक :: वि [दे] त्रुटित, छिन्‍न (षड्)।

उल्लोच :: पुं [दे. उल्लोच] चन्द्रातप, चाँदनी (दे १, ९८; सुर १२, १; उप १०७)।

उल्लोढ :: सक [उल्लोध्रय] लोध्र आदि से घिसना। उल्लोढिज्ज (आचा २, १३, १)।

उल्लोय :: पुं [उल्लोक] १ अग्रासी, छत (णाया १, १; कप्प; भग) २ थोड़ी देर, थोड़ा विलम्ब (राज)

उल्लोय :: देखो उल्लोच (सुर ३, ७०; कुमा)।

उल्लोल :: अक [उत् + लुल्] लुठना, लेटना। वकृ. उल्लोलंत (निचू १७)। पुं. शोकाकुल स्त्री-रुदन शब्द (चउ° सगरचरिय)।

उल्लोल :: सक [उद् + लोलय्] पोंछना। उल्लोलेइ; संकृ. उल्लोलेत्ता (आचा २, १५, ५)।

उल्लोल :: पुं [दे] १ शत्रु, दुश्‍मन (दे १, ९९) २ कोलाहल (पउम १६, ३६)

उल्लोल :: पुं [उल्लोल] १ प्रबन्ध; 'उद्देसे आसि णाराहिवाण वियडा कहुल्लोला' (गउड) २ वि. उद्‍भट, उद्धत; 'तरुणजणविब्भमुल्लोल- सागरे' (स ६७) ३ वि. उत्सुक; 'बहुसो घडंतविहडंतसइसुहासायसंगमुल्लोले। हियए च्चेय समप्पंति चंचला वीइवावरा' (गउड)

उल्लोव :: (अप) देखो उल्लोच (भवि)।

उल्ह :: सक [वि + ध्मापय्] ठंढ़ा करना, आग को बुझाना। उल्हवइ (हे ४, ४१६)।

उल्हविय :: वि [दे. विध्वापित] बुझाया हुआ, शान्त किया हुआ (पउम २, ९६)।

उल्हसिअ :: वि [दे] उद्‍भट, उद्धत, (दे १, ११६)।

उल्हा :: अक [वि + ध्मा] बुझ जाना। उल्लाइ (स २८३)।

उल :: अ [उप] निम्‍न लिखित अर्थों का सूचक अव्यय — १ समीपता; 'उवदंसिय' (पणण १) २ सदृशता, तुल्यता (उत्त ३) ३ समस्तपन (राय) ४ एकबार। ५ भीतर (आव ४)

उव :: न [उद] पानी, जल; 'पाउवदाइं च णहाणुवदाइं च' (णाया १, ७ — पत्र ११७)।

उवअंठ :: वि [उवकण्ठ] समीप का, आसन्‍न (गउड)।

उवइट्ठ :: वि [उपदिष्ट] कथित, प्रतिपादित, शिक्षित (ओघ १४ भा; पि १७३)।

उवइण्ण :: वि [उपवीर्ण] सेवित (स ३९)।

उवइय :: वि [उपचित] १ मांसल, पुष्ट (पणह १, ४) २ उन्‍नत (औप)

उवइय :: पुंस्त्री [दे] त्रीन्द्रीय जीव-विशेष, देखो ओवइय (जीव १ टी; पणण)।

उवइस :: सक [उप + दिश्] १ उपदेश देना, सिखाना। २ प्रतिपादन करना। उवइसइ (पि १८४)। उवइसंति (भग)

उवउंज :: सक [उप + युज्] उपयोग करना। कर्म. उवउज्जंति (विसे ४८०)। संकृ. उवउंजिऊण, उवउज्ज (पि ५८५; निचू १)।

उवउज्ज :: पुं [दे] १ उपकार (दे १, १०८) २ वि. उपकारक (षड्)

उवउत्त :: वि [उपयुक्त] १ न्याय्य, वाजबी। २ सावधान, अप्रमत्त (उव; उप ७७३)

उपऊढ :: वि [उपगूढ] आलिङ्गित (पाअ; से १, ३८; गा १३३)।

उवऊह :: सक [उप + गूह्] आलिङ्गन करना। उवऊहइ (प्राकृ ७४)।

उवऊहण :: न [उपगूहन] आलिङ्गन (से ५, ४८)।

उवऊहिअ :: वि [उपगूहित] आलिङ्गित (गा ९२१)।

उवएइआ :: स्त्री [दे] शराब परोसने का पात्र (दे १, ११८)।

उवएस :: पुं [उपदेश] १ शिक्षा, बोध (उव) २ कथन, प्रतिापादन। ३ शास्त्र, सिद्धान्त (आचा; विसे ८९४) ४ उपदेश्य, जिसके विषय में उपदेश दिया जाय वह (धर्मं १)

उवएसग :: वि [उपदेशक] उपदेश देनेवाला; 'हिच्चाणं पुव्वसंजोगं सिया किच्चवएसगा' (सुअ १, १)।

उवएसण :: न [उपदेशन] देखो उवएस (उत्त २८; ठा ७; विसे २५८३)।

उवएसणया, उपएसणा :: स्त्री [उपदेशना] उपदेश (राज; विसे २५८३)।

उवएसिय :: वि [उफदेशित] उपदिष्ट; 'सामा- इयणिज्जुत्तिं वोच्छं उवएसियं गुरुजणेणं' (विसे १०८०; सण)।

उवओग :: पुं [उपयोग] १ ज्ञान, चैतन्य (पणण १२; ठा ४, ४; दं ४) २ ख्याल, ध्यान, सावधानी; 'तं पुण संविग्गेणं उवओगजुएण तिव्वसद्धाए' (पंचा ४) ३ प्रयोजन, आवश्यकता (सुपा ६४३)

उवओगि :: वि [उपयोगिन्] उपयुक्त, योग्य, प्रयोजनीय; 'पत्ताईण बिसुद्धिं साहेउं गिणहए जमुवओगिं' (सुपा ६४३; स ५)।

उवंग :: पुंन [उपाङ्ग] १ छोटा अवयव, क्षुद्र भाग; 'एवमादी सव्वे उवंगा भणणंति' (निचू १) २ ग्रन्थ-विशेष, मूल-ग्रन्थ के अंश-विशेष को लेकर उसका विस्तार से वर्णन करनेवाला ग्रन्थ, टीका; 'संगोवंगाणं सरहस्साणं चउणहं वेयाणं' (औप) ३ 'औपपातिक' सूत्र वगैरह बाहर जैन ग्रन्थ (कप्प; जं; १; सूक्त ७०)

उवंजण :: न [उपाञ्जन] मुक्षण, मालिश (पणह २, १)।

उवकंठ :: देखो उवअंठ (भवि)।

उपकंठ :: न [उपकण्ठ] समीप (सिरि ११२१)।

उवकदुअ :: (शौ) अ [उपकृत्य] उपकार करके (प्राकृ ८८)।

उवकप्प :: सक [उप + क्लृ] १ उपस्थित करना। २ करना; 'उवकप्पइ करेइ उवणेइ वा होंति एकट्ठा' (पंचभा)। उवकप्पंति (सुअ १, ११)

उवकप्प :: पुं [उफकल्प] साधु को दी जानेवाली भिक्षा, अन्‍नपान वगैरह (पंचभा)।

उवकय :: वि [उपकृत] जिसपर उपकार किया गया हो वह, अनुगृहीत; 'अणुवकयप- राणुग्गहपरायणा' (आव ४)।

उवकय :: वि [दे] सज्जित, प्रगुण, तैयार (दे १, ११९)।

उवकर :: देखो उवयर = उप + कृ। उवकरेउ (उवा)।

उवकर :: सक [अव + कृ] ब्याप्त करना। भूका. 'अहवा पंसुणा उवकरिंसु' (आचा १, ९, ३, ११)।

उवकरण :: देखो उवगरण (औप)।

उवकस :: सक [उप + कष्] प्राप्त होना, 'नारीण वसमुवकसंति' (सुअ १, ४)।

उवकसिअ :: वि [दे] १ संनिहित। २ परिसे- वित। ३ सर्जित, उत्पादित (दे १, १३८)

उवकार :: देखो उवगार (धर्मंसं ६२० टी)।

उवकारिया :: देखो उवगारिया (राय ८२)।

उवकिइ, उवकिदि :: स्त्री [उपकृति] उपकार (दे ४, ३४; ८; ४५)।

उवकुल :: न [उपकुल] नक्षत्र-विशेष, श्रवण आदि बारह (जं ७)।

उवकुल :: पुंन [उपकुल] कुल नक्षत्र के पास का नक्षत्र (सुज्ज १०, ५)।

उवकोसा :: स्त्री [उपकोशा] एक गणिका, कोशा वेश्या की छोटी बहिन (कुप्र ४५३)।

उवकोसा :: स्त्री [उपकोशा] एक प्रसिद्ध वेश्या (उव)।

उवक्कंत :: वि [उपक्रान्त] १ समीप में आनीत। २ प्रारब्ध, प्रस्तावित (विसे ९८७)

उवक्कम :: सक [उप + क्रम्] १ शुरू करना। प्रारम्भ करना। २ प्राप्त करना। ३ जानना। ४ समीप में लाना। ५ संस्कार करना। ६ अनुसरण करना; 'सीसो गुरुणो भावं जमुवक्कमए' (विसे ९२९); 'ता तुब्भे ताव अवक्कमह लहुं, जाव एयासि भावमुव- क्कमामि त्ति' (महा); 'जेणोवक्कामि ज्जइ समीवमाणिज्जए' (विसे २०३९); 'जणणं हलकुलिआईहिं खेत्ताइं उवक्कमिज्जंति' से तं खेत्तोवक्कमे' (अणु). वकृ. उवक्कमंत (बिसे ३४१८)

उवक्कम :: पुं [उपक्रम] १ आरम्भ, प्रारम्भ। २ प्राप्‍ति का प्रयत्‍न; 'सोच्चा भगवाणुसासणं सच्चे तत्थ करेज्जुवक्कमं' (सुअ १, २, ३, १४) ३ कर्मों के फल का अनुभव (सुअ १, ३; भग १, ४) ४ कर्मों की परिणति का कारण-भूत जीव का प्रयत्‍न- विशेष (ठा ४, २) ५ मरण, मौत, विनाश; 'हुज्ज इमम्मि समए उवक्कमो जीवियस्स जइ मज्झ' (आउ १५; बृह ४) ६ दूरस्थित को समीप में लाना; 'सत्थस्सोवक्कमणं उवक्कमो तेण तम्मि अ तओ वा सत्थसमी- वीकरणं' (विसे, अण्ठ) ७ आयुष्य-विघातक वस्तु (ठा ४, २; स २८७) ८ शस्त्र, हथियार, 'भुम्माहारच्छेए उवक्कमेणं च परिणाए' (धर्मं २) ९ उपचार (स २०५) १० ज्ञान, निश्‍चय। ११ अनुवर्त्तंन, अनुकूल- प्रवृत्ति (विसे ९२९; ९३०) १२ संस्कार, परिकर्म; 'खेत्तोवक्कमे' (अणु)

उवक्कम :: पुं [उपक्रम] अनुदित कर्मों को उदय में लाना (सुअनि ४७)।

उवक्कमण :: न [उपक्रमण] उपर देखो (अणु; उवर ४६; विसे ९११; ९१७; ९२१)।

उवक्कमिय :: वि [ओपक्रमिक] उपक्रम से सम्बन्ध रखनेवाला (ठा २, ४; सम १४५; पणण ३५)।

उवक्काम :: देखो उवक्कम = उप + क्रम्। कर्मं. उवक्कामिज्जइ (विसे २०३९)।

उवक्काम :: सक [उप + क्रम्] दीर्घंकाल में भोगने योग्य कर्मों को अल्प समय में ही भोगना। कर्मं. उव क्कामिज्जइ (धर्मंसं ९४८)।

उवक्कामण :: न [उपक्रमण] उपक्रम कराना (श्रावक १९७)।

उवक्कामण :: देखो उवक्कमण (विसे २०५०)।

उवक्केस :: पुं [उपक्लेश] १ बाधा। २ शोक (राज)

उवक्खड :: सक [उप + स्कृ] १ पकाना, रसोई करना। १ पाक को मसाले से संस्कारित करना। उवक्खडेइ, उवक्खडिंति (पि ५५९)। संकृ. उवक्खडेत्ता (आचा)। प्रयो. उवक्खडावेइ, उरक्खडाविंति (पि ५५९; कप्प)। संकृ. उवक्खडावेत्ता (पि ५५९)

उवक्खड, उवक्खडिय :: वि [उपस्कृत] १ पकाया हुआ। २ मसाला वगैरह से संस्कार-युक्त पकाया हुआ (निचू ८; पि ३०६; ५५९; उत्त १२, ११) ३ पुंन. रसोई, पाक; 'भणियामहाणसणरा जह अज्ज उव- क्खडो न कायव्वो' (उप ३५६ टी; ठा ४, २; णाया १, ८; ओघ ५४ भा)। °म वि [°म] पकाने पर भी जो कच्चा रह जाता है वह, मुँग वगैरह अन्‍न-विशेष; 'उवक्खडामं णाम जहा चणयादीणं उवक्खडियाणं जे ण सिज्झंति ते कंकड़ुयामं उवक्खडियामं भणणइ' (निचू १५)

उवक्खर :: पुं [उपस्कर] १ संस्कार। २ जिससे संस्कार किया जाय वह (ठा ४, २)

उवक्खर :: पुं [उपस्कर] घर का उपकरण, साधन (सूअनि ५)।

उवक्खरण :: न [उपस्करण] ऊपर देखो। °साला स्त्री [°शाला] रसोई-घर, पाक- गृह (निचू ९)।

उवक्खा :: सक [उपा + ख्या] कहना। कर्मं. उवक्खाइज्जंति (सुअ २, ४, १०; भग १९, ३ — पत्र ७६२)।

उवक्खा :: स्त्री [उपाख्या] उपनाम (धर्मंसं ७२७)।

उवक्खाइत्तु :: वि [उपख्यापयितृ] प्रसिद्धि करानेवाला; 'अत्ताणं उवक्खाइत्ता भवइ' (सुअ २, २, २९)।

उवक्खाइया :: स्त्री [उपाख्यायिका] उपकथा, अवान्तर कथा (सम ११६)।

उवक्खाण :: न [उपाख्यान] उपाख्यान, कथा (पउम ३३, १४९)।

उवक्खित्त :: वि [उपक्षिप्त] प्रारब्ध, शुरू किया हुआ (मुद्रा ९३)।

उवक्खिव :: सक [उप + क्षिप्] १ स्थापन करना। २ प्रयत्‍न करना। ३ प्रारम्भ करना। उवक्खिव (पि ३१९)

उवक्खीण :: वि [उपक्षीण] क्षय-प्राप्‍त (धर्मंवि ४२)।

उवक्खेअ :: पुं [उपक्षेप] १ प्रयत्‍न, उद्योग। २ उपाय; 'ण भणामि तस्सिं साहाणिज्जे किदो उवक्खेओ' (मा ३९)

उवक्खेव :: पुं [दे. उपक्षेप] बालोत्पाटन, मुण्डन (तंदु १७)।

उवग :: वि [उपग] १ अनुसरण करनेवाला (उप २४३; औप) २ समीप में जानेवाला (विसे २५६५)

उवगच्छ :: सक [उप + गम्] १ समीप में आना। २ प्राप्‍त करना। ३ जानना। ४ स्वीकार करना। उवगच्छइ (उव; स २३७)। उवगच्छंति (पि ५८२)। संकृ. उवगच्छि- ऊण (स ४४)

उवगणिय :: वि [उपगणित] गिना हुआ, संख्यात, परिगणित (स ४६१)।

उवगप्पिय :: वि [उपकल्पित] विरचित (स ७२१)।

उवगम :: देखो उवगच्छ। संकृ. उवगम्म (विसे ३१९९)। हेकृ. उवगंतुं (निचू १९)।

उवगय :: वि [उपगत] १ पास आया हुआ (से १, १६; गा ३२१) २ ज्ञात, जाना हुआ (सम ८८; उप पृ ५९; सार्धं १४४) ३ युक्त, सहित (राय) ४ प्राप्‍त (भग) ५ प्रकर्ष-प्राप्‍त (सम्म १) ६ स्वीकृत; 'अज्झप्पबद्धमूला, अणणेहि वि उवगया किरिया' (उवर ५५) ७ अन्तर्भूंत, अन्तर्गंत; 'जं च महाकप्पसूयं, जाणि अ सेसाणि छेअसुत्ताणि। चरणकरणाणुओगो त्ति कालियत्थे उवगयाणि' (विसे १२९५)

उवगय :: वि [उपकृत] जिसपर उपकार किया गया हो वह (स २०१०।

उवगर :: सक [उप + कृ] हित करना। उव- गरेमि (स २०९)।

उवगरण :: न [उपकरण] १ साधन, सामग्री, साधक वस्तु (ओघ ६६६) २ बाह्य इन्द्रिय- विशेष (विसे १९४)

उवगरिय :: न [उपकृत] उपकार (कुप्र ४५)।

उवगस :: सक [उप + कस्] समीप आना, पास आना। संकृ. उवगसित्ता (सुअ १, ४)। वकृ. 'उवगसंतं झंपित्ता, पडिलोमाहिं वग्गुहिं। भोगभोगे वियारेई, महामोहं पकुव्वइ' (सम ५०)।

उवगा :: सक [उप + गै] वर्णंन करना, श्‍लाघा करना, गुणगान करना। कवकृ. उवगाइज्ज- माण, उवगिज्जमाण, उवगीयमाण (राय; भग ९, ३३; स ६३)।

उवगार :: देखो उवयार = उपकार (सुर २, ४३)।

उवगारग :: वि [उपकारक] उपकार करनेवाला (स ३२१)।

उवगारि :: वि [उपकारिन्] ऊपर देखो (सुर ७, १९७)।

उवगारिया :: स्त्री [उपकारिका] प्रासाद आदि की पीठिका (राय ८१)।

उवगिअ :: न [उपकृत] १ उपकार। २ वि. जिसपर उपकार किया गया हो वह (स ६३९)

उवगिज्जमाण :: देखो उवगा।

उवगिण्ह :: सक [उप + ग्रह्] १ उपकार करना। २ पुष्टि करना। ३ ग्रहण करना। उवगिणहह (पि ५१२)

उवगीय :: वि [उपगीत] १ वर्णिंत, श्‍लाघित। २ न. संगीत, गीत, गात; 'वाइयमुवगीयं नट्ठमवि सुयं दिट्ठं चिट्ठमुत्तिकरं' (सार्ध १०८)

उवगीयमाण :: देखो उवगा।

उवगूढ :: वि [उपगूढ] १ आलिङ्गित (गा ३५१; स ४४८) २ न. आलिंगन (राज)

उवगूह :: सक [उप + गुह्] १ आलिंगन करना। २ गुप्त रीति से रक्षण करना। ३ रचना करना, बनाना। कवकृ. उवगूहि- ज्जमाण (णाया १, १; औप)

उवगूहण :: न [उपगूहन] १ आलिंगन। २ प्रच्छन्‍न-रक्षण। ३ रचना, निर्माण, 'आरुह- णणट्टणेहिं वालयउवगूहणेहिं च' (तंदु)

उवगूहिय :: वि [उपगूढ] आलिंगित (आवम)।

उवगूहिय :: न [उपगूहित] गाढ़ आलिंगन (पव १६९)।

उवग्ग :: न [उपाग्र] १ अग्र के समीप। २ आषाढ़ मास; 'एसो च्चिय कालो पुणरेव गणं उवग्गम्मिी' (वव १)

उवग्गह :: पुं [उपग्रह] १ पुष्टि, पोषण (विसे १८५०) २ उपकार (उप ५९७ टी; स १५४) ३ ग्रहण, उत्पादन (ओघ २१२ भा) ४ उपधि, उपकरण, साधन (ओघ ६६६)

उवग्गह :: पुं [उपग्रह] सामीप्य-सम्बन्ध (धर्मंसं ३६३)।

उवग्गहग :: वि [उपग्राहक] उपकार-कारक (कुलक २३)।

उवग्गहिअ :: न [उपगृहीत] उपकार (तंदु ५०)।

उवग्गहिअ :: वि [उपगृहित] १ उपस्थापित (पणण २३) २ आलिंगनादि चेष्टा; 'उवह- सिएहिं उवग्गहिएहिं उवसद्‍देहिं' (तंदु) ३ उपकृत (श १५६) ४ उपष्टम्भित (राज)

उवग्गहिअ :: देखो ओवग्गहिअ (पंचव)।

उवग्गाहि :: वि [उपग्राहिन्] सम्बन्धी, सम्बन्ध रखनेवाला (स ५२)।

उवग्घाय :: पुं [उपोद्धात] ग्रन्थ के आरम्भ का वक्तव्य, भूमिका (विसे ९९२)।

उवघायग :: वि [उपघातक] विनाशक (धर्मं- सं ५१२)।

उवघाइ :: वि [उपघातिन्] उपघात करनेवाला (भास ८७; विसे २००८)।

उवघाइय :: वि [उपघातिक] १ उपघात- कारक (विसे २००९) २ हिंसा से सम्बन्ध रखनेवाला; 'भूओवधाइए' (औप)

उवधाय :: पुं [उपघात] १ विराधना, आघात (ओघ ७८८) २ अशुद्धता (ठा ५) ३ विनाश (कम्म १, ५४) ४ उपद्रव (तंदु) ५ दूसरे का अशुभ-चिन्तन (भास ५१)। °नाम न [°नामन्] कर्मं-विशेष, जिसके उदय से जीव अपने ही शरीर के पडजीभ, चोरदंत, रसौली आदि अवयवों से क्लेश पाता है वह कर्मं (सम ६७)

उवधायण :: न [उपघातन] ऊपर देखो (विसे २२३)।

उवचय :: पुं [उपचय] १ वृद्धि (भग ६, ३) २ समूह (पिंड २; ओघ ४०७) ३ शरीर (आव ५) ४ इन्द्रिय-पर्याप्ति (पणण १५)

उवचयण :: न [उपचयन] १ वृद्धि। २ परिपोषण, पुष्टि (राज)

उवचर :: सक [उप + चर्] १ सेवा करना। २ समीप में घूमना-फिरना। ३ आरोप करना। ४ समीप में खाना। ५ उपद्रव करना। उवचरइ, उवचरए, उवतरामो, उवचंरित (बृह १; पि ३४९; ४५५; आचा)

उवचर :: सक [उप + चर्] व्यवहार करना। उवचरंति (पिंडभा ६)।

उवचरय :: वि [उपचरक] १ सेवा के मिष से दूसरे के अहित करने का मौका देखनेवाला (सुअ २, २, २८) २ पुं. जासूस, चर (आचा २, ३, १, ५)

उवचरिय :: वि [उपचरित] कल्पित (धर्मंसं २४५)।

उवचरिय :: वि [उपचरित] १ उपासित, सेवित, बहुमानित (स ३०) २ न. उपचार, सेवा (पंचा ६)

उवचि :: सक [उप + चि] १ इकट्ठा करना। २ पुष्ट करना। उवचिणइ, उवचिणाइ; उव- चिणंति। भूका. उवचिणिंसु। भवि. उवचि- णिस्संति (ठा २, ४; भग)। कर्मं उवचि- ज्जइ, उवचिज्जंति (भग)

उवचिट्ठ :: सक [उप + स्था] उपस्थित होना, समीप आना। उवचिट्‍ठे, उवचिट्ठेज्जा (पि ४६२)।

उवचिणिय :: देखो उवचिय (धर्मंवि १०६)।

उवचिय :: वि [उपचित] १ पुष्ट, पीन (पणह १, ४; कप्प) २ स्थापित, निवेशित (कप्प; पणण २) ३ उन्नति (औप) ४ व्याप्‍त (अणु) ५ वृद्ध, बढा हुआ (आचा)

उवच्चया :: स्त्री [उपत्यका] पर्वत के पास की नीची जमीन (ती ११)।

उवच्छंदिद :: (शौ) वि [उपच्छन्दिन] अभ्यर्थित (अभि १७३)।

उवजंगल :: वि [दे] दीर्घं, लम्बा (दे १, ११६)।

उवजा :: अक [उप + जन्] उत्पन्न होना। उवजायइ (विसे ३०२९)।

उवजाइ :: स्त्री [उपजाति] छन्द-विशेष (पिंग)।

उवजाइय :: देखो उवयाइय (श्राद्ध १६; सुपा ३५४)।

उवजाय :: वि [उपजात] उत्पन्न (सुपा ६००)।

उवजीव :: सक [उप + जीव्] आश्रय लेना। उवजीवइ (महा)।

उवजीवग :: वि [उपजीवक] आश्रित (सुपा ११९)।

उवजीवि :: वि [उपजीविन्] १ आश्रय लेनेवाला; 'न करेइ नेय पुच्छइ निद्धम्मा लिंग- मुवजीवी' (उव) २ उपकारक (विसे २८८९)

उवजोइय :: वि [उफज्योतिष्क] १ अग्‍नि के समीप में रहनेवाला। २ पाक-स्थान में स्थित; 'के इत्थ खत्ता उवजोइया वा अज्झावया वा सह खंडिएहिं' (उत्त १२, १८)

उवज्ज :: अक [उत् + पद्] उत्पन्न होना। उवज्जंति (सुअ १, १, ३, १६)।

उवज्जण :: न [उपार्जन] पैदा करना, कमाना (सुर ८, १४४)।

उवज्जिण :: सक [उप + अर्ज्] उपार्जन करना। उवज्जिणेमि (स ४४३)।

उवज्झय, उवज्झाय :: पुं [उपाध्याय] १ अध्यापक, पढ़ेनावाल; (पउम ३९, ९०; षड्) २ सूत्राध्यापक जैन मुनि को दी जाती एक पदवी (विसे)

उवज्झिय :: वि [दे] आकारित, बुलाया हुआ (राज)।

उवझाय :: देखो उवज्झाय (सिरि ७७)।

उवट्टण :: देखो उव्वट्टण (राज)।

उवट्टणा :: देखो उव्वट्टणा (भग; विसे २५१५ टी)।

उवट्ठ :: वि [उपस्थ] एक स्थान में सतव अव- स्थित (वव ४)। °काल पुं [°काल] आने की वेला, अभ्यागम समय (वव ४)।

उवट्ठंभ :: पुं [उपष्टम्भ] १ अवस्थान (भग) २ अनुकम्पा, करुणा (ठा २)

उवट्ठप्प :: वि [उपस्थाप्य] १ उपस्थित करने योग्य। २ व्रत — दीक्षा के योग्य; 'वियत्त- किच्चे सेहे य उवट्टप्पा य आहिया' (बृह ६)

उवट्ठव :: सक [उप + स्थापय्] युक्ति से संस्थापित करना। उवट्ठयंति (सुअ २, १ २७)।

उवट्ठव :: सक [उप + स्थापय्] १ उपस्थित करना। २ व्रतों का आरोपण करना, दीक्षा देना। उवट्ठवेइ, उवट्ठमेह (महा; उवा)। हेकृ. उवट्ठमेत्तए (बृह ४)

उवट्ठवणा :: स्त्री [उपस्थापना] १ चारित्र- विशेष, एक प्रकार की जैन दीक्षा (धर्म २) २ शिष्य में व्रत की स्थापना; 'वयट्ठवणमु- वट्ठवणा' (पंचभा)

उवट्ठवणीय :: वि [उपस्थापनीय] देखो उपट्ठप्प (ठा ३)।

उवट्ठा :: सक [उप + स्था] उपस्थित होना। उवट्ठाएज्जा (भग)।

उवट्ठाण :: न [उपस्थान] १ बैठना, उपवेशन (णाया १, १) २ व्रत-स्थापन (महानि ७) ३ एक ही स्थान में विशेष काल तक रहना (वव ४)। °दोस पुं [°दोष] नित्यवास दोष (वव ४)। °साला स्त्री [°शाला] आस्थान-मण्डप, सभा-स्थान (णाया १, १; निर १, १)

उवट्ठाण :: न [उपस्थान] अनुष्ठान, आचार (सुअ १, १, ३, १४)।

उवट्ठाणा :: स्त्री [उपस्थाना] जिसमें जैन साधु- लोग एक बार ठहर कर फिर भी शास्त्र- निषिद्ध-अवधि के पहले ही आकर ठहरे वह स्थान (वव ४)।

उवट्ठाव :: देखो उवट्ठव। उवट्ठावेहि (पि ४६८)। हेकृ. उवट्ठावित्तए, उवट्ठावेत्तए (ठा)।

उवट्ठावणा :: देखो उवट्ठवणा (बृह ६)।

उवट्ठिय :: वि [उपस्थित] १ प्राप्तः 'जणवाद- मुवट्ठिओ' (उत्त १२) २ समपी-स्थित (आव १०) ३ तैय्यार, उद्यत (धर्मं ३) ४ आश्रित; 'निम्मत्तमुवट्टिओ' (आउ; सुअ १, २) ५ मुमुक्षु, प्रव्रज्या लेने को तैय्यार; 'उवट्ठियं पडिरयं, संजयं सुतवस्सियं। वुक्कम्म धम्माऔ भंसेइ, महामोहं पकुव्वइ' (सम ५१)

उवठावणा :: देखो उवट्ठवणा (पंचा १७, ३०)।

उवडहित्तु :: वि [उपदहितृ] जलानेवाला, 'अगणिकाएणं कायमुवडहित्ता भवइ' (सुअ २, २)।

उवडिअ :: वि [दे] अवनत, नमा हुआ (षड्)।

उवणगर :: न [उपनगर] उपपुर, शाखा-नगर (औप)।

उवणच्च :: सक [उप + नक्षर्य्] नचाना, नाच कराना। कवकृ. उवणाच्चिज्जमाण (औप)।

उवणद्ध :: वि [उवनद्ध] घटित (उत्तर ९१)।

उवणम :: सक [उप + नम्] १ उपस्थित करना, ला रखना। २ प्राप्‍त करना। उव- णामइ (महा)। वकृ. उवणमंत (उप १३९ टी; सुअ १, २)

उवणमिय :: वि [उपनमित] उपस्थापित (सण)।

उवणय :: वि [उपनत] उपस्थित (से १, ३६)।

उवणय :: पुं [उपनय] १ उपसंहार, दृष्टान्त के अर्थं को प्रकृ़त में जोड़ना, हेतु का पक्ष में उपसंहार (पव ६६; ओघ ४४ भा) २ स्तुति, श्‍लाघा (विसे १४०३ टी; पव १४०) ३ अवान्तर नय (राज) ४ संस्कार-विशेष, उपनयन (स २७२)

उवणय :: पुं [उपनय] यज्ञोपवीत संस्कार, उपहार. भेंट (राय १२७)।

उवणयण :: न [उपनयन] १ उपसंहार (वव १) २ उपस्थापन (पिंड ४४१)

उवणयण :: न [उपनयन] उपवीत-संस्कार, यज्ञ-सूत्र धारण संस्कार (पणह १, २)।

उवणिअ :: देखो उवणीय (से ४, ५५)।

उवणिक्खित्त :: वि [उपनिक्षिप्त] व्यवस्थापित (आचा २)।

उवणिक्खेव :: पुं [उपनिक्षेप] धरोहर, रक्षा के लिए दूसरे के पास रखा धन (वव ४)।

उवणिग्गम :: पुं [उपनिर्गम] १ द्वार, दरवाजा (से १२, ६८) २ उपवन, बगीचा (गउड)

उवणिग्गय :: वि [उपनिर्गत] समीप में निकला हुआ (औप)।

उवणिज्जंत :: देखो उवणी।

उवणिमंत :: सक [उपनि + मन्त्रय्] निम- न्त्रण देना। भवि. उवणिमंतेहिंति (औप)। संकृ. उवणिमंतिऊण (स २०)।

उवणिमंतण :: न [उपनिमन्त्रण] निमन्त्रण (भग ८, ६)।

उवणिवाय :: पुं [उपनिपात] सम्बन्ध (धर्मसं ४५८)।

उवणिविट्ठ :: वि [उपनिविष्ट] समीप-स्थित (राय)।

उवणिसआ :: स्त्री [उपनिषत्] वेदान्त-शास्त्र, वेदान्त-रहस्य, ब्रह्मा-विद्या (अच्चु ८)।

उवणिहा :: स्त्री [उपनिधा] मार्गण, मार्गणा (पंचसं)।

उवणिहि :: पुंस्त्री [उपनिधि] १ समीप में आनीत, धरोहर (ठा ५) २ विरचना, निर्माण (अणु)

उवणिहि :: पुंस्त्री [उपनिधि] उपस्थापन, अमा- नत (अणु ५२)।

उवणिहिअ :: वि [औपनिधिक] १ उपनिधि- सम्बन्धी। °आ स्त्री [°की] क्रम-विशेष (अणु ५२)

उवाणहिय :: वि [उपनिहित] १ समपी में स्थापित। २ आसन्न-स्थित (सुअ २, २)। °य पुं [°क] नियम-विशेष को धारण करनेवाला भिक्षु (सुअ २, २)

उवणी :: सक [उप + नी] १ समीप में लाना, उपस्थित करना। २ अर्पण करना। ३ इकट्ठा करना। उवणेंति (उवा); उवणेमो। भि उवणेहिइ (पि ४५५; ४७४; ५२१)। कवकृ. उवणिज्जंत (से ११, ५३)। संकृ. 'से भिक्खुणो उवणेत्ता अणेगे' (सुअ २, ६, १)

उवणीअ :: न [उपनीत] उपनयन (अणु २१७)। °वयण न [°वचन] प्रशंसा-वचन (आचा २, ४, १, १)।

उवणीय :: वि [उपनीत] १ समीप में लाया हुआ (पाअ; महा) २ अर्पित, उपढौकित (औप) ३ उपनययुक्त, उपसहृत (विसे ९९९ टी; अणु) ४ प्रशस्त, श्‍लाघित (आचा २)। °चरय पुं [°चरक] अभिग्रह विशेष को वारण करनेवाला साधु (औप)

उवण्णत्थ :: वि [उपन्यस्त] उपन्यस्त, उप- ढौकित; 'गुव्विणीए उवणणत्थं विविहं पाण- भोअणं। भुंजमाणं विवज्जिजा' (दस ५, ३९)।

उवण्णास :: पुं [उपन्यास] १ वाक्योपक्रम, प्रस्तावना (ठा ४) २ दृष्टान्त-विशेष (दस १) ३ रचना (अभि ९८) ४ छल प्रयोग (प्रयौ २२)

उवतल :: न [उपतल] हस्त-तल की चारों ओर का पार्श्‍वभाग (निचू १)।

उवताव :: पुं [उपताप] सन्ताप, पीड़ा (सुअ १, ३)।

उवताविय :: वि [उपतापित] १ पीड़ित। २ तप्‍त किया हुआ, गरम किया हुआ (सुर २, २२६; सण)

उवत्त :: वि [उपात्त] गृहीत (पउम २९, ४९; सुर १४, १९०)।

उवत्थड :: वि [उपस्तृत] ऊपर-ऊपर आच्छा- दित (भग)।

उवत्थाण :: देखो उवट्ठाण (दसनि ४, ५५)।

उवत्थाणा :: देखो उवट्ठाणा (पि ३४१)।

उवत्थिय :: देखो उवट्ठिय (सम १७)।

उवत्थु :: सक [उप + स्तु] स्तुति करना, श्‍लाघा करना। उवत्थुणति (पि ४९४)। उवत्थुवंदि (शौ)। (उत्तर २२)।

उवदंस :: सक [उप + दर्शय्] दिखलाना, बतलाना। उवदंसइ (कप्प; महा)। उवदंसेमि (विपा १, १)। भवि. उवदंसिस्सामि (महा)। वकृ. उवदंसेमाण (उवा)। कवकृ. उवदंसिज्जमाण (णाया १, १३)। संकृ. उवदंसिय (आचा २)।

उवदंस :: पुं [उपदंश] १ रोग-विशेष, गर्मी, सुजाक। २ अवलेह, चाटना (चारु ६)

उवदंसण :: न [उपदर्शन] दिखलाना (सण)। °कूड पुं [°कूट] नीलवंत नामक पर्वंत का एक शिखर (ठा २, ३)।

उवदंसिय :: वि [उपदर्शित] दिखलाया हुआ (सुपा ३११)।

उवदंसिर :: वि [उपदर्शिन्] दिखलानेवाला (सण)।

उवदंसेत्तु :: वि [उफदर्शयितृ] दिखलानेवाला (पि ३९०)।

उवदव :: पुं [उपद्रव] ऊधम, बखेड़ा (महा)।

उवदा :: स्त्री [उपदा] भेंट, उपहार (रंभा)।

उवदाई :: स्त्री [उदकदायिका] पानी देनेवाली; 'पाउवदाइं च णहाणेवदाइं च बाहिरपेसण- कारिं ठवेति' (णाया १, ७)।

उवदाण :: न [उपदान] भेंट, नजराना (भवि)।

उवदिस :: सक [उप + दिश्] उपदेश देना। उवदिसइ (कप्प)।

उवदीव :: न [दे] द्वीपान्तर, अन्य द्वीप (दे १, १०६)।

उवदेसग :: वि [उपदेशक] व्याख्याता (औप)।

उवदेसणया :: देखो उवएसणया (विसे २९, १६)।

उवदेसि :: वि [उपदेशिन्] उपदेशक (चारु ४)।

उवदेही :: स्त्री [उपदेहिका] क्षुद्र जन्तु-विशेष, दीमक (दे १, ९३)।

उवद्दव :: सक [उप + द्रु] उपद्रव करना, ऊधम मचाना। भवि. उवद्‍दविस्सइ (महा)।

उवद्दव :: देखो उवदव (ठा ५)।

उवद्दवण :: न [उपद्रवण] उपद्रव करना, उप- सर्गं करना (धर्मं ३)।

उवद्दविय :: वि [उपद्रुत] पीड़ित, भय-भीत किया हुआ (आव ४; विवे ७६)।

उवद्‍दुअ :: वि [उपद्रुत] हैरान किया हुआ (भत्त १०५)।

उवधाउ :: पुं [उपधातु] निकृष्ट धातु (संबोध ५३)।

उवधारणया :: स्त्री [उपधारणा] अवग्रह-ज्ञान (णंदि १७४)।

उवधारणया :: स्त्री [उपधारणा] धारणा, धारण करना (ठा ८)।

उवधारिय :: वि [उपधारित] धारण किया हुआ (भग)।

उवनंद :: पुं [उपनन्द] स्वनाम-ख्यात एक जैन मुनि (कप्प)।

उवनंद :: सक [उप + नन्द्] अभिनन्दन करना। कवकृ. उवनंदिज्जमाण (कप्प)।

उवनगर :: देखो उवनयर (सुख २, १३)।

उवनयर :: देखो उवणयर (सुपा ३४१)।

उवनिक्खित्त :: देखो उवणिक्खित्त (कस)।

उवनिक्खेव :: सक [उपनि + क्षेपय्] १ धरोहर रखना। २ स्थापन करना। कृ. उव- निक्खोवियव्व (कस)

उवनिग्गय :: देखो उवणिग्गय (णाया १, १)।

उवनिबंधण :: न [उपनिबन्धन] १ संबन्ध। २ वि. संबन्ध-हेतु (विसे १६३६)

उवनिमंत :: देखो उवणिमंत। उवनिमंतेइ, उवनिमंतेमि (कस, उवा)।

उवनिविट्ठ :: वि [उपनिविष्ट] समीपस्थित (राय २७)।

उवनिहिय :: वि [औपनिधिक] देखो उवणि- हिय (पणह २, १)।

उवन्नत्थ :: वि [उपन्यस्त] स्थापित (स ३१०)।

उवन्नास :: पुं [उपन्यास] निवेदन (दसनि १, ८२)।

उवप्पदाण, उवप्पयाण :: न [उपप्रदान] नीति-विशेष, दान-नीति, अभिमत अर्थं का दान (विपा १, ३; णाया १, १)।

उपप्पुय :: वि [उपप्‍लुत] उपद्रुत, भय से व्याप्त (राज)।

उवभुंज :: सक [उप + भुज्] उपभोग करना, काम में लाना। उवभुंजइ (षड्)। वकृ. उवभुंजंत (उप पृ १८०)। कवकृ. उअहु- ज्जंत, उवभुज्जंत (से २, १०; सुर ८, १६१)। संकृ. उवभुंजिऊण (महा)।

उवभुंजण :: न [उपभोजन] उपभोग (सुपा १६)।

उवभुत्त :: वि [उपभुक्त] १ जिसका उपभोग किया हो वह (वव ३) २ अधिकृत (उप पृ १२४)

उवभोअ, उवभोग :: पुं [उपभोग] १ भोजनातिरिक्त भोग, जिसका फिर-फिर भोग किया जाय जैसे-वस्त्र-गृहादि; 'उवभोगो उ पुणो पुणो उवभुज्जइ भवणवलयाई' (उत्त ३३; अभि ३१) २ जिसका एक बार भोग किया जाय वह, अशन, पान वगैरह (भग ७, २; पडि)

उवभोग :: पुं [उपभोग] १ एक बार भोग, आसेवन। २ अन्तरंग भोग (श्रावक २८४) ३ धारण करना (ठा ५, ३ टी — पत्र ३३८)

उवभोग्ग, उवभोज्ज :: वि [उपभोग्य] उपभोग-योग्य (राज; बृह ३)।

उवमा :: स्त्री [उपमा] १ सादृश्य, दृष्टान्त (अणु; उव; प्रासू १२०) २ सत्य (ठा १०) ३ खाद्य-पदार्थ-विशेष (जीव ३) ४ 'प्रश्‍नव्या- करण' सूत्र का एक लुप्त अध्ययन (ठा १०) ५ अलङ्कार-विशेष (विसे ९९९ टी) ६ प्रमाण-विशेष, उपमान-प्रमाण (बिसे ४७०)

उवमाण :: न [उपमान] १ दृष्टान्त, सादृश्य। २ जिस पदार्थ से उपमा दी जाय वह (दसनि १)। प्रमाण-विशेष (सुअ १, १२)

उवमालिय :: वि [उपमालित] विभूषित, सुशोभित; 'अमलामयपडिपुन्‍नं, कुवलयमालोौवमालियमुहं च। कणयमयपुणणकलसं, विलसंतं पासए पुरओ' (सुपा ३४)।

उवमिय :: वि [उपमित] १ जिसको उपमा दी गई ही वह। २ जिसकी उपमा दी गई हो वह (आवम) ३ न. उपमा, सादृश्य (विसे ६८५)

उवमेअ :: वि [उपमेय] उपमा के योग्य (मै ७३)।

उवय :: पुं [दे] हाथी को पकड़ने का गड्‍ढा (पाअ)।

उवय :: देखो ओवय। वकृ. उवयंत (कप्प)।

उवय :: (अप) देखो उदय (भवि)।

उवयर :: सक [उव + कृ] उपकार करना, हिय करना। उवयरेइ (सण)। कृ. उवयरियव्व (सुपा ५६४)।

उवयर :: सक [उप + चर्] १ आरोप करना। २ भक्ति करना। ३ कल्पना करना। ४ चिकि- त्सा करना। कवकृ. उवयिरिज्जंत (सुपा ५७)

उवयरण :: न [उपकरण] साधन, सामग्री; 'माए घरोवअरणं अज हु णत्थि त्ति साहिअं तुमए' (काप्र २९; गउढ)। २ उपकार (सत्त ४१ टी)

उवयरिय :: वि [उपकृत] १ उपकृत। २ उप- कार (वज्जा १०)

उवयरिय :: वि [उपकृत] १ उपकृत। २ उप- कार (वज्जा १०)

उवयरिय :: वि [उपचरित] आरोपित (विसे २८३)।

उवयरिया :: स्त्री [उपचारिका] दासी (उप पृ ३८७)।

उवया :: सक [उप + या] समीप में जाना। उवयाइ (सुअ १, ४, १, २७)। उवयंति (विसे १४९)।

उवयाइय :: वि [उपयाचित] १ प्रार्थित, अभ्य- र्थित। २ न. मनौती, किसी काम के पूरा होने पर किसी देवता की विशेष आराधना करने का मानसिक संकल्प (ठा १०; णाया १, ८)

उवयाण :: न [उपयान] समीप में गमन (सुअ १, २)।

उवयार :: पुं [उपकार] भलाई, हित (उव; गउड; वज्जा ५८)।

उवयार :: पुं [उपचार] १ पूजा, सेवा, आदर, भक्ति (स ३२; प्रति ४) २ चिकित्सा, श्रूश्रुषा (पंचा ६) ३ लक्षणा, शब्द-शक्ति- विशेष, अध्यारोप; 'जो तेसु धम्मसद्‍दो सो उवयारेण, निच्छएण इहं' (दसनि १) ४ व्यवहार; 'णिउणजुत्तोवयारकुसला' (विपा १, २) ५ कल्पना; 'उवयारओ खित्तस्स विणि- गमणं सरूवओ नत्थि' (विसे) ६ आदेश (आवम)

उवयारग :: वि [उपचारक] सेवा-श्रुश्रूषा करनेवाला (निचू ११)।

उवयारण :: न [उपकारण] अन्य-द्वार उपकार करना; 'उवयारणपारणासु विणओ पउंजि- यव्वो' (पणह २, ३)।

उवयारय :: वि [उपकारक] उपकार करनेवाला (धम्म ८ टी)।

उवयारि :: वि [उपकारिन्] उपकारक (स २०८; विक २३; विवे ७९)।

उवयारिअ :: वि [औपचारिक] उपचार से संबन्ध रखनेवाला (उवर ३४)।

उवयालि :: पुं [उपजलि] १ एक अन्तकृद् मुनि, जो वसुदेव का पुत्र था और जिसने भगवान् श्रीनेमिनाथजी के पास दीक्षा लेकर शत्रुजय पर मुक्ति पाई थई (अंत १४) २ राजा श्रेणिक का इस नाम का एक पुत्र, जिसने भगवान् महावीर के पास दीक्षा लेकर अनुत्तर- विमान में देव-गति प्राप्त की थी (अनु १)

उवरइ :: स्त्री [उपरति] विराम, निवृत्ति (विसे २१७७; २६४०; सम ४४)।

उवरंज :: सक [उप + रञ्ज्] ग्रस्त करना। कर्म. उवरज्जदि (शौ) (मुद्रा ५८)।

उवरग :: देखो ओअरय; 'उवरगपविट्ठाए कणग- मंजरीए निरूवणत्थं दारदेसट्ठिएण दिट्ठं तं पुव्ववणिणयचेचट्ठियं' (महा)।

उवरत्त :: वि [उपरक्त] १ अनुरक्त, राग-युक्त; 'कुमरगुणेसुवरत्ता' (सुपा २५६) २ राहु से ग्रसित (पाअ) ३ म्लान (स ४७३)

उवरम :: अक [उप + रम्] निवृत्त होना, विरत होना; 'भो उवरमसु एयाओं असुभज्झ- वसाणाओ' (महा)।

उवरम :: पुं [उपरम] १ निवृत्ति, विराम, (उप पृ ६३) २ नाश (विसे ९२)

उवरय :: वि [उपरत] १ विरत, निवृत्त (आचा; सुपा ५०८) २ मृत (स १०४)

उवरय :: देखो उवरग; 'उवरयगया दारं पिहिऊण किंपि मुणमुणंती चिट्ठइ' (महा)।

उवरल :: (अप) देखो उव्वरिय [दे] (पिंग)।

उवराग, उवराय :: पुं [उपराग] सूर्यं या चन्द्र का ग्रहण, राहु-ग्रहण (पणह, १, २; से ३, ३६; गउड)।

उवराय :: पुं [उपरात्र] दिन, 'राओवरायं अप- डिन्‍नो अन्नगिलायं एगया भुंजे' (आचा)।

उवरि :: अ [उपरि] ऊपर, ऊर्ध्वं (उव)। °भासा स्त्री [°भाषा] गुरु के बोलने के अनन्तर ही विशेष। बोलना (पडि)। °म, °मग, °मय, ल्ल वि [°तन] ऊपर का, ऊर्ध्व-स्थित (सम ४३; सुपा ३५; भग; हे २, १६३; सम २२; ८९)। °हुत्त वि [°अभिमुख] ऊपर की तरफ (शुपा २६९)।

उवरि :: ऊपर देखो (कुमा)।

उवरितण :: देखो उवरि — म (धर्मंवि १५१)।

उवरुंध :: सक [उप + रुध्] १ अटकाव करना। २ अड़चन डालना। ३ प्रतिबन्ध करना, रोकना। कर्म. उवरुज्झइस उवरुझिज्जइ, (हे ४, २४८)

उवरुद्द :: पुं [उपरुद्र] नरक के जीवों को दुःख देनेवाले परमाधार्मिक देवों की एक जाति; 'रुद्दोवरुद्द काले अ, महाकाले त्ति यावरे' (सम २८); 'भंजंति अंगमंगाणि, ऊरुबाहुसि- राणि करचरणा। कप्पेंति कप्पणीहिं, उबरुद्दा पावकम्मरया' (सुअ १, ५)।

उवरुद्ध :: वि [उपरुद्ध] १ रक्षित। २ प्रतिरुद्ध, अवरुद्ध; 'पासत्थपमुहचोरोवरुद्धघणभव्वसत्थाणं' (सार्धं ९८; उप पृ ३८५)

उवरोह :: सक [उप + रोधय्] अड़चन डालना। कृ़. उवरोहणीय (सुख १, ४०)।

उवरोह :: पुं [उपरोध] १ अड़चन, बाधा (विसे १४१३; स ३१६); 'भुओवरोहरहिए' (आव ४) २ अटकाव, प्रतिबन्ध (बृह १; स १५) ३ घेरा, नगर आदि का सैन्य द्वारा वेष्टन; 'उवरोहभया कीरइ सप्परिखो पुरवरस्स पुागारो' (बृह ३) ४ निर्बन्ध, आग्रह (स ४५७)

उवरोहिअ :: वि [उपरोधित] जिसको उपरोध — निर्बन्ध किया गया हो वह (कुप्र १३५; ४०९)।

उवरोहि :: वि [उपरोधिन्] उपरोध करनेवाला (आव ४)।

उवल :: पुं [उपल] १ पाषण, पत्तर (प्रासू १७५) २ टाँकी वगैरह को संस्कृत करनेवाला पाषा-विशेष (पणण १)

उवलम्बण :: पुं [उपलम्बन] साँकल (सिक्कड) वाला एक प्रकार का दीपक (अनु)।

उवलंभ :: सक [उप + लभ्] १ प्राप्‍त करना। २ जानना। ३ उलाहना देना। कर्मं. उवलंभिज्जइ (पि ५४१)। वकृ. उवलंभेमाण (णाया १, १८)

उवलंभ :: पुं [उपलम्भ] १ लाभ, प्राप्ति (सुपा ६) २ ज्ञान (स ६५१) ३ उलाहना; 'एवं बहूवलंभे' (उप ६४८ टी)

उवलंभ :: देखो उवालंभ = उपालम्भ; 'उवलं- भम्मि मिगावई नाहियवाई वि वत्तव्वे' (दसनि १, ७५)।

उवलंभण :: न [उपलम्भन] प्राप्ति (णंदि २१०)।

उवलंभणा :: स्त्री [उपलम्भना] उलाहना; 'घएणं सत्थवाहं बहहिं खेज्जणाहि य रुटंणाहि य उवलंभणाहि य खेज्जमाणा य रुंटमाणा य उवलंभेमाणा य घणणस्स एयमट्‍ठं णिवेदेंति' (णाया १, १८)।

उवलक्ख :: सक [उप +लक्षय्] जानना, पहिचानना। उवलक्खेइ (महा)। संकृ. उवलक्खेऊण (महा)। कृ. उवलक्खिज्ज (उप पृ ८७)।

उवलक्ख :: पुं [उपलक्ष] ज्ञान, खबर, मालूम; 'खित्ताइं अणुवलक्खं रणणाइं रुक्खगहणम्मि' (कुप्र ३२९)।

उपलक्खण :: न [उपलक्षण] १ पहिचान (सुपा ९१) २ अन्यार्थ-बोधक संकेत (श्रा ३०)

उवलक्खिअ :: वि [उपलक्षित] १ पहिचाना हुआ, परिचित (श्रा १२)

उवलग्ग :: वि [उपलग्‍न] लगा हुआ, लग्‍न; 'पउमिणिपत्तोवलग्गजलबिंदुनिचयचित्तं' (कप्प; भवि)।

उवलद्ध :: वि [उपलब्ध] १ प्राप्‍त। २ विज्ञात; 'जइ सव्वं उवलद्धं, जइ अप्पा भाविओ उवसमेण' (उव; णाया १, १३; १४) ३ उपालब्ध, जिसको उलाहना दिया गया हो वह (उप ७२८ टी)

उवलद्धि :: स्त्री [उपलब्धि] १ प्राप्‍ति, लाभ। २ ज्ञान (विसे २०९)

उवलद्धिय :: देखो उवलद्ध; 'सत्तरत्तछुहियस्स मे भक्खमुवलद्धियं, ता तुमं भक्खिस्सं' (कुप्र ५९)।

उवलद्‍धु :: वि [उपलब्धु] ग्रहण करनेवाला, जाननेवाला (विसे ९२)।

उवलभ :: देखो उवलंभ =उप + लभ्। वकृ. उलवभंत (पि ४५७)। संकृ. उवलब्भ (पि ५९०)।

उवलभत्ता, उवलयभग्गा :: स्त्री [दे] वलय, कङ्गन (दे १, १२०)।

उवलल :: अक [उप + लल्] क्रीड़ा करना, विलास करना। कबकृ. उवललंत (महा)। प्रयो., वकृ. उवलालिज्जमाण (णाया १, १)।

उवललय :: न [दे] सुरत, मैथुल (दे १, ११७)।

उवललिय :: न [उपललित] क्रीडा-विशेष (णाया १, ९)।

उबलह :: देखो उबलंभ = उप + लभ्। संकृ. उवलहिय (स ३२), उवलहिऊण (स ६१०)।

उबला :: सक [उप + ला] १ ग्रहण करना। २ आश्रय करना। हेकृ. उवलाउं (वव १)

उवलि :: देखो उवल्लि। उवलिइज्जा (आचा २, ३, १, २)।

उवलिंप :: सक [उप + लिप्] लीपना, पोतना। भवि. उवलिंपिहिइ (पि ५४९)।

उवलिंप :: सक [उप + लिप्] चुम्बन करना; 'बलाणं जो उ सीसाणं जीहाए उवलिपए' (गच्छ १, १६)।

उलित्त :: वि [उपलिप्त] लीपा हुआ, पोता हुआ (णाया १, १)।

उवलीण :: देखो उवल्लीण।

उवलुअ :: वि [दे] सलज्ज, लज्जा-युक्त (दे १, १०७)।

उवलेव :: पुं [उपलेप] १ लेपना। २ कर्मं- बन्ध (औप) ३ संश्लेष (आचा) ४ आश्‍लेष (सुअ १, १, २)

उवलेवण :: न [उपलेपन] ऊपर देखो (भग ११, ९; निचू १; औप)।

उवलेविय :: वि [उपलेपित] लीपा हुआ, पोता हुआ (कप्प)।

उवलोभ :: सक [उप + लोभय्] लालच देना, लोभ दिखाना। संकृ. उवलोभेऊण (महा)।

उवलोहिय :: वि [उपलोभित] जिसको लालाच दी गई हो वह (उफ ७२८ टी)।

उवल्लि :: सक [उप + ली] १ रहना, स्थिति करना। २ आश्रय करना। उवल्लियइ (पि १९६; ४७४); 'तओ संजयामेव वासावासं उवल्लिइज्जा' (आचा २, ३, १, १; २)

उवल्लिण :: वि [उपलीन] १ स्थित। २ प्रच्छन्‍न-स्थित; 'उवल्लीणा मेहुणधम्मं विणण- वेंति' (आचा २)

उववइ :: पुं [उपपति] जार (धर्मवि १२८)।

उववज्ज :: अक [उप + पद्] १ उत्पन्‍ने होना। २ संगत होना, युक्त होना। उवज्जइ; भवि. उव्वज्जिहिइ (भग; महा)। वकृ. उववज्ज- माण (ठा ४)। संकृ. उववज्जित्ता (भग १७, ६)। हेकृ. उववज्जिउं (सुअ २, १)

उववज्जण :: न [उपवर्जन] त्याग, 'असमंजसो- ववज्जणमिह जायइ सव्वसंगचायाओ' (सुपा ४७१)।

उववज्जमाण :: देखो उववाय = उप + वादय्।

उववज्झ :: वि [उपवाह्य] राज आदि का वल्लभ — प्रधान, , सेनापति आदि (दस ९, २, ५)।

उववज्झ :: वि [औपवाह्य] प्रधान, आदि का प्रधान आदि को बैठने योग्य (दस ९, २, ५)।

उववट्ट :: अक [उप + वृत्] च्युत होना, मरना, एक गति से दूसरे गति में जाना। उववट्टइ (भग)। वकृ. उववट्टमाण (भग)।

उववण :: न [उपवन] बगीचा (णाया १, १; गफड)।

उववण्ण :: वि [उपपन्न] १ उत्पन्‍न, 'उववणणो माणुसम्मि लोगम्मि' (उत्त ९) २ संगत, युक्त (पंचा ६; उवर ४७) ३ प्रेरित; 'उववणणो पावकम्मुणा' (उत्त १९) ४ न. उत्पत्ति, जन्म (भग १४, १)

उववत्ति :: स्त्री [उपपत्ति] १ उत्पत्ति, जन्म (ठा २) २ युक्ति, न्याय (पउम २, ११७; उवर ४९) ३ विषय। ४ संभव; 'विसउ त्ति वा संभउत्ति वा उवव त्ति त्ति वा एगट्ठा (आचू १)

उववत्तु :: वि [उपपत्तृ] उत्पन्‍न होनेवाला, 'देवलोगेसु देवत्ताए उववत्तारो भवंति' (औप; ठा ८)।

उववन्न :: देखो उववण्ण (भग; टा २, २; स १५८; १९२)।

उववयण :: न [उपपतन] देखो उववाय = उपपात, 'उववयणं उववाओ' (पंचभा)।

उववसण :: न [उपवसन] उपवास (सुपा ६१९)।

उववाइय :: वि [औपपादिक, औपपातिक] १ उत्पन्‍न होनेवाला; 'अत्थि मे आया उव- वाइए, नत्थि मे आया उववाइए' (आचा) २ देवरूप या नारक रूप से उत्पन्‍न होनेवाला (पणह १, ४)

उववाय :: सक [उप + पादय्] संपादन करना, सिद्ध करना। उववायए (उत्त १, ४३; दस ८, ३३)।

उववाय :: पुं [उप + वादय्] वाद्य बजाना। कवकृ. उफवज्जमाण, उववज्जमाण (कप्प; राज)।

उववाय :: पुं [उपपात] १ देव या नारक जीव की उत्पत्ति — जन्म (कप्प) २ सेवा, आदर; 'आणोववयवयणनिद्देसे चिट्ठंति' (भग ३, ३) ३ विनय। ४ आज्ञा; 'उववाओ णिद्देसो आणा विणओ य होंति एगट्ठा' (वव ४) ५ प्रादुर्भाव (पणण १६) ६ उपसंपादन, संप्राप्ति (निचू ५)। °कप्प पुं [°कल्प] साध्वाचार-विशेष, पाश्‍वँस्थों के साथ रह कर संविग्‍न-विहार की संप्राप्‍ति (पंचभा)। °य वि [°+ज] देव या नारक गति में उत्पन्‍न जीव (आचा)

उववास :: पुंन [उपवास] उपवास, अनाहार, दिन-रात भोजनादि का अभाव (उवा; महा)।

उववासि :: वि [उपवासिन्] जिसने उपवास किया हो वह (पउम ३३, ५१; सुपा ४७८)।

उववासिय :: वि [उपवासित] उपवास किया हुआ (भवि)।

उवविअ :: देखो उववीअ; 'सव्वंगं जुव्वणे च (? व) विओ' (धर्मंवि ८)।

उवविट्ट :: वि [उपविष्ट] बैठा हुआ, निषण्ण (आवम)।

उवविणिग्गय :: वि [उपविनिर्गत] सतत निर्गंत (जीव ३)।

उवविस :: अक [उप + विश्] बैठना। उव- विसइ (महा)। संकृ. उवविसिअ (अभि ३८)।

उवविसण :: न [उपवेशन] बैठना (कुलक ७)।

उववीअ :: न [उपवीत] १ यज्ञसूत्र, जनेऊ (णाया १, १६; गउड) २ वि. सहित, युक्त; 'गुणसंपओववीओ' (विसे ३४११)

उववीड :: अ [उपपीड] उफमर्दन, 'सिविणो- ववीडं आलिंगणेण गाढं पीडिओ' (रंभा)।

उववूह :: सक [उप + बृंह] १ पुष्ट करना। २ प्रशंसा करना, तारीफ करना। संकृ. उववूहेऊण (दसनि ३)। कृ. उववूहेयव्व (दसनि ३)

उवबूहण :: न [उपबृंहण] १ वृद्धि, पोषण (पणह २, १) २ प्रशंसा, श्‍लाघा (पंचा २)

उवबूहा :: स्त्री [उपबृंहा] ऊपर देखो; 'उववूह- थिरीकणे बच्छल्लपभावणे अट्ठं' (पडि)।

उववूहाणिय :: वि [उपबृंहणीय] पूष्टि-कर्त्ता (निचू ८)। स्त्री. पट्ट-विशेष, राजा वगैरह के भोजन-समय में उपभोग में आनेवाला पट्टा (निचू ९)।

उववूहिय :: वि [उपबंहित] १ वृद्धि को प्राप्त, पुष्ट (सं १५) २ प्रशंसित (उप पृ ३८९)

उवबूहिर :: वि [उपबृंहिन्] १ पोषक, पुष्टि- कारक। २ प्रशंसक (सण)

उववेय :: वि [उपेत] युक्त, सहित (णाया १, १; औप वसु; सुर १, ३४; विस, ९९९)।

उवसंकम :: सक [उपसं + क्रम्] समीप आना। वकृ. उवसंकमंत (दस ५, २, १०)।

उवसंखड :: सक [उपसं + कृ] राँधना, पकाना। कवकृ. उवसंखडिज्जमाण (आचा २, १, ४, २)।

उवसंखा :: स्त्री [उपसंख्या] यथावस्थित पदार्थ- ज्ञान (सुअ १, १२)।

उवसंगह :: सक [उपसं + ग्रह्] उपकार करना। कर्मं. उवसंगहिज्जइ (स १६१)।

उवसंघर :: सक [उपसं + हृ] उपसंहार करना। उवसंघरमि (भवि)।

उवसंघरिय :: देखो उवसंहरिय (भवि)।

उवसंघिय :: वि [उपसंहृत] जिसका उपसंहार किया गया हो वह, समापित (विसे १०११)।

उवसंचि :: सक [उपसं + चि] संचय करना। संकृ. उवसंचिवि (सण)।

उवसंठिय :: वि [उपसंस्थित] १ समीप में स्थित। २ उपस्थित (सण)

उवसंत :: वि [उपशान्त] १ क्रोधादि विकार- रहित (सुअ १, ६; धर्मं ३)। २ नष्ट, अपगत; 'उवसंतरयं करेह' (राय)। ३ पुं. ऐरवत क्षेत्र के स्वनाम-धन्य एक तीर्थङ्कर-देव (पव ७)। °मोह पुं [°मोह] ग्यारहवाँ गुण-स्थानक (सम २६)

उवसंति :: स्त्री [उपशान्ति] उपशम (आचा)।

उवसंधारिय :: वि [उपसंधारित] संकल्पित (निचू १)।

उवसंपज्ज :: [उपसं + पद्] १ समीप में जाना। २ स्वीकार करना। ३ प्राप्त करना। उवसंपज्जइ (स १६१)। वकृ. उवसंपज्जंत (वव १)। संकृ. उवसंपज्जिता, उवसंपज्जि- त्ताणं (कप्प; उवा)। हेकृ. उवसंपज्जिउं (बृह १)

उवसंपण्ण :: विृ [उपसंपन्न] १ प्राप्त। २ समीप-गत (धर्मं ३)

उवसंपया :: स्त्री [उपसंपद्] १ ज्ञान वगैरह की प्राप्ति के लिए दूसरे गुर्वादि के पास जाना (धर्मं ३) २ अन्य गुरु आदि की सत्ता का स्वीकार करना (ठा ३, ३) ३ लाभ, प्राप्ति (उत्त २६)

उवसंहर :: सक [उपसं + हृ] १ हटाना, दूर करना। २ सकेलना, समेटना; 'ता उवसंहर इमं कोवं' (कुप्र २८४)। संकृ. 'उवसंहरिउं नीसेसदेवमायं गओ जाव' (धर्मवि १८)

उवसंहरिय :: वि [उपसंहृत] समेटा, हुआ, 'वंतरेण य उवसंहरिया माया' (महा)।

उवसंहार :: पुं [उपसंहार] संकोचन, समेट (द्रव्य १०)।

उवसंहार :: पुं [उपसंहार] १ समाप्ति। २ उपनय (श्रा ३६)

उवसग्ग :: पुं [उपसर्ग] १ उपद्रव, बाधा (ठा १०) २ अव्यय-विशेष, जो धातु को पूर्वं में जोड़े जाने से उस धातु के अर्थं की विशेषता करता है (पणह २, २)

उवसग्ग :: वि [दे] मन्द, आलसी (दे १, ११३)।

उवसग्गिअ :: वि [उपसर्गित] हैरान किया हुआ (सिरि १११७)।

उवसजज्ज :: अक [उप + सृज्] आश्रय करना। उवसज्जिज्जा (आचा २, ८, १)।

उवसज्जण :: न [उपसर्जन] १ अप्रधान, गौण (विसे २२६२) ३ सम्बन्ध (विसे ३००५)

उवसत्त :: वि [उपसक्त] विशेष आसक्तिवाला (उत्त ३२)।

उवसद्द :: पुं [उपशब्द] सुरत-समय का शब्द (तंदु)।

उवसद्द :: पुंन [उपशब्द] १ प्रच्छन्न शब्द। २ समीप का शब्द (तंदु ५०)

उवसप्प :: सक [उप + सृप्] समीप जाना। संकृ. उवसप्पिऊण (महा; स ५२९)।

उवसप्पि :: वि [उपसर्पिन्] समीप में जानेवाला (भवि)।

उवसप्पिय :: वि [उपसर्पित] पास गया हुआ (पाअ)।

उवसम :: पुं [उप + शम्] १ क्रोध-रहित होना। २ शान्त होना, ठंडा होना। ३ नष्ट होना। उवसमइ (कप्प; कस; महा)। कृ. उवसमियव्व (कप्प)। प्रयो. उवसमेइ (विसे १२८४), उवसमावेइ (पि ५५२)। कृ. उव- समावियव्व (कप्प)

उवसम :: पुं [उपशम] १ क्रोध का अभाव, क्षमा (आचा) २ इन्द्रिय-निग्रह (धर्मं ३) ३ पन्द्रहवाँ दिवस (चंद १०) ४ मुहुर्त्तं- विशेष (सम ५१)। °सम्म न [°सम्यक्त्व] सम्यक्त्व-विशेष (भग)

उवसमणा :: स्त्री [उपशमना] आत्मिक प्रयत्‍न- विशेष, जिससे कर्मं-पुद्‌गल उदय-उदीणणादि के अयोग्य बनाए जाय वह (पंच)।

उवसमि :: वि [उपशामिन्] उपशमवाला (विसे ५३० टी)।

उवसमिअ :: पुं [औपशमिक] कर्मों का उप- शम (अणु ११३)।

उवसमिय :: वि [उपशमित] उपशम-प्राप्त (भवि)।

उवसमिय :: वि [औपशमिक] १ उपशम से होनेवाला। २ उपशम से संबन्ध रखनेवाला (सुपा ६४८)

उवसाम :: सक [उप + शमय्] १ शान्त करना। २ रहित करना। उवसोमेइ (भग)। वकृ. उवसामेमाण (राज)। कृ. उवसामि- यव्व (कप्प)। संकृ. उवसामइत्तु (पंच)

उवसाम :: पुं [उपशम] उपशान्ति (सिरि २३५)।

उवसाम :: देखो उवसम (विसे १३०६)।

उवसामग :: वि [उपशमक] १ क्रोधादि को उपशान्त करनेवाला (विसे ५२९; आव ४) २ उपशमसे संबन्ध रखनेवाला; 'उवसामग- सेढिगयस्स होइ उवसामगं तु सम्मत्तं' (पिसे २७३५)

उवसामण :: न [उपशमन] उपशान्ति, उपशम (स ४६९)।

उवसामणया :: स्त्री [उपशमना] उपशम (ठा ८)।

उवसामय :: देखो उवसामग (सम २६; विसे १३०२)।

उवसामिय :: वि [औपशामिक] १ उपशम- संबन्धी। २ पुं. भाव-विशेष; 'मोहोवसमस- हावो, सव्वो उवसामिओ भावो' (विसे ३४- ९४) ३ न. सम्यक्त्व-विशेष (विसे ५२९)

उवसामिय :: वि [उपशमित] शान्त किया हुआ (वव १)।

उवसाह :: सक [उप + कथ्] कहना। उव- साहइ (सण)।

उवसाहण :: वि [उपसाधन] निष्पादक (सण)।

उवसाहिय :: वि [उपसाधित] तैयार किया हुआ (पाउम ३४, ८; सण)।

उवसित्त :: वि [उपसिक्त] सिक्त, छिड़का हुआ (रंभा)।

उवसिलोअ :: सक [उपश्‍लोकय्] वर्णन करना, प्रशंसा करना। कृ. उवसिलोअइदव्व (शौ) (मुद्रा १९८)।

उवसुत्त :: वि [उपसुप्त] सोया हुआ (से १५, ११)।

उवसुद्ध :: वि [उपशुद्ध] निर्दोष (सुअ १, ६)।

उवसूइय :: वि [उपसूचित] संसूचित (सण)।

उवसेर :: वि [दे] रति-योग्य (दे १, १०४)।

उवसेवण :: न [उपसेवन] सेवा, परिचय (पव ६)।

उपसेवय :: वि [उपसेवक] सेवा करनेवाला, भक्त (भवि)।

उवसोभ :: अक [उप + शुभ्] शोभना, विरा- जना। वकृ. उवसोभमाण, उवसोभेमाण (भग; णाया १, १)।

उवसोभिय :: वि [उपशोभित] सुशोभित, विराजित (औप)।

उवसोहा :: स्त्री [उपशोभा] शोभा, विभूषा (सुर ३, १०४)।

उवसोहिय :: वि [उपशोधित] निर्मंल किया हुआ, शुद्ध किया हुआ (णाया १, १)।

उवसोहिय :: देखो उवसोभिय (सुपा ५; भवि; सार्ध ६६)।

उवस्सग्ग :: देखो उवसग्ग (कस)।

उवस्सय :: पुं [उपाश्रय] जैन साधुओं के निवास करने का स्थान (सम १८८; ओघ १७ भा; उप ६४८ टी)।

उवस्सा :: स्त्री [उपश्रा] द्वेष (वव १)।

उवस्सिय :: वि [उपाश्रित] १ द्वेषी (वव १) २ अङ्गीकृत। ३ समपी में स्थित। ४ न. द्वेष (राज)

उवस्सुदि :: स्त्री [उपश्रुति] प्रश्‍न-फल को जानने के लिए ज्योतिषी को कहा जाता प्रथम वाक्य (हास्य १३०)।

उवह :: स [उभय] दोनों, युगल (कुमा; हे २, १३८)।

उवह :: अ [दे] 'देखो' अर्थं को बतलातेवाला अव्यय (षड्)।

उवहट्ट :: सक [समा + रभ्] शुरू करना, आरम्भ करना। उवहट्टइ (षड्)।

उवहड :: वि [उपहृत] १ उपढौकित, उपस्था- पित (राज) २ भेोजन-स्थान में अर्पित भोजन (ठा ३, ३)

उवहण :: सक [उप + हन्] १ विनाश करना। २ आघात पहुँचाना। उवहणइ (उव)। कर्म. उवहम्मइ (षड्)। वकृ. उवहणंत (राज)

उवहणण :: न [उपहनन] १ आघात। २ विनाश (ठा १०)

उवहत्थ :: सक [समा + रच्] १ रचना, बनाना। २ उत्तेजित करना। उवहत्थइ (हे ४, ९५)

उवहत्थिय :: वि [समारचित] १ बनाया हुआ। २ उत्तेजित (कुमा)

उवहम्म° :: देखो उवहण।

उवहय :: वि [उपहत] १ विनाशित (प्रासू १३५) २ दूषित (बृह १)

उवहर :: सक [उप + हृ] १ पूजा करना। २ उपस्थित करना। ३ अर्पण करना। उव- हरइ (हे ४, २५९)। भूका. उवहरिंसु (ठा ९)

उवहस :: सक [उप + हस्] उपहास करना, हँसी करना। कृ उवहसणिज्ज (स ३)।

उवहसिअ :: वि [उपहसित] १ जिसका उप- हास किया गया हो वह (पि १५५) २ न, उपहास (तंदु)

उवहा :: स्त्री [उपधा] माया, कपट (धर्मं ३)।

उवहाण :: न [उपधान] १ तकिया, उसीसा (दे १, १४०; सुर १२, २५; सुपा ४) २ तपश्चर्या (सुअ १, ३; २, २१) ३ उपाधि; 'सच्छंपि फलिहरयणं उवहाणवसा कलिज्जए कालं' (उप ७२८ टी)

उवहार :: पुं [उपहार] १ भेंट, उपहार (प्रति ७४) २ विस्तार, फैलाव; 'पहासमुदओव- हारेहिं सव्वओ चेव दीवयंतं' (कप्प)

उवहारणया :: देखो उवधारणया (राज)।

उवहारिअ :: वि [उपधारित] अवधारित, निश्चित (सुअ २, ७)।

उवहारिआ, उवहारी :: स्त्री [दे] दोहनेवाली स्त्री (गा ७३१; दे १, १०८)।

उवहारुल्ल :: वि [उपहारवत्] उपहारवाला (संक्षि २०)।

उवहास :: पुं [उपहास] हँसी, ठट्ठा, दिल्लगी (हे २, २०१)।

उवहास :: वि [उपहास्य] हँसी के योग्य; 'सुसमत्थो वि हु जो, जणयअज्जियं संपयं निसेवेइ। सो अम्मि ताव लोए, ममंव उवहासयं लहइ' (सुर १, २३२)।

उवहासणिज्ज :: वि [उपहसनीय] हास्यास्पद (पउम १०६, २०)।

उवहि :: पुं [उदधि] समुद्र, सागर (से ५, ४०; ४२; भवि)।

उवहि :: पुंस्त्री [उपाधि] १ माया, कपट (आचा) २ कर्म (सुअ १, २) ३ उप- करण, साधन; 'तिविहा उवही पणणत्ता' (ठा ३; ओघ २)

उवहिंड :: सक [उप + हिण्ड] पर्यटन करना, धूमना; 'भिक्खत्थं उवहिंडे' (संबोध ४१)।

उवहिय :: वि [उपहित] १ उपढौकित, अर्पित। २ निहित, स्थापित (आचा; विसे ९३७) ३ न. उपढोकन, अर्पण (निचू २०)

उवहिय :: वि [औपाधिक] माया से प्रच्छन्‍न विचरनेवाला (णाया १, २)।

उवहुंज :: सक [उप + भुज्] उपभोग करना, कार्य में लाना। उवहुंजइ (पि ५०७)। कवकृ. उवहुज्जंत (पि ५४६)।

उवहुत्त :: देखो उवभुत्त (पाअ ; से १०, ४५)।

उवाइकम :: सक [उपाति + क्रम्] उल्लंघन करना। संकृ. उवाइकम्म (आचा २, ८, १)।

उवाइण :: सक [उपाति + नी] गुजारना। संकृ. उवाइणित्ता (आचा २, २, २, ७)।

उवाइण :: सक [उप + याच्] मनौती करना, किसी काम के पूरा होने पुर किसी देवता की विशेष आराधना करने का मानसिक संकल्प करना। हेकृ. 'जति णं अहं देवाणु- प्पिया दारगं वा दारियं वा पयामि, ताणं अहं तुब्भं जायं च दायं च भागं च अक्ख- यणिहिं च अणुवड्‍ढेस्सामि त्ति कट्‍टु औवाइयं 'उवाइणित्तए' (विपा १, ७)।

उवाइण :: सक [उपा + दा] १ ग्रहण करना। २ प्रवेश करना। हेकृ. उवाइणित्तए (ठा ३)। प्रयो. 'तं सेयं खलु मम जितसत्तुस्स रणणो संताणं तच्चाणं तहियाणं अवितहाणं सब्भूताण जिणपणणत्ताणं भावाणं अभिग- मणट्ठयाए एयमट्‍ठं उवाइणावित्तए' (णाया १, १२)

उवाइणाव :: सक [अति + क्रम्] १ उल्लंघन करना। २ गुजारना, पसार करना। उवाइ- णावेइ। वकृ. उवाइणावेंत। हेकृ. उवाइणा- वेत्तए (कस); उवाइणावित्तए (कप्प); 'से गामंसि वा जाव संनिवेसंसि वा बहिया से णं संनिविट्ठं पेहाए कप्पइ निग्गंथाण वा निग्गंथीण वा तदि्दवसं भिक्खायरियाए गंतूण पडिनियत्तए; नो से कप्पइ तं रयणिं तत्थेव उवाइणावेत्तए। जे खलु निग्गंथे वा निग्गंथी वा तं रयणिं तथ्तेव उवाइणावेइ, उवाइणावेंत वा साइज्जइ, से दुहओ वीइक्क- ममाणे आवज्जइ चउमासियं परिहारट्ठाणं अणुग्घाइयं' (कस); 'नो से कप्पइ तं रयणिं उवाइणावित्तए' (कप्प)

उवाइणाविय :: वि [अतिक्रान्त] १ उल्लंघित। २ गुजारा हुआ, पसार किया हुआ, बिताया हुआ; 'नो कप्पइ निग्गंथाण वा निग्गथीण वा असणं वा ४ पढमाए पोरुसीए पडिग्गाहेत्ता पच्चिमं पोरुसिं उवाइणावेत्तए। से य आहच्च उवाइणाविए सिया, तं नो अप्पणा भुंजेज्जा' (कस)

उवाइय :: देखो उवयाइय (णाया १, २; सुपा १०; महा)।

उवाई :: स्त्री [उलावकी] पोताकी-नामक विद्या की प्रतिपक्षभूत एक विद्या (विसे २४५४)।

उवाएज्ज, उवाएय :: वि [उपादेय] ग्राह्य, ग्रहण करने योग्य (विसे; स १४८)।

उवागच्छ, उवागम :: सक [उपा + गम्] समीप में आना। उवागच्छइ (भग; कप्प)। भवि. उवागमिस्संति (आचा २, ३, १, २)। संकृ. उवागाच्छित्ता (भग; कप्प)। हेकृ. उवागच्छित्तए (कप्प)।

उवागम :: पुं [उपागम] समीप में आगमन (राज)।

उवागमण :: न [उपागमन] १ समीप में आगमन। २ स्थान, स्थिति (आचानि ३११)

उवागय :: वि [उपागत] १ समीप में आया हुआ (आचा २, ३, १, २) २ प्राप्‍त, 'एगदिवसंपि जीवो पवज्जमुवागओ अणन्‍न- मणो' (उव)

उवाडिय :: वि [उत्पाटित] उखाड़ा हुआ (विपा १, ६)।

उवाणया, उवाणहा :: स्त्री [उपनाह्] जूता (षड्); 'पुव्वमुत्तारियाओ उवाणहाओ पएसु ठवियाओ' (सुपा ६१०; सुअ १, ४ २, ९)।

उवादा :: सक [उपा + दा] ग्रहण करना। कर्मं. उवादीयंति (भग)। संकृ. उवादाय, उबादिएत्ता (भग)। कवकृ. उवादियमाण (आचा २)।

उवादाण :: न [उपादान] १ ग्रहण, स्वीकार। २ कार्यरूप में परिणत होनेवाला कारण। ३ जिसका ग्रहण किया जाय वह, ग्राह्य; 'नाओवादाणे च्चिय मुच्चा लोभोति तो रागो' (विसे २९७०)

उवादिय :: वि [उपजग्ध] उपभुक्त (राज)।

उवाय :: पुं [उपाय] १ हेतु, साधन (उत्त ३२) २ दृष्टान्त; 'उवाओ सोसाधम्मेण य विधम्मेण य' (आचू १) ३ प्रतीकार (ठा ४, ३)

उवाय :: सक [उप + याच्] मनौती करना। वकृ. उवायमाण (णाया १, २; १७)।

उवायण :: न [उपायन] भेंट, उपहार, नज- राना (उप २४५; सुपा २२४; ४१०, गउड)।

उवायणाव :: देखो उवाइणाव। उवायणावेइ। वकृ., उवायणावेंत। हेकृ. उवायणावेत्तए (कस); उवायणावित्तेए (कप्प)।

उवायाण :: देखो उवादाण (अच्चु १२; स २; विसे २९७९)।

उवायाय :: वि [उपायात] समीप में आया हुआ (निर १, १)।

उवारूढ :: वि [उपारूढ़] आरूढ़ (स ३३१)।

उवालंभ :: सक [उपा + लभ्] उलाहना देना। उवालम्भइ (कप्प)। वकृ. उवालंभंत (पउम १६, ४१)। संकृ. उवालंभित्ता (बृह ४)। कृ. उवालंभणिज्ज (माले १५५)।

उवालंभ :: पुं [उपालम्भ] उलाहना (णाया १, १; मा ४)।

उवालद्ध :: वि [उपालब्ध] जिसको उलाहना दिया गया हो वह; 'उवालद्धो य सो सिवो बंभणो' (निचू १; माल १६७)।

उवालह :: सक [उपा + लभ्] उलाहना देना। भवि. उवालहिस्सं (प्राप)।

उवावत्त :: पुं [उपावृत्त] वह अश्‍व जो लेटने से श्रम-मुक्त हुआ हो (चारु ७०)।

उवावत्तिद :: (शौ) वि [उपावृत्तित] उपर्युक्त अश्‍व से युक्त (चारु ७०)।

उवास :: सक [उप + आस्] उपासना करना, सेवा करना, 'सुस्सूसमाणो उवासेज्जा सुपणणं सुतवस्सियं' (सुअ १, ९)। वकृ. उवासमाण (ठा ६)।

उवास :: पुं [अवकाश] खाली जगह, आकाश (ठा २, ४; ८; भग)।

उवासग :: वि [उपासक] १ सेवा करनेवाला। २ पुं. जैन या बुद्ध दर्शन का अनुयायी गृहस्थ (धर्ंसं १०१३)

उवासग :: वि [उपासक] १ उपासना करनेवाला, सेवक। २ पुं. श्रावक, जैन गृहस्थ (उत्त २)। °दसा स्त्री [°दशा] सातवाँ जैन अंग ग्रन्थ (सम १)। °पडिमा स्त्री [°प्रतिमा] श्रावकों को करने योग्य नियम- विशेष (उत्त २)

उवासण :: न [उपासन] उपासना, सेवा (श ५४३; मै ८६)।

उवासणा :: स्त्री [उपासना] १ क्षौर-कर्मं, हजामत वगैरह सफाई। २ सेवा, श्रुश्रुषा; 'उवासणा मंसुकम्ममाइया, गुरुरायईणं वा उवासणा पज्जुवासणया' (आवम)

उवासय :: देखो उवासग (सम ११९)।

उवासय :: पुं [उपाश्रय] जैन मुनियों का निवास-स्थान (उफ १४२ टी)।

उवासिय :: वि [उपासित] सेवित (पउम ६८, ४२)।

उवाहण :: सक [उपा + हन्] विनाश करना, मारना। वकृ. उवाहणंत (पणह १, २)।

उवाहणा :: देखो उवाणहा (अनु; णाया १, १५)।

उवाहि :: पुंस्त्री [उपाधि] १ कर्मं-जनित विशेषण (आचा) २ सामीप्य, संनिधि (भग १, १) ३ अस्वाभाविक धर्मं; 'सुद्धोवि फलिहमणी उपाहिवसओ धरेइ अन्नत्तं' (धम्म ११ टी)

उवि :: सक [उप + इ] १ समीप आना। २ स्वीकार करना। ३ प्राप्‍त करना। उविंति (भग)। वकृ. उविंत (पि ४९३; प्रामा)

उविअ :: देखो अविअ = अपि च (स २०९)।

उविअ :: वि [उपेत] युक्त, सहित (भवि)।

उविअ :: न [दे] शीघ्र, जल्दी (दे १, ८९)। २ वि. परिकर्मित, संस्कारित; 'णाणमर्णिक- णागरयणविमलमहरिहउणोवियमिसिमिसंत- विरइयमुसिलिट्ठविसिट्ठलसंठियपसत्थआविद्ध- वीरबलए' (णाया १, १)

उविंद :: पुं [उपेन्द्र] कृष्ण (कुमा)। °वज्जा स्त्री [°वज्रा] ग्यारह अक्षरों के पादवाला एक छन्द (पिंग)।

उविंद :: पुंन [उपेन्द्र] एक देव-विमान (देवेन्द्र १४१)।

उविक्ख :: सक [उप + ईक्ष्] उपेक्षा करना, अनादर करना। वकृ. उविक्खमाण (द्र १६)।

उविक्खा :: स्त्री [उपेक्षा] उपेक्षा, अनादर (काल)।

उविक्खिय :: वि [उपेक्षित] तिरस्कृत, अनादृत (सुपा ३९५)।

उविक्खेव :: पुं [उद्विक्षेप] हजामत, मुण्डन (तन्दु)।

उवियग्ग :: वि [उद्विग्न] खिन्‍न, उद्वेग-प्राप्‍त (राज)।

उवीव :: अक [उद् + विच्] उद्वेग करना, खिन्‍न होना। उवीवइ (नाट)।

उवे :: देखो उवि। उवेइ, उवेंति (औप)। वकृ. उवेंत (महा)। संकृ. उवेच्च (सुअ १, १४)।

उवेक्ख :: देखो उविक्ख। उवेक्खह (सुपा ३५४)। कृ. उवेक्खियव्व (स ९०)।

उवेक्खिअ :: देखो उविक्खिय (गा ४२०)।

उवेच्च :: देखो उवे।

उवेय :: वि [उपेत] १ समीप-गत। २ युक्त, सहित (संस्था ९)

उवेय :: वि [उपेय] उपाय-साध्य (राज)।

उवेल्ल :: अक [प्र + सृ] फैलाना, प्रसारित होना। उवेल्लइ (हे ४, ७७)।

उवेस :: अक [उप + विश्] बैठना। वकृ. उवेसमाण (पिंड ५८६)।

उवेह :: सक [उप + ईक्ष्] उपेक्षा करना, तिरस्कार करना, उदासीन रहना। उवेहइ (धम्म १९)। वकृ. उवेहंत, उवेहमाण (स ४९; ठा ६)। कृ. उवेहियव्व (सण)।

उवेह :: सक [उत्प्र + ईक्ष्] १ जानना, सम- झना। २ निश्चय करना। ३ कल्पना करना। उवेहाहि। वकृ. उवेहमाण; 'उवेहमाणे अणु- वेहमाणं बूया, उवेहाहि समियाए' (आचा)। संकृ. उवेहाए (आचा)

उवेहण :: न [उपेक्षण] उपेक्षा, उदासीनता (संबोध १०; हित २३)।

उवेहा :: स्त्री [उपेक्षा] तिरस्कार, अनादर, उदा- सीनता (सम ३२)। °कर वि [°कर] उपे- क्षक, उदासीन (श्रा २८)।

उवेहा :: स्त्री [उत्प्रेक्षा] १ ज्ञान, समझ। २ कल्पना। ३ अवधारण, निश्चय (औप)

उवेहिय :: वि [उपेक्षित] अनादृत, तिरस्कृत (उप १२९; सुपा १३५)।

°उव्व :: देखो पुव्व (गा ४१४)।

उव्वंत :: वि [उद्धान्त] १ वमन किया हुआ। २ निष्क्रान्त, निर्गंत (अभि २०९)

उव्वक्क :: सक [उद् + वम्] १ बाहर निका- लना। २ वमन करना। हेकृ. उव्वक्किउं (सुपा १३९)

उव्वक्क, उव्वक्किय :: वि [उद्वान्त] १ बाहर निकाला हुआ (वव १) २ वमन किया हुआ; 'संतोसामयपाणं, काउं उव्वक्कियं हयासेण। जं गाहिऊणं विरई, कलंकिया मोहमूढेण' (सुपा ४३५)

उव्वग्ग :: देखो ओवग्ग। संकृ. उव्वग्गिवि (भवि)।

उव्वट्ट :: उभ [उद् + वृ़त्, वर्त्तय्] १ चलना-फिरना। २ मरना, एक गति से दूसरी गति में जन्म लेना। ३ पिष्टिका आदि से शरीर के मल को दूर करना। ४ कर्मं-पर- माणुओं की लघु स्थिति को हटाकर लम्बी स्थिति करना। ५ पार्श्‍वं को चलाना-फिराना। ६ उत्पन्न होना, उदित होना। उव्वट्टइ (भग)। वकृ. उव्वट्टंत, उव्वट्टमाण, डअत्तंत (भग; नाट; उत्तर १०७; बृह १)। संकृ. उव्वट्टित्ता, उहट्‍टु, उव्वट्टिय (जीव १; विपा १, १; आचा २, ७; स २०९)। हेकृ. उव्वट्टित्तए (कस)

उव्वट्ट :: देखो उव्वट्टिय = उद्‍वृत्त (भग)।

उव्वट्ट :: वि [दे] १ नीराग, राग-रहित। २ गलित (दे १, १२९)

उव्वट्टण :: न [उद्वर्त्तन] १ शरीर पर से मल वगैरह को दूर करना। २ शरीर को निर्मल करनेवाला द्रव्य — सुगन्धि वस्तु (उवा; णाया १, १३) ३ दूसरे जन्म में जाना, मरण। ४ पार्श्‍व का परिवर्त्तन (आव ४) ५ कर्मं-पर माणुऔं की ह्रस्व स्थिति की दीर्घं करना (पंच)

उव्वट्टण :: न [उद्वर्त्तन] तुले से उसके बीज को अलग करना (पिंड ६०३)।

उव्वट्टण :: न [अपवर्त्तन] देखो उव्वट्टणा = अपवर्त्तंना (विसे २५१४)।

उव्वट्टणा :: स्त्री [उद्वर्त्तना] १ मरण, शरीर से जीव का निकलना (ठा २, ३) २ पार्श्‍वं का परिवर्त्तन (आव ४) ३ जीव का एक प्रयत्‍न, जिससे कर्म-परमाणुओं की लघु स्थिति दीर्घ होती है, करण-विशेष (भग ३१, ३२)

उव्वट्टणा :: स्त्री [अपवर्त्तना] जीव का एक प्रयत्‍न जिससे कर्मो की दीर्घं स्थिति का ह्रास होता है (विसे २७१५ टी)।

उव्वट्टिअ :: वि [उद्ववर्तित] साफ किया हुआ, प्रमार्जित; 'करीसेण वावि उव्वट्टिए' (पिंड २७६)।

उव्वट्टिय :: वि [उद्‍वृत्त] किसी गति से बाहर निकला हुआ, मृत; 'आउक्खएण उव्व- ट्टिया समाणा' (पणह १, १)।

उव्वट्टिय :: वि [उद्‍वर्त्तिन] १ जिसने किसी भी द्रव्य से शरीर पर का तैल वगैरह का मैल दूर किया हो वह; 'तओ तत्थट्ठिओ' चेव अब्भंगिओ उव्वट्टिओ उणहखलउदगेहिं पमज्जिओ' (महा) २ प्रच्यावित, किसी पद से भ्रष्ट किया हुआ (पिंड)

उव्वड्‍ढ :: वि [उद्‍वृद्ध] वृद्धि-प्राप्त (आवम)।

उव्वण :: वि [उल्बण] प्रचण्ड, उद्भट (उप पृ ७०; गउड; धम्म ११ टी)।

उव्वत्ति :: देखो उव्वट्ट = उद् + वृत्। उव्वत्तइ (पि २८९)। वकृ. उव्वत्तंत, उव्वत्तमाण (से ५, ४२; स २५८; ६२७)। कवकृ. उव्वत्तिज्जमाण (णाया १, ३)। संकृ. उव्व- त्तिवि (भवि)।।

उव्वत्त :: देखो उव्वट्ट (दे)।

उव्वत्त :: सक [उद् + वर्तय्] १ खड़ा करना। २ उलटा करना। उव्वत्तंति (पव ७१)। संकृ उव्वत्तिया (दस ५, १, ६३)

उव्वत्त :: वि [उद्‍वर्त्त] खड़ा करनेवाला (पव ७१)।

उव्वत्त :: वि [उद्‍वृत्त] १ उत्तान, चित्त (से ५, ६२) २ उल्लसित (हे ४, ४३४) ३ जिसने पार्श्‍वं को घुमाया हो वह (आव ३) ४ ऊर्ध्वं-स्थित; 'सो उव्वत्तविसाणो खंधबंसओ जाओ' (महा) ५ घुमाया हुआ, फिराया हुआ (प्राप)

उव्वत्त :: वि [अपवृत्त] उलटा रहा हुआ, विपरीत स्थित (से १, ६१)।

उव्वत्तण :: न [उद्‍वर्त्तन] १ पार्श्‍वं का परिव- र्त्तन (गा २८३; निचू ४) २ ऊँचा रहना, ऊर्ध्वं-वर्त्तन (ओघ १९ भा)

उव्वत्तिय :: वि [उद्वर्त्तित] १ परिवर्त्तित, चक्रा- कार घुमा हुआ (स ८५); 'भमियं व वणतरूहिं उव्वत्तिययं व सयलवसुहाए' (सुर १२, १६९)

उव्वद्ध :: देखो उव्वड्‍ढ (महा)।

उव्वम :: सक [उद् + वम्] उलटी करना, पीछा निकाल देना। बकृ. उव्वमंत (से ५, ९; गा ३४१)।

उव्वमिअ :: वि [उद्वान्त] उलटी किया हुआ, वमन किया हुआ (पाअ)।

उव्वर :: अक [उद् + वृ] शेष रहना, बच जाना; तुम्हाण 'देंताण जमुव्वरेइ देज्जाह साहूण तमायरेण' (उप २११ टी)। वकृ. उव्वरंत (नाट)।

उव्वर :: पुं [दे] धर्मं, ताप (दे १, ८७)।

उव्वरिअ :: वि [दे] १ अधिक, बचा हुआ, अवशिष्ट (दे १, १३२; पिंग; गा ४७४; सुपा ११, ५३२; ओघ १९८ भा) २ अनीप्सित, अनभीष्‍ट। ३ निश्‍चित। ४ अगणित। ५ न. ताप, गरमी (दे १, १३२) ६ वि. अति- क्रान्त, उल्लङ्घित; 'परदव्वहरणविरया निरया- इदुहाण ते खलुव्वरिया' (सुपा ३६८)

उव्वरिअ :: न [अपवरिका] कोठरी, छोटा घर (सुर १४, १७४)।

उव्वल :: सक [उद् + वल्] १ उपलेपन करना। २ पीछे लौटना। हेकृ. उव्वलित्तए (कस)

उव्वल :: सक [उद् + वलय] उन्मुलन करना। उव्वलए। वकृ. उव्वलमाण (पंच ५, १६९)।

उव्वलण :: न [उद्वलन] १ शरीर का उपनेपन- विशेष (णाया १, १; १३) २ मालिश, अभ्यङ्गन (बृह ३, औप)

उव्वलणा :: स्त्री [उद्वलना] १ उन्मूलन। २ उद्वलन-योग्य कर्म-प्रकृति (पंच ३, ३४)

उव्वलिय :: वि [उद्वलित] पीछे लौटा हुआ (महा)।

उव्वस :: वि [उद्वस] उजाड़, वसति-रहित (सुपा १८८; ४०९)।

उव्वसिय :: वि [उद्वसित] ऊपर देखो (गा १९४ सुर २, ११९; सुपा ५४१)।

उव्वसी :: स्त्री [उर्वशी] १ एक अप्सरा (सण) २ रावण की एक स्वनाम-ख्यात पत्‍नी (पउम ७४, ८)

उव्वह :: सक [उद् + वह्] १ धारण करना। २ उठाना। उव्वहइ (महा)। वकृ. उव्वहंत, उव्वहमाण (पि ३९७; से ६, ५) कवकृ. उव्वुज्झमाण (णाया १, ९)

उव्वहण :: न [उद्वहन] १ धारण। २ उत्था- पन। (गउड; नाट)

उव्वहण :: न [दे] महान्, आवेश (दे १, ११०)।

उव्वा :: स्त्री [दे] घर्मं, ताप (दे १, ८७)।

उव्वा, उव्वाअ :: अक [उद् + वा] १ सूखना, शुष्क होना। उव्वाइ, उव्वाअइ (षड्; हे ४; २४०)

उव्वाअ :: वि [उद्वात] शुष्क, सूखा (गउड)।

उव्वाअ, उव्वाइअ :: वि [दे] खिन्‍न, परिश्रान्त (दे १, १०२; बृह १; वव ४; पाअ; गा ७५८; सुपा ४३६)।

उव्वाउल :: न [दे] १ गीत। २ उपवन, बगीचा (दे १, १३४)

उव्वाडुल :: न [दे] १ विपरीत सुरत। २ मर्यादा-रहित मैथुन (दे १, १३३)

उव्वाढ :: वि [दे] १ विस्तीर्णं, बिशाल। २ दुःखरहित (दे १, १२९)

उव्वाण :: देखो उव्वाअ = उद्वात (कुप्र १६९)।

उव्वाय :: देखो उवाय = उपाय (सुअ १, ४, १, २)।

उव्वार :: (अप) सक [उद् + वर्तय्] त्याह करना, छोड़ देना। कर्मं. उव्वारिज्जइ (हे ४, ४३८)।

उव्वाल :: सक [कथ्] कहना, बोलना। उव्वालइ (षड्)।

उव्वास :: सक [उद् + वासय्] १ दूर करना। २ देशनिकाला करना। ३ उजाड़ करना। उव्वासइ (नाट; पिंग)

उव्वासिय :: वि [उद्वासित] १ उजाड़ किया हुआ (पउम २७, ११) २ देश-बाहर किया हुआ (सुपा ५४२)। ३ दूर किया हुआ (गा १०६)

उव्वाह :: पुं [दे] धर्म, ताप (दे १, ८७)।

उव्वाह :: पुं [उद्वाह] विवाह (मै २१)।

उव्वाह :: सक [उद् + बाधय्] विशेष प्रकार से पीड़ित करना। कवकृ. उव्वाहि- ज्जमाण (आचा; णाया १, २)।

उव्वाहिअ :: वि [दे] उत्क्षिप्त, फेंका हुआ (दे १, १०६)।

उव्वाहुल :: न [दे] १ उत्सुकता, उत्कण्ठा (भवि; दे १, १३६) २ वि. द्वेष्य, अप्रीतिकार (दे १, १३६)

उव्वाहुलिय :: वि [दे] उत्सुक, उत्कण्ठित (भवि)।

उव्विआइअ :: वि [उद्वेदित] उत्पीडित (से १३, २६)।

उव्विक्क :: न [दे] प्रलपित, प्रलाप (षड्)।

उव्विग्ग :: वि [उद्विग्‍न] १ खिन्‍न। २ भीत, घबड़ाया हुआ (हे २, ७९)

उव्विग्गिर :: वि [उद्वेगशील] उद्वेग करनेवाला (बाका ३८)।

उव्विज्ज :: देखो उव्विय। उव्विज्जइ (प्राकृ ६८)। उव्विज्जति (वै ८९)। संकृ. उव्विज्जिऊण (धर्मंवि ११९)।

उव्विड :: वि [दे] १ चकित, भीत। २ क्लान्त, क्लेश-युक्त (षड्)

उव्विडिम :: वि [दे] १ अधिक प्रमाण वाला। २ मर्यादा-रहित, निर्लज्ज (दे १, १३४; चउ° पत्र २९७-३५९ पद्य)

उव्विण्ण :: देखो उव्विग्ग (पि २१६)।

उव्विद्ध :: वि [उद्विद्ध] १ ऊँचा गया हुआ, उच्छित (पणह १, ४) २ गम्भीर, गहरा (सम ४४; णाया १, १) ३ विद्ध; 'कीलय- सएहिं धरणियले उव्विद्धो' (संथा ८७)

उव्विद्ध :: वि [उद्विद्ध] जिसकी ऊँचाई का माप किया गया हो वह (पव १५८)।

उव्विन्न :: देखो उव्विग्ग (हे २, ७९; सुर ४, २४८)।

उव्विय :: अक [उद् + विज्] उद्वेग करना, उदासीन होना, खिन्‍न होना; 'को उव्विएज्ज नरवर मरणस्स अवस्स गंतव्वे' (स १२९)। वकृ. उव्वियमाण (स १३९)।

उव्वियणिज्ज :: वि [उद्वेजनीय] उद्वेग-प्रद (पउम १६, ३९; सुपा ५९७)।

उव्विरेयण :: न [उद्विरेचन] खाली करना, 'एवं च भरिउव्विरेयणं कुव्वतस्स' (काल)।

उव्विल्ल :: अक [उद् + वेल्] १ चलना, काँपना। २ सक. वेष्टन करना। वकृ. उव्वि- ल्लंत, उव्विल्लमाण (सुपा ८८; उप पृ ७७)

उव्विल्ल :: अक [प्र + सृ] फैलना, पसरना। उव्विल्लइ (भवि)।

उव्विल्ल :: अक [उद् + वेल्] १ तड़फड़़ाना, इधर-उधर चलना; 'उव्विल्लइ सयणीए देवो आसन्‍नचवणुव्व' (धर्मंवि ११२)

उव्विल्ल :: वि [उद्‍वेल] चञ्चल, चपल (सुफा ३४)।

उव्विल्लिर :: वि [उद्वेलितृ] चलनेवाला, हिलनेवाला (सुपा ८८)।

उव्विव :: अक [उद् + विज्] उद्वेग करना, खिन्‍न होना। उव्विलइ (षड्)।

उव्विव्व, उव्वेअ :: देखो उव्विव। उव्विव्वइ, उव्वे- अइ (प्राकृ ६८)।

उव्विव्व :: वि [दे] १ क्रुद्ध, क्रोध-युक्त (षड्) २ उद्‍भट वेष वाला (पाअ)

उव्विह :: सक [उत् + व्यध्] १ ऊँचा फेंकना। २ ऊँचा जाना, उड़ना; 'से जहाणा- मए केइ पुरिसे उसुं उव्विहइ' (पि १२६)। वकृ. 'मणसावि उव्विहंताइं अणोगाइं आस- सयाइं पासंति' (णाया १, १७ टी — पत्र २३१)। वकृ. उव्विहमाण (भग १६)। संकृ. उव्विहित्ता (पि १२६)

उव्विह :: पुं [उद्विह] स्वनाम-ख्याते एक आजीविक मत का उपासक (भग ८, ५)।

उव्वी :: पुं [उर्वी] पृथिवी (से २, ३०)। °स पुं [°श] राजा (कुमा)।

उव्वीढ :: देखो उव्वूढ (कुमा; हे १, १२०)।

उव्वीढ :: वि [दे] उत्खात, खोदा हुआ (दे १, १००)।

उव्वीढ :: वि [उद्विद्ध] उत्क्षिप्‍त, 'तस्स उसुस्स उव्वीढस्स समाणस्स' (पि १२६)।

उव्वील :: सक [अव + पीडय्] पीड़ा पहुँचाना, मार-पीट करना। वकृ. उव्वीले- माण (राज)।

उव्वीलय :: वि [अपव्रीडक] लज्जा-रहित करनेवाला, शिष्य को प्रायश्‍चित्तक लेने में शरम को दूर करने का उपदेश देनेवाला (गुरु) (भग २५, ७; द्र ४९)।

उव्वुज्झमाण :: देखो उव्वह।

उव्वुण्ण, उव्वुन्न :: वि [दे] १ उद्विग्‍न। २ उत्सिक्त। ३ शून्य (दे १, १२३) ४ उद्भट, उल्वण (दे १, १२३; सुर ३, २०५)

उब्बूढ :: वि [उद्‍व्यूढ] १ धारण किया हुआ, पहना हुआ (कुमा) २ ऊँचा लिया हुआ, ऊपर धारण किया हुआ (से ५, ५४; ९, ११) ३ परिणीत, कृत-विवाह (सुपा ४५६)

उव्वेअणोअ :: वि [उद्‍वेजनीय] उद्वेग-कारक (नाट)।

उव्वेग :: पुं [उद्‍वेग] १ शोक, दिलगीरी (ठा ३, ३) २ व्याकुलता (भग ३, ६)

उव्वेढ :: सक [उद् + वेष्ट्] १ बाँधना। २ पृथक् करना, बन्धन-मुक्त करना। उव्वेढइ (षड्), उव्वेढिज्ज (आचा २, ३, २, २)

उव्वेढण :: न [उद्‍वेष्टन] १ बन्धन। २ वि. बन्धन-रहित किया हुआ (राज)

उव्वेढिअ :: वि [उद्‍वेष्टित] १ बन्धन-रहित किया हुआ। २ परवेष्टित (दे ४, ४९)

उव्वेत्ताल :: न [दे] अविच्छिन्न चिल्लाना, निरन्तर रोदन (से १, १०१)।

उव्वेय :: देखो उव्वेग (कुमा; महा)।

उव्वेयग :: वि [उद्‍वेजक] उद्वेग-कारक (रयण ४०)।

उव्वेयणग, उव्वेयणय :: वि [उद्वेजनक] उद्वेग-जनक (आउ; पणह १, १)।

उव्वेयणय :: पुंन [उद्वेजनक] एक नरक-स्थान (देवेन्द्र २८)।

उव्वेल :: अक [प्र + सृ] फैलना। उव्वेलइ (षड्)।

उव्वेल :: वि [उद्‍वेल] उच्छलित (से २, ३०)।

उव्वेलिअ :: वि [उद्‍वेलित] फैला हुआ, प्रसृत (माल १४२)।

उव्वेल्ल :: देखो उव्वेढ। उव्वेल्लइ (हे ४, २२३)। कर्मं. उव्वेल्लिज्जइ (कुमा)।

उव्वेल्ल :: सक [उद् + बेल्ल्] १ सत्वर जाना। २ त्याग करना। ऊँचा उड़ना, ऊँचा जाना। ४ अक. फैलना, पसरना। वकृ. उव्वेल्लंत (पि १०७)

उव्वेल्ल :: वि [उद्‍वेल] १ उच्छलित, उछला हुआ; 'उव्वेल्ला सलिलनिही' (पउम ९, ७२) २ प्रसृत, फैला हुआ (पाअ) ३ उद्भिन्न; 'हरिसवसुव्वेल्लपुलयाए' (स ६२५)

उव्वेल्लिअ :: वि [उद्‍वेल्लित] १ कम्पित (गा ६०५) २ उत्सारित (बृह ३) ३ प्रसारित (स ३३५)

उव्वेल्लिर :: वि [उद्‍वेल्लितृ] सत्वर जानेवाला (कुमा)।

उव्वेव :: देखो उव्विव। उव्वेवइ (षड्)।

उव्वेव :: देखो उव्वेग (कुमा; सुर ४, ३९; ११, १६४)।

उव्वेवग :: वि [उद्‍वेजक] उद्‍वेग-कारक, 'थद्धा छिद्दप्पेही, अवन्नवाई सय्मई चवला। वंका कोहणसीला, सीसा उव्वेवणा गुरुणा' (उव)।

उव्वेवणय :: वि [उद्‍वेजनक] उद्‍वेग-जनक (पच्च ४५)।

उव्वेवय :: देखो उव्वेवग (स २६२)।

उव्वेसर :: पुं [उव्वेश्‍वर] इस नामका एक राजा (कुमा)।

उव्वेह :: पुं [उद्‍वेध] १ ऊँचाई (सम १०४) २ गहराई (ठा १०) ३ जमीन का अवगाह (ठा १०)

उव्वेहलिया :: स्त्री [उद्‍वेघलिका] वनस्पति- विशेष (पणण १)।

उसड्ड :: वि [दे] ऊँचा (राय)।

उसढ :: देखो ऊसढ = दे (पव २)।

उसण :: पुं [उशनस्] ग्रह-विशेष, शुक्र, भार्गव (पाअ)।

उसणसेण :: पुं [दे] बलभद्र (दे १, ११८)।

उसत्त :: वि [उत्सक्त] ऊपर बँधा हुआ (णाया १, १)।

उसन्न :: पुं [उत्सन्न] भ्रष्ट यति-विशेष की एक जाति (सं ६१)।

उसप्पिणी :: देखो उस्सप्पिणी (जी ४०; विसे २७०९)।

उसभ :: पुंन [वृषभ] एक देव-विमान (देवेन्द्र १४०)।

उसभ :: पुं [ऋषभ, वृषभ] १ स्वनाम-ख्यात प्रथम जिनदेव (सम ४३; कप्प) २ बैल, साँड़ (जीव ३) ३ वेष्टन-पट्ट (पव २१६) ४ देव-विशेष (ठा ८) ३ ब्राह्मण- विशेष (उत्त १)। °कंठ पुं [°कण्ठ] १ बैल का गला। २ रत्‍न-विशेष (जीव ३)। °कूढ पुं [°कूट] पर्वत-विशेष (ठा ८)। °णाराय न [°नाराच] संहनन-विशेष, शरीर-बन्ध- विशेष (पंच)। °दत्त पुं [°दत्त] ब्राह्मण- कुण्ड ग्राम का रहनेवाला एक ब्राह्मण, जिसके घर भगवान् महावीर अवतरे थे (कप्प)। °पुर न [°पुर] नगर-विशेष (विपा २, २)। °पुरी स्त्री [°पुरी] एक राजधानी (ठा ८)। °सेण पुं [°सेन] भगवान् ऋषभ- देव के प्रथम गणधर (आचू १)

उसर :: (पै) पुंस्त्री [उष्ट्र] ऊँट (पि २५६)।

उसलिय :: वि [दे] रोमाञ्चित, पुलकित (षड्)।

उसह :: देखो उसभ (हे १, १३१; १३३; १४१; षड्; कुमा; सम १५२; पउम ४, ३५)।

उसहसेण :: पुं [वृषभसेन] तीर्थंकर-विशेष। २ जिनदेव की एक शाश्‍वती प्रतिमा (पव ५९)

उसा :: अ [उषस्] प्रभात-काल (गउड)।

उसिण :: वि [उष्ण] गरम, लप्‍त (कप्प ठा ३, १)। ३ पुंन. गरम स्पर्श (उत्त १) ३ गरमी, ताप (उत्त २)

उसिय :: वि [उत्सृत] व्याप्‍त, फैला हुआ (सम १३७)।

उसिय :: वि [उषित] रहा हुआ, निवसित (से ८, ६३; भत्त १२८)।

उसिर :: देखो उसीर = उशीर (सुअ १, ४, २, ८)।

उसीर :: न [उशीर] सुगन्धि तृण-विशेष, खश (पणह २, ५)।

उसीर :: न [दे] कमल दणड्, विस (दे १, ९४)।

उसु :: पुं [इषु] १ बाण, शर (सूअ १, ५, १) २ धनुराकार क्षेत्र का बाण-स्थानीय क्षेत्र-परिमाण; 'धणुवग्गाओ नियमा, जीवावग्गं विसोहइत्ताणं। सेसस्स छट्ठभागे, जं मूलं तं उसू होइ' (जो १) °कार, °गा, °यार पुं [°कार] १ पर्वत-विशेष (सम ६६; ठा २, ३; राज) २ इस नाम का एक राजा। ३ स्वनाम-ख्यात एक पुरोहित (उत्त १४) ४ वि. बाण बनानेवाला (राज) ५ स्वनाम-ख्यात एक नगर (उत्त १४)

उसुअ :: पुं [दे] दोष, दूषण (दे १, ८९)।

उसुअ :: न [इषुक] १ बाण के आकार का एक आभूषण। २ तिलक (पिंड ४२४)

उसुअ :: वि [उत्सुक] उत्कण्ठित (सुपा २२४)।

उसुयाल :: न [दे] उदूखल (राज)।

उसूलग :: पुं [दे] परिखा, शत्रु-सैन्य का नाश करने के लिए ऊपर से आच्छादित गत्त-विशेष (उत्त ९)।

उस्स :: पुं [दे] हिम, औस; 'अप्पहरिएसु अप्पु- स्सेसु' (बृह ४)।

उस्संकलिअ :: वि [उत्संकलित] निसृष्ट, परि- त्यक्त (आचा २)।

उस्संखलअ :: वि [उच्छृङ्खलक] उच्छृङ्खल, निरंकुश (पि २१३)।

उस्संग :: पुं [उत्सङ्ग] क्रोड, कोला या कोरा (नाट)।

उस्संघट्ट :: वि [उत्संघट्ट] शरीर-स्पर्शं से रहित (उप ५५५)।

अस्सक्क :: अक [उत् + ष्वष्क्] १ उत्कण्ठित होना। २ पीछे हटना। ३ सक. स्थगित करना। संकृ. उस्सकइत्ता। प्रयो. उस्सक्का- वइत्ता (ठा ६)

उस्सक्क :: सक [उत् + ष्वष्क्] प्रदीप्त करना, उत्तेजित करना। संकृ. उस्सक्किय (आचा २, १, ७, २)।

उस्सक्कण :: न [उत्ष्वष्कण] किसी कार्यं को कुछ समय के लिए स्थगित करना (धर्मं ३)। उस्सक्कण न [उत्ष्वष्कण] उत्सर्पंण (पंचा १३, १०)।

उस्सक्किय :: वि [उत्ष्वष्कित] नियत काल के बाद किया हुआ (पिंड २९०)।

उस्सग्ग :: पुं [उत्सर्ग] १ त्याग (आव ५) २ सामान्य विधि (उप ७८१)

उस्सग्गि :: वि [उत्सर्गिन्] उत्सर्गं — सामान्य नियम — का जानकार (पव ६४)।

उस्सण्ण :: वि [अवसअ] निमग्‍न; 'अबंभे उस्सणणा' (पणह १, ४)।

उस्सण्ण :: अ [दे] प्रायः, प्रायेण (राज)।

उत्सण्हसाण्हेआ :: स्त्री [उत्श्लक्ष्णश्‍लक्ष्णिका] परिमाण-विशेष, ऊर्ध्वं-रेणु का ६४ वाँ हिस्सा (इक)।

उस्सन्न :: देखो उस्सण्ण = दे (सुअ २, २, ६५; तंदु २७)। °भाव पुं [°भाव] बाहुल्यभाव (धर्मंसं ७५९)।

उस्सन्न :: वि [उत्सन्न] निज धर्मं में आलसी साधु (गुभा १२)।

उस्सप्पण :: न [उत्सर्पण] १ उन्नति, पोषण। २ वि. उन्नत करनेवाला, बढ़ानेवाला; 'कंदप्प- दप्पउस्सप्पणाइं वयणाइं जंपए जा सो' (सुपा ५०६)

उस्सप्पणा :: स्त्री [उत्सर्पणा] उन्नति, प्रभावना (उप ३२६)।

उस्सप्पणा :: स्त्री [उत्सर्पणा] विख्यात करना, प्रसिद्धि करना (सम्मत्त १६६)।

उस्सप्पिणी :: स्त्री [उत्सर्पिणी] उन्नत काल विशेष, दश कोटाकोटि-सागरोम-परिमित काल-विशेष, जिसमें सब पदार्थों की क्रमशः उन्नति होती है (सम ७२; ठा १, १; पउम २०, ६८)।

उस्सय :: पुं [उच्छ्रय] १ उन्नति, उच्चता (विसे ३४१) २ अहिंसा (पणह २, १) ३ शरीर (राज)

उस्सयण :: न [उच्छ्रयण] अभिमान, गर्वं (सुअ १, ९)।

उस्सर :: अक [उत् + सृ] हटना, दूर जाना। उस्सरह (स्वप्‍न ६)।

उस्सव :: सक [उत् + श्रि] १ ऊँचा करना। २ खड़ा करना। उस्सवेह; संकृ. उस्सवित्ता (कप्प)। प्रयो., संकृ. उस्सविय (आचा २, १)

उस्सव :: पुं [उत्सव] उत्सव (अभि १९४)।

उस्सवणया :: स्त्री [उच्छ्रयणता] ऊँचा ढेर करना, इकट्ठा करना (भग)।

उस्सस :: अक [उत + श्वस्] १ उच्छ्‍वास लेना, श्वास लेना। २ उल्लसित होना। उस्स- सइ (भग)। कवकृ. उस्ससिज्जमाण (ठा १०)

उस्ससिय :: वि [उच्छ्‍वसित] १ उच्छ्‍वास- प्राप्त। २ उल्लसित (उत्त २०)

उस्सा :: स्त्री [उस्त्रा] गैया, गौ (दे १, ८६)।

उस्सा :: [दे] देखो आसा (ठा ४, ४)। °चारण पुं [°चारण] ओस के अवलम्बन से गति करने का सामर्थ्यंवाला मुनि (पव ६८)।

उस्सार :: सक [उत् + सारय्] १ दूर करना, हटाना। २ बहुत दिन में पाठनीय ग्रन्थ को एक ही दिन में पढ़ाना। वकृ. उस्सारिंत (बृह १)। संकृ. उस्सारित्ता (महा)। कृ. उस्सारइदव्व (शौ) (स्वप्‍न २०)

उस्सार :: पुं [उत्सार] अनेक दिन में पढ़ाने योग्य ग्रन्थ का एक ही दिन में अध्यायन। °कप्प पुं [°कल्प] पाठन-संबन्धी आचार- विशेष (बृह १)।

उस्सारग :: वि [उत्सारक] दूर करनेवाला। २ उत्सार-कल्प के योग्य (बृह १)

उस्सारण :: न [उत्सारण] १ दूरीकरण। २ अनेक दिनों में पढ़ाने योग्य ग्रन्थ का एक ही दिन में अध्यापन; 'अरिहइ उस्सारणं काउं' (बृह १)

उस्सारिय :: वि [उत्सारित] दूरीकृत, हटाया हुआ (संथा ५७)।

उस्सास :: पुं [उच्छ् वास] १ उसाँस, ऊँचा श्वास (पणह १) २ प्रबल श्वास (आव २)। °नाम न [°नामन्] उसाँस-हेतुक कर्मं-विशेष (सम ६७)

उस्सासय :: वि [उच्छ्वासक] उसाँस लेनेवाला (विसे २७१५)।

उस्साह :: देखो उच्छाह (सूअनि ६२)।

उस्सिंखल :: वि [उच्छृङ्खल] स्वैरी, स्वेच्छा- चारी, निरङ्कुश (उप १४९ टी)।

उस्सिंघिय :: वि [दे] आघ्रात, सूँघा हुआ (स २६०)।

उस्सिंच :: सक [उत् + सिच्] १ सिंचना, सेक करना। २ ऊपर सिंचना। ३ आक्षेप करना। ४ खाली करना; 'पुणणं वा नावं उस्सिंचेज्जा' (आचा २, ३, १, ११)। उस्सिं- चति (निचू १८)। वकृ. उस्सिंचमाण (आचा २, १, ६)

उस्सिंचण :: न [उत्सेचन] १ सिञ्चन। २ कूपादि से जल वगैरह को बाहर को खींचना (आचा) ३ संचन के उपकरण (आचा २)

उस्सिंचणा :: स्त्री [उत्सेचना] देखो उस्सिंचण (उत्त ३०, ५)।

उस्सिक्क :: देखो उस्सक्क। संकृ. उस्सिक्किया (दस ५, १, ६३)।

उस्सिक्क :: सक [मुच्] छोड़ना, त्याग करना। उस्सिक्कइ (हे ४, ९१)।

उस्सिक्क :: सक [उत् + क्षिप्] ऊँचा फेंकना। उस्सिक्कइ (हे ४, १४४)।

उस्सिक्किअ :: वि [मुक्त] मुक्त, परित्यक्त (कुमा)।

उस्सिक्किय :: वि [उत्क्षिप्त] १ ऊँचा फेंका हुआ। २ ऊपर रखा हुआ (स ५०३)

उस्सिन्न :: वि [उत्स्विन्न] विकारान्त को प्राप्त, अचित्त किया हुआ (दल ५, २, २१)।

उस्सिय :: वि [उच्छ्रित] उन्नत, ऊँचा किया हुआ (कप्प)।

उस्सिय :: वि [उत्सृत] १ व्याप्त। २ ऊँचा किया हुआ (कप्प)

उस्सिय :: वि [उत्सृत] अहंकारी (उत्त २९, ४९)।

उस्सीस :: न [उच्छीर्ष] तकिया (सुपा ४३७; णाया १, १; ओघ २३२)।

उस्सुआव :: सक [उत्सुकय्] उत्कण्ठित करना, उत्सुक करना। उस्सुआवेइ (उत्तर ७१)।

उस्सुंक, उस्सुक्क :: वि [उच्छुक्ल] शुक्ल-रहित, कर- रहित (कप्प; णाया १, १)।

उस्सुक्क :: वि [उत्सुक] उत्कण्ठित।

उस्सुक्क, उस्सुग :: न [औत्सुक्य] उत्सुकता (श्रावक ३९८; धर्मंसं ९५६; ९५७)।

उस्सुक्काव :: वि [उत्सुकय्] उत्सुक करना, उत्कण्ठित करना। संकृ. उस्सुक्कावइत्ता (राज)।

उस्सुग :: वि [उत्सुक] उत्कण्ठित (पउम ७९, २९; पणह २, ३)।

उस्सुत्त :: वि [उत्सूत्र] सूत्र-विरुद्ध, सिद्धान्त- विपरीत (वव १; उफ १४९ टी)।

उस्सुय :: देखो उस्सुग (भग ५, ४; औप)।

उस्सुय :: न [औत्सुक्य] उत्कण्ठा, उत्सुकता।

°कर :: वि [°कर] उत्कण्ठआ-जनक (णाया १, १)।

उस्सूण :: वि [उच्छून] सूजा हुआ, फूला हुआ (उफ ५९४; गउड; स २०३)।

उस्सुर :: न [उत्सूर] सन्ध्या, शाम; 'वच्चामो नयनयरे उस्सूरं वट्टए जेण' (सूर ७, ९३; उप पृ २२०)।

उस्सेअ :: पुं [उत्सेक] १ सिंचन। २ उन्नति। ३ गर्व (चारु ४५)

उस्सेइम :: वि [उत्स्वेदिम] आटा से मिश्रित पानी, आटा-धोया जल (कप्प; ठा ३, ३)।

उस्सेह :: पुं [उत्सेध] १ ऊँचाई (विपा १, १) २ शिखर, टोंच (जीव ३) ३ उन्नति, अभ्यु- दय; 'पडणंता उस्सेहा' (स ३९९)

उस्सेहंगुल :: न [उत्सेधाङ्गुल] एक प्रकार का परिमाण (विसे ३४० टी)।

उह :: स [उभ] दोनों, युग्म, युगल (षड)।

उहट्ट :: अक [अप + घट्ट्] नष्ट होना। उहट्टइ (सम्मत्त १६२)।

उहट्‍टु :: देखो उव्वट्ट = उद् + वृत्।

उहय :: स [उभय] दोनों, युग्म (कुमा; भवि)।

उहर :: न [उपगृह] छोटा घर, आश्रय-विशेष (पणह १, १)।

उहस :: सक [उप + हस्] उपहास करना। उहसइ (प्राकृ ३४)।

उहार :: पुं [उहार] मत्स्य विशेष (राज)।

उहिींजल :: पुं [दे] चतुरन्द्रिय जन्तु-विशेष (सुख ३६, १४९)।

उहिंजलिआ :: स्त्री [दे] ऊपर देखो (उत्त ३६, १४९)।

उहु :: (अप) देखो अहो = अहो (सण)।

उहुर :: वि [दे] अवाङ् मुख, अधोमुख (गउड)।

 :: पुं [ऊ] प्राकृत वर्णंमाला का षष्ठ स्वर- वर्णं (हे १, १; प्रामा)।

 :: अ [दे] निम्‍नलिखित अर्थों का सूचक अव्यय — १ गर्हा, निन्दा; 'ऊ णिल्लज'। २ आक्षेप, प्रस्तुत वाक्य के विपरीत अर्थं की आशंका से उसे उलटाना; 'ऊ किं मए भणिअं'। ३ विस्मय, आश्‍चर्यं; 'ऊ कह मुणिआ अहयं' । ४ सूचना; 'ऊ केण ण विणणायं' (हे २, १९९; षड्)

ऊअट्ठ :: वि [अववृष्ट] वृष्टि से नष्ट (पाअ)।

ऊआ :: स्त्री [दे] यूका, जूँ (दे १, १३९)।

ऊआस :: पुं [उपवास] भोजनाभाव (हे १, १७३)।

ऊगिय :: वि [दे] अलंकृत (षड्)।

ऊज्झाअ :: देखो उवज्झाय (हे १, १७३; प्रामा)।

°ऊड :: देखो कूड (से १२, ७८; गा ५८३)।

ऊढ :: वि [ऊढ] वहन किया हुआ, धारण किया हुआ, 'ऊढकलं वज्जपणपरिमलेसु सुरमं- दिरंतेसु' (गउड)।

ऊढ :: वि [ऊढ] परिणीत, विवाहित (धर्मंसं १३९०)।

ऊढा :: स्त्री [ऊढा] विवाहिता स्त्री (पाअ)।

ऊढिअय :: वि [दे] १ प्रावृत, आच्छादित। २ न, आच्छादन, प्रावरण (पाअ)

ऊण :: वि [ऊन] न्यून, हीन (पउम ११८, ११६)। °वीसइम वि [°विंशतितम] उन्‍नी- सवाँ (पउम १९, ८०)।

ऊण :: न [ऋण] ऋण, करजा (नाट)।

ऊणंदिअ :: वि [दे] आनन्दित, हर्षित (दे १, १४१; षड्)।

ऊणिमा :: स्त्री [पूर्णिमा] पूर्णिमा', तओ तीए चेव ऊणिमाए भरिऊण भंडल्ल वहणाइं पत्थिओ पारसउलं' (महा)।

ऊणिय :: वि [ऊनित] कम किया हुआ (जं २)।

ऊणिय :: पुं [ऊणिक] सेवक-विशेष (प्रश्‍नव्या° पत्र १३)।

ऊणोयरिआ :: स्त्री [ऊनोदरिता] कम आहार करना, तप-विशेष (भग २५, ७; नव २८)।

ऊतालीस, ऊयाल :: स्त्री न [एकोनचत्वारिंशत्] उनचालीस, ३९ (सुज्ज २, ३, पत्र ५२; देवेन्द्र २९४)।

ऊमिणण :: न [दे] प्रोंखणक, चूमना (धर्मं २)।

ऊमिणिय :: वि [दे] प्रोञ्छित, जिसने स्‍नान के बाद शरीर पोंछा हो वह (स ७५)।

ऊमित्तिअ :: न [दे] दोनों पाश्‍वों में आघात करना (दे १, १४२)।

ऊर :: पुं [दे] १ ग्राम, गाँव। २ संघ, समूह (दे १, १४३)

°ऊर :: देखो तूर (से ८, ६५)।

°ऊर :: देखो पूर (से ८, ६५; गा ४५; २३१)।

ऊरण :: पुं [ऊरण] मेष, भेड़ (राय; विसे)।

ऊरणी :: स्त्री [दे] मेष, भेड़ (दे १, १४०)।

ऊरणीय :: वि [औरणिक] भेड़ी चरानेवाला (अणु १४४)।

°ऊरय :: वि [पूरक] पूर्त्ति करनेवाला (भवि)।

ऊरस :: वि [औरस] पुत्र-विशेष, स्व-पुत्र (ठा १०)।

ऊरिसंकिअ :: वि [दे] रुद्ध, रोका हुआ (षड्)।

ऊरी :: अ [ऊरी] १ अंगीकार। २ विस्तार। °कय वि [°कृत] अंगीकृत, स्वीकृत (उप ७२८ टी)

ऊरु :: पुं [ऊरु] जङ्घा, जाँघ (णाया १, १८; कुमा)। °जाल न [°जाल] जाँघ तक लटकनेवाला एक आभूषण (औप)।

ऊरुदग्ध :: वि [ऊरुदघ्र] जंघा-प्रमाण (गहरा वगैरह) (षड्)।

ऊरुद्दअस :: वि [ऊरुद्वयस] ऊपर देखो (षड्)।

ऊरुमेत्त :: वि [ऊरुमात्र] ऊपर देखो (षड्)।

ऊल :: पुं [दे] गति-भंग (दे १, १३९)।

°ऊल :: देखो कूल (गा १८९)।

ऊस :: पुं [उस्त्र] किरण (हे १, ४३)। °मालि पुं [°मालिन्] सूर्य (कुमा)।

ऊस :: पुं [ऊष] क्षार-भूमि की मिट्टी (पणण १; जी ४)।

ऊसअ :: न [दे] उपधान, उसीसा, तकिया (दे १, १४०; षड्)।

ऊसढ :: वि [उत्सृष्ट] १ परित्यक्‍त। २ न. उत्सर्जन, मलादि का त्याग; 'नो तत्थ ऊसढं पकेरेजा, तं जहा; उच्चारं वा' (आचा २, २, १, ३)

ऊसढ :: वि [दे. ऊच्छ्रित] १ उच्च, श्रेष्ठ (आचा २, ४, २, ३; जीव ३) २ ताजा; 'भद्दं भद्दएति वा, ऊसढं ऊसढेति वा, रतियं रसिए ति वा' (आचा २, ४, २, २)

ऊसण :: न [दे] गति-भङ्ग (दे १, १३९)।

ऊसण्हसण्हिया :: देखो उस्सण्हसण्हिया (पव २५४)।

ऊसत्त :: देखो उसत्त (कप्प; आवम)।

ऊसत्थ :: पुं [दे] १ जम्भाई। २ वि. आकुल (दे १, १४३)

ऊसर :: अक [उत् + सृ] १ खिसकना। २ दूर होना। ३ सक त्यागना। ऊसरइ (भवि) संकृ. ऊसरिवि (भवि)

ऊसर :: न [ऊषर्] क्षार-भूमि, जिसमें बीज नहीं पैदा होता है; 'ऊसरदवदलियदड्‍ढरुक्खना- एण' (सम्य १७; भक्त ७३)।

ऊसरण :: न [उत्सरण] आरोहण; 'थाणूसरणं तओ समुप्पयणं' (विसे १२०८)।

ऊसय :: पुं [उच्छ्रय] १ उत्सेध, ऊँचाई। २ उत्सेधांगुल (जीवस १०४)

ऊसलव :: अक [उत् + लस्] उल्लसित होना। ऊसलइ (हे ४, २०२; षड्; कुमा)।

ऊसल :: वि [दे] पीन, पुष्ट (दे १, १४०)।

ऊसलिअ :: वि [उल्लसित] उल्लसित, पादुर्भूत

ऊसलिअ :: वि [दे] रोमाञ्चित, पुलकित (दे १, १४१; पाअ)।

ऊसव :: देखो उस्सव = उत्सव (स्वप्‍न ९३)।

ऊसव :: देखो उस्सव = उत् + श्रि। उस्सवेह (पि ६४; ५५१)। संकृ. ऊसविय (कप्प; भग)।

ऊसविअ :: वि [दे] १ उद्‍भ्रान्त (दे १, १४३) २ ऊँचा किया हुआ (दे १, १४३; णाया १, ८; पाअ) ३ उद्वान्त, वमित (षड्)

ऊसविय :: वि [उच्छ्रित] ऊर्ध्वं-स्थित (कप्प)।

ऊसस :: सक [उत् + श्‍वस्] १ उसाँस लेना, ऊँचा साँस लेना। २ विकसित होना। ३ पुलकित होना। ऊससइ (पि ६४; ३१४)। वकृ. ऊससंत, ऊससमाण (गा ७४; घण ४; पि ४९६)

ऊससण :: न [उच्छ्वसन] उसाँस। °लद्धि स्त्री [°लब्धि] श्‍वासोच्छवास की शक्ति (कम्म १, ४४)।

ऊससिअ :: न [उच्छ्वसित] १ उसांस (पडि) २ वि. उल्लसित। ३ पुलकित (स ८३)

ऊससिर :: वि [उच्छवसितृ] उसांस लेनेवाला (हे २, १४५)।

ऊसाअंत :: वि [दे] खेद होने पर शिथिल (दे १, १४१)।

ऊसाइअ :: वि [दे] १ विक्षिप्त। २ उत्क्षिप्त (दे १, १४१)

ऊसार :: सक [उत् + सारय्] दूर करना, त्यागना। संकृ. ऊसारिवि (अप) (भवि)।

ऊसार :: पुं [दे] गर्त्त-विशेष (दे १, १४०)।

ऊसार :: पुं [उत्सार] परित्याग (भवि)।

ऊसार :: पुं [आसार] वेग वाली वृष्टि (हे १, ७६; षड्)।

ऊसारि :: वि [आसारिन्] वेग से बरसनेवाला (कुमा)।

ऊसारिअ :: वि [उत्सारित] दूर किया हुआ (महा; भवि)।

ऊसास :: पुं [उच्छवास] १ उसास, ऊँचा श्‍वास (आचू ५) २ मरण (बृह १)। °णाम न [°नामन्] कर्मं-विशेष (कम्म १ ४४)

ऊसासय :: वि [उच्छवासक] उसांस लेनेवाला (विसे २७१४)।

ऊसासिअ :: वि [उच्छवासित] बाधा-रहित किया हुआ (दे १२, ९२)।

ऊसाह :: पुं [उत्साह] उत्साह, उछाह (मा १०)।

ऊसि :: सक [उत् + श्रि] ऊँचा करना, उन्नत करना। संकृ. ऊसिया (उत्त १०, ३५)।

ऊसिक्क :: सक [उत् + ष्वष्क्] ऊँचा करना। संक. ऊसिक्किऊण (भग १, ८ टी)।

ऊसिक्किअ :: वि [दे] प्रदीप्त, शोभायमान (पाअ)।

ऊसित्त :: वि [उत्सिक्त] १ गर्वित। २ उद्धत। ३ बढ़ा हुआ। ४ अतिशायित (हे १, ११४)

ऊसित्त :: वि [अवसिक्त] उपलिप्त (पाअ)।

ऊसिय :: देखो उस्सिय = उच्छ्रित (औप; कप्प; सण)।

ऊसीस, ऊसीसग, ऊसीसय :: न [उच्छीर्ष, °क] उसीसा, सिरहाना (णाया १, ७; पाअ; सुपा ५३; १२०)।

ऊसुअ :: वि [उत्सुक] उत्कठित (गा ५४३; कुमा)।

ऊसुअ :: वि [उच्छुक] जहां से शुक उद्‌गत हुआ हो वह (हे १, ११४)।

ऊसइअ :: वि [उत्सुकित] उत्सुक किया हुआ (गा ३१२)।

ऊसुंभ :: अक [उत् + लस्] उल्लसित होना। ऊसुंभइ (हे ४, २०२)।

ऊसुंभिअ :: वि [उल्लसित] उल्लास-प्राप्‍त (कुमा)।

ऊसुंभिअ :: न [दे] १ रोदन-विशेष, गला बैठ जाय ऐसा रुदन (दे १, १४२; षड्)

ऊसुक्किअ :: वि [दे] विमुक्त, परित्यक्त (दे १, १४२)।

ऊसुग :: देखो ऊसुअ = उत्सुक (उप ५९७ टी)।

ऊसुग :: न [दे] मध्य भाग (आचा २, १, ८, ६)।

ऊसुम्मिअ :: वि [दे] उसीसा या सिरहाना किया हुआ (षड्)।

ऊसुर :: न [दे] ताम्बूल, पान (हे २, १७४)।

ऊसुरुसुंभिअ :: [दे] देखो ऊसुंभिअ (दे १, १४२)।

ऊह :: सक [ऊह्] १ तर्कं करना। २ विचारना। ऊहइ (विसे ८३१), ऊहेंमि (सुर ११, १८५)। संकृ. ऊहिऊण (आउफ ५२)

ऊह :: न [ऊधस्] स्तन (विपा १, २)।

ऊह :: पुं [ऊह] १ विचार, विवेक-बुद्धि (राज) २ तर्कं, वितर्कं (सुअ २, ४) ३ संख्या-विशेष (राज) ४ ओघ-संज्ञा, अव्यक्त ज्ञान (विसे ५२२; ४२३)

ऊहंग :: न [ऊहाङ्ग] संख्या-विशेष (राज)।

ऊहट्ठ :: वि [दे] उपहसित (दे १, १४०)।

ऊहसिय :: वि [उपहसित] जिसका उपहास किया गया हो वह (दे १, १४०)।

ऊहा :: स्त्री [ऊहा] तर्कं, विचार-बुद्धि (आवम)।

ऊहापोह :: पुं [ऊहापोह] सोच-विचार, मन में हेनेवाला तर्कं-वितर्कं (कुप्र ६१)।

ऊहिअ :: वि [ऊहित] अनुमान से ज्ञात (से ९, ४२)।