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विक्षनरी:प्राकृत-हिन्दी शब्दकोश/भाग-६

विक्षनरी से


शिआल :: (मा) पुं [श्याल] बहू का भाई, साला (प्राकृ १०२; मृच्छ २०४)।

श्चिंट :: (मा) देखो चिट्ठ = स्था। श्चिंचदि (धात्वा १५४; प्राकृ १०३)।

 :: पुं [स] व्यञ्जन वर्ण-विशेष, इसका उच्चारण-स्थान दाँत होने से यह दन्त्य कहा जाता है (प्राप्र)। °अण, °गण पुं [°गण] पिंगल-प्रसिद्ध एक गण, जिसमें प्रथम के दो ह्रस्व और तीसरा गुरु अक्षर होता है (पिंग)। गार° पुं [°कार] 'स' अक्षर (दसनि १०, २)।

 :: देखो सं = सम् (षड्; पिंग)।

 :: पुं [श्वन्] श्वान, कुत्ता (हे १, ५२; ३, ५६; षड्)। °पाग पुं [°पाक] चण्डाल (उव)। °मुहि पुंस्त्री [°मुखि] कुत्ते की तरह आचरण, कुत्ते की तरह भषण-भूँ कना (णाया १, ९ — पत्र १६०)। °वच पुं [°पच] चाण्डाल (दे १, ६४)। °वाग, °वाय देखो °पाग (वै ५९; पाअ)।

 :: अ [स्वर्] सुरालय, स्वर्गं (विसे १८८३)।

 :: वि [सत्] १ श्रेष्ठ, उत्तम (उवा; कुमा; कुप्र १४१) २ विद्यमा; 'नो य उप्पजएॉ अ-सं' (सूअ १, १, १, १६)। °उरिस पुं [°पुरुष] श्रेष्ठ पुरुष, सज्जन (गउड)। °क्कय वि [°कृत] संमानित (पणह १, ४ — पत्र ६८); देखो °क्किअ। °क्कह वि [°कथ] सत्य-बक्ता (सं ३२)। °क्किअ न [°कृत] सत्कार, संमान (उत्त १५, ५); देखो °क्कय। °ग्गइ स्त्री [°गति] उत्तम गति — १ स्वर्गं। २ मुक्ति, मोक्ष (भवि; राज) °ज्जण पुं [°ज्जन] भला आदमी, सत्पुरुष (उव; हे १, ११; प्रासू ७)। °त्तम वि [°त्तम] अतिशय साधु, सज्जनों में अतिश्रेष्ठ (सुपा ६५५; श्रा १४; सार्धं ३)। °त्थाम न [°स्थामन्] प्रशस्त बल (गउड)। °धम्मिअ वि [°धार्मिक] श्रेष्ठ धार्मिक (श्रा १२)(ष °न्नाण न [°ज्ज्ञान] उत्तम ज्ञान (श्रा २७)। °प्पभ वि [°प्रभ] सुन्दर प्रभा वाला (राय)। °प्पुरिस पुं [°पुरुष] १ सज्जन, भला आदमी (अभि २०१; प्रासू १२) २ किंपुरुष-निकाय के दक्षिण दिशा का इन्द्र (ठा २, ३ — पत्र ८५) ३ श्रीकृष्ण (कुप्र ४८) °प्फल वि [°फल] श्रेष्ठ फलवाला (अच्चु ३१)। °ब्भाव पुं [°भाव] १ सम्भव, उत्पत्ति (उप ७२९) २ सत्त्व, अस्तित्व (सम्म ३७; ३८; ३९) ३ सुन्दर भाव, चित्त का अच्छा अभिप्राय; 'सब्भावो पुण उज्जुजणस्स कोडिं विसेसेइ' (प्रासू ९; १७२; उव; हे २, १९७) ४ भावार्थं, तात्पर्यं (सुर ३, १०१) ५ विद्यमान पदार्थं (अणु) °ब्भावदायणा स्त्री [°भावदर्शन] आलोचना, प्रायश्‍चित्त के लिए निज दोष का गुर्वादि के समक्ष पक्रटीकरण (ओघ ७९१)। °ब्भाविअ वि [°भावित] सद्- भाव-युक्त (स २०१; ६९८)। °ब्भूअ वि [°भूत] १ सत्य, वास्तविक, सच्चा; 'सब्भू- एहिं भावेहिं' (उवा) २ विद्यमान (पंचा ४, २४)। °याचार पुं [°आचार] प्रशस्त आचरण (रयण १५)।°रूव वि [°रूप] प्रशस्त रूपवाला (पउम ८, ६)। °ल्लग पुं [°लग] प्रशस्त संवरण, इन्द्रिय-संयम (सूअ २, २, ५७)। °वाय पुं [°वाद] प्रशस्त वाद (सूअ २, ७, ५)। °वाया स्त्री [°वाच्] प्रशस्त वाणी (सूअ २, ७, ५)

 :: पुं [स्व] १ आत्मा, खुद (उवा; कुमा; सुर २, २०९) २ ज्ञाति, नात (हे २, ११४; षड्) ३ वि. आत्मीय, स्वीय, निजी (उवा; ओघभा ६; कुमा; सुर ४, ६०) ४ न. धन, द्रव्य (पंचा ८, ९; आचा २, १, १, ११) ५ कर्मं. (आचा २, १६, ६) °कडब्भि, °गडब्भि वि [°कृतभिद्] निज के किए हुए कर्मों का विनाशक (पि १९६; आचा १, ३, ४, १; ४)। °जण पुं [°जन] १ ज्ञाति, सगा। २ आत्मीय लोग (स्वप्‍न ६७; षड्) °तंत वि [°तन्त्र] १ स्वाधीन, स्व-वश (विसे २११२; दे ३, ४३; अच्चु १) २ न. स्वकीय सिद्धान्त (निचू ११) °त्थ वि [°स्थ] १ तंदुरुस्थ, स्वभाव-स्थित। २ सुख से अवस्थित (पाअ; पउम २६, ३१; स्वप्‍न १०६; सुर १०, १०४; सुपा २७९; महा; सण) °पक्ख पुं [°पक्ष] १ साधर्मिंक, समान धर्मंवाला (द्र १७) २ तरफदार (कुप्र ११९) ३ अपना पक्ष (सम्म २१)। °पाय न [°पात्र] निज का नाम, खुद की संज्ञा (राज)। °प्पभ वि [°प्रभ] निज से ही शोभनेवाला (सम १३७)। °ब्भाव, °भाव पुं [°भाव] प्रकृति, निसर्गं; 'कणियारतरू नवकणिणआरसुंदेरदरिअसब्भाओ' (कुमा ३, ४४; सम्म २१; सुर १, २७; ४, १२५); 'कुवियस्स आउरस्स य वसणासत्तस्स आयरत्तस्स। मत्तस्स मरंतस्स य सब्भावा पायडा हुंति" (प्रासू ६४)

°भावन्‍नु :: वि [°भावज्ञ] स्वभाव का जान- कार (पउम ८९, ४१)। °यण देखो °जण (उवा; हे २, ११४; सुर ४, ७६; प्रासू ७६; ९५)। °रूय, °रूव न [°रूप] स्व- भाव (गउड; धर्मंसं ९१३; कुमा; भवि; सुर २, १४२)। °संवेयण न [°संवेदन] स्व- प्रत्यक्षज्ञान (धर्मंसं ४४)। °हाअ, °हाव देखो °भाव (से ३, १५; ७, १७; गउड; सुर ३, २२; प्रासू २; १०३)। °हाववाद पुं [°भाववाद] स्वभाव से ही सब कुछ होता है ऐसा माननेवाला मत (उप १००३)। °हिअ न [°हित] १ निज का भला, स्वीय — अपनी, भलाई। २ वि. निज का भला करनेवाला, स्वहितकर (सुपा ४१०)

स° :: वि [स°] १ सहित, युक्त (सम १३७; भग; उवा; सुपा १९२; सण) २ समान, तुल्य; 'सगुत्ते' 'सपक्खे' (कप्प, निर १, १)। °अण्ह वि [°तृष्ण] उत्कण्ठित, उत्सुक (से १२, ८९; गा ३४८; गउड; सुपा ३८४)। °अर वि [°कर] कर-सहित (से २, २९)। °अर वि [°गर] विष-युक्त, जहरीला (से २, २९)। °इण्ह देखो °अण्ह (सुपा ४१२)। °उण वि [°गुण] गुण-युक्त (सुपा १८५)। °उण्ण, °उन्न वि [°पुण्य] पुण्य- युक्त, पुण्य-शाली (महा; सुर २, ९८; सुपा ६३५)। °ओस वि [°तोष] सन्तुष्ट (उप ७२८ टी)। °ओस वि [°दोष] दोष-युक्त (उप ६२८ टी)। °काम वि [°काम] १ समृद्ध मनोरथवाला (स्वप्‍न ३०) २ मनोरथ-युक्त, इच्छावाला (राज)। °काणिज्जरा स्त्री [°कामनिर्जरा] कर्मं-निर्जंरा का एक भेद (राज)। °काणमरण न [°काममरण] मरण-विशेष, पण्डित-मरण (उत्त ५, २)। °केय वि [°केत] १ गृहस्थ। २ प्रत्याख्यान- विशेष (पव ४) °क्खर वि [°क्षर्] विद्वान्, जानकार (वज्जा १५८; सम्मत्त १४३)। °गार वि [°गार] गृहस्थ (ओघभा २०)। °गार वि [°कार] आकार-युक्त (धर्मंवि ७२)। °गुण वि [°गुण] गुणवान्, गुणी (उव; सुपा ३४५; सुर ४, १९६)। °ग्ग वि [°ग्र] श्रेष्ठ, उत्तम (से ९, ४७)। °ग्गह वि [°ग्रह] उपरक्त, ग्रहण-युक्‍त, दुष्ट ग्रह से आक्रान्त (पाअ; वव १)। °घिण वि [°घृण] दयालु (अच्चु ५०)। °चक्खु, °चक्खुअ वि [°चक्षुष्, °चक्षुष्क] नेत्रवाला, देखता (पउम ९७, २३; वसु; सं ७८; विपा १ १ — पत्र ५)। °चित्त वि [°चित्त] चेतनावाला, सजीव (उवा; पडि)। °चेयण वि [°चेतन] वही अर्थं (विसे १७५३)। °च्चित देखो °चित्त (ओघ २२; सुपा ६२५; ६२६; पि १९६; ३५०)। °जिय देखो °ज्जीअ (सुर १२, २१०)। °जोइ वि [°ज्योतिष्] प्रकाश-युक्‍त (पि ४११; सूअ १, ५, १, ७)। °जोणिय वि [°योनिक] उत्पेत्ति-स्थानवाला, संसारी (ठा २, १ — पत्र ३८)। °ज्जीअ, °ज्जीव वि [°जीव] १ ज्या-युक्‍त, धनुष की डोरीवाला। २ सचेतन, जीववाला (पि १९६; से १, ४५) ३ न. कला-विशेष, मृत धातु वगैरह को सजीवन करने का ज्ञान (औप; राय; जं २ टी — पत्र १३७) °ड्‌ढ वि [°र्ध] डेढ़। °ड्‍ढकाल पुं [°र्धकाल] तप-विशेष, पुरिमड्ढ तप (संबोध ५८)। °णप्पय, णप्फद, °णप्फय वि [°नखपद] नख-युक्‍त पैरवाला, सिंह आदि श्वापद जंतु (सूअ २, ३, २३; ठा ४, ४ — पत्र २७१; सूअ १, ५, २, ७; पणण १ — पत्र ४९; पि १४८)। °णाह वि [°नाथ] स्वामीवाला, जिसका कोई मालिक हो वह (विपा १, २ — पत्र २७; रंभा; कुमा)। °त्तण्ह वि [°तृष्ण] तृष्णा-युक्‍त, उत्कण्ठित, उत्सुक (से १, ४६)। °त्तर वि [°त्वर] १ त्वरा-युक्त, वेगवाला। २ न. शीघ्र, जल्दी (सुपा १५९) °द्ध वि [°र्ध] अर्धं-सहित, डेढ़ (पउम ९८, ५४)। °धवा स्त्री [°धवा] सौभाग्यवती स्त्री, जिसका पति जीवित हो वह स्त्री (सुपा ३६५)। °नय वि [°नय] न्याय-युक्त, व्याजबी (सुपा ५०४)। °पक्ख वि [°पक्ष] १ पाँखवाला, पाँखों से युक्त (से २, १४) २ सहायता- करनेवाला, सहायक, मित्र (पव २३९; स ३९७) ३ समान पार्श्‍ववाला, दक्षिण आदि तरफ से जो समान हो वह (निर १, १) °पुन्न वि [°पुण्य] पुण्यशाली, पुण्यवान् (सुपा ३८४)। °प्पभ वि [°प्रभ] प्रभा- युक्त (सम १३७; भग)। °प्परिआव, °प्परिताव वि [°परिताप] परिताप — संताप से युक्त (श्रा ३७; षड्)। °प्पिस- ल्लग वि [°पिशाचक] पिशाच-गृहीत, पागल (पणह २, ५ — पत्र १५०)। °प्पिवास वि [°पिपास] तृषातुर, सतृष्ण (हे २, ९७)। °प्पिह वि [°स्पृह] स्पृहावाला (दे ७, २६)। °प्फंद वि [°स्पन्द्] चलायमान (दे ८, ८)। °प्फल, °फल वि [°फल] सार्थंक (से १५, १४; हे २, २०४; प्राप; उप ७२८ टी)। °ब्बल वि [°बल] बल वान्, बलिष्ठ (पिंग)। °भल देखो °फल (हे १, २३६; कुमा)। °मण वि [°मनस्] १ मनवाला, विवेक-बुद्धिवालाा (धण २२) २ समना मनवाला, राग-द्वेष आदि से रहित, मुनि, साधु (अणु) °मणक्ख वि [°मनस्क] पूर्वोक्त अर्थं (सूअ २, ४, २)। °मय वि [°मद] मद-ृयुक्त (से १, १९; सुपा १८८)। °महिडि्ढअ वि [°महर्द्धिक] महान् वैभववाला (प्रासू १०७)। °मिरिईअ, °मिरीय वि [°मरीचिक] किरण-युक्त (भग; औप; ठा ४ १ — पत्र ३२९)। °मेर वि [°मर्याद्] मर्यादा-युक्त (ठा ३, २ — पत्र १२६)। °यण्ह वि [°तृष्ण] तृष्णा-युक्त (गउड; सुपा ३८४)। °याण वि [°ज्ञान] सयाना, जानकार (सुपा ३८५)। °योगि वि [°योगिन्] १ व्यापार-युक्त, योगवाला। २ न. तेरहाँ गुण-स्थानक (कम्म २, ३१) °रय वि [°रत] कामो (से १, २७)। °रहस वि [°रभस] वेग-युक्त, उतावला (गा ३५४; सुपा ६३२; कप्पू)। °राग वि [°राग] राग-सहित (ठा २, १ — पत्र ५८)। °रागसंजत, °रागसंजय वि [°रागसंयत] वह साधु जिसका राग क्षीण न हुआ हो (पणण १७ — पत्र ४९४; उवा)। °रूव वि [°रूप] समान रूपवाला (पउम ८, ६)। °लूण वि [°लवण] लावण्य-युक्त (सुपा २९३)। °लोग वि [°लोक] समान, सदृश (सट्ठि २१ टी)। °लोण देखो °लूण (गा ३१६; हे ४, ४४४; कुमा)। स्त्री. °लोणी (हे ४, ४२०)। °व्ख देखो °पक्ख (गउड़; भवि)। °वण वि [°व्रण] घाववाला, व्रण-युक्त (सुपा २८१)। °वय वि [°वयस्] समान उम्रवाला (दे ८, २२)। °वय वि [°व्रत] व्रती (सुपा ४५१)। °वाय वि [°पाद] सवा (स ४४१)। °वाय वि [°वाद] वाद-सहित (सूअ २, ७, ५)। °वास वि [°वास] समान वासवाला, एक देश का रहनेवाला (प्रासू ७९)। °विज्ज वि [°विद्य] विद्यावान्, विद्वान् (उप पृ २१५)। °व्वण देखो °वण (गउड; श्रा १२)। °व्ववेक्ख वि [°व्यपेक्ष] दूसरे की परवाह रखनेवाला, सापेक्ष (धर्मंसं ११९७)। °व्वाव वि [°व्याप] व्याप्‍ति-युक्त, व्यापक (भघ १, ६ — पत्र ७७)। °व्विवर वि [°विवर] विवरण-युक्त, सविस्तर (सुपा ३९४)। °संक वि [°शङ्क] शंका-युक्त (दे २, १०९; सुर १६, ५५; कुप्र ४४५; गउड)। °संकिअ वि [°शङ्कित] वही (सुर ८, ४०)। °सत्ता स्त्री [°सत्त्वा] सगर्भा, गर्भिणी स्त्री (उत्त २१, ३)। °सिरिय, °सिरीय वि [°श्रीक] श्री-युक्त, शोभा-युक्त (पि ९८; णाया १, १; राय)। °सिह वि [°स्पृह] स्पृहावाला (कुमा)। °सिह वि [°शिख] शिखा-युक्त (राज)। °सूग वि [°शूक] दयालु (उव )। °सेस वि [°शेष] १ सावशेष, बाकी रहा हुआ (दे ८, ५९; गउड) २ शेषनाग — सहित (गउड १५)। °सोग, सोगिल्ल वि [शोक] दिलगीर, शोक-युक्त (पउम ६३, ४; सुर ६, १२४)। °स्सरिअ, °स्सरीअ देखो °सिरिय (पि ९८; अभि १५९; भग; सम १३७; णाया १, ९ — पत्र १५७)

सअ :: सक [स्वद्] १ प्रीति करना। २ चखना, स्वाद लेना। सअइ (प्राकृ ७५; धात्वा १५४)

सअ :: न [सदस्] सभा (षड्)।

सअअ :: न [दे] १ शिला, पत्थर का तख्ता। २ वि. घूर्णित (दे ८, ४६)

सअक्खगत्त :: पुं [दे] कितव, जुआरी (दे ८, २१)।

सअज्जिअ, सअज्झिअ :: पुंस्त्री [दे] प्रातिवेर्श्‍मिक, पड़ोसी (गा ३३५)। स्त्री. °आ (गा ३९; ३९ अ); 'सअज्झिअं संठवंतीए' (गा ३९; पिंड ३४२)। देखो सइज्झिअ।

सअडिआ :: देखो सगडिआ (पि २०७)।

सअढ :: पुं [दे] लम्बा केश (दे ८, ११)।

सअढ :: पुं [शकट] १ दैत्य-विशेष (प्राप्र; संक्षि ७; हे १, १९६) २ पुंन. यान-विशेष, गाड़ी (हे १, १७७; १८०)। °रि पुं [°रि] नरसिंह, श्रीकृष्ण (कुमा)। °देखो सगड।

सअर :: देखो स-अर=स-कर, स-गर। सअर देखो सगर (से २, २९)।

सआ :: अ [सदा] १ हमेशा, निरन्तर (प्राप्र; हे १, ७२; कुमा; प्रासू ४९)। °चार पुं [°चार] निरन्तर गति (रयण १५)

सआ :: स्त्री [स्रज्] माला (षड्)।

सइ :: देखो सआ = सदा (पाअ; हे १, ७२; कुमा)।

सइ :: अ [सकृत्] एक बार, एक दफा (हे १, १२८; सम ३५; सुर ८, २४४)।

सइ :: स्त्री [स्मृति] स्मरण, चिन्तन, याद (श्रा १९)। °काल पुं [°काल] भिक्षा मिलने का समय (दस ५, २, ६)।

सइ :: देखो स = स्व; 'सइकारियजिणपडिमाए' (सुपा ५१०; भवि)।

सइ :: देखो सय =शत; 'अस्सोयव्वं सोच्चावि फुट्ठए जं न सइखंडं' (सुर १४, २)। °कोडि स्त्री [°कोटि] एक सौ करोड़, एक अब्ज — अरब (षड्)।

सइ :: देखो सइं = स्वयम् (काल; हे ४, ३९५; ४३०)।

सइ° :: देखो सई = सती (सुपा ३०१)।

सइअ :: वि [शतिक] सौ का परिमाणवाला (णाया १, १ — पत्र ३७)। देखो सइग।

सइअ :: वि [शयित] सुप्‍त, सोया हुआ (दे ७, २८; गा २५४; पउम १०१, ६०)।

सइएल्लय :: देखो स = स्व; 'ताव य आगओ परिव्वायओ जक्खदेउलाओ सइएल्लए दालिद्द- पुरिसे धेत्तूण' (महा)।

सइं :: देखो सइ = सकृत् (आचा)।

सइं :: देखो सयं = स्वयम् (ठा २, ३ — पत्र ६३; हे ४, ३३९; ४०२; भवि)।

सइग :: वि [शतिक] सौ (रुपया आदि) की कीमत का (दसनि ३, १३)।

सइज्झ, सइज्झिअ :: पुंस्त्री [दे] प्रातिवेश्‍मिक, पड़ोसी (दे ८, १०)। स्त्री. °आ (सुपा २७८; पिंड ३४२ टी; वज्जा ९४)।

सइज्जिअ :: न [दे] प्रातिवेश्य, पड़ोसिपन (दे ८, १० टी)।

सइण्ण :: न [सैन्य] सेना, लश्‍कर (षड्)।

सइत्तए :: देखो सय = शी।

सइदंसण :: वि [दे. स्मृतिदर्शंन] मनो-दृष्ट, चित्त में अवलोकित, विचार में प्रतिभासित (दे ८, १९; पाअ)।

सइदिट्ठ :: वि [वे. स्मृतिदृष्ट] ऊपर देको (दे ८, १९)।

सइन्न :: देखो सइण्ण (हे १, १५१; कुमा)।

सइम :: वि [शततम] सौवाँ, १०० वाँ (णाया १, १६ — पत्र २१४)।

सइर :: न [स्वैर] १ स्वेच्छा, स्वच्छन्दता (हे १, १५१; प्राप्र; णाया १, १८ — पत्र २३६) २ वि. मन्द, अलस (पाअ) ३ स्वैरी, स्वच्छन्दी (पाअ; प्राप्र)

सइरलसह :: पुं [दे. स्वैरवृषभ] स्वच्छन्दी साँढ़, धर्मं के लिए छोड़ा जाता बैल (दे २, २५; ८, २१)।

सइरि :: वि [स्वैरिन्] स्वच्छन्दी, स्वेच्छाचारी (गच्छ १, ३८)।

सइरिणी :: स्त्री [स्वैरिणी] व्यभिचारिणी स्त्री, कुलटा (पउम ५, १०५)।

सइल :: देखो सेल (हे ४, ३२६)।

सइलंभ :: वि [दे. स्मृतिलम्भ] देखो सइ- दंसण (दे ८, १९; पाअ)।

सइलासअ, सइलासिअ :: पुं [दे] मयूर, मोर (दे ८, २० षड्)।

सइव :: पुं [सचिव] १ प्रधान, मन्त्री, अमात्य (पाअ) २ सहाय, मदद-कर्ता। ३ काला धतूरा (प्राकृ ११)

सइसिलिंब :: पुं [दे] स्कन्द, कार्तिकेय (दे ८, २०)।

सइसुह :: वि [दे. स्मृतिसुख] देखो सइदंसण (दे ८, १९; पाअ)।

सई :: स्त्री [शची] इन्द्राणी, शक्रेन्द्र की एक पटरानी (ठा ८ — पत्र ४२९; णाया २ — पत्र २५३; पाअ; सुपा ६८; ६२२; कुप्र २३)। °स पुं [°श] इन्द्र (कुमा)। देखो सची।

सई :: स्त्री [सती] पतिव्रता स्त्री (कुप्रा २३; सिरि १४३)।

°सई :: स्त्री [°शती] सौ, १००; 'पंचसई' (धर्मंवि १४)।

सईणा :: स्त्री [दे] अन्न-विशेष, तुवरी, रहर (ठा ५, ३ — पत्र ३४३)।

सउ, सउं :: (अप) देखो सहु (सण; भवि)।

सउंत :: पुं [शकुन्त] १ पक्षी, पाखी (पाअ) २ पक्षि-विशेष, भास-पक्षी (स ४३६)

सउंतला :: स्त्री [शकुन्तला] विश्वामित्र ऋषि की पुत्री और राजा दुष्यंत की गन्धर्वं-विवा- हिता पत्‍नी (हे ४, २६०)।

सउंदला :: (शौ) ऊपर देखो (अभि २६; ३०; पि २७५)।

सउण :: वि [दे] रूढ, प्रसिद्ध (दे ८, ३)।

सउण :: पुंन [शकुन] १ शुभाशुभ-सूचक बाहु- स्पन्दन, काक-दर्शन आदि निमित्त, सगुन; 'सुहजोगाई सउणो कंदिअसद्दाई इअरो उ' (धर्मं २; सुपा १८५; महा) २ पुं. पक्षी, पाँखी (पाअ; गा २२०; २८५; करु ३४; सट्ठि ९ टी) ३ पक्षि-विशेष (पणह १, १ — पत्र ८) °विउ वि [°विद्] सगुन का जानकार (सुपा २९७)। °रुअ न [°रुत] १ पक्षी की आवाज। २ कला-विशेष, सगुन का परिज्ञान (णाया १, १ — पत्र ३८; जं २ टी — पत्र १३७)

सउण :: देखो स-उण = स-गुण।

सउणि :: पुं [शकुनि] १ पक्षी, पखेरु; पाँखी (औप; हेका १०५; संबोध १७) २ पक्षि- विशेष, चील पक्षी (पाअ) ३ ज्योतिष- प्रसिद्ध एक स्थिर करण जो कृष्ण चतुर्दंशी की रात में सदा अवस्थित रहता है (विसे ३३५०) ४ नपुंसक-विशेष, चटक की तरह बारबार मैथुन-प्रसक्त क्लीब (पव १०९; पुप्फ १२७) ५ दुर्योंधन का मामा (णाया १, १६ — पत्र २०८; सुपा २६०)

सउणिअ :: देखो साउणिअ (राज)।

सउणिअ, सउणिगा, सउणी :: स्त्री [शकुनिका, °नी] १ पक्षिणी, पक्षी की मादा (गा ८१०; आव १) २ पक्षि-विशेष की मादा; 'सउणी जाया तुमं' (ती ८)

सउण्ण :: देखो स-उण्ण = सपुण्य।

सउत्ती :: स्त्री [सपत्‍नी] एक पति की दूसरी स्त्री, समान पतिवाली स्त्री, सौत, सौतिन (सुपा ६८)।

सउन्न :: देखो स-उन्न।

सउम :: पुं [सद्‍मन्] १ गृह, घर। २ जल, पानी (प्राकृ २८)

सउमार :: वि [सुकुमार] कोमल (से १०, ३४, षड्)।

सउर :: पुं [सौर] १ ग्रह-विशेष, शनैश्चर। २ यम, यमराज। ३ वृक्ष-विशेष, उदुम्बर का पेड़। ४ वि. सूर्यं का उपासक। ५ सूर्य- संबन्धी (चंड; हे १, १६२)

सउरि :: पुं [शौरि] विष्णु, श्रीकृष्ण (पाअ)।

सउरिस :: देखो स-उरिस = सत्पुरुष।

सउल :: पुं [शकुल] मत्स्य, मछली; 'सउला सहरा मीणा तिमी झसा अणिमिसा मच्छा' (पाअ)।

सउलिअ :: वि [दे] प्रेरित (दे ८, १२)।

सउलिआ, सउली :: स्त्री [दे. शकुनिका, °नी] १ पक्षि-विशेष की मादा, चील पक्षी की मादा (ती ८, अणु १४१; दे ८, ८) २ एक महौषधि (ती ५)। °विहार पुं [°विहार] गुजरात के भरौच शहर का एक प्राचीन जैन मन्दिर (ती ८)

सउह :: पुं [सौध] १ राज-महल, राज-प्रासाद (कुमा) २ न. रूपा, चाँदी। ३ पुं. पाषाण- विशेष। ४ वि. सुधा-संबन्धी, अमृत का (चंड; हे १, १६२)

सएज्झिअ :: देखो सइज्झिअे (कुप्र १९३)।

सओस :: देखो स-ओस = स-तोष-स-दोष।

सं :: अ [शम्] सुख, शर्म (स ६११; सुर १६, ४२; सुपा ४१९)।

सं :: अ [सम्] इन अर्थों का सूचक अव्यय — १ प्रकर्षं। अतिशय (धर्मंसं ८६७) २ संगति। ३ सुन्दरता, शोभनता। ४ सुमच्चय। ५ योग्यता, व्याजबीपन (षड्)

संक :: सक [शङ्क्] १ संशय करना, संदेह करना। २ अक. भय करना, डरना। संकइ, संकए, संकंति; संकसि, संकेस, संकह, संकत्थ; संकामि, संकामो, संकामु, संकाम (संक्षि ३०); 'असंकिआइं संकंति' (सूअ १, १, २, १०; ११), "जं सम्ममुज्जमंताण पाणि (? णी) णं संकए हु विही" (सिरि ६९९)। कर्म. संकज्जिइ (मा ५०९)। वकृ. संकंत, संक- माण (पव; रंभा ३३)। कृ. संकणिज्ज (उप ७२८ टी)

संकंत :: वि [संक्रान्त] १ प्रतिबिम्बित (गा १; से १, ५७) २ प्रबिष्ट, घुसा हुआ (ठा ३, ३; कप्प; महा) ३ प्रास। ४ संक्रमण- कर्ता। ५ संक्रांति-युक्त। ६ पिता आदि से दाय रूप से प्राप्त स्त्री की धन (प्राप्र)

संकंति :: स्त्री [संक्रान्ति] १ संक्रमण, प्रवेश (पव १५५; अज्झ १५३) २ सूर्यं आदि का एक राशि से दूसरी राशि में जाना; 'आरब्भ कक्कसंकंतिदिवसओ दिवसनाहु व्व' (धर्मंवि ६६)

संकंदण :: पुं [संक्रन्दन] इन्द्र, देवाधीश (उप ५३० टी; उपपं १)।

संकट्टिअ :: वि [संकर्तित] काटा हुआ; धन्न- संकट्टितमाणा' (ठा ४, ४ — पत्र २७६)।

संकट्ठ :: वि [संकष्ट] व्याप्‍त (राज)।

संकट्ठ :: देखो संकिट्ठ (राज)।

संकड :: वि [संकट] १ संकीर्णं, कम-चौड़ा, अल्प अवकाशवाला (स ३९२; सुपा ४१९; उप ८३३ टी) २ विषम, गहन (पिंड ६३४) ३ न. दुःख; 'धन्‍नाणवि ते धन्‍ना पुरिसा निस्सीमसत्तिसंजुत्ता। जे विसमसंकडेसुवि पडियावि चयंति णो धम्मं।।' (रणय ७३)

संकडिय :: वि [संकटित] संकीर्णं किया हुआ (कुप्र ३९०)।

संकडिल्ल :: वि [दे] निश्‍छिद्र, छिद्र-रहित (दे ८, १५; सुर ४, १४३)।

संकडि्ढय :: वि [संकषित] आकर्षित (राज)।

संकण :: न [शङ्कन] शंका, संदेह (दस ६, ५९)।

संकप्प :: पुं [संकल्प] १ अध्यवसाय, मनः — परिणाम, विचार (उवा; कप्प; उप १०३५) २ संगत आचार, सदाचार (उप १०३५) ३ अभिलाष, चाह (गउड)। °जोणि पुं [°योनि] कामदेव, कंदर्प (पाअ)

संकम :: सक [सं + क्रम्] १ प्रवेश करना। २ गति करना, जाना। संकमइ, संकमंति (पिंड १०८; सूअ २, ४, १०)। वकृ. संकममाण (सम ३९; सुज्ज २, १; रंभा)। हेकृ. संकमित्ताए (कस)

संकम :: पुं [संक्रम] १ सेतू, पूल, जल पर से उतरने के लिए काष्ठ आदि से बाँधा हुआ मार्ग (से ६, ९५ दस ५, १, ४, पणह १, १) २ संचार; गमन, गति; 'पाउल्लाइं संकमट्ठाए' (सूअ १, ४, २, १५; श्रावक २२३) ३ जीव जिस कर्म-प्रकृति को बाँधता हो उसी रूप से अन्य प्रकृति के दल को प्रयत्‍न द्वारा परिणमाना; बँधी जाती कर्मं-प्रकृति में अन्य कर्मं-प्रकृति के दल को डाल कर उसे बँधी जाती कर्मं-प्रकृति के रूप से परिणत करना (ठा ४, २ — पत्र २२०)

संकमग :: वि [संक्रामक] संक्रमण-कर्ता (धर्मंसं १३३०)।

संकमण :: न [संक्रमण] १ प्रवेश; 'नवरं मुत्तूणं घरं घरसंकमणं कयं तेहि' (संबोध १४) २ संचार, गमन (प्रासू १०५) ३ चारित्र, संयम; (आचा) ४ देखो संकम का तीसरा अर्थं (पंच ३, ४८) ५ प्रतिबिम्बिन (गउड)

संकर :: पुं [दे] रथ्या, मुहल्ला (दे ८, ६)।

संकर :: पुं [शङ्कर] १ शिव, महादेव (पउम ५, १२२; कुमा; सम्मत्त ७६) २ वि. सुख करनेवाला (पउम ५, १२२; दे १, १७७)

संकर :: पुं [संकर] १ मिलावट, मिश्रण (पणह १, ५ — पत्र ९२) २ न्यायशास्त्र- प्रसिद्ध एक दोष (उवर १७६) ३ शुभाशुभ- रूप मिश्र भाव (सिरि ५०६) ४ अशुचि- पुंज, कचरे का ढेर (उत्त १२, ६)

संकरण :: न [संकरण] अच्ची कृति (संबोध ६)।

संकरिसण :: पुं [संकर्षण] भारतवर्षं का भावी नववाँ बलदेव (सम १५४)।

संकरी :: स्त्री [शङ्करी] १ विद्या-विशेष (पउम ७, १४२; महा) २ देवी-विशेष। ३ सुख करनेवाली (गउड)

संकल :: सक [सं +कलय्] संकलन करना, जोड़ना। संकलेइ (उव)।

संकल :: पुंन [श्रृङ्खल] १ सांकल, निगड़। २ लोहे का बना हुआ पाद-बन्धन, बेड़ी (विपा १, ६ — पत्र ६६, धर्मंवि १३६; सम्मत्त १९०; हे १, १८९) ३ सिकड़ी, आभूषण-विशेष (सिरि ८११)

संकलण :: न [संकलन] मिश्रता, मिलावट (माल ८७)।

संकला :: स्त्री [श्रृङ्खल] देखो संकल = श्रृङ्खल (स १७१; सुपा २९१; प्राप)।

संकलिअ :: वि [संकलित] १ एकत्र किया हुआ (उप पृ ३४१; तंदु २) २ युक्त; 'तत्थ य भमिओ तं पुण कायट्ठिईकालसंखसं- कलिओ' (सिक्खा १०) ३ योजित, जोड़ा हुआ (सिरि १३४०) ४ संगृहीत (उव) ५ न. संकलन, कुल जोड़ (वव १)

संकलिआ :: स्त्री [संकलिका] १ परंपरा (पिंड २३६) २ संकलन। ३ सूत्रकृतांग सूत्र का पनरहवाँ अध्ययन (राज)

संकलिआ, संकली :: स्त्री [श्रृङ्खलिका, °ली] सांकल, सिकड़ी, जंजीर, निगड़ (सूअ १, ५, २, २०; प्रामा)।

संकहा :: स्त्री [संकथा] संभाषण, वार्तालाप (पउम ७, १५८; १०९, ६; सुर ३, १२६; उप पृ ३७८; पिंड १६४)।

संका :: स्त्री [शङ्का] १ संशय, संदेह (पडि) २ भय, डर (कुमा)। °लुअ वि [°वत्] शंकावाला, शंका-युक्त (गउड)

संकाम :: देखो संकम = सं + क्रम्। संकामइ (सुज्ज २, १; पंच ५, १४७)।

संकाम :: सक [सं + क्रमय्] संक्रम करना, बँधी जाती कर्मं-प्रकृति में अन्य प्रकृति के कर्म-दलों को प्रक्षिप्‍त कर उस रूप से परिणत करना। संकामेंति (भग)। भूका. संकामिंसु; (भग)। भवि. संकामेस्संति (भग)। कवकृ. संकामिज्जमाण (ठा ३, १ — पत्र १२०)।

संकामण :: न [संक्रमण] १ संक्रम-करण (भग) २ प्रवेश कराना (कुप्र १४०) ३ एक स्थान से दूसरे स्थान में ले जाना (पंचा ७, २०)

संकामणा :: स्त्री [संक्रामणा] संक्रमण, पैठ (पिंड २८)।

संकामणी :: स्त्री [संक्रामणी] विद्या-विशेष, जिससे एक से दूसरे में प्रवेश किया जा सके वह विद्या (णाया १, १६ — पत्र २१३)।

संकामिय :: वि [संक्रमित] एक स्थान से दूसरे स्थान में नीत (राज)।

संकार :: देखो सक्कार = संस्कार (धर्मंसं ३५४)।

संकास :: वि [संकाश] १ समान, तुल्य, सरीखा (पाअ; णाया १, ५; उत्त ३४, ४; ५; ६; कप्प; पंच ३, ४०; धर्मंवि १४९) २ पुं. एक श्रावक का नाम (उप ४०३)

संकासिया :: स्त्री [संकाशिका] एक जैन मुनि- शाखा (कप्प)।

संकि :: वि [शङ्किन्] शंका करनेवाला (सूअ १, १, २, ६; गा ८७३; संबोध ३४; गउड)।

संकिअ :: वि [शङ्कित] १ शंकावाला, शंका- युक्त (भग; उवा) २ न. संशय, संदेह (पिंड ४९३; महा ६८) ३ भय, डर (गा ३३३); 'संकिअमवि नेव दविअस्स' (श्रा १४)

संकिट्ठ :: वि [संकृष्ट] विलिखित, जोता हुआ, खेती किया हुआ (औप; णाया १, १ टी — पत्र १)।

संकिट्ठ :: देखो संकिलिट्ठ (राज)।

संकिण्ण :: वि [संकीर्ण] १ सँकरा, तंग, अल्पा- वकाशवाला (पाअ; महा) २ व्याप्‍त (राज) ३ मिश्रित, मिला हुआ (ठा ४; २; भग २५, ७ टी — पत्र ९१९) ४ पुं. हाथी का एक जाति (ठा ४, २ — पत्र २०८)

संकित :: देखो संकिअ (णाया १, ३ — पत्र ९४)।

संकित्तण :: न [संकीर्तन] उच्चारण (स्वप्‍न १७)।

संकिन्न :: देखो संकिण्ण (ठा ४, २; भग २५, ७)।

संकिर :: वि [शङ्कितृ] शङ्का करने की आदत वाला, शंकाशील (गा २०६; ३३३; ५८२; सुर १२, १२५; सुपा ४६८)।

संकिलिट्ठ :: वि [संक्लिष्ट] संक्लेश-युक्त, संक्लेशवाला (उव औप; पि १३६)।

संकिलिस्स :: अक [सं +क्लिश्] १ क्लेश- पाना, दुःखी होना। २ मलिन होना। संकि- लिस्सइ, संकिलिस्संति (उत्त २९, ३४; भग; औप)। वकृ. संकिलिस्समाण (भग १३, १ — पत्र ५९९)

संकिलेस :: पुं [संक्लेश] १ असमाधि, दुःख, कष्ट, हैरानी (ठा १० — पत्र ४८९; उव) २ मलिनता, अविशुद्धि (ठा ३, ४ — पत्र १५९; पंचा १५, ४)

संकीलिअ :: वि [संकीलित] कील लगाकर जोड़ा हुआ (से १४, २८)।

संकु :: पुं [शङ्कु] १ शल्य अस्त्र। २ कीलक, खूँटा, कील; 'अंतनिविट्ठसंकुव्व' (कुप्र ४०२; राय ३०; आवम)। °कण्ण न [°कर्ण] एक विद्याधर-नगर (इक)

संकुइय :: वि [संकुचित] १ सकुचा हुआ, संकोच-प्राप्‍त (औप; रंभा) २ न. संकोच (राज)

संकुक :: पुं [शङ्कक] वैताढ्य पर्वंत की उत्तर श्रेणी का एक विद्याधर-निकाय (राज)।

संकुका :: स्त्री [शङ्कुका] विद्या-विशेष (राज)।

संकुच :: अक [सं + कुच्] सकुचना, संकोच करना। संकुचए (आचा; संबोध ४७)। वकृ. संकुचमाण, संकुचेमाण (आचा)।

संकुचिय :: देखो संकुइय (दस ४, १)।

संकुड :: वि [संकुट] सँकरा, संकीर्णं, संकुचित; 'अंतो य संकुडा बाहिं वित्थडा चंदसूराणं' (सुज्ज १९)।

संकुडिअ :: वि [संकुटित] सकुचा हुआ, संकु- चित (भग ७, ६ — -पत्र ३०७; धर्मंसं ३८७; स ३५८; सिरि ७८९)।

संकुद्ध :: वि [संक्रुद्ध] क्रोध-युक्त (वज्जा १०)।

संकुय :: देखो संकुच। संकुयइ (वज्जा ३०)। वकृ. संकुयंत (वज्जा ३०)।

संकुल :: वि [संकुल] व्याप्त, पूर्ण भरा हुआ (से १, ५७; उव; महा; स्वप्‍न ५१; धर्मंवि ५५; प्रासू १०)।

संकुलि, संकुली° :: देखो सक्कुलि (पि ७४; ठा ४, ४ — पत्र २२६; पव २६२; आचा २, १, ४, ५)।

संकुसुमिअ :: वि [संकुसुमित] अच्छी तरह पुष्पित (राय ३८)।

संकेअ :: सक [सं + केतय्] १ इशारा करना। २ मसलहत करना। संकृ. संकेइय जोगिणिमेगं' (सम्मत्त २१८)

संकेअ :: पुं [संकेत] १ इशारा, इंगित (सुपा ४१५; महा) २ प्रिय-समागम का गुप्‍त स्थान (गा ६२६; गउड) ३ वि. चिह्न-युक्‍त। ४ न. प्रत्याख्यान-विशेष (आव)

संकेअ :: वि [साङ्केत] १ संकेत-संबन्धी। २ न. प्रत्याख्यान-विशेष (पव ४)

संकेइअ :: वि [संकेतित] संकेत-युक्‍त (श्रा १४; धर्मवि १३४; सम्मत्त २१८)।

संकेल्लिअ :: वि [दे] सकेला हुआ, संकुचित किया हुआ (गा ६९४)।

संकेस :: देखो संकिलेस (उप ३१२; कम्म ५, ६३)।

संकोअ :: सक [सं + कोचय्] संकुचित करना। वकृ. संकोअंत (सम्मत्त २१७)।

संकोअ :: पुं [संकोच] संकोच, सिमट (राय १४० टी; धर्मंसं ३६५; संबोध ४७)।

संकोअण :: न [संकोचन] संकोच, सकुचाना (दे ५, ३१; भग; सुर १, ७६; धर्मंवि १०१)।

संकोइय :: वि [संकोचित] संकुचित किया हुआ, सकेला हुआ (उप ७२८ टी)।

संकोड :: पुं [संकोट] संकोड़ना, संकोच (पणह १, ३ — पत्र ५३)।

संकोडणा :: स्त्री [संकोटना] ऊपर देखो (राज)।

संकोडिय :: वि [संकोटित] सकोड़ा हुआ, संकोचित (पणह १, ३ — पत्र ५३; विपा १, ६ — पत्र ६८; स ७४१)।

संख :: पुंन [शङ्खं] १ वाद्य-विशेष, शंख (णंदि; राय; जी १५; कुमा; दे १, ३०) २ पुं. ज्योतिष्क ग्रह-विशेष (ठा २, ३ — पत्र ७८) ३ महाविदेह वर्षं का प्रान्त-विशेष, विजय- क्षेत्र विशेष (ठा २, ३ — पत्र ८०) ४ नव निधि में एक निधि, जिसमें विविध तरह के बाजों की उत्पत्ति होती है (ठा ९ — पत्र ४४९; उप ९८६; टी) ५ लवण समुद्र में स्थित वेलन्धर-नागरादज का एक आवास-पर्वत (ठा ४, २ — पत्र २२६; सम ६८) ६ उक्‍त आवास-पर्वत का अधिष्ठाता एक देव (ठा ४, २ — पत्र २२६) ७ भगवान् मल्लिनाथ के समय का काशी का एक राजा (णाया १, ८ — पत्र १४१) ८ भगवान् महावीर के पास दीक्षा लेनेवाला एक काशी-नरेश (ठा ८ — पत्र ४३०) ९ तीर्थंकर-नामकर्मं उपा- र्जित करनेवाला भगवान् महावीर का एक श्रावक (ठा ९ — पत्र ४५५; सम १५४; पव ४६; विचार ४७७) १० नववें बलदेव का पूर्वजन्मीय नाम (पउम २०, १९१) ११ एक राजा (उप ७३६) १२ एक राज-पुत्र (सुपा ५६९) १३ रावण का एक सुभट (पउम ५६, ३४) १४ छन्द-विशेष (पिंग) १५ एक द्वीप। १६ एक समुद्र। १७ शंखवर द्वीप का एक अधिष्ठायक देवे (दीव) १८ पुंन. ललाट की हड्डी (धर्मंवि १७; हे १, १०) १९ नखी नामका एक गन्ध-द्रव्य। २० कान के समीप की एक हड्डी। २१ एक नाग-जाति। २२ हाथी के दाँत का मध्य भाग। २३ संख्या-विशेष, दस निखवँ की संख्यावाला (हे १, ३०) २५ आँख के समपी का अवयव (णाया १, ८ — पत्र १३३) °उर देखो °पुर (ती ३; महा)। °णाभ पुं [°नाभ] ज्योतिष्क महाग्रह-विशेष (सुज्ज २०)। °णारी स्त्री [°नारी] छन्द- विशेष (पिंग)। °घमग पुं [°ध्मायक] वानप्रस्थ की एक जाति (राज)। °धर पुं [°धर] श्रीकृष्ण, विष्णु (कुमा)। °पाल देखो °वाल (ठा ४, १ — पत्र १९७)। °पुर न [°पुर] १ एक विद्याधर-नगर (इक) २ नगर-विशेष जो आजकल गुजरात में संखे- श्वर के नाम से प्रसिद्ध है (राज) °पुरी स्त्री [°पुरी] कुरुजंगल देश की प्राचीन राजधानी, जो पीछे से अहिच्छत्रा के नाम से प्रसिद्ध हुई थी (सिरि ७८)। °माल पुं [°माल] वृक्ष की एक जाती (जीव ३ — पत्र १४५)। °वणँ न [°वन] एक उद्यान का नाम (उवा)। °वण्णाभ पुं [°वर्णाभ] ज्योतिष्क-महाग्रह- विशेष (सुज्ज २०)। °वन्न पुं [°वर्ण] जोतिष्क महाग्रह-विशेष (ठा २, ३ — पत्र ७८)। °वन्नाभ देखो °वण्णाभ (ठा २, ३ — पत्र ७८)।°वर पुं [°वर] १ एक द्वीप। २ एक समुद्र (दीव; इक) °वरोभास पुं [°वरावभास] १ एक द्वीप। २ एक समुद्र (दीव) °वाल पुं [°पाल] नाग-कुमार-देवों के धरण और भूतानन्द नामक इन्द्रों के एक एक लोकपाल का नाम (इक)। °वालय पुं [°पालक] १ जैनेतर दर्शंन का अनुयायी एक व्यक्ति (भग ७, १० — पत्र ३२३)। एक आजीविक मत का एक उपासक (भग ८, ५ — पत्र ३७०)। °लग वि [°वत्] शंखवाला (णाया १, ८ — पत्र १३३)। °वई स्त्री [°वती] नगरी-विशेष (ती ५)

संख :: वि [संख्य] संख्यात, गिना हुआ, गिनतीवाला (कम्म ४, ३९; ४१)।

संख :: न [सांख्य] १ दर्शन-विशेष, कपिलमुनि- प्रणीत दर्शन (णाया १, ५ — पत्र १०५; सुपा ५६९) २ वि. सांख्य मत का अनुयायी (औप; कुप्र २३)

संख :: पुं [दे] मागध, स्तुति-पाठक (दे ८, २)।

संखइम :: वि [संख्येय] जिसकी संख्या हो सके वह (विसे ६७०; अणु ९१ टी)।

संखड :: न [दे] कलह, झगड़ा (पिंड ३२४; ओघ १५७)।

संखडि :: स्त्री [दे] १ विवाह आदि के उपलक्ष्य में नात-नातेदार आदि को दिया जाता भोज, जेवनार (आचा २, १, २, ४; २, १, ३, १; २; ३; पिंड २२८; ओघ १२; ८८; भास ९२)

संखडि :: स्त्री [संस्कृति] ओदन-पाक (कप्प)।

संखणग :: पुं [शङ्खनक] छोटा शंख (उत्त ३६, १२९; पणण १ — पत्र ४४, जीव १ टी — पत्र ३१)।

संखद्रह :: पुं [दे] गोदावरी ह्रद (दे ८, १४)।

संखबइल्ल :: पुं [दे] कृषक की इच्छानुसार उठ कर खड़ा होनेवाला बैल (दे ८, १९)।

संखम :: वि [संक्षम] समर्थं (उप ९८६ टी)।

संखय :: पुं [संक्षय] क्षय, विनाश (से ९, ४२)।

संखय :: वि [संस्कृत] संस्कार-युक्त; 'णय संखयमाहु जीवियं' (सूअ १, २, २, २१; १, २, ३, १०; पि ४९), 'असंखयं जीविय मा पमायए' (उत्त ४, १)।

संखलय :: पुं [दे] शम्बूक, शुक्ति के आकारवाला जल-जन्तु विशेष (दे ८, १८)।

संखला :: देखो संकला (गउड; प्रामा)।

संखलि :: पुंस्त्री [दे] कर्णं-भूषण विशेष, शंख- पत्र का बना हुआ ताडंक (दे ८, ७)।

संखव :: सक [सं + क्षपय्] विनाश करना। संकृ. संखवियाण (उत्त २०, ५२)।

संखविअ :: वि [संक्षपित] विनाशित (अच्चु ८)।

संखा :: सक [सं + ख्या] १ गिनती करना। २ जानना। संकृ. संखाय (सूअ १, २, २, २१)। कृ. संखिज्ज, संखेज्ज (उवा; जी ४१; उव; कप्प)

संखा :: अक [सं + स्त्यै] १ आवाज करना। २ संहत होना, सान्द्र होना, निबिड़ बनना। संखाइ, संखाअइ (हे ४, १५; षड्)

संखा :: स्त्री [संख्या] १ प्रज्ञा, बुद्दि (आचा १, ६, ४, १) २ ज्ञान (सूअ १, १३, ८) ३ निर्णंय (अणु) ४ गिनती, गणना (भग; अणु; कप्प; कुमा) ५ व्यवस्था (सूअ २, ७, १०)। °ईअ वि [°तीत] असंख्य (भग १, १ टी; १ टी — पत्र १३; श्रा ४१)। °दत्तिय वि [°दत्तिक] उतनी ही भिक्षा लेने का व्रतवाला संयमी, जितनी की अमुक गिने हुए प्रक्षेपों में प्राप्त हो जाय (ठा २, ४ — पत्र १००; ५, १ — पत्र २९६; औप)

संखाण :: न [संख्यान] १ गिनती, गणना, संख्या। २ गणित-शास्त्र (ठा ४, ४ — पत्र २६३; भग; कप्प; औप; पउम ८५, ६; जीवस १३५)

संख्याय :: वि [संस्त्यान] १ सान्द्र, सघन, निबिड़ (कुमा ६, ११) २ आवाज करनेवाला। ३ संहत करनेवाला। ४ न. स्‍नेह। ५ निबिड़- पन। ६ संहति, संघात। ७ आलस्य। ८ प्रतिशब्द, प्रतिध्वनि (हे १, ७४; ४, १५)

संखाय :: देखो संखा = सं + ख्या।

संख्या :: वि [संखाय] संख्या-युक्त (सूअ १, १३, ८)।

संखाय़ण :: न [शाङ्कायन] गोत्र-विशेष (सुज्ज १०, १६; इक)।

संखाल :: पुं [दे] हरिण की एक जाति, साँबर मृग (दे ८, ६)।

संखालग :: देखो संखालग = शङ्ख-वत्।

संखावई :: देखो संखावई = शङ्खावती।

संख्याविय :: वि [संख्यापित] जिसकी गिनती कराई गई हो वह (सुपा ३६२; स ४१९)।

संखिग :: देखो संखिय = शाङ्खिक (स १७३; कुप्र १४९)।

संखिज्ज :: देखो संखा = सं + ख्या।

संखिज्जइ :: वि [संख्येयतम] संख्यातवाँ (अणु ६१)।

संखित्त :: वि [संक्षिप्त] संक्षेप-युक्त, छोटा किया हुआ (उवा; दं ३; जी ५१)।

संखिय :: वि [शाङ्कि] १ मंगल के लिए चन्दन-गर्भित शंख को हाथ में धारण करनेवाला। शंख बजानेवाला (कप्प; औप)

संखिय :: देखो संख = संख्य (स ४४१; पंच २, ११; जीवस १४६)।

संखिया :: स्त्री [शङ्खिका] छोटा शंख (जीव ३ — पत्र १४६; जं २ टी — पत्र १०१; राय ४५)।

संखुड्ड :: अक [रम्] क्रीड़ा करना, संभोग करना। संखुड्डइ (हे ४, १६८)।

संखुड्डण :: न [रमण] क्रीड़ा, सुरत-क्रीड़ा (कुमा)।

संखुत्त :: (अप) नीचे देखो (भवि)।

संखुद्ध :: वि [संक्षुब्ध] क्षोभ-प्राप्‍त (स ५९८; ६७४; सम्मत्त १५९; सुपा ५१७; कुप्र १७४)।

संखुभिअ, संखुहिअ :: वि [संक्षुब्ध, संक्षुमित] ऊपर देखो (सम १२५, पव २७२; पउम ३३, १०६; पि ३१९)।

संखेज्ज :: देखो संखा = सं + ख्या।

संखेज्जइ, संखेज्जइम :: देखो संखिज्जइ (अणु ६१; विसे ३९०)।

संखेत्त :: देखो संखित्त (ठा ४, २ — पत्र २२९; चेइय ३२५)।

संखेव :: पुं [संक्षेप] १ अल्प, कम, थोड़ा (जी २५; ५१) २ पिंड, संघात, संहति (ओघभा १) ३ स्थान; 'तेरससु जीवसंखेवएसु' (कम्म ६, ३५) ४ सामायिक, सम-भाव से अव- स्थान (विसे २७९६)

संखेवण :: न [संक्षेपण] अल्प करना, न्यून करना (नव २८)।

संखेविय :: वि [संक्षेपिक] संक्षेप-युक्त। °दसा स्त्री. ब. [°दशा] जैन ग्रन्थ-विशेष (ठा १० — पत्र ५०५)।

संखोभ, संखोह :: सक [सं + क्षोभय्] क्षुब्ध करना। संखोहइ (भवि)। कवकृ. संखोभिज्जमाण (णाया १, ९ — पत्र १५६)।

संखोह :: पुं [संक्षोभ] १ भय आदि से उत्पन्न चित्त की व्यग्रता, क्षोभ (उव; सुर २, २२; उपपृ १३१; गु ३; त्रि ९४; गउड) २ चंचलता (गउड)

संखोहिअ :: वि [संक्षोभित] क्षुब्क्ष किया हुआ, क्षोभ-युक्त किया हुआ (से १, ४९; अभि ६०)।

संग :: न [श्रृङ्ग] १ सींग, विषाण (धर्मंसं ६३; ६४) २ उत्कर्षं (कुमा) ३ पर्वंत के ऊपर का भाग, शिखर। ४ प्रधानता, मुख्यता। ५ वाद्य-विशेष। ६ काम का उद्रेक (हे १, १३०)। देखो सिंग = श्रृङ्ग।

संग :: न [शार्ङ्गं] श्रृङ्गं-संबन्धी (विसे २८९)।

संग :: पुंन [सङ्ग] १ संपर्क, संबन्ध (आचा; महा; कुमा) २ सोहबत; 'तह हीणायारज- इजणसंगं सड्ढाण पडिसिद्धं' (संबोध ३६; आचा; प्रसू ३०) ३ आसक्ति, विषयादि-राग (गउड; आचा; उव) ४ कर्मं. कर्मं-बन्ध (आचा) ५ बन्धन; 'भोगा इमे सगकरा हवंति' (उत्त १३, २७)

संगइ :: स्त्री [संगति] १ औचित्य, उचितता (सुपा ११०) २ मेल (भवि) ३ नियत्ति (सूअ १, १, २, ३)

संगइअ :: वि [साङ्गतिक] १ नियति-कृत, नुयति-संबन्धी (सूअ १, १, २, ३) २ परिचित; 'सुही ति वा सहाए ति वा संग (? गइ) ए ति वा' (ठा ४, ३ — पत्र २४३; राज)

सगंथ :: पुं [संग्रन्थ] १ स्वजन का स्वजन, सगे का सगा (आचा) २ संबन्धी, श्वशुर- कुल से जिसका संबन्ध हो वह (पणह २, ४ — पत्र १३२)

संगच्छ :: सक [सं + गम्] १ स्वीकार करना। २ अक. संगत होना, मेल रखना। संगच्छइ (चेइये ७७९; षड्), संगच्छह (स १६)। कृ. संगमणीअ (नाट — विक्र १००)

संगच्छण :: न [संगमन] स्वीकार, अंगीकार (उप ९३०)।

संगम :: पुं [संगम] १ मेल, मिलाप (पाअ; महा) २ प्राप्ति; 'सग्गापवग्गसंगमहेऊ जिण- देसिओ धम्मो' (महा) ३ नदी-मीलक, नदियों का आपस में मिलान (णाया १, १ — पत्र ३३) ४ एक देव का नाम (महा) ५ स्त्री-पुरुष का संभोग (हे १, १७७) ६ एक जैन मुनि का नाम (उव)

संगमय :: पुं [संगमक] भगवान् महावीर को उपसर्गं करनेवाला एक देव (चेइय २)।

संगमी :: स्त्री [संगमी] एक दूती का नाम (महा)।

संगय :: वि [दे] मसृण, चिकना (दे ८, ७)।

संगय :: न [संगत] १ मित्रता, मैत्री (सुर ९, २०९) २ संग, सोहबत (उव; कुप्र १३४) ३ पुं. एक जैन मुनि का नाम (पुप्फ १८२) ४ वि. युक्त, उचित (विपा १, २ — पत्र २२) ५ मिलित, मिला हुआ (प्रासू ३१; पंचा १, १; महा)

संगमय :: न [संगतक] छन्द-विशेष (अजि ७)।

संगर :: देखो संकर = संकर (विसे २८८४)।

संगर :: न [संगर] युद्ध, रण, लड़ाई (पाअ; काप्र १९३; कुप ७३; धर्मंवि ९३; हे ४, ३४५)।

संगरिगा :: स्त्री [दे] फली-विशेष, जिसकी तरकारी होती है, साँगरी (पव ४ — गाथा २२९)।

संगल :: सक [सं + घटय्] मिलना, संघटित करना। संगलइ (हे ४, ११३)। संकृ. संगलिअ (कुमा)।

संगल :: अक [सं + गल्] गल जाना, हीन होना। वकृ. संगलंत (से १०, ३४)।

संगलिया :: स्त्री [दे] फली, फलिया, छीमी (भग १५ — पत्र ६८०; अनु ४)।

संगह :: सक [सं + ग्रह्] १ संचय करना। २ स्वीकार करना। ३ आश्रय देना। सगहइ (भवि)। भवि. संगहिस्सं (मोह ९३)

संगह :: पुं [दे] घर के ऊपर का तिरछा काठ (दे ८, ४)।

संगह :: पुं [संग्रह] १ संचय, इकट्ठा करना, बटोरना (ठा ७ — पत्र ३८५; वव ३) २ संक्षेप, समास (पाअ; ठा ३, १ टी — पत्र ११४) ३ उपधि, वस्त्र आदि का परिग्रह (ओघ ६६६) ४ नय-विशेष, वस्तु-परीक्षा का एक दृष्टिकोण, सामान्य रूप से वस्तु को देखना (ठा ७ — पत्र ३९०; विसे २२०३) ५ स्वीकार, ग्रहण (ठा ८ — पत्र ४२२) ६ कष्ट आदि में सहायता करना (ठा १० — पत्र ४९६) ७ वि. संग्रह करनेवाला (वव ३) ८ न. नक्षत्र-विशेष, दुष्ट ग्रह से आक्रान्त नक्षत्र (वव १)

संगहण :: न [संग्रहण] संग्रह (विसे २२०३; संबोध ३७; महा)। °गाहा स्त्री [°गाथा] संग्रह-गाथा (कप्प ११८)। देखो संगिण्हण।

संगहणि :: स्त्री [संग्रहणि] संग्रह-ग्रन्थ, संक्षिप्‍त रूप से पदार्थ-प्रतिपादक ग्रंथ, सार-संग्राहक ग्रन्थ (संग १; धर्मंसं ३)।

संगहिअ :: वि [संग्रहिक] संग्रहवाला, संग्रह- नय को माननेवाला (विसे २८५२)।

संगहिअ :: वि [संगृहीत] १ जिसका संचय किया गया हो वह (हे २, १९८) २ स्वीकृत, स्वीकार किया हुआ (सण) ३ पकड़ा हुआ; 'संगहिओ हत्थी' (कुप्र ८१)। देखो संगिहीअ।

संगा :: सक [सं + गै] गान करना। कवकृ. संगिज्जमाण (उप ५९७ टी)।

संगा :: स्त्री [दे] वल्गा, घोड़े की लगाम (देॉ ८, २)।

संगाम :: सक [सड़ेग्रामय्] लड़ाई करना। संगामेइ (भग; तंदु ११)। वकृ. सगामेमाण (णाया १, १६ — पत्र २२३, निर १, १)।

संगाम :: पुं [सङ्ग्राम] लड़ाई, युद्ध (आचा; पाअ; महा)। °सूर पुं [°शूर] एक राजा का नाम (श्रु २८)।

संगामिय :: वि [साङ्ग्रामिक] संग्राम-संबंधी, लड़ाई से संबन्ध रखनेवाला (ठा ५, १ — पत्र ३०२; औप)।

संगामिया :: स्त्री [साङ्ग्रामिकी] श्रीकृष्ण वासुदेव की एक भेरी, जो लड़ाई की खबर देने के लिए बजाई जाती थी (विसे १४७६)।

संगामुड्डामरी :: स्त्री [सङ्ग्रामोड्डामरी] विद्या- विशेष, जिसके प्रभाव से लड़ाई में आसानी से विजय मिलती है (सुपा १४४)।

संगार :: पुं [दे] संकेत (ठा ४, ३ — पत्र २४३; णाया १, ३; ओघभा २२; सुख २, १७; सूअनि २९; धर्मंसं १३८८ उप ३०९)।

संगाहि :: वि [संग्राहिन्] संग्रह-कर्ता (विसे १५३०)।

संगि :: वि [सङ्गिन्] संग-युक्त (भग; संबोध ७; कप्पू)।

संगिज्जमाण :: देखो संगा = सं +गै।

संगिण्ह :: देखो संगह = सं + ग्रह्। संगिहइ (विसे २२०३)। कर्म. संगिज्जंते (विसे २२०३)। वकृ. संगिण्हमाण (भग ५, ६ — पत्र २३१)। संकृ. संहिण्हित्ताणं (पि ५८३)।

संगिण्हण :: न [संग्रहण] आश्रय-दान (ठा ८ — पत्र ४४१)। देखो सगहण।

संगिल्ल :: वि [सङ्गवत्] बद्ध, संग-युक्त (पाअ)।

संगिल्ल :: देखो संगेल्ल (राज)।

संगिल्ली :: देखो संगेल्ली (राज)।

संगिहीय :: वि [संगृहीत] १ आश्रित (ठा ८ — पत्र ४४१) २ देखो संगहिअ = संगृहीत।

संगीअ :: न [संगीत] १ गाना, गान-तान (कुमा) २ वि. जिसका गान किया गया हो वह; 'तेण संगीओ तुह चेव गुणग्गामो' (सुपा २०)

संगुण :: सक [सं + गुणय्] गुणकार करना। संगुणए (सुज्ज १०, ६ टी)।

संगुण :: वि [संगुण] गुणित, जिसका गुणकार किया गया हो वह (सुज्ज १०, ६ टी)।

संगुणिअ :: वि [संगुणित] ऊपर देखो (ओघ २१; देवेन्द्र ११६; कम्म ५, ३७)।

संगुत्त :: वि [संगुप्त] १ छिपाया हुआ, प्रच्छन्‍न रखा हुआ (उपे ३३९ टी) २ गुप्‍ति-युक्त, अकुशल प्रवृत्ति से रहित (पव १२३)

संगेल्ल :: पुं [दे] समूह, समुदाय (दे ८, ४; वव १)।

संगेल्ली :: स्त्री [दे] १ परस्पर अवलम्बन; 'हत्थसंगेल्लीए' (णाया १, ३ — पत्र ९३) २ समूह, समुदाय (भग ९, ३३-पत्र ४७४; औप)

संगोढण :: वि [दे] व्रणित, व्रण-युक्त (दे ८, १७)।

संगोप्फ, संगोफ :: पुं [संगोफ] बन्ध-विशेष, मर्कट- बन्ध रूप गुम्फन (उत्त २२, ३५)।

संगोल्ल :: न [दे] संघात, समूह (षड्)।

संगोल्ली :: स्त्री [दे] समूह, संघात (दे ८, ४)।

संगोव :: सक [सं + गोपय्] १ छिपाना, गुप्‍त रखना। २ रक्षण करना। संगोवइ (प्राकृ ६६)। वकृ. संगोवमाण, संगोवेमाण (णाया १, ३ — पत्र ९१; विपा १, २ — पत्र ३१)

संगोवग :: वि [संगोपक] रक्षण-कर्ता (णाया १, १८ — पत्र २४०)।

संगोवाव :: देखो संगोव। संगोवावसु (स ८९)।

संगोविअ :: वि [संगोपित] १ छिपाया हुआ (स ८९) २ संरक्षित (महा)

संगोवित्तु, संगोवेत्तु :: वि [संगोपयितृ] संरक्षण-कर्ता (ठा ७ — पत्र ३८५)।

संघ :: सक [कथ्] कहना। संघइ (हे ४, २), संघसु (कुमा)।

संघ :: पुं [संघ] १ साधु, साध्वी, श्रावक और श्राविकाओं का समुदाय (ठा ४, ४ — पत्र २८१; णंदि; महानि ४; सिग्घ १; ३; ५) २ समान धर्मंवालों का समूह (धर्मंसं ९८८) ३ समूह, समुदाय (सुपा १८०) ४ प्राणि-समूह (हे १, १८७)। °दास पुं [°दास] एक जैन मुनि और ग्रंथ-कर्ता (ती ३; राज)। °पालिय, °वालिय पुं [°पालित] एक प्राचीन जैन मुनि, जो आर्यंवृद्ध मुनि के शिष्य थे (कप्प; राज)

संघअ :: वि [संहत] निबिड़, सान्द्र (से १०, २९)।

संघंस :: पुं [संघर्ष] १ घिसाव, रगड़। २ आघात, धक्का (णाया १, १ — पत्र ६५; श्रा २८)

संघट्ट :: सक [सं + घट्ट] १ स्पर्शं करना, छूना। २ अक. आघात लगाना। संघट्टइ (भवि), संघट्टेइ (णाया १, ५ — पत्रे ११२; भग ५, ६-पत्र २२९), संघट्ठए (दस ८, ७)। वकृ. संघट्टंत (पिंड ५७५)। संकृ. संघट्टिऊण (पव २)

संघट्ट :: पुं [संघट्ट] १ आघात, धक्का, संघर्ष (उव; कुप्र १६; धर्मवि ५७; सुपा १४) २ अर्ध जंघा तक का पानी (ओघभा ३४) ३ दूसरा नरक का छठवाँ नरकेन्द्रक-स्थान विशेष (देवेन्द्र ६) ४ भीड; जमावड़डा (भवि) ५ स्पर्शं (राय)

संघट्ट :: वि [संघट्टित] संलग्‍न (भवि)।

संघट्टण :: न [संघट्टन] १ संमर्दंन, संघर्षं (णाया १, १ — पत्र ७१; पिंड ५८९) २ स्पर्शं करना (राज)

संघट्टणा :: स्त्री [संघट्टना] संचलन, संचार; 'गब्भे संघट्टणा उ उट्‍ठंतुवेसमाणीए' (पिंड ५८६)।

संघट्टा :: स्त्री [संघट्टा] वल्ली-विशेष (पणण १ — पत्र ३३)।

संघट्टिय :: वि [संघट्टित] १ स्पृष्ट, छुआ हुआ (णाया १, ५ — पत्र ११२; पडि) २ संघषित, संमर्दित (भग १९, ३ — पत्र ७६६; ७६७)

संघड :: अक [सं + घट्] १ प्रयत्‍न करना। २ संबद्ध होना, युक्त होना। कृ. संघडियव्व (ठा ८ — पत्र ४४१)। प्रयो. संघडावेइ (महा)

संघड :: वि [संघट] निरन्तर; 'संघडदंसिणो' (आचा १; ४, ४, ४)।

संघडण :: देखो संघयण (चंड — पृ ४८; भवि)।

संघडणा :: स्त्री [संघटना] रचना, निर्माण (समु १५८)।

संघडिअ :: वि [संघटित] १ संबद्ध, युक्त (से ४, २४) २ गठित, जटित (प्रासू २)

संघदि :: (शौ) स्त्री [संहति] समूह (पि २६७)।

संघयण :: न [दे. संहनन] १ शरीर, काय (दे ८, १४; पाअ) २ अस्थि-रचना, शरीर, के हाड़ों की रचना, शरीर का बाँध (भग; सम १४९; १५५; उव; औप; उवा; कम्म १, ३८; षड्) ३ कर्मं-विशेष, अस्थि- रचना का कारण-भूत कर्मं (सम ६७; कम्म १, २४)

संघयणि :: वि [दे. संहननिन्] संहननवाला (सम १५५; अणु ८ टी)।

संघरिस :: देखो संघंस (उप २६४ टी)।

संघरिसिद :: (शौ) वि [संघर्षित] संघर्ष-युक्‍त; घिसा हुआ (मा ३७)।

संघस :: सक [सं + घृष्] संघर्षं करना। संघसिज्ज (आचा २, १, ७, १)।

संघस्सिद :: देखो संघरिसिद (नाट — मालवि २६)।

संघाइअ :: वि [संघातित] १ संघात रूप से निष्पन्न (से १३, ६१) २ जोड़ा हुआ (आव) ३ इकट्ठा किया हुआ (पडि)

संघाइम :: वि [संघातम] ऊपर देखो (औप; आचा २, १२; १; पि ६०२; अणु १२; दसनि २, १७)।

संघाड :: देखो संघाय = संघात (ओघभा १०२; राज)।

संघाड, संघाडग :: पुं [दे. संघाट] १ युग्‍म, युगल (राय ६६; धर्मंसं १०९५; उप पृ ३९७; सुपा ६०२; ६२३; ओघ ४११; उप २७५) २ प्रकार, भेद; 'संघाडो त्ति वा लय त्ति वा पगारो त्ति वा एगट्ठा' (निचू) ३ ज्ञाताधर्मं-कथा नामक जैन अंग- ग्रन्थ का दूसरा अध्ययन (सम ३६)

संघाडग :: देखो सिंघाडग (कप्प)।

संघाडणा :: स्त्री [संवटना] १ संबन्ध। २ रचना; 'अक्खरगुणमतिसंघाय (? ड) णाए' (सूअनि २०)

संघाडी :: स्त्री [दे. संघाटी] १ युग्म, युगल (दे ८, ७; प्राकृ ३८; गा ४१९) २ उत्तरीय वस्त्र-विशेष (ठा ४, १ — पत्र १८६; णाया १, १६ — पत्र २०४; ओघ ६७७; विसे २३२६; पव ६२; कस)

संघाणय :: पुं [शिङ्घानक] श्‍लेष्मा, नाक में से बहता द्रव पदार्थं (तंदु १३)।

संघातिम :: देखो संघाइम (णाया १, ३ — पत्र १७९; पणह २, ५ — पत्र १५०)।

संघाय :: सक [सं + घातय्] १ संहत करना, इकट्ठा करना, मिलाना। २ हिंसा करना, मारना। संघायइ, संघाएइ (कम्म १, ३६; भग ५, , ६ — पत्र २२९)। कृ. संघायणिज्ज (उत्त २९, ५९)

संघाय :: पुं [संघात] १ संहति, संहत रुप से अवस्थान, निबिड़ता (भग; दस ४, १) २ समूह, जत्था (पाअ; गउड; औप; महा) ३ संहनन-विशेष, वज्रऋषभ-नाराच नामक शरीर-बन्ध; 'संघाएणं संठाणेणं' (औप) ४ श्रुतज्ञान का एक भेद (कम्म १, ७) ५ संकोच, सकुचाना (आचा) ६ न. नामकर्म-विशेष, जिस कर्मं के उदय से शरीर- योग्य पुद्गल पूर्व-गृहीत पुद्गलों पर व्यवस्थित रूप से स्थापित होते हैं (कम्म १, ३१; ३६)। °समास पुं [°समास] श्रुतज्ञान का एक भेद (कम्म १, ७)

संघायण :: न [संघातन] १ विनाश, हिंसा (श १७०) २ देखो 'संघाय' का छठवाँ अर्थं (कम्म १, २४)

संघायणा :: स्त्री [संघातना] संहति। °करण न [°करण] प्रदेशों को परस्पर संहत रूप से रखना (विसे ३३०८)।

संघार :: पुं [संहार] १ बहु-जंतु-क्षय, प्रलय (तंदु ४५) २ नाश (पउम ११८, ८०; उप १३९ टी) ३ संक्षेप। ४ विसर्जन। ५ नरक-विशेष। ६ भैरव-विशेष (हे १, २६४; षड्)

संघार :: (अप) देखो संहर = सं + हृ। संकृ. संघारि (पिंग)।

संघारिय :: वि [संहारित] मारित, व्यापादित (भवि)।

संघासय :: पुं [दे] स्पर्धा, बराबरी (दे ८, १३)।

संघिअ :: देखो संधिअ = संहित (प्राप)।

संघिल्ल :: वि [संघवत्] संघ-युक्त, समुदित (राज)।

संघोडि :: स्त्री [दे] व्यतिकर, संबन्ध (दे ८, ८)।

संच :: (अप) देखो संचिण। संचइ (भवि)।

संच :: (अप) पुं [संचय] परिचय (भवि)।

संचइ, संचइग :: वि [संचयिन्] संचयवाला, संग्रही, संग्रह करनेवाला, (दसनि १०, १०; पव ७३ टी)।

संचइय :: वि [संचयित] संचय-युक्‍त (राज)।

संचक्कार :: पुं [दे] अवकाश, जगह; 'अविगणिय कुलकलंकं इय कुहियकरंककारणे कीस। वियरसि संचक्कारं तं नारयतिरियदुक्खाण।' (उप ७२८ टी)।

संचत्त :: वि [संत्यक्त] परित्यक्‍त (अज्झ १७८)।

संचय :: पुं [संचय] १ संग्रह (पणङ १, ५ — पत्र ९२; गउड, महा) २ समूह (कप्प; गउड) ३ संकलन, जोड़ (वव १)। °मास पुं [°मास] प्रायश्चित-संबन्धी मा्स- विशेष (राज)

संचर :: सक [सं + चर्] १ चलना, गति करना। २ सम्यग् गति करना, अच्छी तरह चलना। ३ धीरे धीरे चलना। संबरइ (गउड ४२९; भवि)। वकृ. संचरंत (से २, २४; सुर ३, ७६; नाट — चैत १३०)। कृ. संचरणिज्ज, संचरिअव्व (नाट — वेणी १४; से १४, २८)

संचरण :: न [संचरण] १ चलना, गति। २ सम्यग् गति (गउड; पि १०२; कप्पू)

संचरिअ :: वि [संचरित] चला हुआ, जिसने संचरण किया हो वह (उप पृ ३५८; रुक्‍मि ५६; भवि)।

संचलण :: न [संचलन] संचार, गति (गउड)।

संचलिअ :: वि [संचलित] चला हुआ (सुर ३, १४०; महा)।

संचल्ल :: सक [सं + चल] चलना, गति करना। संचल्लइ (भवि)।

संचल्ल :: (अप) देखो संचलिय (भवि)।

संचल्लिअ :: देखो संचलिअ (महा)।

संचाइय :: वि [संशकित] जो समर्थं हुआ हो वह (भग ३, २ टी — पत्र १७८)।

संचाय :: अक [सं + शक्] समर्थं होना। संचाएइ (भग, उवा; कस), संचाएमो (सूअ २, ७, १०, णाया १, १८ — पत्र २४०)।

संचाय :: पुं [संत्याग] परित्याग (पंचा १३, ३४)।

संचार :: सक [सं + चारय्] संचार कराना। संचारइ (भवि)। संकृ. संचारि (अप) (पिंग)।

संचार :: पुं [संचार] संचरण, गति (गउड; महा; भवि)।

संचारि :: वि [संचारिन्] गति करनेवाला (कप्पू)।

संचारिअ :: वि [संचारित] जिसका संचार कराया गया हो वह (भवि)।

संचारम :: वि [संचारिम] संचार-योग्य, जो एक स्थान से उठा कर दूसरे स्थान में रखा जा सके वह (पिंड ३००; सुपा ३५१)।

संचारी :: स्त्री [दे] दूत-कर्मं करनेवाली स्त्री (पाअ, षड्)।

संचाल :: सक [सं + चालय] चलाना। संचालइ (भवि)। कवकृ. संचालिज्जंत, संचालिज्जमाण (दे ६, ३६; णाया १, ९ — पत्र १५६)।

संचालिअ :: वि [संचालित] चलाया हुआ (से ४, २७)।

संचिअ :: वि [संचित] संगृहीत (ओघ ३२९ भवि; नाट — वेणी ३७, सुपा ३५२)।

संचिंतण :: न [संचिन्तन] चिन्तन, विचार (हि २२)।

संचितणया :: स्त्री [संचिन्तना] ऊपर देखो (उत्त ३२, ३)।

संचिक्ख :: अक [सं + स्था] रहना, ठहरना, अच्छी तरह रहना, समाधि से रहना। संचिक्खइ (आचा १, ६, २, २)। संचिक्खे (उत्त २, ३३; ओघ ६९)।

संचिज्जमाण :: देखो संचिण।

संचिट्ठ :: देखो संचिक्ख। संचिट्ठइ (भग; उवा; महा)।

संचिट्ठण :: न [संस्थान] अवस्थान (पि ४८३)।

संचिण :: सक [सं + चि] १ संग्रह करना, इकट्ठा करना। २ उपचय करना। संचिणेइ, संचिणइ, संचिणंति (श्रु १०७; पि ५०२)। संकृ. संचिणित्ता (सूअ २, २, ६५; भग)। कवकृ. संचिज्जमाण (आचा २, १, ३, २)

संचिणिय :: वि [संचित] संगृहीत (स ४०३)।

संचिन्न :: वि [संचीर्ण] आचरित (सण)।

संचुण्ण :: सक [सं + चूर्णय्] चूर-चूर करना, खंड-खंड करना, टुकड़ा-टुकड़ा करना। कवकृ. संचुण्णिज्जंत (पउम ५९, ४४)।

संचुण्णिअ, संचुन्निअ :: वि [संचूर्णित] चूर-चूर किया हुआ (महा; भवि; णाया १, १ — पत्र ४७; सुर १२, २४१)।

संचेयणा :: स्त्री [संचेतना] अच्छी तरह सूध, भान; 'लद्धसचेयणाउ' (सिर ६५७)।

संचोइय :: वि [संचोदित] प्रेरित (ठा ४, ३ टी — पत्र २३८)।

संछइय, संछण्ण, संछन्न :: वि [संछन्न] ढका हुआ (उप पृ १२३; सुर २, २४७; सुपा ५६२; महा; सण)।

संछाइय :: वि [संछादित] ढका हुआ (सुपा ५६२)।

संछाय :: सक [सं + छादय्] ढकना। वकृ. संछायंत (पउम ५६, ४७)।

संछुह :: सक [सं + क्षिप्] एकत्रित कर छोड़ना, इकट्ठा करना; 'संछुहई एगगेहम्मि' (पिंड ३११)।

संछोभ :: पुं [संक्षेप] अच्छी तरह फेंकना, क्षेपण (पंच ५, १५९; १८०)।

संछोभग :: वि [संक्षेपक] प्रक्षेपक (राज)।

संछोभण :: न [संक्षेपण] परावर्तन (राज)।

संजइ :: पुंस्त्री [संयति] उत्तम साधु, मुनि; 'संजईण दव्वलिंगीणमंतरं मेरुसरिसवसरिच्छं' (संबोध ३६)।

संजई :: स्त्री [संष्टती] साध्वी (ओघ १६; महा; द्र २७)।

संजणग :: वि [संजनक] उत्पन्‍न करनेवाला (सुर ११, १६९)।

संजणण :: न [संजनन] १ उत्पत्ति। २ वि. उत्पन्‍न करनेवाला (सुर ९, १४२; सुपा ३८२)। स्त्री. °णी (रत्‍न २८)

संजणय :: देखो संजणग (चेइय ६१५, सुपा ३८; सिक्खा २९)।

संजणिय :: वि [संजनित] उत्पादित (प्रासू १४९; सण)।

संजत्त :: सक [दे] तैयार करना। संजत्तेह (स २२)।

संजत्ता :: स्त्री [संयात्रा] जहाज की मुसाफिरी (णाया १, ८ — पत्र १३२)।

संजत्ति :: स्त्री [दे] तैयारी; 'आणत्ता निय- पुरिसा संजत्ति कुणह गमणत्थं' (सुर ७, १३०; स ६३५; ७३५; महा)। देखो संजुत्ति।

संजत्तिअ :: वि [दे] तैयार किया हुआ (स ४४३)।

संजत्तिअ, संजत्तिग :: वि [सांयात्रिक] जहाज से यात्रा करनेवाला, समुद्र-मार्गं का मुसाफिर (सुपा ६५५; ती ९; सिरि ४३१; पव २७६; हे १, ७०; महा; णाया १, ८ — पत्र १३५)।

संजत्थ :: वि [दे] १ कुपित, कुद्ध। २ पुं. क्रोध दे ८, १०)।

संजद :: देखो संजय = संयत (प्राप्र; प्राकृ १२; संक्षि ९)।

संजम :: अक [सं + यम्] १ निवृत्त होना। २ प्रयत्‍न करना। ३ व्रत-नियम करना। ४ सक. बाँधना। ५ काबू में करना। कर्मं. संजमिज्जंति (गउड २८९)। वकृ. संजमेंत, संजमयंत, संजाममाण (गउड ८४०; दसनि १, १४०; उत्त १८, २६)। कवकृ. संज- मीअमाण (नाट — विक्र ११२)। संकृ. संजमित्ता (सूअ १, १०, २)। हेकृ. संजमिउं (गउड ४८७)। कृ. संजमिअव्व, संजमितव्व (भग; णाया १, १ — पत्र ६०)

संजम :: सक [दे] छिपाना। संजमेसि (दे ८, १५ टी)।

संजम :: पुं [संयय] १ चारित्र, व्रत, विरति, हिंसादि पाप-कर्मों से निवृत्ति (भग; ठा ७; औप; कुमा; महा) २ शुभ अनुष्ठान (कुमा ७, २२) ३ रक्षा, अहिंसा (णाया १, १ — पत्र ६०) ४ इन्द्रिय-निग्रह। ५ बन्धन। ६ नियन्त्रण, काबू (हे १, २४५)। °संजम पुं [°संयम] श्रावक-व्रत (औप)

संजमण :: न [संयमन] ऊपर देखो (धर्मंवि १७; गा २९१; सुपा ५५३)।

संजमिअ :: वि [दे] संगोपित, छिपाया हुआ (दे ८, १५)।

संजमिअ :: वि [संयमित] बाँधा हुआ, बद्ध (गा ६४६; सुर ७, ५; कुप्र १८७)।

संजय :: अक [सं + यत्] १ सम्यक् प्रयत्‍न करना। २ सक. अच्छी तरह प्रवृत्त करना। संजयए, संजए (पव ७२; उत्त २, ४)

संजय :: वि [संयत] साधु, मुनि व्रती (भग; ओघभा १७; काल); 'ममावि मायावित्ताणि संजयाणि' (महा)। °पंता स्त्री [°प्रान्ता] साधु को उपद्रव करनेवाली देवी आदि (ओघभा ३७ टी)। °भद्दिगा स्त्री [°भद्रिका] साधु को अनुकूल रहनेवाली देवी आदि (ओघभा १७ टी)। °संजय वि [°संयत] किसी अंश में व्रती और किसी अंश में अव्रती, श्रावक (भग)।

संजय :: पुं [संजय] भगवान् महावीर के स दीक्षा लेनेवाला एक राजा (ठा ८ — पत्र ४३०)।

संजयंत :: पुं [संजयन्त] एक जैन मुनि (पउम ५, २१)। °पुर न [°पुर] नगर-विशेष (इक)।

संजर :: पुं [संज्वर] ज्वर, बुखार (अच्चु ९७)।

संजल :: अक [सं + ज्वल्] १ जलना। २ आक्रोश करना। ३ क्रुद्ध होना। संजले (सूअ १, ९, ३१; उत्त २, २४)

संजलण :: वि [संज्वलन] १ प्रतिक्षण क्रोध करनेवाला (सम ३७) २ पुं. कषाय-विशेष (कम्म १, १७)

संजलिअ :: पुं [संज्वलित] तीसरी नरक-भूमि का एक नरक-स्थान (देवेन्द्र ९)।

संजल्लिअ :: (अप) वि [संज्वलित] आक्रोशः- युक्त (भवि)।

संजव :: देखो संजम = सं + यम्। संजवहु (अप) (भवि)।

संजव :: देखो संजम = (दे)। संजवइ (प्राकृ ६६)।

संजविअ :: देखो संजविअ = (दे) (पाअ; भवि)।

संजविअ :: देखो संजमिअ = संयमित (भवि)।

संजा :: देखो संणा (हे २, ८३)।

संजाणय :: वि [संज्ञायक] विज्ञ, विद्वान्, जानकार (राज)।

संजात, संजाद :: देखो संजाय = संजात (सुर २, ११४; ४, १९०; प्राप्र; पि २०४)।

संजाय :: अक [सं + जन्] उत्पन्नत होना। संजायइ (सण)।

संजाय :: वि [संजात] उत्पन्न (भग; उवा; महा; सण; पि ३३३)।

संजीवणी :: स्त्री [संजीवनी] १ मरते हुए कौो जीवित करनेवाली औषधि (प्रासू ८३) २ जीवित-दात्री नरक-भूमि (सूअ १, ५, २, ९)

संजीवि :: वि [संजिविन्] जिलानेवाला, जीवित करनेवाला (कप्पू)।

संजुअ :: वि [संयुत] सहित, संयुक्त (द्र २२; सिक्खा ४८; सुर ३, ११७; महा)। देखो संजुत्त।

संजुअ :: न [संयुग] १ लड़ाई, युद्ध, संग्राम (पाअ) २ नगर-विशेष (राज)

संजुंज :: सक [सं + युज्] जोड़ना। कर्मं. 'अवसिट्ठे सब्भावे जलेण संजुअ ( ज्ज) ती जहा वत्थं' (धर्मंसं १८०)। कवकृ. संजुज्जंत (सम्म ५३)।

संजुत :: न [संयुत] छन्द-विशेष (पिंग)। देखो संजुअ = संयुत।

संजुता :: स्त्री [संयुता] छन्द-विशेष (पिंग)।

संजुत्त :: वि [संयुक्त] संयोगवाला, जुड़ा हुआ (महा; सण; पि ४०४; पिंग)।

संजुत्ति :: स्त्री [दे] तैयारी (सुर ४, १०२; १२, १०१; स १०३; कुप्र २००)। देखो संजत्ति।

संजुद्ध :: वि [दे] स्पन्द-युक्त, थोड़ा हिलने- चलनेवाला, फरकनेवाला (दे ८, ९)।

संजूह :: पुंन [संयूथ] १ उचित समूह (ठा १० — पत्र ४९५) २ सामान्य, साधारणता। ३ संक्षेप, समास (सूअ २, २, १) ४ ग्रन्थ- रचना, पुस्तक-निर्माण (अणु १४९) ५ दृष्टिवाद के अठासी सूत्रों में एक सूत्र का नाम (सम १२८)

संजोअ :: अक [सं + योजय्] संयुक्त करना, संबद्ध करना, मिश्रण करना। संजोएइ, संजोयए (पिंड ६३८; भग; उव; भवि)। वकृ. संजोयंत (पिंड ६३६)। संकृ. संजो- एऊण (पिंड ६३९)। कृ. संजोएअव्व (भग)।

संजोअ :: सक [सं + दृश्] निरीक्षण करना, देखना। संकृ. संजोइऊण (श्रु ३२)।

संजोअ :: पुं [संयोग] संबन्ध, मेल-मिलाप, मिश्रण (षड्; महा)।

संजोअण :: न [संयोजन] १ जोड़ना, मिलाना (ठा २, १ — पत्र २९) २ वि. जोड़नेवाला। ३ कषाय-विशेष, अनन्तानुबन्धि नामक क्रोधादि-चतुष्क (विसे १२२६; कम्म ५, ११ टी)। °धिकरणिया स्त्री [°धिकरणिकी] खङ्गं आदि को उसकी मूठ आदि से जोड़नेॉ की क्रिया (ठा २, १ — पत्र ३९)

संजोअणा :: स्त्री [संयोजना] १ मिलान, मिश्रण (पिंड ६३६) २ भिक्षा का एक दोष, स्वाद के लिए भिक्षा-प्राप्त चीजों को आपस में मिलाना (पिंड १)

संजोइय :: वि [संयोजित] मिलाया हुआ, जोड़ा हुआ (भग; महा)।

संजोइय :: वि [संदृष्ट] दृष्ट, निरीक्षित (भवि)।

संजोग :: देखो संजोअ = संयोग (हे १, २४५)।

संजोगि :: वि [संयोगिन्] संयोग-युक्त, , संबन्धी (संबोध ४६)।

संजीगेत्तु :: वि [संयोजयितृ] जोड़नेवाला (ठा ८ — पत्र ४२९)।

संजोत्त :: (अप) देखो संजोअ = स + योजय्। संकृ. संजोत्तिवि (भवि)।

संझ° :: नीचे देखो (णाया १, १ — पत्र ४८)। °च्छेयावरण वि [°च्छेदावरण] १ सन्ध्या- विभाग का आवरक। २ पुं. चन्द्र, चाँद (अणु १२० ट)। °प्पभ पुंन [°प्रभ] शक्र के सोम-लोकपाल का विमान (भग ३, ७-पत्र १७५)

संझा :: स्त्री [सन्ध्या] १ साँझ, साम, सायंकाल (कुमा; गउड; महा) २ दिन और रात्रि का संधि-काल। ३ युगों का संधि-काल। ४ नदी-विशेष। ५ ब्रह्मा की एक पत्‍नी (हे १, ३०) ६ मध्याह्न काल; 'तिसंझं' (महा) °गय न [°गत] १ जिस नक्षत्र में सूर्य अनन्तर काल में रहनेवाला हो वह नक्षत्र। २ सूर्यं जिसमें हो उससे चौदहवाँ या पनरहवाँ नक्षत्र। ३ जिसके उदय होने पर सूर्यं उदित हो वह नक्षत्र। ४ सूर्य के पीछे के या आगे के नक्षत्र के बाद का नक्षत्र (वव १)। °छेयावरण देखो संझ-च्छेयावरण (पव २६८)। °णुराग पुं [°नुराग] साँझ के बादल का रँग (पणण २ — पत्र १०९)। °वली स्त्री [°वली] एक विद्याधर-कन्या का नाम (महा)। °विगम पुं [°विगम] रात्रि, रात (निचू १६)। °विराग पुं [°विराग] साँझ का समय (जीव ३, ४)

संझाअ :: सक [सं + ध्यै] ख्याल करना, चिन्तन करना, ध्यान करना। संझाअदि (शौ) (पि ४७९; ५५८)। वकृ. संझायंत (सुपा ३६९)।

संझाअ :: अक [संध्याय] संध्या की तरह आचरण करना। संझायइ (गउड ६३२)।

संटंक :: पुं [सटङ्क] अन्वय, संबन्ध (चेइइ ३९६)।

संठ :: वि [शठ] धूर्त, मायावी (कुमा; दे ६, १११)।

संठ :: (चूपै) देखो संढ (हे ४, ३२५)।

संठप्प :: देखो संठव।

संठव :: सक [सं + स्थापय्] १ रखना, स्थापना करना। २ आश्‍वासन देना, उद्वेग- रहित करना, सान्त्वना करना। संठवइ, संठवेइ (भवि; महा)। वकृ. संठवंत (गा ३९)। कवकृ. संठविज्जंत (सुर १२, ४१)। संकृ. संठवेऊण (महा), संठप्प (उव), संठविअ (पिंग)

संठवण :: देखो संठावण (मृच्छ १५४)।

संठविअ :: वि [संस्थापित] १ रखा हुआ (हे १, ६७; प्राप्र; कुमा) २ आश्‍वासित। ३ उद्‍वेग-रहित किया हुआ (महा)

संठा :: अक [सं + स्था] रहना, अवस्थान करना, स्थिति करना। संठाइ (पि ३०९; ४८३)।

संठाण :: न [संस्थान] १ आकृति, आकार (भग; औप; पव २७६; गउड; महा; दं ३) २ कर्मं-विशेष, जिसके उदय से शरीर के शुभ या अशुभ आकार होता है वह कर्मं (सम ६७; कम्म १, २४; ४०) ३ संनिवेश, रचना (प्रासू ८७)

संठाव :: देखो संठव। संकृ. संठाविअ (नाट — चैत ७५)।

संठावण :: न [संस्थापन] रखना; 'तेरिच्छ- संठावणं' (पव ३८)। देखो संथावण।

संठावणा :: स्त्री [संस्थापना] आश्वासन, सान्त्वना (से ११, १२१)। देखो संथाणा।

संठाविअ :: देखो संठविअ (हे १, ६७; कुमा; प्राप्र)।

संठिअ :: वि [संस्थित] १ रहा हुआ, सम्यक् स्थित (भग; उवा; महा; भवि) २ न. आकार (राय)

संठिइ :: स्त्री [संस्थिति] १ व्यवस्था (सुज्ज १, १) २ अवस्था, दशा, स्थिति (उप १३६ टी)

संड :: पुं [शण्ड, षण्ड] १ वृष, बैल, साँढ; 'मत्तसंडुव्व भमेइ विलसेइ अ' (श्रा १२; सुर १५, १४०) २ पुन. पद्म आदि का समूह, वृक्ष आदि की निबिड़ता (णाया १, १ — वत्र १९; भग; कप्प; औप; गा ८; सुर ३, ३०; महा; प्रासू १४५); 'तियसतरुसंडो' (गउड) ३ पुं. नपुंसक (हे १, २६०)

संडास :: पुंन [संदंश] १ यन्त्र-विशेष, सँड़सी, चिमडा (सूअ १, ४, २, ११; विपा १, ९ — पत्र ९८; स ६९९) २ उरु-संधि, जाँघ और ऊरु के बीच का भाग (ओघ २०६; ओघभा १५५)। °तोंड पुं [°तुण्ड] पक्षि-विशेष, सँड़सी की तरह मुखवाला पाँखी (पणह १, १ — पत्र १४)

संडिज्झ, संडिब्भ :: न [दे] बालकों का क्रीड़ा-स्थान (राज; दस ५, १, १२)।

संडिल्ल :: पुं [शाण्डिल्य] १ देश-विशेष (उफ १०३१ टी; सत्त ६७ टी) २ एक जैन मुनि का नाम (कप्प; णंदि ४९) ३ एत ब्राह्मण का नाम (महा)। देखो संडेल्ल।

संडी :: स्त्री [दे] वल्गा, लगाम (दे ८, २)।

संढेय :: पुं [षाण्डेय] षंढ-पुत्र, षंढ, नपुंसक; 'कुक्कुडसंडेयगामपउरा' (औप; णाया; १, १ टी — पत्र १)।

संडेल्ल :: न [शाण्डिल्य] १ गोत्र-विशेष। २ पुंस्त्री. उस गोत्र में उत्पन्‍न (ठा ७ — पत्र ३९०)। देखो संडिल्ल।

संडेव :: पुं [दे] पानी में पैर रखने के लिए रखा जाता पाषाण आदि (ओघ ३१)।

संडेवय :: (अप) देखो संडेय; 'गामइं कुक्कुड- संडेवयाइं' (भवि)।

संडोलिअ :: वि [दे] अनुगत, अनुयात (दे ८, १७)।

संढ :: पुं [षण्ढ] नपुंसक (प्राप्र; हे १, ३०; संबोध १९)।

संढो :: स्त्री [दे] साँढ़नी, ऊँटनी (सुपा ५८०)।

संढोइय :: वि [संढौकित] उपस्थापित (सुपा ३२३)।

संण :: वि [संज्ञ] जानकार, ज्ञाता (आचा १, ५. ६, १०)।

संणक्खर :: देखो संनक्खर (राज)।

संणज्ज :: न [सांनाय्य] मन्त्र आदि से संस्कारा जाता घी वगैरह (प्राकृ १९)।

संणज्झ :: अक [सं + नह्] १ कवच धारण करना, बखतर पहनना। २ तैयार होना। संणज्जइ (पि ३३१)

संणडिअ :: वि [संनटित] व्याकुल किया हुआ, विडम्बित (वज्जा ७०)।

संणद्ध :: वि [संनद्ध] संनाह-युक्त, कवचित (विपा १, २ — पत्र २३; गउड)।

संणय :: देखो संनय (राज)।

संणवणा :: स्त्री [संज्ञापना] संज्ञप्‍ति, विज्ञापन (उवा)।

संणा :: स्त्री [संज्ञा] १ आहार आदि का अभिलाष (सम ९; भग; पणण १, ३ — पत्र ५५; प्रासू १७९) २ मति, बुद्धि (भग) ३ संकेत, इशारा (से ११, १३४ टी) ४ आख्या, नाम। ५ सूर्यं की पत्‍नी। ६ गायत्री (हे २, ४२) ७ विष्ठा, पुरीष (उप १४२ टी) ८ सम्यग् दर्शंन (भग) ९ सम्यग् ज्ञान। (राय १३३)। °इअ वि [°कृत] टट्ठी फिरा हुआ, फरागत गया हुआ (दस १, १ टी)। °भूमि स्त्री [°भूमि] पुरीषोत्सर्जंन की जगह (उप १४२ टी; दस १, १ टी)

संणाणिय :: वि [संनामित] अवनत किया हुआ (पंचा १९, ३६)।

संणाय :: वि [संज्ञात] १ ज्ञात, नात का आदमी (पंच १०, ३६) २ स्वजन, सगा (उप ६५३)। देखो संनाय।

संणास :: पुं [संन्यास] संसार-त्याग, चतुर्थं आश्रम (नाट — चैत ९०)।

संणासि :: वि [संन्यासिन्] संसार-त्यागी, चतुर्थ-आश्रमी, यति, व्रती (नाट — चैत ८८)।

संणाह :: सक [सं + नाहय्] लड़ाई के लिए तैयार करना, युद्ध-सज्ज करना। संणाहेहि (औप ४०)।

संणाह :: पुं [संनाह] १ युद्ध की तैयारी (से ११, १३४) २ कवच, बखतर (नाट — वेणी ६२)। °पट्ट पुं [°पट्ट] शरीर पर बाँधने का वस्त्र-विशेष (बृह ३)

संणाहिय :: वि [सांनाहिक] युद्ध की तैयारी से सम्बन्ध रखनेवाला; 'संणाहियाए भेरीए सद्दं सोच्चा' (णाया १, १६ — पत्र २१७)।

संणि :: वि [संज्ञिन्] १ संज्ञावाला, संज्ञा- युक्त। २ मनवाला प्राणी (सम २; भग; औप) ३ श्रावक, जैन गृहस्थ (ओघ ८) ४ सम्यग् दर्शनवाला, सम्यक्‍त्वी, जैन (भग) ५ न. गोत्र-विशेष, जो वासिष्ठ गोत्र की शाखा है। ६ पुंस्त्री. उस गोत्र में उत्पन्‍न (ठा ७ — पत्र ३९०)

संणिक्खित्त :: देखो संनिक्खित्त (राज)।

संणिगास :: देखो संणियाण (णाया १, १ — पत्र ३२)।

संणिगास :: देखो संनिगास = संनिकर्षं (राज)।

संणिवय :: देखो संनिचय (राज)।

संणिचिय :: देखो संनिचिय (आचा २, १, २, ४)।

संणिज्झ :: देखो संनिज्झ (गउड)।

संणिणाय :: देखो संनिनाय (राज)।

संणिधाइ :: देखो संणिहाइ (नाट — मालती २९)।

संणिधाण :: देखो संनिहाण (नाट — उत्तर ४४)।

संणिपडिअ :: वि [संनिपतित] गिरा हुआ (विपा १, ९ — पत्र ९८)।

संणिण :: देखो संनिभ (राज)।

संणिय :: वि [संज्ञित] जिसको इशारा किया गया हो वह (सुपा ८८)।

संणियास :: पुं [संनिकाश] समान, सदृश (पउम २०, १८८)। देको संनियास।

संणिरुद्ध :: वि [संनिरुद्ध] रुका हुआ, नियन्त्रित (आचा २, १, ४, ४)।

संणिरोह :: पुं [संनिरोध] अटकाव, रुकावट (से ५, ६४)।

संणिवय :: अक [संनि + पत्] पड़ना, गिरना। वकृ. संणिवयमाण (आचा २, १, ३, १०)।

संणिवाय :: पुं [संनिपात] सम्बन्ध (पंचा ७, १८)।

संणिविट्ठ :: देखो संनिविट्ठ (णाया १, १ टी — पत्र २)।

संणिवेस :: देखो संनिवेस (आचा १, ८, ६, ३; भग; गउड; नाट — मालती ५९)।

संणिसिज्जा, संणिसेज्जा :: देखो संनिसिज्जा (राज)।

संणिह :: देखो संनिह (गा २५८; नाट — मृच्छ ६१)।

संणिहाइ :: वि [संनिधायिन्] समीप-स्थायी (माल ५२)।

संणिहाण :: देखो संनिहाण (राज)।

संणिहि :: देखो संनिहि (आचा २, १, २, ४)।

संणिहिअ :: वि [संनिहित] सहायता के लिए समीप-स्थित, निकट-वर्ती (महा)। देखो संनिहिअ।

संणेज्झ :: देखो संनेज्झ (गउड)।

संत :: देखो स = सत् (उवा; कप्प; महा)।

संत :: वि [शान्त] १ शम-युक्‍त, क्रोध-रहित (कप्प; आचा १, ८, ५, ४) २ पुं. रस- विशेष; 'विणयंता चेव गुणा संतंतरसा किया उ भावंता' (सिरि ८८२)

संत :: वि [श्रान्त] थका हुआ (णाया १, ४; उवा १०१; ११२; विपा १, १; कप्प; दे ८, ३६)।

संतइ :: स्त्री [संतति] १ संतान, अपत्य, लड़कावाला; 'दुट्ठसीला खु इत्थिया विणासेइ संतइं' (स ५०५; सुपा १०४) २ अविच्छिन्न धारा, प्रवाह (उत्त ३६, ९; उप पृ १८१)

संतच्छण :: ण [संतक्षण] छिलना (सूअ १, ५, १; १४)।

संतच्छिअ :: वि [संतक्षित] छिला हुआ (पणह १, १ — पत्र १८)।

संतट्ठ :: वि [संत्रस्त] डरा हुआ, भय-भीत (सुर ९, २०५)।

संतति :: देखो संतइ (स ६८४)।

संतत्त :: वि [संतत] १ निरन्तर, अविच्छिन्न। २ विस्तीर्णं; 'अच्छिनिमीलियमित्तं नत्थि सुहं दुक्खमेव संतत्तं। नरए नेरइयाणं अहोनिसिं पच्चमाणाणं'। (सुर १४, ४९)

संतत्त :: वि [संतप्त] संताप-युक्त (सुर १४, ५९; गा १३६; सुपा १६; महा)।

संतत्थ :: देखो संतट्ठ (उव; श्रा १८)।

संतप्प :: अक [सं + तप्] १ तपना, गरम होना। २ पीड़ित होना। संतप्पइ (हे ४, १४०; स २०)। भवि. संतप्पिस्सइ (स ६८१)। कृ. संतप्पियव्व (स ६८१)। वकृ. संतप्पमाण (सुज्ज ९)

संतप्पिअ :: वि [संतप्त] १ संताप-युक्त (कुमा ६, १४) २ न. संताप (स २०)

संतमस :: न [संतमस] १ अन्धकार, अँधेरा (पाअ; सुपा २०५) २ अन्ध-कूप, अँधेरा कुँआ (सुर १०, १५८)

संतय :: देखो संतत्त = संतत (पाअ; भग)।

संतर :: सक [सं + तृ] तैरना, तैर कर पार करना। हेकृ. संतारत्तए (कस)।

संतरण :: न [संतरण] तैरना, तैर कर पार करना (ओघ ३८; चेइय ७४३; कुप्र २२०)।

संतस :: अक [सं + त्रस्] १ भय-भीत होना। २ उद्विग्‍न होना। संतसे (उत्त २, ११)

संता :: स्त्री [शान्ता] सातवें जिन-भगवान् की शासन-देवता (संति ९)।

संताण :: पुं [संतान] १ वंश (कप्प) २ अविच्छिन्न धारा, प्रवाह (विसे २३९७; २३९८; गउड; सुपा १९८) ३ तंतु-जालल मकड़ी आदि का जाल; 'मक्खडासंताणए' (आचा; पडि; कस)

संताण :: न [संत्राण] परित्राण, संरक्षण (बृह १)।

संताणि :: वि [संतानिन्] १ अविच्छिन्न धारा में उत्पन्न, प्रवाह-वर्तीी; 'संताणिणो न भिणणो जइ संताणो न संताणो' (विसे २३९८; धर्मंसं २३५) २ वंश में उत्पन्‍न, परंपरा में उत्पन्‍न; 'देव इह अत्थि पत्तो उज्जाणे पासनाहसंतणी। केसी नाम गणहरो' (धर्मंवि ३)

संतार :: वि [संतार] १ तारनेवाला, पार उतारनेवाला (पउम २, ४४) २ पुं. संतरण, तैरना (पिंग)

संतारिअ :: वि [संतारित] पार उतारा हुआ (पिंग)।

संतारिम :: वि [संतारिम] तैरने योग्य (आचा २, ३, १, १३)।

संताव :: सक [सं + तापय्] १ गरम करना, तपाना। २ हैरान करना। संतावेंति (सुज्ज ९)। वकृ. संताविंत (सुपा २४८)। कवकृ. संताविज्जमाण (नाट — मृच्छ १३७)

संताव :: पुं [संताव] १ मन की खेद (पणह १, ३ — पत्र ५५; कुमा; म हा) २ ताप, गरमी (पणह १, ३ — पत्र ५५; महा)

संतावण :: न [संतापन] संताप, संतप्त करना (सुपा २३२)।

संतावणी :: स्त्री [संतापनी] नरक-कुम्भी (सूअ १, ५, २, ६)।

संतावय :: वि [संतापक] संताप-जनक (भवि)।

संतावि :: वि [संतापिन्] संतप्त होनेवाला, जलनेवाला (कप्पू)।

संताविय :: वि [संतापित] संतप्त किया हुआ (काल)।

संतास :: सक [सं + त्रासय्] भय-भीत करना, डराना। संतासइ (पिंग)।

संतास :: पुं [संत्रास] भय, डर (स ५४४)।

संतासि :: वि [संत्रासिन्] त्रास-जनक (उप ७६८ टी)।

संति :: स्त्री [शान्ति] १ क्रोध आदि का जय, उपशम, प्रशम (आचा १, १, ७, १, चेइय ५९४) २ मुक्ति, मोक्ष (आचा १, २, ४, ४; सूअ १, १३; १; ठा ८ — पत्र ४२५) ३ अहिंसा (आचा १, ६, ५, ३) ४ उपद्रव-निवारण (विपा १, ६ — पत्र ६१; सुपा ३६४) ५ विषयों से मन को रोकना। ६ चैत, आराम। ७ स्थिरता (उप ७२८ टी; संति १) ८ दाहोपशम, ठंढाई (सूअ १, ३, ४, २०) ९ देवी-विशेष (पंचा १९, २४) १० पुं. सोलहवें जिनदेव का नाम (सम ४३; कप्प; पडि)। °उदअ न [उदक] शान्ति के लिए मस्तक में दिया जाता मन्त्रित पानी (फि १६२)। °कम्म न [°कर्मन्] उपद्रव-निवारण के लिए किया जाता होम आदि कर्मं (पणह १, २ — पत्र ३०, सुपा २६२)। °कम्मंत न [°कर्मान्त] जहाँ शान्ति-कर्मं किया जाता हो वह स्थान (आचा २, २, २, ९)। °गिह न [°गृह] शान्ति-कर्मं करने का स्थान (कप्प)। °जल न [°जल] देखो °उदअ (धर्म २)। °जिण पुं [°जिन] सोलहवें जिन-देव (संति १)। °मई स्त्री [°मती] एक श्राविका का नाम (सुपा ६२२)। °य वि [°द] शान्ति-प्रदाता (उफ ७२८ टी)। °सूरि पुं [°सूरि] एक जैनाचार्यं और ग्रन्थकार (जी ५०)। °सोणिय पुं [°श्रेणिक] एक प्राचीन जैन मुनि (कप्प)। °हर पुं [°गृह] भगवान् शान्तिनाथजी का मन्दिर (पउम ६७, ५)। °होम पुं [°होम] शान्ति के लिए किया जाता हवन (विपा १, ५ — पत्र ६१)

संतिअ, संतिग :: वि [दे. सत्क] संबन्धी, संवन्ध रखनेवाला; 'अम्मा-पिउंसंतिए वद्धमाणे' (कप्प); 'नो कप्पइ निन्गंथाण वा निग्गंथीण वा सागरियसंतियं सेज्जासंथारयं आयाए अहिगरणं कट्‍टु संपव्वइत्तए' (कस; उव; महा; सं २०९; सुपा २७८; ३२२; पणह १, ३ — पत्र ४२)।

संतिज्जाघर :: देखो संति-गिह (महा ६८, ८)।

संतिण्ण :: वि [संतीर्ण] पार-प्राप्त, पार उतरा हुआ; 'संतिणणं सव्वभया' (अजि १२)।

संतुट्ठ :: वि [संतुष्ट] संतोष-प्राप्त (स्वप्‍न २०; महा)।

संतियट्ट :: वि [संत्वग्‍वृत्त] जिसने पार्श्‍वं घुमाया हो वह, जिसने करवट बदली हो वह, लेटा हुआ (णाया १, १३ — पत्र १७९)।

संतुलणा :: स्त्री [संतुलना] तुलना, तुल्यता, सरोखाई (सार्ध २०)।

संतुस्स :: अक [सं + तुष्] १ प्रसन्न होना। २ तृप्त होना। संतुस्सइ (सिरि ४०२)

संतेज्जाधर :: देखो संतिज्जाघर (महा ६८, १४)।

संतो :: अ [अन्तर्] मध्य, बीच; 'अंतो संतो च मध्यार्थे' (प्राकृ ७९)।

संतोस :: सक [सं + तोषय्] १ प्रसन्न करना, खुशी करना। २ तृप्त करना। कर्मं. संतोसीअदि (शौ) (नाट — रत्‍ना ४०)

संतोस :: पुं [संतोष] तृप्ति, लोभ का अभाव; 'हरइ अणूवि परगुणो गरुयम्मिवि णियगुणे न संतोसो' (गउड; कुमा; पणह १, ५ — पत्र ९३; प्रासू १७७; सुपा ४३९)।

संतोसि :: स्त्री [संतोषि] सन्तोष, तृष्टि, तृप्ति (उवा)।

संतोसि :: वि [संतोषिन्] १ सन्तोष-युक्त, लोभ-रहित, निर्लोभी, तृप्त (सूअ १, १२, १५; सुपा ४३९) २ अग्‍नन्दित, खुशी (कप्पू)

संतोसिअ :: पुं [संतोषिक] संतोष, तृप्ति (उवा १६)।

संतोसिअ :: वि [संतोषित] संतुष्ट किया हुआ (महा; सण)।

संथ :: वि [संस्थ] संस्थित (विसे ११०१)।

संथड, संथडि :: वि [संस्तृत] १ आच्छादित, परस्पर के संश्‍लेष से आच्छादित (भग; ठा ४, ४) २ धन, निबिड़ (आचा २, १, ३, १०) ३ व्याप्‍त (उत्त २१, २२; ओघ ७४७) ४ समर्थ। ५ तृप्‍त, जिसने पर्याप्‍ति भोजन किया हो वह (कस, आचा २, ४, २, ३; बस ७, ३३)। ६ एकत्रित आचा २, १, ३, १)।

संथण :: अक [सं + स्तन्] आक्रन्द करना। संथणती (सूअ १, २, ३, ७)।

संथर :: सक [सं + स्तृ] १ बिछौना करना, बिछाना। २ निस्तार पाना, पार जाना। ३ निर्वाह करना। ४ अक. समर्थं होना। ५ तृप्‍त होना। ६ होना, विद्यमान होना। संथरइ (भग २, १ — पत्र १२७; उवा; कस); 'ण समुच्छे णो संथरे तणं' (सूअ १, २, २, १३ आचा), संथरिज्ज, संथरे, संथरेज्जा (कप्प; दस ५, २, २; आचा)। वकृ. संथर°, संथरंत, संथरमाण (उवर १४२; ओघ १८२; १८१; आचा २, ३, १, ८)। संकृ. संथरित्ता (भग; आचा)

संथर :: पुं [संस्तर] निर्वाह (पिंड ३७५; ४००)।

संथर :: देखो संथार (सुर २, २४७)।

संथरण :: न [संस्तरण] १ निर्वाह (बृह १) २ बिछौना करना (राज)

संथव :: सक [सं + स्तु] १ स्तुति करना, श्लाघा करना। २ परिचय करना। संथवेज्जा (सूअ १, १०, ११)। कृ. संथवियव्व (सुपा २)

संथव :: पुं [संस्तव] १ स्तुति, श्लाघा, 'संथवो थुई' (निचू २; वव ३; पिंड ४८४) २ परिचय, संसर्गं (उवा; पिंड ३१०; ४८४; ४८५; श्रावक ८८) ३ वि. स्तुति-कर्ता (णाया १, १६ टी — पत्र २२०; राज)

संथवण :: न [संस्तवन] ऊपर देखो (संबोध ५९; उप ७६८ टी)।

संथवय :: वि [संस्तावक] स्तुति-कर्ता (णाया १, १६ — पत्र २१३)।

संथविअ :: देखो संठविअ (पउम ८३, १०)।

संथार, संथारग, संथारय :: पुं [संस्तार] १ दर्भ — कुश आदि की शय्या, बिछौना (णाया १, १ — पत्र ३०, उवा; उव; भग) २ अपवरक, कमरा (आचा २, २, ३, १) ३ उपाश्रय, साधु का वास-स्थान (वव ४) ४ संस्तार-कर्ता (पव ७१)

संथाव :: देखो संठाव। वकृ. संथावंत (पउम १०३, २४)।

संथावण :: न [संस्थापन] सान्त्वना, समाश्वासन (पउम ११, २०; ४९, ८; ९५, ४७)। देखो संठावण।

संथावणा :: स्त्री [संस्थापना] संस्थापन, रखना (सा २४)। देखो संठावणा।

संथिद :: (शौ) देखो संठिअ (नाट — मृच्छ ३०१)।

संथुअ :: वि [संस्तुत] १ संबद्ध, संगत (सूअ १, १२, २) २ परिचित (आचा १, २, १, १) ३ जिसकी स्तुति की गई हो वह, श्‍लाघित (उत्त १, ४६; भवि)

संथुइ :: स्त्री [संस्तुति] स्तुति, श्‍लाधा, प्रशंसा (चेइय ४६६; सुपा ६५०)।

संथुण :: सक [सं + स्तु] स्तुति करना, श्लाघा करना। संथुणइ (उव; यति ९)। वकृ. संथुणमाण (पउम ८३, १०)। कवकृ. संथुणिज्जंत, संथुव्वंत (सुपा १९०; आक ७)। संकृ. संथुणित्ता (पि ४९४)।

संथुल :: वि [संस्थुल] रमणीय, रम्य, सुन्दर (चारु १६)।

संथुव्वंत :: देखो संथुण।

संद :: अक [स्यन्द्] १ झरना, टपकना। संदंति (सूअ १, १२, ७)

संद :: पुं [स्यन्द] १ झरन, प्रस्रव (से ७, ५९) २ रथ; 'रवि-संडु (? दु)व्व भमंतों (धर्मंवि १४४)

संद :: वि [सान्द्र] घन, निबिड़ (अच्चु ३७; विक्र २३)।

संदंस :: पुं [संदंश] दक्षिण हस्त; 'छिंदाविओ निवेणं कोववसा तहवि तस्स संदंसो' (कुप्र २३२)।

संदंसण :: न [संदंर्शन] दर्शन, देखना, साक्षात्कार (उप ३५७ टी)।

संदट्ट :: वि [संदष्ट] जो काटा गया हो वह, जिसको दंश लगा हो वह (हे २, ३४; कुमा ३, ८; षड्)।

संदट्ट, संदट्टय :: वि [दे] १ संलग्‍न, संयुक्‍त, संबद्ध (दे ८, १८; गउड; २३६) २ न. संघट्ट, संघर्ष (दे ८, १८)

संदड्‍ढ :: वि [संदग्ध] अति जला हुआ (सुर ९, २०५; सुपा ५६९)।

संदण :: पुं [स्यन्दन] १ रथ (पाअ; महा) २ भारतवर्षं में अतीत उत्सर्पिणी-काल में उत्पन्‍न तेइसवाँ जिनदेव (पव ७) ३ न. क्षरण, प्रस्रव। ४ वहन, बहना। ५ जल, पानी; 'जत्थ णं नइ निच्चोयगा निच्चसंदणा' (कप्प)

संदब्भ :: पुं [संदर्भ] रचना, ग्रंथन (उवर २०३; सण)।

संदमाणिया, संदमाणी :: स्त्री [स्यन्दमानिका, °नी] एक प्रकार का वाहन, एक तरह की पालकी (औप; णाया १, ५ — पत्र १०१; १, १ टी — पत्र ४३; औप)।

संदाण :: सक [कृ] अवलम्बन करना, सहारा लेना। संदाणइ (हे ४, ६७)। वकृ. संदाणंत (कुमा)। कवकृ. संदाणिज्जंत (नाट — मालती ११९)।

संदाणिअ :: वि [संदानित] बद्ध, नियन्त्रित (पाअ; से १, ६०; १३, ७१; सुपा ३; कुप्र ६६; नाट — मालती १६६)।

संदामिय :: वि [संदामित] ऊपर देखो (स ३१६; सम्मत्त १९०)।

संदाव :: देखो संताव = संताप (गा ८१७; ९९४; पि २७५; स्वप्‍न २७; अभि ९१; माल १७६)।

संदाव :: पुं [संद्राव] समूह, समुदाय (विसे २८)।

संदिट्ठ :: वि [संदिष्ट] १ जिसका अथा जिसको संदेशा दिया गया हो वह, उपदिष्ट, कथित (पाअ; उप ७२८ टी; ओघभा ३१; भवि) २ जिसको आज्ञा दी गई हो वह; 'हरिणोगमेसिणा सक्कवयणसंदिट्ठेण' (कप्प) ३ छँटा हुआ, छिलका निकला हुआ (चावल आदि) (राय ६७)

संदिद्व :: वि [संदिग्ध] संशय-युक्‍त, संदेहवाला (पाअ)।

संदिन्न :: न [संदत्त] उनतीस दिनों का लगातार उपवास (संबोध ५८)।

संदिय :: वि [स्यन्दित] क्षरित, टपका हुआ (सुर २, ७६)।

संदिर :: वि [स्यन्दितृ] झरनेवाला (सण)।

संदिस :: सक [सं + दिश्] १ संदेशा देना, समाचार पहुँचाना। २ आज्ञा देना। ३ अनुज्ञा देना, सम्मत्ति देना। ४ दान के लिए संकल्प करना। संदिसइ (षड्; महा), संदिसह (पडि)। कवकृ. संदिस्संत (पिंड २३६)। प्रयो., संकृ. संदिसाविऊण (पंचा ५, ३८)

संदिसण :: न [संदेसन] उपदेश, कथन; 'कुलनी- इट्ठिइभंगप्पमुहाणेगप्पओससदंसणं' (संबोध १५)।

संदीण :: पुं [संदीन] १ द्वीप-विशेष, पक्ष या मास आदि में पानी से सराबोर होता द्वीप। २ अल्पकाल तक रहनेवाला दीपक। ३ श्रुतज्ञान। ४ क्षोभ्य, क्षोभणीय (आचा १, ६, ३, ३)

संदीवग :: वि [संदीपक] उत्तेजक, उद्दीपक; 'कामग्गिसंदीवगं' (रंभा)।

संदीवण :: न [संदीपन] १ उत्तेजना, उद्दीपन (सबोध ४८; नाट — उत्तर ५९) २ वि. उत्तेजन का कारण, उद्‌दीपन करनेवाला (उत्तम ८८)

संदीविय :: वि [संदीपित] उत्तेजित, उद्‍दीपित (भवि)।

संदुक्ख :: अक [प्र + दीप्] जलना, सुलगना। संदुक्खइ (षड्)।

संदुट्ठ :: वि [संदुष्ट] अतिशय दुष्ट (संबोध ११)।

संदुम :: अक [प्र + दीप्] जलना, सुलगना। संदुमइ (हे ४, १५२; कुमा)।

संदुमिअ :: वि [प्रदीप्त] जला हुआ, सुलगा हुआ (पाअ)।

संदेव :: पुं [दे] १ सीमा, मर्यादा। २ नदी- मेलक, नदी-संगम (दे ८, ७)

संदेस :: पुं [संदेश] सँदेशा, समाचार (गा ३४२; ८३३; हे ४, ४३४; सुपा ३०१; ५१९)।

संदेह :: पुं [संदेह] संशय, शंका (स्वप्‍न ६६; गउड; महा)।

संदोह :: पुं [संदोह] समूह, जत्था (पाअ; सुर २, १४६; सिरि ५६४)।

संध :: सक [सं + धा] १ साँधना, जोड़ना। २ अनुसंधान करना, खोज करना। ३ वाँछना, चाहना। ४ वृद्धि करना, बढ़ाना। ५ करना; 'भग्गं व संधइ रहं सो' (कुप्र १०२), संधइ, संधए (आचा; सूअ १, १४, २१; १, ११, ३४; ३५)। भवि. संधिस्सामि, संधिहिसि (पि ५३०)। वकृ. संधंत (से ५, २४)। कवकृ. संधिज्जमाण (भग)। हेकृ. संधिउं (कुप्र ३८१)

संध° :: देखो संझ° (देवेन्द्र २७०)।

संधण :: स्त्रीन [संधान] १ साँधा, संथि, जोड़ (धर्मंसं १०१७) २ अनुसंधान (पंचा १२, ४३)। स्त्री. °णी (आचानि १७५; सूअनि १६७; ओघ ७२७)

संधणया :: स्त्री [संधना] साँघना, जोड़ना (वव १)।

संधय :: वि [संधक] संघात-कर्ता (दस ९, ट ४, ५)।

संधया :: देखो संध = सं + धा। संधयाती (सूअ २, ६, २)।

संधा :: स्त्री [संधा] प्रतिज्ञा, नियम (श्रा १२; उप पृ ३३३; सम्मत्त १७१)।

संधाण :: न [संधान] १ दो हाड़ों का संयोग- स्थान (सुर १२, ६) २ संधि, सुलह (हम्मीर १५) ३ मद्य, सुरा, दारू (धर्मंसं ५९) ४ जोड़, संयोग, मिलान (आचा; कुमा; भवि) ५ अचरा, नोबू आदि का मसाला दिया खाद्य-विशेष (पव ४)

संधारण :: न [संधारण] सान्त्वना, आश्‍वासन (स ४१६)।

संधारिअ :: वि [दे] योग्य, लायक (दे ८, १)।

संधारिअ :: वि [संधारित] रखा हुआ, स्थापित (णाया १, १ — पत्र ६६)।

संधाव :: सक [सं + धाव्] दौड़ना। संधावइ (उत्त २०, ४६)।

संधि :: पुंस्त्री [संधि] १ छिद्र, विवर। २ संधान, उत्तरोत्तर पदार्थ-परिज्ञान (सूअ १, १, १, २०; २१; २२; २३; २४)। ३ व्याकरण-प्रसिद्ध दो अक्षरों के संयोग से हेने वाला वर्णं-विकार (पणह २, २ — वत्र ११४) ४ सेंध, चोरी के लिए भीत में किया जाता छेद (चारु ६०; महा; हास्य ११०) ५ दो हाड़ों का संयोग-स्थान; 'थक्काओ सव्व- संधीओ' (सुर ४, १६५, १२, १६९; जी १२) ६ मत्त, अभिप्राय; 'अहवा विचित्त- संधिणो हि पुरिसा हवंति' (स २९) ७ कर्मं, कर्म-संतसि (आचा; सूअ १, १, १, २०) ८ सम्यग् ज्ञान की प्राप्‍ति। ९ चारित्र- मोहनीय कर्म का क्षयोपशम। १० अवसर, समय, प्रसंग। ११ मीलन, संयोग (आचा) १२ दो पदार्थों का संयोग-स्थान (विपा १, ३ — पत्र ३९; महा) १३ मेल के लिए कतिपय नियमों पर मित्रता-स्थापन, सुलह (कप्पू; कुमा ६, ४०) १४ ग्रंथ का प्रकरण, अध्याय, परिच्छेद (भवि)। °गिह न [°गृह] दो भीतों के बीच का प्रच्छन्‍न स्थान (कप्प)। °च्छेयग, °छेयग वि [°च्छेदक] सेंध लगा कर चोरी करनेवाला (णाया १, १८ — पत्र २३६; विपा १, ३ — पत्र ३९)। °पाल, °वाल वि [°पाल] दो राज्यों की सुलह का रक्षक (कप्प; औप; णाया १, १ — पत्र १९)

संधिअ :: वि [दे] दुर्गंन्धि, दुर्गंन्धवाला (दे ८, ८)।

संधिअ :: वि [संहित] साँधा हुआ, जोड़ा हुआ (से १, ५४; गा ५३; स २६७; तंदु ३९; वज्जा ७०)।

संधिअ :: वि [संधित] प्रसारित (गउड)।

संधिआ :: देखो संहिया (ओघ ६२)।

संधिउं :: देखो संध = सं + धा।

संधित :: देखो संधिअ = संहित (भग)।

संधिविग्गहिअ :: पुं [सान्धिविग्रहिक] राजा की संधि और लड़ाई के कार्य में नियुक्त मन्त्री (कुमा)।

संधीर :: सक [सं + धीरय्] आश्वासन देना, धीरज देना। वकृ. संधीरंत (सुपा ४७६)।

संधीरविय :: वि [संधीरित] जिसको आश्वासन दिया गया हो वह, आश्वासित (सुर ४, १११)।

संधुक्क :: अक [प्र + दीप्, सं + धुक्ष्] १ जलना, सुलगना। २ सक. जलाना। ३ उत्तेजित करना। संधुक्कइ (हे ४, १५२; कुमा)। कर्मं. संधुक्किज्जइ (वज्जा १३०)

संधुक्कण :: न [संधुक्षण] १ सुलगना, जलना। २ प्रज्वालन सुलगाना (भवि) ३ वि. सुलगानेवाला (स २४१)

संधुक्किअ :: वि [संधुक्षित] १ जलाया हुआ, सुलगाया हुआ (सुपा ५०१) २ जला हुआ, प्रदीप्‍त, सुलगा हुआ (पाअ; महा; स २७) ३ उत्तेजित; 'अविवेयपवणसंधुक्किओ पज्ज- लिओ मे मणम्मि कोवाणलो' (स २४१)

संधुच्छिद :: (शौ) ऊपर देखो (नाट — मृच्छ २३३)।

संधुम :: देखो संदुम। संधुमइ (षड्)।

संधे :: देखो संध = सं + धा। संधेइ, संधेंति, संधेज्जा (आचा १, १, १, ५; पि ५००; सूअ १, ४, १, ५)। वकृ. संधेंत, संधेमाण (पउम ९८, ३१; पंचा १४, २७; आचा; पि ५००)।

संन :: देखो संण (आचा १, ५, ६, ४)।

संनक्खर :: न [संज्ञाक्षर] अकार आदि अक्षरों की आकृति (णंदि १८७)।

संनज्झ :: देखो संणज्झ। संनज्जइ (भवि)। संकृ. संनिज्झिऊण (महा)। ङेकृ. संनिज्झिउं (स ३७९)।

संनण :: न [संज्ञान] इशारा करना, संज्ञा करना (उप २९०)।

संनत :: देखो संनय (पणह १, ४ — पत्र ७८)।

संनद्ध :: देखो संणद्ध (औप; विपा १, २ टी — पत्र २३)।

संनय :: वि [संनत] नमा हुआ, अननत (औप; वज्जा १५०)।

संनव :: सक [सं + ज्ञापय्] संभाषण से संतुष्ट करना। संनवेइ (राय १४०)।

संनह :: देखो संणज्झ। संनहइ (भवि), संनहह (धर्मंवि २०)।

संनहण :: न [संनहन] संनाह (पउम १०, ६४)।

संनहिय :: देखो संणद्ध (सुपा २२)।

संना :: देखो संणा (ठा १ — पत्र १९; पणह १, ३ — पत्र ५५; पाअ; सुर ३, ६७; पिंड २४५; उप ७५१; दं ३)।

संनाय :: वि [संज्ञात] पिछाना हुआ, पहिचाना हुआ; 'संनाया परियणेण' (महा)। देखो संणाय (पव १५३)।

संनाह :: देखो संणाह = सं + नाहय्। संनाहेइ (औप; तंदु ११)। संकृ. संनाहित्ता (तंदु ११)।

संनाह :: देखो संणाह = संनाह (महा)।

संनाहिय :: वि [संनाहित] तय्यार किया हुआ, सजाया हुआ (औप)।

संनाहिय :: देखो संणाहिये (णाया १, १६ — पत्र २१७)।

संनि :: देखो संणि (सम २; ठा २, २ — पत्र ५९; जी ४३; कम्म १, ६)।

संनिकास :: देखो संनिगास (ठा ९ — पत्र ४५९, कप्प)।

संनिकिट्ठ :: वि [संनिकृष्ट] आसन्न, समीप में स्थित (सुख ४, ८)।

संनिक्खित्त :: वि [संनिक्षिप्त] डाला हुआ, रखा हुआ (कप्प)।

संनिगास :: वि [संनिकाश] १ समान, तुल्य (भग २, १; णाया १, १ — पत्र २५; औप; स ३८१) २ पुं. अपवाद (पंचु) ३ पुंन. समीप, पास (पउम ३६, २८)

संनिगास :: पुं [संनिकर्षं] संयोग; 'संजोग संनिगासो पडुच्च संबंध एगट्ठा' (णंदि १२८ टी)।

संनिचय :: पुं [संनिचय] १ निचय, समूह (आचा) २ संग्रह (आचा १, २, ५, १)

संनिचिय :: वि [संनिचित] निबिड़ किया हुआ (पव १५८; जीवस ११९)।

संनिजुज :: सक [संनि + युज्] अच्छी तरह जोड़ना। कवकृ. संनिजुज्जंत (पिंड ४५५)।

संनिज्झ :: न [सांनिध्य] सहायता करने के लिए समीप में आगमन, निकटता (स ३८२)।

संनिनाय :: पुं [संनिनाद] प्रतिध्वनि, प्रतिशब्द (कप्प)।

संनिभ :: देखो संनिह (णाया १, १ — पत्र ४८; उवा; औप १)।

संनिमहिअ :: वि [संनिमहित] १ व्याप्‍़त, पूर्णं, भरा हुआ। २ पूजित; 'चंपा नाम नयरी पंडुरवरभवणसंनिमहियाँ' (औप; णाया १, १ टी — पत्र ३), 'अत्थि मगहा जणवओ गामसतसंनिमहिओ' (वसु)

संनिय :: देखो संणिय (सिरि ८६०; भवि)।

संनिवट्ट :: वि [संनिवृत्त] रुका हुआ, विरत। °यारि वि [°चारिन्] प्रतिषिद्ध का वर्जन करनेवाला (कप्प)।

संनियास :: देखो संनिगास (पउम ३३, ११९)।

संनिलयण :: न [संनिलयन] आश्रय, आधार; 'लोभधत्था संसारं अतिवयंति सव्वदुक्खसंनि- लयणं' (पणह १, ५ — पत्र ९४)।

संनिवइय :: देखो संणिपडिअ (णाया १, १ — पत्र ६५)।

संनिवाइ :: वि [संनिपातिन्] संयोगी, सम्बन्धी; 'सव्वक्खरसंनिवाइणो' (कप्प; औप; सम्मत्त १४४)।

संनिवाइ :: वि [संनिवादिन्] संगत बोलनेवाला, व्याजबी कहनेवाला (भग १, १ — पत्र ११)।

संनिवाइय :: वि [सांनिपातिक] संनिपात रोग से सम्बन्ध रखनेवाला (णाया १, १ — पत्र ५०; तंदु १९; औप ८७)। २ भाव-विशेष, अनेक भावों के संयोग से बना हुआ भाव (अणु ११३; कम्म ४, ६४; ६८) ३ पुं. संनिपात, मेल, संयोग (अणु ११३)

संनिवाइय :: वि [संनिपातिक] देखो संनि- वाइ; 'सव्वक्खरसंनिवाइयाए' (औप ५६)।

संनिवाडिय :: वि [संनिपातित] विध्वस्त किया हुआ (णाया १, १६ — पत्र २२३)।

संनिवाय :: पुं [संनिपात] संयोग, सम्बन्ध (कप्प; औप)।

संनिविट्ठ :: न [संनिविष्ट] १ मोहल्ला, रथ्या (औप) २ वि. जिसने पड़ाव डाला हो वह, नगर करे बाहर पड़ाव डालकर पडा हुआ (कस) ३ संहत और स्थिर आसन से व्यवस्थित-बैठा हुआ (णाया १, ३ — पत्र ९१; राय २७)

संनिवेस :: पुं [संनिवेश] १ नगर के बाहर का प्रदेश, जहाँ आभीर वगैरह लोग रहते हों। २ गाँव, नगर आदि स्थान (भग १, १ — पत्र ३६) ३ यात्री आदि का डेरा, मार्ग का वास-स्थान, पड़ाव (उत्त ३०, १७) ४ ग्राम, गाँव (सिरि ३८) ५ रचना (उप पृ १४२)

संनिवेसणया :: स्त्री [संनिवेशना] संस्थापन (उत्त २९, १)।

संनिपीसिल्ल :: वि [संनिवीशन्] रचनावाला, (उप पृ १४२)।

संनिपन्न :: वि [संनिपण्ण] बैठा हुआ, सम्यक् स्थित (णाया १, १ — पत्र १९; कुप्र १६९; श्रु १२; सण)।

संनिसिज्जा, संनिसेज्जा :: स्त्री [संनिषद्या] आसन- विशेष, पीठ आदि आसन (सम २१; उत्त १६, ३; उव)।

संनिह :: वि [संनिभ] समान, सदृश (प्रासू ९६; सण)।

संनिहाण :: न [संनिधान] १ ज्ञानावरणीय आदि कर्मं (आचा) २ कारक-विशेष, अधि- करण कारक, आधार (विसे २०९९; ठा ८ — पत्र ४२७) ३ सान्निव्य, निकटता (स ७१८; ७६१)। °सत्थ न [°शस्त्र] संयम, त्याग (आचा)। °सत्थ न [°शास्त्र] कर्मं का स्वरूप बतानेवाला शास्त्र (आचा)

संनिहि :: पुंस्त्री [संनिधि] १ उपभोग के लिए स्थापित वस्तु (आचा १, २, १, ४) २ संस्थापन। ३ सुन्दर निधि (आचा १, २, ५, १) ४ समीपता, निकटता (उफ पृ १५९; स ६८०; कुप्र १३०) ५ संचय, संग्रह (उत्त ६, १५; दस ३, ३; ८, २४)

संनिहिअ :: पुं [संनिहित] अणपन्नि देवों के दक्षिण दिशा का इन्द्र (ठा २, ३ — पत्र ८५)। देखो संणिहिअ (णाया १, १ टी — पत्र ४)।

संनेज्झ :: देखो संनिज्झ; 'उवगारि त्ति करेइ कुमरस्स सन्नेज्जं (? ज्झं)' (कुप्र २५; चेइय ७८३)।

संपअ, संपइ :: (अप) देखो संपया (पिंग; पि ४१३; हे ४, ३३५; कुमा)।

संपइ :: अ [संप्रति] १ इस समय, अधुना, अब (पाअ; महा; जी ५०; दं ४६; कुमा) २ पुं. एक प्रसिद्ध जैन राजा, सम्राट् अशोक का पौत्र (कुप्र २; धर्मंवि ३७; पुप्फ २६०)। °काल पुं [°काल] वर्तमान काल (सुपा ४४९)। °कालीण वि [°कालीन] वर्तंमान- काल-सम्बन्धी (विसे २२२६)

संपइण्ण :: वि [संप्रकीर्ण] व्याप्‍त (राज)।

संपउत्त :: वि [संप्रयुक्त] संयुक्त, संबद्ध, जोड़ा हुआ (ठा ४, १ — पत्र १८७; सूअ २, ७, २, उवा; औप; धर्मंसं ६९५; राय १४६)।

संपओग :: पुं [संप्रयोग] संयोग, संबन्ध (ठा ४, १ — पत्र १८७; स ६१४; उप ७२८ टी; कुप्र ३७३; औप)।

संपकर :: देखो संपगर। संपकरेइ (उत्त २१, १६)।

संपक्क :: पुं [संपर्क] सम्बन्ध (सुपा ५८; सम्मत्त १४१)।

संपक्कि :: वि [संपर्किन्] संपर्कवाला, संबन्धी (कप्पू; काप्र १७)।

संपक्खाल :: पुं [संप्रक्षाल] तापस का एक भेद जो मिट्टी वगैरह घिस कर शरीर का प्रक्षालन करते हैं (औप)।

संपक्खालिय :: वि [संप्रक्षालित] धोया हुआ (धर्मं ३)।

संपक्खित्त :: वि [संप्रक्षिप्त] प्रक्षिप्‍त, फेंका हुआ, डाला हुआ (पुंच ५, १५७)।

संपगर :: सक [संप्र + कृ] करना। संपगरेइ (उत्त २१, १६)।

संपगाढ :: वि [संप्रगाढ] १ अत्यन्त आसक्त (उत्त २०, ४५; सूअ २, ६, २२) २ व्याप्‍त (सूअ १, ५, १, १७) ३ स्थित, व्यवस्थित (सूअ १, १२, १२)

संपगिद्ध :: वि [संप्रगृद्ध] अति आसक्त (पणह १, ४ — पत्र ८५)।

संपग्गहिअ :: वि [संप्रगृहीत] खूब प्रकर्ष से गृहीत, विशेष अभिमान-युक्त (दस ९, ४, २)।

संपज्ज :: अक [सं + पद्] १ संपन्‍न होना, सिद्ध होना। २ मिलना। संपज्जइ (षड्; महा)। भवि. संपज्जिस्सइ (महा)

संपज्जलिअ :: पुं [संप्रद्वलित] तीसरा नरक का नववाँ नरकेन्द्रक, नरकावास-विशेष (देवेन्द्र ९)।

संपट्ठिअ :: देखो संपत्थिअ = संप्रस्थित (उफ १४२ टी; औप; संबोध ५५; सुपा ७७; उपपृ १५८)।

संपड :: अक [सं + पद्] १ प्राप्‍त होना, मिलना; गुजराती में 'सांपडवुं'। २ सिद्ध होना, निष्पन्न होना। संपडइ, संपडंति (वज्जा ११६; समु १५८; वज्जा ५०)। वकृ. संपडंत (से १४, १; सुर १०, ९७)

संपडिअ :: वि [दे. संपन्न] लब्ध मिला हुआ, प्राप्‍त (दे ८, १४; स २५८)।

संपजिबूह :: सक [संप्रति + बृंह] प्रशंसा करना, तारीफ करना। संपडिवूहति (सूअ २, २, ५५)।

संपडिलेह :: सक [संप्रति + लेखय्] प्रति- जागरण करना, प्रत्युपेक्षण करना, अच्छी तरह निरीक्षण करना। संपडिलेहए (उत्त २६, ४३)। कृ. संपडिलेहिअव्व (दसचू १, १)।

संपडिवज्ज :: सक [संप्रति + पद्] स्वीकार करना। संपडिवज्जइ (भग)।

संपडिवत्ति :: स्त्री [संप्रतिपत्ति] स्वीकार, अंगीकार (विसे २६१४)।

संपडिवाइअ :: वि [संप्रतिपादित] स्थित (उत्त २२, ४६; सुख २२, ४६)। २ स्थापित (दस २, १०)

संपडिवाय :: सक [संप्रति + पादय्] संपादन करना, प्राप्‍त करना। संपडिवायए (दस ९, २, २०)।

संपणदिय, संपणाद्दिय :: देखो संपाणाइय (राज; कप्प)।

संपणा :: देखो संपण्णा (दे ८, ८)।

संपणाइय, संपणादिय :: वि [संप्रणादित] समी- चीन शब्दवाला; 'तुडियसद्दसं- पणाइया' (जीव ३, ४ — पत्र २२४; पत्र २२७ टी)।

संपणाम :: सक [संप्र + नामय्] अर्पण करना। संपणामए (उत्त २३, १७)।

संपणिपाअ, संपणिवाय :: पुं [सप्रणिपात] प्रणाम, समीचीन नमस्कार (पंचा ३, १८; चेइय २३७)।

संपणुण्ण :: वि [संप्रनुन्न] प्रेरित, उत्तेजित; 'अक्खंडचंडानिलसंपणुणणविलोलजालासयसं- कुलम्मि' (उपपं ४५)।

संपणुल्ल, संपणोल्ल :: सक [संप्र + नुद्] प्रेरणा करना। संकृ. संपणुल्लिया, संपणोल्लिया (दस ५, १, ३०)।

संपण्ण :: देखो संपन्न (णाया १, १ — पत्र ६; हेका ३३१; नाट — मृच्छ ९)।

संपण्णा :: स्त्री [दे] धेबर या धीवर (मिष्टान्‍न- विशेष) बनाने का आटा, गेहूँ का वह आटा जिसका घृतपूर बनता है (दे ८, ८)।

संपत्त :: वि [संप्राप्त] १ सम्यक् प्राप्त (णाया १, १; उवा; विपा १, १; महा; जी ५०) २ समागत, आया हुआ (सुपा ४१९)

संपत्त :: पुंन [संपात्र] सुन्दर पात्र, सुपात्र (सुपा ४१९)।

संपत्ति :: स्त्री [संपत्ति] १ समृद्धि, वैभव, संपदा (पाअ; प्रासू ९६; १२८) २ संसिद्धि। ३ पूर्त्ति; 'तव दोहलस्स संपत्ती भविस्सइ' (विपा १, २ — पत्र २७)

संपत्ति :: स्त्री [संप्राप्ति] लाभ, प्राप्ति (चेइय ८९४; सुपा २१०)।

संपत्तिआ :: स्त्री [दे] १ बाला, कुमारी; लड़की (दे ८, १८; वज्जा ११६)। पिप्पली-पत्र, पीपल की पत्ती (दे ८, १८)

संपत्थिअ :: न [दे] शीघ्र, जलदी (दे ८, ११)।

संपत्थिय, संपत्थित :: वि [संप्रस्थित] १ जिसने प्रयाण किया हो वह, प्रयात, प्रस्थित (अंत २१; उप ६६६; सुपा १०७; ६५१; णाया १, २ — पत्र ३२)। उपस्थित; 'गहियाउहेहि जइवि हु रक्खिज्जइ पंजरोवरच्छो (? रुद्धो) वि। तहवि हु मरइ निरुत्तं पुरिसो संपत्थिए काले।।" (पउम ११, ६१)

संपदं :: अ [सांप्रतम्] १ युक्त, उचित (प्राकृ १२) २ अधुना, अब (अभि ५६)

संपदत्त :: वि [संप्रदत्त] दिया हुआ, अर्पित (महा; प्राप)।

संपदाण :: देखो संपयाण (णाया १, ८ — पत्र १५०; आचा २, १५, ५)।

संपदाय :: पुं [संप्रदाय] गुरु-परंरागत उपदेश, आम्‍नाय (संबोध ५३; धर्मंसं १२३७)।

संपदावण :: न [संप्रदापन, संप्रदान] कारक- विशेष, 'ततिआ करणम्मि कता चउत्थी संपदावणे' (ठा ८ — पत्र ४२७)।

संपदि :: देखो संपइ = संप्रति (प्राकृ १२)।

संपदि :: देखो संपत्ति = संपत्ति (संक्षि ९; पि २०४)।

संपधार :: देखो संपहार = संप्र + धारय्। संपधारेदि (शौ) (नाट — मृच्छ २१६)। कर्मं. संपधारीअदु (शौ) (पि ५४३)।

संपधारणा :: स्त्री [संप्रधारणा] व्यवहार-विशेष, धारणा-व्यवहार (वव १०)।

संपधारिय :: वि [संप्रधारित] निश्रित, निर्णीत (सण)।

संपधूमिय :: वि [संप्रधूमित] धूप-वासित, धूप दिया हुआ (कस; कप्प; आचा २, २, १, १)।

संपन्न :: वि [संपन्न] १ संपत्ति-युक्‍त (भग; महा; कप्प) २ संसिद्ध (विपा १, २ — पत्र २९)

संपप्प :: देखो संपाव।

संपबुज्ज :: अक [संप्र + बुध्] सत्य ज्ञान को प्राप्त करना। संपबुज्झंति (पंचा ७, २३)।

संपुमज्ज :: सक [संप्र + मृज्] मार्जन करना, झाड़ना, साफ-सूफ करना। संपमज्जेइ (औप ४४)। संकृ. संपमज्जेत्ता, संपमज्जिय (औप; आचा २, १, ४, ५)।

संपमार :: सक [संप्र + मारय्] मूर्च्छित करना। संपमारए (आचा १, १, २, ३)।

संपय :: वि [सांप्रत] विद्यामान, वर्तमान; 'पाएण संपए च्चिय कालम्मि न याइदीहका- लारणा' (विसे ५१६)।

संपयं :: देखो संपदं (पाअ; महा; सुपा ५९८)।

संपयट्ट :: अक [संप्र + वृत्] सम्यक् प्रवृत्ति करना। संपयट्‍टेज्जा (धर्मंसं ९३१)। वकृ. संपयट्‍टंत (पंचा ८, १४)।

संपयट्ट :: वि [संप्रवृत्त] सम्यक् प्रवृत्त (सुर ४, ७९)।

संपया :: स्त्री [संपद्] १ समृद्धि, संपत्ति, लक्ष्मी, विभव (उवा; कुमा; सुर ३, ९८; महा; प्रासू ९६) २ वाक्यों का विश्राम- स्थान (पव १) ३ प्राप्‍ति; 'बोहीलाभो जिणधम्मसंपया' (चेइय ६३१; पव ६२)। ६२) ४ एक वणिक्-स्त्री का नाम (उफ ५९७ टी)

संपयाण :: न [संप्रदान] १ सम्यक् प्रदान, अच्छी तरह देनास समर्पण (आचाा २, १५, ५; गा ६८; सुपा २६८) २ कारक-विशेष, चतुर्थी-कारक, जिसको दान किया जाय वह (विसे २०९९)

संपयावण :: देखो संपदावण; चउत्थी संपयावेणे' (अणु १३३)।

संपराइग, संपराइय :: वि [संपरायिक] संपराय- संबन्धी, संपराय में उत्पन्‍न (ठा २, १ — पत्र ३९; सूअ १, ८, ८; भग; श्रावक २२६)।

संपराय :: पुं [संपराय] १ संसार, जगत् (सूअ १, ५, २, २३; दस २, ५) २ क्रोध आदि कषाय (ठा २, १ — पत्र ३९) ३ बादर कषाय, स्थूल कषाय (सूअ १, ८, ८) ४ कषाय का उदय (औप) ५ युद्ध, संग्राम, लड़ाई (णाया १, ९ — -पत्र १५७; कुप्र ४००; विक्र ८८; दस २, ५)

संपरिकित्ति :: पुं [संपरिकीर्त्ति] राक्षस वंश का एक राजा, एक लंका-पति (पउम ५, २६०)।

संपरिक्ख :: सक [संपरि + ईक्ष्] सम्यक् परीक्षा करना। संकृ. संपरिक्खाए (संबोध २१)।

संपरिक्खित्त, संपरिखित्त :: वि [संपरिक्षिप्त] वेष्टित (भग; पउम ३, २२; णाया १, १ टी — पत्र ४)।

संपरिफुड :: वि [संपरिस्फुट] सुस्पष्ट, अति व्यक्‍त (पउम ७८, १९)।

संपरिवुड :: वि [संपरिवृत्त] १ सम्यक् परि- वृत, परिवार-युक्त (विपा १, १ — पत्र १; उवा; औप) २ वेष्टित (सूअ २, २, ५५)

संपरी :: सक [संपरी + इ] पर्यंटन करना, भ्रमण करना। संपरीइ (विसे १२७७)।

संपल :: (अप) अक [सं + पत्] आ गिरना। संपलइ (पिंग)।

संपलग्ग :: वि [संप्रलग्‍न] १ संयुक्त, मिला हुआ। २ जो लड़ाई के लिए भिड़ गया हो वह (णाया १, १८ — पत्र २३९)

संपलत्त :: वि [संप्रलपित] उक्त, कथित, प्रतिपादित (णाया १, २ — पत्र ८६)।

संपललिय :: वि [संप्रललित] जिसका अच्छी तरह लालन हुआ हो वह; 'सुहसंपललिया' (औप)।

संपलिअ :: पुं [संपलित] एक जैन महर्षि (कप्प)।

संपलिअंक :: पुं [संपर्यङ्कं] पद्मासन (भग; औप; कप्प; राय १४५)।

संपलित्त :: वि [संप्रदीप्त] प्रज्वलित, सुलगा हुआ (णाया १, १ — पत्र ६३; पउम २२, १६; धर्मंसं ९७०; सुपा २९८; महा)।

संपलिमज्ज :: सक [संपरि + मृज्] प्रमा- र्जन करना। वकृ. संपलिमज्जमाण (आचा १, ५, ४, ३)।

संपली :: सक [संपरि + इ] जाना, गति करना। संपलिंति (सूअ १, १, २, ७)।

संपवेय, संपवेव :: अक [संप्र + वेप्] काँपना। संपवेयए, संपवेवए (आचा २, १६, ३)।

संपवेस :: पुं [संप्रवेश] प्रवेश, पैठ (गउड)।

संपव्वय :: सक [संप्र + व्रज्] गमन करना, जाना। वकृ. संपव्वयमाण (आचा १, ५, ५, ३; ठा ६ — पत्र ३५२)। हेकृ. संपव्व- इत्तए (कस)।

संपसार :: पुं [संप्रसार] एकत्रित होना, सम- वाय (राज)।

संपसारग, संपसारय :: वि [संप्रसारक] १ विस्ता- रक, फैलनानेवाला (सूअ १, २, २, २८) २ पर्यालोचनकर्ता (आचा १, ५, ४, ५)

संपसारि :: वि [संप्रसारिन्] ऊपर देखो (सूअ १, ९, १६)।

संपसिद्ध :: वि [संप्रसिद्ध] अत्यन्त प्रसिद्ध (धर्मंसं ८३७)।

संपस्स :: सक [स + दृश्] १ अच्छी तरह देखना। विचार करना। संकृ. संपस्सिय (दसचू १, १८)

संपहार :: सक [संप्र + धारय्] १ चिंतन करना। २ निर्णंय करना, निश्‍चय करना। संपहारेंति (सुख १, १५)। भूका. संपहारिंसु (सूअ २, १, १४; २९)। संकृ. संपहारिऊण (स १०६)

संपहार :: पुं [संप्रधार] निश्‍चय, निर्णंय (पउम १६, २६; उप १०३१ टी; भवि)।

संपहार :: पुं [संप्रहार] युद्ध, लड़ाई (से ८, ४६)।

संपहारण :: न [संप्रधारण] निश्‍चय (पउम ४८, ९८)।

संपहाव :: सक [संप्र + धाव्] दौड़ना। संप- हावेइ (आचा २, १, ३, ३)।

संपहिट्ठ :: वि [संप्रहृष्ट] हर्षित, प्रमुदित (उत्त (१५, ३)।

संपा :: स्त्री [दे] काँची, मेखला, करधनी (दे ८, २)।

संपाइअव :: वि [संपादितवत्] जिसने सम्पा- दन किया हो वह (हे ४, २६५; विसे ९३४)।

संपाइम :: वि [संपातिम] १ भ्रमर, कीट, पतंग आदि उड़नेवाला जंतु (आचा; पिंड २४; सुपा ४९१; ओघ ३४८) २ जानेवाला, गति-कर्त्ता; 'तिरिच्छसंपाइमा वा तसा पाणा' (आचा २, १, ३, ९; २, ३, १, १४)

संपाइय :: वि [संपातित] १ आगत, आया हुआ। २ मिलित, मिला हुआ (भवि)

संपाइय :: वि [संपादित] साधित, सिद्ध किया हुआ; 'संपाइयइट्टफलि' (सण)।

संपाऊण :: सक [संप्र + आप्] अच्छी तरह प्राप्‍त करना। संपाउणइ, संपाउणंति (उत्त २९, ५९; पि ५०४)। भवि. संपाउणिस्सामो (णाया १, १८ — पत्र २४१)। प्रयो. 'जेणप्पाणं परं तेव सिद्धिं संपाउणेज्जासि' (उत्त ११, ३२)।

संपाओ :: अ [संप्रातर्] १ जब प्रभात होय तब, प्रातःकाल। २ अति प्रभात, बड़ी सुबह। ३ हर प्रभात (ठा ३, १ टी — पत्र ११८)

संपागड :: वि [संप्रकट] प्रकट, खुलाा; 'संपा- गडपडिसेवी' (ठा ४, १ — पत्र २०३; उव)।

संपाड :: सक [सं + पादय्] १ सिद्ध करना, निष्पन्न करना। २ प्रार्थित वस्तु देना, दान करना। ४ प्राप्‍त करना, 'देइ सो जम्मग्गियं, संपाडेइ वत्थाभरणाइयं' (महा), 'संपाडेमि भयवओ आणं ति' (स ६८४), संपाडेउ (स ९६)। कृ. संपाडेयव्व (स २१४)

संपाडग :: वि [संपादक] कर्ता, निर्माता; 'ता को अन्नो तस्सुन्नईए संपाडगो होज्जा' (उप १४२ टी)।

संपाडण :: न [संपादन] १ निष्पादन (स ७४८) २ करण, निर्माण (पंचा ६, ३८), 'परत्थसंपाडणिक्करसिअत्तं' (सा ११)

संपाडिअ :: वि [संपादित] १ सिद्ध किया हुआ, निष्पादित (स २१४; सुर २, १७०) २ प्राप्‍त किया हुआ (उप पृ १२४) ३ दत्त, अर्पित (स २३५)

संपातो :: देखो संपाओ (ठा ३, १ — पत्र ११७)।

संपाद :: (शौ) देखो संपाड = सं + पादय्। संपादेदि (नाट — शकु ६५)। कृ. संपाद- णीअ (नाट — विक्र ६०)।

संपादइत्तअ :: (शौ)। वि [संपपादवितृ] संपादन-कर्ता, संपादक (पि ६००)।

संपादिअवद :: (शौ) देखो संपाइअव (पि ५८९)।

संपाय :: पुं [संपात] सम्यकपतन; 'सलिल- संपायकयकद्दमुप्पीलयं' (सुर ३, ११६)। २ संबन्ध, संयोग; 'सारीरमाणसाणेयदुक्खसंपा- यकलियं ति' (सुर ४, ७५; गउड) ३ व्यर्थं का झूठ, निरर्थंक असत्य-भाषण (पणह १, ५ — पत्र ९२)। संग, संगति (श्रा ६; पंचा १, ४१) ५ आगमन (पंचा ७, ७२) ६ चलन, हिलन (उत्त १८, २३; सुख १८; २३)

संपाय :: देखो संपाओ (राज)।

संपायग :: वि [संपादक] संपादन-कर्ता (उप पृ २९; महा; चेइय ९०५)।

संपायग :: वि [संप्रापक] १ प्राप्त करनेवाला; 'रिसिगुणसंपायगो होइ' (चेइय ९०५) २ प्राप्‍त करानेवाला (उप पृ २९)

संपायण :: देखो संपाडण (सुर ४, ७३; सुपा २८; ३४३; चेइय ७६७)।

संपायणा :: स्त्री [संपादना] ऊपर देखो (पंचा १३, १७)।

संपाल :: सक [सं + पालय्] पालन करना। संपालइ (भवि)।

संपाव :: सक [संप्र + आप्] प्राप्त करना। संपावेइ (भवि)। संकृ. संपप्पं (संवेग १२)। हेकृ. संपाविउ° (सम १; भग; सौप)।

संपाव :: सक [संप्र + आपय्] प्राप्‍त करवाना। संपावेइ (उवा)।

संपावण :: न [संप्रापण] प्राप्‍ति, लाभ (णाया १, १८ — -पत्र २४१; सुर १४, ५७)।

संपाविअ :: वि [संप्राप्त] प्राप्त, लब्ध (सुर २, २२६; सुपा १९५; सण)।

संपाविअ :: वि [संप्रापित] नीत, जो ले जाया गया हो वह (राज)।

संपासंग :: वि [दे] दीर्घं, लम्बा (दे ८, ११)।

संपिंडण :: न [संपिण्डन] १ द्रव्यों का परस्पर संयोजन (पिंड २) २ समूह (ओघ ४०७)

संपिंडिअ :: वि [संपिण्डित] पिण्डाकार किया हुआ, एकत्र किया हुआ (औष; जी ४७; सण)।

संपिक्ख :: देखो संपेह = संप्र + ईक्ष्। संपि- क्खई (दसू २, १२)।

संपिट्ठ :: वि [संपिष्ट] पिसा हुआ, (सूअ १, ४, ८)।

संपिणद्ध :: वि [संपिनद्ध] नियन्त्रित; 'रज्जु- पिणिद्धो व इंदकेतू विसुद्धणेगगुणसंपिणद्धं' (पणह २, ४ — पत्र १३०)।

संपिहा :: सक [समपि + धा] आच्छादन करना, ढकना। संकृ. संपिहित्ताणं (पि ५८३)।

संपीड :: पुं [संपीड] संपीडन, दबाना (गउड)। देखो संपील।

संवीडिअ :: वि [संपीडित] दबाया हुआ (गउड; १४४)।

संपीणीअ :: वि [संप्रीणित] खुश किया हुआ (सण)।

संपील :: पुं [संपीड] संघात, समूह (उत्त ३२, २६)।

संपीला :: स्त्री [संपीडा] पीड़ा, दुःखानुभव (उत्त ३२, ३९; ५२; ६५ ७८)।

संपुच्छ :: सक [सं + प्रच्छ्] पूछना, प्रश्‍न करना। संपुच्छदि (शौ) (नाट — विक्र २१)।

संपुच्छण :: स्त्रीन [संप्रच्छन, संप्रश्‍न] प्रश्‍न, पृच्छा (सूअ १, ९, २१; सुपा २१)। स्त्री. °णी (दस ३, ३)।

संपुंच्छणी :: स्त्री [संपुच्छनी] झाडू, संमार्जंनी (राय २१)।

संपुज्ज :: वि [संपूज्य] संमाननीय, आदरणीय (पउम ३३, ४७)।

संपुड :: पुं [संपुट] १ जुड़े हुए दो समान अंश वाली वस्तु, दो समान अंशो का एक दूसरे से जुड़ना; 'कवाडसंपुड़घणम्मि' (धण ३), 'दलसंपुडे' (कप्पू; महा; भवि; से ७, ५९) २ संचय, समूह (सूअ १, ५, १, २३)। °फलग पुं [°फलक] दोनों तरफ जिल्द बँधी पुस्तक, हिसाब की बही के समान किताब (पव ८०)

संपुड :: सक [संपुटय्] जोड़ना, दोनों हिस्सों को मिलाना। संपुडइ (भवि)।

संपुडिअ :: वि [संपुटित] जुड़ा हुआ (णाया १, १ — पत्र ६३)।

संपुण्ण :: वि [संपूर्ण] १ पूर्णं, पूरा (उवा; महा) २ न. दश दिनों का लगातार उपवास (संबोध ५८)

संपूअ :: सक [सं + पूजय्] सम्मान करना, अभ्यर्चना करना। संकृ. संपूइऊण (पंचा ८, ७)।

संपूजिय :: वि [संपूजित] अभ्यर्चित (महा)।

संपूयण :: न [संपूजन] पूजन, अभ्यर्चन (सूअ १, १०, ७; धर्मंसं ६३४)।

संपूरिय :: वि [संपूरित] पूर्णं किया हुआ, 'संपूरियदोहला' (महा; सण)।

संपेल्ल :: पुं [संपीड] दबाब (पउम ८, २७२)।

संपेस :: सक [संप्र + इष्] भोजना। संपेसइ (महा; भवि)।

संपेस :: पुं [संप्रेष] प्रेषण, भेजना (णाया १, ८ — पत्र १४७)।

संपेसण :: न [संप्रेषण] ऊपर देखो (णाया १, ८ — पत्र १४६; स ३७६; गउड; भवि)।

संपेसिय :: वि [संप्रेषित] भेजा हुआ (सुर १६, ११५)।

संपेह :: सक [संप्र + ईक्ष्] देखना, निरीक्षण करना। संपेहइ, संपेहेइ (दसचू २, १२; पि ३२३; भग; उवा; कप्प)। संकृ. संपेहाए, संपेहित्ता (आचा १, २, ४, ४; १, ५, ३, २; सूअ २, २, १; भग)।

संपेहा :: स्त्री [संप्रेक्षा] पर्यालोचन (आचा १, २, २, ६)।

संफ :: न [दे] कुमुद, चन्द्र-कमल (दे ८, १)।

संफाल :: सक [सं + पाटय्] फाड़ना, चीरना। संफालइ (भवि)।

संफाली :: स्त्री [दे] पंक्‍ति, श्रेणि (दे ८, ५)।

संफास :: सक [सं + स्पृश्] स्पर्श करना, छूना; 'माइट्ठाणं संफासे' (आचा २, १, ३, ३; २, १, ५, ५; २, १, ९, २; ४; ५)।

संफास :: पुं [संस्पर्श] स्पर्शं (आचा; उप ६४८ टी; पव २ टी; हे १, ४३; पडि)।

संफासण :: न [संस्पर्शन] ऊपर देखो; 'आणाविरियसंफासणभावतो' (पंचा १०, २८)।

संफिट्ट :: पुं [दे] संयोग, मेलन (श्रा १६)।

संफुल्ल :: वि [संफुल्ल] विकसित (प्राकृ १४)।

संफुसिय :: वि [संमृष्ट] प्रमार्जित; 'दसणकर- नियरसंफुसियदिसिमुहमला' (सुपा २९३)।

संब :: पुं [शाम्ब] १ श्रीकृष्ण वासुदेव का एक पुत्र (णाया १, ५ — पत्र १००; अंत १४) २ राजा कुमारपाल के समय का एक सेठ (कुप्र १४३)

संब :: पुंन [शम्ब] वज्र, इन्द्र का आयुध (सुर १६, ५०)।

संबंध :: सक [सं + बन्ध्] १ जोड़ना। २ नाता करना। कर्मं. संबज्झइ (चेइय ७२७)

संबंध :: पुं [संबन्ध] १ संसर्गं, संग (भवि) २ संयोग (कम्म १, ३५) ३ नाता, सगाई, रिश्‍तेदारी (स्वप्‍नदारी ४३) ४ योजना, मेल (वव ५)

संबंधि :: वि [संबन्धिन्] सम्बन्ध रखनेवाला (उवा; सम्म ११७; स ५३९)।

संबर :: पुं [शम्बर] मृग-विशेष, हरिण की एक जाति (पणह १, १ — पत्र ७; दे ८, ६; कुप्र ४२६)।

संबल :: पुंन [शम्बल] १ पाथेय, रास्ते में खाने का भोजन; 'धन्‍नाणं चिय परलोयसंबलो मिलइ नन्नाणं' (सम्मत्त १५७; पाअ; सुर १६, ५०; दे ६, १०८; महा; भवि; सुपा ९४) २ एक नागकुमार देव (आवम)

संबलि :: देखो सिंबलि = शिम्बलि (आचा २, १, १०, ४)।

संबलि :: पुंस्त्री [शाल्मलि] वृक्ष-विशेष, सेमल का पेड़ (सुर २, २३४; ८, ५७)। देखो सिंबलि।

संवाधा :: देखो संबाहा (पउम २, ८९)।

संबाह :: सक [सं + बाध्] १ पोड़ा करना। २ दबाना, चप्पी करना। संबाहज्जा (निचू ३)

संबाह :: पुं [संबाध] १ नगर-विशेष, जहाँ ब्राह्मण आदि चारों वर्णों की प्रभूत वस्ती हो वह शहर (उत्त ३०, १६) २ पीड़ी; 'संबाहा बहवे भुज्जो दुइक्कमा अजाणओ अपासओ' (आचा) ३ वि. संकीर्णं, सकरा; 'संबाहं संकिण्णं' (पाअ)

संबाहण :: न [संबाधन] देखो संवाहण (आचा १, ९, ४, २)।

संबाहणा :: स्त्री [संबाधना] देखो संवाहणा (औप)।

संबाहणी :: स्त्री [संबाधनी] विद्या-विशेष (पउम ७, १३७)।

संबाहा :: स्त्री [संबाधा] १ पीड़ा (आचा १, ५, ४, २) २ अंग-मर्दंन, चप्पी (निचू ३)

संबाहिय :: वि [संबाधित] १ पीड़ित (सूअ १, ५, २, १८) २ देखो संवाहिय (औप)

संबुक्क :: पुं [शम्बुक] १ शंख (ठा ४, २ — पत्र २१६; सुपा ५०; १९५) २ रावण का एक भागिनेय — खरदूषण का पुत्र (पउम ४३, १८) ३ एक गाँव का नाम (राज)। °विट्टा स्त्री [°वर्ता] शंख के आवर्तं के समान भिक्षा-चर्यां (उत्त ३०, १९)। देखो संबूअ।

संबुज्झ :: सक [सं + बुध्] समझना, ज्ञान पाना। संबुज्झइ, संबुज्झंति, संबुज्झह (महा; स ४८९; सूअ १, २, १; वै ७३)। वकृ. संबुज्झमाण (आचा १, १, २, ५)।

संबुद्ध :: वि [संबुद्ध] ज्ञान-प्राप्‍त (उवा; महा)।

संबुद्धि :: स्त्री [संबुद्धि] ज्ञान, बोध (अज्झ ३६)।

संबूअ :: पुं [शम्बूक] जल-शुक्ति, शुक्ति के आकार का जल-जंतु-विशेष (दे ८, १६; गउड)।

संबोधि :: स्त्री [संबोधि] सत्य धर्मं की प्राप्‍ति (धर्मंसं १३९६)।

संबोह :: सक [सं + बोधय्] १ समझाना, बुझाना। २ आमन्त्रण करना। ३ विज्ञप्‍ति करना। संबोहइ, संबोहेइ (भवि; महा)। कवकृ. संबोहिज्जमाण (णाया १, १४)। कृ. संबोहेअव्व (ठा ४, ३ — पत्र २४३)

संबोह :: पुं [संबोध] ज्ञान, बोध, समझ (आत्म २०)।

संबोहण :: न [संबोधन] १ ऊपर देखो (विसे २३३२; सुख १०, १; चेइय ७७५) २ आमन्त्रण (गउड) ३ विज्ञप्‍ति (णाया १, ८ — पत्र १५१)

संबोहि :: देखो संबोधि (उप पृ १७९, वै ७३)।

संबोहिअ :: वि [संबोधित] १ समझाया हुआ (यति ४८) २ विज्ञापित (णाया १, ८ — पत्र १५१)

संभंत :: वि [संभ्रान्त] १ भीत, घबड़ाया हुआ, त्रस्त (उत्त १८, ७; महा; गउड) २ पुंन. प्रथम नरक का पाँचवाँ नरकेन्द्रक- नरकस्थान-विशेष (देवेन्द्र ४) ३ न. भय, घबराहट (महा)

संभंति :: स्त्री [संभ्रान्ति] संभ्रम, उत्सुकता (भग १६, ५ — पत्र ७०६)।

संभंतिय :: वि [सांभ्रान्तिक] संभ्रम से बना हुआ (भग १६, ५ — पत्र ७०६)।

संभग्ग :: वि [संभग्‍न] चूर्णित (उत्त १९, ६१)।

संभण :: सक [सं + भण्] कहना। संकृ. संभणिअ (पिंग)।

संभणिअ :: वि [संभणित] कथित, उक्‍त (पिंग)।

संभम :: सक [सं + भ्रम्] १ अतिशय, भ्रमण करना। २ अक. भय-भीत होना, घबड़ाना। वकृ. संभमंत (पि २७५)

संभम :: पुं [संभ्रम] १ आदर; 'संभमो आयरो पयत्तो य' (पाअ) २ भय, घबराहट, क्षोभ; 'संखोहो संभमो तासो' (पाअ; प्रासू १०५; महा) ३ उत्सुकता (औप)

संभर :: सक [सं + भृ] १ धारण करना। २ पोषण करना। ३ संक्षेप करना, संकोच करना। वकृ. संभरमाण (से ७, ४१)। संकृ. संभारि (अप) (पिंग)

संभर :: सक [सं + स्मृ] स्मरण करना, याद करना। संभरेइ, संभरिमो (महा; पि ४५५)। वकृ. संभरंत, संभरमाण (गा २९; सुपा ३१७; से ७, ४१)। कृ. संभरणिज्ज, संभरणीय (धम्मो १८; उप ५३८ टी)।

संभरण :: न [संस्मरण] स्मरण, याद (गा २२२; णाया १, १ — पत्र ७१, दे ७, २५; उवकु १४)।

संभऱणा :: स्त्री [संस्मरणा] ऊपर देखो (उप ५३० टी)।

संभराविअ :: वि [संस्मारित] याद कराया हुआ (दे ८, २५; कुप्र ४२१)।

संभरिअ :: वि [संस्मृत] याद किया हुआ (गउड; काप्र ८९२)।

संभल :: सक [सं + स्मृ] याद करना। संभलइ (उप पृ ११३)। कर्मं. संभलिज्जइ (वज्जा ८०)। वकृ. संभलि (अप) (पिंग २९७)।

संभल :: सक [सं + भल्] १ सुनना; गुजराती में 'सांभळवु'। २ अक. सम्भलना, सावधान होना। संभलइ (भवि); 'संभलसु मह पइन्‍न' (सम्मत्त २१७)। संकृ. संभलि (अप) (पिंग २८९)

संभली :: स्त्री [दे. संभली] १ दूती (दे ८, ९; वव ५) २ कुट्टनी, पर-पुरुष के साथ अन्य स्त्री का योग करानेवाली स्त्री (कुमा)

संभव :: अक [सं + भू] १ उत्पन्‍न होना। संभावना होना, उत्कट संशय होना। संभवइ (पि ४७५; काल; भवि)। वकृ. संभवंत (सुपा ५९)। कृ. संभव्व (श्रा १२; सूअनि ९५)

संभव :: पुं [संभव] १ उत्पत्ति (महा; उव; हे ४, ३९५) २ संभवना (भवि) ३ वर्तंमान अवसर्पिणी काल में उत्पन्न तीसरे जिनदेव का नाम (सम ४३; पडि) ३ एक जैन मुनि जो दूसरे वासुदेव के पूर्वं-जन्म के गुरु थे (पउम २०, १७६) ५ कला-विशेष (औप)

संभव :: पुं [दे] प्रसव-जरा, प्रसूति से होनेवाला बुढ़ापा (दे ८, ४)।

संभव :: (अप) देखो संभम = संभ्रम (भवि)।

संभवि :: वि [संभविन्] जिसका सम्भव हो वह (पंच ५, २५; भास ३५)।

संभविय :: देखो संभूअ (चेइय ५५६)।

संभव्व :: देखो संभव = सं + भू।

संभाणय :: न [संभाणक] गुजरात का एक प्राचीन नगदर (राज)।

संभार :: सक [सं + भारय्] मसाला से संस्कृत करना, वासित करना। संभारेइ, संभा- रेंति, संभारेोइ (णाया १, १२ — पत्र १७५; १७६)। संकृ. संभारिय (पिंड १९३)। कृ. संभारणिज्ज (णाया १, १२)।

संभार :: पुं [संभार] १ समूह, जत्था; 'उत्तुंग- थंभसंभारभासमाणं करावए राया' (उप ६४८ टी; श्रावक १३०) २ मसाला, शाक आदि में ऊपर डाला जाता मसाला (णाया १, १६ — पत्र १९६) ३ परिग्रह, द्रव्य-संचय (पणह १, ५ — पत्र ९२) ४ अवश्यतया कर्मं का वेदन (सूअ २, ७, ११)

संभारिअ :: वि [संस्मृत] याद किया हुआ (से १४, ६५)।

संभारिअ :: वि [संस्मारित] याद कराया हुआ (णाया १, १ — पत्र ७१; सुर १४, २३५)।

संभाल :: सक [सं + भालय्] संभालना। संभालइ (भवि)।

संभाल :: पुं [संभाल] खोज, अन्वेषण; 'उदिए सूरम्मि जा न जणणोए पायपणामनिमित्तं समागओ ताव संभालो जाओ तस्स, न कत्थवि जाव पउत्ती कहंचि उवलद्धा' (उप २२० टी)।

संभालिय :: वि [संभालित] संभाला हुआ (सण)।

संभाव :: सक [सं + भावय्] १ संभावना करना। २ प्रसन्न नजर से देखना; 'न संभावसि अवरोहं' (मोह ६); संभावेमि (संवेग ४), सम्भावेहि मोह २९)। कर्मं. संभावीअदि (शौ) (नाट — मृच्छ २६०)। वकृ. संभावअंत (नाट — शकु १३४)। संकृ. संभाविअ नाट — -शकु ९७)। कृ. संभावणीज्ज, संभावणीय (उप ७६८ टी; स ९१; श्रा २३)

संभाव :: अक [लुभ्] लोभ करना, आसक्ति करना। संभावइ (हे ४, १५३; षड्)।

संभावणा :: स्त्री [संभावना] संभव (से ८, १९; गउड)।

संभावि :: वि [संभाविन्] जिसका संभव हो वह (श्रा १४)।

संभाविअ :: वि [संभावित] जिसकी संभावना की गई हो वह (नाट — विक्र ३४)।

संभास :: सक [सं + भाष्] बातचीत करना, आलाप करना। कृ. संभासणीय (सुपा ११५)।

संभास :: पुं [संभाष] संभाषण, वार्तालाप (उप पृ ११२; संबोध २१; सण; काल; सुपा ११५; ५४२)।

संभासण :: न [संभाषण] ऊपर देखो (भवि)।

संभासा :: स्त्री [संभाषा] संभाषण, बातचीत (औप)।

संमासि :: वि [संभाष] संभाषण, 'संभासि- स्साणरिहो' (काल)।

संभासिय :: वि [संभाषित] जिसके साथ संभाषण — वार्तालाप किया गया हो वह (महा)।

संभिडण :: न [संभेदन] आघात (गउड)।

संभिण्ण, संभिन्न :: वि [संभिन्न] १ परिपूर्ण (पव १९८) २ किंचिद् न्यून, कुछ कम (देवेन्द्र ३४२) ३ व्याप्‍त। ४ बिल- कुल भिन्न — भेदवाला (पणह २, १ — पत्र ९९) ५ खंडित (दसचू १, १३)। °सोअ वि [°श्रतस्, °श्रोतृ] लब्धि-विशेषवाला, शरीर के कोई भी अंग से शब्द को स्पष्ट रूप से सुनने की शक्तिवाला (पणह २, १ — पत्र ९९; औप)

संभिन्न :: न [दे] आघात (गउड ६३४ टी)।

संभिय :: वि [संभृत] १ पुष्ट, 'आरंभसंभिया' (सूअ १, ९, ३ ) २ संस्कार-युक्त, संस्कृत; 'बहुसंभारसंभिए' (णाया १, १६ — पत्र १९६; स ९८; विसे २९३)

संभु :: पुं [शम्भु] १ शिव, शंकर (सुपा २४०; सार्धं १३५; समु १५०) २ रावण का एक सुभट (पउम ५९, २ ) ३ छन्द-विशेषॉ (पिंग)। °घरिणी स्त्री [°गृहिणी] गौरी, पार्वती (सुपा ४४२)

संभुंज :: सक [सं + भुज्] साथ भोजन करना, एक मण्डली में बैठकर भोजन करना। संभुंजइ (कस)। हेकृ. संभुजित्तए (सूअ २, ७, १६; ठा २, १ — 'पत्र ५६)।

संभुंजणा :: स्त्री [संभोजना] एकत्र भोजन- व्यवहार (पंचु)।

संभुल्ल :: वि [दे] दुर्जंन. खल (दे ८, ७)।

संभूअ :: वि [संभूत] १ उत्पन्न, संजात (सुपा ४०; ५०७; महा) २ पु. एक जैन मुनि जो प्रथम वासुदेव के पूर्वंजन्म में गुरु थे (सम १५३, पउम २०, १७६) ३ एक प्रसिद्ध जैन महर्षि जो स्थूलभद्र मुनि के गुरु थे (धर्मंवि ३८; सार्ध १३) ४ व्यक्ति-वाचक नाम (महा)। °विजय पुं [°विजय] एक जैन महर्षि (कुप्र ४५३; विपा २, ५)

संभूइ :: स्त्री [संभूति] १ उत्पत्ति (पउम १७ ९८; गा ६५४; सुर ११, १३५; पव २४४) २ श्रेष्ठ विभूति (सार्धं १३)

संभूस :: सक [सं + भूष्] अलंकृत करना। संभूसइ (सण)।

संभोअ :: पुं [संभोग] सुन्दर भोग (सुपा ४९८; कप्पू)। देखो संभोग।

संभोइअ :: वि [संभोगिक] समान सामाचारी- क्रियानुष्ठान होने का कारण जिसके साथ खान- पान आदि का व्यवहार हो सके ऐसा साधु (ओघभा २०; पंचा ५, ४१; द्र ५०)।

संभोग :: पुं [संभोग] समान सामाचारीवाले साधुओं का एकत्र भोजनादि-व्यवहार (सम २१; औप; कस)।

संभोगि :: वि [संभोगिन्] देखो संभोइअ (कुप्र १७२)।

संभोगिय :: देखो संभोइय (ठा ३, ३-पत्र १३९)।

संमइ :: स्त्री [संमति] १ अनुमति (सूअ १, ८, १४; विसे २२०९) २ पुं. वायुकाय, पवन। ३ वायुकाय का अधिष्ठाता देव (ठा ५, १ — पत्र २९२)

संमज्ज :: पुं [संमार्ज] संमार्जन, साफ करना (विसे ९२५)।

संमज्जंग :: पुं [संमज्जक] वानप्रस्थ तापसों की एक जाति (औप)।

संमज्जण :: न [संमार्जन] साफ करना, प्रमार्जन (अभि १५९)।

संमज्जणी :: स्त्री [संमार्जनी] झाड़ू (दे ६, ९७)।

संमज्जिय :: वि [संमार्जित] साफ किया हुआ (सुपा ५४; औप; भवि)।

संमट्ठ :: वि [संमृष्ट] १ प्रमार्जित, सफा किया हुआ (राय १००; औप, पव १३३) २ पूर्णं भरा हुआ (जीवस ११९; पव १५८)

संमड्ड :: पुं [संमर्द] १ युद्ध, लड़ाई (हे २, ३६) २ परस्पर संघर्ष (हे २, ३६; कुमा)

समड्डिअ :: वि [संमर्दित] संघृष्ठ (हे २, ३६)।

संमद्द :: सक [सं + मृद्] मर्दंना करना। संकृ. संमद्दिआ (दस ५, २, १६)।

समद्द :: देखो संमड्ड (उप १३९ टी; पाअ; दे १, ९३; सुपा २२२; प्राकृ ८६)।

संमद्दा :: स्त्री [संमर्दा] प्रत्युपेक्षणा-विशेष, वस्त्र के कानों को मध्य भाग में रखकर अथवा उपधि पर बैठकर जो प्रत्युपेक्षणा-निरी — क्षण की जाय वह (ओघ २६६; ओघभा १६२)।

संमय :: वि [संमत] १ अनुमत। २ अभीष्ट (उव)

संमविय :: वि [संमापित] नापा हुआ (भवि)।

संमा :: अक [सं + मा] समाना, अटना। संमाइ (कुप्र २७७)।

संमाण :: सक [सं + मानय्] आदर करना, गौरव करना। संमाणइ, संमाणेइ, संमाणिति, संमाणेमो (भवि; उवा, महा; कप्प; पि ४७०)। भवि. संमाणोहिंति (पि ५२८)। वकृ. संमाणंत, संमाणेंत (सुपा २२४; पउम १०५, ७६)। संकृ. संमाणिऊण, संमाणेऊण, संमाणित्ता (महा; कप्प)। कवकृ. संमाणिज्जमाण (काल)। कृ. संमा- णणिज्ज (णाया १, १ टी — पत्र ४; उवा)।

संमाण :: पुं [संमान] आदर, गौरव (उव; हे ४, ३१६; नाट — मालवि ६३)।

संमाणण :: न [संमानन] ऊपर देखो (सुपा २०८)।

संमाणिय :: वि [संमानित] जिसका आदर किया गया हो वह (कप्प; महा)।

संमिद :: (शौ) वि [संमित] १ तुल्य, समान। २ समान परिमाणवाला (अभि १८६)

संमिल :: अक [सं + मिल्] मिलना। संमि- लइ (भवि)।

संमिलिअ :: वि [संमिलित] मिला हुआ (भवि)।

संमिल्ल :: अक [सं + मील्] सकुचाना, संकोच करना। संमिल्लइ (हे ४, २३२; षड्; धात्वा १५५)।

संमिस्स :: वि [संमिश्र] १ मिला हुआ, युक्त (महा) २ उखढ़ी हुई छालवाला (आचा २, १, ८, ६)

संमील :: देखो संमिल्ल। संमीलइ (हे ४, २३२; षड्)।

संमीलिअ :: वि [संमीलित] संकुचित (से १२, १)।

संमीस :: देखो संमिस्स (सुर २, १११; सण)।

संमुइ :: पुं [संमुचि] भारतवर्षं में भविष्य में होनेवाला एक कुलकर पुरुष (ठा १० — पत्र ५१८)।

संमुच्छ :: अक [सं + भूर्च्छ्] उत्पन्‍न होना; 'एतासिं ण लेसाणं अतंरेसु अणणत- रीओ छिणणलेसाओ संमुच्छंति' (सुज्जे ९)।

संमुच्छण :: स्त्रीन [संमूर्च्छन] स्त्री-पुरुष के संयोग के बिना ही युकादि की तरह होती जीवों की उत्पत्ति (धर्मंसं १०१७)। स्त्री. °णा (धर्मंसं १०३१)।

समुच्छिम :: वि [संमूच्छिम] स्त्री-पुरुष के समागम के बिना उत्पन्‍न होनेवाला प्राणी (आचा; ठा ५, ३ — पत्र ३३४ सम १४९; जी २३)।

संमुच्छिअ :: वि [संमूर्च्छित] उत्पन्‍न (सुज्ज ९)।

संमुज्झ :: अक [सं + मुह्] मोह करनास मुग्ध होना संमुज्झइ (संबोध ५२)।

संमुत्त :: देखो संमुत्त (राज)।

संमुस :: सक [सं + मृश्] पूर्णं रूप से स्पर्शं करना। वकृ. संमुसमाण (भग ८, ३ — पत्र ३६५)।

संमुह :: वि [संमुख] सामने आया हुआ (हे १, २९; ४, ३९५; ४१४; महा)। स्त्री. °ही (काप्रा ७२३)।

संमूढ :: वि [संमूढ] जड़, विमूढ (पाअ; सुपा ५४०)।

संमेअ :: पुं [संमेत] १ पर्वत विशेष जो आजकल 'पारसनाथ पहाड़' के नाम से प्रसिद्ध है (णाया १, ८ — पत्र १५४; कप्प; महा; सुपा २११; ५८४; विवे १८) २ राम का एक सूभट (पउम ५९, ३७)

संमेल :: पुं [संमेल] परिजन अथवा मित्रों का जिमनवार, प्रीति-भोजन (आचा २, १, ४, १)।

संमोह :: पुं [संमोह] १ मूढ़ता, अज्ञान (अणु; स ३५८) २ मूर्च्छा (सिक्खा ४२) ३ दुःख, कष्ट (से ३, १३) ४ संनिपात रोग (उप १९०)

संमोह :: न [सांमोह] १ मिथ्यात्व का एक भेद — रागी का देव, संगी — परिग्रहो को गुरु और हिसां को धर्मं मानना (संबोध ५२) २ वि. संमोह-संबन्धी (ठा ४, ४ — पत्र २७४)। स्त्री. °हा, °ही (ठा ४, ४ टी — पत्र २७४; बृह १)

संमोहण :: न [संमोहन] १ मोहित करना। २ मूर्च्छित करना (कुप्र २५०)

संमोहा :: स्त्री [संमोहा] छन्द-विशेष (पिंग)।

संरंभ :: पुं [संरम्भ] १ हिंसा करने का संकल्प, 'संकप्पो संरंभो' (संबोध ४१; श्रा ७) २ आटोप (कुमा १, २१; ६, ९२) ३ उद्यम (कुमा ५, ७०) ४ क्रोध, गुस्सा (पाअ)

संरक्खग :: वि [संरक्षक] अच्छी तरह रक्षा करनेवाला (णाया १, १८ — पत्र २४०)।

संरक्खण :: न [संरक्षण] समीचीन रक्षण (णाया १, १४; पि ३६१)।

संरक्खय :: देखो संरक्खग (उत्त २६, ३१)।

संरद्ध :: सक [सं + राय्] पकाना। कृ. संरद्धियव्व (कुप्र ३७)।

संरुंध :: सक [सं + रुध्] रोकना, अटकाना। कर्मं. संरुंधिज्जइ, संरुज्झइ (हे ४, २४८)। भवि. संरुंधिहिइ, संरुज्झिहिइ (हे ४, २४८)।

संरोह :: पुं [संरोध] अटकाव (कुप्र ५१; पव २३८)।

संरोहणी :: स्त्री [संरोहणी] घाव को रुझानेवाली औषधि-विशेष (सुपा २१७)।

संलक्ख :: सक [सं + लक्षय्] पहिचानना। कर्मं. संलक्खीअदि (शौ); (नाट — वेणी ७८)।

संलग्ग :: वि [संलग्‍न] लगा हुआ, संयुक्‍त (सुपा २२९)।

संलग्गिर :: वि [संलगितृ] संयुक्‍त होनेवाला, जुड़नेवाला (ओघ ९८)।

संलत्त :: वि [संलपित] संभाषित, उक्त, कथित (सुर ३, ६१; सुपा ३२९; ३८५; महा)।

संलप्प :: नीचे देखो।

संलव :: सक [सं + लप्] संभाषण करना। संलवइ, संलवेमि (महा; पव १४८)। वकृ. संलवमाण (णाया १, १ — पत्र १३; कप्प)। कृ. संलप्प (राज)।

संलव :: पुं [संलाप] संभाषण, वार्तालाप (सूअनि ५८)।

संलाव :: सक [सं + लापय्] बातचीत करना। संलाविंति (कप्प)।

संलाव :: देखो संलव = संलाप (औप; से २, ३९; गउड; श्रा ६)।

संलाविअ :: वि [संलापित] १ उक्त, कथित। २ कहलवाया हुआ (गा १११)

संलिद्ध :: वि [संश्‍लिष्ट] संयुक्त (संबोध १६)।

संलिह :: सक [सं + लिख्] १ निर्लेप करना। २ शरीर आदि का शोषण करना, कृश करना। ३ घिसना। ४ रेखा करना। संलिहिज्जा (आचा २, ३, २, ३)। संलिहे (उत्त ३६, २४९; दस ८, ४; ७)। संकृ. संलिहिय (कप्प)

संलिहिय :: वि [संलिखित] जिसने तपश्चर्या से शरीर आदि का शोषण किया हो वह (स १३०)।

संलीढ :: वि [संलीढ] संलेखना-युक्‍त (णंदि २०६)।

संलीण :: वि [संलीन] जिसने इन्द्रिय तथा कषाय आधि को काबू में किया हो वह, संवृत्त (पव ६)।

संलीणया :: स्त्री [संलीनता] तप-विशेष, शरीर आदि का संगोपन (सम ११; नव २८; पव ६)।

संलुंच :: सक [सं + लुञ्च्] काटना। कवकृ. संलुंचमाणा सुणएहिं' (आचा १, ९, ३, ६)। संकृ. संलुंचिआ (दस ५, २, १४)।

संलेहणा :: स्त्री [संलेखना] शरीर, कषाय आदि का शोषण, अनशन-व्रत से शरीर-त्याग का अनुष्ठान (सह ११९; सुपा ६४८)। °सुअ न [°श्रुत] ग्रन्थ-विशेष (णंदि २०२)।

संलेहा :: स्त्री [संलेखा] ऊपर देखो (उत्त ३६, २५०; सुपा ६४८)।

संलोअ :: पुं [संलोक] १ दर्शन, अवलोकन (आचा २, १, ६, २; उत्त २४, १६; पव ९१) २ दृष्टि-पात, दृष्टिप्रचार। ३ जगत्, संपूर्ण लोक। ४ प्रकाश (राज) ५ वि. दृष्टि-प्रचारवाला, जिस पर दृष्टि पड़ सकती हो वह (उत्त २४, १६)

संलोक :: सक [सं + लोक्] देखना। कृ. संलोकणिज्ज (सूअ १, ४, १, ३०)।

संवइयर :: पुं [संव्यतिकर] व्यतिसंबन्ध, विपरीत प्रसंग (उव)।

संवग्ग :: पुं [संवर्ग] १ गुणन, गुणाकार (वव १; जीवस १५४) २ गुणित, जिसका गुणाकार किया गया हो वह (राज)

संवच्छर :: पुं [संवत्सर] वर्षं, साल (उव; हे २, २१)। °पडिहेहणग न [°प्रतिलेखनक] वर्षं-गाँठ, वर्षं की पूर्णंता के दिन किया जाता उत्सव (णाया १, ८ — पत्र १३१; भग; अंत)।

संवच्छिरिय :: पुं [सांवत्सरिक] १ ज्योतिषी, ज्योतिष शास्त्र का विद्वान (स ३४; कुप्र ३२) २ वि. संवत्सर संबंधी, वार्षिक (धर्मंवि १२९; पडि)

संवच्छल :: देखो संवच्छर (हे २, २१)।

संवट्ट :: सक [सं + वर्तय्] १ एक स्थान में रखना। २ संकुचित करना। संवट्‍टेइ (औप)। संवट्‍टेज्जा (आचा १, ८, ६, ३)। संकृ. संवट्टइत्ता (ठा २, ४ — पत्र ८९), संवट्टित्ता (आचा १, ८, ६, ३)

संवट्ट :: पुं [संवर्त] १ पीड़ा (उप २६९) २ भय-भीत लोगों का समवाय — समूह (उत्त ३०, १७) ३ वायु-विशेष तृण को उड़ानेवाला वायु (पणण १ — पत्र २९) ४ अपवर्तंन (ठा २, ३ — पत्र ६७) ५ घेरा। ६ जहाँ पर बहुत गाँवों के लोग एकत्रित हो कर रहें वह स्थान, दुर्गं आदि (राज)। देखो संवत्त।

संवट्टइअ :: वि [संवर्तकित] तूफान में फँसा हुआ (उप पृ १४३)।

संवट्टग :: पुं [संवर्तक] वायु-विशेष (सुपा ४१)। देखो संवट्टय।

संवट्टण :: न [संवर्तन] १ जहाँ पर अनेक मार्गं मिलते हों वह स्थान (णाया १, २ — पत्र ७९) २ अपवर्त्तंन (विसे २०४५)

संवट्टय :: पुं [संवर्तक] अपवर्त्तंन (ठा २, ३ — - पत्र ६७)। देखो संवट्टग।

संवट्टिअ :: वि [दे. संवर्तित] संवृत्त, संकोचित (दे ८, १२)।

संवट्टिअ :: वि [संवर्तित] १ पिंडीभूत, एकत्रित (वव १) २ संवर्त-युक्त (हे २, ३०)

संवड्‍ढ :: अक [सं + वृध्] बढ़ना। संवड्‍ढइ (महा)।

संवड्‍ढण :: देखो संवद्धण (अभि ४१)।

संवडि्ढअ :: वि [संवृद्ध] बढ़ा हुआ (महा)।

संवडि्ढअ :: वि [संवर्धित] बढ़ाया हुआ (नाट — रत्‍ना २२)।

संवत्त :: पुं [संवर्त] १ प्रलय काल (से ५, ७१; १०, २२) २ वायु-विशेष; 'जुगंत- सरिसं संवत्तवायं विउव्विऊण' (कुप्र ९६) ३ मेघ। ४ मेघ का अधिपति-विशेष। ५ वृक्ष-विशेष, बहेड़ा का पेड़। ६ एक स्मृतिकार मुनि (संक्षि १०)। देखो संवट्ट = संवर्तं।

संवत्तण :: देखो संवट्टण (हे २, ३०)।

संवत्तय :: वि [संवर्तक] १ अपवर्तंन-कर्ता। २ पुं. बलदेव। ३ वडवानल (हे २, ३०; प्राप्र)

संवत्तुवत्त :: पुं [संवर्तोद्वतै] उलट-पुलट (स १७४; २५८)।

संवद्धण :: न [संवर्धन] १ वृद्धि, वढ़ाव। २ वि. शुद्धि करनेवाला (भवि; स ७२७)

संवय :: सक [सं + वद्] १ बोलना, कहना। २ प्रमाणित करना, सत्य साबित करना। संवयइ, संवएज्जा (कुप्र १८७; सूअ १, १४, २०)। वकृ. संवयंत (धर्मंसं ८८३)

संवय :: वि [संषृत] आवृत्त, आच्छादित (कुप्र ३६)।

संवर :: सक [सं + वृ] १ निरोध करना, रोकना। २ कर्मं को रोकना। ३ बँध करना। ४ ढकना। ५ गोपन करना। संवरइ, संवरसि, संवरेमि (भग; भवि; सण; हास्य १३०; पव २३६ टी); 'संबरेहि (कुप्र ३११)। वकृ. संवरेमाण (भग)। संकृ. संवरेपि (महा)

संवर :: पुं [संवर] १ कर्मं-निरोध, नूतन कर्मं- बन्ध का अटकाव (भग; 'पणह १, १; नव १) २ भारतवर्षं में हेनेवाले अठारहवें जिनदेव (पव ४६; सम १५) ३ चौथे जिनदेव के पिता का नाम (सम १५०) ४ एक जैन मुनि (पउम २०, २०) ५ पशु-विशेष (कुप्र १०४) ६ दैत्य-विशेष। ७ मत्स्य की एक जात (हे १, १७७)

संवरण :: न [संवरण] १ निरोध, अटकाव (पंचा १, ४४), 'आतवदाराण संवरणं' (श्रु ७) २ गोपन (गा १९९; सुपा ३०१) ३ संकोचन समेटन (गा २७०) ४ प्रत्याख्यान, परित्याग (ओघ ३७; विसे २६१२; श्रावक ३३३) ५ श्रावक के बारह व्रतों का अंगीकार (सम्मत्त १५२) ६ अनशन, आहार परित्याग (उप पृ १७९) ७ विवाह; लग्‍न, शादी (पउम ४९, २३) ८ वि. रोकनेवाला (पव १२३)

संवरिअ :: वि [संबृत] १ आसेवित, आराधित; 'एवमिणं संवरस्स दारं सम्मं संवरियं होइ' (पणह २, १ — पत्र १०१)। २ संकोचित (दे ८, १२)। ३ आच्छादित (बृह ३)

संवलण :: न [संवलन] मिलन (गउड; नाट — मालती ५७)।

संवलिअ :: वि [संवलित] १ व्याप्‍त (गा ७५; सुर ६, ७६; ८, ४३; रुक्मि ६०) २ युक्त, मिलित, मिश्रित (सुर ३, ७८; धर्मंवि १३६); 'सरसा वि दुमा दावाणलेण डज्झंति सुक्खसंवलिया' (वज्जा १४)

संववहार :: पुं [संव्यवहार] व्यवहार (विसे १८५३)।

संवस :: अक [सं + वस्] १ साथ में रहना। २ रहना, वास करना। ३ संभोग करना। संवसइ (कस)। वकृ. संवसमाण (ठा ५, २ — ३१२; ३१४; गच्छ १, ३)। संकृ. संवसित्ता (गच्छ १, २ )। हेकृ. संवसित्तए (ठा २, १ — पत्र ५६)। कृ. संवसेयव्व (उप पृ १९)

संवह :: सक [सं + वह्] १ वहन करना। २ अक. सज्ज होना, तय्यार होना। वकृ. संवहमाण (सुपा ४६४; णाया १; १३ — पत्र १८०)। संकृ. संवहिऊण (सण)

संवहण :: न [संवहन] १, ढोना, वहन करना। (राज) २ वि. वहन करनेवाला (आचा २, ४, २, ३; दस ७, २५)

संवहणिय :: वि [सांवहनिक] देखो संवाहणिय (उवा)।

संवहिअ :: वि [संमृढ] जो सज्ज हुआ हो वह, तय्यार बना हुआ; 'सामिअ पूरिअपोआ अम्हे सव्वेवि संवहिआ' (सिरि ५९६; सम्मत्त १५७)।

संवाइ :: वि [संवादिन्] प्रमाणित करनेवाला, सबूत देनेवाला (सुर १२, १७६)।

संवाइय :: वि [संवादित] १ खबर दिया हुआ, जनाया हुआ (स २९६) २ प्रमाणित (स ३१५)

संवाद, संवाय :: पुं [संवाद] १ पूर्वज्ञान को सत्य साबित करनेवाला ज्ञान, सबूत, प्रमाण (धर्मंसं १४८; स ३२९; उप ७२८ टी) २ विवाद, वाक्-कलह; "इय जाओ संवाओ तेसिं पुत्तस्स कारणे गरुओ। त, कीरेणं भणियं रायसमीवे समागच्छ।।" (सुपा ३९०)

संवाय :: सक [सं + वादय्] खबर देना, समाचार कहना। संवाएमि, संवाएहि (स २९१; २९६)।

संवायय :: पुं [दे] १ नकुल, न्यौला। २ श्‍येन पक्षी (दे ८, ४८)

संवास :: सक [सं + वासय्] साथ में रहने देना। हेकृ. संवासेउं (पंचा १०, ४८ टी)।

संवास :: पुं [संवास] १ सहवास, साथ में निवास (उव २२३; ठा ४, १ — पत्र १९७; ओघ ९७; हित १७; पंता ९, १३) २ मैथुन के लिए स्त्री के साध निवास (ठा ४, १ — पत्र १९३)

संवासिय :: (अप) वि [समाश्वासित] जिसको आश्वासन दिया गया हो वह; 'तिं वयणिं धणवई संवासिउ' (भवि)।

संवाह :: सक [सं + वाहय्] १ वहन करना। २ तय्यारी करना। अंग-मर्दंन- चप्पी करना। संवाहइ (भवि)। कवकृ. संवाहिज्जंत (सुपा २००; ३४९)

संवाह :: पुं [संवाह] १ दुर्गं-विशेष, जहाँ कृषक-लोग धान्य आदि को रक्षा के लिए ले जाकर रखते हैं (ठा २, ४ — पत्र ८६; पणह १, ४ — पत्र ६८; औप; कस) २ लग्‍न, विवाह (सुपा २५५) ३ गिरिशिखरस्थ ग्राम।

संवाहण :: न [संवाहन] १ अंग-मर्दंन, चप्पी (पणह २, ४ — पत्र १३१; सुर ४, २४७; गा ४६४) २ संबाधन, विनाश (घा ४६४) ३ पुं. एक राजा का नाम (उव) ४ वि. वहन करनेवाला (आचा २, ४, २, १०)

संवाहणा :: स्त्री [संवाहना] ऊपर देखो (कप्प; औप)।

संवाहणिय :: वि [संवाहनिक] भार-वहन करने का काम में आता वाहन (उवा)।

संवाहय :: वि [संवाहक] चप्पी करनेवाला (चारु ३९)।

संवाहिअ :: वि [संवाहित] जिसका अंग — मर्दंन-चप्पी किया गया हो वह (कप्प; सुर ४, २४३)। २ वहन किया हुआ (भवि)

संविकिण्ण :: वि [संविकीर्ण] अच्छी तरह व्याप्‍त (पणण २ — पत्र १००)।

संविक्ख :: सक [संवि + ईक्ष्] सम भाव से देखना, रागादि-रहित हो कर देखना। वकृ. संविक्खमाण (उत्त १४, ३३)।

संविग्ग :: वि [संविग्‍न] संवेग-युक्त, भव-भीरु मुक्‍ति का अभिलाषी, उत्तम साधु (उव; पंचा ५, ४१; सुर ८, १६६; ओघभा ४९)।

संविचिण्ण, संविचिन्न :: वि [संविचीर्ण] संविचरित, आसेवित (णाया १, ५ टी — पत्र १००; णाया १, ५ — पत्र ९९)।

संविज्ज :: अक [सं + विद्] विद्यमान होना। संविज्जइ (सूअ १, ३, २, १८)।

संविट्ठ :: सक [सं + वेष्टय्] १ वेष्टन करना, लपेटना। २ पोषण करना। संकृ. संविट्ठेमाण (णाया १, ३ — पत्र ९१)

संविढत्त :: वि [समर्जित] पैदा किया हुआ, उपार्जित (स ५)।

संविणीय :: वि [संविनीत] विनय-युक्‍त (ओघभा १३४)।

संवित्त :: देखो संवीअ (सूअ १, ३, १, १७)।

संवित्त :: वि [संवृत्त] १ संजात, बना हुआ (सुर ९, ८९) २ वि. अच्छा आचरणवाला। ३ बिलकुल गोल (सिरि १०९३)

संवित्ति :: स्त्री [संवित्ति] संवेदन, ज्ञान (विसे १६२६; धर्मंसं २९९)।

संविद :: सक [सं + विद्] जानना, 'जिच्चमाणो न संविदे' (उत्त ७, २२)।

संविद्ध :: वि [संबिद्ध] १ संयुक्‍त (उवर १३३) २ अभ्यस्त। ३ दृष्ट; 'संविद्धापहे' (आचा १, ५, ३, ९)

संविधा :: स्त्री [संविधा] संविधान, रचना, बनावट (चारु १)।

संविधुण :: सक [संवि + धू] १ दूर करना। २ परित्याग करना। ३ अवगणना, तिरस्कार करना। संकृ. संविधूणिय, संविधुणित्ताणं (आचा १, ८, ६, ५; सूअ १, १६, ४६ औप)

संविभत्त :: वि [संविभक्त] बाँटा हुआ, 'देवगुरुसविभत्त भत्तं' (कुप्र १५३)।

संविभाअ, संविभाग :: पुं [संविभाग] १ विभाग करना, बाँट (णाया १, २ — पत्र ८६; उवा; औप) २ आदर, सत्कार (स ३३४)

संविभागि :: वि [संविभागिन्] दूसरे को दे कर भोजन करनेवाला (उत्त ११, ९; दस ९, २, २३)।

संविभाव :: सक [संवि + भावय्] पर्या- लोचन करना, चिन्तन करना। संकृ. संवि- भाविऊण (राज)।

संविराय :: अक [संवि + राज्] शोभना। वकृ. संविरायंत (पउम ७, १४९)।

संविल्ल :: देखो संवेल्ल। वकृ. संविल्लंत (वै ४२)। संकृ. संविल्लिऊण (कुप्र ३१५)।

संविल्लिअ :: वि [संवेल्लित] चालित (उवा)।

संविल्लिअ :: देखो संवेल्लिअ = संवेष्टित (कुमा)।

संविल्लिअ :: देखो संवेल्लिअ = (दे) (उवा; जं १)।

संविह :: पुं [संविध] गोशाले का एक उपासक (भग ८, ६ — पत्र ३६९)।

संविहाण :: न [संविधान] १ रचना, बनावट (सुपा ५८६; धर्मंवि १२७; माल १५१; १६३)। २ भेद, प्रकार (वै १०)

संवीअ :: वि [संवीत] १ व्याप्‍त (सूअ १, ३, १, १६) २ परिहित, पहना हुआ; 'संवी- यदिव्ववसणे' (धर्मंवि ९)

संवुअ :: देखो संवुड (हे १, १३१; संक्षि ४; औप)।

संवुट्ट :: देखो संवुत्त (रंभा ४४)।

संवुड :: वि [संवृत] १ संकट, सकड़ा, अवि- वृत (ठा ३, १ — पत्र १२१) २ संवर-युक्त, सावद्य प्रवृत्ति से रहित (सूअ १, १, २, २९; पंचा १४, ६; भग) ३ निरुद्ध, निरोध- प्राप्‍त (सूअ १, २, ३, १) ४ आवृत। ५ संगोपित (हे १, १७७) ६ न. कषाय और इन्द्रियों का नियन्त्रण (पणह २, ३ — पत्र १२३)

संवुड्‍ढ :: वि [संवृद्ध] बढ़ा हुआ (सूअ २, १, २६; औप)।

संवुत्त :: वि [संवृत्त] संजात, बना हुआ; 'पव्वइया ते संसारंतकरा संवुत्ता' (वसु; कुप्र ४३५; किरात १७; स्वप्‍न १७; अभि ८२; उत्तर १४१; महा; सण)।

संवुद :: देखो संवु़ड़ (प्राकृ ८; १२; प्राप्र)।

संवुदि :: स्त्री [संवृति] संवरण (प्राकृ ८; १२)।

संवूढ :: वि [संव्यूढ] १ तय्यार बना हुआ, सज्जित; 'जह इह नगरनरिंदो सव्वबलेणंपि एइ सवूढो' (सुरा ५८५; सुर ९, १५२) २ बह कर किनारे लगा हुआ, बह कर स्थित; 'तए णं ते मागदियदारगा तेणं फलयखंडेणं उवु — ( ? व्वु) ज्झमाणा २ रयणदीवंतेण सवु- (? वू) ढा यावि होत्था' (णाया १, ९ — पत्र १५७)

संवेअ :: वि [संवेद्य] अनुभव-योग्य (विसे ३००७)।

संवेअ, संवेग :: पुं [संवेग] १ भय आदि के कारण से होती त्वरा — शीघ्रता (गउड) २ भव-वैराग्य, संसार से उदासीनता । ३ मुक्ति का अभिलाष, मुमुक्षा (द्र ६३; सम १२६; भग; उव; सुर ८, १६५; सम्मत्त १६९; १६५; सुपा ५४१)

संवेयण :: न [संवेदन] १ ज्ञान (धर्मंसं ४४; कुप्र १४९) २ वि. बोध-जनक। स्त्री. °णी (ठा ४, २ — पत्र २१०)

संवेयण :: वि [संवेजन] संवेग-जनक। स्त्री. °णी (ठा ४, २ — पत्र २१०)।

संवेयण :: वि [संवेगन] ऊपर दखो (ठा ४, २ — पत्र २१०)।

संवेल्ल :: सक [सं + वेल्ल्] चालित करना, कँपाना (से ७, २९)।

संवेल्ल :: सक [सं + वेष्ट] लपेटना। संवेल्लइ (हे ४, २२२; संक्षि ३६)।

संवेल्ल :: सक [दे] सकेलना, समेटना, संकुचित करना। संवेल्लेइ (भग १६, ६ — पत्र ७१२)। वकृ. संवेल्लेंत; संवेल्लेमाण (उव; भग १६, ६)। संकृ. संवेल्लऊणं (महा)।

संवेल्लिअ :: वि [दे] संवृत, संकुचित; 'संवे- ल्लिअं मउलिअं' (पाअ; दे ८, १२; भग १६, ६ — पत्र ७१२; राय ४५)।

संवेल्लिअ :: वि [संवेल्लित] चलित (से ७, २९)।

संवेल्लिअ :: वि [संवेष्टित] लपेटा हुआ (गा ६४६)।

संवेह :: पुं [संवेध संयोग; ] 'अन्नन्नवणणसंवे- हरमणिज्जं गंधव्वं' (महा), 'अन्नन्नवन्नसंवे- हमणहरं मोहणं पसूणंपि तग्गीयं सोऊणं' (धर्मंवि ६५)।

संस :: अक [स्रंस्] खिसकना, गिरना। संसइ (हे ४, १९७; षड्)।

संस :: सक [शंस्] १ कहना। २ प्रशंसा करना। संसइ (चेइय ७३७; भवि), संसंति (सिरि १८७)। कृ. संसणिज्ज (पउम ११८, ११४)

संस :: वि [सांश] अंश-युक्त, सावयव (धर्मंसं ७०९)।

संसइ :: वि [संशयिन्] संशय़-कर्ता, शंका- शील (विसे १५५७; सुर १३, ७; सुपा १४७)।

संसइअ :: वि [संशयित] संशयवाला, संदिग्ध (पाअ; विसे १५५७; सम १०९; सुर १२, १०८)।

संसइअ :: न [सांसयिक] मिथ्यात्व-विशेष (पंच ४, २; श्रा ६; संबोध ५२; कम्म ४, ५१)।

संसग्ग :: पुंस्त्री [संसर्ग] संबन्ध, संग, सोहबत (सुपा ३५८; प्रासू ३१; गउड)। स्त्री. °ग्गी (णाया १, १ टी — पत्र १७१; प्रासू ३३; सुपा १७१), 'एएणं चिय नेच्छंति साहवो सज्जणेहिं संसर्ग्गिं। जडम्हा विओगविहुरिय- हिययस्स, न ओसवं अन्‍नं' (सुर २, २१६)।

संसज्ज :: अक [सं + सञ्ज्] संबन्ध करना, संसर्गं करना। संसज्जंति (सम्मत्त २२०)।

संसज्जिम :: वि [संसक्तिमत्] बीच में गिरे हुए जीवों से युक्‍त (पिंड ५३८)।

संसट्ठ :: वि [संसृष्ट] १ खण्टित, विलिप्‍त। २ न. खरण्टित हाथ से दी जाती भिक्षा आदि (औप)। देखो संसिट्ठ।

संसण :: न [शंसन] १ कथन। २ प्रशंसा। ३ आस्वादन; 'सुत्तविहीणं पुण सुयमपक्क- फलसंसणसरिच्छं' (उप ६४८ टी; उवकु १६)

संसणिज्ज :: देखो संस = शंस्।

संसत्त :: वि [संसक्त] १ संसर्गं-युक्‍त, संबद्ध (णाया १, ५ — पत्र १११; औप; सं ९; उत्त २, १९) २ श्वापद-जन्तु-विशेष (कप्प)

संसत्ति :: स्त्री [संसक्ति] संसर्गं (सम्मत्त १५६)।

संसद्द :: पु [संशब्द] शब्द, आवाज (सुर २, ११०)।

संसप्पग :: वि [संसर्पक] १ चलने-फिरनेवाला। २ पुं. चींटी आदि प्राणी (आचा १, ८, ८, ९)

संसप्पिअ :: न [दे. संसर्पित] कूद कर चलना (दे ८, १५)।

संसमण :: न [संशमन] उपशम, शान्ति (पिंड ४५९)।

संसय :: पुं [संशय] संदेह, शंका (हे १, ३०; भग; कुमा; अभि ११०; महा; भवि)।

संसया :: स्त्री [संसत्] परिषत्, समा (उत्त १, ४७)।

संसर :: सक [सं + सृ] परिभ्रमण करना। वकृ. संसरंत, संसरमाण (प्रवि १; वै ८८; संबोध ११; अच्चु ६७)।

संसरण :: न [संस्मरण] स्मृति, याद (श्रु ७)।

संसवण :: न [संश्रवण] श्रवण, सुनना (सुर १ २४२; रंभा)।

संसह :: सक [सं + सह्] सहन करना। संसहइ (धर्मंसं ६८२)।

संसा :: स्त्री [शंसा] प्रशंसा, श्लाघा (पव ७३ टी; भग)।

संसाअ :: वि [दे] १ आरूढ। २ चूर्णित। ३ पीत। ४ उद्विग्‍न (षड्)

संसार :: पुं [संसार] १ नरक आदि गति में परिभ्रमण, एक जन्म से जन्मान्तर में गमन (आचा; ठा ४, १ — पत्र १९८; ४, २ — पत्र २१९; दसनि ४, ४९; उत्त २६, १; उव; गउड; जी ४४) २ जगत्, विश्‍व (उव; कुमा; गउड; पउम १०३, १४१)। °वंत वि [°वत्] संसारवाला, संसार-स्थित जीव, प्राणी (पउम २, ६२)

संसारि, संसारिण :: वि [संसारिन्] नरक आदि योनि में परिभ्रमण करनेवाला जीव (जी २), 'संसारिणस्स जं पुण जीवस्स सुहं तु फरिसमादीणं' (पउम १०२, १७४)।

संसारिय :: वि [संसारिक] ऊपर देखो (स ४०२; उव)।

संसारिय :: वि [संसारिक] संसार से संबन्ध रखनेवाला (पउम १०६, ४३; उप १४२ टी; स १७६; सिक्खा ७१; सण; काल)।

संसारिय :: वि [संसारित] एक स्थान से दूसरे स्थान में स्थापित, 'संसारियासु वलयबाहासु (णाया १, ८ — पत्र १३३)।

संसाहण :: स्त्रीन [दे] अनुगमन (दे ८, १६; दसनि ३८८)। स्त्री. °णा (वव १)।

संसाहण :: न [संकथन] कथन (सुपा ४१५)।

संसाहिय :: वि [संसाधित] सिद्ध किया हुआ (सुपा ३९७)।

संसि :: वि [शंसिन्] कहनेवाला (गउड)।

संसिअ :: वि [शंसित] १ श्‍लाघित (सुर १३, ६८) २ कथित (उप पृ १६१)

संसिअ :: वि [संश्रित] आश्रित (विपा १, ३ — पत्र ३८; पणह १, ४ — पत्र ७२; औप ४८; अणु १५१)।

संसिंच :: सक [सं + सिच्] १ पूरना, भरना। २ बढ़ाना। ३ सिंचन करना। कवकृ. संसिच्चमाण (आचा; पि ५४२)। संकृ. संसिंचियाणं (आचा १, २, ३, ४)

संसिज्झ :: अक [सं + सिध्] अच्छी तरह सिद्ध होना। संसिज्झंति (स ७६७)।

संसिट्ठ :: देखो संसट्ठ (भग)। °कप्पिअ वि [°कल्पिक] खण्टित हाथ अथा भाजन से दी जाती भिक्षा को ही ग्रहण करने की नियमवाला मुनि (पणह २, १ — पत्र १००)।

संसित्त :: वि [संसिक्त] सींचा हुआ (सुर ४, १४; महा; हे ४, ३९५)।

संसिद्धिअ :: वि [सांसिद्धिक] स्वभाव-सिद्ध (हे १, ७०)।

संसिलेस :: देखो संसेस (राज)।

संसिलेसिय :: देखो — संसेसिय (राज)।

संसीव :: सक [सं + सिव्] सीना, सिलाई करना। संसीविज्जा (आचा २, ५, १, १)।

संसुद्ध :: वि [संशुद्ध] १ विशुद्ध, निर्मंल (सुपा ५७३) २ न. लगातार उन्नीस दिन का उपवास (संबोध ५८)

संसूयग :: वि [संसूचक] सूचना-कर्ता (रंभा)।

संसेइम :: वि [संसेकिम] संसेक से बना हुआ (निचू १५)। २ उबाली हुई भाजी जिस ठंढे जल से सिची जाय वह पानी (ठा ३, ३ — पत्र १४७; कप्प) ३ तिल की धोवन (आचा २, १, ७, ८। ४ पिष्टोदक, आटा की धोवन (दस ५, १, ७५)

संसेइम :: वि [संस्वदिम] १ पीसने से उत्पन्न होनेवाला (पणह १, ४ — पत्र ८५)

संसेय :: अक [सं + स्विद्] बरसना; 'जावं च णं बहवे उराला बलाहया संसेयंति' (भग)।

संसेय :: पुं [संस्वेद] पसीना। °य वि [°ज] पसीने से उत्पन्न (सूअ १, ७, १; आचा)।

संसेय :: पुं [संसेक] सिंचन (ठा ३, ३)।

संसेविय :: वि [संसेवित] आसेवित (सुपा २२७)।

संसेस :: पुं [संश्लेष] सम्बन्ध, संयोग (आचा २, १३, १)।

संसेसिय :: वि [संश्लेषिक] संश्लेषवाला (आचा २, १३, १)।

संसोधण :: न [संशोधन] शुद्धि-करण (पिंड ४५९)। देखो संसोहण।

संसोधित :: वि [संशोधित] अच्छी तरह शुद्ध किया हुआ (सूअ १, १४, १८)।

संसोय :: सक [सं + शोचय्] शोक करना। कृ. संसोयणिज्ज (सुर १४, १८१)।

संसोहण :: न [संशोधन] विरेचन, जुलाब (आचा १, ९, ४, २)। देखो संसोधण।

संसोहा :: स्त्री [संशोभा] शोभा, श्री (सुपा ३७)।

संसोहि :: वि [संशोभिन्] शोभनेवाला (सुपा ४८)।

संसोहिय :: देखो संसोधित (राज)।

संह :: देखो संघ (नाट — विक्र २५)।

संहडण :: देखो संघयण (चंड)।

संहदि :: स्त्री [संहृति] संहार (संक्षि ९)।

संहय :: वि [संहत] मिला हुआ (पणह १, ४ — पत्र ७८)।

संहर :: सक [सं + हृ] १ अपहरण करना। २ विनाश करना। ३ संवरण करना, संके- लना, समेटना। ४ ले जाना। संहरइ (पव २६१; हे १, ३०; ४, २५९)। कवकृ. संहरिज्जमाण (णाया १, १ — पत्र ३७)

संहर :: पुं [संभार] समुदाय, संघात; 'संघाओ संहरो निअरो' (पाअ)।

संहरण :: न [संहरण] संहार (श्रु ८७)।

संहार :: देखो संभार = सं + भारय्। कृ. संहारणिज्ज (णाया १, १२ — पत्र १७६)।

संहार :: देखो संघार (हे १, २६४; षड्)।

संहारण :: न [संधारण] धारण, बनाये रखना, टिकाना; 'कायसंहारणट्‍ठाए' (आचा)।

संहाव :: देखो संभाव = सं + भावय्। वकृ. संहावअंत (शौ) (पि २७५)।

संहिदि :: देखो संहदि (प्राकृ १२)।

संहिच्च :: अ [संहत्य] साथ में मिलकर, एकत्रित होकर (णाया १, ३ टी — पत्र ९३)।

संहिय :: देखो संधिअ = संहित (कप्प; नाट — महावी २९)।

संहिया :: स्त्री [संहिता] १ चिकित्सा आदि शास्त्र; 'चिगिच्छासंहियाओ' (स १७) २ अस्खलित रूप से सूत्र का उच्चारण; 'अक्खलियसुत्तुच्चारणरूवा इह संहिया मुणेयव्वा' (चेइय २७२)

संहुजि :: स्त्री [संभृति] अच्छी तरह पोषण (संक्षि ४)।

सक :: देखो सग = शक (पणह १, १ — पत्र १४)।

सकण्ण :: देखो सकन्न (राज)।

सकथ :: न [सकथ] तापसों का एक उपकरण (निर ३, १)।

सकधा :: देखो सकहा; 'चेइयखंमेसु जिणसकधा संणिकित्ता चिट्‍ठंति' (सुज्ज १८)।

सकयं :: अ [सकृत्] एक बार; 'किं सक्क (? क) यं वोलीणं' (सुर १६, ४५)।

सकन्न :: वि [सकर्ण] विद्वान्, जानकार (सुर ८, १४९, १२, ५४)।

सकल :: देखो सयल = सकल (पणह १, ४ — पत्र ७८)।

सकहा :: स्त्री [सक्‍थिन्] अस्थि, हाड़़ (सम ६३; सुपा ६५७; राय ८९)।

सकाम :: देखो स-काम= सकाम।

सकुंत :: पुं [शकुन्त] पक्षी (कुप्र ६८; अणु १४१)।

सकुण :: देखो सक्क = शक्। सकुणेमो (स ७६५)।

सकेय :: देखो स-केय = सकेत।

सक्क :: अक [शक्] सकना, समर्थं होना। सक्कइ, सक्कए (हे ४, २३०; प्राप्र; महा)। भवि. सक्खं, सक्खामो, सक्किस्सामो (आचा; पि ५३१)। कृ. सक्क, सक्कणिज्ज, सक्किअ (संक्षि ६; सुर १, १३०; ४, २२७; स ११४; संबोध ४०; सुर १०, ८१)।

सक्क :: सक [सृप्] जाना, गति करना। सक्कइ (प्राकृ ६५; धात्वा १५५)।

सक्क :: सक [ष्वष्क्] गति करना, जाना। सक्कइ (पि ३०२)।

सक्क :: न [शक्ल] छाल (दे ३, ३४)।

सक्क :: वि [शक्त] समर्थं, शक्ति-युक्त; 'को सक्को वेयणाविगमे' (विवे १०२; हे २, २)।

सक्क :: देखो सक्क = शक्।

सक्क :: पुं [शक्र] १ सौधर्म नामक प्रथम देवलोक का इ्द्र (ठा २, ३ — -पत्र ८५; उवा; सुपा २६९) २ कोई भी इन्द्र, देव- पति (कुमा) ३ एक विद्याधरराजा (पउम १२, ८२) ४ छन्द-विशेष (पिंग)। °गुरु पुं [°गुरु] बृहस्पति (सिरि ४४)। °प्पभ पुं [°प्रभ] शक्र का एक उत्पात-पर्वत (ठा १० — पत्र ४८२)। °सार न [°सार] एक विद्याधर-नगर (इक)। °विदार (शौ) न [°वतार] तीर्थ-विशेष (अभि १८३)। °वयार न [°वतार] चैत्य-विशेष (स ४७७; द्र ६१)

सक्क :: पुं [शाक्य] १ बुद्ध देव (पाअ) २ वि. बौद्ध, बुद्ध का भक्त (विसे २४१९; श्रावक ८८; पव ९४; पिंड ४४५)

सक्क :: (अप) देखो सग = स्वक (भवि)।

सक्कंदण :: पुं [संक्रन्दन] इन्द्र (सुर १, ६ टि; ४, १६०)।

सक्कणो :: (शौ) देखो सकुण। सक्कणोमि (अभि ९२; पि १४०), सक्कणोदि (नाट — रत्‍ना १०२)।

सक्कय :: देखो स-क्कय = सत्कृत।

सक्कय :: वि [संस्कृत] १ संस्कार-युक्त (पिंड १९१) २ स्त्रीन. संस्कृत भाषा (कुमा; हे १, २८; २, ४); 'परमेटि्ठनमोक्कारं सक्कइ (? य) भासाए भणइ थुइसमए' (चेइय ४९८)। स्त्री. °या; 'सक्कया पायया चेव भणिईओ होंति दोणिण वा' (अणु १३१)

सक्कर :: न [शर्कर] खण्ड, टुकड़ (उव)।

सक्कर° :: दखो सक्करा। °पुढवी स्त्री [°पृथिवी] दूसरी नरक-भूमि (पउम ११८, २)। °प्पभा स्त्री [°प्रभा] वही अर्थं (ठा ७ — पत्र ३८८; इक)।

सक्करा :: स्त्री [शर्करा] १ चीनी, पक्की खाँड़ (णाया १, १७ — पत्र २२९; सुपा ८४; सुर १, १४) २ उपलखण्ड, पत्थर का टुकड़ा, कंकड़ (सूअ २, ३, ३६; अणु) ३ बालु, रेती (महा) °भ न [°भ] १ गोत्र- विशेष, जो गोतम गेत्र की एक शाखा है। २ पुं. स्त्री. उस गोत्र में उत्पन्न (ठा ७ — पत्र ३९०)। °भा स्त्री [°भा] दूसरी नरक-पृथिवी (उत्त ३६, १५७)

सक्कार :: पुं [सत्कार] संमान, आदर, पूजा (भग; स्वप्‍न ८९; भवि; हे ४, २६०)।

सक्कार :: पुं [संस्कार] १ गुणान्तर का आघान। २ स्मृति का कारण-भूत एक गुण। ३ वेग। ४ शास्त्राभ्यास से उत्पन्न होती व्युत्पत्ति। ५ गुण-विशेष स्थिति-स्थापन। ६ व्याकरण के अनुसार शब्द-सिद्धि का प्रकार। ७ गर्भा- धान आदि समय की जाती धार्मिक क्रिया। ८ पाक, पकाना (हे १, २८; २, ४; प्राकृ २१)

सक्कार :: सक [सत्कारय्] सत्कार करना, सम्मान करना। सक्कारेइ, सक्कारिंति, सक्कारेमो (उवा; कप्प भग)। संकृ. सक्कारित्ता (भग; कप्प)। कृ. सक्कारणिज्ज (णाया १, १ टी — पत्र ४; उवा)।

सक्कारण :: न [सत्कारण] सत्कार, सम्मान (दस १०, १७)।

सक्कारि :: वि [सत्कारिन्] सत्कार करनेवाला, सम्मानकर्ता (गउड)।

सक्कारिय :: वि [सत्कारित] सम्मानित (सुख २, १३; महा)।

सक्कारिय :: वि [संस्कारित] संस्कार-युक्त किया हुआ (धर्मंसं ८६३)।

सक्काल :: देखो सक्कार = संस्कार (हे १, २५४)।

सक्किअ :: देखो सक्क = शाक्य; 'अहं खु दाव कत्तव्वकरत्थीकिदसंकेदी विअ सक्किअसमणओ णिद्दं ण लभामि' (चारु ५६)।

सक्किअ :: देखो सक्क = शक्।

सक्किअ :: वि [शकित] जो समर्थं हुआ हो वह (श्रा २८; कुप्र ३)।

सक्किअ :: वि [स्वकीय] निज का, आत्मीय; 'सि (? स) क्कियमुवहिं च तहा पडिलेहंतो न बेमि सया' (कुलक ७; ९)।

सक्किअ :: देखो स-क्किअ = सत्कृत।

सक्किरिआ :: स्त्री [संस्क्रिया] संस्कार, संस्कृति (प्राकृ ३३)।

सक्कुण :: देखो सकुण। सक्कुणदि (शौ) (प्राकृ ९४), सक्कुणोमि (स २४; मोह ७)।

सक्कुलि :: स्त्री [शष्कुलि] १ कर्ण-विविर, कान का छिद्र (णाया १, ८ — पत्र १३३) २ तिलपापड़ी, एक तरह का खाद्य पदार्थं (पणह २, ५ — पत्र १४८; दस ५, १, ७१; कस; विसे २९९)। °कण्ण पुं [°कर्ण] एक अन्तर्द्वीप। १ उसमें रहनेवाली मनुष्य- जाति (इक)

सक्ख° :: देखो सक्क = शक्।

सक्ख :: न [सख्य] मैत्री, दोस्ती (उत्त १४, २७)।

सक्ख :: न [साक्ष्य] साक्षिपन, गवाही (सुपा २७९; संबोध १७)।

सक्खं :: अ [साक्षात्] प्रत्यक्ष, आँखों के सामने, प्रकट (हे १, २४; पि ११४)।

सक्खय :: देखो सक्कय = संस्कृत (जं २ टी — पत्र १०४)।

सक्खर :: देखो स-क्खर = साक्षर।

सक्खा :: देखो सक्खँ (पंचा ६, ४०; सुर ५, २२१; १२, ३९; पि ११४)।

सक्खि :: वि [साक्षिन्] साक्षो, साखो, गवाह (पणह १, २ — पत्र २९; धर्मंसं १२००; कप्पू; श्रा १४; स्वप्‍न १३१)।

सक्खिअ :: देखो सक्ख = सख्य, 'कादंबरी- सक्खिअं अम्हाणं पढमसोहिदं इच्छीअदि' (अभि १८८)।

सक्खिज्ज :: न [साक्षित्व] गवाही, साख (श्रावक २६०)।

सक्खिण :: देखो सक्खि (हे २, १७४; षड्; सुर ६, ४४)।

सग :: [स्वक] देखो स = स्व (भग; पणण २१ — पत्र ६२८; पउम ८२, ११७; उत्त २०, २६; २७; संबोध ५०; चेइय ५६१)।

सग :: देखो सत्त = सप्‍तन् (रयण ७२; उर ५, ३; २, २३)। °वण्ण, °वन्न स्त्रीन [°पञ्चाशत्] सत्तावन, पचास और सात (कम्म ६, ६०; श्रु १११; कम्म २, २०)। °वीस स्त्रीन [विंशति] सताईस (श्रा २८; रयण ७२; संबोध २६)। °सयरि स्त्री [°सप्तति] सतहत्तर (कम्म २, ६)। °सीइ स्त्री [°शीति] सतासी (कम्म २, १६)।

सग :: देखो सत्तम (कम्म ४, ७९)।

सग :: पुं [शक] १ एक अनार्यं देश, अफगानिस्तान के उत्तर का एक म्लेच्छ देश (सूअनि ६६; पउम ९८, ६४; इक) २ उस देश का निवासी (काल) ३ एक सुप्रसिद्ध राजा जिसका शक-संवत् तलता है (विचार ४९५; ५१३)। °कूल न [°कूल] एक म्लेच्छ-देश का किनारा (काल)

सग° :: स्त्री [स्रज्] माला; 'सगचंदणविस- सत्थाइजोगओ तस्स अह य वीसंति' (श्रावक १८९)।

सगड :: न [शकट] १ गाड़ी (उवा; आचा २, ३, १६) २ पुं. एक सार्थवाह-पुत्र (विपा १, १ — पत्र ४; १, ४ — पत्र ५५)। °भोद्दिआ स्त्री [°भद्रिका] जैनेतर ग्रन्थ- विशेष (णंदि १९४; अणु ३)। °मुह न [°मुख] पुरिमताल नगर का एक प्राचीन उद्यान (कप्प)। °वूह पुं [°व्यूह] कला- विशेष, गाड़ी के आकार से सैन्य की रचना (औप)। देखो सअढ।

सगडब्भि :: देखो स-गडब्भि = स्वकृतभिद्।

सगडाल :: पुं [शकटाल] राजा नन्द का सुप्रसिद्ध मंत्री और महर्षि स्थूलभद्र का पिता (कुप्र ४४३)।

सगडिया :: स्त्री [शकटिका] छोटी गाड़ी (भग; विपा १, १ — पत्र ८; णाया १, १ — पत्र ७४)।

सगडी :: स्त्री [शकटी` गाड़ी] (णाया १, ७ — पत्र ११८)।

सगण :: देखो स-गण = स-गण।

सगन्न :: देखो सकन्न (कुप्र ४०३)।

सगय :: न [दे] श्रद्धा, विश्वास (दे ८, ३)।

सगर :: पुं [सगर] एक चक्रवर्ती राजा (सम ८२; उत्त १७, ३५)।

सगल्ल :: देखो सयल = सकल (णाया १, १६ — पत्र २१३; भग; पंच १, १३; सुर १, ११६; पव २१६; सिक्खा ३७)।

सगसग :: अक [सगसगाय्] 'सग-सग' आवाज करना। वकृ. सगसगेंत (पउम ४२, ३१)।

सगार :: देखो स-गार = सागर, साकार।

सगार :: देखो स-गार = स-कार।

सगास :: न [सकाश] पास, निकट, समीप (औप; सुपा ४५२; ४८८; महा)।

सगुण :: देखो स-गुण = स-गुण।

सगुणि :: देखो सउणि (पणह १, ४ — पत्र ७८)।

सगुत्त :: वि [सगोत्र] समान गोत्रवाला, एकगोत्रीय (कप्प)।

सगेद्द :: न [दे] निकट, समीप (दे ८, ६)।

सगोत्त :: देखो सगुत्त (कुप्र २१७)।

सग्ग :: पुंन [स्वर्ग] देवों का आवास-स्थान (णाया १, ५ — पत्र १०५; भग; सुपा २९३); 'वेरलग्गं चेवमिह सग्गं' (श्रु ५८)। °तरु पुं [°तरु] कल्पवृक्ष (से ११, ११)। °सामि पुं [°स्वामिन्] इन्द्र (उप २६४ टी)। °वहू स्त्री [°वधू] देवांगना, देवी (उप ७२८ टी)।

सग्ग :: पुं [सर्ग] १ मुक्ति, मोक्ष, ब्रह्म (औप) २ सृष्टि, रचना (रंभा)

सग्ग :: देखो स-ग्ग = साग्र।

सग्ग :: देखो सग =स्वक (उत्त २०, २६ राज)।

सग्गइ :: देखो स-ग्गइ = सद्‌गति।

सग्गह :: वि [दे] मुक्त, मुक्ति-प्राप्‍त (दे ८, ४ टी)।

सग्गह :: देखो स-ग्गह = स-ग्रह।

सग्गीय :: वि [स्वर्गीय] स्वर्गं-सम्बन्धी (विसे १८००)।

सग्गु :: देखो सिग्गु (उप १०३१ टी)।

सग्गोकस :: पुं [स्वर्गौकस्] देव, देवता (धर्मा ६)।

सग्ध :: सक [कथ] कहना। सग्घइ (षड्)।

सग्घ :: वि [श्‍लाघ्य] प्रशंसनीय (सूअ १, ३, २, १६; विसे ३५७८)।

सघिण :: देखो स-घिण = स-घृण।

सचक्खु, सचक्खुअ :: देखो स-चक्खु = स-चक्षुष्।

सचित्त :: देखो स-चित्त = स-चित्त।

सचिव :: देखो सइव (सण)।

सची :: देखो सई = शची (धर्मंवि ६६; नाट — शकु ९७)। °वर पुं [°वर] इन्द्र (सिरि ४२)।

सचेयण :: देखो स-चेयण = स-चेतन।

सच्च :: न [सत्य] १ यथार्थं भाषण, अमृषा- कथन (ठा १० — पत्र ४८९; कुमा; पणह २, ५ — पत्र १४८; स्वप्‍न २२; प्रासू १५०; १७७) २ शपथ, सोगन। ३ सत्य युग। ४ सिद्धान्त (हे २, १३) ५ वि. यथार्थं, सच्चा, वास्तविक; 'सच्चापरक्कमे' (उत्त ४९; श्रा १२; ठा ४, १ — पत्र १९६; कुमा) ६ पुं. संयम, चारित्र (आचा; उत्त ६, २) ७ जिनागम, जैन सिद्धान्त (आचा) ८ अहाोरात्र का दसवाँ मुहुर्त्त (सम ५१) ९ एक वणिक् -पुत्र (उप ५१६)। °उर न [°पुर] भारत का एक प्राचीन नगग, जो आजकल 'साचोर' नाम से मारवाड़ में प्रसिद्ध है (ती ७; सिग्ध ७)। °उरी स्त्री [°पुरी] वही अर्थं (पडि)। °णेमि, °नेमि पुं [°नेमि] भगवान् अरिष्टनेमि के पास दीक्षा ले मुक्ति पानेवाला एक मुनि जो राजा समुद्रविजय का पुत्र था (अंत; अंत १४)। °प्पवाय न [°प्रवाद] छठवाँ पूर्वं-ग्रंथ (सम २६)। °भामा स्त्री [°भामा] श्रीकृष्ण की एक पत्‍नी (अंत १५)। °वाइ वि [°वादिन्] सत्य-वक्‍ता (पउम ११, ३१)। °संध वि [°सन्ध] सत्य प्रतिज्ञावाला, प्रतिज्ञा-निर्वाहक (उप पृ ३३३; सुपा २८३)। °सिरी स्त्री [°श्री] पाँचवें आरे की अन्तिम श्राविका (विचार ५३४)। °सेण पुं [°सेन] ऐरवत वर्षं में होनेवाला एक जिनदेव (सम १५४)। °हामा देखो °भामा (पि १४)। °वाइ देखो °वाइ (आचा १, ८, ६, ५; १, ८, ७, ५)

सच्चइ :: पुं [सत्यकि] १ आगामी काल में बारहवाँ तीर्थंकर होनेवाला एक साध्वी-पुत्र (ठा ९ — पत्र ४५७; सम १५४, पव ४६) २ विषय-लम्पट एक विद्याधर (उव; उर ७, १ टी) ३ श्रीकृष्ण का संबन्धी एक व्यक्‍ति (रुक्मि ४६)। °सुय पुं [°सुत] ग्यारह रुद्रों में अन्तिम रुद्र पुरुष (विचार ४७३)

सच्चकार :: वि [सत्यंकार] सत्य साबित करनेवाला, लेन-देन की सच्चाई के लिए दिया जाता बहाना; 'गहिओ संजमभारो सच्चंकारु व्व सिद्धीए' (धर्मंवि १४; आप ६६; रयण ३४)।

सच्चव :: सक [दृश्] देखना। सच्चवइ (हे ४, १८१; षड्; सण)। कर्मं. सच्चविज्जइ (कुप्र ९८)।

सच्चव :: सक [सत्यापय्] सत्य साबित करना। सच्चवइ (सुपा २९२)। कर्मं. 'अलिअंपि सच्चविज्जइ पहुत्ताणं तेण रमणिज्जं' (सूक्‍त ८५)।

सच्चवण :: न [दर्शन] अवलोकन, निरीक्षण (कुमा; सुपा २२९)।

सच्चवय :: वि [दर्शक] द्रष्टा (संबोध २४)।

सच्चविअ :: वि [दृष्ट] देखा हुआ, विलोकित (गा ५३९; ८०९; सुर ४, २२५; पाअ; महा)।

सच्चविअ :: वि [दे] अभिप्रेत, इष्ट (दे ८, १७; भवि)।

सच्चा :: स्त्री [सत्या] १ सत्य वतन (पणण ११-पत्र ३७६) २ श्रीकृष्ण की एक पत्‍नी, सत्यभामा (कुप्र २५८)। ३ इद्राणी (चउप्पन्‍न° ऋषभ-चरित)। °मोस वि [°मृषा] मिश्र-भाषा, सत्य से मिला हुआ झूठ वचन; 'सच्चामोसाणि भासइ (सम ५०)

सच्चित्त :: देखो स-चित्त = स-चित्त।

सच्चिल्लय :: वि [दे. सलत्य] सच्चा, यथार्थ (दे ८, १४)।

सच्चीसय :: पुं [दे. सच्चीसक] वाद्य-विशेष (पउम १०२, १२३)। देखो बद्धीसक।

सच्चेविअ :: वि [दे] रचित, निर्मित (दे ८, १८)।

सच्छ :: वि [स्वच्छ] अति निर्मल (सुपा ३०)।

सच्छंद :: वि [स्वच्छन्द] १ स्वाधीन, स्व-वश (उप ३३९ टी; सुर १४, ८५) २ न. स्वेच्छानुसार (णाया १, ८ — पत्र १५२; औप, अभि ४६; प्रासू १७)। °गामि वि [°गामन्] इच्छानुसार गमन करनेवाला, स्वैरी। स्त्री. °णी (सुपा २३५)। °चारि, °यारि वि [°चारिन्] स्वच्छन्दी, इच्छानु- सार विहरण करनेवाला, स्वैरी। स्त्री. °णी (सं ३६; श्रा १६; गच्छ १, १०)

सच्छर :: सक [दृश्] देखना (संक्षि ३६)।

सच्छह :: वि [दे. सच्छाय] सदृश, समान, तुल्य (दे ८, ९; गा ५; ४५; ३०८, ५३३; ५८०; ६८१; ७२१; सुर ३, २४६; धर्मंवि ५७)।

सच्छाय :: वि [सच्छाय] १ समान छायावाला, तुल्य (गउड; कुप्र २३) २ अच्छी कान्तिवाला (कुमा) ३ सुन्दर छायावाला। ४ कान्ति-युक्त। ५ छाया-युक्त (हे १, २४९)

सच्छाह :: वि [सच्छाय] जिसकी छाँही सुन्दर हो वह। २ छाँही वाला। ३ समान छायावाला, तुल्य, सदृश (हे १, २४९)

सच्छत्ता :: स्त्री [सच्छत्रा] वनस्पति-विशेष (सूअ २, ३, १६)।

सजण :: देखो स-जण = स्व-जन।

सजिय :: देखो सज्जीव (सुर १, २१०)।

सजुत्त :: देखो स-जोइ = स-ज्योतिष्।

सजोगि :: वि [सयोगिन्] १ मन आदि का व्यापारवाला। २ पुंन. तेरहवाँ गुण-स्थानक (पि ४११; सम २६; कम्म २, २; २०)

सजोणिय :: देखो स-जोणिय = स-योनिक।

सज्ज :: अक [सञ्ज्] १ आसक्ति करना। २ सक. आलिंगन करना। सज्जइ (उत्त २५, २०), सज्जह (णाया १, ८ — पत्र १४८)। बकृ. सज्जमाण (सूअ १, ७, २७; दसचू २, १०; उत्त १४; ६; उवर १२)। कृ. सज्जियव्व (पणह २, ५ — पत्र १४९)

सज्ज :: अक [सस्ज्] १ तय्यार होना। २ सक. तय्यार करना, सजाना। सज्जेइ, सज्जेंति (कुमा; णाया १, ८ — पत्र १३२)। कर्मं. सज्जीअंत (कप्पू)। कवकृ. सज्जिज्जंत (कप्पू)। संकृ. सज्जिऊण, सज्जेउं (स ६४; महा)। कृ. सज्जियव्व, सज्जेयव्व (सत्त ४०; स ७०)। प्रयो., संकृ. सज्जावेऊण (महा)

सज्ज :: पुं [सर्ज] वृक्ष-विशेष (णाया १, १ — पत्र २५; विसे २९८२; स १११; कुमा)।

सज्ज :: पुं [षड्ज] स्वर-विशेष (कुमा)।

सज्ज :: वि [सज्ज] तय्यार, प्रगुण (णाया १, ८ — पत्र १४६; सुपा १२२; १९७; हेका ४६; पिंग)।

सज्ज, सज्जं :: अ [सद्यस्] तुरन्त, जल्दी, शीघ्र; 'सज्जधायणं से कम्मणजोगं पउंजामि' (स १०८; सुख ८, १३; गा ५९७ अ; कस)।

सज्जंभव :: पुं [शय्यम्भव] एक प्रसिद्ध जैन महर्षि (सार्धं १२)।

सज्जण :: देखो स-ज्जण = सज्जन।

सज्जा :: देखो सेज्जा (राज)।

सज्जिअ :: वि [सज्जित] सजाया हुआ, तय्यार किया हुआ (औप; कुमा; महा)।

सज्जइअ :: वि [सजित] बनाया हुआ (दे १, १३८)।

सज्जिअ :: पुं [दे] १ नापित, नाई। २ रजक, धोबी। ३ वि. पुरस्कृत, आगे किया हुआ। ४ दीर्घ, लम्बा (दे ८, ४७)

सज्जिआ :: स्त्री [सर्जिका] क्षार-विशेष, साजी खार; 'वत्थं सज्जियाखारेण अणुलिंपति' (णाया १, ५ — पत्र १०६)।

सज्जीअ, सज्जीव :: देखो सज्जीअ = स-जीव।

सज्जीह्रव :: अक [सज्जी + भू] सज्ज होना, तय्यार होना। सज्जीहवेइ (श्रा १४)।

सज्जो :: देखो सज्ज = सद्यस् (सुपा ३९७)।

सज्जोक्क :: वि [दे] प्रत्यग्र, नूतन, ताजा (दे ८, ३)।

सज्झ :: वि [साध्य] १ साधनीय, सिद्ध करने योग्य। २ वश में करने योग्य; 'बलिओ हु इमो सत्तू ताव य सज्झो न पुरिसगारस्स' (सुर ८, २६; सा २४) ३ तर्कंशास्त्र-प्रसिद्ध अनुमेय पदार्थ, जैसे घूम से ज्ञातव्य वह्नि (पंचा १४, ३५) ४ पुं. साध्यवाला, पक्ष (विसे १०७७) ५ देवगण-विशेष। ६ योग-विशेष। ७ मन्त्र-विशेष (हे २, २६)

सज्झ :: पुं [सह्य] १ पर्वंत-विशेष (स ६७९) २ वि. सहन-योग्य (हे २, २६; १२४)

सज्झंतिय :: पुं [दे] ब्रह्मचारी (राज)।

सज्झंतिया :: स्त्री [दे] भगिनी, बहिन (राज)।

सज्झंतेवासि :: पुं [स्वाध्यायान्तेवासिन्] विद्या-शिष्य (सुख २, १५)।

सज्झमाण :: वि [साध्यमान] जिसकी साधना की जाती हो वह (रयण ४०)।

सज्झव :: सक [दे] ठीक करना, तन्दुरुस्त करना। सज्झवेहि, सज्झवेमि (सुख २, १५)।Z

सज्झस :: न [साध्वस] भय, डर (हे २, २६; कुमा)।

सज्झाइय :: वि [स्वाध्यायिक] १ जिसमें पठन आदि स्वाध्याय हो सके ऐसा शास्त्रोक्त देश, काल आदि (ठा १० — पत्र ४४७५) २ न. स्वाध्याय, शास्त्र-पठन आदि (पव २६८; णंदि २०७ टी)

सज्झाय :: पुं [स्वाध्याय] शोभन अध्ययन, शास्त्र का पठन, आवर्तंन आदि (औप; हे २, २६; कुमा; नव २९)।

सज्झाराय :: वि [साह्याराज] सह्याचल के राजा से सम्बन्ध रखनेवाला, सह्याद्रि के राजा का (पउम ५५, १७)।

सज्झिलग :: पुं [दे] भ्राता, भाई (उप २७५; ३७७; पिंड ३२४)।

सज्जिलगा :: स्त्री [दे] भगिनी, बहिन (पिंड ३१६; उप २०७)।

सज्झिल्लग :: देखो सज्झिलग (राज)।

सट्ट :: पुंस्त्री [दे] १ सट्टा, विनिमय, बदला (सुपा २३३)। स्त्री. °ट्टी (सुपा २७५; वज्जा १४२) २ वि. सटा हुआ; 'पीणुणणय- सट्टइं ....थणवट्टइं' (भवि)

सट्ट, सट्टय :: पुंन [सट्टक] १ एक तरह का नाटक (कप्पू; रंभा १०), 'रंभं तं परिणेदि अट्ठमतियं एयम्मि सट्टे वरे' (रंभा १०) २ खाद्य-विशेष (रंभा ३३)

सट्ठ :: न [शाठ्य] शठता, धूर्तंता (उप ७२८ टी; गुभा २४)।Z

सट्ठ :: (शौ) देखो छट्ठ (चारु ७; प्रबो ७३; पि ४४९)।

सट्ठि :: स्त्री [षष्टि] १ संख्या-विशेष, साठ, ६०)। २ साठ संख्यावाला (सम ७४; कप्प; महा; पि ४४८)। °तंत, °यंत न [°तन्त्र] शास्त्र-विशेष, सांख्य-शास्त्र (भग; णाया १, ५ — पत्र १०५; औप; अणु ३६)। °म वि [°तम] साठवाँ (पउम ६०, १०)

सट्ठिक, सठ्ठिय, सट्ठीअ :: वि [षष्टिक] १ साठ वर्षं की वयवाला (तंदु १७; राज) २ पुन. एक प्रकार का चावल (राज; श्रा १८)

सड :: अक [सद्] १ सड़ना। २ विषाद करना, खिन्न होना। ३ सक. गति करना, जाना। सडइ (हे ४, २१९; प्राप्र; षड्; धात्वा १५५)

सड :: अक [शट्] १ सड़ना। २ खेद करना। ३ रोगी होना। ४ सक. जाना। सड़इ (विपा १, १ — पत्र १६)

सडंग :: न [षडङ्गं] शिक्षा, कल्प, व्याकरण, निरुक्त, छन्द और ज्योतिष। °वि वि [°विद्] छः अंगों का जानकार (भग; औप; पि ३४१)।

सडण :: न [शटन] विशरण, सड़ना (पणह १, १ — पत्र २३; णाया १, १ — पत्र ४८)।

सडा :: देखो सढा (से १, ५०; पि २०७)।

सडिअ :: वि [सन्न, शटित] सड़ा हुआ, विशीर्णं (विपा १, ७ — पत्र ७३; श्रा १४; कुमा)।

सडिअग्गिअ :: वि [दे] १ वर्धित, बढ़ाया हुआ। २ प्रेरित षड्)।

सड्‍ढ :: सक [शद्] १ विनाश करना। २ कृश करना। सड्ढइ (धात्वा १५५)

सड्‍ढ :: पुंस्त्री [श्राद्ध] १ श्रावक, जैन गृहस्थ (ओघ ६३; महा)। स्त्री. °ड्‍ढी (सुपा ६५४) २ वि. श्रद्धेय वचनवाला, जिसका वचन श्रद्धेय हो वह (ठा ३, ३ — पत्र १३९)। देखो सद्ध = श्राद्ध।

सड्‍ढ :: देखो स-ड्‍ढ = सार्धं।

सड्‍ढइ :: पुं [श्राद्धकिन्] वानप्रस्थ तापस की एक जाति (औप)।

सड्‍ढा :: स्त्री [श्रद्धा] १ स्पृहा, अभिलाष, वाँछा (विपा १, १ पत्र २) २ धर्मं आदि में विश्वास, प्रतीति। ३ आदर, सम्मान। ४ शुद्धि। ५ चित्त की प्रन्नता (हे १, ४१; षड्)। देखो सद्धा।

सडिढ :: वि [श्रद्धिन्] १ श्रद्धालु, श्रद्धावान् (ठा ६ — पत्र ३५२; उत्त ५, ३१; पिंडभा ३३) २ पुं. श्रावक, जैन गृहस्थ (कप्प)

सडि्ढअ :: वि [श्राद्धिक] देख सड्‍ढ = श्राद्ध (पि ३३३; राज)।

सड्‍ढी :: देखो सड्‍ढ = श्राद्ध।

सढ :: वि [शठ] १ धूर्त्तं, मायावी, कपटी (कुमा; उप २६४ टी; ओघभा ५८; भग; कम्म १, ५८) २ कुटिल, वक्र (पिंड ६३३) ३ पुं. धत्तूरा। ४ मध्यस्थ पुरुष (हे १, १९९; संक्षि ८)

सढ :: पुं [दे] १ पाल, जहाज का बादमान, गुजराती में 'सढ' (सिरि ३८७) २ केश, बाल (दे ८, ४६) ३ स्तम्ब, गुच्छा (दे ८, ४६; पाअ) ४ वि. विषम (दे ८, ४६)

सढय :: न [दे] कुसुम, फूल (दे ८, ३)।

सढा :: स्त्री [सटा] १ सिंह आदि की केसरा। २ जटा। ३ व्रती का केश-समूह। ४ शिखा (हे १, १९६)

सढआल :: पुं [सटाल] सटावाला, सिंह (कुमा)।

सढि :: पुं [दे. सटिन्] सिंह (दे ८, १)।

सढिल :: वि [शिथिल] ढीला (दे १, ८९; कुमा)।

सण :: पुंन [शण] १ धान्य-विशेष (श्रा १८; पव १५४; पणह २, ५ — पत्र १४८) २ तृण-विशेष, पाट, जिसके तंतु रस्सी आदि बनेना के काम में लाए जाते हैं (णाया १, १ — पत्र २४; पणण १ — पत्र ६२; कप्पू)। °बंधण न [°बन्धन] सन का पुष्प-वृन्त (औप; णाया १, १ टी — पत्र ६)। °वाडिआ स्त्री [°वाटिका] सन का बगीचा (गा ९)

सण :: पुं [स्वन] शब्द, आवाज (स ३७२)।

सणंकुमार :: पुं [सनत्कुमार] १ एक चक्रवर्त्ती राजा (सम १५२) २ तीसरा देवलोक (अनु; औप) ३ तीसरे देवलोक का इन्द्र (ठा २, ३ — पत्र ८५)। °वडिंसय पुंन [°वतंसक] एक देव-विमान (सम १३)

सणप्पय, सणप्फद, सणप्फय :: देखो स-णप्पय = स-नखपद।

सणा :: अ [सना] सदा, हमेशा। °तण °यण वि [°तन] सदा रहनेवाला, नित्य, शाश्वत (सूअ २, ६, ४७); 'सिद्धाण सणयणओ परिणामिओ दव्वओवि गुणो' (संबोध २)।

सणाण :: न [स्‍नान] नहानां, नहान, अवगाहन (उवा)।

सणाह :: देखो स-णाह = स-नाथ।

सणाहि :: पुं [सनाभि] १ स्वजन, ज्ञाति; 'बंधु समाणो सणाही य' (पाअ) २ समान, सदृश (रंभा)

सणि :: पुं [शनि] १ ग्रह-विशेष, शनैश्चर (पउम १७ ८१) २ शनिवार (सुपा ५३२)

सणिअ :: पुं [दे] १ साक्षी, गवाह। २ ग्राम्य, ग्रामीण (दे ८, ४७)

सणिअं :: अ [शनैस] धीरे, हौले (णाया १, १६ — पत्र २२६; गा १०३; हे २, १६८ गउड; कुमा)।

सणिंचर :: पुं [शनैश्चर] ग्रह-विशेष, शनि- ग्रह (पि ८४)। °संवच्छर पुं [°संवत्सर] वर्ष-विशेष (ठा ५, ३ — पत्र ३४४)।

सणिंचरि, सणिंचारि :: पुं [शनैश्चारिन्] युगलिक मनुष्यों की एक जाति (इक; भग ६, ७ — पत्र २७६)।

सणिच्चर, सणिच्छर :: देखो सणिंचर (ठा २, ३ — - पत्र ७७; हे १, १४९; औप; कुमा; सुज्ज १०, २०; २०)।

सणिद्ध :: देखो सिणिद्ध (हे २, १०९; कुमा)।

सणिप्पवाय :: पुं [शनैःप्रपात] जीवों से भरी हुई पौद्गलित वस्तु-विशेष (ठा २, ४ — पत्र ८६)।

सणेह :: पुंन [स्‍नेह] १ प्रेम, प्रीति (अभि २७; कुमा) २ घृत, तैल आदि स्रिग्ध रस। ३ चिकनाई, चिकनाहट (प्राप्र; हे २, १०२)

सण्ण :: देखो सन्न (से १३, ७२)।

सण्णज्ज :: न [सान्‍न्याय्य] मन्त्र आदि से संस्कारा जाता धूत आदि (प्राकृ १९)।

सण्णत्तिअ :: वि [दे] परितापित (दे ८, २८)।

सण्णविअ :: वि [दे] १ चिन्तित। २ न. सांनिध्य, मदद के लिए समीप-गमन (दे ८, ५०)

सण्णिअ :: वि [दे] आर्द्रं, गीला (दे ८, ५)।

सण्णिर :: देखो सन्निर (राज)।

सण्णुमिअ :: वि [दे] १ संनिहित। २ मापित, नापा हुआ। ३ अनुनीत, अनुनय-युक्त (दे ८, ४८)

सण्णुमिअ :: देखो सन्‍नुमिअ (दे ८, ४८ टी)।

सण्णोज्झ :: पुं [दे] यक्ष-देवता (दे ८, ६)।

सण्ह :: वि [श्लक्ष्ण] १ मसृण, चिकना (कप्प; औप) २ छोटा, बारीक (विपा १, ८ — पत्र ८३) ३ न. लोहा (हे २, ७५; षड्) ४ पुं. वृक्ष-विशेष (पणण १ — पत्र ३१)। °करणी स्त्री [°करणी] पीसने की शिला (भग १९, ३ — पत्र ७६६)। °मच्छ पुं [°मस्त्य] मछली की एक जाति (विपा १, ८ — पत्र ८३; पणण १ — पत्र ४७)। °साण्हिआ स्त्री [°श्लक्ष्णिका] आठ उच्छ्- लक्ष्णश्‍लक्ष्णिका का एक नाप (इक)

सण्ह :: वि [सूक्ष्म] १ छोटा, बारीक (कुमा) २ न. कैतव, कपट। ३ अध्यात्म। ४ अलंकार-विशेष (हे २, ७५)। देखो सुहम, सुहुम।

सण्हाई :: स्त्री [दे] दूती (दे ८, ९)।

सत :: देखो सय = शत (गा ३)। °क्कतु पुं [°क्रतु] इन्द्र (कप्प)। °ग्घी स्त्री [°घ्नी] अस्त्र-विशेष (पणह १, १ — पत्र ८; वसु)। °द्दु स्त्री [°द्र] एक महानदी (ठा ५, ३ — पत्र ३५१)। °भिसया स्त्री [°भिषज्] नक्षत्र-विशेष (सम २९)। °रिसभ पुं [°ऋषभ] अहोरात्र का इक्कीसवाँ मुहुर्त्तं (सम २१)। °वच्छ पुं [°वत्स] पक्षि-विशेष (पणण १ — पत्र ५२)। °वाइया स्त्री [°पादिका] त्रीन्द्रिय जन्तु की एक जाति (पणण १ — पत्र ४५)।

सत :: देखो सत्त = सप्तन् (पिंग)। °र त्रि [°दशन्] सतरह, १७; 'जं ताणंतगुणंपि हु वणणिज्जइ सतरभेअदसभेअं' (सिरि १२८८; कम्म २, १; १६)। °रसय न [°दशशत] एक सौ सतरह (कम्म २, १३)।

सतंत :: देखो स-तंत = स्व-तन्त्र।

सतत :: देखो सयय = सतत (राज)।

सतय :: देखो सयय = शतक (सम १५४)।

सतर :: न [सतर] दधि, दही (ओघ ४८)।

सति :: देखो सइ = स्मृति (ठा ४, १ — पत्र १८७; औप)।

सती :: देखो सई = सती (कुप्र ६०)।

सतीणा :: देखो सईणा (ठा ५, ३ — पत्र ३४३)।

सतेरा :: स्त्री [शतेरा] विदिग् रुचक् पर रहने वाली एक विद्युत्कुमारी देवी (ठा ४, १ — पत्र १९८, इक)।

सत्त :: वि [शक्त] समर्थ (दे २, २; षड्)।

सत्त :: वि [शप्त] शाप-ग्रस्त, जिसपर आक्रोश किया गया हो वह (पउण ३५, ६०; पव १०९ टी; प्रति ८६)।

सत्त :: देखो सच्च = सत्य (अभि १८९; पिंग)।

सत्त :: वि [सक्त] आसक्त, गृद्ध, लोलुप (सूअ १, १, १; ६; सुर ८, १३६; महा)।

सत्त :: पुंन [सत्र] १ सदाव्रत, जहाँ हमेशा अन्‍न आदि का दान दिया जाता वह स्थान (कुप्र १७२) २ यज्ञ (अजि ८)। °साला स्त्री [°शाला] सदाव्रत-स्यान, दान-क्षेत्रॉ (सण)। °गार न [°गार] वही अर्थं (धर्मंवि २६)

सत्त :: वि [दे] गत, गया हुआ (षड्)।

सत्त :: पुंन [सत्त्व] १ प्राणी, जीव, चेतन (आचा; सुर २, १३६; सुपा १०३; धर्मंसं ११८६) २ अहोरात्र का दूसरा मुहूर्त्तं (सम ५१)। ३ न. बल, पराक्रम। ३ मानसिक उत्साह (पिंड ६३३, अणु; प्रासू ७१) ५ विद्यमान (धर्मंसं १०५) ६ लगातार सात दिनों का उपवास (संबोध ५८)

सत्त :: वि [सप्तन्] सात संख्यावाला, सात (विपा १, १ — पत्र २; कप्प; कुमा; जी ३३; ४१)। °खित्ती, °खेत्ती स्त्री [°क्षेत्री] जिन-चैत्य, जिन-बिम्ब, जैन आगम, साधु, साध्वी, श्रावक और श्राविका ये सात धन- व्यय-स्थान (ती ८; श्रु १२९; राज)। °ग न [°क] सात का समुदाय (दं ३५; कम्म २, २६; २७; ६, १३)। °चत्ताल वि [°चत्वारिंश] सेंतालीसवाँ, ४७ वाँ (पउम ४७, ५८)। °चतक्तालिंस स्त्रीन [°चत्वारिं- शत्] सेंतालीस, ४७ (सम ६७)। °च्छय़ पुं [°च्छद] वृक्ष-विशेष, सतवन का पेड़, सतौना (पअ, से १, २३; णाया १, १६ — पत्र २११; सण)। °ट्ठि स्त्री [°षष्टि] १ संख्या-विशेष, सड़सठ, ६७)। २ सड़सठ संख्या वाला (सम १०९; कम्म १, २३; ३२; २, ६)। °ट्ठिधा अ [°षष्टिधा] सड़सठ प्रकार का (सुज्ज १२ — पत्र २२०)। °णउइ देखो °णउइ (राज)। °तीसइम वि [°त्रिशत्तम] सइतीसवाँ, ३७ वां (पउम ३७, ७१)। °तंतु पुं [°तन्तु] यज्ञ (पाअ)। °दस न्नि [°दशन्] सतरह, १७ (पउम ११७, ४७)। °पण्ण देखो वण्ण (राज)। °भूम वि [°भूम] सात तलावाला प्रासाद (श्रा १२)। °भूमिय वि [°भूमिक] वही पूर्वोक्त अर्थं (महा)। °म वि [°म] सातवाँ, ७ वाँ (कप्प)। स्त्री. °मा (जी २९)। °मासिअ वि [°मासिक] सात मास का (भग)। °मासिआ स्त्री [°मासिकी] सात मास में पूर्णं होनेवाली एक साधु-प्रतिज्ञा, व्रत-विशेष (सम २१)। °मिया, °मी स्त्री [°मिका, °मी] १ सातवीं, ७वीं (महा; सम २९; चारु ३०; कम्म ३; ६; प्रासू १२१)। २ सातवीँ विभक्ति (चेइय ६८२; राज)। °य देखो °ग (कम्म ६, ६६ टी)। °र वि [°त] सत्तरवाँ, ७० वाँ (पउम ७०, ७२)। °र त्रि [°दशन्] सतरह, १७ (कम्म २, ३)। °रत्त पुं [°रात्र] सात रातदिन का समय (महा)। °रस त्रि [°दशन्] सतरह, १७ (भग)। °रस, °रसम वि [°दश] सतरहवाँ; (कम्म ६, १६; पउम १७, १२३; पव ४६)। °रह देखो °रस =°दशन् (षड्) °रि स्त्री [°ति] सत्तर, ७० (सम ८१; कप्प; षड्)। रिसि पुं [°ऋषि] सात नक्षत्रों का मंडल- विशेष (सुपा ३५४)। °वण्ण, °वन्न पुं [°पर्ण] १ वृक्ष-विशेष, सतौना (औप; भाग) २ देव-विशेष (राय ८०) °वन्नव- डिसय पुं [°पर्णावतंसक] सौधर्मं देवलोक का एक विमान (राय ५९)। °विह वि [°विध] सात प्रकार का (जी १९; प्रासू १०४; पि ४५१)। °वीसइ, °वीसा स्त्री [°विंसति] सताईस, २७ (पि ४४५; भग)। °सइय वि [°शतिक] सात सौ की संख्यावाला (णाया १, १ — पत्र ६४)। °सट्ठ वि [°षष्ट] सड़सठवाँ, ६७ वाँ (पउम ६७, ५१)। °सट्ठि देखो °ट्टि (सम ७९), °सत्त- मिया स्त्री [°सप्तमिका] प्रतिज्ञा-विशेष, नियम-विशेष (अंत)। °सिक्खावइय वि [°शिक्षाव्रतिक] सात शिक्षाव्रतवाला (णाया १, १२; औप)। °हत्तर वि [°सप्‍तत] सहहतरवाँ, ७७ वाँ (पउम ७७, ११८)। °हत्तारि स्त्री [°सप्‍तति] १ संख्या-विशेष, सतहतर की संख्या, ७७। २ सतहतर संख्यावाला (सम ८५; भग; श्रा २८) °हा अ [°धा] सात प्रकार का, सप्‍तविध (पि ४५१)। °हुत्तरि देखो °हत्तरि (नव ८)। °ईस (अप) देखो °वीसा (पि ४४५)। °णउइ स्त्री [°नवति] सतानबे, ९७ (सम ९८)। °णउय वि [°नवत] १ सतानवेवाँ, ९७ वाँ (पउम ९७; ३०) २ जिसमें सता- नबे अधिक हो वह; 'सत्ताणउपजोयणसए' (भग)। °रह (अप) देखो °रह (पिंग) °वण्ण °वन्न स्त्रीन [°पञ्चाशत्] १ संख्या-विशेष, सतावन, ५७। २ सतावन संख्यावाला (पडि; पिंग; सम ७३; नव २)। स्त्री. °ण्णा, °न्ना (पिंग; पि २६५; ४४७) °वन्न वि [°पञ्चाश] सतावनवाँ, ५७वाँ (पउम ५७, ३७)। °वीस न [°विंशति] १ संख्या-विशेष, सताईस। २ सताईस की संख्यावाल; 'एवं सत्तावीसं भंगा णेयव्वा' (भग)। °वीसइ स्त्री [°विंशति] वही पूर्वोंक्त अर्थं (कुमा)। °विसइम वि [°विशतितम] सताईसवाँ, २७ वाँ (पउम २७, ४२)। °वीसइविह वि [°विंशतिविध] सताईस प्रकार का (पणण १७ — पत्र ५३४)। °वीसा स्त्री. देखो °वीस (हे १, ४ षड्)। °सीइ स्त्री [°शीति] सतासी, ८७ (सम ९३)। °सीइम वि [°शीतितम] सतासीवाँ, ८७ वाँ; (पउम ८७, २१)

सत्तंग :: वि [सप्‍ताङ्गं] १ राजा, मन्त्री, मित्र कोश-भंडार, देश, किला तथा सैन्य ये सात राज्याङ्गवाला (कुमा) २ न. हस्ति-शरीर के ये सात अवयव — चार पैर, सूँढ, पुच्छ और लिंग; 'सत्तंगपइट्ठियं' (उवा १०१)

सत्तण्ह :: देखो स-त्तण्ह = सृ-तृष्ण।

सत्तत्थ :: वि [दे] अभिजात, कुलीन (दे ८; १०)।

सत्तम :: देखो सत्तम = सत्-तम।

सत्तर :: देखो स-तर = स-त्वर।

सत्तर :: देखो सत्त-र = सप्‍त-दशन्, दश।

सत्तल :: न [सप्‍तल] पुष्प-विशेष (गउड)।

सत्तला, सत्तली :: स्त्री [सप्‍तला] लता-विशेष; 'नव- मालिका का गाछ (पाअ; गा ६१९; पउम ५३, ७९)।

सत्तल्ली :: स्त्री [ने. सप्‍तला] लता-विशेष, शेफालिका का गाछ (दे ८, ४)।

सत्तवीसंजोयण :: देखो सत्तावीसंजोअण (चंड)।

सत्ता :: स्त्री [सत्ता] १ सद्भाव, अस्तित्व (णंदि १३९ टी) २ आत्मा के साथ लगे हुए कर्मों का अस्तित्व, कर्मों का स्वरूप से अप्रच्यव — अवस्थान (कम्म २, १; २५)

सत्तावरी :: स्त्री [शतावरी] कन्द-विशेष, 'सत्ता- वरी विराली कुमारि तह थोहरी गलोई य' (पव ४; संबोध ४४; श्रा २०)।

सत्तावीसंजोअण :: पुं [दे] चन्द्र, चन्द्रमा (दे ८, २२); 'सत्तावीसंजोअणकरपसरो जाव अज्जवि न होइ' (वाअ १५)।

सत्ति :: स्त्री [दे] १ तिपाई, तीन पाया वाला गोल काष्ठ-विशेष। २ घड़ा रखने का पलंग की तरह ऊँचा काष्ठ-विशेष (दे ८, १)

सत्ति :: स्त्री [सक्ति] १ अस्त्र-विशेष (कुमा) २ त्रिशूल (पणह १, १ — पत्र १८) ३ सामर्थ्यं (ठा ३, १ — पत्र १०६; कुमा; प्रासू २९) ४ विद्या विशेष (पउम ७, १४२)। °म, °मंत वि [°मत्] शक्‍तिवाला (ठा ६ — पत्र ३५२; संबोध ८; उप १३९ टी)

सत्ति :: पुं [सप्‍ति] अश्‍व, घोड़ा (पाअ)।

सत्तिअ :: वि [सात्त्विक] सत्त्व-युक्‍त, सत्त्व- प्रधान (सूअनि ६२; हम्मीर १६; स ४)।

सत्तिअणा :: स्त्री [दे] आभिजात्य, कुलीनता (दे ८, १६)।

सत्तिवण्ण, सत्तिवन्न :: देखो सत्त-वण्ण (सम १५२; पि १०३; विचार १४८)।

सत्तु :: पुं [शत्रु] रिपु, दुश्‍मन, वैरी (णाया १, १ — पत्र; कप्पू; सुपा ७)। °इ वि [°जित्] १ शत्रु को जीतनेवाला। २ पुं. एक राजा का नाम (प्राकृ ९५) °ग्घ वि [°घ्न] १ रिपु को मारनेवाला (प्राकृ ९५) २ पुं. रामचन्द्र का एक छोटा भाई (पउम २५, १४)। °निहण [°निघ्न] वही पूर्वोक्‍त अर्थ (पउम १०, ६६)। °मद्दण वि [°मर्दन] शत्रु का मर्दंन करनेवाला (सम १५२)। °सेण पुं [°सेन] एक अन्तकृद् मुनि (अंत ३)। °ङण देखो °ग्घ (पउम ८०, ३८)

सत्तु, सत्तुअ :: पुं [सक्‍तु] सत्तू, सतुआ, भुजे हुआ यव आदि का चूर्णं (पि ३६७; निचू १; स २५३; सुर ५, २०६; सुपा ४०६; महा)।

सत्तुंज :: न [शत्रुञ्ज] १ एक विद्याधर-नगर (इक) २ पुं. रामचन्द्रजी का एक छोटा भाई, शत्रुघ्‍न (पउम ३२, ४७)

सत्तुजय :: पुं [शत्रुञ्जय] १ काठियावाड़ में पालीताना के पास का एक सुप्रसिद्ध पर्वत जो जैनों का सर्वं-श्रेष्ठ तीर्थं है (सुर ५, २०३) २ एक राजा का नाम (राज)

सत्तुंदम :: पुं [शत्रुन्दम] एक राजा का नाम (पउम ३८, ४५)।

सत्तुग :: देखो सत्तुअ (कुप्र १२)।

सत्तुत्तरि :: स्त्री [सप्तसप्तति] सतहत्तर, ७७ (कम्म ६, ४८)।

सत्य :: वि [शस्त] प्रशस्त, श्‍लाघनीय (चेइय ५७२)।

सत्य :: न [शस्त्र] हथियार, आयुघ प्रहरण (आचा उप; भग; प्रासू १०५)। °कास पुं [°कोश] शस्त्र-औजार रखने का थैलाॉ (णाया १, १३ — पत्र १८१)। °वज्झ वि [°वध्य] हथियार से मारने योग्य (णाया १, १६ — पत्र १९९)। °वाडण न [°वपा- टन] शस्त्र से चीरना (णाया १, १६ — पत्र २०२; भग)।

सत्थ :: वि [दे] गत, गया हुआ (दे ८, १)।

सत्थ :: देखो स-त्थ = स्व-स्थ।

सत्थ :: न [स्वास्थ्य] स्वस्थता (णाया १, ९-पत्र १६६)।

सत्थ :: पुं [सार्थ] १ व्यापारी मुसाफिरों का समूह (णाया १, १५ — पत्र १९३; उत्त ३०, १७; बृह १; अणु; सुर १, २१४) २ प्राणि-समूह (कुमा; हे १, ९७) ३ वि. अन्वर्थं; यथार्थनामा (चेइय ५७२)। °वह, °वाह पुंस्त्री [°वाह] सार्थ का मुखिया, संघ- नायक (श्रु ५५; उवा; विपा १, २ — पत्र ३१)। स्त्री. °ही (उवा; विपा १, २ — पत्र ३१)। °वाहिक पुं [°वाहिन्] वही पूर्वोंक्त अर्थं (भवि)। °ह देखो °वाह (धर्मवि ४१; सण)। °हिव पुं [°धिप] सार्थ-नायक (सुर २, ३२; सुपा ५९४)। °हिवइ पुं [°धिपति] वही अर्थं (सुपा ५९४)

सत्थ :: पुंन [शास्त्र] हितोपदेशक ग्रन्थ, हित- शिक्षक, पुस्तक, तत्त्व-ग्रंथ (विसे १३८४; कुमा), 'नाणसत्थे सुणंतोवि' (श्रा ४)। °ण्णु वि [°ज्ञ] शास्त्र का जानकार; 'सुमि- णसत्थणणु' (उफ ९८६ टी; उप पृ ३२७)। °गार वि [°कार] शास्त्र-प्रणेता (धर्मंसं १००३; सिक्खा ३१)। °त्थ पुं [°र्थ] शास्त्र-रहस्य (कुप्र ६; २०६; भवि)। °यार देखो °गार (स ४; धर्मंसं ९८२)। °वि वि [°विद्] शास्त्र ज्ञाता (स ३१२)।

सत्थइअ :: वि [दे] उत्तेजित (दे ८, १३)।

सत्थर :: पुं [दे] निकर, समूह (दे ८, ४)।

सत्थर, सत्थरय :: पुंन [स्रस्तर] शय्या, बीछौना (दे ८, ४ टी; सुपा ५८३; पाअ; षड्; हास्य (१३९; सुर ४, २४४)।

सत्थव :: देखो संथव = संस्तव (प्राकृ ३३; पि ७६)।

सत्थाम :: देखो स-त्थाम = स-स्थामन्।

सत्थाव :: देखो संथव = संस्तव (प्राकृ ३३)।

सत्थि :: अ. स्त्री [स्वसित] १ आशीर्वाद; 'सत्थिं करेइ कविलो' (पउम ३५, ६२) २ क्षेम, कल्याण, मंगल। ३ पुण्य आदि का स्वीकार (हे २, ४५; संक्षि २१) °मई स्त्री [°मती] १ एक विप्र-स्त्री, क्षीरकदम्बक उपाध्याय की स्त्री (पउम ११, ९) २ एक नगरी (उफ ९०२) ३ संनिवेश-विशेष (स १०३)। देखो सोत्थि।

सत्थिअ :: पुं [स्तस्तिक] १ माङ्गलिक विन्यास- विशेष, मंगल के लिए की जाती एक प्रकार की चावल आदि की रचना-विशेष (श्रा २७; सुपा ५२) २ स्वस्तिक के आकार का आसन-बन्ध (बृह ३) ३ एक देव-विमान (देवेन्द्र १४०)। °पुर न [°पुर] एक नगर का नाम (श्रा २७)। देखो सोत्थिअ।

सत्थिअ :: वि [सार्थिक] १ सार्थं-सम्बन्धी, सार्थं का मनुष्य आदि (कुप्र ६२; स १२९; सुर ९, १९६; सुपा ६५१; धर्मंवि १२४) २ पुं. सार्थं का मुखिया (बृह १)

सत्थिअ :: न [सक्थिक] ऊरु, जाँघ (स २६२)।

सत्थिआ :: स्त्री [शस्त्रिका] छुरी (प्राप्र)।

सत्थिग :: देखो सत्थिअ = स्वस्तिक (पंचा ८, २३)।

सत्थिल्ल :: देखो सत्थिअ = सार्थिक (सुर १०, २०८)।

सत्थिल्लय :: देखो सत्थ = सार्थं (महा; भवि)।

सत्थु :: वि [शास्तृ] शास्ति-कर्ता, सीख देनेवाला (आचा; सूअ २, ५, ४; १, १३, २)।

सत्थुअ :: देखो संथुअ (प्राकृ ३३; पि ७६)।

सदा :: देखो सआ = सदा (राज)।

सदावरी :: देखो सयावरी = सदावरी (उत्त ३६, १३९)।

सदिस :: (शौ) देखो सरिस = सदृश (नाट — मृच्छ ११३)।

सद्द :: अक [शब्दय्] १ आवाज करना। २ सक. आह्वान करना, बुलाना। सद्दइ (पिंग)

सद्द :: पुंन [शब्द] १ ध्वनि, आवाज (हे १, २६०; २, ७९; कुमा; सम १५); 'सद्दाणि विरूवरूवाणि' (सूअ १, ४, १, ६), 'सद्दाइं' (आचा २, ४, २, ४) २ पुं. नय-विशेष (ठा ७ — पत्र ३९०; विसे २१८१) ३ छन्द-विशेष (पिंग) ४ नाम, आख्या (महा) ५ प्रसिद्धि, (औप; णाया १, १ टी — पत्र ३)। °वेहि वि [°वेधिन्] शब्द के अनुसार निशाना मारनेवाला (णाया १, १८ — पत्र २३६; गउड)। °वाइ पुं [°पातिन्] एक वृत्त वैताढ्य पर्वंत (ठा २, ३ — पत्र ६९; ८०; ४, २ — पत्र २२३; इक)

सद्दल :: न [°शाद्वल] हरित, हरा घास (पाअ; णाया १, १ — पत्र २४; गउड)।

सद्दलिय :: [शाद्वलित] हरा घासवाला प्रदेश (गउड)।

सद्दह :: सक [श्रद् + धा] श्रद्धा करना, विश्वास करना, प्रतीति करना। सद्दहइ, सद्दहामि (हे ४, ९; भग; उवा)। भवि. सद्दहिस्सइ (पि ५३०)। वकृ. सद्दहत, सद्दहमाण सद्दहाण (नव ३९; हे ४, ९; श्रु २३)। संकृ. सद्दहित्ता (उत्त २९, १)। कृ. सद्दहियव्व (उव; सं ८६; कुप्र १४९)।

सद्दहण :: देखो लद्दहाण (हे ४, २३८; कुमा)।

सद्दहणया, सद्दहणा :: स्त्री [श्रद्धान्] श्रद्धा, विश्वास, प्रतीति (ठा ६ — पत्र ३५५; पंचभा)।

सद्दहा :: देखो सड्‍ढा = श्रद्धा (सट्ठि १२७)।

सद्दहाण :: न [श्रद्धान] श्रद्धा, विश्वास (श्रावक ६२; पव ११९; हे ४, २३८)।

सद्दहाण :: देखो सद्दह।

सद्दहिअ :: वि [श्रद्धित] जिस पर श्रद्धा की गई हो वह, विश्वस्त (ठा ६ — पत्र ३५५; पि ३३३)।

सद्दाइद :: (शौ) वि [शब्दायित] आहूत, बुलाया हुआ (नाट — मृच्छ २८६)।

सद्दाण :: देखो संदाण। सद्दाणइ (षड्)।

सद्दाल :: वि [शब्दवत्] शब्दवाला (हे २, १५९; पउम २०, १०; प्राप्र; सुर ३, ९६; पाअ; औप)।

सद्दाल :: न [दे] नूपूर (दे ८, १०; षड्)। °पुत्त पुं [°पुत्र] एक जैन उपासक (उवा)।

सद्दाव :: सक [शब्दय्, शब्दायय्] आह्वान करना, बुलाना। सद्दावेइ, सद्दाविंति, सद्दावेंति (औप; कप्प; भग)। सद्दावेहि (स्वप्‍न ९२)। कर्मं. सद्दावीअंति (अभि १२८)। संकृ. सद्दावित्ता, सद्दावेत्ता (पि ५८२; महा)।

सद्दाविय :: वि [सब्दित, सब्दायित] आहूत, बुलाया हुआ (कप्प; महा; सुर ८, १३३)।

सद्दिअ :: वि [शब्दित] १ प्रसिद्ध (औप; णाया १, १टी — पत्र ३) २ आहूत (सुपा ४१३; महा) ३ बार्तित, जिसको बात कही गई हो वह (कुमा ३, ३४)

सद्दिअ :: वि [शाब्दिक] शब्द-शास्त्र का ज्ञाता (अणु २३४)।

सद्‍दूल :: पुं [शार्दूल] १ श्वापद पशु की एक जाति, बाघ (पाअ; पणह १, १-पत्र ७; दे १, २४; अभि ५५) २ छन्द विशेष (पिंग)। °विक्कीडिअ न [°विक्रीडित] उन्‍नीस अक्षरों के पादवाला एक छन्द (पिंग)। °सट्ठ पुंन [°साटक] छन्द-विशेष (पिंग)

सद्ध :: देखो स-द्घ = सार्धं।

सद्ध :: न [श्रद्ध] १ पितरों की तृप्‍ति के लिए तर्पंण, पिंण्ड-दानादि (अच्चु १७; पुप्फ १६७) २ वि. श्रद्धावाला, श्रद्धालु (उप ८९८)। देखो सड्‍ढ = श्राद्ध (उप १९९)। °पक्ख पुं [°पक्ष्] आश्‍विन मास का कृष्ण पक्ष (दे ६, १२७)

सद्ध :: देखो सज्झ = साध्य (नाट — चैत ३५)।

सद्धड :: पुं [श्राद्ध] व्यक्ति-वाचक नाम (महा)।

सद्धरा :: स्त्री [स्रग्धरा] एक्कीस अक्षरों के चरणवाला एक छन्द (पिंग)।

सद्धल :: पुं [सद्धल] एक प्रकार का हथियार, कुन्त, बर्छा (पणह १, १ — पत्र १८)। देखो सव्वल।

सद्धस :: देखो सज्झस (प्राकृ २१; प्राप्र)।

सद्धा :: देखो सड्‍ढा (हे २, ४१; णाया १, १ — पत्र ७४; प्रासू ४६; पाअ)। °ल वि [°वत्] श्रद्धावाला (चंड; श्रावक १७५)। °लु वि [°लु] वही अर्थं (संबोध ८)। स्त्री. °लुणी (गा ४१५)।

सद्धिअ :: वि [श्रद्धिक] श्रद्धावाला (पणह १, ३ — पत्र ४४; वस; ओघभा १९ टी)।

सद्धिं :: अ [सार्धम्] सहित, साथ (आचा; उवा; उत्त १६३)।

सद्धेय :: वि [श्रद्धेय] श्रद्धास्पद (विसे ४८२)।

सधम्म :: वि [सधर्मन्] समान धर्मवाला (स ७१२)।

सधम्मिअ :: देखो स-धम्मिअ = सद्-धार्मिक।

सधम्मिणी :: स्त्री [सधर्मिणी] पत्‍नी (दे २, १०६; सण)।

सधवा :: देखो स-धवा = स-धवा।

सनय :: देखो स-नय = स-नय।

सन्न :: वि [सन्न] १ क्लान्त (पाअ) २ अवसन्‍न, भग्‍न (सूअ १, २, १, १०) ३ खिन्‍न (पणह १, ३ — पत्र ५५)

सन्नाण :: देखो स-न्नाण = सज्ज्ञान।

सन्नाम :: सक [आ + दृ] आदर करना, संमान करना। सन्‍नामइ, सन्‍नामेइ (षड्; हे ४, ८३)।

सन्नामिअ :: वि [आदृत] संमानित (कुमा)।

सन्निअत्थ :: वि [दे] परिहित, पहना हुआ (सुपा ३६)।

सन्निउ :: (अप) देखो सणिअं (भवि)।

सन्निर :: न [दे] पत्र-शाक, भाजी (दस ५, १, ७०)।

सन्‍नुम :: सक [छादय्] आच्छादन करना, ढाँकना। सन्‍नुमइ (हे ४, २१)।

सन्मुमिअ :: वि [छादित] ढका हुआ (कुमा)।

सन्ह :: देखो सण्ह = श्लक्षण (कप्प)।

सप :: देखो सव = शप्। सपइ (विसे २२२७)।

सपक्ख :: देखो स-पक्ख = स-पक्ष।

सपक्ख :: देखो स-पक्ख = स्व-पक्ष।

सपक्खि :: अ [सपक्षम्] अभिमुख, सामने (अंत १४)।

सपक्खी :: स्त्री [सपक्षी] एक महौषधि (ती ५)।

सपज्जा :: स्त्री [सपर्या] पूजा (अच्चु ७०)।

सपडिदिसिं :: अ [सप्रतिदिक्] अत्यन्त संमुख, ठीक सामने (अंत १४)।

सपत्तिअ :: वि [सपत्रित] बाण से अतिव्यथित (दे १, १३५)।

सपह :: देखो सवह (धर्मवि १२६)।

सपाद :: देखो स-पाग= श्व-पाक।

सपिसल्लग :: देखो सप्पिसल्लग (पि २३२)।

सप्प :: सक [सृप्] १ जाना, गमन करना। २ आक्रमण करना। सप्पइ (धात्वा १५५); 'घोरविसा वि हु सप्पा सप्पंति न बद्धवयणव्व' (सुर २, २४३)। वकृ. सप्पंत, सप्पमाण (गउड; कप्प)। कृ. सप्पणीअ (नाट — शकु १४७)

सप्प :: पुंस्त्री [सर्प] १ साँप, भुजंगम (उवा; सुर २, १४३; जी २१, प्रासू १६, ३८; ११२)। स्त्री. °प्पी (राज) २ पुं. अश्‍लेषा नक्षत्र का अधिष्ठाता देव (सुज्ज १०, १२, ठा २, ३ — पत्र ७८) ३ एक नरकस्थान (देवेन्द्र २७) ४ छन्द-विशेष (पिंग)। °सिर पुं [°शिरस्] हस्त-विशेष, वह हाथ जीसकी उंगलियाँ और अंगूठा मिला हुआ हो और तला नीचा हो (दे ८, ७२)। °सुगन्धा स्त्री [°सुगन्धा] वनस्पति-विशेष (पणण १ — पत्र ३६)

सप्पभ :: देखो स-प्पभ = स्व-प्रभ, सत-प्रभ, स-प्रभ।

सप्पमाण :: देखो सप्प = सृप्, ; सव = शप्।

सप्परिआव, सप्परिताव :: देखो स-प्परिआव = स- परिताप।

सप्पि :: न [सर्पिस्] घृत, घी (पाअ; पव ४; सुपा १३; सिरि ११८४; सण)। °आसव, °यासव वि [°आस्रव] लब्धि- विशेषवाला, जिसका वचन घी की तरह मधुर होती है (पणह २, १ — पत्र १००)।

सप्पि :: वि [सर्पिन्] १ जानेवाला, गति करनेवाला (कप्प) २ रोगि-विशेष, हाथ में लकड़ी के सहारे से चल सकनेवाला रोगि- विशेष (पणह २, ५ — पत्र १००)

सप्पिसल्लग :: देखो स-प्पिसल्लग = स-पिशा- चक।

सप्पा :: देखो सप्प = सर्पं।

सप्पपरस :: देखो स-प्पुरिस = सत्-पुरुष।

सप्फ :: न [शष्प] बाल तृण, नया घास (हे २, ५३; प्राप्र)।

सप्फ :: न [दे] कुमुद, कैरव; 'चंदुज्जयं तु कुमुअं गद्दहयं केरवं सप्फं' (पाअ)।

सप्फंद :: देखो स-प्फंद = स-स्पन्द।

सप्फल :: देखो स-प्फल = स-फल।

सप्फल :: देखो स-प्फल = सत्-फल।

सफर :: देखो सभर = शफर (वै २०)।

सफर :: पुंन [दे] मुसाफिरी; 'वडसफरपवह- णाणं' (सिरि ३८२)।

सफल :: देखो स-फल = स-फल।

सफल :: सक [सफलय्] सार्थक करना। वकृ. सफलंत (सुपा ३७४)।

सफलिअ :: वि [सफलित] सफल किया हुआ (सुपा ३५६; उव)।

सब :: (अप) देखो सव्व = सर्व (पिंग)।

सबर :: पुं [शबर] १ एक अनार्यं देश। २ उस देश में रहनेवाली एक अनार्य मनुष्य-जाति, किरात, भील (पणह १, १ — पत्र १४; पाअ; गउड)। °णिवसण न [°निवसन] तमाल- पत्र (उत्तानि ३)। देखो सवर।

सबरी :: स्त्री [शबरी] १ भिल्ल जाति की स्त्री (णाया १, १ — पत्र ३७; अंत; गउड; चेइय ४८२) २ कायोत्सर्ग का एक दोष, हाथ से गुह्य-प्रदेश को ढककरे कायोत्सर्गं करना (चेइय ४८२)

सबल :: पुं [शबल] १ परमाधार्मिक देवों की एक जाति (सम २८) २ वि. कर्बूंर, चितकबरा (आचा; उप २८२; गउड) ३ न. दूषित चारित्र। ४ वि. दूषित चरित्रवाला मुनि (सम ३९)

सबलिय :: वि [शबलित] कर्बूरित (गउड)।

सबलीकरण :: न [शबलीकरण] सदोष करना, चारित्र को दूषित बनाना (ओघ ७७८)।

सब्ब :: (अप) देखो सव्व = सर्वं (पिंग)।

सब्बल :: पुंन [दे] शस्त्र-विशेष; 'सरझसरसत्ति- सब्बलकरालकोंतेसु' (पउम ८, ९५; धर्मंवि ५९)।

सब्बल :: देखो स-ब्बल = स-बल।

सब्भ :: वि [सभ्य] १ सभासद, सदस्य (पाअ; सम्मत्त ११९) २ सभोचित, शिष्ट; 'असब्भ- भासी' (दस ९, २, ८; सुर ९, २१५; स ६५०)

सब्भाव :: देखो स-ब्भाव = सद-भाव।

सब्भाव :: देखो स-ब्भाव = स्व-भाव।

सब्भाविय :: वि [साद्‍भाविक] पारमार्थिक, वास्तविक (दसनि १, १३५)।

सभ :: /?/न. देखो सभा; 'सभाणि' (आचा २, १०; २)।

सभर :: पुंस्त्री [शफर] मत्स्य, मछली (कुमा)। स्त्री. °री (हे १, २३६; प्राकृ १४)।

सभर :: पुं [दे] गृध्र पक्षी (दे ८, ३)।

सभराइअ :: न [शफरायित] जिसने मत्स्य की तरह आचरण किया हो वह (कुमा)।

सभल :: देखो स-भल = स-फल।

सभा :: स्त्री [सभा] १ परिषद् (उवा; रयण ८३; धर्मवि ९) २ गाड़ी के ऊपर की छत — ढक्कन (श्रा १२)

सभाज :: सक [सभाजय्] पूजन करना। हेकृ. सभाजइदुं (शौ) (अभि १६०)।

सभाव :: देखो स-भाव = स्व-भाव।

सम :: अक [शम्] १ शान्त होना, उपशान्त होना। २ नष्ट होना। ३ आसक्त होना। समइ, समंति (हे ४, १६७; कुमा); 'जइ समइ सक्कराए पित्तं ता किं पटोलाए' (सिरि ९९६। वकृ. समेमाण (आचा १, ४, १, ३)

सम :: सक [शमय्] १ उपशान्त करना, दबाना। २ नाश करना। वकृ. 'दुट्ठदुरिए समंतो' (धर्मा ३)

सम :: पुं [श्रम] १ परिश्रम, आयास। २ खेद, थकावट (काप्र ८४; सम्मत्त ७७; दे १, १३१; उप पृ ३५; सुपा ५२५; गउड; सण; कुमा)। °जल न [°जल] पसीना (पाअ)

सम :: पुं [शम] शान्ति, प्रशम, क्रोध आदि का निग्रह (कुमा)।

सम :: वि [सम] १ समान, तुल्य, सरिखा (सम ७५; उव; कुमा; जी १२; कम्म ४, ४०; ६२) २ तटस्थ, मध्यस्थ, उदासीन, राग-द्वेष से रहित (सूअ १, १३, ६; ठा ८) ३ स. सर्व, सब (श्रु १२४) ४ पुंन. एक देव-विमान (सम १३; देवेन्द्र १४०) ५ सामायिक (संबोध ४५; विसे १४२१) ६ आकाश, गगन (भग २०, ३ — पुत्र ७७५) °चउरंस न [°चतुरस्त्र] संस्थान- विशेष, चारों कोणों के समान शरीर की आकृति-विशेष (ठा ६ — पत्र ३५७; सम १४९; भग; कम्म १, ४०)। °चक्कवाल न [°चक्रवाल] वृत्त, गोलाकार (सुज्ज ४)। °ताल न [°ताल] १ कला-विशेष (औप) २ वि. समान तालवाला (ठा ७)। धम्मिअ वि [°धार्मिक] समान धर्मंवाला (उप ५३० टी)। °पादपुत पुंन [°पादपुत] आसन- विशेष, जिसमें दोनों पैर मिलाकर जमीन में लगाए जाते हैं वह आसन-बन्ध (ठा ५, १ — पत्र ३००)। °पासि वि [°दर्शिन्] तुल्य दृष्टिवाला, समदर्शी (गच्छ १, २२)। °प्पभ पुंन [°प्रभ] एक देव-विमान (सम १३)। °भाव पुं [°भाव] समता (सुपा ३२०)। °या स्त्री [°ता] राग-द्वेष का अभाव, मध्यस्थता (उत्त ४, १०; पउम १४, ४०; श्रा २७)। °वत्ति पुं [°वर्तिन्] यमराज, जम (सुपा ४३३)। °सरिस वि [°सद्दश] अत्यन्त, तुल्य, सदृश, (पउम ४६, ५७)। °सहिय वि [°सहित] युक्‍त, सहित (पउम १७, १०५)। °सुद्ध पुं [°शुद्ध] एक राजा जो छठवें केशव का पिता था (पउम २०, १८२)

समइअ :: वि [सामयिक] समय-संबन्धी, समय का (भग)।

समइअ :: वि [समयित] संकेतित (धर्मंसं ५०५)।

समइअ :: न [समयिक] सामायिक नामक संयम-विशेष (कम्म ३, १८; ४, २१; २८)।

समइंछिअ :: देखो समइच्छिअ (से १२, ७२)।

समइक्कंत :: वि [समतिक्रान्त] व्यतीत, गुजरा हुआ (सुपा २३)।

समइच्छ :: सक [समति + क्रम्] १ उल्लंघन करना। २ अक. गुजरना, पसार होना। वकृ. समइच्छमाण (औप; कप्प)

समइच्छिअ :: वि [समतिक्रान्व] १ गुजरा हुआ। २ उल्लंघित (उप ७२८ टी; दे ८, २०; स ४५)

समईअ :: वि [समतीत] १ गुजरा हुआ (पउम ५, १५२) २ पुं. भूत काल (जीवस १८१)

समईअ :: देखो समइअ = समयिक (कम्म ४, ४२)।

समउ :: (अप) नीचे देखो (भवि)।

समं :: अ [समम्] साथ, सह (गा १०२; १६४; २९५; उत्त १६, ३; महा; कुमा)।

समंजस :: वि [समञ्जस] उचित, योग्य (आचा; गउड; भवि)।

समंत° :: देखो समंता; 'वसिओ अंगेसु समंत- पीणकणकब्बुरो सेओ' (गउड)।

समंत :: देखो समान्त (उप पृ ३२७)।

समंत :: (अप) देखो समत्थ = समस्त (पिंग)।

समंतओ :: अ [समन्ततस्] सर्वंत; 'चारों तरफ (गा ६७३; सुर २, २३८)।

समंता, समंतेण :: अ [समन्तात्] ऊपर देखो (पाअ; भग; विपा १, २ — पत्र २९; से ६, ५१; सुर २, २८; १३, १९५)।

समक्कंत :: वि [समाक्रान्त] १ जिसपर आक्रमण किया गया हो वह (से ५, ५७) २ अवरुद्ध, रोका हुआ (से ८, ३३)

समक्ख :: न [समक्ष्] नजर के समाने, प्रत्यक्ष (गा ३७०; सुपा १५०; महा)। देखो समच्छ।

समक्खाय, समक्खिअ :: वि [समाख्यात] उक्त, कथित (उप २११ टी; ६९४, जी २५; श्रु १३३)।

समगं :: देखो समयं = समकम् (पव २३२; सुपा, ८७; सण)।

समग्ग :: वि [समग्र] १ सकल, समस्त (सुपा ९९) २ युक्त, सहित (पणह १, ३ — पत्र ४४; कुप्र ७)

समग्गल :: वि [समर्गल] अत्यधिक (सिरि ८६७; सुपा ३९७; ४२०)।

समग्गल :: (अप) देखो समग्ग (पिंग)।

समग्ध :: पि [समर्घ] सस्ता, अल्प मूल्यवाला (सुपा ४४५; ४४७; सम्मत्त १४१)।

समच्चण :: न [समर्चन] पूजन, पूजा (सुपा ६)।

समच्चिअ :: वि [समर्चित] पूजित (पउम ११६, ११)।

समच्छ :: अक [सम् + आस्] १ बैठना। २ सक. अवलम्बन करना। ३ अधीन रखना। वकृ. समच्छेंत (उप ९६८ टी)

समच्छ :: वि [समक्ष्] प्रत्यक्ष का विषय (संक्षि १५)। देखो समक्ख।

समच्छायग :: वि [समाच्छादक] ढकनेवाला (स ९९)।

समज्ज, समज्जिण :: सक [सम् + अर्ज्] पैदा करना, उपार्जंन करना। समज्जइ, समज्जिणइ (सण; पव १०; महा)। वकृ. समज्जिणमाण (विपा १, १ — पत्र १२)। संकृ. समज्जिवि (अप) (सण)।

समज्जिणिय, समज्जिय :: वि [समर्जित] उपार्जित (सण; ठा ३, १ — पत्र ११४; सुपा २०५; सण)।

समज्झासिय :: वि [समध्यासित] अधिष्ठित (सुज्ज १०, १)।

समट्ठ :: वि [समर्थ] संगत अर्थं, व्याजबी, न्याय-युक्‍त (णाया १, १ — पत्र ६२; उवा)। देखो समत्थ = समर्थ।

समण :: न [शमन] १ उपशमन, दबाना, शान्त करना (सुपा ३६९) २ पथ्यानुष्ठान (उवर १४०) ३ एक दिन का उपवास (संबोध ५८) ४ वि. उपशमन करनेवाला, दबानेवाला (उप ७८२; पंचा ४, २६; सुर ४, २३१)

समण :: देखो स-मण = स-मनस्।

समण :: देखो सवण = श्रवण (पउम १७, १०७; राज)।

समण :: पुं [समण] सर्वंत्र समान प्रवृत्तिवाला, मुनि, साधु (अणु)।

समण :: पुं [श्रमण] १ भगवान् महावीर (आचा २, १५; ३) २ पुंस्त्री. निर्ग्रंन्थ मुनि साधु, यति, भिक्षु, संन्यासी, तापस; 'निग्गंथ- सक्कतावसगेरुयआजीवं पंचहा समणा' (पव ९४; अणु; आचा; उवा; कप्प; विपा १, १; घण २१; सुर १०, २२४) स्त्री. °णी (भग; गच्छ १, १५)। °सीह पुं [°सिंह] १ एक जैन मुनि जो दूसरे बलदेव के पूर्वभवीय गुरू थे (पउम २०, १९२) २ श्रेष्ठ मुनि (पणह २, ५ — पत्र १४८)। °वासग, °वासय पुंस्त्री [°पासक] श्रावक, जैन गृहस्थ (उवा)। स्त्री. °सिया (उवा; णाया १, १४ — पत्र १८७)

समणंतरु :: (अप) न [समनन्तरम्] अनन्तर, बाद में, पीछे (सण)।

समणक्ख :: देखो स-मणक्ख = स-मनस्क।

समणुगच्छ, समणुगम :: सक [समनु + गम्] १ अनुसरण करना। २ अच्छी तरह व्याख्या करना। ३ अक. संबद्ध होना, जुड़ जाना। वकृ. समणुगच्छमाण (णाया १, १ — पत्र २५)। कवकृ. समणुगमंत, समणुगम्ममाण (औप; सूअ २, २, ७९; णाया १, १ — पत्र ३२; कप्प)

समणुगय :: वि [समनुगत] १ अनसृत (स ७२०) २ अनुबिद्ध, जुड़ा हुआ (पंचा ६, ४६)

समणुचिण्ण :: वि [समनुचीर्ण] आचरित, विहित; 'तवो समणुचिणणो' (पउम ६, १६४)।

समणुजाण :: सक [समनु + ज्ञा] १ अनुमोदन करना, अनुमति देना। २ अधिकार प्रदान करना। समणुजाणइ, समणुजाणाइ, समणु- जाणेज्जा (आचा)। वकृ. समणुजाणमाण (आचा)

समणुजाय :: वि [समनुजात] उत्पन्न, संजात (पउम १००, २४; सुपा ५७८)।

समणुनाय :: वि [समनुज्ञात] अनुमत, अनुमोदित (पउम ८, ७)।

ससणुन्न :: वि [समनुज्ञ] अनुमोदन-कर्ता (आचा १, १, १, ५)।

समणुन्न :: वि [समनोज्ञ] १ सुन्दर, मनोहर। २ सुन्दर वेष आदिवाला (आचा १, ८, १, १) ३ संविग्‍न, संवेग-युक्त मुनि (आचा १, ८, २, ६) ४ समान समाचारीवाला — सांभोगिक मुनि (ठा ३, ३ — पत्र १३९; वव १)

समणुन्ना :: स्त्री [समनुज्ञा] १ अनुमति, संमति २ अधिकार-प्रदान (ठा ३, ३ — पत्र १३९)

समणुन्नाय :: देखो समणुनाय (आचा २, १, १०, ४)।

समणुपत्त :: वि [समनुप्राप्त] संप्राप्त (सुर १, १८३; १०, १२०; सिरि ४३०; महा)।

समणुबद्ध :: वि [समनुबद्ध] निरन्तर रूप से व्याप्त (णाया १, ३ — पत्र ९१; औप; उव)।

समणुभूअ :: वि [समनुभूत] अच्छी तरह जिसका अनुभव किया गया ह वह (वै ६२)।

समणुवत्त :: वि [समनुवृत्त] संवृत्त, संजात (पउम १०, १)।

समणुवास :: सक [समनु + वासय्] १ वासना-युक्त करना। २ सिद्ध करना। ३ परिपालन करना; 'आयट्‍ठं सम्मं समणुवासे- ज्जासि' (आचा १, २, १, ५; १, २, ४, ४; १, ५, ४, ५; १, ६, १, ६)

समणुमट्ठ :: वि [समनुशिष्ट] अनुज्ञात, अनुमत (आचा २, १, १०, ४)।

समणुसास :: सक [ समनु + शासय्] सम्यग् सीख देना, अच्छी तरह सिखाना। समणुसासयंति (सूअ १, १४, १०)।

समणुसिट्ठ :: वि [समनुशिष्ट] अच्छी तरह शिक्षित (वसु)। देको समणुसट्ठ (आचा २, १, १०, ४)।

समणुहो :: सक [समनु + भू] अनुभव करना। समणुहोइ (वव १)।

समण्णागय :: वि [समन्वागत] १ समन्वित, सहित; 'छत्तीसगुणसमणणागएण' (गच्छ १, १२)। २ संप्राप्त (राय)

समण्णाहार :: पुं [समन्वाहार] समागमन (राज)।

समण्णिय :: देखो समन्निय (काल)।

समतिक्कंत :: देखो समइक्कंत (णाया १, १ — पत्र ६३)।

समतुरंग :: सक [समतुरंगाय्] समान अश्व की तरह आपस में आरोहण करना, आश्‍लेष करना। वकृ. समतुरंगेमाम (णाया १, ८ — पत्र १३४; पव १७४ टी)।

समत्त :: वि [समस्त] १ संपूर्णं (पणह १, ४ — पत्र ६८) २ सकल, सब (विसे ४७२) ३ समास-युक्‍त। ४ मिलित, मिला हुआ (हे २, ४५; षड्)

समत्त :: वि [समाप्त] पूर्णं, पूरा, सिद्ध, जो हो चुका हो वह (उवा; औप)।

समत्ति :: स्त्री [समाप्ति] पूर्णंता (उप १४२; ७२८ टी; विसे ४१५; पव — गाथा ६५; स ५३; सुपा २५३; ४३५)।

समत्थ :: सक [सम् + अर्थय्] १ साबित करना, सिद्ध करना। २ पुष्ट करना। ३ पूर्णं करना। कर्मं. समत्थीअइ (स १६५); 'उण्हो त्ति समत्थिज्जइ दाहेण सरोरुहाण हेमंतो। चरिएहि राज्जइ जणो संगोवंतोवि अप्पाणं' (गा ७३०)

समत्थ :: देखो समत्त = समस्त (से ४, २८; सुर १, १८१; १६, ५५)।

समत्थ :: वि [समर्थ] शक्त, शक्तिमान् (पाअ; ठा ४, ४ — पत्र २८३; प्रासु २३; १८२; औप)।

समत्थि :: वि [समर्थिन्] प्रार्थंक, चाहनेवाला (कुप्र ३५१)।

समत्थिअ :: वि [समर्थित] १ पूर्णं, पूरा किया हुआ (कुप्र ११५; सुपा २६६) २ पुष्ट किया हुआ (सुर १६, ९५) ३ प्रमाणित, साबित किया हुआ (अज्झ १२१)

समद्धासिय :: वि [समध्यासित] अधिष्ठित (स ३५; ६७६)।

समद्धि :: देखो समिद्धि (गा ४२६)।

समन्नागय :: देखो समण्णागय (ओघ ७९४; णाया १, १ — पत्र ६४; औप; महा; ठा ३, १ — पत्र ११७)।

समन्नि :: सक [समनु + इ] १ अनुसरण करना। २ अक. एकत्रित होना, मिलानाष समन्‍नेइ, समन्‍नित (विसे २५१७; औप)

समन्निअ :: वि [समन्वित] युक्त, सहित (हे ३, ४६; सुर ३, १३०; ४, २२०; गउड)।

समन्ने° :: देखो समन्नि।

समप्प :: सक [सम् + अर्पय्] अर्पंण करना, दान करना, देना। समप्पेइ (महा)। वकृ. समप्पंत, समप्पअंत, समप्पेंत (नाट — मृच्छ १०५; रत्‍ना ५५; पउम ७३, १४)। संकृ. समप्पिअ, समप्पिऊण (नाट — मृच्छ ३१५; महा)। हेकृ. समप्पिउं (महा)। कृ.समप्पियव्व (सुपा २५६)।

समप्प° :: देखो समाव = सम् + आप्।

समप्पण :: न [समर्पण] अर्पंण, प्रदान (सुर ७, २२; कुप्र १३; वज्जा ६६)।

समप्पणया :: स्त्री [समर्पणा] ऊपर देखो (उप १७९)।

समप्पिय :: वि [समर्पित] दिया हुआ (महा; काल)।

समब्भस :: सक [समभि + अस्] अभ्यासॉ करना। समब्भसह (द्रव्य ४७)।

समब्भहिअ :: वि [समभ्यधिक] अत्यन्त अधिक (से १५, ८५)।

समब्भास :: पुं [समभ्यास] निकट, पास (पउम ३३, १७)।

समब्भिडिय :: वि [दे] भिड़ा हुआ, लड़ा हुआ (पउम ८६, ४८)।

समभिआवण्ण :: वि [समभ्यापन्न] संमुख आया हुआ (सूअ १, ४, २, १४)।

समभिजाण :: सक [समभि + ज्ञा] १ निर्णंय करना। २ प्रतिज्ञा-निर्वाह करना। समभिजा- णिया, समभिजाणाहि (आचा)। बकृ. समभिजाणमाण (आचा)

समभिद्दव :: सक [समभि = द्रु] हैरान करना। समभिद्दवंति (उत्त ३२, १०)।

समभिधंस :: सक [समभि + ध्वंसय्] नष्ट करना। समभिझंसेज्ज, समभिधंसेति (भग)।

समभिपड :: सक [समभि + पत्] आक्रमण करना। हेकृ. समभिपडित्तए (अंत २१)।

समभिभूअ :: वि [समभिभूत] अत्यन्त परा- भूत (उवा; धर्मंवि ३४)।

समभिरूढ :: पुं [समभिरूढ] नय-विशेष (ठा ७ — पत्र ३९०)।

समभिलोअ :: सक [समभि + लोक्] देखना, निरीक्षण करना। समभिलोएइ (भग १५ — पत्र ६७०)। वकृ. समभिलोएमाण (पणण १७ — पत्र ५१८)।

समभिलोइअ :: वि [समभिलोकित] विलो- कित, दृष्ट (भग १५ — पत्र ६७०)।

समय :: अक [सम + अय्] समुदित होना, एकत्रित होना; 'सव्वे समयंति सम्मं चेगव- साओ नया विरुद्धावि' (विसे २२६७)।

समय :: पुं [समय] १ काल, वक्‍त, अवसर (आचा; सूअनि २९; कुमा) २ काल-विशेष, सर्वं-सूक्ष्म काल, जिसका दूसरा हिस्सा न हो सके ऐसा सूक्ष्म काल (अणु; इक; कम्म २, २३; २४; ३०) ३ मत, दर्शंन (प्राप) ४ सिद्धान्त, शास्त्र, आगम (आचा; पिंड ६; सूअनि २९; कुमा; दं २२) ५ पदार्थं, चीज, वस्तु (सम्म १ टी, पृष्ठ ११४) ६ संकेत, इशारा (सूअनि २९; पिंड ६; प्राप; से १, १९) ७ समीचीन परिणति, सुन्दर परि- णाम। ८ आचार, रिवाज। ९ एकवाक्यता (सूअनि २९) १० सामायिक, संयम- विशेष (विसे १४२१)। °क्खेत्त, °खेत्त न [°क्षेत्र] कालोपलक्षित भूमि, मनुष्य-लोक, मनुष्य-क्षेत्र (भग; सम ६८)। °ज्ज, °ण्ण, °न्न वि [°ज्ञ] समय का जानकार (धण ३९; गा ४०५; पि २७६)

समय :: देखो स-मय = स-मद।

समय, समयं :: अ [समकम्] १ युगपत्, एक साथ (पव २१६; टी; विसे १९६६; १९६७; सुर १, ५; महा; गउड ११०६) २ सह, साथ (गा ६२१)

समया :: देखो सम-या।

समया :: अ [समया] पास, नजदीक (सुपा १८८)।

समर :: सक [स्मृ] याद करना। कृ. समरणीय (चउ २७; नाट. शकु ६), समरियव्व (रयण २८)।

समर :: देखो सबर (हे १, २५८; षड्)। स्त्री. °री (कुमा)।

समर :: पुंन [समर] १ युद्ध, लड़ाई (से १३, ४७; उप ७२८ टी; कुमा) २ छन्द-विशेष (पिंग) ३ लोहकारशाला (उत्त° अध्य° १ गा° २६)। °इच्च पुं [°दित्य] अवन्ती- देश का एक राजा (स ५)

समर :: वि [स्मार] कामदेव-संबन्धी, कामदेव का (मन्दिर आदि); (उप ४५४)।

समरइत्तु :: वि [स्मर्तृ] स्मरण-कर्ता (सम १५)।

समरण :: न [स्मरण] स्मृति, याद (धर्मंवि २०, आप ६८)।

समरसद्दहय :: पुं [दे] समान उम्रवाला (दे ८, २२)।

समराइअ :: वि [दे] पिष्ट, पिसा हुआ (षड्)।

समरी :: देखो समर = शबर।

समरेत्तु :: देखो समरइत्तु (ठा ९ — पत्र ४४४)।

समलंकर :: सक [समलम् + कृ] विभूषित करना। समलंकरेइ (आचा २, १५, ५)। संकृ. संमलंकरेत्ता (आचा २, १५, ५)।

समलंकार :: सक [समलम् + कारय्] विभूषित करना, विभूषा-युक्‍त करना। सम- लंकारेइ (औप)। संकृ. समलंकारेत्ता (औप)।

समलद्ध :: (अप) वि [समालब्ध] विलिप्‍त (भवि)।

समल्लिअ :: अक [समा + ली] १ संबद्ध होना। २ लीन होना। ३ सक. आश्रय करना। समल्लियइ (आक ४७)। वकृ. समल्लिअंत (से १२, १०)

समल्लीण :: वि [समालीन] अच्छी तरह लीन (औप)।

समवइण्ण :: वि [समवतीर्ण] अवतीर्णं (सुपा २२)।

समवट्ठाण :: न [समवस्थान] सम्यग् अवस्थिति (अज्झ १४७)।

समवट्ठिइ :: स्त्री [समवस्थिति] ऊपर देखो; 'कोई बिंति मुणीणं सहावसमवट्ठिई हवे चरणं' (अज्झ १४६)।

समवत्ति :: देखो सम-वत्ति = सम-वर्तिन्।

समवय° :: देखो समवे।

समवसर :: देखो समोसर = समव + सृ (प्रामा)।

समवसरण :: देखो समोसरण (सूअनि ११६)।

समवसरिअ :: देखो समोसरिअ = समवसृत (धर्मंवि ३०)।

समवसेअ :: वि [समवसेय] जानने योग्य, ज्ञातव्य (सा ४)।

समवाइ :: वि [समवायिन्] समवाय संबन्ध का, समवाय-संबन्धी (विसे १९२९; धर्मंसं ४८७)।

समवाय :: पुं [समवाय] १ संबन्ध-विशेष, गुण-गुणी आदि का संबन्ध (विसे २१०८) २ संबन्ध (पउम ३६, २५; धर्मंसं ४८१; विवे ११६) ३ समूह, समुदाय (सूअ २, १, २२; ओघ ४०७; अणु २७० टी; पिंड २; आरा २; विसे ३५९३ टी) ४ एकत्र करना; 'काउं तो संघसमवायं' (विसे २५४६) ५ जैन अंग-ग्रंथ-विशेष, चौथा अंग-ग्रंथ (सम १)

समवे :: अक [ समव + इ] १ शामिल होना। २ संबद्ध होना। समवेदि (शौ) (मोह ९३), समवयंति (विसे २१०६)

समवेद :: (शौ) वि [समवेत] समुदित, एक- त्रित (मोह ७८)।

समसम :: अक [समसमाय्] 'सम्' 'सम्' आवाज करना। वकृ. समसमंत (भवि)।

समसरिस :: देखो सम-सरिस।

समसाण :: देखो मसाण; 'समसाणे सुन्नघऱे देवउले वावि तं वससु' (सुपा ४०८)।

समसीस :: वि [दे] १ सदृश, तुल्य। २ निर्भर (दे ८, ५०) ३ न. स्पर्धा (से ३, ८)

समसीसिआ, समसीसी :: स्त्री [दे] स्पर्धा, बराबरी (सुपा ७; वज्जा २४; कप्पू; दे ८, १३; सुर १, ८; वज्जा ३२; १५४; विवे ४५; सम्मत्त १४५; कुप्र ३३४)।

समस्सअ :: सक [समा + श्रि] आश्रय करना। समस्सअइ (पि ४७३)। संकृ. समस्सइअ (पि ४७३)।

समस्सस :: अक [समा + श्वस्] आश्‍वा- सन प्राप्‍त करना, सान्त्वना मिलना। समस्स- सघ (शौ) (पि ४७१)। हेकृ. समस्ससिदुं (शौ) (नाट. शकु ११९)।

समस्ससिद :: (शौ) देखो समासस्थ (नाट — मृच्छ २५८)।

समस्सा :: स्त्री [समस्या] बाकी का भाग जोड़ने के लिए दिया जाता श्‍लोक-चरण या पद आदि (सिरि ८६८; कुप्र २७; सुपा १५५)।

समस्सास :: सक [समा + श्वासय्] सान्त्वना करना, दिलासा देना। समस्सासदि (शौ) (नाट)। वकृ. समस्सासअंत (अभि २२२)। हेकृ. समस्सासिदं (शौ) (नाट — मृच्छ ८१)।

समस्सास :: पुं [समाश्वास] आश्‍वासन (विक्र ३५)।

समस्सासण :: न [समाश्वासन] ऊपर देखो (मे ७५)।

समस्सिअ :: वि [समाश्रित] आश्रय में स्थित, आश्रित (स ६३५; उप पृ ४७; सुर १३, २०४; महा)।

समहिअ :: वि [समधिक] विशेष ज्यादा (प्रासू १७८ महा; कुमा; सुर ४, १६९, सण)।

समहिगय :: वि [समधिगत] १ प्राप्‍त, मिला हुआ। २ ज्ञात (सण)

समहिट्ठ :: सक [समधि + स्था] काबू में रखना, अधीन रखना। कवकृ. समहिट्ठि- ज्जमाण (राय १३२)।

समहिट्ठाउ :: वि [समधिष्ठातृ] अध्यक्ष, मुखी, अधिपति (आचा २, २, ३, ३; २, ७, १, २)।

समहिट्ठिअ :: वि [समधिष्ठित] आश्रित (उफ ७२८ टी; सुपा २०९)।

समहिडि्ढय :: देखो स-महिडि्ढय = स- महर्द्धिक।

समहिणंदिय :: वि [सममिनन्दित] आन- न्दित खुशी किया हुआ (उप ५३० टी)।

समहिल :: वि [समखिल] सकल, समस्त (गउड)।

समहुत्त :: वि [दे] संमुख, अभिमुख (अणु २२२)।

समा :: स्त्री [समा] १ वर्षं, बारह मास का समय (जी ४१) २ काल, समय (सम ६७; ठा २, १ — पत्र ४७; कप्प)

समाअम :: देखो समागम (अभि २०२; नाट, मालती ३२)।

सगाइच्छ :: सक [समा + गम्] १ समाने आना। २ समादर करना, सत्कार करना। संकृ. समाइच्छिऊण (महा)

समाइच्छिय :: वि [समागत] आदृत, सत्कृत (स ३७२)।

समाइट्ठ :: वि [समादिष्ट] फरमाया हुआ (महा)।

समाइड्‍ढ :: वि [समाविद्ध] वेध किया हुआ (से ६, ३८)।

समाइण्ण :: वि [समाकीप्ण] व्याप्‍त (औप; सुर ४, २४१)।

समाइण्ण, समाइन्न :: वि [समाचीर्ण] अच्छी तरह आचरित (भग; उप ८१३; विचार ८९५)।

समाउट्ट :: अक [समा + वृत्] नम्र होना, नमना, अधीन होना। भूका. समाउट्टिंसु (सूअ २, १, १८)।

समाउट्ट :: वि [समावृत्] विनम्र (वव १)।

समाउत्त :: वि [समायुक्त] युक्त, सहित (औप; सुपा ३०१)।

समाउल :: वि [समाकुल] १ संमिश्र, मिश्रित (राय) २ व्याप्‍त (सुपा ३०५) ३ आकुल, व्याकुल (हे ४, ४४४; सुर ९, १७४)

समाउलिअ :: वि [समाकुलित] व्याकुल बना हुआ (स ९९)।

समाएस :: पुं [समादेश] १ आज्ञा, हुकुम (उप १०२१ टी) २ विवाह आदि के उपलक्ष में किए हुए जीमन में बचा हुआ वह खाद्य जिसको निर्ग्रंन्थों में बाँटने का संकल्प किया गया हो (पिंड २२९; २३०)

समाएसण :: न [समादेशन] आज्ञा, हुकुम (भवि)।

समाओग :: पुं [समायोग] स्थिरता (तंदु १४)।

समाओसिय :: वि [समातोषित] संतुष्ट किया हुआ (भवि)।

समाकरिस :: सक [समा + कृष्] खींचना। हेकृ. समाकरिसिउं (पि ५७५)।

समाकरिसण :: न [समाकर्षण] खींचाव (सुपा ४)।

समाकार :: सक [समा + कारय्] आह्वान करना, बुलाना। संकृ. समाकारिय (सम्मत्त २२६)।

समागच्छ° :: देखो समागम = समा + गम्।

समागत :: देखो समागय (सुर २, ८०)।

समागम :: सक [समा + गम्] १ सामने आना। २ आगमन करना। ३ जानना। समागच्छइ (महा)। भवि. समागमिस्सइ (पि ५२३)। संकृ. समागच्छिअ (पि ५८१), 'विन्‍नाणेण समागम्म' (उत्त २३, ३१)

समागम :: पुं [समा + गम्] १ संयोग, संबन्ध (गउड; महा) २ प्राप्‍ति (सूअ १, ७, ३०)

समागमण :: न [समागमन] ऊपर देखो (महा)।

समागय :: वि [समागत] आया हुआ (पि ३६७ ए)।

समागूढ :: वि [समागूढ] समाश्लिष्ट, आलिंगित (पउम ३१, १२२)।

समाज :: पुं [समाज] समूह, संघात (धर्मंवि १२३)। देखो समाय = समाज।

समाजुत्त :: न [समायुक्त] संयोजन, जोड़ना (राय ४०)।

समाढत्त :: वि [समारब्ध] १ आरब्ध, जिसकाॉ प्रारम्भ किया गया हो वह (काल; पि २२३; २८६) २ जिसने आरम्भ किया हो वह; 'एवं भणिउं समाढत्तो' (सुर १, ९९)

समाण :: सक [भुज्] भोजन करना, खाना। समाणइ (हे ४, ११०; कुमा)।

समाण :: सक [सम् + आप्] समाप्‍त करना, पूरा करना। समाणइ (हे ४, १४२), समाणेमि (स ३७९)।

समाण :: वि [समान] १ सदृश, तुल्य, सरिखा (कप्प) २ मान-सहित, अहंकारी (से ३, ४६) ३ पुंन. एक देव-विमान (सम ३५)

समाण :: वि [सत्] विद्यमान, होता हुआ (उवा; विपा १, २ — पत्र ३४)। स्त्री. °णी (भग; कप्प)।

समाण :: देखो संमाण = संमान (से ३, ४६)।

समाणअ :: वि [समापक] समाप्‍त करनेवाला (से ३, ४६)।

समाणण :: न [भोजन] भक्षण, खाना; 'तंबोल- समाणणपज्जाउलवयणयाए' (स ७२)।

समाणत्त :: वि [समाज्ञप्‍त] जिसको हुकुम दिया गया हो वह (महा)।

समाणिअ :: देखो संमाणिय (से ३, २४)।

समाणिअ :: वि [समानीत] जो लाया गया हो वह, आनीत (महा; सुपा ५०५)।

समाणिअ :: वि [समाप्‍त] पूरा किया हुआ (से ६, ६२; णाया १, ८ — पत्र १३३; स ३७१; कुमा ६, ९५)।

समाणिअ :: वि [दे] म्यान किया हुआ, म्यान में डाला हुआ; 'विलिएण तक्खणं चेव समाणियं मंडलग्गं' (स २४२)।

समाणिअ :: वि [भुक्त] भक्षित, खाया हुआ (स ३१५)।

समाणिआ :: स्त्री [समानिका] छन्द-विशेष (पिंग)।

समाणी :: सक [समा + नी] ले आना। समाणेइ (विसे १३२५)।

समाणी :: देखो समाण = सत्।

समाणु :: (अप) देखो सम (हे ४, ४१८; कुमा)।

समादह :: सक [समा + दह] जलाना, सुलगाना। वकृ. समादहमाण (आचा १, ९, २, १४)।

समादा :: सक [समा + दा] ग्रहण करना। संकृ. समादाय (आचा १, २, ६, ३)।

समादाण :: न [समादान] ग्रहण (राज)।

समादिट्ठ :: वि [समादिष्ट] फरमाया हुआ (मोह ८९)।

समादिस :: सक [समा + दिश्] आज्ञा करना। संकृ. समादिसिअ (नाट)।

समादेस :: देखो समाएस (नाट — मालती ४६)।

समाधारणया :: स्त्री [समाधारणा] समान भाव से स्थापन (उत्त २९, १)।

समाधि :: देखो समाहि (ठा १० — पत्र ४७३)।

समापणा :: स्त्री [समापना] समाप्‍ति (विसे ३५६५)।

समाभरिअ :: वि [समाभरित] आभरण-युक्त (अणु २५३)।

समाय :: पुं [समाज] १ सभा, परिषत् (उत्त ३०, १७; अच्चु ४) २ पशु-भिन्‍न अन्यों का समूह, संघात। ३ हाथी (षड्)

समाय :: पुं [समाय] सामायिक, संयम-विशेष (विसे १४२१)।

समाय :: देखो समवाय; 'एते चेव य दोसा पूरिससमाएवि इत्थियाणंपि' (सूअनि ६३; राज)।

समायं :: देखो समयं (भग २९, १ — पत्र ९४०)।

समायण्ण :: सक [समा + कर्णय्] सुनना। संकृ. समायण्णिऊण (महा)।

समायण्ण :: न [समाकर्णन] श्रवण (गउड)।

समायण्णिय :: वि [समाकर्णित] सुना हुआ (काल)।

समायय :: सक [समा + दद] ग्रहण करना, स्वीकार करना। समाययंति (उत्त ४, २)।

समायय :: देखो समागय (भवि)।

समायर :: सक [समा + चर्] आचरण करना। समायरइ (उवा; उव), समायरेसि (निसा ५)। कृ. समायरियव्व (उवा)।

समायरिय :: वि [समाचरित] आचरित (गउड)।

समाया :: देखो समादा। संकृ. समायाथ (आचा १, ३, १, ४)।

समायाय :: वि [समायात] समागत (उप ७२८ टी)।

समायार :: पुं [समाचार] १ आचरण (विपा १, १ — पत्र १२) २ सदाचार (अणु १०२) ३ वि. आचरण करनेवाला (णंदि ५२)

समार :: सक [समा + रचय्] १ ठीक करना, दुरुस्त करना। २ करना, बनाना। समारइ (हे ४, ९५; महा)। भूका. समारीअ (कुमा)। बकृ. समारंत (पउम ६८, ४०)

समार :: सक [समा + रभ्] प्रारंभ करना। समारइ (षड्)।

समार :: वि [समारचित] बनाया हुआ, 'अद्धसमारम्मि जरकुडीरम्मि' (सुर २, ९९)।

समारंभ :: सक [समा + रभ्] १ प्रारम्भ करना। २ हिंसा करना। समारंभेज्जा (आचा)। वकृ. समारंभंत, समारंभमाण (आचा)। प्रयो. समारंभावेज्जा (आचा)

समारंभ :: पुं [समारम्भ] १ पर-परिताप, हिंसा (आचा; पणह १, १ — पत्र ५; श्रा ७); 'परितावकरो भवे समारंभो' (संबोध ४१)। २ प्रारंभ (कप्पू)

समारचण, समारण :: न [समारचन] १ ठीक करना, दुरुस्त करना; 'कारेइ जिण- हाराणं समारणं, जुणणभग्गपडियाणं' (पउम ११, ३) २ वि. विधायक, कर्ता (कुमा)

समारद्ध :: देखो समाढत्त (सुर १, १; स ७६४)।

समारभ, समारह :: देखो समारंभ = समा + रभ्। समारभे, रमारभेज्जा, समारभेज्जासि, समारहइ (सूअ १, ८, ५; पि ४६०; षड्)। संकृ. समारब्भ (पि ५९०)।

संमारिय :: वि [समारचित] दुरुस्त किया हुआ (कुप्र ३३४)।

समारुह :: सक [समा + रुह्] आरोहण करना, चढ़ाना। समारुहइ (भवि; पि ४८२)। वकृ. समारुहंत (गा ११)। संकृ. समारुहिय (महा)।

समारुहण :: न [समारोहण] आरोहण, चढ़ना (सुपा २५३)।

समारूढ :: वि [समारूढ] चढ़ा हुआ (महा)।

समारोव :: सक [समा + रोपय्] चढ़ाना। संकृ. समारोविय (पि ५९०)।

समालंकार, समालंके :: देखो समलंकार = समलं + कारय्। समालंकारेइ, समालंकेइ (औप; आचा २, १५, १८)। संकृ. समा- लंकारेत्ता, समालंकेत्ता (औप; आचा २, १५, १८)।

समालंब :: पुं [समालम्ब] आलम्बन, सहारा (संबोध ४०)।

समालंभण :: न [समालम्भन] अलंकरण, विभूषा करना; 'मंगलसमालंभणाणि विरएमि' (अभि १२७)। देखो समालभण।

समालत्त :: वि [समालपित] उक्त, कथित; 'पवणंजओ समालत्तो' (पउम १५, ८८)।

समालभण :: न [समालभन] विलेपन, अंगराग (सुर १६, १४)। देखो समालभण

समालव :: सक [समा + लप्] विस्तार से कहना। समालवेज्जा (सूअ १, १४; २४)।

समालवणी :: स्त्री [समालपनी] वाद्य-विशेष, 'वेणुवीणासमालवणिरवसुंदरं भल्लरिघोससंमी- सखरमुहिसरं' (सुपा ५०)।

समालविय :: देखो समालत्त (भवि)।

समालह :: सक [समा + लभ्] १ विलेपन करना। २ विंभूषा करना, अलंकार पहनना। संकृ. समालहिवि (अप) (भवि)

समालहण :: देखो समालभण (सुपा १०८; दस, ३, १टी; नाट — शकु ७३)।

समालाव :: पुं [समालाप] बातचीत, संभाषण (पउम ३०, ३)।

समालिंगिय :: वि [समालिङ्गित] आलिंगित, आश्‍लिष्ट (भवि)।

समालीढ :: वि [समाश्‍लिष्ट] ऊपर देखो (भवि)।

समालोच :: पुं [समालोच] विचार, विमर्शं (उप ३६९)।

समालोयण :: न [समालोचन] सामान्य अर्थं का दर्शंन (विसे २७६)।

समाव :: सक [सम + आप्] पूरा करना। समावेइ (हे ४, १४२)। कर्मं. समप्पइ (हे ४, ४२२)।

समावज्जिय :: वि [समावजित] प्रसन्न किया हुआ (महा)।

समावड :: अक [समा + पत्] १ संमुख आकार पड़ना, गिरना। २ लगना। ३ सम्बन्ध करना। समावडइ (भवि)

समावडण :: न [समापतन] पड़ना, गिरना (गउड)।

समावडिय :: वि [समापतित] १ संमुख आकर गिरा हुआ (सुर २, ९; सुपा २०३) २ बद्ध (औप) ३ जो होने लगा हो वह; 'समावडियं जुद्धं' (स ३८३; महा)

समावण्ण :: वि [समापन्न] संप्राप्त (सम १३४; भग)।

समावत्ति :: स्त्री [समावाप्ति] समाप्ति, पूर्णंता; 'ते य समावत्तीए विहरंता' (सुख २, ७)।

समावद :: सक [समा + वद्] बोलना, कहना। समावदेज्जा (आचा १, १५, ५४)।

समावन्न :: देखो समावण्ण (स ४७९; उवा; ठा २, १ — पत्र ३८; दस ५, २, २)।

समावय :: देखो समावद। समावइज्जा (आचा २, १५, ५)।

समावय :: देखो समावड। वकृ. समावयंत (दस ९, ३, ८)।

समाविअ :: वि [समापित] पूर्णं किया हुआ (गा ६१; दे ७, ४५)।

समास :: अक [सम् + आस्] १ बैठना। २ रहना। समासइ (भवि)

समास :: अक [समा + अस्] अच्छी तरह फेंकना। कर्मं. समासिज्जंति (णंदि २२९)।

समास :: पुं [समास] १ संक्षेप, संकोच (जीवस १; जी २१) २ सामायिक, संयम-विशेष (विसे २७९५) ३ व्याकरण-प्रसिद्ध एक प्रक्रिया, अनेक पदों के मेल करने की रीति (पणह २, २ — पत्र ११४; अणु; विसे १००३) ४ समीप (दश वै° वृद्ध° पत्र)

समासंग :: पुं [समासङ्ग] संयोग (गा ९९१ ?)।

समासंगय :: वि [समासंगत] संगत, सम्बद्ध (रंभा)।

समासज्ज :: देखो समासाद।

समासत्थ :: वि [समाश्वस्त] १ आश्वासन- प्राप्त (पउम १८, २८; से १२, ३७; सुख २, ९) २ स्वस्थ बना हुआ (स १२०; सुर ९, ९६)

समासय :: पुं [समाश्रय] आश्रय, स्थान (पउम ७, १६८; ४२, ३५)।

समासव :: अक [समा + स्रु] आना, आगमन करना। समासवदि (द्रव्य ३१)।

समासस :: देखो समस्सस। कृ. समाससि- अव्व (से ११, ९५)।

समासाद :: (शौ) सक [समा + सादय्] प्राप्त करना। समासादेहि (स्वप्‍न ३७)। कृ. समासादइदव्व (मा ३९)। संकृ. समा- सज्ज, समासिज्ज (आचा १, ८, ८, १; पि २१)।

समासादिअ :: वि [समासादित] प्राप्त (दस १, १ टी)।

समासासिय :: वि [समाश्वासित] जिसको आश्वासन दिया गया हो वह (महा)।

समासि :: सक [समा + श्रि] सम्यग्, आश्रय करना। कर्मं. समासिज्जइ, समासिज्जति (णंदि २२९)।

समासिज्ज :: देखो समासाद।

समासिय :: वि [समाश्रित] आश्रय-प्राप्त (पउम ८०, ६४)।

समासिय :: वि [समासित] उपवेशित, बैठाया हुआ (भवि)।

समासीण :: वि [समासीन] बैठा हुआ (महा)।

समाहट्‌टु :: देखो समाहार।

समाहड :: वि [समाहृत] १ विशुद्ध, निर्मंल; 'असमाहडाए लेस्साए' (आचा २, १, ३, ६) २ स्वीकृत (राज)

समाहय :: वि [समाहत] आघात-प्राप्त, आहत (औप; सुर ४, १२७; सण)।

समाहर :: सक [समा + हृ] ग्रहण करना। २ एकत्रित करना। संकृ. समाहट्‍टु (सूअ १, ८, २६; १, १०, १५), समाहरिवि (अप) (भवि)।

समाहविअ :: वि [समाहूत] आहुत, बुलाया हुआ (धर्मंवि ६०)।

समाहाण :: न [समाधान] १ समाधि (उप ३२० टी) २ औत्सुक्य-निवृत्ति रूप स्वास्थ्य, मानसिक शान्ति, चित्त-स्वस्थता (अणु १३९; सुपा ५४८)

समाहार :: पुं [समाहार] १ समूह, 'छद्दव्व- समाहारो भाविज्जइ एस जियलोओ' (श्रु ११५)। °दंद पुं [°द्वन्द्व] व्याकरण-प्रसिद्ध समास-विशेष (चेइय ६६०)

समाहारा :: स्त्री [समाहार] १ दक्षिण रुचक पर रहनेवाली एक दिक्कुमारी देवी (ठा ८ — पत्र ४३६; इक) २ पक्ष की बारहवीं रात्रि (सुज्ज १०, १४)

समाहि :: पुंस्त्री [समाधि] १ चित्त की स्वस्थता, मनोदुःख का अभाव (सम ३७, उत्त १६, १; सुख १६, १; चेइय ७७७) २ स्बस्थता; 'साहाहि रुक्खो लभते समाहिं छिन्नाहि सहाहि तमेव खाणुं' (उत्त १४, २९) ३ धर्मं। ४ शुभ ध्यान, चित्त की एकाग्रता-रूप ध्यानावस्था (सूअ १, १०, १; सुपा ८६) ५ समता, राग आदि का अभाव (ठा १० टी — पत्र ४७४) ६ श्रुतज्ञान। ७ चारित्र, संयमानुष्ठान (ठा ४, १ — पत्र १९५) ८ पुं. भरतक्षेत्र के सतरहवें भावी तीर्थंकर (सम १५४; पव ४६)। °पडिमा स्त्री [°प्रतिमा] समाधि-विषयक व्रत-विशेष (ठा ४, १)। °पाण न [°पान] शक्कर आदि का पानी (भत्त ४०)। °मरण न [°मरण] समाधि-युक्त मौत (पडि)

समाहिअ :: वि [समाहित] १ समाधि-युक्त (सूअ १, २, २, ४; सूअनि १०६, उत्त १६, १५; पउम ९०, २४; औप; महा) २ अच्छी तरह व्यवस्थापित। ३ उपशभित (आचा १, ८, ६, ३) ४ समापिंत (विसे ३५६३) ५ शोभन, सुन्दर। ६ अबीभत्स। ७ निर्दोष (सूअ १, ३, १, १०)

समाहिअ :: वि [समाहृत] गृहीत (आचा १, ८, ५, २)।

समाहिअ :: वि [समाख्यात] सम्यग् कथित (सूअ १, ६, २९; आचा २, १६, ४)।

समाहुत्त :: (अप) नीचे देखो (भवि)।

समाहूअ :: वि [समाहूत] बुलाया हुआ, आका- रित (सार्धं १०५)।

समाहे :: सक [समा + धा] स्वस्थ करना, 'सुक्कज्झाणं समाहेइ' (संबोध ५१)।

समि :: स्त्री [शमि] देखो समी (अणु; पाअ)।

समि, समिअ :: वि [शमिन्, °क] १ शम-युक्त। २ पुं. साधु, मुनि (सुपा ४३९; ६४२; उप १४२ टी)

समिअ :: देखो संत = शान्त (सिरि ११०४)।

समिअ :: वि [समित] सम्यक् प्रवृत्ति करनेवाला, सावधान होकर गति आदि करनेवाला (भग; उप ६०४; कप्प; औप; उव; सूअ १, १६, २; पव ७२)। २ राग-आदि से रहित (सूअ १, ६, ४) ३ उपपन्न (सुज्ज ९) ४ सम्यक् गत (सूअ १, ६, ४) ५ सन्तत (ठा २, २ — पत्र ५८) ६ सम्यग् व्यवस्थित (सूअ २, ५, ३१)

समिअ :: वि [सम्यञ्च्] १ सम्यक् प्रवृत्तिवाला (भग २, ५ — पत्र १४०) २ अच्छा, सुन्दर, शोभन, समीचीन (सूअ २, ५, ३१)

समिअ :: वि [शभित] शान्त किया हुआ (विसे २४५८; औप; पणह २, ५ — पत्र १४८; सण)।

समिअ :: वि [श्रमित] श्रम-युक्त (भग २, ५ — पत्र १४०)।

समिअ :: वि [समिक] सम, राग-द्वेष-रहित; 'समियभावे' (पणह २, ५ — पत्र १४९)।

समिअ :: न [साम्य] समता, रागादि का अभाव, सम-भाव (सूअ १, १६, ५; आचा १, ८; ८, १४)।

समिअ :: वि [संमित] प्रमाणोपेत (णाया १, १ — पत्र ६२; भग)।

समिअ :: वि [सामित] गेहुँ के आटा का बना हुआ पक्वान्न-विशेष, मण्डक (पिंड २४५)।

समिअं :: अ [सम्यग्] अच्छी तरह (आचा; पणह २, ३ — पत्र १२३)।

समिआ :: /?/स्त्री. अ. ऊपर देखो (भग २, ५ — पत्र १४०; आचा १, ५, ५, ४), 'समियाए' (आचा १, ५, ५, ४)।

समिआ :: स्त्री [समिता] गेहुँ का आटा (णाया १, ८ — पत्र १३२; सुख ४, ५)।

समिआ :: स्त्री [समिका, शमिका, शमिता] चमर आदि सब इन्द्रों की एक अभ्यन्तर परिषद् (भग ३, १० टी — पत्र २०२)।

समिइ :: स्त्री [समिति] १ सम्यक् प्रवृत्ति, उपयोग-पूर्वंक गमन-भाषण आदि क्रिया (सम १०; ओघभा ३; उव; उप ६०२; रयण ४) २ सभा, परिषद्; 'नत्थि किर देवलोगेवि देवसमिईसु ओगासो' (विवे १३६ टी; तंदु २५ टी) ३ युद्ध, लड़ाई (रयण ४) ४ निरन्तर मिलन (अणु ४२)

समिइ :: स्त्री [स्मृति] १ स्मरण। २ शास्त्र- विशेष; मनुस्मृति आदि (सिरि ५५)

समिइम :: वि [समितिम] गेहुँ के आटे की बनी हुई मंडक आहि वस्तु (पिंड २०२)।

समिंजग :: पुं [समिञ्जक] त्रीन्द्रिय जन्तु की एक जाति (उत्त ३६, १३९)।

समिक्ख :: सक [सम् + ईक्ष्] १ आलोचना करना, गुणदोष-विचार करना। २ पर्यालोचन करना, चिन्तन करना। ३ अच्छी तरह देखना, निरीक्षण करना। समिक्खए (उत्त २३, २५)। संकृ. समिक्ख (सूअ १, ६, ४; उत्त ६, २; महा; उपपं २५)

समिक्खा :: स्त्री [समीक्षा] पर्यालोचना (सूअ १, ३, ३, १४)।

समिक्खिअ :: वि [समीक्षित] आलोचित (धर्मंसं ११११)।

समिच्च :: देखो समे।

समिच्छण :: न [समीक्षण] समीक्षा (भवि)।

समिच्छिय :: देखो समिक्खिअ (भवि)।

समिज्झा :: अक [सम् + इन्ध्] चारों तरफ से चमकना। समिज्झाइ (हे २, २८)। वकृ. समिज्झन्त (कुमा ३, ४)।

समिता :: देखो समिआ = समिका (ठा ३, २ — पत्र १२७; भग ३, १० — पत्र ३०२)।

समिद्ध :: वि [समृद्ध] १ अतिशय संपत्तिवाला (औप; णाया १, १टी — पत्र १) २ वृद्ध, बढ़ा हुआ (प्रासू १३)

समिद्धि :: स्त्री [समृद्धि] १ अतिशय संपत्ति। २ वृद्धि (हे १, ४४; षड्; कुमा; स्वप्‍न ६५; प्रासू १२८)। °ल वि [°ल] समृद्धिवाला (सुर १, ४९)

समिर :: पुं [समिर] पवन, वायु (सम्मत्त १५९)।

समिरिईअ, समीरिय :: देखो स-मिरिईअ = समरी- चिक।

समिला :: स्त्री [शमिला, सम्या] युग-कीलक, गाड़ी की घोंसरी में दोनों ओर डाला जाता लकड़ी का खीला (उप पृ १३८; सुपा २५८)।

समिल्ल :: देखो संमिल्ल। समिल्लइ (षड्)।

समिहा :: स्त्री [समिध्] काष्ठ, लकड़ी (अंत ११; पउम ११, ७६; पिंड ४४०)।

समी :: स्त्री [शमी] १ वृक्ष-विशेष, छोंकर का पेड़ (सूअ १, २, २, १९ टी; उप १०३१ टी, वज्जा १५०) २ शिंबा, छिमी, फली (पाअ)। °खल्लय न [दे] छोंकर की पत्ती, शमी वृक्ष का पत्र-पुट (सूअ १, २, २, १९ टी; बृह १)

समीअ :: देखो समीव (नाट — मालवि ५)।

समीकय :: वि [समीकृत] समान किया हुआ, 'जं किंचि अणगं तात तंपि समीकतं' (सूअ १, ३, २, ८; गउड)।

समीचीण :: वि [समीचीन] साधु, सुन्दर, शोभन (नाट — चैत ४७)।

समीर :: सक [सम् + ईरय्] प्रेरणा करना। समीरए (आचा १, ८, ८, १७)।

समीर :: पुं [समीर] पवन, वायु (पाअ; गउड)।

समीरण :: पुं [समीरण] ऊपर देखो (गउड)।

समील :: देखो संमील। समीलइ (षड्)।

समीव :: वि [समीप] निकट, पास (पउम ९९, ८; महा)।

समीह :: सक [सम + ईह्] चाहता, वांछा करना। वकृ. समीहमाण (उप ३२० टी)।

समीहा :: स्त्री [समीहा] इच्छा, वांछा (उफ १०३१ टी)।

समीहिय :: वि [समीहित] इष्ट, वांछित (महा)।

समीहिय :: देखो समिक्खिअ (वव ३)।

समुआचार :: पुं [समुदाचार] समीचीन आचरण (दे २, ६४)।

समुइअ :: वि [समुचित] योग्य, उचित (से १३, ६८; महा)।

समुइअ :: वि [समुदित] १ परिवृत्त, 'गुण- समुइओ' (उव; स २८६) २ एकत्रित (विसे २६२४)

समुइन्न :: वि [समुदीर्ण] उदय-प्राप्त (सुपा ६१४)।

समुईर :: देखो समुदीर। कर्मं. 'जह वुड्‍ढगाण मोहो समुईरइ किंनु तरुणाण' (गच्छ ३, १५)।

समुक्कस :: देखो समुक्करिस (उत्त २३, ८८)।

समुक्कत्तिय :: वि [समुत्कतित] काटा डाला हुआ (सुर १४, ४५)।

समुक्करिस :: पुं [समुत्कर्ष] अतिशय उत्कर्षं (उत्त २३, ८८; सुख २३, ८८)।

समुक्कस :: सक [समुत् + कृष्] १ उत्कृष्ट बनाना। २ अक. गर्वं करना। समुक्कसेज्जा (ठा ३, १ — पत्र ११७), समुक्कसंति (प्रासू १६५)

समुक्किट्ठ :: वि [समुत्कृष्ट] उत्कृष्ट (ठा ३, १ — पत्र ११७)।

समुक्कित्तण :: न [समुत्कीर्तन] उच्चारण (सुपा १४९)।

समुक्खअ :: वि [समुत्खात] उखाड़ा हुआ (गा २७६)।

समुक्खण :: सक [समुत् + खन्] उखाड़ना। समुक्खणइ (गा ६८४)। वकृ. समुक्खणंत (सुपा ५४१)।

समुक्खणण :: न [समुत्खनन] उन्मुलन, उत्पाटन (कुप्र १७४)।

समुक्खित्त :: वि [समुत्क्षिप्त] उठा कर फेंका हुआ (से ११, ७२)।

समुक्खिव :: सक [समुत् + क्षिप्] उठा कर फेंकना। समुक्खिवइ (पि ३१९; सण)।

समुग्ग :: पुं [समुद्र] १ डिब्बा, संपुट (सम ६३; अणु; णाया १, १७ टी; धर्मवि १५; औप; पणण ३६ — पत्र ८३७; महा)। २ पक्षि-विशेष (जी २२; ठा४, ४ — पत्र २७१)

समुग्गद :: (शौ) वि [समुद्गत] समुद्‍भूत, समुत्पन्न (नाट — मालती ११९)।

समुग्गम :: पुं [समुद्‍गम] समुद्‍भव (नाट — रत्‍ना १३)।

समुग्गिअ :: वि [दे] प्रतीक्षित (दे ८, १३)।

समुग्गिण्ण :: वि [समुद्‍गीर्ण] उगामा हुआ, उत्तेलित, ऊपर उठाया हुआ (पउम १५, ७४)।

समुग्गिर :: सक [समुद् + गृ] ऊपर उठाना, उगामना। वकृ. समुग्गिरंत (पउम ६५, ४८)।

समुग्घडिअ :: वि [समुद्‍घाटित] खुला हुआ (धर्मंवि १५)।

समुग्घाइअ :: वि [समुद्‍घातित] विनाशित (प्रासू १६५)।

समुग्घाय :: पुं [समुद्‍घात] कर्मं-निर्जंरा विशेष, जिस सयम आत्मा वेदना, कषाय आदि से परिणत होता है उस समय वह अपने प्रदेशों को बाहर कर उन प्रदेशों से वेदनीय, कषाय आदि कर्मों के प्रदेशों की जो निर्जरा — विनाश करता है वह; ये समुद्‍घात सात हैं — वेदना, कषाय, मरण, वैक्रिय, तैजस, आहारक और केवलिक (पणण ३६ — पत्र ७९३; भग; औप; विसे ३०५०)।

समुग्घायण :: न [समुद्‍घातन] विनाश (विसे ३०५०)।

समुग्घुट्ठ :: वि [समुद्‍घोषित] उद्‍घोषित (सुर ११, २६)।

समुघाय :: देखो समुग्घाय (दं ३)।

समुच्चय :: पुं [समुच्चय] विशिष्ट राशि, ढग, समूह (भग ८, ९ — पत्र ३९५; भवि)।

समुच्चर :: सक [समत् + चर्] उच्चारण करना, बोलना। समुच्चरइ (चेइय ६४१)।

समुच्चलिअ :: वि [समुच्चलित] चला हुआ (उप पृ ४८; भवि)।

समुच्चिण :: सक [समुत् + चि] इकट्ठा करना, संचय करना। समुच्चिणइ (गा १०४)।

समुच्चिय :: वि [समुच्चित] एक क्रिया आदि में अन्वित (विसे ५७९)।

समुच्छ :: सक [समुत् + छिद्] १ उन्मुलन करना, उखाड़ना। २ दूर करना। समुच्छे (सूअ १, २, २, १३)। भवि. समुच्छिहिंति (सूअ २, ५, ४)। संकृ. समुच्छित्ता (सूअ २, ४, १०)

समुच्छइय :: वि [समवच्छिदित] सतत आच्छादित (पउम ६३, ७)।

समुच्छणी :: स्त्री [दे] संमार्जंनी, झाड़ू (दे ८, १७)।

समुच्छल :: अक [समुत् + शल्] १ उछलना, ऊपर उठना। २ विस्तीर्णं होना। समुच्छले (गच्छ १, १५)। वकृ. समुच्छलंत (सुर २, २३६)

समुच्छलिअ :: वि [समुच्छलित] १ उछला हुआ। २ विस्तीर्णं (गच्छ १, ६; महा)

समुच्छारण :: न [समुत्सारण] दूर करना (अभि ६०)।

समुच्छिअ :: वि [दे] १ तोषित, संतुष्ट किया हुआ। २ समारचित। ३ न. अंजलि-करण, नमन (दे ८, ४९)

समुच्छिद :: (शौ) वि [समुच्छ्रित] अति- उन्‍नत (पि २८७)।

समुच्छिन्‍न :: वि [समुच्छिन्‍न] क्षीण, विनष्ट (ठा ४, १ पत्र-१८७)।

समुच्छुंगिय :: वि [समुच्छृङ्गित] टोच पर चढ़ा हुआ (हम्मीर १५)।

समुच्छुग :: वि [समुत्सुक] अति-ुउत्कण्ठित (सुर २, २१५; ४, १७७)।

समुच्छेद, समुच्छेय :: पुं [समुच्छेद] सर्वंथा विनाश (ठा ८ — पत्र ४२५; राज)। °वाइ वि [°वादिन्] पदार्थं को प्रतिक्षण सर्वंथा विनश्वर माननेवाला (ठा ८ — पत्र ४२५; राज)।

समुज्जम :: अक [समुद + यम्] प्रयत्‍न करना। वकृ. समुज्जमंत (पउम १०२, १७६; चेइय १५०)।

समुज्जम :: पुं [समुद्यम] १ समीचीन उद्यम। २ वि. समीचीन उद्यमवाला (सिरि २४८)

समुज्जल :: वि [समुज्ज्वल] अत्यन्त उज्ज्वल (गउड; भवि)।

समुज्जाय :: वि [समुद्यात] १ निर्गंत (विसे २६०६) २ ऊँचा गया हुआ (कप्प)

समुज्जोअ :: अक [समुद् + द्युत्] चमकना, प्रकाशना। वकृ. समुज्जोयंत (पउम ११६, १७)।

समुज्जोअ :: पुं [समुद्‍द्योत] प्रकाश, दीप्‍ति (सुपा ४०; महा)।

समुज्जोवय :: सक [समुद् + द्योतय्] प्रकाशित करना। वकृ. समुज्जोवयंत (स ३४०)।

समुज्झ :: सक [सम् + उज्झ्] त्याग करना। संकृ. समुज्झिऊम (वै ८७)।

समुट्ठा :: अक [समुत् + स्था] १ उठना। २ प्रयत्‍न करना। ३ ग्रहण करना। ४ उत्पन्न होना। संकृ. समुट्ठिऊण (सण)। समुट्ठाए, समुट्ठिऊण (आचा १, २, २, १; १, २, ६, १; सण)

समुट्ठाइ :: वि [समुत्थायिन्] सम्यग् यत्‍न करनेवाला (आचा)।

समुट्ठाइअ :: देखो समुट्ठिअ (स १२५)।

समुट्ठाण :: न [समुपस्थान] फिर से वास करना। °सुय न [°श्रुत] जैन शास्त्र-विशेष (णंदि २०२)।

समुट्ठाण :: न [समुत्थान] १ सम्यग् उत्थान। २ निमित्त, कारण (राज)। देखो समुत्थाण।

समुट्ठिअ :: वि [समुत्थित] १ सम्यक् प्रयत्‍न- शील (सूअ १, १४, २२) २ उपस्थित। ३ प्राप्‍त (सूअ १, ३, २, ९) ४ उठा हुआ, जो खड़ा हुआ हो वह (सुर १, १६) ५ अनुष्ठित, विहित (सूअ १, २, २, ३१) ६ उत्पन्न (णाया १, ९ — पत्र १५६) ७ आश्रित (राज)

समुड्डीण :: वि [समुड़्डीन] उड़ा हुआ (वज्जा ९२; मोह ६३)।

समुण्णइय :: देखो समुत्तइय (राज)।

समुत्त :: न [संमुक्त] १ गोत्र-विशेष। २ पुंस्त्री. उस गोत्र में उत्पन्न; 'समुता (? त्ता)' (ठा ७ — पत्र ३९०)। देखो समुत्त।

समुत्तइय :: वि [दे] गर्वित (पिंड ४६५)।

समुत्तर :: सक [समुत् + तृ] १ पार जाना। २ अक. नीचे उतरना। ३ अवतीर्णं होना। समुत्तरइ (गउड ९४१; १०६६)। संकृ. समुत्तरेवि (अप) (भवि)

समुत्तारिवय :: वि [समुत्तारित] १पार पहुँचाया हुआ। २ कूप आदि से बाहर निकाला हुआ (स १०२)

समुत्तास :: सक [समुत् + त्रासव्] अति- शय भय उपजाना। समुत्तासेदि (शौ) (नाट — मालती ११९)।

समुत्तिण्ण :: वि [समवतीर्ण] अवतीर्ण (पउम १०६, ४२)।

समुत्तुंग :: वि [समुत्तुङ्ग] अति ऊँचा (भवि)।

समुत्तुण :: वि [दे] गर्वित (गउड)।

समुत्थ :: वि [समुत्थ] उत्पन्न (स ४८; ठा ४, ४ टी — पत्र २८३; सुर २, २२५; सुपा ४७०)।

समुत्थइउं :: देखो समुत्थय = समुत् + स्थगय्।

समुत्थण :: न [समुत्थान] उत्पत्ति (णाया १, ९ — पत्र १५७)।

समुत्थय :: सक [समुत् + स्थगय्] आच्छा- दन करना, ढकना। हेकृ. समुत्थइउं (गा ३६४ अ; पि ३०९)।

समुत्थय :: वि [समवस्तृत] आच्छादित (कुप्र १९२)।

समुत्थल्ल :: वि [समुच्छलित] उछला हुआ (स ५७८)।

समुत्थाण :: न [समुत्थान] निमित्त, कारण (विसे २८२८)। देखो समुट्ठाण।

समुत्थिय :: देखो समुट्ठिअ (भवि)।

समुदय :: पुं [समुदय] १ समुदाय, संहति, समूह (औप, भग; उवर १८९) २ समुन्नति, अभ्युदय (कुप्र २२)

समुदाआर, समुदाचार :: देखो समुआचार (स्वप्‍न ४५; नाट — शकु ७७; औप; स ५९५)।

समुदाण :: न [समुदाण] १ भिक्षा (औप) २ भिक्षा-समूह (भग) ३ क्रिया-विशेष, प्रयोग-गृहोत कर्मों को प्रकृति-स्थित्यादि-रूप से व्यवस्थित करनेवाली क्रिया (सूअनि १६६)। ४ समुदाय (आव ४)। °चर वि [°चर] भिक्षा की खोज करनेवाला (पणह २, १ — पत्र १००)

समुदाण :: सक [समुदानय्] भिक्षा के लिए भ्रमण करना। संकृ. समुदाणेऊण (पणह २, १ — पत्र १०१)।

समुदाणिअ :: देखो सामुदाणिय (औप; भग ७, १ — पत्र २९३)।

समुदाणिया :: स्त्री [सामुदानिकी] क्रिया- विशेष, समुदान-क्रिया (सूअनि १६८)।

समुदाय :: पुं [समुदाय] समूह (अणु २७० टी; विसे ९२१)।

समुदाहिय :: वि [समुदाहृत] प्रतिपादित, कथित (उत्त ३६, २१)।

समुदिअ :: देखो समुइअ = समुदित (सूअनि १२१ टी, सुर ७, ५६)।

समुदिण्ण :: देखो समुइन्न (राज)।

समुदीर :: सक [समुद् + ईरय्] १ प्रेरणा करना। २ कर्मों को खींच कर उदय में लाना, उदीरणा करना। वकृ. समुद्दी [? दी] रेमाण (णाया १, १७ — पत्र २२९)। संकृ. समुदीरिऊण (सम्यक्त्वो ५)

समुद्द :: पुं [समुद्र] १ सागर, जलधी (पाअ; णाया १, ८ — पत्र १३३; भग; से १, २१; हे २, ८०; कप्पू; प्रासू ६०) २ अन्धकवृष्णि का ज्येष्ठ पुत्र (अंत ३) ३ आठवें बलदेव और वासुदेव के पूर्व जन्म के धर्मं-गुरु (सम १५३) ४ वेलन्धर नगर का एक राजा (पउम ५४, ३९) ५ शाण्डिल्य मुनि के शिष्य एक जैन मुनि (णंदि ४९) ६ वि. मुद्रा-सहित (से १, २१) °दत्त पुं [°दत्त] १ चौथे वासुदेव का पूर्वंजन्मीय नाम (सम १५३) २ एक मच्छीमार का माम (विपा १, ८ — पत्र ८२) °दत्ता स्त्री [°दत्ता] १ हरिषेण वासुदेव की एक पत्‍नी (महा ४४) २ समुद्रदत्तमच्छोमार की भार्या (विपा १, ८) °लिक्खा स्त्री [°लिक्षा] द्वीन्द्रिय जंतु की एक जाति (पणण १ — पत्र ४४)। °विजय पुं [°विजय] १ चौथे चक्रवर्त्ती राजा का पिता (सम १५२) २ भगवान् अरिष्टनेमि का पिता (सम १५१; कप्प; अंत)। °सुआ स्त्री [°सुता] लक्ष्मी (समु १५२)। देखो समुद्र।

समुद्दणवणीअ :: न [दे. समुद्रनवनीत] १ अमृत, सुधा। २ चन्द्रमा (दे ८, ५०)

समुद्दव :: सक [समुद् + द्रावय्] १ भयंकर उपद्रव करना। २ मार डालना। समुद्दवे (गच्छ २, ४)

समुद्दहर :: न [दे] पानीय-गृह, पानी-घर (दे ८, २१)।

समुद्दाम :: वि [समुद्दाम] अति उद्दाम, प्रखर; "थुई समुद्दामसद्देण" (चेइय ६५०)।

समुद्दिस :: सक [समुद् + दिश्] १ पाठ को स्थिर-परिचित करने के लिए उपदेश देना। २ व्याख्या करना। ३ प्रतिज्ञा करना। ४ आश्रय लेना। ५ अधिकार करना। कर्मं. समुद्दिस्सइ (उवा), समुद्दिस्सिज्जंति (अणु ३)। संकृ. समुद्दिस्स (आचा १, ८, २, १; २, २, १, ४; ५)। हेकृ. समुद्दिसित्तए (ठा २, १ — पत्र ५६)

समुद्देस :: पुं [समुद्देश] १ पाठ को स्थिर- परिचित करने का उपदेश (अणु ३) २ व्याख्या, सूत्र के अर्थं का अध्यापन (वव १) ३ ग्रंथ का एक विभाग, अध्ययन, प्रकरण, परिच्छेद (पउम २, १२०) ४ भोजन; 'जत्थ समुद्देसकाले' (गच्छ २, ५६)

समुद्देस :: वि [सामुद्देश] देखो समुद्देसिय (पिंड २३०)।

समुद्देसण :: न [समुद्देशन] सूत्रों के अर्थं का अध्यापन (णंदि २०९)।

समुद्देसिय :: वि [समुद्देशिक] १ समुद्देश- सम्बन्धी। २ विवाह आदि के उपलक्ष्य में किये गये जीमन में बचे हुए वे खाद्य पदार्थं जिनको सब साधु-संन्यासियों में बाँट देने का संकल्प किया गया हो (पिंड २२९)

समुद्धर :: सक [समुद् + हृ] १ मुक्त करना। २ जीर्णं मन्दिर आदि को ठीक करना। समुद्धरइ (प्रासू ५)। वकृ. समुद्धरंत (सुपा ४७०)। संकृ. समुद्धरेऊण (सिक्खा ६०)। हेकृ. समुद्धत्तुं (उत्त २५, ८)

समुद्धरण :: न [समुद्धरण] १ उद्धार। २ वि. उद्धार करनेवाला (सण)

समुद्धरिअ :: वि [समुद्‍धृत] उद्धार-प्राप्‍त (गा ५९३; सण)।

समुद्धाइअ :: वि [समुद्धावित] समुत्थित, उठा हुआ (स ५६६; ५६७)।

समुद्धाय :: अक [समुद् + धाव्] उठना। वकृ. समुद्धायंत (पणह १, ३ — पत्र ४५)।

समुद्धिअ :: देखो समुद्धरिअ (गच्छ ३, २९)।

समुद्‍धुर :: वि [समुद्‍धुर] दृढ़, मजबूत (उप १४२ टी)।

समुद्‍धुसिअ :: वि [समुद्‍धुषित] पुलकित, रोमाञ्जित; 'घणागमे कयंबकुसुमं व समुग्धु- (? द्‌ध्ठ) सियं सरीरं' (कुप्र २१०; स १८०; धर्मंवि ४८)।

समुद्र :: पुं [समुद्र] १ एक देव-विमान (देवेन्द्र १४३) २ देखो. समुद्द (हे २, ८०)

समुन्नइ :: स्त्री [समुन्नति] अभ्युदय (सार्धं ८२)।

समुन्नद्ध :: वि [समुन्नद्ध] संनद्ध, सज्ज; 'जं नमिया सयलनिवा जिणस्स अच्चंतबलसमुन्नद्धाष। तेण विजएण रन्ना निमित्ति नामं विणिम्मवियं' (चेइय ६१३)।

समुन्नय :: वि [समुन्नत] अति ऊँचा (महा)।

समुपेहं :: सक [समुतप्र + ईक्ष्] १ अच्छी तरह देखना, निरीक्षण करना। २ पर्यालोचन करना, विचार करना। वकृ. समुपेहमाण (सूअ १, १३, २३)। संकृ. सपुपेहिया, समुपेहियाणं (दस ७; ५५; महा)

समुप्पज्ज :: अक [सपुत् + पद्] उत्पन्न होना। समुप्पज्जइ (भग; महा)। समुप्पज्जिज्जा (कप्प)। भूका. समुप्पजित्था (भग)।

समुप्पण्ण, समुप्पन्न :: वि [समुत्पन्न] उत्पन्न (पि १०२; भग; वसु)।

समुप्पयण :: न [समुत्पतन] ऊँचा जाना, ऊर्ध्वं-गमन, उड्डयन (गउड)।

समुप्पाअअ :: वि [समुत्पादक] उत्पत्ति-कर्ता (गा १८८)।

समुप्पाड :: सक [समुत् + पादय्] उत्पन्न करना। समुप्पाडेइ (उत्त २९, ७१)।

समुप्पाय :: पुं [समुत्पाद] उत्पत्ति, प्रादुर्भाव (सूअ १, १, ३, १०; आचा)।

समुप्पिजल :: न [दे] अयश, अपकीर्त्ति। २ रज, धूलि (दे ८, ५०)

समुप्पित्थ :: वि [दे] उत्त्रस्त, भय-भीत (सुर १३, ४४)।

समुप्पेक्ख, समुप्पेह :: समुपेह। वकृ. समुप्पेक्ख- माण, समुप्पेहमाण (राज; आचा १, ४, ४, ४)। संकृ. समुप्पेहं (दस ७, ३)। देखो समुवेक्ख।

समुप्फालय :: वि [समुत्पाटक] उठाकर लानेवाला, 'पहए जयसिरिसमुप्फालए मंगलतूरे' (स २२)।

समुप्फालिय :: वि [समुत्फालित] आस्फालित (भवि)।

समुप्फुंद :: सक [समा + क्रम्] आक्रमण करना। वकृ. समुप्फुंदंत (से ४, ४३)।

समुप्फोडण :: न [समुत्स्फोटन] आस्फालन (पउम ६, १८०)।

समुब्भड :: वि [समुद्भट] प्रचंड (प्रासू १०२)।

समुब्भव :: अक [समुद् + भू] उत्पन्न होना। समुब्भवंति (उपपं २५)।

समुब्भव :: पुं [समुद्भव] उत्पत्ति (उव; भवि)।

समुब्भिय :: वि [समूर्ध्वित] ऊँचा किय हुआ (सुपा ८८; भवि)।

समुब्भुय :: (अप) नीचे देखो (सण)।

समुब्भूअ :: वि [समुद्‍भूत] उत्पन्न (स ४७९; सुर २, २३५; सुपा २९५)।

समुयाण :: देखो समुदाण = समुदान (विपा १, २ — पत्र २५; ओघ १८४)।

समुयाण :: देखो समुदाण = समुदानय्। वकृ. समुयाणिंत (सुख ३, १)।

समुयाणिअ :: देखो समुदाणिय (ओघ ५१२)।

समुयाय :: सक समुदाय (राज)।

समुल्लव :: सक [समुत् + लप्] बोलना, कहना। समुल्लवइ (सण)। वकृ. समुल्लवंत (सुर २, २६)। कवकृ. समुल्लविज्जंत (सुर २, २१७)।

समुल्लवण :: न [समुल्लपन] कथन, उक्ति (से १२, ७४)।

समुल्लविअ :: वि [समुल्लपित] उक्त, कथित (सुर २, १५१; ५, २३८; प्रासू ७)।

समुल्लस :: अक [समुत् + लस्] उल्लसित होना, विकसना। समुल्लसइ (नाट — विक्र. ७१)। वकृ. समुल्लसंत (कप्प; सुर २, ८५)।

समुल्लसिय :: वि [समुल्लसित] उल्लास-प्राप्त (सण)।

समुल्लालिय :: वि [समुल्लालित] उछाला हुआ (णाया १, १८-पत्र २३७)।

समुल्लाव :: पुं [समुल्लाव] आलाप, संभाषण (विपा १, ७ — पत्र ७७; महा; णाया १, १६ — पत्र १९६)।

समुल्लास :: पुं [समुल्लास] विकास (गउड)।

समुवइट्ठ :: वि [समुपविष्ट] बैठा हुआ (उप २८८)।

समुवउत्त :: वि [समुपयुक्त] उपयोग-युक्त, सावधान (जीवस ३६३)।

समुवगय :: वि [समुपगत] समीप आया हुआ (वव ४)।

समुवज्जिय :: वि [समुपार्जित] उपार्जित, पैदा किया हुआ (सुपा १००; सण)।

समुवत्थिय :: वि [समुपस्थित] हाजिर, उपस्थित (उप ४३५)।

समुवयंत :: देखो समुवे।

समुवविट्ठ :: वि [समुपविष्ट] बैठा हुआ (राय ७५)।

समुवसंपन्न :: वि [समुपसंवन्न] समीप में समागत (धर्मं ३)।

समुवहसिअ :: वि [समुपहमित] जिसका खूब उपहास किया गया हो वह (सण)।

समुवागय :: वि [समुपागत] समीप में आगत (णाया १, १६ — पत्र १९६; सण)।

समुवे :: सक [समुपा + इ] १ पास में आना। २ प्राप्त करना। समुवेइ, समुवेंति (यति ४२; पि ४३९)। वकृ. समुवयंत (स ३७०)

समुवेक्ख, समुवेइ :: सक [समुत्प्र + ईक्ष्] १ निरीक्षण करना। २ व्यवहार करना, काम में लाना। वकृ. समुवेक्खमाण, समुवेहमाण (णाया १, १ — पत्र ११; आचा १, ५, २, ३)

समुव्वत्त :: वि [समुद्‍वृत्त] ऊँचा किया हुआ (से ११, ५१)।

समुव्वत्तिय :: वि [समुद्वर्तित] घुमाया हुआ, फिराया हुआ (सुर १३, ४३)।

समुव्वह :: सक [समुद् + वह्] १ धारण करना। २ ढोना। समुव्वहइ (भवि; सण)। वकृ. समुव्वहंत (से ६, २; नाट — रत्‍ना ८३)

समुव्वहण :: न [समुद्वहन] सम्यग् वहन — ढोना (उव)।

समुव्विग्ग :: वि [समुद्विग्‍न] अत्यन्त उद्वेगवाला (गा ४९२)।

समुव्वूढ :: वि [समुद्‍व्यूढ] १ विवाहित (उप पृ १२७) २ उत्तानित, ऊँचा किया हुआ (से ११, ६०)

समुव्वेल्ल :: वि [समुद्‍वेल्लित] अत्यन्त कँपाया हुआ, संचालित; 'गयजूहसमायड्ढियविसमस- मुव्वेल्लकमलसंघायं' (पउम ९४, ५२)।

समुसरण :: देखो समोसरण (पिंड २)।

समुस्सय :: पुं [समुच्छ्रय] १ ऊँचाई, ऊर्ध्वंता (सूअ २, ४, ७) २ उन्नति, उत्तमता (सूअ १, १५, ७) ३ कर्मों का उपचय (आचा) ४ संघात, समूह, राशि, ढग (दस ६, १७; अणु २०)

समुस्सविय :: वि [समुच्छ्रयित] ऊँचा किया हुआ (पउम ४०, ६)।

समुस्ससिय :: वि [समुच्छ्रवसित] १ उल्लास- प्राप्त, 'समुस्ससियरोमकूवा' (कप्प) २ उच्छ्रबास-प्राप्‍त (पउम ६४, ३८)। देखो समूससिअ।

समुस्सिअ :: वि [समुच्छ्रित] ऊर्ध्वं-स्थित, ऊँचा रहा हुआ (सूअ १, ५, १, १५; पि ६४)।

समुस्सिणा :: सक [समुत् + श्रु] १ निर्माण करना, बनाना। २ संस्कार करना, सँवारना, जीर्ण मन्दिर आदि को ठीक करना। समुस्सि- णासि, समुस्सिणामि (आचा १, ८, २, १; २)

समुस्सुग, समुस्सुय :: देखो समूसूअ (द्र ४८; महा)।

समुह :: देखो संमुह (हे १, २९, गा ६५९; कुमा; हेका ५१; महा; पाअ)।

समुहय :: वि [समुद्भत] समुद्‍घात-प्राप्‍त (श्रावक ६८)।

समुहि :: दगेखो स-मुहि = श्व-मुखि।

समूसण :: न [समूषण] त्रिकटुक — सूँठ, पीपल तथा मरिच या मिरचा (उत्तनि ३)।

समूसवय :: देखो समुस्सविय (पणह १, ३ — पत्र ४५)।

समूसस :: अक [समुत् + श्वस्] १ ऊँचा जाना। २ उल्लसित होना। ३ ऊर्ध्व श्वास लेना। समूससंति (पि १४३)। वकृ. समू- ससंत, समूमसमाण (गा ६०४; गउड; से ११, १३२)

समूससिअ :: न' [समुच्छ्‌वसित] १ निःश्वास (से ११, ५९) २ देखो समुस्ससिय (णाया १, १ — पत्र १३; कप्प; गउड)

समूसिअ :: देखो समुस्सिअ (भग; औप, सूअ १, ५, १, ११ टी; पणह १, ३ — पत्र ४५)।

समूसुअ :: वि [समुत्सुक] अति उत्कंठित (सुपा ४७७; नाट — विक्र ९२)।

समूह :: पुंन [समूह] समुदाय, राशि, संघात; 'अंतीहि य उवसमियं भुयंगमाणं समूहं व' (पउम १०६, १५; ओघ ४०७; गउड; भवि)।

समूह :: (अप) देखो समुह (भवि)।

समे :: सक [समा + ई] १ आगमन करना, आना, संमुख आना। २ जानना। ३ प्राप्‍त करना। ४ अक. संहत होना, इकट्ठा होना। समेइ, समेंत (भवि; विसे २२६६)। वकृ. समेमाण (आचा १, ८, १, २)। संकृ. समिच्च, समेच्च (सूअ १, १२, ११; पि ५९१; आचा १, ९, १, १६; पंच ३, ४५)

समेअ, समेत :: वि [समेत] १ समागत, समायात; 'सीलवइं परिणेउं गिहं समेओ महिड्ढीए' (श्रा १६) २ युक्त, सहित; 'तेहि समेतो अहयं वयामि जा कित्तियंपि भूभागं' (सुर १, १९६; ३, ८८; सुपा २५९; महा)

समेर :: देखो स-मेर = स-मर्यादा।

समाअर :: अक [समव + तृ] १ समाना, समावेश होना, अन्तर्भाव होना। २ नीचे उतरना। ३ जन्म-ग्रहण करना। समाअरइ (अणु २४६; उव; विसे ९४५), समाअरंति सूअ २, २, ७९; अणु ५९)।

समोआर :: पुं [समवतार] अन्तर्भाव (अणु २४६)।

समोइन्‍न :: वि [समवतीर्ण] नीचे उतरा हुआ (सुर ७, १३४)।

समोगाढ :: वि [समवगाढ] सम्यग् अवगाढ (औप)।

समोच्छइअ :: वि [समवच्छादित] आच्छादित, अतिशय ढका हुआ (सुर १०, १५७)।

समोणम :: सक [समव + नम्] सम्यग् नमना — नीचा होना। वकृ. समोणमंत (औप; सुर ६, २३७)।

समोणय :: वि [समवनत] अति नमा हुआ (गा २८२)।

समोत्थइअ :: वि [समवस्थगित] आच्छादित, (से ९, ८४)।

समोत्थय :: वि [समवस्तृत] ऊपर देखो (उप ७७३ टी)।

समोत्थर :: सक [समव + स्तृ] १ आच्छादन करना, ढकना। २ आक्रमण करना। बकृ. समोत्थरंत (णाया १, १ — पत्र २५; पउम ३, ७८)

समोयार :: पुं [समवतार] अन्तर्भवि, समावेश (विसे ९५६; अणु)।

समोयारणा :: स्त्री [समवतारणा] अन्तर्भाव (विसे ९७३)।

समोयारिय :: वि [समवतारित] अन्तर्भावित, समावेशित (विसे ९५६)।

समोलइय :: वि [दे] समुत्क्षिप्‍त (गउड)।

समोलुग्ग :: वि [समवरुग्ण] रोगी, रोग-ग्रस्त (से ३, ४७)।

समोवअ :: सक [समव + वत्] १ समाने आना। २ नीचे उतरना। वकृ. समोवयंत, समोवयमाण (स १३९; ३३०)

समोवइअ :: वि [समवपतित] नीचे उतरा हुआ (णाया १, १६ — पत्र २१३)।

समोसड्‍ढ, समोसढ :: वि [समवसृत] समागत, पघारा हुआ (सम्मत्त १२०; पि ६७; भग; णाया १, १ — पत्र ३९; औप; सुपा ११)।

समोसर :: सक [समव + सृ] १ पघारना, आगमन करना। २ नीचे गिरना। समोसरेज्जा (औप; पि २३५)। हेकृ. समोसरिउं° (औप)। वकृ. समोसरंत (से २, ३६)

समोसर :: अक [समप + सृ] १ पीछे हटना। २ पलायन करना। समोसरइ (काप्र १६९), समोसर (हे २, १९७)। वकृ. समोसरंत (गा १९२)

समोसरण :: पुंन [समवसरण] १ एकत्र मिलन, मेलापक, मेला (सूअनि ११७; राय १३३) २ समुदाय, समवाय, समूह; 'समोसरण निचय उवचय चए य जुम्से य रासी य' (ओघ ४०७) ३ साधु-समुदाय, साधु-समूह (पिंड २८५; २८८ टी) ४ जहाँ पर उत्सव आदि के प्रसंग में अनेक साधु लोग इकट्‍ठे होते हों वह स्थान (सम २१) ५ परतीथिकों का समुदाय, जैनेतर दार्शंनिकों का समवाय (सूअ १, १२, १) ६ धर्मं- विचार, आगम-विचार (सूअ २, २, ८१; ८२) ७ 'सूत्रकृताङ्ग सूत्र' के प्रथम श्रुतस्कंध का बारहवाँ अध्ययन (सूअनि १२०) ८ पधारना, आगमन (उवा; औप; विपा १, ७ — पत्र ७२) ९ तीर्थंकर-देव की पर्षंद। १० जहाँ पर जिन-भगवान् उपदेश देते हैं वह स्थान (आवम; पंचा २, १७; ती ४३)। °तव पुं [°तपस्] तप-विशेष (पव २७१)

समोसरिअ :: वि [समपसृत] १ पीछे हटा हुआ (गा ६५९; पउम १२, ९३) २ पलायित (से १०, ५)

समोसरिअ :: वि [समवसृत] समायात, समागत (से ७, ४१; उवा)।

समोसव :: सक [दे] टुकड़ा टुकड़ा करना। समोसवेंति (सूअ १, ५, २, ८)।

समोसिअ :: अक [समव + सद्] क्षीणा होना, नाश पाना, नष्ट होना। वकृ. समोसिअंत (से ८, ७)।

समोसिअ :: पुं [दे] १ प्रातिवेश्‍मिक, पड़ोसी (दे ८, ४९; पाअ) २ प्रदोष। ३ वि. वध्य, वध-योग्य (दे ८, ४९)

समोहण :: सक [समुद् + हन्] समुद्‍घात करना, आत्म-प्रदेशों को बाहर निकाल कर उनसे कर्मं-निर्जंरा करना। समोहणइ, समोहणंति (कप्प; औप; पि ४९९)। संकृ. समोहणित्ता (भग; कप्प, औप)।

समोहय :: वि [समुद्धत] जिसने समुद्‍घात किया हो वह (ठा २, २ — पत्र ६१)।

समोहय :: वि [समवहन] आघात-प्राप्‍त (सुर ७, २८)।

सम्म :: अक [श्रम्] १ खेद पाना। २ थकना। सम्मइ (उत्त १, ३७)

सम्स :: अक [शम्] शान्त होना, ठण्ढा होना। सम्मइ (धात्वा १५५)।

सम्म :: न [सर्मन्] सुख (हे १, ३२; कुमा)।

सम्म :: वि [सम्यञ्‍च्] १ सत्य, सच्चा (सूअ १, ८, २३; कप्प; सम्म ८७; वसु) २ अविपरीत, अविरुद्ध (ठा १ — पत्र २७; ३, ४ — पत्र ६५९) ३ प्रशंसनीय, श्लाघनीय (कम्म ४, १४; पव ६) ४ शोभन, सुन्दर। ५ संगत, उचित, व्याजबी (सूअ २, ४, ३) ६ न. सम्यग्-दर्शन (कम्म ४, ९; ४५) °त्त न [°त्व] १ समकित, सम्यग्-दर्शन, सत्य तत्त्व पर श्रद्धा (उवा; उव; पव ६३; जी ५०; कम्म ४, १४) २ सत्य, परमार्थ; 'सम्मत्तदंसिणो' (आचा; सूअ १, ८, २३) °दिट्ठय, °दिट्ठीय वि [°दृष्टिक] सत्य तत्त्व पर श्रद्धा रखनेवाला (ठा १ — पत्र २७; २, २ — पत्र ५९)। °द्दंसण न [°दर्शन] सत्य तत्त्व पर श्रद्धा (ठा १० — पत्र ५०३)। °दिट्ठि वि [°दृष्टि] देखो °दिट्ठिय (सूअनि १२१)। °न्नाण न [°ज्ञान] सत्य ज्ञान, यथार्थ ज्ञान (सम्म ८७; वसु)। °सुय न [°श्रुत] १ सत्य शास्त्र। २ सत्य शास्त्र-ज्ञान (णंदि) °मिच्छदिट्ठि वि [°मिथ्यादृष्टि] मिश्र दृष्टिवाला, सत्य और असत्य तत्त्व पर श्रद्धा रखनेवाला (सम २६; ठा १ — पत्र २८)। °वाय पुं [°वाद] १ अविरुद्ध वाद। २ दृष्टिवाद, बारहवाँ जैन अंग-ग्रंथ (ठा १० — पत्र ४९१) ३ सामायिक, संयम-विशेष; 'समाइयं समइयं सम्मावाओ समास संखेवो' (आव १)

सम्मइ :: देखो सम्मुइ = सम्मति, स्वमति (उत्त २८, १७; आचा)।

सम्मइग :: देखो सामाइय (संबोध ४५)।

सम्मं :: अ [सम्यग्] अच्छी तरह (आचा; सूअ १, १४, ११; महा)।

सम्मुइ :: स्त्री [सन्मति] १ संगत मति। २ सुन्दर बुद्धि, विशद बुद्धि (उत्त २८, १७; सुख २८, १७; कप्प; आचा) ३ पुं. एक कुलकर पुरुष (पउम ३, ५२)

सम्मुइ :: स्त्री [स्वमति] स्वकीय बुद्धि (आचा)।

सम्हरिअ :: वि [संस्मृत] अच्छी तरह याद किया हुआ (अच्चु ३५)।

सय :: अक [शी, स्वप्] सोना, शयन करना। सयइ, सए, सएज्जा (कप्प; आचा १, ७, ८, १३; २, २, ३, २५; २६), सयंति (भग १३, ६ — पत्र १७)। वकृ. सयमाण (आचा २, २, ३, २६)। हेकृ. सइत्तए (पि ५७८)। कृ. देखो सयणिज्ज, सयणीअ।

सय :: अक [स्वद्] पचना, जीर्णं होना, माफिक आना। सयइ (आचा २, १, ११, १)।

सय :: अक [स्र] झरना, टपकना। सयइ (सूअ २, २, ५६)।

सय :: सक [श्रि] सेवा करना। संयति (भग १३, ६ — पत्र ६१७)।

सय :: देखो स = सत्; 'वंदणिज्जो सयाणं' (स ६९५)।

सय :: देखो स = स्व (सूअ १, १, २, २३; णाया १, १४ — पत्र १९०; आचा; उवा; स्वप्‍न १६)।

सय :: देखो सग = सप्‍तन्। °हत्तरि स्त्री [°सप्तति] सतहत्तर, ७७ (श्रा २८)।

सय :: अ [सदा] हमेशा, निरन्तर; 'असवुडो सय करेइ कंदप्पं' (उव)। °काल न [°काल] हमेशा, निरन्तर (सुपा ८५)।

सय :: पुंन [शत] १ संख्या-विशेष, सौ, १००। २ सौ की संख्यावाला (उवा; उव; गा १०१; जी २९; दं ९) ३ बहुत, भूरि, अनल्प संख्यावाला (णाया १, १ — पत्र ६५) ४ अध्ययन, ग्रंथ-प्रकरण, ग्रन्थांश-विशेष; 'विवाहपन्‍नत्तीए एकासीतिं महाजुम्मसया पन्‍नत्ता' (सम ८८) °कंत न [°कान्त] १ रत्‍न-विशेष। २ वि. शतकान्त रत्‍नों से बना हुआ (देवेन्द्र २६८) °कित्ति पुं [°कीर्त्ति] एक भावी जिन-देव (पव ४६); 'सत्त (? य) कित्ती' (सम १५३)। °गुणिअ वि [°गुणित] सौगुना (श्रा १०; सुर ३, २३२)। °ग्घी स्त्री [°ध्‍नी] १ यन्त्र-विशेष, पाषाण-शिला-विशेष (सम १३७; अंत; औप) २ चक्की; जाँता (दे ८, ५, टी) °ज्जल न [°ज्वल] १ वरुण का विमान (देवेन्द्र २७०)। देखो सवंजल। २ रत्‍न की एक जाति। ३ वि. शतज्वल-रत्‍नों का बना हुआ (देवेन्द्र २६९) ४ पुंन. विद्युत्प्रभ नामक वक्षस्कार पर्वंत का एक शिखर (इक) °दुवार न [द्वार] एक नगर (अंत)। °घणु पुं [°धनुष्] १ ऐरवत वर्षं में होनेवाला एक कुलकर पुरुष (सम १५३) २ भारत वर्ष में होनेवाला दसवाँ कुलकर पुरुष (ठा १० — पत्र ५१८) °पई स्त्री [°पदी] क्षुद्र जन्तु की एक जाति (श्रा २३)। °पत्त देखो °वत्त (णाया १, १ — पत्र ३८)। °पाग न [°पाक] एक सौ ओषधिओं से बनता एक तरह का उत्तम तेल (णाया १, १ — पत्र १९; ठा ३, १ — पत्र ११७)। °पुप्फा स्त्री [°पुष्पा] वनस्पति-विशेष, सोया का गाछ (पणण १ — पत्र ३४; उत्तनि ३)। °पोर न [°पर्वन्] इक्षु, ऊख (पव १७४ टी)। °बाहु पुं [°बाहु] एक राजर्षि (पउम १०, ७४)। °भिसया, °भिसा स्त्री [°भिषज्] नक्षत्र-विशेष (इक; पउम २०, ३८)। °यम वि [°तम] सौवाँ, १०० वाँ (पउम १००, ६४)। °रह पुं [°रथ] एक कुलकर पुरुष (सम १५०)। °रिसह पुं [°वृषभ] अहोरात्र का तेईसवाँ मुहुर्तं (सुज्ज १०, १३)। °वई देखो °पई (दे २, ९१)। °वत्त न [°पत्र] १ पद्म, कमल (पाअ) २ सौ पत्तीवाला कमल, पद्म-विशेष (सुपा ४९) ३ पुं. पक्षि-विशेष, जिसका दक्षिण दिशा में बोलना अपशुकन माना जाता है (पउम ७, १७) °सहस्स पुंन [°सहस्त्र] संख्या-विशेष, लाख (सम २; भग; सुर ३, २१; प्रासू ९; १३४)। °सहस्सइम वि [°सहस्रतम] लाखवाँ (णाया १, ८ — पत्र १३१)। °साहस्स वि [°साहस्र] १ लाख-संख्या का परिमाणवाला (णाया १, १ — पत्र ३७) २ लाख रुपया जिसका मूल्य हो वह (पव १११; दसनि ३, १३) °साहस्सि वि [°सहस्रिन्] लखपति, लक्षाधीश (उप पृ ३१५)। °साहस्सिय वि [°साहस्रिक] देखो °साहस्स (स ३६९; राज)। °साहस्सी स्त्री [°सहस्त्री] लक्ष, लाख (पि ४४७; ४४८)। °सिक्कर वि [°शर्कर] शत खंडवाला, सौ टुकड़ावाला (सुर ४, २२; १५३)। °हा अ [°धा] सौ प्रकार से, सौ टुकड़ा हो ऐसा (सुर १४, २४२)। °हुत्तं, अ [°कृत्वस्] सौ बार (हे २, १५८; प्राप्र; षड्)। °उ पुं [°युष्] १ एक कुलकर पुरुष का नाम (सम १५०) २ मदिरा-विशेष (कुप्र १६०; राज)। °णिय, °णीअ पुं [°नीक] एक राजा का नाम (विपा १, ५ — पत्र ६०; ' अतं; ती १०)

सय° :: देखो सयं = स्वयं; 'सयपालणा य एत्थं' (पंचा ५, ३९)।

सयं :: देखो सिइं = सकृत् (वै ८८)।

सयं :: अ [स्वयम्] आप, खुद, निज (आचा १, ९, १, ६; सुर २, १८७; भग, प्रासू ७८; अभइ ५९; कुमा)। °कड वि [°कृत] खुद किया हुआ (भग)। °गाह पुं [°ग्राह] १ जबरदस्ती ग्रहण करना। २ विवाह-विशेष (से १, ३४) ३ वि. स्वयं ग्रहण करनेवाला (वव १) °पभ पुं [°प्रभ] १ ज्योतिष्क ग्रह-विशेष (ठा २, ३ — पत्र ७८) २ भारतवर्षं में अतीत उत्सर्पिणी काल में उत्पन्न चौथा कुलकर पुरुष (सम १५०) ३ आगामी उत्सर्पिणी काल में भारत में होनेवाला चौथा कुलकर पुरुष (सम १५३) ४ आगामी उत्सर्पिणी काल में इस भारतवर्षं में होनेवाले चैथे जिन-देव (सम १५३) ५ एक जैन मुनि जो भगवान् संभवनाथ के पूर्वं- जन्म में गुरु थे (पउम २०, १७) ६ एक हार का नाम (पउम ३६, ४) ७ मेरु पर्वत (सुज्ज ५) ८ नन्दीश्वर द्वीप के मध्य में पश्चिम-दिशा-स्थित एक अंजन-गिरि (पव २६९ टी। ९ न. एक नगर का नाम, राजा रावण के लिए कुबेर द्वारा बनाया हुआ एक नगर (पउम ७, १४९) १० वि. आप से प्रकाश करनेवाला (पउम ३६, ४) °पभा स्त्री [°प्रभा] १ प्रथम वासुदेव की पटरानी (पउम २०, १८६) २ एक रानी का नाम (उप १०३१ टी) °पह देखो °पभ (पउम ८, २२)। °बुद्ध वि [°बुद्ध] अन्य के उपदेश के बिना ही जिसको तत्त्व-ज्ञाव हुआ हो वह (नव ४३)। °भु पुं [°भु] १ ब्रह्मा (पणह १, २ — पत्र २८) २ भारत में उत्पन्न तीसरा वासुदेव (सम ९४) ३ सतरहवें जिनदेव का गणधर — मुख्य शिष्य (सम १५२) ४ जीव, आत्मा, चेतन (भग २०, २ — पत्र ७७६) ५ एक महा-सागर, स्वयंभूरभण समुद्र; 'जहा सयंभू उदहीण सेट्‍ठे' (सूअ १, ६, २०) ६ पुंन. एक देव- विमान (सम १२) देखो °भू। °भुगोहिणी स्त्री [°भुगेहिनी] सरस्वती देवी (अच्चु २)। °भुरमण पुं [°भुरमण] देखो °भूरमण (पणह २, ४ — पत्र १३०; पउम १०२, ९१; स १०७; सुज्ज १९; जी ३, २ — पत्र ३६७; देवेन्द्र २५५)। °भुव, °भू पुं [°भू] १ अनादि-सिद्ध सर्वंज्ञ; 'जय जय नाह सयंभुव' (स ६४७; उवर १२२) २ ब्रह्मा (पाअ; पउम २८, ४८; ती ७; से १४, १७) ३ तीसरा वासुदेव (पउम ५, १५५) ४ रावण का एक योद्धा (पउम ५६, २७) ५ भगवान् विमलनाथ का प्रथम श्रावक (विचार ३७८) ६ कुच, स्तन (प्राकृ ४०) देखो °भु। °भूरमण पुं [°भूरमण] १ समुद्र-विशेष। २ द्वीप-विशेष (जीव ३, २ — पत्र २६७; ३७०) ३ एक देव-विमान (सम १२) °भूरमणभद्द पुं [°भूरमणभद्र] स्वयंभूरमण द्वीप का एक अधिष्ठाता देव (जीव ३, २ — पत्र ३६७)। °भूरमणमहाभद्द पुं [°भूर- मणमहाभद्र] वही अर्थं (जीव ३, २)। °भूरमणमहावर पुं [°भूरमणमहावर] स्वयंभूरमण-समुद्र का एक अधिष्ठायक देव (जीव ३, २ — पत्र ३६७)। °भूरमणवर पुं [°भूरमणवर] वही अनन्तर उक्त अर्थं (जीव ३, २)। °वर पुं [°वर] कन्या का स्वेच्छानुसार वरण, एक प्रकार का विवाह जिसमें कन्या निमन्त्रित विवाहार्थियों में से अपनी इच्छानुसार अपना पति वरण कर ले (उव; गउड; अभि ३१)। °वरी स्त्री [°वरा] अपनी इच्छानुसार वरण करनेवाली (पउम १०६, १७)। °संबुद्ध वि [°संबुद्ध] स्वयं ज्ञात-तत्त्व (सम १)।

सयंजय :: पुं [शतञ्जय] पक्ष का तेरहवाँ दिवस (सुज्ज १०, १ ४)।

सयंजल :: पुं [शतञ्जल] १ एक कुलकर-पुरुष (सम १५०) २ वरुण लोकपाल का विमान (भग ३, ७ — पत्र १९८)। देखो सय — ज्जल। ३ ऐरवत वर्षं में उत्पन्न चौदहवें जिनदेव (पव ७)

सयंभरी :: स्त्री [शाकम्भरी] देव-विशेष (मुणि १०८७३)।

सयग :: देखो सयय (पव ४६; कम्म ५, १००)।

सयग्वी :: स्त्री [दे] जाँता, चक्की, पीसने का यन्त्र (दे ८, ५)।

सयड :: पुंन [शकट] १ गाड़ी (पउम २९, २१); 'सयडो गंती' (पाअ) २ न. नगर- विशेष (पउम ५, २७)। °मुह न [°मुख] उद्यान-विशेष, जहाँ भगवान् ऋषभदेव को केवलज्ञान उत्पन्न हुआ था (पउम ४, १६)

सयडाल :: देखो सगडाल (कुप्र ४४८)।

सयण :: देखो स-यण = स्व-जन।

सयण :: न [सदन] १ गृह, घर (गउड; सुपा ३६९) २ अंग-ग्लानि, शरीर-पीड़ा (राज)

सयण :: न [शयन] १ वसति, स्थान (आचा १, ९, १, ६) २ शय्या, बिछौना (गउड; कुमा; गा ३३) ३ निद्रा (कुमा ८, १७) ४ स्वाप, सोना (पणह २, ४; सुपा ३६९)

सयणिज्ज :: न [शयनीय] शय्या, बिछौना (णाया १, १४ — पत्र १९०; गउड)।

सयणिज्जग :: देखो स-यण = स्वजन; 'सेहस्स सयणिज्जगा आगया' (ओघभा ३० टी)।

सयणीअ :: देखो सयणिज्ज (स्वप्‍न ९२; ९८; सुर ३, ९०)।

सयण्ण :: देखो सकण्ण (महा)।

सयण्ह :: देखो स-यण्ह = स-तृष्ण।

सयत्त :: वि [दे] मुदित, हर्षित (दे ८, ५)।

सयन्न :: देखो सकन्न (सुपा २८२)।

सयय :: वि [सतत] निरन्तर (उव; सुर १, १३; महा)।

सयय :: पुं [शतक] १ वर्तंमान अवसर्पिणी- काल में उत्पन्‍न ऐरवत वर्षं के एक जिन-देव (सम १५३) २ आगामी उत्सर्पिणी में भारतवर्षं में होनेवाले एक जिनदेव के पूर्वंजन्म नाम, जो भगवान् महावीर का श्रावक था (ठा ९ — पत्र ४५५) ३ न. सौ का समुदाय (गा ७०९; अच्चु १०१)

सयर :: देखो सायर = सागर (विसे ११८७)।

सयरहं :: देखो सयराहं (स ७६२)।

सयरा :: देखो सक्करा; 'सयरं दहिं च दूद्धं तूरंतो कुणासु साहीणं' (पउम ११५, ८)।

सयराहं, सयराहा :: अ [दे] १ शीघ्र, जल्दी (दे ८, ११; कुमा; गउड; चेइय ६१०) २ युगपत्, एक साथ (विसे ६५६) ३ अकस्मात् (औप)

सयरि :: देखो सत्त-रि =सप्‍तति (पि २४५; ४४६)।

सयरी :: स्त्री [शतावरी] वृक्ष-विशेष, शतावर का गाछ (पणण १ — पत्र ३१)।

सयल :: न [शकल] खंड, टुकड़ा (दे १, २८)।

सयल :: वि [सकल] १ संपूर्णं, पूरा। २ सब, समग्र (गा ५३०; कुमा; सुपा १९७; दं ३९; जी १४; प्रासू १०८; १६४)। °चंद पुं [°चन्द्र] 'श्रुतास्वाद' का कर्ता एक जैन मुनि (श्रा १६६)। °भूसण पुं [°भूषण] एक केवलज्ञानी मुनि (पउम १०२, ५७)। °देस पुं [°देश] सर्वापेक्षी वाक्य, प्रमाण- वाक्य (अज्झ ६२)

सयलि :: पुं [शकलिन्] मीन, मछली (दे ८, ११)।

सयहत्थिय :: वि [सौवहस्तिक] १ स्व-हस्त से उत्पन्न। २ न. शस्त्र-विशेष; 'महकालोवि नरिंदो मिल्हइ सयहत्थियं सहत्थेणं' (सिरि ४५१; ४५२)

सयाचार :: देखो स-याचार = सदाचार।

सयाचार :: देखो सआ-चार = सदा-चार।

सयाण :: देखो स-याण = स-ज्ञान।

सयलि :: पुं [शतालि] भारतवर्षं के भावी अठारहवें जिनदेव का पूर्वंजन्मीय नाम (पव ४६; सम १५४)। देखो भयालि।

सयालु :: वि [शयालु] सोने की आदतवाला, आलसी (कुमा)।

सयावरी :: स्त्री [सदावरी] त्रीन्द्रिय जन्तु की एक जाति (उत्त ३६, १३९; सुखे ३६, १३९)।

सयावरी :: देखो सयरी = शतावरी (राज)।

सयास :: देखो सगास = सकाश (काल; अभि १२५; नाट — मृच्छ ५२)।

सयासव :: वि [शतश्रव, सदाश्रव] सूक्ष्म छिद्रवाला (भग)।

सय्यं :: देखो सज्जं = सद्यस्; 'सय्यंभवुत्ति सय्यं भत्रोयहीपारगो जओ तेणं' (धर्मंवि ३८)।

सय्यंभव :: देखो सज्जंभव (धर्मंवि ३८)।

सय्ह :: देखो सज्झ =सह्य (हे २, १२४; षड्)।

सर :: सक [सृ] १ सरना खिसकना। २ अवलम्बन करना, आश्रय लेना। ३ अनुसरण करना। सरइ (हे ४, २३४), सरेज्जा (उपपं २५)। कृ. सरणीअ (चउ २७), सरेअव्व (सुपा ४१४)

सर :: सक [स्मृ] याद करना। सरइ (हे ४, ७४; गुरु १२; प्राप्र)। वकृ. सरंत (सुपा ५६४), सरमाण (णाया १, ९ — पत्र १६५; पउम ८, १६४; सुपा ३३९)। हेकृ. सरि- त्तए (पि ५७८)। कृ. सरणीअ, सरेअव्व, सरियव्व (चउ २७; धम्मो २०; सुपा ३०७)। प्रयो. सरयंति (सूअ १, ५, १, १९)।

सर :: अक [स्वर्] आवाज करना। सरइ, सरंति (विसे ४६२)।

सर :: पुंन [शर] १ बाण; 'मज्झे सराणि वरि- सयंति' (णाया १, १४ — पत्र १९१; कुमा; सुर १, ९४; स्वप्‍न ५५) २ तृण-विशेष; 'सो सरवेणे निलोणो रहिओ तक्खिव्व पच्छन्नो' (धर्मवि ९२; पणण १ — पत्र ३३; (कुप्र १०) ३ छन्द-विशेष। ४ पाँच की संख्या (पिंग) °पण्णी स्त्री [°पर्णी] तृण-विशेष, = मुञ्ज का घास (राज)। °पत्त न [°पत्र] अस्त्र-विशेष (विसे ५१३)। °पाय न [°पात] धनुष (सूअ १, ४, २, १३)। °सण पुंन [°सन] धनुष (विपा १, २ — पत्र २४; पाअ; औप)। °सणपट्टी, °सणवट्टिया स्त्री [°सनपट्टी, °सनपट्टिका] १ धनुर्यंष्टि, धनुर्दण्ड। २ धनुष खींचने के समय हाथ की रक्षा के लिए बाँधा जाता चर्मंपट्ट — चमड़े का पट्टा (विपा १, २ — पत्र २४; औप)। °सरि न [°शरि] बाण-युद्ध (सिरि १०३२)

सर :: पुं [स्मर] कामदेव (कुमा; से ९, ४३)।

सर :: वि [सर] गमन-कर्ता (दस ९, ३, ६)।

सर :: पुं [स्वर] १ वर्ण-विशेष, 'अ' से 'औ' तक के अक्षर (पणह २, २; विसे ४६१) २ गीत आदि की ध्वनि; 'आवाज, नाद (सुपा ५९; कुमा) ३ स्वर के अनुरूप फलाफल को बतानेवाला शास्त्र (सम ४९)

सर :: पुंन [सरस्] तड़ाग, तालाब (से ३, ६; उवा; कप्प; कुमा; सुपा ३१९)। °पंति स्त्री [°पङ्‍क्ति] तड़ाग-पद्धति (ठा २, ४ — पत्र ८६)। °रुह न [°रुह] कमल, पद्म (प्राप्र; हे १, १५६; कुमा)। °सरपंतिया स्त्री [°सरः पङ्‍क्ति] श्रेणि-बद्ध रहे हुए अनेक तालाब (पणह २, ५ — पत्र १५०)।

सर :: देखो सरय = शरद् (गा ७१२)। °दिंदु पुं [°इन्दु] शरद् ऋतु का चन्द्र (सुर २, ७०; १६, २४६)।

सरऊ :: स्त्री [सरयू] नदी-विशेष (ठा ५, १ — पत्र ३०८; ती ११; कस)।

सरंग :: (अप) पुं [सारङ्गं] छन्द-विशेष (पिंग)।

सरंब :: पुं [शरम्ब] हाथ से चलनेवाले सर्प की एक जाति (पणह १, १ — पत्र ८)।

सरक्ख :: सक [सं + रक्ष्] अच्छी तरह रक्षण करना। सरक्खए (सूअ १, १, ४, ११ टि)।

सरक्ख :: वि [सरजस्क, सरक्ष] १ शैव-धर्मी, शिव-भक्त, भौत, शैव (ओघ २१८; विसे १०४०; उप ६७७) २ वि. रजो-युक्त (आव ४)

सरक्ख :: पुंन [सद्‍रजस्] १ घूलि, रज; 'ससरक्खेहिं पाएहिं' (दस ५, १, ७) २ भस्म (पिंड ३७; ओघ ३५९)

सरग :: देखो सरय = शरक (णाया १, १८ — पत्र २४१)।

सरग :: वि [शारक] शर-तृण से बना हुआ (शूर्पं आदि) (आचा २, १, ११, ३)।

सरग्गिका :: (अप) स्त्री [सारङ्गिका] छन्द-विशेष (पिंग)।

सरड :: पुं [सरट] कृकलास, गिरगिट (णाया १, ८ — पत्र १३३; ओघ ३२३; पुप्फ २६७; दे ८, ११; उप पृ २६८; सुपा १७७)।

सरडु, सरडुअ :: न [शलाटु, °क] वह फल जिसमें अस्थि — गुठली न बँधी हो, कोमसल फल (पिंड ४५; आचा २, १, ८, ६; पि ८२; २५९)।

सरण :: पुंन [शरण] १ त्राण, रक्षा (आचा; सम १; प्रासू १५९; कुमा) २ त्राण-स्थान (आचा कुमा २, ४५) ३ गृह, आश्रय, स्थान; 'निवायसरणप्पईवमिव चित्तं' (संबोध ५१)। °दय वि [°दय] त्राण-कर्ता (भग; पडि)। °गय वि [°गत] शरणापन्न (प्रासू ५)

सरण :: न [स्मरण] स्मृति, याद (ओघ ८; विसे ५१८; महा; उफ ५६२; औप; वि ६)।

सरण :: न [स्वरण] आवाज करना, ध्वनि करना (विसे ४६१)।

सरण :: न [सरण] गमन (राज)।

सरणि :: पुंस्त्री [सरणि] १ मार्गं, रास्ता (पाअ; सुपा २; कुप्र २२); 'सरलो सरणी समगं कहिओ' (सार्धं ७५) २ आलवाल, क्यारी (गउड)

सरण्ण :: वि [शरण्य] शरण-योग्य, त्राण के लिए आश्रयणीय (सम १५३, पणह १, ४ — पत्र ७२; सुपा २६१; अच्चु १५; संबोध ४८)।

सरत्ति :: अ [दे] शीघ्र, जल्दी, सहसा (दे ८, २)।

सरद :: देखो सरय = शरत (प्राप्र)।

सरन्न :: देखो सरण्ण (सुपा १८३)।

सरभ :: देखो सरह = शरण (भग; णाया १, १ — पत्र ६५; पणह १, १ — पत्र ७, गा ७४२; पिंग)।

सरमेअ :: वि [दे] स्मृत, याद किया हुआ (दे ८, १३)।

सरमय :: पुं. ब. [शर्मक] देश-विशेष (पउम ९८, ६५)।

सरय :: पुंन [शरद्] ऋतु-विशेष, आसोज — आश्‍विन तथा कार्तिक का महीना (पणह २, २ — पत्र ११४; गउड; से १, २७; गा ५३४; स्वप्‍न ७०; कुमा; हे १, १८); 'मुय माणं माण पियं पियसरयं जाव वच्चए सरयं' (वज्जा ७४)। °चंद पुं [°चन्द्र] शरद् ऋतु का चाँद (णाया १, १ — पत्र ३१)। देखो सर = शरद्।

सरय :: पुं [शरक] काष्ठ-विशेष, अग्‍नि उत्पन्न करने के लिए अरणि का काष्ठ जिससे घिसा जाता है वह (णाया १, १८ — पत्र २४१)।

सरय :: पुंन [सरक] १ मद्य-विशेष, गुड़ तथा घातकी का बना हुआ दारू (पणह २, ५ — पत्र १५०; सुपा ४८५; गा ५५१ अ; कुप्र १०) २ मद्य-पान (वज्जा ७४)

सरय :: देखो स-रय = स-रत।

सरय :: (अप) पुं [सरस] छन्द-विशेष (पिंग)।

सरल :: पुं [सरल] १ वृक्ष-विशेष (पणण १ — पत्र ३४) २ ऋतु, माया-रहित (कुमा; सण) ३ सीधा, अवक्र (कुमा; गउड)

सरलिअ :: वि [सरलित] सीधा किया हुआ (कुमा; गउड)।

सरली :: स्त्री [दे] चीरिका, क्षुद्र कीट-विशेष, झींगुर (दे ८, २)।

सरलीआ :: स्त्री [दे] १ जन्तु-विशेष, साही, जिसके शरीर में काँटे होते हैं। २ एक जाति का कीड़ा (दे ८, १५)

सरव :: पुं [शरप] भुजपरिसर्पं की एक प्रकार (सूअ २, ३, २५)।

सरस :: वि [सरस] रस-युक्त, (औप; अंत; गउड)। °रण्ण पुं [°रण्य] समुद्र, सागर (से ९, ४३)।

सरसिज, सरसिय :: न [सरसिज] कमल, पद्म (हम्मीर ५१; रंभा)।

सरसिरुह :: न [सरसिरुह] कमल, पद्य (उप ७२८ टी; सम्मत्त ७६)।

सरसी :: स्त्री [सरसी] बड़ा तालाब — तड़ाग (औप; उप पृ ३८; सुपा ४८५)। °रुह न [°रुह] कमल (सम्मत्त १२०; १३९)।

सरस्सई :: स्त्री [सरस्वती] १ वाणी, भारती, भाषा (पाअ; औप) २ वाणी की अधिष्ठात्री देवी (सुर १, १५) ३ गीतरति नामक इन्द्र की एक पटरानी (ठा ४, १ — पत्र २०४; णाया २ — पत्र २५२) ४ एक राज-पत्‍नी (विपा २, २ — पत्र ११२) ५ एक जैन साध्वी जो सुप्रसिद्ध कालकाचार्यं की बहिन थी (काल)

सरह :: पुं [शरम] १ शिकारी पशु की एक जाति (सुपा ६३२) २ हरिवंश का एक राजा (पउम २२, ९८) ३ लक्ष्मण के एक पुत्र का नाम (पउम ९१, २०) ४ एक सामन्त नरेश (पउम ८, १३२) ५ एक वानर (से ४, ९) ६ छन्द-विशेष (पिंग)

सरह :: पुं [दे] १ वृक्ष-विशेष, वेतस या बेंत का पेड़ (दे ८, ४७) २ सिंह, पञ्‍चानन (दे ८, ४७; सुर १०, २२२)

सरह :: (अप) वि [श्‍लाघ्य] प्रशंसनीय (पिंग)।

सरहस :: देखो स-रहस = स-रभस।

सरहा :: स्त्री [सरघा] मधु-मक्षिका (दे २, १००)।

सरहि :: पुंस्त्री [शरधि] तूणीर, तीर रखने का भाथा — तरकस (मे ७०)।

सरा :: स्त्री [दे] माला (दे ८, २)।

सराग :: देखो स राग = स-राग।

सराडि :: स्त्री [शराटि, शराडि] पक्षी की एक जाति (गउड)।

सराव :: पुं [शराब] मिट्टी का पात्र-विशेष, सकोरा, पुरवा (दे २, ४७; सुपा २९९)।

सरासण :: देखो सर-सण = शरासन।

सराह :: वि [दे] दर्पोद्धुर, गर्वं से उद्धत (दे ८, ५)।

सराहय :: पुं [दे] सर्पं, साँप (दे ८, १२)।

सरि :: वि [सदृश्] सदृश्, सरीखा, तुल्य (भग; णाया १, १ — पत्र ३९; अंत ५; हे १, १४२; कुमा)।

सरि :: स्त्री [सरित्] नदी (से २, २६; सुपा ३५४; कुप्र ४३; भत्त १२३; महा)। °नाह पुं [°नाथ] समुद्र (धर्मंवि १०१)। देखो सरिआ।

सरिअ :: वि [स्मृत] याद किया हुआ (पउम ३०, ५४, सुपा २२१; ४६२)।

सरिअ :: देखो सरि = सदृश्; 'सोभेमाणा सरियं संपत्थिया थिरजसा देर्विदा' (औप)।

सरिअं :: न [सृतस्] अलं, पर्याप्‍त, बस; 'बहुभणिएण सरिअं' (रयण ५०)।

सरिआ :: स्त्री [सरित्] नदी (कुमा; हे १, १५; महा)। °वइ पुं [°पति] समुद्र (से ७, ४१; ९, २)।

सरिआ :: स्त्री [दे] माला, हार (पणह १, ४ — पत्र ६८; कुप्र ३; सुपा ३४३)।Z

सरिक्ख, सरिच्छ :: वि [सदृक्ष्] सदृश, समान, तुल्य (प्राकृ ८६; प्राप्र; हे १, १४२; २, १७; कुमा)।

सरित्तु :: वि [स्मर्तृ] स्मरण-कर्ता (ठा ९ — पत्र ४४४)।

सरिभरी :: स्त्री [दे] समानता, सरोखाई, गुजराती में 'सरभर'; 'तओ जाया दोणहवि सरिभरी' (महा १०)।

सरिर :: देखो सरीर (पव २०५)।

सरिवाय :: पुं [दे] आसार, वेगवाली वृष्टि (दे ८, १२)।

सरिस :: वि [सदृश] समान, सरीखा, तुल्य (हे १, १४२; भग; उव, हेका ४८)।

सरिस :: पुंन [दे] १ सह, साथ; 'का समसीसी तियसिंदयाण वडवालणस्स सरिसम्मि। उवसमियसिहोपसरो मयरहरो इधणं जस्स।' (वज्जा १५४)। "आढत्तो संगामो बलवइणा तेण सरिसोत्ति' (महा) २ तुल्यता, समानता (संक्षि ४७); "अतेउरसरिसेणं पलोइयं नरवरिंदेण" (महा)

सरिसरी :: देखो सरिभरी (महा)।

सरिसव :: पुं [सर्षप] सरसों (चंड; ओघ ४०६; सं ४४; कुमा; कम्म ४, ७४; ७५; ७७; णाया १, ५ — पत्र १०७)।

सरिसाहुल :: वि [दे] समन, सदृश (दे ८, ९)।

सरिस्सव :: देखो सरीसव (पउम २०, ९२)।

सरी :: स्त्री [दे] माला, हार (सुपा २३१)।

सरीर :: पुंन [शरीर] देह, काय, तनु (सम ६७; उवा; कुमा; जी १२); 'कइ णं भंते सरीरा पणणत्ता' (पणण १२)। °णाम, °नाम पुंन [°नामन्] कर्मं-विशेष, शरीर का कारण-भूत कर्मं (राज; सम ६७)। °बंधण न [°बन्धन] कर्मं-विशेष (सम ६७)। °संघायण न [°संघातन] नाम कर्मं का एक भेद (सम ६७)।

सरीरि :: पुं [शरीरिन्] जीव आत्मा (पउम ११२; १७)।

सरीसव, सरीसिव :: पुं [सरीसृप] १ सर्पं, साँप (खा ११; सूअ १, २, २, १४) २ सर्पं की तरह पेट से चलनेवाला प्राणी (सम ६०)

सरूय, सरूव :: देखो स-रूय = स्व -रूप।

सरूव :: देखो स-रूव = सद्-रूप, स-रूप।

सरवि :: पुं [स्वरूपिन्] जीव, प्राणी (ठा २, १ — पत्र ३८)।

सरेअव्व :: देखो सर = सृ, स्मृ।

सरेवय :: पुं [दे] १ हंस। २ घर का जल- प्रवाह, मोरी (दे ८, ४८)

सरोअ :: न [सरोज] कमल, पद्म (कुमा; अच्चु ४२; सुपा ५९; २११; कुप्र २९८)।

सरोरुह :: न [सरोरुह] ऊपर देखो (प्राप्र; कुमा; कुप्र ३०४)।

सरोवर :: न [सरोवर] बड़ा तालाव (सुपा २६०; महा)।

सलभ :: देखो सलह = शलभ (राज)।

सलली :: स्त्री [दे] सेवा (दे ८, ३)।

सलह :: सक [श्‍लाघ] प्रशंसा करना। सलहइ (हे ४, ८८)। कर्मं. सलहिज्जइ (पि १३२)। कृ. सलहिज्ज (कुमा)। देखो सलाह।

सलह :: पुं [शलभ] १ पतङ्ग (पाअ; गउड; सुपा १४२) २ एक वणिक्-पुत्र (सुपा ६१७)

सलहण :: न [श्‍लाघन] प्रशंसा, श्‍लाघा (गा ११४; पि १३२)।

सलहत्थ :: पुं [दे] कुड़छी आदि का हाथा (दे ८, ११)।

सलहिअ :: वि [श्‍लाघित] प्रशंसित (कुमा)।

सलहिज्ज :: देखो सलह = श्‍लाघ्।

सलाग :: न [शालाक्य] चिकित्सा शास्त्र — आयुर्वेद का एक अगं, जिसमें श्रवण आदि शरीर के ऊभर्ध्वं भाग के सम्बन्ध में चिकित्सा का प्रतिपादन हो वह शास्त्र (विपा १, ७ — पत्र ७५)।

सलागा, सलाया :: स्त्री [शलाका] १ सली, सलाई (सूअ १, ४, २, १०; कप्पू) २ पल्य-विशेष, एक प्रकार की नाप (जीवस १३९; कम्म ४, ७३; ७५)। °पुरिस पुं [पुरुष] २४ जिनदेव, १२ चक्रवर्त्ती, ९ वासुदेव। ९ प्रतिवासुदेव तथा ९ बलदेव ये ६३ महापुरुष (संबोध ११)

सलाह :: देखो सलह = श्लाघ्। सलाहइ (प्राकृ २८)। वकृ. सलाहमाण (गा ३४६; सम्म १५९)। कृ. सलाहाणिज्ज, सलहाणिय, सलाहणीअ (प्राकृ २८; णाया १, १६ — पुत्र २०१; सुर ७, १७१; रयण ३५; पउम ८, ७३; पि १३२)।

सलाहण :: न [श्लाघन] श्लाघा, प्रशंसा (गा ११४; उप पृ १०६)।

सलाहा :: स्त्री [श्‍लाघा] प्रशंसा (प्राप्र; हे २, १०१; षड्)।

सलाहिअ :: देखो सलहिअ (कुमा)।

सलिल :: पुंन [सलिल] पानी, जल; 'सलिला ण सदंति ण वंति वाया' (सूअ १, १२, ७; कुमा; प्रासु ३५)। °णिहि पुं [°निधि] सागर, समुद्र (से ६, ९)। °नाह पुं [°नाथ] वही (पउम ९, ६६)। °बिल न [°बिल] भूमि-निर्झर, जमोन से बहता झरना (भघ ७, ६ — पत्र ३०५)। °रासि पुं [°राशि] समुद्र (पाअ)। °वाह पुं [°वाह] मेघ (पउम ४२, ३४)। °हर पुं [°घर] वही (से ९, ९४)। °वई, °वती स्त्री [°वती] विजय-क्षेत्र-विशेष (राज; णाया १, ८ — पत्र १२१)। °वत्त न [°वर्त] वैताढ्य पर्वंत पर उत्तर दिशा-स्थित एक विद्याधर-नगर (इक)।

सलिला :: स्त्री [सलिला] महानदी, बड़ी नदी (सम १२२)।

सलिलुच्छय :: वि [सलिलोच्छय] प्लावित, डुबोया हुआ (पाअ)।

सलिस :: अक [स्वष्] सोना, शयन करना। सलिसइ (षड्)।

सलूण :: देखो स-लूण = स-लवण।

सलोग :: पुं [श्‍लोक] श्लाघा, प्रशंसा (सूअ १, १३, १२)। देखो सिलग।

सलोग :: देखो स-लोग = स-लोक।

सलोण :: देखो स-लोण = स-लयण।

सलोय :: देखो सलोग = श्लोक (सूअ १, ९, २२)।

सल्ल :: पुंन [शल्य] १ अस्त्र-विशेष, तोमर, साँग; 'तओ सल्ला पणणता' (ठा ३, ३ — पत्र १४७) २ शरीर में घुषा हुआ काँटा, तीर आदि (सूअ २, २, २; पंचा ९, १६; प्रासू १२०) ३ पापानुष्ठान, पाप- क्रिया; 'पागडियसव्वसल्लो' (उव सूअ १, १५, २४) ४ पापानुष्ठान से लगानेवाला कर्मं (सूअ १, १५, २४५ वव १) ५ पु. भरत के साथ दीक्षा लेनेवाले एक राजा का (पउम ८५, २) ६ न. छन्द-विशेष (पिंग)। °ग वि [क] शल्यवाला, शूल आदि शल्य से पीड़ित (पणह २, ५ — पत्र १५०)। °ग न [°ग] परिज्ञान, जानकारी (सूअ २, २, ५७)

सल्ल :: पुंस्त्री [दे] हाथ से चलनेवाले सर्पं-जातीय जन्तु की एक जाति (सुअ २, ३, २५)।

सल्लइय :: वि [शल्यकित] शल्य-युक्त, जिसको शल्य पैदा हुआ हो वह (णाया १, ७ — पत्र ११६)।

सल्लई :: स्त्री [सल्लकी] वृक्ष-विशेष (णाया १, ७ टी — पत्र ११९; उप १०३१ टी; कुमा; धर्मंवि १३०; सुपा २६१)।

सल्लग :: देखो सल्ल-ग = शल्य-क, शल्य-ग।

सल्लग :: देखो स-ल्लग = सत्-लग्।

सल्लहत्त :: पुंन [शाल्यहत्य] आयुर्वेद का एक अंग, जिसमें शल्य निकालने वा प्रतिपादन किया गया हो वह शास्त्र (विपा १, ७ — ७५)।

सल्ला :: स्त्री [शल्या] एक महौषधि (ती ५)।

सल्लिअ :: वि [शाल्यित] शल्य-पीडित (सुर १२, १५२; सुपा २२७; महा; भवि)।

सल्लिह :: देखो संलिह = सं + लिख्। सल्लिहदि (आरा ३५)।

सल्लुद्धरण :: न [शल्योद्धरण] १ शल्य को बाहर निकलाना (विपा १, ८ — पत्र ८६) २ आलोचना, प्रायश्चित्त के लिए गुरु के पास दूषण-निवेदन (ओघ ७९१)

सल्लेहणा :: देख संलेहणा (आरा ३५; भवि)।

सल्लेहित :: वि [संलेखित] क्षीण, 'सल्लेहिया कसाया करंति मुणिणो ण चित्त-संखोहं' (आरा ३९)।

सब :: सक [शप्] १ शाप देना, आक्रोश करना, गाली देना। २ आह्वान करना। सवइ (गा ३२४; ४००); सविमी, सवसु (कुमा)। कर्मं. सप्पए (विसे २२२७)। वकृ. सवमाण (उव)। कवकृ. सप्पमाण (पणह १, ३ — पत्र ५४)

सव :: सक [सू] उत्पन्न करना, जन्म देना। सवइ (हे ४, २३३; षड्)।

सव :: देखो सो = सु। सुवइ, सवए (षड्)।

सव :: सक [स्रु] झरना, टपकना, चूना। सवइ (विसे १३६८)।

सव :: पुं [श्रवस्] १ कान। २ ख्याति; 'सवोमूओ' (प्राप्र)

सव :: न [शव] शव, मुरदा, मृत शरीर (पाअ; स ७६३; सण)।

सवंती :: स्त्री [स्रवन्ती] नदी (उप १०३१ टी)।

सवक्क :: देखो सवत्ती (सुपा ३३७; ६०१; सूक्त ४६; महा; कुप्र १७०)।

सवक्ख :: देखो स-वक्ख = स-पक्ष।

सवग्गीय :: वि [सवर्गीय] सवर्ग-संबन्धी (हास्य १३०)।

सवब :: देखो स-पच = श्व-पच।

सवज्जा :: देखो सपज्जा (चेइय २०४; कप्पू)।

सवडंमुह, सवडहुत्त :: वि [दे] अभिमुख, संमुख; 'सहसा सवडंमुहो चलिओ' (महा; दे ८, २१; पउम ७२, ३२; भवि), उप्पइओ नहयलं विमाणत्थो अह ताण सवडहुत्तो रणरसतणहालुओ सहसा' (पउम ८, ४७); 'वच्चइ य दाहिणदिसं लंकानयरी- सवडहुत्तो' (पउम ८, १३४)।

सवण :: देखो समण= श्रमण (आरा ३९, भवि)।

सवण :: पुं [श्रवण] १ कर्णं, कान (पाअ; सुपा १२८) २ नक्षत्र-विशेष (सम ८, १५; सुज्ज १०, ५) ३ न. आकर्णंन, सुनना (भग; सुर १, २४६)। देखो सवन।

सवण :: न [शपन] आह्वान (विसे २२२७)।

सवण :: देखो स-वण = स-व्रण।

सवण :: न [सवण] कर्मों में प्रेरणा (राज)।

सवणता, सवणया :: स्त्री [श्रवणता] १ आकर्णंन, श्रवण, सुनना (ठा २, १ — पत्र ४६; ६ — पत्र ३५५; णाया १, १ — पत्र २९; भग; औप) २ अवग्रह-ज्ञान (णंदि १७४)

सवण्ण :: वि [सवर्ण] समान वर्णवाला (पउम २, ३१)।

सवण्य :: न [सावर्ण्य] समान-वर्णता (प्रयौ २०)।

सवत्त :: पुं [सपत्‍न] १ दुश्‍मन, शत्रु, रिपु; (से ३, ५७; उप १०३१ टी; गउड) २ वि. विरुद्ध (ओघ २७६) ३ समान, तुल्य; 'सयवत्तसवत्तनयणरमणिजा' (कुप्र २); 'सयमेव ससिसवत्तं छत्तं उवरि ठियं तस्स' (कुप्र ११९)

सवत्तिणी :: देखो सवत्ती; 'सवि (? व)त्तिणी' (पिंड ५१०)।

सवत्तिया :: स्त्री [सपत्‍निका] नीचे देखो (उवा)।

सवत्ती :: स्त्री [सपत्‍नी] पति की दूसरी स्त्री (उवा; काप्र ८७१; स्वप्‍न ५७; ठा ४, ३ — पत्र २४२; हेका ४५)।

सवन :: (मा) पुं [श्रवण] एक ऋषि का नाम (मोह १०९)। देखो सवण = श्रवण।

सवन्न :: देखो सवण्ण (हम्मीर १७)।

सवय :: देखो स-वय = स-वयस, स-व्रत।

सवर :: देखो सबर (पउम ९८, ६५; इक, कप्पू; पि २५०)।

सवरिआ :: देखो सपज्जा (नाट — वेणी २६)।

सवल :: देखो सबल (दे २, ५५; कुमा; हे १, १३७; रंभा)।

सबलिआ :: स्त्री [दे] भरोच का एक प्राचीन जैन मन्दिर (मुणि १०८९९)।

सवह :: पुं [शपथ] १ आक्रोश-वचन, गाली (णाया १, १ — पत्र २९; देवेन्द्र ३५) २ सोगन्ध, सोंह (गा ३३३; महा) ३ दिव्य, दोषोरोप की शुद्धि के लिए किया जाता अग्‍नि-प्रवेश आदि (पउम १०१, ७)

सवाय :: पुं [दे] श्येन पक्षी (दे ८, ७)।

सवाग, सवाय :: देखो स-वाग = श्व-पाक।

सवाय :: देखो स-वाय = स-पाद, स-वाग, सद्- वाच्।

सवार :: न [दे] सुबह, प्रभात, गुजराती में 'सवार' (बृह १)।

सवास :: पुं [दे] ब्राह्मण (दे ८, ५)।

सवास :: देखो स-वास = स-वास।

सविअ :: वि [शप्त] शाप-ग्रस्त, आक्रुष्ट (दे १, १३; पाअ)।

सविउ :: पुं [सवितृ] १ सूर्यं, रवि (ओघ ६९७) २ हस्त-नक्षत्र का अधिपति देव (सुज्ज १०, १२) ३ हस्त नक्षत्र (अणु)

सविक्ख :: वि [सापेक्ष] अपेक्षा रखनेवाला (सम्मत्त ७६)।

सविज्ज :: देखो व-विज्ज = स-विद्य।

सविट्ठा :: स्त्री [श्रविष्ठा] नक्षत्र-विशेष, धनिष्ठआ नक्षत्र (राज)।

सविण :: देखो सुमिण = स्वप्‍न (पव ९८)।

सवितु :: देखो सविउ (ठा २, ३ — पत्र ७७)।

सविस :: न [दे] सुरा, दारू (दे ८, ४)।

सविह :: न [सविध] पास, निकट (पाअ)।

सव्व :: वि [सव्य] वाम, बाँया (औप; उप पृ १३०)।

सव्व :: वि [शव्य] श्रवण-योग्य, 'सव्वक्खरसं- निवाई' (भग १, १ — पत्र ११)।

सव्व :: स [सर्व] १ सब, सकल, समस्त। २ संपूर्ण (हे ३, ५८; ५९) °आ अ [°तस] १ सब से। २ सब ओर से (हे १, ३७; कुमा; आचा) °ओभद्द वि [°तोभद्र] १ सब प्रकार से सुखी। २ न. सब प्रकार से सुख (पंचू १) ३ चक्र-विशेष, शुभाशुभ के ज्ञान का साधन-भूत एक चक्र (ति ६) ४ महाशुक्र देवलोक में स्थित एक विमान (सम ३२) ५ पाँचवाँ ग्रैवेयक विमान (पव १९४) ६ एक नगर का नाम (विपा १, ५ — पत्र ६१) ७ अभ्युतेन्द्र का एक पारियानिक विमान (ठा १० — पत्र ५१८; औप) ८ दृष्टिवाद का एक सूत्र (सम १२८) ९ पुं, यक्ष की एक जाति (राज) १० देव-विमान-विशेष (देवेन्द्र १३६; १४१) °ओभद्दा स्त्री [°तोभद्रा] प्रतिमा-विशेष, एक व्रत (औप; ठा २, ३ — पत्र ६४; अंत २९)। °कामसमिद्ध पुं [°कामसमृद्ध] पक्ष का छठवाँ दिवस, षष्ठी तिथि (सुज्ज १०, १४)। °कामा स्त्री [°कामा] विद्या- विशेष, जिसको साधना से सर्व इच्छाएँ पूर्णं होती हैं (पउम ७, १०७)। °गय वि [°गत] व्यापक (अच्चु १०)। °गा स्त्री [°गा] उत्तर रुचक पर्वत पर रहनेवाली एक दिक्कुमारी देवी (टा ८ — पत्र ४३७)। °गुत्त पुं [°गुप्त] एक जैन मुनि (पउम २०, १९)। °ज्ज वि [°ज्ञ] १ सर्व पदार्थों का जानकार। २ पुं. जिन भगवान्। ३ बुद्धदेव। ४ महादेव। ५ परमेश्वर (हे २, ८३; षड्; प्राप्र) °ट्ठ पुं [°र्थ] १ अहो- रात्र का उनतीसवाँ मुहुर्त्तं (सुज्ज १०, १३) २ पुंन. सहस्रार देवलोक का एक विमान (सम १०५) ३ अनुत्तर देवलोक का सर्पार्यसिद्ध- नामक एक विमान (पव १९०) ४ पु. सब अर्थं (आचा १, ८, ८, २५) °ट्ठसिद्ध पुंन [°र्थसिद्ध] १ अहोरात्र का उनतीसवाँ मुहूर्त्तं (सम ५१) २ एक सर्वं-श्रेष्ठ देव-विमान, अनुत्तर देवलोक का पाँचवाँ विमान (सम २; भग; अंत; औप) ३ पुं. ऐरवत वर्षं में उत्पन्न होनेवाले छठवें जिनदेव (पव ७) °ट्ठसिद्धा स्त्री [°र्थसिद्धा] भग- वान् धर्मंनाथजी को दीक्षा-शिविका (विचारॉ १२९)। °ट्ठसिद्धि स्त्री [°र्थसिद्धा] एक देव-विमान (देवेन्द्र १३७)। °ण्णु देखो °ज्ज (हे १, ५६; षड्; औप)। °त्त देखो °त्थ (समु १५०)। °त्तो देखो °ओ (पाअ)। °त्थ अ [°त्र] सब स्थान में, सब में (गउड; प्रासू ३९; ९८)। °दास, °दरिसि वि [°दर्शिन्] १ सब वस्तुओं को देखनेवाल। २ पुं. जिन भगवान्, अर्हंन (राज; भग; सम १; पडि) °देव पुं [°देव] १ एक प्रसिद्ध जैन आचार्यं (सार्धं ८०) २ राजा कुमारपाल के समय का एक सेठ (कुप्र १४३) °द्दंसि देखो °दंसि (चेइय ३५१)। °द्धा स्त्री [°द्धा] सब काल, अतीत आदि सर्वं समय (भग)। °धत्ता स्त्री [°धत्ता] व्यापक, सर्बं-ग्राहक (विसे ३४९१)। °न्‍नु देखो °ज्ज (सम १; प्रासू १७०; महा)। °प्पग वि [°त्मक] १ व्यापक। २ पुं. लोभ (सूअ १, १, २, १२) °प्पभा स्त्री [°प्रभा] उत्तर रुचक पर्वत पर रहनेवाली एक दिक्कुमारी देवी (राज)। °भक्ख वि [°भक्ष] सबको खानेवाला, सर्व-भोजी; 'अग्गिमिव सव्वभक्खे' (णाया १, २ — पत्र ७९)। °भद्दा स्त्री [°भद्रा] प्रतिज्ञा-विशेष, व्रत-विशेष (पव २७१)। °भावविउ पुं [°भावाविद्] आगामी काल में भारत वर्षं में होनेवाले बाहरवें जिन-देव (सम १५३)। °य वि [°द] सह देनेवाला (पणह २, १ — पत्र ९९)। °या अ [°दा] हमेशा; सदा (रंभा)। °रयण पुं [°रत्‍न] १ एक महा-निधि (ठा ९ — पत्र ४४९) २ पुंन. पर्वंत-विशेष का एक शिखर (इक) °रयणा स्त्री [°रत्‍ना] ईशानेन्द्र की वसुमित्रा नामक इन्द्राणी की एक राजधानी (इक)। °रयणामय वि [°रत्‍नमय] १ सब रत्‍नों का बना हुआ (पि ७०; जीव ३, ४) २ चक्रवर्त्ती का एक निधि (उव ९८६ टी) °विग्गहिअ वि [°विग्रहिक] सर्वं-ृसंक्षिप्‍त, सबसे छोटा (भग १३, ४ — पत्र ६१६)। °विरइ स्त्री [°विरति] पाप-कर्मं से सर्वंथा निवृत्ति, पूर्णं संयम (विसे २६८४)। °संगय वि [°सङ्गत] मृत्यु (पउम पत्र° ३२१, पर्वं ११०, गा° ४४)। °संजम पुं [°संयम] पूर्ण संयम (राय)। °सह वि [°सह] सब सहन करनेवाला, पूर्णं सहिष्णु (पउम १४, ७९)। °सिद्धा स्त्री [°सिद्धा] पक्ष की चौथी, नववीं और चौदहवीं रात्रि-तिथि (सुज्ज १०, १५)। °सो अ [°शस्] सब ओर से, सब प्रकार से (उत्त १, ४; आचा)। °स्स न [°स्व] सकल द्रव्य, सब धन (स ४५९; अभि ४०; कप्पू)। °हा अ [°या] सब प्रकार से, सब तरह से (गा ८९७; महा; प्रासू ३; १८१)। °णंद पुं [°नन्द] ऐरवत क्षेत्र के एक भावी जिन-देव (सम १५४)। °णुभूइ पुं [°नुभूति] १ भारत वर्षं में होनेवाले पाँचवें जिन भगवान् (सम १५३) २ भग- वान् महावीर का एक शिष्य (भग १५ — पत्र ६७८) °रुहा स्त्री [°रुहा] विद्या-विशेष (पउम ७, १४४)। °व वि [°प] संपूर्णं (भग)। °सण पुं [°शन] अग्‍नि आग (हे ४, ३९५)।

सव्वंकस :: वि [सर्वकष] १ सर्वातिशायी, सर्वं से विशिष्ट (कप्पू) २ न. पाअ (आव)

सव्वंग :: वि [सर्वाङ्गं] १ संपूर्णं (ठा ४, २ — पत्र २०८) सर्वं-शरीर-व्यापी (राज)। °सुंदर वि [°सुन्दर] १ सर्वं अगों में श्रेष्ठ। २ पुंन. तप-विशेष (राज; पव २७१)

सव्वगिअ, सव्वंगीण :: वि [सर्वाङ्गींण] सर्व अवयवों में व्याप्‍त (हे २, १५१; कुमा; से १५, ५४); 'सव्वंगीणाभरणं पत्तेयं तेण ताण कयं' (कुप्र २३५; धर्मंवि १४९)।

सव्वण :: देखो स-व्वण =सःव्रण।

सव्वराइअ :: वि [सार्वरात्रिक] संपूर्णं रात्रि से सम्बन्ध रखनेवाला, सारी रात का (सूअ २, २, ५५; कप्प)।

सव्वरी :: स्त्री [शर्वरी] रात्रि, पात (पाअ; गा ६५३; सुपा ४९१)।

सव्वल :: पुं [दे. शर्वल] कुन्त, बर्छा (राज; काल)। देखो सद्धल।

सव्वला :: स्त्री [दे. शवला] कुशी, लोहे का एक हथियार (दे ८, ६)।

सव्ववेक्ख :: देखो देखो स-व्ववेक्ख = स-व्यपेक्ष।

सव्वाव :: देखो सव्व-व = सर्वाप।

सव्वाव :: देखो स-व्वाव = स-व्याप।

सव्वावंति :: अ [दे] सर्वं, सब, संपूर्णं, 'एया- वंति सव्वावंति लोगंसि' (आचा), 'सव्वावंति च णं तीसे णं पुक्खरिणीए' (सूअ २, १, ५), 'सव्वावंति च णं लोगंसि' (सूअ २, ३, १), 'सव्वं ति सव्वावंति फुसमाणकालसमयंसि जावतियं खेत्तं फुसइ' (भग १, ६ — पत्र ७७)।

सव्विडि्ढ :: स्त्री [सर्वर्द्धि] संपूर्णं वैभव (णाया १, ८ — पत्र १३१)।

सव्विवर :: देखो स-व्विवर = स-विवर।

सव्वोसहि :: स्त्री [सर्वौषधि] १ लब्धि-विशेष, जिसके प्रभाव से शरीर की कफ आदि सब चीज औषधि का काम करती है (पणह २, १ — पत्र ९९) २ वि. लब्धि-विशेष को प्राप्‍त (राज)

सस :: अक [सस्] श्‍वास लेना, साँसना। ससइ (रयण ६)। वकृ. ससंत (णाया १, १ — पत्र ६३ गका ५४६; सुर १२, १६४; नाट — मृच्छ २२०)।

सस :: पुं [शश] खरगोश (णाया १, १ — पत्र २४; ६५)। °इंध पुं [°चिह्‍न] चन्द्रमा (गउड)। °हर पुं [°धर] चन्द्रमा (णाया १, ११, सुर १६, ९०; हे ३, ८५, कुमा; वज्जा १६; रंभा)।

संसक :: पुं [सशाङ्कं] १ चन्द्रमा, चाँद (कप्प; सुर १६, ५५; सुपा २०; कप्पू; रंभा) २ नृप-विशेष (पउम ५, ४३; ८५, २)। °धम्म पुं [°धर्म] विद्याधर-वंश का एक राजा (पउम ५, ४४)

ससंक :: देखो स-संक = स-शङ्क।

ससंकिअ :: देखो स-संकिअ = स-शङ्कित।

ससंग :: देखो ससंक = शशाङ्क।

ससंवेयण :: देखो स-संवेयण = स्व-संवेदन।

ससक्ख :: वि [ससाक्ष्य] साक्षीवाला (राय १४०)।

ससग :: पुं [शशक] देखो सस = शश (उव)।

ससण :: पुं [श्वसन] १ शुण्डा-दण्ड, हाथी की सूँड (तंदु २०; औप) २ वायु, पवन। ३ न. निश्वास (राज)

ससत्ता :: देखो स-सत्ता = स-सत्त्वा।

ससरक्ख :: वि [सरजस्क, सरक्ष्] १ रजो- युक्त, घुलावाला (आचा २, १, ६, ३; २, २, ३, ३३; आव ४) २ पुं. बौद्ध मत का साधु (सुख १८, ४३; महा)

ससराइअ :: वि [दे] निष्पिष्ट, पिसा हुआ (दे ८, २)।

ससा :: स्त्री [स्वसृ] बहन, भगिनी (पिंड ३१७; हे ३, ३५; कुमा)।

ससि :: पुं [शशिन्] १ चन्द्रमा, चाँद (सुज्ज २० — पत्र २९१; उव; कप्प; कुमा; पि ४०५) २ एख विद्यार्थी का नाम (पउम ५, ९४) ३ चन्द्र नाड़ी, वाम नाड़ी (सिरि ३६१) ४ एक देव-विमान (देवेन्द्र १४३) ५ छन्द-विशेष (पिंग) ६ एक राजा का नाम (उव) ७ दक्षिण रुचक पर्वत का एक कूट (ठा ८ — पत्र ४३६) °अंत पुं [°कान्त] चन्द्रकान्त मणि (अच्चु ५८)। °अला स्त्री [°कला] चन्द्र की कला, सोलहवाँ भाग (गउड)। °कंत देखो °अंत (कुमा; सण)। °पभ, °पह पुं [°प्रभ] १ आठवें जिनदेव, भगवान् चन्द्रप्रभा। २ इक्ष्वाकु वंश का एक राजा (पउम ५, ५)। °प्पहा स्त्री [°प्रभा] एक रानी, कर्पूरमंजरी की माता (पउम ९, ९१; कप्पू)। °मणि पुंस्त्री [°मणि] चन्द्रकान्त मणि (से ९, ६७)। °लेहा स्त्री [°लेखा] चन्द्र की कला (सुपा ६०३)। °वक्कय न [°वक्रक] आभूषण-विशेष (औप)। °वेग पुं [वेग] एक राज-कुमार (उप १०३१ टी)। °सेहर पुं [°शेखर] महादेव, शिव (सुपा ३३)

ससिअ :: न [श्वसित] श्वास, साँस (से १२, ३२)।

ससिण :: देखो ससि (कप्पू)।

सासणिद्ध :: वि [संस्‍निग्ध, सस्‍निग्ध] स्‍नेह- युक्त (आचा २, १, ७, ११; कप्प)।

ससित्थ :: न [ससिक्थ] आटा आदि से लिप्‍त हाथ या बरतन आदि का धोवन (पडि)।

ससिरिय, ससिरीय :: देखो स-सिरिय = स-श्रीक।

ससिह :: देखो स-सिह = स-स्पृह, स-शिख।

ससुर :: पुं [श्वसुर] ससुर, पति और पत्‍नी का पिता (पउम १८, ८; हेका ३२; कुमा; सुपा ३७७)।

ससूग :: देखो स-सूग = स-शूक।

ससेस :: देखो स-सेस = स-शेष।

ससोग, ससोगिल्ल :: देखो स-सोग = स-शोक।

सस्स :: न [शस्य] १ क्षेत्र-गत (गा ६८९; महा; सुपा ३२) २ वि. प्रशंसनीय, श्‍लाघ्य (सुपा ३२)। देखो सास = शस्य।

सस्सवण :: वि [सश्रवण] सकर्णं, निपुण (सुपा ६४५)।

सस्सिय :: पुं [शस्यिक] कृषीवल, कृषक (राज)।

सस्सिरिअ :: देखो स-स्सिरिअ = स-श्रीक।

सस्सिरिली :: देखो सिस्सीरिली (उत्त ३६, ट९८)।

सस्सिरीअ :: देखो स-स्सिररीअ = स-श्रीक।

सस्सू :: स्त्री [श्वस्रु] सास, पति या पत्‍नी की माता (प्राकृ ३८; सिरि ३५५)।

सह :: अक [राज्] शोभना, विराजना। सहइ (हे ४, १००; पाअ; कुमा; सुपा ४)।

सह :: अक [सह्] सहन करना। सहइ, सहंति (उव; महा; कुमा), सहइरे, सहेइरे (पि ४५८) वकृ. सहंत, सहमाण (महा; षड्)। संकृ. सहिअ (महा)। हेकृ. सहिउं, सोढुं (महा; धात्वा १५५; १५७)। कृ. सहिअव्व, सोढव्व (धात्वा १५५; सुर १४, ८०; गा १८; कप्पू; उप ७२८ टी; धात्वा १५७)।

सह :: सक [आ + ज्ञा] हुकुम करना, आदेश करना, फरमाना। सहइ (धात्वा १५५)।

सह :: वि [दे] १ योग्य, लायक (दे ८, १) २ सहाय, मदद-कर्ता (सूअ १, ३, २, ६)

सह :: वि [स्वक] देखो स = स्व (आचा)। °देस पुं [°देश] स्वदेश, स्वकीय देश (पिंग)। °संबुद्ध वि [°संबुद्ध] १ निज से ही ज्ञान को प्राप्‍त। २ पुं. जिन-देव (औप)

सह :: वि [सह] १ समर्थं, शक्तिमान् (पाअ; से ५, २३) २ सहिष्णु, सहन-कर्ता (आचा) ३ पुं. युगलिक मनुष्य की एक जाति (इक; राज) ४ अ. साथ, संग (स्वप्‍न ३४; आचा; जी ४३; प्रासू ३८) ५ युगपत्, एक साथ (राज) °कार पुं [°कार] १ आम का पेड़ (कप्प) २ साथ मिलकर काम करना। ३ मदद, साहाय्य (हे १, १७७) °कारि वि [°कारिन्] १ साहाय्य-कर्ता (पंता ११, १२) २ कारण-विशेष (विसे ११६८; श्रावक २०९) °गत, °गय वि [°गत] संयुक्त (पणण, २२ — पत्र ६३७; उव)। °गारि गारिअ देखो °कारि (धर्मंसं ३०९; उप ४७२; उवर ७६)। °चर देखो °यर (कुमा)। °चरण न [°चरण] सहचर, साथ रहना, मेलाप; 'रयणविहाणेहिं भवउ सहचरण' (श्रु ८४)। °ज पुं [°ज] १ स्वभाव (कुमा; पिंग) २ वि. स्वाभाविक (चेइय ४७१) °जाय वि [°जात] एक साथ उत्पन्न (णाया १, ५ — पत्र १०७)। °देव पुं [°देव] १ एक पाण्डव, माद्री-पुत्र (धर्मंवि ८१) २ राजगृह नगर का एक राजा (उप ६४८ टी) °देवा स्त्री [°देवा] ओषधि-विशेष (धर्मंवि ८१)। °देवी स्त्री [°देवी] १ चतुर्थ चक्रवर्त्ती की माता (सम १५२; महा) २ एक महौषधि (ती ५) °धम्मआरिणी स्त्री [°धर्मचारिणी] पत्‍नी, भार्या (प्रति २२)। °पंसुकीलिअ वि [°पांशुक्रीडित] बाल-मित्र (सुपा २५४; णाया १, ५ — पत्र ०७)। °य दखो °ज (चेइय ४४९; राज)। °यर वि [°चर] १ सहाय, साहाय्य-कर्ता। २ वयस्य, दोस्त। ३ अनुचर (पाअ; कुप्र २) अच्चु ९०; नाट-शकु ६१)। °यरी स्त्री [°चरी] पत्‍नी, भार्या (कुप्र १५१; से ८, ६६)। °यार देखो °कार (पाअ; हे १, १७७)। °राग वि [°राग राग-सहित] (पउम १४, ३३)। °र देखो °कार (पउम ५३, ७९)।

सह° :: देख सहा = सभा (कुमा)।

सहउत्विया :: स्त्री [दे] दूती (दे ८, ९)।

सहगुह :: पुं [दे] धूक, उल्लु, पक्षि-विशेष (दे ८, १६)।

सहाडामुह :: न [शकटामुख] वैताढ्य की उत्तर श्रेणी में स्थित एक विद्याधर-नगर (इक)।

सहण :: अ [दे] सह, साथ में (सूत्र° चूर्णि° गा° २५७)।

सहण :: न [सहन] १ तितिक्षा, मर्षंण। २ वि. सहिष्णु, सहन करनेवाला (सं २९)

सहर :: पुंस्त्री [शफर] मत्स्य, मछली (पाअ; गउड)। स्त्री. °री (हे १, २३६; गउड)।

सहर :: वि [दे] साहाय्य-कर्ता, सहाय; 'न तस्स माया न पिया न भाया, कालम्मि तम्मि (? म्मी) सहरा भवंति' (वै ४३)।

सहल :: वि [सफल] फल-युक्त, सार्थक (उप १०३१ टी; हे १, २३६; कुमा; स्वप्‍न १९)।

सहस :: देखो सहस्स (श्रा ४४; पि ९२, ९६)। °किरण पुं [°किरण] सूर्य, रवि (सम्मत्त ७६)। °क्ख पुं [°क्ष] १ इन्द्र (सुपा १३०) २ रावण का एक योद्धा (पउम ५६, २९) ३ छन्द-विशेष (पिंग)

सहसक्कार :: पुं [सहसाकार] १ विचार किए विना करना (आचा) २ आकस्मिक क्रिया, अकस्मात् करना (भग २५, ७ — पत्र ९१९) ३ वि. विचार किए विना करनेवाला (आचा)

सहसत्ति :: /?/अ. अकस्मात्, शीघ्र जल्दी, तुरन्त (पाअ; प्राकृ ८१)।

सहसा :: अ [सहसा] अकस्मात्, शीघ्र, जल्दी (पाअ; प्रासू १५१; भवि)। °वित्तासिय न [°वित्रासित] अकस्मात् स्त्री के नेत्र-स्थ- गन आदि क्रीड़ा (उत्त १६, ६)।

सहस्स :: पुंन [सहस्र] १ संख्या-विशेष, दस सौ, १०००। २ वि. हजार की संख्यावाला (जी २७; ठा ३, १ टी — पत्र ११९; प्रासू ४; कुमा) ३ प्रचुर, बहुत (कप्प; आवम, हे २, १९८) °किरण पुं [°किरण] १ सूर्यं, रवि (सुपा ३७) २ एक राजा (पउम १०, ३४) °क्ख पुं [°क्ष] इन्द्र, देवाधिपति (कप्प; उत्त ११, २३)। °णयण, °नयण पुं [°नयन] १ इन्द्र (उव; हम्मीर ५०; महा) २ एक विद्याधर राज-कुमार (पउम ५, ६७) °पत्त अ [°पत्र] हजार दत्नवाला/?/ कमल (कप्प)। °पाग पुंन [°पाक] हजार ओषधि से बनता एक प्रकार का तैल (णाया १, १ — पत्र १९; ठा ३, १ — पत्र ११७)। °रस्सि पुं [°रश्‍मि] सूर्यं, रवि (णाया १, १ — पत्र १७; भग; रयण ८३)। °लोयण पुं [°लोचन] इन्द्र (स ६२२)। °सिर वि [°शिरस] १ प्रभूत मस्तक- बाला। २ पुं. विष्णु (हे २, १९८)। °वत्त देखो °पत्त (से ६, ३८; सुपा ४९)। °सो अ [°शस्] हजार-हजार, अनेक हजार (श्रा १२)। °हा अ [°धा] सहस्र प्रकार से (सुपा ५३)। °हुत्तं अ [°कृत्वस्] हजार बार (प्राप्र; हे २, १५८)। देखो सहस, सहास।

सहस्संववण :: न [सहस्राम्रवण] एक उद्यान, आम के प्रभूत पेडोंवाला वन (णाया १, ८ — पत्र १५२; अंत; उवा)।

सहस्सार :: पुं [सहस्रार] १ आठवाँ देवलोक (सं ३५; भग; अंत) २ आठवें देवलोक का इन्द्र (ठा २, ३ — पत्र ८५) ३ एक देव-विमान (देवेन्द्र १३५)। °वडिंसय पुंन [°वतंसक] एक देव-विमान (सम ३५)

सहा :: स्त्री [सभा] समिति, परिषत् (कुमा; स १२६; ५१६; सुपा ३८४)। °सय वि [°सद] सभ्य, सदस्य (पाअ; स ३८५)।

सहा :: देखो साहा = शाखा (गा २३०)।

सहाअ :: देखो स-हाअ = स्व-भाव।

सहाअ :: पुं [सहाय] साहाय्य-कर्ता (णाया १, २ — पत्र ८८; पाअ; से ३, ३; स्वप्‍न १०६; महा; भग)।

सहाइ :: वि [साहाय्यिन्] ऊपर देखो (सिरि ९७; सुपा ५९३)।

सहाइया :: स्त्री [सहायिका] मदद करनेवाली (उवा)।

सहार :: देखो सहा-र = सह-कार।

सद्दाव :: देखो स-हाव = स्व-भाव।

सहास :: देखो सहस्स (भवि)। °हुत्तो अ [°कृत्वस्] हजार बार (षड्)।

सहासय :: देखो सहा-सव = सभा-सद।

सहि :: वि [सखि] मित्र, दोस्त (पाअ; उर २, ६)। देखो सही°।

सहि° :: देखो सही (कुमा)।

सहिअ :: वि [सोढ] सहन किया हुआ (से १, ५५; धात्वा १५५)।

सहिअ :: वि [सहित] १ युक्त, समन्वित (उव; कुमा; सुपा ६१) २ हित-युक्त (सूअ १, २, २, २३) ३ पुं. ज्योतिष्क ग्रह-विशेष (ठा २, ३ — पत्र ७७)

सहिअ :: पुं [सभिक] द्युत-कारक, जुआ खेलनेवाला (दे ६, ४२; पाअ; सुपा ४८८)।

सहिअ :: देखो स-हिअ = स्व-हित।

सहिअ :: देखो सह = सह्।

सहिअ, सहिअव :: वि [सहृदय] १ सुन्दर चित्तवाला। २ परिपक्‍व बुद्धिवाला (हे १, २३९; दे १, १; काप्र ५२१)

सहिअ :: देखो सही (महा)।

सहिज्ज :: /?/वि देखो सहाअ = सहाय; 'हुंति सहिज्जा विहुरे कुवियावि सहीयरा चेव' (सुपा ४२७; महा; कुप्र १२)। स्त्री. °ज्जी (सुपा १६ टि)।

सहिण :: देखो सण्ह + श्‍लक्ष्ण (आचा २, ५, १, ७; स २६४; ३२९; ३३३)।

सहिण्हु, सहिर :: वि [सहिष्णु] सहन करेन री आदतवाला (राज; पि ५९६)। स्त्री. °री (गा ४७; पि ५९६)।

सही :: स्त्री [सखी] सहेली, संगिनी (स्वप्‍न १४१; कुमा)।

सही° :: देखो सहि। °वाय पुं [°वाद] मित्रता- सूचक वचन (सूअ १, ९, २७)।

सहीण :: वि [स्वाधीन] स्वायत्त, स्व-वश (पउम २७, १७; उव; दस ८, ६)।

सहु :: वि [सह] समर्थं, शक्तिमान् (ओघ; ७७; ओघभा ९८; उवर १४२; वव ४)।

सहु :: (अप) देखो संघ (संक्षि ३९)।

सहुं :: (अप) अ [सह] साथ, संग (हे ४, ४१९; कुमा)।

सहेज्ज :: देखो सहिज्ज (महा)।

सहेर :: (अप्) पुं [शेखर] षट्‍पद छन्द का एक भेद (पिंग)।

सहेल :: वि [सहेल] हेला-युक्त, अनायास होनेवाला, सरल, गुजराती में 'सहेलुं' (प्रवि ११)।

सहोअर :: वि [सहोदर] १ तुल्य, सदृश (से ६, ४) २ पुं. सगा भाई (पाअ; काल)

सहोअरी :: स्त्री [सहोदरी] सगी बहिन (राज)।

सहोढ :: वि [सहोड] चोरी के माल से युक्त, स-मोष (पिंड ३८०; णाया १, २ — पत्र ८६)।

सहोदर :: देखो सहोअर (सुपा २४०; महा)।

सहोसिअ :: वि [सहोषित] एक-स्थान-वासी (दे १, १४६)।

साअड्‍ढ :: सक [कृष्] १ चाष करना, कृषि करना। २ खींचना। साअड्ढइ (हे ४, १८७; षड्)

साअडि्ढअ :: वि [कृष्ट] खींचा हुआ (कुमा ७, ३१)।

साअद :: (शौ) देखो सागद (अभि १०२; नाट — मृच्छ ४; पि १८५)।

साइ :: वि [शायिन्] सोनेवाला, शयन-कर्ता (सूअ १, ४, १, २८; आचा; दस ४, २६)।

साइ :: वि [सादि] १ आदि-सहित, उत्पत्ति- युक्त (सम्म ६१) २ न. संस्थान-विशेष, शरीर की आकृति-विशेष जिस शरीर में नाभि से नीचे के अवयव पूर्ण और नाभि के ऊपर के अवयव हीन ही ऐसी शरीराकृति (सम १४९; अणु) ३ कर्मं.-विशेष, सादि- संस्थान की प्राप्‍ति का कारण-भूत कर्मं (कम्म १, ४०)

साइ :: न [साचि] १ सेमल का पेड़, शाल्मली वृक्ष। २ संस्थान-विशेष, देखो साइ = सादि का दूसरा और तिसरा अर्थं (जीव १ टी — पत्र ४३)

साइ :: पुंस्त्री [स्वाति] १ नक्षत्र-विशेष (सम २९; कप्प); 'सा साई तं च जलं पत्तविसेसेण अंतरं गरुयं' (प्रासू ३९) २ पुं. भारतवर्षं में होनेवाले एक जिनदेव का पूर्वजन्मीय नाम (सम १५४) ३ एक जैन मुनि (णंदि ४९) ४ हैमवत-वर्षं के शब्दापाती पर्वंत का अधिष्ठायक देव (ठा २, ३ — -पत्र ६९; ८०)

साइ :: पुं [सादिन्] घुड़सवरा (उप ७२८ टी)।

साइ :: पुंस्त्री [साति] १ अच्छी चीज की साथ खराब चीज का मिश्रण, उत्तम वस्तु के साथ हीन वस्तु की मिलावट (सूअ २, २, ६५) २ अविश्रम्म, अविश्‍वास। ३ असत्य वचन, झूठ (पणह १, २ — पत्र २६) ३ सातिशय द्रव्य अपेक्षा-कृत अच्छी चीज (राज ११४) °जोग पुं [°योग] १ मोहनीय कर्मं (सम ७१) २ अच्छी चीज से हीन चीज की मिलावट (राय ११४ टी)। °संपओग पुं [°संप्रयोग] वही अर्थं (राय ११४)

साइ :: पुंस्त्री [दे] केसर, 'सालतले सारिठिआ अच्चइ चंडि ससइपउमेहिं' (दे ८, २२)।

साइज्ज :: सक [स्वाद्, सात्मी + कृ] १ स्वाद लेना, खाना। २ चाहना, अभिलाष करना। ३ स्वीकार करना, ग्रहण करनाष ४ आसक्ति करना। ५ अनुमोदन करना। ६ उपभोग करना। साइज्जइ, साइज्जामो (आचा; कस; कप्प — टी; भग १५ — पत्र ६५०; औप), साइज्जेज्ज (आचा २, १, ३, २)। भवि. साइज्जिस्सामि (आचा)। हेकृ. साइज्जित्तए (औप)

साइज्जण :: न [स्वादन] अभिष्वङ्ग, आसक्ति (विसे २६८५)।

साइज्जणया :: स्त्री [स्वादना] उपभोग, सेवा (ठा ३, ३ टी — पत्र १४७)।

साइज्जिअ :: वि [दे] अवलम्बित (दे ८, २६)।

साइज्जिअ :: वि [स्वादित] १ उपभुक्त (कप्प — टी) २ उपभुक्‍त-सम्बन्धी। स्त्री. °या (कप्प)

साइम :: वि [स्वादिम] पान, सुपारी आदि मुखवास (ठा ४, २ — पत्र २१९; आचा; उवा; औप; सम २९)।

साइय :: वि [सादिक] आदिवाला (कम्म १, ६; नव ३६)।

साइय :: देखो सागय = स्वागत (सुर ११, २१७)।

साइय :: न [दे] संस्कार (दे ८, २५)।

साइयंकार :: वि [दे] स-प्रत्यय, विश्वस्त (पिंडभा ४२)।

साइरेग :: वि [सातिरेक] साधिक, सविशेष (सम २; भग)।

साइसय :: वि [सातिशय] अतिशयवाला (महा; सुपा ३९७)।

साई :: देखे सई = शची (इक)।

साउ :: वि [स्वादु] स्वादवाला, मधुर (पिंड १२८; उप ६७०; से २, १८; कुमा; हे १, ५)।

साउग :: वि [स्वादुक] स्वादिष्ठ भोजनवाला, मधउर भोजनवाला; 'कुलाइं जे धावइ साउगाइं' (सूअ १, ७, २३)।

साउज्ज :: न [सायुज्य] सहयोग, साहाय्य (अच्चु ६५)।

साउणिअ :: वि [शाकुनिक] १ पक्षि-घातक, पक्षियों के वध का काम करनेवाला (पणह १, १; २ — पत्र २९; अणु १२९ टि; विपा १, ८ — पत्र ८३) २ शकुन-शास्त्र का जानकार (सुपा २९७; कुप्र ५) ३ श्‍येन पक्षी द्वारा शिकार करनेवाला (अणु १२९ टि)

साउय :: देखो साउग (राज)।

साउय :: वि [सायुष्] आयुवाला, प्राणी (ठा २, १ — पत्र ३८)।

साउल :: वि [संकुल] व्याप्‍त, भरपूर (सुर १०, १८३)।

साउलय :: वि [साकुलत] आकुलता युक्त, व्याकुल, व्यग्र; 'इंदियसुहसाउलओ परिहिंडई सोवि संसारे' (पउम १०२, १९७)।

साउली :: स्त्री [दे] १ वस्त्राञ्चल (गा २६९) २ वस्त्र, कपड़ा (गा ६०५)। देखो साहुली।

साउल्ल :: पुं [दे] अनुराग, प्रेम (हे ८, २४; षड्)।

साएज्ज :: देखो साइज्ज। साएज्जइ (भवि ११, २)।

साएय :: न [साकेत] अयोध्या नगरी (इक; सुपा ५५०; पि ९३)। °पुर न [°पुर] वही अर्थं (उफप ७२८ टी)। °पुरी स्त्री [°पुरी] वही (पउम ४, ४)। देखो साकेय।

साएया :: स्त्री [साकेता] अयोध्या नगरी (पउम २०, १०; णाया १, ८ — पत्र १३१)।

सांतवण :: न [सान्तपन] व्रत-विशेष (प्रबो ७३)।

साक :: देखो साग (दे ६, १३०)।

साकेय :: न [साकेत] १ नगर-विशेष, अयोध्या (ती ११) २ वि. गृहस्थ-संबन्धी। ३ न. प्रत्याख्यान-विशेष (पव ४)

साकेय :: वि [साङ्केत] १ संकेत का, संकेत- संबन्धी। २ न. प्रत्याख्यान का एक भेद (पव ४)

साग :: पुं [शाक] १ वृक्ष-विशेष (पउम ४२, ७; दे १, २७) २ तक्र-सिद्ध बड़ा आदि खाद्य; 'सागो सो तक्कसिद्धं जं' (पव २५९) ३ शाक, तरकारी (पि २०२; ३६४)

सागडिअ :: वि [शाकटिक] गाड़ीवान, गाड़ी चला कर निर्वाह करनेवाला (सुर १६, २२३; स २९२; उत्त ५, १४; श्रा १२)।

सागय :: न [स्वागत] १ शोभन, आगमनस प्रशस्त आगमन (भग) २ अतिथि-सत्कार, आदर बहु-मान (सुपा २५६) ३ कुशल (कुमा)

सागर :: पुं [सागर] १ समुद्र (पणह १, ३ — पत्र ४४; प्रासू १३४) २ एक राज-पुत्र (उप ९३७) ३ राजा अन्धकवृष्णि का एक पुत्र (अंत ३) ४ एक वणिक्-व्यापारी (उप ६४८ टी) ५ सातवें बलदेव तथा वासुदेव के पूर्वं भव के धर्मं-गुरु (सम १५३) ६ पुं. कूट-विशेष (इक) ७ समय-परिमाण- विशेष, दश-कोटाकोटि-पल्योपम-परिमित काल (नव; ९; जो ३६; पव २०५) ८ एक देव-विमान (सम २) °कंत पुंन [°कान्त] एक देव-विमान (सम २)। °चंद पुं [°चन्द्र] १ एक जैन आचार्यं (काल) २ एक व्यक्तिवाचक नाम (उव; पडि; राज) °चित्त पुंन [°चित्र] कूट-विशेष (इक)। °दत्त पुं [°दत्त] १ एक जैन मुनि (सम १५३) २ तीसरे बलदेव का पूर्वंजन्मीय नाम (सम १५३) ३ एक श्रेष्ठि-पुत्र (महा) ४ एक सार्थंवाह का नाम (विपा १, ७) ५ हरिषेण चक्रवर्त्ती का एक पुत्र (महा ४४) °दत्ता स्त्री [°दत्ता] १ भगवान् धर्मंनाथजी की दीक्षा-शिविका (सम १५१) २ भगवान् विमलनाथजी कि दीक्षा-शिविका (विचार १२९)। °देव पुं [°देव] हरिषेण चक्र- वर्त्ती का एक पुत्र (महा)। °वूह पुं [°व्यूह] सैन्य की रचना-विशेष (महा)। देखो सावर = सागर।

सागरिअ :: देखो सागारिय (पिंड ५९८; पव ११२)।

सागरोवम :: पुंन [सागरोपम] समय-परिमाण विशेष, दस-कोटाकोटि-पल्योपम-परिमित काल (ठा २, ४ — पत्र ९०; सम २, ८; ९; १०; ११; उव; पि ४४८)।

सागार :: वि [साकार] १ आकरा-सहित, आकृतिवाला। २ विशेषांश को ग्रहण करने की शक्ति विशेष-ग्रहण, ज्ञान (औप; भग; सम्म ६५) ३ अपवाद-युक्त (भग ७, २ — पत्र २९५; उप ७२८ टी)। °पस्सि वि [°दर्शिन्] ज्ञानवाला (पणण ३० — पत्र ७५९)

सागार :: वि [सागार] गृह-युक्त, गृहस्थ (आवम)।

सागारि, सागारिय :: वि [सागारिन्, °रिक] १ गृह का मालिक, उपाश्रय का मालिक, साधु को स्थान देनेवाला गृहस्थ, शय्यातर (पिंड ३१०; आचा २, २, ३, ५; सूअ १, ९, १६; ओघ १६९) २ सूतक, प्रसव और मरण की अशुद्धि, अशौच (सूअ १, ९, १६) ३ गृहस्थ से युक्त; 'सागारिए उवस्सए' (आचा २, २, १, ४; ५) ४ न. मैथुन (आचा १, ९, १, ६) ५ वि. शय्यातर गृहस्थ का, उपाश्रय के मालिक से संबन्ध रखनेवाला; 'सागारियं पिडं भुजेमाणो' (सम ३९)

सागेय :: देखो साकेय = साकेत (णाया १, ८ — पत्र १३१; उप ७२८ टी)।

साड :: सक [शाटय्, शातय्] सड़ाना, विनाश करना। हेकृ. साडेत्तए (विपा १, १ — पत्र १६)।

साड :: पुं [शाट, शात] १ शाटन, विनाश (विसे ३३२१) २ शाटक, उत्तरीय वस्त्र, चद्दर (पव ३८) ३ वस्त्र, कपड़ा; 'एगसाडे अदुवा अचेले' (आचा; सुपा ११)

साडअ, साडग :: पुंन [शाटक] वस्त्र, कपड़ा (सुपा १५३; राज)।

साडण :: न [शाटन, शातन] १ विशरण, विनाश (विसे ३३१९; स ११९) २ छेदन (सूअनि ७२)

साडणा :: स्त्री [शाटना, शातना] खण्ड-खण्ड होकर गिराने का कारण, विनाश-कारण (विपा १, १ — पत्र १६)।

साडिअ :: वि [शाटित, शातित] सड़ाकर गिराया हुआ, विनाशित (सुर १५, ३; दे ७, ८)।

साडिआ :: स्त्री [शाटिका] वस्त्र, कपड़ा (औप; कप्प)।

साडिल्ल :: देखो साड = शाट; 'नियसियआजाणु- मलिणसाडिल्लो' (सुपा ११)।

साडी :: स्त्री [शाटी] वस्त्र, कपड़ा (कुप्र ४१२)।

साडी :: स्त्री [शकटी] गाड़ी। °कम्म पुंन [°कर्मन्] गाड़ी बनाना, बेचना, चलाना आदि शकट-जीविका (उवा; श्रा २२)।

साडीया :: देखो साडिआ; जह उल्ला साडीया आसुं सुक्कइ विरल्लिया संती' (विसे ३०३२)।

साडेल्लय :: देखो साडअ (णाया १, १८ — पत्र २३५)।

साण :: सक [शाणय्] शाण पर चढ़ाना, तीक्ष्ण करना। साणिज्जिदि (शौ) (नाट)।

साण :: पुंस्त्री [श्वान] १ कुत्ता (पाअ; पणह १, १ — पत्र ७, प्रासू १६९ हे १, ५२)। स्त्री. °णी (सुपा ११४) २ पुं. छन्द-विशेष (पिंग)

साण :: वि [श्यान] निबिड, घनीभूत (घा ६८२)।

साण :: पुं [शाण, शान] शस्त्र के घिस कर तीक्ष्ण करने का यन्त्र (गउड; रंभा)।

साण :: वि [शाण] सन का वना हुआ, पाट का बना हुआ। स्त्री. °णी (दस ५, १, १, १८)।

साण :: दखो सासायण (कम्म ३, २१)।

साणइअ :: वि [दे. शाणित] उत्तेजित (दे ८, १३)।

साणय :: न [शाणक] सन का बना हुआ वस्त्र (ठा ५, ३ — पत्र ३३८; कस)।

साणि :: स्त्री [शाण] सन का बना हुआ कपड़ा (दस ५, १, १८)।

साणिअ :: वि [दे] शान्त (षड्)।

साणी :: देखो साण = श्वान।

साणी :: स्त्री [शाणी] देखो साणि; 'साणीपा- वारपिहिअं' (दस ५, १, १८)।

साणु :: पुंन [सानु] पर्वत पर का समान भूमिवाला प्रदेश (पाअ; सुर ७, २१४; स ३६५)। °मंत पुं [°मत्] पर्वत (उप १०३१ टी)। °लट्ठिया स्त्री [°यष्टिका] ग्राम-विशेष (राज)।

साणुक्कोस :: वि [सानुक्रोश] दयालु (ठा ४, ४ — पत्र २८५; पणह १, ४ — पत्र ७२; स्वप्‍न २९; ४४; वसु)।

साणुप्पग :: न [सानुप्रग] प्रातःकाल, प्रभात- समय (बृह १)।

साणुवंध :: वि [सानुबन्ध] निरन्तर, अच्छिन्न प्रवाहवाला (उप ७७२)।

साणुवीय :: वि [सानुवीज] जिसमें उत्पादन- शक्ति नष्ट न हुई हो वह बीज (आचा २, १, ८, ३)।

साणुवाय :: वि [सानुवात] अनुकूल पवनवाला (उव)।

सणुसय :: वि [सानुशय] अनुताप-युक्त (अभि १११; गउड)।

साणूर :: न [दे] देव-गृह, देव-मन्दिर (दे ८, २४)।

सात :: न [सात] १ सुख (ठा २, ४) २ वि. सुखवाला। स्त्री. °ता (पणण ३५ — पत्र ७८९)। °वेयणिज्ज न [°वेदनीय] सुख का कारण-भूत कर्मं (ठा २, ४ — पत्र ९६)

साति :: देखो साइ = स्वाति, सादि, साचि, सति (सम २; ठा २, ३ — पत्र ८०; ६ — पत्र ३५७; जीव १ — पत्र ४२, पणह १, २ — पत्र २६; सम ७१)।

सातिज्जणया :: देखो साइज्जणया (ठा ३, ३ — पत्र १४७)।

साद :: पुं [साद] अवसाद, खेद (दे १, १६८)।

सादिव्व :: वि [सदैव] देवता-प्रयुक्त, देव-कृत (पव २६८)।

सादिव्व :: देखो सादेव्व (पिंड ४२७)।

सादीअ :: देखो साइय = सादिक (भग; औप)।

सादीणगंगा :: स्त्री [सादीनगङ्गा] आजीविक मत में उक्‍त एक परिमाण (भग १५ — पत्र ६७४)।

सादेव्व :: न [सादिव्य] देव का अनुग्रह — सांनिध्य; 'सादेव्वाणि य देवयाओ करेंति सच्चवयणे रयाणं' (पणह २, २ — पत्र ११४; उप ८०३)।

साद्‍दूलसट्ठ :: (अप) देखो सद्‍दूल-सट्ठ (पिंग)।

साध :: देखो साह = साधय्। साधेंति (सुज्ज १०, १७)।

साधग :: देखो साहग (धर्मंसं १४२; ३२३)।

साधम्म :: देखो साहम्म (धर्मंसं ८७७)।

साधम्मिअ :: देखो साहम्मिअ (पउम ३५, ७४)।

साधारण :: देखो साहारण = साधारण (वि ८२)।

साधारणा :: स्त्री [संधारणा] वासना, धारणा, स्मरणशक्‍ति (णंदि १७६)।

साधीण :: देखो साहीण (नाट — मालती १११)।

सापद :: (शौ) देखो सावय = श्वापद (नाट — शकु ३०)।

साफल्ल, साफल्लया :: देखो साहल्ल (विसे २५३२; उप ७६८ टी; धर्मंवि ६६; स ७०८; ७०९)।

साबाह :: वि [सावाध] आबाधा-सहित (उप ३३९ टी)।

साभरग :: पुं [दे. साभरक] रुपया, सोलह आने का सिक्का (पव १११)।

साभव्व :: देखो साहव्व (विसे १३९)।

साभाविक, साभाविय :: देखो साहाविअ (सूअनि १९; कप्प; श्रावक २५८ टी)।

साम :: पुंन [सामन्] १ शत्रु को वश करने का उपाय-विशेष, एक राज-नीति (णाया १, १ — पत्र ११; प्रासु ९७) २ प्रिय वाक्य (कुमा; महा १४) ३ एक वेद-शास्त्र (भग; कप्प) ४ मैत्री, मित्रता (विसे ३४८१) ५ शर्करा आदि मिष्ट वस्तु; 'महुरपरिणामं सामं' (आव १) ६ सामायिक, संयम-विशेष (संबोध ४५); 'सामं समं च सम्मं इगमवि सामाइयस्स एगट्ठा' (आव १)। °कोट्ठ पुं [°कोष्ठ] ऐरवत वर्षं में उत्पन्न एक्कीसवें जिनदेव (सम १५३)। देखो सामि-कुट्ठ।

साम :: पुं [श्याम] १ कृष्ण वर्णं, काला रंग। २ हरा वर्णं, नीला रंग। ३ वि. काला वर्णंवाला। ४ हरा वर्णंवाला (आचा; कुमा; सुर ४, ४४) ५ पुं. परमाधमी देवों की एक जाति (सम २८; सूअि ७२) ६ एक जैन मुनि, श्यामार्यं (णंदि ४९) ७ न. तृण-विशेष, गन्ध-तृण (सूअ २, २, ११) ८ पुंन. आकाश, गगन (भग २०, २ — पत्र ७७६)। °हत्थि पुं [°हस्तिन्] भगवान् महावीर का शिष्य एक मुनि (भग १०, ४ — पत्र ५०१)

सामइअ :: वि [प्रतीक्षित] जिसकी प्रतीक्षा की गई हो वह (कुमा)।

सामइअ :: देखो सामाइअ (विसे २६२४; २६३३; २६३४; २६३६)।

सामइअ, सामइग :: पुं [सामयिक] १ एक गृहस्थ का नाम (सूअनि १९१) २ वि. समय-सम्बन्धी (पंच ५, १६९) ३ सिद्धान्त का जानकार (पिंडभा ६) ४ आगम-आश्रित, सिद्धान्त-आश्रित (ठा ३, ३ — पत्र १५१) ५ बौद्ध विद्वान् (दसनि ४, ३५)

सामइग :: देखो समाइअ (विसे २७१६)।

सामइगि :: वि [सामायिकिन्] सामायिकवाला (विसे २७१६)।

सामंत :: पुंन [सामन्त] निकट, समीप, पास; 'तस्स णं अदूरसामंते' (णाया १, २ — पत्र ७८; उवा; कप्प) २ पुं. अधीन राजा (महा; काल) ३ अपने देश के अनन्तर देश का राजा, समीप देश का राजा (कप्प)

सामंती :: स्त्री [दे] सम-भूमि (दे ८, २३)।

सामंतोवणिवाइय :: न [सामम्तोपनिपतिक] अभिनय का एक भेद (राय ५४)।

सामतोवणिवाइया, सामंतोवणीआ :: स्त्री [सामन्तोपनिपा- तिकी] क्रिया-विशेष, चारों तरफ से इकट्ठे हुए जन-समुदाय में होनेवाली क्रिया — कर्मं बन्ध का कारण (ठा २, १ — पत्र ४०; नव १८)।

सामंतोवायणिय :: पुंन [सामन्तोपपातनिक] अभिनय-विशेष (ठा ४, ४ — पत्र २८५)।

सामक्ख :: देखो समक्ख; संभरियं चिय वयणं, 'ज त अणरणणमित्तसामक्खं। भणियं अईयकाले' (पउम १०, ८४)।

सामग :: देखो सामय = श्यामक (राज)।

सामग्ग :: सक [श्लिष्] आलिङ्गन करना। सामग्गइ (हे ४, १९०)।

सामग्ग, सामग्गिअ :: न [सामग्रय] सामग्री, संपू- र्णंता, सकलता (से ९, ४७; आचा २, १, १, ९; महा)।

सामग्गिअ :: वि [श्‍लिष्ट] आलिङ्गित (कुमा)।

सामग्गिअ :: वि [दे] १ चलित। २ अव- लम्बित। ३ पालित, रक्षित (दे ८, ५३)

सामग्गी :: स्त्री [सामग्री] १ समस्तता। २ कारण-समूह (सम्मत्त २२४; महा; कप्पू; रंभा)

सामच्छ :: सक [दे] मन्त्रणा करना, पर्या- लोचन करना। संकृ. सामच्छिऊण (पउम ४२, ३५)।

सामच्छ :: न [सामर्थ्य] समर्थंता, शक्ति (हे २, २२; कुमा)।

सामच्छण :: देखो समात्थण (राज)।

सामज्ज :: न [साम्राज्य] सार्वभौम राज्य, बड़ा राज्य (उप ३५७ ठी)।

सामण, सामणिय :: वि [श्रामण, °णिक] श्रमण- संबन्घी (राज)।

सामणिय :: देखो सामण्ण = श्रामण्य (सूअ १, ७, २३; दस ७, ५६)।

साणेर :: पुं [श्रामणि] श्रमण का अपत्य, साधु की संतान (सूअ १, ४, २, १३)।

सामण्ण :: न [श्रामण्य] श्रमणता, साधुपन (भग; दस २, १; महा)।

सामण्ण :: पुं [सामान्य] १ अणपन्नी देवों का एक इन्द्र (ठा २, ३ — पत्र ८५) २ न. वैशेषिक दर्शंन में प्रसिद्ध सत्ता पदार्थ (धर्मंसं २५९) ३ वि. साधारण (गा ८९१; ९६९; नाट — रत्‍ना ८१)

सामत्थ :: देखो सामच्छ (दे)। संकृ. सामत्थे- ऊण (काल)।

सामत्थ :: देखो सामच्छ = सामर्थ्यं (हे २, २२; कुमा; ठा ३, १ — पत्र १०६; सुपा २८२; प्रासू १४४)।

सामत्थ, सामत्थण :: न [दे] पर्यालोचन, मन्त्रणा; 'कास हरामोत्ति अज्ज दव्वं इति सामत्थं करेति गुज्झं' (पणह १, ३ — पत्र ४६; पिंड १२१; बृह १)।

सामन्न :: देखो सामण्ण = श्रामण्य (भग; कप्प; सुर १, १)।

सामन्न :: देखो सामण्ण = सामन्य (उव; स ३२५; धर्मंवि ५९; कम्म १, १०; ३१)।

सामय :: सक [प्रति + ईक्ष्] प्रतीक्षा करना, बाट जोहना (हे ४, १९३; षड्)।

सामय :: पुं [श्‍यामाक] धान्य-विशेष, साँवा (हे १, ७१; कुमा)।

सामरि :: पुंस्त्री [दे. शाल्मलि] शाल्मली वृक्ष, सेमर का पेड़ (दे ८, २; पाअ)।

सामरिस :: वि [सामर्ष] ईर्ष्यालु, असहिष्णु (सुर २, ९०)।

सामल :: वि [श्यामल] १ काला, कृष्ण वर्णवाला (से १, ५९; सुर ३, ६५; कुमा) २ पुं. एक वणिग — बनिया (सुपा ५५५)

सामलइअ :: वि [श्यामलित] काला किया हुआ (से ८, ६६)।

सामलय :: वि [श्यामलक] १ काला। २ काला पानीवाला (से १, ५९) ३ पुं. वनस्पति-विशेष (राज)

सामल :: स्त्री [श्यामला] १ कृष्ण वर्णवाली स्त्री। २ सोलह वर्षं की स्त्री, श्यामा (वज्जा ११२)

सामलि :: पुंस्त्री [शाल्मलि] समेल का गाछ (सूअ १, ६, १८; उव; औप)।

सामलिय :: देखो सामलइअ (सुर ४, १२७)।

सामली :: देखो सामला (गउड; गा १२३; २३८; ७६४; सुपा १८५)।

सामलेर :: पुं [शाबलेय] काबरचित गौ — चित- कबरी गाय का वत्स (अणु २१७)।

साम :: स्त्री [श्यामा] १ तेरहवें जिनदेव की माता (सम १५१) २ तृतीय जिनदेव की प्रथम शिष्या (सम १५२) ३ रात्रि, रात (सूअ २, १, ५६; से १, ५९; ओघ ३८७) ४ शक्र की एक अग्र-महिषी — पटरानी (पउम १०२, १५९) ५ प्रियंगु वृक्ष (पणण १ — पत्र ३३; १७ — पत्र ५२६; अनु ४) ६ एक महौषधि (ती ५) ७ लता-विशेष, साम-लता (औप) ८ सोम लता (से १, ५९) ९ नारी, स्त्री (से १, ५९; अणु १३६) १० श्याम वर्णंवाली स्त्री (कुमा) ११ सोलह वर्षं की उम्रवाली स्त्री (वज्जा १०४) १२ सुन्दर स्त्री, रमणी (से १, ५९; गउड) १३ यमुना नदी। १४ नील का गाछ। १५ गुग्गुल का गाच। १६ गुडुची, गला। १७ गुन्द्रा। १८ कृष्ण। १९ अम्बिका। २० कस्तूरी। २१ वटुत्री। २२ वन्दा की लता। २३ हरी पुनर्नवा। २४ पिप्पली का गाछ। २५ हरिद्रा, हलदी। २६ नील दूर्वा। २७ तुलसी। २८ पद्मबीज। २९ गौ गैया। ३० छाया। ३१ शिंसपा, सीसम का पेड़। ३२ पक्षि-विशेष (हे १, २६०)। °स पुं [°श] रात्रि-भोजन (सूअ २, १, ५६; आचा १, २, ५, १)

सामाइअ :: न [सामायिक] संयम-विशेष, सम-भाव, राग-द्वेष-रहित अवस्थान (विसे २६७९; २६८०; २६८१; २६९०; कस; औप; नव)।

सामाइअ :: वि [सामाजिक] समाज का, समूह से संबन्ध रखनेवाला, सभ्य (उत्त ११, २६; सुख ११, २६)।

सामाइअ :: वि [श्यामायित] रात्रि-सदृश (घा ५६०)।

सामाग :: पुं [श्यामाक] भगवान् महावीर के समय का एक गृहस्थ, जिसके ऋजुवालिका नदी के किनारे पर स्थित क्षेत्र में भगवान् महावीर को केवलज्ञान हुआ था (कप्प)। देखो सामाय = श्यामाक।

सामाजिअ :: देखो सामाइअ = सामाजिक (हास्य ११८)।

सामाण :: देखो समाण = समान; 'लोहो हलि- द्दखंजणकद्दमकिमिरागसामाणो' (कम्म १, २०; पुप्फ २८७)।

सामाण :: पुंन [सामान] एक देव-विमान (सम ३३)।

सामाणिअ :: वि [सामानिक] १ संनिहित, निकट-वर्त्ती, नजदीक में स्थित (विसे २६७९) २ पुं. इन्द्र के समान ऋद्धिवाले देवों की एक जाति (सम ३७; ठा ३, १ — पत्र ११६; उवा; औप; पउम २, ४१)

सामाय :: अक [श्यामाय्] काला होना। सामाइ, सामायइ, सामायंति (गउड)। वकृ. सामायंत (गउड)।

सामाय :: देखो सामय = श्यामाक (राज)।

सामाय :: पुं [सामाय] संयम-विशेष, सामा- यिक (विसे १४२१; संबोध ४५)।

सामायिरि :: वि [समाचारिन्] आचरण करनेवाला (उव)।

सामायारी :: स्त्री [सामाचारी] साधु का आचार-क्रिया-कलाप (गच्छ १, १५; उव; उप ६६९)।

सामास :: देखो सामा-स = श्यामा-श।

सामासिय :: वि [सामासिक] समास-संबन्धी (अणु १४७)।

सामि, सामिअ :: वि [स्वामिन्] १ नायक, अधि- पति। २ ईश्‍वर, मालिक (सम ८६; विपा १, १ टी — पत्र ११; उव; कुमा प्रासू ८८)। स्त्री. °णी (महा) ३ पुं. प्रभु, भगवान् (कुमा १, १; ७, ३७; सुपा ३५) ४ राजा, नृप। ५ भर्ता, पति (महा)। °कुट्ठ पुं [°कुष्ठ] ऐरवत वर्षं में उत्पन्‍न एक्कीसवें जिन-देव (पव ७)। देखो साम-कोट्ठ। °त्त न [°त्व] मालकियत, आधिपत्य (सम ८६; सं २२)। °पुर न [°पुर] नगर-विशेष (उप ५९७ टी)

सामिअ :: वि [दे] दग्ध, जलाया हुआ (दे ८, २३)।

सामिअ :: वि [शमित] शान्त किया हुआ (सुपा ३५)।

सामिद्धी :: स्त्री [समृद्धि] १ अति संपति। २ वृद्धि (प्राप्र; हे १, ४४; कुमा)

सामिधेय :: न [सामिधेय] काष्ठ-समूह (अंत ११; स ५६१)।

सामिली :: न [स्वामिलिन्] १ गोत्र-विशेष, जो वत्स गोत्र की एक शाखा है। २ पुंस्त्री. उस गोत्र में उत्पन्‍न (ठा ७ — पत्र ३९०)

सामिसाल :: देखो सामि (पउम ८, ६८; सुपा २६३; भवि, सण)। स्त्री. °ली (स ३०६)।

सामिहेय :: देखो सामिधेय (स ३४०; ३४४; महा)।

सामीर :: वि [सामीर] समीर-संबन्धी (गउड)।

सामुंडुअ :: पुं [दे] तृण-विशेष, वरु तृण, जिसकी कलम की जाती है (पाअ)।

सामुग्ग :: वि [सामुद्‍ग] संपुटाकारवाला; 'सामुग्गनिमग्गगूढजाणू' (औप)।

सामुच्छेइय :: वि [सामुच्छेदिक] वस्तु को एकान्त क्षणिक माननेवाला एक मत और उसका अनुयायी (ठा ७ — पत्र ४१०; विसे २३८९)।

सामुदाइय :: वि [सामुदायिक] समुदाय का, समुदाय से संबन्ध रखनेवाला (णाया १, १६ — पत्र २०८)।

सामुदाणिय :: वि [सामुदानिक] १ भिक्षा- संबन्धी, भिक्षा से लब्ध (ठा ४, १ — पत्र २१२; सूअ २, १, ५६) २ भिक्षा, भैक्ष (भग ७, १ टी — पत्र २९३)

सामुद्द :: पुं [दे] इक्षु-समान तृण-विशेष (दे ८, २३)।

सामुद्द, सामुद्दय :: वि [सामुद्र, °क] १ समुद्र- सम्बन्धी, सागर का (णाया १, ८ — पत्र १४५; भग ५, २ — पत्र २११; दस ३, ८) २ न. छन्द-विशेष (सूअनि १३९)

सामुद्दिअ :: न [सामुद्रिक] १ शास्त्र-विशेष, शरीर पर के चिह्नों का शुभाशुभ फल बतलानेवाला शास्त्र (श्रा १२) २ शरीर की रेखा आदि चिह्न; 'सामुद्दियलक्खणाण लक्खंपि' (संबोध ४२) ३ वि. सामुद्रिक शास्त्र का ज्ञाता (कुप्र ५)

सामुयाणिय :: देखो सामुदाणिय (उत्त १७, १९)।

साय :: देखो साइज्ज = स्वाद, सात्मी + कृ। सायए (आचा २, १३, १), साएज्जा (वव १)।

साय :: देखो साग = शाक; 'भोतत्व्वं संजएण समियं न सायसूयादिकं' (पणह २, ३ — पत्र १२३; पणण १ — पत्र ३४)।

साय :: न [सात] १ सुख (भग; उव) २ सुख का कारण-भूत कर्मं (कम्म १, १३; ५५) ३ एक देव-विमान (सम ३८) °वाइ वि [°वादिन्] सुख-सेवन से ही सुख की उत्पत्ति माननेवाला (ठा ८ — पत्र ४२५)झ। °वाहण पुं [°वाहन] एक प्रसिद्ध राजा (काल)। °गारव पुंन [°गौरव] १ सुख- शीलता (सम ८) २ सुख का गर्वं (राज)। °सुक्ख न [°सौख्य] अतिशय सुख (जीव ३)। देखो सात = सात।

साय :: पुं [स्वाद] रस का अनुभव (विसे ७९९; पउम ३३, १०; उप ७६८ टी)।

साय :: न [दे] १ महाराष्ट्र देश का एक नगर। २ दूर (दे ८, ५१)

सायं :: अ [सायम्] १ सन्ध्या-समय, शाम (पाअ; गउड; कप्पू) २ सत्य, सच्चा (ठा १० — पत्र ४९५) °कार वि [°कार] १ सत्य। २ सत्य-करण (ठा १० — पत्र ४९५)। °तण वि [°तन] सन्ध्या-समय का (विक्र १९)

सायंदूर :: न [दे] नगर-विशेष (दे ८, ५१ टी)।

सायंदूला :: स्त्री [दे] केतकी, केवड़े का गाछ (दे ८, २५)।

सायकुंभ :: न [शातकुम्भ] १ सुवर्णं, सोना। २ वि. सुवर्णं का बना हुआ (सुपा २०१)

सायग :: पुं [सायक] बाण, तीर (सुपा ६५१)।

सायग :: वि [स्वादक] स्वाद लेनेवाला (दस ४, २६)।

सायणा :: स्त्री [शातना] खण्डन, छेदन (सम ५८)।

सायणी :: स्त्री [शायनी, स्वापनी] मनुष्य की दस दशाओं में दसवीं — ९० से १०० वर्षं की उम्रवाली — दशा (तंदु १६)।

सायत्त :: वि [स्वायत्त] स्वाधीन, स्वतन्त्र (स २७६)।

सायय :: देखो सायग (पाअ; स ५४८)।

सायर :: पुं [सागर] १ समुद्र (सुपा ५६; ८८; जी ४४; गउड; प्रासू ८७; १४४; प्राप्र; हे २, १८२) २ ऐरवत वर्षं में होनेवाले चौथे जिन-देव (पव ७) ३ मृग- विशेष। ४ संख्या-विशेष (प्राप्र) ५ एक सेठ का नाम (सुपा २८०)। °घोस पुं [°घोष] एक जैन मुनि जो आठवें बलदेव के पूर्वंजन्म में गुरु थे (पउम २०, १९३)। °भद्द पुं [°भद्र] इक्ष्वाकुवंश का एक राजा (पउम ५, ४)। देखो सागर = सागर।

सायर :: वि [सादर] आदर-युक्त (गउड; सुर २, २४५)।

सायार :: देखो सागार = साकार (सम्म ६४; पउम ६, ११८)।

सार :: अक [प्र + हृ] प्रहार करना। सारइ (हे ४, ८४)। वकृ. सारंत (कुमा)।

सार :: सक [स्मारय्] याद दिलाना। सारे (वव १)।

सार :: सक [सारय्] १ ठीक करना, दुरुस्त करना। २ प्रख्यात करना, प्रसिद्ध करना। ३ प्रेरणा करना। ४ उन्‍नत करना, उत्कृष्ट बनाना। ५ सिद्ध करना। ६ अन्वेषण करना, खोजना। ७ सरकाना, खिसकाना, एक स्थान से अन्य स्थान में ले जाना। सारइ (सुपा १५४), सारंति, सारयइ (सूअ १, २, २, २६; २, ६, ४); 'सारेहि वीणं' (स ३०९), सारेह (सूअ १, ३, ३, ९)। कर्मं. 'हंसाण सरेहि सिरि सारिज्जइ अह सारण हंसेहि' (गा ९५३; काप्र ८६२)। कवकृ. सारिज्जंत (सुपा ५७)

सार :: सक [स्वरय्] १ बुलवाना। २ उच्चारण-योग्य करना। सारंति (विसे ४६२)

सार :: वि [शार] १ शबल, चितकबरा (पाअ; गउड ३७८; ५३०) २ पुं. सार, पासा, खेलने के लिए काठ आदि का चौपहल रंगबिरंगा साँचा (सुपा १५४)

सार :: पुंन [सार] १ धन, दौलत (पाअ; से २, १; २६; मुद्रा २६७) २ न्याय्य, न्याय- युक्त; 'एयं खु नाणिणो सारं जं न हिसंइ किंचण' (सूअ १, १, ४, १०) ३ बल, पराक्रम (पाअ; से ३, २७) ४ परमार्थं (आचानि २३९) ५ प्रकर्षं (आचानि २४०) ६ फल (आचानि २४१) ७ परिणाम (ठा ४, ४ टी — पत्र २८३) ८ रस निचोड़ (कप्पू) ९ एक देव-विमान (देवेन्द्र १४३) १० स्थिर अंश (से ३, २७; गउड) ११ पुं. वृक्ष-विशेष (पणण १ — पत्र ३४) १२ छन्द-विशेष (पिंग) १३ वि. श्रेष्ठ उत्तम; 'जह चंदो ताराणं गुणाण सारा तहेह दया' (धम्मो ६; से २, २६)। °कंता स्त्री [°कान्ता] षड्ज ग्राम की एक मूर्छना (ठा ७ — पत्र ३९३)। °य वि [°द] सार देनेवाला (से ९, ४०)। °वई स्त्री [°वती] छन्द विशेष (पिंग)। °वंत वि [°वत्] सार-युक्त (ठा ७ — पत्र ३९४; गउड)। °वंती देखो °वई (पिंग)

सारइय :: वि [शारदिक] शरद् ऋतु का (उत्त १०, २८; पणण १७ — पत्र ५२९; ती ५; उवा)।

सारंग :: वि [शार्ङ्ग] १ सींग का बना हुआ। २ न. धनुष। ३ आर्द्रंक, आदी (हे २, १००; प्राप्र) ४ विष्णु का धनुष (हे २ १००; सुपा ३४८)। °पाणि पुं [°पाणि] विष्णु (प्राकृ २७)

सारंग :: पुं [सारंग] १ सिंह, मृगेन्द्र (सुर १, ११; सुपा ३४८) २ चातक पक्षी (पाअ; से ६, ८२) ३ हरिण, मृग (से ६, ८२; कप्पू) ४ हाथी। ५ भ्रमर। ६ छत्र। ७ राजहंस। ८ चित्र-मृग, चितकबरा हरिण। ९ वाद्य-विशेष। १० शंख। ११ मयूर। १२ धनुष। १३ केश। १४ आभरण, अलंकार। १५ वस्त्र्। १६ पद्म, कमल। १७ चन्दन। १८ कपूर। १९ फूल। २० कोयल। २१ मेघ (सुपा ३४८)। °रुअक्क, °रुपक (अप) पुंन [°रूपक] छन्द-विशेष (पिंग)

सारंग :: न [साराङ्ग] प्रधान दल, श्रेष्ठ अवयव (पणह २, ५ — पत्र १५०; सुपा ३४८)।

सारंगि :: पुं [शार्ङ्गिन्] विष्णु, श्रीकृष्ण (कुमा)।

सारंगिका, सारंगिक्का :: स्त्री [सारङ्गिका] छन्द-विशेष (पिंग)।

सारंगी :: स्त्री [सारङ्गी] १ हरिणी (पाअ) २ वाद्य-विशेष (सुपा १३२)

सारंभ :: देखो संरंभ (ठा ७ — पत्र ४०३)।

सारकल्लाण :: पुं [सारकल्याण] वलयाकार वनस्पति-विशेष (पणण १ — पत्र ३४)। देखो सालकल्लाण।

सारक्ख :: सक [सं + रक्ष्] परिपालन करना, अच्छी तरह रक्षण करना। सारक्खइ (तंदु १३)। वकृ. सरक्खंत, सारक्खमाण (पि ७६; उवा)।

सारक्खण :: न [संरक्षण] सम्यग् रक्षण, त्राण (णाया १, २ — पत्र ९०; सूअ १, ११, १८; औप)।

सारक्खणया :: स्त्री [संरक्षणा] ऊपर देखो (पि ७६)।

सारक्खि :: वि [संरक्षिन्] संरक्षण-कर्ता (पि ७६)।

सारक्खिअ :: वि [संरक्षित] जिसका संरक्षण किया गया हो वह (पणह २, ४ — पत्र १३०)।

सारक्खेत्तु :: वि [संरक्षितृ] संरक्षण-कर्ता (ठा ७ — पत्र ३८६)।

सारग :: देखो सारय = स्मारक (आचा; औप)।

सारज्ज :: न [स्वाराज्य] स्वर्गं का राज्य (विसे १८८३)।

सारण :: पुं [सारण] १ एक यादव-कुमार (अंत ३; कुप्र १०१) २ रावणाधीन एक सामन्त्त राजा (पउम ८, १३३) ३ रावण का मन्त्री (से १२, ६४) ४ रावण का एक सुभट (से १४, १३) ५ न. ले जाना, प्रापण (ओघ ४४८)

सारण :: न [स्मारण] १ याद कराना (ओघ ४४८) २ वि. याद दिलानेवाला। स्त्री. °णिया, °णी (ठा १० — पत्र ४७३)

सारणा :: न [स्मारणा] १ याद दिलाना (सुर १५, २४८; विचार २३८; काल)

सारणि, सारणी :: स्त्री [सारणि, °णी] १ आलवाल, नीक, कियारी (धण २९; कुप्र ५८) २ परंपार (सम्मत्त ७७)

सारत्थ :: न [सारथ्य] सारथिपन (णाया १, १६; पउम २४, ३८)।

सारदा :: देखो सारया (रंभा)।

सारदिअ :: देखो सारइय (अभि ९९)।

सारमिअ :: वि [दे] स्मारित, याद कराया हुआ (दे ८, २५)।

सारमेअ :: पुं [सारमेय] श्वान, कुत्ता (उप ७६८ टी; कुप्र ३९३; सम्मत्त १८९; प्रासू १५८)।

सारमेई :: स्त्री [सारमेयी] कुत्ती, शुनी (सुर १४; १५५)।

सारय :: वि [शारद] शरद् ऋतु का (सम १५३; पणह १, ४ — पत्र ६८; विसे १४९९; अजि १३; कप्प; औप)।

सारय :: वि [सारक] १ श्रेष्ठ करनेवाला (से ३, ४८) २ साधक, सिद्ध करनेवाला (कप्प; से ९, ४०)

सारय :: वि [स्मारक] १ याद करनेवाला। २ याद दिलानेवाला (भग; आचा १, ४, ४, १; कप्प)

सारय :: वि [स्वारत] आसक्‍त, खूब लीन (आचा १, ४, ४, १)।

सारय :: देखो सार-य।

सारया :: स्त्री [शारदा] सरस्वती देवी (सम्मत्त १४०)।

सारव :: देखो सार = सारय्। भवि. सारविस्सं (वव १)।

सारव :: सक [समा + रच्] साफ करना, ठीक-ठीक करना, दुरुस्त करना। सारवइ (हे ४, ९५)।; 'सारवह सयलसरणीओ' (सुर १५, ८२)। वकृ. सारवेंत (गउड)। कवकृ. सारविज्जंत (सण)।

सारव :: सक [समा + रभ्] शुरूआत करना, प्रारम्भ करना। सारवइ (षड्)।

सारवण :: न [समारचन] संमार्जंन, साफ करना (ओघ ७३)।

सारविअ :: वि [समारचित] दुरुस्त किया हुआ, साफ किया हुआ (दे ८, ४९; कुमा; ओघभा ८)।

सारस :: पुं [सारस] १ पक्षि-विशेष (कप्प; औप; स्वप्‍न ७०; कुमा; सण) २ छन्द-विशेष (पिंग)

सारसी :: स्त्री [सारसी] १ षड्ज ग्राम की एक मूर्छंना (ठा ७ — पत्र ३९३)। मादा सारस- पक्षी। ३ छन्द-विशेष (पिंग)

सारस्सय :: पुं [सारस्वत] १ लौकान्तिक देवों की एक जाति (णाया १, ८ — पत्र १५१; पि ३५३)

सारह :: न [सारघ] मधु, शहद (पाअ; दे ८, २७)।

सारहि :: पुं [सारथि] रथ हाँकनेवाला (सम १; पाअ; महा)।

साराडि :: पुंस्त्री [दे] पक्षि-विशेष, शरारि पक्षी (दे ८, २४)।

साराय :: अक [साराय्] सार-रूप होना। वकृ. सारायंत (उप ७२८ टी)।

साराव :: सक [सारय्] विपकवाना, लगवाना, सील कराना। संकृ. 'सारविऊण लक्खं नीरंधत्तं तत्थ कयं' (धर्मंवि ५)।

सारि :: स्त्री [शारि] १ पक्षि-विशेष, मैना (गा ५५२) २ पासा खेलने का रंग-बिरंगा साँचा (गा १३८) ३ युद्ध के लिए गज- पर्याण (दे ७, ६१; भवि)

सारि :: दखो सारी (दे) (पाअ)।

सारिअ :: वि [सारिक] सारवाला; 'आरोग्ग- सारिअं माणुसत्तणं सच्चसारिओ धम्मो' (श्रा १८)।

सारिअ :: वि [सारित] चिपकाया हुआ, सील किया हुआ; तत्तो कुंभीए निक्खिविऊण तीए सम्मं मुहं पूरिऊण उवरि लक्खाए सारियाए' (सम्मत्त २२९)।

सारिआ, सारिइआ :: स्त्री [सारिका] मैना, पक्षि- विशेष (गा ५९८, पाअ; दे ८, २४)।

सारिक्ख :: न [सादृक्ष्य] समानता, सरीखाई (हे २, १७; कुमा; धर्मंसं ४२५; समु १८०; विसे ४६९)।

सारिक्ख, सारिच्छ :: वि [सदृक्ष] समान, सरीखा; 'सारिक्खविप्पलंभा तह भेदे किमिह सारिक्खं' (धर्मंसं ४२५; समु १७९; प्राप्र; हे १, ४४; कुमा; गा ३०; ९४)।

सारिच्छ :: देखो सारिक्ख = सादृक्ष्य (हे २, १७, सुर १२, १२२)।

सारिच्छिआ :: स्त्री [दे] दूर्वा, दूब (दे ८, २७)।

सारिज्जंत :: देखो सार = सारय्।

सारिस :: देखो सरिस = सदृश (संक्षि २; वज्जा ११४)।

सारिस, सारिस्स :: न [सादृश्य] समानता, सरीखाई (राज; नाट — रत्‍ना ७६)।

सारी :: स्त्री [दे] वृसी, ऋषि का आसन (दे ८, २२; ६१)। २ मृत्तिका, मिट्टी (दे ८, २२ टी)

सारी :: स्त्री [शारी] देखो सारि = शारि; 'सज्जिओ कंचणगुडासारीहिं. . . .हत्थी' (कुप्र १२०)।

सारीर :: वि [शारीर] शरीर का, शरीर-संबन्धी (उव; सुर ४, ७५)।

सारीरिय :: वि [शारीरिक] ऊपर देखो (सुर १२, १०; सण)।

सारूवि, सारूविअ :: पुं [सारूपिन्, °क] जैन साधु के समान वेष को धारण करनेवाला रजोहरण-वर्जित स्त्री-रहित गृहस्थ, साधु और गृहस्थ के बीच की अवस्थावाला जैन पुरुष (संबोध ३१; ५४; बृह १; वव ४)।

सारूविअ :: न [सारूप्य] समान-रूपता (सूअ २, ३, २; २१)।

सारेच्छ :: देखो सारिच्छ = सादृक्ष्य (गउड)।

सोरोहि :: वि [संरोहिन्] संरोहण-कर्ता (पि ७६)।

साल :: पुं [साल, शाल] १ ज्योतिष्क महाग्रह- विशेष (ठा २, ३ — पत्र ७८) २ वृक्ष-विशेष, साखू का पेड़ (सम १५२; औप; कुमा) ३ वृक्ष, पेड़। ४ किला, प्राकार (सुपा ४६७) ५ एक राजा; 'साल महासाल- सालिभद्दो य' (पडि) ६ पक्षि-विशेष (पणह १, १ टी-पत्र १०) ७ पुनं. एक देव- विमान (सम ३५)। °कोट्‍ठय न [°कोष्टक] चैत्य-विशेष (राज)। °वाहण, °हण [°वाहन] एक सुप्रसिद्ध राजा (विचार ५३१; हे १, २११; प्राप्र; पि २४४; षड्; कुमा)

साल :: देखो सार = सार (सुपा ३८४; णाया १, १६ — पत्र १९६)। °इय वि [°चित] सार-युक्त (णाया १, १६)।

साल :: न [शाला] घर, गृह; 'मायामहसालंपि हु कालेणं सयलमुच्छन्नं' (सुपा ३८४)।

साल :: पुं [श्‍याल] साला, बहू का भाई (मोह ८८; सिरि ९८८; भवि; नाट मृच्छ ३५)।

साल :: /?/पुं. देखो साला = (दे), 'जस्स सालस्स भग्गस्स'; 'परित्तजीवे उ से साले' (पणण १ — पत्र ३७; ठा ८ — पत्र ४२९)। °मंत वि [°वत्] शाखावाला (णाया १, १ टी — पत्र ४; औप)।

साल° :: देखो साला = शाला। °गिह, °घर न [°गृह] १ भित्ति-रहित घर (निचू ८) २ बरामदावाला घर (राय)

सालइय :: देखो सारइय = शारदिक (णाया १, १६ पत्र १९६)।

सालंकायण :: न [शालङ्कायन] १ कौशिक गोत्र का एक शाखा-गोत्र। २ पुंस्त्री. उस गोत्रवाला (ठा ७ — पत्र ३९०)

सालंकी :: स्त्री [दे] सारिका, मैना (दे ८, २४)।

सालंगणी :: स्त्री [दे] सीढ़ी, निःश्रेणी (दे ८, २६; कुप्र १२०)।

सालंब :: वि [सालम्ब] अवलम्बन-युक्त, आश्रय- युक्त (गउड; राज)।

सालकल्लाण :: पुं [शालकल्याण] वृक्ष-विशेष (भग ८, ३ टी — पत्र ३६४)। देखो सालकल्लाण।

सालक्किआ :: स्त्री [दे] सारिका, मैना (षड्)।

सालग :: न [दे] १ वृक्ष की बाहरी छाल (निचू १५) २ लम्बी शाखा (आव १) ३ रस; 'अंबसालगं वा अंबदालगं वा भोत्तए वा पायए वा' (आचा २, ७, २, ७)

सलणय :: न [सारणक] कढ़ी के समान एक तरह का खाद्य (भवि)।

सालभंजी :: देखो सालहंजी (धर्मंवि १४७; कुमा)।

सालस :: वि [सालस] आलस्य-युक्त, अलसी (गउड; सुपा २५१)।

सालहंजिया, सालहंजी :: स्त्री [शालभञ्जिका, °ञ्जी] काष्ठ आदि की बनाई हुई पुतली (सुपा ४३; ५४)।

सालहिआ, सालही :: स्त्री [दे] सारिका, मैना (पाअ; श्रा २८; दे ८, २४)।

साला :: स्त्री [शाला] १ गृह, घर। २ भित्ति- रहित घर (कुमा; उप ७२८ टी) ३ छन्द-विशेष (पिंग)

साला :: स्त्री [दे] शाखा (दे ८, २२; पणह १, ३ पत्र ५४; दस ७, ३१; राय ८८)।

सालइय :: देखो सलाग (राज)।

सालाणय :: वि [दे] १ स्तुत, जिसकी स्तुति की गई हो वह। २ स्तुत्य, स्तुति-योग्य (दे ८, २७)

सालाहण :: देखो साल-हण = शाल-वाहन।

सालि :: पुंन [शालि] १ व्रीहि, धान, चावल (सूअ २, २, ११; गा ५६९; ६९१; कुमा; गउड) २ वलयाकार वनस्पति-विशेष, वृक्ष-विशेष (पणण १ — पत्र ३४)। °भद्द पुं [°भद] एक प्रसिद्ध श्रेष्ठि-पुत्र, जिसने भगवान् महावीर के पास दीक्षा ली थी (उव; पडि)। °भसेल, °भसेल्ल पुं [दे] धान के कणिश — बाल का तीक्ष्ण अग्रभाग (राज; उवा)। °रक्खिआ स्त्री [°रक्षिका] धान का रक्षण करनेवाली स्त्री, कलम-गोपी (पाअ)। °वाहण पुं [°वाहन] एक सुप्रसिद्ध राजा (सम्मत्त १३७)। देखो साल- वाहण। °सच्छिय पुं [°साक्षिक] मत्स्य की एक जाति (पणण १ — पत्र ४७)। °सित्थ पुं [°सिक्‍थ] मत्स्य-विशेष (आरा ६३)

°सालि :: वि [°शालिन्] शोभनेवाला (गउड; कुमा)।

सालिआ :: स्त्री [शालिका] घर का कमरा, 'एणिंह सुवंति घरमज्झिमसालिआसु' (कप्पू)।

सालिआ :: देखो साडिआ (राज)।

सालिणिआ, सालिणी :: स्त्री [शालिनिका, °नी] १ शोभनेवाली; 'पीणसोणिथ- णसालिणिआहिं' (अजि २६) २ छन्द-विशेष (पिंग)

सालिभंजिया :: स्त्री [शालिभञ्जिका] पुतली (पउम १६, ३७)।

सालिय :: पुं [शालिक] तन्तुवाय, जुलाहा (विसे २६०१)।

सालिय :: वि [शाल्मलिक] शाल्मलि वृक्ष का, सेमल के गाछ का; 'एगं सालियापोडं बद्धो आमेलगो होइ' (उत्तनि ३)।

सालिस :: देखो सारिस = सदृश (णाया १, १ — पत्र १३; ठा ४, ४ — पत्र २६५; कप्प)।

सालिहीपिउ :: पुं [शालिहीपितृ] एक जैन गृहस्थ (उवा)।

साली :: स्त्री [श्‍याली] पत्‍नी-भगिनी, भार्या की बहन (दे ६, १४८)।

सालुअ :: पुंन [शालूक] जल-कन्द विशेष, कमल-कन्द (आचा २, १, ८, ३; दस ५, २, १८)।

सालुअ :: न [दे] १ शम्बूक, शंख। सूखे यव आदि धान्य का अग्र भाग (दे ८, ५२)

सालूर :: पुंस्त्री [शालूर] १ भेक, मेंढक (पाअ सुर ३, ७४; सुपा ९२; सार्धं १०९; सूक्त २)। स्त्री. °री (गा ३९१) २ न. छन्द-विशेष (पिंग)

साव :: सक [श्रावय्] सुनाना। सावेंति (औप)। वकृ. सावंत, साविंत, सावेंत (औप; राज; पउम १०, ५७)।

साव :: पुं [शाप] १ सराप, आक्रोश (औप; कुमा; प्रति ९९) २ शपथ, सौगंध (प्राप्र; हे १, २३१)

साव :: पुं [शाव] बालक, बच्चा (समु १५६; प्राकृ ८५)।

साव :: पुं [स्वाप] स्वपन, शयन, सोना (विसे १७५५)।

साव :: (अप) देखो सव्व = सर्वं (हे ४, ४२०)।

सावइज्ज :: देखो सावएज्ज (कप्प)।

सावइत्तु :: वि [श्रावयितृ] सुनानेवाला (सूअ २, २, ७९)।

सावएज्ज :: न [स्वापतेय] धन, द्रव्य (कप्प)।

सावक्क :: न [सापत्न्य] सपत्‍नीपन, सौतिनपन (कुप्र २५५)।

सावक्क :: वि [सापत्‍न] सौतेली माँ की संतान (धर्मंवि ४७)।

सावक्का :: स्त्री [सपत्‍नी] सौतेली माँ, विमाता; गुजराती में 'सावकी'; 'सावक्का सुयजणणी पासत्था गहिय वायए लेहं' (धर्मंवि ४७)।

सावग :: पुंन [श्रावक] १ जैन उपासक, अर्हंद्- भक्त गृहस्थ (ठा १० — पत्र ४९९; उवा; णाया १, २ — पत्र ९०)। २ ब्राह्मण। ३ वृद्ध श्रावक (णाया १, १५ — पत्र १९३; अणु २४); 'तओ सागरचंदो कमलामेला य....गहियाणुव्वयाणि सावगाणि संवुत्ताणि' (आक ३१) ४ वि. सुननेवाला। ५ सुनानेवाला (हे १, १७७)। °धम्म पुं [°धर्म] प्राणातिपात-विरमण आदि बारह व्रत, जैन गृहस्थ का धर्मं (णाया १, १४ — पत्र १९१)

सावज्ज :: वि [सावद्य] पाप-युक्त, पापवाला (भग; उव; ओघ ७६३; विसे ३४९६; सुर ४, ८२)।

सावण :: न [श्रावण] १ सुनाना (उप ७२८ टी सुपा २८८) २ पुं. मास-विशेष, सावन का महीना (पउम ९७, ७; कप्प; हे ४, ३५७; ३९६) ३ वि. श्रवणेन्द्रिय-सम्बन्धी, श्रावण- प्रत्यक्ष का विषय, जो कान से सुना जाय वह (धर्मंसं १२८१)

सावणा :: स्त्री [श्रावणा] सुनाना (कुप्र ६०)।

सावणी :: स्त्री [स्वापनी] देखो सायणी (ठा १० — पत्र ५१९)।

सावतेज्ज, सावतेय :: देखो सावएज्ज (णाया १, १ — पत्र ३९; औप; सूअ २, १, ३६)।

सावत्त :: देखो सावक्क (दे १, २५; भवि; सिरि ४९; कप्पू)।

सावत्थिगा :: स्त्री [श्रावस्तिका] एक जैन मुनि- शाखा (कप्प — पृ ८१)।

सावत्थी :: स्त्री [श्रावस्ती] कुणाल देश की प्राचीन राजधानी (णाया १, ८ — पत्र १४०; उवा)।

सावन्न :: (अप) देखो सामन्न = सामान्य (भवि)।

सावय :: देखो सावग (भग; उवा; महा), 'एयं कहेहि सुंदर सवित्थरं सच्चसावओ तुहयं' (पउम ५३, २६)।

सावय :: पुं [श्वापद] शिकारी पशु, हिंसक जानवर (णाया १, १ — पत्र ६५; गउड; प्रासू १५४; महा; सण)।

सावय :: पुं [दे] १ शरभ, श्वापद पशु-विशेष (दे ८, २३) २ बालों की जड़ से होनेवाला एक तरह का क्षुद्र कीट (जी १६)

सावय :: पुं [शावक] बालक, बच्चा, शिशु (नाट)।

सावरी :: स्त्री [शावरी] विद्या-विशेष (सूअ २, २, २७)।

सावसेस :: वि [सावशेष] अवशिष्ट, बाकी बचा हुआ; 'जावाऊ सावसेसं' (उव)।

सावहाण :: वि [सावधान] अवधान-युक्त, सचेत (नाट; रंभा)।

साविअ :: वि [शापित] १ जिसको शाप दिया गया हो वह। २ जिसको सौगंध दिया गया हो वह (णाया १, १ — पत्र २९; भग १५ — पत्र ६८२; स १२६)

साविअ :: वि [श्रावित] सुनाया हुआ (भग १५ — पत्र ६८२; णाया १, १ — पत्र २९; पउम १०२, १५; ६६; सार्ध १८)।

साविआ :: स्त्री [श्राविका] जैन गृहस्थ-धर्मं पालनेवाली स्त्री (भग; णाया १, १६ — पत्र २०४; कप्प; महा)।

साविक्ख :: वि [सापेक्ष] अपेक्षा-युक्त, अपेक्षावाला (श्रा ९; संबोध ४१)।

साविगा :: देखो साविआ (ठा १० — पत्र ४९९; णाया १, २ — पत्र ९०; महा)।

साविट्ठी :: स्त्री [श्राविष्ठी] १ श्रावण मास की पूर्णिमा। २ श्रावण की अमावस (सुज्ज १०; ६; इक)

सावित्ती :: स्त्री [सावित्री] ब्रह्मा को पत्‍नी (उप ५९७ टी; कुप्र ४०३)।

साविह :: पुं [श्वाविध] श्वापद पशु-विशेष, साही (दे २, ५०; ८, १५)।

सावेक्ख :: देखो साविक्ख (पउम १००, ११; उप ८७०)।

सास :: सक [शास्] १ सजा करना। २ सीख देना। ३ हुकुम करना। भूका. सासित्था (कुप्र १४)। कर्मं. सासिज्जइ, सीसइ (नाट — मृच्छ २००, कुप्र ३९९)। वकृ. सास°, सासंत (उत्त १, ३७; औप; पि ३९७)। कृ. सासणीअ (नाट — विक्र १०४)। कवकृ. सासिज्जंत (उप १४९ टी)

सास :: सक [कथय्] कहना। सासइ (षड्)। कर्मं. सासइ (प्राकृ ७७)।

सास :: पुं [श्वास] १ साँस (गा १४१; १४७) २ रोग-विशेष, श्वास-रोग (णाया १, १३ — पत्र १८१; उवा; विपा १, १)। °हरा स्त्री [°धरा] जीवन धारण करनेवाली (दश° वृ° हारि° पत्र ९४, २)

सास :: पुंन [शस्य, सस्य] १ क्षेत्र-गत धान्य (पणह १, ४ — पत्र ७२; स १३१); 'सासा अकिट्ठजाया' (पउम ३३, १४) २ वृक्ष आदि का फल। ३ वि. वध-योग्य (हे १, ४३)। देखो सस्स = शस्य।

सासग :: पुंन [सस्यक] रत्‍न की एक जाति, 'पुलगवइरिंदनीलसासगकक्केयणालोहियक्ख — ' (कप्प)।

सासग :: पुं [सासक] वृक्ष-विशेष, बीयक नाम का पेड़ (णाया १, १ — पत्र २४)।

सासण :: न [शासन] १ द्वादशांगी, बारह जचैन अंग-ग्रंथ, आगम, सिद्धान्त, शास्त्र; 'अणु- सासणमेव पक्कमे' (सूअ १, २, १, ११; अणु ३८; सम्म १; विसे ८९४) २ प्रतिपादन (णंदि; उप पृ ३७४) ३ शिक्षा, सीख (अणु) ४ आज्ञा, हुकुम (पणह २, १ — पत्र १०१; महा) ५ ग्रास, निर्वाह-साधन; 'जीवंतसामिपडिमाए सासणं विअरिऊण भत्तीए' (कुलक २३) ६ वि. प्रतिपादक, प्रतिपादन-कर्ता (सम्म १; गण २२; णंदि ४८) ७ प्रतिपाद्य. जिसका प्रतिपादन किया जाय वह (पणह २, १ — पत्र ९९)। °देवी स्त्री [°देवी] शासन की अधिष्ठात्री देवी (कुमा)। °सुरा स्त्री [°सुरी] वही अर्थं (पंचा ८, ३२)

सासण :: देखो सासायण (कम्म २, २; ५; १४; ४, १८; २६; ५, ११; ६, ५९; पंच २, ४२)।

सासणा :: स्त्री [शासना] शिक्षा (पणह २, १ — पत्र १००)।

सासणावण :: न [शासन] आज्ञापन (स ४६३)।

सासय :: वि [शाश्वत] नित्य, अविनश्वर (भग; पाअ; से २, ३; सुर ३, ५८; प्रासू १४१)।

सासय :: पुं [स्वाश्रय] निज का आधार (से २, ३)।

सासव :: पुं [सर्षप] सरसो (आचा २, १, ८, ३)। °नालिया स्त्री [°नालिका] कन्द-विशेष (आचा २, १, ८, ३)।

सासवूल :: पुं [दे] कपिकच्छू का पेड़, कौछ, किवाच, कवाछ (दे ८, २५)।

सासाण, सासायण :: न [सास्वादन] १ गुण-स्थानक- विशेष, द्वितीय गुण-स्थान (कम्म ४, १३; ४९) २ वि. द्वितीय गुण-स्थान में वर्तमान जीव (सम्य १९; सम्म २६)

सासि :: वि [श्वासिन्] श्वास-रोगवाला (तंदु ५०)।

सासिदु :: (शौ) वि [शासितृ] शासन-कर्ता, शिक्षा-कर्ता (अभि २१४)।

सासिल्ल :: देखो सासि (विपा १, ७ — पत्र ७३)।

सासुया :: देखो सासू (सुर ६, १५७; ९, २३३; सिरि ९४६)।

सासुर :: न [श्वाशुर] श्वशुर-गृह (सुर ८, १९४)।

सासुर :: (अप) देखो ससुर = श्वशुर (भवि)।

सासू :: स्त्री [श्वश्रु] सासू, पति तथा पत्‍़नी की माता (पाअ; पउम १७, ४; गा ३३६)।

सासूय :: वि [सासूय] असूया-युक्त, मत्सरी (सुर ३, १९७; उप ७२८ टी)।

सासेरा :: स्त्री [दे] यान्त्रिक नाचनेवाला, यन्त्र की बनी हुई नर्त्तकी (राज)।

साह :: सक [कथय्, शास्] कहना। साहइ, साहेइ (हे ४, २; उव; काल; महा)। साहसु, साहेसु (महा)। भवि. साहिस्सइ, साहिस्सामो (महा; आचा १, ४, ४, ४)। वकृ. साहेंत, साहयंत (हेका ३८; काप्र ३०; सुर ९, १३२)। कवकृ. साहिज्जंत, साहिप्पंत, साहिय्यंत, साहियमाण (चंड; सुर १, ३०; सुपा २०५; चंड; सुपा २६३; उप पृ़ ४२; चंड)। संकृ. साहिऊण, साहेत्ता (काल)। हेकृ. साहिउं (काल; महा)। कृ. साहियव्व, साहेअव्व (महा; सुर १, १५४)।

साह :: देखो सलाह = श्लाघ्। कृ. साहणीअ (प्राप)।

साह :: सक [साध्] १ सिद्ध करना, बनाना। २ वश में करना। साहइ, साहेइ, साहेंति (भग; कप्प; उव; प्रासू २७; महा)। वकृ. साहंतस साहिंत, साहेमाण (सिरि ९२८; महा; सुर १३; ८२)। कवकृ, साहिज्जमाण (नाट)। हेकृ. साहिउं (महा)। कृ. साह- णिज्ज, साहणीअ, साहियव्व (मा ३९; पउम ३७, ३०; सुर ३, २८)

साह :: पुं [दे] १ वालुका, बालू। २ उलुक, उल्लु। ३ दधिसर, दही की मलाई (दे ८, ५१) ४ प्रिय, पति (संक्षि ४७)

साह :: (अप) देखो सव्व = सर्व (हे ४, ३६६; कुमा)।

साहंजण, साहंजय :: पुं [दे] गोक्षुर, गोखरू (दे ८, २७)।

साहंजणी :: स्त्री [साभाञ्जनी] नगरी-विशेष (विपा १, ४ — पत्र ५४)।

साहग :: वि [साधक] सिद्धि करनेवाला, साधना करनेवाला (णाया १, ८ टी — पत्र १५५; कप्प; नव २५; सुपा ८४; धर्मंसं ७०; हि २०)।

साहग :: वि [शासक, कथक] कहनेवाला (सुर १२, ३०; स ३६१)।

साहज्ज :: न [साहाय्य] सहायता, मदद (विसे २९५८; गण ६; रयण १४; सिरि ३६८, कुप्र १२)।

साहट्ठ :: सक [सं + वृ] संवरण करना, समेटना। साहट्टइ (हे ४, ८२)।

साहट्टिअ :: वि [संवृत] समेंटा हुआ, संहत किया हुआ, पिंडीकृत (कुमा)।

साहट्‍टु :: अ [संहृत्य] समेट कर, संकुचित कर; 'दाहिणं जाणुं धरणितलंसि साहट्‍टुं' (कप्प), 'साहट्‍टु पायं रीएज्जा' (आचा २, ३, १, ६); 'बियडेण साहट्‍टु य जे सिणाई' (सूअ १, ७, २१)।

साहट्ठ :: वि [संहृष्ट] पुलकित (राज)।

साहण :: सक [सं + हन्] संघात करना, संहत करना, चिपकाना। साहणंति (भग)। कर्मं. साहन्‍नंति (भग १२, ४ — पत्र ५६१) कवकृ. साहण्णंत, साहन्नंत (राज; ठा २, ३ — पत्र ६२)। संकृ. साहणित्ता (भग)।

साहण :: न [साधन] १ उपाय, कारण, हेतु (बिसे १७०६) २ सैन्य, लश्‍कर (कुमा; सुर १०, १२१) ३ वि. सिद्ध करनेवाला; 'जह जीवाण पमाओ अणत्थसयसाहणो होइ' (हि १३; सुर ४, ७०)। स्त्री. °णा, °णी (हे ३, ३१; षड्)

साहणण :: न [संहनन] संघात, अवयवों का आपस में चिपकना (भग ८, ९ — पत्र ३९५; १२, ४ — पत्र ५६७)।

साहणिअ :: पुं [साधनिक] सेना-पति (सुपा २९२)।

साहणिज्ज :: देखो साह = साध्।

साहणी :: देखो साहण = साधन।

साहणीअ :: देखो साह = श्‍लाघ्, साध्।

साहण्णंत :: देखो साहण =स + हन्।

साहत्थिं :: अ [स्वहस्तेन] १ अपने हाथ से। २ साक्षात् (णाया १, ९ — पत्र १६३; उवा)

साहत्थिया, साहत्थी :: स्त्री [स्वाहस्तिकी] क्रिया-विशेष, अपने हाथ से गृहीत जीव आदि द्वारा हिंसा करने से होनेवाला कर्मं-बन्ध (ठा २, १ — पत्र ४०; नव १८)।

साहन्नंत :: देखो साहण = सं + हन्।

साहम्म :: न [साधर्म्य] १ समान धर्मं, तुल्य धर्मं (सम्म १५३; पिंड १३९) २ सादृश्य, समानता (विसे २५८९; ओघ ४०४; पंचा १४, ३५)

साहम्मि :: वि [सधर्मिन्, साधर्मिन्] समान धर्मंवाला, एक-धर्मी (पिंड १३९; १४६; १४७)। स्त्री. °णी (आचा २, १, १, १२; महा)।

साहम्मिअ, साहम्मिग :: वि [साधर्मिक] ऊपर देखो (ओघ १५; ७७९; औप; उत्त २९, १; कस; सुपा ११२; पंचा १६, २२)।

साहय :: देखो साहग = साधक (उप ३९०; स ४५; काल)।

साहय :: देखो साहग = शासक, कथक (सम्म १४३)।

साहय :: वि [संहृत] संक्षिप्‍त, समेटा हुआ (पणह १, ४ — पत्र ७८; औप; तंदु २०)।

साहर :: सक [सं + वृ] संवरण करना। साहरइ (हे ४, ८२)।

साहर :: सक [सं + हृ] १ संकोच करना; संक्षेप करना, सकेलना, समेटना। २ स्थानान्तर में ले जाना। ३ प्रवेश कराना। ४ छिपाना। ५ व्यापार-रहित करना। साहरइ, साहरे, साहरंति (भग ५, ४ — पत्र २१८; कप्प; उव; सूअ १, ८, १७; पि ७६)। साहरिज्ज (भग ५, ४)। भवि. साहरिज्जिस्सामि (कप्प)। कवकृ. साह- रिज्जमाण (कप्प; औप)। संकृ. साहरित्ता (कप्प)। हेकृ. साहरित्तए (भग ५, ४ — पत्र २१८)

साहरण :: न [संहरण] एक स्थान से दूसरे स्थान में ले जाना, स्थानान्तर-नयन (पिंड ६०६; ६०७)।

साहरय :: वि [दे] गत-मोह, मोह-रहित (दे ८, २६)।

साहरिअ :: वि [संहृत] १ स्थानान्तर में नीत (सम ८९; कप्प) २ अन्यत्र क्षिप्‍त (पिंड ५२०) ३ संलीन किया हुआ, संकोचित (औप)

साहरिअ :: वि [संवृत] संवरण-युक्त (कुमा; पाअ)।

साहल्ल :: न [साफल्य] सफलता (ओघ ७३)।

साहव :: देखो साहु = साधु; 'अह पेच्छइ साहबं तहिं वालिं' (पउम ९, ६१; ७७, ९४)।

साहव :: न [साधव] साधुता, साधुपन (पउम १, ९०)।

साहव्व :: न [स्वाभाव्य] स्वभावता, स्वभाव- पन (धर्मंसं ६६)।

साहस :: न [साहस] १ बिना बिचार किया जाता काम (उव, महा) २ पुं. एक विद्या- धर नरेन्द्र; साहस-गति (पउम ४७, ४७)। °गइ पुं [°गहि] वही अर्थ (पउम ४७, ४५; महा)

साहस :: देखो साहस्स = साहस्र (राज)।

साहसि :: वि [साहसिन्] साहस-कर्म करनेवाला, साहसिक; 'ते धीरा साहसिणो उत्तम- सत्ता' (उप ७२८ टी; किरात १४)।

साहसिअ :: वि [साहसिक] ऊपर देखो (औप; सूअ २, २, ६२; चारु ३७; कुप्र ४१९)।

साहस्स :: वि [साहस्र] १ जिसका मूल्य हजार (मुद्रा, रुपया आदि) हो वह वस्तु (दसनि ३, १३; उव; महा) २ हजार का परिमाणवाला; 'जोयणसयसाहस्सो वित्थिणणो मेरुनाभीओ' (जीवस १८५) ३ न. हजार (जीवस १८५)। °मल्ल पुं [°मल्ल] व्यक्ति- वाचक नाम (उव)

साहस्सिय :: वि [साहस्रिक] १ हजार का परिमाणवाला (णाया १, १ — पत्र ३७; कप्प) २ हजार आदमी के साथ लड़नेवाला मल्ल (राज)

साहस्सी :: स्त्री [साहस्री] हजार, दस सौ; 'गिहत्थाण अणेगाओ साहस्सीओ समागया' (उत्त २३, १९; सम २९; उवा; औप, उत्त २२, २३; हे ३, १२३)।

साहा :: स्त्री [श्लाघा] प्रशंसा (सम ५१)।

साहा :: अ [स्वाहा] देवता के उद्देश से द्रव्य- त्याग का सूचक अव्यय, आहुति-सूचक शब्द (ठा ८ — पत्र ४२७; ओघभा ५७)।

साहा :: स्त्री [शाखा] १ एक ही आचार्य की संतति में उत्पन्‍न अमुक मुनि की सन्तान- परम्परा, अवान्तर संतति (कप्प) २ वृक्ष की डाल, डाली (आचा २, १, ७, ६; उव; औप; प्रासू १०२) ३ वेद का एख देश (सुख ४, ९) °भंग पुं [°भङ्गं] शाखा का टुकड़ा, पल्लव (आचा २, १, ७, ६)। °मय, °मिअ, °मिग पुं [°मृग] वानर, बन्दर (पाअ; ती २; सुपा २६२; ६१८)। °र ल वि [°वत] १ शाखावाला, शाखा- युक्त (धम्म १२ टी; सुपा ४७४) २ पुं. वृक्ष, पेड़ (सुपा ६३८)

साहाणुसाहि :: पुं [दे] शक देश का सम्राट्, बादशाह; पत्तो सगकूलं नाम कूल, तत्थ जं सामंता ते साहिणा भणणंति जो सामंता- हिवई सयलनरिंदवंडचूडामणी सो साहाणुसाही भणणइ' (काल)।

साहार :: सक [सं + धारय्] अच्छी तरह धारण करना। साहारइ (भवि)।

साहार :: पुं [सहकार] आम का गाछ, 'होसइ किल साहारो साहारे अंगणम्मि वड्ढंते' (वज्जा १३०; सुपा ६३८)।

साहार :: पुं [दे. साधुकार] साहुकार, महा- जन (धम्म १२ टी)।

साहार :: पुं [सदाधार सहकार] अच्छाॉ आधार, सहारा, अवलम्बन, सहायता, मदद, उपकार; 'परिचित्तर जणेणं न वेसमेत्तेण साहारो' (उव; पुप्प २२५); 'भुजंतो आहारं गुणोवयारसरीरसाहारं' (ओघ ५८३; स ४२५; वज्जा १३०; सण)।

साहार :: वि [साहकार] आम के गाछ से उत्पन्न, आम्र-वृक्ष-सम्बन्धी (कप्पू)।

साहार, साहारण :: पुंन [साधारण] १ वनस्पति- विशेष, जहाँ एक शरीर में अनन्त जीव हों वह वनस्पति, कन्द आदि। २ कर्मं. विशेष, जिसके उदय से साधारण-वनस्पति में जन्म होय वह कर्मं (कम्म २, २८; पणह १, १ — पत्र ८; कम्म १, २७; जी ८; पणण १ — पत्र ४२) ३ कारण (आचू १) ४ पुं. साधारण वनस्पति-काय का जीव (पणण १ — पत्र ४२) ५ वि. सामान्य। ६ समान, तुल्य (पणह १ — पत्र ४२) ७ पुंन. उपकार, सहायता, मदद; साहारणट्ठा जदे केइ गिलाणम्मि उवट्ठिए। पभू ण कुणई किच्चं' (सम ५१)। °सरीरनाम न [°शरीर- नामन्] देखो ऊपर का दूसरा अर्थं (सम ६७)

साहारण :: न [संधारण] ठीक तरह से धारण करना, टिकना; 'अभिक्कमे पडिक्कमे संकुचए पसारए कायसाहारणट्ठाए' (आचा १, ८, ८, १५)।

साहारण :: न [स्वाधारण] सहारा करना, उपकार करना (सम ५१)।

साहारण :: न [संहरण] संकोचन, समेटन (विसे ३०५२)।

साहारिअ :: वि [संघारित] ठीक तरह धारण किया हुआ (भवि)।

साहाविअ :: वि [स्वाभाविक] स्वभाव-सिद्ध, नैसर्गिक, कुदरती (गा २२५; गउड; कप्प; सुपा ४९३)।

साहि :: पुं [शाखिन्] वृक्ष, पेड़ (पाअ; सण, उप पृ १५३)।

साहि :: पुं [दे] १ शक देश का सामन्त राजा, 'पत्तो सगकूलं नाम कूलं। तत्थ जे सामंता ते साहिणो भणणंति' (भग) २ देखो साही (दे ८, ६; से १२, ९२)

साहि :: (अप) देखो सामि = स्वामिन् (पिंग)।

साहिअ :: वि [कथित, शासित, स्वाख्यात] कहा हुआ, उक्त, प्रतिपादित (सुपा २७९; सुर १, २०४; काल; पाअ; आचा)।

साहिअ :: वि [साघित] सिद्ध किया हुआ, निष्पादित (अंत १३; सुर ६, ९९; भवि)।

साहिअ :: वि [साधिक] सविशेष, सातिरेक (कप्प; सुपा २७९)।

साहिअ :: वि [स्वाहित] स्वहित से विरुद्ध, निज का अहित (सुपा २७९)।

साहिकरण :: वि [साधिकरण] १ अधिकरण- युक्त (निचु १०) २ कलह करता, झगड़ता (ठा ३ — पत्र ३५२)

साहिकरणि :: वि [साधिकरणिन्] अधिकरण- युक्त, शरीर आदि अधिकरणवाला (भग १६, १ — पत्र ६९८)।

साहिगरण :: देखो साहिकरण (राज)।

साहिगरणि :: देखो साहिकरणि (भग १६, १ टी — पत्र ६९९)।

साहिज्ज :: देखो साहज्ज (अंत १३; सुपा २०५; गउड; कुप्र १३)।

साहिज्जंत :: देखो साह = कथय्।

साहिज्जमाण :: देखो साह =साध्।

साहिण :: (अप) वि [कथित] कहनेवाला (सण)।

साहित्त :: न [साहित्य] अलंकार-शास्त्र (सुपा १०३; ४५३)।

साहिप्पंत, साहियमाण, साहिय्यंत :: देखो साह = कथय्।

साहिर :: वि [शासितृ, कथयितृ] शासन करनेवाला, कहनेवाला (गउड)।

साहिलय :: न [दे] मधु, शहद (दे ८, २७)।

साही :: स्त्री [दे] १ रथ्या, मुहल्ला (दे ८, ६; से १२, ९२) २ वर्तंनी, मार्गं, रास्ता (पिंड ३३४) ३ राजमार्गं (से १२, ९२) ४ खिड़की, छोटा दरवाजा (ओघ ६२२)

साहीण :: वि [स्वाधीन] स्वायत्त, स्वतन्त्र (पाअ; गा १९७; चारु ४३; सुर ३, ५६; प्रासु ६९)।

साहीय :: देखो साहिअ = साधिक; 'तेत्तीस उयहिनामा साहीया हुंति अजयसम्माणं' (जीवस २२३)।

साहु :: पुं [साधु] १ मुनि, यति (विसे ३६००; आचा; सुपा ३४२) २ सज्जन, सत्पुरुष; 'साहवो सुअणा' (पाअ) ३ वि. सुन्दर, शोभन, अच्छा (आचा; स्वप्‍न ६७; कुप्र ४५९)। °कम्म न [°कर्मन्] तप-विशेष, निर्विकृतिक तप (संबोध ५८)। °कार, °क्कार पुं [°कार] धन्यवाद, साधुवाद, प्रशंसा (वेणी ११४; ठा ४, ४ टी — पत्र २८३, पउम ५६; २३; से १३, १९; महा; भवि; विक्र १०९)। °नाह पुं [°नाथ] श्रेष्ठ मुनि, आचार्यं (सुपा ५४५)। °वाय पुंन [°वाद] प्रशंसा; 'जायं च साहुवायं' (सिरि ३३४; स ३८५; सुपा ३७०)

साहुई :: स्त्री [साध्वी] १ स्त्री-साधु, श्रमणी, यतिनी। २ सती स्त्री। ३ अच्छी (प्राकृ २८)

साहुणी :: स्त्री [सध्वी] स्त्री-साधु, यतिनी (काल; उप १०१४; सुपा ९७, ३३२; सार्ध २६; कुप्र २१४)।

साहुलिआ, साहुली :: स्त्री [दे] १ वस्त्र, कपड़ा (दे ८, ५२; गा ६०९ अ; कप्पू; पाअ; सुपा २२०; २४६) २ शिरोवस्त्र-खंड (रंभा) ३ शाखा, डाली (दे ८, ५२; षड्; पाअ) ४ भ्रू, भौं। ५ भुज, हाथ। ६ पिकी, कोयल। ७ सदृश, समान। ८ सखी, सहचरी (दे ८, ५२) ९ मयूर-पिच्छ (स ५२३ टि)

साहेज्ज :: देखो साहज्ज (दे ७, ८९; सुपा १५२; गउड महा; उपपं २८)।

साहेज्ज :: वि [दे] अनुगृहीत (दे ८, २६)।

साहेमाण :: देखो साह = साध्।

सिअ :: देखो सिव = शिव (संक्षि १७)।

सिअ :: वि [श्रित] आश्रित (से ६, ४८; उत्त १३, १५; सूअ १, ७, ८)।

सिअ :: देखो सिआ = स्यात् (भग; श्रावक १२८; धर्मंसं २५८; १११२; गण ५; कुप्र १५९)।

सिअ :: वि [शित] तीक्ष्ण धारवाला (सुपा ४७५)।

सिअ :: वि [स्वित] अच्छी तरह प्राप्‍त (विसे ३४४५)।

सिअ :: पुं [सित] १ शुक्ल वर्णं। २ वि. श्वेत, सफेद, शुक्ल (औप; उव; नाट — विक्र ७१; सुपा ११; भवि) ३ बद्ध, वँधा हुआ (विसे ३०२९) ४ न. नाम-कर्मं का एक भेद, श्वेत-वर्णं का कारण-भूत कर्मं (कम्म १, ४०९)। °किरण पुं [°किरण] चन्द्र, चाँद (उप १३३ टी)। °गिरि पुं [°गिरि] वैताढ्य पर्वंत की उत्तर श्रेणि में स्थित एक विद्याधर-नगर (इक)। °ज्झाण न [°ध्यान] सर्वं श्रेष्ठ ध्यान, शुक्ल ध्यान (सुपा १)। °पक्ख पुं [°पक्ष] शुक्ल पक्ष (सुपा १७१)। °यर पुं [°कर] चन्द्रमा (उप ७२८ टी)। °व़ड पुं [°पट] पाल, जहाज का बादवान; 'संकोइओ सियवडो पारद्धा देवयााण विन्नत्ती' (उफ ७२८ टी)। °वास पुं [°वासस्] श्‍वेताम्बर जैन (ती १५)

सिअ :: (अप) देखो सिरी = श्री (भवि)। °वंत वि [°मत्] लक्ष्मी-संपन्न, धनाढ्य (भवि)।

सिअ् :: देखो सिवय (गा ८७७; ८९८; कप्पू)।

सिअंग :: पुं [दे] वरुण देवता (दे ८, ३१)।

सिअंबर :: पुं [श्वेताम्बर] जैनों का एक सम्प्र- दाय, श्वेताम्बर जैन (सुपा ६५८)।

सिअल्लि :: पुंस्त्री [दे] वृक्ष-विशेष (स २५६)। देखो सीअल्लि।

सिआ :: देखो सिवा = शिवा (से १३, ६५)।

सिआ :: अ [स्यात्] इन अर्थों का सूचक अव्यय — १ प्रशंसा, श्‍लाघा। २ अस्तित्व, सत्ता। ३ संशय, संदेह। ४ प्रश्‍न। ५ अवधारण, निश्चय। ६ विवाद। ७ विचारणा (हे २, १०७) ८ अनेकान्त, अनिश्चय, कदाचित् (सूअ १, १०, २३, बृह १; पणण ५ — पत्र २३७)। °वाइ पुं [°वादिन्] जिनदेव, अर्हंन् देव (कुमा)। °वाय पुं [°वाद] अनेकान्त दर्शंन, जैन दर्शंन (हे २, १०७; चंड; षड्)

सिआ :: स्त्री [सिता] १ लेश्या-विशेष, शुक्ल- लेश्या (पव १५२) २ द्राक्षा आदि का संग्रह (राज)

सिआल :: पुं [श्रृगाल, सृगाल] १ पशु-विशेष, सियार, गीदड़ (णाया १, १ — पत्र ६५) २ दैत्य-विशेष। ३ वासुदेव। ४ निष्ठुर। ५ खल, दुर्जंन (हे १, १२८; प्राप्र)

सिअली :: स्त्री [दे] डमर, देश का भीतरा या बाहरी उपद्रव (दे ८, ३२)।

सिआली :: स्त्री [श्रृगाली] मादा सियार (नाट; पि ५०)।

सिआलीस :: स्त्रीन [षट्‍चत्वारिंशत्] छेआ- लीस, चालीस और छः (विसे ३४६ टी)।

सिआसिअ :: पुं [सितासित] १ बलभद्र, बलराम। २ वि. श्‍वेत और कृष्ण (प्राप्र)

सिइ :: पुं [शिति] १ हरा वर्णं। २ वि. हरा वर्णवाला। °पापरण पुं [°प्रावरण] बल- राम, बलभद्र (कुमा)

सिइ :: स्त्री [दे. शिति] सीढ़ी, निःश्रेणी (पिंड ४७३; वव १०)।

सिउं :: (अप) देखो समं (भवि)।

सिउंठा :: स्त्री [दे. असिकुण्ठा] साधारण वनस्पति-विशेष (पणण १ — पत्र ३५)।

सिएअर :: वि [सितेतर] कृष्ण, काला (पाअ)।

सिंकला :: देखो संकला (अच्चु ४०)।

सिंखल :: न [दे] नूपुर (दे ८, १०; कुप्र ६८)।

सिंखला :: देखो संकला (से १, १४; प्राप; नाट — मृच्छ ८६)।

सिंग :: न [श्रृङ्ग] १ लगातार छब्बीस दिनों के उपवास (संबोध ५८) २ — देखो संग = श्रृङ्ग (उवा; पाअ; राय ४६; कप्प; उप ५९७ टी; सुपा ४३२; विक्र ८६; गउड; हे १, १३०)। °णाइय न [°नादित] प्रधान काज (पंचभा ३)। °पाय न [°पात्र] सीगं का बना हुआ पात्र (आचा २, ६, १, ५)। °माल पुं [°माली] वृक्ष-विशेष (राज)। °वंदण न [°वन्दन] ललाट से नमन (बृह ३)। °बेर न [°वेर] १ आर्द्रंक, आदी। २ शुण्ठी. सोंठ (उत्त ३६, ९७; दस ५, १, ७०; भास ८ टी; पणण १ — पत्र ३५)

सिंग :: वि [दे] कृश, दुर्बंल (दे ८, २८)।

सिंगय :: वि [दे] तरुण, जवान (दे ८, ३१)।

सिंगरीडी :: देखो सिंगिरीडी (राज)।

सिंगा :: स्त्री [दे] फली, फलियाँ (भास ८ टी)।

सिंगार :: पुं [श्रृङ्गार] १ नाट्यशास्त्र-प्रसिद्ध रस-विशेष, 'सिंगारो णाम रसो रइसंजोगा- भिलाससंजणाणो' (अणु) २ वेष, भूषण आदि की सजावट, भूषण आदि की शोभा (औप; विपा १, २) ४ लवङ्ग लौंग। ४ सिन्दूर। ५ चूर्णं, चून। ६ काला अगरु। ७ आर्द्रक, आदी। ८ हाथी का भूषण। ९ अलंकार, भूषण (हे १, १२८; प्राप्र) १० वि. अतिशय शोभावाल; 'तए णं समणस्स भगवओ महावीरस्स वियट्टभोइस्स सरीरयं ओरालं सिंगारं कल्लाणं सिवं धन्‍नं मंगल्लं अणलंकिअविभूसिअं . . . . . . . . . चिट्ठइ' (भग)

सिंगार :: सक [श्रृङ्गारय्] सिंगार करना, सजावट करना। सिंगारइ (भवि)।

सिंगारि :: वि [श्रृङ्गारिन्] सिंगार करनेवाला, शोभा करनेवाला (सिरि ८४४)।

सिंगारिअ :: वि [श्रृङ्गारित] सिंगारा हुआ, सजाया हुआ (सिरि १५८)।

सिंगारिअ :: वि [श्रृङ्गारिक] श्रृङ्गार-युक्त (उवा)।

सिंगि :: वि [श्रृङ्गीन्] १ सींगवाला (सुख ८, १३; दे ७, १६) २ पुं. मेष, भेड़। ३ पर्वत। ४ भारतवर्षं का एक सीमा-पर्वंत। ५ मुनि-विशेष। ६ वृक्ष (अणु १४२)

सिंगिणी :: स्त्री [दे] गौ, गैया (दे ७, ३१)।

सिंगिया :: स्त्री [श्रृङ्गिका] पानी छिड़कने का पात्र-विशेष, पिचकारी (सुपा ३२८)।

सिंगिरीडी :: स्त्री [श्रृङ्गीरीटी] चतुरिन्द्रिय जन्तु की एक जाति (उत्त ३६, १४८)।

सिंगी :: स्त्री [श्रृङ्गी] देखो सिंगिया (सुपा ३२८)।

सिंगेरिवम्म :: न [दे] वल्मीक (दे ८, ३३)।

सिंघ :: सक [शिङ्घ्] सूँघना। सिंघइ (कुप्र ८१)। संकृ. सिंघिउं (धर्मंवि ९४)। हेकृ. सिंघेउं (धर्मंवि ९४)।

सिंघ :: देखो सिंह (हे १, २९; विपा १, ४ — पत्र ५५; षड्)।

सिंघल :: देखो सिंहल (सुर १३, २९; सुपा १५; पि २६७)।

सिंघाडग, सिंघाडय :: पुंन [श्रृङ्गाटक] १ सिंघाड़ा, पानी-फल (पणण १ — पत्र ३६; आचा २, १, ८, ५) २ त्रिकोण मार्गं (पणह १, ३ — पत्र ५४; औप; णाया १, १ टी — पत्र ३; कप्प) ३ पुं. राहु (सुज्ज २०)

सिंघाण :: पुंन [शिङ्घाण] १ नासिका-मल, श्‍लेष्मा (ठा ५, ३ — पत्र ३४२; सम १०; पणह २, ५ — पत्र १४८; औप; कप्प; कस; दस ८, १८; पि २६७) २ पुं. काला पुद्गल-विशेष (सुज्ज २०)

सिंघासण :: देखो सिंहासण (स ११७)।

सिंघुअ :: पुं [दे] राहु (दे ८, ३१)।

सिंच :: सक [सिच्] सींचना, छिड़कना। सिंचइ (हे ४, ९६; महा)। भूका. सिंचिअ (कुमा)। भवि. सिंचिंस्सं (पि ५२६)। कृ. सिंचेयव्व (सुर ७, २३५)। कवकृ. सिच्चंत, सिच्चमाण (पि ५४२; उप २११ टी; स ३४९)।

सिंचण :: न [सेचन] छिड़काव (सूअ १, ४, १, २१; मोह ३१)।

सिंचाण :: पुं [दे] पक्षि-विशेष, श्येन पक्षी, बाज; गुजराती में 'सिंचाणो' (सण)।

सिंचाविअ :: वि [सेचित] छिड़कवाया हुआ (उप १०३१ टी; स २८०; ५४९)।

सिंचिअ :: वि [सिक्त] सींचा हुआ, छिड़का हुआ (कुमा)।

सिंज :: अक [शिञ्ज्] अस्फुट आवाज करना। वकृ. सिंजंत (सुपा ५०; सण)। कृ. सिंजि- अव्व (गा ३९२)।

सिंजण :: न [शिञ्जन] १ अस्पष्ट शब्द, भूषण की आवाज। २ वि. अस्पष्ट आवाज करनेवाला (सुपा ४)

सिंजा :: स्त्री [शिञ्जा] भूषण का शब्द (कप्पू; प्राप)।

सिंजिणी :: स्त्री [शिञ्जनी] धनुर्गुण, धनुष की डोरी (गा ५४)।

सिंजिय :: न [शिञ्जित] अव्यक्त आवाज (उप १०३१ टी; कप्पू)।

सिंजिर :: वि [शिञ्जितृ] अस्फुट आवाज करनेवाला, 'सद्दालं सिजिरं कणिरं' (पाअ)।

सिंझ :: पुंन [सिध्मन्] कुष्ठ रोग-विशेष (भग ७, ६ — पत्र ३०७)।

सिंड :: वि [दे] मोटित, मोड़ा हुआ (दे ८, २९)।

सिंढ :: पुं [दे] मयूर, मोर (दे ८, २०)।

सिंढा :: स्त्री [दे] नासिका-नाद, नाक की आवाज (दे ८, २९)।

सिंदाण :: न [दे] विमान (उप १४२ टी)।

सिंदी :: स्त्री [दे] खजुरी, खजूर का गाछ (दे ८, २९; पाअ; आवम)।

सिंदीर :: न [दे] नूपुर (दे ८, १०)।

सिंदु :: स्त्री [दे] रज्जु, रस्सी (दे ८, २८)।

सिंदुरय :: न [दे] १ रज्जु, रस्सी। २ राज्य (दे ८, ५४)

सिंदुण :: पुं [दे] अग्‍नि, आग (दे ८, ३२)।

सिंदुवार :: पुं [सिन्दुवार] वृक्ष-विशेष, निर्गुण्डी, सम्हालु का गाछ (गउड; कुमा; उप १०१९; कुप्र ११७)।

सिंदूर :: न [दे] राज्य (दे ८, ३०)।

सिंदूर :: न [सिन्दूर] १ सिंदूर, रक्त-वर्णं, चूर्णं-विशेष (पउम २, ३८; गउड; महा) २ पुं. वृक्ष-विशेष (हे १, ८५; संक्षि ३)

संदूरिअ :: वि [सिन्दूरित] सिन्दूर-युक्त किया हुआ (गा ३००)।

सिंदोल :: न [दे] खजुर, फल-विशेष (पाअ)।

सिंदोला :: स्त्री [दे] खजूरी, खजूर का पेड़ (दे ८, २९)।

सिंधव :: न [सैन्धव] १ सिंध देश का लवण, सेंधा नोन (गा ६७९; कुमा) २ पुं. घोड़ा (हे १, १४९)

सिंधविया :: स्त्री [सैन्धविका] लिपि-विशेष (विसे ४६४ टी)।

सिंधु :: स्त्री [सिन्धु] १ नदी-विशेष, सिन्धु नदी (धर्मंवि ८३; जं ४ — पत्र २९०; सम २७) २ नदी; 'सरिआ तरंगिणी निण्णया नई आवगा सिंघू' (पाअ) ३ सिन्धु नदी की अधिष्ठायिका देवी (जं ४) ४ पुं. समुद्र, सागर (पाअ; कुप्र २२; सुपा १, २६४) ५ देश-विशेष; सिन्ध देश (मुद्रा २४२; भवि; कुमा) ६ द्वीप-विशेष। ७ पद्म-विशेष (जं ४ — पत्र २९०) °णद न [°नद] नगर- विशेष (पउम ८, १६८)। °णाह पुं [°नाथ] समुद्र (समु १५१)। °देवी स्त्री [°देवी] सिन्धु नदी की अधिष्ठायिका देवी (उप ७२८ टी)। °देवीकूड पुं [°देवीकूट] क्षुद्र हिमवंत पर्वंत का एक शिखर (जं ४ — पत्र २९५)। °प्पवाय पुंन [°प्रपात] कुण्ड- विशेष, जहाँ पर्वंत से सिन्धु नदी गिरती है (ठा २, ३ — पत्र ७२)। °राय पुं [°राज] सिन्ध देश का राजा (मुद्रा २४२)। °वइ पुं [°पति] १ समुद्र, सागर (स २०२) २ सिन्ध देश का राजा (कुमा) °सोवीर पुं [°सौवीर] सिन्धु नदी के समीप का देश- विशेष (भग १३, ६; महा)।

सिंधुर :: पुं [सिन्धुर] हस्ती, हाथी (सुपा ८३; सम्मत्त १८७; कुमा)।

सिंप :: देखो सिंच। सिंपइ (हे ४, ९६)। कर्मं. सिप्पइ (हे ४, २५५) कवकृ. सिप्पंत (कुमा ७, ९०)।

सिंपिअ :: देखो सिंचिअ (कुमा)।

सिंपुअ :: वि [दे] पागल, भूत-गृहीत, भूताविष्ट (दे ८, ३०)।

सिंबल :: पुं [शाल्मल] सेमल का गाछ (रंभा २०)।

संबलि :: देखो संबलि = शाल्मलि (हे १, १४६; ८, २३; पाअ; सुर १४, ४३; पि १०९; संथा ८५; उत्त १९, ५२)।

सिंबलि :: स्त्री [शिम्बलि, शिम्बा] कलाय आदि की फली, छीमी, फलियाँ (भग १५ — पत्र ६८०; आचा २, १, १०, ३; दस ५, १, ७३)। °थालग पुंन [°स्थालक] १ फली की थाली। २ फली का पाक (आचा २, १, १०, ३)। देखो संबलि।

सिंबलिका :: स्त्री [सिम्बलिका] टोकरी (जिन- दत्ताख्यान)।

सिंबा :: स्त्री [शिम्बा] फली, छीमी; 'कोसी समी य सिंबा' (पाअ)।

सिंबाडी :: स्त्री [दे] नाक की आवाज (दे ८, २९)।

सिंबीर :: न [दे] पलाल, घास (दे ८, २८)।

सिंभ :: पुं [श्‍लेष्मन्] श्‍लेष्मा, कफ (हे २, ७४; तंदु १४; महा)।

सिंभलि :: देखो सिंबलि = शाल्मलि (सुपा ८४)।

सिंभि :: वि [श्‍लेष्मिन्] श्‍लेष्म-युक्त, श्‍लेष्म- रोगी (सुपा ५७६)।

सिभिय :: वि [श्‍लैष्मिक] श्‍लेष्म-सम्बन्धी (तंदु १९; णाया १, १ — पत्र ५०; औप; पि २६७)।

सिंह :: पुं [सिंह] १ श्वापग पशु-विशेष, मृग- राज, केसरी (प्रासू १५४; १६९) २ एक राज-कुमार (उप ९८६ टी) ३ एक राजा (रयण २६) ४ भगवान् महावीर का एक शिष्य, मुनि-विशेष (राज) ५ व्रत-विशेष, त्रिविधाहार को संलेखना — परित्याग (संबोध ५८) °अलोअण (अप) न [°विरोकन] १ सिंह की तरह पीछे देखना। २ छन्द-ृ विशेष (पिंग) °उर न [°पुर] पंजाब देश का एक प्राचीन नगर (भवि)। °कण्णी स्त्री [°कर्णी] वनस्पति-विशेष (पणण १ — पत्र ३५)। °केसर पुं [°केसर] एक प्रकार का उत्तम मोदक — लड्‎डु (उप २११ टी)। °दत्त पुं [°दत्त] १ व्यक्ति-वाचक नाम। २ वि. सिंह से दिया हुआ (हे १, ९२) °दुवार न [°द्वार] राज-द्वार (मोह १०३)। °वलोक पुं [°वलोक] १ सिंह की तरह पीछे की तरफ देखना। २ छन्द-विशेष (पिंग)। °सण न [°सन] आसन-विशेष, राजासन, राज-गद्दी (महा)। देखो सीह।

सिंहल :: पुं [सिंहल] १ देश-विशेष, सिंहल- द्वीप, लंका-द्वीप (इक; सुर १३, २५; २७) २ पुंस्त्री. सिंहल-द्वीप का निवासी (औप)ष स्त्री. °ली (औप; णाया १, १ — पत्र ३७)

सिंहलिआ :: स्त्री [दे] शिखा, चोटी (पाअ)।

सिंहिणी :: स्त्री [सिंहिनी] छन्द-विशेष (पिंग)।

सिंहीभूय :: न [सिंहीभूत] व्रत-विशेष, चतुर्विध आहार की संलेखना — परित्याग (संबोध ५८)।

सिकता, सिकया :: स्त्री [सिकता] बालु, रेत (अणु २७० टी; पउम ११२, १७; विसे १७३६)।

सिक्क :: पुं [सृक्क] होठ का अन्त भाग (दे १, २८)।

सिक्कग :: पुंन [शिक्यक] सिकहर, सीका, छींका, रस्सी की बनी डोलनुमा एक चीज जो छत में लटकायी जाती है और उसमें चीजें रख दी जाती हैं जिससे उसमें चीटियाँ न चढ़े और उसे बिल्ली न खाय (राय ६३; उवा; निचू १; श्रावक ९३ टी)।

सिक्कड :: पुंन [दे] खटिया, मचिया; 'कोव- भवणम्मि जरजिन्‍नसिक्कडे पडइ जरियव्व' (सुपा ६)।

सिक्कय :: देखो सिक्कग (राय ६३; श्रावक ९३ टी; स ५८३)।

सिक्करा :: स्त्री [शर्करा] खंड, टुकड़ा; 'सय- सिक्करो' (स ६९३)।

सिक्करिअ :: न [सीत्कृत] अनुराग से उत्पन्‍न आवाज (गा ३९२)।

सिक्करिआ :: स्त्री [दे. श्रीकरी] जहजा का आभरण-विशेष (सिरि ३८७)।

सिक्कार :: पुं [सीत्कार] १ अनुराग की आवाज (गा ७२१; भवि; सण; नाट — मृच्छ १३९) २ हाथी की चिल्लाहट; 'कुंतविणिभिन्‍नकरि- कलहमुक्कसिक्कारपउरम्मि. . . समरम्मि' (णमि १६)

सिक्किआ :: स्त्री [शिक्या, शिक्यिका] रस्सी की बना हुई एक चीज जो चढ़ने के काम में आती है (सिरि ४२४)।

सिक्ख :: सक [शिक्ष्] सीखना, पढ़ना, अभ्यास करना। सिक्खइ (गा ४७७; ५२४), सिक्खंतु, सिक्खह (गा ३९२; गुण ४)। भवि. सिक्खिस्सामि (स्वप्‍न ६७)। वकृ. सिक्खंत, सिक्खमाण (नाट — मृच्छ १४१; पि ३९७; सूअ १, १४, १)। संकृ. सिक्खिअ (नाट — रत्‍ना २१)। हेकृ. सिक्खिउं (गा ८६२)।

सिक्ख :: देखो सिक्खाव। वकृ. सिक्खयंत (पउम ८२, ९२)। कृ. सिक्खणीअ (पउम ३२, ५०)।

सिक्खग :: वि [शिक्षक] शिक्षा-कर्ता, 'दुक्खाणं सिक्खगं तं परिणदमिह भे दुक्कयं' (रंभा)।

सिक्खग :: पुं [शौक्षक] नूतन शिष्य (सूअनि १२८)।

सिक्खण :: न [शिक्षण] १ अभ्यास, पाठ (कुप्र २३०) २ सीख, उपदेश (लुर ८, ५१) ३ अध्यायन, पाठन (सिरि ७८१)

सिक्खव :: देखो सिक्खाव। सिक्खवेसु (गा ७५०; ९४८)। कवकृ. सिक्खविज्जमाण (सुपा ३१५)। कृ. सिक्खवियव्व (सुपा २०७)।

सिक्खवअ :: वि [शिक्षक] शिक्षा देनेवाला, पढ़ानेवाला, शिक्षक (प्राकृ ६१)।

सिक्खविअ :: वि [शिक्षित] १ सिखाया हुआ, पढ़ाया हुआ (गा ३५२) २ न. शिक्षा देना, अभ्यास कराना, अध्यापन (सुपा २५)

सिक्खा :: स्त्री [शिक्षा] १ सजा, दण्ड (कुप्र ११०) २ वेद का एक अङ्ग, वर्णों के उच्चारण सम्बन्धी ग्रंथ-विशेष, अक्षरों के स्वरूप को बतलानेवाला शास्त्र; 'सिक्खावा- गरणछंदकप्पडढो' (धर्मंवि ३८, औप; कप्प; अंत) ३ शास्त्र और आचार सम्बन्धी शिक्षण, अभ्यास, सीख, सिखाई, उपदेश (औप; बृह १; महा; कुप्र १९७)। °वय नट [°व्रत] व्रत-विशेष, जैन गृहस्थ के सामायिक आदि चार व्रत (औप; महा; सुपा ५४०)। °वय न [°पद] शिक्षा-स्थान (औप)

सिक्खा :: (अप) स्त्री [शिखा] छन्द-विशेष (पिंग)।

सिक्खाण :: न [शिक्षाण] आचार-सम्बन्धी उपदशे देनेवाला शास्त्र (कप्प)।

सिक्खाव :: सक [शिक्षय्] सिखाना, पढ़ाना, अभ्यास कराना। सिक्खावेइ (पि ५५९)। भवि. सिक्खावेहिति (औप)। संकृ. सिक्खा- वेत्ता (औप)। हेकृ. सिक्खावित्तए, सिक्खावेत्तए; सिक्खावेउं (ठा २, १ — पत्र ५६; कस; पंचा १०, ४८ टी)।

सिक्खावअ :: देखो सिक्खवअ (गा ३५८; प्राकृ ६१)।

सिक्खावण :: न [शिक्षण] सिखाना, सीख, हितोपदेश (सुख २, १९; प्राकृ ६१; कप्पू)।

सिक्खावणा :: स्त्री [शिक्षणा] ऊपर देखो (सूअनि १२७; उप १५०- टी)।

सिक्खाविअ :: वि [शिक्षित] सिखाया हुआ (भग; पउम ९७, २२; णाया १, १ — पत्र ६०; १, १८ — पत्र २३६)।

सिक्खिअ :: वि [शिक्षित] सिखा हुआ, जानकार, विद्वान् (णाया १, १४ — पत्र १८७; औप)।

सिक्खिर :: वि [शिक्षितृ] सीखने की आदतवाला, अभ्यासी (गा ६६१)।

सिखा :: स्त्री [शिखा] छन्द-विशेष (पिंग)।

सिखि :: देखो सिहि-शिखिन् (नाट — विक्र ३४)।

सिगया :: देखो सिकया (राज)।

सिगाली :: देखो सिआली = श्रृगाली (चारु ११)।

सिग्ग :: वि [दे] १ श्रान्त, थका हुआ (दे ८, २८; ओघ २३) २ पुंन. परिश्रम, थटावट (वव ४)

सिग्गु :: पुं [शिग्रु] वृक्ष-विशेष, सहिंजना का पेड़ (दे ६, २०; पाअ)।

सिग्घ :: न [शीघ्र] १ जल्दी, तुरंत। २ वि. शीघ्रता-युक्त, त्वरा-युक्त, (पाअ; स्वप्‍न ५४; चंड; कप्पू; महा; सुर १, २१०; ४, ६६; सुपा ५८०)

सिचय :: पुं [सिचय] वस्त्र, कपड़ा (पाअ; गा २९१; कुप्र ४३३)।

सिच्चंत, सिच्चमाण :: देखो सिंच = सिच्।

सिच्छा :: स्त्री [स्वेच्छा] स्वच्छन्द (सुपा ३१६)।

सिज्ज :: अक [स्विद्] पसीना होना। सिज्जइ (षड् २०३)। वकृ. सिज्जंत (नाट — उत्तर ६१)।

सिज्ज° :: देखो सिज्जा (सम्मत्त १७०)।

सिज्जंभण :: पुं [शय्यंभण] एक सुप्रसिद्ध प्राचीन जैन महर्षि (कप्प — पृ ७८; णंदि)।

सिज्जंस :: देखो सेज्जंस = श्रेयांस (कप्प; पडि; आचा २, १५, ३)।

सिज्जा :: स्त्री [शय्या] १ बिछौना (सम १५; उवा; सुपा ५७३) २ उपाश्रय, वसति (ओघ १६७)। °तरी, °यरी स्त्री [°तरी] उपाश्रय की मालकिन (ओघ १६७; पि १०१)। °वाली स्त्री [°पाली] बिछौना का काम करनेवाली दासी (सुपा ६४१)। देखो सेज्जा।

सिज्जिअ :: (अप) वि [सृष्ट] उत्पन्न किया हुआ, बनाया हुआ (पिंग)।

सिज्जिर :: वि [स्वेत्तु] जिसको पसीना हुआ करता हो वह, पसीनावाल (गा ४०७; ४०८; ७७४; कुमा)। स्त्री. °री (हे ४, २२४)।

सिज्जूर :: न [दे] राज्य (दे ८, ३०)।

सिज्झ :: अक [सिध्] १ निष्पन्न होना, बनना। २ पकना। ३ मुक्त होना। ४ मंगल होना। ५ सक. गति करना, जाना। ६ शासन करना। सिज्झइ (हे ४, २१७; भग; महा)। सिज्झंति (कप्प)। भूका. सिज्झिंसु (भग; पि ५१६)। भवि सिज्झिहिइ, सिज्झिस्संति, सिज्झिहिंति, सिज्झिही (उवा; भग; पि ५२७; महा)। वकृ. सिज्झंत (पिंड २५१)

सिज्झ :: देखो सिंझ (राज)।

सिज्झणया, सिज्झणा :: स्त्री [सेधना] १ सिद्धि, मुक्ति, मोक्ष, निर्वाण (सम १४७; उपल १३१; ७९६; पव ८८, धर्मंवि १५१; विसे ३०३७) २ निष्पत्ति, साधना; 'सव्वो परोवयारं करेइ नियकज्जसिज्झणाभिरओ। निरविक्खो नियकज्जे परोवयारी हवइ धन्नो।।' (रयण ४६)

सिट्ठ :: वि [श्रेष्ठ] अति उत्तम (उप ८७६)।

सिट्ठ :: वि [सृष्ट] १ रचित, निर्मित (उप ७२८ टी; रंभा) २ युक्‍त। ३ निश्चित। ४ भूषित। ५ बहुल, प्रचुर। ६ त्यक्‍त (हे १, १२८)

सिट्ठ :: वि [शिष्ट] १ कथित, उक्‍त, उपदिष्ट (सुर १, १६५; २, १८४; जी ५०; वज्जा १३६) २ सजन, भालामानस, प्रतिष्ठित (उप ७६८ टी; कुप्र ६४; सिरि ४५; सुपा ४७०)। °यार पुं [°चार] भलमनसी, सदाचार (धर्म १)

सिट्ठ :: वि [दे] सो कर उठा हुआ (षड्)।

सिट्ठि :: स्त्री [सृष्टि] १ विश्व-निर्माण, जगद्- रचना (सुपा १११; महा) २ निर्माण, रचना। ३ स्वभाव । ४ जिसका निर्माण होता हो वह (हे १, १२८) ५ सीधा क्रम, अविपरीत क्रम; 'चक्काइं जंतजोगेणं सिट्ठि- विसिट्ठितकमेणं एगंतरियं भमंताइं' (सिरि ८७८)

सिट्ठि :: पुं [दे. श्रेष्ठिन्] नगर-सेठ, नगर का मुख्य साहूकार, महाजन (कप्प, सुपा ५८०)। °पय न [°पद] नगर-सेठ की पदवी (सुपा ३४२)। देखो सेट्ठि।

सिट्ठिणी :: स्त्री [श्रेष्ठिनी] श्रेष्ठि-पत्‍नी, सेठानी (सुपा १२)।

सिड्‍ढी :: स्त्री [दे] सीढ़ी, निःश्रेणी (अज्झ ७०)।

सिढिल :: वि [शिथिर, शिथिल] १ श्लथ, ढीला। २ अदृढ़, जो मजबूत न हो वह। ३ मन्द (हे १, २१५; २५४; प्राप्र; कुमा; प्रासू १०२; गउड)

सिढिल :: सक [शिथिलय्] शिथिल करना। सिढिलेइ, सिढिलंति, सिढिलेंति (उव; वज्जा १०; से ६ ६५)। सढिलेहि (वेणी २४३; पि ४६८)। वकृ. सिढिलेंथ (से ५, ४२)।

सिढिलाविअ :: वि [शिथिलित] शिथिल कराया हुआ (प्राकृ ६१)।

सिढिलिअ :: वि [शिथिलित] शिथिल किया हुआ (कुमा; गउड; भवि)।

सिढिलीकय :: वि [शिथिलीकृत] शिथिल किया हुआ (सुर २, १६; १७३)।

सिढिलीभूय :: वि [शिथिलीभूत] शिथिल बना हुआ (पउम ५३, २४)।

सिण :: देखो सण = शण (जी १०; सुपा १८९; गा ७९८)।

सिणगार :: देखो सिंगार = श्रृङ्गार 'सिणगार- चारुवेसो' (संबोध ४७); 'कारिअसुरसुंदरिसि- णगारं' (सिरि १५८)।

सिणा :: अक [स्‍ना] स्‍नान करना, नहाना। सिणाइ (सूअ १, ७, २१; प्राकृ २८)। संकृ. सिणाइत्ता (सूअ २, ७, १७)। हेकृ. सिणाइत्तए (औप)।

सिणाउ :: पुंस्त्री [स्‍नायु] नाड़ी-विशेष, वायु वहन करनेवाली नाड़ी (प्राकृ २८)।

सिणाण :: उ [स्‍नान] नहान, अवगाहन (सम ३५; ओघ ४६६; रयण १४)।

सिणात :: देखो सिणाय = स्‍नात (ठा ४, १ — पत्र १९३; ५, ३ — पत्र ३३६)।

सिणाय :: देखो सिणा। सिणायंति (दस ६, ६३)। वकृ. सिणायंत (दस ६, ६२; पि १३३)।

सिणाय, सिणायग, सिणायय :: वि [स्‍नात, °क] १ प्रधान, श्रेष्ठ (सुअ २, २, ५६) २ मुनि-विशेष, केवलज्ञान प्राप्त मुनि, केवली भगवान् (भग २५, ६; णंदि १३८ टी; ठा ३, २ — पत्र १२९; धर्मंसं १३५८; उत्त २५, ३४) ३ बुद्ध शिष्य, बोधि सत्त्व (सूअ २, ६, २९)

सिणाव :: सक [स्‍नपय्] स्‍नान कराना। सिणावेदि (शौ) (नाट — चैत ४४)। सिणावंति, सिणावेंति (आचा २, २, ३, १०; पि १३३)।

सिणि :: स्त्री [सृणि] अंकुश (सुपा ५३७; सिरि १०५८)।

सिणिज्झ :: अक [स्‍निह्] प्रीति करना। सिणिज्झइ (प्राकृ २४)। कर्मं. सिप्पइ (हे ४, २५५)। कवकृ. सिप्पंत (कुमा ७, ९०)।

सिणिद्ध :: वि [स्‍निग्ध] १ प्रीति-युक्‍त, स्‍नेह- युक्‍त (स्वप्‍न ५३; प्रासू ९२) २ आर्द्रं, रस-युक्‍त (कुमा) ३ मसृण कोमल। ४ चिकना। ५ न. भात का माँड़ (हे २, १०९; प्राप्र)

सिणेह :: देखो सणेह (भग; णाया १, १३ — पत्र १८१; स्वप्‍न १५; कुमा; प्रासू ९)।

सिणेहालु :: वि [स्‍नेहवत्] स्‍नेहवाला (स ७६३)।

सिण्ण :: वि [स्विन्न] स्वेद-युक्‍त (गा २४४)।

सिण्ण :: देखो सिन्न = शीर्णं (नाट — मृच्छ २१०)।

सिण्ह :: पुंन [शिश्‍न] पुंश्चिह्न, पुरुष-लिंग (प्राप्र, दे ४, ५)।

सिण्हा :: स्त्री [दे] १ हिम, आकाश से गिरता जल-कण (दे ८, ५३) २ अवश्याय, कुहरा, कुहासा (धे ८, ५३; पाअ)

सिण्हालय :: पुंन [दे] फल-विशेष (अनु ६)।

सिति :: देखो सिइ = (दे) (वव १०)।

सित्त :: वि [सिक्त] सींचा हुआ (सुर ४, १४५; कुमा)।

सित्तुंज :: देखो सेत्तुंज (मूक्‍त ५२)।

सित्य :: न [दे] गुण, धनुष की डोरी; 'सित्थं व असोत्तगयं मह मणं देव दूसेइ' (कुप्र ५४; पाअ)।

सित्थ, सित्थय :: न [सिक्थ] १ धान्य-कण (पणह १, ३ — पत्र ५५; कप्प; औप; अणु १४२) २ मोम (दे १, ५२; पाअ; उप ७२८ टी) ३ ओपधि-विशेष, नीली, नील (हे २, ७७) ४ पुंन. कवल, ग्रास; 'मासे मासे उ जा अज्जा एगसित्थेण पारए' (गच्छ ३, २८; प्राप्र)

सित्था :: स्त्री [दे] १ लाला। २ जीवा, धनुष को डोरी (दे ८, ५३)

सित्थि :: पुं [दे] मत्स्य, मछली (दे ८, २८)।

सिट्ठ :: वि [दे] परिपाटित, विदारित, चीरा हुआ (दे ८, ३०)।

सिद्ध :: वि [सिद्ध] १ मुक्त, मोक्ष-प्राप्त, निर्वाण- प्राप्त (ठा १ — पत्र २५; भग; कप्प; वपिसे ३०२७; २९; सम्म ८९; जी २५; सुपा २४४; ३४२) २ निष्पन्न, बना हुआ (प्रासु १५) ३ पका हुआ (सुपा ६३३) ४ शाश्वत, नित्य (चेइय ६७९) ५ प्रतिष्ठित, लब्ध-प्रतिष्ठ (चेइय ६७९; सम्म १) ६ निश्चित, निर्णीत (सम्म १) ७ विख्यात, प्रसिद्ध (चेइय ६८०) ८ शब्द-विशेष, साध्य-विलक्षण शब्द (भास ८९) ९ साबित किया हुआ। १० प्रतीत, ज्ञात (पंचा ११, २६) ११ पुं. विद्या, मंत्र, कर्मं, शिल्प आदि में जिसने पूर्णंता प्राप्त की हो वह पुरुष (ठा १ — पत्र २५; विसे ३०२८; वज्जा ९८) १२ समय-परिमाण विशेष, स्तोक- विशेष (कप्प) १३ न. लगातार पनरह दिनों के उपवास (संबोध ५८) १४ पुंन. महाहिमवंत आदि अनेक पर्वतों के शिखरों का नाम (ठा ८ — पत्र ४३६; ९ — पत्र ४५४; इक)। °क्खर पुंन [°क्षर] नमो अरिहंताणं' यह वाक्य (भवि)। °गंडिया स्त्री [°गण्डिका] सिद्ध-संबन्धी एक ग्रन्थ- प्रकरण (भग)। °चक्क न [°चक्र] अर्हंन् आदि नव पद (सिरि ३४)। °न्न न [°न्न] पकाया हुआ अन्न (सुपा ६३३)। °पुत्त पुं [°पुत्र] जैन साधु और गृहस्थ के बीच कीॉ अवस्थावाला पुरुष (संबोध ३१; निचू १)। °मणोरम पुं [°मनोरम] पक्ष का दूसरा दिन (सुज्ज १०, १४)। °राय पुं [°राज] विक्रम की बारहवीं शताब्दी का गुजरात का एक सुप्रसिद्ध राजा, जो सिद्धराज जयसिंह के नाम से प्रसिद्ध था (कुप्र २२; वाअ १५)। °वाल पुं [°पाल] बारहवीं शताब्दी का गुजरात का एक प्रसिद्ध जैन कवि (कुप्र १७९)। °सेण पुं [°सेन] एक सुप्रसिद्ध प्राचीन जैन महाकवि और तार्किक आचार्यं (सम्मत्त १४१)। °सेणिया स्त्री [°श्रेणिया] बारहवें जैन अंग-ग्रन्थ का एक अंश (णंदि)। °सेल पुं [°शैल] शत्रुञ्जय पर्वत, सौराष्ट्र देश में पालीताना के पास का जैन महा- तीर्थ (सुख १, ३; सिरि ५५२)। °हेम न [°हेम] आचार्य हेमचन्द्र विरचित प्रसिद्ध व्याकरण-ग्रन्थ (मोह २)

सिद्धंत :: पुं [सिद्धान्त] १ आगम, शास्त्र (उव; बृह १; णंदि) २ निश्चय (स १०३)

सिद्धत्थ :: पुं [दे] रुद्र, देव-विशेष (दे ८, ३१)।

सिद्धत्थ :: वि [सिद्धार्थ] १ कृतार्थ, कृतकृत्य (पउम ७२, ११) २ पुं. भगवान् महावीर के पिता का नाम (सम १५१, कप्प; पउम २, २१; सुर १, १०) ३ ऐरवत वर्ष के भावी दूसरे जिन-देव (सम १५४) ४ एक जैन मुनि जो नववें बलदेव के दीक्षा-गुरु थे (पउम २०, २०६) ५ वृक्ष-विशेष (सुपा ७७; पिंड ५९१) ६ सर्षंप, सरसों (अणु २३; कुप्र ४६०; पव १५४; हे ४, ४२३; उप पृ ९६) ७ भगवान् महावीर के काम से कील निकालनेवाला एक वणिक् (चेइय ९९) ८ एक देव-विमान (सम ३८; आचा २, १५, २; देवेन्द्र १४५) ९ यक्ष-विशेष (आका) १० पाटलिसंड नगर का एक राजा (विपा १, ७ — पत्र ७२) ११ एक गाँव का नाम (भग १५ — पत्र ६६४)। °पुर न [°पुर] अंग देश का एक प्राचीन नगर (सुर २, ६८)। °वण न [°वन] वन-विशेष (भग)

सिद्धत्या :: स्त्री [सिद्धार्थी] १ भगवान् अभि- नन्दन-स्वामी की माता का नाम (सम १५१) २ एक विद्या (पउम ७, १४५) ३ भगवान् संभवनाथजी की दीक्षा-शिविका (विचार १२९)

सिद्धत्थिया :: स्त्री [सिद्धार्थिका] १ मिष्ट-वस्तु- विशेष (पणण १७ — पत्र ५३३) २ आभ- रण-विशेष, सोने की कंठी (औप)

सिद्धय :: पुं [सिद्धक] १ वृक्ष-विशेष, सिंदुबार वृक्ष, सम्हालु का गाछ। २ शाल वृक्ष (हे १, १८७)

सिद्धा :: स्त्री [सिद्धा] १ भगवान् महावीर की शासन-देवी, सिद्धायिका (संति १०) २ पृथिवी-विशेष, मुक्ति-स्थान, सिद्ध-शिला (सम २२)

सिद्धाइया :: स्त्री [सिद्धायिका] भगवान् महा- वीर की शासन-देवी (गण १२)।

सिद्धाययण :: पुंन [सिद्धायतन] १ शाश्‍वत मन्दिर — देव-गृह। २ जिन-मन्दिर (ठा ४, २ — पत्र २२९; इक; सुर ३, १२) ३ अमुक पर्वंतों के शिखरों का नाम (इक; जं ४)

सिद्धालय :: स्त्रीन [सिद्धालय] मुक्त-स्थान, सिद्ध-शिला (औप; पउम ११, १२१; इक)। स्त्री. °या (ठा ८ — पत्र ४४०; सम २२)।

सिद्धि :: स्त्री [सिद्धि] १ सिद्ध-शिला, पृथिवी- विशेष, जहाँ मुक्त जीव रहते हैं (भग; उव; ठा ८ — पत्र ४४०; औप; इक) २ मुक्ति, निर्वाण, मोक्ष (ठा १ — पत्र २५; पडि; औप; कुमा) ३ कर्म-क्षय (सूअ २, ५, २५; २६) ४ अणिमा आदि योग की शक्ति (ठा १) ५ कृतार्थंता, कृतकृत्यता (ठा १ — पत्र २५; कप्प; औप) ६ निष्पत्ति; 'न कयाइ दुव्वि- णीओ सकज्जसिद्धिं समाणेइ' (उव) ७ सम्बन्ध (दसनि १, १२२) ८ छन्द विशेष (पिंग)। °गइ स्त्री [°गति] मुक्ति-स्थान में गमन (कप्प; औप; पडि)। °गंडिया स्त्री [°गण्डिका] ग्रन्थ-प्रकरण-विशेष (भग ११, ९ — पत्र ५२१)। °पुर न [°पुर] नगर- विशेष (कुप्र २२)

सिन्न :: वि [शीर्ण] जीर्णं, गला हुआ (सुपा ११; विवे ७० टी)।

सिन्न :: देखो सिण्ण = स्विन्न (सुपा ११)।

सिन्न :: स्त्रीन [सैन्य] १ मिला हुआ हाथी-घोड़ा आदि। २ सेना का समुदाय (हे १, १५०; कुमा)। स्त्री. 'ता अन्नदिणे नयरे पवेढियं सत्तुसिन्नाए' (सुर १२, १०४)

सिप्प :: देखो सिंप। सिप्पइ (षड्)।

सिप्प :: न [दे] पलाल, पुआल, तृण-विशेष (दे ८, २८)।

सिप्प :: न [शिल्प] कारु-कार्यं, कारीगरी, चित्रागि-विज्ञान, कला. हुनर, क्रिया-कुशलता (पणह १; ३ — पत्र ५५; उवा; प्रासू ८०)। २ तेजस्कोय, अग्‍नि-संघात। ३ अग्‍नि का जीव। ४ पुं. तेजस्कोय का अधिष्ठाता देव (ठा ५, १ — पत्र २९२)। °सिद्ध पुं [°सिद्ध] कला में अतिकुशल (आवम)। °जीव वि [°जीव] कारीगर, कला — हुनर से जीविका-निर्वाह करनेवाला (ठा ५, १ — पत्र ३०३)

सिप्पा :: स्त्री [सिप्रा] नदी-विशेष, जो उज्जैन के पास से गुजराती है (स २६३; उप पृ २१८; कुप्र ५०)।

सिप्पि :: वि [शिल्पिन्] कारीगर, हुनरी, चित्र आदि कला में कुशल (औप; मा ४)।

सिप्पि :: स्त्री [शुक्ति] सीप, घोंघा (हे २, १३८; उवा; षड्; कुमा; प्रासू ३९; पि ३८५)।

सिप्पिअ :: वि [शिल्पिक] शिल्पी, कारीगर (महा)।

सिप्पिर :: न [दे] तृण-विशेष, पलाल, पुआल (पणण १ — पत्र ३३; गा ३३०)।

सिप्पी :: स्त्री [दे] सूची, सूई (षड्)।

सिप्पीर :: देखो सिप्पिर (गा ३३० अ; पि २११)।

सिबिर :: देखो सिविर (पउम १०, २७)।

सिब्भ :: देखो सिंभ (चंड)।

सिभा :: स्त्री [शिफा] वृक्ष का जटाकार मूल (हे १, २३६)।

सिम :: स [सिम] सर्वं, सब (प्रामा)।

सिम° :: देखो सीमा; 'जाव सिमसंविहाणं पत्तो नगरस्स बाहिरुजाणे' (सुपा १६२)।

सिमसिम, सिमसिमाय :: अक [सिमसिमाय्] 'सिम सिम' आवज करना। सिम- सिमायंति (वज्जा ८२)। वकृ. सिमसिमंत (गा ५६१ अ)।

सिमिण :: देखो सुमिण (हे १, ४६; २५९)।

सिमिर :: (अप) देखो सिविर (भि)।

सिमिसिम, सिमिसिमाअ :: देखो सिमसिम। वकृ. सिमिसिमंत, सिमिसि- माअंत (गा ५६०; पि ५५८)।

सिमिसिमिय :: वि [सिमिसिमितृ] 'सिम सिम' आवाज करनेवाला (पउम १०५, ५५)।

सिर :: सक [सृज्] १ बनाना, निर्माण करना। २ छोंड़ना, त्याग करना। सिरइ (पि २३५), सिरामि (विसे ३५७९)

सिर :: न [शिरस्] १ मस्तक, माथा, सिर (पाअ; कुमा; गउड) २ प्रधान, श्रेष्ठ। ३ अग्र भाग (हे १, ३२)। °क्क न [°क] शिरस्राण, मस्तक का बख्तर (दे ५, ३१; कुमा; कुप्र २९२)। °ताण, °त्ताण न [°त्राण] वही पूर्वोक्त अर्थं (कुमा; स ३८५)। °बत्ति स्त्री [°बस्ति] चिकित्सा-विशेष, सिर में चर्मं-कोश देकर उसमें संस्कृत तैल आदि पूरने का उपचार (विपा १, १ — पत्र १४), 'सिरावेढेहि' (? सिरबत्थीहि) य' (णाया १, १३ — पत्र १८१)। °मणि देखो सिरो-मणि (सुपा ५३२)। °य पुं [°ज] केश, बाल (भग; कप्प; औप; स ५७८)। °हर न [°गृह] मकान के ऊपर की छत, चन्द्रशाला (दे ३, ४६)। देखो सिरो°।

सिर° :: देखो सिरा (जी १०)।

°सिरय, °सिरस :: देखो सिर = शिरस् (कप्प; पणह १, ४ — पत्र ६८; औप)।

सिरसावत्त :: वि [शिरसावर्त, शिरस्यावर्त] मस्तक पर प्रदक्षिणा करनेवाला, शिर पर परिभ्रमण करता (णाया १, १ — पत्र १३; कप्प; औप)।

सिरा :: स्त्री [शिरा, सिरा] १ रग, नस, नाड़ी (णाया १, १३ — पत्र १८१; जी १०; जीव १) २ धारा, प्रवाह (कुमा; उप पृ ३६६)

सिरि° :: देखो सिरी (कुमा; जी ५०; प्रासू ५२; ८०; कम्म १, १; पि ९८)। °उत्त पुं [°पुत्र] भारतवर्षं में होनेवाला एख चक्रवर्त्ती राजा (सम १५४)। °उर न [°पुर] नगर-विशेष (उप ५५०)। °कंठ पुं [°कण्ठ] १ शिव, महादेव (कुमा) २ वानरद्वीप का एक राजा (पउम ६, ३) °कंत पुंन [°कान्त] एक देव-विमान (सम २७)। °कंता स्त्री [°कान्ता] १ एक राज- पत्‍नी (पउम ८, १८७) २ एक कुलकर- पत्‍नी (सम १५०) ३ एक राज-कन्या (महा) ४ एक पुष्करिणी (इक) °कंद- लग पुं [°कन्दलक] पशु-विशेष एक- खुरा जानवर की एक जाति (पणण १ — पत्र ४९)। °करण न [°करण] १ न्याया- यालय, न्याय-मन्द्रिर। २ फैसला (सुपा ३९१) °करणीय वि [°करणीय] श्री करण-संबन्धी (सुपा ३९१)। °कूड पुंन [°कूट] हिमवंत पर्वंत का एक शिखर (राज)। °खंड न [°खण्ड] चन्दन (सुर २, ५९; कप्पू)। °गरण देखो °करण (सुपा ४२५)। °गीव पुं [°ग्रीव] राक्षस-वंश का एक राजा, एक लंका-पति (पउम ५, २६१)। °गुत्त पुं [°गुप्त] एक जैन महर्षि (कप्प)। °घर न [°गृह] भंडार, खजाना (णाया १, १ — पत्र ५३; सूअनि ५५)। °घरिअ वि [°गृहिक] भंडारी, खजानची (विसे १४२५)। °चंद पुं [°चन्द्र] १ एक प्रसिद्ध जैनाचार्यं और ग्रन्थकार (पव ४६; सुपा ६५८) २ ऐरवत क्षेत्र में होनेवाले एक जिनदेव (सम १५४; पव ७) ३ आठवें बलदेव का पूर्वंभवीय नाम (पउम २०, १९१) °चंदा स्त्री [°चन्द्रा] १ एक पुष्करिणी (इक) २ एक राज-पत्‍नी (उपल ९८६ टी) °ड्‍ढ पुं [°आढ्य] एक जैन मुनि (कप्प), मेयर न [°नगर] वैताढ्य की दक्षिण-श्रेणी का एक विद्याधरनगर (इक)। देखो °नयर। °णिकेतण न [°निकेतन] वैताढ्य की उत्तर-श्रेणी में स्थित एक बिद्याधर-नगर (इक)। °णिलय न [°निलय] वैताढ्य पर्वंत की दक्षिण-श्रेणि में स्थित एक नगर (इक)। देखो °निलय। °णिलया स्त्री [°निलया] एक पुष्करिणी (इक)। °णिहुवय पुं [°कामक] विष्णु, श्रीकृष्ण (कुमा)। °ताली स्त्री [°ताली] वृक्ष-विशेष (कप्पू)। °दत्त पुं [°दत्ता] ऐरवत वर्षं में उत्पन्‍न पाँचवें जिन-देव (पव ७)। °दाम न [°दामन्] १ शोभावाली माला (जं ५) २ आभरण-विशेष (आवम) ३ पुं. एक राजा (विपा १, ६ — पत्र ६४) °दामकंड, °दामगंड पुंन [°दामकाण्ड] १ शोभावाली मालाओं का समूह (जं ५) २ एक देव- विमान (सम ३९) °दामगंड पुंन [°दामगण्ड] १ शोभावाली मालाओं का दण्डाकार समूह (जं ५) °देवी स्त्री [°देवी] १ देवी-विशेष (राज) २ लक्ष्मी (धर्मंवि १४७) °देवीनंदण पुं [°देवी- नन्दन] कामदेव (धर्मंवि १४७)। °नंदण पुं [°नन्दन] १ कामदेव। २ वि. श्री से समृद्ध (सुपा २३४; धम्म १३ टी) °नयर न [°नगर] दक्षिण देश का एक शहर (कुमा)। देखो °णयर। °निलय पुं [°निलय] वासुदेव (पउम ३८, ३०)। देखो °णिलय। °पट्ट पुं [°पट्ट] नगर-सेठाई का सूचक एक राज-चिह्न (सुपा २८३)। °पव्वय पुं [°पर्वत] पर्वत-विशेष (बज्जा ९८)। °पह पुं [°प्रभ] एक प्रसिद्ध जैन आचार्यं और ग्रन्थकार (धर्मंवि १५२)। °पाल देखो °वाल (सिरि ३४)। °फल पुं [°फल] बिल्व-वृक्ष (कुमा)। देखो °हल। °बूइ पुं [°भूति] भारतवर्षं में होनेवाले छठवें चक्रवर्त्ती राजा (सम १५४)। °म देखो °मंत (उप पृ ३७४)। °मई स्त्री [°मती] १ इन्द्र-नामक विद्याधर-राज की एक पत्‍नी (पउम ६, ३) २ एक राज-पत्‍नी (महा) ३ एक सार्थवाह-कन्या (महा) °मंगल पुं [°मङ्गल] दक्षिण भारत का एक देश (उप ७६८ टी)। °मंत वि [°मत] १ शोभावाला, शोभा-युक्त (कुमा) २ पुं. तिलक वृक्ष। अश्‍वस्थ वृक्ष। ४ विष्णु। ५ शिव, महादेव। ६ श्वान, कुत्ता (हे २, १५९; षड्) °मलय न [°मलय] वैताढ्य की दक्षिण-श्रेणी में स्थित एक विद्याधर-नगर (इक)। °महिअ पुंन [°महिक] एक देव-विमान (सम २७)। °महिआ स्त्री [°महिता] एक पुष्करिणी (इक)। °माल पुं [°माल] एक प्रसिद्ध वंश (कुप्र १४३)। °मालपुर न [मालपुर] एक नगर (ती १५)। °यंठ देखो °कंठ (गउड)। °यंदल देखो °कंदलग (पणह १, १ — पत्र ७)। °वइ पुं [°पति] श्रीकृष्ण, वासुदेव (सम्मत्त ७५)। °वच्छ पुं [°वत्स] १ जिनदेव आदि महापुरुषों के हृदय का एक उँचा अवयवाकार चिह्न (औप; सम १५३; महा) २ महेन्द्र देवलोक के इन्द्र का एक पारियानिक विमान (ठा ८ — पत्र ४३७) ३ एक देव-विमान (सम ३९; देवेन्द्र १४०; औप) °वच्छा स्त्री [°बत्सा] भगवान् श्रेयासनाथजी की शासन-देवी (संति ९)। °वडिंसव न [°अवतंसक] सौधर्मं देवलोक का एक विमान (राज)। °वण न [°वन] एक उद्यान (अंत ४)। °वण्णी स्त्री [°पर्णी] वृक्ष-विशेष (पणण १ — पत्र ३१)। °वत्त (अप) देको °मंत (भवि)। °वद्धण पुं [°वर्धन] एक राजा (पउम ५, २९)। °वय पुं [°वद] पक्षि-विशेष (दे १, ६७; ८, ५२ टी)। °वारिसेण पुं [°वारि- षेण] ऐरवत वर्षं में होनेवाले चौबीसवें जिनदेव (पव ७)। °वाल पुं [°पाल] १ एक प्रसिद्ध जैन राजा (सिरि ३१७) २ राजा सिद्धराज के समय का एक जैन महाकवि (कुप्र २१९)। °संभूआ स्त्री [°संभूता] पक्ष की छठवीं रात (सुज्ज १०, १४)। °सिचय पुं [°सिचय] ऐरवत वर्षं में उत्पन्‍न दूसरे जिनदेव (पव ७)। °सेण पुं [°षेण] एक राजा (उप ९८६ टी)। °सेल पुं [°शैल] हनूमान (पउम १७, १२०)। °सोम पुं [°सोम] भारतवर्षं में होनेवाला सातवाँ चक्रवर्त्ती राजा (सम १५४)। °सोमणस पुंन [°सौमनस] एक देव- विमान (सम २७)। °हर न [°गृह] भंडार (श्रा २८)। °हर पुं [°धर] १ भगवान् पार्श्वंनाथ का एक मुनि-गण। २ भगवान् पार्श्वनाथ का गणधर — मुख्य शिष्य (कप्प) ३ भारतवर्षं में अतीत उत्सर्पिणी काल में उत्पन्‍न सातवें जिनदेव। ४ ऐरवत वर्षं में वर्तमान अवसर्पिणी काल में उत्पन्‍न बीसवें जिनदेव (पव ७; उप ९८६ टी) ५ वासुदेव (पउम ४७, ४९; षड्)। °हर वि। [°हर] श्री को हरण करनेवाला (कुमा)। °हल न [°फल] बिल्व फल (पाअ), देखो °फल।

सिरिअ :: पुं [श्रीक, श्रीयक] स्थूलभद्र का छोटा भाई और नन्द राजा का एक मन्त्री (पडि)।

सिरिअ :: न [स्वैर्य] स्वच्छन्दा (मै ७३)।

सिरिंग :: पुं [दे] विट, लम्पट, कामुक (दे ८, ३२)।

सिरिद्दह :: पुंस्त्री [दे] पक्षियों का पान-पात्र (पाअ; दे ८, ३२)।

सिरिमुह :: वि [दे] मद-सुख, जिसके मुह में मद हो वह (दे ८, ३२)।

सिरियां :: देखो सिरी (सम १५१)।

सिरिली :: स्त्री [दे. श्रीली] कन्द-विशेष (उत्त ३६, ९८)।

सिरिवच्छीव :: पुं [दे] गोपाल, ग्वाला (दे ८, ३३)।

सिरिवय :: पुं [दे] हंस पक्षी (दे ८, ३२)।

सिरिवय :: देखो सिरि-वय।

सिरिस :: पुं [शिरीष] १ वृक्ष-विशेष, सिरसा का पेड़ (सम १५२; हे १, १०१) २ न. सिरसा का फूल (कुमा)

सिरी :: स्त्री [श्री] १ लक्ष्मी, कमला (पाअ; कुमा) २ संपत्ति, समृद्धि, विभव (पाअ; कुमा) ३ शोभा (औप; राय; कुमा) ४ पद्मह्रद की अधिष्ठात्री देवी (ठा २, ३ — पत्र ७२) ५ उत्तर रुचक पर रहनेवाली एक दिक्कुमारी देवी (ठा ८ — पत्र ४३७) ६ देव-प्रतिमा-विशेष (णाया १, १ टी — पत्र ४३) ७ भगवान् कुन्थुनाथ जी की माता का नाम (पव ११) ८ एक श्रेष्ठि-कन्या (कुप्र १५२) ९ एक श्रेष्ठि-पत्‍नी (कुप्र २२१) १० देव, गुरु आदि के नाम के पूर्वं में लगाया जाता आदर-सूचक शब्द (पव ७; कुमा; पि ९८) ११ वाणी। १२ वेष-रचना। १३ धर्मं आदि पुरुषार्थं। १४ प्रकार, भेद। १५ उपकरण, साधन। १६ बुद्धि, मती। १७ अधिकार। १८ प्रभा, तेज। १९ कीर्त्ति, यश। २० सिद्धि। २१ वृद्धि। २२ विभूति। २३ लवंग, लौंग। २४ सरल वृक्ष। २५ बिल्व-वृक्ष। २६ ओषधि-विशेष। २७ कमल, पद्म (हे २, १०४)। देखो सिअ, सिरि°, सी = श्री।

सिरीस :: देखो सिरिस (णाया १, ९ — पत्र १६०; औप; कुमा)।

सिरीसिव :: पुं [सरीसृप] सर्पं, साँप (सूअ १, ७, १५; पि ८१; १७७)।

सिरो° :: देखो सिर = शिरस्। °धरा (शौ) देखो °हरा (पि ३४७)। °मणि पुं [°मणि] प्रधान, अग्रणी, मुख्य; 'अलससिरोमणी' (गा ९७०; सुपा ३०१; प्रासू २७)। °रुह पुं [°रुह] केश, बाल (पाअ)। °विअणा स्त्री [°वेदना] सिर की पीड़ा (हे १, १५६)। °वत्थि देखो सिर = वत्थि (राज)। °हरा स्त्री [°धरा] ग्रीवा, गला, डोक (पाअ; णाया १, ३; य ८; अभि २२४)।

सिल° :: देखो सिला (कुमा)। °प्पवाल न [°प्रवाल] विद्रुम (औप)।

सिलंब :: देखो सिलिंब (पाअ)।

सिलव :: पुं [दे] उञ्छ, गिरे हुए अन्‍न-कणों का ग्रहण (दे ८, ३०)।

सिला :: स्त्री [शिला] १ सिल, चट्टान, पत्थर (पाअ; प्राप्र; कप्प; कुमा) २ ओला (दस ८, ६)। °जउ पुंन [°जतु] शिलाजित, पर्वंतों से उत्पन्‍न होनेवाला द्रव्य-विशेष, जो दवा के काम में आता है, शिला-रस (उप ७२८ टी; धर्मंवि १४१)

सिलाइट्ट :: पुं [शिलादित्य] वलभीपुर का एक प्रसिद्ध राजा (ती १५)।

सिलागा :: देखो सलागा (सं ८४)।

सिलाघ :: (शौ) नीचे देखो। कृ. सिलाघणीअ (प्रयौ ९७)।

सिलाह :: सक [श्लाव्] प्रशंसा करना। कृ. सिलाहणिज्ज (रयण १९)।

सिलाहा :: स्त्री [श्‍लाघा] प्रशंसा (मै ८८)।

सिलिंद :: पुं [शिलिन्द] धान्य-विशेष (पव १५६; संबोध ४३; श्रा १८; दसनि ६, ८)।

सिलिंध :: पुंन [शिलीन्ध्र] १ वृक्ष-विशेष, छत्रक वृक्ष, भूमिस्फोट वृक्ष (णाया १, १ — पत्र २५; ९ — पत्र १६०; औप; कुमा) २ पुं. पर्वंत-विशेष (स २५२)। °निलय पुं [°निलय] पर्वंत-विशेष (स ४२४)

सिलिंब :: पुं [दे] शिशु, बच्चा (दे ८, ३०; सुर ११, २०६; सुपा ३४)।

सिलिट्ठ :: वि [श्‍लिष्ट] १ मनोज्ञ, सुन्दर; 'अइक्कंताविसप्पमाणमउयसुकुमालकुम्मसंठिय- सिलिच्छचरणा' (पणह १, ४ — पत्र ७९) २ संगत, सुयुक्त (औप) ३ आलिङ्गित। ४ संसृष्ट। ५ श्‍लेषालंकार-युक्त (हे २, १०६; प्राप्र)

सिलिपइ :: देखो सिलिवइ (राज)।

सिलिम्ह :: पुंस्त्री [श्‍लेष्मन्] श्‍लेष्मा, कफ (हे २, ५५; १०६; पि १३६)। देखो सेम्ह।

सिलिया :: स्त्री [शिलिका] १ चिरैता आदि तृण, ओषधि-विशेष। २ पाषाण-विशेष, शस्त्र के तीक्ष्ण करने का पाषाण (णाया १, १३ — पत्र १८१)

सिलिसिअ :: देखो सिलिट्ठ (कुमा ७, ३५)।

सिलिवइ :: वि [श्लीपादन्] श्‍लीपद नामक रोगवाला, जिससे पैर फुला हुआ और कठिन हो जात है उस रोग से युक्त (आाचा; बृह १)।

सिलीमुह :: पुं [शिलीमुख] १ बाण, तीर (पाअ; सुर ६, १४) २ रावण का एक योद्धा (पउम ५६, ३६)

सिलीस :: देखो सिलेस = श्लिष्। सिलीसइ (भवि)। सिलीसंति (सूअ २, २, ५५)।

सिलुच्चय :: पुं [शिलोच्चय] १ मेरु, पर्वंत (सुचज्ज ५) २ पर्वंत, पाहाड़़ (रंभा)

सिलेच्छिय :: पुं [शिलैक्षिक] मस्त्य-विशेष (जीव १ टी पत्र ३६)।

सिलेम्ह :: देखो सिलिम्ह (षड़्)।

सिलेस :: सक [श्‍लिष्] आलिङ्गन करना, भेंटना। सिलेसइ (हे ४, १९०)।

सिलेस :: पुं [श्‍लेष] १ वज्रलेप आदि संवान (सूअनि १८५) २ आलिङ्गन, भेंट (सुर १६, २४३) ३ संसर्गं। ४ दाह (हे २, १०६; षड्) ५ एक शब्दालंकार (सुर १, ३९; १६, २४३)

सिलेस :: देखो सिलिम्ह (अनु ५)।

सिलोअ, सिलोग :: पुं [श्‍लोक] १ कविता, पद्य, काव्य (मुद्रा १९८; सुपा ५६४; अजि ३; महा) २ यश, कीर्ति (सूअ १, १३, २२; हे २, १०६) ३ कला-विशेष, कवित्व, काव्य बनाने की कला (औप)

सिलोच्चय :: देखो सिलुच्चय (पाअ; सुर १, ७; राज)।

सिल्ल :: पुं [दे] १ कुन्त, बरछा, शस्त्र-विशेष, (सुपा ३११; कुप्र २८; काल, सिरि ४०३) २ पोत-विशेष, एक प्रकार का जहाज (सिरि ३८३)

सिल्ला :: देखो सिला। °र पुं [°कार] शिला- वट, पत्थर गढ़नेवाला शिल्पी (ती १५)।

सिल्हग :: न [सिह्‍लक] गन्ध-द्रव्य-विशेष (राज)।

सिल्हा :: स्त्री [दे] शीत, जाड़ा (से १२, ७)।

सिव :: न [शिव] १ मङ्गल, कल्याण। २ सुख (पाअ; कुमा; गउड) ३ अहिंसा (पणह २, १ — पत्र ९९) ४ पुंन. मुक्ति, मोक्ष (पाअ; सम्मत्त ७६; सम १; कप्प; औप; पढि) ५ वि. मङ्गल-युक्त, उपद्रव-रहित (कप्प; औप; सम १; पडि) ६ पुं. महादेव (णाया १, १ — पत्र ३९; पाअ; कुमा; सम्मत्त ७६) ७ जिनदेव, तीर्थंकर, अर्हन् (पउम १०९, १२) ८ एक राजर्षि, जिसने भगवान् महावीर के पास दीक्षा ली थी (ठा ८ — पत्र ४३०; भग ११, ९) ९ पाँचवें वासुदेव तथा बलदेव का पिता (सम १५२) १० देव-विशेष (राय; अणु) ११ पौष मास का लोकोत्तर नाम (सुज्ज १०, १९) १२ एक देव-विमान (देवेन्द्र १४३) १३ छन्द-विशेष (पिंग) °कर न [°कर] १ शैलेशी अवस्था की प्राप्ति। २ मुक्ति-मार्गं (सूअनि ११५) °गइ स्त्री [°गति] १ मुक्ति, मोक्ष। २ वि. मुक्त, मुक्ति-प्राप्त (राज) ३ पुं. भारतवर्षं में अतीत उत्स- र्पिणी-काल में उत्पन्न चौदहवें जिन-देव (पव ७) °तित्थ न [°तीर्थ] काशी, बनारस (हे ४, ४४२)। °नंदा स्त्री [°नन्दा] आनन्द-श्रावक की पत्‍नी (उवा)। °भूइ पुं [°भूति] १ एक जैन महर्षि (कप्प) २ बोटिक मत — दिगंबर जैन संप्रदाय का स्थापक एक मुनि (विसे २५५१)। °रत्ति स्त्री [°रात्रि] फाल्गुन (गुजराती माघ) मास की कृष्ण चतुर्दंशी तिथि (सट्ठि ७८ टी)। °सेण पुं [°सेन] ऐरवत वर्षं में उत्पन्न एक अर्हंन (सम १५३)

सिवंकर :: पुं [शिवङ्कर] पाँचवें केशव का पिता (पउम २०, १८२)।

सिवक, सिवंय :: पुं [शिवक] १ घड़ा तैयार होने के पूर्वं की एक अवस्था (विसे २३१६) २ वेलन्धर नागराज का एक आवास-पर्वंत (इक)

सिवा :: स्त्री [शिवा] १ भगवान नेमिनाथ जी की माता का नाम (सम १५१) २ सौधर्मं देवलोक के इन्द्र की एक अग्र-महिषी (ठा ८ — पत्र ४१९; णाया २ — पत्र २५३) ३ पनरहवें जिनदेव की प्रवर्त्तिनी — मुख्य साध्वी (पव ९) ४ श्रृगाली, मादा सियार (अणु; वज्जा ११८) ५ पार्वंती (पाअ)

सिवाणंदा :: देखो सिव-नंदा (उवा)।

सिवासि :: पुं [शिवाशिन्] भरतक्षेत्र में अतीत उत्सर्पिणी-काल में उत्पन्न बारहवें जिनदेव (पव ७)।

सिविण :: देखो सुमिण (हे १, ४६; प्राप्र; रंभा; कुमा; कप्पू)।

सिविया :: स्त्री [शिविका] सुखासन, पालकी, डोली (कप्प; औप; महा)।

सिविर :: [शिविर] १ स्कन्धावार, सैन्य- निवास-स्थान, छावनी (कुमा) २ सैन्य, सेना, लश्‍कर (सुपा ६)

सिव्व :: सक [सीव्] सीना, साँधना। सिव्वइ (षड्; विसे १३६८)। भवि. सिव्वि- स्सामि (आचा १, ६, ३, १)।

सिव्व :: देखो सिव = शिव (प्राकृ २६; संक्षि १७)।

सिव्विअ :: वि [स्यूत] सिया हुआ (पव ६२)।

सिव्विणी, सिव्वी :: स्त्री [दे] सूची, सूई (दे ८, २९)।

सिस :: देखो सिलेस — श्‍लिष्। सिसइ (षड्)।

सिसिर :: न [दे] दधि, दही (दे ८, ३१; ॉ पाअ)।

सिसिर :: पुं [शिशिर] १ ऋतु-विशेष, माघ तथा फागुन का महिना (उप ७२८ टी; हे ४, ३५७) २ माघ मास का लोकोत्तर (सुज्ज १०, १९) ३ फागुन मास; 'सिसिरो फग्गुण-माहो' (पाअ) ४ वि. जड़, ठंढा, शीतल (पाअ; उप ७६८ टी) ५ हलका (उप ७६८ टी) ६ न. हिम (उप ९८६ टी)। °किरण पुं [°किरण] चन्द्रमा (धर्मंवि ५)। °महीहर पुं [°महाधर] हिमालय पर्वंत (उप ९८६ टी)

सिसिरली :: देखो सिस्सिरिली (राज)।

सिसु :: पुंन [शिशु] बालक, बच्चा (सुपा ५८८; सम्मत्त १२२); 'सा खाइ पायमेक्कं सिसुणि बीयं पढमपहरे' (कुप्र १७३)। °आल पुं [°काल] बाल्व, बाल-कालस (नाट — चैत ३७)। °नाग पुं [°नाग] क्षुद्र कीट-विशेष, अलस (उत्त ५, १०)। °पाल पुं [°पाल] एक प्रसिद्ध राजा (णाया १, १६ — पत्र २०८; सूअ १, ३, १, १; उप ६४८ टी; कुप्र २५६)। °यव पुंन [°यव] तृण- विशेष (पणण १ — पत्र ३३)। °वाल देखो °पाल (सूअ १, ३, १, १ टी)।

सिस्स :: पुंस्त्री [शिष्य] १ चेला, छात्र, विद्यार्थी (णाया १, १ — पत्र ६०; सूअनि १२७)। स्त्री. °स्सा, °स्सिणी (मा ९; णायाॉ १, १४ — पत्र १८८)

सिस्स :: देखो सीस = शीर्ष (सम ५०)।

सिस्सिरिली :: स्त्री [दे] कन्द-विशेष (उत्त ३६, ९८)।

सिह :: सक [स्पृह्] इच्छा करना, चाहना। सिहइ (हे ४, ३४; प्राकृ २३)। कृ. सिह- णिज्ज (दे ८, ३१ टी)।

सिह :: पुं [दे] भुजपरिसर्पं की एक जाति (सूअ २, ३, २५)।

सिहंड :: पुं [शिखण्ड] शिखा, चूला, चोटी (पाअ; अभि १५१)।

सिहंडइल्ल :: पुं [दे] १ बालक, शिशु। २ दधि- सर, दही की मलाई। मयूर, मोर (दे ८, ५४)

सिहंडहिल्ल :: पुं [दे] बालक, बच्चा (षड्)।

सिहंडि :: वि [शिखण्डिन्] १ शिखाधारी (भत्त १००; औप) २ पुं. मयूर-पक्षी, मोर (पाअ; उप ७२८ टी) ३ विष्णु (सुपा १४२)

सिहण :: देखो सिहिण (रंभा)।

सिहर :: न [शिखर] १ पर्वंत के ऊपर का भाग, श्रृङ्ग (पाअ; गउड; सुर ४, ५६; से ९, २८) २ अग्रभाग (णाया १, ९) ३ लगातार अठाईस दिनों के उपवास (संबोध ५८)। °अण वि [°चण] शिखरों से प्रसिद्ध (से ९, १८)

सिहरि :: पुं [शिखरिन्] १ पहाड़, पर्वत (पाअ; सुपा ४९) २ वर्षंधर पर्वंत-विशेष (ठा २, ३ — पत्र ६९; सम १२; ४३) ३ पुंन. कूट-विशेष (ठा २; ३ — पत्र ७०)। °वइ पुं [°पति] हिमालय पर्वंत (से ८, ९२)

सिहरिणी, सिहरिल्ला :: स्त्री [दे. शिखरिणी] मार्जिता खाद्य-विशेष, दही-चीनी आदि से बनता एत तरह का मिष्ट खाद्य (दे १, १५४; ८, ३३; पणह २, ५ — पत्र १४८; पव ४; पभा ३३; कस; सण)।

सिहली, सिहा :: स्त्री [शिखा] १ चोटी, मस्तक पर के बालों का गुच्छा (पंचा १०, ३२; पव १५३; पाअ; णाया १, ५ — पत्र १०८; संबोध ३१) २ अग्‍नि की ज्वाला (पाअ; कुमा; गउड)

सिहाल :: वि [शिखावत्] शिखावाला, शिखा- युक्त (गउड)।

सिहि :: पुं [शिखिन्] १ अग्‍नि, आग (गा १३; पाअ; सुपा ५१९) २ मयूर, मोर (पाअ; हेका ४५; गा ५२; १७३) ३ रावण का एक सुभट (पउम ५६, ३०) ४ पर्वत। ५ ब्राह्मण। ६ मुर्गा। ७ केतु ग्रह। ८ वृक्ष। ९ अश्‍व। १० चित्रक-वृक्ष। ११ मयूरशिखा-वृक्ष। १८ बकरे का रोम। १३ वि. शिखा-युक्त (अणु १४२)

सिहि :: पुं [दे] कुक्कुट, मुर्गा (दे ८, २८)।

सिहिअ :: वि [स्पृहित] अभिलषित (कुमा)।

सिहिण :: पुंन [दे] स्तन, थन (दे ८, ३१; सुर १, ९०; पाअ; षड्; रंभा; सुपा ३२; भवि; हम्मीर ५०; सम्मत्त १६६)।

सिहिणी :: स्त्री [शिखिनी] छन्द-विशेष (पिंग)।

सिही :: (अप) स्त्री [सिंही] छन्द-विशेष (पिंग)।

सी :: (अप) स्त्री [श्री] छन्द-विशेष (पिंग)। देखो सिरी।

सीअ :: अक [सद्] १ विषाद करना, खेद करना। २ थकना। ३ पीड़ित होना, दुःखी होना। ४ फलना, फल लगना। सीअइ, सीअंति (पि ४८२; गा ८७४); 'जया सोवन्निं सीयइ' (पिंड ८२), 'सियंति य सव्वअंगाइं' (सुर १२, २)। वकृ. सीअंत (पाअ ५०७; सुपा ५१०; कुप्र ११८)

सीअ :: न [दे] सिक्थक, मोम (दे ८, ३३)।

सीअ :: वि [स्वीय] स्वकीय, निज का; सीयते- यलेस्सपडिसाहरणट्ठयाए', 'सीओसिणा तेय- लेस्सा' (भग १५ — पत्र ६६६)।

सीअ :: देखो सिअ = सित; 'सीआसीअं (प्राप्र)।

सीअ :: पुंन [शीत] १ स्पर्शं-विशेष, ठंढा स्पर्शं (ठा १ — पत्र २५; पव ८६) २ हिम, तुहिन (से ३, ४७) ३ शीत-काल (राज) ४ ठंढ, जाड़ा (ठा ४, ४ — पत्र २८७; औप; गउड; उत्त २, ६) ५ कर्मं-विशेष, शीत स्पर्शं का कारण-भूत कर्मं (कम्म १, ४१; ४२) ६ वि. शीतल, ठंढा (भग; औप; णाया १, १ टी — पत्र ४) ७ पुं. प्रथम नरक का एक नरक-स्थान (देवेन्द्र ४) ८ न. तप-विशेष, आयंबिल तप (संबोध ५८) ९ वि. अनुकूल (सूअ १, २, २, २२) १० न. सुख (आचा)। °घर न [°गृह] चक्रवर्त्ती का बर्धकि-निर्मित वह घर, जहाँ सर्वं ऋतु में स्पर्शं की अनुकूलता होती है (वव ३)। °च्छाय वि [°च्छाय] शीतल छायावाला (औप; णाया १, १टी — पत्र ४)। °परीसह पुं [°परीषह] शीत को सहना (उत्त २, १)। °फास पुं [°स्पर्श] ठंढ, जाड़ा, सर्दी (आचा)। °सोआ स्त्री [°श्रोता, स्रोता] नदी-विशेष (इक; ठा ३, ४ — पत्र १६१)। °लोअअ पुं [°लोकक] १ चन्द्रमा। २ शीतकाल, हिम-ऋतु (से ३, ४७)

सीअ° :: देखो साआ = शीता। °प्पसाय पं [°प्रपात] द्रह-विशेष, जहाँ शीता नदी पहाड़ पर से गिरती है (ठा २, ३ — पत्र ७२)।

सीअ° :: देखो साआ = सीता (कुमा)।

सीअउरय :: पुं [दे. शीतारस्क] गुल्म-विशेष, 'पत्तउरसीयउरए हवइ तह जवासए य बोधव्वे' (पणण १ — पत्र ३२)।

सीअण :: न [सदन] हैरानी (सम्मत्त १९९)।

सीअणय :: न [दे] १ दुग्ध-पारी, दूध दोहने का पात्र। २ श्‍मशान, मसान (दे ८, ५५)

सीअर :: पुं [शीकर] १ पवन से क्षिप्त जल, फुहार जल-कण (हे १, १८४; गउड; कुमा; सण) २ वायु, पवन (हे १, १८४; प्राकृ ८४)

सीअरि :: वि [शीकरिन्] शीकर-युक्त (गउड)।

सीअल :: पुं [शीतल] १ वर्त्तंमान अवसर्पिणी काल के दसवें जिन-देव (सम ४३; पडि) २ कृष्ण पुद्गल-विशेष (सुज्ज २०) ३ वि. ठंढा (हे ३, १०; कुमा; गउड; रयण ५७)

सीअलिया :: स्त्री [शीतलिका] १ ठंढी, शीतला; 'सीयलियं तेअलेस्सं निसिरामि' (भग १५ — पत्र ६६६) २ लूता-विशेष (राज)

सीअल्लि :: पुंस्त्री [दे] १ हिमकाल का दुर्दिन। २ वृक्ष-विशेष (दे ८, ५५)

सीआ :: स्त्री [शीता] १ एक महा-नदी (सम २७; १०२; इक) २ ईषत्प्राग्भारा-नामक पृथिवी, सिद्ध-शिला (इक) ३ शीताप्रपात द्रह की अधिष्ठात्री देवी (जं ४) ४ नील पर्वत का एक शिखर। ५ माल्यवत् पर्वंत का एक कूट (इक) ६ पश्चिम रुचक पर रहनेवाली दिक्कुमारी देवी (ठा ८ — पत्र ४३६)। °मुह न [मुख] एक वन (जं ४)

सीआ :: स्त्री [सीता] १ जनक-सूता, राम-पत्‍नी (पउम ३८, ५६) २ चतुर्थं वासुदेव की माता का नाम (पउम २०, १८४; सम १५२) ३ लाङ्गल-पद्धति खेत में हल चलाने से होती भूमि-रेखा (दे ३, १०४) ४ ईषत्प्राग्भारा नामक पृथिवी (उत्त ३६, ६२; चेइय ७२५) ५-६ नीस तथा माल्य- वत् पर्वंतों के शिखर-विशेष (इक) ७ एक दिक्कुमारी देवी (ठा ८)

सीआ :: देखो सिविया (कप्प; औप; सम १५१)।

सीआण :: देखो मसाण = श्‍मशान (हे २, ८६; वव ७)।

सीआर :: देखो सिक्कार (णाया १, १ — पत्र ६३)।

सीआला :: स्त्री [सप्तचत्वारिंशत्] सैंतालीस, ४७; (कम्म ६, २१)।

सीआलीस :: स्त्रीन. ऊपर देखो (पि ४४५; ४४८)। स्त्री. °सा (सुज्ज २, ३ — पत्र ५१)।

सीआव :: सक [सादय्] शिथिल करना, 'सीयावेइ विहारं' (गच्छ १, २३)।

सीइआ :: स्त्री [दे] झड़ी, निरन्तर वृष्टि (दे ८, ३४)।

सीइय :: वि [सन्न] खिन्न, परिश्रान्त (स ८५)।

सीई :: स्त्री [दे] सीढ़ी, निःश्रेणी (पिंड ९८)।

सीउग्गय :: वि [दे] सुजात (दे ८, ३४)।

सीउट्ट :: न [दे] हिम-काल का दुर्दिन (षड्)।

सीउण्ह :: न [शीतोष्ण] १ ठंढा तथा गरम। २ अनुकुल तथा प्रतिकूल (सूअ १, २, २, २२; पि १३३)

सीउल्ल :: देखो सीउट्ट (षड्)।

सीओअ° :: देखो सीओआ। °प्पवाय पुं [°प्रपात] कुण्ड-विशेष, जहाँ शीतोदा नदी पहाड़ से गिरती है (जं ४ — पत्रे ३०७)। °दीव पुं [°द्वीप] द्वीप-विशेष (जं ४ — पत्र ३०७)।

सीओआ :: स्त्री [शीतोदा] १ एक महा-नदी (ठा २, ३ — पत्र ७२; इक; सम २७; १०२) २ निषव पर्वंत का एक कूट (ठा ९ — पत्र ४५४)

सीकोत्तरी :: स्त्री [दे] नारी, स्त्री, महिला (सिरि ३९०)।

सीत :: देखो शीअ = शीत (ठा ३, ४ — पत्र १६१)।

सीता :: देखो सीआ = शीता, सीता (ठा ८ — पत्र ४३६; ९ — पत्र ४५४)।

सीतालीस :: देखो सीआलीस (सुज्ज २, ३ — पत्र ५१)।

सीतोद° :: देखो सीओअ° (ठा २, ३ — पत्र ७२)।

सीतोदा, सीतोया :: देखो सीओआ (पणह २, ४ — - पत्र १३०; सम ८४)।

सीदण :: न [सदन] शैथिल्य, प्रमत्तता (पंचा १२, ४६)।

सीधु :: देखो सीहु (णाया १, १६ — पत्र २०९ उवा)।

सीभर :: देखो सीअर (प्राप्र; कुमा; हे १, १८४; षड्)।

सीभर :: वि [दे] समान, तुल्य (अणु १३१)।

सीमआ :: स्त्री [सीमन्] १ मर्यादा। २ अवधि। ३ स्थिति। ४ क्षेत्र। ५ वेला, समय। ९ अण्डकोष, पोता (षड्)। देखो सीमा।

सीमंकर :: पुं [सीमङ्कर] १ इस अवसर्पिणी काल में उत्पन्न एक कुलकर पुरुष का नाम (पउम ३, ५३) २ ऐरवत क्षेत्र के भावी द्वितीय कुलकर (सम १५३) ३ वि. मर्यादा- कर्ता (सूअ २, १, १३)

सीमंत :: पुं [सीमन्त] १ बालों में बनाई हुई रेखा-विशेष (से ६, २०; गउड; उप ७२८ टी) २ अपर काय (गउड ८५) ३ ग्राम से लगी हुई भूमि का अन्त, सीमा, गाँव का पर्यन्त भाग (गउड २७३; २७७; उप ७२८ टी) ४ सीमा का अन्त, हद्द; 'एसो च्चिय सीमंतो गुणाण दूरं फुरंताण' (गउड)

सीमंत :: पुं [सीमान्त] १ सीमा का अन्त भाग, गाँव का पर्यंन्त भाग (गउड; ३९७; ४०५) २ हद्द (गउड ८८६)

सीमंत :: सक [दे. सीमान्तय्] बेचना। संकृ. सीमंतिऊण (राज)।

सीमंतग, सीमंतय :: पुं [सीमन्तक] प्रथम नरक-भूमि का एक नरका-वास, नरक-स्थान (निचू १; ठा ३, १ — पत्र १२६; सम ६८)। °प्पभ पुं [°प्रभ] सीमन्तक नरकावास की पूर्व तरफ स्थित एक नरकावास (देवेन्द्र २०)। °मज्झिम पुं [°मध्यम] सीमन्तक की उत्तर तरफ स्थित एक नरकावास (देवेन्द्र २०)। °वसिट्ठ पुं [°वशिष्ट] सीमन्तक की दक्षिण दिशा में स्थित एक नरकावास (देवेन्द्र २१)। °वत्त पुं [°वर्त] सीमन्तक की पश्चिम तरफ का एक नरकावास (देवेन्द्र २१)।

सीमंतय :: न [दे] सीमंत — बालों की रेखा — विशेष में पहना जाता अलंकार-विशेष (धे ८, ३५)।

सीमंतिअ :: वि [सीमन्तित] खण्डित, छिन्न (पाअ)।

सिमंतिणी :: स्त्री [सीमन्तिनी] स्त्री, नारी, महिला (पाअ; उप ७२८ टी; सम्मत्त १९१; सुपा ७)।

सीमंधर :: पुं [सीमन्धर] १ भारतवर्षं में उत्पन्न एक कुलकर पुरुष (पउम ३, ५३) २ ऐरवत वर्षं का एक भावी कुलकर (सम १५३) ३ पूर्वं-विदेह में वर्तमान एक अर्हंन् देव (काल) ४ एक जैन मुनि, जो भगवान् सुमतिनाथ के पूर्वं जन्म में गुरु थे (पउम २०, १७) ५ भगवान् शीतलनाथ जी का मुख्य श्रावक (विचार ३७८) ६ वि. मर्यादा को धारण करनेवाला, मर्यादा का पालक (सूअ २, १, १३)

सीमा :: स्त्री [सीमा] देखो सीमआ (पाअ; गा १६८; ७५१; काल; गउड)। °गार पुं [°कार] जलजन्तु-विशेष, ग्राह का एक भेद (पणह १, १ — पत्र ७)। °धर वि [°धर] मर्यादा, धारक (पडि; हे ३, १३४)। °ल वि [°ल] सीमा के पास का, सीमा के निकट- वर्त्ती; 'सीमला नरवइणो सव्वे ते सवेमावन्ना' (सुपा २२२; ३५२; ४६३; धर्मंवि ५६)।

सीर :: पुंन [सीर] हल, जिससे खेत जोतते हैं (पउम ११३, ३२; कुमा; पडि); 'संसयवसु- हासीरो' (धर्मंवि १६)। °धारि पुं [°धारिन्] बलदेव, बलभद्र, राम (पउम २०, १९३)। °पाणि पुं [°पाणि] वही (दे २, २३; कुमा)। °सीमंत पुं [°सीमन्त] हल से फाड़ी हुई जमीन की रेखा (दे)।

सीरि :: पुं [सीरिन्] बलभद्र. बलदेव (पाअ)।

सीरिअ :: वि [दे] भिन्न, 'सिरीओ भिन्नो' (पाअ)।

सील :: सक [शीलय्] १ अभ्यास करना, आदत डालना। २ पालन करना; 'सीलेज्जा सीलमुज्जलं' (हित १९); 'सव्वसीलं सीलइ पव्वज्जगहणेणं' (श्रा १६)। देखो सीलाव।

सील :: न [शील] १ चित्त का समाधान, 'सीलं चित्तसमाहाणलक्खणं भणणए एयं' (उप ५९७ टी) २ ब्रह्मचर्यं (प्रासू २२; ५१; १५४; १६६; श्रा १६; हित १९) ३ प्रकृति, स्वभाव; 'सीलं पयई' (पाअ) 'कलहसीलं' (कुमा) ४ सदाचार, चारित्र, उत्तम वर्त्तन (कुमा; पंचा १४, १; पणह २, १ — पत्र ९९) ५ चरित्र, वर्त्तंन (हे २, १८४) ६ अहिंसा (पणह २, १ — पत्र ९९) °इ पुं [°जित्] क्षत्रिय परिव्राजक का एक भेद (औप)। °ड्‍ढ वि [°ढ्य] शील-पूर्ण (ओघ ७८४)। °परिघर पुंन [°परिगृह] १ चारित्र-स्थान। २ अहिंसा (पणह २, १ — पत्र ९९) °मंत, °व वि [°वत्] शील-युक्त, (आचा; ओघ ७७७; श्रा ३९)। °व्वय न [°व्रत] अणुव्रत, जैन श्रावक के पालने योग्य अहिंसा आदि पाँच व्रत (भग)। °सालि वि [शालिन्] शील से शोभनेवाला (सुपा २४०)।

सीलाव :: सक [शीलय्] तंदुरुस्त करना। कर्मं. सीलप्पए (वव १)।

सिलुट्ट :: न [दे] त्रपुस, खीरा, ककड़ी (दे ८, ३५; पाअ)।

सीव :: सक [सीव्] सीना, सिलाई करना, साँधना। भवि. सीविस्सामि (आचा)। संकृ. सीविऊण (स ३५०)।

सीवणा :: स्त्री [सीवना] सीना, सिलाई (उफ पृ. २९८)।

सीवणी :: स्त्री [दे] सूची, सूई (गउड)। देखो सिव्विणी।

सीवण्णी, सीवन्नी :: स्त्री [श्रीपर्णी] वृक्ष-विशेष (ओघ ४४९ टी; पिंड ८१; ८२; उप १०३१ टी)।

सीविअ :: देखो सिव्विअ (से १४, २८; दे ४, ७; ओघभा ३१५)।

सीस :: सक [शिष्] १ वध करना, हिंसा करना। २ शेष करना, बाकी रखना। ३ विशेष करना। सीसइ (हे ४, २३६; षड्)

सीस :: सक [कथय्] कहना। सीसइ (हे ४, २; भवि)।

सीस :: न [सीस] धातु-विशेष, सीसा (दे २, २७)।

सीस :: देखो सिस्स = शिष्य (हे १, ४३; कुमा; दं ४७; णाया १, ५ — पत्र १०३)।

सीस :: पुंन [शीर्ष] १ मस्तक, माथा (स्वप्‍न ९०; प्रासू ३) २ स्तबक, गुच्छा (आचा २, १, ८, ६) ३ छन्द-विशेष (पिंग) °अ न [°क] शिरस्राण (वेणी ११०)। °घड़ी स्त्री [°घटी] सिर की हड्डी (तंदु ३८)। °पंकपिअ न [°प्रकम्पित] संख्या-विशेष, महलता को चौरासी लाख से गुनने पर जो संख्या लब्ध हो वह (इक)। °पहेलिअ स्त्रीन [°प्रहेलिक] संख्या-विशेष, शीर्षंप्रहे- लिकांग को चौरासी लाख से गुनने पर जो संख्या लब्ध हो वह (इक)। स्त्री. °आ (ठा २, ४ — पत्र ८६, सम ९०; अणु ९९)। °पहलियंग न [प्रहेलिकाङ्ग] संख्या-विशेषष चूलिका को सौरासी लाख से गुनने पर जो संख्या लब्ध हो वह (ठा २, ४ — पत्र ८६; अणु ९९)। °पूरग, °पूरय पुं [°रुपक] मस्तक का आभरण (राज; तंदु ४१)। °रुपक, °रुअ (अप)। पुंन [°रुपक] छन्द-विशेष (पिंग)। °वेढ पुं [°वेष्ट] गोले चमड़े आदि से मस्तक को लपेटना (सम ५०)।

सीस° :: देखो सास = शास्।

सीसक्क :: न [दे. शीर्षक] शिरस्राण, मस्तक का कवच (दे ८, ३४; से १५, ३०)।

सौसम :: पुंन [दे] सीसम का गाछ, शिंशपा (उप १०३१ टी)।

सीसय :: वि [दे] प्रवर, श्रेष्ठ (दे ८, ३४)।

सीसय :: न [सीसक] देखो सीस = सीस (महा)।

सीसवा :: स्त्री [शिंशपा] सीसम का गाछ (रणण १ — पत्र ३१)।

सीह :: देखो सिग्घ = शीघ्र (राज)।

सीह :: पुं [सिंह] १ श्वापद जन्तु-विशेष, केसरी, मृग-राज (पणह १, १ — पत्र ७; प्रासू ५१; १७१) २ वृक्ष-विशेष, सहिंजने का पेड़ (हे १, १४४; प्राप्र) ३ राशि-विशेषष मेष से पाँचवीं राशि (विचार १०६) ४ एक अनुत्तर देवलोक-गामी जैन मुनि (अनु २) ५ एक जैन मुनि, जो आर्य-धर्मं के शिष्य थे (कप्प) ६ भगवान् महावीर का शिष्य एत मुनि (भग १५ — पत्र ६८५) ७ एक विद्याधर सामन्त राजा (पउम ८, १३२) ८ एक श्रेष्ठि-पुत्र (सुपा ५०९) ९ एक देव-विमान (सम ३३; देवेन्द्र १४०) १० एक जैन आचार्यं, जो रेवतीनक्षत्र नामक आचार्यं के शिष्य थे (णंदि ५१) ११ छन्द-विशेष (पिंग) °उर न [°पुर] नगर-विशेष (सण)। °कंत पुंन [°कान्त] एक देव- विमान (सम ३३)। °कडि पुं [°कटि] रावण का एक योद्धा (पउम ५६, २७)। °कण्ण पुं [°कर्ण] एक अन्तर्द्वीप (इक)। °कण्णी स्त्री [°कर्णी] कन्द-विशेष (उत्त ३६, १००)। °केसर पुं [°केसर] १ आस्तरण-विशेष, जटिल कम्बल (णाया १, १ — पत्र १३) २ मोदक-विशेष (अंत ६; पिंड ४८) °गइ पुं [°गति] अमितगति तथा अमितबाहन नामक इन्द्र का एक-एक लोकपाल (ठा ४, १-पत्र १९८)। °गिरि पुं [°गिरि] एक प्रसिद्ध जैन महर्षि (उव; उप १४२ टी; पडि)। °गुहा स्त्री [°गुहा] एक चोर-पल्ली (णाया १, १८ — पत्र २३६)। °चूड पुं [°चूड] विद्याधर-वंश का एक राजा (पउम ५, ४६)। °जस पुं [°यशस्] भरत चक्रवर्त्ती का एक पौत्र (पउम ५, ३)। °णाय पुं [°नाद] सिंहागर्जंन, सिंह की गर्जंना के तुल्य आवाज (भग)। °णिक्कीलिय न [°निक्रीडित] १ सिंह की गति। २ तप-विशेष (अंत २८) °णिसाइ देखो °तिसाइ (राज)। °दुवार न [°द्वार] राद-द्वार, राज-प्रासाद का मुख्य दरवाजा (कुप्र ११९)। °द्धय पुं [°ध्वज] १ विद्याधरवंश का एक राजा (पउम ५, ४३) २ हरिषेण चक्रवर्त्ती का पिता का नाम (पउम ८, १४४)। °नाय देखो °णाय (पणह १, ३ — पत्र ४५)। °निकीलिय, °निक्कीलिय देखो °णिक्कीलिय (पव २७१; अंत २८; णाया १, ८ — पत्र १२२)। °निसाइ वि [°निषादिन्] सिंह की तरह बैठनेवाला (सुज्ज १०, ८ टी)। °णिसिज्जा स्त्री [°निषद्या] भरत चक्रवर्त्ती द्वारा अष्टापद पर्वंत पर बनवाया हुआ जैन मन्दिर (ती ११)। °पुच्छ न [°पुच्छ] पृष्ठ-वर्ध्रं, पीठ की चमड़ी (सूअनि ७७)। °पुच्छण न [°पुच्छन] पुरुष-चिह्न का तोड़ना, लिंग- त्रोटन (पणह २, ५ — -पत्र १५१)। °पुच्छिय वि [°पुच्छित] १ जिसका पुरुष-चिह्न तोड़ दिया गया हो वह। २ जिसको कृकाटिका से लेकर पुत-प्रदेश — नितम्ब तक की चमड़ी उखाड़ कर सिंह के पुच्छ के तुल्य की जाय वह (औप) °पुरा, °पुरी स्त्री [°पुरी] नगरी-विशेष, विजय-क्षेत्र की एक राजधानी (ठा २, ३ — पत्र ८०; इक)। °मुह पुं [°मुख] १ अन्दर्द्वीप-विशेष। २ उसमें रहनेवाली मनुष्य-जाति (ठा ४, २ — पत्र २२६; इक)। °पव पुं [°रव] सिंह-गर्जंना, सिह-नाद, सिंह की तरह आवाज (पउम ४४, ३५)। °रह पुं [°रथ] गन्धार देश के पुंड्र- वर्धंन नगर का एक राजा (महा)। °वाह पुं [°वाह] विद्याधर-वंश का एक राजा (पउम ५, ४३)। °वाहण पुं [°वाहन] राक्षस-वंश का एक राजा (पउम ५, २६३)। °वाहणा स्त्री [°वाहना] अम्बिका देवी (राज)। °विक्कामगइ पुं [°विक्रमगति] अमितागति तथा अमितवाहन नामक इन्द्र का एक-एक लोकपाल (ठा ४, १ — पत्र १९८; इक)। °वीअ पुंन [°वीत] एक देव-विमान (सम ३३)। °सेण पुं [°सेन] चौदहवें जिनदेव का पिता, एक राजा (सम १५१) २ भगवान् अजितनाथ का एक गणधर (सम १५२) ३ राजा श्रेणिक का एक पुत्र (अनु २) ४ राजा महासेन का एक पुत्र (विपा १, ९ — पत्र ८९) ५ ऐरवत क्षेत्र में उत्पन्न एक जिनदेव (राज)। °सोआ स्त्री [°स्रोता] एक नदी (ठा २, ३ — पत्र ८०)। °बिलोइअ न [°विलोकित] सिंहावलोकन, सिंह की तरह चलते हुए पीछे की तरफ देखना (महा)। °सण न [°सन] आसन- विशेष, सिंहाकार आसन. सिंहाङ्कित आसन, राजासन (भग)। देखो सिंह।

सीह :: वि [सैंह] सिंह-संम्बन्धी। स्त्री. °हा (णाया १, १ — पत्र ३१)।

°सीह :: पुं [°सिंह] श्रेष्ठ, उत्तम (सम १; पडि)।

सीहंडय :: पुं [दे] मत्स्य, मछली (दे ८, २८)।

सीहणही :: स्त्री [दे] १ वृक्ष-विशेष, करौंदी का गाछ। २ करौंदी का फल (दे ८, ३५)

सीहपुर :: वि [सैंहपुर] सिंहपुर-संबन्धी (पउम ५५, ५३)।

सीहर :: देखो सीअर (हे १, १८४; कुमा)।

सीहरय :: पुं [दे] आसार, जोर की वृष्टि (दे ८, १२)।

सीहल :: देखो सिंहल (पणह १, १ — पत्र १४; इक; पउम ९९, ५५)।

सीहलय :: पुं [दे] वस्त्र आदि को धूप देने का यन्त्र (दे ८, ३४)।

सीहलिआ :: स्त्री [दे] १ शिखा, चोटी। २ नवमालिका, नवारी का गाछ (दे ८, ५५)

सीहलिपासग :: पुंन [दे] ऊन का बना हुआ कंकण, जो वेणी बाँधने का काम में आता है (सूअ १, ४, २, ११)।

सीही :: स्त्री [सिही] स्त्री-सिंह, सिंह की मादा (नाट)।

सीहु :: पुंन [सीधु] १ मद्य, दारू। २ मद्य- विशेष (पणह २, ५ — पत्र १५०; दे १, ४६; पाअ; गा ५४५; मा ४३)

सु :: अ [सु] इन अर्थों का सूचक अव्यय — १ प्रशंसा, श्लाघा (विसे ३४४३; सूअनि ८८)। २ अतिशय, अत्यन्तता (श्रु १९) ३ समीचीनता (सट्ठि १६) ४ अतिशय योग्यता (पिंग) ५ पूजा। ६ कष्ट, मुश्‍किली। ७ अनुमति। ८ समृद्धि (षड् १२२; १२३; १३५) ९ अनायास (ठा ५, १ — पत्र २९६)

सुअ :: अक [स्वप्] सोना। सुअइ (हे ४, १४६; प्राकृ ६६; पि ४९७; उव), सूयामि (निसा १); 'खणंपि मा सुय वीसत्थो' (आत्महि ६)। कर्मं. सुप्पइ (हे २, १७९)। वकृ. सुयंत, सुयमाण (सुर ५, २१९; सुपा ५०५; महा ३७, १२; पि ४९७)। हेकृ. सोउं (पि ४९७)। कृ. सोएवा (अप) (हे ४, ४३८)।

सुअ :: सक [श्रु] सुनना। वकृ. सुअंत (धात्वा १५६)।

सुअ :: पुं [सुत] पुत्र, लड़का (सुर १, १०; प्रासू ८९; कुमा; उव)।

सुअ :: पुं [शुक] १ पक्षि-विशेष, तोता (पणह १, १ — पत्र ८; उत्त ३४, ७; सुपा ३१) २ रावण का मन्त्री (से १२, ६३) ३ रावणाधीन एक सामंत राजा (पउम ८, १३३) ४ एक परिव्राजक (णाया १, ५ — पत्र १०५) ५ एक अनार्यं देश (पउम २७, ७)

सुअ :: वि [श्रुत] १ सुना हुआ, आकर्णित (हे १, २०९; भग; ठा १ — पत्र ६) २ न. ज्ञान-विशेष, शब्द-ज्ञान, शास्त्र-ज्ञान (विसे ७९; ८१; ८५; ८६; ९४; १०४; १०५; णंदि; अणु) ३ शब्द, ध्वनि, आवाज। ४ क्षयोपशम, श्रुतज्ञान के आवरक कर्मों का नाश-विशेष। ५ आत्मा, जीव; 'तं तेण तओ तम्मि व सुणेइ सो वा सुअं तेण' (विसे ८१) ६ आगम, शास्त्र, सिद्धान्त (भग; णंदि; अणु; से ४, २७; कम्म ४, ११; १४; २१; बृह १; जी ८) ७ अध्ययन, स्वाध्याय (सम ५१; से ४, २७) ८ श्रवण (प्राकृ ७०) °केवलि पुं [°केवलिन्] चौदह पूर्वं-ग्रथों का जानकार मुनि (राज)। °क्खंध, °खंध पुं [°स्कन्ध] १ अंग-ग्रन्थ का अध्ययन-समूहात्मक महान् अंश — खण्ड (सूअ २, ७, ४०; विपा १, १ — पत्र ३) २ बारह अंग-ग्रंथों का समुह। ३ बारहवाँ अंग-ग्रंथ, दृष्टिवाग (राज)। °णाण देखो °नाण (ठा २, १ टी — पत्र ५१)। °णाणि वि [°ज्ञानिन्] शास्त्र-ज्ञान-संपन्‍न, शास्त्रों का जानकार (भग)। °णिस्सिय न [°निश्रित] मति-ज्ञान का एक भेद (णंदि)। °तिहि स्त्री [°तिथि] शुक्ल पंचमी तिथि (रयण २)। °थेर पुं [°स्थविर] तृतीय और चतुर्थं अंग-ग्रंथ का जानकार मुनि (ठा ३, २)। °देवया स्त्री [°देवता] जैन शास्त्रों की अधिष्ठात्री देवी (पडि)। °देवी स्त्री [°देवी] वही (सुपा १; कुमा)। °धम्म पुं [°धर्म] १ जैन अंग-ग्रंथ (ठा २, १ — पत्र ५२) २ शास्त्र-ज्ञान (आवम) ३ आगमों का अध्ययन, शास्त्राभ्यास (णंदि)। °धर वि [°धर] शास्त्रज्ञ (सुपा ६५२; पणह २, १ — पत्र ९९)। °नाण पुंन [°ज्ञान] शास्त्रज्ञान (ठा २, १ — पत्र ४९; भग)। °नाणि देखो °णाणि (वव १०)। °निस्सिय देखो °णिस्सिय (ठा २, १ — पत्र ४९)। °पंचमी स्त्री [°पञ्चमी] कार्तिक मास की शुक्ल पाचवीं तिथि (भवि)। °पुव्व वि [°पूर्व] पहले सुना हुआ (उफ १४२ टी)। °सागर पुं [°सागर] ऐरवत क्षेत्र के एक भावी जिनदेव (सम १५४)

सुअ :: वि [स्मृत] याद किया हुआ (भग)।

सुअंध :: पुं [सुगन्ध] १ अच्छी गन्ध, खुशबू (गा १४) २ वि. सुगन्धी (से ८, ९२; सुर १, २८)

सुअंधि :: वि [सुगन्धि] सुन्दर गन्धवाला (से १, ६२; दे ८, ८)। देखो सुगंधि।

सुअक्खाय :: वि [स्वाख्यात] अच्छी तरह कहा हुआ (सूअ २, १, १५; १६; २०; २९)।

सुअच्छ :: वि [स्वच्छ] निर्मंल, विशुद्ध (भवि)।

सुअण :: पुं [सुजन] सज्जन, भला आदमी (गा २२४; पाअ; प्रासू ८; ४०; सुर २, ४६; गउड)।

सुअण :: न [स्वपन] सोना, शयन (सूक्त ३१)।

सुअणा :: स्त्री [दे] अतिमुक्तक, वृक्ष-विशेष (दे ८, ३८)।

सुअणु :: वि [सुतनु] १ सुन्दर शरीरवाला। २ स्त्री. नारी, महिला (गा २६९; ३८४; ५६६; पि ३४६; गउड)

सुअण्ण :: देखो सुवण्ण (प्राकृ ३०)।

सुअम :: वि [सुगम] सुबोध (प्राकृ ११)।

सुअर :: वि [सुकर] जो अनायास से हो सके वह, सरल (अभि ९६)।

सुअर :: पुं [शूकर] सूअर, वराह (विपा १, ७ — पत्र ७५; नाट — मृच्छ २२२)।

सुअरिअ :: न [सुचरित] सदाचार, सद्वर्त्तन (अभि २५३)।

सुअलंकिय :: वि [स्वलंकृत] अच्छी तरह विभूषित (णाया १, १ — -पत्र १९)।

सुआ :: स्त्री [सुता] पुत्री, लड़की (गा ६०२; ८६३ (कुमा)।

सुआ :: (शौ) अक [शी] शयन करना, सोना। सुआदि (प्राकृ ९४)।

सुआ :: स्त्री [स्रच्] यज्ञ का उपकरण-विशेष, घी आदि डालने की कड़छी या कलछी (उत्त १२, ४३; ४४)।

सुआइक्ख :: वि [स्वाख्येय] सुख से — अनायास से कहने योग्य (ठा ५, १ — पत्र २९६)।

सुआउत्त :: वि [स्वायुक्त] अच्छी तरह ख्याल रखनेवाला (उव)।

सुइ :: पुं [शुचि] १ पवित्रता, निर्मंलता; 'जिणधम्मठिया मुणिणो य वच्छ दीसंति सुइरहिया' (सुपा १६६) २ वि. श्‍वेत, सफेद (कुमा) ३ पवित्र. निर्मंल (औप; कप्प; श्रा १२; महा; कुमा) ४ स्त्री. शक्र की एक अग्र-महिषी (इक)

सुइ :: स्त्री [श्रुति] १ श्रवण, आकर्णंन, सुनना (उत्त ३, १; वसु; विसे १२५) २ कर्णं, कान (गा ६४१; सुर ११, १७४; सम्मत्त ८४; सुपा ४६; २४७) ३ वेद-शास्त्र (पाअ; अच्चु ४; कुमा) ४ शास्त्र, सिद्धान्त (संथा ७; प्रासू ४६)

सुइ :: स्त्री [स्मृति] स्मरण (विपा १, २ — पत्र ३४)।

सुइअ :: देखो सुइअ = सूचिक (दे १, ६९)।

सुइण :: देखो सुमिण (सुर ९, ८२; उप ७२८ टी; हे ४, ४३४)।

सुइदि :: स्त्री [सुकृति] १ पुण्य। २ मङ्गल, कल्याण। ३ सत्-कर्मं (प्राप्र; पि २०४)

सुइयाणिया :: स्त्री [दे. सूतिकारिणी] सूति- कर्मं करनेवाली स्त्री (सुपा ५७८)।

सुइर :: न [सुचिर] अत्यन्त दीर्घं काल, बहु काल (गा १३७; ४९०; सुपा १; १२७; महा)।

सुइल :: देखो सुक्क = शुक्ल (हे २, १०६)।

सुइव्व :: वि [श्वस्तन] आगामी कल से संबन्ध रखनेवाला, कल होनेवाला (पिंड २४१)।

सुई :: स्त्री [दे] बुद्धि, मति (दे ८, ३६)।

सुई :: स्त्री [शुकी] शुक पक्षी की मादा, मैना (सुपा ३९०)।

सुउज्जुयार :: वि [सुऋजुकार] अतिशय संयम में रहनेवाला. सुसंयमी (सूअ १, १३, ७)।

सुउज्जुयार :: वि [सुऋजुचार] अतिशय सरल आचरणवाला (सूअ १, १३, ७)।

सुउमार, सुउमाल :: देखो सुकुमाल (स्वप्‍न ६०; कुमा)।

सुउरिस :: पुं [सुपुरुष] सज्जन, भला आदमी (प्राप्र; हे १, ८; कुमा)।

सुए :: अ [श्वस्] आगामी कल (स ३६; वै ४१)।

सुंक :: न [शुल्क] १ मूल्य (णाया १, ८ — पत्र १३१; विपा १, ९ — पत्र ९३) २ चुंगी, विक्रेय वस्तु पर लगता राज-कर (धम्म १२ टी; सुपा ४४७) ३ वर-पक्ष के पास से कन्या पक्षवालों को लेने योग्य धन (विपा १, ९ — पत्र ९४)। °ठाण न [°स्थान] चुंगी-घर (धम्म १२ टी)। °पालय वि [°पालक] चुगी पर नियुक्त राज-पुरुष (सुपा ४४७)। देखो सुक्क = शुल्क।

सुंकअ, सुंकल :: पुंन [दे] किंशारु, धान्य आदि का अग्र भाग (दे ८, ३८)।

सुंकलि :: पुंन [दे] तृण-विशेष (पणण १ — पत्र ३३)।

सुंकविय :: वि [शुक्लित] जिसकी चुंगी दी गई हो वह (सुपा ४४७)।

सुंकाणिअ :: पुं [दे] नाव का डांड़ खेनेवाला व्यक्ति, पतनवार चलानेवाला (सिरि ३८५)।

सुंकार :: पुं [सूत्कार] अव्यक्त शब्द-विशेष (सुर २, ८; गउड)।

सुंकिअ :: वि [शौक्लिक] शुल्क लेनेवाला, चुंगी पर नियुक्त पुरुष (उप पृ १२०)।

सुंख :: देखो सुक्ख = शुष्क (संक्षि १९)।

सुंग :: देखो सुक्क = शुल्क (हे २, ११; कुमा)।

सुंगायण :: न [शौङ्कायन] गोत्र-विशेष (सुज्ज १०, १६)।

सुंव :: सक [दे] सूँघना। वकृ. सुंघंत (सिरि ६२२)।

सुंघिअ :: वि [दे] घ्रात, सूँघा हुआ (दे ८, ३७)।

सुंचल :: न [दे] काला नमक, 'सुंठिसुंचलाईय' (कुप्र ४१४)।

सुंठ :: पुंन [शुण्ठ] पर्वं-वनस्पति-विशेष (पणण १ — पत्र ३३)।

सुंठय :: पुंन [शुण्ठक] भाजन-विशेष, 'मीरासु य सुंठएसु य कंडुसु य पयंडएसु य पयंति' (सूअनि ७६)।

सुंठी :: स्त्री [शुण्ठी] सूँठ या सोंठ (पभा १५; कुप्र ४१४; पंचा ५, ३०)।

सुंड :: वि [शौण्ड] १ मत्त, मद्यप, दारू पीनेवाला (हे १, १६०; प्राकृ १०; संक्षि ६) २ दक्ष, कुशल (कुमा)। देखो सोंड।

सुंडा :: देखो सोंढा (आचा २, १, ३, २; आवम)।

सुंडिअ :: पुं [शौण्डिक] कलवार, दारू बेचनेवाला (प्राकृ १०; संक्षि ६)।

सुंडिआ :: स्त्री [शौण्डिका] मदिरा-पान में आसक्ति (दस ५, २, ३८)।

सुंडिक :: देखो सुंडिअ (दे ६, ७५)।

सुंडिकिणी :: स्त्री [सौण्डिकी] कलवार की स्त्री (प्रयौ १०९)।

सुंडीर :: देखो सोंडीर (भवि)।

सुंद :: पुं [सुन्द] राजा रावण का एक भागि- नेय, खरदूषण का पुत्र (पउम ४३, १८)।

सुंदर :: वि [सुन्दर] १ मनोहर, चारु, शोभन (पणह १, ४; सुपा १२८; २९५; कप्पू; काप्र ४०८) २ पुं. एक सेठ का नाम (सुपा ६४३) ३ तेरहवें जिनदेव का पूर्वंजन्मीय नाम (सम १५१) ४ न. तप-विशेष, तेला, तीन दिनों का लगातार उपवास (संबोध ५८)। °बाहु पुं [°बाहु] सातवें जिनदेव का पूर्वजन्मीय नाम (सम १५१)

सुंदरिअ :: देखो सुंदेर (हे २, १०७)।

सुदंरिम :: /?/पुंस्त्री. देखो सुंदेर (कुप्र २२१)।

सुंदरी :: स्त्री [सुदरी] १ उत्तम स्त्री (प्रासू ५७; वि १८) २ भगवान् ऋषभदेव की एक पुत्री (ठा ५, २ — पत्र ३२६; सम ९०; पउम ३, १२०; वि १८) ३ रावण की एक पत्‍नी (पउम ७४, ९) ४ छन्द-विशेष (पिंग) ५ मनोहरा, शोभना; 'सुंदरी णं देवाणुप्पिया गोसालस्स मंखलिपुत्तस्स धम्म- पणणत्ती' (उवा)

सुंदेर, सुंदेरिम :: न [सौन्दर्य] सुन्दरता, शऱीर का मनोहरपन (प्राप्र; हे १, ५७; कुमा; सुपा ४; ६२२; धम्म ११ टी)।

सुंब :: न [शुम्ब] १ तृण-विशेष (ठा ४, ४ — पत्र २७१; सुख १०, १) २ तृण-विशेष की बनी हुई डोरी — रस्सी (विसे १५४)

सुंभ :: पुं [शुम्भ] १ एक गृहस्थ जो शुंभा नामक इन्द्राणी का पूर्वं-जन्म में पिता था (णाया २, २ — पत्र २५१) २ दानव- विशेष (पि ३६०; ३६७ ए), °वडेंसय न [°वतंसक] शुम्भा देवी का एक भवन (णाया २, २)। °सरी स्त्री [°श्री] शुम्भा देवी की पूर्व-जन्मीय माता (णाया २, २)

सुंभा :: स्त्री [शुम्भा] बलि नामक इन्द्र की एक पटरानी (णाया २, २ — पत्र २५१)।

सुंसुमा :: स्त्री [सुसुमा] धन सार्थवाह की कन्या का नाम (णाया १, १८ — पत्र २३५)।

सुंसुमार :: पुं [सुंसुमार, शिशुमार] १ जल- चर प्राणी की एक जाति, सूँस, सोंस या सूसर (णाया १, ४; पि ११७) २ द्रह-विशेष (भत्त ९६) ३ पर्वंत-विशेष। ४ न. एक अरण्य (स ८६)। देखो सुंसु-मार।

सुक :: देखो सुअ = शुक (सुपा २३४)। °प्पहा स्त्री [°प्रभा] भगवान् सुविधिनाथ की दीक्षा- शिविका (विचार १२९)।

सुकइ :: पुं [सुकवि] अच्छा कवि (गा ५००; ६००; महा)।

सुकंठ :: वि [सुकण्ठ] १ सुन्दर कण्ठवाला। २ पुं. एक वणिक्-पुत्र (श्रा १६) ३ एक चोर-सेनापति (महा)

सुकच्छ :: पुं [सुकच्छ] विजय-क्षेत्र-विशेष (ठा २, ३ — पत्र ८०; इक)। °कूड पुंन [°कूट] शिखर-विशेष (इक; राज)।

सुकड :: देखो सुकय (चउ ५८)।

सुकण्ह :: पुं [सुकृष्ण] एक राज-पुत्र (निर १, १; पि ५२)।

सुकण्हा :: स्त्री [सुकृष्णा] राजा श्रेणिक की एक पत्‍नी (अंत २५)।

सुकद :: देखो सुकय (संक्षि ९)।

सुकम्माण :: वि [सुकर्मन्] अच्छा कर्मं करनेवाला (हे ३, ५६; षड्)।

सुकय :: न [सुकृत] १ पुण्य (पणह १, २ — पत्र २८; पाअ) २ उपकार (से १, ४६) ३ वि. अच्छी तरह निर्मित (राज)। °जाणुअ, °ण्णु, °ण्णुअ वि [°ज्ञ] सुकृत का जानकार, उपकार की कदर करनेवाला (प्राकृ १८; उप ७६८ टी)

सुकयत्थ :: वि [सुकृतार्थ] अत्यन्त कृतकृत्य (प्रासू १५५)।

सुकर :: देखो सुगर (आचा १, ९, १, ८)।

सुकाल :: पुं [सुकाल] राजा श्रेणिक का एक पुत्र (निर १, १)।

सुकाली :: स्त्री [सुकाली] राजा श्रेणिक की एक पत्‍नी (अंत २५)।

सुकिअ :: देखो सुकय (हे ४, ३२९; भवि)।

सुकिट्ठ :: वि [सुकृष्ट] अच्छी तरह जोता हुआ (पउम ३, ४५)।

सुकिट्ठि :: पुं [सुकृष्टि] एक देव-विमान (सम ९)।

सुकिदि :: वि [सुकृतिन्] १ पुण्य-शाली। २ सत्कर्मं-कारी (रंभा)

सुकिल, सुकिल्ल :: देखो सुक्क = शुक्ल (हे २, १०६; पि १३६)।

सुकुमार, सुकुमाल :: वि [सुकुमार] १ अति कोमल। २ सुन्दर कुमार अवस्थावाला (महा; हे १, १७१; पि १२३; १६०)

सुकुमालिअ :: वि [दे] सुघटित, सुन्दर बना हुआ (दे ८, ४०)।

सुकुल :: पुंन [सुकुल] उत्तम कुल (भवि)।

सुकुसुम :: न [सुकुसुम] १ सुन्दर फूल। २ वि. सुन्दर फूलवाला (हे १, १७७; कुमा)

सुकुसुमिय :: वि [सुकुसुमित] जिसको अच्छी तरह फूल आया हो वह (सुपा ५९८)।

सुकोसल :: पुं [सुकोशल] १ ऐरवत-वर्षं के एक भावी जिनदेव (सम १५४; पव ७) २ एक जैन मुनि (पउम २२, ३९)

सुकोसला :: स्त्री [सुकोशला] एक राज-कन्या (उप १०३१ टी)।

सुक्क :: अक [शुप्] सूखना। सुक्कइ (विसे ३०३२; पव ७०), सुक्कंति (दे ८, १८ टी)।

सुक्क :: वि [शुष्क] सूखा हुआ (हे २, ५; णाया १, ६ — पत्र ११४; उवा; पिंड २७६; सुर ३, ९५; १०, २२३; धात्वा १५६)।

सुक्क :: न [शुक्ल] १ चुंगी, बेतने की वस्तु पर लगता राज-कर (णाया १, १ — पत्र ३७; कुमा; श्रा १४; सम्मत्त १५९) २ स्त्री-धन विशेष। ३ वर पक्ष से कन्या पक्षवालों को लेने योग्य धन। ४ स्त्री को संभोग के लिए दिया जाता धन। ५ मूल्य (हे २, ११)। देखो सुंकं।

सुक्क :: पुं [शुक्र] १ ग्रह-विशेष (ठा २, ३ — पत्र ७८; सम ३६; वज्जा १००) २ पुंन. एक देव-विमान (सम ३३; देवेन्द्र १४३) ३ न. वीर्यं, शरीरस्थ धातु-विशेष (ठा ३, ३ — पत्र १४४; धर्मंसं ९८४; वज्जा १००)

सुक्क :: पुं [शुक्ल] १ वर्णं-विशेष, सफेद रँग। २ सफेद वर्णंवाला, श्‍वेत (हे २, १०६; कुमा; सम २९) ३ न. शुभ ध्यान-विशेष (औप) ४ वि. जिसका संसारह अर्धं पुद्गल- परावर्त काल से कम रह गया हो वह (पंचा १, २) °ज्झाण, °ज्झाण न [°ध्यान] शुभ ध्यान-विशेष (सम ९; सुपा ३७; अंत)। °पक्ख पुं [°पक्ष] १ जिसमें चन्द्र की कला क्रमशः बढ़ती है वह आधा महीना (सम २९; कुमा) २ हंस पक्षी। ३ काक, कौआ। ४ बगला, बक पक्षी (हे २, १०६)। °पक्खिय वि [°पाक्षिक] वह आत्मा जिसका संसार अर्धं पुद्गल-परावर्तं से कम रह गया हो (ठा २, २ — पत्र ५९)। °लेस देखो °लेस्स (भग)। °लेसा देखो °लेस्सा (सम ११; ठा १ — पत्र २८)। °लेस्स वि [°लश्या] शुक्ल लेश्यावाला (पणण १७ — पत्र ५११)। °लेस्सा स्त्री [°लेश्या] आत्मा का अध्यव- साय-विशेष, शुभतम आत्म-परिणाम (पणह २, ४ — पत्र १३०)

सुक्कड, सुक्कय :: देखो °सुकय (सम १२५; पउम १५, १००)।

सुक्कव :: सक [शोषय्] सुखाना। वकृ. सुक्कवेमाण (णाया १, ६ — पत्र ११४)।

सुक्काणय :: न [दे] जहाज के आगे का उँचा काष्ठ; गुजराती में 'सुकान' (सिरि ४२४)।

सुक्काभ :: न [शुक्राभ] १ एक लोकान्तिक देव-विमान (पव ३६७) २ वैताढ्य पर्वंत की दक्षिण श्रेणी में स्थित एक विद्याधर-नगर (इक)

सुक्किय :: देखो सुकय (भवि)।

सुक्किय :: देखो सुक्कीअ (राज)।

सुक्किल, सुक्किलय :: देखो सुक्क = शुक्ल (भग; औप; हे २, १०६; पंच ५, ३३; अणु १०९); 'मुत्तुं सुक्किलवत्थं' (गच्छ २, ४९; कप्प; सम ४१ धर्मंसं ४५४)। स्त्री. 'एगो सुक्किलियामं एगो सबलाणं वग्गो कओ' (आक ७)।

सुक्कीअ :: वि [सुक्रीत] अच्छी तरह खरीदा हुआ, सुक्कीअं वा सुविक्कीअं (दस ७, ४५)।

सुक्ख :: देखो सुक्क = शुष्। वकृ. सुक्खंत (गा ४१४; वज्जा १४६)।

सुक्ख :: देखो सुक्क = शुष्क (हे २, ५; गा २६३, मा ३१; उप ३२० टी)।

सुक्ख :: न [सौख्य] सुख (कप्प; कुमा; सार्धं ५१, प्रासू २८; १४५)।

सुक्खव :: देखो सुक्कव। कर्मं. सुक्खवीअंति (पि ३५९; ५४३)।

सुक्खिय :: वि [स्वाख्यात] अच्छी तरह कहा हुआ, प्रतिज्ञात; 'तओ सुइवइयराजंपणे जं ते सुक्खथियमासि बुद्धिलेण अद्धलक्खं, तन्‍निभित्त- मेसो पेसिओ चालीससाहस्सो हारो त्ति वोत्तुं समप्पिउं च हारकरंडियं गओ दासचिडौ' (महा)।

सुखम :: (पै) देखो सण्ह = सूक्ष्म; 'सुखमवरिसो' (प्राकृ १२४)।

सुग :: देखो सुअ = शुक (उप ९७२; स ८६; उर ५, ७; कुप्र ४३८; कुमा)।

सुगइ :: स्त्री [सुगति] १ अच्छी गति (ठा ३, ३ — पत्र १४३) २ सन्मार्गं, अच्छा मार्गं (सूअनि ११५) ३ वि. अच्छी गति को प्राप्त (आवम)

सुगंध :: देखो सुअंध (कप्प; कुमा; औप; सुर २, ५८)।

सुगंधा :: स्त्री [सुगन्धा] पश्चिम विदेह का एक विजयक्षेत्र (इक)।

सुगंधि :: देखो सुअंधि (औप)। °पुर न [°पुर] वैताढ्य की उत्तर श्रेणी में स्थित एक विद्या- धर-नगर (इक)।

सुगण :: वि [सुगण्] अच्छी तरह गिननेवाला (षड्)।

सुगम :: वि [सुगम] १ अल्प परिश्रम से जाया जा सके वैसा सुगम्य (ओघभा ७५) २ सुबोध (चेइय ३६३)

सुगय :: वि [सुगत] १ अच्छी गतिवाला (ठा ४, १ — पत्र २०२; कुप्र १००) २ सुस्थ। ३ धनी। ४ गुणी (ठा ४, १ — पत्र २०२; राज; हे १, १७७) ५ पुं. बुद्धदेव (पाअ; पव ९४)

सुगय :: वि [सौगत] बुद्ध-भक्त, बौद्ध (सम्मत्त १२०)।

सुगर :: वि [सुकर] सुख-साध्य, अल्प परिश्रम से हो सके ऐसा (आचा १, ९, १, ८)।

सुगरिट्ठ :: वि [सुगरिष्ठ] अति बड़ा (श्रु १९)।

सुगिज्झ :: वि [सुग्राह्य] सुख से ग्रहण करने योग्य (पउम ३१, ५४)।

सुगम्ह :: पुं [सुग्रीष्म] १ चैत्र मास कसी पूर्णिमा (ठा ५, २ — पत्र २१३) २ फाल्गुन का उत्सव (दे ८, ३९)

सुगिर :: वि [सुगिर] अच्छी वाणावाला (षड्)।

सुगिहिय, सुगिहीय :: वि [सुगृहीत] विख्यात, विश्रुत (स ९६; १३)।

सुगी :: देखो सुई = शुकी (कुमा)।

सुगुत्त :: पुं [सुगुप्त] एक मंत्री का नाम (महा)।

सुगुरु :: पुं [सुगुरु] उत्तम गुरु (कुमा)।

सुग्ग :: न [दे] १ आत्म-कुशल (दे ८, ५६; सण) २ वि. निर्विघ्‍न, विघ्‍न-रहित। ३ विसर्जित (दे ८, ५६)

सुग्गइ :: देखो सुगइ (सुपा १९१; सं ८१)।

सुग्गय :: देखो सुगय = सुगत (ठा ४, १ — पत्र २०२)।

सुग्गाह :: अक [प्र + सृ] फैलना। सुग्गाहइ (धात्वा १५६)।

सुग्गीव :: पुं [सुग्रीव] १ नागकुमार देवों के इन्द्र भृतानन्द के अश्‍व-सैन्य का अधिपति (५, १ — पत्र ३०२) २ भारतवर्षं में होनेवाला नववाँ प्रतिवासुदेव राजा (सम १५४) ३ राक्षस-वंश का एक राजा, एक लङ्का-पति (पउम ५, २६०) ४ नववें जिनदेव के पिता का नाम (सम १५१) ५ राजा वालि का छोटा भाई (पउम ९, ६; से १, ४६; १४, ३९) ६ एक राजा का नाम (सुर ९, २१४) ७ न. नगर-विशळेष (उत्त १९, १)

सुव :: (अप) देखो सुह = सुख (हे ४ ३९६)।

सुघट्ट :: वि [सुघृष्ट] अच्छी तरह घिसा हुआ (राय ८० टी)।

सुघरा :: स्त्री [सुगृहा] मादा-पक्षी की एक जाति जो अपना घोंसला खूब सुन्दर बनाती है (आचू १)।

सुघोस :: पुं [सुघोष] १ एक कुलकर-पुरुष (सम १५०) २ एक पुरोहित का नाम (उप ७२८ टी) ३ पुंन. सनत्कुमार देवलोक का एक विमान (सम १२) ४ लान्तक नामक देवलोक का एक विमान (सम १७) ५ वि. सुन्दर आवाजवाला (जीव ३, १; भवि) ६ एक नगर का नाम (विपा २, ८)

सुघोसा :: स्त्री [सुबोषा] १गीतरति नामक गन्धर्वेन्द्र की एक पटरानी (ठा ४, १ — पत्र २०४) २ गीतयशनामक गन्धर्वं की एक पटरानी (ठा ४, १ — पत्र २०४) ३ सुधर्मेन्द्र की प्रसिद्ध घंटा (पणह २, ५ — पत्र १४९; सुपा ४५) ४ वाद्य-विशेष (राय ४६)

सुचंद :: पुं [सुचन्द्र] ऐरवत वर्षं में उत्पन्न दूसरे जिन-देव (सम १५३)।

सुचरिअ :: न [सुचरित] १ सदाचरण, सदा- चार (कप्प; गउड) २ वि. सदाचरण संपन्‍न (गउड) ३ अच्छी तरह आचरित (पउम ७५, १८; णाया १, १६ — पत्र २०५)

सुचिण्ण, सुचिन्न :: वि [सुचीर्ण] १ सम्यग् आच- रित; 'तवसंजमो सुचिणणोवि' (पउम ९, ६१; ६४, ३२; ठा ४, २ — पत्र २१०) २ न. पुण्य (औप; उवा)

सुचिर :: न [सुचिर] अत्यन्त चिक काल, सुदीर्घं काल (सुपा २७; महा; प्रासू ३२)।

सुचोइअ :: वि [सुचोदित] प्रेरित (उत्त १, ४४)।

सुच्च :: वि [शोच्य] अफसोस करने योग्य, 'मुच्चा ते जियलाए जिणवयणं जं नरा न याणंति' (धर्मंवि १७)।

सुच्चा :: देखो सुण = श्रु।

सुजंपिय :: न [सुजल्पित] आशीर्वाद (णाया १, १ — पत्र ३९)।

सुजड :: पुं [सुभट] एक विद्याधर-नरेश (पउम १०, २०)।

सुदस :: पुं [सुयशस्] १ एक जिनदेव का नाम (उप १०३१ टी) २ वि. यशस्वी (श्रा १६)

सुजसा :: स्त्री [सुपशस्] १ चौदहवें जिन- देव की माता (सम १५१) २ एक राज- पत्‍नी (उफ ९८६ टी)

सुजह :: वि [सुहान] सुख से जिसका त्याह हो सके वह (उत्त ८, ६)।

सुजाइ :: वि [सुजाति] प्रशस्त जातिवाला, जात्य (महा)।

सुजाण :: वि [सुज्ञ] सयाना, अच्छा जानकार (सिरि ७९१; प्रासू १३; सुपा ५८८)।

सुजाय :: वि [सुजात] १ सुन्दर जाति में उत्पन्न कुलीन, खानदानी (उफ ७२८ टी) २ अच्छी तरह उत्पन्‍न, सुन्दर रूप से उत्पन्‍न (ठा ४, २ — पत्र २०८; औप; जीव ३, ४; उवा) ३ न. सुन्दर जन्म (आव) ४ पुं. एक राज कुमार (विपा २, ३) ५ पुंन. एक एक देव-विमान (देवेन्द्र २७२)

सुजाया :: स्त्री [सुजाता] १ कालवाल आदि लोकपालों की पटरानियों के नाम (ठा ४, १ — पत्र २०४; इक) २ राजा श्रेणिक की एक पत्‍नी (अंत २५)

सुजिट्ठा :: स्त्री [सुज्येष्ठा] एक महासती राज- कुमारी, जो चेटकराज की पुत्री थी (पडि)।

सुजुत्ति :: स्त्री [सुयुक्ति] सुन्दर युक्ति (सुपा १११)।

सुजेट्ठा :: देखो सुजिट्ठा (राज)।

सुजोसिअ :: वि [सुजुष्ट] अच्छी तरह सेवित (सूअ १, २, २, २९)।

सुजोसिअ :: वि [सुजोषित] सुष्‍ठु क्षपित, सम्यग् विनाशित (सूअ १, २, २, २९)।

सुज्ज :: पुं [सूर्य] १ सूरज, रवि। २ आक का पेड़। ३ दैत्य-विशेष (हे २, ६४; प्राप्र) ४ पुंन. एक देव-विमान (सम १५)। °कंत पुंन [°कान्त] एक देव-विमान (सम १५)। °ज्झय पुंन [°ध्वज] देव-विमान-विशेष (सम १५)। °प्पभ पुंन [°प्रभ] एक देव- विमान (सम १५)। °लेस पुंन [°लेश्य] एक देव-विमान (सम १५)। °वण्ण पुंन [°वर्ण] देव-विमान-विशेष (सम १५)। °सिंग पुंन [°श्रृङ्ग] एक देव-विमान (सम १५)। °सिट्ठ पुंन [°सृष्ट] एक देव-विमान का नाम (सम १५)। °सिरी स्त्री [°श्री] एक ब्राह्मण-कन्या (महानि २)। °सिव पुं [°शिव] एक ब्राह्मण का नाम (महानि २)। °हास पुं [°हास] तलवार की एक उत्तम जाति (पउम ४३, १९)। °भ न [°भ] वैताढ्य की उत्तम-श्रेणी में स्थित एक विद्याधर-नगर (इक)। °वत्त पुंन [°वर्त] एक देव- विमान (सम १५)। देखो °सूर, सूरिअ = सूर, सूर्यं।

सुज्जाण :: वि [सुज्ञान] सुजान, सयाना, सुज्ञ (षड्; पिंग)।

सुज्जुत्तरवडिंसग :: पुंन [सूर्योत्तरावतंसक] एक देव-विमान (सम १५)।

सुज्झ :: अक [शुध्] शुद्ध होना। सुज्झइ (महा)। संकृ. सुज्झिऊण (सम्यक्त्वो ८)।

सुज्झंत :: वि [दृश्यमान] सुझता, दीख पड़ता, मालूम होता; 'अन्नपि जं असुज्झंतं। भुंजंत- एण रत्ति' (पउम १०३, २५)।

सुज्झणया :: स्त्री [सोधना] शुद्धि (उप ८०४)।

सुज्झय :: न [दे] १ रौप्य, चाँदी। २ पुं. रजक, धोबी (दे ८, ५६)

सुज्झरय :: पुं [दे] रजक, धोबी (दे ८, ३९)।

सुज्झवण :: न [शोधन] शुद्धि, प्रक्षालन (उफ ६८५)।

सुज्झाइ :: वि [सुध्याविन्] शुभ ध्यान करनेवाला (संबोध ५२)।

सुज्झाइय :: वि [सुध्यात] अच्छी तरह चिन्तित (राज)।

सुट्ठिअ :: वि [सुस्थित] १ सम्यक् स्थित (कप्प) २ पुं. लवण समुद्र का अधिष्ठायक देव (णाया १, १६ — पत्र २१७) ३ आर्यसुहस्ति आचार्य का शिष्य एक जैन महर्षि (कप्प)

सुट्‍ठु, सुट्‍ठुं :: अ [सुष्ठु] १ अच्छा, शोभन सुन्दर (आचा; भग; स्वप्‍न २३; सुर २, १७८) २ अतिशय, अत्यन्त (सुर ४, २४; प्रासू १३७)

सुठिअ :: देखो सुढिअ (पाअ)।

सुढ :: सक [स्मृ] याद करना। सुढइ (प्राकृ ६३)।

सुढिअ :: वि [दे] १ श्रान्त, थका हुआ (दे ८, ३६; गउड; सुपा १७९; ५३०; सुर १०, २१८) २ संकुचित अंगवाला (महा)

सुण :: सक [श्रु] सुनना। सुणइ, सुणेइ (हे ४, ५८; २४१; महा)। सुणउ, सुणेउ, सुणाउ (हे ३, १५८)। भवि, सुणिस्सइ, सुणि- स्सामो; सोच्छिइ, सोच्छिहिइ; सोच्छं, सोच्छिस्सं, सोच्छिमि, सोच्छिहिमि, सोच्छि- स्सामि, सोच्छिहामि (पि ५३१; औप; हे ३, १७२)। कर्मं. सुणिज्जइ, सुव्वइ, सुव्वए, सुम्भइ, सुणीअइ (हे ४, २४२; कुमा; महा; पि ५३६)। वकृ. सुणंत, सुणिंत, सुणणाण, सुणेमाण (हेका १०५; सुर ११, ३७; पि ५६१; विपा १, १; सुर ३, ७९)। कवकृ. सुम्मंत, सुव्वंत, सुव्वमाण (सुर ११, १६९; ३, ११; से २, १०; ९, ४६)। संकृ. सुणिअ, सुणिऊण, सुणित्ता, सुणेत्ता, सोऊण, सोउआण, सोउआणं, सोउं सोच्चा, सोच्चं, सुच्चा (अभि ११६; षड्; हे ४, २४१; पि ५८२; हे ४, २३७; २, १४६; कुमा; हे २, १५; पि ११४; ३४९; ५८७)। हेकृ. सोउं (कुमा)। कृ. सुणेयव्व; सोअव्व (भग; पणह १, १ — पत्र ५; से २, १०; गउड; अजि ३८)।

सुगइ :: देखो सुणय।

सुणंद :: पुं [सुनन्द] १ एक राजर्षि (धम्म) २ भगवान् वासुपूज्य को प्रथम भिक्षा-दाता गृहस्थ (सम १५१) ३ पुं. एक देव-विमान (सम २९)। देखो सुनंद।

सुणंदा :: स्त्री [सुनन्दा] १ भगवान् पार्श्वंनाथ की मुख्य श्राविका (कप्प) २ तृतीय चक्रवर्त्ती की पटरानी — -तीसरा स्त्री-रत्‍न (सम १५२; महा) ३ भूतानन्द आदि इन्द्रों के लोकपालों की अग्रमहिषियों के नाम (ठा ४, १ — पत्र २०४; इक)

सुणक्खत्त :: पुं [सुनक्षत्र] १ एक जैन मुनि (अनु २) २ भगवान् महावीर का शिष्य एक मुनि (भग १५ — पत्र ६७८)

सुणक्खत्ता :: स्त्री [सुनक्षत्रा] पक्ष की दूसरी रात (सुज्ज १, १४)।

सुणग :: देको सुणय (आचा; पि २०६)।

सुणण :: न [श्रवण] सुनना (स ५३)।

सुणय, सुणह :: पुंस्त्री [शुनक] १ कुक्कुर, कुत्ता (हे १, ५२; गा ५५०; ६८८; ६९०; णाया १, १ — -पत्र ६५; गा १३८; १७५; सुर २, १०३; ९, २०४; श्रा १६; कुप्र १५३; रंभा)। स्त्री. सुणई, सुणिआ (कुमा; गा ६८९) २ पुं. छन्द-विशेष (पिंग)

सुणहिल्लया :: स्त्री [शुनकी] कुत्ती, नादा-कुक्कुर (वज्जा ८६)।

सुणावण :: न [श्रावण] सुनाना (विसे २४८५)।

सुणाविअ :: वि [श्रावित] सुनाया हुआ (सुपा ६०२)।

सुणासीर :: पुं [सुनासीर] इन्द्र, देव-राज (पाअ; हम्मीर १२)।

सुणाह :: देखो सुनाभ (राज)।

सुणिअ :: देखो सुण।

सुणिअ :: वि [श्रुत] सुना हुआ (कुमा; रयण ४४)।

सुणिअ :: पुं [शौनिक] कसाई (सिरि १०७७)।

सुणिउण :: देखो सुनिउण (राज)।

सुणिप्पकंप :: देखो सुनिप्पकंप (राज)।

सुणिम्मिय :: वि [सुनिर्मित] चारु रूप से बना हुआ (कप्प)।

सुणिव्वुय :: वि [सुनिर्वृत] अत्यन्त स्वस्थ (णाया १, १ — पत्र ३२)।

सुणिसंत :: वि [सुनिशान्त] अच्छी तरह सुना हुआ, 'इहमेगेसिं आयारगोयरे णो सुणिसंते भवति' (आचा १, ८, १, २; २, २, २, १०; १३; १५)।

सुणुसउणाय :: सक [सुनसुनाय] 'सुन्' 'सुन्' आवाज करना। वकृ. सुणुसुणायंत (महा)।

सुण्ण :: न [शून्य] १ निर्जंन स्थान (गउड ५२४) २ वि. रिक्त, रीता, खाली (स्वप्‍न ३१ गउड) ३ निष्पल, व्यर्थ निष्प्रयोजन (गउड ५४२; ९७२) ४ न. तप-विशेष, एकाशन- व्रत (संबोध ५७)। देखो सुन्न।

सुण्णआर :: देखो सुण्णार (दे ३, ५४)।

सुण्णइअ, सुण्णविअ :: वि [शून्यत] शून्य किया हुआ (हे ११, ४०; गउड; गा २६, १६९; ६०९)।

सुण्णार :: पुं [सुवर्णकार] सुनार, सोनी (दे ५, ३९)।

सुण्ह :: देखो सण्ह = सूक्ष्म (हे १, ११८; कुमा)।

सुण्हसिअ :: वि [दे] स्वपन-शील, सोने की आदतवाला (दे ८, ३९; षड्)।

सुण्हा :: स्त्री [सास्‍ना] गौ का गल-कम्बल (हे १, ७५; कुमा)। °ल पुं [°ल] वृषभ, बैल (कुमा)। °लचिय पुं [°लचिह्न] १ भगवान् ऋषभदेव। २ महादेव (कुमा)

सुण्हा :: स्त्री [स्‍नुषा] पुत्र-वधू (णाया १, ७ — पत्र ११७; सुर ४, ९८)।

सुतणु :: स्त्री [सुतनु] नारी, स्त्री (सुर २, ८६)।

सुतरं :: अ [सुतराम्] निश्चित अर्थ के अतिशय का सूचक अव्यय (विसे ८९१)।

सुतवसिय :: न [सुतपासेन] सुन्दर, तप, तपश्‍चर्या का सुन्दर अनुष्ठान (राज)।

सुतवस्सि :: वि [सुतुपस्विन्] अच्छा तपस्वी (सम ५१)।

सुतार :: वि [सुतार] १ अत्यन्त निर्मंल। अति- शय ऊँचा। ३ अच्छा तैरनेवाला। अत्युच्च आवाजवाला (हे १, १७७)

सुतरया, सुतादा :: स्त्री [सुतारा] १ भगवान् सुविधि- नाथजी को शासन-देवी (संति ९) २ सुग्रीव की पत्‍नी (पउम १०, ९) ३ आभूषण-विशेष (कुमा)

सुतितिक्ख :: वि [सुतितिक्ष्] सुख से सहन करने योग्य (ठा ५, १ — पत्र २९६)।

सुतोसअ :: वि [सुतोष्य] सुख से तुष्ट करने योग्य (दस ५, २, ३४)।

सुत्त :: सक [सूत्रय्] बनाना। सुत्तइ (सुपा २३५)।

सुत्त :: देखो सुअ = श्रुत; 'पच्चक्खमोहिमण- केवलं च परोक्ख मइसुत्तं' (जीवस १४१)।

सुत्त :: देखो सोत्त = स्रोतस् (भवि)।

सुत्त :: देखो सोत्त = श्रोत्र (रंभा; भवि)।

सुत्त :: वि [सुप्त] सोया, शयित (ठा ५, २ — पत्र ३१९; स्वप्‍न १०४; प्रासू ९८; श्रा २५)।

सुत्त :: वि [सूक्त] १ सुचारु रूप से कहा हुआ। २ न. सुभाषित, सुन्दर वचन; 'सुकइव्व सुत्त- उत्तीए' (सुपा ३३)

सुत्त :: न [सूत्र] सूता, धागा, वस्त्र तन्तु (विपा १, ८ — पत्र ८५; सुपा २८१)। २ नाटक का प्रस्ताप (मोह ४८; सुपा १) ३ शास्त्र- विशेष (भग; ठा ४, ४ — पत्र २८३; जी ३९)। °आर पुं [°कार] ग्रंथकार (कप्पू)। °कंठ पुं [°कण्ठ] ब्राह्मण, विप्र (पउम ४, ६५)। °कड़ न [°कृत] द्वितीय जैन आगम- ग्रंथ (सूअनि २)। °ग न [°क] यज्ञोपवीत (औप)। °धार पुं [°धार] देखो °हार (सुपा १; मोह ४८)। °फासिपणिज्जुत्ति स्त्री [°फाशिकनिर्युक्ति] सूत्र की व्याख्या (अणु)। °रुइ स्त्री [°रुचि] शास्त्र-श्रद्धा (औप)। °हार पुं [°धार] १ प्रधान नट. नाटक का मुख्य पात्र (प्रासू १६३) २ सुतार, बढ़ई (कम्म १, ४८)

सुत्ति :: स्त्री [शुक्ति] सीप, घोंघा (हे २, १३८; कुमा)। °मई स्त्री [°मती] चेदि देश की प्राचीन राजधानी (णाया १, १६ — पत्र २०८)।

सुत्ति :: स्त्री [सूक्ति] सुन्दर बचन, सुभाषित। °वत्तियर स्त्री [°प्रत्यया] एक जैन मुनि- शाखा (कप्प-पृ ७९ टि; राज)।

सुत्तिय :: देखो सोत्तिअ = सौत्रिक (वव ९)।

सुत्तिय :: वि [सूत्रित] सूत्र-निबद्ध (राज)।

सुत्थ :: वि [सुत्थ] १ स्वस्थ, तन्दुरुस्त। २ सुखी (संक्षि १२; गा ४७८; महा; चेइय २६६; उप १०३१ टी)

सुत्थ :: न [सौस्थ्य] १ तंदुरुस्ती, स्वस्थता। २ सुखिपन (संक्षि १२; कुप्र १७६; सुपा १८; १५८; स १३५; उप ९०२; धर्मंवि २२)

सुत्थिय :: देखो सुट्ठिअ (सुपा ६३२)।

सुत्थिर :: वि [सुस्थिर] अतिशय स्थिर, अति- निश्‍चल (प्राकृ १९; सुपा ३४८; कुमा)।

सुथेव :: वि [सुस्तोक] अत्यल्प (पउम ८, १५२)।

सुदंति :: स्त्री [सुदती] सुन्दर दाँतवाला (उफ ७६८ टी)।

सुदंसण :: पुं [सुदर्शन] १ भगवान अरनाथ के पिता का नाम (सम १५१) २ तीसरे वासुदेव तथा बलदेव के धर्म-गुरु (सम १५३) ३ भारतवर्षं में होनेवाला पाचवाँ बलदेव (सम १५४) ४ धरणेन्द्र के हस्ति-सैन्य का अधिपति (ठा ५, १ — पत्र ३०२) ५ एक अन्तकृद् मुनि (अंत १८) ६ मेरु पर्वंत (सूअ १, ६, ९; सुज्ज ५) ७ एक विख्यात श्रेष्ठी (पडि; वि १६) ८ देव-विशेष (ठा २, ३ — पत्र ७९) ९ विष्णु का चक्र (सुपा ३१०) १० भगवान् अरनाथ का पूर्वभवीय नाम। ११ भगवान् पार्श्वनाथ का पूर्वंजन्मीय नाम (सम १५१) १२ पुंन. एक देव-विमान (देवेन्द्र १३६) १३ वि. जिसका दर्शंन सुन्दर हो वह (वि १६) १४ न. पश्चिम रुचक पर्वंत का एक शिखर (ठा ८ — पत्र ४३६)

सुदंसणा :: स्त्री [सुदर्शना] १ जम्बू नामक एक वृक्ष, जिससे यह द्वीप जंबूद्वीप कहलाता है (सम १३; पणह २, ४ — पत्र १३०) २ भगवान् महावीर की ज्येष्ठ बहिन का नाम (आचा २, १५, ३; कप्प) ३ धरण आदि इन्द्रों के कालवाल आदि लोकपालों की एक- एक अग्रमहीषी (ठा ४, १ — पत्र २०४) ४ काल तथा महाकाल-नामक पिशाचेन्द्रों की अग्रमहिषियों के नाम (ठा ४, १ — पत्र २०४) ५ भगवान् ऋषभदेव की दीक्षा- शिविका (विचार १२९) ६ चतुर्थं बलदेव की माता (सम १५२)

सुदक्खिन्न :: वि [सुदाक्षिण्य] दाक्षिण्यवाला (बम्म १५; सं ३१)।

सुदच्छ :: वि [सुदक्ष्] अति चतुर (सुपा ५१७)।

सुदरिसण :: देखो सुदंसण (हे २, १०५; पउम २०, १७६; १९०; पत्र १९४; इक)।

सुदाम :: पुं [सुदाम] अतीत उत्सर्पिणी-काल में उत्पन्‍न भारतवर्षं का दूसरा कुलकर पुरुष (सम १५०)।

सुदारु :: न [सुदारु] सुन्दर काष्ठ (गउड)।

सुदारुण :: पुं [दे] चंडाल (दे ८, ३९)।

सुदिट्ठ :: वि [सुदृष्ट] सम्यग् विलोकित (गा २२५)।

सुदिप्प :: अक [सु + दीप्] अतिशय चमकना। वकृ. सुदिप्पंत (सुपा ३५१)।

सुदीह, सुदीहर :: वि [सुदीर्घ] अत्यन्त लम्बा (सुर २, १२५; १६८)। °कालीय वि [°कालिक] सुदीर्घं-काल-सम्बन्धी (सुर १५, २२०)। °दंसि वि [°दर्शिन्] परिणाम का विचार कर कार्यं करनेवाला (सं ३२)।

सुदुक्कर :: वि [सुदुष्कर] जो अत्यन्त दुःख से किया जा सके वह, अति मुश्‍किल (उप पृ १६०)।

सुदुक्खत्त :: वि [सुदुखार्त] अति दुःख से पीड़ित (सुर ७, ११)।

सुदुक्खिअ :: वि [सुदुःखित] अत्यन्त दुःखित (सुपा ३०४)।

सुदुग्ग :: वि [सुदुर्ग] जहाँ दुःख से गमन किया जा सके वह (पउम ३०, ४९)।

सुदुच्चय :: वि [सुदुस्त्यज] मुश्‍किल से जिसका त्याग हो सके वह, 'सहावो वि सुदुच्चओ' (श्रा १२)।

सुदुत्तार :: वि [सुदुस्तार] कठिनता से जिसको पार किया जा सके वह (औप; पि ३०७)।

सुदुद्धर :: वि [सुदुर्धर] अति दुःख से जो धारण किया जा सके वह (श्रा ४९; प्रासू ४८)।

सुदुन्निवार :: वि [सुदुर्निवार] अति किठनाई से जिसका निवारण किया जा सके वह (सुपा ९४)।

सुदुप्पिच्छ :: वि [सुदुर्दर्श] अतिशय मुश्‍किल से देखने योग्य (सुर १२, १९९)।

सुदुब्भेअ :: वि [सुदुर्भेद] अति दुःख से जिसका भेदन हो सके वह (उप २५३ टी)।

सुदुम्मणिआ :: स्त्री [दे] रूपवती स्त्री (दे ८, ४०)।

सुदुल्लह :: वि [सुदुर्लभ] अत्यन्त दुर्लंभ (राज)।

सुदूसह :: वि [सुदुःसह] अत्यन्त दुःख से सहन करने योग्य (सुर ६, १५८)।

सुदेव :: पुं [सुदेव] उत्तम देव (सुपा २५९)।

सुद्द :: पुं [शूद] मनुष्य की अधम जाति, चतुर्थं वर्णं (विपा १, ५ — पत्र ६१; पउम ३, ११७; श्रु १३)।

सुद्दय :: पुं [शूद्रक] एक राजा का नाम (मोह १०५; १०६)।

सुद्दिणी :: (अप) स्त्री [शूद्रा] शूद्राजातीय स्त्री (पिंग)।

सुद्ध :: पुं [दे] गोपाल, ग्वाला (दे ८, ३३)।

सुद्ध :: वि [शुद्ध] १ शुक्ल, उज्वल; 'वइसाह- सुद्धपंतमिरत्तीए सोहणं लग्गं' (सुर ४, १०१; कुप्र ७०; पंचा ९, ३४) २ पावित्र। ३ निर्दोष। ४ केवल, किसी से अमिश्रित। ५ न. सेंधा नून-नमक। ६ मरिच, मिर्चा (हे १, २६०) ७ लगातार १८ दिनों के उपवास (संबोध ५८) ८ पुं. छन्द-विशेष (पिंग) °गंधारा स्त्री [°गन्धारा] गन्धार-ग्राम की एक मूर्च्छना (ठा ७ — पत्र ३९३)। °दंत पुं [°दन्त] १ भारतवर्षं में होनेवाले चौथे जिनदेव (सम १५४) २ एक अनुत्तर-गामी जैन मुनि (अनु २) ३ एक अन्तर्द्वीप। ४ उसमें रहनेवाली एक मनुष्य-जाति (इक)। °पक्ख पुं [°पक्ष] शुक्ल पक्ष (पउम ६, २७)। °प्प पुं [°त्मन्] पवित्र आत्मा (कप्प)। °प्पवेस वि [°प्रवेश्य] पवित्र और प्रवेश कि लिए उचित (भग)। °प्पवेस वि [°त्मवेश्य] पवित्र तथा वेशोचित (भग)। °वाय पुं [°वात] वायु-विशेष, मन्द पवन (जी ७)। °वियड न [°विकट] उष्ण जल (कप्प)। °सज्जा स्त्री [°षड्जा] षड्ज ग्राम की एक मूर्च्छंना (ठा ७ — पत्र ३९३)

सुद्धंत :: पुं [सुद्धान्त] अन्तःपुर (उप ७६८ टी; कुप्र ५४; कुम्मा २६; कस)।

सुद्दवाल :: वि [दे] शुद्ध-पूत, शुद्ध और पवित्र (दे ८, ३८)।

सुद्धि :: स्त्री [शुद्धि] १ शुद्धता, निर्दोषता, निर्मंलता (सम्मत्त २३०; कुमा) २ पता, खबर, खोई हुई चीज की प्राप्‍ति; 'वद्धाविज्जह पियाइ सुद्धीए' (सुपा ५१७; कुप्र २०२; सम्मत्त १७२; कुम्मा ९)

सुद्धेसणिअ :: वि [शुद्धैषणिक] निर्दोष आहार की खोज करनेवाला (पणह २, १ — पत्र १००)।

सुद्धोअण :: पुं [शुद्धोदन] बुद्धदेव के पिता का नाम। °तणय पुं [°तनय] बुद्ध देव (सम्म १४५)। देखो सुद्धोदण।

सुद्धोअणि :: पुं [शौद्धोदनि] बुद्धदेव (पाअ)।

सुद्धोदण :: देखो सुद्धोअण। °पुत्त पुं [°पुत्र] बुद्ध देव (कुप्र ४४०)।

सुधम्म :: पुं [सुधर्मन्] १ भगवान् महावीर का पट्टवर शिष्य (कुमा) २ एक जैन मुनि (विपा २, ४) ३ तीसरे बलदेव के गुरु — एक जैन मुनि (पउम २०, २०५) ४ एक जैन मुनि, जो सातवें बलदेव के पूर्व-जन्म में गुरु थे (पउम २०, १९३) ५ एक जैनाचार्यं; 'तह अज्जमंगूसूरिं अज्जसुधम्मं च धम्मरयं' (सार्धं २२)। देखो सुहम्म।

सुधा :: देखो छुहा = सुधा (कुमा)।

सुनंद :: पुं [सुनन्द] १ भारतवर्षं के भावी दसवें जिनदेव के पूर्वंभव का नाम (सम १५४) २ एक जैन मुनि (पउम २०, २०)। देखो सुणंद।

सुनक्खत्त :: देखो सुणक्खत्त (भग १५ — पत्र ६७८; ६८७)।

सुनच्चिरी :: स्त्री [सुनर्तिनी] अच्छी तरह नृत्य करनेवाली स्त्री (सुपा २८९)।

सुनयण :: पुं [सुनयन] १ राजा रावण का अधीनस्थ एक विद्याधर सामन्त राजा (पउम ८, १३३) २ वि. सुन्दर लोचनवाला (आजम)

सुलाभ :: पुं [सुनाभ] अमरकंका नगरी के राजा पद्मनाभ का पुत्र (णाया १, १६ — पत्र २१४)।

सुनिउण :: वि [सुनिपुण] १ अत्यन्त सूक्ष्म (सम ११४) २ अति चतुर (सुर ४, १३६)

सुनिउण :: वि [सुनिगुण] अतिशय निश्चित गुणवाला (सम ११४)।

सुनिग्गल :: वि [सुनिर्गल] चिर-स्थायी (विसे ७९९)।

सुनिच्छय :: वि [सुनिश्चय] दृढ़ निर्णयवाला (सुपा ४६८)।

सुनिप्पकंप :: वि [सुनिष्प्रकम्प] अत्यन्त निश्चल (सुपा ६५३)।

सुनिम्मल :: वि [सुनिर्मल] अतिशय निर्मल (पउम २६, ६२)।

सुनिरूविय :: वि [सुनिरूपित] अच्छी तरह तलासा हुआ (सुपा ५२३)।

सुनिविन्न :: वि [सुनिर्विण्ण] अतिशय खिन्‍न (सुर १४, ५८; उव)।

सुनिव्वुड :: देखो सुणिव्वुय (द्र ४७)।

सुनिसाय :: वि [सुनिशात] अत्यन्त तीक्ष्ण (सुपा ५७०)।

सुनिसिअ :: वि [सुनिशित] ऊपर देखो (दस १०, २)।

सुनिस्संक :: वि [सुनिः शङ्क] बिलकुल शङ्का- रहित (सुपा १८८)।

सुनीविआ :: स्त्री [सुनीविका] सुन्दर नीवी — वस्त्र-ग्रन्थिवाली स्त्री (कुमा)।

सुनेत्ता :: स्त्री [सुनेत्रा] पाँचवें वासुदेव की पटरानी (पउम २०, १८६)।

सुन्न :: न [शून्य] १ बिन्दी (सुर १६, १४९) २ — देखो सुण्ण (प्रासू १०; महा; भग; आचा; सं ३९; रंभा)। °पत्तिया स्त्री [°प्रत्ययिका, °पत्रिका] एक जैन मुनि- शाखा (कप्प)

सुन्नयार :: देखो सुण्णआर (सुपा ५६४; धर्मंवि १२)।

सुन्नार :: देखो सुण्णार (सुपा ५६२)।

सुन्हा :: देखो सुण्हा (वा ३७; भवि)।

सुप :: सक [सृज्] मार्जंन करना, शोधन करना। सुपइ (प्राप्र)।

सुपइट्ठ :: वि [सुप्रतिष्ठ] १ न्याय-मार्गं में स्थित। २ प्रतिज्ञा-शूर (कुमा १, २८) ३ अतिशय प्रसिद्ध। ४ जिसकी स्थापना विधि- पूर्वंक की गई हो वह (कुमा २, ४०) ५ पुं. भगवान् महावीर के पास दीक्षा लेकर मुक्ति पानेवाला एक गृहस्थ (अंत १८) ६ अंग- विद्या का जानकार पांचवाँ रुद्र पुरुष (विचार ४७३) ७ भगवान् सुपार्श्‍वंनाथ के पिता का नाम (सुपा ३९) ८ भाद्रपद मास का लोकोत्तर नाम (सुज्ज १०, १९) ९ पात्र- विशेष (राय) १० न. एक नगर का नाम विपा १, ९ — पत्र ८८)। °भ पुंन [°भ] एक देन-विमान (सम १४; पव २६७)

सुपइट्ठिय :: वि [सुप्रतिष्टित] अच्छी तरह प्रतिष्ठा-प्राप्त (भग; राय)।

सुपक्क :: वि [सुपक्क] अच्छी तरह पका हुआ (प्रासू १०२; नाट — मृच्छ ५७)।

सुपडाय :: वि [सुपताक] सुन्दर ध्वजावाला (कुमा)।

सुपाडबुद्ध :: वि [सुप्रतिबुद्ध] १ सुन्दर रीति से प्रतिबोध को प्राप्त (आचा १, ५, २, ३) २ पुं. एक जैन महर्षि (कप्प)

सुपाडवत्त :: वि [सुपरिवृत्त] जो अच्छी तरह हुआ हो वह (पउम ६४, ४५)।

सुपणिहिय :: वि [सुप्रणिहित] सुन्दर प्रणि- धानवाला (पणह २, ३ — पत्र १२३)।

सुपण्ण :: देखो सुप्पन्न (राज)।

सु-ण्ण, सुपन्न :: पुं [सुवर्ण] गरुड पक्षी (नाट; कुप्र ६३)।

सुपन्नत्त :: वि [सुप्रज्ञप्त] १ सुन्दर रूप से कथित (आचा १, ८, १, ३) २ सम्यग् आसेवित (दस ४, १)

सुपभ :: देखो सुप्पभ (राज)।

सुपम्ह :: पुं [सुपक्ष्मन्] १ एक विजय-क्षेत्र (ठा २, ३ — पत्र ८०) २ पुंन. एक देव- विमान (सम १५)

सुपरिकम्मिय :: वि [सुपरिकर्मित] सुन्दर संस्कारवाला (णाया १, ७ — पत्र ११६)।

सुपरिक्खय, सुपरिच्छिय :: वि [सुपरीक्षित] अच्छी तरह जिसकी परीक्षा की गई हो वह (उव; प्रासू १५)।

सुपरिणट्ठिय, सुपरिनट्ठिअ :: वि [सुपरिनिष्ठित] अच्छी तरह निपुण (राज; भग)।

सुपरिप्फु :: वि [सुपरिस्फुट] सुस्पष्ट (पउम ४५, २९)।

सुपरिसंत :: वि [सुपरिश्रान्त] अतिशय पका हुआ (पउम १०२, ४५)।

सुपरुन्न :: वि [सुप्ररुदित] जिसने जोर से रोने का आरम्भ किया हो वह (णाया १, १८ — पत्र २४०)।

सुपवित्र :: वि [सुपवित्र] अत्यन्त विशुद्ध (सुपा ३५४)।

सुपबित्तिय :: [सुपवित्रित] अत्यन्त पवित्र किया हुआ (सुपा ३)।

सुपव्व :: पुं [सुपर्वन्] १ देव। २ न. सुन्दर पर्व (कुप्र ४२)

सुपसाइअ :: वि [सुप्रसादित] अच्छी तरह प्रसन्न किया हुआ (रंभा)।

सुप्रसिद्ध :: वि [सुप्रसिद्ध] अति विख्यात (पिंग)।

सुपस्स :: वि [सुदर्श] सुख से देखने योग्य (ठा ४, ३ — पत्र २५३; ५, १ — पत्र २९६)।

सुपह :: पुं [सुपथ] शुभ मार्गं (उव; सुपा ३७७)।

सुपहाय :: न [सुप्रभात] माङ्गलिक प्रातःकाल (हे २, २०४)।

सुपावय :: वि [सुपापक] अतिशय पापी (उत्त १२, १४)।

सपास :: पुं [सुपार्श्व] १ भारतवर्षं में उत्पन्न सातवें जिन भगवान् (सम ४३; कप्प; सुपा २) २ भगवान् महावीर के पिता का भाई (ठा ९ — पत्र ४५५; विचार ४७८) ३ एक कुलकर पुरुष का नाम (सम १५०) ४ भारतवर्षं के भावी तीसरे जिनदेव (सम १५३) ५ ऐरवत क्षेत्र में उत्पन्‍न एक जिन - देव (सम १५३) ६ ऐरवत क्षेत्र में आगामि उत्सर्पिणी-काल में होनेवाले अठारहवें जिनदेव (सम १५४; पव ७) ७ भारतवर्षं के भावी दूसरे जिनदेव का पूर्वजन्मीय नाम (सम १५४)

सुपासा :: स्त्री [सुपार्श्वा] एक जैन साध्वी (ठा ९ — पत्र ४५७)।

सुपाअ :: पुं [सुपीत] अहोरात्र का पाँचवाँ मुहुर्त्तं (सम ५१)।

सुपुंख :: पुंन [सुपुङ्ख] एक देव-विमान (सम २२)।

सुपुढ :: पुंन [सुपुण्ड्र] एक देव-विमान (सम २२)।

सुपुष्क :: पुंन [सुपुष्प] एक देव-विमान (सम ३८)।

सुपुरिस :: पुं [सुपुरुष] सज्जन, साधु पुरुष (हे २, १८४; गउड; प्रासू ३)।

सुपेसल :: वि [सुपेखल] अति मनोहर (उत्त १२, १३)।

सुप्प :: अक [स्वप्] सोना। सुप्पइ (हे २, १७९)।

सुप्प :: पुंन [सूर्प] सूप छाज, सिरकी का बना एक पात्र जिससे अन्न पछोरा जाता है (उवा; पणह १, १ — पत्र ८)। °णह वि [°नख] सूप के जैसे नखवाला (णाया १, ८ — पत्र १३३)। °णख °णड़ी स्त्री [°नखा] रावण की बहिन का नाम (प्राकृ ४२)।

सुप्पइट्ठ :: देखो सुपइट्ठ (राज)।

सुप्पट्ठिय :: देखो सुपइट्ठिय (राज)।

सुप्पइण्णा, सुप्पइन्ना :: स्त्री [सुप्रतिज्ञा] दक्षिण रुचक पर रहनेवाली एक दिक्कुमारी देवी (राज; इक)।

सुप्पइत्तिय :: /?/न. शीतहारक वस्त्र-विशेष (भव; वृ° पत्र ३६५, श्‍लो ४०, ४६)।

सुप्पंजल :: वि [सुपाञ्जल] अत्यन्त ऋजु — सीधा (कप्पू)।

सुप्पडिआणंद :: वि [सुप्रत्यानन्द] उपकृत पुरुष के किये हुए उपकार को माननेवाला (ठा ४, ३ — पत्र २४८)।

सुप्पडिआरि :: न [सुप्रतिकार] उपकार का बदला, प्रत्युपकार (ठा ३, १ — पत्र ११७)।

सुप्पडिबुद्ध :: देखो सुपडिबुद्ध (राज)।

सुप्पडिलग्ग :: वि [सुप्रतिलग्‍न] अच्छी तरह लगा हुआ, अवलम्बित (सुपा ५६१)।

सुप्पणिहाण :: न [सुप्रणिधान] शुभ ध्यान (ठा ३, १ — पत्र १२१)।

सुप्पणिहिय :: देखो सुपणिहिय (पणह २, १ — पत्र १०१)।

सुपन्न :: वि [सुपज्ञ] सुन्दर बुद्धिवाला (सूअ १, ९, ३३)।

सुप्पबुद्ध :: पुंन [सुप्रवृद्ध] एक ग्रैवेयक-विमान (देवेन्द्र १३६; पत्र १९४)।

सुप्पबुद्धा :: स्त्री [सुप्रबुद्धा] दक्षिण रुचकपर रहनेवाली एक दिक्कुमारी देवी (ठा ८ — पत्र ४३६; इक)।

सुप्पभ :: पुं [सुप्रभ] वर्त्तंमान अवसर्पिणी-काल में उत्पन्न चतुर्थ बलदेव (सम ७१)। २ आगामी उत्सर्पिणी में होनेवाला चौथा बल — देव (सम १५४) ३ भारतवर्षं का भावी तीसरा कुलकर पुरुष (सम १५३) ४ हरि- कान्त तथा हरिसह नामक इन्द्रों के एक-एक लोकपाल का नाम (ठा ४, १ — पत्र १९७; इक) ५ पुंन. एक देव-विमान (देवेन्द्र १४१)। °कंतं पुं [°कान्त] हरिकान्त तथा हरिसह नामक इन्द्रों के एक-एक लोकपाल का नाम (ठा ४, १ — पत्र १९७)

सुप्पभा :: स्त्री [सुप्रभा] १ तीसरे बलदेव को माता श्रसम १५२)। २ धरण आदि दक्षिण- श्रेणि के कई इन्द्रों के लोकपालों को एक- एक अग्रमहिषी का नाम (ठा ४, १ — पत्र २०४) ३ धनवाहन नामक विद्याधर-नरेश की पत्‍नी (पउम ५, १३८) ४ भगवान् अजितनाथ की दीक्षा-शिविका (विचार १२९; सम १५१)

सुप्पभूय :: वि [सुप्रभूत] अति प्रचुर (पउम ५५, ३६)।

सुप्पसण्ण, सुप्पसन्न :: वि [सुप्रसन्न] अत्यन्त प्रसाद- युक्त (नाट — मालती १६१; भवि)।

सुप्पसार :: वि [सुप्रसारित] सुख से पसारने योग्य (सुख २, २९)।

सुप्पसारिय :: वि [सुप्रसारित] अच्छी तरह पसारा हुआ (औप)।

सुप्पसिद्ध :: देखो सुपसिद्ध (सम १५१; पि ३५०)।

सुप्पसूय :: वि [सुप्रसृत] सम्यग् उत्पन्न (औप)।

सुप्पहूव :: (अप) देखो सुप्पभूय (भवि)।

सुप्पाडोस :: पुं [दे] अच्छा पड़ोस (श्रा २७)।

सुप्पिय :: वि [सुप्रिय] अत्यन्त प्रिय (उत्त ११; ८; सुपा ४६५)।

सुप्पुरिस :: देखो सुपुरिस (रयण २४)।

सुफणि :: स्त्रीन [सुफणि] जिसमें तक्र आदि उबाला जाय ऐसा बटुवा आदि पात्र (सूअ १, ४, २, १०)।

सुबंधु :: पुं [सुगन्धु] १ दूसरे बलदेव का पूर्वंजन्मीय नाम (सम १५३) २ भारतवर्षं का भावी सातवाँ कुलकर (सम १५३)

सुवंभ :: पुंन [सुब्रह्यन्] एक देव-विमान (सम १९)।

सुबंभण :: पुं [सुब्राह्मण] प्रशस्त विप्र (पि २५०)।

सुबद्ध :: वि [सुबद्ध] अच्ची तरह बँधा हुआ (उव)।

सुबल :: पुं [सुबल] १ सोम-वंश का एक राजा (पउम ५, ११) २ पहले बलदेव का पूर्व- जन्मीय नाम (पउम २०, १९०)

सुबलिट्ठ :: वि [सुबलिष्ट] अतिशय बलवान् (श्रु १८)।

सुबहु :: वि [सुबहु] अति प्रभूत (उव)।

सुबहुल :: वि [सुबहुल] ऊपर देखो (कप्पू)।

सुबाहु :: पुं [सुबाहु] १ एक राज-कुमार (विपा २, १ — पत्र १०३) २ स्त्री. रुक्मिराज की एक कन्या (णाया १, ८ — पत्र १४०)

सुबुद्धि :: स्त्री [सुबुद्धि] १ सुन्दर प्रज्ञा (श्रा १४) २ पुं. राम-भ्राता भरत के साथ दीक्षा लेनेवाला एक राजा (पउम ८५, ३) ३ एक मन्त्री (महा)

सुब्भ :: वि [शुभ्र] १ सफेद, श्वेत (सुपा ५०९) २ न. एक प्रकार की चाँदी (राय ७५)

सुब्भ :: न [शौभ्रय्] सफेदी, श्वेतता (संबोध ५२)।

सुब्भि :: पुं [सुरभि] १ सुगन्ध, खुशबू (सम ४१; भग, णाया १, १२) २ वि. सुगन्धी, सुगन्ध-युक्त (उत्त ३६, २८; आचा १, ६, २, ३) ३ मनोहर, मनोज्ञ, सुन्दर (णाया १, १२ — पत्र १७४)

सुब्भिक्ख :: न [सुभिक्ष्] सुकाल (सुपा ३५८)।

सुब्भु :: स्त्री [सुभ्रू] नारी, महिला (रंभा)।

सुभ :: पुं [शुभ] १ भगवान् पार्श्वनाथ का प्रथम गणधर (ठा ८ — पत्र ४२९; सम १३) २ भगवान् नमिनाथ का प्रथम गणधर (सम १५२) ३ एक मुहूर्त्तं (पउम १७, ८२) ४ न. नाम-कर्मं का एक भेद (सम ६७; कम्म १, २६) ५ मंगल, कल्याण। ६ वि. मंगल-जनक, मांगलिक, प्रशस्त (कप्प; भग; कम्म १, ४२; ४३)। °घोस पुं [°घोष] भगवान् पार्श्‍वनाथ का द्वितीय गणधर (सम १३)। °णुधम्म पुं [°नुधुर्मन्] राक्षस- वंश का एक राजा (पउम ५, २६२)। देखो सुह = शुभ।

सुभंकर :: न [शुभंकर] वरुणा नामक लोकान्तिक देवों का विमान (राज)। देखो सुहंकर।

सुभग :: वि [सुभग] १ आनन्द-जनक (कप्प) २ सौभाग्य-युक्त, वल्लभ, जन-प्रिय (सुज्ज २०) ३ न. पद्म-विशेष (सूअ २, ३, १८; राय ८२) ४ कर्मं-विशेष (सम ६७; कम्म १, २६; ५०; धर्मंसं ६२० टी)

सुभगा :: स्त्री [सुभगा] १ लता-विशेष (पणण १ — पत्र ३३) २ सुरूप नामक भूतेन्द्र की एक पटरानी (ठा ४, १ — पत्र २०४; णाया २ — पत्र २५३; इक)

सुभग्ग :: वि [सुभाग्य] भाग्य-शाली, जिसका भाग्य अच्छा हो वहर (उ ०३१ टी)।

सुभड :: देखो सुहड (नाट — मालती १३८)।

सुभणिय :: वि [सुभणित] वचन-कुशल (उव)।

सुभद्द :: पुं [सुभद्र] १ इक्ष्वाकु-वंश का एक राजा (पउम २८, १३६) २ दूसरे वासुदेव तथा बलदेव के धर्मं-गुरु (सम १५३) ३ पुंन. एक देव-विमान (देवेन्द्र १४१) ४ ४ नगर-विशेष (उप १०३१ टी)

सुभद्दा :: स्त्री [सुभद्रा] १ दूसरे बलदेव की माता (सम १५२) २ प्रथम स्त्री-रत्‍न, भरत चक्रवर्त्ती की अग्र-महिषी (सम १५२) ३ बलि नामक इन्द्र के सोम आदि चारों लोक- पालों की एक-एक अग्रमहिषी का नाम (ठा ४, १ — पत्र २०४) ४ भूतानन्द आदि इन्द्रों के कालवाल नामक लोकपाल की एक- एक अग्र-महिषी का नाम (ठा ४, १ — पत्र २०४) ५ प्रतिमा-विशेष, एक व्रत (ठा ४, १ — पत्र २०४) ६ राम के भाई भरत की पत्‍नी (पउम २८, १३६) ७ राजा कोणिक की स्त्री (औप) ८ राजा श्रेणिक की एक स्त्री (अंत २५) ९ एक सती स्त्री (पडि) १० एक सार्थंवाह-पत्‍नी (विपा १, २ — पत्र २२) ११ जम्बूवृक्ष-विशेष, जिससे यह द्वीप जंबू द्वीप कहलाता है (इक)

सुभय :: देखो सुभग (भग १२, ६ — पत्र ५७८)।

सुभरिय :: वि [सुभृत] अच्छी तरह भरा हुआ, भरपूर, परिपूर्णं (उव)।

सुभा :: स्त्री [शुभा] १ वैरोचन बलीन्द्र की एक अग्र-महिषी (ठा ५, १ — पत्र ३०२) २ एक विजय-क्षेत्र (ठा २, ३ — पत्र ८०) ३ रावण की एक पत्‍नी (पउम ७४, १)

सुभासिय :: देखो सुहासिय (उत्त २०, ५१; दस ९, १, १७)।

सुप्रासिर :: वि [सुभाषितृ] सुन्दर बोलनेवाला। स्त्री. °री (सुपा ५९८)।

सुभिक्ख :: देखो सुब्भिक्ख (उव; सार्ध ३६)।

सुभिच्च :: पुं [सुभृत्य] अच्छा नौकर (सुपा ४६५; हे ४, ३३४)।

सुभाम :: वि [सुभीम] अति भयंकर (सुर ७, २३३)।

सुभीसण :: पुं [सुभीषण] रावण का एक सुभट (पउम ५६, ३१)।

सुभूम :: पुं [सुभूम] १ भारतवर्षं में उत्पन्न आठवाँ चक्रवर्त्ती राजा (ठा २, ४ — पत्र ९९) २ भारतवर्षं के भावी दूसरा कुलकर पुरुष (सम १५३)। भगवान् अमरनाथ का प्रथम श्रावक (विचार ३७८)

सुभूसण :: पुं [सुभूषण] विभीषण का एक पुत्र (पउम ६७, १६)।

सुभोगा :: स्त्री [सुभोगा] अधोलोक में रहने वाली एक दिक्कुमारी देवी (ठा ८ — पत्र ४३७; इक)।

सुभोयण :: न [सुभोजन] व्रत-विशेष, एकाशन तप (संबोध ५८)।

सुम :: न [सुम] पुष्प, फूल (सम्मत्त १६१)। °सर पुं [°शर] कामदेव (रंभा)।

सुसइ :: पुं [सुमति] १ पाँचवाँ जिन भगवान् (सम ४३) २ ऐरवत क्षेत्र में होनेवाला दसवाँ कुलकर पुरुष (सम १५३) ३ एक जैन उपासक (महानि ४) ४ वि. शुभ बुद्धि वाला (गउड) ५ पुं. एक नैमित्तिक विद्वान् (सुर ११, १३२)

सिमंगल :: पुं [सुमङ्गल] ऐरवत वर्षं में होने वाले प्रथम जिनदेव (सम १५४)।

सुमंगला :: स्त्री [सुमङ्गला] १ भगवान् ऋषभ- देव की एक पत्‍नी (पउम ३, ११९) २ सूर्यंवंशीय राजा विजयसागर की पत्‍नी (पउम ५, २)

सुप्तग्ग :: पुं [सुमार्ग] अच्छा रास्ता (सुपा ३३०)।

सुमण, सुमणस :: न [सुमनस्] १ पुष्प, फूल (हे १, ३२; सुपा ८६) २ पुं. देव, सुर (सुपा ८६; ३३४) ३ वि. सुन्दर मनवाला, सज्जन (सुपा ३३४; पउम ३९, १३०; ७७, १७; रयण ३) ४ हर्षंवान्, आनन्दित, सुखी (ठा ३, २ — पत्र १३०) ५ पुंन. एक देव-विमान (देवेन्द्र १३६) °भद्द पुं [°भद्र] १ भगवान् महावीर के पास दीक्षा लेकर मुक्ति पानेवाला एक गृहस्थ (अंत १८) २ आर्यं संभूतिविजय के एक शिष्य, एक जैन मुनि (कप्प)

सुमणसा :: स्त्री [सुमनस्] वल्ली-विशेष (पणण १ — पत्र ३३)।

सुमणा :: स्त्री [सुमनस्] १ भगवान् चन्द्रप्रभ की प्रथम शिष्या (सम १५२; पव ९) २ भूतानन्द आदि इन्द्रों के एक-एक लोकपाल की एक-एक अग्र-महिषी का नाम (ठा ४, १ — पत्र २०४) ३ राजा श्रेणिक की एक पत्‍नी (अंत २५) ४ एक जम्बू वृक्ष का नाम (इक) ५ शक्र की पद्मा नामक इन्द्राणी की एक राजधानी (इक) ६ मालती का फूल (स्वप्‍न ६१)

सुमणो° :: देखो सुमण (उप पृ १८)।

सुमणोहर :: वि [सुमनोहर] अत्यन्त मनोहर (उप पृ १८)।

सुमर :: सक [स्मृ] याद करना। सुमरइ (हे ४, ७४)। भवि. सुमरिस्ससि (पि ५२२)। कर्मं. सुमरिज्जइ (हे ४, ४२६; पि ५३७)। वकृ. सुमरंत (सुर ९, ६४; सुपा ४०८; पउम ७८, १९)। कवकृ. सुमरिज्जंत (पउम ५, १८९; नाट — मालती ११०)। संकृ. सुमरिअ, सुमरिऊण (कुमा; काल)। हेकृ. सुमरउं, सुमारत्तए (पि ४६५; ५७८)। कृ. सुमरियव्व, सुमरेयव्व, सुमरणीअ (सुपा १५३; १५२; २१७; अभि १२०)।

सुमर :: पुं [स्मर] कामदेव (नाट — चेत ८१)।

सुमरण :: स्त्रीन [स्मरण] याद, स्मृति (कुमा; हे ४, ४२६; वसु; प्राप; सुपा ७१; १५९; ३९७; स ३८४)। स्त्री. °णा (स ६७०; सुपा २२०)।

सुमराव :: सक [स्मारय्] याद दिलाना। वकृ. सुमरावंत (कुप्र ५६)।

सुमराविय :: वि [स्मारित] याद कराया हुआ (सुर १४, ४८; २४३)।

सुमरिअ :: देखो सुमर = स्मृ।

सुमरिअ :: वि [स्मृत] याद किया हुआ (पाअ)।

सुमरुया :: स्त्री [सुनरुत्] भगवान् महावीर के पास दीक्षा लेकर मुक्ति पानेवाला राजा श्रेणिके की एक पत्‍नी (अंत २५)।

सुमहुर :: वि [सुमधुर] अति मधुर (विपा १, ७ — पत्र ७७)।

सुमाणस :: वि [सुमानस] प्रशस्त मनवाला, सज्जन (पउम १०२, २७)।

सुमाणुस :: पुं [सुमानुष] सज्जन, उत्तम मनुष्य (सुपा २५९)।

सुमालि :: पुं [सुमालिन्] एक राज-कुमार (पउम ६, २२०)।

सुमिण :: पुंन [स्वप्‍न] १ स्वप्‍न, सपना (हे १, ४६; कुमा; महा; पडि; सुर ३, ९१; ९७) २ स्वप्‍न के फल को बतलानेवाला शास्त्र (स्वप्‍न ४९)। °पाढय वि [°पाठक] स्वप्‍न के फल बतानेवाले शास्त्रों का जानकार (णाया १, १ — पत्र २०)। देखो सुविण।

सुमित्त :: पुं [सुमित्र] १ भगवान् मुनिसुव्रत- स्वामी क पिता — एक राज (सम १५१) २ द्वितीय चक्रवर्त्ती का पिता (सम १५२) ३ चतुर्थं बलदेव के पूर्वं जन्म का नाम (पउम २०, १९०) ४ छठवें बलदेव के धर्मंगुरु — एक जैन मुनि (पउम २०, २०५) ५ एक वणिक् का नाम (उप ७२८ टी) ६ अच्छा मित्र; 'सुमित्तोव्वजिणवम्मो' (सुपा २३४) ७ भगवान् शान्तिनाथ को प्रथम भिक्षा देनेवाले एक गृहस्थ का नाम (सम १५१)

सुमित्ता :: स्त्री [सुमित्रा] लक्ष्मण की माता और रादा दशरथ की एक पत्‍नी (पउम २५, ४)। °तणय पुं [°तनय] लक्ष्मण (से ४, १५; १४, ३२)।

सुमित्ति :: पुं [सौमित्रि] सुमित्रा का पुत्र — लक्ष्मण (पउम ४५, ३९)।

सुमुइय :: वि [सुमुदित] अति-हर्षित (औप)।

सुमुखी :: देखो सुमुही (पिंग)।

सुमुणिअ :: वि [सुज्ञात] अच्छी तरह जाना हुआ (सुपा २८२)।

सुमुह :: पुं [सुमुख] १ भगवान् नेमिनाथ के पास दीक्षा लेकर मुक्ति पानेवाला एक राज-कुमार (अंत ३) २ राक्षस-वंश का एक राजा, एक लंका-पति (पउम ५, २६१) ३ न. छन्द-विशेष (अजि २०)

सुमुही :: स्त्री [सुमुखी] छन्द-विशेष (पिंग)।

सुमेघा :: स्त्री [सुसेघा] ऊर्ध्वं लोक में रहनेवाली एक दिक्कुमारी देवी (ठा ८ — पत्र ४३७)।

सुमेरु :: पुं [सुमेरु] मेरु-पर्वंत (पाअ; पउम ७५, ३८)।

सुमेहा :: देखो सुमेघा (इक)।

सुमेहा :: स्त्री [सुमेघा] सुन्दर बुद्धि (उप पृ ३९८)।

सुम्मंत :: देखो सुण = श्रु।

सुम्ह :: पुं. व. [सुह्य] देश-विशेष (हे २, ७४)।

सुर :: पुं [सुर] १ देव, देवता (पणह १, ४ — पत्र ६८; कप्प; जी ३३; कुमा) २ एक राजा का नाम (उप ७९५)। °अण न [°वन] नन्दन-वन (से ९, ८६)। °अरु पुं [°तरु] क्लप वृक्ष (नाट)। °करडि पुं [°करटिन्] ऐरावण हाथी (सुपा १७६)। °करि पुं [°करिन्] वही अर्थं (सुपा २९१)। °कुंभि पुं [°कुम्भिन्] वही (सुपा २०१)। °कुभर पुं [°कुमार] भगवान् वासुपूज्य का शासन-यक्ष (पव २६)। °कुसुम न [°कुसुम] लवंग, लौंग (पि १४)। °गय पुं [°गज] इन्द्र-हस्ती, ऐरावण (पाअ; से २, २२)। °गिरि पुं [°गिरि] मेरु पर्वत (सुपा २; ३१; ३५४; सण)। °गिह देखो °घर (उफ ७६८ टी)। °गुरु पुं [°गुरु] १ बृहस्पति (पाअ; सुपा १७९) २ नास्तिक मत का प्रवर्तक एक आचार्य (मोह १०१) °गोव पुं [°गोप] कीट-विशेष, इन्द्रगोप (णाया १, ९ — पत्र १६०; पाअ)। °घर न [°गृह] १ देव-मन्दिर (कुप्र ४) २ देव-विमान (सण)। °चमू स्त्री [°चमू] देव-सेना (सुपा ४५)। °चाव पुं [°चाप] इन्द्र- धनुष (गा ५८५; ८०८; सुपा १२४)। °जाल न [°जाल] इन्द्रजाल (राज)। °णई स्त्री [°नदी] गंगा नदी (पाअ)। °णाह पुं [°नाथ] इन्द्र (गा ८६४; दे)। °तरंगिणि स्त्री [°तरङ्गिणी] गंगा नदी (सण)। °तरु देखो °अरु (सण)। °ताण पुं [°त्राण] यवननृप, सुलतान (ती १५)। °दारु न [°दारु] देवदार की लकड़ी (स ६३३)। °धंसी स्त्री [°ध्वंसिनी] विद्या-विशेष (पउम ७, १३७)। °धणु, °धणुह न [°धनुष्] इन्द्र-धनुष (कुमा; सण)। °नई देखो °णई (श्रु ७७)। °नाह देखो °णाह (सण)। °पहु पुं [°प्रभु] इन्द्र, देव-राज (सुपा ५०२; उप १४२ टी; सण)। °पुर न [°पुर] देव- पुरी, अमरावती, स्वर्ग (पउम ५०, १ सण)। °पुरी स्त्री [°पुरी] वही अर्थ (पाअ; कुमा)। °प्पिअ पुं [°प्रिय] एक यक्ष (अंत)। °बंदी स्त्री [°बन्दी] देवी, देव-स्त्री (से ९, ५०)। °भवण न [°भवन] देव-प्रासाद (भग; सण)। °मंति पुं [°मान्त्रन्] बृहस्पति (सुपा ३२६)। °मंदिर न [°मन्दिर] १ देहरा, मन्दिर (कुप्र ४) २ देव-विमान (सण) °मुणि पुं [°मुनि] नारद मुनि (पउम ९०, ८)। °रमण न [°रमण] रावण का एक बगीचा (पउम ४६, ३७)। °राय पुं [°राज] इन्द्र (सुपा ४५; सिरि २४)। °रिउ पुं [°रिपु] दैत्य, दानव (पाअ)। °लोअ पुं [°लोक] स्वर्ग (महा)। °लोइय वि [°लौकिक] स्वर्गीय (पुप्फ २५८)। °लोग देखो °लोअ (पउम ५२, १८)। °वइ पुं [°पति] १ इन्द्र, देव-राज (पाअ; सुपा ४४; ४८; ८८; ४०२) २ इन्द्र नामक एक विद्याधर-नरेश (पउम ७, २७) °वण्ण पुंन [°वर्ण] एक देव-विमान (सम १०)। °वधू देखो °वहू (पि ३८७)। °वन्नी स्त्री [°पर्णी] पुंनाग वृक्ष (पाअ)। °वर पुं [°वर] उत्तम देव (भग)। °वरिंद पुं [°वरेन्द्र] इन्द्र, देव-राज (श्रा २७)। °वहू स्त्री [°वधू] देवाङ्गना, देवी (कुमा)। °वारण पुं [°वारण] ऐरावण हस्ती (उप २११ टी)। °संगीय न [°संगीत] नगर- विशेष (पउम ८, १८)। °सरि स्त्री [°सरित्] भागीरथी, गङ्गा नदी (गउड; उप पृ ३९; सुपा ३३; २८९)। °सिहारि पुं [°शिखारिन्] मेरु पर्वंत (सण)। °सुंदर पुं [°सुन्दर] रथचक्रवाल-नगर का एक विद्याधर-नरेश (पउम ८, ४१)। °सुंदरी स्त्री [°सुन्दरी] १ देव-वधू, देवाङ्गना (सुर ११, ११५; सुपा २००) २ एक राज- पुत्री (सुर ११, १४३) ३ एक राज-कुमारी (सिरि ५३)। °सुरहि स्त्री [°सुरभि] काम- धेनु (रयण १३)। °सेल पुं [°शैल] मेरु- पर्वंत (सुपा १३०)। °हत्थि पुं [°हस्तिन्] ऐरावण हाथी (से ९, ६)। °उह न [°युध] वज्र (पाअ)। °देव पुं [°देव] एक श्रावक का नाम (उवा)। °देवी स्त्री [°देवी] पश्चिम रुचक पर रहनेवाली एक दिशा-कुमारी देवी (ठा ८ — पत्र ४३६; इक)। °रि पुं [°रि] राक्षसवंश का एक राजा, एक लंका-पति (पउम ५, २६२)। °लय पुंन [°लय] स्वर्गं (पाअ; सूअ १, ६, ९; सुपा ५६९)। °हिराय पुं [°धिराज] इन्द्र (उफ १४२ टी)। °हिव पुं [°धिप] इन्द्र (से १५, ५३)। °हिवइ पुं [°धिपति] वही (सुपा ४९)

सुरइ :: स्त्री [°सुरति] सुख (पणह १, ४ — पत्र ६८)।

सुरइय :: वि [सुरचित] अच्छी तरह किया हुआ (पणह १, ४ — पत्र ६८)।

सुरंगणा :: स्त्री [सुराङ्गना] देव-वधू (सुपा २४९)।

सुरंगा :: स्त्री [°सुरङ्गा] सुरंग, जमीन के भीतर का मार्गं (उप पृ २६; महा; सुपा ४५४)।

सुरंगि :: पुंस्त्री [दे] वृक्ष-विशेष, शिग्रु वृक्ष, सहिंजना का गाछ (दे ८, ३७)।

सुरजेट्ठ :: पुं [दे] वरुण देवता (दे ८, ३१)।

सुरट्ठ :: पुं. ब. [सुराष्ट्र] एक भारतीय देश जो आजकल काठियावाड़ के नाम से प्रसिद्ध है (णाया १, १६ — पत्र २०८; हे २, ३४; पिंड २०२)।

सुरणुवर :: वि [स्वनुचर] सुख से करने योग्य (ठा ५, १ — पत्र २९६)।

सुरत, सुरद :: देखो सुरय (पउम १६, ८०; संक्षि ९; प्राकृ १२)।

सुरभि :: पुंस्त्री [सुरभि] १ वसन्त ऋतु। २ स्त्री. गौ, गैया (कुम्मा १४) ३ वि. सुगन्ध- युक्त, सुगंधी (सम ६०; गा ८९१; कप्प; कुम्मा १४) ४ पुंन. एक देव-विमान (देवेन्द्र १४०)। °गंध वि [°गन्ध] सुगन्धी (आचा)। °पुर न [°पुर] नगर-विशेष (राज)। देखो सुरहि।

सुरमणीअ :: वि [सुरभणीय] अत्यन्त मनोहर (सुर ३, ११२)।

सुरम्म :: वि [सुरम्य] ऊपर देखो (औप)।

सुरय :: न [सुरत] मैथुन, स्त्री-संभोग (सुर १३, २०; गा १५५; काप्र ११३)।

सुरयण :: न [सुरत्‍न] सुन्दर रत्‍न (सुपा ३२७)।

सुयरणा :: स्त्री [सुरवना] सुन्दर रचना (सुपा ३२)।

सुरस :: वि [सुरस] १ सुन्दर रसवाला (णाया १, १२ — पत्र १७४) २ न. तृण विशेष (दे १, ५४)। °लया स्त्री [°लता] तुलसी- लता (दे ५, १४)

सुरसुर :: पुं [सुरसुर] ध्वनि-विशेष, 'सुर-सुर' आवाज (ओघ २८९)।

सुरसुर :: अक [सुरसुराय] 'सुर सुर' आवाज करना। वकृ. सुरसुरंत (गा ७४)।

सुरह :: सक [सुरभय्] सुगन्धित करना। सुरहेइ (कुमा; प्रासू ६)।

सुरह :: पुंन [सौरभ] सुन्दर गन्ध, खुशबू; 'गंधोव्विअ सुरहो मालईइ मलणं पुण विणासो' (भत्त १२१)।

सुरह :: पुं [सुरथ] साकेतपुर का एक राजा (महा)।

सुरहि :: पुंस्त्री [सुरभि] १ वसंत ऋतु (रंभा; पाअ; कप्पू) २ चैत्र मास (गा १०००) ३ वृक्ष-विशेष, शतद्रु वृक्ष (आचा २, १, ८, ३) ४ स्त्री. गौ. गैया (रयण १३; धर्मवि ६५; पाअ; प्रासू १६८) ५ न. नाम-कर्मं का एक भेद, जिसके उदय से प्राणी के शरीर में सुनग्ध उत्पन्‍न होती है (कम्म १, ४१) ६ वि. सुगन्ध-युक्त (उवा; कुमा; गा ३१७; ३६६; सुर ३, ३९; हे २, १५५)। देखो सुरभि।

सुरा :: स्त्री [सुरा] मदिरा, दारू (उवा)। °रस पुं [°रस] समुद्र-विशेष (दीव)।

सुरिंद :: पुं [सुरेन्द्र] १ इन्द्र, देव-स्वामी (सुर २, १५३; गउड; सुपा ४४) २ एक विद्याधर नरेश (पउम ७, २९)। °दत्त पुं [°दत्त] एक राज-कुमार (उप ९३६)

सुरिंदय :: पुं [सुरेन्द्रक] विमानेन्द्रक, देव- विमान-विशेष (देवेन्द्र १३७)।

सुरी :: स्त्री [सुरी] देवी (कुमा)।

सुरुंगा :: देखो सुरंगा (पउम ८, १५८)।

सुरुग्घ :: पुं [स्रघ्न] देश-विशेष (हे २, ११३; षड्)। °ज वि [°ज] देश-विशेष में उत्पन्न (कुमा)।

सुरुट्ठ :: वि [सुरुष्ट] अत्यन्त रोष-युक्त (पउम ६८, २५)।

सुरूया :: स्त्री [सुरूपा] एक इन्द्राणी (णाया २ — पत्र २५२)। देखो सुरूवा।

सुरूव :: पुं [सुरूप] १ भूत-निकाय के दक्षिण दिशा का इन्द्र (ठा २, ३ — पत्र ८५) २ न. सुन्दर रूप। ३ वि. सुन्दर रूपवाला (उवा; भग)

सुरूवा :: स्त्री [सुरुपा] १ सुरूप तथा प्रतिरूप नामक भूतेन्द्रों की एक एक अग्र-महिषी (ठा ४, १ — पत्र २०४) २ भूतानन्द नामक इन्द्र की एक अग्र-महिषी (इक) ३ एक दिशा-कुमारी देवी (ठा ४, १ — पत्र १९८; ६ — पत्र ३६१) ४ एक कुलकर- पत्‍नी (सम १५०) ५ सुन्दर रूपवाली (महा)

सुरेस :: पुं [सुरेश] १ देव-पति, इन्द्र। २ उत्तम देव (सुपा ६१४)

सुरेसर :: पुं [सुरेश्वर] इन्द्र, देव-राज (सुपा २७; कुप्र ४)।

सुलक्खणि :: वि [सुलक्षणिन्] उत्तम लक्षणवाला (धर्मंवि १४२)।

सुलग्ग :: वि [सुलग्न] अच्छी तरह लगा हुआ (महा)।

सुलद्ध :: वि [सुलव्ध] सम्यक् प्राप्‍त (णाया १, १ — पत्र २४; उवा)।

सुलब्भ, सुलभ :: वि [सुलभ] सुख से प्राप्‍त हो सके वह (श्रा १२; सुख २, १५; महा)।

सुलस :: पुं [सुलस] पर्वंत-विशेष (इक)।

सुलस :: न [दे] कुसुम्भ-रक्त वस्त्र (दे ८, ३७)।

सुलसमंजरी, सुलसा :: स्त्री [दे] तुलसी (दे ८, ४०; पाअ)।

सुलसा :: स्त्री [सुलसा] १ नववें जिनदेव की प्रथम शिष्या (सम १५२) २ भगवान् महावीर की एक श्राविका, जिसका आत्मा आगामि काल में तीर्थंकर होगा (ठा ९ — पत्र ४५५; सम १५४) ३ नाग नामक गृहपति की स्त्री (अंत ४) ४ शक्र की एक अग्र- महिषी, एक इन्द्राणी (पउम १०२, १५९) ५ शंखपुर के राजा सुन्दर की पत्‍नी (महा)

सुलह :: देखो सुलभ (स्वप्‍न ४८; महा; दं ४६)।

सुलाह :: पुं [सुलाभ] अच्छा नफा (सुपा ४४६)।

सुली :: स्त्री [दे] उल्का, आकाश से गिरती आग (दे ८, ३६)।

सुलसुल, सुलसुलाय :: अक [सुलसुलाय्] 'सुल' 'सुल' आवाज करना। सुलुसुलायइ (तंदु ४१)। वकृ. सुलुसुलिंत, सुलुसुलेंत (तंदु ४४; महा)।

सुलूह :: वि [सुरूक्ष्] अत्यन्त-लूखा — रूखा (सूअ १, १३, १२)।

सुलोअ :: देखो सिलोअ = श्‍लोक (अवि १६)।

सुलोयण :: पुं [सुलोचन] एक विद्याधर-नरेश (पउम ५, ६६)।

सुलोल :: वि [सुलोल] अति चपल (कप्पू)।

सुल्ल :: न [शूल्य] शूला-प्रोत मांस (दे ८, ३९; पाअ)।

सुव :: अक [स्वप्] सोना। सुवइ, सुवंति (हे १, ६४; षड्; महा; रंभा)। भवि. सुविस्सं (पि ५२९)। वकृ. सुवंत, सुवमाण (पाअ; से १, २१; भग)। संकृ. सुविऊण (कुप्र ५६)।

सुव :: देखो स = स्व (हे २, ११४; षड्; कुमा)।

सुव :: (अप) देखो सुअ = श्रुत, सुत (भवि)।

सुवंस :: पुं [सुवंश] १ अच्छा वाँस। २ वि. सुन्दर कुल में उत्पन्‍न, खानदानी (हे ४, ४१९)

सुवग्गु :: पुं [सुवल्गु] एक विजय-क्षेत्र, जिसकी राजधानी खड्‍गपुरी है (ठा २, ३ — पत्र ८०; इक)।

सुवच्छ :: पुं [सुवत्स] १ व्यन्तर-देवों का एक इन्द्र (ठा २, ३ — पत्र ८५) २ एक विजय-क्षेत्र, प्रान्त-विशेष, जिसकी राजधानी कुंडला नगरी है (ठा २, ३ — पत्र ८०; इक)

सुवच्छा :: स्त्री [सुवत्सा] १ अधोलोक में रहनेवाली एक दिशा-कुमारी देवी (ठा ८ — पत्र ४३७) २ सौमनस पर्वंत पर रहनेवाली एक देवी (इक)

सुवज्ज :: पुं [सुवज्र] १ एक विद्याधर-वंशीय राजा (पउम ५, १६) २ पुंन. एक देव- विमान (सम २५)

सुवट्टिय :: वि [सुवर्तित] अतिशय गोल किया हुआ (राज)।

सुवण :: न [स्वपन] शयन (ओघ ८७; पंचा १, ४५; उप ७६२)।

सुवण्ण :: पुं [सुपर्ण] १ गरुड़ पक्षी (उत्त १४; ४७) २ भवनपति देवों की एक जाति (औप) ३ आदित्य, सुर्यं (गउड)। °कुमार पुं [°कुमार] भवनपति देवों की एक जाति (इक)

सुवण्ण :: पुं [दे] अर्जुंन वृक्ष (दे ८, ३७)।

सुवण्ण :: न [सुवर्ण] १ सोना, हेम (उवा; महा; णाया १, १७; गउड) २ पुं. भवन- पति देवों की एक जाति (भग) ३ सोलह कर्मं-भाषक का एक बाँट (अणु १५५) ४ सुन्दर वर्णं। ५ वि. सुन्दर वर्णंवाला (भग)। °आर, °कार पुं [°कार] सोनी, सुनार (दे महा)। °कुंभ पुं [°कुम्भ] प्रथम बलदेव के धर्मं-गुरु एक जैन मुनि (पउम २०, २०५)। °कुसुम न [°कुसुम] सुवर्णं-यूथिका लता का फूल (राय ३१)। °कूला स्त्री [°कूला] नदी-विशेष (सम २७; इक)। °गुलिया स्त्री [°गुलिका] एक दासी का नाम (महा)। °सिला स्त्री [°शिला] एख महौषधि (ती ५; राज)। °गिर पुं [°कर] सोने की खान (णाया १, १७ — पत्र २२८)। °र पुं [°कार] सोनी (उप पृ ३५१)। देखो सुवन्न = सुवर्णं।

सुवण्णविंदु :: पुं [दे] विष्णु (दे ८, ४०)।

सुवण्णिअ :: वि [सौवर्णिक] सुवर्णं-मय, सोने का बना हुआ (हे १; १६०; षड्; प्राकृ ३६)।

सुवत्त :: देखो सुव्वत्त (राज)।

सुवन्न :: न [सुवर्ण] १ सोना (सं ५०; प्रासू २; कुप्र १, कुमा) २ वि. सुन्दर अक्षरवाला (कुप्र १)। °कुमार पुं [°कुमार] भवनपति देवों की एक जाति (भग; सम ८३)। °कूलप्पवाय पुं [°कूलप्रपात] एक ह्रद जहाँ से सुवर्णंकूला नदी बहती है (ठा २, ३ — पत्र ७२)। °गार पुं [°कार] सोनी (णाया १, ८ — पत्र १४०; उप पृ ३५३)। °जूहिया स्त्री [°यूथिका] लता-विशेष (पणण १७ — पत्र ५२९)। °यार देखो °गार (सुपा ५६५)। देखो सुवण्ण = सुवर्णं।

सुवन्न :: वि [सौवर्ण] सोने का बना हुआ (कुप्र ४)।

सुवन्नालुगा :: स्त्री [दे] दतवन करने का पात्र — लोटा आदि (कुप्र १४०)।

सुवप्प :: पुं [सुवप्र] एक विजय-क्षेत्र (ठा २, ३ — पत्र ८०)।

सुवयण :: न [सुवचन] सुन्दर वचन (भग)।

सुवुर, सुवँर :: (अप) देखो सुमर। सुवरइ, सुवँरइ (भवि; पि २५१)।

सुवहु :: देखो सुबहु (प्राप)।

सुवाय :: पुंन [सुवात] एक देव-विमान (सम १०)।

सुवास :: पुं [सुवर्ष] १ सुन्दर वृष्टि (उप ८४९) २ छन्द-विशेष (पिंग)

सुवासणी :: देखो सुवासिणी (धर्मंवि १२३)।

सुवासव :: पुं [सुवासव] एक राज-कुमार (विपा २, ४)।

सुविसिणी :: स्त्री [दे. सुवासिनी] जिसका पति जीवित हो वह स्त्री (सिरि १५६)।

सुवाहा :: अ [स्वाहा] देवता को हविष आदि अर्पंण का सूचक अव्यय (सिरि १९७)।

सुविआज्जअ :: वि [सुव्यजित] विशेष रूप से उपार्जित (तंदु ५६)।

सुविअद्ध :: वि [सुविदाग्ध] अत्यन्त चतुर (नाट — रत्‍ना ६)।

सुविइय :: वि [सुविदित] अच्छी तरह ज्ञात (उव; सुपा ४०४)।

सुविउ :: वि [सुविद] अच्छा जानकार (श्रा २८)।

सुविउल :: वि [सुविपुल] अति विशाल (उव)।

सुविक्कम :: पुं [सुविक्रम] भूतानन्द नामक इन्द्र के हस्ति सैन्य की अधिपति (ठा ५, १ — पत्र ३०२; इक)।

सुविक्खाय :: वि [सुविख्यात] सुप्रसिद्ध (सुर ६, ९४)।

सुविगा :: स्त्री [सुकिका, शुकी] मैना (उप ९७३; ९७५)।

सुविज्जा :: स्त्री [सुविद्या] उत्तम विद्या (प्रासू ५३)।

सुविण :: देखो सुमिण (सुर ३, १०१; महा; रंभा)। °न्‍नु वि [°ज्ञ] स्वप्‍न-शास्त्र का जानकार (उप पृ ११६; सुर १०, ६८)।

सुविणट्ठ :: वि [सुविनष्ट] बिलकुल नष्ट (गा ७४०)।

सुविणिच्छिय :: वि [सुविनिश्चित] अच्छी तरह निर्णींत (उव)।

सुविणिम्मिय :: वि [सुविनिर्मित] अच्छी तरह बनाया हुआ (णाया १, १ — पत्र १२)।

सुविणीय :: वि [सुविनीत] १ अतिशय दूर किया हुआ (उत्त १, ४७) २ अत्यन्त विनय-युक्त (दस ९, २, ६)

सुवित्त :: न [सुवृत्त] अत्यन्त गोलाकार। २ सदाचार, अच्छा आचरण (सुर १, २१)

सुवित्थड :: वि [सुविस्तृत] अति विस्तारयुक्त (अजि ४०; प्रासू १२८; द्र ६८)।

सुवित्थिन्न :: वि [सुविस्तीर्ण] ऊपर देखो (सुर १, ४५; १२, १)।

सुविधि :: देखो सुविहि (सम ४३)।

सुविभज्ज :: वि [सुविभज] जिसका विभाग अनायास हो सके वह (ठा ५, १ — पत्र २९६)।

सुविभत्त :: वि [सुविभक्त] अच्छी तरह विविक्त (णाया १, १ टी — पत्र ५; औप; भग)।

सुविम्हिअ :: वि [सुविस्मित] अतिशय आश्चर्यान्वित (उत्त २०, १३)।

सुवियक्खण :: वि [सुविचक्षण] अति चतुर (सुपा १५०)।

सुवियाण :: न [सुविज्ञान] अच्छा ज्ञान, सुन्दर जानकारी, पंडिताई (सट्ठि १६)।

सुविर :: वि [स्वप्‍तृ] स्वपन-शील, सोने के आदतवाला (ओघभा १३३; दे ८, ३९)।

सुविरइय :: वि [सुविराचित] अच्छी तरह घटित, सुघटित (उवा २०६)।

सुविराइय :: वि [सुविराजित] सुशोभित (सुपा ३१०)।

सुविराहिय :: वि [सुविराधित] अतिशय विराधित (उव)।

सुबिलासवि :: [सुविलास] सुन्दर विलासवाला (सुर ३, ११४)।

सुविवेइय :: वि [सुविवोचत] सम्यग् विवेचित (उव)।

सुविवेच :: सक [सुवि + विच्] अच्छी तरह व्याख्या करना। संकृ. सुविवेचित (? य) (धर्मंसं १३११)।

सुविसट्ट :: वि [सुविकसित] अच्छी तरह विकसित (सुर ३, १११)।

सुविसत्थ :: पुं [दे] व्यभिचारी पुरुष (वज्जा ९८)।

सुविसाय :: पुंन [सुविसात] एक देव-विमान (सम ३८)।

सुविहाणा :: स्त्री [सुविधाना] विद्या-विशेष (पउम ७, १३७)।

सुविहि :: पुं [सुविधि] १ नववाँ जिन भगवान् (सम ८५; पडि) २ पुंस्त्री. सुन्दर अनुष्ठान (पणह २, ५ टी — पत्र १४६) ३ न. रामचन्द्र तथा लक्ष्मण का एक यान; 'चंकमणं हवइ सुबिहि-नामेणं' (पउम ८०, ४)

सुविहिअ :: वि [सुविहित] सुन्दर आचरणवाला, सदाचारी (सम १२५; भास १; उव; स १३०; सार्धं ११५; द्र ३२)।

सुवीर :: पुं [सुवीर] १ यदुराज का एक पौत्र (अंत) २ पुंन. एक देव-विमान (सम १२)

सुवीसत्थ :: वि [सुविश्वस्त] अच्छि तरह विश्‍वासप्राप्त (सुर ६, १५६; सुपा २११)।

सुवुण्णा :: स्त्री [दे] संकेत, इशारा (दे ८, ३७)।

सुवुरिस :: देखो सुपुरिस (गउड)।

सुवे :: अ [श्वस्] आगामी कल (हे २, ११४; चंड; कुमा)।

सुवेल :: पुं [सुवेल] १ पर्वंत-विशेष (से ८, ८०) २ न. नगर-विशेष (पउम ५४, ४३)

सुवो :: देखो सुवे (षड्; प्राप)।

सुव्व :: न [शुल्व] १ ताँबा, ताम्र (ती २) २ रज्जृ रस्सी। ३ जल-समीप। ४ आचार। ५ यज्ञ का कार्य (हे २, ७९)

सुव्वंत :: देखे सुण।

सुव्वत :: देखो सुव्वय (ठा २, ३ — पत्र ७८)।

सुव्वत्त :: वि [सुव्वक्त] स्फुट, सुस्पष्ट (अंत २०; औप; नाट — मृच्छ २८)।

सुव्वमाण :: देखो सुण।

सुव्वय :: पुं [सुव्रत] १ भारतवर्षं में उत्पन्न बीसवें जिनदेव, मुनिसुव्रत स्वामी (ती ८; पव ३५) २ ऐरवत वर्षं के एक भावी जिनदेव (सम १५४) ३ छठवें जिनदेव के गणधऱ (१५२) ४ एक जैन मुनि जो तीसरे बलदेव के पूर्वं जन्म में गुरु थे (पउम २०, १९२) ५ आठें बलदेव के धर्मं-गुरु (पउम २०, २०६) ६ भगवान् पार्श्‍वंनाथ का मुख्य श्रावक (कप्प) ७ एक ज्योतिष्क महा-ग्रह (राज) ८ एक दिवस का नाम (आचा २, १५, ५; कप्प) ९ न. एख गोत्र (कप्प) १० वि. सुन्दर व्रतवाला (पव ३५)। °ग्गि पुं [°ग्‍नि] एक दिवस का नाम (कप्प)

सुव्वया :: स्त्री [सुव्रता] १ भगवान् धर्मंनाथ की माता (सम १५१) २ एक जैन साध्वी (सुर १५, २४७; महा)

सुव्विआ :: स्त्री [दे] अम्बा, माता (दे ८, ३८)।

सुस :: देखो सूस; 'सुसइ व पुंकं न वहंति निज्झरा वरहिणो न नच्चंति' (वज्जा १३४; भवि)। कृ. सुसियव्व (सुर ४, २२९)।

सुसंगद :: वि [सुसंगत] अति-संबद्ध (प्राकृ १२)।

सुसंयमिअ :: वि [सुसंयमित] अति-नियन्त्रित (दे)।

सुसंढिआ :: स्त्री [दे] शूला-प्रोत माँस (दे ८, ३९)।

सुसंक्य :: वि [सुसस्क] अति सुन्दर; 'अहो जणा कुणहत तवं सुसंतयं' (पउम ६८, ५६)।

सुसंनिविट्ठ :: वि [सुसंनिविष्ट] अच्छी तरह स्थित (सुपा १३३)।

सुसंपरिग्गहिय :: वि [सुसंपरिगृहीत] खूब अच्छी तरह ग्रहण किया हुआ (राय ६३)।

सुसंषिणद्ध :: वि [सुसंपिनद्ध] खूब अच्छी तरह बँधा हुआ (राय)।

सुसंभंत :: वि [सुसंभ्रान्त] अतिशय व्याकुल (उत्त २०, १३)।

सुसंमिअ :: वि [सुसंभृत] अच्छी तरह संस्कृत (स १८९; उप ६४८ टी)।

सुसंमय :: वि [सुसंमत] अच्छी तरह संमति- युक्त (सुर १०, ८२)।

सुसँवुअ, सुसंवुड :: वि [सुसंवृत] १ परिगत, व्याप्त। २ अच्छी तरह पहना हुआ (णाया १, १ — पत्र १९; पि २१९) ३ जितेन्द्रिय। ४ रुका हुआ (उत्त २, ४२)

सुसंहय :: वि [सुसंहत] अतिशय संश्‍लिष्ट (औप)।

सुसज्ज :: वि [सुसज्ज] अच्छी तरह तय्यार (सुपा ३११)।

सुसण्णप्प :: देखो सुसन्नप्प (राज)।

सुसद्द :: वि [सुशब्द] १ सुन्दर आवाजवाला। २ प्रसिद्ध, विख्यातक (सुपा ५६९)

सुसन्नप्प :: वि [सुसंज्ञाप्य] सुख-बोध्य (कस)।

सुसमत्थ :: वि [सुसमर्थ] सुशक्त, अतिशय सामर्थ्यंवाला (सुर १, २३२)।

सुसमदुस्समा, सुसमदूसमा :: स्त्री [सुषमदुष्मा] काल- विशेष, अवसर्पिणी-काल का तीसरा और उत्सर्पिणी का चौथा आरा (इक; ठा २, ३ — पत्र ७६)।

सुसमसुसमा :: स्त्री [सुषमसुषमा] काल-विशेष, अवसर्पिणी का पहला और उत्सर्पिणी का छठवाँ आरा (इक; ठा १ — पत्र २७)।

सुसमा :: स्त्री [सुषमा] १ काल-विशेष, अव- सर्पिणी का दूसरा और उत्सर्पिणी का पाँचवाँ आरा (ठा २, ३ — पत्र ७६; इक) २ छन्द-विशेष (पिंग)

सुसमाहर :: सक [सुसमा + हृ] अच्छी तरह ग्रहण करना। सुसमाहरे (सूअ १, ८, २०)।

सुसमाहिअ :: वि [सुसमाहित] अच्छी तरह समाधिसंपन्न (दस ५, १, ६; उत्त २०, ४)।

सुसमिद्ध :: वि [सुसमृद्ध] अत्यन्त समृद्ध (नाट — मृच्छ १५९)।

सुसर :: पुंन [सुस्वर] १ एक देव-विमान (सम १७) २ न. नानकर्मं का एक भेद, जिसके उदय से सुन्दर स्वर की प्राप्‍ति हो वह कर्मं (सम ६७; कम्म १, २६; ५१)। देखो सुस्सर, सुसृर।

सुमा :: स्त्री [स्वसृ] बहिन, भगिनी (सूअ १, ३, १, १ टी)।

सुसा :: देखो सुण्हा = स्‍नुषा (कुमा)।

सुसागय :: न [सुस्वागत] सुन्दर स्वागत (भग)।

सुसागर :: पुंन [सुसागर] एक देव-विमान (सम २)।

सुसाण :: न [श्‍मशान] मुर्दाघाट, मरघट (णाया १, २ — पत्र ७९; हे २, ८६; स ५९७; श्रा १४; महा)।

सुसामण्ण :: न [सुश्रामण्य] अच्छा साधुपन (उवा)।

सुसाय :: वि [सुस्वाद] स्वादिष्ठ, सुन्दर स्वादवाला (पउम ८२; ९९; १०२, १२२)।

सुसाल :: पुंन [सुशाल] एक देव-विमान (सम ३५)।

सुसावग, सुसावय :: पुं [सुश्रावक] अच्छा श्रावक — जैन गृहस्थ (कुमा; पडि; द्र २१)।

सुसाहय :: देखो सुसंहय (पणह १, ४ — पत्र ७९)।

सुसाहु :: पुं [सुसाधु] उत्तम मुनि (पणह २, १ — पत्र १०१; उव)।

सुसिअ :: वि [शुष्क] सूखा हुआ (सुपा २०४; कुप्र १३)।

सुसिअ :: वि [शोषित] सुखाया हुआ (महा; वज्जा १५०; कुप्र १३)।

सुसिक्खिअ :: वि [सुशिक्षित] अच्छी तरह शिक्षा को प्राप्‍त (मा २०)।

सुसिणिद्ध :: वि [सुस्‍निग्ध] अत्यन्त स्‍नेह-युक्त (सुर ४, १६९)।

सुसित्थ :: देखो सुत्थ = सौस्थ्य (संक्षि १२)।

सुसिन्‍न :: वि [सुशीर्ण] अति सड़ा हुआ (सुपा ४९६)।

सुसिर :: वि [शुषिर] १ पोला, खाली। छूँछा (उफ ७२८ टी; कुप्र १९२) २ पुंन. एक देव-विमान (सम ३७)

सुसिलिट्ठ :: वि [सुश्‍लिष्ट] सुसंगत, अति संबद्ध (सुर १०, ८२; पंचा १८, २३)।

सुसिस्स :: पुं [सुशिष्य] उत्तम चेला (उप पृ ४०१)।

सुसीअ :: वि [सुसीत] अति शीतल (कुमा)।

सुसीम :: न [सुसीम] नगरविशेष (उफ ७२८ टी)।

सुसीमा :: स्त्री [सुसीमा] १ भगवान् पद्मप्रभ की माता (सम १५१) २ कृष्ण वासुदेव की एक पत्‍नी (अंत १५) ३ वत्स नामक विजय-क्षेत्र की एक राजधानी (ठा २, ३ — पत्र ८०)

सुसील :: न [सुशील] १ उत्तम स्वभाव (पउम १४, ४४) २ वि. उत्तम स्वभाववाला, सदाचारी (प्रासू ८)। °वंत वि [°वत्] सदाचारी (पउम १४; ४४; प्रासू ३६)

सुसु :: पुं [शिश्] बच्चा, बालकअ °मार पुं [°मार] जलचर प्राणी की एक जाति, महिषाकार मत्स्य-विशेष (पि ११७)। °मारिया स्त्री [°मारिका] वाद्य-विशेष (राय ४६)। देखो सुंसुमार।

सुसुज्ज :: पुंन [सुसूर्य] एक देव-विमान (सम १५)।

सुसुमार :: पुं [सुसुमार] जलचर जन्तु की एक जाति (जी २०)। देखो सुसु-मार।

सुसुयंध :: वि [सुसुगन्ध] १ अत्यन्त सुगन्धी (पउम ६, ४१; गउड) २ पुं. अत्यन्त खुशबू (गउड)

सुसुर :: देखो ससुर (धर्मंवि ११४; सिरि ३३४; ३४५; ३४७; ९८८)।

सुसुहंकर :: पुं [सुशुभङ्कर] छन्द का एक भेद (पिंग)।

सुसूर :: पुंन [सुसूर] एक देव-विमान (सम १०)।

सुसेण :: पुं [सुषेण] १ सु्ग्रीव का श्वसुर (से ४, ११; १३, ८४) २ एक मंत्री (विपा १, ४ — पत्र ५४) ३ भरत चक्रवर्ती का मन्त्री (राज)

सुसेणा :: स्त्री [सुषेणा] एक बड़ी नदी (ठा ५, ३ — पत्र ३५१)।

सुसोह :: वि [सुशोभ] अच्छी शोभावाला (सुपा २७५)।

सुसोहिय :: वि [सुशोभित] शोभा-संपन्न, समलंकृत (उफ ७२८ टी)।

सुस्स :: अक [शुष्] सूखना। सुस्से (सूअ १, २, १, १६)। वकृ. सुस्संत (स १९९)।

सुस्समण :: पुं [सुश्रमण] उत्तम साधु (उव)।

सुस्सर :: वि [सुस्वर] सुन्दर आवाजवाला (सुपा २८९)। देखो सुप्तर।

सुस्सरा :: स्त्री [सुस्वरा] गीतरति तथा गीतयश नाम के गन्धर्वेन्द्रों की एक एक अग्रमहिषी का नाम (ठा ४, १ — पत्र २; ४; इक)।

सुस्सार :: वि [सुसार] सार-युक्त (भवि)।

सुस्सावग, सुस्सावय :: देखो सुसावग (उव; श्रा १२)।

सुस्सील :: देखो सुसील (सुपा ११०; ५०८)।

सुस्सुय :: देखो सूसुअ (राज)।

सुस्सुयाय :: अक [सुसुकाय, सुत्कारय्] सु सु आवाज करना, सूत्कार करना। संकृ. सुरसुयाइत्ता (उत्त २७, ७)।

सुस्सू :: स्त्री [श्वश्रु] सासू (बृह २)।

सुस्सूस :: सक [शुश्रूष्] सेवा करना। सुस्सूसइ (उव; महा)। वकृ. सुस्सूसंत, सुस्सूसमाण (कुलक ३४; भग; औप)। हेकृ. सुस्सूसिदुं (शौ) (मा ३६)।

सुस्सूसअ :: वि [शुश्रुषक] सेवा करनेवाला (कप्पू)।

सुस्सूसण :: न [शुश्रुषण] सेवा, श्रुश्रूषा (कुप्र २४७; रत्‍न २१)।

सुस्ससणया, सुस्सूसणा :: स्त्री [श्रुश्रूषणा] ऊपर देखो (उत्त २९, १; औप; णाया १, १३ — पत्र १७८)।

सुस्सूसा :: स्त्री [शुश्रूषा] ऊपर देखो (सुपा १२७)।

सुह :: देखो सोह = शुभ्। सुहइ (वज्जा १४; पिग)।

सुह :: सक [सुखय्] सुखी करना। सुहइ (पिंग), सुहेदि (शौ) (अभि ८९)।

सुह :: देखो सुभ (हे ३, २६; ३०; कुमा; सुपा ३९०; कम्म १, ५०)। °अ वि [°द] मंगलकारी (कुमा)। °कम्मि वि [°कर्मिक] पुण्यशाली (भवि) °काम वि [°काम] मङ्गल की चाहवाला (सुपा ३२६)। °गर वि [°कर] मङ्गल-जनक (कुमा)। °णामा स्त्री [°नामा] पक्ष की पाँचवीं, दसवीं तथा पनरहवीं रात्रि-तिथि (सुज्ज १०, १५)। °त्थि वि [°र्थिन्] १ शुभेच्छक (भग) २ शुभ अर्थंवाला (णाया १, १ — पत्र ७४)। °द देखो °अ (कुमा)

सुह :: न [सुख] १ आनन्द, चैन, मजा। २ आराम, शान्ति (ठा २, १ — पत्र ४७; ३, १ — पत्र ११४; भग; स्वप्‍न २३; प्रासू १३३; हे १, १७७; कुमा) ३ निर्वाण, मुक्ति। ४ वि. जितेन्द्रिय (विसे ३४४३; ३४४४) ५ सुख-प्रद, सुख-जनक (णाया १, १२ — पत्र १७४; आचा; कम्म १, ५)१। ६ अनुकुल (णाया १, १२) ७ सुखी (हे ३, १६)। °अ वि [°द] सुख- दायक (सुर २, ९५; सुपा ११२; कुमा)। °इत्तअ वि [°वत्] सुखी (पि ६००)। °कर वि [°कर] सुख-जनक (हे १, १७७)। °कामि वि [°कामिन्] सुखाभिलाषी (ओव ११६)। °त्थि वि [°र्थिन्] वही अर्थं (आचा)। °द वि [°द] सुख-दाता (वै १०३; कुमा)। °दाय वि [°दाय] वही (पउम १०३, १६२)। °फंस वि [°स्फर्श] कोमल (पाअ)। °यर देखो °कर (हे १, १७७; कुमा; सुपा ३)। °संझा स्त्री [°सन्ध्या] सुख-जनक सायंकाल (कप्पू)। °विह वि [°विह] १ सुख-जनक (श्रा २८; उव; सं ६७) २ पुंन. एक पर्वंत-शिखर (ठा २, ३ — पत्र ८०) °सण न [°सन] आसन-विशेष, पालकी (सुर २, ६०; सुपा २७८; कप्प)। °सिया स्त्री [°सिका] सुख से बैठना, सुखी स्थिति (प्रासू ८५)।

सुहउत्थिआ :: स्त्री [दे] दूती (दे ८, ९)।

सुहंकर :: वि [सुखकर] सुख-कारक (सिरि ३९; कुमा)।

सुहंकर :: वि [शुभकर] १ शुभ कारक (कुमा) २ पुं. एक वणिक् का नाम (उप ५०७ टी)

सुहंभर :: वि [सुखम्भर] सुखी (गउड)।

सुहग :: देखो सुभग (रयण ४०; गा ६; नाट — मालवि २८)।

सुहड :: पुं [सुभट] योद्धा (सुर २, २६; कुमा; प्रासू ७४; सण)।

सुहड :: वि [सुहृत] अच्छी तरह हरण किया हुआ (दस ७, ४१)।

सुहत्थ :: वि [सुहस्थ] १ अच्छा हाथवाला, हाथ की लघुतावाला, हाथ से शीघ्र-शीघ्र काम करने में समर्थं (से १२, ५५) २ दाता, दानशील (भवि)

सुहत्थि :: पुं [सुहस्तिन्] १ गन्ध-हस्ती (णाया १, १ — पत्र ७४; उवा) २ एक जैन महर्षि (कप्प; पडि)

सुहद्द :: न [सौहार्द] १ स्‍नेह। २ मित्रता (भवि)

सुहम :: न [सुक्ष्म] १ फूल, पुष्प (दसनि १, ३६) २ देखो सण्ह, सुहुम = सूक्ष्म (हे २, १०१; चंड)

सुहम्म :: पुं [सुधर्मन्] १ भगवान् महावीर का पट्टधर शिष्य (विपा १, १ — पत्र १) २ बारहवें जिनदेव का प्रथम शिष्य (सम १५२) ३ एक यक्ष का नाम (विपा १, १ — पत्र ४; १ , २ — पत्र २१)। °सामि पुं [°स्वामिन्] भगवान् महावीर का पट्टघर शिष्य (भग)। देखो सुधम्म।

सुहम्म° :: देखो सुहम्मा। °वइ पुं [°पति] इन्द्र (महा)।

सुहम्ममाण :: वि [सुहन्यमान] जो अच्छी तरह मारा जाता हो वह (पि ५४०)।

सुहम्मा :: स्त्री [सुधर्मा] चमर आदि इन्द्रों की सभा, देव-सभा (सम १५; भग)।

सुहय :: देखो सुह-अ = सुख-द, शुभ-द।

सुहय :: देखो सुभग (गउड; सण; हेका २७२; कुमा)।

सुहय :: वि [सुहत] अच्छी तरह जो मारा गया हो वह (कुप्र २२६)।

सुहर :: वि [सुभर] सुख से भरने योग्य (दस ८, २५)।

सुहरअ :: देखो सुहराय (षड्)।

सुहरा :: स्त्री [द. सुगृहा] पक्षि-विशेष, सुघरी (से ८, ३६)।

सुहराय :: पुं [दे] १ वेश्या का घर। २ चटक, गैरैया पक्षी (दे ८, ५६)

सुहल्ली :: स्त्री [दे] सुख, आनन्द (दे ८, ३६)।

सुहव :: देखो सुभग (वज्जा ९६; संक्षि ६)। स्त्री. °वी (प्राकृ ३७)।

सुहा :: अक [सु + भा] अच्छा लगना, 'न सुहाइ गोमईए सासू' (कुप्र ३५२)।

सुहा :: देखो छुहा = सुधा (स २८२; कुमा; सण)। °कम्मत न [°कर्मान्त] चूने का कारखाना (आचा २, २, २, ९)। °हार पुं [°हार] देव, देवता (स ७५५)।

सुहा, सुहाअ :: अक [सुखाय्] १ सुख पाना। २ सक. सुखी करना। सुहाइ, सहाअई, सुहावइ, सुहावेइ (भवि; गा ६१७; पि ५५८; से १२, ८६; वज्जा १६४; भवि; उव)। वकृ. सुहाअंत (से १, २८; नाट — रत्‍ना ६१)

सुहाव :: देखो सहाव = स्वभाव (गा ५०८; वज्जा १०)।

सुहावण :: वि [सुखायन] सुख-जनक (सण; भवि)।

सुहावय :: वि [सुखायक] ऊपर देखो (वज्जा ४६४; भवि)।

सुहासिय :: वि [सुभाषित] १ सम्यग् उक्त (पणह १, १ — पत्र १) २ न. सुन्दर वचन, सूक्त (स ७६१; सुपा ५१४)

सुहि :: वि [सुखिन्] सुख-युक्त (सुपा ३१२; ४३१)।

सुहि, सुहिअ :: पुं [सुहृद्] मित्र, दोस्त (ठा ४, ३ — पत्र २४३; णाया १, २ — पत्र ९०; उत्त २०, ९; सुर ४, ७६; सुपा १०७; ४१९; प्रयौ ३९; सुर ३, १५४, भवि)।

सुहिअ :: वि [सुखित] सुखी, सुख-युक्त (से २, ८; गा ४१८; कुप्र ४०६; उव; कुमा)।

सुहिअ :: वि [सुहित] १ तृप्त (से २, ८) २ सुन्दर हितवाला (धर्मं २)

सुहिट्ठ :: वि [सुहृष्ट] अति हर्षित (उप ७२८ टी)।

सुहिर :: देखो सुसिर; 'अवनामंतो पुहहिं अंतो सुहिरं व चरणाघाएहिं' (धर्मंवि १२४; रंभा)।

सुहिरण्णा, सुहिरण्णिया, सुहिरन्निया :: स्त्री [सुहिरण्या, °ण्यिका] वनस्पति-विशेष, पुष्प-प्रधान वृक्ष-विशेष (राय ३१; राज; पणह १७ — पत्र ५२९)।

सुहीरीमण :: वि [सुह्रीमनस्] अत्यन्त लज्जालु, अतिशय शरमिन्दा (सूअ १, ४, २, १७; राज)।

सुहिल्लिया :: देखो सुहेल्लि; 'सुहिल्लियं अट्ठियं रसं सुणओ' (भत्त ३४२)।

सुही :: वि [सुवी] पंडित, विद्वान् (सिरि ४०)।

सुहुम :: वि [सूक्ष्म] १ बारीक, अत्यन्त छोटा। २ तीक्ष्ण (हे १, ११८; २, ११३; कुमा; जी १४) ३ पुं. भारत वर्षं के एक भावी कुलकर पुरुष (सम १५३) ४ एकेन्द्रिय जीव-विशेष (ठा ८; कम्म ४, २; ५) ५ न. कर्मं- विशेष (सम ६) °संपराग, °संपरागय पुंन [°संपराय] १ चारित्र-विशेष (ठा ५, २ — पत्र ३२२) २ दशवाँ गुण- स्थानक (सम २६)। देखो सण्ह, सुहम = सूक्ष्म।

सुहुय :: वि [सुहुत] अच्छी तरह होम किया हुआ (उप २८० टी; कप्प; औप)।

सुहेल्लि :: स्त्री [दे. सुखकेलि] सुख, आनन्द, मजा (दे ८, ३६; पाअ; गा १०८; २११; २६१; २८८; ३६८; ५५९; ८९४; स ७२)।

सुहेसि :: वि [सुखैषिन्] सुखाभिलाषी (सुपा २२७)।

सू :: /?/अ. निन्दा-सूचक अव्यय (नाट)।

सूअ :: सक [सूचय्] १ सूचना करना। २ जानना। ३ लक्ष करना। सूएइ, सूअंति, सूएमो (विसे १३६८; स २४८; गउड; पिंड ४१७)। कर्मं. सूहज्जइ (गा ३२९)। वकृ. सूयंत, सूययंत (गउड; स ३६६)। कवकृ. सूइज्जंत (चेइय ९०५)। कृ. सूएअव्व (से १०, २८)

सूअ :: पुं [सूद] रोसइया (महा)।

सूअ :: पुं [सूत] १ सारथि, रथ हाँकनेवाला (पाअ) २ वि. प्रसूत, जिसने जन्म दिया हो वह; 'सु (? सू) यगोव्व अदूरए' (सूअ १, ३, २, ११)। °गड पुंन [°कृत] दूसरा जैन अंग-ग्रन्थ (सूअनि २)

सूअ :: पुं [शूक] धान्य आदि का तीक्ष्ण अग्र भाग (गउड; गा ५६८)।

सूअ :: वि [शून] फूला हुआ, सूजनवाला; 'सूय- मुहं सूयहत्थं सूयपायं (विपा १, ७ — पत्र ७३)।

सूअ :: पुं [सृप] दाल (पव ६१, टी; उवा; पणह २, ३ — १२३; सुपा ५७)। °गार, °यार, °र पुं [°कार] रसोइया (स १७; कुप्र ६९; ३७; श्रावक ९३ टी)। °रिणी स्त्री [°कारिणी] रसोई बनानेवाली स्त्री (पउम ७७, १०९)।

सूअ :: देखो सुत्त = सूत्र। °गड पुंन [°कृत] दूसरा जैन अंग-ग्रन्थ; 'आयारो सुयगडो' (सूअ २, १, २७; सम १)।

सूअअ, सूअक, सूअग :: वि [सूचक] १ सूचना करनेवाला (वेणी ४५; श्रा ११; सुर २, २२९) २ पुं. पिशुन, खल, दुर्जन (पणह १, २ — पत्र २८) ३ गुप्त दूत, जासूस (प्राप्र)

सूअग, सूअय :: न [सूतक] सूतक. जनन और मरण की अशुद्धि (पंचा १३, ३८; वव १)।

सूअण :: न [सूचन] सूचना (उव; सुर २, २३३)।

सूअर :: पुं [शूकर] सूअर, वराह (उवा; विपा १, ३ — पत्र ५३; प्रयौ ७०)। °वल्ल पुं [°वल्ल] अनन्तकाय वनस्पति-विशेष (पव ४; श्रा २०)।

सूअरिय :: वि [दे] यन्त्र-पीड़ित (दे ८, ४१ टी)।

सूअरिया, सूअरी :: स्त्री [दे] यन्त्र-पीड़ना (सुर १३, १५७; दे ८, ४१)।

सूअल :: न [दे] किंशारु, धान्य का तीक्ष्ण अग्र भाग (दे ८, ३८)।

सृआ :: स्त्री [सूचा] सूचन, सूचना (पिंड ४३७; उपपं ५०; सूअनि २)। °कर वि [°कर] सूचक (उप ७६८ टी)।

सूआ, सूइ :: स्त्री [सूति] प्रसव, प्रसूति, जन्म (पउम २६, ८५; १, ६१; सुपा २३)। °कम्म न [°कर्मन्] प्रसव-क्रिया (सुर १०, १; सुपा ४०)। °हर न [°गृह] प्रसूति- गृह (पउम २६, ८५)।

सूइ :: स्त्री [सूचि] देखो सूई (आचा; सम १४९; राय २७)।

सूइअ :: वि [सूचित] जिसकी सूचना की गई हो वह (महा)। २ उक्त, कथित (पाअ) ३ व्यञ्जनादि-युक्त (खाद्य) (दस ५, १, ९८)

सूइअ :: वि [सूत] प्रसूत, जिसने जन्म दिया हो वह, ब्यायी, 'साणं सूइअं गाविं' (दस ५, १, १२)।

सूइअ :: पुं [सूचिक] दरजी (कुप्र ४०१)।

सूइअ :: पुं [दे] चण्डाल (दे ८, ३९)।

सूइय :: न [सुप्त] निद्रा; 'सेज्जं अत्थरिऊण अलियसूइयं काऊण अच्छंति' (महा)।

सूइय :: वि [दे. सूप्य, सूपिक] भीजा हुआ (खाद्य); 'अवि सूइयं वा सुक्कं वा' (आचा)।

सूइया :: स्त्री [सूतिका] प्रसूति-कर्मं करनेवाली स्त्री (सम्मत्त १४५)।

सूई :: स्त्री [सूची] कपड़ा सीने की सलाई, सूई (पणह १, ३ — पत्र ४४; गा ३९४; ५०२)। २ परिमाण-विशेष, एक अंगुल लम्बी एक प्रदेशावाली श्रेणी (अणु १५८) ३ दो तख्तों के जोड़ने के काम में आती एक तरह की पतली कील (राय २७; ८२) °फलय न [°फलक] तख्ते का वह हिस्सा, जहाँ सूची- कीलक लगाया गया हो (राय ८२)। °सुह पुं [°मुख] १ पक्षि-विशेष (पणह १, १ — पत्र ८) २ द्वीन्द्रिय जन्तु की एक जाति (पणण १ — पत्र ४४) ३ न. जहाँ सूची-कीलक तख्ते का छेद कर भीतर घूसता है उसके समीप की जगह (राय ८२)

सूई° :: देखो सूइ = सूति (सुपा २६५)।

सूड :: सक [भञ्ज, सूद्] भाँगना, तोड़ना, विनाश करना। सूडइ (हे ४, १०६)। कर्मं. सूडिज्जंतु (पणह १, २ — पत्र २९)।

सूडण :: न [सूदन] १ भञ्जन, विनाश (गउड) २ वि. विनाशक (पव २७१)

सूण :: वि [शून] सूजा हुआ, सूजन से फूला हुआ (पउम १०३, १४८; गा ६३६; स ३७१; ४८०)।

सूण°, सूणा :: स्त्री [सूना] वध-स्थान (निर १, १; मा ३४; कुप्र २७९)। °वइ पुं [°पति] कसाई (दे २, ७०)।

सूणिय :: वि [शूनिक] १ सूजन का रोगवाला, जिसका सरीर सूज गया हो वह। २ न. सूजन (आचा)

सूणु :: पुं [सूनु] पुत्र, लड़का (कुप्र ३१९)।

सूतक :: दखो सूअय = सूतक (वव १)।

सूप :: देखो सूअ = सूप (पणह २, ५ — पत्र १४८)।

सूभग :: देखो सुभगह; 'सूभग दूभगनामं सूसर तह दूसरं चेव' (धर्मंसं ६२०; श्रावक २३)।

सूभग :: देखो सोभग्ग (पिंड ५०२)।

सृमाल :: देखो सुउमाल (पणह १, ४ — पत्र ७८; णाया १, १ — पत्र ४७; १, १६ — पत्र २००; कप्प; सुर १३, ११८; कुप्र ५५)।

सूर :: सक [भञ्ज्] तोड़ना, भाँगना। सूरइ (हे ४, १०६)।

सूर :: वि [शूर] १ पराक्रमी, वीर (ठा ४, ३ — पत्र २३७; कप्प; सुपा २२२; ४१२; प्रासू ७१) २ पुं. एक राजा (सुपा ६२२) ३ पुंन. एक देव-विमान (देवेन्द्र १४३)। °सेण पुं [°सेन] एक भारतीय देश, जिसकी प्राचीन राजधानी मथुरा थी (विचार ४९; पउम ९८, ६६; ती १४; विक्र ६१; सत्त ६७ टी) २ ऐेरवत वर्षं के एक भावी जिन- देव (सम १५४) ३ एक जैनाचार्यं (उप ७२८ टी) ४ भगवान् आदिनाथ का एक पुत्र (ती १४)

सूर :: पुं [सृर, सूर्य] १ सूर्यं, रवि (हे २, ६४; ठा २, ३ — पत्र ८५; उव; सुपा २२२; ६२२; कप्प; कुमा) २ सतरहवें जिन देव का पिता (सम १५१) ३ इक्ष्वाकु-वंश का एक राजा (पउम ५, ६) ४ एक लंका- पति (पउम ५, २६३) ५ एक द्वीप का नाम (सुज्ज १९) ६ एक राजा (सुपा ५५९) ७ छन्द का एक भेद (पिंग) ८ पुंन. एक देव-विमान (सम १०) °अंत, °कंत पुं [°कान्त] १ मणि-विशेष (स ९, ५०; पउम ३, ७५; पणण १ — पत्र २६; उत्त ७७) २ पुंन. एक देव-विमान (देवेन्द्र १४४; सम १०)। °कूड पुंन [°कूट] एक देव-विमान-देव-भवन (सम १०)। °ज्झय पुंन [°ध्वज] एक देव-विमान (सम १०)। °दीव पुं [°द्वीप] द्वीप-विशेष (इक)। °देब पुं [देव] आगामि उत्सर्पिणी-काल में होनेवाले भारतवर्षं के दूसरे जिनदेव (सम १५३)। °पन्नत्ति स्त्री [°प्रज्ञप्ति] एक जैन उपाङ्ग- ग्रंथ (ठा ३, २ — पत्र १२६)। °परिवेस पुं [°परिवेष] मेघ आदि से होता सूर्यं का बल- याकार मंडल (अणु १२०)। °पव्वय पुं [°पर्वत] पर्वंत-विशेष (ठा २, ३ — पत्र ८०)। °पाया स्त्री [°पाका] सूर्यं के किरण से हेनोवाली रसोई (कुप्र ६९)। °प्पभ पुंन [°प्रभ] एक देव-विमान (सम १०)। °प्पभा, °प्पहा स्त्री [°प्रभा] १ सूर्यं की एक अग्र-महिषी (इक, णाया २ — पत्र २५२) २ ग्यारहवें जिनदेव की दीक्षा- शिविका (सम १५१) ३ आठवें जिनदेव की दीक्षा-शिविका (विचार १२९)। °मल्लिया स्त्री [°मल्लिका] वनस्पति-विशेष (राय ७६)। °मालिया स्त्री [°मालका] आभरण-विशेष (औप)। °लेस पुंन [°लेश्य] एक देव- विमान (सम १०)। °वक्कय न [°वक्रण] आभूषण-विशेष (औप)। °वर पुं [°वर] १ एक द्वीप। २ एक समुद्र (सुज्ज १९) °वरोभास पुं [°वरावभास] १ द्वीप- विशेष। २ समुद्र-विशेष (सुज्ज १९) °वल्ली स्त्री [°वल्ली] लता-विशेष (पणण १ — पत्र ३३)। °वेग पुं [°वेग] एक राज- कुमार (उप १०३१ टी)। °सिंग पुंन [°श्रृङ्ग] एक देव-विमान (सम १०)। °सिट्ठ पुंन [°सृष्ट] एक देव-विमान (सम १०)। °सिरी स्त्री [°श्री] सातवें चक्रवर्ती की स्त्री (सम १५२)। सुअ पुं [°सुत] शनैश्‍चर-ग्रह (हाट — मृच्छ १९२)। °भ पुंन [°भ] एक देव-विमान (सम १४; पव २६७)। °वत्त पुंन [°वर्त] एक देव- विमान (सम १०)। देखो सुज्ज।

सूरंग :: पुं [दे] प्रदीप, दीपक (दे ८, ४१; षड्)।

सूरंगय :: पुं [सुराङ्गज] एक राजा (उप १०३१ टी)।

सूरण :: पुं [दे. सृरण] कन्द-विशेष, सूरन, ओल (दे ८, ४१; पणण १ — पत्र ३६, उत्त ३६ ९९; पंचा ५, २०)।

सूरद्धय :: पुं [दे] दिन, दिवस (दे ८, ४२; षड्)।

सुरल्लि :: पुंस्त्री [दे] १ मध्याह्न, दुपहर का समय (दे ८, ५७; षड्) २ कीट-विशेष, मशक के समान आकृतिवाला कीट (दे ८, ५७) ३ तृण-विशेष, ग्रामणी नामक तृण (दे ८, ५७; जीव ३, ४; राय)

सूरि :: पुं [सूरि] आचार्यं (जी १; सण)।

सूरिअ :: वि [भग्‍न] भाँगा हुआ (कुमा)।

सूरिअ :: देखो सुज्ज (हे २, १०७; सम ३६; भग; उप ७२८ टी)। °कंत पुं [°कान्त] प्रदेशि-नामक राजा का पुत्र (भग ११, ९ — पत्र ५१४; कुप्र १४६)। °कंता स्त्री [°कान्ता] प्रदेशी राजा की पत्‍नी (कुप्र १४६)। °पाग पुंस्त्री [°पाक] सूर्य के ताप से होनेवाली रसोई (कुप्र ७०)। स्त्री. °गा (कुप्र ६८)। °लेस्स स्त्री [°लेश्या] सूर्यं की प्रभा (सुज्श ५ — पत्र ७६)। °भ पुं [°भ] १ प्रथम देव लोकका एक देव (राय १४; धर्मंवि ९) २ पुंन. एक देव-विमान। ३ न. सूर्याभ देव का सिंहासन (राय १४)। °वत्त पुं [°वर्त] मेरु पर्वंत (सुज्ज ५; इक)। °वरण पुं [°वरण] मेरु पर्वत (सुज्ज ५; इक)

सूरिल :: पुं [दे] श्‍वशुर पक्ष (?), 'महंतं मे सओयणं ति साहिऊण सुरिलस्स समागओ चंपं' (स ५१०)।

सूरिस :: देखो सुउरिस (हे १, ८)।

सूरुत्तरवडिंसग :: पुंन [सूरोत्तरावर्तंसक] एक देव-विमान (सम १०)।

सूरिल्लि :: देखो सूरल्लि (राय ८० टी)।

सूरोद :: पुं [सूरोद] एक समुद्र (सुज्ज १९)।

सूरोदय :: न [सूरोदय] नगर-विशेष (पउम ८, १८६)।

सूरोवराग :: पुं [सूरोपराग] सूर्यं-ग्रहण (भग)।

सूल :: पुंन [शूल] १ लोहे का सूतीक्ष्ण काँटा, शूली (विपा १, ३ — पत्र ५३; औप)। शस्त्र- विशेष, त्रिशूल (पणह १, १ — पत्र १८; कुमा) ३ रोग-विशेष (प्रासू १०५) ४ बबूल आदि का तीक्ष्ण अग्र भागवाला काँटा (कुप्र ३७)। पुं. ब. देश-विशेष (पउम ९८, ६५)। °पाणि पुं [°पाणि] यक्ष-विशेष (कर्मं ५)। °धर पुं [°धर] शिव, महादेव (पिंग)

सूलच्छ :: न [दे] पल्वल, छोटा तालाब (दे ८, ४२)।

सूलत्थारी :: स्त्री [दे] चण्डी, पार्वती (दे ८, ४२)।

सूला :: स्त्री [शूला] शूली, सूतीक्ष्ण लोह-कंटक (गा ६४; उप ३३९ टी; धर्मंवि १३७)। °इय वि [°चित, °तिग] शूली पर चढ़ाया हुआ (णाया १, ९ — पत्र १५७; १६३; राय १३४)।

सूला :: स्त्री [दे] वेश्या, वारांगना (दे ८, ४१)।

सूलि :: वि [शूलिन्] १ शूल-रोगवाला; 'जह बिदलं सूलीणं' (वि ३) २ पुं. शिव, महादेव (पाअ)

सूलिया :: स्त्री [शूलिका] शूलो, जिसपर वध्य को चढ़ाया जाता है (पणह १, १ — पत्र ८)।

सूव :: पुं [सूप] दाल (उवा; ओघ ७१४; चारु ६; पिंड ६२४; पंचा १०, ३७)। °यार, °र पुं [°कार] रसोइया, रसोइ बनानेवाला नौकर (पउम ११३, ७; सुर १६, ३८; उप ३०२)।

सूस :: अक [शुष्] सूखना। सूसइ, सूसंति, सूसइरे (हे ४, २३६; प्राकृ ६८; कुमा ३७४; हे ३, १४२)।

सूसर :: वि [सुस्वर] १ सुन्दर आवाजवाला (सुर १६, ४६) २ न. नानकर्मं का एक भेद, जिससे सुन्दर स्वर की प्राप्‍ति हो वह कर्मं (धर्मंसं ६२०; श्रावक २३; कम्म २, २२)। °परिवादिणी स्त्री [°परिवादिनी] एक तरह की वीणा (पणह २, ५ — पत्र १४९)

सूसास :: वि [सोच्छ्वास] ऊर्ध्वं श्‍वासवाला (हे १, १५७; कुमा)।

सूसिय :: वि [शोषित] सुखाया हुआ (सुर १५, २४८)।

सूसुअ :: वि [सुश्रुत] १ अच्छी तरह सुना हुआ। २ अच्छी तरह ज्ञात (वज्जा १०६)। ३ पुं. वैद्यक ग्रन्थ-विशेष (वज्जा १०६)

सूहअ, सूहव :: देखो सूभग (संक्षि २०; हे १, ११३; १९२)।

से° :: देखो सेअ = श्‍वेत। °वड पुं [°पट] श्‍वेताम्बर जैन (सम्मत्त १३७)।

से :: अ [दे] इन अर्थों का सुचक अव्यय — १ वाक्य का उपन्यास। २ प्रश्‍न (भग १, १; उवा) ३ प्रस्तुत वस्तु का परामर्शं (उत्त २, ४०; जं १) ४ अनन्तरता (ठा १० — पत्र ४९५)

से, सेअ :: अक [शी] सोना। सेइ, सेअइ (षड्)।

सेअ :: सक [सिच्] सींचना। सेअइ (हे ४, ९६)।

सेअ :: पुं [दे] गणपति, गणेश (दे ८, ४२)।

सेअ :: पुं [सेय] १ कर्मंम, काँदो, पंक (सूअ २, १, २; णाया १, १ — पत्र ६३) २ एक अधम मनुष्य-जाति; चंडाला मुट्ठिया सेया जे अन्‍ने पावकम्मिणो' (ठा ७ — पत्र ३९३)

सेअ :: पुं [स्वेद] पसीना (गा २७८; दे ४, ४९; कुमा)।

सेअ :: पुं [सेक] सेचन, सींचना (मै ६५; गा ७९९; हेका ९९; अभि ३३)।

सेअ :: न [श्रेयस्] १ शुभ, कल्याण (भग) २ धर्मं। ३ मुक्ति, मोक्ष (हे १, ३२) ४ वि. अति प्रशस्त, अतिशय शुभ; 'इय संज- मोवि सेओ' (पंचा ७, १४; कुमा; पंच ९६) ५ पुं. अहोरात्र का दूसरा मुहुर्त (सुज्ज १०, १३)

सेअ :: वि [सैज] सकम्प, कम्प-युक्त (भग ५, ७ — पत्र २३४)।

सेअ :: वि [श्‍वेत] १ शुक्ल, सफेद (णाया १, १ — पत्र ५३; अभि ३३; उव) २ पुं. एक इन्द्र, कुभंड-निकाय के दक्षिण दिशा का इन्द्र (ठा २, ३ — पत्र ८५) ३ शक्र की नट-सेना का अधिपति (इक) ४ आमल- कल्पा नगरी का एक राजा, जिसने भगवान् महावीर के पास दीक्षा ली थी (ठा ८ — पत्र ४३०; राय ९)। °कंठ पुं [°कण्ठ] भूतानन्द नामक इन्द्र के महिष-सैन्य का अधिपति (ठा ५, १ — पत्र ३०२; इक)। °पड, °वड पुं [°षट] श्वेताम्बर जैन, जैन का एक संप्रदाय (सुपा ६४१; विसे २५८५; धर्मंसं ११०९)

सेअ :: वि [एष्यत्] आगामी, भविष्य; 'पभू णं भंते केवली सेयकालंसि वि तेसु चेव आगासपदेसेसु हत्थं वा जाव आहाहित्ताणं चिट्ठित्तए' (भग ५, ४ — पत्र २२३; ठा १० — पत्र ४९५; अणु २१)। °ल पुं [°काल] भविष्य काल (भग; उत्त २९, ७१)।

सेअंकर :: पुं [श्रेयस्कर] ज्योतिष्क ग्रह-विशेष (ठा २, ३ — -पत्र ७८)।

सेअंकार :: पुं [श्रेयस्कार] श्रेयः-करण, 'श्रेयस्' का उच्चारण (ठा १० — पत्र ४९५)।

सेअंबर :: पुं [श्वेताम्बर] १ एक जैन संप्रदाय (सं २; सम्मत्त १२३; सुपा ५६६) २ न. सफेद वस्त्र (पउम ६६, ३०)

सेअंस :: पुं [श्रेयांस] १ एक राज-कुमार (धण १५) २ चतुर्थं वासुदेव तथा बलदेव के पूर्वं जन्म के धर्मं गुरु — एक जैन मुनि (सम १५३; पउम २०, १७६)। देखो सेज्जंस।

सेअंसक :: देखो सेअ = श्रेयस् (ठा ४, ४ — पत्र २६५)।

सेअण :: न [सेचन] सेक, सीचना (कुमा; अभि ४७; णाया १, १३ — पत्र १८१; सुपा ३०६)। °वह पुं [°पथ] नीक (आचा २, १०, २)।

सेअणग, सेअणय :: पुं [सेचनक] १ राजा श्रेणिक का एक हाथी (उप २६४ टी; णाया १, १ — पत्र २५) २ वि. सींचनेवाला (कुमा)। दगेखो सेचणय।

सेअविय :: वि [सेवनीय] सेवा-योग्य, 'ण सिक्खती सेयवियस्स किंचि' (सूअ १, ५, १, ४)।

सेअविया :: स्त्री [श्वेतविका] केकयार्धं-देश की प्राचीन राजधानी (विचार ५०; पव २७५; इक)।

सेआ :: स्त्री [श्वेतता] सफेदपन (सुज्ज १, १)।

सेआ :: देखो सेवा (नाट — चैत ९२)।

सेआल :: देखो सेवाल = शैवाल (से २, ३१)।

सेआल :: देखो सेआवल = एष्यत् -काल।

सेआल :: पुं [दे] १ गाँव का मुखिया। २ सांनिध्य करनेवाला यक्ष आदि (दे ८, ५८) ३ कृषक, खेती करनेवाला गृहस्थ (पाअ)

सेआली :: स्त्री [दे] दूर्वा, दूव, दूभ (दे ८, २७)।

सेआलुअ :: पुं [दे] मनौती की सिद्धि के लिए उत्सृष्ट बैल (दे ८, ४४)।

सेइअ :: त [स्वेदित] पसीना (भवि)।

सेइआ, सेइगा :: स्त्री [सेतिका] परिमाण-विशेष, दो प्रसृति की एक नाप (तंदु २९; उप पृ ३३७; अणू १५१)।

सेउ :: पुंन [सेतु] १ बाँध, पुल (से ६, १७; कुप्र २२०; कुमा) २ आलवाल, कियारी, थाँवाला। ३ कियारी के पानी से सींचने योग्य खेत (औप; णाया १, १ टी — पत्र १) ४ मार्गं (औप; णाया १, १ टी — पत्र १; कप्प ८९)। °बंध पुं [°बन्ध] पुल बाँधना (से ६, १७)। °वह पुं [°पथ] पुलवाला मार्ग (से ८, ३८)

सेउ :: वि [सेक्‍तृ] सेचक, सिंचन करनेवाला (कप्प ८९)।

सेउय :: वि [सेवक] सेवा-कर्ता (कप्प ९)।

सेंदूर :: देखो सिंदूर (प्राप्र; संक्षि ३)।

सेंधव :: देखो सिंभ (उव; पि २६७)।

सेंभिय :: देखो सिंभिय (भग; पि २६७)।

सेंवाडय :: पुं [दे] चुटकी की आवाज (दे ८, ४३)।

सेचणय :: न [सेचनक] सिंचन, छिड़काव (मोह २७)। देखो सोअणय।

सेचाण :: (अप) तु [श्येन] छन्द-विशेष (पिंग)। देखो सेण = श्येन।

सेच्च :: न [शैत्य] शीतपन, ठंढ़ापन (प्राप्र)।

सेज्ज° :: देखो सेज्जा। °वइ पुं [°पति] वसति- स्वामी गृहस्थ (पव ८४)।

सेज्जंभव :: देखो सिज्जंभव (कप्प; दसनि १, १२)।

सेज्जंस :: पुं [श्रेयांस] १ ग्यारहवें जिनदेव का नाम (सम ८८; कप्प) २ एक राज-पुत्र, जिसने भगवान् आदिनाथ को इक्षु-रस से प्रथम पारणा कराया था (कप्प; कुप्र २१२) ३ मार्गंशीर्षं मास करा लोकोत्तर नाम (सुज्ज १०, १९) ४ भगवान् महावीर का पिता, राजा सिद्धार्थं (आचा २, १५, ३)। देखो सिज्जंस, सेअंस = श्रेयांस।

सेज्जंस :: देखो सेअंस = श्रेयस् (आवम)।

सेज्जा :: स्त्री [शय्या] १ सेज, बिछौना (से १, ५७; कुमा) २ मकान, घर, वसति, उपश्रय (पव १३२; सुख १, १५)। °यर पुं [°तर] गृह-स्वामी, उपाश्रय का मालिक, साधु को रहने के लिए स्थान देनेवाला गृहस्थ (ओघ २४२; पव ११२; पंचा १७, १७)। °वाल पुं [°पाल] शय्या का काम करनेवाला चाकर (सुपा ५८७)। देखो सिज्जा।

सेज्जारिअ :: न [दे] अन्दोलन, हिंडोले में झूलना (दे ८, ४३)।

सेट्ठि :: पुं [दे. श्रेष्ठिन्] गाँव का मुखिया, सेठ, महाजन (दे ८, ४२; सम ५१; णाया १, १ — पत्र १९; उवा)।

सेडिय :: न [दे] तृण-विशेष (पणण १ — पत्र ३३)।

सेडिया :: स्त्री [दे. सेटिका] सफेद मिट्टी, खड़ी (आचा २, १, ६, ३)।

सेढि :: स्त्री [श्रेणि] देखषो सेढी = श्रेणी (सुर ३, १७; ५, १९६)।

सेढिया, सेढी :: देखो सेडिया (दस ५, १, ३४; जी ३)।

सेढी :: स्त्री [श्रेणी] १ पंक्ति (सम १४२; महा) २ राशि (अणु) ३ असंख्य योजन- कोटाकोटी की एक नाप (अणु १७३)। देखो सेणि।

सेण :: पुं [श्‍येन] १ पक्षि-विशेष (पउम ८, ७९; दे ७, ८४; वै ७४) २ विद्याधर- वश का एक राजा (पउम ५, १५)

सेण :: देखो सेण्ण; 'मणणरवइणो मरणे मरंति सेणाइं इंदियमयाइं' (आरा ६०)।

सेणा :: स्त्री [सेना] १ भगवान् संभवनाथजी की माता (सम १५१) २ लश्‍कर, सैन्य (कुमा) ३ एक जैन साध्वी, जो महर्षि स्थूलभद्र की बहि थी (कप्प; पडि) ४ वह लश्‍कर जिसमें ३ हाथी, ३ रथ; ९ घोड़े और १५ प्यादें हों (पउम ५६, ५)। °णिय, °णी, °णीय पुं [°नी] सेना-पति, लश्‍कर का मुखिया; 'सेणाणिओवि ताहे घेत्तूण जिणेसरं सूरवइस्स' (पउम ३, ७७; सुपा ३००; धर्मंवि ८४; पउम ९४, २०)। °मुह न [°मुख] वह सेना जिसमें ९ हाथी, ९ रथ, २७ घोड़े और ४५ प्यादें हों (पउम ५६, ५)। °वइ पुं [°पति] सेना का मुखिया, सेना-नायक (कप्प; पउम ३७, २; सम २७; सुपा २५५)। °हिवइ पुं [°धिपति] वही पूर्वोक्त अर्थं (सुपा ७३)

सेणाबच्च :: न [सैनापत्य] सेनापतिपन, सेना का नेतृत्व (कप्प; औप)।

सेणि :: स्त्री [श्रेणी] १ पंक्ति। २ समूह (महा) ३ कुम्भकार आदि मनुष्य-जाति (णाया १, १ — पत्र ३७)

सेणिअ :: पुं [श्रेणिक] १ मगध देश का एक प्रख्यात राजा (णाया १, १ — पत्र ११; ३७; ठा ९ — पत्र ४५५; सम १५४; उवा; अंत; पउम २, १५; कुमा) २ एक जैन मुनि (कप्प)

सेणिआ :: स्त्री [सेणिका] एक जैन मुनि-शाखा (कप्प)।

सेणिआ, सेणिका :: स्त्री [सेनिका] छन्द का एक भेद (पिंग)।

सेणिग :: देखो सेणिअ (संबोध ३५)।

सेणिग :: पुं [सैनिक] लश्‍करी सिपाही (स ३८१)।

सेणी :: स्त्री [श्रेणी] देखो सेणी (महा; णाया १, १)।

सेण्ण :: देखो सिन्न = सैन्य (णाया १, ८ — पत्र १४६; गउड)।

सेत्त :: देखो सित्त = सिक्त (कुप्र १६)।

सेत्त :: (अप) देखो सेअ = श्वेत (पिंग)।

सेत्तुंज :: पुं [शत्रुञ्जय] एक प्रसिद्ध पर्वंत (णाया १, १६ — पत्र २२६; अंत)।

सेद :: देखो सेअ = स्वेद (दे ४, ३४; स्वप्‍न ३९)।

सेध :: देखो सेह = सेह (जीव २ — पत्र ५२)।

सेन्न :: देखो सिन्न = सैन्य (हे १, १५०; कुमा; सण; सुर १२, १०४ टि)।

सेप्फ, सेफ :: देखो सेम्ह (हे २, ५५; षड्; कुमा; प्राकृ २२)।

सेफ :: पुंन [शेफ] पुरुष-चिह्न, लिंग (प्राकृ १४)।

सेभालिआ :: स्त्री [शेफालिका] लता-विशेष (हे १, २३६; प्राकृ १४)।

सेमुसी, सेमुही :: स्त्री [शेमुषी] मेघा, बुद्धि (राज; उप पृ ३३३; हम्मीर १४, २२)।

सेम्ह :: पुंस्त्री [श्‍लेष्मन्] कफ, सेम्हा, गरुई, (प्राकृ २२; पि २६७)।

सेर :: वि [स्वैर] स्वच्छन्दी, स्वतन्त्र, स्वेच्छ (स्वप्‍न ७७; विक्र ३७)।

सेर :: वि [स्मेर] विकस्वर (हे २, ७८; कुमा)।

सेर :: पुं [दे] सेर, परिमाण-विशेष (पिंग)।

सेरंधी :: स्त्री [सैरन्ध्री] स्त्री-विशेष, अन्य के घर में रहकर शिल्प-कार्यं करनेवाली स्वतन्त्र स्त्री (कप्पू)।

सेराह :: पुं [दे] अश्‍व की एक उत्तम जाति (सम्मत्त २१६)।

सेरिभ :: पुं [दे] धूर्यं वृषभ, गाड़ी का बैल (दे ८, ४४)।

सेरिभ :: देखो सेरिह (सुख ८, १३; दे ८, ४४ टी)।

सेरिय :: पुंस्त्री [दे] वाद्य-विशेष, 'करडिभंभ- सेरियहुहुक्कहि' (सण)।

सेरियय :: पुं [दे] गुल्म-विशेष (पणण १ — पत्र ३२)।

सेरिह :: पुंस्त्री [सैरिभ] भैंसा, महिष (गा १७२; ७४२; नाट — मृच्छ १३५)। स्त्री. °ही (पाअ)।

सेरी :: स्त्री [दे] १ लम्बी आकृति। २ भद्र आकृति (दे ८, ५७) ३ रथ्या, मुहल्ला (सिरि ३१८) ४ यन्त्र-निर्मित नर्तकी (राज)

सेरीस :: पुंन [सेरीश] एक गाँव का नाम (ती ११)।

सेल :: पुं [शैल] १ पर्वंत, पहाड़ (से २, ११; प्राप्र; सुर ३, २२९) २ पाषाण, पत्थर (उप १०३१) ३ न. पत्थरों का समूह (से ६, ३१)। °कार पुं [°कार] पत्थर घड़मेवाला शिल्पी, शिलावट (अणु १४९)। °गिह न [°गृह] पर्वंत में बना हुआ घर (कप्प)। °जाया स्त्री [°जाया] पार्वंती (रंभा)। °त्थंभ पुं [स्तम्भ] पाषाण का खंभा (कम्म १, १८)। °पाल. °वाल पुं [°पाल] १ धरण तथा भूतानन्द नामक इन्द्रों का एक एक लोकपाल (ठा ४, १ — पत्र १९७; इक) २ एक जैनेतर धर्माविलम्बी पुरुष (भग ७, १० — पत्र ३२३)। °स न [°स] वज्र (से ३, २७)। °सिहर न [°शिखर] पर्वंत का शिखर (कप्प)। °सुआ स्त्री [°सुता] पार्वंती (पाअ)

सेलग, सेलय :: पुं [शैलक] १ एक राजर्षि (णाया १, ५ — पत्र १०४; १११) २ एक यक्ष (पि १५६; णाया १, ९ — पत्र १६४)। °पुर न [°पुर] एक नगर (णाया १, ५)

सेलयय :: न [शैलकज] एक गोत्र (ठा ७ — पत्र ३९०; राज)।

सेला :: स्त्री [शैला] तीसरी नरक-पृथिवी (ठा ७ — पत्र ३८८; इक)।

सेलाइच्च :: पुं [शैलादित्य] वलभीपुर का एक प्रसिद्ध राजा (ती १५)।

सेलु :: पुं [शैलु] श्‍लेष्म-नाशक वृक्ष-विशेष (पणण १ — पत्र ३१)।

सेलूस :: पुं [दे] कितव, जुआड़ी (दे ८, २१)।

सेलेय :: वि [शैलेय] पर्वंत में उत्पन्‍न, पर्वंतीय (धर्मंवि १४०)।

सेलेस :: पुं [शैलेश] मेरु पर्वंत (विसे ३०६५)।

सेलेसी :: स्त्री [शैलेशी] मेरु की तरह निश्चल साम्यावस्था, योगी की सर्वोत्कृष्‍ट अवस्था (विसे ३०६५; ३०६७; सुपा ६५५)।

सेलोदाइ :: पुं [शौलोदायिन्] एक जैनेतर धर्मावलम्बी गृहस्थ (भग ७, १० — पत्र ३२३)।

सेल्ल :: देखो सेल = शैल; 'न हु जिज्जइ ताण मणं सेल्लं मिव सलिलपूरेणं' (वज्जा ११२)।

सेल्ल :: पुं [दे] १ मृग-शिशु। २ शर, बाण (दे ८, ५७) ३ कुन्त, बर्छा (कुमा; हे ४, ३८७)

सेल्ल :: पुं [शैल्य] एक राजा (णाया १, १६ — पत्र २०८)।

सेल्लग :: पुं [शैल्यक] भुजपरिसर्पं की एक जाति, जन्तु-विशेष (पणह १, १ — पत्र ८)।

सेल्लि :: स्त्री [दे] रज्जु, रस्सी (उत्त २७, ७)।

सेव :: सक [सेव्] १ आराधन करना। २ आश्रय करना। ३ उपभोग करना। सेवइ, सेवए (आचा; उव; महा)। भूका. सेवित्था, सेविंसु (आचा)। वकृ. सेवमाण (सम ३९; भग)। कवकृ. सेविज्जंत, सेविज्जमाण (सुर १२, १३९; कप्प)। संकृ. सेविअ, सेवित्ता (नाट — मृच्छ २४५; आचा)। कृ. सेवेय व्व (सुपा ५५७; कुमा), सेवणिय (सुपा १९७)

सेवग :: देखो सेवय (पंचा ११, ४१)।

सेवड :: देखो से° = श्‍वेत।

सेवण :: न [सेवन] १ सीना, सिलाई करना (उप पृ १२३) २ सेवा (उत्त ३५, ३)

सेवणया, सेवणा :: स्त्री [सेवना] सेवा (उत्त २९, १; उप ८०१)।

सेवय :: वि [सेवक] १ सेवा-कर्ता (कुप्र ४०२) २ पुं. नौकर, भृत्य (पाअ; कुप्र ४०२; सुपा ५३२)

सेवल :: न [शैवल] सेवार, सेवाल, एक प्रकार की घास जो नदियों में लगती है (पाअ)।

सेवा :: स्त्री [सेवा] १ भजन, पर्युपासना, भक्ति। २ उपभोग। ३ आश्रय। ४ आराधन (हे २, ९९; कुमा)

सेवाड, सेवाल :: न [शैवाल] १ सेवार, सेवाल, घास विशेष (उप पृ १३६; पाअ; जी ९) २ पुं. एक तापस, जिसको गौतम स्वामी ने प्रतिबोध किया था (कुप्र २९३)। °दोइ पुं [°दायिन्] भगवान् महावीर के समय का एक अजैन पुरुष (भग ७, १० — पत्र ३२३)

सेवाल :: पुं [दे] पङ्क, कादा, काँदो (दे ८, ४३; षड्)।

सेवालि :: पुं [शैवालिन्] एक तापस्, जिसको गौतम स्वामी ने प्रतिबोध किया था (उप १४२ टी)।

सेवालिय :: वि [शैवालिक, °त] सेवालवाला, शैवाल-युक्त; 'सेवालियभूमितले फिल्लुसमाणा य थामथामम्मि' (सुर २, १०५)।

सेवि :: वि [सेविन्] सेवा-कर्ता (उवा)।

सेवित्त :: वि [सेवितृ] ऊपर देखो (सम १५)।

सेविय :: वि [सेवित] जिसकी सेवा की गई हो वह (काल)।

सेव्वा :: देखो सेवा (हे २, ९९; प्राप्र)।

सेस :: पुं [शेष] १ शेष-नाग, सर्पं-राज (से २, २८) २ छन्द का एक भेद (पिंग) ३ वि. अवशिष्ट, बाकी का (ठा ३, १टी — पत्र ११४; दसनि १, १३४; हे १, १८२; गउड) °मई, °वई स्त्री [°वती] १ सातवें वसुदेव की माता (सम १५२) २ दक्षिण रुचक पर रहनेवाली एक दिक्कुमारी देवी (ठा ८ — पत्र ४३६; इक) ३ वल्ली-विशेष (पणण १ — पत्र ३३) ४ भगवान् महावीर की दौहित्री — -पुत्री की पुत्री (आचा २, १५, १६)। °व न [°वत्] अनुमान का एक भेद (अणु २१२)। °राअ पुं [°राज] छन्द-विशेष (पिंग)

सेसव :: न [शैशव] बाल्यावस्था (दे ७, ७६)।

सेसा :: स्त्री [शेषा] निर्माल्य (उप ७२८ टी; सिरि ५५५)।

सेसिअ :: वि [शेषित] १ बाकी बचाया हुआ (गा ९६१) २ अल्प किया हुआ, खतम किया हुआ (विसे ३०२९)

सेसिअ :: वि [श्‍लेषित] संबद्ध किया हुआ, चिपकाया हुआ (विसे ३०३६)।

सेह :: अक [नश्] पलायन करना, भागना। सेहइ (हे ४, १७८; कुमा)।

सेह :: सक [शिक्षय्] १ सिखाना, सीख देना। २ सजा करना। सेहंति (सूअ १, २, १, १९)। कवकृ. सेहिज्जंत (सुपा ३४५)

सेह :: पुं [दे. सेह] भुजपरिसर्पं की एक जाति, साही, जिसके शरीर में काँटे होते हैं (पणह १, १ — पत्र ८; पणण १ — पत्र ५३)।

सेह :: पुं [शैक्ष्] १ नव-दीक्षित साधु (सूअ १, ३, १, ३; सम ५८; ओघ १९५; ३७८; उव; कस) २ जिसको दीक्षा दी जानेवाली हो वह (पव १०७) ३ शिष्य, चेला (सुख १, १३)

सेह :: पुं [सेध] सिद्धि (उवा)।

सेहंब :: वि [सेधाम्ल] खाद्य-विशेष, वह खाद्य जिसमें पकने पर खटाई का संसार किया जाय (उवा; पणह २, ५ — पत्र १५०)।

सेहणा :: स्त्री [शिक्षणा] शिक्षा, सजा, कदर्थना; 'वहबंधमारणसेहणाओ काओ परिग्गहे नत्थि' (उव)।

सेहर :: पुं [शेखर] १ शिखा; 'फलसेहरा' (पिंड १९५; पाअ) २ छन्द-विशेष (पिंग) ३ मस्तक-स्थित माला (कुमा)

सेहरय :: पुं [दे] चक्रवाक पक्षी (दे ८, ४३)।

सेहालिआ :: देखो सेभालिआ (स्वप्‍न ६३; गा ४१२; कुमा; हे १, २३६)।

सेहाली :: स्त्री [शेफाली] लता-विशेष (दे ५, ४)।

सेहाव :: देखो सेह = शिक्षय्। सेहावेइ (पि ३२३)। भवि. सेहाबेहिति (औप)। संकृ. सेहावेत्ता (पि ५८२)। हेकृ. सेहावेत्तए (कस)। कृ. सेहावेयव् (भत्त १६०)।

सेहाविअ :: वि [शिक्षित] सिखाया हुआ (भग; णाया १, १ — पत्र ६०; पि ३२३)।

सेहि :: देखो सिद्धि (आचा)।

सेहिअ :: वि [सैद्धिक] १ मुक्ति-सम्बन्धी। २ निष्पत्ति-संबन्धी (सूअ १, १, २, २ )

सेहिऊ :: वि [दे] गत, गया हुआ (दे ८, १)।

सो :: सक [सु] १ दारू बनाना। २ पीड़ा करना। ३ मन्थन करना। ४ अक. स्‍नान करना। सोइ (षड्)

सो, सोअ :: अक [स्वप्] सोना, सूतना। सोइ, सोअइ (धात्वा १५७; प्राकृ ६६)।

सोअ :: सक [शुच्] १ शोक करना। २ शुद्धि करना। सोअइ, सोएइ, सोइंति सोयंति (से १, ३८; हे ३, ७०; आचा; अज्झ १७४; १७५; सूअ २, २, ५५)। वकृ. सोइंत, सोएंत (उप १४९ टी; पउम ११८, ३५)। कवकृ. सोइज्जंत (सण)। कृ. सोअणिज्ज, सोअणीअ, सोइयव्व (अभि १०५; सूक्त ४७; पउम ३०, ३५)। देखो सोच = शुच्।

सोअ :: न [शौच] १ शुद्धि, पवित्रता, निर्मलता (आचा; औप; सुर २, ६२; उप ७६८ टी; सुपा २८१) २ चोरी का अभाव, पर-द्रव्य का अहरण (सम १२०; नव २३; श्रा ३१)

सोअ :: पुं [शोक] अफसोस, दिलगीरी (सुर १, ५३; गउड; कुमा; महा)।

सोअ :: न [श्रोत] कान, श्रवणेन्दिय (आचा; भग; औप; सुर १, ५३)। °मय वि [°मव] श्रोत्रेन्द्रिय-जन्य (ठा १० — पत्र ४७६)।

सोअ :: पुंन [स्रोतस्] १ प्रवाह (आचा; गा ६९२) २ छिन्द्र (औप) ३ वेग (णाया १, ८)

सोअण :: न [स्वपन] शयन (उव)।

सोअण :: न [शोचन] १ शोक, दिलगीरी (सूअ २, २, ५५; संबोध ४९) २ शुद्धि, प्रक्षालन (स ३४८)

सोअणया, सोअणा :: स्त्री [शोचना] १ ऊपर देखो (औप; अज्झ १७४) २ दीनता, दैन्य (ठा ४, १ — पत्र १८८)

सोअमल्ल :: न [सौकुमार्य] सुकुमारता, अति- कोमलता (हे १, १०७; प्राप्र; कुमा)।

सोअर :: पुं [सोदर] सगा भाई (प्रबो २९; सुपा १९३; रंभा)।

सोअरा :: स्त्री [सोदरा] सगी बहन (कुमा)।

सोअरिअ :: वि [शौकरिक] १ शूकरों का शिकार करनेवाला (विपा १, ३ — पत्र ५४) २ शिकारी, मृगया करनेवाला। ३ कसाई (पिंड ३१४; उव; सुपा २१४)

सोअरिअ :: वि [सोदर्यं] सहोदर, एक उदर से उत्पन्न (सूअ १, १, १, ५)।

सोअल्ल :: देको सोअमल्ल (संक्षि २)।

सोअविय :: स्त्रीन [शौच] शुद्धि, पवित्रता (सूअ २, १, ५७)। स्त्री. °या (आचा)।

सोअव्व :: देखो सुण = श्रु।

सोआमणी, सोआमिणी :: स्त्री [सौदामनी, °मिनी] १ विद्युत्, बिजली (उत्त २२, ७; पउम ७४, १४; स १२; महा; पाअ) २ एक दिक्कुमारी देवी (इक; ठा ४, १ — पत्र १९८)

सोइअ :: न [शोचित] चिन्ता, विचार (सुर ८, १४; सुपा २६९)। देखो सोचिय।

सोइंदिय :: न [श्रोत्रेन्द्रिय] श्रवणेन्द्रिय, कान (भग)।

सोइंधिअ :: देखो सोगंधिअ (इक)।

सोउ :: वि [श्रोतृ] सुननेवाला (स ३; प्रासू २)।

सोउणिअ :: देखो सोवणिअ (सूअ २, २, २८; पि १५२)।

सोउमल्ल :: देखो सोअमल्ल (अभि २१३; सुर ८, १२५)।

सोंड :: देखो सुंड (पाअ)। °मगर पुं [°मकर] मगर की एक जाति (पणण १ — पत्र ४८)।

सोंडा :: स्त्री [शुण्डा] १ सुरा, दारू (आचा २, १, ३, २) २ हाथी की नाक, सूँढ (उवा)

सोंडिअ :: पुं [शौण्डिक] दारू बेचनेवाला, कलवार (अभि १८८)।

सोंडिया :: स्त्री [शुण्डिका] दारू का पात्र- विशेष (ठा ८ — पत्र ४१७)।

सोंडीर :: वि [शौण्डीर] १ शूर, वीर, पराक्रमी (कप्प; सुर २, १३४; सुपा ६०) २ गर्वं- युक्त, गर्वित (महा)

सोंडीर :: न [शौण्डीर्य] १ पराक्रम, शूरता। २ गर्वं (हे २, ६३; षड्)

सोंडीरिम :: पुंस्त्री [शौण्डीरिमन्] ऊपर देखो (सुपा २९२)।

सोंदज्ज :: (शौ) देखो सुंदेर (पि ८४)।

सोक्क :: देखो सुक्क = शुष्क (षड्)।

सोक्ख :: देखो सुक्ख = सौख्य (प्राकृ १०; गा १५८; सुपा ७०; कुमा)।

सोक्ख :: देखो सुक्ख = शुष्क (षड्)।

सोग :: देखो सोअ = शोक (पउम २०, ४५; सुर २, १४०; स २५५; प्रासू ८३; उव)।

सोगंध, सोगंधिअ :: न [सौगन्ध] १ लगातार चौबीस दिनों के उपवास (संबोध ५८) २ सुगन्धिपन, सुगन्ध, 'सोगंधिय- परिकलियं तंबोलं' (सम्मत्त २२०)

सोगंधिअ :: न [सौगन्धिक] १ रत्‍न-विशेष, रत्‍न की एक जाति (णाया १, १ — पत्र ३१; पणण १ — पत्र २६; उत्त ३६, ७७; कप्प; कुम्मा १५) २ रत्‍नप्रभा नामक नरक- पृथिवी का एक सौगन्धिक-रत्‍न-मय काण्ड (सम ८९) ३ कह्लार, पानी में होनेवाला श्वेत कमल (सूअ २, ३, १८; राय ८) ४ पुं. नपुंसक का एक भेद, अपने लिंग को सूँघनेवाला नपुंसक (पव १०९; पुप्फ १२८) ५ पुंन. एक देव-विमान (देवेन्द्र १४२) ६ वि. सुगन्धवाला, सुगन्धी (उवा; सम्मत्त २२०)

सोगंधिया :: स्त्री [सौगन्धिका] नगरी-विशेष (णाया १, ५ पत्र १०५)।

सोगमल्ल :: देखो सोअमल्ल (दस २, ५)।

सोग्गइ :: देखो सुग्गइ (उत्त २८, ३; पउम २६, ६०; स २५०)।

सोग्गाह :: (?) अक [प्र + सृ] पसरना, फैलना। सोग्गाहइ (धात्वा १५६)।

सोच :: देखो सोअ = शुच्। वकृ. सोचंत, सोचमाण (नाट — मृच्छ २८१; णाया १, १ — पत्र ४७)। संकृ. 'सोचिऊण हत्थपाए आरोग्गमणिरयणेण ओमज्जिओ राया' (स ५६७)। कृ. सोच्च (उव)।

सोचिय :: वि [शोचित] शुद्ध किया हुआ, प्रक्षालित (स ३४८)।

सोच्च :: देखो सोच।

सोच्चं, सोच्चा, सोच्छ° :: देखो सुण = श्रु।

सोच्छिअ :: देखो सोत्थिअ (इक)।

सोजण्ण, सोजन्न :: न [सौजन्य] सुजनता, सज्जनता, भलमनसी (उप ७२८ टी; सुर २, ६१)।

सोज्ज :: देखो सोरिअ = शौर्यं (प्राकृ १९)।

सोज्झ :: वि [शोध्य] शुद्धि-योग्य, शोधनीय, (सुज्ज १०, ६ टी)।

सोज्झय :: पुं [दे] रजक, धोबी (पाअ)। देखो सुज्झय।

सोडिअ :: देखो सोंडिअ (कर्पूर ३४)।

सोडीर :: वि [शौटीर] देखो सोंडीर = शौण्डीर (कप्प; औप; मोह १०४; कप्पू; चारु ६३)।

सोडीर :: न [शौटीर्य] देखो सोंडीर = शौण्डीर्यं (कुमा; से ३, ४; ५, ३; १३, ७९; ८७; प्राकृ १९)।

सोढ :: वि [सोढ] सहन किया हुआ (उप २६४ टी; धात्वा १५७)।

सोढव्व, सोढुं :: देखो सह = सह्।

सोण :: वि [शोण] लाल, रक्त वर्णवाला (पाअ)।

सोणंद :: न [दे. सौनन्द] त्रिकाष्ठिका, तिपाई (पणह १, ४ — पत्र ७८; औप; तंदु २०)।

सोणहिअ :: वि [शौनकिक] १ श्वान-पालक। २ कुत्तों से शिकार करनेवाला (स २५३)

सोणार :: देखो सुण्णार (गा १९१; पि ६६; १५२)।

सोणि :: स्त्री [श्रेणि] कटी, कमर (कप्प; उप १५६)। °सुत्तग न [सूत्रक] कटी-सूत्र, करधनी (औप)।

सोणिअ :: पुं [शौनिक] कसाई (दे ६, ६२)।

सोणिअ :: न [शोणित] रुधिर, खून (उवा; भवि)।

सोणिम :: पुंस्त्री [शोणिमन्] रक्तता, लाली (विक्र २८)।

सोणी :: स्त्री [श्रोणी] देखो सोणि (पणह १, ४ — पत्र ६८; ७९)।

सोणीअ :: देखो सोणिअ = शोणित, 'भुंजंते मंससोणीअं ण छणे ण पमज्जए' (आचा १, ८, ८, ९; पि ७३)।

सोण्ण :: न [स्वर्ण] सोना, सुवर्ण (प्राकृ ३०; संक्षि २१)।

सोण्ह :: देखो सुण्ह = सूक्ष्म (षड्; गा ७२३)।

सोण्हा :: देखो सुण्हा = स्‍नुषा (संक्षि १५; प्राकृ ३७; गा १०७; काप्र ८६३)।

सोत्त :: न [श्रोत्र] कान, श्रवणेन्द्रिय (आचा; रंभा; विक्र ६८)।

सोत्त :: देखो सोअ = स्रोतस् (हे २, ९८; गा ५५१; से १, ५८; कुमा)।

सोत्ति :: देखो सुत्ति = शुक्ति (षड़्; उप ६४८ टी)।

सोत्तिअ :: पुं [श्रोत्रिय] वेदाभ्यासी ब्राह्मण (पिंड ४३९; नाट — मृच्छ १३४; प्राप)।

सोत्तिअ :: वि [सौत्रिक] १ सूत्र-निर्मित, सूते का बना हुआ (ओघभा ८९; ओघ ७०५) २ सूते का व्यापारी (अणु १४९)

सोत्तिअ :: पुं [शौक्तिक] द्वीन्द्रिय जन्तु-विशेष (पणण १ — पत्र ४४)।

सोत्तिअमई, सोत्तिअवई :: स्त्री [शुक्तिकावती] केकय देश की प्राचीन राजधानी (राज; इक)।

सोत्ती :: स्त्री [दे] नदी (दे ८, ४४; षड्)।

सोत्थि :: पुंन [स्वस्ति] १ एक देव-विमान (देवेन्द्र १३३) २ — देखो सत्थि (संक्षि २१; गा २४४; अभि १२८; नाट — रत्‍ना १०)

सोत्थिअ :: पुं [स्वस्तिक] १ ज्योतिष्क ग्रह- विशेष (ठा २, ३ — -पत्र ७८) २ न, शाक-विशेष, एक प्रकार की हरित वनस्पति (पणण १ — पत्र ३४) ३ — देखो सत्थिअ, सोवत्थिअ = स्वस्तिक (पणह १, ४ — पत्र ६८; णाया १, १ — पत्र ५४)

सोदाम :: पुं [सोदाम] देखो सोदामि (इक)।

सोदामणी :: देखो सोआमणी (पउम २६, ८१)।

सोदामि :: पुं [सौदामिन्] चमरेन्द्र के अश्‍व- सैन्य का अधिपति (ठा ५, १ — पत्र ३०२)।

सोदामिणी :: देखो सोआमिणी (नाट — मालती ८)।

सोदास :: पुं [सौदास] एक राजा (पउम २२, ८१)।

सोध :: (शौ) देखो सउह = सौध (पि ६१ ए)।

सोपार, सोपारय :: पुं. ब. [सोपार, °क] देश- विशेष (पउम ९८, ६४; सुपा २७५)। २ न. नगर-विशेष (सार्धं ३६; ती ११)

सोबंधव :: वि [सौबन्धव] सुबन्धु नामक कवि का बनाया हुआ ग्रंथ (गउड)।

सोभ :: अक [शुभ्] शोभना, चमकना। सोभंति (सुज्ज १९) भूका. सोभिंसु, सोर्भेंसु (सुज्ज १९)। भवि. सोभिस्संति (सुज्ज १९)। वकृ. सोभंत (णाया १, १ — पत्र २५; कप्प; औप)।

सोभ :: सक [शोभय्] शोभाना, शोभा-युक्त करना। सोभेइ (भग)। वकृ. सोभयंत (पि ४९०)। संकृ. सोभित्ता (कप्प)।

सोभग :: वि [शोभक] १ शोभनेवाला। २ शोभानेवाला (कप्प)

सोभग्ग :: देखो सोहग्ग (स्वप्‍न ४५)।

सोभण :: देखो सोहण = शोभन (पउम ७८, ५६; स्वप्‍न ४९)।

सोभा :: देखो सोहा = शोभा (प्राकृ १७; उत्त २१, ८; कप्प; सुज्ज १९)।

सोभिय :: देखो सोहिअ = शोभित (णाया १, १ टी — पत्र ३)।

सोम :: पुं [सोम] १ चन्द्र, चाँद, एक ज्यो- तिष्क महाग्रह (ठा २, ३ — पत्र ७७; विसे १८८३; गउड) २ भगवान् पार्श्‍वनाथ का पाँचवाँ गणधर (सम १३; ठा ८ — पत्र ४२९) ३ एक प्रसिद्ध क्षत्रिय-वंश (पउम ५, २) ४ चतुर्थं बलदेव और वासुदेव का पिता (ठा ९ — पत्र ४४७; पउम २०, १८२) ५ एक विद्याधर नर-पति, जो ज्योतिःपुर का स्वामी था (पउम ७, ४३) ६ एक सेठ का नाम (सुपा ५९७) ७ एत ब्राह्मण का नाम (णाया १, १६ — पत्र १९६) ८ चमरेन्द्र, बलीन्द्र, सौधर्मेन्द्र तथा ईशानेन्द्र के एक-एक लोकपाल के नाम (ठा ४, १ — पत्र २०४; भग ३, ७ — पत्र १९४) ९ लता-विशेष, सोमलता। १० उसका रस। ११ अमृत (षड्) १२ आर्यं- सुहस्ति सूरि का एक शिष्य — जैन मुनि (कप्प) १३ पुंन. देव-विमान-विशेष (देवेन्द्र १३३; १४३; १४५) १४ वि. कीर्त्तिमान्, यशस्वी (कप्प) °काइय पुं [°कायिक] सोम लोकपाल का आज्ञाकारी देव (भग ३, ७ — पत्र १९५)। °ग्गहण न [°ग्रहण] चन्द्र-ग्रहण (हे ४, ३९६)। °चंद पुं [°चन्द्र] १ ऐरवत क्षेत्र में उत्पन्न सातवें जिन-देव (सम १५३) २ आचार्य हेमचन्द्र का दीक्षा समय का नाम (कुप्र २१) °जस पुं [°यशस्] एक राजा (सुर २, १३४)। °णाह देखो °नाह (राज)। °दत्त पुं [°दत्त] १ एक ब्राह्मण का नाम (णाया १, १६ — पत्र १९६) २ एक जैन मुनि, जो भद्र- बाहु-स्वामी का शिष्य था (कप्प) ३ भगवान् चन्द्रप्रभ स्वामीको प्रथम भिक्षा-दाता गृहस्थ (सम १५१) ४ राजा शतानीक का एक पुरोहित (विपा १, ५ — पत्र ६०) °देव पुं [°देव] १ सोम नामक लोकपाल का सामा- निक देव (भग ३, ७ — पत्र १९५) २ भगवान् पद्मप्रभ को प्रथम भिक्षा-दाता गृहस्थ (सम १५१) °नाह पुं [°नाथ] सौराष्ट्र देश की सुप्रसिद्ध महादेव-मूर्त्ति (ती १५; सम्मत्त ७५)। °प्पभ, °प्पह पुं [°प्रभ] १ क्षत्रियों के सोमवंश का आदि पुरुष, बाहु- बलि का एक पुत्र (पउम ५, १०; कुप्र २१२) २ तेरहवीं शताब्दी का एक जैन आचार्यं और ग्रंथकार (कुप्र ११५) ३ चमरेन्द्र के सोम-लोकपाल का उत्पात-पर्वत (ठा १० — पत्र ४८२)। °भूइ पुं [°भूति] एक ब्राह्मण का नाम (णाया १, १६ — पत्र १९६)। भूइय न [°भूतिक] एक कुल का नाम (कप्प)। °य न [°क] एक गोत्र, जो कौत्स गोत्र की शाखा है (ठा ७ — पत्र ३९०)। °व °वा वि [°प, °पा] सोम- रस पीनेवाला (षड्)। °सिरी स्त्री [°श्री] एक ब्राह्मणी (अंत)। °सुंदर पुं [°सुन्दर] एक प्रसिद्ध जैनाचार्यं तथा ग्रन्थकार (संति १४; कुलक ४४)। °सूरि पुं [सूरि] एक जैनाचार्यं, आराधना-प्रकर का कर्ता एक जैनाचार्यं (आप ७०)

सोम :: वि [सौम्य] १ अरौद्र, अनुग्र (ठा ९; भग १२, ६ — पत्र ५७८) २ नीरोग, रोग-रहित (भग १२, ६) ३ प्रशस्त, श्‍लाघ्य (कप्प) ४ प्रिय-दर्शंन, जिसका दर्शंन प्रिय मालूम हो वह। ५ मनोहर, सुन्दर। ६ शान्त आवृत्तिवाला (ओघभा २२; उव; सुपा १८०; ६२२) ७ शोभा-युक्त, दीप्तिमान् (जं २)। देखो सोम्म।

सोमइअ :: वि [दे] सोने की आदतवाला (दे ८, ३९)।

सोमंगल :: पुं [सौमङ्गल] द्वीन्द्रिय जन्तु की एक जाति (उत्त ३६, १२९)।

सोमणंतिय :: वि [स्वापनान्तिक, स्वाप्‍ना- न्तिक] १ सोने के बाद किया जाता प्रति- क्रमण — प्रायश्‍चित्त-विशेष। २ स्वप्‍न-विशेष में किया जाता परिक्रमण (ठा ९ — पत्र ३७९)

सोमणस :: पुं [सौमनस] १ महाविदेह-वर्षं का एक वक्षस्कार-पर्वंत (ठा २, ३ — पत्र ६९; सम १०२; जं ४) २ उस पर्वंत पर रहनेवाला एक महर्द्धिक देव (जं ४) ३ पक्ष का आठवाँ दिन (सुज्ज १०, १४) ४ पुंन. सनत्कुमार नामक इन्द्र का एक पारि- यानिक विमान (ठा ८ — पत्र ४३७; औप) ५ एक देव-विमान, छठवाँ ग्रैवेयक-विमान (देवेन्द्र १३७; १४३; पव १९४) ६ सौम- नस-पर्वंत का एक शिखर (ठा २, ३ — पत्र ८०) ७ न. मेरु-पर्वंत का एक वन (ठा २, ३ — पत्र ८०)

सोमणस :: न [सौमनस्व] १ सुंन्दर मन, संतुष्ट मन (राय; कप्प)

सोमणसा :: स्त्री [सौमनसा] १ जम्बू-वृक्ष विशेष, जिससे यह द्वीप जम्बूद्वीप कहलाता है (इक) २ एक राजधानी (इक) ३ सौमनस वन की एक वापी (जं ४) ४ पक्ष की पाँचवीं रात्रि (सुज्ज १०, १४)

सोमणसिय :: वि [सौमनस्यित] १ संतुष्ट मनवाला। २ प्रशस्त मनवाला (कप्प)

सोमणस्स :: देखो समणस = सौमनस्य (कप्प; औप)।

सोमणस्सिय :: देखो सोमणसिय (कप्प; औप; णाया १, १ — पत्र १३)।

सोमल्ल :: देखो सोअमल्ल (प्राकृ २०; ३०)।

सोमहिंद :: न [दे] उदर, पेट (दे ८, ४५)।

सोमहिड्ड :: पुं [दे] पंक, कादा (दे ८, ४३)।

सोमा :: स्त्री [सोमा] १ शक्र के सोम आदि चारों लोकपालों की एक-एक पटरानी का नाम (ठा ४, १ — पत्र २०४) २ सातवें जिनदेव की प्रथम शिष्या (सम १५२; पव ९) ३ सोम लोकपाल की राजधानी (भघ ३, ७ — पत्र १९५)

सोमा :: स्त्री [सौम्या] उत्तर दिशा (ठा १० — पत्र ४७८; भग १०, १ — ४९३)।

सोमाण :: न [श्‍मशान] मसान, मरघट (दे ८, ४५)।

सोमाणस :: पुं [सोमानस] सातवाँ ग्रैवेयक विमान (पव १९४)।

सोमर, सामाल :: देखो सुकुमार (गा १८९; स ३५६; मै ७; षड्; प्राप्र; हे १, १७१; कुमा; प्राकृ २०; ३८; भवि)।

सोमाल :: न [दे] माँस (दे ८, ४४)।

सोमित्ति :: पुं [सौमित्रि] राम-भ्राता लक्ष्मण (गा ३५)।

सोमित्ति :: स्त्री [सुमित्रा] लक्ष्मण की माता। °पुत्त पुं [°पुत्र] लक्ष्मण; 'रामसोमित्ति- पुत्ता' (पउम ३८, ५७) °सुय पुं [°सुत] वही अर्थ (पउम ७२, ३)।

सोमिल :: पुं [सोमिल] एक ब्राह्मण (अंत ९)।

सोमेत्ति :: देखो सोमित्ति = सौमित्रि (से १२, ८८)।

सोमेसर :: पुं [सोमेश्वर] सौराष्ट्र का सोमनाथ महादेव (सम्मत्त ७५)।

सोम्म :: वि [सौम्य] १ रमणीय, सुन्दर (से १, २७) २ ठंढा, शीतल (से ४, ८) ३ शीतल प्रकृतिवाला, शान्त स्वभाववाला (से ५, १६; विसे १७३१) ४ प्रिय-दर्शंन, जिसका दर्शन प्रिय लगी वह। ५ जिसका अधिष्ठाता सोम-देवता हो वह। ६ भास्वर, कान्तिवाला। ७ पुं. बुध ग्रह। ८ शुभ ग्रह। ९ वृष आदि सम राशि। १० उदुम्बर वृक्ष। ११ द्वीप-विशेष। १२ सोम-रस पीनेवाला ब्राह्मण (प्राप्र)। देखो सोम = सौम्य।

सोज्जि :: (अप) अ [स एव] वही (प्राकृ १२१)।

सोरट्ठ :: पुं [सौराष्ट्र] १ एक भारतीय देश, सोरठ, काठियावाड़ (इक; ती १५) २ वि. सोरठ देश का निवासी (श्रावक ९३) ३ न. छन्द-विशेष (पिंग)

सोरट्ठिया :: स्त्री [सौराष्ट्रिका] १ एक प्रकार को मिट्टी, फिटकिरी (आचा २, १, ६, ३; दस ५, १, ३४) २ एक जैन मुनि-शाखा (कप्प)

सोरब्भ, सोरंभ, सोरभ :: न [सौरभ] सुगन्ध, खुशबू (विक्र ११३; कुप्र २२३; भवि; उप ९८६ टी)।

सोरसेणी :: स्त्री [शौरसेनी] शूरसेन देश की प्राचीन भाषा, प्राकृत भाषा का एक भेद (विक्र ६७)।

सोरह :: देखो सोरभ (गउड)।

सोरिअ :: न [शौर्य] शूरता, पराक्रम (प्राप्र; प्राकृ १९)।

सोरिअ :: न [शौरिक] १ कुशावर्तं देश की प्राचीन राजधानी (इक) २ एक यक्ष (विपा १, ८ — पत्र ८२) °दत्त पुं [°दत्त] १ एक मच्छीमार का पुत्र (विपा १, १ — पत्र ४; विपा १, ८) २ एक राजा (विपा १, ८ — पत्र ८२)। °पुर न [°पुर] एक नगर (विपा १, ८)। °वडिंसग न [°वतंसक] एक उद्यान (विपा १, ८ — पत्र ८२)

सोलस :: त्रि. ब. [षोडशन्] १ संख्या-विशेष, सोलह, १६। २ सोलह संख्यावाला (भग ३५, १ — पत्र ९६४; ९६७; उवा; सुर १; ३५; प्रासू ७७; पि ४४३) ३ वि. सोलहवाँ, १६ वाँ (राज) °म वि [°श] १ सोलहवाँ, १६ वाँ (णाया १, १६ — पत्र १९६; सुर १६, २५१; पव ४६) २ लगा तार सात दिनों के उपवास (णाया १, १ — पत्र ७२)। °य न [°क] सोलह का समूह (उत्त ३१, १३)। °विह वि [°विध] सोलह प्रकार का (पि ४५१)

सोलसिआ :: स्त्री [षोडशिका] रस-मान-विशेष, सोलह पलों की एक नाप (अणु १५२)।

सोलह :: देखो सोलस (नाट; भवि)।

सोलहावत्तय :: पुं [दे] शंख (दे ८, ४६)।

सोल्ल :: सक [पच्] पकाना। सोल्लइ (हे ४, ९०; धात्वा १५६)। वकृ. सोल्लंत (विपा १, ३ — पत्र ४३)।

सोल्ल :: सक [क्षिप्] फेंकना। सोल्लइ (हे ४, १४३; षड्)। कर्मं. सोल्लिज्जइ (कुमा)।

सोल्ल :: सक [ईर् सम + ईर्] प्रेरणा करना। सोल्लइ (धात्वा १५६; प्राकृ ६६)।

सोल्ल :: न [दे] माँस (दे ८, ४४)। देखो सुल्ल = शूल्य।

सोल्ल :: वि [पक्व] पकाया हुआ (उवा; विपा १, २ — पत्र २७; १, ८ — पत्र ८५; ८६; औप)।

सोल्लिय :: वि [पक्व] १ पकाया हुआ, 'इंगाल- सोल्लियं' (औप) २ न. पुष्प-विशेष (औप)

सोव :: देखो सुव = स्वप्। सोवइ, सोवंति (हे १, ६४; उव; भवि; पि १५२)।

सोवकम, सोवक्कम :: वि [सोपक्रम] निमित्त-कारण से जो नष्ट या कम हो सके वह कर्मं, आयु, आपदा आदि (सुपा ४५२; ४५९)।

सोवचिय :: वि [सोपचित] उपचय-युक्त, स्फीत, पुष्ट (कप्प)।

सोवच्चल :: पुंन [सौवर्चल] एक तरह का नोन, काला नमक (दस ३, ८; चंड)।

सोवण :: न [स्वपन] शयन, सोना (उप पृ २३७)।

सोवण :: न [दे] १ वास-गृह, शय्या-गृह, रति- मन्दिर (दे ८, ५८; स ५०३; पाअ) २ स्वप्‍न। ३ पुं. मल्ल (दे ८, ५८)

सोवण :: (अप) देखो सोवण्ण (भवि)।

सोवणिअ :: वि [शौवनिक] १ श्‍वान-पालक, कुत्तों को पालनेवाला। २ कुत्तों से शिकार करनेवाला (सूअ २, २, ४२)

सोवणी :: स्त्री [स्वापनी] विद्या-विशेष (पि ७८)।

सोवण्ण :: वि [सौवर्ण] स्वर्णं-निर्मित, सोने का (महा; सम्मत्त १७३)।

सोवण्णमक्खिआ :: स्त्री [दे] मधुमक्षिका की एक जाति, एक तरह की शहद की मक्खी (दे ८, ४६)।

सोवण्णिअ, सोवण्णिग :: वि [सौवर्णिक] सोने का, सुवर्ण-घटित (प्रति ७; स ४५८)। °पव्वय पुं [°पर्वत] मेरु पर्वंत (पउम २, १८)।

सोवण्णेअ :: पुंस्त्री [सौपर्णेंय] गरुडपक्षी। स्त्री. °आ, °ई (षड्)।

सोवत्थ :: न [दे] १ उपकार। २ वि. उपभोग्य, उपभोगयोग्य (दे ८, ४५)

सोवत्ति, सोवत्थिअ :: वि [सौवस्तिक] १ माङ्गलिक वचन बोलनेवाला, मागध आदि स्वस्ति-वाचक (ठा ४, २ — पत्र २१३; औप) २ पुं. ज्योतिष्क महाग्रह-विशेष (ठा २, ३ — पत्र ७८) ३ त्रीन्द्रिय जन्तु की एक जाति (पणण १ — पत्र ४५)

सोवत्थिअ :: पुं [स्वस्तिक] १ साथिया, एक मङ्गलचिह्न (औप) २ पुंन. विद्युत्प्रभ नामक वक्षस्कार पर्वंत का एक शिखर (इक) ३ पूर्वं रुचक-पर्वंत का एक शिखर (राज) ४ एक देव-विमान (देवेन्द्र १४१)। देखो सत्थिअ, सोत्थिअ = स्वस्तिक।

सोवन्न :: देखो सोवण्ण (अंत १७; श्रा २८; सिरि ८११; भवि)।

सोवन्निअ :: देखो सोवण्णिअ (णाया १, १ — पत्र ५२)।

सोवरिअ :: देखो सोअरिअ = शौकरिक (सूअ २, २, २८)।

सोवरी :: स्त्री [शाम्बरी] विद्या-विशेष (सूअ २, २, २७)।

सोववत्तिअ :: वि [सोपपत्तिक] सयुक्तिक, युक्ति-युक्त (उफ ७२८ टी)।

सोवाअ :: वि [सोपाय] उपाय-साध्य (गउड)।

सोवाग :: पुं [श्वपाक] चाण्डाल, डोम (आचा; ठा ४, ४ — पत्र २७१; उत्त १३, ६; उव; सुपा ३७०; कुप्र २६२; उर १, १५)।

सोवागी :: स्त्री [श्वापाकी] विद्या-विशेष (सूअ २, २, २७)।

सोवाण :: न [सोपान] सीढ़ी, निसेनी, पैड़ी (सम १०९; गा २७८; उव; सुर १, ६२)।

सोवासिणी :: देखो सवासिणी (भवि)।

सोविअ :: वि [स्वापित] सुलाया हुआ, शायित; 'कमलकिसलयरइए सत्थरए सोविओ तेण' (सुर ४, २४४; उप १०३१ टी)।

सोवियल्ल :: पुंस्त्री [सौविदल्ल] अन्तःपुर का रक्षक (गउड)। स्त्री. °ल्ली (सुपा ७)।

सोवीर :: पुं. ब. [सौवीर] १ देश-विशेष (पव २७५; सूअ १, ५, १, १ — टी) २ न. काञ्जिक, काँजी (ठा ३, ३ — पत्र १४७; पाअ)। अञ्जन-विशेष, सौवीर देश में होता सुरमा (जी ४) ४ मद्य-विशेष (कस)

सोवीरा :: स्त्री [सौवीरा] मध्यम ग्राम की एक मूर्छंना (ठा ७ — पत्र ३९३)।

सोव्व :: वि [दे] पतित-दन्त, जिसका दाँत गिर गया हो वह (दे ८, ४५)।

सोस :: सक [शौषय्] सुखाना, शोषण करना। सोसइ (भवि)। वकृ. सोसयंत (कप्प)।

सोस :: देखो सुस्स। सोसउ (हे ४, ३६५)।

सोस :: पुं [शोष] १ शोषण (गउड; प्रासू ९४) २ रोग-विशेष, दाह-रोग (लहुअ १५)

सोसण :: पुं [दे] पवन, वायु (दे ८, ४५)।

सोसण :: न [शोषण] १ सुखाना। २ कामदेव का एक वाण (कप्पू) ३ वि. शोषण-कर्ता, सुखानेवाला (पउम २८, ५०; कुप्र ४७)

सोसणदा, सोसणा :: स्त्री [शोषणा] शोषण (उवा; उत्तच ३० ; ५)।

सोसणी :: स्त्री [दे] कटी, कमर (दे ८, ४५)।

सोसविअ :: वि [शोषित] सुखाया हुआ (हे ३, १५०, उव)।

सोसाव :: देखो सोस = शोषय्। हेकृ. सोसावेदुं (शौ) (नाट)।

सोसास :: वि [सोच्छ्‌वास] ऊर्ध्वं श्वास-युक्त (षड्)।

सोसिअ :: देखो सोसाविअ (हे ३, १५०; सुर ३, १८६; महा)।

सोसिअ :: वि [सोच्छ्रित] ऊँचा किया हुआ (कप्प)।

सोसिल्ल :: वि [सोफवत्] शोफ युक्त, सूजन रोगवाला (विपा १, ७ — पत्र ७३)।

सोह :: अक [शुभ्] शोभना, चमकना। सोहइ, सोहए सोहंति (हे १, १८७; पाअ; कुमा)। वकृ. सोहंत, सोहमाण (कप्प; सुर ३, १११; नाट — उत्तर ८)।

सोह :: सक [शोभय्] शोभा-युक्त करना। सोहेइ (उवा)।

सोह :: सक [शोधय्] १ शुद्धि करना। २ खोज करना, गवेषणा करना। ३ संशोधन करना। सोहेइ (उव)। वकृ. 'लूसिअं सगिहं दट्‍ठुं सोहिंतो दइअं निअं' (श्रा १२)। सोहेमाण (उवा; विपा १, १ — पत्र ७)। कवकृ. सोहिज्जंत (उप ७२८ टी)। कृ. सोहणीअ, सोहेयव्व (णाया १, १६ — पत्र २०२; नाट — शकु ९६; सुपा ६५७)। संकृ. सोहइत्ता (उत्त २९, १)

सोह :: देखो सउह = सौध (रुक्मि ६१; प्रति ४१; नाट — मालती १३८)।

सोहंजण :: पुं [दे. शोभाञ्जन] वृक्ष-विशेष, सहिंजने का पेड़ (दे ८, ३७; कप्पू)।

सोहग :: देखो सोभग (कप्प ३८ टी)।

सोहग :: पुं [शोधक] धोबी, रजक (उप पृ २४१)। देखो सोहय = शोधक।

सोहग्ग :: न [सौभाग्य] १ सुभगता, लोक- प्रियता (औप; प्रासू ९६) २ पति-प्रियता (सुर ३, १८१; प्रासू ८५) ३ सुन्दर भाग्य (उप पृ ४७; १०८)। °कप्परुक्ख पुं [°कल्पवृक्ष] तप-विशेष (पव २७१)। °गुलिया स्त्री [°गुटिका] सौभाग्य-जनक मन्त्र-विशेष से संस्कृत गोली (सुपा ५९७)

सोहग्गंजण :: न [सौभाग्याञ्जन] सौभाग्य- जनक अंजन (सुपा ५९७)।

सोहग्गिअ :: वि [सौभागित] भाग्य-शाली, सुन्दर भाग्यवाला (उप पृ़ ४७; १०८)।

सोहण :: पुं [शोभन] १ एक प्रसिद्ध जैन मुनि (सम्मत्त ७५) २ वि. शोभा-युक्त, सुन्दर (सुर १, १४७; ३, १८५; प्रासू १३२)। स्त्री. °णा, °णी (प्राकृ ४२)। °वर न [°वर] वैताढ्य की उत्तर श्रेणी का एक विद्याधर-नगर (इक)

सोहण :: न [शोधन] १ शुद्धि, सफाई (उप ५९७ टी; सुज्ज १०, ६ टी; कप्प) २ वि. शुद्धि-जनक (श्रा ६)

सोहणी :: स्त्री [दे] संमार्जंनी, झाड़ू (दे ८, १७)।

सोहद :: न [सौहृद] १ मित्रता। २ बन्धुता (अभि २१८; अच्चु ५०)

सोहम्म :: देखो सुधम्म, सुहम्म = सुधर्मंन् (सम १९)।

सोहम्म :: पुं [सौधर्म] प्रथम देवलोक (सम २; राय; अणु)। °कप्प पुं [°कल्प] पहला देवलोक, स्वर्गं-विशेष (महा)। °वइ पुं [°पति] प्रथम देवलोक का स्वामी, शक्रेन्द्र (सुपा ५१)। °वडिंसय पुंन [°वतंसक] एक देव-विमान (सम ८; २५; राय ५९)। °सामि पुं [°स्वामिन्] प्रथम देवलोक का इन्द्र (सुपा ५१)।

सोहम्म° :: देखो सुहम्मा (महा)।

सोहम्मण :: देखो सोहण = शोधन; 'रयणंपि गुणुक्करिसं उवेइ सोहम्मणगुणेणं' (कम्म ६, १ टी)।

सोहम्मिंद :: पुं [सौधर्मेंन्द्र] शक्र, प्रथम देव- लोक का स्वामी (महा)।

सोहम्मिय :: वि [सौधर्मिक] सौधर्मं-देवलोक का (सण)।

सोहय :: वि [शोधक] शुद्धि-कर्ता, सफाई करनेवाला (विसे ११६९)। देखो सहोग = शोधक।

सोहय :: देखो सोहग = शोभक (उप पृ २१६)।

सोहल :: वि [शोभावत्] शोभा-युक्त (सण; भवि)।

सोहा :: स्त्री [शोभा] १ दीप्‍ति, चमक (से १, ४८; कुमा; सुपा ३१; रंभा) २ छन्द-विशेष (पिंग)

सोहाव :: सक [शोधय्] सफा करना। सोहावेइ (स ५१९)।

सोहाविय :: वि [शोधित] साफ कराया हुआ (स ६२)।

सोहि :: स्त्री [शुद्धि, शोधि] १ निर्मंलता (णाया १, ५ — पत्र १०५; संबोध १२) २ आलोचना, प्रायश्चित्त (ओघ ७९१; ७९७; आचा)

सोहि :: वि [शोधिन्] शुद्धि-कर्ता (औप)।

सोहि :: वि [शोभिन्] शोभनेवाला (संबोध ४८; कप्पू; भवि)। स्त्री. °णी (नाट — रत्‍ना १३)।

सोहि :: पुंस्त्री [दे] १ भूत काल। २ भविष्य काल (दे ८, ५८)

सोहिअ :: न [दे] पिष्ट, आटा, चावल आदि का चूर्ण (षड्)।

सोहिअ :: वि [शोभित] शोभा-युक्त (सुर ३, ७२; महा; औप; भग)।

सोहिअ :: वि [शोधित] शुद्ध किया हुआ (पणह २, १; भग)।

सोहिद :: देखो सोहद (नाट — शकु १०९)।

सोहिर :: वि [शोभितृ] शोभनेवाला (गा ५११)।

सोहिल्ल :: वि [शोभावत्] शोभा-युक्त (गा ५४७; सुर ३, ११; ८, १०८; हे २, १५९; चंड; भवि; सण)।

सौअरिअ :: देखो सोअरिअ = सौदर्यं (चंड)।

सौंअरिअ :: न [सौन्दर्य] सुन्दरता (हे १, १)।

सौह :: देखो सउह = सौध (रुक्मि ५९; नाट — मालती १३६)।

°स्स :: देखो स = स्व (गा २२९)।

°स्सा :: देखो सास = श्वास (गा ५८९)।

°स्सिरी :: देखो सिरी = श्री (गा ९७७)।

°स्सेअ :: देखो सेअ = स्वेद (अभि २१०)।

 :: पुं [ह] १ कंठ-स्थानीय व्यञ्जन वर्णं- विशेष (प्राप; प्रामा) २ अ. इन अर्थों का सूचक अव्यय — संबोधन; 'से-भिक्खू गिलाइ, से हंद ह णं तस्साहरह' (आचा २, १, ११, १; २; पि २७५) ३ नियोग। ४ क्षेप, निन्दा। ५ निग्रह। ६ प्रसिद्धि। ७ पादपूर्ति (हे २, २१७)

 :: देखो हा = अ. (हे १, ६७)।

हइ :: स्त्री [हति] हतन, वध, मारण (श्रा २७)।

हं :: अ. [हम्] इन अर्थों का सूचक अव्यय — १ क्रोध (उा) २ असम्मति (स्वप्‍न २१)

हंजय :: पुं [दे] शरीर-स्पर्शं-पूर्वंक किया जाता शपथ — सौगंध (दे ८, ६१)।

हंजे :: अ. इन अर्थों का सूचक अव्यय — १ दासी का आह्वान (हे ४, २८१; कुमा; पिंग) २ सखी का आमन्त्रण (स ६२२; सम्मत्त १७२)

°हंड :: देखो खंड (हम्मीर १७)।

°हंडण :: देखो भंडण (गा ९१२; पि ५८८)।

हंत :: देखो हंता (धर्मंसं २०२; राय २६; सण; कप्पू; पि २७५)।

हंतव्व, हंता :: देखो हण।

हंता :: अ [हन्त] इन अर्थों का सूचक अव्यय — - १ अभ्युपगम, स्वीकार (उवा; औप; भग; तंदु १४; अणु १६०; णाया १, १ — पत्र ७४) २ कोमल आमत्रण (भग; अणु १६०; तंदु १४; औप) ३ वाक्य का आरम्भ। ४ प्रत्यवधारण। ५ संप्रेषण। ६ खेद। ७ निर्देश (राज) ८ हर्षं। ९ अनुकम्पा (राय) १० सत्य (उा)

हंतु :: वि [हन्तृ] मारनेवाला (आचा; भग; पउम ५१, १९; ७३, १९; विसे २९१७)।

हंतूण :: देखो हण।

हंदि :: /?/अ. 'ग्रहण करो' इस अर्थं का सूचक अव्यय (हे २, १८१; कुमा; आचा २, १, ११, १; २; पि २७५)।

हंदि :: /?/अ. इन अर्थों का सूचक अव्यय — १ विषाद, खेद। २ विकल्प। ३ पश्‍चात्ताप। ४ निश्‍चय। ५ सत्य। ६ 'लो', 'ग्रहण करो' (पाअ; हे २, १८०; षड्; कुमा) ७ आमन्त्रण, संबोधन (पिंड २१०; धर्मंसं ४४) ८ उपदर्शंन (पंचा ३, १२; दसनि ३, ३७)

हंभो :: देखो हंहो (सुर ११, २३४; आचा; सूअ २, २, ८१)।

हंस :: देखो हस्स = ह्रस्व (प्राप्र)।

हंस :: पुं [हंस] १ पक्षि-विशेष (णाया १, १ — पत्र ५३; पणह १, १ — पत्र ८; कुमा; प्रासू १३; १६९) २ रजक, धोबी; 'वत्थ- धोवा हवंति हंसा वा' (सूअ १, ४, २, १७) ३ संन्यासि-विशेष (से १, २६; औप) ४ सूर्यं, रवि (सिरि ५४७) ५ मणि-विशेष, हंसगर्भं नामक रत्‍न की एक- जाति (पणण १ — पत्र २६) ६ छन्द का एक भेद (पिंग) ७ निर्लोंभी राजा। ८ विष्णु। ९ परमेश्वर, परमात्मा। १० मत्सर। ११ मन्त्र-विशेष। १२ शऱीर-स्थित वायु की चेष्टा-विशेष। १३ मेरु पर्वंत। १४ शिव, महादेव। १५ अश्व की एक जाति। १६ श्रेष्ठ। १७ अगुआ। १८ विशुद्ध। १९ मन्त्र- वर्ण-विशेष (ह २, १८२) २० पतंग, चतुरिन्द्रिय जन्तु-विशेष (अणु ३४) °गब्भ पुं [°र्भ] रत्‍न की एक जाति (णाया १, १ — पत्र ३१; १७ — पत्र २२९; कप्प; उत्त ३६, ७७)। °तूली स्त्री [°तूली] बिछौने की गद्दी (सुर ३, १८८; ६, १२८)। °द्दीव पुं [°द्वीप] द्वीप-विशेष (पउम ५४, ४५)। °लक्खण वि [°लक्षण] १ शुक्ल, सफेद (अंत) २ विशद, निर्मंल (जं २)

हंसय :: पुंन [हंसक] नूपुर (पाअ; सुपा ३२७)।

हंसल :: पुं [दे] आभूषण-विशेष (अणु)। देखो हांसल।

हंसी :: स्त्री [हंसी] १ हंस पक्षी की मादा (पाअ) २ छन्द का एक भेद (पिंग)

हंसुलय :: पुं [हंस] अश्व की एक उत्तम जाति (सम्मत्त २१६)।

हंहो :: अ [हंहो] इन अर्थों का सूचक अव्यय — १ संबोधन, आमन्त्रण (सुख २३, १; धर्मंवि ५५; उप ५९७ टी) २ तिरस्कार (धम्म ११ टी) ३ दर्प, गर्व। ४ दंभ, कपट। ५ प्रश्‍न (हे २, २१७)

हकुव :: न [हकुव] फल-विशेष (अनु ५)।

हक्क :: सक [नि + षिध्] निषेध करना, निवारण करना। हक्कइ (हे ४, १३४; षड्)। वकृ. हक्कमाण (कुमा)।

हक्क :: सक [दे] हाँकना — १ पुकारना, आह्वान करना। २ प्रेरणा करना। ३ खदेड़ना। हक्कई (सुपा १८३)। वकृ. हक्कंत (सुर १५, २०३; सुपा ५३८)। कवकृ. हक्किज्जंत (सुपा २५३)। संकृ. हक्किय, हक्किउं, हक्किऊण (सुर २, २३१; सुपा २४८; महा)

हक्का :: स्त्री [दे] हाँक — १ पुकार, बुलाहट, आह्वान। २ प्रेरणा; 'धवलो धुरम्मि जुत्तो न सहइ उच्चारियं हक्कं' (वज्जा ३८; पिंग; सुपा १५१; सिरि ४१०; उप पृ ७८)

हक्कार :: सक [आ + कारय्] पुकारना, आह्वान करना, वुलाना। हक्कारइ (महा; भवि)। हक्कारइ (सुपा १८८)। कर्मं. हक्कारिज्जंतु (सुर १, १२६; सुपा २९२)। वकृ. हक्कारेंत, हक्कारेमाण (सुर ३, ६८; णाया १, १८ — पत्र २४)। संकृ. हक्का रिऊण, हक्कारेऊण (कुप्र २; सुपा २२०)। प्रयो. हक्कारावइ (सुपा ११८)।

हक्कार :: सक [दे] ऊँचे फैलाना। कर्मं. हक्का- रिज्जंति (सिरि ४२४)।

हक्कार :: पुं [हाकार] १ युगलिकों के समय की एक दण्डनीति (ठा ७ — पत्र ३९८) २ हाँकने की आवाज (सुर १, २४६)

हक्कारण :: न [आकारण] आह्वान (स २९४, कुप्र ११६)।

हक्कारिअ :: वि [आकारित] आहूत (सुपा २६९; ओघ ६२२ टी; महा)।

हक्किअ :: वि [दे] हाँका हुआ — १ खदेड़ा हुआ; 'हक्किओ करी' (महा); 'जेण तओ पासत्थाइतेणसेणावि हक्किया सम्मं' (सार्धं १०३) २ आहूत (कुप्र १४१) ३ प्रेरित (सुपा २९१) ४ उन्‍नत (षड्)

हक्किअ :: वि [निषिद्ध] निवारित (कुमा)।

हक्कोद्ध :: वि [दे] अभिलषित (दे ८, ६०)।

हक्खुत्त :: वि [दे] उत्पाटित, उठाया हुआ, उत्क्षिप्त (दे ८, ६०; पउम ११७, ५; पाअ'; स ६१४)।

हक्खुव :: सक [उत् + क्षिप्] १ ऊँचा करना, उठाना। २ फेंकना। हक्खुवइ (हे ४, १४४); 'तणुयरदेहो देवो हक्खुवइ व किं महासेलं' (विसे ६६५)

हक्खुविअ :: वि [उत्क्षिप्त] उत्पाटित (कुमा)।

हच्चा :: स्त्री [हत्या] वध, घात (कुप्र १५७; धर्मंवि १७)।

हट्ट :: पुं [हट्ट] १ आपाण, बाजार (गा ७९४; भवि) २ दूकान (सुपा ११; १८६)। °गाई, °गावी स्त्री [°गवी] व्यभिचारिणी स्त्री, कुलटा (सुपा ३०१; ३०२)

हट्टिगा, हट्टी :: स्त्री [हट्टिका] छोटी, दूकान (सोह ९२; सुपा १८६)।

हट्ठ :: वि [हृष्ट] १ हर्षं-युक्त, आनन्दित। २ विस्मित (उवा; विपा १, १; औप; राय) ३ नीरोग, रोग-रहित; 'हट्ठेण गिलाणेण व अमुगतवो अमुगदिणाम्मि नियमेणं कायव्वो' (पव ४ — गाथा १९२) ४ शक्तिशाली जवान, समर्थं तरुण (कप्प) ५ दृढ़, मज- बूत (ओघ ७५)

°हट्ठ :: देखो भट्ठ (गा ६५४ अ)।

हट्ठमहट्ठ :: वि [दे] १ नीरोग। २ दक्ष, चतुर (दे ८, ६५) ३ स्वस्थ युवा (षड्)

हड :: वि [दे. हृत] जिसका हरण किया गया हो वह (दे ८, ५९; कप्प)।

हडक, हडक्क :: (मा) देखो हिअय = हृदय (प्राकृ १०५; १०२; प्राप; नाट — मृच्छ ६१; पि ५०; १५०)।

हडप्प, हडप्फ :: पुं [दे] १ पात्र-विशेष, द्रम्म आदि का पात्र। २ ताम्बूल आदि का पात्र (औप) ३ आभरण का करण्डक (णाया १, १ टी — पत्र ५७; ५८)

हडहड :: पुं [दे] १ अनुराग, प्रेम (दे ८, ७४; (षड्) २ ताप (दे ८, ७४)

हडहड :: पुं [हडहड] 'हड-हड' आवाज (सिरि ७७९)।

हडाहड :: वि [दे] अत्यर्थं, अत्यन्त (विपा १, १ — पत्र ५ णाया १, १६ — पत्र १९९)।

हडि :: पुं [हडि] काष्ठ का बन्धन-विशेषष काठ की बेड़ी (णाया १; २ — पत्र ८६; विपा १, ६ — पत्र ६६; औप, कम्म १, २३)।

हड्ड :: न [दे] हाड़, अस्थि (दे ८, ५९; 'तंदु ३८; सुपा ३५५; श्रु १००)।

हढ :: पुं [हठ] १ बलात्कार (पाअ, पणह १, ३ — पत्र ४४; दे १, १९) २ जल से होनेवाली वनस्पति विशेष, कुम्भी, जलकुम्भी, काई, 'वायाइद्धो ब्ब हढो आदिअप्पा, भवि- स्ससि' (उत्त २२, ४४; सूअ २, ३, १८; पणण १ — पत्र ३४)

हण :: सक [हन्] १ वध करना। २ जाना, गति करना। हणइ, हणिया (कुमा; आचा)। भूका. हणिंसु, हणिअ (आचा; कुमा)। भवि. हणिही (कुमा)। कर्मं. हणि- ज्जइ, हणिज्जए, हणणए, हन्‍नइ, हम्मइ (हे ४, २४८; कुमा; प्रासु १६; आचा) भवि. हम्मिहिइ, हणिहिइ (हे ४, २४४)। वकृ. हणंत (आचा; कुमा)। कवकृ. हण्णु, हणिज्जमाण, हम्मंत, हम्ममाण (सूअ १, २, २, ५; श्रा १४; सुर १, ९९; विपा १, २ — पत्र २४; पि ५४०)। संकृ. हंता, हंतूण, हंतूणं, हत्तूण, हणिऊण, हणिअ (आचा; प्रासू १४७, प्राकृ ३४; नाट)य़ हेकृ. हंतुं, हणिउ° (महा; उप पृ ४८)। कृ. हंतव्व (से ३, ३; हे ४, २४४; आचा)।

हण :: सक [श्रु] सुनना। हणइ (हे ४, ५८)।

हण :: वि [दे] दूर, अनिकट (दे ८, ५९)।

हण :: देखो हणण; 'हणदहणपयणमारण — ' (पउम ८, २३२)।

°हण :: देखो धण = धन (गा ७१५; ८०१)।

हणण :: न [हनन] १ मारण, वध, घात (सुपा २४५; सण) २ विनाश (पणह २, ५ — पत्र १४८) ३ वि. वध-कर्ता। स्त्री. °णी (कुप्र २२)

हणिअ :: वि [हत] जिसका वध किया गया हो वह (श्रा २७; कुमा; प्रासू १६; पिंग)।

हणिअ :: देखो हण = हन्।

हणिअ :: वि [श्रुत] सुना हुआ (कुमा)।

हणिद :: देखो हिणिद (गा ९६३)।

हणिर :: वि [हन्तृ] वध करनेवाला (सुपा ६०७)।

हणिहणि, हणिंहणिं :: अ [अहन्यहनि] १ प्रतिदिन, हमेशा (पणह २, ३ — पत्र १२२) २ सर्वंथा, सब तरह से (पणह २, ५ — पत्र १४८)

हणु :: वि [दे] सावशेष, बाकी बचा हुआ (दे ८, ५९; सण)।

हणु :: पुंस्त्री [हनु] चिबुक, होठ के नीचे का भाग, ठुड्डी, ठोड़ी, दाढ़ी (आचा; पणह १, ४ — पत्र ७८)। °अ, °म, °मंत, °यंत पुं [°मत्] हनुमान्, रामचन्द्रजी का एक प्रख्यात अनुचर, पवन तथा अञ्जनासुन्दरी का पुत्र (पउम १, ५९; १७, १२१; ४७, २६; हे २, १४९; कुमा; प्राप्र; पउम १९, १५; ५९, २१)। °रुह, °रूह न [°रुह] नगर-विशेष, (पउम १, ६१; १७, ११८)। °व, °वंत देखो °म (पउम ४७, २५; ५०, ९; उप पृ ३७६)।

हणुया :: स्त्री [हनुका] १ ठुड्डी, ठोढ़ी, दाढ़ी (अनु ५) २ दंष्ट्रा-विशेष दाढ़ा-विशेष (उवा)

हणू :: स्त्री [हनू] देखो हणु (पि ३९८; ३९९)।

हण्णु :: देखो हण = हन्।

हत्त :: देखो हय = हत (पि १९४; ५६५)।

°हत्तरि :: देखो सत्तरि (पि २६४)।

हत्तु :: वि [हर्तृ] हरण-कर्ता (प्राकृ २०)।

हत्तूण :: देखो हण = हन्।

हत्थ :: वि [दे] १ शीघ्र, जल्दी करनेवाला (दे ८, ५९) २ क्रिवि. जल्दी (ओप)

हत्थ :: पुंन [हस्त] १ हाथ; 'अत्थित्तणेण हत्थं पसारियं जस्स कणहेणं' (वज्जा १०६; आचा; कप्प; कुमा; दं ६) २ पुं. नक्षत्र- विशेष (सम १०; १७) ३ चौबीस अंगुल का एक परिमाण। ४ हाथी की सूँढ (हे २, ४५; प्राप्र) ५ एक जैन मुनि (कप्प) °कप्प न [°कल्प] नगर-विशेष (णाया १, १६ — पत्र २२६; पिंड ४६१)। °कम्म न [°कर्मन्] हस्त-क्रिया, दुश्‍चेष्टा-विशेष (सूअ १, ९, १७; ठा ३, ४ — पत्र १६२; सम ३९; कस)। °ताड, °ताल पुं [°ताड] हाथ से ताड़न (राज; कस ४, ३ टि)। °पहे- लिअ स्त्रीन [°प्रहेलिक] संख्या-विशेष, शीर्षं प्रकम्पित को चौरासी लाख से गुणने पर जो संख्या लब्ध हो वह (इक)। °प्पाहुड न [°प्राभृत] हाथ से दिया हुआ उपहार (दे ८, ७३)। °मालय न [°मालक] आभरण- विशेष (औप)। °लहुत्तण न [°लघुत्व] १ हस्त-लाघव। २ चोरी (पणह १, ३ — पत्र ४३)। °सीस न [°शीर्ष] नगर-विशेष (णाया १, १६ — पत्र २०८)। °भरण न [°भरण] हाथ का गहना (भग)। °याल पुं [°ताड] देखो °ताड (कस)। °लंब पुं [°लम्ब] हाथ का सहारा, मदद (से १, १६; सुर ४, ७१; कस)

हत्थंकर :: पुं [हस्तङ्कर] वनस्पति-विशेष (आचा २, १०, २)।

हत्थंदु, हत्थंदुय :: पुंन [हस्तान्दुक] हाथ बाँधने का काठ आदि का बन्धन-विशेष (पिंड ५७३, विपा १, ६ — पत्र ६६)।

हत्थच्छुहणी :: स्त्री [दे] नव-वधू, नवोढ़ा (दे ८, ६५)।

हत्थड :: (अप) देखो हत्थ (हे ४, ४४५; पि ५९९)।

हत्थय :: न [हस्तक] कलाप-समूह (दश° अगस्त्य° सूत्र ५१ पत्र ८१)।

हत्थल :: पुं [दे] १ क्रीड़ा के लिए हाथ में ली हुई चीज। २ वि. हस्त-लोल, चञ्चल हाथवाला (दे ८, ७३)

हत्थल :: वि [हस्तल] १ खराब हाथवाला। २ पुं. चोर, तस्कर (पणह १, ३ — पत्र ४३)

हत्थलिज्ज :: देखो हत्थिलिज्ज (राज)।

हत्थल्ल :: वि [दे] क्रीड़ा से हाथ में लिया हुआ (दे ८, ६०)।

हत्थल्लिअ :: वि [दे] हस्तापसारित, हाथ से हटाया हुआ (दे ८, ६४)।

हत्थल्ली :: स्त्री [दे] हस्त-बृसी, हाथ में स्थित आसन-विशेष (दे ८, ६१)।

हत्यार :: न [दे] सहायता, मदद (दे ८, ६०)।

हत्थोरोह :: पुं [हस्त्यारोह] हस्तिपक, हाथी का महावत (विपा १, २ — पत्र २३)।

हत्थावार :: न [दे] सहायता, मदद (भवि)।

हत्थाहत्थि :: स्त्री [हस्ताहस्तिका] हाथोहाथ- एक हाथ से दूसरे हाथ (गा १७९)।

हत्थाहत्थि :: अ. ऊपर देखो (गा २२९; ५८१; पुप्फ ४६३)।

हत्थि :: पुंस्त्री [हस्तिन्] १ हाथी (गा ११६; कुमा; अभि १८७)। स्त्री. °णी (णाया १, १ — पत्र ६३) २ पुं. नृप-विशेष (ती १४) °आरोह पुं [आरोह] हाथी का महावत (धर्मंवि १९)। °कण्ण, °कन्न पुं [°कर्ण] २ एक अन्तर्द्वीप। ३ वि. उसका निवासी मनुष्य (इक ठा ४, २ — पत्र २२६) °कप्प न [°कल्प] देको हत्थ-कप्प (राज)। °गुलगुलाइय न [°गुलगुलायित] हाथी का शब्द-विशेष (राय)। °णागपुर न [°नागपुर] नगर-विशेष, हस्तिनापुर (उप ६४८ टी; सण)। °तावस पुं [°तापस] बौद्ध साधु-विशेष, हाथी को मारकर उसके माँस से जीवन-निर्वाह करने के सिद्धान्तवाला संन्यासी (औप; सूअनि १९०)। °नायपुर देखो °नागपुर (भवि)। °पाल पुं [°पाल] भगवान् महावीर के समय का पावापुरी का एक राजा (कप्प)। °पिप्पली स्त्री [°पिप्पली] वनस्पति-विशेष (उत्त ३४, ११)। °मुह पुं [°मुख] १ एक अन्तर्द्वीप। २ वि. उसका निवासी मनुष्य (ठा ४, २ — पत्र २२६; इक) °रयण न [°रत्‍न] उत्तम हाथी (औप)। °राय पुं [°राज] उत्तम हाथी (सुपा ४२९)। °वाउय पुं [°व्यापृत] महावत (औप)। °वाल देखो °पाल (कप्प)। °विजय न [°विजय] वैताढ्य की उत्तर श्रेणि का एक विद्याधर-नगर (इक)। °सीस न [°शीर्ष] एक नगर, जो राजा दमदन्त की राजधानी थी (उप ६४८ टी)। °सुंडिया देखो °सोंडिगा (राज)। °सोंड पुं [°शौण्ड] त्रीन्द्रिय जन्तु-विशेष (पणण १ — पत्र ४५)। °सोंडिगा स्त्री [°शुण्डिका] आसन-विशेष (ठा ५, १ टी — पत्र २९९)।

हत्थिअचक्खु :: न [दे] वक्र अवलोकन (दे ८, ६५)।

हत्थिच्चग :: वि [हस्तीय, हस्त्य] हाथ का, हाथ-संबन्धी (पिंड ४२४)।

हत्थिणउर, हत्थिणपुर, हत्थिणाउर, हत्थिणापुर :: न [हस्तिनापुर] नगर-विशेष (ठा १० — पत्र ४७७; सुर १०, १५५, महा; गउड; सुर १, ६४; नाट — शक्रु ७४; अंत)।

हत्थिणी :: देखो हत्थि।

हत्थिमल्ल :: पुं [दे] इन्द्र-हस्ती, ऐरावण हाथी (दे ८, ६३)।

हत्थियार :: न [दे] १ हथियार, शस्त्र (धर्मंसं १०२२; ११०४; भवि) २ युद्ध, लड़ाई, 'तो उट्ठेहि संपयं करेहि हत्थियारं ति', 'देव, कोद्दमं देवेण सह हत्थियारकरणं' (स ६३७; ६३८)

हत्थिलिज्ज :: न [हस्तिलीय] एक जैन-मुनि- कुल (कप्प)।

हत्थिवय :: पुं [दे] ग्रह-भेद (दे ८, ६३)।

हत्थिद्दरिल्ल :: पुं [दे] वेष (दे ८, ६४)।

हत्थुत्तरा :: स्त्री [हस्तोत्तरा] उत्तराफाल्गुनी नक्षत्र (कप्प)।

हत्थुल्ल :: देखो हत्थ (हे २, १६४; षड्)।

हत्थोडी :: स्त्री [दे] १ हस्ताभरण, हाथ का आभूषण। २ हस्त-प्राभृत, हाथ से दिया जाता उपहार (दे ८, ७३)

हथलेव :: पुं [दे] हस्त-ग्रहण, पाणि-ग्रहण (सिरि १२८)।

हद :: देखो हय = हत (प्राप्र; प्राकृ १२)।

हद, हद्द :: पुं [दे] बालक का मल-मूत्रादि (पिंड ४७१)।

हद्धय :: पुं [दे] हास, विकास (दे ८, ६२)।

हद्धि, हद्धी :: अ [हा धिक] १ खेद। २ अनुताप (प्राकृ ७९; षड़्; स्वप्‍न ९१; नाट — शकु ६६; हे २, १९२)

हमार :: (अप) वि [अस्मदीय] हमारा, हमेसे संबन्ध रखनेवाला (पिंग)।

हमिर :: देखो भमिर (पि १८८)।

हम्म :: सक [हन्] वध करना। हम्मइ (हे ४, २४४; कुमा; संक्षि ३४; प्राकृ ६८)।

हम्म :: सक [हम्म्] जाना। हम्मइ (हे ४, १६२)।

हम्म :: न [हर्म्य] क्रीड़ा-गृह (से ९, ४३)।

हम्म° :: देखो हण = हन्।

हम्मार :: देखो हमार (पिंग)।

हम्मिअ :: वि [हम्मित] गत, गया हुआ (स ७४३)।

हम्मिअ :: न [दे. हर्म्य] गृह, प्रासाद, महल (दे ८, ६२; पाअ; सुर ६, १५०; आचा २, २, १, १०)।

हम्मीर :: पुं [हम्मीर] विक्रम की तेरहवाँ शताब्दी का एक मुसलमान राजा (ती ५; हम्मीर २७; पिंग)।

हय :: वि [हत] जो मारा गया हो वह (औप; से २, ११; महा)। °माकोड पुं [°मत्कोट] एक विद्याधर-नरेश (पउम १०, २०)। °स वि [°श] निराश (पउम ६१, ७४; गा २८१; हे १, २०९; २, १९५; उव)।

हय :: पुं [हय] अश्व, घोड़ा (औप; से २, ११; कुमा)। °कंठ पुं [°कण्ठ] रत्‍न-विशेष, अश्व के कंठे जितना बड़ा रत्‍न (राय ६७)। °कण्ण, °कन्न पुं [°कर्ण] १ एक अन्तर्द्वीप। २ वि. उसका निवासी मनुष्य (इक; ठा ४, २ — पत्र २२६) ३ एक अनार्यं देश (पव २७४) °मुह पुं [°मुख] १ एक अन्तर्द्वीप (इक) २ एक अनार्यं देश (पव २७४)

हय :: देखो हिअ = हृत (महा; भवि; राय ४४)।

हय :: देखो हर = द्रह। °पोंडरीय पुं [°पुण्ड- रीक] पक्षि-विशेष (पणण १, १ — पत्र ८)।

°हय :: देखो भय (गा ३८०)।

हयमार :: पुं [दे. हतमार] कणेर का गाछ (पाअ)।

हर :: सक [हृ] १ हरण करना, छीनना। २ प्रसन्न करना, खुश करना। हरइ (हे ४, २३४; उव; महा)। कर्मं. हरिज्जइ, हीरइ, हरीअइ, हीरिज्जइ (हे ४, २५०; धात्वा १५७)। वकृ. हरंत (पि ३९७)। कवकृ. हीरंत, हीरमाण (गा १०५; सुर १२, १११; सुपा ६३५)। संकृ. हरिऊण (महा)। हेकृ. हरिउं (महा)। कृ. हिज्ज, हेज्ज (पिंड ४४९; ४५३)

हर :: सक [ग्रह्] ग्रहण करना, लेना। हरइ (हे ४, २०९)।

हर :: सक [हृद्] आवाज करना। °हरइ (से ५, ७१)।

हर :: पुं [हर] १ महादेव, शंकर (सुपा ३६३, कुमा; षड्; हे १, ५१; गा ६८७; ७६४) २ छन्द-विशेष (पिंग)। °मेहल न [°मेखल] कला-विशेष (सिरि ५६)। °वल्लहा स्त्री [°वल्लभा] गौरी, पार्वंती (सुपा ५९७)

हर :: पुं [ह्रद] द्रह, बड़ा जलाशय (से ६, ६५)।

हर :: देखो घर = गृह; 'ता वच्च पहिय मा मग्ग वासयं एत्थ मज्झ हरे' (वज्जा १००; कुमा; सुपा ३६३; हे , १४४)।

°हर :: देखो धर = घृ। कृ. °हरेअव्व (से ९, ३)।

°हर :: देखो भर = भर (पउम १००, ५४; सुपा ४३२)।

°हर :: वि [°हर] हरण-कर्ता (सण)।

°हर :: वि [°धर] धारण करनेवाला (गा ३१५; ३९५)।

हरअई, हरडई :: स्त्री [हरीतकी] १ हर्रें का गाछ। २ फल-विशेष, हर्रे (षड्; हे १, ९९; कुमा)

हरण :: न [हरण] १ छीनना (सुपा १८; ४३९; कुमा) २ वि. छिनननेवाला (कुप्र ११४; धर्मंवि ३)

हरण :: न [ग्रहण] स्वीकार (कुमा)।

हरण :: न [स्मरण] स्मृति, याद; 'अलिअकुविअंपि कअमंतुअंव मं जेसु सुहअ अणुणेंतो। ताण दिअहाण हरणे रुआमि, ण उणो अहं कुविआ' (गा ९४१)।

°हरण :: देखो भरण (गा ५२७ अ)।

हरतणु :: पुं [हरनतु] खेत में बोये हुए गेहुँ, जौ आदि के बालों पर होता जल-बिन्दु (कप्प; चेइय ३७३; जी ५)।

हरद :: देखो हरय (भग)।

हरपच्चुअ :: वि [दे] १ स्मृत, याद किया हुआ। २ नाम के उद्देश से दिया हुआ (दे ८, ७४)

हरय :: पुं [ह्रद] बड़ा जलाशय, द्रह (आचा; भग; पणह २, ५ — पत्र १४९; उत्त १२, ४५; ४६; हे २, १२०)।

हरहरा :: स्त्री [दे] युक्त, प्रसंग, योग्य अवसर, उचित प्रस्ताव; 'निद्धूमगं च गामं महिला — थूमं च सुणणयं दट्‍ठुं। नीयं च काया ओलिंति जाया भिक्खस्स हरहरा' (विसे २०६४)।

हरहराइय :: न [हरहरायित] 'हर हर' आवाज (पणह १, ३ — पत्र ४५)।

हराविअ :: वि [हारित] हराया हुआ, जिसका पराभव किया गया हो वह (हे ४, ४०९)।

हरि :: पुं [दे हरि] शुक, तोता (दे ८, ५९)।

हरि :: पुं [हरि] १ विद्युत्कुमार-देवों की दक्षिण दिशा का इन्द्र (ठा २, ३ — पत्र ८४) २ एक महाग्रह (ठा २, ३ — पत्र ७८) ३ इन्द्र, देव-राज (कुमा; कुप्र २३, सम्मत्त २२६; श्रु ८६)। विष्णु, श्रीकृष्ण (गा ४०६; ४११; सुपा १४३) ५ रामचन्द्र (से ९, ३१) ६ सिंह, मृगेन्द्र (से ९, ३१; कुमा; कुप्र ३४६) ७ वानर, बन्दर (से ४, २५; ६, २२; धर्मंवि ५१; सम्मत्त २२२) ८ अश्व, घोड़ा (उप १०३१ टी; ती ८; कुप्र २३; सुख ४, ६) ९ भारत के साथ जैन दीक्षा लेनेवाला एक राजा (पउम ८५, ४) १० ज्योतिषशास्त्र-प्रसिद्ध एक योग; 'गुरुहरि- विट्‍ठे गंडविइवाए' (संबोध ५४) ११ छन्द का एक भेद (पिंग) १२ सर्पं, साँप। १३ भेक, मण्डूक। १४ चन्द्र। १५ सूर्यं। १६ वायु, पवन। १७ यम, जमराज। १८ हर, महादेव। १९ ब्रह्मा। २० किरण। २१ वर्ष-विशेष। २२ मयूर, मोर। २३ कोकिल, कोयल। २४ भर्तृंहार नामक एक विद्वान्। २५ पीला रँग। २६ पिंगल वर्णं। २७ हरा रँग। २८ वि. पीत वर्णंवाला। २९ पिंगल वर्णंवाला (हे ३, ३८) ३० हरा वर्णवाला; 'हरिमणिसरिच्छणिअरुइ' (अच्चु ३२) ३१ पुंन. महाहिमवंत पर्वत का एक शिखर (ठा ८ — पत्र ४३६) ३२ विद्युत्प्रभ पर्वंत, का एक शिखर (ठा ९; इक) ३३ निषध पर्वंत का एक शिखर (ठा ९ — पत्र ४५४; इक) ३४ हरिवर्षं-क्षेत्र का मनुष्य-विशेष (कप्प) °अंद पुं [°श्चन्द्र] स्वनाम प्रसिद्ध एक राजा (हे २, ८७; षड्; गउड; कुमा)। °अंदण न [°चन्दन] १ चन्दन की एक जाति (से ७, ३७; गउड; सुर १६, १४) २ पुं. एक तरह का कल्प- वृक्ष (शुपा ८७; गउड) देखो °चंदण। °अण्ण देखो °अंद (संक्षि १७)। °आल पुंन [°ताल] १ पीत वर्णंवाली उपधातु- विशेष, हरताल (णाया १, १ — पत्र २४; जी ३; पव १५५; कुमा; उत्त ३४, ८; ३६, ७५) २ पुं. पक्षि-विशेष (हे २, १२१) देखो °ताल। °एस पुं [°केश] १ चंडाल (ओघ ७६६; सुख ९, १; महा) २ एक चण्डाल मुनि (उत्त १२) °एसबल पुं [°केशबल] चण्डालकुलोत्पन्न एक मुनि (उव; उत्त १२, १)। °एसिज्ज वि [°केशीय] १ चण्डाल-संबन्धी। २ हरि- केशबल नामक मुनि का (उत्त १२)। °कंखि न [°काङ्क्षिन्] नगर-विशेष (ती २७)। °कंत पुं [°कान्त] विद्युत्कुमार देवों की दक्षिण दिशा का इन्द्र (इक)। °कंतपवाय, °कंतप्पवाय पुं [°कान्ताप्रपात] एक द्रह (ठा २, ३ — पत्र ७२; टी — पत्र ७५)। °कंता स्त्री [°कान्ता] १ एक महा-नदी (ठा २, ३ — पत्र ७२; सम २७; इक) २ महाहिमवान् पर्वंत का एक शिखर (इक; ठा ८ — पत्र ४३६) °केलि पुं [°केलि] भारतीय देश-विशेष (कप्पू)। °केसबल देखो °एसबल (कुलक ३१)। °केसि पुं [°केशिन्] एक जैन मुनि (श्रु १४०)। °गीअ न [°गीत] छन्द का एक भेद (पिंग)। °ग्गीव पुं [°ग्रीव] राक्षस-वंश का एक राजा (पउम ५, २६०)। °चंद पुं [°चन्द्र] १ विद्याधर-वंश का एक राजा (पउम ५, ४४) २ एक विद्याधर-कुमार (महा) °चंदण पुं [°चन्दन] १ एक अन्तकृद् जैन मुनि (अंत १८) २ देखो °अंदण (प्रासू १४५; स ३४९) °णयर न [°नगर] वैताढ्य की दक्षिण-श्रेणि में स्थिक एक विद्याधर-नगर (इक)। °ताल पुं [°ताल] द्वीप-विशेष (इक)। देखो °आल। °दास पुं [°दास] एक वणिक् का नाम (पउम ५, ८३)। °धणु न [°धनुष्] इन्द्र-धनुष (उप ५९७ टी)। °पुरी स्त्री [°पुरी] इन्द्र- पुरी, अमरावती, स्वर्ग (सुपा ६३५)। °भद्द पुं [°भद्र] एक सुविख्यात जैन आचार्यं तथा ग्रन्थकार (चेइय ३४; उप १०३९; सुपा १)। °मंथ पुं [°मन्थ] धान्य-विशेष, काल चना (श्रा १८; पव १८६; संबोध ४३)। °मेला स्त्री [°मेला] वृक्ष-विशेष (औप)। °वइ पुं [°पति] वानर-पति, सुग्रीव (से १, १६)। °वंस पुं [°वंश] एक सुप्रसिद्ध क्षत्रिय-कुलट (कप्प, पउम ५, २)। °वस्स; °वास पुं [°वर्ष] १ क्षेत्र-विशेष (अणु १६१; ठा २, ३ — पत्र ६७; सम १२; पउम १०२, १०६; इक) २ पुंन. महाहिमवान् पर्वंत का एक शिखर (ठा ८ — पत्र ४३६) ३ निषद पर्वंत का एक शिखर (ठा ९ — पत्र ४५४; इक)। °वाहण पुं [°वाहन] १ मथुरा का एक राजा (पउम १२, २) २ नन्दीश्वर द्वीप के अपरार्धं का अधिष्ठाता देव (जीव ३, ४) °सह देखो °स्सह (राज)। °सेण पुं [°षेण] १ दशवाँ चक्रवर्त्ती राजा (सम ९८; १५२) २ भगवान् नमिनाथजी का प्रथम श्रावक (विचार ३७८)। °स्सह पुं [°सह] १ विद्युत्कुमार-देवों की दक्षिण दिशा का इन्द्र (ठा २, ३ — पत्र ८४; इक)। माल्यवन्त पर्वंत का एक शिखर (ठा ९ — पत्र ४५४)

हरि :: पुं [हरित्] १ हरा रँग, वर्णं-विशेष। २ वि. हरा रँगवाला (णाया १, १६ पत्र २२८) ३ स्त्री. एक महा-नदी (सम २७; इक; ठा २, ३ — पत्र ७२) ४ षड्ज ग्राम की एक मूर्च्छंना (ठा ७ — पत्र ३९३)। °पवात, °पव्वाय पुं [°प्रपात] एक द्रह, जहाँ से हरित् नदी निकलती है (ठा २, ३ — पत्र ७२; टी — पत्र ७५)

हरि° :: देखो हिरि° (भग; पि ९८; उत्त ३२, १०३)।

हरिअ :: पुं [°हरित] १ वर्णं-विशेष; हरा रँग। २ वि. हरा वर्णंवाला (औप; णाया १, १ टी — पत्र ४; १, ७ — पत्र ११६; से ८, ४९; गा ६९५) ३ पुं. एक आर्यं मनुष्य- जाति (ठा ६ — पत्र ३५८) ४ पुंन. वनस्पति-विशेष, हरा तृण, सब्जी (पणण १ — पत्र ३०, औप; पाअ; पंच २, ५०; दस १०, ३)

हरिअ :: देखो हिअ = हृत (कस; महा)।

°हरिअ :: देखो भरिअ = भरित (गा ९३२)।

हरिअग, हरिअय :: न [हरितक] जीरा आदि के पत्तों से बना हुआ भोज्य विशेष (पव २५९; सुज्ज २० टी)।

हरिआ :: स्त्री [हारता] दूर्वा, दूब, तृण-विशेष (से ७, ५६; ९, ३१)।

हरिआ :: देखो हिरि (कुमा)।

हरिआल :: देखो हरि — आल।

हरिआली :: स्त्री [दे.हरिताली] दूर्वा, दूब (दे ८, ६४; पाअ; अंत; कप्प; अणु २३)।

हरिएस :: देखो हरि-एस।

हरिचंदण :: देखो हरि-चंदण।

हरिचंदण :: न [दे. हरिचन्दन] कुंकुम, केसर (दे ८, ६५)।

हरिडय :: पुं [हस्तिक] कोंकण देश-प्रसिद्ध वृक्ष-विशेष (पणण १ — पत्र ३१)।

हरिण :: पुं [हरिण] १ हिरन, मृग (कुमा) २ छन्द का एक भेद (पिंग)। °च्छी स्त्री [°क्षी] सुन्दर नेत्रवाली स्त्री (कप्पू)। °रि पुं [°रि] सिंह (उप पृ २९)। °हिव पुं [°धिप] वही (हे ३, १८०)

हरिणंक :: पुं [हरिणाङ्क] चन्द्र, चाँद (हे ३, १८०; कप्पू; सण)।

हरिणंकुस :: पुं [हरिणाङ्कुश] चौथे बलदेव के गुरु एक जैन मुनि (पउम २०, २०५)।

हरिणगवेसि :: देखो हरिणेगमेसि (पउम ३, १०४)।

हरिणी :: स्त्री [हरिणी] १ मादा हिरन, हिरनी (पाअ) २ छन्द-विशेष (पिंग)

हरिणेगमेसि :: पुं [हरिनैगमैषिन्] शक्र के पदाति-सैन्य का अधपति देव (ठा ५, १ — ३०२; अंत ७; इक)।

हरिद्दा :: देखो हलिद्दा (पि ३७५)।

हरिमंथ :: पुं [दे] काला चना, अन्न-विशेष (श्रा १८; पव १५६; संबोध ४३; दे ८, ७० टि)। देखो हिरिमंथ।

हरिमिग्ग :: पुं [दे] लगुड, लट्ठी, लाढी, डंडा (दे ८, ६३)।

हरियंदपुर :: न [हरिचन्द्रपुर] गंधर्वंनगर (चउप्पन्न° ऋषभचरिचत्र)।

हरिली :: देखो हिरिली (उत्त ३६, ९८)।

°हरिल्ल :: वि [°भरवत्] भारवाला, बोझवालाट (गा ५४५)।

हरिस :: अक [हृष्] खुशी होना। हरिसइ (हे ४, २३५; प्राप्र; षड्); 'हरिसिज्जइ कयतावो रुद्दज्झाणोवगयचित्तो' (संबोध ४९)।

हरिस :: सक [हर्ष] हर्षं से रोम खड़ा करना, 'लोमादियं पि ण हरिसे सुन्नागारगओ मुणी' (सूअ १, २, २, १६)।

हरिस :: पुं [हर्ष] १ सुख। २ आनन्द, प्रमोद, खुशी (हे २, १०५; प्राप्र; कुमा; भग) ३ आभूषण-विशेष (औप)। °उर पुं [°पुर] एक जैनु गच्छ (सुपा ६५८)। °ल वि [°वत्] हर्षं-युक्त (प्राकृ ३५)

हरिसण :: पुं [हर्षण] ज्योतिष-प्रसिद्ध एक योग (सुपा १०८)।

हरिसाइय :: वि [हर्षित] हर्षं-प्राप्त (पउम ६१, ७२)।

हरिसाल :: देखो सरिस-ल = हर्ष-वत्।

हरिसिअ :: वि [हषित] हर्षं-प्राप्त, आनन्दित (औप; भवि; महा; सम)।

हरी :: देखो हिरी (सूअ १, १३, ६; भग)।

हरीडई :: देखो हरडई (प्राकृ १२)।

हरे :: अ [अरे] इन अर्थों का सूचक अव्यय — १ आक्षेप, निन्दा। २ संभाषण। ३ रति-कलह (हे २, २०२; कुमा; स ४३०; पि ३३८)

हरेडगी :: देखो हरीडई (पंचा १०, २५)।

हरेणुया :: स्त्री [हरेणुका] प्रियुंगु, मालकाँगनी (उत्तनि ३)।

हरेस :: सक [ह्रेष्] गति करना (नाट — वेणी ६७)।

हल :: न [हल] हर, जिससे खेत जोतते हैं (उवा; औप)। °उत्तय पुंन [°युक्तक] हल जोतना; 'असुभे समयम्मि कओ तेणं हलउत्तओ खित्ते' (सुपा २३७; २३६; सुर २, ७७)। °कुड्ढाल, °कुद्दाल पुं [°कुद्दाल] हल के ऊपर का भाग (उवा)। °धर पुं [°धर] बलदेव, राम (पणण १७ — पत्र ५२६; दे २, ५५)। °धारण पुं [°धारण] बलभद्र, राम (पउम ११७, ९)। °वाहग वि [°वाहक] हालिक, हल जोतनेवाला (श्रा २३)। °हर देखो °धर (सम ११३; पव — गाथा ४८; औप; कुप्र २५७)। °उह पुं [°युध] बलभद्र, राम (पउम ३८, २३; ७६, २६)।

°हल :: देखो फल = फल (सुपा ३९६; भवि; त्रि १०३)।

हलअ :: (मा) देखो हिअय = हृदय (चारु ११; नाट — मृच्छ २१)।

हलउत्तय :: देखो हल उत्तय।

हलद्दा, हलद्दी :: देखो हलिद्दा (हे १, ८८; कुमा; षड्)।

हलप्प :: वि [दे] बहु-भाषी, बाचाल (दे ८, ६१)।

हलबोल :: पुं [दे] कलकल, शोरगुल, कोलाहल (दे ८, ६४; पाअ, कुमा; सुपा ८७; १३२; हट्ठि १४०; कुप्र ३९२; सिरि ४३३; सम्मत्त १२२)।

हलहर :: देखो हल-हल =हल-धर।

हलहल :: देखो हडहड = (दे)। (गा २१)।

हलहल, हलहलअ :: पुंन [दे] १ तुमुल, कोलाहल, शोरगुल (दे ८, ७४; से १२, ८६) २ कौतुक, कुतूहल (दे ८, ७४; स ७०४) ३ त्वरा; 'हड़बड़ी. हलफल, शीघ्रता, हलहलओ तरा' (पाअ; स ७०४) ४ औत्सुक्य, उत्कंठा (गा २१; ७८०)

हलहलिअ :: वि [दे] कम्पित, कापा हुआ (पिंग)।

हला :: अ [हला] सखी का आमन्त्रण, हे सखि (हे २, १९५; स्वप्‍न ४०; अभि २६; कुमा; गा ४३०; सुपा ३४९)।

हलाहल :: न [हलाहल] एक प्रकार का उग्र जहर, विष-विशेष (प्रासू ३८)।

हलाहला :: स्त्री [दे] बंभणिका, बाम्हनी, जन्तु- विशेष (दे ८, ६३)।

हलि :: पुं [हलिन्] बलराम, बलभद्र (पउम ७०, ३५; कुप्र १०१)।

हलिअ :: वि [हालिक] हल जोतनेवाला, कृषक (हे १, ६७; पाअ; प्राप्र; गा १०७; ३१७; ३६०)।

°हलिअ :: देखो फलिअ (गा ६)।

हलिआ :: स्त्री [हलिका] १ छिपकली। २ बाम्हनी, जन्तु-विशेष (कप्प)

हलिआर :: देखो हरि-आल = हरि-ताल (हे २, १२१; षड्)।

हसिद्द :: पुं [हरिद्र, हारिद्र] १ वृक्ष-विशेष, (हे १, २५४; गा ८६३) २ वर्णं-विशेष, पीला रंग। ३ न. नाम-कर्मं का एक भेद, जिसके उदय से जीव का शरीर हल्ती के समान पीला होता है वह कर्मं (कम्म १, ४०)। °पत्त पुं [°पत्र] चतुरिन्द्रिय जन्तु की एक जाति (पणण १ — पत्र ४६)। °मच्छ पुं [°मस्त्य] मछली की एक जाति (पणण १ — पत्र ४७)

हलिद्दा, हलद्दी :: स्त्री [हरिद्रा] औषधि-विशेष, हल्दी (हे १, ८८; २८४; गा ५८; ८०; २४६)।

हलीसागर :: पुं [हलिसागर] मत्स्य की एक जाति (पणण १ — पत्र ४७)।

हलुअ :: वि [लघुक] हलका (हे २, १२२; स ७४५)।

हलूर :: वि [दे] सतृष्ण, सस्पृह (दे ८, ६२)।

हले :: अ [हले] हे सखि, सखी का संवोधन (हे २, १९५; कुमा)।

हल्ल :: अक [दे] हिलना, चलना। हल्लंति (सट्ठि ६८)। वकृ. हल्लंत (उवकु २१; सुपा ३४; २२३; वज्जा ४०; से ८, ४५)।

हल्ल :: पुं [हल्ल] एक अनुत्तर-गामी जैन मुनि (अनु २; पडि)।

हल्लअ :: न [हल्लक] पद्म-विशेष, रक्त कह्लार (विक्र २३)।

हल्लपविअ :: वि [दे] त्वरित, शीघ्र (षड्)।

हल्लप्फइ :: न [दे] १ हलफल, हड़बड़ी, औत्सुक्य, त्वरा, शीघ्रता (हे २, १७४; स ६०२; कुमा) २ आकुलता; 'अह उवसंते करिणो हल्लप्फलए' (सुपा ६३९) ३ वि. कम्पनशील, काँपता, चञ्चल, 'पास- ट्ठिओवि दीवो सहसा हल्लप्फलो जाओ' (वज्जा ६६)

हल्लप्फलिअ :: वि [दे] १ शीघ्र, जल्दी। २ न. आकुलता, व्याकुलपन (दे ८, ५९) ३ वि. व्याकुल (धर्मंवि ५६)

हल्लफल :: देखो हल्लप्फल (गा ७९)।

हल्लप्फलिअ :: देखो हल्लप्फलिअ; 'विमलो आह लोहेण, तो हल्लफलिीओ इमं' (श्रा १२)।

हल्लाबिय :: वि [दे] हिलाया हुआ (सुर ३, १०९)।

हल्लिअ :: वि [दे] हिला हुआ, चलित (दे ८, ६२; भवि)।

हल्लिर :: वि [दे] चलन-शील, हिलनेवाला (स ५७८; कुप्र ३५१)।

हल्लीस :: पुं [दे] रासक, मण्डलाकार होकर स्त्रियों का नाच (दे ८, ६१; भवि)।

हल्लुत्ताल, हल्लुत्तावल :: न [दे] शीघ्रता, जल्दी, त्वरा; गुजराती में 'उत्तावळ' (भवि; सुर १५, ८८)।

हल्लुप्फलिय :: देखो हल्लप्फलिअ (जय १२)।

हल्लोहल :: देखो हल्लप्फल (उप पृ ७७; श्रा १६; हे ४; ९६; उप ७२८ टी; सुख १८, ३७; महा; भवि)।

हल्लोहलिअ :: देखो हल्लप्फलिअ (सिरि ६६४; ९३४; भवि)।

हल्लोहलिय :: पुंस्त्री [दे] सरट, गिरगिट। स्त्री. °या (कप्प)।

हव :: अक [भू] १ होना। २ सक. प्राप्‍त करना। हवइ, हवेइ, हवंति (हे ४, ६०; कप्प; उव; महा; ठा ३, १ — पत्र १०६); 'किं इक्खुवाडमज्झट्ठिओ नलो हवइ महुरत्तं' (धर्मंवि १७), हवेज्ज, हवेज्जा (पि ४७५)। वकृ. हवंत, हवेमाण (षड्)

°हव :: देखो भव = भव (उप ४९४)।

हवण :: न [हवन] होम (विसे १५९२)।

हवि :: पुंन [हविस्] १ धृत, घी। २ हवनीय वस्तु (स ९; ७१४; दसनि १, १०४)

हविअ :: वि [दे] भ्रक्षित, चुपड़ी हुआ (दे ५, २२; ८, ६२)।

हव्व :: वि [हव्य] हवनीय पदार्थं, होम-योग्य वस्तु (सुपा १६३)। °वह पुं [°वह] अग्‍नि, आग (उप ५९७ टी; सुपा ४१६; गउड)। °वाह पुं [°वाह] वही (आचा; पाअ; सम्मत्त २२८; वेणी १९२; दस ६, ३५)।

हव्व :: वि [अर्वाच्] १ अवर, पर से अन्य; 'नो हव्वाए नो पाराए' (आचा; सूअ २, १, १; ८; १०; १९; २४; २८, ३३) २ न. शीघ्र, जल्दी (णाया १, १ — पत्र ३१; उवा; सम ५६; विपा १, १ — पत्र ८; ती १०; औप; कप्प; कस) ३ न. ग-हवास (सूत्र- कृ° २-१-९ चूर्णि)

°हव्व :: देखो भव्व = भव्य (गा ३९०; ४२०; ४७६)।

हस :: अक [हस्] १ हँसना, हास्य करना। २ सक. उपहास करना, मजाक करना। हसइ, हसेइ, हसए, हसंति, हससि, हससे, हसित्था, हसह, हसामि, हसमि, हसामो, हसामु, हसाम, हसेम, हसेमु (हे ३, १३९; १४०; १४१; १४२; १४३; १४४; १५४; १५८; कुमा)। हसेउ हसंतु, हससु, हसेज्जसु, हसज्जहि, हसेज्जे, हसेज्ज, हसेज्जा (हे ३, १५८; १७३; १७५; १७६)। भवि. हसिहिइ हसिस्सामो, हसिहिमो, हसिहिस्सा, हसिहित्था, हसिस्सं (हे ३, १६६; १६७; १६८; १६९)। कर्मं. हसीअइ, हसिज्जइ, हसिज्जंति (हे ३, १६०; १४२)। वकृ. हसंत, हसेंत, हसमाण (औप; हे ३, १५८; १८१; (षड़्)। कवकृ. हसिज्जंत, हसीअंत, हसीअमाण, हसिज्जमाण, हसेज्जमाण (हे ३, १६०; उप ५९७ टी; सुर १४. १८०)। संकृ. हसिऊण, हसेऊण, हसिउमाण, हसिउआणं, हसेउआण, हसेउआणं, हसिऊणं (हे ३, १५७; पि ५८४; ५८५)। हेकृ. हसिउं, हसेउं (हे ३, १५७)। कृ. हसिअव्व, हसेअव्व, हसणीअ (पणह २, ५ — पत्र १४९; हे ३, १५७; षड्; संक्षि ३४; नाट — मृच्छ ११४)

हस :: अक [ह्रस्] हीन होना, कम होना। हसइ (पंच ५, ५३)।

हस :: पुं [हास] हास्य (उप १०३१ टी)।

हसण :: स्त्रीन [हसन] हास्य, हँसी (भग; उत्त ३६, २६२; पंचा २, ८)। स्त्री. °णा (उप पृ २७५)।

हसहस :: अक [हसहसाय्] १ उत्तेजित होना। २ सुलगना; 'सिंगाररसत्तु (?) इया मोहमईफुंफुमा हसहसेइ' (सुख १, ८)। वकृ. हसहसित (दसनि ३, ३५)। संकृ. हसहसेऊण (राज)

हसाव :: देखो हास = हासय्। हसावइ, हसावेइ (हे ३, १४९)।

हसिअ :: वि [हसित] १ जिसका उपहास किया गया हो वह (उव ११३) २ न. हास्य, हँसी (उव २२४)

हसिअ :: वि [ह्रसित] ह्रास-प्राप्त, हीन (पंच ५, ५३)।

हसिर :: वि [हसितृ] हास्य-कर्ता, हँसने की आदतवाला (प्राप्र; गा १७४; उप ७२८ टी; सुर २, ७८; कुमा)। स्त्री. °री (गउड)।

हसिरिआ :: स्त्री [दे] हास, हँसी (दे ८, ६२)।

हस्स :: अक [ह्रस्] कम होना, न्यून होना, क्षीण होना। वकृ. हस्समाण (णंदि ८२ टी)।

हस्स :: देखो हस = हस्। हस्सइ (धात्वा १५७)। कर्मं. हस्सइ (धात्वा १५७; हे ४, २४९)।

हस्स :: न [हास्य] १ हँसी (आचा १, २, १, २; पव ७२; नाट — मृच्छ ९२) २ पुं. महाक्रन्दित नामक देवों का दक्षिण दिशा का इन्द्र (ठा २, ३ — पत्र ८५) °गय न [°गत] कला-विशेष (स ६०३)। °रइ पुं [°रति] इन्द्र-विशेष, महाक्रन्दित-निकाय का उत्तर दिशा का इन्द्र (ठा २, ३ — पत्र ८५)। हस्स वि [ह्रस्व] १ लघु, छोटा (सूअ २, १, १५; पव ५४) २ वामन, खर्वं (पाअ) ३ अल्प, थोड़ा (भग; पंच ५, १०३; कम्म ५, ८४) ४ पुं. एक मात्रावाला स्वर (पणण ३६ — पत्र ८४६; विसे ३०६८)

हस्सण :: वि [हर्षण] हर्षं-कारक 'रोमहस्सणो जुद्धसंमद्दो' (विक्र ८७)।

हस्सिर :: देखो हसिर; 'अ-हस्सिरे सदा दंते' (उत्त ११, ४; सुख ११, ४)।

हहह, हहहा :: अ [हहह, °हा] १ इन अर्थों का सूचक अव्यय — १ आश्चर्यं (प्रयौ ७४) २ खेद, विषाद (सिरि ६१२)

हहा :: पुं [हहा] १ गन्धर्वं देवों की एक जाति (हे ३, १२९) २ अ. खेद-सूचक अव्यय (सिरि २९८; ७९७)

हा :: अ [हा] इन अर्थों का सूचक अव्यय — १ विषाद, खेद (सुर १, ९६; स्वप्‍न २७; गा २१८; ७५४; ९६०; प्रासू २०) २ शोक, दिलगीरी। ३ पीड़ा। ४ कुत्सा, निन्दा (हे १, ६७; २, २१७)। °कंद पुं [°क्रन्द] हाहाकार (पिंग)। °रव पुं [°रव] वही अर्थं (सुर २, १११)

हा :: सक [हा] १ त्याग करना। २ गति करना। ३ क्षीण करना, हीन करना, कम करना। हाइ (षड्)। कर्मं. हायइ, हायंति (भग; उव), हिज्जइ (भवि), हिज्जउ (प्रयौ १०७)। कवकृ. हायंत (णाया १, १० टी — पत्र १७१), हीयमाण (काल)। संकृ. हाउं (उवकु १०; ११), हिच्चा, हिच्चाणं (आचा १, ४, ४, १; पि ५८७), हेच्च, हेच्चा (सूअ १, २, ३, १, उत्त १८, ३५), हेच्चाण, हेच्चाणं (पि ५८७)। कृ. हेअ (स ५९५; पंचा ६, २७; अच्चु ८; गउड)

°हा :: देखो भा — स्त्री (गउड)।

हाअ :: देखो हा — सक। हाअइ, हाअए (षड्)।

हाअ :: सक [हादय्] अतिसार रोग को उत्पन्न करना। हाएज्ज (पिंड ६४६)।

°हाअ :: देखो भाअ = भाग (से ८, ८२; षड्)।

°हाअ :: देखो घाय = घात (से ७, ५९)।

°हाअ :: देखो भाव = भाव (से ३, १५)।

हाउ :: देखो भाउ; 'मह वअणं मइरागंधिअंति हाआ तुहं भणइं' (गा ८७२)।

हांसल :: देखो हंसल (राज)।

हाकंद :: देखो हा-कंद।

हाकलि :: स्त्री [हाकलि] छन्द का एक भेद (पिंग)।

हाडहड :: न [दे] तत्काल, तत्क्षण (वव १)।

हाडहडा :: स्त्री [दे] आरोपणा का एक भेद, प्रायश्चित-विशेष (ठा ५, २ — पत्र ३२५, निचू २०)।

हणि :: स्त्री [हानि] क्षति, अपचय (भवि)।

हाम :: अ [दे] इस तरह, इस, प्रकार, एवं; 'हाम भण' (प्राकृ ८१)।

हायण :: पुं [हायन] वर्षं, संवत्सर (औप; णाया १, १ टी — पत्र ५७)।

हायणी :: स्त्री [हायनी] मनुष्य की दस दशाओं में छठवीं अवस्था (ठा १० — पत्र ५१९; दंदु १०)।

हार :: सक [हारय्] १ नाश करना। २ हारना, पराभव पाना। हारेइ, हारसु (उव; महा)। वकृ हारंत (सुपा १५४)

हार :: पुं [हार] १ माला, अठारह सर की मोती आदि की माला (कप्प; राय १०२; उवा; कुमा; भवि) २ हरण, अपहरण (वव १) ३ द्वीप-विशेष। ४ समुद्र-विशेष (जीव ३, ४ — पत्र ३६७) ५ हरण-कर्ता; 'अदत्त- हारा' (आचा १, २, ३, ५)। °पुड पुंन [°पुट] धातु-विशेष, लोहा (आचा २, ६, १, १)। °भद्द पुं [°भद्र] हार-द्वीप का अधिष्ठाता एक देव (जीव ३, ४ — पत्र ३६७)। °महाभद्द पुं [°महाभद्र] हार- द्वीप का एक अधिष्ठाता देव (जीव ३, ४)।ष °महावर पुं [°महावर] हार-समुद्र का एक अधिष्ठायक देव; 'हारसमुद्दे हारवर-हारवर- (? हार) महावरा एत्थ दो देवा महिड्ढीया' (जीव ३, ४ — पत्र ३६७)। °वर पुं [°वर] १ हार-समुद्र का एक अधिष्टाता देव। २ द्वीप-विशेष। ३ समुद्र विशेष। ४ हारवर- समुद्र का अधिष्ठाता देव (जीव ३, ४) °वरभद्र पुं [वरभद्र] हारव र-द्वीप का एक अधिष्टायक देव (जीव ३, ४)। °वरमहाभद्द पुं [°वरमहाभद्र] हारवर- द्वीप का एक अधिष्ठाता देव (जीव ३, ४)। °वरमहावर पुं [°वरमहावर] हारवर- समुद्र का एक अधिष्ठायक देव (जीव ३, ४)। °वरावभास पुं [°वरावभास] १ एक द्वीप। २ एक समुद्र (जीव ३, ४) °वरावभास- भद्द पुं [°वरावभासभद्र] हारवराभास- द्वीप का एक अधिष्ठाता देव (जीव ३, ४)। °वरावभासमहाभद्द पुं [°वरावभासमहा- भद्र] हारवरावभास-द्वीप का एक अधिष्ठायक देव (जीव ३, ४)। °वरावभासमहावर पुं [°वरावभासमहावर] हारवराभास-समुद्र का एक अधिष्ठाता देव (जीव ३, ४)। °वरावभासवर पुं [°वरावभासवर] हार- वरावभास-समुद्र का एक अधिष्ठायक देव (जीव ३, ४ — पत्र ३६७)।

°हार :: देखो भार (सुपा ३६१; भवि)।

हारअ :: वि [हारक] नाश-कर्ता (अभि १११)।

हारण :: वि [हारण] ऊपर देखो, 'धम्मत्थ- कामभोगाण हारणं कारणं दुहसयाणं' (पुप्प २९२; धम्म १० टी)।

हारव :: देखो हार = हारय्। हारवइ (हे ४, ३१)। भवि. हारविस्सइ (स ५६९)।

हारविअ :: वि [हारित] नाशित (कुमा; सुपा ५१२)।

हारा :: स्त्री [दे] लिक्षा, जन्तु-विशेष (दे ८, ६६)।

°हारा :: देखो धारा (कप्प; गा ७८५)।

°हारि :: स्त्री [हारि] १ हार, पराजय (उप पृ ५२) २ पंक्ति, श्रेणि (कुप्र ३४४) ३ छन्द-विशेष (पिंग)

हारि :: वि [हारिन्] १ हरण-कर्ता (विसे ३२४५; कुमा) २ मनोहर, चित्ताकर्षंक (गउड)

हारिअ :: न [हारीत] १ गोत्र-विशेष, जो कौत्स गोत्र की एक शाखा है। २ पुंस्त्री. उश गौत्र में उत्पन्न (ठा ७ — पत्र ३९०; णंदि ४९; कप्प)। °मालागारी स्त्री [°मालाकारी] एक जैन मुनि-शाखा (कप्प)

हारिअ :: वि [हारित] १ हारा हुआ, द्यूत आदि में पराजित (सुपा ३९९; महा; भवि) २ खोया हुआ, गुमाया हुआ (वव १; सुपा १६९)

हारियंद :: वि [हारिचन्द्र] हरिचन्द्र का, हरिचन्द्र-कवि का बनाया हुआ (गउड)।

हारिया :: स्त्री [हारीता] एक जैन मुनि-शाखा (राज)। देखो हारिअ — मालागारी।

हारियायण :: न [हारितायन] एक गोत्र (कप्प)।

हारी :: स्त्री [हारी] देखो हारि = हारि (उप पृ ५२; कुप्र ३४४; पिंग)।

हारीय :: पुं [हारीत] १ मुनि-विशेष। २ न. गोत्र-विशेष (राज)। °बंध पुं [°बन्ध] छन्द-विशेष (पिंग)

हारोस :: पुं [हारोष] १ अनार्यं देश-विशेष। २ वि. उस देश का निवासी (पणण १ — पत्र ५८)

हाल :: पुं [दे. हाल] राजा सातवाहन, गाथा- सप्तशती का कर्ता (दे ८, ६६; २, ३६; गा ३; वज्जा ९४)।

हाला :: स्त्री [हाला] मदिरा, दारू (पाअ; कुप्र ४०७; रंभा)।

हालाहल :: पिं [दे] मालाकार, माली (दे ८, ७५)।

हालहल :: पुंस्त्री [हालाहल] १ जन्तु-विशेष, ब्रह्मसर्पं, बाम्हनी (दे ६, ९०; पाअ; गा ६२)। स्त्री. °ला (दे ८, ७५) २ त्रीन्द्रिय जन्तु-विशेष (पणण १ — पत्र ५) ३ पुंन. स्थावर विष-विशेष (दस ९, १, ७; गच्छ २, ४) ४ पुं. रावण का एक सुभट (पउम ५६, ३३)

हालाहला :: स्त्री [हालाहला] एक आजीविक- मतानुयायिनी कुम्हारिन (भग १५ — पत्र ६५९)।

हालिअ :: देथो हलिअ = हालिक (हे १, ६७; प्राप्र)।

हालिज्ज :: न [हालीय] एक जैन मुनि-कुल (कप्प)।

हालिद्द :: पुं [हारिद्र] १ हल्ती के तुल्य रंग, पीला वर्णं (अणु १०९; ठा ५, १ — पत्र २९१) २ वि. पीला, जिसका रंग पीला हो वह (पणण १ — पत्र २५; सूअ २, १, १५; भग; औप) ३ पुंन. एक देव-विमान (देवेन्द्र १३२)

हालिया :: स्त्री [हालिका] देखो हलिआ (राज)।

हालुअ :: वि [दे] क्षीब, मत्त (दे ८, ६६)।

हाव :: सक [हापय्] १ हानि करना। २ त्याग करना। ३ परिभव करना। ४ लोप करना; 'थंडिलसामायारिं हावेइ' (वव १), हावए (उत्त ५, २३; सट्ठि २१ टी)। हाव- इज्जा (दस ८, ४१)। वकृ. हाविंत (विसे २७४६)

हाव :: पु [हाव] मुख का विकार-विशेष (पणह २, ४ — पत्र १३२; भवि)।

हाव :: वि [दे] जंघाल, द्रुतगामी, वेग से दौड़नेवाला (दे ८, ७५)।

°हाव :: देखो भाव = भाव; 'ईसरहावेण' (अच्चु २५)।

हावण :: वि [हापन] हानि करनेवाला (हे २, १७८)।

हाविर :: वि [दे] १ जंघाल, द्रुतगामी। २ दीर्घं, लम्बा। ३ मन्थर। ४ विरत (दे ८, ७५)

हास :: देखो हस = हस्। वकृ. 'न हासमाणो वि गरं वइज्जा' (दस ७, ५४)।

हास :: सक [हासय्] हँसाना। हासेइ (हे ३, १४९)। कर्मं. हासीअइ, हासिज्जइ (हे ३, १५२)। वकृ. हासेंत (औप)। कवकृ. हासिज्जंत (सुपा ५७)।

हास :: पुं [हास] १ हास्य, हँसी (औप; गच्छ २, ४२; उव; गा ११, ३३२) २ कर्मं- विशेष, जिसके उदय से हँसी आवे वह कर्मं (कम्म १, २१; ५७) ३ अलंकार-शास्त्रोक्त रस-विशेष (अणु १३५)। °कर वि [°कर] हास्य-कारक (सुपा २४३)। °कारि वि [°कारिन्] वही (गउड)

हास :: पुं [ह्रास] क्षय, हानि (धर्मंसं ११६४)।

हास :: देखो हरिस = हर्ष (औप)।

हासंकर :: देखो हास-कर (सुपा ७८)।

हासंकुहय :: वि [हास्यकुहक] हास्य-जनक कौतुक-कर्ता (दस १०, २०)।

हासण :: वि [हासन] १ हास्य करानेवाला (पव ७३ टी) २ हास्य-कर्ता (आचा २, १५, ५)

हासा :: स्त्री [हासा] एक देवी (महा)।

हासाविअ, हासिअ :: वि [हासित] हँसाया हुआ (गा १२३; षड्; कुमा; हे ३, १५६)।

हासि :: वि [हासिन्] हास्य-कर्ता (आचा २, १५, ५)।

हासिअ :: वि [हास्य] हँसने योग्य, 'चडु- आरअं पइं मा हु पुत्ति जणहासिअं कुणसु' (गा ६०५; हे ३, १०५)।

°हासिअ :: देखो भासिअ = भाषित (नाट — विक्र ६१)।

हासीअ :: न [दे. हास्य] हास, हँसी (दे ८, ६२)।

हाहक्कार :: देखो हाहा-कार; 'हाहक्कारमुहरवा' (पउम १७, १०)।

हाहा :: पुं [हाहा] गन्धर्व देवों की एक जाति (सुपा ५६; कुमा; धर्मंवि ४८)। २ अ. विलाप, हाहाकार, शोकध्वनि (पाअ; भग ७, ६ — पत्र ३०५)। °कय न [°कृत] हाहाकार, शोक-शब्द (णाया १, ९ — पत्र १५७)। °कार पुं [°कार] वही (महा; भवि; वेणी १३९)। °भूअ वि [°भूत] हाहाकार को प्राप्त (भग ७, ६ — पत्र ३०५)। °रव पुं [°रव हाहाकार] (महा; सुपा १३६; भवि)। °हूहू [°हूहू] संख्या-विशेष, 'हाहाहूहूअंग' को चौरासी लाख से गुनने पर जो संख्या लब्ध हो वह (इक)। °हूहूअंग न [°हूहूअङ्ग] संख्या — विशेष, 'अमम' को चौरासी लाख से गुनने पर जो संख्या लब्ध हो वह (इक)।

हि :: अ [हि] इन अर्थों का सूचक अव्यय — १ अवधारण, निश्‍चय (स्वप्‍न १०) २ हेतु, कारण (कुमा ८, १७; कप्पू) ३ एवम्, इस तरह (गउड ३२४; सण) ४ विशेष। ५ प्रश्‍न। ६ संभ्रम। ७ शोक। ८ असूया। ९ पाद-पूरण (कुमा; गउड; गा २४२; २६५; ६०२; ९४८; पिंग; हे २, २१७)

हिअ :: वि [हृत] १ अपहृत, छीना हुआ (णाया १, १६ — पच २१५; पउम ५, ७३; ३०, २०; सुर ६, १७५) २ नीत, जो दूसरी जगह ले जाया गया हो वह (पाअ; हे १, १२८) ३ विनष्ट, स्फोटित (पिंड ४१५) ४ आकृष्ट, खींचा हुआ; 'हियहियए' (राय)

हिअ :: न [हित] १ मङ्गल, कल्याण। २ उपकार, भलाई (उत्त १, ९; पउम ६५, २१; उव; ठा ४, ४ टी — पत्र २८३; प्रासू १४) ३ वि. हित-कारक, उपकारी (उत्त १, २८; २९; उव ३२९; ४५०; प्रासू १४) ४ स्थापित, निहित (भत्त ७८) °कर वि [°कर] १ हितकारक (ठा ९) २ पुं. दो उपवास (संबोध ५८) ३ एक वणिक् का नाम (पउम ५, २८)। °कार वि [°कार] हित-कारक (श्रु १४९)। °यर देखो °कर (पउम ६५, २१)

°हिअ :: देखो हिअय = हृदय (हे १, २६९; कुमा; आचा; कप्प)। °इट्ठ वि [°इष्ट] मनः प्रिय (पउम ८५, २३)। °उड्डावण वि [°उड्डायन] चित्ताकर्षण का साधन (णाया १, १४ — पत्र १८७)। २ चित्त को शून्य बनानेवाला (विपा १, २ — पत्र ३६)

°हिअ :: न [घृत] घी (सुख १८, ४३)।

हिअउल्ल :: (अप) देखो हिअय = हृहय (कुमा)।

हिअंकर :: पुं [हितंकर] राम-पुत्र कुश के पूर्वं जन्म का नाम (पउम १०४, २९)।

हइ्ड, हिअडुल्ल :: (अप) देखो हिअय = हृदय (हे ४, ३५०; पि ५९९; सण)।

हिअय :: न [हृदय] १ अन्तःकरण, हिया, मन (हे १, २६९; स्वप्‍न ३३; कुमा; गउड; दं ४६; प्रासु ४४) २ वक्षस्, छाती (से ४, २१) ३ पर ब्रह्म (प्राप्र)। °गमणीअ वि [°गमनीय] हृदयंगम, मनोहर (सम ६०)। °हारि वि [°हारिन्] चित्ताकर्षंक (उफ ७२८ टी)

हिअय :: देखो हिअ = हित; 'कुद्धेहिं जेहि जणो अयाणगो हिअयमग्गम्मि' (उप ७६८ टी)।

हिअयंगम :: वि [हृदयंगम] मनोहर, चित्ता- कर्षंक (दे १, १)।

हिआली :: स्त्री [हृदयाली] काव्य-समस्या- विशेष, गूढार्थक काव्य-विशेष (वज्जा १२४)।

हिइ :: स्त्री [हृति] १ अपहऱण। २ न. स्था- नान्तर में ले जाता (संक्षि ५)

हिएसय :: वि [हितैषक] हितेच्छु, हित चाहनेवाला (उत्त ३४, २८)।

हिएसि :: वि [हितैषिन्] ऊपर देखो (उत्त १३, १५; उप ७२८ टी; सुपा ४०४; पुप्फ १०)।

हिओ :: अ [ह्यस्] गत कल (अभि ५६; प्राप; पि १३४)।

हिंग :: पुं [दे] जार, उपपति (दे १, ४)।

हिंगु :: पुंन [हिङ्गु] १ वृक्ष-विशेष, हींग का गाछ (पणण १ — पत्र ३४) २ हींग; 'डाए लोणे हिंगू संकामण फोडणे धूमे' (पिंड २५०; स २५८; चारु ७)। °सिव पुं [°शिव] व्यन्तर देव-विशेष (दसनि १, ६६)

हिंगुल :: पुंन [हिङ्गुल] पार्थिव, वातु-विशेष, हिंगुल, सिंगरफ (पणण १ — पत्र २५; ती २; जी ३; सुख ३६, ७५)।

हिंगुलु :: पुंन [हिङ्गुलु] ऊपर देखो (उत्त ३६, ७५; कप्प)।

हिंगोल :: पुंन [दे] मृतक-भोजन, किसी के मरण के उपलक्ष्य में दी जाती जमीन, श्राद्ध। २ यक्ष आदि के यात्रा के उपलक्ष्य में किया जाता जीमनवार (आचा २, १, ४, १)

हिंचिअ :: न [दे] एक पैर से चलने की बाल- क्रीड़ा (दे ८, ६८)।

हिंजीर :: न [हिञ्जीर] श्रृंखलक, सिकरी, साँकल (दे ६, ११६; गउड)।

हिंड :: सक [हिण्ड्] १ भ्रमण करना। २ जाना, चलना। हिंडइ (सुपा ३८४; महा), हिंडिज्जा (ओघे २५४)। कर्मं. हिंडिज्जइ (प्रासू ४०)। वकृ. हिंडंत (गा १३८)। कृ. हिंडि- यव्व (उप पृ ५०; महा)। संकृ. हिंडिय (महा)। हेकृ. हिंडिउं (महा)

हिंडग :: वि [हिण्डक] १ भ्रमण करनेवाला (पंचा १८, ८) २ चलनेवाला (अणु १२९)

हिंडण :: न [हिण्डन] १ परिभ्रमण, पर्यंटन (पउम ९७, १८; स ४९) २ गमन, गति (उप १०१७) ३ वि. भ्रमण-शील (दे २, १०६)

हिंडि :: स्त्री [हिण्डि] परिभ्रमण, पर्यटन; 'वासुदेवाइणो हिंडी राय-वंसुब्भवाण वि। तारुणणोवि कहं हुंता न हुतं जइ कम्मयं। (कर्मं १६)।

हिंडि :: पुं [हिण्डिन्] रावण का एक सुभट (पउम ५६, ३३)।

हिंडिअ :: वि [हिण्डित] १ चला हुआ, चलित, गत (महा ३४)। जहाँ पर जाया गया हो वह; 'हिंडियं असेसं गामं' (महा ६१) ३ न. गति, गमन, विहार (णाया १, ९ — पत्र १६५; ओघ २५४)

हिंडुअ :: पुं [दे. हिण्डुक] आत्मा, जीव, जन्मान्तर माननेवाला आत्मा, हिन्दु (भग २०, २ — पत्र ७७६)।

हिंडोल :: न [दे] १ खेत में पशुओं को रोकने की आवाज। २ क्षेत्र की रक्षा का यन्त्र (धे ९, ६९)

हिंडोल :: देखो हिंदोल (स ५२१)।

हिंडोलण :: न [दे] १ रत्‍नावली, रत्‍नमाला। २ क्षेत्र की रक्षा की आवाज, खेत में पशु आदि को रोकने का शब्द (दे ८, ३६)

हिंडोलय :: देखो हिंडोल (दे ८, ६९)।

हिंताल :: पुं [हिन्ताल] वृक्ष-विशेष (उफ १०३१ टी; कुमा)।

हिंद :: सक [ग्रह्] स्वीकार करना, ग्रहण करना। हिंदइ (प्राकृ ७०; धात्वा १५७)। कर्मं. हिंदिज्जइ (धात्वा १५७)। संकृ. हिंदिऊण (प्राकृ ७०; धात्वा १५७)।

हिंदोल :: सक [हिन्दोलय्] झूलना। वकृ. हिंदोलअंत (कप्पू)।

हिंदोल :: पुं [हिन्दोल] हिंडोला, झूलना, दोला (कप्पू)।

हिंदोलण :: न [हिन्दोलन] झूलना; दोलन (कप्पू)।

हिंबिअ :: न [दे] एक पैर से चलने की बाल- क्रीड़ा (दे ८, ६८)।

हिंस :: सक [हिंस्] १ वध करना। २ पीड़ा करना। हिसंइ, हिंसई (आचा; पव १२१)। भूका. हिंसिंसु (आचा; पव १२१)। भवि. हिंसिस्सइ, हिंसिस्संति, हिंसेही (पि ५१६; आचा; पव १२१)। वकृ. हिंसमाण (आचा)। कृ. हिंस, हिंसियव्व (उप ९२५; पणह १, १ — पत्र ५; २, १ — पत्र १००; उव)

हिंस :: वि [हिंस्र] १ हिंसा करनेवाला, हिंसक (उत्त ७, ५, पणह १, १ — पत्र ५; विसे १७६३; पंचा १, २३; उप ९२५; स ५०)। °प्पदाण, °प्पयाण न [°प्रदान] हिंसा के साधन-भूत खड्ग आदि का दान (औप; राज)

हिंस° :: देखो हिंसा पणह १, १ — पत्र ५)। °प्पेहि वि [°प्रेक्षिन्] हिंसा को देखनेवाला (ठा ५, १ — पत्र ३००)।

हिंसुअ, हिंसग :: वि [हिंसक] हिंसा करनेवाला (भग; ओघ ७५२; उत्त ३६, २५६; उव; कुप्र २६)।

हिंसण :: न [हिंसन] हिंसा; 'अहिंसणं सव्व- जियाण धम्मो' (सत्त ४२)।

हिंसा :: स्त्री [हिंसा] १ वध, घात (उवा; महा; प्रासू १४३) २ वध, बन्धन आदि से जीव को की जाती पीड़ा, हैरानी (ठा ४, १ — पत्र १८८)

हिंसा :: स्त्री [हेषा] अश्व का शब्द, 'गयगर्जिं हयहिंसं च तप्पुरओ केवि कुव्वंता' (सुपा १९४)।

हिंसिय :: वि [हिंसित] हिंसा-प्राप्त (राज)।

हिंसिय :: न [हेषित] अश्व-शब्द (पउम ६, १८०; दस ३, १ टी)।

हिंसी :: स्त्री [हिंसी] लता-विशेष (गउड)।

हिंहु :: पुं [दे] हिन्दु, हिन्दुस्तान का निवासी (पिंग)।

हिक्का :: स्त्री [दे] रजकी, धोबिन (दे ८, ६६)।

हिक्का :: स्त्री [हिक्का] रोग-विशेष, हिचकी (सुपा ४८६)।

हिक्कास :: पुं [दे] पङ्क; कादा (दे ८, ६९)।

हिक्किअ :: न [दे] हेषा-रव, अश्व-शब्द (दे ८, ६८)।

हिज्ज :: देखो हर = हृ।

हिज्ज° :: देखो हा।

हिज्जा, हिज्जो :: अ [दे. ह्यस्] गत कल (षड्; दे ८, ६७, पाअ; प्रयौ १३; पि १३४)।

हिज्जो :: अ [दे] आगामी कल (दे ८, ६७)।

हिट्ठ :: वि [दे] आकुल (दे ८, ६७)।

हिट्ठ :: देखो हेट्ठ (सुर ४, २२५; महा; सुपा ९८)।

हिट्ठ :: देखो हट्ठ = हृष्ट (उव; सम्मत्त ७५)।

हिट्ठाहिड :: वि [दे] आकुल (दे ८, ६७)।

हिट्ठिम :: देखो हेट्ठिम (सिरि ७०८; सुज्ज १०, ५ टी)।

हिट्ठिल :: देखो हेट्ठिल्ल (सम ८७)।

हिडिंब :: पुं [हिडिम्ब] १ एक विद्याधर राजा (पउम १०, २०) २ एक राक्षस (वेणी १७७) ३ देश-विशेष (पउम ९८, ६५)

हिडिंबा :: स्त्री [हिडिम्बा] एक राक्षसी, हिडिम्ब राक्षस की बहिन (हे ४, २९९)।

हिडोलणय :: देखो हिंडोलण (दे ८, ७६)।

हिड्ड :: वि [दे] वामन, खर्वं (दे ८, ६७)।

हिणिद :: वि [भणित] उक्त, कथित; 'खणपा- हुणिआ देअरजाआ ए सुहअ किं ति दे ह- (हि)णिदा' (गा ९६३)।

हिण्ण :: सक [ग्रह्] ग्रहण करना। हिणणइ (धात्वा १५७)।

हिण्ण :: (अप) देखो हीण (पिंग)।

°हिण्ण :: देखो भिण्ण (गा ५६३)।

हितअ, हितप :: (पै) देखो हिअअ = हृदय (प्राप्र; षड्; वाअ १६; पि २५४; हे ४, ३१०; कुमा; प्राकृ १२४)।

हित्थ :: वि [दे] १ लज्जित (दे ८, ६७; धण ६) २ त्रस्त, भय-भीत (दे ८, ६७; हे २, १३६; प्राप्र; गा ३८६; ७९३; सुर १६, ९१; कुमा) ३ हिंसित, मारा हुआ; 'हित्थो वण हित्थो मे सत्तो, भणियँ व न भणिय्ं मोसं' (वव १)

हित्था :: स्त्री [दे] लज्जा, शरम (दे ८, ६७)।

हिदि :: अ [हृदि] हृदय में 'हिदि निरुद्धवाउव्व' (विसे २२०)।

हिद्ध :: वि [दे] स्रस्त, खिसका हुआ, खिसक कर गिरा हुआ (षड्)।

हिम :: न [हिम] १तुषार, आकाश से गिरता जल-कण (पाअ; आचा; २, ११) २ चन्दन, श्रीखण्ड (से २, ११) ३ शीत, ढंढ़ी, जाड़ा (बृह १) ४ बर्फ, जमा हुआ जल (कप्प; जी ५) ५ पुं. छठवीं नरक- पृथिवी का पहला नरकेन्द्रक — नरक-स्थान (देवेन्द्र १२) ६ ऋतु-विशेष, मार्गशीर्षं तथा पौष का महीना (उप ७२८ टी) °कर पुं [°कर] चन्द्रमा, चाँद (सुपा ५१)। °गिरि पुं [°गिरि] हिमाचल पर्वंच (कुमा; भवि; सण)। °धाम पुं [धामन्] वही (धम्म ९ टी)। °नग पुं [°नग] वही (उप पृ ३४८)। °यर देखो °कर (पाअ)। °व, °वंत पुं [°वत्] १ वर्षंधर पर्वंत-विशेष; 'हिमवो य महाहिमवो' (पउम १०२, १०५; उवा; कप्प; इक) २ हिमाचल पर्वत (पि ३९६) ३ राजा अन्धकवृष्णि का एक पुत्र (अंत ३) ४ एक प्राचीन जैन मुनि, जो स्कन्दिलाचार्यं के शिष्य थे; 'हिमवंतखमासमणे वंदे' (णंदि ५२)। °वाय पुं [°पात] तुषार-पतन (आचा)। °सीयल पुं [°शीतल] कृष्ण पुदगल-विशेष (सुज्ज २०)। °सेल पुं [°शैल] हिमालय पर्वंत (उप २११ टी)। °गम पुं [°गम] ऋतु-विशेष, हेमन्त ऋतु (गा ३३०)। °णी स्त्री [°नी] हिम-समूह (कुप्र ३९७)। °यल पुं [°चल] हिमालय पर्वंत (सुपा ६३२)। °लय पुं [°लय] वही अर्थँ (पउम १०, १३; गउड)

हिर :: देखो किर = किल (हे १, १८६; कुमा)।

हिरडी :: स्त्री [दे] चील पक्षी की मादा (दे ८, ६८)।

हिरण्ण, हिरन्न :: न [हिरण्य] १ रजत, चाँदी (उवा; कप्प) २ सुवर्णं, सोना (आचा; कप्प) ३ द्रव्य, धन (सूअ १, ३, २, ८) °क्ख पुं [°क्ष्] एक दैत्य (से ४, २२)। °गब्भ पुं [°गर्भ] १ ब्रह्मा। २ प्रथम जिन भगवान् (पउम १०९, १२); 'गब्भट्ठिअ्स जस्स उ हिरण्णवुट्ठी सकंचणा पडिया तेणं हिरणणगब्भो जयम्मि उवगिज्जए उसभो।' (पउम ३, ६८)

हिरि :: अक [ह्री] लज्जित होना। हिरिआमि (अभि २५५)।

हिरि° :: देखो हिरी (णाया १, १६ — पत्र २१७; षड्)। °म वि [°मत्] लज्जालु, शरमिन्दा (उत्त ११, १३; ३२, १०३; पिंड ५२६)। °बेर पुं [°बेर] तृण-विशेष, सुगव्धवाला (पाअ; उतनि ३)।

हिरि :: पुं [हिरि] भालूक भालू का शब्द (पउम ४५)।

हिरिअ :: वि [ह्रीत] लज्जित (हे २, १०४)।

हिरिआ :: स्त्री [ह्रीका] लज्जा, शरम (उप ७०६; कुमा)।

हिरिंब :: न [दे] पल्वल, क्षुद्र तलाव (दे ८, ६९)।

हिरिमंथ :: पुं [दे] चना, अन्न-विशेष (दे ८, ७०)। देखो हरिमंथ।

हिरिली :: स्त्री [दे] कन्द-विशेष (उत्त ३६, ९८)।

हिरिवंग :: पुं [दे] लगुड, लट्ठी (दे ८, ६३)।

हिरी :: स्त्री [ह्री] १ लज्जा, शरम (आचा; हे २, १०४) २ महापद्म-ह्रद की अधिष्ठात्री देवी (ठा २, ३ — पत्र ७२) ३ उत्तर रुचक-पर्वंत पर रहनेवाली एक दिक्कुमारी देवी (ठा ८ — पत्र ४३७) ४ सत्पुरुष नामक किंपुरुषेद्र की एक अग्र महिषी (ठा ४, १ — पत्र २०४) ५ महाहिमवान् पर्वंत का एक कूट (इक) ६ देवप्रतिमा-विशेष (णाया १, १ टी — पत्र ४३)

हिरीअ :: देखो हिरिअ (हे २, १०४)।

हिरे :: देखो हरे (प्राप्र)।

हिला :: स्त्री [दे] भुजा, हाथ; 'बच्चामो पेच्छंता घणदलपावरण- साहुलिहिलाओ'। (पृथ्वी° चं° -शांतिसूरि)। साहुलिहिलाओ त्ति शाखाभुजाः। (पृथ्वी° चं° प्रथमभव. संकेतकार रत्‍नप्रभकृत)।

हिला, हिल्ला :: स्त्री [दे] वालुका, बालु, रेती (दे ८, ६६)।

हिल्लिय :: पुंस्त्री [दे] कीट-विशेष, त्रीन्द्रिय जन्तु की एक जाति (पणण १ — पत्र ४५)।

हिल्लिरी :: स्त्री [दे] मछली पकड़ने का जाल- विशेष (विपा १, ८ — पत्र ८५)।

हिल्लूरी :: स्त्री [दे] लहरी, तरङ्गं (दे ८, ६७)।

हिल्लोडण :: न [दे] खेत में पशुओं को रोकने की आवाज (दे ८, ६९)।

हिव :: देखो हव = भू। हिवइ (हे ४, २३८)।

हिसोहिसा :: स्त्री [दे] स्पर्धा (दे ८, ६९)।

ही :: अ [ही] इन अर्थों का सूचक अव्यय — १ विस्मय, आश्चर्यं (सिरि ४७३) २ दुःख (उप ५९७ टी) ३ विषाद, खेद। ४ शोक, दिलगीरी (श्रा १६; कुप्र ४३६; कुमा; रंभा; मन ३७) ५ वितर्कं (सिरि २६८) ६ कन्दर्पं का अतिरेक। ७ प्रशान्त-भाव का अतिशय (अणु १३९)

ही :: देखो हिरी (विसे २६०३)। °म वि [°मत्] लज्जाशील, लज्जालु (सूअ १, २, २, १८)।

हीं :: अ [ह्रीँ] मंत्राक्षर-विशेष, मायाबीज (सिरि १२१०)।

हीण :: वि [हीन] १ न्यून, कम, अपूर्णं (उवा; णाया १, १४ — पत्र १९०) २ रहित, वर्जित; 'हयं नाणं कियाहीणं' (हे २, १०४) ३ अधम, हलका। ४ निन्द्य, निन्दनीय (प्रासू १२५; उप ७२८ टी) ५ पुं. प्रतिवादि-विशेष (हे १, १०३)। °जाइल्ल वि [°जातिक] अधण जाति का, नीच जाति का (उप ७२८ टी)। °वाइ पुं [°वादिन्] वादि-विशेष (सुपा २८२)

हीण :: वि [ह्रीण] भीत (विपा १, २ टी — पत्र २८)।

हीमाणहे, हीमादिके :: (शौ) अ. १ विस्मय, आश्चर्यं। २ निर्वेद (हे ४, २८२; कुमा; प्राकृ ९८; मृच्छ २०२; २०६)

हीयमाण :: देखो हा।

हीयमाणग, हीयमाणय :: न [हीयमानक] अवधिज्ञान का एक भेद, क्रमशः कम होता जाता अवधिज्ञान (टा ६ — पत्र ३७०, णंदि)।

हीर :: देखो हर = हर (हे १, ५१; कुमा; षड्)।

हीर :: पुं [हीर] १ विषम भंग, असमान छेद (पणण १ — पत्र ३७) २ बारीक कुत्सित तृण, कन्द आदि में होती बारिके रेखा (जीव ३, ४; जी १२) ३ पुंन. हीरा, मणि- विशेष (स २०२; सिरि ११८६; कप्पू) ४ छन्द-विशेष (पिंग) ५ दाढा का अग्र भाग (से ४, १४)

हीर :: पुंन [दे] १ सूई की तरह तीक्ष्ण मुँह वाला काष्ठ आदि पदार्थं (दे ८, ७०; कस) २ भस्म (दे ८, ७०) ३ प्रान्त, अन्त भाग (गउड)

हीरंत :: देखो हर = हृ।

हीरणा :: स्त्री [दे] लाज, शरम (दे ८, ६७; षड्)।

हीरमाण :: देखो हर = हृ।

हील :: सक [हेलय्] १ अवज्ञा करना, तिरस्कार करना। २ निन्दा करना। ३ कदर्थन करना, पीड़ना। हीलइ (उव; सुख २, १९)। हीलंति (दस ९, १, २; प्रासू २९)। वकृ. हीलंत (सट्ठि ८६)। कवकृ. हीलिज्जंत, हीलिज्जमाण (उप पृ १३३; णाया १, ८ — पत्र १४४; प्रासू १६५)। कृ. हीलणिज्ज (णाया १, ३), हिलियव्व (पणह २, १ — पत्र १००; २, ५ — पत्र १५०)

हीलण :: स्त्रीन [हेलन] १ अवज्ञा, तिरस्कार। २ निन्दा (सुपा १०४)। स्त्री. °णी (पणह २, १ — पत्र १००; औप; उव; दस ९, १, ७; सट्ठि १००)

हीला :: स्त्री [हेला] ऊपर देखो (उव; उप पृ २१६; उप १४२ टी)।

हीलिअ :: वि [हीलित] १ निन्दित। २ अपमानित, तिरस्कृत (सुख २, १७; ओघ ५२६; कस; दस ९, १, ३) ३ पीड़ित, कदर्थित (आचा २, १६, ३)

हीसमण :: न [दे. हेषित] हेषारव, अश्व — घोड़े का शब्द (दे ८, ६८; हे ४, २५८)।

हीही, हीहीभो :: (शौ) अ. विदूषक का हर्षं-सूचक अव्यय (हे ४, २८५; कुमा; प्राकृ ९७; मोह ४१)।

हु :: अ [खलु] इन अर्थों का द्योतक अव्यय — १ निश्चय (हे २, १९८; से १, १५; कुमा; प्राकृ ७८; प्रासू ५४) २ ऊह, वितर्क (हे २, १९८; कुमा; प्राकृ ७८) ३ संशय, संदेह (हे २, १९८; कुमा) ४ संभावना (हे २, १९८; कुमा; प्राकृ ७८) ५ विस्मय़, आश्चर्य (हे २, १९८; कुमा) ६ किन्तु, परन्तु (प्रासू १०१) ७ अपि. भी; 'हु अविसद्दत्थम्मि व त्ति' (धर्मंसं १४० टी) ८ वाक्य की शोभा (पंचा ७, ३५) ९ पादपूर्त्ति, पाद-पूरण (पउम ८, १४९; कुमा)

हु, हुअ :: देखो हव = भू। हुअइ, हुएइ, हुंति, हुइरे, हुअइरे, हुज्ज, हुएज्ज, हुएइरे, हुएज्जइरे (पि ४७६; हे ४, ६१; पि ४५८; ४६६)। भवि. हुक्खामि, होक्खामि, हुक्खं (उत्त २, १२; सुख २, १२)। वकृ. हुंत (हे ४, ६१; सं ३४)।

हुअ :: देखो हुण = हु। हुअइ (प्राकृ ६९)। वकृ. हुअंत (धात्वा १५७)।

हुअ :: वि [हुत] १ होमा हुआ, हवन किया हुआ (सुपा २६३; स ५५; प्राकृ ६९) २ न. होम, हवन (सूअ १, ७, १२; प्राकृ ६९)। °वह पुं [°वह] अग्‍नि, आग (गा २११; पाअ; णाया १, १ — पत्र ६३; गउड)। °स पुं [°श] अग्‍नि (गउड; अज्झ १५०; भवि; हि १३)। °सन पुं [°शन] वही अर्थ (भग; से ५, ५७; पाअ)

हुअ :: देखो हूअ — भूत (प्राप्र; कुमा; भवि; सण)।

हुअंग :: देखो भुअंग; 'चंदनलट्ठिव्व हुअंगदूमिआ किं णु दूमेसि' (गा ९२६)।

°हुअग :: देखो भुअग (गा ८०९; पि १८८)।

हुं :: अ [हुम्] इन अर्थों का सूचक अव्यय — १ दान। २ पृच्छा, प्रश्‍न (हे २, १९७; प्राप्र, कुमा) ३ निवारण (हे २, १९७; कुमा) ४ निर्धारण (प्राप्र; रंभा) ५ स्वीकार (श्रा १२; कुप्र ३४५) ६ हुङ्कार, 'हुं' शब्द; 'हुं करंति घूअव्व' (सुपा ४९२) ७ अनादर (सिरि १५३)

हुंकय :: पुं [दे] अंजली, प्रणाम (दे ८, ७१)।

हुंकार :: पुं [हुङ्कार] १ अनुमति-प्रकाशक शब्द, हाँ (विसे ५६५, से १०, २४; गा ३५६; आत्मानु ९) २ 'हुं' आवाज, 'हुं' ऐसा शब्द (हे ४, ४२२; कप्पू; सुर १, २४६)

हुंकारिय :: न [हुङ्कारित] 'हुं' ऐसी की हुई आवाज (स ३७७)।

हुंकुरव :: पुं [दे] अंजलि, प्रणाम (दे ८, ७१)।

हुंड :: न [हुण्ड] १ शरीर को आकृति-विशेष, शरीर का वेढब अवयव (ठा ६ — पत्र ३५७; सम ४४; १४९) २ कर्मं-विशेष, जिसके उदय से शरीर का अवयव असंपूर्मं बेढ़ब — प्रमाण-शून्य अव्यवस्थित हो वह कर्मं (कम्म १, ४०) ३ वि. बेढ़ब अंगवाला (विपा १, १ — पत्र ५)। °वसप्पिणी स्त्री [°वसर्पिणी] वर्तंमानहीन समय (विचार ५०३)

हुंडी :: स्त्री [दे] घटा (पाअ)।

हुंबउट्ठ :: पुं [दे] वानप्रस्थ तापस की एक जाति (औप; भग ११, ९ — पत्र ५१५; ५१९)।

हुंहुय :: अक [हुं हुं + कृ] 'हुं' 'हुं' आवाज करना। वकृ. हुंहुयंत (चेइय ४९०)।

°हुच्च :: देखो पहुच्च = प्र + भू।

हुट्ठ :: देखो होट्ठ (आचा; पि ८४; ३३८)।

हुड :: पुं [दे] १ मेष, मेढ़ा (दे ८, ७०) २ श्वान, कुत्ता (मृच्छ २५३)

हुजुअ :: पुं [दे] प्रवाह (दे ८, ७०)।

हुडुक्क :: पुंस्त्री [दे. हुडुक्क] वाद्य-विशेष (औप; कप्पू; सण; विक्र ८७)। स्त्री. °क्का (राय; सुपा ५०; १७५; २४२)।

हुडुम :: पुं [दे] पताका, ध्वजा (दे ८, ७०; पाअ)।

हुडु :: पुंस्त्री [दे] होड़, बाजी, पण, शर्तं, दाँव। स्त्री. °ड्डा (दे ८, ७०; सुपा २७९; पव ३८); 'हुड्डाहुड्डं सुयंतेहि' (सम्मत्त १४३)। देखो होड्ड।

हुण :: सक [हु] होम करना। हुणइ (हे ४, २४१; भग ११, ९ — पत्र ५१६; कुमा)। कर्मं. हुव्वइ, हुणिज्जइ, हुणिज्जए (हे ४, २४२; कुमा)। कवकृ हुणिज्जमाण (सुपा ६७)। संकृ. हुणिऊण, हुणेऊण, हुणित्ता (षड्; भग ११, ९ — पत्र ५१६)।

हुणण :: न [हवन] होम (सुपा ६३)।

हुणिअ :: देखो हुअ = हुत (सुपा २१७; मोह १०७)।

हुत्त :: वि [दे] अभिमुख, संमुख (दे ८, ७०; हे २, १५८; गउड; भवि)।

हुत्त :: देखो हूअ = हूत (हे २, ९९)।

°हुत्त :: देखो हूअ = भूत (गा २४५; ८९६)।

°हुमआ :: देखो भुमआ (गा ५०५; पि १८८)।

हुर :: देखो फुर = स्फुर्। बकृ. 'कंतीए हुरंतीए' आदि (कुप्र ४२०)।

हुरड :: पुंस्त्री [दे] तृण आदि से कुछ कुछ पकाया हुआ चना आदि धान्य, होला — होरहा (सुपा ३८९; ४७३)।

हुरत्था :: अ [दे] बाहर (आचा १, ८, २, १; ३, २, १, ३, २; कस)।

हुरुडी :: स्त्री [दे] विपादिका, रोग-विशेष (धे ८, ७१)।

हुल :: सक [क्षिप्] फेंकना। हुलइ (हे ४, १४३; षड्)।

हुल :: सक [मृज्] मार्जंन-करना, साफ करना। हुलइ (हे ४, १०५; षड्)।

हुलण :: वि [मार्जन] सफा करनेवाला (कुमा ६, ६८)।

हुलण :: न [क्षेपण] फेंकना (कुमा)।

हुलिअ :: वि [दे] १ शीघ्र, वेग-युक्त; 'मइ पवणहुलिए' (दे ८, ५९) २ न. शीघ्र, जल्दी, तुरंत (पणह १, १ — पत्र १४; स ३५०; उप ७२८ टी)

हुलुभुलि :: स्त्री [दे] कपट, दम्भ (नाट — मृच्छ २८२)।

हुलुव्वी :: स्त्री [दे] प्रसव-परा, निकट-भविष्य में प्रसव करनेवाली स्त्री दे ८, ७१)।

°हुल्ल :: देखो फुल्ल = फुल्ल (भवि)।

हुव :: देखो हुण = हु। हुवइ (प्राकृ ६९)।

हुव :: देखो हव = भू। हुवंति (हे ४, ६०; प्राप्र)। भूका. हुवीअ (कुमा ५, ८८)। भवि. हुलिस्संति (पि ५२१)। वकृ. हुवंत, हुवमाण, हुवेमाण (षड्)। संकृ. हुविअ (नाट — चैत ५७)।

हुव :: (अप) देखो हूअ = भूत (भवि)।

हुव :: (अप) देखो हुअ = हुत (भवि)।

हुव्व :: °देखो हुण = हु।

°हुव्वंत :: देखो धुव्वंत = धुव = घाव् (से ९, ३४)।

हुस्स :: देखो हस्स = ह्रस्व (आचा; औप; सम्मत्त १९०)।

हुहुअ :: पुंन [हुहुक] देको हूहूअ (अणु ९९; १७९)।

हुहुअंग :: पुंन [हुहुकाङ्गं] देखो हूहूअंग (अणु ९९; १७९)।

हुहुरु :: अ [हुहुरु] अनुकरण-शब्द-विशेष, 'हुहुरु' ऐसा शब्द (हे ४, ४२३; कुमा)।

हूअ :: देखो भूअ = भूत (हे ४, ६४; कुमा; श्रा १४; १६; महा; सार्ध १०५)।

हूअ :: वि [हूत] आहूत, आकारित (हे २, ९९)।

हूअ :: देखो हुअ = हुत; 'मन्‍ने पंचसरो पुरा भगवया ईसेण हूओ सयं, कोहधेण सआसुगोवि संधणुद्दंडोवि णित्तानले' (रंभा २५)।

हूण :: पुं [हूण] १ एक अनार्य देश। २ वि. उसका निवासी मनुष्य (पणह १, १ — पत्र १४; कुमा)

हूण :: देखो हीण = हीन (हे १, १०३; षड्)।

हूम :: पुं [दे] लोहार (दे ८, ७१)।

हूसण :: देखो भूसण (गा ६५५; पि १८८)।

हूहू :: पुं [हूहू] गन्धर्वं देवों की जाती (धर्मंवि ४८; सुपा ५९)।

हूहूअ :: पुंन [हूहूक] संख्या-विशेष, 'हूहूअंग' को चौरासी लाख से गुनने पर जो संख्या लब्ध हो वह (ठा २, ४ — पत्र ८६; अणु २४७)।

हूहूअंग :: पुंन [हूहूकाङ्गं] संक्या-विशेष, 'अवव' को चौरासी लाश से गुनने पर जो संख्या लब्ध हो वह (ठा २, ४ — पत्र ८६; अणु २४७)।

हे :: अ [हे] इन अर्थों का सूचक अव्यय — १ संबोधन। २ आह्वान। ३ असूया, ईर्ष्या (हे २, २१७ टि; पि ७१; ४०३; भवि)

हेअ :: देखो हा = हा।

°हेअ :: देखो भेअ = भेद (गा ८२७)।

हेअंगवीण :: न [हैयङ्गवीन] १ नवनीत, मक्खन। २ ताजा घी (नाट — साहित्य २३९)

हेआल :: पुं [दे] हस्त-विशेष से निषेध; साँप के फण की तरह किए हुए हाथ से निवारण (दे ८, ७२)।

हेउ :: पुं [हेतु] १ कारण, निमित्त; 'हेऊइं' (राय २६; उवा; पणह २, २ — पत्र ११४; कप्प; गउड; जी ५१; महा; पि ३५८) २ अनुमान- वाक्य, पंचावयव वाक्य (उत्त ९, ८; सुख ९, ८) ३ अनुमान का साधन (धर्मंसं ७७; ठा ४, ४ टी — पत्र २८३) ४ प्रमाण (अणु) °वाय पुं [°वाद] १ बराहवाँ जैन अंग-ग्रन्थ दृष्टिवाद (ठा १० — पत्र ४९१) २ तर्कंवाद, युक्तिवाग (सम्म १४०; १४२)

हेउअ :: वि [हैतुक] १ हेतुवाद को माननेवाला, तर्कवादी; 'जो हेउवायपक्खम्मिहेउओ आगमे य आगमिओ' (सम्म १४२; उवर १५१) २ हेतु का, हेतु से संबन्ध रखनेवाला। स्त्री. °उई (विसे ५२२)

हेच्च, हेच्चाणं :: देखो हा = हा।

हेज्ज :: देखो हर = हृ।

हेट्ठ :: स्त्री [अधस्] नीचे, गुजराती में 'हेठ'; 'नग्गोहहेट्ठम्मि' (सुर १, २०५; पि १०७; हे २, १४१; कुमा; गउड); 'हेट्ठओ' (महा)। स्त्री. °ट्ठा (औप; महा; पि १०७; ११४)। °मुह वि [°मुख] अवाङमुख; जिसने मुँह नीचा किया हो वह (विपा १, ६ — पत्र ६८; दे १, ९३; भवि)। °वणि वि [°अवनी] महाराष्ट्र देश का निवासी, मरहट्टा — मरहठा (पिंड ६१६)।

हेट्ठिम, हेट्ठिल :: वि [अधस्तन] नीचे का (सम १९; ४१; भग; हे २, १६३; सम ८७; षड्; औप)।

हेडा :: स्त्री [दे] १ घटा, समूह (सुपा ३८६; ५३०) २ द्युत आदि खेलने का स्थान, अखाड़ा (धम्म १२ टी)

हेडिस, हेदिस :: (अशो) देखो एरिस (पि १२१)।

हेपिअ :: वि [दे] उन्‍नत, ऊँचा (षड्)।

हेम :: न [हेम] १ सुवर्णं, सोना (पाअ; जं ४; औप; संक्ष १७) २ धत्तूरा। ३ मासे का परिमाण। ४ पुं. काला घोड़ा। ५ वि. पंडित (संक्षि ७) ६ पुं. एक विद्याधर राजा (पउम १०, २१) °चंद पुं [°चन्द्र] १-२ विक्रम की बारहवीं शताब्दी के दो सुप्रसिद्ध जैन आचार्यं तथा ग्रन्थकार (दे ८, ७७; सुपा ६५८) ३ विक्रम की पनरहवीं शताब्दी का एक जैन मुनि (सिरि १३४१)। °जाल न [°जाल] सुवर्णं की माला (औप)। °तिलय पुं [°तिलक] विक्रम की चौदहवीं शताब्दी का एक जैनाचार्य (सिरि १३४०)। °पुर न [°पुर] एक विद्याधर-नगर (इक)। °मय वि [°मय] सोने का बना हुआ (शुपा ८८)। °महिहर पुं [°महिधर] मेरु पर्वंत (गउड)। °मालिणी स्त्री [°मालिनी] एक दिक्कुमारी देवी (इक)। °व पुं [°वत्] फाल्गुन मास (सुज्ज १०, १९)। °विमल पुं [°विमल] एक जैन आचार्य (कुम्मा ३५)। °भ पुं [°भ] चौथी नरक-पृथिवी का एक नरक-स्थान (निर १, १)

हेमंत :: पुं [हेमन्त] १ ऋतु-विशेष, मगसिर या अगहन तथा पोस या पूस महिना (पाअ, आचा; कप्प; कुमा) २ शीतकाल (दस ३, १२)

हेमंत :: वि [हैमन्त] हेमन्त ऋतु में उत्पन्न (सुज्ज १२ — पत्र २१९)।

हेमंतिअ :: वि [हैमन्तिक] ऊपर देखो (कप्प; औप; गा ६६; राय ३८)।

हेमग :: वि [हैमक] हिम का हिम-संबन्धी (ठा ४, ४ — पत्र २८७)।

हेमवइ, हेमवय :: पुंन [हैमवत] १ वर्षं-विशेष, क्षेत्र- विशेष (इक; सम — १२; जं ४ — पत्र २९९; ३००; ठा २, ३ टी — पत्र ६७; पउम १०२, १०६) २ हिमवंत पर्वंत का एक शिखर। ३ कूट-विशेष (इक) ४ वि. हिमवंत पर्वंत का (राय ७४; औप) ५ पुं. हैमवत क्षेत्र का अधिष्ठाता देव (जं ४ — पत्र ३००)

हेम्म :: देखो हेम (संक्षि १७)।

हेर :: सक [हे] १ देखना, निरीक्षण करना। २ खोजना, अन्वेषण करना। वकृ. हेरंत (पिंग)। संकृ. होरऊण (धर्मंवि ५४)

हेरंब :: पुं [हे] १ महिष, भेंसा। २ डिण्डिम, वाद्य-विशेष (दे ८, ७६)

हेरण्णवय :: पुंन [हेरण्यवत] १ वर्षं-विशेष, एक युगलिकक्षेत्र (इक, पउम १०२, १०६) २ रुक्मि पर्वंत का एक शिखर। ३ शिखरी पर्वंत का एक शिखर (इक २१८)

हेरण्णिअ :: पुं [हैरण्यिक] सुवर्णंकार (उप पृ २१०)।

हेरन्नवय :: देखो हेरण्णवय (ठा २, ३ — पत्र ६७; ७९)।

हेरिअ :: पुं [हेरिक] गुप्त चर, जासूस (सुपा ४६४, ५८६)।

हेरिंब :: पुं [दे. हेरम्ब] विनायक, गणेश (दे ८, ७२; षड्)।

हेरुयाल :: सक [दे] क्रुद्ध करना, गुस्सा उपजाना। हेरुयालंति (णाया १, ८ — पत्र १४४)।

हेला :: स्त्री [हेला] १ स्त्री की श्रृङ्गार-संबन्धी चेष्टा-विशेष (पाअ) २ अनादर (पाअ; से १, ५५) ३ अनायास, अल्प प्रयास, सहलाई, सरलता (से १, ५५; कप्पू; प्रवि ११; पि ३७५)

हेला :: स्त्री [दे. हेला] वेग, शीघ्रता (दे ८, ७१; कप्पू; प्रबि ११; पि ३७५)।

हेलिय :: पुं [हैलिक] एक तरह की मछली (जीव १ टी — पत्र ३६)।

हेलुअ :: न [दे] क्षुत, छींक (दे ८, ७२)।

हेलुक्का :: स्त्री [दे] हिक्का, हिचकी (दे ८, ७२)।

हेल्लि :: (अप) अ [हली] सखी का आमन्त्रण, हे सखि (हे ४, ४२२; ३७९; पि १०७)।

हेवं :: (अशो) देखो हेवं (पि ३३६)।

हेवाग :: पुं [हेवाक] स्वभाव, आदत (राज)।

हेसमण :: वि [दे] उन्नत, ऊँचा (षड्)।

हेसा :: स्त्री [हेषा] अश्‍व-शब्द (सुपा २८८; श्रा २७)।

हेसिअ :: न [हेषित] ऊपर देखो (दे ८, ६८; पउम ५४, ३०; औप; महा; भवि)।

हेसिअ :: न [दे. हेषित] रसित, चीत्कार (षड्)।

हेहंभूअ :: वि [दे] गुण-दोष के ज्ञान से रहित और निर्दंम्भ, अज्ञ किन्तु निखालस (वव १)।

हेहय :: पुं [हैहय] १ एक राजा (राज) २ °डिंब पुं [°डिम्ब] एक विद्याधर राजा (पउम १०, २०)

हो :: देखो हव = भू। होइ, होअण, होअए, होएइ, होंति, होइरे, होअइरे (हे ४, ६०; षड्; कप्प; उव; महा; पि ४५८; ४७३)। होज्ज, होज्जा, होएज्ज, होएज्जा, होउ (हे ३, १५९; १७७; भग; प्राप्र; पि ४६६)। भऊका. होत्था, होहीअ (कप्प; प्राप्र)। भवि. होहिइ, होहिंति, होहामि, होहिमि, होस्सं, होस्सामि, होक्खइ, होक्खं (ह ३, १६६; १६७; १६९; प्राप्र; पि ५२१), होसइ (अप) (हे ४, ३८८)। कर्मं. होइज्जइ, होइज्जए, होईअइ (षड्; पि ४७६) वकृ. होंत, होमाण (हे ३, १८०; ४, ३५५; ३७२; कुमा; पि ४७६)। संकृ. होऊण, होऊणं, होअऊण, होइऊण, हविय होत्ता (गउड; पि ५८५; ५८६; कुमा)। हेकृ. होउं, होत्तए (महा; पि ४७५; कप्प)। कृ. होयव्व (कप्प; महा; उव; प्रासू १६; ६१)।

हो :: अ [हो] इन अर्थों का सूचक अव्यय — १ विस्मय, आश्चर्य (पाअ; नाट — मृच्छ ११२) २ संबोधन, आमन्त्रण (संक्षि ४७; उप ५९७ टी)

होउ :: वि [होतृ] होम-कर्ता (गा ७२७)।

होंड :: देखो हुंड (विचार ५०७)।

होट्ट :: पुं [ओष्ठ] होठ, ओठ (आचा)।

होड्ड :: देखो हुड्ड; 'तो हं छोडेमि होड्डओ' (सुपा २७७, २७८)।

होढ :: पुं [होड] मोष, चोरी का वस्तु (णाया १, २ — पत्र ८६; पिंड ३८०)।

होण :: देखो हूण = हूण (पव २७४; विचार ४३)।

होत्तिय :: पुं [होत्रिक] १ वानप्रस्थ तापसों का एक वर्गं, अग्‍निहोत्रिक वानप्रस्थ (औप; भग ११, ९ — पत्र ५१५) २ न. तृण- विशेष (पणण १ — पत्र ३३)

होम :: पुं [होम] हवन, अग्‍नि में मन्त्र-पूर्वंक घृत आदि का प्रक्षेप (अभि १५९)।

होम :: सक [होमय्] होम करना। हेकृ. होमिउं (ती ८)।

होमिअ :: वि [होमित] हवन किया हुआ, 'अणत्थपंडियकुकव्वहविहोमिओ' (स ७१४)।

होरंभा :: स्त्री [होरम्भा] वाद्य-विशेष, महा- ढक्का, बड़ा ढोल (ऱाय ४६)।

होरण :: न [दे] वस्त्र, कपड़ा (दे ८, ७२; हगा ७७१)।