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विक्षनरी:प्राकृत-हिन्दी शब्दकोश/भाग-३

विक्षनरी से


 :: पुं [ण, न] व्यञ्जन वर्णं-विशेष, इसका उच्चारण-स्थान मूर्द्धा है, इससे यह मूर्द्धन्य कहाता है (प्राप, प्रामा)।

 :: अ [न] निषेधार्थक अव्यय, नहीं, मत (कुमा; गा २; प्रासू १५९)। °उण, °उणा, °उणाइ, °उणो अ [°पुनः] न तु, नहीं कि (हे १, ६५; षड्)। °संतिपरलोगवाइ वि [शान्तिपरलोकवादिन्] मोक्ष और परलोक नहीं है ऐसा माननेवाला (ठा ८)।

 :: स [तत्] वह (हे ३, ७३; कुमा)।

 :: स [इदम्] यह, इस (हे ३, ७७; उप ६६०; गा १३१; १९६)।

 :: वि [ज्ञ] जानकार, पण्डि, बिचक्षण (कुमा २, ८८)।

णअ :: देखो णव =नव (गा १०००; नाट — चैत ४२)। °दीअ पुं [°द्वीप] बंगाल का एक विख्यात नगर, जो न्याय-शास्त्र का केन्द्र गिना जाता है, जिसको आजकल 'नदिया' कहते हैं (नाट — चैत १२६)।

णअंचर :: देखो णत्तंचर (चंड)।

णइ :: स्त्री [नति] १ नमन, नम्रता। २ अव- सान, अन्त (राय ४६)

णइ :: [अ] १ निश्चय-सूचक अव्यय, 'गईए णइ' (हे २, १८४; षड्) २ निषेधार्थक अव्यय; 'नइ माया नेय पिया' (सुर २, २०९)

णइ° :: देखो णई (गउड; हे २, ९७; गा १६७; सुर १३, ३५)।

णइअ :: वि [नयिक] नय-युक्त, अभिप्राय-विशेषवाला (संम ४०)।

णइअ :: देखो णी = नी।

णइमासय :: न [दे] पानी में होनेवाला फल- विशेष (दे ४, २३)।

णइराय :: न [नौरात्म्य] आत्मा का अभाव। °वाद पुं [°वाद] आत्मा के अस्तित्व को नहीं माननेवाला दर्शंन, बौद्ध तथा चार्वाक मत (धर्मंसं ११८५)।

णई :: स्त्री [नदी] नदी, पर्वत आदि से निकला वह स्रोत जो समुद्र या बड़ी नदी में जाकर मिले (हे १, २२९; पाअ)। °कच्छ पुं [°कच्छ] नदी के किनारे पर की झाड़ी (णाया १, १)। °गाम पुं [°ग्राम] नदी के किनारे पर स्थित गाँव (प्राप्र)। °णाह पुं [°नाथ] समुद्र, सागर (उप ७२८ टी)। °वइ पुं [°पति] समुद्र, सागर (पणह १, ३)। °संतार पुं [°संतार] नदी उतरना, जहाज आदि से नदी पार जाना (राज)। °सोत्त पुं [°स्रोतस्] नदी का प्रवाह (प्राप्र; हे १, ४)।

णउ :: (अप) देखो इव (कुमा)।

णउअ :: न [नयुत] 'नयुतांग' को चौरासी लाख से गुणने पर जो संख्या लब्ध हो वह (ठा २, ४; इक)।

णउअंग :: न [नयुताङ्ग] 'प्रयुत' को चौरासी से गुणने पर जो संख्या लब्ध हो वह (ठा २, ४; इक)।

णउइ :: स्त्री [नवति] संख्या-विशेष, नब्बे, ९० (सम ९४)।

णउइय :: वि [नवत] ९० वाँ (पउम ९०, ३१)

णउल :: पुं° [नकुल] १ न्योला, नेबला (पणह १, १; जी २२) २ पाँचवाँ पाण्डव (णाया १, १६)

णउल :: पुं [नकुल] वाद्य-विशेष (राय ४६)।

णउली :: स्त्री [नकुली] एक महौषधि (ती ५)।

णउली :: स्त्री [नकुली] विद्या-विशेष, सर्पं-विद्या की प्रतिपक्ष विद्या (राज)।

णं :: अ [दे] इन अर्थों का सूचक अव्यय — १ प्रश्‍न। २ उपमा (प्राकृ ७९)

णं :: [अ.] १ वाक्यालंकार में प्रयुक्त किया जाता अव्यय (हे ४, २८३; उवा; पडि) २ प्रश्‍न- सूचक अव्यय, ३ स्वीकार-द्योतक अव्यय (राज)

णं :: (शौ) देखो णणु (हे ४, २८३)।

णं :: (अप) देखो इव (हे ४, ४४४; भवि; सण; पडि)।

णंगअ :: वि [दे] रुद्ध, रोका हुआ (षड्)।

णंगर :: पुं [दे] लंगर, जहाज को जल-स्थान में थामने के लिए पानी में जो रस्सी आदि डाली जाती है वह (उप ७२८ टी; सुर १३, १९३; स २०२)।

णंगर, णंगल :: न [लाङ्गल] हल, जिससे खेत जोता और बोया जाता है (पउम ७२, ७३; पणह १, ४; पाअ)।

णंगल :: पुंन [दे] चञ्चु, चांच, चोंच; 'जडाउणो रुट्ठो। नहणंगलेसु पहरइ, दसाणणं विउल- वच्छयले' (पउम ४४, ४०)।

णंगल :: पुंन [लाङ्गुल] एक देव-विमान (देवेन्द्र १३३)।

णंगलि :: पुं [लाङ्गलिन्] बलभद्र, हली (कुमा)।

णंगलिय :: पुं [लाङ्गलिक] हल के आकारवाले शस्त्र-विशेष को धारण करनेवाला सुभट (कप्प; औप)।

णंगूल :: न [लाङ्गूल] पुच्छ, पूँछ (ठा ४, २; हे १, २५६)।

णंगूलि :: वि [लाङ्गूलिन्] १ लम्बी पूँछवाला २ पुं. वानर, बन्दर (कुमा)

णंगूलि :: देखो णंगलि (पव २६२)।

णंगोल :: देखो णंगूल (णाया १, ३; पि १२७)।

णंगोलि, णंगोलिय :: पुं [लाङ्गूलिन् °क] १ अन्त- द्वीप-विशेष। २ उसका निवासी मनुष्य (पि १२७; ठा ४, २)

णंतग :: न [दे] वस्त्र, कपड़ा (कस; आव ५)।

णंद :: अक [नन्द्] १ खुश होना, आनन्दित होना। २ समृद्ध होना। णंदइ, णंदए (षड्)। कवकृ. णंदिज्जमाण (औप)। कृ. णंदि- अव्व, णंदेअव्व (षड्)

णंद :: पुं [नन्द] १ स्वनाम-प्रसिद्ध पाटलिपुत्र नगर का एक राजा (मुद्रा १९८; णंदि) २ भरत-क्षेत्र के भावी प्रथम वासुदेव (सम १५४) ३ भरत-क्षेत्र में होनेवाले नववें तीर्थंकर का पूर्वं-भवीय नाम (सम १५४) ४ स्वनाम-प्रसिद्ध एक जैन मुनि (पउम २०, २०) ५ स्वनाम-ख्यात एक श्रेष्‍ठी (सुपा ६३८) ६ न. देव-विमान विशेष (सम २९) ७ लोहे का एक प्रकार का वृत्त आसन (णाया १, १ — पत्र ४३ टी) ८ वि. समृद्ध होने वाला (औप)। °कंत न [°कान्त] देव- विमान-विशेष (सम २९)। °कूड न [°कूट] एक देव-विमान (सम २९)। °ज्झय न [°ध्वज] एक देव-विमान (सम २९)। °प्पभ न [°प्रभ] देव-विमान-विशेष (सम २९)। °मई स्त्री [°मती] एक अन्तकृत् साध्वी (अन्त २५; राज)। °मित्त पुं [°मित्र] भरतक्षेत्र में होनो वाला द्वीतीय वासुदेव (सम १५४)। °लेस न [°लेश्य] एक देव-विमान (सम २९)। °वई स्त्री [°वती] १ सातवें वासुदेव की माता (पउम २०, १८६) २ रतिकर पर्वत पर स्थित एक देव-नगरी (दीव)। °वण्ण न [°वर्ण] देव-विमान विशेष (सम २९)। °सिंग न [°श्रृङ्ग] एक देवविमान (सम २९)। °सिट्ठ न [°सृष्ट] देव-विमान-विशेष (सम २९)। °सिरी स्त्री [°श्री] स्वनाम-ख्यात एक श्रेष्ठ-कन्या (ती ३७)। °सेणिया स्त्री [°सेनिका] एक जैन साध्वी (अंत २५)

णंद :: पुं [नन्द] गोप-विशेष, श्रीकृष्ण का पालक गोपाल (वज्जा १२२)।

णंद :: पुंस्त्री [नन्दा] पक्ष की पहली (प्रतिपदा), षष्ठी और एकादशी तिथि (सुज्ज १०, १५)।

णंद :: न [दे] १ ऊख पीलने या पेरने का काण्ड। २ कुण्डा, पात्र-विशेष (दे ४, ४५)

णंदगं :: पुं [नन्दक] वासुदेव का खड्‍ग (पणह १, ४)।

णंदग :: पुं [नन्दन] १ पुत्र, लड़का (गा ६०२) २ राम का एक स्वनाम-ख्यात सुभट (पउम ६७, १०) ३ स्वनाम-ख्यात एक बलदेव (सम ६३) ४ भरतक्षेत्र का भावी सातवाँ वासुदेव (सम १५४) ५ स्वनाम- प्रसिद्ध एक श्रेष्ठी (उप ५५०) ६ श्रेणिक राजा का एक पुत्र (निर १, २) ७ मेरु पर्वंत पर स्थित एक प्रसिद्ध वन (ठा २, ३, इक) ८ एक चैत्य (भग ३, १) ९ वृद्धि (पणह १, ४) १० नगर-विशेष (उप ७२८ टी) °कर वि [°कर] वृद्धि-कारक। °कूड न [कूट] नन्दन वन का शिखर (राज)। °भद्द पुं [°भद्र] एक जैन मुनि (कप्प)। °वण न [°वन] १ स्वनाम-ख्यात एक वन जो मेरु पर्वंत पर स्थित है (सम ९२) २ उद्यान-विशेष (निर १, ५)

णंदण :: पुं [दे] भृत्य, नौकर, दास (दे ४, १९)।

णंदण :: पुंन [नन्दन] एक देव-विमान (देवेन्द्र १४३)। २ न. संतोष (णंदि ४५)।

णंदणा :: स्त्री [नन्दना] लड़की, पुत्री (पाअ)।

णंदणी :: स्त्री [नन्दनी] पुत्री, लड़की (सिरि १४०)।

णंदतणय :: पुं [नन्दतनय] श्रीकृष्ण (प्राकृ २७)।

णंदमाणग :: पुं [नन्दमानक] पक्षी की एक जाति (पणह १, १)।

णंदयावत्त, णंदावत्त :: पुंन [नन्दावर्त्त] १ एक देव- विमान (देवेन्द्र १३३) २ पुं. चतुरिन्द्रिय जीव की एक जाति (उत्त ३६, १४८) ३ न. लगातार एक्‍कीस दिनों का उपवास (संबोध ५८)

णंदा :: स्त्री [नन्दा] १ भगवान् ऋषभदेव की एक पत्‍नी (पउम ३, ११९) २ राजा श्रेणिक की एक पत्‍नी और अभयकुमार की माता (णाया १, १) ३ भगवान् श्री शीतलनाथ की माता (सम १५१) ४ भगवान् महावीर के अचलभ्रातृ नामक गणधर की माता (आवम) ५ रावण की एक पत्‍नी (पउम ७४, १०) ६ पश्‍चिम रुचक-पर्वंत पर रहनेवाली एक दिक्‍कुमारी देवी (ठा ८) ७ ईशानेन्द्र की एक अग्रमहिषी की राजधानी (ठा ४, २) ८ स्वनाम-ख्यात एक पुष्करिणी (ठा ४, ३) ९ ज्योतिष-शास्त्र में प्रसिद्ध तिथि-विशेष — प्रतिपदा, षष्ठी और एकादशी तिथि (चंद १०)

णंदा :: स्त्री [दे] गो, गैया (दे ४, १८)।

णंदावत्त :: पुं [नन्दावर्त्त] १ एक प्रकार का स्वस्तिक (सुपा ५२) २ क्षुद्र जन्तु की एक जाति (जीव १) ३ न. देव-विमान-विशेष (सम २९)

णंदि :: पुंस्त्री [नन्दि] १ बारह प्रकार के वाद्यों का एक ही साथ आवाज (पणह २, ५, णंदि) २ प्रमोद, हर्षं (ठा ५, २) ३ मतिज्ञान आदि पाँचों ज्ञान (णंदि) ४ वाञ्छित अर्थं की प्राप्ति। ५ मंगल (बृह १, अजि ३८) ६ समृद्धि (अणु) ७ जैन आगदम ग्रंथ-विशेष (णंदि) ८ वाञ्छा, अभिलाष, चाह (सम ७१) ९ गान्धार ग्राम की एक मूर्छना (ठा ७) १० पुं. स्वनाम ख्यात एक राजकुमार (विपा १, १) ११ एक जैन मुनि, जो अपने आगामी भव में द्वितीय बलदेव होगा (पउम २०, १९०) १२ वृक्ष-विशेष (पउम २०, ४२) °आवत्त देखो °यावत्त (इक)। °उड्‍ढ पुं [°बृद्ध] एक प्राचीन कवि का नाम (कप्पू)। °कर, °गर वि [°कर] मंगल-कारक (कप्प; णाया १, १)। °गाम पुं [°ग्राम] ग्राम-विशेष (उप ६१७; आचू १)। °धोस पुं [°घोष] १ बारह प्रकार के वाद्यों की आवाज (णंदि) २ न. देवविमान-विशेष (सम १७)। °चुण्णग न [°चूर्णक] होठ पर लगाने का एक प्रकार का चूर्ण (सूअ १, ४, २)। °तूर न [°तूर्य] एक साध बजाया जाता बारह तरह का वाद्य (बृह १)। °पुर न [°पुर] साण्डिल्य देश का एक नगर (उप १०३१ टी)। °फल पुं [°फल] वृक्ष-विशेष (णाया १, ८; १५)। °भाण न [°भाजन] उपकरण-विशेष (बृह १)। °मित्त पुं [°मित्र] १ देखो णंद-मित्त (राज) २ एक राजकुमार, जिसने भगवान् मल्लिनाथ के साथ दीक्षा ली थी (णाया १, ८) °मुइंग पुं [°मृदङ्गं] एक प्रकार का मृदंग, वाद्य-विशेष (राय)। °मुह न [°मुख] पक्षि-विशेष (राज)। °यर देखो °कर (पउम ११८, ११७)। °यावत्त पुं [°आवर्त्त] १ स्वस्तिक-विशेष (औप; पणह १, ४) २ एक लोकपाल देव (ठा ४, १) ३ क्षुद्र जन्तु-विशेष (पणण १) ४ न. देव- विमान-विशेष (राज)। °राय पुं [°राज] पाण्डवों के सम-कालीन एक राजा (णाया १, १६ — पत्र २०८)। °राय पुं [°राग] समृद्धि में हर्ष (भग २, ५)। °रुक्ख पुं [°वृक्ष्] वृक्ष-विशेष (पणण १)। °वड्‍ढणा देखो °वद्धणा (इक)। °वद्धण पुं [°वर्धन] १ भगवान् महावीर का ज्येष्ठ भ्राता (कप्प) २ पक्ष-विशेष (कप्प) ३ एक राजकुमार (विपा १, ६) ४ न. नगर-विशेष (सुपा ९८) °वद्धणा स्त्री [°वर्धना] १ एक दिक्‍कुमारी देबी (ठा ८) २ एक पुष्करिणी (ठा ४, २) °सेण पुं [°षेण] १ ऐरवत वर्षं में उत्पन्न चतुर्थ जिन-देव (सम १५३) २ एक जैन कवि (अजि ३८) ३ एक राज- कुमारक (ठा १०) ४ स्वनाम-ख्यात एक जैन मुनि (उव) ५ देव-विशेष (राज) °सेणा स्त्री [°षेणा] १ पुष्करिणी-विशेष (जीव ३) २ एक दिक्‍कुमारी देवी (दीव) °सेणिया स्त्री [°षेणिका] राजा श्रेणिक की एक पत्‍नी (अंत)। °स्सर पुं [°स्वर] १ देखो णंदीसर (राज) २ बारह प्रकार के वाद्यों का एक ही साथ आवाज (जीव ३)

णंदिअ :: न [दे] सिंह की चिल्लाहट, दहाड़ (दे ४, १९)।

णंदिअ :: वि [नन्दित] १ समृद्ध (औप) २ जैनमृनि-विशेष (कप्प)

णंदिक्ख :: पुं [दे] सिंह, मृगेन्द्र (दे ४, १९)।

णंदिघोस :: पुं [नन्दिघोष] वाद्य विशेष (राय ४६)।

णंदिज्ज :: न [नन्दीय] जैन मुनियों का एक कुल (कप्प)।

णंदिणी :: स्त्री [नन्दिनी] पुत्रौ, लड़की (पउम ४९, २)। °पिउ पुं [°पितृ] भगवान् महावीर का एक स्वनाम-ख्यात गृहस्थ उपा- सक (उवा)।

णंदिणी :: स्त्री [दे] गऊ, गैया, गाय (दे ४, १८; पाअ)।

णंदिल :: पुं [नन्दिल] आर्यंमंगु के शिष्य एक जैनमुनि (णंदि ५०)।

णंदिस्सर, णंदीसर :: पुं [नन्दीश्वर] १ एक द्वीप। २ एक समुद्र (सुज्ज १९) ३ एक देव-विमान (देवेन्द्र १४४)

णंदी :: देखो णंदि (महा; ओघ ३२१ भा; पणह १, १; औप; सम १५२; णंदि)।

णंदि :: स्त्री [दे] गऊ, गाय, गैया (दे ४, १८; पाअ)।

णंदीसर :: पुं [नन्दीश्वर] स्वनाम प्रसिद्ध एक द्वीप (णाया १, ८; महा) °वर पुं [°वर] नन्दीश्‍वर-द्वीप (ठा ४, ३)। वरोद पुं [°वरोद] समुद्र-विशेष (जीव ३)।

णंदुत्तर :: पुं [नन्दोत्तर] देव-विशेष, नाग- कुमार के भूतानन्द-नामक इन्द्र के रथ-सैन्य का अधिपति देव (ठा ५, १; इक)। °वडिं- सग न [°वतसंक] एक देव-विमान (सम २९)।

णंदुत्तरा :: स्त्री [नन्दोत्तरा] १ पश्‍चिम रुचक पर्वंत पर रहनेवाली एक दिक्‍कुमारी देवी (ठा ८; इक) २ कृष्णानामक इन्द्राणी की एक राजधानी (जीव ३) ३ पुष्करिणी- विशेष (ठा ४, २) ४ राजा श्रेणिक की एक पत्‍नी (अंत ७)

णकार :: पुं [णकार, नकार] 'ण' या 'न' अक्षर (विसे २८९७)।

णक्क :: पुं [नक्र] १ जलजन्तु-विशेष, ग्राह, नाका (पणह १, १; कुमा) २ रावण का एक स्वनाम सुभट (पउम ५६, २८)

णक्क :: पुं [दे] १ नाक, नासिका (दे ४, ४६; विपा १, १; औप) २ वि. मूक, वाचा- वाचा-शक्ति से रहित, गूँगा (दे ४, ४६)। °सिरा स्त्री [°सिरा] नाक का छिद्र (पाअ)

णक्कंचर :: पुं [नक्तञ्चर] १ राक्षस। २ चोर। ३ बिड़ाल। ४ वि. रात्रि में चलने-फिरनेवाला (हे १, १७७)

णक्ख :: पुं [नख] नख, नाखून (हे २, ९९; प्राप्र) °अ वि [°ज] नख से उत्पन्न (गा ९७१)। °आउह पुं [°आयुध] सिंह, मृगारि (कुमा)।

णक्खत्त :: पुंन [नक्षत्र] कृत्तिका, अश्‍विनी, भरणी आदि ज्योतिष्क-विशेष (पाअ; कप्प; इक; सुज्ज १०)। °दमण पुं [°दमन] राक्षस-वंश का एक राजा, एक लंकेश (पउम ५, २६६)। °मास पुं [°मास] ज्योतिष- शास्त्र में प्रसिद्ध समय-मान-विशेष (वव १)। °मुह न [°मुख] चन्द्र, चाँद (राज)। °संवच्छर पुं [°संत्सर] ज्योतिष-शास्त्र प्रसिद्ध वर्ष-विशेष (ठा ६)।

णक्खत्त :: वि [नक्षत्र] १ क्षत्रिय-जाति के अयोग्य कार्य करनेवाला (धर्मवि ३) २ पुंन. एक देव-विमान (देवेन्द्र १४३)

णक्खत्त :: वि [नाक्षत्र] नक्षत्र-सम्बन्धी, नक्षत्र का (जं ७)।

णक्खत्तणेमि :: पुं [दे. नक्षत्रनेमि] विष्णु, नारायण (दे ४, २२)।

णक्खत्रण :: न [दे] नख और कण्टक निका- लने का शस्त्र-विशेष (बृह १)।

णक्खि :: न [नखिन्] सुन्दर नखवाला (बृह १)।

णख :: देखो णक्ख (कुप्र ५८)।

णग :: देखो णय = नग (पणह १, ४; उप ३५६ टी; सुर ३, ३४)। °राय पुं [°राज] मेरु पर्वंत (ठा ९)। [°वर] पुं [°वर] श्रेष्ठ पर्वंत (णाया १, १)। °वरिंद पुं [°वरेन्द्र] मेरु-पर्वंत (पउम ३, ७९)।

णगर :: न [नकर, नगर] शहर, पुर (बृह १; कप्प; सुर ३, २०)। °गुत्तिय, °गोत्तिय पुं [°गुप्तिक] नगर रक्षक, कोटपाल, कोतवाल, दरोगा (णाया १, १८; औप; पणह १, २; णाया १, २)। °घाय पुं [°घात] शहर में लूट-पाट (णाया १, १८)। °णिद्धमण न [°निर्धमन] नगर का पानी जाने का रास्ता, मोरी, खाल (णाया १, २)। °रक्खिय पुं [°रक्षिक] देखो °गुत्तिय (निचू ४)। °वास पुं [°वास] राजधानी, पाटनगर (जं १ — पत्र ७४)।

णगरी :: देखो णयरी (राज)।

णगाणिआ :: स्त्री [नगाणिका] छन्द-विशेष (पिंग)।

णगिंद :: पुं [नगेन्द्र] १ श्रेष्ठ पर्वत (पउम ९७, २७) २ मेरु पर्वत (सूअ १, ६)

णगिण :: वि [नग्न] नंगा, वस्त्र-रहित (आचा; उप पृ ३९३)।

णग्ग :: देखो णग (तंदु ४५)।

णग्ग :: वि [नग्न] नंगा, वस्त्र-रहित (प्राप्र; दे ४, २८)। °इ पुं [°जित्] गन्धार देश का एक स्वनाम-ख्यात राजा (औप; महा)।

णग्गठ :: वि [दे] निर्गंत, बाहर निकला हुआ (षड् — पृष्ठ १८१)।

णग्गोह :: पुं [न्यग्रोध] वृक्ष-विशेष, बड़ का पेड़ (पाअ; सुर १, २०५)। °परिमंडल न [°परिमण्डल] संस्थान-विशेष, शरीर का आकार-विशेष (ठा ६)।

णघुस :: पुं [नघुष] स्वनाम-ख्यात एक राजा (पउम २२, ५५)।

णचिरा :: देखो अइरा = अचिरात् (पि ३६५)।

णच्च :: अक [नृत्] नाचना, नृत्य करना। णच्चइ (षड्) वकृ. णच्चंत, णच्चमाण (सुर २, ७५; ३, ७७)। हेकृ. णच्चिउं (गा ३६१)। कृ. णच्चियव्व (पउम ८०, ३२)। प्रयो. कवकृ. णच्चाविज्जंत (स २६)।

णच्च :: न [ज्ञत्व] जानकारी, पण्डिताई (कुमा)।

णच्च :: न [नृत्य] नाच, नृत्य (दे ५, ८)।

णच्चग :: वि [नर्तक] १ नाचनेवाला। पुं. नट, नचवैया (वव ६)

णच्चण :: न [नर्तन] नाच, नृत्य (कप्पू)।

णच्चणी :: स्त्री [नर्तनी] नाचनेवाली स्त्री (कुमा, कप्पू; सुपा १९९)।

णच्चा, णच्चाण :: देखो णा = ज्ञा।

णच्चाविअ :: वि [नर्त्तित] नचाया हुआ (ओघ २६५; ठा ६)।

णच्चासन्न :: न [नात्यासन्न] अति समीप में नहीं (णाया १, १)।

णच्चिर :: वि [नर्त्तितृ] नचवैया, नाचनेवाला, नर्तन-शील (गा ४२०; सुपा ५४; कुमा)।

णच्चिर :: वि [दे] रमण-शील (दे ४, १८)।

णच्चुण्ह :: वि [नात्युष्ण] जो अति गरम न हो (ठा ५, ३)।

णज्ज :: सक [ज्ञा] जानना। णज्जइ (प्राप्र)।

णज्ज :: वि [न्याय्य] न्याय-संगत (प्राकृ. १९)।

णज्जंत, णज्जमाण :: देखो णा = ज्ञा।

णज्जर :: वि [दे] मलिन, मैला (दे ४, १९)।

णज्झर :: वि [दे] विमल, निर्मल (दे ४, १९)।

णट्ट :: अक [नट्] १ नाचना। २ सक. हिंसा करना। णट्टइ (हे ४, २३०)

णट्ट :: पुं [नट] नर्त्तकों की एक जाति; 'णच्चंति णट्टा पभणंति विप्पा' (रंभा; सण; कप्प)। णट्ट न [नाट्य] नृत्य, गीत और वाद्य, नट-कर्म (णाया १, ३; सम ८३)। °पाल पुं [°पाल] नाट्य-स्वामी, सूत्रधार (आचू १)। °मालय पुं [°मालक] देव-विशेष, खण्डप्रपात गुहा का अधिष्ठायक देव (ठा २, ३)। °अरिअ पुं [°चार्य] सूत्रधार (मा ४)।

णट्ट :: [नृत्य] नाच, नृत्य (से १, ८; कप्पू)।

णट्टअ :: न [नाट्यक] देखो णट्ट = नाट्य (मा ४)।

णट्टअ, णट्टग :: वि [नर्त्तक] नाचनेवाला, नचवैया (प्राप; णाया १, १; औप)। स्त्री. °ई (प्राप्र; हे २, ३०; कुमा)।

णट्टार :: पुं [नाट्यकार] नाट्य करनेवाला (सण)।

णट्टाबअ :: वि [नर्त्तक] नचानेवाला (कप्पू)।

णट्टिया :: स्त्री [नर्त्तिका] नटी, नर्त्तकी, नाचनेवाली स्त्री (महा)।

णट्‍टुमत्त :: पुं [नर्त्तुमत्त] स्वनाम-ख्यात एक बिद्याधर (महा)।

णट्ठ :: पुं [नष्ट] एक नरक स्थान (देवेन्द्र २८)। २ न. पलायन (कुप्र ३७)

णट्ठ :: वि [नष्ट] १ नष्ट, अपगत, नाश-प्राप्त (सूअ १, ३, ३; प्रासू ८६) २ पुंन. अहो- रात्र का सतरहवाँ मुहूर्त्त (राज) °सुइअ वि [°श्रुतिक] १ जो बधिर — बहरा हुआ हो (णाया १, १ — पत्र ६३) २ शास्त्र के वास्तविक ज्ञान से रहित (राज)

णट्ठव :: वि [नष्टवत्] १ नाश-प्राप्त। २ न. अहोरात्र का एक मुहुर्त्त (राज)

णड :: अक [गुप्] १ व्याकुल होना। २ सक. खिन्न करना। णडइ, णडंति (हे ४, १५०; कुमा)। कर्म. णडिज्जइ (गा ७७)। कवकृ. णडिज्जंत (सुपा ३३८)

णड :: देखो णट्ट = नट्। णडइ (प्राकृ ६९)।

णड :: देखो णल = नड (हे २, १०२)।

णड :: पुं [नट] १ नर्तकों की एक जाति, नट (हे १, १९५; प्राप्र)। °खाइया स्त्री [°खादिता] दीक्षा-विशेष, नट की तरह कृत्रिम साधुपन (ठा ४, ४)

णडाल :: न [ललाट] भाल, कपाल (हे १, ४७; २५७; गउड)।

णडालिआ :: स्त्री [ललाटिका] ललाट-शोभा, कपाल में चन्दन आदि का विलेपन (कुमा)।

णडाविअ :: वि [गोपित] १ व्याकुल किया हुआ। खिन्न किया हुआ (सुपा ३२५)

णडिअ :: वि [गुपित] व्याकुल (से १०, ७०; सण)।

णडिअ :: वि [दे] १ वञ्चित, विप्रतारित (दे ४, १६) २ खेदित, खिन्न किया हुआ (दे ४, १६; णाया १, ९)

णडी :: स्त्री [नटी] १ नट की स्त्री (गा ९; ठा ६) २ लिपि विशेष (विसे ४६४ टी) ३ नाचनेंवाली स्त्री (बृह ३)

णडुली :: स्त्री [दे] कच्छप, कछुआ (दे ४, २०)।

णडूल :: न [नड्‍डुल] १ नगर विशेष (मोह ८८) २ पुं. देश-विशेष (ती १५)

णड्डरी :: स्त्री [दे] भेक, मेढक, बेंग (दे ४, २०)।

णड्डल :: न [दे] १ रत, मैथुन। २ दुर्दिन, मेघाच्छन दिवस (दे ४, ४७)

णड्डुली :: देखो णडुली (दे ४, २०)।

णणंदा :: स्त्री [ननान्दृ] पति की बहिन, ननद (षड्; हे ३, ३५)।

णणु :: अ [ननु] इन अर्थों का सूचक अव्यय — १ अवघारण, निश्चय (प्रासू १६१; निचू १) २ आशंका। ३ वितर्क। ४ प्रश्‍न (उव; सण; प्रति ५५)

णण्ण :: पुं [दे] १ कूप, कुआँ। २ दुर्जंन, खल। ३ बड़ा भाई (दे ४, ४६)

णत्त :: न [नक्त] रात्रि, रात (चंद १०)।

णत्त :: देखो णत्तु; 'अंकनिवेसियनियनियपुत्त- पडिपुत्तनत्तपुत्तीयं' (सुपा ६)।

णत्तचर :: देखो णक्कंचर (कुमा; पिी १७०)।

णत्तण :: न [नर्तन] नाच, नृत्य (नाट — शकु ८०)।

णत्ति :: स्त्री [ज्ञप्ति] ज्ञान (धर्मंसं ८२८, णंदि ६७ टी)।

णत्तिअ :: पुं [नप्‍तृक] १ पौत्र, पुत्र का पुत्र पोता। २ दौहित्र, पुत्री का पुत्र, नाती (हे १, १३७; कुमा)

णत्तिआ, णत्ती :: स्त्री [नप्त्री] १ पुत्र की पुत्री, पौत्री (कुमा) २ पुत्री की पुत्री, नातिन, नतिनी (राज)

णत्तु, णत्तुअ :: पुं [नप्‍तृ, °क] देखो णत्तिअ (निर २, १; हे १, १३७; सुपा १९२; विपा १, ३)।

णत्तुआ :: देखो णत्तिआ (बृह १; विपा १, ३)।

णत्तुइणी :: स्त्री [नप्‍तृकिनी] १ पौत्र की स्त्री। २ दौहित्र की स्त्री (विपा १, ३)

णत्तुई :: देखो णत्ती (विपा १, ३; कप्प)।

णत्तुणिअ :: पुं [नप्‍तृ] १ पौत्र, पोता। २ प्रपौत्र, परपोता (दस ७, १८)

णत्तुणिआ :: देखो णत्तिआ (दस ७, १५)।

णत्थ :: वि [न्यस्त] स्थापित, निहित (णाया १, १, ३; विसे ९१६)।

णत्थण :: न [दे] नाक में छिद्र करना (सुर १४, ४१)।

णत्था :: स्त्री [दे] नासा-रज्जु, नाथा या नाथ (दे ४, १७, उवा)।

णत्थि :: अ [नास्ति] अभाव-सूचक अव्यय (कप्प; उवा; सम्म ३९)।

णत्थिअ :: वि [नास्तिक] १ परलोक आदि नहीं माननेवाला (प्रारू) २ पुं. नास्तिक- मत का प्रवर्त्तक, चार्बाक। °वाय पुं. [°वाद] नास्तिक-दर्शन (उप १३२ टी)

णत्थियवाइ :: वि [नास्तिकवादिन्] आत्मा आदि के अस्तित्व को नहीं माननेवाला (धर्मंवि ४)।

णद :: सक [नद्] नाद करना, आवाज करना। वकृ. णदंत (सम ५०; नाट — मृच्छ १५५)।

णद :: पुं [नद] नाद, आवाज, शब्द; 'गद्दहेव्व गवां मज्झे विस्सरं नयई नदं' (सम ५०)।

णदी :: देखो णई (से ६, ६५; पणण ११)।

णद्दिअ :: वि [दे] दुःखित (दे ४, २०)।

णद्दिअ :: न [नर्दित] घौष, आवाज, शब्द (राज)।

णद्ध :: वि [नद्ध] १ परिहित, आच्छादित (गा ५२०; पउम ७, ९२; सुपा ३५५) २ निय- न्त्रित, बँधा हुआ (सुपा ३५५)

णद्ध :: वि [नद्ध] कवचित, वर्मित (धर्मंवि ४)।

णद्ध :: वि [दे] आरूढञ (दे ४, १८)।

णद्धंबवय :: न [दे] १ अघृणा, घृणा या घिन का अभाव। २ निन्दा (दे ४, ४७)

णपहुत्त :: वि [अप्रभूत] अपर्याप्त, अपरिपूर्णं, यथेष्टरहित (गउड)।

णपहुप्पंत :: वि [अप्रभवत्] अपर्याप्त होता (गउड)।

णपुंस, णपुसंग, णपुंसय :: पुंन [नपुंसक] नपुंसक, क्लीब, नामर्दं, षंड (ओघ २१; श्रा १६; ठा ३, १; सम ३७; महा)। °वेय पुं [°वेद] कर्मं-विशेष, जिसके उदय से स्त्री और पुरुष दोनों के स्पर्श की वाञ्छा होती है (ठा ९)।

णप्प :: सक [ज्ञा] जानना। णप्पइ (प्राप्र)।

णभ :: देखो णह = नभस् (हे १, १८७; कुमा; वसु)।

णभसूरय :: पुं [नभः शूरक] कृष्ण पुद्गल- विशेष, राहु (सुज्ज २०)।

णम :: सक [नम्] नमन करना, प्रणाम करना। णमामि (भग)। वकृ. णमंत, णममाण (पि ३९७; आचा)। कवकृ. णभिज्जंत (से ६, ३५)। संकृ. णमिऊण, णमिऊणं, णमेऊण (जी १; पि ५८५; महा)। कृ. णमणिज्ज, णमियव्व (रयण ४६; उप २११ टी; पउम ९९, २१)। संकृ. णमिअ (कम्म ४, १)।

णमंस :: सक [नमस्य्] नमन करना, नम- स्कार करना। णमंसइ (भग)। वकृ. णमंसमाण (णाया १, १; भग)। संकृ. णमंसित्ता (ठा ३, १; भग)। हेकृ. णमंसित्तए (उवा)। कृ. णमंसणिज्ज, णमंसियव्व (औप; सुपा ६३८; पउम ३५, ४९)।

णमंसण :: न [नमस्यन] नमन, नमस्कार (अजि ५, भग)।

णमंसणआ, णमंसणा :: स्त्री [नमस्यना] प्रणाम, नमस्कार (भग; सुपा ९०)। णमंसिय वि [नमस्यित] जिसको नम किया गया हो वह (पणह २, ४)।

णमक्कार :: देखो णमोक्कार (गउड; पि ३०६)।

णमण :: न [नमन] प्रणति, प्रणाम, नमना (दे ७, १६; रयण ४६)।

णमसिअ :: न [दे] उपयाचितक, मनौती (दे ४, २२)।

णमि :: पुं [नमि] १ स्वनाम-ख्यात एक्कीसवाँ जिन-देव (सम ४३) २ स्वनाम-प्रसिद्ध राजर्षि (उत्त ३९)। भगवान् ऋषभदेव का एक पौत्र (धण १४)

णमिअ :: वि [नत] प्रणत, जिसने नमन किया हो वह; 'पडिवक्खरायाणो तस्स राइणो नमिया' (महा)।

णमिअ :: वि [नमित] नमाया हुआ (गा ६६०)।

णमिअ :: देखो णम।

णमिआ :: स्त्री [नमिता] १ स्वनाम-ख्यात एक स्त्री। २ 'ज्ञाताधर्मंकथासूत्र' का एक अध्ययन (णाया २)

णमिर :: वि [नम्र] नमन करनेवाला (कुमा; सुपा २७; सण)।

णमुइ :: पुं [नमुचि] स्वनाम-ख्यात एक मन्त्री (महा)।

णमुदय :: पुं [नमुदय] आजीविक मत का एक उपासक (भग ७, १०)।

णमेरु :: पुं [नमेरु] वृक्ष-विशेष (सुर ७, १९; स ६३३)।

णमो :: अ [नमस्] नमस्कार, नमन (भग; कुमा)।

णोक्कार :: पुं [नमस्कार] १ नमन, प्रणाम (हे १, ६२; २, ४) २ जैन-शास्त्र में प्रसिद्ध एक सूत्र — मन्त्र-विशेष (विसे २८०५)। °सहिय न [°सहित] प्रत्याख्यान-विशेष, व्रत-विशेष (पडि)

णमोयार :: देखो णमक्कार (चंड)।

णम्म :: पुंन [नर्मन्] १ हाँसी, उपहास। २ क्रीड़ा, केलि (हे १, ३२; श्रा १४; दे २, ६४; पाअ)

णम्मया :: स्त्री [नर्मदा] १ स्वनाम प्रसिद्ध नदी (सुपा ३८०) २ स्वनाम-ख्यात एक राज- पत्‍नी (स ५)

णय :: देखो णद = नद्; 'विस्सरं नयईं नदं' (सम ५०)।

णय :: पुं [नग] १ पहाड़, पर्वंत (उप पृ २५६; सुपा ३४८) २ वृक्ष, पेड़ (हे १, १७७)। देखो णग।

णय :: अ [नच] नहीं (उप ७६८ टी)।

णय :: [नत] १ नमा हुआ, झुका हुआ, प्रणत, नम्र (णाया १, १) २ जिसको नमस्कार किया गया हो वह; 'नीसेसवियडपडिवक्खनयक्कमो विक्कमों राया' (सुपा ५६९) ३ न. देवविमान-विशेष (सम ३७)। °सच्च पुं [सत्य] श्रीकृष्ण, नारायण (अच्चु ७)

णय :: पुं [नय] १ न्याय, नीति (विसे ३३९५; सुपा ३४८; स ५०१) २ युक्ति (उप ७६८) ३ प्रकार, रीति; 'जलणा वि घेप्पई पवणा भुयगो य केणइ नएण' (स ४५४) ४ वस्तु के अनेक धर्मो में किसी एक को मुख्य रूप से स्वीकार कर अन्य धर्मो की उपेक्षा करनेवाला मत, एकांश-ग्राहक बोध (सम्म २१; विसे ९१४; ठा ३, ३) ५ विधि (विसे ३३९५)। °चंद पुं [°चन्द्र] स्वनाम-ख्यात एक जैन ग्रन्थकार (रंभा)। °त्थि वि [°र्थिन्] न्याय चाहनेवाला (श्रा १४)। °व, °वत वि [°वत्] नीतिवाला, न्याय-परायण (सम ५०; सुपा ५४२)। °विजय पुं [°विजय'] विक्रम की सतरहवीं शताब्दी के एक जैन मुनि, जो सुप्रसिद्ध विद्वान् श्री यशोविजयजी के गुरू थे (उवर २०२)

णयचक्क :: न [नयचक्र] एक प्राचीन जैन प्रमाण-ग्रन्थ (सम्मत्त ११७)।

णयण :: न [नयन] १ ले जाना, प्रापण (उप १३४) २ जानना, ज्ञान। ३ निश्चय (विसे ९१४) ४ वि. ले जानेवाला; 'वयणाइं सुपहनणाइं' (सुपा ३७७) ५ पुंन. आँख, नेत्र, लोचन (हे १, ३३; पाअ)। °जल न [°जल] अश्रु, आँसु (पाअ)

णयय :: पुं [दे. नवत] ऊन का बना हुआ आस्तरण-विशेष (णाया १, १ — पत्र १३)।

णयर :: देखो णगर (हे १, १७७; सर ३, २० औप; भग)।

णयकंगणा :: स्त्री [नगराङ्गना] वेश्या, गणिका (श्रा २७)।

णयरी :: स्त्री [नगरी] शहर, पुरी (उपा; पउम ३९, १००)।

णर :: पुं [नर] १ मनुष्य, मानुष, पुरुष (हे १, २२९; सूअ १, १, ३) २ अर्जुन, मध्यम पाण्डव (कुमा)। °उसभ पुं [°वृषभ] श्रेष्ठ मनुष्य, अंगीकृत कार्य का निर्वाहक पुरुष (औप)। °कंतप्पवाय पुं [°कान्तप्रपात] ह्रद-विशेष (ठा २, ३)। °कंता स्त्री [°कान्ता] नदी-विशेष (ठा २, ३; सम २७)। °कंता- कूड न [°कान्ताकूट] रुक्मि पर्वंत का एक शिखर (ठा ८)। °दत्ता स्त्री [°दत्ता] १ मुनि-सुव्रत भगवान् की शासनदेवी (राज) २ विद्यादेवी-विशेष (संति ५)। °देव पुं [°देव] चक्रवर्त्ती राजा (ठा ५, १)। °नायग पुं [°नायक] राजा, नरपति (उप २११ टी)। °नाह पुं [°नाथ] राजा, भूपाल (सुपा ६; सुर १, ९१)। °पहु पुं [°प्रभु] राजा, नरेश (उप ७२८ टी; सुर २, ८४)। °पौरुसि पुं [°पौरुषिन्] राज-विशेष (उप ७२८ टी)। °लोअ पुं [°लोक] मनुष्य लोक (जी २२; सुपा ४१३)। °वइ पुं [°पति] नरेश, राजा (सुर १, १०४)। °वर पुं [°वर] १ राजा, नरेश (सुर १, १३१; १५, १४)। २ उत्तम पुरुष (उप ७२८ टी)। °वरिंद पुं [°वरेन्द्र] राजा, भूमि-पति (सुपा ५६; सुर २, १७६)। °वरीसर पुं [°वरेश्वर] श्रेष्ठ राजा (उत्त १८)। °वसभ, °वसह पुं [°वृषभ] १ देखो °उसभ (पणह १, ४; सम १५३) २ राजा, नृपति (पउम ३, १४) ३ पुं. हरिवंश का एक स्वनाम-प्रसिद्ध राजा (पउम २२, ९७) °वाल पुं [°पाल] राजा, भूपाल (शुपा २७३)। °वाहण पुं [°वाहन] स्वनाम-ख्यात एक राजा (आक १; सण)। °वेय पुं [°वेद] पुरुष वेद, पुरुष का स्त्री के स्पर्शं की अभिलाषा (कम्म ४)। °सिंघ, °सिंह, °सीह पुं [°सिंह] १ उत्तम, पुरुष, श्रेष्ठ मनुष्य (सम १५३; पउम १००, १६) २ अर्धं भाग में पुरुष का और अर्धं भाग में सिंह का आकारवाला, श्रीकृष्ण, नारायण (णाया १, १६) °सुंदर पुं [°सुन्दर] स्व- नाम-ख्यात एक राजा (धम्म)। °हिव पुं [°धिप] राजा, नरेश (गा ३६४; सुपा २५)

णरइंदय :: पुं [नरकेन्द्रक] नरक-स्थान-विशेष (देवेन्द्र १)।

णरकंठ :: पुं [नरकण्ठ] रत्‍न की एक जाति (राय ६७)।

णरसिंह :: पुं [नरसिंह] १ बलदेव, 'ततो लोयम्मि बलदेवो नरसिंहो त्ति पसिद्धो' (कुप्र १०३) २ एक राजकुमार (कुप्र १०६)

णरग, णरय :: पुं [नरक] नारक जीवों का स्थान (विपा १, १; पउम १४, १६; श्रा ३; प्रासू २९; उव)। °वाल, °वालय पुं [°पाल, °क] परमााधार्मिक देव, जो नरक के जीवों को यातना (पीड़ा) देते हैं (पउम २६, ५१; ८, २३७)।

णराच, णराअ :: पुंन [नाराच] १ लोहमय बाण। २ सहंनन-विशेष, शरीर की रचना का एक प्रकार (हे १, ६७) ३ छन्द-विशेष (पिंग)

णरायण :: पुं [नारायण] श्रीकृष्ण, विष्णु (पिंग)।

णरिंद :: पुं [नरेन्द्र] १ राजा, नरेश (सम १५३; प्रासू १०७; कप्प) २ गारुड़िक, सर्पं के विष को उतारनेवाला (स २१६)। °कंत न [°कान्त] देव-विमान-विशेष (सम २२) °पह पुं [°पथ] राज-मार्गं, महापथ (पउम ७६, ८)। °वसह पुं [°वृषभ] श्रेष्ठ राजा (उत्त ९)

णरिंदुत्तरवडिंसग :: न [नरेन्द्रोत्तरावतंसक] देव-विमाने-विशेष (सम २२)।

णरीस :: पुं [नरेश] राजा, नरपति; 'सो भर- हद्धनरीसो होही पुरिसो न संदेहो' (सुर १२, ८०)।

णरीसर :: पुं [नरेश्वर] राजा, नरपति (अझि ११)।

णरुत्तम :: पुं [नरोत्तम] श्रीकृष्ण (सिरि ४२)।

णरुत्तम :: पुं [नरोत्तम] उत्तम पुरुष (पउम ४८, ७५)।

णरेंद :: देखो णरिंद (पि १५९; पिंग)।

णेरसर :: देखो णरीसर (उप ७२८ टी; सुपा ५५; ५६१)।

णल :: न [नड] तृण-विशेष, भीतर से पोला शराकार तृण (हे २, २०२; ठआ ८)।

णल :: न [नल] १ ऊपर देखो (पणण १; उप १०३१ टी; प्रासू ३३) २ पुं. राजा राम- चन्द्र का एक सुभट (से ८, १८) ३ वैश्रमण का एक स्वनाम-ख्यात पुत्र (अंत ५) °कुब्बर, °कूबर पुं [°कूबर] १ दुर्लंधपुर का एक स्वनाम-ख्यात राजा (पउम १२, ७२) २ वैश्रमण का एक पुत्र (आवम)। °गिरि पुं [°गिरि] चण्डप्रद्योत राजा का एक स्वनाम-ख्यात हाथी (महा)

णलय :: न [दे] उशीर, खस का तृण (दे ४, १९; पाअ)।

णलाड :: देखो णडाल (हे २, १२३; कुमा)।

णलाडंतव :: वि [ललाटन्तप] ललाट को तपानेवाला (कुमा)।

णलिअ :: न [दे] गृह, घर, मकान (दे ४, २०; षड्)।

णलिण :: न [नलिन] १ लगातार तेईस दिन का उपवास (संबोध ५८) २ पुंन. एक देव- विमान (देवेन्द्र १३२)

णलिण :: न [नलिन] १ रक्त कमल (राय; चंद १०; पाअ) २ महाविदेह वर्षं का एक विजय, प्रदेश-विशेष (ठा २, ३) ३ 'नलिनांग' को चौरासी लाख से गुणने पर जो संख्या लब्ध हो वह (ठा २, ४; इक) ४ देव-विमान विशेष (सम ३३; ३५) ५ रुचक पर्वंत का एक शिखर (दीव) °कूड पुं [°कूट] वक्षस्कार-पर्वंत-विशेष (ठा २, ३)। °गुम्भ न [°गुल्म] १ देव-विमान-विशेष (सम ३५) २ नृप-विशेष (ठा ८) ३ अध्ययन-विशेष (आव ४) ४ राजा श्रेणिक का एक पुत्र (राज)। °वई स्त्री [°वती] विदेह वर्ष का एक विजय, प्रदेश विशेष (ठा २, ३)

णलिणंग :: न [नलिनाङ्ग] संख्या-विशेष, पद्म को चौरासी लाख से गुणने पर जो संख्या लब्ध हो वह (ठा २, ४; इक)।

णलिणि°, णलिणी :: स्त्री [नलिनी] कमलिनी, पद्मिनी (पाअ; णाया १, १)। °गुम्म देखो णलिग-गुम्भ (निर २, १; विसे)। °वण न [°वन] उद्यान-विशेष (णाया २)।

णलिणोदग :: पुं [नलिनोदक] समुद्र-विशेष (दीव)।

णल्लय :: न [दे] १ वृति विवर, बाड़ का छिद्र। २ प्रयोजन। ३ निमित्त, कारण। ४ वि. कर्दंमित, कीचवाला (दे ४, ४६)

णव :: देखो णम। णवइ (षड्; हे ४, १५८; २२६)।

णव :: वि [नव] नया, नूतन, नवीन (गउड; प्रासू ७१)। °वहुया, °वहू स्त्री [°वधू] नवोढ़ा, दुलहिन (हेका ५१; सुर ३, ५२)।

णव :: त्रि. ब. [नवन्] संख्या-विशेष, नव, ९ (ठा ९)। °इ स्त्री [°ति] संख्या-विशेष नब्बे, ९० (सण)। °ग न [°क] नव का समुदाय (दे ३८)। °जोयणिय वि [°योजनिक] नव योजन का परिमाणवाला (ठा ९)। °णउइ, °नउइ स्त्री [°नवति] संख्या-विशेष, निन्यानबे, ९९ (सम ९९, १००)। °नउय वि [°नवत] ९९ वाँ (पउम ९९, ७५)। °नवइ देखो णउइ (कम्म २, ३०)। °नवमिया स्त्री [°नवमिका] जैन साधु का व्रत-विशेष (सम ८८)। °म वि [°म] नववाँ (उवा)। °मी स्त्री [°मी] तिथि-विशेष; पक्ष का नववाँ दिवस (सम २९)। °मीपक्ख पुं [°मीपक्ष] आठवाँ दिन, अष्टमी (जं ३)।

णवकार :: देखो णमोक्कार (सट्ठि १; चैत्य ३०; सण)।

णवकारसी :: स्त्री [नमस्कारसहित] प्रत्या- ख्यान-विशेष, व्रत-विशेष (संबोध ५७)।

णवख :: (अप) वि [नव] अनोखा, नूतन, नया (हे ४, ४२२)। स्त्री. °खी (हे ४, ४२०)।

णवणीअ :: पुंन [नवनीत] नयनू, मक्खन, मसका (कप्प; औप; प्रामा); 'अणलहओव्व नव- णीओ' (पउम ११८, २३)।

णवणीइआ :: स्त्री [नवनीतिका] वनस्पति- विशेष (पणण १)।

णवणय :: न [नवपद] नमस्कार-मन्त्र (सिरि ५७९)।

णवमालिया :: स्त्री [नवमालिका] पुष्प-प्रधान वनस्पति-विशेष, बसंती नेवारी, नेवार (कप्प)।

णवमिया :: स्त्री [नवमिका] १ रुचक पर्वंत पर रहनेवाली एक दिक्कुमारी देवी (ठा ८) २ सत्पुरुष-नामक इन्द्र की एक अग्र-महिषी (ठा ४, १) ३ शक्रेन्द्र की एक पटरानी (ठा ८)

णवय :: देखो णवग (पंचा १७, ३०)।

णवय :: देखो णयय (णाया १, १७)।

णवयार :: देखो णवकार (पंचा १; पि ३०६)।

णवर :: सक [कथ्] कहना। कर्मं. णवरिज्जइ (प्राकृ. ७७)।

णवर, णवरं :: [अ.] १ केवल, सिर्फं फक्त (हे २, १८७; कुमा; षड् उवा; सुपा ८; जी २७; गा १५) २ अनन्तर, बाद में (हे २, १८८; प्राप्र)

णवरंग, णवरंगय :: पुं [नवरङ्गं, °क] १ नूतन रंग, नया वर्णं (सुर ३, ५२) २ छन्द-विशेष (पिंग) ३ कौसुम्भ रंग का वस्त्र (गउड; गा २४१; सुर ३, ५२; पाअ)

णवरत्ति :: स्त्री [नवरात्रि] नव दिनों का आश्‍विन मास का एक पर्वं (सट्ठि ७८)।

णवरि :: अ [दे] शीघ्र, जल्दी, . (प्राकृ ८१)।

णवरि, णवरिअ :: देखो णवर (हे २, १८८; से १, ३६; प्रामा; सुर, २६; षड् ; गा १७२)।

णवरिअ :: न [दे] सहसा, जल्दी, तुरन्त (दे ४, २२; पाअ)।

णवरु :: देखो णवर (चंड)।

णवलया :: स्त्री [दे] वह व्रत, जिसमें पति का नाम पूछने पर उसे नहीं वतानेवाली स्त्री पलाश की लता से ताड़ित की जाती है (हे ४, २१)।

णवल्ल :: देखो णव = नव (हे २, १६५; कुमा; उप ७२८ टी)।

णवसिअ :: न [दे] उपयाचितक, मनौती (दे ४, २२; पाअ; वज्जा ८६)।

णवा :: स्त्री [नवा] १ नवोढञा, दुलहिन। २ युवति स्त्री (सूअ १, ३, २) ३ जिसको दीक्षा लिए तीन वर्षं हुए हों ऐसी साध्वी (वव ४) ४ अ. प्रश्‍नार्थक अव्ययय, अथवा नहीं ? (रयण ६७)

णवि :: [अ.] १ वैपरीत्य-सूचक अव्यय, 'णवि हा वणे' (हे २, १७८; कुमा) २ निषेधार्थंक अव्यय (गउड)

णविअ :: देखो णमिअ = नत (हे ३, १५६; भवि)।

णविअ :: वि [नव्य] नूतन, नया (आचा २, २, ३)।

णवीण :: वि [नवीन] नूतन, नया (मोह ८३; धर्मवि १३२)।

णवुत्तरसय :: वि [नवोत्तरशततम] एक सौ नववाँ (पउम १०९, २७)।

णवुल्लडय :: (अप) देखो णव = नव (कुमा)।

णवोढा :: स्त्री [नवोढा] नव-विवाहिता स्त्री, दुलहिन (काप्र १९७)।

णवोद्धरण :: न [दे] उच्छिष्ट, जूठा (दे ४, २३)।

णव्व :: पुं [दे] आयुक्त, गाँव का मुखिया (दे ४, १७)।

णव्व :: वि [नव्य] नूतन, नया, नवीन (श्रा २७)।

णव्व° :: देखो णा = ज्ञा।

णव्वा :: त्त [पुं] [दे] १ ईश्वर, धानढ्य, भोगी। २ नियोगी का पुत्र, सूबेदार का लड़का (दे ४, २२)

णस :: सक [नि + अस्] स्थापन करना। नसेज्ज (विसे ९४३)। कर्मं. नस्सए (विसे ९७०)। संकृ. नसिऊण (स ६०८)।

णस :: अक [नश्] भागना, पलायन करना। णसइ (पिंग)।

णसण :: न [न्यसन] न्यास, स्थापन (जीव १)।

णसा :: स्त्री [दे] नस, नाड़ी; 'असुईरसनिज्झरणो हड्‍डुक्करडम्मि चम्मनसनद्धे' (सुपा ३५५)

णसिअ :: वि [नष्ट] नाश-प्राप्‍त (कुमा)।

णस्स :: देखो नस = नश्। णस्सइ, णस्सए, (षड्, कुमा)। वकृ. नस्संत, नस्समाण (श्रा १६; सुपा २१५)।

णस्सर :: वि [नश्वर] विनश्वर, भंगुर, नाश पानेवाला; 'खणनस्सराइं रूवाइं' (सुपा २४३)।

णस्सा :: स्त्री [नासा] नासिका, ध्राणेन्द्रिय (नाट-मृच्छ ९२)।

णह :: देखो णक्ख (सम ६०; कुमा)।

णह :: न [नभस्] १ आकाश, गगन (प्राप्र; हे १, ३२) २ पुं. श्रावण मास (दे ३; १९) °अर वि [°चर] १ आकाश में विचरनेवाला (से १४; ३८) २ पुं. विद्याधर, आकाश- विहारी मनुष्य (सुर ६, १८६) °केउमंडिय न [केतुमण्डित] विद्याधरों का एक नगर (इक)। °गमा स्त्री [°गमा] आकाश- गामिनी विद्या (सुर १३, १८६)। °गामीणी स्त्री [°गामिनी] आकाश-गामिनो विद्या (सुर ३, २८)। °च्चर देखो °अर (उप ५९७ टी)। °च्छेदणय न [°च्छेदनक] नख उतारने का शस्त्र (आचा २, १, ७, १)। °तिलय न [°तिलक] १ नगर-विशेष। २ सुभट-विशेष (पउम ५५, १७)। °वाहण पुं [°वाहन] नृप-विशेष (सुर ६, २६)। °सिर न [°शिरस्] नख का अग्र भाग (भग ५, ४)। °सिहा स्त्री [°शिखा] नख का अग्र भाग (कप्प)। °सेण पुं [°सेन] राजा उग्रसेन का एक पुत्र (राज)। °हरणी स्त्री [°हरणी] नख उतारने का शस्त्र (बृह ३)

णहंसि :: वि [नखवत्] नखवाला (दस ६, ६५)।

णहमुह :: पुं [दे] घूक, उल्लु (दे ४, २०)।

णहर :: पुं [नखर] नख, नाखून (सुपा ११; ६०६)।

णहरण :: पुं [दे] नखी, नखवाला जन्तु, श्वापद (वज्जा १२)।

णहरणी :: स्त्री [नखहरणी] नहरनी, नख उतारने का शस्त्र (पंचव ३)।

णहराल :: पुं [नखरिन्] नखवाखा श्वापद जंतु (उफ ५३० टी)।

णहरी :: स्त्री [दे] क्षुरिका, छुरी (दे ४, २०)।

णहवल्ली :: स्त्री [दे] विद्युत्, बिजली (दे ४, २२)।

णहारु :: न [स्‍नायु] स्‍नायु, रग, नस, नाड़ी।

णहि :: पुं [नखिन्] नख-प्रधान जन्तु, श्‍वापद जन्तु (अणु)।

णहि :: वि [नखिन्] ऊुपर देखो (अणु १४२)।

णहि :: अ [नहि] निषेधार्थंक अव्यय, नहीं (स्वप्‍न ४१; पिंग, सण)।

णहु :: अ [नखलु] ऊपर देखो (नाट — मृच्छ २९१; णाया १, ९)।

णा :: सक [ज्ञा] जानना, समझना। भवि. णाहिइ (विसे १०१३)। णाहिसि (पि ५३४)। कर्म. णव्वइ, णज्जइ (हे ४, २५२)। कवकृ. णज्जंत, णज्जमाण (से १३, ११; उफ १००१ टी)। संकृ. णाउं, णाऊण, णाऊणं, णच्चा, णच्चाणं (महा; पि ५८६; औप; सूअ १, २, ३; पि ५८७)। कृ. णायव्व, णेअ (भग, जी ६; सुर ४, ७०; दं २; हे २, १९३; नव ३१)।

णा :: अ [न] निषेध-सूचक अव्यय (गउड)।

णाअअ, णाअक्क :: देखो णायग (प्राकृ २६)।

णाअक्क :: (अप) देखो णायग (पिंग)।

णाइ :: पुं [ज्ञाति] इक्ष्वाकु वंश में उत्पन्‍न क्षत्रिय-विशेष। °पुत्त पुं [°पुत्र] भगवान् श्री महावीर (आचा)। °सुय पुं [°सुत] भगवान् श्री महावीर (आचा)।

णाइ :: स्त्री [ज्ञति] १ नात, समान जाति (पउम १००, ११; औप; उवा) २ माता- पिता आदि स्वजन, सगा (णाया १, १)। ३ ज्ञान, बोध (आचा; ठा ५, ३)

णाइ :: (अप) देखो इव (कुमा)।

णाइ :: (अप) नीचे देखो (भवि)।

णाइं :: देखो ण = न (हे २, १९०; उवा)।

णाइणी :: (अप) स्त्री [नागी] नागिन, सर्पिणी (भवि)।

णाइत्त, णाइत्तग :: पुं [दे] जहाज द्वारा व्यापार करनेवाला सौदागर (उप पृ १०१, उफ ५६२)।

णाइय :: वि [नादित] १ उक्त, कथित, पुकारा हुआ (णाया १, १; औप) २ न. आवाज, शब्द (णाया १, १) ३ प्रतिशब्द, प्रतिध्वनि (राय)

णाइल :: पुं [नागिल] १ स्वनाम-ख्यात एक जैन मुनि (कप्प) २ जैन मुनियों का एक वंश (पउम ११८, ११७) ३ एक श्रेष्ठी (महानि ४)

णाइला, णाइली :: स्त्री [नागिला] जैन मुनियों की एक शाखा (कप्प)।

णाइल्ल :: देखो णाइल (विचार ५३४)।

णाइव :: वि [ज्ञातिमत्] स्वजन-युक्त, नातेदार (उत्त ४)।

णाउ :: वि [ज्ञातृ] जानकार, जाननेवाला (द्र ६)।

णाउड्ड :: पुं [दे] १ सद्भाव, सन्‍निष्ठा। २ अभिप्राय। ३ मनोरथ, वाञ्छा (दे ४, ४७)

णाउल्ल :: वि [दे] गोमान्, जिसेक पास अनेक गैया हों (दे ४, २३)।

णाउं, णाऊण, णाऊणं :: देखो णा = ज्ञा।

णाग :: पुंन [नाक] स्वर्गं, देवलोक (उप ७१२)।

णाग :: पुं [नाग] १ सर्पं, साँप (पउम ८, १७८) २ भवनपति देवों की एक अवान्तर जाति, नाग-कुमार देव (णंदि) ३ हस्ती, हाथी (औप) ४ वृक्ष-विशेष (कप्प) ५ स्वनाम-ख्यात एक गृहस्थ (अंत ४) ६ एक प्रसिद्ध वंश। ७ नाग-वंश में उत्पन्‍न (राज) ८ एक जैन आचार्यं (कप्प) ९ स्वनाम-ख्यात एक द्वीप। १० एक समुद्र (सुज्ज १९) ११ वक्षस्कार-पर्वंत विशेष (ठा २, ३) १२ न. ज्योतिष-प्रसिद्ध एक स्थिर करण (विसे ३३५०)। °कुमार पुं [°कुमार] भवनपति देवों की एक अवान्तर जाति (सम ६६)। °केसर पुं [°केसर] पुष्प-प्रधान वनस्पति-विशेष (राज)। °ग्गह पुं [°ग्रह] नाग देवता के आवेश से उत्पन्‍न ज्वर आदि (जीव ३)। °जण्ण, °जन्न पुं [°यज्ञ] नाग पूजा, नाग देवाता का उत्सव (णाया १; ८)। °ज्जुण पुं [°र्जुन] एक स्वनाम-ख्यात जैत आचार्यं (णंदि)। °दंत पुं [°दन्त] खूंटी (जीव ३)। °दत्त पुं [°दत्त] १ एख स्वनाम-ख्यात राज-पुत्र (ठा ३, ४; सुपा ५३५) २ एक श्रेष्ठि-पुत्र (आक)। °पइ पुं [°पति] नाग कुमार देवों का राजा, नागेन्द्र (औप)। °पुर न [°पुर] नगर-विशेष (पउम २०, १०)। °बाण पुं [°बाण] दिव्य अस्त्र-विशेष (जीव ३)। °भद्द पुं [°भद्र] नाग द्वीप का अधिष्ठाता देव (सुज्ज १९)। °भूय न [°भूत] जैन मुनियों का एक कुल (कप्प)। °महाभद्द पुं [°महाभद्र] नागद्वीप का एक अधिष्ठायक देव (सुज्ज १९)। °महावीर पुं [°महावर] नाग समुद्र का अधिपति देव (सुज्ज १९; इक)। °मित्त पुं [°मित्र] स्वनाम-ख्यात एक जैन मुनि, जो आर्य महागिरि के शिष्य थे (कप्प)। °राय पुं [°राज] नागकुमार देवों का स्वामी, इन्द्र-विशेष (पउम ३, १४७)। °रुक्ख पुं [°वृक्ष] वृक्ष-विशेष (ठा ८)। °लया स्त्री [°लता] वल्ली-विशेष, ताम्बूली लता (पणण १)। °वर पुं [°वर] १ श्रेष्ठ सर्पं। २ उत्तम हाथी (औप) ३ नाग समुद्र का अधिपति देव (सुज्ज १९)। °वल्ली स्त्री [°वल्ली] लता-विशेष (सण)। °सिरी स्त्री [°श्री] द्रौपदी के पूर्वं जन्म का नाम (उप ६४८ टी)। °सुहुम न [°सूक्ष्म] एक जैनेतर शास्त्र (अणु)। °सेण पुं [°सेन] एक स्वनाम ख्यात गृहस्थे (आवम)। °हत्थि पुं [°हस्तिन्] एक प्राचीन जैन ऋषि (णंदि)

णागणिय :: न [नाग्न्य] नग्‍नता, नंगापन (सूअ १, ७)।

णागदत्ता :: स्त्री [नागदत्ता] चौदहवें जिनदेव की दीक्षा-शिविका (विचार १२९)।

णागपरियावणिया :: स्त्री [नागपरियापनिका] एक जैन शास्त्र (णंदि २०२)।

णागर :: वि [नागर] १ नगर-सम्बन्धी। २ नगर का निवासी, नागरिक (सुर ३, ६६; महा)

णागरिअ :: पुं [नागरिक] नगर का रहनेवाला (रंभा)।

णागरिआ :: स्त्री [नागरिका] नगर में रहनेवाली स्त्री (महा)।

णागरी :: स्त्री [नागरी] १ नगर में रहनेवाली स्त्री। २ लिपि विशेष, हिन्दी लिपि (विसे ४६४ टी)

णागिंद :: पुं [नागेन्द्र] १ नाग देवों का इन्द्र। २ शेषनाग (सुपा ७७; ६३६)

णागिणी :: स्त्री [नागी] १ नागिन। २ एक वणिक्-पुत्री (कुप्र ४०८)

णागिल :: देखो णाइल (राज)।

णागी :: स्त्री [नागी] नागिन, सर्पिणी (आव ४)।

णागेंद :: देखो णागिंद (णाया १, ८)।

णागोद :: पुं [नागोद] एक समुद्र (सुज्ज १९)।

णाड :: देखो णट्ट = नाट्य (णाया १, १ टी — पत्र ४३)।

णाडइज्ज :: वि [नाटकीय] नाटक-सम्बन्धी, नाटक में भाग लेनेवाला पात्र (णाया १, १; कप्प)।

णाडइणी :: स्त्री [नाटकिनी] १ नर्त्तकी, नाचनेवाली स्त्री (बृह ३)|

णाडग, णाडय :: न [नाटक] १ नाटक, अभिनय, नाट्य-क्रिया (बृह १; सुपा १, ३५९, सार्ध ६५) २ रंग-शाला में खेलने में उपयुक्त काव्य (हे ४, २७०)

णाडाल :: देखो णाडाल (गउड)।

णाडि :: स्त्री [नाडि] १ रज्जु, वरत्रा। २ नाड़ी, नस, सिरा (कुमा)|

णाडी :: स्त्री [नाडी] ऊपर देखो (हे १, २०२)।

णाडीअ :: पुं [नाडीक] वनस्पति-विशेष (भग १०, ७)।

णाण :: न [ज्ञान] ज्ञान, बोध, चैतन्य, बुद्धि (भग ८, २; हे २, ४२; कुमा; प्रासू २८)। °धर वि [°धर] ज्ञानी, जानकार, विद्वान् (सुपा ५०८)। °प्पवाय न [°प्रवाद] जैन ग्रन्थांश-विशेष, पाँचवाँ पूर्वं (सम २६)। °मायार देखो °यार (पडि)। °व, वंत वि [°वत्] ज्ञानी, विद्वान् (पि ३४८; आचा; अच्चु ४९)। °वि वि [°वित्] ज्ञान-वेत्ता (आचा)। °यार पुं [°चार] ज्ञान-विषयक शास्त्रोक्त विधि (राज)। °वरण न [°वरण] ज्ञान का आच्छादक कर्मं (धण ४४)। °विरणिज्ज न [°वरणीय] अनन्तर उक्त अर्थं (सम ६६; औप)।

णाणक, णाणग :: न [दे] सिक्का, मुद्रा (मृच्छ १७; राज)।

णाणत :: न [नानात्व] भेद, विशेष, अन्तर (ओघ ६१८)।

णाणता :: स्त्री [नानाता] ऊपर देखो (विसे २१६१)।

णाणा :: अ [नाना] अनेक, जुदा-जुदा (उवा; भग; सुर १, ८९)। °विह वि [°विघ] अनेक प्रकार का, विविध (जीव ३, सुर ४, २४५, दं १३)।

णाणि :: वि [ज्ञानिन्] ज्ञानी, जानकार, विद्वान् (आचा; उव)।

णादिय :: देखो णाइय (कप्प)।

णाभि :: पुं [नाभि] १ स्वनाम ख्यात एक कुलकर पुरुष, भगवान् ऋषभदेव का पिता (सम १५०) २ पेट का मध्य भाग। ३ गाड़ी का एक अवयव (दस ७) °नंदण पुं [°नन्दन] भगवान् ऋषभदेव (पउम ४, ६८)। णाम सक [नमय्] १ नमाना, नीचा करना। २ उपस्थित करना। ३ अर्पंण करना। णामेइ (हेका ४६)। बकृ. णामयंत (विसे २९६०)। संकृ. णामित्ता (निचू १)

णाम :: पुं [नाम] १ परिणाम, भाव (भग २५, ५) २ नमन (विसे २१७६)

णाम :: अ [नाम] संभावना-सूचक अव्यय (सूअ १, १२, ३)।

णाम :: अ [नाम] इन अर्थों का सूचक अव्यय — संभावना (से ५, ४)। २ आमन्त्रण, संबोधन (बृह ३; जं १) ३ प्रसिद्धि, ख्याति (कप्प) ४ अनुज्ञा, अनुमतचि (विसे) ५ — ६ वाक्या- लंकार पाद-पूर्त्ति में भी इसका प्रयोग होता है (ठा ४, १; राज)

णाम :: न [नामन्] नाम, आख्या, अभिधान (विपा १, १; विसे २५)। °कम्म न [°कर्मन्] कर्मं-विशेष, विचित्र परिणाम का कारण-भूत कर्मं (स ६७)। °धिज्ज, °धेज्ज °धेय न [°धेय] नाम, आख्या (कप्प; सम ७१; पउम ४, ८०)। °पुर न [°पुर] एक विद्याधर-नगर (इक)। °मुद्दा स्त्री [°मुद्रा] नाम से अंकित मुद्रा (पउम ५, ३२)। °सच्च वि [°सत्य] नाम-मात्रा से सच्चा, नाम- धारी (ठा १०)। °हेअ देखो °धेय (पउम २०, १७९; स्पप्‍न ४३)।

णामण :: न [नमन] नमाना, नीचा करना (विसे ३००८)।

णाममंतक्ख :: पुं [दे] अपराध, गुनाह (गउड)।

णामोगोत्त :: न [नामगोत्र] १ यथार्थ नाम। २ नाम तथा गोत्र (सुज्ज १९)

णामिय :: वि [नमित] नमाया हुआ (सार्धं ८०)।

णामिय :: न [नामिक] वाचक-शब्द, पद (विसे १००३)।

णामुक्कसिअ, णामोक्कसिअ :: न [दे] कार्यं, काम, काज (हे २, १७४; दे ४, २५)।

णाय :: वि [दे] गर्विष्ठ, अभिमानी (दे ४, २३)।

णाय :: देखो णाग (काप्र ७७७; कप्पू; औप; गउड; वज्जा १४; सुपा ६३६; पउम २१, ४९)।

णाय :: पुं [नाद] शब्द, आवाज, ध्वनि (औप; पउम २२, ३८; स २१३)।

णाय :: पुं [न्याय] १ अक्षपाद — प्रणीत न्याय- शास्त्र (सुख ३, १; धर्मंवि ३८) २ सामयिक आदि षट्-कर्मं (अणु ३१)

णाय :: पुं [नाद] अनुनासिक वर्णं, अर्धंचन्द्राकार अक्षर-विशेष (सिरि १९६)।

णाय :: वि [न्याय्य] न्याय-युक्त (सूअ १, १३, ६)।

णाय :: पुं [न्याय्य] १ न्याय, नीति (औप; स १५६; आचा) २ उपपत्ति, प्रमाण (पंचा ४; विसे)। °कारि वि [°कारिन्] न्याय-कर्त्ता (आचू १)। °गर वि [°कर] १ न्याय-कर्त्ता। पुं. न्यायाधीश (श्रा १४)। °ण्ण वि [°ज्ञ] न्याय का जानकार (उप ३४९)

णाय :: पुं [नाक] स्वर्गं, देव-लोक (पाअ)।

णाय :: पुं [ज्ञात-] १ भगवान् महावीर (सूअ १, २, २, ३१) २ वि. प्रसिद्ध (सूअ १, ६, २१)

णाय :: वि [ज्ञात] १ जाना हुआ, विदित (उव; सुर २, ३९) २ ज्ञाति संबन्धी, सगा, एक बिरादरी का (कप्प; आउ ६) ३ वंश-विशेष में उत्पन्‍न (औप) ४ पुं. वंश-विशेष (ठा ६) ५ क्षत्रिय-विशेष (सूअ १, ६; कप्प) ६ न. उदाहरण, दृष्टान्त (उव; सुपा १२८)। °कुमार पुं [°कुमार] ज्ञात- वंशीय राज-पुत्र (णाया १, ८)। °कुल न [°कल] वंश-विशेष (पणह १, ३)। °कुल- चंद पुं [°कुलचन्द्र] भगवान् श्री महावीर (आचा)। °कुलनंदण पुं [कुलनन्दन] भगवान् श्री महावीर (पणह १, १)। °पुत्त पुं [°पुत्र] भगवान् श्री महावीर (आचा)। °मुणि पुं [°मुनि] भगवानु् श्री महावीर (पणह २, १)। °विहि पुंस्त्री [°विधि] माता या पिता के द्वारा संबन्ध, संबन्धिपन (वब ६)। °संड़ न [°षण्ड] उद्यान-विशेष, जहाँ भगवान् श्रीमहावीर देव ने दीक्षा ली थी (आचा २, ३, १)। °सुय पुं [°सुत] भगवान् श्रीमहावीर। °सुय न [°श्रुत] 'ज्ञाताधर्मंकथा' नामक जैन आगम-ग्रन्थ (णाया २, १)। °धम्मकहा स्त्री [°धर्मकथा] जैन आगम-ग्रंथ-विशेष (सम १)

णायग :: पुं [नायक] हार के बीच की मणि, सुमेरु (स ६८६)।

णायग :: पुं [नायक] नेता, मुखिया, मघुआ (उप ६४८ टी; कप्प; सम १; सुपा २२)।

णायत्त :: पुं [दे] समुद्र मार्गं से व्यापार करनेवाला वणिक्, 'पवहणावाणिज्जपरा सुहंकरा आसि नाम नायत्ता' (उप ५९७ टी)।

णायर :: देखो णागर (महा; सुपा १८८)।

णायरिय :: देखो णागरिय (सुर १४, १३३)। स्त्री. °या (भवि)।

णायरी :: देखो णागरी (भवि)।

णायव्व :: देखो णा = ज्ञा।

णार :: पुं [नार] चतुर्थं नरक-पृथिवी का एक प्रस्तर (इक)।

णारइअ :: वि [नारकिक] १ नरक पृथिवी में उत्पन्न, नारकी। २ पुं. नरक का जीव (हे १, ७९)

णारंग :: पुं [नारङ्ग] १ वृक्ष-विशेष, संतरे का वृक्ष। २ न. फल-विशेष, कमला, नीबू, संतरा (पउम ४१, ९; सुपा २३०; ५६३; गउड; कुमा)

णारग :: देखो णारय = नारक (विसे १९००)।

णारद :: देखो णारय (प्रयौ ५१)।

णारदीअ :: वि [नारदीय] नारद-सम्बन्धी, नारद का (प्रयौ ५१)।

णारय :: पुं [नारद] १ मूनि-विशेष, नारद ऋषि (सम १५४ उप ६४८ टी) २ गन्धर्व सैन्य का अधिपति देव-विशेष (ठा ७)

णारय :: वि [नारक] १ नरक में उत्पन्न, नरक- संबन्धी, नरक का; 'जायए नारयं दुक्खं' (सुपा १६२) २ पुं. नरक में उत्पन्न प्राणी; नरक का जीव (भग)

णारसिंह :: वि [नारसिंह] नरसिंह-सम्बन्धी (उप ६४८ टी)।

णाराय :: पुं [नाराच] तौलने की छोटी तराजु, काँटा; 'नाराय निरक्खर लोहवंत दोमुह य तुज्झ किं भणिमो। गुँजाए समं कणयं तोलंतो कह न लज्जे सि ?' (वज्जा १५८; १९६)।

णाराय :: देखो णराअ (हे १, ६७; उवा; सम १४९; अजि १४)। तुला, गु° ताजूडी (पुष्पमाला ४६, ५९)। °वज्ज न [°वज्र] संहनन-विशेष (पउम ३, १०९)।

णारायण :: पुं [नारायण] १ विष्णु, श्रीकृष्ण (कुमा; स ६२२) २ अर्धं-चक्रवर्त्ती राजा (पउम ५, १२२; ७३, २०)

णारायण :: पुं [नारायण] एक ऋषि (सूअ १, ३, ४, २)।

णायारणी :: स्त्री [नारायणी] देवी-विशेष, गौरी, दुर्गा (गउड)।

णारि° :: देखो णारी (कप्प; राज)। °कंता स्त्री [°कान्ता] नदी-विशेष (सम २७; ठा २, ३)।

णारिएर, णारिएल :: पुं [नारिकेल] १ नारियल का पेड़। २ न. नारियल या नारियर का फल (अभि १२७; पि १२८)। देखो णालिअर।

णारिंग :: न [नारिङ्गं] नारंगी का फल, मीठा नीबू, कमला नीबू (कप्पू)।

णारी :: स्त्री [नारी] १ स्त्री, औरत, जनाना, महिला (हेका २२८; प्रासू ९२; १५६) २ नदी-विशेष (इक)। °कंतप्पवाय पुं [°कान्ताप्रपात] द्रह-विशेष (ठा २, ३)। देखो णारि°।

णारुट्ट :: पुं [दे] कूसार, गर्त्ताकार स्थान (पाअ)।

णारोट्ट :: पुं [दे] १ बिल, साँप आदि का रहने का स्थान, विवर। २ कूसार, गर्त्ताकार स्थान (दे ४, २३)

णाल :: न [नाल] १ कमल-दण्ड (से १, २८) २ गर्भ का आवरण (उप ९७४)

णालंदइज्ज :: वि [नालन्दीय] १ नालन्दा- संबन्धी। न. नालंदा के सममीप में प्रतिपादित अध्ययन-विशेष, 'सूत्रकृतांग' सूत्र का सातवाँ अध्ययन (सूअ २, ७)

णालंदा :: स्त्री [नालन्दा] राजगृह नगर का एक मुहल्ला (कप्प; सूअ २, ७)।

णालंपिअ :: न [दे] आक्रन्दित, आक्रन्द-ध्वनि (दे ४, २४)।

णालंबि :: पुं [दे] कुन्तल, केश कलाप (दे ४, २४)।

णालय :: न [नालक] द्युत-विशेष (मोह ८६)।

णाला, णाल :: स्त्री [नाडि] नाड़ी, नस, सिरा (से १, २८; कुमा)।

णालि :: स्त्री [नाल] परिमाण-विशेष, अंजली (श्रावक ३५)।

णालि :: वि [दे] स्रस्त, गिरा हुआ (षड्)।

णालिअ :: वि [दे] मूढ़, मूर्खं, अज्ञान (से ४, ४२२)।

णालिअर :: देखो णारिएर (दे २, १०; पउम १, २०)। °दीव पुं [°द्वीप] द्वीप-विशेष (कम्म १, १६)।

णालिआ, णालिगा :: स्त्री [नालिका] १ नाल, ड़ंडी, कमल की डंडी (दस ५, २, १८) २ परिमाण-विशेष, दंड, धनुष (अणु १५७) ३ अर्ध मुहूर्तं का समय; 'दो नालिया मुहुत्तो' (तंदु ३२) ४ नली; 'जह उ किर नालिगाए घणियं मिदुरूपयोम्हभरियाए' (धर्मंसं ९८०)। °खेड्ड न [°खेल] द्युत-विशेष (जं २ टी — पत्र १३९)

णालिआ :: स्त्री [नालिका] १ वल्ली-विशेष (दे २, ३) २ घटिका, घड़ी, काल नापने का एक तरह का यन्त्र (पाअ; विसे ९२७) ३ अपने शरीर से चार अंगुल लम्बी लाठी (ओघ ३६) ४ द्युत-विशेष, एक तरह का जुआ (औप; भग ६, ७)। °खेड्डा स्त्री [°क्रीडा] एक तरह की द्युत-क्रीड़ा (औप)

णालिएर :: देखो णारियर (णाया १, ९)।

णालिएरी :: स्त्री [नारिकेली] नरियर का गाछ (गउड; पि १२९)।

णाली :: स्त्री [नाली] १ वनस्पति-विेशेष, एक लता (पणण १) २ घटिका, घड़ी (जीव ३)

णाली :: स्त्री [नाली] १ द्युत-विशेष (दस ३, ४) २ तीन हाथ और सलोह अंगुल लंबी लट्ठी या लग्गी (बाँस)। (पव ८१)

णाली :: स्त्री [नाडी] नाड़ी, नस, सिरा (विपा १, १)।

णालीय :: वि [नालीय] नाल-संबंन्धी (आचा)।

णालीया :: देखो णालिआ (सूअ १, ९, १८)।

णावइ :: (अप) देखो इव (हे ४, ४४४; भवि)।

णावण :: न [दे] दान, वितरण (पणह १, ३ — पत्र ५३)।

णावा :: स्त्री [दे] प्रसृति, अजंली, परिमाण- विशेष (पव १०६ टी)।

णावा :: स्त्री [नौ] नौका, जहाज, नाव (भग; उवा)। °वाणिय पुं [°वाणिज] समुद्र मार्गं से व्यापार करनेवाला वणिक् (णाया १, ८)।

णावापूरय :: पुं [दे] चुलुक, चुल्लु; 'तिहिं णावापूरएहिीं आयामइ' (बृह १)।

णाविअ :: पुं [नापित] नाई, हजाम (हे १, २३०; कुमा; षड्)। °साला स्त्री [°शाला] नाइयों का अड्डा (श्रा १२)।

णाविअ :: पुं [नाविक] जहाज चलानेवाला, नौका या नाव हाँकनेवाला, मल्लाह, केवट, माँझी (णाया १, ९; सुर १३, ३१)।

णास :: देखो णस्स। णासइ (षड्; महा)। वकृ. णासंत (सुर १, २०२; २, २५)। कृ. णासियव्व (सुर ७, १२९)।

णास :: सक [नाशय्] नाश करना। णासइ (हे ४, ३१)। णासइ (महा; उव)।

णास :: पुं [नाश] नाश, ध्वंस (प्रासू १५३; पाअ)। °यर वि [°कर] नाश-कारक (सुर १२, १६४)।

णास :: पुं [न्यास] १ स्थापन (गा ९६; उप ३०२) २ धरोहर या अमानत, रखने योग्य धन आदि (उप ७६८ टी; धर्मं २)

णासग :: वि [नाशक] नाश करनेवाला (सुर २, ५८)।

णासण :: न [नाशन] १ पलायन, अपक्रमण भागना (धर्म २) २ वि. नाश करनेवाला (से ३, २७; गण २२)। स्त्री. णी (से ३, २७)

णासण :: न [न्यासन] स्थापन, रखना, व्यव- स्थापन (अणु)।

णासणा :: स्त्री [नासना] विनाश (विसे ९३६)।

णासव :: सक [नाशय्] नाश करना। णासवइ (हे ४, ३१)।

णासविय :: वि [नाशित] नष्ट किया हुआ, भगाया हुआ (उप ३५७ टी; कुमा)।

णासा :: स्त्री [नासा] नाक, घ्राणेन्द्रिय (गा २२; आचा; कुपा)।

णासि :: वि [नाशिन्] विनश्वर, नष्ट होनेवाला (विसे १९८१)।

णासिक :: देखो णासिक्क (णंदि १६५)।

णासिक्क :: न [नासिक्य] दक्षिण भारत का एक स्वनाम-प्रसिद्ध नगर, जो आजकल भी 'नासिक' नाम से प्रसिद्ध है, जहाँ शूपर्णंखा की नाक कटी थी; पंचवटी (उप पृ २१३; १४१ टी)।

णासिगा :: स्त्री [नासिका] नाक, घ्राणेन्द्रिय (महा)।

णासिय :: वि [नाशित] नष्ट किया हुआ (महा)।

णासियव्व :: देखो णास = नश्।

णासिर :: वि [नाशितृ] नष्ट होनेवाला, विनश्वर (कुमा)।

णासीकय :: वि [न्यासीकृत] धरोहर या अमानत रूप से रखा हुआ (श्रा १४)।

णासेक्क :: देखो णासिक्क (उप १४१)।

णाह :: पुं [नाथ] स्वामी, मालिक (कुमा; प्रासू १२; ६९)।

णाहड :: पुं [नाहट] एक राजा का नाम (ती १५)।

णाहल :: पुं [लाहल] म्लेच्छ की एक जाति (हे १, २५६; कुमा)।

णाहि :: देखो णाभि (कुमा; कप्पू)। °रुह पुं [°रुह्] ब्रह्मा, चतुर्मुंख (अच्चु ३९)।

णाहि :: (अप) अ [नहि] नहीं, नाहीं (हे ४, ४१९; कुमा; भवि)।

णाहिणाम :: न [दे] वितान के बीच की रस्सी (दे ४, २४)।

णाहिय :: वि [नास्तिक] १ परलोक आदि को नहीं माननेवाला। २ पुं. नास्तिक मत का प्रवर्त्तक। °वाइ, °वादि वि [°वादिन्] नास्तिक मत का अनुयायी (सुर ९, २०; स १६४)। °वाय पुं [°वाद] नास्तिक-दर्शंन (गच्छ २)

णाहिविच्छेअ, णाहीए-विच्छेअ :: पुं [दे] जघन, कटी के नीच का भाग (दे ४; २४)।

णि :: अ [नि] इन अर्थों का सूचक अव्यय — १ निश्चय (उत्त १)। २ नियतपन, नियम (ठा १०) ३ आधिक्य, अतिशय (उत्त १; विपा १, ९) ४ अधोभाग, नीचे (सण) ५ नित्यपन। ६ संशय। ७ आदर। ८ उपरम, विराम। ९ अन्तर्भाव, समावेश। १० समी- पता, निकटता। ११ क्षेप, निन्दा। १२ बन्धन। १३ निषेध। १४ दान। १५ राशइ, समूह। १६ मुक्ति, मोक्ष (हे २, २१७; २१८) १७ अभिमुखता, संमुखता (सूअ १, ९) १८ अल्पता, लघुता (पणह १, ४)

णि :: अ [निर्] इन अर्थों का सूचक अव्यय — १ निश्चय (उत्त ६) २ आधिक्य, अतिशय। (उत्त १) ३ प्रतिषेध, निषेध (सम १३७; सुपा १६८) ४ बहिर्भाव। ५ निर्गमन, निष्क्रमण (ठा ३, १; सुपा १३)

णिअ :: सक [दृश्] देखना। णिअइ (षड्; हे ४, १८१)। वकृ. णिअंत (कुमा; महा; सुपा २६९)। संकृ. निएउं (भवि)।

णिअ :: वि [निज] आत्मीय, स्वकीय (गा १५०; कुमा; सुपा ११)।

णिअ :: वि [नीत] ले जाया गया (से ५, ६; सण)।

णिअ :: वि [नीच] नीच, जघन्य, निकृष्ट (कम्म ३, ३)।

णिअ :: देखो णिव (सूअ २, ६, ४५)।

णिअइ :: स्त्री [निकृति] माया, कपट, छल, घोखा (पणह १, २)।

णिअइ :: स्त्री [नियति] १ नियतपन, भवित- व्यता, होनी, भाग्य, नियमितता (सूअ १, १, ३) २ अवश्यं-भाविता (ठा ४, ४; सूअ १, १, २)। °पव्वय पुं [°पर्वत] पर्वत-विशेष (जीव ३)। °वाइ वि [°वादिन्] 'सब कुछ भवित- व्यता के अनुसार ही हउआ करता है, प्रयत्‍न वगैरह अकिञ्चित्कर है' ऐसा माननेवाला, भाग्यवादी या दैववादी (राज)

णिअंटिअ :: वि [नियन्त्रित] १ नियमित। २ न. प्रत्याख्यान-विशेष, हृष्ट से या रोगी से अमुक दिन में अमुक तप करने का किया हुआ नियम (पव ४)

णिअंटिय :: वि [नियन्त्रित] १ बँधा हुआ, जकड़ा हुआ। २ न. अवश्य-कर्त्तंव्य नियम- विशेष (ठा १०)

णिअंठ :: वि [निर्ग्रन्थ] १ धन रहित। २ पुं. जैनमुनि, संयत, यति (भग; ठा ३, १; ५, ३) ३ जिन भगवान् (सूअ १, ९)

णिअंठ :: पुं [निर्ग्रन्थ] भगवान् बुद्ध (कुप्र ४४२)।

णिअंठि :: देखो °णिग्गंथी। °पुत्त पुं [°पुत्र] १ एक विद्याधर-पुत्र, जिसका दूसरा नाम सत्यकि था (ठा १०) २ एक जैनमुनि, जो भगवान् महावीर का शिष्य था (भग ५, ८)

णिअंठिय :: वि [नैर्ग्रन्थिक] १ निर्ग्रंन्थ-संबन्धी। २ जिन-देव-संबन्धी। स्त्री. °या; 'एसा आणा णियंठिया' (सूअ १, ९)

णिअंठी :: देखो णिग्गंथी (ठा ९)।

णिअंत :: वि [नियत] स्थिर (सूअ १, ८, १२)।

णिअंत :: वि [निर्यत्] बाहर निकलता (सम्मत्त १५९)।

णिअंतिय :: वि [नियन्त्रित] संयमित, जकड़ा हुआ, बँधा हुआ (महा; सण)।

णिअंधण :: न [दे] वस्त्र, कपड़ा (दे ४, २८)।

णिअंब :: पुं [नितम्ब] १ पर्वत का एक भाग, पर्वंत का वसति-स्थान (ओघ ४०) २ स्त्री की कमर की पीछला भाग, कमर के नीचे का भाग, चूतड़ँ (कुमा; गउड) ३ मूल भाग (से ८, १०१) ४ कटी-प्रदेश, कमर (जं ४)

णिअंबिीणी :: स्त्री [नितम्बिनी] १ सुन्दर नितम्बवाली स्त्री। २ स्त्री, महिला (कप्पू; पाअ; सुपा ५३८)

णिअंस :: सक [नि + वस्] पहनना। णियं- सइ (महा)। संकृ. णियंसित्ता (जीव ३; पि ७४)। प्रयो. णियंसावेइ (पि ७४)।

णिअंसण :: न [दे. निवसन] वस्त्र, कपड़ा (दे ४, ३८; गा ३५१; पाअ; गउड; पणह १, ३; सुपा १५१; हेका ३१)।

णअंसणि :: स्त्री [निवसनी] वस्त्र, कपड़ा (पव ६२)।

णिअक्क :: सक [दृश्] देखना। णिअक्कइ (प्राप्र)।

णिअक्कल :: वि [दे] वर्तुल, गोलाकार पदार्थं (दे ४, ३९; पाअ)।

णिअग :: वि [निजक] आत्मीय, स्वकीय (उवा)।

णिअच्छ :: सक [दृश्] देखना। णिच्छइ (हे ४, १८१)। वकृ. णिच्छंत, णिअ- च्छमाण (गा २३८; गउड; गा ५००)। संकृ. णिच्छिऊण, णिअच्छिअ (सुर १, १५७; कुमा)। कृ. णिअच्छियव्व (गउड)।

णिअच्छ :: सक [नि + यम्] १ नियमन करना, नियन्त्रण करना। २ अवश्य प्राप्त करना। ३ जोड़ना। संकृ. णिच्छइत्ता (सूअ १, १, १; २)

णिअच्छ :: अक [नि + गम्] १ संगत होना, युक्त होना। २ सक. अवश्य प्राप्त करना। नियच्छइ (सूअ १, १, १, १०; १, १, २, १७; १, १, २, १८)

णिअच्छिअ :: वि [दृष्ट] देखा हुआ (पाअ)।

णिअट्ट :: अक [नि + वृत्] निवृत्त होना, पीछे हटना, रुकना। णिअट्टइ (सण)। वकृ. णियट्टमाण (आचा)।

णिअट्ट :: सक [निर् + वृत्] बनाना, रचना, निर्माण करना (औप)।

णिअट्ट :: सक [नि + अर्द्] अनुसरण करना (औप)।

णिअट्ट :: पुं [निवर्त्त] व्यावर्त्तंन, निवृत्ति; 'अणि- यट्टगामीणं' (आचा)।

णिअट्ट :: वि [निवृत्त] व्यावृत्त, पीछे हटा हुआ (धर्म २)।

णिअट्टि :: वि [निवर्त्तिन्] निवृत्त होनेवाला (धर्मंसं ७९४)।

णिअट्टि :: स्त्री [निवृत्ति] १ निवर्त्तंन, पीछे हटना (आचू १) २ अध्यवसाय-विशेष (सम २६) ३ मोह-रहित अवस्था (सूअ १, ११) °बायर न [°बादर] १ गुण- स्थानक-विशेष (सम २६) २ पुं. गुण- स्थानक-विशेष में वर्त्तंमान जीव (आव ४)

णिअट्टिय :: वि [निवर्त्तिन] व्यावर्त्तित, पीछे हटाया हुआ (औप)।

णिअट्टिय :: वि [निर्वर्त्तित] रचित, निर्मित, बनाया हुआ (औप)।

णिअट्टिय :: वि [न्यर्दित] अनुगत, अनुसृत (औप)।

णिअड :: न [निकट] १ निकट, समीप, नज- दीक; पास (गा ४०२; पाअ; सुपा ३५२) २ वि. पास का, समपी का (पाअ)

णिअडि :: वि [निकृतिन्] मायावी, कपटी (दस ९, २३)।

णिअडि :: स्त्री [निकृति] की हुई ठगाई को ढकना — छिपाना (राय ११४)।

णिअडि :: स्त्री [दे. निकृति] माया, कपट (दे ४, २६; पणह १, २; सम ५१; भग १२, ५; सूअ २, २; णाथा १, १८; आव ५)।

णिअडिअ :: वि [निगडित] नियन्त्रित, जकड़ा हुआ (गा ५५६; उप पृ ५२; सुपा ९३)।

णिअडिअ :: वि [निकटिक] समीप-वर्त्ती, पार्श्व में स्थित (कप्पू)।

णिअडिल्ल :: वि [निकृतिमत्] कपटी, मायाबी (ठा ४, ४; औप; भग ८, ९)।

णिअड्‍ढ :: सक [नि + कृष्] खींचना। संकृ. नियडि्ढऊणं (सम्मत्त २२७)।

णिअण :: वि [नग्न] नंगा, वस्त्र-रहित (पव २७१)।

णिअत्त :: वि [निकृत्त] काटा हुआ, छिन्‍न (भग ९, ३३)।

णिअत्त :: वि [नित्य] शाश्‍वत, अविनश्‍वर; 'सुक्खं जमनियत्तं' (तंदु ३३; सूअ १, १, १, १६)।

णिअत्त :: देखो णिअट्ट = नि + वृत्। णिअत्तइ (महा; पि २८९)। वकृ. णिअत्तंत, णिअत्त- माण (गा ७६, ५३७; से ५, ६७; नाट)। प्रयो. णित्तावेहि (पि २८९)।

णिअत्त :: देखो णिअट्ट = निवृत्त (पउम २२, ६२; गा ६५८; सुपा ३१७)।

णिअत्तण :: न [निवर्त्तन] १ भूमि का एक नाप (उवा) २ निवृत्ति, व्यावर्त्तन (आव ४)

णिअत्तणिय :: वि [निवर्त्तनिक] निवर्त्तन परिमाणवाला (भग ३, १)।

णिअत्ति :: देखो णिअट्टि (उत्त ३१)।

णिअत्थ :: वि [दे] १ परिहित, पहना हुआ (दे ४ ३३; आवम; भवि) २ परिधापित, जिसको वस्त्र आदि पहनाया गया हो वह; 'णियत्था तो गणियाए' (विस, २६०७)

णिअद :: सक [नि + गद] कहना, बोलना। णिअददि (शौ) (नाट — चैत ४५)। वकृ. णिअंदत (नाट)।

णिअद्दिय :: देखो णिअट्टिय = न्यर्दित (राज)।

णिअद्वण :: न [दे] परिधान, पहनने का वस्त्र (षड्)।

णिअण :: सक [नि + यमय्] नियन्त्रित करना, नियम में रखना। संकृ. णिअमेऊण (पि ५८६)।

णिअम :: सक [नि + यमय्] १ रोकना। २ वचन से कराना। ३ शरीर से कराना। निअमे (आचा २, १३, १)

णिअम :: पुं [नियम] १ निश्‍चय (जी १४) २ ली हुई प्रतिज्ञा, व्रत; 'परिबाविज्जइ णिअणा णिअमसमत्ती तुमे मज्झ' (उफ ७२८ टी)। ३ प्रायोपवेशन, संकल्प-पूर्वंक अनशन- मरण के लिए उद्यम (से ५, २)। °सा अ [°सात्] नियम से (औप)। सौ अ [°शस्] निश्‍चय से (श्रा १४)

णिअमण :: न [नियमन] नियन्त्रण, संयमन (विसे १२५८)।

णिअमिय :: वि [नियमित] नियम में रखा हुआ, नियन्त्रित (से ४, ३७)।

णिअय :: न [दे] १ रत, मैथुन। २ शयनीय, शय्या। ३ घट, कलश (दे ४, ४८) ४ वि. शाश्वत, नित्य (दे ४, ४८; पाअ; सूअ १, ८; राय)

णिअय :: वि [निजक] निजका, स्वकीय, आत्मीय, अपना (पाअ)।

णिअय :: वि [नियत] नियम-बद्ध, नियमानुसारी (उवा)।

णिअया :: स्त्री [नियता] जम्बू-वृक्ष विशेष, जिससे यह जम्बू-द्वीप कहलाता है (इक)।

णिअर :: पुं [निकर] राशि, समूह, जत्था, ढेर (गा ५९९; पाअ (गउड)।

णिअरण :: न [दे] दण्ड, शइक्षा (स ४५९)।

णिअरिअ :: वि [दे] राशि रूप से स्थित (दे ४, ३८)।

णिअल :: न [दे] नूपुर, पैजनी या पावजेब, स्त्री का पादाभरण-विशेष (दे ४, २८)।

णिअल :: पुं [निगड] बेड़ी, साँकल (से ३, ८; विपा १, ६)। देखो णिगल।

णिअलाइअ, णिअलाविअ, णिअलिअ :: वि [निगडित] सांकल से नियन्त्रित, जकड़ा हुआ (गा ४५४; ५००; पाअ; गउड; से ५, ४८)।

णिअल्ल :: पुं [दे. नियल्ल] ग्रहाधिष्ठायक देव- विशेष (ठा २, ३)।

णिअल्ल :: वि [निज] स्वकीय, आत्मीय (महा)।

णिअस :: देखो णिअंस। नियसइ (सुपा ६२)।

णिअसण :: देखो णिअंसण (हेका ५६; काप्र २०१)।

णिअसिय :: वि [निवसित] परिहित, पहना हुआ (सुपा १५३)।

णिअह :: देखो णिवह (नाट — मालती १३८)।

णिआ :: स्त्री [निदा] प्राणि-हिंसा (पिंड १०३)।

णिआ° :: देखो णिअय = (दे)। °वाइ वि [°वादिन्] नित्यवादी, पदार्थ को नित्य माननेवाला (ठा ८)।

णिआइय :: देखो णिकाइय (सूअ १, ९)।

णिआग :: पुं [नियाग] १ नियत योग। २ निश्‍चित पूजा। ३ मोक्ष, मुक्ति (आचा; सूअ १, १, २) ४ न. आमन्त्रण देकर जो भिक्षा दी जाय वह (दस ३)

णिआग :: देखो णाय = न्याय (आचा)।

णिआण :: न [निदान] १ आरम्भ, सावद्य व्यापार (सूअ १, १०, १) २ रोग-कोरण, रोग की पहचान (पिंड ४५९)

णिआण :: न [निदान] १ कारण, हेतु; 'अहो अप्पं नियाणं महंतो विवाओ' (स ३९०; पाअ; णाया १, १३) २ किसी व्रतानुष्ठान की फल-प्राप्‍ति का अभिलाष- संकल्प-विशेष (श्रा ३३; ठा १०) ३ मूल कारण (आचा)। °कड वि [°कृत्] जिसने अपने शुभानुष्ठान के फल का अभिलाष किया हो वह (सम १५३)। °कारि वि [°कारिन्] वही अनन्तर उक्त अर्थ (ठा ६)

णिआण :: न [निपान] कूप या तालाब के पासट पशुऔं के जल पीने के लिए बनाया हुआ जल- कुण्ड, आहाव, हौदी, चरही; 'पइभवणं पइहट्टं पइमग्गं पइसहं पइनियाणं' (उप ७२८ टी)।

णिआणिआ :: स्त्री [दे] खराब तृणों का उन्मुलन (दे ४, ३५)।

णिआम :: देखो णिअम = नियमय्। संकृ. उवसग्गा णिआमित्ता आमोक्खाए परिव्वए' (सूअ १, ३, ३)।

णिआम :: देखो णिकाम (सूअ १, १०, ८)।

णिआमग, णिआमय :: वि [नियमाक] नियम-कर्त्ता, नियन्ती (सुपा ३१९)। २ निश्‍चायक, विनिगमक (विसे ३४७०, स १७०)

णिआमिअ :: वि [नियमित] नियम में रखा हुआ, नियन्त्रित (स २६३)।

णिआय :: पुं [नियाग] प्रशस्त धर्मं (सूअ १; १, २, २०)।

णिआर :: सक [काणेक्षित कृ] कानी नजर से देखना। णिआरइ (हे ४, ६६)।

णिआरिअ :: वि [काणेक्षितीकृत] १ कानी नजर से देखा हुआ, आधी नजर से देखा हुआ। २ न. आधी नजर से निरीक्षण (कुमा)

णिआह :: पुं [निदाघ] १ ग्रीष्म काल, ग्रीष्म ऋतु। २ उष्ण, घर्म, गरमी (गउड)

णिइअ :: वि [नैत्यिक] नित्य का, 'निइए पिंडे दिज्जइ' (आचा २, १, १, ९)।

णिइग, णिइय :: वि [दे. नित्य, नैत्यिक] नित्य, शाश्वत, अविनश्वर (पणह २, ४ — पत्र १४१; सूअ १, १, ४; २, ४; णंदि; आचा, सम १३२)।

णिइव :: वि [निष्कृप] निर्दय, कठोर (प्राकृ २६)।

णिउअ :: वि [निवृत] परिवेष्टित, परीक्षित (हे १, १३१)।

णिउअ :: वि [नियुत] सुसंगत; सुश्लिष्ट (णाया १, १८)।

णिउंचिअ :: वि [निकुञ्चित] संकुचित, सकुचा हुआ, थोड़ा मुड़ा हुआ (गा ५६३; से ९, १६; पाअ; स ३३५)।

णिउंज :: सक [नि + युज्] जोड़ना, संयुक्त करना, किसी कार्यं में लगाना। कर्म. णिउं- जोअसि (पि ५४६)। वकृ. णिउंजमाण (सूअ १, १०) संकृ. निउंजिऊण, निउंजिय (स १०४; महा)। कृ. णिउंजियव्व, णिउत्तव्व (उप पृ १०; कुमा)।

णिउंज :: पुं [निकुञ्ज] १ गहन, लता आदि से निबिड़ स्थान (कुमा; गा २१७) २ गह्वर (दे ६, १२३)

णिउंभ :: पुं [निकुम्भ] कुम्भकर्णं का एक पुत्र (से १२, ६२)।

णिउंभिला :: स्त्री [निकुम्भिला] यज्ञ-स्थान (से १५, ३६)।

णिउक्क :: वि [दे] तूष्णोक, मौन रहनेवाला (दे ४, २७; पाअ)।

णिउक्कण :: पुं [दे] १ वायस, काक, कौआ। २ वि. मूक, वाक्-शक्ति से हीन (दे ४, ५१)

णिउज्ज :: न [न्युब्ज] आसन-विशेष (णंदि १२८ टी)।

णिउज्जम :: वि [निरुद्यम] उद्यम-रहित, आलसी (सूअ २, २)।

णिउड्ड :: अक [मस्ज, नि + ब्रूड्] मज्जन करना, डूबना। णिउड्डइ (हे १, १०१)। वकृ. णिउड्डमाण (कुमा)।

णिउड्ड :: वि [मग्‍न, निब्रुडित] डूबा हुआ, निमग्‍न (से १०, १५; १५, ७४)।

णिउण :: वि [निपुण] १ दक्ष, चतुर, कुशल (पाअ; स्वप्‍न ५३; प्रासू ११; जी ६) २ सूक्ष्म, जो सूक्ष्म बुद्धि से जाना जा सके (जो २; राय) ३ क्रिवि. दक्षता से, चतुराइ से, कुशलता से (जीव ३)

णिउण :: वि [निपुण] १ नियत गुणवाला। २ निश्‍चित गुण से युक्त (राज) ३ सुनिश्‍चित, विनिर्णीत (पंचा ४)

णिउणिय :: वि [नौपुणिक] निपुण, दक्ष, चतुर (ठा ९)।

णिउत्त :: वि [नियुक्त] १ व्यापारित, कार्यं में लागाया हुआ (पंचा ८) २ निबद्ध (विसे ३८८)

णिउत्त :: वि [निवृत्त] विरत, उपरत, विमुख, विरक्त (प्राकृ ८)।

णिउत्त :: वि [निर्वृत्त] निष्पन्‍न, सिद्ध (उत्तर १०४)।

णिउत्तव्व :: देखो णिउंज = नि + युज्।

णिउत्ति :: स्त्री [निवृत्ति] विराम (प्राकृ ८)।

णिउद्ध :: न [नियुद्ध] बाहु-युद्ध, कुस्ती (उप २९२)।

णिउर :: पुं [निकुर] वृक्ष-विशेष (णाया १, ९ पत्र १९०)।

णिउर :: न [नूपूर] स्त्री के पाँव का एक आभरण, पैजनी, पायल (हे १, १२३; कुमा)।

णिउर :: वि [दे] १ छिन्न, काटा हुआ। २ जीर्ण, पुराना (षड्)

णिउरंब :: न [निकुरम्ब] समूह, जत्था (पाअ; सुर ३, ९१; गा ४९५; सुपा ४५४)।

णिउरंब :: न [निकुरुम्ब] समूह, जत्था (स ४३७; गा ४९५ अ; पि १७७)।

णिउल :: पुं [दे] गाँठ, गठरी; 'एवं वहु भणि- ऊणं समप्पिओ दविणनिउलोत्ति' (महा)।

णिऊढ :: वि [निगूढ] गुप्त, प्रच्छन्‍न, छिपा हुआ (अच्चु ४५)।

णिएअ :: वि [नियत] नियम-युक्त, 'अणिए- अचारी' (सूअ १, ६, ६)।

णिएल्ल :: देखो णिअल्ल = निज (आवम)।

णिओअ :: सक [नि + योजय्] किसी कार्य में लगाना। णिओएदि (शौ) (नाट — विक्र ५)।

णिओअ :: देखो णिओग (से ८, २६; अभि २७; सण; से ३४८)। १० आज्ञा, आदेश (स २१४)।

णिओइअ :: वि [नियोजित] नियुक्त किया हुआ, किसी कार्य में लगाया हुआ (स ४४२; अभि ९९)।

णिओइअ :: बि [नैयोगिक] नियोग-सम्बन्धी (प्राकृ ९)।

णिओग :: पुं [नियोग] मोक्ष, मुक्ति (सूअ १, १, १६, ५)।

णिओग :: पुं [नियोग] १ नियम, आवश्यक कर्त्तव्य (विसे १८७६; पंचव ४) २ सम्बन्ध, नियोजन (बृह १) ३ अनुयोग, सूत्र की व्याख्या (विसे) ४ व्यापार, कार्यं (वव २) ५ अधिकार-प्रेरण (महा) ६ राजा, नृप, आज्ञा-विधाता (जीत) ७ गाँव, ग्राम; ८ क्षेत्र, भूमि (बृह १) ९ संयम, त्याग (सूअ १, १६)। देखो णिओअ। °पुर न [°पुर] १ राजधानी। २ देश, राष्ट्र। ३ राज्य (जीत)

णिओगि :: वि [नियोगिन्] नियोग-विशिष्ट, नियुक्त, आज्ञाप्राप्त, अधिकारी (सुपा ३७१)।

णिओजिय :: देखो णिओइअ (आवम)।

णिंत, णिंतूण :: देखो णी = गम्।

णिंद :: सक [निन्द्] निन्दा करना, बुराई करना, जुगुप्सा करना। णिंदामि (पडि)। वकृ. णिंदंत (श्रा ३९)। कवकृ. णिंदिज्जंत (सुपा ३६३)। संकृ. णिंदित्ता, णिंदिअ (आचा २, ३, १; १; श्रा ४०)। हेकृ. णिंदिउं, णिंदित्तए (महा; ठा २, १)। कृ. णिंदियव्व, णिंद- णिज्ज (पणह २, १; उप १०३१ टी; णाया १, ३)।

णिंद :: वि [निन्द्य] निन्दा-योग्य, निन्दनीय (आचू १)।

णिंद :: (अप) स्त्री [निद्रा] नींद, निद्रा (भवि)।

णिंदण :: न [निन्दन] निन्दा, घृणा, जुगुप्सा (उप ४४६; ७२८ टी)।

णिंदणया :: देखो णिंदणा (उत्त २९, १)।

णिंदणा :: स्त्री [निन्दना] निन्दा, जुगुप्सा (औप; औघ ७९१; पणह २, १)।

णिंदय :: वि [निन्दक] निन्दा करनेवाला (पउम ९०, २१)।

णिंदा :: स्त्री [निन्दा] घृणा, जुगुप्सा (आव ४)।

णिंदिअ :: वि [निन्दित] जिसकी निन्दा की गई हो वह, बुरा (गा २६७; प्रासू १५८)।

णिंदिणी :: स्त्री [दे] कुत्सिक तृणों का उन्मूलनम (दे ४, ३५)।

णिंदु :: स्त्री [निन्दु] मृत-वत्सा स्त्री, जिसके बच्चे जीवित न रहते हों ऐसी स्त्री (अंत ७; श्रा १६)।

णिंब :: पुं [निम्ब] नीम का पेड़ (हे १, २३०; प्रासू २६)।

णिंबोलिया :: स्त्री [निम्बगुलिका] नीम का फल (णाया १, १६)।

णिकर :: पुं [निकर] समूह, जत्था, राशि, ढेर, (कप्पू)।

णिकरण :: न [निकरण] १ निश्चय, निर्णय। २ निकार, दुःख-उत्पादन (आचा)

णिकरिय :: वि [निकरित] सारीकृत, सर्वथा संशोधित (औप)।

णिकस :: देखो णिहस (अणु २१२)।

णिकाइय :: वि [निकाचित] १ व्यवस्थापित, नियमित (णंदि) २ अत्यन्त निबिड़ रूप से हुआ (कर्मं) (उव; सुपा ५७६)। न. कर्मोँ का निबिड़ रूप से बन्धन (ठा ४, २)

णिकाम :: सक [नि + कामय्] अभिलाष करना। णिकामएज्जा (सूअ १, १०, ११)। वकृ. णिकामयंत (सूअ १, १०, ११)।

णिकाम :: न [निकाम] हमेशा परिमाण से ज्यादा खाया जाता भोजन (पिंड६४५)।

णिकाम :: न [निकाम] १ निश्चय, निर्णय। २ अत्यन्त, अतिशय (सूअ १, १०)

णिकाममीण :: वि [निकाममीण] अत्यन्त प्रार्थी (सूअ १, १०, ८)।

णिकाय :: सक [नि + काचय्] १ नियमन करना, नियन्त्रण करना। २ निबिड़ रूपसे बाँधना। ३ निमन्त्रण देना। णिकाइंति (भग)। भूका. णिकाइंसु (भग; सूअ २, १)। भवि. णिकाइस्संति (भग)। संकृ. णिंकाय (आचा)

णिकाय :: पुं [निकाय] १ समूह, जत्था, यूथ, वर्ग, राशइ (ओघ ४०७; विसे ९००; दं २८) २ मोक्ष, मुक्ति (आचा) ३ आवशष्यक, अवश्य करने योग्य अनुष्ठान-विशेष (अणु)। °काय पुं [°काय] जीव-राशि, छओं प्रकार के जीवों का समूह (दस ४)

णिकाय :: पुं [निकाच] निमन्त्रण, न्यौता (सम २१)।

णिकाय :: देखो णिकाइय, जेण खमासहिएणं कएणा कम्माणावि निकायाणां (सिरि १२९२)।

णिकायण :: न [निकाचन] निमन्त्रण (पिंड ४७५)।

णिकायणा :: स्त्री [निकाचना] १ कारण- विशेष, जिससे कर्मों का निबिड़ बन्ध होता है (विसे २५१५ टी; भग) २ निबिड़ बन्धन। ३ दापन, दिलाना (राज)

णिकिंत :: सक [नि + कृत्] काटना, छेदना। णिकिंतइ (पुप्फ ३३७; उव)। णिंकिंतए, (उव; काल)।

णिकिंतय :: वि [निकर्तक] काट डालनेवाला (काल)।

णिकुट्ट :: सक [नि + कुट्ट्] १ कूटना। २ काटना। णिकुट्टेइ, णिकुट्टेमि (उवा)

णिकूणिय :: वि [निकूणित] टेढ़ा किया हुआ, वक्र किया हुआ (दे १, ८८)।

णिकेय :: पुं [निकेत] गृह, आश्रय, निवास- स्थान (णाया १, १६, उत्त २; आचा)।

णिकेयण :: न [निकेतन] ऊपर देखो (सुर १३, २१; महा)।

णिकोय :: पुं [निकोच] संकोच, सिमट (दे ७, १५)।

णिक्क :: वि [दे] सुनिर्मंल, सर्वथा मल-रहित (णाया १, १)।

णिक्क :: देखो णिक्ख = निष्क (प्राकृ २१)।

णिक्कइअव :: वि [निष्कैतव] १ कपट-रहित, निर्माय (कुमा) २ कपट का अभाव, निष्कपटपन (गा ५८)

णिक्कंकड :: वि [निष्कङ्कट] १ आवरण-रहित (औप) २ उपघात-रहित (सम १३७)

णिक्कंरिव :: वि [निष्काङ्क्षिन्] अभिलाषा- रहित (उत्त १९, ३४)।

णिक्कंखिय :: न [निष्काङ्क्षित] १ आकांक्षा का अभाव। २ दर्शनान्तर की अनिच्छा (उत्त २; पडि)

णिक्कंखिय :: वि [निष्काक्ष्क्षित्, °क] १ आकांक्षा-रहित। २ दर्शंनान्तर के पक्षपात से रहित (सूअ २, ७; औप, राय)

णिक्कंचण :: वि [निष्काञ्चन] सुवर्ण-रहित, धन-रहित; निःस्व, निर्धन (सुपा १६८)।

णिक्कटंय :: वि [निष्कण्टक] कण्टक-रहित, बाधारहित, शत्रु-रहित (सुपा २०८)।

णिक्कंड :: वि [निष्काण्ड] १ काण्ड रहित, स्कन्ध-वर्जित, २ अवसर-रहित (गा ४६८)

णिक्कंत :: वि [निष्क्रान्त] १ निर्गत, बाहर निकला हुआ (से १, ५६) २ जिसने दीक्षा ली हो वह, गृहस्थाश्रम से निर्गंत (आचा)

णिक्कंतार :: वि [निष्कान्तार] अरण्य से निर्गंत, (ठा ३, १)।

णिक्कंति :: स्त्री [निष्क्रान्ति] निष्क्रमण, बाहर निकलना (प्राकृ २१)।

णिक्कंतु :: वि [निष्क्रमितृ] बाहर निकलनेवाला (ठा ३, १)।

णिक्कंद :: सक [नि + कन्द] उन्मुलन करना। णिक्कंदइ (सम्मत्त १७४)।

णिक्कंप :: वि [निष्कम्प] कम्प-रहित, स्थिर (हे २, ४; अभि २०१)।

णिक्कज्ज :: वि [दे] अनवस्थित, चंचल (दे ४, ३३; पाअ)।

णिक्कट्ठ :: वि [निष्कृष्ट] कृश, दुर्बल, क्षीण (ठा ४, ४ — पत्र २७१)।

णिक्कड :: वि [दे] १ कठिन (दे ४, २९) २ पुं. निश्चय, निर्णय (षड्)

णिक्कडि्ढय :: वि [निष्कृष्ट, निष्कर्षित] बाहर खींचा हुआ, बाहर निकाला हुआ (स ६०; २१५)।

णिक्कण :: वि [निष्कण] धान्य-कण-रहित, अत्यन्त गरीब (विपा १, ३)।

णिक्कम :: अक [निर् + क्रम्] १ बाहर निकलना। २ दीक्षा लेना, संन्यास लेना। णिक्कमामि (पि ४८१)। वकृ. णिक्कमंत (हेका ३३२; मुद्रा; ८२)

णिक्कम :: पुं [निष्क्रम] नीचे देखो (नाट — मुद्रा २२४)।

णिक्कमण :: न [निष्क्रमण] १ निर्गमन, बाहर निकलना (मुद्रा २२४) २ दीक्षा, संन्यास (आचा)

णिक्कम्म :: वि [निष्कर्मन्] कर्मंरहित, मुक्ति- प्राप्त, मुक्त (द्रव्य १४)।

णिक्कम्म :: वि [निष्कर्मन्] १ कार्यं-रहित, निकम्मा (गा १६९) २ मोक्ष, मुक्ति। ३ संवर; कर्मो का निरोध, (आचा)

णिक्कय :: पुं [निष्क्रय] १ बदला, उऋणपन (सुपा ३४१; पउम ७; १२६) २ भृति, बेतन, मजूरी (हे २, ४)

णिक्करण :: न [निकरण] १ तिरस्कार। २ परिभव। ३ विनाश (संबोध १६)

णिक्करुण :: वि [निष्करुण] करुणा-रहित, दया वर्जित (नाट — मालती ३२)।

णिक्कल :: वि [निष्कल] कला-रहित (सुपा १)।

णिक्कल :: वि [दे] पोलापन से रहित (सुपा १, भग १५)।

णिक्कलंक :: वि [निष्कलङ्क] कलंक-रहित, बेदाग (स ४१८; महा; सुपा २५३)।

णिकलुण :: देखो णिक्करुण (पणह १, १)।

णिक्कलुस :: वि [निष्कलुष] १ निर्दोष, निर्मल। २ निरुपद्रव, उपद्रव-रहित (से १२, ३४)

णिक्कवड :: वि [निष्कपट] कपट-रहित (उप पृ १६०)।

णिक्कवय :: वि [निष्कवच] कवच-रहित, वर्मं- वर्जित (ठा ४, २)।

णिक्कस :: अक [निर् + कस्] बाहर निक- लना। णिक्कसे (सूअ १, १४, ४)।

णिक्कस :: सक [निर + कस्] निकासना, बाहर निकालना। कर्मं णिक्कसिज्जइ (उत्त १)।

णिक्कसण :: न [निष्कसन] निर्गंमन (राज)।

णिक्कसाय :: वि [निष्काषाय] १ कषाय-रहित, क्रोधादि वर्जित (आउ) २ पुं. भरत-क्षेत्र के एक भावी तीर्थंकर-देव (सम १५३)

णिक्का :: स्त्री [नीका] वाम-नासिका (कुमा)।

णिक्काम :: वि [निष्काम] अभिलाषा-रहित

णिक्कारण :: वि [निष्कारण] १ कारण-रहित, अहेतुक (सुर २, ३६) २ क्रिवि. विना कारण (आव ६)

णिक्कारण :: वि [निष्कारण] निरुपद्रव, 'नेस निक्कारणो दहो' (पिंड ५१९)।

णिक्कारणिय :: वि [निष्कारणिक] कारण- रहति, हेतु-शून्य (ओघ ५)।

णिक्कारिम :: वि [निष्कारण] विना कारण (आख्यानक° २३ अधिकार, भावादेयाकथा, पद्य ५२५)।

णिक्काल :: सक [निर् + कासय्] बाहर निकालना। संकृ. निक्कालेउं (सुपा १३)।

णिक्कालिअ :: देखो णिक्कासिय (ती १५)।

णिक्कास :: पुं [निष्कास] नीकास, बाहर निका- लना (धर्मंवि १४९)।

णिक्कासिय :: वि [निष्कासित] बाहर निकाला हुआ (राज)।

णिक्किंचण :: वि [निष्किञ्चन] निर्धन, धर- रहित, निःस्व, गरीब (आवम)।

णिक्किट्ठ :: वि [निकृष्ट] अधम, नीच, हीन, जघन्य; 'अइनिक्किट्ठपाविट्ठयावि अहा' (श्रा १४; २७; सुपा ५७१; सट्ठि १५८)।

णिक्किण :: सक [निर् + क्री] निष्क्रय करना, खरीदना। णिक्किणासि (मृच्छ ९१)।

णिक्कित्तिम :: वि [निष्कृत्रिम] अकृत्रिम, असली, स्वाभाविक (उप ९८६ टी)।

णिक्किय :: वि [निष्क्रिय] क्रिया-रहित, अक्रिय (पणह १, २)।

णिक्किव :: वि [निष्कृप] कृपा-रहित, निर्दंय (पाअ; गा ३०; सुपा ४०९)।

णिक्कीलिय :: वि [निष्क्रीडित] गमन, गति (पव २७१)।

णिक्कुड :: पुं [निष्क्रुट] तापन, तपाना (राज)।

णिक्कूइल :: स्त्री [दे] जीता हुआ, विनिर्जित (दे १, ४)।

णिक्कोडण :: न [निष्कोटन] बन्धन-विशेष (पणह १, ३ — पत्र ५३)।

णिक्कोर :: सक [निर् + कोरय्] १ दूर करना। २ पात्र वगैरह के मुँह का बन्द करना। ३ पात्र आदि का तक्षण करना। णिक्कारेइ (बृह १)

णिक्कोरण :: न [निष्कोरण] १ पात्र आदि के मुँह का बन्द करना। २ पात्र आदि का तक्षण (बृह १)

णिक्ख :: पुं [दे] १ चोर। २ सुवर्णं, काञ्चन (दे २, ४७)

णिक्ख :: पुंन [निष्क] दीनार, मोहर, मुद्रा, अशर्फी, रुपया (हे २, ४)।

णिक्खंत :: देखो णिक्कंत (सूअ १, ८; सम १५१; कस)।

णिक्खंध :: वि [निःस्कन्ध] स्कन्ध-रहित, डाली- रहित (गा ४६८ अ)।

णिक्खणण :: न [निखनन] गाड़ना (कुप्र १९१)।

णिक्खत्त :: वि [निःक्षत्र] क्षत्र-रहित, क्षत्रिय- रहित (पि ३१९)।

णिक्खम :: अक [निर् + क्रम्] १ बाहर निकलना। २ दीक्षा लेना, संन्यास लेना। णिक्खमइ (भग)। णिक्खमंति (कप्प)। भूका. णिक्खर्मिंसु (कप्प)। भवि. णिक्ख- मिस्संति (कप्प)। वकृ. णिक्खममाण (णाया १, ५, पउम २२, १७)। संकृ, णिक्खम्म (कप्प)। हेकृ. णिक्खमित्तए (कप्प; कस)

णिक्खम :: पुंन [निष्क्रम] १ निर्गंमन। २ दीक्षा-ग्रहण (ठा १०; दस १०)

णिक्खमण :: न [निष्क्रमण] ऊपर देखो (सुज्ज १३; णाया १, १६; पउम २३, ४)।

णिक्खय :: वि [निखात] गाड़ा हुआ (कुप्र २५)।

णिक्खय :: वि [दे. निक्षत] निहत, मारा हुआ (दे ४, ३२; पाअ)।

णिक्खविअ :: वि [निक्षपित] नष्ट किया हुआ, विनार्शित (अच्चु ३१)।

णिक्खसरिअ :: वि [दे] मुषित, जो लूट लिया गया हो, अपहृत-सार (दे ४, ४१)।

णिक्खाविअ :: वि [दे] शान्त, उपशम-प्राप्त (षड्)।

णिक्खित्त :: वि [निक्षिप्त] १ न्यस्त, स्थापित (पाअ; पणह १, ३) २ मुक्त, परित्यक्त (णाया १, १; वव २) ३ पाक-भाजन में स्थित (पणह २, १)। °चर वि [°चर] पाक-भाजन में स्थित वस्तु को भिक्षा के लिए खोजनेवाला (पणह २, १, औप)

णिक्किप्पमाण :: नीचे देखो।

णिक्खिव :: सक [नि + क्षिप्] १ स्थापन करना, स्वस्थान में रखना। २ परित्याग करना। णिक्खिवइ (महा)। णिक्खिवंत (निचू १६)। कवकृ. णिक्खिप्पमाण (आचा)। संकृ. णिक्खिवित्ता, णिक्खिविअ, णिक्खिविउं (कस; पि ३१९; नाट — विक्र १०३; वव १)। कृ. णिक्खिविअव्व, णिक्खेत्तव्व (पणह १, १; विसे ९१७)

णिक्खिव :: सक [नि + क्षिप्] नाम आदि भेदों से वस्तु का निरूपण करना। निक्खेवे (अणु १०)। भवि. निक्खिविस्सामि (अणु १०)।

णिक्खिव :: पुं [निक्षेप] १ स्थापन। २ न्यास-स्थापन, धरोहर, धन आदि जमा रखना (श्रा १४)

णिक्खिवण :: न [निक्षेपण] १ स्थापन। २ डालना (सुपा ६२६; पडि)

णिक्खुड :: वि [दे] अकम्प, स्थिर (दे ४, २८)।

णिक्खुड :: पुंन [निष्कुट] १ कोटर, खोखला, विवर (तंदु २९) २ पृथिवी-खण्ड (विसे १५३८; पंच २, ३२) ३ गृहाराम, उपवन, घर के पास का बगीचा (राय २५)

णिक्खुड :: पुं [निष्कुट] भूमि-खण्ड (विसे १५३८)।

णिक्खुत्त :: न [दे] निश्‍चित, नक्की, चोक्कस, अवश्य; 'पत्ते विणासकाले नासइ बुद्धी नराण निक्खुत्तं' (पउम ५३, १३८); 'वत्ता दाहामि निक्खुत्तं' (पउम १०, ८५)।

णिक्खुरिअ :: वि [दे] अदृढ़, अस्थिर (दे ४, ४०)।

णिक्खेड :: पुं [निष्खेट] अधमता, नीचता, दुष्टता (सुपा २७९)।

णिक्खेत्तव्व :: देखो णिक्खिव = नि + क्षिप्।

णिक्खेव :: पुं [निक्षेप] १ न्यास, स्थापन (अणु) २ परित्याग, मोचन (आचा २, १, १, १) ३ धरोहर, धन आदि जमा रखना (पउम ६२, ६)

णिक्खेवण :: न [निक्षेपण] १ निक्षेप, स्था- पन (पव ६) २ व्यवस्थापन, नियमन (विसे ९१२)

णिक्खेबणया, णिक्खेवणा :: स्त्री [निक्षेपणा] स्थापना, बिन्यास (उवा; कप्प)।

णिक्खेवय :: पुं [निक्षेपक] निगमन, उपसंहार (बृह १)।

णिक्खेविय :: वि [निक्षिप्त] १ न्यस्त, स्था- पित। २ मुक्त, परित्यक्त (सण)

णिक्खेविय :: वि [निक्षेपित] ऊपर देखो (भवि)।

णिक्खोभ, णिक्खोह :: पुं [निःक्षमो] क्षमो-रहित, निष्कम्प (सम १०९; चउ ४७)।

णिखय :: देखो णिक्खय (कुप्र २२३)।

णिखव्व :: न [निखर्व] संख्या-विशेष, सौ खर्वं, सौ अरब (राज)।

णिखिल :: वि [निखिल] सर्वं, सकल, सब (अणु; नाट — महावीर ९७)।

णिगंठ :: देखो णिअंठ (विसे १३३२)।

णिगड :: सक [निगडय्] नियन्त्रित करना, बाँधना। संकृ. निगडिऊण (कुप्र १८७)।

णिगडिय :: वि [निगडित] नियन्त्रित (हम्मीर ३०)।

णिगढ :: पुं [दे] धर्मं, घाम, गरमी (दे ४, २७)।

णिगण :: वि [नग्न] नंगा, वस्त्र-रहित (सूअ १, २, १, ९)।

णिगद :: सक [नि + गद्] १ कहना। २ पढ़ना, अभ्यास करना। वकृ. णिगदमाण (विसे ८५०)

णिगम :: पुं [निगम] १ प्रकृष्ट बोध (विसे १२८७) २ व्यापार-प्रधान स्थान, जहाँ व्यापारी, विशेष संख्या में रहते हों ऐसा शहर आदि (पणह १, ३; औप; आचा) ३ व्या- पारि-समूह (सम ५१)

णिगमण :: न [निगमन] अनुमान प्रमाण का एक अवयव, उपसंहार (दसनि १)।

णिगमिअ :: वि [दे] निवासित (षड्)।

णिगर :: पुं [निकर] समूह, राशि, जत्था (विपा १, ६; उवा)।

णिगरण :: न [निकरण] कारण, हेतु (भग ७, ७)।

णिगरिय :: वि [निकरित] सर्वंथा शोधित (पणह १, ४)।

णिगल :: देखो णिअल। २ बेड़ी के आकार का सौवर्णं आभूषण-विशेष (औप)

णिगलिय :: देखो णिगरिय (जं २)।

णिगाम :: देखो णिकाम = निकाम (पिंड ६४५)।

णिगाम :: न [निकाम] अत्यन्त, अतिशय (ठा ५, २; श्रा १६)।

णिगास :: पुं [निकर्ष] परस्पर, संयोजन, मिलाना, जोड़ (भग २५, ७)।

णिगिज्झिय :: देखो णिगिण्ह।

णिगिट्ठ :: देखो णिक्किट्ठ (सुपा १८३)।

णिगिण :: वि [नग्‍न] नग्‍न, नंगा (आचा २, २, ३; २, ७, १; पि १३३)।

णिगिणिण :: न [नाग्न्य] नंगापन, नग्‍नता (उत्त ५, २१; सुख ५, २१)।

णिगिण्ह :: सक [नि + ग्रह्] १ निग्रह करना, दण्ड करना, शिक्षा करना। २ रोकना। ३ अक. बैठना, स्थिति करना। संकृ. णिग्ज्झिय, णिग्घेउं (ठा ७; कप्प; राज)। कृ. णिगिण्हियव्व (उप पृ २३)

णिगुंज :: अक [नि + गुञ्ज्] १ गूँजना, अव्यक्त शब्द करना। २ नीचे नमना। वकृ. णिगुंजमाण (णाया १, ९ — पत्र १५७)

णिगुंज :: देखो णिउञ्ज = निकुञ्ज (आवम)।

णिगुण :: वि [निगुण] गुण-रहित (पणह १, २)।

णिगुरंब :: देखो णिउरंब (पणह १, ४)।

णिगूढ :: वि [निगूढ] १ गुप्त, प्रच्छन्न (कप्प) २ मौनी, मौन रहनेवाला (राज)

णिगूह :: सक [नि + गुह्] छिपाना, गोपन करना। णिगूहइ (उव; महा)। णिगूहंति (सट्ठि ३२)। संकृ. णिगूहिऊण (स ३३५)।

णिगूगण :: न [निगूहन] गोपन, छिपाना (पंचा १५)।

णिगूहिअ :: वि [निगूहित] छिपाया हुआ, गोपित (सुपा ५१८)।

णिगोअ :: पुं [निगोद] अनन्त जीवों का एक साधारण शरीर-विशेष (भग; पणण १)। °जीव पुं [°जीव] निगोद का जीव (भग २५, ६; कम्म ४, ८५)।

णिग्ग :: देखो णिग्गम = निर् + गम्। वकृ. णिग्गंत (भवि)।

णिग्गंठिद :: (शौ) वि [निग्रथित] गुम्फित, ग्रथित (पि ५१२)।

णिग्गंतुं, णिग्गंतूण :: देखो णिग्गम = निर् + गम्।

णिग्गंथ :: देखो णिअंठ (औप; औघ ३२८; प्रासू १३९, ठा ५, ३)।

णिग्गंथ :: वि [नैर्ग्रन्थ] निर्ग्रन्थ-सम्बन्धी (णाया १, १३; उवा)।

णिग्गंथी :: स्त्री [निर्ग्रन्थी] जैन साध्वी (णाया १, १, १४; उवा; कप्प; औप)।

णिग्गच्च, णिग्गम :: अक [निर् + गम्] बाहर निकलना। णिग्गच्छइ (उवा; कप्पू)। वकृ. णिग्गच्छंत, णिग्गच्छमाण, णिग्गममाण (सुपा ३३०; णाया १, १; सुपा ३५९)। संकृ. णिग्गच्छित्ता, णिग्गं- तूण (कप्प; स १७)। हेकृ. णिग्गंतुं (उपर ७२८ टी)।

णिग्गम :: पुं [निर्गम] १ उत्पत्ति, जन्म (विसे १५३९) २ बाहर निकलना (से ६, ३९; उप पृ ३३२) ३ द्वार, दरवाजा (से २, २) ४ बाहर जाने का रास्ता (से ८, ३३) ५ प्रस्थान, प्रयाण (बृह १)

णिग्गमण :: न [निर्गमन] १ निःसरण, बाहर निकलना (णाया १, २; सुपा ३३२; भग) २ पलायन, भाग जाना। ३ अपक्रमण (वव १)

णिग्गमिअ :: वि [निर्गमित] बाहर निकाला हुआ, निस्सारित (श्रा १६)।

णिग्गमिय :: वि [निर्गमित] गमाया हुआ, पसार किया हुआ (सम्मत्त १२३)।

णिग्गय :: वि [निर्गत] निःसृत, बाहर निकला हुआ (विसे १५४०; उवा)। °जस वि [°यशस्] जिसका यश बाहर में फैला हो (णाया १, १८)। °मोअ वि [°मोद] जिसकी सुगन्ध खूब फैली हो (पाअ)।

णिग्गय :: वि [निर्गज] हाथी-रहित (भवि)।

णिग्गह :: देखो णिगिण्ह। कृ. णिग्गहियव्व (सुपा ५८०)।

णिग्गह :: पुं [निग्रह] १ दण्ड, शिक्षा (प्रासू १७०; आव ६) २ निरोध, अवरोध, रुकावट (भग ७, ९) ३ वश करना, काबू में रखना, नियमन (प्रासू ४८)। °ट्ठाण न [°स्थान] न्याय-शास्त्र-प्रसिद्धि प्रतिज्ञा-हानि आदि पराजय-स्थान (टा १; सूअ १, १२)

णिग्गहण :: न [निग्रहण] १ निग्रह, शिक्षा, दण्ड (सुर १६, ७) २ दमन, नियमन, नियन्त्रण (प्रासू १३२)

णिग्गहिय :: वि [निगृहीत] १ जिसका निग्रह किया गया हो वह (सं ११५) २ पराजित पराभूत (आवम)

णिग्गहीय :: देखो णिग्गाहिय (सुख १, १)।

णिग्गा :: स्त्री [दे] हरिद्रा, हलदी (दे ४, २५)।

णिग्गाल :: पुंन [निर्गाल] निचोड़़, रस, 'सीस- घड़ी निग्गालं' (तंदु ४१)।

णिग्गालिय :: वि [निर्गालित] गलाया हुआ (उप पृ ८४)।

णिग्गाहि :: वि [निग्राहिन्] निग्रह करनेवाला (उत्त २५, २)।

णिग्गिण्ण :: वि [दे. निर्गीर्ण] १ निर्गत, बाहर निकला हुआ (दे ४, ३६; पाअ) २ वान्त, वमन किया हुआ (से ५, २९)

णग्गिण्ह :: देखो णिगिण्ह। णिग्गिणहामि (विसे २४८२)।

णिग्गिलिय :: वि [निर्गलित] वान्त, वमन किया हुआ (स ३५८)।

णिग्गुंडी :: स्त्री [निर्गुण्डी] औषधि-विशेष, वनस्पति संभालू (पणण १)।

णिग्गुण :: वि [निर्गुण] गुण-रहित, गुण-हीन (गा २०३; उव; पणह १, २; उप ७२८ टी)।

णिग्गुण्ण, णिग्गुन्न :: न [नौर्गुण्य] गुण-रहितपन, गुण-हीनता, निर्गुणत्व (वसु; भत्त १४)।

णिग्गूढ :: वि [निर्गूढ] स्थिर रूप से स्थापित (सूअ २, ७)।

णिग्गोह :: पुं [न्यग्रोध] वृक्ष-विशेष, बरगद, बड़ का पेड़ (पउम २०, ३६; षड्)। °परिमंडल न [°परिमण्डल] शरीर-संस्थान-विशेष, वटाकार शरीर का आकार (सम १४९; ठा ६)।

णिग्घंट, णिग्घटु :: देखो णिघंटु (कप्प)।

णिग्घट्ठ :: वि [दे] कुशल, निपुण, चतुर (दे ४, ३४)।

णिग्घण :: देखो णिग्घिण (विक्र १०२)।

णिग्घत्तिअ :: वि [दे] क्षिप्त, फेंका हुआ (पाअ)।

णिग्घाइय :: वि [निर्घातित] १ आघात-प्राप्‍त, आहत। २ व्यापादित, विनाशित (णाया १, १३)

णिग्घाय :: पुं [निर्घात] राक्षस-वंश का एक राजा (पउम ६, २२४)।

णिग्घाय :: पुं [निर्घात] १ आघात, 'रंगिर- तुंगतुरंगमखुरग्गनिग्घायविहुरियं घरणिं' (सुपा ३) २ विजली का गिरवा (स ३७५; जीव १) ३ व्यन्तर-कृत गर्जंना (ठा १०) ४ विनाश (सूअ १, १५)

णिग्घायण :: न [निर्घातन] नाश, विनाश, उच्छेदन (पडि; सुपा ५०३)।

णिग्घिण :: वि [निर्घृण] निर्दंय, करुणा-रहित (गा ४५२; पणह १, १; सुर २, ६१)।

णिग्घेउं :: देखो णिगिण्ह।

णिग्घोर :: वि [दे] निर्दय, दया-हीन (दे ४, ३७)।

णिग्घोस :: पुं [निर्घोष] महान् अव्यक्त शब्द (पणह १; सम १५३)।

णिघंटु :: पुं [निघण्टु] शब्द-कोश, नाम संग्रह (औप; भग)।

णिघस :: पुं [निकष] १ कसौटी का पत्थर (अणु) २ कसौटी पर की जाती सुवर्णं की रेखा (सुपा ३९१)

णिचय :: पुं [निचय] संग्रह, संचय (सूअ १, १०, ९)।

णिचय :: पुं [निचय] १ समूह, राशि। २ उपचय, पुष्टि (ओघ ४०७; स ३९९; आचा; महा)

णिचिअ :: वि [निचित] १ व्याप्त, भरपूर (अजि ५) २ निबिड़, पुष्ट (भग)

णिचुल :: पुं [निचुल] वृक्ष-विशेष, वंजुल वृक्ष (स १११; कुमा)।

णिच्च :: वि [नित्य] १ अविनश्वर, शाश्वत (आचा; औप) २ न. निरन्तर, सर्वंदा, हमेशा (महा; प्रासू १४; १०१) °च्छणिय वि [°क्षणिक] निरन्तर उत्सववाला (णाया १, ४)। °मंडिया स्त्री [°मण्डिता] जम्बू वृक्ष-विशेष (इक)। °वाय पुं [°वाद] पदार्थों को नित्य माननेवाला मत; 'सुहदुक्ख- संपओगो न जुज्जइ निच्चवायपक्खम्मि' (सम १८)। °सो अ [°शस्] सदा, सर्वंदा, निरन्तर (महा)। °लोअ, °लोग, °लोव पुं [°लोक] १ एक विद्याधर-राजा (पउम ९, ५२) २ ग्रहाधिष्ठायक देव-विशेष (ठा २, ३) ३ न. नगर-विशेष (पउम ९, ५२; इक) ४ वि. सर्वदा प्रकाशवाला (कप्प)

णिच्च :: देखो णीय = नीच (सम ५५)।

णिच्चक्खु :: वि [निश्चक्षुस्] चक्षु-रहित, नेत्र-हीन, अन्धा (पउम ८२, ५१)।

णिचट्ट :: (अप) वि [गाढ़] गाढ़, निबिड़ (हे ४, ४२२)।

णिच्चय :: देखो णिच्छय (प्रयौ २१; पि ३०१)।

णिच्चर :: देखो णिव्वर। णिच्चरइ (हे ४, ३ टि)।

णिच्चल :: सक [क्षर्] झरना, टपकना, चूना। णिच्चलइ (हे ४, १७३)। प्रयो. णिच्चलावेइ (कुमा)।

णिच्चल :: सक [मुच्] दुःख को छोड़ना, दुःख का त्याग करना। णिच्चलइ (हे ४, ९२ टि)। भूका. णिच्चलीअ (कुमा)।

णिच्चल :: वि [निश्चल] स्थिर, दृढ़, अचल (हे २, २१; ७७)। °पय न [°पद] मुक्ति, मोक्ष (पंचव ४)।

णिच्चिंत :: वि [निश्चिन्त] चिन्ता-रहित, बेफिक्र (विक्र ४३; प्रासू २७; सुपा २२५)।

णिच्चिट्ट :: वि [निश्‍चेष्ट] चेष्टा-रहित (सुपा १४)।

णिच्चिद :: (शौ) देखो णिच्छिय (पि ३०१)।

णिच्चुज्जोअ :: पुं [नित्योद्‍द्योत] नन्दीश्‍वर द्वीप के मध्य की दक्षिण दिशा में स्थित एक अंजनिगिरि (पव २६९)।

णिच्चुज्जोअ, णिच्चुज्जीव :: वि [नित्योद्‍द्योत] १ सदा प्रकाशयुक्त। २ पुं. ग्रह-विशेष ज्योतिष्क देव-विशेष (ठा २, ३) ३ न. एक विद्याधर-नगर (इक)

णिच्चुड्ड :: वि [दे] १ उद्‍वृत्त, बाहर निकला हुआ (षड्) २ निर्दय, दया-हीन (पाअ)

णिच्चुव्विग्ग :: वि [नित्योद्विग्‍न] सदा खिन्न (दस ५, २)।

णिच्चेट्ठ :: देखो णिट्ठिट्ठ (णाया १, २; सुर ३, १७२)।

णिच्चेयण :: वि [निश्‍चेतन] चेतना-रहित (महा)।

णिच्चोउया :: स्त्री [नित्यर्युका] हमेशा रजस्वला रहनेवाली स्त्री (ठा ५, २)।

णिच्चोय :: सक [दे] निचोड़ना। निच्चोयइ (कुप्र २१५)।

णिच्चोरिक्क :: न [निश्चौर्य] १ चोरी का अभाव। २ वि. चोरी-रहित (उप १३९ टी)

णिच्छइय :: वि [नैश्‍चयिक] १ निश्‍चय- सम्बन्धी। २ पुं. निश्‍चय नय, द्रव्यार्थिक नय, परिणाम-वाद (विसे)

णिच्छउम :: वि [निश्‍छद्मन्] १ कपट-रहित, माया-वर्जित (गण ८; सुपा ३५०) २ क्रिवि. विना कपट (सार्ध ५१)

णिच्छक्क :: वि [दे] १ निर्लज्ज, बेशरम, घुष्ट, ढीठ (बृह १; वव ५) २ अवसर को नहीं जाननेवाला, असमयज्ञ (राज)

णिच्छम्म :: देखो णिच्छउम (उव; सार्धं १४५)।

णिच्छय :: सक [निर् + चि] निश्‍चय करना, निर्णय करना। वकृ. णिच्छयमाण (उप ७२८ टी)।

णिच्छय :: पुं [निश्‍चय] १ निश्‍चय, निर्णंय (भग; प्रासू १७७) २ नियम, अविनाभाव (राज) ३ नय-विशेष, द्रव्यार्थिक नय, वास्तविक पदार्थं को ही माननेवाला मत, परिणाम-वाद (बृह ४; पंचा १३)। °कहा स्त्री [°कथा] अपवाद (निचू ५)

णिच्छल्ल :: सक [छिद्] छेदना, काटना। णिच्छल्लइ (हे ४, १२४)।

णिच्छल्लिअ :: वि [छिन्न] काटा हुआ, (कुमा; स २५८; गउड)।

णिच्छाय :: वि [निश्‍छाय] कान्ति-रहित, शोभा-हीन (पणह १, २)।

णिच्छारय :: वि [निस्सारक] सार-रहित, 'निच्छारयछारयघूलीण' (श्रा २७)।

णिच्छिड्ड :: वि [निश्‍छिद्र] छिद्र-रहित (णाया १, ६; उप २११ टी)।

णिच्छिण्ण :: वि [निच्छिन्न] पथक्-कृत्, अलग किया हुआ, काटा हुआ (विसे २७३)।

णिच्छिद्द :: देखो णिच्छिड्ड (स ३५०)।

णिच्छिन्न :: देखो णिच्छिण्ण (पुप्फ ४९३; महा)।

णिच्छिय :: वि [निश्चित] निश्चित, निर्णीत, असंदिग्ध (णाया १, १; महा)।

णिच्छीर :: वि [निःक्षीर] क्षीर-रहित, दुग्ध- वर्जित (पणण १)।

णिच्छुड :: वि [दे] निर्दंय, करुणा-रहित (दे ४, ३२)।

णिच्छुट्ट :: वि [निश्‍छुटित] निर्मुक्त, छूटा हुआ (सुर ६, ७२)।

णिच्छुभ :: सक [नि + क्षिप्] १ बाहर निकालना। फेंकरना। णिच्छुभइ (भग)। कर्मं. णिच्छुब्भइ (पि ६६)। कवकृ. णिच्छु- ब्भमाण (विपा १, २)। संकृ. णच्छुभित्ता, णिच्छुभिउं (भग; निर १, १)। प्रयो. णिच्छुभावेइ (णाया १, ८)

णिच्छुभ :: पुं [निक्षेप] निष्कासन (पिंड ३७५)।

णिच्छुभण :: न [निक्षेपण] निःसारण, निष्कासन (निचू १)।

णिच्छुभाविय :: वि [निक्षेपित] निस्सारित, बाहर निकाला हुआ (णाया १, ८)।

णिच्छुह :: सक [नि + क्षिप्] डालना। निच्छुहइ (सुख ७, ११)।

णिच्छुहणा :: स्त्री [निक्षेपणा] बाहर निकलने की आज्ञा, निर्भर्त्सना (णाया १, १६ टी — पत्र २००)।

णिच्छुढ :: वि [निक्षिप्त] १ उद्‍वृत्त, निर्गंत (हे ४, २५८) २ फेंका हुआ, निक्षिप्त (प्रामा) ३ निस्सारित, निष्कासित (णाया १, ८ — पत्र १४६; १, १६ — पत्र १९९)

णिच्छूढ :: न [निष्ठयूत] थूक, खखार (विसे ५०१)।

णिच्छोड :: सक [निर् + छोटय्] १ बाहर निकलने के लिए धमकाना। २ निर्भंर्त्सन करना। ३ छुड़वाना। णिच्छोडेइ; णिच्छोडेंति (णाया १, १६; १८)। णिच्छोडेज्जा (उवा)। संकृ. णिश्‍छोडइत्ता (भग १५)

णिच्छोडग :: न [निश्छोटन] निर्भंर्त्संन, बाहर निकालने की धमकी (उव)।

णिच्छोडणा :: स्त्री [निश्‍छोटना] ऊपर देखो (णाया १, १६ — पत्र १९९)।

णिच्छोडिअ :: वि [निश्‍छोटित] सफा किया हुआ (पिंड २७६)।

णिच्छोल :: सक [निर् + तक्ष्] छीलना, छाल उतारना। निच्छोलेइ (निचू १)। वकृ. णिच्छोलंत (निचू १)। संकृ. निच्छोलिऊण (महा)।

णिजंतिय :: वि [नियन्त्रित] नियमित, अंकुशित (सुर ३, ४)।

णिजिण्ण :: देखो णिज्जिण्ण (ठा ४, १)।

णिजुंज :: देखो णिउंज =नि + युज्। निजुंजइ (कुप्र ३४८)।

णिजुद्ध :: देखो णिउद्ध (निचू १२)।

णिजोजण :: न [नियोजन] नियुक्ति, कार्यं में लगाना, भारअर्पंण (उप १७९ टी)।

णिजोजिय :: देखो णिओइय (उप १७९ टी)।

णिज्ज :: वि [दे] सुप्त, सोया हुआ (दे ४, २५; षड्)।

णिज्जंत :: देखो णी = नी।

णिज्जण :: वि [निर्जन] १ विजन, मनुष्य- रहित, सुनसान। २ न. एकान्त स्थान (गउड)

णिज्जप्प :: वि [निर्याप्य] १ निर्वाह-कारक। २ निर्बंल, बल को नहीं बढ़ानेवाल; 'अरस- विरससीयलुक्खणिज्जप्पाणभोयणाइं' (पणह २, ५)

णिज्जर :: सक [निर् + जृ] १ क्षय करना, नाश करना। २ कर्म-पुद्गलों को आत्मा से अलग करना। णिज्जरेइ, णिज्जरए, णिज्जरेंति (भग, ठा ४, १)। भूका. णिज्जरिंसु, णिज्ज- रेंसु (पि ५७६; भग)। भवि. णिज्जरिस्संति (टा ४, १)। वकृ. णिज्जरमाण (भग १८, ३)। कवकृ. णिज्जरिज्जमाण (ठा १०; भग)

णिज्जरण :: न [निर्जरण] नीचे देखो (औप)।

णिज्जरणा :: स्त्री [निर्जरणा] १ नाश, क्षय। २ कर्मं-क्षय, कर्म-नाश। ३ जिससे कर्मों का विनाश हो ऐसा तप (नव १; सुर १४, ६५)

णिज्जरा :: स्त्री [निर्जरा] कर्मं-क्षय, कर्म-विनाश (आचा; नव २४)।

णिज्जरिय :: वि [निर्जीर्ण] क्षीण, विनाश- प्राप्त (तंदु)।

णिज्जव :: वि [निर्याप] निर्वाह करानेवाला (पंचा १५, १४)।

णिज्जवग :: वि [निर्यापक] १ निर्वाह करनेवाला। २ आराधक, आराधन करनेवाला (ओघ २८ भा) ३ पुं. जैनमुनि-विशेष, जो शिष्य के भारी प्रायश्चित्त का भी ऐसी तरह से विभाग कर दे कि जिससे वह उसे निबाह सके (ठा ८; भग २५, ७)

णिज्जवणा :: स्त्री [निर्यापना] १ निगमन, दर्शित अर्थँ का प्रत्युच्चारण (विसे २९३२) २ हिंसा (पणह १, १)

णिज्जवय :: देखो णिज्जवग (ओघ २८ भा टी; द्र ४९)।

णिज्जविउ :: वि [निर्यापयितृ] ऊपर देखो (पव ६४)।

णिज्जा :: अक [निर् + या] बाहर निकालना। णिज्जायंति (भग)। भवि. णिज्जाइस्सामि (औप)। वकृ. णिज्जायमाण (ठा ५, ३)।

णिज्जाण :: न [निर्याण] १ बाहर निकलना, निर्गम (ठा ५, ३) २ आवृत्ति-रहित गमन (औप) ३ मोक्ष, मुक्ति (आव ४)

णिज्जाणिय :: वि [नौर्याणिक] निर्याणि-संबन्धी, निर्गम-संबन्धी (भग १३, ६; निचू ८)।

णिज्जामग, णिज्जामय :: पुं [निर्यामक] कर्णधार, जहाज का नियन्ता (विसे २९५९; णाया १, १७; औप; सुर १३, ४८)।

णिज्जामण :: न [निर्यापन] बदला चुकाना, 'वेरणिज्जामणं' (वव १)।

णिज्जामय :: पुं [निर्यामक] १ बीमार की सेवा-श्रुश्रुषा करनेवाला मुनि (पव ७१) २ वि. आराधना-कारक (पव-गाथा १७)

णिज्जामिय :: वि [निर्यामित] पार पहुँचाया हुआ, तारित (महा)।

णिज्जाय :: पुं [दे] उपकार (दे ४, ३४)।

णिज्जाय :: वि [निर्यात] निर्गंत, निःसृत (वसु; उप पृ २८९)।

णिज्जायण :: न [निर्यातन] वैर-शुद्धि, बदला (महा)।

णिज्जायणा :: स्त्री [निर्यातना] ऊपर देखो (उप ४३१ टी)।

णिज्जावय :: देखो णिज्जामय (भवि)।

णिज्जास :: पुं [निर्यास] वृक्षों का रस, गोंद, (सूअ २, १)।

णिज्जिअ :: वि [निर्जित] जीता हुआ, पराभूत (औघ १८ भा टी; सुर ९, ३६; औप)।

णिज्जिण :: सक [निर् + जि] जीतना, पराभव करना। निज्जिणइ (भवि) संकृ. निज्जिणिऊण; (महा)।

णिज्जिणिय :: देखो णिज्जिअ (सुपा २९)।

णिज्जिण्ण, णिज्जिन्न :: वि [निर्जीर्ण] नाश-प्राप्त, क्षीण (भग; ठा ४, १)।

णिज्जीव :: वि [निर्जीव] जीव-रहित, चैतन्य वर्जित (औप; श्रा २०; महा)।

णिज्जुंज :: [निर् + युज्] उपकार करना (पिंड २६ टी)।

णिज्जुत्त :: वि [निर्युक्त] १ संबद्ध, संयुक्त (विसू १०८५; औघ १ भा) २ खचित, जड़ित (औप) ३ प्ररूपित, प्रतिपादित (आवम)

णिज्जुक्ति :: स्त्री [निर्युक्ति] व्याख्या, विवरण, टीका (विसे ९९५; ओघ २; सम १०७)।

णिज्जुद्ध :: देखो णिउद्ध (स ४७०)।

णिज्जूढ :: वि [निर्यूढ] १ निस्सारित, निष्का- सित (णाया १, १ — पत्र ६४) २ अमनोज्ञ, असुन्दर (ओघ ५४८) ३ उद्‍घृत, ग्रन्थान्तर से अवतारित (दसनि १)

णिज्जूढ :: वि [निर्यूढ] रहित, 'निट्ठाणं रस- निज्जूढं' (दस ८, २२)।

णिज्जूह :: सक [निर् + यूह्] १ परित्याग करना। २ रचना, निर्माण करना। कर्मं. णिज्जूहिज्जइ (पि २२१)। हेकृ. णिज्जूहित्तए (वव २)। कृ. णिज्जूहियव्व (कप्प)

णिज्जूह :: पुं [दे. निर्यूह] १ तीव्र, छदि, गृहाच्छादन, पाटन (दे ४, २८; स १०६) २ गवाक्ष, गोख; 'इय जाव चिंतए मंती णिज्जूहट्ठिओ' (धम्म ९ टी; वव १) ३ द्वार के पास का काष्ट-विशेष (णाया १, १ — पत्र १२; पणह १, १) ४ द्वार, दरवाजा (सुर २, ८३)

णिज्जूहग :: वि [निर्यूहक] ग्रन्थान्तर से उद्‍धृत करनेवाला (दसनि १, १४)।

णिज्जूहण :: न [निर्यूहण] देखथो णिज्जूहणा (उत्त ३६, २५१; पव २)।

णिज्जूहणाया, णिज्जूहणा :: स्त्री [निर्यूहणा] १ निस्सा- रण, बाहर निकालना (वव १)। परित्याग (ठा ४, २) ३ विरचना, निर्माण (विसे ५५१)

णिज्जूहिअ :: देखो णिव्वूढ (दसनि १, १५)।

णिज्जूहिअ :: वि [निर्यूंहित] रहित (पव १३४)।

णिज्जोअ :: पुं [दे] १ प्रकार, राशि। २ पुष्पों का अवकर (दे ४, ३३)

णिज्जोअ, णिज्जोग :: पुं [नियोग] १ उपकरण, साधन (राय ४५; ४९; पिंड २६) २ उपकार (पिंड २६)

णिज्जोअ, णिज्जोग :: पुं. [दे. निर्योग] परिकर, सामग्री; 'पायणिज्जोगो' (ओघ ६६८; णाया; १, १ — पत्र ५४)।

णिज्जोमि :: पुं [दे] रज्जु, रस्सी (दे ४, ३१)।

णिज्झ :: अक [स्‍निह्] स्‍नेह करना। णिज्झइ (प्राकृ २८)।

णिज्झर :: अक [क्षि] क्षीण होना। णिज्झरइ (हे ४, २०; षड्)। वकृ. णिज्झरंत (कुमा ६, १३)।

णिज्झर :: वि [दे] जीर्णं, पुराना (दे ४, २६)।

णिज्झर :: पुं [निर्झर] झरना, पहाड़ से गिरता पानी का प्रवाह (हे १, ९८; २, ९०)।

णिज्झरण :: न [निर्झरण] ऊपर देखो (पउम ९४, ५२; ६, ६४; सुपा ३५५)।

णिज्झरणी :: स्त्री [निर्झरणी] नदी, तरंगिणी (कुमा)।

णिज्झा :: सक [नि + ध्यै] देखना, निरीक्षण करन। णिज्झइ, णिज्झाअइ (हे ४, ६)। वकृ. णिज्झाअंत, णिज्झाएमाण (मा ४; आचा २, ३, १)। संकृ. णिज्झाइऊण, णिज्झाइत्ता (महा; आचा)।

णिज्झा :: सक [निर् + ध्यै] विशेष चिन्तन करना। संकृ. णिज्झाइत्ता (आचा)।

णिज्झाइ :: वि [निध्यायिन्] देखनेवाला (आचा)।

णिज्झाइत्तु :: वि [निध्यातृ] देखनेवाला, निरीक्षक (उत्त १६; सम १५)।

णिज्झाइत्तु :: वि [निर्ध्यातृ] अतिशय चिन्तन करनेवाला (ठा ९)।

णिज्झाइय :: वि [निध्यात] १ दृष्ट, विलोकित (स ३५२; धण ४५) २ न. दर्शंन, निरी- क्षण (महा — पृष्ठ ५८)

णिज्झाडिय :: वि [निर्घाटित] विनाशित (उप ६४८ टी)।

णिज्झाय :: वि [दे] निर्दय, दया-रहित (दे ४, ३७)।

णिज्झाय :: वि [निध्यात] दृष्ट, विलोकित (सुर ६, १८८; सुपा ४४८)।

णिज्झूर :: वि [दे] जीर्णं, पुराना (दे ४, २६)।

णिज्झोड :: सक [छिद्] छेदना, काटना। णिज्झाडइ (हे ४, १२४)।

णिज्झोडण :: न [छेदन] छेदन, कर्त्तंन (कुमा)।

णिज्झोसइत्तु :: वि [निर्झोषयितृ] क्षय करनेवाला, कर्मों का नाश करनेवाला (आचा)।

णिट्टंक :: वि [दे] १ टंक-च्छिन्न। २ विषम, असमान (४, ५०)

णिट्टंकिय :: वि [निष्टङ्कित] निश्‍चित, अव- धारित (सुपा २९०)।

णिट्‍टुअ :: अक [क्षर्] टपकना, चूना। णिठट्ठअइ (हे ४, १७३)|

णिठ्‍टुइअ :: धि [क्षरित] टपका हुआ (पाअ)।

णिटटुह :: अक [वि + गल्] गल जाना, नष्ट होना। णिट्‍टुहइ (हे ४, १७५)।

णिट्ठ :: देखो णिट्ठा = नि + स्था। निट्ठइ (भवि)।

णिट्ठय, णिट्ठव :: सक [नि + स्थापय्] १ समाप्त करना, पूर्णं करना। २ अन्त करना, खतम करना। ३ विशेष रूप से स्थापन करना, स्थिर करना। भूका. णिट्ठर्वंसु (भग २९, १)। संकृ. णिट्ठविअ (पिंग)। कृ. णिट्ठयणिज्ज (उप ५९७ टी)

णिट्ठवण :: न [निष्ठापन] १ अन्त करना, समाप्ति। २ वि. नाश-कारक, खतम करनेवाला (सुपा १६१; गउड) ३ समाप्त करनेवाला (जी ५)

णिट्ठवय :: वि [निष्ठापक] समाप्त करनेवाला (आव ६)।

णिट्ठविअ :: वि [निष्ठापित] १ समाप्त किया हुआ (पंचव २) २ विनाशित (से ९, १)

णिट्ठा :: अक [नि + स्था] खतम होना, समाप्त होना। णिट्ठाइ (विसे ६२७)।

णिट्ठा :: स्त्री [निष्ठा] १ अन्त, अवसान, समाप्ति (विसे २८३३; सुपा १३) २ सद्भाव (आचू १)। °भासि वि [°भाषिन्] निष्ठा-पूर्वक बोलनेवाला, निश्‍चय-पूर्वंक भाषण करनेवाला (आचा)

णिट्ठाण :: न [निष्ठान] सर्व-गुण-युक्त भोजन (दस ८, २२)।

णिट्ठाण :: न [निष्ठान] १ दही वगैरह व्यञ्जन (ठा ४, २; पणह २, ५) २ समाप्ति (निचू १)। °कहा स्त्री [°कथा] भक्त-कथा-विशेष, दही वगैरह व्यञ्जन की बात-चीत (ठा ४, २)

णिट्ठावण :: देखो णिट्ठवण (सुपा ३५७)।

णिट्ठिय :: वि [निष्ठित] १ समाप्त किया हुआ, पूर्णं किया हुआ (उप १०३१ टी; कम्म ४, ७४) २ नष्ट किया हुआ, विनाशित (सुपा ४४९) ३ स्थिर (से ५, ७) ४ निष्पन्न, सिद्ध (आचा २, १, ९) ५ पुं. मोक्ष, मुक्ति (आचा)। °ट्ठ वि [°र्थ] कृतकृत्य (परण ३६)। °ट्ठि वि [°र्थिन्] मुमुक्षु, मोक्ष का इच्छुक (आचा)

णिट्ठिय :: वि [नैष्ठिक] निष्ठा-युक्त, निष्ठावाल (पणह २, ३)।

णिट्ठीव :: पुं [निष्ठीव] थूक, मुँह का पानी (रंभा)।

णिट्ठीवण :: स्त्रीन [निष्ठीवन] थूक, खखार। २ थूकना (सट्ठि ७८ टी)। स्त्री °णा (वव १)

णिट्‍ठुअ :: न [निष्ठयूत] थूक (कुलक ३०)।

णिट्‍ठुभय :: वि [निष्ठीवक] थूकनेवाला (पणह २, १, औप)।

णिट्‍ठुयण :: देखो निट्‍ठीवण (चेइय ६३)।

णिट्‍ठुर, णिट्‍ठुल :: वि [निष्ठुर] निष्ठुर, परुष, कठिन (प्राप्त; हे १, २५४; पाअ; गउड)।

णिट्‍ठुवण :: न [निष्टीवन] १ थूक, खखार (वव १) २ वि. थूकनेवाला (ठा ५, १)

णिट्‍ठुह :: अक [नि + स्तम्भ्] निष्टम्भ करना, निश्‍चेष्ट होना, स्तब्ध होना। णिट्‍ठु- हइ (हे ४, ६७; षड्)।

णिट्‍ठुह :: अक [नि + ष्टीव्] थूकना निट्‍ठुहसी (तंदु ४१)।

णिट्‍ठुह :: वि [दे] स्तब्ध, निश्‍चेष्ट (दे ४, ३३)।

णिट्‍ठुहण :: न [दे. निष्ठीवन] थूक, मुँह का पानी, खखार (महा)।

णिट्‍ठुहावण :: वि [निष्टम्भक] निश्‍चेष्ट करनेवाला, स्तब्ध करनेवाला (कुमा)।

णिट्‍ठुहिअ :: न [दे] थूक, निष्ठीवन, खखार (दे ४, ४१)।

णिड :: पुं [दे] पिशाच, राक्षस (दे ४, २५)।

णिडल, णिडाल :: न [ललाट] भाल, ललाट (पि २६०; पउम १००, ५७; सुपा २८)।

णिड्ड :: न [नीड] पक्षि-गृह (पाअ)।

णिड्डहण :: न [निर्दहन] जला देना (उप ५९३ टी)।

णिड्‍डह :: देखो णिट्‍टुअ। णिड्‍डुहइ (कुमा; ' षड्)।

णिणाय :: पुं [निनाद] शब्द, आवाज, ध्वनि (णाया १, १; पउम २, १०३; से ९, ३०)।

णिण्ण :: वि [निम्‍न] १ नीचा, अधस्तन (उत्त १२; उव १०३१ टी) २ क्रिवि. नीचे, अधः (हे २, ४२)

णिण्णक्खु :: क्रि [निस्सारयति] बाहर निका- लता है, 'ठाणाआ ठाणं साहरति, बहिया वा णिण्णक्खु' (आचा २, २, १)।

णिण्णगा :: स्त्री [निम्‍नगा] नदी, स्रोतस्विनी (णणण १; पणह २, ४)।

णिण्णट्ठ :: वि [निर्नष्ट] नाश-प्राप्त (सुर ९, ९२)।

णिण्णय :: पुं [निर्णय] १ निंश्‍चय, अवधारण (हे १, ९३) २ फैसला (सुपा ९६)

णिण्णया :: देखो णिण्णगा (पाअ)।

णिण्णार :: वि [निर्नगर] नगर से निर्गंत (भग १५)।

णिण्णाला :: स्त्री [दे] चञ्चु, चोंच (दे ४, ३६)।

णिण्णास :: सक [निर + नाशय] विनाश करना। वकृ. निन्नासिंत (सुपा ६५४)।

णिण्णास :: पुं [निर्णाश] विनाश (भवि)।

णिण्णासिय :: वि [निर्णाशित] विनाशित (सुर २, २३१; भवि)।

णिण्णिह :: वि [निर्निद्र] निद्रा-रहित (गा ९५६)।

णिण्णिमेस :: वि [निर्निमेष] १ निमेष-रहित, बिना पलक झपकाये, एक-टक। २ चेष्टा- रहित। ३ अनुपयोगी (ठा ५, २)

णिण्णी :: सक [निर् + णी] निश्‍चय करना। संकृ. निण्णइउं (धर्मवि. १३६)।

णिण्णीअ :: वि [निर्णीत] निश्‍चित, नक्की किया हुआ (श्रा १२)।

णिण्णुण्णअ :: वि [निम्‍नोन्नत] ऊँचा-नीचा, विषम (अभि २०९)।

णिण्णेह :: वि [निःस्‍नेह] स्‍नेह-रहित (हे ४, ३६७; सुर ३, २२२; महा)।

णिण्हइया :: स्त्री [निह्नविका] लिपि-विशेष (सम ३५)।

णिण्हग, णिण्हय, णिण्हव :: पुं [निह्नव] १ सत्य कआ अपलाप करनेवाला, मिथ्यावादी (ओघ ४० भा; ठा ७; औप) २ अप- लाप (सार्धं ४१)

णिण्हव :: सक [नि + ह्‍नु] अपलाप करना। णिण्णहवइ (विसे २२९९; हे ४, २३६)। कर्मं. णिण्हवीअदि (शौ) (नाट — रत्‍ना ३९)। वकृ. णिण्हवंत, णिण्हवेमाण (उप २११ टी; सुर ३, २०१)।

णिण्हवग :: वि [निह्नावक] अपलाप करनेवाला (ओघ ४८ भा)।

णिण्हवण :: न [निह्नवन] अपलाप (विपा १, २; उव)।

णिण्हवण :: वि [निह्नवन] अपलाप-कर्त्ता (संबोध ५)।

णिण्हविद :: देखो णिण्हुविद (नाट — शकु १२९)।

णिण्हुय :: वि [निह्‍नुत] अपलपित (सुपा २६८)।

णिण्हुव :: देखो णिण्हव = नि + ह्नु। कर्मं. णिण्हुविज्जंति (पि ३३०)।

णिण्हुविद :: (शौ) वि [नि + ह्नुत] अप- लपित (पि ३३०)।

णितिय :: देखो णिच्च (आचा; ठा १०)।

णितुडिअ :: वि [नितुडित] टूटा हुआ, छिन्न (अच्चु ५४)।

णित्त :: देखो णेत्त (पाअ; सुपा २९१; लहुअ १४)।

णित्तम :: वि [निस्तमस्] १ अन्धकार-रहित। २ अज्ञान-रहित (अजि ८)

णित्तल :: वि [दे] अनिवृत्त (भग १५)।

णित्ति :: (अप) देखो णीइ (भवि)।

णित्तिंस :: वि [निस्त्रिंश] निर्दंय, करुणा-हीन (सुपा ३१५)।

णित्तिरडि :: वि [दे] निरन्तर, अव्यवहित (दे ४, ४०)।

णित्तिरडिअ :: वि [दे] त्तुटित, टूटा हुआ (दे ४, ४१)।

णित्तुप्प :: वि [दे] स्‍नेह-रहित, घृत आदि से वर्जित (बृह १)।

णित्तुल :: वि [निस्तुल] १ निरुपम, असाधारण (उप पृ ५३) २ क्रिवि. असाधारण रूप से; 'अणणहा नित्तुलं मरसि' (सुपा ३४५)

णित्तुस :: वि [निस्तुष] तुष-रहित, भूसा से रहित, विशुद्ध (पणह २, ४; उप १७९ टी)।

णित्तेय :: वि [निस्तेजस्] तेज-रहित (णाया १, १)।

णित्थणण :: न [निस्तनन] विजय-सूचक ध्वनि (सुर २, २३३)।

णित्थर :: सक [निर् + तृ] पार करना, पार उतरना। णित्थरेइ (सुपा ४४९); 'णित्थरंति खलु कायरावि पायनिज्जामय- गुणेण महणणवं' (स १६३)। कवकृ. णित्थरिज्जंत (राज)। कृ. णित्थरियव्व (णाया १, ३; सुपा १२६)।

णित्थरण :: न [निस्तरण] पार-गमन, पार- प्राप्ति (ठा ४, ४; उप १३४ टी)।

णित्थरिअ :: देखो णित्थिण्ण (उफ १३४ टी)।

णित्थाण :: वि [निःस्थान] स्थान-रहित, स्थान- भ्रष्ट (णाया १, १८)।

णित्थाम :: वि [निःस्थामन्] निर्बंल, कमजोर, मन्द (पाअ; गउड; सुपा ४८६)।

णित्थार :: सक [निर् + तारय्] १ पार उतारना, तारना। २ बचाना, छुटकारा देना। णित्थारसु (काल)

णित्थार :: पुं [निस्तार] १ छुटकारा, मुक्ति। २ बचाव, रक्षा। ३ उद्धार (णाया १, ९ टी — पत्र १६९; सुर २, ५१, ७, २०१; सुपा २९९)

णित्थारग :: वि [निस्तारक] पार जानेवाला, पार उतरनेवाला (स १८३)।

णित्थारणा :: स्त्री [निस्तारण] पार-प्राप्रण, पार पहुँचाना (जं ३)।

णित्थारिय :: वि [निस्तारित] बचाया हुआ, रक्षित, उद्‍धृत (भग; सुपा ४४९)।

णित्थिण्ण, णित्थिन्न :: वि [निस्तीर्ण] १ उत्तीर्णं, पार- प्राप्त; 'णित्थिण्णो समुद्दं' (स ३६७) २ जिसको पार किया हो वह, 'णित्थिन्ना आवया गरुई' (सुर ८, ८९); 'नित्थिण्णभवसमुद्दो' (स १३९)

णिदंस :: सक [नि + दर्शय्] १ उदाहरण बतलाना, दृष्टान्त दिखाना। २ दिखाना। णिदंसेइ (पिंग)। वकृ. णिदंसंत (सुपा ८९)

णिदंसण :: न [निदर्शन] १ उदाहरण, दृष्टान्त (अभि २०३) २ दिखाना (ठा १०)

णिदंसिअ :: वि [निदर्शित] प्रदर्शित, दिखाया हुआ; 'एवं विचिंतिऊणं निदंसिओ नियकरो भए तीए' (सुर ६, ८२; उप ९९७; सार्धं ४०)।

णिदरिसण :: देखो णिदंसण (उव; उप ३८४)।

णिदरिसिम :: वि [निदर्शित] उपदर्शित, बत- लाया हुआ (धर्मंसं १०००)।

णिदा :: स्त्री [दे] १ वेदना-विशेष, ज्ञान-युक्त वेदना (भग १९, ५) २ जानते हुए भी की जाती प्राणी-हिंसा (पिंड)

णिदाण :: देखो णिआण (विपा १, १; अंत १५; नाट — वेणी ३३)।

णिदाया :: देखो णिदा (पणण ३५)।

णिदाह :: पुं [निदाघ] १ धर्मं, घाम, उष्ण। २ ग्रीष्म-काल, गरमी का मौसिम। ३ जेठ मास (आव ५)

णिदाह :: पुं [निदाघ] तीसरा नरक का एक नरक-स्थान (देवेन्द्र ८)|

णिदाह :: पुं [निदाह] असाधारण दाह (आव ५)।

णिदेस :: पुं [निदेश] आज्ञा, हुकुम (कुप्र ४२९)।

णिदेसिअ :: वि [निदेशित] १ प्रदर्शित। २ उक्त, कथित (पउम ५, १४५)

णिदोच्च :: न [दे] १ भय का अभाव। २ स्वास्थ्य, तंदुरुस्ती (पव २६८)

णिद्दंझाण :: न [निद्राध्यान] निद्रा में होता ध्यान, दुर्ध्यान-विशेष (आउ)।

णिद्दंद :: वि [निर्द्वन्द्व] द्वन्द्व-रहित, क्लेश-वर्जित (सुपा ४५५)।

णिद्दंभ :: वि [निर्दम्भ] दम्भ-रहित, कपट-रहित (सुपा १४७)।

णिद्दडी :: (अप) देखो णिद्दा = निद्रा (पि ५९९)।

णिद्दड्‍ढ :: वि [निर्दग्ध] १ जलाया हुआ, भस्म किया हुआ (सुर १४, २६; अंत १५) २ पुं. नृप-विशेष (पउम ३२, २२) ३ रत्‍न- प्रभा-नामक नरक-पृथिवी का एक नरकावास (ठा ६)। °मज्झ पुं [°मध्य] नरकावास- विशेष, एक नरक-प्रदेश (ठा ६)। °वित्त पुं [°वर्त] नरकावास-विशेष (ठा ६)। °सिट्ठ पुं [°वशिष्ट] नरक-प्रदेश-विशेष (ठा ६)

णिद्दय :: वि [निर्दय] दया-हीन, करुणा-रहित, निष्ठुर (पणह १, १; गउड)।

णिद्दलण :: न [निर्दलन] १ मर्दंन, विदारण (आचा) २ वि. मर्दंन, करनेवाला (वज्जा ४२)

णिद्दलिअ :: वि [निर्दलित] मर्दित, विदारित (पाअ; सुर ५, २२२; सार्धं ७९)।

णिद्दह :: सक [निर् + दह्] जला देना, भस्म करना। निद्दहइ (महा; उप)। णिद्द- हेज्जा (पि २२२)।

णिद्दा :: अक [नि + द्रा] निद्रा लेना, नींद करना। णिद्दाइ (षड्)। वकृ. णिद्दाअंत (से १, ५९)।

णिद्दा :: स्त्री [निद्रा] १ निद्रा, नींद (स्वप्‍न ५९; कप्पू) २ निद्रा-विशेष, वह निद्रा जिसमें एकाध आवाज देने पर ही आदमी जाग उठे (कम्म १, ११)। °अंत वि [°वत्] निद्रा- युक्त, निद्रित्त (से १, ५९)। °करी स्त्री [°करी] लता-विशेष (दे ७, ३४)। °णिद्दा स्त्री [°निद्रा] निद्रा-विशेष, वह निद्रा जिसमें वड़ी कठिनाई से आदमी उठाया जा सके (कम्म १, ११; सम १५)। °ल, °लु वि [°वत्] निद्रावाला (संक्षि २०; पि ५९५; प्राप्र)। °वअ वि [°प्रद] निद्रा देनेवाला (से ९, ४३)

णिद्दाअ :: वि [निद्रात] जो नींद में हो (से १, ५९)।

णिद्दाअ :: वि [निर्दाव] अग्‍नि-रहति (से १, ५९)।

णिद्दाअ :: वि [निर्दाय] दाय-रहित, पैतृक धन से वर्जित (से १, ५९)।

णिद्दाइअ :: वि [निद्रित] निद्रा-युक्त (महा)।

णिद्दाणी :: स्त्री [निद्राणी] विद्यादेवी-विशेष (पउम ७, १४४)।

णिद्दाया :: देखो णिदा (पणण ३५)।

णिद्दारिअ :: वि [निर्दारित] खण्डित, विदारित (से ५, ५३; १३, ९५)।

णिद्दाव :: वि [निर्दाव] १ दावनल-रहित। २ जंगल-रहित (से ९, ४३)

णिद्दिट्ठ :: वि [निर्दिष्ट] १ कथित, उक्त (भग) २ प्रतिपादित, निरूपित (पंचा ३; दंस)

णिद्दिट्ठु :: वि [निर्देष्टृ] निर्देंश करनेवाला (विसे १५०४; विक्र ६४)।

णिद्दिस :: सक [निर् + दिश्] १ उच्चारण करना, कथन करना। २ प्रतिपादन करना, निरूपण करना। निद्दिसइ (विसे १५२९)। कर्मं. णिद्दिसइ (नाट — मालवि ५३)। हेकृ. निद्देट्‍ठुं (पि ५७६)। कृ. णिद्दिस्स, णिद्देस (विसे १५२३)

णिद्‍दुक्ख :: वि [निर्दुःख] दुःख-रहित, सुखी (सुपा ५३७)।

णिद्‍दुर :: पुं [दे. नेत्तर] देश-विशेष (इक)।

णिद्‍दूसण :: वि [निर्दूषण] निर्दोष (धर्मवि २०)।

णिद्देस :: पुं [निर्देश] १ लिग या अर्थं-मात्र का कथन (ठा ८ — पत्र ४२७) २ विशेष का अभिधान; 'अविसेसियमुद्देसो विसेसिओ होइ निद्देसो' (विसे; १४९७; १५०३) ३ निश्चय पूर्वंक कथन (विसे १५२६) ४ प्रति- पादन, निरूपण (उत्त १; णंदि) ५ आज्ञा, हुकुम (पाअ, दस ९, २) ६ वि. जिसको देश-निकाले की आज्ञा हुई हो वह (पउम ४, ८२)

णिद्देसग, णिद्देसय :: वि [निर्देशक] निर्देश करनेवाला (विसे १५०८; १५००)।

णिद्दोत्थ :: न [निर्दौःस्थ्य] १ दुःस्थता का अभाव (वव ४) २ वि. स्वस्थ, दुःस्थता- रहित (वव ७)

णिद्दोस :: वि [निर्दोष] दोष-रहित, दूषण- वर्जित, विशुद्ध (गउड; सुर १, ७३)।

णिद्ध :: न [स्‍निग्ध] स्‍नेह, रस-विशेष (ठा १; अणु)। २ वि. स्‍नेह-युक्त, चिकना (हे २, १०९; उव; षड्) ३ कान्ति-युक्त, तेजस्वी (बृह ३)

णिद्धंत :: वि [निर्ध्मात] अग्‍नि-संयोग से विशो- धित, मल-रहित (पणह १, ४; औप)।

णिद्धंधस :: वि [दे] १ निर्दंय, निष्ठुर (दे ४, ३७; औघ ४४५; पाअ; पुप्फ ४५४; सट्ठि २६; सुपा २४५; श्रा ३६) २ निर्लंज्ज, बेशरम (विवे १२८)

णिद्धण :: वि [निर्धन] धन-रहित, अकिंचन (हे २, ९०; णाया १, १८; दे ४, ५; उप ७६ टी; महा)।

णिद्धण्ण :: वि [निर्धान्य] धान्य-रहित (तंदु)।

णिद्धम :: वि [दे] अविभिन्न-गृह, एक ही घर में रहनेवाला (दे ४, ३८)।

णिद्धमण :: न [दे] खाल, मोरी, पानी जाने का रास्ता (दे ४, ३९; उर २, १०; ठा ५, १, आवम; तंदु; उव; णाया १, २)।

णिद्धमण :: न [निर्ध्मान] १ तिररकार, अव- हेलना (उप पृ ३४६) २ पुं. यक्ष-विशेष (आव ४)

णिद्धमाय :: वि [दे] अविभिन्न-गृह, एक ही घर में रहनेवाला (दे ४, ३८)।

णिद्धम्म :: वि [दे] एकमुख-यायी, एक ही तरफ जानेवाला (दे ४, ३५)।

णिद्धम्म :: वि [निर्धर्मन्] धर्मं-रहित, अधर्मी (श्रा २७)।

णिद्धय :: वि [दे] देखो णिद्धम (दे ४, ३८)।

णिद्धाइऊण :: देखो णिद्धाव।

णिद्धाड :: सक [निर् + धाट्य] बाहर निकाल देना। कर्म. निद्धाडिज्जई (संबोध १६)।

णिद्धाडण :: न [निर्धाटन] निस्सारण, निष्का- सन, बाहर निकालना (पणह १, १)।

णिद्धाडाविय :: वि [निर्धाटित] अन्य द्वारा बाहर निकलवाया हुआ, अन्य द्वारा निस्सारित (महा)।

णिद्धाडिय :: वि [निर्धाटित] निस्सारित, निष्कासित (पाआ; भवि)।

णिद्धारण :: न [निर्धारण] १ गुण या जाति आदि को लेकर समुदाय से एक भाग कसा पृथक्करण। २ निश्चय, अवधारण (विसे ११६८)

णिद्धाव :: सक [निर् + धाव्] दौड़ना। संकृ. णिद्धाइऊण (महा)।

णिद्धाविय :: वि [निर्धावित] दौड़ा हुआ, धायित (महा)।

णिद्धण :: सक [निर् + धू] १ विनाश करना। २ दूर करना। संकृ. निद्धुणे, णिधूय (दस ७, ५७; सूअ १, ७)

णिद्धणिय, णिद्धुय :: वि [निर्धूत] १ विनाशित, नष्ट किया हुआ। २ अपनीत (सुपा ५९६; औप)

णिद्धूम :: वि [निर्धूम] १ धूम-रहित (कप्प; पउम ५३, १०) २ एक तरह का अपलक्षण (वव २)

णिद्धूय :: देखो णिद्धुय (जीव ३)।

णिद्धोअ :: वि [निर्धौत] १ धोया हुआ (गा ६३६; से १४, १९; स १९१) २ निर्मंल, स्वच्छ; 'निद्धोयउदयकंखिर — ' (वच्चा १५८)

णिद्धोभास :: वि [स्‍निग्धावभास] चमकीला, स्‍निग्धपन से चमकता (णाया १, १ — पत्र ४)।

णिधण :: न [निधन] विनाश, मृत्यु, मौत (नाट — मृच्छ २५२)।

णिधत्त :: वि [निधत्त] निकाचित, निश्चित (ठा ८ — पत्र ४३४)।

णिधत्त :: न [निधत्त] १ कर्मों का एक तरह का अवस्थान, बधे हुए कर्मों का तप्त सूची- समूह की तरह अवस्थान। २ वि. निबिड़ भाव को प्राप्त कर्मं-पुद्गल (ठा ४, २)

णिधत्ति :: स्त्री [निधत्ति] करण-विशेष, जिससे कर्मं-पुद्गल निबिड़ रूप से व्यवस्थापित होता है (पंच ५)।

णिधम्म :: देखो णिद्धम्म = निर्धर्मंन (ओघ ३७ भा)।

णिधाण :: देखो णिहाण (नाट — महावीर १२०)।

णिधूय :: देखो णिद्धूण।

णिन्नाण :: सक [निर् + नमय्] नमाना, झुकाना। णिन्नामए (सूअ १, १३, १५)।

णिन्नीय :: देखो णिण्णीअ (धर्मंवि ५)।

णिपट्ट :: न [दे] गाढ़ (प्राकृ ३८)।

णिपडिय :: वि [निपतित] नीचे गिरा हुआ (सण)।

णिपा :: सक [नि + पा] पीना। संकृ. निपीय (सम्मत्त २३०)।

णिपाइ :: वि [निपातिन्] १ नीचे गिरने- बाला। २ सामने गिरनेवाला (सूअ १, ५)

णिपूर :: पुं [निपूर] नन्दीवृक्ष (आचा २, १, ८, ३)।

णिप्पअंप :: देखो णिप्पकंप (से ६, ७८)।

णिप्पएस :: वि [निष्प्रदेश] १ प्रदेश-रहित। २ पुं. परमाणु (विसे)।ऑ

णिप्पंक :: वि [निष्पङ्क] कर्दंम-रहित, पाँक- रहित (सम १३७; भग)।

णिप्पंकिय :: वि [निष्पङ्किन्] पंक-रहित (भवि)।

णिप्पंख :: सक [निर् + पक्षय्] पक्ष-रहित करना, पंख तोड़ना। णिप्पंखेंति (विपा १, ८)।

णिप्पंद :: वि [निष्पन्द] चलन-रहित, स्थिर (से २, ४२)।

णिप्पकंप :: वि [निष्प्रकम्प] कम्प-रहित, स्थिर (सम १०९; पणह २, ४)।

णिप्पक्ख :: वि [निष्पक्ष्] पक्ष-रहित (गउड)।

णिप्पगल :: वि [निष्प्रगल] टपकनेवाला, झरनेवाला, चूनेवाला (ओघ ३५; ओघ ३४ भा)।

णिप्पच्चवाय :: वि [निष्प्रत्यवाय] १प्रत्यवाय- रहित, निर्विघ्‍न (ओघ २४ टी) २ निर्दोष, विशुद्ध, पवित्र; 'णिप्पच्चवायचरणा कज्जं साहंति' (सार्ध ११७)

णिप्पच्छिम :: वि [निष्पश्चिम] १ अन्तिम, अन्त का (से १२, २१) २ परिशिष्ट, अवशिष्ट, बाकी का; 'णिप्पच्छिमाइं असई दुक्खालोआइं महुअपुप्फाइं' (गा १०४)

णिप्पट्ठ :: वि [दे] अधिक (दे ४, ३१)।

णिप्पट्ट :: वि [निःस्पष्ट] अस्पष्ट, अव्यक्त। °पसिणवागरण [°प्रश्‍नव्याकरण] निरु- त्तर किया हुआ (भग १५; णाया १, ५; उवा)।

णिप्पट्ठ :: वि [निःस्पष्ट] नहीं छुआ हुआ। °पसिणवागरण वि [°प्रश्‍नव्याकरण] निरुत्तर किया हुआ (भग १५)।

णिप्पडिकम्म :: वि [निष्प्रतिकर्मन्] संस्कार- रहित, परिष्कार-वर्जित, मलिन (सम ५७; सुपा ४८५)।

णिप्पडियार :: वि [निष्प्रतिकार] निरुपाय, प्रतिकार-वर्जित (पणह २, ४)।

णिप्पणिअ :: वि [दे] जल-धौत, पानी से धोया हुआ (षड्)।

णिप्पण्ण :: देखो णिप्फण्ण (गा ६८९)।

णिप्पण्ण :: वि [निष्प्रज्ञ] बुद्धि-रहित, प्रज्ञा- शून्य (उप १७९ टी)।

णिप्पत्त :: वि [निष्पन्न] पत्र-रहित (गा ८८७; वव १)।

णिप्पत्ति, णिप्पद्दि :: देखो णिप्फत्ति (पंचा १८; संक्षि ९)।

णिप्पन्न :: देखो णिप्पण्ण (कुप्र २०८)।

णिप्पभ :: वि [निष्प्रभ] निस्तेज, फीका (महा)।

णिप्परिग्गह :: वि [निष्परिग्रह] परिग्रह-रहित (उत्त १४)।

णिप्पलिवयण :: वि [निष्प्रतिवचन] निरुत्तर, उतर देने में असमर्थं (सम ६०)।

णिप्पसर :: वि [निष्प्रसर] प्रसर-रहित, जिसका फैलाव न हो (पि ३०५)।

णिप्पह :: देखो णिप्पभ (से १०, १२; हे २, ५३)।

णिप्पाइय :: देखो णिप्फाइय (कुप्र १६६)।

णिप्पाण :: वि [निष्प्राण] प्राण-रहित, निर्जीव (णाया १, २)।

णिप्पाल :: देखो णेपाल (धर्मंवि ९६)।

णिप्पाव :: पुं [निष्पाप] एक दिना का उपवास (संबोध ५८)।

णिप्पाव :: देखो णिप्फाव (पि ३०५)।

णिप्पिच्छ :: वि [दे] १ ऋजु, सरल। २ दृढ़, मजबूत (दे ४, ४९)

णिप्पिट्ठ :: वि [निष्पिष्ट] पीसा हुआ (दे ८, २०; सण)।

णिप्पिट्ठ :: न [निष्पिष्ट] पेषण की समाप्ति (पिंड ६०२)।

णिप्पिवास :: वि [निष्पिपास] पिपासा-रहित, तृष्णा-वर्जित, निःस्पृह (पणह १, १; णाया १, १; सुर १, १३)।

णिप्पिवासा :: स्त्री [निष्पिपासा] स्पृहा का अभाव (वि १८)।

णिप्पिह :: वि [निःस्पृह] स्पृहा-रहित, निर्मंम (हे २, २३; उप ३२० टी)।

णिप्पीडिअ :: वि [निष्पीडित] दबाया हुआ (से ५, २५)।

णिप्पीलण :: न [निष्पीड़न] दबाव, दबाना (आचा)।

णिप्पीलिय :: देखो णिप्पीडिअ। २ निचोड़ा हुआ; 'निप्पीलियाइं पोत्ताइं' (स ३३२)

णिप्पुंसण :: न [निष्पुंसन] १ पोंछना, मार्जन। २ अभिमर्दन (हे २, ५३)

णिप्पुन्न :: वि [निष्पुण्य] पुण्य-रहित (कुप्र ३१८)।

णिप्पुन्नग :: वि [निष्पुण्यक] १ पुण्य-रहित। २ पुं. स्वनाम-ख्यात एक कुलपुत्र (सुपा ५४५)

णिप्पुलाय :: पुं [निष्पुलाक] आगामी चौबीसी में होनेवाले एक स्वनाम-ख्यात जिन-देव (सम १५३)।

णिप्पुलाय :: वि [निष्पुलाक] चारित्र-दोष में रहित (दस १०, १६)।

णिप्फंद :: देखो णिप्पंद (हे २, २११, णाया १, २; सुर ३, १७२)।

णिप्फंस :: वि [दे] निर्स्त्रिंश, निर्दय। (षड्)।

णिप्फज्ज :: अक [निर् + पद्] नीपजना, उप- जना, सिद्ध होना। णिप्फज्जइ (स ६१६)। वकृ. णिप्फज्जमाण (पणह १, ४)।

णिप्फडिअ :: वि [निस्फटित] १ विशर्ण। २ जिसका मिजाज ठिकाने पर न हो। ३ अंकुश-रहित (उप १२८ टी)

णिप्फण्ण :: वि [निप्पन्न] नीपजा हुआ, बना हुआ, सिद्ध (से २, १२; महा)।

णिप्फत्ति :: वि [निष्पत्ति] निष्पादन, सिद्धि (उव; उप २८० टी; सार्धं १०६)।

णिष्फन्न :: देखो णिप्फण्ण (कप्प; णाया १, १६)।

णिप्फरिस :: वि [दे] निर्दंय, दया-हिन (दे ४, ३७)।

णिप्फल :: वि [निष्फल] फल-रहित, निरर्थक (स १४, २६; गा १३६)।

णिप्फाअ :: देखो णिप्फाव (प्राप्र)।

णिप्फाइऊण :: देखो णिप्फाय।

णिप्फाइय :: वि [निष्पादित] नीपजाया हुआ, बनाया हुआ, सिद्ध किया हुआ (विसे ७ टी; उप २११ टी; महा)।

णिप्फाय :: सक [निर् + पादय्] नीप- जाना, बनाना, सिद्ध करना। संकृ. णिप्फाइ- ऊण (पंचा ७)।

णिप्फायग :: वि [निष्पादक] नीपजानेवाला, बनानेवाला, सिद्ध करनेवाला (विसे ४८३; ठा ६; उप ८२८)।

णिप्फायण :: न [निष्पादन] नीपजाना, निर्माण, कृति (आव ४)।

णिप्फाव :: पुं [निष्पाव] धान्य-विशेष, वल्ल (हे २, ५३; पणण १; ठा ५, ३; श्रा १८)।

णिप्फाव :: पुं [निष्पाव] एक माप, बाँट-विशेष (अणु १५५)।

णिप्फिड :: अक [नि + स्फिट्] बाहर निकलना। वकृ. णिप्फिडंत (स ५७५)।

णिप्फिडिअ :: वि [निस्फिटित] निर्गंत, बाहर निकला हुआ (पउम ६५, २२७; ८०, ६०)।

णिप्फुर :: पुं [निस्फुर] प्रभा, तेज (गउड)।

णिप्फेड :: पुं [निस्फेट] निर्गमन, बाहर निक- लना (उप पृ २५२)।

णिप्फेडय :: वि [निस्फेटक] बाहर निकालनेवाला (सूअ २, २, ५८)।

णिप्फोडय :: वि [निस्फेटित] १ निस्सारित, निष्कासित (सूअ २, २) २ भगाया हुआ, नसाया हुआ (पुप्फ १२५) ३ अपहृत, छीना हुआ (ठा ३, ४)

णिप्फेडिया :: स्त्री [निस्फेटिका] अपहरण, चोरी; 'एसा पढणा सीसनिप्फेडिया' (सुख २, १३; पव १०७)।

णिप्फेस :: पुं [दे] शब्द-निर्गंम, आवाज निक- लना (दे ४, २९)।

णिप्फेस :: पुं [निष्पेष] १ पेषण, पीसना। २ संघर्षं (हे २, ५३)

णिबंध :: सक [नि + बन्ध्] १ बाँधना। २ २ करना। निबंधइ (भग)

णिवंध :: सक [नि + बन्ध्] उपार्जंन करना। णिबंधंति (पंचा ७, २२)।

णिबंध :: पुंन [निबन्ध] १ संबन्ध, संयोग (विसे ६६८) २ आग्रह, हठ (महा); 'णिबन्धाणि' (पि ३५८)

णिबंधण :: न [निर्बंधन] कारण, प्रयोजन, निमित्त (पाअ; प्रासू ९९)।

णिबद्ध :: वि [निबद्ध] १ बँधा हुआ (महा) २ संयुक्त, संबद्ध (से ६, ४४)

णिबिड :: वि [निबिड] सान्द्र, घना, गाढ़ (गउड; कुमा)।

णिविडिय :: वि [निबिडित] निबिड़ किया हुआ (गउड)।

णिबुक्क :: [दे] देखो णिब्बुक्क (पणह १, ३ — पत्र ४९)।

णिबुड्ड :: अक [नि + मस्ज्] निमजन करना, डूबना। वकृ. णिवुड्डिज्जंत, निबुड्डमाण (अच्चु ९३; उवा)।

णिबुड्ड :: वि [निमग्न] डूबा हुआ, निगग्‍न (गा ३७; सुर ३, ५१, ४, ८०)।

णिबुड्डण :: न [निमज्जन] डूबना, निमज्जन (पउम १०, ४३)।

णिबोल :: देखो णिबुड्ड = नि + मस्ज। वकृ. णिवोलिज्जमाण (राज)।

णिबोह :: पुं [निबोध] १ प्रकृष्ट बोध, उत्तम ज्ञान। २ अनेक प्रकार का बोध (विसे २१८७)

णबोहण :: न [निबोधन] प्रबोध समझाना (पउम १०२, ६२)।

णिब्बंध :: पुं [निर्वन्ध] आग्रह (गा ६७५; महा; सुर ३, ८)।

णिब्बंधण :: न [निर्बन्धन] निबन्धन, हेतु, कारण; 'सारीरियखेयनित्वंवणं धणं' (काल)।

णिब्बल :: देखो णिव्वल = निर् + पद्। णिव्व- लइ (प्राकृ ६४)।

णिब्बल :: वि [निर्बल] वल-रहित दुर्बल (आचा)।

णिब्बहिं :: अ [निर्बहिस्] अत्यन्त बाहर (ठा ६ — पत्र ३५२)।

णिब्बाहिर :: वि [निर्बाह्य] बाहर का, बाहर गया हुआ; 'संजमनिब्बाहिरा जाया' (उवा)।

णिब्बुक्क :: वि [दे] १ निर्मूल, मूल-रहित। २ क्रिवि. मूल से; 'णिब्बुक्कछिण्णधय — ' (पणह १, ३ — पत्र ४५)

णिब्बुड्ड :: देखो णिबुड्ड = निमग्‍न (स ३९०; गउड)।

णिब्भंछण :: देखो णिब्भच्छण (उव ३०३)।

णिब्भंजण :: न [दे] पक्वान्‍ने के पकाने पर जो शेष घृत रहता है वह (पभा ३३)।

णिब्भंत :: वि [निर्भ्रान्त] निःसंदेह, संशय- रहित (ति १४)।

णिब्भग्ग :: न [दे] उद्यान, बगीचा (दे ४, ३४)।

णिब्भग्ग :: वि [निर्भाग्य] भाग्य-रहित, कम- नसीब, अभागा (उप ७२८ टी; सुपा ३८५)।

णिब्भच्छ :: सक [निर् + भर्त्स्] १ तिर- स्कार करना, अपमान करना, अवहेलना करना, आकोश-पूर्वक अपमान करना। णिब्भच्छेइ, णिब्भच्छेजा (णाया १, १८; उवा)। संकृ. णिब्भच्छिअ (नाट — मालती १७१)

णिब्भच्छण :: न [निर्भर्त्सन] तिरस्कार, अपमान, परुष बचन से अवहेलना (पणह १, ३; गउड)।

णिब्भच्छणा :: स्त्री [निर्भर्त्सना] ऊपर देखो (भग १५; णाया १, १६)।

णिब्भच्छिअ :: वि [निर्भर्त्सित] अपमानित, अवहेलित (गा ८९८; सुपा ४२७)।

णिब्भय :: वि [निर्भय] भय-रहित, निडर (णाया १, ४; महा)।

णिब्भर :: सक [निर् + भृ] भरना, पूर्णं करना। कबकृ. णिब्भरेंत (से १५, ७४)।

णिब्भर :: वि [निभेर] १ पूर्ण, भरपूर (से १०, १७) २ व्यापक, फैलनेवाला (कुमा) ३ क्रिवि. पूर्ण रूप से 'मेघो य णिब्भरं वरिसइ' (आवम)

णिब्भिंद :: सक [निर् + भिद्] तोड़ना, विदा- रण करना। कवकृ णिब्भिज्जंत, णिब्भि- ज्जमाण (से १४, २६; भग १८, २, जीव ३)।

णिब्भिच्च :: वि [निर्भीक] भय-रहित, निडर (सुपा १४३; २४६; २७५)।

णिब्भिज्जंत, णिब्भिज्जमाण :: देखो णिब्भिंद।

पिब्भिट्ट :: वि [दे] आक्रान्त (भवि)।

णिब्भिण्ण :: वि [निर्भिन्न] १ विदारित, तोड़ा हुआ (पाअ) २ विद्ध (से ५, ३४)

णिब्भीअ :: वि [निर्भीक] भय-रहित, निडर (से १३, ७०)।

णिब्भुग्ग :: वि [दे] भग्‍न, खण्डित (दे ४, ३२)।

णिब्भुय :: देखो णिभुअ (चेइय ५८६)।

णिब्भेय :: पुं [निर्भेद] भेदन, विदारण (सुपा ३२७)।

णिब्भेयण :: न [निर्भेदन] ऊपर देखो (सुर २, ६९)।

णिब्भेरिय :: वि [निर्भेरित] प्रसारित, फैलाया हुआ (उत्त १२, २९)।

णिभ :: देखो णिह = निभ (उव; जं ३)।

णिभच्छण :: देखो णिब्भच्छण (पिंड २१०)।

णिभंग :: पुं [निभङ्ग] भञ्जन, खण्डन, त्रोटन (राज)।

णिभाल :: सक [नि + भालय्] देखना, निरीक्षण करना। णिभालेहि (आवम)। वकृ. णिभालयंत (उप पृ ५३)। कवकृ. णिभालिज्जंत (उप ९८६ टी)।

णिभालिय :: वि [निभालित] दृष्ट, निरीक्षित (उप पृ ५८)।

णिभिअ, णिभुअ :: देखो णिहुअ (पणह २, ३; गा ८००)।

णिभेल :: सक [निर् + भेलय्] बाहर करना। कवकृ. णिभेल्लंत (पणह १, ३ — पत्र ४५)।

णिभेलण :: न [दे] गृह, घर, स्थान (कप्प)।

णिम :: सक [नि + अस्] स्थापन करना। णिमइ (हे ४, १९९; षड्)। णिमेइ (पि ११८)। वकृ. णिमेंत (से १, ४१)।

णिमंत :: सक [नि + मन्त्रय्] निमन्त्रण देना, न्यौता देना। णिमंतेइ (महा)। वकृ. णिमं- तेमाण (आचा २, २, ३)। संकृ. णिमंति- ऊण (महा)।

णिमंतण :: न [निमन्त्रण] निमन्त्रण, न्यौता, बुलावा (उप पृ ११३)।

णिमंतणा :: स्त्री [निमन्त्रणा] ऊपर देखो (पंचा १२)।

णिमंतिय :: वि [निमन्त्रित] जिसको न्यौता दिया गया हो वह (महा)।

णिमग्ग :: वि [निमग्‍न] डूबा हुआ (पउम १०९, ४; औप)। °जला स्त्री [°जला] नदी-विशेष (जं ३)।

णिमज्ज :: अक [नि + मस्ज्] डूबना, निम- ज्जन करना। णिमज्जइ (पि ११८)। वकृ. णिमज्जंत (गा ६०६, सुपा ९४)।

णिमज्जग :: वि [निमज्जक] १ निमज्जन करनेवाला। पुं. वानप्रस्थाश्रमी तापस-विशेष, जो स्‍नान के लिए थोड़े समय तक जलाशय में निमग्‍न रहते है (औप)

णिमज्जण :: न [निमज्जन] डूबना, जल-प्रवेश (सुपा ३५४)।

णिमाणिअ :: देखो णिम्माणिअ = निर्मानित (भवि)।

णिमि :: सक [नि + युज्] जोड़ना। णिमेइ (प्राकृ ६७)।

णिमिअ :: वि [न्यस्त] स्थापित, निहित (कुमा; से १, ४२; स ९, स ७६०; सण)।

णिमिअ :: वि [दे] आघ्रात, सूँघा हुआ (षड्)।

णिमिण :: देखो णिम्माण = निर्माण (कम्म १, २५)।

णिमित्त :: न [निमित्त] १ कारण, हेतु (प्रासू १०४) २ कारण-विशेष, सहकारि-कारण (सूअ २, २) ३ शास्त्र-विशेष, भविष्य आदि जानने का एक शास्त्र (ओघ १६; भा ८) ४ अतीन्द्रिय ज्ञान में कारण-भूत पदार्थं (ठा ८) ५ जैन साधुओं की भिक्षा का एक दोष (ठा ३, ४)। °पिंड पुं [°पिण्ड] भविष्य आदि बतला कर प्राप्त की हुई भिक्षा (आचा २, १, ९)

णिमित्ति :: वि [निमित्तिन्] निमित्त-शास्त्र का जानकार (कुप्र ३७८)।

णिमित्तिअ :: देखो णेमेत्तिअ (सुपा ४०२)।

णिमिल्ल :: अक [नि + मील्] आँख, मूँदना, आँख मींचना। णिमिल्लइ (हे ४, २३२)।

णिमिल्ल :: वि [निमीलित] जिसने नेत्र बंद किया हो, मुद्रित-नेत्र (से ६, ६१; ११, ५०)।

णिमिल्लण :: देखो णिमीलण (राज)।

णिमिस :: अक [नि + मिष्] आँख मूँदना। निमिसंति (तंदु ५३)।

णिमिस :: पुं [निमिष] नेत्र-संकोच, अक्षि- मीलन, पलक मारे भर का समय (गा ३५८; सुपा २१९; गउड)।

णिमीलण :: न [निमीलन] अक्षि-संकोच (गा ३६७; सूअ १, ५, १, १२ टी)।

णिमीलिअ :: वि [निमीलित] मुद्रित (नेत्र) (गा १३३; से ६, ८९; महा)।

णिमीस :: न [निमिश्र] एक विद्याधर-नगर (इक)।

णिमे :: सक [नि + मा] स्थापन करना। णिमेसि (गउड)।

णिमेण :: न [दे] स्थान, जगह (दे ४, ३७)।

णिमेल :: स्त्रीन [दे] दन्त-मांस (दे ४, ३०)। स्त्री. °ला (दे ४, ३०)।

णिमेस :: पुं [निमेष] निमीलन, अक्षि संकोच, पलक का गिरना, पलक (श्रा १६; उव)।

णिमेसि :: देखो णिमे।

णिमेसि :: वि [निमेषिन्] आँख मूँदनेवाला (सुपा ४४)।

णिम्म :: सक [निर् + मा] बनाना, निर्माण करना। णिम्मइ (षड्)। णिम्मेइ (धम्म १२ टी)। कवकृ. णिम्माअंत (नाट — मालती ५४)।

णिम्म :: पुंस्त्री [नैम] जमीन से ऊँचा निकलता प्रदेश (राय २७)।

णिम्मइअ :: वि [निर्मित] रचित, कृत (गा ५००; ६०० अ)।

णिम्मंथण :: न [निर्मथन] १ बिनाश। २ वि. विनाशक; 'तह य पयट्टसु सिग्धं णत्थनिम्मंथणं तित्थं' (सुपा ७१)

णिम्मंस :: वि [निर्मांस] मांस-रहित, शुष्क (णाया १, १; भग)।

णिम्मंसा :: स्त्री [दे] देवी-विशेष, चामुण्डा (दे ४, ३५)।

णिम्मंसु :: वि [दे. निःश्‍मश्रु] तरुण, जवान, युवा (दे ४, ३२)।

णिम्मक्खिअ :: देखो णिम्मच्छिअ = निर्मक्षिक (नाट)।

णिम्मच्छ :: सक [नि + म्रक्ष्] विलेपन करना। णिम्मच्छइ (भवि)।

णिम्मच्छण :: न [निम्रक्षण] विलेपन (भवि)।

णिम्मच्छर :: वि [निर्मात्सर्य] मात्सर्य-रहित, ईर्ष्या-शून्य (उप पृ ८४)।

णिम्मच्छिय :: वि [निम्रक्षित] विलिप्त (भवि)।

णिम्मच्छिअ :: नि [निर्मक्षिक] १ मक्षिका का अभाव। २ विजन, निर्जनता (अभि ६८)

णिम्मज्जया :: वि [निर्मर्याद] मर्यादा-रहित, बेहया (दे १, १३३)।

णिम्मज्जिय :: वि [निर्मार्जित] उपलिप्‍त (स ७५)।

णिम्मण :: वि [निर्मनस्] मन-रहित (द्रव्य १२)।

णिम्मणुय :: वि [निर्मनुज] मनुष्य-रहित (सण)।

णिम्मद्दग :: वि [निर्मर्दक] १ निरन्तर मर्दंन करनेवाला। २ पुं. चोरों की एक जाति (पणह १, ३)

णिम्मद्दिय :: वि [निर्मर्दित] जिसका मर्दंन किया गया हो (पणह १, ३)।

णिम्मम :: वि [निर्मम] १ ममता-रहित, निः- स्पृह (अच्चु ९६; सुपा १४०) २ पुं. भारत- वर्षं के एक भावी जिनदेव (सम १५४)

णिम्मय :: वि [दे] गत, गया हुआ (दे ४, ३४)।

णिम्मल :: वि [निर्मल] मल-रहित, विशुद्ध (स्वप्‍न ७०; प्रासू १३१)। २ पुं. ब्रह्म-देव- लोक का एक प्रस्तर (ठा ६)

णिम्मल्ल :: न [निर्माल्य] देव का उच्छिष्ट द्रव्य, देवता पर चढ़ाई हुई वस्तु का बचा- खुचा (हे १, ३८; षड्)।

णिम्मव :: सक [निर् + मा] बनाना, रचना, करना। णिम्मवइ (हे ४, १९; षड्)। कर्मं. निम्मविज्जंति (वज्जा १२२)।

णिम्मव :: सक [निर् + मापय्] बनवाना, कराना (ठा ४, ४; कुमा)।

णिम्मवइत्तु :: वि [निमापयितृ] बनवानेवाला (ठा ४, ४)।

णिम्मवण :: न [निर्माण] रचना, कृति (उप ६४८ टी, सुपा २३, ६५; ३०५)।

णिम्मवण :: न [निर्मापण] बनवाना, कराना (कप्पू)।

णिम्मविअ :: वि [निर्मित] बनाया हुआ, रचित (कुमा; गा १०१; सुर १६, ११)।

णिम्मविअ :: वि [निर्मापित] बनवाया हुआ (कुमा)।

णिम्मह :: सक [गम्] १ जाना, गमन करना। २ अक. फैलना। णिम्महइ (हे ४, १६२)। वकृ. णिम्महंत, णिम्महमाण (से ७, ६२; १५, ५३; स १२६)

णिम्मह :: पुं [निर्मथ] १ विनाश। २ वि. विनाशक (भवि)

णिम्महण :: न [निर्मथन] १ विनाश। २ वि. विनाश-कारक (सुपा ७५) स्त्री. °णो (सुर १६, १८४)

णिम्महिअ :: वि [गत] गया हुआ (कुमा)।

णिम्महिअ :: वि [निर्मथित] विनाशित (हेका ५०)।

णिम्मा :: देखो णिम्म। णिम्माइ (प्राकृ ६४)।

णिम्माअंत :: देखो णिम्म।

णिम्माइअ :: देखो णिम्माय (पि ५९१)।

णिम्माण :: सक [निर + मा] बनाना, करना, रचना णिम्माणइ (हे ४, १९; षड्; प्राप्र)।

णिम्माण :: न [निर्माण] १ रचना, बनावट, कृति। २ कर्म-विशेष, शरीर के अंगोपांग के निर्माण में नियामक कर्मं-विशेष (सम ६७)

णिम्माण :: वि [निर्मान] मान-रहित (से ३, ४५)।

णिम्माणअ :: वि [निर्मायक] निर्माण-कर्त्ता, बनानेवाला (से ३, ४५)।

णिम्माणिअ :: वि [निर्मित] रचित, बनाया हुआ (कुमा)।

णिम्माणिअ :: वि [निर्मानित] अपमानित, तिरस्कृत (भवि)।

णिम्माणुस :: वि [निर्मानुष] मनुष्य-रहित (सुपा ४४४)। स्त्री. °सी (महा)।

णिम्माय :: वि [निर्मात] १ रचित, विहित, कृत (उव; पाअ; वज्जा ३४) २ निपुण, अभ्यस्त, कुशल (औप; कप्प); 'नाहियसत्थेसु निम्माया परिवाइया' (सुर १२, ४२)

णिम्माय :: न [निर्माय] तप-विशेष, निर्विकृतिक तप (संबोध ५८)।

णिम्मालिअ :: देखो णिम्मल्ल (प्राकृ १९)।

णिम्माव :: सक [निर् + मापय्] बनबाना, करवाना। णिम्मावइ (सण)। कृ. णिम्मा- वित्त (सूअ २, १, २२)।

णिम्माविय :: वि [निर्मापित] बनवाया हुआ, कारित, कराया हुआ (सुपा २६७)।

णिम्मिअ :: वि [निर्मित] रचित, बनाया हुआ (ठा ८; प्रासू १२७)। °वाइ वि [°वादिन्] जगत कतो ईश्‍वरादि-कृत माननेवाला (ठा ८)।

णिम्मिस्स :: वि [निर्मिश्र] १ मिला हुआ, मिश्रित। °वल्ली स्त्री [°वल्ली] अत्यन्त नज- दीक का स्वजन, जैसे माता, पिता, भाईष भगिनी, पुत्र और पुत्री (वव १०)

णिम्मीस :: वि [निर्मिश्र] मिश्रण-रहित (देवेन्द्र २९०)।

णिम्मीसुअ :: वि [दे] श्‍मश्रु-रहित, दाढ़ी-मूँछ वर्जित (षड्)।

णिम्मुक्क :: वि [निर्मुक्त] मुक्त किया गया (सुपा १७३)।

णिम्मुक्ख :: पुं [निर्मोक्ष्] मुक्ति, छुटकारा (विसे २४६८)।

णिम्मूल :: वि [निर्मृल] मूल-रहित, जिसका मूल काटा गया हो वह (सुपा ५३५)।

णिम्मेर :: वि [निर्मार्याद] मर्यादा-रहित, निर्लंज्ज (ठा ३, १; औप; सुपा ६)।

णिम्मोअ :: पुं [निर्मोक] कञ्चुक, केंचुल, सर्पं की त्वचा (हे २, १८२; भत्त ११०; से १, ६०)।

णिम्मोअणी :: स्त्री [निर्मोचनी] कञ्चुक, निर्मोक (उत्त १४, ३५)।

णिम्मोडण :: न [निर्मोटन] विनाश (मै ६१)।

णिम्‍नोल्ल :: वि [निर्मूल्य] मूल्य-रहित (कुमा)।

णिम्मोह :: वि [निर्मोह] मोह-रहित (कुमा; श्रा १२)।

णिरइ :: स्त्री [निर्ऋति] मूल-नक्षत्र का अधि- ष्ठायक देव (ठा २, ३)।

णिरइयार :: वि [निरितचार] अतिचार-रहित, दूषण-वर्जित (सुपा १००)।

णिरइसय :: वि [निरतिशय] अत्यन्त, सर्वा- धिक (काल)।

णिरईआर :: देखो णिरइयार (सुपा १००; रणण १८)।

णिरंकुस :: वि [निरङ्कुश] अंकुश-रहित, स्व- च्छन्दी (कुमा; श्रा २८)।

णिरंगण :: वि [निरङ्गण] निर्लेप, लेप-रहित, (औप; उव; णाया १, ११ — पत्र १७१)।

णिरंगी :: स्त्री [दे] सिर का अवगुण्ठन, घूँघट (दे ४, ३१; २, २०)।

णिरंजण :: वि [निरञ्जन] निर्लेप, लेप-रहित (स ५८२; कप्प)।

णिरंतय :: वि [निरन्तक] अन्त-रहित (उप १०३१ टी)।

णिरंतर :: वि [निरन्तर] अन्तर-रहित, व्यव- धान-रहित (गउड; हे १, १४)।

णिरंरतराय :: वि [निरन्तराय] १ निर्विघ्‍न, निर्बाध। २ व्यवधान-रहित, सतत; 'धम्मं करेह विमलं च निरन्तरायं' (पउम ४४, ६७)

णिरंतरिय :: वि [निरन्तरित] अन्तर-रहित, व्यवधान-रहित (जीव ३ )।

णिरंध :: वि [नीरन्ध्र] छिद्र-रहित (वक्र ९७)।

णिरंबर :: वि [निरम्बर] वस्त्र-रहित, नग्‍न (आवम)।

णिरंभा :: स्त्री [निरम्भा] एक इन्द्राणी वैरोचन इन्द्र की एक अग्र-महिषी (ठा ५, १; इक)।

णिरंस :: वि [निरंश] अंश-रहित, अखण्ड, सम्पूर्ण (विसे)।

णिरंइ° :: वि [निरंहस्] निर्मंल, पवित्र; 'मडयं व वाहिओ सो निरंहसा तेण जलपवाहेण' (धर्मंवि १४९)।

णिरक्क :: पुं [दे] १ चोर, स्तेन। २ पृष्ठ, पीठ। ३ वि. स्थित (दे ४, ४९)

णिरक्किय :: वि [निराकृत] अपाकृत, निरस्त (उत्त ९, ५६)।

णिरक्ख :: सक [निर् + ईक्ष्] निरीक्षण करना, देखना। णिक्खइ (हे ४, ४१८); 'तोवि ताव दिट्ठीए णिरक्खिजा' (महा)।

णिरक्खर :: वि [निरक्षर] मूर्ख, ज्ञान-रहित (कप्पू; वज्जा १५८)।

णिरगार :: वि [निराकार] आकार-रहित; 'निरगारपच्चक्खाणेवि अरहंताईणमुज्झित्था' (संबोध ३८)।

णिरग्गल :: वि [निरर्गल] १ रुकावट से रहित (सुपा १९२; ४७१) २ स्वच्छन्दी, स्वैरी, निरंकुश (पाक्ष)

णिरच्चण :: वि [निरर्चन] अर्चंन-रहित (उव)।

णिरट्ठ, णिरट्ठग :: वि [निरर्थ, °क] १ निरर्थंक, निष्प्रयोजन, निकम्मा (उत्त २०) २ न. प्रयोजन का अभाव; 'णिरट्ठगम्मि विरओ, मेहुणाओ सुसंवुडो' (उत्त २, ४२)

णिरण :: वि [निर्ऋण] ऋण-रहित, करज से मुक्त (सुपा ५६३; ५६६)।

णिरणास :: देखो णिरिणास = नश्। णिर- णासइ (हे ४, १७८)।

णिरणुकंप :: वि [निरनुकम्प] अनुकम्पा-रहित, निर्दंम (णाया १, २; बृह १)।

णिरणुक्कोस :: वि [निरनुक्रोश] निर्दय, दया-शून्य (णाया १, २; प्रासु ९८)।

णिरणुताव :: वि [निरनुताप] पश्‍चात्ताप-रहित (णाया १, २)।

णिरणुतावि :: वि [निरनुतापिन्] पश्‍चात्ताप- वर्जित (पव २७४)।

णिरत्थ :: वि [निरस्त] अपास्त, निराकृत (वव ८)।

णिरत्थ, णिरत्थग, णिरत्थय :: वि [निरर्थ, °क] अपार्थंक, निकम्मा, निष्प्रयोजन (दे ४, १६; पउम ६५, ४; पणह १, २; उव; सं ४१)।

णिरन्नय :: पुं [निरन्वय] अन्वय-रहित (धर्मंसं ४६९)।

णिरप्प :: अक [स्था] बैठना। णिरप्पइ (हे ४, १६)। भूका. णिरप्पीअ (कुमा)।

णिरप्प :: पुं [दे] १ पृष्ठ, पीठ। २ वि. उद्धे- ष्टित (दे ४, ४९)

णिरप्पण :: वि [निरात्मीय] अस्वकीय, पर- कीय (कुप्र ८६)।

णिरभिग्गह :: वि [निरभिग्रह] अभिग्रह-रहित (आव ६)।

णिरभिराम :: वि [निरभिराम] असुन्दर, अचारु (पणह १, ३)।

णिरभिलप्प :: वि [निरभिलाप्य] अनिर्वच- नीय, वाणी से बतलाने को अशक्य (विसे ४८८)।

णिरभिस्संग :: वि [निरभिष्वङ्ग] आसक्ति- रहित, निःस्पृह (पंचा २, ६)।

णिरय :: पुं [निरय] १ नरक, पाप-भोग-स्थान (ठा ४, १; आचा; सुपा १४०) २ नरक- स्थित जीव, नारक (ठा १०) °पाल पुं [°पाल] देव-विशेष (ठा ४, १)। °वलिया स्त्री [°वलिका] १ जैन आगम-ग्रन्थ विशेष (निर १, १) २ नरक-विशेष (पणण २)

णिरय :: वि [निरत] असक्त, तत्पर, तल्लीन (उप ६७६; उव; सुपा २९)।

णिरय :: वि [निरजस्] रजो-रहित, निर्मंल (भग; गा ८७८)।

णिरव :: सक [बुभुक्ष्] खाने की इच्छा करना। णिरवइ (षड्)।

णिरव :: सक [आ + क्षिप्] आक्षेप करना। णिरवइ (षड्)।

णिरवइक्ख :: वि [निरपेक्ष] अपेक्षा-रहित, निरीह, निःस्पृह (विसे ७ टी)।

णिरवकंख :: वि [निरवकाङ्क्ष्] स्पृहा-रहित, निःस्पृह (औप)।

णिरवकंखि :: वि [निरवकाङ्क्षिन्] निःस्पृह (णाया १, ९)।

णिरवगाह :: वि [निरवगाह] अवगाहन-रहित (षड्)।

णिरवग्गह :: वि [निरवग्रह] निरंकुश, स्व- च्छन्दी, स्वैरी (पाअ)।

णिरवच्च :: वि [निरपत्य] अपत्य-रहित, निःसंतान (भग; सम १५०)।

णिरवज्ज :: वि [निरवद्य] निर्दोष, विशुद्ध (दस ५, १; सुर ८, १८३)।

णिरवणाम :: देखो णिरोणाम (उव)।

णिरवयक्ख :: देखो णिरवइक्ख (णाया १, ९; पउम २, ९३)।

णिरवयव :: वि [निरवयव] अवयव-रहित, निरंश (विसे)।

णिरवयास :: वि [निरवकाश] अवकाश-रहित (गउड)।

णिरवराह :: वि [निरपराध] अपराध-रहित, बेगुनाह (महा)।

णिरवराहि :: वि [निरपराधिन्] ऊपर देखो (आव ६)।

णिरवलंब :: वि [निरवलम्ब] सहारा-रहित, असहाय (पणह १, ३)।

णिरवलाव :: वि [निरपलाप] १ अपलाप- रहित। गुप्त बात को प्रकट नहीं करनेवाला, दूसरे को नहीं कहनेवाला (सम ५७)

णिरवसंक :: वि [निरपशङ्क] दुःशंका-वर्जित (भवि)।

णिरवसर :: वि [निरवसर] अवसर-रहित (गउड)।

णिरवसाण :: वि [निरवसान] अन्त-रहित (गउड)।

णिरवसेस :: वि [निरषशेष] सब, सकल (हे १, १४; षड्; से १, ३७)।

णिरवह :: सक [निर् + वह्] निर्वाह करना, निबाहना। निरवहेज्जा (संबोध ३९)।

णिरवाय :: वि [निरपाय] १ उपद्रव-रहित, विघ्‍न-वर्जित। २ निर्दोष, विशुद्ध (श्रा १६; सुपा २७५)

णिरविक्ख, णिरवेक्ख, णिरवेच्छ :: देखो णिरवइक्ख (श्रा ९; उव; पि ३४१; से ६, ७५; सूअ १, ९; पंचा ४; निचू २०; नाट — चैत २५७)।

णिरस :: सक [निर् + अस्] अपास्त करना। णिरसइ (सण)।

णिरसण :: वि [निरशन] आहार-रहित, उपोषित (उप; सुपा १८१)।

णिरसण :: न [निरसन] निराकरण, हटा देना, दूर करना, खंडन (चेइय ७२४)।

णिरसि :: वि [निरसि] खड्ग-रहित (गउड)।

णिरसिअ :: वि [निरस्त] परास्त, अपास्त (दे ५, ५९)।

णिरस्साय :: वि [निरस्वाद] स्वाद-रहित (उत्त १९, ३७)।

णिरस्सावि :: वि [निरास्राविन्] नहीं टपकनेवाला, छिद्र रहित। स्त्री. °णी (उत्त २३, ७१; सुख २३, ७१)।

णिरहंकार :: वि [निरहंकार] गर्वं-रहित (उव)।

णिरहारि :: वि [निराहारिन्] आहार-रहित, उपोघित; 'हवउ व वक्कलधारी, निरहारी बंभचेरवयधारी' (सुपा २५२)।

णिरहिणगरण :: वि [निरधिकरण] अधिकरण- रहित, हिंसा-रहित, निर्दोष (पंचा १९)।

णिरहिगरणि :: वि [निरधिकरणिन्] ऊपर देखो (भग १६, १)।

णिरहिलास :: वि [निरभिलाष] इच्छा-रहित, निरीह (गउड)।

णिरहेउ, णिरहेउग, णिरहेतुगा :: वि [निर्हेतु, °क] निष्कारण, कारणरहित (धर्मंसं ४४३; ४१७; ४००)।

णिराइअ :: वि [निरायत] लम्बा किया हुआ, विस्तारित (से ४, ५२; ७, ३६)।

णिराउस :: वि [निरायुष्] आयु-रहित (प्राकृ ३१)।

णिराउह :: वि [निरायुध] आयुध-वर्जित, निःशस्त्र (महा)।

णिराकर, णिरागर :: सक [निरा + कृ] १ निषेध करना। २ दूर करना, हटाना। ३ विवाद का फैसला करना। निराकरिमो (कुप्र २१५)। संकृ. णिराकिच्च (सूअ १, १, १; १, ३, ३; १, ११)

णिराकरिअ :: वि [निराकृत] निषिद्ध (धर्मंवि १४६)।

णिरागरण :: न [निराकरण] निरास, निवारण, निषेध, रोक (पंचा १७, १९)।

णिरागरण :: न [निराकरण] १ निषेध, प्रतिषेध (पंचा १७) २ फैसला, निपटारा (स ४०९)

णिरागरिय :: वि [निराकृत] हटाया हुआ, दूर किया हुआ (पउम ४६, ५१; ६१, ५६)।

णिरागस :: वि [निराकर्ष] निर्धंन, रंक (निचू २)।

णिरागार :: वि [निराकार] १ आकृति-रहित २ अपवाद-रहित (धर्म २)

णिराणंद :: वि [निरानन्द] आनन्द-रहित, शोकातुर (महा)।

णिराणिउ :: (अप) अ. निश्‍चित, नक्की (कुमा)।

णिराणुकंप :: देखो णिरणुकंप; 'णिक्किबणिराणु- कंपो आसुरियं भावणं कुणाइ' (ठा; ४, ४), 'अह सो णिरणु कपो (संथा ८४; पउम २६, २५)।

णिराणुवत्ति :: वि [निरनुवर्तिन्] १ अनुसरण नहीं करनेवाला। २ सेवा नहीं करनेवाला (उव)

णिराद :: वि [दे] नष्ट, विनाश-प्राप्‍त (दे ४, ३०)।

णिराबाध, णिराबाह :: वि [निराबाध] आबाधा-रहित, हरक्कत-रहित (अभि १११; सुपा २५३; ठा १० आव ४)।

णिरामगंध :: वि [निरामगन्ध] दूषण-रहित, निर्दोष चारित्रवाला (आचा; सूअ १, ६)।

णिरामय :: वि [निरामय] रोग-रहित, निरोग (सुपा ५७५)।

णिरामिस :: वि [निरामिष] आसक्तिहीन, निरोह, निरभिष्वङ्ग; 'आमिसं सव्वमुज्झित्ता विहरिस्सामो णिरमिसा' (उत्त १४, ४६)।

णिराय :: वि [दे] १ ऋजु, सरल। (दे ४, ५०; पाअ) १ प्रकट, खुला। ३ पुं. रिपु, शत्रु (दे ४, ५०) ४ वि. लम्बा किया हुआ (से २, ५०)

णिराय :: वि [दे] अत्यन्त, प्रचुर, अधिक (सुख २, ७)।

णिरायंक :: वि [निरातङ्क] आतङ्क-रहित, नीरोग (औप)।

णिरायरिय :: देखो णिरागरिय (पउम ६१, ४६)।

णिरायव :: वि [निरातप] आतप-रहित (गउड)।

णिरायार :: देखो णिरागार (पउम ६, ११८)।

णिरायास :: वि [निरायास] परिश्र-रहित (पणह २, ४)।

णिरारंभ :: वि [निरारम्भ] आर-वर्जित (सुपा १४०; गउड)।

णिरालंब :: वि [निरालम्ब] आलम्ब-रहित (गा ९५; आरा ८)।

णिरालंबण :: वि [निरालम्बन] आलम्बन-रहित (औप; णाया १, ९)।

णिरालंबण :: वि [निरालम्बन] आशंसा-रहित, संशय-रहित, प्रार्थंना-रहित, इच्छारहित, अनु- मान-रहित (आचा २, १६, १२)।

णिरालय :: वि [निरालय] स्थान-रहित, एकत्र स्थिति नहीं करनेवाला (औप)।

णिरालेय :: वि [निरालोक] प्रकाश-रहित, (निर १, १)।

णिरावकंखि :: वि [निरवकाङ्क्षिन्] आकांक्षा- रहित, निःस्पृह (सूअ १, १०)।

णिरावयक्ख :: वि [निरपेक्ष] अपेक्षा-रहित, निरीह (णाया १, १; ९; भत्त १४८)।

णिरावरण :: वि [निरावरण] १ प्रतिबन्धक- रहित (औप) २ नग्‍न (सुर १४, १७८)

णिरावराह :: वि [निरपराध] अपराध-रहित (सुपा ४२३)।

णिराविक्ख, णिरावेक्ख :: देखो णिरावयक्ख; 'विसएसु णिराविक्खा तरंति संसार- कंतारं' (भत्त ४९; पउम ९, ८; १००, ११)।

णिरास :: वि [निराश] १ आशा-रहित, हताश (पउम ४४, ५९; दे ४, ४८; संक्षिी १९) २ न. आशा का अभाव (पणह १, ३)

णिरास :: वि [दे] नृसंश, क्रूर (षड्)।

णिरासंस :: वि [निराशंस] आकांक्षा-रहित, निरीह (सुपा ६२१)।

णिरासय :: वि [निराश्रय] निराधार (वज्जा १५२)।

णिरासव :: वि [निराश्रव] आश्रव-रहित, कर्मं- बन्ध के कारणों से रहित (पणह २, ३)।

णिरासस :: देखो णिरासंस (आचा २, १६, ९)।

णिराह :: वि [दे] निर्दंय, निष्करुण (दे ४, ३७)।

णिरिअ :: वि [दे] अवशेषित, बाकी रखा हुआ (दे ४, ४८)।

णिरिइ :: देखो णिरइ (सुज्ज १०, १२)।

णिरिक :: वि [दे] नत, नमा हुआ (दे ४, ३०)।

णिरिंगी :: [दे] देखो णीरंगी (गउड)।

णिरिंधण :: वि [निरिन्धन] इन्धन-रहित (भग ७, १)।

णिरिक्ख :: सक [निर् + ईक्ष्] देखना, अवलोकन करना। णिरिक्खइ, णिरिक्खए (सण; महा)। वकृ. णिरिक्खंत, णिरि- क्खमाण (सण; उप २११ टी)। संकृ. णिरिक्खिऊण (सण)। कृ. णिरिक्ख- णिज्ज (कप्पू)।

णिरिक्खण :: न [निरीक्षण] अवलोकन (गा १५०)।

णिरिक्खणा :: स्त्री [निरीक्षणा] अवलोकन, प्रतिलेखना (ओघ ३)।

णिरिक्खिअ :: वि [निरीक्षित] आलोकित, दृष्ट (कप्पू; पउम ४८, ४८)।

णिरिग्घ :: सक [नि + ली] १ आश्‍लेष करना, आलिगन करना। २ अक. छिपना। णिरिग्घइ (हे ४, ५५)

णिरिग्घिअ :: वि [निलीन] आश्लिष्ट, आलिंगित (कुमा)।

णिरिण :: वि [निर्ऋण] ऋण-मुक्त, उऋण (ठा ३, १; टी — पत्र १२०)।

णिरिणास :: सक [गम्] गमन करना। णिरणिसइ (हे ४, १६२)।

णिरिणास :: सक [पिष्] पीसना। णिरिणासइ (हे ४, १८५)।

णिरिणास :: अक [नश्] पलायन करना। भागना। णिरिणासइ (हे ४, १७८; कुमा)।

णिरिणासिअ :: वि [गत] गया हुआ, यात (कुमा)।

णिरिणासिअ :: वि [पिष्ट] पीसा हुआ (कुमा)।

णिरिणिज्ज :: सक [पिष्] पीसना। णिरि- णिज्जइ (हे ४, १८५)।

णिरिणिज्जिअ :: वि [पिष्ट] पीसाहुआ (कुमा)।

णिरित्ति :: स्त्री [निरिति] एक रात्रि का नाम (कप्प)।

णिरीह :: वि [निरीह] निष्काम, निःस्पृह (कुमा; ४२१)।

णिरु :: (अप) अ. निश्चित, नक्की (हे ४, ३४४; सुपा ८६; सण; भवि)।

णिरुअ :: देखो णिरुज (विसे १५८५; सुपा ४४९)।

णिरुकय :: [निरुईजीकृत] नीरोग किया गया (उप ५९७ टी)।

णिरुंभ :: सक [नि + रुध्] निरोध करना। णिरुंभइ (औप)। कवकृ. णिरुंभमाण, णिरुब्भंत (स ५३१; महा)। संकृ. णिरुं- भइत्ता (सूअ १, ४, २)। कृ. णिरुंभियव्व, णिरुद्धव्व (सुपा ४०४; विसे ३०८१)।

णिरुंभण :: न [निरोधन] अटकाव, रुकावट (सूअ १, ५; भवि)।

णिरुक्कंठ :: वि [निरुत्कण्ठ] उत्कण्ठा-रहित, निरुत्साह (नाट)।

णिरुग्घ :: देखो णिरिग्घ। णिरुग्घइ (षड्)।

णिरुच्चार :: वि [निरुच्चार] १ उच्चार — पुरी — षोत्सर्गं के लिए लोगों के निर्गमन से वर्जित (णाया १, ८ — पत्र १४६) २ पाखाना जाने से जो रोका गया हो (पणह १, ३)

णिरुच्छव :: वि [निरुत्सव] उत्सव-रहित (अभि १८९)।

णिरुच्छाह :: वि [निरुत्साह] उत्साह-होन (से १४, ३५)।

णिरुज :: वि [निरुज] १ रोग-रहित। २ न. रोग का अभाव। °सिख न [°शिख] एक प्रकार की तपश्चर्या (पव २७१)

णिरुज्जम :: वि [निरुद्यम] उद्यम-रहित, आलसी (उव; स ३१०, सुपा ३८४)।

णिरुट्ठाइ :: वि [निरुत्थायिन्] नहीं उठनेवाला (उत्त १; ३०)।

निरुत्त :: वि [निरुक्त] १ उक्त, कथित (सत्त ७१) २ न. निश्चित उक्ति (अणु) ३ व्युत्पत्ति। (विसे २; ९६३) ४ वेदाङ्ग शास्त्र-विशेष; 'जिसमें वैदिक शब्दों की व्याख्या है (औप)

णिरुत्त :: वि [णिरुक्त] १ अनुक्त, अकथित, दृष्टान्त 'किंतु निरुत्तो भावो परस्स नज्जइ कवित्तेणं' (सिरि ८४९) २ व्युत्पत्ति-युक्त (सिरि ३१)

णिरुत्त :: क्रिवि [दे] १ निश्चित, नक्की, चोक्कस (दे ४, ३०; पउम ३५; ३२; कुमा; (सण; भवि), 'तहवि हु मरइ निरुत्तं पुरिसो संपत्थिए काले' (पउम ११, ६१) २ वि. निश्चिन्त, चिन्ता-रहित (कुमा)

णिरुत्तत्त :: वि [निरुत्तम] विशेष ताप-युक्त, संतप्‍त (उव)।

णिरुत्तम :: वि [निरुत्तम] अत्यन्त श्रेष्ठ (काल)।

णिरुत्तर :: वि [निरुत्तर] उत्तर-रहित किया हुआ, परास्त (सुर १२, ६६)।

णिरुत्ति :: स्त्री [निरुक्ति] व्युत्पत्ति (विसे ९६२)।

णिरुत्तिअ :: वि [नैरुक्तिक] व्युत्पत्ति के अनुसार जिसका अर्थ किया जाय वह शब्द (अणु)।

णिरुत्तिय :: न [नैरुत्तिक] निरुक्ति, व्युत्पत्ति; 'नो कत्थवि नाणित्ति निरुत्तियं चेइसद्दस्सं' (संबोध — १२)।

णिरुदर :: वि [निरुदर] छोटा पेटवाला, अनुदर। स्त्री. °रा (पणह १, ४)।

णिरुद्ध :: वि [निरुद्ध] १ रोका हुआ (णाया १, १) २ आवृत, आच्छादित (सूअ १, २, ३) ३. पुं. मत्स्य की एक जाति (कप्प)

णिरुद्ध :: वि [निरुद्ध] थोड़ा, संक्षिप्त (सूअ १, १४, २३)।

णिरुद्धव्व, णिरुब्भंत :: देखो णिरुंभ।

णिरुलि :: पुंस्त्री [दे] कुम्भीर — नक्र की आकृतिवाला एक जन्तु (दे ४, २७)।

णिरुवकिट्ठ :: देखो णिरुवक्किट्ठ (भग)।

णिरुवक्कम :: वि [निरुपक्रम] १ जो कम न किया जा सके वह (आयुष्य) (सुर २, १३२; सुपा २०४) २ विघ्नरहित, अबाध, 'निय- निरुवक्कमविक्कमअक्कंतसमग्गरिउचक्को' (सुपा ३६)

णिरुवक्कय :: वि [दे] अकृत, नहीं किया हुआ (दे ४, ४१)।

णिरुवक्किट्ठ :: वि [निरुपक्लिष्ट] क्लेश-वर्जित, दुःखरहित (भग २५, ७)।

णिरुवक्केस :: वि [निरुपक्लेश] शोक आदि क्लेशों से रहित (ठा ७)।

णिरुवक्ख :: वि [निरुपाय] शब्द से न कहा जा के वह, अनिर्वचनीय (धर्मंसं २४१; १३००)।

णिरुवग :: वि [निरुपक] प्रतिपादक (सम्मत्त १९०)।

णिरुवगारि :: वि [निरुपकारिन्] उपकार को नहीं माननेवाला, प्रत्युपकार नहीं करनेवाला (आवम)।

णिरुवग्गह :: वि [निरुपग्रह] उपकार नहीं करनेवाला (ठा ४, ३)।

णिरुवट्ठाणि :: वि [निरुपस्थानिन्] निरुद्यमी, आलसी (आचा)।

णिरुवद्दव :: वि [निरुपद्रव] उपद्रव-रहित, आबाधा-वर्जित (औप)।

णिरुवम :: वि [निरुपम] असमान, असाधारण (औप; महा)।

णिरुवयरिय :: वि [निरुपचरित] वास्तविक, तथ्य (णाया १, ५)।

णिरुवयार :: वि [निरुपकार] उपकार-रहित (उव)।

णिरुवलेव :: वि [निरुपलेप] लेप-वर्जित, अ- लिप्त (कप्प; 'रयणमिव णिरुवलेबा' (पउम १४, ९४)।

णिरुवसग्ग :: वि [निरुपसर्ग] १ उपसर्ग-रहित, उपद्रव-वर्जित (सुपा २८७) २ पुं. मोक्ष, मुक्ति (पडि; धर्म २) ३ न. उपसर्गं का अभाव (वव ३)

णिरुवहय :: वि [निरुपहत] १ उपघात-रहित, अक्षत (भग ७, १) २ रुकावट से शून्य, अप्रतिहत (सुपा २९८)

णिरुवहि :: वि [निरुपधि] माया-रहित, निष्कपट (दसनि १)।

णिरुवार :: सक [ग्रह्] ग्रहण करना। णिरु- बारइ (हे ४, २०९)।

णिरुवारिअ :: वि [गृहीत] उपात्त, गृहीत (कुमा)।

णिरुवालंभ :: वि [निरुपालम्भ] उपालम्भ- शून्य (गउड)।

णिरुव्विग्ग :: वि [निरुद्विग्न] उद्वेग-रहित (णाया १, १ — पत्र ९)।

णिरुस्साह :: वि [निरुस्साह] उत्साह-हीन (सूअ १, ४, १)।

णिरूव :: सक [नि + रूपय्] १ विचार कर कहना। २ विवेचन करना। ३ देखना। ४ दिखलाना। ५ तलाश करना। निरूवेइ (महा)। वकृ. णिरूविंत, निरूवमाण (सुर १५, २०५; कुप्र २७५)। संकृ. णिरूविऊण (पंचा ८)। कृ. णिरूवियव्व (पंचा ११)। हेकृ. निरूविउं (कुप्र २०८)

णिरूवण :: न [निरूपण] १ विलोकन, निरी- क्षण (उप ३३७) २ वि. दिखलानेवाला स्त्री. °णी (पउम ११, २२)

णिरूवणया :: स्त्री [निरूपणा] निरूपण (उप ९३०)।

णिरूवाविअ :: वि [निरूपित] गवेषित, जिस की खोज कराई गई हो वह (स ५३९; ७४२)।

णिरूविअ :: वि [निरूपित] १ देखा हुआ (से १३, १३; सुपा ५२३) २ आलोचना कर कहा हुआ। ३ विवेचित, प्रतिपादित (हे २, ४०) ४ दिखलाया हुआ। ५ गवेषित (प्रारू)

णिरूसुअ :: वि [निरुत्सुक] उत्कण्ठा-रहित (गउड)।

णिरूह :: पुं [निरूह] अनुवासना-विशेष, एक तरह का विरेचन (णाया १, १३)।

णिरेय :: वि [निरेजस्] निष्कम्प, स्थिर (भग २५, ४)।

णिरेयण :: वि [निरेजन] निश्चल, स्थिर (कप्प; औप)।

णिरोणाम :: पुं [निरवनाम] नम्रता-रहित, गर्वित, उद्धत (उव)।

णिरोय :: वि [नीरोग] रोग-रहित (औप; णाया १, १)।

णिरोव :: पुं [दे] आदेश, आज्ञा, रुक्का (सुपा २२४)।

णिरोवयार :: वि [निरुपकार] उपकार को नहीं माननेवाला (ओघ ११३ भा)।

णिरोवयारि :: वि [निरुपकारिन्] ऊपर देखो (उव)।

णिरोविअ :: देखो णिरूविअ (सुपा ४५९; महा)।

णिरोह :: पुं [निरोध] रुकावट, रोकना (ठा ४, १; औप; पाअ)।

णिरोहग :: वि [निरोधक] रोकनेवाला (रंभा)।

णिरोहण :: न [निरोधन] रुकावट (पणह १, १)।

णिलंक :: पुं [दे] पतद्‍ग्रह, पीकदान, ष्ठीवन- पात्र, थूकने का पात्र (दे ४, ३१)।

णिलय :: पुं [निलय] घर, स्थान, आश्रय (से २, २; गा ४२१; पाअ)।

णिलयण :: न [निलयन] वसति, स्थान (विसे)।

णिलाड :: न [ललाट] भाल, कपाल (कुमा)।

णिलिअ :: देखो णिलीअ। णिलिअइ (षड्)।

णिलिंत :: नीचे देखो।

णिलिज्ज, णिलीअ :: सक [नी + ली] १ आश्‍लेष करना, भेंटना, गले से लगाना। २ दूर करना। ३ अक. छिंप जाना। णिलिज्जइ णिली- अइ (हे ४, ५५)। णिलिजिज्जा (कप्प)। वकृ. णिलिंत, णिलिज्जमाण, णिलीअंत, णिली- अमाण (कप्प; सूअ २, २; कुमा; उप ४७४)

णिलीइर :: वि [निलेतृ] आश्‍लेष करनेवाला, भेंटनेवाला (कुमा)।

णिलुक्क :: देखो णिलीअ। णिलुक्कइ (हे ४, ५५, षड्)। वकृ. णिलुक्कंत (कुमा)।

णिलुक्क :: सक [तुड्] तोड़ना। णिलुक्कइ (हे ४, ११६)।

णिलुक्क :: वि [दे. निलीन] १ निलीन, खूब छिपा हुआ, प्रच्छन्‍न, गुप्त, तिरोहित (णाया १, ८; से १५, २; गा ६४; सुर ६, ५, उव; सुपा ६४०) २ लीन, आसक्त (विवे ९०)

णिलुक्कण :: न [निलयन] छिपना (कुप्र २५२)।

णिल्लंक :: [दे] देखो णिलंक (दे ४, ३१)।

णिल्लंछण :: न [निर्लाञ्छन] शरीर के किसी अवयव का छेदन (उवा; पडि)।

णिल्लच्छ :: देखो णेल्लच्छ (पि ६६)।

णिल्लच्छण :: वि [निर्लक्षण] १ मूर्खं, बेवकूफ (उप ७९७ टी) २ अपलक्षणवाला, खराब (श्रा १२)

णिल्लज्ज :: वि [निर्लज] लज्जा-रहित (हे २, १९७; २००)।

णिल्लज्जिम :: पुंस्त्री [निर्लज्जमन्] निर्लज्जपन, बेशरमी (हे १, ३५)। स्त्री. °मा (हे १, ३५)।

णिल्लस :: अक [उत् + लस्] उल्लसना, विकसना। णिल्लसइ (हे ४, २०२)।

णिल्लसिज :: वि [उल्लसित] उल्लास-युक्त, विकसित (कुमा)।

णिल्लसिअ :: वि [दे] निर्गंत, निःसृत, निर्यात (दे ४, ३६)।

णिल्लालिअ :: वि [निर्लालित] निःसारित, बाहर निकाला हुआ (णाया १, १; ८ — पत्र १३३; सुर १२, २३५; महा)।

णिल्लिह :: सक [निर् + लिख्] घिसना। णिल्लिहिज्जा (आचा २, ३, २, ३)।

णिल्लुंछ :: सक [मुच्] छोड़ना, त्याग करना। णिल्लुंछइ (हे ४, ९१)।

णिल्लुंछिअ :: वि [मुक्त] त्यक्त, छोड़ा हुआ (कुमा)।

णिल्लुत्त :: वि [निर्लुप्त] विनाशित (विक्र २५)।

णिल्लूर :: सक [छिद्] छेदन करना, काटना। णिल्लूरइ (हे ४, १२४)। णिल्लूरह (आरा ६८)।

णिल्लूरण :: न [छेदन] छेद, विच्छेद (कुमा)।

णिल्लूरिय :: वि [छिन्न] काटा हुआ, विच्छिन्न; 'आवत्तविद्‍दुमाहयनिल्लूरियदविय- संखउलं' (पउम ८, २५८)।

णिल्लेव :: वि [निर्लेप] लेप-रहित (विसे ३०८३)।

णिल्लेवग :: पुं [निर्लेपक] रजक, धोबी (आचू ४)।

णिल्लेवण :: न [निर्लेपन] १ मल को दूर करना (वव १) २ वि. निर्लेप, लेप-रहित (ओघ १९ भा)। °काल पुं [°काल] वह काल, जिस समय नरक में एक भई नारक जीव न हो (भग)

णिल्लेविअ :: वि [निर्लेपित] १ लेप-रहित किया हुआ। २ बिलकुल खूट गया हुआ (भग)

णिल्लेहण :: न [निर्लेखन] उद्‍वर्त्तन, पोंछना (आचा २, ३; २)।

णिल्लोभ, णिल्लोह :: वि [निर्लोभ] लोभ-रहित, अ- लुब्ध (सुपा ३६१; श्रा १२; भवि)।

णिव :: पुं [नृप] राजा, नरेश (कुमा; रयण ४७)। °तणय वि [°संबन्धिन्] राज- संबन्धी, राजकीय (सुपा ५३९)।

णिवइ :: पुं [नृपति] ऊपर देखो (ठा ३, १, पउम ३०, ९)। °मग्ग पुं [°मार्ग] राज- मार्गं, जाहिर रास्ता (पउम ७९, १९)।

णिवइअ :: वि [निपतित] १ नीचे गिरा हुआ (णाया १, ७) २ एक प्रकार का विष (ठा ४, ४)

णिेवइत्तु :: वि [निपतितृ] नीचे गरिनेवाला (ठा ४, ४)।

णिवच्छण :: न [दे] अवतारण, उतारना (दे ४, ४०)।

णिवज्ज :: अक [निर् + पन्] निष्पन्न होना, नीपजना, बनना। णिवज्जइ (षड्)।

णिवज्ज :: अक [नि + सद्] बैठना। णिवज्जसु (स ५०९)। वकृ. णिवज्जमाण (स ५०३)। प्रयो. णिवज्जावेइ (निर १, १)।

णिेवज्ज :: अक [नि + सद्] सोना। णिवज्जइ (उत्त २७, ५)।

णिवट्ट :: सक [नि + वर्तय्] निवृत्त करना। निवट्टणाजा (सूअ १, १०, २१)।

णिवट्ट :: अक [नि + वृत्] १ निवृत्त होना, लौटना, हटना। २ रुकना। वकृ. णिवट्टंच (सुपा १६२)

णिवट्ट :: वि [निवृत्त] १ निवृत्त, हटा हुआ, प्रवृत्ति-विमुख। २ न. निवृत्ति (हे ४, ३३२)

णिवट्टण :: न [निवर्तन] १ निवृत्ति, प्रवृत्ति- निरोध। २ जहाँ रास्ता बन्द होता हो वह स्थान (णाया १, २ — पत्र ७९)

णिवट्टिम :: वि [निर्वर्तित] पका हुआ, फलित, सिद्ध (आचा २, ४, २, ३)।

णिवड :: अक [नि + पत्] नीचे पड़ना, नीचे गिरना। णिव़डइ (उव; षड्; महा)। वकृ. णिवड़ंत, णिवडमाण (गा ३४; सुर ३, १२७)। संकृ. णिवडिऊण, णिवडिअ (दंस ३; महा)।

णिवडण :: न [निपतन] अधः पतन (राज)।

णिवडिअ :: वि [निपतित] नीचे गिरा हुआ (से १४, ३४; गा २३४; उप पृ २६)।

णिवडिर :: वि [निपतितृ] नीचे गिरनेवाला (सुपा ४९; सण)|

णिवण्ण :: वि [निषण्ण] १ बैठा हुआ (महा; संथा ६५; ७३) २ पुं. कायोत्सर्गं-विशेष, जिसमें धर्म आदि किसी प्रकार का ध्यान न किया जाता हो वह कायोत्सर्गं (आव ५)। °णिवण्ण पुं [°निषण्ण] जिसमें आर्तं और रौद्र ध्यान किया जाय वह कायोत्सर्गं (आव ५)

णिवण्णुस्सिय :: पुं [निषण्णोत्सृत] कायोत्सर्गं- विशेष, जिसमें धर्म ध्यान और शुक्ल ध्यान किया जाता हो वह कायोत्सर्गं (आव ५)।

णिवत्त :: देखो णिवट्ट = नि + वृत्। वकृ. णिवत्तमाण (वव १)। कृ. णिवत्तणीअ (नाट — शकु १०८)। प्रयो. णिवत्तावेमि (पि ५५२)।

णिवत्त :: देखो णिवट्ट = निवृत्त (षड्; कप्प)।

णिवत्तण :: देखो णिवट्टण (महा; हे २, ३०; कुमा)।

णिवत्तय :: वि [निवर्त्तक] १ वापस आनेवाला, लौटनेवाला। २ लौटानेवाल, वापस करनेवाला (हे २, ३०; प्राप्र)

णिवत्ति :: स्त्री [निवृत्ति] निवर्त्तंन (उव)।

णिवत्तिअ :: वि [निवर्त्तित] रोका हुआ, प्रति- षिद्ध (स ३६४)।

णिवत्तिअ :: वि [निर्वर्त्तित] निष्पादित, 'निव- त्तिया सवपूया' (स ७६३)।

णिवद्दि :: देखो णिवत्ति (संक्षि ९)।

णिवन्न :: देखो णिवण्ण (स ७६०)।

णिवय :: अक [नि + पत्] समाना, अन्तर्भूत होना। निवयंति (पव ८४ टी)।

णिवय :: देखो णिवड। णिवइज्जा, णिवएज्जा (कप्प; ठा ३, ४)। वकृ णिवयंत, णिवयमाण (उप १४२ टी; सुर ३, ६५; कप्प)।

णिवय :: पुं [निपात] नीचे गिरना, अधः-पतन (सुर १३, १९७)।

णिवरुण :: पुं [निवरुण] वृक्ष-विशेष (उप १०३१ टी)।

णिवस :: अक [नि + वस्] निवास करना, रहना। णिवसइ (महा)। वकृ. णिवसंत (सुपा २२५)। हेकृ. णिवसिउं (सुपा ४९३)।

णिवसण :: न [निवसन] वस्त्र, कपड़ा (अभि १३९; महा; सुपा २००)।

णिवसिय :: वि [निवसित] जिसने निवास किया हो वह (महा)।

णिवसिर :: वि [निवसितृ] निवास करनेवाला (गउड)।

णिवह :: सक [गम्] जाना, गमन करना। णिवहइ (हे ४, १६२)।

णिबह :: अक [नश्] भागना, पलायन करना। णिवहइ (हे ४, १७८)।

णिवह :: सक [पिष्] पीसना। णिवहइ (हे ४, १८५; षड्)।

णिवह :: पुंन [निवह] समूह, राशि, जत्था (से २, ४२; सुर ३, ३५; प्रासू १४४); 'अच्छउ ता फलनिवहं' (वज्जा १५२)।

णिवह :: पुंन [दे] समृद्धि, वैभव (दे ४, २६)।

णिवहिअ :: वि [नष्ट] नाश-प्राप्त (कुमा)।

णिवहिअ :: वि [पिष्ट] पीसा हुआ (कुमा)।

णिवाइ :: वि [निपातिन्] गिरनेवाला (आचा)।

णिवाड :: सक [नि + पातय्] नीचे गिराना। निवाडेइ (स ६९०)। वकृ. निवाडयंत (स ६८९)। संकृ. णिवाडेइत्ता (जीव ३)।

णिवाडिय :: वि [निपातित] नीचे गिराया हुआ (महा)।

णिवाडिर :: वि [निपातयितृ] नीचे गिरानेवाला (सण)।

णिवाण :: न [निपान] कूप या तालाब के पास पशुओं के जल पीने के लिए बनाया हुआ जल-कुण्ड, चरही (स ३१२)। °साला स्त्री [°शाला] पशुओं का पानी पिलाने का स्थान (महा)।

णिवाय :: देखो णिवाड। णिवायइ (कुमा)। णिवाएज्जा (पि १३१)।

णिवाय :: पुं [दे] स्वेद, पसीना (दे ४, ३४; सुर १२, ८)।

णिवाय :: पुं [निपात] १ पतन, अधः-पतन, गिरना (गा २२२; सुपा १०३) २ संयोग, संबन्ध; 'दिट्ठिणिवाआ समिमुहीए' (गा १४८; उत्त २; गउड) ३ च, प्र आदि व्याकरण- प्रसिद्ध अव्यय (पणह २, २; सुपा २०३) ४ विनाश (पिंड)

णिवाय :: वि [निवात] पवन-रहित, स्थिर (पणह २, ३; स ४०३; ७४३)।

णिवायण :: न [निपातन] १ गिरना, निपा- तन, ढाहना (पणह १, २) २ व्याकरण- प्रसिद्ध शब्द-सिद्धि, प्रकृति आदि के बिना विभाग किये ही अखण्ड शब्द की निष्पत्ति (विसे २३)

णिवार :: सक [नि + वारय्] निवारण करना, निषेध करना, रोकना। णिवारेइ (उव; महा)। वकृ. णिवारेंत (महा)। कवकृ. णिवारी- अंत, णिवारिज्जमाण (नाट — मृच्च १५४; १३५)। कृ. णिवारियव्व, णिवारेयव्व (सुपा ४८२; महा)।

णिवारग :: वि [निवारक] निषेघ करनेवाला, रोकनेवाला (सुर १, १२९; सुपा ६३९)।

णिवारण :: न [निवारण] १ निषेध, रुकावट (भग ९, ३३) २ शीत आदि को रोकनेवाला, गृह, वस्त्र आदि; 'न मे निवारणं अत्थि छवित्ताणं न विज्जइ' (उत्त २, ७) ३ वि. निवारण करनेवाला, रोकनेवाला, 'उवसग्ग- निवारणो एसो' (अजि ३८)

णिवारय :: देखो णिवारग (उप ५३० टी)।

णिवारि :: वि [निवारिन्] निवारक, प्रतिषेधक। स्त्री. °रिणी (महा)।

णिवारिय :: वि [निवारित] रोका हुआ, निषिद्ध (भग; प्रासू १६९)।

णिवास :: पुं [निवास] १ निवसन, रहना। २ वास-स्थान, डेरा (कुमा; महा)

णिवासि :: वि [निवासिन्] निवास करनेवाला, रहनेवाला (महा)।

णिविअ :: देखो णिमिअ = न्यस्त (से १२, ३०)।

णिविट्ट :: देखो णिवट्ट = निवृत्त (सण)।

णिविट्ठ :: वि [निविष्ट] १ स्थित, बैठा हुआ (महा) २ आसक्त, लीन (राज)

णिविट्ठि :: वि [निर्विष्ट] लब्ध, उपात्त, गृहीत (ठा ५, २)। °कप्पट्ठिइ स्त्री [°कल्पस्थिति] जैन साधुओं का एक तरह का आचार (ठा ५, २)।

णिविड :: देखो णिबिड (षड्; हे १, २४०)।

णिविडिअ :: देखो णिबिडिय (गउड; पि २४०)।

णिवित्ति :: स्त्री [निवृत्ति] १ निवर्त्तन, उपरम, प्रवृत्ति का अभाव (विसे २७९८; स १५४) २ वापस लौटना, प्रत्यावर्त्तंन (सुपा ३३२)

णिविद्ध :: वि [दे] १ सोकर उठा हुआ। २ निराश, हताश। ३ उद्भट। ४ नृंशंस, निर्दंय (दे ४, ४८)

णिविन्न :: वि [निर्विज्ञ] विशिष्ट ज्ञान से रहित (तंदु ५५)।

णिविस :: अक [नि + विश्] बैठना। वकृ. णिविसंत (श्रा १२)।

णिविस :: (अप) देखो णिमिस (भवि)।

णिविसिर :: वि [निवेष्टृ] बैठनेवाला (सण)।

णिवुज्झमाण :: वि [न्युह्यमान] नीयमान, जो ले जाया जाता हो वह (आचा २, ११, ३)।

णिवुट्ठ :: वि [निवृष्ट] बरसा हुआ (आचा २, ४, १, ४)।

णिवुडढ :: सक [नि + वर्धय्] १ त्याग करना, छोड़ना। २ हानि करना। वकृ. णिवुड्‍ढेमाण (सुज्ज १, १)। संकृ. णिवु- डि्ढत्ता (सुज्ज १)

णिवुडि्ढ :: स्त्री [निबृद्धि] १ वृद्धि का अभाव (ठा २, ३) २ दिन की छोटाई (भग)

णिवुण :: देखो णिउण (अच्चु ९९)।

णिवुत्त :: देखो णिवट्ट = निवृत्त (स ५८८)।

णिवुदि :: स्त्री [निवृति] परिवेष्टन (प्राकृ १२)।

णिवूढ :: देखो णिव्वूढ (सूअ २, ७, ३८)।

णिवेअ :: सक [नि + वेदय्] १ सम्मान-पूर्वंक ज्ञापन करना, अर्जं करना। २ अर्पण करना। ३ मालूम करना। कर्मं. णिवेइज्जइ (निचू १)। संकृ. णिवेइऊण (स ५६९)। हेकृ. णिवेएउं (पंचा १५)। कृ. णिवेयणीअ (स १२०)

णिवेअग :: वि [निवेदक] सम्मान-पूर्वक ज्ञापन करनेवाला, प्रार्थी (सुपा २६८)।

णिवेअण, णिवेअणय :: न [निवेदन] १ सम्मान-पूर्वक ज्ञापन, विनय (पंचा १; निचू ११) २ नैवेद्य, देवता को अर्पित अन्न आदि (पउम ३२, ८३)

णिवेअणा :: स्त्री [निवेदना] ऊपर देखो (णाया १, ५)। °पिंड पुं [°पिण्ड] देवता को अर्पित अन्न आदि, नैवेद्य (निचू ११)।

णिवेअय :: देखो णिवेअघ (सुपा २२५; स ५१६)।

णिवेइय :: वि [निवेदित] सम्मान-पूर्वंक ज्ञापित (महा; भवि)।

णिवेदइत्तअ :: वि [निवेदयितृ] निवेदन करनेवाला (अभि १३९)।

णिवेस :: सक [नि + वेशय़्] स्थापना करना, बैठाना। णिवेसइ, णिवेसेइ (सण; कप्प)। संकृ. णिवेसइत्ता, णिवेसिउं णिवेसिऊण, णिवेसित्ता, णिवेसिय (उत्त ३२; महा; सण; कप्प; महा)। कृ. णिवेसियव्व (सुपा ३९४)।

णिवेस :: पुं [निवेश] १ स्थापन, आधान (ठा ९; उप पृ २३०) २ प्रवेश (निचू ४) ३ आवास-स्थान, डेरा (बृह १)

णिवेस :: पुं [नृपेश] १ महान् राजा, चक्रवर्त्ती राजा (सुपा ४६३)

णिवेसण :: न [निवेशन] १ स्थान, बैठना (आचा) २ एक ही दरवाजेवाले अनेक गृह (आव ४)

णिवेसण :: न [निवेशन] गृह, घर (उत्त १३, १८)।

णिवेसाविय :: वि [निवेशित] बैठाया हुआ (महा)।

णिव्व :: न [नीव्र] छदि, पटल-प्रान्‍त (दे ४, स ४८; पाअ)।

णिव्व :: न [नीव्र] छप्पर के ऊपर का खपरैल (णंदि १५९)।

णिव्व :: न [दे] १ ककुद, चिह्न। २ व्याज, बहाना (दे ४, ४८)

णिव्वक्कर :: वि [दे] परिहास-रहित, सत्य (कुप्र १९७)।

णिव्वक्कल :: वि [निर्वक्लल] वल्कल-रहित, (पि ६२)।

णिव्वट्ट :: देखो णिव्वत्त = निर् + वर्त्तय्। संकृ. णिव्वट्टित्ता (ठा २, ४)।

णिव्वट्ट :: (अप) देखो णिच्चट्ट (हे ४, ४२२ टि)।

णिव्वट्टद :: वि [निवर्तक] बनानेवाला, कर्ता (आव ४)।

णिव्वट्टिम :: देखो णिवट्टिम (दस ७, ३३)।

णिव्वट्टिय :: वि [निर्वर्तित] निष्पादित, बनाया हुआ (आचा २, ४, २)।

णिव्वड :: सक [मुच्] दुःख को छोड़ना। णिव्वडइ (षड्)।

णिव्वड :: अक [भू] १ पृथक् होना, जुदा होना। २ स्पष्ट होना। णिव्वडइ (हे ४, ६२)

णिव्वड :: देखो णिव्वल = निर + पद् (सुपा १२२)।

णिव्वडिअ :: वि [भूत] १ पृथग्-भूत, जो जुदा हुआ हो (से ६, ८८) २ स्पष्टीभूत, जो व्यक्त हुआ हो (सुर ७, १०४)

णिव्वडिअ :: वि [निष्पन्न] सिद्ध, कृत, निर्वृंत्त (पाअ); 'सुकुलप्पत्ती य गुणन्‍नुया य सम्मं इमीए णिव्वडिया' (सुपा १२२)।

णिव्वढ :: वि [दे] नग्‍न, नंगा (दे ४, २८)।

णिव्वण :: वि [निर्व्रण] व्रण-रहित, 'क्षत- वर्जित, बिना घाव का (णाया १, ३; औप)।

णिव्वण्ण :: सक [निर् + वर्णय्] १ श्‍लाघा करना, प्रशंसा करना। २ देखना। वकृ. णिव्वण्णंत (से ३, ४४; उफ १०३१ टी; महा)

णिव्वत्त :: सक [निर् + वर्त्तय्] बनाना, करना, सिद्ध करना। णिव्वत्तेइ (महा)। संकृ. णिव्वत्तिऊण, णिव्वत्तेऊण (महा)।

णिव्वत्त :: सक [निर् + वृत्तय्] गोल बनाना, वर्तुल करना। कवकृ. णिव्वत्ति- ज्जमाण (भग)।

णिव्वत्त :: वि [निर्वृत्त] निष्पन्‍न, रचित, निर्मित (महा; औप)।

णिव्वत्त :: वि [निर्वर्त्त्य] बनाने योग्य, साध्य (प्राकृ २०)।

णिव्वत्तण :: न [निर्वर्त्तन] निष्पत्ति, रचना, बनावट (उप पृ १८६)। °धिकरणिया, °हिगरणिया स्त्री [°धिकराणकी] शस्त्र बानाने की क्रिया (ठा २, १, भग ३, ३)।

णिव्वत्तणया, णिव्वत्तणा :: स्त्री [निर्वर्त्तना] ऊपर देखो (पणण ३४; उत्त ३)।

णिव्वत्तय :: वि [निर्वर्त्तक] निष्पन्‍न करनेवाला, बनानेवाला (विसे ११४२; स ५९३; हे २, ३०)।

णिव्वत्ति :: स्त्री [निर्वृत्ति] निष्पत्ति, विनिर्मण (विसे ३००२)। देखो णिव्वित्ति।

णिव्वत्तिय :: वि [निर्वातित] निष्पादित, बनाया हुआ (स ३३६; सुर १५, २२१; संक्षि १०)।

णिव्वत्तिय :: वि [निर्वृत्तित] गोलाकार किया हुआ (भग)।

णिव्वमिअ :: वि [दे] परिभुक्त (दे ४, ३९)।

णिव्वय :: अक [निर् + वृ] शान्त होना, उपशान्त होना। कृ. णिव्वयणिज्ज (स ३०१)।

णिव्वय :: वि [निर्वृत] १ उपशान्त, शम-प्राप्‍त (सूअ १, ४, २) २ परिणत, परिणाम- प्राप्‍त (दसनि १)

णिव्वय :: वि [निर्व्रत] व्रत-रहित, नियम- रहित (पउम २, ८८; उप २६४ टी)।

णिव्वयण :: न [निर्वचन] १ निरुक्ति, शब्दार्थ कथन (आवम) २ उत्तर, जवाब (ठा १०) ३ वि. निरुक्ति करनेवाला, निर्वाचक; 'जाव दविओवओगो, अपच्छिमविअप्पनिव्वयणो' (सम्म ८)

णिव्वयणिज्ज :: देखो णिव्वय = निर् + वृ।

णिव्वर :: सक [कथय्] दुःख कहना। णिव्वरइ (हे ४, ३)। भूका. णिव्वरही (कुमा)। कर्मं. 'कह तम्मि निव्वरिज्जइ, दुक्खं कंडुज्जुएण हिअएण। अद्दाए पडिबिंबं व, जम्मि दुक्खं न संकमइ (स ३०६)।

णिव्वर :: सक [छिद्] छेदन करना, काटना। णिव्वरइ (हे ४, १२४)।

णिव्वरण :: न [कथन] दुःख-निवेदन (घा २५५)।

णिव्वरिअ :: वि [छिन्न] काटा हुआ, खण्डित (कुमा)।

णिव्वल :: सक [मुच्] दुःख को छोड़ना। णिव्वलेइ (हे ४, ९२)।

णिव्वल :: अक [निर् + पद्] निष्पन्‍न होना, सिद्ध होना, बनना। णिव्वलइ (हे ४, १२८)।

णिव्वल :: देखो णिच्चल = क्षर्। णिव्वलइ (हे ४, १७३ टि)।

णिव्वल :: देखो णिव्वड = भू। वकृ. णिव्वलंत, णिव्वलमाण (से १, ३६; ७, ४३)।

णिव्वलिअ :: वि [दे] १ जल-धौत, पानी से धोया हुआ। २ प्रविगणित। ३ विघटित, वियुक्त (दे ४, ५१)

णिव्वव :: सक [निर् + वापय्] ठंढा करना, बुझाना। णिव्ववेहि (स ४५५)। णिव्ववसु (काल)। वकृ. णिव्ववंत (सुपा २२५)। कृ. णिव्ववियव्व (सुपा २९०)।

णिव्ववण :: न [निर्वापण] १ बुझाना, शान्त करना। २ वि. शान्त करनेवाला, ताप को बुझानेवाला (सुर ३, २३७)

णिव्वविअ :: वि [निर्वापित] बुझाया हुआ, ठंढा किया हुआ (गा ३१७; सुर २, ७४)।

णिव्वह :: अक [निर् + वह्] १ निभना, निर्वाह करना, पार पड़ना। २ आजीविका चलाना। णिव्वहइ (स १०५; वज्जा ६)। कर्मं. णिव्वुब्हइ (पि ५४१)। वकृ. णिव्वहंत (श्रा १२; कुप्र ३३)। कृ. निव्वहियव्व (कुप्र ३७५)

णिव्वह :: सक [उद् + वह्] १ धारण करना। २ ऊपर उठाना। णिव्वहइ (षड्)

णिव्वहण :: न [निर्वहण] निर्वाह, अन्त, नाटक की एक संधि (सुपा १७५; कुप्र ३७५)।

णिव्वहण :: न [दे] विवाह, शादी (दे ४, ३९)।

णिव्वा :: अक [वि + श्रम्] विश्राम करना। णिव्वाइ (हे ४, १५९)। वकृ. णिव्वाअंत (से ८, ८)।

णिव्वाघाइण :: वि [निर्व्याघातिम] व्याघात- रहति, स्खलना-रहित (औप)।

णिव्वााघाय :: वि [निर्व्याघात] १ व्याघात- वर्जित (णाया १, १; भग; कप्प) २ न. व्याघात का अभाव (पणण २)

णिव्वाघाया :: स्त्री [निर्व्याघाता] एक विद्या- देवी (पउम ७, १४५)।

णिव्वाण :: न [निर्वाण] १ मुक्ति, मोक्ष, निर्वृति (विसे १९७५) २ सुख, चैन, शान्ति, दुःख-निर्वृत्ति; 'निउणमणो निव्वाणं सुंदरि निस्संसयं कुणइ' (उप ७२८ टी; पउम ४६, १६) ३ बुझाना, बिध्यापन (आव ४) ४ वि. बुझा हुआ; 'जह दीवो णिव्वणो' (विसे १९९१; कुप्र ५१) ५ पुं. ऐरवत वर्षं में होनेवाले एक जिन-देव का नाम (सम १५४)

णिव्वाण :: न [निर्वाण] तृप्‍ति (दस ५, २, ३८)।

णिव्वाण :: न [दे] दुःख-कथन (दे ४, ३३)।

णिव्वाणि :: पुं [निर्वाणिन्] भारतवर्षं में अतीत उत्सर्पिणी-काल में संजात एक जिन- देव (पव ७)।

णिव्वाणी :: स्त्री [निर्वाणी] भगवान् श्री शान्तिनाथ की शासन-देवी (संति १; १०)।

णिव्वाय :: वि [निर्वाण] बीता हुआ, व्यतीत (से १४, १४)।

णिव्वाय :: वि [विश्रान्त] १ जिसने विश्राम किया हो वह (कुमा) २ सुखित, निर्वृत्त (से १३, २३)

णिव्वाय :: वि [निर्वात] वायु-रहित (णाया १, १, औप)।

णिव्वालिय :: वि [भावित] पृथक् किया हुआ (से १४, ५४)।

णिव्वाव :: देखो णिव्वव। णिव्वावेमि (स ३५२)। संकृ. णिव्वाविऊण (निचू १)।

णिव्वाव :: पुं [निर्वाप] घी, शाक आदि का परिमाण (निचू १)। °कहा स्त्री [°कथा] एक तरह की भोजन-कथा (ठा ४, २)।

णिव्वावइत्तअ :: (शौ) वि [निर्वापयितृक] ठंढा करनेवाला (पि ६००)।

णिव्वावण :: न [निर्वापण] बुझाना, विध्यापन (दस ४)।

णिव्वावणा :: न [निर्वापणा] बुझाना, ठंढा करना, उपशान्ति (गउड)।

णिव्वावय :: वि [निर्वापक] आग बुझानेवाला (सूअ १, ७, ५)।

णिव्वाविय :: वि [निर्वापित] ठंढा किया हुआ (णाया १, १; दस ५, १)।

णिव्वासण :: न [निर्वासन] देश निकाल (स ५३४; कुप्र ३४३)।

णिव्वासणा :: स्त्री [निर्वासना] ऊपर देखो (पउम ९९, ४१)।

णिव्वाह :: पुं [निर्वाह] १ निभाना, पार-प्राप्ति। २ आजीविका, जीवन-सामग्री; 'निव्वाहं किंपि दाउं च' (सुपा ४८८)

णिव्वाहग :: वि [निर्वाहक] निर्वाह करनेवाला (रंभा)।

णिव्वाहण :: न [निर्वाहण] १ निर्वाह, निभाना (सुपा ३९४) २ निस्सार करना (राज)

णिव्वाहिअ :: वि [निर्वाहित] अतिवाहित, बिताया हुआ, गुजारा हुआ (से ९, ४२)।

णिव्वाहिअ :: वि [निर्व्याधिक] व्याधि-रहित, निरोग (से ९, ४२)।

णिव्विअप्प :: देखो णिव्विगप्प (सम्म ३३)।

णिव्विआर :: वि [निर्विकार] विकार-रहित (गा ५०६)।

णिव्विइअ :: वि [निर्विकृतिक] १ घृत आदि विकृति-जनक पदार्थों से रहित (औप) २ न. प्रत्याख्यान-विशेष, जिसमें घृत आदि विकृ- तियों का त्याग किया जाता है (पव ४, पंचा ५)

णिव्विइगिच्छ :: वि [निर्विचिकित्स] फल- प्राप्ति में शंका-रहित (कस; धर्म २)।

णिव्विइगिच्छ :: न [निर्विचिकित्स्य] फल- प्राप्‍ति में सन्देह का अभाव (उत्त २८)।

णिव्विइगिच्छा :: स्त्री [निर्विचिकित्सा] फल- प्राप्‍ति में शंका का अभाव (औप; पडि)।

णिव्विंद :: सक [निर् + विन्द्] अच्छी तरह विचारना। निर्व्विदए (दस ४, १६; १७)।

णिव्विंद :: सक [निर् + विद्] घृणा करना। णिव्विंदेज्ज (सूअ १, २, ३, १२)।

णिर्व्विकप्प, णिव्विगप्प :: वि [निर्विकल्प] १ सन्देह- रहित, निःसंशय (कुमा; गच्छ २) २ भेद-रहित (सम्म ३३)

णिव्विगइय :: देखो णिव्विइय (संबोध ५८)।

णिव्विगप्पग :: न [निर्विकल्पक] बौद्ध-प्रसिद्ध प्रत्यक्ष ज्ञान-विशेष (धर्मंसं ३१३)।

णिव्विगिउ :: देखो णिव्विइअ (पव २)।

णिव्विग्घ :: वि [निर्विघ्न] विघ्‍न-रहित-बाधा- वर्जित (सुपा १८७; सण)।

णिव्विचिंत :: वि [निर्विचिन्त] चिन्ता-रहित, निश्चिन्त (सुर ७, १२३)।

णिव्विज्ज :: अक [निर् + विद्] निर्वेद पाना, विरक्त होना। णिव्विज्जेज्जा (उव)।

णिव्विज्ज :: वि [निर्विद्य] मूर्खं (उत्त ११, २)।

णिव्विट्ठ :: वि [निर्वृष्ट] उपार्जित, 'नानिव्विट्टं लब्भई' (पिंड ३७०)।

णिव्विट्ठ :: वि [दे] उचित, योग्य (दे ४, ३४)।

णिव्विट्ठ :: वि [निर्विष्ट] उपमुक्त, आसेवित, परिपालित (पाअ; अणु)। °काइय न [°कायिक] जैन शास्त्र में प्रतिपादित एक तरह का चारित्र (अणु; इक)।

णिव्विण्ण :: वि [निर्विण्ण] निर्वेद-प्राप्त, खिन्न (महा)।

णिव्वित्त :: वि [दे] सो कर उठा हुआ (दे ४, ३२)।

णिव्वित्ति :: देखो णिव्वत्ति। २ इन्द्रिय का आकार, द्रव्येन्द्रिय-विशेष (विसे २९९४)

णिव्विद :: देखो णिव्विंद = निर् + विद् (सूअ १, २, ३, १२)।

णिव्विदुगुंछ :: वि [निर्विजुगुप्स] घृणा- रहित (धर्मं १)।

णिव्विन्न :: देखो णिव्विण्ण (उव)।

णिव्विभाग :: वि [निर्विभाग] विभाग-रहित (दंस ५)।

णिव्विय :: देखो णिव्विइअ (संबोध ५७; कुलक १२)।

णिव्वियण :: वि [निर्विजन] १ मनुष्य-रहित। २ न. एकान्त स्थल (सुर ९, ४२)

णिव्विर :: वि [दे] चिपट, बैठा हुआ; 'अइणि- व्विरनासाए' (गा ७२८ टि)।

णिव्विराम :: वि [निर्विराम] विराम-रहित (उप प १८३)।

णिव्विलब :: क्रिवि [निर्विलम्ब] विलम्ब-रहित, शीघ्र (सुपा २५५; कुप्र ५२)।

णिव्विवेअ :: वि [निर्विवेक] विवेक-शून्य (सुपा ३२३; ५००; गउड, सुर ८, १८१)।

णिव्विस :: सक [निर् + विस्] त्याग करना। निव्विसेज्जा (कस)। वकृ. णिव्विसंत (राज)।

णिव्विस :: सक [निर् + विश्] उपभोग करना (पिंड ११९ टी)।

णिव्विस :: वि [निर्विष] विष-रहित (औप)।

णिव्विसंक :: वि [निर्विशङ्क] शंका-रहित, निर्भय (सुर १२, १९)।

णिव्विसमाण :: न [निर्विशमान] १ चारित्र- विशेष (ठा ३, ४) २ वि. उस चारित्र को पालनेवाला (ठा ६)। °कप्पट्ठिइ स्त्री [°कल्पस्थिति] चारित्र-विशेष की मर्यादा (कस)

णिव्विसय :: वि [निर्वेशक] उपभोग-कर्ता (पिंड ११९)।

णिव्विसय :: वि [निर्विषय] १ विषयों को अभिलाषा से रहित (उत्त १४) २ अनर्थंक, निरर्थक (पंचा १२; उप ९२५) ३ देश से बाहर किया हुआ, जिसको देशानिकाले की सजा हुई हो वह (सुर ९, ३९; सुपा ५६६)

णिव्विसिट्ठ :: वि [निर्विशिष्ट] विशेष-रहित, समान, तुल्य (उप ५३० टी)।

णिव्विसी :: स्त्री [निर्विषी] एक महौषधि (ती ५)।

णिव्विसेस :: वि [निर्विशेष] १ विशेष-रहित, समान, साधारण (स २३; सम्म ९९; प्रासू ९८) २ अभिन्‍न, जो जुदा न हो (से १५, ६५)

णिव्वी :: स्त्री [निर्विकृति] तप-विशेष (संबोध ५७)।

णिव्वीय :: देखो णिव्विइअ (संबोध ५७)।

णिव्वीरा :: स्त्री [निर्वीरा] पुत्र-रहित विधवा स्त्री (मोह ४९)।

णिव्वुअ :: वि [निर्वृत] निर्वृति-प्राप्त (स ५६३; कप्प)।

णिव्वुइ :: स्त्री [निर्वृति] १ निर्वाण, मोक्ष, मुक्ति (कुमा; प्रासू १६४) २ मन की स्वस्थता, निश्चिन्तता (सुर ४, ८९) ३ सुख, दुःख-निवृत्ति (आव ४) ४ जैन साधुऔं की एक शाखा (कप्प) ५ एक राजकन्या (उप ९३६)। °कर वि [°कर] निर्वृतिजनक (पणण १)। °जणय वि [°जनक] निर्वृंति का उत्पादक (गा ४२१)

णिव्वुइकरा :: स्त्री [निर्वृतिकरा] भगवान् सुमतिनाथ की दीक्षा-शिविका (विचार १२९)।

णिव्वुड :: देखो णिव्वुअ (कुमा; आचा)।

णिव्वुड :: वि [निर्वृत] अचित्त किया हुआ (दस ३, ६, ७)।

णिव्वुड्ड :: देखो णिबुड्ड = नि + मस्ज्। वकृ. णिव्वुड्डमाण (राज)।

णिव्वुड्‍ढ :: देखो णिवुड्‍ढ। वकृ. णिव्वुड्‍ढे- माण (सुज्ज ६--पत्रे ८०)। संकृ. णिव्वु- ड्‍ढेत्ता (सुज्ज ६)।

णिव्वुड्‍ढ :: वि [निर्व्यृढ] निर्वाहित, निभाया हुआ (गा ३३)।

णिव्वुत्त :: देखो णिवुत्त (गा १५५)।

णिव्वुत्त :: देखो णिव्वत्त = निर्वृत्त (पिंग)।

णिव्वुत्ति :: देखो णिव्वत्ति (गा ८२८)।

णिव्वुद :: देखो णिव्वुअ (संक्षि ९)।

णिव्वुदि :: देखो णिव्वुइ (प्राकृ ८)।

णिव्वुब्भ° :: देखो णिव्वह = निर् + वह।

णिव्वूढ :: वि [निर्व्यूढ] १ जिसका निर्वाह किया गया हो वह। २ कृत, विहित, निर्मित (गा २५५; से १, ४६) ३ जिसने निर्वाह किया हो वह, पार-प्राप्त (विवे ४४)। त्यक्त, परिमुक्त (से ५, ६२)। ५ बाहर निकाल हुआ, निस्सारित; 'निव्वूढा य पएसा तत्तो गाढप्पओसमावन्ना' (उप १३१ टी)

णिव्वूढ :: वि [दे] १ स्तब्ध (दे ४, ३३)। न. घर का पश्चिम आँगन (दे ४, २९)

णिव्वूढ :: वि [निर्व्यूढ] किसी ग्रंथ से उद्‍घृत कर बनाया हुआ ग्रन्थ (दसनि १, १२)।

णिव्वेअ :: पुं [निर्वेद] मुक्तिकी इच्छा (सम्मत्त १६९)।

णिव्वेअ :: पुं [निर्वेद] १ खेद, विरक्ति (कुमा; द्र ६२) २ संसार की निर्गुंणता का अव- धारण — निश्‍चय (ज्ञान) करना (उप ६८६)

णिव्वेअण :: व [निर्वेदन] १ खेद, वैराग्य। २ वि. वैराग्यजनक। स्त्री. °णी (ठा ४, २)

णिव्वेट्ठ :: सक [निर् + वेष्टय्] १ नाश करना, क्षय करना। २ घेरना। ३ बाँधना। वकृ. णिव्वेट्टंत (विसे २७४५; आचा २, ३, २०।

णिव्वेढ :: सक [निर् + वेष्टय्] त्याग करना। णिव्वेढेइ (सुज्ज २, १)।

णिव्वेढ :: सक [निर् + वेष्टय्] मजबूतीा से वेष्टन करना। णिव्वेढिज्ज, णिव्वेढेज्ज (आचा २, ३, २; पि ३०४)।

णिव्वेढ :: वि [दे] नग्‍न, नंगा (दे ४, २८)।

णिव्वेद :: देखो णिव्वेअ (उत्त २९, २)।

णिव्वेर :: वि [निर्वैर] वैर-रहित (अच्चु ५९)।

णिव्वेरिस :: वि [दे] १ निर्दंय, निष्करुण। २ अत्यन्त, अधिक (दे ४, ३७)

णीव्वेल्ल :: अक [निर् + वेल्ल्] फुरना, सत्य ठहरना, साबित होना। णिव्वेल्लइ (पि १०७)।

णिव्वेल्लिअ :: वि [निर्वैल्लित] प्रप्फुरित, स्फुर्ति- युक्त (से ११, १९)।

णिव्वेस :: वि [निर्द्वेष] द्वेष-रहित (से १५, ९५)।

णिव्वेस :: पुं [निर्वेश] १ लाभ, प्राप्ति (ठा ५, २) २ व्यवस्था; 'कम्माण कप्पिआणं काही कप्मंतरेसु को णिव्वेसं' (अच्चु १८)

णिव्वेहणिया :: स्त्री [निर्वेधनिका] वनस्पति- विशेष (सूअ २, ३, १६)।

णिव्वोढव्व :: वि [निर्वोढव्य] निर्वाह-योग्य, वहन करने योग्य, निभाने लायक (आव ४)।

णिव्वोल :: सक [कृ] क्रोध से होठ को मलिन करना। णिव्वोलन (हे ४, ६९)।

णिव्वोलण :: न [करण] क्रोध से होठ को मलिन करना (कुमा)।

णिस° :: देखो णिसा (कुमा; पउम १२, ९५)।

णिस :: सक [नि + अस्] स्थापन करना। णिसेइ (औप)।

णिसंत :: वि [निशान्त] १ श्रुत, सुना हुआ (णाया १, १; ४; उवा) २ अत्यन्त ठंढ़ा (आवम) ३ रात्रि का अवसान, प्रभात; 'जहा णिसंते तवणच्चिमाली, पभासई केवल- भारहं तु' (दस ९, १, १४)

णिसंस :: वि [नृशंस] क्रूर, निर्दय (सुपा ४०९)।

णिसग्ग :: पुं [निसर्ग] १ स्वभाव, प्रकृति (ठा २, १; कुप्र १४८) २ निसर्जन, त्याग (विसे)

णिसग्ग :: वि [नैसर्ग] स्वभाव से होनेवाला, स्वभाविक (सुपा ६४८)।

णिसग्ग :: न [नैसर्ग] जात्यन्ध की तरह स्वभाव से अज्ञता (सूअ २; ३, १६)।

णिसग्गिय :: वि [नैसगिक] स्वभाविक (सण)।

णिसज्ज :: पुं. देखो णिसज्जा 'निसज्जे वियड- णाए' (वव १)।

णिसज्जा :: स्त्री [निषद्या] १ आसन (दस ६) २ उपवेशन, बैठना (वव ४)। देखो णिसिज्जा।

णिसट्ठ :: वि [निसृष्ट] १ निकाला हुआ, त्यक्त १, १६)। २ दत्त, दिया हुआ (णाया १, १ — पत्र ७१)

णिसट्ठ :: वि [दे] प्रचुर, बहुत (औघ ८७)।

णिसट्ठ :: (अप) वि [निषण्ण] बैठा हुआ (सण)।

णिसढ :: पुं [निषध] १ हरिवर्षं क्षेत्र से उत्तर में स्थित एक पर्वत (ठा २, ३) २ स्वनाम-ख्यात एक वानर, राम-सैनिक (से ४, १०) ३ बैल, साँढ़ (सुज्ज ४) ४ बलदेव का एक पुत्र (निर १, ५; कुप्र ३७२) ५ देश-विशेष। ६ निषध देश का राजा (कुमा) ७ स्वर-विशेष (हे १, २२६; प्राप्र)। °कूड न [°कूट] निषध पर्वंत का एक शिखर (ठा २, ३)। °दह पुं [°द्रह] द्रह-विशेष (जं ४)

णिसण्ण :: वि [निषण्ण] १ उपविष्ट, स्थित (गा १०८; ११६; उत्त २०) २ कायोत्सर्गं का एक भेद (आव ५)

णिसण्ण :: वि [निःसंज्ञ] संज्ञा-रहित (से ६, ३८)।

णिसत्त :: वि [दे] संतुष्ट, संतुष्ट-युक्त (दे ४, ३०)।

णिसन्न :: देखो णिसण्ण (उव; णाया १, १)।

णिसम :: सक [नि + समय्] सुनना। वकृ. णिसमेंत (आवम)। कवकृ. णिसम्मंत (गउड) संकृ. णिसमिअ, णिसम्म (नाट. वेणी ६८; उवा; आचा)।

णिसमण :: न [निशमन] श्रवण, आकर्णन (हे १, २६९; गउड)।

णिसम्म :: अक [नि + सद्] १ बैठना। २ सोना, शयन करना। णिसम्मउ (से ६, १७)। हेकृ. णिसम्मिउं (सं ५, ४२)

णिसर :: देखो णिसिर कवकृ. निसरिज्जमाण (भग)।

णिसल्ल :: देखो णिस्सल्ल (श्रा ४०)।

णिसह :: देखो णिसढ (इक)।

णिसह :: देखो णिस्सह (षड्)।

णिसह :: सक [नि + सह्] सहन करना। णिसहइ (प्राकृ ७२)।

णिसा :: स्त्री [निशा] अन्धकारवाली नरक- भूमि (सूअ १, ५, १, ५)।

णिसा :: [निशा] १ रात्रि, रात (कुमा, प्रासू ५५) २ पीसने का पत्थर, शिलौट, सिलवट (उवा)। °अर वि [°कर] चन्द्र, चाँद (हे १, ८; षड्)। °अर पुं [°चर] राक्षस (कप्पू; से १२, ६९)। °अरेंद पुं [°चरेन्द्र] राक्षसों का नायक, राक्षस-पति (से ७, ५९)। °नाह पुं [°नाथ] चन्द्रमा (सुपा ४१६)। °लोढ न [°लोष्ट] शिला-पुत्रक, पीसने का पत्थर, लोढ़ा (उवा)। °वइ पुं [°पति] चन्द्र, चाँद, चन्द्रमा (गउड)। देखो णिसि°।

णिसाण :: सक [नि + शाणय्] शान पर चढ़ाना, पैनाना, तीक्ष्ण करना। संकृ. निसा- णिऊण (स १४३)।

णिसाण :: न [निशाण] शान, एक प्रकार का पत्थर, जिस पर हथियार तेज किया जाता है (गउड; सुपा २८)।

णिसाणिय :: वि [निशाणित] शान दिया हुआ, पैनाया हुआ, तीक्ष्ण किया हुआ, पैना, धारदार, नुकीला (सुपा ५९)।

णिसाम :: देखो णिसमा। णिसामेइ (महा)। वकृ. णिसामेंत (सुर ३, ७८)। संकृ. णिसामिऊण, णिसामित्ता (महा; २)।

णिसाम :: वि [निःश्याम] मालिन्य-रहित, निर्मल (से ९, ४७)।

णिसामण :: देखो णिसमण (सुपा २३)।

णिसामिअ :: वि [दे. निशमित] १ श्रुत, आकर्णित (दे ४, २७; गा २९) २ उप- शमित, दबाया हुआ। ३ सिमटाया हुआ, संकोचित; 'नस्सामिओ फणाभोओ' (स ३५८)

णिसामिर :: वि [निशमयितृ] सुननेवाला (सण)।

णिसाय :: वि [दे] प्रसुप्‍त (दे ४, ३५)।

णिसाय :: वि [निशात] शान दिया हुआ, तीक्ष्ण (पाअ)।

णिसाय :: पुं [निषाद] १ चाण्डाल, एक प्राचीन जाति (दे ४, ३५) २ स्वर-विशेष (ठा ७)

णिसायंत :: वि [निशातान्त] तीक्ष्ण धारवाला (पाअ)।

णिसास :: सक [निर् + श्वासय्] निः श्वास डालना। वकृ. णिस्सासएंत (पउम ६१, ७३)।

णिसास :: देखो णीसास (पिंग)।

णिसि° :: देखो णिसा (हे १, ८; ७२; षड्; सुर १, २७)। °पालअ पुं [°पालक] छन्द-विशेष (पिंग)। °भत न [°भक्त] रात्रि-भोजन (ओघ ७८७)। °भुत्त न [°भुक्त] रात्रि-भोजन (सुपा ४९१)।

णिसिअ :: देखो णिसीअ णिसिअइ (सण; कप्प)। संकृ. णिसिइत्ता (कप्प)।

णिसिअ :: वि [निशित] शान दिया हुआ, तीक्ष्ण (से ५, ४९; महा; हे ४, ३३०)।

णिसिक्क :: सक [नि + सिच्] प्रक्षेप करना, डालना। संकृ. णिसिक्किय (आचा)।

णिसिज्जा :: देखो णिसज्जा (कप्प; सम ३५; ठा ५, १)। ३ उपाश्रय, साधुओं का स्थान (पंच ४)

णिसिज्झमाण :: देखो णिसेह = नि + षिध्।

णिसिट्ठ :: वि [निसृष्ट] १ बाहर निकाला हुआ (भास १०) २ दत्त, प्रदत्त (आच) ३ अनुज्ञात (बृह १) ४ बनाया हुआ। क्रिवि. 'आमयहराइं. . . पउमो निहो निसिट्ठं उवणमेइं' (उप ९८६ टी)

णिसिद्ध :: वि [निषिद्ध] प्रतिषिद्ध, निवारित (पंचा १२)।

णिसिय :: वि [न्यस्त] स्थापित (धर्मं ७३)।

णिसियण :: न [निषदन] उपवेशन (पव)।

णिसिर :: सक [नि + सृज्] १ बाहर निका- लना। २ देना, त्याग करना। ३ करना। णिसिरइ (भास ५; भग); 'णिरवराहण। निसिरंति जे न दंडं, तेवि हु पाविंति निव्वाणं' (सुर १५, २३४)। कर्मं. निसिरिज्जइष निसिरिज्जए (विसे ३५७)। वकृ. निसिरंत (पि २३५)। कवकृ. निसिरिज्जमाण (पि २३५)। संकृ. णिसिरित्ता (पि २३५)। प्रयो. निसिरावेंति (पि २३५)

णिसिरण :: न [निसर्जन] १ निस्सारण (भास २) २ त्याग (णाया १, १६)

णिसिरणया, णिसिरणा :: स्त्री [निसर्जना] १ त्याग, दान (आचा २, १, १०) २ निस्सारण, निष्कासन (भग)

णिसीअ :: अक [नि + षद्] बैठना। णिसीअइ (भग)। वकृ. णिसीअंत, णिसीअमाण (भग १३, ६; सूअ १, १, २)। संकृ. णिसीइत्ता (कप्प)। हेकृ. णिसीइत्तए (कस)। कृ. णिसीइयव्व (णाया १, १; भग)।

णिसीअण :: न [निषदन] उपवेशन, बैठना (उप २६४ टी; स १८०)।

णिसीआवण :: न [निषादन] बैठाना (कस ४, २६ टी)।

णिसीढ :: देखो णिसीह = निशीय (हे १, २१६; कुमा)।

णिसीदण :: देखो णिसीअण (औप)।

णिसीह :: पुंन [निशीथ] १ मध्य रात्रि (हे १, २१६; कुमा) २ प्रकाश का अभाव (निचू ३) ३ न. जैन आगम-ग्रन्थ विशेष (णंदि)

णिसीह :: पुं [नृसिंह] उत्तम पुरुष, श्रेष्ठ मनुष्य (कुमा)।

णिसीहिअ :: वि [नैशीथिक] निज के लिए लाया गया है ऐसा नहीं जाना हुआ भोज- नादि पदार्थ (पिंड ३३६)।

णिसीहिआ :: स्त्री [नैषेधिकी] १ शव-परिष्ठा- पन-भूमि, श्‍मशान-भूमि (अणु १०) २ बैठने की जगह (राय ६३)

णिसीहिआ :: स्त्री [निशीथिका] १ स्वाध्याय- भूमि, अध्ययन-स्थान (आचा २, २, २) २ थोड़े समय के लिए उपात्त स्थान (भग १४, १०) ३ आचाराङ्ग सूत्र का एक अध्ययन (आचा २, २, २)

णिसीहिआ :: स्त्री [नेषेधिकी] १ स्वाध्याय- भूमि (सम ४०) २ पाप-क्रिया का त्याग (पडि; कुमा) ३ व्यापारान्तर के निषेध रूप आचार (ठा १०)। देखो णिसेहिया।

णिसीहिणी :: स्त्री [निशीथिनी] रात्रि, रात (उप पृ १२७)। °नाह पुं [°नाथ] चन्द्रमा (कुमा)।

णिसुअ :: वि [दे. निश्रुत] श्रुत, आकर्णित (दे ४, २७; सुर १, १९९; २, २२९; महा, पाअ)।

णिसुंद :: पुं [निसुन्द] रावण का एक सुभट (पउम ५६, २९)।

णिसुंभ :: सक [नि + शुम्भ्] मार डालना, व्यापादन करना। कवकृ. णिसुंभंत, णिसु- ब्भंत (से ५, ६९; १४, ३ ; पि ५३५)।

णिसुंभ :: पुं [निशुम्भ] १ स्वनाम-ख्यात एक राजा, एक प्रतिवासुदेव (पउम ५, १५६; पव २११) २ दैत्य-विशेष (पिंग)

णिसुंभण :: न [निशुम्भन] १ मर्दंन, व्यापादन, विनाश। २ वि. मार डालनेवाला (सूअ १, ५, १ )

णिसुंभा :: स्त्री [निशुम्भा] स्वनाम-ख्यात एक इन्द्राणी (णाया २; इक)।

णिसुंभिय :: वि [निशुम्भित] निपातित, व्या- पादित (सुपा ४९०)।

णिसुट्ठ, णिसुट्ठिअ :: वि [दे] ऊपर देखो (हे ४, २५८; से १०, ३६)।

णिसुड :: देखो णिसुढ = नम्। निसुडइ (षड्)।

णिसुड्‍ढ :: देखो णिसुट्ठ (हे ४, २५८ टि)।

णिसुढ :: अक [नम्] भार से आक्रान्त होकर नीचे नमना, झुकना। णिसुढइ (हे ४, १५८)।

णिसुढ :: सक [नि + शुम्भ्] मारना, मार कर गिराना। कवकृ. णिसुढिज्जंत (से ३,

णिसुढिअ :: वि [नत] भार से नमा हुआ (पाअ)।

णिसुढिअ :: वि [निशुम्भित] निपातित (से १२, ९१)।

णिसुढर :: वि [नम्र] भार से नमा हुआ (कुमा)।

णिसुण :: सक [नि + श्रु] सुनना, श्रवण करना। निसुणइ, णिसुणेइ, णिसुणेमि (सण; महा; सट्ठि १२८)। वकृ, निसुणंत, निसुणमाण सुपा १०६; सुर १२, १७४)। कवकृ. निसुणिज्जंत (सुपा ४५; रयण ९४)। संकृ निसुणिउं, निसुणिऊण, णिसुणिऊणं (सुपा १४; महा; पि ५८५)।

णिसुद्ध :: वि [दे] १ पातित, गिराया हुआ (दे ४, ३६; पाअ; से ५; ६८)

णिसुब्भंत :: देखो णिसुंभ = नि + शुम्भ्।

णिसूग :: देखो निस्सूग (सुपा ३७०)।

णिसृड :: देखो णिसुढ = नि + शुम्भ। हेकृ. निसूडिउं (सुपा ३९६)।

निसृढ :: देखो णिसह = नि + सह्। निसूढइ (प्राकृ ७२)।

णिसेग :: देखो णिसेय (पंच ५, ४९)।

णिसेज्जा :: स्त्री [निषद्या] वस्त्र, कपड़ा (पव १२७ टी)।

णिसेज्जा :: देखो णिसज्जा (उव; पव ६७)।

णिसेज्झ :: वि [निषेध्य] निषेध-योग्य (धर्मं- सं ६९३)।

णिसेणि :: देखो णिस्सेणि (सुर १३, १६०)।

णिसेय :: पुं [निषेक] १ कर्म-पुद्‍गलों की रचना-विशेष (ठा ६) २ सेचन, सींचना; 'ता संपइ जिणवरबिंबदंसणामयनिएण पीणि- ज्जउ नियदिर्ट्ठिं' (सुपा २६६); 'काआवि कुणंति सिरिखंडरसनिसेयं' (सुपा २०)

णिसेव :: सक [नि + सेव्] १ सेवा करना, आदर करना। २ आश्रय करना। निसेवइ, निसेवए (महा; उव)। वकृ. णिसेवमाण (महा)। कवकृ. णिसेविज्जंत (ओघ ५६)। कृ. निसेवणिज्ज (सुपा ३७)

णिसेव :: सक [नि + सेव्] आचरना। णिसेवए (अज्झ १७६)।

णिसेवग :: देखो णिसेवय (सूअ २, ६, ५)।

णिसेवणा :: स्त्री [निषेवणा] सेवा, भजना (उत्त ३२, ३)।

णिसेवय :: वि [निषेवक] १ सेवा करनेवाला, सेवक। २ आश्रय करनेवाला (पुप्फ २५१)

णिसेवा :: स्त्री [निषेवा] ऊपर देखो (सम्मत्त १५५; संबोध ३४)।

णिसेवि :: वि [निषेविन्] ऊपर देखो (स १०)।

णिसेविय :: वि [निषेवित] १ सेवित, आदृत (आवम) २ आश्रित (उत्त २०)

णिसेह :: सक [नि + षिध्] निषेध करना, निवारण करना। निसेहइ (हे ४, १३४)। कवकृ. निसिज्झमाण (सुपा ५७२)।ऑ हेकृ. निसेहिउं (स १६८)। कृ. 'निसेहि- यव्वा सययंपि माया' (सत ३५)।

णिसेह :: पुं [निषेध] १ प्रतिषेध, निवारण (उव; प्रासू १८१) २ अपवाद (ओघ ५५)

णिसेहण :: न [निषेधन] निवारण (आवम)।

णिसेहणा :: स्त्री [निषेधना] निवारण (आव १)।

णिसेहिया :: देखो णिसीहिआ = नैषेधिकी। १ मुक्ति, मोक्ष। २ श्‍मशान-भूमि। ३ बैठने का स्थान। ४ नितम्ब, द्वार के समीप का भाग (गाज)

णिस्स :: वि [निःस्व] निर्धन, धन-रहित (पाअ)। °यर वि [°कर] १ निर्धंन-कारक। २ कर्मं को दूर करनेवाला (आचा २, १६, ६)

णिस्संक :: पुं [दे] निर्भंर (दे ४, ३२)।

णिस्संक :: वि [निःशङ्क] १ शङ्का-रहित (सूअ २, ७; महा) २ न. शङ्का का अभाव (पंचा ९)

णिस्संकिअ :: वि [निःशङ्कित] १ शङ्का- रहित (ओघ ५६ भा; णाया १, ३) २ न. शङ्का का अभाव (उत्त २८)

णिस्संग :: वि [निः सङ्ग] सङ्ग-रहित (सुपा १४०)।

णिस्संचार :: वि [निः संचार] संचार-रहित, गमनागमन-वर्जित (णाया १, ८)।

णिस्संजम :: वि [निस्संयम] संयम-रहित (पउम २७, ५)।

णिस्संत :: वि [निःशान्त] प्रशान्त, अतिशय शान्त (राय)।

णिस्संद :: देखो णीसंद (पणह १, १; नाट-- मालती ५१)।

णिस्संदेह :: वि [निस्संदेह] संदेह-रहित, निश्चय, निःसंशय (काल)।

णिस्संधि :: वि [निस्सन्धि] सन्धि-रहित, साँधा से रहित (पणह १, १)।

णिस्संस :: वि [नृशंस] क्रूर, निर्दंय (महा)।

णिस्संस :: वि [निःशंस] श्‍लाघा-रहित (पणह १, १)।

णिस्संसय :: वि [निःसंशय] १ संशय-रहित। २ क्रिवि. निःसंदेह, निश्चय (अभि १८४; आवम)

णिस्सक्क :: सक [नि + ष्वष्क्] कम करना, घटाना। संकृ. निस्सक्किय (आचा २, १, ७, २)।

णिस्सण :: पुं [निः स्वन] शब्द, आवाज (कुप्र २७)।

णिस्सण्ण :: वि [निःसंज्ञ] संज्ञा-रहित (सूअ १, ५, १)।

णिस्सत्त :: वि [निःसत्त्व] धैर्यं-रहित, सत्त्व- हीन (सुपा ३५९)।

णिस्सन्न :: देखो णिसण्ण (रयण ५)।

णिस्सम्म :: अक [निर् + श्रम्] बैठना। वकृ. णिस्सम्मंत (से ९, ३८)।

णिस्सय :: पुं [निश्रय] देखो णिस्सा (संबोध १६)।

णिस्सर :: अक [निर + सृ] बाहर निकलना। णिस्सरइ (कप्प)। वकृ. णिस्सरंत (नाट-- चैत ३८)।

णिस्सरण :: वि [निःसरण] निर्गंमन, बाहर निकलना (ठा ४, २)।

णिस्सरण :: वि [निः शरण] शरण-रहित, त्राण-वर्जित (पउम ७३, ३२)।

णिस्सारिअ :: वि [दे] त्रस्त, खिसका हुआ (दे ४, ४०)।

णिस्सल्ल :: वि [निःशल्य] शल्य-रहित (उप ३२० टी; द्र ५७)।

णिस्सस :: अक [निर् + श्वस्] निःश्वास लेना। निस्ससइ, णिस्ससंति (भग)। वकृ. णिस्ससिज्जमाण (ठा १०)।

णिस्सह :: वि [निः सह] मन्द, अशक्त (हे १, १३; ९३; कुमा)।

णिस्सा :: स्त्री [निश्रा] १ आलम्बन, आश्रय, सहारा (ठा ५, ३) २ अधीनता (उप १३० टी) ३ पक्षपात (वव ३)

णिस्साण :: न [निश्राण] निश्रा, अवलम्बन (पणह १, ३)। °पय न [°पद] अपवाद (बृह १)।

णिस्साण :: पुंन [दे] वाद्य-विशेष, निशान; 'वज्जिरनिस्साणतूररवगज्जो' (धर्मंवि ५९)।

णिस्सार :: सक [निर् + सारय्] बाहर निकालना। निस्सारइ (कुप्र १५४)।

णिस्सार, णिस्सारग :: वि [निःसार] १ सार-हीन, निरर्थंक (अणु; सूअ १, ७; आचा) २ जीर्णं, पुराना (आचा)

णिस्सारय :: वि [निःसारक] निकालनेवाला (उप २८० टी।

णिस्सारिय :: वि [निःसारित] १ निकाला हुआ। २ च्यावित, भ्रष्ट किया हुआ (सूअ १, १४)

णिस्सास :: पुं [निःश्वास] निःश्वास, नीचा श्वास (भग)। २ काल-मान-विशेष (इक) ३ प्राण-वायु, प्रश्‍वास (प्राप्र)

णिस्साहार :: वि [निःस्वाधार] निराधार, आलम्बन-रहित (सण)।

णिस्सिंग :: वि [निःश्रृङ्ग] श्रृग-रहित (सुपा ३१३)।

णिस्सिंघिय :: न [निःशिङ्गित] अव्यक्त शब्द- विशेष (विसे ५०१)।

णिस्सिंच :: अक [निर् + सिच्] प्रक्षेप करना, डालना, फेंकना। वकृ. णिस्सिंचमाण (राज)। संकृ. णिस्सिंचिया (दस ५, १)।

णिस्सिणेह :: वि [निः स्‍नेह] स्‍नेह-रहित (पि १४०)।

णिस्सिय :: वि [निश्रित] १ आश्रित, अवलम्बित (ठा १०; भास ३८) २ आसक्त, अनुरक्त, तल्लीन (सूअ १, १, १; ठा ५, २) ३ न. राग, आसक्ति (ठा ५, २)

णिस्सिय :: वि [निश्रित] १ निश्चय से बद्ध (सूअ २, ६, २३) २ पक्षपाती, रागी (वव १)

णिस्सय :: वि [निःसृत] निर्गत, निर्यात (भास ३८)।

णिस्सील :: वि [निःशील] सदाचार-रहित, दुःशील (पउम २, ८८; ठा ३, २)।

णिस्सृग :: वि [निःशूक] निर्दंय, निष्करण (श्रा १२)।

णिस्सेज्जा :: देखो णिसेज्जा (पव १२७)।

णिस्सेणि :: स्त्री [निःश्रेणी] सीढ़ी (पणह १, १; पाअ)।

णिस्सेयस :: न [निः श्रेयस] १ कल्याण, मंगल, क्षेम (ठा ४, ४; णाया १, ८) २ मुक्ति, मोक्ष, निर्वाण (औप; णंदि) ३ अभ्युदय, उन्‍नति (उत्त ८)

णिस्सेयसिय :: वि [नैःश्रेयसिक] मुमुक्षु, मोक्षार्थी (भग १५)।

णिस्सेस :: वि [निः शेष] सर्वं, सब, सकल (उफ २००)।

णिह :: वि [निभ] १ समान, तुल्य, सदृश (से १, ५८; गा ११४; दे १, ५१) २ न. बहाना, व्याज, छल (पाअ)

णिह :: वि [निह] १ मायावी, कपटी (सूअ १, ६) २ पीड़ित (सूअ १, २, १) ३ न. आघात-स्थान (सूअ १, ५, २)

णिह :: वि [स्‍निह] रागी, राग-युक्त (आचा)।

णिहंतव्व :: देखो णिहण = नि + हन्।

णिहंस :: पुं [निघर्ष] घर्षंण (गउड)।

णिहंसण :: न [निघर्षण] घर्षण, रगड़ (से ५, ४९; गउड)।

णिहट्‍टु :: /?/अ. १ जुदा कर, पृथक् करके (आचा) २ स्थापन कर (णाया १, १६)

णिहट्ठ :: वि [निघृष्ट] घिसा हुआ (दे २, १७४)।

णिहण :: सक [नि + हन्] १ निहन करना, मारना। २ फेंकना। णिहणामि (कुप्र २९२)। णिहणाहि (कप्प)। भूका — णिहणिंसु (आचा)। वकृ. निहणंत (सण)। संकृ. णिहणित्ता (पि ५८२)। कृ. णिहंतव्व (पउम ९, १७)

णिहण :: सक [नि + खन्] गाड़ना। 'निहणंति धरां धरणीयलम्मि' (वज्जा ११८)। हेकृ. 'चोरो दव्वं निहणि उम् आरद्धो' (महा)।

णिहण :: न [दे] कूल, तीर, किनारा (दे ४, २३)।

णिहण :: त [निधन] १ मरण, विनाश (पाअ; जी ४९) २ पुं. रावण का एक सुभट (पउम ५६, ३२)

णिहणण :: न [निहनन] निहनि, मारना (महा; स १६३)।

णिहणिअ :: वि [निहत] मारा हुआ (सुपा १५८; सण)।

णिहत्त :: सक [निधत्तय्] कर्मं को निबिड़ रूप से बाँधना। भूका. णिहतिंसु (भग)। भवि. णिहत्तेस्संति (भग)।

णिहत्त :: देखो णिधत्त (भग)।

णिहत्तण :: न [निधत्तन] कर्मं को निबिड़ बन्धन (भग)।

णिहत्ति :: देखो णिधत्ति (राज)।

णिहम्म :: सक [नि + हम्म्] जाना, गमन करना। णिहम्मइ (हे ४, १६२)।

णिहय :: वि [निहत] मारा हुआ (गा ११८; सुर ३, ४९)।

णिहय :: वि [निखात] गाड़ा हुआ (स ७५६)।

णिहर :: अक [नि + हृ] पाखाना जाना (प्रामा)।

णिहर :: अक [आ + क्रन्द्] चिल्लाना। णिहरइ (षड्)।

णिहर :: अक [निर् + सृ] बाहर निकलना। णिहरइ (षड्)।

णिहरण :: देखो णिहरण (णाया १, २ — पत्र ८६)।

णिहव :: देखो णिहुव। णिहवइ (नाट; पि ४१३)।

णिहव :: वि [दे] सुप्‍त, सोया हुआ (षड्)।

णिहव :: पुं [निवह] समूह (षड्)।

णिहस :: सक [नि + घृष्] घिसना। संकृ. णिहसिऊण (उव)।

णिहस :: पुं [निकष] १ कषपट्टक, कसौटी का पत्थर (पाअ) २ कसौटी पर की जाती रेखा (हे १, १८६; २६०; प्राप्र)

णिहस :: पुं [निघर्ष] घर्षंण, रगड़ (से ६, ३३)।

णिहस :: पुं [दे] वल्मीक, सर्पं आधि का बिल (दे ४, २५)।

णिहसण :: न [निघर्षण] घर्षण, रगड़ (से ९, १०; गा १२१; गउड; वज्जा ११८)।

णिहसिय :: वि [निघर्षित] घिसा हुआ (वज्जा १५०)।

णिहा :: स्त्री [निहा] माया, कपट (सूअ १, ८)।

णिहा :: सक [नि + धा] स्थापना करना। निहेउ (स ७३८)। कवकृ. णिहिप्पंत (से ८, ९७)। संकृ. णिहाय (सूअ १, ७)।

णिहा :: सक [नि + हा] त्याग करना। संकृ. णिहाय (सूअ १, १३)।

णिहा, णिहाआ :: सक [दृश्] देखना। णिहाइ, णिहाआइ (षड्)।

णिहाण :: न [निधान] वह स्थान जहाँ पर धन आदि गाड़ा गया हो, खजाना; भण्डार (उवा; गा ३१८; गउड)।

णिहाय :: पुं [दे] १ स्वेद, पसीना (दे ४, ४९) २ समूह, जत्था (दे ४, ४९; से ४, ३८; स ४४९; भवि; पाअ; गउड; सुर ३, २३१)

णिहाय :: पुं [निघात] आघात, आस्फालन (से १५, ७०; महा)।

णिहाय :: देखो णिहा = नि + धा, नि + हा।ष णिहाय पुं [निह्राद] अव्यक्त शब्द (सुख ४, ६)।

णिहार :: पुं [निहार] निर्गंम (पणह १, ५; ठा ८)।

णिहारिम :: न [निर्हारिम] जिसके मृतक शरीर को बाहर निकालकर संस्कार किया जाय उसका मरण (भग)। २ वि. दूर जानेवाला, दूर तक फैलनेवाला (पणह २, ५)

णिहाल :: देखो णिभाल। णिहालेहि (स १००)। वकृ. णिहालंत, णिहालयंत (उप ६४८ टी; ६८६ टी)। संकृ. णिहालेउं (गच्छ १)। कृ. णिहालेयव्व (उप १००७)।

णिहालण :: न [निभालन] निरीक्षण, अवलोकन (उप पृ ७२, सुर ११, १२; सुपा २३)।

णिहालिअ :: वि [निभालित] निरीक्षित (पाअ; स १००)।

णिहि :: वि [निधि] १ खजाना, भंडार (णाया १, १३) २ धन आदि से भरा हुआ पात्र। (हे १, ३५; ३, १९; ठा ५, ३); 'अच्छेरंव णिहिं विअ सग्गे रज्जं व अमअपाणं व' (गा १२५) ३ चक्रवर्त्ती राजा की संपत्ति- विशेष, नैसर्पं आदि नव निधि (ठा ९)। °नाह पुं [°नाथ] कुबेर, धनेश (पाअ)

णिहि :: पुंस्त्री [निधि] लगातार नव दिन का उपवास (संबोध ५८)।

णिहिअ :: वि [निहित] स्थापित (हे २, ९९; प्राप्र)।

णिहिण्ण :: वि [निर्भिन्न] विदारित (अच्चु १९)।

णिहित्त :: देखो णिहिअ (गा ५६५; काप्र ९०९; प्राप्र)।

णिहिप्पंत :: देखो णिहा = नि + धा।

णिहिल :: वि [निखिल] सब, सकल (अच्चु ९; आरा ५५)।

णिहिल्लय :: देखो णिहिअ (सुख २, ४३)।

णिही :: स्त्री [दे] वनस्पति-विशेष (राज)।

णिहीण :: वि [निहीन] न्यून (कुप्र ४५४)।

णिहीण :: वि [निहीन] तुच्छ, खराब, हलका, क्षुद्र, 'अत्थि निहीणे देहे किं रागनिबधणं तुज्झ ?' (उप ७२८ टी)।

णिहु :: स्त्री [स्‍निहु] औषधि-विशेष (जीव १)।

णिहुअ :: वि [निभृत] १ गुप्त, प्रच्छन्‍न, छिपा हुआ (से १३, १५; महा) २ विनीत, अनुद्धत (से ४, ५६) ३ मन्द, धीमा (पाअ; महा) ४ निश्चल, स्थिर (उत्त १९) ५ असंभ्रान्त, संभ्रमरहित (दस ६) ६ धृत, धारण किया हुआ। ७ निर्जन, एकान्त। ८ अस्त होने के लिए उपस्थित (हे १, १३१) ९ उपशान्त (पणह २, ५)

णिहुअ :: वि [दे] १ व्यापार-रहित, अनुद्युक्त, निश्‍चेष्ट (दे ४, ५०; से ४, १; सूअ १, ८; बृह ३) २ तूष्णीक, मौन (दे ४, ५०; सुर ११, ८४) ३ न. सुरत, मैथुन (दे ४, ५०; षड्)

णिहुअण :: देखो णिहुवण (गा ४८३)।

णिहुआ :: स्त्री [दे] कामिता, संभोग के लिए प्रार्थित स्त्री (दे ४, २६)।

णिहुण :: न [दे] व्यापार; धन्धा (दे ४, २६)।

णिहुत्त :: वि [दे] निमग्‍न, डूबा हुआ (पउम १०२, १९७)।

णिहुत्थिभगा :: स्त्री [दे] वनस्पति-विशेष (पणण १ — पत्र ३५)।

णिहुव :: सक [कामय्] संभोग का अभिलाष करना। णिहुवइ (हे ४, ४४)।

णिहुवण :: न [निधुवन] सुरत, संभोग (कप्पू; काप्र १९४); 'णिहुवणचुंबिअणाहिकूविआ' (मै ४२)।

णिहूअ :: न [दे] १ सुरत, मैथुन (दे ४, २६)। २ वि. अकिञ्चित्कर (विसे २६१७)। देखो णीहूय।

णिहेलण :: न [दे] १ गृह, घर, मकान (दे ४, ५१; हे २, १७४; कुमा, उप ७२८ टी; स १८०; पाअ; भवि) २ जघन, स्त्री के कमर के नीचे का भाग (दे ४, ५१)

णिहो :: अ [न्यग्] नीचे (सूअ १, ५, १, ५)।

णिहोड :: सक [नि + वारय्] निवारण करना, निषेध करना। णिहोडइ (हे ४, २२)। वकृ. णिहोडंत (कुमा)।

णिहोड :: सक [पातय्] १ गिरना। २ नाश करना। णिहोडइ (हे ४, २२)

णिहोडिय :: वि [पातित] १ गिराया हुआ (दंस ३) २ विनाशित (उव ५९७ टी)

णी :: सक [गम्] जाना, गमन करना। णीइ (हे ३, १६२; गा ४९ अ) भवि. णीहसि (गा ७४९)। वकृ. णिंत, णेंत (से ३, २; गउड; गा ३३४; उप २६४ टी; गा ४२०)। संकृ. णिंतूण, नीउं (गउड; विसे २२२)।

णी :: सक [नी] १ ले जाना। २ जानना। ३ ज्ञान करना, बतलाना। णेइ, णयइ (हे ४स ३३७; विसे ९१४)। वकृ. णेंत (गा ५०; कुमा)। कवकृ. णिज्जंत, णीअमाण (गा ६८२ अ; से ६, ८१; सुपा ४७६)। संकृ. णइअ, णेउं, णेउआण, णेउण (नाट — मृच्छ २९४; कुमा; षड्; गा १७२)। हेकृ. णेउं (गा ४६७, कुमा)। कृ. णेअ, णेअव्व (पउम ११६, १७; गा ३३९). प्रयो. णोयावइ (सण)

णीअअ :: वि [दे] समीचीन, सुन्दर (पिंग)।

णीआरण :: न [दे] बलि-घटी, बली रखने का छोटा कलश (दे ४, ४३)।

णीइ :: स्त्री [नीति] १ न्याय, उचित व्यवहार, न्याय्य व्यवहार (उप १८६; महा) २ नय, वस्तु के एक धर्म को मुख्यतया माननेवाला मत (ठा ७)। °सत्थ न [°शास्त्र] नीति- प्रतिपादक शास्त्र (सुर ६, ९५; सुपा ३४०; महा)

णीका :: स्त्री [नीका] कुल्या, नहर, सारणि (कुमा)।

णिखय :: वि [निःक्षत] निखिल, संपूर्णं; 'नय नीखयवक्खाणं तीरइ काऊण सुत्तस्स' (विचार ८)।

णीचअ :: न [नीचैस्] १ नीचे, अधः (हे १, १५४) २ वि. नीचा, अधः-स्थित (कुमा)

णिछूढ :: देखो णिच्छूढ (णंदि)।

णीजूह :: देखो णिज्जूह = दे. निर्यूह (राज)।

णीड :: देखो णिड्ड (गा १०२; हे १, १०६)।

णिण :: सक [गम्] जाना, गमन करना। णीणइ (हे ४, १६२)। णीणंति (कुमा)।

णिण :: सक [नी] १ ले जाना। २ बाहर ले जाना, बाहर निकालना; 'सारभंडाणि णीणेइ, असारं अवउज्झइ' (उत्त १९, २२)। भवि. नीणेहिइ (महा)। वकृ. णीणेमाण। कवकृ. नीणिज्जंत, णीणिज्जमाण (पि ६२; आचा)। संकृ. णीणेऊण, णीणेत्ता (महा; उवा)

णिणाविय :: वि [नायित] दूसरे द्वारा ले जाया गया, अन्य द्वारा आनीत (उप १३९ टी)।

णीणिअ :: वि [गत] गया हुआ (पाअ)।

णीणिअ :: वि [नीत] १ ले जाया गया (उप ५९७ टी; सुपा २९१) २ बाहर निकाला हुआ (णाया १, ४); 'उपरप्पविठ्ठुछुरिआए नीणिओ अंतपब्भारो' (सुपा ३८१)

णीणिआ :: स्त्री [नीनिका] चतुरिन्द्रिय जन्तु की एक जाति (जीव १)।

णीम :: पुं [नीप] १ वृक्ष-विशेष, कदंब का पेड़। २ न. फल-विशेष (दस ५, २, २१)

णीम :: पुं [नीप] वृक्ष-विशेष, कदम्ब का पेड़ (पणण १; औप; हे १, २३४)।

णीमम :: वि [निर्मम] ममत्व-रहित (अज्झ १०९)।

णीमी :: देखो णीवी (कुमा; षड्)।

णीय :: वि [नीच] १ नीच, अधम, जघन्य (उवा; सुपा १०७) २ वि. अधस्तन (सुपा ६००) °गोय न [°गोत्र] १ क्षुद्र गोत्र। २ कर्मं-विशेष, जो क्षुद्र जाति में जन्म होने का कारण है (ठा २, ४; आचा) ३ वि. नीच गोत्र में उत्पन्न (सूअ २, १)

णीय :: वि [नीत] ले जाया गया (आचा; उव; सुपा ९)।

णीय :: देखो णिच्च = नित्य (उव)।

णीयंगम :: वि [निचंगम] नीचे जानेवाला (पुप्फ ४४३)।

णीयंगमा :: स्त्री [नीचंगमा] नदी, तरंगिणी (भत्त ११६)।

णीर :: न [नीर] जल, पानी (कुमा; प्रासू ६७)। °निहि पुं [°निधि] समुद्र, सागर (सुपा २०१)। °रुह न [°रुह] कमल (ती ३)। °वाह पुं [°वाह] मेघ, अभ्र (उप पृ ६२)। °हर पुं [°गृह] समुद्र, सागर (उप पू ११९) °हर पुं [°धि] समुद्र (उप ९८६ टी)। °कर पुं [°कर] समुद्र (उप ५३० टी)।

णीरंगी :: स्त्री [दे. नीरङ्गा] सिर का अवगुण्ठन, शिरोवस्त्र, घूँघट (दे ४, ३१, पाअ)।

णीरंज :: सक [भञ्ज्] तोड़ना, भाँगना। णीरंजइ (हे ४, १०६)।

णीरंजिअ :: वि [भग्‍न] तोड़ा हुआ, छिन्न (कुमा)।

णिरंध :: वि [नीरन्ध्र] निश्‍छिद्र (कप्पू)।

णीरण :: न [दे] घास, चाारा; 'विमलो पंजलमग्गं नीरिंधणनीरणाइसंजुत्तं' (सुपा ५०१)।

णीरय :: वि [नीरजस्] १ रजो-रहित, निर्मंल, शुद्ध; 'सिद्धिं गच्छइ णीरओ' (गुरु १६; पणण ३६; सम १३७; पउम १०३, १३४; सार्धं ११२) २ पुं. ब्रह्म-देवलोक का एक प्रस्तट (ठा ६)

णीरव :: सक [आ + क्षिप्] आक्षेप करना। णीरवइ (हे ४, १४५)।

णिरव :: सक [बुभुक्ष्] खाने का चाहना। णीरवइ (हे ४, ५)। भूका. णीरवीअ (कुमा)।

णिरव :: वि [आक्षेपक] आक्षेप करनेवाला (कुमा)।

णिरस :: वि [नीरस] रस-रहित, शुष्क (गउड; महा)।

णीरसजल :: न [नीरसजल] आयंबिल तप (संबोध ५८)।

णीराग, णीराय :: वि [नीराग] राग-रहित, वीतराग (गउड; कुप्र १२५; कुमा)।

णीरेणु :: वि [नीरेणु] रजो-रहित, धूल-रहित (गउड)।

णीरोग :: वि [नीरोग] रोग-रहित, तंदुरुस्त (जीव ३)।

णील :: अक [निर् + सृ] बाहर निकलना। णीलइ (हे ४, ७९)।

णील :: पुं [नील] १ हरा वर्णं, नीला रंग (ठा १) २ ग्रहाधिष्ठायक देव-विशेष (ठा २, ३) ३ रामचन्द्र का एक सुभट, वानर- विशेष (से ४, ५) ४ छन्द-विशेष (पिंग) ५ पर्वंत-विशेष (ठा २, ३) ६ न. रत्‍न की एक जाति, नीलम (णाया १, १) ७ वि. हरा वर्णंवाला (पणण १, राय) °कंठ पुं [°कण्ठ] १ शक्रेन्द्र का एक सेनापति, शक्रेन्द्र के महिष-सैन्य का अधिपति देव-विशेष (ठा ५, १; इक) २ मयूर, मोर (पाअ; कुप्र २४७) ३ महादेव, शिव (कुम २४७) °कणवीर पुं [°करवीर] हरे रंग के फूलोंवाला कनेर का पेड़ (राय)। °गुफा स्त्री [°गुफा] उद्यान-विशेष (आवम)। °मणि पुंस्त्री [°मणि] रत्‍न-विशेष, नीलम, मरकत (कुमा)। °लेस वि [°लेश्य] नील लेश्यावाला (पणण १७)। °लेसा स्त्री [°लेश्या] अशुभ अव्यवसाय-विशेष (सम ११; ठा १)। °लेस्स देखो °लेस (पणण १७)। °लेस्सा देखो °लेसा (राज)। °वंत पुं [°वत्] १ पर्वत-विशेष (ठा २, ३; सम १२)| २ द्रह-विशेष (ठा ५, २) ३ न. शिखर-विशेष (ठा २, ३)

णिल :: वि [नील] कच्चा, आर्द्रं (आचा २, ४, २, ३)। °केसी स्त्री [°केशी] तरुणी, युवति (वव ४)।

णीलकंठी :: स्त्री [दे] वृक्ष-विशेष, बाण-वृक्ष (दे ४, ४२)।

णिला :: स्त्री [नीला] १ लेश्या-विशेष, एक तरह का आत्मा का अशुभ परिणाम (कम्म ४, १३; भग) २ नीलबर्णंवाली स्त्री (षड्)

णीलिअ :: वि [निःसृत] निर्गंत, निर्यात (कुमा)।

णीलिअ :: वि [नीलित] नील वर्णं का (उप पृ ३२)।

णीलिआ :: देखो णीला (भग)।

णीलिम :: पुंस्त्री [नीलिमन्] नीलत्व, नीलापन, हरापन (सुपा १३७)।

णीलि :: स्त्री [नीली] १ वनस्पति-विशेष, नील (पणण १; उप ६, ५) २ नील वर्णंवाली स्त्री (षड्) ३ आँख का रोग (कुप्र २१३)

णीलुँछ :: सक [कृ] १ निष्पतन करना। २ आच्छोटन करना। णीलुंछइ (हे ४, ७१; षड्)। वकृ. णीलुंछंत (कुमा)

णीलुक्क :: सक [गम्] जाना, गमन करना। णीलुक्कइ (हे ४, १६२)।

णीलुप्पल :: न [नीलोत्पल] नील रंग का कमल (हे १, ८४; कुमा)।

णीलुय :: पुं [दे] अश्‍व की एक उत्तम जाति (सम्मत्त २१६)।

णीलोभास :: पुं [नीलावभास] १ ग्रहाधि- ष्ठायक देव-विशेष (ठा २; ३) २ वि. नील- च्छाय, जो नीला मालूम देता हो (णाया १, १)

णीव :: पुं [नीप] वृक्ष-विशेष, कदम्ब का पेड़ (हे १, २३४; कप्प णाया १, ९)।

णीवार :: पुं [नीवार] वृक्ष-विशेष, तिल्ली का पेड़ (गउड)।

णीवार :: पुं [नीवार] व्रीहि-विशेष (सूअ १, ३, २, १९)।

णीवी :: स्त्री [नीवी] मूल-धन, पूँजी। २ नारा, इजारबन्द (षड्; कुमा)

णीसंक :: देखो णिस्संक = निःशंक (गा ३४५; कुमा)।

णिसंक :: पुं [दे] वृषभ, बैल (षड्)।

णीसंकिअ :: देखो णिस्संकिअ (विसे ५६२; सुर ७, १५५)।

णिसंख :: वि [निःसंख्य] संख्या-रहित, असंख्य (सुपा ३५५)।

णीसंचार :: देखो णिस्ंसंचार (पउम ३२, १)।

णीसंद :: पुं [निःष्यन्द] रस-स्‍नुति, रस का झरन (गउड)।

णीसंदिअ :: वि [निः ष्यन्दित] झरा हुआ, टपका हुआ (पाअ)।

णीसंदिर :: वि [निःष्यन्दितृ] झरनेवाला, टप- कनेवाला (सुपा ५९)।

णीसंपाय :: वि [दे] जहाँ जनपद परिश्रान्त हुआ हो वह (दे ४, ४२)।

णीसट्ठ :: वि [निः सृष्ट] १ विमुक्त (पणह १, १ — पत्र १८) २ प्रदत्त (बृह २) ३ क्रिवि. अतिशय, अत्यन्त; 'णीसट्ठमचेयणो ण वा झरइ' (उव)

णीसण :: पुं [निःस्वन] आवाज, शब्द, ध्वनि (सुर १३, १८२; कुप्र ५६)।

णीसणिआ, णीसणी :: स्त्री [दे] निःश्रेणी, सीढञी (दे ४, ४३)।

णीसत्त :: वि [निःसत्त्व] सत्त्व-हीन, बल-रहित (पउम २१, ७५; कुमा)।

णीसद्द :: वि [निःशब्द] शब्द-रहित (दे ७, २८; भवि)।

णिसर :: अक [रम्] क्रीड़ा करना, रमण करना। णीसरइ (हे ४, १६८) कृ. णीसरणिज्ज (कुमा)।

णीसर :: अक [निर् + सृ] बाहर निकलना। णीसरइ (हे ४, ७९)। वकृ. नीसरंत (ओघ ४५८ टी)।

णीसरण :: न [निः सरण] फिसलन, रपटन (वव ४)।

णिसरण :: न [निः सरण] निर्गमन (से ९, १८)।

णीसरिअ :: वि [निःसृत] निर्गंत, निर्यात (सुपा २४७)।

णीसल :: वि [निःशल] १ निश्‍चल, स्थिर। २ वक्रता-रहित, उत्तान, सपाट; 'नीसलतड्डिय- चंदायएहिं मंडियचउक्कियादेसं' (सुर ३, ७२)

णीसल्ल :: वि [निः शल्य] शल्य-रहित (भवि)।

णीसव :: सक [नि + श्रावय्] निर्जंरा करना, क्षय करना। वकृ. नीसवमाण (विसे २७४९)।

णीसवग :: देखो णीसवय (आवम)।

णीसवत्त :: वि [निः सपत्‍न] शत्रु-रहित, विपक्ष- रहित (मृच्छ ८; पि २७६)।

णीसवय :: वि [निःश्रावक] निर्जरा करनेवाला (विसे २७४९)।

णीसस :: अक [निर् + श्वस्] नीसास लेना, श्‍वास को नीचा करना। णीाससइ (षड्)। वकृ. णीससंत णीससमाण (गा ३३; कुप्र ४३; आचा २, २, ३)। संकृ. णीस- सिअ, णीससिऊण (नाट; महा)।

णीससण :: न [निःश्वसन] निःश्वास (कुमा)।

णीससिअ :: न [निःश्वसित] निःश्वास (से १, ३८)।

णीसह :: वि [निःसह] मन्द, अशक्त (हे १, १३; कुमा)।

णीसह :: वि [निःशाख] शाखा-रहित (झा. २३०)।

णीसा :: स्त्री [दे] पीसने का पत्थर (दस ५, १)।

णीसा :: देखो णिस्सी (कप्प)।

णीसाइ :: वि [निःस्वादिन्] स्वाद-रहित (प्रवि १०)।

णीसाण :: देखो णिस्साण =(दे) धर्मंवि ८०)।

णीसामण्ण, णीसामन्न :: वि [निः सामान्य] १ असा- धारण (गउड; सुपा ९१; हे २, २१२) २ गुरु (पाअ)

णीसार :: सक [निर् + सारय्] बाहर निकालना। णीसारइ (भवि)। कर्मं. नीसा- रिज्जइ (कुप्र १४०)।

णीसार :: पुं [दे] मण्डप (दे ४, ४१)।

णीसार :: वि [निःसार] सार-रहित, फल्गु (से ३, ४८)।

णीसारण :: न [निः सारण] निष्कासन, बाहर निकालना (सुर १५, २०३)।

णीसारय :: वि [निःसारक] बाहर निकालने वाला (से ३, ४८)।

णीसारिय :: वि [निःसारित] निष्कासित (सुर ५, १८८)।

णीसास :: देखो णिस्सास (हे १, ९३; कुमा; प्राप्र)।

णीसास, णीसासय :: वि [निःश्वास, °क] निःश्वास लेनेवाला (विसे २७१५; २७१४)।

णीसाहार :: देखो णिस्साहार; 'नीसाहारा य पडइ भूमीए' (सुर ७, २३)।

णीसित्त :: वि [निष्षिक्त] अत्यन्त सिक्त (षड्)।

णीसीमिअ :: वि [दे] निर्वासित, देश-बाहर किया हुआ (दे ४, ४२)।

णीसेयस :: देखो णिस्सेयस (जीव ३)।

णीसेणि :: स्त्री [निःश्रेणी] सीढ़ी (सूर १३, १५७)।

णीसेस :: देखो णिस्सेस (गउड, उव)।

णीहट्‍टु :: अ निकाल कर (आचा २, ६, २)।

णीहट्‍टु :: अ [नि + सृत्य] बाहर निकल कर (आचा २, १, १०, ४)।

णीहड :: वि [निर्हृत] १ निर्गत, निर्यात (आचा २; १, १) २ बाहर निकाला हुआ (बृह १; कस)

णीहडिया :: स्त्री [निर्हृतिका] अन्य स्थान में ले जाया जाता द्रव्य (बृह २, सू° १८)। गु° भाणु।

णीहम्म :: अक [निर् + हम्म्] निकलना। णीहम्मइ (हे ४, १६२)।

णीहम्मिअ :: वि [निर्हम्मित] निर्गंत, निस्सृत (दे ४, ४३)।

णीहर :: अक [निर् + सृ] १ बाहर निक- लना। णीहरइ (हे ४, ७९)। वकृ. नीहरंत (सुपा ४८२)। संकृ. णीहरिअ (निचू ९)। कृ. णीहरियव्व (सुपा ५९०)

णीहर :: अक [आ + क्रन्द्] आक्रान्द करना, चिल्लाना। णीहरइ (हे ४, १३१)।

णीहर :: अक [निर् + ह्रद्] प्रतिध्वनि करना। वकृ. णीहरंत, णीहरिअंत (से ५, ११, २, ३१)।

णीहर :: सक [निर् + सारय्] बाहर निका- लना। हेकृ. णीहरित्तए (भग ५, ४)। कृ. णीहरियव्व (सुपा ४८२)।

णीहर :: अक [निर् + हृ] पाखाना जाना, पुरीषोत्सर्गं करना। नीहरई (हे ४, २५९)।

णीहरण :: न [निस्सरण, निर्हरण] १ निर्गं- मन, निर्गंम, बाहर निकालना (विपा १, ३; णाया १, १४) २ परित्याग (निचू १) ३ अपनयन (सूअ २, २)

णीहरिअ :: देखो णीहर = निर् + सृ।

णीहरिअ :: वि [निः सृत] निर्गंत, निर्यात (सुर १, १५५, ३, ७५; पाअ)।

णीहरिअ :: वि [निर्ह्रदित] प्रतिध्वनित (से ११, १२२)।

णीहरिअ :: न [दे] शब्द, आवाज, ध्वनि (दे ४, ४२)।

णीहरिअंत :: देखो णीहर = निर् + ह्रद्।

णीहार :: पुं [नीहार] १ हिम, तुषार (अच्चु ७२; स्वप्‍न ५२, कुमा) २ विष्ठा का मूत्र का उत्सर्गं (सम ६०)

णीहारण :: न [निस्सारण] निष्कासन (ठा २, ४)।

णीहारि :: वि [निर्हारिन्] १ निकलनेवाला। २ फैलनेवाला, 'जोयणणीहारिणा सरेण' (आवम; सम ६०)

णीहारि :: वि [निर्ह्रादिन्] घोष करनेवाला, गूजनेवाला (ठा १०; पि ४०५)।

णीहारिम :: देखो णिहारिम (ठा २, ४; औप; णाया १, १)।

णीहास :: नि [निर्हास] हास-रहित (उत्त २२, २८)।

णीहूय :: वि [दे] अकिञ्चित्कर, कुछ भी नहीं कर सकनेवाला; 'पवयणणीहूयाणं' (आवनि ७८७)। देखो णिहुअ।

णु :: अ [नु] इन अर्थों का सूचक अव्यय — १ व्यग्य ध्वनि। २ वक्रोक्ति (स ३४६) ३ वितर्कं (सण) ४ प्रश्‍न। ५ विकल्प। ६ अनुनय। ७ हेतु, प्रयोजन। ८ अपमान। ९ अनुताप, अनुशय। १० अपदेश, बहाना (गउड; हे २, २१७; २१८)

णु :: अ [नु]। १ निन्दासूचक अव्यय (दस २, १) २ विशेष (सिरि ६५१)

°णुअ :: वि [ज्ञक] जानकार (गा ४०५)।

णुक्कार :: पुं [नुक्कार] 'नुक्' ऐसी आवाज (राय)।

णुज्जिय :: वि [दे] बन्द किया हुआ, मुद्रित; 'कड्ढिया णेण छुरिया, णुज्जियं से वयणं, छिन्ना य हत्था' (स ५८६)।

णुत्त :: वि [नुत्त] १ प्रेरित। २ क्षिप्त, फेंका हुआ (से ३, १५)

णुभ :: सक [नि + अस्] स्थापन करना। णुमइ (हे ४, १९९)।

णुम :: सक [छादय्] ढकना, आच्छादन करना। णुमइ (हे ४, २१)।

णुमज्ज :: अक [नि + सद्] बैठना। णुमज्जइ (षड्)।

णुमज्ज :: अक [नि + मस्ज्] डूबना। णुमज्जइ (हे १, ९४)।

णुमज्ज :: अक [शी] सोना, सूतना। णुमज्जइ (प्राकृ ७४)।

णुमज्जण :: न [निमज्जन] डूबना (राज)।

णिमण्ण :: वि [निषण्ण] बैठा हुआ, उपविष्ट (षड्; हे १, १७४)।

णुमण्ण, णुमन्न :: वि [निमग्‍न] डूबा हुआा, लीन (हे १, ९४; १७४)।

णुमिअ :: वि [न्यस्त] स्थापित (कुमा)।

णुमिअ :: वि [छादित] ढका हुआ (कुमा)।

णुल्ल :: देखो णोल्ल। णुल्लइ (पि २४४)।

णिवण्ण :: वि [दे] सुप्त, सोया हुआ (दे ४, २५)।

णुवण्ण :: वि [निषण्ण] बैठा हुआ, उपविष्ट (गउड; णाया १, ५; स २४२); 'पासम्मि नुवण्णा' (उप ६४८ टी)।

णुव्व :: सक [प्र = काशय्] प्रकाशित करना। णुव्वइ (हे ४, ४५)। वकृ. णुव्वंत (कुमा)।

णुसा :: स्त्री [स्‍नुषा] पुत्र-वधू, पुत्र की भार्या (प्रयौ १०५)।

णूउर :: देखो णिउर = नूपुर (षड्; हे १, १२३)।

णूण :: वि [न्यून] कम, ऊन (उप पृ ११९)।

णूण, णूणं :: अ [नूनम्] इन अर्थों का सूचक अव्यय — १ निश्चय, अवधारण। २ तर्कं, विचार। ३ हेतु. प्रयोजन। ४ उपमान। ५ प्रश्‍न (हे १, २९; प्राप्र; कुमा; भग; प्रासू १२; बृह १; श्रा १२)

णूतण :: वि [नूतन] नया, नवीन (मन ३०)।

णूपुर :: देखो णूउर (चारु ११)।

णूम :: सक [छादय्] १ ढकना, छिपाना। णूमइ (हे ४, २१)। णूमंति (णाया १, १६)। वकृ. णूमंत (गा ८५६)

णूम :: न [दे] १ प्रच्छादन, छिपाना। २ असत्य, झूठ (पणह १, २) ३ माया, कपट (सम ७१) ४ प्रच्छन्न स्थान, गुफा वगैरह (सूअ १, ३, ३; भग १२, ५) ५ अन्धकार, गाढ़ अन्धकार (राज)

णूम :: न [दे] कर्म. (सूअ १, ३, ३, २)। °गिह न [°गृह] भूमि-गृह (आचा २, ३, ३, १)।

णूमिअ :: वि [छादित] ढका हुआ, छिपाया हुआ, (से १, ३२; पाअ; कुमा)।

णूमिअ :: वि [दे] पोला किया हुआ (उप पृ ३९३)।

णूला :: स्त्री [दे] शाखा, डाल (दे ४, ४३)।

णे :: अ. पाद-पूर्त्ति में प्रयुक्त होता अव्यय (राज)।

णेअ :: देखो णा = ज्ञा।

णेअ :: देखो णी = नी।

णेअ :: वि [नैक] अनेक, बहुत (पउम ९४, ५१)। °विह वि [°विध] अनेक प्रकार का (पउम ११३, ५२)।

णेअ :: अ [नैब] नहीं ही, कदापि नहीं, कभी नहीं (से ४, ३०; गा १३९; गउड; सुर २, १८६; सण)।

णेअव्व :: देखो णी = नी।

णेआइअ, णेआउअ :: वि [नैयायिक, न्याय्य] न्याय से अबाधित, न्यायानुगत, न्यायो- चित; 'णेआइअस्स मग्गस्स दुट्ठे अवयरई बहुं' (सम ५१; औप; पणह २, १)।

णेआउय, णेउ :: वि [नेतृ] १ ले जानावेला (सूअ १, ८, ११) २ प्रणेता, रचयिता (सूअ १, ६; ७)

णेआवण :: न [नायन] अन्य-द्वारा नयन, पहुँचाना (उप ७४९)।

णेआविअ :: वि [नायित] अन्य द्वारा ले जाया दया, पहुँछाया हुआ (स ४२; कुप्र २०७)।

णेउ :: वि [नेतृ] नेता, नायक (पउम १४, ६२; सूअ १, ३, १)।

णेउआण, णेउं :: देखो णी = नी।

णेउड्‍ढ :: पुं [दे] सद्‍भाव, शिष्टता (दे ४, ४४)।

णेउण :: न [नैपुण] निपुणता, चतुराई (अभि १३२)।

णेउणिअ :: वि [नैपुणिक] १ निपुण, चतुर (ठा ९) २ न. अनुप्रवाद-नामक पूर्वं-ग्रन्थ की एक वस्तु (विसे २३९०)

णेउणिअ :: देखो णेउण्ण (दस ९, २, १३)।

णेउण्ण, णेउन्न :: न [नैपुण्य] निपुणता, चतुराई (दस ९, २; सुपा २९३)।

णेउर :: न [नूपुर] स्त्री के पाँव का एक आभू- षण, पायल (हे १, १२३; गा १८८)।

णेउरिल्ल :: वि [नूपुरवत्] नूपुरवाला (पि १२६; गउड)।

णेऊण, णेंत :: देखो णी = नी।

णेंत :: देखो णी = गम्।

णेक्कंत :: देखो णिक्कत (गा ११)।

णेग :: देखो णेअ = नैक (कुमा; पणह १, ३)।

णेगम :: पुं [नैगम] १ वस्तु के एक अंश को स्वीकारनेवाला पक्ष-विशेष, नय-विशेष (ठा ७) २ वणिक्, व्यापारी; 'जिणधम्म- भाविएणं, न केवलं धम्मओ धणाओवि। नेगमअडहियसहसो, जेण कओ अप्पणो सरिसो' (श्रा २७) ३ न. व्यापार का स्थान (आचा २, १, २)

णेगुण्ण :: न [नैर्गुण्य] निर्गुणता, निःसारता (भत्त १६३)।

णेचइय :: पुं [नैचयिक] धान्य आदि का थोकबन्द व्यापारी (वव ४)।

णेच्छइअ :: वि [नैश्‍चयिक] निश्‍चयनय- सम्मत, निरुपचरित, शुद्धे (विसे २८२)।

णेच्छंत :: वि [नेच्छत्] नहीं चाहता हुआ (हेका ३०६)।

णिच्छिय :: वि [नैच्छित] इच्छा का अविषय, अनभिलषित (जीव ३)।

णिट्ठिअ :: वि [नैष्ठिक] पर्यन्त-वर्त्ती (पणह २, ३)।

णेड :: देखो णिड्ड (कुमा; हे १, १०६)।

णेडाली :: स्त्री [दे] सिर का भूषण-विशेष (दे ४, ४३)।

णेड्ड :: देखो णिड्ड (हे २, ९९; प्राप्र; षड्)।

णेड्‍ढरिआ :: स्त्री [दे] भाद्रपद मास की शुक्ल दशमी का एक उत्सव (दे ४, ४५)।

णेत्त :: पुंन [नेत्र] नयन, आँख, चक्षु (हे १, ३३; आचा)।

णेत्त :: पुं [नेत्र] वृक्ष-विशेष (सूअ २, २, १८)।

णेद्दा :: देखो णिद्दा (पि १९२; नाट)।

णेपाल :: देखो णेवाल (उप पृ ३९७)।

णेम :: स [नेम] १ अर्ध, आधा (प्रामा) २ न. मूल, जड़ (पणह १, ३; भग)

णेम :: न [दे] कार्य, काज (राज)।

णेम :: पुंन [दे] कार्यं, काम, काज (पिंड ७०)।

णेम :: देखो णेम्म = दे (पणह २, ४ टी — पत्र १३३)।

णेमाल :: पुं. ब. [नेपाल] एक भारतीय देश, नेपाल (पउम ९८, ६४)।

णेमि :: पुं [नेमि] १ स्वनाम-ख्यात एक जिन- देव, बाइसवें तीर्थंकर (सम ४३; कप्प) २ चक्र की धारा (ठा ३, ३; सम ४३) ३ चक्र परिधि, चक्के का घेरा (जीव ३) ४ आचार्यं हेमचन्द्र के मातुल — मामा का नाम (कुप्र २०)। °चंद पुं [°चन्द्र] एक जैना- चार्यं (सार्धं ६२)

णेमित्त :: देखो णिमित्त (आवम)।

णेमित्ति :: वि [निमित्तिन्] निमित्त-शास्त्र का जानकार (सुर १, १४४; सुपा १५४)।

णेमित्तिअ, णेमित्तिग :: वि [नैमित्तिक] १ निमित्त- शास्त्र में संबन्ध रखनेवाला (सुर ९, १७७) २ कारणिक, निमित्त से होनेवाला, कारण से किया जाता, कदाचित्क; 'उववासो णेमित्तिगमो जओ भणिओ' (उप ६८३; उवर १०७) ३ निमित्त शास्त्र का जानकार (सुर १, २३८) ४ न. निमित्त शास्त्र (ठा ९)

णेमी :: स्त्री [नेमी] चक्र-धारा (दे १, १०९)।

णेम्म :: वि [दे. निभ] तुल्य, सदृश, समान (पणह २, ४ — पन्न १३०)।

णेम्म :: देखो णेम = नेम (पणह १, ५ — पत्र ९४)।

णेरइअ :: वि [नैरयिक] १ नरक-संबन्धी, नरक में उत्पन्‍न (हे १, ७९) २ पुं. नरक का जीव, नरक में उत्पन्न प्राणी (सम २, विपा १, १०)

णेरइअ :: वि [नैर्ऋतिक] नैऋण कोण, दक्षिण- पश्चिम विदिशा (अणु २१५)।

णेरई :: स्त्री [नैर्ऋती] दक्षिण और पश्चिम के बीच की दिशा (सुपा ९८; ठा १०)।

णेरुत्त :: न [नैरुक्त] १ व्युत्पत्ति के अनुसार अर्थं का वाचक शब्द (अणु) २ वि. निरुक्त शास्त्र का जानकार (विसे २४)

णेरुत्तिय :: वि [नैरुक्तिक] व्युत्पत्ति-निष्पन्‍न (विसे ३०३७)।

णेरुत्ती :: स्त्री [नैरुक्ति] व्युत्पत्ति (विसे २१८२०।

णेल :: वि [नैल] नील का बिकार (भग; औप)।

णेलंछण :: देखो णिल्लंछण (स ६९९)।

णेलच्छ :: पुं [दे] नपुंसक, षंड (दे ४, ४४; पाअ; हे २, १७४)। २ वृषभ, बैल (दे ४, ४४)

णेलय :: पुं [दे. नेलन] रुपया (पव १११)।

णेलिच्छी :: स्त्री [दे] कूपतुला, ढेंकवा (दे ४, ४४)।

णेल्लच्छ :: देखो णेलच्छ (पि ६६)।

णेव :: देखो णेअ = (उव; पि १७०)।

णेवच्छ :: देखो णेवत्थ (से १२, ६७; प्रति ६; औप; कुमा; पि २८०)।

णेवच्छण :: न [दे] अवतारणा, नीचे उतारना (दे ४, ४०)।

णेवच्छिय :: देखो णेवत्थिय (पि २८०)।

णेवत्थ :: न [नेपथ्य] १ वस्त्र आदि की रचना, वेष की सजावट, नाटक आदि में परदे के भीतर का स्थान जिसमें नट-नटी नाना प्रकार का वेश सजाते है; रंगशाला, नाट्यशाला (णाया १, १) २ वेष (विसे २५८७; सुर ३, ६२; सण; सुपा १५३)

णेवत्थण :: न [दे] निरुंछन, उत्तरीय वस्त्र क, ा अञ्चल (कुमा)।

णेवत्थिय :: वि [नेपथ्यित] जिसने वेष-भूषा की हो वह; 'पुरिसनेवत्थिया' (विपा १, ३)।

णेवाइय :: वि [नैपातिक] निपात-निष्पन्‍न नाम, अव्यय आदि (विसे २८४०; भग)।

णेवाल :: पुं [नेपाल] १ एक भारतीय देश, नेपाल (उप पृ ३९३; कुप्र ४५८) २ वि. नेपाल-देशीय, नेपाली (पउम ९९; ५५)

णेविज्ज, णेवेज्ज :: न [नैवेद्य] देवता के आगे धरा हुआ अन्‍न आदि (सं १२२; श्रा १६)।

णेव्वाण :: देखो णिव्वाण = निर्वाण (आचा; सुर ९, २०; स ७४४)।

णेव्वुअ :: देखो णिव्वुअ (उप ७३० टी)।

णेव्वुइ :: देखो णिव्वुइ (उप ४६८ टी)।

णेसग्गिय :: देखो णिसग्गिय (सुपा ९)।

णेसज्जि :: वि [नैषद्यिन्] आसन-विशेष से उपविष्ठ (पव ६७; पंचा १८)।

णेसज्जिअ :: वि [नैषद्यिक] ऊपर देखो (ठा ५, १; औप; पणह २, १; कस)।

णेसत्थि :: पुं [दे] वणिग् मन्त्री, वणिक् प्रधान (दे ४, ४४)।

णेसत्थिया, णेसत्थी :: स्त्री [नैसृष्टिकी, नैशस्त्रिकी] १ निसर्जन, निक्षेपण। २ निसर्जन से होनेवाला कर्मं-बन्ध (ठा २, १; नव १८)

णेसप्प :: पुं [नैसर्प] निधि विशेष, चक्रवर्ती राजा का एक देवाधिष्ठित निधान (ठा ९; (उप ९८६ टी)।

णेसर :: पुं [दे] रवि, सूर्य (४, ४४)।

णेसाय :: देखो णिसाय = निषाद (राज)।

णेसु :: पुंन [दे] १ ओष्ठ, ओठ, होंठ। २ पाँव; 'तह निक्खिवंतमंता कूवम्मि निहित्तणेसुजुगं' (उप ३२० टी)

णेह :: पुं [स्‍नेह] १ राग, अनुराग, प्रेम (पाअ) २ तैल आदि चिकना रस-पदार्थ। ३ चिकनाई, चिकनाहट (हे २, ७७; ४, ४०६; प्राप्र)

णेहर :: देखो णेहुर (पणह १, १)।

णेहल :: पुं [स्‍नेहल] छन्द-विशेष (पिंग)।

णेहल :: वि [स्‍नेहल] स्‍नेही, स्‍नेह युक्त, 'पियराइं नेहलाइं, अणुरत्ताओ गिहिणोओ' (धर्मंवि १२५)।

णेहालु :: वि [स्‍नेहवत्] स्‍नेह-युक्त, स्‍निग्ध (हे २, १५९)।

णेहुर :: पुं [नेहुर] १ देश-विशेष, एक अनार्यं देश। २ उसमें वसनेवाली अनार्यं जाति (पणह १, १ — पत्र १४)

णो :: अ [नो] इन अर्थों का सूचक अव्यय — १ निषेध, प्रतिषेध, अभाव (ठा ९; कस; गउड) २ मिश्रण, मिश्रता; 'नोसद्दो मिस्सभावम्मि' (विसे ५०) ३ देश, भाग, अंश, हिस्सा (विसे ७८८) ४ अवधारण, निश्‍चय (राज) °आगम पुं [°आगम] १ आगम का अभाव। २ आगम के साथ मिश्रण। ३ आगम का एक अंश (आवम; विसे ४९; ५०; ५१) ४ पदार्थ का अपरिज्ञान (णंदि) °इंद्रिय न [°इन्द्रिय] मन, अन्तः करण, चित्त (ठा ६; सम ११; उप ५९७ टी)। °कसाय पुं [°कषाय] कषाय के उद्दीपक हास्य वगैरह नव पदार्थ, वे ये हैं — हास्य, रति; अरति, शोक, भय, जुगुप्‍सा, पुंवेद, स्त्रीवेद और नपुंसकवेद (कम्म १, १७; ठा ९)। °केवलनाण न [°केवलज्ञान] अवधि और मनःपर्यव ज्ञान (ठा २, १)। °गार पुं [°कार] 'नो' शब्द (राज)। °गुण वि [°गुण] अयथार्थं, अवास्तविक (अणु)। °जीव पुं [°जीव] १ जीव और अजीव से भिन्‍न पदार्थं, अवस्तु। २ अजीव, निर्जीवष ३ जीव का प्रदेश (विसे)। °तह वि [°तथ] जो वैसा ही न हो (ठा ४, २)

णो :: अ [दे] इन अर्थों का सूचक अव्यय — १ खेद। २ आमन्त्रण। ३ विचित्रता। ४ वितर्क। ५ प्रकोप (प्राकृ ८०)

णो° :: पुं [नू] पुरुष, नर; 'णोवावाराभावम्मि अणणहा खम्मि चेव उवलद्धी' (धर्मंसं १२५३; १२५६)।

णेक्ख :: वि [दे] अनोखा, अपूर्वं (पिंग)।

णोगोण्ण :: वि [नोगौण] अयथार्थं (नाम) (अणु १४०)।

णोजुग :: न [नोयुग] न्यून युग (सुज्ज ११)।

णोदिअ :: देखो णोल्लिअ (राज)।

णोमल्लिआ :: स्त्री [नवमल्लिका] सुगन्धि फूलवाला वृक्ष-विशेष, नेवारी, वासंती (नाट; पि १५४)।

णोमालिआ :: स्त्री [नवमालिका] ऊपर देखो (हे १, १७०; गा २८१; षड्; कुमा; अभि २६)।

णेमि :: पुं [दे] रस्सी, रज्जु (दे ४, ३१)।

णेलइआ, णोलच्छा :: स्त्री [दे] चञ्चु, चोंच, चाँच (दे ४, ३६)।

णोल्ल :: सक [क्षिप्, नुद्] १ फेंकना। प्रेरणा करना। णोल्लइ (हे ४, १४३; षड्)। णाल्लेइ (गा ८७५)। कवकृ. णोल्लज्जंत (सुर १३, १९९)

णोल्लिअ :: वि [नोदित] प्रेरित (से ६, ३२; णाया १, ९; पणह १, ३; स ३४०)।

णोव्व :: पुं [दे] आयुक्त, सूबा या सूबेदार राज- प्रतिनिधि (दे ४, १७)।

णोहल :: पुं [लोहल] अव्यक्त शब्द-विशेष (षड् पि २६०; संक्षि ११)।

णोहलिआ :: स्त्री [नवफलिका] १ ताजी फली, नवोत्पन्‍न फली (हे १, १७०) २ नूतन फलवाली (कुमा) ३ नूतन फल का उद्‍गम; 'णोहलिअमप्पणो किं ण मग्गसे, मग्गसे, कुरवअस्स' (गा ६)

णोहा :: स्त्री [स्‍नुषा] पुत्र की भार्या, पुत्रवधु, पतोहु, बहु (पि १४८; संक्षि १५)।

°ण्णअ :: वि [ज्ञक] जानकार (गा २०३)।

°ण्णास :: देखो णास = न्यास (स्वप्‍न १३४)।

°ण्णुअ :: देखो °ण्णअ (गा ४०५)।

ण्हं :: /?/अ. १-२ वाक्यालंकार और पादपूर्त्ति में प्रयुक्त किया जाता अव्यय (कप्प; कस)

ण्हव :: सक [स्नपय्] नहलाना, स्नान करना| णाहवेइ (कुप्र ११७)| कवकृ. ण्हविज्जंत (सुपा ३३)| संकृ. ण्हविऊण (पि २१३)|

ण्हव :: सक [स्‍नपय्] नहलाना, स्‍नान कराना, नहलाना (कुमा)।

ण्हविअ :: वि [स्‍नपित] जिसको स्‍नान कराया गया हो वह (सुर २, ५८; भवि)।

ण्हा, ण्हाण :: अक [स्‍ना] स्‍नान करना, नहाना। णहाइ (हे ४, १४)। णहणेइ, णहाणेंति (पि ३१३)। भवि. णहाइस्सं (पि ३१३)। वकृ. ण्हायमाण (णाया १, १३)। संकृ. ण्हाइत्ता, ण्हाणित्ता (पि ३१३)।

ण्हाण :: न [स्‍नान] नहाना, नहान (कप्प; प्राप्र)।°पीढ पुंन [°पीठ] स्‍नान करने का पट्टा (णाया १, १)।

ण्हाणमल्लिया :: स्त्री [स्‍नानमल्लिका] स्‍नान- योग्य पुष्प-विशेष, मालती-पुष्प (राय ३४)।

ण्हाणिआ :: स्त्री [स्‍नानिका] स्‍नान-क्रिया (पणह २, ४ — पत्र १३१)।

ण्हाणिय :: वि [स्‍नानित] जिसने स्‍नान किया हो वह (पव ३८)।

ण्हाय :: वि [स्‍नात] जिसने स्‍नान किया हो वह, नहाया हुआ (कप्प; औप)।

ण्हायमाण :: देखो ण्हा

ण्हारु :: न [स्‍नायु] १ अस्थि-बन्धनी सिरा, नस, धमनी (सम १४९; पणह १, १; ठा २, १; आचा)| २ अष्टादश श्रेणी में की एक श्रेणी, कुम्हार, पटेल आदि (लोकप्रकाश ४६४ पत्र, सर्गं ३१)

ण्हाव :: देखो ण्हव। ण्हावइ, ण्हादेइ (भिवि; पि ३१३)। वकृ. ण्हावअंत (पि ३१३)। संकृ. ण्हाविऊण (महा)।

ण्हाविअ :: वि [स्‍नापित] नहलाया हुआ, जिसको स्‍नान कराया गया हो सह (महा भवि)।

ण्हाविअ :: पुं [नापित] हजाम, नाई (हे १, २३०; कुमा); 'घेत्तूण ण्हावियं आगएण मुंडाविओ कुमरो' (उप टी ६ )। °पसेवय पुं [°प्रसेवक] नाई की अपने उपकरण रखने की थैली (उत्त २)।

ण्हु :: अ [दे] निश्‍चय-सूचक, अव्यय (जीवस १८०)।

ण्हुसा :: स्त्री [स्‍नुषा] पुत्र-वधू, पुत्र की भार्या, पतोहू (आवम; पि ३१३)।

ण्हुहा :: देखो ण्हुसा (सिरि २५१)।

 :: पुं [त] दन्त-स्थानीय व्यञ्जन वर्ण-विशेष (प्राप्र; प्रामा)।

 :: स [तत्] वह (ठा ३, १; हे १, ७; कप्प; कुमा)।

त° :: स [त्वत्°] तू। °क्कय वि [°कृत] तेरा किया हुआ (स ६८०)।

त° :: देखो तया = त्वच्। °द्दोसि वि [°दोषिन्] १ चर्मं-रोगी। २ कुष्ठी (पिंड ४७५)

तअ :: देखो तव = तपस् (हास्य १३५)। तइ वि [तति] उतना (वव १)।

णइ :: (अप) अ [तत्र] वहाँ, उसमें (षड्)।

तइ :: अ [तदा] उस समय (प्राप्र)।

तइअ :: वि [तृतीय] तीसरा (हे १, १०१; कुमा)।

तइअ :: (अप) वि [त्वदीय] तुम्हारा (भवि)।

तइअ :: अ [तदा] उस समय; 'भणिओ रन्‍ना मंती, मइसागर तइय पव्वयंतेण। ताएण अहं भणिओ, भगिणी ठाणम्मि दायव्वा' (सुर १, १२३)।

तइअहा :: (अप) अ [तदा] उस समय (भवि; सण)।

तइआ :: अ [तदा] उस समय (हे ३, ६५, गा ९२)।

तइआ :: स्त्री [तृतीया] तिथि-विशेष, तीज (सम २९)।

तइया :: स्त्री [तृतीया] तीसरी विभक्ति (चेइय ६८३)।

तइल :: देखो तेल्ल (उप ९२९)।

तइलोई :: स्त्री [त्रिलोकी] तीन लोक — स्वर्गं, मर्त्यं और पाताल (सुपा ६८)।

तइलोक्क, तइलोव :: न [त्रौलोक्य] ऊपर देखो (पउम ३, १०५; ८, २०२; स ५७१; सुर ३, २०; सुपा २८२; ३५; ४४८)।

तइस :: (अप) वि [तादृश] वैसा, उस तरह का (हे ४; ४०३, षड्)।

तई :: स्त्री [त्रयी] तीन का समुदाय (सुपा ५८)।

तईअ :: देखो तइअ = तृतीय (गा ४११; भग)।

तउ, तउअ :: न [त्रपु] धातु-विशेष, सीसा, राँगा (सम १२५; औप; उप ९८६ टी; महा)। °वट्टिआ स्त्री [°पट्टिका] कान का आभूषण-विशेष (दे ५, २३)।

तउस :: न [त्रपुष] देखो तउसी (राज)। °मंजिया स्त्री [°मिञ्जिका] क्षुद्र कीट-विशेष, त्रीन्द्रिय जन्तु की एक जाति (जीव १)।

तउस :: न [त्रपुष] खीरा, ककड़ी (दे ८, ३५)।

तउसी :: स्त्री [त्रपुषी] कर्कटी-वृक्ष-खीरा का गाछ (गा ५३४)।

तए :: अ [ततस्] उससे, उस कारण से। २ बाद में (उत्त १; विपा १, १)

तएयारिस :: वि [त्वादृश] तुम जैसा, तुम्हारी तरह का (स ५२)।

तओ :: देखो तए (ठा ३, १, प्रासू ७८)।

तं :: अ [तत्] इन अर्थों को बतलानेवाला अव्यय — १ कारण, हेतु (भग १५) २ वाक्य-उपन्यास; 'तं तिअसबंदिमोक्खं' (हे २, १७६; षड्); 'तं मरणमणारंभे वि होइ, लच्छी उण न होइ' (गा ४२)। °जहा अ [°यथा] उदाहरण-प्रदर्शक अव्यय (आचा; अणु)

तंआ :: देखो तया = तदा (गउड)।

तंट :: न [दे] पृष्ठ, पीठ (दे ५, १)।

तंड :: न [दे] लगाम में लगी हुई लार। २ वि. मस्तक-रहित। ३ स्वर से अधिक (दे ५, १९)

तंडव :: (अप) देखो तड्डव। तंडवहु (भवि)।

तंडव :: अक [ताण्डवय्] नृत्य करना। तंड- र्वेति (आवम)।

तंउव :: न [ताण्डव] १ नृत्य, उद्धत नाच (पाअ, जीव ३; सुपा ८९) २ उद्धाताई; 'पासंडितुं- डअइचंडतंडवाडंबरेहिं किं मुद्ध' (धम्म ८ ट)

तंडविय :: वि [ताण्डवित] नचाया हुआ, नर्तित (गउड)।

तंडविय :: (अप) देखो तड्डविअ (भवि)।

तंडुल :: पुं [तण्डूल] चावल (गा ६९१)। देखो तंदुल।

तंत :: न [तन्त्र] १ देश, राष्ट्र (सुर १६, ४८) २ शास्त्र, सिद्धान्त (उवर ५) ३ दर्शन, मत (उप ९२२) ४ स्वदेश-चिन्ता। ५ विष का औषध विशेष (मुद्रा १०८) ६ सूत्र, ग्रन्थांश- विशेष; 'सुत्तं भणियं तंतं भणिज्जए तम्मि व जमत्थो' (विसे) ७ विद्या-विशेष (सुपा ४९६)। °न्‍नु वि [°ज्ञ] तन्त्र का जानकार (सुपा ५७९)। °वाई पुं [°वादिन्] विद्या- विशेष से रोग आदि को मिटानेवाला (सुपा ४९६)

तंत :: वि [तान्त] खिन्न, क्लान्त (णाया १, ४; विपा १, १)।

तंतडी :: स्त्री [दे] करम्ब, दही और चावल का बना भोजन-विशेष (दे ५, ४)।

तंतवग, तंतवय :: पुं [तान्त्रवक] चतुरिन्द्रिय जंतु की एक जाति (सुख ३६, १४९; उत्त ३६, १४९)।

तंतिय :: पुं [तान्त्रिक] वीणा बजानेवाला (अणु)।

तंतिसम :: न [तन्त्रीसम] तन्त्री-शब्द के तुल्य या उससे मिला हुआ गीत, गेय काव्य का एक भेद (दसनि २, २३)।

तंती :: स्त्री [तन्त्री] १ वीणा, वाद्य-विशेष, (कप्प; औप, सुर १६, ४८) २ वीणा- विशेष (पणह २, ५) ३ ताँत, चमड़े की रस्सी (विपा १, ६; सुर ३, १३७)

तंती :: स्त्री [दे] चिन्ता; 'कामस्स तत्तंतंर्तिं' (गा २)।

तंतु :: पुं [तन्तु] सूत, तागा, धागा (पउम १, १३)। °अ, °ग पुं [°क] जलजन्तु-विशेष (पउम १४, १७, कुप्र २०९)। °ज, °य न [°ज] सूती कपड़ा (उत्त २, ३५)। °वाय पुं [°वाय] कपड़ा बुननेवाला, जुलाहा (श्रा २३)। °साला स्त्री [°शाला] कपड़ा बुनने का घर, ताँत-घर (भग १५)।

तंतुक्खोडी :: स्त्री [दे] तन्तुवाय का एक उप- करण (दे ५, ७)।

तंदुल :: देखो तंडुल (पउम १२, १३८)। २ मत्स्य-विशेष (जीव १)। °वेयालिय न [°वैचारिक] जैन ग्रन्थ-विशेष (णंदि)

तंदुलेज्जग :: पुं [तन्दुलीयक] वनस्पति-विशेष (पणण १)।

तंदूसय :: देखो तिंदूसय (सुर १३, १९७)।

तंब :: पुं [सतम्ब] तृणादि का गुच्छा (हे २, ४५; कुमा)।

तंब :: न [ताम्र] १ धातु-विशेष, ताँबा (विपा १, ६; हे २, ४५) २ पुं. वर्ण-विशेष। ३ वि. अरुण वर्णंवाला, लाल (पणण १७; औप)। °चूल पुं [चूड] कुक्कुट, मुर्गा (सुर ३, ९१)। °वण्णी स्त्री [°पर्णी] एक नदी का नाम (कप्पू)। °सिह पुं [°शिख] कुक्कुट, मुर्गा (पाअ)

तंबकरोड :: पुंन [दे] ताम्र वर्णंवाला द्रव्य- विशेष (पणण १७)।

तंबकिमि :: पुं [दे] कीट-विशेष, इन्द्रगोप (दे ५, ६; षड्)।

तंबकुसुम :: पुंन [दे] वृक्ष-विशेष, कुरुबक, कटसरैया (दे ५, ९; षड्)।

तंबक्क :: न [दे] वाद्य-विशेष; 'अणाहयतंबक्केसु वज्जंतेसु' (ती १५)।

तंबच्छिवाडिया :: स्त्री [दे] ताम्र वर्णं का द्रव्य-विशेष (पणण १७)।

तंबटक्कारी :: स्त्री [दे] शोफालिका, पुष्प-प्रधान लता-विशेष (दे ५, ४)।

तंबरत्ती :: स्त्री [दे] गेहूँ में कुंकुम की छाया (दे ५, ५)।

तंबा :: स्त्री [दे] गौ, घेनु, गैया (दे ५, १; गा ४६०; पाअ; वज्जा ३४)।

तंबाय :: पुं [तामाक] भारतीय ग्राम-विशेष (राज)।

तंबिम :: पुंस्त्री [ताम्रत्व] अरुणता, ईषद् रक्तता (गउड)।

तंबिय :: न [ताम्रिक] परिव्राजक का पहनने का एक उपकरण (औप)।

तंबिर :: वि [दे] ताम्र वर्णवाला (हे २, ५६; गउड; भवि)।

तंबिरा :: [दे] देखो तंबरत्ती (दे ५, ५)।

तंबुक्क :: न [दे] वाद्य-विशेष, 'बुक्कतंबुक्कसद्‍दुक्कडं' (सुपा ५०)।

तंबरेम :: पुं [स्तम्बेरम] हस्ती, हाथी (उप पृ ११७)।

तंबेही :: स्त्री [दे] पुष्प-प्रधान वृक्ष-विशेष, शेफालिका (दे ५, ४)।

तंबोल :: न [ताम्बूल] पान (हे १, १२४; कुमा)।

तंबोलिअ :: पुं [ताम्बूलिक] १ तमोली, पान बेचनेवाला (श्रा १२) २ पान में होनेवाला तंबोलिआ नाग।

तंबोली :: स्त्री [ताम्बूली] पान का गाछ (षड्; जीव ३)।

तंभ :: देखो थंभ (षड्)।

तंस :: पुं [त्र्यंश] तीसरा हिस्सा (पंच ५, ३७; ३९; कम्म ५, ३४)।

तंस :: वि [त्रस्र] त्रि-कोण, तीन कोनवाला (हे १, २६; गउड; ठा १; गा १०, प्राप्र; आचा)।

तक्क :: सक [तर्क्] तर्कं करना, अनुमान करना, अटकल करना। तक्केमि (मै १३)। संकृ. तक्कियाणं (आचा)।

तक्क :: न [तक्र] मट्ठा छाछ (ओघ ८७; सुपा ५८३ उप पृ ११९)।

तक्क :: पुं [तर्क] १ बिमर्श, विचार, अटकल- ज्ञान (श्रा १२; ठा ९) २ न्याय-शास्त्र (सुपा २८७)

तक्कणा :: स्त्री [दे] इच्छा, अभिलाष (दे ५, ४)।

तक्कय :: वि [तर्कक] तर्कं करनेवाला (पणह १, ३)।

तक्कर :: पुं [तस्कर] चोर (हे २, ४; औप)।

तक्कलि :: स्त्री [दे] कदली-वृक्ष, केले का गाछ (आचा २; १, ८, ६)।

तक्कलि, तक्कली :: स्त्री [दे] वलयाकार वृक्ष-विशेष (पणण १)।

तक्का :: स्त्री [तर्क] देखो त = तर्क (ठा १; सूअ १, १३, आचा)।

तक्काल :: क्रिवि [तत्काल] उसी समय (कुमा)।

तक्किअ :: वि [तार्किक] तर्कं शास्त्र का जानकार (अच्चु १०१)।

तक्कियाणं :: देखो तक्क = तर्कं।

तक्कु :: पुं [तर्कु] सूत बनाने का यन्त्र, तकुआ, तकला, चरखा (दे ३, १)।

तक्कुय :: पुं [दे] स्वजन-वर्ग, 'सम्मणिया सामंता, अहिणंदिया नायरया, परिओसिआ तक्कुयजणा त्ति' (स ५२०)।

तक्ख :: सक [तक्ष्] छिलना, काटना। तक्कइ (षड्; हे ४, १९४)। कर्मं. तक्खि- ज्जइ' (कुप्र १७)। वकृ. तक्खमाण (अणु)।

तक्ख :: पुं [तार्क्ष्य] गरुड़ पक्षी (पाअ)।

तक्ख :: पुं [तक्षन्] १ लकड़ी काटनेवाला, बढई। २ विश्‍वकर्मा, शिल्पी-विशेष (हे ३, ५६; षड्)। °सिला स्त्री [°शिला] प्राचीन ऐतिहासिक नगर, जो पहले बाहुबलि की राजधानी थी, यह नगर पंजाब में है (पउम ४, ३८; कुप्र ५३)

तक्खग :: पुं [तक्ष्क] १-२ ऊपर देखो। ३ स्वनाम-प्रसिद्ध सर्प-राज (उप ९२५)

तक्खण :: न [तत्क्षण] १ तत्काल, उसी समय (ठा ४, ४) २ क्रिवि. शीघ्र, तुरन्त (पाअ)

तक्खय :: देखो तक्खग (स २०९; कुप्र १३९)।

तक्खाण :: देखो तक्ख = तक्षन् (हे ३, ५६; षड्)।

तगर :: देखो टगर (पणह २, ५)।

तगरा :: स्त्री [तगरा] संनिवेश-विशेष (स ४६८)।

तगरा :: स्त्री [तगरा] एक नगरी का नाम (सुख २, ८)।

तग्ग :: न [दे] सूत्र-कँकण, धागे का कंकण (दे ५, १; गउड)।

तग्गंधिय :: वि [तद्‍गन्धिक] उसके समान गंधवाला (प्रासू ३४)।

तच्च :: वि [तृतीय] तीसरा (सम ८; उवा)।

तच्च :: न [तत्त्व] सार, परमार्थं (आचा; आरा ११५)। °वाय पुं [°वाद] १ तत्त्व-वाद, परमार्थं-चर्चा। २ दृष्टिवाद, जैन अगं-ग्रंथ- विशेष (ठा १०)

तच्च :: न [तथ्य] १ सत्य, सचाई (हे २, २१; उत्त २८) २ वि. वास्तविक, सत्य (उत्त ३)। °त्थ पुं [°र्थ] सत्य, हकीकत (पउम ३, १३)। °वाय पुं [°वाद] देखो ऊपर °वाय (ठा १०)

तच्चं :: अ [त्रिः] तीन बार (भग; सुर २, २६)।

तच्चित्त :: वि [तच्चित्त] उसी में जिसका मन लगा हो वह, तल्लीन (विपा १, २)।

तच्छ :: सक [तक्ष्] छिलना, काटना। तच्छइ (हे ४, १९४; षड्)। संकृ. तच्छिय (सूअ १, ४, १)। कवकृ. तच्छिज्जंत (सुर १, २८)।

तच्छ, तच्छिअ :: वि [तष्ट] छिला हुआ, तनूकृत; 'ते भिन्नदेहा फलगं तच्छा' (सूअ १, ५, २, १४; १, ४, १, २१; उत्त १९, ६६)।

तच्छण :: स्त्रीन [तक्षण] छिलना, कर्तंन (पणह १, १)। स्त्री. णा (णाया १; १३)। तच्छिंड वि [दे] कराल, भयंकर (दे ५, ३)।

तच्छिज्जंत :: देखो तच्छ।

तच्छिल :: वि [दे] तत्पर (षड्)।

तजा :: देखो तया = त्वच् (दे १, १११)।

तज्ज :: सक [तर्जय्] तर्जंन करना, भर्त्संन करना। तज्जइ (भवि)। तज्जेइ (णाया १, १८)। वकृ. तज्जंत, तज्जिंत तज्जयंत, तज्जमाण, तज्जेमाण (भवि, सुर १२, २३३; णाया १, ८; राज; विपा १, १ — पत्र ११)। कवकृ. तज्जिज्जंत (उप्र पृ १३४; उप १४९ टी)।

तज्जण :: न [तर्जन] भर्त्संन, तिरस्कार (औप; उव; पउम ९५, ५३)।

तज्जणा :: स्त्री [तर्जना] ऊपर देखो (पणह २, १; सुपा १)।

तज्जणी :: स्त्री [तर्जनी] दूसरी अंगुली, अँगुठे के पासवाली अंगुली, प्रदेशिनी (सुपा १; कुमा)।

तज्जाय :: वि [तज्जात] समान जातिवाला, तुल्य-जातीय (आव ४)।

जज्जाविअ, तज्जिअ :: वि [तर्जित] वर्जित, भर्त्सित (स १२२; सुपा २६३; भवि)।

तज्जिंत, तज्जिज्जंत, तज्जेमाण :: देखो तज्ज।

तट्टवट्ट :: न [दे] आभरण, आभूषण; 'सणियं सणियं बालत्तणाओ तणुयाइं तट्टवट्टाइं। अवहरिवि नियधराओ हारेइ रहम्मि खिल्लंतो' (सुपा ३९९)।

तट्टिगा :: स्त्री [दे. तट्टिका] दिगंबर जैन साधु का एक उपकरण (धर्मंसं १०४६; १०४८)।

तट्टी :: स्त्री [दे] वृति, बाड़ (दे ५, १)।

तट्ठ :: वि [त्रस्त] १ डरा हुआ, भीत (हे २, १३६; कुमा) २ न. मुहुर्तं-विशेष (सम ५१)

तट्ठ :: वि [तष्ट] छिला हुआ (सूअ १, ७)।

तट्ठव :: न [त्रस्तप] मुहुर्त्तं-विशेष (सम ५१)।

तट्ठि :: वि [तष्टिन्] तनूकृत, कृशतावाला (सूअ १, ७, ३०)।

तट्ठि, तट्ठु :: पुं [त्वष्टृ] १ तक्षक, विश्‍वकर्मा (गउड) २ नक्षत्र-विशेष का अधि- ष्ठायक देव (ठा २, ३)

तट्‍ठु :: पुं [त्वष्टृ] अहोरात्र का बारहवाँ मुहूर्तं (सुज्ज १०, १३)।

तड :: सक [तन्] १ विस्तार करना। २ करना। तडइ (हे ४, १३७)

तड :: पुंन [तट] किनारा, तीर (वाअ; कुमा)। °त्थ वि [°स्थ] १ मध्यस्थ, पक्षपात-हीन। २ समीप स्थित (कुमा; दे ३; ६०)

तडउडा :: [दे] देखो तडवडा (जीव ३; जं १)।

तडकडिअ :: वि [दे] अनवस्थित (षड्)।

तडक्कार :: पुं [तटत्कार] चमकारा, 'तडित- डक्कारो' (सुपा १३३)।

तडतडा :: अक [तडतडाय्] तड़-तड़ आवाज होना। वकृ. तडतडंत, तडतडेंत, तड- तडयंत (राज; णाया १, ९; सुपा १७६)।

तडतडा :: स्त्री [तडतडा] तड़-तड़ आवाज (स २५७)।

तडप्फड, तडफड :: अक [दे] तड़फना, छटपटना, तड़फड़ाना, व्याकुल होना। तड- प्फडइ (कुमा; हे ४, ३६६; विवे १०२)। तडफडसि (सुर ३, १४८)। वकृ. तडप्फडंत, डतफडंत (उप ७६८ टी; सुर १२, १६४; सुपा १७६; कुप्र २९)।

तडफाडिअ :: वि [दे] १ सब तरफ से चलित, तड़फड़ाया हुआ, व्याकुल (दे ५, ९; स ५८९)

तडमड :: वि [दे] क्षुमित, क्षोभ प्राप्त (दे ५, ७)।

तडयड :: वि [दे] क्रिया-शील, सदाचार-युक्त (सट्ठि १०७)।

तडयडंत :: देखो तडतडा।

तडवडा :: स्त्री [दे] वृक्ष-विशेष, आउली का पेड़ (दे ५, ५)।

तडाअ, तडाग :: न [तडाग] तालाब, सरोवर (गा ११०; पि २३१; २४०)।

तडि :: स्त्री [तडित्] बिजली (पाअ)। °डंड पुं [°दण्ड] विद्युद्दंड (महा)। °केस पुं [°केश] राक्षस-वंशीय एक राजा, एक लंका- पति (पउम ६, ९६)। °वेअ पुं [°वेग] विद्याधर वंश का एक राजा (पउम ५, १८)।

तडिअ :: वि [तत] विस्तृत, फैला हुआ (पाअ; णाया १, ८ — पत्र १३३)।

तडिआ :: स्त्री [तडित्] बीजली (प्रामा)।

तडिण :: वि [दे] बिरल, अत्यल्प (से १३, ५०)।

तडिणी :: स्त्री [तटिनी] नदी, तरंगिणी (सण)।

तडिम :: न [तडिम] १ भित्ति, भीत। २ कुट्टिम, पाषाण आदि से बँधा हुआ, भूतितल (से २, २) ३ द्वार के ऊपर का भाग (से १२, ९०)

तडी :: स्त्री [तटी] तट, किनारा (विपा १, १; अनु ६)।

तड्ड, तड्डव :: सक [तन्] १ विस्तार करना। २ करना। तड्डइ, तड्डवइ (हे ४, १३७)। भूका — तड्डवीअ (कुमा)

तड्डविअ, तड्डिअ :: वि [तत] विस्तीर्णं, फैला हुआ (पाअ; महा; कुमा; सुर ३, ७२)।

तड्‍डु :: स्त्री [तर्दुं] काठ की करछी (प्राकृ २०)।

तण :: सक [तन्] १ विस्तार करना। २ करना। तणइ, तणए (षड्)। कर्मं. तणि- ज्जए (विसे १३८३)

तण :: न [दे] उत्पल, कमलस (दे ५, १)।

तण :: न [तृण] तृण, घास (प्राप्र; उव )। °इल्ल वि [°वत्] तृणवाला (गउड)। °जीवि वि [°जीविन्] घास खाकर जीनेवाला (सुपा ३७०)। °राय पुं [°राज] ताल-वृक्ष, ताड़ का पेड़ (गउड)। °विंटय, °वेंटय पुं [°वृन्तक] एक क्षुद्र जंतु-जाति त्रीन्द्रिय जन्तु-विशेष (राज)।

तणग :: वि [तृणक] तृण का बना हुआ (आचा २, २, ३, १४)।

तणय :: पुं [तनय] पुत्र, लड़का (सुपा २४७; ४२४)।

तणय :: वि [दे] संबन्धी, 'मह तणए' (सुर ३, ८७; हे ४, ३६१)।

तणयमुद्दिआ :: स्त्री [दे] अंगुलीयक, अंगुठी (दे ५, ९)।

तणया :: स्त्री [तनया] लड़की, पुत्री (कुमा)।

तणरासि, तणरासिअ :: वि [दे] प्रसारित फैलाया हुआ (दे ५, ६)।

तणवरंडी :: स्त्री [दे] उड्डुप, डोंगी, छोटी नौका (दे ५, ७)।

तणसोल्लि, तणसोल्लिया :: स्त्री [दे] १ मल्लिका, पुप्प- प्रधान वृक्ष-विशेष (दे ५, ६; णाया १, १६) २ वि. तृण-शून्य (षड्)

तणहार, तणहारय :: पुं [तृणहार] १ त्रीन्द्रीय जन्तु की एक जाति (उत्त ३६, १३८) २ वि. घास काटकर बेचनेवाला, घसियारा (अणु १४९)

तणिअ :: वि [तत] विस्तीर्णं, फैला हुआ (कुमा)।

टतणु :: वि [तनु] १ पतला (जी ७) २ कृश, दुर्दंल (पंचा १६) ३ अल्प, थोड़ा (दे ३, ५१) ४ लघु, छोटा (जीव ३) ५ सूक्ष्म (कप्प) ६ स्त्री. शरीर, काय (दे २, ५९; जी ८) °तणुई, तणू स्त्री [°तन्वी] ईषत्प्राग्भारा-नामक पृथ्वी (ठा ८; इक)। °पज्जत्ति स्त्री [°पर्याप्ति] उत्पन्न होते समय जीव द्वारा ग्रहण किये हुए पुद्‍गलों को शरीर रूप से परिणत करने की शक्ति (कम्म ३, १२)। °ब्भव वि [°उद्‍भव] १ शरीर से उत्पन्न। २ पुं. लड़का (भवि) °ब्भवा स्त्री [°उद्‍भवा] लड़की (भवि)। °भू पुंस्त्री [°भू] १ लड़का। २ लड़की (आक) °य वि [°ज] देखो °ब्भव (उत्त १४)। °रुह पुंन [°रुह] १ केश, बाल (रंभा) २ पुं. पुत्र, लड़का (भवि)। °वाय पुं [°वात] सूक्ष्म वायु-विशेष (ठा ३, ४)

तणुअ :: वि [तनुक] ऊपर देखो (पउम १६, ७; आव ५; भग १५; पाअ)।

तणुअ :: सक [तनय्] १ पतला करना। २ कृश करना, दुर्बल करना। तणुएइ (गा ६१; काप्र १७४)

तणुआ, तणुआअ :: अक [तनुकाय्] दुर्बंल होना, कृश होना। तणुआइ, तणुआ- अइ, तणुआअए (गा ३०; २९२, ५९) वकृ. तणुआअंत (गा २९८)।

तणुआअरअ :: वि [तनुत्वकारक] कृशता उपजानेवाला, दौर्बंल्य-जनक (गा ३४८)।

तणुइअ :: वि [तनूकृत] दुर्बंल किया हुआ, कृश किया हुआ (गा १२२; पउम १६, ४)।

नणुई :: स्त्री [तन्वी] १ पृथ्वी-विशेष, सिद्ध- शिला (सम २२) २ पतला शरीरवाली, कृशांगी, कोमलांगी स्त्री (षड्)

तणुईकय :: वि [तनूकृत] पतला किया हुआ (पाअ)।

तणुग :: देखो तणुअ (जं २; ३)।

तणुज :: देखो तणुय (धर्मंवि १२८)।

तणुजम्म :: पुं [तनुजन्मन्] पुत्र, लड़का (धर्मंवि १४८)।

तणुभ :: देखो तणुब्भव (धर्मंवि १४२)।

तणुवी, तणुवीआ :: देखो तणुई (हे २, ११३, (कुमा)।

तणू :: स्त्री [तनू] शरीर, काया (गा ७८; पाअ; दं ५)। २ ईषत्प्राग्भारा-नामक पृथिवी (ठा ८) °अ वि [°ज] १ शरीर से उत्पन्न। २ पुं. लड़का, पुत्र (उप ९८६)। °अतरा स्त्री [°कतरा] ईषत्प्राग्भारा-नामक पृथिवी, जिसपर मुक्त जीव रहबतके हैं, सिद्ध- शिला (सम २२)। °रुह पुंन [°रुह] केश, रोम, बाल (उप ५९७ टी)

तणूइय :: देखो तणुइअ (गउड)।

तणेण :: (अप) अ. लिए, वास्ते (हे ४, ४२५; कुमा)।

तणेसि :: पुं [दे] तृण-राशि (दे ५, ३, षड्)।

तण्णय :: पुं [तर्णक] वत्स, बछड़ा (पाअ; गा १९; गउड)।

तण्णाय :: वि [दे] आर्द्रं, गीला (दे ५, २; पाअ; गउड; से १, ३१; ११, १२६)।

तण्हा :: स्त्री [तृष्णा] १ प्यास, पिपासा, (पाअ) २ स्पृहा, वाञ्छा, इच्छा (ठा २, ३; औप)। °लु, °लुअ वि [°वत्] तृष्णावाला, प्यासा; 'समरतण्हालू' (पउम ८, ८७; ८, ४७)

तण्हाइअ :: वि [तृष्णित] तृषातुर, अति प्यासा (धर्मंवि १४१)।

तत :: देखो तय = तत (ठा ४, ४)।

तत्त :: न [तत्त्व] सत्य स्वरूप, तथ्य, परमार्थं (उप ७२८ टी; पुप्फ ३२०)। °ओ अ [° तस्] वस्तुतः (उप ६८६)। °ण्णु वि [°ज्ञ] तत्व का जानकार (पंचा १)।

तत्त :: पुं [तप्त] १ तीसरी नरक-भूमि का एक नरक-स्थान (देवेन्द्र ८) २ प्रथम नरक- भूमि का एक नरक-स्थान (देवेन्द्र ४)

तत्त :: वि [तप्त] गरम किया हुआ (सम १२५; विपा १, ६; दे १, १०५)। °जला स्त्री [°जला] नदी-विशेष (ठा २, ३)।

तत्त :: अ [तत्र] वहाँ। °भव, होंत वि [°भवत्] पूज्य ऐसे आप (पि २९३; अभि ५६)।

तत्तट्ठसुत्त :: न [तत्त्वार्थसूत्र] एक प्रसिद्ध जैन दर्शंन-ग्रन्थ (अज्झ ७७)।

तत्तडिअ :: न [दे] रँगका हुआ कपड़ा (गच्छ २, ४९)।

तत्ति :: स्त्री [तृप्ति] तृप्ति, संतोष (कुमा, करु २६)। °ल्ल वि [°मत्] तृप्‍ति-युक्त, तृप्‍त, संतुष्ट (राज)।

तत्ति :: स्त्री [दे] १ आदेश, हुकुम (दे ५, २०; सण) २ तत्परता (दे २०) ३ चिन्ता, विचार (गा २; ५१; २७३ अ; सुपा २३७; २८०) ४ वार्ता, बात (गा २; वज्जा २) ५ कार्यं, प्रयोजन (पणह १, २; वव १०।

तत्यि :: वि [तावत्] उतना (प्रासू १५६)।

तत्तिल, तत्तिल :: वि [दे] तत्पर (षड्; दे ५, ३; गा ५५७; प्रासू ५९)।

तत्तु :: (अप) देखो तत्थ = तत्र (हे ४, ४०४; कुमा)।

तत्तुडिल्ल :: न [दे] सुरत, संभोग (दे ५, ६)।

तत्तुरिअ :: वि [दे] रज्जित (षड्)।

तत्तो :: देखो तओ (कुमा; जी २९)। °मुह वि [°मुख] जिसका मुँह उस तरफ को वह (सुर २, २३४)।

तत्तोहुत्त :: न [दे] तदभिमुख, उसके सामने (गउड)।

तत्थ :: अ [तत्र] वहाँ, उसमें (हे २, १६१)। °भव वि [°भवत्] पूज्य ऐसे आप पि २९३)। °य वि [°त्य] वहाँ का रहनेवाला (उप ५९७ टी)।

तत्थ :: वि [त्रस्त] भीत, डरा हुआ (हे २, १६१; कुमा)।

तत्थ :: देखो तच्च = तथ्य (धर्मंसं ३०४; णंदि ५३)।

तत्थरि :: पुं [त्रस्तरि] नय-विशेष; 'तत्थरिनएण ठविआ सोहउ मज्झ थुई' (अच्चु ४)।

तदा :: देखो तया = तदा (गा ९९६)।

तदीय :: वि [त्वदीय] तुम्हारा (महा)।

तदो :: देखो तओ (हे २, १६०)।

तद्दीअचय :: न [दे] नृत्य, नाच (दे ५, ८)।

तद्दिअस, तद्दिअसिअ, तद्दिअह :: न [दे] प्रतिदिन, अनुदिन, हररोज (दे ५, ८; गउड; पाअ)।

तद्दोसि :: देखो त-द्दोसि = त्वग्दोषिन्।

तद्धिय :: पुं [तद्धित] १ व्याकरण-प्रसिद्ध प्रत्यय-विशेष (पणह २, २; विसे १००३) २ तद्धित प्रत्यय की प्राप्ति का कारण-भूत अर्थं (अणु)

तधा :: देखो तहा (ठा ३, १; ७)।

तन्नय :: देखो तण्णय (सुर १४, १७४)।

तन्हा :: देखो तण्हा (सुर १, २०३; कुमा)।

तप :: देखो तव = तपस् (चंड)।

तप्प :: सक [तप्] १ तप करना। २ अक. गरम होना। तप्पइ, तप्पंति (पिंग; प्रासू ५३)

तप्प :: सक [तर्पय्] तृप्त करना। वकृ. तप्पमाण (सुर १६, १९)। हेकृ. 'न इमो जीवो सक्को चप्पेउं कामभोगेहिं' (आउ ५०)। कृ. तप्पेयव्व (सुपा २३२)।

तप्प :: न [तल्प] शय्या, बिछौना (पाअ)। °अ वि [°ग] शय्या पर जानेवाला, सोनेवाला (पणह १, २)।

तप्प :: पुंन [तप्र] डोंगी, छोटी नौका (पणह १, १; विसे ७०६)।

तप्प :: पुंन [तप्र] नदी में दूर से बहकर आता हुआ काष्ठ समूह (णंदि ८८ टी)।

तप्पक्खिअ :: वि [तत्पाक्षिक] उस पक्ष का (श्रा १२)।

तप्पज्ज :: न [तात्पर्य] तात्पर्य, मतलब (राज)।

तप्पण :: न [तर्पण] १ सक्‍तु, सतुआ, सत्तू (पणह २, ५) २ स्त्रीन. तृप्ति-करण, प्रीणन (सुपा ११३) ३ स्‍निग्ध वस्तु से शरीर की मालिश (णाया १, १३)

तप्पणग :: न [दे] जैन साधु का पात्र-विशेष, तरपणी (कुलक १०)।

तप्पणाडुआआलिआ :: स्त्री [दे] सक्तुमिश्रित भोजन (दश वै° चू°, वसूदेवहिंडी, धम्मि- लहिंडी)।

तप्पभिइं :: अ [तत्प्रभृति] तबसे, तबसे लेकर (कप्प; णाया १, १)।

तप्पमाण :: देखो तप्प = तर्पंर्य।

तप्पर :: वि [तत्पर] आसक्त (दे ५, २०)।

तप्पुरिस :: पुं [तत्पुरिष] व्याकरण-प्रसिद्ध समास-विशेष (अणु)।

तप्पेयव्व :: देखो तप्प = तर्पंय्।

तब्भत्तिय :: वि [तद्‍भाक्तक] उसका सेवक (भग ५, ७)।

तब्भव :: पुं [तद्‍भव] वही जन्म, इस जन्म के समान पर-जन्म। °मरण न [°मरण] वह मरण, जिससे इस जन्म के समान हो परलोक में भी जन्म हो, यहाँ मनुष्य होने से आगामी जन्म में भी जिससे मनुष्य हो ऐसा मरण (भग २१, १)।

तब्भारिय :: पुं [तद्‍भार्य] दास, नौकर, कर्मं- चारी, कर्मंकर (भग ३, ७)।

तब्भारिय :: पुं [तद्भारिक] ऊपर देखो (भग ३, ७)।

तब्भृम :: वि [तद्‍भौम] उसी भूमि में उत्पन्न (बृह १)।

तभत्ति :: अ [दे] शीघ्र, जल्दी (प्राकृ ८१)।

तम :: अक [तम्] १ खेद करना। २ सक. इच्छा करना। तमइ (प्राकृ ६९)

तम :: पुं [दे] शोक, अफसोस (दे ५, १)।

तम :: पुंन [तमस्] १ अन्धकार। २ अज्ञान (हे १, ३२; पि ४०९; औप; धर्मं २) °तभ पुं [°तम] सातवीं नरक-पृथिवी का जीव (कम्म ५; पंच ५)। °तमप्पभा स्त्री [तमप्पभा] सातवीं नरक-पृथिवी (अणु)। °तमा स्त्री [°तमा] सातवीं नरक-पृथिवी (सम ६६, ठा ७)। °तिमिर न [°तिमिर] १ अन्धकार (बृह ४) २ अज्ञान (पडि) ३ अन्धकार-समूह (बृह ४)। °प्पभा स्त्री [°प्रभा] छठवों नरक-पृथिवी (पणण १)

तमंग :: पुं [तमङ्ग] मतवारण, घर का वरण्डा, छड्डा (सुर १३, १५९)।

तमंधयार :: पुं [तमोन्धकार] प्रबल अन्धकार (पउम १७, १०)।

तमण :: न [दे] चूल्हा, जिसमें आग रखकर रसोई की जाती है वह (दे ५, २)।

तमणि :: पुंस्त्री [दे] १ भुज, हाथ। २ भूर्जं, वृक्ष-विशेष की छाल, भोजपत्र (दे २, २०)

तमय :: पुं [तमक] १ चौथा नरक का एक नरक-स्थान (देवेन्द्र १०) २ पाँचवीं नरक- भूमि का एक नरक-स्थान (देवेन्द्र ११)

तमस :: न [तमस्] अन्धकार, 'तमसाउ ने दिसा य' (पउम ३६, ८)।

तमस :: वि [तामस] अन्धकारवाला (दस ५, १, २०)।

तमस :: देखो तम = तमस्; 'अंतरिओ वा तमसे वा न वंदई, वंदई उ दीसंतो' (पव २)।

तमस्सई :: स्त्री [तमस्वती] घोर अन्धकारवाली रात (बृह १)।

तमा :: स्त्री [तमा] १ छठवीं नरक-पृथिवी (सम ६६; ठा ७) २ अधोदिशा (ठा १०)

तमाड :: सक [भ्रमय्] घुमाना, फिराना। तमाडइ (हे ४, ३०)। वकृ. तमाडंत (कुमा)।

तमाल :: पुं [तमाल] १ वृक्ष-विशेष (उप १०३१ टी; भत्त ४२) २ न. तमाल वृक्ष का फूल (से १, ६३)

तमिस :: पुं [तमिस्त्र] पाँचवाँ नरक का एक नरक-स्थान (देवेन्द्र ११)।

तमिस :: न [तमिस्त्र] १ अन्धकार (सूअ १, ५, १)। °गुहा स्त्री [°गुहा] गुफा-विशेष (इक)

तमिसंधयार :: पुं [तमिस्त्रान्धकार] प्रबल अन्धकार, घोर अंधेरा (सूअ १, ५, १)।

तमिस्स :: देखो तमिस (दे २, २६)।

तमी :: स्त्री [तमी] रात्रि, रात (गउड)।

तमुकाय :: देखो तमुक्काय (भग ६, ५ — पत्र २, ६८)।

तमुक्काय :: पुं [तमस्काय] अंधकार-प्रचय (ठा ४, २)।

तमुय :: वि [तमस्] १ जन्मान्ध, जात्यन्ध। २ अत्यन्त अज्ञानी (सूअ २, २)

तमोकसिय :: वि [तमःकाषिक] प्रच्छन्न क्रिया करनेवाला (सूअ २, २)।

तम्म :: अक [तम्] खेद कराना। (गा ४८३)।

तम्म :: देखो तम = तम्। तम्मइ (प्राकृ. ६९)।

तम्मण :: वि [तन्मस्] तल्लीन, तच्चित (विपा १, २)।

तम्मय :: वि [तन्मय] १ तल्लीन, तत्पर। २ उसका विकार (पणह १, १)

तम्मि :: न [दे] वस्त्र, कपड़ा (गउड)।

तम्मिर :: वि [तमिन्] खेद करनेवाला (घा ५८९)।

तय :: वि [तत] विस्तार-युक्त (दे १, ४९; से २, ३१; महा)। २ न. वाद्य-विशेष (ठा २, २)

तय :: न [त्रय] तीन का समूह, त्रिक; 'काल- त्तए वि न भयं' (चउ ४५; श्रा २८)।

तय° :: देखो तया = तदा। °प्पभिइ अ [°प्रभृति] तब से (स ३१६)।

तय° :: देखो तया = त्वच्। °क्खाय वि [°खाद] त्वचा को खानेवाला (ठा ४, १)।

तया :: अ [तदा] उस समय (कुमा)।

तया :: स्त्री [त्वच्] १ त्वचा, छाल, चमड़ी (सम ३९) २ दालचीनी (भत्त ४१)। °मंत वि [°मत्] त्वचा वाला (णाया १, १)। °विस पुं [°विष] सर्पं की एक जाति (जीव १)

तयाणंतर :: न [तदनन्तर] उसके बाद (औप)।

तयाणि, तयाणिं :: अ [तदानीम्] उस समय (पि ३५८; हे १, १०१)।

तयागुण :: वि [तदनुग] उसका अनुसरण करनेवाला (सूअ १, १, ४)।

तर :: अक [तृ] कुशल रहना, नीरोग रहना। तरई (पिंड ४१७)।

तर :: अक [त्वर्] त्वरा होना, जल्दी होना, तेज होना। तर (विसे २६०१)।

तर :: अक [शक्] समर्थ होना, सकना। तरइ (हे ४, ८६)। वकृ. तरंत (ओग ३२४)।

तर :: सक [तृ] तौरना, तरई (हे ४, ८६)। कर्मं. तरिज्जइ, तीरइ (हे ४, २५०; गा ७१)। वकृ. तरंत, तरमाण (पाअ; सुपा १८२)। हेकृ. तरिउं तरीउं (णाया १, १४; हे २, १९८)। कृ. तरिअव्व (श्रा १२; सुपा २७९)।

तर :: न [तरस्] १ वेग। २ बल, पराक्रम। °मल्लि वि [°मल्लि] १ वेगवाला। २ बलवाला। °मल्लिहायण वि [°माल्लिहायन] तरुण, युवा (औप)

तरंग :: पुं [तरङ्ग] १ कल्लोल, वीचि, लहर (पणह १, ३; औप) °णंदण न [°नन्दन] नृप-विशेष (दंस ३)। °मालि पुं [°मालिन्] समुद्र, सागर (पाअ)। °वई स्त्री [°वती] १ एक नायिका। २ कथा-ग्रंथ-विशेष (दंस ३)

तरंगलोला :: स्त्री [तरङ्गलोला] बप्पभट्टिसूरि- कृत एक अद्भुत प्राकृत जैन कथा-ग्रंथ (सम्मत्त १३८)।

तरंगि :: वि [तरङ्गिन्] तरंग-युक्त (गउड; कप्पू)।

तरंगिअ :: वि [तरङ्गित] तरंग-युक्त (गउड; से ८, ११; सुपा १५७)।

तरंगिणी :: स्त्री [तरङ्गिणी] नदी, सरिता (प्रासू ६९; गउड; सुपा ५३८)।

तरंगिणिीनाह :: पुं [तरङ्गिणीनाथ] समुद्र, सागर (वज्जा १५६)।

तरंड, तरंडय :: पुंन [तरण्ड, °क] डोंगी, नौका (सुपा २७२, ५००; सुर ८, १०६; पुप्फ १०५)।

तरग :: वि [तर, °क] तैरनावाला, तैराक (ठा ४, ४)।

तरच्छ :: पुंस्त्री [तरक्ष्] श्वापद जन्तु-विशेष, व्याघ्र की एक जाति (पणह १, १, णाया १, १; स २५७)। स्त्री. °च्छी (पि १२३)। °भल्ल पुंस्त्री [°भल्ल] श्वापद जन्तु-विशेष (पउम ४२, १२)।

तरट्ट :: वि [दे] प्रगल्भ, घऋष्ट, समर्थ, चतुर, हानिरजबाब 'तरट्टो' (प्राकृ ३८)।

तरट्टा, तरट्टी :: स्त्री [दे] प्रगल्भ स्त्री, प्रौढा नायिका, होशियार स्त्री; 'झाणेण टुट्ठदि चिरं तरुणी तरट्टी' (कप्पू; काप्र ५६६); 'अट्टेव आगयाओ तरुणतरच्चाओ एयाओ' (सुपा ४२)।

तरण :: न [तरण] १ तैरना (श्रा १४; स ३५६; सुपा २६२) २ जहाज, नौका (विसे १०२७)

तरणि :: पुं [तरणि] १ सूर्यं, रवि (कुमा) २ जहाज, नौका। ३ घृतकुमारी का पेड़, घीकुँआर का पेड़। ४ अर्कं वृक्ष, अकवन वृक्ष (हे १, ३१)

तरतम :: वि [तरतम] न्यूनाधिक, 'तरतम- जोगजुत्तेहिं' (कप्प)।

तरमाण :: देखो तर = तृ।

तरल :: वि [तरल] चंचल, चंपल (गउड; पाअ; कप्पू; प्रासू ९९; सुपा २०४; सुर २, ८६)।

तरल :: सक [तरलय्] चंचल करना, चलित करना। तरलेइ (गउड)। वकृ. तरलंत (सुपा ४७०)।

तरलण :: न [तरलन] तरल करना, हिलाना; 'कणणडीणं कुणंता कुरलतरलणं' (कप्पू)।

तरलाविअ :: वि [तरलित] चंचल किया हुआ, चलायमान किया हुआ (गउड; भवि)।

तरलि :: वि [तरलिन्] हिलानेवाला (कप्पू)।

तरलिअ :: वि [तरलित] चंचल किया हुआ (गा ७८; उप पृ ३३; सार्धं ११५)।

तरवट्ट :: पुं [दे] वृक्ष-विशेष, चकवड़, पमाड, पवार (दे ५, ५; पाअ)।

तरस :: न [दे] मांस (दे ५, ४)।

तरसा :: अ [तरसा] शीघ्र, जल्दी (सुपा ५८२)।

तरा :: स्त्री [त्वरा] जल्दी, शीघ्रता (पाअ)।

तरिअव्व :: देखो तर = तृ।

तरिअव्व :: न [दे] उडुप, एक तरह की छोटी नौका (दे ५, ७)।

तरिउ :: वि [तरीतृ] तैरनेवाला (विसे १०२७)।

तरिउ :: देखो तर = तृ।

तरिया :: स्त्री [दे] दूध आदि का सार, मलाई (प्रभा ३३)।

तरिहि :: अ [तर्हि] तो, तब (सुर १, १३२; ११, ७१)।

तरी :: स्त्री [तरी] नौका, डोंगी (सुवा १११; दे ६, ११०; प्रासू १४९)।

तरु :: पुं [तरु] वृक्ष, पेड़, गाछ (जी १४; प्रासू २६)।

तरुण :: वि [तरुण] जवान, मध्य वयवाला (पउम ५, १९८)।

तरुणग, तरुणय :: वि [तरुणक] बालक, किशोर (सूअ १, ३, ४)। २ नवीन, नया (भग १५)। स्त्री. °णिगा, °णिया (आचा २, १)

तरुणरहस :: पुंन [दे] रोग, बीमारी (ओघ १३६)।

तरुणिम :: पुंस्त्री [तरुणिमन्] यौवन, जवानी (कप्प)।

तरुणी :: स्त्री [तरुणी] युवति स्त्री, जवान स्त्री (गउड; स्वप्‍न ८२; महा)।

तल :: सक [तल्] तलना, भूजना, तेल आदि में भूनना। तलेज्जा (पि ४६०)। वकृ. तलेंत (विपा १, ३)। हेकृ. तलिज्जिउं (स २५८)।

तल :: न [दे] १ शय्या, बिछौना (दे ५, १९; षड्) २ पुं. ग्रामेश, गाँव का मुखिया (दे ५, १९)

तल :: पुं [तल] १ वृक्ष-विशेष, ताड़ का पेड़ (णाया १, १ टी — पत्र ४३; पउम ५३, ७९) २ न. स्वरूप; 'धरणितलंसि' (कप्प), 'कासवितलम्मि' (कुमा) ३ हथेली (जं १) ४ तला, भूमिका; 'सत्ततले पासाए' (सुर २, ८१) ५ अधोभाग, नीचे (णामा १, १) ६ हाथ, हस्त (कप्प; पणह २, ५) ७ मध्य खण्ड (ठा ८) ८ तलवा, पानी के नीचे का भाग या सतह (पणह १, ३) °ताल पुंन [°ताल] १ हस्त-ताल, ताली। २ वाद्य-विशेष (कप्प)। °प्पहार पुं [°प्रहार] तमाचा, चपेटा (दे)। °भंगय न [°भङ्गक] हाथ का आभूषण-विशेष (औप)। °वट्ट न [°पट्ट] बिछौने की चद्दर (वज्जा १०४)। °वट्ट न [°पत्र] ताड़ वृक्ष का पत्ता (वज्जा १०४)

तल :: पुंन [तल] १ वाद्य-विशेष (राय ४६) २ हथेली; 'अयमाउसो करतले' (सूअ २, १, १६)। ताल वृक्ष की पत्ती (सूअ १, ५, १२)। °वर पुं [°वर] राजा ने प्रसन्‍न होकर जिसको रत्‍न-जटित सोने का पट्टा दिया हो वह (अणु २२)

तलअंट :: सक [भ्रम्] भ्रमण करना, घूमना, फिरना। तलअंटइ (हे ४, १६१)।

तलआगत्ति :: पुं [दे] कूप, इनारा (दे ५, ८)।

तलओडा :: स्त्री [दे] वनस्पति-विशेष (पणण १)।

तलण :: न [तलण] तलना, भर्जन (पणह १, १)।

तलप्प :: अक [तप्] तपना, गरम होना। तलप्पइ (पिंग)।

तलप्फल :: पुं [दे] शालि, व्रीहि, धान (दे ५, ७)।

तलवत्त :: पुं [दे] १ कान का आभूषण-विशेष (दे ५, २१; पाअ) २ वरांग, उत्तमांग (दे ५, २१)

तलवर :: पुं [दे. तलवर] नगर-रक्षक, कोतवाल (णाया १, १; सुपा ३; ७३; औप; महा; ठा ९; कप्प; राय; अणु; उवा)।

तलविंट, तलर्वेट, तलर्वोंट :: न [तालवृन्त] व्यजन, पंखा (हे १, ६७; प्राप्र)।

तलसारिअ :: वि [दे] १ गालित। २ मुग्ध, मूर्ख (दे ५, ९)

तलहट्ट :: सक [सिच्] सींचना। तलहट्टइ, तलहट्टए (सुपा ३९३)। वकृ. तलहट्टंत (सुपा ३९३)।

तलहट्टिया :: स्त्री [दे] पर्वंत का मूल, पहाड़ के नीचे की भूमि; तलहटी, तराई; गुजराती में — 'तळेटी' (सम्मत्त १३७)।

तलाई :: स्त्री [तड़ागिका] छोटा तालाब (कुमा)।

तलाग, तलाय :: न [तड़ाग] तालाब, सरोवर (औप, हे १, २०३; प्राप्र; णाया १, ८; उव)।

तलार :: पुं [दे] नगर-रक्षक, कोतवाल (दे ५, ३, सुपा २३३; ३६१; षड्; कुप्र १५५)।

तलारक्ख :: पुं [दे. तलारक्ष्] ऊपर देखो (श्रा १२)।

तलाव :: देखो तलाग (उवा; पि २३१)।

तलिअ :: वि [तलित] भूना हुआ, तला हुआ (विपा १, २)।

तलिआ, तलिगा :: न [दे] उपानह, जूता (ओघ ३९; ९८; बृह १)।

तलिण :: वि [तलिन] १ प्रतल, सूक्ष्म, बारीक (पणह १, ४; औप; दे ५, ६) २ तुच्छ, क्षुद्र (से १०, ७)। ३ दुर्बंल (पाअ)

तलिम :: पुंन [दे] १ शय्या, बिछौना (दे ५, २०; पाअ; णाया १, १६ — पत्र २०१; २०२; गउड) २ कुट्टिम, फरस-बन्द जमीन (दे ५, २०; पाअ) ३ धर के ऊपर की भूमि। ४ वास-भवन, शय्या-गृह। ५ भ्राष्ट्र, भूनने का भाजन — बरतन (दे ५, २०)

तलिमा :: स्त्री [तलिमा] वाद्य-विशेष (विसे ७८ टी, णंदि टी)।

तलुण :: देखो तरुण (णाया १, १६; राय; वा १५)।

तलेर :: [दे] देखो तलार (भवि)।

तल्ल :: न [दे] १ पल्वल, छोटा तालाब (दे ५, १९) २ तृण-विशेष, बरू (दे ५, १९; पणह २, ३) ३ शय्या, बिछौना (दे ५, १९; षड्)

तल्लक :: पुं [तल्लक] सुरा-विशेष (राज)।

तल्लड :: न [दे] शय्या, बिछौना (दे ५, २)।

तल्लिच्छ :: वि [दे] तत्पर, तल्लीन, (दे ५, ३; सुर १, १३; पाअ)।

तल्लेस, तल्लेस्स :: वि [तल्लेश्य] उसी में जिसका अध्यवसाय हो, तल्लीन, तदासक्त विपा १, २; राज)।

तल्लोविल्लि :: स्त्री [दे] तड़फड़ना तड़फना, व्याकुल होना; 'थोडइ जलि जिम मच्छलिया तल्लोविल्लि करंत' (कुप्र ८६)।

तव :: अक [तप्] १ तपना, गरम होना। २ सक. तपश्‍चर्या करना। तवइ (हे १, १३१; गा २२४)। भूका. तविंसु (भग)। वकृ. तवमाण (श्रा २७)

तव :: सक [तापय्] गरम करना। तवेइ (भग)।

तव :: पुंन [तपस्] तपस्या, तपश्‍चर्या (सम ११; नव २९; प्रासू २८)। °गच्छ पुं [गच्छ] जैन मुनियों की एक शाखा, गण- विशेष (संति १४)। °गण पुं [°गण] पूर्वोक्त ही अर्थ (द्र ७०)। °चरण, °च्चरण न [°चरण] १ तपश्‍चर्या, तपःकरण (सूअ १, ५, १; उप पृ ३९०; अभि १४७) २ तप का फल, स्वर्ग का भोग (णाया १, ९)। °चरणि वि [°चरणिन्] तपस्या करनेवाला (ठा ५, ३)। देखो तवो°।

तव :: देखो थव (हे २, ४६; षड्)।

तव :: देखो थुण। तवइ (प्राकृ ६७)।

तवग्ग :: पुं [तवर्ग] 'त' से लेकर 'न' तक पाँच अक्षर। °पवभत्ति न [°प्रविभक्ति] नाट्य-विशेष (राय)।

तवण :: पुं [तपन] १ सूर्यं सूरज (उप १०३१ टी; कुप्र २१५) २ रावण का एक प्रधान सुभट (से १३, ८५) ३ न. शिखर-विशेष (दीव)

तवण :: पुं [तपन] तीसरा नरक-भूमि का एक नरक-स्थान (देवेन्द्र ८)। °तणया स्त्री [तनया] तापी नदी (हम्मीर १५)।

तवणा :: स्त्री [तपना] आतापना (सुपा ४१३)।

तवणिज्ज :: न [तपनीय] सुवर्णं, सोना (पणह १, ४; सुपा ३९)।

तवणिज्ज :: पुंन [तपनीय] एक देव-विमान (देवेन्द्र १३२)।

तवणी :: स्त्री [दे] १ भक्ष्य, भक्षण-योग्य कण आदि (दे ५, १; सुपा ५४८; वज्जा ९२) २ धान्य को खेत से काटकर भक्षण योग्य बनाने की क्रिया (सुपा ५४६) ३ तवा, पूआ आदि पकाने का पात्र (दे २, ५९)

तवणीय :: देखो तवणिज्ज (सुपा ४८)।

तवमाण :: देखो तव = तप।

तवय :: वि [दे] व्यापृत, किसी कार्यं में लगा हुआ (दे ५, २)।

तवय :: पुं [तपक] तवा, भूनने का भाजन (विपा १, ३; सुपा ११८; पाअ)।

तवसि :: देखो तवस्सि; 'पयमित्तंपि न कप्पइ इत्तो तवसीण जं गंतुं' (धर्मंवि ५३; १६)।

तवस्सि :: वि [तपस्विन्] १ तपस्या करनेवाला (सम ५१; उप ८३३ टी) २ पुं. साधु, मुनि, ऋषि (स्वप्‍न १८)

तविअ :: वि [तप्त] तपा हुआ, गरम (हे २, १०५; पाअ)।

तविअ :: वि [तापित] १ गरम किया हुआ। २ संतापित; 'एयाए को न तविओ, जयम्मि लच्छीए सच्छंद' (सुपा २०४; महा; पिंग)

तविअ :: वि [तपित] तीसरी नरक-भूमि का एक नरक-स्थान (देवेन्द्र ८)।

तविआ :: स्त्री [तापिका] तवा का हाथा (दे १, १६३)।

तवु :: देखो तउ (पउम ११८, ८)।

तवो :: देखो तओ (रंभा)।

तवो° :: देखो तव = तपस् । °कम्म न [°कर्मन्] तपः-करण (सम ११)। °धण पुं [°धन] ऋषि, मुनि (प्रारू)। °धर पुं [°धर] तपस्वी, मुनि (पउम २०, १९५; १०३, १०८)। °वण न [°वन] ऋषि का आश्रम (उप ७४५; स्वप्‍न १६)।

तव्वणिय :: वि [दे] सौगत, बौद्ध, बुद्ध-दर्शन का अनुयायी; 'तव्वणियाण बियं विसयसुह- कुसत्थभावणाधणियं' (विसे १०४१)।

तव्वन्निग :: वि [दे. तृतीयवर्णिक] तृतीय आश्रम में स्थित (उप पृ २६८)।

तव्विह :: वि [तद्विध] उसी प्रकार का (भग)।

तस :: अक [त्रस्] डरना, त्रास पाना। तसइ (हे ४, १९८). कृ. तसियव्व (उप ३३९ टी)।

तस :: पुं [त्रस] १ स्पर्शं-इन्द्रिय से अधिक इन्द्रियवाला जीव, द्वीन्द्रिय आदि प्राणी (जीव १; जी २) २ एक स्थान से दूसरे स्थान में जाने-आने की शक्तिवाला प्राणी (निचू १२) °काइय पुं [°कायिक] जंगम, प्राणी, द्वीन्द्रियादि जीव (पणह १, १)। °काय पुं [°काय] १ त्रस-समूह (ठा २, १) २ जंगम प्राणी (आचा)। °णाम, °नाम न [°नामन्] कर्मं-विशेष, जिसके प्रभाव से जीव असकाय में उत्पन्न होता है (कम्म १; सम ६७)। °रेणु पुं [°रेणु] परिमाण- विशेष, बत्तीस हजार सात सौ अड़सठ पर- माणुओं का एक परिमाण (अणु, पव २५४)। °वाइया स्त्री [°पादिका] त्रीन्द्रिय जन्तु- विशेष (जीव)

तसण :: न [त्रसन] १ स्पन्दन, चलन, हिलन (राज) २ पलायन (सूअ १, ७)

तसनाड़ी :: स्त्री [त्रसनाडी] त्रस जीवों के रहने का प्रदेश, जो ऊपर-नीचे मिलाकर चौदह रज्जू परिमित है (पव १४३)।

तसर :: देखो टसर (कप्पू)।

तसिअ :: वि [दे] शुष्क, सूखा (दे ५, २)।

तसिअ :: वि [तृषित] तृषातुर, पिपासित, प्यासा हुआ (रयण ८४)।

तसिअ :: बि [त्रस्त] भीत, डरा हुआ (जीव ३; महा)।

तसियव्व :: देखो तस = त्रस्।

तसेयर :: वि [त्रसेतर] एकेन्द्रिय जीव, स्थावर प्राणी (सुपा १९८)।

तह :: अ [तथा] १ उसी तरह (कुमा; प्रासू १९; स्वप्‍न १०) २ और, तथा (हे १, ६७) ३ पाद-पूर्ति नें प्रयुक्त किया जाता अव्यय (निचू १) °क्कार पुं [°कार] 'तथा' शब्द उच्चारण (उत्त २६)। °णाण वि [°ज्ञान] प्रश्‍न के उत्तर को जाननेवाला (ठा ६)। २ न. सत्य ज्ञान (टा १०) °त्ति अ [इति] स्वीकार-द्योतक अव्यय — वैसा ही (जैसा आप फरमाते हैं)। (णाया १, १)। °य अ [°च] १ उक्त अर्थं की दृढ़ता-सूचक अव्यय। २ समुच्चय-सूचक अव्यय (पंचा २)। °वि अ [°पि] तो भी (गउड)। °विह वि [°विध] उस प्रकार का (सुपा ४५९)। देखो तहा।

तह :: वि [तथ्य] तथ्य, सत्य, सच्‍चा (सूअ १, १३)।

तह :: पुं [तथ] आज्ञाकारक, दास, नौकर (ठा ४, २ — पत्र २१३)।

तह, तहीय :: न [तथ्य] १ स्वभाव, स्वरूप (सूअनि १२२) २ सत्य वचन (सूअ १, १४, २१)

तहं :: देखो तह = तथा (औप)।

तहरी :: स्त्री [दे] पङ्कवाली सुरा (दे ५, २)।

तहल्लिआ :: स्त्री [दे] गो-वाट, गौओं का बाड़ा, गोशाला (दे ५, ८)।

तहा :: देखो तह = तथा (कुमा; गउड; आचा; सुर ३, २७)। °गय पुं [°गत] १ मुक्त आत्मा। २ सर्वज्ञ (आचा)। °भूय वि [°भूत] उस प्रकार का (पउम २२, ६५)। °रूव वि [°रूप] उस प्रकार का (भग १५) °वि वि [°वित्] १ निपुण, चतुर २ पुं. सर्वज्ञ (सूअ १, ४, १)। °हि अ [°हि] वह उस प्रकार (उप ९८६ टी)

तहि :: देखो तह = तथा (गा ८७८; उत्त ६)।

तहिं, तहि :: अ [तत्र] वहाँ, उसमें (गा २०६; प्राप्र; गा २३४, ऊरु १०५)।

तहिय :: वि [तथ्य] सत्य, सच्चा, वास्तविक (णाया १, १२)।

तहियं :: अ [तत्र] वहाँ, उसमें (विसे २७८)।

तहेय, तहेव :: अ [तथैव] उसी तरह, उसी प्रकार (कुमा; षड्)।

ता :: अ [तद्] उससे, उस कारण से (हे ४, २७८; गा ४९; ६७; उव)।

ता :: देखो ताव = तावत् (हे १, २७१; गा १४१; २०१)।

ता :: अ [तदा] तब, उस समय (रंभा; कुमा; सण)।

ता :: अ [तहि] तो, तब (रंभा; कुमा)।

ता :: स्त्री [ता] लक्ष्मी (सुर १६, ४८)।

ता° :: स [तद्] वह। °गंध पुं [°गन्ध] १ उसका गन्ध। २ उसके गन्ख के समान गन्ध (पणण १७) °फास पुं [°स्पर्श] १ उसका स्पर्शं। २ वैसा स्पर्शं (पणण १७) °रस पुं [°रस] १ वह स्पर्शं। २ वैसा स्पर्शं (पणण १७) °रूव न [°रूप] १ वह रूप। २ वैसा रूप (पणम १७ — पत्र ५२२)

ताअ :: देखो ताव = ताप (गा ७९७; ८१४; हेका ५०)।

ताअ :: पुं [तात] १ तात, पिता, बाप (सुर १, १२३; उत्त १४) २ पुत्र, वत्स (सूअ १, ३, २)

ताअ :: सक [त्रै] रक्षण करना। कृ. तायव्व (श्रा १२)।

ताअप्प :: न [तादात्म्य] तद्रूपता, अभेद, अभिन्नता (प्राकृ २४)।

ताइ :: वि [त्यागिन्] त्याग करनेवाला (गा २३०)।

ताइ :: वि [तायिन्] रक्षक, परिपालक (उत्त ८)।

ताइ :: वि [तापिन्] ताप-युक्त (सूअ १, १५)।

ताइ :: वि [त्रायिन्] रक्षक, रक्षण करनेवाला (उत्त २१, २२)।

ताइ :: वि [तायिन्] उपकारी (सूअ १, २, २, १७)।

ताइ :: पुं [त्रायिन्] मुनि, साधु (दसनि २, ९)।

ताइअ :: वि [त्रात] रक्षित (उव)।

ताउं :: (अप) ताव = तावत् (कुमा)।

ताठा :: (चुपै) देखा दाटा (हे ४, ३२५)।

ताड :: सक [ताडय्] १ ताड़़न् करना, पीटना। २ प्रेरणा करना, आघात करना। ३ गुणाकार करना। ताडइ (हे ४, २७)। भवि. ताडइस्सं (पि २४०)। वकृ. ताडिंत (काल)। कवकृ. ताडिज्जमाण, ताडीअंत, ताडीअमाण (सुपा २६; पि २४०, अभि १५१)। हेकृ. ताडिउं (कप्पू)। कृ. ताडिअ (उत्त १९)

ताड :: पुं [ताल] ताड़ का पेड़ (स २५६)।

ताडंक :: पुं [ताडङ्क] कान का आभूषण विशेष, कुण्डल (दे ६, ९३; कप्पू; कुमा)।

ताडण :: न [ताडन] १ ताड़न, पीटना (उप ९८६ टी; गा ५४९) २ प्रेंरणा, आघात (से १२, ८३)

ताडाविय :: वि [ताडित] पिटवाया गया (सुपा २८८)।

ताडिअ :: देखो ताड = ताडय्।

ताडिअ :: वि [ताडित] १ जिसका ताडन किया गया हो वह, पीटा हुआ (पाअ) २ जिसका गुणाकार किया हो वह; 'इक्कासीई सा कारणकारणाणुमइताडिआ होइ' (श्रा ९)

ताडिअय :: न [दे] रोदन, रोना (दे ५, १०)।

ताडिज्जमाण :: देखो ताड = ताडय्।

ताडी :: स्त्री [ताडी] वृक्ष-विशेष (गउड)।

ताडीअंत, ताडीअमाण :: देखो ताड = ताडय्

ताण :: न [त्राण] १ शरण, रक्षण कर्ता (सुपा ५७४) २ रक्षण (सम ५१)

ताण :: पुं [तान] संगीत-प्रसिद्ध स्वर-विशेष, 'ताणा एगूणपणणासं' (अणु)।

ताणव :: न [तानव] कृशता, दुर्बलता (किरात १५)।

ताणिअ :: वि [तानित] ताना हुआ (ती १५)।

ताद :: देखो ताअ = तात (प्राकृ १२)।

तादत्थ :: न [तादर्थ्य] तदर्थभाव, उसके लिए (श्रावक १२४, १२७)।

तादवत्थ :: न [ताववस्थ्य] स्वरूप का अपभ्रंश वही अवस्था, अभिन्नरूपता (धर्मंसं ४०४; ४०५; ४१९)।

तादिस :: देखो तारिस (गा ७३८; प्रासू ३४)।

ताम :: देखो तम्म = तम्। तामइ (गा ८५३)।

ताम :: (अप) देखो ताव = तावत् (हें ४, ४०६; भवि)।

तामर :: वि [दे] रम्य, सुन्दर (दे ५, १०; पाअ)।

तामरस :: न [तामरस] कमल, पद्म (दे ५, १०; पाअ)।

तामरस :: न [दे] पानी में उत्पन्‍न होनेवाला पुष्प (दे ५, १०)।

तामलि :: पुं [तामलि] स्वनाम-ख्यात एक तापस (भग ३, १; श्रा ६)।

तामलित्ति :: स्त्री [ताम्रलिप्ति] एक प्राचीन नगरी, वंग देख की प्राचीन राजधानी (उप ९८८; भग ३, १; पणण १)।

तामलित्तिया :: स्त्री [ताम्रलिप्तिका] जैनमुनि- वंश की एक शाखा (कप्प)।

तामस :: न [तामस] १ अन्धकार। २ अन्ध- कार-समूह (चेइय ३२३)

तामस :: वि [तामस] तमोगुणवाला (पउम ८, ५०; कुप्र ४२८)। °त्थ न [°स्त्र] कृष्ण वर्णं का अस्त्र-विशेष (पउम ८, ५०)।

तामहि, तामहिं :: (अप) देखो ताव = तावत् (षड्; भवि; पि २६१; हे ४, ४०६)।

तायण :: न [त्राण] रक्षण (धर्मवि १२८)।

तायत्तीसग :: पुं [त्रायस्त्रिंशक] गुरु-स्थानीय देव-जाति (ठा ३, १; कप्प)।

तायत्तीसा :: स्त्री [त्रयस्त्रिंशत्] १ संख्या-विशेष, तेत्तीस। २ तेत्तीस संख्यावाला, तेत्तीस; 'तायत्तीसा लोगपाला' (ठा; पि ४४७; कप्प)

तायव्व :: देखो ताअ = त्रै।

तार :: पुं [तार] १ चौथी नरक का एक स्थान (देवेन्द्र १०) २ शुद्ध मोती। ३ प्रणव, ओंकार। ४ मायाबीज, 'ह्रीं' अक्षर। ५ तरण, तैरना (हे १, १७७)

तार :: वि [तार] १ निर्मंल, स्वच्छ (से ९, ४२) २ चमकता, देदीप्यमान (पाअ) ३ अति ऊँचा (से ६, ४) ४ अति ऊँचा स्वर (राय; मा ४९४) ५ न. चाँदी (ती २) ६ पुं. वानर-विशेष (से १, ३४)। °वई स्त्री [°वती] एक राज-कन्या (आचू ४)

तारंग :: न [तारङ्ग] तरंग-समूह (से ९, ४२)।

तारग :: वि [तारक] तारनेवाला, पार उतारनेवाला (उप पृ ३२)। २ पुं. नृप-विशेष, द्वितीय प्रतिवासुदेव (पउम ५, १५६) ३ सूर्यं आदि नव ग्रह (ठा ६) देखो तारय।

तारगा :: स्त्री [तारका] १ नक्षत्र (सूअ २, ६) २ एक इन्द्राणी, पूर्णभद्र-नामक इन्द्र की एक पटरानी (ठा ४, १)। देखो तारया।

तारण :: न [तारण] १ पार उतारना (सुपा २५७) २ वि. तारनेवाला (सुपा ४१७)

तारत्तर :: पुं [दे] मुहुर्त्तं (दे ५, १०)।

तारय :: देखो तारग (सम १; प्रासू १०१)। ४ न. छन्द-विशेष (पिंग)

तारया :: देखो तारगा। ३ आँख की तारा (गउड; गा १४८; २५४)

तारा :: स्त्री [तारा] १ आँक की पुतली (गा ४११; ४३५) २ नक्षत (ठा ५, १; से १, ३४) ३ सुग्रीव की स्त्री (से १, ३४) ४ सुभूम चक्रवर्त्ती की माता (सम १५२) ५ नदी-विशेष (ठा १०) ६ बौद्धों की शासन- देवी (कुप्र ४४२)। °उर न [°पुर] तारंगा- स्थान (कुप्र ४४२)। °चंद पुं [°चन्द्र] एक राज-कुमार (धम्म ७२ टी)। °तणय पुं [°तनय] वानर-विशेष, अङ्गद (से १३, ९७)। °पह पुं [°पथ] आकाश, गगन (अणु)। °पहु पुं [°प्रभु] चन्द्रमा (उप ३२० टी)। °मेत्ती स्त्री [°मैत्री] निःस्वार्थं मित्रता (कप्पू)। °यण न [°यन] कनीनिका का चलना, आँख की पुतली का हिलन; 'भग्गं तारायणं नियइ' (सुपा १८७)। °वइ पुं [°पति] चन्द्रमा (गउड)

तारि :: वि [तारिन्] तारनेवाला, तारक (सम्मत्त २३०)।

तारिम :: वि [तारिम] तरणीय, तैरने योग्य (भास ९३)।

तारिय :: वि [तारित] पार उतारा हुआ (भवि)।

तारिया :: स्त्री [तारिका] तारा के आकार की एक प्रकार की विभूषा, टिकली, टिकिया; 'विचित्तलंबंततारियाइन्‍नं' (सुर ३, ७१)।

तारिस :: वि [तादृश] वैसा, उस तरह का (कप्प; प्राप्र; कुमा)। स्त्री. °सी (प्रासू १२५)।

तारी :: स्त्री [तारी] तारकजातीय देवी (पव १९, ४)।

तारुअ :: वि [तारक] तारनेवाला (चेइअ ५२१)।

तारुण्ण, तारुन्न :: न [तारुण्य] तरुणता, यौवन (गउड; कप्पू; कुमा; सुपा ३१९)।

ताल :: देखो ताड = ताडय्। तालेइ (पि २४०)। वकृ. तालेमाण (विपा १, १)। कवकृ. तालिज्जंत, तालिज्जमाण (पउम ११८, १०; पि २४०)।

ताल :: सक [तालय्] ताला लगाना, बन्द करना। संकृ. तालेवि (सुपा ४२८)।

ताल :: पुं [ताल] १ वृक्ष-विशेष (पणह १, ४) २ वाद्य-विशेष, कंसिका (पणह २, ५) ३ ताली (दस २) ४ चपेटा, तमाचा (से ६, ५६) ५ वाद्य-समूह (राज) ६ आजीवक मत का एक उपासक (भग ८, ५) ७ न. ताला, द्वार बन्द करने की कल (उप ३३३) ८ ताल वृक्ष का फल (दे ६, १०२) °उड न [°पुट] तत्काल प्राण-नाशक विष-विशेष (णाया १, १४; सुपा १३७; ३१९)। °जंघ पुं [°जङ्गं] १ नृप-विशेष (धर्मं १) २ वि. ताल की तरह लम्बी जाँघवाला (णाया १, ८)। °ज्झय पुं [°ध्वज] १ बलदेव (आवम) २ नृप-विशेष (दंस १) ३ शत्रुजय पहाड़ (ती १)। °पलंब पुं [°प्रलम्ब] गोशालक का एक उपासक (भग ८; ५)। °पिसाय पुं [°पिशाच] दीर्घं- काय राक्षस (पणण १)। °पुड देखो °उड (श्रा १२)। °यर पुं [°चर] एक मनुष्य- जाति, चारण (ओघ ७६६)। °विंट, °विंत, °वेंट, °वोंट न [°वृन्त] व्यजन, पंखा (पि ५३, नाट-वेणी १०४; हे १, ६७; प्राप्र)। °संवुड पुं [°संपुट] ताल के पत्रों का संपुट, ताल-पत्र-संतय (सूअ १, ५, १)। °सम वि [°सम] ताल के अनुसार स्वर, स्वर- विशेष (ठा ७)

तालक :: पुं [ताड़ङ्क] १ कुण्डल, कान का आभूषण-विशेष। २ छन्द-विशेष (पिंग)

तालंकि :: पुंस्त्री [तालङ्किन्] छन्द-विशेष। स्त्री. °णी (पिंग)।

तालग :: न [तालक] ताला, द्वार बन्द करने का यन्त्र (उप ३३९ टी)।

तालण :: देखो ताडण (औप)।

तालणा :: स्त्री [ताडना] चपेटा आदि का प्रहार (पणह २, १; औप)।

तालप्फली :: स्त्री [दे] दासी, नौकरानी (दे ५, १)।

तालय :: देखो तालग (सुपा ४१४; कुप्र २५२)।

तालसम :: न [तालसम] गेय काव्य का एक भेद (दसनि २, २३)।

तालहल :: पुं [दे] शालि, व्रीहि (दे ५, ७)।

ताला :: अ [तदा] उस समय, 'ताला जाअंति गुणा, जाला ते सहिअएहिं घिप्पंति' (हे ३, ६५; काप्र ५२१)।

ताला :: स्त्री [दे] लाजा, खोईष धान का लावा (दे ५, १०)।

तालाचर :: पुं [तालाचर] ताल (वाद्य) बजानेवाला (निचू १५)।

तालाचर, तालायर :: पुं [तालाचर] १ प्रेक्षक-विशेष, ताल देनेवाला प्रेक्षक (णाया १, १) १ नट, नर्त्तंक आदि मनुष्य-जाति (बृह ३)

तालिअ :: वि [ताडित] आहत, पीटा हुआ (णाया १, ५)।

तालिअंट :: सक [भ्रमय्] घुमाना, फिराना। तालिअंटइ (हे ४, ३०)।

तालिअंट :: न [तालवृन्त] व्यजन, पंखा (स ३०८)।

तालिअंटिर :: वि [भ्रमयितृ] घुमानेवाला (कुमा)।

तालिज्जंत :: देखो ताल = ताडय्।

तालिस :: देखो तारिस (उत्त ५, ३१)।

ताली :: स्त्री [ताली] १ वृक्ष-विशेष (चारु ६३) २ छन्द-विशेष (पिंग)। °पत्त न [°पत्र] ताल-वृक्ष के पत्ता का बना हुआ पंखा (चारु ६३)

तालु, तालुअ :: न [तालु, °क] तालु, मुँह के अन्दर का ऊपरू भाग, तलुआ (सत्त ४९; णाया १, १६)।

तालुग्घाडणी :: स्त्री [तालोद्धाटनी] विद्या- विशेष, ताला खोलने की विद्या (वसु)।

तालुर :: पुं [दे] १ फेन, फीण। २ कपित्थ वृक्ष, कैथ का पेड़ (दे ५, २१) ३ पानी का आवर्त्त (दे ५, २१; गा ३७; पाअ) ४ पुं. पुष्प का सत्व (विक्र ३२)

तालेवि :: देखो ताल = तालय्।

ताव :: सक [तापय्] १ तपाना, गरम करना। २ संताप करना, दुःख उपजाना। ताबेंति (गा ८५०)। कर्म. ताविज्जंति (गा ७)। कृ. तावणिज्ज (भग १५)

ताव :: पुं [ताप] १ गरमी, ताप (सुपा ३८६; कप्पू) २ संताप, दुःख (आव ४) ३ सूर्यं, रवि। °दिसा स्त्री [°दिश्] सूर्यं-तापित दिशा (राज)

ताव :: अ [तावत्] इन अर्थों का सूचक अव्यय। १ तबतक (पउम ६८, ५०) २ प्रस्तुत अर्थ (आवम) ३ अवधारण, निश्चय। ४ अवधि, हद। ५ पक्षान्तर। ६ प्रशंसा। ७ वाक्य-भूषा। ८ मान। ९ साकल्य, संपूर्णता। १० तब, उस समय (हे १, ११)

तावअ :: वि [तावक] त्वदीय, तुम्हारा (अच्चु ५३)।

तावइअ :: वि [तावत्] उतना (सम १४४; भग)।

तावं :: देखो ताव = तावत् (भग)।

तावँ, तावँहिं :: (अप) देखो ताव = तावत् (कुमा)।

तावण :: पुं [तापन] चौथी नरकभूमि का एक नरकस्थान (देवेन्द्र ८)। २ वि. तपानेवाला (त्रि ९७)

तावण :: न [तापन] १ गरम करना, तपाना (निचु १) २ पुं. इक्ष्वाकु वंश का एक राजा (पउम ५, ५)

तावणिज्ज :: देखो ताव = तापय्।

तावत्तीस, तावत्तीसग, तावत्तीसय :: देखो तायत्तीसय (औप, पि ४४५; ४३८; काल)।

तावत्तिसा :: देखो तायत्तीसा (पि ४३८)।

तावस :: पुं [तापस] १ तपस्वी, योगी, संन्यासि-विशेष (औप) २ एक जैनमुनि (कप्प)। °गेह न [°गेह] तापसों का मठ (पाअ)

तावसा :: स्त्री [तापसा] जैन मुनियों की एक शाखा (कप्प)।

तावसी :: स्त्री [तापसी] तपस्विनी, योगिनी (गउड)।

ताविअ :: वि [तापित] तपाया हुआ, गरम किया हुआ (गा ५३; विपा १, ३, सुर ३, २२०)।

ताविआ :: स्त्री [तापिका] तवा, पूआ आदि पकाने का पात्र (दे २, ५९)। २ कड़ाही, छोटा कड़ाह (आवम)

ताविच्छ :: पुंन [तापिच्छ] वृक्ष-विशेष, तमाल का पेड़ (कुमा; दे १, ३७; सुपा ५८)।

तावी :: स्त्री [तापी] नदी-विशेष (पउम ३५, १; गा २३९)।

तास :: पुं [त्रास] १ भय, डर (उप पृ ३५) २ उद्वेग, संताप (पणह १, १)

तासण :: वि [त्रासन] त्रास उपजानेवाला (पणह १, १)।

तासि :: वि [त्रासिन्] १ त्रास-युक्त, त्रस्त। २ त्रास-जनक (ठा ४, २; कप्पू)

तासिअ :: वि [त्रासित] जिसको त्रास उप- जाया गया हो वह (भवि)।

ताहे :: अ [तदा] उस समय, तब (हे ३, ६५)।

ति :: अ [त्रिः] तीन बार (ओघ ५४२)।

ति :: देखो तइअ = तृतीय (कम्म २, १६)। °भाग, °भाय, °हाअ पुं [°भाग] तृतीय भाग, तीसरा हिस्सा (कम्म २; णाया १, १६ — पत्र २१८; कप्पू)।

ति :: देखो थी; 'उलूलु गायंति झुणिं सभत्तिपुत्ता तिओ चच्चरियाउदिंति' (रंभा)।

ति :: त्रि. ब. [त्रि] तीन, दो और एक (नव ४; महा)। °अणुअ न [°अणुक] तीन पर- माणुओं से बना हुआ द्रव्यः 'अणुअतएहिं आरद्धदव्वे निअणुअं ति निद्देसा' (सम्म १३६)। °उण वि [°गुण] १ तीनगुण। २ सत्व रजस् और तमस् गुणवाला (अच्चु ३०) °उणिय वि [°गुणित] तीनगुना (भवि)। °उत्तरसय वि [°उत्तरशततम] एक स तीसरा, १०३ वा (पउम १०३, १७६)। °उल वि [°तुल] १ तीन को जीतनेवाला। २ तीन को तौलनेवाला (णाया १, १ — पत्र ६४) °ओय न [°ओजस्] विषम राशि-विशेष (ठा ४, ३)।°कंड, °कंडग वि [°काण्ड, °क] तीन काण्डवाला, तीन भागवाला (कप्पू; सूअ १, ६)। °कडुअ न [°कटुक] सोंठ, मरीच और पीपल (अणु)। °करण देखो °गरण (राज)। °काल न [°काल] भूत, भविष्य और वर्त्त- माल काल (भग; सुपा ८८)। °क्काल देखो °काल (सुपा १६६)। °खंड वि [°खण्ड] तीन खण्डवाला (उप ९८६ टी)। °खंडा- हिवइ पुं [°खण्डाधिपति] अर्ध चक्रवर्त्ती राजा, वासुदेव (पउम ९१, २९)। °गडु, °गडुअ देखो °कडुअ (स २५८; २६३)। °गरण न [°करण] मन, वचन और काया (द्र २०)। °गुण देखो °उण (अणु)। °गुत्त वि [°गुप्त] मनोगुप्ति आदि तीन गुप्तिवाला, संयमी (सं ८)। °गोण वि [कोण] तीन कोनेवाला (राज)। °चंत्ता स्त्री [°चंत्वारिंशत्] तेतालीस (कम्म ४, ५५)। °जय न [°जगत्] स्वर्गं, मर्त्यं और पाताल लोक (ति १)। °णयण पुं [°नयन] महादेव, शिव (से १५, ५८; सुपा १३८; ५६९; गउड)। °तुल देखो °उल (णाया १, १ टी — पत्र ६७)। °त्तिस (अप) देखो °त्तीस। °त्तीस स्त्रीन [त्रय- स्त्रिंशत्] १ संख्या-विशेष, ३३। २ तेतीस संख्यावाला, तेत्तीस (कप्प; जी ३६; सुर १२, १३६; दं २७) °दंड न [°दण्ड] १ हथि- यार रखने का एक उपकरण (महा) २ तीन दण्ड (औप) °दंडि पुं [°दण्डिन्] संन्यासी, सांख्य मत का अनुयायी साधु (उप १३९ टी; सुपा ४३६ महा)। °नवइ स्त्री [°नवति] १ संख्या विशेष, तिरानबे। २ तिरानबे संख्यावाला (कम्म १, ३१) °पंच त्रि. ब. [°पञ्चन्] पद्रह (ओघ १४)। °पंचासइम वि [°पञ्चाश्] त्रिषनवाँ (पउम ५३, १५०)। °पह न [°पथ] जहाँ तीन रास्ते एकत्रित होते हैं वह स्थान (राज)। °पायण न [°पातन] १ शरीर, इन्द्रिय और प्राण इन तीनों का नाश। २ मन, वचन और काया का विनाश (पिंड) °पुंड़ न [°पुण्ड्र] तिलक-विशेष (स ९)। °पुर पुं [°पुर] १ दानव-विशेष। २ न. तीव नगर (राज) °पुरा स्त्री [°पुरा] विद्या-विशेष (सुपा ३९७)। °ब्भंगी स्त्री [°भङ्गी] छन्द-विशेष (पिंग)। °महुर न [°मधुर] घी, शक्कर और मधु (अणु)। °मालिआ स्त्री [त्रैमासिकी] जिसकी अवधि तीन मास की है ऐसी एक प्रतिमा, व्रत-विशेष (सम २१)। °मुह वि [°मुख] १ तीन मुखवाला (राज) २ पुं. भगवान् संभवनाथजी का शासन-देव (संति ७)। °रत्त न [°रात्र] तीन रात (स ३४२); 'धम्मपरस्स मुहुत्तोवि दुल्लहो किंपुण तिरत्तं' (कुप्र ११८)। °रासि न [°राशि] जीव, अजीव और नोजीव रूप तीन राशियाँ (राज)। °लोअ न [°लोकी] स्वर्गं, मर्त्यं और पाताल लोक (कुमा; प्रासू ८६; सं १)। °लोअण पुं [°लोचन] महादेव, शिव (श्रा २८; पउम ५, १२२; पिंग)। °लोअ- पुज्ज पुं [°लोकपूज्य] घातकीषण्ड के विदेह में उत्पन्न एक जिनदेव (पउम ७५, ३१)। °लोई स्त्री [°लोकी] देखो °लोअ (गउड; भत्त १५२)। °लोग देखो °लोअ (उप पृ ३)। °वई स्त्री [°पदी] १ तीन पदों का समूह। २ भूमि में तीन बार पाँव का न्यास (औंप) ३ गति-विशेष (अंत १६) °वग्ग पुं [°वर्ग] १ धर्मं, अर्थं और काम ये तीन पुरुषार्थ (ठा ४, ४ — पत्र २८३; स ७०३; उप पृ २०७) २ लोक, वेद और समय इन तीन का वर्ग। ३ सूत्र, अर्थं और उन दोनों का समुह (आचू १; आवम)। °वण्ण पुं [°पर्ण] पलाश वृक्ष (कुमा)। °वरिस वि [°वर्ष] तीन वर्ष की अवस्थावाला (वव ३)। °वलि स्त्री [°वलि] चमड़ी की तीन रेखाएँ (कप्पू)। °वलिय वि [°वलिक] तीन रेखावाला (राय)। °वली देखो °वलि (गा २७८; औप)। °वठ्ठ पुं [°पृष्ठ] भरत- क्षेत्र के भावी नवम वासुदेव (सम १५४)। °वय न [°पद] तीन पाँववाला (दे ८, १)। °वइआ स्त्री [°पथगा] गंगा नदी (से ६, ८; अच्चु ३)। °वायणा स्त्री [°पातना] देखो °पायणा (पणह १, १)। °विट्ठ, °विट्‍ठु पुं [°पृष्ठ, °विष्टु] भारतक्षेत्र में उत्पन्न प्रथम अर्धं-चक्रवर्त्ती राजा का नाम (सम ८८; पउम ५, १५५)। °विह वि [°विध] तीन प्रकार का (उवा; जी २०; नव ३)। °विहार पुं [°विहार] राजा कुमारपाल का बनवाया हुआ पाटण का एक जैन मन्दिर (कुप्र १४४)। °संकु पुं [°शङ्कु] सूर्यवंशीय एक राजा (अभि ८२)। °संझ न [°सन्ध्य] प्रभात, मध्याह्न और सायंकाल का समय (सुर ११, १०९)। °सट्ठ वि [°पष्ट] तिरसठवाँ, ६३ वाँ (पउम ६३, ७३)। °सट्ठि स्त्री [°षष्टि] तिरसठ, ६३ (भवि)। °सत्त त्रि. ब. [°सप्तन्] एक्कीस (श्रा ६)। °सत्तखुत्तो अ [°सप्त- कृत्वस्] एक्कीस बार (णाया १, ९; सुपा ४४९)। °समइय वि [°सामयिक] तीन समय में उत्पन्न होनेवाला, तीन समय की अवधिवाला (ठा ३, ४)। °सरय न [°सरक] तीन सरा या लड़ीवाला हार (णाया १, १; औप; महा) २ वाद्य-विशेष (पउम ९६, ४४) °सरा स्त्री [°सरा] मच्छली, पकड़ने का जाल-विशेष (विपा १, ८)। °सरिय न [°सरिक] १ तीन सरा या लड़ी वाला हार (कप्प) २ वाद्य-विशेष (पउम ११३, ११) ३ वि. वाद्दा-विशेष-संबन्धी (पउम १०२, १२३) °सीस पुं [°शीर्ष] देव-विशेष (दीव)। °सूल न [°शूल] शस्त्र-विशेष (पउम १२, ३४; स ६९९)। °सूलपाणि पुं [°शूल- पाणि] १ महादेव, शिव। २ त्रिशूल का हाथ में रखनेवाला सुभट (पउम ५९, ३५) °सूलिया स्त्री [°शूलिका] छोटा त्रिशूल (सूअ १, ५, १)। °हत्तर वि [°सप्तत] तिहतरवाँ, ७३ वाँ (पउम ७२, ३६)। °हा अ [°धा] तीन प्रकार से (पि ४५१; अणु)। °हुअण, °हुण, °हुवण न [°भुवन] १ तीन जगत्, स्वर्गं, मर्त्यं और पाताल लोक (कुमा; सुर १, ८; प्रासू ४९; अच्चु १९) २ पुं. राजा कुमारपाल के पिता का नाम (कुप्र १४४)। °हुअणपाल पुं [°भुवन- पाल] राजा कुमारपाल का पिता (कुप्र १४४)। °हुअणालंकार पुं [°भुवनालंकार] रावण के पट्टहस्ती का नाम (पउम ८१, १२२)। °हुणविहार पुं [°भुवनविहार] पाटण (गुजरात) में राजा कुमारपाल का बन- वाया हुआ एक जैन मन्दिर (कुप्र १४४)। देखो ते°।

°ति :: देखो इअ = इति (कुमा; कम्म २, १२; २३)।

तिअ :: (अप) अक [तिम्, . स्तिम्] १ आर्द्र होना। २ सक. आर्द्र करना। तिअइ (प्राकृ १२०)

तिअ :: न [त्रिक] १ तीन का समुदाय (श्रा १; उप ७२८ टी) २ वह जगह जहाँ तीन रास्ते मिलते हों (सुर १, ६३)। °संजअ पुं [°संयत] एक राजर्षि (पउम ५, ५१)। देखो तिग।

तिअ :: वि [त्रिज] तीन से उत्पन्न होनेवाला (राज)।

तिअंकर :: पुं [त्रिकंकर] स्वनाम-ख्यात एक जैनमुनि (राज)।

तिअघ :: न [त्रिकक] तीन का समुदाय (विसे २९४३)।

तिअडा :: स्त्री [त्रिजटा] स्वनाम-ख्यात एक राक्षसी (से ११, ८७)।

तिअभंगी :: स्त्री [त्रिभङ्गी] छन्द-विशेष (पिंग)।

तिअय :: न [त्रितय] तीन का समूह (विसे १४३२)।

तिअलुक्क, तिअलोय :: न [त्रैलोक्य] तीन जगत् — स्वर्गं, मर्त्यं और पाताल लोक (धर्मा ६०; लहुअ ९)।

तिअस :: पुं [त्रिदश] देव, देवता (कुमा; सुर १, ९)। °गअ पुं [°गज] ऐरावत या ऐरावण हाथी, इन्द्र का हाथी (से ९, ६१)। °नाह पुं [°नाथ] इन्द्र (उप ९८६ टी; सुपा ४४)। °पहु पुं [°प्रभु] इन्द्र, देव-नायक (सुपा ४७; १७६)। °रिसि पुं [°ऋषि] नारद मुनि (कुप्र ३७३)। °लोग पुं [°लोक] स्वर्ग (उप १०१९)। °वलिया स्त्री [°वनिता] देवी, स्त्री, देवता (सुपा २९७)। °सरि स्त्री [°सारत्] गंगा नदी (कुप्र)। °सेल पुं [°शैल] मेरु पर्वत (सुपा ४८)। °लिय पुंन [°लय] स्वर्गं (कुप्र १९; उप ७२८ टी; सुर १, १७२)। °हिव पुं [°धिप] इन्द्र (सुपा ३४)। °हावइ पुं [°धिपति] इन्द्र (सुपा ७६)।

तिअससूरि :: पुं [त्रिदशसृरि] बृहस्पति (सम्मत्त १२०)।

तिअसिंद :: पुं [त्रिदशेन्द्र] इन्द्र, देव-पति (वज्जा १५४)।

तिअसेंद :: देखो तिअसिंद (चेइय ९१०)।

तिअसीस :: पुं [त्रिदशेश] इन्द्र, देव-नायक (हे १, १०)।

तिआमा :: स्त्री [त्रियामा] रात्रि, रात (अच्चु ४६)।

तिइक्ख :: सक [तितिक्ष्] सहन करना। तिइक्खए (आचा)। वकृ. तिइक्खमाण (आचा)।

तिइक्खा :: स्त्री [तितिक्षा] क्षमा, सहिष्णुता (आचा)।

तिइज्ज, तिइय :: वि [तृतीय] तीसरा पि ४४९; संक्षि २०)।

तिउक्खर :: न [त्रिपुष्कर] वाद्य-विशेष (अजि ३१)।

तिउट्ट :: सक [त्रोटय्] १ तोड़ना। २ परि- त्याग करना। तिउट्टिज्जा (सूअ १, १, १, १)

तिउट्ट :: अक [त्रुट्] १ टूटना। २ मुक्त होना; 'सब्बदुक्खा तिउट्टइ' (सूअ १, १५, ५)

तिउट्ट :: वि [त्रुट्ट, त्रुटित] १ टूटा हुआ। २ अपसृत (आचा)

तिउड :: पुं [दे] कलाप, मोर-पिच्छ (पाअ)।

तिउडग :: पुंन [त्रिपुटक] धान्य विशेष (दसनि ६, ८; पव १५६)।

तिउडय :: न [दे] १ मालव देश में प्रसिद्ध धान्य- विशेष (श्रा १८) २ लौंग, लवंग (श्रा पत्र ९९)

तिउर :: न [त्रिपुर] एक विद्याधर-नगर (इक)।

तिउर :: पुं [त्रिपुर] असुर-विशेष (त्रि ९४)। °णाह पुं [°नाथ] वही (त्रि ८७)।

तिउरा :: स्त्री [त्रिपुरी] नगरी-विशेष, चेदि देश की राजधानी (कुमा)।

तिउल :: वि [दे] मन, वचन और काया के पीड़ा पहुँचानेवाला, दुःख का हेतु (उत्त २)।

तिऊड :: देखो तिकूड (से ८, ८३; ११, ९८)।

तिंगिआ :: स्त्री [दे] कमल-राजड (दे ५, १२)।

तिंगिच्छ :: देखो तिगिच्छ (इक)।

तिंगिच्छायण :: न [चिकित्सायन] नक्षत्र- गोत्र-विशेष (इक)।

तिंगिच्छि :: स्त्री [दे] कमल-राज, पद्म का रज, पराग (दे ५, १२; गउड; हे २, १७४; जं ४)।

तिंत :: वि [तीमित] भींजा हुआ (स ३३२; हे ४, ४३१)।

तिंतिण, तिंतिणिय :: वि [दे] बड़बड़ करनेवाला, बड़बड़ानेवाला, वाञ्छित लाभ न होने पर खेद से मन में जो आवे सो बोलनेवाला (वव १; ठा ६ — पत्र ३७१; कस)।

तिंतिणी :: स्त्री [तिन्त्रिणी] १ चिंचा, इमली का पेड़ (अभि ७१)

तिंतिणी :: स्त्री [दे] बड़बड़ाना (वव ३)।

तिंदुइणी :: स्त्री [तिन्दुकिनी] वृक्ष-विशेष (कुप्र १०२)।

तिंदुग, तिंदुय :: पुं [तिन्दुक] १ वृक्ष-विशेष, तेंदू का पेड़ (पाअ; पउम २०, ३७; सम १५२; पणण १७) २ न. फल-विशेष (पणण १७) ३ श्रावस्ती नगरी का एक उद्यान (विसे २३०७)

तिंदुग, तिंदुय :: पुं [तिन्दुक] त्रीन्द्रिय जन्तु की एक जाति (उत्त ३६, १३९; सुख ३६, १३९)।

तिंदूस, तिंदूसग, तंदूसय :: पुंन [तिन्दूस, °क] १ वृक्ष-विशेष (पणण १) २ कन्दुक, गेंद (णाया १, १८; सुपा ५३) ३ क्रीड़ा-विशेष (आवम)

तिकल्ल :: न [त्रैकाल्य] तीनों काल का विषय (पणह २, २)।

तिकूड :: पुं [त्रिकूट] १ लंका के समीप का एक पहाड़, सुवेल पर्वत (पउम ५, १२७) २ शीता महानदी के दक्षिण किनारे पर स्थित पर्वंत-विशेष (ठा २, ३ — पत्र ८०)। °सामिय पुं [°स्वामिन्] सुवेल पर्वत का स्वामी, रावण (पउम ६५, २१)

तिक्ख :: वि [तीक्ष्ण] १ तेज, तीखा, पैना (महा; गा ५०४) २ सूक्ष्म। ३ चोखा, शुद्ध (कुमा) ४ परुष, निष्ठुर (भघ १९, ३) ५ वेग-युक्त, क्षिप्र-कारी (जं २) ६ क्रोधी, गरम प्रकृतिवाला। ७ तीता, कडुवा ८ उत्साही। ९ आलस्य-रहित। १० चतुर, दक्ष। ११ न. विष, जहर। १२ लोहा। १३ युद्ध, संग्राम। १४ शस्त्र, हथियार। १५ समुद्र का नोन। १६ यवक्षार। १७ श्वेत- कुष्ठ। १८ ज्योतिष-प्रसिद्ध तीक्ष्ण गण, यथा अश्‍लेषा, आर्द्रा, ज्येष्ठा और मूल नक्षत्र (हे २, ७५, ८२)

तिक्ख :: सक [तीक्ष्णय्] तीक्ष्ण करना, तेज करना। तिक्खेइ (हे ४, ३४४)।

तिक्खण :: न [तीक्ष्णन] तेज-करण, उत्तेजन (कुमा)।

तिक्खाल :: सक [तीक्ष्णय्] तीक्ष्ण करना। कर्मं. तिक्कालिज्जंति (सुर १२, १०६)।

तिक्खालिअ :: वि [दे] तीक्ष्ण किया हुआ (दे ५, १३; पाअ)।

तिक्खुत्तो :: अ [त्रिस्] तीन बार (विपा १, १; कप्प; औप; राय)।

तिग :: देखो तिअ = त्रिक (जी ३२; सुपा ३१; णाया १, १)। °वस्सि वि [°वशिन्] मन, वचन और शरीर को काबू में रखनेवाला; 'नरस्स तिगवस्सिस्स विसं तालउडं जहा' (सुपा १६७)।

तिगसंपुण्ण :: न [त्रिकसंपूर्ण] लगातार तीस दिन का उपवास (संबोध ५८)।

तिगिंछ :: पुं [तिगिच्छ] द्रह-विशेष (इक)।

तिगिंछायण :: न [तिगिञ्छायन] गोत्र-विशेष (सुज्ज १०, १६ टी)।

तिगिंछि :: पुं [तिगिञ्छि] १ पर्वंत-विशेष (ठा २, ३ — पत्र ७०; इक; सम; ३३) २ द्रह-विशेष, निषध पर्वंत पर स्थित एक ह्रद (ठा २, ३ — पत्र ७२)

तिगिच्छ :: सक [चिकित्स्] प्रतीकार करना, इलाज करना, दवा करना। तिगिच्छइ (उत्त १९, ७९; पि २१५; ५५५)।

तिगिच्छ :: पुं [चिकित्स] वैद्य, हकीम (वव ५)।

तिगिच्छ :: पुं [तिगिच्छ] १ द्रह-विशेष, निषध पर्वंत पर स्थित एक द्रह (इक) २ न. देवविमान-विशेष (सम ३८)

तिगिच्छ :: न [चौकित्स] चिकित्सा-शास्त्र (सिरि ५६)।

तिगिच्छग, तिगिच्छय :: वि [चिकित्सक] प्रतीकार करनेवाला। २ पुं. वैद्य, हकीम (ठा ४, ४; पि २१५; ३२७)।

तिगिच्छण :: न [चिकित्सन] चिकित्सा (पिंड १८८)।

तिगिच्छय :: न [चौकित्स्य] चिकित्सा-कर्मं (ठा ९ — पत्र ४५१)।

तिगिच्छा :: स्त्री [चिकित्सा] प्रतीकार, इलाज, दवा (ठा ३, ४)। °सत्थ न [°शास्त्र] आयुर्वेद, वैद्यकशास्त्र (राज)।

तिगिच्छायण :: न [तिगिच्छायन] गोत्र- विशेष (सुज्ज १०, १६)।

तिगिच्छि :: देखो तिगिंछि (ठा २, ३ — पत्र ८०; सम ८४; १०४; पि ३५४)।

तिगिच्छिय :: पुं [चैकित्सिक] वैद्य, चिकित्सक (पउम ८, १२४)।

तिग्ग :: वि [तिग्म] तोक्ष्ण, तेज (हे २, ६२)।

तिग्घ :: वि [त्रिघ्न] तिगुना, तीन-गुना (राज)।

तिचूड :: पुं [त्रिचूड] विध्याधर वंश का एक राजा (पउम ५, ४५)।

तिजड :: पुं [त्रिजट] १ विद्याधर वंश के एक राजा का नाम (पउम १०, २०) २ राक्षस वंश का एक राजा (पउम ५, २६२)

तिजामा, तिजामी :: स्त्री [त्रियामा] रात्रि, रात (कुप्र २४७; रंभा)।

तिज्ज :: वि [तार्य] तैरने योग्य (भास ९३)।

तिड्ड :: पुंस्त्री [दे] अन्‍न-नाश करनेवाला कीट, टिड्डी (जी १८)। स्त्री. °ड्डी (सुपा ५४६)।

तिड्डव :: सक [ताडय्] ताड़न करना। तिड्डवइ (प्राकृ ७६)।

तिण :: न [तृण] तृण, घास (सुपा २३३, अभि १७५; स १७९)। °सूय न [°शूक] तृण का अग्र भाग (भग १५)। °हत्थय पुं [°हस्तक] घास का पूला (भग ३, ३)।

तिणिस :: पुं [तिनिश] वृक्ष-विशेष, बेंत (ठा ४, २; कम्म १स १९; औप)।

तिणिम :: न [दे] मधु-पाल, मधपुड़ा (दे ५, ११; ३, १२)।

तिणिस :: वि [तैनिश] तिनिश-वृक्ष-संबंन्धी, बेंत का (राय ७४)।

तिणीकय :: वि [तृणीकृत] तृण-तुल्य माना हुआ (कुप्र ५)।

तिण्ण, तिण्णाअइ :: अक [तिम्] १ आर्द्र होना। २ सक. आर्द्र करना। तिण्णा- अइ (प्राकृ ७४)

तिण्ण :: वि [तीर्ण] १ पार पहुँचा हुआ (औप)।ट २ शक्त, समर्थ (से ११, २१)

तिण्ण :: न [स्तौन्य] चोरी; 'तिलतिण्णतप्परो' (उप ५९७ टी)।

तिण्ण° :: देखो ति = त्रि। °भंग वि [°भङ्ग] त्रि-खण्ड, तीन खण्डवाला (अभि २२४)। °विह वि [°विध] तीन प्रकार का (नाट — चैत ४३)।

तिण्णिअ :: पुं [तिन्निक] देखो तित्तिअ = तित्तिक (इक)।

तिण्ह :: देखो तिक्ख (हे २, ७५; ८२; पि ३१२)।

तिण्हा :: देखो तिण्हा (राज; वज्जा ९०)।

तितउ :: पुं [तितउ] चालनी या चलनी, आखा, आटा या मैदा छानने का पात्र (प्रामा)।

तितय :: देखो तिअय (वव १)।

तितिक्ख :: देखो तिइक्ख। तितिक्खइ, तितिक्खए (कप्प; पि ४५७)। बकृ. तितिक्खमाण (राज)।

तितिक्खण :: न [तितिक्षण] सहन करना (ठा ६)।

तितिक्खया :: देखो तितिक्खा (पिंड ६६६)।

तितिक्खा :: देखो तिइक्खा (सम ५७)।

तित्ति :: वि [तृप्त] तृप्त, संतुष्ट, खुश (विसे २४०६; औप; दे १, १९; सुपा १६३)।

तित्त :: वि [तिक्त] १ तीता, कडुआ (णाया १६) २ पुं. तीता रस (ठा १)

तित्ति :: देखो तत्ति = दे (सिरि २७; संबोध ६)।

तित्ति :: स्त्री [तृप्ति] तृप्‍ति, संतोष (उप ५९७ टी; दे १, ११७; सुपा ३७५; प्रासू १४०)।

तित्ति :: [दे] तात्पर्यं, सार (दे ५, ११; षड्)।

तित्तिअ :: वि [तावत्] उतना (हे २, १५६)।

तित्तिअ :: पुं [तित्तिक] १ म्लेच्छ देश-विशेष। २ उस देश में रहनेवाली म्लेच्छ जाति (पणह १, १)। देखो तिण्णिअ।

तित्तिर, तित्तिर :: पुं [तित्तिरि] पक्षि-विशेष, तीतर या तित्तिर (हे १, ९०; कुप्र ४२७)।

तित्तिरिअ :: वि [दे] स्‍नान से आर्द्र (दे ५, १२)।

तित्तिल :: वि [तावत्] उतना (षड्)।

तित्तिल्ल :: पुं [दे] द्वारपाज, प्रतीहार (गा ५५६)।

तित्तुअ :: वि [दे] गुरु, भारी (दे ५, १२)।

तित्तुल :: (अप) देखो तित्तिल (हे ४, ४३५)।

तित्थ :: पुं [त्रित्थ] साधु, साध्वी, श्रावक और श्राविका का समुदाय, जैनसंघ (विसे १०३५)।

तित्थ :: पुं [त्र्यर्थ] ऊपर देखो (विसे १३०६)।

तित्थ :: न [तीर्थ] प्रथम गणधर (णंदि १३० टी)।

तित्थ :: न [तीर्थ] १ ऊपर देखो (विसे १०३३; ठा १) २ दर्शंन, मत (सम्म ८; विसे १०४०) ३ यात्रा-स्थान, पवित्र जगह (धर्म २; राय; अभि १२७) ४ प्रवचन, शासन, जिन-देव प्रणीत द्वादशाङगी (धर्मं ३) ५ पुंन. अवतार, घाट, नदी वगैरह में उतरने का रास्ता (विसे १०२६; विक्र ३२, प्रति ८२; प्रासू ९०)। °कर, °गर देखो °यर (सम ६७; कप्प; पउम २०, ८; हे १, १७७)। °जत्ता स्त्री [°यात्रा] तीर्थ- गमन (धर्म २)। °णाह, °नाह पुं [°नाथ] जिन-देव (स ७६१; उप पृ ३५०; सुपा ६५९; सार्धं ४३; सं ३५)। °यर वि [°कर] १ तीर्थं का प्रवर्त्तंक। २ पुं. जिन-देव, जिन भग- वान् (णाया १, ८; हे १, १७७; सं १०१)। स्त्री. री° (णंदि)। °यरणाम न [°करनामन्] कर्मं-विशेष, जिसके उदय से जीव तीर्थंकर होता है (ठा ९)। °राय पुं [°राज] जिन- देव (उप पृ ४००)। °सिद्ध पुं [°सिद्ध] तीर्थं-प्रवृत्ति होने पर जो मुक्ति प्राप्त करे वह जीव (ठा १, १)। °हिनायग पुं [°धिना- यक] जिनदेव (उप ९८६ टी)। °हिव पुं [°धिप] संघानायक, जिन-देव (उप १४२ टी)। °हिवइ पुं [°धिपति] जिनदेन, जिन भगवान् (पाअ)

तित्थंकर :: पुं [तीर्थङ्कर] देखो तित्थ-यर (चेइय ६५१)।

तित्थि :: वि [तीर्थिन्] १ दार्शंनिक, दर्शंन- शास्त्र का विद्वान्। २ किसी दर्शंन का अनु- यायी (गु ३)

तित्थिअ :: वि [तीर्थिक] ऊपर देखो (प्रबो ७४)।

तित्थीय :: वि [तीर्थीय] ऊपर देखो (विसे ३१९६)।

तित्थेसर :: पुं [तीर्थेश्वर] जिन-देव, जिन भगवान् (सुपा ५१; ५६; २६०)।

तिदस :: देखो तिअस (नाट — विक्र २८)।

तिदिव :: न [त्रिदिव] स्वर्गं, देवलोक (सुपा १४२; कुप्र ३२०)।

तिध :: (अप) देखो तहा (हे ४, ४०१; कुमा)।

तिन्न :: देखो तिण्ण (सम १)।

तिन्न :: वि [दे] स्तीमित, आर्द्रं, गीला (णाया १, ६)।

तिपन्न :: देखो ते-वण्ण (पंच ५, १८)।

तिप्प :: सक [तिप्] देना। तिप्पइ (पिंड २९७)।

तिप्प :: अक [तृप्] तृ़प्त होना। वकृ. तिप्पंत (पिंड ६४७)।

तिप्प :: सक [तर्पय्] तृप्त करना, हेकृ. 'न इमा जीवो सक्को तिप्पेउं कामभोगोहिं' (पच्च ५५)। कृ. तिप्पियव्व (पउम ११, ७३)।

तिप्प :: अक [तिप्] १ झरना, चूना। २ अफसोस करना। ३ रोना। ४ सक, सुख- च्युत करना। तिप्पामि, तिप्पंति (सूअ २, १; २, २, ५५)। वकृ. तिप्पमाण (णाया १, १ — पत्र ४७)। प्रयो. वकृ. तिप्पयंत (सम ५१)

तिप्प :: पुंन [त्रेप] अपान आदि धोने की क्रिया, शौच (गच्छ २, ३२)।

तिप्प :: वि [तृप्त] संतुष्ट, खुश (हे १, १२८)।

तिप्पण :: न [तेपन] पीड़न, हैरानी (सूअ २, २, ५५)।

तिप्पणया :: स्त्री [तेपनता] अश्रु-विमोचन, रोदन (ठा ४, १; औप)।

तिप्पाय :: न [त्रिपाद] तप-विशेष, नीवी (संवोध ५८)।

टिम :: (अप) देखो तहा (हे ४, ४०१; भवि; कम्म १)।

तिमि :: पुं [तिमि] मत्स्य की एक जाति (पणह १, १)।

तिमिंगल :: पुं [दे] मत्स्य, मछली, तिमि (मत्स्य) को निगलनेवाला मत्स्य (दे ५, १३)।

तिमिंगिल :: पुं [तिमिङ्गिल] मत्स्य की एक जाति (दे ५, १३; से ७, ८; पणह १, १)। °गिल पुं [°गिल] एक प्रकार का महान् मत्स्य, बड़ी भारी मछली (सूअ २, ६)।

तिमिंगिलि :: पुं [तिमिङ्गिलि] मत्स्य की एक जाति (पउम २२, ८३)।

तिमिगिल :: देखो तिमिंगिल = तिमिङ्गिल (उप ५१७)।

तिमिच्छय, तिमिच्छाह :: पुं [दे] पथिक, मुसाफिर (दे ५, १३)।

तिमिण :: न [दे] गीला काष्ठ (दे ५, ११)।

तिमिर :: न [तिमिर] १ अन्धकार, अँधेरा (पडि; कप्प) २ निकाचित कर्मं (धर्मं २) ३ अल्प ज्ञान। ४ अज्ञान (आचू ५) ५ पुं. वृक्ष-विशेष (स २०६)

तिमिरिच्छ :: पुं [दे] वृक्ष-विशेष, करंज का पेड़ (दे ५, १३)।

तिमिरिस :: पुं [दे] वृक्ष-विशेष (पणण १ — पत्र ३३)।

तिमिल :: स्त्रीन [तिमिल] वाद्य-विशेष (पउम ५७, २२)। स्त्री. °ला (राज)।

तिमिस :: पुं [तिमिष] एक प्रकार का पौधा, पेठा, कुम्हड़ा (कप्पू)।

तिमिसा, तिमिस्सा :: स्त्री [तिमिस्रा] वैताढ्य पर्वत की एक गुफा (ठा २, ३; पणह १, १ — पत्र १४)।

तिम्म :: अक [स्तीम्] भींजना, आर्द्रं होना। वकृ. तिम्ममाण (पउम ३५, २०)।

तिम्म :: सक [तिम्] १ आर्द्र करना। २ अक. गीला होना। तिम्मइ (प्राकृ ७४)। संकृ. तिम्मेउं (पिंड ३५०)

तिम्म :: देखो तिग्ग (हे २, ६२)।

तिम्मिअ :: वि [स्तीमित] आर्द्रं, गीला, (दे १, ३७)।

तिया :: स्त्री [स्त्रिका] स्त्री, महिला; 'होही तुय तियवज्झा फुडं जओ णत्थिमे जीयं' (सुख ४, ६)।

तियाल :: देखो ते-आलीस (कम्म ६, ६०)।

तिरक्कर :: सक [तिरस् + कृ] तिरस्कार करना, अवधीरणा करना। कृ. तिरक्करणीअ (नाट)।

तिरक्कार :: पुं [तिरस्कार] तिरस्कार, अपमान, अवहेलना (प्रबो ४१; सुपा १४४)।

तिरक्करिणी, तिरक्खरिणी :: स्त्री [तिरस्करिणी] यवनिका, परजा (पि ३०६; अभि १८९)।

तरिच्क्ष :: देखो तिरिच्छ (प्राकृ १९; ३८)।

तिरि, तिरिअ :: अ [तिर्यक्] तिरछा, टेढ़ा (प्राकृ ८०; १९)।

तिरिअ :: वि [तैरश्च] तिर्यंच का, 'तिरिया मणुया य दिव्वगा उवसग्गा तिविहाहियासिया (सूअ १, २, २, १५)।

तिरिअ, तिरिअंच, तिरिक्ख, तिरिच्छ :: वि [तिर्यच्] १ वक्र, कुटिल, बाँका (चंद २; उप पृ ३६६; सुर १३, १९३) २ पुं. पशु, पक्षी आदि प्राणी; देव, नारक और मनुष्य से भिन्न योनि में उत्पन्न जन्तु (धण ४४, हे २, १४३; सूअ १, ३, १; उप पृ १८९; प्रासू १७९; महा; आरा ४९; पउम २, ५९; जी २०) ३ मर्त्यंलोक, मध्य लोक (ठा ३, २) ४ न. मध्य, बीच; (अणु; भग १४, ५); 'तिरियं असंखेज्जाणं दीवसमुद्दाणं मज्झ मज्झेण जेणेव जंबुद्दीवे दीवे' (कप्प) °गई स्त्री [°गति] १ तिर्यग्- योनि (ठा ५, ३) २ वक्र गति, टेढ़ी चाल, कुटिल गमन (चंद २)। °जंभग पुं [°जृम्भक] देवों की एक जाति (कप्प)। °जोणि स्री [°योनि] पशु, पक्षी आदि का उत्पत्ति-स्थान (महा) °जोणिअ वि [°योनिक] तिर्यग्-योनि में उत्पन्‍न (सम २; भग; जीव १; ठा ३, १)। °जोणिणी स्त्री [°योनिका] तियंग्-योनि में उत्पन्न स्त्री जन्तु, तिर्यंक् स्त्री (पणम १७ — पत्र ५०३)। °दिसा °दिसि स्त्री [°दिश्] पू्र्व आदि दिशा (आवम; उवा)। °पव्वय पुं [°पर्वत] बीच में पड़ता पहाड़, मार्गाविरोधक पर्वंत (भग १४, ५)। °भित्ति स्त्री [°भित्ति] बीच की भीत (आचा)। °लोग पुं [°लोक] मर्त्यं लोक, मध्य लोक (ठा ५, ३)। °वसइ स्त्री [°वसति] तिर्यंग-योनि (पणह १, १)।

तिरिच्छ :: वि [तिरश्चीन] १ तिर्यंग गत टेढ़ा गया हुआ (राज) २ तिर्यंग्-संबन्धी (उत्त २१, १६)

तिरिच्छि :: देखो तिरिअ (हे २, १४३; षड्)।

तिरिच्छिय :: देखो तेरिच्छिय (आचा २, १५, ५)।

तिरिच्छी :: स्त्री [तिरश्ची] तिर्यंक्-स्त्री (कुमा)।

तिरिड :: पुं [दे] एक जाति का पेड़, तिमिर वृक्ष (दे ५, ११)।

तिरिडिअ :: वि [दे] १ तिमिर-युक्त। २ विचित (दे ५, २१)

तिरिड्डि :: पुं [दे] उष्ण वात, गरम पवन (दे ५, १२)।

तिरिश्चि :: (मा) देखो तिरिच्छि (हे ४, २९५)।

तिरीड :: पुंन [किरीट] मुकुट, सिर का आभूषण (पणह १, ४; सम १५३)।

तिरीड :: पुं [तिरीट] वृक्ष-विशेष (बृह २)। °पट्टय न [°पट्टक] वृक्ष-विशेष की छाल का बना हुआ कपड़ा (ठा ५, ३ — पत्र ३३८)।

तिरीडि :: वि [किरीटिन्] मुकुट-युक्त, मुकुट- विभूषित (उत्त ९, ६०)।

तिरोभाव :: पुं [तिरोभाव] लय, अन्तर्धान (विसे २६६६)।

तिरोवइ :: वि [दे] वृति से अन्तर्हित, बाड़ से व्यवहित (दे ५, १३)।

तिरोहा :: सक [तिरस् + धा] अन्तर्हित करना, लोप करना, अदृश्य करना। तिरोहंति (धर्मंवि २४)।

तिरोहिअ :: वि [तिरोहित] लुप्त, अन्तर्हित अदृश्य, आच्छादित, ढका हुआ (राज)।

तिल :: पुं [तिल] १ स्वनाम-प्रसिद्ध अन्न-विशेष, तिल (गा ६९५; णाया १, १; प्रासू ३४; १०८) २ ज्योतिष्क देव-विशेष, ग्रह-विशेष (ठा २, ३)। °कुट्टी स्त्री [°कुट्टी] तिल की बनी हुई एक भोजन वस्तु, तिलकुट (धर्म २)। °पप्प- डिया स्त्री [°पर्पटिका] तिल की बनी हुई एक खाद्य चीज, तिल-पापड़ (पणण १)। °पुप्फवण्ण पुं [°पुष्पवर्ण] ज्योतिष्क देव-विशेष, ग्रह- विशेष (ठा २, ३)। °मल्ली स्त्री [°मल्ली] एक खाद्य वस्तु (धर्म २)। °संगलिया स्त्री [°संगलिका] तिल की फली (भग १५)। °सक्कुलिया स्त्री [°शष्कुलिका] तिल की बनी हुई खाद्य वस्तु-विशेष, तिलखुजिया (राज)

तिलइअ :: वि [तिलकित] तिलक की तरह आचारित, विभूषित; 'जयजयसद्दतिलइओ मंगलज्झुणी' (धर्मा ६)।

तिलंग :: पुं [तिलङ्ग] देश-विशेष, एक भारतीय दक्षिण देश, आंघ्र प्रांत (कुमा, इक)।

तिलगकरणी :: स्त्री [तिलककरणी] १ तिलक करने की सलाई। २ गोरोचना; पीले रंग का एक सुंगन्धित द्रव्य, जो गाय के पित्ताशय से निकलता है (सूअ १, ४, २, १०)

तिलग, तिलय :: पुं [तिलक] १ वृक्ष-विशेष (सम १५२; औप; कप्प; णाया १, ९; उप ९८६ टी; गा १६) २ एक प्रतिवासु- देव राजा, भरतक्षेत्र में उत्पन्‍न पहला प्रति- वासुदेव (सम १५४) ३ द्वीप-विशेष। ४ समुद्र-विशेष (राज) ५ न. पुष्प-विशेष (कुमा) ६ टीका, ललाट में किया जाता चन्दन आदि का चिह्न (कुमा धर्मा ६) ७ एक विद्याधर-नगर (इक)

तिलबट्टी :: स्त्री [तिलपर्पटी] तिल की बनी हुई का खाद्य वस्तु, तिलपट्टी (पव ४ टी)।

तिलितिलय :: पुं [दे] जल-जन्तु विशेष (कप्प)।

तिलिम :: स्त्रीन [दे] वाद्य-विशेष (सुपा २४२; सण)। स्त्री. °मा (सुर ३, ६८)।

तिलुक्क :: न [त्रैलोक्य] स्वर्गं, मर्त्यं और पाताल लोक (दं २३)।

तिलुत्तमा :: देखो तिलोत्तमा (सम्मत्त १८८)।

तिलेल्ल :: न [तिलतैल] तिल का तेल (कुमा)।

तिलोक्क :: देखो तिलुक्क सुर १, ९२)।

तिलोत्तमा :: स्त्री [तिलोत्तमा] एक स्वर्गीय अप्सरा (उप ७६८ टी; महा)।

तिलोदग, तिलोदय :: न [तिलोदक] तिल का धोवन — जल (आचा; कप्प)।

तिल्ल :: न [तैल] तैल, तेल (सूक्त ३५; कुप्र २४०)।

तिल्ल :: न [तिल्ल] छन्द-विशेष (पिंग)।

तिल्लग :: वि [तैलक] तेल बेचनेवाला, तेली (बृह १)।

तिल्लहडी :: स्त्री [दे] गिलहरी, गु°+ खीसकोली (नंदी टि. पत्र. १३३ मुद्रित) मारवाड़ी में तालोडी, ताली।

तिल्लोदा :: स्त्री [तौलोदा] नदी-विशेष (निचू १)।

तिवँ :: (अप) देखो तहा (हे ४, ३९७)।

तिवण्णी :: स्त्री [त्रिवर्णी] एक महौषधि (ती ५)।

तिवाय :: सक [त्रि + पातय्] मन, वचन और काया से नष्ट करना, जान से मार डालना। तिवायए (सूअ १, १, १, ३)।

तिविक्कम :: पुं [त्रिविक्रम] जैनमुनि; 'गहिया नियएहि (? तिपएहि) मही, तिविक्कमो तेण विक्खाओ' (धर्मंवि ८६)।

तिविडा :: स्त्री [दे] सूची, सूई (दे ५, १२)।

तिविडी :: स्त्री [दे] पुटिका, छोटा पुड़वा (दे ५, १२)।

तिव्व :: वि [तीव्र] १ प्रबल, प्रचण्ड, उत्कट (भग १५; आचा) २ रौद्र, भयानक, डरावना (सूअ १, ५, १) ३ गाढ़, निबिड़ (पणह १, १) ४ तिक्त, कडुआ (भग ९, ३४)। ५ प्रकृष्ट, उत्तम, प्रकर्षं-युक्त (णाया १, १ — पत्र ४)

तिव्व :: वि [द. तीव्र] १ दुःसह, जो कठिनता से सहन हो सके (दे ५, ११; सूअ १, ३, ३; १, ५, १; २, ६; आचा) २ अत्यन्त अधिक, अत्यर्थं (दे ५, ११; धर्मं २; औप; पणह १, ३; पंचा १५; आव ६; उवा)

तिसंथ :: वि [त्रिसंत्थ] तीन बार सुनने से अच्छी तरह याद कर लेने की शक्तिवाला (धर्मंसं १२०७)।

तिसला :: स्त्री [त्रिशला] भगवान् महावीर की माता का नाम (सम १५१)। °सुअ पुं [°सुत] भगवान् महावीर (पउम १, ३३)।

तिसा :: स्त्री [तृषा] प्यास, पिपासा (सुर ९, २०९; पाअ)।

तिसाइय, तिसिय :: वि [तृषित] तृषातुर, प्यासा (महा; उव; पणह १, ४; सुर १, १९६)।

तिसिर :: पुं. ब. [त्रिशिरस्] १ देश-विशेष (पउम ९८, ६५) २ पुं. नृप-विशेष (पउम ९९, ४९) ३ रावण का एक पुत्र (से १२, ५६)

तिस्सगुत्त :: देखो तीसगुत्त (राज)।

तिह :: (अप) देखो तहा (कुमा)।

तिहि :: पुंस्त्री [तिथि] पंचदश चन्द्र-कला से युक्त काल, दिन, तारीख (चंद १०; पि १८०)।

तिअ :: वि [तृतीय] तीसरा (सम १५०; संक्षि २०)।

तीअ :: नि [अतीत] १ गुजरा हुआ, बीता हुआ (सुपा ४४९; भग) २ पुं. भूतकाल (ठा ३, ४)

तीइल :: पुं [तैतिल] ज्योतिष-प्रसिद्ध करण- विशेष (विसे ३३४८)।

तिमण :: न [तीमन] कढी, खाद्य-विशेष, झोर (दे २, ३५; सण)।

तीमिअ :: वि [तीमित] आर्द्र, गीला (कुप्र ३७३)।

तीय :: वि [तैत] तीन (सूअ, १, २, २, २३)।

तीर :: अक [शक्] समर्थं होना। तीरइ (हे ४, ८६)।

तीर :: सक [तीरय्] समाप्त करना, परिपूर्णं करना। तीरइ, तीरेइ (हे ४, ८६, भग)। संकृ. तीरित्ता (कप्प)।

तीर :: पुंन [तीर] किनारा, तट, पार (स्वप्‍न ११९, प्रासू ६०; ठा ४, १; कप्प)।

तीरगंम :: वि [तीरंगम] पार-गामी, पार जानेवाला (आचा)।

तीरट्ठ :: पुं [तीरस्थ, तीरार्थ] साधु, मुनि, श्रमण (दसनि २, ९)।

तीरिय :: वि [तारित] समापित, परिपूर्णं किया हुआ (पव ५)।

तीरिया :: स्त्री [दे] शर या तीर रखने का थैला, तरकश, तूणीर, बाणधि (?); 'गहियमणेण पासत्थं धणुवरं, संधिओ तीरियासरो' (स २६७)।

तीस :: न [त्रिशत्] १ संख्या-विशेष, तीस, ३०)। २ तीस-संख्यावाला (महा; भवि)

तीसआ, तीसइ :: स्त्री [त्रिशत्] ऊपर देखो (संक्षि २१)। °वरिस वि [°वर्ष] तीस वर्ष को उम्र का (पउम २, २८)।

तीसइम :: वि [त्रिंश] १ तीसवाँ (पउम ३०, ९८) २ न. लगातार चौदह दिनों का उप- वास (णाया १, १)

तीसग :: वि [त्रिंशक] तीस वर्षं की उम्रवाला (तंदु १७)।

तीसगुत्त :: पुं [तीष्यगुप्त] एक प्राचीन आचार्य- विशेष, जिसने अन्तिम प्रदेश में जीव को सत्ता का पन्थ चलाया था (ठा ७)।

तीसभद्द :: पुं [निष्यभद्र] एक जैनमुनि (कप्प)।

तीसम :: वि [त्रिंश] तीसवाँ (भवि)।

तीसा :: स्त्री. देखो तीस (हे १, ९२)।

तीसिया :: स्त्री [त्रिंशिका] तीस वर्षं के उम्र की स्त्री (वव ७)।

तु :: अ [तु] इन अर्थों का सूचक अव्यय — १ भिन्नता, भेद, विशेषण (श्रा २७; विसे ३०३५)। २ अवधारण, निश्‍चय (सूअ १, २, २) ३ समुच्चय (सूअ १, १, १) ४ कारण, हेतु (निचू १) ५ पाद-पूरक अव्यय (विसे ३०३५; पंचा ४)

तुअ :: सक [तुद्] व्यथा करना, पीड़ा करना। तुअइ (षड्)। प्रयो. संकृ. तुयावइत्ता (ठा ३, २)।

तुअर :: पुं [तुवर] धान्य-विशेष, रहर (जं १)।

तुअर :: अक [त्वर्] त्वरा होना, शीघ्र होना, जल्दी होना। तुअर (गा ६०९)।

तुंग :: वि [तुङ्ग] १ ऊँचा, उच्च (गा २५६; औप) २ पुं. छन्द-विशेष (पिंग)

तुंगार :: पुं [तुङ्गार] अग्‍नि काणा का पवन (आवम)।

तुंगिम :: पुंस्त्री [तुङ्गिमन्] ऊँचाई, उच्चत्व (सुपा १२४; वज्जा १५०; कप्पू; सण)।

तुंगिय :: पुं [तुङ्गिक] १ ग्राम-विशेष (आवम) २ पर्वत-विशेष; 'तुंगे तुंगियसिहरे गंतुं तिव्वं तवं तवइ' (कुप्र १०२) ३ पुंस्त्री गोत्र-विशेष में उत्पन्न; 'जसभद्दं तुंगियं चेव' (णंदि)

तुंगिया :: स्त्री [तुङ्गिका] नगरी-विशेष (भग)।

तुंगियायण :: न [तुङ्गिकायन] एक गोत्र का नाम (कप्प)।

तुंगी :: स्त्री [दे] १ रात्रि, रात (दे ५, १४) २ आयुध-विशेष; 'असिपरसुकुंततुंगीसंघट्ट — ' (काल)

तुंगीय :: पुं [तुङ्गीय] पर्वत-विशेष (सुर १, २००)।

तुंड :: स्त्रीन [तुण्ड] १ मुख, मुँह (गा ४०२) २ अग्र-भाग (निचू १)। स्त्री. °डी; 'किं कोवि जीवियत्थी कंडुयइ अहिस्स तुंडीए' (सुपा ३२२)

तुंडीर :: न [दे] मधुर-बिम्बी-फल (दे ५, १४)।

तुंडूअ :: पुं [दे] जीर्णं घट, पुराना घड़ा (दे ५, १५)।

तुंतुक्खुडिअ :: वि [दे] त्वरा-युक्त (दे ५, १६)।

तुंद :: न [तुन्द] उदर, पेट (दे ५, १४; उप ७२८ टी)।

तुंदिल, तुंदिल्ल :: वि [तुन्दिल] बड़ा पेटवाला, तोंदलै (कप्पू; पि ५९५; उत्त ७)।

तुंब :: न [तुम्ब] तुम्बी, अलाबू, लौकी (पउम २९, ३४; ओघ ३८; कुप्र १३९)। २ गाड़ि की नाभि; 'न हि तुंबम्मि विणट्ठे अरया साहरया हुंति' (आवम) ३ 'ज्ञाताधर्मंकथा' सूत्र का एक अव्ययन (सम)। °वण न [°वन] संनिवेश-विशेष, एक गाँव का नाम (सार्ध २५)। °वीण वि [°वीण] वीणा- विशेष को बजानेवाला (जीव ३)। °वीणिय वि [°वीणिक] वही पूर्वोक्त अर्थं (औप; पणह २, ४; णाया १, १)

तुबं :: न [तुम्ब] पहिए के बीच का गोल अव- यव (णंदि ४३)। °वीणा स्त्री [°वीणा] वाद्य-विशेष (राय ४६)।

तुंबरु :: देखो तुंबुरु (इक)।

तुंबा :: स्त्री [तुम्बा] लोकपाल देवों की एक अभ्यन्तर परिषद् (ठा ३, २)।

तुंबाग :: पुंन [तुम्बक] कद्दु, लौकी (दस ५, १, ७०)।

तुंबिणी :: स्त्री [तुम्बिनी] वल्ली-विशेष (हे ४, ४२७; राज)।

तुंबिल्ली :: स्त्री [दे] १ मधु-पटल, मधपुड़ा। २ उदूखल, ऊखल (दे ५, २३)

तुंबी :: स्त्री [तुम्बी] १ तुम्बी, अलाबू, लौकी, कद्दु (दे ५, १४) २ जैन साधुओं का एक पात्र, तपरनी (सुपा ६४१)

तुंबुरु :: पुं [तुन्बुरु] १ वृक्ष-विशेष, टिंबरू का पेड़ (दे ४, ३) २ गन्धर्व देवों की एक जाति (पणण १; सुपा २९४) ३ भगवान् सुमतिनाथ का शासनाधेष्ठायक देव (संति ७) ४ शक्रेन्द्र के गन्धर्वं-सैन्य का अधपति देव-विशेष (ठा ७)

तुक्खार :: पुं [दे] एक उत्तम जाति का अश्‍व या घोड़ा, 'अन्‍नं च तत्थ पत्ता तुक्खारतुरंगमा बहुविहीया' (सुर ११, ४९; भवि)। देखो तोक्खार।

तुच्छ :: पुस्त्री [तुच्छा] रिक्ता तिथि, चतुर्थी, नवमी तथा चतुर्दशी तिथि (सुज्ज १०, १५)।

तुच्छ :: वि [दे] अवशुष्क, सूखा, नीरस (दे ५, १४)।

तुच्छ :: वि [तुच्छ] १ हलका, जघन्य, निकृष्ट, हीन (णाया १, ५; प्रासू ९९) २ अल्प, थोड़ा (भग ९, ३३) ३ शून्य, रिक्त, खाली (आचा) ४ असार, निःसार (भग १८, ३) ५ अपूर्णं (ठा ४, ४)

तुच्छइअ, तुच्छय :: वि [दे] रञ्जित, अनुराग-प्राप्त (दे ५, १५)।

तुच्छिम :: पुंस्त्री [तुच्छत्व] तुच्छता (वज्जा १५६)।

तुज्ज :: न [सूर्य] वाद्य, बाजा (सुज्ज १०)।

तुट्ट :: अक [त्रुट्, तुड्] १ टूटना, छिन्न होना, खण्डित होना। २ खूटना, घटना, बीतना। तुट्टइ (महा; सण; हे ४, ११६); 'अणवरयं देंतस्सवि तुट्टंति न सायरे रयणाइं' (वज्जा १५६)। वकृ. तुट्टंत (सण)

तुट्ट :: वि [त्रुटित] टूटा हुआ, छिन्‍न, खण्डित (स ७१८; सूक्त १७; दे १, ९२)।

तुट्टण :: न [त्रोटन] विच्छेद, पृथक्क्तरण (सूअ १, १, १; वज्जा ११६)।

तुट्टिअ :: वि [त्रुटित, तुडित] छिन्न, खण्डित (कुमा)।

तुट्टिर :: वि [त्रुटितृ] टूटनेवाला (कुमा; सण)।

तुट्ठ :: वि [तुष्ट] तोषःप्राप्त, तृप्त, संतुष्ट, खुश (सुर ३, ४१; उवा)।

तुट्ठि :: स्त्री [तुष्टि] १ खुशी, आनन्द, संतोष (स २००; सुर ३, २५; सुपा २४६; निर १, १) २ कृपा, मेहरबानी (कुप्र १)

तुपड :: अक [तुड्] टूटना, अलग होना। तुडइ (हे ४, ११६)।

तुडि :: स्त्री [त्रुटि] १ न्यूनता, कमी। २ दोष, दूषण (हे ४, ३९०) ३ संशय, संदेह (सुर ३, १९१)

तुडिअ :: न. [तुटिक] अन्तःपुर रनवास; 'तुटिकमन्तःपुरमपदिश्यते' (जीवाभि° चू°)।

तुडिअ :: न [तुटिक] अन्तःपुर, जनानखाना (सुज्ज १८ — पत्र २६५)।

तुडिअ :: वि [त्रुटित] टूटा हुआ, विच्छिन्न (अच्चु ३३; दे १, १५६; सुपा ८५)।

तुडिअ :: न [दे. त्रुटित] १ वाद्य, वादित्र, वाजा (औप; राय; जं ३; पणह २, ५) २ बाहु-रक्षक, हाथ का आभरण-विशेष (औप; ठा ८; पउम ८२, १०४; राय) ३ संख्या-विशेष; 'तुडिअंग' को चौरासी लाख से गुणने पर जो संख्या लब्ध हो वह (इक; ठा २, ४) ४ साँदा, फटे हुए वस्त्र आदि में लगायी जाती पट्टी, पेवन (निचू २)

तुडिअंग :: न [दे. त्रुटिताङ्ग] १ संख्या-विशेष, 'पूर्व' को चौरासी लाख से गुणनने पर जो संख्या लब्ध हो वह (इक; ठा २, ४) २ पुं. वाद्य देनेवाला कल्प-वृक्ष (ठा १०; सम १७, पउम १०२, १२३)

तुडिआ :: स्त्री [तुडिता] लोकपाल देवों के अग्र-महिषियों की मध्यम परिषद् (ठा ३, २)।

तुडिआ :: स्त्री [दे. तुटिका] बाहु-रक्षिका, हाथ का आभरण-विशेष (पणह १, ४; णाया १, १, टी — पत्र ४३)।

तुणय :: पुं [दे] वाद्य-विशेष (दे ५, १६)।

तुण्णग :: देखो तुण्णाग (राज)।

तुण्णग :: न [तुन्नन] फटे हुए वस्त्र का सन्धान (उप पृ ४१३)।

तुण्णाग, तुण्णाय :: पुं [तुन्नवाय] वस्त्र को साँधनेवाला, रफू करनेवाला, शिल्पी (णंदि; उप पृ २१०; महा)।

तुण्णिय :: वि [तुन्नित] रफू किया हुआ, साँधा हुआ (बृह १)।

तुण्हि :: अ [तूष्णीम्] मौन, चुप्पी, चुपकी, चुपचाप, चुपुकेसे, मौन होकर (भवि)।

तुण्हि :: पुं [दे] सूकर, सूअऱ (दे ५, १४)।

तुण्हिं :: देखो तुण्हि = तूष्णीम् (प्राक ३२)।

तुण्हिअ, तुण्हिक्क :: वि [तूष्णीक] मौन रहा हुआ, मौन रहनेवाला, चुप रहनेवाला (प्राप्र; गा ३५४; सुर ४, १४८)।

तुण्हिक्क :: वि [दे] मृदु-निश्चल (दे ५, १५)।

तुण्हीअ :: देखो तुण्हिअ (स्वप्‍न ४२)।

तुत्त :: देखो तोत्त (सुपा २३७)।

तुद :: देखो तुअ। तुदए (षड्)। वकृ. तुदं (विसे १४७०)।

तुद :: पुं [तोद] प्रतोद, अरदार ड़ंडा, चाबुक (सूअ १, ५, २, ३)।

तुन्नण :: न [तुन्नन] रफू करना (गच्छ ३, ७)।

तुन्नाय :: देखो तुण्णाय (णंदि १६४)।

तुन्नार :: पुं [तुन्नकार] रफू करनेवाला शिल्पी (धर्मंवि ७३)।

तुप्प :: पुं [दे] १ कौतुक। २ विवाह, शादी। ३ सर्षंष, सरसों, धान्य-विशेष। ४ कुतुप, घी आदि भरने का चर्मं-पात्र (दे ५, २२) ५ वि. भ्रक्षित, चुपड़ा हुआ, घी आदि से लिप्त (दे ५, २२; कप्प; गा २२; २८९; हे १, २००) ३ स्‍निग्ध, स्‍नेह-युक्त (दे ५, २२; औघ ३०७ भा) ७ न. घृत, घी (से १५, ३८; सुपा ६३४; कुमा)

तुप्प :: वि [दे] वेष्टित (अणु २६)।

तुप्पइअ, तुप्पलिअ, तुप्पविअ :: वि [दे] घी से लिप्त (गा ५२० अ)।

तुमंतुम :: पुं [दे] क्रोध-कृत मनो-विकार विशेष (ठा ८ — पत्र ४४१)।

तुमंतुम :: पुं [दे] १ तूकारवाला वचन, तिरष्कार वचन, तू, तू (सूअ १, ९, २७) २ वाक्-कलह; 'अप्पतुमंतुमे' (उत्त २९, ३९) ३ वि. तूकारे से बात कहनेवाला (संबोध १७)

तुमुल :: पुं [तुमुल] १ लोम-हर्षंण युद्ध, भया- नक संग्राम (गउड) २ न. शोरगुल (पाअ)

तुम्ह :: स [युष्मत्] तुम, आप (हे १, २४६)।

तुम्हकेर :: वि [त्वदीय] तुम्हारा (कुमा)।

तुम्हकेर :: वि [युष्मदीय] आपका, तुम्हारा (हे १, २४६; २, १४७)।

तुम्हार :: (अप) ऊपर देखो (भवि)।

तुम्हारिस :: वि [युष्मादृश] आपके जैसा, तुम्हारे जैसा (हे १, १४२; गउड; महा)।

तुम्हेच्चय :: वि [यौष्माक] आपका, तुम्हारा (हे २, १४९; कुमा, षड्)।

तुयट्ट :: अत [त्वग् + वृत्] पार्श्वं को घुमाना, करवट फिराना। तुयट्टइ, (कप्प; भग)। तुयट्टेज्ज, तुयट्टेंजा (भग; औप)। हेकृ. तुय- ट्टित्तए (आचा)। कृ. तुयट्टियव्व (णाया १, १; भग, औप)।

तुयट्टण :: न [त्वग्वर्तन] पार्श्व-परिवर्तन, करवट फिराना (औघ १५२ भा; औप)।

तुयट्टावण :: न [त्वग्वर्तन] करवट बदलवाना। (आचा)।

तुयावइत्ता :: देखो तुअ।

तुर :: अक [त्वर्] त्वरा होना, जल्दी होना, शीघ्र होना। वकृ. तुरंत, तुरेंत, तुरमाण, तुरेमाण (हे ४, १७२; प्रासू ५८; षड्)।

तुर°, तुरा :: स्त्री [त्वरा] शीघ्रता, जल्दी (दे ५, १६)। °वंत वि [°वत्] त्वरा-युक्त,

तुरंग :: पुं [तुरङ्ग] अश्व, घोड़ा (कुमा; प्रासू ११७)। २ रामचन्द्र का एक सुभट (पउम ५९, ३८)

तुरंगम :: पुं [तुरङ्गम] अश्व, घोड़ा (पाअ; पिंग)।

तुरंगिआ :: स्त्री [तुरङ्गिका] घोड़ी (पाअ)।

तुरंत :: देखो तुर।

तुरक्क :: पुं [दे. तुरष्क] १ देश-विशेष, तुर्कि- स्‍तान। २ अनार्यं जाति-विशेष, तुर्कं (ती १४)

तुरग :: देखो तुरय (भग ११, ११; राय)। °मुह पुं [°मुख] अनार्य देश-विशेष (सूअ १, ५ टी)। °मेढ़ग पुं [°मेढ्रक] अनार्यं देश-विशेष (सूअ १, ५, १ टी)।

तुरमणी :: देखो तुरुमणी (सट्ठि ५७ टी)।

तुरमाण :: देखो तुर।

तुरय :: पुं [तुरग] १ अश्व, घोड़ा (पणह १, ४) २ छन्द-विशेष, (पिंग)। °देहापिंजरण न [°देहापञ्जरण] अश्व को सिंगारना, सँवा- रना, श्रृंगार करना (पाअ)। देखो तुरग।

तुरयमुह :: देखो तुरग-मुह (पव २७४)। त्वरावाला, जल्दबाज (से ४, ३०)।

तुरिअ :: वि [त्वरित] १ त्वरा-युक्त, उतावला (पाअ; हे ४, १७२; औप; प्राप्र) २ क्रिवि. शीघ्र, जल्दी (सुपा ४६४; भवि) °गइ वि [°गति] १ शीघ्र गतिवाला। २ पुं. अमितगति नामक इ्द्र का एक लोकपाल (ठा ४, १)

तुरिअ :: वि [तुर्य] चौथा, चतुर्थ (सुर ४, २५०; कम्म ४, ६६; सुपा ४६४)। °निद्दा स्त्री [°निद्रा] मरणदशा (उप पृ १४३)।

तुरिअ :: न [तूर्य] वाद्य, वावित्र, बाजा; 'तुरि- याणं संनिनाएण, दिव्वेणं गगणं फुसे' (उत्त २२, १२)।

तुरिमिणी :: देखो तुरुमणी (राज)।

तुरी :: स्त्री [दे] १ पीन, पृष्ट। २ शय्या का उपकरण (दे ५, २२)

तुरु :: न [दे] वाद्य-विशेष (विक्र ८७)।

तुरुक्क :: न [तुरुष्क] सुगन्धि द्रव्य-विशेष, जो घूप करने में काम आता है, लोबान, सिल्हक (सम १३७; णाया १, १; पउम २, ११; औप)।

तुरुक्क :: पुं [तुरुष्क] १ देश-विशेष, तुर्किंस्तान। २ वि. तुर्किस्तान का (स १३)

तुरक्की :: स्त्री [तुरुष्की] लिपि-विशेष (विसे ४६४ टी)।

तुरुमणी :: स्त्री [दे] नगरी-विशेष (भत्त ६२)।

तुरेंत, तुरेमाण :: देखो तुर।

तुल :: सक [तोलय्] १ तौलना। २ उठाना। ३ ठीक-ठीक निश्चय करना। तुलइ, तुलेइ (हे ४, २५; उव; वज्जा १५८)। वकृ. तुलंत (पिंग)। संकृ. तुलेऊण (बृह १)। कृ. तुलेअव्व (से ६, २९)

तुल° :: देखो तुला (सुपा ३९)।

तुलंगा :: देखो तुलग्गा (अच्चु ८०)।

तुलग्ग :: न [दे] काकतीलीय न्याय (दे ५, १५; से ४, २७)।

तुलग्गा :: स्त्री [दे] यदृच्छा, स्वैरिता, स्वेच्छा, अपनी मंशा (विक्र ३५)।

तुलण :: न [तुलन] तौलना, तोलन (कप्पू; वज्जा १५७)।

तुलणा :: स्त्री [तुलना] तौलना, तोलन (उप पृ २७४; स ६९२)।

तुलणा :: स्त्री [तुलना] तौल, वजन (धर्मवि ६)।

तुलय :: वि [तोलक] तौलनेवाला (सुपा १९७)।

तुलसिआ :: स्त्री [तुलसिका] नीचे देखो (कुमा)।

तुलसी :: स्त्री [दे. तुलसी] लता-विशेष, तुलसी (दे ५, १४; पणण १; ठा ८; पाअ)।

तुला :: स्त्री [तुला] १ राशि-विशेष (सुपा ३९) २ तराजू, तौलने का साधन (सुपा ३६०, गा १९१) ३ उपमा, सादृश्य (सूअ २, २)। °सम वि [°सम] राग-द्वेषसे रहित, मध्यस्थ (बृह ६)

तुला :: स्त्री [तुला] १०५ या ५०० पल का एक नाप (अणु १५४)।

तुलिअ :: वि [तुलित] १ उठाया हुआ, ऊँचा किया हुआ (से ६, २०) २ तौला हुआ (पाअ)। गुना हुआ (राज)

तुलेअव्व :: देखो तुल।

तुल्ल :: वि [तुल्य] समान, सरीखा (भग; प्रासू १२; १४९)।

तुवट्ट :: देखो तुयट्ट। तुवट्टे (वव ४)।

तुवट्ट :: पुं [त्वग्वर्त] शयन, लेटना (वव ४)।

तुवर :: अक [त्वर्] त्वरा होना, शीघ्र होना, तेज होना। तुवरइ (हे ४, १७०)। वकृ. तुवरंत (हे ४, १७०)। प्रयो. वकृ. तुवराअंत (नाट — मालती ५०)।

तुवर :: पुंन [तुवर] १ रस-विशेष, कषाय रस (दे ५, १६) २ वि. कषाय रसवाला, कसैला (से ८, ५५)

तुवरा :: देखो तुरा (नाट — महावीर २७)।

तुवरी :: स्त्री [तुवरी] अन्न-विशेष, अरहर (श्रा १८; गा ३५८)।

तुस :: पुं [तुष] १ कोद्रव — कोदव या कोदो आदि तुच्छ धान्य (ठा ८) २ धान्य का छिलका, भूसी (दे २, ३६)

तुसणीअ :: वि [तूष्णीक] मौनी (अज्झ १७९)।

तुसली :: स्त्री [दे] धान्य-विशेष, 'तं तत्थवि तो तुसलिं वावइ सो किणिवि वरबीयं' (सुपा ५४५); 'देवगिहे जंतीए तुज्झ तुसली अणुण्णाया' (सुपा १३ टि)।

तुसार :: न [तुषार] हिम, बर्फं, पाला (पाअ)। °कर पुं [°कर] चन्द्र, चन्द्रमा (सुपा ३३)।

तुसारअर :: देखो तुसार-कर (त्रि १०३)।

तुसिण :: देखो तुसणीअ (संबोध १७)।

तुसिणिय, तुसिणीय :: वि [तूष्णीक] मौनी, चुप, वचन-रहित (णाया १, १ — पत्र २८; ठा ३, ३)।

तुसिणी :: अ [तूष्णीम्] मौन, चुप्पी; 'तइआ तुसिणीए भंजए पढमो' (पिंड १२२; ३१३)।

तुसिय :: पुं [तुषित] लोकान्तिक देवों की एक जाति (णाया १, ८; सम ८५)।

तुसेअजंभ :: न [दे] दारु, लकड़ी, काष्ठ (दे ५, १६)।

तुसोदग, तुसोदय :: न [तुषोदक] व्रीहि आदि का धौत-जल — धोवन (राज; कप्प)।

तुस्स :: देखो तूस = तुष्। तुस्सइ (विसे ९३२)।

तुह° :: स [त्वत्°] तुम। °तणय वि [°संब- न्धिन्] तुम्हारा, तुमसे संबन्ध रखनेवाला (सुपा ५५३)।

तुहग :: पुं [तुहग] कन्द की एक जाति (उत्त ३६, ९९)।

तुहार :: (अप) वि [त्वदीय] तुम्हारा (हे ४, ४३४)।

तुहिण :: न [तुहिन] हिम, तुषार, बर्फ (पाअ)। °इरि पुं [°गिरि] हिमाचल पर्वत (गउड)। °कर पुं [°कर] चन्द्रमा (कप्पू)। °गिरि देखो °इरि (सुपा ६५८)। °लिय पुं [°लय] हिमाचल पर्वत (सुपा ८८)।

तुहिणायल :: पुं [तुहिनाचल] हिमाचल पर्वंत (धर्मवि २४)।

तूअ :: पुं [दे] ईख का काम करनेवाला (दे ५, १६)।

तूण :: पुंन [तूण] इषुधि, भाथा, तरकस, तूणीर (हे १, १२५; षड्; कुमा)।

तूणइल्ल :: पुं [तूणावत्] तूणा नामक वाद्य बजानेवाला (पणह २, ४; औप; कप्प)।

तूणय :: पुं [तूणक] वाद्य-विशेष (आचा २, ११, १)।

तूणा, तूणि° :: स्त्री [तूणा] १ वाद्य-विशेष (राय; अणु) २ इषुधि, भाथा (जं ३; पि १२७)

तूयरी :: स्त्री [तूवरी] रहर, अरहर (पिंड ६२३)।

तूर :: देखो तुरव। तूरइ (हे ४, १७१; षड्)। वकृ. तूरंत, तूरेंत, तूरमाण, तूरेमाण (हे ४, १७१; सुपा २९१; षड)।

तूर :: पुंन [तूर्य] वाद्य, बाजा, तुरही (हे २, ६३; षड्, प्राप्र)। °वइ पुं [°पति] नटों का नटों का मुखिया (बृह १)।

तूरंत, तूरमाण :: देखो तूर = तुरव।

तूरविअ :: वि [त्वरित] जिसको शीघ्रता कराई गई हो वह (से १२, ८३)।

तूरिय :: पुं [तौर्यिक] वाद्य बजानेवाला, बज- नियाँ (स ७०५)।

तूरी :: स्त्री [दे] एक प्रकार की मिट्टी (जी ४)।

तूरेंत, तूरेमाण :: देखो तूर = तुरव।

तूल :: न [तूल] रुई, रुआ, बीज-रहित कपास (औप; पाअ; भवि)।

तूलिअ :: न. नीचे देखो; 'नणु विणासिज्जइ महग्घियं तूलियं गंड्डयमाइयं' (महा)।

तूलिआ :: स्त्री [तूलिका] १ रूई से भरा मोटा बिछौना, गद्दा, तोशख (दे ५, २२) २ तस- वीर — चित्र बनाने की कलम (णाया १, ८)

तूलीणी :: स्त्री [दे] वृक्ष-विशेष, शाल्मली का पेड़ (दे ५, १७)।

तूलिल्ल :: वि [तूलिकावत्] तसवीर बनाने की कलमवाला, कूर्चिका-युक्त (गउड)।

तूली :: स्त्री [तूली] देखो तूलिआ (सुर २, ८२; पउम ३५, २४; सुपा २६२)।

तूवर :: देखो तुवर (विपा १, १ — पत्र १६)।

तूस :: अक [तुष्] खुश होना। तूसइ, तूसए (हे ४, २३६; संक्षि ३६; षड्)। कृ. तूसियव्व (पणह २, ५)।

तूह :: देखो तित्थ (हे १, १०४; २, ७२; कुमा; दे ५, १६)।

तूहण :: पुं [दे] पुरुष, आदमी (दे ५, १७)।

ते° :: देखो ति = त्रि। °आलीस स्त्रीन [°चत्वारिशत्] १ संख्या-विशेष, चालीस और तीन की संख्या। २ तेआलीस की संख्यावाला (सम ६८) °आलीसइम वि [°चत्वारिंश] तेआलीसवाँ, ४३वाँ (पउम ४३, ४९)। °आसी स्त्री [°अशीति] १ संख्या-विशेष, अस्सी और तीन। २ तिरासी की संख्यावाला (पि ४४६)। °आसीइम वि [°अशीतितम] तिरासीवाँ (सम ८९; पउम ८३, १४)। °इंद्रिय पुं [°इन्द्रिय] स्पर्शं, जीभ और नाक इन तीन इन्द्रियवाला प्राणी (ठा २, ४; जी १७)। °ओय पुं [°ओजस्] विषम राशि-विशेष (ठा ४, ३)। °णउइ स्त्री [°नवति] तिरानबे, नब्बे और तीन, ९३ (सम ९७)। °णउय वि [°नवत] तिरानबेबाँ, ९३ वाँ (कप्प; पउम ९३, ४०)। °णवइ, देखो °णउइ (सुपा ६५४)। °तीस, °त्तीस स्त्रीन [त्रयस्त्रिं- शत्] तेतीस, तीस और तीन (भग; सम ५८)। स्त्री. °सा (हे १, १६५; पि ४४७)। °त्तीसइम वि [त्रयस्त्रिंश] तेतीसवाँ (पउम ३३, १४८)। वट्ठि स्त्री [°षष्टि] तिरसठ, साठ और तीन, ६३ (पि २६५)। °वण्ण, °वन्‍न स्त्रीन [°पञ्चाशत्] त्रपेन, पचास और तीन, ५३ (हे २, १७४; षड्; सम ७२)। °वत्तरि स्त्री [°सप्तति] तिहत्तर (पि २६५)। °वीस स्त्रीन [त्रयोविंशति] तेइस, बीस और तीन, २३ (सम ४२; हे १, १६५)। °वीस, °वीसइम वि [त्रयोविंश] तेईसवाँ (पउम २०, ८२; २३, २६; ठा ६)। °संझ न [°सन्ध्य] प्रातः, मध्याह्न और सायंकाल का समय (पउम ६६, ११)। °सट्ठि स्त्री [°षष्टि] देखो °वट्ठि (सम ७७)। °सीइ स्त्री [°अशीति] तिरासी, अस्सी और तीन (सम ८९; कप्प)। °सीइम वि [°अशीत] तिरासीवाँ (कप्प)

तेअ :: सक [तेजय्] तेज करना, पैनाना, धार तेज करना, तीक्ष्ण करना। तेइय (षड्)।

तेअ :: देखो तइअ = तृतीय (रंभा)।

तेअ :: पुं [तेजस्] १ कान्ति, दीप्ति, प्रकाश, प्रभा (उवा; भग; कुमा; ठा ८) २ ताप, अभिताप (कुमा; सूअ १, ५, १) ३ प्रताप। ४ माहात्म्य, प्रभाव। ५ बल, पराक्रम (कुमा)। °मंत वि [°विन्] तेजवाला, प्रभा-युक्त (पणह २, ४)। °वीरिय पुं [°वीर्य] भरत चक्रवर्ती के प्रपौत्र का पौत्र, जिसको आदर्श भवन में केवलज्ञान हुआ था (ठा ८)

तेअ :: न [स्तेय] चोरी (भग २, ७)।

तेअ :: देखो तेअय (भग)।

तेअ :: पुं [?] टेक, स्तम्भ।

तेअंसि :: वि [तेजस्विन्] तेजवाला, तेज-युक्त (औप; रयण ४; भग; महा; सम १५२; पउम १०२, १४१)।

तेअग :: देखो तेअय (जीव)।

तेअण :: न [तेजन] १ तेज करना, पैनाना। २ उत्तेंजन (हे ४, १०४) ३ वि. उत्तेजित करनेवाला (कुमा)

तेअय :: न [तैजस] शरीर-सहचारी सूक्ष्म शरीर-विशेष (ठा २, १; ५, १; भग)।

तेअलि :: पुं [तेतलिन्] १ मनुष्य जाति-विशेष (जं १; इक) २ एक मन्त्री के पिता का नाम (णाया १, १४)। °पुत्त पुं [°पुत्र] राजा कनकरथ का एक मन्त्री (णाया १, १४)। °पुर न [°पुर] नगर-विशेष (णाया १, १४)। °सुय पुं [°सुत] देखो °पुत्त (राज)। देखो तेतलि।

तेअव :: अक [प्र + दीप्] १ दीपना, चमकना। २ जलना। तेअवइ (हे ४, १५२; षड्)

तेअवाल :: देखो तेजपाल (हम्मीर २७)।

तेअविय :: वि [प्रदीप्त] जला हुआ (कुमा)। २ चमका हुआ, उद्दीप्त (पाअ)

तेअविय :: वि [तेजिस] तेज किया हुआ (दे ८, १३)।

तेअस्सि :: पुं [तेजस्विन्] इक्ष्वाकु वंश के एक राजा का नाम (पउम ५, ५)।

तेआ :: स्त्री [तेजा] पक्ष की तेरहवीं रात (सुज्ज १०, १४)।

तेआ :: स्त्री [तेजस्] त्रयोदशी तिथि (जो ४; जं ७)।

तेआ :: स्त्री [त्रेता] युग-विशेष, दूसरा युग; 'तेआजुगे य दासरही रामो सीयालक्खण- संजुओवि' (ती २६)।

तेआ° :: देखो तेअय (सम १४२; पि ६४)।

तेआलि :: पुं [दे] वृक्ष-विशेष (पणण १, १ — पत्र ३४)।

तेइच्छ :: न [चैकित्स्य] चिकित्सा-कर्मं, प्रतीकार (दस ३)।

तेइच्छा :: स्त्री [चिकित्सा] प्रतीकार, इलाज, दवा (आचा; णाया १, १३)।

तेइच्छिय :: देखो तेगिच्छिय (विपा १, १)।

तेइच्छी :: स्त्री [चिकित्सा, चैकित्सी] प्रतीकार, इलाज (कप्प)।

तेइज्जग :: वि [तार्तीयीक] १ तीसरा। २ ज्वर-विशेष, जाड़ा देकर तीसरे-तीसरे दिन पर आनेवाला ज्वर, तिजारा (उत्तनि ३)

तेइल्ल :: देखो तेअंसि (सुर ७, २१७; सुपा ३३)।

तेउ :: पुं [तेजस्] १ आग, अग्‍नि (भग; दं १३) २ लेश्या-विशेष, तेजो-लेश्या (भग; कम्म ४, ५०) ३ अग्‍निशिख नामक इ्द्र का एक लोकपाल (ठा ४; १) ४ ताप, अभिताप (सूअ १, १, १) ५ प्रकाश; उद्योद (सूअ २, १)। °आय देखो °काय (भग)। °कंत पुं [°कान्त] लोकपाल देव- विशेष (ठा ४, १)। °काइय पुं [°कायिक] अग्‍नि का जीव (ठा ३, १)। °काय पुं [°काय] अग्‍नि का जीव (पि ३५५)। °क्काइय देखो °काइय (पणण १; जीव १)। °प्पभ पुं [°प्रभ] अग्‍निशिख नामक इन्द्र का एक लोकपाल (ठा ४, १)। °प्फास पुं [°स्पर्श] उष्ण-स्पर्शं (आचा)। °लेस वि [°लेश्य] तेजो-लेश्यावाला (भग)। °लेसा स्त्री [°लेश्या] तप-विशेष के प्रभाव से होनेवाली शक्ति-विशेष से उत्पन्‍न होती तेज की ज्वाला (ठा ३, १; सम ११)। °लेस्स देखो °लेस (पणण १७)। °लेस्सा देखो °लेसा (ठा ३, ३)। °सिंह पुं [°शिख] एक लोकपाल (ठा ४, १)। °सोय न [°शौच] भस्म आदि से किया जाता शौच (ठा ५, २)

तेउ :: देखो तेअय (पव २३१)।

तेंडुअ :: न [दे] वृक्ष-विशेष, टींबरू का पेड़ (दे ५, १७)।

तेंदु, तेंदुअ, तेंदुग :: पुं [तिन्दुक] १ वृक्ष-विशेष, तेंदु का पेड़ (पणण १; ठा ८; पउम ४२, ७) २ गेंद, कन्दुक, (पउम १५, १३)

तेंदुसय :: पुं [दे] कन्दुक, गेंद (णाया १, ८)।

तेबरु :: पुं [दे] क्षुद्र कीट-विशेष, त्रीन्द्रिय जन्तु की एक जाति (जीव १)।

तेगिच्छ :: देखो तेइच्छ (सुर १२, २११)।

तेगिच्छग :: वि [चिकित्सक] १ चिकित्सा करनेवाला। २ पुं. वैद्य, हकीम (उप ५९४)

तेगिच्छा :: देखो तेइच्छा (सुर १२, २११)।

तेगिच्छायण :: देखो तिंगिच्छायण (राज)।

तेगिच्छि :: देखो तिगिंछि (राज)।

तेगिच्छिय :: वि [चैकित्सिक] १ चिंकित्सा करनेवाला। २ पुं. वैद्य, हकीम। ३ न. चिकित्सा-कर्मं, प्रतीकार-करण। °साला स्त्री [°शाला] दवाखाना, चिकित्सालय (णाया १, १३ — पत्र १७९)

तेचत्तरीस :: देखो ते-आलीस (प्राकृ ३१)।

तेज :: देखो तेज=तेजत्। तेजई, (प्राकृ ७५)।

तेज :: पुं [तेज] देश-विशेष (सम्मत्त २१६)।

तेजंसि :: देखो तेअंसि (पि ७४)।

तेजपाल :: पुं [तेजपाल] गुजरात में राजा वीरववल का एक यशस्वी मंत्री (ती २)।

तेजलपुर :: न [तेजलपुर] गिरनार पर्वत के पास मंत्री तेजपाल का बसाया हुआ एक नगर (ती २)।

तेजस्सि :: देखो तेअंसि (वव १)।

तेज्ज :: (अप) देखो चय = त्यज्। तेज्जइ (पिंग)। संकृ. तेज्जिअ (पिंग)।

तेज्जिअ :: (अप) वि [त्यक्त] छोड़ा हुआ (पिंग)।

तेड :: सक [दे] बुलाना। तेडंति (सम्मत्त १६१)।

तेड्ड :: पुं [दे] १ शलभ, अन्न-नाशक कीट, टिड्डी। २ पिशाच, राक्षस (दे ५, २३)

तेअ :: अ [तेन] १ लक्षण-सूचक अव्यय, 'भम- ररुअं तेण कमलवणं' (हे २, १८३; कुमा) २ उस तरफ (भग)

तेण, तेणग, तेणय :: पुं [स्तेन] चोर, तस्कर (ओघ ११; कस; गच्छ ३; औघ ४०२)। °प्पओग पुं [°प्रयोग] १ चोर को चोरी करने के लिए प्रेरणा करना। २ चोरी के साधनों का दान या विक्रय (धर्मं २)

तेणिअ, तेणिक्क :: न [स्तैन्य] चोरी, अदस्त वस्तु का ग्रहण (श्रा १४; ओघ ५६९; पणह १, ३)।

तेणिस :: वि [तैनिश] तिनिशवृक्ष-संबन्धी, बेंत का (भग ७, ९)।

तेणो :: स्त्री [स्तेना] चोर स्त्री सम्मत्त १६१)।

तेण्ण :: न [स्तैन्य] चोरी, पर-द्रव्य का अपहरण (निचू १)।

तेण्हाइअ :: वि [तृष्णित] तृष्णा-युक्त, प्यासा (से १३, ३९)।

तेतलि :: पुं [तेतलिन्] १ धरणेन्द्र के गन्धर्वं- सेना का नायक (इक) २ देखो तेअलि (णाया १, १४ — पत्र १९०)

तेतिल :: देखो तीइल (जं ७)।

तेत्तिअ :: वि [तावत्] उतना (प्राप्र; गउड; गा ७१; कुमा)।

तेत्तिक :: (शौ) देखो तेत्तिअ (प्राकृ ९५)।

तेत्तिर :: देखो तित्तिर (जीव १)।

तेत्तिल :: वि [तावत्] उतना (हे २, १५७; कुमा)।

तेत्तिल :: न [तैतिल] ज्योतिष-प्रसिद्ध करण- विशेष (सूअनि ११)।

तेत्तुल, तेत्रुल्ल :: (अप) ऊपर देखो (हे ४, ४०७; कुमा; हे ४, ४३५ टि)।

तेत्थु :: (अप) देखो तत्थ = तत्र (हे ४, ४०४; कुमा)।

तेद्दह :: देखो तेत्तिल (हे २, १५७; प्राप्र; षड्; कुमा)।

तेन्न :: देखो तेण्ण (कस)।

तेम :: (अप) देखो तह = तथा (पिंग)।

तेमासिअ :: वि [त्रैमासिक] १ तीन महीने में होनेवाला (भग) २ तीन मास-संबन्धी (सुर ६, २११; १४, २२८)

तेम्व :: देखो तेम (हे ४, ४१८)।

तेर :: वि [त्रयोदश] तेरहवाँ (कम्म ६, १६)।

तेर :: (अप) वि [त्वदीय] तेरा, तुम्हारा (प्राकृ १२०)।

तेर, तेरस :: त्रि. ब. [त्रयोदशन्] तेरह, दस और तीन (श्रा ४४, दं २१; कम्म २, २९; ३३)।

तेरच्छ :: देखो तिरिच्छ = तिर्यच् (प्राकृ १९)।

तेरस :: देखो तेरसम (कम्म ६, १६; पव ४६)।

तेरसम :: वि [त्रयोदश] तेरहवाँ (सम २५३ णाया १, १ — पत्र ७२)।

तेरसया :: स्त्री [दे] जैन मुनिओं की एक शाखा (कप्प)।

तेरसी :: स्त्री [त्रयोदशी] १ तेरहवाँ। २ तिथि- विशेष, तेरस (सम २९; सुर ३, १०५)

तेरसुत्तरसय :: वि [त्रयोदशोत्तरशततम] एक सौ तेरहवाँ, ११३ वाँ (पउम ११३, ७२)।

तेरह :: देखो तेरस (हे १, १६५; प्राप्र)।

तेरासि :: पुं [त्रैराशिक] नंपुसक (पिंड ५७३)।

तेरासिअ :: वि [त्रैराशिक] १ मत-विशेष का अनुयायी, त्रैराशिक मत — जीव, अजीव और नीजोव इन तीन राशियों को माननेवाला (औप; ठा ७)। २ न. मत विशेष (सम ४०; विसे २४५१; ठा ७)

तेरिच्छ :: देखो तिरिच्छ = तिर्यंच् (पव ३८)।

तेरिच्छ :: देखो तिरिच्छ = तिरश्चीन; 'दिव्वं व मणुस्सं वा तेरिच्छं वा सरागहिअएणं' (आप २१)।

तेरिच्छ :: न [तिर्यक्‍त्व] तिर्यंचपन, पशु- पक्षिपन (उप १०३१ टी)।

तेरिच्छिअ :: वि [तैरश्चिक] तिर्यंक्-संबन्धी (औघ २९९; भग)।

तेल :: न [तैल] १ गोत्र-विशेष, जो माण्डव्य गोत्र की एक शाखा है (ठा ७) २ तिल का विकार, तेल (संक्षि १७)

तेलंग :: पुं. ब. [तैलङ्ग] १ देश-विशेष। २ पुंस्त्री. देश-विशेष का निवासी मनुष्य, तैलंगी (पिंग)

तेलाडी :: स्त्री [तैलाटी] कीट-विशेष, गंधोली (दे ७, ८४)।

तेलुक्क, तेलोअ, तेलोक्क :: न [त्रैलोक्क] तीन जगत — स्वर्गं, मर्त्यं और पाताल लोक (प्रासू ९७; प्राप्र; णाया १, ४; पउम ८, ७६; हे १, १४८; २, ९७; षड्, संक्षि १७)। °दंसि वि [°दर्शिन्] सर्वज्ञ, सर्वंदर्शी (औघ ५६६)। °णाह पुं [°नाथ] तीनों जगत् का स्वामी, परमेश्वर (षड्)। °मंढण न [°मण्डन] १ तीनों जगत् का भूषण। २ पुं. रावण का पट्ट-हस्ती (पउम ८०, ६०)

तेल्ल :: न [तैल] तेल, तिल का विकार, स्‍निग्ध द्रव्य-विशेष (हे २, ९८; अणु पव ४)। °केला स्त्री [°केला] मिट्टी का भाजन-विशेष (राज)। °पल्ल न [°पल्य] तैल रखने का मिट्टी का भाजन-विशेष (दसा १०)। °पाइया स्त्री [°पायिका] क्षुद्र जन्तु-विशेष (आवम)।

तेल्लग :: न [तैलक] सुरा-विशेष (जीव ३)।

तेल्लिअ :: पुं [तैलिक] तेल बेचनेवाला (वव ९)।

तेल्लोअ, तेल्लोक्क :: देखो तेलुक्क (पि १९६; प्राप्र)।

तेवँ, तेवँइ :: (अप) देखो तह = तथा (हे ४, ३९७; कुमा)।

तेवट्ठ :: वि [त्रैषष्ट] तिरसठ की संख्यावाला, जिसमें तिरसठ अधिक हो ऐसी संख्या; 'तिन्नि तेवट्ठाइं पावादुयसयाइं' (पि २६५४)।

तेवड :: (अप) वि [तावत्] उतना (हे ४, ४०७, कुमा)।

तेवण्णसा :: स्त्री [त्रिपञ्चाशत्] त्रेपन, ५३ (प्राकृ ३१)।

तेवीसइ :: स्त्री [त्रतोविंशति] तेईस (प्राकृ ३१)।

तेवुत्तरि :: देखो ते-वत्तरि (कम्म ५, ४)।

तेह :: (अप) वि [तादृश्] उसके जैसा, वैसा (हे ४, ४०२; षड्)।

तेहिं :: (अप) अ. वास्ते, लिए (हे ४, ४२५; कुमा)।

तेहिय :: वि [ञ्यादिक] तीन दीन का (जीवस ११९)।

तेहुत्तरि :: देखो ते-वत्तरि (अणु १७९)।

तो :: देखो तओ (आचा; कुमा)।

तो :: अ [तदा] तब, उस समय (कुमा)।

तोअय :: पुं [दे] चातक पक्षी (दे ५, १८)।

तोंड :: देखो तुंड (हे १, ११६; प्राप्र)।

तोंतडि :: स्त्री [दे] करम्ब, दही-भात की बनी हुई एक खाद्य वस्तु (दे ५, ४)।

तोक्कय :: वि [दे] बिना ही कारण तत्पर होनेवाला (दे ५, १८)।

तोक्खार :: देखो तुक्खार; 'खुरखुरखयखोणीय- लअसंखतोक्खारलक्खजुओ' (सुर १२, ९१)।

तोटअ :: न [त्रोटक] छन्द-विशेष (पिंग)।

तोड :: सक [तुड्] १ तोड़ना, भेदन करना। २ अक. टूटना। तोडइ (हे ४, ११६)। वकृ. तोडंत (भवि)। संकृ. तोड़िउं (भवि)ष तोडित्ता (ती ७)

तोड :: पुं [त्रोड] त्रुटि (उप पृ १८)।

तोडण :: वि [दे] असहन, असहिष्णु (दे ५, १८)।

तोडण :: न [तोदन] व्यथा, पीड़ा-करण (राज)।

तोडर :: न [दे] टोडर, माल्य-विशेष (सिरी १०२३)।

तोडहिआ :: स्त्री [दे] वाद्य-विशेष (आचा २, ११)।

तोडिअ :: वि [त्रोटित] तोड़ा हुआ (महा; सण)।

तोड्ड :: पुं [दे] क्षुद्र कोट-विशेष, चतुरिन्द्रिय जीव का एक जाति (राज)।

तोण :: पुंन [तूण] शरधि, भाथा, तरकस, तूणीर (पाअ; औप; हे १, १२५; विपा १, ३)।

तोणीर :: पुंन [तूणीर] शरधि, भाथा (पाअ, हे १, १२४; भवि)।

तोत्त :: न [तोत्र] प्रतोद, बैल को मारने या हाँकने का बाँस का आयुध-विशेष; पैना, सोंटा, चाबुक (पाअ; दे ३, १९; सुपा २३७; सुर १४, ५१)।

तोत्तडि :: [दे] देखो तोंतडि (पाअ)।

तोदग :: वि [तोदक] व्यथा उपजानेवाला, पीड़ा-कारक (उत्त २०)।

तोमर :: पुंन [दे. तोमर] मधपुडा, मधुमक्खी का घर या छत्ता; 'अह उड्डियाउ तोमर मुहाउ महुमक्खियाउ सव्वत्तो' (धर्मंवि १२४)।

तोमर :: पुं [तोमर] १ बाण-विशेष, एक प्रकार का बाण (पणह १, १; सुर २, २८; औप) २ न. छन्द-विशेष (पिंग)

तोमरिअ :: पुं [दे] १ शस्त्र का प्रमार्जन करनेवाला (दे ५, १८) २ शस्त्र-मार्जंन (षड्)

तोमरिगुंडी :: स्त्री [दे] वल्ली-विशेष (पाअ)।

तोमरी :: स्त्री [दे] वल्ली, लता (दे ५, १७)।

तोम्हार :: (अप) देखो तुम्हार (पि ४३४)।

तोय :: न [तोय] पानी, जल (पणह १, ३; वज्जा १४; दे २, ४७)। °धरा, धारा, स्त्री [°धारा] एक दिक्कुमारी देवी (इक; ठा ८)। °पट्ठ, °पिट्ठ न [°पृष्ठ] पानी का उपरि- भाग (पणह १, ३; औप)।

तोय :: पुं [तोद] ब्यथा, पीड़ा (ठा ४, ४)।

तोरण :: न [तोरण] १ द्वार का अवयव-विशेष, बहिर्द्वार (गा २६२) २ बन्दनवार, फूल या पत्तों की माला (झलार) जो उत्सव में लटकाई जाती है (औप)। °उर न [°पुर] नगर-विशेष (महा)

तोरविअ :: वि [दे] उत्तेजित (पाअ; कुप्र १६२)।

तोरामदा :: स्त्री [दे] नेत्र का रोग-विशेष (महानि ३)।

तोल :: देखो तुल = तोलय्। तोलइ, तोलेइ (पिंग, महा)। वकृ. तोलंत (वज्जा १५८)। कवकृ. तोलिज्जमाण (सुर १५, ९४)। कृ. तोलियव्व (स १६२)।

तोल :: पुंन [दे] मगव-देश प्रसिद्ध पल, परि- माण-विशेष (तंदु)।

तोलण :: पुं [दे] पुरुष, आदमी (दे ५, १७)।

तोलण :: न [तोलन] तौल करना, तौलना, नाप करना (राज)।

तोलिय :: वि [तोलित] तौला हुआ (महा)।

तोल्ल :: न [तौल्य, तौल] तौल बजन (कुप्र १४९)।

तोवट्ट :: पुं [दे] १ कान का आभूषण-विशेष। कमल की कर्णिका (दे ५, २३)

तोस :: सक [तोषय़्] खुशी करना, सन्तुष्ट करना। तोसइ (उव)। कर्मं. तोसिज्जइ (गा ५०८)।

तोस :: पुं [तोष] खुशी, आनन्द, संतोष (पाअ; सुपा २७५)। °यर वि [°कर] संतोष- कारक (काल)।

तोस :: न [दे] धन, दौलत (दे ५, १७)।

तोसलि :: पुं [तोसलिन] १ ग्राम-विशेष। २ देश-विशेष। ३ एक जैन आचार्य (राज)

°पुत्त :: [°पुत्र] एक एक प्रसिद्ध जैन आचार्य (आवम)।

तेसलिय :: पुं [तोसलिक] तोसलि-ग्राम का अधीश क्षत्रिय (आवम)।

तोसविअ, तोसिअ :: वि [तोषित] खुश किया हुआष संतोषित (हे ३, १५०; पउम ७७, ८८)।

तोहार :: (अप) तुहार (पिंग; पि ४३४)।

°त्त :: वि [°त्र] त्राण-कर्त्ता, राक्षक; 'संकलत्तं संतुट्ठो सकलत्तोसो नरो होइ' (सुपा ३६९)।

°त्तण :: देखो तण (से १, ६१)।

°त्ति :: अ [इति] उपालम्भ-सूचक अव्यय (प्राकृ ७८)।

°त्ति :: देंखो इअ = इति (कप्प; स्वप्‍न १०; सण)।

°त्थ :: देखो एत्थ (गा १३२)।

°त्थ :: वि [°स्थ] स्थित, रहा हुआ (आचा)।

°त्थ :: देखो अत्थ (वाअ १५)।

°त्थअ :: देखो थय = स्तृत (से १, १)।

°त्थउड :: देखो थउड (गउड)।

°त्थंब :: देखो थंब (चारु २०)।

°त्थंभ :: देखो थंभ (कुमा)।

°त्थंभण :: देखो थँभण (वा १०)।

°त्थरु :: देखो थरु (पि ३२७)।

°त्थल :: देखो थल (काप्र ८७)।

°त्थली :: देखो थली (पि ३८७)।

°त्थव :: देखो थव = स्तु। वकृ. °त्थवंत (नाट)।

°त्थवअ :: देखो थवय (से १, ४०; नाट)।

°त्थाण :: देखो थणा (नाट)।

°त्थाल :: देखो थाल (कुमा)।

°त्थिअ :: देखो थिअ (गा ४२१)।

°त्थिर :: देखो थिर (कुमा)।

°त्थोअ :: देखो थोअ (नाट — वेणी २४)।

°थ :: पुं [थ] दन्त-स्थानीय व्यञ्जन-विशेष (प्राप; प्रामा)।

 :: अ. १-२ बाक्यालंकार और पाद-पूर्त्ति में प्रयुक्त किया जाता अव्यय; 'किं थ तयं पम्हुट्ठं जं थ तया भो जयंत पवरम्मि' (णाया १, १ — गा १३१; १३२; सण)।

°थ :: देखो एथ्थ (गा १३१; १३२; सण)।

थइअ :: वि [स्थगित] आच्छादित, ढका हुआ (से ५, ४३; गा ५७०)।

थइअ, थइआ° :: स्त्री [स्थगिका] पानदानी, पान रखने का पात्र, पानदान (महा)। °इत्त पुं [°वत्] ताम्बूल-पात्र-वाहक नौकर (कुप्र ७१)। °धर पुं [°धर] ताम्बूल-पात्र का वाहक नौकर (सुपा १०७)। °वाहक पुं [°वाहक] पानदानी का वाहक नौकर (सुपा १०७)। देखो थगिय°।

थइआ :: स्त्री [दे] थेली, थैली, कोथली या बसती — कमर में बाँधने की रुपयों की थैली 'संबलथइआसणाहो', 'दंसिया संवलत्थई' (? इ)। या' (कुप्र १२; ८०)।

थइउं :: देखो थय = स्थगय्।

थउड :: न [स्थपुट] १ विषम और उन्‍नत प्रदेश (दे २, ७८) २ वि. नीचा-ऊँचा (गउड)

थउडिअ :: वि [स्थपुटित] १ विषम और उन्‍नत प्रदेंशवाला। २ नीचा-ऊँचा प्रदेशवाला (गउड)

थउड्ड :: न [दे] भल्लातक, वृक्ष-विशेष, भिलावा (दे ५, २६)।

थंग :: सक [उद् + नामय्] ऊँचा करना, उन्‍नत करना। थंगइ (प्राकृ ३५)।

थंडिल :: न [स्थण्डिल] १ शुद्ध भूमि, जन्तु- रहित प्रदेश (कस; निचू ४) २ क्रोध, गुस्सा (सूअ १, ९)

थंडिल्ल :: पुं [स्थण्डिल] क्रोध, गुस्सा (सूअ १, ९, १३)।

थंडिल्ल :: न [स्थण्डिल] शुद्ध भूमि (सुपा ५५८; (आचा)।

थंडिल्ल :: न [दे] मण्डल, वृत्त प्रदेश (दे ५, २५)।

थंत :: देखो था।

थंब :: वि [दे] विषम, असम (दे ५, २४)।

थंब :: पुं [स्तम्ब] तृण आदि का गुच्छ (दे ८, ४६; ओघ ७७१; कुप्र २२३)।

थंभ :: अक [स्तम्भ्] १ रुकना, स्तब्ध होना, स्थिर होना, निश्‍चल होना। २ सक. क्रिया- निरोध करना, अटकाना, रोकना, निश्‍चल करना। थंभइ (भवि)। कर्मं. थंभिज्जइ (हे २, ९)। संकृ. थंभिउं (कुप्र ३८५)

थंभ :: पुं [स्तम्भ] घेरा, 'थंभत्तित्थत्थंमत्थं एइ रोसप्पसरकलुसिओ नाह संगामसीहो' (हम्मीर २२)। °तित्थ न [°तीर्थ] एक जैन तीर्थं (हम्मीर २२)।

थंभ :: पुं [स्तम्भ] १ स्तम्भ, थम्भा, खम्भा (हे २, ९; कुमा; प्रासू ३३) २ अभिमान, गर्व, अहंकार (सूअ १, १३, उत्त ११)। °विज्जा स्त्री [°विद्या] स्तब्ध — बेहोश या निश्‍चेष्ट करने की विद्या (सुपा ४९३)

थंभण :: न [स्तम्भन] १ स्तब्ध-करण, थभाँना (विसे ३००७, सुपा ५९९) २ स्तब्ध करने का मन्त्र (सुपा ५९९) ३ गुजरात का एक नगर, जो आजकल 'खंभात नाम से प्रसिद्ध है (ती ५१)। °पुर न [°पुर] नगर-विशेष, खंभात (सिग्ध १)

°थंभणया :: स्त्री [स्तम्भना] स्तब्ध-करण (ठा ४, ४)।

थंभणिया :: स्त्री [स्तम्भनिका] विद्या-विशेष (धर्मंवि १२४)।

थंभणी :: स्त्री [स्तम्भनी] स्तम्भन करनेवाली विद्या-विशेष (णाया १, १६)।

थंभय :: देखो थंभ = स्तम्भ (कुमा)।

थंभिय :: वि [स्तम्भित] १ स्तब्ध किया हुआ, थमाया हुआ (कुप्र १४१; कुमा; कप्प; औप) २ जो स्तब्ध हुआ हो, अवष्टब्ध (स ४९४)

थक्क :: अक [स्था] रहना, बैठना, स्थिर होना। थक्कइ (हे ४, १६; पिंग)। भवि. थक्किस्सइ (पि ३०९)।

थक्क :: अक [फक्क्] नीचे जाना। थक्कइ (हे ४, ८७)।

थक्क :: अक [श्रम्] थकना, श्रान्त होना। थक्कंति (पिंग)।

थक्क :: वि [स्थित] रहा हुआ (कुमा; वज्जा ३८; सुपा २३७; आरा ७७; सट्ठि ६)।

थक्क :: पुं [दे] १ अवसर, प्रस्ताव, समय (दे ५, २४; वव ६; महा; विसे २०६३) २ वि. थका हुआ, श्रान्त; 'थक्कं सव्वशरीरं हियए, सूलं सुदुसहं एइ' (सुर ७, १८५, ४ १६५)

थक्किअ :: वि [श्रान्त] थका हुआ (पिंग)।

थक्कव :: सक [स्थापय्] स्थापन करना, रखना। थक्कवइ (प्राकृ १२०)।

थग :: देखो थय = स्थगय्। भवि. थगइस्सं (पि २२१)।

थगण :: न [स्थगन] पिधान, ढकना, संवरण, आवरण, आच्छादन, पर्दा (दे २, ८३; ठा ४, ४)।

थगथग :: अक [थगथगाय्] घड़कना, काँपना। वकृ. थगथगिंत (महा)।

थगिय :: वि [स्थगित] पिहित, आच्छादित, आवृत (दस ५, १; आवम)।

थगिय° :: देखो थइअ°। °ग्गाहि पुं [°ग्राहिन्] ताम्बूल-वाहक नौकर (सुपा ३३९)।

थग्गया :: स्त्री [दे] चंचु, चोंच (दे ५, २६)।

थग्ध :: सक [स्ताघ्] जल की गहराई को नापना। कर्मं. थग्घिज्जए (पव ८१)।

थग्घ :: पुं [दे] थाह, तला, पानी को नीचे की भूमि, गहराई का अन्त, सीमा (दे ५, २४)।

थग्घा :: स्त्री [दे] ऊपर देखो (पाअ)।

थट्ट :: पुंन [दे] १ ठठ, भीड़, झुण्ड, समूह, यूथ, जत्था; 'दुद्धरतुरंगथट्टा' (सुपा २८८), 'विहडइ लहु दुट्ठानिट्ठदोघट्टथट्ठं' (लहुअ ४) २ ठाठ, ठाट, तड़क-भड़क, सजधज, आडम्बर (भवि)

थट्टि :: स्त्री [दे] पशु, जानवर (दे ५, २४)।

थड :: पुंन [दे] ठठ, यूथ, समूह (भवि)।

थड्‍ढ :: वि [स्तब्ध] १ निश्‍चल। २ अभिमानी गर्विष्ठ (सुपा ४३७; ५८२)

थडि्ढअ :: वि [स्तम्भित] १ स्तब्ध किया हुआ। २ स्तब्ध, निश्‍चल। ३ न. गुरु-वन्दन का एक दोष, अकड़ कर गुरु को किया जाता प्रणाम (गुभा २३)

थण :: अक [स्तन्] १ गरजना। २ आकन्द करना, चिल्लाना। ३ आक्रोश करना। ४ जोर से नीसास लेना। वकृ. थणंत (घा २६०)

थण :: पुं [स्तन] थन, कुच, पयोधर, चूची (आचा; कुमा; काप्र १९१)। °जीवि वि [°जीविन्] स्तन-पान पर निभनेवाला बालक (श्रा १४)। °वई स्त्री [°वती] बड़े स्तनवाली (गउड)। °विसारि वि [°विसारिन्]। स्तन पर फैलनेवाला (गउड)। °सुत्त न [°सूत्र] उरः-सूत्र (दे)। °हर पुं [°भर] स्तन का भार या बोझ (हे १, १८९)।

थणंधय :: पुं [स्तनन्धय] स्तन-पान करनेवाला बालक, छोटा बच्चा; 'निययं थणं धयंतं थणंधयं हंदि पिच्छंति' (सुर १०, ३७; अच्चु ९३)।

थणण :: न [स्तनन] १ गर्जन, गरजना (सूअ १, ५, २) २ आक्रन्द, चिल्लाहट (सूअ १, ५, १) ३ आक्रोश, अभिशाप (राज) ४ आवाजवाला नीसास (सूअ १, २, ३)

थणय :: पुं [स्तनक] दूसरी नरक-भूमि का एक नरक-भूमि (देवेन्द्र ६)।

थणलोलुअ :: पुं [स्तनलोलुप] दूसरी नरक- भूमि का एक नरक-स्थान (देवेन्द्र ७)।

थणिअ :: पुं [स्तनित] एक नरक-स्थान (देवेन्द्र ६, २६)।

थणिय :: न [स्तनित] १ मेघ का गर्जंन (वज्जा १२; दे ५, २७) २ आक्रन्द, चिल्लाहट (सम १५३) ३ पुं. भवनपति देवों की एक जाति (औप; पणह १, ४)। °कुमार पुं [°कुमार] भवनपति देवों की एक जाति (ठा १, १)

थणिल्ल :: सक [चोरय्] चुराना, चोरी करना। थणिल्लइ (प्राकृ ७२)।

थणिल्ल :: वि [स्तनवत्] स्तनवाला (कप्पू)।

थणुल्लअ :: पुं [स्तनक] छोटा स्तन (गउड)।

थण्णु :: देखो थाणु (गा ४२२)।

थत्तिअ :: न [दे] विश्राम (दे ५, २६)।

थद्ध :: देखो थड्‍ढ (सम ५१; गा ३०४, वज्जा १०)।

थन्न :: न [स्तन्य] स्तन का दूध। °जीवि वि [°जीविन्] छोटा बच्चा (सुपा ६१६)।

थप्प :: सक [स्थापय्] रखना, थप्पी करना। थप्पइ (सिरि ८९७)।

थप्पण :: न [स्थापन] न्यास, न्यसन (कुप्र ११७)।

थप्पिअ :: वि [स्थापित] रक्खा हुआ, न्यस्त (पिंग)।

थब्भ :: अक [स्तभ्] अहंकार करना। थब्भइ (सूअ १, १३, १०)।

थब्भर :: पुं [दे] अयोव्या नागरी के समीप का एक द्रह-दइ या झील (ती ११)।

थमिअ :: वि [दे] विस्मृत (दे ५, २५)।

थय :: सक [स्थगय्] आच्छादन करना, आवृत करना, ढकना। थएइ, थएसु (पि ३०९; गा ६०५)। भवि. थइस्सं (गा ३१४)। हेकृ. थइउं (गा ३६४)।

थय :: वि [स्तृत] व्याप्त, भरपूर (से १, १)।

थय :: पुं [स्तव] स्तुति, स्तवन, गुण-कीर्तंन (अजि ३९; सं ४४)।

थयण :: न [स्तवन] ऊपर देखो; 'थुइथयण- वंदणनमंसणाणि एगट्ठिआणि एयाइं' (आव २)।

थर :: पुं [दे] दही की तर, दही के ऊपर की मलाई (दे ५, २४)।

थरत्थर, थरथर, थरहर :: अक [दे] थरथरना, काँपना। थरत्थरइ, थरथरेइ, थरहरइ (सट्ठि ६९, पि २०७; सुर ७, ६; गा १६५)। वकृ. थरथरंत, थरथ- राअंत, थराथराअमाण, थरथरेंत (ओघ ४७०; पि ५५८; नाट — मालती ५५; पउम ३१, ४४)।

थरहरिअ :: वि [दे] कम्पित (दे ५, २७; भवि; सुर १, ७; सुपा २१; जय १०)।

थरु :: पुं [दे. त्सरु] खड्‍ग-मुष्टि, तलवार की मूठ (दे ५, २४)।

थरुगिण :: पुं [थरुकिन] १ देश-विशेष। २ पुंस्त्री. उस देश की निवासी। स्त्री. °गिणिआ (इक)

थल :: न [स्थल] १ भूमि, जगह, सूखी जमीन (कुमा; उप ९८६ टी) २ ग्रास लेते समय खुले हुए मुंह की फांक, खुले हुए मुंह की खाली जगह (वव ७)। °इल्ल वि [°वत्] स्थल-युक्त (गउड)। °कुक्कडियंड न [°कुक्कु- ट्यण्ड] कवल-प्रक्षेप के लिए खुला हुआ मुख (वव ७)। °चार पुं [°चार] जमीन में चलना (आचा)। °नलिणी स्त्री [°नलिनी] जमीन में होनेवाला कमल का गाछ (कुमा)। °य वि [°ज] जमीन में उत्पन्न होनेवाला (पणण १; पउम १२, ३७)। °यर वि [चर] १ जमीन पर चलनेवाला। २ जमीन पर चलनेवाला पंचेन्द्रिय तिर्यच प्राणी (जीव ३; जी २०; औप)। स्त्री. °री (जीव ३)

थलय :: पुं [दे] मंडप, तृणादि-निर्भित गृह (दे ५, २५)।

थलहिगा, थलहिया :: स्त्री [दे] मृतक-स्मारक, शव को गाड़कर उस पर किया जाता एक प्रकार का चबूतरा (स ७५६; ७५७)।

थली :: स्त्री [स्थली] जल-शून्य भू-भाग (कुमा; पाअ)। °घोडय पुं [°घोटक] पशु-विशेष- (वव ७)।

थली :: स्त्री [स्थली] उँची जमीन (उत्त ३०, १७; सुख ३०, १७)।

थल्लिया :: स्त्री [दे. स्थलिका] थलिया, छोटा थाल, भोजन करने का बरतन (पउम २०, १६६)।

थव :: सक [स्तु] स्तुति करना। वकृ. थवंत (नाट)।

थव :: देखो थय = स्तव (हे २, ४६; सुपा ४४९)।

थव :: पुं [दे] पशु, जानवर (दे ५, २४)।

थवइ :: पुं [स्थपति] वर्धकि, वढई (दे २, २२)।

थवइय :: वि [स्तबकित] स्तबकवाला, गुच्छ- युक्त (णाया १, १; औप)।

थवइल्ल :: वि [दे] जाँघ फैलाकर बैठा हुआ (दे ५, २६)।

थवक्क :: पुं [दे] थोक, समूह, जत्था; 'लब्भइ कुलवहुसुरए थवक्कओ सयलसोक्खाणं' (वज्जा ६६)।

थवण :: देखो थयण (आव २)।

थवणिया :: स्त्री [स्थापनिका] न्यास, जमा रखी हुई वस्तु; 'कन्नगोभूीमालियथवणियअव- हारकूडसक्खिज्जं' (सुपा २७५)।

थवय :: पुं [स्तबक] फूल आदि का गुच्छ (दे २, १०३; पाअ)।

थविआ :: स्त्री [दे] प्रसेविका, वीणा के अन्त में लगाया जाता छोटा काष्ठ-विशेष (दे २, २५)।

थविय :: वि [स्थापित] न्यस्त, निहिति (भवि)।

थविय :: वि [स्तुत] जिसकी स्तुति की गई हो वह, श्लाघित (सुपा ३४३)।

थविर :: वि [स्थविर] वृद्ध, बूढा (धर्मंवि १३४)।

थवी :: [दे] देखो थविआ (दे २, २५)।

थस, थसल :: वि [दे] विस्तीर्ण (दे ५, २५)।

थह :: पुं [दे] निलय, आश्रय, स्थान (दे ५, २५)।

था :: देखो ठा। थाइ (भवि)। भवि. थाहिइ (पि ५२४)। वकृ. थंत (पउम १४, १३४; भवि)। संकृ. थाऊण (हे ४, १६)।

थाइ :: वि [स्थायिन्] रहनेवाला। °णी स्त्री [°नी] वर्षं-वर्षं पर प्रसव करनेवाली घोड़ी (राज)।

थागत्त :: न [दे] जहाज के भीतर घुसा हुआ पानी (सिरि ४, २५)।

थाण :: देखो ठाण (हे ४, १६; विसे १८५६; उप पृ ३३२)।

थाणय :: न [स्थानक] आलवाल, कियारी (दे ५, २७)।

थाणय :: न [दे] १ चौकी, पहरा; 'भयाणया अडवि त्ति निविट्ठाइं थाणयाइं', 'तओ बहुवो- लियाए रयणीए थाणयनिविट्ठा तुरियतुरिय- मागया सवरपुरिसा' (स ५३७; ५४६) २ पुं. चौकीदार, चौकी करनेवाला आदमी, पहरेदार; 'पहायसमए य विसंसरिएसुं थाण- एसुं' (स ५३७)

थाणिज्ज :: वि [दे] गौरवित, सम्मानित (दे ४, ५)।

थाणीय :: वि [स्थानीय] स्थानापन्न (स ६६७)।

थाणु :: पुं [स्थाणु] १ महादेव, शिव (हे २, ७; कुमा; पाअ) २ ठूठा वृक्ष (गा २३२; पाअ); 'दवदड्‍ढथाणुसरिसं' (कुप्र १०२) ३ खीला। ४ स्तम्भ (राज)

थाणेसर :: न [स्थानेश्वर] समुद्र के किनारे पर का एक शहर (उप ७२८ टी; स १४८)।

थाम :: वि [दे] विस्तीर्णं (दे ५, २५)।

थाम :: न [स्थामन्] १ बल, वीर्यं, पराक्रम (हे ४, २६७; ठा ३, १) २ वि. बल- युक्त (निचु ११)। °व वि [°वत्] बलवान् (उत्त २)

थाम :: पुंन [स्थामन्] १ बल। २ प्राण; 'घा (? था) मो वा परिहायइ गुणणु (? गुण- णणु) प्पेहासु अ असत्तो' (पिंड ६६४)

थाम :: न [दे. स्थान] स्थान, जगह (संक्षि ४७; स ४६; ७४३); 'सेवालियभूमितले फिल्लुसमाणा य थामथामम्मि' (सुर २, १०५)।

थार :: पुं [दे] धन, मेघ (दे ५, २७)।

थारुणय :: वि [थारुकिन] देश-विशेष में उत्पन्। स्त्री. °णिया (औप)। देखो थरुगिण।

थाल :: पुंन [स्थाल] बड़ी थलिया, भोजन करने का पात्र (दे ६, १२; अंत ५; उप पृ २५७)।

थालइ :: वि [स्थालकिन्] १ थालवाला। २ पुं. वानप्रस्थ का एक भेद (औप)

थाला :: स्त्री [दे] धारा (षड्)।

थाली :: स्त्री [स्थाली] पाक-पात्र, हाँड़ी, बटलोही (ठा ३, १; सुपा ४८७)। °पाग वि [°पाक] हाँड़ी में पकाया हुआ (ठा ३, १)

थाव :: सक [स्थापय्] १ स्थिर करना। २ रखना। थावए (उत्त २, ३२)

थावच्चा :: स्त्री [स्थापत्या] द्वारका-निवासी एक गृहस्थ स्त्री णाया १, ५)।°पुत्त पुं [°पुत्र] स्थापत्या का पुत्र, एक जैन मुनि (णाया १, ५; अंत)।

थावण :: न [स्थापन] न्यास, आधान (स २१३)।

थावय :: पुं [स्थापक] समर्थं हेतु, स्वपक्ष- साधक हेतु (ठा ४, ३ — पत्र २५४)।

थावर :: वि [स्थावर] १ स्थिर रहनेवाला। २ पुं. एकेन्द्रिय प्राणी, केवल स्पर्शेंन्द्रियवाला — पृथिवी, पानी और वनस्पति आदि का जीव (ठा ३, २; जी २) ३ एक विशेष-नाम, एक नौकर का नाम (उप २९७ टी)। °काय पुं [°काय] एकेन्द्रिय जीव (ठा २, १)। °णाम, °नाम न [°नामन्] कर्मं-विशेष, स्थावरत्व-प्राप्ति का कारण-भूत कर्म (पंच ३; सम ६७)

थासग :: [दे] कुदाल (आव° टिप्पण — पत्र ५९, १)।

थासग, थासय :: पुं [स्थासक] १ दर्पंण, आदर्शं, शीशा (विपा १, २ — पत्र २४) २ दर्पंण के आकार का पात्र-विशेष (औप; अनु, णाया १, १ टी) ३ अश्व का आभरण- विशेष (राज)

थाह :: पुं [दे] १ स्थान, जगह। २ वि. अस्ताघ, गंभीर जल-वाला। ३ विस्तीर्णं। ४ दीर्घं, लम्बा (दे ५, ३०)

थाह :: पुं [स्थाघ] थाह, तला, गहराई का अन्त, सीमा (पाअ; विसे १३३२; णाया १, ९; १४; से ८, ४०)।

थाहिअ :: पुं [दे] आलाप, स्वर विशेष (सुपा १९)।

थिअ :: वि [स्थित] रहा हुआ (स २७०; विसे १०३५; भवि)।

थिइ :: देखो ठिअ (से २, १८; गउड)।

थिंदिणी :: स्त्री [दे] छन्द-विशेष, 'थिंदिणिच्छंद- रासेण' (सम्मत्त १४१)।

थिंप :: अक [नृ़प्] तृप्त होना, संतुष्ट होना। थिंपइ (प्राप्र)। भवि. थिंपिहिंति (प्राप्र ८, २२ टी)। संकृ. थिंपिअ (प्राप्र ८, २२ टी)।

थिग्गल :: न [दे] १ भित्ति-द्वार, भीत में किया हुआ दरवाजा (दस ५, १, १५) २ फटे- फुटे वस्त्र में किया जाता संधान, वस्त्र आदि के खंडित भाग में लगाई जाती जोड़ (पणण १७; विसे १४३९ टी)

थिग्गल :: पुंन [दे] १ छिद्र। २ गिरने के बाद दुरुस्त (ठीक) किया हुआ गृह-भाग (आचा २, १, ६, २)

थिज्ज :: देखो थेज्ज = स्थैर्यं (संबोध ४९)।

थिण्ण :: वि [स्त्यान] कठिन, जमा हुआ (हे १, ७४; २, ९९; से २, ३०)। देखो थीण।

थिण्ण :: वि [दे] १ स्‍नेह-रहित दयावाला। २ अभिमानी, गर्वं-युक्त (दे ४, ३०)

थिन्न :: वि [दे] गर्वित, अभिमानी (पाअ)।

थिप्प :: देखो थिंप। थिप्पइ (हे ४, १३८)।

थिप्प :: अक [वि + गल्] गल जाना। थिप्पइ (हे ४, १७५)।

थिबुक :: पुं [स्तिबुक] कन्द-विशेष (सुख ३६, ९९)।

थिम :: सक [स्तिम्] आर्द्रं करना, गीला करना। हेकृ. थिमिउं (राज)।

थिमिअ :: वि [दे. स्तिमित] स्थिर, निश्चल (दे ५, २७; से २, ४३; ८, ९१; णाया १, १; विपा १, १; पणह १, ४; २, ५; औप; सुज्ज १; सूअ १, ३, ४)। २ मन्थर, धीमा (पाअ)।

थिमिअ :: पुं [स्तिमित] राजा अन्धकवृष्णि के एक पुत्र का नाम (अंत ३)।

थिम्म :: सक [स्तिम्] १आर्द्रं करना। अक. आर्द्रं होना। थिम्मइ (प्राकृ १२०)

थिर :: वि [स्थिर] १ निश्चल, निष्कम्प (विपा १, १; सम ११९; णाया १, ८) २ निष्पन्न, संपन्न (दस ७, ३५)। °णाम, °नाम न [°नामन्] कर्मं-विशेष, जिसके उदय से दन्त, हड्डी आदि अवयवों की स्थिरता होती है (कम्म १, ४९; सम ६७)। °वलिया स्त्री [°वलिका] जन्तु-विशेष, सर्पं की एक जाति (जीव २)

थिरणाम :: वि [दे] चल-चित्त, चंचल-मनस्क (दे ५, २७)।

थिरण्णेस :: वि [दे] अस्थिर, चंचल (षड्)।

थिरसीस :: वि [दे] १ निर्भीक, निडर। २ निर्भंर। ३ जिसने सिर पर कवच बाँधा हो वह (दे ५, ३१)

थिरिम :: पुं स्त्री [स्थैर्य] स्थिरता (सण)।

थिरीकण :: न [स्थिरीकरण] स्थिर करना, दृढ़ करना, जमाना (श्रा ६; रयण ६९)।

थिल्ल :: वि [दे] गुप्त (चउपन्न° विबुधानंद)।

थिल्लि :: स्त्री [दे] यान-विशेष — १ दो घोड़े की बग्घी। २ दो खच्चर आदि से वाह्य यान (सूअ २, २; ६२; णाया १, १ टो — पत्र ४३; औप)

थिविथिव :: अक [थिवथिवाय्] 'थिव-थिव' आवाज करना। वकृ. थिविथिवंत (विपा १, ७)।

थिवुग, थिवुय :: पुं [स्तिबुक] जल-विन्दु (विसे ७०४; ७०५; सम १४९)। °संकम पुं [°संक्रम] कर्मं-प्रकृतियों का आपस में संक्रमण-विशेष (पंचा ५)।

थीहु :: पुंस्त्री [दे] कन्द-विशेष (उत्त ३६, ९९)।

थिहु :: पुं [स्तिभु] वनस्पति-विशेष (राज)।

थी :: स्त्री [स्त्री] स्त्री, महिला, नारी, औरत (हे २, १३०, कुमा, प्रासू ६५)।

थीण :: देखो थिण्ण (हे १, ७४; दे १, ९१; कुमा; पाअ)। °गिद्धि स्त्री [°गृद्धि] निकृष्ट निद्रा-विशेष (ठा ९; विसे २३४; उत्त ३३, ५)। °द्धि स्त्री [°र्द्धि] अधम निद्रा-विशेष (सम १५)। °द्धिय वि [°र्द्धिक] स्त्यानर्द्धि निद्रा वाला (विसे २३५)।

थु :: अ. तिरस्कार-सूचक अव्यय (प्रति ८१)।

थुअ :: वि [स्तुन] जिसकी स्तुति की गई हो वह, प्रशंसित (दे ८, २७; धण ५०; अजि १८)।

थुअ :: देखो थुण। थुअइ (प्राकृ ६७)।

थुइ :: स्त्री [स्तुति] स्तव, गुण-कीर्तंन (कुमा; चैत्य १; सुर १०, १०३)।

थुइवाय :: पुं [स्तुतिवाद] प्रशंसा-वचन (चेइय ७४४)।

थुक्क :: अक [थूत् + कृ] १ थूकना। २ सक. तिरस्कार करना, थुतकारना, अनादर के साथ निकलना। थुक्केइ (वज्जआ ४६)। संकृ. थुक्किऊण (सुपा ३४९)

थुक्क :: न [थूत्कृत] थूक, कफ, खखार (दे ४, ४१)।

थुक्कार :: पुं [थूत्कार] तिरस्कार (राय)।

थुक्कार :: सक [थूत्कारय्] तिरस्कार करना। कवकृ थुक्कारिज्जमाण (पि ५६३)।

थुक्किअ :: वि [दे] उन्नत, ऊँचा (दे ५, २८)।

थुक्किअ :: वि [थूत्कृत] थूका हुआ (दे ५, २८; सुपा ३४९)।

थुड :: न [दे. स्थुड] वृक्ष का स्कन्ध; 'चीरीउ करेऊण बद्धा ताण थुडेसुं' (सुपा ५८४, ३६६)।

थुडंकिअय :: न [दे] रोष-युक्त वचन (पाअ)।

थुडुंकिअ :: न [दे] १ अल्प-कुपित मुंह का संकोच, थोड़ा गुस्सा होने से होता मुँह का संकोच। २ मौन, चुपकी (दे ५, ३१)

थुड्डहीर :: न [दे] चामर (दे ५, २८)।

थुण :: सक [स्तु] स्तुति करना, गुण-वर्णंन करना। थुणइ (हे ४, २४१)। कर्मं. थुव्वइ, थुणिज्जइ (हे ४, २४२)। वकृ. थुणंत (भवि)। कवकृ. थुव्वंत, थुव्वमाण (सुपा ८८; सुर ४, ६६; स ७०१)। संकृ. थोऊण (काल)। हेकृ. थोत्तुं (मुणि १०८७५)। कृ. थुव्व, थोअव्व (भवि; चौत्य ३५; से ७१०)।

थुणण :: न [स्तवन] गुण-कीर्त्तंन, स्तुति (सुपा ३७)।

थुणिर :: वि [स्तोतृ] स्तुति करनेवाला (काल)।

थुण्ण :: वि [दे] दृप्त, अभिमानी (दे ५, २७)।

थुत्त :: न [स्तोत्र] स्तुति, स्तुति-पाठ (भवि)।

थुत्थुक्कारिय :: वि [थुथुत्कारित] थुतकारा हुआ, तिरस्कृत, अपमानित (भबि)।

थुथूकार :: पुं [थुथूत्कार] तिरस्कार (प्रयौ ८१)।

थुरुणुल्लणय :: न [दे] शय्या, बिछौना (दे ५, २८)।

थुलम :: पुं [दे] पट-कुटी, तंबू, वस्त्र-गृह, कपड़- कोट, खेमा (दे ५, २८)।

थुल्ल :: वि [दे] परिबर्तित, बदला हुआ (दे ५, २७)।

थुल्ल :: वि [स्थूल] मोटा (हे २, ९९; प्रामा)।

थुल्ल :: वि [स्थूल] मोटा, तगड़ा। स्त्री. °ल्ली (पिंड ४२६)।

थुव :: देखो थुण। थुवइ (प्राकृ ६७)।

थुवअ :: वि [स्तावक] स्तुति करनेवाला (हे १, ७५)।

थुवण :: न [स्तवन] स्तुति, स्तव (कुप्र ३५१)।

थुव्व, थुव्वंत :: देखो थुण।

थू :: अ. निन्दा-सूचक अव्यय; 'थू निल्लजो लोओ' (हे २, २००; कुमा)।

थूण :: पुं [दे] अश्व, घोड़ा (दे ५, २९)।

थूण :: देखो तेण = स्तेन (हे २, १४७)।

थूणा :: स्त्री [स्थूणा] खम्भा, खूँटी (षड्; पणम १५)।

थूणाग :: पुं [स्थूणाक] सन्निवेश-विशेष, ग्राम- विशेष (आवम)।

थूथू :: अ [दे] घृणा-सूचक अव्यय (चंड)।

थूभ :: पुं [स्तूप] थूहा, टोला, ढूह, स्मृति, स्तम्भ (विसे ६९८; सुपा २०९; कुप्र १६५; आचा २, १, २ )।

थूभिया, थुभियागा :: स्त्री [स्तूपिका] १ छोटा स्तूप (औघ ४३९; औप) २ छोटा शिखर (सम १३७)

थूरी :: स्त्री [दे] तन्तुवाय का एक उपकरण (दे ५, २८)।

थूल :: देखो थुल्ल (पाअ; पउम १४, ११३; उवा)। °भद्द पुं [°भद्र] एक सुप्रसिद्ध जैन महर्षि (हे १, २५५; पडि)।

थूलघोण :: पुं [दे] सूकर, वराह (दे ५, २९)।

थूव, थूह :: देखो थूभ (दे ७, ४०; सुर १, ५८)।

थूह :: पुं [दे] १ प्रासाग का शिखर (दे ५, ३२; पाअ) २ चातक पक्षी। ३ वल्मीक, दीमक (दे ५, ३२)

थेअ :: वि [स्थेय] १ रहने योग्य। २ जो रह सकता हो। ३ पुं. फैसला करनेवाला, न्याया- धीश (हे ४, २६७)

थेग :: पुं [दे] कन्द-विशेष (श्रा २०; जी ९)।

थेज्ज :: न [त्थैर्य] स्थिरत्ता (विसे १४)।

थेज्ज :: देखो थेअ (वव ३)।

थेण :: पुं [स्तेन] चोर, तस्कर (हे १, १४७)।

थेणिल्लिअ :: वि [दे] १ हृत, छीना हुआ। २ भीत, डरा हुआ (दे ५, ३२)

थेप्प :: देखो थिप्प। थेप्पइ (पि २०७; संक्षि ३४)।

थेर :: वि [स्वविर] १ वृद्ध, बूढ़ा (हे १, १६६)। २ ८९; भग ९, ३३) २ पुं. जेन साधु (औघ १७; कप्प) °कप्प पुं [°कल्प] १ जैन मुनियों का आचार-विशेष, गच्छ में रहनेवाले जैन मुनियों का अनुष्ठान। २ आचार- विशेष का प्रतिपादक ग्रन्थ (ठा ३, ४; औंघ ६७०) °कप्पिय पुं [°कल्पिक] आचार- विशेष का आश्रय करनेवाला, गच्छ में रहनेवाला जैन मुनि (पव ७०)। °भूमि स्त्री [°भूमि] स्थविर का पद (ठा ३, २)। °वलि वि [°वलि] १ जैन मुनियों का समूह। २ क्रम से जैन मुनि-गण के चरित्र का प्रतिपादक ग्रंथ-विशेष (णंदि; कप्प)

थेर :: पुं [दे. स्थविर] ब्रह्मा, विधाता (दे ५, २९; पाअ)।

थेरासण :: न [दे. स्थविरासन] पद्म, कमल (दे ५, २९)।

थेरिअ :: न [स्थैर्य] स्थिरता (कुमा)।

थेरिया, थेरी :: स्त्री [स्थविरा] १ वृद्धा, बुढ़िया (पाअ; ओघ २१ टी) २ जैन साध्वी (कप्प)

थेरोसण :: न [दे. स्थविरासन] अम्बुज, कमल, पद्म (षड्)।

थेव :: पुं [दे] बिन्दु (दे ५, २९; पाअ; षड्)

थेव :: देखो थोव (हे २, १२५; पाअ; सुर १, १८१)। °कालिय वि [°कालिक] अल्प काल तक रहनेवाला (सुपा ३७५)।

थेवरिअ :: न [दे] जन्म-समय में बजाया जाता वाद्य (दे ५, २९)।

थोअ :: देखो थोव (हे २, १२५; गा ४९; गउड; संक्षि १)।

थोअ :: पुं [दे] १ रजक, धोबी। २ मूलक, मूला, कन्द-विशेष (दे ५, ३२)

थोअव्व, थोऊण :: देखो थुण।

थोक :: देखो थोक्क (प्राकृ ३८)।

थोक्क, थोग :: देखो थोव (दे २, १२५; जो १)।

थोडेरुय :: देखो घाडेरुय (उप ७२८ टी)।

थोणा :: देखो थूणा (हे १, १२५)।

थोत्त :: न [स्तोत्र] स्तुति, स्तव (हे २, ४५, सुपा २६६)।

थोत्तुं :: देखो थुण।

थोभ, थोभय :: पुं [स्तोभ, °क] 'च', 'वै' आदि निरर्थक अव्यय का प्रयोग; 'उय- वइकारा हत्ति य अकारणा थोभया हुंति' (बुह १; विसे ९९९ टी)।

थोर :: देखो थुल्ल (हे १, २५५; २, ९९; पउम २, १६; से १०, ४२)।

थोर :: वि [दे] क्रम से विस्तीर्ण अथ च गोल (दे ५, ३०; वज्जा ३६)।

थोल :: पुं [दे] वस्त्र का एक देश (दे ५, ३०)।

थोव, थोवाग :: वि [स्तोक] १ अल्प, थोड़ा (हे २, १२५; उव; श्रा २७; ओघ २५९; विसे ३०३०) २ पुं. समय का एक परिमाण (ठा २, ३; भग)

थोह :: न [दे] बल, पराक्रम (दे ५, ३०)।

थोहर :: पुं स्त्री [दे] वनस्पति-विशेष, थूहर का पेड़, सेहुँड़ (सुपा २०३)। स्त्री. °री (उप १०३१ टी; जी १०; धर्म ३)।

 :: पुं [दे] दन्त स्थानीय व्यञ्‍जन-वर्ण विशेष (प्राप; प्रामा)।

दअच्छर :: पुं [दे] ग्राम-स्वामी, गाँव का अधिपति (दे ५, ३६)।

दअरी :: स्त्री [दे] सुरा, मदिरा, दारू (दे ५, ३४)।

दइ :: स्त्री [दृति] मशक, चर्म-निर्मित जल-पात्र (ओघ ३८)।

दइअ :: वि [दे] रक्षित (दे ५, ३५)।

दइअ :: पुंस्त्री [दृतिका] मशक, चर्म-निर्मित जल-पात्र, चमड़े का बना हुआ वह थैला जिसमें पानी भरकर लाते हैं; 'दइएण वत्थिणा वा' (पिंड ४२)। स्त्री. °आ (अणु १५२, पिंडभा १४)।

दइअ :: वि [दयित] १ प्रिय, प्रेम-पात्र; 'जाओ वरकामिणीदहओ' (सुर १, १८३) २ अभीष्ट, वाञ्छित, 'अम्हाण मणोदइयं दंसणमवि दुल्लहं मन्‍ने' (सुर ३, २३८) ३ पुं. पति, स्वामी, भर्ता (पाअ; कुमा) °यम वि [°तम] १ अत्यन्त प्रिय। २ पुं. पति, भर्ता (पउम ७७, ९२)

दइआ :: स्त्री [दयिता] स्त्री, प्रिया, पत्‍नी (कुमा; महा; सुर ४, १२९)।

दइच्च :: पुं [दैत्य] दानव, असुर (हे १, १५१; कुमा; पाअ)। °गुरु पुं [°गुरु] शुक्र, शुक्राचार्य (पाअ)।

दइन्न :: न [दैन्य] दीनता, गरीबपन, गरीबी (हे १, १५१)।

दइव :: पुं न [दैव] दैव, भाग्य, अदृष्ट, प्रारब्घ, पूर्व-कृतकर्म (हे १, १५३; कुमा; महा; पउम २८, ९०); 'अहवा कुविओ दइवो पुरिसं किं हणइ लउडेण' (सुर ८, ३४)। °ज्ज, °ण्णु पुं [°ज्ञ] ज्योतिषी, ज्योति:- शास्त्र का विद्वान् (हे २, ८३; षड्)। देखो देव=दैव।

दइवय :: न [दैवत] देव, देवता (पण्ह २, १; हे १, १५१; कुमा)।

दइविग :: वि [दैविक] देव-संबन्धी, दिव्य, उत्तम (स ५०९)।

दइव्व :: देखो दइव (हे १, १५३; २, ९९; कुमा; पउम ९३, ४)।

दउत्ति :: (शौ) अ [द्राग्] शीघ्र, जल्दी (प्राकृ ९५)।

दउदर, दओदर :: न [दकोदर] रोग-विशेष, जलोदर, पानी से पेट का फूलना (णाया १, १३; विपा १, १)।

दओभास :: पुं [दकावभास] लवण-समुद्र में स्थित वेलंधर-नागराज का एक आवास- पर्वत (इक)।

दंठा :: देखो दाढा (नाट — मालती ५९)।

दंठि :: वि [दंष्ट्रिन्] बड़े दाँतपाला, हिंसक जन्तु (नाट — वेणी २४)।

दंड :: सक [दण्डय्] सजा करना, निग्रह करना। कवकृ. दंडिज्जंत (प्रासू ६६)।

दंड :: पुं [दण्ड] १ जीव-हिंसा, प्राण-नाश (सम १; णाया १, १; ठा १) २ अपराधी को अपराध के अनुसार शारीरिक या आर्थिक दण्ड, सजा, निग्रह, दमन (ठा ३, ३; प्रासू ९३; हे १, १२७) ३ लाठी, यष्टि (उप ५३० टी; प्रासू ७४) ४ दुःख-जनक, परिताप-जनक (आचा) ५ मन, वचन और शरीर का अशुभ व्यापार (उत्त १९; दं ४६) ६ छन्द-विशेष (पिंग) ७ एक जैन उपासक का नाम (संथा ६१) ८ पुं न. परिमाण-विशेष, १९२ अंगुल का एक नाप (इक) ९ आज्ञा (ठा ५, ३) १० पुं न. सैन्य, लश्कर, फौज (पण्ह १; ४; ठा ५, ३) °अल पुं [°कल] छन्द-विशेष (पिंग)। °जुज्भ न [°युद्ध] यष्टि-युद्ध (आचा)। °णायग पुं [°नायक] १ दण्ड-दाता, अपराधविचार- कर्ता। २ सेनापति, सेनानी, प्रतिनियत सैन्य का नायक (पण्ह १, ४, औप, कप्प; णाया १, १)। °णीइ स्त्री [°नीति] नीति- विशेष, अनुशासन (ठा ९)। °पह र्पु [°पथ] मार्ग-विशेष, सीधा मार्ग (सूअ १, १३) °पासि पुं [°पार्श्विन्, °पाशिन्] १ दण्ड दाता। २ कोतवाल (राज; श्रा २७) °पुंछणय न [प्रोञ्छनक] दण्डाकार झाडू (जं ५)। °भी वि [°भी] दण्ड से डरनेवाला, दण्ड-भीरु (आचा)। °लत्तिय वि [°लात] दण्ड लेनेवाला (वव १)। °वइ पुं [°पति] सेनानी, सेनापति (सुपा ३२३)। °वासिग, °वासिय पुं [दाण्डपाशिक] कोतवाल (कुप्र १५५; स २६५; उप १०३१ टी)। °वीरिय पुं [°वीर्य] राजा भरत के वंश का एक राजा, जिसको आदर्श-गृह में केवलज्ञान उत्पन्न हुआ था (ठा ८)। °रास पुं [°रास] एक प्रकार का नाच (कप्पू)। ।इय वि [।यत] दण्ड की तरह लम्बा (कस; औप)। °।यइय वि [°।यतिक] पैर को दण्ड की तरह लम्बा फैलानेवाला (औप; कस, ठा ५, १)। °।रक्खिग पुं [°।रक्षिक] दण्डधारी प्रतीहार (निचू ९)। ।रण्ण न [।रण्य] दक्षिण भारत का एक प्रसिद्ध जंगल (पउम ४१, १; ७९, ५)। °।सणिय वि [°।सनिक] दण्ड की तरह पैर फैला कर बैठनेवाला (कस)। देखो दंडग, दंडय।

दंड :: पुं [दण्ड] १ दण्ड-नायक, सेनापति (वव १) २ उबाल, उफान; 'उसिणोदगं तिंदडुक्क- लियं फासुयजलंति जइ कप्पं' (पव १३६, पिंड १८; विचार २५७)

दंडग, दंडय :: पुं [दण्डक] १ कर्ण-कुण्डल नगर का एक राजा (पउम १, १९) २ दण्डाकार वाक्य-पद्धति, ग्रन्थांश-विशेष (राज) ३ भवनपति आदि चौबीस दण्डक, पद-विशेष (दं १) ४ न. दक्षिण भारत का एक प्रसिद्ध जंगल (पउम ३१; २५) °गिरि पुं [°गिरि] पर्वत-विशेष (पउम ४२, १४)। देखो दंड (उप ५९१; बृह १; सुअ २, २; पउम ४०, १६)।

दंडण :: न [दण्डन] दण्ड-करण, शिक्षा (सुअ २, २, ८२; ८३)।

दंडपासिग :: पुं [दाण्डपाशिक] कोतवाल (मोह १२७)।

दंडलइअ :: वि [दण्डलातिक] दण्ड लेनेवाला, अपराधी (वव १)।

दंडावण :: न [दण्डन] सजा कराना, निग्रह कराना (श्रा १४)।

दंडाविअ :: वि [दण्डित] जिसको दण्ड दिलाया गया हो वह (ओघ ५९७ टी)।

दंडि :: वि [दण्डिन्] १ दण्ड-युक्त। २ पुं. दण्डधारी प्रतीहार, दरवान (कुमा; जं ३)

दंडी° :: देखो दंडी (कुप्र ४४)।

दंडिअ :: पुं [दण्डिक] १ सामन्त राजा (पव २६८) २ राज कुलानुगत पुरुष (पव ९१) ३ दाण्डपाशिक, कोतवाल (धर्मसं ५९९)

दंडिअ :: वि [दण्डित] जिसको सजा दी गई हो वह, कैदी (सुपा ४६२)।

दंडिअ :: वि [दण्डिक] १ दण्डवाला। २ पुं. राजा, नृप (वव ४) ३ दण्ड-दाता, अपराध- विचार-कर्त्ता (वव १)

दंडिआ :: स्त्री [दे] लेख पर लगाई जाती राज- मुद्रा, ठप्पा, मोहर (बृह १)।

दंडिक्किअ :: वि [दे] अपमानित, 'दंडिक्किओ समाणो तमवद्दारेण नीणेइ' (उप ६४८ टी)।

दंडिणी :: स्त्री [दे. दण्डिनी] रानी, राज-पत्‍नी (पिंड ५००)।

दंडिम :: वि [दण्डिम] १ दण्ड से निर्वृत्त। २ न. सजा करके वसूल किया हुआ द्रव्य (णाया १, १ — पत्र ३७)

दंडी :: स्त्री [दे] १ सुत्र-कनक। २ साँधा हुआ वस्त्र-युग्म (दे ५, ३३) ३ साँधा हुआ जीर्ण वस्त्र (णाया १, १६ — पत्र १९९; पण्ह १, ३ — पत्र ५३)

दंत :: वि [ददत्] दान कर्त्ता, दाता (पिंड ५९४)।

दंत :: पुं [दान्त] दो उपवास, बेला (संबोध ५८)।

दंत :: वि [दान्त] दो उपवास (संबोध ५८)।

दंत :: पुं [दे] पर्वत का एक देश (दे ५, ३३)।

दंत :: वि [दान्त] १ जिसका दमन किया गया हो वह, वश में किया हुआ; 'दतेण चितेण चरंति धीरा' (प्रासू १६५) २ जितेन्द्रिय (णाया १, १४; दस १०)

दंत :: पुं [दन्त] दाँत, दशन (कुमा; कप्पु)। °कुडी स्त्री [°कुटी] दंष्ट्रा, दाढ (तंदु)। °च्छअ पुं [°च्छद] ओष्ठ, ओठ, होठ (पाअ)। °धावण न [°धावन] १ दाँत साफ करना, दतवन करना। २ दाँत साफ करने का काष्ठ, दतवन (पण्ह २, ४; निचू ३)। °पक्खालण न [°प्रक्षालन] वही पूर्वोक्त अर्थ (सूअ १, ४, २)। °पाय न [°पात्र] दाँत का बना हुआ पात्र (आचा २, ६, १)। °पुर न [°पुर] नगर- विशेष (वव १)। °पहोयण न [°प्रधावन] देखो °धावण (दस ३)। °माल पुं [°माल] वृक्ष-विशेष (ज २)। °वक्क पुं [°वक्र] दन्तपुर नगर का एक राजा (वव १) °वलहिया स्त्री [°वलमिका] उद्यान-विशेष (स ७०)। °वाणिज्ज न [°वाणिज्य] हाथी-दाँत वगैरह दाँत का व्यापार (धर्म २)। °।र पुं [°कार] दाँत का काम करनेवाला शिल्पी (पण्ण १)।

दंतकार :: पुं [दन्तकार] दाँत बनानेवाला शिल्पी (अणु १४९)।

दंतकुंडी :: स्त्री [दन्तकुण्डी] दाढ, दंष्ट्रा (तंदु ४१)।

दंतवक्क :: पुं [दान्तवाक्य] चक्रवर्त्ती राजा (सूअ १, ६, २२)।

दंतवण :: न [दे. दन्तपवन] १ दन्त-शुद्धि। २ दतवन, दाँत साफ करने का काष्ठ (दे २, १२; ठा ९ — पत्र ४६०; उवा; पव ४)

दंतवण्ण :: पुंन [दे. दन्तपवन] दतवन (दस ३, ९)।

दंतसोहण :: न [दन्तशोधन] दतवन (उत्त १९, २७)।

दंताल :: पुंस्त्री [दे] शस्त्र-विशेष, घास काटने का हथियार (सुपा ५२६)। स्त्री. °ली (कम्म १, ३६)।

दंति :: पुं [दन्तिन्] १ हस्ती, हाथी (पाअ) २ पर्वत-विशेष (पउम १५, ९)

दंतिअ :: पुं [दे] शशक, खरगोश, खरहा (दे ५, ३४)।

दंतिंदिअ :: वि [दान्तेन्द्रिय] जितेन्द्रिय, इन्द्रिय-निग्रही (ओघ ४९ भा)।

दंतिक्क :: न [दे] चावल का आटा (बृह १)।

दंतिक्कग :: न [दे] मांस (धर्मसं ९९१)।

दंतिया :: स्त्री [दन्तिका] एक वृक्ष-विशेष, बडी सतावर (पण्ण १ — पत्र ३२)।

दंती :: स्त्री [दन्ती] स्वनाम-ख्यात वृक्ष (पण्ण १ — पत्र ३६)।

दंतुक्खलिय :: पुं [दन्तोलूखलिक] तापस- विशेष, जो दाँतों से ही व्रीहि या धान वगैरह को निस्तुष कर खाते है (निर १, ३)।

दंतुर :: वि [दन्तुर] उन्‍नत दाँतवाला, जिसके दाँत उभड़-खाबड़ हो। २ ऊँचा-नीचा स्थान; विषम स्थान (दे २, ७७) ३ आगे आया हुआ, आगे निकल आया हुआ (कप्पू)

दंतुरिय :: वि [दन्तुरित] ऊपर देखो, 'विचित्त- पासायपंतिदंतुरियं' (उप १०३१ टी; सुपा २००)।

दंद :: पुं [द्बन्द्व] १ व्याकरण-प्रसिद्ध उभयपद- प्रधान समास (अणु) २ न. परस्पर-विरुद्ध शीत-उष्ण, सुख-दुःख आदि युग्म। ३ कलह, क्लेश। ४ युद्ध, संग्राम (सुपा १४७; कुमा)

दंपइ :: पुं.ब. [दम्पति] स्त्री-पुरुष युगल — जोड़ा, पति-पत्‍नी; 'ते दंपईउ तह तह धम्मम्मि समुजमा निच्‍चं' (सिरि २४८)।

दंभ :: पुं [दम्भ] १ माया, कपट (हे १, १२७) २ छन्द-विशेष (पिंग) ३ ठगाई, वञ्‍चना (पव २)

दंभग :: वि [दम्भक] दम्भी, पाखंडी, ठग, धूर्त; 'दंभगो ति निब्भच्छिओ' (सुख २, १७)।

दंभोलि :: पुं [दम्भोलि] वज्र (कुप्र २७०)।

दंस :: सक [दर्शय्] दिखलाना, बतलाना। दंसइ (हे ४, ३२; महा)। वकृ. दंसंत, दंसिंत, दंसअंत (भग; सुपा ९२; अभि १८४)। कवकृ. दंसिज्जंत (सुर २, १९९)। संकृ. दंसिअ (नाट)। कृ. दंसियव्व (सुपा ४५४)।

दंस :: सक [दंश्] काटना, दांत से काटना। दंसइ (नाट — साहित्य ७३)। दंसंतु (आचा)। वकृ. दंसमाण (आचा)।

दंस :: पुं [दंश] १ डाँस, बड़ा मच्छड़ (भग; आचा) २ दन्त-क्षत, सर्प या अन्य किसी विषैले कीड़े से काटा हुआ घाव (हे १, २६० टि)

दंस :: पुं [दर्श] सम्यक्त्व, तत्व-श्रद्धा (आवम)।

दंसग :: वि [दर्शक] दिखलानेवाला (स ४८१)।

दंसण :: पुंन [दर्शन] १ अवलोकन, निरीक्षण (पुप्फ १२४; स्वप्‍न २६) २ चक्षु, नेत्र, आँख (से १, १७) ३ सम्यक्त्व, तत्त्व- श्रद्धा (ठा १; ५, ३) ४ सामान्य ज्ञान; 'जं सामन्‍नग्गहणं दंसणमेअं' (सम्म ५५) ५ मत, धर्म। ६ शास्त्र-विशेष (ठा ७; ८; पंचा १२) °मोह न [°मोह] तत्व-श्रद्धा का प्रतिबन्धक कर्म-विशेष (कम्म १, १४)। °मोहणिज्ज न [°मोहनीय] कर्म-विशेष (ठा २, ४; भग)। °।वरण न [°।वरण] कर्म-विशेष, सानान्य-ज्ञान का आवरक कर्म (ठा ९)। °।वरणिज्ज न [°।वरणीय] पूर्वोक्त ही अर्थ (सम १५)। देखो दरिसण।

दंसण :: न [दंशन] दाँत से काटना (से १, १७)।

दंसणि :: वि [दर्शनिन्] १ किसी धर्म का अनुयायी (सुपा ४९९) २ दार्शनिक, दर्शन- शास्त्र का जानकार (कुप्र २६; कुम्मा २१) ३ तत्व-श्रद्धालु (अणु)

दंसणिआ :: स्त्री [दर्शनिका] दर्शन, अवलोकन; 'चंदसूरदंसणिया' (औप; णाया १, १)।

दंसणिज्ज, दंसणीअ :: वि [दर्शनीय] देखने योग्य, दर्शन-योग्य (सूअ २, ७; अभि ६८; महा)।

दंसाव :: सक [दर्शय्] दिखलाना। दंसावेइ (प्राकृ ७१)।

दंसावण :: न [दर्शन] दिखाना (उप २११ टी)।

दंसाविअ :: वि [दर्शित] दिखलाया हुआ (सुपा ३८६)।

दंसि :: वि [दर्शिन्] देखनेवाला (आचा; कुप्र ४१; दं २६)।

दंसिअ :: वि [दर्शित] दिखलाया हुआ (पाअ)।

दंसिअ, दंसिंत, दंसिज्जंत, दंसियव्व :: देखो दंस=दर्शय्।

दक्क :: वि [दष्ट] जो दाँत से काटा गया हो वह (षड्)।

दक्ख :: सक [दृश्] देखना, अवलोकन करना। दक्खामि, दक्खिमो (अभि ११६; विक्र २७)। प्रयो. दक्खावइ (पि ५५४)। कर्म. दीसइ (उव)। कवकृ. दिस्समाण, दीसंत, दीसमाण (आव ५; गा ७३; नाट — चैत ७१)। संकृ. दक्खु, दट्ठु, दट्ठुआण, दट्ठुं, दट्ठूण, दट्ठूणं, दिस्स, दिस्सं, दिस्सा (कप्प; षड्; कुमा; महा; पि ५८५; सुअ १, ३, २, १; पि ३३४)। हेकृ. दट्‌ ठुं (कुमा)। कृ. दट्ठव्व, दिट्ठव्व (महा; उत्तर १०७)।

दक्ख :: सक [दर्शय्] दिखलाना, 'सोवि हु दक्खइ वहुकोउयमंततंताइं (सुपा २३२)।

दक्ख :: वि [दक्ष] १ निपुण, चतुर, होशियार (कप्प; सुपा २८९; श्रा २८) २ पुं. भूता- नन्द नामक इन्द्र के पदाति-सैन्य का अधिपति देव (ठा ५, १; इक) ३ भगवान् मुनिसुव्रत- स्वामी का एक पौत्र (पउम २१, २७)

दक्ख° :: देखो दक्खा (पउम ५३, ७९; कुमा)।

दक्खज्ज :: पुं [दे] गृध्र, गीध, पक्षि-विशेष (दे ५, ३४)।

दक्खण :: न [दर्शन] १ अवलोकन, निरीक्षण। २ वि. देखनेवाला, निरीक्षक (कुमा)

दक्खव :: सक [दर्शय्] दिखलाना, बतलाना। दक्खवइ (हे ४, ३२)।

दक्खविअ :: वि [दर्शित] दिखलाया हुआ (पाअ; कुमा)।

दक्खा :: स्त्री [द्राक्षा] १ वल्ली-विशेष, दाख या अंगूर का पेड़। २ फल-विशेष, दाख, अंगूर (कप्पू; सुपा २९७; ५३९)

दक्खायणी :: स्त्री [दाक्षायणी] गौरी, शिव- पत्‍नी (पाअ)।

दक्खिण :: वि [दक्षिण] १ दक्षिण दिशा में स्थिति (सुर ३, १८; गउड) २ निपुण, चतुर (प्रामा) ३ हितकर, अनुकूल। ४ अपसव्य, वामेतर, दाहिना (कुमा; औप) °पच्छिमा स्त्री [°पश्चिमा] दक्षिण और पश्‍चिम के बीच की दिशा, नैऋर्त कोण (आवम)। °पुव्वा स्त्री [°पूर्वा] अग्‍नि-कोण (चंद १)। देखो दाहिण।

दक्खिणत्त :: वि [दाक्षिणात्य] दक्षिण दिशा में उत्पन्‍न (राज)।

दक्खिणा :: स्त्री [दक्षिणा] १ दक्षिण दिशा (जो १) २ दक्षिण देश (कप्पू) ३ धर्म- कर्म का पारितोषिक, दान, भेंट (कप्पू; सूअ २, ५)। °कंखि वि [°काङि्क्षन्] दक्षिणा का अभिलाषी (पउम ३०, ६३) °यण न [°यन] १ सूर्य का दक्षिण दिशा में गमन। २ कर्क की संक्रान्ति से धन की संक्रान्ति तक के छ: मास का काल (जो १)। °वध, °वह पुं [°पथ] दक्षिण देश (कप्पू; १४२ टी)

दक्खिणापुव्वा :: देखो दक्खिण-पुव्वा (पव १०६)।

दक्खिणिल्ल :: वि [दाक्षिणात्य] दक्षिण दिशा में उत्पन्‍न या स्थित (सम १००; पउम ६, १५६)।

दक्खिणेय :: वि [दाक्षिणेय] जिसको दक्षिणा दी जाती हो वह (विसे ३२७१)।

दक्खिण्ण, दक्खिन्न :: न [दाक्षिण्य] १ मुलाहजा, मुरव्वत; 'दक्णिण्णेण वि एंतो सुहअ सुहावेसि अम्ह हिअआइं' (गा ८५; स्वप्‍न ६८) २ उदारता, औदार्य। ३ सरलता, मार्दव (सुर १, ६५; २, ६२; प्रासू ८) ४ अनुकूलता (दंस २)

दक्खिय :: वि [दर्शित] दिखलाया हुआ (भवि)।

दक्खु :: देखो दक्ख=दृश्।

दक्खु :: देखो दक्ख=दक्ष (सूअ १, २, ३)।

दक्खु :: वि [पश्य, द्रष्टृ] १ देखनेवाला। २ पुं. सर्वज्ञ, जिन-देव (सूअ १, २, ३)

दक्खु :: वि [दृष्ट] १ विलोकित। २ पुं. सर्वज्ञ, जिन-देव (सूअ १, २, ३)।

दग :: न [दक] १ पानी, जल (सं ५१; दं ३४; कप्प) २ पुं. ग्रह-विशेष, ग्रहाधिष्ठायक देव- विशेष (ठा २, ३) ३ लवण-समुद्र में स्थित एक आवास पर्वत (सम ६८)। °गब्भ पुं [°गर्भ] अभ्र, बादल (ठा ४, ४)। °तुंड पुं [°तुण्ड] पक्षि-विशेष (पण्ह १, १)। °पचवन्न पुं [°पञ्चवर्ण] ज्योतिष्क देव- विशेष, एक ग्रह का नाम (ठा २, ३)। °पासाय पुं [°प्रासाद] स्फटिक रत्‍न का बना हुआ महल (जं १)। °पिप्पली स्त्री [°पिप्पली] वनस्पति-विशेष (पण्ण १)। °भास पुं [°भास] वेलन्घर नागराज का एक आवास-पर्वत (सम ७३)। °मंचग पुं [°मञ्चक] स्फटिक रत्‍न का मञ्‍च (जं १) °मंडव पुं [°मण्डप] १ मण्डप-विशेष, जिसमें पानी टपकता हो (पण्ह २, ५) २ स्फटिक रत्‍न का वनाया हुआ मण्डप (जं १) °मट्टिया, °मट्टी स्त्री [°मृत्तिका] १ पानीवाली मिट्ठी (बृह ४; पडि) २ कला-विशेष (जं २)। °रक्खस पुं [°राक्षस] जल-मानुष के आकार का जंतु-विशेष (सूअ १, ७)। °रय पुंन [रजस्] उदक-बिन्दु, जल-कणिका (कप्प)। °वण्ण पुं [°वर्ण] ज्योतिष्क ग्रह-विशेष (सुज्ज २०)। °वारग, °वारय पुं [°वारक] पानी का छोटा घड़ा (राय; णाया १, २)। °सीम पुं [°सीमन्] वेलंघर नागराज का एक आवास-पवंत (राज)

दग :: न [दक] स्फटिक रत्‍न (राय ७५)। °सोयरिअ वि [°शौकरिक] साँख्य मत का अनुयायी (पिंड ३१४)।

दच्चा :: देखो दा।

दच्छ :: देखो दक्ख=दृश्। भवि. दच्छं, दच्छसि, दच्छिहिसि (प्राप्र; उत २२, ४४; गा ८१९)।

दच्छ :: देखो दक्ख=दक्ष; 'रोगसमदच्छं ओसहं' (उप ७२८ टी; पण्ह २, ३ — पत्र ४५; हे २, १७)।

दच्छ :: वि [दे] तीक्ष्ण, तेज (दे ५, ३३)।

दज्झंत, दज्झमाण :: देखो दह=दह।

दट्ठ :: वि [दष्ट] जिसको दाँत से काटा गया हो वह (षड्; महा)।

दट्ठ :: वि [दृष्ट] देखा हुआ, विलोकित (राज)।

दट्ठंतिय :: वि [दार्ष्टान्तिक] जिसपर दृष्टान्त दिया गया हो वह अर्थ (उप पृ १४३)।

दट्ठव्व, दट्‌ठु :: देखो दक्ख=दृश्।

दट्ठु :: वि [द्रष्टृ] देखनेवाला, प्रेक्षक, दर्शक (विसे १८६५)।

दट्ठुआण, दट्ठुं, दट्ठूण, दट्ठूणं :: देखो दक्ख=दृश्।

दडवड :: पुं [दे] १ घाटी, दर्श, अवस्कन्द (दे ५, ३५; हे ४, ४२२; भवि) २ शीघ्र, जल्दी (चंड)

दडि :: स्त्री [दे] वाद्य-विशेष (भवि)।

दड्‍ढ :: वि [दग्ध] जला हुआ (हे १, २१७; भग)।

दडढालि :: स्त्री [दे] दव-मार्ग (षड्)।

दढ :: वि [दृढ] १ मजबूत, बलवान्, पोढ़ (औप; से ८, ६०) २ निश्‍चल, स्थिर, निष्कम्प (सूअ १, ४, १; श्रा २८) ३ समर्थ, क्षम (सूअ १, ३, १) ४ अति- निबिड, प्रगाढ़ (राय) ५ कठोर, कठिन (पंचा ४) ६ क्रिवि. अतिशय, अत्यन्त (पंचा १; ७) °केउ पुं [°केतु] ऐरवत क्षेत्र के एक भावी जिन-देव का नाम (पव ७)। °णेमि देखो °नेमि (राज)। °धणु [°धनुष] १ ऐरवत क्षेत्र के एक भावी कुलकर का नाम (सम १५३) २ भरत-क्षेत्र के एक भावी कुलकर का नाम (राज) °धम्म वि [°धर्मन्] १ जो धर्म में निश्‍चल हो (बृह १) २ देव-विशेष का नाम (आवम)। °धिईय वि [°धृतिक] अतिशय धैर्यवाला (पउम २९, २२)। °नेमि र्पु [°नेमि] राजा समुद्रविजय का एक पुत्र, जिसने भगवान् नेमिनाथ के पास दीक्षा ली थी और सिद्धाचल पर्वत पर मुक्ति पाई थी (अंत १४) °पइण्ण वि [°प्रतिज्ञ] १ स्थिर-प्रतिज्ञ, सत्य-प्रतिज्ञ। २ पुं. सूर्याभ देव का आगामी जन्म में होनेवाला नाम (राय) °प्पहारि वि [°प्रहारिन्] १ मजबूत प्रहार करनेवाला। २ पुं. जैनमुनि-विशेष, जो पहले चोरों का नायक था और पीछे से दीक्षा लेकर मुक्त हुआ था (णाया १, १८; महा)। °भूमि स्त्री [°भूमि] एक गाँव का नाम (आवम)। °मूढ वि [°मूढ] नितान्त मूर्ख (दे १, ४) °रह पुं [°रथ] १ एक कुलकर पुरुष का नाम (सम १५०) २ भगवान् श्री शितलनाथजी के पिता का नाम (सम १५१)। °रहा स्त्री [°रथा] लोकपाल आदि देवों के अग्र-महिषियों की बाह्य परिषद् (ठा ३, १ — पत्र १२७)। °।उ पुं [°।युष्] भगवान् महावीर के समय में तीर्थकर-नामकर्म उपार्जन करनेवाला एक मनुष्य (ठा ९ — पत्र ४५५) २ भरत- क्षेत्र के एक भावी कुलकर पुरुष का नाम (सम १५४)

दढगालि :: स्त्री [दे] वस्त्र-विशेष, घोया हुआ सदश वस्त्र (पव ८४; दसनि १, ४६ टी) देखो दाढगालि।

दढिअ :: वि [दृढित] दृढ़ किया हुआ (कुमा)।

दणु, दणुअ :: पुं [दनुज] दैत्य, दानव (हे १, २६७; कुमा; षड्)। °इंद, °एंद पुं [°इन्द्र] १ दानवों का अधिपति (गउड; से १, २) २ रावण, लंकापति (पउम ६९, १०)। °वइ पुं [°पति] देखो °इंद (पउम १, १; ७२, ६० सुपा ४५)

दत्त :: वि [दत्त] १ दिया हुआ, दान किया हुआ, वितीर्ण (हे १, ४६) २ न्यस्त, स्थापित (जं १) ३ पुं. स्व-नाम-ख्यात एक श्रेष्ठि-युत्र (उप ५६२; ७६८ टी) ४ भरत-वर्ष के एक भावी कुलकर षुरुष (सम १५३) ५ चतुर्थ बलदेव के पूर्व-जन्म का नाम (सम १५३) ६ भरत-क्षेत्र में उत्पन्न एक अर्ध-चक्रवर्त्ती राजा, एक वासुदेव (सम ६३) ७ भरत-क्षेत्र में अतीत उत्सर्पिणी काल में उत्पन्न एक जिन-देव (पव ७) ८ एक जैतमुनि (आक) ९ नृप-विशेष (विपा १, ७) १० एक जैन आचार्य (कुप्र ६) ११ न. दान, उत्सर्ग (उत्त १)

दत्त :: न [दात्र] दाँती, घास काटने का हँसिया (दे १, १४)।

दत्ति :: स्त्री [दत्ति] एक बार में जतना दान दिया जाय वह, अविच्छिन्न रूप से जितनी भिक्षा दी जाय वह (ठा ५, १; पंचा १८)।

दत्तिय :: पुंस्त्री [दत्तिका] ऊपर देखो, 'संखो दतियस्स' (वव ९)।

दत्तिय :: पुं [दत्रिक] वायु-पूर्ण चर्म (राज)।

दत्तिया :: स्त्री [दात्रिका] १ छोटी दाँती, घास काटने का शस्त्र-विशेष (राज) २ देनेवाली स्त्री, दान करनेवाली स्त्री (चारु २)

दत्थर :: पुं [दे] हस्त-शाटक, कर-शाटक (दे ५, ३४)।

ददंत :: देखो दा।

दद्दर :: पुं [दे. दर्दर] कुतुप आदि के मुँह पर बाँधा जाता कपड़ा (पिंड ३४७; ३५६; राय ३८; १००)।

दद्दर :: वि [दे. दर्दर] १ घना, प्रचुर, अत्यन्त; 'गोसीससरसरत्तचंदणदद्दरदिण्णपंचंगुलितला' (सम १३७) २ पुं. चपेटा, हस्त-तल का आघात (सम १३७; औप; णाया १, ८) ३ आघात, प्रहार; 'पायदद्दरएणं कंपयंतेव मेइणितलं' (णाया १, १) ४ वचनाटोप (पण्ह १, ३ — पत्र ४४) ५ सोपान-वीथी, सीढ़ी (सम १३७) ६ वाद्य-विशेष (जं २)

दद्दरिगा :: देखो दद्दरिया (राय ४६)।

दद्दरिया :: स्त्री [दे. दर्दरिका] १ प्रहार, आघात (णाया १, १६) २ वाद्य-विशेष (राय)

दद्दु :: पुं [दद्रु] दाद, क्षुद्र कुष्ठ-रोग (भग ७, ६)।

दद्दुर :: पुं [दर्दुर] प्रहार, आघात (धर्मवि ८५)।

दद्दुर :: पुं [दर्दुर] १ भेक, मेढ़क, बेंग (सुर १०, १८७; प्रासू ४५) २ चमड़े से अवनद्ध मुँहवाला कलश (पण्ह २, ५) ३ देव- विशेष (णाया १, १३) ४ राहु, ग्रह-विशेष (सुज्ज १९) ५ पर्वत-विशेष (णाया १, १६) ६ वाद्य-विशेष (दे ७, ६१; गउड)। ७ न. दर्दुर देव का सिंहासन (णाया १, १३)। °वडिंसय न [°।वतंसक] देव-विशेष, सौधर्म देवलोक का एक विमान (णाया १, १३)

दद्दुरी :: स्त्री [दर्दुरी] स्त्री-मेढक, भेकी (णाया १, १३)।

दद्दुल :: वि [दद्रुमत्] दाद-रोगवाला (सिरि ११६)।

दधि :: देखो दहि (सम ७७; पि ३७९)।

दद्ध :: देखो दड्‍ढ (सुर २, ११२; पि २२२)।

दप्प :: पुं [दर्प] १ अहंकार, अभिमान, गवं (प्रासू १३२) २ बल, पराक्रम, जोर (से ४, ३) ३ घृष्टता, ढिठाई (भग १२, ५) ४ अरुचि से काम का आसेवन (निचू १)

दप्पण :: पुं [दर्पण] १ काच, शीशा, आदशं (रगाया १, १; प्रासू १६१) २ वि. दपं- जनक (पण्ह २, ४)

दप्पणिज्ज :: वि [दर्पणीय] बल-जनक, पुष्टि- कारक (णाया १, १; पराण १७च औप; कप्प)।

दप्पि :: वि [दर्पिन्] आभिमानी, गर्विष्ठ (कप्प)।

दप्पिअ :: वि [दपिंक] दपं-जनित (उवर १३१)।

दप्पिअ :: वि [दर्पित] आभिमानी, गर्वित (सुर ७, २००; पण्ह १, ४)।

दप्पिट्ठ :: वि [दर्पिष्ठ] अत्यन्त अहंकारी (सुपा २२)।

दप्पुल्ल :: वि [दर्पवत्] अहंकारवाला (हे २, १५९; षड्)।

दब्भ :: पुं [दर्भ] तृण-विशेष, डाभ, काश, कुशा (हे १, २१७)। °पुप्फ पुं [°पुष्प] साँप की एक जाति (पण्ह १, १ — पत्र ८)।

दब्भायण, दब्भियायण :: न [दार्भायन, दार्म्यायन] चित्र-नक्षत्र का गोत्र (इक; सुज्ज (१०)।

दब्भिय :: न [दार्भिक] गोत्र-विशेष (सुज्ज १०, १३ टी)।

दम :: सक [दमय्] निग्रह करना, दमन करना, रोकना । दमेइ (स २८९) । कर्म. दम्मइ (उव)। कवकृ दम्मंत (उव)। संकृ. दमिऊण (कुप्र ३९३)। कृ. दमियव्व, दम्म, दमेयव्व (काल; आचा २, ४, ३; उव)।

दम :: पुं [दम] १ दमन, निग्रह । इन्द्रिय- निग्रह, बाम्हा वृत्ति का निरोध (पण्ह २, ४; णंदि)। °घोस पुं [°घोष] चेदि देश के एक राजा का नाम (णाया १, १६)। °दंत पुं [°दन्त] १ इस्तिशीषंक नगर के एक राजा का नाम (उप ६४८ टी) २ एक जैन मुनि (विसे २७९९) °धर पुं [°धर्] एक जैन मुनि का नाम (पउम २०, १९३)

दमग :: देखो दमय (णाया १, १६; सुपा ३८५; वव ३; निचू १५; बृह १; उव)।

दमग :: वि [दमक] दमन करनेवाला (निचू ९)।

दमण :: देखो दमणक (राय ३४; १२१)।

दमण :: न [दमन] १ निग्रह, दान्ति। २ वश में करना, कावू में करना; 'पंचिदियदमणपरा' (आप ४०) ३ उपताप, पीङा (पण्ह १, ३) ४ पशुओं को दी जाति शिक्षा (पउम १०३, ७१)

दमणक, दमणग, दमणय :: पुंन [दमनक] १दौना, सुगन्धित पत्रवाली वनस्पति-विशेष (पण्ह २, ५; पणण १; गउड)। छन्द-विशेष (पिंग) ३ गन्ध-द्रव्य-विशेष (राज)

दमदमा :: अक [दमदमाय्] आडम्बर करना । दमदमाइ, दमदमाअइ (हे ३, २३८)

दमय :: वि [दे. द्रमक] दरिद्र, रंक, गरीब (दे ५, ३४; विसे २८४५)।

दमयंती :: स्त्री [दमयन्ती] राजा नल की पत्‍नी का नाम (पडि; कुप्र ५४; ५६)।

दमि :: वि [दमिन्] जितेन्द्रिय (उत्त २२)।

दमिअ :: वि [दमित] निगृहीत, रोका हुआ (गा ८२३; कुप्र ४८)।

दमिल :: पुं [द्रविड] १ एक भारतीय देश । २ पुंस्त्री. उसके निवासी मनुष्य, द्राविड़(कुप्र १७२; इक; औप) । स्त्री. °ली (णाया १, १; इक; औप)

दमेयव्व, दम्म :: देखो दम = दमय् ।

दम्म :: पुं [द्रम्म] सोने का सिक्का, सोना- मोहर (उप पृ ३८७; हे ४, ४२२)।

दम्मत :: देखो दम = दमय् ।

दय :: सक [दय्] रक्षण करना । २ कृपा करना । ३ चाहना । ४ देना । दयइ (आचा)। वकृ. दअंत, दअमाण । (से १२, ६४; ३, १२; अभि १२)

दय :: न [दे. दक] जल, पानी (दे ५, ३३; बृह १)। °सीम पुं [°सीमन्] लवण-समुद्र में स्थित एक आवास-पवंत (सम ६८)।

दय :: न [दे] शोक, अफसोस, दिलगीरी (दे ५, ३३)।

दय :: देखो दव = दव (से १, ५१; १२, ९५)।

°दय :: वि [°दय] देनेवाला (कप्प; पडि)।

दया :: स्त्री [दया] करुणा, अनुकम्पा, कृपा (दस ९, १)। °वर वि [°पर] दयालु (पउम २६, ४०; उप पृ १९१)

दयाइअ :: वि [दे] रक्षित (दे ५, ३५)।

दयालु :: वि [दयालु] दयावाला, करुण (हे १, १७७; १८०; पउम १९, ३१; सुपा ३४०; श्रा १६)।

दयावण, दयावन्न :: वि [दे] दीन, गरीब, रंक (दे ५, ३५; भवि; पउम ३३, ८६)।

दर :: सक [दृ] आदर करना । दरइ (षड्)

दर :: पुंन [दर] भय, डर (कुमा) । २ अ. ईषत्, थोडा़, अल्प (हे २, २१५)

दर :: पुंन [दर] १ गुफा, कन्दरा । २ गतं, गड्ढा, गढा़ या गढ़हा, दरार, ‘ते य दरा मिंढया ते य’ (धर्मवि १४०)

दर :: न [दे] अर्द्ध, आधा (दे ५, ३३; भवि; हे २, २१५; बृह ३)।

दरंदर :: पुं [दे] उल्लास (दे ५, ३७)

दरमत्ता :: स्त्री [दे] बलात्कार, जबरदस्ती (दे ५, ३७)।

दरमल :: सक [मर्दय्] १ चूर्ण कपना, विदारना । २ आघात करना । दरमलइ (भवि) । वकृ. दरमलंत (भवि)

दरमलिय :: वि [मर्दित] आहत, चूर्णित (भवि)।

दरवलिअ :: वि [दे] उपभुक्त (कुमा)

दरवल्ल :: पुं [दे] ग्राम-स्वामी, गाँव का मुखिया (दे ५, ३६) । °णिहेल्लण ने [दे] शून्य गृह, खाली घर (दे ५, ३७) । °वल्लह पुं [वल्लभ] १ दयित, प्रिय (दे ५, ३७) २ कातर, डरपोक (षड्) °विंदर वि [दे] १ दीर्ध, लम्बा । २ विरल (दे ५, ५२)

दरस :: (शौ) देखो दरिस। दरसेदि (प्राकृ ९९)।

दरि :: न [दरी] कन्दरा, गुफा; ‘दरीणि वा’ (आचा २, १०, २)।

दरि :: ° देखो दरी । °अर पुं [°चर] किंनर (से ९, ४४)।

दरिअ :: वि [दृप्त] गर्विष्ठ, अभिमानी (हे १, १४४; पाअ)।

दरिअ :: वि [दीर्ण] १ डरा हुआ, भीत (कुमा; सुपा ६४५) २ फाड़ा हुआ, विदारित (अंत ७)

दरिअ :: (अप) पुं [दरिद्र] छन्द-विशेष (पिंग)।

दरिआ :: स्त्री [दरिका] कन्दरा, गुफा (नाट — विक्र ८४)

दरिद्द :: वि [दरिद्र] १ निर्धन, निःस्व, धन- रहित। २ दीन, गरीब (पाअ; प्रासू २३; कप्पू)

दरिद्दि, दरिद्दिय :: वि [दरिद्रिन्, °क] ऊपर देखो; ‘अम्हे दरिद्दिणो, कहं विवाहमंगलं रन्‍नी य पूयं करेमो’ (महा; सण; पि २५७)।

दरिद्दिय :: वि [दरिद्रित] दुःस्थित, जो घन- रहित हुआ हो (महा; पि २५७)।

दरिद्दीहूय :: वि [दरिद्रीभूत] जो निधंन हुआ हो (ठा ३, १)।

दरिस :: सक [दर्शय्] दिखलाना, बतलाना । दरिसइ, दरिसेइ (हे ४, ३२; कुमा; महा) । वकृ. दरिसंत (सुपा २४) । कृ. दरिसणिज्ज, दरिसणीय (औप; पि १३५; सुर १०, ९)।

दरिसण :: देखो दंसण=दर्शन (हे २, १०५)। °पुर न [°पुर] नगर-विशेष (इक)। °आवरणी स्त्री [°।वरणी] विद्या-विशेष (पउम ५९; ४०)

दरिसणिज्ज :: न [दर्शनीय] १ आकृति, रूप। २ अवलोकन (तंदु ३९)

दरिसणिज्ज, दरिसणीय :: देखो दरिस। २ न. भेंट, उप- हार; ‘गहिऊण दरिसणीयं संपत्तो राइणो मूलं’ (सुर १०, ९)

दरिसाव :: देखो दरिस। वकृ. दरिसावंत (उप पृ १८८)

दरिसाव :: पुं [दर्शन] दर्शन, साक्षात्कार; ‘एसो य महप्पा कइवयघरेसु दरिसावं दाऊण पडिनियत्तइ’ (महा); ‘पईव इव दाउं खणमेगं दरिसावं पुणोवि अद्दंसणोहोइ’ (सुपा ११५)

दरिसाव :: पुं [दर्शन] दिखावा (वव १)

दरिसावण :: न [दर्शन] १ दर्शन, साक्षात्कार (आव १) २ वि. दर्शक, दिखलानेवाला (भवि)

दरिसि :: वि [दर्शिन्] देखनेवाला (उवा; पि १३५; स ७२७)।

दरिसिअ :: वि [दर्शित] दिखलाया हु्आ (कुमा; उव)।

दरी :: स्त्री [दरी] गुफा, कन्दरा (णाया १, १; से ९, ४४; उप पृ २६८; स ४१३)।

दरुम्मिल्ल :: वि [दे] घन, निबिड (दे ५, ३७)।

दल :: सक [दा] देना, दान करना, अर्पण करना । दलइ (कप्प; कस); ‘जं तस्य मोल्लं तमहं दलामि’ (उप २११ टी) । वकृ. दलृ- माण, दलेमाण (कप्प; णाया १, १६; — पत्र २०४; ठा ४, २ — पत्र २१६) संकृ. दलित्ता (कप्प)।

दल :: अक [दल्] १ विकसना । २ फटना, खणिडत होना, द्विधा होना; ‘अहिसअरकि- रणणिउरंबचुंबिअं दलइ कमलवणं’ (गा ४९५); ‘कुडयं दलइ’ (कुमा) । वकृ. दलंत (से १, ५८)

दल :: सक [दलय्] चूर्ण करना, टुकड़े-टुकड़े करना, विदारना । वकृ. ‘निम्मूलं दलमाणो सयलंतरसत्तुसित्रबलं’ (सुपा ८५) । कवकृ. दलिज्जंत (से ६, ६२) । संकृ. दलिऊण (कुमा)।

दल :: न [दल] १ सैन्य, लश्कर, फौज (कुमा) २ पत्र. पत्ता, पंखड़ी या पँखुड़ी; ‘तूहवल्लहस्स गोसम्मि आसि अहरो मिलाणकमलदलो’ (हेका ५१, गा ५; १८०; २५७, ३९६; ५६२, ५९१; सुपा ६३८) ३ घन, सम्पत्ति । ४ समूह, समुदाय, गरोह (सुपा ६३८) ५ खणड, भाग, अंश (से ६, ६२)

दलण :: न [दलन] १ पीसना, चूर्णन (सुपा २४; ६१९) २ वि. चूर्ण करनेवाला (सुपा २३४; ४६७; कुप्र १३२; ३८३)

दलमाण :: देखो दल = दा ।

दलमाण :: देखो दल = दलय् ।

दलमल :: देखो दरमल । वकृ. दलमलंत (भवि)।

दलय :: देखो दल = दा । दलयइ (औप) । भवि. दलइस्संति (औप) । वकृ. दलयमाण (णाया १, १ — पत्र ३७, ठा ३, १ — पत्र ११७) । संकृ. दलइत्ता (औप)।

दलय :: सक [दापय्] दिलाना दलयइ (कप्प)।

दलवट्ट :: देखो दरमल । दलवट्टइ (भवि)।

दलवट्टिय :: देखो दलमलिय (भवि)।

दलाव :: सक [दापय्] दिलाना । दलावेइ (पि ५५२) । वकृ. दलावेमाण (ठा ४, २)।

दलिअ :: वि [दलित] १ विकसित, खिला हुआ (से १२, १) २ पीसा हुआ (पाअ); ‘दलिअनपसालितंडुलधवलमि अंकासु राईसु’ (गा ६९१) ३ विदारित, खण्डित (दे १, १५६; सुर ४, १५२)

दलिअ :: न [दलिक] १ चिज, वस्तु, द्रव्य (ओघ ५५); ‘जह जोग्गम्मिवि दलिए सव्वम्मि न कीरए पडिमा’ (विसे १६३४) २ पणिडत (बृह० क० भा० उ० ४)

दलिअ :: वि [दे] १ निकूणिताक्ष, जिसने टेढ़ी नजर की हो वह । २ न. उँगली (दे ५, ५२)। काष्ठ, लकड़ी (दे ५, ५२, पाअ)

दलिज्जंत :: देखो दल = दलय्।

दलिद्द :: देखो दरिद्द (हे १, २५४; गा २३०)

दलिद्दा :: अक [दरिद्रा] दुर्गत होना, दरिद्र होना । दलिद्दाइ (हे १, २५४) । भूका. दलिद्दाईअ (संक्षि ३२)

दलिल्ल :: वि [दलवत्] दल-युक्त, दलवाला (सण)।

दलेमाण :: देखो दल = दा।

दव :: सक [द्रु] १ गति करना । २ छोड़ना । दवए (विसे २८)

दव :: पुं [दव] १ जंगल का अग्ति, वन की आग (दे ५; ३३) २ वन, जंगल । °ग्गि पुं [°।ग्नि] जंगल का अग्‍नि (हे १, १७७; प्राप्र)।

दव :: पुं [द्रव] १ परिहास (दे ५, ३३) २ पानी, जल (पंचव २) ३ पनीली वस्तु, रसीली चीज (विसे १७०७) ४ वेग; ‘दव- दवचारी’ (सम ३७) ५ संयम, विरति (आचा) °कर वि [°कर] परिहासकारक (भग ९, ३३)। °कारी, °गारी स्त्री [°कारी] एक प्रकार की दासी, जिसका काम परिहास- जनक बातें कर जी बहलाना होता है (भग ११, ११; णाया १, १ टी. पत्र ४३)।

दवण :: न [दवन] यान, वाहन (सूअनि १०८)।

दवणय :: देखो दमणय (भवि)।

दवदव, दवदवस्स :: अ [द्रवद्रवम्] शीघ्र, जल्दी; 'दवदवचरा परतजणां' (संबोध १४; उत्त १७, ८); 'दवदवस्स न गच्छेज्जा' (दस ५, १, १४); 'जह वणदवो वणं दवद- वस्स जलिओ खणेण निद्दहइ' (धर्मवि ८६)।

दवदवा :: स्त्री [द्रवद्रवा] वेगवाली गति, 'नाऊण गयं खुहियं नयरजणो धाविओ दव- दवाए' (पउम ८, १७३)।

दवर :: पुं [दे] १ तन्तु, डोरा, धागा (दे ५, ३५; आवम) २ रज्जु, रस्सी (णाया १, ८)

दवरिया :: स्त्री [दे] छोटी रस्सी (विसे)।

दवहुत्त :: न [दे] ग्रीष्म-मुख, ग्रीष्म काल का प्रारम्भ (दे ५, ३६)।

दवाव :: सक [दापय्] दिलाना। दवावेइ (महा)। वकृ. दवावेमाण (णाया १, १४)। संकृ. दवावेऊण (महा)। हेकृ. दवावेत्तए (कस)।

दवावण :: न [दापन] दिलाना (निचू २)।

दवाविअ :: वि [दापित] दिलाया हुआ (सुपा १३०; स १९३; महा; उप पृ ३८५; ७२८ टी)।

दविअ :: पुंन [द्रव्य] १ अन्वयी वस्तु, जीव आदि मौलिक पदार्थ, मूल वस्तु (सम्म ६; विसे २०३१) २ वस्तु, गुणाधार पदार्थ (ओघ ५, आचा; कप्प) ३ वि. भव्य, मुक्ति के योग्य (सूअ १, २, १) ४ भव्य, सुन्दर, शुद्ध (सूअ १, १६) ५ राग-द्वेष से विरहित, वीतराग (सूअ १, ८)। °।णुओग पुं [°।नुयोग] पदार्थ-विचार, वस्तु की मीमांसा (ठा १०)। देखो दव्व।

दविअ :: वि [द्रविक] संयम वाला, संयम युक्त, संयमी (आचा)।

दविअ :: वि [द्रवित] द्रव-युक्त, पनीली वस्तु (ओघ)।

दविड :: देखो दविल (सुपा ५८०)।

दविडी :: स्त्री [द्राविडी] लिपि-विशेष, तामिल भाषा (विसे ४६४ टी)।

दविण :: न [द्रविण] धन, पैसा, संपत्ति (पाअ; कप्प)।

दविय :: न [द्रव्य] १ घास का जंगल, वन में घास के लिए सरकार से अवरुद्ध भूमि (आचा २, ३, ३, १) २ तृण आदि द्रव्य-समुदाय (सूअ २, २, ८)

दविल :: पुं [द्रविड] १ देश-विशेष, दक्षिण देश-विशेष, मद्रास प्रांत। पुंस्त्री. द्रविड़ देश का निवासी मनुष्य, द्राविड़ (पण्ह १, १ — पत्र १४)

दव्व :: देखो दविअ=द्रव्य (सम्म १२; भग; विसे २८; अणु; उत्त २८)। ६ धन, पैसास संपत्ति (पाअ; प्रासू १३१) ७ भूत या भविष्य पदार्थ का कारण (विसे २८; पंचा ६) ८ गौण, अप्रधान। ९ बाह्य, अतथ्य (पंचा ४; ६)। °ट्ठिय पुं [°।र्थिक, °स्थित, °।स्तिक] द्रव्य को ही प्रधान माननेवाला पक्ष, नय-विशेष; 'दव्वट्ठियस्स सव्वं सया अणुप्पन्नमविणट्ठं' (सम्म ११; विसे ४५७)। °लिंग न [°लिङ्गं] बाह्य वेष (पंचा ४)। °लिंगि वि [°लिङ्गिन्] भेषधारी साधु (गु १०)। °लेस्सा स्त्री [°लेश्या] शरीर आदि पौद्‍गलिक वस्तु का रंग, रूप (भग)। °वेय पुं [°वेद] पुरुष आदि का बाह्य आकार (राज)। °।यरिय पुं. [°।चार्य] अप्रधान आचार्य, आचार्य के गुणों से रहित आचार्य (पंचा ६)

दव्व :: न [द्रव्य] योग्यता, 'समयम्मि दव्व- सद्‍दो पायं जं जोग्गयाए रुढो त्ति, णिरूवच- रितो' (पंचा ६, १०)।

दव्वहलिया :: स्त्री [द्रव्यहलिका] वनस्पति- विशेष (पण्ण १ — पत्र ३५)।

दव्विं° :: देखो दव्वी (षड्)।

दव्विंदिअ :: न [द्रव्येन्द्रिय] स्थूल इन्द्रिय (भग)।

दव्वी :: स्त्री [दर्वी] १ कर्छी, कलछी, चमची, डोई (पाअ) २ साँप की फन (दे ५, ३७)। °अर °कर पुं [°कर] साँप, सर्प (दे ५, ३७; पण्ण १)

दव्वी :: स्त्री [दे] वनस्पति-विशेष (पण्ण १ — पत्र ३४)।

दस :: त्रि. ब. [दशन्] दस, नौ और एक (हे १, १६२; ठा ३, १ — पत्र ११९; सुपा २६७)। °उर न [°पुर] नगर-विशेष (विसे २३०३)। °कंठ पुं [°कण्ठ] रावण, एक लंका-पति (से १५, ६१)। °कंधर पुं [°कन्धर] राजा रावण (गउड) °कालिय न [°कालिक] एक जैन आगम-ग्रंथ (दसनि १)। °ग न [°क] दश का समूह (दं ३८; नव १२)। °गुण वि [°गुण] दस गुना (ठा १०)। °गुणिअ वि [°गुणित] दस-गुना (भग; श्रा १०)। °ग्गीव पुं [°ग्रीव] रावण (पउम ७३, ८)। °दस मिया स्त्री [°दशमिका] जैन साधु का एक धार्मिक अनुष्ठान, प्रतिमा-विशेष (सम १००)। °दिवसिय वि [°दिवसिक] दस दिन का (णाया १, १ — पत्र ३७)। °द्ध पुंन [°।र्ध] पाँच, ५ (सम ६०; णाया १, १)। °धणु पुं [°धनुष्] ऐरवत क्षेत्र के एक भावी कुलकर पुरुष (सम १५३)। °पएसिय वि [°प्रादेशिक] दस अवयववाला (ठा १०)। °पुर देखो °उर (महा)। °पुव्वि वि [°पूर्विन्] दस पूर्व-ग्रन्थों का अभ्यासी (ओघ १)। °बल पुं [°बल] भगवान् बुद्ध (पाअ; हे १, २६२)। °म वि [°म] १ दसवाँ (राज) २ चार दिनों का लगातार उपवास (आचा; णाया १, १; सुर ४, ५५) °मभत्तिय वि [°मभक्तिक] चार दिनों का लगातार उपवास करनेवाला (पण्ह २, ३)। °मासिअ वि [°माषिक] दस मासे का तौलवाला, दस मासे का परि- माणवाला (कप्पू)। °मी स्त्री [°मी] १ दसवीं। २ तिथि-विशेष (सम २९)। °मुद्दि- याणंतग न [°मुद्रिकानन्तक] हाथ की उंगलियों की दस अंगूठियाँ (औप)। °मुह पुं [°मुख] रावण, राक्षस-पति (हे १, २६२; प्राप्र; हेका ३३४)। °मुहसुअ पुं [°मुखसुत] रावण का पुत्र, मेघनाद आदि (से १३, ९०)। °य देखो °ग (ठा १०) °रत्त न [°रात्र] दस रात (विपा १, ३)। °रह पुं [°रथ] १ रामचन्द्रजी के पिता का नाम (सम १५२; पउम २०, १८३) २ अतीत उत्सर्पिणी-काल में उत्पन्‍न एक कुलकर पुरुष (ठा ९ — पत्र ४४७)। °रहसुय पुं [°रथसुत] राजा दशरथ का पुत्र — राम, लक्ष्मण, भरत और शत्रुघ्‍न (पउम ५९, ८७)। °वअण पुं [°वदन] राजा रावण (से १०, ५)। °वल देखो °बल (प्राप्र)। °विह वि [°विध] दस प्रकार का (कुमा)। °वेआ- लिअ न [°वैकालिक] जैन आगम-ग्रन्थ- विशेष (दसनि १; णंदि)। °हा अ [°धा] दस प्रकार से (जी २४)। °।णण पुं [°।नन] राक्षसेश्ववर रावण (से ३, ६३)। °।हिया स्त्री [°।हिका] पुत्र-जन्म के उपलक्ष्य में किया जाता दस दिनों का एक उत्सव (कप्प)

दसग :: वि [दशक] दस वर्ष की उम्र का (तंदु १७)।

दसण :: पुं [दशन] १ दाँत, दन्त (भग; कुमा) २ न. दंश, काटना (पव ३८)। °च्छय पुं [°च्छद] होठ, अघर, ओठ (सुर १२, २३४)

दसण्ण :: पुं [दशार्ण] देश-विशेष (उप २११ टी; कुमा)। °कूड न [°कूट] शिखर-विशेष (आवम)। °पुर न [°पुर] नगर-विशेष (ठा १०)। °भद्द पुं [°भद्र] दशार्णपुर का एक विख्यात राजा, जो अद्वितीय आडम्बर से भगवान् महावीर को वन्दन करने गया था और जिसने भगवान् महावीर के पास दीक्षा ली थो (पडि)। °वइ पुं [°पति] दशार्ण देश का राजा (कुमा)।

दसतीण :: न [दे] धान्य-विशेष (पण्ण १ — पत्र ३४)।

दसन्न :: देखो दसण्ण (सत ६७ टी)।

दसा :: स्त्री [दशा] १ स्थिति, अवस्था (गा २२७; २८४; प्रासू ११०) २ सौ वर्ष के प्राणी की दस-दस वर्ष की अवस्था (दसनि १) ३ सूत या ऊन का छोटा और पतला धागा (ओघ ७२५) ४ ब. जैन आगम- ग्रन्थ-विशेष (अणु)

दसार :: पुं [दशार्ह] १ समुद्रविजय आदि दश यादव (सम १२९; हे २, ८५; अंत २; णाया १, ४ — पत्र ९९) २ वासुदेव, श्रीकृष्ण (णाया १, १६) ३ बलदेव (आवम) ४ वासुदेव की संतति (राज) °णेउ पुं [°नेतृ] श्रीकृष्ण (उव)। °नाह पुं [°नाथ] श्रीकृष्ण (पाअ)। °वइ पुं [°पति] श्रीकृष्ण (कुमा)।

दसिया :: देखो दसा (सुपा ६४१)।

दसु :: पुं [दे] शोक, दिलगीरी (दे ५, ३४)।

दसुत्तरसय :: न [दशोत्तरशत] १ एक सौ दस। २ वि. एक सौ दसवाँ, ११० वाँ (पउम ११०, ४५)

दसुय :: पुं [दस्यु] लुटेरा, डाकू, चोर, तस्कर (उत्त १०, १६)।

दसेर :: पुं [दे] सूत्र-कनक (दे ५, ३३)।

दस्स :: देखो दंस=दर्शय्। कृ. दस्सणीअ (स्वप्‍न ६५)।

दस्सण :: देखो दंसण (मै २१)।

दस्सु :: पुं [दस्यु] चोर, तस्कर (श्रा २७)।

दह :: सक [दह्] जलना, भस्म करना। दहइ (महा)। कर्म. दहिज्जइ (हे ४, २५६), दज्झइ (आचा)। वकृ. दहंत (श्रा २८)। कवकृ. दज्झंत, दज्झमाण (नाट — मालती ३०; पि २२२)।

दह :: पुं [द्रह] ह्रद, बड़ा जलाशय, झील, सरोवर (भग; उवा; णाया १, ४ — पत्र ९६; सुपा १३७)। °फुल्लिया स्त्री [°फुल्लिका] वल्ली-विशेष (पण्ण १)। °वई, °।वई स्त्री [°वती] नदी-विशेष (ठा २, ३ — पत्र ८०; र्ज ४)।

दह :: देखो दस (हे १, २६२; दं १२; पि २६२; पउम ७८, २५; से १३, ९४; प्राप्र; से १४, १६; ३, ११; १०, ४; पउम ८, ४४; प्राप्र)।

दहण :: न [दहन] १ दाह, भस्मीकरण। २ पुं. अग्‍नि, वह्नि (पण्ह १, १; उप पृ २२; सुपा ४७४; श्रा २८)

दहणी :: स्त्री [दहनी] विद्या-विशेष (पउम ७ १३८)।

दहबोल्ली :: स्त्री [दे] स्थाली, थलिया, थरिया (दे ५, ३६)।

दहावण :: वि [दाहक] जलानेवाला (सण)।

दहि :: न [दधि] दही, दूध का विकार (ठा ३ १; णाया १, १; प्राप्र)। °घण पुं [°घन] दधि-पिण्ड, अतिशय जमा हुआ दही (पण्ण १७ — पत्र ५२९)। °मुह पुं [°मुख] १ द्वीप-विशेष (पउम ५१, १) २ एक नगर (पउम ५१, २) ३ पर्वत-विशेष (राज) °वण्ण, °वन्न पुं [°पर्ण] १ एक राजा, नृप-विशेष (कुप्र ६९) २ वृक्ष-विशेष (औप; सम १५२; पण्ण १ — पत्र ३१)। °वासुया स्त्री [°वासुका] वनस्पति- विशेष (जीव ३)। °वाहण पुं [°वाहन] नृप-विशेष (महा)।° सर पुं [°सर] खाद्य- द्रव्य-विशेष, मलाई, (दे ३, २९; ५, ३६)

दहि :: त्रि [दधि] १ दही, 'जुन्हादहीय महणेण' (धर्मवि ५५); 'अयं तु दही' (सुअ १, १, १६) २ तेला, लगातार तीन दिन का उपवास (संबोध ५८)

दहिउप्फ :: न [दे] नवनीत, नैनूँ, मक्खन (दे ५, ३५)।

दहिट्ठ :: पुं [दे] वृक्ष-विशेष, कपित्थ, कैंथ या कैथ का पेड़ (दे ५, ३५)।

दहिण :: देखो दाहिण (नाट — वेणी ६७)।

दहित्थर, दहित्थार :: पुं [दे] दधिसर, दही पर की मलाई, खाद्य-विशेष (दे ५, ३६)।

दहिभुह :: पुं [दे] कपि, वानर (दे ५, ४४)।

दहिय :: पुं [दे] पक्षि-विशेष, 'जं लावयतित- रिदहियमोरं मारंति अद्दोस वि के वि घोर' (कुप्र ४२७)।

दा :: सक [दा] देना, उत्सर्ग करना। दाइ, देइ (भवि, हे २, २०६; आचा; महा; कस)। भवि दाहं, दाहामि, दाहिमि (हे ३, १७०; आचा)। कर्म, दिज्जइ (हे ४, ४३८)। वकृ. दिंत, देंत, ददंत, देयमाण (सुर १, २१२; गा २३; ४६४; हे ४, ३७९; बृह १; णाया १, १४ — पत्र १८६)। कवकृ. दिज्जंत, दिज्जमाण, दीअमाण (गा १०१; सुर ३, ७९; १०, ५; सम ३९; सुपा ५०२; मा ३३)। संकृ. दच्चा, दाउं, दाऊण (विपा १, १; पि ५८७; कुमा; उव)। हेकृ. दाउं (उवा)। कृ. दायव्व, देय (सुर १, ११०; सुपा २३३; ४४४; ५३२)। हेकृ. देवं (अप) (हे ४, ४४१)।

दा° :: देखो दग। °थालग न [°स्थालक] जल से गीला थाल (भग १५ — पत्र ६८०)। कलस पुं [°कलश] पानी का छोटा घड़ा। °कुंभ [°कुम्भ] जल का घड़ा। °वरग पुं [°वारक] जल का पात्र-विशेष (भग १५ — पत्र ६८०)।

दा :: देखो ता=तावत् (से ३, १०)।

दाअ :: देखो दाव=दर्शय्। दाएइ (विसे ८४४)। कर्म, दाइज्जइ (विसे ४६०)। कवकृ. दाइ- ज्जमाण (कप्प)।

दाअ :: पुं [दे] प्रतिभू, जामिनदार, जमानत करनेवाला (दे ५, ३८)।

दाअ :: पुं [दाय] दान, उत्सर्ग (णाया १, १ — पत्र ३७)।

दाइ :: वि [दायिन्] दाता, देनेवाला (उप पु १६२)।

दाइअ :: वि [दर्शित] दिखलाया हुआ (विसे १०१२)।

दाइअ :: पुं [दायिक] १ पैतृक संपत्ति का हिस्सेदार (उप पृ ४७; महा) २ गोत्रिक, समान-गोत्रीय (कप्प)

दाइज्जमाण :: देखो दाअ=दर्शय्।

दइज्जय :: न [देयक] पाणिग्रहण के समय वर-वघू को दिया जाता द्रव्य (सिरि ४६९)।

दाउ :: वि [दातृ] दाता, देनेवाला (महा; सं १; सुपा १९१)।

दाउं :: देखो दा=दा।

दाओयरिय :: वि [दाकोदरिक] जलोदर रोगवाला (विपा १, ७)।

दाक्खव :: (अप) देखो दक्खव। दाक्खवइ (प्राकृ ११९)।

दाघ :: देखो दाह (हे १, २६४)।

दाडिम :: न [दाडिम] फल-विशेष, अनार (महा)।

दाडिमी :: स्त्री [दाडिमी] अनार का पड़ (पि २४०)।

दाढगालि :: देखो दढगालि (दसनि १, ४६ टी)।

दाढा :: स्त्री [दंष्टा] बड़ा दाँत, दन्त-विशेष, चौभड़, चहू, दाढ़ (हे २, १३०; गउड)।

दाढि :: वि [दंष्ट्रिन्] १ दाढ़ावाला । २ पुं, हिसक पशु (वेणी ४६)। सूअर, वराह; 'किं दाढ़ीभयभीओ निययं गुहं केसरी रियइ' (पउम ७, १८)

दाढिआ :: स्त्री [दे] दाढ़ी, मुख के नीचें का भाग, श्मश्रु, ठुड्‍ढी के नीचे या ठुड्डी पर के जाल (दे २, १०१)।

दाढिआलि, दाढिगालि :: स्त्री [दंष्ट्रिकावलि] १ दाढ़ा की पंक्ति। २ वस्त्र-विशेष (बृह ३; जीत)

दाण :: पुंन [दान] १ दान, उत्सर्ग, त्याग; 'एए हवंति दाण' (पउम १४, ५४; कप्प; प्रासू ४८; ९७; १७२) २ हाथी का मद (पाअ; षड्; गउड) ३ जो दिया जाय वह (गउड)। °विरय पुं [°विरत] एक राजा (सुपा १००)। °साला स्त्री [°शाला] सत्रागार (ती ८)

दाणंतराय :: न [दानान्तराय] कर्म-विशेष, जिसके उदय से दान देने की इच्छा नहीं होती है (राय)।

दाणपारमिया :: स्त्री [दावपारमिता] दान, उत्सर्ग, समर्पण; 'देतस्स हिरन्‍नादी अव्भासा देहमादियं चेव। अग्गहविणिवित्ती जा सेट्ठा सा दाणपारमिया' (धर्मसं ७३७)।

दाणत्र :: पुं [दानव] दैत्य, असुर, दनुज (दे १, १७७; अच्चु ४१; प्रासू ८६)

दाणविंद :: पुं [दानवेन्द्र] असुरों का स्वामी (णाया १, ८; पउम ६२, ३६; प्रासू १०७)

दाणि :: स्त्री [दे] शुल्क, चुंगी (सुपा ३९०; ५४८)

दाणि, दाणिं, दाणिं :: अ [इदानीम्] इस समय, अभी (प्रति ३९; स्वन्प २०; हे १, २९; ४, २७७; अभि ३७; स्वप्‍न ३३)

दाथ :: वि [द्वा.स्य] १ द्वार पर स्थित । २ पुं. प्रतीहार, द्वारपाल, चपरासी (दे ६, ७२)

दादलिआ :: स्त्री [दे] अंगुली, उंगली (दे ५, ३८)

दापण :: न [दापन] दिलाना, ‘अब्भुट्ठाणं अंजलिकरणं तहेवासणदारणं’ (सत्त २९ टी)।

दाम :: न [दामन्] १ माला, स्रज् (पण्ह १, ४; कुमा) २ रज्जु, रस्सी (गा १७२; हे १, ३२) ३ पुं. वेलन्धर नागराज का एक आवास-पर्वत (राज) । °वंत वि [°वत्] मालावाला (कुमा)

दामट्ठि :: पुं [दामस्थि] सौधर्म देवलोक के इन्द्र के वृषभ-सैन्य का अधिपति देव (इक)

दामडि्ढ :: पुं [दामर्द्धि] ऊपर देखो (ठा ५, १ — पत्र ३०३)

दामण :: न [दामन] बन्धन, पशुओं का रस्सी से नियन्त्रण (पव ३८)

दामण :: स्त्रीन [दामनी] पशु को बाँधने की डोरी — रस्सी, पगहा (धर्मवि १४४) । स्त्री. °णी (सुज्ज १०, ८)।

दामणी :: स्त्री [दासनी] १ पशुओं को बांधने की रस्सी (भग १६, ६) २ भगवान् कुन्थु- नाथ की मुख्य शिष्या (तित्थ) ३ स्त्री और पुरुष का रज्जु के आकारवाला एक शुभ लक्षण (पण्ह २, ४ टी — पत्र ८४; पण्ह २, ४ — पत्र ६८; ७९; जं २)

दामणा :: स्त्री [दे] १ प्रसव, प्रसुति । २ नयन, आख (दे ५, ५२)

दामिय :: वि [दामित] संयमित, नियन्त्रित (सण)।

दामिली :: स्त्री [द्राविडी] द्रविड़ देश की लिपि में निबद्ध एक मन्त्र-विद्या (सूअ २, २)

दामी :: स्त्री [दामी] लिपि-विशेष (सम ३५)

दामोअर :: पुं [दामोदर] १ श्रीकृष्ण वासुदेव (ती ४) २ अतीत उत्सर्पिणी काल में भरत- क्षेत्र में उत्पन्न नववाँ जिनदेव (पव ७)

दायग :: वि [दायक] दाता, देनेवाला (उप ७२५ टी; महा; सुर २, ४४; सुपा ३७८)

दायण :: न [दान] देना, ‘दायणे अ निकाए अ अब्भुट्ठाणेत्ति आवरे’ (सम २१); ‘तवो- विहाणं तह दाणदाप (? य) णं’ (सत्त २९)

दायणा :: स्त्री [दापना] पृष्ट अर्थ को व्याख्या (विसे २९३२)

दायय :: देखो दायग; ‘अजिअसंतिपायया हुंतु मे सिवसुहाण दायया’ (अजि ३४)।

दायव्व :: देखो दा = दा ।

दायाद :: पुं [दायाद] पैतृक संपत्ति का भागी- दार, पुत्र, सर्पिड कुटुम्बी (आचा)

दायार :: वि [दायार] याचक, प्रार्थी (कप्प)।

दार :: सक [दारय्] विदारना, तोड़ना, चूर्ण करना। वकृ. दारंत (कुमा)।

दार :: पुं [दे] कटी-सूत्र, काँची (दे ५, ३८)।

दार :: पुंन [दार] कलत्र, स्त्री, महिला (सम ५०; स १३७; सुर ७, २०१; प्रासू ९५); ‘दव्वेण अप्पकालं गहिया वेसावि होइ परदारं’ (सुपा २८०)।

दार :: न [द्वार] दरवाजा, निकलने का मार्ग (औप; सुपा ३६७)। °ग्गला स्त्री [°।र्गला] दरवाजे का आगल (गा ३२२) । °ट्ठ, °त्थ वि [°स्थ] १ द्वार पर स्थित । २ पुं. दरवान, प्रतीहार (बृह १; दे २, ५२) °पाल, °वाल पुं [°पाल] दरवान, द्वार-रक्षक (उप ५३० टी; सुर १०, १३९; महा) । °वालय, °वालिय पुं [°पालक, पालिक] दरवान, प्रतीहार (पउम १७, १९; सुपा ४६६)

दार, दाण :: पुं [दारक] शिशु, बालक, बच्चा (उप पृ ३०८; सुर १५. ११९; कप्प)। देखो दारय ।

दारद्धंता :: स्त्री [दे] पेटी, संदूक (दे ५, ३८)

दारय :: वि [दारक] करनेवाला, विध्वंसक (कुप्र १३०) । २ देखो दारण (कप्प)।

दारिअ :: वि [दारित] विदारित, फाड़ा डुआ (पाअ)

दारिआ :: स्त्री [दारिका] लड़की (स्वप्‍न १५; णाया १, २६; महा)

दारिआ :: स्त्री [दे] वेश्या, वारागना (दे ५, ३८)।

दारिद्द :: न [दारिद्रय] १ निर्धनता। २ दीनता (गा ६७१; महा; प्रासू १७३) ३ आलस्य (प्रामा)

दारिद्दिय :: वि [दारिद्रित] दरिद्रता-प्राप्त, दरिद्र (पउम ५५, २५)।

दारु :: न [दारु] काष्ठ, लकड़ी (सम ३९; कुप्र १०४; स्वप्‍न ७०)। °ग्गाम पुं [°ग्राम] ग्राम-विशेष (पउम ३०, ६०)। °दंडय पुंन [°दण्डक] काष्ठ-दण्ड, साधुओं का एक उपकरण (कस)। °पव्वय पुं [°पर्वत] पर्वत-विशेष (जीव ३) । °पाय न [°पात्र] काष्ठ का बना हुआ भाजन (ठा ३, ३)। °पुत्तय पुं [°पुत्रक] कठपुतला (अच्चु ८२)। °मड पुं [°मड] भरत-क्षेत्र के एक भावी जिन-देव के पूर्व जन्म का नाम (सम २५४)। °संकम पुं [°संक्रम] काष्ठ का बना हुआ पुल, सेतु (आचा)।

दारुअ :: पुं [दारुक] १ श्रीकृष्ण वासुदेव का एक पुत्र, जिसने भगवान् नेमिनाथ के पास दीक्षा लेकर उत्तम गति प्रप्त की थी (अंत ३) २ श्रीकृष्ण का एक सारथि (णाया १, १६) ३ न. काष्ठ, लकड़ी (पउम २६, ९)

दारुइज्ज :: वि [दारुकीय] काष्ठ-निर्मित, लकड़ी का बना हुआ। °पव्वय पुं [पर्वत] काष्ठ का बना हुआ मालूम पड़ता पर्वत (राय ७५)।

दारुण :: वि [दारुण] १ विषम, भयंकर, भीषण (णाया १, २; पाअ; गउड) २ क्रोध-युक्त, रौद्र (वव १) ३ न. कष्ट. दुःख (स ३२२) ४ दुर्भिक्ष, अकाल ( उप १३९ टी)

दारुणी :: स्त्री [दारुणी] विद्यादेवी-विशेष (पउम ७, १४०)।

दालण :: न [दारण] विदारण, खण्डन (पण्ह १, १)

दालि :: स्त्री [दे. दालि] १ दाल, दला हुआ चन, अरहर, मूँग आदि अन्न (सुपा ११; सण) २ राजि, रेखा. लकीर (ओघ ३२३)

दालिअ :: न [दे] नेत्र, आँख (दे ५, ३८)।

दालिद्द :: देखो दारिद्द (हे १, २५४; प्रासू ७०)।

दालिद्दिय :: देखो दारिद्दिय (सुर १३, ११६; वज्जा १३८)।

दालिम :: देखो दाडिम (प्राप्र)।

°दालियंब :: न [दालिकाम्ल] दाल का बना हुआ खाद्य-विशेष (पणह २, ५)।

दालिया :: स्त्री [दालिका] देखो दालि (उवा)।

दाली :: देखा दालि (ओघ ३२३)।

दाव :: सक [दर्शय्] दिखलाना, बतलाना। दावइ, दावेइ (हे ४, ३२; गा ३१५)। वकृ. दावंत (गा ९२०)।

दाव :: सक [दापय्] दिलाना, दान करवाना। दावेइ (कस)। वकृ. दावेंत (पउम ११७, २६; सुपा ६१८)। हेकृ. दावेत्तए (कप्प)।

दाव :: देखो ताव = तावत् (से ३, २६; स्वप्‍न १२; अभि ३९)।

दाव :: पुं [दाव] १ वन, जंगल। २ देव, देवता (से ९, ४३) ३ जंगल का अग्‍नि (पाअ)। °ग्गि पुं [°ग्नि] जंगल की आग (हे १, ६७)। °णिल, °निल पुं [°निल] जंगह की आग (सण; सुपा १९७; पडि)

दावण :: न [दामन] छान, पशुओं को पैर में बाँधने की रस्सी (कुप्र ४३६)।

दावण :: न [दापन] दिलाना (सुपा ४९९)।

दावणया :: स्त्री [दापना] दिलाना (स ५१; पडि)।

दावद्दव :: पुं [दावद्रव] वृक्ष-विशेष (णाया १, ११ — पत्र १७१)।

दावर :: पुं [द्वापर] १ युग-विशेष, तीसरा युग। २ न. द्विक, दो; 'नो तियं नो चेव दावरं' (सूअ १, २, २, २३)। °जुम्म पुं [°युग्म] राशि-विशेष (ठा ४, ३ — पत्र २३७)

दावव :: सक [दापय्] दिलाना। संकृ. दावावेउं (महा)।

दाविअ :: वि [दर्शित] दिखलाया हुआ, प्रदर्शित (पाअ, से १, ५३; ५, ८०)।

दाविअ :: वि [दापित] दिलाया हुआ (सुपा २४१)।

दाविअ :: वि [द्रावित] १ झराया हुआ, टप- काया हुआ। २ नरम किया हुआ (अच्चु ८८)

दावेंल :: देखो दाव = दापय्।

दास :: पुं [दर्श] दर्शन, अवलोकन (षड्)।

दास :: पुं [दास] १ नौकर, कर्मंकर (हे २, २०६; सुपा १२२; प्रासू १७५; स १८; कप्पू। २ धीवर, मल्लाह; 'केवट्टो धीवरो दासो' (पाअ) °चेड, °चेटग पुं [°चेट] १ छोटी उम्र का नौकर। २ नौकर का लड़का (महा; णाया १, २)। °सच्च पुं [°सत्य] श्रीकृष्ण (अच्चु १७)

दासरहि :: पुं [दाशरथि] राजा दशरथ का पुत्र, रामचन्द्र (से १, १४)।

दासी :: स्त्री [दासी] नौकरानी (औप; महा)।

दासीखब्बडिया :: स्त्री [दासीकर्बटिका] जैन मुनियों की एक शाखा (कप्प)।

दाह :: पुं [दाह] १ ताप, जलन, गरमी। २ दहन, भस्मीकरण (हे १, २६४; प्रासू १८) ३ रोग-विशेष (विपा १, १)। °ज्जर पुं [°ज्वर] ज्वर-विशेष (सुपा ३११)। °वक्कं- तिय वि [°व्युत्क्रुान्तिक] जिसको दाह उत्पन्न हुआ हो वह (णाया १, १ — पत्र ६४)

दाहं :: देखो दा = दा।

दाहग :: वि [दाहक] जलानेवाला (उबर ८१)।

दाहण :: न [दाहन] जलाना, भस्म कराना (पउम १०२, १९१)।

दाहविय :: वि [दाहित] जलवाया हुआ, आग लगवाया हुआ (हम्मीर २७)।

दाहिण :: देखो दक्खिण (भग; कस; हे १, ४५; २, ७२; गा ४३३; ८१६)। °दारिय वि [°द्वारिक] दक्षिण दिशा में जिसका द्वार हो वह। २ न. अश्विनी-प्रमुख सात नक्षत्र (ठा ७) °पच्चत्थिम वि [°पश्चिमीय] दक्षिण और पश्चिम दिशा के बीच का भाग, नैर्ऋत कोण (भग)। °पह पुं [°पथ] १ दक्षिण देश की और का रास्ता। २ दक्षिण देश; 'गच्छामि दाहिणपहं' (पउम ३२, १३)। °पुरत्थिम वि [°पूर्वीय] दक्षिण और पूर्वं दिशा के बीच का भाग, अग्‍नि-कोण (भग)। °वित्त वि [°वर्त] दक्षिण में आवर्तंवाला (शंख आदि)। (ठा ४, २ — पत्र २१६)

दाहिणा :: देखो दक्खिणा (ठा ६; सुज्ज १०)।

दाहिणिल्ल :: देखो दक्खिणिल्ल (पउम ७, १७; विपा १, ७)।

दाहिणी :: स्त्री [दक्षिणा] दक्षिण दिशा (कुमा)।

दि :: वि. ब. [द्वि] दो, दो को संख्यावाला (हे १, ९४; से ६, ५३)।

दि° :: देखो दिसा (गा ८६६)। °क्करि पुं [°करिन्] दिग्-हस्ती (कुमा)। °ग्गइंद पुं [°गजेन्द्र] दिग्-हस्ती (गउड)। °ग्गय पुं [°गज] दिग् हस्ती (स ११३)। °चक्कसार न [चक्रसार] विद्याधरों का एक नगर (इक)। °म्मोह पुं [°मोह] दिशा-भ्रम (गा ८८६)। देखो दिसा।

दिअ :: पुंन [दे] दिवस, दिन (दे ५, ३९); 'राइंदिआइं' (कप्प)।

दिअ :: पुं [द्विज] १ ब्राह्मण, विप्र (कुमा; पाअ; उप ७६९ टी) २ दन्त, दाँत। ३ ब्राह्मण आदि तीन वर्ण — ब्राह्मण, क्षत्रिय और वैश्य। ४ अण्डज, अण्डे से उत्पन्‍न होनेवाला प्राणी। ५ पक्षी। ६ वृक्ष-विशेष, टिंबरू का पेड़ (हे १, ९४) °राय पुं [°राज] १ उत्तम द्विज। २ चन्द्रमा (सुपा ४१२; कुप्र १९)

दिक :: पुं [द्विक] काक, कौआ (उप ७६८ टी)।

दिअ :: पुं [द्विप] हस्ती, हाथी (हे २, ७९)।

दिअ :: न [दिव] स्वर्ग, देवलोक (पिंग)। °लोअ, °लोग पुं [°लोक] स्वर्गं, देवलोक (पउम २२, ४५; सुर ७, १)।

दिअ :: वि [दित] छिन्न, काटा हुआ (धम्मो १)।

दिअ :: वि [दृत] हत, मारा डाला हुआ, 'चंदेण व दियराएण जेण आणंदियं भुवणं' (कुप्र १९)।

दिअंत :: पुं [दिगन्त] दिशा का प्रान्त भाग (महा)।

दिअंबर :: वि [दिगम्बर] १ नग्‍न, नंगा, वस्त्र- रहित। २ पुं. एक जैन संप्रदाय (भवि; उवर १२२; कुप्र ४४३)

दिअज्झ :: पुं [दे] सुवर्णंकार, सोनार (दे ५, ३९)।

दिअधुत्त :: पुं [दे] काक, कौआ (दे ५, ४१)।

दिअर :: पुं [देवर] पति का छोटा भाई (गा ३५; प्राप्र; पाअ; हे १, १४६; सुपा ४८७)।

दिअलिअ :: वि [दे] मूर्खं, अज्ञानी (दे ५, ३९)।

दिअली :: स्त्री [दे] स्थूणा, खम्भा, खूँटी (पाअ)।

दिअस :: पुंन [दिवस] दिन, दिवस (गउड; पि २६४)। °कर पुं [°कर] सूर्य, रवि (से १, ५३)। °नाह पुं [°नाथ] सूर्यं, सूरजं (पउम १४, ८३)। °यर देखो °कर (पाअ)। देखो दिवस।

दिअसिअ :: न [दे] १ सदा-भोजन (दे ५, ४०) २ अनुदिन, प्रतिदिन (दे ५, ४०, पाअ)

दिअह :: देखो दिअस (प्राप्र; पाअ)।

दिअहुत्त :: न [दे] पूवर्ह्णि का भोजन, दुपहर का भोजन (दे ५, ४०)।

दिआ :: अ [दिवा] दिन, दिवस (पाअ; गा ६६; सम १९; पउम २६, २६)। °णिस न [°निश] दिन-रात, सदा (पिंग)। °राअ न [°रात्र] दिन-रात, सर्वंदा (सुपा ३१८)। देखो दिवा।

दिआहम :: पुं [दे] भास पक्षी (दे ५, ३९)।

दिआइ :: देखो दुआइ (पाअ)।

दिइ :: स्त्री [दृति] मशक, चमड़े के जल-पात्र (अनु ५; कुप्र १४९)।

दिउण :: वि [द्विगुण] दूना, दुगुना (पि २९८)।

दिंत :: देखो दा = दा।

दिक्काण :: पुं [द्रेष्काण] मेष आदि लग्‍नों का दसवाँ हिस्सा (राज)।

दिक्ख :: सक [दीक्ष्] दीक्षा देना, प्रव्रज्या देना, संन्यास देना, शिष्य करना। दिक्खे (उव)। वकृ. दिक्खंत (सुपा ५२६)।

दिक्ख :: देखो देक्ख। दिक्खइ (पि ६६)।

दिक्खा :: स्त्री [दीक्षा] १ प्रवज्या देना, दीक्षण (ओघ ७ भा) २ प्रव्रज्या, संन्यास (धर्मं २)

दिक्खिअ :: वि [दीक्षित] जिसको प्रव्रज्या दी गई हो वह, जो साधु बनाया गया हो वह (उव)।

दिगंछा :: देखो दिगिंछा (पि ७४)।

दिगबर :: देखो दिअंबर (इक; आवम)।

दिगिंछा :: स्त्री [जिघत्सा] बुभुक्षा, भूख (सम ४०; विसे २५९४; उत्त २; आचू)।

दिगच्छ :: सक [जिघत्स्] खाने को चाहना। वकृ. दिगिच्छंत (आचा; पि ५५५)।

दिगु :: पुं [द्विगु] व्याकरण-प्रसिद्ध एक सामस (अणु; पि २९८)।

दिग्गु :: देखो दिगु (अणु १४७)।

दिग्घ :: देखो दीह (हे २, ९१; प्राप्र; संक्षि १७; स्वप्‍न ६८; विसे ३४९७)। °णंगूल, लंगूल वि [°लाङ्गूल] १ लम्बी पूँछवाला २ पुं. वानर (षड्)

दिग्घिआ :: स्त्री [दीर्घिंका] वापी, सीढ़ीवाला कूप-विशेष (स्वप्‍न ५९, विक्र १३६)।

दिच्छा :: स्त्री [दित्सा] देने की इच्छा (कुप्र २६६)।

दिज :: देखो दिअ = द्विज (कुमा)।

दिज्ज :: वि [देय] १ देने योग्य। २ जो दिया जा सके। ३ पुंन. कर-विशेष (विपा १, १)

दिज्जंत, दिज्जमाण :: देखो दा = दा।

दिट्ठ :: वि [दिष्ट] कथित, प्रतिपादित, कहा हुआ (उप ७६८ टी)।

दिट्ठ :: वि [दृष्ट] १ देखा हुआ, विलोकित (ठा ४, ४ स्वप्‍न २८; प्रासू १११) २ अभिमत (अणु) ३ ज्ञात, प्रणाण से जाना हुआ (उप ८८२; बृह १) ४ न. दर्शन, विलोकन (ठा २, १)। °पाढि वि [°पाठिन्] चरक- सुश्रुतादि का जानकार (ओघ ७४)। °लाभिय पुं [°लाभिक] दृष्ट वस्तु को ही ग्रहण करनेवाला जैन साधु (पणह २, १)

दिट्ठ :: न [दृष्ट] प्रत्यक्ष या अनुमान प्रमाण से जानने योग्य वस्तु (धर्मं सं ५१८; ५१९)। °साहम्मव न [साधर्म्यवत्] अनुमान का एक भेद (अणु २१२)।

दिट्ठंत :: पुं [दृष्टान्त] उदाहरण, निदर्शंन (ठा ४, ४; महा)।

दिट्ठंतिअ :: वि [द्रार्ष्टान्तिक] १ जिस पर उदाहरण दिया गया हो वह (विसे १००५ टी) २ न. अभिनय-विशेष (ठा ४, ४ — पत्र २८५)

दिट्ठव्व :: देखो दक्ख = द्दश्।

दिट्ठि :: स्त्री [दृष्टि] १ नेत्र, आँख, नजर (ठा ३, १; प्रासू १९; कुमा) २ दर्शंन, मत (पणण १९; ठा ४, १) ३ दर्शंन, अव- लोकन, निरीक्षण (अणु) ४ बुद्धि, मति (सम २५; उत्त २) ५ विवेक, विचार (सूअ २, २) °कीव पुं [°क्लीब] नपुंसक- विशेष (निचू ४)। °जुद्ध न [°युद्ध] युद्ध-विशेष, आँख की स्थिरता की लड़ाई (पउण ४, ४४)। °बंधं पुं [°बन्ध] नजरल बाँधना (उप ७२८ टी)। °म, °मंत वि [°मत्] प्रशस्त, दृष्टिवाला, सम्यग्-दर्शी (सूअ १, ४, १; आचा)। °राय पुं [°राग] १ दर्शंन-राग, अपने धर्म पर अनुराग (धर्मं २) २ चाक्षुष-स्‍नेह (अभि ७४) °ल्ल वि [°मत्] प्रशस्त दृष्टिवाला (पउम २८, २२)। °वाय पुं [°पात] १ नजर डालना (से १०, ५) २ बारहबाँ जैन अंग-ग्रंथ (ठा १० — पत्र ४९१)। °वाय पुं [°वाद] बारहवाँ जेन अंग-ग्रन्थ (ठा १०; सम १)। °विपरिआसिआ स्त्री [°विपर्यासिका, °सिता] मति भ्रम (सम २५)। °विस पुं [°विष] जिसकी दृष्टि में विष हो ऐसा सर्पं (से ४, ५०)। °सूल न [°शूल] नेत्र का रोग-विशेष (णाया १, १३ — पत्र १८१)

दिट्ठि :: स्त्री [दृष्टि] तारा, मित्रा आदि योग-दृष्टि (सिरि ९२३)।

दिट्ठिआ :: अ [दिष्टया] इन अर्थों का सूचक अव्यय — १ मंगल। २ हर्षं, आनन्द, खुशी। ३ भाग्य से (हे २, १०४; स्वप्‍न १९; अभि ९५; कुप्र ६५)

दिट्ठिआ :: स्त्री [दृष्टिका, °जा] १ क्रिया- विशेष — दर्शंन के लिए गमन। २ दर्शंन से कर्मं का उदय होना (ठा २, १ — पत्र ४०)

दिट्ठीआ :: स्त्री [दृष्टीया] ऊपर देखो (नव १८)।

दिट्ठीवाओबएसिआ :: स्त्री [दृष्टिवादो- पदेशिकी] संज्ञा-विशेष (दं ३३)।

दिट्ठेल्लय :: वि [दृष्ट] देखा हुआ, निरीक्षित (आवम)।

दिड्‍ढ, दिढ :: देखो दढ (नाट — मालती १७; से १, १४; स्वप्‍न २०५; प्रासू ९२)। दिण पुंन [दिन] दिवस (सुपा ५६; दं २७; जी ३५; प्रासू ६५)। °इंद पुं [°इन्द्र] सूर्यं, रवि (सण)। °कय पुं [°कृत्] सूर्य, रवि (राज)। °कर पुं [°कर] सूर्य, सूरज (सुपा ३१२)। °नाह पुं [°नाथ] सूर्यं, रवि (महा)। °बंधु पुं [°बन्धु] सूर्यं, रवि (पुप्फ ३७)। °मणि पुं [°मणि] सूर्यं, दिवाकर (पाअ; से १, १८; सुपा २३)। °मुह न [°मुख] प्रभात, प्रातःकाल (पाअ)। °यर देखो °कर (गउड; भवि)। °रयणिकरि स्त्री [°रजनिकरी] विद्या-विशेष (पउम १३८)। °वइ पुं [°पति] सूर्यं, रवि (पि ३७९)।

दिणिंद :: पुं [दिनेद्र्] सूर्य, रवि (सुपा २४०)।

दिणेस :: पुं [दिनेश] १ सूर्य, सूरज (कप्पू) २ बारह की संख्या (विवे १४४)

दिण्ण :: वि [दन्त] १ दिया हुआ, वितीर्णं (हे १, ४६; प्राप्र; स्वप्‍न; प्रासू १६४) २ निवेशित, स्थापित (पराह १, १) ३ पुं. भगवान् पार्श्वंनाथ के प्रथम गण- धर (सम १५२) ४ भगवान् श्रेयासनाथ का पूर्वजन्मीय नाम (सम १५१) ५ भगवानव् चन्द्रप्रभ का प्रथम गणधर (सम १५२) ६ भगवान् नमिनाथ को प्रथम भिक्षा देनेवाला एक गृहस्थ (सम १५१)। देखो दिन्न।

दिण्ण :: देखो दइन्न (राज)।

दिण्णोल्लय :: वि [दत्त] दिया हुआ (ओघ २२ भा. टी)।

दित्त :: वि [दीप्त] १ ज्वलित, प्रकाशित (सम १५३; अजि १४; लहुअ ११) २ कान्ति- युक्त, भास्वर, तेजस्वी (पउम ९४, ३५; सम १२२) ३ तीक्ष्णभूत, निशित (सम १५३; लहुअ ११) ४ उज्ज्वल, चमकीला (णंदि) ५ पुष्ट, परिवृद्ध (उत्त ३४) ६ प्रसिद्ध (भग २६, ३) ७ मारनेवाला (ओघ ३०२)। °चित्त वि [°चित्त] हर्ष के अतिरेक से जिसको चित्त-भ्रम हो गया हो वह (बृह ३)

दित्त :: वि [दृप्त] १ गर्वित, गर्व-युक्त (औप) २ मारनेवाला। ३ हानि-कारक (ओघ ३०२) °इत्त वि [°चित्त] २ जिसके मन में गर्व हो। २ हर्षं के अतिरेक से जो पागस हो गया हो वह (ठा ५, ३ — पत्र ३२७)

दित्ति :: स्त्री [दीप्ति] कान्ति, तेज, प्रकाश (पाअ; सुर ३, ३२; १०, ४६; सुपा ३७८)। °म वि [°मत्] कान्ति-युक्त (गच्छ १)।

दित्ति :: स्त्री [दीप्ति] उद्दीपन (उत्त ३२, १०)। °ल्ल वि [°मत्] प्रकाशवाला (सम्मत्त १५६)।

दिदिक्खा, दिदिच्छा :: स्त्री [दिदृक्षा] देखने की इच्छा (राज; सुपा २९४)।

दिद्ध :: वि [दिग्ध] लिप्त (निचू १)।

दिन्न :: देखो दिण्ण (महा; प्रासू ५७)। ७ श्री गौतम स्वामी के पास पाँच सौ तापसों के साथ जैन दीक्षा लेनेवाला एक तापस (उप १४२ टी; कुप्र २९३)। ८ एक जैन आचार्य (कप्प)।

दिन्नय :: पुं [दत्तक] गोद लिया हुआ पुत्र (ठा १० — पत्र ५१६)।

दिप्प :: अक [दीप्] १चमकना। २ तेज होना। ३ जलना। दिप्पइ (हे १, २२३)। वकृ. दिप्पंत, दिप्पमाण (से ४, ८; सुर १४, ५६; महा; पणह १, ४; सुपा २४०); 'दिप्पमाणे तवतेएण' (स ६७५)

दिप्प :: अक [तृप्] तृप्त होना, सन्तुष्ट होना। दिप्पइ (षड्)।

दिप्प :: वि [दीप्त] चमकनेवाला, तेजस्वी (से १, ६१

दिप्प :: (अप) पुं [दीप] १ दीपक। २ छन्द-विशेष (पिंग)

दिप्पंत :: पुं [दे] अनर्थ (दे ५, ३९)।

दिप्पंत, दिप्पमाण :: देखो दिप्प = दीप्।

दिप्पिर :: देखो दिप्प = दीप्र (कुमा)।

दियाव :: सक [दा] देना। दियावेइ (पंचा १३, १२)।

दिरय :: पुं [द्विरद्] हस्ती, हाथी (हे १, ९४)।

दिलंदिलिअ :: [दे] देखो दिल्लिंदिलिअ (गा ७४१)।

दिलिदिल :: सक [दिलदिलाय्] 'दिल् दिल्' आवाज करना। वकृ. दिलिदिलंत (पउम १०२, २१)।

दिलिवेढय :: पुं [दिलिवेष्टक] एक प्रकार का ग्राह, जल-जन्तु की एक जाति (पणह १, १)।

दिल्लिंदिलिअ :: पुं [दे] बालक, शिशु, लड़का (दे ५, ४०)। स्त्री. °आ; बाला, लड़की (गा ७४१)।

दिव :: उभ [दिव्] १ क्रीड़ा करना। २ जीतने की इच्छा करना। ३ लेन-देन करना। ४ चाहना, वाँछना। ५ आज्ञा करना। दिवइ, दिवए (षड्)

दिव :: न [दिव्] स्वर्गं, देवलोक (कुप्र ४३६; भवि)।

दिवड्‍ढ :: वि [द्वयपार्ध] डेढ़, एक और आधा (विसे ६९३; स ५५; सुर १०, २०८; सुपा ५८०; भवि; सम ६९; सुज्ज १; १०, ठा ६)।

दिवस, दिवह :: देखो दिअस (हे १, २६३; उव; प्रासु १२; सुपा ३०७; वेणी ४७)। °पुहुत्त न [°पृथकत्व] दो से लेकर नव दिन तक का समय (भग)।

दिवा :: देखो दिआ (णाया १, ४; प्रासू ९०)। °इत्ति पुं [°कीर्त्ति] चाण्डाल, भंगी (दे ५, ४१)। °कर पुं [°कर] सूर्य, सूरज (उत्त ११)। °कित्ति पुं [°कीर्त्ति] नापित, हजाम (कुप्र २८८)। °गर देखो °कर (णाया १, १; कुप्र ४१५)। °मुह न [°मुख] प्रभात (गउड)। °यर देखो °कर (सुपा ३९; ३१४)। °यरत्थ न [°करास्त्र] प्रकाश- कारक अस्त्र-विशेष (पउम ६१, ४४)।

दिवायर :: पुं [दिवाकर] १ सिद्धसेन नामत विख्यात जैन कवि और तार्किक। २ पूर्वंधर मुनि (सम्मत्त १४१)

दिवि :: देखो देव; 'दिबिणावि काणपुरिसे- णव्व एसा दासी अहं च विप्पवरो एगया दिट्ठीए दिस्सामो' (रंभा)।

दिविअ :: पुं [द्विविद] वानर-विशेष (से ४, ८; १३, ८२)।

दिविज :: वि [दिविज] १ स्वर्गं में उत्पन्न। २ पुं. देव, देवता (अजि ७)

दिविट्ठ :: देखो दुविट्ठ (राज)।

दिवे :: (अप) देखो दिवा (हे ४, ४१९; कुमा)।

दिव्व :: वि [दिव्य] १ स्वर्गं-सम्बन्धी, स्वर्गीय (स २; ठा ३, ३) २ उत्तम, सुन्दर, मनोहर (पउम ८, २६१; सुर २, २४२; प्रासू १२८) ३ प्रधान, मुख्य (औप) ४ देव- सम्बन्धी (ठा ४, ४; सूअ १, २, २) ५ न. शप-विशेष, आरोप की शुद्धि के लिए किया जाता अग्‍नि-प्रेवश आदि (उप ८०४) ६ प्राचीन काल में अपत्रुक राजा की मृत्यु हो जाने पर जिस चमत्कार-जनक घटना से राज- गद्दी के लिए किसी मनुष्य का निर्वाचन होता था वह हस्ति-गर्जन, अश्‍व-हेषा आदि अलौ- किक प्रमाण (उप १०३१ टी)। °माणुस न [°मानुष] देव और मनुष्य संबन्धी हकी- कतों का जिसमें वर्णंन हो ऐसो कथा-वस्तु (स २)

दिव्व :: व [दिव्य] १ तेला, तीन दिन का लगातार उपवास (संबोध ५८) २ वि. दिन- सम्बन्धी; 'तिरिया मणुया य दिव्वगा, उव - सग्गा तिविहाहियासिया' (सूअ १, २, २, १५)

दिव्व :: देखो दइव (सुपा १६१)।

दिव्व :: देखो देव; 'अमोहं दिव्वदंसंणंति' (कुप्र ११२)।

दिव्वाग :: पुं [दिव्याक] सर्पं की एक जाति (पणण १)।

दिव्वासा :: स्त्री [दे] चामुण्डा, देवी-विशेष, (दे ५, ३९)।

दिस :: सक [दिश्] १ कहना। २ प्रतिपादन करना। दिसइ (भवि)। कवकृ. दिस्समाण (राज)

दिस :: पुं [दिश] एक देव-विमान (देवेन्द्र १३१)।

दिस :: वि [दिश्य] दिशा में उत्पन्न (से ९, ५०)।

दिसआ :: स्त्री [दृषद्] पत्थर, पाषाण (षड्)।

दिसाइ :: देखो दिसा-दि (सुज्ज ५ टी — पत्र ७८)।

दिसा, दिसि, दिसी° :: स्त्री [दिश्] १ दिशा, पूर्वं आदि दस दिशाएँ (गउउ; प्रासू ११३; महा; सुपा २६७; पणह १, ४, दं ३१; भग) २ प्रौढ़ा स्त्री (से १, १९)। °अक्क न [°चक्र] दिशाओ का समूह (गा ५३०)। °कुमरी स्त्री [°कुमारी] देवी- विशेष (सुपा ४०)। °कुमार पुं [°कुमार] भवनपति देवों की एक जाति (पणण २; औप)। °कुमारी देखो °कुमरी (महा; सुपा ४१)। °गअ पुं [°गज] दिग्-हस्ती (से २, ३; १०, ४६)। °गइद पुं [°गजेन्द्र] दिग्-हस्ती (पि १३९)। °चक्क देखो °अक्क (सुपा ५२३; महा)। °चक्कवाल न [°क्र- वाल] १ दिशाओं का समूह। २ तप-विशेष (निर १, ३)। °चर पुं [°चर] देशाटन करनेवाला भक्त (भग १५)। °जत्ता देखो °यत्ता (उप ७६८ टी)। °जत्तिय देखो °यत्तिय (उवा)। °डाह पुं [°दाह] दिशाओं में होनेवाला एक तरह का प्रकाश, जिसमें नीचे अन्धकार और ऊपर प्रकाश दीखता हैं; यह भावी उपद्रवों का सूचक हैं (भग ३, ७)। °णुवाय पुं [°अनुपात] दिशा का अनुसरण (पणण ३)। °दंति पुं [°दन्तिन्] दिग्-हस्ती (सुपा ४८)। °दाह देखो डाह (भग ३, ७)। °दि पुं [°आदि] मेरु पर्वत (सुज्ज ५)। °देवया स्त्री [°देवता] दिशा की अधिष्ठात्री देवी (रंभा)। °पोक्खि पुं [°प्रोक्षिन्] एक प्रकार का वानप्रस्थ (औप)। °भाअ पुं [°भाग] दिग्भाव (भग; औप; कप्पू; विपा १, १)। °मत्त न [°मात्र] अत्यल्प, संक्षिप्त (उप ७४९)। °मोह पुं [°मोह] दिशा का भ्रम (निचू १९)। °यत्ता स्त्री [°यात्रा] देशाटन, मुसा- फिरी (स १९५)। °यत्तिय वि [°यात्रिक] दिशाओं में फिरनेवाला (उवा)। °लोय पुं [°आलोक] दिशा का प्रकाश (विपा १, ९)। °वह पुं [°पथ] दिशा-रूप मार्गं (पउम २, १००)। °वाल पुं [°पाल] दिक्पाल, दिशा का अधिपति (स ३६९)। °वेरमाण न [°विरमण] जैन गृहस्थ को पालने का एक नियम — दिशा में जाने-आने का परिमाण करना (धर्म्म २)। °व्वय न [°व्रत] देखो °वेरमाण (औप)। °सोत्थिय पुं [°स्वस्तिक] स्वस्तिक-विशेष (औप)। °सोवत्थिय पुं [°सौवस्तिक] १ स्वस्तिक- विशेोष, दक्षिणवर्त्त स्वस्तिक (पणह १, ४) २ न. एक देव-विमान (सम ३८) ३ रुचक पर्वत का एक शिखऱ (ठा ८)। °हत्थि पुं [°हस्तिन्] दिग्गज, दिशाओं में स्थित ऐरवत आदि आठ हस्ती। °हत्थिकूड़ पुंन [°हस्ति- कूट] दिशा में स्थित हस्ती के आकारवाला शिखर-विशेष, वे आठ हैं — पद्मोत्तर, नील- वन्त, सुहस्ती, अञ्जनगिरि, कुमुद, पलाश, अवतंस और रोचनगिरि (जं ४)

दिसेभ :: पुं [दिगिभ] दिग्गज, दिग्-हस्ती (गउड)।

दिस्स :: वि [दृश्य] देखने योग्य, प्रत्यक्ष ज्ञान का विषय (धर्मंसं ४२८)।

दिस्स, दिस्सं, दिस्समाण :: देखो दक्ख = दृश्।

दिस्समाण :: देखो दिस।

दिस्सा :: देखो दक्ख = दृश्।

दिहा :: अ [द्विधा] दो प्रकार (हे १, ९७)।

दिहि :: स्त्री [धृति] दो प्रकार (हे १, ९७)।

दिहि :: स्त्री [धृति] धैर्यं, धीरज (हे २, १३१; कुमा)। °म वि [°मत्] धैर्यं-शाली, धीर (कुमा)।

दीअ :: देखो दीव = दीप (गा १३५; ५४७)।

दीअअ :: देखो दीवय (गा १३५)।

दीअमाण :: देखो दा = दा।

दीण :: वि [दीन] १ रंक, गरीब (प्रासू २३) २ दुःखित, दुःस्थ (णाया १, १) ३ हीन, न्यून (ठा ४, २) ४ शोक-ग्रस्त, शोकातुर (विपा १, २; भग)

दीणार :: पुं [दीनार] सोने का एक सिक्का (कप्प; उफ पृ ९४; ५९७ टी)।

दीपक, दीपक्क :: (अप) पुंन [दीपक] छन्द-विशेष (पिंग)।

दीव :: देखो दिव = दिव्। वकृ. 'अक्खेहिं कुसु- लिहिं दीवयं (सूअ १, २, २, २३)।

दीव :: सक [दीपय्] १ दीपाना, शोभाना। २ जलाना। ३ तेज करना। ४ प्रकट करन। ५ निवेदन करना। दीवइ (ओघ ४३४)। दीवेइ (महा)। वकृ. दीवयंत (कप्प)। संकृ. दीवेत्ता (ओघ ४३४; कस)। कृ. दीवणिज्ज (कप्प)

दीव :: पुं [दीप] १ प्रदीप, दिया, चिराग, आलोक (चारु १९; णाया १, १) २ कल्पवृक्ष की एक जाति, प्रदीप का कार्य करनेवाला कल्पवृक्ष (सम १७) °चंपय न [चम्पक] दिया का ढकना, दीप-पिधान (भग ८, ६)। °ली स्त्री [°ली] १ दीप-पंक्ति। २ दीवाली, पर्व-विशेष, कार्त्तिक वदी अमावस (दे ३, ४३)। °वली स्त्री [°वली] पूर्वोक्त ही अर्थं (ती १९)

दीव :: पुं [द्वीप] १ जिसके चारों ओर जल भरा हो ऐसा भूमि-भाग (सम ५१; ठा १०) २ भवनपति देवों की एक जाति, द्वीपकुमार देव (पणह १, ४; औप) ३ व्याघ्र (जीव १)

°कुमार :: पुं [°कुमार] एक देव-जाति (भघ १६, १३)। °ण्णु वि [°ज्ञ] द्वीप के मार्गं का जानकार (उप ५६५)। °सागरपन्नन्ति स्त्री [°सागरप्रज्ञप्ति] जैन ग्रन्थ-विशेष, जिसमें द्वीपों और समुद्रों का वर्णंन है (ठा ३, २ — पत्र १२६)।

दीव :: पुं [द्वीप] सौराष्ट्र का एक नगर, दीव (पव १११)।

दीवअ :: पुं [दे] कृकलास, गिरगिट (दे ५, ४१)।

दीवअ :: पुं [दीपक] १ प्रदीप, दिया, चिराग, आलोक (गा २२२; महा) २ बि. दीपक, प्रकाशक, शोभा-कारक (कुमा) ३ न. छन्द-विशेष (अजि २६)

दीवंग :: पुं [दीपाङ्ग] प्रदीप का काम देनेवाला कल्पवृक्ष की एक जाति (ठा १०)।

दीवग :: देखो दीवअ = दीपक (श्रा ६; आवम)।

दीवड :: पुं [दे] जलजन्तु-विशेष, 'फुरंतसिप्पि- संपुडं भमंतभीमदीवडं' (सुर १०, १८८)।

दीवण :: न [दीपन] प्रकाशन (ओघ ७४)।

दीवणा :: स्त्री [दीपना] प्रकाश; 'थुओ संतगुण- दीवणाहिं' (स ६७५)।

दीवणिज्ज :: वि [दीपनीय] १ जठराग्‍नि को बढ़ानेवाला (णाया १, १ — पत्र १९) २ शोभायमान, देदीप्यमान (पणण १७)

दीवयं :: देखो दीव = दिव्।

दीवयंत :: देखो दीव = दीपय्।

दीवायण :: पुं [द्वीपायन, द्वैपायन] एक प्राचीन ऋषि, , जिसने द्वारका नगरी जलाने का निदान किया था, और जो आगामी उत्सर्पिणी काल में भरत-क्षेत्र में एक तीर्थंकर होगा (अंत १५; सम १५४; कुप्र ९३)।

दीवि, दीविअ :: पुं [द्वीपिन्] व्याघ्र की एक जाति, चीता (गा ७६१; णाया १, १ — पत्र ६५; पणह १, १)।

दीविअ :: वि [दीपित] १ जलाया हुआ (पउम २२, १७) २ प्रकाशित (ओघ)

दीविअंग :: पुं [दीपिकाङ्गं] कल्प-वृक्ष की एक जाति जो अन्धकार को दूर करता है (पउम १०२, १२५)।

दीविअ :: स्त्री [दे] १ उपदेहिका, क्षुद्र कीट-विशेष। २ व्याघ्र की हरिणी, जो दूसरे हरिणों के आकर्षंण करने के लिए रखी जाती है (दे ५, ५३) ३ व्याध-संबन्धी पिंजड़़े में रखा हुआ तितिर पक्षी (णाया १, १७ — पत्र २३२)

दीविआ :: स्त्री [दीपिका] छोटा दिया, लघु प्रदीप (जीव ३)।

दीविच्चग :: वि [द्वैत्य] द्वीप में उत्प्पन्न, द्वीप में पैदा हुआ (णाया १, ११ — पत्र १७१)।

दीवी :: (अप) देखो देवी (रंभा)।

दीवी :: स्त्री [दीपिका] लघु प्रदीप, छोटा दिया; 'दीवि व्व तीइ बुद्धी' (श्रा १६)।

दीवूसव :: पुं [दीपोत्सव] कार्त्तिक बदी अमावस, दीवाली, दीपावली (ती १९)।

दीसंत, दीसमाण :: देखो दक्ख = दृश्।

दीह :: वि [दीर्घ] १ आयत, लम्बा (ठा ४, २; प्राप्र; कुमा) २ पुं. दो मात्रावाला स्वर- (पिंग) ३ कोशल देश का एक राजा (उप पृ ५८) °काय [°काय] अग्‍निकाय (आचा° अव्य° १ — १ — ४)। °कालिगी स्त्री [°कालिकी] संज्ञा-विशेष, बुद्धि-विशेष, जिससे सुदीर्धं भूतकाल की बातों का स्मरण और सुदीर्धं भविष्य का विचार किया जा सकता है (दं ३२; विसे ५०८)। °कालिय वि [°कालिक] १ दीर्धं काल से उत्पन्न, चिरंतन; 'दीहकालिएणं रोगातंकेणं' (ठा ३, १) २ दीर्घंकाल-सम्बन्धी (आवम) °जत्ता स्त्री [°यात्रा] १ लम्बी सफर। २ मरण, मौत (स ७२९) °डक्क वि [°दष्ट] जिसको साँप ने काटा हो वह (निचू १)। °णिद्दा स्त्री [°निद्रा] मरण, मौत (राज)। °दंत पुं [°दन्त] १ भारतवर्षं का एक भावी चक्र- वर्त्ती राजा (सम १५४) २ एक जैनमुनि (अंत) °दंसि वि [°दर्शिन्] दूरदर्शी, दूरन्देशी (सुर ३, ३; सं ३२)। °दसा स्त्री. ब. [°दशा] जैन ग्रंथ-विशेष (ठा १०)। °दिट्ठि वि [°दृष्टि] १ दूरदर्शी, दूरन्देशी। २ स्त्री. दीर्घ-दर्शिता (धर्मं १) °पट्ठ पुं [°पृष्ठ] १ सर्पं, साँफ (उप पृ २२) २ यवराज का एक मन्त्री (बृह १) °पास पुं [°पार्श्वं] ऐरवत क्षेत्र के सोलहवें भावी जिन- देव (पव ७)। °पेहि वि [°प्रेक्षिन्] दूर- दर्शी (पउम २९, २२; ३१, १०६)। °बाहु पुं [°बाहु] १ भरत-क्षेत्र में होनेवाला तीसरा वासुदेव (सम १५४) २ भगवान् चन्द्रप्रभ का पूर्वं जन्मीय नाम (सम १५१) °भद्द पुं [°भद्र] एक जैन मुनि (कप्प)। °मद्ध वि [°ध्व] लम्बा रास्तावाला (णाया १, १८; ठा २, १; ५, २ — पत्र २४०)। °मद्ध वि [°द्ध] दीर्घकाल से गम्य (ठा ५, २ — पत्र २४०)। °माउ न [°युष्] लम्बा आयुष्य (ठा १०)। °रत्त, °राय पुंन [°रात्र] १ लम्बी रात। २ बहु रात्रिवाला, चिर-काल (संक्षि १७; राज) °राय पुं [°राज] एक राजा (महा)। °लोग पुं [°लोक] वनस्पति का जीव (आचा)। °लोगसत्थ न [°लोक- शस्त्र] अग्‍नि, वह्नि (आचा)। °वेयड्‍ढ पुं [°वैताढ्य] स्वनाम-ख्यात पर्वंत (ठा २, ३ — पत्र ६९)। °सुत्त न [°सूत्र] १ बड़ा सूता (निचू ५) २ आलस्य; 'मा कुणसु दीहसुत्तं परकज्जं सीयलं परिगणंतो' (पउम ३०, ६) °सेण पुं [°सेन] १ अनुत्तर- देवलोक-गामी मुनि-विशेष (अनु २) २ इस अवसर्पिणी काल में उत्पन्‍न ऐरवत क्षेत्र के आठवें जिन-देव (पव ७)। °उ, °उय वि [°युष्, °युष्क्र] लम्बी उम्रवाला, बड़ी आयुवाला, चिरंजीवी (हे १, २०; ठा ३, १; पउम १४, ३०)। °सण न [°सन] शय्या (जं १)

दीह :: देखो दिअह (कुमा)।

दीहंध :: वि [दिवसान्ध] दिन को देखने में असमर्थं; 'रत्तिंघा दीहंधा' (प्रासू १७६)।

दीहजीह :: पुं [दे] शंख (दे ५, ४१)।

दीहपिट्ठ :: देखो दीह-पट्ठ (सिरि ९०५)।

दीहर :: देखो दीह = दीर्घं (हे २, १७१; सुर २, २१८; प्रासू ११३)। °च्छ वि [°क्ष्] लम्बी आँखवाला, बड़े नेत्रवाला (सुपा १४७)।

दीहरिय :: विदीर्घित लम्बा किया हुआ (गउड)।

दीहिया :: स्त्री [दीर्घिका] वापी, जलाशय-विशेष (सुर १, ६३; कप्पू)।

दीहीकर :: सक [दीर्घी + कृ] लम्बा करना। दीहीकरेंति (भग)।

दु :: देखो तु (दे २, ६४)।

दु :: देखो दव = द्रु। कर्मं = दुयए (विसे २८)।

दु :: बि. ब. [द्वि] दो, संख्या-विशेषवाला (हे १, ९४; कम्म १; उवा)।

दु :: पुं [द्रु] २ वृक्ष, पेड़, गाछ (उर ५) २ सत्ता, सामान्य (विसे २८)

दु :: अ [द्विस्] दो बार, दो दफा (सुर १६, ५५)।

दु :: अ [दुर्] इव अर्थों का सूचक अव्यय — १ अभाव। २ दुष्टता, खराबी। ३ मुश्‍किल, कठिनाई। ४ निन्दा (हे २, २१७; प्रासू १५८; सुपा १४३; णाया १, १; उवा)

दुअ :: न [द्भुत] अभिनय-विशेष (राय ५३)।

दुअ :: न [द्विक] युग्म, युगल, जोड़ा (से ६२१)।

दुअ :: वि [द्रुत] १ पीड़ित, हैरान किया हुआ (उप ३२० टी) २ वेग-युक्त। ३ क्रिवि. शिघ्र, जल्दी (सुर १०, १०१; अणु) °विलं- बिअ न [विलम्बित] १ छन्द-विशेष। २ अभिनय-विशेष (राय)

दुअक्खर :: पुं [दे] षण्ड, नपुंसक (दे ५, ४७)।

दुअक्खर :: वि [द्वयक्षर] १ अज्ञान, मूर्खं, अल्पज्ञ (उप १२९ टी) २ पुंस्त्री. दास, नौकर (पिंड)। स्त्री. °रिया (आवम)

दुअणुअ :: पुं. [द्वयणुक] दो परमाणुओं का स्कन्ध (विसे २१६२)।

दुअर :: वि [दुष्कर] मुश्‍किल, कठिनाई से जो किया जा सके वह (प्राकृ २६)।

दुअल्ल :: न [दुकूल] १ वस्त्र, कपड़ा। २ महिन वस्त्र, सूक्ष्मवस्त्र (हे १, ११९; प्राप्र)। देख दुकूल।

दुआइ :: पुं [द्विजाति] ब्राह्मण, क्षत्रिय और वैश्य ये तीन वर्ण (हे १, ९४; २, ७९)।

दुआइक्ख :: वि [दुराख्येय] दुःख से कहने योग्य (ठा ५, १ — पत्र २९६)।

दुआर :: न [द्वार] दरवाजा, प्रवेश-मार्गं (हे १, ७९)।

दुआराह :: वि [दुराराध] जिसका आराधन कठिनाई से हो सके वह (पणह १, ४)।

दुआरिआ :: स्त्री [द्वारिका] १ छोटा द्बार। २ गुप्त द्वार, अपद्वार (णाया १, २)

दुआवत्त :: न [द्वयावर्त] दृष्टिवाद का एक सूत्र (सम १४७)।

दुइअ, दुइज्ज, दुईअ :: वि [द्वितीय] दूसरा (हे १, १०१; २०९; कुमा; कप्पू; रयण ४)।

दुइल्ल :: (अप) वि [द्विचतुर] दो-चार, दो या चार (प्राकृ १२०)।

दुउंछ, दुउच्छ :: सक [जुगुप्स्] निन्दा करना, घृणा करना। दुउंछइ, दुउच्छइ (हे ४, ४)।

दुउण :: वि [द्विगुण] दूना, दुगुना (दे ५, ५५, हे १, ९४)। °अर वि [°तर] दूने से भी विशेष, अत्यन्त (से ११, ४७)।

दुउणिअ :: वि [द्विगुणित] ऊपर देखो (कुमा)।

दुऊल :: देखो दुअल्ल (प्राप्र; गा ५६९; षड्)।

दुंडुह, दुंदुभ :: पुं [दुन्दुभ] १ सर्प की एक जाति (दे ७, ५१) २ ज्योतिष्क-विशेष, एक महाग्रह (ठा २, ३ — पत्र ७८)

दुंदुभि :: देखो दुंदुभि (भग ९, ३३)।

दुंदुमिअ :: न [दे] गले की आवाज (दे ५, ४५; षड्)।

दुंदुमिणी :: स्त्री [दे] रूपवाली स्त्री दे ५, ४५)।

दुंदुहि :: पुंस्त्री [दुन्दुभि] वाद्य-विशेष (कप्प; सुर ३, ६८; गउड; कुप्र ११८)।

दुंबवती :: स्त्री [दे] सरित, नदी (दे ५, ४८)।

दुकड :: देखो दुक्कड (द्र ४७)।

दुकप्प :: देखो दुक्कप्प (पंचु)।

दुकम्म :: न [दुष्कर्मन्] पाप, निन्दित काज या काम (श्रा २७; भवि)।

दुकाल :: पुं [दुष्काल] अकाल, दुर्भिक्ष (सिरि ४१)।

दुकिय :: देखो दुक्कय (भवि)।

दुकूल :: पुं [दूकूल] १ वृक्ष-विशेष। २ वि. दुकूल वृक्ष की छाल से बना हुआ वस्त्र आदि (णाया १, १ टी — पत्र ४३)

दुक्कंदिर :: वि [दुष्क्रन्दिन्] अत्यन्त आक्रन्द करनेवाला (भवि)।

दुक्कड :: न [दुष्कृत] पाप कर्मं, निन्द्य आचरण (सम १२५; हे १, २०६; पडि)।

दुक्काडि, दुक्काडिय :: वि [दुष्कृतिन्, °क] दुष्कृत करनेवाला, पापी (सूअ १, ५, १; पि २१९)।

दुक्कप्प :: पुं [दुष्कल्प] शिथिल साधु का आचरण, पतित साधु का आचार (पंचभा)।

दुक्कम्भ :: न [दुष्कर्मन्] दुष्ट कर्मं असदाचरण (सुपा २८; १२०, ५००)।

दुक्कय :: न [दुष्कृत] पाप-कर्मं (पणह १, १; पि ४९)।

दुक्कर :: वि [दुष्कर] जो दुःख से किया जा सके, मुश्‍किल, कष्ट-साध्य (हे ४, ४१४; पंचा १३)। °आरअ वि [°कारक] मुश्‍किल कार्यं को करनेवाला (गा १७९; हे २, १०४)। °करण न [°करण] कठिन कार्य को करना (द्र ५७)। °कारि वि [°कारिन्] देखो °आरअ (उप पृ १६०)।

दुक्कर :: न [दे] माघ मास में रात्रि के चारों प्रहर में किया जाता स्‍नान (दे ५, ४२)।

दुक्करकरण :: न [दुष्करकरण] पाँच दिन का लगातार उपवास (संबोध ५८)।

दुक्कह :: वि [दे] अरुचिवाला, अरोचकी (सुर १, ३६; जय २७)।

दुक्काल :: पुं [दुष्काल] अकाल, दुर्भिक्ष (सार्ध ३०)।

दुक्किय :: देखो दुक्कय (भवि)।

दुक्कुणिआ :: स्त्री [दे] पीकदान, पीकदानी (दे ५, ४८)।

दुक्कुल :: न [दुष्कुल] निन्दित कुल (धर्मं १)।

दुक्कुह :: वि [दे] १ असहन, असहिष्णु, चिड़- चिड़ा। २ रुचि-रहित (दे ५, ४४)

दुक्ख :: पुंन [दुःख] १ असुख, कष्ट, पीड़ा, क्लेश, मन का क्षोभ (हे १, ३३), 'दुक्खा सारीरा माणसा व संसारे' (संथा १०१; आचा; भग; स्वप्‍न ५१; ५८; प्रासू ६९; १५२; १८२) २ क्रिवि. कष्ट से, मुश्‍किल से, कठिनाई से (वसु) ३ वि. दुःखवाला, दुःखित, दुःखयुक्त (वै ३३)। स्त्री. °क्खा (भग)। °कर वि [°कर] दुःख-जनक (सुपा १९५)। °त्त वि [°र्त्त] दुख से पीड़ित (सुपा १९१; स ६४२; प्रासू १४४)। °त्तगवेसण न [°र्त्तगवेषण] दुःख से पीड़ित की सेवा, आर्त्तं शुश्रुषा (पंचा १९)। °मज्जिय वि [अर्जितदुःख] दिसने दुःख उपार्जन किया हो वह (उत्त ६)। °राह वि [°राध्य] दुःख से आराधन-योग्य (वज्जा ११२)। °वह वि [°वह] दुःख-प्रद (पउम १५, १००)। °सिया स्त्री [°सिका] वेदना, पीड़ा (ठा ३, ४)। देखो दुह = दुःख।

दुक्ख :: न [दे] जघन, स्त्री के कमर के पीछे का भाग चूतड़ (दे ५, ४२)।

दुक्ख :: अक [दुःखाय्] १ दुखना, दर्दं होना। २ सक, दुःखी करना; 'सिरं में दुक्खेइ' (स ३०४)। दुक्खामि (से ११, १२७)। दुक्खंति (सूअ २, २, ५५)

दुक्खड :: देखो दुक्कर (चारु २३)।

दुक्खण :: न [दुःखन] दुखना, दर्द होना (उप ७५१; सूअ २, २, ५५)।

दुक्खम :: वि [दुःक्षम] १ असमर्थ। २ अशक्य (उत्त २०, ३१)

दुक्खर :: देखो दुक्कर (स्वप्‍न ६६)।

दुक्खरिय :: पुं [दुष्करिक] दास, नौकर (निचू १६)।

दुक्खरिया :: स्त्री [दुष्करिका] १ दासी, नौकरानी (निचू १६) २ वेश्या, वाराङ्गना (निचू १)

दुक्खल्लिय :: (अप) वि [दुःखित] दुःख-युक्त (भवि)।

दुक्खविअ :: वि [दुःखित] दुःखी किया हुआ (उप ६३४; भवि)।

दुक्खाव :: सक [दुःखय्] दुःख उपजाना, दुःखी करना। दुक्खावेइ (पि ५५९)। वकृ. दुक्खावेंत (पउम ५८, १८)। कवकृ. दुक्खाविज्जंत (आवम)।

दुक्खावणया :: स्त्री [दुःखना] दुःखी करना, दर्दं उपजाना (भग ३, ३)।

दुक्खि :: वि [दुःखिन्] दुःखी, दुःख-युक्त (आचा)।

दुक्खिअ :: वि [दुःखित] दुःख-युक्त, दुखिया (हे २, ७२; प्राप्र; प्रासू ९३; महा; सुर ३, १९१)।

दुक्खुत्तर :: वि [दुःखोत्तार] जो दुःख से पार किया जाय, जिसको पार करने में कठिनाई हो (पणह १, १)।

दुक्खुत्तो :: अ [द्विस्] दो बार, दो दफा (ठा ५, २ — पत्र ३०८)।

दुक्खुर :: देखो दुखुर (पि ४३६)।

दुक्खुल :: देखो दुक्कुल (अवि २१)।

दुक्खोह :: पुं [दुःखौघ] दुःख-राशि (पउम १०३, १५५; सुपा १९१)।

दुक्खोह :: वि [दुःक्षोभ] कष्ट-क्षोभ्य, सुस्थिर (सुनपा १९१; ६२६)।

दुखंड :: वि [द्विखण्ड] दो टुकड़ेवाला (उप ९८६ टी; भवि)।

दुखुत्तो :: देखो दुक्खुत्तो (कस)।

दुखुर :: पुं [द्विखुर] दो खुरवाला प्राणी, गौ, भैंस आदि (पणण १)।

दुग :: न [द्विक] दो, युग्म, युगल, जोड़ा (नव १०; सुर ३, १७; जी ३३)।

दुगंछ :: देखो दुगुंछ। वकृ. दुगंछमाण (उत्त ४, १३)। कृ. दुगंछणिज्ज (उत्त १३, १९; पि ७४)।

दुगंछणा :: स्त्री [जुगुप्सना] घृणा, निन्दा (पउम ९५, ६५)।

दुगंछा :: स्त्री [जुगुप्सा] घृणा, निन्दा (पाअ; कुप्र ४०७)। देखो दुगुंछा।

दुगंध :: देखो दुग्गंध (पउम ४१, १७)।

दुगच्छ, दुगुंछ :: सक [जुगुप्स्] घृणा करना, निन्दा करना। दुगच्छइ, दुगुंछइ (षड्; हे ४, ४)। वकृ. दुगुंछंत, दुगुंछ- माण (कुमा; पि ७४; २१५)। संकृ. दुगुंछिउं (धर्मं २)। कृ. दुगुंछणीय (पउम ४६, ६२)।

दुगसंपुण्ण :: न [द्विगसंपूर्ण] लगातार बीस दिन का उपवास (संबोध ५८)।

दुगुंछग :: वि [जुगुप्सक] घृणा करनेवाला (आव ३)।

दुगुंछण :: न [जुगुप्सन] घृणा, निन्दा (पि ७४)।

दुगुंछणा :: देखो दुगंछणा (आचा)।

दुगुंछा :: देखो दुगंछा (भग)। °कम्म न [°कर्मन्] देखो पीछे का अर्थं (ठा १०)। °मोहणीय न [°मोहनीय] कर्मं-विशेष, जिसके उदय से जीव को अशुभ वस्तु पर घृणा होती है (कम्म १)।

दुगुंछि :: वि [जुगुप्सिन्] घृणा करनेवाला, नफरत करनेवाला (उत्त २, ४; ६, ८)।

दुगुंछिय :: वि [जुगुप्सित] घृणित, निन्दित (ओघ ३०२)।

दुगुंदुग :: पुं [दौगुन्दुक] एक समृद्धि-शाली देव (सुपा ३२८)।

दुगुच्छ :: देखो दुगुछ। दुगुच्छइ (हे ४, ४, षड्)। वकृ. दुगुच्छंत (पउम १०५, ७५)। कृ. दुगुच्छणीय (पउम ८०, २०)।

दुगुण :: देखो दुउण (ठा २, ४; णाया १, १; दं ९; सुर ३, २१९)।

दुगुण :: सक [द्विगुणय्] दुगुना करना। दुगुणेइ (कुप्र २८५)।

दुगुणिअ :: देखो दुउणिअ (कुमा)।

दुगुल्ल, दुगूल :: देखो दुअल्ल (हे १, ११९; कुमा; सुर २, ८०; जं २)।

दुगोत्ता :: स्त्री [द्विगोत्रा] वल्ली-विशेष (पणण १)।

दुग्ग :: न [दे] १ दुःख, कष्ट (दे ५, ५३; षड्; पणह १, ३) २ कटी, कमर (दे ५, ५३) ३ रण, संग्राम, युद्ध; 'आढत्तं च णेणिमं दुग्गं' (स ६३६)

दुग्ग :: वि [दुर्ग] १ जहाँ दुःख से प्रवेश किया जा सके वह, दुर्गंम स्थान (भग ७, ६ विपा १, ३) २ जो दुःख से जाना जा सके (सूअ १, ५, १) ३ पुंन. किला, गढञ, कोट (सुपा १४८)। °नायग पुं [°नायक] किले का मालिक (सुपा ४६०)

दुग्गह :: स्त्री [दुर्गति] १ कुगति, नरक आदि कुत्सित योनि (ठा ३, ३; ५, १; उत्त ७, १८; आचा) २ विपत्ति, दुःख। ३ दुर्दंशा, बुरी अवस्था। ४ कंगातियत, दरिद्रता (पणह १, १; महा; ठा ३, ४; गच्छ २)

दुग्गंठि :: स्त्री [दुjर्ग्रन्धि] दुष्टग्रान्थि, गिरह, कठिन गांठ (पि ३३३)।

दुग्गंध :: पुं [दुर्गंन्ध] १ खराब गन्ध। २ वि. खराब गन्धवाला, दुर्गंन्धि (ठा ८ — पत्र ४१८; सुपा २१; महा)

दुग्गंधि :: वि [दुर्गन्धिन्] दुर्गंन्धवाला (सुपा ४८७)।

दुग्गम :: वि [दुर्गम] जो कठिनाई से जाना जा सके वह (धर्मंवि ४)।

दुग्गम, दुग्गम्म :: वि [दुर्गम] १ जहाँ दुःख से प्रवेश किया जा सके वह (पउम ४०, १३; ओघ ७५ भा); 'पडिवक्खनरिंद- दिग्गम्मं (सुर ६, १३५) २ न. कठिनाई, मुश्‍किल (ठा ५, १)

दुग्गय :: वि [दुर्गत] १ दरिद्र, धन-हीन (ठा ३, ३; गा १८) २ दुःखी, विपत्ति ग्रस्त (पाअ; ठा ४, १ — पत्र २०२)

दुग्गय :: न [दुर्गत] १ दरिद्रता। २ दुःख; 'दोहंतो जिणदव्वं दोहिच्चं दुग्गयं लहइ' (संबोध ४)

दुग्गह :: वि [दुर्ग्रह] जिसका ग्रहण दुःख से हो सके वह (उप पृ ३९०)।

दुग्गा :: स्त्री [दुर्गा] १ पार्वंती, गौरी, शिव- पत्‍नी (पाअ; सुपा १४८) २ देवी-विशेष (चंड) ३ पक्षि-विशेष (श्रा १६)

दुग्गाई, दुग्गाऐवी, दुग्गादेई, दुग्गावी :: स्त्री [दुर्गादेवी] १ पार्वती; शिव-पत्‍नी, गौरी। २ देवी- विशेष (षड्; हे १, २७०; कुमा)। °रमण पुं [°रमण] महादेव, शिव (षड्)

दुग्गास :: न [दुर्ग्रास] दुर्भिक्ष, अकाल (पिंड- भा ३३)।

दुग्गिज्झ :: वि [दुर्ग्राह्य, दुर्ग्रह] जिसका ग्रहण दुःख से हो सके वह (सुपा २५५)।

दुग्गूढ :: वि [दुर्गृढ] अत्यन्त गुप्त, अति प्रच्छन्‍न (वव ७)।

दुग्गेज्झ :: देखो दुग्गिज्झ (से १, ३)।

दुग्घट्ट :: वि [दुर्घट्ट] जिसका आच्छादन दुःख से हो सके वह; 'पारद्धसीउणहतणहवेअणदुग्घ- ट्टघट्टिया' (पणह १, ३ — पत्र ५४)।

दुग्घड :: वि [दुर्घट] जो दुःख से हो सके वह, कष्ट-साध्य (सुपा ९३; ३६५)।

दुग्घड :: वि [दुर्घट] असंगत (धर्मंवि २७०)।

धुग्घडिअ :: वि [दुर्घटित] १ दुःख से संयुक्त। २ खराब रीति से बना हुआ; 'दुग्धडिअमंच- अस्स ब खणे खणे पाअपडणेणं' (गा ९१०)

दुग्घर :: न [दुर्गृह] दुष्ट घर (भवि)।

दुग्घास :: पुं [दुर्ग्रास] दुर्भिक्ष, अकाल (बृह ३)।

दुग्घट्ट, दुग्घोट्ट :: पुं [दे] हस्ती, हाथी, करी (दे ५, ४४; षड्; भवि)।

दुघण :: पुं [दुघण] एक प्रकार का मुद्‍गर, मोंगरी, मुँगरा (पणह १, ३ — पत्र ४४)।

दुच्चक :: न [द्विचक] गाड़ी, शकट (ओघ ३८३ भा)। °वइ पुं [°पति] गाड़ी का अधिपति या मालिक (ओघ ३८३ भा)।

दुचिण्ण :: देखो दुच्चिण्ण (पिे ३४०; औप)।

दुच्च :: न [दौत्य] दूत-कर्मं, समाचार पहुँचाने का कार्यं (पाअ)।

दुच्च :: देखो दोच्च = द्वितीय, द्विस् (कप्प)।

दुच्चंडिअ :: वि [दे] १ दुर्लंलित। दुर्विदग्ध, दुःशिक्षित (दे ५, ५५; पाअ)

दुच्चंबाल :: वि [दे] १ कलह-निरत, झगड़ाखोर। २ दुश्चरित, दुष्ट आचरणवाला। ३ परुष- भाषी, कड़ा बोलनेवाला (दे ५, ५४)

दुच्चज्ज, दुच्चय :: वि [दुस्त्यज] दुःख से त्यागने योग्य (कुमा; उप ७६८ टी)।

दुच्चर, दुच्चरिअ :: वि [दुश्चर] १ जिसमें दुःख से जाया जाय वह (आचा) २ दुःख से जो किया जाय वह (उप ६४८ टी; पउम २२, २०)। °लाढ पुं [°लाढ] ऐसा ग्राम या देश जिसमें दुःख से जाया जा सके (आचा)

दुच्चारिअ :: न [दुश्चरित] १ खराब आचरण, दुष्ट वर्त्तंन (पउम ३८, १२; उप पृ १११) २ वि. दुराचारी (दे ५, ४५)

दुच्चार :: वि [दुश्चार] दुराचारी (भवि)।

दुच्चारि :: वि [दुश्चारिन्] दुराचारी, दुष्ट आचरणवाला (स ५०३)। स्त्री. °णी (महा)।

दुच्चिंतिय :: वि [दुश्चिन्तित] १ दुष्ट चिन्तित (पउम ११८, ९७) २ न. खराब चिन्तन (पडि)

दुच्चिगिच्छ :: वि [दुश्चिकित्स] जिसका प्रती- कार मुश्‍किल से हो वह (स ७६१)।

दुच्चिण्ण :: न [दुश्चीर्ण] १ दुष्ट आचरण, दुश्चरित। २ दुष्ट-कर्मं — हिंसा आदि। ३ वि. दुष्ट संचित, एकत्रित की हुई दुष्ट वस्तु (विपा १, १; णाया १, १६)

दुच्चेट्ठिय :: न [दुश्‍चेष्टित] खराब चेष्टा, शारी- रिक दुष्ट आचरण (पडि; सुर ६, २३२)।

दुच्छक्क :: वि [द्विषट्‍क] बारह प्रकार का; 'मूलं दारं पइट्ठाणं, आहारो भायणं निही। दुच्छक्कस्सावि धम्मस्स, सम्मत्तं परिकित्तियं' (श्रा ६)।

दुच्छड्ड :: वि [दुश्‍छर्द] दुस्त्यज; दुःख से छोड़ने योग्य; 'दुच्छड्डा जीवियासा जं' (धर्मंवि १२४)।

दुच्छेज्ज :: वि [दुश्‍छेद] जिसका छेदन दुःखसे हो सके वह (पउम ३१, ५९)।

दुछक्क :: देखो दुच्छक्क (धर्मं २)।

दुजडि :: पुं [द्विजटिन्] ज्योतिष्क देव-विशेष, एक महाग्रह (ठा २, ३)।

दुजय :: देखो दुज्जय (महा)।

दुजीह :: पुं [द्विजिह्‍व] १ सर्पं, साँप। २ दुर्जंन, खल पुरुष (सट्ठि ६३; कुमा)

दुज्जंत :: देखो दुज्जिंत (राज)।

दुज्जण :: पुं [दुर्जंन] खल, दुष्ट मनुष्य (प्रासू २०; ४०; कुमा)।

दुज्जय :: वि [दुर्जय] जो कष्ट से जीता जा सके (उप १०३१ टी; सुर १२, १३८; सुपा २९)।

दुज्जाय :: न [दे] व्यसन, कष्ट, दुःख, उपद्रव (दे ५, ४४; से १२, ६३; पाअ)।

दुज्जाय :: वि [दुर्जात] दुःख से निकलने योग्य (से १२, ६३)।

दुज्जाय :: न [दुर्यात] दुष्ट गमन, कुत्सिक गति (आचा)।

दुज्जिंत :: पुं [दुर्यन्त] एक प्राचीन जैनमुनि (कप्प)।

दुज्जीव :: न [दुर्जीव] आजीविका का भय (विसे ३४५२)।

दुज्जीह :: देंखों दुजीह (वज्जा १५०)।

दुज्जेअ :: वि [दुर्जेय] दुःख से जीतने योग्य (सुपा २४८; महा)।

दुज्जोहण :: पुं [दुर्योधन] धृतराष्ट्र का ज्येष्ठ पुत्र (ठा ४, २)।

दुज्झ :: वि [दोह्य] दोहने योग्य (दे १, ७)।

दुज्झाण :: न [दुर्ध्यान] दुष्ट चिन्तन (धर्मं २)।

दुज्झाय :: वि [दुर्ध्यात] जिसके विषय में दुष्ट चिन्तन किया गया हो वह (धर्मं २)।

दुज्झोसय :: वि [दुर्जोष] जिसकी सेवा कष्ट से हो सके ऐसा (आचा)।

दुज्झोसय :: वि [दुःक्षप] जिसका नाश कष्ट- साध्य हो वह (आचा)।

दुज्झोसिअ :: वि [दुर्जोषित] दुःख से सेवित (आचा)।

दुज्झोसिअ :: वि [दुःक्षपित] कष्ट से नाशित (आचा)।

दुट्ठ :: वि [दुष्ट] दोष-युक्त, दूषित (ओघ १६२; पाअ; कुमा)। °प्प पुं [°त्मन्] दुष्ट जीव, पापी प्राणी (पउम ६, १३९; ७५, १२)।

दुट्ठ :: वि [दे. द्विष्ट] द्वेष-युक्त (ओघ ७५७; कस); 'अरत्तदुट्ठस्स' (कप्र ३७१)।

दुट्ठाण :: न [दुःस्थान] दुष्ट जगह (भग १६, २)।

दुटठु :: अ [दुष्‍ठु] खराब, असुन्दर (उप ३२० टी; निर १, १, सुपा ३१८; हे ४, ४०१)।

दुण्णय :: देखो दिन्नय (विक्र ३७; आवम)।

दुण्णाम :: न [दुर्नामन्] १ अपकीर्त्ति, अपयश। २ दुष्ट नाम, खराब आख्या। ३ एक प्रकार का गर्व (भग १२, ५)

दुण्णिअ :: वि [दून] पीड़ित, दुःखित (गा ११)।

दुण्णिअ :: देखो दुन्निय (राज)।

दुण्णिअत्थ :: न [दे] १ जघन पर स्थित वस्त्र। २ जघन, स्त्री के कमर के नीचे का भाग (दे ५, ५३)

दुण्णिक्क :: वि [दे] दुश्चरित, दुराचारी (दे ५, ४५)।

दुण्णिक्कम :: वि [दुर्निष्क्रम] जहाँ से निकलना कष्ट-साध्य हो वह (राज ७, ६)।

दुण्णिक्खित्त :: वि [दे] १ दुराचारी। २ कष्ट से जो देखा जा सके (दे ५, ४५)

दुण्णिक्खेव :: वि [दुर्निक्षेप] दुःख से स्थापन करने योग्य (गा १५४)।

दुण्णिबोह :: देखो दुन्‍निबोह (राज)।

दुण्णिमिअ :: वि [दुनियोजित] दुःख से जोड़ा हुआ (से १२, १६)।

दुण्णिमित्त :: न [दुर्निमित्त] खराब शकुन, अपशकुन (पउम ७०, ५)।

दुण्णिविट्ठ :: वि [दुर्निविष्ट] दुराग्रही, हठी, जिद्दी (निचू ११)।

दुण्णिसीहिया :: स्त्री [दुर्निषद्या] कष्ट-जनक स्वाध्याय-स्थान (पणह २, ५)।

दुण्णेय :: वि [दुर्ज्ञेय] जिसका ज्ञान कष्ट-साध्य हो वह (उवर १२८; उप ३२८)।

दुतितिक्ख :: वि [दुस्तितिक्ष्] दुस्सह, जो दुःख से सहन किया जा सके बह (ठा ५, १)।

दुत्तर :: वि [दुस्तर] दुस्तरणीय, दुर्लघ्य (सुपा ४७; ११५; सार्धं ६१)।

दुत्तडी :: स्त्री [दुस्तटी] १ नदी। २ खराब किनारा वाली नदी (धम्म १२ टी)

दुत्तव :: वि [दुस्तप] कष्ट से तपने योग्य; दुःख से करने योग्य (तप) (घर्मा १७)।

दुत्तार :: वि [दुस्तार] दुःख से पार करने योग्य, दुस्तर (से ३, २५; ६, १०)।

दुत्ति :: अ [दे] शीघ्र, जल्दी (दे ५, ४१; पाअ)।

दुत्तिइक्ख, दुत्तितिक्ख :: देखो दुतितिक्ख (आचा; राज)।

दुत्तुंड :: पुं [दुस्तुण्ड] दुर्मुंख, दुर्जंन (सुपा २७८)।

दुत्तोस :: वि [दुस्तोष] जिसको संतुष्ट करना कठिन हो वह (दस ५)।

दुत्थ :: न [दे] जघन, स्त्री की कमर के नीचे का भाग (दे ५, ४२)।

दुत्त :: वि [दुःस्थ] दुर्गंत, दुःस्थिंत (ठा ३, ३; भवि)।

दुत्थ :: न [दौःस्थ्य] दुर्गति, दुःस्थता (सुपा २४४); 'नहि विधुरसहावा हुंति दुत्थेवि धीरा' (कुप्रा ५४)।

दुत्थिअ :: वि [दुःस्थित] १ दुर्गंत, विपत्ति- ग्रस्त (रयण ७५; भवि, सण) २ निर्धन, गरीब (कुप्र १४९)

दुत्थुरुहंड :: पुंस्त्री [दे] झगड़ाखोर, कलह-शील (दे ५, ४७)। स्त्री. °डा (दे ५, ४७)।

दुत्थोअ :: पुं [दे] दुर्भग, अभागा (दे ५, ४३)।

दुद्दंत :: वि [दुर्दान्त] उद्धत, दमन करने का अशक्य, दुर्दम; 'विसयपसत्ता दुदद्दंतइंदिया देहिणो बहवे' (सुर ८, १३८; णाया १, ५; सुपा ३८०; महा)।

दुद्दंस :: वि [दुर्दश] दुरालोक, जो कठिनाई से देखा जा सके (उत्तर १४१)।

दुद्दंसण :: वि [दुर्दंर्शन] जिसका दर्शंन दुर्लंभ हो वह (गा ३०)।

दुद्दम :: वि [दुर्दम] १ दुर्जंय, दुर्निवार (सुपा २४); 'दुद्दमकद्दमे' (श्रा १२) २ पुं. राजा अश्वग्रीव का एक दूत (आक)

दुद्दम :: पुं [दे] देवर, पति का छोट भाई (दे ५, ४४)।

दुद्दिट्ठ :: वि [दुर्द्दष्ट] १ बुरी तरह से देखा हुआ। २ वि. दुष्ट दर्शनवाला (पणह १, २ — पत्र २९)

दुद्दिण :: न [दुर्दिन] बादलों से व्याप्त दिवस (ओघ ३६०)।

दुद्देय :: वि [दुर्देय] दुःख से देने योग्य (उप ९२४)।

दुद्दोलना :: स्त्री [दे] गौ, गैया (षड्)।

दुद्दोली :: स्त्री [दे] वृक्ष-पंक्ति, पेड़ों की कतार (दे ५, ४३; पाअ)।

दुद्ध :: न [दुग्ध] दूध, क्षीर (विपा १, ७)। °जाइ स्त्री [°जाति] मदिरा-विशेष, जिसका स्वाद दूध के जैसा होता है (जीव ३)। °समुद्द पुं [°समुद्र] क्षीर-तमुद्र, जिसका पानी दुध की तरह स्वादिष्ट है (गा ३८८)।

दुद्धंस :: वि [दुर्ध्वंस] जिसका नाश मुश्‍किल से हो (सुर १, १२)।

दुद्धगंधिअमुह :: पुं [दे] बाल, शिशु, छोटा लड़का (दे ५, ४०)।

दुद्धगंधिअमुही :: स्त्री [दे] छोटी लड़की (पाअ)।

दुद्धट्टी, दुद्धट्ठी :: स्त्री [दे] १ प्रसूति के बाद तीन दिन तक का गो-दुग्ध (पभा ३२) २ खट्टी छाछ से मिश्रित दूध (पव ४ — गा २२८)

दुद्धर :: वि [दुर्धर] १ दुर्बंह, जिसका निर्वाह मुश्‍किल से हो सके वह (पणण १ — पत्र ४; सुर १२, ५१) २ गहन, विषम (ठा ६, भवि) ३ दुर्जय (कुमा) ४ पुं. रावण का एक सुभट (पउम ५६, ३०)

दुद्धरिस :: वि [दुर्धर्ष] १ जिसका सामना कठिनता से हो सके, जीतने को अशक्य (पणह २, ५; कप्प)

दुद्धवलेही :: स्त्री [दे] चावल का आटा डालकर पकाया जाता दूध (पव ४ — गाथा २२८)।

दुद्धसाडी :: स्त्री [दे] द्राक्षा मिलाकर पकाया जाता दूध (पव ४ — गाथा २२८)।

दुद्धिअ :: न [दे] कद्दु, लौकी; गुजराती में 'दूधी'; (पाअ)।

दुद्धिणिआ, दुद्धिणी :: स्त्री [दे] १ तैल आदि रखने का भाजन। २ तुम्बी (दे ५, ५४)

दुद्धोअहि, दुद्धोदहि :: पुं [दुग्धोदधि] समुद्र-विशेष, जिसका पानी दूध की तरह स्वादिष्ट है, क्षीरसमुद्र (गा ४७५; उप २११ टी)।

दुद्धोलणी :: स्त्री [दे] गो-विशेष, जिसको एक बार दोहने पर फिर भी दोहन किया जा सके ऐसी गाय, कामधेनु (दे ५, ४६)।

दुधा :: देखो दुहा (अभि १९१)।

दुनिमित्त :: देखो दुण्णिमित्त (श्रा २७)।

दुन्नय :: पुं [दुर्नय] १ दुष्ट नीति, कुनीति। २ अनेक धर्मंवाली वस्तु में किसी एक ही धर्मं को मानकर अन्य धर्मं का प्रतिवाद करनेवाला पश्र (सम्म १५) ३ वि. दुष्ट नीति, अन्याय-कारी (उप ७६८ टी)। [°कारि वि °कारिन्] अन्याय करनेवाला (सुपा ३४६)

दुन्निकम :: देखो दोनिक्कम (भग ७, ६ टी — पत्र ३०७)।

दुन्निग्गह :: वि [दुर्निग्रह] जिसका निग्रह दुःख से हो सके वह, अनिवार्यं (उप पृ १५३)।

दुन्निबोह :: वि [दुर्निबोध] १ दुःख से जानने योग्य। २ दुर्लभ (सूअ १, १५, २५)

दुन्निमित्त :: देखो दुण्णिमित्त (श्रा २७)।

दुन्निय :: न [दुर्नीत] दुष्ट कर्मं, दुष्कृत; 'बंधंति वेदंति य दुन्नियाणि' (सूअ १, ७, ४)।

दुन्नियत्थ :: वि [दे] विट का भेषवाला, निन्द- नीय वेष को धारण करनेवाला, केवल जघन पर ही वस्त्र-पहिना हुआ; 'लोए वि कुसंग्गी- पियं जणं दुन्नियत्थमइवसणं निंदइ (उव)।

दुन्निरिक्ख :: वि [दुर्निरीक्ष्य] जो कठिनाई से देखा जा सके वह (कप्प; भवि)।

दुन्निवार :: वि [दुर्निवार] रोकने के लिए अशक्य, जिसका निवारण मुश्‍किल से हो सके वह (सुपा १२३; महा)।

दुन्निवारणीअ :: वि [दुर्नविारणीय, दुर्निवार] ऊपर देखो (स ३४३; ७४१)।

दुन्निसण्ण :: वि [दुर्निषण्ण] खराब रीति से बैठा हुआ (ठा ५, २ — पत्र ३१२)।

दुप :: देखो दिअ = द्विप (राज)।

दुपएस :: वि [द्विप्रदेश] १ दो अवयववाला। २ पुं. द्वयणुक (उत्त १)

दुपएसिय :: वि [द्विप्रदेशिक] दो प्रदेशवाला (भग ५, ७)।

द्वपक्ख :: पुं [द्वष्पक्ष्] दुष्ट पक्ष (सूअ १, ३, ३)।

दुप्ख :: न. [द्विपक्ष्] १ दो पक्ष' (सूअ १, २, ३) २ वि. दो पक्षवाला (सूअ १, १२, ५)

दुपडिग्गह :: न [द्विप्रतिग्रह्] दृष्टिवाद का एक सूत्र (सम १५७)।

दुपडोआर :: वि [द्विपदावतार] दो स्थानों में जिसका समावेश हो सके वह (ठा २, १)।

दुपडोआर :: वि [द्विप्रत्यवतार] ऊपर देखो (ठा २, १)।

दुण्मज्जिय :: देखो दुप्पमज्जिय (सुपा ६२०)।

दुपय :: वि [द्विपद] १ दो पैरवाला। २ पुं. मनुष्य (णाया १, ८; सुपा ४०६) ३ न. गाड़ी, शकट (ओघ २०५ भा)

दुपय :: पुं [द्रुपद] कांपिल्यपुर का एक राजा (णाया १, १६)।

दुपरिच्चय :: वि [दुष्परित्यज] दुस्त्यज, दुःख से छोड़ने योग्य (उफ ७६८ टी; रयण ३४)।

दुपरिच्चयणीय :: वि [दुष्परित्यजनीय, दुष्परित्यज] ऊपर देखो (काल)।

दुपस्स :: देखो दुप्पस्स (ठा ५, १ — पत्र २९६)।

दुपुत्त :: पुं [दुष्पुत्र] कुपुत्र, कपूत (पउम २९, २३)।

दुपेच्छ :: वि [दुष्प्रेक्ष्] दुर्दंर्शं, अदर्शंनीय (भवि)।

दुप्पइ :: पुं [दुष्पति] दुष्ट स्वामी (भवि)।

दुप्पउत्त :: वि [दुष्प्रयुक्त] १ दुरुपयोग करनेवाला (ठा २, १ — पत्र ३९) २ जिसका दुरुपयोग किया गया हो वह (भग ३, १)

दुप्पउलिय, दुप्पउल्ल :: वि [दुष्प्रज्वलित] ठीक-ठीक नहीं पका हुआ, अधपका (उवा, पंचा १)।

दुप्पओग :: पुं [दुष्प्रयोग] दुरुपयोग (दस ४)।

दुप्पओगि :: वि [दुष्प्रयोगिन्] दुरुपयोग करनेवाला (पणह १, १ — पत्र ७)।

दुप्पक्क :: वि [दुष्पक्व] देखो दुप्पउल्ल (सुपा ४७२)।

दुप्पक्खाल :: वि [दुष्प्रक्षाल] जिसका प्रक्षा- लन कष्टसाध्य हो वह (सुपा ६०८)।

दुप्पच्चुप्पेक्खिय :: वि [दुष्प्रत्युत्प्रेक्षित] ठीक- ठीक नहीं देखा हुआ (पव ६)।

दुप्पजीवि :: वि [दुष्प्रजीविन्] दुःख से जीनेवाला (दसचू १)।

दुप्पडिक्कंत :: वि [दुष्प्रतिकान्त] जिसका प्रायश्चित ठीक-ठीक न किया गया हो वह (विपा १, १ )।

दुप्पडिगर :: वि [दुष्प्रतिकर] जिसका प्रतीकार दुःख से किया जा सके (बृह ३)।

दुप्पडिपूर :: वि [दुष्प्रतिपूर] पूरने के लिए अशक्य (तंदु)।

दिप्पडियाणंद :: वि [दुष्प्रत्यानन्द] १ जो किसी तरह संतुष्ट न किया जा सके। २ अति कष्ट से तोषणीय (विपा १, १ — पत्र ११; ठा ४, ३)

दुप्पडियार :: वि [दुष्प्रतिकार] जिसका प्रती- कार दुःख से हो सके वह (ठा ३, १ — पत्र ११७; ११९; स १८४; उव)।

दुप्पडिलेह :: वि [दुष्प्रतिलेख] जो ठीक-ठीक न देखो जा सके वह (पव ८४)।

दुप्पडिलेहण :: न [दुष्प्रतिलेखन] ठीक-ठीक नहीं देखना (आव ४)।

दुप्पडिलोहिय :: वि [दुष्प्रतिलेखित] ठीक से नहीं देखा हुआ (सुपा ६१७)।

दुप्पडिवूह :: वि [दुष्प्रतिबृंह] १ बढ़ेने को अशक्य। २ पालने का अशक्य (आचा)

दुप्पडिवूहण :: वि [दुष्प्रतिबृंहण] ऊपर देखो (आचा)।

दुप्पणिहाण :: न [दुष्प्रणिधान] दुष्प्रयोग, अशुभ प्रयोग, दुरुपयोग (ठा ३, १, सुपा ५४०)।

दुप्पणिहिय :: वि [दुष्प्रणिहित] दुष्प्रयुक्त, जिसका दुरुपयोग किया गया हो वह (सुपा ५५८)।

दुप्पणीहाण :: देखो दुप्पणिहाण; 'कयसामइ- ओवि दुप्पणीहाणं' (सुपा ५५३)।

दुप्पणोल्लिय :: वि [दुष्प्रणोद्य] दुस्त्यज, छोड़ने को अयोग्य (सूअ १, ३, १)।

दुप्पण्णवणिज्ज :: वि [दुष्प्रज्ञापनीय] कष्ट से प्रबोधनीय (आचा २, ३, १)।

दुप्पतर :: वि [दुष्प्रतर] दुस्तर (सूअ १, ५, १)।

दुप्पधंस :: वि [दुष्प्रधर्ष] दुर्धुंर्षं, दुर्जंय (उत्त ९; पि ३०५)।

दुप्पमज्जण :: न [दुष्प्रमार्जन] ठीक-ठीक सफा नहीं करना (धर्मं ३)।

दुप्पमज्जिय :: वि [दुष्प्रमार्जित] अच्छी तरह से सफा नहीं किया हुआ (सुपा ६१७)।

दुप्पय :: देखो दुपय = द्विपद (सम ६०)।

दुप्पयार :: वि [दुष्प्रचार] जिसका प्रचार दुष्ट माना जाता है, वह, अन्याय-युक्त (कप्प)।

दुप्परक्कंत :: वि [दुष्पराक्रान्त] वुरी तरह से आक्रान्त (आचा)।

दुप्परिअल्ल :: वि [दे] १ अशक्य (दे ५, ५५; पाअ; से ४, २६; ६, १८; गा १२२) २ द्विगुण, दुगुना। ३ अनभ्यस्त, अभ्यास्त-रहित (दे ५, ५५)

दुप्परिइअ :: वि [दुष्परिचित] अपरिचित (से १३, १३)।

दुप्परिच्चय :: देखो दुपरिच्चय (उत्त ८)।

दुप्परिणाम :: वि [दुष्परिणाम] जिसका परिणाम खराब हो, दुर्विपाक (भवि)।

दुप्परिमास :: वि [दुष्परिमर्ष] कष्ट-साध्य स्पर्शंवाला (से ९, २४)।

दुप्परियत्तण :: देखो दुप्परिवत्तण (तंदु)।

दुप्परिल्ल :: वि [दे] दुराकर्षं, 'आलिहिअ दुप्परिल्लंपि णेइ रणणं धणुं वाहो' (गा १२२)।

दुप्परिवत्तण :: वि [दुष्परिवर्त्तन] १ जिसका परिवर्त्तन दुःख से हो सके वह। २ न. दुःख से पीछे लौटना (तंदु)

दुप्पवंच :: पुं [दुष्प्रपञ्च] दुष्ट प्रपंच (भवि)।

दुप्पवण :: पुं [दुष्पवन] दुष्ट वायु (भवि)।

दुप्पवेस :: वि [दुष्प्रवेश] जहाँ कष्ट से प्रवेश हो सके वह (णाया १, १; पउम ४३, १२; स २५६; सुपा ४५५)। °तर वि [°तर] प्रवेश करने को अशक्य (पणह १, ३ — पत्र ४५)।

दुप्पसह :: पुं [दुष्प्रसह] पंचम अरे के अन्त में होनेवाला एक जैन आचार्यं, एक भावी जैन सूरि (उप ८०९)।

दुप्पस्स :: वि [दुर्दर्श] जो मुश्‍किल से दिखलाया जा सके वह (टा ५, १ टी — पत्र २९६)।

दुप्पहंस :: वि [दुष्प्रध्वंस्य] जिसका नाश कठिनाई से हो सके वह (णाया १, १८ — पत्र २३६)।

दुप्पहंस :: वि [दुष्प्रधृष्य] अजेय, दुर्जंय (णाया १, १८)।

दुप्पह :: वि [दुष्प्रभ] जो दुःख से सूझ सके वह; दुर्गम (मोह ७२)।

दुप्पाय :: न [दुष्प्राप] तप-विशेष, आयंबिल तप (संबोध ५८)।

दुप्पिउ :: पुं [दुर्ष्पितृ] दुष्ट पिता (सुपा ३८७; भवि)।

दुप्पिच्छ :: देखो दुपेच्छ (सुर २, ५; सुपा ९२)।

दुप्पिय :: वि [दुष्प्रिय] अप्रिय। °ब्भासि वि [°भाषिन्] अप्रिय-वक्ता (सुपा ३१४)।

दुप्पुत्त :: देखो दुपुत्त (पउम १०५, ७२; भवि; कुप्र ४०५)।

दुप्पूर :: वि [दुष्पूर] जो कठिनाई से पूरा किया जा सके (स १२३)।

दुप्पेक्ख :: देखो दुपेच्छ (सण)।

दुप्पेक्खणिज्ज :: वि [द्रुष्प्रेक्षणीय] कष्ट से दर्शनीय (नाट — वेणी २५)।

दुप्पेच्छ :: देखो दुपेच्छ (महा)।

दुप्पोलिय :: देखो दुप्पउलिअ (श्रा २१)।

दुप्फड :: वि [दुष्फट्] मुश्‍किल से फटने योग्य (त्रि ८३)।

दुप्फरिस, दुप्फास, दुफास :: वि [दुःस्पर्श] जिसका स्पर्शं खराब हो वह (पउम २६, ४६; १०१, ७१, ठा ८; भग)।

दुफास :: वि [द्विस्पर्श] स्‍निग्ध और शीत आदि अविरुद्ध दो स्पर्शों से युक्त (भग)।

दुब्बद्ध :: वि [दुर्बद्ध] खराब रीति से बँधा हुआ (आचा २, ९, ३)।

दुब्बस :: वि [दुर्बल] निर्बंल, बल-हीन (विपा १, ७; सुपा ६०३; प्रासू २३)। °पच्चव- मित्त पुंन [°प्रत्यवमित्र] दुर्बंल को मदद करनेवाला (ठा ९)।

दुब्बलिय :: वि [दुर्बलिक] दुर्बल, निर्बंल (भय १२, २)। °पूसभित्त पुं [°पुष्य- भित्र] स्वनाम-प्रसिद्ध एक जैन आचार्यं (ठा ७; ती ७)।

दुब्बलिय :: न [दौर्बल्य] श्रम, थाक, थकावट (आचा २, ३, २, ३)।

दुब्बुद्धि :: वि [दुर्बुद्धि] १ दुष्ट बुद्धिवाला, खराब नियतवाला (उप ७२८; सुपा ४४; ३७६) २ स्त्री. खराब बुद्धि, दुष्ट नियत (श्रा १४)

दुब्बोल्ल :: पुं [दे] उपालम्भ, उलहना या उलाहना (दे ५, ४२)।

दुब्भ :: वि [दुग्ध] दोहा हुआ। २ न. दोहन (प्राकृ ७७)

दुब्भ° :: देखो दुह = दुह्।

दुब्भग :: वि [दुर्भग] १ कमनसीब, अभागा। २ अप्रिय, अनिष्ट (पणह १, २; प्रासू १४३)। °णाम, °नाम न [°नामन्] कर्मं-विशेष जिसके उदय से उपकार करनेवाला भी लोगों को अप्रिय होता है (कम्म ? सम ६७)। °करा स्त्री [°करा] दुर्भंग बनानेवाली विद्या- विशेष (सूअ २, २)

दुब्भग्ग :: न [दौर्भाग्य] दुर्भगता, लोक में अप्रियता (पिंड ५०२)।

दुब्भरणि :: स्त्री [दुर्भरणि] दुःख से निर्वाह, 'होउ अजणणी तेसिं दुब्भरणी पडउ तदु- दरस्सावि' (सुपा ३७०)।

दुब्भाव :: पुं [दुर्भाब] १ हेय पदार्थं (पउम ८६, ६९) २ असद्-भाव, खराव-असर; 'पिसुणेण व जेण कओ दुब्भावो' (सुर ३, १६)

दुब्भाव :: पुं [द्विभाव] विभाग, जूदाई (सुर ३, १६)।

दुब्भाव :: पुं [द्विर्भाव] द्वित्व, दुगुनापन (चेइय ६९०)।

दुब्भासिय :: न [दुर्भाषित] खराब वचन (पउम ११८, ९७; पडि)।

दुब्भि :: पुंन [दुरभि] १ खराब गन्ध (सम ४१) २ वि. अशुभ, खराब, असुन्दर (ठा १) ३ वि. खराब गन्धवाला, दुर्गंन्धि (आचा)। °गंध [°गन्ध] पूर्वोक्त ही अर्थं (ठा १; आचा; णाया १, १२)। °सद्द पुंन. [°शब्द] खराब शब्द (णाया १, १२)

दुब्भिक्ख :: पुंन [दुर्भिक्ष] १ दुष्काल, अकाल, वृष्टि का अभाव (सम ६०; सुपा ३५८); 'आसन्‍ने रणरंगे, मूढे खंते तहेव दुब्भिक्खे । जस्स मुहं जोइज्जइ, सो पुरिसो महीयले विरलो' (रयण ३२) २ भिक्षा का अभाव (ठा ५, २) ३ वि. जहाँ पर भिक्षा न मिल सके वह देश आदि (ठा ३, १ — पत्र ११८)

दुब्भिज्ज :: देखो दुब्भेज्ज (पउम ८०, ९)।

दुब्भूइ :: स्त्री [दुर्भूँति] अशिव, अमंगल (बृह ३)।

दुब्भूय :: पुंन [दुर्भूत] १ नुकशान करनेवाला जन्तु — टिड्डी वगैरह (भग ३, २) २ न. अशिव, अमंगल (जीव ३)

दुब्भूय :: वि [दूर्भूत] दूराचारी (उत्त १७, १७)।

दुब्भेज्ज :: वि [दुर्भेद्य] तोड़ने को अशक्य (पि ८४; २८७; नाट — मृच्छ १३३)।

दुब्भेय :: वि [दुर्भेद] ऊपर देखो (राय)।

दुभग :: देखो दुब्भग (नव १५)।

दुभव :: न [द्विभव] वर्तमान और आगामी जन्म, 'द्दुभवहइसज्जो' (श्रा २७)।

दुभाग :: पुं [द्विभाग] आधा, अर्धं (भग ७, १)।

दुम :: सक [धवलय्] १ सफेद करना। २ चूना आदि से पोतना। दुसइ (हे ४, २४)। दुमसु (गा ७४७)। वकृ. दुमंत (कुमा)

दुम :: पुं [द्रुम] १ वृक्ष, पेड़, गाछ (कुमा; प्रासु ६; १४९) २ चमरेन्द्र के पदाति- सैन्य का एक अधिपति (ठा ५, १ — पत्र ३०२; इक) ३ राजा श्रेणिक का एक पुत्र, जिसने भगवान् महावीर के पास दीक्षा लेकर अनुत्तर देवलोक की गति प्राप्त की थी (अनु २) ४ न. एक देव-विमान (सम ३५) °कंत न [°कान्त] एक विद्याधर-नगर (इक)। °पत्त न [°पत्र] १ वृक्ष का पत्ता। २ 'उत्तराध्ययन' सूत्र का एक अध्ययन (उत्त १०) °पुप्फिया स्त्री [°पुष्पिका] 'दशवैकालिक' सूत्र का पहला अध्ययन (दस १)। °राय पुं [°राज] उत्तम वृक्ष (ठा ४, ४)। °सेण पुं [°सेन] १ राजा श्रेणिक का एक पुत्र, जिसने भगवान् महावीर के पास दीक्षा लेकर अनुत्तर देवलोक में गति प्राप्‍त की थी (अनु २) २ नववें बलदेव और वासुदेव के पूर्वं-जन्म के धर्मं-गुरु (सम १५३, पउम २०, १७७)

दुमंतय :: पुं [दे] केश-बन्ध, धम्मिल्ल — बंधी चोट, जूड़ा (दे ५, ४७)।

दुमण :: न [धवलन] चूना आदि से लेपन, सफेद करना (पणह २, ३)।

दुमणी :: स्त्री [दे] सुधा, मकान आदि पोतने का श्वेत द्रव्य-विशेष, चूना (दे ५, ४४)।

दुमत्त :: वि [द्विमात्र] दो मात्रावाला स्वर- वर्णं (हे १, ९४)।

दुमासिय :: वि [द्वैमासिक] दो मास का, दो मास-सम्बन्धी सण)।

दुमिअ :: वि [धवलित] चूना आदि से पोता हुआ, सफेद किया हुआ (गा ७४७; सुज्ज २०)।

दुमिल :: देखो दुम्मिल (पिंग)।

दुमुह :: पुं [द्विमुख] एक राजर्षि (उत्त ९)।

दुमुह :: देखो दुम्मुह = दुर्मुंख (पि ३४०)।

दुमुहुत्त :: पुंन [दुर्मुहूर्त] खराब मुहूर्तं, दुष्ट समय (सुपा २३७)।

दुमोक्ख :: वि [दुर्मोक्ष्] जो दुःख से छोड़ा जा सके (सूअ १, १२)।

दुम्म :: देखो दूम = दावय्। दुम्मइ (भवि)। दुम्मेंति, दुम्मेसि (गा १७७; ३४०)। कर्मं. दुम्मिज्जइ (गा ३२०)।

दुम्मइ :: वि [दुर्मति] दुर्दुद्धि, दुष्ट बुद्धिवाला (श्रा २७; सुपा २५१)।

दुम्मइणी :: स्त्री [दे] झगड़ाखोर स्त्री (दे ५, ४७; षड्)।

दुम्मण :: वि [दुर्मनस्] १ दुर्मंना, खिन्‍न- मनस्क, उद्विग्‍न-चित्त, उदास (विपा १, १; सुर ३, १४७) २ दीन, दीनतायुक्त। ३ दिष्ट, द्वेष-युक्त (ठा ३, २ — पत्र १३०)

दुम्मण :: अक [दुर्मनाय्] उद्विग्‍न होना, उदास होना। वकृ. ड्डम्मणाअंत, दुम्मणा- यमाण (नाट — महावी ९९, मालती १२८; रयण ७९)।

दुम्मणिअ :: न [दौर्मनस्य] उदासी, उद्वेग, चिन्ता, बेचैनी (दस ९, ३)।

दुम्मणिीअ :: न [दौर्मनस्य] दुष्ट मनो-भाव, मन का दुष्ट विकार, दुर्जंनता (दस ९, ३, ८)।

दुम्मय :: पुं [द्रमक] भिखारी, भईखमंगा (दस ७, १४)।

दुम्महिला :: स्त्री [दुर्महिला] दुष्ट स्त्री (ओघ ४९४ टी)।

दुम्माण :: पुं [दुर्मान] झूठा अभिमान, निन्दित गर्व (अच्चु ५४)।

दुम्मार :: पुं [दुर्मार] विषम मार, भयंकर ताड़न; 'दुम्मारेण मओ सोवि' (श्रा १२)।

दुम्मारि :: स्त्री [दुर्मारि] उत्कट मारी-रोग (संबोध २)।

दुम्मारुय :: पुं [दुर्मारुत] दुष्ट पवन (भवि)।

दुम्मिअ :: वि [दून] उपतापित, पीड़ित (गा ७४; २२४; ४२३; भवि; काप्र ३०)।

दुम्मिल :: स्त्रीन [दुर्मिल] छन्द-विशेष। स्त्री. °ला (पिंग)।

दुम्मह :: देखो दुमुह = द्विमुख (महा)।

दुम्मुह :: पुं [दुर्मुख] बलदेव का धारणी देवी से उत्पन्‍न एक पुत्र, जिसने भगवान् नेमिनाथ के पास दीक्षा लेकर मुक्ति पाई थी (अंत ३, पणह १, ४)।

दुम्मुह :: पुं [दे] मर्कट, वानर, बन्दर (दे ५, ४४)।

दुम्मेह :: वि [दुर्मेधस्] दुर्बुंद्धि, दुर्मंति (पणह १, ३)।

दुम्मोअ :: वि [दुर्मोक] दुःख से छोड़ाने योग्य (अभि २४४)।

दुयणु :: देखो दुअणुअ (धर्मंसं ६४०)।

दुरइक्कम :: वि [दुरतिक्रम] दुर्लंघ्य, जिसका उल्लंघन दुःख-साध्य हो वह (आचा)।

दुरइक्कमणिज्ज :: वि [दुरतिक्रमणीय] ऊपर देखो (णाया १, ५)।

दुरंत :: वि [दुरन्त] १ जिसका परिणाम — विपाक खराब हो वह, जिसका पर्यन्त दुष्‍ट हो वह (णाया १, ८; पणह १, ४ — पत्र ६५; स ६५०, उवा) २ जिसका विनाश कष्‍ट-साध्य हो वह (तंदु)

दुरंदर :: वि [दे] दुःख से उत्तीर्णं (दे ५, ४६)।

दुरक्ख :: वि [दरक्ष्] जिसकी रक्षा करना कठिन हो वह (सुपा १४३)।

दुरक्खर :: वि [दुरक्षर] परुष, कठोर, कड़ा (वचन) (भवि)।

दुरग्गह :: पुं [दुराग्रह] कदाग्रह (कुप्र ३७९)।

दुरज्झवसिय :: न [दुरध्यवसित] दुष्ट चिन्तन (सुपा ३७७)।

दुरणुचर :: वि [दुरनुचर] जिसका अनुष्ठान कठिनता से हो सके वह, दुष्कर; 'एसो जईण धम्मो दुरणुचरो मंदसत्ताण' (सुर १४, ७५; ठा ५, १ — पत्र २९६; णाया १, १)।

दुरणुपाल :: वि [दुरनुपाल] जिसका पालन कष्‍ट-साध्य हो (उत्त २३)।

दुरप्प :: पुं [दुरात्मन्] दुष्‍ट आत्मा, दुर्जंन (उव; महा)।

दुरब्भास :: पुं [दुरभ्यास] खराब आदत (सुपा १६७)।

दुरभि :: देखो दुब्भि (अणु; पउम २६, ५०, १०२, ४४; पणह २, ५; आचा)।

दुरभिगम :: वि [दुरभिगम] १ जहा दुंःख से गमन हो सके वह, कष्‍ट-गम्य (ठा ३, ४) २ दुर्बोध, कष्‍ट से जो जाना जा सके (राज)

दुरमच्च :: पुं [दुरमात्य] दुष्‍ट मंत्री (कुप्र २९१)।

दुरवगम :: वि [दुरवगम] दुर्बोध (कुप्र ४८)।

दुरवगम्म :: देखो दुरवगम (चेइय २५९)।

दुरवगाह :: वि [दुरवगाह] दुष्प्रवेश, जहाँ प्रवेश करना कठिन हो वह (हे १, २६; सम १४५)।

दुरस :: वि [दूरस] खराब स्वादवाला (भग; णाया १, १२; ठा ८)।

दुरसण :: पुं [द्विरसन] १ सर्पं, साँप। २ दुर्जंन, दुष्‍ट मनुष्य (सुपा ५९७)

दुरहि :: देखो दुरभि (उप ७२८ टी; तंदु)।

दुरहिगम :: देखो दुरभिगम (सम १४५; विसे ९०९)।

दुरहिगम्म :: वि [दुरभिगम्य] दुःख से जानने योग्य, दुर्बोध; 'अत्थगई वि अ नयवायगहण- लीणा दुरहिगम्मा' (सम्म १६१)।

दुरहियास :: वि [दुरध्यास, दुरधिसह] दुस्सह, जो कष्ट से सहन किया जा सके (णाया १, १; आचा; उप १०३१ टी, स ६५७)।

दुराणण :: पुं [दुरानन] विद्याधर वंश का एक राजा (पउम ५, ४५)।

दुराणुवत्त :: वि [दुरनुवर्त] जिसका अनुवर्त्तंन कष्ट-साध्य हो वह (वव ३)।

दुराय :: न [द्विरात्र] दो रात (ठा ५, २; कस)।

दुरायार :: वि [दुराचार] १ दुराचारी, दुष्ट आचरणवाला (सुर २, १९३, १२, २२९; वेणी १७१) २ पुं. दुष्ट आचरण (भवि)

दुरायारकि :: वि [दुराचारिन्] ऊपर देखो (भवि)।

दुराराह :: वि [दुराराध] जिसका आराधन दुःऋख से हो सके वह (कप्प)।

दुरारोह :: वि [दुरारोह] जिस पर दुःख से चढ़ा जा सके वह, दुरध्यास (उत्त २३, गा ४६८)।

दुरालोअ :: पुं [दे] तिमिर, अन्धकार (दे ५, ४६)।

दुरालोअ :: वि [दुरालोक] जो दुःख से देखा जा सके, देखने को अशक्य (से ४, ८; कुमा)।

दुरालोयण :: वि [दुरालोकन] ऊपर देखो, 'दुरालोयणो दुम्मुहो रत्तनेत्तो' (भवि)।

दुरावह :: वि [दुरावह] दुर्धंर, दुर्वंह (पउम ९८, ९)।

दुरास :: वि [दुराश] १ दुष्ट आशावाला। २ खराब इच्छावाला (भवि; संक्षि १९)

दुरासय :: वि [दुराशय] दुष्ट आशयवाला (सुपा १३१)।

दुरासय :: वि [दुराश्रय] दुःख से जिसका आश्रय किया जा सके वह, आश्रय करने का अशक्य (पणह १, ३, उत्त १)।

दुरासय :: वि [दुरासद] १ दुष्प्राप्य, दुर्लंभ। २ दुर्जय। ३ दुःसह (दस २, ६; राज)

दुरिअ :: न [दुरित] पाप (पाअ; सुपा २४३)।

दुरिअ :: न [दे] द्रुत, शीघ्र, जल्दी (षड्)।

दुरिआरि :: स्त्री [दुरितारि] भगवान् संभवनाथ की शासनदेवी (संति ९)।

दुरिक्ख :: वि [दुरीक्ष] देखने को अशक्य (कुमा)।

दुरिट्ठ :: न [दुरिष्ट] खराब नक्षत्र (दसनि १, १०५)।

दुरिट्ठ :: न [दुरिष्ट] खराब यजन — याग (दसनि १, १०५)।

दुरुक्क :: वि [दे] थोड़ा पीसा हुआ, ठीक ठीक नहीं पीसा हुआ (आचा २, १, ८)।

दुरुढुल्ल :: सक [भ्रम्] १ भ्रमण करना, घूमना। २ गँवाई हुई चीज की खोज में घूमना। वकृ. दुरुढुल्लंत (सुर १५, २१२)

दुरुत्त :: न [दुरुक्‍त] दुष्टोक्ति, दुष्ट वचन (सार्ध १०१)।

दुरुत्त :: वि [द्विरक्त] १ दो बार कहा हुआ, पुनरुक्त। २ दो बार कहने योग्य (रंभा)

दुरुत्तर :: वि [दुरुत्तर] १ दुस्तर, दुर्लघ्य (सूअ १, ३, २) २ न. दुष्ट उत्तर, अयोग्य जवाव (हे १, १४)

दुरुत्तर :: वि [द्वि-उत्तर] दो से अधिक। °सय वि [°शततम] एक सौ दो वाँ, १०२ वाँ (पउम १०२, २०४)।

दुरुत्तार :: वि [दुरुत्तार] दुःख से पार करने योग्य (सुपा २६७)।

दुरुद्धर :: वि [दुरुद्धर] जिसका उद्धार कठिनाई से हो वह (सूअ १, २, २)।

दुरुवणीय :: वि [दुरुपनीत] जिसका उपनय दूषित हो ऐसा (उदाहरण (दसनि १)।

दुरुवयारि :: वि [दुरुपचार] जिसका उपचार कष्ट-साध्य हो वह (तंदु)।

दुरुव्वा :: स्त्री [दूर्वा] तृण-विशेष, दूब (स १२४; उप ३१८)।

दुरुह :: सक [आ + रुह्] आरूढ़ होना, चढ़ना। दुरुहइ (पि ११८; १३९)। वकृ. दुरुहमाण (आचा २, ३, १)। संकृ. दुरुहित्ता, दुरुहित्ताणं, दुरुहेत्ता (भग; महा; पि ५८३; ४८२)।

दुरूढ :: वि [आरूढ] अधिरूढ़, ऊपर चढ़ा हुआ (णाया १, १; २, १; औप)।

दुरूव :: वि [दूरूप] १ खराब रूपवाला, कुरूप, कुडौल (ठा ८; श्रा १६) २ मलमूत्र का कर्दम (सूत्रकृ° चूर्णी गा° ३१७)

दुरूव :: वि [दूरूप] अशुचि आदि खराब वस्तु (सूअ १, ५, १, २०)।

दुरूह :: देखो दुरुह। संकृ. दुरूहित्तु, दुरू- हिया (सूअ १, ५, २, १५); 'जहा आसा- विर्णिं नावं जाइअंधो दुरूहिया' (सूअ १, ११, ३०)।

दुरूहण :: न [आरोहण] अधिरोहण, ऊपर चढञ बैठना (स ५१)।

दुरेह :: पुं [द्विरेफ] भ्रमर, भौंरा (पाअ; हे १, ९४)।

दुरोअर :: न [दुरोदर] जुआ, द्युत (पाअ)।

दुरोदर :: देखो दुरोअर (कर्पूर २५)।

दुलंघ :: देखो दुल्लंब (भवि)।

दुलंभ :: देखो दुल्लंभ (भवि)।

दुलह :: वि [दुर्लभ] १ जिसकी प्राप्ति दुःख से हो सके वह (कुमा; गउड; प्रासू १३४) २ पुं. एक वणिक्-पुत्र (सुपा ६१७)। देखो दुल्लह।

दुलि :: पुंस्त्री [दे] कच्छप, कछुआ (दे ५, ४२; उप पृ १३५)।

दुल्ल :: न [दे] वस्त्र, कपड़ा (दे ५, ४१)।

दुल्लंघ :: वि [दुर्लङ्घ] जिसका उल्लंघन कठिनाई से हो सके वह, अलंघनीय (पउम १२, ३८; ४१; हेका ३१; सुर २, ७८)।

दुल्लंभ :: वि [दुर्लभ] दुराप, दुषप्राप्य (उप पृ १३९; सुपा १९३; सण)।

दुल्लक्ख :: वि [दुर्लक्ष] १ दुर्विज्ञेय, जो दुःख से जाना जा सके, अलक्ष्य (से ८, ५; स ९६; वज्जा १३६; श्रा २८) २ जो कठि- नाई से देखा जा सके (कप्पू)

दुल्लग्ग :: वि [दे] अघटमान, अयुक्त (दे ५, ४३)।

दुल्लग्ग :: न [दुर्लग्न] दुष्ट लग्‍न, दुष्ट मुहूर्तं (मुद्रा २१५)।

दुल्लब्भ, दुल्लभ :: देखो दुल्लह, 'किं दुल्लंब्भं जणो गुणग्गाही' (गा ९७५, निचू ११)।

दुल्ललिअ :: वि [दुर्ललित] १ दुष्ट आदतवाला। २ दुष्ट इच्छावाला; 'विलसइ वेसाण गिहे विविहबिलासेहिं दुल्ललिओ', 'कीलइ दुल्ललिय- बालकोलाए' (सुपा ४८५; ३२८) ३ व्यसनी, आदतवाला; 'धन्ना सा पुन्‍नुक्करिसनिम्मिया तिहुयणोवि तुह जणणी। जीइ पसूओ सि तुमं दीणुद्धरणिक्क- दुल्ललिओं' (सुपा २१९) ४ दुर्विदग्ध, दुःशिक्षित (पाअ) ५ न. दुराशा, दुर्लंभ वस्तु की अभिलाषा (महानि ६)

दुल्लिसिआ :: स्त्री [दे] दासी, नौकरानी (दे ५, ४६)।

दुल्लह :: वि [दुर्लभ] १ दुराप, जिसकी प्राप्ति कठिनाई से हो वह (स्वप्‍न ४६; कुमा; जी ५०; प्रासू ११; ४६; ४७) २ विक्रम की ग्यारहवीं शताब्दी का गुजरात का एक प्रसिद्ध राजा (गु १०)। °राय पुं [°राज] वही अर्थ (सार्ध ६६; कुप्र ४)। °लंभ वि [°लम्भ] जिसकी प्राप्ति दुःख से हो सके वह (पउम ३५, ४७; सुर ४, २२९; वै ६८)

दुवई :: स्त्री [द्रुपदी] छन्द-विशेष (स ७१)।

दुवण :: न [दावन] उपताप, पीड़न (पणह १, २)।

दुवण्ण, दुवन्न :: वि [दुर्वर्ण] खराब रूपवाला (भग; ठा ८)।

दुवय :: पुं [द्रुपद] एक राजा, द्रौपदी का पिता (णाया १, १६; उप ६४८ टी)। °सुया स्त्री [°सुता] पाण्डव-पत्‍नी, द्रौपदी (उप ६४८ टी)।

दुवयंगया :: स्त्री [द्रुपदाङ्गजा] राजा द्रुपद की लड़की, द्रौपदी, पाण्डवों की पत्‍नी (उप ६४८ टी)।

दुवयंगरूहा :: स्त्री [द्रुपदाङ्गरुहा] ऊपर देखो (उप ६४८ टी)।

दुवयण :: न [दुर्वचन] खराब वचन, दुष्ट उक्ति (पउम ३५, ११)।

दुवयण :: न [द्विवचन] दो का बोधख व्याकरण-प्रसिद्ध प्रत्यय, दो संख्या की वाचक विभक्ति (हे १, ९४; ठा ३, ४ — पत्र १५८)।

दुवार, दुवाराय :: देखो दुआर (हे २, ११२; प्रति ४१; सुपा ४८७); 'एगदुवाराए' (कस)। °पाल पुं [°पाल] दरवान, प्रतीहार (सुर १, १३४; २, १४८)। °वाहा स्त्री [°बाहा] द्वार-भाग (आचा २, १, ५)।

दुवारि :: वि [द्वारिन्] १ द्वारवाला। २ पुं. दरवान, प्रतीहार; 'बहुपरिवारो पत्तो राय- दुवारी तहि वरुणो' (सुपा २९५)

दुवारिअ :: वि [द्वारिक] दरवाजावाला, 'अवं- गुयदुवारिए' (कस)।

दुवारिअ :: पुं [दौवारिक] दरवान्, द्वारपाल (हे १, १६०; संक्षि ६, सुपा २९०)।

दुवालस :: त्रि. ब. [द्वादशन्] बारह, १२ (कप्प; कुमा)। °मुहित्तअ वि [°मौहूर्तिक] बारह मुहूर्तों का परिमाणवाला (सम २२)। °विह वि [°विध] बारह प्रकार का (सम २१)। °हा अ [°धा] बारह प्रकार (सुर १४, ९१)। °वित्त न [°वर्त] बारह आवर्त्तंवाला वन्दन, प्रणाम-विशेष (सम २१)।

दुवारसंग :: स्त्रीन [द्वादशाङ्गी] बारह जैन आगम-ग्रन्थ, 'आचारांग' आदि बारह सूत्र ग्रन्थ (सम १; हे १, २५४)। स्त्री. °गी (राज)।

दुवारसंगि :: वि [द्वादशाङ्गिन्] बारह अंग- ग्रन्थों का जानकार (कप्प)।

दुवालसम :: वि [द्वादश] १ बारहवाँ। २ न. लगातार पाँच दीनों का उपवास (आचा; णाया १, १; ठा ६; सण)। स्त्री. °मी (णाया १, ९)

दुविट्ठ, दुवट्‍ठु :: पुं [द्विपृष्ठ, द्विविष्टप] १ भरत- क्षेत्र में इस अवसर्पिणी काल में उत्पन्न द्वितीय अर्धं-चक्री राजा (सम १५८ टी; पउम ५, १५५) २ भरत-क्षेत्र में उत्पन्न होनेवाला आठवाँ अर्धं-चक्री राजा, एक वासु- देव (सम १५४)

दुविभिज्ज :: वि [दुर्विभाज्य] जिसका विभाग करना कठिन हो वह — परमाणु (ठा ५, १ — पत्र २९६)।

दुविभव्व :: देखो दुव्विभव्व (ठा ५, १ टी)।

दुवियड्‍ढ :: वि [दुर्विदग्ध] दुश्शिक्षित, जान- कारी का झूठा अभिमान करनेवाला (उप ८३३ टी)।

दुवियप्प :: पुं [दुर्विकल्प] दुष्ट वितर्क (भवि)।

दुविलय :: पुं [दुविलक] एक अनार्यं देश, 'दुं (? दु) विलय-लउसबुक्कस — ' (पव २७४)।

दुविह :: वि [द्विविध] दो प्रकार का (हे १; ९४; नव ३)।

दुबीस :: स्त्रीन [द्वाविंशति] बाईश, २२ (नव २०; षड्)।

दुव्वण्ण, दुव्वन्न :: देखो दुवण्ण (पउम ४१, १७; पणह १, ४)।

दुव्वय :: न [दुर्व्रत] १ दुष्ट नियम। २ वि. दुष्ट व्रत करनेवाला। ३ व्रत-रहित, नियम- वर्जित (ठा ४, ३; विपा १, १)

दुव्वयण :: न [दुर्वचन] दुष्ट उक्ति, खराब वचन (पउम ३३, १०६; विसे ५२०; उव गा २९०)।

दुव्वल :: देखो दुब्बल (महा)।

दुव्वसण :: न [दुर्व्यसन] खराब आदत, बुरी आदत (सुपा १८४; ४८९; भवि)।

दुव्वसु :: वि [दुर्वसु] अभव्य, खराब द्रव्य (आचा)। °मुणि पुं [°मुनि] मुक्ति के लिए अयोग्य साधु (आचा)।

दुव्वह :: वि [दुर्वह] दुर्धंर, जिसका वहन कठिनाई से हो सके वह (स १६१; सुर १, १४)।

दुव्वा :: देखो दुरुव्वा (कुमा; सुर १, १३८)।

दुव्वाइ :: वि [दुर्वादिन्] अप्रियवक्ता (दस ९, २)।

दुव्वाय :: पुं [दुर्वाक्] दुर्वंचन, दुष्ट उक्ति; 'वयणेणवि दुव्वाओ न य कायव्वो परस्स पीडयरो' (पउम १०३, १४३)।

दुव्वाय :: पुं [दुर्वात] दुष्ट पवन (णामि ४)।

दुव्वार :: वि [दुर्वार] दुःख से रोकने योग्य, अवार्यं (से १२, ६३; उप ९८६ टी; सुपा १९७; ४७१; अभि ११६)।

दुव्वारिअ :: देखो दुवारिअ = दौवारिक (प्राप्र)।

दुव्वाली :: स्त्री [दे] वृक्ष-पंक्ति (पाअ)।

दुव्वास :: पुं [दुर्वासस्] एक ऋषि (अभि ११८)।

दुव्विअड :: वि [दुर्विवृत] परिधान-वर्जित, नग्‍न, नंगा (ठा ५, २ — पत्र ३१२)।

दुव्विअड्‍ढ, दुव्विअद्ध :: वि [दुर्विदग्ध] ज्ञान ता झूठा अभिमान करनेवाला, दुश्शिक्षित (पाअ; गा ६५)।

दुव्विजाणय :: वि [दुर्विज्ञेय] दुःख से जानने योग्य, जानने को अशक्य; 'अकुसलपरिणाम- मंदबुद्धिजणदुव्विजाणए' (पणह १, १)।

दुव्विढप्प :: वि [दुरर्ज] दुःख से अर्जंन करने योग्य, कठिनाई से कमाने योग्य (कुप्र २३८)।

दुव्विणीअ :: वि [दुर्विनीत] अविनीत, उद्धत (पउम ६६, ३५; काल)।

दुव्विण्णाय :: वि [दुर्विज्ञात] असत्य रीति से जाना हुआ (आचा)।

दुव्विभज :: देखो दुविभज्ज (राज)।

दुव्विभव्व :: वि [दुर्विभाव्य] दुर्लक्ष्य, दुःख से जिसकी आलोचना हो सके वह (ठा ५, १ टी — पत्र २९६)।

दुव्विभाव :: वि [दुर्विभाव] ऊपर देखो (विसे)।

दुव्विलसिय :: न [दुर्विलसित] १ स्वच्छन्दी विलास। २ निकृष्ट, कार्य्यं, जघन्य काम, नीच काम (उप १३९ टी)

दुव्विसह :: वि [दुविषह] अत्यन्त दुःसह, असह्य (गा १४८; सुर ३, १४४; १४, २१०)।

दिव्विसोज्झ :: वि [दुर्विशोध्य] शुद्ध करने को अशक्य (पंचा १७)।

दुव्विहिअ :: न [दुर्विहित] दुष्ट अनुष्ठान (दसचू १, १२)।

दुव्विहिय :: वि [दुर्विहित] १ खराब रीति से किया हुआ, 'दुव्विहियविलासियं बिहिणो' (सुर ४, १५; ११, १४३) २ असुविहित, अयशस्वी (आव ३)

दुव्वोज्झ :: वि [दुर्वाह्य] दुर्वंह, दुःख से ढोने योग्य (से ३, ५; ४, ४४; १३, ६३; वज्जा ३८)।

दुव्वोज्झ :: वि [दे] दुर्घात्य, दुःख से मारने योग्य (से ३, ५)।

दुसंकड :: न [दुःस्सकंट] विषम विपत्ति (भवि)।

दुसंचर :: देखो दुस्संचर (भवि)।

दुसंथ :: वि [द्विसंस्थ] दो बार सुनने से ही उसे अच्छी तरह याद कर लेने की शक्तिवाला (धर्मंसं १२०७)।

दुसन्नप्प :: वि [दुस्संज्ञाप्य] दुर्बोध्य (ठा ३, ४ — पत्र १६५)।

दुसमदुसमा :: देखो दुस्समदुस्समा (भग ६, ७)।

दुसमसुसमा :: देखो दुस्समसुसमा (ठा १)।

दुसमा :: देखो दुस्समा (भग ६, ७; भवि)।

दुसह :: दखो दुस्सह (हे १, ११५, सुर १२, १३७; १३९)।

दुसाह :: वि [दुस्साध] दुःसाध्य, कष्ट-साध्य (पउम ८६, २२)।

दुसिक्खिअ :: वि [दुश्शिक्षित] दुर्विदग्ध (पउम २५, २१)।

दुसुमिण :: देखो दुस्सुमिण (पडि)।

दुसुरुल्लय :: न [दे] गले का आभूषण-विशेष (स ७६)।

दुस्स :: सक [द्विष्] द्वेष करना। वकृ. दस्समाण (सूअ १, १२, २२)।

दुस्सउण :: न [दुश्शकुन] अपशकुन (णामि २०)।

दुस्संचर :: वि [दुस्संचर] जहाँ दुःख से जाया जा सके, दुर्गम (स २३१, संक्षि १७)।

दुस्संचार :: वि [दुस्संचार] ऊपर देखो (सुर १, ६६)।

दुस्संत :: पुं [दुष्यन्त] चन्द्रवंशीय एक राजा, शकुन्तला का पति (पि ३२९)।

दुस्संबोह :: वि [दुस्संबोध] दुर्बोध्य (आचा)।

दुस्सज्झ :: वि [दुस्साध्य] दुष्कर (सुपा ८; ५९९)।

दुस्सण्णप्प :: देखो दुसन्नप्प (बृह ४)।

दुस्सत्त :: वि [दुस्सत्त्व] दुरात्मा, दुष्ट जीव (पउम ८७, ९)।

दुस्सन्नप्प :: देखो दुसन्नप्प (कस)।

दुस्समदुस्समा :: स्त्री [दुष्फमदुष्षमा] काल- विशेष, सर्वाधम काल, अवसर्पिणी काल का छठवाँ और उत्लर्पिणी काल का पहला आरा, इसमें सब पदार्थों के गुणो की सर्वोत्कृष्ट हानि होती है, इसका परिमाण एक्कीस हजार वर्षों का है (ठा १; ६; इक)।

दुस्समदुसुसमा :: स्त्री [दुष्षमसुषमा] बेया- लीस हजार कम एक कोटाकोटि सागरोपम का परिमाणवाला काल-विशेष, अवसर्पिणी काल का चतुर्थं और उत्सर्पिणी काल का तीसरा आरा (कप्प; इक)।

दुस्समा :: स्त्री [दुष्षमा] १ दुष्ट काल। २ एक्कीस हजार वर्षों के परिमाणवाला काल- विशेष, अवसर्पिणी-काल का पाँचवाँ और उत्सर्पिणी काल का दूसरा आरा (उप ९४८; इक)

दुस्समाण :: देखो दुस्स।

दुस्सर :: पुं [दुःस्वर] १ खराब आवाज, कुत्सित कण्ठ। २ कर्म-विशेष, जिसके उदय से स्वर कर्णं-कटु होता है (कम्म १, २७; नव १५)। °णाम, °नाम न [°नामन्] दुःस्वर का कारण-भूत कर्मं (पंच; सम ६७)। दुस्सल वि [दुश्शल] दुर्विनीत, अविनीत (बृह १)

दुस्सह :: वि [दुस्सह] जो दुख से सहन हो सके, असह्य (स्वप्‍न ७३; हे १, १३; ११५; (षड्)।

दुस्सहिय :: वि [दुस्सोढ़] दुःख से सहन किया हुआ (सूअ १, ३, १)।

दुस्सासण :: पुं [दुश्शासन] दुर्योंधन का एक छोटा भाई, कौरव-विशेष (चारु १२; वेणी १०७)।

दुस्साहड :: वि [दुस्संहृत] दुःख से एकत्रित किया हुआ, 'दुस्साहडं धणं हिच्चा बहु संचिणिया रयं' (उत्त ७, ८)।

दुस्साहिअ :: वि [दौस्साधिक] दुस्साध्य कार्यं को करनेवाला (पि ८४)।

दुस्सिक्ख :: वि [दुश्शिक्ष्] दुष्ट शिक्षवाला, दुश्शिक्षित, दुर्विदग्ध (उप १४९ टी; कुप्र २८३)।

दुस्सिक्खिअ :: पि [दुश्शिक्षित] ऊपर देखो (गा ६०३)।

दुस्सिज्जा :: स्त्री [दुश्शय्या] खराब शय्या (दस ८)।

दुस्सिलिट्ठ :: वि [दुश्श्लिष्ट] कुत्सित श्‍लेषवाला (पि १३६)।

दुस्सील :: वि [दुश्‍शील] दुष्ट स्वभाववाला। २ व्यभिचारी (पणह १, १; सुपा ११०)। स्त्री. °ला (पाअ)

दुस्सुमिण :: पुंन [दुस्स्वप्‍न] दुष्ट स्वप्‍न, खराब स्वप्‍न-सपना (पणह १, २)।

दुस्सुय :: न [दुश्श्रुत] १ दुष्ट शास्त्र। २ वि. श्रुति-कटु (पणह १, २)

दुस्सेज्जा :: देखो दुस्सिज्जा (उव)।

दुह :: सक [दुह्] दूहना, दूध निकालना। दुहेज्जह (महा)। कर्मं. दुहिज्जइ, दुब्भइ (हे ४, २४५; भवि. दुहिहिइ, दुब्भिहिइ (हे ४, २४५)।

दुह :: सक [द्रुह्] द्रोह करना, द्वेष करना, वैर करना। दुहइ (विचार ६४७)।

दुह :: देखो दोह = दोह (राज)।

दुह :: देखो दुक्ख = दुःख (हे २, ७२; प्रासू २६; २८; १६२)। °अ वि [°द] दुःख देनेवाला, दुःख-जनक (सुपा ४३४)। °ट्ट वि [°र्त] दुःख से पीड़ित (विपा १, १; सूपा ३३८)। °ट्टिय वि [°र्तित] दुःख से पीड़ित (औप)। °ट्ठ पुं [°र्थ] नरक-स्थान (सूअ १, ५, १)। °त्त देखो °ट्ट (उप पृ ७९; ७२८ टी)। °फास पुं [°स्पर्श] दुःख-जनक स्पर्शं (णाया १, १२)। °भागि वि [°भागिन्] दुःख में भागीदार (सुपा ४३१)। °मच्चु पुं [°मृत्यु] अपमृत्यु, अकाल मौत (सुर ८, ५३)। °विवाग पुं [°विपाक] दुःख रूप कर्म-फल (विपा १, १)। °सिज्जा, सेज्जा स्त्री [°शय्या] दुःख-जनक शय्या (ठा ४, ३)। °विह वि [°वह] दुःख-जनक (पउम ८२, ९१; सुर ८, १६२; प्रासू १६६)।

दुह° :: देखो दुहा (भग ८, ८)।

दुहअ :: वि [दे] चूर्णित, चूर-चूर किया हुआ (दे ५, ४५)।

दुहअ :: वि [दुर्हत] खराब रीति से मारा हुआ (आचा)।

दुहअ :: वि [द्विहत] दो से मारा हुआ (आचा)।

दुहअ :: देखो दुब्भग (षड्)।

दुहओ :: अ [द्विधातस्] दोनों तरफ से, उभय प्रकार से (आचा; ठा ५, ३, कस; भग; पुप्फ ४७०; श्रा २७)।

दुहंड़ :: वि [द्विखण्ड] दो टुकड़ेवाला; 'किच्चेव बिंबं (? णो) दुहंडं' (रंभा)।

दुहग :: देखो दुब्भग (कम्म ३, ३)।

दुहट्ट :: वि [दुर्घट्ट] दुर्निरोध, दुर्वार (णाया १, ८)।

दुहण :: देखो दुघण (पणह १, १ — पत्र १८)।

दुहण :: पुं [द्रुहण] प्रहरण-विशेष, 'चम्मेट्ठ- घणमोट्ठियमोग्गरबरफलिहजंतपत्थरदुहणतोण- कुवेणी — ' (पणह १, ३ — पत्र ४४)।

दुहण :: न [दोहन] दोह, दोहना (पणह १, २)।

दुहदुहग :: पुं [दुहदुहक] 'दुह-दुह' आवाज (राय १०१)।

दुहव :: देखो दूहव (पि ३४०; हे १, ११५ टी)। स्त्री. वी° (पि २३१)।

दुहा :: अ [द्विधा] दो प्रकार, दो तरफ, उभ- यथा (जी ८; प्रासू १४४)। °इअ वि [°कृत] जिसको दो खण्ड किये गये हों वह (प्राप्र; कुमा)।

दुहाकर :: सक [द्विधा + कृ] दो खण्ड करना। कर्मं. दुहाइज्जइ, दुहाकिज्जइ (प्राप्र; हे १, ९७)। कवकृ. °कज्जमाण, °किज्जमाण (पि ५४७; ४३६)। संकृ. °काउं (महा)।

दुहाव :: सक [छिद्] छेदना, छेदा करना, खण्डित करना। दुहावइ (हे ४, १२४)।

दुहाव :: सक [दुःखय्] दुःखी करना, दुभाना, दुखाना (प्रामा)।

दुहावण :: वि [दुःखन] दुःखी करनेवाला (सण)।

दुहाविअ :: वि [छिन्न] खण्डित (पाअ; कुमा)।

दुहाविअ :: वि [दुःखित] दुःखी किया हुआ (गउड)।

दुहि :: वि [दुःखिन्] दुःखी, व्यथित, पीड़ित (उप ९८६ टी)। स्त्री. °णी (कुमा)।

दुहिअ :: वि [दुःखित] पीड़ित, दुःखयुक्त (हे २, १६४; कुमा; महा)।

दुहिअ :: वि [दुग्ध] जिसका दोहन किया गया हो वह (दे १, ७)। °दुज्झ वि [°दोह्य] एक बार दोहने पर फिर भी दोहने योग्य; फिर-फिर दोहने योग्य (दे १, ७; ५, ४६)।

दुहिआ :: [दुहितृ] लड़की, पुत्री (सुाप १७६; हे ३, ३५)। °दइअ पुं [°दयित] जामाता (सुपा ४५७)।

दुहिण :: पुं [द्रुहिण] ब्रह्मा, चतुर्मुँख; 'अवि दुहिणप्पमुहेहिं आणत्ती तुह अलंधणिज्जपहावा' (अच्चु १६)।

दुहित्त :: पुं [दौहित्र] लड़की का लड़का, नाती (उप पृ ७४)।

दुहित्तिया :: स्त्री [दौहित्रिका] लड़की की लड़की, नतिनी (उप पृ ७४)।

दुहित्ती :: स्त्री [दौहित्री] लड़की की लड़की, नतिनी या नातिन; 'पुत्ती तह दुहित्तो होइ य भज्जा सवक्की य' (श्रु ११७)।

दुहिदिआ :: (शौ) स्त्री [दुहितृ] लड़की, कन्या (प्राकृ ९५)।

दुहिल :: वि [द्रुहिल] द्रोही, द्रोह करनेवाला (विसे ९९९ टी)।

दू :: सक [दू] १ उपताप करना। २ काटना। कर्मं. 'दुज्जंतु उच्छु' (पणह १, २)

दूअ :: पुं [दूत] दूत, संदेश-हारक (पाअ; पउम ५३, ४३; ४६)।

दूआ :: देखो धूआ (षड्)।

दूइ° :: देखो दूई। °पलासय न [°पलाशक] एक चैत्य (उवा)।

दुइज्ज :: सक [द्रु] गमन करना, विहरना, जाना। दुइज्जइ (आचा)। वकृ. दूइज्जंत, दूइज्जमाण (औप; णाया १, १; भग; आचा; महा)। हेकृ. दूइज्जित्तए (कस)।

दुइत्त :: न [दूतीत्व] दूती का कार्यं, दूतीपन (पउम ५३, ४५)।

दूई :: स्त्री [दूती] १ दूत के काम में नियुक्त की हुई स्त्री, समाचार-हारिणी, कुटनी (हे ४, ३६७) २ जैन साधुओं के लिये भिक्षा का एक दोष (ठा ३, ४ — पत्र १६९)। °पिंड पुं [°पिण्ड] समाचार पहुँचाने से मिली हुई भिक्षा (आचा २, १, ९)। देखो दूइ°।

दूण :: वि [दून] हैरान किया हुआ; 'हा पिय- वयंस दूढो (? णो) मए तुमं' (स ७६३)।

दूण :: पुं [दे] हस्ती, हाथी (दे ५, ४४; षड्)।

दूण :: (अप) देखो दुउण (पिंग)।

दूणावेढ :: वि [दे] १ अशक्य। २ तड़ाग, तलाव, तालाब (दे ५, ५६)

दूभ :: अक [दुःखय्] दूभना, दुःखित होना, 'तम्हा पुत्तोवि दूभिज्जा पहसिज्ज व दुज्जणो' (श्रा १२)।

दूभग :: देखो दुब्भग (णाया १, १६ — पत्र १९६)।

दूभग्ग :: न [दौर्भाग्य] दुष्ट भाग्य, खराब नसीब (उप पृ ३१)।

दूम :: सक [दू, दावय्] परिताप करना, संताप करना। दूमइ, दूमेइ (सुपा ८; प्राप्र; हे ४, २३)। कर्मं. दूभिज्जइ (भवि)। वकृ. दूमेंत (से १०, ६३)। कवकृ. दूमि- ज्जंत (सुपा २९६)।

दूम :: देखो दुम = धवलय् (हे ४, २४)।

दूमक, दूमग :: वि [दावक] उपताप-जनक, पीड़ा- जनक (पणह १, ३; राज)।

दूमण :: वि [दावक] उपताप करनेवाला (सूअ १, २, २, २७)।

दूमण :: न [दवन, दावन] परिताप, पीड़न (पणह १, १)।

दूमण :: न [धवलन] सफेद करना (वव ४)।

दूमण :: देखो दूम्मण = दुर्मनस् (सूअ १, २, २)।

दूमणाइअ :: वि [दुर्मनायित] जो उदास हुआ हो, उद्विग्‍न-मनस्क (नाट — मालती ९९)।

दूमिअ :: [दून, दावित] संतापित, पीड़ित (सुपा १०; १३३; २३०)।

दूमिअ :: वि [धवलित] सफेद किया हुआ (हे ४, २४; कप्प)।

दूयाकार :: न [दे] कला-विशेष (स ६०३)।

दूर :: न [दूर] १ अनिकट, असमीप; 'रुसेव जस्स कित्ती गया दूरं' (कुमा) २ अतिशय, अत्यन्त; 'दूरमहरं डसंते' (कुमा) ३ वि. दूरस्थित, असमीपवर्ती (सूअ १, २, २) ४ व्यवहित, अन्तरित (गउड) °ग वि [°ग] दूरवर्त्ती, असमीपत्थ (उप ६४८ टी; कुमा)। °गइ, °गइअ वि [°गतिक] १ दूर जानेवाला। सौधर्मं आदि देवलोक में उत्पन्‍न होनेवाला (ठा ८)। °तराग वि [°तर] अत्यन्त दूर (पणण १७)। °त्थ वि [°स्थ] दूरस्थित, दूरवर्त्ती (कुमा)। °भविय पुं [°भव्य] दीर्घ काल में मुक्ति को प्राप्‍त करने की योग्यतावाला जीव (उप ७२८ टी)। °य देखो °ग (सूअ १, ५, २)। °वत्ति वि [°वर्तिन्] दूर में रहनेवाला (पि ९४)। °लइय वि [°लयिक] मुक्ति- गामी (आचा)। °लय पुं [°लय] १ दूर- स्थित आश्रय। २ मोक्ष। ३ मुक्ति का मार्गं (आचा)

दूरगंइअ :: देखो दूर-गइअ (औप)।

दूरंतरिअ :: वि [दूरान्तरित] अत्यन्त-व्यवहित (गा ६५८)।

दूरचर :: वि [दूरचर] दूर रहनेवाला (धम्मो १०)।

दूराय :: सक [दूराय्] दूरस्थित की तरह मालूम होना, दूरवर्ती मालूम पड़ना। वकृ. दूरायमाण (गउड)।

दूरीकय :: वि [दूरीकृत] दूर किया हुआ (श्रा २८)।

दूरिहूअ :: वि [दूरीभूत] जो दूर हुआ हो (सुपा १५८)।

दूरल्ल :: वि [दूरवत्] दूरस्थित, दूरवत्ती (आव ४)।

दूलह :: देखो दुल्लह (संक्षि १७)।

दूस :: अक [दूष्] दूषित होना, विकृत होना। दूसइ (हे ४, २३५; संक्षि ३६)।

दूस :: सक [दूषय्] दोषित करना, दूषण — दोष लगाना। दूसइ (भवि), दूसेइ (बृह ४)।

दूस :: न [दूष्य] १ वस्त्र, कपड़ा (सम १५१; कप्प) २ तंबू, पट-कुटी (दे ५, २८)। °गणि पुं [°गणिन्] एक जैन आचार्यं (णंदि)। °मित्त पुं [°मित्र] मौर्यवंश के नाश होने पर पाटलिपुत्र में अभिषिक्त एक राजा (राज)। °हर न [°गृह] तंबू, पट- कुटी (स २६७)

दूसअ :: वि [दूषक] दोष प्रकट करनेवाला (वज्जा ९८)।

दूसग :: वि [दूषक] दूषित करनेवाला (सुपा २७५; सं १२४)।

दूसग :: वि [दूषक] दूषण निकालनेवाला, दोष देखनेवाला (धर्मंवि ८५)।

दूसण :: न [दूषण] दूषित करना (अज्झ ७३)।

दूसण :: न [दूषण] १ दोष, अपराध। २ कलंक, दाग (तंदु) ३ पुं. रावण की मौसी का लड़का (पउम १६, २५) ४ वि. दूषित करनेवाला (स ५२८)

दूसम :: वि [दुष्षम] १ खराब, दुष्ट। २ पुं. काल-विशेष, पाँटवाँ आरा; 'दूसमे काले' (सट्ठि १५९)। °दूसमा देखो दुस्सम- दुस्समा (सम ३९; ठा १; ६)। °सुसमा देखो दुस्समसुसमा (ठा २, ३; सम ९४)

दूसमा :: देखो दुस्समा (सम ३९; उप ८३३ टी; स ३४)।

दूसर :: देखो दूस्सर (राज)।

दूसल :: वि [दे] दुर्भंग, अभागा (दे ५, ४३; षड्)।

दूसह :: देखो दुस्सह (हे १, १३, ११५)।

दूसहणीअ :: वि [दुस्सहनीय] दुस्सह, असह्य (पि ५७१)।

दूसासण :: देखो दुस्सासण (हे १, ४३)।

दुसाहिअ :: वि [दौस्साधिक] दुसाध जाति में उत्पन्‍न, अस्पृश्य जाति का (प्राकृ १०)।

दूसि :: पुं [दूषिन्] नपुंसक का एक भेद; 'दोसुवि वेएसु सज्जए दुसी' (बृह ४)।

दूसिअ :: वि [दूषित] १ दूषण-युक्त, कलङ्क- युक्त (महा; भवि) २ पुं. एक प्रकार का नपुंसक (बृह ४)

दूसिआ :: स्त्री [दूषिका] आँक का मैल (कुमा)।

दूसुमिण :: देखो दुस्सुमिण (कुमा)।

दूहअ :: वि [दुःखक] दुःख-जनक, 'असईणं दूहओ चंदो' (वज्जा ९८)।

दूहट्ठ :: वि [दे] लज्जा से उद्विग्‍न (दे ५, ४८)।

दूहय :: देखो दोधअ (सिरि ९६१)।

दूहल :: वि [दे] दुर्भंग, मन्दभाग्य (दे ५, ४३)।

दूहव :: देखो दुब्भग ( हे १, ११५; १९२; कुमा; सुपा ५९७; भवि)।

दूहव :: सक [दुःखय्] दूभाना, दुःखी करना। दूहवेइ (सिरि १६७)।

दूहविअ :: वि [दुःखित] दुःखी किया हुआ दूभाया हुआ; 'किं केणवि दूहविया' (कुमा १२)।

दूहिअ :: वि [दुःखित] दुःख-युक्त (हे १, १३; संक्षि १७)।

दे :: अ. इन अर्थों का सूचक अव्यय। १ संमुख- करण। २ सखी को आमन्त्रण (हे २, १९२)

दे :: अ [दे] पाद-पूरक अव्यय (प्राकृ ८१)।

देअ :: देखो देव (मुद्रा १९१; चंड)।

देअर :: देखो दिअर (कुमा; काप्र २२४; महा)।

देअराणी :: स्त्री [देवरपत्नी] देवरानी, पति के छोटे भाई की बहू (दे १, ५१)।

देई :: देखो देवी (नाट — उत्त १८)।

देउल :: न [देवकुल] देव-मन्दिर (हे १; १७१; कुमा)। °णाह पुं [°नाथ] मन्दिर का स्वामी (षड्)। °वाडय पुंन [°पाटक] मेवाड़ का एक गाँव; 'देउलवाडयपत्तं तुट्ठण- सीलं च अइमहग्धं' (वज्जा ११६)।

देउलिअ :: वि [दैवकुलिक] देव स्थान का परिपालक (ओघ ४० भा)।

देउलिआ :: स्त्री [देवकुलिका] छोटा देव-स्थान (उप पृ ३९९; ३२० टी)।

देंत :: देखो दा = दा।

देक्ख :: सक [दृश्] देखना; अवलोकन करना। देक्खइ (हे ४, १८१)। वकृ. देक्खंत (अभि १४१)। संकृ. देक्खिअ (अभि १६९)।

देक्खालिअ :: वि [दर्शित] दिखाया हुआ, बतलाया हुआ (सुर १, १५२)।

देख :: (अप) देखो देक्ख। देखइ (भवि)।

देट्ठ :: देखो दिट्ठ = दृष्ट (प्रति ४०)।

देण्ण :: देखो दइण्ण (णाया १, १ — पत्र ३३)।

देपाल :: पुं [देवपाल] एक मंत्री का नाम (ती २)।

देप्प :: देखो दिप्प = दीप्। वकृ. — देप्पमाण (कुप्र ३४४)।

देय, देयमाण :: देखो दा =दा।

देर :: देखो दार = द्वार (हे १, ७९, २, १७२; दे ६, ११०)।

देव :: उभ [दिव्] १ जीतने की इच्छा करना। २ पण करना। ३ व्यवहार करना। ४ चाहना। ५ आज्ञा करना। ६ अव्यक्त शब्द करना। ७ हिंसा करना। देंवइ (संक्षि ३३)

देव :: पुंन [देव] १ अमर, सुर, देवता; 'देवाणि, देवा' (हे १, ३४; जी १९, प्रासू ८६) २ मेघ। ३ आकाश। ४ राजा, नरपति; 'तहेव मेहं व नहं व माणावं न देव देवत्ति गिरं वएज्जा' (दस ७, ५२; भास ९६) ५ पुं. परमेश्वर, देवाधिदेव (भग १२, ९; दंस ५; सुपा १३) ६ साधु, मुनि, ऋषि (भग १२, ९) ७ द्वीप-विशेष। ८ समुद्र-विशेष (पणण १५) ९ स्वामी, नायक (आचू ५) १० पूज्य, पूजनीय (पंचा १)। °उत्त वि [°उप्त] देव से बोया हुआ। २ देव-कृत; 'देवउत्ते अयं लोए' (सूअ १, १, ३) °उत्त वि [°गुप्त] १ देव से रक्षित (सूअ १, १, ३) २ ऐरवत क्षेत्र के एक भावी जिनदेव (स १५४)। °उत्त पुं [°पुत्र] देव-पुत्र (सूअ १, १, ३)। °उल न [°कुल] देव-गृह, देव-मन्दिर (हे १, २७१; सुपा ०१)। °उलिया स्त्री [°कुलिका] देहरी, छोटा देव-मन्दिर (कुप्र १४४)। °कन्ना स्त्री [°कन्या] देव-पुत्री (णाया १, ८)। °कहकहय पुं [°कहकहक] देवताओं का कोलाहल (जीव ३)। °किब्बिस पुं [°किल्विष] चाण्डाल-स्थानीय देव-जाति (ठा ४, ४)। °किब्बिसिय पुं [°किल्बि- षिक] एक अधम देव-जातिे (भग ९, ३३)। °किब्बिसीया स्त्री [°किल्विषीया] देखो देवकिब्बिसिया (बृह १)। °कुरा स्त्री [°कुरा] क्षेत्र विशेष, वर्ष-विशेष (इक)। °कुरु पुं [°कुरु] वही अर्थ (पणह १, ४; सम ७०; इक)। °कुल देखो °उल (पि १६८; कप्प)। °कुलिय पुं [°कुलिक] पूजारी (आवम)। °कुलिया देखो °उलिआ (कुप्र १४४)। °गइ स्त्री [°गति] देवयोनि (ठा ५, ३)। °गणिया स्त्री [°गणिका] देव-वेश्या, अप्सरा (णाया १, १६)। °गिह न [°गृह] देव-मन्दिर (सुपा; १३; ३४८)। °गुत्त पुं [°गुप्त] १ एक परिव्राजक का नाम (औप) २ एक भावी जिनदेव (तित्थ) °चंद पुं [°चन्द्र] एक जैन उपासक का नाम (सुपा ६३२)। सुसप्रसिद्ध श्री हेमचन्द्राचार्य के गुरू का नाम (कुप्र १९)। °च्चय वि [°र्चक] १ देव की पूजा करनेवाला। २ पुं. मन्दिर का पूजारी (कुप्र ४४१; ती १५) °च्छंदग न [°च्छन्दक] जिनदेव का आसन (जीव ३; राय)। °जस पुं [°यशस्] एक जैन मुनि (अंत ३; सुपा ३४२)। °जाण न [°यान] देव का वाहन (पंचा २)। °जिण पुं [°जिन] एक भावी जिनदेव का नाम (पव ७)। °डि्ढ देखो देविडि्ढ (ठा ३, ३; राज)। °णाअअ पुं [°नायक] नीचे देखो (अच्चु ३७)। °णाह पुं [°नाथ] १ इन्द्र। २ परमेश्वर, परमात्मा (अच्चु ६७)। °तम न [°तमस्] एक प्रकार का अन्ध- कार (ठा ४, २)। °त्थुइ, °थुइ स्त्री [°स्तुति] देव का गुणानुवाद (प्राप्र)। °दत्त पुं [°दत्त] व्यक्तिवाचक नाम (उत्त ९; पिंड; पि ५६६)। °दत्ता स्त्री [°दत्ता] व्यक्ति-वाचक नाम (विपा १, १; ठा १०)। °दव्व न [°द्रव्य] देव-संबन्धी द्रव्य (कम्म १, ५६)। °दार न [°द्वार] देव-गृह विशेष का पूर्वीय द्वार, सिद्धायतन का एक द्बार (ठा ४, २)। °दारु पुं [°दारु] वृक्ष-विशेष, देवदार का पेड़ (पउम ५३, ७९)। °दाली स्त्री [°दाली] वनस्पति-विशेष, रोहिणी (पणण १७ — पत्र ५३०)। °दिण्ण, °दिन्न पुं [°दत्त] व्यक्ति-वाचक नाम, एक सार्धंवाह- पुत्र (राज; णाया १, २ — पत्र ८३)। °दीव पुं [°द्वीप] द्वीप-विशेष (जीव ३)। °दूस न [°दूष्य] देवता का वस्त्र, दिव्य वस्त्र (जीव ३)। °देव पुं [°देव] १ परमेश्वर, परमात्मा, (सुपा ५००) २ इन्द्र, देवों का स्वामी (आचु ५) °नट्टिया स्त्री [°नर्तिका] नाचनेवालाी देवी, देव-नटी (अजि ३१)। °नयरी स्त्री [°नगरी] अमरावती, स्वर्गं-पुरी (पउम ३२, ३५)। °पडिक्खोभ पुं [°प्रति- क्षोभ] तमस्काय, अन्धकार (भग ६, ५)। °पलिक्खोभ पुं [°परिक्षोभ] कृष्ण-राजि (भग ६, ५)। °पव्वय पुं. [°पर्वत] पर्वंत- विशेष (ठा २, ३ — पत्र ८०)। °प्पसाय पुं [°प्रसाद] राजा कुमारपाल के पितामह का नाम (कुप्र ५)। °फलिह पुं [°परिध] तमस्काय, अन्धकार (भग ६, ५)। °भद्द पुं [°भद्र] १ देव-द्वीप का अधिष्ठाता देव (जीव ३) २ एक प्रसिद्ध जैनाचार्य (सार्ध ८३) °भूमि स्त्री [°भूमि] १ स्वर्गं, देवलोक। २ मरण; मृत्यु; 'अह अन्‍नया य सिट्ठी थिरदोवी देवभूमिमणुपत्तो' (सुपा ५८२) °महाभद्द पुं [°महाभद्र] देव-द्वीप का अधिष्ठाता देव (जीव ३)। °महावर पुं [°महावर] देव-नामक समुद्र का अधिष्ठायक देव-विशेष (जीव ३; इक)। °रइ पुं [°रति] एक राजा (भत्त १२२)। °रक्ख पुं [°रक्ष्] राक्षस-वंशीय एक राज-कुमार (पाउम ५, १६६)। °रण्ण न [°रण्य] तमःकाय, अन्धकार (ठा ४, २)। °रमण न [°रमण] १ सौभाञ्जनी नगरी का एक उद्यान (विपा १, ४) २ रावण का एक उद्यान (पउम ४६, १५) °राय पुं [°राज] इन्द्र (पउम २, ३८; ४९, ३९)। °रिसि पुं [°ऋषि] नारद मुनि (पउम ११, ६८; ७८, १०)। °लोअ, °लोग पुं [°लोक] १ स्वर्गं, (भग; णाया १, ४; सुपा ६१५; श्रा १६) २ देव-जाति; कइविहा णं भंते देवलोगा पण्णत्ता ? गोयमा चउव्विहा देवलोगा पण्णत्ता, तं जहा — भवणवासी, वाणमंतरा, जोइसिया, वेमाणिया' (भग ५, ९) °लोगगमण न [°लोकगमन] स्वर्गं में उत्पत्ति; 'पाओबगममणाइं देवलोगगमणाइं कुसु- लपच्चायाया पउणो बोहिलाभा' (सम १४२)। °वर पुं [°वर] देव-नामक समुद्र का अधिष्ठा- यक एक देव (जीव ३)। °वहू स्त्री [°वधू] देवांगना, देवी (अजि ३०)। °सणंत्ती स्त्री [°संज्ञप्ति] १ देव-कृत प्रतिबोध। २ देवता के प्रतिबोध से ली हुई दीक्षा (ठा १० — पत्र ४७३) °संणिवाय पुं [°सन्निपात] १ देव-समागम (ठा ३, १) २ देव-समूह। ३ देवों की भीड़ (राय) °सम्म पुं [°शर्मन्] १ इस नाम का एक ब्राह्मण (महा) २ ऐरवत क्षेत्र में उत्पन्न एक जिनदेव (सम १५३) °साल न [°शाल] एक नगर का नाम (उप ७६८ टी)। °सुंदरी स्त्री [°सुन्दरी] देवांगना, देवी (अजि २८)। °सुय देखो °स्सुय (पत्र ७)। °सेण पुं [°सेन] १ शताद्वार नगर का एक राजा, जिसका दूसरा नाम महापद्म था (ठा ९ — पत्र ४५९) २ ऐरवत क्षेत्र के एक जिनदेव (पव ७) ३ भरत-क्षेत्र के एक भावी जिनदेव के पू्र्वभव का नाम (ती १९) ४ भगवान् नेमिनाथ का एक शिष्य, एक अन्तकृद् मुनि (अंत) °स्स न [°स्व] देव-द्रव्य, जिन- मन्दिर-संबन्धी धन (पंचा ५)। °स्सुय पुं [°श्रुत] भरत-क्षेत्र के छठवें भावी जिन-देव (सम १५३)। °हर न [°गृह] देव-मन्दिर (उप ४११)। °इदेव पुं [°तिदेव] अर्हन् देव, जिन भगवान् (भग १२, ९)। °णंद पुं [°नन्द] ऐरवत क्षेत्र में आगामी उत्सर्पिणी काल में उत्पन्न होनेवाले चौबीसवें जिनदेव (सम १५४)। °णंदा स्त्री [°नन्दा] १ भगवान् महावीर की प्रथम माता (आचा २, १५, १) २ पक्ष की पनरहवीं रात्रि का नाम (कप्प)। °णुप्पिय पुं [°नुप्रिय] भद्र, महाशय, महानुभाव, सरल-प्रकृति (औप; विपा १, १; महा)। °यरिअ पुं [°चार्य] एक सुप्रसिद्ध जैन आचार्यं (गु ७)। °रन्न देखो °रण्ण (भग ६, ५) २ देवों का क्रीड़ा- स्थान (जो ६)। °लय पुंन [°लय] स्वर्गं (उप २६४ टी)। °हिदेव पुं [°धिदेव] परमेश्वर, परमात्मा, जिनदेव (सम ४३; सं ५)। °हिवइ पुं [धिपति] इन्द्र, देव- नायक (सूअ १, ६)

देव :: पुंन [देव] एक देव-विमान (देवेद्र १३३)। °कुरु स्त्री [°कुरु] भगवान् मुनि- सुव्रत स्वामी की दीक्षा-शिविका का नाम (विचार १२९)। °च्छंदय पुंन [°च्छन्दक] कमानदार घूमटवाला दिव्य आसन-स्थान (आचा २, १५, ५)। °तमिस्स पुंन [°तमिस्त्र] अन्धकार-राशि, तमस्काय (भग ६, ५ — पत्र २६८)। दिन्ना स्त्री [दत्ता] भगवान् वासुपूज्य की दीक्षा-शिविका (विचार १२९)। °पलिक्खोभ पुं [°परिक्षोभ] कृष्णराजि, कृष्णवर्णं पुद्गलों की रेखा (भग ६, ५ — पत्र २७०)। °रमण पुं [°रमण] नन्दीश्वर द्वीप के मध्य में पूर्व-दिशा स्थित एक अंजनगिरि (पव २६९ टी)। °वूह पुं [°व्यूह] तमस्काय (भघ ६, ५ — पत्र २६८)।

देव :: देखो दइव (उप ३५६ टी; महा; हे १, १५३ टी)। °न्‍नु वि [°ज्ञ] जौतिष-शास्त्र का जानकार (सुपा २०१)। °पर वि [°पर] भाग्य पर ही श्रद्धा रखनेवाला (षड्)।

देवइ :: स्त्री [देवकी] श्रीकृष्ण की माता, आगामी उत्सर्पिणी काल में होनेवाले एक तीर्थंकर-देव का पूर्व भव (पउम २०, १८५; सम १५२; १५४)। देखो देवकी।

देवउप्फ :: न [दे] पक्‍व पुष्प, पका हुआ फल (दे ५, ४९)।

देवं :: देखो दा = दा।

देवंग :: न [दे. दिव्याङ्ग] देवदूष्य वस्त्र (उफ ७३८)।

देवंगण :: न [देवाङ्गण] स्वर्गं, 'दिक्खं गहिउं च देवंगणे रमइ' (सम्मत्त १६०)।

देवंधकार :: देखो देवंधगार (भग ६, ५ — पत्र २६८)।

देवंधगार :: पुं [देवान्धकार] तिमिर-निचय, अन्धकार का समूह (टा ४, २)।

देवकिब्बिस :: पुं [देवकिल्बिष] एक अधण देव जाति (ठा ४, ४ — पत्र २७४)।

देवकिब्बिसिया :: स्त्री [दैवकिल्बिपिकी] भावना-विशेष, जो अधम देव-योनि में उत्पत्ति का कारण है (ठा ४, ४)।

देवकी :: देखो देवई। °णंदण पुं [°नन्दन] श्रीकृष्ण (वेणी १८३)।

देवय :: वि [दैव्य] देव-सम्बन्धी (पव १२५)।

देवय :: न [दैवत] देव, देवता (सुपा १५७)।

देवय :: देखो देव = देव (महा; णाया १, १८)।

देवया :: स्त्री [देवता] १ देव, अमर (अभि ११७; अणु) २ परमेश्वर, परमात्मा (पंचा १)

देवर :: देखो दिअर (हे १, १८६; सुपा ४८५)।

देवराणी :: देखो देअराणी (दे १, ५१)।

देवसिय :: वि [दैवसिक] दिवस-संबन्धी (ओघ ६२६; ६३६; सुपा ४१९)।

देवसिआ :: स्त्री [देवसिका] एक पतिव्रता स्त्री, जिसका दूसरा नाम देवसेना था (पुप्फ ६७)।

देविंद :: पुं [देवेन्द्र] १ देवो का स्वामी, इन्द्र (हे ३, १६२; णाया; १, ८, प्रासू १०७) २ एक प्रसिद्ध जैनाचार्यं और ग्रन्थकार (भाव २१)। °सुरि पुं [°सूरि] एक प्रसिद्ध जैना- चार्यं और ग्रन्थकार (कम्म ३, २४)

देविंदय :: पुं [देवेन्द्रक] देवविमान-विशेष (देवेन्द्र १२८)।

देविडि्ढ :: स्त्री [देवर्द्धि] १ देव का वैभव। २ पुं. एक सुप्रसिद्ध जैन आचार्य और ग्रन्थकार (कप्प)

देविय :: वि [दैविक] देव-संबन्धी (सुर ४, २३६)।

देविल :: पुं [देविल] एक प्राचीन ऋषि (सूअ १, ३, ४, ३)।

देवी :: स्त्री [देवी] १ देव-स्त्री (पंचा २) २ रानी, राज-पत्‍नी (विपा १, १; ५) ३ दुर्गा, पार्वती (कप्पू) ४ सातवें चक्रवर्त्ती और अठारहवें जिन-देव की माता (सम १५१; १५२) ५ दशवें चक्रवर्त्ती की अग्र-महिषी (सम १५२) ६ एक विध्याधर-कन्या (पउम ६, ४)

देवीकय :: वि [देवीकृत] देवी से बनाया हुआ, 'अणिमिसणअणो सअलो जीए देवीकओ लोओ' (गा ५९२)।

देवुक्कलिआ :: स्त्री [देवोत्कलिका] देवों की ठठ, देवों की भीड़ (ठा ४, ३)।

देवेसर :: पुं [देवेश्वर] इन्द्र, देवों का राजा (कुमा)।

देवोद :: पुं [देवोद] समुद्र-विशेष (जीव ३; इक)।

देवोववाय :: पुं [देवोपपात] भरतक्षेत्र में आगामी उत्सर्पिणी काल में होनेवाली तेईसवें जिन-देव (सम १५४)।

देव्व :: देखो दिव्व = दिव्य (उप ९८६ टी)।

देव्व :: देखो दइव (गा १३२; महा; सुर ११, ४; अभि ११७); 'एसो य देव्वो णाम अणाराहणीओ विणएण' (स १२८)। °ज्ज, °ण्ण, °ण्णु वि [°ज्ञ] जोतिषी, ज्योतिष- शास्त्र को जाननेवाला (षड्; कप्पू)।

देव्वजाणुअ, देव्वण्णुअ :: देखो देव्व-ज्ज (प्राकृ १८)।

देस :: पुं [देश] एक सौ हाथ परिमित जमीन, 'हत्थसयं खलु देसो' (पिंड ३४४)। °देस पुं [°देश] सौ हाथ से कम जमीन (पिंड ३४४)। °राग पुं [°राग] देश-विशेष (आचा २, ५, १, ७)।

देस :: सक [देशय्] १ कहना; उपदेश देना। २ बतलाना। वकृ. देसयंत (सुपा ४८५; सुर १५, २४८)। संकृ. देसित्ता (हे १, ८८)

देस :: पुं [देश] १ अंश, भाग (ठा २, २; कप्प) २ देश, जनपद (ठा ५, ३; कप्प; प्रासू ४२) ३ अवसर (विसे २०६३) ४ स्थान, जगह (ठा ३, ३)। °कहा स्त्री [°कथा] जनपद-वार्ता (ठा ४, २)। °काल देखो °याल (विसे २०६३)। °जइ पुं [°यति] श्रावक, उपासक, जैन गृहस्थ (कम्म २ टी; आउ)। °ण्णु वि [°ज्ञ] देश की स्थिति को जाननेवाला (उप १७९ टी)। °भासा स्त्री [°भाषा] देश की बोली (बृह ६)। °भूसण पुं [°भूषण] एक केवलज्ञानी महर्षि (पउम ३९, १२२)। °याल पुं [°काल] प्रसंग, अवसर, योग्य समय (पउम ११, ९३)। °राय वि [°राज] देश का राजा (सुपा ३५२)। °वगासिय देखो °वगासिय (सुपा ५६९)। °विरइ स्त्री [°विरति] श्रावक धर्मं, जैन गृहस्थ का व्रत, अणुव्रत, हिंसा आधि का आंशिक त्याग (पंचा १०)। °विरय वि [°विरत] श्रावक, उपासक। २ न. पांचवाँ गुण-स्थानक (पव २२)। °विराहय वि [°विराधक] व्रत आदि में आंशिक दूषण लगानेवाला (भग ८, ९)। °विराहि वि [°विराधिन्] वही अर्थं (णाया १, ११ — पत्र १७१)। °वगास न [°वकाश] श्रावक का एक व्रत (सुपा ५९२)। °वगा- सिय न [°विकाशिक] वही अर्थं (औप; सुपा ५६९)। °हिव पुं [°धिप] राजा (पउम ६९, ५३)। °हिवइ पुं [°धि- पति] राजा (बृह ४)

देस :: देखो वेस = द्वेष (रयण ३६)।

देसंतरिअ :: वि [देशान्तरिक] भिन्‍न देश का, विदेशी (उप १०३१ टी; कुप्र ४१३)।

देसग :: देखो देसय (द्र २६)।

देसण :: न [देशन] कथन, उपदेश, प्ररूपण (दं १)। २ वि. उपदेशक, प्ररूपक। स्त्री. °णी (दस ७)

देसणा :: स्त्री [देशना] उपदेश, प्ररूपण (राज)।

देसय :: वि [देशक] १ उपदेशक, प्ररूपक (सम १) २ दिखलानेवाला, बतलानेवाला (सुपा १८६)

देसराग :: वि [दैशराग] 'देशराग' देश में बना हुआ, 'देसरागाणि वा' (आचा २, ५, १, ७)।

देसि :: वि [द्वेषिन्] द्वेष करनेवाला (रयण ३६)।

देसि, देसिअ :: वि [देशिन्] १ अंशी, आंशिक, भागवाला (विसे २२४७) २ दिखलानेवाला। ३ उपदेशक (विसे १४२५, भास २८)

देसिअ :: वि [देश्य, दैशिक] देश में उत्पन्‍न, देश-संबन्धी (उप ७६८ टी; अच्चु ६)। °सद्द पुं [°शब्द] देशीभाषा का शब्द (वज्जा ६)।

देसिअ :: वि [देशित] १ कथित, उपदिष्ट। २ उपदर्शित (दं २२; प्रासू ५२; १३३; भवि)

देसिअ :: वि [देशिक] बृहत्क्षेत्र-व्यापी, विस्तीर्णं (आचा २, १, ३, ७)।

देसिअ :: वि [देशिक] १ पथिक, मुसाफिर (पउम २४, १९; उप पृ ११५) २ उप- देष्टा, गुरु (विसे १४२५) ३ प्रोषित, प्रवास में गया हुआ (सुर १०, १९२)। °सहा स्त्री [°सभा] धर्मंशाला (उप पृ ११५)

देसिअ :: देखो देतसिअ; 'पडिक्कमो देसिअं सव्वं' (पडि; श्रा ६)।

देसिअव :: वि [देशितवत्] जिसने उपदेश दिया हो वह (सूअ १, ९, २४)।

देसिल्लग :: देखो देसिअ = देश्य (बृह ३)।

देसी :: स्त्री [देशी] भाषावेशेष, अत्यन्त प्राचीन प्राकृत भाषा का एक भेद (दे १, ४)। °भासा स्त्री [°भाषा] वही अर्थं (णाया १, १; औप)।

देसुण :: वि [देशोन] कुछ कम, अंश की कमीवाला (सम २, १०३; दं २८)।

देस्स :: वि [°दृश्य] १ देखने योग्य। २ देखने को शक्य (स १६९)

देह :: देखो देक्ख। देहई, देहए (उत्त १९; ६; पि ६६)। वकृ. देहमाण (भग ९, ३३)।

देह :: पुंन [देह] १ शरीर, काय (जी २८; कुप्र १५३ प्रासू ९५) २ पुं. पिशाच-विशेष (इक; पणण १)। °रय न [°रत] मैथुन (वज्जा १०८)

देहंबलिया :: स्त्री [देहबलिका] भिक्षा-वृत्ति, भीख की आजीविका (णाया १, १६ — पत्र १९९)।

देहणी :: स्त्री [दे] पंक, कर्दम, कादा, काँदो (दे ५, ४८)।

देहरय :: (अप) न [देवगृहक] देव-मन्दिर (वज्जा १०८)।

देहली :: स्त्री [देहली] चौखट, द्वार के नीचे की लकड़ी (गा ५२५; दे १, ९५; कुप्र १८३)।

देहि :: पुं [देहिन्] आत्मा, जीव (स १६५)।

देहुर :: (अप) न [देवकुल] देव-स्थान, मन्दिर (भवि)।

दो :: अ [द्विधा] दो प्रकार से, दो तरह (सुपा २३३; ३१२)।

दो :: त्रि. ब. [द्वि] दो, उभय, युग्म (हे १; ९४)।

दो :: पुं [दोस्] हाथ, बाहु (विक्र ११३; रंभा; कप्पू)।

दोअई :: स्त्री [°द्विपदी] छन्द-विशेष (पिंग)।

दोआल :: पुं [दे] वृषभ, बैल (दे ५, ४९)।

दोइ :: देखो दो = द्विधा (बृह ३)।

दोंबुर :: [दे] देखो दोबुर (षड्)।

दोकिरिय :: वि [द्विक्रिय] एक ही समय में दो क्रियाओं के अनुभव को माननेवाला (ठा ७)।

दोक्कर :: देखो दुक्कर (भवि)।

दोक्खर :: पुं [द्वि-अक्षर] षण्ड, नपुंसक (बृह ४)।

दोखंड :: देखो दुखंड (भवि)।

दोखंडिअ :: वि [द्विखण्डित] जिसके दो टुकड़े किए गए हों वह (भवि)।

दोगंछि :: वि [जुगुप्सिन्] घृणा करनेवाला (पि ७४)।

दोगच्च :: न [दौर्गत्य] १ दुर्गति, दुर्दशा (पंचव ४) २ दारिद्रय, निर्धनता (सुपा २३०)

दोगुंछि :: देखो दोगंछि (पि २१५)।

दोगुंदय :: पुंन [दोगुन्दक] एक देव-विमान (देवेन्द्र १४५)।

दोगुंदुय :: पुं [दौगुन्दक] उत्तम-जातीय देव- विशेष (सुपा ३३)।

दोग्ग :: न [दे] युग्म, युगल (दे ५, ४९; षड्)।

दोग्गइ :: देखो दुग्गइ (सुर ८, १११)। °कर वि [°कर] दुर्गंति-जनक (पउम ७३, १०)।

दोग्गच्च :: देखो दोगच्च (गा ७६)।

दोग्घट्ट, दोग्घट्ट, गोघट्ट :: पुं [दे] हाथी, हस्ती (पि ४३६; षड्; पाअ; महा; लहुअ ४; स ४९१)।

दोचूड :: पुं [द्विचूड] विद्याधर, वंश का एक राजा का नाम (पउम ५, ४५)।

दोच्च :: वि [द्वितीय] दूसरा (सम २, ८; विपा १, २)।

दोच्च :: न [दौत्य] दूतपन, दूत-कर्म (णाया १, ८; गा ८४)।

दोच्चं :: अ [द्विस्] दो बार, दो वक्‍त; एवं च निसामित्ता दोच्चं तच्चं समुल्लवंतस्स' (सुर २, २६)।

दोच्चंग :: न [द्वितायाङ्ग] १ दूसरा अंग। २ पकाया हुआ शाक (बृह १) ३ तीमन, कढञी (ओग २९७ भा)

दोजीह :: पुं [°द्विजिह्‍ व] १ दुर्जंन। २ साँप (सुर १, २०)

दोज्झ :: वि [दोह्य] दोहने योग्य (आचा २, ४, २)।

दोण :: पुं [द्रोण] १ धनुर्वेद के एक सुप्रसिद्ध आचार्यं, जो पाण्डव और कौरवों के गुरू थे (णाया १, १६; वेणी १०४) २ एक प्रकार का परिमाण (जो २)। °सुह न [°मुख] नगर, जल और स्थल के मार्गंवाला शहर (पणह १, ३; कप्प; औप)। °मेह पुं [°मेघ] मेघ-विशेष, जिसकी धारा से बड़ी कलशी भर जाय वह वर्षा (विसे १४५८)। °सुया स्त्री [°सुता] लक्ष्मण की स्त्री का नाम, विशल्या (पउम ६४, ४४)

दोणअ :: पुं [दे] १ आयुक्त, गाँव का मुखिया। २ हालिक, हलवाह, हल जोतनेवाला, हरवाहा (दे ५, ५१)

दोणक्का :: स्त्री [दे] सरधा, मधुमक्खी (दे ५, ५१)।

दोणी :: स्त्री [द्रोणी] १ नौका, छोटा जहाज (पणह १, १; दे २, ४७; धम्म १२ टी) २ पानी का बड़ा कूँडा (अणु; कुप्र ४४१)

दोत्तडी :: स्त्री [दुस्तटी] दुष्ट नदी, 'एकत्तो सद्दुलो अन्नतो दोत्तडी वियडा' (उप ५३० टी; सुपा ४६३)।

दोत्थ :: न [दौस्स्थ्य] दुस्स्थ्ता, दुर्दंशा, दुर्गंति (वज ४; ७)।

दोद्दाण :: वि [दुर्दान] दुःख से देने योग्य (संक्षि ४)।

दोद्दिअ :: पुं [दे] चर्मं-कूप; 'चमड़े का बना हुआ भाजन-विशेष (दे ५, ४९)।

दोद्भु :: वि [दोग्धृ] दोहन-कर्ता (दस १, १ टी)।

दोधअ, दोधक :: न [दोधक] छन्द-विेशेष (पिंग)।

दोधार :: पुं [द्विधाकार] द्विधाकरण, दो भाग करना (ठा ५, ३ — पत्र ३४६)।

दोनिक्कम :: वि [दुर्निक्रम] अत्यन्त कष्ट से चलने योग्य (भग ७, ६ — पत्र ३०५)।

दोबुर :: पुं [दे] तुम्बूरु, स्वर्गं-गायक (षड्)।

दोब्बलिय :: देखो दुब्बलिय (आचा २, ३, २, ३)।

दोब्बल्ल :: न [दौर्बल्य] दुर्बंलता (पि २८७; काप्र ८५)।

दोभाय :: वि [द्विभाग] दो भागवाला, दो खण्डवाला (उप १४७ टी)।

दोमणंसिय :: वि [दौर्मनस्यिक] खिन्‍न, शोक- ग्रस्त (ठा ५, २ — पत्र ३१३)।

देमणस्स :: न [दौर्मनस्य] वैमनस्य, द्वेष, मन की दुष्टता (सूअ २, २, ८२; ८३)।

दोमासिअ :: वि [द्वैमासिक] दो मास का (भग; सुर १४, २२८)। स्त्री. °आ (सम २१)।

दोमिय :: (अप) देखो दूमिअ = दावित (भवि)।

दोमिली :: स्त्री [दोमिली] लिपि-विशेष (राज)।

दोमुह :: वि [द्विमुख] १ दो मुँहवाला। २ पुं. नृप-विशेष (महा) ३ दुर्जन (गा २५३)

दोर :: पुं. [दे] १ डोरा, धागा, सूत (पउम ४, ५०; कुप्र २२६; सुर ३, १४१) २ छोटी रस्सी (ओघ २३२; ९४ भा) ३ कटि-सूत्र (दे ५, ३८)

दोरिया :: देखो दोरी (सिरि ९३)।

दोरी :: स्त्री [दे] छोटी रस्सी (श्रा १६)।

दोल :: अक [दोलय्] १ हिलना। २ झूलना। दोलइ (हे ४, . ४८)। दोलंति (कप्पू)

दोलणय :: न [दोलनक] झूलन, अन्दोलन (दे ८, ४३)।

दोलया, दोला :: स्त्री [दोला] झूला, हिंडोला (सुपा २८९; कुमा)।

दोलाइय :: वि [दोलायित] १ हिला हुआ। २ संशयित (हेका ११९)

दोलायमाण :: वि [दोलायमान] १ हिलता हुआ। २ संशय कता हुआ (सुपा ११७; गउड)

दोलिया :: देखो दोला (सुर ३, ११६)।

दोलिर :: वि [दोलयितृ] झूलनेवाला (कुमा)।

दोव :: पुं [दोव] एक अनार्यं जाति (राज)।

दोवई :: स्त्री [द्रौपदी] राजा द्रुपद की कन्या, पाण्डव-पत्‍नी (णाया १, १६; उप ६४८ टी; पडि)।

दोवयण :: देखो दुवयण = द्विवचन (हे १, ९४; कुमा)।

दोवार :: (अप) देखो दुवार (सण)।

दोवारिज्ज, दोवारिय :: पुं [दौवारिक] द्वारपाल, दर- वान. प्रतीहार (निचू ९; णाया १, १; भग ६, ५; सुपा ४२९)।

दोविह :: देखो दुविह (उत्त २; नव ३)।

दोवेली :: स्त्री [दे] सायंकाल का भोजन (दे ५, ५०)।

दोव्वल :: देखो दोब्बल (से ४, ४२; ८, ८७)।

दोस :: देखो दूस = दूष्य (औप; उप ७६८ टी)।

दोस :: पुं [दोष] दूषण, दुर्गुण, ऐव (औप; सुर १, ७३; स्वप्‍न ६०; प्रासू १३)। °न्‍नु वि [°ज्ञ] दोष का जानकार, विद्वान् (पि १०५)। °ह वि [°घ] दोष-नाशक; 'कुव्वंति पोसहं दोसहं सुद्धं' (सुपा ६२१)।

दोस :: पुं [दे] १ अर्धं, आधा (दे ५, ५६) २ कोप, क्रोध, गुस्सा (दे ५, ५६; षड्)। ३ द्वेष, द्रोह (औप; कप्प; ठा १; उत्त ६; सूअ १, १६; पणण २३; सुर १, ३३; सण; भवि; कुप्र ३७१)

दोस :: पुं [दोस] हाथ, हस्त, बाहु (से २, १)।

दोसणिज्जंत :: पुं [दे] चन्द्र, चन्द्रमा, चाँद (दे ५, ५)।

दोसा :: स्त्री [दोषा] रात्रि, रात (सुर १, २१)।

दोसाकरण :: न [दे] कोप, क्रोध (दे ५, ५१)।

दोसाणिअ :: वि [दे] निर्मल किया हुआ (दे ५, ५१)।

दोसायर :: पुं [दोषाकर] १ चन्द्र, चाँद (उप ७२८; टी; सुपा २७५) २ दोषों की खान, दुष्ट (सुपा २७५)

दोसारअण :: पुं [दे. दोषारत्न] चन्द्र, चाँद (षड्)।

दोसासय :: पुं [दोषाश्रय] दोष-युक्त, दुष्ट (पउम ११७, ४१)।

दोसि :: वि [दोषिन्] दोषवाला, दोषी (कुप्र ४३८)।

दोसिअ :: पुं [दौष्यिक] वस्त्र का व्यापारी (श्रा १२; वज्जा १६२)।

दोसिण :: [दे] देखो दोसीण (पणह २, ५)।

दोसिणा :: [दे] नीच देखो (ठा २, ४ — पत्र ८६)। °भा स्त्री [°भा] चन्द्र की एक पट- रानी (ठा ४, १; इक; णाया २)।

दोसिणी :: स्त्री [दे. दोषिणी] ज्योत्स्‍ना, चन्द्र- प्रकाश (दे ५, ५०); 'ससिजुणहा दोसिणी जत्थ' (कुप्र ४३८)।

दोसियण्ण :: न [दोषिकान्न] वासी अन्न (राज)।

दोसिल्ल :: वि [दोषवत्] दोष-युक्त (धम्म ११ टी)।

दोसिल्ल :: वि [दे] द्वेष-युक्त, द्वेषी (विसे १११०)।

दोसीण :: न [दे] रात का बासी अन्न (पणह २, ५; ओघ १४५)।

दोसील :: वि [दुस्शील] दुष्ट स्वभाववाला (पव ७३)।

दोसोलह :: त्रि. ब. [द्विषोडशन्] बत्तीस, ३२ (कप्पू)।

दोह :: सक [द्रुह्] द्रोह करना। वकृ. दोहंत (संबोध ४)।

दोह :: पुं. [दोह] दोहन (दे २, ६४)।

दोह :: वि [दोह्य] दोहने योग्य (भास ८९)।

दोह :: पुं [द्रोह] ईर्ष्या, द्वेष (प्राप्र; भवि)।

दोहग्ग :: न [दौर्भाग्य] दुष्ट भाग्य, दुरदृष्ट, कमनसीबी (पणह १, ४; सुर ३, १७४; गा २१२)।

दोहग्गि :: वि [दौर्भागिन्] दुष्ट भाग्यवाला, कमनसीब, मन्द-भाग्य (श्रा १६)।

दोहण :: न [दोहन] दोहना, दूध निकालना (पणह १, १)। °वाडण न [°पाटन] दाहन-स्थान (निचू २)।

दोहणहारी :: स्त्री [दे] १ दोहनेवाली स्त्री (दे १, १०८; ५, ५६) २ पनिहारी, पानी भरनेवाली स्त्री, पनहारिन (दे ५, ५६)

दोहणी :: स्त्री [दे] पंक, कादा, कर्दंम (दे ५, ४८)।

दोहय :: वि [दोहक] दोहनेवाला, (गा ४६२)।

दोहय :: वि [द्रोहक] द्रोह करनेवाला, ईर्ष्यालु (उप ३५७ टी; भवि)।

दोहल :: पुं [दोहद] गर्भिणी स्त्री का मनोरथ (हे १, २१७, २२१; कप्प)।

दोहा :: अ [द्विधा] दो प्रकार (हे १, ९७)।

दोहाइअ :: वि [द्विधाकृत] जिसका दो खण्ड किया गया हो वह (हे १, ९७ कुमा)।

दोहासल :: न [दे] कटी-तट, कमर (दे ५, ५०)।

दोहि :: वि [दोहिन्] झरनेवाला, टपकनेवाला (गा ६३९)।

दोहि :: वि [द्रोहिन्] द्रोह करनेवाला (भवि)।

दोहिण्ण :: वि [द्विभिन्न] द्विखण्ड, जिसका दो टुकड़ा किया गया हो वह (प्राकृ ५१)।

दोहित्त :: पुं [दौहित्र] लड़की का लड़का, नाती (दें ६, १०९; सुपा ३९४)।

दोहित्ती :: स्त्री [दौहित्री] लड़की की लड़की, नतिनी (महा)।

दोहूअ :: पुं [दे] शव, मृतक, मुरदा (दे ५, ४९)।

°द्दोस :: देखो दोस = (दे); 'वज्जियरागद्दोसो' (कुप्र ३०)।

द्रवक्क :: (अप) न [दे. भय] भय, डर, भीति (हे ४, ४२२)।

द्रह :: पुं [ह्रद] बड़ा जलाशय, सरोवर, झील (हे २, ८०; कुमा)।

द्रेहि :: (अप) स्त्री [दृष्टि] नजर (हे ४, ४२२)। द्रोह देखो दोह = द्रोह (पि २६८)।

 :: पुं [ध] दन्त-स्थानीय व्यञ्जन वर्णं-विशेष (प्राप; प्रामा)।

धअ :: देखो धव (गा २०)।

धंख :: पुं [ध्वाड्क्ष] काक, कौआ (उप ८२३; पंचा ११)।

धंग :: पुं [दे] भौंरा, भ्रमर, भमरा (दे ५, ५७)।

धंत :: न [ध्वान्त] अन्धकार, अँधेरा (सुर १, १२; करु ११)।

धंत :: न [ध्वान्त] अज्ञान (देवेन्द्र १)।

धंत :: न [दे] अति, अतिशय, अत्यन्त; 'धंतं- पि सुअसमिद्धा' (पच्च २६; विसे ३०१९; बृह १)।

धंत :: वि [ध्मात] १ अग्‍नि में तपाया हुआ (णाया १, १; औप; पणण १; १७; विसे ३०२९; अजि १४) २ शब्द-युक्त, शब्दित (पिंड)

धुंधा :: स्त्री [दे] लज्जा, शरम (दे ५, ५७)।

धंधुक्कय :: न [धन्धुक्कय] गुजरात का एक नगर, जो आज कल 'धंधूका' नाम से प्रसिद्ध है (सुपआ ६५८; कुप्र २०)।

धंधोलिय :: (अप) वि [ध्रमित] घुमाया हुआ (सण)।

धंस :: अक [ध्वंस्] नष्ट होना। धंसइ, धंसए (षड्)।

धंस :: सक [ध्वंसय्] १ नाश करना। २ दूर करना। धंसइ (सूअ १, २, १)। धंसेइ (सम ५०)

धंसाड :: सक [मुच्] त्याग करना, छोड़ना। धंसाडइ (हे ४, ९१)।

धंसाडिअ :: वि [मुक्त] परित्यक्त, छोड़ा हुआ (कुमा)।

धंसाडिअ :: वि [दे] व्यपगत, नष्ट (दे ५, ५९)।

धगधग :: अक [धगधगाय्] १ 'धग-धग्' आवाज करना। २ जलना, अतिशय जलना। वकृ. धगधगंत (णाया १, १; पउम १२, ५१; भवि)

धगधगाइअ :: वि [धगधगायित] 'धग-धग्' आवाजवाला (कप्प)।

धगधग्ग :: देखो धगधग। वकृ. धगधग्गअ- माण (पि ५५८)।

धग्गीकय :: वि [दे] जलाया हुआ, अत्यन्त प्रदीपित; 'अग्गी धग्गीकओ व्व पवणेणं' (श्रा १४)।

धज :: देखो धय = ध्वज (कुमा)।

धट्ठ :: देखो धिट्ठ (हे १, १३०; पउम ४९, २६; कुमा १, ८२)।

धट्ठज्जुण, धट्टज्जुमाण :: पुं [धृष्टद्युम्‍न] राजा द्रुपद का एक पुत्र (हे २, ९४; णाया १, १६; कुमा; षड्; पि २७८)।

धड :: न [दे] धड़, गले से नीचे का शरीर (सुपा २४१)।

धडहजिय :: न [दे] गर्जंना, गर्जारव (सुपा १७६)।

धण :: न [धन] १ वित्त, विभव, स्थावर- जंगम सम्पत्ति (उत्त ६; सूअ २, १; प्रासू ५१; ७६; कुमा) २ गणिम, धरिम, मेय, या परिछेद्य द्रव्य-गिनती से और नाप आदि से क्रय-विक्रय-योग्य पदार्थ (कप्प) ३ पुं. कुबेर, धन-पति; 'सुध णो सिट्ठी धणोव्व धणकलिओ' (सुपा ३१०) ४ स्वनाम-ख्यात एक श्रीष्ठी (उप ५५२) ५ धन्य सार्थंवाह का एक पुत्र (णाया १, १८)। °इत्त, °इल्ल वि [°वत्] धनी, धनवाला (कुप्र २४५; पि ५९५; संक्षि ३०)। °गिरि पुं [°गिरि] एक जैन महर्षि, जो वज्रस्वामी के पिता थे (कप्प; उप १४२ टी)। °गुत्त पुं [°गुप्त] एक जैन मुनि (आवम)। °गोव पुं [°गोप] धन्य सार्थंवाह का एक पुत्र (णाया १, १८)। °ड्‍ढ पुं [°ढ्य] एक जैनमुनि (कप्प)। °णंदि पुंस्त्री [°नन्दि] दुगुना देव-द्रव्य, 'देव- दव्वं दुगुणं धणणंदी भणणइ' (दंस १)। °णिहि पुं [°निधि] खजाना, भण्डार (ठा ५, ३)। °न्यि वि [°र्थिन्] धन का अभि- लाषो (रयण ३८)। °दत्त पुं [°दत्त] १ एक सार्थंवाह। २ तृतीय वासुदेव के पूर्वं- जन्म का नाम (सम १५३; णंदि; आवम) °देव पुं [°देव] १ एक सार्थवाह, मण्डिक-गणधर का पिता (आवम; आचू १) २ धन्य सार्थवाह का एक पुत्र (णाया १; १८) °पइ देखो °चइ (विपा २, १)। °पवर पुं [°प्रवर] एक श्रेष्ठी (महा)। °पाल पुं [°पाल] धन्य सार्थंवाह का एक पुत्र (णाया १, १८)। देखो °वाल। °प्पभा स्त्री [°प्रभा] कुण्डलधर द्वीप की राजधानी (दीव)। °मंत, °मण वि [°वत्] धनी, धनवान् (पिंग; हे २, १५९; चंड)। °मित्त पुं [°मित्र] एक जैनमुनि (पउम २०, १७१)। °य पुं [°द] १ एक सार्थं- वाह (सुपा ५०९) २ एक विद्याधर राजा, जो राजा रावण की मौसी का लड़का था (पउम ८, १२४) ३ कुवेर (महा) ४ वि. धन देनेवाला; 'धणओ धणत्थिआणं' (रयण ३८) °रक्खिय पुं [°रक्षित] धन्य सार्थवाह का एक पुत्र (णाया १, १८)। °वइ पुं [°पति] १ कुबेर (णाया १, ४ — पत्र ९९; उप पृ १८०; सुपा ३८) २ एक राजकुमार (विपा २, ६) °वई स्त्री [°वती] एक सार्धंवाह-पुत्री (दंस १)। °वंत, °वंत्त देखो °मंत (हे २, १५९; चंड)। °वह पुं [°वह] १ एक श्रेष्ठी (दंस १) २ एक राजा (विपा २, २) °वाल देखो °पाल। २ राजा भोज के समकालिक एक जैन महाकवि (धण ५०)। °संचया स्त्री [°संचया] एक वणिग्-महिला (महा। °सम्म पुं [°शर्मन्] एक वणिक् (गच्छ २)। °सिरी स्त्री [°श्रा] एक वणिग्-महिला (आव ४)। °सेण पुं [सेन] एक राजा (दंस ४)। °ल वि [°वत्] धनी (प्राप्र)। °वह वि [°विह] १ धन को धारण करनेवाला, धनी। २ पुं. एक श्रेष्ठी (दंस ४) ३ एक राजा (विपा २, २)

धणंजय :: पुं [धनञ्जय] १ अर्जुन, मध्यम पाण्डव (वेणी ११०) २ वह्नि, अग्‍नि। ३ सर्पं-विशेष। ४ वायु-विशेष, शरीर-व्यापी पवन। ५ वृक्ष-विशेष (हे १, १७७; २, १८५; षड्) ६ उत्तरा भाद्रपदा नक्षत्र का गोत्र (इक) ७ पक्ष का नववाँ दिन (झो ४) ८ श्रेष्ठि-विशेष (आव ४) ९ एक राजा (आवम)

धणि :: पुं [ध्वनि] शब्द, आवाज (विसे १५०)।

धणि :: स्त्री [ध्राणि] १ तृप्‍ति, सन्तोष (औप) २ अतृप्ति उत्पन्‍न करने की शक्ति; 'भमिधणि- वितणहयाई' (विसे १६५३)

धणि :: वि [धनिन्] धनिक, धनवान् (हे २, १५९)।

धणिअ :: पुं [धनिक] यवन-मत का प्रवर्त्तंक पुरुष-विशेष (मोह १०१; १०२)।

धणिअ :: वि [धनिक] १ पैसादार, धनी (धे १, १४८) २ पुं. मालिक, स्वामी (श्रा १४)

धणिअ :: न [दे] अत्यन्त, गाढ़, अतिशय (दे ५, ५८; औप; भग; महा; कप्प; सुर १, १७५; भत्त ७३; पच्च ८२; जीव ३; उत्त १; वव २; स ६९७)।

धणिअ :: वि [धन्य] धन्यवाद के योग्य, प्रशंसनीय, स्तुतिपात्र; 'जाण धणियस्स पुरओ निवडंति रणम्मि असिवाया' (पउम ५६, २५; अच्चु ४२)।

धणिआ :: स्त्री [दे] १ प्रिया, भार्या, पत्‍नी (दे ५, ५८; गा ५८२; भवि) २ धन्या, स्तुति-पात्र स्त्री (षड्)

धणिट्ठा :: स्त्री [धनिष्ठा] नक्षत्र-विशेष (सम १०; १३; सुर १६, २४९; इक)।

धणी :: स्त्री [दे] भार्या, पत्‍नी। २ पर्याप्‍ति। ३ जो बँधा हुआ होने पर भी भय-रहित हो वह (दे ५, ६२), 'सयमेव मंकणीए धणीए तं कंकणी बद्धा' (कुप्र १८५)

धणु :: पुंन [धनुष्] १ धनुष, चाप, कार्मुंक (षड्; हे १, २२) २ चार हाथ का परिमाण (अणु; जी २९) ३ पुं. परमा- धार्मिक देवों की एक जाति (सम २९)। °कुडिस न [°कुटिलधनुष्] वक्र धनुष (राय)। °ग्गह पुं [°ग्रह] वायु-विशेष (बृह ३)। °द्धय पुं [°ध्वज] नृप-विशेष (ठा ८)। °द्धर वि [°धर] धनुर्विद्या में निपुण, धानुष्क (राज; पउम ६, ८७)। °पिट्ठ न [°पृष्ठ] १ धनुष का पृष्ठ-भाग। २ धनुष के पीठ के आकरवाला क्षेत्र (सम ७३)। °पुहत्तिया स्त्री [°पृथक्त्विका] दो कोस, गव्यूति (पणण १)। °वेअ, °व्वेअ पुं [°वेद] धनुर्विद्या-बोधक शास्त्र, इषु-शास्त्र (उफ ९८६ टी; सुपा २७०; जं २)। °हर देखो °धर (भवि)

धणु :: पुंन [धनुस्] ज्योतिष-प्रसिद्ध एक राशि (विचार १०६; संबोध ५४)। °ल्ल वि [°मत्] धनुषवाला (प्राकृ ३५)।

धणुक्क, धणुह :: ऊपर देखो (णंदि; अणु; हे १, २२; कुमा)।

धणुही :: स्त्री [धनुष] कार्मुंक, 'वेसाओ व धणुहीओ गुणबद्धाओवि पयइकुडिलाओ' (कुप्र २७४; स ३८१)।

धणेसर :: पुं [धनेश्वर] एक प्रसिद्ध जैनमुनि और ग्रन्थकार (सुर १, २४९; १६, २५०)।

धण्ण :: पुं [धन्य] १ एक जैनमुनि। २ 'अनुत्तरोपपातिकदसा' सूत्र का एक अध्ययन (अनु २) ३ यक्ष-विशेष (विपा २, २) ४ वि. कृतार्थं। ५ धन-लाभ के योग्य। ६ स्तुति-पात्र, प्रशंसनीय। ७ भाग्यशाली, भाग्यवान् (णाया १, १; कप्प; औप)

धण्ण :: देखो धन्न = धान्य (श्रा १८; ठआ ५, ३; वव १)।

धण्णंतरि :: पुं [धन्वन्तरि] १ राजा कनकरथ का एक स्वनाम-ख्यात वैद्य (विपा १, ८) २ देव-बैद्य (जय २)

धण्णाउम :: वि [दे] १ जिसको आशीर्वाद दिया जाता हो वह। २ पुं. आशीर्वाद (दे ५, ५८)

धत्त :: वि [दे] १ निहित, स्थापित (आवम) २ पुं. वनस्पति-विशेष (जीव १)

धत्त :: वि [धात्त] निहित, स्थापित (राज)।

धत्तरट्ठग :: पुं [धार्तराष्ट्रक] हंस की एक जाति, जिसके मुँह और पाँव काले होते हैं (पणह १, १)।

धत्ती :: स्त्री [धात्री] १ धाई, उपमाता, दाई (स्वप्‍न १२२) २ पृथिवी, भूमि। ३ आम- लकी-वृक्ष, आँवले का पेड़ (हे २, ८१)। देखो धाई।

धत्तूर :: पुं [धत्तूर] १ वृक्ष-विशेष, धतुरा। २ न. धतुरा का पुष्प (सुपा १२४)

धत्तूरिअ :: वि [धात्तूरिक] जिसने धतुरा का नशा किया हो वह (सुपा १२४; १७९)।

धत्य :: वि [ध्वस्त] ध्वंस-प्राप्त, नष्ट, नाश हुआ (हे २, ७९; सण)।

धन्न :: देखो धण्ण = धन्य (कुमा; प्रासू ५३; ८४; १५५; उवा)।

धन्न :: न [धान्य] १ धान, अनाज, अन्‍न (उवा; सुर १, ४९) २ धान्य-विशेष; 'कुलत्थ तह धन्‍नय कलाया' (पव १५६) ३ धनिया (दसनि ६)। °कीड पुं [°कीट] नाज में होनेवाला कीट, कीट-विशेष (जी १७)। °णिहि पुंस्त्री [°निधि] धान रखने का घर, कोष्ठागार, भंडार (ठा ५, ३ )। °पत्थय पुं [°प्रस्थक] धान का एक नाप (वव १)। °पिडग न [°पिटक] नाज का एक नाप (वव १)। °पुंजिय न [°पुञ्जितधान्य] इकट्ठा किया हुआ अनाज (ठा ४, ४)। °विक्खित्त न [विक्षिप्तधान्य] विकीर्णं अनाज (ठा ४, ४)। °विरल्लिय न [°विरल्लित- धान्य] वायु से इकट्ठा किया हुआ अनाज (ठा ४, ४)। °संकडि्ढय न [°संकर्षितधान्य] खेत से काटकर खेल — खलिहान में लाया गाया धान्य (ठा ४, ४)। °गार न [°गार] कोष्ठागार, धान रखने का गृह (निचू ८)

धन्ना :: स्त्री [धान्य] अन्‍न, अनाज; 'सालिज- वाईयाओ धन्‍नओ सव्वजाईओ' (उफ ९८६ टी)।

धन्ना :: स्त्री [धन्या] एक स्त्री का नाम (उवा)।

धम :: सक [ध्मा] १ धमना, धौंकना, आग में तपाना। २ शब्द करना। ३ वायु पूरना। धमइ (महा)। धमेइ (कुप्र १४९)। वकृ. धमंत (निचू १)। कवकृ. धम्ममाण (उवा; णाया १, ९)

धमग :: वि [ध्मायक] धमनेवाला (औप)।

धमण :: न [धमन] १ आग में तपाना (आचानि १, १, ७) २ वायु-पूरण (पणह १, १) ३ वि. भस्त्रा, धमनी, भाथी (राज)

धमणि, धमणी :: स्त्री [धमनि, °नी] १ भस्त्रा, धमनी, धौंकनी। २ नाड़ी, सिरा (विपा १, १, उवा; अंत २७)

धमधम :: अक [धमधमाय्] 'धम-धम्' आवाज कराना; 'धमधमइ सिरं घणियं जायइ सूलंपि भज्जए दिट्ठी' (सुपा ६०३)। वकृ. धमधमंत, धमधमाअत, धमधमेंत (सुपा ११४, नाट — मालती ११९; णाया १, ८)। धमास पुं [धमास] वृक्ष-विशेष (पणण १७)।

धमिअ :: वि [ध्मात] जिसमें वायु भर दिया गया हो वह; 'धमिओ संखो' (कुप्र १४९)।

धमिय :: वि [ध्मात] आग में तपायया ङुआ, 'धमियकणयं फुं काए हारविदं हुज्जं' (मोह ४७)।

धम्म :: पुं [धर्म] १ एक देव-विमान (देवेन्द्र १४३) २ एक दिन का उपवास (संबोध ५८)

धम्म :: पुंन [धर्म] १ शुभ कर्मं, कुशल-जनक अनुष्ठान, सदाचार (ठा १; सम १; २; आचा; सूअ १, ९, प्रासू ५२; ११४; सं ५७) २ पुण्य, सुकृत (सुर १, ५४; आव ४) ३ स्वभाव, प्रकृति (निचू २०) ४ गुण, पर्याय (ठा २, १) ५ एक अरूपी पदार्थं, जो जीव को गति क्रिया में सहायता पहुँचाता है (नव ५) ६ वर्तमान अवसर्पिणी काल में उत्पन्‍न पनहरवें जिन-देव (सम ४३; पडि) ७ एक वणिक् (उप ७२८ टी) ८ स्थिति, मर्यादा (आचू २) ९ धनुष, कार्मुक (सुर १, ५४; पाअ) १० एक जैन मुनि (कप्प) ११ 'सूत्रकृताङ्ग सूत्र का एक अध्ययन (सम ४२) १२ आचार, रीति, व्यवहार (कप्प)। °उत्त पुं [°पुत्र] शिष्य (प्रारू)। °उर न [°पुर] नगर-विशेष (दंस १)। °कंखिअ वि [°काङ्क्षित] धर्मं की चाहवाला (भग)। °कहा स्त्री [°कथा] धर्मं-सम्बन्धी वात (भग; सम १२०; णाया २)। °कहि वि [°कथिन] धर्मं-कथा कहनेवाला, धर्मं का उपदेशक (ओघ ११५ भा; श्रा ६)। °कामय वि [°कामक] धर्मं की चाहवाला (भग)। °काय पुं [°काय] धर्मं का साधन-भूत शरीर (पंचा १८)। °क्खाइ वि [°ख्यायिन्] धर्मं-प्रतिपादक (औप)। °क्खाइ वि [°ख्याति] धर्म से ख्यातिवाला, धर्मात्मा (औप)। °गुरु पुं [°गुरु] धर्म-दर्शक गुरु, धर्माचार्य (द्र १)। °गुव वि [°गुप्] धर्मं- रक्षक (षड्)। °घोस पुं [°घोस] कईएक जैन मुनि और आचार्यों का नाम (आचू १; ती ७; आव ४; भग ११, ११)। °चक्क न [°चक्र] जिनदेव का धर्मं-प्रकाशक चक्र (पव ४०; सुपा ९२)। °चक्कवट्टि पुं [°चक्र- वर्त्तिन्] जिन-देव (आचू १)। °चक्कि पुं [°चक्रिन्] जिन भगवान् (कुम्मा ३०)। °जणणी स्त्री [°जननी] धर्मं की प्राप्ति करानेवाली स्त्री, धर्मं-देशिका (पंचा १९)। °जस पुं [°यशस्] जैनमुनि-विशेष का नाम (आव ४)। °जागरिया स्त्री [°जागर्या] १ धर्मं-चिन्तन के लिए किया जाता जागरण (भग १२, १) २ जन्म से छठवें दिन में किया जाता एक उत्सव (कप्प) °ज्झय पुं [°ध्वज] १ धर्मं-द्योतक ध्वज, इन्द्र-ध्वज (राय) २ ऐरवत क्षेत्र के पाँचवें भावी जिन-देव (सम १५४) °ज्झाण न [°ध्यान] धर्मं-चिन्तन, शुभ ध्यान-विशेष (सम ९)। °ज्झाणि वि [°ध्यानिन] धर्म ध्यान से युक्त (आव ४)। °ट्ठि वि [°र्थिन्] धर्म का अभिलाषी (सूअ १, २, २)। °णायग वि [°नायक] १ धर्म का नेता (सम १; पडि)। °ण्णु वि [°ज्ञ] धर्मं का ज्ञाता (दंस ४)। °त्थित्थयर पुं [°तीर्थकर] जिनभगवान् (उत्त २३; पडि)। °त्थ न [°स्त्र] अस्त्र-विशेष, एक प्रकार का हथियार (पउम ७१, ६३)। °त्थि देखो °ट्ठि (पंचव ४)। °त्थिकाय पुं [°स्तिरकाय'] गति- क्रिया में सहायता पहुँचानेवाला एक अरूपी पदार्थं (भग)। °दय वि [°दय] धर्मं की प्राप्ति करानेवाला, धर्मं-देशक (भग)। °दार न [°द्वार] धर्मं का उपाय (ठा ४, ४)। °दार पुंब. [°दार] धर्म-पत्‍नी (कप्पू)। °दास पुं [°दास] भगवान् महावीर का एक शिष्य और उपदेशमाला का कर्त्ती (उव)। °देव पुं [°देव] एक प्रसिद्ध जैन (आचार्य (सार्धं ७८)। °देसग, °देसय वि [°देशक] धर्मं का उपदेश करनेवाला (राज; भग; पडि)। °धुरा स्त्री [°धुरा] धर्मरूप धुरा (णाया १, ८)। °नायग देखो °णायग (भग)। °पडिमा स्त्री [°प्रतिमा] १ धर्मं की प्रतिज्ञा। २ धर्मं का साधन-भूत शरीर (ठा १) °पण्णत्ति स्त्री [°प्रज्ञप्ति] धर्मं की प्ररूपणा (उवा)। °पदिणी (शौ) स्त्री [°पत्‍नी] धर्मं-पत्‍नी, स्त्री, भार्या (अभइ २२२)। °पिवासय वि [°पिपासक] धर्मं के लिए प्यासा (भग)। [°पिवासिय] वि [°पिपासित] धर्मं की प्यासवाला (तंदु)। °पुरिस पुं [°पुरुष] धर्मं-प्रवर्तंक पुरुष (ठा ३, १)। °पलज्जण वि [°प्ररञ्जन] धर्मं से आसक्त (णाया, १, १८)। °प्पवाइ वि [°प्रवादिन्] धर्मोपदेशक (आचानि १, ४, २)। °प्पह पुं [°प्रभ] एक जैन आचार्यं (रयण ५८)। °प्पावाउय वि [°प्रावादुक] धर्मं-प्रवादी, धर्मोपदेशक (आचानि १, १४, १)। °बुद्धि वि [°बुद्धि] धार्मिक, धर्मं-मति। २ पुं. एक राजा का नाम (उप ७२८ टी) °मित्त पुं [°मित्र] भगवान् पद्मप्रभ का पूर्वंभवीय नाम (सम १५१)। °य वि [°द] धर्मं-दाता, धर्मं देशक (सम १)। °रुह स्त्री [°रुचि] १ धर्मं-प्रीति (धर्मं २) २ वि. धर्मं में रुचिवाला (ठा १०) ३ पुं. एक जैन मुनि (विपा १, १; उप ६४८ टी) ४ वाराणसी का एक राजा (आवम)। °लाभ पुं [°लाभ] १ धर्म की प्राप्ति। २ जैन साधु द्वारा दिया जाता आशीर्वाद (सुर ८, १०६) °लाभिअ वि [°लाभित] जिसको 'धर्मलाभ' रूप आशीर्वाद दिया गया हो वह (स ९६)। °लाह देखो °लाभ (स ३९)। °लाहण न [°लाभन] धर्मंलाभ-रूप आशीर्वाद देना; 'कयं धम्मलाहणं' (स ४६९)। °लाहिअ देखो °लाभिअ (स १४८)। °वंत वि [°वत्] धर्मंवाला (आचा)।°वय पुं [°व्यय] धर्मार्थं दान, धर्मादा (सुपा ६१७)। °वि, °विउ वि [°वित्] धर्मं का जानकार (आचा)। °विज्ज पुं [°वैद्य] धर्माचार्यं (पंचव १)। °व्वय देखो °वय (सुपा ६१७)। °सद्धा स्त्री [°श्रद्धा] धर्मं-विश्वास (उत्त २९)। °सण्णा देखो °सन्ना (भग ७, ६)। °सत्य न [°शास्त्र] धर्मं प्रतिपादक शास्त्र (दंस ४)। °सन्ना स्त्री [°संज्ञा] १ धर्मं-विश्वास। २ धर्मं-बुद्धि (पणह १, ३) °सारहि पुं [°सारथि] धर्मंरथ का प्रवर्तक, धर्मं-देशक (धण २७, पडि)। °साला स्त्री [°शाला] धर्म-स्थान (करु ३३)। °सील वि [°शील] धार्मिक (सूअ २, २)। °सीह पुं [°सिंह] १ भगवान् अभिनन्दन का पूर्वं- भवीय नाम (सम १५१) २ एक जैन मुनि (संथा ६९) °सेण पुं [°सेन] एक बलदेव का पूर्वंभवीय नाम (सम १५३)। °इगर वि [°दिकर] धर्मं का प्रथम प्रवर्तक। २ पुं. जिन-देव (धर्मं २) °णुट्ठाण न [°नुष्ठान] धर्मं का आचरण (धर्मं १)। °णुण्ण वि [°नुज्ञ] धर्मं का अनुमोदन करनेवाला (सूअ २, २; णाया १, १८)। °णुय वि [°नुग] धर्मं का अनुसरण करनेवाला (औप)। °यरिय पुं [°चार्य] धर्मं- दाता गुरु (सम १२०)। °वाय पुं [°वाद] १ धर्मं-चर्चा। २ बारहवाँ जैन अंग-ग्रन्थ, दृष्टिवाद (ठा १०)। °हिगरणिय पुं [°धिकरणिक] न्यायधीश, न्यायकर्त्ता (सुपा ११७)। °हिगारि वि [°धिका- रिन्] धर्मं-ग्रहण के योग्य (धर्म १)

धम्म :: वि [धर्म्य] धर्म-युक्त धर्मं-संगत; 'जं पुण तुमं कहेसि तमेव धम्मं' (महानि ४, द्र ४१)।

धम्ममण :: पुं [दे] वृक्ष-विशेष (उप १०३१ टी; पउम ४२, ६)।

धम्ममाण :: देखो धम।

धम्मय :: पुं [दे] १ चार अंगुल का हस्त-व्रण। २ चण्डी देवी की नर-बलि (दे ५, ६३)

धम्मि :: वि [धर्मिन्] १ धर्म-युक्त, द्रव्य, पदार्थं। २ धार्मिक, धर्मं-परायण (सुपा २९; ३३६, ५०९, वज्जा १०६)

धम्मि :: वि [धर्म्मिन्] तर्कशास्त्र-प्रसिद्ध पक्ष (धर्मंसं ९९)।

धम्मिअ, धम्मिग :: वि [धार्मिक] १ धर्मं-तत्पर, धर्मं- परायणा (गा १६७; उप ८९२; पणह २, ४) २ धर्मं-सम्बन्धी (उप २६४; पंचा ९) ३ धार्मिक-संबन्धी (ठा ३, ४)। धम्मिट्ठ वि [धर्मिष्ठ] अतिशय धार्मिक (औप सुपा १४०)

धम्मिट्ठ :: वि [धर्मेष्ट] धर्मं-प्रिय (औप)।

धम्मिट्ठ :: वि [धर्मीष्ट] धार्मिक जन को प्रिय (औप)।

धम्मिल्ल, धम्मल्ल :: पुंन [धम्मिल्ल] १ संयत केश, बंधा हुआ केश, स्त्रियों के बाँधे हुए बाल की 'पठिया या जूड़ा'; बीच में फूल रखकर ऊपर से मोतियों की या अन्य किसी रत्‍न की लड़ियों से बंधा हुआ केश-कलाप (प्राप्र; षड्; संक्षि ३) २ पुं. एक जैन मुनि (आव ६)

धम्मीसर :: पुं [धर्मेश्वर] अतीत उत्सर्पिणीकाल में भरवर्ष में उत्पन्न एक जिन-देव (पव ७)।

धम्मुत्तर :: वि [धर्मोत्तर] १ गुणी, गुणों से श्रेष्ठ (आचू ५) २ न. धर्म का प्राधान्य; 'धम्मुत्तरं वड्डउ' (पडि)

धम्मोवएसग, धम्मोवएसय :: वि [धर्मोपदेशक] धर्मं का उपदेश देनेवाला (णाया १, १६; सुपा १७२; धर्मं २)।

धय :: सक [धे] पान करना, स्तन-पान करनाष वकृ. धयंत (सुर १०, ३७)।

धय :: पुंस्त्री [ध्वज] ध्वजा, पताका (हे २, २७; णाया १, १६; पणह १, ४; गा ३४)। स्त्री. °या (पिंग)। °वड पुं [°पट] ध्वजा का वस्त्र (कुमा)।

धय :: पुं [दे] नर, पुरुष (दे ५, ५७)।

धयण :: न [दे] गृह, घर (दे ५, ५७)।

धयरट्ठ :: पुं [धृतराष्ट्र] हंस पक्षी (पाअ)।

धर :: सक [धृ] १ धारण करना। २ पकड़ना।ष धरइ, धरेइ (हे ४, २३४; ३३६)। कर्मं. धरिज्जइ (पि ५३७)। वकृ धरंत, धरमाण (सण; भवि; गा ७९१)। कवकृ. धरंत, धरेंत, धरिज्जंत, धरिज्जमाण (से ११, १२७; १४, ८१; राज; पणह १, ४; औप)। संकृ. धरिउं (कुप्र ७)। कृ. धरियव्व (सुपा २७२)

धर :: सक [धरय्] पृथिवी का पालन करना। वकृ. धरंत (सुर २, १३०)।

धर :: न [दे] तूल, रूई (दे ५, ५७)।

धर :: पुं [धर] १ भगवान् पद्मप्रभ का पिता (सम १५०) २ मथुरा नगरी का एक राजा (णाया १, १६) ३ पर्वंत, पहाड़ (से ८, ६३; पाअ)

°धर :: वि [°धर] धारण करनेवाला (कप्प)।

धरग्ग :: पुं [दे] कपास (दे ५, ५८)।

धरण :: पुं [धरण] १ नाग-कुमार देवों का दक्षिण-दिशा का इन्द्र (ठा २, ३; औप) २ यदुवंशषीय राजा अन्धक-वृष्णि का एक पुत्र (अंत ३) ३ श्रेष्ठि-विशेष (उप ७२८ टी; सुपा ५५९) ४ न. धारण करना (से ३, ३, सार्ध ६; वज्जा ४८) ५ सोलह तोले का एक परिमाण (जो २) ६ धरना देना, लंघन-पूर्वक उपवेशन (पव ३८) ७ तोलने का साधन (जो २) ८ वि. धारण करनेवाला (कुमा)। °प्पभ पुं [°प्रभ] धरणेन्द्र का उत्पात-पर्वंत (ठा १०)

धरणा :: स्त्री [धरणा] देखो धारणी (णंदि)।

धरणि :: स्त्री [धरणि] १ भूमि, पृथिवी (औप; कुमा) २ भगवान् अरनाथ की शासन-देवी (संति १०) ३ भगवान् वासुपूज्य की प्रथम शिष्या (सम १५२; पव ९) °खील पुं [°कील] मेरु पर्वत (सुज्ज ५)। °चर पुं [°चर] मनुष्य (पउम १०१, ४७)। °धर पुं [°धर] १ पर्वंत, पहाड़ (अजि १७) २ अयोध्या नगरी का एक सूर्य-वंशीय राजा (पउम ५, ५०)। °धरप्पवर पुं [°धरप्रवर] मेरु पर्वंत (अजि १५)। °धरवइ पुं [°धर- पति] मेरु पर्वत (अजि १७)। °धरा स्त्री [°धरा] भगवान् विमलनाथ की प्रथम शिष्या (सम १५२)। °यल न [°तल] भूमि-तल, भू-तल (णाया १, २)। वइ पुं [°पति] भू-पति, राजा (सुपा ३३४)। °वट्ठ न [°पृष्ठ] मही-पीठ, भूमि-तल (महा)। हर देखो धर (से ६, ३६)

धरणिंद :: पुं [धरणेन्द्र] नाग-कुमारों की दक्षिण दिशा का इन्द्र (पउम ५, ३८)।

धरणिसिंग :: पुं [धरणिश्रृङ्ग] मेरु पर्वंत (सुज्ज ५)।

धरणी :: देखो धरणि (प्रासू २३; पि ५३; से २, २४; कुप्र २२)।

धरा :: स्त्री [धरा] पृथिवी, भूमि (गउड; सुपा २०१)। °धर, °हर पुं [°धर] पर्वत, पहाड़ (से ६, ७६; ३८; स २९९; ७०३; उप ७६८ टी)।

धराधीस :: पुं [धराधीश] राजा (मोह ४३)।

धराविअ :: वि [धारित] पकड़ा हुआ (स २०६; सुपा ३२५; संक्षि ३४)। २ स्थापित; 'धरावियं भडयं' (कुप्र १४०)

धरिअ :: वि [धृत] १ धारण किया हुआ (गा १०१; सुपा १२२) २ रोका हुआ (स २०६)

धरिज्जंत, धरिज्जमाण :: देखो धर = धृ।

धरिणी :: स्त्री [धरिणी] पृथिवी, भूमि (पाअ)।

धरित्ती :: स्त्री [धरित्री] पृथिवी, भूमि (श्रु १२७; सम्मत्त २२६)।

धरिम :: न [धरिम] १ जो तराजू में तौल कर बेचा जाय वह (श्रा १८; णाया १, ८) २ ऋण, करजा (णाया १, १) ३ एक तरह की नाप, तौल (जो २)

धरियव्व :: देखो धर = धृ।

धरिस :: अक [धृष्] १ सहंत होना एकत्रित होना। २ प्रगल्भता करना, ढीठाई करना। ३ मिलना, संबद्ध होना। ४ सक. हिंसा करना, मारना। ५ अमर्षं करना, सहन नहीं करना। धरिसइ (राज)

धरिस :: सक [धर्षय्] क्षुब्ध करना, विचलित करना। धरिसेइ (उत्त ३२, १२)।

धरिसण :: न [धर्षण] १ परिभव, अभिभव। २ संहति, समूह। ३ अमर्षं, असहिष्णुता। ४ हिंसा; ५ बन्धन, योजन (निचू १; राज) ६ प्रगल्भता, धृष्टता, ढीठाई (औप)

धरेंत :: देखो धर = धृ।

धव :: पुं [धव] १ पति, स्वामी (णाया १, १; वव ७) २ वृक्ष-विशेष (पणण १; उप १०३१ टी; औप)

धवक्क :: अक [दे] धड़कना, भय से व्याकुल होना, धुकधुकाना। धवक्कइ (सण)।

धवक्किय :: वि [दे] धड़कना, भय से व्याकुल होना, धुकधुकाना। धवक्कइ (सण)।

धवक्किय :: वि [दे] धड़का हुआ, भयसे व्याकुल बना हुआ (सण)।

धवण :: न [धावन] धौन, चावल आदि कसा धावन-जल (सूक्त ८८)।

धवल :: पुं [दे] स्व-जाति में उत्तम (दे ५, ५७)।

धवल :: न [धवल] लगातार सोलह दिन का उपवास (संबोध ५८)।

धवल :: वि [धवल] १ सफेद, श्‍वेत (पाअ; सुपा २८५) २ पुं. उत्तम बैल (गा ६३८) ३ पुं. न. छन्द-विशेष (पिंग)। °गिरि पुं [°गिरि] कैलास पर्वंत (ती ४६)। °गेह न [°गेह] प्रासाद, महल (कुमा)। चंद पुं [°चन्द्र] एक जैन मुनि (दं ४७)। °ख पुं [°ख] मंगलगीत (सुपा २९५)। °हर न [°गृह] प्रासाद, महल (श्रा १२; महा)

धवल :: सक [धवलय्] सफेद करना। धवलइ (पि ५५७)। कवकृ. धवलिज्जंत (गउड)।

धवलक्क :: न [धवलार्क] ग्राम-विशेष, जो आजकल 'धोलका' नाम से गुजरात में प्रसिद्ध है (ती ३)।

धवलण :: न [धवलन] सफेद करना, श्‍वेती- करण (कुमा)।

धवलसउण :: पुं [दे] हंस (दे ५, ५९; पाअ)।

धवला :: स्त्री [धवला] गौ, गैया (गा ६३८)।

धवलाअ :: अक [धवलाय्] सफेद होना। धवलाअंत (गा ९)।

धवलाइअ :: वि [धवलायित] १ उत्तम बेल की तरह जिसने कार्यं किया हो वह। २ न. उत्तम वृषभ की तरह आचरण (सार्धं ६)

धवलिम :: पुंस्त्री [धवलिमन्] सफेदपन्, शुक्लता, सफेदी (सुपा ७४)।

धवलिय :: वि [धसलित] सफेद किया हुआ (भवि)।

धवली :: स्त्री [धवली] उत्तम गौ, श्रेष्ठ गैया (गउड)।

धव्व :: पुं [दे] वेग (दे ५, ५७)।

धस :: अक [धस्] १ धसना। २ नीचे जाना। ३ प्रवेश करना। वसइ, वसउ (पिंग)

धस :: पुं [धस्] 'धस्' ऐसा आवाज, गिरने की आवाज; 'धसत्ति महिमंडले पडिओ' (महा; णाया १, १ — पत्र ४७)।

धसक्क :: पुं [दे] हृदय की धबराहट की आवाज, गुजराती में 'धासको'; 'तो जायहिमधसक्का' (श्रा १४; कुप्र ४३५)।

धसक्किअ :: वि [दे] खूब घबड़ाया हुआ (श्रा १४)।

धसल :: वि [दे] विस्तीर्णं, फैला हुआ (दे ५, ५८)।

धसिअ :: वि [धसित] धसा हुआ (हम्मीर १३)।

धा :: सक [धा] धारण करना। धाइ, धाअइ धाअए (षड्)। कर्मं. धीयए (पिंड)।

धा :: सक [ध्यै] ध्यान करना, चिन्तन करना। धाअति (संक्षि ७६)।

धा :: सक [धाव्] १ दौड़ना। २ शुद्ध करना, धोना। धाइ, धाअइ (हे ४, २४०)। भवि. धाहिइ (षड्)

धाइअ :: वि [धावित] दौड़ा हुआ (से ८, ६८; भवि)।

धाइअसंड :: देखो धायइ-संड; (महा)।

धाई :: देखो धत्ती (हे २, ८१; पव ६७)। ४ धाई का काम करने से प्राप्त की हुई भिक्षा (ठा ३, ४) ५ छन्द-विशेष (पिंग)। °पिंड पुं [°पिण्ड] धाई का काम कर प्राप्त की हुई भिक्षा (पव ६७)

धाई :: देखो धायई; (उप ६४८ टी)।

धाउ :: पुं [धातु] १ सोना, चाँदी, तांबा, लोहा, राँगा, सीसा और जस्ता ये सात वस्तु (जी ३) २ गेरु, मनसिल आदि पदार्थ (से ४; ४; पणह १, २) ३ शरीर-धारक वस्तु — कफ, वात, पित्त, रस, रक्त, माँस, मेद, अस्थि, मज्जा और शुक्र (औप; कुप्र १५८) ४ पृथिवी, जल, तेज और वायु ये चार महाभूत (सूअ १, १, १) ५ व्या- करण प्रसिद्ध शब्द-योनि, 'भू', 'पच्' आदि (अणु) ६ स्वभाव, प्रकृति (स २४१)। ७ नाट्य-शास्त्र-प्रसिद्ध आलत्तिका-विशेष (कुमा २, ६९) °य वि [°ज] १ धातु से उत्पन्‍न । २ वस्त्र-विशेष (पंचभा) ३ नाम, शब्द (अणु)। °वाइअ वि [°वादिक] औषधि आदि के योग से ताम्र आदि को सोना वगैरह बनानेवाला, किमियागर (कुप्र ३६७)

धाउ :: पुं [धातृ] पणपन्‍नि नामक व्यन्तर देवों का एक इन्द्र (ठा २, ३)।

धाउसोसण :: न [धातुशोषण] आयंबिल तप (संबोध ५८)।

धाड :: अक [निर् + सृ] बाहर निकलना। धाड़इ (हे ४; ७९)।

धाड :: सक [निर् + सारय्] बाहर निका-ृ लना। संकृ. धाडिऊण (कुप्र ८३)। कवकृ. धाडिज्जंत (पउम १७, २८; ३१, ११९)।

धाड :: सक [ध्राट्] प्रेरणा करना। २ नाश करना। धाड़ेंति (सूअनि ७०)। कवकृ. धाड़ीयंत (पणह १, ३ — पत्र ५४)

धाडण :: न [ध्राटन] बाहर निकालना (वव ४)।

धाडण :: न [ध्राटन] १ प्रेरणा। २ नाश (औप)

धाडय :: वि [दे. ध्राटक] डाका डालनेवाला, 'धाडयपुरिसा हया तत्थ' (सिरि ११४६)।

धाडाविअ :: वि [निस्सारित] बाहर निकाली हुआ, निर्वासित (पउम २२, ८)।

धाडि :: वि [दे] निरस्त, निराकृत (दे ५, ५९)।

धाडिअ :: वि [निःसृत] बाहर निकला हुआ (कुमा)।

धाडिअ :: पुं [दे] आराम, बगीचा (दे ५, ५९)।

धाडिअ :: वि [निस्सारित] निर्वासित, बाहर निकाला हुआ (पउम १०१, ६०; स २९८; उप ७२८ टी)।

धाडी :: स्त्री [धाटी] १ डाकुओं का दल (सुर २, ४; प्रारू) २ हमला, आक्रमण, धावा (कप्पू)

धाण :: देखो धण्ण = धन्य (वज्जा ९०)।

धणा :: स्त्री [धाना] धनिया, एक प्रकार का मसाला (दे ७, ६९; प्रारू)।

धाणुक्क :: वि [धानुष्क] धनुर्धंर, धनुर्विद्या में निपुण (उप पृ ८६; सुर १३, १६२; वेणी ११४; कुप्र ४५२)।

धाणूरिअ :: न [दे] फल-भेद (दे ५, ६०)।

धाम :: पुंन [धामन्] अहंकार, गर्वं। २ रस आदि में लम्पटना। ३ वि. गर्वं-युक्त। ४ रस आदि में लम्पट (संबोध १६)

धाम :: न [धामन्] बल, पराक्रम (आरा ९३; सण)।

धाय :: वि [ध्रात] १ तृप्त, संतुष्ट (ओघ ७७ भा; सुर २, ९७) २ न. संभिक्ष, सुकाल (बृह ५)

धामइ°, धायई :: स्त्री [धातकी] वृक्ष-विशेष, धाय का पेड़ (पणण १; पउम ५३, ७९; ठा २, ३; सम १५२)। °खंड पुं [°खण्ड] स्वनाम-ख्यात एक द्वीप (ठा २, ३; अणु)। °संड पुं [°षण्ड] स्वनाम-ख्यात एक द्वीप (जीव ३; ठा ८; इक)।

धार :: सक [धारय्] १ धारण करना। २ करजा रखना। धारेइ (महा)। वकृ. धारंत, धारअंत, धारेमाण, धारयमाण, धारिंत (सुर ३, १८६; नाट — विक्र १०९; भग; सुपा २५४; २६४)। हेकृ. धारिउं, धारेत्तए, धारित्तए, (पि ५७३; कस; ठा ५, ३)। कृ. धारणिज्ज, धारणीय, धारे- यव्व (णाया १, १; भग ७, ९; सुर १४, ७७; सुपा ४८२)

धार :: न [धार] १ धारा-संबन्धी जल। २ वि धारण करनेवाला (राज)

धार :: वि [दे] लघु, छोटा (दे ५, ५९)।

धारग :: वि [धारक] धारण करनेवाला (कप्प; उप पृ ७५; सुपा २५४)।

धारण :: न [धारण] १ धारने की अवस्था। २ ग्रहण। ३ रक्षण, रखना। ४ परिधान करना। ५ अवलम्बन (औप; ठा ३, ३)

धारणा :: स्त्री [धारणा] १ मर्यादा, स्थिति (आवम) २ विषय ग्रहण करनेवाली बुद्धि (ठा ८; दंस ५) ३ ज्ञात विषय का अविस्मरण (विसे २९१) ४ अवधारण, निश्‍चय (आवम) ५ मन की स्थिरता। ६ घर का एक अवयव, धरनी या धरन (भग ८, २)। °ववहार पुं [व्यवहार] व्यवहार-विशेष (ठा ५, २)

धारणा :: स्त्री [धारणा] मकान का खंभा, धरन (आचा २, २, ३, १ टी; पव १३३)।

धारणिज्ज :: देखो धार = धारय्।

धारणी :: स्त्री [धारणी] १ धारण करनेवाली (औप) २ ग्यारहवें जिनदेव की प्रथम शिष्या (सम १५२) ३ वसुदेव आदि अनेक राजाओं की रानी का नाम (अंत; आचू; १; विपा २, १; णाया १, १)

धारणीय :: देखो धार = धारय्।

धारय :: देखो धारग (ओघ १; भि)।

धारयमाण :: देखो धार = धारय्।

धारा :: स्त्री [दे] रण-मुख, रण-भूमि का अग्रभाग (दे ५, ५९)।

धारा :: स्त्री [धारा] १ अस्त्र के आगे का भाग, धआर (गउड; प्रासू ९२) २ प्रवाह, णाली (महा) ३ अश्व की गति-विशेष (कुमा; महा) ४ जल धारा, पानी की धारा। ५ वर्षा, वृष्टि। ६ द्रव पदार्थों का प्रवाह रूप से पतन (गउड) ७ एक राज-पत्‍नी (आवम)। °कयंब पुं [°कदम्ब] कदम्ब की एक जाति, जो वर्षा से फलती-फूलती है (कुमा)। °धर पुं [°धर] मेघ (सुपा २०१)। °वारि न [°वारि] धारा से गिरता जल (भग १३ ६)। °वारिय वि [°वारिक] जहाँ धारा से पानी गिरता हो वह (भग १३, ६)। °हय वि [°हत] वर्षा से सिक्त (कप्प)। °हर देखो °धर (सुर १३, १९५)

धारा :: स्त्री [धारा] मालव देश की एक नगरी (मोह ८८)।

धारावास :: पुं [दे] १ भेक, मेढ़क, बेंग (दे ५, ६३; षड्) २ मेघ (दे ५, ६३)

धारि :: वि [धारिन्] धारण करनेवाला (औप; कप्प)।

धारिंत :: धेखो धार = धारय्।

धारिट्ठ :: न [धाष्टर्य] धृष्टता, उद्दणडता, गर्वं, साहस (आख्या° म° कोश° अ° २३ भावटीका कथा पद्म ५२९)।

धारिणी :: देखो धारणी (औप)।

धारित्तए :: देखो धार = धारय्।

धारिय :: वि [धारित] धारण किया हुआ (भवि; आचा)।

धारी :: देखो धत्ती (हे २, ८१)।

धारी :: देखो धारा (कुमा)।

धारेतए, धारेयव्व :: देखो धार = धारय्।

धाव :: सक [धाव्] १ दौड़ना। २ शुद्ध करना, धोना। धावइ (हे ४, २२८; २३८)। वकृ. धावंत, धावमाण (प्रासू ८४; महा; कप्प)। संकृ. धाविऊण (महा)

धावण :: न [धावन] १ वेग से गमन, दौड़ना। (सूअ १, ७) २ प्रक्षालन, धोना, (कुप्र १६४)

धावणय :: पुं [धावनक] दौड़ते हुए समाचार पहुँचाने का काम करनेवाला, हरकारा, संदेसिया (सुपा १०५, २९५)।

धावणया :: स्त्री [धान] स्तन-पान करना (उप; ८३३)।

धावमाण :: देखो धाव।

धाविअ :: वि [धावित] दौड़ा हुआ (भवि)।

धाविर :: वि [धावितृ] दौड़नेवाला (सण; सुपा ५४)।

धावी :: देखो धाई = धात्री (उप १३९ टी; स ६६; सुर २, ११२; १६, ९८)।

धाहा :: स्त्री [दे] धाह, पुकार, चिल्लाहट (पउम ५३, ८८; सुपा ३१७; ३४०)।

धाहा :: स्त्री [दे] धाह, पुकार, चिल्लाहट (स ३७०; सुपा ३८०; ४९६; महा)।

धाहिय :: वि [दे] पलायित, भागा हुआ (धम्म ११ टी)।

धि :: अ [धिक्] धिक्कार, छीः (रंभा)।

धिइ :: स्त्री [धृति] १ धैर्यं, धीरज (सूअ १, ८; षड्) २ धारण (आवम) ३ धारणा, ज्ञात विषय का अविस्मरण (विसे) ४ धरण, अवस्थान (सूअ १, ११) ५ अहिंसा (पणह २, १) ६ धैर्य की अधिष्ठायिका देवी। ७ देवी की प्रतिमा-विशेष (राज; णाया १, १ टी — पत्र ४३) ८ तिगिच्छि- द्रह की अधिष्ठायिका देवी (इक; ठा २३) °कूड न [°कूट] घृति-देवी का अधिष्ठित शिखर-विशेष (जं ४)। °धर पुं [°धर] १ एक अन्तकृद् महर्षि। २ 'अंतगड-दसा' सूत्र का एक अध्ययन (अंत १८)। °म, °मंतं वि [°मत्] धीरजवाला (ठा ८; पणह २, ४)

धिइ :: स्त्री [धृति] तेला, लगातार, तीन दिन का उपवास (संबोध ५८)।

धिक्कय :: वि [धिक्कृत] १ धिक्कारा हुआ (वव १) २ न. धिक्कार, तिरस्कार (बृह ६)

धिक्करण :: न [धिक्करण] तिरस्कार, धिक्कार (णाया १, १६)।

धिक्करिअ :: वि [धिक्कृत] धिक्कारा हुआ (कुप्र १५७)।

धिक्कार :: पुं [धिक्कार] १ धिक्कार, तिरस्कार (पणह १, ३; द्र २९) २ युगलिक मनुष्यों के समय की एक दण्ड-नीति (ठा ७ — पत्र ३९८)

धिक्कार :: सक [धिक् + कारय्] धिक्कारना; तिरस्कार करना। कवकृ. धिक्कारिज्जमाण (पि ५६३)।

धिज्ज :: न [धैर्य] धीरज, धृति (हे २, ६४)।

धिज्ज :: वि [धैय] धारण करने योग्य (णाया १, १)।

धिज्ज :: वि [ध्येय] ध्यान-योग्य, चिन्तनीय (णाया १, १)।

धिज्जाइ :: पुंस्त्री [द्विजाति, धिग्‍जाति] ब्राह्मण, विप्र। स्त्री. 'तत्थ भद्दा नाम धिज्जाइणी' (आवम)।

धिज्जाइय, धिज्जाईय :: पुंस्त्री [द्विजातिक, धिग्जा- तीय] ब्राह्मण, विप्र (महा; उप १२९; आव ३)।

धिज्जीविय :: न [धिग्‍जीवित] निन्दनीय जीवन (सूअ २, २)।

धिट्ठ :: वि [धृष्ट] ढीठ, प्रगल्भ। २ निर्लंज्ज, बेशरम (हे १, १३०; सुर २, ९; गा ६२७; श्रा १४)।

धिट्ठज्जुण्ण :: देखो धट्ठज्जुण्ण (पि २७८)।

धिट्ठिम :: पुंस्त्री [धृष्टत्व] धृष्टता, ढीठाई (सुपा १२०)।

धिद्धो, धिधी :: अ [धिक् धिक्] छीः छीः (उव; व ९१; रंभा)।

धिप्प :: अक [दीप्] दीपना, चमकना। धिप्पइ (हे १, २२३)।

धिप्पिर :: वि [दीप्र] देदीप्यमान, चमकीला (कुमा)।

धिय :: अ [धिक्] धिक्कार, छीः; 'बेइ गिरं धिय मुंडिय' (उप ६३४)।

धिरत्थु :: अ [धिगस्तु] धिक्कार हो (णाया १, १६; महा; प्रारू)।

धिसण :: पुं [धिषण] बृहस्पति, सुर-गुरु (पाअ)।

धिसि :: अ [धिक्] धिक्कार, छीः (सुपा ३९५; सण)।

धी :: देखो धीआ; 'जं मंगलं कुंभनिवस्स धीए मल्लीइ राईसरवंदि आए' (मंगल १२, २०)।

धी :: स्त्री [धी] बुद्धि, मति (पाअ; णाया १, १६; कुप्र ११९; २४७; प्रासु २०)। °धण वि [°धन] १ बुद्धिमान, विद्वान्। २ पुं. एक मन्त्री का नाम (उपे ७६८ टी)। °म, °मंत वि [°मत्] बुद्धिशाली, विद्वान् (उप ७२८ टी; कप्प; राज)

धी :: अ [धिक्] धिक्कार, छीः (उव; वै ५५)।

धीआ :: स्त्री [दुहितृ] लड़की, पुत्री (मृच्छ १०९; पि ३९२; महा; भवि, पच्च ४२)।

धीइ :: देखो धिइ; 'तुच्छा गारवकलिया चलिं- दिया दुब्बला य धीईए' (पव ९२ टी)।

धीउल्लिया :: स्त्री [दे] पुतली (स ७३७)।

धीमल :: न [धिङ्‍मल] निन्दनीय मैल (तंदु ३८)।

धीर :: अक [धीरय्] १ धीरज करना। २ सक. धीरज देना, आश्‍वासन देना। धीरेंत (गउड)

धीर :: वि [धीर] १ धैर्यंवाला, सुस्थिर, अ- चञ्चल (से ४, ३०; गा ३६७; ठा ४, २) २ बुद्धिमान्, पण्डित, विद्वान् (उप ७६८ टी; धर्म २) ३ विवेकी, शिष्ट (सूअ १, ७) ४ सहिष्णु (सूअ १, ३, ४) ५ पुं. परमेश्वर, परमात्मा्, जिन-देव। ६ गणधर-देव (आचा; आव ४)

धीर :: न [धैर्य] धीरज, धीरता (हे २, ६४; कुमा)।

धीरव :: सक [धीरय्] सान्त्वना देना, दिलासा देना। कर्मं. धीरविज्जंति (कुप्र २७३)।

धीरवण :: न [धीरण] धीरज देना, सान्त्वना (वव १)।

धीरविय :: वि [धीरित] जिसको सान्त्वना दी गई हो वह, आश्वासित (स ६०४)।

धीराअ :: अक [धीराय्] धीर होना, धीरज धरना। वकृ. धीराअत (से १२, ७०)।

धीराविअ :: देखो धीरविय (पि ५५९)।

धीरिअ :: देखो धीर = धैर्य (हे २, १०७)।

धीरिअ :: देखो धीरविय (भवि)।

धीरिम :: पुंस्त्री [धीरत्व] धैर्य, धीरज (उप पृ ६२; सुपा १०६; भवि; कुप्र १५०)।

धीवर :: पुं [धीवर] १ मछलीमार, अछुआ, मल्लाह, जालजीवी (कुमा; कुप्र २४७) २ वि. उत्तम बुद्धिवाला (उप ७६८ टी; कुप्र २४७)

धुअ :: देखो धुव = धाव्। धुअइ (गा १३०)।

धुअ :: सक [धु] १ कँपाना। २ फेंकना। ३ त्याग करना। वकृ. धुअमाण (से १४, ६६)

धुअ :: [वि] धुव = ध्रुव (भवि)। छन्द-विशेष (पिंग)।

धुअ :: वि [धूत] १ कम्पित। २ न. कम्प (प्राकृ ७०)

धूअ :: वि [धुत] १ कम्पित (गा ७८; दे १, १७३) २ त्यक्त (औप) ३ उच्छलित (से ४, ४) ४ न. कर्मं (सूअ २, २) ५ मोक्ष, मुक्ति (सूअ १, ७) ६ त्याग, संग- त्याग, संयम (सूअ १, २, २; आचा)। °वाय पुं [°वाद] कर्मं-नाश का उपदेश (आचा)

धुअगाय :: पुं [दे] भ्रमर, भौंरा, भमरा (दे ५, ५७; पाअ)।

धुअण :: देखो धुवण (पव १०१)।

धुअराय :: पुं [दे] ऊपर देखो (षड्)।

धुंधुमार :: पुं [धुन्धुमार] नृप-विशेष (कुप्र २६३)।

धुंधुमारा :: स्त्री [दे] इन्द्राणी, शची (दे ५, ६०)।

धुक्क :: अक [क्षुध्] भूख लगना। धुक्कइ (प्राकृ ६३)।

धुक्काधुक्क :: अक [कम्प्] काँपना, 'धुक्-धुक्' होना। धुक्काधुक्कइ (गा ५८३)।

धुक्कुद्‍धुअ, धुक्कुद्‍धुगिअ :: वि [दे] उल्लसित, उल्लास- युक्त (दे ५, ६०)।

धुक्कुधुअ :: देखो धुक्काधुक्क। वकृ. धुक्कु- धुअंत (भवि)।

धुक्कोडिअ :: न [दे] संशय, संदेह (वज्जा ९०)।

धुगधुग :: अक [धुगधुगाय्] 'धुग्-धुग्' आवाज करना। वकृ. धुगुधुगंत (पणह १, ३ — पत्र ४५)।

धुट्ठुअ :: देखो धुद्‍धुअ। धुट्‍ठुअइ (हे ४; ३९५)।

धुण :: सक [धू] १ कँपाना, हिलाना। २ दूर करना, हटाना। ३ नाश करना। धुणइ, धुणाइ (हे ४, ५९; आचा; पि १२०)। कर्मं. धुव्वइ, धुणिज्जइ (हे ४, २४२)। वकृ. धुणंत (सुपा १८५)। संकृ. धुणिऊण, धुणिया, धुणेऊण (षड्; दस ९, ३)। हेकृ. धुणित्तए (सूअ १, २, २)। कृ. धुणेज्ज (आचू १)

धुणण :: न [धूनन] १ अपनयन। २ परित्याग, छोड़ना (राज)

धुणणा :: स्त्री [धूनना] कम्पन, हिलना (ओघ १६५ भा)।

धुणा :: देखो धुणणा (उत्त २६, २७)।

धुणाव :: सक [धूनय्] कँपाना, हिलाना। धुणावइ (वज्जा ६)।

धुणाविअ :: वि [धूनित] कँपाया हुआ (उप ७६८ टी)।

धुणि :: देखो झुणि (षड्)।

धुणिऊण, धुणित्तए :: देखो धुण।

धुणिय :: वि [धूत] कम्पित, हिलाया हुआ; 'मत्थयं धुणियं' (सुपा ३२०; २०१)।

धुणिया, धुणेज्ज :: देखो धुण।

धुण्ण :: वि [धाव्य] १ दूर करने योग्य। २ न. पाप। ३ कर्म (दस ९, १; दसा ६)

धुत्त :: वि [धूर्त्त] १ ठग, वञ्चक, प्रतारक (प्रासू ४०; श्रा १२) २ जुआ खेलनेवाला। ३ पुं. धतूरे का पेड़। ४ लोहे की काट — मैल। ५ लवण-विशेष, एक प्रकार का नोन (हे २, ३०)

धुत्त :: वि [दे] १ विस्तीर्ण (दे ५, ५८) २ आक्रान्त (षड्)

धुत्त, धुत्तार :: सक [धूर्त्तय्] ठगना। धुत्तारसि (सुपा ११४)। वकृ. धुत्तयंत (श्रा १२)।

धुत्तारिअ :: वि [धुर्त्तित] ठगा हुआ, वञ्चित (उप ७२८ टी)।

धुत्ति :: स्त्री [धूर्त्ति] जरा, बुढ़ापा (राज)।

धुत्तिअ :: वि [धूर्त्तित] वञ्चित, प्रतारित (सुपा ३२४; श्रा १२)।

धुत्तिम :: पुंस्त्री [धूर्त्तत्व] धूर्त्तंता, धूर्त्तपन, ठगाई (हे १, ३५, कुमा; श्रा १२)।

धुत्ती :: स्त्री [धूर्त्ता] धूर्त्त स्त्री (वज्जा १०६)।

धूत्तीरय :: न [धत्तूरक] धतूरे का पुष्प (वज्जा १०६)।

धुद्‍धुअ :: (अप) अक [शब्दाय्] आवाज करना। धुद्‍धुअइ (हे ४, ३९५)।

धुप्प :: देखो धिप्प। धुप्पइ (प्राकृ ७०)।

धुम्म :: पुं [धूम्र] १ धूम, धुआँ। २ वर्णं- विशेष, कपोत-वर्ण। ३ वि. कपोत वर्णवाला। °क्ख पुं [°क्ष] एक राक्षस (से १२, ६०)

धुर :: /?/न. देखो धुरा (उप पृ ६३)।

धुर :: पुं [धुर] १ ज्योतिष्क ग्रह-विशेष (ठा २, ३) २ कर्जंदार, ऋणी; 'जस्स कल- सम्मि वहियाखंडाइं तस्स घुरधणं लब्भं' पुणरवि देउं धुराणं (सुपा ४२६)

धुरंधर :: वि [धुरन्धर] १ भार को वहन करने में समर्थ, किसी कार्यं को पार पहुँचाने में शक्तिमान, भार-वाहक (से ३, ३६) २ नेता, मुखिया, अगुआ (सण; उत्तर २०) ३ पुं. गाड़ी, हल आदि खींचनेवलाला बैल (दे ८, ४४)

धुरा :: स्त्री [धुर्] १ गाड़ी वगैरह का अग्र भाग, धुरी (उव) २ भार, बोभ्का। ३ चिन्ता (हे १, १६)। °धार वि [°धार] धुरा क वहन करनेवाला, धुरन्धर (पउम ७, १७१)

धुरी :: स्त्री [धुरी] अक्ष, धुरा, गाड़ी का जूआ (अणु)।

धुरीण :: वि [धुरीण] धुरन्धर, मुखिया, अगुआ (धर्मंवि १३६; सम्मत्त ११८)।

धुव :: सक [धाव्] धोना, शुद्ध करना। धुवइ, धुवंति (हे ४, २३८; गा ४३३; पिंड २८)। वकृ. धुवंत (से ८, १०२)। कवकृ. धुव्वंत, धुव्वमाण (गा ५६३; से ६, ४५; वज्जा २४; पि ५३८)।

धुव :: सक [धू] कँपाना, हिलाना। धुवइ (हरे ४, ५९; षड्)। कर्मं. धुव्वइ (कुमा)। कवकृ. धुव्वंत (कुमा)।

धुव :: वि [ध्रुव] १ निश्‍चल, स्थिर (जीव ३) २ नित्य, शाश्‍वत, सर्वंदा-स्थायी (ठा ५, ३; सूअ २, ४) ३ अवश्यभावी (सूअ २, १) ४ निश्‍चित, नियत (आचा) ५ पुं. अश्व के शरीर का आवर्त्तं (कुमा) ६ मोक्ष, मुक्ति। ७ संयम. इन्द्रियादि-निग्रह (सूअ १, २, १) ८ संसार (अणु) ६ न. मुक्ति का कारण, मोक्ष-मार्गं (आचा) १० कर्मं (अणु) ११ अत्यन्त, अतिशय; 'धुवमो गिरहइ' (ठा ६) °कम्मिय पुं [°कर्मिक] लोहार आदि शिल्पी (वव १)। °चारि वि [°चारिन्] मुमुभु, मुक्ति का अभिलाषी (आचा)। °णिग्गह पुं [°निग्रह] आव- श्यक, अवश्य करने योग्य अनुष्ठान-विशेष (अणु)। °मग्ग पुं [°मार्ग] मुक्ति-मार्ग, मोक्ष-मार्गं (सूअ १, ४, १)। °राहु पुं [°राहु] राहु-विशेष (सम २९)। °वण्ण पुं [°वर्ण] १ संयम। २ मोक्ष, मुक्ति। ३ शाश्‍वत यश (आचा)। देखो धुअ = ध्रुव।

धुवण :: न [धावन] १ प्रक्षालन (ओघ ७२; ३४७; स २७२) २ वि. कँपानेवाला, हिलानेवाला। स्त्री. °णी (कुमा)

धुवण :: पुंन [धूपन] १ धूप देना। धूम-पान (दस ३, ९)

धुविया :: स्त्री [ध्रुविता] कर्मं-विशेष, ध्रुव- बन्धिनी कर्मं-प्रकृति (पंच ५, ६६)।

धुव्व :: देखो धुव = धाव्। धुव्वइ (संक्षि ३६)।

धुव्वंत :: देखो धव = धू।

धुव्वंत, धुव्वमाण :: देखो धुव = धाव्।

धुहइ :: वि [दे] पुरस्कृत, आगे किया हुआ (षड्)।

धूअ :: वि [धूत] देखो धूअ = धुत (आचा; दस ३, १३; पि ३१२; ३९२; सूअ १, ४, २)।

धूअ :: देखो धूव = धूप (सुपा ६५७)।

धूअ :: न [धूत] पहले बँधा हुआ कर्मं, पूर्वं- कर्मं (सूअ २, २, ६५)।

धूआ :: स्त्री [दुहितृ] लड़की, पुत्री (हे २; १२६; प्रासू ९४)।

धूण :: पुं [दे] गज, हाथी (दे ५, ६०)।

धूणिय :: वि [धूनित] कम्पित (कुप्र ६८)।

धूम :: पुं [धूम] १ हींग आदि बधार (पिंड २५०) २ क्रोध, गुस्सा। ३ वि. क्रोधी (संबोध १६)

धूम :: पुं [धूम] १ धूम, धुआँ, अग्‍नि-चिह्न (गउड) २ द्वेष, अप्रीति (पणह २, १) °इंगाल पुं ब. [°ङ्गार] द्वेष और राग (ओघ २८८ भा)। °केउ पुं [°केतु] १ ज्योतिष्ट-ग्रह-विशेष (ठा २, ३; पणह १, ५; औप) २ वह्नि, अग्‍नि, आग (उत्त २२) ३ अशुभ उत्पात का सूचक तारा-पुञ्ज (गउड)। °चारण पुं [°चारण] धूम के अवलम्बन से आकाश में गमन करने की शक्तिवाला मुनि-विशेष (गच्छ २)। °जोणि पुं [°योनि] बादल, मेघ (पाअ)। °ज्झय देखो °द्धय (राज)। °दोस पुं [°दोष] भिक्षा का एक दोष, द्वेंष से भोजन करना (आचा २, १, ३)। °द्धय पुं [°ध्वज] वह्नि, अग्‍नि (पाअ; उप १०३१ टी)। °प्पभा, °प्पभा स्त्री [°प्रभा] पाचवीं नरक-पृथिवी (ठा ७; प्रारू)। °ल वि [°ल] धुआँ वाला (उप २६४ टी)। °वडल पुंन [°पटल] धूम-समूह (हे २, १९८)। °वण्ण वि [°वर्ण] पाण्डुर वर्णवाला (णाया १, १७)। °सिहा स्त्री [°शिखा] धुएँ का अग्रभाग (ठा ४, २)

धूमंग :: पुं [दे] भ्रमर, भौंरा, भमरा (दे ५, ५७)।

धूमण :: न [धूमन] धूम-पान (सूअ २, १)।

धूमद्दार :: न [दे] गवाक्ष, वातायन, झरोखा (दे ५)।

धूमद्धय :: पुं [दे] १ तड़ाग, तलाव, तालाब २ महिष, भैंसा (दे ५, ६३)

धूमद्धयमहिसी :: स्त्री. ब. [दे] कृतिका नक्षत्र (दे ५, ६२)।

धूमपलियाम :: वि [दे] गर्त्तं में डालकर आग लगाने पर भी जो कच्चा रह जाय वह (निचु १५)।

धूममहिसी :: स्त्री [दे] नीहार, कुहरा, कुहासा (दे ५, ६१; पाअ)।

धूमरी :: स्त्री [दे] १ नीहार, कुहासा (दे ५, ६१) २ तुहिन, हिम (षड)

धूमसिहा, धूमा :: स्त्री [दे] नीहार, कुहासा (दे ५, ६१; ठा १०)।

धूमा :: देखो धूमाअ। धूमाइ (प्राकृ ७१)।

धूमाअ :: अक [धूमाय्] १ धुआँ करना। २ जलाना। ३ धूम की तरह आचरना। धूमाअंति (से ८, १६; गउड)। वकृ. धूमायंत (गउड; से १, ८)

धूमाभा :: स्त्री [धूमाभा] पाँचवीं नरक-पृथिवी (पउम ७५, ४७)।

धूमिअ :: वि [धूमित] १ धूमयुक्त (पिंड़) २ छौंका हुआ (शाक आदि) (दे ६; ८८)

धूमिआ :: स्त्री [दे] नीहार, कुहासा (दे ५, ६१; पाअ; ठा १०; भग ३, ७; अणु)।

धूयरा :: देखो धूअ (सूअ १, ४, १, १३)।

धूरिअ :: वि [दे] दीर्घ, लम्बा (दे ५, ६२)।

धूरिअवट्ट :: पुं [दे] अश्व, घोड़ा (दे ५, ६१)।

धूलडिआ :: (अप) देखो धूलि (हे ४, ४३२)।

धूलि, धूली :: स्त्री [धूलि, °ली] धूल, रज, रेणु (गउड; प्रासू २८; ८४)। °कंब, °कंलब पुं [°कदम्ब] ग्रीष्म ऋतु में विक- सनेवाला कदम्ब-वृक्ष (कुमा)।°जंघ वि [°जङ्ग] जिसके पाँच में धूल लगी हो वह (वव १०)। °धूसर वि [°धूसर] धूल से लिप्त (गा ७७४; ८२६)। °धोउ वि [°धोतृ] धूल को साफ करनेवाला (सुपा ३३६)। °पंथ पुं [°पथ] धूलि-बहुल मार्ग (ओघ २४ टी)। °वरिस पुं [°वर्ष] धूल की वर्षा (आवम)। °हर न [°गृह] वर्षा ऋतु में लड़का, लोग जो धूल का घर बनाते हैं वह (उप ५९७ टी)।

धूलिहडी :: स्त्री [दे] पर्वं-विशेष, होली; धूलि- हडीरायत्तणसरिसा सव्वेसिं हसिणिज्जा' (कुलक ५)।

धुलीवट्ट :: पुं [दे] अश्व, घोड़ा (दे ५, ६१)।

धूव :: सक [धूपय्] धूप करना। धूवेज्ज (आचा २, १३)। वकृ. धूवेंत (पि ३९७)।

धूव :: पुं [धूप] १ सुगन्धि द्रव्य से उत्पन्‍न धूम। २ सुगन्धि द्रव्य-विशेष, जो देव-पूजा आदि में जलाया जाता है (णाया १, १; सुर ३, ६५)। °धडी स्त्री [°धटी] धूप- पात्र, धूप से भरी हुई कलशी (जं १)। जंत न [°यन्त्र] धूप-पात्र (दे ३, ३५)

धूवण :: न [धूपन] १ धूप देना। २ धूम-पान, रोग की निवृत्ति के लिए किया जाता धूम का पान; 'घूवणो त्ति वमणे य व त्थीकम्मविरेयेण' (दस ३, ९)। °वट्टि स्त्री [°वत्ति] धूप की बनी हुई वर्त्तिका, अगरबती (कप्पू)

धूविअ :: वि [धूपित] १ तापित, गरम किया हुआ। २ हींग आदि से छौंका हुआ (चारु ६) ३ धूप दिया हुआ (औप; गच्छ १)

धूसर :: पुं [धूसर] १ हलका पीला रंग. ईषत् पाण्डु वर्णं। २ वि. धूसर रंगवाला, ईषत् पाण्डु वर्णंवाला (प्रासू ८४; गा ७७४, से ९, ८२)

धूसरिअ :: वि [धूसरित] धूसर वर्णंवाला (पाअ; भवि)।

धे :: सक [धा] धारण करना। धेइ (संक्षि ३३); 'धेहि धीरत्तं' (कुप्र १००)।

धेअ, धेज्ज :: वि [ध्येय] ध्यान-योग्य (अजि १४; णाया १, १)।

धेउल्लिया :: देखो धीउल्लिया (सुख ३, १)।

धेज्ज :: वि [धेय] धारण करने योग्य (णाया १, १)।

धेज्ज :: न [धौर्य] धीरज, धीरता (पणह २, २)।

धेणु :: स्त्री [धेनु] १ नव-प्रसूता गौ। २ सवत्सा गौ। ३ दूधार गाय (दे ३, २९; चंड)

धेर :: देखो धीर = धैर्यं (विक्र १७)।

धेवय :: पुं [धैवत] स्वर-विशेष, 'वेवयस्सरसं- पणणा भवंति कलहप्पिया' (ठा ७ — पत्र ३९३)।

धोअ :: सक [धाव्] धोना, शुद्ध करना, पखारना। धोएज्जा (आचा)। वकृ. धोयंत (सुपा ८५)।

धोअ :: वि [धौत] धोया हुआ, प्रक्षालित (से १, २५; ७, २०; गा ३६९)।

धोअग :: वि [धावक] १ धोनेवाला। २ पुं. धोबी (उप पृ ३३३)

धोअण :: वि [धावन] धोना, प्रक्षालन (श्रा २०; रयण १८; ओघ ३४७)।

धोइअ :: देखो धौअ = धौत (गा १८)।

धोज्ज :: वि [धुर्य] १ धुरीण, भार-वाहक। २ अगुआ, नेता, धुरन्धर (वव १)

धोरण :: न [दे] गति-चातुर्यं (औप)।

धोरणि, धोरणि :: स्त्री [धोरणि, °णी] पंक्ति, कतार (सुपा ४९; भवि; षड्)।

धोरिय :: देखो धोज्ज (सुपा २८२)।

धोरुगिणी :: स्त्री [धोरुकिनिका] देश-विशेष में उत्पन्न स्त्री (णाया १, १ — पत्र ३७)।

धोरेय :: वि [धौरेय] देखो धोज्ज (सुपा ६५०)।

धोव :: देखो धोअ = धाव्। धोवइ (स १५७; पि ७८)। धोवेज्जा (आचा)। वकृ. धोवंत (भवि)। कवकृ. धोव्वंत, धोव्वमाण (पउम १०, ४४; णाया १, ८)। कृ. धोवणिय (णाया १, १६)।

धोवण :: देखो धोअण (पिंड २३)।

धोवय :: देखो धोवग (दे ८, ३९)।

ध्रुवु :: (अप) अ [ध्रुवम्] अठल, स्थिर (हे ४, ४१८)।

 :: देखो ण १ प्राकृत भाषा में नकरादि सब शब्द णाकबरादि होते हैं, अर्थात् आदि के नकार के स्थान में नित्य या विकल्प से 'ण' होनेका व्याकरणों का सामान्य नियम है (प्राप्र २, ४२; दे ५, ६३ टी; हे १, २२९; षड् १, ३, ५३), और प्राकृत-साहित्य-ग्रन्थों में दोनों तरह के प्रयोग पाए जाते हैं। इससे ऐसे सब सब शब्द णकार के प्रकरण में आ जाने से यहाँ पर पुनरावृत्ति कर व्यर्थं में पुस्तक का कलेवर बढ़ाना उचित नहीं समझा गया है। पाठकगण णाकर के प्रकरण में आदि के 'ण' के स्थान में सर्वंत्र 'न' समझ लें। यही कारण है कि नकारादि शब्दों के भी प्रमाण णकारादि शब्दों में ही दिए गए हैं।