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विक्षनरी:ब्रजभाषा सूर-कोश खण्ड-२

विक्षनरी से

ब्रजभाषा सूर-कोश द्वितीय खण्ड

[सम्पादन]
देवनागरी वर्णमाला का प्रथम व्‍यंजन। कंठ्य और स्‍पर्श वर्ण।


कं
जल।
संज्ञा
[सं. कम्]


कं
अस्तक।
सिंभु भव के पत्र वन दो बजे चक्र अनूप। देव कं को छत्र छावत सकल सोभा रूप।
संज्ञा
[सं. कम्]


कं
अग्नि।
संज्ञा
[सं. कम्]


कं
कम।
संज्ञा
[सं. कम्]


कं
सोना।
संज्ञा
[सं. कम्]


कं
सुख।
संज्ञा
[सं. कम्]


कँउधा
बिजली की चमक।
संज्ञा
[हिं. कौंधना]


कंक
सफेद चील।
संज्ञा
[सं.]


कंक
बगुला।
संज्ञा
[सं.]


कंकना
कलाई में पहनने का कड़ा।
तज्यौ तेल तमोल भूषन अंग बसन मलीन। कंकना कर बाम राख्यौ गढ़ी भुज गहि लीन - ३४५१।
संज्ञा
[सं. कंकण]


कँकरील
जिसमें कंकड़ अधिक हों।
वि.
[हिं. कंकड़, कँकड़ीला]


कंकाल
हड्डियों का ढाँचा, ठठरी, अस्थिपंजर।
संज्ञा
[सं.]


कंकालिनी
दुर्गा का एक नाम।
संज्ञा
[सं.]


कंकालिनी
कर्कशा स्त्री।
संज्ञा
[सं.]


कंकालिनी
झगड़ालू, दुष्टा।
वि.


कंकाली
किंगरी बजाकर भीख माँगनेवाली जाति।
संज्ञा
[सं. कंकाल]


कंकाली
दुर्गा।
संज्ञा
[सं. कंकालिनी]


कंकाली
झगड़ालू, दुष्टा, कर्कशा।
वि.


कंकोल
शीतल चीनी की जाति का एक वृक्ष।
संज्ञा
[सं.]


कंक
यम।
संज्ञा
[सं.]


कंक
युधिष्ठिर का कल्पित नाम जो उन्होंने राजा विराट के यहाँ रखा था।
संज्ञा
[सं.]


कंक
कंस का एक भाई।
संज्ञा
[सं.]


कंकड़
छोटा टुकड़ा, पत्थर का टुकड़ा, रोड़ा।
संज्ञा
[सं. कर्कर, प्रा. कक्कर]


कँकड़ीला
जिसमें कंकड़ अधिक हों।
वि.
[हिं, कंकड़]


कंकण
कड़ा या चूड़ा नामक आभूषण जो कलाई में पहना जाता है।
संज्ञा
[सं.]


कंकण
एक धागा जिसमें सरसों की पुटली, लोहे का छल्‍ला आदि बाँधकर दुलहिन और दूल्हे के हाथ में पहनाते हैं। विवाह के पश्चात दूल्‍हा दुलहिन का और दुलहिन दूल्हे का कंकण खोलती है।
संज्ञा
[सं.]


कंकण
ताल का एक भेद।
संज्ञा
[सं.]


कंकन
कलाई में पहनने का एक आभूषण, कंगन, चूड़ा।
तेरो भलो मनैहौं झगरिनि, तू मत मनहिं डरै। दीन्हौं हार गर, कर कंकन, मोतिनि थार मरे - १०-१७।
संज्ञा
[सं. कंकण]


कंकन
एक धागा जिसमें सरसों की पुटली, लोहे का छल्ला आदि बाँधकर दुलहिल और दूल्हे के हाथ में बाँधते हैं। विवाह के पश्चात दूल्हा दुल्हिन का कंकन खोलता है और दुलहिन दूल्हे का खोलती है।
कर कंपै, कंकन नहिं छूटै। राम-सिया-कर परस मगन भए, कौतुक निरखि सखी सुख लूटैं-६-२५।
संज्ञा
[सं. कंकण]


कंठहार
गले को एक गहना, कंठी।
संज्ञा
[सं.]


कंठा
पक्षियों के गले में पड़ने वाली रंग-बिरंगी रेखा।
संज्ञा
[हिं. कंठ]


कंठा
गले का एक गहना जिसमें सोने, मोती आदि के मनके होते हैं।
संज्ञा
[हिं. कंठ]


कंठा
कुरते अदि पहनावों का गले पर पड़नेवाला भाग।
संज्ञा
[हिं. कंठ]


कंठाग्र
जो जबानी याद हो।
वि.
[सं.]


कंठी
माला जो छोटी छोटी गुरियों की बनी हो।
संज्ञा
[हिं. कंठ का अल्पा.]


कंठी
तुलसी आदि की माला।
संज्ञा
[हिं. कंठ का अल्पा.]


कंठ्य
जो गले से उत्पन्न हो।
वि.
[सं.]


कंठ्य
जिसका उच्चारण कंठ से हो।
वि.
[सं.]


कंठ्य
वह वर्ण जिसका उच्चारण कंठ से हो।
संज्ञा


कमलाकर
सरोवर।
संज्ञा
[सं.]


कमलाग्रजा
लक्ष्मी की बड़ी बहन, दरिद्रा।
संज्ञा
[सं. कमला=लक्ष्मी- +अग्रजा=बड़ी बहन]


कमलापति
लक्ष्मीपति विष्णु के अवतार श्री रामचंद्र।
तीनि जाम अरु बासर बीते, सिंधु गुमान भरयौ। कीन्हौ कोप कुँवर कमलापति, तब कर धनुष धरयौ–९ - १२२।
संज्ञा
[सं.]


कमलापति
श्रीकृष्ण।
हमसों कठिन भए कमलापति काहि सुनावौ रोई - २८८१।
संज्ञा
[सं.]


कमलापति
विष्णु।
संज्ञा
[सं.]


कमलावली
कमलों की पाँति, कमल-समूह।
विकसत कमलावली, चले प्रपुंज-चंचरीक, गुंजत कलकोमल धुनि त्यागि, कंज न्यारे - १० - २०५।
संज्ञा
[सं. कमल+अवली]


कमलासन
ब्रह्मा।
संज्ञा
[सं.]


कमलिनी
कमल।
संज्ञा
[सं.]


कमलिनी
वह तालाब जिसमें कमल हों।
संज्ञा
[सं.]


कमली
छोटा कंबल।
संज्ञा
[हि. कंबल]


गिरीश, गिरीस
सुमेरु पर्वत।
संज्ञा
[सं. गिरि+ईश]


गिरीश, गिरीस
कैलाश पर्वत।
संज्ञा
[सं. गिरि+ईश]


गिरीश, गिरीस
गोवर्द्धन पर्वत।
संज्ञा
[सं. गिरि+ईश]


गिरे
(जमीन पर) आ पड़े, गिर पड़े।
यह सुनत तब मातु धाईं, गिरे जानि झहरि-१०-६७।
क्रि. अ.
[हिं. गिरना]


गिरेबान
कुरते, कोट आदि का गला।
संज्ञा
[फ़ा. गरेबान]


गिरैयाँ
गले की रस्सी।
संज्ञा
[हिं. गेराँव (पत्य.)]


गिरैयाँ
जो गिरने को हो, जो गिर रहा हो, गिरनेवाला।
वि.
[हिं. गिरना]


गिरों
रेहन, बंधक, गिरवीं।
वि.
[फ़ा.]


गिर्गिट
गिरगिटान।
संज्ञा
[हिं. गिरगिट]


गिर्द
आसपास, चारो ओर।
अव्‍य.
[फ़ा.]


गिर्दावर
घूमनेवाला।
वि.
[फ़ा.]


गिर्दावर
दौरा करके जाँचनेवाला।
वि.
[फ़ा.]


गिरथी
मारा गया, मरकर गिरा।
कनक-मृग मारीच मारयौ, गिरयौ लषन सुनाइ-९६०।
क्रि. अ.
[हिं. गिरना]


गिल
मिट्टी।
संज्ञा
[फ़ा.]


गिल
गारा।
संज्ञा
[फ़ा.]


गिल
मगर, ग्राह।
संज्ञा
[सं.]


गिल
वह जो निगल ले या भक्षण कर ले।
संज्ञा
[सं.]


गिलई
निगल ले, खा डाले।
क्रि. स.
[हिं. गिलना]


गिलगिल
नक, मगर।
संज्ञा
[सं.]


गिलगिलिया
एक चिड़िया।
संज्ञा
[अनु.]


गिलटी
शरीर के संधि स्थानों की गाँठ।
संज्ञा
[सं. ग्रंथि]


गिलटी
शरीर के संधि स्थानों का सूजा हुआ भाग जो गाँठ के आकार का हो जाता है।
संज्ञा
[सं. ग्रंथि]


गिलन
निगलना।
संज्ञा
[सं.]


गिलना
निगलना।
क्रि. स.
[सं. गिरण]


गिलना
मन में रखना, प्रकट न करना।
क्रि. स.
[सं. गिरण]


गिलबिला
पिलपिला, मुलायम।
वि.
[अनु.]


गिलबिलाना
अस्पष्ट बात कहना।
क्रि. अ.
[अनु.]


गिलम
ऊनी कालीन।
संज्ञा
[फ़ा. गिलमि=कंबल]


गिलम
मुलायम बिछौना या गद्दा।
संज्ञा
[फ़ा. गिलमि=कंबल]


गिलम
जो बहुत मुलायम या कोमल हो।
वि.


गिलगिन
एक कपड़ा।
संज्ञा
[देश.]


गिलहरा
एक कपड़ा।
संज्ञा
[देश.]


गिलहरा
पान का बेलहरा।
संज्ञा
[देश.]


गिलहरी
एक छोटा जंतु, गिलाई, चिखुरी।
संज्ञा
[सं. गिरि=चुहिया]


गिला
उलाहना।
संज्ञा
[फ़ा.]


गिला
शिकायत, निंदा।
संज्ञा
[फ़ा.]


गिलान, गिलानि
घृणा, नफरत।
संज्ञा
[सं. ग्लानि]


गिलान, गिलानि
लज्जा।
संज्ञा
[सं. ग्लानि]


गिलाफ
तकिए आदि का खोल।
संज्ञा
[अ. ग़िलाफ़]


गिलाफ
बड़ी रजाई।
संज्ञा
[अ. ग़िलाफ़]


गिलाफ
म्यान।
संज्ञा
[अ. ग़िलाफ़]


गिलाव, गिलावा
गारा।
संज्ञा
[फा. गिल+आब]


गिलि
निगल कर, बिना दाँतों से चबाये गले में उतार कर।
क्रि. स.
[हिं. गिलना]


गिलि
नष्ट हो गयी, प्रभावरहित हो गयी।
बेनु के राज मैं औषधी गिलि गईं, होइहैं सकल किरपा तुम्हारी-४-११।
क्रि. स.
[हिं. गिलना]


गिलिम
ऊनी कालीन।
संज्ञा
[हिं. गिलम]


गिलिम
मुलायम गद्दा या बिछौना।
संज्ञा
[हिं. गिलम]


गिलिहै
मन ही मन में रखेगी, प्रकट न करेगी।
की धौं हमहिं देखि उठि हमकौं मिलिहै कीधौं बाति उघारि कहैगी की मन ही गिलिहै–१२६५।
क्रि. स.
[हिं. गिलना]


गिली
गुल्ली डंडे के खेल की छोटी गुल्ली।
संज्ञा
[हिं. गुल्ली]


गिले
निगल गये।
(क) आजु जसोदा जाइ कन्हैया महा दुष्ट इक मारयौ। पन्नग-रूप गिले सिसु गोसुत, इहिं सब साथ उबारयौ-४३३।
क्रि. स.
[हिं. गिलना]


गिले
गुप्त रखा, प्रकट न किया।
क्रि. स.
[हिं. गिलना]


गिले
उलाहना।
खरिकहू नहिं मिलै कहै कह अनभले करन दै गिले तू दिननि थोरी।
संज्ञा
[फ़ा. गिला]


गिले
शिकायत, निंदा।
संज्ञा
[फ़ा. गिला]


गिलेफ
तकिए आदि का खोल।
संज्ञा
(हिं. गिलाफ]


गिलो, गिलोय
गुरुच, गुड़ूची।
संज्ञा
[फ़ा.]


गिलोला
मिट्टी की छोटी गोली जो गुलेल से फेकी जाती है।
संज्ञा
[फ़ा. गुलेला]


गिलौरी
पान या मलाई का बीड़ा जो तिकोना-चौकोना होता है।
संज्ञा
[देश.]


गिल्यान
घृणा, नफरत।
ताके मन उपजी गिल्यान। मैं कीन्ही बहु जिय की हान।
संज्ञा
[सं. ग्लानि]


गिल्ली
उलाहना।
संज्ञा
[फ़ा. गिला]


गिल्ली
शिकायत, निंदा।
संज्ञा
[फ़ा. गिला]


गिल्ली
गुल्ली।
संज्ञा
[हिं. गुल्ली]


गिष्ण, गिष्णु
गवैया।
संज्ञा
[सं.]


गींजना
मोसना, दबाना, मलना, मसलना।
क्रि. स.
[हिं. मींजना]


गींव
गर्दन, गला।
संज्ञा
[सं. ग्रीव]


गी
बोलने की शक्ति।
संज्ञा
[सं.]


गी
सरस्वती।
संज्ञा
[सं.]


गीउ
गरदन।
संज्ञा
[सं. ग्रीव]


गीठम
घटिया कालीन या गलीचा।
संज्ञा
[देश.]


गीड़, गीड़र
आँख का मैल, मैल।
संज्ञा
[हिं. कीट=मैल]


गीत
गाना, गाने की चीज।
संज्ञा
[सं.]


गीत
गीत गाना- बड़ाई करना।

अपना ही गीत गाना- अपनी ही हाँके जाना।

मु.


गीत
बड़ाई, यश।
संज्ञा
[सं.]


गीत
गीत का नायक।
संज्ञा
[सं.]


गीता
उपदेश।
संज्ञा
[सं.]


गीता
भगवद् गीता।
(क) वेद, पुरान, भागवत, गीता, सबकौ यह मत सार -१-६८।

(ख) समुझति नहीं ग्यान गीता कौ हरि मुसुकानि अरे-३११०।

संज्ञा
[सं.]


गीता
एक राग।
संज्ञा
[सं.]


गीता
एक छंद।
संज्ञा
[सं.]


गीता
कथा-वृत्तांत।
संज्ञा
[सं.]


गीति
गान, गीत।
(क) चर-अचर-गति बिपरीत। सुनि बेनु-कल्पित गीति - ६२३।

(ख) सूर बिरह ब्रज भलो न लागत जहीं ब्याहु तही गीति-३१९३।

संज्ञा
[सं.]


गीति
एक छंद।
संज्ञा
[सं.]


गीतिका
एक छंद।
संज्ञा
[सं.]


गीतिका
गाना।
संज्ञा
[सं.]


गीतिरूपक
रूपक जिसमें गद्य कम और पद्य अधिक हो।
संज्ञा
[सं.]


गीदड़, गीदर
सियार।
संज्ञा
[सं. गृध्र। फ़ा. गीदी]


गीदड़, गीदर
कायर, डरपोक, असाहसी।
वि.


गीध
गिद्ध पक्षी।
संज्ञा
[सं. गृध्र, हिं. गिद्ध]


गीध
जटायु पक्षी जिसको भगवान ने तारा था।
संज्ञा
[सं. गृध्र, हिं. गिद्ध]


गीधना
ललचना, परचना।
क्रि. अ.
[सं. गृध=लुब्ध]


गीधि
ललचकर, परचकर।
जानि जु पाए हौं हरि नीकैं। चोरि चोरि दधि माखन मेरौ, नित प्रति गीधि रहे हौ छींकैं-१०-२८७।
क्रि. अ.
[हिं. गीधना]


गोधिनी
गिद्ध की मादा।
बग-बगुली अरु गीध-गीधिनी आई जन्म लियौ तैसी-२-२४।
संज्ञा
[हिं. पुं. गिद्ध]


गीधे
ललचाये, परचे।
(क) इंद्री लई नैन अब लीने स्यामहिं गीधे भारे--पृ. ३२०। (ख) अब हरि कौन के रस गीधे-३२३६। (ग) लोचन लालच ते न टरे। हरि सारँग सों सारँग गीधे दधि सुत काज अरे -सा. उ. ६।
क्रि. अ.
[हिं. गीधना]


गीध्‍यौ
परच गया, ललचा गया, लिप्त रहा।
(क) गीध्यौ दुष्ट हेम तस्कर ज्यों, अति आतुर मतिमंद - १-१०२। (ख) धोखैं ही धोखैं डहकायौ। समुझि न परी, विषय-रस गीध्यौ हरि-हीरा घर माँझ गँवायौ-१-३२६।

(ग) स्याम रूप में मन गीध्यौ भलो बुरौ कहौ कोई-१४६३।

क्रि. अ. (भूत.)
[हिं. गाँधना]


गीर
वाणी।
संज्ञा
[सं. गिर या गी:]


गीरवाण, गीरवान
देवता।
संज्ञा
[सं. गीर्वाण]


गीर्ण
जिसका वर्णन किया गया हो।
वि.
[सं.]


गीर्ण
निगला हुआ।
वि.
[सं.]


गीर्वाण
देवता, सुर।
संज्ञा
[सं.]


गीला
भीगा हुआ, तर, नम।
वि.
[हिं. गलना]


गीला
एक लता।
संज्ञा
[देश.]


गीलापन
नमी।
संज्ञा
[हिं. गीला+पन (प्रत्य.)]


गीली
एक बड़ा पेड़।
संज्ञा
[देश.]


कमाइच
सारंगी बनाने की कमानी।
संज्ञा
[हिं. कमानी]


कमाई
संचय की, एकत्र की।
लंका फिरि गई राम दोहाई। कहति मंदोदरि सुनि पिय रावन, तैं कहा कुमति कमाई - ९ - १४०।
क्रि. स.
[हिं. कमाना]


कमाई
कमाया हुआ धन।
भानु भानुसुत सी सुभान मम सबहित सरस कमाई–सा. - १६।
संज्ञा


कमाई
कमाने का धंधा, व्यवसाय।
संज्ञा


कमाऊ
धन कमानेवाला।
वि.
[हिं. कमाना]


कमान
धनुष।
(क) कुबुधि-कमान चढ़ाई कोप करि, बुधि-तरकस रितयौ १ - ६४ (ख) पिय बिन बहत बैरिन बाय। मदन बान कमान ल्यायौ करषि कोप चढ़ाय - सा. ३२।
संज्ञा
[फा.]


कमान
इद्रधनुष।
संज्ञा
[फा.]


कमान
तोप, बंदूक।
संज्ञा
[फा.]


कमाना
धन पैदा करना।
क्रि. स.
[हिं. काम]


कमाना
सेवा के काम करना।
क्रि. स.
[हिं. काम]


गीली
भीगी हुई, तर।
(क) पग द्वै चलति ठठकि रहै ठाढ़ी मौन धरे हरि के रस गीली–१३०९।

(ख) कुच कुंकुम कंचुकि बँद टूटे लटक रही लट गीली-१८४६।

वि.
[हिं. पुं. गीला]


गीव, गीवा
गरदन, गला।
संज्ञा
[सं. ग्रीवा]


गुंग, गुंगा
जो बोल न सके, मूक, गूँगा।
भक्ति बिन बैल बिराने ह्वैहौ। पाउँ चारि, सिर सृंग गुंग मुख, तब कैसैं गुन गैहौ - १-३३१।
वि.
[हिं. गूँगा]


गुंग, गुंगा
गूँगा मनुष्य।
बोलै गुंग, पंगु गिरि लंघै अरु आवै अंधौ जग जोइ-१-९५।
संज्ञा


गुंगी
दोमुहाँ साँप।
संज्ञा
[हिं. गूँगा]


गुंगी
जो (स्त्री) बोल न सके।
वि.


गुँगुआना
अच्छी तरह न जलना।
क्रि. अ.
[अनु.]


गुँगुआना
गूँगे की तरह अस्पष्ट शब्द निकालना।
क्रि. अ.
[अनु.]


गुंचा
कली।
संज्ञा
[अ.]


गुंचा
नाच-रंग।
संज्ञा
[अ.]


गुंची
घुँघची की लता।
संज्ञा
[हिं. घुँघची]


गुंज
भौरों की गुंजार।
(क) नित प्रति अलि जिमि गुंज मनोहर, उड़त जु प्रेम-पराग-२-२२।

(ख) गये नवकुंज कुसुमनि के पुंज अलि करैं गुंज सुख हम देखि भई लवलीन- सा. उ.-४८।

संज्ञा
[सं. गुंजन]


गुंज
अस्पष्ट गुंजार।
अति बिलच्छन्न गुंज जोग मति लाए–२९९१।
संज्ञा
[सं. गुंजन]


गुंज
कलरव।
संज्ञा
[सं. गुंजन]


गुंज
घुँघची की लता या उसका फल।
संज्ञा
[सं. गुंजन]


गुंज
एक गहना।
संज्ञा
[सं. गुंजन]


गुंज
सलई नामक पेड़।
संज्ञा


गुंजत
गुनगुनाते हैं, भनभनाते हैं।
जहँ सनक-सिव हंस, मीन मुनि, नख रवि प्रभा प्रकास। प्रफुलित कमल, निमिष नहिं ससि-डर, गुंजत निगम सुबास -१-३३७।
क्रि. अ.
[हिं. गुंजना]


गुंजन
गुंजार, भनभनाहट।
संज्ञा
[सं.]


गुंजन
आनंद ध्वनि, कलरव।
संज्ञा
[सं.]


गुंजना
भनभनाना, गुनगुनाना।
क्रि. अ.
[सं. गुंज]


गुंजना
मधुर या नद-ध्वनि निकालना, कलरव करना।
क्रि. अ.
[सं. गुंज]


गुंजनिकेतन
भौंरा।
संज्ञा
[सं.]


गुंजरत
(भौरे) गूँजते हैं, भनभनाते हैं।
गूँगी बातनि यौं अनुरागति, भँवर गुंजरत कमल मौं बंदहिं-१०-१०७।
क्रि. अ.
[हिं. गुंजारना]


गुंजरत
बोलते हैं, ध्वनि करते हैं, गरजते हैं।
गर्जत गगन गयंद गुंजरत अरु दादुर किलकार-२८९३।
क्रि. अ.
[हिं. गुंजारना]


गुंजरना
भौरों का गूँजना या भनभनाना।
क्रि. अ.
[हिं. गुंजार]


गुंजरना
शब्द करना, गरजना।
क्रि. अ.
[हिं. गुंजार]


गुंजरै
गुंजार।
संज्ञा
[सं. गुंजान]


गुँजहरा
बच्चों का कड़ा।
संज्ञा
[हिं. गुँजार]


गुंजा
घुँघची नाम की लता।
संज्ञा
[सं.]


गुंजा
घुंघची के लाल दाने।
ज्यौं कपि सीतहतन-हित गुंजा सिमिट होत लौलीन। त्यौं सठ बृथा तजत नहिं कबहूँ, रहत बिषय-आधीन-१-१०२।
संज्ञा
[सं.]


गुंजाइश, गुंजाइस
स्थान, अँटने की जगह।
जनम साहिबी करत गयौ। काया-नगर बड़ी गुंजाइस, नाहिंन कछु बढ्यौ-१-६४।
संज्ञा
[फ़ा. गुंजाइश]


गुंजाइश, गुंजाइस
समाई, सुबीता।
संज्ञा
[फ़ा. गुंजाइश]


गुंजान
घना, सघन।
वि.
[फ़ा.]


गुंजायमान
गूँजता या ध्वनि करता हुआ।
वि.
[सं.]


गुंजायमान
बोलता या शब्द करता हुआ।
वि.
[सं.]


गुंजार
भौरों की गूँज, भनभनाहट।
जहँ बृंदाबन आदि अजिर जहँ कुंजलता बिस्तार। तहँ बिहरत प्रिय प्रियतम दोऊ निगम भृंग-गुंजार।
संज्ञा
[सं. गुंज+आर]


गुंजार
मधुर ध्वनि, कलरव।
संज्ञा
[सं. गुंज+आर]


गुंजारना
गूँजना।
क्रि. अ.
[हिं. गूँजना]


गुंजारित, गुंजित
भौरों आदि की गुंजार से युक्त।
वि.
[सं. गुंजित]


गुंजिया
एक गहना।
संज्ञा
[हिं. गूँज]


गुंजै
(भौंरे) भनभनाते या गुनगुनाने हैं।
बृथा बहति जमुना तट खगरो वृथा कमल फूलैं अलि गुंजैं–२७२१।
क्रि. अ.
[हिं. गुंजना]


गुंटा
छोटा तालाब।
संज्ञा
[देश.]


गुंठा
नाटा घोड़ा, टाँगन।
संज्ञा
[हिं. गठना]


गुंठा
कसेरू का पौधा।
संज्ञा
[सं.]


गुंठा
महीन पिसा हुआ।
वि.


गुंड
मलार राग का एक भेद।
राग रागिनी सँचि मिलाई गावैं गुंड मलार-२२७९।
संज्ञा


गुंडई
गुंडापन।
संज्ञा
[हिं. गुंडा+ अई (प्रत्य.)]


गुंडरी
गुंडापन।
संज्ञा
[हिं. गुंडा]


गुंडली
फेंटा।
संज्ञा
[सं. कुंडली]


गुंडली
गेंडुरी।
संज्ञा
[सं. कुंडली]


गुंडा
दुराचारी, कुमार्गी।
वि.
[सं. गुंडक=मलिन]


गुंडा
झगड़ा करनेवाला।
वि.
[सं. गुंडक=मलिन]


गुंडा
छैला।
वि.
[सं. गुंडक=मलिन]


गुंडापन
बदमाशी।
संज्ञा
[हिं. गुंडा+पन]


गुंडी
इँडुरी, गेंडुरी।
संज्ञा
[हिं. गेंडुरी]


गुँथना
(तागों, बालों आदि का) उलझना।
क्रि. अ.
[सं. गुत्‍स=गुच्छा]


गुँथना
मोटी सिलाई करना।
क्रि. अ.
[सं. गुत्‍स=गुच्छा]


गुँथना
लड़ने को भिड़ना।
क्रि. अ.
[सं. गुत्‍स=गुच्छा]


गुंदल
एक घास।
संज्ञा
[सं. गुंडाला]


गुंदहि
गूँधते हैं।
बाजीपति अग्रज अंबा तेहिं, अरक थान सुत माला गुंदहिं-१०-१०७।
क्रि. स.
[हिं. गूँधना]


गुँधना
(आँटे आदि का पानी से) साना या माड़ा जाना।
क्रि. अ.
[सं. गुध= क्रीड़ा]


गुँधना
(बाल आदि का) गूँथना।
क्रि. अ.
[सं. गुत्सा= गुच्छ]


बँधवाना
गूँधने का काम कराना या इसकी प्रेरणा देना।
क्रि. स.
[हिं. गूँधना]


गुँधाई
गूँधने की क्रिया, भाव या मजदूरी।
संज्ञा
[हिं. गूँधना]


गुँधावट
गूँधने की क्रिया।
संज्ञा
[हिं. गूँधना]


गुँधावट
गूँधने की रीति।
संज्ञा
[हिं. गूँधना]


गुंफ
फँसाव, गुत्थमगुत्था।
संज्ञा
[सं.]


गुंफ
गुच्छा।
संज्ञा
[सं.]


गुंफ
गलमुच्छा।
संज्ञा
[सं.]


गुंफ
अलंकार।
संज्ञा
[सं.]


गुंफन
उलझाव, गूँधना।
संज्ञा
[सं.]


गुंफित
गूँथा हुआ, उलझा हुआ।
वि.
[सं. गुंफन]


गुंबज, गुंबद
गोल छत।
संज्ञा
[फा. गुंबद]


गुंबा
गोल सूजन जो चोट लगने से सिर या माथे पर आ जाय।
संज्ञा
[हि. गोल+अंब]


गुँभी, गुंभ
अंकुर, गाभ।
टरति न टारे वह छबि मन में चुभी।...। सूरदास मोहन मुख निरखत उपजी सकल तन काम गुँभी -१४४६।
संज्ञा
[सं. गुंफ=गुच्छा]


गुआ
चिकनी सुपारी।
संज्ञा
[सं. गुवाक]


गुआ
सुपारी।
संज्ञा
[सं. गुवाक]


गुआर, गुआरि, गुआरी, गुआलिन
एक पौधा, कौरी, खुरथी।
संज्ञा
[सं. गोराणी, हिं. ग्वार]


गुइयाँ
साथी, सखी, सहचर, सहेली।
संज्ञा
[हिं. गोहन=साथ]


गुग्गुर, गुग्गुल
एक पेड़।
संज्ञा
[सं.]


गुग्गुर, गुग्गुल
एक सुगंधित द्रव्य।
संज्ञा
[सं.]


गुच्‍ची
छोटा गड्ढा।
संज्ञा
[अनु.]


गुच्‍ची
बहुत छोटी, नन्ही।
वि.


गुच्चीपारा, गुच्‍चीपाला
लड़कों का एक खेल।
संज्ञा
[हिं. गुच्ची+पारना]


गुच्छ, गुच्छक
गुच्छा।
संज्ञा
[सं.]


गुच्छ, गुच्छक
घास की जूरी।
संज्ञा
[सं.]


गुच्छ, गुच्छक
झाड़।
संज्ञा
[सं.]


गुच्छ, गुच्छक
हार।
संज्ञा
[सं.]


गुच्छ, गुच्छक
मोर की पूँछ।
संज्ञा
[सं.]


गुच्छा
पत्ती, या किसी चीज का समूह।
संज्ञा
[सं. गुच्छ]


गुच्छा
फुलरा, फुँदना।
संज्ञा
[सं. गुच्छ]


गुच्छी
कंजा।
संज्ञा
[सं. गुच्छ]


गुच्छी
एक साग।
संज्ञा
[सं. गुच्छ]


गुच्छेदार
जिसमें गुच्छे हों।
वि.
[हिं. गुच्छा]


गुजर
निकास।
संज्ञा
[फ़ा. गुज़र]


गुजर
पहुँच, प्रवेश।
संज्ञा
[फ़ा. गुज़र]


गुजर
निर्वाह, काम चलना।
संज्ञा
[फ़ा. गुज़र]


गुजरना
समय कटना।
क्रि. अ.
[हिं. गुजर+ना प्रत्य.)]


गुजरना
आना-जाना।
क्रि. अ.
[हिं. गुजर+ना प्रत्य.)]


कमाना
कर्म करना।
क्रि. स.
[हिं. काम]


कमाना
तुच्छ काम करना।
क्रि. अ.


कमाना
कम करना।
क्रि. स.


कमानियाँ
धनुष चलानेवाला।
संज्ञा
[फ़ा. कमान]


कमानिया
मेहराबदार।
वि.
[हिं. कमानी]


कमानी
धातु की लचीली तीली।
संज्ञा
[हिं. कमान]


कमायौ
कर्म संचय किया, कर्म किया।
(क) जोग-जज्ञ जप तप नहिं। कीन्हौं, बेद बिमल नहिं भाख्यौ। अति रस-लुब्ध स्वान जूठनि ज्यौं, अनत नहीं चित राख्यौ। जिहिं जिहिं जोनि फिरयौ संकट बस, तिहिं तिहिं यहै कमायौ। (ख) कहा होत अब के पछिताएँ, पहिलैं पाप कमायौ - १ - ३३५।
क्रि. स. (भूत.)
[हिं. कमाना]


कमाल
कुशलता, निपुणता।
संज्ञा
[अ.]


कमाल
अनोखा काम।
संज्ञा
[अ.]


कमाल
कारीगरी।
संज्ञा
[अ.]


गुजरना
गुजर जाना- मर जाना।
मु.


गुजरना
निर्वाह होना, निभना, काम चलना।
क्रि. अ.
[हिं. गुजर+ना प्रत्य.)]


गुजर-बसर
निर्वाह, काम चलाना।
संज्ञा
[फ़ा.]


गुजराती
गुजरात का।
वि.
[हिं. गुजरात]


गुजराती
गुजरात की भाषा।
संज्ञा


गुजरान
निर्बाह, निबाह।
संज्ञा
[हिं. गुजर]


गुजराना
बिताना, काटना।
क्रि. स.
[हिं. गुजारना]


गुजरिया
ग्वालिन, गोपी।
संज्ञा
[हिं. गूजर]


गुजरी
एक तरह की पहुँची।
संज्ञा
[हिं. गूजर]


गुजरी
एक रागिनी।
संज्ञा
[हिं. गूजर]


गुजरेटा
गूज़र का लड़का।
संज्ञा
[हिं. गूजर]


गुजरेटा
ग्वाला।
संज्ञा
[हिं. गूजर]


गुजरेटी, गुजरेठी
गूजर की बेटी।
संज्ञा
[हिं. गूजर]


गुजरेटी, गुजरेठी
ग्वालिन, गोपी।
संज्ञा
[हिं. गूजर]


गुजारना
बिताना, काटना।
क्रि. स.
[फ़ा.]


गुजारा
निर्वाह।
संज्ञा
[फ़ा. गुज़ारा]


गुजारा
निर्वाह की वृत्ति।
संज्ञा
[फ़ा. गुज़ारा]


गुजारा
नाव की उतराई।
संज्ञा
[फ़ा. गुज़ारा]


गुजारिश, गुजारिस
प्रार्थना, निवेदना, विनय।
संज्ञा
[फ़ा. गुजारिश]


गुज्जरी
गुजरी।
संज्ञा
[सं.]


गुज्जरी
एक रागिनी।
संज्ञा
[सं.]


गुज्झा
एक घास।
संज्ञा
[सं. गुह्यक]


गुज्झा
गूदा।
संज्ञा
[सं. गुह्यक]


गुज्झा
गुप्त, छिपा हुआ, अप्रकट।
वि.


गुझरोट, गुझरौट, गुझौट
कपड़े की सिकुड़न।
संज्ञा
[सं. गुह्य, प्रा. गुच्झ + सं. आवर्त]


गुझरोट, गुझरौट, गुझौट
स्त्रियों की नाभि के आसपास का भाग।
संज्ञा
[सं. गुह्य, प्रा. गुच्झ + सं. आवर्त]


गुझा
एक पकवान, गुझिया।
गुझा इलाचीपाक अमिरती-३९६।
संज्ञा
[हिं. गोझा]


गुझाना
छिपाना, लुकाना।
क्रि. स
[सं. गुहय]


गुझिया
एक पकवान, पिराक।
संज्ञा
[सं. गुहयक, प्रा. गुज्झ‌अ, गुज्झा]


गुझिया
एक मिठाई।
संज्ञा
[सं. गुहयक, प्रा. गुज्झ‌अ, गुज्झा]


गुटकना
गुटरगूँ करना।
क्रि. अ.
[अनु.]


गुटकना
निगलना
क्रि. स.


गुटकना
खा लेना।
क्रि. स.


गुटका
गोटी, बटी।
संज्ञा
[सं. गुटिका]


गुटका
छोटे आकार की पुस्तक।
संज्ञा
[सं. गुटिका]


गुटका
लट्टू।
संज्ञा
[सं. गुटिका]


गुटका
एक मिठाई।
संज्ञा
[सं. गुटिका]


गुटरगूँ
कबूतरों की बोली।
संज्ञा
[अनु.]


गटिका
गोटी, बटी।
संज्ञा
[सं.]


गटिका
एक सिद्धि जिसमें गोली मुँह में रखने पर साधक सब जगह जा सके और कोई उसे देख न पावे।
संज्ञा
[सं.]


गुट्ट
झुंड, दल।
संज्ञा
[सं. गोष्ठ=समूह]


गुट्ठल
जो तेज या पैना न हो।
वि.
[हिं. गुठली]


गुट्ठल
जड़, मूर्ख।
वि.
[हिं. गुठली]


गुट्ठल
गुठली के आकार का।
वि.
[हिं. गुठली]


गुट्ठल
गाँठ, गुलथी।
संज्ञा


गुट्ठल
गिलटी।
संज्ञा


गुट्ठी
गोल या लंबी गाँठ।
संज्ञा
[हिं. गाँठ]


गुठली
फल का कड़ा बीज।
संज्ञा
[सं. गुटिका]


गुठाना
गुठली-सी बँध जाना।
क्रि. अ.
[हिं. गुठली]


गुठाना
बेकार या निकम्मा हो जाना।
क्रि. अ.
[हिं. गुठली]


गुडंबा
गुड़ की चाशनी में उबाली हुई कच्चे आम की फाँकें।
संज्ञा
[हिं. गुड़+आँब, आम]


गुड़
ऊख का जमाया हुआ रस।
(क) रस लै लै औटाइ करत गुड़ (गुर) डारि देत हैं खोई। फिर औटाये स्वाद जात है, गुड़ तैं खाँड़ न होई-१-६३। (ख) दानव प्रिया सेर चालीसो सुरभी रस गुड़ सीचो -सा. ९०।
संज्ञा
[सं.]


गुड़
कुल्हिया में गुड़ फूटना- (१) गुप्त रूप से काम होना। (२) छिपाकर पाप होना।

गुड़ भरा हँसिया- ऐसा काम जिसे न करने से जी ललचाये और करने से संकोच हो। जो गुड़ खायगा सो कान छेदायेगा- जिसे लाभ होगा, उसे कष्ट भी सहना पड़ेगा। गुड़ खायगा, अँधेरे में आयगा- जिसे लाभ होगा वह कष्ट सहकर भी समय-कुसमय काम करेगा। गुड़ दिखाकर ढेला मारना- कुछ लालच देने के बाद रूखा या कठोर व्यवहार करना। गुड़ दिये मरे तो जहर क्यों दे- जब सीधे से काम चल जाय तो कठोर बर्ताव क्यों किया जाय। गुड़ खाना गुलगुलों से परहेज (घिनाना)- कोई बड़ी बुराई करना पर उसी ढंग की छोटी बुराई करने में संकोच करना। गूँगे का गुड़- विषय या वस्तु का अनुभव करना परन्तु उसे शब्दों में उचित ढंग से समझा न पाना। चोरी का गुड़- छिपाकर पाया हुआ बेमेहनत का माल। उ.- मिसरी सूर न भावत घर की चोरी को गुड़ मीठो–सा. ९०। जहाँ गुड़ होगा, चीटियाँ (मक्खियाँ) आ जायँगी- पास में धन या दूसरों के लाभ की चीज होगी तो लाभ उठाने वाले बिना बुलाये अपने आप जुट आयँगे।

मु.


गुड़मुड़
वह शब्द जो बन्द चीज (जैसे पेट, हुक्का) में हवा के चलने से होता है।
संज्ञा
[अनु.]


गुड़गुड़ाना
गुड़गुड़ शब्द होना।
क्रि. अ.
[अनु. गुड़गुड़]


गुड़धनिया, गुड़धानी
मिठाई जो भुने हुए गेहुँओं को गुड़ में पागने से बनती है।
संज्ञा
[हिं. गुड़+धान]


गुड़ना
बेकार या खराब होना।
क्रि. अ.
[हिं. गोड़ना]


गुड़रा, गुडरू
गड़ुरी चिड़िया।
संज्ञा
[देश.]


गुड़हर गुड़हल
अड़हुल का पेड़ या फूल।
संज्ञा
[हिं. गुड़+ हर]


गुड़हर गुड़हल
एक वृक्ष जिसकी पत्तियाँ चबाने के बाद गुड़ का स्वाद ही नहीं आता।
संज्ञा
[हिं. गुड़+ हर]


गुडाकेश
शिव।
संज्ञा
[सं.]


गुडाकेश
अर्जुन।
संज्ञा
[सं.]


गुड़िया, गुड़िला
कपड़े, मोम आदि की बनी छोटी पुतली जिससे बच्चे खेलते हैं।
संज्ञा
[हिं. पुं. गुड्डा]


गुड़िया, गुड़िला
गुड़िया सी- छोटी और सुन्दर।

गुड़ियों का खेल- बहुत सरल काम।

मु.


गुड़ी
पतंग, चंग।
(क) बँधी दृष्टि यों डोर गुडी बस पाछे लागति धावति - १४३१। (ख) परबस भई गुड़ी ज्यों डोलति परति पराये कर ज्यों-पृ. ३३२।
संज्ञा
[हिं. गुड्डी]


गुड़ीला
गुड़-सा मीठा।
वि.
[हिं. गुड़+ ईला (प्रत्य.)]


गुड़ीला
उत्तम, बढ़िया।
वि.
[हिं. गुड़+ ईला (प्रत्य.)]


गुड़ुची, गुड़ूची
एक बड़ी लता,गिलोय।
संज्ञा
[हिं. गुरुच]


गुड्डा
कपड़े, मोम आदि का बना पुतला जिससे बच्चे खेलते हैं।
संज्ञा
[सं. गुरु=खेलने की गोली]


गुड्डा
गुड्डा बाँधना- बुराई या निन्दा करना।
मु.


गुड्डा
बड़ी पतंग।
संज्ञा
[हिं. गुड्डी]


गुड्डी
पतंग, चंग।
(क) अति आधीन भई संग डोलति ज्यों गुड्डी बस डोर-पृ. ३३३।

(ख) हम दासी बिन मोल की ऊधो ज्यों गुड्डी बस डोर–३३२०।

संज्ञा
[सं. गुरु+उड्डीन]


गुढ़, गुढ़ा
छिपने का स्थान।
संज्ञा
[सं. गूढ़]


गुढ़ना
छिपना, लुकना।
क्रि. अ.
[हिं. गुढ़]


गुढ़ि
गढ़-गढ़ाकर, ठीक ठाक करके।
कन्हैया हालरु रे। गढ़-गुढ़ि ल्यायौ बाढ़ई धरनी पर डोलाई बलि हालरु रे -१०-४७।
क्रि. स.
[हिं. गढ़ना (अनु.)]


गुढ़ी
गाँठ, गुत्थी।
संज्ञा
[सं. गूढ़]


गुण
किसी वस्तु की विशेषता।
संज्ञा
[सं.]


गुण
निपुणता, चतुरता।
संज्ञा
[सं.]


गुण
कला, विद्या, हुनर।
संज्ञा
[सं.]


गुण
प्रभाव, असर।
संज्ञा
[सं.]


गुणकार
संगीतज्ञ।
संज्ञा
[सं.]


गुणकार
रसोइया।
संज्ञा
[सं.]


गुणकार
पाकशास्त्रज्ञ।
संज्ञा
[सं.]


गुणकार
भीमसेन।
संज्ञा
[सं.]


गुणकारक, गुणकारी
लाभदायक।
वि.
[सं.]


गुणगौरि, गुणगौरी
गौरी के समान सौभाग्यवती स्त्री।
संज्ञा
[सं. गुणगौरि]


गुणगौरि, गुणगौरी
एक व्रत जो सौभाग्यवती स्त्रियाँ चैत की चौथ को करती हैं।
संज्ञा
[सं. गुणगौरि]


गुणग्राहक, गुणग्राही
गुण या गुणी का आदर करनेवाला।
वि.
[सं.]


गुणज्ञ
गुण का पारखी।
वि.
[सं.]


गुणज्ञ
गुणी।
वि.
[सं.]


गुण
शील, सद्‍वृत्ति।
संज्ञा
[सं.]


गुण
गुण गाना- प्रशंसा करना।

गुण मानना- अहसान मानना।

मु.


गुण
विशेषता, खासियत।
संज्ञा
[सं.]


गुण
तीन की संख्या।
संज्ञा
[सं.]


गुण
रस्सी, डोरा।
संज्ञा
[सं.]


गुण
धनुष की डोरी।
संज्ञा
[सं.]


गुण
एक प्रत्यय जो संख्यावाची शब्दों के अंत में रहता है।
प्रत्‍य.


गुणक
वह अंक जिससे किसी अंक को गुणा किया जाय।
संज्ञा
[सं.]


गुणकर
लाभदायक।
वि.
[सं.]


गुणकरी, गुणकली
एक रागिनी।
संज्ञा
[सं.]


कमाल
कबीर के पुत्र का नाम।
संज्ञा
[अ.]


कमाल
पूरा।
वि.


कमाल
सबसे श्रेष्ठ।
वि.


कमाल
अत्यंत।
वि.


कमासुत
कमा कर रुपया लाने वाला।
वि.
[हिं. कमाना+सुत]


कमिहै
कम होगा, घट जायगा।
क्रि. अ.
[हिं. कमना]


कमी
न्यूनता, अभाव, अल्पता।
(क) कहा कमी जाके राम धनी - १ - ३९।

(ख) तुमही कहौ कमी काहे की नवनिधि मेरैं धाम - ३७६।

संज्ञा
[फा. कम]


कमी
हानि, घाटा।
संज्ञा
[फा. कम]


कमुकंदर
शिवजी का धनुष तोड़नेवाले राम
संज्ञा
[सं. कार्मुकं+दर]


कमोदन
कोई, कुमुदिनी।
संज्ञा
[हिं. कुमुदिनी]


गुणज्ञता
गुण की परख।
संज्ञा
[सं.]


गुणन
गुणा, जरब।
संज्ञा
[सं.]


गुणनिका
वह नाटकीय अनुष्ठान जो नट कार्यारम्भ के पूर्व विघ्‍न शांति के लिए करते हैं।
संज्ञा
[सं.]


गुणनफल
वह संख्या जो गुणा करने पर निकले।
संज्ञा
[सं.]


गुणवन्त
गुणवान, गुणी।
वि.
[सं.]


गुणवती
जो गुणवान हो।
वि.
[सं.]


गुणवाचक
गुणसूचक।
वि.
[सं.]


गुणवान
गुणवाला।
वि.
[सं.]


गुणसागर
गुणों का समुद्र, गुणनिधि।
वि.
[सं.]


कमोदिक
वह संज्ञीतज्ञ जो कामोद राग गाता हो।
संज्ञा
[सं. कामोद = एक राग+क]


कमोदिक
गवैया, संगीतज्ञ।
बेगि चलौ बलि कुँअरि सयानी। समय बसंत बिपिन रथ हय गय मदन सुभट नृपफौज पलानी। .....। बोलत हँसत चपल बंदीजन मनहुँ प्रसंसित पिक बर बानी। धीर समीर रटत बर अंलिगन मनहुँ कमोदिक मुरलि सुठानी।
संज्ञा
[सं. कामोद = एक राग+क]


कमोदिन, कमोदिनो
कोई, कुमुदिनी।
संज्ञा
[सं. कुमुदिनी]


कमोरा
मिट्टी का चौड़े मुँह का पात्र जिसमें दूध, दही रखा जाता है।
संज्ञा
[सं. कुंभ+ओरा (प्रत्य.)]


कमोरा
घड़ा।
संज्ञा
[सं. कुंभ+ओरा (प्रत्य.)]


कमोरी
मिट्टी का चौड़े मुँह का बर्तन जिसमें दूध-दही रखा जाता है, मटका।
(क) माखन भरी कमोरी देखत, लै लै लागे खान। ......। जौ चाहौ सब देउँ कमोरी, अति मीठौ कत डारत - १० - २६५। (ख) मीठौ अधिक, परम रुचि लागै, तौ भरि देउँ कमोरी - १० - २६७। (ग) हेरि मथानी धरी माट तैं, माखन हो उतरात। आपुन गई कमोरी माँगन हरि पाई ह्याँ घात। .....। आइ गई कर लिए कमोरी, घर तैं निकसे ग्वाल - १० - २७०।

(घ) कहि धौं मधुर बारि मथि माखन काढ़ि जो भरो कमोरी - ३०२८।

संज्ञा
[हिं. कमोरा]


कया
शरीर, काया।
संज्ञा
[हिं. काया]


कये
किये, करने से।
नीर छीर ज्यों दोउ मिलि गये। न्यारे होत न न्यारे कये ११ - ६।
क्रि. स.
[सं. करण, हिं. करना]


करक
मस्तक।
संज्ञा
[सं.]


करक
कमंडलु।
संज्ञा
[सं.]


कर
हाथ।
संज्ञा
[सं.]


कर
कर जोरे- (१) प्रार्थना करती हुई। (२)अनुनय-विनय करती हुई। उ. - मैं अपराध किये सिसु मारे कर जोरे बिललाई - सारा, ३८६। (३) प्रणाम करती हुई। (४) सविनय, विनम्र होकर, सेवा के लिए तत्पर। उ. - अष्टसिद्धि नवनिधि कर जोरे द्वारें रहत खरी - १० - ७६।

कर देति - (१) हाथ पकड़ती है, सहारा देती है। उ. - सूच्छम चरन चलावत बल करि। अटपटात कर देति सुन्दरी उठत तबै सुजतन तन-मन धरि - १० - १२०। (२) रोकती है, मना करती है। कर पसारौं - (किसी से कुछ) माँगूँ, याचना करूँ, कुछ देने के लिए विनती करूँ। उ. - अब तुम मोकौं करौ अजाँची जो कहुँ कर न पसारौं - १० - ३७। कर मारै- हाथ मलता है, झुंझलाता है, निराश या दुखी होता है। उ. - केस पकरि ल्यायौ दुस्सासन, राखी लाज मुरारे। ......। नगन न होति चकित भयौ राजा, सीस धुनै, कर मारै - १ - २५७। कर मीड़त - हाथ मलता है, पछताता है, निराश या दुखी होता है। उ. - (क) हरि दरसन कौं तड़पत अँखियाँ। झाँकति झपति झरोखा बैठी कर मीड़त ज्यौं मखियाँ - २७६६। (ख) सूरदास प्रभु तुमहिं मिलन कौं कर मीड़त पछितात - ३३५०। कर मीड़ै - दुखी होता है, पछताता है। उ.- सुदामा मन्दिर देखि डरयौ। सीस धुनै, दीऊ कर मीड़ै अंतर साँच परयौ -१० उ. --१६८। कर मीजै- हाथ मलकर, दुखी या निराश होकर। उ.- सूरदास बिरहिनी बिकल मति कर मीजै पछिताइ-२७१८।

मु.


कर
हाथी की सूँड़।
देखि सखी हरि-अंग अनूप। ........। कबहुँ लकुट तैं जानु फेरि लै, अपने सहज चलावत। सूरदास मानहु करभी कर बारंबार डुलावत - ६३२।
संज्ञा
[सं.]


कर
सूर्य की किरण।
संज्ञा
[सं.]


कर
प्रजा की आय या उपज से लिया गया राज का भाग।
संज्ञा
[सं.]


कर
उत्पन्न करनेवाला।
संज्ञा
[सं.]


कर
छल, पाखंड।
संज्ञा
[सं.]


कर
का।
जिनके क्रोध पुहुमि नभ पलटै सूखै सकल सिंधु कर पानी - ९ - ११६।
प्रत्य.
[सं. कृतः]


करइयै
कराइयै, करने में लगाइयै।
दुरजोधन कैं कौन काज जहँ आदर-भाव न पइयै। गुरुमुख नहीं, बड़े अभिमानी, कापै सबे करइयै - १ - २३९।
क्रि. स.
[हिं. करना' का प्रे. कराना’]


करई
करता है।
(क) नसै धर्म मन बचन काम करि, सिंधु अचंभौ करई - ९ - ७८। (ख) इतनी कहत गगनबानी भई, हनू सोच कत करई - ९ - ६६। (ग) बिधु बैरी सिर पर बसे निसि नींद न परई। हरि सुर भानु सुभट बिना यहि को बस करई - २८६१।
क्रि. स.
[सं. करण, हिं. करना]


करक
नारियल की खोपड़ी।
संज्ञा
[सं.]


करक
ठठरी, ढाँचा, कंकाल
संज्ञा
[सं.]


करंज, करंजा
झाड़ी, कंजा नाम की कटीली झाड़ी।
भटकत फिरत पात द्रुम बेलनि कुसुम करंज भये। सूर बिमुख पद अंबु न छाँडे बिपैनि बिष बर छये - २९९२। (२) एक पेड़।
संज्ञा
[सं.]


करंज, करंजा
भूरी आँख वाला।
वि.


करंज, करंजा
खाकी।
वि.


करंड
शहद का छत्ता।
संज्ञा
[सं.]


करंड
तलवार।
संज्ञा
[सं.]


करंड
करंडव हंस।
संज्ञा
[सं.]


करंड
डलिया, पिटारी।
संज्ञा
[सं.]


करंड
हथियार तेज करने का पत्थर।
संज्ञा
[सं.]


करई
एक पात्र, करवा।
संज्ञा
[हिं. करवा]


करई
एक छोटी चिड़िया।
संज्ञा
[सं. करक]


करक
कमंडलु, करवा।
संज्ञा
[सं.]


करक
अनार, दाड़िम।
सहज रूप की रासि नागरी भूपन अधिक बिराजै...नासा नथ मुक्ता बिंबाधर प्रतिबिंबित असमूच। बीध्यौ कनक पास सुक सुन्दर करक बीच गहि चूंच।
संज्ञा
[सं.]


करक
पलाश।
संज्ञा
[सं.]


करक
कसक, चिनक।
संज्ञा
[हिं. कड़क]


करक
शरीर पर रगड़ से पड़ने वाला चिन्ह।
संज्ञा
[हिं. कड़क]


करकट
कूड़ा।
संज्ञा
[हिं. खर+सं. कट]


करकना
किसी वस्तु का चिटकना।
क्रि. अ.
[हिं. कड़क (करक)]


करकना
दर्द करना, कसकना, खटकना।
क्रि. अ.
[हिं. कड़क (करक)]


करकरा
एक तरह का सारस, करकटिया।
संज्ञा
[सं. कर्करेटु]


करकरा
खुरखुरा, जो चिकना न हो।
वि.
[सं. कर्कर]


करकस
कड़ा, कठोर, सख्त।
वि.
[सं. कर्कश]


करखना
खीचना।
क्रि. अ.
[सं. कर्षण]


करखना
जोश, उमंग या आवेश में आना।
क्रि. अ.
[सं. कर्षण]


करखा
युद्ध के अवसर पर गाये जाने वाले वीरोत्तेजक गीत।
संज्ञा
[हिं. कड़खा]


करखा
उत्तेजना, बढ़ावा, जोश, लाग-डाँट।
नैननि होड़ बदी बरखा सों राति दिवस बरसत झर लाये दिन दूना करखा सों - ३४५७।
संज्ञा
[सं. कर्ष]


करखा
करिखा, कालिख।
संज्ञा
[हिं. कालिख]


करगत
हाथ में आया हुआ, हस्तगत।
वि.
[सं.]


करगस
तीर, भाला, काँटा।
संज्ञा
[सं. कर+हिं गाँस]


करगह
कपड़ा बिनने का यंत्र।
संज्ञा
[हिं. करघा]


करगी
बाढ़।
संज्ञा
[हिं. कर+गहना]


करघा
कपड़ा बिनने का यंत्र।
संज्ञा
[फा. कारगाह]


करचंग
एक बाजा जिससे ताल दी जाती है।
संज्ञा
[हिं. कर+चंग]


करचंग
डफ।
संज्ञा
[हिं. कर+चंग]


करछा
एक पक्षी।
संज्ञा
[हिं. करौछ=काला]


करछैयाँ
हलके काले रंग की गाय।
संज्ञा
[हिं. करौछ=काला]


करछौंह
हलका काला रंग।
संज्ञा
[हिं. करौंछ=काला]


करज
नख, नाखून।
उरज करज मनो सिव सिर पर ससि सारंग सुधागरी–२१११।
संज्ञा
[सं. कर+ज=उत्पन्न]


करज
उँगली।
(क) सिय अन्देस जानि सूरज प्रभु लियौ करज की कोर। टूटत धनु नृप लुके जहाँ-तहँ ज्यों तरागन भोर - ९ - २३। (ख) करज मुद्रिका, कर कंकन छवि, कटि किंकिन नूपुर छबि भ्राजत। (ग) बलिहारी वा बाँसबंस की बंसी-सी सुकुमारी। सदा रहत है करज स्याम के नेकहु होत न न्यारी - ३४१२।
संज्ञा
[सं. कर+ज=उत्पन्न]


कंठ
कंठा, हँसुली।
संज्ञा
[सं.]


कंठ
कंठ फूटना - (१) बच्चों का स्वर साफ होना। (२) युवावस्था में स्वर-परिवर्तन। (३)पक्षियों के गले में रेखा पड़ना।

कंठ लाइ- गले लगाकर। उ. - ध्रुव राजा के चरननि परयौ। राजा कंठ लाइ हित करयौ–४ ६।

मु.


कंठगत
जो गले में अटका हो, जो निकलने को हो।
वि.
[सं.]


कंठगत
प्राण कंठगत होना- मरने लगना।
मु.


कंठमाला
गले का एक रोग जिसमें बहुत सी गाँठे पड़ जाती हैं।
संज्ञा
[सं.]


कँठला
वह गहना जिसमें नजरबट्ट, बाघनख, और दो चार ताबीज गूँथ कर बच्चे को इसलिए पहनाते हैं कि उसे नजर न लगे और अन्य आपत्तियों से वह रक्षित रहे।
संज्ञा
[हिं. - कंठ +ला (प्रत्य.)]


कंठश्री, कंठसिरी
सोने का एक जड़ाऊ गहना जो गले में पहना जाता है, कंठी।
संज्ञा
[सं.]


कंठस्थ
गले में स्थित, कंठगत।
वि.
[सं.]


कंठस्थ
कंठाग्र, जो जबानी याद हो।
वि.
[सं.]


कंठहरिया
कंठी।
सूर सगुन बँटि दियो गोकुल में अब निर्गुन को बसेरो। ताकी छटा छार कँठहरिया जो ब्रज जानो दुसेरो - ३१५४।
संज्ञा
[सं. कंठहार का अल्प,]


करज
ऋण, उधार।
करि अवारजा प्रेम प्रीति कौ, असलत हाँ खतियावै। दूजे करज दूरि करि दैंयत नैंकु न तामै आवै - १ - १४२।
संज्ञा
[अ. कर्ज़, कर्ज]


करट
कौआ।
संज्ञा
[सं.]


करट
हाथी का गंडस्थल।
संज्ञा
[सं.]


करटी
हाथी।
संज्ञा
[सं.]


करण
एक कारक।
संज्ञा
[सं.]


करण
औजार।
संज्ञा
[सं.]


करण
देह।
संज्ञा
[सं.]


करण
क्रिया, कार्य।
संज्ञा
[सं.]


करण
हेतु।
संज्ञा
[सं.]


करण
इन्द्रिय।
संज्ञा
[सं.]


करणिक
काम का कर्ता, कार्यकर्ता।
संज्ञा
[सं.]


करणी, करणीय
करने योग्य।
वि.
[सं. करणीय]


करत
करते हैं।
(क) बिनु बदलैं उपकार करत हैं, स्वारथ बिना करत मित्राई - १ - ३।

(ख) हौं कहा कहौं सूर के प्रभु के निगम करत जाकी क्रीति - १० उ. - १७५।

क्रि. स.
[सं. कण, हिं. करना]


करत
करत (रैनि)- रात करते हो, रात तक बाहर रहते हो, देर लगाते हो। उ. - जसुमति मिलि सुत सौं कहत रैनि करत किहिं काज - ४३७।
मु.


करतब
करनी, करतूत।
देखौ आइ पूत के करतब, दूध मिलावत पानी १० - ३३७।
संज्ञा
[सं. कर्तव्य]


करतब
कला, गुण।
संज्ञा
[सं. कर्तव्य]


करतब
जादू।
संज्ञा
[सं. कर्तव्य]


करतरी, करतल, करतली
हाथ।
करतल-सोभित बान धनुहियाँ - ९ - १६।
संज्ञा
[सं .]


करतरी, करतल, करतली
हथेली, हाथ की गदेरी।
संज्ञा
[सं .]


करतव्य
करने योग्य कार्य या धर्म।
संज्ञा
[सं. कर्तव्य]


करतव्य
करने योग्य।
वि


करता
रचने या करनेवाला।
(क) नर के किएँ कछु नहिं होइ। करता-हरता आपुहिं सोइ - १ - २६१। (ख) मैं हरता करता संसार - ५ - २। (ग) येई हैं श्रीपति भुवनायक, येई करता हैं संसार - ४६७। (२) विधाता, ईश्वर। (३) एक कारक।
संज्ञा
[सं. कर्ता]


करतार
सृष्टि करनेवाला, ईश्वर।
धर्मपुत्र तू देखि बिचार। कारन करनहार करतार - १ - २६१।
संज्ञा
[सं. कर्तार]


करतारी
ईश्वरीय लीला।
संज्ञा
[हिं. करतारी]


करतारी
हाथ से ताली बजाने की क्रिया।
संज्ञा
[सं. कर+हिं. ताली]


करतारी
ताल देने का एक बाजा।
संज्ञा
[सं. कर+हिं. ताली]


करताल, करताली
दोनों हथेलियों के परस्पर बजाने का शब्द, ताली।
दै करताल बजावति, गावति राग अनूप मल्हावै - १० - १३०।
संज्ञा
[सं.]


करताल, करताली
एक बाजा जो लकड़ी या काँसे का होता है। इसका एक जोड़ा हाथ में लेकर बजाते हैं।
संज्ञा
[सं.]


करताल, करताली
झाँझ, मजीरा।
संज्ञा
[सं.]


करतालिका
हथेली।
गावत हँसत, गॅंवाय हँसावत, पटकि पटकि करतालिका–८०६।
संज्ञा
[सं.]


करताहि
कर्त्‍ता को, ईश्वर को।
रही ग्वालि हरि कौ मुख चाहि। कैसे चरित किए हरि अबहीं बार-बार सुमिरहि करताहि - १० - ३१६।
संज्ञा
[सं. कर्ता+हि (हिं. प्रत्य.)]


करति
करती है, संपादन करती है।
करति बयारि निहारति हरि-मुख चंचल नैन बिसाल - ३९७।
क्रि. स.
[हिं. करना]


करति
पकाती है, बनाकर तैयार करती है।
नंदधाम खेलत हरि डोलत। जसुमति करति रसोई भीतर आपुन किलकत बोलत १० - १११।
क्रि. स.
[हिं. करना]


करतूत, करतूति
कर्म, करनी, काम, करतब।
(क) जग जानै करतूति कंस की, बृष मारयौ, बल-बाहीं - २ - २३। (ख) सब करतूति कैकेई कैं सिर, जिन यह दुख उपजायौ - ९ - ५०। (ग) कहा कठिन करतूति न समुझत कहा मृतक अबलनि सर मारति - २८४९।
संज्ञा
[सं. कर्तृत्व]


करतूत, करतूति
कला, हुनर, गुण।
संज्ञा
[सं. कर्तृत्व]


करतौ
(काम) चलाता, संपादित करता, करता।
(क) भक्ति बिना जौ कृपा न करते, तौ हौं आस न करतौ - १ - २०३। (ख) जौ तु हरि कौ सुमिरन करतौ। मेरैं गर्भ आनि अवतरतौ - ४ - ९।
क्रि. स.
[सं. करण, हिं. करना]


करद
कर देने वाला, अधीन।
वि.
[सं. यर+द= देनेवाला]


करद
सहारा देनेवाला।
वि.
[सं. यर+द= देनेवाला]


करद
छुरा, चाकू।
संज्ञा
[फ़ा. कारद]


करदम
कीचड़।
संज्ञा
[सं. कर्दम]


करदम
पाप।
संज्ञा
[सं. कर्दम]


करदम
मांस।
संज्ञा
[सं. कर्दम]


करदा
बट्टा, कटौती।
संज्ञा
[हिं. गर्द]


करदा
बदलाई।
संज्ञा
[हिं. गर्द]


करधनि
कमर में पहनने का एक गहना। बच्‍चों के लिए यह घुँचरूदार होता है; जब वे चलते हैं तब इसके घुँघरु बजते हैं।
तनक कटि पर कनक-करधनि छीन छबि चमकाति - १० - १८४।
संज्ञा
[हिं. करधनी]


करधनी
कमर में पहनने का सोने-चाँदी का एक गहना जिसमें बच्चों के लिए घुँघरु लगाये जाते हैं।
संज्ञा
[सं. कटि+आधाना। सं. किंकिणी]


करधनी
कई लड़ों का सूत जो करधनी की तरह कमर में पहनने के काम आता है। इस सूत का रंग प्रायः काला होता है।
संज्ञा
[सं. कटि+आधाना। सं. किंकिणी]


करधर
बादल, मेघ।
करधर की धरमैर सखी री की सृक सीपज की बगपंगति की मयूर की पीड़ पखी री।
संज्ञा
[सं. कर =वर्षोपल+धर = धारण करनेवाला]


करन
कुंती का सबसे बड़ा पुत्र जो उसके कन्य काल में ही सूर्य से उत्पन्न हुआ था।
करन-मेघ- बान- बूँद भादौं-झरि लायौ। जित-जित मन अर्जुन कौ तितहिँ रथ चलायौ - १ - २३।
संज्ञा
[सं. कर्ण]


करन
करना,
क्रि. स.
[सं. करण, हिं. करना]


करन
संपादित करना।
(क) पारथ-तिय कुरुराजसभा मैं बोलि करन चहै नंगी। स्रवन सुनत करुनासरिता भये बाढ़ै बसन उमंगी–१ - २१।
क्रि. स.
[सं. करण, हिं. करना]


करन
पकाना, बचाना, तैयार करना।
जेवन करन चली जब भीतर छींक परी तों आजु सबारे - ५९५।
क्रि. स.
[सं. करण, हिं. करना]


करन
करने योग्य, जिसका संपादन करना संभव हो।
दयानिधि तेरी गति लखि न परै। धर्म अधर्म, अधर्म धर्म करि, अकरन करन करै - १ - १०४।
वि.
[सं. करणीय]


करन
करनेवाले, कर्त्‍ता।
भजि मन नंद-नंदन चरन। परम पंकज अति मनोहर सकल सुख के करन - १ - ३०८।
संज्ञा
[सं. करण]


करन
इन्द्रिय।
छल-पल राउरे की आस। करन नाव सुपंच संज्ञा जान के सब नास - सा. उ ४१।
संज्ञा
[सं. करण]


करन
एक ओषधि।
संज्ञा
[देश.]


करनख
हाथ की छेटी उँगली का नाखून।
संज्ञा
[सं. कर+नख]


करनख
वर-नख पर धारी- हाथ की छोटी उँगली पर उठान, बहुत थोड़े परिश्रम से उठाना। उ. - राख्यौ गोकुल बहुत विघन तैं, कर नख पर गोबर्धन धारी - १ २२।
मु.


करनधार
माँझी, मल्लाह, केवट।
संज्ञा
[सं. कर्णधार]


करनपितु
कर्ण का पिता सूर्य।
माधो कीजिए बिस्राम। उदौ चाहत लेन बैरी करन-पितु हितु जाम - सा. ८८।
संज्ञा
[सं कर्ण+हिं. पिता]


करनफूल
कान में पहनने का सोने-चांदी का एक गहना जो सादा और जड़ाऊ, दोनों तरह का होता है, तरौना, काँप।
जिन स्रवनन ताटंक खुमी अरु करनफूल खुटिलाऊ। तिन स्रवनन कस्मीरी मुद्रा लै लै चित्र झुलाऊ - ३२२१।
संज्ञा
[सं. कर्ण + हिं. फूल]


करनबेध
बच्चों का एक संस्कार जिसमें कान छेदे जाते हैं, कर्णछेदन संस्कार।
संज्ञा
[सं. कर्णबेध]


करनहार
करने वाला, रचनेवाला।
तब भीषम नृप सौं यौं कहयौ। धर्मपुत्र तू देखि बिचार कारन करनहार करतार - १ - २६१।
संज्ञा
[सं करण + हिं. हार (प्रत्य.)]


करना
(काम को) चलाना या संपादित करना।
(क) काहूँ कह्यौ मंत्र जप करना। काहूँ कछु, काहूँ कछु बरना - १ - ३४१। (ख) तातैं संत-संग नित करना। संत-संग सेवौ हरिचरना - ५ - २।
क्रि. स.
[हिं. करना]


करना
पकाना, रींधना, तैयार करना।
क्रि. स.
[हिं. करना]


करना
देखना।
क्रि. स.
[हिं. करना]


करना
पति वा पत्नी बनाना।
क्रि. स.
[हिं. करना]


करना
व्यवसाय करना।
क्रि. स.
[हिं. करना]


करना
सवारी ठहराना।
क्रि. स.
[हिं. करना]


करना
बनाना, या नया रूप देना।
क्रि. स.
[हिं. करना]


करपर
कंजूस।
वि.
[सं. कृपण]


करपरी
पीठी की पकौड़ी।
संज्ञा
[देश.]


करपाल
खड्ग, तलवार।
संज्ञा
[सं.]


करबर
अलप, घात, विपत्ति, आपत्ति।
(क) ढोटा एक भयौ कैसैहुँ करि, कौन कौन करबर बिधि भानी - ३६८।

(ख) कौनकौन करबर हैं टारे। जसुमति बाँधि अजिर लै डारे ९१। (ग) आनँद बधावनो मुदित गोप गोपीगन आजु परी कुसल कठिन करबर तैं। (घ) बड़ी करबर टरी साँप सों ऊबरी, बात के कहत तोहि लागत जरनी। (ङ) जबते जनम भयौ हरि तेरौ कितने करबर टरे कन्हाई।

संज्ञा
[हिं. करवर]


करबार
तलवार।
कोपि करबार गहि कह्यौ लंकाधिपति, मूढ़ कहा राम कौं सीस नाऊँ - ९ - १२६।
संज्ञा
[सं. करबाल]


करभा
हाथी का बच्चा।
संज्ञा
[सं.]


करभा
हथेली के पीछे का भाग।
संज्ञा
[सं.]


करभा
कटि, कमर।
संज्ञा
[सं.]


करभ-कर
हाथी के बच्चे की सूँड़।
संज्ञा
[सं.]


करभा
हाथी का बच्चा।
(क) देखि सखी हरि अंग अनूप।.......। कबहुँ लकुट तैं जानु फेरि लै, अपने सहज चलावत। सूरदास मानहुँ करभा कर बारंबार चलावत - ६३२। (ख) चरन की छबि देखि डरप्यो अरुन गगन छपाइ। जानु करभा की सबै छबि निदरि लई छड़ाइ - १० - २३४।
संज्ञा
[सं. करभ]


करनि
मृतक-संस्कार।
संज्ञा
[हिं. करनी]


करनी
सुकृत्य, कार्य, कर्म, महिमा।
(क) करनी करुनासिंधु की मुख कहत न आवै - १ - ४। (ख) गनिका तरी आपनी करनी नाम भयौ तोरो - –१ - १२२। (ग) सूरदास प्रभु मुदित जसोदा पूरन भई पुरातन करनी - १० - ४४। (घ) मुरली कौन सुकृत-फल पाये।…..लघुता अंग, नहीं कुछ करनी, निरखत नैन लगाये ६६१। (ङ) लिखी मेटै कौन, करै करता जौन, सोइ ह्वै है जु होनहारि करनी - ६९८। (च) देखो करनी कमल की, कीनो जल सों हेत। प्रान तज्यौ प्रेम न तज्‍यौ, सूख्यौ सरहि समेत।
संज्ञा
[हिं. करना]


करनी
करतूत (हीनता या उपेक्षा सूचक प्रयोग)।
संज्ञा
[हिं. करना]


करनी
मृतक-क्रिया या संस्कार, अन्तेष्ठि कर्म।
संज्ञा
[हिं. करना]


करनी
दीवार पर गारा लगाने की कन्‍नी।
संज्ञा
[हिं. करना]


करनी
करना, करने की क्रिया।
मंदाकिनितट फटिक सिला पर, मुख-मुख जोरि तिलक की करनी। कहा कहौं, कछु कहत न आवै, सुमिरत प्रीति होइ उर अरनी - ९ - ११०।
संज्ञा
[हिं. करना]


करनी
हथिनी, हस्तिनी।
मानो ब्रज ते करनी चली मदमाती हो। गिरधर गज पै जाइ ग्वारि मदमाती हो। कुल अंकुस मानै नहीं मदमाती हो। संका बढ़े तुराइ मदमाती हो - २४०१।
संज्ञा
[सं. करिणी]


करनी
करना, संपादित करना।
मेरी कैंती बिनती करनी। पहिले करि प्रनाम, पाइनि परि, मनि रघुनाथ हाथ लै धरनी - ९ - १०१।
क्रि. स.
[सं. करण, हिं. करना]


करनेता
रंग के आधार पर किये गये घोड़ों के भेदों में एक।
संज्ञा
[हिं. कर्नेता]


करपर
खोपड़ी।
संज्ञा
[सं. कर्पर]


करना
कोई पद देना।
क्रि. स.
[हिं. करना]


करना
एक पौधा जिसमें सफेद फूल लगते हैं, सुदर्शन।
जाही जूही सेवती करना अनिआरी। बेलि चमेली मालती बूझति द्रुमडारी–१८२२।
संज्ञा
[सं. कर्ण]


करना
पहाड़ी नीबू।
संज्ञा
[सं. करुण]


करना
किया हुआ काम, करनी, करतूत।
संज्ञा
[सं. करण]


करनाई
तुरही।
संज्ञा
[अ. करनाय]


करनाल
सिंघा, भोंपा, नरसिंहा।
संज्ञा
[अ. करनाय]


करनाल
बड़ा ढोल।
संज्ञा
[अ. करनाय]


करनाल
तोप।
संज्ञा
[अ. करनाय]


करनावली
सुदर्शन के पौधों का समूह जिनमें सफेद फूल लगते हैं।
कमल बिकच करनावली मुद्रिका बलय पुट भुज बेलि शुकचारी - २३०९।
संज्ञा
[हिं. करना+सं. अवली]


करनि
कार्य, कर्म, करनी, करतूत।
(क) बिनती करत डरत करुनानिधि, नाहिँन परत रह्यौ। सूर करनि तरु रच्यौ जु निज कर, सो कर नाहिं गह्यौ - १ - १६२। (ख) सुनहु सूर वह करनि कहनि यह, ऐसे प्रभु के ख्याल - ५९८। (ग) सुनहु सूर ऐसेउ जन-जग में करता करनि करे - पृ. ३३२।
संज्ञा
[हिं. करनी]


कंथी
भिखमंगा।
संज्ञा
[सं. कंथा=गुदड़ी]


कंद
गूदेदार और बिना रेशे की जड़
संज्ञा
[सं.]


कंद
कोमल मीठी दूब।
विहल भई जसोदा डोलतदुखित नंद उपनंद। धैनु नहीं पय स्रवति रुचिर मुख चरति नाहिं तृंन कंद - २७६०।
संज्ञा
[सं.]


कंद
बादल।
संज्ञा
[सं.]


कंद
जमी हुई चीनी, मिसरी।
संज्ञा
[फ़ा]


कंदन
नाश, ध्वंस।
संज्ञा
[सं.]


कंदन
नाशक, ध्वंस करनेवाला।
संज्ञा
[सं.]


कंदना
नाश करना, मारना।
क्रि. स.
[हिं. कंदन]


कंदर
गुफा, गुहा।
(क)सज्‍जा पृथ्वी करी विस्तार। गृह गिरि - कंदर करे अपार - २ - २०। (ख) अहो विहंग, अहो पन्नन- नृप, या कंदर के राइ। अबकैं मेरी विपति मिटावौ, जानकि देहु बताइ - ६ - ६४।
संज्ञा
[सं.]


कंदर
अंकुश।
संज्ञा
[सं.]


करभीर
सिंह।
संज्ञा
[सं.]


करभूषन
हाथ का भूषण, आरसी, आइना।
कर भूषन तन हेरन लागी गयो देख मन चोरे - सा. १००।
संज्ञा
[सं. कर+भूषण]


करभोरु
हाथी की सूड़ की तरह चिकनी और सुडौल जाँघ।
पृथु नितंब करभोरु कमल-पद-नख-मनि चंद्र अनूप। मानहु लुब्ध भयो बारिज दल इंदु किये दस रूप।
संज्ञा
[सं.]


करभोरु
सुंदर या सुडौल जाँघवाली।
वि.


करम
कर्म, करनी।
संज्ञा
[सं. कर्म]


करम
कर्म का फल, भाग्य।
संज्ञा
[सं. कर्म]


करम
करम का टेढ़ा या तिरछा होना - भाग्य फूटना, किस्मत खोटी होना। उ.- पालागौं छाँड़ौ अब अंचल बार-बार बिनती करौं तेरी। तिरछो करम भयो पूरब को प्रीतम भयो पाँय की बेरी।

करम के ओछे - भाग्य हीन, अभागा। उ.- कौन जाति अरु पाँति बिदुर की ताहीं कैं पग धारत। भोजन करत माँगि घर उनकैं राज मान-मद टारत। ऐसे जन्मकरम के ओछे ओछनि हूँ ब्योहारत। यहै सुभाव सूर के प्रभु कौ, भक्त-बछल प्रन पारत - १ - १२। करम कौ मारौ- भाग्यहीन, अभागा। उ.- जौ पै तुमहीं बिरद बिसारौ। तौ कहौ कहाँ जाइ करुनामय कृपिन करम कौ मारौ - १ - १५७।

मु.


करम
हरदू या हलदू नामक पेड़।
संज्ञा
[देश.]


करमचंद
कर्म, करनी, भाग्य।
संज्ञा
[सं. कर्म]


करमट्ठा
सूम, कंजूस।
वि.
[सं. कृपण]


करमठ
कर्म करने में आनन्द लेने वाला।
वि.
[सं. कर्मठ]


करमठ
कर्मकांडी।
वि.
[सं. कर्मठ]


करमात
कर्म, भाग्य, किस्मत।
वह मूरति द्वै नयन हमारे लिखी नहीं करमात। सूर रोम प्रति लोचन देतो बिधिना पर तर मात १४१८।
संज्ञा
[सं. कर्म]


करमाली
सूर्य।
संज्ञा
[सं.]


करमी
कर्म में आनंद लेनेवाला, कर्मनिष्ठ।
वि.
[सं. कर्म]


करमुखा, करमुहाँ
कलंकी, पापी।
वि.
[हिं. काला+मुख]


करमुखा, करमुहाँ
काले मुंह वाला।
वि.
[हिं. काला+मुख]


करर
एक जहरीला कीड़ा।
संज्ञा
[देश.]


करर
एक पौधा जिसके बीजों से तेल निकलता है जिससे मोमजामा बनाया जा सकता है।
संज्ञा
[देश.]


कररना, करराना
चरमर या मरमर शब्द करके टूटना।
क्रि. अ.
[अनु.]


कररना, करराना
कड़ा शब्द करना।
क्रि. अ.
[अनु.]


कररान
धनुष की टंकार।
संज्ञा
[अनु.]


कररि, कररी.
वनतुलसी, ममरी।
ऊधो तनिक सुपस स्रौनन सुन। कंचन काँच कपूर कररि रस, सम दुख-सुख गुन-औगुन–३००१।
संज्ञा
[सं. कर्बर]


करल
कड़ाह, कड़ाही।
संज्ञा
[सं. कटाह]


करला
कोंपल, कोमल पत्ता।
संज्ञा
[हिं. कल्ला]


करली
कल्ला, कोंपल।
संज्ञा
[सं. करील]


करवट
एक बगल होकर लेटना।
संज्ञा
[सं. करवर्त, प्रा. करवट्ट]


करवट
करवत, आरा।
संज्ञा
[सं. करपत्र, प्रा. करवत]


करवट
प्रयाग, काशी आदि स्थानों में जो आरे या चक्र होते थे, वे करवट कहलाते थे। इनके नीचे लोग सुफल की आशा से प्राण देते थे। काशी-करवट लेना विशेष फलदायक समझा जाता था।
संज्ञा
[सं. करपत्र, प्रा. करवत]


करवत
आरा नामक दाँतेदार औजार।
संज्ञा
[सं. करपत्र, प्रा. करवत्त]


करवत
प्रयाग, काशी आदि स्थानों में करवत रहते थे जिनके नीचे प्राण देने से सुफल मिलने की आशा होती थी।
(क) कहा कहौं कोउ मानत नाहीं इक चंदन औ चंद करासी। सूरदास प्रभु ज्यों न मिलैंगे लेहौं करवत कासी। (ख) गोपी ग्वाल-बाल वृन्दाबन खग मृग फिरत उदासी। सबई, पान तत्यौ चाहत है को करवत को कासी - ३४२२।
संज्ञा
[सं. करपत्र, प्रा. करवत्त]


करवर
अलप, विपत्ति, संकट, कठिनाई।
(क) त्राहि त्राहि कहि ब्रज-जन धाए, अब बालक क्‍यौं बचै कन्हाई। .......। करवर बड़ी हरी मेरे की, घर घर आनंद करत बधाई - १० - ५१। (ख) मैं नहिं काहू को कछु घाल्यौ पुन्यनि करवर नाक्यौ–२३७३।
संज्ञा
[देश.]


करवरना
चहकना, कलरव करना।
क्रि. अ.
[सं. कलरव, हिं. करवर, कलबल]


करवाई
करने को प्रवृत्त किया।
रिषि नृप सौँ जग-बिधि करवाई। इला सुता ताकैं गृह जाई - ६ - २।
क्रि. स.
[हिं. करवाना]


करवाये
करने को प्रेरित किया।
राजनीति मुनि बहुत पढ़ाई गुरु सेवा करवाये - सारा. ५३८।
क्रि. स.
[हिं. करवाना]


करवायौ
करने को प्रवृत्त किया।
दिन दस लौं जलकुम्भ साजि सुचि, दीप-दान करवायौ - ९ - ५०।
क्रि. स.
[हिं. करवाना]


करवायौ
सिद्ध किया, संपादित किया।
करि दिग्विजय विजय को जग में भक्त पक्ष करवायौ - सारा, ८४१।
क्रि. स.
[हिं. करवाना]


करवार, करवाल
तलवार।
दामिनि करवार करनि कंपत सब गात उरनि जलधर समेत सेन इन्द्र धनुष साजे - २८१६।
संज्ञा
[सं. करबाल]


करवाली
करौली, छोटी तलवार।
संज्ञा
[सं. करबाल]


करवावति
संपादन कराती है, (कार्य आदि) कराती है, (कर्म आज्ञापालन आदि) करने को प्रवृत्त करती है।
कोमल तन आज्ञा करवावति, कटिटेढ़ी ह्वै आवति - ६५५।
क्रि. स.
[हिं. करवाना]


करवीर
कनेर का पेड़।
संज्ञा
[सं.]


करवीर
तलवार।
संज्ञा
[सं.]


करवीर
चेदि देश का एक प्राचीन नगर जहाँ के राजा शिशुपाल ने कृष्ण-बलराम से युद्ध किया था।
संज्ञा
[सं.]


करवील
करील, टेंटी का पेड़, कचरा।
कुमुद कदब कोविद कनक आदि सुकंज। केतकी करवील बेलउँ बिमल बहुबिधि मंत - २८२८।
संज्ञा
[सं.]


करवैया
करनेवाला।
वि.
[हिं. करना+वैया (प्रत्य.)]


करवोटी
एक चिड़िया।
संज्ञा
[देश.]


करष
खिचाव।
संज्ञा
[सं. कर्ष]


करष
मनमोटाव, द्रोह।
संज्ञा
[सं. कर्ष]


करष
क्रोध, ताव।
संज्ञा
[सं. कर्ष]


करषक
किसान, खेतिहर।
संज्ञा
[सं. कर्षक]


करषत
खीचता है, घसीटत समय।
करषत सभा द्रुपद-तनया कौ अंबर अछय कियौ। सूर स्याम सरबज्ञ कृपानिधि, करुना मृदुल हियौ - १ - १२१।
क्रि. स.
[हिं. करषना]


करषत
खीचती है, तानती है, घसीटती है।
दिन थोरी, भोरी, अति गोरी, देखत ही जु स्याम भए चाढ़ी। करषति है दुहु करनि मथानी, सोभा-रासि भुजा सुभ काढ़ी -१० - ३००।
क्रि. स.
[हिं. करषना]


करषन
खीचना, खीचने का प्रयत्न करना।
हरष हरष करषन चित चाहत तेहितें का प्रतिनीक - सा. ५८।
क्रि. स.
[हिं. करषना]


करषना
खींचना, घसीटना।
क्रि. स.
[सं. कर्षण]


करषना
सोख लेना, सुखाना।
क्रि. स.
[सं. कर्षण]


करषना
बुलाना, निमंत्रित करना।
क्रि. स.
[सं. कर्षण]


करषना
इकट्टा करना, समेटना।
क्रि. स.
[सं. कर्षण]


करषहिं
खींचते हैं, आकर्षित करते हैं।
क्रि. स.
[हिं. करषना]


करषि
आकर्षण करके, समेट या बटोर कर।
(क) छिन इक मैं भृगुपति प्रताप बल करषि हृदय धरि लीनौ ९ - ११५। (ख) सकुचासन कुल सील करषि करि जगत बंध कर बंदन। मौनअपबाद पवन आरोधन हित क्रम काम निकंदन–३०१४।
क्रि. स.
[सं. कर्षण, हिं. करषना]


करषि
खीचकर, तानकर।
(क) पिय बिनु बहत बैरिन बाय। मदनबान कमान ल्यायो करषि कोपि चढ़ाय - सा. ३२। (ख) केस गहि करषि जमुना धार डारि दै सुन्यौ नृप नारि पति कृष्‍न मारयौ - २६१८। (ग) इन औरन अमरन सुख दीनों करषि केस सिर कंस - ३०१८।
क्रि. स.
[सं. कर्षण, हिं. करषना]


करषे
आकर्षण किये, समेटे, इकट्टा किटे, बटोरे, खीचे।
अंकम भरि भरि लेत स्याम कौं ब्रैज नर-नारि अतिहिँ मन हरषे। सूर स्याम संतन सुखदायक दुष्टन के उर सालक करषे - ६०७।
क्रि. स.
[सं. कर्षण, हिं. करषना]


करषै
खींचती है, आकर्षित करती है, घसीटती है, तानती है।
(क) मंजुल तारनि की चपलाई, चित चतुराई करषै री - १० - १३७।

(ख) जसुमति रिसकरि करि रजु करषै - १० - ३४२।

क्रि. स.
[स. कर्षण, हिं. करषना]


करषै
समेटती है, बटोरती है, इकट्टा करती है।
सूरदास गोपी बड़भागिनि हरि-सुख क्रीड़ा करषै हो - २४००।
क्रि. स.
[स. कर्षण, हिं. करषना]


करष्यौ
आकर्षित किया, समेट लिया, बटोर लिया।
जिहिँ भुज परसुरराम बल करष्‍यौ, ते भुज क्‍यौँ न सँभारत फेरी १ - ९ - ९३।
क्रि. स.
[स. कर्षण, हिं. करषना]


करष्यौ
खीचा, एकाग्र किया, लगाया।
जब पूरी सुनि हरि हरष्‍यौ। तव भोजन पर मन करष्यौ - १० - १८३।
क्रि. स.
[स. कर्षण, हिं. करषना]


करष्यौ
ताना, घसीटा, दबाया
अंकुस राखि कुंभ पर करष्यौ हलधर उठे हँकारी - २५९४।
क्रि. स.
[स. कर्षण, हिं. करषना]


करसना
खीचना।
क्रि. स.
[सं. कर्षण]


करसना
बुलाना।
क्रि. स.
[सं. कर्षण]


करसाइल
काला मृग।
संज्ञा
[हिं. करसायल]


करसायर
किसान, खेतिहार।
संज्ञा
[सं. कृषाण]


करसायल, करसायल
काला मृग।
संज्ञा
[सं. कृष्णसार]


करसी
उपला या कंडा।
संज्ञा
[सं. करीष]


करसी
उपले या कंडे का टुकड़ा।
संज्ञा
[सं. करीष]


करह
ऊँट।
संज्ञा
[सं. करभ]


करह
फूल की कली।
संज्ञा
[सं. कलि:]


करहाट, करहाटक
कमल की जड़।
संज्ञा
[सं.]


करहाट, करहाटक
कमल का छत्ता या छत्र।
संज्ञा
[सं.]


करहाट, करहाटक
मैनफल।
संज्ञा
[सं.]


करहु
करो।
पहिलेहिं रोहिनि सौं कहि राख्यौ, तुरंत करहु ज्योनार - ३९५।
क्रि. स.
[हिं. करना]


कराँकुल
एक बड़ी चिड़िया जो पानी के किनारे रहती है।
संज्ञा
[सं. कलांकुर]


करा
अंश, भाग।
संज्ञा
[सं. कला]


कराइबो
किया, संपादित कराया।
जुवा-जुवती खेलाइ कुल-व्यवहार सकल कराइबो। जननि मन भयौ सूर आनँद हरषि मंगल गाइबो - १० उ. - १२४।
क्रि. स.
[सं. करना]


कराई
कराते हैं, कराया।
(क) गावैं सखी परस्पर मंगल, रिषि अभिषेक कराई - ९ - १७।

(ख) कर परनाम देवगुरु द्विज को जल सुस्नान कराई–सारा. २१४।

क्रि. स.
[हिं. कराना]


कराई
कर दी, (देर) लगा दी।
धेनु नहिं देखियत कहुँ नियरैं, भोजन ही मैं साँझ कराई–४७१।
क्रि. स.
[हिं. कराना]


कराई
कालापन, श्यामता।
मुख मुखी सिर पखौआ बन-बन धेनु चराई। जे जमुना-जल रंग रॅंगे हैं ते अजहूँ नहिं तजत कराई।
संज्ञा
[हिं. कारा, काला]


कराऊँगो
कराऊँगा, कर लूँगा।
तब तनु परसि काम दुख मेरो जीवन सफल कराऊँगो - १९४३।
क्रि. स.
[हिं. करन]


कराएँ
कराने से, (किसी काम आदि में) लगने से।
कहा होत पय-पान कराएँ, विष नहिं तजत भुजंग - १ - ३३२।
क्रि. स.
[हिं. ‘करना’ का प्रे. ‘कराना’]


कराना
करने को प्रवृत्‍त करना, करने में लगाना।
क्रि. स.
[हिं. ‘करना' का प्रे.]


कराया, करायौ
कराने को प्रेरित किया।
(क) असुर जोनि ता ऊपर दीन्ही, धर्म-उछेद करायौ - १ - १०४।

(ख) जानि एकादस बिप्र बुलाए, भोजन बहुत करायो - ९ - ५०।

क्रि. स. (भूत.)
[हिं. ‘करना' का प्रे.]


कराया, करायौ
किये, बनाये, अंगीकार किये, माने।
कही कथा दत्तात्रय मुनि की गुरु चौबीस करायो - सारा. ८४३।
क्रि. स. (भूत.)
[हिं. ‘करना' का प्रे.]


कराग
कठोर।
वि.
[हिं. कड़ा, कर्रा]


कराग
ट्ट्ढ़चित्‍त।
वि.
[हिं. कड़ा, कर्रा]


कराग
कुर कुर शब्द करने वाला।
वि.
[हिं. कड़ा, कर्रा]


कराग
उग्र, तेज।
वि.
[हिं. कड़ा, कर्रा]


कराग
खरा, चोखा।
वि.
[हिं. कड़ा, कर्रा]


कराग
हट्ठा-कट्ठा।
वि.
[हिं. कड़ा, कर्रा]


करारी
उग्र, तेज, तीक्ष्‍ण।
चकित देखि यह कहैं नर-नारी। धरनि अकास बराबरि ज्वाला झपटति लपट करारी - ५१८।
वि.
[हिं. पुं. कड़ा, कर्रा करारा]


कराल
डरावना, भयानक, भीषण।
(क) सूर सुजस-रागी न डरत मन, सुनि जातना कराल - १ - १८९ (ख) उचटत अति अँगार फुटत झर, झपरत लपट कराल - ६१५।
वि.
[सं.]


कराल
बड़े दाँत वाला।
वि.
[सं.]


कराल
ऊँचा।
वि.
[सं.]


कंध
कंधा।
चारि पहर दिन चरत फिरत बन, तऊ न पेट अवैहौ। टूटे कंधऽरु फूटी नावनि, कौ लौं धौं भुस खैहौं - १ - १३१।
संज्ञा
[सं. स्कंध]


कंध
सिर।
तू भुल्यौ दससीस बीउ भुज, मोहि गुमान दिखावत। कंध उपारि डारिहौं भूतल, सूर सकल सुख पावत - ९ - १३३।
संज्ञा
[सं. स्कंध]


कंध
तने का ऊपरी भाग जहाँ से शाखाएँ फूटती हैं।
संज्ञा
[सं. स्कंध]


कंधनी
मेखला, करधनी।
संज्ञा
[हिं. करधनी]


कंधर
गरदन
संज्ञा
[सं.]


कंधर
बादल।
संज्ञा
[सं.]


कंधरा
गरदन।
संज्ञा
[हिं. कंधर]


कंधा
गले और मोढ़े के बीच का भाग।
संज्ञा
[सं. स्‍कंध, प्रा. कंध]


कंधा
बाहुमूल, मोढ़ा।
संज्ञा
[सं. स्‍कंध, प्रा. कंध]


कंधार, कंधारी
केवट, मल्‍लाह, माँझी।
कहो कपि कैसे उतरयौ पार। दुस्तर अति गंभीर बारिनिधि सत जोजन बिस्तार। राम प्रताप सत्य सीता को यहै नाव कंधार। बिन अधार छन में अवलंघयौ आवत भई न बार - ९ - ८७।
संज्ञा
[सं. कर्णधार]


करार
नदी का किनारा।
मैं तौ स्याम-स्याम कै टेरैति कालिंदी के करार - २७६९।
संज्ञा
[सं. कराल-ऊँचा। हिं. कट=करना+सं. आर=किनारा]


करार
स्थिरता, ठहराव।
संज्ञा
[अ. करार]


करार
धीरज, संतोष।
संज्ञा
[अ. करार]


करार
आराम।
संज्ञा
[अ. करार]


करार
वादा, प्रतिज्ञा।
संज्ञा
[अ. करार]


करारत
कर्कश स्वर करता है, (कौवा) काँ काँ बोलता है।
कुँवरि ग्रसित श्री खंड अहि भ्रम चरन सिलीमुख लाग। बानी मधुर जानि पिक बोलत कदम करारत काग - १८२६।
क्रि. अ.
[हिं. करारना]


करारना
कर्कश शब्द करना, कौए का काँ काँ बोलना।
क्रि. अ.
[अनु.]


कराग
नदी का ऊँचा किनारा।
संज्ञा
[हिं. करार=किनारा]


कराग
टीला।
संज्ञा
[हिं. करार=किनारा]


कराग
कौआ।
संज्ञा
[सं. करट]


करालिका, कराली
अग्नि की एक जिह्वा।
संज्ञा
[सं.]


करालिका, कराली
डरावनी, भयावनी।
वि.


करावत
कराते हैं, करने में प्रवृत्त करते हैं।
सूरदास संगति करि तिनकी, जे हरि सुरति करावत - १ - १७।
क्रि. स.
[हिं. कराना]


करावति
कराती है।
तुमसौं कपट करावति प्रभु जू , मेरी बुद्धि भरमावै - १ - ४२।
क्रि. स.
[हिं. कराना (‘करना’ का प्रे.)]


करावते
कराते हैं।
सूरदास स्वामी तिहिं अवसर पुनि-पुनि प्रगट करावते - २७३५।
क्रि. स.
[हिं. कराना]


करावन
कराने के लिए, संपादित करने के उद्देश्य से।
पूतना पयपान करावन प्रेम-सहित चलि आई - सारा. ७४६।
क्रि. स.
[हिं. कराना]


करावहु
कराओ, करने को प्रवृत्त करो।
तुब मुख-चंद्र, चकोर-दृग, मधुपान करावहु - १० - २३२।
क्रि. स.
[हिं. कराना]


कराबै
कराता है, करवाये या करवावै।
असरन-सरन सूर जाँचत है, को अब सुरति करावै - १ - १७।
क्रि. स.
[हिं. ‘करना' का प्रे. रूप]


करावौ
करो, करवाओ, करने को प्रवृत्त करो।
अरी, मेरे लालन की आजु बरष-गाँठि, सबै सखिनि कौं बुलाई मंगल-गान करावौ - १० - ९५।
क्रि. स.
[हिं. कराना]


कराह, कराहा
पीड़ा या कसक सूचक दुखभरा शब्द।
संज्ञा
[हिं. करना+आह]


करिया
पतवार, कलवारी।
सारंग स्यामहिं, सुरति कराई। पौढ़े होंहि जहाँ नँदनंदन ऊँचे टेर सुनाइ। गए ग्रीषम पावस रितु आई सब काहू चित चाइ। तुम बिनु ब्रजबासी यौं जीवैं ज्यौं करिया बिनु नाइ - २८४४।
संज्ञा
[सं. कर्ण]


करिया
माँझी, केवट, मल्लाह।
संज्ञा
[सं. कर्ण]


करिया
पतवार या कलवारी थामने वाला।
संज्ञा
[सं. कर्ण]


करिया
काला, श्याम।
वि.


करियाई
कालिमा, श्यामता।
संज्ञा
[हिं. करिया+ई (प्रत्य.)]


करियाई
कालिख।
संज्ञा
[हिं. करिया+ई (प्रत्य.)]


करियारी
विष।
संज्ञा
[सं. कलिकारी]


करियारी
लगाम, बाग।
संज्ञा
[सं. कलिकारी]


करियै
करिए (आदरसूचक) कीजिए।
या देही कौ गरब न करियै, स्यार काग, गिद्ध खैहैं - १ - ८६।
क्रि. स.
[सं.करण, हि.करना]


करियौ
करना।
बंधू, करियौ राज सँभारे। राजनीति अरु गुरु की सेवा गाइ-बिप्र प्रतिपारे - ९ - ५४।
क्रि. स.
[सं. करण, हिं. करना]


कराह, कराहा
कड़ाह, कड़ाही।
संज्ञा
[हिं. कराह]


कराहना
पीड़ा या कसक सूचक शब्द करना, आह-आह या हाय-हाय करना।
क्रि. अ.
[हिं. कराह]


कराहि
(इच्छा आदि) पूर्ण करें, करावें।
यह लालसा अधिक मेरैं जिय, जो जगदीस कराहिं। मो देखत कान्हा यहि आँगन, पग द्वै धरनि धराहिं—१० - ७५।
क्रि. स.
[हिं. कराना]


कराहि
हाय-हाय या आह-आह करके।
क्रि. अ.
[हिं. कराहना]


कराहीं
करते हैं।
घरी इक सजन-कुटुंब मिलि बैठैं, रुदन बिलाप कराहीं - १ - ३१९।
क्रि. स.
[हिं. करना]


करिंद
श्रेष्ठ हाथी।
संज्ञा
[सं. करीदं]


करिंद
ऐरावत हाथी।
संज्ञा
[सं. करीदं]


करि
सूड़वाला, अर्थात हाथी।
संज्ञा
[सं. करी, करिन्]


करि
करके।
बकी कपट करि मारन आई, सो हरि जू बैकुंठ पठाई - १ - ३।
क्रि. स.
[सं. करण, हिं. करना]


करि
बनाकर, रूप बदल कर।
सुन्दर गऊ रूप हरि कीन्हौ। बछरा करि ब्रह्मा संग लीन्हौं–७ - ७।
क्रि. स.
[सं. करण, हिं. करना]


करि
द्वारा, से, जरिये से।
तैं कैकई कुमंत्र कियौं। अपने कर करि काल हँकारयौ, हठ करि नृप अपराध लियौ - ९ - ४८।
अव्य.


करि
की।
बाला बिरह दुसह सबहीं कौं जान्यौ राजकुमार। बान बृष्टि स्रोनित करि सरिता, ब्याहत लगी न बार–९–१२४।
प्रत्य.
[हिं. की]


करिखई, करिखा
कालापन।
संज्ञा
[हिं.कालिख]


करिणी, करिनी
हथिनी।
संज्ञा
[सं. पुं. करि]


करिबदन
जिनका मुँह हाथी का सा है, गणेश।
संज्ञा
[सं.]


करिबे
करने में, करने (के लिए)।
(क) अब यह बिथा दूरि करिबे कौं और न समरथ कोई - १ - ११८। (ख) सूर सु भुजा समेत सुदरसन देखि बिंरचि भ्रम्यौ। मानौ आन सृष्टि करिबे कौ, अंबुज नाभि जम्यौ - १ - २७३। (ग) थकित बिलोकि सारदा बर्नन करिबे बहुत प्रसंग –सारा. ९९६।
क्रि. स.
[हि. करना]


करिबे
रचने (को), बनाने (के लिए)
दियो बरदान सृष्टि करिबे को अस्तुति करि प्रमान–सारा. ५२।
क्रि. स.
[हि. करना]


करिबो
करना, संपादन करना।
सूर सुकमलन के बिछुरे झूठो सब जतननि को करिबो - २८६०।
क्रि. स.
[हिं. करना]


करियत
करते हैं।
सूधी निपट देखियत तुमकौं तातैं करियत साथ। –६७४।
क्रि. स.
[सं. करण, हिं. करना]


करिया
किये, कर दिये।
उपमा काहि देऊँ, को लायक, मन्मथ कोटिं वारने करिया - ६८८।
क्रि. अ.
[हिं. वरना]


करिहौ
करोगे, संपादित करोगे।
पतित-पावन-बिरद् साँच कौन भाँति करिहौ - १ - १२४।
क्रि. स.
[सं. करण, हिं. करना]


करिहौ
पैदा करोगे, अर्जन करोगे।
स्रुति पढ़िकै तुम नहिं उद्धरिहौ, बिद्या बेंचि जीविका करिहौ–४ - ५।
क्रि. स.
[सं. करण, हिं. करना]


करी
की।
(क) ऐसी को करी अरु भक्त काजैं। जैसी जगदीस जिय धरी लाजैं—१ - ५। (ख) अबलौं ऐसी नाहीं सुनी। जैसी करी नंद के नंदन अद्भुत बात गुनी - सा. १०४। उ. - पावक जठर जरन नहिं दीन्हौ, कंचन सी मम देह करी - १ - ११६।
क्रि. स.
[सं. करण, हिं. करना]


करी
रची, बनायी।
क्रि. स.
[सं. करण, हिं. करना]


करी
हाथी।
पाइ पियादे धाइ ग्रह सौं लीन्हौ राखि करी - १ - १६।
संज्ञा
[सं. करि, करिन्]


करी
अधखिला फूल, कली।
संज्ञा
[सं. कांड, हिं. कली]


करीजै
कीजिए।
(क) अब मोपै प्रभु कृपा करीजै। भक्ति अनन्य आपुनी दीजै ३ - १३। (ख) साधु-संग प्रभु मोकौँ दीजै। तिहि संगति निज भक्ति करीजै - ७ - २।
क्रि. स.
[हिं. करना]


करीना
मसाला।
संज्ञा
[हिं. केराना]


करीब
पास, समीप।
क्रि. वि.
[अ.]


करीब
लगभग।
क्रि. वि.
[अ.]


करीम, करीमा
कृपालु, दयालु।
वि.
[अ.]


करीम, करीमा
ईश्वर।
संज्ञा


करीर
बाँस का नया कल्ला।
संज्ञा
[सं.]


करीर
करील का झाड़ीदार पेड़।
संज्ञा
[सं.]


करीर
घड़ा।
संज्ञा
[सं.]


करील
एक तरह की झाड़ी जिसमें पत्तियाँ नहीं होतीं, केवल गहरे हरे रंग की पतली-पतली डंठले फूटती हैं। ब्रज में करील बहुत होते हैं। इसका फल कसैला होता है जिसे टेंटी कहते हैं।
जिहिँ मधुकर अंबुज-रस चाख्यौ, क्यौं करीलफल भावै - १ - १६८।
संज्ञा
[सं. करीर]


करीश, करीस
गजेंद्र।
संज्ञा
[सं. करि+ईश]


करीष
गोबर जो जंगलों में पड़े-पड़े सूख जाता है और जलाने के काम आता है।
संज्ञा
[सं.]


करु
करो, अमल में लाओ।
सूर बुलाइ पूतना सौं कह्यौ, करु न बिलम्ब घरी - १० - ४८।
क्रि. स.
[सं. करण, हिं. करना]


करुआ
कडुआ, तीक्ष्ण।
वि.
[सं. कटुक]


करिल
नया कल्ला, कोंपल।
संज्ञा
[हिं. कोंपल]


करिल
काला।
वि.


करिहाँ, करिहाँउँ, करिहाँव, करिहैंयाँ
कमर, कटि।
संज्ञा
[सं. कटिभाग]


करिहारी
कलियारी, विष।
संज्ञा
[सं. कलिकारी]


करिहारी
लगाम।
संज्ञा
[सं. कलिकारी]


करिहैं
करेंगे, निबटाएँगे, संपादित करेंगे।
काके हित श्रीपति ह्याँ ऐहैं, संकट रच्छा करिहैं ? - १ - २९।
क्रि. स.
[सं. करण, हिं. करना]


करिहैं
ब्याहेंगे, अपनाएँगे।
(नंद जू) आदि जोतिषी तुम्हारे घर कौ पुत्र-जन्म सुनि आयौ। लगन सोधि सब जोतिष गनिकै, चाहत तुम्हहिं सुनायौ। …..। ऊँच-नीच जुवती बहु करिहैं, सतएँ राहु परे हैं - १० - ८६।
क्रि. स.
[सं. करण, हिं. करना]


करिहै
करेगा, बिगाड़ सकेगा।
जो घट अंतर हरि सुमिरै। ताकौ काल रूठि का करिहै, जो चित चरन धरै - १ - ८२।
क्रि. स.
[हिं. करना]


करिहै
संपादित करेगा।
उ. - तैं हूँ जो हरि-हित तप करिहै। सकल मनोरथ तेरौ पुरिहै - ४ - ९।
क्रि. स.
[हिं. करना]


करिहै
करेगा, घटित करेगा।
पुनि हरि चाहै, करिहै सोइ - ७ - २।
क्रि. स.
[हिं. करना]


कहनाकर
बहुत दयालु, करुणानिधि, करुणा की खानि।
वि.
[सं. करुणा+आकर (निधि)]


कहनाकर
दयालु ईश्वर।
नरहरि रूप धरयौ करुनाकर छिनक माहिं उर नखनि बिदारयौ - १ - १४।
संज्ञा
[सं.]


करुनानिधान
जो बहुत दयालु हो।
वि.
[सं. करुणानिधान]


करुनानिधि
जिसका हृदय दया से युक्त हो, दयालु।
वि.
[सं. करुणानिधि]


करुनामय
जिसका हृदय दया से भरा हो, दयालु, करुणा से युक्त।
वि.
[सं. करुणामय]


करुनामयी
जिसका हृदय करुणा से भरा हो, दयालु।
ध्रुव बिमाता-बचन सुनि रिसायौ। दीन के द्याल गोपाल, करुनामयी मातु सौं सुनि, तुरत सरन आयौ - ४ - १०।
वि.
[सं. करुणामयी]


करुनामूल
करुणाजनक, करुणामय।
थक्यौ बीच बिहाल, बिहवल, सुनौ करुनामूल - १ - ९९।
संज्ञा
[सं. करुणा+मूल]


करुना-सरिता
दया की नदी, जिसके हृदय में करुणा की धारा-सी प्रवाहित हो, अत्यंत दयालु।
पारथ-तिय कुरुराज सभा मैं बोलि करन चहै नंगी। स्रवन सुनत करुनासरिता भए, बढ़यौ बसन उमंगी - १ - २१।
संज्ञा
[सं. करुणा+सरिता]


करुनासागर
दया के समुद्र, बड़े दयालु।
वि.
[सं. करुणा+सागर]


करुनासिंधु
करुणा का समुद्र, जिसकी करुणा का भाव समुद्र के समान अथाह हो, अत्यंत दयालु।
वि.
[सं. करुणासिंधु]


करुणा
दया।
संज्ञा
[सं.]


करुणा
शोक।
संज्ञा
[सं.]


करुणा
करना का पेड़।
संज्ञा
[सं.]


करुणाकर
दया करनेवाला।
वि.
[सं.]


करुणादृष्टि
कृपा।
संज्ञा
[सं.]


करुणानिधान, करुणानिधि
करुणा से युक्त, दयालु।
वि.
[सं.]


करुणावान
दयालु।
वि.
[सं. करुणा+हिं. वान]


करुना
दुखी का दुख दूर करने के लिए अंत:करण की प्रेरण, दया।
कछुक करुना करि जसोदा करति निपट निहोर। सूर स्याम त्रिलोक की निधि, भलैंहि माखन चोर–३६४।
संज्ञा
[सं.]


करुना
दुख, शोक।
करुना करति मँदोदरि रानी। चौदह सहस सुंदरी उमहीं, उठे न कंत महाअभिमानी - ९ - १६०।
संज्ञा
[सं.]


करुना
राधा की एक सखी का नाम।
कहि राधा किन हार चोरायो। ब्रजजुवतिन सबहीं मैं जानति घर घर लै लै नाम बतायौ। ......। रत्ना कुमुदा मोहा करुना ललना लोभा नूप - १५८०।
संज्ञा


कंदर
बादल।
संज्ञा
[सं. कंद]


कंदर
मूल।
सुंदर नंद महर के मंदिर प्रगट्यौ पूत सकल सुख कंदर - १० - ३२।
संज्ञा
[सं. कंद]


कंदरा
गुफा, गुहा।
(क) कहन लगे सब अपुनमें सुरभी चरै अघाइ। मानहुँ पर्वतकंदरा, मुख सब गए समाइ - ४३१। (ख) स्याम बलराम गये धनुषसाला। लियौ रथ तें उतरि रजक मारयौ जहाँ कंदरा तें निकसि सिंह-बाला - २५८५।
संज्ञा
[सं.]


कंदर्प
कामदेव।
संज्ञा
[सं.]


कंदा
कंद।
संज्ञा
[सं. कंद]


कंदा
शकरकंद।
संज्ञा
[सं. कंद]


कंदुक
गेंद।
संज्ञा
[सं.]


कंदुक
गोल तकिया।
संज्ञा
[सं.]


कंदुक तीर्थ
ब्रज का एक तीर्थ। श्री कृष्ण यहाँ गेंद खेलते थे; अतएव उनके उपासकों के लिए यह दर्शनीय स्थान है।
संज्ञा
[सं.]


कँदैला
गँदला, मैला, मलिन।
वि.
[हिं. काँदौ+ला (प्रत्य.)]


करुआ
अप्रिय।
वि.
[सं. कटुक]


करुआई
कडुआपन।
संज्ञा
[हिं. करुआ, कडुआ]


करुआना
दुखना।
क्रि. अ.
[हिं. करुआ]


करुआना
कडुवा लगने पर मुँह बनाना।
क्रि. स.


करुई
जिसका स्वाद कडुआपन लिए हुए हो, कडुई।
(क) सुनत जोग लागत हमैं ऐसौ ज्यों करुई ककरी - ३३६०। (ख) फलन माँझ ज्यों करुई तोमरि रहत घुरे पर डारी। अब तौ हाथ परी जंत्री के बाजत राग दुलारी - २९३५।
वि.
[हिं. करुआ]


करुखिअनि
तिरछी चितवन, तिरछी नजर।
सूरदास प्रभु त्रिय मिली, नैन प्रान सुख भयौ चितए करुखिअनि अनकनि दिये - २०६९।
संज्ञा
[हिं. कनखी]


करुखी
तिरछी चितवन या नजर।
संज्ञा
[हिं. कनखी]


करुण
दया।
संज्ञा
[सं.]


करुण
शोक।
संज्ञा
[सं.]


करुण
दया से युक्त।
वि.


करैत
काला साँप।
संज्ञा
[हिं. काला]


करैया
करने वाला।
(क) जब तैं ब्रज अवतार धरयौ इन, कोउ नहिं घात करैया–४२८। (ख) तुमसौं टहल करावति निसिदिन, और न टहल करैया - ५१३।
वि.
[हिं करना+ऐया (प्रत्य.)]


करोंट
करवट।
संज्ञा
[हिं. करवट]


करोटी
खोपड़ी।
संज्ञा
[सं.]


करोटी
करवट।
एक दिना हरि लई करोटी सुनि हरषीं नँदरानी। बिप्र बुलाइ स्वस्तिवाचन करि रोहिनि नैन सिरानी - सारा. ४२१।
संज्ञा
[हिं. करवट]


करोड़
एक संख्या जो सौ लाख के बराबर होती है।
वि.
[सं. कोटि]


करोती
काँच का छोटा पात्र।
वै अति चतुर प्रबीन कहा कहौं जिनि पठई तोको बहरावन। सूरदास प्रभु जिय की होनी की जानति काँच करोती में जल जैसे ऐसे तू लागी प्रगटावन – २२०४।
संज्ञा
[हिं. करौती]


करोद्, करोदना, करोना
खुरचना, खरोचना।
क्रि. स.
[सं. कर्त्तन]


करोती
दूध-दही की खुरचन।
संज्ञा
[हिं. करोना]


करोती
खुरचन नाम की मिठाई।
संज्ञा
[हिं. करोना]


करेणुका, करेनुका
हथिनी।
संज्ञा
[सं. पुं. करेणु]


करेर, करेरा
कड़ा, सख्त, कठिन।
वि.
[हिं. कठोर]


करेरन
कड़ीचोटें, थपेड़े, प्रहार।
सूर रसिक बिन को जीवति है निर्गुन कठिन करेरन - ३२७७।
संज्ञा
[हिं. करेर]


करेरुआ
एक कँटीली बेल जिससे परबल के बराबर फल लगते हैं जो खाने में बहुत कड़ुए होते हैं।
संज्ञा
[देश.]


करेला
एक बेल जिसमें गुल्ली की तरह लंबे हरे-हरे कडुए फल लगते हैं जो तरकारी के काम आते हैं।
बने बनाइ करेला कीने। लोन लगाइ तुरत तलि लीने - २३२१।
संज्ञा
[सं. कारवेल्ल]


करेली
छोटे-छोटे जंगली करेले जो बहुत कड़ुए होते हैं।
संज्ञा
[हिं. करेला]


करैं
करती हैं, लगाती हैं।
हरद अच्छत दूब दधि लै तिलक करैं ब्रजबाल - १० - २६।
क्रि. स.
[हिं. करना]


करै
करे, करता है।
सूरदास जसुदा कौ नंदन जो कछु करै सो थोरी - १० - २९३।
क्रि. स.
[हिं. करना]


करै
पद देता है, बनता है, पद पर प्रतिष्ठित करता है।
उग्रसेन की आपदा सुनि सुनि बिलखावै। कंस मारि, राजा करै, आपहु सिर नावै - १ - ४।
क्रि. स.
[हिं. करना]


करैगौ
करेगा, काम चलाएगा, संपादित करेगा।
(क) जब जम जाल-पसार परैगौ, हरि बिनु कौन करैगौ धरहरि - १ - ३१२। (ख) बदन दुराइ बैठि मंदिर में बहुरि निसापति उदय करैगो - २८७०।
क्रि. स.
[सं. करण, हि. करना]


करुनासिंधु
दयालु भगवान।
पुं.


करुर, करुवा
कडुवा, कटु।
वि.
[सं. कटुक, हिं. कड़ुवा]


करुवार, करुवारि
नाव खेने का डाँड़।
संज्ञा
[हिं. कलवारी]


करुनावत
कड़ुआ लगने का सा मुँह बनाते हैं।
षटरस के परकार जहाँ लगि लै लै अधर छुवावत। बिस्‍संभर जगदीस जगतगुरु, परसत मुख करुवावत - १० - ८९।
क्रि. अ.
[हिं. कड़ुआना]


करुवौ
अप्रिय, चुभने वाले, जो भला न लगे।
करुवौ बचन स्रवन सुनि मेरौ, अति रिस गही भुवाल - ९ - १०४।
वि.
[हिं. कडुआ, करुवा]


करू
कड़ुआ, तीखा।
वि.
[हिं. कटु]


करे
रचे, बनाये।
सज्जा पृथ्वी करी बिस्तार। गृह गिरि-कंदर करे अपार - २ - २०
क्रि. स.
[सं. करण, हिं. करना]


करे
उपजाये, उत्पन्न किये।
मैं तो जे हरे हैं ते तौ सोवत परे हैं, ये करे हैं कौनैं आन, अँगुरीनि दंत दै रह्यौ–४८४।
क्रि. स.
[सं. करण, हिं. करना]


करेजा
कलेजा, हृदय।
संज्ञा
[सं. यकृत]


करेणु
हाथी।
संज्ञा
[सं.]


करोर
करोड़।
अबकै जब हम दरस पावैं देहिं लाख करोर – ३३८३।
वि.
[हिं. करोड़]


करोरी
करोड़ों, बहुत, अनेक।
कंचन की पिचकारी छूटति छिरकति ज्यौं सचु पावै गोरी। अतिहि ग्वाल दधि गोरस माते गारी देत कहौ न करोरी - २४३६।
वि.
[हिं. करोड़ी]


करोला
गडुआ।
संज्ञा
[हिं. करवा]


करोषत
खुरचते या खरोचते हैं।
(क) लाल निठुर ह्वै बैठि रहे। प्यारी हा हा करति न मानत पुनि पुनि चरन गहे। नहिं बोलत नहिं चितवत मुख तन धरनी नखन करोवत- पृ० ३१२। (ख) मैं जानी पिय मन की बात। धरनी पग नख कहा करोवत अब सीखे ए घात – २०००।
क्रि. स.
[हिं. करोना)


करोवति
कुरेदती या खुरचती है।
नीची दृष्टि करी धरनी नखनि करोवति एहो पिया तब हौं एक एक घूँघट तन चितै रही आहि कहा हो करो अब सोऊ - २२४०।
क्रि. स.
[हिं. करोना]


करौं
संपादित करूँ, पूर्ण करूँ।
रसना एक अनेक स्याम-गुन कहँ लगि करौं बखानौं – १ - ११।
क्रि. स.
[सं. करण, हिं. करना]


करौं
रचूँ, बनाऊँ, निर्माण करूँ।
क्रि. स.
[सं. करण, हिं. करना]


करौं
जन्माऊँ, पैदा करूँ।
क्रि. स.
[सं. करण, हिं. करना]


करौंछा
काला।
वि.
[हिं. काला]


करौंजी
एक पौधा, मरगल, मँगरैला।
संज्ञा
[हिं. कलौंजी]


करौंट
करवट।
संज्ञा
[हिं. करवट]


करौंदा
एक छोटा सुंदर फल जो कुछ सफेद और कुछ लाल होता है। इसका स्वाद खट्टा होता है और यह अचार-चटनी के काम आता है।
संज्ञा
[सं. करमर्द्द, पा. करमद्द, पुं. हिं. करवँद]


करौंदिया
हल्की स्याही लिये हुए लाल रंग का।
वि.
[हिं. करौंदा]


करौ
करो।
क्रि. स.
[हिं. करना]


करौ
बनाओ, स्वीकार करो, प्रतिष्ठित करो।
अब तुम बिस्वरूप गुरु करौ। ता प्रसाद या दुख कौं तरौ - ६ - ५।
क्रि. स.
[हिं. करना]


करौ
बनाओ, रचाओ, जन्माओ, पैदा करो।
माधौ मोहिं करौ बृंदावन रेनु जिहिं चरननि डोलत नँदनंदन दिनप्रति बन-बन चारत धेनु - ४८९।
क्रि. स.
[हिं. करना]


करौगो
करोगी, संपादित करोगी।
सूर राधिका कहत सखिन सौं बहुरि आइ घर काज करौगी - १२८९।
क्रि. स.
[हिं. करना]


करौत,करौता
आरा।
संज्ञा
[हिं. करवत]


करौती
लकड़ी चीरने की आरी।
संज्ञा
[हिं. करौता=आरा]


करौती
काँच का छोटा पात्र या बरतन, शीशी।
(क) जाहीं सो लगत नैन, ताही खगत बैन, नख सिख लौं सब गात ग्रसति। जाके रँग राँचे हरि सोइ है अतरं संग, काँच की करौती के जल ज्यौं लसति। (ख) वे अति चतुर प्रबीन कहा कहौं जिन पठई तो को बहराबन। सूरदास प्रभुजी की होनी की जानति काँच करौती में जल जैसे ऐसे तू लागी प्रगटावन।
संज्ञा
[हिं. करवा]


करौती
काँच की भट्ठी।
संज्ञा
[हिं. करवा]


करौला
हाँक या हकवा देनेवाला, शिकारी।
संज्ञा
[हिं. रौला=शोर]


करौली
छोटी छुरी।
संज्ञा
[सं. करवाली]


कर्क, कर्कट
केकड़ा।
संज्ञा
[सं.]


कर्क, कर्कट
बारह राशियों में से चौथी राशि।
संज्ञा
[सं.]


कर्क, कर्कट
अग्नि।
संज्ञा
[सं.]


कर्कटी
कछुई।
संज्ञा
[सं.]


कर्कटी
ककड़ी।
संज्ञा
[सं.]


कर्कटी
सेमल का फल।
संज्ञा
[सं.]


कर्कटी
साँप।
संज्ञा
[सं.]


कर्कश
खड्ग, तलवार।
संज्ञा
[सं.]


कर्कश
कठोर, कड़ा।
वि.


कर्कश
काँटेदार।
वि.


कर्कश
तेज, प्रचण्ड।
वि.


कर्कश
कठोर हृदय, क्रूर।
वि.


कर्कशा
झगड़ा करनेवाली, कटु या कठोर बोलनेवाली।
वि.
[हिं. कर्कश]


कर्कशा
झगड़ालू स्त्री।
संज्ञा


कर्ज
ऋण, उधार।
संज्ञा
[अ. कर्ज़, कर्जा]


कर्ण
कान नाम की इंद्रिय।
संज्ञा
[सं.]


कर्ण
कुंती का सबसे बड़ा पुत्र जो उसके कन्याकाल में सूर्य से उत्पन्न हुआ था।
संज्ञा
[सं.]


कर्णधार
केवट, नाविक।
संज्ञा
[सं. कर्णधार]


कर्णिका
कान का एक गहना, कर्णफूल।
संज्ञा
[सं.]


कर्णिका
हाथ में बीच की उँगली।
संज्ञा
[सं.]


कर्णिका
हाथी के सूँड़ की नोक।
संज्ञा
[सं.]


कर्णिका
कमल का छत्ता।
संज्ञा
[सं.]


कर्णिकार
कनक चंपा।
संज्ञा
[सं.]


कर्त्‍तन
कतरना, काटना।
संज्ञा
[सं.]


कर्त्‍तन
‍ सूत काटना।
संज्ञा
[सं.]


कर्तनी
कैंची।
संज्ञा
[सं.]


कर्तरि, कर्त्तरी
कैंची, कतरनी।
अद्‍भुत राम-नाम के अंक। जनममरन-काटन कौं कर्तरि तीछन बहु बिख्यात - १ - ९०।
संज्ञा
[सं. कर्तरी]


कर्ण
नाव की पतवार।
संज्ञा
[सं.]


कर्णकटु
जो (बात, शब्द या अक्षर) सुनने में कटु या अप्रिय लगे।
वि.
[सं.]


कर्णकुहर
कान का छेद।
संज्ञा
[सं.]


कर्णधार
माँझी, मल्लाह।
संज्ञा
[सं.]


कर्णधार
पतवार, कलवारी।
संज्ञा
[सं.]


कर्णपाली
कान की बाली या लौ।
संज्ञा
[सं.]


कर्णफूल
कान का एक आभूषण।
संज्ञा
[सं.]


कर्णवेध
बालकों के कान छेदने का संस्कार, कनछेदन।
संज्ञा
[सं.]


कर्णाट
एक राग जो मेघ राग का दूसरा पुत्र माना जाता है और जो रात के पहले पहर में गाया जाता है।
संज्ञा
[सं.]


कर्णाटी
एक रागिनी जो मालवा या दीपक राग की पत्नी मानी जाती है और रात में दूसरे पहर की दूसरी घड़ी में गायी जाती है।
मुरली बजाऊ रिझाऊँ गिरिधर गाऊँ न आज सुनाऊँ। तेइ तेइ तान तुम सी गीत गावत जेइ कर्णाटी गौरी मैं गाय सुनाऊँ - पृ. ३११।
संज्ञा
[सं.]


कंधार, कंधारी
पार लगानेवाला।
संज्ञा
[सं. कर्णधार]


कँधावर
चादर या दुपट्टा जो कंधे पर डाला जाय।
संज्ञा
[हिं. कंधा+आवर (प्रत्य.)]


कँधेला
साड़ी का वह भाग जो स्त्रियां कंधे पर डालती हैं।
संज्ञा
[हिं. कंधा+एला (प्रत्य.)]


कँधैया
श्रीकृष्ण।
संज्ञा
[हिं. कन्हैया]


कंप
काँपना, कँपकँपी, धड़कन।
संज्ञा
[सं.]


कंप
एक सात्विक अनुभाव।
संज्ञा
[सं.]


कँपकँपी
थरथराहट, कंपन।
संज्ञा
[हिं. काँपना]


कंपत
भयभीत होकर, डरा हुआ।
क्रृपासिंधु पै केवट आयौ, कंपत करत सो बात। चरन-परसि पाषान उड़त है, कत बेरी उड़ि जात - ९ - ४१।
कि.अ.
[हिं. काँपना]


कंपत
शीत से काँपता है।
हा हा करति लि घोष कुमारि। सीत तें तन कँपत थर-थर बसन देहु मुरारि. - ७८९।
कि.अ.
[हिं. काँपना]


कँपतिँ
शीत से काँपती हैं।
थर- थर अंग कपतिँ सुकुमारी - ७९९।
क्रि.अ .
[सं. कंपन, हिं. कॅपना]


कर्पर
खप्पर।
संज्ञा
[सं.]


कर्पर
एक शस्त्र।
संज्ञा
[सं.]


कर्पूर
कपूर।
संज्ञा
[सं.]


कर्बुर
सोना, स्वर्ण।
संज्ञा
[सं.]


कर्बुर
धतूर।
संज्ञा
[सं.]


कर्बुर
जल।
संज्ञा
[सं.]


कर्बुर
पाप।
संज्ञा
[सं.]


कर्बुर
राक्षस।
संज्ञा
[सं.]


कर्बुर
रंग-बिरंगा, चितकबरा।
वि.


कर्म
क्रिया, कार्य, काम।
असी-इक कर्म बिप्र कौ लियौ। रिषभ ज्ञान सबही कौ दियौ - ५ - २।
संज्ञा
[सं. कर्मन् का प्रथमा रूप]


कर्तरि, कर्त्तरी
छुरी, कटारी।
संज्ञा
[सं. कर्तरी]


कर्तरि, कर्त्तरी
एक बोजा
(३) एक बाजा
संज्ञा
[सं. कर्तरी]


कर्तव्य
करने के योग्य, करणीय।
वि.
[सं.]


कर्तव्य
करने योग्य काम।
संज्ञा


कर्तव्यमूढ़, कर्तव्यविमूढ़
घबड़ाहट के कारण जो कार्य को न समझ सके।
वि.
[सं.]


कर्त्‍ता
रचनेवाला, निर्माता।
हर्त्ता-कर्त्ता आपै सोइ। घट-घट ब्यापि रह्यौ है जोइ– ७ - २।
संज्ञा
[सं. ‘कर्तृ' की प्रथमा का एक.]


कर्त्‍ता
करनेवाला।
संज्ञा
[सं. ‘कर्तृ' की प्रथमा का एक.]


कर्त्‍ता
विधाता, ईश्वर।
संज्ञा
[सं. ‘कर्तृ' की प्रथमा का एक.]


कर्त्‍ता
व्याकरण में पहला कारक।
संज्ञा
[सं. ‘कर्तृ' की प्रथमा का एक.]


कर्तार
करनेवाला।
संज्ञा
[सं. ‘कर्तृ' की प्रथमा का बहु.]


कर्तार
विधाता, ईश्वर।
संज्ञा
[सं. ‘कर्तृ' की प्रथमा का बहु.]


कर्दम
सूर्य का एक पुत्र, छाया से उत्पन्न होने के कारण जिनका ‘कर्दम' नाम पड़ा। इसकी पत्नी का नाम देवहूति और पुत्र का कपिलदेव था।
दच्छ प्रजापति कौं इक दई। इक रुचि, इक कर्दम-तिय भई। कर्दम कैं भयौ कपिलऽवतार–३ - १२।
संज्ञा
[सं.]


कर्दम
कीचड़, कीच।
संज्ञा
[सं.]


कर्दम
मांस।
संज्ञा
[सं.]


कर्दम
पाप।
संज्ञा
[सं.]


कर्दम
छाया।
संज्ञा
[सं.]


कर्नेता
रंग के आधार पर किये गये घोड़े के भेदों में एक।
संज्ञा
[देश.]


कर्पट
फटा-पुराना कपड़ा।
संज्ञा
[सं.]


कर्पटी
भिखारी, भिखमंगा जो गूदड़ पहने-ओढ़े।
संज्ञा
[सं. हिं. कर्पद=चिथड़ा=गुदड़ा]


कर्पर
खोपड़ी, कपाल।
संज्ञा
[सं.]


कर्म
विहित और निषिद्ध कार्य जिनका फल जाति, आयु और भोग माने जाते हैं।
संज्ञा
[सं. कर्मन् का प्रथमा रूप]


कर्म
वह कार्य या क्रिया जिसका करना कर्तव्य है।
संज्ञा
[सं. कर्मन् का प्रथमा रूप]


कर्म
कर्मफल, भाग्य।
(क) पग पग परत कर्म-तम-कूपहिं, को करि कृपा बचावै–१ - ४८। (ख) जाकौं नाम लेत भ्रम छूटै, कर्म-फंद सब काटे– ३४६।
संज्ञा
[सं. कर्मन् का प्रथमा रूप]


कर्म
मृत-संस्कार, क्रिया-कर्म।
जब तनु तज्यौ गीध रघुपति तब कर्म बहुत बिधि कीनी। जान्यौ सखा राय दशरथ कौ तुरतहिं निज गति दीनी। (६) व्याकरण में दूसरा कारक।
संज्ञा
[सं. कर्मन् का प्रथमा रूप]


कर्मकांड
यज्ञ तथा अन्य धर्म के काम।
संज्ञा
[सं.]


कर्मकांड
वह शास्त्र या ग्रंथ जिसमें धर्म-कर्म की चर्चा हो।
संज्ञा
[सं.]


कर्मकांडी
यज्ञ आदि करानेवाला व्यक्ति।
संज्ञा
[सं.]


कर्मक्षेत्र
वह स्थान जहाँ काम किया जाय।
संज्ञा
[सं.]


कर्मक्षेत्र
संसार जहाँ कर्म करना पड़ता है।
संज्ञा
[सं.]


कर्मक्षेत्र
भारतवर्ष।
संज्ञा
[सं.]


कर्मण्य
काम करने में आनंद लेनेवाला, उद्योगी, कर्मठ।
वि.
[सं.]


कर्मन
कर्मों का, भाग्य, प्रारब्ध।
जैसोई बोइयैं तैसोइ लुनिऐ, कर्मन भोग अभागे - १ - ६९।
संज्ञा
[सं. कर्म+न (प्रत्य.)]


कर्मना
कर्म से, कर्म द्वारा।
(क) मैं तौ राम-चरन चित दीन्हौं। मनसा, बाचा और कर्मना, बहुरि मिलन कौं आगम कीन्हौं - ९ - २। (ख) मनसा बाचा कहत कर्मना नृप कबहूँ न पतीजै–१० - ९। (ग) मनसि बचन अरु कर्मना कछु कहति नाहिंन राखि–३४७५।
क्रि. वि.
[सं. कर्मणा]


कर्मनि
कर्मों की।
संज्ञा
[हिं. कर्म+नि (प्रत्य.)]


कर्मनि
कर्मनि की मोटी- अत्यंत भाग्यशालिनी, अच्छे कर्मों का सुख लूटने की अधिकारिणी। उ - दोउ भैया मैया पै माँगत, दै री मैया माखन-रोटी।.........। सूरदास मन मुदित जसोदा, भाग बड़े, कर्मनि की मोटी - १० - १६५।
मु.


कर्मनिष्ठ
धर्म-कर्म तथा संध्या, अग्निहोत्र- आदि में निष्ठा रखनेवाला।
वि.
[सं.]


कर्मभोग
कर्म का फल।
संज्ञा
[सं.]


कर्मभोग
पूर्व जन्म के कर्मों का फल भोगना।
जो कहौ कर्मभोग जब करिहैं, तब ये जीव सकल निस्तरिहैं। –७ - २।
संज्ञा
[सं.]


कर्मयुग
कलियुग।
संज्ञा
[सं.]


कर्मयोग
चित्त की शुद्धि के लिए किए जानेवाले शास्त्र-सम्मत कर्म।
(क) कर्म योग पुनि ज्ञान उपासन सबही भ्रम भरमायौ। श्री बल्लभ गुरु तत्व सुनायौ लीला भेद बतायौ–सारा. ११ ०२। (ख) तपसी तुमको तप करि पावै। सुनि भागवत गुही गुन गावै। कर्मयोग करि सेवत कोई। ज्यौं सेवै त्योंही गति होई - १० उ - १२७।
संज्ञा
[सं.]


कर्मचारी
काम के लिए नियुक्त, काम करनेवाला।
संज्ञा
[सं. कर्मचारिन्]


कर्मचारी
किसी विभाग में काम करनेवाला।
संज्ञा
[सं. कर्मचारिन्]


कर्मज
कर्म करने से उत्पन्न।
वि.
[सं.]


कर्मज
किये हुए पाप-पुण्य से उत्पन्न।
वि.
[सं.]


कर्मज
कलियुग।
संज्ञा


कर्मठ
काम में चतुर।
वि.
[सं.]


कर्मठ
धर्म-कर्म करनेवाला।
वि.
[सं.]


कर्मठ
वह मनुष्य जो नियमित रूप से धर्म-कर्म करे।
संज्ञा


कर्मठ
कर्मकांडी।
संज्ञा


कर्मणा
कर्म से, कर्म द्वारा।
क्रि. वि.
[सं. कर्णन् का तृतीय एक.]


कर्मेंद्रिय
काम करनेवाली इंद्रियाँ। ये पाँच हैं-हाथ, पैर, वाणी, गुदा और उपस्थ।
संज्ञा
[सं.]


करयौ
किया।
द्रुपद सुता की तुम पति राखी अंबर-दान करयौ - १ - १३३।
क्रि. स. (भूत.)
[सं. करण, हिं. करना]


कर्ष
खिंचाव
संज्ञा
[सं.]


कर्ष
खरोचना।
संज्ञा
[सं.]


कर्ष
ताव, बढ़ावा।
संज्ञा


कर्षक
खींचनेवाला।
संज्ञा
[सं.]


कर्षक
किसान, खेतिहर।
संज्ञा
[सं.]


कर्षण
खींचना।
संज्ञा
[सं.]


कर्षण
जोतना।
संज्ञा
[सं.]


कर्षण
खेती का काम।
संज्ञा
[सं.]


कर्मसंन्यास
कर्म के फल की चाह न करना।
संज्ञा
[सं.]


कर्मसाक्षी
जिसके सामने कर्म किया गया हो।
वि.
[सं. कर्मसाक्षिन्]


कर्मसाक्षी
वे नौ देवता–सूर्य, चन्द्र, यम, काल,पृथ्वी, जल, अग्नि, वायु और आकाश–जो प्राणी को कर्म करते देखते रहते हैं।
संज्ञा


कर्महीन
जो शुभ कर्म करने में समर्थ न हो।
वि.
[सं.]


कर्महीन
अभागा, भाग्यहीन।
वि.
[सं.]


कर्महीनी
अभागा, भाग्यहीन।
मंदमति हम कर्म हीनी दोष काहि लगाइए। प्रानपति सौं नेह बाँध्यौ कर्म लिख्यौ सो पाइए।
वि.
[हिं. कर्महीन]


कर्मा
कर्म करनेवाला।
जज्ञ करत बैरोचन कौ सुत, बेद-बिहित-बिधि-कर्मा। सो छलि बाँधि पताल पठायौ, कौन कृपानिधि धर्मा - १ - १०४।
संज्ञा
[हिं. कर्म]


कर्मिष्ठ
कर्म में आनंद लेनेवाला, कर्मण्य, कर्मनिष्ठ।
वि.
[सं.]


कर्मी
कर्म करनेवाला।
वि.
[सं]


कर्मी
कर्म के फल की इच्छा करनेवाला।
वि.
[सं]


कर्मयोग
सिद्धि-असिद्धि को समान समझ कर कर्म करना।
संज्ञा
[सं.]


कर्मरेख
भाग्य का लेखा, तकदीर का लिखा।
वाको न्याउ दोष सब हमको कर्मरेख को जानै। गोरस देखि जो राख्यौ गाह्क बिधिना की गति आनै—३४४१।
संज्ञा
[सं.]


कर्मवाद
कर्म की प्रधानता मानना।
संज्ञा
[सं.]


कर्मवाद
चित्त की शुद्धि के लिए किया जानेवाला शास्त्रसम्मत कर्म।
कर्मवाद थापन को प्रगटे पृश्निगर्भ अवतार। सुधापान दीन्हो सुरगन को भयौ जग जस बिस्तार–३२१।
संज्ञा
[सं.]


कर्मवादी
कर्म को प्रधान माननेवाला।
संज्ञा
[सं. कर्मवादिन्]


कर्मवान
शास्त्रसस्मत कर्म नियमित रूप से करनेवाला।
वि.
[सं.]


कर्मविपाक
पूर्वजन्म के कर्मों का भलाबुरा फल।
संज्ञा
[सं.]


कर्मशील
सिद्धि-असिद्धि को समान समझ कर कर्म करनेवाला।
संज्ञा
[सं.]


कर्मशील
परिश्रमी, प्रयत्नशील।
संज्ञा
[सं.]


कर्मसंन्यास
कर्म न करना।
संज्ञा
[सं.]


कलँकी, कलंकी
कल्कि अवतार।
कलि के आदि अंत कृतयुग के है कलँकी अवतार - सारा. ३२०।
संज्ञा
[सं. कल्कि]


कलंदर
एक तरह के मुसलमान फकीर।
संज्ञा
[अ. कलंदर]


कलंदर
रीछ-बंदर नचाने वाला।
संज्ञा
[अ. कलंदर]


कलंदरी
एक तरह का रेशम कपड़ा।
संज्ञा
[हिं.]


कलंदरी
खेमें का अँकुड़ा जिस पर रेशम या कपड़ा लिपटा रहता है।
संज्ञा
[हिं.]


कल
आराम, चैन, सुख।
(क) पलित केस, कफ कंठ बिरुध्यौ, कल न परति दिन-राती - १ - ११८। (ख) डेढ़ ल ल कल लेत नाही प्रान प्रीतम प्रान - सा. २१। (ग) जसुमति बिकल भई छिन कल ना। लेहु उठाई पूतना-उर तैं, मेरौ सुभग साँवरो ललना - १० - ५४। (घ) एक बार कुलदेवी पूजत भयो दरस सखि मोहिं। ता दिन ते छिन कुल न परत है सत्य कहत हौं तोहिं। - सारा,२२१।
संज्ञा
[सं. कल्य, प्रा. कल्ल]


कल
स्वास्थ्य, आरोग्य।
संज्ञा
[सं. कल्य, प्रा. कल्ल]


कल
संतोष।
संज्ञा
[सं. कल्य, प्रा. कल्ल]


कल
मधुर ध्वनि।
अरुन अधर छवि दास बिराजत। जब गावत कल मंदन– ४७६।
संज्ञा
[सं.]


कल
वीर्य।
संज्ञा
[सं.]


कंपति
समुद्र।
संज्ञा
[सं.]


कंपन
कँपना, कँपकँपी।
संज्ञा
[सं.]


कँपना
हिलना-डोलना, काँपना।
क्रि. अ.
[सं. कंपन]


कँपना
डर से काँपना।
क्रि. अ.
[सं. कंपन]


कँपनी
कँपकँपी।
संज्ञा
[हिं. काँपना]


कंपा
बहेलियों की बाँस की पतली तीलियाँ जिनमें लासा लगाकर वे चिड़ियों को फँसाते हैं।
संज्ञा
[हिं. काँपना]


कँपाना
हिलाना-डोलाना।
क्रि. स.
[हिं. कॅंपना का प्रे.]


कँपाना
डराना।
क्रि. स.
[हिं. कॅंपना का प्रे.]


कॅंपावत
हिलाते हो, हिलाकर धमकाते हो।
तुम्हरे डर हम डरपत नाहिंन कहा कॅंपावत बेत - सारा. ८६२।
क्रि. स.
[हिं. कॅंपाना]


कँपायौ
भयभीत किया, डराया।
मनौ मेघनायक रितु- पावस, बान वृष्टि करि सैन कँपायौ - ९ - १४१।
क्रि. स.
[हिं. कॅंपाना]


कर्षना
खींचना।
क्रि. स.
[सं. कर्षण]


कर्षमर्ष
खींच तान, संधर्ष।
संज्ञा
[सं. कर्षण)


कलंक
लांछन, बदनामी।
मो देखत मो दास दुखित भयौ, यह वलंक हौं कहाँ गॅंवैहौं– ७०५।
संज्ञा
[सं.]


कलंक
चंद्रमा का काला दाग।
संज्ञा
[सं.]


कलंक
दोष।
संज्ञा
[सं.]


कलंक
धब्बा।
संज्ञा
[सं.]


कलंक
कल्कि अवतार।
हरि करिहैं कलंक अवतार - १२.३।
संज्ञा
[सं.कल्कि, हिं. कलंकी]


कलंकि
कल्कि अवतार।
यों होइहै कलंकि अवतार - १२ - ३।
संज्ञा
[सं. कल्कि]


कलंकित
जिसे कलंक लगा हो, दोषी।
वि.
[सं.]


कलँकी, कलंकी
जिसे कलंक लगा हो।
का पटतरयौ चंद्र कलंकी घटत बढ़त दिन लाज लजाई - २२२७।
वि.
[सं. कलंकिन्]


कल
सुन्दर, मनोहर।
वि.


कल
कोमल, मधुर।
वि.


कल
आने वाला दिन।
क्रि. वि.
[सं. कल्य—प्रत्यूष, प्रभात]


कल
आगे किसी समय।
क्रि. वि.
[सं. कल्य—प्रत्यूष, प्रभात]


कल
बीता हुआ दिन।
क्रि. वि.
[सं. कल्य—प्रत्यूष, प्रभात]


कल
ओर, पहलू।
संज्ञा
[सं. कला-अंग, भाग]


कल
अंग, अवयव।
संज्ञा
[सं. कला-अंग, भाग]


कल
कला।
राधे आज मदनमद माती। सोहत सुन्दर संग स्याम के खरचत कोट काम कल थाती—सा. ५०।
संज्ञा
[सं. कला=विद्या]


कल
युक्ति, ढंग।
संज्ञा
[सं. कला=विद्या]


कल
यन्त्र।
संज्ञा
[सं. कला=विद्या]


कलत्र
दुर्ग, गढ़।
संज्ञा
[सं.]


कलधूत
चाँदी।
संज्ञा
[सं.]


कलधौत
सोना।
संज्ञा
[सं.]


कलधौत
चाँदी।
संज्ञा
[सं.]


कलधौत
सुंदर, मधुर या कोमल ध्वनि।
संज्ञा
[सं.]


कलन
उत्पन्न करना।
संज्ञा
[सं.]


कलन
धारण करना।
संज्ञा
[सं.]


कलन
संबंध।
संज्ञा
[सं.]


कलना
ग्रहण करना।
संज्ञा
[सं.]


कलना
विशेष ज्ञान प्राप्त करना।
संज्ञा
[सं.]


कल
पेंच, पुरजा।
संज्ञा
[सं. कला=विद्या]


कल
‘काला' का संक्षिप्त रूप जो यौगिक शब्दों के शुरू में जुड़ता है।
वि.
[हिं. काला]


कलई
राँगा।
संज्ञा
[अ.]


कलई
राँगे का लेप जिसके चढ़ाने से बरतन में रखी हुई चीजें कसाती नहीं, मुलम्मा।
संज्ञा
[अ.]


कलई
वह लेप जो किसी वस्तु पर रंग चढ़ाने के लिए लगाया जाय।
संज्ञा
[अ.]


कलई
चमक-दमक, तड़क-भड़क।
संज्ञा
[अ.]


कलई
कलई आई उघरि- कलई खुल गयी, सच्चा रूप सामने आ गया, वास्तविकता ज्ञात हो गयी। उ. - (क) कीन्ही प्रीति पुहुप शुंडा की अपने काज के कामी। तिनको कौन परैखो कीजै जे हैं गरुड़ के गामी। आई उघरि प्रीति कलई सी जैसी खाटी आमी - ३०८०। (ख) देखो माधौ की मित्राई। आई उघरि कनक कलई सी दै निज गये दगाई - २७१८।
मु.


कलई
चूना।
संज्ञा
[अ.]


कलकंठ
कोयल।
संज्ञा
[सं.]


कलकंठ
कबूतर।
संज्ञा
[सं.]


कलकंठ
हंस।
संज्ञा
[सं.]


कलकंठ
जिसका स्वर मीठा, कोमल या सुंदर हो।
वि.


कलक
दुख, चिंता।
संज्ञा
[क़लक़]


कलकना
शब्द करना, चिल्लाना।
क्रि. अ.
[हिं. कलकल=शब्द]


कलकल
जल के गिरने या बहने का शब्द।
संज्ञा
[सं.]


कलकल
कोलाहल, शोर।
संज्ञा
[सं.]


कलकल
झगड़ा, कलह।
संज्ञा


कलकान, कलकानि, कलकानी
हैरानी, दुख।
नारी गारी बिनु नहिं बोलै पूत करै कलकानी। घर में आदर कादर कोसौं सीझत रैनि बिहानी।
संज्ञा
[अ.-क़लक=रंज]


कलकूजिका
मधुर या कोमल ध्वनि करनेवाली।
वि.
[सं.]


कलत्र
स्त्री, पत्नी।
संज्ञा
[सं.]


कलपाना
दुखी करना, रुलाना।
क्रि. सं.
[हिं. कलपना]


कलपै
विलाप करता है, विलखता है, दुखी होता है।
प्रभु तेरौ बचन भरोसौ साँचौ। पोषन भरन बिसंभर साहब जो कलपै सो काँचौ - १ - ३२।
क्रि. अ.
[हिं. कलपना]


कलबल
अस्पष्ट (स्वर)।
(क) अलप दसन, कलबल करि बोलनि, बुधि नहिं परत बिचारी। बिकसित ज्योति अधर-बिच, मानौ बिधु मैं बिज्जु उज्यारी - १० - ६१। (ख) स्याम करत माता सौं, झगरौ, अटपटात कलबल करि बोल - १० - ६४। (ग) गहि मनि-खंभ डिंभ डग डोलैं। कलबल बचन तोतरे बोलैं - १० - ११७।
वि.
[अनु.]


कलबल
शोरगुल, हल्ला।
संज्ञा


कलबल
उपाय, युक्ति।
लगे हुलसन मेघ मंगल भरे बिथक सजोर। करन चाहत राख रोके काम कलबल छोर - सा. ६१।
संज्ञा
[सं. कला+बल]


कलबूत
साँचा।
संज्ञा
[फा. कालबुद]


कलबूत
ढाँचा।
संज्ञा
[फा. कालबुद]


कलभ
हाथी का बच्चा।
संज्ञा
[सं.]


कलभ
ऊँट का बच्चा।
संज्ञा
[सं.]


कलभ
धतूरी।
संज्ञा
[सं.]


कलम
लिखने का उपकरण, लेखनी।
संज्ञा
[सं.]


कलम
किसी पेड़-पौधे की वह मुलायम और नयी टहनी जो दूसरी जगह या पेड़ में लगाने के लिए काटी जाय।
संज्ञा
[सं.]


कलम
वह पौधा जो कलम से तैयार हो।
संज्ञा
[सं.]


कलम
चित्रकारों की कूची।
संज्ञा
[सं.]


कलमख
पाप, दोष।
संज्ञा
[सं. कल्मष]


कलमख
कलंक।
संज्ञा
[सं. कल्मष]


कलमख
धब्बा।
संज्ञा
[सं. कल्मष]


कलमना
काटना, टुकड़े करना।
क्रि. स.
[हिं. कलम]


कलमलना, कलमलाना
अंग या शरीर का इधर-उधर हिलना-डोलना।
क्रि. अ.
[अनु.]


कलमलात
शरीर के अंग इधर - उधर हिलते - डोलते हैं, कुलबुलाते हैं।
कौन कौन की दसा कहौं सुन सब ब्रज तिनते पर। निसि दिन कलमलात सुन सजनी सिर पर गाजत मदन अर–२७६४।
क्रि. अ.
[हिं. कलमलाना]


कलना
गणना, विचार।
संज्ञा
[सं.]


कलना
लेन-देन, व्यवहार।
संज्ञा
[सं.]


कलप
ब्रह्मा का एक दिन।
संज्ञा
[सं. कल्प]


कलप
विधान, रीति।
संज्ञा
[सं. कल्प]


कलप
कल्प।
संज्ञा
[सं. कल्प]


कलपत
दुखी होना, सोचना, खिन्न होकर विचारना।
ब्रह्मादिक सनकादि महामुनि, कलपत दोउ कर जोर। बृन्दाबन ए तृन न भये हम लगत चरन के छोर–४७७।
क्रि. अ.
[हिं. कल्पना]


कलपतर, कलपतरु
एक वृक्ष जो समुद्र से निकले चौदह रत्नों में माना जाता है और जो सभी इच्छाएँ पूरी करता है।
सूरदास यह सब हित हरि को रोप्यौ द्वार सुभगति कलपतर - १० उ. - ७०।
संज्ञा
[सं. कल्पतरु]


कलपना
दुखी होना, बिलखना।
क्रि. अ.
[सं. कल्पना=(दुख की) उद्‍भावना करना]


कलपना
कल्पना करना।
क्रि. अ.
[सं. कल्पना=(दुख की) उद्‍भावना करना]


कलपना
उद्‍भावना, अनुमान, कल्पना।
संज्ञा


कलमष, कलमस
पाप, अघ।
जौ पै यहै बिचार परी। तौ कत कलि-कल्मष लूटन कौं, मेरी देह धरी - १ - २११।
संज्ञा
[सं. कल्मष]


कलमा
वाक्य, बात।
संज्ञा
[अ. कल्मः]


कलमा
इसलाम के मूलमंत्र का वाक्य।
संज्ञा
[अ. कल्मः]


कलमुहाँ
जिसका मुँह काला हो।
वि.
[हिं. काला+मुँह]


कलमुहाँ
कलंकित, लांछित।
वि.
[हिं. काला+मुँह]


कलरव
मधुर शब्द।
नूपुर-कलरव मनु हंसनि सुत रचे नीड़, दै बाछँ बसाए - १० - १०४।
संज्ञा
[सं. कल= सुंदर+रव= शब्द]


कलरव
कोयल।
संज्ञा
[सं. कल= सुंदर+रव= शब्द]


कलरव
कबूतर।
संज्ञा
[सं. कल= सुंदर+रव= शब्द]


कलौ
मधुर ध्वनि।
संज्ञा
[सं. कलरव]


कलवरिया
शराब की दुकान।
संज्ञा
[हिं. कलवार]


कलवार
शराब बनाने-बेचने वाला।
संज्ञा
[सं. कल्यपाल, प्रा. कल्लवाल]


कलश
घड़ा, गगरा।
कनक कलश कुच प्रगट देखियत आनँद कंचुकि भूली २५६१।
संज्ञा
[सं.]


कलश
मंदिर का शिखर।
संज्ञा
[सं.]


कलश
चोटी, सिरा।
संज्ञा
[सं.]


कलश
प्रधान व्यक्ति।
संज्ञा
[सं.]


कलशी
गगरी।
संज्ञा
[सं. कलश]


कलशी
मंदिर आदि का कँगूरा।
संज्ञा
[सं. कलश]


कलस
मंदिर-महल आदि का शिखर या कँगूरा।
ऊँचे मंदिर कौन काम के, कनक-कलस जो चढ़ाए। भक्त-भवन मैं हौं जु बसत हौं, जद्यपि तृन करि छाए - १ - २४३।
संज्ञा
[सं. कलश]


कलसा
गगरा, घड़ा।
हरि पर सर सरबर पर कलसा कलसा पर ससि भान - २१९१।
संज्ञा
[सं. कलश]


कलसी
गगरी, कल्सिया।
संज्ञा
[सं. कलश]


कॅंपावात
हिलाता-डुलाता (है), कपित करता (है)।
मुँह सम्हारि तू बोलत नाहीं, कहत बराबरि बात। पावहुगे अपनौ कियौ अबहीं, रिसनि कॅंपावत गात - ५३७।
क्रि. स.
[हिं, कँपना’ का प्रे. कॅंपना]


कंपित
काँपता हुआ, अस्थिर, चलायमान।
छोभित सिंधु, सेष सिर कंपित, पवन भयौ गति पंग - ९ - १५८।
वि.
[सं]


कंपै
काँपता या हिलता डोलता है।
(क) कंपै भुव, बर्षा नहिं होइ - १ - २८६।,

(ख) कर कंपै, कंकन नहिं छूटै - ६ - २५। (ग) जसुदा मदन गुपाल सुवावै। देखि सपन - गति त्रिभुवन कंपै, ईस विरंचि भ्रमावै - १० - ६५।

क्रि. स.
[हिं. कॅंपना]


कँप्‍यौ
डरा, भयभीत हुआ।
रिपिन कह्यौ, तुव सतम जज्ञ आरम्भ लखि, इन्द्र कौ राज-हित कॅंप्यौ हीयौ–४ - ११।
क्रि. स.
[सं. कंपन, हिं. काँपना]


कंबर, कंबल
ऊन का बना मोटा कपड़ा जो ओढ़ने-बिछाने के काम आता है।
संज्ञा
[सं. कंबल]


कंबु
शंख।
कंबु- कंठधर, कौस्तुभ- मनि-धर, वनमालाधर, मुक्तमाल-धर - ५७२।
संज्ञा
[सं.]


कंबु
शंख की चूड़ी।
संज्ञा
[सं.]


कंबु
घोंघ।
संज्ञा
[सं.]


कंबुक
शंख,
संज्ञा
[सं.]


कंबुक
शंख की चूड़ी।
संज्ञा
[सं.]


कलसी
छोटे कँगूरे।
संज्ञा
[सं. कलश]


कलसी
मंदिर का छोटा शिखर या कँगूरा।
संज्ञा
[सं. कलश]


कलहंस
राजहंस।
संज्ञा
[सं.]


कलहंस
श्रेष्ठ राजा।
संज्ञा
[सं.]


कलहंस
ईश्वर, ब्रह्म।
संज्ञा
[सं.]


कलह
विवाद, झगड़ा।
(क) काहे कौं कलह नाध्यौ, दारुन दाँवरि बाँध्यौ, कठिन लकुट लै तैं त्रास्यौ मेरैं भैया - ३७२। (ख) सुनत स्याम कोकिल सभ बानी निकसे अति अतुराई (हो)। माता सौं कछु करत कलह हे रिस डारी बिसराई (हो) - ७००।
संज्ञा
[सं.]


कलह
युद्ध, संघर्ष।
निरखि नैन रसरीति रजनि रुचि काम कटक फिरि कलह मच्यौ - पृ० ३५० (६७)।
संज्ञा
[सं.]


कलहकारी
कलह करनेवाली।
वि.
[सं. कलह+हिं. कारी (स्त्री.)]


कलहनीपतिपितापुत्री
यमुना नदी।
कलहनी-पति-पिता-पुत्री तकत बनत न आज। कौन जानत रहे यह बिनु संभवन को काज - सा. ३८।
संज्ञा
[सं. कलहिनी=(शनि की स्त्री का नाम)+ पति (कलहिनी का पति=शनि) + पिता (शनि का पिता=सूर्य) + पुत्री (सूर्य की पुत्री= यमुना)]


कलहांतरिता
वह नायिका जो पहले तो नायक का तिरस्कार करे, फिर पछताने लगे।
संज्ञा
[सं.]


कला
विद्या, शास्त्र।
कोक-कला वितपन्न भई हौ कान्हरूप तनु आधा - १४३७।
संज्ञा
[सं.]


कला
सूर्य का बारहवाँ भाग।
संज्ञा
[सं.]


कला
अग्निमंडल के दस भागों में एक।
संज्ञा
[सं.]


कला
समय का एक छोटा भाग।
संज्ञा
[सं.]


कला
करतूत, करनी, कौतुक, लीला (व्यंगात्मक)।
माधौ, नेकु हटकौ गाइ। ….। छहौं रस जौ धरौं आगैं, तउ न गंध सुहाइ। और अहित अभच्छ भच्छति कला बरनि न जाइ - १ - ५६।
संज्ञा
[सं.]


कला
कौतुक, खेल, क्रीड़ा।
(क) अब मैं नाच्यौ बहुत गुपाल। •••••। माया कौं कटि फेंटा बाँध्यौ, लोभ तिलक दियौ भाल। कोटिक कला काछि दिखराई जल-थल सुधि नहिं कालः - १ - १५३। (ख) ना हरि भक्ति, न साधु समागम, रह्यौ बीच ही लटकैं। ज्यौं बहु कला काछि दिखरावै, लोभ न छूटत नट कैं - १ - २९२।

(ग) अज, अबिनासी अमर प्रभु जनमै मरै न सोइ। नट वत करत कला सकल बूझै बिरला कोइ - २ - ३६।

संज्ञा
[सं.]


कला
चतुरता, कुशलता।
रचि-प्रचि सोंचि सँवारि सकल अँग चतुर चतुराई ठानी। दृष्टि न दई रोम रोमनि प्रति इतनहिं कला नसानी - १३२१।
संज्ञा
[सं.]


कला
छल, कपट, धोखा।
संज्ञा
[सं.]


कला
हीला, बहाना।
संज्ञा
[सं.]


कला
उपाय, ढंग, युक्ति।
रहेउ दुष्ट पचिहार दुसासन कछू न कला चलाई - सारा. ७६९।
संज्ञा
[सं.]


कला
यन्त्र, पेंच।
संज्ञा
[सं.]


कलाई
हथेली से जुड़ा हुआ हाथ का भाग, मणिबंध, गट्टा, पहुँचा।
संज्ञा
[सं. कलाची]


कलाकर
चन्द्रमा।
संज्ञा
[सं.]


कलाकौशल
कला में कुशलता, कारीगरी।
संज्ञा
[सं.]


कलाकौशल
शिल्प।
संज्ञा
[सं.]


कलात्मक
कलापूर्ण।
वि.
[सं.]


कलात्मक
कला सम्बन्धी।
वि.
[सं.]


कलाद
सोनार।
संज्ञा
[सं.]


कलादा
हाथी की गर्दन का वह भाग जहाँ महावत बैठता है, कलावा, किलावा।
संज्ञा
[सं. कलाप, हिं. कलावा]


कलाधर
चन्द्रमा।
संज्ञा
[सं.]


कलहा
झगड़ालू, कलहप्रिय।
कलहा, कुही, मूष रोगी अरु काहूँ नैंकु न भावै - १ - १८६।
वि.
[सं. कलह]


कलहास
वह हास जिसमें कोमल ध्वनि हो।
संज्ञा
[सं.]


कलहिनी
झगड़ालू।
वि.
[सं.]


कलहिनी
शनि की स्त्री।
संज्ञा


कला
अंश, भाग।
संज्ञा
[सं.]


कला
चन्द्रमा का सोलहवाँ भाग।
संज्ञा
[सं.]


कला
कार्य-कुशलता।
संज्ञा
[सं.]


कला
विभूति।
संज्ञा
[सं.]


कला
शोभा, छटा, प्रभा।
संज्ञा
[सं.]


कला
ज्योति, तेज।
संज्ञा
[सं.]


कलाधर
शिव।
संज्ञा
[सं.]


कलाधर
कला का ज्ञाता।
संज्ञा
[सं.]


कलानाथ, कलानिधि
चन्द्रमा।
संज्ञा
[सं.]


कलानिधान
कला का आश्रय।
संज्ञा
[सं.]


कलानिधान
विविध कलाओं का स्वामी।
संज्ञा
[सं.]


कलाप
समूह।
संज्ञा
[सं.]


कलाप
मोर की पूँछ।
संज्ञा
[सं.]


कलाप
तरकश।
संज्ञा
[सं.]


कलाप
चंद्रमा।
संज्ञा
[सं.]


कलाप
भूषण, गहना।
संज्ञा
[सं.]


कलापति
चंद्रमा।
संज्ञा
[सं.]


कलापिनी
रात्रि।
संज्ञा
[सं.]


कलापिनी
मोरनी।
संज्ञा
[सं.]


कलापी
मोर
संज्ञा
[सं. कलापिन्]


कलापी
कोयल।
संज्ञा
[सं. कलापिन्]


कलापी
तरकश बाँधे हुए।
वि.


कलापी
समूह में रहने वाला।
वि.


कलार, कलाल
मद्य बेचने वाला।
संज्ञा
[सं. कल्यपाल]


कलावंत
संगीतज्ञ।
संज्ञा
[सं. कलावान]


कलावंत
कलाकुशल, नट।
संज्ञा
[सं. कलावान]


कलावती
जो कला में कुशल हो।
वि.
[सं.]


कलावती
सुन्दर, शोभायुक्त।
वि.
[सं.]


कलास
एक प्राचीन बाजा जिसपर चमड़ा चढ़ा रहता था।
धनुष कलास सही सब सिखि कै भई सयानी गानति। सूर सुन्दरी आपुही कहा तू सर संधानति - २९५१।
संज्ञा
[सं.]


कलाहक
काहल नामक बाजा।
संज्ञा
[सं.]


कलिंद
एक पर्वत जिससे जमुना नदी निकलती है।
उर कलिंद ते धँसि जल धारा उदर धरनि परबाह। जाति चली धारा ह्वै अध कौं, नाभी हृद अवगाह - ६३७।
संज्ञा
[सं.]


कलिंद
सूर्य।
संज्ञा
[सं.]


कलिंदजा
कलिंद पर्वत से निकलने वाली जमुना नदी।
संज्ञा
[सं. कलिंद+जा]


कलि
कलियुग, चार युगों में चौथा युग, इसमें ४३२००० वर्ष होते हैं। ईसा के ३१०२ वर्ष पूर्व से इसका आरम्भ माना जाता है। प्राच्य पौराणिक विचारानुसार अधर्म और पाप की इस युग में प्रधानता रहती है।
संज्ञा
[सं.]


कलि
कलह, झगड़ा।
संज्ञा
[सं.]


कलि
पाप।
संज्ञा
[सं.]


कलि
वीर।
संज्ञा
[सं.]


कलि
तरकश।
संज्ञा
[सं.]


कलि
दुख।
संज्ञा
[सं.]


कलि
युद्ध।
संज्ञा
[सं.]


कलि
श्याम, काला।
वि


कलिकर्म
युद्ध।
संज्ञा
[सं.]


कलिका
कली।
संज्ञा
[सं.]


कलिका
एक प्राचीन बाजा।
संज्ञा
[सं.]


कलिका
मुहूर्त।
संज्ञा
[सं.]


कलिका
भाग।
संज्ञा
[सं.]


कलियारी
एक विषैला पौधा।
संज्ञा
[सं. कलिहारी]


कलियुग
चार युगों में चौथा।
वि.
[सं.]


कलियुगी
कलियुग का।
वि.
[सं.]


कलियुगी
बुरी आदतवाला।
वि.
[सं.]


कलिल
मिला हुआ, मिश्रित।
वि.
[सं.]


कलिल
घना, दुर्गम।
वि.
[सं.]


कलिल
समूह।
संज्ञा


कली
बिना खिला फूल, बोंडी, कलिका।
संज्ञा
[सं.]


कली
कन्या।
संज्ञा
[सं.]


कलुख, कलुष
मैल।
संज्ञा
[सं. कलुष]


कलिकान
हैरान, परेशान।
वि.
[सं. कलि+हिं. कान]


कलिकाल
कलियुग।
संज्ञा
[सं.]


कलित
सुन्दर, मधुर।
जानु जंघ त्रिभंग सुंदर कलित कंचन दंड–१ - ३०७।
वि.
[सं.]


कलित
प्रसिद्ध।
वि.
[सं.]


कलित
मिला हुआ, प्राप्त।
वि.
[सं.]


कलित
सजा हुआ, शोभायुक्त।
वि.
[सं.]


कलिनि
कलियाँ, कलिकाएँ।
अँकुरित तरु पात,उकठि रहे जे गात, बनबेलि प्रफुलित कलिनि कहर के - १० - ३०।
संज्ञा
[सं. कली]


कलिमल
पाप, कलुष।
संज्ञा
[सं.]


कलिमलहिं
पाप या कलुष को।
यह भव-जल कलिमलहिं गहे हैं, बोरत सहस प्रकारौ। सूरदास पतितनि के संगी, बिरदहिं नाथ सम्हारो - १ - २०९।
संज्ञा
[सं. कलिमल+हिं (प्रत्य.]


कलियाना
कलियाँ निकलना, कलियों से युक्त होना।
क्रि. अ.
[हिं. कली]


कंबुक
घोंघ।
संज्ञा
[सं.]


कँबल
कमल।
संज्ञा
[सं. कमल]


कंस
मथुरा का अत्याचारी राजा जो उग्रसेन का पुत्र और श्रीकृष्ण का मामा था। इसने अपनी बहिन देवकी को पति-सहित जेल में डाल रखा था। इसके अत्याचार से जब त्राहि-त्राहि मच गयी तब श्रीकृष्ण ने इसे मार कर अपने माता-पिता का उद्धार किया और नाना उग्रसेन को गद्दी पर बैठाया।
संज्ञा
[सं.]


कंस
काँसा।
संज्ञा
[सं.]


कंस
कटोरी
संज्ञा
[सं.]


कंस
सुराही
संज्ञा
[सं.]


कंस
झाँझ।
संज्ञा
[सं.]


कंसताल
झाँझ।
कंसताल कठताल बजावत सृंग मधुर मुँहचंग।
संज्ञा
[सं.]


कंसासुर
मथुरा का अत्याचारी राजा जो अपने अत्याचारों के कारण असुर समझा जाता था।
संज्ञा
[सं. कंस+असुर]


ब्रह्मा।
संज्ञा
[सं.]


कलुख, कलुष
पाप, दोष।
संज्ञा
[सं. कलुष]


कलुखी
कलंकी, पापी।
वि.
[सं. कलुष]


कलुषाई
बुद्धि या चित्त का विकार, दोष।
संज्ञा
[सं. कलुष-आई (प्रत्य.)]


कलुषाई
पाप, मलिनता।
संज्ञा
[सं. कलुष-आई (प्रत्य.)]


कलुषित
दोष युक्त।
वि.
[सं.]


कलुषित
मलिन।
वि.
[सं.]


कलुषी
पापिनी।
वि.
[सं.]


कलुषी
मैली, गंदी।
वि.
[सं.]


कलुषी
मैला, गंदा।
वि.
[सं. कलुषिन्]


कलुषी
पापी, दोषी।
असरन-सरन नाम तुम्हारौ, हौं कामी, कुटिल निमाउँ। कलुषी अरु मन मलिन बहुत मैं सेंत-मेंत न बिकाउँ - १ - १२८।
वि.
[सं. कलुषिन्]


कलेस
दुख, कष्ट, व्यथा।
(क) प्रभु, मोहिं राखियै इहिं ठौर। केस गहत कलेस पाऊँ, करि दुसासन जोर - १ - २५३। (ख) जलपति-भूषन उदित होत ही पारत कठिन कलेस - सा. २७। (ग) सूर स्याम सुजान संग ह्वै चली बिगत कलेस–सा. ५६।
संज्ञा
[सं. क्लेश]


कलै
कला, चतुरता, कुशलता।
संज्ञा
[सं. कला]


कलै
युक्ति, उपाय, रीति, ढंग।
अजहूँ कह्यौ मानि री मानिनि उठि चलि मिलि पिय को जिय लैहै। सूर मान गाढ़ो त्रिय कीन्हो, कहै बात कोउ कोटि कलै - २२१०।
संज्ञा
[सं. कला]


कलोर
वह गाय जो बरदाई या ब्याई न हो।
संज्ञा
[सं. कल्लोल]


कलोल
आमोद-प्रमोद, क्रीड़ा, आनन्द।
(क) बिद्याधर-किन्नर कलोल मन उपजावत मिलि कंठ अमित गति - १० - ६। (ख) मिलि नाचत, करत, कलोल, छिरकत हरद दही। मनु बरषत भादौं मास, नदी घृत दूध दही –१० २४। (ग) दोउ कपोल गहि कै मुख चूमति, बरष-दिवस कहि करति किलोल - १० - ९४।
संज्ञा
[सं. कल्लोल]


कलोलना
आनंद करना, मौज उड़ाना, क्रीड़ा या विहार करना।
क्रि. अ.
[हिं. कलोल]


कलोलै
आनन्द, क्रीड़ा।
इन द्योसनि रूसनो करति हौ करिहौ कबहिं कलोलै - २२७५।
संज्ञा
[हि. कलोल]


कलौंस
कालापन लिये हुए।
वि.
[हिं. काला+औंस (प्रत्य.)]


कलौंस
स्याही, कालिष।
संज्ञा


कलौंस
कलंक।
संज्ञा


कलूटा
बहुत काला।
वि.
[हिं. काला+टा (प्रत्य.)]


कलेऊ
जलपान, कलेवा।
(क) करि मनुहारि कलेऊ दीन्हौ, मुख चुपरयौ अरु चोटी - १० - १६३। (ख) उठिए स्याम कलेऊ कीजै - १० - २११। (ग) तिनहिं कह्यो तुम स्नान करौ ह्याँ हमहिं कलेऊ देहु - २५५३। (घ) चारो भ्रात मिल करत कलेऊ मधु मेवा पकवान - सारा. १७१।
संज्ञा
[हिं. कलेवा]


कलेजा
हृदय, दिल।
संज्ञा
[सं. यकृत]


कलेजा
छाती, वक्षस्थल।
संज्ञा
[सं. यकृत]


कलेजा
साहस, जीवट।
संज्ञा
[सं. यकृत]


कलेवर
शरीर, देह।
चरचित चंदन, नील कलेवर, बरषत बूँदनि सावन - ८ - १३।
संज्ञा
[सं.]


कलेवर
ढाँचा।
संज्ञा
[सं.]


कलेवा
प्रातः काल का हल्‍का भोजन, जलपान।
कमल नैन हरि करौ कलेवा। माखन-रोटी, सद्य जम्यौ दधि भाँति-भाँति के मेवा– १०.२१२।
संज्ञा
[सं. कल्यवर्त्त, प्रा. कल्लवट्ट]


कलेवा
यात्रा के लिए साथ लिया हुआ भोजन, पाथेय, संबल।
संज्ञा
[सं. कल्यवर्त्त, प्रा. कल्लवट्ट]


कलेवा
विवाह के दूसरे दिन वर का सखाओं सहित ससुराल जाकर भोजन करने की प्रथा, खिचड़ी, बासी।
संज्ञा
[सं. कल्यवर्त्त, प्रा. कल्लवट्ट]


कल्क
दंभ, पाखंड।
संज्ञा
[सं.]


कल्क
मैल।
संज्ञा
[सं.]


कल्क
पाप।
संज्ञा
[सं.]


कल्कि
विष्णु का दसवाँ अवतार।
संज्ञा
[सं.]


कल्की
विष्णु के दसवें अवतार का नाम जो संभल (मुरादाबाद) में एक कुमारी कन्या के गर्भ से होगा।
बासुदेव सोई भयौ, बुद्ध भयो पुनि सोइ। सोई कल्की होइहै, और न द्वितिया कोइ - २ - ३६।
संज्ञा
[सं. कल्कि]


कल्प
विधि, विधान।
संज्ञा
[सं.]


कल्प
प्रात:काल।
संज्ञा
[सं.]


कल्प
एक प्रकार का नृत्य।
संज्ञा
[सं.]


कल्प
काल का एक विभाग जो ४ अरब ३२ करोड़ वर्ष का होता है और ब्रह्मा का एक दिन कहलाता है।
संज्ञा
[सं.]


कल्प
तुल्य, समान।
वि.


कल्पक
कल्पना करने वाला।
वि.
[सं.]


कल्पक
काटने वाला।
वि.
[सं.]


कल्पतरु
एक वृक्ष जो समुद्र से निकले चौदह रत्नों में गिना जाता है। प्राणी की इच्छा पूरी करने के लिए यह प्रसिद्ध है।
तेरे चरन सरन त्रिभुवनपति मेटि कल्प तू होहि कल्पतरु - २२६६।
संज्ञा
[सं.]


कल्पद्रुम
एक वृक्ष जो समुद्र से निकले चौदह रत्नों में माना जाता है।
संज्ञा
[सं.]


कल्पन
कल्पना, अनुमान।
जौ मन कबहुँक हरि कौ जाँचै।......। निसि दिन स्याम सुमिरि जस गावै, कल्पन मेटि प्रेम रस माँचै - २ - ११।
संज्ञा
[सं. कल्पना]


कल्पना
बनावट, रचनाक्रम।
संज्ञा
[सं.]


कल्पना
अनुमान, उद्‍भावना।
जैसी जाकैं कल्पना तैसहि दोउ आए। सूर नगर नर-नारि के मन चित्त चोराए - २५७६।
संज्ञा
[सं.]


कल्पना
एक वस्तु में अन्य का आरोप।
संज्ञा
[सं.]


कल्पना
मान लेना।
संज्ञा
[सं.]


कल्पना
गढ़ी हुई बात।
संज्ञा
[सं.]


कल्पलता
एक वृक्ष जिसकी गिनती समुद्र से निकले चौदह रत्नों में है। यह प्राणियों की इच्छा पूरी करता है और इसका नाश कभी नहीं होता।
संज्ञा
[सं.]


कल्पवृक्ष, कल्पवृच्छ
देवलोक का एक वृक्ष।
संज्ञा
[सं. कल्पवृक्ष]


कल्पशाखी
कल्पवृक्ष।
संज्ञा
[सं.]


कल्पांत
प्रलय।
संज्ञा
[सं. कल्प+अंत]


कल्पित
रचा हुआ, निकला हुआ, उद्‍भूत।
चर-अचर-गति बिपरीत। सुनि बेनु-कल्पित गीत - ६२३।
वि.
[सं. कल्पना]


कल्पित
मनमाना, मनगढ़ंत।
वि.
[सं. कल्पना]


कल्पित
बनावटी, अयथार्थ, नकली।
वि.
[सं. कल्पना]


कल्मष
पाप।
संज्ञा
[सं.]


कल्मष
मैल।
संज्ञा
[सं.]


कल्य
सबेरा।
संज्ञा
[सं.]


कल्य
मधु, शराब।
संज्ञा
[सं.]


कल्याण
शुभ, भलाई।
संज्ञा
[सं.]


कल्याण
सोना।
संज्ञा
[सं.]


कल्याण
एक राग जो श्रीराग का सातवाँ पुत्र माना जाता है और जो रात के पहले पहर में गाया जाता है।
सूरदास प्रभु मुरली धरे आवत राग कल्याण (कल्यान) बजावत - २३४७।
संज्ञा
[सं.]


कल्याण
शुभ, कल्याणप्रद।
वि.


कल्याणी
कल्याण करनेवाली।
वि.
[सं.]


कल्याणी
गाय।
संज्ञा


कल्याणी
प्रयाग की एक देवी।
संज्ञा


कल्यान
मंगल, शुभ, भलाई, कल्याण।
आपुनौ कल्यान करि लै, मानुषी तन पाइ–१ - ३१५।
संज्ञा
[सं. कल्याण]


कल्यान
एक राग जो रात के पहले पहर में गाया जाता है।
सूर स्याम अति सुजान गावत कल्यान तान सपत सुरन कल इते पर मुरलिका बरषी री - २३६२।
संज्ञा
[सं. कल्याण]


कल्योना
कलेवा।
संज्ञा
[हिं. कलेवा]


कल्ला
अंकुर, गोंफा।
संज्ञा
[सं. करीर=बाँस का करैल]


कल्ला
गाल का भीतरी भाग, जबड़ा।
संज्ञा
[फ़ा.]


कल्ला
झगड़ा, विवाद।
संज्ञा
[हिं. कलह]


कल्लाना
जलन होना।
क्रि. अ.
[सं. कड् या कल्= संज्ञाहीन होना]


कल्लाना
दुखदायी होना।
क्रि. अ.
[सं. कड् या कल्= संज्ञाहीन होना]


कल्लोल
लहर, तरंग।
संज्ञा
[सं.]


कल्लोल
उमंग, मौज।
संज्ञा
[सं.]


कल्लोलिनी
वह नदी जिसमें तरंग या लहरें हों।
संज्ञा
[सं.]


कल्हरना
भुनना, तला जाना।
क्रि. अ.
[हिं. कड़ाह+ना (प्रत्य.)]


कल्हारना
भुनना, तलना।
क्रि. स.
[हिं. कल्हरना]


कल्हारना
कराहना, चिल्लाना।
क्रि. अ.
[सं. कल्ल=शोर करना]


कवच
युद्ध में पहनने की लोहे की पोशाक, जिरहवकतर।
बीरा हार चीर चोली छबि सैना सजि सृङ्गार। परन बचन सल्लाह कवच दै जोरौ सूर अपार–१५९६।
संज्ञा
[सं.]


कवच
छाल, छिलका।
संज्ञा
[सं.]


कवच
तंत्र-शास्त्र का एक अंग।
संज्ञा
[सं.]


कवच
बड़ा नगाड़ा, डंका।
संज्ञा
[सं.]


कवन
कैसी, किस प्रकार की।
तोहिं कवन मति रावन आई - ९ - ११७।
वि.
[हिं. कौन]


कवन
किसने।
सुधाधर मुख पै रुखाई धौ कवन कह थाप–सा. ३६।
सर्व.


कवने
किसने।
कंचन को मृग कवने देख्यौ किन बाँध्यौ गहि डोरी - ३०२८।
सर्व.
[हिं. कवन, कौन]


कवर
ग्रास, कौर।
कबहूँ कवर खात मिरचन की लागी दसन टकोर। भाज चले तब गहे रोहिनी लाई बहुत निहोर–सारा. - ९०८।
संज्ञा
[सं. कवल]


कवर
बाल, केश।
संज्ञा
[सं.]


कवर
गुच्छा।
संज्ञा
[सं.]


कवर
लोनापन।
संज्ञा
[सं.]


कवर
गुथा हुआ।
वि.


कवर
मिला हुआ।
वि.


कवरी
चोटी, जूड़ा, वेणी।
(क) गति मराल अरु बिंब अधर छबि, अहि अनूप कवरी - ६ - ६३। (ख) अति सुदेस मृदु चिकुर हरत चित गूँथे सुमन रसालहिं। कवरी अति कमनीय सुभग सिर राजति गोरी बालहिं। (ग) सुंदर स्याम गही कवरी कर मुक्‍तामाल गही बलवीर - १० - १६१। (घ) अरुन नैनमुख सरद निसाकर कुसुम गलित कवरी - २१०६।
संज्ञा
[सं.]


कवल
कौर, ग्रास, गस्सा।
संज्ञा
[सं.]


कवल
कुल्ली का जल।
संज्ञा
[सं.]


कवल
किनारा, कोना।
संज्ञा


कवल
एक पक्षी।
संज्ञा
[देश.]


विष्‍णु।
संज्ञा
[सं.]


कामदेव।
संज्ञा
[सं.]


सूर्य।
संज्ञा
[सं.]


यम।
संज्ञा
[सं.]


मयूर।
संज्ञा
[सं.]


शब्द।
संज्ञा
[सं.]


जल।
संज्ञा
[सं.]


अग्नि।
संज्ञा
[सं.]


वायु।
संज्ञा
[सं.]


आत्‍मा
संज्ञा
[सं.]


कवल
एक तरह का घोड़ा।
संज्ञा
[देश.]


कवलित
खाया हुआ, ग्रसित।
वि.
[सं. कवल]


कवष
ढाल।
संज्ञा
[सं.]


कवष
एक प्राचीन ऋषि।
संज्ञा
[सं.]


कवाट
कपाट, किवाड़।
संज्ञा
[सं.]


कवि
कविता करनेवाला, काव्य रचनेवाला।
संज्ञा
[सं.]


कवि
ऋषि।
संज्ञा
[सं.]


कवि
ब्रह्मा।
संज्ञा
[सं.]


कवि
शुक्राचार्य।
संज्ञा
[सं.]


कवि
सूर्य।
संज्ञा
[सं.]


कविकुल
कवियों का समूह या वर्ग।
लाल गोपाल बाल-छबि बरनत कविकुल करिहै हास री - १० - १३६।
संज्ञा
[सं.]


कविता, कविताई
काव्य, कविता।
संज्ञा
[सं. कविता]


कवित्त
कविता, काव्य।
संज्ञा
[सं. कवित्व]


कवित्त
एक प्रसिद्ध छन्द जिसमें ३१ अक्षर होते हैं।
संज्ञा
[सं. कवित्व]


कवित्व
कविता रचने की शक्ति।
संज्ञा
[सं.]


कवित्व
काव्य गुण।
संज्ञा
[सं.]


कविनासा
कर्मनाशा।
संज्ञा
[सं. कर्मनाशा]


कविराज, कविराय
श्रेष्ठ कवि।
संज्ञा
[सं. कविराज]


कविलास
कैलाश।
संज्ञा
[सं. कैलास]


कविलास
स्वर्ग।
संज्ञा
[सं. कैलास]


कशा
रस्सी
संज्ञा
[सं.]


कशा
कोड़ा, चाबुक।
संज्ञा
[सं.]


कश्चित
कोई।
वि., सर्व.
[सं.]


कष
सान।
संज्ञा
[सं.]


कष
कसौटी।
संज्ञा
[सं.]


कष
परीक्षा।
संज्ञा
[सं.]


कषाय
कसैया, बकठा।
वि.
[सं.]


कषाय
सुगंधित।
वि.
[सं.]


कषाय
रंगा हुआ।
वि.
[सं.]


कषाय
गेरू के रंग का।
वि.
[सं.]


कषाय
कसैली वस्तु।
संज्ञा


कषाय
गोंद।
संज्ञा


कषाय
गाढ़ा रस।
संज्ञा


कषाय
कलियुग।
संज्ञा


कष्ट
पीड़ा, दुख, तकलीफ।
संज्ञा
[सं.]


कष्ट
संकट, मुसीबत।
संज्ञा
[सं.]


कस
परीक्षा, कसौटी, जाँच।
संज्ञा
[सं. कष]


कस
तलवार की लचक।
संज्ञा
[सं. कष]


कस
बल, जोर।
संज्ञा
[हिं. कसना]


कस
दबाव, वश, अधिकार।
संज्ञा
[हिं. कसना]


कस
सार, तत्व।
संज्ञा
[सं. कषाय, हिं. कसाव]


कस
कैसे, क्योंकर।
क्रि. वि.


कस
क्यों।
क्रि. वि.


कसक
पीड़ा, दर्द, टीस।
संज्ञा
[सं. कष=आघात, चोट]


कसक
पुराना बैर।
संज्ञा
[सं. कष=आघात, चोट]


कसक
अरमान, अभिलाषा।
संज्ञा
[सं. कष=आघात, चोट]


कसक
दूसरे को दुखी देखकर स्वयं दुखी होना, सहानुभूति।
संज्ञा
[सं. कष=आघात, चोट]


कसकत
दर्द करता (है), सालता (है), टीसता (है)।
नाही कसकत मन, निरखि कोमल तन, तनिक से दधि काज, भली री तू मैया - ३७२।
क्रि. अ.
[हिं.कसक, कसकना]


कसकना
दर्द करना, टीसना।
क्रि. अ.
[हिं. कसक]


कसक्यौ
कसका, दर्द हुआ, टीस हुई।
जसुदा तोहिं बाँधि क्यों आयौ। कसक्यौ नाहिं नैकु मन तेरौ, यहै कोखि को जायौ–३७४।
क्रि. अ.
[हिं. कसक, कसकना]


कसना
सवारी तैयार होना।
क्रि. अ.


कसना
खूब भर जाना।
क्रि. अ.


कसना
कसौटी पर घिसकर परखना।
क्रि. स.


कसना
परीक्षा लेना, जाँचना।
क्रि. स.


कसना
घी में तलना।
क्रि. स.


कसना
दुख देना, कष्ट पहुँचना।
क्रि. स.
[सं. कषण=कष्ट देना]


कसना
कसने या बाँधने की डोरी, ररसी।
संज्ञा


कसनि, कसनी
कसने की रस्सी, बेठन।
संज्ञा
[हिं. कसना]


कसनि, कसनी
कंचुकी, अँगिया।
संज्ञा
[हिं. कसना]


कसनि, कसनी
कसौटी।
संज्ञा
[हिं. कसना]


कसत
परखते हैं, जाँचते हैं।
सूर प्रभु हँसत, अति प्रभु प्रीति उर में बसत इन्द्र को कसत हरि जग धाता।
क्रि. अ.
[हिं. कसना]


कसन
कसने की क्रिया या भाव।
संज्ञा
[हिं. कसना]


कसन
कसने का ढंग।
संज्ञा
[हिं. कसना]


कसन
कसने की रस्सी या डोरी।
संज्ञा
[हिं. कसना]


कसना
बंधन खींचना या तानना।
क्रि. स.
[सं. कर्षण, प्रा. कस्‍सण]


कसना
जकड़ना, बाँधना।
क्रि. स.
[सं. कर्षण, प्रा. कस्‍सण]


कसना
सवारी तैयार करना।
क्रि. स.
[सं. कर्षण, प्रा. कस्‍सण]


कसना
दबा दबाकर भरना।
क्रि. स.
[सं. कर्षण, प्रा. कस्‍सण]


कसना
बंधन खिंच जाना, जकड़ जाना।
क्रि. अ.


कसना
बंधना।
क्रि. अ.


कसनि, कसनी
परख, जाँच।
संज्ञा
[हिं. कसना]


कसनि, कसनी
कसैली वस्तु का पुट देने के लिए उसमें डुबोना।
संज्ञा
[हिं. कसाव]


कसब
काम, परिश्रम, मेंहनत।
आन देव की भक्ति-भाइ करि, कोटिक कसब करैगौ। सब वे दिवस चारि मनरंजन, अंत काल बिगरैगौ - १ - ७५।
संज्ञा
[अ.]


कसब
व्यभिचार।
संज्ञा
[अ.]


कसम
शपथ, सौगंध।
संज्ञा
[अ. क़सम]


कसमसाना
रगड़ खाना, कुलबुलाना।
क्रि. अ.
[अनु.]


कसमसाना
ऊबना, उकताना।
क्रि. अ.
[अनु.]


कसमसाना
घबराना,बेचैन होना।
क्रि. अ.
[अनु.]


कसमसाना
हिचकना, टाल-मटोल करना।
क्रि. अ.
[अनु.]


कसर
कमी, त्रुटि।
संज्ञा
[अ.]


कसाला
परिश्रम, मेंहनत।
संज्ञा
[सं. कष-पीड़ा, दुख]


कसाव
कसैलापन।
संज्ञा
[सं. कषाय]


कसाव
खिचाव, तनाव।
संज्ञा


कसावर
एक देहाती बाजा।
संज्ञा
[देश.]


कसि
अच्छी तरह बाँधकर, जकड़कर।
(क) तजौ बिरद के मोहिं उधारौ, सूर कहै कसि फेंट - १ - १४५ (ख) कसि कंचुकि, तिलक लिलार, सोभित हार हिये - १० - २४।
क्रि. स.
[हिं. कसना]


कसी
एक पौधा।
संज्ञा
[सं. कशक]


कसी
तनी, तनी हुई।
किरनि कटाक्ष बान बर साँधे भौंह कलंक समान कसी री - १८९८।
वि.
[हिं. कसना]


कसीटना
कसना, रोकना।
क्रि. स.
[हिं. कसना]


कसीस
एक खनिज पदार्थ।
संज्ञा
[सं. कासीस]


कसीस
निर्दयता।
संज्ञा


कसर
बैर, मनमोटाव।
संज्ञा
[अ.]


कसर
हानि, घाटा।
संज्ञा
[अ.]


कसर
दोष, विकार।
संज्ञा
[अ.]


कसरत
व्यायाम, मेहनत।
संज्ञा
[अ.]


कसरि
कमी, न्यूनता, त्रुटि।
अब कछू हरि कसरि नाहीं, कत लगावत बार ? सूर प्रभु यह जानि पदवी, चलत बैलहिं आर - १ - १९९।
संज्ञा
[अ. कसर]


कसाई
बधिक, हत्यारा।
श्रीधर बाँभन करम कसाई। कह्यौ कंस सौं बचन सुनाई। प्रभु, मैं तुम्हरौ आज्ञाकारी। नंद-सुवन कौं आवौं मारी - १० - ५७।
संज्ञा
[अ. कस्साब]


कसाना
खट्टी चीज का कसैला हो जाना।
क्रि. अ.
[हिं. काँसा]


कसाना
कसवाना।
क्रि. स.
[हिं. ‘कसना' का प्रे.]


कसार
भुना आटा जिसमें चीनी मिला दी गयी हो, पँजरी।
संज्ञा
[सं. कृसर]


कसाला
दुख, कष्ट।
संज्ञा
[सं. कष-पीड़ा, दुख]


कँगन, कँगना
हाथ में पहनने का एक गहना, कड़ा, कंकण।
संज्ञा
[सं. कंकण]


कँगन, कँगना
लोहे का चक्र या कड़ा।
संज्ञा
[सं. कंकण]


कँगनी
छोटा कंगन।
संज्ञा
[हिं. कंगना]


कँगनी
एक अक्ष, काकुन।
संज्ञा
[सं. कंगु]


कँगला
भुखमरा, गरीब, बहुत लालची।
वि.
[हिं. कंगाल]


कंगाल
भुखमरा।
वि.
[सं. कंकाल]


कंगाल
दरिद्र
वि.
[सं. कंकाल]


कंगाली
भुखमरी।
संज्ञा
[हिं, कंगाल]


कंगाली
गरीबी, दरिद्रता।
संज्ञा
[हिं, कंगाल]


कँगुरिया, कँगुरी
छिगुनी, उँगली, छोटी उँगली।
जैसी तान तुम्हारे मुख की तैसिय मधुर उपाऊँ। जैसे फिरत रंध्र ममु कँगुरी तैसे मैंहुँ फिराऊँ - पृ. ३११।
संज्ञा
[हिं. कनगुरिया]


कइक
कई एक, कुछ।
राम दिन कइक ता ठौर अवरो रहे आइ वल्पवअ तहाँ दुई दिखाई - १० उ. - १८०।
वि.
[हिं. कई+एक]


कइत
ओर, तरफ।
संज्ञा
[हिं. कित]


कई
एक से अधिक, अनेक।
वि.
[सं. कति, प्रा. कइ]


कई
हल्के हरे रंग की महीन वास जो जल या सील में होती है।
अब इह बरषा बीति गई।…..घटी घटा सब अभिन मोह मद तमिता तेज हई। सरिता संयम स्वच्छ सलिल जल फाटी काम कई - २८३३।
संज्ञा
[सं. कावार, हिं. काई]


ककड़ी
एक बेल जिसमें पतले-पतले पर लंबे फल लगते हैं।
संज्ञा
[सं. कर्कटी, पा. कक्‍कड़ी]


ककड़ी
एक बेल जिसमें धारीदार बड़े खरबूजे की तरह के फल लगते हैं और ‘फूट' कहलाते हैं।
संज्ञा
[सं. कर्कटी, पा. कक्‍कड़ी]


ककना
हाथ का एक गहना, कँगन।
संज्ञा
[सं. कंकण, हिं. कॅंगना]


ककनी
हाथ का कॅंगूरेदार चूड़ीनुमा गहना।
संज्ञा
[हिं. कॅंगना]


ककनू
एक पक्षी जिसके गाने से घोसले में आग लग जाती है और वह स्वयं जल मरता है।
संज्ञा
[देश.]


ककमारी
एक तरह की लता जिसके फल मछलियों और कौओं के लिए मादक होते हैं।
सं.
[सं. काक=कौवा+मारना]


कसीस
कोशिश।
संज्ञा


कसीसना
खीचना।
क्रि. अ.
[हिं. कसना= खींचना]


कसूँभी
कुसुम के रंग का।
वि.
[हिं. कुसुम]


कसूँभी
कुसुम के फूलों के रंग में रँगा हुआ।
वि.
[हिं. कुसुम]


कसूर
अपराध, दोष।
संज्ञा
[अ. कसूर]


कसे
बाँधे हुए, जकड़कर बाँधे हुए।
अलख-अनंत-अपरिमित महिमा, कटि-तट कसे तूनीर - ९ - २६।
क्रि. स.
[हिं. कसना]


कसेरा
फूलकाँसे आदि के बरतन ढालने-बेचनेवाला।
संज्ञा
[हिं. काँसा+एरा (प्रत्य.)]


कसैया
कसकर बाँधनेवाला
संज्ञा
[हिं. कसना]


कसैया
परखने, जाँचनेवाला, पारखी।
संज्ञा
[हिं. कसना]


कसैला
जिसके स्वाद में कसैलापन हो।
वि.
[हिं. कसाव+ऐला (प्रत्य.)]


कहंत
कहता है, बोलता है।
जिय अति डरयौ, मोहि मति सापै ब्याकुल बचन कहंत। मोंहिं बर दियौ सकल देवनि मिलि, नाम धरयौ हनुमंत - ९ - ८३।
क्रि. स.
[सं. कथन, प्रा. कहना]


कह
क्या।
जाँचक पैं जाँचक कह जाँचै, जौ जाँचै तौ रसनाहारी - १ - ३४।
वि.
[सं. क:]


कहत
कहने में, वर्णन करने में।
अबिगत गति कछु कहत न आवै। ज्यौं गूंगे मीठे फल कौ रस अंतरगत हीं भावै–१ - २।
क्रि. स.
[सं. कथन, प्रा. कहन, हिं. कहना]


कहत
कहता है, वर्णन करता है।
जग जानत जदुनाथ जिते जन निज भुज स्रम सुख पायौ। ऐसौ को जु न सरन गहे तैं कहत सूरउतरायौ - १ - १५।
क्रि. स.
[सं. कथन, प्रा. कहन, हिं. कहना]


कहति
वर्णन करती है।
बकी जु गई घोष मैं छल करि, जसुदा की गति कीनी। और कहति स्रुति वृषभ व्याध की जैसी गति तुम कीनी - १ - १२२।
क्रि. स.
[हिं. कहना]


कहती
वर्णन करती, शब्दों में अभिप्राय बताती।
जो मेरी अखियनि रसना होती कहती रूप बनाइ री - १० - १३९।
क्रि. स.
[हिं. कहना]


कहन
कहने या बताने के लिए।
बिहवल मति कहन गए, जोरे सब हाथा - ९ - ९६।
क्रि. स.
[हिं. कहना]


कहन
कहन सुनन को- केवल कहने भर को, नाम मात्र को। उ. - सतजुग लाख बरस की आइ। त्रेता दस सहस्र कहि गाइ। द्वापर सहस एक की भई। कलिजुग सत संबत रह गयी। सोऊ कहन सुनन कौं रही। कलि मरजाद जाइ नहिं कही - १ - २३०।
मु.


कहना
बोलना, अभिप्राय प्रकट करना।
क्रि. स.
[सं. कथन, प्रा. कहन]


कहना
प्रकट करना, रहस्य खोलना।
क्रि. स.
[सं. कथन, प्रा. कहन]


कसौंजा, कसौंदा
एक पौधा या उसका फूल।
संज्ञा
[सं. कासमई, पा. कासमद्द]


कसोटिया
कसौटी, सोना परखने का पत्थर।
तनिक कटि पर कनक-करधनि, छीन छबि चमकाति। मनौ कनक कसौटिया पर, लीक-सी लपटाति - १० - १८४।
संज्ञा
[सं. कषपट्टी, हि. कसौटी]


कसौटी
एक काला पत्थर जिसपर रगड़ कर सोने की परख की जाती है। शालग्राम इसी पत्थर के होते हैं।
संज्ञा
[सं. कषपट्टी]


कसौटी
परख, परीक्षा।
उ. - गोरस मथत नाद इक उपजत , किंकिनि धुनि सुनि स्रवन रमापति। सूर स्याम अँचरा धरि ठाढ़े, काम कसौटी कसि दिखरावति - १० - १४९। (ख) प्रीति पुरातन मोरी उनसों नेह कसौटी तोलै –३०९१।
संज्ञा
[सं. कषपट्टी]


कस्तूरि, कस्तूरिका, कस्तूरी
मृग विशेष की नाभि से निकलनेवाला एक सुगंधित द्रव्य।
उज्ज्वल पान कपूर कस्तूरी। आरोगत मुख की छबि रूरी - ३९६।
संज्ञा
[सं. कस्तूरी]


कस्यप
एक प्रजापति जो सुरों और असुरों के पिता थे।
संज्ञा
[सं. कश्यप]


कस्यौ
जकड़कर बाँधा।
(क) सुचि करि सकल बान सूधे करि, कटि-तट कस्यौ निपंग - ९ - १५८। (ख) सूर प्रभु देखि नृप क्रोध पुरी धरी कस्यौ कटि पीतपट देव राजै - २६१२।
क्रि. स.
[सं. कर्षण, प्रा. कस्सण, हिं. कसना]


कहँ
के लिए। (अवधी में यह द्वितीया और चतुर्थी का चिन्ह है)।
प्रत्य.
[सं. कक्ष, प्रा. कच्छ]


कहँ
कहाँ, किस जगह।
क्रि. वि.
[हिं. कहाँ]


कहँ
कहँ लगि-कहाँ तक।
रसना एक, अनेक स्याम-गुन कहँ लगि करौं बखानी - १ - ११।
यौं.


कहना
सूचना या खबर देना।
क्रि. स.
[सं. कथन, प्रा. कहन]


कहना
पुकारना, नाम रखना।
क्रि. स.
[सं. कथन, प्रा. कहन]


कहना
समझाना-बुझाना।
क्रि. स.
[सं. कथन, प्रा. कहन]


कहना
बनावटी बातें करके भुलावे में डालना।
क्रि. स.
[सं. कथन, प्रा. कहन]


कहना
भला-बुरा कहना।
क्रि. स.
[सं. कथन, प्रा. कहन]


कहना
कविता रचना।
क्रि. स.
[सं. कथन, प्रा. कहन]


कहना
कथन, बात, अनुरोध।
संज्ञा


कहनि
वचन, बात, कथन।
संज्ञा
[सं. कथन, हिं. कहन]


कहनि
करनी, करतूत।
तृन की आग बरत ही बुझि गई हँसि हँसि कहत गोपाल। सुनहु सूर वह करनि, कहनि यह, ऐसे प्रभु के ख्याल - ५९८।
संज्ञा
[सं. कथन, हिं. कहन]


कहनी
कथा, कहानी।
संज्ञा
[सं. कथनी, प्रा. कहनी]


कहल
हवा के बंद हो जाने पर बढ़नेवाली गर्मी, उमस।
संज्ञा
[देश.]


कहल
कष्ट।
संज्ञा
[देश.]


कहलना
अकुलाना, व्याकुल होना।
क्रि. अ.
[हिं. कहल]


कहलवाना, कहलाना
कहने की क्रिया दूसरे से कराना।
क्रि. स.
[हिं. ‘कहना' का प्रे.]


कहलवाना, कहलाना
संदेश भेजना।
क्रि. स.
[हिं. ‘कहना' का प्रे.]


कहवनि
कहना है।
अब मोकौं उनसौं कहवनि है कछु मैं गई बुलावन। आपुहिं काल्हि कृपा यह कीन्ही अजिर गये करि पावन - २१६४।
क्रि. स.
[हिं. कहना]


कहवाँ
कहाँ।
क्रि. वि.
[हिं. कहाँ]


कहवाए
कहलाये, प्रसिद्ध हुए।
(क) सूरजबंसी सो कहवाए। रामचंद्र ताही कुल आए - ९ - २।

(ख) राजा उग्रसेन कहवाए - २६४३।

क्रि. स.
[हिं. कहवाना]


कहवाना
कहलाना।
क्रि. स.
[हिं, ‘कहना' का प्रे.]


कहवाना
संदेश भेजना।
क्रि. स.
[हिं, ‘कहना' का प्रे.]


कहनी
बात, कथन।
संज्ञा
[सं. कथनी, प्रा. कहनी]


कहनाउत, कहनावत, कहनावति
बात, कथन।
सुनहु सखी राधा कहनावति। हम देखे सोई इन देखे ऐसेहि ताते कहि मन भावति–१६२९।
संज्ञा
(हिं. कहना+आवत (प्रत्य.)]


कहनाउत, कहनावत, कहनावति
चर्चा, प्रसंग।
कहाँ स्याम मिलि बैठी कबहूँ कहनावति ब्रज ऐसी। लूटहिं यह उपहास हमारौ यह तौ बात अनैसी - पृ. ३२४।
संज्ञा
(हिं. कहना+आवत (प्रत्य.)]


कहनूत
कहावत, कहनावत।
संज्ञा
[हिं. कहना+उत (प्रत्य.)]


कहर
विपत्ति, संकट।
संज्ञा
[अ.]


कहर
घोर, भयंकर।
वि.
[अ. कह्‌हार]


कहर
अपार, अथाह।
वि.
[अ. कह्‌हार]


कहरति
पीड़ित है, कराहती है।
मोह विपिन में पड़ी कराहति हौं नेह जीव नहिं जात। सूरस्याम गुन सुमिरि सुमिरि वै अंतरगति पछितात - पृ. ३२६।
क्रि. अ.
[हिं. कहरना]


कहरना
पीड़ा से ‘आह' करना, कराहना।
क्रि. अ.
[हिं. कराहना]


कहरी
विपत्ति लानेवाला।
वि.
[हिं. कहर]


कहवायौ
कहा जाता है, समझा जाता है, माना जाता है।
बीरा लैं आयौ सन्मुख तैं, आदर करि नृप कंस पठायो, जारि करौं परलय छिन भीतर, व्रज बपुरौ केतिक कहवायौ - ५९१।
क्रि. स.
[हिं. कहलाना]


कहावत
कहलाते हैं।
(क) सुदर कमलन की सोभा चरन कमल कहवावत - १९७५।

(ख) ऐसेहि जगतपिता कहवावत ऐसे घात करै सो दाता - १४२७। (ग) मधुकर अब भयौ नेह बिरानी। बाहर हेत हतो कहवावत भीतर काज सयानी - ३३७५।

क्रि. स.
[हिं. कहवाना]


कहवावै
कहलाता है।
(क) सिव सनकादि अंत नहिं पावैं, भक्त-बछल कहवावै - ४८२। (ख) वे हैं बड़े महर की बेटी तौ ऐसी कहवावै - १५९६।
क्रि. स.
[हिं. कहना]


कहवैयौ
कहलाना, प्रसिद्ध कराना।
राधा-कान्ह कथा ब्रज घर घर ऐसे जनि कहवैयौ - - १४९६।
क्रि. स.
[हिं. कहना]


कहाँ
किस जगह, किस स्थान पर।
क्रि. वि.
[सं. कुहः]


कहाँ
पैदा होने वाले बच्चे का शब्द।
संज्ञा
[अनु.]


कहा
कथन, बात, आज्ञा, उपदेश, कहना।
संज्ञा
[सं. कथन, प्रा. कहन, हिं. कहना]


कहा
कैसे, किस प्रकार के।
रूप देखि तुम कहा भुलाने मीत भए वनयाते - २५२८।
क्रि. वि.
[सं. कथम्]


कहा
क्या (व्रज)।
कलानिधान सकल गुन सागर, गुरु धौं कहा पढ़ाये (हो) - १ - ७।
सर्व.
[सं. कः]


कहा
कहा हो - क्या है, तुलना में कुछ नहीं है, तुच्छ है।

उ. - तुम जो प्यारी मोही लागत चंद्र चकोर कहा री हो। सूरदास स्वामी इन बातन नागरि रिझई भारी हो - १५६६।

मु.


कहा
क्या।
वि.


कहाइ
कहाकर, कहलाकर, प्रसिद्ध होकर।
(क) बेष धरि- धरि हरयौ परधन साधु-साधु कहाइ - १ - ४५। (ख) हौं कहाइ तेरौ, अब कौन कौ कहाऊँ - १ - १६५।
क्रि. स.
[हिं. कहाना]


कहाउति
कहावत।
संज्ञा
[हिं. कहावत]


कहाऊँ
कहलाऊँ।
(क) हौं कहाइ तेरौ, अब कौन कौ कहाऊँ - १ - १६६। (ख) जो तुम्हरे कर सर न गहाऊँ गंगासुत न कहाऊँ - सारा. ७८०।
क्रि. स.
[हिं. कहाना]


कहाऊँगो
कहलाऊँगा।
क्रि. स.
[हिं. कहाना]


कहाए
कहलाये, प्रसिद्ध हुए।
तुम मोसे अपराधी माधव, केतिक स्वर्ग पठाए | (हो)। सूरदास-प्रभु भक्त-बछल तुम, पावन- नाम कहाए (हो) - १ - ७ |
क्रि. स.
[हिं. कहना]


कहाकही
वादविवाद।
संज्ञा
[हिं. कहना]


कहानी
कथा, आख्यायिका।
संज्ञा
[हिं. कहना]


कहानी
झूठी या गढ़ी बात, अद्भुत बात।
(क) कुटिल कुचाल जन्म की टेढ़ी सुंदरि करि घर आनी। अब वह नवन बधू ह्वै बैठी ब्रज की कहत कहानी - ३०८६। (ख) सिंह रहै जंबुक सरनागति देखी सुनी न अकथ कहानी - पृ. , ३४३ (२०)।
संज्ञा
[हिं. कहना]


कहार
एक शूद्र जाति जो पानी भरने और डोली उठाने का काम करती है।
संज्ञा
[सं. कं.=जल+हार अथवा सं. स्कंधभार]


कहाल
एक बाजा।
संज्ञा
[देश.]


कहावत
कहलाते हैं, प्रसिद्ध हैं।
(क) कहावत ऐसे त्यागी दानि। चारि पदारथ दिए सुदामहिं अरु गुरु के सुत आनि - १ - १३५। (ख) इन्द्रीजित हौं कहावत हुतौ, आपकौं समुझि मन माहिं ह्वै रह्यौ खीनौ - ८ - १०।

(ग) रूप-रसिक लालची कहावत सो करनी कछु वैन भई - २५३७।

क्रि. स.
[हिं. कहाना]


कहावत
अनुभव की बात जो सुंदर ढंग से कही जाने के कारण प्रसिद्ध हो जाय।
संज्ञा
[हिं. कहना]


कहावत
कही हुई बात, उक्ति।
संज्ञा
[हिं. कहना]


कहावत
मृत्यु का संदेश या सूचना।
संज्ञा
[हिं. कहना]


कहावै
कहलाता है, प्रसिद्ध है।
(क) साँचौ सो लिखहार कहावै। काया-ग्राम मसाहत करि कै, जमा बाँधि ठहरावै–१ - १४२। (ख) कामिनी धीरज धरै को सो कहावै री - ६२९।
क्रि. स.
[हिं. कहाना]


कहाहि
कहलाते हैं।
(क) ऐसे लच्छन हैं जिन माहिं। माता, तिनसौं साधु कहाहिं - ३ - १३।

(ख) स्याम हलधर सुत तुम्हारे और कौन कहाहिं - २९२८।

क्रि. स.
[हिं. कहाना]


कहि
कहना, कहने में समर्थ होना।
क्रि. स.
[हिं. कहना]


कहि
कहि परति- कह सकना, वर्णन कर सकना। उ.- काहू के कुल तन न बिचारत। अबिगत की गति कहि न परति है, ब्याध अजामिल तारत - १ - १२।

कहि आयौ - कह सका, मुँह से निकल गया। उ.- करत बिवस्त्र द्रुपद-तनया कौं, सरन सब्द कहि आयौ। पूजि अनंत कोटि बसननि हरि अरि को गर्व गँवायौं - १ - १९.। कहि न जाइ- कहा नहीं जा सकता, वर्णन नहीं किया जा सकता। उ.- हरष अक्रूर हदय न भाइ। नेम भूल्यौ ध्यान स्याम बलराम कौ हृदय आनन्द मुख कहि न जाय - २५५६।

मु.


कहिअहु
कहना जाकर बताना, कह देना।
बिजै अधोमुख लेन सूर प्रभु कहिअहु बिपति हमारी–सा. उ. ३५।
क्रि. स.
[हिं. कहना]


कहिए, कहिए
वर्णन कीजिए, बताइए।
सखा भीर लै पैठत घर मैं आपु खाइ तौ सहिऐ। मैं जब चली सामुहैं पकरन, तब के गुन कहा कहिऐ - १० - ३२२।
क्रि. स.
[हिं. कहना]


कहिबे
कथन, वचन।
धिक तुम धिक या कहिबे ऊपर - १ - २८४।
संज्ञा
[हिं. कहना]


कहिबे
कहिबे के अनुमानैं- केवल कहने के लिए, कहकर अपना मन बहला लेने के लिए उ.- कहियै जो कुछ होई सखी री, कहिबे के अनु मानैं। सुंदर स्याम निकाई कौ सुख, नैना ही पै जानै - ७३०।
मु.


कहिबे
कहना, समाचार देना, बताना।
ऊधौ और कछु कहिबै कौ। मनमानैं सोंऊ कहि डारौ पालागैं हम सुनि सहिबे कौ - ३००४
क्रि. सं.


कहिबो
कहना, बताना, वर्णन करना।
(क) तुम सौं प्रेम कथा कौ कहिबौ मनहु काटिबों घास - ३३३६। (ख) हम पर हेतु किये रहिबो। या ब्रज कौ व्यवहार सखा तुम हरि सौं सब कहिबो - ३४१४।
क्रि. स.
[हिं. कहना]


कहियत
कहलाते हैं, प्रसिद्ध हैं।
(क) वै रघुनाथ चतुर कहियत हैं, अंतरजामी सोइ। या भयभीत देखि लंका मैं, सीय जरी मति होइ - ९ - ९९। (ख) सूरदास गोपिन हितकारन कहियत माखन-चोर ४७७।
क्रि. स.
[हिं. कहना]


कहियत
कहते हैं, वर्णन करते हैं।
राम-कृष्ण अवतार मनोहर भक्तन के हित काज। सोई सार जगत में कहियत ... सुनो देव द्विजराज - सारा. ११३।
क्रि. स.
[हिं. कहना]


कहियाँ
कहते हैं, बताते हैं।
क्रि. स.
[हिं. कहना]


कहियाँ
को, के लिए।
रघुकुल-कुमुद चंद चिंतामनि प्रगटे भूतल महिमाँ। आए ओप देन रघुकुल कौं, आनंदनिधि सब कहियाँ - ९ - १६।
क्रि. वि.
[हिं. कहँ]


कहिया
कब, किस दिन।
क्रि. वि.
[सं. कुह]


ककरी
ककड़ी का फल।
(क) ककरी कचरी अरु कचनारयौ। सुरस निमोननि स्वाद सँवारयौ–२३२१।

(ख) सुनत जोग लागत हमैं ऐसो ज्यों करुई ककरी - ३३६०।

संज्ञा
[हिं. ककड़ी]


ककहरा
क' से 'ह' तक वर्णमाला।
संज्ञा
[हिं.]


ककहरा
प्रारंभिक बातें, साधारण ज्ञान।
संज्ञा
[हिं.]


ककही
कंघी।
संज्ञा
[हिं. कंघी]


ककही
एक तरह की कपास जिसकी रुई कुछ लाल होती है।
संज्ञा
[सं. कंकती, प्रा. कंकई]


ककुद
बैल के कन्धे का कूबड़।
संज्ञा
[सं.]


ककुद
राजचिह्न।
संज्ञा
[सं.]


ककुभ
अर्जुन का पेड़।
संज्ञा
[सं.]


ककुभ
वीणा का ऊपरी भाग।
संज्ञा
[सं.]


ककुभ
दिशा।
संज्ञा
[सं.]


कहियै
बोलिए, वर्णन कीजिए।
मोसौं बात सकुच तजि कहियै - १ - १३५।
क्रि. स.
[हिं. कहना]


कहियौ
कहना, बोलना, बताना।
कह्यौ मयत्रेय सौं समुझाइ। यह तुम बिदुरहिं कहियौ ज़ाइ - ३ - ४।
क्रि. स.
[हिं. कहना]


कहियौ
तब कहियौ नाम (बलराम) - जो कुछ मैं कह रहा हूँ वह पूरा न हो तो मेरा नाम नहीं, मेरा कहा ठीक न हो तो मेरा नाम नहीं। उ. - मोहिं दुहाई नंद की, अबहों आवत स्याम। नाग नाथि लै आइहैं, तब कहियौ बलराम - ५८९।
मु.


कहिहैं
कहेंगे, बतायेंगे।
ऊधव कह्यौ, हरि कह्यौ जो ज्ञान। कहिहैं तुम्हें मयत्रेय आन - ३ - ४।
क्रि. स.
[हिं. कहना]


कहिहौं
कहूँगा, सूचना दूँगा।
क्रि. स.
[हिं. कहना]


कहिहौं
शिकायत करूँगा।
रोवत चले श्रीदामा घर कौं, जसुमति आगैं कहिहौं जाइ - ५३९।
क्रि. स.
[हिं. कहना]


कहीं
किसी ऐसी जगह जिसका पता न हो।
क्रि. वि.
[हिं. कहाँ]


कहीं
नहीं, कभी नहीं।
क्रि. वि.
[हिं. कहाँ]


कहीं
अगर, यदि, कदाचित।
क्रि. वि.
[हिं. कहाँ]


कहीं
बहुत बढ़कर।
क्रि. वि.
[हिं. कहाँ]


कही
वर्णन की, बतायी।
मैं तो अपनी कही बड़ाई - १ - २.७।
क्रि. स.
[हिं. कहना]


कही
कही हुई बात, उक्ति, कथन।
यह सुनि ग्वाल गये तहँ धाई। नंद महर की कही सुनायी - १००४।
संज्ञा


कहीन्यौ
कहा है, वर्णन किया है।
जो जस करै सो पावै तैसौ, बेद-पुरान कहीन्यौ - ८ - १५।
क्रि. स.
[हिं. कहना]


कहुँ
कहीं, किसी स्थान पर।
अब तुम मोकौं करौ अजाचीं, जौ कहुँ कर न पसारौं - १० - ३७।
क्रि. वि.
[हिं. कहूँ]


कहु
कहो।
बग-बगुली अरु गीध-गीधनी, आइ जनम लियौ तैसौ। उनहूँ कैँ गृह, सुत, दारा हैं उन्हैं भेद कहु कैसौ - २ - १४।
क्रि. वि.
[हिं. कहो]


कहूँ
कहीं, किसी स्थान पर।
(क) हरि चरनारबिंद तजि लागत अनत कहूँ तिनकी मति काँची - १ - १८।

(ख) मेरे लाड़िले हो तुम जाउ न कहूँ - १० - २९५।

क्रि. वि.
[सं. कुह, हिं. कहीं]


कहूँ
कहूँ की कहूँ- कहीं की कहीं, एक सीधे प्रसंग से हटाकर किसी अन्य दूर के संबंध में जोड़ लेना, दूर का अर्थ निकालना। उ.- कहा करौं तुम बात कहूँ की कहूँ लगावति। तरुनिन इहै सोहात मोहिं यह कैसे भावति - १०७१।
मु.


कहे
कहना, कथन।
मेरे कहे में कोऊ नाहीं - ११९५।
संज्ञा
[हिं. कहना]


कहे
बोले, वर्णित किये।
नव स्कंध नृप सौं कहे श्रीसुकदेव सुजान - १० - १।
क्रि. सं.


कहैं
कहने से, बात मानकर।
कहैं तात के पंचवटी बन छाँड़ि चले रजधानी - १० - १९९।
संज्ञा
[हिं. कहना]


कहैं
कहते हैं, बताते हैं।
(क) चलत पंथ कोउ थाक्यौ होइ। कहैं दूरि, डरि मरिहै सोइ - ३ - १३। (ख) तनक सी बात कहै तनक तनकि रहे - १० - १५०।

(ग) जिनकौ मुख देखत दुख उपजत, तिनकौ राजा-राय कहै - १ - ५३।

क्रि. स.


कहैंगे
कहेंगे, बतायँगे।
नंद सुनि मोहिं कहा कहैंगे देखि तरु दोउ आइ - ३८७।
क्रि. स.
[हिं. कहना]


कहेगौ
कहेगा, बोलेगा, अभिप्राय प्रकट करेगा।
कब हँसि बात कहैगौ मोसौं जा छबि तैं दुख दूरि हरै - १० - ७६।
क्रि. स.
[हिं. कहना]


कहैहैं
कहलायँगे, प्रसिद्ध होंगे।
नंदहुं तैं ये बड़े कहैहैं फेरि बसैहैं यह ब्रजनगरी - १० - ३१९।
क्रि स.
[हिं. कहाना]


कहैहौं
कहलाऊंगा।
(क) हृदय कठोर कुलिस तैं मेरौ, अब नहिं दीनदयाल कहैहौं–७ - ५। (ख) काटि दसौ सिर बीस भुजा तब दसरथ-सुत जु कहैहौं–९ - ११३।
क्रि. स.
[हिं. कहाना]


कहौं
कहूँ, वर्णन करूँ।
कहा कहौं हरि केतिक तारे पावन-पद परतंगी। सूरदास, यह बिरद स्रवन सुनि, गरजत अधम अनंगी - १ - २१।
क्रि. स.
[हिं. कहाना]


कहौंगो
कहूँगा, बताऊँगा।
जब मोहि अंगद कुसल पूछिहै, कहा कहौंगो वाहि - ९ - ७५।
क्रि. स.
[हिं. कहना]


कहौ
कहो, बताओ, समझाओ।
सूर अधम की कहौ कौन गति, उदर भरे, परि सोए - १ - ५२।
क्रि. स.
[हिं. कहना]


कहौगे
बहकाओगे, बातों में भुलाओगे, बनावटी बातें करोगे।
लरिकनि कौं तुम सब दिन झुठवत, मोसौं कहा कहोगे। मैया मैं माटी नहिं खाई, मुख देखैं निबहौगे - १० - २५३।
क्रि. स.
[हिं. कहना]


कह्यउ
कहा।
नृपति कह्यउ मेरे गृह चलिये करो कृतारथ मोय - सारा. ८००।
क्रि. स.
[हिं. कहना]


कह्यौ
‘कहना' क्रिया के भूत कालिक रूप ‘कहा' का ब्रजभाषा का रूप, कहा, कहे।
(क) का न कियौ जन-हित जदुराई। प्रथम कह्यौ जो बचन दयारत तिहिं बस गोकुल गाय चराई - १ - ६। (ख) हरि कह्यौ-जज्ञ करत तहँ बाम्हन - ८००

(ग) सूरदास प्रभु अतुलित महिमा जो कछु कह्यौ सो थोड़ा - १० उ. - ५१।

क्रि. स.
[हिं. कहना]


कह्यौ
कहा, कथन, बात।
(क) अजहूँ चेति, कह्यौ करि मेरौ, कहत पसारे बाहीं–१ - २६९। (ख) बरजि रहे सब, कहयौ न मानत, करि-करि जतन उड़ात - २ - २४। (ग) तिन तौ कह्यौ न कीन्हौ कानी। तब तजि चली बिरह अकुलानी - ८००।
संज्ञा


काँइयाँ
जो बहुत चालाकी। दिखाये, धूर्त।
वि.
[अनु. काँव-काँव]


काँई
क्यों।
अव्य.
[सं. किम्]


काँई
किसे, किसको।
सर्व.
[हिं. काहि]


काँकर
कंकड़।
संज्ञा
[सं. कर्कर]


काँकरी
कंकड़ी।
संज्ञा
[हिं. काँकर]


काँ काँ
कौए की बोली।
घरी इक सजन-कुटुँब मिलि बैठे, रुदन बिलाप कराहीं। जैसैं काग काग के मूऐं काँ काँ करि उड़ि जाहीं - १ - ३१९।
संज्ञा
[अनु.]


कांक्षा
इच्छा, चाह।
संज्ञा
[सं.]


काँक्षी
इच्छा या चाह रखनेवाला, अभिलाषी।
वि.
[सं. कांक्षिन]


काँख
बगल।
संज्ञा
[सं. कक्ष]


काँखना
कराहना।
क्रि. अ.
[अनु.]


काँखासोती
जनेऊ की तरह दुपट्टा डालने का ढंग।
संज्ञा
[हि. काँख+सं. श्रोत्र, प्रा. सोत]


काँखी
चाहनेवाला, इच्छा रखनेवाला।
सुक भागवत प्रगट करि गायौ कछू न दुविधा राखी। सूरदास ब्रजनारि संग हरि माँगी करहिं नहीं कोऊ काँखी - १८५६।
संज्ञा
[सं. कांक्षी]


काँगनी
छोटा कंकण।
संज्ञा
[हिं. कँगनी]


काँगही
कंघी, छोटा कंघा।
संज्ञा
[हिं. कंघी]


काँगुरा
शिखर, चोटी।
संज्ञा
[हिं. कँगूरा]


काँगुरा
बुर्ज।
संज्ञा
[हिं. कँगूरा]


काँच
(सं. काँच) एक प्रकार का शीशा, पारदर्शक शीशा।
(क) कंचन-मनि खोलि डारि, काँन गर बँधाऊँ - १ - १६६। (ख) सूरदास कंचन अरु काँचहिं एकहिं धगा पिरोयौ - १.४३।
सज्ञा


काँच
धोती का पीछे खोंसा जानेवाला भाग।
संज्ञा
[सं. कक्ष]


काँचन
सोना।
संज्ञा
[सं.]


काँचन
चंपा।
संज्ञा
[सं.]


काँचन
धतूरा।
संज्ञा
[सं.]


काँचरी, काँचली
साँप की केंचुली।
संज्ञा
[सं. कंचुलिका]


काँचरी, काँचली
चोली, कंचुकी।
संज्ञा
[सं. कंचुलिका]


काँचा
जो पका न हो, कच्चा।
वि.
[हिं. कच्चा]


काँचा
दुर्बल, अस्थिर।
वि.
[हिं. कच्चा]


काँची
कच्ची, अपक्‍व।
मृदु पद धरत धरनि ठहरात न, इत-उत भुज जुग लै लै भरि भरि। पुलकित सुमुखी भई स्याम-रस ज्यौं जल मैं काँची गागरि गरि - १० - १२०।
वि.
[हिं. पुं. कच्चा]


काँची
काँची मति- खोटी समझ, कच्ची बुद्धि। उ.- हरिचरनारबिंद तजि लागत अनत कहूँ तिनकी .... मति काँची - १ - १८।
मु.


काँची
करधनी।
संज्ञा
[सं.]


काँची
गुंजा, घुँघची।
संज्ञा
[सं.]


काँचुरी,काँचुली
साँप की केंचुल (केंचुली)।
को है सुनत कहत कासौं हौ कौन कथा अनुसारी। सूर स्याम सँग जात भयौ मन अहि काँचुली उतारी - ३२९१।
संज्ञा
[सं. कंचुलिका,हिं. काँचली]


काँचे
कच्चा, दुर्बल, जो किसी विषय में दृढ़ न हो, अस्थिर।
ऊधौ स्याम सखा तुम साँचे। फिर कर लियौ स्वाँग बीचहिं ते वैसेहि लागत काँचे।
वि.
[हिं. कच्चा]


काँचे
काँचे मन- मन में दृढ़ता न होना।
मु.


काँचे
काँच, शीशा।
प्रेम योग रस कथा कहो कंचन की काँचे - ३४४३।
संज्ञा
[सं. कांच]


काँचै
काँच, शीशा।
यह ब्रत धरे लोक मैं बिचरै, सम करि गनै महामनि काँचे - २ - ११।
संज्ञा
[सं. काँच]


काँचौ
कच्चा, अपक्व।
वि.
[हिं. कच्चा, काँचा]


काँचौ
अदृढ़, दुर्बल, अस्थिर।
प्रभु तेरौ बचन भरोसौ साँचौ। पोषन भरन बिसंभर साहब, जो कलपै सो काँचौं - १ - ३२।
वि.
[हिं. कच्चा, काँचा]


काँचौ
जो मजबूत या पक्का न हो।
जब तैं आँगन खेलत देख्यौ मैं जसुदा कौ पूत री। तब तैं गृह सौं नातौ टूट्यौ जैसे काँचौ सूत री - १० - १३६।
वि.
[हिं. कच्चा, काँचा]


काँचौ
जो औटाया या पकाया न गया हो, ताजा दुहा हुआ।
काँचौ दूध पियावति पचि पचि देत न माखन रोटी - १० - १७५।
वि.
[हिं. कच्चा, काँचा]


काँछना
सँवारना, पहनना।
क्रि. स.
[हिं. काछना]


काँछा
इच्छा, चाह।
संज्ञा
[सं. कांक्षा]


काँजी
पानी में पिसी राई का घोल जो दो तीन दिन रखने से खट्टा हो गया हो।
संज्ञा
[सं. कांजिक]


काँजी
मट्ठा, छाँछ।
संज्ञा
[सं. कांजिक]


काँट
काँटा।
संज्ञा
[हिं. काँटा]


काँट
कटीली, प्रभावित करनेवाली, मुग्ध करनेवाली।
भौहैं काँट कटीलियाँ सखि बस कीन्ही बिन मोल - १४६३।
वि.


काँटा
पेड़-पौधों के नुकीले अंकुर, कंटक।
संज्ञा
[सं. कंटक]


काँटा
नुकीली वस्तु।
संज्ञा
[सं. कंटक]


काँटा
तराजू की सुई।
संज्ञा
[सं. कंटक]


काँटा
नाक में पहनने की कील, लौंग।
संज्ञा
[सं. कंटक]


कांड
शाखा, डंठल।
संज्ञा
[सं.]


कांड
गुच्छा।
संज्ञा
[सं.]


कांड
धनुष का बीच का मोटा भाग।
संज्ञा
[सं.]


कांड
कार्य का भाग।
संज्ञा
[सं.]


कांड
ग्रंथ का वह भाग जिसमें एक विषय पूरा हो।
संज्ञा
[सं.]


कांड
समूह।
संज्ञा
[सं.]


कांड
झूठी प्रशंसा।
संज्ञा
[सं.]


कांड
निर्जन स्थान।
संज्ञा
[सं.]


कांड
घटना।
संज्ञा
[सं.]


कांड
बुरा।
वि.


काँटा
खटकनेवाली बात।
संज्ञा
[सं. कंटक]


काँटी
कटिया, कील।
संज्ञा
[हिं. काँटा का अल्प.]


काँटी
छोटी तराजू।
संज्ञा
[हिं. काँटा का अल्प.]


काँटी
झुकी हुई कील, अँकुड़ी।
संज्ञा
[हिं. काँटा का अल्प.]


काँठा
गला।
संज्ञा
[सं. कंठ)


काँठा
तोते के गले की गोल रेखा।
संज्ञा
[सं. कंठ)


काँठा
किनारा, तट।
संज्ञा
[सं. कंठ)


काँठा
बगल।
संज्ञा
[सं. कंठ)


कांड
बाँस, ईख आदि का पोर।
संज्ञा
[सं.]


कांड
वृक्ष का तना।
संज्ञा
[सं.]


ककुभ
एक राग।
संज्ञा
[सं.]


ककुभा
दिशा।
संज्ञा
[सं. ककुभ]


ककोड़ा
खेखसा या ककरौल नामक तरकारी।
संज्ञा
[सं. कर्कोटक, पा, कक्कोडक]


ककोरना
खुरचना, कुरेदना।
क्रि. स.
[हिं. कोड़ना]


ककोरना
मोड़ना, सिकोड़ना।
क्रि. स.
[हिं. कोड़ना]


ककोरा
खेखसी, ककरौल,।
कुँदरू और ककोरा कौंरे। कचरी चार चचेड़ा सौरे - २३२१।
संज्ञा
[सं. कर्कोटक, प्रा. कक्कोडक, हिं. ककोड़ा]


कक्ष
काँख, बगल।
संज्ञा
[सं.]


कक्ष
काँछ, कछोटा, लॉग।
संज्ञा
[सं.]


कक्ष
कछार।
संज्ञा
[सं.]


कक्ष
कमरा, कोठरी।
संज्ञा
[सं.]


काँड़ना
रौंदना, कुचलना।
क्रि. स.
[सं. कंडन (कडि=भूसी अलग करना]


काँड़ना
कूट कर चावल की भूसी अलग करना।
क्रि. स.
[सं. कंडन (कडि=भूसी अलग करना]


काँड़ना
मारना पीटना।
क्रि. स.
[सं. कंडन (कडि=भूसी अलग करना]


काँड़ी
धान कूटने का गड्ढा।
संज्ञा
[सं. कांड]


काँड़ी
छड़, लट्ठा, डंठल।
संज्ञा
[सं. कांड]


कांत
पति।
संज्ञा
[सं.]


कांत
श्री कृष्ण का एक नाम।
संज्ञा
[सं.]


कांत
चंद्रमा।
संज्ञा
[सं.]


कांत
विष्णु।
संज्ञा
[सं.]


कांत
शिव।
संज्ञा
[सं.]


काँति, कांति
शोभा, छवि।
गोरे भाल बिंदु बंदन मनु इन्दु प्रात-रवि कांति ७०१।
संज्ञा
[सं.]


कांतिमान्
कांति या चमक वाला
वि.
[सं. कांतिमत्]


कांतिमान्
सुन्दर।
वि.
[सं. कांतिमत्]


कांतिसार
एक प्रकार का बढ़िया लोहा।
संज्ञा
[सं. कांत)


काँती
बिच्छू का डंक।
संज्ञा
[सं. कर्त्री, प्रा. कत्ती, हिं. काती]


काँती
कैंची, कतरनी।
संज्ञा
[सं. कर्त्री, प्रा. कत्ती, हिं. काती]


काँती
छोटी तलवार।
संज्ञा
[सं. कर्त्री, प्रा. कत्ती, हिं. काती]


काँती
छुरी।
कोउ ब्रज बाँचत नाहिन के पाती। कत लिखि लिखि पठवत नँदनंदन कठिन बिरह की काँती - २९८०।
संज्ञा
[सं. कर्त्री, प्रा. कत्ती, हिं. काती]


काँथरि
गुदड़ी, कथरी।
संज्ञा
[सं. कंथा]


काँदना
रोना, चिल्लाना।
क्रि. स.
[सं. क्रंदन=चिल्लाना]


कांत
वसंत ऋतु।
संज्ञा
[सं.]


कांतलौह
चुंबक।
संज्ञा
[सं.]


कांता
सुन्दर स्त्री।
संज्ञा
[सं.]


कांता
विवाहित स्त्री, पत्नी।
संज्ञा
[सं.]


कांतार
भयानक स्थान।
संज्ञा
[सं.]


कांतार
गहन वन।
संज्ञा
[सं.]


कांतार
खेद।
संज्ञा
[सं.]


कांतार
दरार।
संज्ञा
[सं.]


कांतार
बाँस।
संज्ञा
[सं.]


काँति, कांति
प्रकाश, आभा, तेज।
बदन काँति बिलोकि सोभा सकै सूर न बरनि - ३५१।
संज्ञा
[सं.]


काँदव, काँदो
कीच,कीचड़।
संज्ञा
[सं. कदम, पा. कद्दम]


काँध
कंधा।
(क) काँध कमरिया हाथ लकुटिया, बिहरत बछरनि साथ - ४८७। (ख) कहत न बनै काँध कामरि छबि बन गैयन को घेरन - ३२७७। (ग) बन बन गाय चरावत डोलत काँध कमरिया राजै - ७४१ सारा.।
संज्ञा
[हिं. कंधा]


काँधना
उठाना, सम्हालना।
क्रि. स.
[हि. काँध]


काँधना
ठानना, मचना।
क्रि. स.
[हि. काँध]


काँधना
सहन करना
क्रि. स.
[हि. काँध]


काँधना
स्वीकार करना।
क्रि. स.
[हि. काँध]


काँधर
कृष्ण।
संज्ञा
[सं. कृष्ण, प्रा. व कण्‍ह]


कोधा
उठाया, सम्हाला।
क्रि. स.
[हिं. काँधना]


कोधा
स्वीकार किया।
क्रि. स.
[हिं. काँधना]


संज्ञा
कंधा।
पुं.
[हिं. कंधा]


काँपत
डर से काँपते हैं, थर्राते हैं।
(क) उछरत सिंधु, धराधर काँपत, कमठ पीठ अकुलाइ। सेष सहसकन डोलन लागे, हरि पीवत जब पाइ - १० - ६४। (ख) मंदर डरत सिंधु पुनि काँपत फिरि जनि मथन करै - १० - १४३।
क्रि. स.
[हिं. काँपना]


काँपि
थरथरा कर, काँपकर।
पूँछ राखी चाँपि, रिसनि काली काँपि देखि सब साँपि अवसान भूले - ५५२।
क्रि. स.
[हि. काँपना]


काँपन
हिलने या थरथराने (लगी)।
काँपन लागी धरा पाप तैं ताड़ित लखि जदुराई। आपुन भए उधारन जग के, मैं सुधि नीकैं पाई - १० - २०७।
क्रि. स.
[हि. काँपना]


काँपना
हिलना, थरथराना।
क्रि. सं.
[सं. कंपन]


काँपना
डर से थर्राना।
क्रि. सं.
[सं. कंपन]


काँपना
डरना।
क्रि. सं.
[सं. कंपन]


काँपा
हिला डुला, थरथराया।
क्रि. स.
[हिं. काँपना]


काँपी
हिलने डुलने लगी।
क्रि. स.
[हिं. काँपना]


काँपी
थर्राने लगी, डर से काँपने लगी।
काँपी भूमि कहा अब ह्वै है, सुमिरत नाम मुरारि - ९ - १५८।
क्रि. स.
[हिं. काँपना]


काँपै
हिलता-डुलता है, थर्राता है।
(क) चितवनि ललित लकुटलासा लट काँपै अलक तरंग - पृ. ३२५।

(ख) ग्वालनि देखि मनहिं रिस काँपैं - ५८५।

क्रि. स.
[हि. काँपना]


काँधियतु
(युद्ध) ठानते या मचाते हैं।
क्रि. स.
[हिं. काँधना]


काँधी
मानी, स्वीकार की।
जाकी बात कही तुम हम सौं सोधौं कहौ को काँधी। तेरो कहो सो पवन भूस भयौ बहो जात ज्यौं आँधी - ३०२१।
क्रि. स.
[हिं. काँधन]


काँधे, काँधै
कंधा, कंधे पर।
(क) तिहिं सौं भरत कछू नहिं कह्यौ। सुख- आसन काँधे पर गह्यौ– ५ - ३। (ख) ग्वाल के काँधे चढ़े तब लिए छींके उतारि - १० - २८९। (ग) और बहुत काँवरि दधि-माखन अहिरनि काँधे जोरि - ५८३। (घ) ग्वाल-रूप इक खेलत हो सँग लै गयौ काँधै डारि - ६०४।
संज्ञा
[सं. स्कंध, प्रा. खंभ]


काँधे, काँधे
उठाये, सम्हाले।
क्रि. स.
[हिं. काँधना]


काँधे, काँधे
स्वीकार करे।
क्रि. स.
[हिं. काँधना]


काँधो
(युद्ध) ठानना, संग्राम करना।
क्रि. स.
[हिं. काँधना]


काँधो
स्वीकार करना, अंगीकार करना।
क्रि. स.
[हिं. काँधना]


काँन
कृष्ण।
संज्ञा
[सं. कृष्ण, हिं. कान्ह]


काँप
बाँस की लचीली तली।
संज्ञा
[सं. कंपा]


काँप
कान में पहनने का एक गहना, करनफूल।
संज्ञा
[सं. कंपा]


काँपौं
डर से काँपता था, थर्राता था।
हौं डरपौं, काँपौं अरु रोवौं, कोउ नहिं धीर धराऊ। थरसि गयौ नहिं भागि सकौं, वै भागे जात अगाऊ - ४८१।
क्रि. स
[सं. कंपन, हिं. काँपना]


काँप्यौ
काँपा, डरा, भयभीत हुआ, थर्राया।
(क) काल बली तैं सब जग काँप्यौ, ब्रह्मादित हूँ रोए - १.५२। (ख) उर काँप्यौ तन पुलकि पसीज्यौं बिसरि गये मुख-बैन –७४९।
क्रि. स.
[सं. कंपन, हिं. काँपना]


काँय काँय, काँव काँव
कौए का शब्द।
संज्ञा.
[अनु.]


काँवरा
बहँगी जिसके दोनों सिरों पर लंबे छींके होते हैं।
धेनु चरावन चले स्यामघन ग्वाल मंडली जोर। हलधर संग छाक भरि काँवर करत कुलाहल सोर - ४७१ सारा.।
संज्ञा
[हिं. काँध+ आव (प्रत्य.)]


काँवरा
घबराया हुआ, हक्का-बक्का।
वि.
[पं. कमला=पागल]


काँवरि
बहँगी, जिसके सिरे पर सामान ले जाने के लिए लंबे छींके होते हैं।
(क) सहस सकट भरि कमल चलाये।...। और बहुत काँवरि दधि माखन, अहिरनि काँधे जोरि। नृप कैं हाथ पत्र यह दीजौ बिनती कीजौ मोरि ५८३। (ख) ओदन भोजन दै दधि काँवरि भूख लगे तैं खैहौं - ४१२।
संज्ञा
[हिं. काँवर]


काँवरिया
बहँगी ले जानेवाला।
संज्ञा
[हिं. काँवरि]


काँवाँरथी
किसी कामना से तीर्थ-यात्रा करनेवाला।
संज्ञा
[सं. कामार्थी]


काँस
एक प्रकार की घास।
(क) लटकि जात जरि-जेरि द्रम-बेली, पटकत बाँस, काँस, कुस ताल - ५९४। (ख) डासन काँस कामरी ओढ़न बैठन गोप सभा ही - २२७५।
संज्ञा
[सं. काश]


काँसा, काँस्य
ताँबे और जस्ते के मिश्रण से बनी एक धातु।
संज्ञा
[सं. कांस्य]


का
संबंध या षष्ठी का चिन्ह या विभक्ति।
प्रत्य.
[सं. प्रत्य. क]


का
क्या, कैसा।
(क) का न कियौ जन-हित जदुराई –१ - ६। (ख) देखौं धौं का रस चरननि मैं मुख मेलत करि आरति - १० - ६४।
सर्व.
[सं. कः]


का
ब्रजभाषा में 'किस' या 'कौन' का विभक्ति लगने से पूर्व रूप। जैसे काको, कासौं।
सर्व.
[सं. कः]


काइफल
एक वृक्ष जिसकी छाल दवा के काम आती है।
कूट काइफल सोंठ चिरैता कटजीरा कहुँ देखत - ११०८।
संज्ञा
[सं. कट्फल, हिं. कायफल]


काई
जल पर जमनेवाली एक प्रकार की महीन घास जो हलके हरे रंग की होती है।
संज्ञा
[सं. कावार]


काई
मैले।
संज्ञा
[सं. कावार]


काऊ
कभी।
क्रि. वि.
[सं. कदा]


काऊ
कोई।
सर्व.
[सं. कः]


काऊ
कुछ।
सर्व.
[सं. कः]


काक
कौआ।
संज्ञा
[स.]


काक
लँगड़ा।
संज्ञा
[स.]


काकगोलक
कौए की आँख की पुतली जो केवल एक होती है और दोनों आँखों में आती-जाती रहती है।
संज्ञा
[सं.]


काकतालीय
संयोगवश घटित होनेवाला।
वि.
[सं.]


काकदंत
कौए के दाँत की तरह अविश्वसनीय बात।
संज्ञा
[सं.]


काकपक्ष, काकपच्छ
बालों के पट्टे जो दोनों ओर कानों और कनपटियों के ऊपर रहते हैं, जुल्‍फ, कुल्ला।
(क) कटि तट पीत पिछौरी बाँधे, काकपच्छ धरे सीस - ९ - २०। (ख) कर धनु, काकपच्छ सिर सोभित, अंग-अंग दोउ बीर - ९ - २६।
संज्ञा
[सं. काकपक्ष]


काकपद, काकपाद
एक चिन्ह जो छूटे हुए अंश का स्थान बताने के लिए लगाया जाता है
संज्ञा
[सं.]


काकपाली
कोयल।
संज्ञा
[सं.]


काकबंध्या
वह स्त्री जो केवल एक संतान उत्पन्न करे।
संज्ञा
[सं.]


काकभुशुंडि
राम का भक्त एक ब्राह्मण जो लोमश ऋषि के शाप से कौआ हो गया था।
संज्ञा
[सं.]


काकरी
कंकड़ी।
संज्ञा
[सं. कर्कटी]


काकली
कोमल या मधुर ध्वनि।
संज्ञा
[सं.]


काकली
गुंजा।
संज्ञा
[सं.]


काका
घुँघची,
संज्ञा
[सं.]


काका
मकोय।
संज्ञा
[सं.]


काका
बाप का भाई, चाचा।
संज्ञा
[फ़ा. काका=बड़ा भाई]


काकिणी, काकिनी
गुंजा, घुँघची।
संज्ञा
[सं.]


काकिणी, काकिनी
कौड़ी।
संज्ञा
[सं.]


काकी
किसकी।
(क) काकी ध्वजा बैठि कपि किलकिहि, किहिं भय दुरजन डरिहै - १ - २९।

(ख) तिन पूछ्यौ तू काकी धी है - ४ - १२ (ग) बूझत स्याम कौन तू गोरी। कहाँ रहत काकी है बेटी देखी नहीं कहूँ ब्रज खोरी–६७३।

सर्व.
[हिं. का+ की (प्रत्य.]


काकी
चाचा की पत्नी, चाची।
संज्ञा
[हिं. पुं. काका]


काकु
व्यंग्य, ताना, चुटीली बात।
संज्ञा
[सं.]


कक्ष
दुपट्टे यी चादर का आँचल।
संज्ञा
[सं.]


कक्ष
श्रेणी, दर्जा।
संज्ञा
[सं.]


कक्ष
पटुका, कमरबंद।
संज्ञा
[सं.]


कक्षा
समता, बराबरी।
संज्ञा
[सं.]


कक्षा
श्रेणी, दुर्जा।
संज्ञा
[सं.]


कक्षा
काँख, बगल।
संज्ञा
[सं.]


कक्षा
काँछ, कछोटा, लॉग।
संज्ञा
[सं.]


कखिआँ, कखियाँ
बाहुमूल, काँख।
चल्यौ न परत पग गिरि परी सूधे मग भामिनि भवन ल्याई कर गहे कखिआँ - २३६६।
संज्ञा
[सं. कक्ष, हिं. काँख]


कखौरी
काँख, बगल।
संज्ञा
[हिं. काँख]


कगर
ऊँचा किनारा, बाढ़।
संज्ञा
[सं. क=जल+अग्र = समाना]


काग
कौआ, वायस।
संज्ञा
[सं. काक]


कागज
सन, रुई आदि से बना हुआ लिखने का पत्र।
तनु जोबन ऐसे चलि जैहै जनु फागुन की होरी। भीजि बिनसि जाई छन भीतर ज्यौं कागज की चोली री - २०४०।
संज्ञा
[अ. काग़ज़]


कागज
समाचार पत्र।
संज्ञा
[अ. काग़ज़]


कागज
लेख।
संज्ञा
[अ. काग़ज़]


कागज
प्रमाणपत्र।
संज्ञा
[अ. काग़ज़]


कागद
कागज।
(क) चित्रगुप्त जमद्वार लिखत हैं, मेरे पातक झारि। तिनहुँ चाहि करी सुनि औगुन, कागद दीन्हे डारि - १ - १६७।

(ख) विचारत ही लागे दिन जान। सजल देह, कागद तैं कोमल, किहिं बिधि राखै प्रान - १ - ३०४।

संज्ञा
[हिं. कागज]


कागभुसुंड, कागभुसुंडी
एक ब्राह्मण जो शाप से कौआ हो गया था।
संज्ञा
[सं. काकभुशुंडि]


कागर
कागज।
(क) तुम्हरे देस कागर-मसि खूटी। प्यास अरु नींद गई सब हरि कै बिना बिरह तन टूटी। (ख) रति के समाचार लिखि पठए सुभग कलेवर कागर - २१२८।
संज्ञा
[अ. काग़ज़]


कागा
चढ़ावै कागर- कागज पर लिख ले, टाँक ले। उ.- अब तुम नाम गहौ मन नागर। जातैं काल अगिनि तैं बाँचौ, सदा रहौ सुख-सागर। मारि न सके, बिघन नहिं ग्रासै, जम न चढ़ावै कागर १ - ९१।

नाव कागर की - शीघ्र डूब जाने या नष्ट हो जानेवाली चीज, अधिक समय तक न टिकनेवाली चीज। उ.- जेइ निर्गुन गुनहीन गनैगौ सुनि सुंदरि अलसात। दीरघु नदी नाउ कागर की को देखो चढ़ि जात - ३२८२।

मु.


कागा
पक्षियों के पर, पंख।
संज्ञा
[अ. काग़ज़]


काकु
एक अलंकार जिसमें शब्दों की ध्वनि से ही अर्थ समझा जाय।
संज्ञा
[सं.]


काकुल
कनपटी पर लटकते हुए लंबे बाल, जुल्फें।
संज्ञा
[फा.]


काके
किसके।
काके हित श्रीपति ह्याँ ऐहैं, संकट रच्छा करिहैं ? - १ - २९
सर्व.
[हिं. का+के (प्रत्य॰)]


काकैं
किसके, किसके यहाँ।
काकैं सत्रु जन्म लीन्यौ है, बूझौ मतौ बुलाई - १५ - ४।
सर्व.
[सं. कः, हिं. का(कौन)+कैं (विभक्ति)]


काकोदर
कौए का पेट।
संज्ञा
[सं.]


काकोदर
साँप।
संज्ञा
[सं.]


काकौ
किसका, किसको।
काकौ बदन निहारि द्रौपदी दीन दुखी संभरिहै - १ - २९।
सर्व.
[हिं, का+कौ (प्रत्य.)]


काख
काँख, बंगल।
आतम ब्रह्म लखावत डोलत घर घर ब्यापक जोई। चापे काँख फिरत निर्गुन गुन इहाँ गाहक नहिं कोई - ३०२२।
संज्ञा
[सं. कक्ष, हि. काँख]


काखी
चाहनेवाला, इच्छुक।
सुक भागवत प्रगट करि गायौ कछू न दुबिधा राखी। सूरदास ब्रजनारि संग हरि बाकी रह्यो न कोऊ काखी - १८५६।
संज्ञा
[सं. काँक्षी, हिं. काँखी]


काख्यौ
इच्छा, चाह।
फागु रंग करि हरि रस राख्यौ। रह्यौ न मन जुवतिन के काख्यौ - २४५९।
संज्ञा
[सं. कांक्षा]


कागा
प्रमाणपत्र।
संज्ञा
[अ. काग़ज़]


कागा
दस्तावेज, बहीखाता।
ब्याध, गीध, गनिका जिहिं कागर, हौं तिहिं चिठि न चढ़ायौ - १ - १९३।
संज्ञा
[अ. काग़ज़]


कागरी
तुच्छ, हीन।
वि.
[हिं. कागर=कागज]


कागा
कौआ
संज्ञा
[हिं. काग]


कागरबासी
सबेरे के समय छानी जानेवाली भाँग।
संज्ञा
[हिं. कागा+बासी]


कांगा-रोल
कौओं की काँव-काँव की तरह होने वाला शोर।
संज्ञा
[हिं. काग=कौआ+रौल =रोर=शोर]


कागासुर
कंस के एक दैत्य का नाम जिसे श्रीकृष्ण ने मारा था।
तृनावर्त से दूत पठाये। ता पाछे कागासुर धाये - ५२१।
संज्ञा
[सं. काक+असुर]


कागौर
श्राद्ध में भोजन का वह भाग जो कौए के लिए निकाला जाता है।
संज्ञा
[सं. काकबलि]


काच
शीशा।
काच पोत गिरि जाइ नंदघर गथौ न पूजै - ११२७।
संज्ञा
[हिं. काँच]


काच
जो पका न हो, कच्चा।
वि.
[हिं. कच्चा]


काच
जिसका मन पक्का न हो, कायर।
वि.
[हिं. कच्चा]


काचरी
कच्चे फल। पिसे हुए चावल या साबूदाने के सुखाये हुए टुकड़े जो घी में तलकर खाये जाते हैं।
पापर बरी मिथौरि फुलौरी। कूर बरी काचरी पिठौरी - ३९६।
संज्ञा
[हिं. कच्चा, कचरी]


काचरी
साँप की केंचुल।
ज्यौं भुजंग काचरी बिसरात फिरि नहिं ताहि निहारत | तैसेहिं जाइ मिले इकटक ह्वै डरत लाज निरवारत - पृ. ३२१।
संज्ञा
[सं. कंचुलिका, हिं. काँचली]


काचा
कच्चा।
वि.
[हिं. कच्चा]


काचा
अस्थिर, चंचल।
वि.
[हिं. कच्चा]


काचा
जो झूठा हो, जो नष्ट हो जाय, मिथ्या, अनित्य।
वि.
[हिं. कच्चा]


काची
कच्ची, जो पकी न हो।
वि.
[हिं. पुं. कच्चा]


काची
जिसका व्रत या निश्चय ट्टढ़ न हो, भक्ति या प्रीति में जो कच्ची हो।
(क) दीन बानी स्रवन सुनि सुनि द्रए परम कृपाल। सूर एकहु अंग न काँची धन्य धनि ब्रजबाल - पृ० ३४२ - १७।

(ख) सूर एकहुं अंग न काँची मैं देखी टकटोरी—३४६८।

वि.
[हिं. पुं. कच्चा]


काची
झूठी, बनावटी, टालमटोल को, हँसने योग्य।
कहे बनै छाँड़ौ चतुराई बात नहीं यह काची। सूरदास राधिका सयानी रूपरासि-रसखानी - १४३८।
वि.
[हिं. पुं. कच्चा]


काचे
कच्चे, अकुशल, नौसिखिया, अदृढ़।
भले ही जु जाने लाल अरगजे भीने मोल केसरि तिलक भाल मैंन मंत्र काचे - २००३।
वि.
[हिं. कच्चा]


काचे
कच्चे, शीघ्र टूट जानेवाले।
प्रेम न रुकत हमारे बूते। किहि गयंद बाँध्यौ सुन मधुकर पद्यमनाल के काचे सूते - ३३०५।
वि.
[हिं. कच्चा]


काछ
धोती का भाग जो पेड़ू से जाँघ के कुछ नीचे तक रहता है।
(क) सोई हरि काँधे कामरि, काछ किए नाँगे पाइनि, गाइनि टहल करैं - ४५३।

(ख) कटि तट काछ बिराजई पीताबंर छबि देत - २३५०। (२) पेड़ू से जाँघ के कुछ नीचे तक का भाग।

संज्ञा
[सं. कक्ष, प्रा. कच्छ]


काछत
स्वाँग बनाते हैं, वेष धरते हैं, रूप धरते हैं, चाल चलते हैं।
स्याम बनी अब जोरी नीकी सुनहु सखी मानत तोऊ हैं। सूर स्याम जितने रंग काछत जुवती-जन-मन के गोऊ हैं - ११५९।
क्रि. स.
[हिं. काछना]


काछना
धोती, काँछनी आदि पहनना।
क्रि. स.
[कक्षा, प्रा. कच्छ]


काछना
बनाना, सँवारना।
क्रि. स.
[कक्षा, प्रा. कच्छ]


काछना
वेश धरना, स्वाँग बनाना।
क्रि. स.
[कक्षा, प्रा. कच्छ]


काछनी
ऊँची कसी धोती, कछनी।
काछनी कटि पीत पट दुति, कमल केसर खंड - १ - ३०७।
संज्ञा
[हिं. काछना]


काछनी
मूर्तियों का चुन्नटदार पहनावा जो प्रायः जाँघिए के ऊपर पहना जाता है।
संज्ञा
[हिं. काछना]


काछा
धोती जो कसकर पहनी जाय और जिसकी दोनों लाँगों को ऊपर खोंसा जाय, कछुनी।
संज्ञा
[हिं. काछना]


काछि
बन-ठनकर, साज-सँवार कर।
(क) माया को कटि फेटाँ बाँध्यौ, लोभ-तिलक दियौ भाल। कोटिक कला काछि दिखराई जल-थल-सुधि नहिं काल - १.१५३। (ख) कीन्हें स्वाँग जिते जाने मैं, एक तौ न बच्यो। सोधि सकल गुन काछि दिखायौ, अंतर हो जो सच्यौ - १ - १७४।
क्रि. स.
[सं. कक्षा, प्रा. कच्छ, हिं. कच्छ]


काछी
तरकारी बोने-बेचने वाली एक जाति।
संज्ञा
[सं. कच्छ=जलप्राय भूमि]


काछू
कछुआ।
संज्ञा
[हिं. कछुआ]


काछे
बनाये हुये, सँवारे हुए, पहने हुये।
तीन्यौ पन मैं ओर निबाहे इहै स्वाँग कौं काछे। सूरदास कौं यहै बड़ो दुख, परति सबनि के पाछे - १ - १३६।
क्रि. स.
[सं. कक्षा, प्रा. कच्छ, हिं. कोछना]


काछे
पास, निकट, समीप।
ताहि कह्यौ सुख दे चलि हरि कौ मैं आवति हौं पाछे। वैसहिं फिरी सूर के प्रभु पै जहाँ कुंज गृह काछे।
क्रि. वि.
[सं. कक्ष, प्रा. कच्छ]


काछयौ
(रूप) धारण किया, बनाया।
तब केसी ह्वै बर बपु काछयो लै गयौ पीठि चढ़ाई। उतरि परे हरि ता ऊपर तैं कीन्हौं युद्ध अघाइ - २३७७।
क्रि. स.
[हिं. काछना]


काज
कार्य, काम, कृत्य, सेवा-कार्य।
पाइँ धोइ मंदिर पग धारे काज देव के कीन्हे - १० - २६०।
संज्ञा
[सं. कार्य, प्रा. कज्ज]


काज
काज बिगारत- काम बिगड़ता है, नष्ट करता है। उ.- ज्ञानी लोभ करत नहिं कबहूँ, लोभ बिगारत काज।

काज बिगारयौ- काम या मामला बिगाड़ दिया; सब चौपट कर दिया। उ.- रसना हूँ कौ कारज सारयो। मैं यौं अपनौं काम बिगारयौ - ४ - १२। काज सँवारे- काम बना दिया।उ. - (क) कहा गुन बरनौ स्याम तिहारे। कुबिजा, बिदुर, दीन द्विज, गनिका सब के काज सँवारे - १ - २५। (ख) जो पद-पदुम रमत पांडव-दल दूत भये सब काज सँवारे - १ - ६४।

मु.


काज
व्यवसाय, धंधा।
संज्ञा
[सं. कार्य, प्रा. कज्ज]


काज
अर्थ, उद्देश्य, प्रयोजन।
(क) नृप कह्यौ सुरनि कैं हेतु मैं जग्य कियौ इंद्र मम अस्व किहिं काज लीन्हौ - ४ - ११। (ख) गोपालहिं राखौ मधुबन जात। लाज गये कछु काज न सरि है बिछुरत नँद के तात - २५३१।
संज्ञा
[सं. कार्य, प्रा. कज्ज]


काज
काज सरत- उद्देश्य पूरा हो, अर्थ सिद्ध हो। उ.- अबिहित बाद-बिबाद सकल मत इन लगि भेष धरत। इहिं बिधि भ्रमत सकल निसि-दिन गत, कछू न काज सरत - १ - ५५।

(इनहीं, तुमहीं) काज- (इनके, तुम्हारे) लिए, हेतु, निमित्त। उ. - (क) गाउँ तजौं कहुँ जाउँ निकसि लै, इनहीं काज पराउँ - ५२८। (ख) पूछौ जाइ तात सौं बात। मैं बलि जाउँ मुखारबिंद की, तुमहीं काज कंस अकुलात - ५३०। काज परयौ- काम पड़ा, मतलब अटका, प्रयोजन पड़ा, आवश्यकता हुई। उ. - बोलि-बोलि सुत-स्वजन-मित्रजन, लीन्हौ सुजस सुहायौ। परयौ जु काज अंत की बिरियाँ तिनहु न अनि छुड़ायौ - २.३०।

मु.


काजर
काजल जो आँख में लगाया जाता है, कालौंछ।
कुमकुम कौ लेप मेटि, काजर मुख ल्याऊँ - १ - १६६।
संज्ञा
[सं. कज्जल, हिं. काजल]


काजर
काला।
अघासुर मुख पैठि निकसे बाल-बच्छ छुड़ाई। लिख्यौ काजर नाग द्वारैं स्याम देखि डराई - ४९८।
वि.


काजरी
वह गाय जिसकी आँखों पर काले रंग का घेरा हो।
संज्ञा
[सं. कुज्जली]


काजल
दीपक के धुएँ की कालिख।
वह मथुरा काजल की कोठरि जे आवहिं ते कारे।
संज्ञा
[सं. कज्जल]


काजा
काम, कृत्य।
संज्ञा
[हिं. काज]


काजा
(उन) काजा- (उनके) लिए (उनके) हेतु या निमित्त। उ.- तातैं सकुवत हौं उन काजा। बालक सुनत होति जिय लाजा - २४५९।
मु.


काजो
मुसलमानी न्यायाधीश।
सूर मिलै मन जाहि जाहि सौं ताको कहा करै काजो - २६७८।
संज्ञा
[अ. क. ज़]


काजू-भोजू
जो अधिक समय तक काम न आ सके।
वि.
[हिं. काज+भोग]


काजे
(काम) के लिए, (काम) के हेतु या निमित्त।
इन लोभी नैनन के काजे परबस भई जो रहौं - २७७४।
संज्ञा
[हिं. काज]


काज
(काज) के लिए, (काम) के हेतु।
(क) ऐसी को करी अरु भक्त काजैं। जैसी जगदीस जिय धरी लाजैं - १ - ५।

(ख) नाचत त्रैलोकनाथ माखन के काजै - १०.१४६।. (ग) तेरे ही काजैं गोपाल, सुनहु लाड़िले लाल, राखे हैं भाजन भरि सुरस छहूँ - १० - २६५।

संज्ञा
[हिं. काज]


काट
काटना।
हाथ-पाइँ बहुतनि के काट। आइ नवायौ सिवहिं ललाट - ४.५।
क्रि. स.
[सं. कर्त्तन, प्रा. कट्टन, हिं. काटना]


काट
काटने की क्रिया।
संज्ञा
[हिं. काटना]


काट
काटने का ढंग, तराश।
संज्ञा
[हिं. काटना]


काट
घाव।
संज्ञा
[हिं. काटना]


काट
छलकपट, चालबाजी।
संज्ञा
[हिं. काटना]


काट
तिरछी, टेढ़ी, कटीली, तेज, काट करनेवाली।
भौंहें काट कटीलियाँ मोहिं मोल लई बिन मोल - ८९३।
वि.
[हिं. काटा]


काट-कपट
छलकपट।
संज्ञा
[हिं. काटना+कपटना]


काटत
दूर करते (हो), नष्ट करते (हो), मिटाते (हो)।
जन के उपजत दुख किन काटत - १ - १०७।
क्रि. स.
[हिं. काटन]


काटन
काटने के लिए टुकड़े करना।
काटन दै दस सीस बीस भुज अपनौ कृत येऊ जो जानहि - ९.९५।
क्रि. स.
[सं. कर्त्तन, प्रा. कट्टन, हिं. काटना]


काटन
दूर करने या मिटाने के लिए।
जिहिं जिहिं जोनि जन्म धारयौ, बहु जोरयौ अघ कौ भार। तिहिं काटन कौं समरथ हर कौ तीछन नाम कुठार - ६८।
क्रि. स.
[सं. कर्त्तन, प्रा. कट्टन, हिं. काटना]


काटन
कतरन।
संज्ञा


काटना
टुकड़े करना, अलग करना।
क्रि. स.
[सं. कर्त्तन, प्रा. कट्टन]


काटना
चूरा करना।
क्रि. स.
[सं. कर्त्तन, प्रा. कट्टन]


काटना
घाव करना।
क्रि. स.
[सं. कर्त्तन, प्रा. कट्टन]


काटना
भाग निकालना।
क्रि. स.
[सं. कर्त्तन, प्रा. कट्टन]


काटना
मार डालना।
क्रि. स.
[सं. कर्त्तन, प्रा. कट्टन]


काटना
कतरना।
क्रि. स.
[सं. कर्त्तन, प्रा. कट्टन]


काटना
नष्ट करना, दूर करना, मिटाना।
क्रि. स.
[सं. कर्त्तन, प्रा. कट्टन]


काटना
समय बिताना।
क्रि. स.
[सं. कर्त्तन, प्रा. कट्टन]


काटना
रास्ता तय करना।
क्रि. स.
[सं. कर्त्तन, प्रा. कट्टन]


काटना
अनुचित या असत्य ढंग से ले लेना।
क्रि. स.
[सं. कर्त्तन, प्रा. कट्टन]


काटना
मिटाना।
क्रि. स.
[सं. कर्त्तन, प्रा. कट्टन]


काटना
डसना।
क्रि. स.
[सं. कर्त्तन, प्रा. कट्टन]


काटना
किसी जीव का सामने से निकल जाना।
क्रि. स.
[सं. कर्त्तन, प्रा. कट्टन]


काटना
(किसी की बात या राय का) खंडन करना।
क्रि. स.
[सं. कर्त्तन, प्रा. कट्टन]


काटना
बुरा लगना, कष्ट पहुँचाना।
क्रि. स.
[सं. कर्त्तन, प्रा. कट्टन]


काटर
कड़ा, कठिन।
वि.
[सं. कठोर]


काटर
कट्टर।
वि.
[सं. कठोर]


काटर
काटनेवाला।
वि.
[सं. कठोर]


काटि
काट कर, खंड करके।
आनँद-मगन राम-गुन गावै, दुख-संताप की काटि तनी–१ - ३९.।
क्रि. स.
[हिं. काटना]


कगर
मेंड, डाँड़।
संज्ञा
[सं. क=जल+अग्र = समाना]


कगर
कॅगनी।
संज्ञा
[सं. क=जल+अग्र = समाना]


कगर
किनारे पर।
क्रि. वि.


कगर
पास, निकट।
क्रि. वि.


कगर
अलग, दूर।
क्रि. वि.


कगरी
किनारा, करार।
संज्ञा
[हिं. कगर]


कगरी
टीला।
ऊधो, मोहिं ब्रज बिसरत नाहीं। हंस सुता की सुंदर कगरी अरु कुंजन की छाहीं।
संज्ञा
[हिं. कगर]


कगरो
अलग, दूर।
जसुमति तेरो बारो अतिहि अचगरो। दूध दही माखन लै डारि दयौ सगरो। लियो दियो कछु सोऊ डारि देहु कगरो - १०५६।
क्रि. वि.
[हिं. कगर]


कगार
किनारा जो ऊँचा हो।
संज्ञा
[हिं. कगर]


कगार
नदी का किनारा।
संज्ञा
[हिं. कगर]


काटि
किसी जीव का सामने से निकले जाना।
मंजारी गई काटि बाट, निकसत तब बाइन - ५८९।
क्रि. स.
[हिं. काटना]


कादिबो
काटना, छीलना।
तुमसौं प्रेम-कथा को कहिबो मनहु काटिबो घास - ३३३६।
क्रि. स.
[हिं. काटना]


काटो
काट ली।
सूरदास-प्रभु इक पतिनी ब्रत, काटी नाक गई खिसियाई - ९ - ५६।
क्रि. स. (भूत.)
[हिं. काटना]


काटो
टुकड़े-टुकड़े कर दिया, चूर-चूर कर दिया।
जोजन-बिस्तार सिला पवनसुत उपाटी। किंकर करि बान लच्छ अंतरिच्छ काटी - ९.९६।
क्रि. स. (भूत.)
[हिं. काटना]


काटू
काटनेवाला।
वि.
[हिं. काटना]


काटू
डरावना, भयानक।
वि.
[हिं. काटना]


काटे
धड़ से अलग कर दिये, टुकड़े किये।
जिहि बल रावन के सिर काटे कियौ विभीषन नृपति निदान - १० - १२७।
क्रि. स.
[हिं. काटना]


काटै
काटता है।
जद्यपि मलय वृक्ष जड़ काटै, कर कुठार पकरै। तऊ सुभाव न सीतल छाँड़ै, रिपु-तन-ताप हरै - १ ११७।
क्रि. स.
[हिं. काटना]


काटै
नष्ट करता है, मिटाता है।
जाकौ नाम लेत भ्रम छूटे, कर्म-फंद सब काटै - ३४६।
क्रि. स.
[हिं. काटना]


काटौ
मुक्त करो, छुड़ाओ, छाँटो।
कर जोरि सूर बिनती करै, सुनहु न हो रुकुमिनि-रवन। काटौ न फंद मो अंध के, अब बिलंब कारन कवन - १ - १८० |
क्रि. स.
[हिं. काटना]


काट्यौ
काटा, मुक्ति दी, (बंधन से) छुड़ाया।
हा करुनामय कुंजर टेरयौ, रह्यौं नहीं बल थाकौ। लागि पुकार तुरत छुटकायौ, काट्यौ बंधन ताकौ - १ - ११३।
क्रि. स. (भूत.)
[हिं. काटना]


काट्यौ
दूर किया, नष्ट किया।
बिछुरन कौ संताप हमारौ, तुम दरसन दै काट्यौ - ९.८७।
क्रि. स. (भूत.)
[हिं. काटना]


काठ
लकड़ी।
संज्ञा
[सं. काष्ठ, प्रा. काठ]


काठ
लकड़ी की बेड़ी।
मांडव ऋषि जब सूली दयौ। तब सो काठ हरौ ह्वै गयौ - ३ - ५।
संज्ञा
[सं. काष्ठ, प्रा. काठ]


काठ
जलाने की लकड़ी, ईंधन।
ताको जननी की गति दीन्हीं परम कृपालु गुपाल। दीन्हो फूँक काठ तन वाको मिलिके सकल गुवाल - ४१८ सारा.।
संज्ञा
[सं. काष्ठ, प्रा. काठ]


काठ
काठ की पुतली।
संज्ञा
[सं. काष्ठ, प्रा. काठ]


काठिन्य
कड़ापन।
संज्ञा
[सं.]


काठी
घोड़ा, ऊँट आदि की पीठ पर की जानेवाली जीन या गद्दी जिसमें काठ लगा रहता है।
संज्ञा
[हिं. काठ]


काठी
शरीर की गठन।
संज्ञा
[हिं. काठ]


काढ़त
खींचा जाता (है), खोला जाता है, आवरण रहित किया जाता (है), निकालता है।
(क) भीषम, द्रोन, करन दुरजोधन, बैठे सभा- बिराज। तिन देखत मेरौ पट काढ़त, लीक लगै तुम लाज - १ - २५५। (ख) फाटे बसन सकुच अति लागत काढ़त नाहिंन हाथ - ८१८ सारा.।
क्रि. स.
[हिं. काढ़ना]


काढ़त
बाल बनाता है, कंधे से बाल सवाँरता है।
तू जो कहति बल की बेनी ज्यौं ह्वै है लाँबी-मोटो। काढ़त-गुहत न्हवाहत जैहै नागिन सी भुईं लोटी - १० - १७५।
क्रि. स.
[हिं. काढ़ना]


काढ़त
किसी पदार्थ में पड़े हुए कीड़े-पतंगे निकालता है।
मैं अपने मंदिर के कोनै राख्यौ माखन, छानि। ....। सूर स्याम यह उतर बनायौ चोंटी काढ़त पानि - १० - २८०।
क्रि. स.
[हिं. काढ़ना]


काढ़ति
(रेख आदि) खीचती है, चित्रित करती है।
अपनी अपनी ठकुराइनि की काढ़ति है भुव रेख - पृ. ३४७ (५६)।
क्रि. स.
[हिं. काढ़ना]


काढ़न
निकालने के लिए,(भीतर की चीज को) बाहर करने के लिए।
देखत हौं गोरस मैं चींटी, काढ़न कौं कर नायौ - १० - २७९।
क्रि. स.
[हिं. काढ़ना]


काढ़ना
किसी वस्तु को भीतर से बाहर निकालना।
क्रि. स.
[स. कर्षण, प्रा. कड्‍ढण]


काढ़ना
खोलना या आवरण हटाना।
क्रि. स.
[स. कर्षण, प्रा. कड्‍ढण]


काढ़ना
अलग करना।
क्रि. स.
[स. कर्षण, प्रा. कड्‍ढण]


काढ़ना
बेल-बूटे बनाना।
क्रि. स.
[स. कर्षण, प्रा. कड्‍ढण]


काढ़ना
उधार लेना।
क्रि. स.
[स. कर्षण, प्रा. कड्‍ढण]


काढ़ना
पकाना।
क्रि. स.
[स. कर्षण, प्रा. कड्‍ढण]


काढ़ा
पानी में उबाल कर निकाला हुआ ओषधियों का रस।
संज्ञा
[हिं. काढ़ना]


काढ़ि
किसी वस्तु के भीतर से बाहर करना, निकालना।
(क) परयौ भव-जलधि मैं हाथ धारि काढ़ि मम दोष जनि धारि चित काम - १ - २१४। (ख) स्याम, भुज गहि काढ़ि लीजै, सूर व्रज कैं कुल - १.९९।
क्रि. स.
[हिं. काढ़ना]


काढ़ि
निकाल देना, अश्रय न देना, शरण में न लेना, ठुकरा देना।
बड़ी है राम नाम की ओट। सरन गऐं प्रभु काढ़ि देते हैं, करत। कृपा कैं कोहा।
क्रि. स.
[हिं. काढ़ना]


काढ़ी
तैयार की है, प्रस्तुत की है,बनायी है।
(क) चकित भई देखें ढिग ठाढ़ी। मनौ चितरैं लिखि लिखि काढ़ी - ३९१। (ख) रही जहाँ सो तहाँ सब ठाढ़ी। हरिके चलत देखियत ऐसी मनहुँ चित्रि लिखि काढ़ी - २५३५।
क्रि. स.
[हिं. काढ़ना]


काढ़ी
कोई वस्तु दूसरी से अलग की।
सब हेरि धरी है साढ़ी। लई ऊपर ऊपर काढ़ी - १० - १८३।
क्रि. स.
[हिं. काढ़ना]


काढ़ो
निकालो, (भाव या विचार) दूर करो।
गृह नछत्र अरु बेद अरध करि खात हरष मन बाढ़ो। तातें चहत अमरपन तन को समुझ समुझ चित काढ़ों - सा. ६५।
क्रि. स.
[हिं. काढ़ना]


काढ़ौ
किसी वस्तु को बाहर करो, निकालो।
जिन लोगनि सौं नेह करत है, तेई देखि घिनैहैं। घर के कहत सबारे काढ़ौ, भूत होइ धरि खैहैं - १ - ८६।
क्रि. स.
[सं. कर्षण, प्रा. कडूढण, हिं. काढ़ना]


काढ़ौ
तान लिये, खड़े किये, निकाल कर ताने।
बिषधर झटकीं पूछ फटकि सहसौ फन काढ़ौ। देख्यौ नैन उघारि, तहाँ बालक इक ठाढ़ो - ५८९।
क्रि. स.
[सं. कर्षण, प्रा. कडूढण, हिं. काढ़ना]


काढ़यौ
निकाल दिया, बाहर किया।
(क) कंचन कलस विचित्र चित्र करि, रचि पचि भवन बनायौ। तामैं तैं ततछन ही काढ़यौ, पलभर रहन न पायौ - १ - ३०। (ख) अघ बक बच्छ अरिष्ट केसी मथि जल तें काढ़यौ काली - २५६७।
क्रि. स.
[हिं. काढ़ना]


काढ़यौ
खीचा, निकाला, प्राप्त किया।
यह भुवमंडल कौ रस काढ़यौ भाँति भाँति निज हाथ - ८४ सारा.।
क्रि. स.
[हिं. काढ़ना]


कातना
रूई से सूत कातना।
क्रि. स.
[सं. कर्त्तन, प्रा. कत्‍तन]


कातर
अधीर, व्याकुल।
भक्त बिरह-कातर करुनामय, डोलत पाछैं लागे। सूरदास ऐसे स्वामी कौं देहिं पीठि सो अभागे - १ - ८।
वि.
[सं.]


कातर
डरा हुआ, भयभीत।
वि.
[सं.]


कातर
कायर।
वि.
[सं.]


कातर
आत्‍त, दुखित।
वि.
[सं.]


कातरता
अधीरता।
संज्ञा
[सं.]


कातरता
दुख।
संज्ञा
[सं.]


कातरता
कायरता।
संज्ञा
[सं.]


काता
सूत, तागा।
संज्ञा
[हिं. कातना]


काता
बाँस काटने की छुरी, छुरी।
पुं.
[सं. कर्तृ, कर्त्तृ; प्रा. कत्ता]


कातिक
क्वार के बाद का महीना।
संज्ञा
[सं. कार्तिक]


कातिब
लिखनेवाला।
संज्ञा
[अ. क़ातिब]


कातिल
प्राण हरनेवाला।
वि.
[अ. क़ातिल]


कातिल
हत्यारा।
वि.
[अ. क़ातिल]


काती
कैंची, कतरनी।
संज्ञा
[सं. कर्त्री, प्रा. कत्ती]


काती
छुरी, छोटी तलवार।
ऊधौ कुलिस भई यह छाती। मेरे मन रसिक नंदलालहिं झषत रहत दिन राती। तजि व्रज लोग पिता अरु जननी कंठ लाइ गए काती - ३११६।
संज्ञा
[सं. कर्त्री, प्रा. कत्ती]


कातैं
किससे।
(क) जुग जुग बिरद यहै चलि आयो टेरि कहत हौं यातैं। मग्यित लाज पाँच पतितनि मैं, हौं अब कहौ घटि कातैं - १ - १३७।

(ख) हम तुम सब बैस एक कातैं को अगरो - १० - ३३६।

सर्व., सवि.
[सं. कः= हिं. का+तैं (प्रत्य.)]


कात्यायनी
दुर्गा देवी।
संज्ञा
[सं.]


कात्यायनी
भगवा वस्त्र पहननेवाली विधवा।
संज्ञा
[सं.]


काथ
कत्था।
संज्ञा
[हिं. कत्था]


काथ
गुदड़ी।
संज्ञा
[हिं. कंथा]


काथरी
गुदड़ी।
संज्ञा
[हिं. कथरी]


कादंब
समूह-संबंधी।
वि.
[सं.]


कादंब
कदंब का पेड़ या फूल।
संज्ञा


कादंब
कलहंस।
संज्ञा


कादंब
कदंब की शराब।
संज्ञा


कादंबरी
कोयल।
संज्ञा
[सं.]


कादंबरी
सरस्वती देवी।
संज्ञा
[सं.]


कादंबरी
शराब
संज्ञा
[सं.]


कादंबिनी
मेघ, घटा।
संज्ञा
[सं.]


कादंबिनी
एक रागिनी।
संज्ञा
[सं.]


कादर
डरपोक, भीरु, कायर।
वि.
[सं. कातर, हिं. कायर]


कादर
व्याकुल, अधीर।
(क) भगत बिरह की अतिहीं कादर, असुर-गर्ब-बल नासत - १ - ३१, (ख) देखि देखि डरपत ब्रजबासी अतिहिं भये मन कादर.. - ९४९।
वि.
[सं. कातर, हिं. कायर]


कादिरी
एक तरह की चोली।
संज्ञा
[अ.]


कान
श्रवणेंद्रिय, श्रवण, श्रुति।
संज्ञा
[सं. कर्ण, प्रा. कण्ण]


कान
कान कटाई- जगहँसाई होना, अपमान होना। उ. - (क) कीजै कृष्ण दृष्टि की बरषा, जन की जाति लुनाई। सूरदास के प्रभु सो करियै, होइ न कान कटाई - १ - १८५ (ख) सूर स्याम अपने या ब्रज की इहिं बिधि कान कटाई - ३०७७।

करी न कान - ध्यान नहीं दिया। उ. - जब तोसौं समुझाइ कही नृप तब तैं करी न कान - १ - २६९। कान दै- ध्यान देकर, एकाग्र चित्त होकर, एक ही ओर ध्यान लगाकर। उ. - (क) तू जानति हरि कछू न जानत, सुनत मनोहर कान दै। सूर स्याम ग्वालिनि बस कीन्हौं, राखति तन-मन-प्रान दै - १० - २७४। (ख) तब गदगद बानी प्रभु प्रगटी सुन सजनी दै कान - १९८४ | (ग) सुनौ धौं दै कान अपनी लोक लोकनि क्रांत - ३४७६। कान लगि कह्यौ- चुपके से कहना, धीरे से सलाह देना। उ.- कान लगि कह्यो जननि जसोदा वा घर में बलराम। बलदाउं कौं आवन दैहौं श्रीदामा सौं काम -10-240।

मु.


कान
सुनने की शक्ति।
संज्ञा
[सं. कर्ण, प्रा. कण्ण]


कान
कान में पहनने का एक गहना।
संज्ञा
[सं. कर्ण, प्रा. कण्ण]


कान
मर्यादा, लोकलाज।
(क) तोहि अपने लाल प्यारो हमैं कुल की कान - सा. ११४। (ख) मोरि प्रतिज्ञा तुम राखी है मेटि बेद की कान - ७८५ सारा.।
संज्ञा
[हिं. कानि]


कान
लिहाज, संकोच।
संज्ञा
[हिं. कानि]


कान
कृष्ण।
(क) हौं चाहे तासों सब सीखब रसबस रिझबो कान - सा. ६८।

(ख) कूदो कालीदह में कान - सा. ७३। (ग) रथ को देखि बहुत भ्रम कीन्हों धों आये फिर कान - ५६१ सारा.।

संज्ञा
[सं कृष्ण, हिं. कान्ह]


कानन
जंगल, वन।
संज्ञा
[सं.]


कानन
घर।
संज्ञा
[सं.]


काना
जिसके एक ही आँख हो।
वि.
[सं. काण]


काना
कोनेदार, तिरछा, टेढ़ा।
वि.
[सं. कर्ण]


काना
जिस फल में कीड़े हों।
वि.
[सं. कर्णक]


कानि
लोक-लाज, मर्यादा, मर्यादा का ध्यान।
जिन गोपाल मेरौ प्रन राख्यौ, मेटि बेद की कानि - १ - २७९।
संज्ञा


कानि
लिहाज, दबाव, संकोच, संबंध का विचार।
(क) ब्रह्मबान कानि करी बल करि नहिं बाँध्यौ - ६.९७।

(ख) जसुदा कहँ लौं कीजै कानि। दिन प्रति कैसैं सही परति है, दूध-दही की हानि - १०. २८० | (ग) लागे लैन नैन जल भरि भरि, तब मैं कानि न तोरी - १० - २८६। (घ) ल्खा परस्पर मारि करौं, कोउ कानि न मानै - ५८९।

संज्ञा


कानी
लोकलाज, मर्यादा का ध्यान।
(क) कान्हहिं बरजति किन नँदरानी। एक गाउँ कैं बसत कहाँ लौं, करौं नंद की कानी - १० - ३११। (ख) लोक-बेद कुल-धर्म केतकी नेक न मानत कानी हो - २४००।
संज्ञा
[हिं. कानि]


कानी
दबाव, संकोच, लिहाज।
कंस करत तुम्हरी अति कानी - १००३।
संज्ञा
[हिं. कानि]


कानी
जिसकी एक आँख फूटी हो, एक आँखवाली।
बकुची खुमी आँधिरि काजर कानी नकटी पहिरै बेसरि। मुँडली पटिया पारि सँवारे कोढ़ी लावै केसरि - ३०२६।
वि.
[हिं. काना]


कानी
कान।
संज्ञा
[हिं. कान]


कानी
न कीन्हौ कानी- कान न किया, सुना नहीं, सुनकर ध्यान नहीं दिया। उ. - तिन तौ कह्यौ न कीन्हौ कानी। तन तजि चली बिरह अकुलानी - ८००।
मु.


कानी
सबसे छोटी (उँगली)।
वि.
[सं. कनीनी]


कानीन
क्‍वारी कन्या से उत्पन्न।
वि.
[सं.]


कानीन
वह पुत्र जो क्‍वारी कन्या से उत्पन्न हुआ हो।
संज्ञा


कानून
राजनियम, बिधि।
संज्ञा
[यू. केनान]


कानून
नियम-संग्रह, विधान।
संज्ञा
[यू. केनान]


काने
कान।
संज्ञा
[हिं. कान]


काने
न कीन्हौ काने- कान नहीं किया, नही सुना, सुनकर ध्यान नहीं दिया। उ. - तिन तो कह्यौ न कीन्हों काने - ८६६
मु.


कगार
टीला।
संज्ञा
[हिं. कगर]


कच
बाल।
संज्ञा
[सं.]


कच
झुंड।
संज्ञा
[सं.]


कच
बादल।
संज्ञा
[सं.]


कच
वृहस्पति का पुत्र जो दैत्यगुरु शुक्राचार्य के पास संजीवनी-विद्या सीखने गया था।
संज्ञा
[सं.]


कच
चुभने का शब्द या भाव।
संज्ञा
[अनु.]


कचनार
एक छोटा पेड़ जो सुन्दर फूलों और कलियों के लिए प्रसिद्ध है।
संज्ञा
[सं. कांचनार]


कचनारयौ
कचनार की कली।
ककरी कचरी अरु कचनारयौ। सुरस निमोननि स्वाद सँवारयौ - २३२१।
संज्ञा
[हिं. कचनार]


कचपच
बहुत सी चीजों को गचपच करके थोड़े से स्थान में रखना।
संज्ञा
[अनु.]


कचपची
छोटे - छोटे तारों का गुच्छा या समूह, कृतिका नक्षत्र।
संज्ञा
[हिं. कचपच]


कानै
कान।
निर्गुन बचन कहहु जनि हमसौं ऐसी करहिं न कानै - ३३६६।
संज्ञा
[हिं. कान]


कानौ
एक आँख का, काना।
स्वान कुब्ज, कुपंगु, कानौ, स्रवन-पुच्छ-बिहीन। भग्न भाजन कंठ, कृमि सिर, कामिनी आधीन १ - ३२१।
वि.
[सं. काना]


कानौ
कमी, दोष।
अपनैं ही अज्ञान-तिमिर मैं बिसरयौ परम ठिकानौं। सूरदास की एक आँखि है, ताहू मैं कछु कानौ - १ - ४७।
वि.
[सं. काना]


कान्यकुब्ज
एक प्राचीन प्रांत जो वर्तमान कन्नौज के आसपास था।
संज्ञा
[सं.]


कान्यकुब्ज
इस देश का निवासी।
संज्ञा
[सं.]


कान्ह, कान्हर
श्री कृष्ण।
मो देखत कान्हर इहि आँगन पग है धरनि धराहिं - १० ७५।
संज्ञा
[सं. कृष्ण, प्रा. कण्ह]


कान्हरो
एक राग जो रात को गाया जाता है।
सुर साँवत भूपाली ईमन करत कान्हरो गान–१० १३ सारा.।
संज्ञा
[सं. कर्णाट, हिं. कान्हड़ा]


कान्हा
श्रीकृष्ण।
ऐसी रिस करौ न कान्हा। अब खाहु कुँवर कछु नान्हा - १००१८३।
संज्ञा
[सं. कृष्ण, प्रा. कण्‍ह]


कान्हैं
श्रीकृष्ण को।
कान्हैं लै जसुमति कोरा तैं रुचि करि कंठ लगाए - १० - ५३।
संज्ञा
[सं. कृष्ण, प्रा. कण्ह, हि. कान्ह]


कान्है
श्रीकृष्ण।
सुनु री सखी कहति डोलति है या कन्या सौं कान्है - १० - ३१५।
संज्ञा
[सं. कृष्ण, प्रा. कण्ह]


क़ाफिर
जो ईश्वर को न माने।
वि.
[अ.]


क़ाफिर
निर्दयी।
वि.
[अ.]


काफिला
यात्रियों का दल।
संज्ञा
[अ.]


काफी
जितना चाहिए हो उतना ; पर्याप्त।
वि.
[अ.]


काबर
चितकबरा।
वि.
[सं. कर्बुर, प्रा. कब्बुर]


काबर
रेत मिली भूमि, दोमट, खाभर।
संज्ञा


काबा
अरब में मक्के का वह स्थान जहाँ मुहम्मद साहब रहते थे। यह मुसलमानों का तीर्थ है।
संज्ञा
[अ.]


काबिल
योग्य।
वि.
[अ.]


काबिल
विद्वान।
वि.
[अ.]


काबिस
एक रंग जिससे मिट्टी के कच्चे बर्तने रँगे जाते हैं।
संज्ञा
[म. कपिश]


कापर, कापरा
कपड़ा, वस्त्र।
काढ़ौ कोरे कापरा (अरु) काढ़ौ घी के भौन। जाति पाँति पहिराइ कै (सब) समदि छतीसौ पौन - १० - ४०।
संज्ञा
[सं. कर्पट=वस्‍त्र, प्रा. कप्पड़]


कपाल
एक प्राचीन संधि।
संज्ञा
[सं.]


कापालिक
शैव मत के साधु जो कपाल या खोपड़ी में मांसादि खाते हैं।
संज्ञा
[सं.]


कापालिका
एक बाजा जो मुँह से बजता था।
संज्ञा
[सं.]


कापा
बाँस की पतली तीलियाँ जिनमें लासा लगाकर चिड़ियाँ फँसायी या पकड़ी जाती हैं।
मुरली अधर चंप कर कापा मोर मुकुट लट वारि - २७१७।
संज्ञा
[हिं. कंप।]


कापाली
शिव।
संज्ञा
[सं. कापालिन्]


कापुरुष
कायर।
संज्ञा
[सं.]


कापै
किससे, किसके द्वारा।
बृन्दाबन ब्रज कौ महत कापै बरन्यौ जइ - ४६२।
सर्व., सवि.
[सं. वः=का, केन]


काफिया
अंत्यानुप्रास, तुक।
संज्ञा
[अ.]


क़ाफिर
जो इस्लाम धर्म न माने।
वि.
[अ.]


काबू
वश, अधिकार।
संज्ञा
[तु.]


काम
इच्छा, मनोरथ।
(क) सूरदास प्रभु अंतरजामी कीन्हौ पूरन काम - ६७९। (ख) चिरजीवौ जसुदानन्द पूरन काम करी - १ - २४।

(ग) किये सनाथ बहुत मुनि कुल को बहु विधि पूरे काम - २४७ सारा.

संज्ञा
[सं.]


काम
महादेव।
संज्ञा
[सं.]


काम
कामदेव।
(क) सूरदास प्रभु अंग अंग नागरि मनो काम किये रूप बयोरी - सा. उ. १८। (ख) सूर हरि की निरखि सोभा कोटि काम लजाइ - ३५२।
संज्ञा
[सं.]


काम
इंद्रियों की विलास की प्रवृत्ति।
संज्ञा
[सं.]


काम
भोग-विलास की इच्छा।
(क) मुख देखत हरि कौ चकित भई तन की सुधि बिसराई। सूरदास प्रभु कैं रसबस भई काम करी कठिनाई - ७२९। (ख) भ्रम-मद-मत्त काम-तृष्ना-रस-बेग न क्रमै गह्यौ - १.४९।
संज्ञा
[सं.]


काम
चार पदार्थों में एक।
अथ धर्म अरु काम मोक्ष फल चारि पदारथ देइ गनी - १ ३९।
संज्ञा
[सं.]


काम
क्रिया, व्यापार, कार्य।
संज्ञा
[सं. कर्म, प्रा.कम्म]


काम
कठिन कार्य, कौशलयुक्त क्रिया।
संज्ञा
[सं. कर्म, प्रा.कम्म]


काम
प्रयोजन, अर्थ, मतलब।
(क) अन्त के दिन कौं हैं घनस्याम। माता पिता बन्धु सुत तौ लगि जौ लगि जिहिं कौं काम - १ - ७६। (ख) कान लागि कह्यौ जननि जसोदा वा घर में बलराम। बलदाऊ कौं आवन दैहौं श्रीदामा सौं काम - १० - २४०।
संज्ञा
[सं. कर्म, प्रा.कम्म]


काम
काम परयौ- अवश्यकता हुई, प्रयोजन हुआ, दरकार हुई।

काम बनावै- मतलब निकालता है, स्वार्थ पूरा करता है। उ. - मूक, निंद, निगोड़ा, भोड़ा, कायर काम बनावै - १ - १८६। काम सरै- काम बनता है, उद्देश्य की सिद्धि होती है, मतलब निकलता है। उ. - सब तजि भजिए नंदकुमार। और भजे तैं काम सरै नहिं, मिटे न भव जंजार - १ - ६८।

मु.


काम
वास्ता, सरोकार, सम्बन्ध।
संज्ञा
[सं. कर्म, प्रा.कम्म]


काम
काम परयौ- पाला पड़ना, वास्ता होना, व्यवहार या सम्बन्ध होना। उ.- परयौ काम सारँग बासी सौं राखि लियौ बलबीर–१ - ३३। (ख) नर हरि ह्वै हिरनाकुस मारयौ काम परयौं हो बाँकौ। गोपीनाथ सूर के प्रभु कैं बिरद न लाग्यौ टाँकौ - १ - १२३। (ग) अब तौ आनि परयौ है गाढ़ौ सूर पतित सौं काम - १ - १७९।
मु.


काम
उपयोग, व्यवहार।
संज्ञा
[सं. कर्म, प्रा.कम्म]


काम
काम आवैं- (१) साथ दें, सहारा दें, सहायक हों, आड़े आवें। उ.- (क) धन-सुत-दारा कान न आवैं, जिनहिं लागि अपुनपौ हारौ - १ - ८०। (ख) आवत गाढ़ै काम हरि, देख्यौ सूर विचारि - २ - २९। (ग) हरि बिन कोऊ काम न आयौ - २ - ३० (२) उपयोगी हुई, व्यवहार में आयी। उ. - काया हरि कैं काम न आई। भावभक्ति जहँ हरि-जस सुनियत, तहाँ जात अलसाई - १ - २९५।
मु.


काम
कारबार,रोजगार।
संज्ञा
[सं. कर्म, प्रा.कम्म]


काम
कारीगरी, दस्तकारी।
संज्ञा
[सं. कर्म, प्रा.कम्म]


काम
बेल बूटे।
संज्ञा
[सं. कर्म, प्रा.कम्म]


कामकला
कामदेव की स्त्री, रति।
संज्ञा
[सं.]


कामकला
मैथुन।
संज्ञा
[सं.]


कामकाज
कारबार।
संज्ञा
[हिं. काम]


कामकेलि
काम क्रीड़ा, रति।
संज्ञा
[सं.]


कामग
मनमानी करनेवाला।
वि.
[सं.]


कामग
काम से।
वि.
[सं.]


काम-ग्रंथ-अरि-गुन-रिपु-सुत
हाथी।
काम ग्रन्थ-अरि गुन रिपु-सुत-सम गति अति नीक विचारी–सा. १०३।
संज्ञा
[सं. कामग्रंथ (कोक=चक्रवाक) + अरि (चक्रवाक का शत्रु=रात; क्योंकि रात को चकवा-चकवी को अलग होने से दुख मिलता है।+ गुन (रात का गुण = अन्धकार) + रिपु (अंधकार का शत्रु=दीपक) + सुत (दीपक का सुत= अजन=दिग्गज= गज=हाथा)]


कामजित्
काम या वासना को जीतनेवाला।
वि.
[सं.]


कामजित्
महादेव।
संज्ञा


कामजित्
कार्तिकेय।
संज्ञा


कामतरु
कल्‍पवृक्ष।
संज्ञा
[सं.]


कामद
इच्छा पूरी करने वाला।
वि.
[सं. (द=देनेवाला)]


कामदगिरि
चित्रकूट का एक पर्वत जहाँ श्रीराम ने वास किया था।
संज्ञा
[सं.]


कामदहन
कामदेव को भस्म करनेवाले शिवजी।
संज्ञा
[सं.]


कामदा
कामधेनु।
[सं. कामद]


कामदा
एक देवी।
[सं. कामद]


कामदुधा
कामधेनु।
संज्ञा
[सं.]


कामदेव
स्त्री-पुरुष-संयोग का प्रेरक एक देवता जो बहुत सुन्दर माना गया है। रति इसकी स्‍त्री, सखा वसंत, वाहन कोकिल, अस्त्र फूलों का धनुष-बाण है।
संज्ञा
[सं.]


कामधाम
कामधंधा।
ब्रजधर गयीं गोप कुमारि। नेकहूँ कहुँ मन न लागत काम धाम बिसारि।
संज्ञा
[हिं. काम+ धाम (अनु.)]


कामधुक
कामधेनु।
संज्ञा
[सं.]


कामधुज
मछली जो कामदेव की ध्वजा पर अंकित है।
लाभ थान पंचमी कामधुज गृहनिध गृह में आई। मान लेहु मन अपने भू सब हरो भार इन भाई - सा. ८१।
संज्ञा
[सं. कामध्वज]


कामधेनु
समुद्र से निकली गाय जो चौदह रत्नों में एक है और जो सभी अभिलाषाएँ पूरी करती है।
संज्ञा
[सं.]


कमध्वज
वह जो कामदेव की ध्वजा पर अंकित है, मछली।
संज्ञा
[सं.]


कामना
इच्छा, अभिलाषा।
संज्ञा
[सं.]


कामनाधेनु
कामधेनु जो समुद्र के रत्नों के साथ निकली थी।
कामनाधेनु पुनि सप्तरिषि कौं दई, लई उन बहुत मन हर्ष कीन्हे - ८ - ८।
संज्ञा
[सं.]


कामबन
ब्रजमंडल के अंतर्गत एक वन।
संज्ञा
[स. काम+वन]


कामबाण
कामदेव के पाँच वाण - मोहन, उन्मादन, संतपन, शषण और निश्चेष्टकरण। कामदेव के वाण फूलों के भी कहे जाते हैं, वे फूल ये हैं - लाल कमल, अशोक, आम, चमेली और नील कमल।
संज्ञा
[सं.]


कामभूरुह
कल्‍पवृक्ष।
संज्ञा
[सं. (भूरूह - वृक्ष)]


कामरि
कमली, कंबल।
(क) सूरदास कारी कामरि पे, चढ़त न दूजौ रंग - १ - ३३२। (ख) सोई हरि काँधे कामरि, काछ किए, नाँगे पाइनि, गाइनि टहल करैं - ४५३।
संज्ञा
[सं. कंबल]


कामरिया
कमली, कंबल।
कान्ह काँधे कामरिया कारी, लकुट लिए कर धरै हो - ४५२।
संज्ञा
[सं. कंबल, हि. कमली]


कामरी
कमली, कंबल।
एक दूध, फल, एक झगरि चबेना लेत निज निज कामरी के आसननि कीने - ४६७।
संज्ञा
[स. कंबल]


कामली
कमली, कंबल।
संज्ञा
[सं. कंबल]


कामशास्त्र
वह विद्या जिसमें स्त्री-पुरुष-प्रसंग का सविस्तार वर्णन हो।
संज्ञा
[स.]


कामसखा
वसंत।
संज्ञा
[सं.]


कामांध
जो कामवासना की प्रबलता के करण उचित-अनुचित का ज्ञान न रख सके।
वि.
[सं.]


कामा
हेतु, लिए।
फैंट छाँड़ि मेरी देहु श्रीदामा। काहे कौं तुम रारि बढ़ावत, तनक बात कैं कामा - ५३६।
क्रि. वि.
[हि. काम]


कामा
कामवती स्त्री।
संज्ञा


कामा
इच्छा, अभिलाषा।
तबहिं असीस दई परसन ह्वै सफल होहु तुम कामा १० उ. - ६६।
संज्ञा


कामा
राधा की एक सखी का नाम।
(क) इंदा बिंदा राधिका स्यामा कामा नारि - ११०१।

(ख) स्थामा कामा चतुरा नवला प्रमुदा सुमदा नारि - १५८०। (ग) स्याम गये उठि भोर हीं बृन्दा के धाम। कामा के गृह निसि बसे पुरयौ मन काम - २१२६।

संज्ञा


कामातुर
काम या संभोग की इच्छा से व्याकुल।
भज्यौ मोहिं कामातुरनारी - ७९९।
वि.
[सं. काम+आतुर]


कामानुज
क्रोध गुस्सा।
संज्ञा
[स. काम+अनुज]


कामायनी
वैवस्त मनु की पत्नी श्रद्धा का एक नाम।
संज्ञा
[सं.]


कामारि
कामदेव के शत्रु, शिव।
संज्ञा
[सं. काम+अरि]


कामि
भोग-विलास में लिप्त रहनेवाला, कामुक।
पुहुप पराग परस मधुकरगन मत्त करत गुंजार। मानो कामि जन देख जुवति जन बिषयासक्ति अपार - १०४४ सार.।
वि.
[सं. कामिन्, हिं. कामी]


कामिनी, कामिनी
कामवती स्त्री।
संज्ञा
[सं. कामिनी]


कामिनी, कामिनी
सुन्दर नारी।
अंतर गहत कनक-कामिनि कौं, हाथ रहैगौ पचिबौ - १.५९।
संज्ञा
[सं. कामिनी]


कामिनी, कामिनी
मदिरा।
संज्ञा
[सं. कामिनी]


कामिनी, कामिनी
एक पुष्प।
संज्ञा
[सं. कामिनी]


कामी
कामना रखनेवाला, इच्छुक।
वि.
[सं. कामिन्]


कामी
विषयी, कामुक।
यहै जिय जानि कै अंध भव-त्रास तैं, सूर कामी कुटिल सरन आयौ - १ - ५।
वि.
[सं. कामिन्]


कामी
मतलबी, स्वार्थी।
कीन्हीं प्रीति पहुँष शुंडा की अपने काज के कामी - ३०८०।
वि.
[सं. कामिन्]


कामुक
इच्छा रखनेवाला।
वि.
[पुं.]


कचपची
चमकीली टिकलियाँ या बुँदे जिन्हें स्त्रियाँ माथे पर लगाती हैं।
संज्ञा
[हिं. कचपच]


कचबची
चमकीले बुंदे या बिंदियाँ जिन्हें स्त्रियाँ माथे या गाल पर लगाती हैं, सितारा, चमकी।
संज्ञा
[हिं. कचपच]


कचरना
रौंदना, कुचलना,दबाना।
क्रि. स.
[सं. कच्चरण-बुरी तरह चलना]


कचरना
चबाना, खाना।
क्रि. स.
[सं. कच्चरण-बुरी तरह चलना]


कचरा
खरबूजा या ककड़ी का कच्चा फल।
संज्ञा
[हिं. कच्चा]


कचरा
सेमल का डोडा।
संज्ञा
[हिं. कच्चा]


कचरा
कूड़ा-करकट।
संज्ञा
[हिं. कच्चा]


कचरा
सेवार।
संज्ञा
[हिं. कच्चा]


कचरी
ककड़ी की तरह की एक बेल जिसे सुखाकर और तलकर खाया जाता है। कहीं-कहीं इसकी चटनी भी बनती है।
(क) पापर बरी फुलौरी कचौरी। कुरबरी कचरी औ मिथौरी।

(ख) ककरी कचरी अरु कचनारयौ। सुरस निमोननि स्वाद सँवारयौ - २३२१।

संज्ञा
[हिं. कच्चा]


कचरी
काट कर सुखाये हुए फल- मूल आदि जो आगे तरकारी बनाने के लिए सुखाकर रख लिये जाते हैं।
कुँदरू ककोड़ा कौरे। कचरी चार चचेंडा सौरे - २३२१।
संज्ञा
[हिं. कच्चा]


कामुक
कामी, विलासी।
वि.
[पुं.]


कामोद्दपन
काम की इच्छा या उत्तेजन।
संज्ञा
[सं. काम+उद्दीपन]


काम्य
जिसकी इच्छा हो।
वि.
[सं.]


काम्य
जिससे इच्छा पूरी हो।
वि.
[सं.]


काम्य
चाहने योग्य।
वि.
[सं.]


काम्य
वासना-संबंधी।
वि.
[सं.]


काय, कायक
काया, शरीर।
बंदन दासपनौ सो करै। भक्तनि सख्य-भाव अनुसरै। काय-निवेदन सदा बिचारै। प्रेम-सहित नवधा विस्तारै–५८९५।
संज्ञा
[सं.]


काय, कायक
मूल धन
संज्ञा
[सं.]


काय, कायक
स्वभाव, लक्षण।
संज्ञा
[सं.]


कायफर, कायफल
वृक्ष जिसकी छाल दवा के काम आती है।
संज्ञा
[सं. कटफल]


कायिक
शरीर संबंधी।
वि.
[सं.]


कायिक
शरीर से उत्पन्न।
वि.
[सं.]


कारंड, कारंडव
हंस की जाति का एक पक्षी।
संज्ञा
[सं.]


कारधमी
लोहे जैसी धातुओं से सोना बनानेवाला, कीमियागर।
संज्ञा
[सं.]


कार
कार्य, क्रिया।
संज्ञा
[सं.]


कार
करने या बनानेवाला।
संज्ञा
[सं.]


कार
पूजा की बलि।
संज्ञा
[सं.]


कार
पति।
संज्ञा
[सं.]


कारक
करनेवाला।
वि.
[सं.]


कारक
वाक्य में संज्ञा सर्वनाम की अवस्था जो क्रिया के साथ संबंध प्रकट करती है।
संज्ञा
[सं.]


कायर
भीरु, असाहसी, डरपोक।
मूकु, निंद, निगोड़ा, भोंड़ा, कायर, काम बनावै - १ - १८६।
वि.
[सं. कातर]


कायरता
डरपोकपन।
संज्ञा
[सं. कातरता]


कायल
जिसने दूसरे का तर्क स्वीकार कर लिया हो।
वि.
[अ.]


कायली
मथानी।
संज्ञा
[सं. क्ष्वेलिका]


कायली
ग्लानि लज्जा।
संज्ञा
[हिं. कायर]


कायली
कायल होने की भावना।
संज्ञा
[हिं. कायल]


काया
शरीर, तन, देह।
जनम साहिबी करत गयौ। काया नगर बड़ी गुंजाइस, नाहिंन कछु बढ़यौ - १ - ६४।
संज्ञा
[सं. काय]


कायाकल्प
ओषधों के प्रयोग और नियम-संयम से वृद्ध और रोगी शरीर सशक्त और स्वस्थ करने की क्रिया।
संज्ञा
[सं.]


कायापलट
शरीर या रूप बदल डालने की क्रिया।
संज्ञा
[हि. काया+पलटना]


कायापलट
महान परिवर्तन।
संज्ञा
[हि. काया+पलटना]


कारकदीपक
एक काव्यालंकार।
संज्ञा
[सं.]


कारकुन
प्रबंधक।
संज्ञा
[फा.]


कारखाना
व्यापारिक वस्तु-निर्माण का स्थान।
संज्ञा
[फा.]


कारगर
लाभदायक, प्रभावकारी।
वि.
[फा.]


कारगुजार
अच्छी तरह काम करनेवाला, मुस्तैद।
वि.
[फा.]


कारगुजारी
कार्य-कुशलता, मुस्तैदी।
संज्ञा
[फा.]


कारज
काम, उद्देश्य, मतलब।
मम आयसु तुम माथैं धरौ। छल-बल करि मम कारज करौ - १० - ५८।
संज्ञा
[सं. कार्य]


कारज
कारज सरी- काम बन जायगा, उद्देश्य की सिद्धि होगी, इच्छा पूरी होगी। उ. - सूर प्रभु के संत बिलसत सकल कारज सरी - १० ३०२।

कारज सरै- उद्देश्य सिद्ध हो, मतलब निकले, काम बने। उ.- किए नर की स्तुती कौन कारज सरै, करै सो आपनौ जन्म हारै - ४ - ११। कारज सारथौ- काम बनाया, इच्छा पूरी की। उ.- रसना हूँ कौ कारज सारयौ, मैं यौं अपनौ काज बिगारयौ - ४ - १२।

मु.


कारजी
काम करनेवाला, सेवक।
ऐसे हैं ये स्वामि-कारजी तिनकौ मानत स्याम–पृ. ३२०।
वि.
[हिं. कारज]


कारटा
कौआ, काग।
संज्ञा
[सं. करट]


कारण
सबब, हेतु।
संज्ञा
[सं.]


कारण
हेतु, निमित्त।
संज्ञा
[सं.]


कारण
आदि, मूल।
संज्ञा
[सं.]


कारण
साधन।
संज्ञा
[सं.]


कारण
कर्म।
संज्ञा
[सं.]


कारण
प्रमाण।
संज्ञा
[सं.]


कारणमाला
कारणों की श्रेणी, अनेक संबंधित कारण।
संज्ञा
[सं.]


कारणमाला
एक अर्थालंकार जिसमें किसी कारण के फलस्वरूप कार्य से संबंधित पुनः किसी कार्य के होने का वर्णन हो।
संज्ञा
[सं.]


कारणिक
कर्मचारी से संबंध रखने वाला।
वि.
[सं.]


कारन
हेतु,सबब।
सूरदास सारँग किहि कारन सारँगकुलहिं लजावत - सा. उ० ३९।
संज्ञा
[सं. कारण]


कारन
निमित्त।
(क) बलि बल देखि, अदिति सुत-कारन त्रिपद- ब्याज तिहुँ पुर फिरि आई - १ - ६। (ख) अधर अरुन, अनूप नासा निरखि जन-सुखदाई। मनौ सुक फल बिंब कारन लेन बैठ्यौ आइ - १० - २३४।

(ग) मो कारन कछु आन्यौ है बलि, बन- फल तोरि कन्हैया - ४१८।

संज्ञा
[सं. कारण]


कारन
करनेवाले।
सब हित कारन देव, अभयपद नाम प्रताप बढ़ायौ - १ - १८८।
वि.


कारन
रोने की करुण ध्वनि।
संज्ञा
[सं. कारुण्य]


कारन-अंत
कारण का अंत, काज, कार्य।
कारन अंत-अंत ते घटकर आदि घटत पै जोई। मद्ध घटे पर नास कियौ है नीतन में मन भोई - सा. ५।
संज्ञा
[सं. कारण+अंत]


कारनकरन
उपादान कारण और सृष्टि का करनेवाला निमित्त कारण, सृष्टि का मूल तत्व, ईश्वर
(क) कारन-करन, दयालु दयानिधि, निज भय दीन डरै। इहिं कलिकाल-ब्याल मुख-ग्रासित सूर सरन उबरै - १. ११७। (ख) माया प्रगति सकल जग मोहै। कारन करन करै सो सोहै - १०३।
संज्ञा
[सं. करण-कारण]


कारनकरन
रोने की करुण ध्वनि।
संज्ञा
[सं. कररुणा]


कारनमाला
एक अर्थालंकार जिसमें किसी कारण से होनेवाले कार्य से फिर किसी कार्य के होने का वर्णन हो।
सोतन हान होन चाहत है बिना प्रानपति पाये। कर संका कारन की माला तेहि पहिराउ सुभाये - सा. ४८।
संज्ञा
[सं. कारणमाला]


कारनी
प्रेरणा करनेवाली, प्रेरक।
संज्ञा
[सं. कारण]


कारनी
परस्पर भेद करनेवाला।
संज्ञा
[सं. कारीनि]


कारनी
बुद्धि या विचार पलटनेवाला।
संज्ञा
[सं. कारीनि]


कारने
के लिए, हेतु।
(क) सखियन सुख देखन कारने रंग हो हो होरी - १४१०।

(ख) दह्यौ बह्यौ के कारने कहहि बढ़ावति रारि - ११०८। (ग) तुम सौं अब दधि कारने कौन बढ़ावै रारि - ११२३।

संज्ञा
[सं. कारण]


कारबार
कामकाज।
संज्ञा
[फा.]


कारबार
पेशा।
संज्ञा
[फा.]


कारबारी
कामकाजी।
वि.
[हिं. कारबार]


कारा
बन्धन, कैद।
संज्ञा
[सं.]


कारा
कारा गृह, बन्दीगृह।
संज्ञा
[सं.]


कारा
पीड़ा, दुख।
संज्ञा
[सं.]


कारा
काले रंग का, काला।
वि.
[हिं. काला]


कारागार, कारागृह
बन्दीगृह, जेल।
संज्ञा
[सं.]


कारावास
जेल में रहना, कैद।
संज्ञा
[सं.]


कारिंदा
जो दूसरे की ओर से काम करे, गुमाश्ता।
संज्ञा
[फा.]


कारिका
श्लोक-रूप में की गयी किसी सूत्र की व्याख्या।
संज्ञा
[सं.]


कारिख
स्याही, कालिमा।
संज्ञा
[सं. कलुष]


कारिख
काजल।
संज्ञा
[सं. कलुष]


कारिख
कलंक, दोष।
जो कारिख तन मेटो चाहत तौ कमल बदन तनु चाहि - ३३९०।
संज्ञा
[सं. कलुष]


कारिणी
करनेवाली।
वि.
[सं.]


कारित
कराया हुआ।
वि.
[सं.]


कारी
काले रंग की।
(क) अनत सुत गोरस कौं कह जात। घर सुरभी कारी धौरी कौ माखन माँगि न खात - १० - ३२६।

(ख) गगनै घहराइ जुरी घटा कारी–६८४। (ग) स्याम सुखरासि रसरासि भारी।…..। सील की रासि जस रासि आनंदरासि, नव जलद छबि बरन कारी–१३४०।

वि.
[हिं. पुं. काला]


कारी
होतपीरी काली- काली-पीली होना, गुस्सा दिखाना, झुँझलाना। उ.- ज्यों ज्यों मैं निहोरे करौं त्यौं त्यौं यौं बोलत है री अनोखी रूसनहारी। बहियाँ गहत कौन पर मगधरी उँगरी कौन पै होत पीरी कारी - २०४७।
मु.


कारी
करनेवाला (प्रत्य. रूप में)
वि.
[सं. कारिन्]


कारी
मर्मभेदी।
वि.
[फा.]


कारी
करने का काम।
संज्ञा
[सं. कारिता]


कारीगर
शिल्पकार।
संज्ञा
[फा.]


कारीगर
हाथ के काम में चतुर।
वि.


कारु
कारीगर, शिल्पी।
संज्ञा
[सं.]


कारुणिक
दयालु, कृपालु।
वि.
[सं.]


कारुण्य
दया, कृपा।
संज्ञा
[सं.]


कारे
काला, श्याम।
(क) गरजत कारे भारे जूथ जलधर के १० - ३४।

(ख) डसी स्याम भुअंगम कारे - ७४७।

वि.
[सं. काल, हिं. काला]


कारे
बड़ा, भारी।
वि.
[सं. काल, हिं. काला]


कारे
कारे कोसनि- बहुत दूर। उ.- तातैं अब मरियत अपसोसनि। मथुरा हू ते गये सखी री अब हरि कारे कोसनि - १० उ०.८८।
मु.


कारे
करनेवाला (प्रत्य. रूप)।
मोरन के सुर सरस सम्हारत पय सुरतिया बीच रुचकारे - सं. ९१।
संज्ञा
[कारिन, कारी]


कार
काले साँप।
(क) ताकी माता खाई कारैं। सो मरि गयी साँप के मारे - ७ - ८।

(ख) एक बिटिनियाँ सँग मेरे ही, कारैं खाई ताहि तहाँरी - ६९ - ७। (ग) क्यौंरी कुँवरि गिरी मुरझाई १ यह बानी कही सखियन आगैं, मोकौं कारैं खाई–७४१।

संज्ञा
[सं. काल, हिं. काला]


कारो
काला।
सूरस्याम सुजान पाइन परो कारो काम–सा. २१।
वि.
[हिं. काला।]


कारौ
काला, कृष्ण, श्याम।
कारौ अपनौ रंग न छाँड़ै, अनसँग कबहुँ न होई–१ - ६३।
वि.
[सं. काल, हिं. काला]


कारौ
बुरा, कलुषित।
तीनौं पन मैं भक्ति न कीन्हीं, काजर हूँ तैं कारो - १ - १७८।
वि.
[सं. काल, हिं. काला]


कार्त्‍तवीय
सहस्रार्जुन जिसके हजार हाथ थे। यह कृतवीर्य का पुत्र था। इसे परशुराम ने मारा था।
संज्ञा
[सं.]


कार्त्तिक
क्‍वार के बाद का महीना।
संज्ञा
[सं.]


कार्त्तिकेय
कृतिका नक्षत्र में जन्में स्कंद जी जिनके ६ मुख माने जाते हैं।
संज्ञा
[सं.]


कार्दम
कीचड़ से भरा हुआ।
वि.
[सं.]


कार्दम
कर्दम से संबंधित।
वि.
[सं.]


कचरी
छिलकेवाली दाल।
संज्ञा
[हिं. कच्चा]


कचहरी
जमाव, गोष्टी।
संज्ञा
[हिं. कचकच = वादविवाद + हरी (प्रत्य.)]


कचहरी
दरबार, राजसभा।
संज्ञा
[हिं. कचकच = वादविवाद + हरी (प्रत्य.)]


कचहरी
न्यायालय, अदालत, कोर्ट
संज्ञा
[हिं. कचकच = वादविवाद + हरी (प्रत्य.)]


कचहरी
कार्यालय, दफ्तर।
संज्ञा
[हिं. कचकच = वादविवाद + हरी (प्रत्य.)]


कचाई
कच्चा होना, पक्का न होना
संज्ञा
[हिं. कच्चा+ई (प्रत्य.)]


कचाई
अज्ञानता, अनुभवी हीनता।
संज्ञा
[हिं. कच्चा+ई (प्रत्य.)]


कचाना, कचियाना
हिम्मत हार कर पीछे हटना।
क्रि. अ.
[हिं. कच्चा]


कचाना, कचियाना
डरना।
क्रि. अ.
[हिं. कच्चा]


कचीली
तारों का समूह, कृत्तिका।
संज्ञा
[हिं. कचपची]


कार्पण्‍य
कंजूसी, कृपणता।
संज्ञा
[सं.]


कार्मण, कार्मना
तंत्र-मंत्र का प्रयोग।
संज्ञा
[सं.]


कार्मुक
धनुष।
संज्ञा
[सं.]


कार्मुक
इंद्रधनुष।
संज्ञा
[सं.]


कार्य
काम-धंधा।
संज्ञा
[सं.]


कार्य
कारण का फल।
संज्ञा
[सं.]


कार्य
परिणाम, फल।
संज्ञा
[सं.]


कार्यकर्ता
काम करनेवाला, कर्मचारी।
संज्ञा
[सं.]


कार्यक्रम
काम की व्यवस्था या प्रबंध।
संज्ञा
[सं.]


काल
समय, अवसर।
हरि सौं मीत न देख्यौ कोई। बिपति-काल सुमिरत, तिहिं औसर आनि तिरीछौ होई - १ - १०।
संज्ञा
[सं.]


काल
मृत्यु।
काल अवधि जब पहुँची आइ। तब जम दीन्हें दूत पठाइ - ६ - ४।
संज्ञा
[सं.]


काल
यमराज, यमदूत।
(क) ग्रस्यो गज ग्राह लै चल्यौ पाताल कौं, काल कैं त्रास मुख नाम आयौ। छाँड़ि सुखधाम अरु गरुड़ तजि साँवरौ पवन के गवन तैं अधिक धायौ - १ - ५।

(ख) कहत हे, आगैं जपिहैं राम। बीचहिं भई और की औरै परयौ काल सौं काम - १ - ५७।

संज्ञा
[सं.]


काल
नियत समय या ऋतु।
संज्ञा
[सं.]


काल
अकाल, महँगी।
संज्ञा
[सं.]


काल
काला साँप।
संज्ञा
[सं.]


काल
शनि।
संज्ञा
[सं.]


काल
शिव का एक नाम।
संज्ञा
[सं.]


काल
काले रंग का, काला।
वि.


काल
बीता हुआ दिन, आनेवाला दिन।
क्रि. वि.
[हिं. काल]


कालअगिन
प्रलय काल की आग।
संज्ञा
[सं. काल+अग्नि]


कालकंठ
शिव।
संज्ञा
[सं.]


कालकंठ
मोर।
संज्ञा
[सं.]


कालकंठ
नीलकंठ पक्षी।
संज्ञा
[सं.]


कालकूट
भयंकर विष।
संज्ञा
[सं.]


कालकेतु
एक राक्षस का नाम।
संज्ञा
[सं.]


कालक्षेप
समय बिताना।
संज्ञा
[सं.]


कालचक्र
समय का हेर-फेर या परिवर्तन।
संज्ञा
[सं .]


कालधर्म
मृत्यु, नाश।
संज्ञा
[सं.]


कालनाथ
शिव।
संज्ञा
[सं.]


कालनाथ
काल भैरव।
संज्ञा
[सं.]


कालनिशा
दिवाली की रात।
संज्ञा
[सं.]


कालनिशा
भयंकर काली रात।
संज्ञा
[सं.]


कालबूत
कच्चा भराव जो मेहराब बनाने के लिए किया जाता है, छैन।
संज्ञा
[फा. कालबुद]


कालनेमि
एक दानव जो देवताओं को पराजित करके स्वर्ग का अधिकारी बन बैठा था। अपने शरीर को चार भागों में बाँट कर यह सारा शासन-कार्य करता था। अंत में विष्णु द्वारा यह मारा गया और यही दूसरे जन्म में कंस हुआ।
कालिंदी के कूल बसत इक मधुपुरी नगर रसाला। कालनेमि अरु उग्रसेन कुल उपज्यौ कंस भुआला - १० - ४।
संज्ञा
[सं.]


कालनेमि
एक राक्षस जो रावण का मामा था।
संज्ञा
[सं.]


कालयवन
एक यवन राजा जो जरासंध के साथ मथुरा पर चढ़ाई करने गया था। श्रीकृष्ण ने चालाकी से मुचकंद की कोपदृष्टि से इसे भस्म करा दिया था।
तब खिसियाइ कै (जरासंध) कालयवन अपने सँग ल्यायौ - १० उ० - ३।
संज्ञा
[सं.]


कालपुरुष
ईश्वर का विराट रूप।
संज्ञा
[सं.]


कालपुरुष
काल।
संज्ञा
[सं.]


कालयापन
दिन बिताना।
संज्ञा
[सं.]


कालराति, कालरात्रि
भयानक अँधेरी रात।
संज्ञा
[सं.]


कालराति, कालरात्रि
प्रलय की रात।
संज्ञा
[सं.]


कालराति, कालरात्रि
मृत्यु की राति।
संज्ञा
[सं.]


कालराति, कालरात्रि
दिवाली की रात।
संज्ञा
[सं.]


कालवाचक, कालवाची
समय बतानेवाला।
वि.
[सं.]


कालविपाक
समय की समाप्ति।
संज्ञा
[सं.]


कालविपाक
काम पूरा होने की अवधि।
संज्ञा
[सं.]


काल-सर्प
वह साँप जिसका डसा हुआ बचता नहीं।
संज्ञा
[सं.]


काला
कोयले के रंग का।
वि.
[सं. काल]


काला
बुरा, कलुषित, कलंकित।
वि.
[सं. काल]


काला
भारी, बड़ा।
वि.
[सं. काल]


काला
काला साँप।
संज्ञा


काला
समय, अवसर।
घन तन स्याम सुरेस पीत पट सीस मुकुट उर माला। जनु दामिनि घन रवि तारागन प्रगट एक ही काला - २५६६ और १० उ. - ४।
संज्ञा


कालाकलूटा
बहुत काला, गहरा काला।
[हिं. काला+कलूटा]


कालाक्षरी
भारी विद्वान।
वि.
[सं.]


कालाग्नि
प्रलय काल की अग।
संज्ञा
[सं.]


काला भुजंग
बहुत काला।
वि.
[हिं. काला+भुजंग]


कालानल
प्रलयकाल की आग।
संज्ञा
[सं.]


काला नाग
काला साँप जो बड़ा विषैला होता है।
संज्ञा
[हिं. काला + नाग]


काला नाग
बहुत बुरा अदमी।
संज्ञा
[हिं. काला + नाग]


कालिंदी
कलिंद पर्वत से निकली हुई नदी यमुना।
संज्ञा
[सं.]


कालिंदी
श्रीकृष्ण की एक स्त्री।
(क) हरि सुमिरन कालिंदी कीन्हौ। हरि तब जाइ दरस तेहि दीन्हों। पानिग्रहन पुनि ताकौं कीन्हौ - १० उ. - २८।

(ख) तहँ कालिंदी बन में व्‍याही अति सुन्दर सुकुमार - ६५४ सारा.।

संज्ञा
[सं.]


कालिंदीभेदन
बलराम जो हल से यमुना नदी को वृंदावन खींच लाये थे।
संज्ञा
[सं.]


कालि
आगामी दिवस, आने वाला दिन।
बल-मोहन तेरे दुहुँनि कौं, पकरि मँगाऊ कालि। पुहुप बेगि पठऐं बनै, जौ रे बसौ व्रजपालि - ५८९।
क्रि. वि.
[सं. कल्य]


कालि
बीता दिन।
क्रि. वि.
[सं. कल्य]


कालि
शीघ्र ही।
क्रि. वि.
[सं. कल्य]


कालिक
समय सम्बन्धी।
वि.
[सं.]


कालिक
समय के अनुसार।
वि.
[सं.]


कालिक
जिसका समय निश्चित हो।
वि.
[सं.]


कालिका
कालापन, कलौंछ, कालिख।
आजु दीपति दिव्य दीपमालिका। मनहु कोटि रवि-चंद्र कोटि छबि, मिटि जु गई निसि कालिका - ८०९।
संज्ञा
[सं.]


कालिका
चंडिका देवी, काली।
संज्ञा
[सं.]


कालिका
स्याही।
संज्ञा
[सं.]


कालिका
आँख की काली पुतली।
संज्ञा
[सं.]


कालिका
रणचंडी।
संज्ञा
[सं.]


कालिख
कलौंछ, स्याही।
संज्ञा
[सं. कालिका]


कालिनाग
काली नाम का सर्प जो यमुना में व्रज के समीप रहता था और जिसे श्रीकृष्ण ने वश में किया था।
संज्ञा
[सं. कालिय+नाग]


कालिमा
कलंक,दोष,पाप,लांछन।
कलिमल-हरन, कालिमा टारन, रसना स्याम न गायौ - १ - ५८।
संज्ञा
[सं. कालिमन्]


कालिमा
कालापन, कलंक।
बिधु बैरी सिर पर बसै निसि नींद न परई ...। घटै बढ़ै यहि पाप ते कालिमा न टरई - २८६१।
संज्ञा
[सं. कालिमन्]


कालिमा
कालिख।
संज्ञा
[सं. कालिमन्]


कालिमा
अँधेरा।
संज्ञा
[सं. कालिमन्]


कालिय
एक सर्प जिसे श्री कृष्ण ने नाथा था।
संज्ञा
[सं.]


कालियादह
एक कुंड जो वृन्‍दावन में जमुना में था और जहाँ काली नामक नाग उहता था।
ग्वाल-सँग मिलि गेंद खेलत आयो जमुना तीर। काहु लै मोहिं डारि दीन्हौ, कालियादह-नीर - ५८०।
संज्ञा
[सं. कालिय+दह=कुंड]


काली
एक नाग का नाम जो वृंन्दावन में जमुना के एक कुंड या दह मैं रहता था और जिसे श्रीकृष्ण ने नाथा था।
(क) अघ अरिष्ट, केसी, काली मथि दावानलहिं पियौ - १ - १२१। (ख) अघ बक बच्छ अरिष्ट केसी मथि जल तैं काढ़यौ काली - २५६७।
संज्ञा
[सं. कालिय]


काली
चंडी, देवी, दुर्गा।
जब राजा तिहिं मारन लग्यौ। देवी काली मनडगमग्यौ–५ - ३।
संज्ञा
[सं.]


काली
पार्वती।
संज्ञा
[सं.]


काली
एक नदी।
संज्ञा
[सं.]


काली
एक महाविद्या।
संज्ञा
[सं.]


काली
अग्नि की सात जिह्वा में पहली।
संज्ञा
[सं.]


कालीदह
वृंदावन में जमुना का एक कुंड जिसमें काली नामक नाग रहा करता था।
तृषावंत सुरभी बालकगन, कालीदह, अँचयौ जल जाइ। निकसि आइ सब तट ठाढ़े भए, बैठि गए जहँ तहँ अकुलाइ - ५०१।
संज्ञा
[सं. कालीय + हिं. दह= कुंड]


कालोंछ, कालौंछ
कालापन, स्याही।
संज्ञा
[हिं. काला+औंछ (प्रत्य.)]


कालोंछ, कालौंछ
कालिख, काजल।
संज्ञा
[हिं. काला+औंछ (प्रत्य.)]


काल्पनिक
कल्पना करनेवाला।
संज्ञा
[सं.]


काल्पनिक
कल्पना किया हुआ, कल्पित।
वि.


काल्ह, काल्हि
कल, दूसरे दिन।
काल्हि जाइ अस उद्यम करौं। तेरे सब भंडारनि भरौं - ४ - १२।
क्रि. वि.
[सं. कल्य=पत्यूष, प्रभात; हिं. कल]


काव्य
सरस, सुरुचिपूण और आनंददायक वाक्य-रचना, कविता।
संज्ञा
[सं.]


काव्य
कविता का ग्रंथ।
संज्ञा
[सं.]


काव्यलिंग
एक काव्यालंकार।
संज्ञा
[सं.]


काव्‍यार्थपति
एक अर्थालंकार।
संज्ञा
[सं.]


काशिका
काशी पुरी।
संज्ञा
[सं.]


काशी
उत्तरप्रदेश का एक प्रसिद्ध तीर्थ, बनारस, वाराणसी।
संज्ञा
[सं.]


काशी करवट
काशी के अंतर्गत एक स्थान जहाँ पूर्व समय में आरे से कटकर मरना या प्राण त्याग करना बड़े पुण्य का कार्य समझा जाता था।
संज्ञा
[सं. काशी+करपत्र, प्रा. करवत]


कचीली
जबड़ा, दाढ़।
संज्ञा
[हिं. कचपची]


कचूर
हल्दी की जाति का एक पौधा।
संज्ञा
[सं. कर्चूर]


कचूर
कटोरा।
संज्ञा
[हिं. कचोरा]


कचोटना
चुभना, गड़ना।
क्रि. अ.
[हिं. कुचोना]


कचोरा
कटोरा, प्याला।
मुकुलित केस सुदेस देखियत नीलबसन लपटाये। भरि अपने कर कनक कचोरा पीवति प्रियहि चुखाये - १० उ. - १३८।
संज्ञा
[हिं. काँसा + ओरा (प्रत्य.)]


कचोरी
कटोरी, प्याली।
संज्ञा.
[हिं. कचोरा+ई (प्रत्य.)]


कचौड़ी, कचौरी
मोटी पूरी जिसमें उरद या और किसी दाल की पीठी भरी जाती है।
पूरि सपूरि कचौरी कौरी। सदल सु उज्जवल सुन्दर सौरी - २३२१।
संज्ञा
[हिं. कचरी]


कच्चा
जो (फल आदि) पका न हो, अपक्व।
वि.
[सं. कषण = कच्चा]


कच्चा
जो आँच पर अच्छी तरह पका या सिका न हो।
वि.
[सं. कषण = कच्चा]


कच्चा
जिसका पूरा विकास न हुआ हो
वि.
[सं. कषण = कच्चा]


काश्त
खेती, कृषि।
संज्ञा
[फा.]


काश्त
खेती करने का अधिकार।
संज्ञा
[फा.]


काश्तकार
खेतिहर, किसान |
संज्ञा
[फा.]


काश्तकारी
खेती, कृषि।
संज्ञा
[फा.]


काश्तकारी
खेती करने का अधिकार।
संज्ञा
[फा.]


काश्तकारी
वह भूमि जिस पर खेती करने का अधिकार हो।
संज्ञा
[फा.]


काषाय
कसैली वस्तुओं में रँगा हुआ।
वि.
[सं.]


काषाय
गेरुआ।
वि.
[सं.]


काषाय
कसैली वस्तुओं में रंगा हुआ वस्त्र।
संज्ञा


काषाय
गेरुआ वस्त्र।
संज्ञा


काष्ठ
काठ।
संज्ञा
[सं.]


काष्ठ
ईंधन।
संज्ञा
[सं.]


काष्ठा
अवधि, सीमा।
संज्ञा
[सं.]


काष्ठा
अधिक से अधिक ऊँचाई या उन्नति।
संज्ञा
[सं.]


काष्ठा
ओर, तरफ।
संज्ञा
[सं.]


काष्ठा
स्थिति।
संज्ञा
[सं.]


कास
एक प्रकार की घास, काँस।
(क) दिसि अति कालिंदी अति कारी। •••••। बिगलित कच कुच कास कुलिन पर पंक जु काजल सारी - २७२८।

(ख) अमल अकास कास कुसुमिन छिति लच्छन स्वाति जनाए - २८५४।

संज्ञा
[सं. काश]


कासनी
एक पौधा जिसमें नीले रंग के फूल होते हैं।
संज्ञा
[फा.]


कासनी
एक प्रकार का नीला रंग।
संज्ञा
[फा.]


कासा
प्याला, कटोरा।
संज्ञा
[फा.]


कासा
भोजन।
संज्ञा
[फा.]


कासार
तालाब, पोखर।
संज्ञा
[सं.]


कासार
एक तरह का छंद।
संज्ञा
[सं.]


कासार
एक पकवान जो प्रायः कथा के अवसर पर बाँटा जाता है।
संज्ञा
[सं.]


कासी
काशी नामक प्रसिद्ध नगर जिसकी गणना श्रेष्ठ तीर्थ स्थानों में है।
ऊधौ यह राधा सौं कहियौ। •••••••। मोपर रिस पावत बेकारन मैं हौं तुम्हरी दासी। तुमहीं मन मैं गुनि धौं देखौ बिन तप पायौ कासी - २९३७।
संज्ञा
[सं. काशी]


कासी करवत
काशी के अंतर्गत काशी-करवट नामक तीर्थस्थान में जाकर आरे से गला कटाना या अन्य किसी तरह से प्राण देना बड़ा पुण्य समझा जाता था।
सूरदास प्रभु जौ न मिलैंगे लेहौं करवत कासी - २८४३।
संज्ञा
[सं. काशीकरवट]


कासे
किससे।
(क) कासे कहो समूचे भूषन सुमिरन करत बखानी - सा. ५५।

(ख) सूरदास पुकार कासे करै बिन घन मोर - सा. ११०।

सर्व.
[हिं. का+से (प्रत्य.)]


कासो, कासौं
किससे।
तेरो कासों कीजै ब्याह ? तिन कह्यौ मेरौ पति सिव आह - ५ - ७।
सर्व.
[हिं. का+सौं (प्रत्य.)]


काह
क्या, कौन बात या वस्तु।
कह्यौ प्रिया अब कीजै सोइ ? देखौं नृपति, काह धौं होइ - ४ - २२।
क्रि. वि.
[सं. कः, को]


काहल
ढोल।
संज्ञा
[सं.]


काहल
मुर्गा।
संज्ञा
[सं.]


काहल
अव्यक्त शब्द।
संज्ञा
[सं.]


काहल
गंदा, मैला।
वि.
[अ. काहिल]


काहली
आलसी, सुस्त।
वि.
[अ. काहिल]


काहली
आलस्य।
संज्ञा


काहिं
किसे, किसको।
यह बिपदा कब मेटहिं श्री पति अरु हौं काहिं पुकारौं - १० - ४।
सर्व.
[सं. कः, हिं. का+हिं (प्रत्य.)]


काहिं
किससे।
सर्व.
[सं. कः, हिं. का+हिं (प्रत्य.)]


काहि
किसको, किसे।
तुमहिं समान और नहिं दूजौ काहि भजौं हौं दीन - १ - १११।
सर्व.
[सं. कः, हि. वा+ हिं. (प्रत्य.)]


काहिल
आलसी, सुस्त।
वि.
[अ.]


काहिली
आलस्य।
संज्ञा
[अ.]


काहीं
को, पास, द्वारा।
अव्य.
[हिं. को, कहँ]


काहु
किसी, किसी ने।
कह्यौ तुम एक पुरुष जो ध्यायौ। ताकौ दरसन काहु न पायौ - ४ - ३।
सर्व.
[सं. कः, हिं. का+हू (प्रत्य.)=काहू]


काहुँ, काहू
किसी, कीसी को, किसी के।
(क) माधौ, नैकु हटकौ गाइ।.......। ढीठ, निठुर, न डरति काहूँ, त्रिगुन ह्वै समुहाइ - १ - ५६। (ख) वा घट मैं काहूँ कैं लरिका मेरौ माखन खायौ - १० - १५६।
सर्व.
[सं. कः, हिं. का+हूँ (प्रत्य.)]


काहे
क्यों, किसलिए।
तुम कब मोसौं पतित उधारयौ। काहे कौं हरि बिरद बुलावल, बिन मसकत को तारयौ - १ - १३२।
क्रि. वि.
[सं. कथं, प्रा. कहँ]


काहैं
किससे, किस साधन से, क्यों।
हौं कुटुंब काहै प्रतिपारौं, वैसी मति ह्वै जाई–९ - ४०।
क्रि. वि.
[सं. कथं, प्रा. कहं, हिं. काहे]


किं
कैसे ?
क्रि. वि.
[सं. किम्]


किंकर
दास, सेवक, परिचारक।
संज्ञा
[सं.]


किंकर
एक जाति के राक्षस जो हनुमान जी द्वारा मारे गये थे।
संज्ञा
[सं.]


किंकर्तव्यविमूढ़
जिसे कर्तव्य न सूझ पड़े, भौचक्का।
वि.
[सं.]


किंकिणि, किंकिणी
करधनी, क्षुद्रघंटिका।
किंकिणि सब्द चलत ध्वनि रुनझुन ठुमक-ठुमक गृह आवै - २५४९।
संज्ञा
[सं.]


किंकिनि, किंकिनी
क्षुद्र घंटिका, करधनी।
मनौ मधुर मराल-छौना किंकिनी-कल-राव- १० - ३०७।
संज्ञा
[सं. किंकिणी]


किंकिरिनि
दासियों की, सेविकाओं की।
किंकिरिनि की लाज धरि ब्रज सुबस करहु निटोल - ३४७५।
संज्ञा
[सं. किंकरी]


किंगरी, किंगिरी
छोटी सारंगी।
संज्ञा
[सं. किन्नरी]


किंचन
थोड़ी वस्तु।
संज्ञा
[सं.]


किंचित
कुछ, थोड़ा।
वि.
[सं.]


किंचित
कुछ।
क्रि. वि.


किंजल्क
कमल के फूल का पराग।
भृंगी री, भजि स्याम-कमल-पद, जहाँ न निसि कौ त्रास।….। जहँ किंजल्क भक्ति नव-लच्छन, कामज्ञान-रस एक - १ - ३३९।
संज्ञा
[सं.]


किंजल्क
कमल।
संज्ञा
[सं.]


किंजल्क
नागकेसर।
संज्ञा
[सं.]


किंजल्क
केसर के रङ्ग का, पीला।
वि


कि
एक संयोजक अव्यय।
अव्‍य.


किए
‘करना' क्रिया के भूतकालिक रूप ‘किये या किया' का बहुवचन, बनाये, लगाये।
चंदन की खौरि किए नटवर कछि काछनी बनाइ री - ८८२।
क्रि. स.
[सं. करण, हिं. करना]


किकियाना
रोना, चिल्लाना।
क्रि. अ.
[हिं. कीकना.]


किचकिच
व्यर्थ की बकवाद।
संज्ञा
[अनु.]


किचकिच
झगड़ा।
संज्ञा
[अनु.]


किचकिचाना
पूरा जोर लगाने के लिए दाँत पर दाँत जमाना।
क्रि. अ.
[अनु.]


किचकिचाना
क्रोध से दाँत पीसना।
क्रि. अ.
[अनु.]


किचड़ाना
आँख में कीचड़ भर आना।
क्रि. अ.
[हिं. कीचड़+आना]


किचपिच, किचर पिचर
क्रमरहित, अस्पष्ट।
वि.
[अनु.]


किचपिच, किचर पिचर
छोटी छोटी बहुत सी संतान।
वि.
[अनु.]


किंतु
पर, परंतु, लेकिन।
अव्य.
[सं.]


किंपुरुख, किंपुरुष
किन्नर।
संज्ञा
[सं.]


किंभूत
कैसा, किस प्रकार का।
वि.
[सं.]


किंभूत
अद्भुत।
वि.
[सं.]


किंभूत
भद्दा, कुरूप।
वि.
[सं.]


किंवदंति, किंवदंती
उड़ती खबर, जन-रव।
संज्ञा
[सं.]


किंवा
या, अथवा, या तो।
अव्य.
[सं.]


किंशुक
पलाश, टेसू।
संज्ञा
[सं.]


कि
हिं ‘विभक्ति का’ का स्त्री. 'की'।
सूर पतित, तुम पतित उधारन, बिरद कि लाज धरे - १.१९८।
प्रत्‍य.
[हिं. का.]


कि
कैसे, किस प्रकार।
क्रि. वि.
[सं. किम्]


किछु
कुछ।
वि.
[हिं. कुछ]


किटकिट
व्यर्थ की बकवाद।
संज्ञा
[अनु.]


किटकिट
झगड़ा।
संज्ञा
[अनु.]


किटकिटाना
क्रोध से दाँत पीसना।
क्रि. अ.
[अनु.]


किट्ट
धातु पर जमा हुआ मैल।
संज्ञा
[हिं. कीट]


कित
कहाँ, किस ओर, किधर।
रूप-रेख-गुन-जाति-जुगति-बिनु निरालंब कित धावै - १ - २
क्रि. वि.
[सं. कुत्र]


कितक
कितने, बहुत, अधिक।
(क) ऐसौ नीप-बृच्छ बिस्तारा। चीर हार धौं कितक हजारा–७९९। (ख) हरि मुख बिधु मेरी अँखियाँ चकोरी। राखे रहति ओट पट जतननि तऊ न मानत कितक निहोरी - पृ. ३२८।
वि.
[सं. कियदेक, हिं. कितेक]


कितक
कितना, बहुत थोड़ा, बिलकुल साधारण।
(क) कितक बात यह धनुष रुद्र कौं सकल विश्व कर लैहौं। आज्ञा पाय देव रघुपति की छिनक माँझ हठ जैहौं - २२४ सारा.। (ख) अमित एक उपमा अव लोकत जिय में परत बिचार। नहिं प्रवेस अज सिव, गनेस पुनि कितक बात संसार–९९९ सारा.।
वि.
[सं. कियदेक, हिं. कितेक]


कितना
किस परिमाण, मात्र या संख्या का; बहुत अधिक।
वि.
[सं. कियत्]


कितना
किस मात्रा या परिमाण में ? कहाँ तक।
क्रि. वि.


कितनौ
कितना, कहाँ तक।
नैकु नहिं घर रहति, तोहिं कितनौ कइति, रिसन मोहिं दहति, बन भई हरनी - ६९८।
क्रि. वि.
[हिं. कितना]


कितव
जुआरी।
संज्ञा
[सं.]


कितव
छली कपटी।
रे रे मधुप कितव के बंधू चरन परस जिन करिहौं। प्रिया अंक कुंकुम कर राते ताही को अनुसरिहौं - ५६६ सारा.।
संज्ञा
[सं.]


कितव
पागल।
संज्ञा
[सं.]


कितव
दुष्ट।
संज्ञा
[सं.]


कितव
धतू्रा।
संज्ञा
[सं.]


किता
कपड़े की काट-छाँट या कतर-ब्योंत।
संज्ञा
(अ. कितऽ]


किता
चाल-ढाल।
संज्ञा
(अ. कितऽ]


किता
संख्या।
संज्ञा
(अ. कितऽ]


किताब
पुस्तक, ग्रंथ।
संज्ञा
(अ.]


कच्चा
जो ठीक से तैयार न हो।
वि.
[सं. कषण = कच्चा]


कच्चा
जो मजबूत या स्थायी न हो।
वि.
[सं. कषण = कच्चा]


कच्चा
जो ठीक या उचित न हो।
वि.
[सं. कषण = कच्चा]


कच्चा
जो प्रामाणिक तोल या नाप से कम हो।
वि.
[सं. कषण = कच्चा]


कच्चा
नासमझ, जो कुशल या चतुर न हो।
वि.
[सं. कषण = कच्चा]


कच्चा
बखिया, सींवन।
संज्ञा


कच्चा
ढाँचा, खाका।
संज्ञा


कच्चा
जबड़ा, दाढ़।
संज्ञा


कच्चा
पांडुलेख।
संज्ञा


कच्छ
कछुआ।
संज्ञा
[सं. कच्छप]


किताब
बही।
संज्ञा
(अ.]


किताबी
किताब का।
वि.
[अ. किताब]


किताबी
किताब के आकार का।
वि.
[अ. किताब]


किताबी
लंबोतरा।
वि.
[अ. किताब]


कितिक
कितनी, बहुत साधारण।
(क) राघौ जू, कितिक बात, तजि चिंत। - ९ - १०७।

(ख) कर गहि धनुष जगत कौं जीतैं, कितिक निसाचर जूथ - ९ - १४७। (ग) सतभामा सौं इती बात जबतें न कही री। कितिक कठिन सुरतरु प्रसून की या कारन तू रूठि रही री - १० उ. - २८।

वि.
[हिं. कितना]


कितिक
अधिक, बहुत ज्यादा।
काल-बितीत कितिक जब भयौ। गाई चरावन कौं सो गयौ - ९.१७३।
वि.
[हिं. कितना]


किती
कितनी, बहुत।
मन, तोसौं किती कही समुझाइ - १ - ३१७।
वि.
[सं. कियत]


किती
कितनी (संख्यावाचक)।
मैया कबहिं बढ़ेगी चोटी। किती बार मोहिं दूध पियति भई यह अजहूँ है छोटी - १० - १७५।
वि.
[सं. कियत]


किते
कितने। (संख्यावाचक)।
किते दिन हरि..सुमिरन बिनु खोए - १.५२।
वि.
[सं. कियत्, हिं. कित्ता या कित्ते]


कितेक
कितना।
वि.
[सं. कियदेक]


कितेक
बहुत, असंख्य।
वि.
[सं. कियदेक]


कितेब
ग्रन्थ, पुस्तक।
संज्ञा
[हिं. किताब)


कितेब
धर्मग्रन्थ।
संज्ञा
[हिं. किताब)


कितेब
कुरान।
संज्ञा
[हिं. किताब)


कितै
किस ओर, कहाँ, किधर।
पावँ अबार सु धारि रमापति, अजस करत जस पायौ। सूर कूर कहै मेरी बिरियाँ बिरद कितै बिसरायौ - १ - १८८।
क्रि. वि.
[सं. कुत्र, हिं. कित]


कितो
कितना, बहुत।
(क) सूर कितौ सुख पावत लोचन, निरखत। घुटुरुनि चाल - १० - १४८। (ख) मानैं नहीं कितौ समुझाई - ३९१।
वि.
[सं. कियत, हिं. कितो]


कितोक
कितना, कितना अधिक।
कितोक बीच बिरह परमारथ जानत हौ किधौ नाहीं - ३ ०७४।
वि.
[हिं. कितना, कितो]


कित्ति
कीर्ति, यश।
संज्ञा
[सं. कीर्ति, प्रा. कित्ति]


कित्तो, कित्तौ
कितना, कितना अधिक।
वि.
[हिं. कितना]


किधर
किस ओर।
क्रि. वि.
[सं. कुत्र]


किधों, किधौं
अथवा,या तो, न जाने।
(क) ह्वै अंतरधान हरि, मोहिनी रूप धरि, जाइ बन माहिं दीन्हे दिखाई। सूर-ससि किधौं चपला परम सुन्दरी, अंग भूषननि छबि कहि न जाई - ८ - १०। (ख) किधौं यह प्रतिबिंब जल में देखत किधौं निज रूप दोऊ है सुहाए - २५७०।
अव्य.
[सं. किम्]


किन
किसने, क्यों न।
(क) पुनि पाछैं अघ-सिंधु बढ़त है, सूर खाल किन पाटत - १ - १०७। (क) बिनु हरि भक्ति मुक्ति नहिं होई। कोटि उपाय करो किन कोई।

(ख) तौ लगि बेगि हरौ किन पीर। जौ लगि आन न आनि पहुँचै, फेरि परैगी भीर - १ - १९१।

क्रि. वि.
[सं. किम्+न]


किन
किस का बहुवचन।
सर्व.


किन
चिह्न, दाग, निशान।
संज्ञा
[सं. किण]


किनका
छोटा दाना, कण।
संज्ञा
[सं. कणिक]


किनका
छोटी बूँद।
संज्ञा
[सं. कणिक]


किनारा
किसी वस्तु की लंबाई चौड़ाई का सिरा।
संज्ञा
[फा.]


किनारा
जलाशय या नदी का तट, तीर।
संज्ञा
[फा.]


किनारा
हाशिया, बार्डर। बगल, पार्श्‍व।
संज्ञा
[फा.]


किनि
किसने, किनने।
किनि बहकाइ दई है तुमकौं, ताहि पकरि लै जाँहि - ७५३।
सर्व.
[हिं. 'किस']


किनिका, किनुका
छोटा दाना, कण।
संज्ञा
[हिं. किनका]


किन्नर
देवताओं का एक वर्ग जो पुलस्त्य ऋषि का वंशज माना जाता है। किन्नरों का मुख घोड़े के समान होता है और ये संगीत में निपुण होते हैं।
संज्ञा
[सं.]


किन्नर
तँबूरा या सारंगी।
एक बीना, एक किन्नर, एक मुरली, एक उपंग एक तुंमर एक रबाब भाँति सौ दुरावै–५२४२।
संज्ञा
[सं. किन्नरीवीणा]


किन्नरी
किन्नर जाति की स्त्रियाँ
संज्ञा
[सं.]


किन्नरी
तंबूरा या सारंगी।
(क) झँझ झालरी किन्नरी रँग भीजी ग्वालिनि - २४०५।

(ख) ताल मुरज रबाब बीना किन्नरी रस सार - पृं ३४६ (४५)। (ग) बाजत बीन रबाब किन्नरी अमृत कुंडली यंत्र - १०७३ सारा.।

संज्ञा
[सं. किन्नरी वीणा]


किफायती
कमखर्ची, मितव्यय।
संज्ञा
[अ.]


किफायती
कम खर्च करनेवाला, मितव्ययी।
वि.
[अ. किफायत]


किफायती
कम दाम का।
वि.
[अ. किफायत]


किमपि
कोई भी, कुछ भी।
कोक कोटि करम सरसि कहरि सूरज बिबिध कल माधुरी किमपि नाहिंन बची - २२६८।
सर्व., सवि.
[सं. किम्]


किमि
कैसे, किस प्रकार, किस तरह।
बिदुखि सिंधु सकुचत, सिव सोचत, गरलादिक किमि जात पियौ - १० - १४३।
क्रि. वि.
[सं. किम्]


किम्
क्या,
वि., सर्व.
[सं.]


किम्
कौन सा।
वि., सर्व.
[सं.]


किय
किया।
निर्भय किय लंकेस बिभीषन राम लखन नृप दोय - २९५ सारा.
क्रि. स.
[हिं. करना, किया]


कियत्
कितना।
वि.
[सं.]


कियारी
सिंचाई के लिए बनाये गये खेतों के छोटे छोटे भाग।
संज्ञा
[हिं. क्यारी]


कियारी
बागबगीचों की नाली की तरह या गोल-तिकोनी खुदी पंक्तियाँ जिन में अलग अलग पेड़ लगाये जाते हैं, क्यारी।
संज्ञा
[हिं. क्यारी]


किये, कियौ
‘करना’ क्रिया के भूतकालिक रूप ‘किया' का ब्रजभाषा रूप, किया।
(क) रोर कै जोर तैं सोर घरनी कियौ, चल्यौ द्विज द्वारिका-द्वार ठाढ़ौ - १ - ५। (ख) का न कियौ जन-हित जदुराई - १ - ६।

(ग) चरित अनेक किये रघुनायक अवधपुरी सुख दीन्हो—३०८ सारा.।

क्रि. स.
[सं. करण, हिं करना]


किरका, किरको
कंकड़, किरकिरी।
गर्व करत गोबर्द्धन गिरि कौ। पर्वत माँह आह वह किरका - १०४३।
संज्ञा
[सं. कर्कट=कंकड़ी]


किरकिटी
कण या धूल जो आँखों में पढ़ कर दुख देती है।
संज्ञा
[सं. ककट)


किरकिरा
जिसमें महीन गर्द मिली हो।
वि.
[सं. कर्कट]


किरकिराना
हलकी हलकी पीड़ा होना।
क्रि. अ.
[हिं. किरकिरा]


किरकिरी
धूल या तिनके का कण, किनका।
संज्ञा
[सं. कर्कट]


किरकिरी
शान में बट्टा लगाना, अप्रतिष्ठा।
संज्ञा
[सं. कर्कट]


किरकिल
शरीर की वह वायु जिससे झींक आती है।
संज्ञा
[सं. कृकर या कृकल]


किरकिला
मछली खानेवाला एक पक्षी।
संज्ञा
[हिं. किलकिला]


किरकिला
संज्ञा
एक समुद्र।


किरकी
एक गहना।
संज्ञा
[सं. किंकिणी]


किरच, किरचक
(काँच आदि का) छोटा नुकीला टुकड़ा।
छाँड़ि कनक-मनि रतन अमोलक, काँच की किरच गही - १ - ३२४।
संज्ञा
[सं. कृति=कैंची (अस्त्र)]


किरण
प्रकाश या ज्योति की रेखाएँ, रश्मि, मयूख।
संज्ञा
[सं.]


किरणमाली
सूर्य।
संज्ञा
[सं.]


किरतम
माया, प्रपंच।
संज्ञा
[सं. कृत्रिम]


किरनि
ज्योति या प्रकाश की रेखाएँ, किरण।
संज्ञा
[सं. किरण]


किरनि
ज्योति-रेखाएँ, मयूख, रश्मि, मरीचि।
तरनि किरन महलनि पर झाँई इहै मधुपुरी नाम - २५५९।
संज्ञा
[सं. किरण]


किरपा
दया, कृपा, अनुग्रह।
कर जोरे बिनती करी दुरबल-सुखदाई। पाँच गाउँ पाँचौ जननि किरपा करि दीजै। ये तुमरे कुल वंस हैं, हमरी सुनि लीजै - १ - २३८।
संज्ञा
[सं. कृपा]


किरपान
तलवार।
संज्ञा
[सं. कृपाण]


किरम
कीड़ा।
संज्ञा
[सं. कृमि]


किरमाल
तलवार, खड्ग।
संज्ञा
[सं. करवाल]


किरराना
क्रोध से दाँत पीसना।
क्रि. अ.
[अनु.]


किरराना
किर्र किर्र शब्द करना।
क्रि. अ.
[अनु.]


किरवान, किरवार
तलवार, खड्‍ग।
संज्ञा
[हिं. करवाल]


किरवारा
अमलतास का पेड़।
संज्ञा
[सं. कृतमाल]


किरषि
खेती, किसानी।
धर बिधसि नर करत किरषि हल,बारि, बीज बिथरै। सहि सन्मुख तउ सीत-उष्न कौं, सोई सुफल करै - १ - ११७।
संज्ञा
[सं. कृषि]


किराँची, किराचिन
माल ढोने की गाड़ी।
संज्ञा
[अँ. केरोच]


किराँची, किराचिन
बैलगाड़ी।
संज्ञा
[अँ. केरोच]


किरात
एक जंगली जाति।
संज्ञा
[सं.]


किरान
पास, निकट।
क्रि. वि.
[अ. किरान]


किराना
मसाले और सूखा मेवा।
संज्ञा
[सं. क्रपण]


किराया
भाड़ा।
संज्ञा
[अ.]


किरार
एक नीच जाति।
संज्ञा
[देश.]


किरावल
लड़ाई का मैदान ठीक करनेवाली सेना जो सब से आगे जाती है।
संज्ञा
[तु. करावल]


किरिच, किरिचक
काँच आदि का नुकीला टुकड़ा।
लोक लज्जा काँच किरिचक स्याम कंचन खानि।
संज्ञा
[हिं. किरच]


किरिन
किरणें।
(क) सुंदर तन, सुकुमार दोउ जन, सूर-किरिन कुम्हिलात - ९ - ४३। (ख) अनतहि बसत अनत ही डोलत आवत किरिन प्रकास - - २०१८।
संज्ञा
[सं. किरण]


किरिया
सौगंध, कसम।
संज्ञा
[सं. क्रिया]


किरिया
क्रिया - कर्म।
संज्ञा
[सं. क्रिया]


किरीट
माथे पर बाँधने का एक भूषण जिसके ऊपर कभी कभी मकुट भी पहना जाता था।
संज्ञा
[सं.]


किरीटी
इंद्र।
संज्ञा
[सं.]


किरीटी
अर्जुन।
संज्ञा
[सं.]


किरीटी
राजा।
संज्ञा
[सं.]


किरीरा
खेल, क्रीड़ा।
संज्ञा
[हिं. क्रीड़ा]


किरोध
गुस्सा, क्रोध।
संज्ञा
[सं. क्रोध]


किर्च
एक तरह की तलवार।
संज्ञा
[हिं. किरच]


किर्तनिया
कीर्तन करनेवाला।
संज्ञा
[सं. कीर्त्‍तन]


किल
अवश्य, निश्चय ही।
अव्य.
[सं.]


किल
सचमुच।
अव्य.
[सं.]


किलक
किलकने या हर्ष ध्वनि करने की क्रिया।
गरज किलक आघात उठत, मनु दामिनि पावक झार - ९ - १२४।
संज्ञा
[हिं.किलकना]


किलकत
हँसते हैं, हर्षध्वनि करते हैं, किलकारी मारते हैं।
(क) निरखि जननी-बदन किलकत त्रिदसपति दै तारि - १० - ७१। (ख) हरि किलकत जसुदा की कनियाँ - १० - ८१।
क्रि. अ.
[हिं. किलकना]


किलकन
किलकने की क्रिया,किलक।
संज्ञा
[हिं. किलकना]


किलकना
किलकारी मारना, हर्षध्वनि करना।
क्रि. अ.
[सं. किलकिला]


किलकनि
किलकारी, हर्षध्वनि।
पुन्य फल अनुभवति सुतहिं बिलोकि कै नँद-घरनि। सूर प्रभु की उर बसी किलकनि ललित लरखरानि - १० - १०९।
संज्ञा
[हिं. किलकना]


किलकात
किलकते हैं, हर्ष ध्वनि करते हैं।
बिहरत बिबिध बालक सँग।….। चलत मग, पग बजति पैजनि, परस्पर किलकात। मनौ मधुर मराल-छौना बोलि बैन सिहात - १०.१८४।
क्रि. अ.
[हिं. किलकारना]


कँगूरन
शिखर, चोटी।
स्रवनन सुनत रहत जाको नित सो दरसन भये नैन। कंचन कोट कँगूरन की छबि मानहु बैठे मैन - २५५६।
संज्ञा
[हिं. कँगूरा]


कँगूरा
शिखर, चोटी।
संज्ञा
[फा. कुँगरा]


कँगूरा
किले का बुर्ज।
संज्ञा
[फा. कुँगरा]


कँगूरा
गहनों में शिखर की तरह की बनावट।
संज्ञा
[फा. कुँगरा]


कंघा
बाल झाड़ने की वस्तु।
संज्ञा
[सं. कंक]


कंच
शीशा, काँच।
संज्ञा
[हिं. काँच]


कंचन
सोना, स्वर्ण।
संज्ञा
[सं. कांचन]


कंचन
धन, संपत्ति।
संज्ञा
[सं. कांचन]


कंचन
धतूरा।
संज्ञा
[सं. कांचन]


कंचन
स्वस्थ।
वि.


कछनी
घुटने के ऊपर चढ़ा कर पहनी हुई छोटी धोती।
(क) कोउ निरखि कटि पीत कछनी मेखला रुचिकारि। कोउ निरखि हृद- नाभि की छबि डारयौ तन-मन-बारि - - - ६३४। (ख) खेलत हरि निकसे ब्रज खोरी। कटि कछनी पीताम्बर बाँधे, हाथ लए भौंरा, चक, डोरी - ६७२।
संज्ञा
[हिं. काछना]


कछप
विष्णु के चौबीस अवतारों में से एक।
सुरनि-हित हरि कछपरूप धारयौ। मथन करि जलधि, अंमृत निकारयौ - - ८ - ८।
संज्ञा
[सं. कच्छप]


कछप
कछुआ।
संज्ञा
[सं. कच्छप]


कछरा
मिट्टी का चौड़े मुँह का एक पात्र जिसकी अवँठ ऊँची और दृढ़ होती है।
संज्ञा
[सं. क = जल + क्षरण = गिरना]


कछान
घुटने से ऊँची धोती पहनना।
संज्ञा
[हिं. काछना]


कछार
नदी या अन्य जलाशय के किनारे की नीची और तर भूमि, खादर, दिवारा।
संज्ञा
[हिं. कच्छ]


कछु
थोड़ी संख्या या मात्रा का, जरा, थोड़ा, टुक।
वि.
[सं. किंचित्, पा. किंची, पू. हिं. किछु, हिं. कुछ]


कछु
कोई (वस्तु या बात)।
सर्व.
[सं. कश्चित, पा. कोचि]


कछुअ
कुछ, थोड़ा।
ऊधो जो तुम बात कही। ताको कछुअ न उत्तर आवै समुझि बिचारि रही - ३३७०।
वि.
[हिं. कुछ]


कछुआ
एक जल-जन्तु जिसकी पीठ बड़ी कड़ी होती है। यह जमीन पर भी चल सकता है।
संज्ञा
[सं. कच्छप]


किलकार
हर्षध्वनि, किलकारी।
चकित सकल परस्पर बानर बीच परी किलकार। तहँ इक अद्‍भुत देखि निसिचरी सुरसामुख-बिस्तार - ९ - ७४।
संज्ञा
[हिं. किलक]


किलकार
किलकते हैं, ध्वनि करते हैं।
गर्जत गगन गयंद गुजरत अरु दादुर किलकार - २८२०।
क्रि. अ.


किलकारत
किलकारी भरते हैं, हर्षध्वनि करते हैं।
गावत, हाँक देत, किलकारत, दुरि देखत नंदरानी। अति पुलकति गदगद मुख बानी, मन-मन महरि सिहानी - १० - २५३।
संज्ञा
[हिं. किलकारना]


किलकारना
उत्साह दिखाना, हर्षध्वनि करना।
क्रि. अ.
[सं. किलकना]


किलकारि, किलकारी
हर्षध्वनि, किलकार।
(क) द्रुम गहि उपाटि लिए, दै दै किलकारी। दानव बिन प्रान भए, देखि चरित भारी - ९९६।

(ख) रीछ लंगूर किलकारि लागे करन, आन रघुनाथ की जाइ फेरी - ९ - १३८।

संज्ञा
[हिं. किलकना]


किलकिंचित
संयोग शृंगार का एक हाव जिसमें एक साथ कई भाव नायिका प्रकट करती है।
संज्ञा
[सं.]


किलकि
किलकारी मारकर, हर्षध्वनि करके, आनंद प्रकट करके।
(क) आपु गयौ तहाँ जहाँ प्रभु परे पालनै, कर गहे चरन अँगुठा चचोरैं। किंलकि किलकत हँसत, बाल सोभा लसत, जानि यह कपट, रिपु आयौ भोरैं - १० - ६२। (ख) हँसे तात मुख हेरिकै, करि पग - चतुराई। किलकि झटकि उलटे परे, देवन-मुनि राई - १० - ६६।
क्रि. अ.
[हिं. किलकना]


किलकिल
लड़ाई-झगड़ा।
संज्ञा
[अनु.]


किलकिला
मछली-खानेवाली एक छोटी चिड़िया जो पानी से आठ दस हाथ ऊपर उड़ती हुई बड़ी सतर्कता से मछली को देखती है।
जैसैं मीन किलकला दरसत, ऐसैं रहौ प्रभु डाटत - १ - १०७।
संज्ञा
[सं. कूकल]


किलकिला
हर्षध्‍वनि।
संज्ञा
[सं.]


किलकिलात
चिल्लाता हुआ, भयंकर शब्द करता हुआ।
रावन, उठि निरखि देखि, आजु लंक घेरी। ••••••। गहगरात किलकिलात अंधकार आयौ। रबि कौ रथ सूझत नहिं, धरनि गगन छायौ - ९.१३९।
क्रि. अ.
[हिं. किलकिलाना]


किलकिलाना
हर्षध्वनि करना।
क्रि. अ.
[हि. किलकिला]


किलकिलाना
चिल्लाना।
क्रि. अ.
[हि. किलकिला]


किलकिलाना
झगड़ा करना।
क्रि. अ.
[हि. किलकिला]


किलकिहि
किलकारी मारेगा, हर्षध्वनि करेगा।
काकी ध्वजा बैठि कपि किलकिहि, किहिं भय दुरजन डरिहैं - १ - २९।
क्रि. अ.
[हिं. किलकना]


किलकी
किलकारी भरी, हर्षध्वनि की।
सुपने हरि आये हौं किलकी - २७८६
क्रि. अ.
[हिं. किलकना]


किलकै
किलकता है, किलकारी भरता है, हर्षध्वनि करता है।
आँनंद प्रेम उमंगि जसोदा खरी गोपाल खिलावै। कबहुँक हिलके-किलकै जननी-मन-सुख-सिंधु बढ़ावै - १० - १३०।
क्रि. अ.
[हिं. किलकना]


किलकैया
किलकारी भरनेवाला।
संज्ञा
[हिं. किलकना]


किलना
मंत्रों से कीला जाना।
क्रि. अ.
[हिं. कील]


किलना
वश में किया जाना।
क्रि. अ.
[हिं. कील]


किलना
गति रोका जाना।
क्रि. अ.
[हिं. कील]


किलनी
एक छोटा कीड़ा, किल्ली।
संज्ञा
[सं. कीट, हिं. कीड़ा]


किलबिलाना
बहुत से कीड़ों या छोटे छोटे जंतुओं का थोड़ी जगह में हिलना-डोलना, चंचल होना।
क्रि. अ.
[हिं. कुलबुलाना]


किलवॉंक
एक तरह का घोड़ा।
संज्ञा
[देश.]


किलवाना
कील जड़ाना।
क्रि. स.
[हिं. कीलन]


किलवाना
टोना-टुटका कराना।
क्रि. स.
[हिं. कीलन]


किलवाना
तंत्र-मंत्र से भूत-प्रेत की बाधा रुकाना।
क्रि. स.
[हिं. कीलन]


किलविष
पाप।
संज्ञा
[सं. किल्विष]


किलविष
दोष।
संज्ञा
[सं. किल्विष]


किलविष
रोग।
संज्ञा
[सं. किल्विष]


किला
गढ़, दुर्ग।
संज्ञा
[अ. किला]


किलोल
क्रीड़ा,
संज्ञा
[सं. कल्लोल, हिं. कलोल]


किल्लत
कमी, तंगी।
संज्ञा
[अ.]


किल्लत
कठिनता।
संज्ञा
[अ.]


किल्ली
खूँटी, मेख।
संज्ञा
[हिं, कीला]


किल्ली
सिटकिनी।
संज्ञा
[हिं, कीला]


किल्ली
कल चलाने की मुठिया।
संज्ञा
[हिं, कीला]


किल्विष
पाप।
संज्ञा
[सं.]


किल्विष
दोष। रोग।
संज्ञा
[सं.]


किवाड़, किवार
पट, कपाट, किवाड़।
संज्ञा
[हिं. किवाड़]


किवाड़, किवार
दीन्हे रहत किवार- द्वार बंद रखता है। उ.- गढ़वै भयौ नरकपति मोसो, दीन्हे रहत किवार। सेना साथ भाँति भाँतिन की, कीन्हें पाप अपार - १ - १४१। लाइ किवार- किवाड़ लगाकर, द्वार बंद करके। उ.- सूर पाप कौ गढ़ दृढ़ कीन्हौ, मुहकम लाई किवार - १ - १४४।
मु.


किवाड़, किवार
पट, कपाट, किवाड़।
लंक गढ़ माहिं आकास मारग गयो, चहूँ दिसि बज्र लागे किवारा - ९ - ७६।
संज्ञा
[हिं. किवार, किवाड़]


किशमिश
सुखायी हुई छोटी दाख।
संज्ञा
[फ़ा]


किशमिश
किशमिश के रंग का।
वि.


किशलय
नया पत्ता, कल्ला।
संज्ञा
[सं.]


किशोर
११ से १५ वर्ष की अवस्था का बालक।
संज्ञा
[सं .]


किशोर
पुत्र।
संज्ञा
[सं .]


किशोरक
छोटा बालक।
संज्ञा
[सं.]


किष्किंध
मैसूर प्रदेश का प्राचीन नाम।
संज्ञा
[सं.]


किष्किंधा
किष्किंध देश की एक पर्वत श्रेणी।
संज्ञा
[सं.]


किस
‘कौन’ का विभक्तिरहित रूप।
सर्व.
[सं. कस्य]


किसनई
किसानी।
संज्ञा
[हिं. किसान]


किसब
कारीगरी, व्यवसाय।
संज्ञा
[अ. कसबी]


किसमिस
सुखाया हुआ छोटा अंगूर, किशमिश।
संज्ञा
[फा. किशमिश]


किसमी
मजदूर, श्रमजीवी।
संज्ञा
[अ. कसबी]


किसलय
कोमल पत्ता, कल्ला।
संज्ञा
[सं. किशलय]


किसान
खेती करनेवाला।
संज्ञा
[सं. कृषक]


किसानी
खेती बारी।
संज्ञा
[हिं. किसान]


किसी
(कोई) का वह रूप जो विभक्ति लगने पर प्राप्त होता है।
सर्व., वि.
[हिं. किस+ही]


किसू
किसी।
सर्व.
[हिं. किसी]


किहि
किस।
महा मधुर प्रिय बानी बोलत, साखामृग, तुम किहि के तात - ९ - ६९।
सर्व.
[हिं. केहि]


की
हिं. विभक्ति ‘क’ का स्त्री।
बासुदेव कौ बड़ी बड़ाई। जगतपिता जगदीस जगतगुरु, निज भक्तनि की सहत ढिठाई - १ - ३।
प्रत्‍य.
[हिं. की]


की
हिं, ‘करना’ के भूत कालिक रूप ‘किया' का स्त्री,।
अब भ्रम-भँवर परयौ व्रजनायक निकसन की बस विधि की। - १ - २१३।
क्रि. स.
[सं. कृत, प्रा. कि]


की
क्या ?
अव्‍य.
[‘कि' का विकृत रूप]


की
या तो।
अव्‍य.
[‘कि' का विकृत रूप]


कीक
चीख, चिल्लाहट, चीत्कार।
संज्ञा
[अनु.]


कीकट
मगध-प्रदेश का प्राचीन नाम।
संज्ञा
[सं.]


कीकट
घोड़ा।
संज्ञा
[सं.]


कीकना
हर्ष-भय में ‘की की' शब्द करना।
क्रि. अ.
[अनु.]


कीका
घोड़ा।
संज्ञा
[सं. ककट]


किसोर
११ वर्ष से १५ वर्ष तक की अवस्था का।
वि.
[सं. किशोर]


किसोर
११ वर्ष से १५ वर्ष तक की अवस्था का बालक।
संज्ञा


किसोर
पुत्र, बेटा।
संज्ञा


किसोरी
पुत्री, बेटी।
संज्ञा
[सं. किशोरी]


किसोरी
छोटी अवस्‍था की लड़की।
नयौ नेह, नयौ गेह, नयौ रस, नवल कुँवरि वृषभानु किसोरी - ६८५।
संज्ञा
[सं. किशोरी]


किस्‍म
भेद, प्रकार, जाति, चाल।
संज्ञा
[अ.]


किस्सा
कहानी, गल्प।
संज्ञा
[अ.]


किस्सा
बात, हाल, समाचार।
संज्ञा
[अ.]


किस्सा
झगड़ा-बखेड़ा।
संज्ञा
[अ.]


किहिं
किस, किसके।
किहिं भय दुरजन डरिहै - १ - २९।
सर्व.
[हिं. केहि]


कीकै
कूक, कीक, चिल्लाहट, चीत्कार।
सूरदास प्रभु भलैं परे फँद, देउँ न जान भावते जी कैं। भरि गंडूक, छिरक दै नैननि, गिरिधर भाजि चले दै कीकै १० - २८७।
संज्ञा
[अनु. हिं. कीक]


कीच
कीचड, पंक, कर्दम।
(क) सुनि सुनि साधु-बचन ऐसौ सठ, हठि औगुननि हिरानौ। धोयौ चाहत कीच भरौ पट, जल सौं रुचि नहिं मानौ - १ - १९४। (ख) भाजन फोरि दहीं सब डारयौ माखन कीच मचायौ - १० - ३४२।

(ग) कुमकुम कज्जल कीच बहै जनु कुच जुग पारि परी - २८१४।

संज्ञा
[सं. कच्छ]


कीचक
राजा विराट का साला जो उसका सेनापति भी था। पांडवों के अज्ञातवास काल में इसने द्रौपदी पर कुदृष्टि डाली थी। इसलिए भीम ने इसे मार डाला था।
संज्ञा
[सं.]


कीचड़, कीचर
गंदी गीली मिट्टी, पंक।
संज्ञा
[हिं. कीच+ड़ (प्रत्य.)]


कीचड़, कीचर
आँख का मैल।
संज्ञा
[हिं. कीच+ड़ (प्रत्य.)]


कीजत
करते हैं, (कार्य) संपादन करते हैं।
(क) जो कछु करन कहत सोई सोइ कीजत अति अकुलाए - १ १६३।

(ख) मोहन तेरे आधीन भये री। इति रिस कबते कीजत री गुनआगरी नागरी - २२५०।

क्रि. स.
[हिं. करना]


कीजिए
किसी काम के संपादन के लिए निवेदन करना, करिए।
अब मोहिं कृपा कीजिए सोइ। फिर ऐसी दुरबुद्धि न होइ - ४ - ५।
क्रि. स.
[हिं. करना]


कीजै
कीजिए, करिए।
(क) मैं-मेरी कबहूँ नहिं कीजै, कीजै पंच-सुहायौ - १ - ३०२।

(ख) दीन-बचन संतनि-सँग दरस-परस कीजै - १ - ७२। (ग) हरि को दोष कहा करि दीजै जो कीजै सो इनको थोर - पृ. ३३५।

क्रि. अ.
[हिं. करना]


कीजैगी
करेगी, किया जायगा।
अवसर गऐं बहुरि सुनि सूरज कह कीजैगी देह। बिछुरत हंस बिरह कैं सूलनि, झूठे सबै सनेह - ८०१।
क्रि. स.
[हिं. करना]


कीजौ
करना।
नृप कै हाथ पत्र यह दीजौ, बिनती कीजौ मोरि - ५८३।
क्रि. स.
[हिं. करना]


कीट
कीड़ा मकोड़ा।
संज्ञा
[सं.]


कीट
मैले।
संज्ञा
[सं. किट्ट]


कीड़ा
उड़ने या रेंगनेवाले छोटे-छोटे जंतु।
संज्ञा
[सं. कीट, प्रा. कीड़]


कीड़ा
थोड़े दिन का बच्चा।
संज्ञा
[सं. कीट, प्रा. कीड़]


कीड़ी
छोटा कीड़ा।
संज्ञा
[हिं. कीड़ा]


कीड़ी
चींटी।
संज्ञा
[हिं. कीड़ा]


कीड़ी
क्रीड़ी तनु ज्यों पाँख उपाई- चिउँटी के पंख निकलना। इस तरह इतराना, क्रोध या गर्व करना कि अंत में मरना ही पड़े। उ.- गिरिवर सहितै ब्रजै बहाई। सूरदास सुरपति रिस पाई। कीड़ी तनु ज्यौं पाँख उपाई - १०४१।
मु.


कीदहु
या, अथवा।
अव्य.
[हिं. किधौं]


कीदहु
या तो, न जाने।
अव्य.
[हिं. किधौं]


कीधौं
अथवा, किधौं, कैंधौं, या, या तो।
(क) निसि के उनींदे नैन, तैसे रहे ढरि ढरि। कीधौं कहूँ प्यारी को लागी टटकी नजरि - ७५२। (ख) हँसत कहत कीधौं सतभाव - १२४०। (ग) कीधौं कौन कार्य को आये सो पूँछत हौं तोहि - ८१३ सारा.।
क्रि. वि.
[सं. किम्, हिं. किधौं]


कच्छ
नदी या जलाशय के किनारे की जमीन, कछार।
संज्ञा
[सं.]


कच्छ
तुन का पेड़।
संज्ञा


कच्छप
कछुआ नामक जलजंतु।
संज्ञा
[सं.]


कच्छप
विष्णु के २४ अवतारों में से एक।
हरि जू की आरती बनी। अति विचित्र रचना रचि राखी, परति न गिरा गनी। कच्छप अध आसन अनूप अति, डाँडी सहस फनी - २ - २८।
संज्ञा
[सं.]


कच्छपी
कछुई।
संज्ञा
[सं.]


कच्छपी
छोटी वीणा।
संज्ञा
[सं.]


कच्छपी
सरस्वती की वीणा का नाम।
संज्ञा
[सं.]


कच्छा
एक तरह की नाव।
संज्ञा
[सं. कच्छ]


कच्छू
कछुआ।
संज्ञा
[सं. कच्छप]


कछना
पहिनना, धारण करना।
संज्ञा
[हिं. काछना]


कौन
किया, संपादित किया।
(क) दुष्टनि दुख, सुख संतनि दीन्हौ, नृप-व्रत पूरन कीन - ९ - २६। (ख) मुकुट कुंडल किरनि रवि छबि परम बिगसित कीन - २३५८।

(ग) सूरदास प्रभु बिन गोपालहिं कत बिघनै एई कीन - २७६८।

क्रि. स.
[हिं. करना]


कौन
रची, लिखी, बनायी, संपादित की।
नंदनंदनदास हित साहित्यलहरी कीन - सा. १०९।
क्रि. स.
[हिं. करना]


कीनना
खरीदना, मोल लेना।
क्रि. स.
[सं. क्रीणन]


कीना
द्वेष, वैर।
संज्ञा
[फा.]


कीनी
की, किया।
(क) बरज्यौ आवत तुम्हैं असुर-बुद्धि इन यह कीनी - ३ - ११।

(ख) एक मीन ने भक्ष कियो तब हरि रखबारी कीनी–६९३ सारा.।

क्रि. अ.
[हिं. करना]


कीनी
पत्नी बनाया।
बाम बाम जिन सजनी कीनी। तिनकौ ऊधौ कहाँ बात बढ़ हम हित जोग जुगुत चित चीनी - सा. ५९।
क्रि. अ.
[हिं. करना]


कीनी
कर दी, नाप ली।
अहुँठ पैग बसुधा सब कीनी - १० - १२५।
क्रि. अ.
[हिं. करना]


कीने
किये, कर दिया, किये है।
थकित भए कछु मंत्र न फुरई, कीन मोह अचेत - १ - २९।
क्रि. स.
[हिं. करना]


कीनौ
भूत. ‘किया’ का व्रज, प्रयोग, किया, संपादित किया।
नर तैं जनम पाइ कह कीनौ - १ - ६५।
क्रि. स.
[हिं. करना]


कीनौ
करनी का फल।
जो मेरैं लाल खिझावै। सो अपनो कीनौ पावै - १० - १८३।
संज्ञा


कीन्यौ
किया।
बाँधन गए, बँधाए आपुन, कौन सयानप कीन्यौ - ८.१५।
क्रि. स. (भूत.)
[हिं. करना]


कीन्ही
‘करना' क्रिया के भूतकालिक रूप ‘किया' का ब्रजभाषिक स्त्रीलिंग, की।
भक्तनि हित तुम कहा न कियौ ? गर्भ परिच्छित इच्छा कीन्ही अम्बरीष-ब्रत राखि लियौ - १.२६।
क्रि. स.
[हिं. करना]


कीन्हें
करना' क्रिया के भूतकालिक रूप ‘किये' का ब्रजभाषा बहुवचन अथवा आदर-सूचक रूप, कार्य संपादित किये।
(क) मागध हत्यौ, मुक्‍त नृप कीन्हें, मृतक बिप्र-सुत दीन्ह्यौ - १ - १७। (ख) कीन्हें केलि बिबिध गोपिन सों सबहिन कौं सुख दीन्हें - ८६७ सारा.।
क्रि. स.
[हिं. करना]


कीन्हें
बनाये, स्वीकार किये।
कीन्हें गुरु चौबीस सीख लै जदु को दीन्हो ज्ञान - ६२ सारा.।
क्रि. स.
[हिं. करना]


कीन्हौं
‘करना’ क्रिया के भूतकालिक रूप ‘किया' का ब्रजभाष रूप, किया।
(क) रघुकुल राघव कृष्न सदा ही गोकुल कीन्हीं थानौ - १ - ११। (ख) कौरौ-दल नासि नासि कीन्हौं जन-भायौ- १- २३।
क्रि. स.
[हिं. करना]


कीन्हयौ
किया।
बहुत जन्म इहिं बहु भ्रम कीन्ह्यौ - ४.११।
क्रि. स. (भूत.)
[हिं. करना]


कीमत
मूल्य, दाम।
संज्ञा
[अ. क्रीमत]


कीमती
अधिक मूल्य का।
वि.
[अ.]


कीमिया
रसायन, रासायनिक क्रिया।
संज्ञा
[फा.]


कीये
किये।
क्रि. स.
[हिं. करना]


कीरी
बहुत छोटे छोटे कीड़े।
संज्ञा
[सं. कोट]


कीण
बिखरा या फैला हुआ।
वि.
[सं.]


कीण
छाया हुआ, ढका हुआ।
वि.
[सं.]


कीर्त्‍तन
यश गुण-वर्णन।
संज्ञा
[सं.]


कीर्त्‍तन
राम-कृष्ण लीला के भजन, गीत या कथा।
संज्ञा
[सं.]


कीर्त्‍तन
भक्ति का एक अंग।
स्रवन, कीर्तन, स्मरनपाद, रत अरचन बंदन दास - ११६ सारा.।
संज्ञा
[सं.]


कीर्त्तनिया
राम-कृष्ण की लीला को गानेवाला, कीर्त्त करनेवाला।
संज्ञा
[सं. कीर्तन+इया (प्रत्य.)]


कीर्ति, कीर्त्ति
पुण्य।
संज्ञा
[सं.]


कीर्ति, कीर्त्ति
यश, बड़ाई।
तेरो तनु धनरूप महागुन सुन्दर स्याम सुनी यह कीर्ति - २२२३।
संज्ञा
[सं.]


कीर्ति, कीर्त्ति
सीता की एक सखी।
संज्ञा
[सं.]


कीये
बनाये, चुने, स्थापित या नियुक्त किये।
आठों लोकपाल तब कीये अपन अपन अधिकार २० सारा.।
क्रि. स.
[हिं. करना]


कीर
तोता।
(२) बहेलिया।
संज्ञा
[सं.]


कीर
कीड़ा।
संज्ञा
[सं. कीट]


कीरत, कीरति
पुण्य।
संज्ञा
[सं. कीर्त्ति]


कीरत, कीरति
ख्‍याति, बड़ाई।
नंदनंदन की कीरत सूरज संभावन गावै - सा. ६३।
संज्ञा
[सं. कीर्त्ति]


कीरत, कीरति
राधा की माता कीर्ति।
संज्ञा
[सं. कीर्त्ति]


कीरतन
कथन, यश-गुणवर्णन।
जाके गृह मैं हरि-जन जाइ। नामकीरतन करै सो गाइ - ६ - ४।
संज्ञा
[सं. कीर्तन]


कीरतन
राम कृष्ण-लीला संबंधी भजन या गीत।
संज्ञा
[सं. कीर्तन]


कीरति-सुता
कीर्ति की पुत्री, राधा।
संज्ञा
[सं. कीर्ति+सुता=पुत्री]


कीरी
चीटी, कीड़ा।
संज्ञा
[सं. कोट]


कीर्ति, कीर्त्ति
राधा की माता का नाम।
संज्ञा
[सं.]


कीर्त्तिमान
यशस्वी।
वि.
[सं.]


कीर्त्तिस्‍तंभ
किसी की किर्त्ति की स्मृति-रक्षा में निर्मित स्तंभ।
संज्ञा
[सं.]


कीर्त्तिस्‍तंभ
वह कार्य या वस्तु जिससे किसी की कीर्त्ति की स्मृति-रक्षा की जाय।
संज्ञा
[सं.]


कील
मेख, काँटा, खूँटी।
संज्ञा
[सं.]


कील
नाक में पहनने का एक छोटा आभूषण, लौंग।
संज्ञा
[सं.]


कीलन
रोक, रुकावट।
संज्ञा
[सं.]


कीलन
मंत्र कीलने की क्रिया।
संज्ञा
[सं.]


कीलना
कील लगाना।
क्रि. स.
[सं. कीलन]


कीलना
मंत्र का प्रभाव नष्ट करना।
क्रि. स.
[सं. कीलन]


कीलना
वश में करना।
क्रि. स.
[सं. कीलन]


कीलित
जड़ित।
वि.
[हिं. कलना]


कीलित
निश्चेष्ट।
वि.
[हिं. कलना]


कीली
चक के बीच की कील या धुरी जिस पर वह घूमता है।
संज्ञा
[सं. कील]


कीली
धुरी या कील।
संज्ञा
[सं. कील]


कीश, कीस
बंदर, बानर, लंगूर।
रीछ कीस बस्य करौं, रामहिं गहि ल्याऊँ - ९ - ११८।
संज्ञा
[सं. केश]


कीश, कीस
सूर्य।
संज्ञा
[सं. केश]


कीसा
थैली
संज्ञा
[फा.]


कीसा
जेब।
संज्ञा
[फा.]


कुँअर
लड़का।
संज्ञा
[सं. कुमार, हिं. कुँवर]


कुँअर
राजकुमार।
संज्ञा
[सं. कुमार, हिं. कुँवर]


कुँअर
धनी का पुत्र।
संज्ञा
[सं. कुमार, हिं. कुँवर]


कुँअरविरांस
एक तरह का चावल।
संज्ञा
[हिं. कुँअर+विलास]


कुँअरेटा
लड़का, बालक।
संज्ञा
(हिं. कुँअर+एटा (प्रत्य.)]


कुँअरि
पुत्री, बालिका।
संज्ञा
[सं. पुं. कुमार]


कुँअरि
राजपुत्री, राजकुमारी।
संज्ञा
[सं. पुं. कुमार]


कुँअरि
प्रतिष्ठित पदाधिकारी या धनी की पुत्री।
ठाढ़ी कुँअरि राधिका लोचन मोचत तहँ हरि आए ६७५।
संज्ञा
[सं. पुं. कुमार]


कुँआँ
कूप, कूँआ।
संज्ञा
[हिं. कूँआ]


कँआरा
जिसका ब्याह न हुआ हो।
वि.
[सं. कुमार]


कुँईं
कुमुदिनी।
संज्ञा
[सं. कुमुदिनी, प्रा. कुउई]


कुंकम
केसर।
संज्ञा
[सं.]


कुंकम
रोली।
संज्ञा
[सं.]


कुंकम
लाख का पोला गोला, कुंकुमा।
संज्ञा
[सं.]


कुंकुमा
लाख का पोला गोला जिसमें गुलाल भर कर मारते हैं।
संज्ञा
[सं. कुंकुम]


कंचन
सिकुड़ने या सिमटने की क्रिया।
संज्ञा
[सं.]


कुंचिका
घुँघची, गुंजा।
संज्ञा
[सं.]


कुंचिका
ताली, कुंजी।
संज्ञा
[सं.]


कुंचित
घूँघरवाले, छल्लेदार।
कुंचित अलक, तिलक, गोरोचन, ससि पर हरि के ऐन - १० - १०३।
वि.
[सं.]


कुंचित
टेढ़ा, घूमा हुआ।
वि.
[सं.]


कुँची, कुंची
ताली, कुंजी, चाभी।
धर्मवीर कुलकानि कुंची कर तेहि तारौ दै दूरि धरयौ री - १४४८।
संज्ञा
[सं. कंचिका]


कुंज
स्थान जो लतादि से मंडप की तरह ढका हो।
जहँ वृन्दावन आदि अजिर जहँ कुंजलता बिस्तार। तहँ बिहरत प्रिय प्रीतम दोऊ निगम भृंग गुंजार।
संज्ञा
[सं.]


कुंज
कुंजकी खोरी - कुंजगली, पतली गली।
सूरदास प्रभु सकुचि निरखि मुख भजे कुंज की खोरी - १० - ६६७।
यौ.


कुंजक
अन्तःपुर में आने-जाने का अधिकारी द्वारपाल या चोबदार, कंचुकी।
संज्ञा
[सं.]


कुंजकुटीर
लताओं से घिरा हुआ घर।
संज्ञा
[सं.]


कुंजगली
लताओं-बेलों से छायी हुई पगडंडी।
संज्ञा
[हिं.]


कुंजगली
गली।
संज्ञा
[हिं.]


कुंजबिहारी
कुंजों में विहार करनेवाला।
संज्ञा
[सं. कुंजविहारी]


कुंजबिहारी
श्रीकृष्‍ण।
(क) अगम अगोचर, लीलाधारी। सो राधा-बस के कुंजबिहारी - १० - ३।

(ख) जबते बिछुरे कुंजबिहारी। नींद न परै घटै नहिं रजनी ब्यथा बिरह ज्वर भारी - २७८२।

संज्ञा
[सं. कुंजविहारी]


कुँजड़ा
तरकारी बोने-बेचनेवाली एक जाति।
संज्ञा
[सं. कुंज+ड़ा (प्रत्य.)]


कुंजबिलासी
कुंजों में विलास करने वाले।
संज्ञा
[सं.]


कुंजबिलासी
श्रीकृष्‍ण।
इहि घट प्रान रहत क्यों ऊधौ विछुरे कुंजबिलासी–३३०५।
संज्ञा
[सं.]


कुंजर
हाथी।
संज्ञा
[सं.]


कुंजर
बाल।
संज्ञा
[सं.]


कुंजर
उत्तम, श्रेष्ठ।
वि.


कुंजरारि
हाथी का शत्रु, सिंह।
संज्ञा
[सं. कुंजर+अरि]


कुंजल
हाथी, गज।
ज्यों सिवछति दरसन रवि पायौ जेहि गरनि गरयौ। सूरदास प्रभु रूप थक्यौ मन कुंजल पंक परयौ - १४८९।
संज्ञा
[सं.]


कुंजविहारी
कुंज में विहार करनेवाला पुरुष।
संज्ञा
[सं.]


कुंजविहारी
श्रीकृष्‍ण।
संज्ञा
[सं.]


कुंजित
कुंजो से युक्त।
वि.
[सं.]


कुंजी
चाभी, ताली।
संज्ञा
[सं. कुंजिका]


कछुक
कुछ, थोड़ा।
(क) जबै आवौं साधु-संगति कछुक मन ठहराइ - १ - ४५। (ख) सूर कहौ क्यौं कहि सकै, जन्म - कर्म-अवतार। कहे कछुक गुरु-कृपा तें श्री भागवतऽनुसार - २ - ३६।
वि.
[हिं. कछु + एक]


कछुक
कछुक कही नहिं जात- दुविधा या असमंजस के कारण कुछ कहा नहीं जाता। उ. - स्रवन सुनत अकुलात साँवरो कछुक कही नहिं जात - सारा० - ९४९।
मु.


कछुव
कुछ।
(क) तुम प्रभु अजित, अनादि, लोकपति, हौं अजान मतिहीन। कछुव न होत निकट उत लागत, मगन होत इत दीन - १ - १८१। (ख) जोग-जुक्ति हम कछुव न जानैं ना कछु ब्रह्मज्ञानो - ३०६४।
वि.
[हिं. कुछ]


कछुवा
कछुआ।
संज्ञा
[हिं, कछुआ]


कछुवै
कुछ भी।
(क) जय अरु विजय कथा नहिं कछुवै, दसमुख बध-बिस्तार - १ - २१५। (ख) बालापन खेलत ही खोयौ, जोबन जोरत दाम। अब तो जरा निपट नियरानी, करयो न कछुवै काम-१-५७।

(ग) तीरथ ब्रत कछुवै नहिं कीन्हौ, दान दियौ नहिं जागे----१-६१।

विं,
[हिं. कुछ]


कछू
कोई वस्तु।
सर्व.
[सं. कश्चित्, पा. कोचि, हिं. कुछ]


कछू
कोई काम, कोई विशेष बात।
जौ सुरपति कोप्यौ ब्रज ऊपर, क्रोध न कछू सरै–१ - ३७।
सर्व.
[सं. कश्चित्, पा. कोचि, हिं. कुछ]


कछोटा
घुटने के ऊपर तक पहनी हुई धोती, कछोटी, ऊपर चढ़ायी हुई धोती।
संज्ञा
[हिं. काछ]


कछोटी
छोटी धोती।
संज्ञा
[हिं. कछोटा]


कज
टेढ़ापन।
संज्ञा
[फा.]


कुंजी
(ग्रंथ की) टीका।
संज्ञा
[सं. कुंजिका]


कुंठ
जो तेज न हो, गुठला, कुंद।
[सं.]


कुंठ
जिसकी बुद्धि तेज न हो, सूर्ख।
[सं.]


कुंठन
हिचक, कुंठित होने की क्रिया।
संज्ञा
[सं.]


कुंठित
जिसकी धार तेज न हो।
वि.
[सं.]


कुंठित
मन्द, निकम्मा।
वि.
[सं.]


कुंड
अग्निहोत्र आदि करने का गढ़ा अथवा मिट्टी या धातु का पात्र जिसमें आग जलायी जाती है।
(क) जज्ञ पुरुष प्रसन्न सब गए। निकसि कुंड तैं दरसन दए - ४ - ५। (ख) आहुति जज्ञकुंड़ में डारि। कह्यौं पुरुष उपजै बल भारि।
संज्ञा
[सं.]


कुंड
चौड़ै मुँह का बरतन।
संज्ञा
[सं.]


कुंड
छोटा तालाब।
संज्ञा
[सं.]


कुंड
पूला, गट्‍ठा।
संज्ञा
[सं.]


कुंड
लोहे का टोप।
संज्ञा
[सं.]


कुंड
हाथी का हौदा।
संज्ञा
[सं.]


कुँड़रा
गोल रेखा।
संज्ञा
[सं. कुंडल]


कुँड़रा
लपेटी हुई रस्सी या कपड़ा, इँबा, गेंड़ुरी।
संज्ञा
[सं. कुंडल]


कुँडरा
कुंडा, मटका।
संज्ञा
[सं.कुंड]


कुँडरी
जन्‍म के ग्रहों की स्थिति बतानेवाला चक्र
संज्ञा
[सं.]


कुँडरी
खँझरी, डफली।
एक पटह एक गोमुख एक आवझ एक झालरी एक अमृत एक कुंडरी एक एक डफ कर धारे - २४२५।
संज्ञा
[सं.]


कुंडल
कानों में पहनने का सोने-चाँदी का एक आभूषण।
परम रुचिर मनिकंठ किरनिगन, कुंडल-मुकुटा-प्रभा न्यारी - १ - ६९।
संज्ञा
[सं.]


कुंडल
गोरखनाथ के अनुयायियों का कान में पहनने का गोल आभूषण।
संज्ञा
[सं.]


कुंडल
वह मंडल जो बदली में चंद्रमा या सूर्य के किनारे दिखायी देता है।
संज्ञा
[सं.]


कुंडल
(साँप की) फेरों में सिमटकर बैठने की स्थिति।
संज्ञा
[सं.]


कुंडलिनी
शरीर का एक कल्पित अंग जो मूलाधार में सुषुम्‍ना नाड़ी के नीचे साढ़े तीन कुंडली में घूमा माना गया है।
संज्ञा
[सं.]


कुंडलिया
दोहे और रोला के योग से बनानेवाला एक छंद।
संज्ञा
[सं. कुंडलिका]


कुंडली
कुंडलिनी।
संज्ञा
[सं.]


कुंडली
ज्योतिष के अनुसार वह चक्र जो जन्मकाल में ग्रहों की स्थिति सूचित करने के लिए बनाया जाता है।
संज्ञा
[सं.]


कुंडली
गेंडुरी।
संज्ञा
[सं.]


कुंडली
साँप के गोलाकार बैठने का ढंग।
संज्ञा
[सं.]


कुंडा
बड़ा मटका।
संज्ञा
[सं. कुंड]


कुंडा
दरवाजे की बड़़ी कुंडी, साँकल।
संज्ञा
[सं. कुंडल]


कुंडिका
कमंडल।
संज्ञा
[सं.]


कुंडिका
पथरी, कूँडी, प्याली।
संज्ञा
[सं.]


कुंडिका
ताँबे का हवन-कुंड।
संज्ञा
[सं.]


कुंडी
तसले या कंडलदार थाली की तरह का बड़ा गहरा बर्तन।
पूँगी फलजुत जल निरमल धरि, आनी भरि कुंडी जो कनक की। खेलत जूप सकल जुवतिनि मैं, हारे रघुपति, जिती जनक की - ९ - २५।
संज्ञा
[सं. कुंड]


कुंडी
जंजीर की कड़ी।
(२) साँकल।
संज्ञा
[हिं. कुंडा]


कुंडोदर
शिव जी का एक गण।
संज्ञा
[सं. कुंड+उदर]


कुंत
भाला, बरछी।
ठौर ठौर अभ्यास महाबल करत कुंत-असि-बान - ९ - ७५।
संज्ञा
[सं.]


कुंत
क्रूर भाव, अनस।
संज्ञा
[सं.]


कुंतल
सिर के बाल, केश।
(क) कुंतल कुटिल, मकर कुंडल, भ्रुव नैन बिलोकनि बंक - १०.१५४। (ख) स्रवन मनि ताटंक मंजुल कुटिल कुंतल छोर।
संज्ञा
[सं.]


कुंतल
प्याला।
संज्ञा
[सं.]


कुंतल
सूत्रधारा।
संज्ञा
[सं.]


कुंतल
वेश बदलनेवाला पुरुष, बहुरूपिया।
संज्ञा
[सं.]


कुंतल
जौ।
संज्ञा
[सं.]


कुंतल
घास।
संज्ञा
[सं.]


कुंता, कुंति, कुंती
राजा पांडु की स्‍त्री। यह शूरसेन यादव की कन्या और वसुदेव की बहन थी। इस नाते श्रीकृष्ण की यह बुआ थी। भोज देश के राजा कुंतिभोज इसके चाचा थे और उन्होंने इसे गोद लिया था। दुर्वासा ऋषि की सेवा करके इसने पाँच मंत्र प्राप्त किये थे जिनके द्वारा यह देवताओं का आह्वान कर पुत्र उत्पन्न करा सकती थी। मंत्रों की सत्यता जाँचने के लिए इसने कुमारी अवस्था में ही सूर्य से 'कर्ण’ को उत्पन्न किया था। विवाह के बाद धर्म, पवन और इंद्र द्वारा कमशः युधिष्ठिर, भीम और अर्जुन इसके उत्पन्न हुए थे।
संज्ञा
[सं. कुंती]


कुंता, कुंति, कुंती
बरछी, भाला।
संज्ञा
[सं. कुंत]


कुंद
एक पौधा जिसमें मीठी सुगंध वाले सफेद फूल लगते हैं। इसकी कलियों से दाँतों की उपमा दी जाती है।
(क) अति ब्याकुल भई गोपिका ढूँढ़ति गिरिधारी। बूझति हैं बन बेलि सौं देखे बनवारी ...। खुझा मरुवा कुंद सों कहैं गोद पसारी। बकुल बहुलि बट कदम पै ठाढ़ी ब्रजनारी - १८२२।

(ख) चिबुक मध्य मेचक रुचि उपजत राजति बिंब कुंद रदनी - पृ. ३१६।

संज्ञा
[सं.]


कुंद
कनेर का पेड़।
संज्ञा
[सं.]


कुंद
कमल।
संज्ञा
[सं.]


कुंद
विष्णु।
संज्ञा
[सं.]


कुंद
खरोद।
संज्ञा
[सं.]


कुंदन
स्वच्छ स्वर्ण, बढ़िया सोना।
आसन एक हुतासन बैठी, ज्यों कुंदन-अरुनाई। जैसैं रवि इक पल धन भीतर बिनु मारुत दुरि जाई - ९ - १६२।
संज्ञा
[सं. कुंद=श्वेत पुष्प]


कुंदन
शुद्ध, बढ़िया।
वि.


कुंदन
सुंदर, निरोग।
वि.


कुंदनपुर
विदर्भ देश का एक नगर जिसके राजा भीष्मक की कन्या रुक्मिणी को श्रीकृष्ण हर लाये थे।
कुंदनपुर को भीषम राई - १० उ. - ७।
संज्ञा
[सं. कुंडिनपुर]


कुंदर
विष्णु।
संज्ञा
[सं.]


कुंदा
लकड़ी का लट्ठा।
संज्ञा
[फ़ा.]


कुंदा
लकड़ी का वह छोटा टुकड़ा जिस पर रखकर लकड़ी गढ़ी जाती है।
संज्ञा
[फ़ा.]


कुंदा
बन्दूक का पिछला भाग।
संज्ञा
[फ़ा.]


कुंदा
दस्ता, मूठ।
संज्ञा
[फ़ा.]


कुंदा
बड़ी मुगरी।
संज्ञा
[फ़ा.]


कुंदी
कपड़ों को मुगरी से कूटना।
संज्ञा
[हि. कुंदा]


कुंदी
खूब मारना पीटना।
संज्ञा
[हि. कुंदा]


कुंदुर
पीला गोंद।
संज्ञा
[सं.]


कुँदेरना
खुरचना, छीलना।
संज्ञा
[सं. कुंदलन=खोदना]


कुँदेरा
खरोदने का काम करनेवाला।
संज्ञा
[हिं. कुँदेरना+एरा (प्रत्य.)]


कुंभ
घड़ा, घट।
स्रम-स्वेद सीकर गुंड मंडित रूप अंबुज कोर। उमँगि ईषद यौं स्रम तज्यौ पीयूष कुंभ हिलोर - पृ. ३१०।
संज्ञा
[सं.]


कुंभ
हाथी के सिर के दोनों ओर का उभड़ा हुआ भाग।
(क) बाज सौं टूटि गजराज हाँकत परयौ मनौ गिरि चरन धरि लपकि लीन्हे। बारि बाँधे बीर चहुँधा देखत ही बज्र सम थाप बल कुंभ दीन्हे - २५९०। (ख) तब रिस कियौ महावत भारी••••••। अंकुस राखि कुंभ पर करष्‍यौ हलधर उठे हँकारी - २५९४।
संज्ञा
[सं.]


कुंभ
दसवीं राशि।
संज्ञा
[सं.]


कुंभ
प्राणायाम के तीन भागों में एक।
संज्ञा
[सं.]


कुंभ
एक पर्व जो प्रति बारहवें वर्ष होता है।
संज्ञा
[सं.]


कुंभ
एक राग।
संज्ञा
[सं.]


कुंभक
प्राणायाम के तीन भागों में से एक जिसमें साँस लेकर वायु को शरीर के भीतर रोका जाता है।
जोग बिधि मधुबन सिखि आई जाइ…..। सब आसन रेचक अरु पूरक कुंभक सीखे पाइ - ३१३४।
संज्ञा
[सं.]


कुंभकरन
एक राक्षस का नाम जो रावण का भाई और बड़ा बली था। प्रसिद्धि है कि यह छह महीने सोता था।
संज्ञा
[सं. कुंभकर्ण]


कुंभकर्ण
रावण का भाई जो छः महीने तक सोता था।
संज्ञा
[सं.]


कुंभकार
कुम्हार।
संज्ञा
[सं.]


कुंभज, कुंभजात, कुंभयोनि, कुंभसंभव
अगस्त्य ऋषि जिनकी उत्पत्ति घड़े से हुई थी।
संज्ञा
[सं.]


कुंभा
वेश्या।
संज्ञा
[सं.]


कुंभार
कुम्हार।
संज्ञा
[सं. कुंभकार]


कुंभिका
जलकुंभी।
संज्ञा
[सं.]


कुंभिका
वेश्या।
संज्ञा
[सं.]


कुंभिका
कायफल।
संज्ञा
[सं.]


कुँभिलाना
ताजा न रहना, मुरझा जाना।
क्रि. अ.
[हिं. कुम्हलाना]


कुँभिलाना
सूखने लगना।
क्रि. अ.
[हिं. कुम्हलाना]


कुँभिलाना
कांति मलीन होना, सुस्त हो जाना, उदासी छाना।
क्रि. अ.
[हिं. कुम्हलाना]


कुँभिलानी
कुम्हला गयी, मुरझा गयी।
(क) हरबराइ उठि धाइ प्रात ते बिथुरीं अलक अरु बसन मरगजे तैसीये कुँभिलानी मात - ११८३।

(ख) प्रफुलित कमल गुंजार करत अलि पहु फाटी कुमुदिनि कुँभिलानी - २२४८।

क्रि. अ.
[हिं. कुम्हलाना]


कुँभिलानी
उदास हो गयी, सुस्त हो गयी।
(ख) निठुर बचन सुनि स्याम के जुवती बिकलानी।….। मनो तुषार कमलन परयौ ऐसे कुँभिलनी - पृ. ३४१।

(ग) ऊधौ जिय जानी मन कुभिलानी कृष्न संदेस पठाये - ३४४१।

क्रि. अ.
[हिं. कुम्हलाना]


कुँभिलानो, कुँभिलानौ
कुम्हला गया, उदास हो गया, प्रभाहीन हो गया।
अति रिसि कृस ह्वै रही किसोरी करि मनुहारि मनाइए। …..। छूटे चिहुर बदन कुँभिलानौ सुहथ सँवारि बनाइए - १६८८।
क्रि. अ.
[हिं. कुम्हलाना]


कुँभिलाहि
सूख जाती है, मरझा जाती है।
जल में रहहि जलहि ते उपजहि जल ही बिन कुँभिलाहि - २७५७।
क्रि. अ.
[हिं. कुम्हलाना]


कुंभी
हाथी।
संज्ञा
[सं.]


कुंभी
बंसी।
संज्ञा


कुंभी
एक नरक का नाम, कुंभीपाक।
संज्ञा


कुंभीनस
साँप।
संज्ञा
[सं.]


कुंभीनस
रावण।
संज्ञा
[सं.]


कुंभीपाक
एक नरक जिसमें मांसाहारी व्यक्ति खौलते हुए तेल में डाला जाता है।
संज्ञा
[सं.]


कुंभीपुर
हस्तिनापुर का एक नाम, पुरानी दिल्ली।
संज्ञा
[सं.]


कुंभीर
नाक नामक जलजंतु।
संज्ञा
[सं.]


कुँवर
राजपुत्र, राजकुमार।
इक दिन नृपति सुरुचि-गृह अयौ। उत्तम कुँवर गोद बैठायौ - ४ - ९।
संज्ञा
[सं. कुमार]


कुँवरि
कुमारी।
संज्ञा
[हिं. पुं. कुँवर]


कुँवरि
राजकन्या,प्रतिष्ठित व्यक्ति की कन्या।
(क) गुप्त प्रीति न प्रगट कीन्ही, हृदय दुहुनि छिपाइ। सूंर प्रभु के बचन सुनि-सुनि रही कुँवरि लजाइ - ६७६। (ख) नयौ नेह, नयौ गेह, नयौ रस, नवल कुँवरि बृषभानु-किसोरी - ६८५।
संज्ञा
[हिं. पुं. कुँवर]


कुँवरिया
बेटी, पुत्री।
सूरदास बलि-बलि जोरी पर, नंद-कुँवर बृषभानु कुँवरिया–६८८।
संज्ञा
[हिं. कुँवरि]


कजरी
एक गीत जो बरसात में गाया जाता है।
संज्ञा
[हिं. काजल]


कजरी
एक तरह का काला धान।
संज्ञा
[सं. कज्‍जल]


कजरौटा
काजलकी डिबिया।
संज्ञा
[हिं. कजलौटा]


कजला
काली आँखों वाला बैल।
संज्ञा
[हिं. काजल]


कजला
एक काला पक्षी।
संज्ञा
[हिं. काजल]


कजला
काली आँखों वाला।
वि.


कजलाना
काला हो जाना।
क्रि. अ.
[हिं. काजल]


कजलाना
आग बुझना।
क्रि. अ.
[हिं. काजल]


कजलाना
काजल लगाना, आँजना।
क्रि. स.


कजली
कालापन, कालिख।
संज्ञा
[हिं. काजल]


कुँवरी
कुमारी, कुँवरि।
कुँवरी अहि जसु हेमखंभ लगि ग्रीव कपोत बिसारी - २३०४।
संज्ञा
[हिं. कुँवरि]


कुँवरेटा
छोटा लड़का, बच्चा।
संज्ञा
[हिं. कुँवर+एटा (प्रत्य.)]


कुँवाँ
कूप, कुआँ।
संज्ञा
[हिं. कुआँ]


कुँवार, कुँवारा
जिसका ब्याह न हुआ हो।
वि.
[सं. कुमार, प्रा. कुँवार]


कुँहकुँह
केशर, जाफरान।
संज्ञा
[सं. कुंकुम]


कु
एक उपसर्ग जो शब्द के आदि में जुड़कर 'नीच', ‘बुरा' आदि का अर्थ देता है, जैसे कुपुत्र, कुसंग।
उप.
[सं.]


कु
पृथ्वी।
संज्ञा
[सं.]


कुअंक
बुरे अंक।
संज्ञा
[सं. कु+अंक]


कुअंक
बुरा भाग्य, दुर्भाग्य।
संज्ञा
[सं. कु+अंक]


कुआँ
कूप।
संज्ञा
[स. कूप, प्रा. कूव]


कुआँर, कुअर
भादों के बाद का महीना।
संज्ञा
[प्रा. कुँमार, हिं. क्वार]


कुईं
छोटा कुआँ।
संज्ञा
[हिं. कुइयाँ]


कुईं
कुमुदिनी।
संज्ञा
[सं. कुव]


कुइयाँ
छोटा कुआँ।
संज्ञा
[हिं. कुआँ]


कुकड़ना
सिकुड़ जाना, संकुचित होना।
क्रि. अ.
[हिं. सिकुड़ना]


कुकड़ी
कच्चे सूत की अण्टी।
संज्ञा
[सं. कुक्कुटी]


कुकनू
एक पक्षी।
संज्ञा
[यू.]


कुकरना
सिकुड़ जाना।
क्रि. अ.
[हिं. सिकुड़ना]


कुकरी
मुरगी।
संज्ञा
[सं. कुक्कट, पुं. हिं. कुकड़ा]


कुकपि
दुष्ट कपि।
संभु की सपथ, सुनि कुकपि कायर कृपन, स्वास आकास बनचर उड़ाऊँ - ९ - १२९।
संज्ञा
[सं. कु=बुरा]


कुकर्म
बुरा या खोटा काम, दुष्कर्म।
संज्ञा
[सं. कु=बुरा+कर्म]


कुकर्मी
बुरा काम करनेवाला, पापी।
वि.
[हिं. कुकर्म]


कुकवि
बुरा कवि, पापी कवि, ऐसा कवि जिसने कोई पुण्य कार्य न किया हो।
सूरदास बहुरौ बियोग गति कुकवि निलज ह्वै गावत - ३३९२।
संज्ञा
[सं. कु=बुरा+कवि]


कुकुर
एक क्षत्रिय जाति।
संज्ञा
[सं.]


कुकुर
कुत्ता।
संज्ञा
[सं.]


कुकुर
एक साँप का नाम।
संज्ञा
[सं.]


कुकुरमुत्ता
एक बदबूदार बनस्पति।
संज्ञा
[हिं. कुक्कुर=कुत्ता+मूत]


कुकुही
बनमुर्गी।
संज्ञा
[सं. कुक्कुभ, प्रा. कुक्कुह]


कुक्कुट
मुर्गा।
संज्ञा
[सं.]


कुक्कुट
चिनगारी।
संज्ञा
[सं.]


कुक्कुट
जटाधारी।
संज्ञा
[सं.]


कुक्कुर
कुत्ता।
संज्ञा
[सं.]


कुक्ष
पेट, उदर।
संज्ञा
[सं.]


कुक्षि
पेट।
संज्ञा
[सं.]


कुक्षि
कोख।
संज्ञा
[सं.]


कुक्षि
गोद।
संज्ञा
[सं.]


कुखेत
बुरा स्थान, कुठाँव।
चारों ओर ब्यास खगपति के झुंड झुंड बहु आये। ते कुखेत बोलत सुनि सुनि के सकल अंग कुम्हिलाये।
संज्ञा
[सं. कुक्षेत्र, प्रा. कुखेत]


कुख्यात
बदनाम, निंदित।
वि.
[सं. कु+ख्यात]


कुख्याति
बदनामी, निंदा।
संज्ञा
[सं.]


कुगंधि
बुरी गंध, दुर्गंध।
हंस काग को भयौ संग।...। जैसे कंचन काँच संग ज्यौं चंदन संग कुगंध। जैसे खरी कपूर दोउ यक मय यह भइ ऐसी संधि - २९१२।
संज्ञा
[सं.]


कुगति
बुरी दशा, दुर्गति।
संज्ञा
[सं.]


कुगहनि
वह हठ या आग्रह जो उचित न हो।
संज्ञा
[सं. कु+ग्रहण]


कुघा
ओर, तरफ, दिशा।
संज्ञा
[सं. कुक्षि]


कुघात
बुरा अवसर या समय।
संज्ञा
[सं. कु+हिं. घात]


कुघात
बुरी चाल, छल-कपट।
संज्ञा
[सं. कु+हिं. घात]


कुच
स्तन, छाती।
संज्ञा
[सं.]


कुच
सिमटा हुआ, संकुचित।
वि.


कुच
कंजूस।
वि.


कुचकुचा
कोंचा या मसला हुआ।
वि.
[अनु. कुचकुच]


कुचकुचाना
बार बार कौंचना या चुभाना।
क्रि. स.
[अनु. कुचकुच]


कुचक्र
षड्यंत्र, छलकपट।
संज्ञा
[सं.]


कुचक्री
छली, षड्यंत्रकारी।
संज्ञा
[सं. कुचक्र]


कुचना
सिकुड़न, सिमिटना, संकुचित होना।
क्रि. अ.
[सं. कुंचन]


कुचना
दब जाना, कुचल जाना।
क्रि. अ.
[हिं. कूँचना]


कुचर
आवारा।
संज्ञा
[सं.]


कुचर
कुकर्मी।
संज्ञा
[सं.]


कुचर
दूसरे की निंदा करनेवाला।
संज्ञा
[सं.]


कुचलना
दबाना, मसलदेना।
क्रि. स.
[हिं. कूँचना]


कुचलना
पैरों से रौंदना।
क्रि. स.
[हिं. कूँचना]


कुचाल
बुरा चालचलन।
संज्ञा
[सं. कु+हिं. चाल]


कुचाल
खोटापन, दुष्टता।
संज्ञा
[सं. कु+हिं. चाल]


कुचालिया, कुचाली
जिसका आचरण अच्छा न हो।
वि.
[हिं. कुचाल]


कुचालिया, कुचाली
जिसकी नीति ठीक न हो, दुष्ट, अन्याय, अत्याचारी।
जिनि हति संकट, प्रलंब, तृनावृत, इंद्र-प्रतिज्ञा टाली। एते पर नहिं तजत अघोड़ी कपटी कंस कुचाली - २५३७।
वि.
[हिं. कुचाल]


कुचाह
बुरी या अशुभ बात, अमंगलसूचक समाचार।
संज्ञा
[सं. कु+ हिं. चाह]


कुचिल
मैला, गंदा।
कहो कैसे मिले स्याम संघाती। कैसे गए सुवंत कौन बिधि परसे हुते बस्तर कुचिल कुजाती - १० उ. - ७२।
वि.
[हिं. कुचैला]


कुचिलगे
दब गया, मसल गया।
क्रि. स.
[हिं. कुचलना]


कुची
कुंजी, ताली।
संज्ञा
[हिं. कुंजी]


कुची
कूचा, ब्रुश।
संज्ञा
[हिं. कुंजी]


कुचील
मैले वस्त्रवाला, मैला-कुचैला, मलिन।
(क) हौं कुचील, मतिहीन सकल बिधि, तुम कृपालु जगजान - १ - १००। (ख) कज्जल कीच कुचील किये तट अंचर, अधर कपोल। थकि रहे पथिक सुयश हित ही के हस्त चरन मुख बोल - ३४५४।

(ग) कुटिल कुचील जन्म की टेढ़ी सुंदरि करि धर आनी–३०८६। (घ) दुर्बल बिप्र कुचील सुदामा ताको कंठ लगाये - ८१८ सारा.।

वि.
[सं. कुचेल]


कुचीलनि
मैले-कुचैलों से, मलिन लोगों से।
साधु-सील, सद्रूप पुरुष कौ, अपजस बहु उच्चरतौ। औघड़-असत-कुचीलनि सौं मिलि, मायाजल मैं तरतौं - १ २०३।
वि. बहु.
[सं. कुचेल, हिं. कुचील+नि (प्रत्य.)]


कुचीला
मैला, गंदा।
वि.
[हिं. कुचील]


कुचीला
मैले या गंदे वस्‍त्रवाला।
वि.
[हिं. कुचील]


कुचेल
मैला कपड़ा।
संज्ञा
[सं.]


कुचेल
मैला, गंदा।
वि.


कुचेल
मैले कपड़ेवाला।
वि.


कुचेष्ट
बुरी अकृतिवाला।
वि.
[सं.]


कुचेष्ट
बुरी चालबाजी।
वि.
[सं.]


कुचेष्टा
बुरी चाल या चेष्टा।
संज्ञा
[सं.]


कुचेष्टा
बुरी आकृति-प्रकृति।
संज्ञा
[सं.]


कुचैन
व्याकुलता, अशांति।
संज्ञा
[सं. कु+हिं.चैन]


कुचैल, कुचैला
जिसका कपड़ा मैला हो।
वि.
[हिं. कुचैला]


कुचैल, कुचैला
मैला, गंदा।
पट कुचैल, दुरबल द्विज देखत, ताके तंदुल खाये (हो)। संपति दै वाकी पतिनी कौं, मन-अभिलाष पूराए (हो) - १.७।
वि.
[हिं. कुचैला]


कुच्छि
पेट।
संज्ञा
[सं. कुक्षि]


कुच्छि
कोख।
संज्ञा
[सं. कुक्षि]


कुच्छित
बुरा, नीच।
वि.
[सं. कुत्सित]


कुछ
थोड़ा, जरा।
वि.
[सं. किंचित, पा. किंची, पू. हिं. किछु]


कुछ
कोई (वस्तु), थोड़ी (वस्तु)।
जब वह विप्र पढ़ावै कुछ कुछ सुनके चित धरि राखै - ११० सारा.।
सर्व.
[सं. कश्चित, पा. कोचि]


कुछ
कोई (विशेषता या बड़ी बात)।
सर्व.
[सं. कश्चित, पा. कोचि]


कुछ
जो कुछ करै सो थोरा- सब कुछ करने की सामर्थ्य है, शक्ति या सामर्थ्य इतनी अधिक है कि बड़े से बड़ा काम करना भी उनके लिए साधारण बात होगी। उ. - इतनी सुनत घोष की नारी रहसि चली मुख मोरी। सूरदास जसुदा कौ नंदन, जो कछु करै सो थोरी - १० - २९३।
मु.


कुजंत्र
टोना, टोटका।
संज्ञा
[सं. कुयंत्र]


कुज
मंगल ग्रह।
भाल बिसाल ललित लटकन मनि, बालदसा के चिकुर सुहाए। मानौ गुरु सनि-कुज आगैं करि, ससिहिं मिलन तम के गन आए - १० - १०४।
संज्ञा
[सं.]


कुज
पेड़।
संज्ञा
[सं.]


कुज
(कु=पृथ्वी) पृथ्वी का पुत्र नरकासुर।
संज्ञा
[सं.]


कुज
लाल रंग का।
वि.


कुजा
पृथ्वी की पुत्री सीता।
संज्ञा
[सं. कु=पृथ्वी+जा]


कुजात, कुजाति, कुजाती
बुरी या नीच जाति।
संज्ञा
[सं. कुजाति]


कुजात, कुजाति, कुजाती
बुरी जाति का।
वि.


कुजात, कुजाति, कुजाती
पतित या नीच, दीन-दुखी या अनाथ।
कहौ कैसे मिले स्याम संघाती। कैसे गये सु कंत कौन बिधि परसे हुए बस्तर कुचिल कुजाती - १० उ. - ८७।
वि.


कुजोग
बुरा मेल या संबंध, कुसंग।
संज्ञा
[सं. कुयोग]


कुजोग
बुरा संयोग या अवसर।
संज्ञा
[सं. कुयोग]


कज
दोष, ऐब, कसर।
संज्ञा
[फा.]


कजरा
काजल।
ता दिन तें कजरा मैं देहौं। जो दिन नँदनंदन के नैनन अपने नैन मिलैहौं - २७७६।
संज्ञा
[हिं. काजल]


कजरा
बैल जिसकी आँखें काली हों।
संज्ञा
[हिं. काजल]


कजरा
काली आँखोंवाला।
वि.


कजराई
कालापन।
संज्ञा
[हिं. काजल]


कजरारा
जिस (नेत्र) में काजल लगा हो, अंजनयुक्त।
वि.
[हिं. काजल+आरा (प्रत्य.)]


कजरारा
(काजल के समान) काला।
वि.
[हिं. काजल+आरा (प्रत्य.)]


कजरी
काली आँखों वाली गाय।
(क) कजरी कौ पय पियहु लाल जासौ तेरि वेनि बढ़ै - १० - १७४। (ख) अपनी अपनी गाइ ग्वाल सब आनि करौ इक ठौरी। …...| पियरी, मौरी, गोरी, गैनी, खैरी, कजरी जेती - ४४५। (ग) कजरी, धौरी, सेंदुरी, धूमरि मेरी गैया - ६६६।
संज्ञा
[हिं. काजल, कजली]


कजरी
कजराई, कालापन।
संज्ञा
[हिं. काजल]


कजरी
एक त्योहार जो कहीं सावन की पूर्णिमा को और कहीं भादों बड़ी तीज को मनाया जाता है। इस दिन से कजली गाना बंद कर दिया जाता है।
संज्ञा
[हिं. काजल]


कजोगी
जो संयमी न हो।
वि.
[सं. कुयोगी]


कुज्‍जा
पुराना मिट्टी का प्याला।
संज्ञा
[फा. कूजा=प्याला]


कुज्‍जा
मिट्टी के कुज्जे में जमाई हुई मिश्री।
संज्ञा
[फा. कूजा=प्याला]


कुटंत
कुटाई, पिटाई।
संज्ञा
[हिं. कूटना+त (प्रत्य.)]


कुटंत
मार, चोट।
संज्ञा
[हिं. कूटना+त (प्रत्य.)]


कुट
घर
संज्ञा
[सं.]


कुट
किला, गढ़।
संज्ञा
[सं.]


कुट
कलश।
संज्ञा
[सं.]


कुट
एक झाड़ी।
संज्ञा
[सं. कुष्ठ]


कुट
कुटा हुआ अंश।
संज्ञा
[सं. कूट=कूटना]


कुटका
कटा हुआ छोटा टुकड़ा।
संज्ञा
[हिं. काटना]


कुटज
एक जंगली वृक्ष, कुरैया, कर्ची।
कुटज कुमुद कदंब कोविद कनक आरि सुकंज। केतकी करवील बेलउ बिमल बहु बिधि मंत - २८२८
संज्ञा
[सं.]


कुटना
नायक का दूत।
संज्ञा
[हिं. कुटनी]


कुटना
परस्पर झगड़ा करनेवाला।
संज्ञा
[हिं. कुटनी]


कुटना
कूटने का हथियार।
संज्ञा
[हिं. कुटना]


कुटना
कूटा जाना।
क्रि. अ.


कुटनी
नायक की दूती। झगड़ा करनेवाली।
संज्ञा
[सं. कुट्टनी]


कुटिया
झोपड़ी।
संज्ञा
[सं. कुटी]


कुटिल
कपटी, छली, शठ, खल।
(क) साँचे सूर कुटिल ये लोचन ब्यथा मीन छबि छानि लयी - २५३३।

(ख) मल्लयुद्ध प्रति कंस कुटिल मति छल करि इहाँ हँकारे - २५६९। (ग) रिपु भ्राता जान्यो जु विभीषन निसिचर कुटिल सरीर - २९० सारा.।

वि.
[सं.]


कुटिल
वक्र, टेढ़ा।
कुटिल भ्रू पर तिलक रेखा सीस सिखिनि सिखंड - १ - ३०७।
वि.
[सं.]


कुटिल
घूमा या बल खाया हुआ।
वि.
[सं.]


कुटिल
छल्लेदार, घुँघराला।
लला हौं वारी तेरैं मुख पर। कुटिल अलक मोहन मन बिहसनि, भृकुटी बिकट ललित नैननि पर - १० - ९३। (ख) कुटिल कुंतल मधुप मिलि मनु कियौ चाहत लरनि - ३५१।
वि.
[सं.]


कुटिलता
टेढ़ापन।
संज्ञा
[सं.]


कुटिलता
छल, कपट।
संज्ञा
[सं.]


कुटिलाई
कुटिलता।
संज्ञा
[हिं. कुटिल]


कुटी
पर्णशाला, कुटिया, झोपड़ी।
संज्ञा
[सं.]


कुटी
घास-फूस का घेरा।
तुम लछिमन या कुंज-कुटी मैं देखौ जाइ निहारि। कोउ इक जीव नाम मम लै लै उठत पुकारि-पुकारि - ९ - ६५।
संज्ञा
[सं.]


कुटीर
कुटी।
सूरदास स्वामी अरु प्यारी बिहरत कुंज कुटीर - १५६१।
संज्ञा
[सं. कुटी]


कुटुँब, कुटुम्ब
परिवार, कुनबा।
संज्ञा
[सं. कुटुम्ब]


कुटुम्‍बी
परिवार या कुटुम्ब के अन्य प्राणी।
संज्ञा
[सं. कुटुम्ब]


कुटुम
परिवार, कुटुम्ब।
उग्रसेन सब कुटुम लै ता ठौर सिधायौ - १० उ. - ३।
संज्ञा
[सं. कुटुम्ब]


कुटेक
अनुचित बात पर अड़ना।
संज्ञा
[सं. कु=बुरा+हिं. टेक]


कुटेव
खराब या बुरी आदत।
नैनन यह कुटेव पकरी। लूटत स्याम रूप आपुन ही निसि दिन पहर घरी - पृ. ३३०।
संज्ञा
[सं. कु=बुरा+हिं. टेव= आदत]


कुटौनी
धान कुटने का काम।
संज्ञा
[हिं. कुटना+औनी]


कुटौनी
धान कूटने की मजूरी।
संज्ञा
[हिं. कुटना+औनी]


कुट्टनी
दूती, कुटनी।
संज्ञा
[हिं. कुटनी]


कुट्टमित
सुख-विलास के समय स्त्रियों का दुख या कष्ट का बनावटी भाव जो विशेष प्रिय लगता है।
संज्ञा
[सं.]


कुठाँउ, कुठाँय, कुठाँव
बुरी ठौर या जगह।
यह सब कलियुग कौ परभाव, जौ नृप कौ मन गयौ कुठाँव।
संज्ञा
[सं. कु+हिं.ठाँव]


कुठाँउ, कुठाँय, कुठाँव
संकट में, विपत्ति के स्थान में।
जौ हरि ब्रत निज उंर न धरैगौ। तौ को अस त्राता जु अपन करि, कर कुठावँ पकरैगौ - १ - ७५।
संज्ञा
[सं. कु+हिं.ठाँव]


कुठाट
बुरा साज-सामान।
संज्ञा
[सं. कु=बुरा+हिं. ठाट]


कुठाट
बुरा विचार, प्रबंध या आयोजन।
संज्ञा
[सं. कु=बुरा+हिं. ठाट]


कुठाय
बुर ठौर।
संज्ञा
[हिं. कुठाँव]


कुठार
लकड़ी काटने की कुल्हाड़ी।
जद्यपि मलय-बृच्छ जड़ काटै, करकुठार पकरै। तऊ सुभाव न सीतल छाँड़ै, रिपु-तन-ताप हरै १ - ११०।
संज्ञा
[सं.]


कुठार
परशु, फरसा।
संज्ञा
[सं.]


कुठार
नाश करनेवाला व्यक्ति।
संज्ञा
[सं.]


कुठारपाणि, कुठारपानि
वह जिसके हाथ में परशु या फरसा हो, परशुराम।
संज्ञा
[सं. कुठार+पाणि]


कुठाराघात
कुल्हाड़ी की चोट।
संज्ञा
[सं.]


कुठाराघात
गहरी चोट।
संज्ञा
[सं.]


कुठारी
कुल्हाड़ी।
संज्ञा
[सं.]


कुठारी
नाश करने वाली स्त्री।
संज्ञा
[सं.]


कुठाली
सोना-चाँदी गलाने की घरिया।
संज्ञा
[सं.]


कुठाहर
बुरी जगह।
संज्ञा
[सं. कु=बुरा+हिं. ठाहर=जगह]


कुठाहर
बेमौका।
संज्ञा
[सं. कु=बुरा+हिं. ठाहर=जगह]


कुठिया
मिट्टी का बड़ा बरतन जिसमें अनाज रखा जाता है।
संज्ञा
[सं. कोष्ठ, प्रा. कोट्ठ]


कुठौर
बुरा स्थान।
संज्ञा
[सं. कु+हिं. ठौर]


कुठौर
बेमौका।
संज्ञा
[सं. कु+हिं. ठौर]


कुड़कुड़ाना
मन ही मन कुढ़ना या क्षुब्ध होना।
क्रि. अ.
[अनु.]


कुड़बुड़ाना
मन में कुढ़नी।
क्रि. अ.
[अनु.]


कुडमल
फूल की कली।
संज्ञा
[सं.]


कुडमल
एक नरक का नाम।
संज्ञा
[सं.]


कुडरी
गेंडुरा, इँडुरी।
संज्ञा
[सं. कुंडली]


कुडरी
नदी के घुमाव के बीच की जमीन।
संज्ञा
[सं. कुंडली]


कुडौल
भद्दा, भौंडा।
वि.
[सं. कु+हिं.डौल]


कुढंग
बुरी रीति या चाल।
संज्ञा
[सं. कु + हिं. ढंग]


कुढंग
बुरा, बेढंगा।
वि.


कुढंग
बुरी तरह का।
वि.


कुढंगा
जो काम का ढङ्ग न जाने, उजड्ड।
वि.
[हिं. कुढंग]


कुढंगा
भद्दा।
वि.


कुढंगी
बुरी चाल का, जिसका आचरण ठीक न हो।
वि.
[हिं. कुढंग]


कुढ़,कुढ़न
भीतरी क्रोध या दुख।
संज्ञा
[सं. क्रुद्ध, प्रा. कुड्ढ]


कुढ़ना
मन ही मन खीझना या चिढ़ना।
क्रि. अ.
[हिं. कुढ़न]


कुढ़ना
ईर्ष्‍या या डाह करना।
क्रि. अ.
[हिं. कुढ़न]


कुढ़ना
दुखी होना, मन मसोसकर रह जाना।
क्रि. अ.
[हिं. कुढ़न]


कुढ़ब
बुरे ढंग का।
वि.
[सं. कु+हिं.ढब]


कुढ़ब
कठिन।
वि.
[सं. कु+हिं.ढब]


कुढ़ब
बुरा स्वभाव, बुरी प्रकृति।
संज्ञा


कुढर
जो ठीक ढला न हो।
वि.
[सं. कु+हिं. ढर]


कुढर
भद्दा।
वि.
[सं. कु+हिं. ढर]


कुढ़ाना
दूसरे का जी दुखाना।
क्रि. स.
[हिं. कुढ़ना]


कुण
मैल।
संज्ञा
[सं.]


कुण
बच्चा।
संज्ञा
[सं.]


कुतका
डंडा, सोंटा।
संज्ञा
[हिं, गतको]


कुतका
वह डंडा, जिससे भाँग घोटी जाय।
संज्ञा
[हिं, गतको]


कुतना
कूता जाना।
क्रि. अ.
[हिं. कूतना]


कुतरना
(कुछ भाग) दाँत से काटना।
क्रि. स.
[सं. कर्तन= कतरना]


कुतरना
(कुछ भाग) निकाल लेना।
क्रि. स.
[सं. कर्तन= कतरना]


कुतरा
कुता।
संज्ञा
[हिं. कुत्ता]


कुतर्क
व्यर्थ का तर्क, बकवाद।
संज्ञा
[सं]


कुतर्की
व्यर्थ की बात करनेवाला।
संज्ञा
[सं.]


कुतर्की
बकवादी।
संज्ञा
[सं.]


कुतवार
कोतवाल।
संज्ञा
[हिं. कोतवाल]


कुतवारी
कोतवाल का काम |
सेस न पायौ अंत जाकी फनवारी। पवन बुहारत द्वार सदा संकर कुतवारी - ११२८।
संज्ञा
[हिं. कोतवाल]


कुतवारी
कोतवाली।
संज्ञा
[हिं. कोतवाल]


कुतवाल
पुलिस का एक बड़ा कर्मचारी जिनके अधीन कई थाने और थानेदार रहते हैं, कोतवाल।
दगाबाज कुतवाल काम रिपु, सरबस लूटि लयो - १ - ६४।
संज्ञा
[सं. कोटपाल, हिं. कोतवाल]


कुताही
कमी, कैसर।
संज्ञा
[फा. कोताही]


कुतुक
इच्छा।
संज्ञा
[हिं. कौतुक]


कुतूहल
क्रीड़ा, आनंद, आमोद-प्रमोद।
(क) उर मेले नंदराई कै गोप-सखनि मिलि हार। मागध-बंदी-सूत अति करत कुतुहल बार - १० - २७।

(ख) साँझ कुतूहल होत है जहँ तहँ दुहियत गाय - ४९२।

संज्ञा
[सं.]


कुतूहल
प्रबल इच्छा, उत्कंठा।
संज्ञा
[सं.]


कुतूहल
कौतुक।
संज्ञा
[सं.]


कुतूहल
अचरज, अचंभा।
संज्ञा
[सं.]


कजली
काली आँख वाली गाय।
संज्ञा
[हिं. काजल]


कजली
सफेद भेड़ जिसकी आँख के बाल काले होते हैं।
संज्ञा
[हिं. काजल]


कजली
एक गीत जो बरसात में गाया जाता है।
संज्ञा
[हिं. काजल]


कजली
एक त्योहार जो कहीं सावन की पूर्णिमा को और कहीं भादों बड़ी तीज को मनाया जाता है। इस दिन से कजली का गीत गाना बन्द कर दिया जाता है।
संज्ञा
[हिं. काजल]


कजली
वे हरे अंकुर जिन्हें कजली का त्योहार मनाकर स्त्रियाँ अपने संबंधियों को बाँटती हैं।
संज्ञा
[हिं. काजल]


कजलीबन
केले का बन।
संज्ञा
[सं. कदलीवन]


कजलौटा
काजल रखने की डिबिया।
संज्ञा
[हिं. काजल+औटा (प्रत्य.)]


कजा
काँजी, माँड।
संज्ञा
[सं. कांजी]


कजाक
लुटेरा, डाकू, ठग।
संज्ञा
[तु. क़ज्ज़ाक़]


कजाकी
लूटमार।
संज्ञा
[हिं. कजाक]


कुतूहल
एक आभूषण।
संज्ञा
[सं.]


कुतुहली
तमाशा देखनेवाला।
वि.
[सं. कुतूहलिन्]


कुतुहली
कौतुकी।
वि.
[सं. कुतूहलिन्]


कुत्ता
श्वान, कुकुर।
संज्ञा
[देश.]


कुत्ता
नीच मनुष्य।
संज्ञा
[देश.]


कुत्‍स
एक ऋषि।
संज्ञा
[सं.]


कुत्सन
निंदा।
संज्ञा
[सं.]


कुत्सन
नीच या बुरा काम।
संज्ञा
[सं.]


कुत्सा
निंदा।
संज्ञा
[सं.]


कुत्सित
निंदित, नीच, बुरा।
वि.
[सं.]


कुथ
कथरी, कंथा।
संज्ञा
[सं.]


कुथ
हाथी की झूल।
संज्ञा
[सं.]


कुथ
रथ या पालकी का ओहार।
संज्ञा
[सं.]


कुथ
एक कीड़ा।
संज्ञा
[सं.]


कुदकना
कूदना-फाँदना।
क्रि. अ.
[हिं. कूदना]


कुदरत
शक्ति, सामर्थ्‍य।
संज्ञा
[सं.]


कुदरत
प्रकृति, माया।
संज्ञा
[सं.]


कुदरत
रचना, कारीगरी।
संज्ञा
[सं.]


कुदरा
कुदार
संज्ञा
[हिं. कुदाल]


कुदरसन
कुरूप, भद्दा।
(क) कामी, कृपिन, कुचील, कुदरसन, को न कृपा करि तारयौ। तातैं कहत दयाल देवमनि, काहैं सूर बिसारयौ।–१ १०१। (ख) कामी, कुटिल, कुचील कुदरसन, अपराधी, मतिहीन - १ - १११।
वि.
[सं. कुदर्शन]


कुदर्शन
जो देखने में अच्छा न लगे।
वि.
[सं.]


कुदलाना
उछलना-कूदना |
क्रि. अ.
[हिं. कूदना]


कुदाँव
बुरा दाँव-घात, धोखा।
संज्ञा
[सं. कु= बुरा+हि. दाँव]


कुदाँव
कष्ट की स्थिति।
संज्ञा
[सं. कु= बुरा+हि. दाँव]


कुदाँव
बुरा स्थान।
संज्ञा
[सं. कु= बुरा+हि. दाँव]


कदाई
दाँवघात करनेवाला, छलीकपटी।
वि.
[हिं. कुदाँव]


कुदाउँ, कुदाउ
कुघात, कुदाँव।
संज्ञा
[हिं. कुदाँव]


कुदान
बुरा या अनुचित (धन का) दान।
संज्ञा
[सं.]


कुदान
बुरे पात्र को दान।
संज्ञा
[सं.]


कुदान
कूदने की क्रिया।
संज्ञा
[हिं. कूदना]


कुदान
कूदने की दूरी।
संज्ञा
[हिं. कूदना]


कुदाना
कूदने को प्रेरित करना।
क्रि. स.
[हिं. कूदना]


कुदाम
खोटा सिक्का या रुपया।
संज्ञा
[सं.कु=बुरा+हिं. दाम]


कुदाय
दाँव-घात, छल-कपट।
संज्ञा
[हिं. कुदाँव]


कुदार, कुदारी
जमीन खोदने का एक औजार।
तनु गिरि जानि अनि अवनी इहि उडि भीत रहे। गमन कान्ह छन छन तु काम ससि किरनि कुदार गहे - २८९८।
संज्ञा
[हिं. कुदाल]


कुदाल, कुदाली
जमीन खोदने या गोड़ने का औजार।
संज्ञा
[सं. कुद्दाल]


कुदिन
कष्ट-संकट के दिन।
संज्ञा
[सं.]


कुदिन
वह दिन जब कष्टदायक घटना हो।
संज्ञा
[सं.]


कुदिष्टि
पाप या वासना की दृष्टि।
संज्ञा
[सं. कुदृष्टि]


कुदृष्टि
बुरी या पाप की दृष्टि।
संज्ञा
[सं.]


कुदेव
ब्राह्मण।
संज्ञा
[सं. कु=भूमि+देव]


कुदेव
राक्षस।
संज्ञा
[सं. कु=बुरा+देव]


कुद्रव
तलवार चलाने का एक ढंग।
संज्ञा
[देश.]


कुधर
पहाड़।
संज्ञा
[सं. कुध्र]


कुधर
शेषनाग।
संज्ञा
[सं. कुध्र]


कुधातु
बुरी धातु।
संज्ञा
[सं.]


कुधातु
लोहा।
संज्ञा
[सं.]


कुनकुना
थोड़ा गरम, गुनगुना।
वि.
[सं. कदुष्ण]


कुनना
खरोदना।
क्रि स.
[सं. क्षणान]


कुनना
खरोचना।
क्रि स.
[सं. क्षणान]


कुनबा
परिवार।
संज्ञा
[कुटुंब, प्रा.कुडुंब]


कुनह
द्वेष, मनमुटाव।
संज्ञा
[फा. कीन:]


कुनह
पुराना बैर।
संज्ञा
[फा. कीन:]


कुनाई
खरोदने या खुरचने पर निकलनेवाला चुरा।
संज्ञा
[हिं. कुनना]


कुनाई
खरोदने या खुरचने की क्रिया।
संज्ञा
[हिं. कुनना]


कुनाम
बदनामी, बुराई।
वृन्दा बन हरि बैठे धाम। काहे को गथ हरयौ सबन को काहे अपनो कियो कुनाम - १८८१।
संज्ञा
[सं.]


कुनारी
दुष्ट स्त्री।
हरि, हौं महा अधम संसारी। आन समुझ मैं बरिया ब्याही, आसा कुमति कुनारी - १ - १७३।
संज्ञा
[हिं. कु=बुरा]


कुनित
बजता हुआ, झनकारता हुआ, शब्द करता हुआ।
(क) कनक-रतन-मनिरचित कटि-किंकिनि कुनित पीतपट तनियाँ - १० - १०६। (ख) किंकिनी कटि कुनित कंकन, काचुरी झनकार। हृदय चौकी चमक बैठो सुभग मोतिनहार।

(ग) सखि हरषि झूले बृषभानुनंदिनी सोभि सँग नंदलालनो। मनिमय नूपुर कुनित कंकन किंकिनी झनकारनो - २.२८०।

[सं. क्‍वणित]


कुपंगु
बुरी तरह अपाहिज।
स्वान कुब्ज, कुपंगु, कानौ, स्रवन-पुच्छ-विहीन। भग्न भाजन कंठ, कृमि सिर, कामिनी आधीन - १ - ३२१।
संज्ञा
[सं.]


कुपंथ
बुरा मार्ग।
संज्ञा
[सं. कुपथ]


कुपंथ
बुरी रीति-नीति।
संज्ञा
[सं. कुपथ]


कुपढ़
अनपढ़।
वि.
[सं. कु+हिं. पढ़ना]


कुपथ
बुरा मार्ग
संज्ञा
[सं.]


कुपथ
बुरी चाल।
संज्ञा
[सं.]


कुपथ
हानिकारी भोजन।
संज्ञा
[सं. कुपथ्य]


कुपथी
बुरे मार्ग पर चलनेवाला।
वि.
[सं.]


कुपथी
हानिकारी भोजन करनेवाला।
वि.
[सं. कुपथ्य, कुपथ्यी]


कुपथी
हानिकारी भोजन करने की क्रिया।
संज्ञा


कुपथी
बदपरहेजी।
जो हुती निकट मिलन की आसा सो तो दूर गयी। जथा योग ज्यों होत रोगिया कुपथी करत नयी--२९०१।
संज्ञा


कुपथ्य
वह आहार-विहार जो स्वास्थ्य के लिए हानिकारी हो।
संज्ञा
[सं.]


कुपना
अप्रसन्न होना।
क्रि. अ.
[हिं. कोपना]


कुपाठ
बुरी सलाह।
संज्ञा
[सं.]


कुपात्र
अयोग्य।
वि.
[सं.]


कुपात्र
जो दान का अधिकारी न हो।
वि.
[सं.]


कुपार
समुद्र।
संज्ञा
[अकूपार]


कुपित
क्रोध में भरा हुआ।
वि.
[सं.]


कुपित
अप्रसन्न।
वि.
[सं.]


कुपीन
लँगोटी, कफनी, कच्छी।
जीरन पट कुपीन तन धारि। चल्यौ सुरसरी, सीस उघारि-१-३४१।
संज्ञा
[सं. कौपीन]


कुपुटना
काटकपट करना, छिपा कर निकाल लेना।
कि. स.
[हिं. कपटना]


कुपुत्र
बुरा पुत्र, कपूत।
संज्ञा
[सं.]


कुपेड़े
बुरा मार्ग।
छाँड़ि राजमारग यह लीला कैसे चलहिं कुपैड़े-३०६९।
संज्ञा
[सं. कु+पैड़]


कुपैड़ो
बुरा पथ या मार्ग।
राजपंथ तैं टारि बतावत उज्ज्वल कुचल कुपैड़ो -३३१३।
संज्ञा
[सं कु+पैंड़]


कुप्रबन्ध
बुरा इंतजाम।
संज्ञा
[सं. कु+प्रबंध]


कुप्रयोग
वस्तु, पद या अधिकार का अनुचित प्रयेाग।
संज्ञा
[सं. कु+प्रयोग]


कुफुर, कुफ
इसलाम से भिन्न धर्म।
(२) इसलाम धर्म के विरूद्ध बात।
संज्ञा
[अ.]


कुबंड
धनुष।
संज्ञा
[सं. कोदंड]


कुबंड
जिसके शरीर का कोई अंग खंडित हो।
वि.
[सं. कु+बंठ= खंड]


कुब
कूबड़।
संज्ञा
[हिं. कूबड़]


कुबजा
कंस की एक दासी जो श्रीकृष्ण से प्रेम करती थी।
संज्ञा
[सं. कुब्जा]


कुबड़ा
जिसकी पीठ झुक गयी हो।
वि.
[सं. कुब्ज]


कुबड़ा
झुका हुआ।
वि.


कुबड़ी
जिसकी पीठ झुक गयी हो।
वि.
(हिं. कुबढ़ा]


कुबड़ी
मोटी छड़ी जिसका सर झुका हो।
वि.
(हिं. कुबढ़ा]


कुबत
बुराई, निंदा।
संज्ञा
[सं. कु+हिं. बात]


कुबत
बुरी चाल।
संज्ञा
[सं. कु+हिं. बात]


कुबरी
कंस की कबड़ी दासी जो श्रीकृष्ण से प्रेम करती थी।
संज्ञा
[हि.कुबड़ा]


कुबरी
जिसकी पीठ झुकी हुई हो।
संज्ञा
[हि.कुबड़ा]


कुबलय
नीला कलभ।
कुबलयदल कुसमय सैय्या रचि पंथ निहारत तोर---९२६ सारा.।
संज्ञा
[सं. कुबलय]


कुचल्या
कुबलयापीड़ नामक कंस का हाथी जिसे श्रीकृष्ण ने मारा था।
संज्ञा
[सं. कुबलया]


कुबाक
कड़ी या कठोर बात।
संज्ञा.
[सं.कुवाक्य]


कट
शव।
संज्ञा
[सं.]


कट
टिकटी, अरथी।
संज्ञा
[सं.]


कट
श्मशान।
संज्ञा
[सं.]


कट
समय।
संज्ञा
[सं.]


कट
एक प्रकार का काला रंग।
संज्ञा
[हिं. कटना]


कट
‘काट' का संक्षिप्त रूप।
संज्ञा
[हिं. कटना]


कट
बहुत
वि.


कट
उग्र।
वि.


कटक
काँटा, दुख।
संज्ञा
[सं. कंटक]


कटक
सेना, दल।
महाराज, तुम तौ हौ साध। मम कन्या तैं भयौ अपराध। या कन्या कौं प्रभु तुम बरौ। कटक–सूल किरपा करि हरौ - ९ - २। स्याम बलराम जब कंस मारयौ। सुनि जरासंध बृतांत अस सुता तें युद्ध हित कटक अपनौ हँकारयौ - १० उ. - १।
संज्ञा
[सं.]


कुबाक
गाली।
संज्ञा.
[सं.कुवाक्य]


कुबानि
बुरी आदत, कुटेव।
संज्ञा
[सं. कु+हिं.बानि]


कुबानी
बुरा व्यवसाय।
संज्ञा
[सं. कु+बानी (वाणिज्य)]


कुबानी
[सं. कु+वाणी]
बुरी या अशुभ बात।
संज्ञा


कुबानी
बुरी आदत।
संज्ञा
[सं. कु+हिं. बानि]


कुबिज
पीठ का टेढ़ापन, कूबड़।
हरि करि कृपा करी पटरानी कुबिज मिटायौ डारि-२६४०।
संज्ञा
[सं. कुब्ज]


कुबिज
कुब्जा नामक कंस की दासी जो श्रीकृष्ण से प्रेम करती थी।
संज्ञा
[सं. कुब्जा]


कुबुद्धि
जिसकी बुद्धि भ्रष्ट हो, दुर्बुद्धि, मूर्ख।
वि.
[सं.]


कुबुद्धि
मूर्खता।
संज्ञा
[सं. कु=बुरा]


कुबुद्धि
बुरी सलाह, कुमन्त्रणा।
संज्ञा
[सं. कु=बुरा]


कबुधि
जिसकी बुद्धि भ्रष्ट हो, मूर्ख।
वि.
[सं. कुबुद्धि]


कबुधि
मूर्खता।
तजो हरिबिमुखन कौ संग। जिनकैं संग कुबुधि (कुमति) उपजति है, परत भजन मैं भंग --- १-३३।
संज्ञा
[सं.]


कबुधि
बुरी सलाह, कुमन्त्रणा।
संज्ञा
[सं.]


कुबेर
एक देवता।
संज्ञा
[सं. कुबेर]


कुबेर
बुरा समय।
संज्ञा
[सं. कुवेला, हि.कुबेला]


कुबेरिया
अनुपयुक्त समय, बुरा काल।
आवहु कान्ह, साँझ की बेरिया। गाइनि माँझ भए हौ ठाढ़े, कहति जननि यह बड़ी कुबेरिया-१०-२४६।
संज्ञा
[सं. कुवेला, हिं. कुबेला]


कुबेला
बुरा समय।
संज्ञा
[सं. कुवेला]


कुबोल
बुरी या अशुभ बात।
संज्ञा
[सं.कु+हिं. बोल]


कुबोलना
बुरी या अशुभ बात कहनेवाला।
वि.
[हिं. कु+बोलना]


कुबोलिनी, कुबोली
अप्रिय या कटु बात कहनेवाली।
वि.
[हिं. कुबोल]


कुब्ज
जिसकी पीठ टेढ़ी हो, कुबड़ा।
स्वान कुब्ज, कुपंगु, कानौ, स्रवन-पुच्छ-विहीन। भग्न भाजन कंठ, कृमि सिर, कामिनी आधीन-१-३२१।
वि.
[सं.]


कुब्जा
कंस की एक बड़ी दासी जो श्रीकृष्ण से प्रेम करती थी और प्रसिद्धि है कि जिसे उन्होंने अपना लिया था।
संज्ञा
[सं.]


कुब्जा
कैकेयी की मन्थरा नामक दासी जे कुबड़ी थी।
संज्ञा
[सं.]


कुब्बा
कूबड़, कोहान, डिल्ला।
संज्ञा
[हिं. कुबड़ा]


कुभा
पृथ्वी की छाया।
संज्ञा
[सं.]


कुभा
काबुल नदी।
संज्ञा
[सं.]


कुभाउ
बुरा या अनुचित विचार।
यह सब कलिजुग कौ परभाउ। जो नृप कैं मन भयउ कुभाउ-१-२९०।
संज्ञा
[सं. कुभाव]


कुभाव
बुरा, अनुचित या अशुभ विचार।
संज्ञा
[सं. कु+भाव]


कुमंठी, कुमंडी
पेड़ की पतली और लचीली टहनी।
संज्ञा
[सं. कमठ=बाँस]


कुमंत्र
बुरी सलाह, बुरी सलाह के अनुसार अनुचित कार्य।
तैं कैकई कुमंत्र कियौ। अपने कर करि काल हँकारयौ, हठकरि नृप-अपराध लियौ--९४८।
संज्ञा
[सं. कु+मंत्र]


कुमंत्रण
बुरी सलाह।
संज्ञा
[सं.]


कुमक
सहायता, मदद।
संज्ञा
[तु.]


कुमक
पक्षपात, तरफदारी।
संज्ञा
[तु.]


कुमकुम
गुलाल।
संज्ञा
[सं. कुंकुम]


कुमकुम
केशर।
(क) कुमकुम कौ लेप मेटि, काजर मुख लाऊँ--- १-१६६। (ख) तहाँ स्याम घन रास उपायौ। कुमकुम जल सुख वृष्टि रमायौ

(ग) उनै उनै घन बरसत चख उर सरिता सलिल भरी। कुमकुम कज्जल कीच बहै जनु कुचयुग पारि परी---२८१४।

संज्ञा
[सं. कुंकुम]


कुमकुम
कुमकमा।
संज्ञा
[सं. कुंकुम]


कुमकुमा
लाख के बने पीले गोले जो अबीर गुलाल भरकर एक दूसरे को होली के दिनों में मारते हैं।
संज्ञा
[तु. कुमकुमा]


कुमकुमा
काँच के बने छोटे-बड़े गोले।
संज्ञा
[तु. कुमकुमा]


कुमकुमा
केशर।
(क) मलयज पंक कुमकुमा मिलिकै जल जमुना इक रंग --१८४२।

(ख) मृगमद मलय कपूर कुमकुमा सींचति आनि अली--२७३८।

संज्ञा
[सं. कुंकुम]


कुमग
कुमार्ग, बुरा मार्ग।
अदभुत राम नाम के अंक। अंधकार-अज्ञान हरन कौं रबि-ससि जुगल-प्रकास। बासर-निसि दोऊ करैं प्रकासित महा कुमग अनयास-१-९०।
संज्ञा
[सं. कुमार्ग]


कुमत
दुर्बुद्धि।
बाजि मनोरथ, गर्ब मत्त गज, असत-कुमत रथ-सूत--१ १४१।
संज्ञा
[सं. कुमति]


कुमत
दुर्बुद्ध नायिका।
मेरी कही न मानत राधै। ए अपनी मत समुझत नाहीं कुमत कहाँ पन नाधे-सा. ६५।
संज्ञा
[सं. कुमति]


कुमति
दुर्बुद्धि।
संज्ञा
[सं.]


कुमति
कुमंत्रणा।
मंत्री काम कुमति दीबे कौं, क्रोध रहत प्रतिहारी-१-१४४
संज्ञा
[सं.]


कुमति
पुरंजन नामक एक प्राचीन राजा की रानी का नाम।
तन पुर, जीव पुरंजन राव। कुमति तासु रानी कौं नाँव-४.१२।
संज्ञा
[सं.]


कुमया
निष्ठुरता, कठोरता, निर्दयता, अनुचित व्यवहार।
यह कुमया जौ तब ही करते। तौ कत इन ये जिवत आजु लौं या गोकुल के लोग उबरते–२७३८।
संज्ञा
[सं. कु+माया]


कुमाच
रेशमी वस्त्र।
संज्ञा
[अ. कुमाश]


कुमाच
कौंच नामक लता।
संज्ञा
[अ. कुमाश]


कुमार
पाँच वर्ष की आयु का बालक।
संज्ञा
[सं]


कुमार
पुत्र, बेटा।
सब तज भजिए नंद-कुमार-१-६८।
संज्ञा
[सं]


कुमार
किशोर, वह जो किशोरावस्था का हो।
बालमीकि मुनि बसत निरंतर राम मंत्र उच्चार। ताकौ फल मोंहिं आजु भयौ, मोहि दरसन दियौ कुमार।
संज्ञा
[सं]


कुमार
वह मार (कामदेव) जो शत्रु का सा कठोर व्यवहार करे।
व्रज में आजु एक कुमार। तपनरिपु चले तासु पति हित अंत हीन बिचार–सा. ३०।
संज्ञा
[सं]


कुमार
जिसका विवाह न हुआ हो, कुआँरा।
वि.


कुमारग
बुरा या अनुचित मार्ग।
संज्ञा
[सं. कुमार्ग]


कुमारि
राजकुमारी।
श्री रघुनाथ-रमनि, जग-जननी, जनक-नरेस कुमारी- ९-६५।
संज्ञा
[सं. कुमारी]


कुमारिका
बारह वर्ष तक की अवस्था की कन्या।
रिषि कह्यौ ताहि, दान रति देहि। मैं बर देहुँ, तोहिं सौ लेहि। तू कुमारिका, बहुरौ होइ। तोकौं नाम धरै नहिं कोई--१-२२९।
संज्ञा
[सं. कुमारी]


कुमारी
वह कन्या जिसकी अवस्था बारह वर्ष से अधिक न हो।
संज्ञा
[सं.]


कुमारी
सीता जी का एक नाम।
संज्ञा
[सं.]


कुमारी
पार्वती
संज्ञा
[सं.]


कुमारी
दुर्गा।
संज्ञा
[सं.]


कुमारी
जिस कन्या का विवाह न हुआ हो।
वि.


कुमारी-पूजन
वह देवी-पूजा जिसमें कुमारियों का पूजन किया जाता है।
संज्ञा
[सं.]


कुमारिल
प्रसिद्ध मीमांसक जो जाति के भट्ट थे।
संज्ञा
[सं.]


कुमार्ग
बुरी राह।
संज्ञा
[सं.]


कुमार्ग
पाप की रीति या चाल, अधर्म।
संज्ञा
[सं.]


कुमार्गी
बुरे मार्ग पर चलने वाला।
वि.
[हिं. कुमार्ग]


कुमार्गी
पापी, अधर्मी।
वि.
[हिं. कुमार्ग]


कुमीच
कुत्सित मृत्यु पानेवाला व्यक्ति।
संज्ञा
[सं. कु+मीच=मृत्यु]


कुमीच
अधम मृत्यु।
कहा जाने कैवाँ मुवौ, (रे) ऐसैं कुमति कुमीच। हरि सौं हेत बिसारि कै, (रे) सुख चाहत है नीच---- १-३२५।
संज्ञा
[सं. कु+मीच=मृत्यु]


कुमुख
रावण पक्ष का एक वीर जिसका नाम दुर्मुख था।
संज्ञा
[सं.]


कुमुख
सुअर।
संज्ञा
[सं.]


कुमुख
भद्दे मुँहवाला।
वि.


कुमुख
बुरे या अनुचित शब्द कहनेवाला।
वि.


कुमुद
कुईं, कोई।
संज्ञा
[सं.]


कुमुद
एक लाल कमल जो चंद्रमा को देखकर (या रात्रि में) खिलता है।
आँगन खेलैं नंद के नंदा। जदुकुल-कुमुद- सुखद चारु चंदा-१०-११७।
संज्ञा
[सं.]


कुमुद
चाँदी।
संज्ञा
[सं.]


कुमुद
राम-पक्ष के एक बन्दर का नाम।
संज्ञा
[सं.]


कुमुद
कपूर।
संज्ञा
[सं.]


कुमुद
विष्णु का एक दरबारी।
संज्ञा
[सं.]


कुमुद
कंजूस।
वि.


कुमुद
लोभी।
वि.


कुमुदकर
चंद्रमा की किरण।
संज्ञा
[सं.]


कुमुदकला
चंद्र किरण।
संज्ञा
[सं.]


कमुदकिरण
चंद्र किरण।
संज्ञा
[सं.]


कुमुदनी
कुँई, कोई।
संज्ञा
[सं. कुमुदिनी]


कुमुदनी
वह स्त्री जो अनुचित बातों में आनन्द ले।
कत मो सुमन सो लपटात।…..कुमुदनी संग जाहु करके केसरी कौ गात - सा. ७१।
संज्ञा
[सं. कुमुदिनी]


कुमुदबन
वृदावन के समीप एक गाँव।
(क) आजु चरावन गाइ चलौ जू, कान्ह, कुमुदबन जैऐ। सीतल कुंज कदम की छहियाँ, छाक छहूँ रस खैहै - ४४५। (ख) मधुबन और कुमुदबन सुंदर बहुलाबन अभिराम–१०८८ सारा.।
संज्ञा
[सं. कुमुद+वन]


कुमुदा
राधा की एक सखी का नाम जो श्रीकृष्ण से प्रेम करती थी।
कहि राधा किन हार चोरायौ….। रत्ना कुमुदा मोहा करुना ललना लोभां नूप। इतनीन में कहि कौने लीन्हौ ताको नाउ बताउ - - १५८० (ख) रहे हरि रैनि कुमुदा गेह - - २१६०।
संज्ञा
[सं.]


कुमुदिनि, कुमुदिनी
कुईं, कोईं जो रात में खिलती है और दिन में मुँद जाती है।
कुमुदिनि सकुची बारिज फूले - १० - २३३।
संज्ञा
[सं. कुमुदिनी]


कुमुदिनीनाथ
चंद्रमा।
संज्ञा
[सं.]


कुमेरु
दक्षिणी ध्रुव।
संज्ञा
[सं.]


कुमैत
स्याही लिये लाल रंग का मजबूत और तेज घोड़ा।
निकसे सबै कुँअर असवारी उच्चैःश्रवा के पोर। लीले सुरंग कुमैत स्याम तेहि पर दे सब मन रंग - - १० उ० - ६।
संज्ञा
[तु. कुमेत]


कुमोद
कुईं।
संज्ञा
[सं. कुमुद]


कुमोद
लाल कमल।
संज्ञा
[सं. कुमुद]


कुमोदनी, कुमोदिनी
कुईं, कोई, कुमुदिनी।
संज्ञा
[सं. कुमुदिनी]


कुम्मैत, कुम्मैद
घोड़े का स्याही लिये लाल रंग।
संज्ञा
[तु. कुमेत]


कुम्मैत, कुम्मैद
वह घोड़ा जिसका रंग स्याही लिये लाल हो।
संज्ञा
[तु. कुमेत]


कुम्मैत, कुम्मैद
स्याही लिये लाल रंग का।
वि.


कुम्हड़ा
एक बेल जिसमें बड़े बड़े गोल फल लगते हैं।
संज्ञा
[सं. कूष्मांड, पा. कुम्हंड, प्रा. कुमंड]


कुम्हड़ा
कुम्हड़े का फल।
संज्ञा
[सं. कूष्मांड, पा. कुम्हंड, प्रा. कुमंड]


कजाकी
छल- कपट, धोखाधड़ी।
संज्ञा
[हिं. कजाक]


कज्‍जल
अंजन, काजल !
(क) ललित कन - संजुत कपोलनि लसत कज्‍जल अंक। मनहु राजत रजनि, पूरन कलापति सकलंक - ३५३। (ख) उनै उनै घन बरषत चष उर सरिता सलिल भरी। कुमकुम कज्‍जल कीच बहै जनु कुच जुग पारि परी - २८१४१
संज्ञा
[सं.]


कज्‍जल
सुरमा।
संज्ञा
[सं.]


कज्‍जल
कालिख, स्याही,
संज्ञा
[सं.]


कज्‍जल
बादल।
संज्ञा
[सं.]


कज्जलित
जिस नेत्र में काजल लगा हो, आँजा हुआ।
वि.
[सं.]


कज्जलित
काला।
वि.
[सं.]


कट
हाथी का गंडस्थल।
संज्ञा
[सं.]


कट
नरकट की घास या उसकी बनी चटाई।
संज्ञा
[सं.]


कट
खस की घास या उसकी बनी टट्टी।
संज्ञा
[सं.]


कुम्हड़ौरी
पीठी में कुम्हड़े के टुकड़े मिला कर बनायी हुई बरी।
संज्ञा
[हिं. कुम्हड़ा+बरी]


कुम्हलाना
मुरझाना।
क्रि. अ.
[सं. कु+म्लान]


कुम्हलाना
सूखने लगना।
क्रि. अ.
[सं. कु+म्लान]


कुम्हलाना
कांति या शोभा फीकी पड़ना।
क्रि. अ.
[सं. कु+म्लान]


कुम्हार
मिट्टी के बरतन बनानेवाला।
संज्ञा
[सं. कुंभकार, प्रा. कुंभार]


कुम्ही
पानी पर फैलने, फूलने और फलनेवाला एक पौधा |
लोचन सपने के भ्रम भूले।…….। निदरे रहत मोहिं नहिं मानत कहत कौन इम तूले। मोते गये कुम्ही के जर ज्यौं ऐसे वे निरमूले। सूर स्याम जल रासि परे अब रूपरंग अनुकूले।
संज्ञा
[सं. कुंभी]


कुम्हिलाइ, कुम्हिलाई
प्रफुल्लतारहित हुई, कांतिहीन हो गयी।
सुता लई उर लाइ, तनु निरखि पछिताइ, डरनि गइ कुम्हिलाइ, सूर बरनी - - पृ. - ६९८।
क्रि. अ.
[हिं. कुम्हलाना]


कुम्हिलाइ, कुम्हिलाई
मुरझाने लगी, सूख चली।
ससि उर चढ़त प्रेम पावक परि बंक कुसुम्भ रहे कुम्हिलाई - सा. उ. १९।
क्रि. अ.
[हिं. कुम्हलाना]


कुम्हलाए
कुम्हला गये, कांति या शोभाहीन हो गये।
(क) काहैं आजु अबार लगायी कमल बदन कुम्हिलाए - ५ ११।

(ख) चारो ओर ब्यास खगपति के झुंड झुंड बहु आए। ते कुखेत बोलत सुनि सुनि के सकल अंग कुम्हिलाए - - सा. १०२।

क्रि. अ.
[हिं. कुम्हलाना]


कुम्हिलात
कांतिहीन होता है, प्रफुल्लतारहित हो जाता है।
सुंदर तन सुकुमार दोउ जन, सूर-किरिन कुम्हिलात - - - ९ - ४३।
क्रि. अ.
[हिं. कुम्हलाना]


कुम्हिलाना
मुरझाना, उदास हेाना।
क्रि. अ.
[हिं. कुम्हलाना]


कुम्हिलानि
मरझा गये, सूखने लगे।
बाटिका बहु बिपिन जिनकै एक वै कुम्हिलानि–३३५५।
क्रि. अ.
[हिं. कुम्हलाना]


कुम्हिलानौ
कुम्हला गया, मलिन हुआ, प्रफुल्लतारहित हो गया।
(क) है निरदई, दया कछु नाहीं, लागि रही गृह काम। देखि छुधा तैं मुख कुम्हिलानौ, अति कोमल तन स्याम - - ३६१। (ख) देखियत कमल बदन कुम्हिलानौ, तू निरमोही बाम - - - ३६७।
क्रि. अ.
[हिं. कुम्हिलाना]


कुम्हिलानौ
कुम्हलाया हुआ, मलिन।
प्रात:काल हैं बाँधे मोहन, तरनि चढ्यौ मधि आनि। कुम्हिलानौ मुख चंद दिखावति, देखौ धौं नँदरानि - ३६५।
वि.


कुम्हिलैहै
कांतिहीन होगा, प्रफुल्ल रहित हो जायगा।
(क) तजि वह जनकराज-भोजन-सुख, कल तृन-तलप, बिपिन-फल खाहु। ग्रीषम कमल बदन कुम्हिलैहै, तजि सर निकट दूरि कित न्हाहु- ९ - ३४।

(ख) तुम्हरौ कमल-बदन कुम्हिलैहै, रेंगत घामहिं माँझ–४११।

क्रि. अ.
[हिं. कुम्हलाना]


कुयश
बुराई, बदनामी।
संज्ञा
[सं. कु+यश]


कुयोनि
नीच योनि।
संज्ञा
[सं.]


कुरंग
मृग, हिरन।
संज्ञा
[सं.]


कुरंग
बादामी रंग का हिरन।
संज्ञा
[सं.]


कुरंग
बुरा रंग-ढङ्ग।
संज्ञा
[सं.कु=बुरा+हिं. रंग]


कुरंग
स्याही लिये लाल रंग।
संज्ञा
[सं.कु=बुरा+हिं. रंग]


कुरंग
स्याही लिये लाल रंग का घोड़ा।
संज्ञा
[सं.कु=बुरा+हिं. रंग]


कुरंग
बुरे रँग का।
वि.


कुरंगक
हिरन, मृग।
संज्ञा
[सं. कुरंग]


कुरंगलांछन
चंद्रमा।
संज्ञा
[सं.]


कुरंगसार
कस्तूरी जो हिरन (कुरंग) की नाभि से निकलती है, मुश्क।
संज्ञा
[सं.]


कुरंगिना
हिरनी।
संज्ञा
[सं. कुरंग]


कुरंड
एक खनिज पदार्थ।
संज्ञा
[सं. कुरुविंद=मणिक]


कुरंड
एक पौधा जिसके फूल सफेद होते हैं।
संज्ञा
[सं.]


कुरकुद
मुर्गा।
संज्ञा
[हिं. कुक्कुट]


कुरकुटा
किसी चीज का छोटा टुकड़ा।
संज्ञा
[सं. कुट=कूटन]


कुरकुटा
रोटी का टुकड़ा।
संज्ञा
[सं. कुट=कूटन]


कुरकुर
खरी चीजों के टूटने का शब्द।
संज्ञा
[अनु.]


कुरकुरा
जिसे तोड़ने पर कुरकुर शब्द हो।
वि.
[हिं. कुरकुर]


कुरकुरी
पतली मुलायम हड्डी।
संज्ञा
[अनु.]


कुरकुरी
जिसे तोड़ने में कुरकुर शब्द हो।
वि.
[हिं. कुरकुरा]


कुरच
पानी के पास रहनेवाला कराँकुल नामक जल-पक्षी।
संज्ञा
[सं. क्रौंच]


कुरता
एक पहनावा।
संज्ञा
[तु.]


कुरना
ढेर लगाना।
क्रि. अ.
[हिं. कूरा=ढेर]


कुरना
पक्षियों का कलरव करना।
क्रि. अ.
[हिं. कूरा=ढेर]


कुरबान
निछावर।
वि.
(अ.]


कुरबानी
बलिदान।
संज्ञा
[अ.]


कुरमा
परिवार।
संज्ञा
[हिं. कुनवा]


कुररा
कराँकुल नामक जल पक्षी।
संज्ञा
[सं. कुरर]


कुररा
टिटिहर।
संज्ञा
[सं. कुरर]


कुरल
कुंडली।
संज्ञा
[सं.]


कुरलना
पक्षियों का कलरव करना।
क्रि. अ.
[सं. कलरव या कुरव]


कुरला
लाल फूलवाला एक वृक्ष।
संज्ञा
[सं.]


कुरला
सफेद मदार का वृक्ष।
संज्ञा
[सं.]


कुरला
जिसका स्वर कटु या कठोर हो।
वि.
[सं. कुरव]


कुरव
बुरा या अशुभ स्वर।
संज्ञा
[सं. कु+हि. रव]


कुरव
बुरी बोली बोलनेवाला।
वि.


कुरवना
एक जगह बहुत सी ढेर लगा देना।
क्रि. स.
[हिं. कुराना]


कुरवाना
खोदना, खरोचना।
क्रि. स.
[सं. कर्तन]


कुरवाना
नोचना।
क्रि. स.
[सं. कर्तन]


कुरवारति
खोदती है, खरोचती है।
राधा हरि की गरब गहीली।......। धरनी। नख चरनन कुरवारति सौतिन भाग सुहाग डहीली - - १३०९।
क्रि. स.
[हिं. कुरवारना]


कुरवारही
खोलती है, करोदती है।
अपने कर नखनि अलक कुरवारही कबहुँ बाँधे अतिहिं लगत लोभा - १५६३।
क्रि. स.
[हिं. कुरवारना]


कुरविंद
दर्पण, शीशा।
संज्ञा
[सं. कुरुविंद]


कुरा
कटसरैया का पौधा।
संज्ञा
[सं. कुरव]


कुराई
ऊँचा-नीचा गड्ढा और तंग रास्ता।
संज्ञा
[हिं. कुराह]


कुरान
इस्लामी धर्मग्रंथ।
संज्ञा
[अ.]


कुराय
ऊँचा नीचा और तंग रास्ता।
संज्ञा
[हिं.+कुराह]


कुराय
गड्ढा।
संज्ञा
[हिं.+कुराह]


कुराह
ऊँच-नीचा रास्ता।
संज्ञा
[सं. कु+ फ़ा. राह]


कुराह
बुरी रीति नीति या चाल।
संज्ञा
[सं. कु+ फ़ा. राह]


कुराहर
शोर-गुल।
संज्ञा
[सं. कोलाहल]


कुराही
कुमार्ग पर चलनेवाला।
वि.
[हिं. कुराह+ई (प्रत्य.)]


कुरिया
झोपड़ी।
संज्ञा
[हिं. कुटिया]


कुरिया
महल।
संज्ञा
[हिं. कुटिया]


कुरियार, कुरियाल
चिड़ियों का पंख खुजलाकर सुखी होना।
संज्ञा
[सं. कल्लोल]


कुरिहार
शोरगुल।
संज्ञा
[हिं. कोलाहल]


कुरी
अरहर की फलियाँ।
संज्ञा
[सं.]


कुरी
वंश, खानदान।
संज्ञा
[सं. कुल]


कुरी
भाग, टुकड़ा।
संज्ञा
[हिं. कूरा=ढेर]


कुरीति
बुरी रीति, अनीति, कुचाल।
अब राधे नाहिंन व्रजनीति। नृप भयौ कान्ह काम अधिकारी उपजी है ज्यौं कठिन कुरीति - - - २२२३।
संज्ञा
[सं.]


कुरु
एक चंद्रवंशी राजा जिनके वंश में पांडु और धृतराष्ट्र हुए थे।
संज्ञा
[सं.]


कुरु
कुरु के वंश में जन्मा व्यक्ति।
संज्ञा
[सं.]


कुरुई
बाँस या मूँज की छोटी डलिया।
संज्ञा
[सं. कुडव]


कुरुक्षेत्र
एक प्राचीन तीर्थ जो सरस्वती नदी के किनारे था। यह अंबाले और दिल्ली के बीच में स्थित है। महाभारत के प्रसिद्ध युद्ध के अतिरिक्त कई बड़े युद्ध यहाँ हुए थे। ग्रहण और कुम्भ के अवसर पर यहाँ बड़ा मेला लगता है।
संज्ञा
[सं.]


कुरुख
जो मुँह बनाये हो, कुपित, क्रुद्ध।
थकित सुमन दृग अरुन उनींदे कुरुख कटाक्ष, करत मुख थोरी। खंजन मृग अकुलात घात उर स्याम ब्याध बाँधे रति डोरी।
वि.
[सं. कु+ फ़ा. रुख]


कुरुखि
कटाक्ष, तिरछी चितवन।
संज्ञा
[हिं. कुरुख]


कुरुखेत
कुरुक्षेत्र।
या रथ बैठि बंधु की गर्जहिं पुरवै को कुरुखेत–१ - २९।
संज्ञा
[सं. कुरुक्षेत्र]


कुरुच्छेत्र
अम्बाले और दिल्ली के बीच में स्थित एक प्रसिद्ध प्राचीन तीर्थ जहाँ महाभारत का युद्ध हुआ था।
सज्ञा
[सं. कुरुक्षेत्र]


कुरुपति
दुर्योधन।
संज्ञा
[सं.]


कुरुम
कछुआ।
संज्ञा
[सं. कूर्म्‍म]


कुरुरना
बोलना, कलरव करना।
क्रि. अ.
[हिं. कलरवना]


कुरुराज
दुर्योधन।
संज्ञा
[सं.]


कुरुविंद
दर्पण, शीशा।
संज्ञा
[सं.]


कुरूप
असुंदर, बेडौल, बेढंगा, बदसूरत।
वि.
[सं.]


कुरूपता
असुंदरता, बदसूरती।
संज्ञा
[सं.]


कुरेदना
खुरचना, खरोचना।
क्रि. स.
[सं. कर्तन]


कुरेर
आमोद-प्रमोद, मन बहलाव।
संज्ञा
[सं. कल्लोल]


कुरेलना
खुरचना या खोदना।
क्रि. स.
[हिं. कुरेदना]


कुरैया
एक पेड़ जिसके फूल सुंदर होते हैं।
संज्ञा
[सं. कुठज]


कुरौना
ढेर लगाना।
क्रि. स.
[हिं. कुराना]


कुलङ्ग
पानी के किनारे रहनेवाली एक चिड़िया जिसका सिर लाल होता है और शरीर मटमैला।
संज्ञा
[फा.]


कुलंग, कुलंजन
एक पौधा।
संज्ञा
[सं.]


कुल
वंश।
(क) राम भक्त बत्‍सल निज बानौं। जाति, गोत, कुल, नाम गनत नहिं, रंक होइ कै रानौं - १.११।

(ख) भुव पर नहिं राखौ उनकौ कुल - १०४३।

संज्ञा
[सं.]


कुल
जाति।
संज्ञा
[सं.]


कुल
समूह।
जरासंध बन्दी करैं नृप-कुल जस गावै - १ - ४।
संज्ञा
[सं.]


कटक
राजशिविर।
संज्ञा
[सं.]


कटक
चूड़ा, कंकण, कड़ा।
संज्ञा
[सं.]


कटक
चक्र। समूह।
संज्ञा
[सं.]


कटकई
सेना, दल, लश्कर।
संज्ञा
[सं. कटक+ई (प्रत्य.)]


कटकट
दाँत बजने का शब्द।
संज्ञा
[अनु.]


कटकट
लड़ाई, झगड़ा।
संज्ञा
[अनु.]


कटकटान, कटकटाना
क्रोध से दाँत पीसना।
क्रि. अ.
[हिं. कटकट]


कटकाई
सेना, दल, लश्कर।
संज्ञा
[हिं. कटक+आई (प्रत्य.)]


कटजीरा
काला जीरा।
कूट कायफर सोठि चिरैता कटजीरा कहुँ देखत। आल मजीठ लाख सेंदुर कहुँ ऐसेहिं बुधि अवरेखत - ११०८।
संज्ञा
[सं. कणजीरक]


कटत
कटते हैं, खंड खंड होते हैं।
क्रि. अ.
[हिं. कटना]


कुल
समस्त, सब।
वि.
[अ.]


कुलकंटक
परिवारियों को कष्ट देने वाला।
संज्ञा
[सं.]


कुलकना
हर्ष से उछलने लगना।
क्रि. अ.
[हिं. किलकना]


कुलकलंक
वह व्यक्ति जो अपने कुल में दाग लगाये।
संज्ञा
[सं.]


कुल-कानि
वंश की मर्यादा, कुल की लज्जा।
जन की और कौन पति राखै। जाति-पाँति कुल-कानि न मानत, बेद पुराननि साखै - - - १ - १५।
संज्ञा
[सं. कुल+हि. कानि=मर्यादा]


कुलकुल
पानी बहने का शब्द।
संज्ञा
[अनु.]


कुलकुलाना
कुलकुल शब्द करना।
क्रि. अ.
[अनु.]


कुलकुलाना
ऑंतें कुलकुलाना- भूख लगना।
मु.


कुलक्षण
बुरा चिन्ह या लक्षण।
संज्ञा
[सं.]


कुलक्षण
बुरा आचरण या व्यवहार।
संज्ञा
[सं.]


कुलक्षणी
बुरे चिन्हवाली।
वि.
[सं.]


कुलक्षणी
बुरे आचरणवाली।
वि.
[सं.]


कुलचन्द
वंश को चन्द्रमा के समान स्वकीर्ति से प्रकाशित करनेवाले।
सोई दसरथ कुलचन्द अमित बल, आए सारँगपानी - ९ - ११५।
संज्ञा
[सं.]


कुलच्छन
बुरा चिन्ह।
संज्ञा
[सं. कुलक्षण]


कुलच्छन
बुरा आचरण।
संज्ञा
[सं. कुलक्षण]


कुलच्छनि, कुलच्छनी
बुरे लक्षणवाली।
कै हौं कुटिल, कुचील, कुलच्छनि, तजी कंत तबहीं - ९ - ९१।
संज्ञा
[सं. कुलक्षणी]


कुलच्छनि, कुलच्छनी
बुरे आचरणवाली।
संज्ञा
[सं. कुलक्षणी]


कुलज
कुल में उत्‍पन्न, वंश का।
वि.
[सं. कुल+ज=उत्पन्न]


कुलज
अच्छे कुल में उत्पन्न
वि.
[सं. कुल+ज=उत्पन्न]


कुलज
कुल को लजानेवाला।
वि.
[सं. कुल+हि. लाज=लजानेवाला]


कुलज
निर्लज्ज।
निर्धिन, नीच, कुलज, दुर्बुद्धी भोंदू, नित कौ रोऊ। तृष्‍ना हाथ पसारे निसि दिन, पेट भरे पर सोऊ - - - १ - १८६।
वि.
[सं. कु+लज्जा]


कुलजा, कुलजात
कुल या वंश में उत्पन्न।
वि.
[सं.]


कुलजा, कुलजात
अच्छे कुल में जन्मा।
वि.
[सं.]


कुलट
अनेक स्त्रियों से गुप्त प्रेम-सम्बन्ध स्थापित करनेवाला, व्यभिचारी।
तब चित चोर भोर व्रजबासिनि प्रेम नेक व्रत टारे। लै सरबस नहिं मिले सूर-प्रभु कहिये कुलट बिचारे।
वि.
[सं.]


कुलटा
अनेक पुरुषों से गुप्त प्रेम सम्बन्ध रखनेवाली, व्यभिचारिणी।
वि.
[सं.]


कुलटी
अनेक पुरुषों से गुप्त प्रेम करनेवाली।
(क) अहो सखी तुम ऐसी हो। अब लौं कुलटी करि जानति मोकौं री सब तैसी हो १५३६। (ख) उत होरी पढ़त ग्वार इत गारी गावति ए नंद नाहिं जाये तुम महरि गुनन भारी। कुलटी उनतै को है नंदादिक मन मोहै बाबा बृषभानु की वै सूर सुनहु प्यारी - २४२६।
वि.
[सं. कुलटा]


कुलतारक, कुलतारन
वंश को अपने आचरण से पवित्र करने या तारनेवाला।
वि.
[सं. कुल+ हिं. तारक या तारन]


कुलदेव
परंपरा से जिस देवता की पूजा कुल में सभी शुभ अवसरों पर की जाती हो, कुलदेवता। विश्वास है कि सभी संकटों से कुलपरिवार की ये रक्षा करते हैं।
साँझहिं तैं अतिहीं बिरुझानौ, चंदहि देखि करी अति आरति। बार-बार कुलदेव मनावति, दोउ कर जोरि सिरहिं लै धारति - - १० - २००।
संज्ञा
[सं.]


कुलदेवता
कुल का इष्टदेव, कुल देव।
संज्ञा
[सं.]


कुलदेवी
वह देवी जिसकी पूजा कुल में बहुत समय से होती आयी हो।
संज्ञा
[सं.]


कुलधर, कुलधारक
बेटा, पुत्र।
संज्ञा
[सं.]


कुलधर्म
परिवार की रीति या परंपरा।
संज्ञा
[सं.]


कुलपति
घर का बड़ा।
संज्ञा
[सं.]


कुलपति
अध्यापक जो शिक्षा देने के साथ साथ विद्यार्थियों का भरण-पोषण भी करे।
संज्ञा
[सं.]


कुलपति
महंत।
संज्ञा
[सं.]


कुलपति
विश्वविद्यालय का प्रधान।
संज्ञा
[सं.]


कुलपूज्य
जिस (व्यक्ति) का मान कुल के स्त्री-पुरुष, छोटे-बड़े, सभी करते हों।
वि.
[सं.]


कुलफ
ताला।
लोचन लालची भये री। सारँगरिपु के हरत न रोके हरि सरूप गिधए री। काजर कुलुफ मेलि में राखे पलक कपाट दये री - पृ. ३३५ और सा. उ. ७।
संज्ञा
[अ. कुलुफ]


कुलफा
एक साग।
संज्ञा
[फा. खुर्फः]


कुलफा
जमी हुई बड़ी कुलफी।
संज्ञा
[फा. खुर्फः]


कुलफी
पेंच।
संज्ञा
[हिं. कुलुफ]


कुलफी
टीन का पात्र जिसमें दूध की बरफ जमाते हैं।
संज्ञा
[हिं. कुलुफ]


कुलफी
जमी हुई दूध की बरफ।
संज्ञा
[हिं. कुलुफ]


कुलबधू
कुलीन वंश की वधू।
संज्ञा
[सं. कुलवधू]


कुलबधू
मान-मर्यादा से रहनेवाली स्त्री।
संज्ञा
[सं. कुलवधू]


कुलबुलाना
धीरे-धीरे हिलना-डुलना।
क्रि. अ.
[अनु. कुलबुल]


कुलबुलाना
चंचल होना।
क्रि. अ.
[अनु. कुलबुल]


कुलबोरन
अपने आचरण से वंश की मान-मर्यादा मिटाने वाला।
वि.
[हिं.कुल बोरन=डुबाना]


कुलबोरन
अयोग्य।
वि.
[हिं.कुल बोरन=डुबाना]


कुललज्या
वंश की मान-मर्यादा, कुल की लाज।
लोचन लालची भये री।……..। ह्वै आधीन पंच तै न्यारे कुललज्या न नये री - - पृ० ३३५ और सा. उ. ७।
संज्ञा
[सं. कुल+लज्जा]


कुलवंत
अच्छे वंश का, कुलीन।
वि.
[सं.]


कुलवधू
अच्छे कुल की वधू।
संज्ञा
[सं.]


कुलवधू
मान-मर्यादा से रहनेवाली वधू।
संज्ञा
[सं.]


कुलवान्
अच्छे कुल का।
वि.
[सं. कुल+हिं. वान्]


कुलसै
वज्र को भी।
हमारे हिरदै कुलसै (कुलिसै) जीत्यौ - २८८४।
संज्ञा
[सं. कुलिश]


कुलह, कुलहा
टोंपी।
संज्ञा
[फ़ा. कुलाह]


कुलह, कुलहा
शिकारी चिड़ियों की आँख पर पहनाया जाने वाला टोपी की तरह का ढक्कन।
संज्ञा
[फ़ा. कुलाह]


कुलहि, कुलहिया, कुलही
बच्चों की टोपी, कनटोप।
(क) स्याम बरन पर पीत झगुलिया, सीस कुलहिया चौतनियाँ - - - १०.१३२।

(ख) कुलहि लसत सिर स्याम सुभग अति बहु बिधि सुरंग बनाई–१० - १४८ |

संज्ञा
[फ़ा. कुलाह, हिं. कुलही]


कुलांगार
वंश का नाश करनेवाला।
वि.
[सं.]


कुलाँच, कुलाँट
चौकड़ी, छलाँग।
संज्ञा
[तु. कुलाच]


कुलाँचना
चौकड़ी भरना, छलाँग मारना।
क्रि. अ.
[तु. कुलाच]


कुलाचार
वह रीति नीति जो किसी वंश में प्रचलित रही हो।
संज्ञा
[सं. कुल+आचार]


कुलाधि
पाप।
संज्ञा
[सं. कुल=समूह+आधि=रोग, दोष]


कुलाबा
लोहे का छल्ला जो दरवाजे को चौखटों से जकड़े रहता है।
संज्ञा
[अ.]


कुलाल
जंगली मुर्गा।
जैसैं स्वान कुलाल के पाछैं लगि धावै - २ - ९।
संज्ञा
[सं.]


कुलाल
कुम्हार।
ऊधो भली भई अब आये। विधि कुलाल कीन्‍हें काचे घट ते तुम आनि पकाये -। ’६१।
संज्ञा
[सं.]


कुलाह
ऊँची टोपी।
संज्ञा
[फ़ा.]


कुलाहर, कुलाहल
चिल्लाहट,शोर, हल्ला।
अस्व देखि कहयौ, धावहु-धावहु। भागि जाहि मति, बिलँब न लावहु। कपिल कुलाहल सुनि अकुलायौ। कोपि-दृष्टि करि तिन्हैं जरायौ - ९ - ९। (ख) जा जल सुद्ध निरखि सन्मुख ह्वै, सुन्दरि सरसिज-नैनी। सूर परस्पर करत कुलाहल, गर सृग पहिरावैनी - ९ - ११।

(ग) आपुस में सब करत कुलाहर धौरी धूमरि धेनु बुलाये - ४७। (घ) हलधर संग छाक भरि काँवर करत कुलाहल सोर - ४७१, सारा.।

संज्ञा
[सं. कोलाहल]


कुलिंग
चिड़िया।
संज्ञा
[सं.]


कुलिक
कारीगर, शिल्पकार।
संज्ञा
[सं.]


कुलिक
कुलीन वंश में उत्पन्न व्यक्ति।
संज्ञा
[सं.]


कुलिश
हीरा।
संज्ञा
[सं.]


कुलिश
वज्र।
संज्ञा
[सं.]


कुलिश
ईश्वरावतारों (राम, कृष्ण आदि) के चरणों का वज्र-आकार का एक चिन्ह।
संज्ञा
[सं.]


कुलिश
कुठार।
संज्ञा
[सं.]


कुलिस
वज्र।
हृदय कठोर कुलिस तैं मेरौ–७४।
संज्ञा
[सं. कुलिश]


कुलीन
उत्तम कुल में उत्पन्न, अच्छे वंश का।
वि.
[सं.]


कुलीन
पवित्र, शुद्ध, निर्मल।
वि.
[सं.]


कुलुफ
ताला।
नैना न रहैं री मेरे हटकै। कछु पढ़ि दिये सखी यहि ढोटा घूँघर वारे लटकै। कज्‍जल कुलुफ मेलि मंदिर में पलक सँदूक पट अटकै।
संज्ञा
[अ. कुफल]


कुलेल
खेल, क्रीड़ा, आनंद।
संज्ञा
[सं. कल्लोल]


कुलेलना
खेलना, आनन्द मनाना।
क्रि. अ.
[हिं. कुलेल]


कुल्या
नहर।
संज्ञा
[सं.]


कुल्या
छोटी नदी।
संज्ञा
[सं.]


कुल्या
कुलीन स्त्री।
संज्ञा
[सं.]


कुल्ल
सब, समस्त, पूरा, तमाम।
मुलजिम जोरे ध्यान कुल्ल कौ, हरिसौं तहँ लै राखै। निर्भय रूपै लोभ छाँड़िकै, सोई बारिज राखै–१ - १४।
वि.
[अ. कुल]


कुल्ला
बल, पट्टा।
संज्ञा
[फा. काकुल। सं. कुंतल]


कुल्ली
बाल,पट्टा, जुल्फ।
संज्ञा
[फ़ा. काकुल। (सं. कुंतल)]


कुल्हड़
मिट्टी का पुरवा, चुक्कड़।
संज्ञा
[सं. कुल्हर]


कुल्‍हरा, कुल्हाड़ा
लकड़ी कटने या चीरने का एक औजार।
संज्ञा
[सं. कुठार]


कुल्हरी, कुल्हाड़ी
छोटा कुल्हाड़ा।
संज्ञा
[हिं. कुल्हड़]


कुल्‍हारा, कुल्‍हारौ
पेड़ काटने या लकड़ी चीरने का एक औजार, कुल्हाड़ा।
संज्ञा
[हिं. कुल्हाड़ा]


कुल्‍हारा, कुल्‍हारी
पाउँ कुल्हारौ मारौ- अपने आप अपनी हानि करना। उ.- इद्री स्वाद-बिवस निसि बासर, आपु अपुननै हारौ। जल औंड़े मैं चहुँ दिनि-पैरयौ, पाउँ कुल्हारौ मारौ - १ - १५२।
मु.


कुव
कमल।
संज्ञा
[सं.]


कुव
फूल।
संज्ञा
[सं.]


कुवज
कमल से उत्पन्न, ब्रह्मा।
संज्ञा
[सं. कुव+ज]


कुवलय
नीली कोईं।
संज्ञा
[सं.]


कुवलय
नील कमल।
संज्ञा
[सं.]


कुवलयापीड़, कुवलिया
कंस का एक हाथी जिसे श्रीकृष्ण ने मारा था |
कुवलिया मल्ल मुष्टिक चानूर से कियौ मैं कर्म यह अति उदासा - २५५१।
संज्ञा
[सं.]


कुवाँ
कुआँ।
संज्ञा
[सं. कूप, हिं. कुआँ]


कुवाँर
आश्विन मास।
संज्ञा
[हिं. कुवार)


कटत
नष्ट या दूर होते हैं, छीजते हैं।
(क) जे पद - पदुम - परस - जल - पावन - सुरसरिदरस कटत अघ भारे–१ - ९४। (ख) कमल नैन की लीला गावत कटत अनेक बिकार - २ - २।
क्रि. अ.
[हिं. कटना]


कटताल
करताल नामक काठ का बाजा।
संज्ञा
[हिं. काठ+ताल]


कटनंस
काट कर नष्ट करने की क्रिया।
संज्ञा
[हिं. काटना+नाश]


कटना
टुकड़े-टुकड़े होना।
क्रि. अ.
[सं. कर्तन, प्रा. कट्टन]


कटना
(किसी नोक आदि से) कट फट जाना।
क्रि. अ.
[सं. कर्तन, प्रा. कट्टन]


कटना
(किसी अंश या भाग का) अलग हो जाना।
क्रि. अ.
[सं. कर्तन, प्रा. कट्टन]


कटना
मरना।
क्रि. अ.
[सं. कर्तन, प्रा. कट्टन]


कटना
कतरना।
क्रि. अ.
[सं. कर्तन, प्रा. कट्टन]


कटना
नष्ट या दूर होना।
क्रि. अ.
[सं. कर्तन, प्रा. कट्टन]


कटना
समय बीतना।
क्रि. अ.
[सं. कर्तन, प्रा. कट्टन]


कुवाच्य
जो बात कहने योग्य न हो, गंदी।
वि.
[सं.]


कुवाच्य
गाली, दुर्बचन।
संज्ञा


कुवाट
किवाड़, दरवाजा।
संज्ञा
[सं. कपट]


कुवाण
धनुष।
संज्ञा
[सं. कृपाण]


कुवार
आश्विन का महीना।
संज्ञा
[सं. अश्विनी=कुमर]


कुविचार
बुरा विचार।
संज्ञा
[सं.]


कुवेर
एक देवता जो विश्रवस् ऋषि के पुत्र और रावण के सौतेले भाई थे। इलविला इनकी माता थी। विश्वकर्मा से कहकर सोने की लंका इन्होंने ही बनवायी थी। जब शिव के वर से शक्तिशाली होकर रावण ने इनसे लंका छीन ली तो इन्होंने तप करके ब्रह्मा को प्रसन्न किया। ब्रह्मा जी ने इन्हें इंद्र का भंडारी और समस्त संसार के धन का स्वामी बना दिया। इनके एक आँख, तीन पैर और आठ दाँत हैं। इनका पूजन नहीं होता।
संज्ञा
[सं.]


कुवेराचल
कैलास पर्वत।
संज्ञा
[सं.कुवेर+अचल]


कुवेष
बुरी वेश-भूषा, मैले-कुचैले वस्त्र।
संज्ञा
[सं. कु+वेश]


कुवेष
असगुन।
बातैं बूझतियौं बहभवति। सुनहु स्याम वै सखी सयानी पावस रितु राधहिं न सुनावति।...। कबहुँक प्रगट पपीहा बोलत कहि कुवेष करतारि बजावत - ३४८५।
संज्ञा
[सं. कु+वेश]


कुव्यवहार
बुरा या अनुचित व्यवहार।
संज्ञा
[सं.]


कुश
एक घास जो पवित्र मानी जाती है और जिसका प्रयोग प्रायः कर्मकांड तथा तर्पण में होता है, दाभ, डाभ।
संज्ञा
[सं.]


कुश
जल।
संज्ञा
[सं.]


कुश
रामचन्द्र का एक पुत्र।
संज्ञा
[सं.]


कुश
सात द्वीपों में से एक जो चारो ओर घृत-समुद्र से घिरा है।
सातों द्वीप कहे सुझ मुनि ने सोइ कहत अब सूर। जंबु, प्लक्ष, कौंच, शाक, शाल्मलि, केश, पुष्कर भरपूर - ३४ सारा.।
संज्ञा
[सं.]


कुशध्वज
जनक के छोटे भाई का नाम।
संज्ञा
[सं.]


कुशमुद्रिका
कुश का बना हुआ छल्ला जो कर्मकांड आदि के अवसर पर पहना जाता है।
संज्ञा
[सं.]


कुशल
चतुर, प्रवीण।
वि.
[सं.]


कुशल
भला, अच्छा, श्रेष्ठ।
वि.
[सं.]


कुशल
पुण्यात्मा।
वि.
[सं.]


कुशल
राजी-खुशी, क्षेम, मंगल।
न्हात बार न खसै इनको कुशल पहुँचैं धाम - २५६५।
संज्ञा
[सं.]


कुशल
वह जिनके हाथ में कुश हो।
संज्ञा
[सं.]


कुशल
शिव का एक नाम।
संज्ञा
[सं.]


कुशलक्षेम
राजी खुशी।
संज्ञा
[सं.]


कुशलता
चतुराई।
संज्ञा
[सं.]


कुशलता
योग्यता।
संज्ञा
[सं.]


कुशलता
कल्याण, क्षेम।
संज्ञा
[हिं. कुशल]


कुशलाई
कल्याण, कुशल, क्षेम।
मेरौ कह्यौ सत्य के जानौ। जौ चाहौ व्रज की कुशलाई तौ गोबर्धन मानौ - - - ९१५।
संज्ञा
[हिं. कुशल]


कुशलात, कुशलता
कुशलक्षेम-समाचार, मंगल-सूचना।
(क) मधुकर ल्याये जोग सँदेसो। भली स्याम कुशलात (कुसलात) सुनाई सुनतहिं भयो अँदेसो - ३२६३। (ख) दुहूँ की कुशलात कहियो तुमहिं भूलत नाहिं - २९ २८।

(ग) ऊधो जननी मेरी को मिलिहौ अरु कुशलात कहोगे–२९३२।

संज्ञा
[सं. कुशलता]


कुशलातैं
क्षेम या कुशल सूचक समाचार।
कहि कहि उधौ हरि कुशलातैं।...। कहि कुशलातैं साँची बातैं आवन कह्यौ हरि नाथै - ३४४१।
संज्ञा
[हिं. कुशलता]


कुशली
सकुशल
वि.
[सं. कुशलिन्]


कुशली
स्वस्थ।
वि.
[सं. कुशलिन्]


कुशवन
एक वन जो गोकुल के पास है।
संज्ञा
[सं.]


कुशा
कुश।
संज्ञा
[सं.]


कुशाग्र
कुश की नोक-सा तेज, तीव्र।
वि.
[सं.]


कुशासन
कुश का बना आसन या चटाई।
संज्ञा
[सं. कुश+आसन]


कुशिक
एक राजा जिनके पुत्र गाधि थे और पौत्र विश्वामित्र।
संज्ञा
[सं.]


कुशीलव
कवि।
संज्ञा
[सं.]


कुशीलव
नट।
संज्ञा
[सं.]


कुशेश, कुशेशय
कमल।
संज्ञा
[सं.]


कुश्ता
धातुओं को फूँककर बनाया हुआ चूर्ण।
संज्ञा
[फ़ा. कुश्तः]


कुश्ती
लड़ाई, मल्लयुद्ध।
संज्ञा
[फ़ा.]


कुष्ट, कुष्ठ
कोढ़ नाम का रोग।
संज्ञा
[सं.]


कुष्मांड
कुम्हड़ा।
संज्ञा
[सं.]


कुसंग
बुरे लोगों का साथ।
संज्ञा
[सं. कु+संग]


कुसंगति
बुरे लोगों का साथ।
संज्ञा
[सं. कु=संगति]


कुसंस्‍कार
बुरी वासना, वातावरण का बुरा प्रभाव।
संज्ञा
[सं.]


कुस
एक प्रकार की घास जिसका प्रयोग यज्ञों में होता था और जो अब भी पवित्र समझी जाती है।
दुरवासा दुरजोधन पठयौ पांडव अहित बिचारी। साक पत्र लै सबै अघाए, न्हात भजे कुस डारी १ - १२२।
संज्ञा
[सं. कुश]


कुसआसन
कुश की बनी चटाई।
संज्ञा
[सं. कुश=आसन=कुशासन]


कुसगुन
असगुन, कुलक्षण, बुरा सगुन।
फटवत स्रवन स्वान द्वारै पर, गररी करत लराई। माथे पर ह्वै काग उड़ान्यौ, कुसगुन बहुतक पाई - ५४१।
संज्ञा
[सं. कु= बुरा (उप.)=हिं. सगुन]


कुसमय
बुरा या अनुपयुक्त समय।
संज्ञा
[सं.]


कुसमय
बुरे या दुख के दिन।
संज्ञा
[सं.]


कुसमित
फूलों से युक्त।
मधुर मल्लिका कुसमित कुंजन दंपति लगत सोहाये - १००३ सारा.।
वि.
[सं. कुसुमित]


कुसरात
कुशलता।
संज्ञा
[हिं. कुशलात]


कुसल
क्षेम, मंगल, राजी-खुशी।
(क) सुनि राजा दुर्जोधना, हम तुम पैं आए। पांडव सुत जीवत मिले, दै कुसल पठाए। छेम-कुसल अरु दीनता दंडवत सुनाई १ - २३८। (ख) प्रभु जागे, अर्जुन तन चितयौ, कब आए तुम, कुसल खरी - १ - २६८।
संज्ञा
[सं. कुशल]


कुसल
चतुर।
परम कुसल कोबिद लीला नट मुसुकनि मन हरि लेत - १० - १५४।
संज्ञा
[सं. कुशल]


कुसलई
चतुरता।
संज्ञा
[सं. कुशल+हिं. ई (प्रत्य.)]


कुसलाई
चतुरता, कुशलता।
संज्ञा
[सं. कुशल+हिं. आई (प्रत्य.)]


कुसलाई
कुशल-क्षेम, खैरियत।
संज्ञा
[सं. कुशल+हिं. आई (प्रत्य.)]


कुसलात
कुशल, क्षेम, आनन्द-मंगल।
(क) सबै दिन एकै से नहिं जात। सुमिरन-भजन कियौ करि हरि कौ, जब लौं तन कुसलात - २ - २२। (ख) कहौ कपि, जनकसुता-कुसलात - ९ - १०४।

(ग) सूर सुनत सुग्रीव चले उठि, चरन गहे, पूछी कुसलात - ९ - ६६। (घ) सूरज आलस जथासंख कर बूझी सखी कुसलात - सा.५२।

संज्ञा
[सं. कुशल, हिं. कुशलता]


कुसली
गोझा या पिराक नामक पकवान।
संज्ञा
[हिं. कसैली]


कुसली
आम की गुठली।
संज्ञा
[हिं. कसैली]


कुसाइत
बुरा समय।
संज्ञा
[सं. कु. + अ. साअत]


कुसाइत
बुरा मुहूर्त।
संज्ञा
[सं. कु. + अ. साअत]


कुसाखी
बुरा पेड़।
संज्ञा
[सं. कु + साखिन=वृक्ष]


कुसासन
कुश की बनी चटाई।
संज्ञा
[सं. कुशासन=कुश+आसन]


कुसासन
बुरा राजप्रबन्ध।
संज्ञा
[सं. कु+ शासन]


कुसी
हल की फाल।
संज्ञा
[सं. कुशी]


कुसुंब
एक वृक्ष।
संज्ञा
[सं. कुसुंभ या कुसुंबक]


कुसंभ
कुसुम।
संज्ञा
[सं.]


कुसंभ
केसर, कुमकुम।
संज्ञा
[सं.]


कुसंभ
लाल रंग।
ऐसो माई एक कोद को हेतु। जैसे बसन कुसुम रँग मिलिकै नेक चटक पुनि स्वेत–३३०९।
संज्ञा
[सं.]


कसुंभा
कुसुंभ का लाल रंग।
संज्ञा
[सं. कुसुंभ]


कुसुंभी
कुसुंभ के रंग का, लाल।
(क) दीजै कान्ह काँधे हूँ को वंमर। नान्ही नान्ही बूँदन बरषन लागौ भीजत कुसुंभी अंबर - १५६६। (ख) स्याम अङ्ग कुसुंभी सारी फल गुंजा का भाँति। इत नागरी नीलांबर पहिरे जनु दामिनि घन काँति - पृ. ३१३।
वि.
[सं. कुसुंभ]


कुसुंम
कुमकुम, केसर, चंपक।
ससि उर चढ़त प्रेम पावक परि बंक कुसुंम रहे कुम्हिलाई - सा. उ. १९।
संज्ञा
[सं. कुसुम्भ, कुसुंबक]


कुसुम
फूल, पुष्प, सुमन।
सुनि सीता सपने की बात।... कुसुम विमान बैठी बैदेही देखी राघव-पास - ९ - ८३।
संज्ञा
[सं.]


कुसुम
एक वृक्ष।
संज्ञा
[सं. कुसुंभ, कुसुंबक]


कुसुम
लाल रंग।
संज्ञा
[सं. कुसुंभ, कुसुंबक]


कुसुम
एक राग।
संज्ञा
[सं. कुसुंभ, कुसुंबक]


कुसुमनि
फूलों से।
सब कुसुमनि मिलि रस करैं, (पै) कमल बँधावै आप। सुनि परिमिति पिय प्रेम की, (रे) चातक चितवन पारि–१ - ३२५।
संज्ञा
[सं. कुसुम+हिं. नि (प्रत्य.)]


कुसुमपुर
पटना का पुराना नाम।
संज्ञा
[सं.]


कुसुमरेणु
पराग।
संज्ञा
[सं.]


कुसुमवाण
कामदेव।
संज्ञा
[सं.]


कुसुमशर, कुसुमसर
कामदेव।
कुसुमसर रिपुनन्द बाहन हरषि हरषित गाउ - २७१५।
संज्ञा
[सं.]


कुसुमांजलि, कुसुमांजली
फूलों से भरी हुई अंजली।
कुसुमांजलि बरषत सुर ऊपर, सूरदास बलि जाई - ६२६।
संज्ञा
[सं. कुसुम+अंजलि]


कुसुमाकर
वसंत।
ठौर ठौर झिल्ली ध्वनि सुनियत मधुर मेघ गुंजार। मानो मन्मथ मिलि कुसुमाकर फूले करत बिहार - १०४१ सारा.।
संज्ञा
[सं.]


कुसुमाकर
वाटिका।
संज्ञा
[सं.]


कुसुमागम
वसंत।
संज्ञा
[कुसुम+आगम]


कुसुमायुध
कामदेव।
संज्ञा
[सं. कुसुम+आयुध]


कुसुमावलि, कुसुमावली
फूलों का गुच्छा।
संज्ञा
[सं.कुसुम+अवलि]


कुसुमासव
पुष्परस, पुष्पमधु।
संज्ञा
[सं. कुसुम+आसव=मदिरा]


कुसुमित
फूलों से युक्त, पुष्पित।
मधुर मल्लिका कुसुमित कुंजन दंपति लगत सोहये - १००३ सारा.।
वि.
[सं.]


कुसुमित
फूलों की कोमलता से युक्त, फूलों के समान सुखदायी सरल और सीधा-सादा।
कुसुमित धर्म कर्म कौ मारग जउ कोउ करत बनाई। तदपि बिमुख पाँती सो गनियत, भक्ति हृदय नहिं आई–१ - ९३।
वि.
[सं.]


कुसूत
बुरा सूत।
संज्ञा
[सं. कु+सूत्र, प्रा. सुत्त]


कुसूत
बुरा प्रबन्ध।
संज्ञा
[सं. कु+सूत्र, प्रा. सुत्त]


कुसेस, कुसेसय, कुसेसै
कमल।
राजिव दल इंदीवर सतदल कमल कुसेसय (कुसेसै) जाति। निसि मुदित प्रातहिं ए बिगसत ए बिगसत दिन राति - १३४९।
संज्ञा
[सं. कुशेशय]


कुरटी
कोढ़ी।
संज्ञा
[सं. कुष्ट]


कुस्तुभ
विष्णु।
संज्ञा
[सं.]


कुहँकुहँ
कुमकुम, केसर।
संज्ञा
[हिं. कुहकुह]


कुहक
धोखा, माया।
संज्ञा
[सं.]


कंचन
सुन्दर।
वि.


कंचनराज
एक प्राचीन नगर जो विदर्भ देश में था। यहाँ भीष्मक राज करते थे, जिनकी पुत्री रुक्मिणी को श्रीकृष्ण हर ले गये थे।
कंचनराज को काज सँवारयौ भूपन को यह काज १० उ.-१०८।
संज्ञा
[सं.]


कंचनी
वेश्या।
संज्ञा
[सं. कंचन]


कंचनी
अप्सरा।
संज्ञा
[सं. कंचन]


कंचुक
चपकन, अचकन।
संज्ञा
[सं]


कंचुक
वस्त्र।
संज्ञा
[सं]


कंचुक
एक प्रकार का कवच जो घुटने तक होता था।
संज्ञा
[सं]


कंचुक
चोली, अँगिया।
संज्ञा


कंचुक
केचुल।
संज्ञा


कंचुकि, कंचुकी
अँगिया, चोली।
(क) कसि कंचुकि, तिलक लिलार, सोभित हार हियै-१०-१४।(ख) कोउ केसरि कौ तिलक बनावति, कोउ पहिरति कंचुकी सरीर - १०-३५। (ग) कबहिं गुपाल कंचुकि फारी, कब भये ऐसे जोग–७७४। (घ) कनक-कलस कुच प्रकट देखियत आनन्द कंचुकि भूली - २५६१।
संज्ञा
[सं. कंचुकी]


कटना
समाप्त होना।
क्रि. अ.
[सं. कर्तन, प्रा. कट्टन]


कटना
चुपचाप खिसक जाना।
क्रि. अ.
[सं. कर्तन, प्रा. कट्टन]


कटना
लज्जित होना।
क्रि. अ.
[सं. कर्तन, प्रा. कट्टन]


कटना
ईर्ष्‍या से जलना।
क्रि. अ.
[सं. कर्तन, प्रा. कट्टन]


कटना
मोहित होना।
क्रि. अ.
[सं. कर्तन, प्रा. कट्टन]


कटना
बेकार खर्च होना।
क्रि. अ.
[सं. कर्तन, प्रा. कट्टन]


कटना
बिक जाना।
क्रि. अ.
[सं. कर्तन, प्रा. कट्टन]


कटना
प्राप्त होना।
क्रि. अ.
[सं. कर्तन, प्रा. कट्टन]


कटना
(सूची से नाम) हटा दिया जाना।
क्रि. अ.
[सं. कर्तन, प्रा. कट्टन]


कटनास
नीलकंठ पक्षी।
संज्ञा
[सं. कीट अथवा हिं. कटना+नाश]


कुहक
धूर्त, ठग।
वि.


कुहक
जादू जाननेवाला।
वि.


कुहकना
पक्षियों का मीठे स्वर में बोलना, पीकना, कलरव करना।
क्रि. अ.
[सं. कुहुकुहू]


कुहकिनि, कुहकिनी
कोयल।
संज्ञा
[सं. कुहुक या कुहू]


कुहकिनि, कुहकिनी
जादूगरनी।
संज्ञा
[सं. कुहुक या कुहू]


कुहकुह
केसर, जाफरान।
संज्ञा
[सं. कुमकुम]


कुहकुहाना
कोयल की कूकना।
क्रि. अ.
[हिं. कुहकुह]


कुहन, कुहना
बहुत मारना-पीटना।
क्रि. स.
[सं. कु+हनन=मारना]


कुहन, कुहना
गाना।
संज्ञा
[अनु. कुहू=कोयल की बोली]


कुहप
रजनीचर, राक्षस।
संज्ञा
[सं. कुहू=अमावस्या +प]


कुहबर
वह स्थान जहाँ विवाह के अवसर पर कुलदेवता स्थापित किये जाते हैं।
संज्ञा
[हिं. कोहबर]


कुहर
छेद, सूराख।
संज्ञा
[सं.]


कुहर
गले का छेद।
संज्ञा
[सं.]


कुहर
खाली या शेष भाग।
कहा कहैं छबि आज की मुख-मंडित खुर-धूरि। मानौ पूरन चंद्रमा कुहर रह्यौ आपूरि - ४३७।
संज्ञा
[सं.]


कुहर
जमी हुई भाप के कण जो वायु में मिले रहते हैं, कोहरा।
बिछुरन कौ संताप हमारौ तुम दरसन दै काट्यौ। ज्यों रबि तेज पाइ दमहूँ दिसि दौष कुहर कौ फाटयों - ९ - २७।
संज्ञा
[हिं. कुहरा, कोहरा]


कुहरा
कोहरा।
संज्ञा
[हिं. कोहरा]


कुहराम
रोना-पीटना।
संज्ञा
[अ. क़हर+आम]


कुहराम
हलचल।
संज्ञा
[अ. क़हर+आम]


कुहरित
शब्दायमान।
वि.
[हिं. कोहराम]


कुहाड़ा
कुल्हाड़ा।
संज्ञा
[हिं. कुल्हाड़ा]


कुहाना
रूठना,‍ रिसाना।
क्रि. अ.
[सं. क्रोधन्‌, पा. कोहन]


कुहारा, कुहारो
कुल्हाड़ा, टाँगी।
इंद्री स्वाद बिबस निसि बासर आपु अपुनपौ हारी। जल औड़े मैं चहुँ दिसि पैरयौ, पाउँ कुहारो (कुल्हारौ) मारौ - १ - १५२।
संज्ञा
[सं. कुठार, हिं. कुल्हाड़ा]


कुहासा
कुहरा।
संज्ञा
[सं. कुहेड़ी]


कुही
एक शिकारी चिड़िया।
संज्ञा
[सं. कुधि]


कुही
घोड़े की एक जाति।
संज्ञा
[फ़ा. कोही=पहाड़ी]


कुही
क्रोध करने वाला, क्रोधी।
मूकू, निंद निगोड़ा, भोड़ा, कायर काम बनावै। कलहा, कुही, मूषक रोगी अरु काहूँ नैंकु न भावै - १ - १८६।
वि.
[हिं. कोह=कोध, कोही, क्रोधी]


कुहु
अमावस्या।
संज्ञा
[सं. कुहू)


कुहुकंठ
कोमल।
संज्ञा
[सं.]


कुहुक
पक्षियों, विशेषतः कोयल और मोर का मधुर स्वर।
संज्ञा
[अनु.]


कुहुकना
पक्षियों, विशेषतः कोयल और मोर का मधुर स्वर में बोलना।
क्रि. अ.
[हिं. कुहुक+ना (प्रत्य.)]


कुहकबान
एक तरह का वाण जिसे चलाते समय कुछ शब्द निकलता है।
संज्ञा
[हिं. कुहुकना + वाण]


कुहुकिनी
कोयल।
संज्ञा
[हिं. कुहुक]


कुहुकुहाना
पक्षियों का मधुर स्वर में बोलना।
क्रि. अ.
[हिं. कुहुकना]


कुहुकुहानि
पक्षियों की मीठी बोली।
ज्यों कोइ लखत काग जिवाए भक्ष अभक्ष कहाइ। कुहुकुहानि सुनि रितु बसंत की अन्त मिले कुल अपने जाइ - ३०५३।
संज्ञा
[हिं. कुहुक]


कुहुराति
अमावस्या की काली रात।
दामिनी थिर घनघटा बर कबहुँ ह्वै एहि भाँति। कबहुँ दिन उद्योत कबहूँ होत अति कुहुराति - सा. उ. ५।
संज्ञा
[सं. कुहू+रात्रि]


कुहू
अमावस्या की रात।
(क) सूरदास रसरासि बरषि कै चली जनौ हरतिलक कुहू उग्यौ री - ६९१। (ख) सदा सरद ऋतु सकल कला लै सनमुख रहै जन्हाइ। सो सित पच्छ कुहू सम बीतत कबहुँ न देत दिखाइ - ३४८६।

(ग) नँद नंदन बृन्दाबन चंद।...। जठर कुहू ते बहिर बारिनिधि दिसि मधुपुरी सुछंद - १३ ३१।

संज्ञा
[सं.]


कुहू
अमावस्या की अधिष्ठात्री देवी।
संज्ञा
[सं.]


कुहू
मोर या कोयल को मीठी बोली।
संज्ञा
[सं.]


कुहू
कुहूकुहू ‘कुहू’ ‘कुहू' का शब्द।
यौ.


कुहेलिका
कुहरा, कोहरा।
संज्ञा
[सं.]


कुहौ
बोली, ध्वनि।
संज्ञा
[हिं. कूक]


कुहौ
मोर,कोयल आदि की कूक।
संज्ञा
[हिं. कूक]


कूँख
कोख, पेट।
संज्ञा
[सं. कुक्षि]


कूँखना
काँखना।
क्रि. अ.
[हिं. काँखना]


कूँचना
कुचलना, कूटना।
क्रि. स.
[अनु. कुचकुच]


कूँचा
झाडू, बढ़नी।
संज्ञा
[सं. कूर्च]


कूँची
छोटी झाडू।
संज्ञा
[हिं. कूँचा=झाडू]


कूँची
चूना पोतने की मूँज की कूँची।
संज्ञा
[हिं. कूँचा=झाडू]


कूँची
चित्रकार की तूलिका।
संज्ञा
[हिं. कूँचा=झाडू]


कूँची
कुंजी या कुंडी जो दरवाजे में उसे बंद करने के लिए लगी रहती है।
सहज कपाट उघरि गए ताला कूँची टूटि - २६२५।
संज्ञा
[सं. कुंचिका]


कूँज
क्रौंच पक्षी।
संज्ञा
[सं. क्रौंच]


कूँजत
मधुर स्वर से बोलता है।
(क) ऊधव कोकिल कूँजत कानन। तुम हमकौ उपदेस करत हौ भसम लगावन आनन। (ख) पपिहा गुंज, कोकिल बन कूँजत, अरु मोरनि कियौ गाजन - ६२२।
क्रि. अ.
[हिं. कूजना, कँजना]


कूँजत
चिल्लाता या दहाड़ता है।
बातैं बूझत यौं बहरावति। सुनहुँ स्याम वै सखी सयानी पावस-रितु राधहिं न सुनावति। घन गर्जत मनु कहत कुसलमति कूँजत गुहा सिंह समुझावति - ३४८५।
क्रि. अ.
[हिं. कूजना, कँजना]


कूँजना
बोलना, चिल्लाना।
क्रि. अ.
[हिं. कूजना]


कूँजना
मधुर स्वर से बोलना।
क्रि. अ.
[हिं. कूजना]


कूँड़, कूँड
लोहे की टोपी जो लड़ाई के समय पहनी जाती है।
संज्ञा
[सं. कुंड]


कूँड़, कूँड
कुएँ से पानी निकालने का टोपीनुमा बरतन।
संज्ञा
[सं. कुंड]


कूँड़ा
बड़ा बरतन।
संज्ञा
[सं. कुंड]


कूँड़ा
गमला।
संज्ञा
[सं. कुंड]


कूँड़ा
शीशे की बड़ी हाँडी जिसमें रोशनी जलायी जाती है।
संज्ञा
[सं. कुंड]


कूँड़ी, कूँडी
पत्थर की प्याली।
संज्ञा
[हिं. कूँड़ा]


कूँड़ी, कूँडी
छोटी नाँद।
संज्ञा
[हिं. कूँड़ा]


कूँथना
दुख से कराहना।
संज्ञा
[सं. कुंथन=दुख सहना]


कूँथना
कबूतरों का ‘गुटूरगूँ’ करना।
संज्ञा
[सं. कुंथन=दुख सहना]


कूँदना
खरोदना।
क्रि. स.
[हिं. कुनना]


कूँआँ
कुआँ, कूप।
संज्ञा
[सं. कूप]


कुईं
कमल की तरह का एक पौधा जो जल में होता है और चाँदनी रात में खिलता है, कोकाबेली, कुमुदिनी।
संज्ञा
[सं. कुव+ई (प्रत्य.]


कूक
लंबी मधुर ध्वनि
सोवत लरिकनि छिरकि मही सौं हँसत चलै दै कुक - १० - ३१७।
संज्ञा
[सं. कूजन]


कूक
कर्कश स्वर।
यह सुनत रिस भरयौ दौरिबे को परयौ सूड़ि झटकत पटकि कुक पारयौ - २५६२।
संज्ञा
[सं. कूजन]


कूक
मोर या कोयल की सुरीली बोली।
संज्ञा
[सं. कूजन]


कूक
रोने का महीन स्वर।
संज्ञा
[सं. कूजन]


कूक
हूक, कसक, वेदना।
ऊधौ, कहा हमारी चूक। वै गुन-अवगुन सुनि सुनि हरि के हृदय उठत है कूक।
संज्ञा
[हिं. हूक]


कूकना
लंबी सुरीली ध्वनि निकालना।
क्रि. अ.
[सं. कूजन]


कूकना
कर्कश स्वर से बोलना।
क्रि. अ.
[सं. कूजन]


कूकना
कोयल या मोर का बोलना।
क्रि. अ.
[सं. कूजन]


कूकर
कुत्ता, श्वान।
उदर भरयौ कूकर-सूकर लौं, प्रभु कौं नाम न लीनौ - १ - ६५।
संज्ञा
[सं. कुकूकर]


कूकरकौर
बच्चा-खुचा भोजन, टुकड़ा।
संज्ञा
[हिं. कूकुर+कौर]


कूकरकौर
तुच्छ वस्तु।
संज्ञा
[हिं. कूकुर+कौर]


कूच
यात्रा करना, जाना, प्रस्थान।
संज्ञा
[तु.]


कूच
देवता कूच कर जाना- बहुत भयभीत होना।
मु.


कूचा
गली।
संज्ञा
[फ़ा.]


कूचा
क्रौंच पक्षी, कराँकुल।
संज्ञा
[सं. क्रौंच]


कूचिका, कूची
ब्रश, तूलिका।
संज्ञा
[सं. तूलिका]


कूज
ध्वनि, शब्द।
संज्ञा
[हिं. कूजना]


कूज
शब्द करने की क्रिया।
संज्ञा
[हिं. कूजना]


कूजत
मधुर स्वर से बोलते हैं।
(क) कनक किंकिनी, नूपुर कलरव, कूजत बोल मराल। (ख) उपजत छबिकर अधर संख मिलि सुनियत सब्द प्रसंसा। मानहु अरुन कमल मंडल में कूजत हैं कल हंसा - २५६६।
क्रि. अ.
[सं. कूजन)


कूजन
मधुर ध्वनि।
संज्ञा
[सं.]


कूजन
शब्द करने की क्रिया।
संज्ञा
[सं.]


कूजना
कोमल शब्द या ध्वनि करना, बोलना, कलरव करना।
क्रि. अ.
[सं. कुजन]


कूजा
मिट्टी का पुरवा या कुल्हड़।
संज्ञा
[फ़ा. कूजः]


कूजा
मिट्टी के पुरवे में जमायी हुई मिश्री।
संज्ञा
[फ़ा. कूजः]


कूजा
मोतिया या बेले का फूल।
कुजा, मरुओ, मोगरो मिलि झूमक हो।
संज्ञा
[सं. कुब्जक]


कूजित
बोला हुआ, ध्वनित।
वि.
[सं. कूजन]


कूजित
गूंजा हुआ स्थान।
वि.
[सं. कूजन]


कूजित
पक्षियों के कलरव से युक्त।
वि.
[सं. कूजन]


कूजै
मधुर शब्द करती है; कोमल स्वर से बजती है।
(क) पाइनि नूपुर बाजई, कटि किंकिनि कूजै - - - १० - १३४।

(ख) चरन रुनित नूपुर कटि किंकिनि काल कूजै - ६६२।

क्रि. अ.
[हिं. कूजना]


कूट
पहाड़ की चोटी।
संज्ञा
[सं.]


कूट
अन्न का ढेर।
संज्ञा
[सं.]


कूट
छल, धोखा।
संज्ञा
[सं.]


कूट
झूठ।
संज्ञा
[सं.]


कटनि
काट।
संज्ञा
[हिं. कटना]


कटनि
रीझ, प्रीति, आसक्ति।
संज्ञा
[हिं. कटना]


कटनी
काटने का काम |
संज्ञा
[हिं कटना]


कटनी
काटने का औजार।
संज्ञा
[हिं कटना]


कटनी
फसल काटना।
संज्ञा
[हिं कटना]


कटनी
आड़े-तिरछे भागना।
संज्ञा
[हिं कटना]


कटरा
कटार।
संज्ञा
[हिं. कटार]


कटवा
गले का एक गहना।
संज्ञा
[देश.]


कटसरैया
एक कँटीला पौधा।
संज्ञा
[हिं. कटसारिका]


कटहर, कटहल
एक पेड़ जिनमें बड़े-बड़े फल लगते हैं।
संज्ञा
[सं. कंठकिफल, हिं. काठ+फल)


कूट
गुप्त भेद या रहस्य।
संज्ञा
[सं.]


कूट
वह रचना जिसका अर्थ सरलता से न स्पष्ट हो।
संज्ञा
[सं.]


कूट
गूढ़ हास्य या व्यंग्य।
संज्ञा
[सं.]


कूट
झूठा।
वि.


कूट
छलिया।
वि.


कूट
बनावटी।
वि.


कूट
अच्छा, प्रधान।
वि.


कूट
धर्म भ्रष्ट।
वि.


कूट
एक औषधि।
कूट काइफल सोंठि चिरैता कटजीरा कहुँ देखत - - ११०८।
संज्ञा
[हिं. कुट]


कूट
कूटने-पीटने की क्रिया।
संज्ञा
[हिं. कूटना]


कूट
झोपड़ी।
संज्ञा
[हिं. कुटी]


कूटता
कठिनाई।
संज्ञा
[सं.]


कूटता
झूठ।
संज्ञा
[सं.]


कूटता
छल-कपट।
संज्ञा
[सं.]


कूटन
कूटने की क्रिया या भाव।
संज्ञा
[हिं. कूटना]


कूटन
मारना-पीटना।
संज्ञा
[हिं. कूटना]


कूदना
मारना, पीटना, ठोंकना।
क्रि. स.
[सं. कुट्टन]


कूटनीति
दाँव-पेंच की चाल जिसका भेद दूसरे न पा सकें।
संज्ञा
[सं.]


कूटयोजना
षड्यंत्र।
संज्ञा
[सं.]


कूटस्थ
अचल।
वि.
[सं.]


कूटस्थ
अविनाशी।
वि.
[सं.]


कूटस्थ
छिपा हुआ।
वि.
[सं.]


कूटि
कुट्टी, मारना, पीटना।
कूटि करेंगे बलभैया अब हमहीं छोड़ि किनि देहु - २४ ०८।
संज्ञा
[हिं. कूटना]


कूटै
कूटे, कूटकर।
बिनु कन दुस कौं कूटैं - - २ - २०
क्रि. स.
[सं. कुट्टन, हिं. कुटना]


कूड़ा
बेकार या बेकाम चीज।
संज्ञा
[सं. कुट, प्रा. कूड=ढेर]


कूढ़
नासमझ, मूढ़।
वि.
[सं. कूह, पा. कूध]


कूत
अनुमान।
संज्ञा
[सं. आकूत=आशय]


कूत
संख्या, परिमाण आदि का अनुमान।
संज्ञा
[सं. आकूत=आशय]


कूतना
अनुसान या अंदाज करना।
क्रि. स.
[हिं. कूत]


कूतना
संख्या, परिमाण आदि का अनुमान या अंदाज करना।
क्रि. स.
[हिं. कूत]


कूते
अनुमान करे।
क्रि. स.
[हिं. कूतना]


कूथाना
मारना-पीटना।
क्रि, स.
[सं. कुंथन]


कूद
उछलने-कूदने की क्रिया या भाव।
संज्ञा
[हिं. कूदना]


कूद
कूद-फाँद - उछलना-कूदना।
यौ.


कूद
व्यर्थ का प्रयत्न।
यौ.


कूदत
कूदते ही, उछलता फाँदता है।
सुनि कै सिंह-भयान अवाज। मारि फलाँग चली सो भाज। कूदत ताकौ तन छुटि गयौ - - - ५ - ३।
क्रि. अ.
[हिं. कूदना]


कूदन
कूदना, फाँदना।
नाचन-कूदन मृगिनी लागी, चरन-कमल पर बारी - - - १ - २२१।
क्रि. अ.
[हिं. कूदना]


कूदना
उछलना, फाँदना।
क्रि. अ.
[सं. स्कुंदन]


कूदना
जानकर गिरना।
क्रि. अ.
[सं. स्कुंदन]


कूदना
किसी के बीच में दखल देना।
क्रि. अ.
[सं. स्कुंदन]


कूदना
बहुत खुश होना
क्रि. अ.
[सं. स्कुंदन]


कूदना
शेखी मारना।
क्रि. अ.
[सं. स्कुंदन]


कूदना
लाँघना, नाँघ जाना।
क्रि. स.


कूदि
कूदकर, उछलकर, फाँद कर।
जैसैं केहरि उझकि कूप-जल, देखत अपनी प्रति। कूदि परयौ, कछु मरम न जान्यौ, भई आइ सोइ गति - १ - ३००।
क्रि. अ.
[हिं. कूदना]


कूदो
कूदा, कूद पड़ा।
कूदो, कालीदह में कान - सा. ७३
क्रि. अ.
[हिं. कूदना]


कूनना
खरोदना, खरोचना।
क्रि. स.
[हिं. कुनना]


कूप
कुआँ।
(क) सँदेसनि मधुबन कूप भरे। (ख) परो कूप पुकार काहू सुनी ना संसार - - सा. ११८.।
संज्ञा
[सं.]


कूप
छेद।
संज्ञा
[सं.]


कूप
गढ़ा।
संज्ञा
[सं.]


कूपनि
कुओं में।
नरक-कूपनि जाई जमपुर परयौ बार अनेक - १ - १०६।
संज्ञा
[सं. कूप+हिं. नि. (प्रत्य.)]


कूपमंडूक
कुएँ में ही रहनेवाला, मेढक।
संज्ञा
[सं.]


कूपमंडूक
संसार की बहुत कम जानकारी रखने वाला, अनुभवहीन व्यक्ति।
संज्ञा
[सं.]


कूपहिं
कूप में, कुएँ में।
पग पग परत कर्म-तम-कूपहिं को करि कृपा बचावै–१ - ४८।
संज्ञा
[सं. कूप+हिं (प्रत्य.)]


कूब,कूबड़
पीठ का उभाड़ या टेढ़ापन।
संज्ञा
[सं. कूबर]


कूब,कूबड़
किसी चीज का उभाड़ या टेढ़ापन।
संज्ञा
[सं. कूबर]


कूबरी
कुब्जा नामक कंस की एक दासी जिसकी पीठ पर कूबड़ था। श्रीकृष्ट से इसको बड़ा प्रेम था और भक्तों का विश्वास है कि उन्होंने भी इसे अपना लिया था।
संज्ञा
[हिं. कुबड़ी, कुबरी]


कूबा
कूबड़।
संज्ञा
[हिं. कूबड़]


कूर
जिसमें दया न हो, निर्दयी, कठोर।
[सं. क्रूर]


कूर
डरावना।
[सं. क्रूर]


कूर
दुष्ट, कुमार्गी, बुरा
(क) तौ जानौं जौ मोहिं तारिहौ, सूर कूर कवि ढोट - १ - १३२। (ख) साँचे कूर कुटिल ए लोचन वृथा मीन छबि छीन लईं - २५२७।

(ग) सूरबरी लैजाहु तहाँ जहँ कुबजा कूर रई - सा. ३१।

[सं. क्रूर]


कूर
बेकार, निकम्मा।
[सं. क्रूर]


कूरना
निर्दयता, कठोरता।
संज्ञा
[हिं. कूर]


कूरना
मूर्खता।
संज्ञा
[हिं. कूर]


कूरना
अरसिकता।
संज्ञा
[हिं. कूर]


कूरना
कायरता।
संज्ञा
[हिं. कूर]


कूरपन
कठोरपन।
संज्ञा
[हिं. कूर]


कूरपन
कायरपन।
संज्ञा
[हिं. कूर]


कूरम
विष्णु का दूसरा अवतार कछुआ।
हरि जू अपनौ बिरद सँभारयौ। सूरज प्रभु कूरम तनु धारयौ - - ८ - ७।
संज्ञा
[सं. कूर्म]


कूरा
ढेर, राशि।
संज्ञा
[सं. कूट, प्रा. कूड़ = ढेर]


कूरा
भाग हिस्सा।
संज्ञा
[सं. कूट, प्रा. कूड़ = ढेर]


कूरी
टीला, घुस।
संज्ञा
[हिं. कुरा]


कूरी
छोटी राशि।
संज्ञा
[हिं. कुरा]


कूरे, कूरै
निर्दयी, कठोर।
(क) पूरनता ए नैनन पूरे।…...| ए अलि चपल में दरस लंपट कटु संदेस कथत कत कूरे - ३०४२। (ख) सूर नृप क्रूर अक्रूर कूरै (कूरे) भयो धनुष देखन कहत कपटी महा है - २५०३।
वि.
[सं.क्रूर, हिं. कूर)


कूर्च
भौहों के बीच का स्थान।
संज्ञा
[सं.]


कूर्च
झूठ।
संज्ञा
[सं.]


कूर्च
दंभ।
संज्ञा
[सं.]


कूर्च
सिर।
संज्ञा
[सं.]


कूर्म
कछुआ, कच्छप।
संज्ञा
[सं.]


कूर्म
विष्णु का दूसरा अवतार जो पौष शुक्ल द्वादशी को कछुए के रूप में हुआ है।
कूर्म कौ रूप धरि, धरयौ गिरि पीठि पर - ९ - ८।
संज्ञा
[सं.]


कूर्म
एक ऋषि।
संज्ञा
[सं.]


कूर्मिका, कूर्मि
एक प्राचीन बाजा।
संज्ञा
[सं. कूर्मिका]


कूल
किनारा, तट।
संज्ञा
[सं.]


कूल
नहर।
संज्ञा
[सं.]


कूल
तालाब।
संज्ञा
[सं.]


कूल
पास, निकट, समीप।
क्रि. वि.


कूलिनी
नदी।
संज्ञा
[सं.]


कूल्‍हा
कमर में पेडू के दोनों तरफ निकली हुई हड्डियाँ।
संज्ञा
[सं. क्रोड=कोड, कोल]


कूवत
बल, शक्ति।
संज्ञा
[अ.]


कूवर
रथ का एक भाग जिस पर जूआ बाँधा जाता है।
संज्ञा
[सं]


कूवर
रथिक के बैठने का स्थान।
संज्ञा
[सं]


कूवर
कुबड़ा।
संज्ञा
[सं]


कूवर
सुन्दर।
वि.


कूष्मांड
कुम्हड़ा।
संज्ञा
[सं.]


कूष्मांड
पेठा।
संज्ञा
[सं.]


कूष्मांड
एक ऋषि।
संज्ञा
[सं.]


कूह
हाथी की चिंघाड़।
संज्ञा
[हिं. कूक]


कूह
चिल्लाहट।
संज्ञा
[हिं. कूक]


कूही
एक शिकारी चिड़िया।
संज्ञा
[हिं. कूही]


कृकाटिका
कंधे और गले की जोड़, घाँटी।
संज्ञा
[सं.]


कृच्छा
कष्ट,दुख।
संज्ञा
[सं.]


कटहर, कटहल
इस पेड़ का फल जिसके ऊपरी मोटे छिलके पर नुकीले कँगूरे होते हैं।
संज्ञा
[सं. कंठकिफल, हिं. काठ+फल)


कटा
मार-काट।
संज्ञा.
[हिं. काटना]


कटा
वध, हत्या।
संज्ञा.
[हिं. काटना]


कटा
प्रहार, चोट।
संज्ञा.
[हिं. काटना]


कटाइक
काटनेवाला।
वि.
[हिं. काटना]


कटाई
कटाया।
क्रि. स.
[हिं. कटाना]


कटाई
अपयश कराया।
कौन कौन कौ बिनय कीजिए कहि जेतिक कहि आई। सूर स्याम अपने या ब्रज की इहि बिधि कान कटाई - ३०७७।
क्रि. स.
[हिं. कटाना]


कटाउ
काट-छाँट।
संज्ञा
[हिं. कटाव]


कटाउ
काटकर बनाये हुए बेल-बूटे।
संज्ञा
[हिं. कटाव]


कटाउ
काट लो, काटने का काम करो।
पालनौ अति सुन्दर गढ़ि ल्याउ रे बढ़ैया। सीतल चंदन कटाउ धरि खराद रंग लाउ, बिबिध चौकरी बनाउ, धाउ रे बढ़ैया - १० - ४१।
क्रि. स.
[हिं. कटाना]


कृच्छा
पाप।
संज्ञा
[सं.]


कृच्छा
एक व्रत जिसमें पंचगव्य (गाय से प्राप्त होनेवाले पाँच द्रव्य–दूध, दही, घी, गोबर और गोमूत्र) खा कर दूसरे दिन उपवास किया जाता है।
संज्ञा
[सं.]


कृच्छा
कठिन, कष्टसाध्य।
वि.


कृत
किया हुआ, संपादित।
(क) मन-कृत-दोष अथाह तंरगिनि, तरि नहिं सक्यौ, समायौ - - - - १.६७। (ख) और कहाँ लौं कहौं एक मुख या मन के कृत काज - १ - १०२।
वि.
[सं.]


कृत
बनाया हुआ, रचित।
तू कृत मम जस जो गावैगो सदा रहै मम साथ - ११०४ सारा.।
वि.
[सं.]


कृत
संबंध रखने वाला, तत्संबंधी।
वि.
[सं.]


कृत
सतयुग।
संज्ञा
[सं.]


कृत
चार की संख्या।
संज्ञा
[सं.]


कृत
काम-काज।
(क) बड़ी बेर भइ अजहुँ न आए गृह-कृत कछु न सुहाइ - ५८७। (ख) अपने कृत तैं हों नहिं बिलमत सुनि कृपाल वृजराई - १ - २०७।
संज्ञा
[सं. कृत्य]


कृतक
अनित्य, कृत्रिम।
वि.
[सं.]


कृतकर्मा
जिसने अपने प्रयत्न में सफलता प्राप्त कर ली हो।
वि.
[सं.]


कृतकर्मा
चतुर।
वि.
[सं.]


कृतकर्मा
संन्यासी।
संज्ञा


कृतकर्मा
परमेश्वर।
संज्ञा


कृतकाम
जिसकी इच्छा पूरी हो चुकी हो।
वि.
[सं.]


कृतकारज
जिसको अपने कार्य में सफलता मिल चुकी हो।
वि.
[सं. कृतकार्य]


कृतकार्य
जिसका काम पूरा हो चुका हो।
वि.
[सं.]


कृतकृत्य
जिसका कार्य या उद्देश्य सफल हो चुका हो, सफल-मनोरथ।
वि.
[सं.]


कृतकृत्य
धन्य।
वि.
[सं.]


कृतघन
किये हुए उपकार को न मानने वाला, अकृतज्ञ।
वि.
[सं. कृतघ्न]


कृतघ्‍न
जो दूसरे का उपकार न माने, अकृतज्ञ।
वि.
[सं.]


कृतघ्नता
दूसरे का किया हुआ उपकार न मानने का भाव।
संज्ञा
[सं.]


कृतताई
किये हुए उपकार को न मानने का भाव।
संज्ञा
[हिं.कृतघ्न]


कृतघ्नी
अकृतज्ञ, नमकहराम।
महा कठोर सुन्न हिरदै कौ, दोष देन कौं नीकौ। बड़ौ कृतघ्नी और निकम्मा, बेधन, राकौफीकौ - - - १ - १८६।
वि.
[सं. कृतघ्न]


कृतज्ञ
उपकार माननेवाला।
मधुबन के सब कृतज्ञ धर्मीले। अति उदार परहित डोलत हैं बोलत बचन सुसीले - ३०५५।
वि.
[सं.]


कृतज्ञता
दूसरों के उपकार को मानने का भाव, निहोरा मानना।
संज्ञा
[सं.]


कृतदंड
यमराज।
गोपन सखा भाव करि देखे दुष्ट नृपति कृतदंड। पुत्र भाव बसुदेव देवकी देखे नित्य अखंड।
संज्ञा
[सं.]


कृतनिंदक
जो किये हुए उपकार को न माने।
वि.
[सं.]


कृतमुख
पंडित।
संज्ञा
[सं.]


कृतयुग
सतयुग।
कृतयुग धम भये त्रेता में पूरन रमा प्रकास - - - ३०६ सारा।
संज्ञा
[सं.]


कृतविद्य
किसी विद्या या कला का पूर्ण ज्ञाता, पंडित।
वि.
[सं.]


कृतवेदी
दूसरे का उपकार माननेवाला।
वि.
[सं.]


कृतहस्त
काम में चतुर।
वि.
[सं.]


कृतहस्त
वाण चलाने में कुशल।
वि.
[सं.]


कृतहिं
किये हुए उपकार को।
(क) सूरदास जो सरबस दीजै कारे कृतहिं न मानै - ३४०४। (ख) तिनहिं न पतीजै री जे कृतहिं न मानै - - - २७८९।
संज्ञा
[सं. कृति+ हिं. हिं (प्रत्य.)]


कृतहीन
कृतघ्न।
वि.
[सं.]


कृतांजलि
हाथ बाँधे या जोड़े हुए।
वि.
[सं.]


कृतांत
अंत करनेवाला।
संज्ञा
[सं.]


कृतांत
यमराज।
संज्ञा
[सं.]


कृतांत
कर्मों का फल।
संज्ञा
[सं.]


कृतांत
मृत्यु।
संज्ञा
[सं.]


कृतात्मा
शुद्ध आत्मावाला, महात्मा।
वि.
[सं. कृतात्मन्]


कृतारथ
कृतकृत्य, सकल-मनोरथ।
(क) बन मैं करी तपस्या जाइ, रह्यौ हरि चरननि सौं चित लाइ। या बिधि नृपति कृतारथ भयौ - - ९ - १७४। (ख) नृपति कह्यौ मेरे गृह चलिये करौ कृतारथ मोय - ८०० सारा।
वि.
[सं. कृतार्थ]


कृतार्थ
जो सफलता से संतुष्ट हो।
वि.
[सं.]


कृतार्थ
संतुष्ट।
वि.
[सं.]


कृतार्थ
कुशल।
वि.
[सं.]


कृतार्थ
दूसरे के उपकार से प्रसन्न।
वि.
[सं.]


कृतास्‍त्र
धनुष चलाने में निपुण।
वि.
[सं.]


कृति
करनी, करतूत।
(क) निज कृति-दोष बिचारि सूर, प्रभु तुम्हारी सरन गयौ - १ - २९८। (ख) यह हित मनै कहत सूरज प्रभु इहि कृति कौ फल तुरत चखैहौं - ७ - ५।

(ग) नैन उघारि बिप्र जौ देखै, खात कन्हैया देख न पायौ। देखौ आइ जसोदा, सुत कृति, सिद्ध पाक इहि आइ जुठायौ - १० - २४८।

संज्ञा
[सं.]


कृति
बड़ा काम।
संज्ञा
[सं.]


कृति
जादू।
संज्ञा
[सं.]


कृति
विष्णु।
संज्ञा


कृतिका
एक नक्षत्र।
संज्ञा
[सं. कृत्तिका]


कृतिवास, कृतिवासा
महादेव।
संज्ञा
[सं. कृत्तिवास]


कृती
कुशल।
वि.
[सं.]


कृती
साधु।
वि.
[सं.]


कृती
पुण्यात्मा।
वि.
[सं.]


कृती
जिसने महान कार्य किया हो।
वि.
[सं.]


कृत्ति
मृगचर्म।
संज्ञा
[सं.]


कृत्ति
चमड़ा।
संज्ञा
[सं.]


कृत्ति
भोजपत्र।
संज्ञा
[सं.]


कृत्ति
कृत्तिका नक्षत्र।
संज्ञा
[सं.]


कृत्तिका
सत्ताइस नक्षत्रों में तीसरा जिसमें छः तारे हैं। इनका आकर अग्नि-शिखा के समान होता है। यह चंद्रमा की पत्नी मानी जाती है और अग्नि इसकी अधिष्ठात्री है।
संज्ञा
[सं.]


कृत्तिका
बैलगाड़ी।
संज्ञा
[सं.]


कृत्तिवास
महादेव का एक नाम जो गजासुर को मारने के बाद उसकी खाल ओढ़ लेने के कारण पड़ा था।
संज्ञा
[सं.]


कृत्य
वे काम जिनका करना धर्म की दृष्टि से आवश्यक हो।
संज्ञा
[सं.]


कृत्य
करनी, करतूत।
सूर स्याम के कृत्य जसोमति ग्वाल- बाल कहि प्रगट सुनावत - ४८०।
संज्ञा
[सं.]


कृत्य
भूत-प्रेत।
संज्ञा
[सं.]


कृत्यका
भयंकर कार्य कर सकनेवाली साहसी स्त्री।
संज्ञा
[सं.]


कृत्यविद्
कर्तव्य-पालन में चतुर।
वि.
[सं.]


कृत्या
एक राक्षसी जिसे तांत्रिक अपने अनुष्ठान से उत्पन्न करके विपक्षी का नाश करने के लिए भेजते हैं।
(क) रिषि सक्रोध इक जटा उपारी। सो कृत्या भइ ज्वाला भारी–९.५। (ख) तब सिव ने उन कृत्या दीन्हीं बाढ़ो क्रोध अपार - ७०७ सारा.।
संज्ञा
[सं.]


कृत्या
तंत्र-मंत्र से साधे गये घातक कर्म।
संज्ञा
[सं.]


कृत्या
कर्कशा स्त्री।
संज्ञा
[सं.]


कृत्रिम
नकली, बनावटी।
वि.
[सं.]


कृदंत
वह शब्द जो धातु में ‘कृत' प्रत्यय लगने से बनता है, जैसे भोक्ता।
संज्ञा
[सं.]


कृपण
कंजूस, सूम।
वि.
[सं.]


कृपण
नीच, दुष्ट।
वि.
[सं.]


कृपणता
कंजूसी, सूमता।
संज्ञा
[सं.]


कृपणता
नीचता।
संज्ञा
[सं.]


कृपन
कंजूस, सूम, अनुदार।
(क) कृपानिधान सूर की यह गति, कासौं कहै, कृपन इहिं काल - - १ - १२९

(ख) स्याम अछय निधि पाइकै तउ कृपन (कृपण) कहावै - - - पृ० ३२२। (ग) कीजै कहा कृपन की संपति बिन भोजन बिन दान - - - २०५१। (घ) हम निसिदिन करि कृपन की सम्पति कियो न कबहू भोग - - २७९३।

वि.
[सं. कृपण]


कृपन
तुच्छ, नीच।
वि.
[सं. कृपण]


कृपनाई
कंजूसी,सूमता।
संज्ञा
[सं. कृपण+आई (प्रत्‍य.)]


कृपया
कृपापूर्वक।
क्रि. वि.
[सं.]


कृपा
निस्वार्थ भाव से दूसरे की भलाई करने की भावना या इच्छा। अनुग्रह, दया।
संज्ञा
[सं.]


कृपा
क्षमा।
संज्ञा
[सं.]


कृपाकरन
कृपालु।
भक्त-बछल, कृपाकरन, असरन-सरन, पतित उद्धरन कहैं बेद गाई - - ८ - ९।
वि.
[सं. कृपा+करण]


कृपाचार्य
ये गौतम के पौत्र और शरद्वत के पुत्र थे। इन्होंने कौरवों और पांडवों को शस्‍त्र-विद्या सिखायी थी।
संज्ञा
[सं.]


कृपाण, कृपान
तलवार।
संज्ञा
[सं.]


कृपाण, कृपान
कटार।
संज्ञा
[सं.]


कृपानाथ
कृपा करनेवाले।
संज्ञा
[सं.]


कृपानिधि
कृपा के भांडार, अत्यन्त कृपालु।
संज्ञा
[सं. कृपा+निधि]


कृपानिधि
कृपालु ईश्वर।
संज्ञा
[सं. कृपा+निधि]


कृपापात्र
वह व्यक्ति जो दया का अधिकारी हो।
संज्ञा
[सं.]


कृपायतन
दया के भंडार, बहुत दयालु।
संज्ञा
[सं.]


कृपाल
कृपा करनेवाला, दयालु।
वि.
[सं. कृपालु]


कृपालता
दया का भाव।
संज्ञा
[सं. कृपालुता]


कृपाला
दया करनेवाला।
जो तुम जानत तत्व कृपाला मौन रहौ तुम घर अपने - ३२१२।
वि.
[सं. कृपालु]


कृपालु
कृपा करनेवाला, दयालु।
वि.
[सं.]


कृपालुता
दया का भाव।
संज्ञा
[सं.]


कृपावंत
कृपा करनेवाला।
सूरदास प्रभु कृपावंत ह्वै लै भक्तनि मैं डारौं १ - १७८।
संज्ञा
[सं.]


कटाना
काटने के काम में लगाना या नियुक्त करना।
क्रि. स.
[हिं. 'काटना' का प्रे.]


कटार, कटारी
एक छोटा दुधारी हथियार।
संज्ञा
[सं. कट्टार]


कटाव
काट-छाँट, कतरब्योंत।
संज्ञा
[हिं. काटना]


कटाव
काटकर बनाये गये बेल-बूटे।
संज्ञा
[हिं. काटना]


कटाह
बड़ा कढ़ाव।
संज्ञा
[सं.]


कटाह
कछुए की खोपड़ी।
संज्ञा
[सं.]


कटाह
कुआँ।
संज्ञा
[सं.]


कटाह
नरक।
संज्ञा
[सं.]


कटाह
भैंस का बछड़ा जिसके सींग निकलते हों।
संज्ञा
[सं.]


कटाह
ऊँचा टीला।
संज्ञा
[सं.]


कृपावंत
कृपालु ईश्वर।
सूरदास जो संतन कौं हित, कृपावंत मेटत दुख-जालहिं - - - १ - ७४।
संज्ञा
[सं.]


कृपिण, कृपिन
कंजूस, सूम, अनुदार।
कहा कृपिन की माया गनियै, करत फिरत अपनी अपनी - - - १ - ३९।
वि.
[सं. कृपण]


कृपिणता, कृपिनता, कृपिनाई
कंजूसी।
संज्ञा
[सं. कृपणता]


कृपी
द्रोणाचार्य की पत्नी जो कृपाचार्य की बहन थी। इसी के गर्भ से अश्वत्थामा का जन्म हुआ था।
संज्ञा
[सं.]


कृमि
छोटा कीड़ा।
संज्ञा
[सं.]


कृश
दुबला पतला।
वि.
[सं.]


कृश
छोटा।
वि.
[सं.]


कृशता, कृशताई
दुबलापन।
संज्ञा
[सं.]


कृशता, कृशताई
कमी।
संज्ञा
[सं.]


कृशानु
अग्नि, आग।
संज्ञा
[सं.]


कृशित
दुबला-पतला।
वि.
[सं.]


कृष
पतला, क्षीणकाय।
(क) कृष (कृश या कृस) कटि सबल डंड बंधन मनो विधि दीन्हो बंधान - १९९७। (ख) लई जाइ जब ओट अटन की चीर न रहत कृष गात - २५३९।
वि.
[सं. कृश]


कृषक
किसान, खेतिहर।
संज्ञा
[सं.]


कृषि
खेती, किसानी।
संज्ञा
[सं.]


कृषिक
खेती-बारी से सम्बन्धित।
वि.
[सं. कृषि]


कृषिफल
फसल, पैदावार।
संज्ञा
[सं.]


कृषी
खेती, किसानी।
ते खोजत-खोजत तहँ आए। जहँ जड़ भरत कृषी मैं छाए - ५ - ३।
संज्ञा
[सं. कृषि]


कृष्ण
श्याम, काला।
वि.
[सं.]


कृष्ण
नीला, आसमानी।
वि.
[सं.]


कृष्ण
यदुवंशी वसुदेव के पुत्र जो कंस के कारागृह में देवीकी के गर्भ से जन्मे थे। मथुरा के अत्याचारी राजा कंस को मार कर प्रजा को इन्होंने सुखी किया था। द्वारका में यादवों का राज्य स्थापित करने वाले ये ही थे। महाभारत के भयंकर युद्ध में ये पांडव-पक्ष में रहे। एक बहेलिये का तीर लगने से इनकी मृत्यु हुई। ये विष्णु के आठवें अवतार माने जाते हैं।
संज्ञा


कृष्‍णचंद्र
श्रीकृष्ण।
संज्ञा
[सं.]


कृष्णद्वैपायन
वेदव्यास जो पराशर के पुत्र थे।
संज्ञा
[सं.]


कृष्णपक्ष
वह पक्ष जिसमें चंद्रमा घटता है। अँधियारा पक्ष।
संज्ञा
[सं.]


कृष्णसखा
अर्जुन।
संज्ञा
[सं.]


कृष्णसखी
द्रौपदी।
संज्ञा
[सं.]


कृष्णसार
काला मृग।
संज्ञा
[सं.]


कृष्णसार
शीशम।
संज्ञा
[सं.]


कृष्‍णा
द्रौपदी।
संज्ञा
[सं.]


कृष्‍णा
दक्षिण भारत की एक नदी।
संज्ञा
[सं.]


कृष्‍णा
राधा की एक सखी।
कहि राधा किनि हार चोरायो। …..। दर्वा रंभा कृष्णा ध्याना मैना नैना रूप। इतनिन में कहि कौने लीन्हौ ताको नाउ बताउ - १५८०।
संज्ञा
[सं.]


कृष्‍णा
अग्नि की एक चिह्ना।
संज्ञा
[सं.]


कृष्‍णा
आँख की पुतली।
संज्ञा
[सं.]


कृष्‍णा
काली देवी।
संज्ञा
[सं.]


कृष्‍णाभिसारिका
वह नायिका जो अँधेरी रात में प्रिय से मिलने संकेत-स्थल पर जाय।
संज्ञा
[सं.]


कृष्णाष्टमी
भादों के कृष्णपक्ष की अष्टमी जिस दिन श्रीकृष्ण का जन्मोत्सव मनाया जाता है।
संज्ञा
[सं.]


कृष्नाकृति
कृष्ण-स्वरूप, कृष्ण- लक्षण, कृष्ण की आकृति।
सुनि सानंद चले बलिराजा, आहुति जज्ञ बिसारी। देखि सरूप सकल कृष्नाकृति, कीनी चरन जुहारी - ८ - १४।
संज्ञा
[सं. कृष्‍ण+आकृति]


कृष्ण
श्रीकृष्ण।
संज्ञा
[सं. कृष्ण]


कृस
दुबली, पतली, क्षीण।
कहाँ लगि सहौं रिस, बकत भई हौं कृस, इहिं सिस सूर स्याम-बदन चहूँ - १० - २९५।
वि.
[सं. कृश]


कृसानु
अग्नि।
संज्ञा
[सं. कृशानु]


कृसानु-सुत
अग्नि का पुत्र धूम।
सुन-कृसानु-सुत प्रबल भए मिल चार ओर ते आये - सा. ११।
संज्ञा
[सं. कृशानु+सुत]


कृष्य
खेती के योग्य (भूमि)।
वि.
[सं.]


कृस्न
श्रीकृष्ण।
संज्ञा
[सं. कृष्ण]


केंचुआ
एक कीड़ा जो प्रायः बरसात में जन्मता है और मिट्टी खाता है।
संज्ञा
[सं. किंचिलिक, प्रा. केचुओ]


केंचुर, केंचुल
सर्प जैसे कीड़ों के शरीर के ऊपर की वह झिल्ली जो प्रतिवर्ष अपने आप अलग होकर गिर जाती है।
संज्ञा
[सं. कंचुक]


केंचुरि, केंचुलि, केंचुली
झिल्ली, केंचुल।
(क) नैन बैन मुख नासिका ज्यों केंचुलि तजै भुजंग - ११८२। (ख) ज्यों भुजंग तजि गयौ केंचुली सो गति भई हमारी - ३०५९।
संज्ञा
[हिं. केंचुल]


केंद्र
किसी घेरे के ठीक बीच का बिंदु।
संज्ञा
[सं.]


केंद्र
मुख्य स्थान जहाँ से दूर-दूर फैले कार्यों का संचालन हो।
संज्ञा
[सं.]


केंद्र
बीच या मध्य।
संज्ञा
[सं.]


केंद्र
अधिक समय तक रहने का स्थान।
संज्ञा
[सं.]


केंद्रित
केंद्र-स्थान में इकट्ठा किया हुआ।
वि.
[सं.]


केंद्री
बीच में स्थित।
वि.
[सं. केंद्रिन्]


केंद्रीकरण
शक्तियों-अधिकारों आदि को केंद्र में एकत्र करना।
संज्ञा
[सं.]


केंद्रीय
जिसका सम्बन्ध केंद्र से हो।
वि.
[सं. केंद्र]


केंवरा, केवरो
केवड़े का पौधा और फूल।
तहाँ कमल केंवरो फूले जहाँ केतकी कनेर फूले संतन हित ही फूल डोल - २४०६।
संज्ञा
[हिं. केवड़ा]


के
सम्बन्ध सूचक ‘का’ विभक्ति का बहुवचन रूप। एक वचन प्रयोग भी होता है जब सम्बन्ध वान् के आगे कोई विभक्ति होती है।
छाँड़ि सुखधाम अरु गरुड़ तजि साँवरौ पवन के गवत तैं अधिक धायौ - १ - ५।
प्रत्य.
[हिं. का]


के
कौन ?
सर्व.
[सं. कः]


केउ
कोई।
सर्व.
[हिं. के+उ (प्रत्य.)=भी]


केउर
एक आभूषण।
संज्ञा
[सं. केयूर]


केऊ
कोई।
सर्व.
[हिं. के+ऊ (प्रत्य.)]


केऊ
कई, कितने ही।
वि.


केकइ
राजा दशरथ की छोटी रानी जो भरत की माता थी।
संज्ञा
[सं. कैकेयी]


केकड़ा
पानी का एक कीड़ा।
संज्ञा
[सं.कर्कट, पा. ककट]


केकय
उत्तरी भारत का एक प्राचीन देश जो वर्तमान काश्मीर में है।
संज्ञा
[सं.]


केकय
इस देश का निवासी या राजा।
संज्ञा
[सं.]


केकय
कैकेयी के पिता।
संज्ञा
[सं.]


केकयी
राजा दशरथ की रानी जो भरत की माता थी।
संज्ञा
[सं.]


केका
मोर की बोली या कुक।
संज्ञा
[सं.]


केकि, केकी
मोर, मयूर।
केकी-पच्छ-मुकुट सिर भ्राजत, गौरी राग मिलै सुर गावत - ५०६।
संज्ञा
[सं. केकिन्]


केचित्
कोई-कोई।
सर्व.
[सं.]


केड़ा
नया पौधा, कोयल।
संज्ञा
[सं. करीर=बाँस का कल्ला]


केड़ा
किशोर, नवयुवक।
संज्ञा
[सं. करीर=बाँस का कल्ला]


केणिक
तंबू, रावटी।
संज्ञा
[सं. कोणिका]


केत
एक राक्षस का कबंध। यह राक्षस समुद्र-मंथन के समय अमृत-पान करते करते विष्णु द्वारा मारा गया था। इसका धड़ राहु कहाता है। सूर्य और चन्द्रमा ने इसे पहचाना था; इसीलिए ग्रहण-काल में यह उन्हीं को ग्रसता माना जाता है।
राम-नाम बिनु क्यों छूटोगे, चंद्र गहै ज्यौं केत - १ - २९६।
संज्ञा
[सं. केतु]


केत
घर, भवन।
संज्ञा
[सं.]


केत
स्थान, बस्ती।
संज्ञा
[सं.]


केत
ध्वजा।
संज्ञा
[सं.]


केत
बुद्धि।
संज्ञा
[सं.]


केत
सलाह
संज्ञा
[सं.]


केत
अन्न।
संज्ञा
[सं.]


केतक
केवड़ा।
संज्ञा
[सं.]


केतक
कितने।
वि.
[सं. कति+एक]


केतक
बहुत।
वि.
[सं. कति+एक]


केतक
बहुत-कुछ।
वि.
[सं. कति+एक]


केतकर
केतकी का पौधा और फूल।
संज्ञा
[सं. केतकी]


केतकी
एक छोटा झाड़ या पौधा जिसके सफेद फूल बहुत सुगंधित होते हैं। प्रसिद्धि है कि इसके फूल पर भौंरा नहीं बैठता।
लोचन लालच तें न टरैं।….। ज्यों मधुकर रुचि रच्यौ केतकी कंटक कोटि अरै। तैसोई लोभ तजत नहिं लोभी फिरि फिरि फिरी फिरै - - - - २७७०।
संज्ञा
[सं.]


केतकी
एक रागिनी का नाम।
रामकली गुनकली केतकी सुर सुघराई गायौ। जैजैवंती जगतमोहिनी सुर सों बीन बजायौ - १०१७ सारा.।
संज्ञा
[सं.]


केतन
निमंत्रण।
संज्ञा
[सं.]


केतन
ध्वजा।
संज्ञा
[सं.]


केतन
चिन्ह।
संज्ञा
[सं.]


केतन
घर।
संज्ञा
[सं.]


केतन
स्थान।
संज्ञा
[सं.]


केतने
कितने (संख्यावाचक)
हौं अलि केतने जतन विचारों - सा. ६७।
वि.
[हिं. कितना]


केता
कितना।
वि.
[सं. कियत्]


केतारा
एक तरह की ऊख।
संज्ञा
[देश.]


केति,केतिक
कितना, किस कदर।
(क) तुम मोते अपराधी माधव, केतिक स्वर्ग पढ़ाए (हो) - १ - ७। (ख) कहौ बात अपने गोकुल की केतिक प्रीति ब्रजबालहिं।

(ग) केतिक दूरि गयौ रथ माई - २५८०। (घ) आगैं दै पुनि ल्यावत घर कौं तू मोहिं जान न देति। सूर स्याम जसुमत मैया सौं हा हा करि कहै केति–४२४।

वि.
[सं. कति+एक]


केति,केतिक
बहुत।
वि.
[सं. कति+एक]


केती
कितनी।
एती केती तुमरी उनकी कहत बनाइ-बनाई - ३३३४।
वि.
[हिं. केता]


केतु
ज्ञान।
संज्ञा
[सं.]


केतु
प्रकाश।
संज्ञा
[सं.]


केतु
ध्वजा, पताका।
संज्ञा
[सं.]


कटाऊ
काट- छाँट।
संज्ञा
[हिं. कटाव]


कटाऊ
बेल- बूटे।
संज्ञा
[हिं. कटाव]


कटाक्ष
तिरछी चितवन या नजर।
चंचलता निर्तनि कटाक्ष रस भाव बतावत नीके - सा. उ. - ८।
संज्ञा
[सं.]


कटाक्ष
व्यंग्य, ताना।
संज्ञा
[सं.]


कटाक्ष
लीला या अभिनय के अवसर पर पात्रों के नेत्रों के बाहरी कोरों पर खींची जानेवाली पतली काली रेखाएँ।
संज्ञा
[सं.]


कटाच्छ
चितवन, दृष्टि।
(क) नमो नमो हे कृपानिधान। चितवत कृपाकटाच्छ तुम्हारी, मिटि गयौ तम-अज्ञान - २ - ३३। (ख) कृपा-कटाच्छ कमल-कर फेरत सूर-जननि सुख देत - १० - १५४।
संज्ञा
[सं. कटाक्ष]


कटाच्छ
कृपादृष्टि।
काली बिषगंजन दह आइ। देखे मृतक बच्छ बालक सब लये कटाच्छ जिवाइ - ५७८।
संज्ञा
[सं. कटाक्ष]


कटाच्छ
तिरछी चितवन या नजर, कटाक्ष।
कबहिं करन गयौ माखन चोरी। जानै कहा कटाच्छ तिहारे, कमलनैन मेरौ इतनक सो री - १० - ३०५।
संज्ञा
[सं. कटाक्ष]


कटाछनि
तिरछी दृष्टि या चितवन।
भृकुटी सूर गही कर सारँग निकर कटाछनि चोट–सा. उ. - १६।
संज्ञा
[से, कटाक्ष]


कटान
कोटने की क्रिया या भाव।
संज्ञा
[हिं. काटना + आन (प्रत्य.)]


केतु
चिन्ह
संज्ञा
[सं.]


केतु
एक राक्षस का कबन्ध, जो नौ ग्रहों में माना जाता है।
संज्ञा
[सं.]


केतु
पुच्छल सारा जिसकी पूँछ से प्रकाश निकलता है।
संज्ञा
[सं.]


केतुमान
तेजस्वी।
वि.
[सं.]


केतुमान
जिसके पास ध्वजा हो।
वि.
[सं.]


केतुमान
बुद्धिमान।
वि.
[सं.]


केते
कितने।
रावा निसि केते अन्तर ससि, निमिष चकोर न लावत - १ - २१०।
वि.
[हिं. केता]


केतो, केतौ
कितना, कितना ही।
कह्यौ, विषय सौं तृप्ति न होइ। केतौ भोग करौ किन कोई - - ९.८।

(ख) मोहन हमारौ भैया केतो दधि पियतौ - ३७३।

वि.
[हिं. केता]


केदलि, केदली
केले का पेड़।
खग पर कमल कमल पर केदलि केदलि पर हरि ठान। हरि पर सर सरवर पर कलसा कलसा पर ससि भान - - २१९१।
संज्ञा
[सं. कदली]


केदार
हिमालय पर्वत का एक शिखर और प्रसिद्ध तीर्थ जहाँ केदार नामक शिवलिंग है।
अस्व मेध जज्ञहु जौ कीजै, गया बनारस-अरु केदार। राम नाम-सरि तऊ न पूजै, तनु गारौ जाइ हिवार - २ - ३।
संज्ञा
[सं]


केदार
एक राग जो रात्रि के दूसरे पहर में गाया जाता है।
रागरागिनी साँचि मिलाई गावैं सुघर गुंड मलार। सुहवी सारँग टोडी भैरवों केदार - २२७९।
संज्ञा
[सं]


केदार
वृक्ष के नीचे का थाला, थाँवला।
संज्ञा
[सं]


केदार
कामरूप देश का एक तीर्थ।
संज्ञा
[सं]


केदार
श्रीराम की सेना का एक बंदर।
कपि सोभित सुभर अनेक संग। ज्यौं पूरन ससि सागर तरंग। सुग्रीव बिभीषन जामवंत अंगद सुषेन केदार संत - - - ९ - १६६।
संज्ञा
[सं]


केदारनाथ
हिमालय का एक पर्वत जिस पर केदारनाथ नामक शिवलिंग है।
संज्ञा
[सं.]


केदारो, केदारौ
मेघराग का चौथा भेद जो रात के दूसरे पहर में गाया जाता है।
(क) मधुरैं सुर गावत केदारौ, सुनत स्याम चित लाई। सूरदास प्रभु नंदसुवन कौं नींद गई तब आई - - - - - १० - २४२। (ख) ऊँछ अड़ाने के सुर सुनियत निपट नायकी लीन। करत बिहार मधुर केदारो सफल सुरन सुख दीन - १०१४ सारा.
संज्ञा
[स. केदार]


केना
वह अन्न जो साग-भाजी लेने पर बदले में दिया जाता है।
संज्ञा
[सं. क्रेणि=मोल लेना]


केना
साग-भाजी।
संज्ञा
[सं. क्रेणि=मोल लेना]


केम
कदंब।
संज्ञा
[सं. कदंब]


केयूर
बाँह में पहनने का एक अभूषण; अंगद, भुजबंद, भुजभूषण।
अंग अभूषनि जननि उतारति। दुलरी ग्रीव माल मोतिनि की, लै केयूर भुज स्याम निहारति - - ५१२।
संज्ञा
[सं.]


केयूरी
जो केयूर नामक अलंकार धारण किये हो।
वि.
[सं.]


केर
संबंध सूचक विभक्ति। अवधी भाषा में 'का' के लिए इसका प्रयोग होता है।
अव्य.
[सं. कृत]


केरा
केला, कदली।
खारिक, दाख, खोपरा, खीरा। केरा, आम, ऊख रस सीरा - १० - २११।
संज्ञा
[हिं. केला]


केराना
मसाला, मेवा आदि।
संज्ञा
[हिं. किराना]


केराव
मटर।
संज्ञा
[सं. कलाय]


केरि
की।
प्रत्य.
[सं. कृत]


केरि
क्रीड़ा।
संज्ञा
[सं. केलि]


केरी
की।
(क) नाहीं सही परति मोपै अब, दारुन त्रास निसाचर केरी - ९९३।

(ख) सूर स्याम तुमको अति चाहत तुम प्यारी हरि केरी - - १४५७।

प्रत्य.
[सं. कृत, हिं. 'केर' अथवा 'के' विभक्ति का स्त्री. रूप]


केरी
कच्ची अँबिया।
संज्ञा
[देश.]


केरे
के।
(क) गाउँ हमारो छाँड़ि जाइ बसिहौ केहि केरे - - - १०१५।

(ख) बहुरि तातो कि यो डारि तिन पर दियो आय लपटे सुतहु नंद केरे - २५९०

प्रत्‍य.
[सं. कृत, हिं. ‘केर' का बहु. रूप]


केरो, केरौ
का, के।
अजान जानिकै अपनो दूत भयो उन केरो - ३४३१।
प्रत्य.
[सं. कृत, हिं. केर]


केलक
हाथ में तलवार, कटारी आदि लेकर नाचनेवाले लोग।
संज्ञा
[सं.]


केला
एक पेड़ जिसके पत्ते खूब लंबे और गूदेदार फल मीठे होते हैं।
संज्ञा
[सं. कदल, प्रा. कयल]


केलि
खेल, क्रीड़ा, लीला।
आउ धाम मेरे लाल कैं आँगन बाल-केलि कौं गावति है - १० - ७३।
संज्ञा
[सं.]


केलि
रति, समागम।
संज्ञा
[सं.]


केलि
हँसी- ठट्ठा।
संज्ञा
[सं.]


केलि
पृथ्वी।
संज्ञा
[सं.]


केलिक
अशोक वृक्ष।
संज्ञा
[सं.]


केलिकला
सरस्वती की वीणा।
संज्ञा
[सं.]


केलिकला
रति, समागम।
संज्ञा
[सं.]


केलिकिल
नाटक का विदूषक।
संज्ञा
[सं.]


केलिकिल
कामदेव की स्त्री, रति।
संज्ञा


केली
[सं. कदली, प्रा. कदली]
छोटी जाति का केला।
संज्ञा


केली
क्रीड़ा, आनंद, विनोद, रंजन।
मधुकर हम न होहिं वै बेली। जिन भजि तजि तुम फिरत और रँग करत कुसुम रस केली - २९९४।
संज्ञा
[सं. केलि]


केवट
क्षत्रिय पिता और वैश्या माता से उत्पन्न एक वर्ण संकर जाति जिसके लोग प्रायः नाव चलाते हैं।
जासु महिमा प्रगटि केवट, धोइ पग सिर धरन - १ - ३०८।
संज्ञा
[सं. कैवर्त्त, प्रा. केवट्ट]


केवड़ा, केवरा
सफेद केतकी का पौधा।
संज्ञा
[सं. केविका]


केवड़ा, केवरा
इस पौधे को फूल।
संज्ञा
[सं. केविका]


केवड़ा, केवरा
इस फूल का उतारा हुआ अरक।
संज्ञा
[सं. केविका]


केवल
अकेला।
वि.
[सं.]


केवल
पवित्र।
वि.
[सं.]


केवल
उत्तम, श्रेष्ठ।
वि.
[सं.]


केवल
जिसमें दूसरी बात या चीज की मिलावट न हो।
वि.
[सं.]


केवल
सिर्फ, मात्र।
क्रि. वि.


केवल
विशुद्ध और सम्यक ज्ञान।
संज्ञा


केवली
मुक्ति का अधिकारी।
संज्ञा
[सं. केवल+ई (प्रत्‍य.)]


केवली
मुक्ति प्राप्त।
संज्ञा
[सं. केवल+ई (प्रत्‍य.)]


केवाँच
एक बेल।
संज्ञा
[हिं. कौंछ]


केवा
कमल की कली।
संज्ञा
[सं. कुव=कमल]


केवा
बहाना, मिस।
संज्ञा
[सं. किंवा]


केवाईं
कुईं, कुमोदनी।
संज्ञा
[हिं. केवा]


केश
किरण।
संज्ञा
[सं.]


केश
विश्व।
संज्ञा
[सं.]


केश
विष्णु।
संज्ञा
[सं.]


केश
सूर्य के बाल।
संज्ञा
[सं.]


केश
केशी नामक दैत्य जो कंस का सेवक था।
संज्ञा
[सं.]


केशकर्म
बाल सँवारने की क्रिया।
संज्ञा
[सं.]


केशट
विष्णु।
संज्ञा
[सं.]


केशट
कामदेव का शोषण नामक वाण।
संज्ञा
[सं.]


केशपाश
बालों की लट।
संज्ञा
[सं.]


केशर
केसर।
संज्ञा
[सं. केसर]


केशरिया
केसर के रंग का।
वि.
[हिं. केसरिया]


केशरी
सिंह।
संज्ञा
[सं. केसरी]


केशरी
हनुमान के पिता का नाम।
संज्ञा
[सं. केसरी]


केशव
विष्णु का एक नाम।
संज्ञा
[सं.]


केशव
श्रीकृष्ण का एक नाम।
संज्ञा
[सं.]


केशव
परमेश्वर।
संज्ञा
[सं.]


केशविन्यास
बालों का सँवारना।
संज्ञा
[सं.]


केशांत
मुंडन संस्कार।
संज्ञा
[सं.]


केशि
एक राक्षस जिसे श्रीकृष्ण ने मारा था।
संज्ञा
[सं.]


केशिनी
सुंदर बालवाली।
वि.
[सं.]


केशी
एक असुर जिसे श्रीकृष्ण ने मारा था।
संज्ञा
[सं. केशिन्]


केशी
एक यादव।
संज्ञा
[सं. केशिन्]


केशी
अच्छे बालोंवाला।
वि.


केस
सिर के बाल।
संज्ञा
[सं. केश]


केस
केस खसै- बाल बाँका हो, कष्ट पड़े। उ.- जाकौं मनमोहन अंग करै। ताकौ केस खसै नहिं सिर तैं, जौ जग बैर परै - १ - ३७।

केस नहिं टारि सके- बाल बाँका न कर सके, कुछ हानि न पहुंचा सके। उ.- जाकी कृपा पपित ह्वै पावन पग परसत पाहन तरै। सूर केस नहिं टारि सकै कोउ, दाँति पीसि जौ जग मरै - १ - २३४।

मु.


केसपास
बालों की लट।
बरना भख कर में अवलोकत केसपास कृतबंद - - - ९८९ सारा.।
संज्ञा
[सं. केशपाश]


केसर
बाल की तरह पतली सीकें जो फूलों के बीच में होती हैं।
संज्ञा
[सं.]


केसर
एक प्रकार के फूल का केसर जिसका रंग लाल होता है, पर पीसने पर पीला हो जाता है।
संज्ञा
[सं.]


केसर
घोड़े, सिंह आदि की गरदन के बाल, अयाल।
संज्ञा
[सं.]


केसर
स्वर्ग।
संज्ञा
[सं.]


केसर
नागकेसर।
संज्ञा
[सं.]


केसरि
केसर के रंग का, पीले रंग का।
केसरि चीर पर अबीर मानो परयौ खेलत फागु डारयौ खिलारी - २५९५।
वि.
[हिं. केसर]


केसरिया
केसर के रंग का।
वि.
[सं. केसर+इया (प्रत्य.)]


केसरिया
जिसमें केसर पड़ी हो।
वि.
[सं. केसर+इया (प्रत्य.)]


केसरी
सिंह।
संज्ञा
[सं. केसरिन्]


केसरी
घोड़ा
संज्ञा
[सं. केसरिन्]


केसरी
नागकेसर।
संज्ञा
[सं. केसरिन्]


केसरी
हनुमान जी के पिता का नाम।
संज्ञा
[सं. केसरिन्]


केसरी
राम की सेना का एक बंदर।
नल-नील द्विविद-केसरी-गवच्छ। कपि कहे कछुक हैं बहुत लच्छ - ९ - १६६।
संज्ञा
[सं. केसरिन्]


केसव
विष्णु का एक नाम।
संज्ञा
[सं. केशव]


कटि
कमर।
गये कटि नीर लौं नित्य संकल्प करि करत स्नान इक भाव देख्यौ - २५५४।
संज्ञा
[सं.]


कटि
मंदिर का द्वार।
संज्ञा
[सं.]


कटि
हाथी का गंडस्थल।
संज्ञा
[सं.]


कटि
पीपल।
संज्ञा
[सं.]


कटिजेब
करधनी, किंकिणी।
संज्ञा
[सं. कटि+फ़ा जेब]


कटिबंध
कमरबंद।
संज्ञा
[सं.]


कटिबंध
गरमी-सरदी के आधार पर किये हुए पृथ्वी के पाँच भाग।
संज्ञा
[सं.]


कटिबद्ध
कमर बाँधे हुए।
वि.
[सं.]


कटिबद्ध
तैयार, उद्यत।
वि.
[सं.]


कटि-बसन
कमर में पहनने का वस्त्र, साड़ी।
संज्ञा
[सं. कटि+बसन]


केसव
श्रीकृष्ण का एक नाम।
संज्ञा
[सं. केशव]


केसवराई
श्रीकृष्ण का एक नाम, केशवराय।
कर गहि छीर पियावत अपनौ, जानति केसवराई - १० - ५२।
संज्ञा
[सं. केशव+हिं. राय]


केसारी
एक तरह की मटर।
संज्ञा
[सं. कृसर, हिं. खेसारी]


केसि, केसी
कंस का दरबारी एक राक्षस जिसे श्रीकृष्ण ने मारा था।
बकी बका सकटा त्रिन केसी बछ वृष भये समै अलि बिन गोपाल इति बैर कीन - सा.उ. ३९।
संज्ञा
[सं. केशिन्, केशी]


केसू
टेसू, पलाश।
संज्ञा
[सं. किंशुक]


केहरि, केहरी
सिंह, शेर।
कठुला-कंठ, बज्र केहरि नख, राजत रुचिर हिए - १० - ९९।
संज्ञा
[सं. केसरी]


केहरि, केहरी
घोड़ा।
संज्ञा
[सं. केसरी]


केहरिनहा
बघनहा।
संज्ञा
[सं. हरि+हिं. नख]


केहरी
सिंह।
संज्ञा
[सं.]


केहा
मोर।
संज्ञा
[सं. केका, प्रा. केआ]


केह
बटेर के बराबर एक पक्षी।
संज्ञा
[सं. केका, प्रा. केआ]


केहि, केही
किस।
ब्रह्मा सिव स्तुति न सकैं करि मैं बपुरो केहि माहीं - १० उ. - १३२।
वि.
[सं. किं]


केहूँ
किसी भाँति या तरह।
क्रि. वि.
[सं. कथम्]


केहू
कोई।
सर्व.
[हिं. के]


कैं
कर, करके।
लच्छागृह तैं काढ़ि कैं पांडव गृह ल्यावै–१ - ४।
प्रत्य.
[हिं. कर]


कैं
कर्म, संप्रदान और अधिकरण का विभक्ति-प्रत्यय, के, के यहाँ।
(क) जैसें गैया बच्छ कैं सुमिरत उठि ध्यावे - १ - ४। (ख) कौन जाति अरु पाँति बिदुर कीताही कैं पग धारत - १ - १२।
प्रत्‍य.
[हिं. के]


कैं
संबंधसूचक विभक्ति-प्रत्यय, के।
(क) तजि बैकुंठ, गरुड़ तजि, श्री तजि, निकट दास कैं आयौ–१०१०।
प्रत्य.
[हिं. का]


कैंकर्य
सेवा, सेवकाई।
संज्ञा
[सं.]


कैंचा
ऐंचाताना।
वि.
[हिं. काना+ऐंचा=कनैचा]


कैंचा
बड़ी कैंची।
संज्ञा
[तु. कैंची]


कैंची
कतरनी।
संज्ञा
[तु.]


कैंची
तिरछी रखी हुई तीलियाँ-सलाइयाँ आदि।
संज्ञा
[तु.]


कैंचुल
केंचुल।
संज्ञा
[हिं. केंचुल]


कैड़ा
नापने का एक पैमाना।
संज्ञा
[सं. कांड=एक माप]


कैड़ा
चाल, ढंग।
संज्ञा
[सं. कांड=एक माप]


कैड़ा
चतुराई।
संज्ञा
[सं. कांड=एक माप]


कैती
ओर से।
मेरी कैंती बिनती करनी–९ - १०१।
क्रि. वि.
[हिं. के+तीर]


कै
कितना (संख्या), किस कदर (परिमाण)।
जैसैं अंधौ अंध कूप मैं गनत न खाल-पनार। तैसेहिं सूर बहुत उपदेसैं सुनि सुनि गे कै बार - १.८४।
वि.
[सं. कति, प्रा. कइ]


कै
या, वा, अथवा, या तो।
(क) राम भक्तबत्सल निज बानौं। जाति, गोत, कुल नाम गनत नहिं रंक होइ कै रानौ - १ - ११। (ख) जन्म सिरानौ ऐसैं ऐसैं। कै घर घर भरमत जदुपति बिनु, कै सोवत, कै बैंसें। कै कहुँ खान-पान रमनादिक, कै कहुँ बाद अनैसैं। कै कहुँ रंक, कहूँ ईस्वरत्ता, नट-बाजीगर जैसे - १.२९३।
अव्‍य.
[सं. किम्]


कै
सम्बन्ध-सूचक विभक्ति, के, कर।
(क) रोर कै जोर तैं सोर घरनी कियौ चल्यौ द्विज द्वारिका-द्वार ठाढ़ौ - १.५।

(ख) महा मोहिनी मोहि आत्मा अपमारगाहिं लगावै। ज्यों दूती पर-बधू भोरि कै, लै पर-पुरुषदिखावै -१- ४२।

प्रत्य.
[हिं. का]


कै
करो, उपयोग में लायो।
नभ तैं निकट आनि राख्यौ है, जल-पुट जतन जुगै। लै अपने कर काढ़ि चंद कौं, जो भावै सो कै - १० - १९५।
क्रि. स.
[हिं. करना]


कै
करके।
सुनि स्रवन, दस-बदन सदन-अभिमान, कै नैन की सैन अंगद बुलायौ - ९:१२८।
क्रि. स.
[हिं. करना]


कै
एक तरह का मोटा धान।
संज्ञा
[देश.]


कै
वमन, उलटी।
संज्ञा
[अ. कै]


कैकइ, कैकई
राजा दशरथ की रानी जो भरत की माता थी।
संज्ञा
[सं. कैकेयी]


कैकस
राक्षस।
संज्ञा
[सं.]


कैकेयी
कैकय देश या गोत्र की स्त्री।
संज्ञा
[सं.]


कैकेयी
राजा दशरथ की रानी जो कैकय देश की राजकुमारी थी।
संज्ञा
[सं.]


कैटभ
एक दैत्य जो मधु का छोटा भाई था और विष्णु द्वारा मारा गया था।
संज्ञा
[सं.]


कैटभा
दुर्गा का एक नाम।
संज्ञा
[सं.]


कैटभारि
विष्णु का एक नाम जो कैटभ दैत्य को मारने के कारण पड़ा था।
बोलत खग-निकर मुखर, मधुर होइ प्रतीति सुनौ, परम प्रान-जीवन-धन मेरे तुम बारे। मनौ बेद-बंदीजन, सूतवृंद मागधगन, बिरद बदत जै जै जै जैति कैटभारे - १० - २०५।
संज्ञा
[सं. कैटभ+अरि]


कैतव
धोखा, छल-कपट।
संज्ञा
[सं.]


कैतव
जुआ, द्यूत।
संज्ञा
[सं.]


कैतव
लहसुनियाँ।
संज्ञा
[सं.]


कैतव
छली, कपटी।
वि.


कैतव
जुआरी।
वि.


कैतवापह्नति
एक अलंकार जिसमें विषय का किसी बहाने से गोपन या निषेध किया जाय।
संज्ञा
[सं.]


कैथ, कैथा
एक कँटीला पेड़।
संज्ञा
[सं. कपित्थ]


कैथी
एक पुरानी लिपि जो अधिकतर बिहार में प्रचलित है।
संज्ञा
[हिं. कायस्थ]


कैद
कारावास।
साचौं सो लिखहार कहावै।...। मन महतौ करि कैद अपने मैं, ज्ञान-जहतिया लावै–१ - १४२।
संज्ञा
[अ.]


कैद
बंधन।
संज्ञा
[अ.]


कैद
शर्त, प्रतिबंध।
संज्ञा
[अ.]


कैदखाना
जेलखाना, कारागार, बंदीगृह।
संज्ञा
[फा. कैदख़ाना]


कैदी
जो कैद हो, बंदी।
संज्ञा
[अ. कैद]


कैदु
बंधन, प्रतिबन्ध।
हारि मानि उठि चल्यौ दीन ह्वै जानि अपुन पै कैदु - ३४६८।
संज्ञा
[हिं. कैद]


कैधों, कैधौं
या, वा, अथवा।
कैधौं तुम पावन प्रभु नाहीं, के कछु मो मैं झोलौ। तौ हौं अपनी फेरि सुधारौं, वचन एक जौ बोलौ - १ - १३६।
अव्य.
[हिं, कै+धौं]


कैन
बाँस की पतली टहनी।
संज्ञा
[सं. कंचिका]


कैन
पतली टहनी।
संज्ञा
[सं. कंचिका]


कैनित
एक खनिज पदार्थ।
संज्ञा
[देश.]


कैफ
नशा, मद।
संज्ञा
[अ.]


कैफ
चारा जिसमें मादक द्रव्य मिला हो।
संज्ञा
[अ.]


कैफियत
समाचार, हाल।
संज्ञा
[अ.]


कैफियत
विवरण।
संज्ञा
[अ.]


कैफियत
विचित्र घटना।
संज्ञा
[अ.]


कैबर
तीर का फल।
संज्ञा
[देश.]


कैबा
कितनी बार।
संज्ञा
[हिं. कै=कई+बार]


कैबा
कई बार।
संज्ञा
[हिं. कै=कई+बार]


कैबार
किवाड़।
संज्ञा
[हिं. किवाड़]


कैम, कैमा
चौड़े सिरे के पत्तेवाला कदंब।
संज्ञा
[सं. कदंब]


कैयो
कई प्रकार के, कई तरह के।
कैयो भाँति केरा करि लीने - २३२१।
क्रि. वि.
[हिं. कै=कई+यो]


कैर
एक कँटीली झाड़ी।
संज्ञा
[सं. करील]


कैरव
, कुमुद।
संज्ञा
[सं.]


कैरव
सफेद कमल।
संज्ञा
[सं.]


कैरव
शत्रु।
संज्ञा
[सं.]


कैरव
जुआरी।
संज्ञा
[सं.]


कैरवाली
कैरवों का समूह।
संज्ञा
[सं.]


कैरवि
चंद्रमा।
संज्ञा
[सं.]


कैरवी
चाँदनी (रात)।
संज्ञा
[सं.]


कैरा
भूरा (रंग)।
संज्ञा
[सं. कैरव=कुमुद]


कैरा
लाल झलकवाली सफेदी।
संज्ञा
[सं. कैरव=कुमुद]


कैरा
एक तरह का बैल।
संज्ञा
[सं. कैरव=कुमुद]


कैरा
जिसकी आँखें भूरी हों।
वि.


कैरात
किरात जाति या देश संबंधी।
वि.
[सं.]


कैरात
एक तरह का चंदन।
संज्ञा
[सं.]


कैरात
बली आदमी।
संज्ञा
[सं.]


कैरात
एक तरह का साँप।
संज्ञा
[सं.]


कैरात
एक चिड़िया।
संज्ञा
[सं.]


कैरात
राग का एक भेद।
संज्ञा
[सं.]


कैरी
भूरे रंग की।
वि.
[हिं. कैरा]


कैरी
लाली लिये सफेद रंग की।
वि.
[हिं. कैरा]


कैरी
छोटा आम, अँबिया।
संज्ञा
[हिं. केरी]


कैरी
की।
प्रत्य.
[सं. कृत, हिं. ‘केर' का स्त्रीलिंग रूप]


कैल
वृक्ष की नयी पतली शाखा, कनखा।
संज्ञा
[हिं. कल्ला]


कैलास
हिमालय की चोटी जिस पर शिव जी का निवास माना जाता है, शिव का निवास स्थान।
संज्ञा
[सं.]


कैलास
एक प्रकार के षट्कोण मंदिर।
संज्ञा
[सं.]


कैलास
स्वर्ग।
संज्ञा
[सं.]


कैफी
मतवाला।
वि.
[अ.]


कैफी
नशेबाज।
वि.
[अ.]


कैलासपति
शिव जी।
संज्ञा
[सं.]


कैलासवास
मृत्यु।
संज्ञा
[सं.]


कटु
मन को बुरा लगनेवाला, कड़ुआ
कै सरनागत कौं नहिं राख्यौ। कै तुमसौं काहू कटू भाख्यौ। - १ - २८६।
वि.
[सं.]


कटु
छः रसों में से एक, चरपरा, कड़ुआ।
कंचन-काँच कपूर कटु खरी एकहिं सँग क्‍यौं तोले - ३२६४।
वि.
[सं.]


कटुआ
कटा हुआ, टुकड़े - टुकड़े।
वि.
[हिं. काटना]


कटुक
कडुआ, कटु।
वि.
[सं.]


कटुक
जो चित्त को बुरा लगे।
(क) मुख जो कही कटुक सब बानी हृदय हमारे नाहीं - ११९१। (ख) एते मान भये बस मोहन बोलत कटुक डराई। दीपक प्रेम क्रोध मारुत छिन परसत जिनि बुझि जाई - १२७५।
वि.
[सं.]


कटुक
खट्टे।
सबरी कटुक बेर तजि, मीठे चाखि, गोद भरि ल्याई। जूठनि की कछु संक न मानी भच्छ किए सत-भाई - १ - १३।
वि.
[सं.]


कटुके
कडुआ, कटु।
वि.
[सं. कटुक]


कटुके
अप्रिय, जो चित्त को भला या प्रिय न हो।
लीजो जोग सँभारि आपनो जाहु तहीं तटके। सूर स्याम तजि कोउ न लैहै या जोगहिं कटुके–३१०७।
वि.
[सं. कटुक]


कटुत
कडुआपन, अप्रियता।
संज्ञा
[सं.]


कटूक्ति
कडुई या अप्रिय बात।
संज्ञा
[सं. कटु+उक्ति]


कैलासी
कैलास निवासी शिव।
संज्ञा
[सं. कैलास=ई (प्रत्य.)]


कैलासी
कुबेर।
संज्ञा
[सं. कैलास=ई (प्रत्य.)]


कैवर्त
एक वर्णसंकर जाति, केवट, मल्लाह।
संज्ञा
[सं. कैवर्त]


कैवर्तिका
एक लता।
संज्ञा
[सं.]


कैवल्य
शुद्धता, मिलावट न होना।
संज्ञा
[सं.]


कैवल्य
मुक्ति, निर्वाण।
संज्ञा
[सं.]


कैवल्य
एक उपनिषद का नाम।
संज्ञा
[सं.]


कैवाँ, कैवा
कई बार।
कहा जानै कैवाँ मुवौ, (रे) ऐसे कुमति, कुमीच। हरि सौं हेतु बिसारि कै, (रे) सुख चाहत है नीच - १ - ३२५।
क्रि. वि.
[हिं. कै=कई+वाँ=बार]


कैशिक
बड़े बालवाला।
वि.
[सं.]


कैशिक
केशसमूह।
संज्ञा


कैशिक
केशशृंगार।
संज्ञा


कैशिकी
नाटक की एक वृत्ति।
संज्ञा
[सं.]


कैसा
किस तरह का।
वि.
[सं. कीदृश, प्रा. करेस]


कैसा
किसी प्रकार का नहीं (निषेधात्मक प्रश्न रूप में)।
वि.
[सं. कीदृश, प्रा. करेस]


कैसा
के समान, की तरह।
क्रि. वि.
[हिं. का+सा]


कैसिक
कैसे, किस भाँति।
क्रि. वि.
[हिं. कैसा]


कैसे, कैसैं
किस प्रकार से, किस रीति से।
कहि, जाकौं ऐसौ सुत बिछुरै, सो कैसैं जीवै महतारी - १० - ११।
क्रि. वि.
[हिं. कैसा]


कैसे, कैसैं
किस हेतु, किस लिए, क्यों।
क्रि. वि.
[हिं. कैसा]


कैसे, कैसैं
कैसेहूँ करि- किसी प्रकार से, बड़े यत्नों से, बड़े भाग्य से, राम-राम करके। उ.- ढोटा एक भयौ कैसेहुँ करि कौन कौन करबर विधि भानी - ३६८।
मु.


कैसो, कैसौ
कैसा
उनहूँ कैं गृह, सुत, द्वारा हैं, उन्हैं भेद कहु कैसो - २ - १४।
वि.
[हिं. कैसा]


कैसो, कैसौ
के समान, की तरह।
कबहुँ नाहिं इहिं भाँति देख्यौ आजु कैसौ रंग - ४१७।
क्रि. वि.
[हिं. का+सा]


कैहूँ
किस तरह, किस प्रकार।
क्रि. वि.
[हिं. कै= कैसे+हूँ (प्रत्य.)]


कैहैं
कहेंगे।
सबै कैहैं इहै भली मति तुम यहै नंद के कुँवर दोउ मल्ल मारे - २६०५।
क्रि. स.
[हिं. कहना]


कैहै
करेगा, संपादन करेगा।
कहयौ तोहिं ग्राह आनि जब गैहै। तू नारायन सुमिरन कैहै - ८ - ९।
क्रि. स.
[हिं. करना]


कैहौं
करुँगा।
जब मैं भक्ति स्याम की कैहौं। जानत नहीं कहा मैं पैहौं–४ - ९।
क्रि. स.
[हिं. करना]


कैहौ
कहोगे, मुख से बोलोगे।
(क) एक गाँव एक ठाँव को बास एक तुम कैहौ, क्यों मैं सैहों - ८४३। (ख) कबहुक तात तात मेरे मोहन या मुख मोसौं कैहौ–२६५०।
क्रि. स.
[हिं. कहना]


कोंइछा
आँचल का भाग जिसमें कुछ बाँधकर कमर में खोंसा जाय।
संज्ञा
[हिं. कोंछा]


कोई
कुमुदिनी।
संज्ञा
[सं. कुमुदिनी, प्रा. कुउई]


कोंचना
चुभाना, गड़ाना।
क्रि. स.
[सं. कुच्]


कोंचा
पक्षी फँसाने की लासा लगी लग्घी।
संज्ञा
[हिं. कोंचना]


कोंचा
भड़भूजे का कल्छा।
संज्ञा
[हिं. कोंचना]


कोंचा
स्त्रियों के अंचल का छोर या कोना।
संज्ञा
[सं. कक्ष, प्रा. कच्छ]


कोंछना
स्त्रियों की साड़ी का या मर्दो की बंगाली ढंग से पहनी जानेवाली धोती का आगे का भाग चुनना।
क्रि. स.
[हिं. कोंछ]


कौंछियाना
कोंछना।
क्रि. स.
[हिं. कोछ]


कोंछी
साड़ी या धोती का वह भाग जो चुनकर पेट के आगे खोंसा जाय, नीबी।
संज्ञा
[हिं. कोंछ]


कोड़ई
एक कँटीला पेड़।
संज्ञा
[देश.]


कोड़हा, कोंढ़ा
धातु का छल्ला।
संज्ञा
[सं. कुंडल]


कोंढ़ी
कली जो खिली न हो।
संज्ञा
[सं. कोष्ठ]


कोंध
दिशा, ओर।
एक कोंध ब्रज सुन्दरी एक कोंध ग्वाल-गोविन्द हो। सरस परस्पर गावहीं द नारि गारि बहु वृंद हो - २४४९।
संज्ञा
[सं. कोण अथवा कुत्र, पुं. हिं. कोद, कोध]


कोप
कल्‍ला, अंकुर।
संज्ञा
[हिं. कोंपल]


कोंपना
कोंपल निकलना।
क्रि. अ.
[हिं. कोंपल]


कोंपर
अधपका आम।
संज्ञा
[हिं. कोंपल]


कोंपल
नयी पत्ती, कल्ला, कनखा।
संज्ञा
[सं. कोमल या कुपल्लव]


कोंवर, कोंवरी
कोमल, नरम, मुलायम।
वि.
[सं. कोमल]


कोंवर, कोंवरी
सहनीय, भली लगनेवाली।
प्रात-समय रवि-किरनि कोंवरी, सो कहि सुतहिं बतावति है। आउ धाम मेरे लाल कैं आँगन, बाल केलि कों गावति है - १० - ७३।
वि.
[सं. कोमल]


कोंस
लंबी कली, छीमी।
संज्ञा
[सं. कोश]


कोंहड़ा
कुम्हड़ा, सीताफल।
संज्ञा
[हिं. कुम्हड़ा]


कोहड़ौरी
कुम्हड़े या पेठे की बरी।
संज्ञा
[हिं. कोहड़ा=कुम्हड़ा+बरी]


कोंहरा
उबाले हुए चने या मटर जो छौंक कर खाये जाते हैं।
संज्ञा
[देश.]


कोंहार
कुम्हार।
संज्ञा
[हिं. कुम्हार]


को
कौन, किसने।
(क) ऐसी को करी अरु भक्त काजैं। जैसी जगदीस जिय धारी लाजैं - १ - ५। (ख) तू को ? कौन देश है तेरौ, कै छल गहयौ राज सब मेरो - १ - २९०।
सर्व.
[सं. कः]


को
कर्म और संप्रदान कारकों की विभक्ति।
प्रत्‍य.


कोआ
रेशम का कीड़ा।
संज्ञा
[सं. कोश या हिं. कोसा]


कोआ
रेशमी कीड़े का घर।
संज्ञा
[सं. कोश या हिं. कोसा]


कोआ
कटहल का कोया।
संज्ञा
[सं. कोश या हिं. कोसा]


कोइ
का।
सुनि देवता बड़े, जगपावन तू पति या कुल कोई - १० - ५६।
प्रत्‍य.
[हिं. का]


कोइ
कुमुदिनी।
पूरन मुख चंद्र देख नैन-कोइ फूलीं - ६४२।
संज्ञा
[हिं. कुँईं]


कोइरी
साग-तरकारी बोने वाली एक जाति।
संज्ञा
[हिं. कोपर=साग-पात]


कोइल, कोइलिया
मथानी में लगी गोल छेददार लकड़ी।
संज्ञा
[सं. कुंडली]


कोइल, कोइलिया
करघी के बगल में लगी करघे की लकड़ी।
संज्ञा
[सं. कुंडली]


कोइल, कोइलिया
कोयल।
संज्ञा
[सं. कोंकिल, हिं. कोयल)


कोइली
कच्चा आम जिस पर कोयल के बैठने से काला सा दाग पड़ जाय।
संज्ञा
[हिं. कोयल]


कोई
अज्ञात मनुष्य या पदार्थ।
सर्व.
[सं. कोपि, प्रा. कोवि]


कोई
अनिर्देशित व्यक्ति या वस्तु।
सर्व.
[सं. कोपि, प्रा. कोवि]


कोई
एक भी (मनुष्य)।
हरि सौं मीत न देख्यो कोई १-१०।
सर्व.
[सं. कोपि, प्रा. कोवि]


कोई
मनुष्य या पदार्थ जो अज्ञात हो।
वि.


कोई
अनेक में से कोई एक।
वि.


कोई
एक भी।
वि.


कोई
लगभग।
क्रि. वि.


कोउ
कोई।
सूरदास की बीनती कोउ लै पहुँचावै–१ - ४।
सर्व.
[हिं. को+हू=भी]


कोउक
कोइ एक, कुछ लोग।
सर्व.
[हिं. कोउ+एक]


कोऊ
कोई, कोई भी।
गनिका-सुत सोभा नहिं पावत, जाके कुल कोऊ न पिता री - १ - ३४।
सर्व.
[हिं. को+हू (पत्य.) = भी]


कोकंब
एक पेड़ जिसके सब भाग खट्टे होते हैं।
संज्ञा
[देश.]


कोक
चकवा पक्षी, चक्रवाक।
सूरस्याम पर गई बारने निरष कोक जनु कोकी -सा. ११२।
संज्ञा
[सं.]


कोक
कोकदेव जो रतिशास्त्र के आचार्य थे।
संज्ञा
[सं.]


कोक
संगीत का एक भेद।
संज्ञा
[सं.]


कोक
विष्णु।
संज्ञा
[सं.]


कोक
भेड़िया।
संज्ञा
[सं.]


कोकई
गुलाबीपन लिये नीला।
वि.
[तु. कोक]


कोककला
रति विद्या, कामशास्त्र।
(क) हाव-भाव, कटाच्छ लोचन, कोक-कला सुभाई - ६९०। (ख) कोककला-गुन प्रगटे भारी - - १२१६।

(ग) कोककला वितपन्न भई हौ कान्हरूप तनु आधा - १४३७।

संज्ञा
[सं.]


कोकन
एक पेड़।
संज्ञा
[देश.]


कोकनद
लाल कमल।
संज्ञा
[सं.]


कोकनद
लाल कुमुद।
संज्ञा
[सं.]


कोकना
कच्ची सिलाई करना, लंगर डालना।
क्रि. स.
[फ़ा. कोक=कच्ची सिलाई]


कोकनी
एक तरह का तीतर।
संज्ञा
[सं. कोक=चकवा]


कोकनी
एक रंग।
संज्ञा
[तु. कोक=आसमानी]


कोकनी
छोटा, नन्हा।
वि.
[देश.]


कोकनी
घटिया, मामूली।
वि.
[देश.]


कोकम
एक दक्षिणी पेड़।
संज्ञा
[देश.]


कोकव
एक राग।
संज्ञा
[सं.]


कोकशास्त्र
कोकदेव नामक एक पंडित कृत रति-शास्त्र।
संज्ञा
[सं.]


कोका
एक तरह का कबूतर।
संज्ञा
[हिं. कोक]


कोका
चकवा।
संज्ञा


कोकाबेरी, कोकाबेली
नीली कुईं या कुमुदिनी
संज्ञा
[सं. कोका+हिं. बेली]


कोकाह
सफेद रंग का घोड़ा।
संज्ञा
[सं.]


कोकिल
कोयल।
संज्ञा
[सं.]


कोकिल
छप्पय छंद का एक भेद।
संज्ञा
[सं.]


कोकिला
कोयल।
संज्ञा
[सं.]


कोकी
मादा चकवा।
संज्ञा
[सं.]


कोको
कौआ।
संज्ञा
[अनु.]


कटियाना
हर्षित या पुलकित होना।
क्रि. अ.
[हिं. काँटा]


कटिसूत्र
सूत की करधनी, मेखला।
संज्ञा
[सं.]


कटी
कट गयी।
क्रि. अ. भूत
[हिं. कटना]


कटी
दूर होती है, नष्ट होती है, छँटती है।
हृदय की कबहु न जरनि घटी। बिनु गोपाल बिथा या तन की कैसैं जाति कटी–१ - ६८।
क्रि. अ. भूत
[हिं. कटना]


कटीला
तेज, तीक्ष्ण
वि.
[हिं. काँटा]


कटीला
खूब चुभने या गहरा प्रभाव करनेवाला।
वि.
[हिं. काँटा]


कटीला
मोहित करनेवाला।
वि.
[हिं. काँटा]


कटीला
छैल-छबीला।
वि.
[हिं. काँटा]


कटीलियाँ
बहुत शीघ्र प्रभाव डालनेवाली, गहरा असर करनेवाली, मोहित करनेवाली।
(क) ओढ़े पीरी पावरी हो पहिरे लाल निचोल। भौहें काट कटीलियाँ मोहिं मोल लई बिन मोल - ८९३। (ख) भौहैं काट कटीलियाँ सखि बस कीन्हीं बिन मोल - १४६३।
वि.
[हिं. कटीली]


कटीले
काँटेदार, काँटों से भरे हुए।
कमल-कमल कहि बरनिए हो पानि पिय गोपाल। अब कवि कुल साँचे से लागे रोम कटीले नाल - पृ० ३४८ (५८)।
वि.
[हिं. काँटा]


कोख
गर्भाशय।
(क) जसुमति कोख आय हरि प्रगटे असुर तिमिर कर दूर - सारा. ३९। (ख) धन्य कोख जिहिं तोकौं राख्यौ, धनि घरि जिहिं अवतारी–७०३।
संज्ञा
[सं. कुक्षि, प्रा. कुक्खि]


कोख
कोख भाग सुहाग भरी- पति-पुत्र का सुख देखनेवाली और भाग्यवती। उ. धनि दिन है, धनि यह राति, धनि-धनि पहर-घरी। धनि धनि महरि की कोख, भाग-सुहाग भरी - १० - २४।

कोख की आँच- संतान का वियोग, संतान की ममता।

मु.


कोख
उदर, पेट।
संज्ञा
[सं. कुक्षि, प्रा. कुक्खि]


कोख
पेट के दोनों बगलों का स्थान।
संज्ञा
[सं. कुक्षि, प्रा. कुक्खि]


कोखजली
जिसकी संतान मर जाती हो।
वि.
[हिं. कोख+जलना]


कोखबंद
जिसके संतान हुई ही न हो, बाँझ।
वि.
[हिं. कोख+बंद]


कोखि
गर्भाशय, गर्भ।
(क) याकी कोखि औतरै जो सुत करै प्रान-परिहारा - १०.४। (ख) अहो जसोदा कत त्रासति हौ यहै कोखि कौ जायौ - ३४६।

(ग) तिनमें प्रथम लियो कश्यप गृह दिति की कोखि मँझार - सारा. ४४।

संज्ञा
[सं. कुक्षि, प्रा. कुक्खि, हिं. कोख]


कोखिजरी
जिसकी संतान जीवित न रहे, जिसे संतान का सुख़ न मिले।
पाऊँ कहाँ खिलावन कौ सुख, मैं दुखिया दुख कोखिजरी - १० - ८०।
वि.
[हिं. कोख+जलना]


कोगी
एक जानवर (सोनहा) जो लोमड़ी के बराबर होता है।
संज्ञा
[देश.]


कोचना
चुभाना, गड़ाना।
क्रि. स.
[सं. कुच् = लिखना]


कोचरा
एक घनी लता।
संज्ञा
[देश.]


कोचरी
एक पक्षी।
संज्ञा
[देश.]


कोचा
हल्का घाव।
संज्ञा
[हिं. कोचना]


कोचा
चुटीली बात, तानी।
संज्ञा
[हिं. कोचना]


कोजागर
शरद की पूर्णिमा।
संज्ञा
[सं.]


कोट
यूथ, जत्था।
संज्ञा
[सं. कोटि]


कोट
समूह, ढेर।
(क) सभा मँझार दुष्ट दुस्सासन द्रौपदि आनि धरी। सुमिरत पट कौ कोट बढ्यौ तब, दुख-सागर उबरी - १ - १६। (ख) जैसे बने गिरिराज जू तैसे अन को कोट–९१२

(ग) दसहूँ दिसि तैं उदित होत हैं दावानल के कोट - २७०३।

संज्ञा
[सं. कोटि]


कोट
महल, राजप्रासाद।
स्रवनन सुनत रहत जाको नित सो दरसन भये नैन। कंचन कोट कँगूरनि की छबि मानहु बैठे मैंन - २५५८।
संज्ञा
[सं.]


कोट
दुर्ग, किला।
(क) मय, मायामय कोट सँवारो। ता मैं बैठि सुरनि जय करौ। तुम उनके मारे नहिं मरौ - - ७ - ७। (ख) रही दे घूँघट पट की ओट। मनो कियो फिरि मान मवासो मनमथ बिकटे कोट - सा. उ. १६।
संज्ञा
[सं.]


कोट
शहरपनाह, प्राचीर।
संज्ञा
[सं.]


कोट
करोड़।
(क) राधे आज मदन-मद माती। सोहत सुंदर संग स्याम के षरचत कोट काम कल थाती - सा. ५०।

(ख) भादौं की अधराति अँध्यारी। द्वार-कपाट कोट भट रोके दस दिसि कंत कंस-भय भारी - १० - ११।

वि.
[सं. कोटि]


कोटपाल
दुर्गरक्षक।
संज्ञा
[सं.]


कोटर
पेड़ का खोखला भाग।
संज्ञा
[सं.]


कोटर
दुर्ग के आसपास का वन।
संज्ञा
[सं.]


कोटरी
दुर्गा, चंडिका।
संज्ञा
(सं]


कोटि
सौ लाख की संख्या, करोड़।
वि.
[सं.]


कोटि
धनुष का सिरा।
संज्ञा
[सं.]


कोटि
वर्ग, श्रेणी।
संज्ञा
[सं.]


कोटि
उत्तमता।
संज्ञा
[सं.]


कोटि
समूह, जत्था।
संज्ञा
[सं.]


कोटिक
करोड़।
वि.
[सं कोटि+क (प्रत्य.)]


कोटिक
अमित, असंख्य।
वि.
[सं कोटि+क (प्रत्य.)]


कोटिक्रम
विषय प्रतिपादन-क्रम।
संज्ञा
[सं.]


कोटिच्युत
पद से नीचे भेजा हुआ।
वि.
[सं.]


कोटिच्युति
पद से गिराने की क्रिया।
संज्ञा
[सं.]


कोटितीर्थ
एक तीर्थ जो उज्जैन, चित्रकूट आदि अनेक स्थानों पर है।
संज्ञा
[सं.]


कोटिनि
करोड़ों का समूह, ढेर।
पांडु-बधू पटहीन सभा मैं, कोटिनि बसन पुजाए। बिपति काल सुमिरत तिहिं अवसर जहाँ तहाँ उठि धाए - १ - १५८।
संज्ञा
[सं. कोटि+ हिं. नि (प्रत्य.)]


कोटिफली
गोदावरी नदी के सागर संगम समीप एक तीर्थ। प्रसिद्धि है कि इंद्र का अहिल्या संबंधी पाप यहीं स्नान करने से दूर हुआ था।
संज्ञा
[सं.]


कोटिबंध
पद, महत्व या मूल्य के अनुसार श्रेणी-विभाजन करना।
संज्ञा
[सं.]


कोटिबद्ध
श्रेणियों में विभक्त।
वि.
[सं.]


कोटिशः
बहुत तरह से।
क्रि. वि.
[सं.]


कोटिशः
बहुत बहुत।
वि.


कोटी
नोक या धार।
मेली सजि मुख-अंबुज भीतर उपजी उपमा मोटी। मनु बराह भूधर सह पुहुमी धरी दसन की कोटी - १० - १६४।
संज्ञा
[सं. कोटि]


कोटी
किसी अस्त्र की नोक।
संज्ञा
[सं. कोटि]


कोटू
एक पौधा जिसके बीजों का आटा फलहार रूप में खाया जाता है।
संज्ञा
[देश.]


कोट्टवी
वाणासुर की माता जो पुत्र की श्रीकृष्ण से रक्षा के लिए वस्त्र त्याग कर युद्ध क्षेत्र में आयी थी।
संज्ञा
[सं.]


कोट्टवी
वस्त्ररहित स्त्री।
संज्ञा
[सं.]


कोट्टवी
दुर्गा।
संज्ञा
[सं.]


कोठ
बहुत खट्टा।
वि.
[सं. कुंठ]


कोठरिया, कोठरी
छोटा या तंग कमरा।
संज्ञा
[हिं. कोठा+ड़ी (री)]


कोठा
बड़ा कमरा।
संज्ञा
[सं. कोष्ठक]


कोठा
भंडार।
संज्ञा
[सं. कोष्ठक]


कोठा
अटारी।
संज्ञा
[सं. कोष्ठक]


कोठा
पेट
संज्ञा
[सं. कोष्ठक]


कोठा
गर्भाशय।
संज्ञा
[सं. कोष्ठक]


कोठा
खाना (शतरंज या चौपड़)।
संज्ञा
[सं. कोष्ठक]


कोठा
शरीर या मस्तिष्क का भीतरी भाग।
संज्ञा
[सं. कोष्ठक]


कोठार
अन्न आदि का भंडार।
संज्ञा
[हिं. कोठा]


कोठारी
भंडारी।
संज्ञा
[हिं. कोठार+ई (प्रत्य.)]


कोठी
बड़ा और बढ़िया पक्का मकान।
संज्ञा
[हिं. कोठा]


कोठी
उस धनी या महाजन का मकान जो खूब लेन-देन करता हो या थोक विक्रेता हो।
संज्ञा
[हिं. कोठा]


कोठी
कोठी खोलि- लेन देन का काम या बड़ा कारबार शुरू करके। उ. - करहु यह जस प्रगट त्रिभुवन निठुर कोठी खोलि। कृपा चितवनि भुज उठावहु प्रेम बचननि बोलि-पृ. ३४२ (१७)।
मु.


कोठी
अनाज का भंडार या कोठार।
संज्ञा
[हिं. कोठा]


कोठी
बाँसों का समूह जो एक साथ उगे हों।
संज्ञा
[सं. कोटि=समूह]


कोठीवाल
बड़ा महाजन।
संज्ञा
[हिं. कोठी+वाला (प्रत्य.)]


कोठीवाल
बड़ा व्यापारी।
संज्ञा
[हिं. कोठी+वाला (प्रत्य.)]


कोड़ना
खेत गोड़ना।
क्रि. स.
[सं. कुंड=खंडित करना]


कोड़ा
चाबुक, सोंटा।
संज्ञा
[सं. कवर=गुथे हुए बाल]


कोड़ा
उत्तेजक बात।
संज्ञा
[सं. कवर=गुथे हुए बाल]


कोड़ा
चेतावनी
संज्ञा
[सं. कवर=गुथे हुए बाल]


कोड़ाई
खेत गोड़ने की मजदूरी या काम।
संज्ञा
[हिं. कोड़ना]


कोड़ाना
कोड़ने का काम दूसरे से कराना।
क्रि. स.
[हिं. कोड़ना का प्रे.]


कोड़ी
बीस का समूह।
संज्ञा
[सं. कोटि]


कोढ़
एक भयानक रोग।
संज्ञा
[सं. कुष्ट]


कोढ़
कोढ़ की (में) खाज- दुख पर दुख।
मु.


कोढ़ी
कोढ़ नामक भयानक रोग से पीड़ित मनुष्य जो घृणित और अस्पृश्य समझा जाता है।
उल्टी रीति तिहारी ऊधौ सुनै सु ऐसी को है।...। मुडली पटिया पारि सँवारे कोढ़ी लावै केसरि। ...। सो गति होई सबै ताकी जो ग्वारिनि जोग सिखावै - ३०२६।
संज्ञा
[हिं. कोढ़]


कोण
कोना।
संज्ञा
[सं.]


कोण
दो दिशाओं के बीच की दिशा।
संज्ञा
[सं.]


कोण
हथियारों की धार।
संज्ञा
[सं.]


कोण
सोटा, डंडा।
संज्ञा
[सं.]


कोणार्क
एक तीर्थ जो जगन्नाथपुरी में है।
संज्ञा
[सं.]


कोत
बल, शक्ति।
संज्ञा
[अ. क़ुवत]


कोत
दिशा।
संज्ञा
[हिं. कोद, कोध]


कोतल
सजा हुआ घोड़ा जिस पर कोई सवार न हो।
संज्ञा
[फ़ा.]


कोतल
राजा की सवारी का घोड़ा।
संज्ञा
[फ़ा.]


कोतल
जिसे कोई काम न हो।
वि.


कोतवार, कोतवाल
पुलिस का एक प्रधान कर्मचारी।
संज्ञा
[सं. कोटपाल)


कोतवार, कोतवाल
सभा या पंचायत में भोजनादि का प्रबंध करनेवाला कर्मचारी।
संज्ञा
[सं. कोटपाल)


कोतवाली
कोतवाल का कार्यस्थान।
संज्ञा
[हिं. कोतवाल+ई (प्रत्य.)]


कोतवाली
कोतवाल का पद।
संज्ञा
[हिं. कोतवाल+ई (प्रत्य.)]


कोतह
छोटा, कम।
वि.
[फ़ा.]


कोता, कोताह
छोटा, कम।
वि.
[फ़ा. कोतः]


कोताही
कमी, त्रुटि।
संज्ञा
[फ़ा.]


कोति
दिशा, ओर।
संज्ञा
[सं. कुत्र=किधर]


कोथ
आँख का एक रोग।
संज्ञा
[सं.]


कोथला
बड़ा थैला।
संज्ञा
[हिं. स्थल या कोठला]


कोथला
पेट।
संज्ञा
[हिं. स्थल या कोठला]


कोथली
रूपए रखने की थैली जो कमर में बाँध ली जाती है।
संज्ञा
[हिं. कोथला]


कोथी
म्‍यान के सिरे कई छल्ला।
संज्ञा
[देश.]


कोदंड
धनुष, कमान।
तोरि कोदंड मारि सब जोधा तब बल भुजा निहारयौ - २५८६।
संज्ञा
[सं.]


कटे
छीज गये, नष्ट हुए, दूर हो गये।
बिप्र बजाइ चल्यौ सुत कैं हित कटे महा दुख भारे - १ - १५८।
क्रि. अ. (भूत.)
[हिं. कटना]


कटैं
कटते हैं, बंधन कटते हैं, मुक्ति पाते हैं।
जरासंध बंदी कटैं नृप-कुल जस गावै–१ - ४।
क्रि. अ.
[हिं. कटना]


कटैया
काटनेवाला।
संज्ञा
[हिं. काटना]


कटैया
फसल काटनेवाला।
संज्ञा
[हिं. काटना]


कटोरा
कटोरी से बड़ा बरतन, प्याले के ढंग का बना धातु का बरतन।
संज्ञा
[हिं. काँसा + ओरा (प्रत्य.)= कॅंसोरा]


कटोरे
कटोरे में।
जोग कटोरे लिए फिरत है ब्रजबासिन की फाँसी - ३१०८।
संज्ञा
[हिं. कटोरा]


कटोरी
प्याली।
संज्ञा
[हिं. कटोरा का अल्पा.]


कटोरी
अँगिया का वह भाग जिसमें स्तन रहते हैं।
संज्ञा
[हिं. कटोरा का अल्पा.]


कट्टर
अपने विश्वास के अतिरिक्त कुछ न सहन करनेवाला।
वि.
[हिं. काटना]


कट्टर
हठी।
वि.
[हिं. काटना]


कोदंड
धनराशि।
संज्ञा
[सं.]


कोदंड
भौंह।
संज्ञा
[सं.]


कोद
दिशा, ओर।
(क) आनंदकंद, सकल सुखदायक, निसि दिन रहत केलि रस ओद। सूरदास प्रभु अंबुज लोचन, फिरि चितवत ब्रज-जन-कोद - १० - ११९ (ख) नारि-नर सब देखि चकित भए, दवा लग्यौ चहुँ कोद - - ५९२।
संज्ञा
[सं. कोण अथवा कुत्र)


कोद
कोना।
संज्ञा
[सं. कोण अथवा कुत्र)


कोदइत
कोदो दलने वाला।
संज्ञा
[हिं. कोदो+ऐत (प्रत्य.}]


कोदई
कोदों।
संज्ञा
[सं. कोद्रव]


कोदन
दिशा, ओर, तरफ।
अन्नकूट जैसो गोबर्धन। अरु पकवान धरे चहुँ कोदन - १०२५।
संज्ञा
[हिं. कोद, कोध]


कोदरा, कोदव
एक कदन्न।
संज्ञा
[हिं. कोदो]


कोदवला
एक घास।
संज्ञा
[हिं. कोदो]


कोदों, कोदो
एक कदन्न।
संज्ञा
[सं. कोद्रव]


कोदों, कोदो
कोदों देकर पढ़ना (सीखना)- बेढंगी शिक्षा पाना।

छाती पर कोदों दलना- दूसरे को बेबस करके कुढ़ाना या जलाना।

मु.


कोद्रव
कोदो, कोदई।
संज्ञा
[सं.]


कोध
शोर, दिशा।
(क) नर नारी सब देखि चकित भे दावा लग्यो चहुँ कोध।

(ख) एक कोध गोविंद ग्वाल सब एक कोध व्रजनारि - २३९९।

संज्ञा
[हिं. कोद]


कोन
कोन, कोर, किनारा।
(क) नैन कोन की अंजन-रेखा पटतर कहूँ न छीजै - २१९७। (ख) तीनि लोक जाकैं उदर-भवन, सो सूप कैं कोन परयौ है (हो) - १० - १२८।
संज्ञा
[सं. कोण]


कोना
कोण, अंतराल।
संज्ञा
[सं. कोण]


कोना
नुकीला सिर।
संज्ञा
[सं. कोण]


कोना
(वस्त्र या इमारत का) छोर या खूँट।
संज्ञा
[सं. कोण]


कोना
एकांत स्थान।
संज्ञा
[सं. कोण]


कोनियाँ
दीवार के कोने पर चीज रखने की पटिया।
संज्ञा
[हिं. कोना]


कोनियाँ
मूर्ति आदि के कोनों का सजाना।
संज्ञा
[हिं. कोना]


कोपली
नये निकले हुए पत्ते के रंग का, बैंगनी रंग का।
वि.
[हिं. कोपल]


कोपली
कालापन लिये हुए लाल या बैंगनी रंग।
संज्ञा


कोपि
कोप करके, क्रोधित होकर।
(क) कोपि कौरव गहे केस जब सभा मैं, पांडु की बधू जस नैंकु गायौ–१ - ५। (ख) कोपि कै प्रभु बान लीन्हौं तबहिं धनुष चढ़ाई - ९ - ६०।
क्रि. अ.
[सं. कोप, हिं. कोपना]


कोपित
क्रुद्ध, क्रोधित।
प्रात इन्द्र को कोपित जलधर लै ब्रज मंडल पर छायौ - ३०७७।
वि.
[सं. कुपित]


कोपित
अप्रसन्न।
वि.
[सं. कुपित]


कोपी
कोप करनेवाला, क्रुद्ध, अप्रसन्न।
सब ते परम मनोहर गोपी।…..। बारे कुबिजा के रंगहि राँचे तदपि तजी सोपी। तदापि न तजै भजै निसि-बासर नेकहू न कोपी - ३४८७।
वि.
[सं. कोपिन]


कोपी
जल के किनारे रहनेवाला एक पक्षी।
वि.
[सं. कोपिन]


कोपी
कोई, कोई भी।
वि.
[सं. कोऽपि]


कोपीन
साधु-संन्यासियों की लँगोटी, कफनी, काछा।
संज्ञा
[सं. कौपीन]


कोपे
क्रोधित हुए, क्रुद्ध हुए।
आजु अति कोपे हैं रन राम–१५८।
क्रि. अ.
[सं. कोप, हिं. कोपना]


कोनी
कौन, कौन (स्त्री.)।
अरुन अधर दसअवली छबि बरनै कोनी (कौनी) - १८२१।
सर्व.
[हिं. कौन+ई]


कोप
क्रोध, रिस, गुस्सा।
मदन बान कमान ल्यायौ करषि कोप चढ़ाय - - सा. ३२।
संज्ञा
[सं.]


कोपन
क्रोध करनेवाला।
वि.
[हिं. कोपी]


कोपना
क्रोध करना, नाराज होना।
क्रि. अ.
[सं. कोप]


कोपना
क्रोध में भरी हुई, अप्रसन्न।
वि.


कोपभवन
वह स्थान जहाँ कोई स्त्रीपुरुष अपने मित्रों-संबंधियों से अप्रसन्न होकर चला जाय।
संज्ञा
[सं.]


कोपर
कुंडेदार बड़ा थाल या परात।
(क) दधि-फल-दूब कनक कोपर भरि साजत सौंज बिचित्र बनाई –९ - १६९। (ख) मनिमय आसन आनि धरे। दधि-मधु-नीर इनक के कोपर आपुन भरत भरे - ९ - १७१।
संज्ञा
[सं. कपाल]


कोपर
डाल का पका आम।
संज्ञा
[सं. कोमल या कुपल्लव]


कोपल
नयी पत्ती, कल्ला, अंकुर।
संज्ञा
[सं. कोमल या कुपल्लव]


कोपलता
एक बेल।
संज्ञा
[सं.]


कोमल
सुन्दर, मनोहर।
वि.
[सं.]


कोमल
सुकुमार।
वि.
[सं.]


कोमल
कच्चा।
वि.
[सं.]


कोमल
संगीत में स्वर का एक भेद।
वि.
[सं.]


कोमलता, कोमलताई
मृदुता।
संज्ञा
[सं. कोमलता]


कोमलता, कोमलताई
मधुरता, सुन्दरता।
संज्ञा
[सं. कोमलता]


कोमला, कोमलावृत्ति
काव्य में एक मधुर वृत्ति।
संज्ञा
[सं.]


कोमलाई
कोमलता।
संज्ञा
[सं. कोमलता]


कोमलाई
मधुरता।
संज्ञा
[सं. कोमलता]


कोय
कोई।
निश्चय किए मुक्त सब माधव ताते जिये न कोय - २९५ सारा.।
सर्व.
[हिं. कोई]


कोयर
साग-सब्जी।
संज्ञा
[सं. कोंपल]


कोयर
हरा चारा।
संज्ञा
[सं. कोंपल]


कोयल
कोकिला।
संज्ञा
[सं. कोकिल]


कोयल
एक लता।
संज्ञा
[सं.]


कोयला
जला हुआ काला पदार्थ जो अंगार बुझाने से बच जाता है।
संज्ञा
[सं. कोकिल=जलता हुआ अंगारा]


कोयला
एक खनिज पदार्थ।
संज्ञा
[सं. कोकिल=जलता हुआ अंगारा]


कोयला
सोम नाम का पेड़।
संज्ञा
[देश.]


कोया
आँख का डेला।
संज्ञा
[सं. कोण]


कोया
आँख का कोना।
संज्ञा
[सं. कोण]


कोया
कटहल के फल की गुठली जिसमें बीज रहता है।
संज्ञा
[सं. कोश]


कोपै
क्रोध करता है, रुष्ट होता है।
कोपै तात प्रहलाद भगत कौ, नामहिं लेत जरै - - - १ ८२।
क्रि. अ.
[हिं. कोपना]


कोपो
क्रुद्ध हुआ।
आजु रन कोपो भीमकुमार - सा. ७४।
क्रि. अ. (भूत.)
[हिं. कोप्यौ]


कोप्यौ
क्रोध किया, क्रुद्ध हुआ।
(क) जौ सुरपति कोष्‍यौ ब्रज ऊपर, क्रोध न कछू सरै - १.३७। (ख) इत पारथ कोप्यौ है हम पर, उत भीषम भट राउ - १ - २७४।
क्रि. अ.
[हिं. कोपना]


कोफ्त
दुख।
संज्ञा
[फ़ा.]


कोफ्त
परेशानी।
संज्ञा
[फ़ा.]


कोबिद
पंडित, विद्वान।
परम कुशल कोबिद लीलानट, मुसुकनि मन हरि लेत - १० - १५४।
वि.
[सं. कोविद]


कोबिदा
पंडिता, प्रौढ़ा।
सूरस्याम कोविदा सुभूषन कर बिपरीत बनावै - सा. ५।
वि.
[सं. कोविद्]


कोबिदार
कचनार का पेड़ या फूल।
संज्ञा
[सं. कोविदार]


कोमता
एक कँटीला पेड़।
संज्ञा
[देश.]


कोमल
मृदु।
वि.
[सं.]


कोर
जलपान का चबेना।
संज्ञा
[देश.]


कोर
शरीर के अवयवों की वह संधि जहाँ से वे मुड़ सकते हैं; उँगली, कुहनी आदि की संधि, गाँठ, पोर।
इक सखी मिलि हँसति पूछति खैंचि कर की कोर–३३८९।
संज्ञा
[सं.]


कोर
गोद, उछंग, फंदा, पकड़।
कँपति स्वास त्रास अति मोकति ज्यों मृग केहरि कोर - २१६२।
संज्ञा
[सं. क्रोड़, हिं. कोरा]


कोर
आलिंगन।
सूर स्याम स्यामा भरि कोर अरस परस रीझत उपरै नाहीं मैं समाई–१५६५।
संज्ञा
[सं. क्रोड़, हिं. कोरा]


कोरक
कली, अधखिला फूल।
संज्ञा
[सं.]


कोरक
फूल की हरी कटोरी जिसमें फूल रहता है ; कमल की डंडी।
संज्ञा
[सं.]


कोरकसर
दोष और कमी।
संज्ञा
[हिं. कोर+फ़ा. कसर]


कोरकसर
कमी-बेशी।
संज्ञा
[हिं. कोर+फ़ा. कसर]


कोरत
कटता है, खुरचता है, कुरेदा जाता है, कचोटता है।
सूर स्याम पिय मेरे तौ तुम ही जिय तुम बिनु देखे मेरो हिय कोरत - १५२०।
क्रि. स.
[हिं. कोरना, कोड़ना]


कोरना
गोड़ना, खोदना।
क्रि. स.
[हिं. कोड़ना]


कोर
किनारा, सिरा। सिय अंदेस जानि सूरज-प्रभु लियौ करज की कोर - ९२३।
संज्ञा
[सं. कोण]


कोर
कोना।
(क) सूरके प्रभु कृपासागर चितै लोचन कोर। बढ़यौ बसन-प्रवाह जल ज्यौं, होत जयजय सोर - १ - २५३। (ख) मन हर लियो तनक चितवनि में चपल नैर की कोर - ३१४३।
संज्ञा
[सं. कोण]


कोर
कोर दबना- वश, अधिकार या दबाव में होना।
मु.


कोर
बैर, द्वेष।
उतते सूत्र न टारत कतहूँ मोसों मानत कोर - पृ. ३३५।
संज्ञा
[सं. कोण]


कोर
दोष, बुराई।
संज्ञा
[सं. कोण]


कोर
हथियार की धार।
संज्ञा
[सं. कोण]


कोर
पंक्ति, कतार।
संज्ञा
[सं. कोण]


कोर
स्थान, घर।
स्रवन ध्वनि सुर नाद मोहत करत हिरदे कोर - ३३३५।
संज्ञा
[सं. कोण]


कोर
रेखा।
बहुरौ देख्यौ ससि की ओर। तामैं देखि स्यामता कोर - ५ - ३।
संज्ञा
[सं. कोण]


कोर
चैती की पहली सिचाई।
संज्ञा
[देश.]


कोरना
कुतरना, कुरेदना।
क्रि. स.
[हिं. कोड़ना]


कोरना
लकड़ी छीलछाल कर नुकीली करना।
क्रि. स.
[हिं. कोर+ना (प्रत्य.)]


कोरनि
गोद में, पकड़ में।
मन्मथ पीर अधिक तनु कंपित ज्यौं मृग केहरि कोरनि - २८४२।
संज्ञा
[सं. क्रोड़, हिं. कोरा+नि प्रत्य.)]


कोरवा
गोद।
संज्ञा
[हिं. कोरा]


कोरहा
नोकदार।
वि.
[हिं. कोरा+ हा (प्रत्य.)]


कोरहा
गोद में ही रहनेवाला।
वि.
[हिं. कोरा=गोद]


कोरा
जो काम में न लाया गया हो, अछूता, नया।
वि.
[सं. केवल]


कोरा
जो धोया न गया हो।
वि.
[सं. केवल]


कोरा
जिस (कागज इत्यादि) पर कुछ लिखा न गया हो, सादा।
वि.
[सं. केवल]


कोरा
खाली, रहित।
वि.
[सं. केवल]


कठिन
कड़ा, सख्त।
(क) रुधिरमेद मल मूत्र कठिन कुच उदर गंध - गंधात। तन-धनजोबन ता हित खोवत, नरक की पाछैं बात - २ - २४। (ख) बालक बदन बिलोकि जसोदा कत रिंस करति अचेत। छोरि उदर तैं दुसह दाँवरी डारि कठिन कर बेंत - ३४९.।
वि.
[सं.]


कठिन
दयारहित, निर्दयी, कठोर।
तैं ककई कुमंत्र कियो। अपने कर करि काल हँकारयौ, हठ करि नृप अपराध लियौ। श्रीपति चलत रह्यौ कहि कैसें, तेरौ पाहन कठिन हियौ - ९ - ४८।
वि.
[सं.]


कठिन
मुशकिल, दुःसाध्य, दुष्कर।
ग्रह-पति सुत-हित अनुचर को सुत जारत रहत हमेस। जलपति भूषन उदित होत ही पारत कठिन कलेस - सा. २७।
वि.
[सं.]


कठिन
कठिनता।
(क) उत बृषभानुसुता उठी वह भाव बिचारै। रैनि बिहानी कठिन सौं मन्मथ बल भारै - १५४१।

(ख) जब जब दीननि कठिन परी। जानत हौं करुनामय जन कौं, तबतब सुगम करी - १ - १६।

संज्ञा


कठिन
विपत्ति, कष्ट, संकट।
(क) महाकष्ट दस मास गर्भ बसि अधोमुख सीस रहाई। इतनी कठिन सही तब निकस्यौ अजहुँ। न तू समुझाई। (ख) कपट-रूप निसिचर तुन धरिकै अमृत पियौ गुन मानी। कठिन परैं ताहू मैं प्रगटे, ऐसे प्रभु सुख-दानी - १ - ११२।
संज्ञा


कठिनई
कड़ाई।
संज्ञा
[हिं. कठिन]


कठिनई
कठोरता।
संज्ञा
[हिं. कठिन]


कठिनई
संकट।
संज्ञा
[हिं. कठिन]


कठिनता, कठिनताई
कड़ापन, सख्ती।
संज्ञा
[सं. कठिन]


कठिनता, कठिनताई
मुश्किल, दिक्कत।
संज्ञा
[सं. कठिन]


कोरी
अपढ़।
वि.
[हिं. कोरा]


कोरी
निर्धन।
वि.
[हिं. कोरा]


कोरी
खाली, केवल।
वि.
[हिं. कोरा]


कोरी
सादी, जिसमें घी न लगा हो।
रोटी, बाटी, पोरी, झोरी। इक कोरी इक घीव चभोरी–३९६।
वि.
[हिं. कोरा]


कोरे
ताजा, हरा, जो सूखा न हो।
मधुप करत घर कोरे काठ मैं बँधत कमल के पात - ३३८६।
वि.
[हिं. कोरा]


कोरे
सूखे, जो पानी, दही या खटाई में भिगोये न गये हों।
मूँग-पकौरा पनौ पतबरा। इक कोरे इक भिजे गुरबरा - ३९६।
वि.
[हिं. कोरा]


कोरे
नये, जो पहने न गये हों, जो धुले न हों।
काढ़ौ कोरे कापरा (अरु) काढ़ौ घी के मौन। जातिपाँति पहिराइ कै (सब) समदि छतीसौ पौन - १० - ४०।
वि.
[हिं. कोरा]


कोरो
खपरैल का नीचे का बाँस।
संज्ञा
[हिं. कोर]


कोरो
रेंड का सूखा पेड़।
संज्ञा
[हिं. कोर]


कोल
सुअर।
संज्ञा
[सं.]


कोरी
हिंदुओं में एक छोटी जाति जो कपड़े बुनती है।
संज्ञा
[सं. कोल=सुअर]


कोरी
बीस का समूह, कोड़ी।
संज्ञा
[सं. कोरि या अँ. स्कोर]


कोरी
करोड़ों।
(क) ब्रज कहा खोरी। छत अरु अछत एक रख अंतर मिटत नहीं कोई करहु कोरी - २८९०।

(ख) निकसे देत असीस एक मुख गावत कीरति कोरी –१० उ. - १५१।

वि.
[सं. कोटि, हिं. कोरि]


कोरी
गोद।
संज्ञा
[सं. क्रोड, हिं. कोर]


कोरी
आलिंगन।
निसि लौं भरत कोस अभ्यंतर जो हित कहो सु थोरी। भ्रमत भोर सुख और सुमन सँग कमल देत नहिं कोरी–३२४४।
संज्ञा
[सं. क्रोड, हिं. कोर]


कोरी
जो काम में न लायी गयी हो, नयी।
(क) जाउ लेहु आरे पर राखो काल्हि मोल लै राखे कोरी।

(ख) कोरी मटुकी दह्‍यौ जमायौ जाख न पूजन पायौ - ३४६।

वि.
[हिं. कोरा]


कोरी
जो धोयी न गयी हो।
वि.
[हिं. कोरा]


कोरी
जो रँगी, लिखी या चित्रित न हो, सादी।
वि.
[हिं. कोरा]


कोरी
रहित।
वि.
[हिं. कोरा]


कोरी
दोषरहित, निष्कलंक।
दिन थोरी भोरी अति कोरी देखत ही जु स्याम भये चाढ़ी
वि.
[हिं. कोरा]


कोरा
दोष या पाप से रहित।
वि.
[सं. केवल]


कोरा
अपढ़।
वि.
[सं. केवल]


कोरा
निर्धन।
वि.
[सं. केवल]


कोरा
केवल, खाली।
वि.
[सं. केवल]


कोरा
एक चिड़िया।
संज्ञा
[सं. करक]


कोर
गोद।
(क) कान्हैं जसुमति कोरा तैं रुचि करि कंठ लगाये - १० - ५३। (ख) नंद उठाइ लिये कोरा करि, अपनैं सँग पौढ़ाई - ५१८।
संज्ञा
[सं. क्रोड़]


कोरापन
अछूतापन, नयापन।
संज्ञा
[हिं. कोरा+पन (प्रत्य.)]


कोरि
करोड़।
तुरतहीं तोरि, गनि, कोरि सकटनि जोरि, ठाढ़े भये पौरिया तब सुनाये - ५८४।
वि.
[सं. कोटि]


कोरिया
हिंदुओं में एक जाति, कोरी जो कपड़ा बुनने का कार्य करते हैं, हिन्दू जुलाहे।
संज्ञा
[सं. कोल=सुअर, हिं. कोरी]


कोरिया
झोपड़ी।
ढूँढि़ फिरे घर कोउ न बतायौ स्वपच कोरिया लौं - १ - १५१।
संज्ञा


कोल
गोद।
संज्ञा
[सं.]


कोल
आलिंगन की स्थिति में दोनों भुजाओं के बीच का स्थान।
संज्ञा
[सं.]


कोल
एक जंगली जाति।
संज्ञा
[सं.]


कोल
काली मिर्च।
संज्ञा
[सं.]


कोल
बेर का फल।
संज्ञा
[सं.]


कोलना
लकड़ी, पत्थर आदि को बीच से खोखला करना।
क्रि. स.
[सं. क्रोड़न]


कोलना
बेचैन-होना।
क्रि. स.


कोलाहल
शोरगुल, हल्ला।
संज्ञा
[सं.]


कोलाहल
एक संकर राग।
संज्ञा
[सं.]


कोलिया
पतली गली।
संज्ञा
[सं. कोल=रास्ता]


कोलिया
पतला पर लंबा खेत।
संज्ञा
[सं. कोल=रास्ता]


कोली
गोद, अँकवार।
संज्ञा
[सं. क्रोड़, प्रा. कोल]


कोली
हिंदू जुलाहा।
संज्ञा
[हिं. कोरी]


कोल्हू
तेल पेरने का यंत्र।
संज्ञा
[हिं. कूल्हा १]


कोविद
पंडित, विद्वान।
वि.
[सं.]


कोविद
चतुर, प्रवीण।
वि.
[सं.]


कोविद
सूर स्याम हित जानि कै सब काम कोविद निजकर कुटी सँवारी - २२९६।
वि.
[सं.]


कोविदार
कचनार का पेड़ या फूल।
संज्ञा
[सं.]


कोश
अंडा।
संज्ञा
[सं.]


कोश
गोलक।
संज्ञा
[सं.]


कोश
बिनखिली कली।
संज्ञा
[सं.]


कोश
शराब का प्याला।
संज्ञा
[सं.]


कोश
पूजा का पंचपात्र।
संज्ञा
[सं.]


कोश
तलवार आदि की म्यान।
संज्ञा
[सं.]


कोश
आवरण, खोल।
संज्ञा
[सं.]


कोश
थैली।
संज्ञा
[सं.]


कोश
वह ग्रंथ जिसमें शब्द और उसके अर्थ संकलित हों।
संज्ञा
[सं.]


कोश
रेशम, कटहल आदि का कोया।
संज्ञा
[सं.]


कोश
संचित धन, खजाना।
संज्ञा
[सं.]


कोशकार
शब्द-कोश बनानेवाला।
संज्ञा
[सं.]


कोषाधिप, कोषाधिपति, कोषाधीश, कोषाध्यक्ष
खजांची, भंडारी।
संज्ञा
[सं.]


कोष्ठ
पेट का भीतर भाग।
संज्ञा
[सं.]


कोष्ठ
कोठा।
संज्ञा
[सं.]


कोष्ठ
भंडार, खजाना।
संज्ञा
[सं.]


कोष्ठ
चारो ओर से घिरा स्थान।
संज्ञा
[सं.]


कोष्ठक
स्थान को घेरने की दीवार या लकीर।
संज्ञा
[सं.]


कोष्ठक
बहुत से खानेवाला चक्र।
संज्ञा
[सं.]


कोष्ठक
ब्राइकेट।
संज्ञा
[सं.]


कोस
फूलों की बँधी हुई कली।
बात-बस समृनाल जैसें प्रात पंकज-कोस। नमित मुख इमि अधर सूचत सकुच मैं कछु रोस - ३५०।
संज्ञा
[सं. कोश]


कोस
दो मील की नाप
कोस द्वादस रास परिमित रच्यौ नंदकुमार - १८३७।
संज्ञा
[सं. कोश]


कोशकार
म्यान आदि बनानेवाला।
संज्ञा
[सं.]


कोशकार
रेशम का कीड़ा।
संज्ञा
[सं.]


कोशज
रेशम।
संज्ञा
[सं.]


कोशज
शंघ घोंघे आदि जीव।
संज्ञा
[सं.]


कोशज
मोती।
संज्ञा
[सं.]


कोशपाल
कोशाध्यक्ष।
संज्ञा
[सं.]


कोशल
सरयू और घाघरा का तटवर्ती प्रदेश जिसकी प्राचीन राजधानी अयोध्या थी।
संज्ञा
[सं.]


कोशल
अयोध्या नगर।
संज्ञा
[सं.]


कोशल
एक राग।
संज्ञा
[सं.]


कोशला
अयोध्या जो कौशल की प्राचीन राजधानी थी।
संज्ञा
[सं.]


कोशलिक
घूस, उत्कोच।
संज्ञा
[सं.]


कोशागार
खजाना, भंडार।
संज्ञा
[सं.]


कोशाधिप, कोशाधिपति, कोशाधीष, कोशाध्यक्ष
खजांची भंडारी।
संज्ञा
[सं]


कोशिश
चेष्टा, प्रयत्न।
संज्ञा
[फ़ा.]


कोष
फूलों की बँधी कली।
सूर-मधुप निसि कमल-कोष-बस, करौ कृपा दिन-भान - १ - १००।
संज्ञा
[सं.]


कोष
म्यान।
संज्ञा
[सं.]


कोष
संचित धन।
संज्ञा
[सं.]


कोष
समूह।
संज्ञा
[सं.]


कोष
शब्द-कोश।
संज्ञा
[सं.]


कोष
कोया।
संज्ञा
[सं.]


कोस
काले कोसों- बहुत दूर।

कोसों दूर रहना या भागना- बहुत दूर रहना।

मु.


कोस
गाली देना, बुरा मनाना।
क्रि. स.
[सं. क्रोशण]


कोस
पानी पीकर कोसना- बहुत बुरा मनाना।
मु.


कोसनि
कोसों, कोसों तक।
संज्ञा
[हिं. कोस+नि (प्रत्य.)]


कोसनि
कारे कोसनि- काले कोसों-बहुत दूर। उ.- मथुरा हुते गए सखी री अब हरि कारे कोसनि - १० उ. - १८८।
मु.


कोसभ, कोसम
एक बड़ा पेड़।
संज्ञा
[सं. कोशाभ्र]


कोसल
कोशल देश जिसकी राजधानी अयोध्या थी।
संज्ञा
[सं. कौशल]


कोसलपति
श्री रामचंद्र।
सीता करति बिचार मनहिं मन, आजु-काल्हि कोसलपति आवैं - ९.८२।
संज्ञा
[सं. कोशलपति]


कोसलपति
राजा दशरथ।
संज्ञा
[सं. कोशलपति]


कोसलपुर
अयोध्या नगर।
संज्ञा
[सं. कोशलपुर]


कंचुकि, कंचुकी
केचुल।
सुत-पति नेह जगत इहि जान्यौ। ब्रज जुवती तिनका सों मान्यौ। काचो सूत तोरि सो डारयौ। उरग कंचुकी फिरि न निहारयौ-पृ. ३१६।
संज्ञा
[सं. कंचुकी]


कंचुकि, कंचुकी
रनिवास के दासदासियों का अध्यक्ष जो प्रायः विश्वासपात्र बूढ़ा ब्राह्मण होता था।
संज्ञा
[सं. कंचुकिन्]


कंचुकि, कंचुकी
द्वारपाल।
संज्ञा
[सं. कंचुकिन्]


कंचुकि, कंचुकी
साँप।
संज्ञा
[सं. कंचुकिन्]


कंचुकि, कंचुकी
वह अन्न जो छिलकेदार होता है जैसे चना।
संज्ञा
[सं. कंचुकिन्]


कंचुरि
साँप का केंचुल।
नैना हरि अंग रूप लुब्धै रे माई। लोकलाज कुल की मर्जादा बिसराई। जैसे चन्दा चकोर मृगीनाद जैसे। कंचुरि ज्यों त्यागि फनिक फिरत नहीं तैसे - पृ.३२१।
संज्ञा
[सं. कंचुली]


कंचुली
साँप की केंचुल।
संज्ञा
[सं.]


कंचुवा
चोली, अँगिया।
संज्ञा
[सं. कंचुकी]


कंचेरा
काच का काम करनेवाला।
संज्ञा
[सं. काँच]


कंज
ब्रह्मा।
संज्ञा
[सं.]


कट्टर
पक्का।
वि.
[हिं. काटना]


कटे
दो टुकड़े या खण्ड किये।
तब बिलंब नहिं कियौ, सीस दस रावन कट्टे - १ - १८०।
क्रि. स.
[सं. कर्त्तन, प्रा. कट्टन, हिं. काटना]


कट्यानी
हर्षित या पुलकित हुई।
क्रि. अ.
[हिं. कटियाना]


कठताल, कठताला
करताल नाम का बाजा जो काठ का बना होता है।
कंसताल कटताल बजावत सृङ्ग मधुर मुँहचंग। मधुर, खंजरी, पटह, पणव, मिलि सुख पावत रत भंग।
संज्ञा
[हिं. काठ+ताल)


कठमलिया
काठ की कंठी या माला पहननेवाला, वैष्णव।
संज्ञा
[हिं. काठ+माला]


कठमलिया
बनावटी या झूठा साधु।
संज्ञा
[हिं. काठ+माला]


कठला
बच्चों को पहनाने की माला जिसमें सोने - चाँदी की चौकियों के साथ बघनख, ताबीज आदि गुथे रहते हैं।
संज्ञा
[सं. कंठ+ला (प्रत्य.)]


कठारा
जलाशय या नदी का किनारा।
संज्ञा
[सं. कंठ = किनारा+हिं. आरा (प्रत्य.)]


कठारी
काठ का पात्र।
संज्ञा
[हिं. काठ+आरी (प्रत्य.)]


कठारी
कमंडल।
संज्ञा
[हिं. काठ+आरी (प्रत्य.)]


कोसा
एक तरह का रेशम।
संज्ञा
[हिं. कोश]


संज्ञा
बड़े दीपक की तरह का मिट्टी का पात्र।
[सं. कोश=प्याला]


कोसाकाटी
बहुत बुरा मनाना।
संज्ञा
[हिं. कोसना+काटना]


कोसिबे
कोसने, बुरा चेतने, बुराभला कहने।
गहि-गहि पानि मटुकिया रीतौ, उरहन कैं मिस आवत-जात। करि मनुहार, कोसिबे कैं डर, भरि भरि देत जसोदा मात - १० - ३३२।
क्रि. स.
[हिं. कोसना]


कोसिला
कौशल्या जो राजा दशरथ की पत्नी और श्रीराम की माता थी।
संज्ञा
[सं. कौशल्या]


कोसी
एक नदी।
संज्ञा
[सं. कौशिकी]


कोसौं
कोसूँ, बुरा चेतूँ, बुराभला कहूँ।
जसुदा तू जो कहति ही मोसौं। दिनप्रति देत उरहनै आवति, कहा तिहारैं कोसौं - १० - ३१५।
क्रि. स.
[हिं. कोसना]


कोह
क्रोध, गुस्सा।
(क) अब मैं मरौं, सिंधु मैं बूडौं, चित मैं आवै कोह। सुनौ बच्छ, धिक जीवन मेरौ, लछिमन-राम-बिछोह - ९ - ८३। (ख) जानिके मैं रह्यौ ठाढ़ो, छुवत कहा जु मोहिं। सूर हरि खीझत सखा सौं, मनहिं कीन्हो कोह - १० - २१३।
संज्ञा
[सं. क्रोध]


कोह
पहाड़।
संज्ञा
[फ़ा.]


कोह
अर्जुन वृक्ष।
संज्ञा
[सं. ककुभ, प्रा. कउह]


कोहनी
बाँह के बीच का जोड़।
संज्ञा
[सं. ककोणि]


कोहबर
विवाह के अवसर पर कुल देवता की स्थापना का स्थान।
संज्ञा
[सं. कोष्ठवर]


कोहरा
कुहासा, कुहरा।
संज्ञा
[हिं. कुहरा]


कोहल
नाट्यशास्त्र के प्रणेता एक मुनि।
संज्ञा
[सं.]


कोहल
एक तरह की शराब।
संज्ञा
[सं.]


कोहल
एक बाजा।
संज्ञा
[सं.]


कोहाँर
कुम्हार।
संज्ञा
[हिं. कुम्हार]


कोहा
नाँद के आकार का मिट्टी का पात्र।
संज्ञा
[सं. कोश=पात्र]


कोहान
ऊँट का कूबड़, डिल्ला।
संज्ञा
[फा.]


कोहाना
रूठना।
क्रि. अ.
[हिं. कोह=क्रोध]


कोहाना
क्रोध करना।
क्रि. अ.
[हिं. कोह=क्रोध]


कोही
क्रोधी, गुस्सैल।
सुर अति छमी, असुर अति कोही–३ - ९।
वि.
[हिं. क्रोध]


कोही
पहाड़ का, पहाड़ी।
वि
[फ़ा कोह=पहाड़]


कोहु
क्रोध, गुस्सा।
कृपा करौ, मम प्रोहित होहु। कियौ बृहस्पति मोपर कोहु - ६.५।
संज्ञा
[सं. क्रोध, हिं. कोह]


कौं
कर्म और सम्प्रदान कारकों का विभक्ति-प्रत्यय, को।
(क) जाकी कृपा पंगु गिरि लंघै, अंधे कौं सब कुछ दरसाइ - १ - १। (ख) सिव-बिरंचि मारन कौं धाए यह गति काहू देव न पाई - १ - ३।
विभ. प्रत्य.
[हिं. को]


कौंकिर
हीरे या काँच की कनी, किरिच या रेत।
सुन री सखी इहै जिय मेरे भूली न और चितेहौं। अब हठ सूर इहै व्रत मेरो कौंकिर खै मरि जैहौं–२७७६।
संज्ञा
[सं. केकर, हिं. कंकर]


कौंकुम
एक तरह के पुच्छल तारे।
संज्ञा
[सं.]


कौंच
एक बेल।
संज्ञा
[सं. कच्छु]


कौंची
बाँस की पतली टहनी।
संज्ञा
[सं. कंचिका]


कौंछ
एक बेल, केवाँच।
संज्ञा
[सं. कच्छु]


कौंडिन्य
कुंडिन मुनि का पुत्र।
संज्ञा
[सं.]


कौंतिक
भाला या बरछा चलानेवाला।
वि.
[सं.]


कौंतेय
कुंती के पुत्र।
संज्ञा
[सं.]


कौंतेय
अर्जुन वृक्ष।
संज्ञा
[सं.]


कौंध
बिजली की चमक।
संज्ञा
[हिं. कौंधना]


कौंधति
बिजली चमकती है।
बीच नदी, घन गरजत बरषत, दामिनि कौंधति जात - १० - १२।
क्रि. अ.
[हिं. कौंधना]


कौंधना
बिजली का चमकना।
क्रि. अ.
[सं. कनन=चमकना+अंध]


कौंधनी
करधनी।
संज्ञा
[सं. किंकिणी]


कौंधा
बिजली की चमक।
कारी घटा सधूम देखियत अति गति पवन चलायौ। चारौ दिसा चितै किन देखौ दामिनि कौंधा लायौ।
संज्ञा
[हिं. कौंधना]


कौंधै
बिजली चमके।
घन-दामिनि धरती लौं कौंधे, जमुना-जल सौं पागे - १० - ४।
क्रि. अ.
[हिं. कौंधना]


कौंभ, कौंभसर्पि
सौ वर्ष पुराना घी।
संज्ञा
[सं.]


कौंर
एक बड़ा पेड़।
संज्ञा
[देश.]


कौंल
कमल।
संज्ञा
[सं. कमल]


कौंवरा
कोमल।
संज्ञा
[सं. कोमल]


कौंहर, कौंहरी
एक सुंदर लाल फल जिसके सम्बन्ध में प्रसिद्ध है कि इसके पास साँप नहीं आता। कवि इससे प्रायः एँड़ी की उपमा देते हैं।
संज्ञा
[देश.]


कौ
का।
दुर्बासा कौ साप निबारयौ, अंबरीष-पति राखी - १ - १०।
प्रत्‍य.
[हिं. का]


कौआ
काग, काक।
संज्ञा
[सं. काक]


कौआना
चकित होकर इधर-उधर ताकना।
क्रि. अ.
[हिं. कौआ]


कौआना
सोते-सोते बड़बड़ाने लगना।
क्रि. अ.
[हिं. कौआ]


कौआर
कौओं का शोरगुल।
संज्ञा
[हिं. कौआ+सं.रव=शब्द्]


कौटिल्य
टेढ़ापन।
संज्ञा
[सं.]


कौटिल्य
कपट, कुटिलता।
संज्ञा
[सं.]


कौटिल्य
चाणक्य का एक नाम।
संज्ञा
[सं.]


कौटुंबिक
कुटुम्ब संबंधी।
वि.
[सं.]


कौटुंबिक
परिवारवाला।
वि.
[सं.]


कौड़ा
बड़ी कौड़ी।
संज्ञा
[सं. कपर्दक, प्रा. कवद्दअ, कवडुअ]


कौड़ा
तापने का अलाव।
संज्ञा
[सं. कुंड]


कौड़िया
कौड़ी के रंग का।
वि.
[हि. कौड़ी]


कौड़िया
कौड़िल्ला पक्षी, किलकिला पक्षी।
संज्ञा
[हिं. कौड़िल्ल]


कौड़ियाला
हल्के नीले रंग का।
वि.
[हिं. कौड़ी]


कौतुक
अचंभे की बात, अचंभा।
तबही नंदराय जू आये कौतुक सुनि यह भारी। बिस्मत भये देव ने राख्यौ बालक यह सुखकारी–सारा. ४१९।
संज्ञा
[सं.]


कौतुक
विनोद।
संग गोप गोधन गन लीन्हे नाना गति कौतुक उपजावत - ४८०।
संज्ञा
[सं.]


कौतुक
प्रसन्नता।
संज्ञा
[सं.]


कौतुक
खेल-तमाशा, खिलवाड़।
(क) कौतुक करि मतंग तब मारयौ–२६४३। उ. - जहाँ तहाँ कौ कौतुक देखि। मन मैं पावै हर्ष बिसेषि - ४ - ११।
संज्ञा
[सं.]


कौतुक
विवाह में पहना जानेवाला सूत्र।
संज्ञा
[सं.]


कौतुकिया
कौतुक करनेवाला।
संज्ञा
[हिं. कौतुक+इया]


कौतुकिया
विवाह संबंध करनेवाला।
संज्ञा
[हिं. कौतुक+इया]


कौतुकी
खेल तमाशा करनेवाला।
वि.
[सं.]


कौतुकी
विवाह संबंध करनेवाला।
वि.
[सं.]


कौतूह, कौतूहल
खेल-तमाशे।
(क) आनँद भरे करत कौतूहल, प्रेम-मगन नर नारी - १० - ४। (ख) बन मैं जाइ करौ कौतूहल यह अपनौ है खेरौ - १० - २१६।

(ग) ग्वाल-बाल सँग करत कौतूहल गवनपुरी मंझार - २५७२।

संज्ञा
[सं .]


कौड़ी
आँख का डेला।
संज्ञा
[सं. कपर्दिका, प्रा. कवड़डिआ]


कौड़ी
छाती के नीचे की हड्डी।
संज्ञा
[सं. कपर्दिका, प्रा. कवड़डिआ]


कौड़ी
जंघे, काँख और गले की गिलटी।
संज्ञा
[सं. कपर्दिका, प्रा. कवड़डिआ]


कौड़ी
कटार की नोक।
संज्ञा
[सं. कपर्दिका, प्रा. कवड़डिआ]


कौणप
राक्षस।
संज्ञा
[सं.]


कौणप
वासुकी वंशज एक साँप।
संज्ञा
[सं.]


कौणप
पापी प्राणी।
संज्ञा
[सं.]


कौणपदंड
भीष्म।
संज्ञा
[सं.]


कौतिक, कौतिग
खेल, कुतूहल, अद्‍भूत बात।
संज्ञा
[सं. कौतुक]


कौतुक
कुतूहल।
संज्ञा
[सं.]


कौड़ियाला
हल्का नीला रंग।
संज्ञा


कौड़ियाला
एक विषैला साँप जिस पर कौड़ी की तरह की चित्तियाँ होती हैं।
संज्ञा


कौड़ियाला
कंजूस धनी जो साँप की तरह रुपए पर बैठा रहे, खर्चे नहीं।
संज्ञा


कौड़ियाला
एक पौधा।
संज्ञा


कौड़िल्ला
किलकिला नाम की चिड़िया।
संज्ञा
[हिं. कौड़ी]


कौड़िल्ला
एक पौधा।
संज्ञा
[हिं. कौड़ी]


कौड़ी
एक समुद्री कीड़े का अस्थिकोष।
संज्ञा
[सं. कपर्दिका, प्रा. कवड़डिआ]


कौड़ी
कौड़ी का- जिसका कुछ दाम न हो, बहुत मामूली।

कौड़ी के तीन तीन- बहुत सस्ता। कौड़ी हू न लहै - कौड़ी को न लेना या पूछना, बिलकुल निकम्मा समझना, कुछ भी कदर न करना। उ- सूरदास स्वामी बिनु गोकुल कौड़ी हू न लहै - २७११। कौड़ी - कौड़ी करि- एक एक कौड़ी (जैसे पाई, पाई), कुछ भी न छोड़ना, जरा भी रियायत न करना। उ- दान लेहुँ कौड़ी कौड़ी करि बैर आपने लैहों - ११२५। कौड़ी कौड़ी को मुहताज- बहुत ही गरीब। कौड़ी कौड़ी चुकाना, भरना- पाई पाई अदा कर देना। कौड़ी फेरा करना- जरा जरा सी बात के लिए दौड़े आना। कौड़ी भर- बहुत जरा सा। कानी, झंझी या फूटी कौड़ी- (१) टूटी हुई कौड़ी। (२) बहुत थोड़ा धन। कौड़ी लगि मग की रज छानत- कौड़ी के लिए मारे मारे फिरना, तुच्छ वस्तु के लिए बहुत परिश्रम करना। उ- सब सुख निधि हरिनाम महामुनि, सो पापहुँ नहिं पहिचानत। परम कुबुद्धि तुच्छ रस लोभी, कौड़ी लगि मग की रज छानत - १ - ११४। कौड़ी कौड़ी जोड़त- बहुत कष्ट से थोड़ा थोड़ा धन जोड़ता है। उ.- लंपट, धूत, पूत दमरी कौ, कौड़ी कौड़ी जोरै। कृपन, सूम, नहिं खाइ खवावै, खाइ मारि के औरै - १ - १८६।

मु.


कौड़ी
धन, रुपया-पैसा।
संज्ञा
[सं. कपर्दिका, प्रा. कवड़डिआ]


कौड़ी
अधीन राजाओं से लिया जानेवाली कर।
संज्ञा
[सं. कपर्दिका, प्रा. कवड़डिआ]


कौतूह, कौतूहल
प्रसन्नता, आनंद।
सुर नर मुनि फूले, झूलत देखत नंदकुमार - १० - ८४।
संज्ञा
[सं .]


कौतूहलता
कौतुक, कुतूहल।
संज्ञा
[हिं. कुतूहल]


कौत्स
कुत्स ऋषि के एक शिष्य।
संज्ञा
[सं.]


कौत्स
कुत्‍स कृत साम-गान।
संज्ञा
[सं.]


कौक
कौन सी तिथि ?
संज्ञा
[हिं. कौन+तिथि]


कौक
कौन संबंध ?
संज्ञा
[हिं. कौन+तिथि]


कौथा
कौन सा ? गणना में किस संख्या या स्थान का।
वि.
[हिं. कौन+सं. स्था (स्थान)]


कौधनी
करधनी।
संज्ञा
[सं. किंकिणी]


कौन
एक प्रश्नवाच सर्व.नाम जिसका प्रयोग व्यक्ति या वस्तु के संबंध में परिचय पाने के लिए किया जाता है।
सर्व.
[सं. कः, किम्, प्रा. कवण]


कौन
किस जाति का ? किस प्रकार का ?
वि.


कठिनता, कठिनताई
निर्दयता, कठोरता।
संज्ञा
[सं. कठिन]


कठिनता, कठिनताई
मजबूती, दृढ़ता।
संज्ञा
[सं. कठिन]


कठिनाई
मुश्किल, जबरदस्ती, हठ।
ऊधौ जो तुम हमहिं बतायौ। सो हम निपट कठिनई करि-करि या मन कौ समझायौ - ३३८५।
संज्ञा
[हिं. कठिन + आई (प्रत्य.)]


कठुला
बच्चों के गले में पहनाने की एक माला जिसमें चाँदी, सोने की चौकियों के साथ बाघ के नख, नजर से बचाने की ताबीज आदि गुथे रहते हैं। विश्वास है कि इसको पहनाने से बच्चे को नजर नहीं लगती।
कठुला कंठ बज्र केहरि-नख, मसि-बिंदुका सु मृग-मद भाल। देखत देत असीस नारि-नर, चिरजीवौ जसुदा तेरौ लाल - - १० - ८४।
संज्ञा
[हिं. कंठ+ला (प्रत्य.) - कठला]


कठेठ
कड़ा, कठोर, सख्त।
वि.
[सं. कंठ+एठ (प्रत्‍य.)]


कठेठ
बली, बलवान।
वि.
[सं. कंठ+एठ (प्रत्‍य.)]


कठेठी
कड़ी, कठोर, सख्त।
वि.
[हिं. कठेठा]


कठेठी
बलवाली।
वि.
[हिं. कठेठा]


कठोर
कड़ा, सख्त।
केस ओर निहार फिर फिर तकत उरज कठोर - - सा. ३४।
वि.
[सं.]


कठोर
निर्दयी, निठुर।
केस गहे अरि कंस पछरिहौं। असुर कठोर जमुन लै डरिहौं–११६१।
वि.
[सं.]


कौपीन
पाप।
संज्ञा
[सं.]


कौपीन
बुरा काम।
संज्ञा
[सं.]


कौम
जाति, वर्ण।
संज्ञा
[अ.]


कौमकुल
एक केतु तारा।
संज्ञा
[सं.]


कौमकुल
रक्त, खून।
संज्ञा
[सं.]


कौमार
पाँच वर्ष तक की कुमारअवस्था।
संज्ञा
[सं.]


कौमार
कुमार।
संज्ञा
[सं.]


कौमारभृत्य
बाल-चिकित्सा शास्त्र।
संज्ञा
[सं.]


कौमारी
पहली पत्नी।
संज्ञा
[सं.]


कौमारी
कार्तिकेय की शक्ति।
संज्ञा
[सं.]


कौनप
राक्षस।
संज्ञा
[सं. कणप]


कौनप
एक सर्प।
संज्ञा
[सं. कणप]


कौना
किसे, किसको।
नटवर अंग सुभ सजे सजौना। त्रिभुवन में बस कियो न कौना। सूर नन्द सुत मदन-लजौना - २४२१।
सर्व.
[हिं. कौन]


कौनी
किस, किसी।
कहा करौं कौन भाँति मरौं मन धीरज न धरै–२७८३।
वि.
[हिं. कौन]


कौनै
कौन, किस।
मेरैं संग आइ दोउ बैठे, उन बिनु भोजन कौने काम - १० - २३५।
वि.
[हिं. कौन]


कौनेहुँ
किसी भी प्रकार से।
कौनेहु भाव भजै कोउ हमकौ, तिन तनताप हरै री - ७८७।
वि.
[हिं. कौन]


कौनैं
कौनने, किसने।
वि.
[हिं. कौन]


कौनैं
क्या क्या।
उद्यम कहा होत लंका कौं कौनैं कियौ उपाय - - ९ - १२१।
वि.
[हिं. कौन]


कौपीन
साधुओं की लँगोटी।
संज्ञा
[सं.]


कौपीन
कौपीन से ढके शरीर के भाग।
संज्ञा
[सं.]


कौरा
आग तापने का अलाव।
संज्ञा
[हिं. कौड़ा]


कौरी
गोद, अँकवार।
संज्ञा
[सं. क्रोड़]


कौरी
आलिंगन।
संज्ञा
[सं. क्रोड़]


कौरी
कौरी भर कर मिलना- सस्नेह आलिंगन करना। उ.- पाछे ते ललिता चन्दावलि हरि पकरे भुज भरि कौरी की - २४०५।
मु.


कौरी
एक मिठाई।
(क) पेठा पाक, जलेबी, कौरी। गोंद पाक, तिनगरी, गिंदौरी - ३९६। (ख) पूरि सपूरि कचौरी कौरी। सदल सु उज्ज्वल सुन्दर सौरी - २३२१।
संज्ञा


कौरे
एक गली फल।
संज्ञा
[हिं. कौड़ा]


कौरे
द्वार का कोना।
संज्ञा
[हिं. क्रोड़]


कौरे
कौरे लगना- (१) दूसरे की बात सुनने या अन्य किसी घात में छिपकर द्वार के पीछे खड़े होना। उ.- मन जिनि सुनै बात यह माई। कौरे लग्यौ कितहूँ कहि दैहै सो जाई। (२) मुँह फुला कर या रूठकर द्वार के कोने में खड़ा होना।
मु.


कौरे
भूने,सेंके।
कुंदरू और ककोरा कौरे। कचरी चार कचेंडा सौरे - २३२१।
क्रि. स.
[हिं. कोरना]


कौरै
द्वार का कोना।
संज्ञा
[हिं. कौरा]


कौमारी
पार्वती का एक नाम।
संज्ञा
[सं.]


कौमी
जातीय।
वि.
[अ. क़ौम]


कौमी
राष्ट्रीय।
वि.
[अ. क़ौम]


कौमुद
कातिक मास।
संज्ञा
[सं.]


कौमुदी
चाँदी, ज्योत्सना।
संज्ञा
[सं .]


कौमुदी
कार्तिकी पूर्णिमा।
संज्ञा
[सं .]


कौमुदी
कार्तिकी पूर्णिमा का उत्सव।
संज्ञा
[सं .]


कौमुदी
कुमुदिनी।
संज्ञा
[सं .]


कौमोदकी, कौमोदी
विष्णु की गदा।
संज्ञा
[सं.]


कौर
ग्रास, गस्सा,निवाला।
(क) कौर-कौर कारन कुबुद्धि, जड़, किते सहत अपमान। जहँ-जहँ जात तहीं तहिं त्रासत अस्म, लकुट पदत्रान - १ - १०३। (ख) तब आपुन कर कौर उठायौ - २३२१।
संज्ञा
[सं. कवल]


कौर
मुँह का कौर छीनना- किसी का हिस्सा मार लेना।
मु.


कौर
अन्न का वह भाग जो चक्की में पिसने के लिए एक बार में डाला जाय।
संज्ञा
[सं. कवल]


कौरना
भूनना, सेंकना।
क्रि. स.
[हिं. कौड़ा]


कौरनि
कोने-कोने में, कोने की दीवार पर।
कौरनि सथिया चीततिं नवनिधि - १० - ३२।
संज्ञा
[हिं. कौरा+ हिं. नि (प्रत्य.)]


कौरव
कुरु राजा की संतान, दुर्योधन और उसके भाई।
संज्ञा
[सं.]


कौरव
कुरु सम्बन्धी।
वि.


कौरवपति
दुर्योधन।
संज्ञा
[सं.]


कौरव्य
कौरव।
संज्ञा
[सं.]


कौरा
द्वार का कोना।
संज्ञा
[सं. कोल, क्रोड़]


कौरा
बड़ी कौड़ी।
संज्ञा
[हिं. कौड़ा]


कौवा
गले की घाँटी, लंगर, ललरी।
संज्ञा
[सं. काक, प्रा. काओ]


कौवाल
मुसलमानी गवैयों की एक जाति।
संज्ञा
[अ. क़ौवाल]


कौवाली
कौवालों का गाना।
संज्ञा
[अ. क़ौवाली]


कौवाली
कौवालों का पेशा।
संज्ञा
[अ. क़ौवाली]


कौश
कुश नामक द्वीप।
संज्ञा
[सं.]


कौश
रेशमी वस्त्र।
संज्ञा
[सं.]


कौशल
कुशलता।
संज्ञा
[सं.]


कौशल
कोशल देशवासी।
संज्ञा
[सं.]


कौशलेय
कौशल्या का पुत्र, राम।
संज्ञा
[सं .]


कौशल्या
राजा दशरथ की पत्नी जो राम की माता थी।
संज्ञा
[सं.]


कौल
सेना की छावनी का मध्य भाग।
संज्ञा
[तु. करावल]


कौल
कथन, वाक्य।
संज्ञा
[अ.]


कौल
प्रतिज्ञा, प्रण।
संज्ञा
[अ.]


कौल
कौल-करार - दृढ़ निश्चय।
यौ.


कौला, कौले
द्वार का कोना, कौरा।
संज्ञा
[सं. कोल=क्रोड़, गोद ; हिं. कौरा]


कौला, कौले
कौले लगना- द्वार के कोने में छिपना।

कौला सींचना- पूजा आदि अवसरों पर द्वार के इधर-उधर पानी छिड़कना।

मु.


कौला, कौले
पाखा।
संज्ञा
[सं. कोल=क्रोड़, गोद ; हिं. कौरा]


कौलौं
कब तक, किस समय तक।
धिक तुम, धिक या कहिबे ऊपर। जीवित रहिहौ कौलौं भूपर - १ - २८४।
क्रि. वि.
[हिं. कौ=कौन या कब + लौं=तक]


कौवा
एक काला पक्षी, कौआ, काग।
संज्ञा
[सं. काक, प्रा. काओ]


कौवा
काँइयाँ आदमी।
संज्ञा
[सं. काक, प्रा. काओ]


कौरै
कौरैं लागी- पकड़ने की घात में थी, उसके पीछे लगी थी। उ.- माखन - चोर री मैं पायौ। बहुत दिवस मैं कोरैं लागी, मेरी घात न आयौ - १० - २८८।
मु.


कौरै
अँकवार, गोद।
स्त्री.
[हिं. कौरी]


कौरै
आलिंगन, छाती से लगना।
स्त्री.
[हिं. कौरी]


कौरै
कोरै लग्यौ होइगो- छाती से लगा होगा, आलिंगित होगा। उ.- मन जिनि सुनै बात यह माई। कौरै लग्यौ होइगो कितहूँ कहि दैहै को जाई - १६६५।
मु.


कौरौ
कुरुवंशी, कौरव।
क्यों विस्वास करहिगो कौरौ सुनि प्रभु कठिन क्रीती - ११ - ३।
संज्ञा
[सं. कौरव]


कौरो-दल
कौरवों की सेना।
संज्ञा
[सं. कौरव+दल]


कौल
उत्तम कुल का।
संज्ञा
[सं.]


कौल
कमल।
संज्ञा
[सं. कमल]


कौल
कौर, ग्रास।
संज्ञा
[सं. कवल]


कौल
एक तरह का गाना।
संज्ञा
[देश.]


कौशिकी
एक रागिनी।
संज्ञा
[सं.]


कौशिकी
काव्य में एक वृत्ति।
संज्ञा
[सं.]


कौशिल्या
राजा दशरथ की पत्नी जो राम की माता थी।
संज्ञा
[सं. कौशल्या]


कौषिकी
एक देवी, चंडिका।
संज्ञा
[सं. कौशिकी]


कौषेय
रेशमी।
वि.
[सं.]


कौषेय
रेशमी कपड़ा।
संज्ञा


कौसल
चतुरता।
संज्ञा
[सं. कौशल]


कौसल
कोशल देशवासी।
संज्ञा
[सं. कौशल]


कौसलनरेस
श्रीरामचंद्रजी।
संज्ञा
[सं. कोशलनरेश]


कौसल्या
राजा दशरथ की बड़ी रानी जो राम की माता थी।
संज्ञा
[सं. कौशिल्या]


कौशल्या
धृतराष्ट्र की माता।
संज्ञा
[सं.]


कौशल्या
पाँच बत्ती की आरती।
संज्ञा
[सं.]


कौशिक
इंद्र।
संज्ञा
[सं.]


कौशिक
कुशिक राजा के पुत्र गाधि।
संज्ञा
[सं.]


कौशिक
कुशिक राजा के वंशज विश्वामित्र।
संज्ञा
[सं.]


कौशिक
कोशाध्यक्ष।
संज्ञा
[सं.]


कौशिक
कोशकार।
संज्ञा
[सं.]


कौशिक
एक राग।
संज्ञा
[सं.]


कौशिकी
चंडिक।
संज्ञा
[सं.]


कौशिकी
कोसी नदी।
संज्ञा
[सं.]


कठोरता, कठोरताई
कड़ापन,सख्ती।
संज्ञा
[सं.]


कठोरता, कठोरताई
निर्दयता, निठुरता।
संज्ञा
[सं.]


कठोरपन
कठोरता।
संज्ञा
[हिं. कठोर+पन (प्रत्य.)]


कठोरपन
निर्दयता।
संज्ञा
[हिं. कठोर+पन (प्रत्य.)]


कठोरी
कठोर, कड़ा।
दै दै दगा बुलाइ भवन मैं भुज भरि भेंटति उरज-कठोरी - - १० - ३०५।
वि.
[सं. कठोर]


कठौता
काठ का एक पात्र जो परात से ऊँचा होता है।
संज्ञा
[हिं. काठ+औता (प्रत्य.)]


कठौती
छोटा कठौता।
संज्ञा
[हिं. कठौता]


कड़क
कड़कड़ाहट का शब्द।
संज्ञा
[हिं. कड़कड़]


कड़क
कड़कने की क्रिया या भाव।
संज्ञा
[हिं. कड़कड़]


कड़क
गाज, बजु।
संज्ञा
[हिं. कड़कड़]


कौसिक
इंद्र।
संज्ञा
[सं. कौशिक]


कौसिक
विश्वामित्र।
संज्ञा
[सं. कौशिक]


कौसिया
एक संकर रग।
संज्ञा
[देश.]


कौसिला
कौशल्या जो राजा दशरथ की पत्नी और राम की माता थी।
रामहिं राखौ कोऊ जाइ। जब लगि भरत अजोध्या आवैं, कहति कौसिला माई - ९ - ४७।
संज्ञा
[सं. कौशल्या]


कौसिल्या
राजा दशरथ की पत्नी जो राम की माता थी।
संज्ञा
[सं. कौशल्या]


कौसुंभ
जंगली कुसुम।
संज्ञा
[सं.]


कौसुंभ
एक साग।
संज्ञा
[सं.]


कौस्तुभ
समुद्र से निकला हुआ एक रत्न जिसे विष्णु अपने वक्षस्थल पर धारण किये रहते हैं।
संज्ञा
[सं.]


कौस्तुभ
एक प्रकार की मणि।
संज्ञा
[सं.]


कौस्तुभ-मनि-धर
कौस्तुभ मनि को धारण करनेवाले विष्णु का अवतार श्रीकृष्ण।
कंबु कंठ-धर कौस्तुभ-मनि-धर बनमालाधर मुक्त-माल-धर - ५७२।
संज्ञा
[सं.]


कौह
अर्जुन वृक्ष।
संज्ञा
[सं. ककुभ]


कौहर
इंद्रायन।
संज्ञा
[देश.]


क्या
एक प्रश्नवाचक सर्व.नाम।
सर्व.
[सं. किम्]


क्या
क्या कहना है- (१) बहुत अच्छा है। (२) बहुत बुरा है (व्यंग्य)।

क्या क्या - बहुत कुछ। (किसी की) क्या चलाना- बराबरी न कर पाना। क्या जाता है- क्या हानि होती है। क्या पड़ना- कुछ गरज न होना। क्या से क्या हो गया- दशा बिलकुल बदल गयी। क्या समझते (गिनते) हैं- कुछ नहीं गिनते। (तो) फिर क्या है- (तो) बड़ा अच्छा हो जाय।

मु.


क्या
कितना।
वि.


क्या
इतना (ऐसा) ज्यादा।
वि.


क्या
विचित्र, अद्भुत।
वि.


क्या
बहुत अच्छा।
वि.


क्या
किस लिए ? किस कारण ?
क्रि. वि.


क्या
ऐसा क्या- इसकी क्या जरूरत है ?

क्या क्या चले- इतनी जल्दी जाने की क्या जरूरत है ?

मु.


क्या
नहीं।
क्रि. वि.


क्या
केवल प्रश्नसूचक अव्यय।
अव्य.


क्या
क्या आग में डालूँ- यह मेरे किस काम का है ?
मु.


क्यार
पेड़ का थाला।
संज्ञा
[सं. केदार]


क्यारी
बाग या खेतों के मेड़ों की बीच की गहरी जमीन जिसमें पेड़ों की पंक्तियाँ लगायी जाती हैं।
संज्ञा
[हिं. कियारी]


क्यों, क्यौं
किस कारण ? किस लिए’ ?
क्रि. वि.
[सं. किम्, हिं. क्यों]


क्यों, क्यौं
क्योंकर- किस प्रकार।

क्यों नहीं- (१) ठीक है (समर्थन में)। (२) हाँ, जरूर (स्वीकृति सूचक)। (३) ठीक नहीं है (व्यंग्य)। (४) कभी नहीं (व्यंग्य)। क्यों न हो- (१) बहुत खूब (प्रशंसात्मक)। बहुत बुरा (व्यंग्य)।

मु.


क्यों, क्यौं
किस प्रकार, कैसे।
क्रि. वि.
[सं. किम्, हिं. क्यों]


क्रंदन
रोना, विलाप।
संज्ञा
[सं.]


क्रंदन
वीरों का आह्वान।
संज्ञा
[सं.]


क्रकच
करील का पेड़।
संज्ञा
[सं.]


क्रकच
आरा।
संज्ञा
[सं.]


क्रकच
एक बाजा।
संज्ञा
[सं.]


क्रकच
एक नरक।
संज्ञा
[सं.]


क्रकवा
केतकी।
संज्ञा
[सं.]


क्रकर
करील का पेड़।
संज्ञा
[सं.]


क्रकर
किलकिला चिड़िया।
संज्ञा
[सं.]


क्रकर
आरा।
संज्ञा
[सं.]


क्रकर
दरिद्र।
संज्ञा
[सं.]


क्रतु
दृढ़ संकल्प।
संज्ञा
[सं.]


क्रतु
इच्छा।
संज्ञा
[सं.]


क्रतु
विवेक।
संज्ञा
[सं.]


क्रतु
जीव।
संज्ञा
[सं.]


क्रतु
विष्णु।
संज्ञा
[सं.]


क्रतु
अश्वमेध।
संज्ञा
[सं.]


क्रतु
कृष्ण का एक पुत्र।
संज्ञा
[सं.]


क्रप
दयालु।
संज्ञा
[सं.]


क्रप
कृपाचार्य।
संज्ञा
[सं.]


क्रम
डग भरने की क्रिया।
संज्ञा
[सं.]


क्रम
वस्तुओं या कार्यों का सिलसिला।
संज्ञा
[सं.]


क्रमशः
थोड़ा थोड़ा।
क्रि. वि.
[सं.]


क्रमसंख्या
एक क्रम से लिखी हुई संख्या।
संज्ञा
[सं.]


क्रमांक
एक क्रम से लिखे जानेवाले अंक।
संज्ञा
[सं.]


क्रमागत
धीरे धीरे किसी रूप को प्राप्त।
वि.
[सं.]


क्रमागत
जो सदा से होता आया हो, परंपरागत।
वि.
[सं.]


क्रमात्‌
सिलसिले से।
क्रि. वि.
[सं.]


क्रमात्‌
सिलसिले से आगे।
क्रि. वि.
[सं.]


क्रमात्‌
धीरे धीरे।
क्रि. वि.
[सं.]


क्रमानुकूल
सिलसिलेवार।
क्रि. वि.
[सं. क्रम+अनुकूल]


क्रमानुसार
सिलसिलेवार।
क्रि. वि.
[सं. क्रम+अनुसार]


क्रम
धीरे धीरे काम करने की प्रणाली।
संज्ञा
[सं.]


क्रम
क्रम क्रम करके- धीरे धीरे, शनैः शनैः। उ. - (क) लरखरात गिरि परति हैं, चलि घुटुरुनि धावैं। पुनि क्रम-क्रम भुज टेकि कै, पग द्वैक चलावैं - १० - ११२। (ख) जो कोउ दूरि चलन को करै। क्रम क्रम करि डग डग पग धरै। क्रम से, कम क्रम से - - धीरे धीरे।
मु.


क्रम
कार्य-संपादन की व्यवस्था।
संज्ञा
[सं.]


क्रम
वामन का एक नाम।
संज्ञा
[सं.]


क्रम
एक काव्यालंकार।
संज्ञा
[सं.]


क्रम
कर्म, प्रयत्न, श्रम।
अगम सिंधु जतननि सजि नौका, हठि क्रम भार भरत। सूरदास-व्रत यहै, कृष्ण भजि, भव-जलनिधि उतरत - १ - ५५।
संज्ञा
[सं.]


क्रम
कार्य, कृत्य।
संज्ञा
[सं. कर्म]


क्रमण
पैर।
संज्ञा
[सं.]


क्रमनासा
कर्मनाशा नदी।
संज्ञा
[सं. कर्मनाश]


क्रमशः
सिलसिलेवार।
क्रि. वि.
[सं.]


क्रमान्वय
एक के बाद एक।
क्रि. वि.
[सं. क्रम+अन्वय]


क्रमि
कीड़ा।
संज्ञा
[सं.]


क्रमि
पेट का एक रोग।
संज्ञा
[सं.]


क्रमिक
जो धीरे-धीरे हुआ हो।
क्रि. वि.
[सं.]


क्रमिक
जो सदा से होता आया हो।
क्रि. वि.
[सं.]


क्रमुक
सुपारी का पेड़।
संज्ञा
[सं.]


क्रमुक
कपास का फल।
संज्ञा
[सं.]


क्रमै
क्रम, नियम, पूर्वापर-संबंधी व्यवस्था, सिलसिला।
भ्रम-मद मत्त, काम-तृष्ना-रस-बेग, न क्रमै गह्यौ। सूर एक पल गहरु न कीन्ह्यौ, किहिं जुग इतौ सह्यौ - १ - ४९।
संज्ञा
[सं. क्रम+ऐ (प्रत्य.)]


क्रय
खरीदना, मोल लेना।
संज्ञा
[सं.]


क्रयी
खरीदार।
संज्ञा
[सं. क्रयिन]


क्रय्‍य
जो बेचने के लिए हो।
वि.
[सं.]


क्रवान
तलवार।
संज्ञा
[हिं. फिरवान]


क्रव्य
मांस।
संज्ञा
[सं.]


क्रव्याद
मांसाहारी जीव।
संज्ञा
[सं.]


क्रव्याद
राक्षस।
संज्ञा
[सं.]


क्रांत
दबा या ढका हुआ।
वि.
[सं.]


क्रांत
जो ग्रस्त हो।
वि.
[सं.]


क्रांत
आगे बढ़ा हुआ।
वि.
[सं.]


क्रांत
घोड़ा।
संज्ञा


क्रांत
पैर।
संज्ञा


क्रांति
गमन, गति।
संज्ञा
[सं.]


क्रांति
एक कल्पित वृक्ष जिस पर सूर्य पृथ्वी के चारो ओर घूमता जान पड़ता है।
संज्ञा
[सं.]


क्रांति
एक स्थिति से दूसरी में परिवर्तन, उलटफेर।
संज्ञा
[सं.]


क्रांतिमंडल
एक वृत्त जिस पर सूर्य पृथ्वी की परिक्रमा करता जान पड़ता है।
संज्ञा
[सं.]


क्राथ
हिंसा करने की क्रिया।
संज्ञा
[सं.]


क्राथ
राम की सेना का एक बंदर।
संज्ञा
[सं.]


क्राथ
धृतराष्ट्र का एक पुत्र।
संज्ञा
[सं.]


क्राथ
एक राजा जो बाहूग्रह का अवतार माना जाता है।
संज्ञा
[सं.]


क्रिमि
कीड़ी।
संज्ञा
[सं. कृमि]


क्रिमि
पेट का एक रोग।
संज्ञा
[सं. कृमि]


कड़क
रुक-रुक कर उठनेवाला दर्द, कसक।
संज्ञा
[हिं. कड़कड़]


कड़कड़ाना
घी को आँच पर तपाना।
क्रि. स.
[अनु.]


कड़कना
कड़कड़' शब्द करना।
क्रि. अ.
[हिं. कड़कड़]


कड़कना
गरजना, तड़पना।
क्रि. अ.
[हिं. कड़कड़]


कड़कना
फटना, दरकना।
क्रि. अ.
[हिं. कड़कड़]


कड़खा
ओजपूर्ण प्रशंसात्मक गीत जिन्हें सुनकर युद्ध में जानेवाले वीर उत्तेजित हो जाते हैं।
संज्ञा
[हिं. कड़क]


कड़खैत
कड़खा गानेवाले।
संज्ञा
[हिं. कड़खा+ऐत(प्रत्य.)]


कड़खैत
भाट, चारण।
संज्ञा
[हिं. कड़खा+ऐत(प्रत्य.)]


कड़ा
हाथ-पैर का एक गहना।
संज्ञा
[सं. कटक]


कड़ा
धातु का गोल छल्ला या कुंडा।
संज्ञा
[सं. कटक]


क्रियमाण
वह जो किया जा रहा हो।
संज्ञा
[सं.]


क्रियमाण
एक प्रकार का कर्म।
संज्ञा
[सं.]


क्रिया
किसी काम का होना, कर्म।
संज्ञा
[सं.]


क्रिया
प्रयत्न, चेष्टा।
संज्ञा
[सं.]


क्रिया
आरंभ।
संज्ञा
[सं.]


क्रिया
व्याकरण का एक अंग।
संज्ञा
[सं.]


क्रिया
श्राद्ध आदि प्रेत कर्म।
हरि के देखत तजे परान। तासु क्रिया करि सब गृह आए। राजा सिंहासन बैठाए - १ - २८०।
संज्ञा
[सं.]


क्रिया
क्रिया-कर्म - मृतक कर्म।
यौ.


क्रिया
नित्यकर्म।
संज्ञा
[सं.]


क्रिया
उपाय।
संज्ञा
[सं.]


क्रियात्मक
क्रिया-सम्बन्धी।
वि.
[सं.]


क्रियात्मक
क्रिया के रूप में प्रस्तुत किया हुआ।
वि.
[सं.]


क्रियानिष्ठ
संध्या, तर्पण आदि नित्यकर्म विधि-विधान से करनेवाला।
वि.
[सं.]


क्रियापंथ
कर्मकांड।
क्रिया पंथ स्रुति ने जो भाख्यौ सो सब असुर मिटायौ। बृहद् भानु ह्वै कै हरि प्रगटे छन में फिर प्रगटायौ।
संज्ञा
[सं]


क्रियावान्‌
कर्मनिष्ठ, कर्मठ।
वि.
[सं.]


क्रियाविशेषण
वह शब्द जिससे क्रिया के काल, भाव या रीति का पता चले।
संज्ञा
[सं.]


क्रीट
किरीट नाम का सिर का आभूषण।
क्रीट मुकुट सोभा बनी सुभ अंग बनी बनमाल। सूरदास प्रभु गोकुल जनमे, मोहन मदन गोपाल।
संज्ञा
[सं. किरीट]


क्रीड़त
क्रीड़ा करता है, आमोद-प्रमोद में मग्न रहता है।
(क) निकट आयुध बधिक धारे, करत तीच्छन धार। अजा-नायक मगन क्रीड़त, चरत बारम्बार - १ - ३२१।

(ख) सुधा-सर जनु मकर क्रीड़त - ६२७।

संज्ञा
[सं.]


क्रीड़ना
क्रीड़ा करना।
संज्ञा
[सं.]


क्रीड़ना
आमोद-प्रमोद।
संज्ञा
[सं.]


क्रीड़नक
खिलौना।
संज्ञा
[हिं. क्रीड़ा]


क्रीड़ना
खेलना-कूदना, आमोद प्रमोद करना।
संज्ञा
[सं.क्रीड़ा]


क्रीड़ा
खेल, केलि, आमोद प्रमोद।
संज्ञा
[सं.]


क्रीड़ा
लीला।
एहि थर बनी क्रीड़ा गज-मोचन और अनंत कथा स्रुति गाई - १६
संज्ञा
[सं.]


क्रीड़ा
एक वृत्‍त।
संज्ञा
[सं.]


क्रीड़ाचक्र
एक वृत्त।
संज्ञा
[सं.]


क्रीड़ाथल
खेल-कूद या लीला का स्थान।
संज्ञा
[सं. क्रीड़ास्थल]


क्रीड़ारथ
फूलों का रथ।
संज्ञा
[सं.]


क्रीड़ाशैल
बनावटी पहाड़।
संज्ञा
[सं.]


क्रीड़ास्थल
क्रीड़ा या लीला का स्थान।
संज्ञा
[सं.]


क्रीड़ित
वह व्यक्ति जिसने क्रीड़ा की हो।
वि.
[सं. क्रीड़ा]


क्रीड़ै
कल्लोलते हैं, आमोद-प्रमोद करते हैं, खेल मचाते हैं।
एक बिरध-किसो बालक, एक जोबन जोग। कृष्‍न जन्म सु प्रेमसागर, क्रीड़ैं सब ब्रज लोग - १० - २६।
क्रि. अ.
[सं. क्रीड़ा, हिं. क्रीड़न]


क्रीत
खरीदा या मोल लिया हुआ।
वि.
[सं.]


क्रीत
मोल लिया हुआ पुत्र।
संज्ञा
[सं.]


क्रीत
मोल लिया हुआ दास।
संज्ञा
[सं.]


क्रीत
यश, कीर्ति।
सुनौ धौं दै कान अपनी लोक लोकनि क्रीत (क्रीती)। सूर प्रभु अपनी खचाई रही निगमनि जीत - ३४७६।
संज्ञा
[सं. कीर्ति]


क्रीतक
खरीदा हुआ पुत्र।
संज्ञा
[सं.]


क्रीति, क्रीती
यश, कीर्ति, सुनाम।
(क) वै सब परम बिचित्र सयानी अरु सब ही जग क्रीति - ३४७८। (ख) हौं कहा कहौं सूर के प्रभु निगम करत जाकी क्रीति - १० उ. - १७५।

(ग) क्यों विश्वास करहिंगो कौरौ सुनि प्रभु कठिन क्रीती - ११ - ३।

संज्ञा
[सं. कीर्ति]


क्रीला
लीला, केलि, खेलकूद, आमोद-प्रमोद।
सूरदास प्रभु की यह लीला। सदा करत ब्रज मैं यह क्रीला - १०२८।
संज्ञा
[सं. क्रीड़ा]


क्रुद्ध
कोपयुक्त, क्रोध में भरा हुआ।
वि.
[सं.]


क्रमुक
सुपारी।
संज्ञा
[सं.]


क्रुश्वा
सियार, गीदड़।
संज्ञा
[सं.]


क्रूर
दूसरों को कष्ट देनेवाला।
वि.
[सं.]


क्रूर
निर्दय, कठोर।
सूर नृप क्रूर अक्रूर क्रूरै भयौ धनुष देखन कहत कपटी महा है - १५०३।
वि.
[सं.]


क्रूर
कठिन।
वि.
[सं.]


क्रूर
तीखा, तीक्ष्ण।
वि.
[सं.]


क्रूर
गरम।
वि.
[सं.]


क्रूर
बुरा,नीच।
वि.
[सं.]


क्रूर
घोर।
वि.
[सं.]


क्रूर
पका हुआ चावल।
संज्ञा
[सं.]


क्रूर
लाल कनेर।
संज्ञा
[सं.]


क्रूर
बाज पक्षी।
संज्ञा
[सं.]


क्रूर
सफेद चील।
संज्ञा
[सं.]


क्रूर
विषम राशियाँ।
संज्ञा
[सं.]


क्रूर
रवि, मंगल, शनि, राहु और केतु ग्रह जिनसे युक्त तिथि या नक्षत्र में शुभ कार्य वर्जित हैं।
संज्ञा
[सं.]


क्रूर
अक्रूर जो श्रीकृष्ण के चाचा थे और कंस की आज्ञा से उन्हें मथुरा ले गये थे।
आप क्रूर लै चले स्याम को हित नाही कोउ हरि कै - २५२९।
संज्ञा
[सं. अक्रूर]


क्रूरकर्मा
नीच या कठोर कर्म करनेवाला।
संज्ञा
[सं.]


क्रूरकर्मा
सुरजमुखी।
संज्ञा
[सं.]


क्रूरगंध
गंधक।
संज्ञा
[सं.]


क्रूरता
निर्दयता, कठोरता।
संज्ञा
[सं.]


क्रूरता
नीचता, दुष्टता |
संज्ञा
[सं.]


क्रूरा
दुष्ट स्वभाववाली।
वि.
[सं.]


कूरात्मा
दुष्ट स्वभावाला।
वि.
[सं.]


क्रूरै
अधिक कठोर, बहुत निर्दयी।
सूर नृप क्रूर अक्रूर क्रूरै भयो धनुष देखन कहत कपटी महा है - २५०३।
वि.
[सं. क्रूर]


क्रेता
खरीदार, मोल लेनेवाला।
संज्ञा
[सं.]


क्रोंच
क्रौंच पर्वत।
संज्ञा
[सं.]


क्रोड़
दोनों बाहों के बीच का (छाती का) भाग।
संज्ञा
[सं.]


क्रोड़
गोद, अँकवार।
संज्ञा
[सं.]


क्रोड़पत्र
अतिरिक्त या पूरक पत्र।
संज्ञा
[सं.]


क्रोध
कोप, रोष, गुस्सा।
संज्ञा
[सं.]


क्रौंच
सात द्वीपों में एक।
सातों द्वीप जे कहे सुक मुनि ने सोई कहत अब सूर। जंबु प्लक्ष क्रौंच शाक शाल्मलि कुश पुष्कर भरपूर - सार.३४।
संज्ञा
[सं.]


क्रौंच
एक राक्षस।
संज्ञा
[सं.]


क्रौंच
एक अस्त्र।
संज्ञा
[सं.]


क्‍लांत
थका हुआ।
वि.
[सं.]


क्‍लांति
थकावट।
संज्ञा
[सं.]


क्‍लांति
परिश्रम।
संज्ञा
[सं.]


क्लिशित
जिसे बहुत दुख हुआ हो।
वि.
[सं.]


क्लिष्ट
दुखी।
वि.
[सं.]


क्लिष्ट
कठिन, मुश्किल से समझ में आनेवाली।
वि.
[सं.]


क्लिष्ट
जो सरलता से सिद्ध या सत्य न हो सके।
वि.
[सं.]


क्रोधज
क्रोध से उत्पन्न, मोह।
संज्ञा
[सं.]


क्रोधमान
गुस्से में भरा हुआ, क्रोधित।
खंभ फारि, गल गाजि मत्तबल, क्रोधमान छबि बरनि न आई। नैन अरुन, बिकराल दसन अति, नख सौं हृदय विदारय्यौ जाई - ७४।
संज्ञा
[सं. क्रोध+मान]


क्रोधवंत
गुस्से में भरा हुआ।
मांडव धर्मराज पै आयौ। क्रोधवन्त यह बचन सुनायौ - ३ - ५।
वि.
[हिं. क्रोध+वंत=वाला]


क्रोधवश
क्रोध में।
क्रि. वि.
[सं.]


क्रोधवश
एक राक्षस।
संज्ञा
[सं.]


क्रोधवश
एक साँप।
संज्ञा
[सं.]


क्रोधा
कोप, गुस्सा।
कोटि कोटि तिनके सँग जोधा। को जीतै तिनके तनु क्रोधा - २४५९।
संज्ञा
[सं. क्रोध]


क्रोधित
कुपित, क्रुद्ध।
वि.
[हिं. क्रोध]


क्रोधी
जो बहुत क्रोध करता हो, जो शीघ्र क्रोध से भर जाता हो।
वि.
[सं.]


क्रौंच
कराँकुल पक्षी।
संज्ञा
[सं.]


क्वणित
शब्द करता हुआ।
वि.
[सं.]


क्वणित
गूँजता हुआ।
वि.
[सं.]


क्वणित
बजता हुआ।
वि.
[सं.]


क्वाँर
भादों के बाद का महीना।
संज्ञा
[सं. कुमार, प्रा. कुवाँर, हिं. कुआर]


क्वाँरा
जिसका विवाह न हुआ हो, कुआरा।
वि.
[सं. कुमार)


क्वाँरापन
कुमारपन।
संज्ञा
[हिं. क्‍वारापन]


क्वाथ
ओषधियों को उबालकर निकाला हुआ रस, काढ़ा।
संज्ञा
[सं.]


क्वाथ
व्यसन।
संज्ञा
[सं.]


क्वाथ
दुख।
संज्ञा
[सं.]


क्वान
घुँघरू का शब्द।
संज्ञा
[सं. क्वण]


कड़ा
कठोर, कठिन, ठोस।
वि.
[सं. कड्ड]


कड़ा
जो कोमल न हो, रूखा।
वि.
[सं. कड्ड]


कड़ा
उग्र, दृढ़।
वि.
[सं. कड्ड]


कड़ा
तगड़ा, हृष्ट-पुष्ट।
वि.
[सं. कड्ड]


कड़ा
तेज।
वि.
[सं. कड्ड]


कड़ा
सहनशील, धैर्यवान।
वि.
[सं. कड्ड]


कड़ा
जिसको करना सरल न हो, मुश्किल।
वि.
[सं. कड्ड]


कड़ा
तीव्र।
वि.
[सं. कड्ड]


कड़ा
बुरा लगनेवाला।
वि.
[सं. कड्ड]


कड़ा
कर्कश, कठोर।
वि.
[सं. कड्ड]


क्लेदक
पसीना लानेवाला।
संज्ञा
[सं]


क्लेदक
शरीर की दस अग्नियों में एक।
संज्ञा
[सं]


क्लेदन
पसीना लाने का काम।
संज्ञा
[सं.]


क्लेश
दुख, कष्ट।
संज्ञा
[सं.]


क्लेश
लड़ाई, झगड़ा।
संज्ञा
[सं.]


क्लेशित
दुखी, पीड़ित।
वि.
[सं.]


क्लोम
फेफड़ा।
संज्ञा
[सं.]


क्वचित
बहुत कम, शायद कोई।
क्रि. वि.
[सं.]


क्वण
वीणा का शब्द।
संज्ञा
[सं.]


क्वण
घुँघरू का शब्द।
संज्ञा
[सं.]


क्लिष्टता
कठिनता।
संज्ञा
[सं.]


क्लिष्टता
काव्य का एक दोष जिससे भाव समझने में कठिनाई हो।
संज्ञा
[सं.]


क्लिष्टत्व
क्लिष्टता का भाव।
संज्ञा
[सं.]


क्लिष्टत्व
काव्य का एक दोष।
संज्ञा
[सं.]


क्लीव
नपुंसक, षंड, नामर्द।
वि.
[सं.]


क्लीव
कायर, डरपोक।
वि.
[सं.]


क्लीवता
नपुंसकता।
संज्ञा
[सं.]


क्लीवत्व
नपुंसकता।
संज्ञा
[सं.]


क्लेद
गीलापन।
संज्ञा
[सं.]


क्लेद
पसीना।
संज्ञा
[सं.]


क्षणदा
रात।
संज्ञा
[सं.]


क्षणदा
हल्दी।
संज्ञा
[सं.]


क्षणदाकर
चंद्रमा।
संज्ञा
[सं.]


क्षणद्युति
बिजली।
संज्ञा
[सं.]


क्षणप्रभा
बिजली।
संज्ञा
[सं.]


क्षणभंग, क्षणभंगु, क्षणभंगुर
शीघ्र नष्ट होनेवाला।
सुख संपति दारा सुत हय गय हठै सर्ब समुदाय। क्षणभंगुर (छनभंगुर) ए सबै स्याम बिनु अंत नाहिं संग जाय।
वि.
[सं. क्षणभंगुर]


क्षणिक
क्षण भर में (शीघ्र ही) नष्ट हो जाने वाला।
वि.
[सं.]


क्षणिकता
क्षण भर में, या बहुत शीघ्र नष्ट होने का भाव।
संज्ञा
[सं.]


क्षणिकवाद
एक सिद्धांत जिसमें प्रति क्षण परिवर्तित होते होते वस्तु का नष्ट हो जाना मानते हैं।
संज्ञा
[सं.]


क्षणिका
बिजली।
संज्ञा
[सं.]


क्वान
वीणा की झनकार।
संज्ञा
[सं. क्वण]


क्वार
कुमार, पुत्र, कुँवर।
भयौ सुरुचि तैं उत्तम क्वार। अरु सुनीति के ध्रुव सुकुमार - ४ - ९।
संज्ञा
[सं. कुमार]


क्वार
क्‍वारा, बिनब्याहा।
संज्ञा
[सं. कुमार]


क्वारछल
क्वारापन।
संज्ञा
[सं. कुमार, हिं. क्वार + छल]


क्वारपत, क्वारपन
क्‍वारा होना, कुमारपन।
संज्ञा
[हि. क्कारा+पत या पन]


क्वारा
जिसका विवाह न हुआ हो, कुआरा।
वि.
[सं. कुमार]


क्वारापन
कुमारपन
संज्ञा
[हिं. क्‍वारा+पन]


क्वासि
तू कहाँ या किस स्थान पर है।
चलौ किन मानिनि कुंज कुटीर। तुव बिनु कुँअर कोटि बनिता तजि सहत मदन की पीर। गद्गद सुर पुलकित बिरहानल स्रवत बिलोचन नीर। क्‍वासि क्‍वासि बृषभानुनंदिनी बिलपत बिलपन अधीर।
वाक्य
[सं.]


क्‍वैला
अंगारा।
संज्ञा
[हिं. कोयला]


क्‍वैला
अधजला कोयला।
संज्ञा
[हिं. कोयला]


क्षंत्रव्य
क्षमा के योग्य, क्षम्य।
वि.
[सं.]


क्षंता
क्षमा करनेवाला, क्षमाशील।
वि.
[सं.]


क्षण
समय का बहुत छोटा भाग।
संज्ञा
[सं.]


क्षण
समय।
संज्ञा
[सं.]


क्षण
अवसर।
संज्ञा
[सं.]


क्षण
उत्सव।
संज्ञा
[सं.]


क्षणक
क्षण भर में।
बहुत दिनन के, विरह ताप दुख मिलत क्षणक में मेटे - ८२४ सारा.।
क्रि. वि.
[सं. क्षण+क (प्रत्य.)


क्षणद
जल।
संज्ञा
[सं.]


क्षणद
ज्योतिषी।
संज्ञा
[सं.]


क्षणद
जो रात में देख न सके।
संज्ञा
[सं.]


क्षणिनी
रात।
संज्ञा
[सं.]


क्षणेक
क्षण भर।
क्रि. वि.
[सं. क्षण+एक]


क्षत
जो तोड़ा-फोड़ा गया हो, जिसे क्षति पहुँची हो, घायल।
वि.
[सं.]


क्षत
घाव।
संज्ञा
[सं.]


क्षत
फोड़ा, व्रण।
संज्ञा
[सं.]


क्षत
मार-काट।
संज्ञा
[सं.]


क्षत
क्षति पहुँचना।
संज्ञा
[सं.]


क्षतज
घाव से उत्पन्न।
वि.
[सं.]


क्षतज
लाल रंग का।
वि.
[सं.]


क्षतज
रक्त, खून।
संज्ञा
[सं]


क्षतज
मवाद।
संज्ञा
[सं]


क्षतज
बुरी खांसी।
संज्ञा
[सं]


क्षतज
शरीर में बहुत घाव लगने पर मालूम होने वाली प्यास।
संज्ञा
[सं]


क्षत-विक्षत
घायल, लहू-लुहान।
वि.
[सं.]


क्षत-विक्षत
नष्ट-भ्रष्ट।
वि.
[सं.]


क्षति
हानि, नुकसान।
संज्ञा
[सं.]


क्षति
नाश।
संज्ञा
[सं.]


क्षत्र
बल।
संज्ञा
[सं.]


क्षत्र
राष्ट्र।
संज्ञा
[सं.]


क्षत्र
धन।
संज्ञा
[सं.]


क्षत्र
शरीर।
संज्ञा
[सं.]


क्षत्र
जल।
संज्ञा
[सं.]


क्षत्र
क्षत्रिय।
संज्ञा
[सं.]


क्षत्र कर्म (धर्म)
(युद्ध, दान, रक्षा आदि) क्षत्रियों के कर्म।
संज्ञा
[सं.]


क्षत्रप
ईरानी मांडलिक राजाओं की उपाधि जो भारतीय शासकों ने अपना ली थी।
संज्ञा
[सं.]


क्षत्रपति
राजा।
संज्ञा
[सं.]


क्षत्रिआ
क्षत्रिय।
दियौ उनपै कह्यौ तुम कोउ क्षत्रिआ कपट करि बिप्र कौ स्वाँग स्वाँग्यौ - १० उ. - १५१।
संज्ञा
[सं. क्षत्रिय]


क्षत्रिनी
मजीठ।
संज्ञा
[सं.]


क्षत्रिय
चार वर्णों में दूसरा जिसका काम देश का शासन और उसकी रक्षा माना गया था।
संज्ञा
[सं.]


क्षत्रिय
एक वर्ण का व्यक्ति।
संज्ञा
[सं.]


क्षत्रिय
राजा।
संज्ञा
[सं.]


क्षत्रिय
शक्ति।
संज्ञा
[सं.]


क्षत्री
क्षत्रिय वर्ण।
संज्ञा
[सं. क्षत्रिय]


क्षत्री
इस वर्ण का व्यक्ति।
संज्ञा
[सं. क्षत्रिय]


क्षदन
दाँत।
संज्ञा
[सं.]


क्षपणक
निर्लज्ज।
वि.
[स.]


क्षपणक
दिगंबर जैन साधु।
संज्ञा


क्षपणक
बौद्ध भिक्षु।
संज्ञा


क्षपांत
प्रभात।
संज्ञा
[सं.]


क्षपा
रात।
संज्ञा
[सं.]


क्षपा
हल्दी।
संज्ञा
[सं.]


क्षपाकर
चंद्रमा।
संज्ञा
[सं.]


क्षपाकर
कपूर।
संज्ञा
[सं.]


क्षपाचर
राक्षस।
संज्ञा
[सं.]


क्षपानाथ
चंद्रमा।
संज्ञा
[सं.]


क्षपानाथ
कपूर।
संज्ञा
[सं.]


क्षपापति
चंद्रमा।
संज्ञा
[सं.]


क्षपापति
कपूर।
संज्ञा
[सं.]


क्षम
योग्य, समर्थ।
वि.
[सं.]


क्षम
बल। शक्ति।
संज्ञा


कड़ाई
कड़ापन, कठोरता, सख्ती।
संज्ञा
[हिं. कड़ा]


कड़ाही
लोहे पीतल आदि का पात्र जिसे चूल्हे पर चढ़ाकर पूरी-मिठाई बनाते हैं।
संज्ञा
[हिं.]


कड़ियल
कठोर, सख्त।
वि.
[हिं. कड़ा]


कड़िहार
काढ़ने या निकालनेवाला।
वि.
[हिं. काढ़ना, कढिहार]


कड़िहार
उद्धार करने वाला।
वि.
[हिं. काढ़ना, कढिहार]


कड़ी
जंजीर का छल्ला।
संज्ञा
[हिं. कड़ा]


कड़ी
गीत का एक चरण।
संज्ञा
[हिं. कड़ा]


कड़ी
लगाम।
संज्ञा
[हिं. कड़ा]


कड़ी
विपत्ति, कठिनाई।
संज्ञा
[हिं. कड़ा=कठिन]


कड़ी
कठिन, कठोर।
वि


क्षम
क्षमा करो।
क्षम अपराध देवकी मेरो लिख्यौ न मेट्यौ जाई। मैं अपराध किये सिसु मारे कर जोरे बिललाई - ३८६ सारा.।
क्रि. स.
[हिं. क्षमना]


क्षमणीय
क्षमा के योग्य।
वि.
[सं.]


क्षमता
योग्यता, सामर्थ्‍य, शक्ति।
संज्ञा
[सं.]


क्षमताशील
योग्य, समर्थ, सशक्त।
वि.
[सं. क्षमता+शील]


क्षमना
क्षमा करना, माफ करना।
क्रि. स.
[सं. क्षमा]


क्षमनीय
क्षमा के योग्य।
क्रि. स.
[सं. क्षमणीय]


क्षमनीय
बली, शक्तिशाली।
वि.
[सं. क्षम]


क्षमवाना
क्षमा कराना।
क्रि. स.
[हिं. क्षमना]


क्षमवाय
क्षमा कराकर, दूसरे से क्षमवाकर।
बहुरि बिधि जाय क्षमवाय कै रुद्र को विष्णु बिधि रुद्र तहँ तुरत आये।
क्रि. स.
[हिं. क्षमवाना]


क्षमा
दिये हुए कष्ट को सहन करने और कष्ट देनेवाले के प्रति प्रतिकार की इच्छा न रखने की वृत्ति।
संज्ञा
[सं.]


क्षमा
सहनशीलता।
संज्ञा
[सं.]


क्षमा
पृथ्वी।
संज्ञा
[सं.]


क्षमा
दुर्गा का नाम।
संज्ञा
[सं.]


क्षमा
राधा की एक सखी का नाम।
संज्ञा
[सं.]


क्षमा
एक छंद।
संज्ञा
[सं.]


क्षमाई
क्षमा करने की क्रिया।
संज्ञा
[हिं. क्षमा+ई (प्रत्य.)]


क्षमाए
क्षमा कराये, क्षमा करवा दिये।
तब हरि उनके दोष क्षमाए - ८९६।
क्रि. स.
[हिं. क्षमाना]


क्षमाना
क्षमा कराना।
क्रि. स.
[हिं. क्षमना]


क्षमाना
क्षमा करना।
क्रि. स.
[हिं. क्षमा]


क्षमानै
क्षमा कराने के लिए।
यह सुनि कै अकुलाई चले हरि कृत अपराध क्षमानै–२०५३।
क्रि. स.
[हिं, क्षमाना]


क्षमापन
क्षमा करने का काम।
संज्ञा
[सं. क्षमा+हिं. पन]


क्षमापन
क्षमा कराने का काम।
संज्ञा
[सं. क्षमा+हिं. पन]


क्षमायौ
क्षमा कराया।
कौरवन मिलि बहुति भाँति बिनती करी दोष तिनको द्विजन मिलि क्षमायौ - १० उ. - १४६।
क्रि. स.
[हिं. क्षमना]


क्षमालु
क्षमावान्, क्षमाशील।
वि.
[सं.]


क्षमावत
क्षमा करते हैं।
परी पाँय अपराध क्षमावत सुनत मिलैगी धाय। सुनत बचन दूतिका बदन ते स्याम चले अकुलाय - ९७३ सारा.।
क्रि. स.
[हिं. क्षमावना]


क्षमावना
क्षमा कराना।
क्रि. स.
[हिं. क्षमना का प्रे.]


क्षमावान्
क्षमा करनेवाला।
वि.
[सं. क्षमावत्]


क्षमावान्
सहनशील।
वि.
[सं. क्षमावत्]


क्षमाशील
क्षमा करनेवाला।
वि.
[सं.]


क्षमाशील
शांत प्रकृतिवाला।
वि.
[सं.]


क्षमाहीं
क्षमा कराते हैं।
सूर स्याम जुवतिन सौं कहि कहि सब अपराध क्षमाहीं - पृ. ३४१ (७०१)।
क्रि. स.
[हिं. क्षमाना]


क्षमितव्य
जो क्षमा किया जा सके।
वि.
[सं.]


क्षमी
क्षमा करनेवाला।
सुर हरि भक्त असुर हरि द्रोही। सुर अति क्षमी असुर अति कोही।
वि.
[सं. क्षमा+ई(प्रत्य.)]


क्षमी
शांत प्रकृतिवाला।
वि.
[सं. क्षमा+ई(प्रत्य.)]


क्षमैंगे
क्षमा करेंगे।
अब हमकौ अपराध क्षमैंगे कृपा करौ मुख बोलों जू - १९६१।
क्रि. स.
[हिं. क्षमना]


क्षम्य
क्षमा करने योग्य।
वि.
[सं.]


क्षयंकर
नाश करनेवाला।
वि.
[सं.]


क्षय
धीरे धीरे घटना या कम होना।
संज्ञा
[सं.]


क्षय
प्रलय।
संज्ञा
[सं.]


क्षय
नाश।
संज्ञा
[सं.]


क्षर
अज्ञान।
संज्ञा
[सं.]


क्षर
जीवात्मा।
संज्ञा
[सं.]


क्षरण
धीरे धीरे बहना।
संज्ञा
[सं.]


क्षरण
झगड़ा।
संज्ञा
[सं.]


क्षरण
नाश होना।
संज्ञा
[सं.]


क्षांत
सहनशील, क्षमावान्।
वि.
[सं.]


क्षांति
सहनशीलता।
संज्ञा
[सं.]


क्षा
पृथ्वी।
संज्ञा
[सं.]


क्षात्र
क्षत्रिय संबंधी।
वि.
[सं.]


क्षात्र
क्षत्रियपन।
संज्ञा
[सं.]


क्षय
धर।
संज्ञा
[सं.]


क्षय
क्षयी रोग।
संज्ञा
[सं.]


क्षय
अंत।
संज्ञा
[सं.]


क्षयवान्
नाश होनेवाला।
वि.
[सं. क्षयवत्]


क्षयी
चंद्रमा।
वि.
[सं.]


क्षयी
एक भयंकर रोग।
संज्ञा
[सं. क्षय]


क्षर
नाशवान्।
वि.
[सं.]


क्षर
जल।
संज्ञा
[सं.]


क्षर
मेघ।
संज्ञा
[सं.]


क्षर
शरीर।
संज्ञा
[सं.]


क्षाम
दुबला-पतला।
वि.
[सं.]


क्षाम
दुर्बल, बलहीन।
वि.
[सं.]


क्षाम
थोड़ा।
वि.
[सं.]


क्षार
औषधियों को जलाकर तैयार किया हुआ नमक।
संज्ञा
[सं.]


क्षार
नमक।
संज्ञा
[सं.]


क्षार
सज्जी।
संज्ञा
[सं.]


क्षार
शोरा।
संज्ञा
[सं.]


क्षार
भस्म।
संज्ञा
[सं.]


क्षार
काँच।
संज्ञा
[सं.]


क्षार
खारा।
वि.
[सं.]


क्षितिधार
पर्वत।
संज्ञा
[सं.]


क्षितिधार
दिग्‍गज।
संज्ञा
[सं.]


क्षितिधार
कच्छप।
संज्ञा
[सं.]


क्षिपा
रात।
संज्ञा
[सं.]


क्षिप्त
त्यक्त।
वि.
[सं.]


क्षिप्त
अपमानित।
वि.
[सं.]


क्षिप्त
पागल।
वि.
[सं.]


क्षिप्र
जल्दी, शीघ्र।
क्रि. वि.
[सं.]


क्षिप्र
तुरंत।
क्रि. वि.
[सं.]


क्षिप्र
तेज।
वि.
[सं.]


क्षार
धूर्त।
वि.
[सं.]


क्षालन
धोना।
संज्ञा
[सं.]


क्षालित
धुला हुआ, साफ।
वि.
[सं.]


क्षिति
पृथ्वी।
अमल अकास कास कुसुमिन क्षिति लक्षण स्वाति जनाए - २८५४।
संज्ञा
[सं.]


क्षिति
जगह, घर।
संज्ञा
[सं.]


क्षिति
क्षय।
संज्ञा
[सं.]


क्षिति
प्रलयकाल।
संज्ञा
[सं.]


क्षितिज
वह वृत्ताकार स्थान जहाँ आकाश और पृथ्वी, दोनों मिले जान पड़ते हैं।
संज्ञा
[सं.]


क्षितिज
मंगल ग्रह।
संज्ञा
[सं.]


क्षितिज
वृक्ष।
संज्ञा
[सं.]


क्षिप्र
चंचल।
वि.
[सं.]


क्षीण
दुबला-पतला।
संज्ञा
[सं.]


क्षीण
छोटा, सूक्ष्म।
संज्ञा
[सं.]


क्षीण
घटा हुआ।
संज्ञा
[सं.]


क्षीणक
क्षीण करनेवाला।
वि.
[सं.]


क्षीणता
कमजोरी।
संज्ञा
[सं.]


क्षीणता
दुबलापन।
संज्ञा
[सं.]


क्षीणता
छोटापन।
संज्ञा
[सं.]


क्षीर
दूध।
संज्ञा
[सं.]


क्षीर
द्रव।
संज्ञा
[सं.]


कड़वा
जिसका स्वाद उग्र या तीक्ष्ण हो।
वि.
[सं. कटुक, प्रा. कडुआ]


कड़वा
उग्र या तीक्ष्ण स्वभाववाला।
वि.
[सं. कटुक, प्रा. कडुआ]


कड़वा
अप्रिय, अरुचिकर।
वि.
[सं. कटुक, प्रा. कडुआ]


कड़वा
कठिन, मुशकिल।
वि.
[सं. कटुक, प्रा. कडुआ]


कडुआना
स्वाद में उग्र या तीक्ष्ण लगना।
क्रि. अ.
[हिं. कडुआ]


कडुआना
बिगड़ना, खीझना।
क्रि. अ.
[हिं. कडुआ]


कडुआना
नींद न आने पर आँख में दर्द होना।
क्रि. अ.
[हिं. कडुआ]


कड़ूला
छोटा कड़ा जो बच्चे को हाथ-पैर में पहनाते हैं।
संज्ञा
[हिं. कड़ा+ऊला]


कड़ेरा
वस्तु को खरादकर ठीक करनेवाला।
संज्ञा
[हिं. कैंड़ा]


कढ़त
निकलता है, बाहर आता है।
नाहिंन कढ़त और के काढ़े सूर मदन के बान - २०५१।
क्रि. अ.
[हिं. कढ़ना]


क्षीरनीर
आलिंगन।
संज्ञा
[सं.]


क्षीरनीर
मिलन।
संज्ञा
[सं.]


क्षीरस
दूध-दही की मलाई।
संज्ञा
[सं.]


क्षीरसागर
एक समुद्र।
संज्ञा
[सं.]


क्षीरसार
मक्खन।
संज्ञा
[सं.]


क्षीरोद
क्षीरसागर।
संज्ञा
[सं.]


क्षीरोदक
दूध और पानी।
[सं. क्षीर+उदक]


क्षीरोदक
दूध के समान उज्ज्वल।
क्षीरोदक घूँघट हातो करि सन्मुख दियो उघारि। मानो सुधाकर दुग्ध सिंधु ते कढ्यौ कलंक पखारि - १६८९।
वि.


क्षीरोदक
एक प्रकार का रेशमी कपड़ा जो प्राचीन काल में बनता था।
कहा भयो मेरो गृह माटी को। हौं तो गयो गुपालहिं भेंटन और खरच तंदुल गाँठी को...। नौ तन क्षीरोदक (षीरोदक) जुवती पै भूषन हुते न कहुँ माटी को।
संज्ञा
[सं.]


सूरदास
प्रभु कहा निहोरो मानतु रंक त्रास टाटी को।
संज्ञा
[सं.]


क्षीर
जल।
संज्ञा
[सं.]


क्षीर
पेड़ों का दूध।
संज्ञा
[सं.]


क्षीर
खीर।
संज्ञा
[सं.]


क्षीरज
चंद्रमा।
संज्ञा
[सं.]


क्षीरज
शंख।
संज्ञा
[सं.]


क्षीरज
कमल।
संज्ञा
[सं.]


क्षीरज
दही।
संज्ञा
[सं.]


क्षीरज
दूध से बना हुआ, दूध से उत्पन्न।
वि.


क्षीरधि
समुद्र।
पसुपति मंडल मध्य मनो क्षीरधि नीरधि नीर के - २५९९।
संज्ञा
[सं.]


क्षीरनिधि
समुद्र।
संज्ञा
[सं.]


क्षीरोदतनय
चंद्रमा जो समुद्र से उत्पन्न होने के कारण उसका पुत्र माना जाता है।
संज्ञा
[सं.]


क्षीरोदतनया
लक्ष्मी जो समद्र से उत्पन्न होने के कारण उसकी पुत्री मानी जाती है।
संज्ञा
[सं.]


क्षीरोदधि
क्षीरसागर।
संज्ञा
[सं .]


क्षीव
पागल।
संज्ञा
[सं.]


क्षुणी
पृथ्वी।
संज्ञा
[सं.]


क्षुण्ण
अभ्यासी, अभ्यस्त।
वि.
[सं.]


क्षुण्ण
जो टुकड़े-टुकड़े या चूर चूर हो।
वि.
[सं.]


क्षुण्ण
टूटे अंग का, खंडित।
वि.
[सं.]


क्षुत्
भूख, क्षुधा।
संज्ञा
[सं.]


क्षुद्र
कंजू्स।
वि.
[सं .]


क्षुद्र बुद्धि
नीच स्वभाव का।
वि.
[सं.]


क्षुद्रमति
नीच बुद्धिवाला, ओछी बुद्धिवाला।
बरष दिन संयोग देत मोकों भोग क्षुद्र मति ब्रजलोग गर्व कीनो - ९४४।
वि.
[सं.]


क्षुद्रावली
क्षुद्रघंटिका, किंकिणी, करधनी।
अंग अभूषन जननि उतारति। दुलरी ग्रीव माल मोतिन की लै केयूर भुज स्याम निहारति। क्षुद्रावली उतारति कटि तैं सौंपति धरति मन ही मन वारति।
संज्ञा
[सं.]


क्षुद्राशय
नीच स्वभाव का, ‘महाशय' का विपरीतार्थक।
वि.
[सं.]


क्षुधा
भूख
संज्ञा
[सं.]


क्षुधातुर
भूखा।
वि.
[सं.]


क्षुधावन्त
भूखा।
वि.
[सं. क्षुधा+वंत (प्रत्य.)]


क्षुधित
भूखा।
वि.
[सं.]


क्षुप
झाड़ी, पौधा।
संज्ञा
[सं.]


क्षुप
श्री कृष्ण की पत्नी, सत्यभामा का पुत्र।
संज्ञा
[सं.]


क्षुद्र
नीच।
वि.
[सं .]


क्षुद्र
छोटा।
वि.
[सं .]


क्षुद्र
निर्धन।
वि.
[सं .]


क्षुद्र
चावल का कण।
संज्ञा
[सं.]


क्षुद्रघंटिका
घुँघरू।
संज्ञा
[सं.]


क्षुद्रघंटिका
घूँघरूदार करधनी।
संज्ञा
[सं.]


क्षुद्रता
नीचता।
संज्ञा
[सं.]


क्षुद्रता
ओछापन।
संज्ञा
[सं.]


क्षुद्रपति
कुवेर।
रुद्रपति, क्षुद्रपति, लोलपति वोकपति, धरनिपति, गगनपति, अगम बानी।
संज्ञा
[सं.]


क्षुद्र प्रकृति
तुच्छ या नीच स्वभाववाला।
वि.
[सं.]


क्षुब्ध
चंचल।
वि.
[पुं.]


क्षुब्ध
व्याकुल।
वि.
[पुं.]


क्षुब्ध
डरा हुआ।
वि.
[पुं.]


क्षुब्ध
क्रुद्ध।
वि.
[पुं.]


क्षुभित
व्याकुल।
वि.
[सं.]


क्षुभित
क्षोभ से युक्त।
वि.
[सं.]


क्षुर
छुरा।
संज्ञा
[सं.]


क्षुर
उस्तरा।
संज्ञा
[सं.]


क्षेत्र
खेत।
संज्ञा
[सं.]


क्षेत्र
समतल भूमि।
संज्ञा
[सं.]


क्षेत्री
खेत का स्वामी।
संज्ञा
[सं. क्षेत्रिन्]


क्षेत्री
स्वामी।
संज्ञा
[सं. क्षेत्रिन्]


क्षेप
ठोकर।
संज्ञा
[सं.]


क्षेप
निंदा।
संज्ञा
[सं.]


क्षेप
दूरी।
संज्ञा
[सं.]


क्षेप
(समय) बिताना।
संज्ञा
[सं.]


क्षेपक
मिलाया हुआ।
वि.
[सं.]


क्षेपक
निंदनीय।
वि.
[सं.]


क्षेपक
नाव खेनेवाला, केवट।
संज्ञा
[सं.]


क्षेपक
ऊपर या पीछे से मिलाया हुआ अंश।
संज्ञा
[सं.]


क्षेत्र
स्थान।
संज्ञा
[सं.]


क्षेत्र
तीर्थ स्थान।
संज्ञा
[सं.]


क्षेत्र
शरीर।
संज्ञा
[सं.]


क्षेत्र
रेखाओं से घिरा हुआ स्थान।
संज्ञा
[सं.]


क्षेत्रज
खेत से उत्पन्न।
वि.
[सं.]


क्षेत्रज
क्षेत्र जनित।
वि.
[सं.]


क्षेत्रपति
खेत का रखवाला।
संज्ञा
[सं.]


क्षेत्रपति
किसान।
संज्ञा
[सं.]


क्षेत्रपति
जीवात्मा।
संज्ञा
[सं.]


क्षेत्रफल
वर्ग की लम्बाई-चौड़ाई का गुणन फल, वर्ग परिणाम।
संज्ञा
[सं.]


क्षोणिप
राजा।
संज्ञा
[सं.]


क्षोणी
पृथ्वी।
संज्ञा
[सं.]


क्षोणीपति
राजा।
संज्ञा
[सं.]


क्षोभ
खलबली।
संज्ञा
[सं.]


क्षोभ
घबराहट।
संज्ञा
[सं.]


क्षोभ
भय।
संज्ञा
[सं.]


क्षोभ
शोक।
संज्ञा
[सं.]


क्षोभ
क्रोध।
संज्ञा
[सं.]


क्षोभन
क्षोभ उत्पन्न करनेवाला।
वि.
[सं.]


क्षोभना
व्याकुल होना।
क्रि. अ.
[सं. क्षोभ]


क्षेमंकरी
एक तरह की चील।
संज्ञा
[सं.]


क्षेमंकरी
एक देवी।
संज्ञा
[सं.]


क्षेम
रक्षा।
संज्ञा
[सं.]


क्षेम
कुशल मंगल।
संज्ञा
[सं.]


क्षेम
सुख।
संज्ञा
[सं.]


क्षेम
आनन्द।
संज्ञा
[सं.]


क्षेमी
कुशल करनेवाला।
वि.
[सं. क्षेमिन्]


क्षेमी
भलाई चाहनेवाला।
वि.
[सं. क्षेमिन्]


क्षोणि
पृथ्वी।
संज्ञा
[सं.]


क्षोणि
एक की संख्या।
संज्ञा
[सं.]


कढ़ति
निकलती हैं, बाहर आती हैं।
अब वै बातैं इहयाँ रही।........। अब वै सालति हैं उरमहियाँ कैसेहु कढ़ति नहीं - २५४२।
क्रि. अ.
[हिं. कढ़ना]


कढ़ना
निकलना, बाहर आना।
क्रि. अ.
[सं. कर्षण, पा. कड्ठन]


कढ़ना
उदय होना।
क्रि. अ.
[सं. कर्षण, पा. कड्ठन]


कढ़ना
होड़ में आगे बढ़ना।
क्रि. अ.
[सं. कर्षण, पा. कड्ठन]


कढ़ना
स्त्री का प्रेमी के साथ निकलना।
क्रि. अ.
[सं. कर्षण, पा. कड्ठन]


कढ़ना
औटने से दूध का गाढ़ा होना।
क्रि. अ.
[सं. कर्षण, पा. कड्ठन]


कढ़ना
लाभ होना।
क्रि. अ.
[सं. कर्षण, पा. कड्ठन]


कढ़नी
मथानी घुमाने की डोरी, नेती।
संज्ञा
[हिं. कढ़ना]


कढ़राना, कढ़लाना
घसीटना, घसीटकर बाहर करना।
क्रि. स.
[हिं. काढ़ना+लाना]


कढ़वाना
निकलवाना।
क्रि. स.
[हिं. काढ़ना+लाना]


क्षोभना
भयभीत होना।
क्रि. अ.
[सं. क्षोभ]


क्षोभना
चंचल होना।
क्रि. अ.
[सं. क्षोभ]


क्षोभित
घबराया हुआ।
वि.
[सं. क्षोभ]


क्षोभित
विचलित।
वि.
[सं. क्षोभ]


क्षोभित
डरा हुआ।
वि.
[सं. क्षोभ]


क्षोभी
व्याकुल, चंचल।
वि.
[सं. क्षोभिन्]


क्षौणि, क्षौणी
पृथ्वी।
संज्ञा
[सं.]


क्षौम
कपड़ा।
संज्ञा
[सं.]


क्षौर, क्षौरकर्म
हजामत।
संज्ञा
[सं.]


क्षौरिक
नाई।
संज्ञा
[सं.]


क्ष्‍मा
पृथ्वी।
संज्ञा
[सं.]


देवनागरी वर्णमाला के कवर्ग का दूसरा अक्षर; स्पर्श, महाप्राण व्यंजन। कंठ्य वर्ण।
संज्ञा
[सं.]


खं
खाली या शून्य स्थान।
संज्ञा
[सं. खम्]


खं
शून्य, बिंदु।
संज्ञा
[सं. खम्]


खं
आकाश।
संज्ञा
[सं. खम्]


खं
स्वर्ग।
संज्ञा
[सं. खम्]


खं
सुख।
संज्ञा
[सं. खम्]


खं
मोक्ष।
संज्ञा
[सं. खम्]


खंक
बलहीन।
वि.
[सं. कंकाल]


खंख, खंखी
रिक्त, खाली।
वि.
[सं. कंक]


खँगना
कम होना, घटना।
क्रि. स.
[हिं. छीजना]


खंगर
बहुत सूखा।
वि.
[देश.]


खँगहा
बड़े दाँतवाला (पशु), दँतैल।
वि.
[देश.]


खँगहा
गैंडा।
संज्ञा


खँगारना, खँगालना
खाली पानी से साफ करना।
क्रि. स.
[सं. क्षालन]


खँगारना, खँगालना
खाली करना, उड़ा ले जाना।
क्रि. स.
[सं. क्षालन]


खँगी
कमी, घटी।
संज्ञा
[हिं. खाँगना]


खँगुआ
गैंडे के मुँह का सींग।
संज्ञा
[हिं. खाँग]


खँगैल
जिसके दाँत बाहर निकले हों, दँतैल।
वि.
[हिं. खँगहा]


खगौरिया
गले का एक गहना, हँसुली।
संज्ञा
[देश.]


खंख, खंखी
उजाड़, बीरान।
वि.
[सं. कंक]


खंख, खंखी
निर्धन।
वि.
[सं. कंक]


खंखर
बीरान, उजाड़।
वि.
[हिं. खंख]


खँखार
गाढ़ा कफ।
संज्ञा
[हिं. खखार]


खँखारना
खाँसना। खखारकर कफ निकालना।
क्रि. अ.
[हिं. खखार]


खंग, खँग
तलवार।
संज्ञा
[सं. खड्ग]


खंग, खँग
गैंडा।
संज्ञा
[सं. खड्ग]


खंग, खँग
घाव।
कुंभकरन तनु खंग लग गई लंक बिभीषन पाई।
संज्ञा


खंगड़
कूड़ा-कबाड़ा।
संज्ञा
[अनु.]


खंगड़
उग्र, उद्यंड।
वि.


खँचना
चिह्न पड़ना, चिह्नित होना।
क्रि. अ.
[हिं. खाँचना]


खँचाना
अंकित करना, चिह्न बनाना।
क्रि. स.
[हिं. खाँचना]


खँचाना
जल्दी लिखना।
क्रि. स.
[हिं. खाँचना]


खँचाना
खींचना।
क्रि. स.
[हिं. खाँचना]


खँचिया
झाबा, बड़ी डलिया।
संज्ञा
[हिं. खाँची]


खँचैया
खींचनेवाला।
वि.
[हिं. खाँचना]


खंज
खंजन पक्षी।
आलिंगन दै अधर पान करि खंजन खंज लरै
संज्ञा
[सं. खंजन]


खंज
लँगड़ा, पंगु।
वि.
[सं.]


खंजक
लँगड़ा, पंगु।
वि.
[हिं. खंज]


खँजड़ी
डफली की तरह एक बाजा।
संज्ञा
[सं. खंजरीट]


खंजन
एक सुंदर पक्षी जो बहुत चंचल होता है और जिसकी उपमा कवि नेत्रों से देते हैं।
संज्ञा
[सं.]


खंजन
एक तरह का घोड़ा।
संज्ञा
[सं.]


खंजन
एक छंद।
संज्ञा
[सं.]


खंजन-रति
बहुत गुप्त विवाह।
संज्ञा
[सं.]


खंजनिका
एक चिड़िया।
संज्ञा
[सं.]


खंजर
कटार।
संज्ञा
[फ़ा.]


खंजरि, खंजरी
डफली की तरह एक छोटा बाजा।
कंसताल कठताल बजावत सृंग मधुर मुँह चंग। मधुर खंजरी पटह प्रणव मिलि सुख पावत रतभंग - १०७५ सारा.।
संज्ञा
[सं. खंजरीट=एक ताल]


खंजरि, खंजरी
छोटा खाँड़ा।
संज्ञा
[फा. खंजर]


खंजरि, खंजरी
एक तरह का रेशमी धारीदार कपड़ा।
संज्ञा
[फा. खंजर]


खंजरीट
खंजन पक्षी।
(क) मनोहर है नैनन की भाँति।….। खंजरीट मृग मीन बिचारति उपमा को अकुलाति - २१४७। (ख) बालभाव अनुसरति भरति दृग अग्र अंशुकन आनै। जनु खंजरीट जुगल जठरातुर लेते सुभष अकुलानै - २०५३। (ग) मनहुँ मुदित मरकत मनि-आँगन खेलत खंजरीट चटकारे।
संज्ञा
[सं.]


खंजा
एक वृत्त।
संज्ञा
[सं.]


खंड, खँड
भाग, हिस्सा।
तासौ सुत निन्यानबै भए।….तिन मैं नव नवखँड अधिकारी–५ - २।
संज्ञा
[सं.]


खंड, खँड
खाँड़, चीनी।
संज्ञा
[सं.]


खंड, खँड
दिशा।
संज्ञा
[सं.]


खंड, खँड
देश, पौराणिक भूगोल के अनुसार प्राचीन द्वीपों के नौ या सात भाग।
अखिल ब्रह्मांड खंड की महिमा दिखराई मुख माँहिं - १० - २५५।
संज्ञा
[सं.]


खंड, खँड
खंडित, छोटा।
वि.


खंड, खँड
खाँड़ा।
संज्ञा
[सं. खड्ग]


खंडक
खंड-खंड करनेवाला।
वि.
[सं.]


खंडक
किसी बात का खंडन करनेवाला।
वि.
[सं.]


खंडकाव्य
वह काव्य जिसमें कथा की घटना विशेष का वर्णन हो। इसमें काव्य के सब लक्षण नहीं होते।
संज्ञा
[सं.]


खंडपरशु
विष्णु।
संज्ञा
[सं.]


खंडपरशु
परशुराम।
संज्ञा
[सं.]


खंडपाल
हलवाई।
संज्ञा
[सं.]


खंडपूरी
पूरी जिसमें मेवेमसाले और चीनी भरी हो।
संज्ञा
[हिं खाँड़+पूरी]


खंडप्रलय
छोटा प्रलय।
संज्ञा
[सं.]


खंडप्रलय
किसी प्रदेश या खंड का नाश।
संज्ञा
[सं.]


खँडबरा
मिश्री का लड्डू, ओला।
संज्ञा
[हिं. खंडौरा]


खंडर
किसी गिरे हुए भवन का बचा हुआ भाग, खँडहर।
संज्ञा
[हिं. खँडहर]


खंडरना
खंडित करना, नाश करना।
संज्ञा
[हिं. खंडर]


खँडरा
एक पकवान या बड़ा।
संज्ञा
[हिं. खाँड़+हिं. बरा (प्रत्य.)]


खंडत
टूटा-फूटा, अपूर्ण, असंबद्ध।
वि.
[सं. खंडित]


खंडत
खंड खंड करता है।
क्रि. स.
[हिं. खंडना]


खंडन
तोड़ना।
संज्ञा
[सं.]


खंडन
काटना।
संज्ञा
[सं.]


खंडन
असत्य, अशुद्र या अनुचित सिद्ध करना।
संज्ञा
[सं.]


खंडना
तोड़ना- फोड़ना।
क्रि. स.
[सं. खंडन]


खंडना
(बात या सिद्धांत को) अयुक्त ठहराना।
क्रि. स.
[सं. खंडन]


खंडनीय
खंडन करने योग्य।
वि.
[सं.]


खंडपति
राजा।
संज्ञा
[सं.]


खंडपरशु
शिव जी।
संज्ञा
[सं.]


खंडा
देश ; पौराणिक द्वीपों के नौ-नौ या सात-सात भाग।
एक एक रोम कोटि ब्रह्मंडा। रवि ससि धरनी, धर नवखंडा - १०७०।
संज्ञा
[सं. खंड]


खंडि
तोड़कर, टुकड़े करके।
स्यंदन खंडि, महारथि खंडौं, कपि-ध्वज सहित गिराऊँ - १ - २७०।
क्रि. स.
[सं. खंडन, हिं. खंडना]


खंडिक
काँख।
संज्ञा
[सं.]


खंडिक
वह व्यक्ति जो ग्रंथ को खंडश: पढ़े।
संज्ञा
[सं.]


खंडिक
एक ऋषि।
संज्ञा
[सं.]


खँडिका
निश्चित समय पर अदा किया जानेवाला अंश, किश्त।
संज्ञा
[सं.]


खंडित
टूटी हुई, असंबद्ध, भग्न।
(क) चारि मास बरसे जल खूटे हारि समुझ उनमानी। एतेहू पर धार न खंडित इनकी अकथ कहानी - ३४५७। (ख) नैनन निरखि निमेष न खंडित प्रेम-व्यथा न बुझाई - २९७६।
वि.
[सं. खंड]


खंडित
जो पूर न हो, अपूर्ण।
वि.
[सं. खंड]


खंडिता
ऐसी नायिका जिसका पति रात में अन्य स्त्री के पास रहकर प्रात:काल लौटे।
नित्य रास जल नित्य बिहार। नित्य मान खंडिताभिसार - २३८०।
संज्ञा
[सं.]


खंडिनी
पृथ्वी।
संज्ञा
[सं.]


कढ़ाइ
खींचना, अलग करना।
दिन दिन इनकी करौं बड़ाई अहिर गये इतराइ। तौ मैं जो वाही सौं कहिकै उनकी खाल कढ़ाई - २५७८।
क्रि. स.
[हिं. कढ़ाना]


कढ़ाई
निकलवायी, बाहर की, खींच ली।
सुनु मैया, याके गुन मोसौं, इन मोहिं लयौ बुलाई। दधि मैं पड़ी सेंत की मौपैं चीटी सबै कढ़ाई - १० - ३२२।
क्रि. स.
[हिं. कढ़ाना, कढ़वाना]


कढ़ाई
कड़ाही।
संज्ञा
[हिं. कड़ाह]


कढ़ाई
निकालने की क्रिया या मजदूरी।
संज्ञा
[हिं. काढ़ना]


कढ़ाई
बूटा-कसीदा काढ़ने की क्रिया या मजदूरी।
संज्ञा
[हिं. काढ़ना]


कढ़ाना
निकलवाना, बाहर कराना, खिंचाना।
क्रि. स.
[हिं. काढ़ना का प्रे.]


कढ़ावना
निकलवाना, बाहर कराना, खिंचाना।
क्रि. स.
[हिं. काढ़ना का प्रे.]


कढ़िराइ
घसीटकर, घसीटकर बाहर करके।
नाहिं काँचौ कृपानिधि हौं, करौ कहा रिसाइ। सूर तबहुँ न द्वार छाँड़ै, डारिहौ कढ़िराइ - १ - १०६।
क्रि. स.
[हिं. कढ़लाना]


कढ़िहार
निकालनेवाला।
वि.
[हिं. काढ़ना]


कढ़िहार
उबारने या उद्धार करनेवाला।
वि.
[हिं. काढ़ना]


खँडरिच
खंजन पक्षी।
संज्ञा
[सं. खंजरीट]


खंडल
खंड ग्रहण करनेवाला।
संज्ञा
[सं.]


संज्ञा
खंड।
पुं.
[सं. खंड]


खँडला
टुकड़ा।
संज्ञा
[सं. खंड]


खँडवानी
शरबत।
संज्ञा
[हिं. खाँड़+पानी]


खँडवानी
वर पक्षवालों को भेजा गया जल पान या शरबत।
संज्ञा
[हिं. खाँड़+पानी]


खंडशः
खंड खंड करके।
क्रि. वि.
[सं. खंड]


खँडसार, खँडसाल
स्थान जहाँ खाँड़ बनती हो।
संज्ञा
[हिं. खाँड+शाला]


खंडहर
टूटे हुए भवन का। शेष, खंडर।
संज्ञा
[सं. खंड+ हिं. घर]


खंडा
भाग, हिस्सा।
संज्ञा
[सं. खंड]


खंडी
लगान या कर इत्यादि की किश्त।
संज्ञा
[सं. खंड]


खंडी
एक तोल या माप।
संज्ञा
[सं. खंड]


खंडै
खंडन करे, तोड़े, न माने, उल्लंघन करे।
पिता-बचन खंडै सो पापी, सोइ प्रहलादहिं कीन्हौ। निकसे खंभ-बीच तैं नरहरि, ताहि अभय पद दीन्हौ - १ - १०४।
क्रि. स.
[हिं. खंडना]


खंडौं
टुकड़े-टुकड़े कर दूँ।
स्यंदन खंडि, महारथि खडौं, कपिध्वज-सहित उड़ाऊँ - १ - २७०।
क्रि. स.
[हिं. खंडना]


खंडौरा
खाँड़ का लड्डू, ओला।
संज्ञा
[हिं. खाँड+ओरा (प्रत्य.)]


खंतरा
कोना, अंतरा।
संज्ञा
[सं. कांतार या हिं. अंतरा]


खंतरा
दरार।
संज्ञा
[सं. कांतार या हिं. अंतरा]


खंतरा
छोटा गढ़ा।
संज्ञा
[सं. कांतार या हिं. अंतरा]


खंदक
गड्ढा
संज्ञा
[अ.]


खंदक
दुर्ग के चारो ओर की गहरी खाई।
संज्ञा
[अ.]


खंदा
खोदनेवाला, नाश करने वाला।
दैत्य दलन गजदंत उपारन, कंस केसि धरि फंदा। सूरदास बलि जाइ जसोमति सुख के सागर दुख के खंदा।
संज्ञा
[हिं. खनना]


खँधवाना
खाली कराना।
क्रि. स.
[हिं. खाली]


खंधार
सेना के रहने की जगह, छावनी।
संज्ञा
[स्कंधवार]


खंधार
सामंत, सरदार।
संज्ञा
[सं. खंडपाल]


खँधियाना
किसी पदार्थ को पात्र से बाहर निकालना।
क्रि. स.
[हिं. खाली]


खंबारा
घबराहट, चिंता।
कंस परयौ मन इहै बिचारा। राम-कृष्ण बध इहै खंबारा - २४५९।
संज्ञा
[हिं. खंभार)


खंभ
स्तंभ, खंभा।
संज्ञा
[सं. स्तंभ, प्रा. खंभ]


खंभ
सहारा, आसरा।
संज्ञा
[सं. स्तंभ, प्रा. खंभ]


खंभा
स्तंभ।
संज्ञा
[हिं. खंभ]


खंभा
सहारा।
संज्ञा
[हिं. खंभ]


खंभार
चिंता
संज्ञा
[सं. क्षोभ]


खंभार
घबराहट।
संज्ञा
[सं. क्षोभ]


खंभार
डर, भय।
संज्ञा
[सं. क्षोभ]


खंभार
शोक।
संज्ञा
[सं. क्षोभ]


खंभारि, खंभारी
खलबली, व्याकुलता, घबराहट।
उ. - बहुत अचगरी जिनि करौ, अजहुँ तजौ झवारि। पकरि कंस लै जाइगौ, कालिहि परै खँभारि - ५८९। (ख) जैहै बात दूरि लौं ऐसी परिहै बहुरि खँभारि - १०८८।
संज्ञा
[हिं. खँभार]


खंभारि, खंभारी
चिंता, ठेस, शोक।
देखौ जाइ तहाँ हरि नाहीं, चकृत भई सुकुमारि। कबहुँक इत, कबहूँ उत डोलति, लागी प्रीति-खँभारि - ६७९।
संज्ञा
[हिं. खँभार]


खंभारि, खंभारी
एक वृक्ष।
संज्ञा
[सं. काश्मरी, प्रा. कम्हरी]


खंभारि, खंभारी
भयभीत कर दी, कँपा दी, विचलित कर दी।
धायौ पवनहुतै अति आतुर धरनी देह खभारी - २५९४।
क्रि. अ.


खंभारौ
डर, भय।
तब ब्रह्मा करि बिनय कह्यौ, हरि, याहि सँहारौ। तुम हौ लीला करत, सुरनि मन परयौ खँभारौ - ३ - ११।
संज्ञा
[हिं. खँभार]


खंमिया
छोटा खंभा।
संज्ञा
[हिं. खंभा]


खँव
खत्ता जिसमें अनाज भरा जाय।
संज्ञा
[सं. खं]


खँसना
गिरना, सरकना, खिसकना।
क्रि. अ.
[हिं. खसना]


आकाश।
संज्ञा
[सं.]


स्वर्ग।
संज्ञा
[सं.]


शून्य।
संज्ञा
[सं.]


ब्रह्म।
संज्ञा
[सं.]


शब्द।
संज्ञा
[सं.]


खइए
खाइए, भोजन कीजिए।
जूठा खइए मीठे कारन आपुहि खात लड़ावत - पृ. ३३१।
क्रि. स.
[सं. खादन, पा. खाअन, खान ; हिं. खाना]


खई
क्षय करनेवाली क्रिया।
संज्ञा
[सं. क्षयी]


खई
विरोध, तकरार, झगड़ा।
(क) सुत-सनेह-तिय कुटुम्ब मिलि, निसि दिन होत खई - १ - २९९। (ख) त्यौंरी भौंहन मोतन चितवै नैंक रहौ तौ करै खई - १२६१।

(ग) कहतहि पोच सोच मनही मन करत न बनति खई - २७९१। (घ) भोजन भवन कछू नहिं भावत पलकन मानौं करत खई सी - १६८३।

संज्ञा
[सं. क्षयी]


खई
युद्ध, लड़ाई।
संज्ञा
[सं. क्षयी]


खक्खा
जोर की हँसी।
संज्ञा
[अनु.]


खखरा
बाँस का टोकरा।
संज्ञा
[हिं. खंखड़]


खखरा
बड़ा देश।
संज्ञा
[हिं. खंखड़]


खखरिया
पतली कुरकुरी पूरी।
संज्ञा
[देश.]


खखसा
एक तरकारी।
संज्ञा
[हिं. खेखसा]


खखार
गाढ़ा कफ।
संज्ञा
[अनु.]


खखारना
खाँसना।
क्रि. अ.
[सं.क्षरण]


खखारना
खरखराहट के साथ कफ खींचना।
क्रि. अ.
[सं.क्षरण]


खखेटना
पीछा करना।
क्रि. स.
[सं. आखेट=शिकार]


खग
देवता।
संज्ञा
[सं.]


खग
सूर्य।
संज्ञा
[सं.]


खग
चंद्र।
संज्ञा
[सं.]


खग
वायु।
संज्ञा
[सं.]


खगउड़ा
एक तरह का कड़ा।
संज्ञा
[देश.]


खगकेतु
गरुड़।
संज्ञा
[सं.]


खगत
चित्त पर असर करती है, मन में बैठती है।
जाही सो लगत नैन ताही खगत बैन नख सिख लौं सब गात ग्रसति - १८६९।
क्रि. स.
[हिं. खगना]


खगना
गड़ना, चुभना।
क्रि. स.
[हिं. खाँग=काँटा]


खगना
चित्त पर प्रभाव डालना।
क्रि. स.
[हिं. खाँग=काँटा]


खगना
अनुरक्त होना।
क्रि. स.
[हिं. खाँग=काँटा]


खखेटना
घायल करना।
क्रि. स.
[सं. आखेट=शिकार]


खखेटना
दबाना, व्याकुल करना।
क्रि. स.
[सं. आखेट=शिकार]


खखेटा, खखेट्यौ
शंका, संदेह।
संज्ञा
[हिं. खखेटना]


खखेटा, खखेट्यौ
छिद्र।
संज्ञा
[हिं. खखेटना]


खखोंडर
पेड़ के खोखले में बना हुआ घोसला।
संज्ञा
[सं. ख+कोटर]


खखोरना
खोजना, छानबीन करना।
क्रि. स
[हिं. खखोलना]


खगंगा
आकाशगंगा।
संज्ञा
[सं.]


खग
पक्षी, चिड़िया।
संज्ञा
[सं.]


खग
गंधर्व।
संज्ञा
[सं.]


खग
वाण।
संज्ञा
[सं.]


खगे
लिप्त हुए, अनुरक्त हुए।
प्रफुलित बदन सरोज सुंदरी अति रस नैन रँगे | पुहुकर पुंडरीक पूरन मनो खंजन केलि खगे - पृ. ३५० (६४)।
क्रि. स.
[हिं. खगना]


खगे
अटके थे, अड़ रहे थे, उलझे थे।
न्हात रहीं जल में सब तरुनी तब तुम नैना कहाँ खगे -१३१८।
क्रि. स.
[हिं. खगना]


खगेश
गरुड़।
संज्ञा
[सं. खग+ईश]


खगी
पक्षी।
इहै कोऊ जानै री। वाकी चितवनि मैं कि चंद्रिका मैं किधौं मुरली माँझ ठगोरी। देखत सुनत मोहि जा सुर नर मुनि मृग और खगो री-२३६१।
संज्ञा
[सं. खग]


खगोल
आकाशमंडल।
संज्ञा
[सं.]


खगोल
खगोल विद्या, ज्योतिष।
संज्ञा
[सं.]


खग्ग
तलवार।
संज्ञा
[सं. खड्ग, प्रा. खग]


खग्रास
पूर्ण ग्रहण।
संज्ञा
[सं.]


खचन
जड़ना।
संज्ञा
[सं.]


खचन
अंकित या चित्रित करना।
संज्ञा
[सं.]


खगना
उभर आना, चिन्तित होना।
क्रि. स.
[हिं. खाँग=काँटा]


खगना
अटक जाना, अड़ रहना।
क्रि. स.
[हिं. खाँग=काँटा]


खगनाथ, खगनायक, खगपति
गरुड़।
संज्ञा
[सं.]


खगनाथ, खगनायक, खगपति
सूर्य।
संज्ञा
[सं.]


खगपतिअरि
शेषनाग।
जब दधि-रिपु हरि हाथ लियौ। खगपति-अरि डर, असुरनि संका, बासरपति आनंद कियौ - १० - १४३।
संज्ञा
[सं. खगपति=गरुड़+अरि= शत्रु]


खगभूप
गरुड़।
संज्ञा
[सं.]


खगभूप
सुआ, तोता।
सेमर-फूल सुरँग अति निरखत, मुदित होत खगभूप। परसत चोंच तूल उघरत मुख, परत दुःख कैं कूप -१-१०२।
संज्ञा
[सं.]


खगराइ
खगपति, गरुड़।
संज्ञा
[सं. खग+हिं. राय]


खगह
गैंडा।
संज्ञा
[हिं. खाँग= पैना दाँत]


खगी
उभर आयी, चिह्नित हो गयी।
यह सुनि धावत धरनि चरन की प्रतिमा खगी पंथ में पाई।
क्रि. स.
[हिं. खगना]


कढ़ो
बेसन को पतला करके और आग पर गाढ़ा करके बनाया जानेवाला एक प्रकार का सालन या भोजन।
(क) दाल-भात घृत कढ़ी सलोनी अरु नाना पकवान। आरोगत नृप चारि पुत्र मिलि अति आनन्द निधान। (ख) खाटी कड़ी बिचित्र बनाई। बहुत बार जेंवत रुचि आई - २३२१।
संज्ञा
[हिं. कढ़ना=गाढ़ा होना]


कढ़ै
निकले, बाहर हो, दूर हो।
सूर निरखि मुख हँसति जसोदा, सो सुख उर न कढ़ै - १० - १७४।
क्रि. अ.
[सं. कर्षण, पा. कड्ढ्न, हिं. कढ़ना]


कढ़ैया
कड़ाही।
संज्ञा
[हिं. कड़ाह]


कढ़ैया
निकालनेवाला।
संज्ञा
[हिं. काढ़ना]


कढ़ैया
उद्धार करनेवाला।
संज्ञा
[हिं. काढ़ना]


कढ़ोरना
घसीटना।
क्रि. स.
[सं. कर्षण]


कढ़ोरि
घसीटकर।
क्रि. स.
[हिं. कढ़ोरना]


कढ़ोरिबो
घसीटना।
क्रि. स.
[हिं. कढ़ोरना]


कढ़ोलना
घसीटना।
क्रि. स.
[हिं. कढ़ोरना]


कढ्यौ
निकला, बाहर आया।
(तब) लादि पंकज कढ़यौं बाहिर, भयौ ब्रज-मन-भावना–५७७।
क्रि. अ.
[सं. कर्षण, पा. कडढन, हिं. कढ़ना]


खचना
जड़ा जाना।
क्रि. अ.
[सं. खचन=बाँधना, जड़ना]


खचना
अंकित या चित्रित होना।
क्रि. अ.
[सं. खचन=बाँधना, जड़ना]


खचना
रमना, अड़जाना।
क्रि. अ.
[सं. खचन=बाँधना, जड़ना]


खचना
अटकना, फँसना।
क्रि. अ.
[सं. खचन=बाँधना, जड़ना]


खचर
सूर्य।
संज्ञा
[सं.]


खचर
मेघ।
संज्ञा
[सं.]


खचर
गृह।
संज्ञा
[सं.]


खचर
नक्षत्र।
संज्ञा
[सं.]


खचर
वायु।
संज्ञा
[सं.]


खचर
पक्षी।
संज्ञा
[सं.]


खज
जो खाने योग्य हो।
वि.
[सं. खाद्य, प्रा. खाज्‍ज]


खजला
एक पकवान।
संज्ञा
[हिं. खाजा]


खजहजा
उत्तम खाद्य।
संज्ञा
[सं. खाद्यान्न, प्रा. खज्जाज्‍ज]


खजहजा
खाने योग्य।
वि.


खजानची
कोषाध्यक्ष।
संज्ञा
[हिं. खजाना]


खजाना, खजीना
कोष, भंडार, धनागार।
संज्ञा
[अ. खजाना]


खजाना, खजीना
कर।
संज्ञा
[अ. खजाना]


खजुमा, खजुवा
खजला या खाजा नाम की मिठाई।
दोना मेलि धरे हैं खजुआ। हौंस होय तौ ल्याऊँ पूआ।
संज्ञा
[हिं. खाजा]


खजुलाना
शरीर को नाखून आदि से सहलाना या रगड़ना।
क्रि. स.
[हिं. खजुलाना]


खजुली
खुजलाहट।
संज्ञा
[हिं. खुजली]


खचर
आकाश में चलनेवाला।
वि.


खचरा
वर्णसंकर, दोगला।
वि.
[हिं. खच्चर]


खचरा
दुष्ट, नीच।
वि.
[हिं. खच्चर]


खचाई
अंकित या चिन्हित की।
क्रि. स.
[हिं. खचाना]


खचाई
अपनी खचाई- अपनी ही बात ऊपर रखी, दूसरे का तर्क न सुना। उ.- सुनौ धौं दै कान अपनी लोक लोकन क्रीति। सूर प्रभु अपनी खचाई रही निगमन जीति।
मु.


खचाखच
खूब भरा हुआ, ठसाठस।
क्रि. वि.
[अनु.]


खचाना
अंकित करना।
क्रि. स.
[हिं. खँचाना]


खचाना
शीघ्र लिखना, खींचना।
क्रि. स.
[हिं. खँचाना]


खचावट
खचन, गठन।
संज्ञा
[हिं. खाँचना]


खचावनो
जड़े हुए।
पटली बिच बिद्रुम लागे हीरा लाल खचावन-२२८०।
वि.
[हिं. खँचाना]


खचि
जड़कर।
(क) कंचन-खंभ, मयारि, मरुवा-ड़ाडी, खचि हीरा बिच लाल प्रबाल-१०-८४। (ख) किधौ बज्रकनि लाल नगनि खचि तापर बिद्रुम पाँति-१४१०।

(ग) विद्रुम स्फटिक पची कंचन खचि मनिमय मंदिर बने बनावत-१०-उ.-५। (घ) हम सर-घात ब्रजनाथ सुधानिधि राखे बहुत जतन करि सचि सचि। मन मुख भरि भरि नैन ऐन ह्वै उर प्रति कमल कोस लौं खचि खचि-२९०२।

क्रि. अ.
[हिं. खचना]


खचि
रमकर, अड़कर।
क्रि. अ.
[हिं. खचना]


खचित
जड़ा हुआ।
(क) कनक खचित मनिमय आभूषन, मुख स्रम-कन सुख-देत ६२८। (ख) चारु चक्र मनि खचित मनोहर चंचल चमर पताका-२५६६।
वि.
[सं. खचन=बाँधना, जड़ना]


खचित
चित्रित, लिखित।
वि.
[सं. खचन=बाँधना, जड़ना]


खची
अंकित हुई, चित्रित हुई।
देत भाँवरि कुंज मंडप पुलिन में बेदी रची। बैठे जो स्यामा स्याम बर त्रैलोक की सोभा खची।
क्रि. अ.
[हिं. खचना]


खची
जड़ी गई।
चौकी हेम चंद्र मनि लागी हीरा रतन जराय जरी-पृ. ३४५ (४१)।
क्रि. अ.
[हिं. खचना]


खचे
अटके, फँस गये।
नैना पंकज पंक खचे। मोहन मदन स्याम मुख निरखत भ्रुवन बिलास रचे - पृ. ३२५।
क्रि. अ.
[हिं. खचना]


खचेरना
दबाकर वश में करना।
क्रि. स.
[हिं. खदेरना]


खच्यौ
रम गया, अड़ गया, मग्न हो गया।
(क) आजु हरि ऐसे रास रच्यौ। ........। गत गुन मँद अभिमान अधिक रुचि लै लोचन मन तहँइ खच्यौ-पृ. ३५० (६६)। (ख) एक दिन बैंकुठबासी रास बृन्दाबन रच्यौ। सोई स्वरूप बिलोकि माधौ आइ इन बिधि तनु खच्यौ - ३२६०।
क्रि. अ. (भूत.)
[हिं. खचना]


खच्चर
एक पशु।
संज्ञा
[देश.]


खटकना
झगड़ा होना।
क्रि. अ.
[हिं. खटक (अनु.)]


खटकना
अनिष्ट या अपकार की आशंका होना।
क्रि. अ.
[हिं. खटक (अनु.)]


खटकना
अनुपयुक्त जान पड़ना।
क्रि. अ.
[हिं. खटक (अनु.)]


खटका
‘खटखट' शब्द।
संज्ञा
[हिं. खटकना]


खटका
डर, आशंका।
संज्ञा
[हिं. खटकना]


खटका
चिंता।
संज्ञा
[हिं. खटकना]


खटकाना
‘खटखट' करना।
क्रि. स.
[हिं. खटकना]


खटकी
खटक, खटकनेवाली बात।
काल्हि मैं कैसे निदरति ही मेरे चित पर टरति न खटकी - १३०१।
क्रि. अ.
[हिं. खटकना (अनु.)]


खटखट
ठोंकने पीटने का शब्द।
संज्ञा
[अनु.]


खटखट
खटपट, झगड़ा, झंझट।
संज्ञा
[अनु.]


खटखटाना
खटखट शब्द करना।
क्रि. स.
[अनु.]


खटना
धन कमाना।
क्रि. अ.
[हिं.]


खटना
बड़ी मेहनत करना।
क्रि. अ.
[हिं.]


खटना
विपत्ति में पीछे न हटना।
क्रि. अ.
[हिं.]


खटपट
टकराने या ठोंकने पीटने का शब्द।
संज्ञा
[अनु.]


खटपट
झगड़ा।
संज्ञा
[अनु.]


खटपटिया
झगड़ालू।
वि.
[हिं. खटपट]


खटपद
भौंरा।
संज्ञा
[सं. षट्पद]


खटपटी
छः पंक्तियों का छन्द।
संज्ञा
[सं. षट्पदी]


खटपटी
छप्पय छंद।
संज्ञा
[सं. षट्पदी]


खजुली
एक मिठाई।
संज्ञा
[हिं. खाजा]


खजूर, खजूरी
एक प्रकार की मिठाई।
मधुरी अति सरस खजूरी। सद परसि धरी घृत पूरी - १८३।
संज्ञा
[सं. खर्जूर, हिं. खजूर]


खजूर, खजूरी
खजूर का फल, खजूर।
संज्ञा
[सं. खर्जूर, हिं. खजूर]


खट
टूटने, टकराने या ठोंकने-पीटने का शब्द।
संज्ञा
[अनु.]


खटक
खटकने की क्रिया।
संज्ञा
[अनु.]


खटक
आशंका, चिंता।
संज्ञा
[अनु.]


खटकत
बुरा लगता है, खलता है।
बल मोहन खटकट वाकैं मन, आजु कही यह बात-५२७।
क्रि. अ.
[हिं. खटकना]


खटकना
‘खटखट’ का शब्द होना।
क्रि. अ.
[हिं. खटक (अनु.)]


खटकना
किसी चीज के गड़ने, चुभने या आ पड़ने से पीड़ा होना
क्रि. अ.
[हिं. खटक (अनु.)]


खटकना
बुरा लगना।
क्रि. अ.
[हिं. खटक (अनु.)]


खटापट, खटपटी
लड़ाई, झगड़ा, तकरार।
संज्ञा
[हिं. खटपट]


खटाव
निर्वाह, निभना।
संज्ञा
[हिं. खटाना]


खटास
खट्टापन।
संज्ञा
[हिं. खट्टा]


खटिक
तरकारी बेचनेवाली एक जाति।
संज्ञा
[सं. खट्टिक]


खटीक
खटिक।
संज्ञा
[हिं. खटिक]


खटीक
कसाई।
संज्ञा
[हिं. खटिक]


खटोलना,खटोला
बच्चों की खाट।
संज्ञा
[हिं. खाट+ओला (प्रत्य.)]


खटोलना,खटोला
पालना।
संज्ञा
[हिं. खाट+ओला (प्रत्य.)]


खटोलना,खटोला
पालकी।
संज्ञा
[हिं. खाट+ओला (प्रत्य.)]


खट्टा
अम्ल, तुर्श।
वि.
[सं. कटु]


खटपाटी
खाट की पाटी।
संज्ञा
[हिं. खाट+पाटी]


खटमल
खटकीड़ा।
संज्ञा
[हिं. खाट+मल=मैल]


खटमिट्ठा, खटमीठा
जो कुछ खट्टा हो और कुछ मीठा।
वि.
[हिं. खट्टा+मीठा]


खटमुख
कार्तिकेय।
संज्ञा
[सं. षटमुख]


खटरस
खट्टा, मीठा, कड़ाआ,तीखा अदि छः रस।
संज्ञा
[सं. षट्+रस]


खटरार
झंझट, झगड़ा, बखेड़ा।
संज्ञा
[षट्‍राग]


खटरार
व्यर्थ की चीजें।
संज्ञा
[षट्‍राग]


खटला
कान का छेद जिसमें स्त्रियाँ बालियाँ पहनती हैं।
संज्ञा
[देश.]


खटवाट, खटवाटी, खटवाटू
खाट की पट्टी।
संज्ञा
[हिं. खाट+ पाटी]


खटाई
खट्टापन, अम्लता।
(क) भरता भँटा खटाई दीनी - २३२१।
संज्ञा
[हिं. खट्टा]


खटाई
वह पदार्थ जिसका स्वाद खट्टा हो।
संज्ञा
[हिं. खट्टा]


खटाका
‘खट’ का शब्द।
संज्ञा
[अनु.]


खटाखट
खटखट का शब्द।
संज्ञा
[अनु.]


खटाखट
चटपट।
क्रि. वि.


खटाखट
जल्दी।
क्रि. वि.


खटाति
निर्वाह होता है, निभता है।
मधुकर कह कारे की न्याति। ज्यों जल मीन कमल मधुपन कौ छिन नहिं प्रीति खटाति - ३१६८।
क्रि. अ.
[हिं. खटाना]


खटाति
परीक्षा में ठहरता है।
क्रि. अ.
[हिं. खटाना]


खटाना
(किसी वस्तुका) खट्टा हो जाना।
क्रि. अ.
[हिं. खट्टा]


खटाना
निर्वाह होना, निभना।
क्रि. अ.
[सं. स्कभू, स्कब्ध; प्रा. खडु=ठहरा हुआ]


खटाना
परीक्षा में डटे रहना।
क्रि. अ.
[सं. स्कभू, स्कब्ध; प्रा. खडु=ठहरा हुआ]


कंज
कमल।
संज्ञा
[सं.]


कंज
अमृत।
संज्ञा
[सं.]


कंज
सिर के बाल, केश।
संज्ञा
[सं.]


कंजई
धुएँ के रंग का, खाकी।
वि.
[हिं. कंजा]


कंजई
खाकी रंग।
संज्ञा


कंजई
कंजई रंग की आँख का घोड़ा।
संज्ञा


कंजज
कमल से उत्पन्न, ब्रह्मा।
संज्ञा
[सं. कंज + ज]


कंजा
राधा की एक सखी का नाम।
कहि राधा किन हार चोरायो। ब्रज जुवतिन सबहिन मैं जानति घट - घट लै लै नाम बतायो। अमला अवला कंजा मुकुता हीरा नीला प्यारि - १५८० |
संज्ञा
[सं. कंज]


कंजा
एक कटीली झाड़ी।
संज्ञा
[सं. करँज]


कंजा
गहरे खाकी की रंग की।
वि.


कण
किनका, रवा या जर्रा।
संज्ञा
[सं.]


कण
चावल का छोटा टुकड़ा।
संज्ञा
[सं.]


कण
अन्न के दो-चार दाने।
संज्ञा
[सं.]


कण
भिक्षा।
संज्ञा
[सं.]


कणकण
कंकण के बजने का शब्द।
संज्ञा
[सं. कंकणक]


कणिका
किनका, कण, छोटा टुकड़ा।
संज्ञा
[सं.]


कण्व
एक ऋषि जिन्होंने शकुन्तला को पाला था।
संज्ञा
[सं.]


कत
क्यों, किस लिए, काहे को।
(क) सूरदास भगवंत भजन बिनु धरनी जननि बोझ कत मारी ? - १ - ३४। (ख) काल-ब्याल, रज-तम-बिष-ज्वाला कत जड़ जंतु जरत - १ - ५५। (ग) छये पति कत जात खेलत कान मेरे प्रान - सा० ९३।
अव्य.
[सं. कुतः, पा. कुतो]


कतई
निपट, बिलकुल।
क्रि. वि.
[अ.]


कतक
किस लिए, क्यों।
अव्य.
[सं. कुतः]


खट्टा
पलँग, चारपाई।
संज्ञा
[सं. खट्‍वा]


खट्वांग
एक सूर्यवंशी राजा।
संज्ञा
[सं.]


खट्वांग
शिव का एक अस्त्र।
संज्ञा
[सं.]


खट्वा
खटिया, चारपाई।
संज्ञा
[सं.]


खड़
धान का पयाल।
संज्ञा
[सं.]


खड़
घास।
संज्ञा
[सं.]


खड़
एक ऋषि।
संज्ञा
[सं.]


खड़क
खटकने का भाव, खटक।
संज्ञा
[हिं. खटक]


खड़कना
खड़ खड़ का शब्द होना।
क्रि. अ.
[अनु.]


खड़कना
खटकना।
क्रि. अ.
[अनु.]


खड़खड़ाना
खड़ खड़ का शब्द करना।
क्रि. स.
[अनु.]


खड़खड़ाना
खटखटाना।
क्रि. स.
[अनु.]


खड़खड़ाना
खड़ खड़ का शब्द होना।
क्रि. अ.


खड़खड़िया
पालकी, पीनस।
संज्ञा
[हिं. खड़खड़ाना]


खड़ग
तलवार।
संज्ञा
[सं. खड्ग]


खड़गी
जो तलवार लिये हो।
वि.
[सं. खड्गिन]


खड़गी
गैंडा।
संज्ञा
[सं. खड्ग]


खड़जी
गैंडा।
संज्ञा
[हिं. खड्गी]


खड़बड़
खटखट की ध्वनि।
संज्ञा
[अनु.]


खड़बड़
उलट-फेर, गड़बड़।
संज्ञा
[अनु.]


खड़बड़
हलचल।
संज्ञा
[अनु.]


खड़बड़ाना
घबड़ाना।
क्रि. अ.
[अनु.]


खड़बड़ाना
उलट-फेर का होना।
क्रि. अ.
[अनु.]


खड़बड़ाना
घबरा देना।
क्रि. अ.
[अनु.]


खड़बड़ी
उलट फेर, गड़बड़ी।
संज्ञा
[हिं. खड़बड़ाना]


खड़बड़ी
घबराहट।
संज्ञा
[हिं. खड़बड़ाना]


खड़बिड़ा, खड़बीहड़
ऊँचा--नीचा, जो समतल न हो।
वि.
[हिं.खड्ड+सं. विघट, प्रा. बिहड़]


खड़मंडल
गड़बड़, झंझट, झमेला।
संज्ञा
[सं. खंड+मंडल]


खड़मंडल
उलट-पुलट, नष्ट-भ्रष्ट।
वि.


खड़सान
बहुत तीक्ष्ण सान जिस पर तलवार उतारी जाती है।
संज्ञा
[हिं. खर+सान]


खड़ुआ
हाथ या पाँव का कड़ा।
संज्ञा
[हि. कड़ा]


खड्ग
तलवार।
शूद्रराज इहि अन्तर आयौ। वृषभ-गाइ कौं पाइ चलायौ। ताहि परीछित खंग उठाइ। बहुरौ बचन कह्यौ या भाइ -१ २९०।
संज्ञा
[सं.]


खड्गकोश
म्यान।
संज्ञा
[सं]


खड्गपत्र
एक वृक्ष जो यमराज के यहाँ है और जिसमें पत्तियों की जगह तलवारें कटारें आदि लगी हैं। पापियों को इसपर चढ़ने का दंड दिया जाता है।
संज्ञा
[सं.]


खड्गपुत्र
एक तरह की कटारी।
संज्ञा
[सं.]


खड्गारीट
चमड़े की ठील।
संज्ञा
[सं.]


खड्गिक
शिकारी।
संज्ञा
[सं.]


खड्गी
वह जो तलवार लिये हो।
संज्ञा
[सं. खड़गिन्]


खड्गी
गैंडा।
संज्ञा
[सं. खड़गिन्]


खड्ड, खड्ढा
गढ़ा।
संज्ञा
[सं. खात्]


खड़हर
टूटा-फूटा मकान, मन्दिर आदि।
संज्ञा
[हिं. खँडहर]


खड़ा
समकोण उठा हुआ, दंड की तरह सीधा।
वि.
[सं. खड़क=खम्भा, थूनी]


खड़ा
खड़े खड़े- झटपट।

खड़ा जवाब- साफ इन्कार। खड़ा होना- सहायता करना। खड़ी पछाड़ें खाना- बहुत क्षोभ से पृथ्वी पर गिरना।

मु.


खड़ा
टिका हुआ, स्थिर।
वि.
[सं. खड़क=खम्भा, थूनी]


खड़ा
उत्पन्न।
वि.
[सं. खड़क=खम्भा, थूनी]


खड़ा
सन्नद्ध, तैयार।
वि.
[सं. खड़क=खम्भा, थूनी]


खड़ा
आरंभ।
वि.
[सं. खड़क=खम्भा, थूनी]


खड़ा
बनाया हुआ, उठाया हुआ।
वि.
[सं. खड़क=खम्भा, थूनी]


खड़ा
तैयार, जो काटी न गयी हो।
वि.
[सं. खड़क=खम्भा, थूनी]


खड़ा
८) जो पका न हो, कच्चा।
वि.
[सं. खड़क=खम्भा, थूनी]


खड़ा
समूचा, पूरा।
वि.
[सं. खड़क=खम्भा, थूनी]


खड़ा
जो बहता हुआ न हो।
वि.
[सं. खड़क=खम्भा, थूनी]


खड़ाऊँ
पादुका।
संज्ञा
[हिं. काठ+पाँव; या खटपट अनु.]


खाका
खड़खड़ शब्द, खटका।
संज्ञा
[अनु.]


खड़ानन
कार्तिकेय।
संज्ञा
[सं. षडानन]


खड़िया
एक तरह की सफेद मिट्टी, खड़ी।
संज्ञा
[सं. खटिका]


खड़िया
खड़िया में कोयला- बेमेल बात।
मु.


खड़िया
फली-पत्ती रहित अरहर का पेड़ या डंठल।
संज्ञा
[सं. कांड या हिं. खड़ा]


खड़ी
खड़िया मिट्टी।
संज्ञा
[हिं. खड़िया]


खड़ी बोली
आधुनिक हिंदी का वह रूप जिसका प्रचार सारे भारत में है। इसमें संस्कृत के साथ साथ अरबी, फारसी के भी प्रचलित शब्द घुले-मिले हैं।
संज्ञा
[हिं. खड़ी+बोली]


खणक
चूहा।
संज्ञा
[सं. खनक]


खतंग
एक तरह का कबूतर।
संज्ञा
[देश.]


खत
चिट्टी, पत्र।
संज्ञा
[अ. ख़त]


खत
लिखावट।
संज्ञा
[अ. ख़त]


खत
रेखा, धारी।
संज्ञा
[अ. ख़त]


खत
दाढ़ी के बाल।
संज्ञा
[अ. ख़त]


खत
पृथ्वी।
संज्ञा
[सं. क्षिति, प्रा. खिति)


खत
घाव।
संज्ञा
[सं. क्षत]


खतखोट
घाव की सुखी हुई ऊपरी पपड़ी, खुरंड।
संज्ञा
[सं. क्षत+हिं. खुडु]


खतना
खाते में लिखा जाना, खतियाया जाना।
अ.
[हिं. खाता]


खतियाना
प्रतिदिन का आय-व्यय अलग-अलग खातों या मदों में लिखना।
क्रि. स.
[हिं. खत्ता]


खतियावै
प्रति दिन की आय-व्यय आदि खातों में यथानुसार लिखता है।
साँचौ सो लिखहार कहावै।....। बट्टा काटि कसूर भरम कौ, फरद तले लै डारे। निहचै एक असल में राखै, टरैं न कबहूँ टारै। करि अवारजा प्रेम प्रीति कौ, असल तहाँ खतियावै। दूजे करज दूरि करि दैयत, नैंकु न तामैं आवै–२-१४२।
क्रि. स.
[हिं. खाता, खतियाना]


खतियौनी
अय-व्यय का खाता।
संज्ञा
[हिं. खतियाना]


खतियौनी
खतियाने की क्रिया।
संज्ञा
[हिं. खतियाना]


खतियौनी
लगान आदि लिखने का कागज।
संज्ञा
[हिं. खतियाना]


खत्ता
अन्न रखने का गड्ढा।
संज्ञा
[सं. खात]


खत्ता
प्रांत, स्थान।
संज्ञा
[सं. खात]


खत्म
समाप्त, जो चुक गया हो।
वि.
[हिं. खतम]


खत्रवट, खत्रवाट
वीरता।
संज्ञा
[सं. क्षत्री+वट (प्रत्य.)]


खदंग
वाण, तीर।
संज्ञा
[फा.]


खतम
समाप्त।
वि.
[अ. ख़त्म]


खतर, खतरा
डर।
संज्ञा
[अ. ख़तर, ख़तरा]


खतर, खतरा
आशंका।
संज्ञा
[अ. ख़तर, ख़तरा]


खता
कसूर, अपराध।
सूरदास चरननि की बलि-बलि, कौन खता तैं कृपा बिसारी-१-१६०।
संज्ञा
[अ. ख़ता]


खता
धोखा।
संज्ञा
[अ. ख़ता]


खता
भूल चूक।
संज्ञा
[अ. ख़ता]


खता
घाव।
संज्ञा
[सं. क्षत]


खतावार
अपराधी, दोषी।
वि.
[हिं. खता+वार]


खति
हानि, नुकसान।
संज्ञा
[सं. क्षति]


खतिया
छोटा गड्ढा।
संज्ञा
[हिं. खत्ता]


खदंग
जुगनू।
संज्ञा
[सं.]


खदंग
सूर्य।
संज्ञा
[सं.]


खदखदाना, खदबदाना
किसी चीज को इतना उबालना कि ‘खदबद' शब्द होने लगे।
क्रि. अ.
[अनु.]


खुदरा
गड्ढा।
संज्ञा
[हिं. खत्ता]


खुदरा
बछड़ा।
संज्ञा
[हिं. खत्ता]


खुदरा
बेकाम चीज, रद्दी।
वि.
[सं. क्षुद्र]


खदान
खान जिसमें से खनिज पदार्थ निकलते हैं।
संज्ञा
[हिं. खोदना या खान]


खदिर
कत्था।
संज्ञा
[सं.]


खदिर
चंद्रमा।
संज्ञा
[सं.]


खदिर
इंद्र।
संज्ञा
[सं.]


कतक
किस परिणाम या मात्रा का।
वि.
[सं. कियत, हिं. कितना]


कतरना
किसी औजार या कैंची से कतरना।
क्रि. स.
[सं. कर्तन]


कतरना
बड़ी कैंची।
संज्ञा


कतरना
वह व्यक्ति जो बीच में बात काट देता हो।
संज्ञा


कतर-ब्योंत
काट-छाँट।
संज्ञा
[हिं. कतरना+ब्योंतना]


कतर-ब्योंत
उलट-फेर।
संज्ञा
[हिं. कतरना+ब्योंतना]


कतर-ब्योंत
सोचविचार।
संज्ञा
[हिं. कतरना+ब्योंतना]


कतर-ब्योंत
युक्ति, जोड़-तोड़।
संज्ञा
[हिं. कतरना+ब्योंतना]


कतलबाज
बधिक, हत्यारा, मारनेवाला।
संज्ञा
[अ. क़त्ल+ फ़ा. बाज़]


कतली
एक प्रकार की मिठाई या पकवान।
संज्ञा
[हिं. कतरना]


खदुका
ऋणी।
संज्ञा
[सं. खादक]


खदुका
ऋण लेकर व्यापार करनेवाला।
संज्ञा
[सं. खादक]


खदेड़ना, खदेरना
भगाना, दूर हटाना।
क्रि. स.
[हिं. खेदना]


खद्दड़, खद्दर
हाथ से काते सूत का हाथ से बुना कपड़ा।
संज्ञा
[देश.]


खद्योत
जुगनूँ।
संज्ञा
[सं.]


खद्योत
सूर्य।
संज्ञा
[सं.]


खद्योतक
सूर्य।
संज्ञा
[सं.]


खद्योतक
विषैले फल का एक वृक्ष।
संज्ञा
[सं.]


खन
क्षण, पल भर का समय, लमहा।
खन भीतर, खन बाहिर आवति, खन आँगन इहिं भाँति-५४०।
संज्ञा
[सं. क्षण]


खन
समय।
संज्ञा
[सं. क्षण]


खन
तत्काल।
खन गोपी कै पाँइँ परै धन सोई है नेम -३४४३।
संज्ञा
[सं. क्षण]


खन
तुरंत।
क्रि. वि.


खन
मंजिल, तल्ला, मरातिब।
संज्ञा
[सं. खंड]


खन
एक वृक्ष।
संज्ञा
[देश.]


खन
एक कपड़ा।
संज्ञा
[देश.]


खनक
खनखनाहट।
संज्ञा
[खन से अनु.]


खनक
चूहा।
संज्ञा
[सं.]


खनक
चोर जो सेंध लगाये।
संज्ञा
[सं.]


खनक
खोदनेवाला।
संज्ञा
[सं.]


खनक
भूतत्व।
संज्ञा
[सं.]


खपड़ा
भिखमंगों का खप्पर।
संज्ञा
[सं. खपरि, प्रा. खप्पट]


खपड़ा
ठीकरा।
संज्ञा
[सं. खपरि, प्रा. खप्पट]


खपड़ा
चौड़े फल का तीर।
संज्ञा
[सं. क्षुरपत्र]


खपड़ैल
खपड़ों से छायी हुई छत।
संज्ञा
[हिं. खपरैल]


खपत
समाई, गुंजाइश।
संज्ञा
[हिं. खपना]


खपत
माल की बिक्री।
संज्ञा
[हिं. खपना]


खपत
खपता है, काम में आता है।
क्रि. अ.


खपना
काम में आना, व्यय होना।
क्रि. अ.
[सं. क्षेपण]


खपना
निभ जाना।
क्रि. अ.
[सं. क्षेपण]


खपना
नष्ट होना।
क्रि. अ.
[सं. क्षेपण]


खनकना
खनखन शब्द होना।
क्रि. अ.
[अनु.]


खनकाना
खनखन शब्द करना।
क्रि. स.
[अनु.]


खनखनाना
खनखन शब्द करना।
क्रि. अ.
[अनु.]


खनन
खोदने का कार्य।
संज्ञा
[हिं. खनना]


खननहारा
खोदनेवाला।
वि.
[हिं. खनना+हारा]


खनना
खोदना।
क्रि. स.
[सं. खनन]


खनना
(खेत आदि) गोड़ना।
क्रि. स.
[सं. खनन]


खनवाना
खुदवाना।
क्रि. स.
[हिं. खनाना]


खनहन
निर्बल।
वि.
[सं. क्षीण+हीन]


खनहन
निर्दोष, सुन्दर।
वि.
[सं. क्षीण+हीन]


खनाना
खनने को प्रेरित करना, खुदवाना।
क्रि. स.
[हिं. खनना]


खनावत
खोदते हैं, खोदकर, खोदने (से)।
वे हरि रत्न रूप सागर के क्यों पाइए खनावत घूरे (धूरे) -३०४२।
क्रि. स.
[हिं. खनना]


खनावै
खोदवाता है।
(क) परम गंग कौं छाँड़ि पियासौ दुरमति कूप खनावै-१-१६८। (ख) बसत सुरसरी तीर मंदमति कूप खनावै-२-९।
क्रि. स.
[हिं. खनना' का प्रे.]


खनि
खोदकर।
(क) कूप खनि कह जाइ रे नर, जरत भवन बुझाइ। सूर हरि कौ भजन करि लै, जनम-मरन नसाइ -१-३१५। भरत भवन खनि कूप सूर त्यौं मदन अगिनि दहि जैहै-२०३४।
क्रि. स.


खनिज
खान से खोदकर निकाला हुआ।
वि.
[सं.]


खनियाना
खाली करना।
क्रि. स.
[हिं. खनना]


खनोना
खोदना, कुरेदना।
क्रि. स.
[हिं. खनना]


खनोवति
खोदती है।
द्रुम साखा अवलंब बेलि गहि नख सों भूमि खनोवति -१८००।
क्रि. स.
[हिं. खनना]


खपची
बाँस की पतली तीली।
संज्ञा
तु. कमची]


खपड़ा
खपड़ैल में लगाये जानेावले मिट्टी के पके हुए टुकड़े।
संज्ञा
[सं. खपरि, प्रा. खप्पट]


खबर
समाचार।
संज्ञा
[अ. ख़बर]


खबर
खबर उड़ना (फैलना)- चर्चा होना।

खबर लेना- (१) समाचार जानना। (२) ध्यान देना, दया दिखाना। (३) दंड देना।

मु.


खबर
सूचना, जानकारी।
संज्ञा
[अ. ख़बर]


खबर
संदेश।
संज्ञा
[अ. ख़बर]


खबर
पता, खोज।
संज्ञा
[अ. ख़बर]


खबर
सुध, चेत।
संज्ञा
[अ. ख़बर]


खबरगीरी
देखभाल।
संज्ञा
[फा. ख़बरगीरी]


खबरगीरी
दया, सहायता।
संज्ञा
[फा. ख़बरगीरी]


खबरदार
होशियार, सावधान।
वि.
[फ़ा ख़बरदार]


खबरदारी
होशियारी, सावधानी।
संज्ञा
[फ़ा ख़बरदारी]


खपना
तंग हो जाना।
क्रि. अ.
[सं. क्षेपण]


खपर
खप्पर, टूटा हुआ पात्र जो भिखारियों के पास रहता है।
गोपालहिं पावौं धौं किहिं देस। सृंगी मुद्रा कनक खपर करिहौं जोगिन भेष-२७५४।
संज्ञा
[हिं. खपड़ा]


खपरैल
खपड़े से छायी छाजन या छत।
संज्ञा
[हिं. खपड़ा]


खपाना
काम में लगाना।
क्रि. स.
[सं. क्षेपण]


खपाना
निभाना।
क्रि. स.
[सं. क्षेपण]


खपाना
स्वारथ करना, समाप्त करना।
क्रि. स.
[सं. क्षेपण]


खपाना
तंग करना।
क्रि. स.
[सं. क्षेपण]


खपायौ
नष्ट कर दी।
मैना मेघनायक रितु पावस बान बृष्टि करि सैन खपायौ।
क्रि. स. (भूत.)
[हिं. खपाना]


खपुआ
कायर,डरपोंक।
वि.
[हिं. खपना=नष्ट होना]


खपुर
सुपारी का पेड़।
संज्ञा
[सं.]


खपुर
बघनखा।
संज्ञा
[सं.]


खपुष्प
आकाशकुसुम।
संज्ञा
[सं.]


खपुष्प
असंभव बात।
संज्ञा
[सं.]


खप्पड़, खप्पर
मिट्टी का चौड़ा पात्र जो भिखारियों के पास रहता है।
हृदय सींगी टेर मुरली नैन खप्पर हाथ - ३१२६।
संज्ञा
[सं. खर्पर]


खफगी
नाराजगी, क्रोध।
संज्ञा
[हिं. खफा]


खफा
अप्रसन्न।
वि.
[अ. ख़फा]


खफा
क्रुद्‍ध।
वि.
[अ. ख़फा]


खफीफ
थोड़ा, कम।
वि.
[अ. ख़फ़ीफ]


खफीफ
सामान्य।
वि.
[अ. ख़फ़ीफ]


खफीफ
लज्जित।
वि.
[अ. ख़फ़ीफ]


खम
गाते समय स्वर में लोच लाने के लिए लिया जाने वाला विश्राम।
संज्ञा
[फ़ा. ख़म]


खमकना
खमखम शब्द होना।
क्रि. अ.
[अनु.]


खमदार
टेढ़ा।
वि.
[हिं. खम+दार]


खमा
क्षमा, दया।
संज्ञा
[सं. क्षमा]


खमीर
गीले आटे का सड़ाव।
संज्ञा
[अ. खमीर]


खमीर
सड़ा कर तैयार किया हुआ पदार्थ
संज्ञा
[अ. खमीर]


खमीर
स्वभाव।
संज्ञा
[अ. खमीर]


खमीरा
जिसमें खमीर मिला हो।
वि.
[अ. खमीरा]


खय
गबन।
संज्ञा
[अ]


खय
चोरी।
संज्ञा
[अ]


खब्ती
सनकी, झक्की।
वि.
[हिं. खब्त]


खब्‍भड़
दुबला, जिसके हड्डियाँ निकली हों।
वि.
[हिं. खाबड़]


खभरना
मिलाना, (एक वस्तु में दूसरी का) मेल करना।
क्रि. स.
[हिं. भरना]


खभरना
उथल-पुथल करना।
क्रि. स.
[हिं. भरना]


खभार
चिंता।
संज्ञा
[हिं. खँभार]


खभार
दुख।
संज्ञा
[हिं. खँभार]


खभार
व्याकुलता।
संज्ञा
[हिं. खँभार]


खभारे
अंदेशा, चिंता।
कैसेहुँ ये बालक दोउ उबरैं, पुनि पुनि सोचति परी खभारे। सूर स्याम यह कहत जननिसों, रहि री मा धीरज उर धारे - ५९५।
संज्ञा
[हिं. खँभार]


खम
दोष, टेढ़ापन।
संज्ञा
[फ़ा. ख़म]


खम
खम खाना- (१) दब जाना। (२) हारना।

खम ठोकना (बजना)- (१) ताल ठोककर लड़ने को ललकारना। (२) दृढ़ होना।

मु.


कतवार
कातनेवाला।
संज्ञा
[हिं. कातना]


कतवार
कूड़ा-करकट।
संज्ञा
[हिं. पतवार=पताई]


कतहुँ, कतहूँ
कहीं, किसी जगह।
ममता-घटा मोह की बूँदैं, सरिता मैन अपारौ ! बूड़त कतहुँ थाह नहिं पावत, गुरुजन ओट अधारौ - १ - २०९।
अव्य.
[हिं. कत+हूँ]


कता
बनावट, आकृति।
संज्ञा
[अ. क़तअ]


कता
ढंग, रीति।
संज्ञा


कता
काट-छाँट।
संज्ञा


कतान
एक तरह का बढ़िया कपड़ा।
संज्ञा
[सं.]


कतार
पाँति, पंक्ति, श्रेणी।
संज्ञा
[अ. क़तार]


कतार
समूह, झुंड।
संज्ञा
[अ. क़तार]


कतारी
ढंग।
संज्ञा
[हिं. कतार]


खबरि
समाचार, वृत्तांत।
(क) किंधौं सूर कोई ब्रज पठयो, आजु खबरि के पावत हैं - २९४६। (ख) द्वारावति पैठत हरि सों सब लोगन खबरि जनाई - १० उ. - २७।
संज्ञा
[अ. ख़बर]


खबरि
सूचना, ज्ञान, जानकारी।
(क) क्यों जू खबरि कहौ यह कीन्हीं करत परस्पर ख्याल - २४२७। (ख) कूदि परयौ चढ़ि कदम तैं खबरि न करौ सबेर - ५८९।
संज्ञा
[अ. ख़बर]


खबरि
संदेश, सँदेसा।
ज्ञान बुझाइ खबरि दै आवहु एक पंथ द्वै काज - २९२५।
संज्ञा
[अ. ख़बर]


खबरि
चेत, सुधि, संज्ञा।
संज्ञा
[अ. ख़बर]


खबरि
पता, खोज।
अपने कुल की खबरि करौ धौं सकुच नहीं जिय आवति - ११७४
संज्ञा
[अ. ख़बर]


खबरि
खबरि करि- ध्यान देकर, खबरदारी से पता लगाकर, समझ-बूझकर। अपनी बात खबरि करि देखहु न्हात जमुन के तीर - ११४०।
मु.


खबरिया
समाचार, वृत्तांत।
संज्ञा
[हिं. खबर]


खबरी
समाचार लाने या ले जानेवाला, दूत।
संज्ञा
[फ़ा. ख़बरी]


खबीस
दुष्ट, भयंकर।
संज्ञा
[अ. ख़बीस]


ख़ब्त
सनक, झक।
संज्ञा
[अ. ख़ब्त]


खया
भुजमूल, दंड।
संज्ञा
[सं. स्कंध]


खयानत
धरोहर का कुछ भाग दबा लेना।
संज्ञा
[अ. खयानत]


ख़याल
ध्यान,
संज्ञा
[हिं. ख़याल]


ख़याल
याद।
संज्ञा
[हिं. ख़याल]


ख़याल
विचार।
संज्ञा
[हिं. ख़याल]


खयाली
कल्पित, फर्जी।
वि.
[हिं. ख्याल]


खयाली
कौतुकी, खिलाड़ी।
वि.
[हिं. खेल]


खये
भुजमूल।
अंचल उड़त मन होत गहगहो फरकत नैन खये - १० उ. - १०७।
संज्ञा
[सं. स्कंध, हिं. खया]


खर
गधा।
संज्ञा
[सं.]


खर
रावण का भाई जिसे राम ने मारा था।
संज्ञा
[सं.]


खर
घास, तृण।
संज्ञा
[सं.]


खर
कड़ा।
वि.


खर
तेज, तीक्ष्ण।
वि.


खर
तेज धार का।
वि.


खर
हानिकारी।
वि.


खर
आड़ा, तिरछा।
वि.


खर
खरापन, खराई।
संज्ञा
[हिं. खरा]


खर
कड़ा, करारा।
संज्ञा
[सं खर= तेज]


खरक
पशुओं के रखने का बाड़ा जो प्रायः आड़ी-सीधी बल्लियाँ खंभे गाड़कर तैयार किया जाता है।
संज्ञा
[सं खड़क=स्थाणु]


खरक
चराई का स्थान।
संज्ञा
[सं खड़क=स्थाणु]


खरक
खटका, खटकने का भाव।
संज्ञा
[हिं. खटक (अनु.)]


खरक
भय, आशंका।
संज्ञा
[हिं. खटक (अनु.)]


खरक
पीड़ा।
हाहा चल प्यारा तेरो प्यारो चौंकि चौंकि परै पातकी खरक पिय हिय में खरक रही - २२३६।
संज्ञा
[हिं. खटक (अनु.)]


खरक
रह रह कर पीड़ा होना।
क्रि. अ.
[हिं. खटकना]


खरकना
फाँस चुभने का दर्द होना।
क्रि. अ.
[हिं. खर]


खरकना
चल देना, भाग जाना, सरक जाना।
क्रि. अ.
[हिं. खर]


खरकना
खड़खड़ शब्द करना।
क्रि. अ.
[हिं. खड़कना (अनु.)]


खरका
तिनका।
संज्ञा
[हिं. खर]


खरका
पशुओं का बाड़ा।
संज्ञा
[हिं. खरक]


खरका
चराई का स्थान।
संज्ञा
[हिं. खरक]


खरको, खरकौ
खटका, ‘खटकने' का भाव।
ननदी तौन दिए बिनु गारी नैकहु रहति सासु सपनेहू में आनि गोउति काननि में लए रहै मेरे पाँइन को खरकौ - १४९२।
संज्ञा
[हिं. खटक (अनु.)]


खरखशा
झगड़ा, बखेड़ा, झंझट।
संज्ञा
[फ़ा. खरख़शा]


खरखशा
भय, डर।
संज्ञा
[फ़ा. खरख़शा]


खरखौकी
घास-फूल भक्षण करनेवाली अग्नि।
संज्ञा
[हिं. खर=घास-फूस+खाना]


खरग
तलवार।
संज्ञा
[सं. खड्ग]


खरगोश
खरहा।
संज्ञा
[फा.]


खरच
व्यय, दाम।
सूरदास कछु खरच न लागत, राम नाम मुख लेत - १ - २९६।
संज्ञा
[अ. खर्ज, हिं. खर्च]


खरचना
खर्च करना।
क्रि. स.
[फा. खर्च]


खरचना
उपयोग में लाना।
क्रि. स.
[फा. खर्च]


खरचा
खर्च, व्यय।
संज्ञा
[हिं. खर्चा]


खरचि
व्यय करना, खर्च करना।
खाई न सकै, खरचि नहिं जानै, ज्यौं भुवंग-सिर रहत मनी - १ - ३९।
क्रि. स.
[हिं. खरचना]


खरचियतु
व्यय करना, खरचना।
यामें कछू खरचियतु नाही अपनो मतो न दीजै - २९७२।
क्रि. स.
[हिं. खरचना]


खरचै
व्यय करता है।
खरचै लाख, लिखै नहिं एक - ४ - १३।
क्रि. स.
[हिं. खरचना]


खरतर
बहुत तेज।
वि.
[हिं. खर+तर (प्रत्य.)]


खरतर
व्यवहार का खरा और सच्चा।
वि.
[हिं. खर+तर (प्रत्य.)]


खरतल
स्पष्ट बात करनेवाला।
वि.
[हिं. खरा]


खरतल
शुद्ध हृदयवाला।
वि.
[हिं. खरा]


खरतल
प्रचंड, उग्र।
वि.
[हिं. खरा]


खरतुआ
एक घास।
संज्ञा
[हि. खर+बथुआ]


खरदूषण, खरदूषन
खर और दूषण नामक दो राक्षस जो रावण के भाई थे।
संज्ञा
[सं.]


खरदूषण, खरदूषन
धतूरा।
संज्ञा
[सं.]


खरदूषण, खरदूषन
जिसमें अनेक दोष हों।
वि.


खरधार
तेज धारवाला।
संज्ञा
[सं.]


खरब
संख्या का बारहवाँ स्थान, सौ अरब की संख्या।
संज्ञा
[सं. खर्व]


खरबूजा
एक फल।
संज्ञा
[फ़ा. खर्पजः]


खरभर
हलचल, गड़बड़।
(क) तब मैं डरवि कियौ छोटौ तनु, पैठ्यौ उदर मँझारि। खरभर परी, दियौ उन पैडों, जीती पहिली रारि - ९ १०४।

(ख) कटक अगिनित जुरयौ, लंक खरभर परयौ, सूर कौ तेज धर-धूरि ढाँप्यो - ९ - १० ६।

संज्ञा
[अनु.]


खरभर
शोर, गुल- गपाड़ा।
संज्ञा
[अनु.]


खरभरना
क्षुब्ध होना।
क्रि. अ.
[हिं. खरभर]


खरभरना
घबराना।
क्रि. अ.
[हिं. खरभर]


खरभराना
शोर करना।
क्रि. स.
[हिं. खरभर]


खरभराना
गड़बड़ मचाना।
क्रि. स.
[हिं. खरभर]


खरभराना
व्याकुल करना।
क्रि. स.
[हिं. खरभर]


खरभरी
हलचल।
संज्ञा
[हिं. खरभर]


खरभरी
शोर-गुल।
संज्ञा
[हिं. खरभर]


खरभरयौ
चंचल या व्याकुल होकर खरभराने लगा।
तब जलनिधि खरभरयौ त्रास गहि, जंतु उठे अकुलाइ - ९-१२१।
क्रि. अ. (भूत.)
[हिं. खरभर]


खरमंडल
अव्यवस्था, गड़बड़ी।
संज्ञा
[हिं. खड़मंडल]


खरमंडल
उलटा-पुलटा।
वि.


खरमंडल
नष्ट-भ्रष्ट।
वि.


खरमस्‍ती
भद्दी हँसी, पाजीपन।
संज्ञा
[फ़ा.]


खरमास
पूस-चैत मास जिसमें शुभ कार्य करना मना है।
संज्ञा
[सं.]


खरमिटाव
जलपान।
संज्ञा
[हिं. जल+पान]


खरल
पत्थर या लोहे को गोल या लंबोतरा पात्र जिसमें डालकर ओषधियाँ कूटी जाती हैं।
संज्ञा
[सं. खल]


खरवाँस
पूस-चैत मस जिनमें शभ कार्य वर्जित हैं।
संज्ञा
[हिं. खर+मास]


खरसा
एक खाद्य पदार्थ।
संज्ञा
[सं. षड्स]


खरसा
एक मछली।
संज्ञा
[देश.]


खरसा
गरमी के दिन।
संज्ञा
[देश.]


खरसा
अकाल।
संज्ञा
[देश.]


खरसा
खुजली, खाज।
संज्ञा
[फ़ा. ख़ारिश]


खरसान
एक प्रकार की तीक्ष्ण सान जिस पर तीर, तलवार आदि की धार तेज की जाती है।
झलमलात रति रैनि जनावत अति रस मत्त भ्रमत अनियारे। मानहु सकल जगत जीतन को कामबान खरसान सँवारे - २१३२।
संज्ञा
[हिं. खर+सान]


खरहर
एक पेड़।
संज्ञा
[देश.]


खरहरना
झाड़ू देना।
क्रि. अ.
[हिं. खर=तिनका+हरना]


खरहरा
डंठलों का झाडू।
संज्ञा
[हिं. खरहरना]


खरहरा
पशुओं का ब्रश।
संज्ञा
[हिं. खरहरना]


खरहरी
एक मेवा।
संज्ञा
[देश.]


खरांशु
सूर्य।
संज्ञा
[सं.]


खरांशु
तेज किरणोंवाला।
वि.


खरा
तेज।
वि.
[सं. खर=तीक्षण]


खरा
विशुद्ध, बिना मिलावट का।
वि.
[सं. खर=तीक्षण]


खरा
खरा खोटा- भला-बुरा।

जी खरा खोटा होना- नियत बुरी हो जाना।

मु.


खरा
छल कपट रहित, सच्चा।
वि.
[सं. खर=तीक्षण]


कति
(संख्या में) कितने।
वि.
[सं.]


कति
(तौल या माप में) कितना।
वि.
[सं.]


कति
कौन। बहुत, अगणित।
वि.
[सं.]


कतिक
कितना।
वि.
[सं. कति+एक]


कतिक
थोड़ा, जरासा।
वि.
[सं. कति+एक]


कतिक
बहुत, अनेक।
वि.
[सं. कति+एक]


कतिपय
कई, कितने ही।
वि.
[सं.]


कतिपय
कुछ, थोड़े से।
वि.
[सं.]


कतेक
कितने।
वि.
[सं. कति+एक]


कतेक
थोड़े, कुछ।
वि.
[सं. कति+एक]


खरा
खरा खेल- सच्चा व्यवहार।
मु.


खरा
नकद और उचित (मूल्य या वेतन)।
वि.
[सं. खर=तीक्षण]


खरा
रुपया खरा होना- रुपया मिलने की बात पक्की हो जाना।
मु.


खरा
स्पष्ट और निष्पक्ष बात कहनेवाला।
वि.
[सं. खर=तीक्षण]


खरा
स्पष्ट और सच्ची बात जो सुनने में चाहे कितनी ही अप्रिय लगे।
वि.
[सं. खर=तीक्षण]


खरा
खरी सुनाना- सच्ची सच्ची बातें कहना पर यह ध्यान न देना कि ये भली लगेंगी या बुरी।
मु.


खरा
बहुत, ज्यादा।
वि.
[सं. खर=तीक्षण]


खराई
खरा' होने का भाव, खरापन।
संज्ञा
[हिं.खरा+ई (प्रत्य.)]


खराऊँ
खड़ाऊँ।
एक अँधेरो हिये की फूटी दौरत पहिरि खराऊँ - ३४६६।
संज्ञा
[हिं. खड़ाऊ]


खराद
एक औजार जिस पर चढ़ाकर लकड़ी, धातु आदि की वस्तुएँ सुडौल, चिकनी और चमकीली की जाती हैं।
पालनौ अति सुंदर गढ़ ल्याउ रे बढ़ैया। सीतल चंदन कटाउ, धरि खराद रंग लाउ, बिबिध चौकरी बनाउ, धाउ रे बनैया - १० - ४१।
संज्ञा
[अ. खर्रात, फा. खरीद]


खराद
खराद पर चढ़ना (उतरना)- (१) सुधर जाना। (२) व्यवहार में कुशल होना।

खराद पर चढ़ाना (उतारना)- सुधारना, ठीक करना।

मु.


खराद
खरादने की क्रिया या भाव। बनावट, गढ़न।
संज्ञा


खरादना
खराद के सहारे किसी वस्तु को चिकना या सुडौल करना।
क्रि. स.
[हिं. खराद]


खरादना
सुडौल करना।
क्रि. स.
[हिं. खराद]


खरापन
खरा या शद्ध, होने का भाव।
संज्ञा
[हि. खरा+पन]


खरापन
सच्चाई।
संज्ञा
[हि. खरा+पन]


खरापन
उन्मत्त हो जाने का भाव।
संज्ञा
[हि. खरा+पन]


खराब
बुरा, हीन, जिसकी दशा बिगड़ जाय।
वि.
[अ. खराब]


खराब
जो पतित हो।
वि.
[अ. खराब]


खराबी
बुराई, दोष।
संज्ञा
[फ़ा.]


खराबी
बुरी दशा।
संज्ञा
[फ़ा.]


खरायँध
क्षार की-सी दुर्गन्ध।
संज्ञा
[सं. क्षार+गंध]


खरारि, खरारी
खर दैत्य को मारनेवाले श्री रामचन्द्र।
संज्ञा
[सं.]


खरारि, खरारी
विष्णु।
संज्ञा
[सं.]


खरारि, खरारी
कृष्ण।
संज्ञा
[सं.]


खरारि, खरारी
धेनुकासुर को मारनेवाले बलराम।
संज्ञा
[सं.]


खराश
खरोंच, छिलना।
संज्ञा
[फ़ा. खराश]


खरिक
ऊख जो खरीफ के बाद बोई जाय।
संज्ञा
[देश.]


खरिक
पशुओं के चरने या रहने का स्थान, बाड़ा।
अहो सुबल श्रीदामा भैया ल्यावहु जाय खरिक के नेरे।
संज्ञा
[सं. खड़क=स्थाणु, हिं. खरक]


खरिक
छोहारा नामक मेवा।
खरिक दाख अरु गरी चिरारी। पिंड बदाम लेहु बनवारी - ३९६।
संज्ञा
[सं. क्षारका, हिं. खारक]


खरिकौ
पशुओं के रहने या चरने का स्थान।
जो सुख मुनिगन ध्यान न पावत, सो सुख करत नंदसुत खरिकौ - १० - १८१।
संज्ञा
[सं. खड़क=स्थाणु, हिं. खरक]


खरिकनि
गैयों के रहने का स्थान।
राँभति गौ खरिकनि मैं, बछरा हित धाई - १० - २०२।
संज्ञा
[देश.]


खरिया
पतली रस्सी की जाली जिसमें घास, भूसा जैसी चीजें बाँधते हैं।
(२) झोली।
संज्ञा
[हिं. खर+इया (प्रत्य.)]


खरिया
खड़िया।
संज्ञा
[हिं. खड़िया]


खरिया
कंडे की राख।
संज्ञा
[हिं. खार=राख]


खरिया
चोखी।
वि.


खरियाना
झोला या थैली में भरना।
क्रि. स.
[हिं. खरिया=झोली]


खरियाना
छीन लेना।
क्रि. स.
[हिं. खरिया=झोली]


खरियाना
थैली से गिराना।
क्रि. स.
[हिं. खरिया=झोली]


खरिहान
खेत के पास का स्थान जहाँ फसल काटकर रखी और माड़ी जाती है।
माँड़ि माँड़ि खरिहान क्रोध कौ, पोता-भजन भरावै - १ - १४२।
संज्ञा
[स. खल+स्थान]


खरी
खड़ी, खड़ी खड़ी।
(क) आनँद-प्रेम उमँगि जसोदा खरी गुपाल खिलावै - १० - १३०। (ख) माखन दधि हरि खात प्रेम सौं निरखति नारि खरी - ११७७।
वि.
[सं. खड़क=खम्भा, थूनी ; हिं. पुं. खड़ा]


खरी
तेज, तीखी, तीव्र स्वर की।
त्राहि त्राहि द्रोपदी पुकारी, गई बैकुंठ अवाज खरी - १ - २४९।
वि.
[सं. खर=तीक्षण, हिं. पुं. खरा]


खरी
अच्छी, प्रिय, कल्याणकारिणी।
इक बदन उघारि निहारि देहिं असीस खरी - १० - २४।
वि.
[सं. खर=तीक्षण, हिं. पुं. खरा]


खरी
पूर्ण, बिलकुल, बहुत अधिक।
(क) मैं जु रह्यौं राजीवनैन दुरि पाप-पहार-दरी। पावहु मोहिं कहाँ तारन कौं, गूढ़-गँभीर खरी- १ - १३०। (ख) प्रभु जागे अर्जुन तन चितयौ, कब आये तुम कुसल खरी - १ - २६८।

(ग) ठाढ़ीं जल माहिं गुसांई खरी जुड़ाई नीर की - ३३०३।

वि.
[सं. खर=तीक्षण, हिं. पुं. खरा]


खरी
विशुद्ध, बिना मिलावट की।
वि.
[सं. खर=तीक्षण, हिं. पुं. खरा]


खरी
छल-कपट रहित, सच्ची।
कपट हेतु कियौ हरि हमसे खोटे होंहि खरी - २७४१।
वि.
[सं. खर=तीक्षण, हिं. पुं. खरा]


खरी
खड़िया।
(क) जैसे खरी कपूर दोउ यक सम यह भई ऐसी संधि - २९१२। (ख) सब बिधि बानि ठानि करि राख्यौ खरी कपूर को रेहु - ३०४०।
संज्ञा
[हिं. खड़िया]


खरी
सरसों इत्यादि की खली जो पशुओं को खिलायी जाती है।
संज्ञा
[हिं. खली]


खरीक
तिनका।
संज्ञा
[हिं. खर]


खरीता
थैली।
संज्ञा
[अ.]


खरीता
जेब।
संज्ञा
[अ.]


खरीद
मोल लेना।
संज्ञा
[फा. खरीद]


खरीद
मोल ली हुई चीज।
संज्ञा
[फा. खरीद]


खरीदना
मोल लेना।
क्रि. स.
[हिं. खरीद]


खरीदार
मोल लेने वाला।
संज्ञा
[हिं. खरीद]


खरीदार
चाहनेवाला।
संज्ञा
[हिं. खरीद]


खरीदारी
मोल लेने की क्रिया।
संज्ञा
[हिं. खरीद]


खरीफ
असाढ़ से आधे अगहन के बीच में कटनेवाली फसल जिसमें धान, बाजरा, उर्द, मूँग आदि होते हैं।
संज्ञा
[अ. ख़रीफ़]


खरु
गधा।
कामधेनु खरु लेइ काल अमृत उपजावै–१० उ. - - ८।
संज्ञा
[सं. खर]


खरे
बहुत अधिक, ज्यादा।
ऐसौ अंध, अधम, अबिबेकी, खोटनि करत खरे - - १ - १९८।
वि.
[हिं. खरा]


खरे
ऐठने या रूठनेवाले, जिद पकड़ लेनेवाले।
पठवति हौं मन तिन्हैं मनावन निसि दिन रहत अरे री। ज्यों ज्यों मान करति उलटावन त्यों त्यों होत खरे री - १४४२
वि.
[हिं. खरा]


खरे
तीखे, तीक्ष्ण, तेज।
लागो या बदन की बलाई। खंजन तेरे खरे कटाक्षनि न्याउ गुपाल बिकाई - २२२७।
वि.
[हिं. खरा]


खरे
खड़े, उपस्थित।
(क) सूरदास भगवन्त भजन बिनु जम के दूत खरे हैं द्वार - २ - ३। (ख) त्रास भयौ अपराध आपु लखि, अस्तुति करत खरे - ४८३।
वि.
[हिं. खड़ा]


खरेई
सचमुच, वस्तुत:।
क्रि. वि.
[हिं. खरा+ई] (प्रत्य.)


खरेई
बहुत, अत्यन्त।
सूरदास अब धाम दोहरी चढि़ सकत हरि खरेई अमान।
क्रि. वि.
[हिं. खरा+ई] (प्रत्य.)


खरो
बहुत अधिक, ज्यादा।
बालविनोद खरो जिय भावत - १० - १०२।
वि.
[सं. खर=तीक्ष्ण]


खरोंच, खरोंट
शरीर के किसी भाग के छिलना का हलका चिन्ह।
संज्ञा
[सं. क्षुरण]


खरोंचना, खरोंटना
खुरचना, छीलना।
क्रि. स.
[हिं. खरोंच]


खरोई
सचमुच, वस्तुतः।
क्रि. वि.
[हिं. खरा+ई (प्रत्य.)]


खरो‍ष्‍ट्री, खरोष्ठी
एक लिपि जो भारत की पश्चिमोत्तर सीमा पर अशोक के समय में प्रचलित थी।
संज्ञा
[सं.]


खरौंट
नख या खरोंच लगने से छिलने का हलका चिन्ह।
संज्ञा
[हिं. खरोंच]


खरौंटना
खरोंचना।
क्रि. स.
[हिं. खरोच, खरौंट]


खरौंहा
कुछ कुछ खारा या नमकीन।
वि.
[हिं. खारा+औंहा]


खरौ
विशुद्ध, बिना मिलावट का, 'खोटा' का उलटा।
इक लोहा पूजा मैं राखत, इक घर बधिक परौ। सो दुबिधा पारस नहिं जानत, कंचन करत खरौ - १ - २२०।
वि.
[सं. खर=तीक्ष्ण, हिं. खरा]


खरौ
बहुत अधिक।
कारौ कहि कहि तोहिं खिझावत, बरजत खरो अनेरो - १० - २१६।
वि.
[सं. खर=तीक्ष्ण, हिं. खरा]


खरौ
खड़ा, खड़ा हुआ।
भरत पंथ पर देख्यौ खरौ - ५ - ४०।
वि.
[हिं. खड़ा]


खर्ग
तलवार।
संज्ञा
[हिं. खड्ग]


खर्च
व्यय, काम में लगना।
कहा भयौ मेरो गृह माटी को। हौं तो गयो हुतो गुपालहिं भेंटन और खर्च तंदुल गाँठी को - १० उ. - ७१।
संज्ञा
[अ. खर्ज, खर्च]


खर्च
खर्च उठाना- खर्च करना। खर्च निर्वाह करना।
मु.


खर्च
धन जिसे व्यय करके काम चलाया जाय।
संज्ञा
[अ. खर्ज, खर्च]


खर्चना
व्यय करना।
क्रि. स.
[हिं. खर्च]


खर्चीला
बहुत खर्चनेवाला।
वि.
[हिं. खर्च]


खर्पर
तसले की तरह का भिक्षापात्र।
संज्ञा
[सं.]


खर्पर
काली देवी का पात्र जिसमें वे रुधिर पान करती हैं।
संज्ञा
[सं.]


खर्ब
जिसका अंग भंग हो।
वि.
[सं. खर्व]


खर्ब
छोटा, लघु।
वि.
[सं. खर्व]


खर्ब
वामन, बौना।
वि.
[सं. खर्व]


खर्ब
सौ अरब की संख्या।
संज्ञा


खर्ब
नौ निधियों में एक।
संज्ञा


खर्रा
लंबा कागज जिस पर बहुत विस्तार से लेख लिखा जा सके।
संज्ञा
[अनु.]


खर्राट
होशियार, अनुभवी।
वि.
[हिं. खुर्राट]


खर्राट
वृद्ध।
वि.
[हिं. खुर्राट]


खर्राटा
सोते समय नाक से होनेवाला खर खर का शब्द।
संज्ञा
[अनु.]


खरय्यौ
बहुत, अधिक, खूब।
यहि अन्तर यमुना तट आए स्नान दान कियौ खरय्यौ - २५५२।
वि.
[सं. खर=तीक्ष्ण, हिं. खरा]


खर्व
अपूर्ण अंग का।
वि.
[सं.]


खर्व
छोटा, लघु।
वि.
[सं.]


खर्व
वामन, बौना।
वि.
[सं.]


खर्व
सौ अरब की संख्या, खरब।
संज्ञा
[सं.]


खर्व
नौ निधियों में एक।
संज्ञा
[सं.]


खल
अधम, दुष्ट, दुर्जन, पापी।
वि.
[सं.]


कतेक
अनेक।
वि.
[सं. कति+एक]


कतौनी
कातने की क्रिया, भाव या मजदूरी।
संज्ञा
[हिं. कातना]


कतौनी
काम में विलंब।
संज्ञा
[हिं. कातना]


कतौनी
बेकार काम।
संज्ञा
[हिं. कातना]


कत्ता
बाँका नामक औजार।
संज्ञा
[सं. कर्तरी]


कत्ता
छोटी टेढ़ी तलवार।
संज्ञा
[सं. कर्तरी]


कत्ता
चौपड़ का पासा।
संज्ञा
[सं. कर्तरी]


कर्त्ता
छुरी।
संज्ञा
[हिं. कत्ता]


कर्त्ता
छोटी तलवार या कटारी।
संज्ञा
[हिं. कत्ता]


कर्त्ता
पगड़ी जो बटकर पहनी जाती है।
संज्ञा
[हिं. कत्ता]


खल
धोखा देनेवाला।
वि.
[सं.]


खल
क्रूर।
वि.
[सं.]


खल
सूर्य।
संज्ञा
[सं.]


खल
पृथ्वी।
संज्ञा
[सं.]


खल
बादल।
संज्ञा
[सं.]


खल
खल भई- पिस गयी, चूर चूर हुई। उ. - खल भई लोक लाज कुल कानी।
मु.


खल
पत्थर का टुकड़ा।
इहै मान यह सूर महा सठ हरि नग बदलि महा खल आनत।
संज्ञा
[सं. खल=खरल]


खलई
दुष्टता।
संज्ञा
[हिं. खल+ ई (प्रत्य.)]


खलक
प्राणी।
संज्ञा
[अ. ख़लक़]


खलक
संसार।
संज्ञा
[अ. ख़लक़]


खलता
दुष्टता, नीचता।
संज्ञा
[सं.]


खलना
बुरा लगना।
क्रि. अ.
[सं. खर=तीक्ष्ण]


खलना
खरल में कूटना।
क्रि. स.
[हिं. खल या खरल]


खलना
नाश करना, पीसना।
क्रि. स.
[हिं. खल या खरल]


खलबल
हलचल
संज्ञा
[अनु.]


खलबल
शोर।
संज्ञा
[अनु.]


खलबल
कुलबुलाहट।
संज्ञा
[अनु.]


खलबलाना
खौलाना।
क्रि. अ.
[हिं. खलबल]


खलबलाना
हिलना-डोलना।
क्रि. अ.
[हिं. खलबल]


खलबलाना
विचलित हो जाना।
क्रि. अ.
[हिं. खलबल]


खलबली
हलचल।
संज्ञा
[हिं. खलबल]


खलबली
घबड़ाहट।
संज्ञा
[हिं. खलबल]


खलल
बाधा, रुकावट।
संज्ञा
[अ. खलल]


खलाइत
धौंकनी।
संज्ञा
[हिं. खाल+इत (प्रत्य.)]


खलाई
दुष्टता।
संज्ञा
[हिं. खल+ई(प्रत्य.)]


खलाना
खाली करना।
क्रि. स.
[हिं. खाली]


खलाना
गड्ढा बनाना।
क्रि. स.
[हिं. खाली]


खलाना
धँसाना, दबाना, पचाना।
क्रि. स.
[हिं. खाली]


खलार
नीचा, गहरा।
वि.
[हिं. खाली]


खलास
मुक्त, स्वतंत्र।
वि.
[अ.]


खलास
समाप्त।
वि.
[अ.]


खलास
गिरा हुआ।
वि.
[अ.]


खलासी
मुक्ति, छुटकारा।
संज्ञा
[हिं. खलास]


खलित
चलायमान, चंचल, डिगा हुआ।
डोलत महि अधीर भयौ फनिपति कुरम अति अकुलान। दिग्गज चलित, खलित मुनि आसन, इंद्रादिक भय मान - ९ - २६।
वि.
[सं. खलित]


खलित
पतित।
वि.
[सं. खलित]


खलियान, खलिहान
स्थान जहाँ फसल रखी और माँड़ी जाय।
संज्ञा
[सं. खल+स्थान]


खलियान, खलिहान
ढेर, राशि।
संज्ञा
[सं. खल+स्थान]


खलियाना
खाल अलग करना।
क्रि. स.
[हिं. खाल]


खलियाना
खाली करना।
क्रि. स.
[हिं. खाली]


खली
तेलहन की सीठी या फोकट।
संज्ञा
[सं. खलि]


खली
जी बुरी लगे।
वि.
[हिं. खलना]


खली
महादेव।
संज्ञा
[सं. खलिन्]


खलीज
खाड़ी, उपसागर।
संज्ञा
[अ.]


खलीता
थैली। जेब।
संज्ञा
[हिं. खरीता]


खलीफा
अधिकारी।
संज्ञा
[अ. ख़लीफा]


खलीफा
खानसामा।
संज्ञा
[अ. ख़लीफा]


खलीफा
नाई।
संज्ञा
[अ. ख़लीफा]


खलु
प्रार्थना।
क्रि. वि.
[सं.]


खलु
निषेध।
क्रि. वि.
[सं.]


खलु
निश्चय, अवश्य।
क्रि. वि.
[सं.]


खलेल
फुलेल में मिला हुआ खली जैसे पदार्थों का वह अंश जो छानने पर निकलता है।
संज्ञा
[हिं. खली+ तेल]


खल्ल
चमड़ा।
संज्ञा
[सं.]


खल्ल
चातक।
संज्ञा
[सं.]


खल्ल
खरल।
संज्ञा
[सं.]


खल्लड़
चमड़े की मशक।
संज्ञा
[सं. खल्‍ल]


खल्लड़
खरल।
संज्ञा
[सं. खल्‍ल]


खल्लड़
वह वृद्ध जिसका चमड़ा झूल गया हो।
संज्ञा
[सं. खल्‍ल]


खल्व
एक रोग जिसमें सिर के बाल गिर जाते हैं।
संज्ञा
[सं.]


खल्वाट
एक रोग जस में सिर के बाल गिर जाते हैं।
संज्ञा
[सं.]


खल्वाट
गंजा, जिसके सिर के बाल गिर गये हों।
वि.


खवा
कंधा।
संज्ञा
[सं. स्कंध]


खवाइ
खिलाकर।
संग खाइ खवाइ अपने सोच तो इतनों दियो - ३२६०
क्रि. स.
[हिं. खिलाना]


खवाई
खिलाने पर, खिलाने के पश्चात।
पोषै ताहि पुत्र की नाई। खाहिं आप तब, ताहि खवाई - ५ - ३।
क्रि. स.
[हिं. खाना, खवाना]


खवाए
खिलाया, खिला दिये।
नैन देखि चकृत भई क्यों पान खवाए - २७३९।
क्रि. स.
[हिं. खिलाना]


खवाना
खिलाना।
क्रि. स.
[हिं. खाना]


खवायौ
खिलाया, खाने में लगाया।
माखन खाइ, खवायो ग्वालनि, जो उबरयौ सो दियो लुढ़ाइ - १० - ३०३।
क्रि. स.
[हि. खाना, खिलाना]


खवारा
खोटा, बुरा।
वि.
[हिं. खराब]


खवारा
अनुचित।
वि.
[हिं. खराब]


खवावत
खिलाते हैं, भोजन कराते हैं।
(क) कबहुँ चितै प्रतिबिंब खंभ मैं लौनी लिए खवावत - १० - ११७। (ख) जाको राजरोग कफ बाढ़त दह्यौ खवावत ताहि - ३१४६।
क्रि. स.
[हिं. खवाना]


खवावन
खिलाना, भोजन कराना।
माखन मॉंगि लियौ जसुमति सौं। माता सुनत तुरत लै आई, लगी खवावन रति सौं - १० - ३१२।
कि. स.
[हिं. खाना, खिलाना]


खवावहु
खिलाओ।
कनक-खंभ प्रतिबिंबित सिसु इक लवनी ताहि खवावहु - १० - १७९।
क्रि. स.
[हिं. खिलाना]


खवावै
खिलाता है, भोजन कराता है।
कृपन, सूम, नहिं खाइ खवावै, खाइ मारि कै औरे - १० - १८६।
क्रि. स.
[हिं. खाना]


खवावौं
खिलाऊँ, खाने को दूँ।
तब तमोल रचि तुमहिं खवावौं - १० - २११।
क्रि. स.
[हिं. खिलाना]


खवास
राजाओं-रईसों का खिदमतगार।
मोदी लोभ, खवास मोह के, द्वारपाल अहँकार - १ - १४१।
संज्ञा
[अ. खवास]


खवास
राजसेवक।
कहि खवास कौं सैन दै सिरपाँव मँगायौ - २४७६।
संज्ञा
[अ. खवास]


खवास
नाई
संज्ञा
[अ. खवास]


खवास
मंत्री।
संज्ञा
[अ. खवास]


खवासी
खवास का काम।
इंद्रादिक की कौन चलावै संकर करत खवासी - ३०८९।
संज्ञा
[हिं. खवास+ई (प्रत्य.)]


खवासी
सेवा, चाकरी।
संज्ञा
[हिं. खवास+ई (प्रत्य.)]


खवासी
खवास के बैठने का स्थान।
संज्ञा
[हिं. खवास+ई (प्रत्य.)]


खवास्यौ
मंत्री।
तुम हौ निपट निकट के बासी सुनियत हुए खवास्यौ।
संज्ञा
[हिं. खवास]


खवैया
खानेवाला।
खाटी मही कहा रुचि मानो सूर खवैया घी को - ३२५१।
संज्ञा
[हिं. खाना+वैया (प्रत्य.)]


खस
गढ़वाल प्रदेश का प्राचीन नाम।
संज्ञा
[सं.]


खस
इस प्रदेश की एक प्राचीन जाति।
संज्ञा
[सं.]


खस
गाँडर घास की जड़ जो बहुत सुगंधित होती है।
संज्ञा
[फा. खस]


खसकंत
खिसकने की क्रिया।
संज्ञा
[हिं. खसकना+अंत]


खसकना
स्थान जरा सा हट जना।
क्रि. अ.
[हिं. खिसकना (अनु.)]


खसकना
चले जाना।
क्रि. अ.
[हिं. खिसकना (अनु.)]


खसकाना
सरकना।
क्रि. स.
[हिं. खसकना]


खसकाना
जाने को प्रेरित करना।
क्रि. स.
[हिं. खसकना]


खसखस
पोस्ते का दाना।
संज्ञा
[सं. खसखस]


खसखसा
भुरभुरा।
वि.
[अनु.]


खसखसा
बहुत छोटा।
वि.
[हिं. खसखस]


खसखाना
खस की टट्टियों से घिरा स्थान।
संज्ञा
[फ़ा. खस+खाना]


खसखसी
पोस्ते के फूल का हल्का असमानी रंग।
संज्ञा
[हिं. खसखस]


खसखसी
पोस्ते के फूल की तरह हल्के असमानी रंग का।
वि.


खसत
खिसकते हैं, सरककर गिरते हैं।
फूल खसत सिर ते भए न्यारे सुभग। स्वाति-सुत मानो - पृ. ३४६ (४३)।
क्रि. अ.
[हिं. खसना]


खसति
खिसकती है, सरककर गिरती है।
बिहँसि बोले गोपाल सुनि री ब्रज की बाल उछंग लेत कत धरनि खसति - १८६९।
क्रि. अ.
[हिं. खसना]


खसना
स्थान से हटना।
क्रि. अ.
[हिं. खिसकना]


खसना
खिसक कर गिरना।
क्रि. अ.
[हिं. खिसकना]


कत्थक
वे जो गाने-बजाने का पेशा करते हों।
संज्ञा
[सं. कथक]


कत्था
खैर की लकड़ियों को उबाल कर निकाला हुआ रस जो पान में लगाकर खाया जाता है।
संज्ञा
[सं. क्वाथ]


कत्था
खैर का पेड़।
संज्ञा
[सं. क्वाथ]


कथक
कथा-पुराण कहने वाला।
संज्ञा
[स.]


कथत
कहते हो, बखानते हो।
(क) बेनु बजाय रास बन कीन्हो अति आनँद दरसायौ। लीला कथत सहस मुख तौऊ अजहूँ पार न पायौ। (ख) हमतौ निपट अहीरि बावरी जोग दीजिए जानन। कहा कथत मौसी के आगे जानत नानी-नानन - ३३२६।

(ग) ए अलि चपल मोद रस लंपट कटु संदेस कथत कत कूरे - ३०४२।

क्रि. स.
[हिं. कथना]


कथत
निंदा या बुराई करते हो।
क्रि. स.
[हिं. कथना]


कथति
कहती है, बखानती है।
दिवस बितवति सकल जन मिलि कथति गुन बलबीर - ३४७९।
क्रि. स.
[हिं. कथना]


कथन
कहना।
संज्ञा
[सं.]


कथन
कही हुई बात, उक्ति।
संज्ञा
[सं.]


कथन
वक्तव्य, बयान।
संज्ञा
[सं.]


खसबो
सुगंध।
संज्ञा
[हिं. खुशबू]


खसम
पति।
(क) जियत खसम किन भसम रमायो। (ख) गुप्त प्रीति तासौं करि मोहन, जो है तेरी दैया। सूरदास प्रभु झगरो सीख्यौ, ज्यौं घर खसम गुसैयाँ - ७३४।
संज्ञा
[अ.]


खसम
स्वामी, मालिक।
संज्ञा
[अ.]


खसाना
नीचे गिरना।
क्रि. स.
[हिं. खसना]


खसि
स्खलित होकर।
रुद्र कौ बीर्य खसि कै परयौ धरनि पर, मोहिनी रूप हरि लिया दुराई - ८ - १०।
क्रि. अ.
[हिं. खसना]


खसि
खिसककर, गिरकर।
(क) खसि मुद्रावलि चरन अरुझी गिरी धरनि बलहीन - ३४५१।

(ख) खसि खसि परत कान्ह कनियाँ तैं सुसुकि सुसुकि मन खीझै - १० - १९०।

क्रि. अ.
[हिं. खसना]


खसिया
आसाम की एक पहाड़ी।
संज्ञा
[देश.]


खसिया
इस पहाड़ी का समीपवर्ती प्रदेश।
संज्ञा
[देश.]


खसिया
जिसके अंडकोश निकाले गये हों, बधिया।
वि.
[अ. ख़स्सी]


खसिया
नपुंसक।
वि.
[अ. ख़स्सी]


खसिया
बकरा।
वि.
[अ. ख़स्सी]


खसी
बकरा।
संज्ञा
[अ. ख़स्सी]


खसी
नपुंसक।
वि.
[हिं. खसिया]


खसीस
कंजूस।
वि.
[अ. खसीस]


खसु
हटकर, खिसककर।
क्रि. अ.
[हिं. खसना]


खसु
खसु दीन्ह्यौ - हटा लिया, खिसका लिया।
सूर स्याम देख्यौ अहि ब्याकुल खस दीन्ह्यौ, मेटे त्रय ताप - ५५९।
यों


खसे, खसै
गिरे, खिसके।
भूषन खसे सुरत बस दोऊ केसन आपु सँवारे - १०११ सार.।
क्रि. अ.
[हिं. खसना]


खसे, खसै
वार न खसै- बाल बाँका न हो, जरा भी अनिष्ट न हो। उ. - न्हात बार न खसै इनको कुसल पहुँचै धाम - २५६५।

केस खसै- अनिष्ट या अमंगल हो। उ.- जाकौं मनमोहन अंग करै। ताकौ केस खसै नहिं सिर तैं जौ जग बैर परै - १ - ३७।

मु.


खसे, खसै
दूर हो जाय, समाप्त हो जाय।
तन-मन-धन-जोबन खसै (रे) तऊ न माने हार - १ - ३२५।
क्रि. अ.
[हिं. खसना]


खसो
खिसको, सरको, गिरो।
क्रि. अ.
[हिं. खसना]


खसो
बार खसो- अनिष्ट हो, अमंगल हो। उ. - हम दिन देत असीस प्रात उठि बार खसो मत न्हातै–३०२४।
मु.


खसोट
उखाड़ने-नोचने की क्रिया।
संज्ञा
[हिं. खसोटना]


खसोट
छीनने की क्रिया।
संज्ञा
[हिं. खसोटना]


खसोटना
उखाड़ना, नोचना।
क्रि. स.
[सं. कृष्ट]


खसोटना
बलपूर्वक छीनना।
क्रि. स.
[सं. कृष्ट]


खस्ता
बहुत मुलायम, जो जरा से दबाव से टूट जाय।
वि.
[फा. ख़स्तः]


खस्यौ
अपने स्थान से हटा, खिसका, गिरा, नष्ट हुआ।
(क) जैसे सुखहीँ तन बढ़यौ, (रे) तैसें तनहिं अनंग। धूम बढ़यौ, लोचन खस्यौ, (रे) सखा न सूझत अंग - १-३२५। (ख) जननी मधि, सनमुख संकर्षन, खैंचत कान्ह खस्यौ सिर-चीर - १० - १६१।
क्रि. अ. (भूत.)
[हिं. खसकना]


खाँखर
छेददार।
[हिं. खाँख]


खाँखर
खोखला, पोला।
[हिं. खाँख]


खाँग
काँटा।
संज्ञा
[सं. खङ्ग, प्रा. खग्ग]


खाँग
गैंडे के मुंह पर का सींग।
संज्ञा
[सं. खङ्ग, प्रा. खग्ग]


खाँग
कमी।
संज्ञा
[हिं. खँगना]


खाँगना
लँगड़ा।
क्रि.अ .
[सं. खंज, हिं. खोंड़ा]


खाँगना
कम होना।
क्रि. अ.
[हिं. छीजना]


खाँगना
छेदना।
क्रि. स.


खाँगी
कमी, त्रुटि, घटी।
संज्ञा
[हिं. खँगना]


खाँच
दो वस्तुओं के बीच को संधि।
संज्ञा
[हिं. खाँचना]


खाँच
खींचा हुआ निशान।
संज्ञा
[हिं. खाँचना]


खाँच
गठन।
संज्ञा
[हिं. खाँचना]


खाँचना
चिह्न बनाना, अंकित करना।
क्रि. स.
[सं. कर्षण या कसन=खींचना, अथवा खचन=बैठाना]


खाँचना
खींच खींच कर (कसते हुए कोई वस्तु) बनाना।
क्रि. स.
[सं. कर्षण या कसन=खींचना, अथवा खचन=बैठाना]


खाँचना
जल्दी लिखना।
क्रि. स.
[सं. कर्षण या कसन=खींचना, अथवा खचन=बैठाना]


खाँचा
झाबा।
संज्ञा
[हिं. खाँचना]


खाँचा
बड़ा पिंजड़ा।
संज्ञा
[हिं. खाँचना]


खाँचा
गड्‍ढा।
संज्ञा
[हिं. खाँचना]


खाँची
खीचकर अंकित करके, चिह्नित है, खिची है।
(क) सूरदास भगवंत भजत जे तिनकी लीक चहूँ जुग खाँची - १-१८। (ख) जाके हृदय जौन कहै मुख ते तौन कैसे हरि को न कहि लीक खाँची–१२८८।
क्रि. स.
[हिं. खाँचना]


खाँची
कहति लीक मैं खाँची- लीक खींच कर कहती हूँ, प्रतिज्ञापूर्वक कहती हूँ जो कहती हूँ, वह सत्य है, अटल है। उ.- सूर स्याम तेरे बस राधा कहति लीक मैं खाँची - १४७५।
मु.


खाँची
लिखना, लिखकर।
क्रि. स.
[हिं. खाँचना]


खाँची
छोटा झाबा, डलिया, खैंची।
संज्ञा
[हि. खाँचा]


खाँचै
अंकित करता है, खींचता है, चिह्न बनाता है, विचलित करता है।
सीत-उष्न, सुख-दुख नहिं मानै, हर्ष-सोक नहिं खाँचै-१-८१।
क्रि. स.
[हिं. खाँचना]


खाँड़
कच्ची शकर।
(क) रस लै लै औटाई करत गुर, डारि देत है खोई। फिरि औटाए स्वाद जात है, गुर तैं खाँड़ न होई -१-६३। (ख) घेवर अति घिरत चभोरे। लै खाँड सरस रस बोरे-१०-१८३।
संज्ञा
[सं. खंड]


खाँड़ना
चबाकर खाना।
क्रि. स.
[सं. खंड=टुकड़ा]


खाँडर
टुकड़ा, कतला।
संज्ञा
[सं. खंड]


खांडव
एक प्राचीन वन जिसे अर्जुन ने जलाया या और जिसके स्थान पर इंद्रप्रस्थ नगर बसाया गया था।
संज्ञा
[सं.]


खांडविक
हलवाई।
संज्ञा
[सं.]


खाँड़ा
खड्ग।
संज्ञा
[सं. खड्ग]


खाँड़ा
खड्ग की तरह का एक अस्त्र।
संज्ञा
[सं. खड्ग]


खाँड़ा
भाग, टुकड़ा।
संज्ञा
[सं. खंड]


खांडिक
हलवाई।
संज्ञा
[सं.]


खाँडौंगी
चबाऊँगी, (दाँत से) काटूँगी।
मेरे इनके कोउ बीच परौ जिनि अधर दसन खाँडौंगी -१५११।
क्रि. स.
[सं. खंड या खंडन, हिं. खाँडना]


खाँधना
खाना।
क्रि. स.
[सं. खादन]


खाँधो
खाया।
नैन नासिका मुख नहीं चोरि दधि कौने खाँध्यो-३४४३।
कि. स.
[हिं. खाँधना]


खाँपना
खाँसना।
क्रि. स.
[सं. क्षेपन, प्रा. खेपन]


खाँपना
जड़ना।
क्रि. स.
[सं. क्षेपन, प्रा. खेपन]


खाँभ
खंभा।
संज्ञा
[सं. स्तंभ, हिं. खंभा]


खाँभ
लिफाफा।
संज्ञा
[हिं. खाम]


खाँभ
थैली।
संज्ञा
[हिं. खाम]


खाँभना
लिफाफे या थैली में बंद करना।
क्रि. स.
[हिं. खाम]


खाँवाँ
बहुत चौड़ी खाई।
संज्ञा
[सं. खं.]


खाँवाँ
एक पौधा।
संज्ञा
[देश.]


खाँसना
कफ आदि निकालने के लिए वायु को झटके के साथ कंठ से बाहर निकालना।
क्रि. अ.
[सं. कासन, प्रा. खाँसन]


खाँसी
खाँसने की क्रिया।
संज्ञा
[सं. काश, कास]


खाँसी
खाँसने का रोग।
संज्ञा
[सं. काश, कास]


खाइ
खा लेना, भोजन करना।
(क) खाइ न सकै, खरच नहिं जानैं, ज्यौं भुवंग- सिर रहत मनी - १-३९।

(ख) प्रभु-वाहन डर भाजि बच्यौ अहि, नातरु लेतौ खाइ - ५७३।

क्रि. स.
[हिं. खाना]


खाइ
धाइ धाइ खाइ- खाने दौड़ता है। उ. - भूमि मसान बिदित ए गोकुल मनहु धाइ धाइ खाइ - २७००।
मु.


खाइ
काटने से, डसे जाने से।
मैया एक मन्त्र मोहिं आवै। बिषहर खाइ मरै जो कोऊ मोसौं मरन न पावै–७५६।
क्रि. स.
[हिं. खाना]


खाई
भक्षण की, पेट में डाली।
पाँचौ देखि प्रगट ठाढ़े ठग, हठनि ठगौरी खाई - १-१८७।
क्रि. स.
[हिं. खाना]


खाई
विषैले कीड़े (जैसे सर्प) ने काट लिया, डस लिया।
(क) ताकी माता खाई कारैं। सो मरि गई साँप के मारैं–७ - ८।

(ख) गई मुरछाइ, परी धरनी पर मनौं भुअंगम खाई - १०-५२। (ग) लागे हैं बिसारे बान स्याम बिनु जुग जाम घायल ज्यौं घूमैं मनौं विषहर खाई हैं - २८२७।

क्रि. स.
[हिं. खाना]


खाई
किले, महल आदि के चारों ओर रक्षा के उद्देश्य से खोदी गयी नहर।
(क) लंका फिरि गईं राम दुहाई।….दस मस्तक मेरे बीस भुजा हैं सौ जोजन की खाई - ९ - १४०। (ख) पश्चिम देस तीर सागर के कंचन कोट गोमती सी खाई - १०उ. - ९२।
संज्ञा
[सं. खानि, प्रा. खाइँ]


खाउँ
बहुत खानेवाला।
वि.
[हिं. खाऊ]


खाक
तुच्छ, साधारण।
संज्ञा
[फ़ा. ख़ाक]


खाक
जरा भी नहीं, नाम को भी नहीं।
संज्ञा
[फ़ा. ख़ाक]


खाकसार
जो धूल में मिला हो।
वि.
[फा. ख़ाकसार]


खाकसार
तुच्छ, अकिंचन (नम्रतासूचक)।
वि.
[फा. ख़ाकसार]


खाका
नकशा, चित्र का ढाँचा।
संज्ञा
[फ़ा. ख़ाकः]


खाका
खाका उड़ाना- (१) नकल बनाना। (२) निंदा करना। (३) खर्च के अनुमान का ब्योरा। (४) कच्चा चिट्ठा।
मु.


खाकी
भूरा।
वि.
[फ़ा. ख़ाक़ी]


खाकी
जो (भूमि) सिंची न हो।
वि.
[फ़ा. ख़ाक़ी]


खाकी
साधु जो सारे शरीर में राख मलते हैं।
संज्ञा
[फ़ा. ख़ाक]


खाख
धूल, मिट्टी, राख, भस्म।
मृगमद मिलै कपूर कुमकुमा केसनि मलया खाक - ३३२१।
संज्ञा
[हिं. खाक]


खाउँ
खाउँ खाउँ करै- खाने के लिए रिरियाता है। उ.- मचला, अलकैं-मूल, पातर, खाउँ खाउँ करै भूखा - १-१८६।
मु.


खाऊँ
खा जाऊँ, भक्षण कर लूँ।
कहौ तो गन समेत ग्रसि खाऊँ, जमपुर जाहिं न राम - ९ - १४८।
क्रि. स.
[हिं. खाना]


खाऊ
खूब खाने वाला।
वि.
[हिं. खाना+ऊ (पत्य.)]


खाऊ
दूसरे का धन हड़पनेवाला।
वि.
[हिं. खाना+ऊ (पत्य.)]


खाऊ
खूब रिश्वत लेनेवाला।
वि.
[हिं. खाना+ऊ (पत्य.)]


खाऊ
खूब उड़ाऊ।
वि.
[हिं. खाना+ऊ (पत्य.)]


खाए
‘खाना' का भूत., बहु., भोजन किये, भक्षण किये।
पट कुचैल, दुर-बल द्विज देखत, ताके तंदुल खाए (हो) - १ - ७।
क्रि. स.
[हिं. खाना]


खाएँ
खाने से, खा लेने पर।
सूर मिटे अज्ञान-मूरछा, ज्ञान-सुभेषज खाएँ - ९ - १३२।
क्रि. स. सवि.
[हिं. खाना]


खाक
धूल, गर्द, भस्म।
संज्ञा
[फ़ा. ख़ाक]


खाक
खाक उड़ना- उजाड़ होना, नाश होना।

खाक उड़ैहै- (१) खाक उड़ेगी, नाश होगा, उजाड़ हो जायगा। (२) धूल बनकर उड़ जायगा। उ.- या देही कौं गरब न करिये, स्यार काग गिध खैहैं। तीननि मैं तन कृमि, कै बिष्ठा, कै ह्वै खाक उड़ैहै - १ - ८६। खाक उड़ाना- (१) मारे मारे फिरना। (२) (दूसरे की) हँसी उड़ाना। खाक करना- नाश कर देना। खाक चाटना- खुशामद करना। खाक छानना- (१) मारे मारे फिरना। (२) बहुत ढूँढ़ना। खाक डालना- (१) छिपाना। (२) भूल जाना। खाक सिर पर डालना- रोना-पीटना। खाक बरसना- बरबाद हो जाना। खाक में मिलना- नाश होना।

मु.


कथना
कहना, बोलना।
क्रि. स.
[सं. कथन]


कथना
निंदा या बुराई करना।
क्रि. स.
[सं. कथन]


कथनी
बात, कथन।
संज्ञा
[सं. कथन+ई (पत्य.)]


कथनी
बकवाद, विवाद।
संज्ञा
[सं. कथन+ई (पत्य.)]


कथनीय
कहने या वर्णन करने योग्य।
वि.
[सं.]


कथनीय
बुरी, निंदनीय।
वि.
[सं.]


कथरी
चिथड़े-गुदड़ों से बनाया हुआ बिछौना, गुदड़ी।
संज्ञा
[सं. कंथा + री (प्रत्य.)]


कथा
धार्मिक आख्यान।
संज्ञा
[सं.]


कथा
बात, चर्चा।
नाहक मैं लाजनि मरियत है, इहाँ आइ सब नासी। यह तौ कथा चलैगी आगै, सब पतितनि मैं हाँसी - १ - १९२।
संज्ञा
[सं.]


कथा
समाचार, हाल, रहस्य।
(क) सूरदास बलि जात दुहुन की लिखि-लिखि हृदय-कथा चित पाती-सा. ५०। (ख) सुनहु महरि, तेरे या सुत सौं हम पचि हार रहीं। चोर अधिक चतुरई सीखी जाइ न कथा कही - १० - २९१।
संज्ञा
[सं.]


खाखरा
एक बाजा।
संज्ञा
[देश.]


खाग
चुभती है, गड़ती है।
नासा तिलक प्रसून पदबि पर चिबुक चारु चित खाग। दाड़िम दसन मंदकति मुसकनि मोहत सुर नर नाग - १३१४।
संज्ञा
[हिं. खाँग]


खागना
चुभना, गड़ना।
क्रि. अ.
[हिं. खाँग=काँटा]


खागना
कम होना।
क्रि. अ.
[हिं. खाँगना]


खागी
चुभी, गड़ी।
क्रि. अ.
[हिं. खागना]


खागी
घटी, कम हुई।
क्रि. अ.
[हिं. खाँगना]


खाज
खुजली।
पूरे चीर भीरु-तन-कृष्ना, ताके भरे जहाज। काढ़ि काढ़ि थाक्कौ दुस्सासन, हाथनि उपजी खाज - १ - २५५।
संज्ञा
[सं. खर्जु]


खाज
कोढ़ की खाज- दुख या विपत्ति को अधिक बढ़ानेवाली वस्तु।
मु.


खाज
खाद्य पदार्थ।
संज्ञा
[सं. खाद्य, पा. खज्‍ज]


खाज
मैदे की एक मिठाई।
संज्ञा
[सं. खाद्य, पा. खज्‍ज]


खाज
एक पेड़।
संज्ञा
[सं. खाद्य, पा. खज्‍ज]


खाजी
भक्ष्य या खाद्य पदार्थ।
बातैं पै रहि रहति कहन कौ सब जगजात काल की खाज़ी।
संज्ञा
[हिं. खाजा]


खाजी
एक मिठाई।
संज्ञा
[हिं. खाजा]


खाजी
खाजी खाना- मुँह की खान, बुरी तरह लज्‍जित होना।
मु.


खाझा
एक मिठाई जो बारीक मैदे की बनती है।
संज्ञा
[हिं. खाजा]


खाट
चारपाई, खटिया।
संज्ञा
[सं. खटवा)


खाट
खाट-खटोला - बोरिया- बँधना, कपड़ा-लत्ता।
यौ.


खाट
खाट (पर) पड़ना- बीमार होना।

खाट (से) लगना- लंबी बीमारी से बहुत दुबला हो जाना। खाट से उतारना- मरणकाल निकट आ जाना।

मु.


खाटा, खाटी
खट्टी।
(क) सूर निरखि नँदरानि भ्रमित भई, कहति न मीठी खाटी - १० - २५४।

(ख) आई उघरि प्रीति कलई सी जैसी खाटी आमी - ३०८०।

वि.
[हिं. खट्टा]


खाटे
खट्टे, तुर्श, अम्ल।
भिल्लिनि के फल खाए, भाव सौं खाटे-मीठे- खारे - १ - २५।
वि.
[हिं. खट्टा]


खाटो, खाटौ
तुर्श, अम्ल, खट्टा।
अति उन्मत्त मोह-माया-बस नहिं कछु बात बिचारौ। करत उपाव न पूछत काहू, गनत न खाटौ खारौ - १ - १५५।
वि.
[हिं. खट्टा]


खाड़
गड्ढा, गर्त।
पुनि कमंडल धरयौ, तहाँ सो बढ़ि गयौ, कुंभ धरि बहुरि पुनि माट राख्यौ। धरयौ खाड़, तालाब मैं पुनि धरयौ, नदी मैं बहुरि पुनि डारि दीन्हौ - ८ - १६।
संज्ञा
[सं. खात]


खाड़व
एक राग।
संज्ञा
[सं. षाड़व]


खाड़ी
समुद्र का भाग जिसके तीन ओर पृथ्वी हो।
संज्ञा
[हिं. खाड़]


खाड़ी
अरहर का सूखा पेड़।
संज्ञा
[हिं. खाड़]


खाड़ी
अंतिम बार निकाला हुआ रंग।
संज्ञा
[हिं. काढ़ना]


खाड़ू
मीठा।
खी, खार, घृत, लावनि लाड़ू। ऐसे होहिं न अमृत खाँड़ू - ३९६।
वि.
[हिं. खाँड़]


खाड़ू
पतली लकड़ियाँ जिनपर खपड़े रखे जाते हैं।
संज्ञा
[हिं. खंड]


खादर
नीची जमीन जिसमें वर्षा का पानी कुछ दिनों तक भरा रहे।
संज्ञा
[हिं. खादर]


खात
खाता है, भक्षता है।
जा दिना तैं जनम पायौ, यहै मेरी रीति। बिषय-बिष हठि खात नाहीं, डरत करत अनीति - १ - १०६।
क्रि. स.
[सं. खादन, पा. खाअन, खान; हिं. खाना]


खात
सहता है, प्रभाव पड़ता है।
भव-सागर मैं पैरि न लीन्हौ।…..। अति गंभीर, तीर नहिं नियरैं, किहि बिधि उतरयौ जात ? नहीं अधार नाम अवलोकत, जित तित गोता खात - १ - १७२।
क्रि. स.
[सं. खादन, पा. खाअन, खान; हिं. खाना]


खात
धाइ धाइ खात- खाने दौड़ती है। उ.- अब ए भवन देखियत सूनो धाइ धाई व्रज खात - २७७९।
मु.


खात
खोदने की क्रिया।
संज्ञा
[स.]


खात
तालाब।
संज्ञा
[स.]


खात
कुआँ।
संज्ञा
[स.]


खात
खाद का गड्ढा।
संज्ञा
[स.]


खात
वह स्थान जहाँ मद्य तैयार करने के लिए महुआ रखा जाता है।
संज्ञा


खात
मैला, गंदा।
वि.


खातक
तलैया।
संज्ञा
[सं.]


खातक
खाई।
संज्ञा
[सं.]


खातिरी
आदर-सत्कार।
संज्ञा
[हि.खातिर]


खातिरी
संतोष।
संज्ञा
[हि.खातिर]


खातिरी
नदी किनारे की फसल।
संज्ञा
[देश.]


खाती
खोदी हुई भूमि।
संज्ञा
[सं. खात]


खाती
छोटा ताल।
संज्ञा
[सं. खात]


खाती
बढ़ई।
संज्ञा
[सं. खात]


खाती
खोदने का काम करनेवाली जाति।
संज्ञा


खातो, खातौ
खाता है, भोजन करता है।
साँच-झूठ करि माया जोरी, आपुन रूखौ खातौ। सूरदास कछु फिर न रहैगौ, जो आयौ सो जातौ - १ - ३०२।
क्रि. स.
[हिं. खाना]


खातो, खातौ
डस लेता, काट खाता।
आजु सबनि धरिकै वह खातौ धनि तुम हमहिं बचाये - २३६९।
क्रि. स.
[हिं. खाना]


खाद
खानेयोग्य, भोज्य, भक्ष्‍य।
खाद-अखाद न छाँड़ै अब लौं, सब मैं साधु कहावै–१ - १८६।
वि.
[सं. खाद्य]


खातक
कर्जदार, ऋणी।
संज्ञा
[सं.]


खातमा
अंत।
संज्ञा
[फ़ा. ख़तमा


खातमा
मृत्यु।
संज्ञा
[फ़ा. ख़तमा


खाता
खानेवाले।
तीनि लोक बिभव दियौ तंदुल के खाता - १ - १२३।
संज्ञा
[हिं. खाना]


खाता
अन्न रखने का गढ़ा, बखार।
संज्ञा
[सं. खात]


खाता
आयव्यय आदि लिखने की बही।
संज्ञा
[हिं. खत]


खाता
खाता खोलना- नया संबंध होना।

खाता डालना- लेन-देन शुरू करना।

मु.


खाता
मद, विभाग।
संज्ञा
[हिं. खत]


खातिर
आदर-सत्कार।
संज्ञा
[अ. खातिर]


खातिर
लिये, वास्ते।
अव्‍य.


खाद
पदार्थ जिसके डालने से खेत की उपज बढ़ती है, पाँस।
संज्ञा


खादक
कर्जदार, ऋणी
संज्ञा
[सं.]


खादक
धातु की भस्म जो खायी जाती है।
संज्ञा
[सं.]


खादक
खानेवाला।
वि.


खादन
भोजन।
संज्ञा
[सं.]


खादन
दाँत।
संज्ञा
[सं.]


खादनीय
खाने योग्य।
वि.
[सं.]


खादर
तराई, कछार, समतल भूमि।
मेघ परस्पर यहै कहत हैं धोय करहु गिरि खादर।
संज्ञा
[हिं. खात]


खादर
पशुओं के चरने की भूमि।
संज्ञा
[हिं. खात]


खादि
खाने योग्य पदार्थ, खाद्य वस्तु।
संज्ञा
[सं.]


खादि
कवच।
संज्ञा
[सं.]


खादि
दस्ताना।
संज्ञा
[सं.]


खादि
दोष।
संज्ञा
[सं. छिद्र]


खादित
खाया हुआ।
वि.
[सं.]


खादिम
नौकर।
[अ. ख़ादिम]


खादिर, खादिरसार
कत्था।
संज्ञा
[सं.]


खादी
खानेवाला।
वि.
[सं. खादिन्]


खादी
शत्रु का नाश करनेवाला।
वि.
[सं. खादिन्]


खादी
काँटेदार।
वि.
[सं. खादिन्]


खादी
हाथ के सूत का बना मोटा कपड़ा।
संज्ञा
[देश.]


खादी
मोटा कपड़ा।
संज्ञा
[देश.]


खादी
जिसमें दोष हो।
वि.
[हिं. खादि=दोष]


खादी
दोष निकालनेवाला।
वि.
[हिं. खादि=दोष]


खादुक
हिंसा करने वाला।
वि.
[सं.]


खाद्य
खानेयोग्य, भक्ष्‍य।
वि.
[सं.]


खाद्य
भोजन।
संज्ञा


खाध, खाधु, खाधुक
भोज्य पदार्थ।
संज्ञा
[सं. खाद्य]


खाध, खाधु, खाधुक
खानेवाला।
वि.
[सं. खादक]


खाधे
खाया।
नयन नासिका मुख न चोरि दधि कौने खाधे - ३४४३।
क्रि. स.
[हिं. खाना]


खान
खाना, खाने की क्रिया।
(क) सूरदास प्रभु कौं घर तैं लै, दैहौं माखन खान - १० - २७२।

(ख) गोपालहिं माखन खान दै - १० - २७४।

संज्ञा
[हिं. खाना]


खान
भोजन की सामग्री।
संज्ञा
[हिं. खाना]


खान
भोजन की रीति या आचार।
कै कहुँ खान पान रमनादिक, कै कहुँ बाद अनैसै–१ - २९३।
संज्ञा
[हिं. खाना]


खान
खाने के लिए, निगल जाने को, मार डालने के लिए।
भूत प्रेत बैताल रच्यो बहु दौरे विधि कौ खान - ६५ सारा.।
संज्ञा
[हिं. खाना]


खान
लगत खान- खाने लगता है, खाने दौड़ता है, कोटे खाता है। उ.- जिनि धरनि वह सुख बिलोक्यो ते लगत अब खान - २७४६।
मु.


खान
खानि, आकर।
संज्ञा
[सं. खानि]


खान
आधार-स्थान, उत्पत्ति-स्थान
कुटिल-खान चंपक चंचल मति सबही ते जु निनारी–३३५६।
संज्ञा
[सं. खानि]


खान
निधि, कोष।
संज्ञा
[सं. खानि]


खान
समूह, समाज।
तहँ ते गये जु चित्रकूट को जहाँ मुनिन की खान २४४ सारा.।
संज्ञा
[सं. खानि]


खान
सरदार।
संज्ञा
[ता. काङ्= सरदार]


खान
पठानों की उपाधि।
संज्ञा
[ता. काङ्= सरदार]


कथा
वाद-विवाद, कहा-सुनी, झगड़ा।
संज्ञा
[सं.]


कथानक
कथा।
संज्ञा
[सं.]


कथानक
कथा का सारांश, कहानी।
संज्ञा
[सं.]


कथावस्तु
नाटक, उपन्यास आदि की कहानी।
संज्ञा
[सं]


कथीर, कथील, कथीला
राँगा।
संज्ञा
[सं. कस्तीर, पा. कत्थीर]


कथोपकथन
वार्तालाप।
संज्ञा
[सं.]


कथोपकथन
बातचीत।
संज्ञा
[सं.]


कदंब
समूह, ढेर, कुण्ड।
सुनत बचन प्रिय रसाल, जागे अतिसय दयाल, भागे जंजाल-जाल दुख-कदंब हारे - १ - २०५।
संज्ञा
[सं.]


कदंब
कदम का वृक्ष।
अति रमनीक कदंब-छाँह-रुचि परम सुहाई- ४९२।
संज्ञा
[सं.]


कदंश
बुरा या सारहीन भाग।
संज्ञा
[सं.]


खानक
खान खोदनेवाला।
संज्ञा
[सं. खन]


खानक
बेलदार।
संज्ञा
[सं. खन]


खानक
बढ़ई।
संज्ञा
[सं. खन]


खानगी
घरेलू, आपसी, निजी।
वि.
[फ़ा. ख़ानगी]


खानदान
वंश, कुल।
संज्ञा
[फ़ा.]


खानदानी
ऊँचे कुल का।
वि.
[फ़ा.]


खानदानी
कुलपरंपरा से चला आनेवाला, पैतृक।
वि.
[फ़ा.]


खानपान
अन्न जल, भोजन और पानी, खाना-पीना।
स्याम सुंदर मदन मोहन, मोहिनी सी लाई। चित्त चंचल कुँवरि राधा, खानपान भुलाई - ६७८।
संज्ञा
[सं.]


खानपान
खाने-पीने का प्रचार व्यवहार।
संज्ञा
[सं.]


खाना
भोजन करना।
क्रि. स.
[सं. खादन पा. खाअन, खान]


खाना
रिश्वत लेना।
क्रि. स.
[सं. खादन पा. खाअन, खान]


खाना
(किसी काम में) रुपया खर्च करा देना।
क्रि. स.
[सं. खादन पा. खाअन, खान]


खाना
समाना, भरना।
क्रि. स.
[सं. खादन पा. खाअन, खान]


खाना
(बीच बीच में) कुछ छोड़ देना।
क्रि. स.
[सं. खादन पा. खाअन, खान]


खाना
सह लेना, बरदाश्त करना।
क्रि. स.
[सं. खादन पा. खाअन, खान]


खाना
मुँह की खाना- (१) बुराई के बदले में नीचा देखना। (२) बुरी तरह हार जाना।
मु.


खाना
घर, मकान।
संज्ञा
[फ़ा. खाना]


खाना
कोई चीज रखने का घर।
संज्ञा
[फ़ा. खाना]


खाना
अलमारी, मेज आदि का विभाग।
संज्ञा
[फ़ा. खाना]


खाना
कोष्टक।
संज्ञा
[फ़ा. खाना]


खाना
जिसका खाना उसे आँख दिखाना (गुर्राना)- उपकार या अहसान न मानना।

खाने के दाँत और दिखाने के और- करना कुछ दिखाना कुछ। खाना न पचना- जी न मानना, चैन न मिलना।

मु.


खाना
शिकार पकड़ना और भक्षण करना।
क्रि. स.
[सं. खादन पा. खाअन, खान]


खाना
(कच्चा) खा जाना- मार डालना।

खाने दौड़ना- बहुत झल्लाना और क्रुद्ध होना।

मु.


खाना
विषैले कीड़ों को काटना।
क्रि. स.
[सं. खादन पा. खाअन, खान]


खाना
कष्ट देना, तंग करना।
क्रि. स.
[सं. खादन पा. खाअन, खान]


खाना
कुतरना, काटना।
क्रि. स.
[सं. खादन पा. खाअन, खान]


खाना
चूसना, चबाना।
क्रि. स.
[सं. खादन पा. खाअन, खान]


खाना
बरबाद करना।
क्रि. स.
[सं. खादन पा. खाअन, खान]


खाना
मार लेना, हड़प जाना।
क्रि. स.
[सं. खादन पा. खाअन, खान]


खाना
खर्च कर डालना।
क्रि. स.
[सं. खादन पा. खाअन, खान]


खाना
संदूक।
संज्ञा
[फ़ा. खाना]


खानाजाद
जो घर में पैदा हुआ या पाला-पोसा गया हो।
वि.
[फ़ा. खानाज़ाद]


खानाजाद
सेवक, दास।
मन विगरयौ ये नैन बिगारे।......। ए सब कहौ कौन हैं मेरे खानाजाद चिचारे - पृ. ३२०।
संज्ञा


खानि
खानि, आकार, खदान।
सूर एक ते एक आगरे वा मथुरा की खानि–३०५१।
संज्ञा
[सं. खानि]


खानि
वह स्थान या व्यक्ति जहाँ या जिसमें किसी वस्तु की अधिकता हो, खजाना।
(क) जहाँ न काहू कौ गम, दुसह दारुन तम, सकल बिधि बिषम, खलमल-खानि–१ ७७।

(ख) उघरि आये कान्ह कपट की खानि–३२५०।

संज्ञा
[सं. खानि]


खानि
ओर, तरफ।
संज्ञा
[सं. खानि]


खानि
प्रकार, रीति।
संज्ञा
[सं. खानि]


खानिक
खान, आकर, खदान।
संज्ञा
[हिं. खान]


खानी
राशि, समूह, खजाना।
आलस भरे नैन, सकल सोभा की खानी - १०-४४१
संज्ञा
[सं. खानि]


खापट
कड़ी भूमि।
संज्ञा
[हिं. खपाटा]


खापर
कड़ी भूमि।
संज्ञा
[हिं. खापट]


खापर
ऊँची-नीची भूमि।
संज्ञा
[हिं. खापट]


खाब
स्वप्न।
संज्ञा
[फ़ा. ख्वाब]


खाबड़, खूबड़
ऊँचा-नीचा।
वि.
[अनु.]


खाम
चिट्ठी का लिफाफा।
संज्ञा
[हिं. खामना]


खाम
जोड़, टाँका।
संज्ञा
[हिं. खामना]


खाम
खंभा।
संज्ञा
[हिं. खंभा]


खाम
मस्तूल।
संज्ञा
[हिं. खंभा]


खाम
घटनेवाला।
वि.
[सं. क्षाम]


खाम
कच्चा।
वि.
[फ़ा. ख़ाम]


खाम
जो दृढ़ न हो।
वि.
[फ़ा. ख़ाम]


खाम
जो अनुभवी न हो।
वि.
[फ़ा. ख़ाम]


खामना
मिट्टी, आटे या मैदा से पात्र का मुँह बन्द करना।
क्रि. स.
[सं. स्कंभ=मूँदना, रोकना, प्रा. खंभन]


खामना
लिफाफा बन्द करना।
क्रि. स.
[सं. स्कंभ=मूँदना, रोकना, प्रा. खंभन]


खामी
कच्चापन।
संज्ञा
[फ़ा. ख़ामी]


खामी
कमी।
संज्ञा
[फ़ा. ख़ामी]


खामी
अनुभवहीनता।
संज्ञा
[फ़ा. ख़ामी]


खामोश
चुप।
वि.
[फ़ा. खामोश]


खामोशी
चुप्पी।
संज्ञा
[फ़ा. ख़ामोशी]


खायो, खायौ
भोजन किया, भक्षण किया, खाया।
काम-क्रोध-मद-लोभ-ग्रसित ह्वै, विषय परम बिष खायौ - १ - १११।
क्रि. स. (भूत.)
[हिं. खाना]


खायो, खायौ
विषैले कीट का काटना या डसना।
माया बिषम भुजंगिनि कौ बिष, उतरयौ नाहिंन तोहिं। …...। बहुत जीव देह अभिमानी, देखत ही इन खायौ–२ - ३२।
क्रि. स. (भूत.)
[हिं. खाना]


खार
खारी, क्षार या नमक के स्वाद का।
वि.
[सं. क्षार, हिं. खारा]


खार
अरुचिकर, अप्रिय, अशुद्ध।
जमुना तोहिं बह्यौ क्यौं भावै। तो मैं हेलुवा खेलै सो सुरत्यौ नहिं आवै। तेरो नीर सुची जो अब लौं खार पनार कहावै–५६१।
वि.
[सं. क्षार, हिं. खारा]


खार
नीर-खार - समुद्र।
कहौं तौ परबत चाँपि चरन तर नीर खार मैं गारौं - ९ - १०७
यौ.


खार
लोना, रेह।
संज्ञा


खार
धूल, राख।
संज्ञा


खार
एक झाड़ी।
संज्ञा


खार
छोटा तालाब, डबरा।
(क) दई न जात खार उतराई चाहत चढ़न जहाज।

(ख) पुनि पाछे अघ-सिंधु बढ़त है सूर खार किन पाटत।

संज्ञा


खार
काँटा, फाँस।
संज्ञा
[फ़ा. ख़ार]


खार
खाँग।
संज्ञा
[फ़ा. ख़ार]


खार
डाह, जलन।
संज्ञा
[फ़ा. ख़ार]


खार
खार खाना- जलना, बुरा लगना।
मु.


खारक
छोहारा।
संज्ञा
[सं. क्षारक, प्रा. खाक]


खार
नमक के स्वाद का।
वि.
[सं. क्षार]


खार
अरुचिकर, अप्रिय, अशुद्ध।
वि.
[सं. क्षार]


खार
एक धारीदार कपड़ा।
संज्ञा
[सं. क्षार]


खार
जालदार बँधना।
संज्ञा
[सं. क्षार]


खार
थैला।
संज्ञा
[सं. क्षार]


खार
टोकरा।
संज्ञा
[सं. क्षार]


खार
बाँस का बड़ा पिटारा।
संज्ञा
[सं. क्षार]


खारि
नमक के स्वाद का।
खारि समुद्र छाँड़ि किन आवत निर्मल जल जमुना को पीजो - १०उ. ९५।
वि.
[हिं. पुं. खार]


खारि
अरुचिकर।
वि.
[हिं. पुं. खार]


खारिक
छोहारा, खारक।
खारिक, दाख, खोपरा, खीरा। केरा, ग्राम, ऊख, रस सीरा - १०-२११।
संज्ञा
[सं. क्षारक]


खारिज
निकाला हुआ।
वि.
[अ. ख़ारिज]


खारिज
अलग।
वि.
[अ. ख़ारिज]


खारिज
जिसकी सुनवाई न हो।
वि.
[अ. ख़ारिज]


खारी
नमकीन।
निर्मल जल जमुना को छाँड़यो सेवत समुद्र जल खारी - १० उ. - ९७।
वि.
[हिं. पुं. खार]


खारी
अरुचिकर।
वि.
[हिं. पुं. खार]


खारी
एक तरह का क्षार, लवण।
संज्ञा
[हिं. खारा]


खारुआँ, खारुवा
एक प्रकार का रंग।
संज्ञा
[सं. क्षारक]


खारुआँ, खारुवा
इस रंग से रँगा कपड़ा।
संज्ञा
[सं. क्षारक]


खारे
नमकीन। नमक के स्वाद का, खारी।
(क) मधुमेवा पकवान मिठाई, ब्यंजन खाटे, मीठे, खारे - १० - २९६।

(ख) जेहि मुख सुधा स्याम रस अँचवत अब पीवै जल खारे - ३ - ६८।

वि.
[सं. क्षार, हिं. खारा]


खारे
कड़ुआ, अरुचिकर।
भिल्लिनि के फल खाए भाव सौं खाटे-मीठे-खारे - १ - २५।
वि.
[सं. क्षार, हिं. खारा]


खारो,खारौ
नमक के स्वाद का, खारी।
याकौ कहा परेखौ-निरखौ, मधु छीलर, सरितापति खारौ - ९ - ३६।
वि.
[हिं. खारा]


खारो,खारौ
कडुआ, अरुचिकर।
कहौं कहा कछु कहत न आवै, औ रस लागत खारौ री - १० - १३५।
वि.
[हिं. खारा]


खारो,खारौ
बुरा, अनुचित।
करत उपाव न पूछत काहू, गनत न खाटो, खारौ - १ - १५२।
वि.
[हिं. खारा]


खाल
चमड़ा, त्वचा।
संज्ञा
[सं. क्षाल, प्रा. खाल]


खाल
खाल उड़ाना (उधेड़ना, खीचना)- बहुत मारना-पीटना।

खाल कढ़ाइ- खाल उधड़ाना या खिचवाना, कड़ा दंड दिलवाना। उ. - दिन दिन इनकी करौं बड़ाई, अहिर गए इतराइ। तौ मैं जो वाही सों कहिकै इनकी खाल कढ़ाई - २५७८।

मु.


खाल
मृत शरीर।
कहि तू अपने स्वारथ सुख को रोकि कहा करिहै खलु खालहि - १० - ८०२।
संज्ञा
[सं. क्षाल, प्रा. खाल]


खाल
धौंकनी।
संज्ञा
[सं. क्षाल, प्रा. खाल]


कद
ईर्ष्‍या, द्वेष।
संज्ञा
[अ. कद्द]


कद
हठ, जिद।
संज्ञा
[अ. कद्द]


कद
डील, ऊँचाई।
संज्ञा
[अ. कद]


कद
बादल।
संज्ञा
[सं. कं = जल+द]


कद
कब, किस दिन, किस समय।
अव्य.
[सं. कदा]


कदधव
कुपथ।
संज्ञा
[सं. कदध्वा]


कदन
युद्ध, संग्राम, नाश।
परै भहराइ भभकंत रिपु घाई सौं, करि कदन रुधिर भैरौं अघाऊँ–९ - १२९।
संज्ञा
[सं.]


कदन
मरण, विनाश।
संज्ञा
[सं.]


कदन
हिंसा, पाप।
संज्ञा
[सं.]


कदन
दुख।
संज्ञा
[सं.]


खाल
देह, शरीर।
संज्ञा
[सं. क्षाल, प्रा. खाल]


खाल
किसी चीज का मिला-जुला आवरण।
संज्ञा
[सं. क्षाल, प्रा. खाल]


खाल
नीची भूमि।
संज्ञा
[सं. खात या अ. ख़ाली]


खाल
खड़ी।
संज्ञा
[सं. खात या अ. ख़ाली]


खाल
खाली जगह।
संज्ञा
[सं. खात या अ. ख़ाली]


खाल
गहराई।
संज्ञा
[सं. खात या अ. ख़ाली]


खालसा
जिस पर एक ही का अधिकार हो।
वि.
[अ. ख़ालिस=शुद्ध]


खालसा
सरकारी, राजकीय।
वि.
[अ. ख़ालिस=शुद्ध]


खालसा
सिक्खों का एक संप्रदाय।
संज्ञा


खाला
नीचा, निचला।
वि.
[हिं. ख़ाल=खाली]


खाला
माँ की बहिन, मौसी।
संज्ञा
[अ. ख़ालः]


खालिक
रचनेवाला, स्रष्टा।
संज्ञा
[अ. ख़ालिक]


खालिस
असली, शुद्ध।
वि.
[अ. ख़ालिस]


खाली
जो भरा न हो, रीता।
वि.
[अ. ख़ाली]


खाली
जिसपर कुछ खा न हो।
वि.
[अ. ख़ाली]


खाली
जहाँ कोई न हो।
वि.
[अ. ख़ाली]


खाली
खाली हाथ होना- पास में धन, अस्त्र-शस्त्र या काम न होना।

खाली पेट- बिना कुछ खाये।

मु.


खाली
हीन, रहित।
वि.
[अ. ख़ाली]


खाली
व्यर्थ, निष्फल।
पुनि लछमी हित उद्यम करै। अरु जब उद्यम खाली परै। तब वह रहै बहुत दुख पाई - ३ - १३।
वि.
[अ. ख़ाली]


खाली
निशाना (वार) खाली जाना- लक्ष्य चूक जाना।

बात खाली जाना- वादा झूठा होना। खाली दिन- वह दिन जब कोई शुभ कार्य प्रारंभ करना मना हो।

मु.


खाविंद
पति।
संज्ञा
[फा. ख़ाविंद]


खाविंद
स्वामी।
संज्ञा
[फा. ख़ाविंद]


खास
विशेष, मुख्य।
वि.
[अ. ख़ास]


खास
निजी, आत्मीय।
वि.
[अ. ख़ास]


खास
स्वयं।
वि.
[अ. ख़ास]


खास
ठेठ, विशुद्ध।
वि.
[अ. ख़ास]


खासा
राजा का भोजन।
संज्ञा
[अ.]


खासा
राजा का घोड़ा या हाथी।
संज्ञा
[अ.]


खासा
एक सफेद सूती कपड़ा।
संज्ञा
[अ.]


खासा
अच्छा-भला।
वि.
[अ. ख़ास]


खासा
स्वस्थ।
वि.
[अ. ख़ास]


खासा
सुन्दर।
वि.
[अ. ख़ास]


खासा
भरा-पुरा।
वि.
[अ. ख़ास]


खासियत
स्वभाव।
संज्ञा
[अ.]


खासियत
गुण।
संज्ञा
[अ.]


खासियत
विशेषता।
संज्ञा
[अ.]


खाँहिं, खाहीं
खाते हैं, भोजन करते हैं।
हंस उज्ज्ल, पंख निर्मल, अंग मलि-मलि न्हाहिं। मुक्ति-मुक्ता अनगिने फल, तहाँ चुनि चुनि खाहिँ १ - ३३८। (ख) बारम्बार सराहिँ सूर प्रभु साग-बिदुर घर खाहीं - १ - २४१।
क्रि. स.
[हिं. खाना]


खाहु
खाओ, खालो।
बहुत भुजनि बल होइ तुम्हारे, ये अमृत फल खाहु–९-८३।
क्रि. स.
[हिं. खाना]


खिंचना
घसिटना, सरकना।
क्रि. अ.
[सं. कर्षण]


खिंचना
बाहर निकलना।
क्रि. अ.
[सं. कर्षण]


खाली
जो किसी काम में न लगा हो।
वि.
[अ. ख़ाली]


खाली
खाली बैठना- (१) काम न करना। (२) बेरोजगार होना।
मु.


खाली
जिससे काम न लिया जा रहा हो।
वि.
[अ. ख़ाली]


खाली
केवल, सिर्फ।
क्रि. वि.


खाली
वह ताल जो खाली छोड़ दिया जाय।
संज्ञा


खालीर
चमड़ी, खाल।
संज्ञा
[हिं. खाल]


खाले
निचाई, गहराई।
संज्ञा
[हिं. खाला]


खाले
नीचा, निचला।
वि.
[हिं. खाल या खाली]


खाले
नीचे।
क्रि. वि.


खाव
खाली जगह।
संज्ञा
[सं. खात]


खिंडाना
फैलाना, बिखराना।
क्रि. स.
[सं. क्षिप्त]


खिआल
खेल।
संज्ञा
[हिं. खेल, खियाल]


खिआल
हँसी, विनोद।
संज्ञा
[हिं. खेल, खियाल]


खिखिंद खिखिंध
मैसूर के आसपास किष्किंधा देश की एक पर्वत श्रेणी।
संज्ञा
[सं. किष्किंधा]


खिचड़वार, खिचरवार
मकर संक्रांति।
[हिं. खिचड़ी+वार]


खिचड़ी
मिला हुआ दाल चावल।
संज्ञा
[सं. कृसर]


खिचड़ी
खिचड़ी पकाना- गुप्त सलाह करना।

ढाई चावल की खिचड़ी अलग पकाना- बहुमत से अलग होकर काम करना। खिचड़ी खाते पहुँचा उतरना- बहुत नाजुक होना।

मु.


खिचड़ी
मिले हुए एक या अधिक पदार्थ।
संज्ञा
[सं. कृसर]


खिचड़ी
मकर संक्रांति जब खिचड़ी दान दी जाती है।
संज्ञा
[सं. कृसर]


खिचड़ी
मिला हुआ।
वि.


खिंचना
किसी ओर बढ़ना, तनना।
क्रि. अ.
[सं. कर्षण]


खिंचना
आकर्षित होना।
क्रि. अ.
[सं. कर्षण]


खिंचना
चुस जाना, सोखा जाना।
क्रि. अ.
[सं. कर्षण]


खिंचना
भभके से अर्क आदि तैयार होना।
क्रि. अ.
[सं. कर्षण]


खिंचना
शक्ति या सार निकलना।
क्रि. अ.
[सं. कर्षण]


खिंचना
रुक जाना।
क्रि. अ.
[सं. कर्षण]


खिंचना
चित्रित होना।
क्रि. अ.
[सं. कर्षण]


खिंचना
खपते रहना, चला जाना।
क्रि. अ.
[सं. कर्षण]


खिंचना
प्रेम कम हो जाना।
क्रि. अ.
[सं. कर्षण]


खिंचना
दाम बढ़ जाना।
क्रि. अ.
[सं. कर्षण]


खिंचवा
खींचनेवाला।
वि.
[हिं. खींचना]


खिंचवाना
खींचने को प्रेरित करना।
क्रि. स.
[हिं. खींचना]


खिंचाई
खींचने की क्रिया।
संज्ञा
[हिं. खींचना]


खिंचाई
इस काम की मजदूरी।
संज्ञा
[हिं. खींचना]


खिंचाना
खींचने की प्रेरणा देना।
क्रि. स.
[हिं. खींचना]


खिंचाव
खींचने का भाव।
संज्ञा
[हिं. खिंचना]


खिंचाव
तनाव।
संज्ञा
[हिं. खिंचना]


खिंचावट, खिंचाहट
खींचने की क्रिया।
संज्ञा
[हिं. खिंचना]


खिंचावट, खिंचाहट
खींचने का भाव।
संज्ञा
[हिं. खिंचना]


खिंचिया
खींचनेवाला।
वि.
[हिं. खींचना]


खिझी
चिढ़ी, खीझी।
कछुक खिझी कछु हँसि कह्यौ अति बने-कन्हाई - २४४१।
क्रि. अ.
[हिं. खिझना]


खिझुवर
शीघ्र ही चिढ़ने या खीझनेवाला।
वि.
[हिं. खीझना]


खिझौना
खिझानेवाला।
वि.
[हिं. खिझाना]


खिझौनी
खिझानेवाली।
वि.
[हिं. खिझौना]


खिड़कना
चले जाना, चल देना, उठ भागना।
क्रि. अ.
[हिं. खसकना]


खिड़काना
टालना, हटाना
क्रि. स.
[हिं. खिसकना]


खिड़काना
निकाल डालना, बेच देना।
क्रि. स.
[हिं. खिसकना]


खिड़की
छोटा दरवाजा, झरोखा।
संज्ञा
[सं. खटक्किका]


खिड़की
चोर दरवाजा।
संज्ञा
[सं. खटक्किका]


खिड़की
इस आकार का खाली स्थान।
संज्ञा
[सं. खटक्किका]


खिजना
झुँझलाना।
क्रि. अ.
[हिं. खीझना]


खिजमत
सेवा, टहल।
संज्ञा
[हिं. खिदमत]


खिजलाना
झुंझलाना।
क्रि. अ.
[हिं. खिझना]


खिजलाना
चिढ़ाना, दुखी करना।
क्रि. सं.


खिजाँ
पतझड़ की ऋतु।
संज्ञा
[फ़ा. खिजाँ]


खिजाँ
अवनति-काल।
संज्ञा
[फ़ा. खिजाँ]


खिझ
झुँझलाहट।
संज्ञा
[हिं. खीझ]


खिझत
खिझाते हैं, झुँझलाते हैं।
(क) जबहिं मोहिं देखत लरिकन संग तबहिं खिझत बल भैया। (ख) जाहु घर तुरत जुबतिजन खिझत गुरुजन कहि डरवाई - पृ. ३४० (९७) (ग) मैया जब मोहिं टहल कहति कछु खिझत बबा वृषभान - ७२४।
क्रि. अ.
[हिं. खिझना]


खिझत
हठ करता है रूठता है।
कहत जननी दूध डारत खिझत कछु अनखाइ।
क्रि. अ.
[हिं. खिझना]


खिझना
खीझना, झुँझलाना।
क्रि. अ.
[सं. खिद्यते, प्रा. खिज्जइत]


कदन
घातक, हत्यारा।
संज्ञा
[सं.]


कदन्न
वह अन्न जिसका खाना मना हो।
संज्ञा
[सं.]


कदम
एक बड़ा पेड़ जिसमें पीले फूल और हरे फल लगते हैं।
(क) सीतल कुंज कदम की छहियाँ छाक छहूँ रस खैए - ४४५। (ख) कहि धौं कुंद कदम बकुल बट चंपक लता तमाल - १८०८।
संज्ञा
[सं. कदंब]


कदम
पैर, पग।
संज्ञा
[अ. क़दम]


कदम
पैर का चिह्न।
संज्ञा
[अ. क़दम]


कदम
दो पगों का अंतर, पैंड।
संज्ञा
[अ. क़दम]


कदर
अंकुश।
संज्ञा
[सं.]


कदर
गाँठ।
संज्ञा
[सं.]


कदर
मात्रा।
संज्ञा
[अ. क़दर)


कदर
मान, बड़ाई।
संज्ञा
[अ. क़दर)


खिझवै
चिढ़ाता है, खिझाता है।
यह कहति जसोदा रानी। कौ खिझवै सारँगपानी - १०.१८३।
क्रि. स.
[हिं. खिझाना]


खिझाइ
खिझाकर, चिढ़ाकर, छेड़कर।
हमहिं खिझाइ आपु मति खोवत या मैं कहा कहौ तुम पावत - ३२६६।
क्रि. स.
[हिं. खिझाना]


खिझाई
चिढ़ाया (है), परेशान किया (है)।
कहा करौं हरि बहुत खिझाई। सहि नहिं सकी, रिस ही रिस भरि गई, बहुतै ढीठ कन्हाई - ३७७।
क्रि. स.
[हिं. खिझाना]


खिझाना
चिढ़ाना, रुठाना, छेड़ना।
क्रि. स.
[हिं. खिझना]


खिझायौ
चिढ़ाया, दिक किया।
मैया, मोहिं दाऊ बहुत खिझायौ - १०-२१५।
क्रि. स.
[हिं. खिझाना]


खिझावत
खिझाते हैं, चिढ़ाते हैं, दिक करते हैं।
(क) ऐसैं कहि सब मोहिं खिझावत, तब उठि चल्यौ खिसैया - १० - २१७। (ख) और ग्वाल सँग कबहुँ न जैहौं, वै सब मोहिं खिझावत - ४२४।

(ग) सूर स्याम जहँ तहाँ खिझावत जो मनभावत दूरि करो लंगर सगरी - १०४५।

क्रि. स.
[हिं. खिझाना]


खिझावन
चिढ़ाने के लिए, दिक करने की क्रिया।
ऊधो तुम यह मत लै आए। इक हम जरैं खिझावन आए मानौं सिखे पठाए - ३२१०।
संज्ञा
[हिं. खिझाना]


खिझवाना
चिढ़ाना।
क्रि. स.
[हिं. खिझना]


खिझि
खीझकर, चिढ़कर, झुँझलाकर।
सूरदास खिझि कहति ग्वालिनी, मन मैं महरि बिचारि - १० - ७९।
क्रि. अ.
[हिं. खिझना]


खिझिलाइ
खीझकर, चिढ़कर।
रही ताड़ि खिझिलाई लकुट लै एकहु डर न डरे - पृं. ३३१।
क्रि. अ.
[हिं. खिझाना]


खित
पृथ्वी।
संज्ञा
[सं. क्षिति]


खिताब
पदवी, उपाधि।
संज्ञा
[अ. ख़िताब]


खिताबी
जिसे खिताब मिला हो।
वि.
[अ. ख़िताबी]


खित्ता
प्रांत, देश।
संज्ञा
[अ.]


खिदमत
सेवा।
संज्ञा
[फा. ख़िदमत]


खिदमती
बहुत सेवा करने वाला।
वि.
[हिं. खिदमत]


खिदमती
जो सेवा के बदले में प्राप्त हुआ हो।
वि.
[हिं. खिदमत]


खिदरबन
बारह बनों में एक।
नंदगाम संकेत खिदरबन और कामबन धाम - १०८९ सारा.।
संज्ञा
[हिं. खदिरबन]


खिन
उदास, दुखी, चिंतित।
निरखत सून भवन जड़ ह्वै रहे, खिन लोटत धर, बपु न सँभारत - ९ - ६२।
वि.
[सं. खिन्न]


खिन
क्षण, पल।
खिन मुँदरी, खिन हीं हनुमति सों, कहति बिसूरि बिसूरि - ९ - ८३।
संज्ञा
[सं. क्षण]


खिन
खिन खिन- प्रति क्षण।
मु.


खिन्न
उदास, चिंतित।
वि.
[सं.]


खिन्न
अप्रसन्न।
वि.
[सं.]


खिन्न
असहाय।
वि.
[सं.]


खिपना
खप जाना।
क्रि. अ.
[सं. क्षिप्]


खिपना
तल्लीन होना।
क्रि. अ.
[सं. क्षिप्]


खिपाना
काम में लाना।
क्रि. स.
[हिं. खपाना]


खिपाना
निभाना।
क्रि. स.
[हिं. खपाना]


खिपाना
खत्म करना।
क्रि. स.
[हिं. खपाना]


खियाना
घिसना।
क्रि. अ.
[सं. क्षय]


खियाना
खिलाना।
क्रि. अ.
[हिं. खाना]


खियाल
ध्यान।
संज्ञा
[हिं. ख्याल]


खियाल
विचार।
संज्ञा
[हिं. ख्याल]


खियाल
खेल, क्रीड़ा।
संज्ञा
[हिं. खेत]


खियाल
विनोद।
संज्ञा
[हिं. खेत]


खिर
ढरकी या नार जिसमें बाने का सूत रहता है।
संज्ञा
[देश.]


खिर
खीर।
संज्ञा
[सं. क्षीर]


खिर
दूध।
संज्ञा
[सं. क्षीर]


खिरकन
पशुओं का बाड़ा।
राँभी गौ खिरकन मैं बछरा हित धाई।
संज्ञा
[हिं. खरक]


खिरका
पशुओं का बड़ा।
संज्ञा
[हिं. खरक, खरिक]


खिलना
अलग होना।
क्रि. वि.
[सं. स्खलन्]


खिलवत
एकान्त स्थान।
संज्ञा
[अ. ख़िलवत]


खिलवतखाना
एकान्त स्थान।
संज्ञा
[ख़िलवतख़ाना]


खिलवतखाना
मंत्रणागृह।
संज्ञा
[ख़िलवतख़ाना]


खिलवति
सम्मानसूचक वस्त्रा आदि।
संज्ञा
[हिं. खिलअत]


खिलवाड़, खिलवार
खेल, तमाशा।
संज्ञा
[हिं. खेलवाड़]


खिलवाना
भोजन कराना।
क्रि. स.
[हिं. खाना]


खिलवाना
खिलाने की प्रेरणा देना।
क्रि. स.
[हिं. खीलना]


खिलवाना
प्रफुल्लित करना।
क्रि. स.
[हिं. खीलना]


खिलवाना
खिलाने की प्रेरणा देना।
क्रि. स.
[हिं. खील]


खिलकत
संसार।
संज्ञा
[अ. खि़लक़त]


खिलकत
भीड़, समूह।
संज्ञा
[अ. खि़लक़त]


खिलकौरी
खेल, खिलवाड़।
संज्ञा
[हिं. खेल+कौरी (प्रत्य.)]


खिलखिलाना
खिलखिल करके जोर से हँसना।
क्रि. अ.
[अनु.]


खिलत, खिलति
वस्त्र आदि जो सम्मान-रूप में राजा की ओर से दिये जायँ।
संज्ञा
[हिं. खिलअत]


खिलन
प्रसन्न होना, प्रमुदित होना।
सूरदास प्रभु की सुन अरी आली तेरे अंग अंग भयो उदोत वह हिलनि मिलनि खिलन की तेरे प्रेम प्रीति जनाई–२१०७।
संज्ञा
[हिं. खिलना]


खिलना
कली का निकलना।
क्रि. वि.
[सं. स्खलन्]


खिलना
प्रसन्न होना।
क्रि. वि.
[सं. स्खलन्]


खिलना
शोभित होना।
क्रि. वि.
[सं. स्खलन्]


खिलना
बीच से फटना।
क्रि. वि.
[सं. स्खलन्]


खिरकी
झरोखा, गवाक्ष, खिड़की।
संज्ञा
[हिं. खिड़की]


खिरनी
एक ऊँचा पेड़।
संज्ञा
[सं. क्षीरिणी]


खिरनी
इसका छोटा फल।
संज्ञा
[सं. क्षीरिणी]


खिर-लाडु
एक तरह की मिठाई।
खिरलाडु लवंगनि लाए। ते करि बहु जतन बनाए - १० - १८३।
संज्ञा
[हिं. खीर+लड्डू]


खिराज
कर, मालगुजारी।
संज्ञा
[अ. खिराज]


खिरियाँ
खीर।
सूरदास प्रभु बैठि कदम तर, खात दूध की खिरियाँ - ४७०।
संज्ञा
[सं. क्षीर, हिं. खीर]


खिरिरना
खुरचना, खरोचना।
क्रि. स.
[अनु.]


खिरोरा, खिरौरा
कत्थे की टिकिया।
संज्ञा
[हिं. खैर= कत्था+और (प्रत्य.)]


खिलंदरा
खेल या खिलवाड़ करने वाला।
वि.
[हिं. खेल]


खिलअत
राजा की ओर से सम्मान-रूप में दी जानेवाली पोशाक आदि।
संज्ञा
[अ. ख़िलअत]


खिलौना
खेलने की चीज, प्रिय वस्तु।
दंपति होड़ करत आपुस मैं स्याम खिलौना कीन्हौ री - १० - ९८।
संज्ञा
[हिं. खेल+औना (प्रत्य.)]


खिल्ली
हँसी, हास्य।
संज्ञा
[हिं. खिलना]


खिल्ली
पान की गिलोरी।
संज्ञा
[हिं. गिलौरी]


खिल्ली
कील, काँटा।
संज्ञा
[हिं. खील]


खिल्लो
बहुत हँसनेवाली।
वि.
[हिं. खिलना=प्रसन्न होना]


खिसकना
सरकना, एक स्थान से दूसरे को जाना।
क्रि. अ.
[हिं. खसकना]


खिसकाना
सरकाना, हटाना।
क्रि. स.
[हिं. खसकाना]


खिसना
किसी स्थान से गिरना, हटना।
क्रि. अ.
[हिं. खसना]


खिसलना
रपटना, सरकना।
क्रि. अ.
[हिं. फिसलना]


खिसलाना
रपटाना, फिसलाना।
क्रि. स.
[हिं. खिसलना]


खिलवाना
खीलें बनवाना।
क्रि. स.
[हिं. खील]


खिलवाना
खेलने की प्रेरणा देना।
क्रि. स.
[हिं. खेलवाना]


खिलाई
खाने का काम।
संज्ञा
[हिं. खाना]


खिलाई
खेलने का काम।
संज्ञा
[हिं. खाना]


खिलाए
खेल में लगाया।
कौरव पासा कपट बनाए। धर्मपुत्र कौं जुआ खिलाए - १ - ९४६।
क्रि. स. (भूत.)
[हिं. खेलना]


खिलाड़, खिलाड़ी
खेलनेवाला।
संज्ञा
[हिं. खेल+आड़ी (प्रत्य.)]


खिलाड़, खिलाड़ी
कुश्ती, पटा आदि के खेल दिखानेवाला।
संज्ञा
[हिं. खेल+आड़ी (प्रत्य.)]


खिलाड़, खिलाड़ी
जादूगर।
संज्ञा
[हिं. खेल+आड़ी (प्रत्य.)]


खिलाना
खेलने में लगाना।
क्रि. स.
[हिं. खेलना]


खिलाना
भोजन कराना।
क्रि. स.
[हिं. 'खाना' का प्रे.]


खिलाना
विकसित करना।
क्रि. स.
[हिं. खिलना]


खिलाफ
विरोधी, उल्टा।
वि.
[अ. ख़िलाफ़]


खिलारी
धनिया और ककड़ी आदि के भुने हुए बीज जो भोजन के बाद खाये जाते हैं।
संज्ञा
[हिं. खील=भुना हुआ दाना]


खिलारी
खेलनेवाला, खिलाड़ी।
केसरि चीर पर अबीर मानो परयो खेलत फाग डारय्यौ खिलारी - २५९५।
संज्ञा
[हिं. खिलाड़ी]


खिलावत
बच्चों या पक्षियों को खिलाता है।
क्रि. स.
[हिं. खिलाना]


खिलावत
दना आदि चुगाते हैं।
नाहिंन मोर बकत पिक दादुर ग्वाल मंडली खगन खिलावत - ३४८५।
क्रि. स.
[हिं. खिलाना]


खिलावति
(खेल आदि) खिलाती है, खेलने में लगाती है।
जाकौ ब्रह्मा पार न पावत, ताहि खिलावत ग्वालिनियाँ - १० - १३२।
क्रि. स.
[हिं. खिलाना]


खिलावन
खेल खिलाने की क्रिया।
पाऊँ कहाँ खिलावन कौं सुख मैं दुखिया, दुख कोखि जरी - १० - ८०।
संज्ञा
[हिं. खेल, खिलाना]


खिलावै
(बच्चे को) खिलाती और हँसाती है, खेल में नियोजित करती है।
(क) गुन गन अगम, निगम नहिं पावै। ताहि जसोदा गोद खिलावै।

(ख) आनँद-प्रेम उमँगि जसोदा खरी गुपाल खिलावै - १० - १३०।

क्रि. स.
[हिं. खिलाना]


खिलौना
छोटी मूर्ति या इसी प्रकार की चीज जिससे बच्चे खेलते हैं।
संज्ञा
[हिं. खेल+औना (प्रत्य.)]


कंजा
जिसकी आँख गहरे खाकी रंग की हो।
वि.


कँजियाना
काला पड़ना।
क्रि. अ.
[हि. कंजा]


कँजियाना
मुरझाना।
क्रि. अ.
[हि. कंजा]


कंजूस
धन होने पर भी जो उसे खाये-खरचे नहीं, कृपण, सूम।
वि.
[सं. कण + हिं चूस]


कंट
काँटा, कंटक,
द्रु मनि चढ़े सब सखा पुकारत, मधुर सुनावत बैनु। जनि धावहु बलि चरन मनोहर, कठिन कंट मग ऐनु - ५०२।
संज्ञा
[सं. कंटक]


कंटक
काँटा।
संज्ञा
[सं.]


कंटक
विघ्‍न, बाधा।
संज्ञा
[सं.]


कंटक
वह जो विघ्न या बाधा डाले।
संज्ञा
[सं.]


कंटक
रोमांच।
संज्ञा
[सं.]


कंटक
कवच।
संज्ञा
[सं.]


कदर्थना
बुरी दशा, दुर्गति।
संज्ञा
[सं. कदर्थन]


कदर्थना
निंदा, बुराई।
संज्ञा
[सं. कदर्थन]


कदर्थित
जिसकी दुर्दशा हुई हो।
वि.
[सं.]


कदथ्ये
कंजूस, लोभी, कृपण।
वि.
[सं.]


कदलि, कदली
केला।
कमल ऊपर सरस कदली कदलि पर मृगराज - —सा० १४।
संज्ञा
[सं.]


कदली-छिकुला
केले का छीलन, केले के छिलके।
प्रेम-बिकल, अति आनँद उर-धरि, कदली-छिकुला खाये - १ - १३।
संज्ञा
[सं. कदली+हिं. छिलका]


कदा
कब, किस समय।
क्रि. वि.
[सं.]


कदाच, कदाचि
शायद, कदाचित, कभी।
क्रि. वि.
[सं. कदाचन]


कदाचार
बुरा आचरण, दुराचार।
संज्ञा
[सं.]


कदाचित
कभी, शायद कभी।
क्रि. वि.
[सं.]


खिसाहीं
खिसिया जाते हैं, लजाते हैं।
बर्षत घन गिरि देखि खिसाहीं - १०५९।
क्रि. अ.
[हिं. खिसियाना]


खिसिआई
लजाकर, खिसिया कर।
तब खिसिआइ के काल यवन अपने सँग ल्यायौ - १० उ. - ३।
क्रि. अ.
[हिं. खिसियाना]


खिसिआइ
लजाकर, खिसियाकर।
क्रि. अ.
[हिं. खिसियाना]


खिसिआइ
गई खिसिआई - खिसिया गयी।
रघुपति कह्यौ, निलज निपट तू, नारि राच्छसी ह्याँ तैं जाई। सूरदास प्रभु इक पत्नीब्रत, काटी नाक गई खिसिआई–९.५६।
यौ.


खिसिआनपन
लजाने का भाव।
संज्ञा
[हिं. खिसियाना+पन]


खिसिआना
लजाना, लज्जित होना।
क्रि. अ.
[हिं. खीस-दाँत]


खिसिआना
क्रुद्ध होना।
क्रि. अ.
[हिं. खीस-दाँत]


खिसिआना
लज्जित।
वि.


खिसिआने
लजाये या शरमाये हुए।
लाज गये प्रभु आवत नाहीं ह्वै जो रहे खिसिआने।
वि.
[हिं. खिसियाना]


खिसियानो, खिसिआनौ
खिसियानेवाला, खिसियाया हुआ।
(क) हौं तौ जाति गँवार, पतित हौं, निपट निलज खिसिआनौ - १ - १९६।

(ख) लाज गए प्रभु आवत नाहीं ह्वै जो रहे खिसिआनो (खिसिआने) - ३३४२।

वि.
[हिं. खीस, खिसिआना]


खिसिआहट
लजाने का भाव।
संज्ञा
[हिं. खिसिआना+हट (प्रत्य.)]


खिसियाइ
लज्जित होकर, खिसियाकार।
(क) यह सुनि दूत चले खिसियाइ - ६ - ४।

(ख) यासों हमरौ कछु न बसाइ। यह कहि असुर रह्यौ खिसियाइ–७ - ७।

क्रि. अ.
[हिं. खिसियाना]


खिसियाना
लज्जित होना।
क्रि. अ.
[हिं. खीस=दाँत]


खिसियाना
नाराज होना।
क्रि. अ.
[हिं. खीस=दाँत]


खिसी
लज्जा, शर्म।
कहां चलत उपरावटे अजहूँ खिसी न गात। कंस सौंह दै पूछिये जिन पटके हैं सात - ११३७।
संज्ञा
[हिं. खिसियाना]


खिसी
ढिठाई, धृष्टता।
संज्ञा
[हिं. खिसियाना]


खिसै
हटना, सरकना।
क्रि. अ.
[हिं. खसना]


खिसै
नष्ट हो जाय, चला जाय।
तन मन धन जोबन खिसै तऊ न मानै हार।
क्रि. अ.
[हिं. खसना]


खिसै
खिसै न बार- बाल बाँका न हो। उ.- इहै असीस सूर प्रभु सों कहि न्हात खिसै जनिं बार - ३१००।
मु.


खिसैया
खिसिया कर, लज्जित होकर।
ऐसैं कहि सब मोहिं खिझावत तब उठि चल्यौ खिसैया– १० - २१७।
क्रि. अ.
[हिं. खिसियाना]


खिसलाव
फिसलने का भाव।
संज्ञा
[हिं. खिसलना]


खिसाई
खिसियाकर, लज्जित होकर।
(क) दुर्योधन यह रीति देखि कै मन में रह्यौ खिसाई - १० उ. - ५५।

(ख) बहुरि भगवान सिसुपाल को छाँड़ि दियौ गयो निज देस को सो खिसाई–१० उ. - २१।

क्रि. अ.
[हिं. खिसियाना]


खिसाना
खिसिया जाना, लज्जित होना।
क्रि. अ.
[हिं. खिसियाना]


खिसाना
खिसियाया हुआ, लज्जित।
वि.


खिसानी
लज्जित होकर, खिसियाकर।
केती कही नेकु नहिं बोली फिरी आइ तब हमहिं खिसानी - १२८४।
क्रि. अ.
[हिं. खिसियाना]


खिसानी
खिसियायी हुई।
वि.


खिसाने
खिसिया गये ,लज्जित हुए।
(क) सखा कहत हैं स्याम खिसाने। आपुहि आपु बलकि भए ठाढ़े, अब तुम कहा रिसाने - १० - ११४। (ख) जब हरि मुरली अधर धरी।….। दुरि गये कीर, कपोत, मधुप, पिक, सारँग सुधि बिसरी। उडुपति, बिद्रुम, बिंब, खिसाने, दामिनि अधिक डरी - ६५९।
क्रि. अ.
[हिं. खिसियाना]


खिसाने
खिसियाये हुए, लज्‍जित।
वि.


खिसाय (गये)
खिसिया गये, लज्जित हो गये।
कछु नहिं चलत खिसाय गये सब रहे बहुत पचि हार - २१८ सारा.।
क्रि. अ.
[हिं. खिसियाना]


खिसावैं
खिसिया जाती हैं, लज्जित होती हैं।
तरुनिन की यह प्रकृति अनैसी थोरेहि बात खिसावैं - ११५२।
क्रि. अ. बहु.
[हिं. खिसियाना]


खीचना
बाहर निकालना।
क्रि. स.
[सं. कर्षण]


खीचना
ऐंचना।
क्रि. स.
[सं. कर्षण]


खीचना
आकर्षित करना।
क्रि. स.
[सं. कर्षण]


खीचना
लिखना, चित्रित करना।
क्रि. स.
[सं. कर्षण]


खीचना
सोखना।
क्रि. स.
[सं. कर्षण]


खीचना
अर्क अदि चुआना।
क्रि. स.
[सं. कर्षण]


खीचना
रोक रखना
क्रि. स.
[सं. कर्षण]


खीचना
हाथ खींचना- (१) काम बन्द करना। (२) उदासीन हो जाना।
मु.


खीचरी
मिलाकर पकाया हुआ दाल-चावल।
खीर, खाँड़ खीचरी सँवारी - २३२१।
संज्ञा
[सं. कृसर, हिं. खिचड़ी]


खीज
झुँझलाहट।
संज्ञा
[हिं. खीजना]


खीज
ऐसी बात जो चिढ़ाने के लिए कही जाय।
संज्ञा
[हिं. खीजना]


खीजना
झँझ्लाना, खिजलाना।
क्रि. अ.
[सं. खिद्यते, प्रा. खिज्जइ]


खीजै
खिजलाता है, झुँझलाता है।
खसि खसि परत कान्ह कनियाँ तैं, सुसुकि सुसुकि मन खीजै - १० - १९०।
क्रि. अ.
[हिं. खीजना]


खीझ
झुँझलाहट।
संज्ञा
[हिं. खीज]


खीझत
झुँझलाते हैं, खिजलाते हैं।
खीझत जात माखन खात। अरुन लोचन, भौंह टेढ़ी, बार-बार जँभात - १० - १००।
क्रि. अ.
[हिं. खीजना]


खीझन
खीजने लगे, झुँझलाने लगे।
नंद बबा तब कान्ह गोद करि खीझन लागे मोको - २९२७।
क्रि. अ.
[हिं. खीजना, खीझना]


खीझना
झुँझलाना।
क्रि. अ.
[हिं. खीजना]


खीझिहैं
खीजेंगी, नाराज होंगी, अप्रसन्न होंगी, झुँझलायँगी।
भली भई तुम्हैं सौंपि गए मोहिं जान न दैहौं तुमकौं। बाँह तुम्हारी नैंकु न छाँड़ौं, महर खीझिहैं हमकौं - ६८१।
क्रि. अ.
[हिं. खीजना]


खीझी
अप्रसन्न हुई, झुँझलायी।
प्रात गई नीकैं उठि घर तैं। मैं बरजी कहँ जाति री प्यारी, तब खीझी रिस झर तैं - ७४४।
क्रि. अ.
[हिं. खीझना]


खीझे
झुँझलाये, रुष्ट हुए।
उन नहिं मान्यौ, तब चतुरानन खीझे क्रोध उपाय - ६४ सारा.।
क्रि. अ.
[हिं. खीझना]


खिसौंहाँ
लज्जित, खिसियाया हुआ।
वि.
[हिं. खिसियाना+औहाँ (प्रत्य.)]


खिस्याइ
लज्जित होकर, खिसियाकर।
सुरपति ताकैं रूप लुभायौ। बहुरि कुबेर तहाँ चलि आयौ। पै तिन तिहिं दि सि देख्यौ नाहिं। गए खिस्‍याइ दोउ मन माहिं - ९ - ३।
क्रि. अ.
[हिं. खिसियाना]


खिस्याइ
क्रुद्ध होकर, रिसाकर।
अस्वत्थामा बहुरि खिस्याइ। ब्रह्म-अस्त्र को दियौ चलाइ - १ - २८९।
क्रि. अ.
[हिं. खिसियाना]


खिस्याई
खिसियाकर, लज्जित होकर।
रहे पचिहारि, नहिं टारि कोऊ सक्यौ, उठ्यौ तब आपु रावन खिस्याई–९ - १३५।
क्रि. अ.
[हिं. खिसियाना]


खिस्यानो, खिस्यानौ
लज्जित हुआ।
आवत नहिं लाज के मारे मानो कान्ह खिस्‍यानो।
क्रि. अ.
[हिं. खिसियाना]


खींच
खिंचाव।
संज्ञा
[हिं. खींचना]


खींच
बहुत माँग।
संज्ञा
[हिं. खींचना]


खींचतान
खींचातानी, नोकझोक।
संज्ञा
[हिं. खींचना+तानना]


खींचतान
जबरदस्ती अर्थ बैठाना।
संज्ञा
[हिं. खींचना+तानना]


खीचना
घसीटना।
क्रि. स.
[सं. कर्षण]


खीझै
खीजती है, झुँझलाती है, रुष्ट होती है।
(क) तू मौंहीं कौं मारन सीखी दाउहिं कबहुँ न खीझै - १० - २१५। (ख) बाँह गहे ढूँढ़िति फिरै डोरी। बाँधौ तौहिं सकै को छोरी। बाँधौ तौहिं सकै को छोरी। बाँधि पची डोरी नहिं पूरै। बार-बार खीझै, रिस झूरै - ३९१।
क्रि. अ.
[हिं. खीजना]


खीझो, खीझौ
झुँझलाओ, खिजलाओ।
कोऊ खीझो; कोऊ कितनो बरजो जुवतिन के मन ध्यान–८७०।
क्रि. अ.
[हिं. खीझना]


खीन
उदास, चिंतित।
चित्रकूट तैं चले खीन तन मन बिस्राम न पायौ - ९ - ५५।
वि.
[सं. खिन्न]


खीन
दुर्बल, पतला, पुराना।
(क) भयौ बलहीन खीन तनु कंपित तज्यौ बयारि बस पात - २६५७।

(ख) यहै अपूर्व जानि जिय लघुता खीन इन्दु एहि दुख भाज्यौ–२३००।

वि.
[सं. क्षीण]


खीनता, खीनताई
दुर्बलता।
संज्ञा
[सं. क्षीणता]


खीनौ
क्षीण।
वि.
[सं. क्षीण]


खीनौ
उदासीन, खिन्न।
देखिकै उमा कौं रुद्र लज्जिन भए, कह्यौ मैं कौन यह काम कीनौ। इंद्रिजित हौं कहावत हुतौ, आपु कौं समुझि मन माहिं ह्वै रह्यौ खीनौ - ८ - १०।
वि.
[सं. खिन्न]


खीप
एक पेड़।
खीप पिंडारू कोमल भिंडी।
संज्ञा
[देश.]


खीमा
तंबू।
संज्ञा
[हिं. खेमा]


खीर
दूध में पकाया हुआ चावल।
खीर खाँड़ खीचरी सँवारी - २३११।
संज्ञा
[सं. क्षीर]


खीर
दूध।
ए दोउ नीर-खीर निवारत इनहिं बँधायो कंस - ३०४९
संज्ञा


खीरा
एक फल जो ककड़ी की जाति का होता है।
(क) खारिक, दाख, खोपरा, खीरा। केरा, आम, ऊख-रस, सीरा - १० - २११। (ख) खीरा रामतरोई तामें। अरुचि न रुचि अंकुर जिय जामें - २३२१।
संज्ञा
[सं. क्षीरक]


खीरी
खिरनी नाम का फल।
संज्ञा
[सं. क्षीरनी]


खीरी
थन का ऊपरी भाग जिसमें दूध रहता है।
संज्ञा
[सं. क्षीर]


खील
भूना हुआ धान, लावा।
संज्ञा
[हिं. खिलना]


खील
कील, काँटा।
संज्ञा
[हिं. कील]


खील
नाक में पहनने की लौंग।
संज्ञा
[हिं. कील]


खील
भूमि जो बहुत दिन बाद जोती बोई जाय।
संज्ञा
[देश.]


खीलना
कील लगाना, कील की तरह तिनके खोंसना।
क्रि. स.
[हिं. कील,खील]


खीला
काँटा, कील।
संज्ञा
[हिं. कील]


खीली
पान का बीड़ा।
संज्ञा
[हिं. खील]


खीवन, खीवनि
मस्ती,मतवालापन।
मेरे माई स्याम मनोहर जीवनि। निरखि नयन भूले ते बदन छबि मधुर हँसनिपै खीवनि।
संज्ञा
[सं. क्षीवन]


खीवर
शूर, वीर।
संज्ञा
[सं. क्षीब=मस्त]


खीस
नष्ट।
वि.
[सं. किष्‍क=बघ]


खीस
डारत खीस- नष्ट करता है। उ.- काहे को निर्गुन स्‍थान गनत हौ जित तित डारत खीस - ३१३०।
मु.


खीस
अप्रसन्नता।
संज्ञा
[हिं. खीज]


खीस
क्रोध।
संज्ञा
[हिं. खीज]


खीस
लज्जा।
संज्ञा
[हिं. खिसियाना]


खीस
दाँत बाहर निकालना।
संज्ञा
[सं. कोश = बन्दर]


खीस
खीस काढ़ना- (१) दाँत बाहर निकाल कर हँसना। (२) दीनता दिखाकर माँगना। (३) मर जाना।
मु.


खीस
गाय का दूध जो ब्याने के सात दिन तक निकलता है।
संज्ञा
[देश.]


खीसा
थैला।
संज्ञा
[फ़ा. कसा]


खीसा
जे।
संज्ञा
[फ़ा. कसा]


खीसा
कपड़े की थैली।
संज्ञा
[फ़ा. कसा]


खीसा
दाँत जो ओंठ के बाहर निकले हों।
संज्ञा
[हिं. खीस]


खुँटिला
कान में पहने का एक गहना, कर्णफूल।
खुँटिला सुभग जराइ के मुकुता मनि छबि देत। प्रगट भयो घन मध्य ते ससि मनु नखत समेत - २०६५।
संज्ञा
[देश. खुटिला]


खुँदाना
(एक ही स्थान पर घोड़ा) कुदाना।
क्रि. स.
[सं. क्षुण्ण=रौंदा हुआ]


खुआर
जिसकी दशा बुरी हो।
वि.
[फ़ा. खवार]


खुआर
जिसका कुछ मान न हो।
वि.
[फ़ा. खवार]


खुआरी
बुरी दशा।
संज्ञा
[हिं. खुआर]


कदरई
कायरता।
संज्ञा
[हिं. कादर]


कदरज
एक प्रसिद्ध पापी।
संज्ञा
[सं. कदर्य]


कदरमस
मारपीट, लड़ाई।
संज्ञा
[सं. कदन + हिं. मस (प्रत्य.)]


कदराई
कायरता।
संज्ञा
[हिं. कादर + ई. (प्रत्य.)]


कदरात
कायर बनते हो, कचियाते हो, खिन्न होते हो, मन छोटा करते हो।
स्याम भुज गहि दूतिका कहि मृदुबानी। काहे को कदरात हौ मैं राधा आनी - १८६०।
क्रि. अ.
[हिं. कदराना]


कदराना
डरना।
क्रि. अ.
[हिं. कादर]


कदराना
कायरता दिखाना, कचियाना, पीछे हटना।
क्रि. अ.
[हिं. कादर]


कदरो
मैना के बराबर एक पक्षी।
संज्ञा
[सं. कद+रव = शब्द]


कदर्थ
बेकार चीज।
संज्ञा
[सं.]


कदर्थ
बुरा, व्यर्थ, बेकार, कुत्सित।
वि.


खुआरी
अनादर, अप्रतिष्ठा।
संज्ञा
[हिं. खुआर]


खुआरू
खराब।
वि.
[फा. ख्वार]


खुआरू
जिसका आदर न हो।
वि.
[फा. ख्वार]


खुक्ख
छूँछा, खाली।
वि.
[सं. शुष्क या तुच्छ, प्रा. छुच्छ]


खुखड़ी
तकुए पर लपेटा हुआ सूत।
संज्ञा
[देश.]


खुखड़ी
नैपाली छुरा।
संज्ञा
[देश.]


खुखला
जिसके भीतर पोला हो।
वि.
[हिं. खोखला]


खुखला
छूछा, खाली।
वि.
[हिं. खोखला]


खुचर, खुचुर
दोष निकालने की क्रिया या प्रकृति।
संज्ञा
[सं. कुचर=दूसरे के दोष निकालनेवाला]


खुजलाना
खुजली मिटाने के लिए रगड़ना या सहलाना।
क्रि. स.
[सं. खर्जु, खर्जन]


खुजलाना
खुजली जान पड़ना।
क्रि. अ.


खुजली
खुजलाने की इच्छा, अनुभव या रोग।
संज्ञा
[हिं. खुजलाना]


खुटक
आशंका, खटका।
(क) मन में खुटक जनि राखहु। दीन बचन मुख ते तुम भाखहु - १०२६।

(ख) अपने जिय की खुटक मिटाऊँ - १४४९। (ग) भटक अति सब्द भयो खुटक नृप के हिए अटक प्रानन परयौ चटक करनी - २६०९।

संज्ञा
[हिं. खटकना]


खुटकना
(ऊपरी भाग) खुटकना या तोड़ना।
क्रि. स.
[सं. खुडू या खुंड]


खुटचाल
दुष्टता, नीचता।
संज्ञा
[हिं. खोटी+चाल]


खुटचाल
दुरी आचरण।
संज्ञा
[हिं. खोटी+चाल]


खुटचाल
उपद्रव।
संज्ञा
[हिं. खोटी+चाल]


खुटचाली
दुष्ट, नीच।
वि.
[हिं. खुटचाल+ई (प्रत्य.)]


खुटचाली
दुराचारी।
वि.
[हिं. खुटचाल+ई (प्रत्य.)]


खुटचाली
उपद्रवी।
वि.
[हिं. खुटचाल+ई (प्रत्य.)]


खुटना
खुलना।
क्रि. अ.
[सं. खुड्]


खुटना
सम्बन्ध छोड़ देना, अलग होना।
क्रि. अ.
[हिं. छुटना]


खुटना
समाप्त होना।
क्रि. अ.
[सं. खुडू या हिं. खोट]


खुटपन, खुटपना
दोष, ऐब।
संज्ञा
[हिं. खोटा+पन, पना (प्रत्य.)]


खुटाई
खोटापन, दोष।
संज्ञा
[हिं. खोटाई]


खुटाना
समाप्त होना।
क्रि. अ.
[सं. खुड्=खोंडा, खोट]


खुटिला
कान में पहनने का फूल या गहना।
(क) नकबेसरि खुटिला तरिवन को गरह मेल कुच जुग उतंग को - १०४२।

(ख) ससि मुख तिलक दियो मृगमद को खुटिला खुभी जरायज री - पृ. ३४५ (४१)।

संज्ञा
[देश.]


खुतबा
प्रशंसा।
संज्ञा
[अ.]


खुतबा
सामयिक राजा की प्रशंसा-घोषणा।
संज्ञा
[अ.]


खुत्थी, खुथी
अनाज कट जाने पर पृथ्वी में गड़ा रहनेवाला पेड़ का भाग।
संज्ञा
[हिं. खूँटी]


खुत्थी, खुथी
थाती, धरोहर।
संज्ञा
[हिं. खूँटी]


खुत्थी, खुथी
धन, संपत्ति।
संज्ञा
[हिं. खूँटी]


खुद
स्वयं, आप।
अव्य.
[फ़ा.]


खुदगरज
स्वार्थी, मतलबी।
वि.
[फ़ा.]


खुदना
खोदा जाना।
क्रि. अ.
[हिं. खोदना]


खुदमुख्तार
जिसपर किसी का दबाव न हो, स्वच्छन्द।
वि.
[फा.]


खुदमुख्तारी
स्वच्छन्दता।
संज्ञा
[हिं. खुदमुख्तार]


खुदवाना
खोदने का काम करना।
[हिं. खोदना]


खुदा
ईश्वर।
संज्ञा
[फ़ा. खुदा]


खुदा
खुदा न ख्वास्ता [फा. ख़ुदा न ख्वास्ता] ईश्वर न करे कि कहीं ऐसा (बुरा, अनिष्ट) हो।
यौ.


खुदा
खुदा खुदा करके- बड़ी कठिनता से।

खुदा की मार- ईश्वरीय कोप।

मु.


खुदाई
ईश्वरता।
संज्ञा
[फा. ख़ुदाई]


खुदाई
ईश्वर की रची सृष्टि।
संज्ञा
[फा. ख़ुदाई]


खुदाई
खोदने का भाव।
संज्ञा
[हिं. खोदना]


खुदाई
खोदने की क्रिया।
संज्ञा
[हिं. खोदना]


खुदाई
खोदने की मजदूरी।
संज्ञा
[हिं. खोदना]


खुदाव
खोदने की क्रिया या भाव।
संज्ञा
[हिं. खोदना]


खुदी
अहंभाव।
संज्ञा
[हिं. खुद]


खुदी
घमण्ड।
संज्ञा
[हिं. खुद]


खुनकी
ठंडक।
संज्ञा
[फा.]


खुनखुना
खन खन शब्द करके।
खुनखुनाकर हँसत हरि, हर नचत डमरु बजाइ - १० - १७०।
वि.
[अनु.]


खुनखुना
झुनझुना नामक खिलौना।
संज्ञा
[अनु.]


खुनस
क्रोध, गुस्सा।
संज्ञा
[सं. खिन्नमनस्]


खुनसनि
क्रोध से, रिसाकर
सूर इते पर खुनसनि मरियत ऊधो पीवत मामी - ३०८०।
संज्ञा, सवि.
[हिं. खुनसाना]


खुनसाना
क्रोध करना, गुस्सा होना।
क्रि. अ.
[सं. खिन्नमनस्]


खुनसी
क्रोधी।
वि.
[हिं. खुनसाना]


खुनुस
क्रोध, रिस, झुँझलाहट।
कौन करनी घाटि मोसौं, सो करौं फिरि काँधि। न्याइ के नहिं खुनुस कीजै, चूक पल्लै बाँधि - १ - १९९।
संज्ञा
[हिं. खुनस]


खुबानी
एक प्रकार का मेवा, जरदालू, कुश्मालू।
श्रीफल मधुर, चिरौंजी आनी। सफरी चिउरा, अरुन खुबानी - १० - २११।
संज्ञा
[फ़ा. ख़ूबानी]


खुभना
चुभना, धँसना।
क्रि. स.
[अनु.]


खुभराना
उमड़ना, इतराना, इठलाना।
क्रि. अ.
[सं. क्षब्ध]


खुभाना
चुभाना,गड़ाना।
क्रि. स.
[हिं. खुभना]


खुभिया, खुभी
कान में पहनने का एक गहना जो लौंग की तरह का होता है और ‘लौंग' ही कहलाता है।
ससि मुख तिलक दियो मृगमद को खुटिल खुभी जरायज री - पृ. ३४५ (४१।
संज्ञा
[हिं. खुभना]


खुभिया, खुभी
पीतल, सोने या चाँदी का छल्ला या खोल जो हाथी के दाँत पर चढ़ाया जाता है।
मोतिनहार जलाजल मानो खुभी दंत झलकावै।
संज्ञा
[हिं. खुभना]


खुमान
बड़ी आयुवाला, आयुष्मान।
वि.
[सं. आयुष्मान]


खुमान
शिव जी।
संज्ञा


खुमार, खुमारि खुमारी
मद, नशा।
(क) जब जान्यौ ब्रजदेव सुरारी। उतर गई तब गर्व खुमारी। (ख) तरुनी स्यामरस मतवारि। प्रथम जोबन रस चढ़ायो अतिहि भई खुमारि।
संज्ञा
[अ. खुमार]


खुमार, खुमारि खुमारी
नशा उतरने की दशा।
संज्ञा
[अ. खुमार]


खुमार, खुमारि खुमारी
रात में जागने की दशा।
संज्ञा
[अ. खुमार]


खुमी
एक छोटा पौधा जो पत्र पुष्प रहित होता है।
संज्ञा
[अं. कुमः]


खुमी
सोने की कील जो दाँतों में जड़ी जाती है।
संज्ञा
[हिं. खुभना]


खुमी
धातु का पोला छल्ला जो हाथी के दाँत पर चढ़ाया जाता है।
गति गयंद कुच कुंभ किंकिनी मनहु घंट झहनावै। मोतिनहार जलाजल मानो खुमी दंत झलकावै।
संज्ञा
[हिं. खुभना]


खुम्हारि
नशे की खुमारी, आलस्य।
कबहूँ इत कबहूँ उत डोलन लागी प्रीति खुम्हारि।
संज्ञा
[हिं. खुमारी]


खुरंट,खुरंड
सूखे घाव की पपड़ी।
संज्ञा
[सं. क्षुर=खरोचना+अंड]


खुर
सींगवाले चौपायों के पैर का निचला भाग जो बीच से फटा होता है।
(क) मनहु चलत चतुरंग चमू नभ बाढ़ी है खुर खेह - २८२० (ख) माधौ, नैकुँ हटकौ गाइ। …...। भुवन चौदह खुरनि खूंदति, सु धौं कहाँ समाइ - १ - ५६।
संज्ञा
[सं. क्षुर]


खुर
चारपाई, चौकी, कुर्सी के पाए का निचला भाग जो भूमि से लगा रहता है।
संज्ञा
[सं. क्षुर]


खुरक
खुटका, अंदेशा।
संज्ञा
[हिं. खुरक]


खुरक
तिल का पेड़।
संज्ञा
[सं.]


खुरक
एक नाच।
संज्ञा
[सं.]


खुरचन
खुरच कर निकाली हुई वस्तु।
संज्ञा
[हिं. खुरचना]


खुरचन
गाढ़ी रबड़ी।
संज्ञा
[हिं. खुरचना]


खुरचना
कुरेदना, करोना, करोचना।
संज्ञा
[सं. क्षुरण]


खुरचाल
दुष्टता।
संज्ञा
[हिं. खोटी+चाल]


खुरचाल
बुरा आचरण।
संज्ञा
[हिं. खोटी+चाल]


खुरचाली
दुष्ट।
वि.
[हिं. खुरचाल]


खुरचाली
जिसका अचरण अच्छा न हो।
वि.
[हिं. खुरचाल]


खुरतार
टाप, खुर या सुम की ठोकर।
धुरवा धूरि उड़त रथ पायक घोरन की खुरतार - २८२६।
संज्ञा
[हिं. खुर+ताड़न]


खुरया
घास छीलने का औजार।
संज्ञा
[सं. क्षुरप्र]


खुरमा
एक प्रकार की मिठाई।
संज्ञा
[अ.]


खुरमा
छोहारा।
संज्ञा
[अ.]


खुरहर
खुर का चिह्न।
संज्ञा
[हिं. खुर+हर (प्रत्य.)]


खुरहर
पतली पगडंडी।
संज्ञा
[हिं. खुर+हर (प्रत्य.)]


खुराक
भोजन।
संज्ञा
[फ़ा.]


खुराक
औषध की मात्रा।
संज्ञा
[फ़ा.]


खुराकी
भोजन के लिए दिया जाने वाला धन।
संज्ञा
[फ़ा.]


खुरुक
खटका, आशंका।
संज्ञा
[हिं. खुटका]


खुलना
आवरण हटना, परदा न रहना।
क्रि. अ.
[सं. खुड, खुल=भेदन]


खुलना
तितर-बितर हो जाना।
क्रि. अ.
[सं. खुड, खुल=भेदन]


खुलना
फटजाना, छेद होना।
क्रि. अ.
[सं. खुड, खुल=भेदन]


खुलना
बंधन छूटना।
क्रि. अ.
[सं. खुड, खुल=भेदन]


खुलना
बँधी वस्तु का छूटना।
क्रि. अ.
[सं. खुड, खुल=भेदन]


कदापि
कभी भी, किसी समय।
क्रि. वि.
[सं.]


कदी
कभी।
क्रि. वि.
[सं. कदा]


कदे
कभी।
क्रि. वि.
[हिं. कदी]


कद्रुज
कश्यप की एक स्त्री कद्रू के पुत्र, सर्प, नाग।
इभ टूटत अरु असन पंक भये बिधिना प्रान बनाइ। कद्रुज पठि पताल दुरे रहे खगपति हर-बाह्न भये जाइ - २२२४।
संज्ञा
[सं. कद्रू +ज]


कद्रू
कश्यप की एक स्त्री जिससे सर्प पैदा हुए थे।
संज्ञा
[सं.]


कनंक
सोना।
संज्ञा
[सं. कनक]


कन
अन्न, अनाज के दाने।
(क) जौ लौ मन-कामना न छूटे। तौ कहा जोग-जज्ञ-ब्रत कीन्हैं, बिनु कन तुस कौं कूटै - २ - १९। (ख) ऐसी को ठाली वैसी है तोसौं मूड़ लड़ावै। झूठी बात तुसी सी बिन कन फटकत हाथ न आवै - ३२८७।
संज्ञा
[सं. कण]


कन
बालू या रेत के कण।
कौने रंक संपदा बिलसी सोवत सपने पाई…….। अरु कन के माला कर अपने कौने गूँथ बनाई - ३३४३।
संज्ञा
[सं. कण]


कन
किसी वस्तु का बहुत छोटा टुकड़ा, कण।
संज्ञा
[सं. कण]


कन
प्रसाद, जूठन।
संज्ञा
[सं. कण]


खुलना
कार्य आरंभ होना।
क्रि. अ.
[सं. खुड, खुल=भेदन]


खुलना
(बात का) प्रकट हो जाना।
क्रि. अ.
[सं. खुड, खुल=भेदन]


खुलना
भेद बताना।
क्रि. अ.
[सं. खुड, खुल=भेदन]


खुलना
सुहाना, अच्छा लगना।
क्रि. अ.
[सं. खुड, खुल=भेदन]


खुला
जो बँधा न हो।
वि.
[हिं. खुलना]


खुला
बाधारहित।
वि.
[हिं. खुलना]


खुला
स्पष्ट, प्रकट।
वि.
[हिं. खुलना]


खुलासा
सारांश।
संज्ञा
[अ.]


खुली
प्रकट हुई।
क्रि. अ.
[हिं. खुलना]


खुली
छूटी।
क्रि. अ.
[हिं. खुलना]


खुली
शोभित हुई, फली।
ते सब तजि अलि कहत मलिन मुख उज्वल भस्म खुली - ३२२१।
क्रि. अ.
[हिं. खुलना]


खुले
मुक्त, खुल रहे, बंद न रहे, जुड़े या उड़के न रहे।
बंदि-बेरी सबै छूटी, खुले बज्र कपाट - १० - ५।
क्रि. अ.
[हिं. खुलना]


खुल्लमखुल्ला
प्रकट या प्रत्यक्ष रूप से, खुले आम।
क्रि. वि.
[हिं. खुलना]


खुबारी
बरबादी।
संज्ञा
[हिं. ख्वारी]


खुबारी
बदनामी, अपमान।
संज्ञा
[हिं. ख्वारी]


खुश
प्रसन्न।
वि.
[फ़ा. खुश]


खुश
अच्छा, भला।
वि.
[फ़ा. खुश]


खुशामद
चापलूसी, चाटुकारी।
संज्ञा
[फ़ा.]


खुशामदी
चापलूस, चाटुकार।
वि.
[हिं. शामद +ई (प्रत्य.)]


खुशामदी
मालिक की सब तरह से सेवा करनेवाला।
वि.
[हिं. शामद +ई (प्रत्य.)]


खूँट
भाग।
संज्ञा
[सं. खंड]


खूँट
कान में पहनने का एक बड़ा गहना, बिरिया, ढार।
संज्ञा
[सं. खंड]


खूँट
रोक-टोक, पूछताछ।
संज्ञा
[हिं. खूँटना]


खूँटना
पूछताँछ करना, टोंकना।
क्रि. स.
[सं. खंडन=तोड़ना]


खूँटना
छेड़ना।
क्रि. स.
[सं. खंडन=तोड़ना]


खूँटना
घट जाना।
क्रि. स.
[सं. खंडन=तोड़ना]


खूँटा
बड़ी मेख।
संज्ञा
[सं. क्षोड]


खूँटा
गड़ी हुई लकड़ी।
संज्ञा
[सं. क्षोड]


खूँटी
छोटी मेख।
संज्ञा
[हिं. खूँटा]


खूँटी
सूखा डंठल।
संज्ञा
[हिं. खूँटा]


खुशियाली
खुशी, प्रसन्नता।
संज्ञा
[फ़ा. खुशी]


खुशियाली
कुशल।
संज्ञा
[फ़ा. खुशी]


खुशी
आनंद, प्रसन्नता।
संज्ञा
[फ़ा. खुशी]


खुसामति
चाटुकारी, चापलूसी।
संज्ञा
[हिं. खुशामद]


खुसाल, खुस्याल
खुश, प्रसन्न।
वि.
[फ़ा. खुशहाल]


खुही
लपेटा हुआ वस्त्र जिसे शरीर के ऊपरी भाग की रक्षा के लिए सिर पर बाँधते हैं।
संज्ञा
[सं. खोलक]


खूँखार
हिंसक।
वि.
[फ़ा.]


खूँखार
क्रूर।
वि.
[फ़ा.]


खूँट
छोर, कोना।
(क) नीलांबर गहि खूँट चूनरी हँसि हँसि गाँठि जुराइ हो - २४३९। (ख) हा हा करति सबनि सों मैं ही कैसेहु खूँट छँड़ावति - ८६५।

(ग) नैना झगरत आइ कै मोसौं री माई। खूँट धरत हैं धाइ कै चलि स्याम दुहाई - पृ. ३३३ (२८)।

संज्ञा
[सं. खंड]


खूँट
ओट, तरफ।
संज्ञा
[सं. खंड]


खूँटी
सीमा।
संज्ञा
[हिं. खूँटा]


खूँटी
लकड़ी का छोटा टुकड़ा जो कुछ अटकाने के लिए किसी भीत में जड़ा या लगाया जाता है।
संज्ञा
[हिं. खूँटा]


खूँद
थोड़ी जगह में घोड़े को धीरे धीरे चलना या पैर पटकना।
संज्ञा
[हिं. खूँदना]


खूँद
उछल-कूद।
संज्ञा
[हिं. खूँदना]


खूँदति
पैरों से रौंदती है, उछल-कूद कर खराब करती है।
भुवन चौदह खुरनि खूँदति सु धौं कहाँ समाइ - १ - ५६।
क्रि. अ.
[हिं. खूदना]


खूँदना
पैर पटकना, उछल-कूद करना।
क्रि. अ.
[सं. खुंदन=तोड़ना]


खूँदना
पैरों से रौंदना।
क्रि. अ.
[सं. खुंदन=तोड़ना]


खूँदना
कूटना, कुचलना।
क्रि. अ.
[सं. खुंदन=तोड़ना]


खूआ
एक मिठाई या पकवान।
दोना मेलि धरे हैं खुआ। हौंस होइ तौ ल्याऊँ पुआ - १० - ३९६।
संज्ञा
[देश.]


खूक, खूखू
सुअर।
संज्ञा
[फ़ा. खूक]


खूझा
फल का रेशेदार भाग जो बेकार समझा जाता है।
संज्ञा
[सं. गुह्य, प्रा. गुज्झ]


खूझा
उलझा हुआ लच्छा जो काम न आ सके।
संज्ञा
[सं. गुह्य, प्रा. गुज्झ]


खूझा
एक पेड़।
खूझा मरुआ कुंद सों कहै गोद पसारी। बकुल बहुलि बट कदम ठाढ़ीं ब्रजनारी - १८२२।
संज्ञा
[सं. गुह्य, प्रा. गुज्झ]


खूझो
एक पेड़।
खूझो मरबो मोगरो मिलि झूमकहो - २४४५ (३)।
संज्ञा
[हिं. खूझा]


खूझो
रुकना, बंद होना।
क्रि. अ.
[सं. खुंडन]


खूटना
चुकना, समाप्त होना।
क्रि. अ.
[सं. खुंडन]


खूटना
छेड़ना।
क्रि. स.
[सं. खुंड]


खुटा
बुरा, अरसिक, नीरस।
प्रभु जू, हौं तौ महा अधर्मी।…..। चुगुल, ज्वारि, निर्दय अपराधी, झूठौ, खोटौ, खूटा - १ - १८६।
वि.
[हिं. खोटा]


खूटी
रुक गयी,बंद हुई।
क्रि. अ.
[हिं.खूटना]


खूटी
चुक गयी, समाप्त हो गयी।
(क) कागज गरे मेघ मसि खूटी सर दौ लागि जरे। सेवक सूर लिखैते आधो पलक कपाटअरे। (ख) तुम्हरेदेस कागर मसि खूटी - १० उ. - ८०।
क्रि. अ.
[हिं.खूटना]


खूटी
मिट गयी, नष्ट हो गयी, निश्चित न रही।
सुरवासुर छल बोलवारी गढ़ अत्र अवधि भिति खूटी - २७५०।
क्रि. अ.
[हिं.खूटना]


खूटे
समाप्त हो गया, चुक गया।
चरि मास बरसे जल खूटे हारि समुझ उनमानी। एतेहू पर धार न खंडित इनकी अकथ कहानी—३४५७।
क्रि. अ.
[हिं. खूटना]


खून
रक्त, लहू।
संज्ञा
[फ़ा. खून]


खून
वध, हत्या।
संज्ञा
[फ़ा. खून]


खूब
अच्छा, भला।
वि.
[फ़ा. खूब]


खूब
अच्छी तरह से।
क्रि. वि.


खूबसूरत
सुंदर।
वि.
[फ़ा. खूबसूरत]


खूबसूरती
सुंदरता।
संज्ञा
[फ़ा. खूबसूरती]


खुबानी
एक मेवा।
संज्ञा
[फ़ा ख़ूबानी]


खूबी
भलाई, अच्छाई।
संज्ञा
[फ़ा. ख़ूबी]


खूबी
विशेषता।
संज्ञा
[फ़ा. ख़ूबी]


खूसट
उल्लू, घुग्घू।
संज्ञा
[सं. कौशिक]


खूसट
जिसे आमोद प्रमोद व रुचै, अरसिक।
वि.


खूसर
अरसिक, शुष्क हृदय।
वि.
[हिं. खूसट]


खूसर
उल्लू।
संज्ञा


खेई
नाव चलायी थी।
मो देखत पाहन तरै, मेरी काठ की नाई। मैं खेई ही पार कौं, तुम उलटि मँगाई–९ - ४२।
क्रि. स.
[सं. क्षेपण, प्रा. खेवण, हिं. खेना]


खेई
झाड़-झंखाड़।
संज्ञा
[देश.]


खेकसा, खेखसा
एक फल।
संज्ञा
[देश.]


खेचर
आकाश में विचरनेवाला।
संज्ञा
[सं.]


खेचर
ग्रह।
संज्ञा
[सं.]


खेचर
तारा।
संज्ञा
[सं.]


खेचर
वायु।
संज्ञा
[सं.]


खेचर
देवता।
संज्ञा
[सं.]


खेचर
पक्षी।
संज्ञा
[सं.]


खेचर
बादल।
संज्ञा
[सं.]


खेचर
शिव।
संज्ञा
[सं.]


खेट
गाँव, खेड़ा।
संज्ञा
[सं.]


खेट
घोड़ा।
संज्ञा
[सं.]


खेट
आखेट, शिकार।
संज्ञा
[सं.]


खेट
एक अस्त्र।
संज्ञा
[सं.]


खेटक
गाँव, खेड़ा।
संज्ञा
[सं.]


खेटक
बलदाऊ जी की गदा।
संज्ञा
[सं.]


खेटक
शिकार, मृगया।
संज्ञा
[सं. अखेट]


खेटकी
भडुर, भडुरी, भडेरिया।
संज्ञा
[सं.]


खेटकी
खिलाड़ी, शिकारी।
संज्ञा
[सं. आखेट]


खेटकी
वधिक।
संज्ञा
[सं. आखेट]


खेड़
गाँव।
द्रुम चढ़ि काहे न हेरौ कान्हा, गैयाँ दूरि गईँ।…..। छाँड़ि खेड़ सब दौरि जात हैं, बोलौ ज्यौं सिखई। सूरदास प्रभु-प्रेम समुझि कै, मुरली सुनि आई गई - ६१२।
संज्ञा
[हिं. खेड़ा]


खेड़ा
छोटा गाँव।
संज्ञा
[सं. खेट]


खेड़े
छोटा गाँव।
संज्ञा
[हिं. खेड़ा]


खेड़े
खेड़े की दूब- दुर्बल, तुच्छ। उ.- नंद नँदन ले गए हमारी सब ब्रज कुल की ऊब। सूरस्याम तजि औरै सूझै ज्यों खेड़े की दूब - ३३६१।
मु.


कन
भीख, भिक्षान्न।
संज्ञा
[सं. कण]


कन
चावल की कनी।
संज्ञा
[सं. कण]


कन
शक्ति, सत।
संज्ञा
[सं. कण]


कन
कान का संक्षिप्त रूप जो यौगिक शब्दों के आदि में जुड़ता है।
संज्ञा
[सं. कण]


कन
बूँद।
गिरिजा-पतिपतिनी पति ता सुत गुन गुन गनन उतारै। तन-सुत-कन से धन-बिचार के तुरत भूमि पै डारै–सा० - ५।
संज्ञा
[सं. कण]


कनई
कल्ला, कोंपल।
संज्ञा
[सं. कांड या कंदल]


कनउँगली
सबसे छोटी उँगली।
संज्ञा
[सं. कनीयान, हिं. कानी+उँगली]


कनउँड
दासी, सेविका।
वि.
[हिं. कनौड़ा]


कनउड़
दीनहीन।
वि.
[कनौड़ा]


कनउड़
लज्जित।
वि.
[कनौड़ा]


खेती
कृषि, किसानी।
संज्ञा
[हिं. खेत+ई (प्रत्य.)]


खेती
बोई हुई फसल।
संज्ञा
[हिं. खेत+ई (प्रत्य.)]


खेद
अप्रसन्नता, दुख।
संज्ञा
[सं.]


खेद
दुख का प्रसंग।
करौं मनोरथ पूरन सबके इहि अंतर इक खेद उपायो - पृ. ३४० (९६)।
संज्ञा
[सं.]


खेद
थकावट, ग्लानि।
संज्ञा
[सं.]


खेद
भय, आशंका।
फूले द्विजसंत-बेद, मिटि गयौ कंस-खेद, गावत बधाई। सूर भीतर बहर के - १० - ३४।
संज्ञा
[सं.]


खेदना
मारकर भगाना।
क्रि, स.
[सं. खेट]


खेदना
शिकार का पीछा करना।
क्रि. स.


खेदा
हिंसक पशुओं को घेरकर निर्दिष्ट स्थान पर लाना।
संज्ञा
[हिं. खेदना]


खेदा
शिकार।
संज्ञा
[हिं. खेदना]


खेत
जोतने-बोने-योग्य धरती।
संज्ञा
[सं. क्षेत्र]


खेत
उबरै खेत- सुधर जाय, उद्धार हो जाय। खूब फूले-फले। उ.- रे मन, राम सौं करि हेत। हरि-भजन की बारि करिलै, उबरै तेरौ खेत–१ - ३११।

खेत करना- भूमि बराबर करना। खेत रखना- रखवाली करना।

मु.


खेत
तैयार फसल।
संज्ञा
[सं. क्षेत्र]


खेत
युद्धक्षेत्र।
(क) मूर्छित सुभट हो नहीं राखिये खेत में, जानि यह बात मैं इहाँ ल्यायो - १० उ.५६। (ख) जैसे सुभट खेत चढ़ि धावै - पृ. ३१९।
संज्ञा
[सं. क्षेत्र]


खेत
युद्ध।
तापर बैठ कृष्न संकर्सन जीते हैं सब खेत - ५९९ सारा.।
संज्ञा
[सं. क्षेत्र]


खेत
खेत आना- युद्ध में मारा जाना।

खेत करना- लड़ना। खेत छोड़ना- युद्ध से भागना। खेत रखना- युद्ध जीतना। खेत रहना- मारे जाना।

मु.


खेत
संसार, राज्य, ऐश्वर्य।
ऊँचे चढ़ि दसरथ लोचन भरि सुत मुख देखे लेत। रामचन्द्र से पुत्र बिना मैं भूँजब क्यों यह खेत - ९३९।
संज्ञा
[सं. क्षेत्र]


खेत
स्थान, आलय।
संज्ञा
[सं. क्षेत्र]


खेत
नील को खेत- ऐसा स्थान जहाँ दोष, पाप और कलंक का भागी बनना पड़े। उ. - भजन बिनु जीवत जैसे प्रेत…...। सेवा नहिं भगवंत चरन की भवन नील कौ खेत - २ - १५।
मु.


खेतिहर
खेती करनेवाला, किसान।
जन के उपजत दुख किन काटत। जैसे प्रथम असाढ़-आँजु-तृन, खेतिहर निरखि उपाटत - १ - १०७।
संज्ञा
[सं. क्षेत्रधर]


खेदित
खिन्न।
वि.
[सं.]


खेदित
थका हुआ।
वि.
[सं.]


खेना
नाव चलाना।
क्रि. वि.
[सं. क्षेपण, प्रा. खेवण]


खेना
समय काटना, बिता देना।
क्रि. वि.
[सं. क्षेपण, प्रा. खेवण]


खेप
एक बार लादा जाने वाला बोझ।
आयो घोष बड़ो ब्योपारी। लादि खेप गुन ज्ञान जोग की ब्रज में आनि उतारी।
संज्ञा
[सं. क्षेप]


खेप
नाव, गाड़ी की एक बार की यात्रा।
संज्ञा
[सं. क्षेप]


खेप
दोष।
संज्ञा
[सं. आक्षेप]


खेप
खोटा सिक्का।
संज्ञा


खेपना
बिताना, (समय) काटना।
क्रि. स.
[सं. क्षेपण]


खेम
कुशल।
संज्ञा
[सं. क्षेम]


खेल
बात, प्रसंग।
संज्ञा
[सं. केलि]


खेल
साधारण काम।
संज्ञा
[सं. केलि]


खेल
काम-क्रीड़ा।
संज्ञा
[सं. केलि]


खेल
स्वाँग, तमाशा।
संज्ञा
[सं. केलि]


खेल
विचित्र व्यापार।
संज्ञा
[सं. केलि]


खेतक
खिलाड़ी।
संज्ञा
[हिं. खेलना]


खेलत
खेल खेल कर
बालापन खेलत हीं खोयौ–१ - ५७।
क्रि. अ.
[हिं. खेलना]


खेलत
खेलत-खात रहे- आनन्द से जीवन बिताया, निश्चिंत रहकर दिन बिताये। उ.- खेलत खात रहे ब्रज भीतर। नान्ही जाति तनिक धन ईतर - १०४२। (ख) बाद-बिबाद सबै दिन बीते खेलत ही अरु खात - २-२२।
मु.


खेलन
खेलने के लिए |
(क) नृप-कन्या तहँ खेलन गई - ९ - ३। (ख) बीरा खाय चले खेलन को मिलिके चारों बीर–१८९ सारा.।
क्रि. अ.
[हिं. खेलना]


खेलन
खेलना, खेल।
अबहीं नैकु खेलन सीखे हैं, यह जानत सब लोग - ७७४।
संज्ञा


खेमटा
एक ताल।
संज्ञा
[देश.]


खेमटा
एक गाना या नाच।
संज्ञा
[देश.]


खेमा
तंबू, डेरा।
संज्ञा
[अ.]


खेरा
गाँव।
संज्ञा
[हिं. खेड़ा]


खेरे
गाँव।
संज्ञा
[सं. खेट, हिं. खेड़ा]


खेरे
खेरे के देवन- निर्जन स्थान के देवी देवता। उ.- जो ऊजर खेरे के देवन को पूजै को मानै। तो हम बिनु गोपाल भए ऊधो कठिन प्रीति की जानै - ३४०६।
मु.


खेरो, खेरौ
गाँव।
(क) बन मैं जाइ करौ कौतूहल, यह अपनौ है खेरौ - १० - २१६। (ख) इक उपहास त्रास उठि चलते तजि कै अपनो खेरो - १० उ. - १२४।

(ग) बिलुरत भेंट देहु ठाढ़े ह्वै निरखौ घोष जन्म को खेरो - २५३२।

संज्ञा
[सं. खेट, हिं.खेड़ा]


खेरौरा
खाँड या मिसरी का लड्डू, ओला।
संज्ञा
[हिं. खाँड+शोरा (पत्य.)]


खेल
मन बहलाने या व्यायाम के उद्देश्य से किया गया काम, क्रीड़ा, लीला।
कोटि ब्रह्मांड करत छिन भीतर, हरत बिलम्ब न लावै। ताकौं लिए नंद की रानी नाना खेल खिलावै - १० - १२६।
संज्ञा
[सं. केलि]


खेल
खेल जम्यो- अच्छी तरह खेल होने लगा। उ.- बटा धरनीडारि दीनौ लै चले ढरकाइ। आपु अपनी घात निरखत खेत जम्यौ बनाइ - १० - २४४।
मु.


खेलना
मन बहलाने के लिए दौड़ना-कूदना आदि।
क्रि. अ.
[सं. केलि, केलन]


खेलना
भोग-विलास।
क्रि. अ.
[सं. केलि, केलन]


खेलना
आ बढ़ना।
क्रि. अ.
[सं. केलि, केलन]


खेलना
मन-बहलाव के साथ-साथ हार-जीत के विचार से कोई क्रिया करना।
क्रि. स.


खेलना
जी बहलाना।
क्रि. स.


खेलना
अभिनय करना।
क्रि. स.


खेलवाड़, खेलवार
खिलाड़ी।
संज्ञा
[हिं. खेल+वार (प्रत्य.)]


खेलवाड़, खेलवार
खेल, तमाशा।
संज्ञा
[हिं. खेल+वार (प्रत्य.)]


खेलवाड़, खेलवार
विनोद।
संज्ञा
[हिं. खेल+वार (प्रत्य.)]


खेलवाड़ी, खेलवारी
बहुत खिलाड़ी।
वि.
[हिं. खेलवाड़+ई प्रत्य.)]


खेलवाड़ी, खेलवारी
बड़ा विनोदी, हँसमुख।
वि.
[हिं. खेलवाड़+ई प्रत्य.)]


खेला
विनोद, मन-बहलाव।
संज्ञा
[हिं. खेल]


खेलाइ
बहलाना, उलझाये रखना।
नवल आपुन बनी नवेली नागर रही खेलाइ - २६७६।
क्रि. स.
[हिं. खेलाना (प्रे.)]


खेलाड़ी
खेलनेवाला।
वि.
[हिं. खेल+अड़ी (प्रत्य.)]


खेलाड़ी
विनोदप्रिय।
वि.
[हिं. खेल+अड़ी (प्रत्य.)]


खेलाड़ी
खेलनेवाला व्यक्ति।
संज्ञा
[हिं. खेल]


खेलाड़ी
तमाशा करनेवाला।
संज्ञा
[हिं. खेल]


खेलाड़ी
ईश्वर।
संज्ञा
[हिं. खेल]


खेलाना
खेल में लगाना।
क्रि. स.
[हिं. खेल]


खेलाना
खेल में सम्मिलित करना।
क्रि. स.
[हिं. खेल]


खेलाना
बहलाना।
क्रि. स.
[हिं. खेल]


खेलार
खिलाड़ी।
कर लिए डफहि बजावे हो हो सनाक खिलार होरी की—२४०१।
संज्ञा
[हिं. खेल+आर (प्रत्य.)]


खेलि
खेल-कूद कर।
सूरदास भगवंत भजनु बिनु, चले खेलि फागुन की होरी - १ - ३०३।
क्रि. अ.
[हिं. खेलना]


खेलिये
मन बहलाओ, खेलो।
आवहु हिलि मिलि खेलिये - १८१४।
क्रि. अ.
[हिं. खेलना]


खेलिहौ
खेल खेलना।
साँझ भई घर आवहु प्यारे। दौरत कहीं चोट लगिहै कहुँ, पुनि खेलिहौ सकारे - १० - २२६।
क्रि. अ.
[हिं. खेलना]


खेली
दौड़ी-धूपी, क्रीड़ा की।
क्रि. अ.
[हिं. खेलना]


खेली
प्रान जात हैं खेली -प्राणों पर आ बनी है, प्राण निकलने ही वाले हैं। उ.- बिरह ताप तन अधिक जरावत जैसे दव द्रुम-बेली। सूरदास प्रभु बेगि मिलावौं, प्रान जात हैं खेली - ९ - ९४।
मु.


खेलै
खेलता है, क्रीड़ा करता है।
सब रस कौ रस प्रेम है, (रे) बिषयी खेल सार। तन-मन-धन-जोबन खसै, (रे) तऊ न मानै हार - १ - ३२५।
क्रि. अ.
[हिं. खेलना]


खेलौना
खिलौना, खेलने की चीज या साधन।
संज्ञा
[हिं. खिलौना]


खेल्यौ
खेलना, खेल करना, खेला।
पुनि जब षष्ठ बरस कौ होइ। इत उत खेल्यौ चाहै सोई - ३ - १३।
क्रि. अ.
[हिं. खेलना]


खेल्योई
खेलना ही, खेल में लगे रहना ही।
रुहठि करै तासौं को खेलै, रहे बैठि जहँ तहँ सब ग्वैयाँ। सूरदास-प्रभु खेल्यौई चाहत, दाउँ दियौ करि नंद-दुहैया - १० - २४५।
क्रि. अ.
[हिं. खेलना]


खेवक
केवट, मल्लाह।
संज्ञा
[सं. क्षेपक]


खेवनहार
खेनेवाला, मल्लाह, केवट।
खेवनहार न खेवट मेरैं, अब मो नाव अरी - १ - १८५।
संज्ञा
[हिं. खेना+हार (प्रत्य.)]


खेवनहार
पार लगानेवाला।
संज्ञा
[हिं. खेना+हार (प्रत्य.)]


खेवट, खेवटिया
मल्लाह, माँझी।
दई न जाति खेट उतराई, चाहत चढ़यौ जहाज - १ - १०८।
संज्ञा
[हिं. खेना]


खेवना
नाव चलना।
क्रि. स.
[हिं. खेना]


खेवरिया
खेनेवाला, मल्लाह।
संज्ञा
[हिं. खेवना]


खेवा
बार, दफा, अवसर।
जुग जुग बिरद यहै चलि आयौ, सत्य कहत अब होरे। सूरदास प्रभु पहिले खेवा, अब न बनै मुख मोरे - ४८८।
संज्ञा
[हिं. खेना]


खेवा
नाव खेने का किराया।
संज्ञा
[हिं. खेना]


खेवा
नदी पार करने का काम।
संज्ञा
[हिं. खेना]


खेवा
लदी हुई नाव।
संज्ञा
[हिं. खेना]


खेवाई
नाव चलाना।
संज्ञा
[हिं. खेना]


खेवाई
नाव चलाने की मजदूरी।
संज्ञा
[हिं. खेना]


खेस
मोटे सूत की चादर।
संज्ञा
[देश.]


खेसारी
एक तरह की मटर।
संज्ञा
[सं. कृसर]


खेह, खेहर
धूल, राख, खाक, मिट्टी।
(क) सरवर नीर भरै, भरि उमड़ै, सूखै, खेह उड़ाहि - १ - २६५। (ख) भई देह जो खेह करम-बस जनु तट गंगा अनल दढ़ी - ९ - १७०।

(ग) लेहु सँभारि सुखेड् देह की को राखै इतने जंजालहिं - ८०२।

संज्ञा
[सं. क्षार]


खेह, खेहर
बैरिन के मुख खेह- स्त्रियों की एक गाली। उ.- तनक तनक कछु खाहु लाल मेरे ज्यों बढ़ि आवै देह। सूर स्याम अब होहु सयाने बैरिन के मुँह खेह - १००४।

खेह खाना- (१) धूल फाँकना, व्यर्थ समय खोना। (२) बुरी दशा होना।

मु.


खेहु
धूल, खाक, राखे।
जलके हेतु अस्व यह लेहु। पितर तुम्हारे भए जु खेहु सुरसरि जब भुव ऊपर आवै।….। तबहीं उन सब की गति होइ- ९-९।
संज्ञा
[हिं. खेइ]


खैंचना
पकड़कर घसीटना।
क्रि. स.
[हिं. खोंचना]


खैंचि
खींचकर, घसीट कर।
क्रि. स.
[हिं, खैंचना]


कनउड़
कृतज्ञ उपकृत।
वि.
[कनौड़ा]


कनउड़
काना, अपंग।
वि.
[कनौड़ा]


कनक
सोना, स्वर्ण।
सखी री वह देखो रथ जात…...। छत्र पत्र कनकदल मानो ऊपर पवन बिहात।
संज्ञा
[सं.]


कनक
धतूरा।
संज्ञा
[सं.]


कनक
टेसू, पलाश।
संज्ञा
[सं.]


कनक
नागकेसर।
संज्ञा
[सं.]


कनक
गेहूँ का आटा।
संज्ञा
[सं. कणिक=गेहूँ का आटा]


कनक
गेहूँ।
संज्ञा
[सं. कणिक=गेहूँ का आटा]


कनककली
कान में पहनने की लौंग।
संज्ञा.
[सं. कनक+हिं. कली]


कनकना
जो जरा सा जोर लगने से टूट जाय।
वि.
[हिं. कन+कना (प्रत्य.)]


खैंचि
लिखकर।
(क) कोउ न समरथ अघ करिबे कौं खैंचि कहत हौं लीकौ-१-१३८। (ख) रेखा खैचि, बारि बंधनमय, हा रघुबीर कहाँ हौ भाई -९-५९।
क्रि. स.
[हिं, खैंचना]


खैंचि
मंत्र आदि का प्रभाव लौटा ले, प्रभाव दूर कर दे। उ.-इन द्योसनि रूसनो करति हौ करिहौ कबहिं कलोलै। कहा दियो पढि सीस स्याम के खैंचि आपनो सो लै-२२७५।
क्रि. स.
[हिं, खैंचना]


खैए
खाइए, भोजन कीजिए।
सीतल कुंज कदम की छहियाँ, छाक छहूँ रस खैऐ--४४५।
क्रि. स.
[हिं. खाना]


खैबे
खाना-पीना है।
जननि कहति उठो स्याम, जानत जिय रजनि ताम, सूरदास प्रभु कृपालु तुमको कछु खैबे-२३२०।
क्रि. स.
[हिं. खाना]


खैर
एक तरह का बबूल।
संज्ञा
[सं. खदिर]


खैर
कत्था जो पान में डालकर खाया जाता है।
संज्ञा
[सं. खदिर]


खैर
एक छोटा पक्षी जो जमीन से सटाकर अपना झोपड़ा बनाता है।
संज्ञा
[देश.]


खैर
क्षेम-कुशल, भलाई।
संज्ञा
[फ़ा.खैर]


खैर
कुछ परवाह नहीं, कुछ चिंता नहीं।
अव्‍य.


खैर
अस्तु, अच्छा।
अव्‍य.


खैरी
कत्थई रंग की गाय।
पियरी, मौरी, गैनी, खैरी, कजरी, जेती। दुलही, फुलही,भौंरी, भूरी हाँकि ठिकाई तेती--४४५।
संज्ञा


खैलर
मथानी।
संज्ञा
[सं. क्ष्‍वेल]


खैला
मथानी।
संज्ञा
[सं. क्ष्‍वेल]


खैहैं
खायॅंगे, भक्षण करेंगे।
या देही कौ गरब न करियौ, स्यार-काग-गिध खैहैं-१-८६।
क्रि. स. बहु.
[हिं. खाना]


खैहै
खायगा, भोजन करेगा।
इतनो भोजन सब वह खैहै - १०१०।
क्रि. स.
[हिं. खाना]


खैहै
(आघात आदि) सहेगा, (प्रभाव आदि) पड़ने देगा, (कसम, गम आदि) खायगा।
(क) नर-बपु धारि नाहिं जन हरि कौं, गम की मार सो खैहै-१-८६। (ख) बड़े गुरू की बुद्धि पढ़ी वह काहू को न पत्यैहै। एकौ बात मानिदै नाहीं सबकी सौहैं खैहै-१२६३।
क्रि. स.
[हिं. खाना]


खैहौं
खाऊँगा, भक्षण करूँगा।
(क) लागी भूख, चंद मैं खैहौं, देहि देहि रिस करि बिरुझावत -१०-१८८। (ख) मैया मैं अपने कर खैहौं धरि दे मेरैं हाथ -१०-३१२।
क्रि. स.
[हिं. खाना]


खैहौ
खाओगे, भक्षोगे।
टूटे कंध अरु फूटी नाकनि, कौलौं धौं भुस खैहौ -१-३३१।
क्रि. स.
[हिं. खाना]


खोंइचा
आँचल, किनारा।
संज्ञा
[हिं. खूँट]


खोखना
खाँसना।
क्रि. अ.
[खों खों से अनु.]


खैर भैर
शोरगुल।
संज्ञा
[अनु.]


खैर भैर
हलचल।
संज्ञा
[अनु.]


खैरा
कत्थे के रंग का, कत्थई।
वि.
[हिं. खैर]


खैरा
कत्थई रंग का घोड़ा, कबूतर या बगला।
संज्ञा


खैरा
तबले की एकताली दून।
संज्ञा
[देश.]


खैरा
एक छोटी मछली।
संज्ञा
[देश.]


खैरात
दान।
संज्ञा
[अ. खैरात]


खैरियत
कुशल।
संज्ञा
[फा. खैरियत]


खैरियत
भलाई।
संज्ञा
[फा. खैरियत]


खैरी
कत्थई रंग की।
वि.
[हिं. पुं. खैर]


खोंखल
खोखला।
वि.
[हिं. खोखला]


खोंगा
रुकावट, अटकाव।
संज्ञा
[देश.]


खोंगाह
पीलापन लिये सफेद घोड़ा।
संज्ञा
[सं.]


खोंच
किसी चीज से रगड़ कर शरीर छिलना।
संज्ञा
[सं. कुच]


खोंच
किसी चीज से फँसकर कपड़ा फटना।
संज्ञा
[सं. कुच]


खोंच
मुट्ठी।
संज्ञा
[देश.]


खोंच
एक मुट्ठी में जो पदार्थ आ जाय।
संज्ञा
[देश.]


खोंच
एक तरह का बगुला।
संज्ञा
[सं. क्रौंच]


खोंचा
वह बाँस जिसके सिरे पर लासा लगाकर पक्षियों को फँसाया जाता है।
संज्ञा
[सं. कुच]


खोंचिया
भिखारी।
संज्ञा
[हिं. खोंची]


खोंची
भीख।
संज्ञा
[हिं. खूँट]


खोंटना
(साग आदि वस्तुओं का) ऊपरी भाग नोचना।
क्रि. स.
[सं. खंड]


खोटा
जो शुद्ध न हो।
वि.
[हिं. खोटा]


खोटा
बुरा।
वि.
[हिं. खोटा]


खोंडर, खोंड़र
पेड़ का पोला या खोखला भाग।
संज्ञा
[सं. कोटर]


खोड़हा, खोंड़ा
जिसके अंग (विशेषत: आगे के दाँत) टूटे हों।
वि.
[सं. खुंड]


खोंतल
घोंसला, खोंता।
संज्ञा
[हिं. खोंता]


खोंता, खोंथा
चिड़ियों का घोंसला।
संज्ञा
[हिं. घोसला]


खोंता, खोंथा
नुकीली वस्तु में फँसने से कपड़े का फटा हुआ भाग।
संज्ञा
[हिं. खोंचा]


खोंपना
गड़ाना, चुभाना।
क्रि. स.
[हिं. खोभना]


खोंपना
खोप या खोंटा सिक्का।
क्रि. स.
[हिं. खोंप]


खोंपा
वस्त्र का कील आदि से फटा हुआ भाग।
संज्ञा
[हिं. खोंता, खोंथा]


खोंपा
हल की लकड़ी जिसमें फाल लगता है।
संज्ञा
[हिं. खोपना]


खोंपा
छाजन का कोना।
संज्ञा
[हिं. खोपना]


खोंसत
अटकाते हैं, घुसेड़ते हैं, खोंसते हैं।
सखी री, मुरली तीजै चोरि।…….। छिन इक घर-भीतर, निसि बासर, धरत न कबहूँ छोरि। कबहूँ कर, कबहूँ अधरनि, कटि कबहू खोंसत जोरि - ६५७।
क्रि. स.
[हिं. खोसना]


खोंसना
किसी वस्तु को सुरक्षित रखने के विचार से जेब, टेंट या अंटी अथवा अन्य किसी वस्तु में घुसेड़ना, अटकाना या लपेटना।
क्रि. स.
[सं. कोश+ना (प्रत्य.)]


खोंसना
धँसाना, चुभाना, घुसेड़ना।
क्रि. स.
[सं. कोश+ना (प्रत्य.)]


खोआ
दूध से बना एक पदार्थ, खोवा, मावा।
संज्ञा
[हिं. खोवा]


खोइ
खोकर, नष्ट करके।
रंक सुदामा कियौ इन्द्र-सम, पांडव-हित कौरव दल खोइ–१-९५।
क्रि. स.
[हिं. खोना]


खोइ
मिटाकर, दूर करके।
याकैं मारैं हत्या होइ। मनि लै छाँड़ौ सोभा खोइ-१-२८९।
क्रि. स.
[हिं. खोना]


खोइ
जात खोइ-खो जाता है, दूर होता है, मिट जाता है।
नंद कौ लाल उठत जब सोइ।….। मुनि मन हरत, जुवति जन केतिक, रति-पति मान जात सब खोइ -१०-२१०।
यौ.


खोइया
ऊख के नीरस डंठल।
संज्ञा
[हिं. खोई]


खोइया
धान की खील, लाई
संज्ञा
[हिं. खोई]


खोइसि
खो दिया, नष्ट कर दिया।
रे मन, जनम अकारथ खोइसि। हरि की भक्ति न कबहूँ कीन्हीं, उदर भरे परि सोइसि -१-३३३।
क्रि. स.
[हिं. खोना]


खोई
ऊखदंडों के वे डंठल जो रस पेल लिये जाने पर कोल्हू में रह जाते हैं, छोई।
(क) रस लै लै ओटाइ करत गुर, डारि देत है खोई-१-६६। (ख) हरि-सरूप सब घट यौं जान्यौ। ऊख माहिं ज्यौं रस है सान्यौ। खोई तन, रस आतम-सार। ऐसी विधि जान्यौ निरधार-३-१३।
संज्ञा
[सं. क्षुद्र]


खोई
भुने हुए धान की खील, लाई।
संज्ञा
[सं. क्षुद्र]


खोई
खो दिया, गवाँ दिया।
जो रस सिव सनकादिक दुर्लभ सो रस बैठे खोई—२८८१।
क्रि. स.
[हिं. खाना]


खोऊ
खोऊँ, गवाँऊँ।
क्रि. स.
[हिं. खोना]


खोऊ
बिताऊँ।
कछु दिन जैसे तैसे खोऊँ दूरि करौं पुनि डर कौं–७३८।
क्रि. स.
[हिं. खोना]


खोए
व्यर्थ कर दिये, बिता दिये, नष्ट कर दिये।
किते दिन हरि-सुमिरन बिनु खोए-१.५२।
क्रि. स.
[हिं. खोना]


खोज
खोज मिटाना- ऐसा नाश करना कि चिह्न तक न रहे।
मु.


खोज
अनुसंधान, शोध।
संज्ञा
[हिं. खोजना]


खोज
पता पाना, ढूँढ़ना, तलाश।
ये सब मेरेहि खोज परी। मैं तो स्याम मिली नहिं नीके आजु रही निसि संग हरी -१६१७।
संज्ञा
[हिं. खोजना]


खोज
परयौं है खोज हमारे- हमारी खोज में है, हमारे पीछे पड़ा है। उ.- (क) नन्द घरनि यह कहति पुकारे। कोउ बरखत, कोउ अगिनि जरावत दई परय्यौ है खोज हमारे -५९५। (ख) स्वर्गहि गए कंस अपराधी परय्यौ हमारे खोज। दृष्टि से टारि ध्यानहु ते टारत वाऊ सबको चोज-३३४८।
मु.


खोज
पहिए या पैर का चिह्न।
संज्ञा
[हिं. खोजना]


खोज
खोज मारना- पृथ्वी पर पड़े चिह्न इस तरह नष्ट करना जिससे उनके सहारे कोई कुछ पता न लगा सके।
मु.


खोजक
ढूँढ़नेवाला।
वि.
[हिं. खोज+क (प्रत्य.)]


खोजत
खोजते या ढूँढ़ते हैं।
(क) खोजत जुग गए बीति, नाल कौ अन्त न पायौ -२-३६। (ख) खोजत नाल कितौ जुग गयौ-२-३७।
क्रि. स.
[सं. खुज=चोराना]


खोजना
ढूढ़ना, तलाश करना।
क्रि. स.
[सं.खुज=चोराना]


खोजमिटा
जिसका नामनिशान मिट जाय।
वि.
[हिं. खोज+मिटना]


खोखर
एक राग जो दिन के पहले पहर में गाया जाता है।
संज्ञा
[देश.]


खोखला
जिस वस्तु के भीतर कुछ न हो,जो वस्तु पोली हो।
वि.
[हिं. खुक्ख+ला (प्रत्य.)]


खोखला
जिस बात या कथन में कुछ सार न हो।
वि.
[हिं. खुक्ख+ला (प्रत्य.)]


खोखला
पोली या खाली जगह।
संज्ञा


खोखला
बड़ा छेद।
संज्ञा


खोखा
वह हुंडी जिसका रुपया चुका दिया गया हो।
संज्ञा
[हिं. खुक्‍ख]


खोखा
बालक, लड़का।
संज्ञा
[बँ. खोका]


खोचकिल
घोंसला, खोंता।
संज्ञा
[देश.]


खोचन
(बातों का) घाव, आघात, चोट।
धृग वै मात पिता धृग भ्राता दंत रहत मोहिं खोचन। सूर स्याम मन तुमहिं लुभानों हरद चून रँग रोचन -१५१७।
संज्ञा
[हिं. खोंच]


खोज
चिह्न, निशान, पता।
(क) हम तिहुँ लोक माहिं फिरि आए। अस्व खोज कतहु नाहि पाए–९-९। (ख) राखौं नहिं काडू सब मारौं। ब्रज गोकुल को खोज निवारौं-१०४३।
संज्ञा
[हिं. खोजना]


खोजवाना
खोज कराना, ढुँढ़वाना।
क्रि. स.
[हिं. खोजना]


खोजा
नपुंसक व्यक्ति।
संज्ञा
[फा. ख़्‍वाज:]


खोजा
सेवक।
संज्ञा
[फा. ख़्‍वाज:]


खोजा
सरदार।
संज्ञा
[फा. ख़्‍वाज:]


खोजाना
खोज कराना।
क्रि. स.
[हिं. खोजना]


खोजि
खोजकर, ढूँढ़कर।
कै प्रभु हारि मानि कै बैठो, कै करौ बिरद सही। सूर पतित जौ झूठ कहत है, देखौ खोजि बही-१-१३।
क्रि. स.
[हिं. खोजना]


खोजि
चिह्न, निशान, पता।
राखौं नहिं काहू सब मारौं। व्रज गोकुल को खोजि (खोजु) निवारौं-१०४३।
संज्ञा
[हिं. खोज]


खोजी
ढूँढ़नेवाला।
वि.
[हिं. खोज+ई प्रत्य.)]


खोजु
चिह्न, निशान, पता।
छिन मैं बरषि प्रलय जल पाटौं खोजु रहै नहिं चीनो-९४५।
संज्ञा
[हिं. खोज]


खोजो
पता लगाओ, खोज करो।
जद्यपि सूर प्रताप स्याम कौ दानव दूरि दुरात। तद्यपि भजन भाव नहिं ब्रज बिनु खोजो दीपै सात-३३५१।
क्रि. स.
[हिं. खोजना]


कनकना
कनकनाने या चुभचुनानेवाला।
वि.
[हिं. कनकनाना


कनकना
अरुचिकर।
वि.
[हिं. कनकनाना


कनकना
जो जरा सी बात में चिढ़ जाय।
वि.
[हिं. कनकनाना


कनकपुर
सोने का नगर, लंका नगर।
भलैं राम कों सीय मलाई, जीति कनकपुर गाउँ - ९ - ७५।
संज्ञा
[सं.]


कनकपुर, कनकपुरी
लंका।
(क) सौ जोजन बिस्तार कनकपुरी, चकरी जोजन बीस। मनौं विश्वकर्मा कर अपुनैं, रचि राखी गिरि-सीस - ९ - ७४। (ख) सुनौ किन कनकपुरी के राइ। हौं धि-बल-छल करि पचि हारी, लख्यौ न सीस उचाई–६ - ७८।

(ग) लुटत सक्र के सीस चरन तर जुग गत समए। मानहु कनकपुरी-पति के सिर रघुपति फेरि दए - ९८४।

संज्ञा
[सं. कनकपुरी]


कनकपाल
धतूरे का फल।
संज्ञा
[सं.]


कनकवेलि
स्वर्णवल्लरी, स्वर्णलता।
रसना जुगल रसनिधि बोलि। कनकबेलि तमाल अरुझी सुभुज बंध अखोलि - सा . उ. ५।
संज्ञा
[सं.]


कनका
कनकी, कण।
संज्ञा
[सं. कण]


कनकाचल
सोने का पर्वत।
संज्ञा
[सं.]


कनकाचल
सुमेरु पर्वत।
संज्ञा
[सं.]


खोट
दोष,ऐब, बुराई।
(क) पतित जानि तुम सब जन तारे, रह्यो न कोऊ खोट–१-१३२।

(ख) सूरदास पारसके परसैं मिटति लोह की खोट-१-२३२।

संज्ञा
[सं. खोट=खोंड़ा (दूषित)]


खोट
अच्छी चीज में बुरी का मिलाया जाना।
संज्ञा
[सं. खोट=खोंड़ा (दूषित)]


खोट
बुरी चीज जो अच्छी में मिलायी जाय।
संज्ञा
[सं. खोट=खोंड़ा (दूषित)]


खोट
बुरा, दुष्ट।
हरि पटतर दै इमहिं लजावत सकुच नहिं आवत खोट कवि-१२९५।
वि.


खोटत, खोटता
बुराई, खोटापन।
अमरापति चरनन पर लोटत। रही नहीं मनमें कछु खोटत-१०६९।
संज्ञा
[हिं. खोट]


खोटनि
बुरों को, दुष्टों या पापियों को।
ऐसौ अँध अधम, अबिबेकी, खोटनि करत खरे–१-१९८।
सवि., वि.
[सं. खोट+नि (प्रत्य.)]


खोटपन
खोटाई।
संज्ञा
[हिं. खोटा+पन]


खोटा
बुरा, ऐब से युक्त।
वि.
[हिं. खोट]


खोटा
जो असली या शुद्ध न हो।
वि.
[हिं. खोट]


खोटा
खोटा-खरा– बुरा-भला।

खोटा खाना- अनुचित उपायों से कमाकर खाना। खोटा-खरा कहना- बहुत डाँटना-फटकारना।

मु.


खोटाई
बुराई, दुष्टता।
संज्ञा
[हिं. खोटा+ई (प्रत्य.)]


खोटाई
छल, कपट।
संज्ञा
[हिं. खोटा+ई (प्रत्य.)]


खोटाई
दोष, ऐब।
संज्ञा
[हिं. खोटा+ई (प्रत्य.)]


खोटाना
समाप्त होना।
क्रि. अ.
[हिं. खुटाना]


खोटापन
खोटाई, दोष।
संज्ञा
[हिं. खोटा+पन (प्रत्य.)]


खोटी
अनुचित, दूषित।
(क) जो चाहौ सो लेहु तुरत हीं, छाँड़ौ यह मति खोटी-१०-१६३। (ख) खोटी करनी जाहि मेरे की सोई करे उपादि-३१३२।
वि.
[हिं. पुं. खोटा]


खोटी
बुरी, दुष्ट प्रकृति या स्वभाववाली।
(क) बन भीतर जुवतिन कौं रोकत हम खोटी तुम्हरे ये हाल-१०१२। (ख) जे छोटी तेई हैं खोटी साजति माजति जोरी-१६२१।
वि.
[हिं. पुं. खोटा]


खोटे
बुरे, दुष्ट, जिसमें कोई दोष हो, दूषित, 'खरा' का उलटा।
हरि कौ नाम, दाम खोटे लौं, झकि झकि डारि दयौ- १-६४। (ख) सूरदास प्रभु वै अति खोटे यह उनहीं ते अति ही खोटी-१४७९।

(ग) परम सुसील सुलच्छन नारी तुमहिं त्रिभंगी खोटे हौ--२०६१। (घ) सबै खोटे मधुबन के लोग - ३०५२।

वि.
[हिं. खोटा]


खोटे
छल कपटयुक्त।
अंजलि के जल ज्यौं तन छीजत खोटे कपट तिलक अरु मालहिं-१-७४।
वि.
[हिं. खोटा]


खोटो, खोटौ
दूषित, बुरा, दुष्ट।
(क) चुगुल, ज्वार, निर्दय, अपराधी, झूठौ, खोटो-खूटौ-१-१८६। (ख) सूरदास गथ खोटो काते पारखि दोष धरे-पृ.३३१।
वि.
[हिं. खोटा]


खोटो, खोटौ
खोटौ खायौ है- बेईमानी या बुरी तरह से कमाकर खाया है। उ.- फाटक दै कै हाटक माँगत भोरो निपट सुधारी। धुर ही ते खोटौ खायौ है, लिए फिरत सिर भारी-३३४०।
मु.


खोड़
छेद जो लकड़ी सड़ने पर वृक्ष में हो जाता है।
संज्ञा
[सं. कोटर]


खोड़
एैवी या अज्ञात शक्तियों का कोप।
संज्ञा
[हिं. खोटा]


खोड़रा
छेद जो सड़ने पर वृक्ष की लकड़ी में हो जाता है।
संज्ञा
[सं. कोटर]


खोद
सैनिकों का टोप।
संज्ञा
[फ़ा. ख़ोद]


खोद
पूछ-ताँछ।
संज्ञा
[हिं. खोदना]


खोदई
एक पेड़।
संज्ञा
[देश.]


खोदना
मिट्टी हटाना, गड़हा करना, खनना।
क्रि. स.
[सं. खुद=भेदन करना]


खोदना
उखाड़ना, गिराना।
क्रि. स.
[सं. खुद=भेदन करना]


खोदना
नक्काशी करना।
क्रि. स.
[सं. खुद=भेदन करना]


खोदना
छेड़-छाड़ करना।
क्रि. स.
[सं. खुद=भेदन करना]


खोदना
उसकाना, उत्तेजित करना।
क्रि. स.
[सं. खुद=भेदन करना]


खोदनी
खोदने की सींक या कील।
संज्ञा
[हिं. खोदना]


खोद-विनोद
बहुत जाँच-पड़ताल।
संज्ञा
[हिं. खोद+विनोद (अनु.)]


खोदवाना
खोदने का काम कराना।
क्रि. स.
[हिं. खोदना]


खोदाई
खोदने की क्रिया।
संज्ञा
[हिं. खोदना]


खोदाई
खोदने की मजदूरी।
संज्ञा
[हिं. खोदना]


खोदि
खोदकर, खनकर।
कहौ तौ मृत्युहिं मारि डारि कै खोदि पतालहिं पाटौं–९-१४८।
[हिं. खोदना]


खोदैं
खोदने से, गड्‍ढा करने से।
आज्ञा होइ जाहिं पाताल। जाहु, तिन्हैं भाष्यौ भूपाल। तिनके खोदैं सागर भए - ९-९।
क्रि. स.
[हिं. खोदना]


खोना
गँवाना, जाने देना।
क्रि. स.
[सं. क्षोपण, प्रा. खेवण]


खोना
छोड़ आना।
क्रि. स.
[सं. क्षोपण, प्रा. खेवण]


खोना
खराब या नष्ट करना, बिगाड़ना।
सूर स्याम गारी कहा दीजै इही बुद्धि है घर खोना-१०३७।
क्रि. स.
[सं. क्षोपण, प्रा. खेवण]


खोना
किसी वस्तु का छूट या निकल जाना।
क्रि. अ.


खोना
खोया जाना- हक्का-बक्का होना।
मु.


खोन्चा
बड़ा थाल जिसमें बेचने के लिए चीजें सजायो जायँ।
संज्ञा
[फ़ा. ख्वान्चा]


खोपड़ा
सिर की हड्डी।
संज्ञा
[सं.खर्पर]


खोपड़ा
सिर।
संज्ञा
[सं.खर्पर]


खोपड़ा
नारियल।
संज्ञा
[सं.खर्पर]


खोपड़ा
गिरी।
संज्ञा
[सं.खर्पर]


खोपड़ा
खप्पर जो भिखारियों के पास रहता है।
संज्ञा
[सं.खर्पर]


खोपड़ी
सिर।
संज्ञा
[हिं. खोपड़ा]


खोपड़ी
सिर की हड्डी।
संज्ञा
[हिं. खोपड़ा]


खोपड़ी
अंधी (औंधी) खोपड़ी- मूर्ख।

खोपड़ी खाना- बहुत बात करके परेशान करना। खोपड़ी चटकना- धूप या पीड़ा से सिर दुखना। खोपड़ी खुजलाना- मार खाने की इच्छा होना।

मु.


खोपरा
गरी का गोला, गरी।
खारिक, दाख, खोपरा, खीरा। केरा, आम, ऊख-रस सीरा-१०-२११।
संज्ञा
[हिं. खोपड़ा]


खोपरा
नारियल।
संज्ञा
[हिं. खोपड़ा]


खोपरी
सिर की हड्डी,
संज्ञा
[हिं. खोपड़ी]


खोपरी
सिर।
संज्ञा
[हिं. खोपड़ी]


खोपा
छाजन या छप्पर का कोना।
संज्ञा
[हिं. खोपड़ा]


खोपा
जूड़ा बँधी हुई वेणी।
संज्ञा
[हिं. खोपड़ा]


खोभरा
गड़ने या ठोकर लगनेवाली चीज।
संज्ञा
[हिं. खुभना]


खोभरा
कूड़ा-करकट।
संज्ञा
[हिं. खुभना]


खोम
समूह, झुंड।
संज्ञा
[अ. कौम]


खोम
किले का बुर्ज।
संज्ञा
[सं.क्षोम]


खोया
गरमाकर गाढ़ा किया हुआ दूध, मावा, खोआ।
संज्ञा
[सं. क्षुद्र]


खोया
‘खोना' क्रिया का भूतकाल।
क्रि. स.


खोयौ
‘खोना' के भूत. 'खोया' का व्रज, प्र., व्यर्थ कर दिया, गँवा दिया।
(क) नारद मगन भए माया मैं, ज्ञान-बुदि‌ध-बल खोयो-१-४३। (ख) चोरी करी, राजहूँ खोयौ, अल्प मृत्यु तव आइ तुलानी-९-१६०।
क्रि. स.
[हिं. खोना]


खोयौ
दई को खोयो- स्त्रियों की एक गाली। उ.- सूर इते पर समुझत नाहीं निपट दई को खोयो-३०२१।
मु.


खोर
लँगड़ा, लूला, अंगभंग।
प्रभु मोहिं राखिये इहि ठौर।…….। पाँच पति हित हारि बैठे, राक्‍रैं हित मोर। धनुष-बान सिरान कैंधौं, गरुड़ बाहन खोर-१-२५३।
वि.
[सं. खोर या खोट]


खोर
दोष, ऐब।
लखहिं साँचे नर को खोर-१२-३।
संज्ञा
[हिं. खोट]


खोर
तंग या सँकरी गली, कूचा।
लूट लूट दधि खात साँवरो जहाँ साँकरी खोर–८६४ सारा.
संज्ञा
[हिं. खुर]


खोर
चारा देने की नाँद।
संज्ञा
[हिं. खुर]


खोर
नहान, स्नान।
संज्ञा
[सं. क्षालन, हिं. खोरना]


खोरन
नहाने के लिए।
आतुर चली जमुन-जल खोरन काहू संग न लाई -२१७०।
क्रि. अ.
[हिं. खोरना]


खोरना
नहाना, स्नान करना।
क्रि. अ.
[सं. झालन]


खोरना
खोलना, प्रकट करना, बताना।
क्रि. स.
[हिं. खोलना]


खोरा
लँगड़ा-लूला, अंग-भंग। बुरा, खोटा।
वि.
[सं. खोर या खोट]


खोराक
भोजन की सामग्री।
संज्ञा
[फ़ा.]


खोराक
भोजन की मात्रा।
संज्ञा
[फ़ा.]


खोराकी
खोराक के लिए दिया जानेवाला धन।
संज्ञा
[फ़ा. खोराक+ई (प्रत्य.)]


खोराकी
जिसकी खोराक बहुत अच्छी हो।
वि.


खोरि
ऐब, दोष, बुराई।
(क) नृपतिं कह्यौ मारग सम आह। चलत न क्यौं तुम सूधै राह। कह्यौ कहारनि, हमैं न खोरि। नयो कहार चलत पग झोरि-५-४। (ख) मेरे नैनन ही सब खोरि। स्याम बदन छबि निरखिं जु अटके बहुरे नहीं बहोरि-पृ. ३३३।
संज्ञा
[सं. खोट या खोर]


खोरि
लँगड़ी, लूली, अंगभंग।
संज्ञा
[सं. खोट या खोर]


खोरि
तंग या सँकरी गली।
(क) भीर भई बहु खोरि जहाँ तहाँ -१०३७।
संज्ञा
[हिं. खुर, खोर]


खोरि
चन्दन का आड़ा टीका।
संज्ञा
[सं. क्षौर या क्षुर]


खोरिया
पानी पीने का छोटा बरतन।
संज्ञा
[हिं. खोरा]


खोरिया
छोटी बिंदियाँ जो माथे पर लगायी जाती हैं।
संज्ञा
[हिं. खोरा]


खोरी
तंग गली।
(क) सूरदास प्रभु सकुचि निरखि मुख, भजे कुंज की खोरी-१०-२६७। (ख) प्रथम करी हरि माखन चोरी। ग्वालिनि मन इच्छा करि पूरन, आपु भजे हरि व्रज-खोरी-१०-२६८।

(ग) जाकर हेतु निरंतर लीये डोलत ब्रज की खोरी–१० उ.-१५।

संज्ञा
[हिं. खुर, खोरी]


खोरी
मस्तक पर लगा चंदन का आड़ा या धनुषाकार टीका।
सुभग कलेबर कुमकुम खोरी - ३३४५।
संज्ञा
[सं. क्षौर या क्षुर]


खोरैं
स्नान करती हैं, नहाती हैं, स्नान करें, नहायें।
(क) रवि सौं बिनय करति कर जोरे। प्रभु अंतरजामी, यह जानी, हम कारन जल खोरैं- ७६८। (ख) ब्रज-बनिता रवि कौं कर जोरैं। सीतभीति नहिं छहौं रितु, त्रिविधि काल जल खोरैं ७८२। (ग) कह्यौ, चलौ जमुना-जल खोरैं - ७९९।
क्रि. अ.
[सं. क्षालन, हिं. खोरना]


खोल
किसी वस्तु के ऊपर से चढ़ाया हुआ आवरण, गिलाफ।
संज्ञा
[सं.]


खोल
मोटी चादर जो ओढ़ने के काम आती है।
संज्ञा
[सं.]


खोलत
मिले या जुड़े भागों को अलग करता है।
तुम बिनु भूलोई भूलो डोलत। लालच लागी कोटि देवनि के, फिरत कपाटनि खोलत-१-१७७।
क्रि. स.
[हिं. ‘खुलना' का स. ‘खोलना']


खोलना
जुड़े हुए भागों को अलग करना।
क्रि. स.
[सं. खुड, खुल=भेदुन]


खोलना
बँधन तोड़ना।
क्रि. स.
[सं. खुड, खुल=भेदुन]


खोलना
बँधी हुई वस्तु अलग करना।
क्रि. स.
[सं. खुड, खुल=भेदुन]


खोलना
नया कार्य प्रारम्भ करना।
क्रि. स.
[सं. खुड, खुल=भेदुन]


खोलना
दैनिक कार्य आरम्भ करना।
क्रि. स.
[सं. खुड, खुल=भेदुन]


खोलना
सवारी चलाना।
क्रि. स.
[सं. खुड, खुल=भेदुन]


खोलना
गुप्त भेद प्रकट करना।
क्रि. स.
[सं. खुड, खुल=भेदुन]


खोलना
मन की बात कहना।
क्रि. स.
[सं. खुड, खुल=भेदुन]


कनकानी
घोड़ों की एक जाति।
संज्ञा
[देश.]


कनकी
कण।
संज्ञा
[हिं. कनका]


कनखा
कोंपल।
संज्ञा
[सं. कांड]


कनखा
शाखा, डाल।
संज्ञा
[सं. कांड]


कनखी
दूसरों की दृष्टि बचाकर देखना।
संज्ञा
[हिं. कोन+आँख]


कनखी
आँख का संकेत।
संज्ञा
[हिं. कोन+आँख]


कनखैया
तिरछी चितवन।
संज्ञा
[हिं. कनखी]


कनगुरिया
सबखे छोटी उँगली।
संज्ञा
[हि.कानी+अँगुरी या अँगुरिया]


कनछेदन, कनछेदनि
एक संस्कार जो प्रायः मुंडन के साथ होता है और जिसमें बच्चों के कान छेदे जाते हैं।
कान्ह कुँवर कौ कनछेदन है हाथ सोहारी भेली गुर की - १० - १८०।
संज्ञा
[हिं. कान+ छेदना]


कनधार
मल्‍लाह, केवट।
हाटकपुरी कठिन पथ, बानर, आए कौन अधार ? राम प्रताप, सत्य सीता कौ, यहै नाव-कनधार। तिहिं अधार छिन मैं अवलंघ्‍यौ, आवत भई न बार - ९ - ८९।
संज्ञा
[सं. कर्णधार]


खोलि
(गुप्त बात को) प्रकट या स्पष्ट करके।
सूर बिनती करै, सुनहु नँद-नंद तुम, कहा कहौं खोलि कै अँतरजामी -१-२१४।
क्रि. स.
[हिं. खोलना]


खोलि
बोलो, कहो।
मुख तौ खोलि सुनौं तेरी बानी भली-बुरी कैसी घर कैहै -११९२।
क्रि. स.
[हिं. खोलना]


खोलिया
बढ़ई का एक औजार, रुखानी।
संज्ञा
[देश.]


खोली
बन्धनमुक्त कर दी, उन्नति का आरभ्भ कर दिया, उत्थान का द्वार खोल दिया।
सोच निवार करो मन आनन्द मानौ भाग्यदशा बिधि खोली-१० ३.१०६।
क्रि. स.
[हिं. खोलना]


खोली
तकिए, लिहाफ या गद्दे का गिलाफ अथवा खोल।
संज्ञा
[फ़ा. खोल]


खोले
खोल दिये।
सुरपतिहिं बोलि रघुबीर बोले। अमृत की वृष्टि रन-खेत ऊपर करौ, सुनत तिन अमिय भंडार खोले-९-१६३।
क्रि. स.
[हिं. खोलना]


खोलै
खोलती है।
संदूकन भरि धरे ते न खोलै री-१५४९।
क्रि. स.
[हिं. खोलना]


खोलौ
बंधन-मुक्त करो, खोल-दो।
जागे हो जु रावरे है नैना क्यों न खोलौ -१९५९।
क्रि. स.
[हिं. खोलना]


खोवत
खोते या नष्ट करते हैं।
तन-धन-जोबन ता हित खोवत, नरक की पाछैं बात-६१२४।
क्रि. स.
[हिं. खोना]


खोवन
खोनेवाला, नाश करने वाला।
सूरदास रावन कुल-खोवन, सोवत सिंह जगायौ–९.८८।
वि.
[हिं. खोना]


खोवहु
खोना, गँवाना, हाथ से निकल जाने देना।
(क) बिनु रति-काल नगन नहिं होवहु। अरु मम मैंढनि कौं मति खोवहु-९-२। (ख) बृथा जनम जग मैं जिनि खोवहु ह्माँ अपनौं नहिं कोई-७६५।
क्रि. स.
[हिं. खोना]


खोवनहारी
खोने वाली, नष्ट करनेवाली, मिटानेवाली।
सुता बड़े बृषभानु की कुल खोवनहारी -१२४५।
वि.
[हिं.खोना+हारी (प्रत्य.)]


खोवा
गरमाकर गाढ़ा किया हुआ दूध, खोया, मावा।
खोवा-मय मधुर मिठाई। सो देखत अति रुचि पाई -१०-१८३।
संज्ञा
[सं. क्षुद्र, हिं. खोया]


खोवै
खोता है, गँवाता है।
(क) निद्रा-बस जो कबहूँ सोवै। मिलि सो अविद्या सुधि-बुधि खोवै-४.१२। (ख) देखिकै नारि मोहित जो होवे। आपनौ मूल या बिधि सो खोवै–८.११।

(ग) कबहुँ अजिर ठाढ़े ह्वै ऐसे निसि खोवै-२४७४।

क्रि. स.
[हिं. खोना]


खोह
गुफा, कंदरा।
संज्ञा
[सं. गोह]


खोह
पहाड़ी गहरा गड्ढा।
संज्ञा
[सं. गोह]


खोह
दो पहाड़ों के बीच का तंग रास्ता, दर्रा।
संज्ञा
[सं. गोह]


खोहनि
खोह में, निर्जन स्थान में, एकांत में।
सूर सुबस घर छाँड़ि हमारो क्यों रति मानत खोहनि -२०१४।
संज्ञा
[हिं. खोह+नि (प्रत्य.)]


खोहि
धूल, खाक।
सूर सुवस्तुहिं छाँड़ि अभागे हमहिं बतावत खोहि -३०२० |
संज्ञा
[हिं. खेह]


खोही
पत्तों की छतरी।
संज्ञा
[सं. खोलक]


खोही
वर्षा या शीत से बचने के लिए सिर पर लपेटा हुआ कंबल आदि।
संज्ञा
[सं. खोलक]


खोही
वस्त्र का सिर या कंधे पर पड़ा हुआ भाग।
सुरंग केसरि खौरि कुसुम की दाम अभिराम कंठ कनक की दुलरी झलकत पीतांबर की खोही-८३८।
संज्ञा
[सं. खोलक]


खोही
धूल, खाक।
संज्ञा
[हिं. खेह]


खौं
गड्ढा।
संज्ञा
[सं. खन]


खौं
गहरा गढ़ा जिसमें अन्न जमा किया जाय।
संज्ञा
[सं. खन]


खौं
वृक्ष का वह भाग जहाँ टहनी या पत्ती निकलती है।
संज्ञा
[सं. खन]


खौंचा
साढ़े छः का पहाड़ा।
संज्ञा
[सं. षट्‍+च]


खौंट
नोचने-खसोटने की क्रिया।
संज्ञा
[हिं. खोटना]


खौंट
नोचने-खसोटने का शरीर पर चिह्न, खरोट।
संज्ञा
[हिं. खोटना]


खौंडा
गड्ढा।
संज्ञा
[सं. खन या खात]


खौंडा
अनाज रखने का गड्ढा।
संज्ञा
[सं. खन या खात]


खौफ
डर, भय।
संज्ञा
[अ.]


खौर
चंदन का आड़ा तिलक।
(क) और बेस को कहै बरनि सब अंग अंग केसरि खौर–३०३१।

(ख) खौर केसरि अति विराजत तिलक मृगमद को दियौ-१० उ.-२४।

संज्ञा
[सं. क्षौर या क्षुर]


खौर
एक गहना जो स्त्रियाँ माथे पर पहनती हैं।
संज्ञा
[सं. क्षौर या क्षुर]


खौरना
तिलक लगाना, चंदन का टीका लगाना।
क्रि. स.
[हिं. खौर]


खौरहा
जिस (पशु) के बाल झड़ गये हों।
वि.
[हिं. खौरा+हा (प्रत्य.)]


खौरहा
जिस (पशु) को बाल झाड़ने की खुजली का रोग हो।
वि.
[हिं. खौरा+हा (प्रत्य.)]


खौरा
भयानक खुजली जिसमें पशुओं के बाल झड़ जाते हैं।
संज्ञा
[सं. क्षौर]


खौरा
जिसे यह रोग हो।
वि.


खौरि
मस्तक पर लगा हुआ चन्दन का आड़ा तिलक।
(क) फिरत बननि बृन्दावन, बंसीबट, सँकेतबट, नागर कटि काछे, खौरि केसरि की किए-४६०। (ख) चन्दन खौरि, काछनी काछे, देखते ही मन भावत-४७९।

(ग) चंदन की खौरि किये नटवर काछे काछनी बनाइ री-८८२।

संज्ञा
[सं. क्षौर या क्षुर, हिं. खौर]


खौरी
कपाल, खोपड़ी।
संज्ञा
[हिं. खोपड़ी]


खौरी
राख।
संज्ञा
[देश.]


खौरी
मस्तक पर लगा चंदन का आड़ा या धनुषाकार तिलक।
बरन बरन सिरपाग चौतनी कछि कटि छबि चन्दन खौरी की -२४०२।
संज्ञा
[सं. क्षौर या जुर, हिं. खौर]


खौरु
बैल या साँड़ की बोली।
संज्ञा
[देश.]


खौलना
तरल पदार्थ का उबलना।
क्रि. स.
[सं. क्ष्‍वेल]


खौलना
क्रोधित होना।
क्रि. स.
[सं. क्ष्‍वेल]


खौलाना
उबालना।
क्रि. स.
[हिं. खौलना]


खौहड़, खौहा
बहुत खानेवाला।
वि.
[हिं. खाना]


खौहड़, खौहा
दूसरे की कमाई खानेवाला।
वि.
[हिं. खाना]


ख्यात
प्रसिद्ध।
वि.
[सं.]


ख्याति
प्रसिद्धि, नामवरी।
संज्ञा
[सं.]


ख्याल
ध्यान।
औरे कहति और कहि आवति मन मोहन के परी ख्याल -११८३।
संज्ञा
[अ.]


ख्याल
ख्याल करना- याद करना।

ख्याल (पर चढ़ना)- याद आना। ख्याल रखना- ध्यान रखना, देखभाल करते रहना। ख्याल रहना- याद बनी रहना। ख्याल से उतरना (उतर जाना)- भूल जाना। ख्याल परी हैं- पीछे पड़ गयी हैं, परेशान करने पर उतारू हैं। उ.- राधा मन में यहै बिचारति। ये सब मेरे ख्याल परी हैं अब ही बातन लै निरुवारति-१३०८।

मु.


ख्याल
अनुमान, अटकल, अंदाज।
संज्ञा
[अ.]


ख्याल
ख्याल बाँधना- अनुमान लगाना।
मु.


ख्याल
विचार, सम्मति।
संज्ञा
[अ.]


ख्याल
आदर।
संज्ञा
[अ.]


ख्याल
ख्याल करना- रियायत करना।

ख्याल में लाना- (१) रियायत करना। (२) ध्यान देने योग्य समझना।

मु.


ख्याल
एक विशेष गान।
संज्ञा
[अ.]


ख्याल
लावनी गाने का एक ढंग।
संज्ञा
[अ.]


ख्याल
खेल,दिल्लगी।
(क) आनंदित ग्वाल-बाल करत बिनोद ख्याल, भुज भरि भरि धरि अंकम महर के - १०-३०। (ख) सूर प्रभुनंदलाल, मारयौ दनुज ख्याल, मेटि जंजाल ब्रज जन उबारयौ -१०-६२।

(ग) कूदि पड़े चढ़ि कदम तैं, तुम खेलत यह ख्याल -५८६ ! (घ) हरि छबि अंग नट के ख्याल-पृ. ३२८। (ङ) अंतर्धान भये रचि ख्याल-१८११।

संज्ञा
[हिं. खेल]


ख्याल
अनुचित करनी, करतूत, अद्भुत चरित्र।
(क) मोकौं जनि बरजौ जुवती कोउ, देखौ हरि के ख्याल - ३४५। (ख) ऐसे ख्याल करे इन बहु बिधि कहत जु आवै लाज - ७४२ सारा.।
संज्ञा
[हिं. खेल]


ख्याल
लीला, माया, क्रीड़ा।
(क)यह सुनि रुकमिनि भई बेहाल। जानि परयौ नहिं हरि कौं ख्याल - १० उ.-३२। (ख) सुनहु सूर वह करनि कहनि यह, ऐसे प्रभु के ख्याल - ५९८।

(ग) जीव परयौ या ख्याल में अरु गये दसादस -११७७।

संज्ञा
[हिं. खेल]


ख्याला
खेल, हँसी, क्रीड़ा, दिल्लगी।
चकृत भये नन्द सब महर चकृत भये चकृत नर नारि करत ख्याला–९४५।
संज्ञा
[हिं. खेल, ख्याल]


ख्याला
लीला, माया।
संज्ञा
[हिं. खेल, ख्याल]


ख्याला
करनी, करतूत, अद्‍भूत या अनुचित कृत्य।
(क) नन्द महर की कानि करत हैं छाँड़ि देहु ऐसे ख्याला-१०३४।

(ख) जोबन रूप देखि ललचाने अब हीं ते ये ख्याला - १०३८।

संज्ञा
[हिं. खेल, ख्याल]


ख्याली
कल्पित, अनुमित।
वि.
[हिं. ख्याल]


ख्याली
सनकी, बहमी।
वि.
[हिं. ख्याल]


ख्याली
खिलाड़ी, कौतुकी।
साँझ गये कहि आइ हैं मोसौं री आली। अनत बिरमि कतहूँ रहे बहु नायक ख्याली–२१७८।
वि.
[हिं. खेल]


ख्वाजा
मालिक।
संज्ञा
[फ़ा.]


ख्वाजा
सरदार।
संज्ञा
[फ़ा.]


ख्वाजा
फकीर।
संज्ञा
[फ़ा.]


ख्वाजा
नपुंसक सेवक।
संज्ञा
[फ़ा.]


ख्वान
थाल, परात।
संज्ञा
[फ़ा.]


ख्वाब
नींद।
संज्ञा
[फा.]


ख्वाब
स्वप्न।
संज्ञा
[फा.]


ख्वाब
ख्वाब होना (हो जाना)- पुन: प्राप्त न होना।
मु.


ख्वाय
खिलाकर।
छल कियौ पांडवनि कौरव कपट-पासा ढरन। ख्वाय बिष, गृह लाय दीन्हौ, तउ न पाए जरन-१-२०२।
क्रि. स.
[हिं. खिलाना]


ख्वार
नष्ट, बरबाद।
वि.
[फा.]


ख्वार
उपेक्षित।
वि.
[फा.]


कवर्ग का तीसरा व्यंजन | इसका प्रयत्न अद्योष अल्पप्राण है। इसका उच्चारण-स्थान कंठ है।


गंग
गंगा नदी।
गंग प्रवाह माहिं जो न्हाइ। सो पवित्र ह्वै सुरपुर जाइ–९-९।
संज्ञा
[सं. गंगा]


गंग
एक मात्रिक छन्द।
संज्ञा


गंग
अकबर का दरबारी एक कवि।
संज्ञा


गंगई
एक छोटी चिड़िया।
संज्ञा
[अनु. गें गें]


गंगकुरिया
एक तरह की हल्दी।
संज्ञा
[सं. गंगा+कूल]


गंगबरार
वह भूमि जो नदी की धार या बाढ़ के हटने पर निकल आती है।
संज्ञा
[हिं. गंगा+ फा. बरार= बाहर या ऊपर लाया हुआ]


गँगरी
एक तरह की कपास।
संज्ञा
[देश.]


गँगवा
एक पेड़।
संज्ञा
[देश.]


गंगसुत
भीष्म।
संज्ञा
[सं.]


गंगा
भारत की सर्व.प्रधान नदी।
संज्ञा
[सं.]


गंगा
गंगा उठाना- गंगाजल छूकर कसम खाना।

गंगा पार करना- देश से निकालना। गंगा नहाना- छुट्टी पाना। गंगा दुहाई- गंगा की कसम। गंगा कैसो पानी- बहुत पवित्र और निर्मल, शुद्ध आचरणवाला। उ.- तुम जो कहति हौ, मेरौ कन्हैया गंगा कैसो पानी। बाहिर तरुन किसोर बयस बर,बाट घाट का दानी -१०-३११।

मु.


गंगागति
मृत्यु।
संज्ञा
[सं.]


गंगागति
मोक्ष।
संज्ञा
[सं.]


गंगाचिल्ली
एक जलपक्षी।
संज्ञा
[सं.]


गंगाजमनी
मिलाजुला, दुरंगा।
वि.
[हिं. गंगा+जमुना]


गंगाजमनी
सुनहले रुपहले तारों का बना हुआ।
वि.
[हिं. गंगा+जमुना]


गंगाजमनी
काला-सफेद।
वि.
[हिं. गंगा+जमुना]


गंगाजमनी
कान का एक गहना।
संज्ञा


गंगाजमनी
अरहर-उर्द की मिली-जुली दाल।
संज्ञा


कनफुँका, कनफुँकवा
कान फूँकने वाला, दीक्षा देनेवाला।
वि.
[हि. कान+फूँकना]


कनफुँका, कनफुँकवा
जिसने दीक्षा ली हो।
वि.
[हि. कान+फूँकना]


कनफुँका, कनफुँकवा
गुरु जिसने दीक्षा दी हो।
संज्ञा


कनफुँका, कनफुँकवा
चेला जिसने दीक्षा ली हो।
संज्ञा


कनफूल
फूल की तरह का एक गहना जो कान में पहना जाता है।
संज्ञा
[हिं. कान+फूल]


कनबतिया
धीरे से या कान में कही हुई बात।
संज्ञा.
[हिं. कान+बात]


कनमनाना
सोते-सोते हिलना डुलना।
क्रि. अ.
[अनु.]


कनमनाना
थोड़ी-बहुत चेष्टा करना, हाथ-पैर हिलाना।
क्रि. अ.
[अनु.]


कनय
सोना, सुवर्ण।
संज्ञा
[सं. कनक]


कनरस
संगीत का आनन्द।
संज्ञा
[हिं. कान+रस]


गंगाजमनी
सुनहले रूपहले तार का काम।
संज्ञा


गंगाजल
गंगा का जल।
संज्ञा
[सं.]


गंगाजल
एक महीन कपड़ा।
संज्ञा
[सं.]


गंगाजली
सुराही या पात्र जिसमें गंगाजल भरा हो।
संज्ञा
[सं. गंगाजल]


गंगाजली
गंगाजली उठाना- गंगाजल से भरा पात्र हाथ में लेकर कसम खाना।
मु.


गंगाजली
धातु की सुराही।
संज्ञा
[सं. गंगाजल]


गंगाजली
एक तरह का गेहूँ।
संज्ञा


गंगाजाल
मछुओं का जाल जो घास से बनता है।
संज्ञा
[सं. गंगा+ जाल]


गंगाद्वार
हरद्वार।
संज्ञा
[सं.]


गंगाधर
शिवजी।
संज्ञा
[सं.]


गंगाधर
एक औषध।
संज्ञा
[सं.]


गंगाधर
एक वर्णवृत्त।
संज्ञा
[सं.]


गंगाधारी
शिव, महादेव।
चन्द्र चूड़, सिखि-चन्द सरोरुह, जमुना प्रिय, गंगाधारी -१०-१७१।
संज्ञा
[सं. गंगाधर]


गंगापथ
आकाश
संज्ञा
[सं.]


गंगापुत्र
एक तरह के ब्राह्मण जो घाट पर दान लेते हैं।
संज्ञा
[सं.]


गंगापुत्र
एक वर्णसंकर जाति।
संज्ञा
[सं.]


गंगापूजा
विवाह के बाद की एक रीति।
संज्ञा
[सं.]


गंगायात्रा
गंगा किनारे मरने जाना।
संज्ञा
[सं.]


गंगायात्रा
मृत्यु।
संज्ञा
[सं.]


गंगाल
पानी रखने का बड़ा कंडाल।
संज्ञा
[सं. गंगा+आलय]


गंगाला
गंगा का कछार।
संज्ञा
[सं. गंगा+आलय]


गंगालाभ
गंगा-प्राप्ति, गंगा-किनारे मृत्यु।
संज्ञा
[सं.]


गंगालाभ
मृत्यु।
संज्ञा
[सं.]


गंगावतरण
गंगा का स्वर्ग से पृथ्वी पर आना।
संज्ञा
[सं.]


गंगासागर
एक तीर्थ जहाँ गंगा समुद्र में गिरती है।
यह तनु त्यागि मिलन यों बनिहै गंगा सागर संग-२९०१।
संज्ञा
[सं.]


गंगासागर
एक तरह की मोटी जनानी धोती।
संज्ञा
[सं.]


गंगासागर
बड़ी टोंटीदार झारी।
संज्ञा
[सं.]


गंगासुत
भीष्म।
संज्ञा
[सं.]


गंगेटी
एक बूटी।
संज्ञा
[सं. गंगाटी]


गंगेय
गंगा-पुत्र भीष्म।
संज्ञा
[सं. गांगेय]


गंगौलिया
एक तरह का खट्टा नीबू।
संज्ञा
[हिं. गंगाल]


गंज
एक रोग जिसमें सर के बाल गिर जाते हैं।
संज्ञा
[सं. कंज या खंज]


गंज
खजाना।
संज्ञा


गंज
ढेर, राशि।
संज्ञा


गंज
समूह, झुंड।
संज्ञा


गंज
भंडार।
संज्ञा


गंज
हाट, बाजार।
संज्ञा


गंज
बनियों की आबादी।
संज्ञा


गंज
मद्यपात्र।
संज्ञा


गंज
मदिरालय।
संज्ञा


गंगेरन
एक पौधा।
संज्ञा
[सं. गांगेरुकी]


गंगेरुवा
एक पहाड़ी पेड़।
संज्ञा
[सं. गांगेरुक]


गंगेरू
एक पौधा।
संज्ञा
[हिं. गँगेरन]


गंगोश
महादेव।
संज्ञा
[सं.]


गंगोझ
गंगा-जल।
संज्ञा
[सं. गंगोदक]


गंगोत्तरी
हिमालय का एक तीर्थ जहाँ गंगा ऊपर से गिरती है।
संज्ञा
[सं. गंगावतार]


गांगोदक
गंगाजल।
संज्ञा
[सं. गंगा+उदक]


गांगोदक
एक वर्णवृत्त।
संज्ञा
[सं. गंगा+उदक]


गंगोल
एक मणि, गोमेदक।
संज्ञा
[सं.]


गंगौटी
गंगा किनारे की बालू।
संज्ञा
[हिं. गंगा+मिट्टी]


गंज
तिरस्कार।
संज्ञा
[सं.]


गंज
एक लता।
संज्ञा
[देश.]


गंजन
अवज्ञा, तिरस्कार, निरादर।
संज्ञा
[सं.]


गंजन
नाश, हानि।
(क) वृषभ-गंजन मंथन-केसी हने पूँछ फिराइ-४९८। (ख) कालीबिष गंजन दह आए-५७८।
संज्ञा
[सं.]


गंजन
दुख, कष्ट।
संज्ञा
[सं.]


गंजन
ताल का एक भेद।
संज्ञा
[सं.]


गंजना
निरादर करना।
क्रि. स.
[सं. गंजन]


गंजना
नाश करना।
क्रि. स.
[सं. गंजन]


गंजना
चूर-चूर करना।
क्रि. स.
[सं. गंजन]


गंजा
गंज रोग।
संज्ञा
[हिं. गंज]


गंजा
जिसे गंज रोग हो।
वि.


गँजाना
निरादर करना।
क्रि. अ.
[हिं. गँजना]


गँजाना
नाश करना।
क्रि. अ.
[हिं. गँजना]


गँजाना
ढेर लगाना।
क्रि. स.
[हिं. गाँजना]


गंजी
ढेर, समूह।
संज्ञा
[हिं. गंज]


गंजी
शकरकंद।
संज्ञा
[हिं. गंज]


गंजी
बनियायन।
संज्ञा


गंजी
गाँजा पीनेवाला।
वि.
[हिं. गाँजा]


गँजीफा
एक खेल जो ९६ पत्तों से खेला जाता है।
संज्ञा
[फ़ा. गंजीफ़ा]


गँजीफा
ताश।
संज्ञा
[फ़ा. गंजीफ़ा]


गँजेड़ी
गाँजा पीने वाला।
वि.
[हिं. गाँजा+एड़ी (प्रत्य.)]


गँठकटा
गिरहकट।
संज्ञा
[हिं. गाँठ+काटना]


गँठछोर
गिरहकट।
संज्ञा
[हिं. गाँठ+छोरना]


गँठजोड़ा
गँठबंधन।
संज्ञा
[हिं. गाँठ+जोड़ना]


गँठबंधन
विवाह की एक रीति जिसमें वर के दुपट्टे से वधू के आँचल का छोर बाँधा जाता है।
संज्ञा
[हिं. गाँठ+बंधन]


गँठबंधन
दो व्यक्तियों का हर समय का साथ।
संज्ञा
[हिं. गाँठ+बंधन]


गँठि
गाँठ।
अछत-दूब-दल बँधाइ, लालन की गँठि जुराइ, इहै मोहि लाहौ नैननि दिखरावौ -१०-९५।
संज्ञा
[हिं. गाँठ]


गँठुआ
ताने-बाने के टूटे हुए तागों को जोड़ना।
संज्ञा
[हिं. गाँठ]


गंड
कपोल, गाल।
संज्ञा
[सं.]


गंड
कनपटी, कान के नीचे गरदन का भाग।
(क) स्याम सुभग तनु, चुअत गंड मद बरषत्त थोरे थोरे -२७९३। (ख) रत्न जटित कुंडल स्रवनन बर गंड कपोलनि झाईं–३० ३१ !
संज्ञा
[सं.]


गंड
गले में पहनने का गंडा।
संज्ञा
[सं.]


गंड
फोड़ा।
संज्ञा
[सं.]


गंड
चिन्ह, दाग।
संज्ञा
[सं.]


गंड
गाँठ।
संज्ञा
[सं.]


गंड
गैंडा।
संज्ञा
[सं.]


गंडक
गले में पहनने का गंडा।
संज्ञा
[सं.]


गंडक
गाँठ।
संज्ञा
[सं.]


गंडक
एक रोग जिसमें बहुत फोड़े निकलते हैं।
संज्ञा
[सं.]


गंडक
गैंडा।
संज्ञा
[सं.]


गंडक
चिन्ह।
संज्ञा
[सं.]


गंडक
एक नदी।
संज्ञा
[सं.]


गंडक
गंडकी नदी का प्रदेश।
संज्ञा
[सं.]


गंडाक
एक वर्णवृत्त।
संज्ञा
[सं.]


गंडकि, गंडकी
एक नदी जो नैपाल में हिमालय से निकलकर पटने के पास गंगा में गिरती है। सालग्राम की बहुत सी बटियाँ इसमें मिलती हैं। जड़ भरत ने इसी के किनारे आश्रम में तप किया था और यहीं हिरनी के बच्चे के प्रति मोह उनमें उत्पन्न हुआ था।
संज्ञा
[सं. गंडकी]


गँडदार
हाथीवान, महावत।
संज्ञा
[सं. गंड या गँडासा+फ़ा. दार (प्रत्य.)]


गंडदूर्वा
गाँडर घास जिसकी जड़ ‘खस' कहलाती है।
संज्ञा
[सं.]


गंडदूर्वा
एक तरह की दूब।
संज्ञा
[सं.]


गंडनि
कनपटी में।
गरजि घुमरात मद भार गंडनि स्रवत, पवन ते बेग तेहि समय चीन्हौ-२५९१।
संज्ञा
[सं. गंड+नि (प्रत्य.]


गंडमंडल
कनपटी।
(क) चलित कुंडल गंडमंडल, मनहुँ निर्तत मैन-१-३०७।

(ख) चलित कुंडल गंडमंडल झलक ललित कपोल -६२७।

संज्ञा
[सं.]


गंडमाला
एक तरह का रोग जिसमें गले में बहुत से फोड़े निकलते हैं।
संज्ञा
[सं.]


कनरस
संगीत का व्यसन या रुचि।
संज्ञा
[हिं. कान+रस]


कनसार
ताम्रपत्र पर लिखनेवाला।
संज्ञा
[हिं. काँसा+आर (प्रत्य.)]


कनसुई
आहट, टोह।
संज्ञा
[हिं. कान+सुनना]


कैनहार, कनहारू
मल्लाह, केवट।
संज्ञा.
[सं. कर्णधार, प्रा. कण्णहार]


कनाउड़ा, कनाउड़ो
दीन-हीन।
वि.
[हिं. कनौड़ा]


कनाउड़ा, कनाउड़ो
लज्जित।
वि.
[हिं. कनौड़ा]


कनाउड़ा, कनाउड़ो
कृतज्ञ, उपकृत।
वि.
[हिं. कनौड़ा]


कनात
कपड़े का ऊँचा परदा जिससे दीवार की तरह कोई स्थान घेरते हैं।
संज्ञा
[तु. कनात]


कनावड़ा
दीनहीन।
वि.
[हिं.कनौड़ा]


कनावड़ा
लज्जित।
वि.
[हिं.कनौड़ा]


गंडमूर्ख
बड़ा मूर्ख।
वि.
[सं.]


गँडरा
एक घास।
संज्ञा
[सं. गंडाली]


गँडरा
एक तरह का धान।
संज्ञा
[सं. गंडाली]


गँडरी
गँडरा घास।
संज्ञा
[हिं. गँडरा]


गंडली
छोटी पहाड़ी।
संज्ञा
[सं.]


गंडली
शिव।
संज्ञा
[सं.]


गंडस्थल
कनपटी।
संज्ञा
[सं.]


गंडा
गाँठ।
संज्ञा
[सं. गंडक=गाँठ]


गंडा
बटे हुए तागे का जंतर जिसमें मंत्र पढ़कर गाँठ लगायी जाती है।
संज्ञा
[सं. गंडक=गले में पहनने का जंतर]


गंडा
मंत्र पढ़कर बाँधा जानेवाला तागा।
संज्ञा
[सं. गंडक=गले में पहनने का जंतर]


गंडा
पशुओं के गले में पहनाने का पट्टा।
संज्ञा
[सं. गंडक=गले में पहनने का जंतर]


गंडा
गिनने के लिए चार-चार की संख्या।
संज्ञा
[सं. गंडक]


गंडा
आड़ी लकीरों की पंक्ति।
संज्ञा
[सं. गंड=चिन्ह]


गंडा
रंगीन धारी, कंठी।
संज्ञा
[सं. गंड=चिन्ह]


गंडारि
कचनार।
संज्ञा
[सं.]


गंडाली
गाँडर घास।
संज्ञा
[सं.]


गँडासा
चारा या घास काटने का औजार या हथियार।
संज्ञा
[हिं. गेंडी+असि=तलवार]


गंडिका
चमड़े की छोटी नाव।
संज्ञा
[सं.]


गंडिनी
दुर्गा।
संज्ञा
[सं.]


गंडीर, गंडीरी
एक साग।
संज्ञा
[सं.]


गंडोल
कच्ची शकर, गुड़।
संज्ञा
[सं.]


गंडोल
ईख।
संज्ञा
[सं.]


गंडोल
कौर, ग्रास।
संज्ञा
[सं.]


गंतव्य
लक्ष्य।
संज्ञा
[सं.]


गंतव्य
चलने योग्य।
वि.


गंता
जानेवाला।
संज्ञा
[सं. गंत]


गंदगी
मैलापन।
संज्ञा
[फ़ा.]


गंदगी
अपवित्रता।
संज्ञा
[फ़ा.]


गंदगी
मैला।
संज्ञा
[फ़ा.]


गंदगी
दुर्गंध।
संज्ञा
[सं, गंध]


गंडुपद
एक रोग जिसमें पैर बहुत मोटा हो जाता है।
संज्ञा
[सं.]


गंडूक
चुल्लू।
संज्ञा
[हिं. गंडूष]


गंडूक
कुल्ली।
संज्ञा
[हिं. गंडूष]


गंडूपद
केंचुआ।
संज्ञा
[सं.]


गंडुपदभव
सीसा धातु।
संज्ञा
[सं.]


गंडूष
चल्लू , कुल्लू।
सूरदास प्रभु भलैं परे फँद, देउँ न जान भावते जी कैं। भरि गंडूष, छिरकि दै नैननि, गिरिधर भाजि चले दै कीकै-१०-२८७।
संज्ञा
[सं.]


गंडूष
हाथी की सूड़ की नोक।
संज्ञा
[सं.]


गँडेरी
ईख या गन्ने का छोटा टुकड़ा।
संज्ञा
[सं. कांड या गंड]


गँडेरी
छोटा टुकड़ा।
संज्ञा
[सं. कांड या गंड]


गँडोरी
कच्चा खजूर।
संज्ञा
[सं. गंडोल=ईख या गुड़]


गंदना
एक कंद।
संज्ञा
[सं. गंध]


गंदना
एक घास।
संज्ञा
[सं. गंध]


गंदम
एक पक्षी।
संज्ञा
[देश.]


गँदला
मैला, गंदा।
वि.
[हिं. गंदा+ला (प्रत्य.)]


गंदा
मैल-कुचैला।
वि.
[फ़ा.]


गंदा
अपवित्र।
वि.
[फ़ा.]


गंदा
घिनौना।
वि.
[फ़ा.]


गँदोल
एक घास।
संज्ञा
[सं. गंध]


गंदुम
गेहूँ।
संज्ञा
[फ़ा]


गंदुमी
गेहुँआँ, ललाई लिये भूरे रंग का।
संज्ञा
[फ़ा. गंदुम]


गंधप्रत्यय
नाक।
संज्ञा
[सं.]


गंधप्रसारिणी
एक लता।
संज्ञा
[सं.]


गंधबंधु
आम।
संज्ञा
[सं.]


गंधबंबूल
एक तरह का बबूल।
संज्ञा
[सं. गंध+बबूल]


गंधबेन
एक सुगंधित घास।
संज्ञा
[सं. गंधवेणु]


गंधमृग
कस्तूरी मृग।
संज्ञा
[सं.]


गंधमाद
भौंरा।
संज्ञा
[सं.]


गंधमादन
एक पर्वत।
संज्ञा
[सं.]


गंधमादन
भौंरा।
संज्ञा
[सं.]


गंधमादन
एक सुगंधित द्रव्य।
संज्ञा
[सं.]


गँधकी
सफेदी लिये हल्का पीला रंग।
संज्ञा


गंधकोकिल
एक सुगंधित पदार्थ।
संज्ञा
[सं.]


गंधगात
चंदन।
संज्ञा
[सं. गंधगात्र]


गंधचाहन
गंध के चाहने वाले भौंरे।
चाहत गंध बैरी बैरी। अपनो हित चहत अनहित होत छोड़त तीर –सा. २८।
संज्ञा
[सं. गध+चाहन=चाहने वाले]


गंधत्राणा
एक तरह की घास।
संज्ञा
[सं. गंध+त्राण]


गंधद
चंदन।
संज्ञा
[सं. गंध+ द]


गंधनाल
नाक का छेद, नथुना।
संज्ञा
[हिं.]


गंधपत्र
सफेद तुलसी।
संज्ञा
[सं.]


गंधपत्र
नारंगी।
संज्ञा
[सं.]


गंधपत्र
बेल।
संज्ञा
[सं.]


गंदुमी
गेहूँ या उसके आटे का बना पदार्थ।
संज्ञा
[फ़ा. गंदुम]


गँदोलना
(पानी) गंदा करना।
क्रि. स.
[फ़ा. गंदा]


गंध
बास, महक।
चाहत गंध बैरी बीर-सा. २८।
संज्ञा
[सं.]


गंध
सुगंध, सुवास।
माधौ नैंकु हटकौ गाइ।...।छहौं रस जौ धरौं आगैं, तउ न गंध सुहाइ–१-५६।
संज्ञा
[सं.]


गंध
सुगंधित लेप या द्रव्य।
संज्ञा
[सं.]


गंध
लेशमात्र संबंध।
संज्ञा
[सं.]


गंध
गंधक।
संज्ञा
[सं.]


गंधक
एक खनिज पदार्थ।
संज्ञा
[सं.]


गंधकाष्‍ट
अगर की लकड़ी।
संज्ञा
[सं.]


गँधकी
गंधक के हल्के पीले रंग वाला।
वि.
[हिं. गंधक]


गंधर्ब, गंधर्व
एक मानसिक रोग।
संज्ञा
[सं.]


गंधर्ब, गंधर्व
ताल का एक भेद।
संज्ञा
[सं.]


गंधर्ब, गंधर्व
विधवा का दूसरा पति।
संज्ञा
[सं.]


गंधर्वनगर, गंधर्वपुर
मिथ्या भ्रम।
संज्ञा
[सं.]


गंधर्वनगर, गंधर्वपुर
हल्के बादलों से ढका चंद्रमंडल।
संज्ञा
[सं.]


गंधर्वनगर, गंधर्वपुर
पश्चिम में संध्या की लाली।
संज्ञा
[सं.]


गंधर्वनगर, गंधर्वपुर
मानसरोवर के निकट माना हुआ एक नगर जिसकी रक्षा गंधर्व करते थे।
संज्ञा
[सं.]


गंधर्व विद्या
गान विद्या।
संज्ञा
[सं.]


गंधर्वविवाह
वह विवाह जो वर-वधू माता पिता की आज्ञा लिये बिना कर लें।
संज्ञा
[सं.]


गंधर्ववेद
संगीत शास्त्र।
संज्ञा
[सं.]


गंधर्वा
दुर्गा।
संज्ञा
[सं.]


गंधर्विन
गंधर्व की स्त्री।
संज्ञा
[सं. गंधर्व+हिं. इन (प्रत्य.)]


गंधर्विन
गंधर्व जाति की सुन्दर स्त्री।
जो तुम मेरी रच्छा धरो। गंधर्विन के हित तप करो।
संज्ञा
[सं. गंधर्व+हिं. इन (प्रत्य.)]


गंधर्वी
गंधर्व की स्त्री।
संज्ञा
[सं.]


गंधर्वी
गंधर्व संबंधी।
वि.
[सं. गंधर्व+ई (प्रत्य.)]


गंधवह
वायु।
संज्ञा
[सं.]


गंधवह
नाक।
संज्ञा
[सं.]


गंधवह
चंदन।
संज्ञा
[सं.]


गंधवह
गंध ले जानेवाला।
वि.


गंधवह
सुगंधित।
वि.


कनावड़ा
कृतज्ञ, उपकृत।
वि.
[हिं.कनौड़ा]


कनागत
पितृपक्ष।
संज्ञा
[सं. कन्यागत]


कनिआरी
कनकचंपा का पेड़।
अति ब्याकुल भईं गोपिका दूँढ़ति गिरधारी। बूझति हैं बन बेलि सौं देखे बनवारी। जाहीजूही सेवती करना कनिआरी। बेलि चमेली मालती बूझति द्रुम डारी - १८२२।
संज्ञा
[सं. कर्णिकार]


कनिक
गेहूँ।
संज्ञा
[सं. कणिक]


कनिक
गेहूँ का आटा।
षटरस ब्यंजन को गनै बहुभाँति रसोई। सरस कनिक बेसन मिलै रुचि रोटी षोई - १५५५।
संज्ञा
[सं. कणिक]


कनिका
कण, बूँद।
मुख आँसू अरु माखन कनिका (कनुका) निरखि नैन छबि देत। मानौ स्रवत सुधानिधि मोती उडुगन अवलि समेत - ३४६।
संज्ञा
[सं. कणिका]


कनिगर
मान-मर्यादा और कीर्ति का ध्यान रखनेवाला।
संज्ञा
[हिं. कानि+फ़ा. गर]


कनियाँ
गोद, कोरा, उछंग।
(क) नैंकु गोपालहि मोंकों दै री। देख बदन कमल नीकैं करि, ता पाछैं तू कनियाँ लै री - १० - ५५। (ख) हरि किलकत जसुदा की कनियाँ - १० - ८१। (ग) इहि आँगन गोपाल लाल को कबहुँक कनियाँ लेहौं - २५५०।
संज्ञा
[हिं. काँध]


कनियाना
कतराकर या बच कर निकल जाना।
क्रि. अ.
[हि. कतराना]


कनियाना
गोद में उठाना।
क्रि. अ.
[हि. कनिया]


गंधरब
देवताओं का एक भेद।
जच्छ, भृतु, बासुकी नाग, मुनि, गंधरब, सकल बसु, जीति में किए चेरे-९-१३०।
संज्ञा
[सं. गंधर्व]


गंधरबिन
गंधर्व की स्त्री।
संज्ञा
[हिं. गंधर्विन]


गंधराज
एक तरह का बेला।
संज्ञा
[सं.]


गंधराज
एक सुगंधित द्रव।
संज्ञा
[सं.]


गंधराज
चंदन।
संज्ञा
[सं.]


गंधर्ब, गंधर्व
देवताओं की एक जाति जो गाने में निपुण मानी गयी है।
संज्ञा
[सं.]


गंधर्ब, गंधर्व
मृग।
संज्ञा
[सं.]


गंधर्ब, गंधर्व
घोड़ा।
संज्ञा
[सं.]


गंधर्ब, गंधर्व
प्रेत।
संज्ञा
[सं.]


गंधर्ब, गंधर्व
स्त्रियों की वह अवस्था जब उनका स्वर विशेष मधुर होता है।
संज्ञा
[सं.]


गँधाना, गंधाना
रोला छन्द।
संज्ञा
[सं. गंधन]


गंधार
गांधार देश।
संज्ञा
[सं. गांधार]


गंधारी
धृतराष्ट्र की स्त्री जो दुर्योधन आदि कौरवों की माता थी। गांधार देश के राजा सुबल इनके पिता थे। पति को अंधा देखकर ये आजीवन अपनी आँखों पर पट्टी बाँधे रहीं।
संज्ञा
[सं. गांधारी]


गंधारी
गांधार देश की स्त्री।
संज्ञा
[सं. गांधारी]


गंधाशन
पवन।
संज्ञा
[सं.]


गंधाष्टक
आठ गंध द्रव्यों से बना हुआ एक गंध।
संज्ञा
[सं.]


गंधिनि, गंधिनी
गंधी या अत्तार की स्त्री।
दुलह देखौंगी जाय उतरे सँकेतबट केहि मिस देखन पाऊँ…..। चन्दन अरगजा सूर केसरि धरि लेऊँ। गंधिनि ह्वै जाउँ निरखि नैन सुख देऊँ -पृ. ३४९ (६१)।
संज्ञा
[हिं. गंधी]


गंधिनी
शराब, मदिरा।
संज्ञा
[सं.]


गंधिया
एक कीड़ा।
संज्ञा
[हिं. गंध]


गंधिया
एक बरसाती घास।
संज्ञा


गंधवाह
वायु।
संज्ञा
[सं.]


गंधवाहपूत बांधव तासु पतनी भाइ
श्रीकृष्ण।
गंधबाहन-पूत-बांधव तासु पतिनी भाई। कबै द्रग भर देखबो जू सबै दुख बिसराइ-सा. २२।
संज्ञा
[सं. गंधवाह (=वायु, पवन) + पुत्र (पवन का पुत्र, भीम) + बांधव (=भाई, भीम का भाई=अर्जुन) तासु पतिनी (= उसकी पत्नी=अर्जुन की पत्नी=सुभद्रा) + भाइ (=भाई=सुभद्रा का भाई=श्रीकृष्ण)]


गंधवाही
गंध का वहन करनेवाला।
संज्ञा
[सं.]


गंधसार
चंदन।
संज्ञा
[सं.]


गंधसार
बेला।
संज्ञा
[सं.]


गंधहर
नाक।
संज्ञा
[सं.]


गंधहस्ती
मतवाला हाथी जिसके मस्तक से मद बहता हो।
संज्ञा
[सं.]


गंधा
गंधयुक्त, गंधवाली।
वि.
[स.]


गँधात
दुर्गंध करता है, गँधाता है।
रुधिर-मेद, मल-मूत्र, कठिन कुच उदर गंध-गंधात-२-२४।
क्रि. स.
[हिं. गँधाना]


गँधाना, गंधाना
गंध देना, दुर्गंध करना।
क्रि. स.
[हिं. गंध]


गंधी
तेल, इत्र आदि बेचने वाला।
संज्ञा
[सं. गंधिन्]


गंधी
गंधिया घास।
संज्ञा
[सं. गंधिन्]


गंधी
गँधिया कीड़ा।
संज्ञा
[सं. गंधिन्]


गँधीला, गंधीला
मैला, गंदा।
वि.
[सं. गंध या हिं. गंदा]


गँधीला, गंधीला
बुरी गंधवाला।
वि.
[सं. गंध या हिं. गंदा]


गंधेज
एक तरह की घास।
संज्ञा
[सं. गंध]


गंधेल
एक झाड़।
संज्ञा
[सं. गंध]


गंधेला,गंधेली
जिसमें बुरी गंध हो।
वि.
[हिं. गंध]


गंध्रव
देवताओं की एक जाति।
गंध्रव ब्रह्मा-सभा मँझारि। हँस्यौ अप्सरा ओर निहारि -७ ८।
संज्ञा
[सं. गंधर्व]


गंध्रबपुर
स्वर्ग।
संज्ञा
[सं. गंधर्वपुर]


गंध्रबपुर
गंधर्वों का देश।
गंधर्बनि कैं हित तप करौ। तप कीन्हैं सो दैहैं आग। ता सेती तुम कीनौ जाग। जज्ञ कियैं गंध्रबपुर जैहो। तहाँ आइ मोकौं तुम पैहो -९-२।
संज्ञा
[सं. गंधर्वपुर]


गंभारी
एक पेड़।
संज्ञा
[सं.]


गँभीर, गंभीर
गहरा, जिसकी थाह न मिले।
कुंजर कूल रमित अति राजत तहँ सोनित सलिल गँभीर--१० उ.-२।
वि.
[सं.]


गँभीर, गंभीर
घना, गहन।
वि.
[सं.]


गँभीर, गंभीर
शांत, सौम्य।
प्रभु कौ देखौ एक सुभाइ। अति गंभीर उदार-उदधि हरि, जान-सिरोमनि राइ -१-८।
वि.
[सं.]


गँभीर, गंभीर
गूढ, जटिल।
वि.
[सं.]


गँभीर, गंभीर
घोर, प्रचंड।
वि.
[सं.]


गँभीर, गंभीर
बलशाली, सशक्त, भारी, दृढ़।
लै लै स्रौन हृदय लपटावति, चुँबति भुजा गँभीर-१-२९।
वि.
[सं.]


गँभीर, गंभीर
कठोर, धैर्ययुक्त, दृढ़।
तब ऊधो कर लै लिखी हरि जू की पाती। पढ़ी परत नहिं नेक रहे गंभीर करि छाती-३४४३।
वि.
[सं.]


गँभीर, गंभीर
प्रसिद्ध, महत्वपूर्ण।
बड़ कुल, बड़े भूप दसरथ सखि, बड़ौ नगर गंभीर-९-४४।
वि.
[सं.]


गँवँ
ढङ्ग, उपाय।
संज्ञा
[सं. गम्य]


गँवँ
गँवँ से- (१) ढङ्ग से, उपाय से। (२) धीरे से, चुपके से।
मु.


गँव‍इँ
छोटा गाँव।
संज्ञा
[हिं. गाँव]


गँवरदल
गँवारों की तरह का भद्दा।
वि.
[हिं. गँवार+दल]


गँवरदल
गँवार, उजड्ड।
वि.
[हिं. गँवार+दल]


गँवरमसल
गँवारों की कहावत या उक्ति।
संज्ञा
[हिं. गँवार+ अ. मसल]


गँवहियाँ
मेहमान, अतिथि।
संज्ञा
[सं. गोघ्‍न=अतिथि]


गँवाइ
(समय) गँवा देना, खो देना।
क्रि. स.
[हिं. गँवाना]


गँवाइ
जैहै गँवाइ-व्यर्थ हो जायगा |
सूरदास भगवंत भजन बिनु जहै जनम गँवाइ-१-३१७।
यौ.


गँवाई
दूर की, खोदी, मिटा दी।
(क) सूरदास उद्धार सहज गनि, चिंता सकल गँवाई-१-२०७। (ख) रंच काँच-सुख लागि मूढ़-मति, कंचन रासि गँवाई-१-३२८।

(ग)....भली करी हरि गेंद गँवाई-५२५।

क्रि. स.
[हिं. गँवाना]


गँभीर, गंभीर
जंभीरी नीबू।
संज्ञा


गँभीर, गंभीर
कमल।
संज्ञा


गँभीर, गंभीर
एक तरह का मंत्र।
संज्ञा


गँभीर, गंभीर
शिव।
संज्ञा


गँभीर, गंभीर
एक राग।
संज्ञा


गंभीरवेदी
इतना मस्त हाथी कि अंकश की मार से भी वश में न हो।
संज्ञा
[सं. गंभीरवेदिन्]


गंभीरिका
बड़ा ढोल।
संज्ञा
[सं.]


गँवँ
दाँव, घात।
संज्ञा
[सं. गम्य]


गँवँ
मतलब।
संज्ञा
[सं. गम्य]


गँवँ
अवसर, मौका।
संज्ञा
[सं. गम्य]


गँवारि, गँवारी
नासमझी।
संज्ञा
[हिं. गँवार]


गँवारि, गँवारी
गँवार स्त्री।
संज्ञा
[हिं. गँवार]


गँवारि, गँवारी
गँवार की तरह का।
वि.
[हिं. गँवार+ई (प्रत्य.)]


गँवारि, गँवारी
भद्दा।
वि.
[हिं. गँवार+ई (प्रत्य.)]


गँवारि, गँवारी
नासमझ, मूर्ख।
(क) बाँह पकरि तू ल्याई काकौं अति बेसरम गँवारि -१०-३१४। (ख) वारौं लाज भई मोकों बैरिनि मैं गँवारि मुख ढाक्यौ-२५४६।
वि.
[हिं. गँवार+ई (प्रत्य.)]


गँवारू
गँवार की भद्दी रुचि का।
वि.
[हिं. गँवार+ऊ (प्रत्य.)]


गँवारू
भद्दा।
वि.
[हिं. गँवार+ऊ (प्रत्य.)]


गँवारू
जो सुरुचिपूर्ण न हो।
वि.
[हिं. गँवार+ऊ (प्रत्य.)]


गँवावत
(समय) बिताते या व्यर्थ खोते हैं।
मैं-मेरो करि जनम गँवावत, जब लगि नाहिं परत जम-डोरी-१-३०३।
क्रि. स.
[हिं. गँवाना]


गँवावै
(समय) बिताता या काटता है।
क्रि. स.
[हिं. गँवाना]


गँवावै
व्यर्थ खो देता है, नष्ट कर देता है।
(क) आन देव हरि तजि भजे, सो जनम गँवावै–२-९।

(ख) हरि की कृपा मनुष-तन पावै। मूरख विषय-हेतु सो गँवावै -४-१२।

क्रि. स.
[हिं. गँवाना]


गँवैहै
(समय) बितावेगा या काटेगा।
सूरदास भगवंत भजन बिनु बृथा सुजनम गँवैहै-१-८६।
क्रि. स.
[हिं. गँवाना]


गँवैहौं
दूर करूँगा, मिटाऊँगा।
मो देखत मो दास दुखित भयौ, यह कलंक हौं कहाँ गँवहौं - ७-५।
क्रि. स.
(हिं. गँवाना]


गँवैहौ
(समय) नष्ट करोगे या व्यर्थ खोओगे।
सूरदास भगवन्त-भजन बिनु, मिथ्या जनम गँवैहौ-१-३३१।
क्रि. स.
[हिं. गँवाना]


ग्रँस, गंस
द्वेष, बैर।
(क) मरौ वह कंस, निरवंस वाकौ होइ, कन्यौ यह गंस तोकौं पठायौ- ५५१। (ख) अपने घर के तुम राजा हौ सबके राजा कंस। सूर स्याम हम देखते ठाढ़े अब सीखे ये गंस -१०९२।
संज्ञा
[सं. ग्रंथि]


ग्रँस, गंस
चुभने या लगने वाली चुटीली बात, आक्षेप, व्यंग्योक्ति।
चलत सो मोहित गति राजहंस। हँसत परस्पर गावत गंस -१८२७।
संज्ञा
[सं. ग्रंथि]


ग्रँस, गंस
तीर की नोक, गाँसी।
संज्ञा
[सं. कषा=चाबुक]


गँसना
जकड़ना, अच्छी तरह कसना।
क्रि. स.
[सं. ग्रंथन, हिं. गंस]


गँसना
बिने हुए तागों को इस तरह कसना कि छेद न रह जाय।
क्रि. स.
[सं. ग्रंथन, हिं. गंस]


गँसना
गँठ जाना, कस जाना।
क्रि. अ.


गँवाए
खो दिये, दूर किये।
(क) पहुँचे आइ विपिन घन बंदा, देखत द्रुम दुख सबनि गँवाए-४४७। (ख) मुरली कौन सुकृति-फल पाए। अधर-सुधा पीवति मोहन कौ, सबै कलंक गँवाए-६६१।
क्रि. स.
[हिं. गँवाना]


गँवाना
(समय) बिताना या काटना।
क्रि. स.
[सं. गमन, पुं. हिं. गवन]


गँवाना
(प्राप्त वस्तु) खो देना।
क्रि. स.
[सं. गमन, पुं. हिं. गवन]


गँवायौ
(समय) बिताया या काटा।
सूरदास भगवंत-भजन-बिनु, नाहक जनम गँवायौ-१-७९।
क्रि. स.
[हिं. गँवाना]


गँवार
देहाती, असभ्य।
वि.
[हिं. गाँव+आर (पत्य.)]


गँवार
मूर्ख, नासमझ।
(क) इहि तन छन-भंगुर के कारन, गरबत कहा गँवार।

(ख) एकहुँ आँक न हरि भजे, (रें) रै सठ सूर गँवार -१-३२५।

वि.
[हिं. गाँव+आर (पत्य.)]


गँवार
अनाड़ी, अनजान।
वि.
[हिं. गाँव+आर (पत्य.)]


गँवारता
गवारपन।
संज्ञा
[हिं. गँवार+ता (प्रत्य.)]


गँवारि, गँवारी
देहातीपन।
संज्ञा
[हिं. गँवार]


गँवारि, गँवारी
मूर्खता।
संज्ञा
[हिं. गँवार]


कंटकित
काँटेदार।
वि.
[सं. कंटक]


कंटकित
पुलकित,रोमांचयुक्त।
वि.
[सं. कंटक]


कँटाय
एक कँटीला पेड़ जिस की लकड़ी यज्ञ- पात्र बनाने के काम आती थी।
संज्ञा
[सं. किंकिणी]


कंटिका
‘पिन' की तरह लोहे-पीतल का पतला काँटा।
संज्ञा
[सं.]


कँटिया
छोटी कील।
संज्ञा
[हिं, काँटी]


कँटिया
सिर का एक गहना।
संज्ञा
[हिं, काँटी]


कँटीला
जिसमें काँटे लगे हों, काँटेदार।
वि.
[हिं. काँटा + ईला (प्रत्य)]


कंठ
गला।
संज्ञा
[सं.]


कंठ
स्वर, शब्द।
संज्ञा
[सं.]


कंठ
वह रंगीन रेखा जो तोते,पंडुक जैसे पक्षियों के गले में युवावस्था में पड़ जाती है।
संज्ञा
[सं.]


कनियार
कनक चंपा।
संज्ञा
[सं. कर्णिकार]


कनिष्ठ
छोटा।
वि.
[सं.]


कनिष्ठ
जो पीछे जन्मा हो।
वि.
[सं.]


कनिष्ठ
हीन।
वि.
[सं.]


कनिष्ठा
छोटी उँगली।
संज्ञा
[स.]


कनिष्ठा
नव विवाहिता छोटी पत्नी जिसपर पति का प्रेम कम हो।
संज्ञा
[स.]


कनिहार
मल्लाह, केवट।
संज्ञा
[सं. कर्णधार]


कनी
कण, छोटा टुकड़ा।
संज्ञा
[सं. कण]


कनी
हीरे का कण।
संज्ञा
[सं. कण]


कनी
चावल का कण।
संज्ञा
[सं. कण]


गँसना
ठसाठस भर जाना, अच्छी तरह छा जाना।
क्रि. अ.


गँसी, गंसी
कस गयी, जकड़ गयी, खूब गँठ गयी।
बृन्दावन की माल कलेवर लता माधुरी गंसी। सूरदास लै भुज बीच राखी माधव मदन प्रसंसी-१६८५।
क्रि. स.
[हिं. गँसना]


गँसी, गंसी
मिली, कसी।
क्रि. स.
[हिं. गँसना]


गँसीला
नुकीला, चुभनेवाला।
वि.
[हिं. गाँसी]


गँसीला
गँठा हुआ, कसा हुआ।
वि.
[हिं. गँसना]


गँसीला
जिसकी बुनावट गँठी हुई हो।
वि.
[हिं. गँसना]


गीत।
संज्ञा
[सं.]


गंधर्व।
संज्ञा
[सं.]


गुरु या दीर्घ मात्रा।
संज्ञा
[सं.]


गणेश।
संज्ञा
[सं.]


गानेवाला मनुष्य।
संज्ञा
[सं.]


जानेवाला मनुष्य।
संज्ञा
[सं.]


गइंद
हाथी।
संज्ञा
[सं. गयंद]


गइनाही
जानकारी, ज्ञान।
डसी री माई स्याम भुअङ्गम कारे।…..। फुरै न जंत्र मंत्र गइनाही चले गनी गुन डारे।
संज्ञा
[सं. ज्ञान]


गईं
जाना' क्रिया का भूत. स्त्री. बहु. रूप, प्रस्थानित हुईं।
क्रि. अ.
[सं. गम]


गई
जाना' क्रिया का भूत. स्त्री. रूप, प्रस्थान किया। इसका प्रयोग संयोजक क्रिया के रूप में भी होता है।
क्रि. अ.
[सं. गम]


गई
गई करना- छोड़ देना, ध्यान न देना।
मु.


गई
भूली, (संज्ञा) खो दी।
मुरछि परी तन-सुधि गई, प्रान रहे कहुँ जाई -५८९।
क्रि. अ.
[सं. गम]


गई बहोर
खोई या बिगड़ी हुई वस्तु को फिर पाने या बनानेवाला।
वि.
[हिं. गया+बहुरि]


गउंक
एक घास।
संज्ञा
[देश.]


गउ, गऊ
गाय।
संज्ञा
[सं. गो]


गए
जाना क्रिया के भूतकालिक बहुवचन या आदरसूचक एक वचन रूप, प्रस्थानित हुए, जाने पर।
सरन गए को को न उबारयौ-१-१४।
क्रि. अ.
[सं. गम, हिं. जाना]


गए
बीते, व्यर्थ ही व्यतीत हुए।
(क) सब दिन गए अलेखे। (ख) कछु दिन घटि षट मास गए-१०८८।
क्रि. अ.
[सं. गम, हिं. जाना]


गए
गया हुआ, खोया हुआ, नष्ट।
गए राज का दुख नहिं कोइ-१-२८९।
वि.


गऐ
चले जाने पर, खो जाने पर, नष्ट होने पर।
हरि रस तौ अब जाइ कहुँ लहिये। गऐ सोच आऐ नहिं आनँद, ऐसो मारग गहिये-२-१८।
क्रि. अ. सवि.
[सं. गम, हिं. जाना]


गऐ
बीतने पर, समाप्त होने पर।
दिन दस गऐ विषय के हेतु...। -१०.४।
क्रि. अ. सवि.
[सं. गम, हिं. जाना]


गगन
आकाश।
संज्ञा
[सं.]


गगन
शून्य स्थान।
संज्ञा
[सं.]


गगन
छप्पय छन्द का एक भेद।
संज्ञा
[सं.]


गगनकुसुम
आकाश-कुसुम।
संज्ञा
[सं.]


गगनकुसुम
असंभव बात।
संज्ञा
[सं.]


गगनगढ़
बहुत ऊँचा महल या किला।
संज्ञा
[सं. गगन+गढ़]


गगनगति
आकाश में चलनेवाले पक्षी आदि।
संज्ञा
[सं.]


गगनगति
सूर्य आदि ग्रह।
संज्ञा
[सं.]


गगनगति
देवता।
संज्ञा
[सं.]


गगनचर
पक्षी।
संज्ञा
[सं.]


गगनचर
ग्रह।
संज्ञा
[सं.]


गगनचर
आकाश में चलनेवाले।
वि.


गगनचुंबी
बहुत ऊँचा।
वि.
[सं.]


गगनधूल
केतकी या केवड़े के फूल की धूल।
संज्ञा
[सं. गगन+हिं. धूल]


गगनस्पर्शी
बहुत ऊँचा।
वि.
[सं.]


गगनानंग
एक मात्रिक छन्द।
संज्ञा
[सं.]


गगनांगना
अप्सरा।
संज्ञा
[सं.]


गगनांबु
वर्षा का जल।
संज्ञा
[सं. गगन+अंबु]


गगनापगा
आकाशगंगा।
संज्ञा
[सं.]


गगनेचर
ग्रह, नक्षत्र।
संज्ञा
[सं.]


गगनेचर
पक्षी।
संज्ञा
[सं.]


गगनेचर
देवता।
संज्ञा
[सं.]


गगनेचर
आकाश में चलनेवाला।
वि.


गगरा
किसी धातु का कलसा।
संज्ञा
[सं. गर्गर=दही मथने का बर्तन]


गगनध्वज
सूर्य।
संज्ञा
[सं.]


गगनध्वज
बादल।
संज्ञा
[सं.]


गगनपति
इंद्र।
रुद्रपति, छुद्रपति, लोकपति, वोकपति, धरनिपति, गगनपति,अगमबानी- १५२२।
संज्ञा
[सं.]


गगनबानी
आकाशवाणी।
संज्ञा
[सं. गगनवाणी]


गगनवाटिका
प्रकाश की वाटिका।
संज्ञा
[सं.]


गगनवाटिका
असंभव बात।
संज्ञा
[सं.]


गगनभेड़
एक चिड़िया जो पानी के किनारे रहती है।
संज्ञा
[सं. गगन+भेड़]


गगनभेदी
बहुत ऊँचा।
वि.
[सं.]


गगनवती
सूर्य।
संज्ञा
[सं. गगनवर्ती]


गगनवाणी
आकाशवाणी।
संज्ञा
[सं.]


गज
हाथी, गयंद।
बारबार संकर्षन भाषत लेत नहीं ह्याँ ते गज टारी–२५८९।
संज्ञा
[सं.]


गज
महिषासुर का पुत्र।
संज्ञा
[सं.]


गज
श्रीराम की सेना का एक बंदर।
संज्ञा
[सं.]


गज
आठ की संख्या।
संज्ञा
[सं.]


गज
मकान की नींव।
संज्ञा
[सं.]


गज
लंबाई नापने की एक नाप।
संज्ञा
[फ़ा. गज़]


गज
बैलगाड़ी के पहिये की लकड़ी।
संज्ञा
[फ़ा. गज़]


गज
सारंगी बजाने की कमानी।
संज्ञा
[फ़ा. गज़]


गजअसन
पीपल का पेड़।
संज्ञा
[सं. गजाशन]


गजक
तिल की पपड़ी।
संज्ञा
[फ़ा. कजक]


गचना
वश में रखना।
क्रि. स.
[अनु. गच]


गचाका
गच से गिरने का शब्द।
संज्ञा
[हिं. गच से अनु.]


गचाका
भरपूर।
क्रि. वि.


गच्छ
पेड़।
संज्ञा
[सं.]


गच्छ
साधुओं का मठ।
संज्ञा
[सं.]


गच्छ
एक ही साधु के शिष्य।
संज्ञा
[सं.]


गच्छना, गछना
जाना, प्रस्थान करना।
क्रि. अ.
[सं. गच्छ= जाना]


गच्छना, गछना
निबाहना।
क्रि. स.


गच्छना, गछना
स्वयं भार लेना।
क्रि. स.


गजंद
हाथी।
संज्ञा
[सं. गयंद]


गगरिया, गगरी
धातु का छोटा घड़ा, कलसी।
संज्ञा
[सं. गर्गरी=दही मथने की हाड़ी]


गच
किसी नरम वस्तु में पैनी वस्तु के धँसने का शब्द।
संज्ञा
[अनु.]


गच
चूने, सुरखी आदि का मसाला।
संज्ञा
[अनु.]


गच
इस मसाले से बनी पक्की जमीन।
संज्ञा
[अनु.]


गच
पक्की छत।
संज्ञा
[अनु.]


गचकारी
गच - पीटने का काम।
संज्ञा
[हिं. गच+ फ़ा. कारी]


गचगर
कारीगर, थवई।
संज्ञा
[हिं. गच+ फ़ा. गर=बनानेवाला]


गचकारी
गच बनाने का काम, गचकारी।
संज्ञा
[हिं. गच+ फ़ा. गीरी]


गचना
ठूँस ठूँस कर भरना।
क्रि. स.
[अनु. गच]


गचना
चुभाना।
क्रि. स.
[अनु. गच]


गजदंत
घोड़ा जिसके दाँत मुँह के बाहर निकले हों
संज्ञा
[सं.]


गजदंत
दाँत के ऊपर का दाँत।
संज्ञा
[सं.]


गजदंती
हाथीदाँत का बना हुआ, हाथी दाँत का।
कर कंकन चूरी गजदंती नख मनिमानिक मेटति देती।
वि.
[सं. गजदंत+ ई (प्रत्य.)]


गजदान
हाथी का दान।
संज्ञा
[सं.]


गजदान
हाथी का मद।
संज्ञा
[सं.]


गजधर
राज, मेमार, थवई।
संज्ञा
[हिं. गज+धर]


गजना
गरजना।
क्रि. अ.
[हिं. गाजना]


गजनाल
बड़ी तोप जिसे हाथी खींचें।
संज्ञा
[सं.]


गजनी
हथिनी।
जो राजत तिहिं काल लाल ललना रसाल रस रंग। मानहु नहात मदन बधु सजनी गज गजनी गज संग २४५०।
संज्ञा
[सं. गज]


गजपति
बहुत बड़ा हाथी।
संज्ञा
[सं. गज+पति]


कनी
बूंद।
(क) कहा काँच संग्रह के कीने हरि जो अमोल मनी। बिष सुमेरु कछु काज न आवै, अमृत एक कनी - ८९४।

(ख) ससि सम सुन्दर सरस अँदरसे। ऊपर कनी अमी जनु बरसे - २३२१।

संज्ञा
[सं. कण]


कनीनिका
आँख की पुतली का तारा।
सजल चपल कनीनिका पल अरुन ऐसैं डोर (ल)। रस भरे अंबुजनि भीतर, भ्रमत मानों भौंर - ३६४।
संज्ञा
[सं.]


कनीर
कनेर का वृक्ष या फूल।
संज्ञा
[हिं. कनेर]


कनु
कण।
संज्ञा
[सं. कण]


कनु
बूँद।
संज्ञा
[सं. कण]


कनुका, कनूका
(किसी वस्तु का) छोटा टुकड़ा या थोड़ा अंश, कण।
मुख आँसू अरु माखन कनुका, निरखि नैन छबि देत। मानौ स्रवत सुधानिधि मोती, उड्डुगन, अवलि समेत - ३४६।
संज्ञा
[सं. कणिका]


कने
पास, समीप
क्रि. वि.
[सं. कोण]


कने
ओर, तरफ
क्रि. वि.
[सं. कोण]


कनेखी
तिरछी चितवन।
संज्ञा
[हिं. कनखी]


कनेर, कनैर
एक पेड़ जिसमें लाल या सफेद फूल लगते हैं। यह पेड़ बड़ा विषैला होता है।
संज्ञा
[सं. करनेर]


गजगाह
हाथी की झूल।
संज्ञा
[सं. गज+ग्राह]


गजगाह
झूल।
संज्ञा
[सं. गज+ग्राह]


गजगौन
हाथी की सी मंदमस्तानी चाल।
संज्ञा
[सं. गजगमन]


गजगौनी
हाथी की सी मंद-मस्तानी चालवली।
वि.
[सं. गजगामिनी]


गजगौहर
गजमुक्ता।
संज्ञा
[हिं. गज+फ़ा. गौहर]


गजचर्म
हाथी का चमड़ा।
संज्ञा
[सं.]


गजचर्म
एक रोग।
संज्ञा
[सं.]


गजता
हाथियों का झुंड।
संज्ञा
[सं.]


गजदंत
हाथी का दाँत।
संज्ञा
[सं.]


गजदंत
दीवार में लगी खूँटी।
संज्ञा
[सं.]


गजक
जलपान।
संज्ञा
[फ़ा. कजक]


गजक
चटपट खाने की चीज।
संज्ञा
[फ़ा. कजक]


गजकुंभ
हाथी का उभरा हुआ मस्तक।
संज्ञा
[सं.]


गजकेसर
एक तरह का धान।
संज्ञा
[सं.]


गजगति
हाथी की चाल।
संज्ञा
[सं.]


गजगति
मंद और मस्तानी चाल।
संज्ञा
[सं.]


गजगति
एक वृर्णवृत्त।
संज्ञा
[सं.]


गजगमन
हाथी की सी मंद और मस्तानी चाल।
संज्ञा
[सं.]


गजगामिनि, गजगामिनी
मंद और मस्तानी चालवाली।
खंजन मीन मराल हरन छबि भान भेद गजगामिनि-पृ. ३४४ (३४)।
वि.
[हिं. गजगामी]


गजगामी
जिसकी चाल मंद और मस्तानी हो।
वि.
[सं. गजगामिन्]


गजब
अंधेर।
संज्ञा
[अ. ग़ज़ब]


गजब
अद्‍भुत बात।
संज्ञा
[अ. ग़ज़ब]


गजब
गजब का- अद्‍भुत, बहुत अधिक।
मु.


गजबदन
गणेश।
संज्ञा
[सं.]


गजबाँक, गजबाग
हाथी का अंकुश।
संज्ञा
[सं. गज+वाँक या बाग]


गजबेली
एक तरह का लोहा।
संज्ञा
[स. गज+बल्ली]


गजभक्षक, गजभक्ष्य
पीपल।
संज्ञा
[सं.]


गजमणि, गजमनि
गजमुक्ता।
संज्ञा
[सं.]


गजमनियाँ
गजमणि, गजमुक्ता।
पहुँची करनि, पदिक उर हरि-नख, कठुला कंठ, मंजु गजमनियाँ-१०-१०६।
संज्ञा
[सं. गजमणि]


गजमुक्ता
मोती जो हाथी के मस्तक से निकलता माना गया है।
संज्ञा
[सं.]


गजपति
वह बड़ा हाथी जिसे ग्राह ने पकड़ लिया था और जिसको छुड़ाने के लिए भगवान विष्णु गरुड़ छोड़कर नंगे पैर दौड़े थे।
संज्ञा
[सं. गज+पति]


गजपति
वह राजा जिसके पास बहुत हाथी हों।
संज्ञा
[सं. गज+पति]


गजपति
कलिंग देशीय-राजाओं की उपाधि।
संज्ञा
[सं. गज+पति]


गजपाँव
एक जलपक्षी।
संज्ञा
[हिं. गज+पाँव]


गजपाल
महावत, हाथीवान।
क्रोध गजराज गजपाल कीन्हो -२५९१।
संज्ञा
[सं.]


गजपुट
धातुओं के फूँकने की रीति।
संज्ञा
[सं.]


गजपुर
हस्तिनापुर।
संज्ञा
[सं.]


गजबंध
एक तरह का चित्रकाव्य।
संज्ञा
[सं.]


गजब
कोप, रोष।
संज्ञा
[अ. ग़ज़ब]


गजब
आफत, विपत्ति।
संज्ञा
[अ. ग़ज़ब]


गजमुख
गणेश।
संज्ञा
[सं.]


गजमोचन
गज को संकट से छुड़ाने की क्रिया।
एहि थर बनी क्रीड़ा गजमोचन और अनंत कथा स्रुति गाई–१-६।
संज्ञा
[सं.]


गजमोचन
विष्णु का वह रूप जो उन्होंने ग्राह से गज को छुड़ाने के लिए धारण किया था।
गजमोचन ज्यों भयो अवतार। कहौं सुनौ सो अब चितधार।
संज्ञा
[सं.]


गजमोती
गजमणि, गजमुक्ता।
संज्ञा
[सं. गजमौक्तिक, प्रा. गजमोत्तिय]


गजर
पहर-सूचक घंटे का शब्द।
संज्ञा
[सं. गर्ज, हिं. गरज]


गजर
प्रात:काल-सूचक घंटे का शब्द।
बोले तुमचुर चारो याम को गजर मारयौ पौन भयौ सीतल तम तमता गई -१६०८।
संज्ञा
[सं. गर्ज, हिं. गरज]


गजर
जगाने की घंटी।
संज्ञा
[सं. गर्ज, हिं. गरज]


गजर
मिला हुआ लाल-सफेद गेहूँ।
संज्ञा
[हिं. गजर-बजर]


गजरथ
बड़ा रथ जिसे हाथी खीचें।
संज्ञा
[सं.]


गजर-बजर
मिले हुए कई पदार्थ।
संज्ञा
[अनु.]


गजा
नगाड़ा बजाने का डंडा।
संज्ञा
[फ़ा. गज]


गजारि
शाल।
संज्ञा
[सं. गज+अरि]


गजारि
एक वृक्ष।
संज्ञा
[सं. गज+अरि]


गजारि
सिंह।
संज्ञा
[सं. गज+अरि]


गजाशन
पीपल।
संज्ञा
[सं.]


गजास्य
गणेश।
संज्ञा
[सं.]


गजी
गाढ़ा, मोटा कपड़ा।
संज्ञा
[फ़ा. गज]


गजी
हाथी का सवार।
संज्ञा
[सं. गज+ई (प्रत्य.) अथवा गजिन्]


गजी
हथिनी।
संज्ञा
[सं.]


गजेंद्र
बड़ा हाथी।
संज्ञा
[सं.]


गजर-बजर
अंड-बंड चीजों का मेल।
संज्ञा
[अनु.]


गजर-बजर
भक्ष्य-अभक्ष्य।
संज्ञा
[अनु.]


गजरा
गाजर के पत्ते।
संज्ञा
[हिं. गाजर]


गजरा
फूलों की घनी गुँथी माला।
संज्ञा
[हिं. गंज=समूह]


गजरा
कलाई का एक गहना।
संज्ञा
[हिं. गंज=समूह]


गजरा
एक रेशमी कपड़ा।
संज्ञा
[हिं. गंज=समूह]


गजराज्ञ
बड़ा हाथी।
(क) धाए गजराज-काज, केतिक यह बाता-१-१२३। (ख) ज्यों गजराज-काज के औसर औरै दसन दिखावत -३०९३।
संज्ञा
[सं.]


गजरिपु
सिंह।
संज्ञा
[सं. गज+रिपु=शत्रु]


गजरिपु
पतली कमर या कटि जिसकी उपमा हाथी के शत्रु सिंह की पतली कमर से दी जाती है।
एक कमल पर धारे गजरिपु एक कमल पर ससि-रिपु जोर -सा. उ. ४७।
संज्ञा


गजरी
कलाई का एक आभूषण।
संज्ञा
[हिं. गजरा]


गजरी
छोटी गाजर।
संज्ञा
[हिं. गाजर]


गजरौट
गाजर के पौधे की पत्ती।
संज्ञा
[हिं. गाजर+ औटा]


गजल
शृंगार रस की कविता।
संज्ञा
[फ़ा. ग़ज़ल]


गजल
करील, बबूल।
पग रिपु ता महँ परत गजल के को तन तैं सुरझावै- सा. ८५।
संज्ञा
[सं. गज=करि=करी+ल= करील]


गजवदन
गणेश।
संज्ञा
[सं.]


गजवान
हाथीवान, महावत।
संज्ञा
[हिं. गज+वान (प्रत्य.)]


गजशाला, गजसाला
वह स्थान जहाँ हाथी बाँधे जाते हैं।
संज्ञा
[सं. गज+शाला]


गजही
वह लकड़ी जिससे दूध मथकर फेना या मक्खन निकालते हैं।
संज्ञा
[हिं. गाज+फेन]


गजाधर
विष्णु जिन्होंने गदा सुर की हड्डियों से बनी गदा धारण की थी।
संज्ञा
[सं. गदाधर]


गजानन
गणेश।
संज्ञा
[सं. गज+आनन]


गटगट
घुँटने का शब्द करते हुए।
क्रि. वि.


गटना
बँधना।
क्रि. अ.
[सं. ग्रंथन, प्रा. गंठन]


गटपट
पदार्थों या प्राणियों की मिलावट।
संज्ञा
[अनु.]


गटपट
सहवास, प्रसंग।
संज्ञा
[अनु.]


गटा
कलाई, गट्टा।
संज्ञा
[हिं. गट्टा]


गटा
गाँठ।
संज्ञा
[हिं. गट्टा]


गटागट
गटगट शब्द करके।
क्रि. वि.
[हिं. गटगट]


गटागट
लगातार, धड़ाधड़।
क्रि. वि.
[हिं. गटगट]


गटी
गाँठ।
संज्ञा
[सं. ग्रंथि, पा. गंठि]


गटी
समूह।
संज्ञा
[सं. ग्रंथि, पा. गंठि]


गजेंद्र
ऐरावत।
संज्ञा
[सं.]


गज्जर
दलदल, कीचड़।
संज्ञा
[अनु.]


गज्जूह
हाथियों का झुंड।
संज्ञा
[सं. गज+व्यूह]


गज्झा
पानी में छेटे छोटे बुलबुलों का समूह।
संज्ञा
[सं. गज्ज=शब्द]


गज्झा
गज।
संज्ञा
[सं. गज्ज=शब्द]


गज्झा
ढेर, अंबार।
संज्ञा
[सं. गज]


गज्झा
खजाना, भंडार।
संज्ञा
[सं. गज]


गज्झा
धन-संपत्ति।
संज्ञा
[सं. गज]


गज्झा
लाभ।
संज्ञा
[सं. गज]


गझिन
घना।
वि.
[हिं. गछना]


कनेरिया
कनेर के फूल के रंग का, श्यामता लिये हुए लाल रंग का।
वि.
[हिं. कनेर]


कनेखा
कटाक्षयुक्त।
वि.
[हिं. कनखी]


कनौड़ा
काना।
वि.
[हिं. काना+औड़ा (प्रत्य.)]


कनौड़ा
जिसका कोई अंग टूटा या हीन हो।
वि.
[हिं. काना+औड़ा (प्रत्य.)]


कनौड़ा
जो बदनाम हो।
वि.
[हिं. काना+औड़ा (प्रत्य.)]


कनौड़ा
दीन-हीन।
वि.
[हिं. काना+औड़ा (प्रत्य.)]


कनौड़ा
लज्जित।
वि.
[हिं. काना+औड़ा (प्रत्य.)]


कनौड़ा
कृतज्ञ, उपकृत, एहसानमंद।
वि.
[हिं. काना+औड़ा (प्रत्य.)]


कनौड़े
कृतज्ञ, उपकृत, एहसानमंद, दबैल।
अति आधीन सुजान कनौड़े, गिरधर नार नवावति। आपुन पौढ़ि अधर सज्‍जा पर, कर-पल्लव पलुटावति - ६५५।
वि.
[हिं. कनौड़ा=काना+औड़ा (प्रत्य.)]


कनौती
पशुओं के कानों की नोक।
संज्ञा
[हिं. कान+औती (प्रत्य.)]


गझिन
मोटा कपड़ा, गाढ़ा।
वि.
[हिं. गछना]


गटई
गला।
संज्ञा
[सं. कंठ, पुं. हिं. घंट]


गटई
गिट्टी।
संज्ञा
[सं. कंठ, पुं. हिं. घंट]


गटई
गोटी।
संज्ञा
[सं. कंठ, पुं. हिं. घंट]


गटकना
खाना, निगलना।
क्रि. स.
[हिं. गट से अनु.]


गटकना
दबा लेना।
क्रि. स.
[हिं. गट से अनु.]


गटकि
खाना, निगलना।
लटकि निरखन लग्यो मटक सब भूलि गयौ हटक ह्वै कै गयौ गटकि सिल सों रह्यौ मीचु जागी -२६०९।
क्रि. स.
[हिं. गटकना]


गटकीला
खानेवाला।
वि.
[हिं. गटक]


गटगट
घूँट भरने का शब्द।
संज्ञा
[अनु.]


गटगट
धड़ाधड़, लगातार।
क्रि. वि.


गटी
गँठी, बँधी।
(क) अपनी रुचि जित-ही-जित ऐंचति इंद्रिय-कर्म-गटी। हौं तित हीं उठि चलत कपट लगि, बाँधे नैन-पटी -१-६८।
क्रि. अ.
[हिं. गठना]


गट्ट
निगलने का शब्द।
संज्ञा
[अनु.]


गट्टा
कलाई
संज्ञा
[सं. ग्रंथ, प्रा. गंठ, हिं. गाँठ]


गट्टा
पैर और तलुए के बीच की गाँठ।
संज्ञा
[सं. ग्रंथ, प्रा. गंठ, हिं. गाँठ]


गट्टा
गाँठ।
संज्ञा
[सं. ग्रंथ, प्रा. गंठ, हिं. गाँठ]


गट्टा
बीज।
संज्ञा
[सं. ग्रंथ, प्रा. गंठ, हिं. गाँठ]


गट्टा
एक मिठाई।
संज्ञा
[सं. ग्रंथ, प्रा. गंठ, हिं. गाँठ]


गट्टी
नदी का किनारा।
संज्ञा
[देश.]


गट्ठर, गट्ठा
बड़ी गठरी, बड़ा बोझ।
संज्ञा
[हिं. गाँठ]


गठकटा
गिरहकट।
वि.
[हिं.गाँठ+काटना]


गड़वाना
गाड़ने का काम (दूसरे से) कराना।
क्रि. स.
[हिं. गाड़ना]


गड़हा
गड्ढा।
संज्ञा
[सं. गर्त, प्रा. गड्ड]


गड़हा
गड़हा खोदना- बुराई करना।

गड़हा भरना (पटना)- (१) घाटा पूरा करना। (२) रूखी-सूखी खाकर पेट भरना। गड़हे में पड़ना- कठिनाई या असमंजस होना।

मु.


गड़ाए
धँसाये हुए।
अति संकट मैं भरत भँटा लौं, मल मैं मूड़ गड़ाए-१-३२०।
क्रि. स.
[हिं. गड़ना]


गड़ाना
चुभाना, धँसाना।
क्रि. स.
[हिं. गड़ना]


गड़ाना
गाड़ने का काम कराना।
क्रि. स.
[हिं. गाड़ना]


गड़ायट
गड़ने या चुभनेवाला।
वि.
[हिं. गड़ना]


गड़ारी
गोल रेखा, वृत्त।
संज्ञा
[सं. कुंडल]


गड़ारी
घेरा, मंडल।
संज्ञा
[सं. कुंडल]


गड़ारी
आड़ी रेखाएँ।
संज्ञा
[सं. गड=चिन्ह]


गठकटा
धोखा देकर रुपया ठग लेनेवाला।
वि.
[हिं.गाँठ+काटना]


गठजोरा
गठबंधन।
संज्ञा
[हिं. गाँठ जोड़ना]


गठन
बनावट।
संज्ञा
[सं. ग्रंथन, प्रा. गंठन]


गठना
जुड़ना, सटना, मिलना।
क्रि. अ.
[सं. ग्रंथन, प्रा. गंठन, हिं, गाँठना का अक. रूप]


गठना
मोटी सिलाई होना।
क्रि. अ.
[सं. ग्रंथन, प्रा. गंठन, हिं, गाँठना का अक. रूप]


गठना
ऐसी बनावट होना जिसमें छेद न रहे।
क्रि. अ.
[सं. ग्रंथन, प्रा. गंठन, हिं, गाँठना का अक. रूप]


गठना
गुप्त कार्य या विचार में सम्मिलित होना।
क्रि. अ.
[सं. ग्रंथन, प्रा. गंठन, हिं, गाँठना का अक. रूप]


गठना
ठीक बनना।
क्रि. अ.
[सं. ग्रंथन, प्रा. गंठन, हिं, गाँठना का अक. रूप]


गठना
संयोग होना।
क्रि. अ.
[सं. ग्रंथन, प्रा. गंठन, हिं, गाँठना का अक. रूप]


गठना
गहरी मित्रता होना।
क्रि. अ.
[सं. ग्रंथन, प्रा. गंठन, हिं, गाँठना का अक. रूप]


गड़ारी
कुएँ की चरखी।
संज्ञा
[सं. कुंडली]


गड़ारी
चरखी के बीच का भाग जिस पर रस्सी रहती है।
संज्ञा
[सं. कुंडली]


गड़ारी
एक घास।
संज्ञा
[सं. कुंडली]


गड़ाव
गड़वा दो।
पांडव-सुत अरु द्रौपदी कौं मारि गड़ावौ-१-२३८।
क्रि. स.
[हिं. गड़ाना]


गड़ि
बछड़ा।
संज्ञा
[सं.]


गड़ि
एक बैल।
संज्ञा
[सं.]


गड़ि
गड़ने का चिन्ह बनना।
बिनु गुण गड़ि माला रही ठाहिं कहुँ बिहराने-२१३८।
क्रि. अ.
[हिं. गड़ना]


गड़ि
चुभना, खटकना, बुरा लगना।
हमरौ यौवन रूप आँखि इनके गड़ि लागत-१०२५।
क्रि. अ.
[हिं. गड़ना]


गड़िबे
चुभना, धँसना, घुसना।
कठिन कठिन कली बीनि करत न्यारी प्यारी के चरन कोमल जानि सकुच अति गड़िबेहि डराति -१०६८।
क्रि. अ.
[हिं. गड़ना]


गडुरी
एक पक्षी।
संज्ञा
[हिं. गेडुरी]


गड़े
चुभे, धँसे, घुस गये।
इहि उर माखन चोर गड़े-३१५१।
क्रि. अ.
[हिं. गड़ना]


गड़ेरिया
एक जाति जो भेड़ें पालती है।
संज्ञा
[सं. गड्डरिक, पा. गड्डरिअ]


गड़ोना
चुभाना, धँसाना।
क्रि. स.
[हिं. गड़ाना]


गड़ना
एक तरह का पान।
संज्ञा
[हि. गाड़ना]


गड़ना
काँटा।
संज्ञा
[हिं. गड़ना]


गड्ड
समूह, गड्डी।
संज्ञा
[सं. गण]


गड्ड
गड्ढा।
संज्ञा
[सं. गर्त=गड्ढा]


गढ़त
कल्पित, बनावटी।
वि.
[हिं. गढ़ना]


गढ़त
बनावटी या कल्पित बात।
संज्ञा


गढ़
खाई।
संज्ञा
[सं. गड़=खाई]


गढ़
किला, कोट।
निरभय देह, राजगढ़ ताकौ, लोक मनन-उतसाहु-१-४०।
संज्ञा
[सं. गड़=खाई]


गढ़
गढ़ तोड़ना (जीतना)- कठिन काम करना।
मु.


गढ़त, गढ़न
गढ़न, ढाँचा।
संज्ञा
[हिं. गढ़ना]


गढ़ना
काँट-छाँट करना, रचना, बनाना।
क्रि. स.
[सं. घटन, प्रा. घडन]


गढ़ना
सुडौल करना, ठीक करना।
क्रि. स.
[सं. घटन, प्रा. घडन]


गढ़ना
बात बनाना, कल्पना करना।
क्रि. स.
[सं. घटन, प्रा. घडन]


गढ़ना
गढ़ गढ़ कर बातें करना- झूठ-मूठ की बातें गढ़ना।
मु.


गढ़ना
मारना, पीटना।
क्रि. स.
[सं. घटन, प्रा. घडन]


गढ़ना
प्रस्तुत या उपस्थित करना।
क्रि. स.
[सं. घटन, प्रा. घडन]


गढ़पति
किले का अधिकारी या स्वामी।
संज्ञा
[हिं. गढ़+पति]


गढ़पति
राजा।
संज्ञा
[हिं. गढ़+पति]


गढ़वना
किले में जाना।
क्रि. अ.
[सं. गढ़=किला]


गढ़वना
रक्षित स्थान में पहुँचना।
क्रि. अ.
[सं. गढ़=किला]


गढ़वार, गढ़वाल
किले का अधिकारी या स्वामी।
संज्ञा
[हिं. गढ़+वाला]


गढ़वार, गढ़वाल
राजा।
संज्ञा
[हिं. गढ़+वाला]


गढ़वै
(भयभीत होकर) किले में आश्रय लिया।
गढ़वै भयौ नरकपति मोसौं, दीन्हें रहत किवार। सेना साथ बहुत भाँतिन की, कीन्हें पाप अपार-१-१४१।
क्रि. अ.
[सं. गढ़=किला]


गढ़वै
गढ़पति।
संज्ञा


गढ़वै
राजा।
संज्ञा


गढ़वै
सरदार।
संज्ञा


गढ़ाई
बनाने या सुडौल करने का काम।
संज्ञा
[हिं. गढ़ना]


गढ़ाई
गढ़ने की मजदूरी।
संज्ञा
[हिं. गढ़ना]


गढ़ाऊँ
गढ़वाऊँ, बनाऊँ, तैयार कराऊँ।
मैं निरबल बित-बल नहीं, जो और गढ़ाऊँ-६-४२।
क्रि. स.
[हिं. गढ़ाना]


गढ़ाना
बनवाना, सुडौल करना।
क्रि. स.
[हिं. गढ़ना का प्रे.]


गढ़ाना
बुरा लगाना।
क्रि. अ.
[हिं. गाढ़=कठिन]


गढ़ाये
बनवाये, सुघटित कराये।
कंचन कलस गढ़ाये कब हम देखे धौं यह गुनिये -११३०।
क्रि. स.
[हिं. गढ़ाना]


गढ़ि
बनाकर, रचकर।
गढ़ि गढ़ि ल्यायौ बाढ़ई, धरती पर डोलाइ, बलि हालरु रे-१०-४७।
क्रि. स.
[हिं. गढ़ना]


गढ़ि
गढ़ि गढ़ि बात बनावत (बानति)- झूठमूठ की कल्पना करना, नमक-मिर्च लगाकर कोई बात कहना। उ.- (क) उनके चरित कहा कोउ जानै, उनहीं कही तु मानति। कदम तीर तें मोहिं बुलायौ, गढ़ि गढ़ बातैं बानति। (ख) जो जैसो तैसौ त्यों चलिये हरि आगे गढ़ि बात बनावत -पृ. ३२९।
मु.


गढ़ि
लीन होकर, पगकर, मग्न होकर।
यह चतुराई अधिकाई कहाँ पाई स्याम वाके प्रेम की गढ़ि पढ़े हौ पटी-२००८।
क्रि. स.
[हिं. गढ़ना]


गढ़िया
गढ़नेवाला।
संज्ञा
[हिं. गढ़ना]


गढ़ी
सुघटित की, रची, ठीकठाक की।
(क) भई देह जो खेह करम-बस जनु तट गंगा अनल दढ़ी। सूरदास प्रभु दृष्टि कृपानिधि, मानौ फेरि बनाई गढ़ी-९-१७०।

(ख) हौं अपराधिनि चतुर बिधाता काहे को बनाइ गढ़ी-२७९४।

क्रि. स.
[हिं. गढ़ना]


गढ़ी
छोटा किला।
संज्ञा
[हिं. गढ़]


गढ़ी
मजबूत मकान।
संज्ञा
[हिं. गढ़]


गढ़ीश, गढ़ीस
गढ़ का स्वामी या अधिकारी।
वि.
[हिं. गढ़+सं. ईश]


गढ़
गढ़ता है, सोचता है, कल्पना करता है।
जिय जिय गढ़ै, करै बिस्वासहिं, जौन लंका लोग-९-७५।
क्रि. स.
[हिं. गढ़ना]


गढ़ैया
गढ़नेवाला, बनानेवाला, रचनेवाला।
आनि धरयौ नन्दद्वार, अति हीं सुन्दर सुढार। ब्रज बधू कहँ बार-बार धन्य रे गढ़ैया १०-४१-।
वि.
[हिं. गढ़ना]


गढ़ोई
किले का स्वामी।
संज्ञा
[हिं. गढ़]


गढ़यौ
गढ़ा, बनाया, रचा।
कनक-रतन-मनि पालनौ, गढ़यौ काम सुतहार-१०-४२।
क्रि. स.
[हिं. गढ़ना]


गण
समूह, झुंड।
संज्ञा
[सं.]


गण
श्रेणी, कोटि।
संज्ञा
[सं.]


गण
तीन वर्णो का समूह।
संज्ञा
[सं.]


कनौती
कानों को उठाने का ढंग।
संज्ञा
[हिं. कान+औती (प्रत्य.)]


कनौती
कान में पहनने की बाली।
संज्ञा
[हिं. कान+औती (प्रत्य.)]


कन्ना
किनारा, कोर।
संज्ञा
[सं. कर्ण, प्रा. कंड]


कन्ना
संबंध।
संज्ञा
[सं. कर्ण, प्रा. कंड]


कन्ना
चावल का कन।
संज्ञा
[सं. कण]


कन्नी
किनारा, कोर।
संज्ञा
[हिं. कन्ना]


कन्नी
धोती या चादर का किनारा।
संज्ञा
[हिं. कन्ना]


कन्नी
कोंपल।
संज्ञा
[सं. स्कंध]


कन्नी
फरुखाबाद जिले का एक नगर जो किसी समय बड़े विस्तृत साम्राज्य की राजधानी थी।
संज्ञा
[सं. कान्यकुब्ज, प्रा. कण्णउज्‍ज]


कन्यका
पुत्री।
संज्ञा
[सं.]


गण
शिव के पारिषद।
संज्ञा
[सं.]


गण
दूत, सेवक।
संज्ञा
[सं.]


गण
स्वपक्ष के व्यक्ति।
संज्ञा
[सं.]


गण
चोवा नामक सुगंधित द्रव्य।
संज्ञा
[सं.]


गण
समाज, संघ।
संज्ञा
[सं.]


गण
शासन के प्रबंधकों का संघ या मंडल।
संज्ञा
[सं.]


गणक
ज्योतिषी।
संज्ञा
[सं.]


गणक
गणना या हिसाबकिताब करनेवाला।
संज्ञा
[सं.]


गणतंत्र
प्रजा के प्रतिनिधियों का शासन, जनतंत्र, प्रजातंत्र।
संज्ञा
[सं.]


गणन
दूत, सेवक।
गणन समेत सती तहँ गयी।
संज्ञा
[सं. गण]


गणनीय
प्रसिद्ध।
वि.
[सं.]


गणप, गणपति
गणेश।
संज्ञा
[सं.]


गणप, गणपति
शिव।
संज्ञा
[सं.]


गणराज्य
वह राज्य जो प्रजा के प्रतिनिधियों द्वारा चलाया जाता हो।
संज्ञा
[सं.]


गणाधिप गणाध्यक्ष
गण का स्वामी।
संज्ञा
[सं.]


गणाधिप गणाध्यक्ष
गणेश।
संज्ञा
[सं.]


गणाधिप गणाध्यक्ष
शिव।
संज्ञा
[सं.]


गणिका
वेश्या।
संज्ञा
[सं.]


गणिका
एक वृक्ष।
संज्ञा
[सं.]


गणिका
एक फूल।
संज्ञा
[सं.]


गणन
गिनना।
संज्ञा
[सं.]


गणन
गिनती।
संज्ञा
[सं.]


गणना
गिनती।
संज्ञा
[सं.]


गणना
हिसाब।
संज्ञा
[सं.]


गणना
संख्या।
संज्ञा
[सं.]


गणना
एक अलंकार।
संज्ञा
[सं.]


गणनाथ, गणनायक
गणेश।
संज्ञा
[सं.]


गणनाथ, गणनायक
शिव।
संज्ञा
[सं.]


गणनायिका
दुर्गा।
संज्ञा
[सं.]


गणनीय
गिनने योग्य।
वि.
[सं.]


गणिका
धन के लोभ से प्रेम करने वाली स्त्री।
संज्ञा
[सं.]


गणित
मात्रा, संख्या और परिमाण की विद्या।
संज्ञा
[सं.]


गणित
हिसाब।
संज्ञा
[सं.]


गणितज्ञ
गणित शास्त्र का जानने वाला।
वि.
[सं.]


गणितज्ञ
ज्योतिषी।
वि.
[सं.]


गणेश
एक देवता जिनका शरीर मनुष्य का और सिर हाथी का सा है। इनके चार हाथ, एक दाँत और तीन आँखे हैं। इनकी सवारी चूहा है। इनके हाथों में पाश, अंकुश, पद्‍म और परशु हैं। ये महादेव के पुत्र माने जाते हैं।
संज्ञा
[सं.]


गणेश
गणों का स्वामी या अधिकारी।
वि.


गण्य
गिनने योग्य।
वि.
[सं.]


गण्य
प्रसिद्ध, मान्य।
वि.
[सं.]


गत
गया हुआ, बीता हुआ।
वि.
[सं.]


गत
गत होना- मर जाना।
मु.


गत
रहित, हीन।
वि.
[सं.]


गत
व्यतीत हुये, बीत गये,अतीत हुए।
इहिं बिधि भ्रमत सकल निसि दिन गत कछु न काज सरत -१ ५५।
क्रि. अ.


गत
जाने पर, अस्त होने पर।
जनु रबि गत संकुचित कमल जुग निसि अलि उड़न न पावै–१०-६५।
क्रि. अ.


गत
दशा, अवस्था।
संज्ञा


गत
गत का- ठीक, काम का।

गत बनाना- (१) दुर्गति करना। (२) मारना-पीटना। (३) हँसी उड़ाना।

मु.


गत
रूप, रंग, आकृति।
संज्ञा


गत
गत बनाना- (१) विचित्र वेश या धजा बनाना। (२) आकृति बिगाड़ना। (३) काम या उपयोग में लाना। (४) दुर्गति, दुर्दशा। (५) मृतक का क्रिया-कर्म। (६) नृत्य में शरीर का संचालन।
मु.


गतांक
जिसमें सद्‍गुण न रहे हों, गया-बीता, निकम्मा।
वि.
[सं.]


गतागत
आया-गया।
वि.
[सं.]


गतागत
जन्म-मरण।
संज्ञा
[सं.]


गतालोक
प्रकाशरहित।
वि.
[सं. गत+अलोक]


गतालोक
महत्वहीन।
वि.
[सं. गत+अलोक]


गति
चाल, जाने की क्रिया, गमन।
(क) ग्राह गयौ गज-बल बिनु ब्याकुल बिकल गात, गति लंगी। धाइ चक्र लै ताहिं उबारयौ मारयौ-ग्राह-बिहंगी-१-२१। (ख) मधु मराल जुग पद पंकज के गति-बिलास जल मीन-३०३८।
संज्ञा
[सं.]


गति
हिलने-डोलने की क्रिया या शक्ति।
स्रवन न सुनत चरन-गति थाकी, नैन भए जलधार- ११ १८।
संज्ञा
[सं.]


गति
अवस्था दशा।
(क) सूर स्यामसुन्दर जौ सेवै क्यों होवै गति दीन-१-४६। (ख) ज्यों भुवंग तजि गयौ केंचुली सो गति भई हमारी-३०५९।
संज्ञा
[सं.]


गति
गतिकीनी- दुर्दशा की,बुरी दशा को पहुँचा दिया। उ.- अजामील तौ बिप्र तिहारौ हुतौ पुरातन दास। नैंकु चूक तैं यह गति कीनी पुनि बैकुंठ निवास - १-१३२।
मु.


गति
रूप, रंग , वेश।
संज्ञा
[सं.]


गति
पहुँच, प्रवेश।
गति नाहीं काहू की जहाँ-१० उ.-१२८।
संज्ञा
[सं.]


गति
प्रयत्न या युक्ति की सीमा।
संज्ञा
[सं.]


गति
सहारा, शरण।
मेरी तौ गति पति तुम अनतहिं कहँ सुख पाऊँ
संज्ञा
[सं.]


गति
चेष्टा, कार्य।
जेतिक अधम उधारे प्रभु तुम तिन की गति मैं नापी-१-१४०।
संज्ञा
[सं.]


गति
लीला, माया।
(क) अबिगत गति कछु कहत न आवै–१-२।

(ख) दयानिधि तेरी गति लखि न परै-१-१०४। (ग) या गति की माई को जानै-२८८७।

संज्ञा
[सं.]


गति
रीति, ढंग।
संज्ञा
[सं.]


गति
सुधि, ध्यान।
स्रवन न सुनत देहगति भूली गई बिकल मति बौरी-८८३।
संज्ञा
[सं.]


गति
चर्चा, प्रसंग, बात।
जोग की गति सुनत मेरे अंग आगि बई-३१३१।
संज्ञा
[सं.]


गति
जीवात्मा का एक शरीर से दूसरे में प्रवेश।
संज्ञा
[सं.]


गति
मृत्यु के बाद जीवात्मा की दशा।
कपट-हेत परसैं बकी जननीगति पावै–१-४।
संज्ञा
[सं.]


गति
मोक्ष, मुक्ति।
संज्ञा
[सं.]


गति
कुश्ती का पैतरा।
संज्ञा
[सं.]


गति
ग्रहों की चाल।
संज्ञा
[सं.]


गति
ताल-स्वर के अनुसार शरीर-संचालन।
संज्ञा
[सं.]


गतिविधि
चेष्टा।
संज्ञा
[सं.]


गतिविधि
काम का रंग-ढंग या चाल-ढाल।
संज्ञा
[सं.]


गतिशील
जिसमें गति हो।
वि.
[सं.]


गतिशील
उन्नति करनेवाला।
वि.
[सं.]


गत्थ
पूँजी, जमा।
वि.
[सं.]


गत्थ
माल।
वि.
[सं.]


गत्वर
जानेवाला।
वि.
[सं.]


गत्वर
नाशवान।
वि.
[सं.]


गथ
पूँजी, गाँठ का, धन, धन संपत्ति।
(क) घर मैं गथ नहिं भजनत तिहारौ, जौन दियैं मैं छुटौं। धर्म-जमानत मिल्यौ न चहैं, तातैं ठाकुर लूटौ-१-१८५।

(ख) अति मलीन बृषभानु कुमारी।.....। अधोमुख रहति उपर नहिं चितवति ज्यों गथ हारे थकित जुआरी-३४२५।

संज्ञा
[सं. ग्रंथ, प्रा. गत्थ]


गथ
व्यापार का सामान,पण्य द्रव्य।
(क) तुम्हरो गथ लादो गयंद पर हींग मिरच पीपरि कहा गावति।

(ख) सूरदास गथ खोटो काहे पारखि दोष धरे- पृ. ३३१।

संज्ञा
[सं. ग्रंथ, प्रा. गत्थ]


गथ
झुंड, गरोह।
संज्ञा
[सं. ग्रंथ, प्रा. गत्थ]


गथना
एक चीज को दूसरे में जोड़ना या गूँथना।
क्रि. स.
[सं. ग्रंथन]


गथना
गढ़ गढ़कर बातें करना।
क्रि. स.
[सं. ग्रंथन]


गथु
पूँजी।
ज्यों जुवारि रस- बींधि हारि गथु, सोचति पटक चितो-११-१।
संज्ञा
[हिं. गथ]


गथौं
पूँजी, जमा।
झीनी कामरि काज कान्ह ऐसी नहिं कीजै। काच पोत गिर जाइ नंद घर गथौ न पूजै–११२७।
संज्ञा
[हिं. गथ]


गद
विष।
फुरै न मंत्र, जंत्र, गद नाहीं, चले गुनी गुन डारे। प्रेम-प्रीति बिष हिरदै पारयौ, डारत है तनु जारे-७४७।
संज्ञा
[सं.]


गद
रोग।
संज्ञा
[सं.]


गद
श्रीकृष्ण का छोटा भाई।
संज्ञा
[सं.]


गद
श्रीराम की सेना का एक बानर।
संज्ञा
[सं.]


गद
एक असुर।
संज्ञा
[सं.]


गद
मोटापा।
संज्ञा
[सं.]


गद
गुलगुली वस्तु पर कड़ी या गुलगुली वस्तु के आघात का शब्द।
संज्ञा
[अनु.]


गदका
खेलने का डंडा।
संज्ञा
[सं. गदा या गदक, हिं. गतका]


गदका
एक खेल।
संज्ञा
[सं. गदा या गदक, हिं. गतका]


गदकारा
गुलगुला, गुदगुदा।
वि.
[अनु. गद+कारा (प्रत्य.)]


गदगद
श्रद्धा, हर्ष आदि के आवेग से पूर्ण।
गदगद बचन नयन जल पूरित बिलख बदन कृस गातैं-सा. उ. ४६।
वि.
[सं. गद्‍गद]


गदगदा
रत्ती का पौधा।
संज्ञा
[देश.]


गदना
कहना।
क्रि. स.
[सं. गदन]


कन्यका
अविवाहित लड़की।
संज्ञा
[सं.]


कन्यनि
पुत्रियों ने।
सब कन्यनि सौभरि कौं बरयौ - ९ - ८।
संज्ञा
[सं. कन्या]


कन्या
अविवाहित लड़की।
संज्ञा
[सं.]


कन्या
पुत्री, बेटी।
संज्ञा
[सं.]


कन्या
एक राशि।
(नंद जू) आदि जोतिषी तुम्हरे घर को पुत्र-जन्म सुनि आयौ। लगन सोधि सब जोतिष गनिकै, चाहत तुम्हहिं सुनायौ….। पचऎं बुध कन्या कौ जौ है, पुत्रनि बहुत बढ़ैहैं - १० - ८६।
संज्ञा
[सं.]


कन्हाई
श्रीकृष्ण।
संज्ञा
[सं. कृष्ण, प्रा. कण्ह]


कन्हावर
कंधे पर डाला जाने वाला दुपट्टा।
संज्ञा
[हिं. कॅंधावर]


कन्हैया
श्री कृष्ण।
संज्ञा
[सं. कृष्ण, प्रा. कण्ह]


कन्हैया
प्रिय व्यक्ति।
संज्ञा
[सं. कृष्ण, प्रा. कण्ह]


कन्हैया
सुंदर बालक।
संज्ञा
[सं. कृष्ण, प्रा. कण्ह]


गबद
गुलगुला, मुलायम।
वि.
[हिं. गुदगुदा]


गदम
थाम, आड़, पुश्ता।
संज्ञा
[देश,]


गदर
हलचल, उपद्रव।
संज्ञा
[अ. ग़दर]


गदर
बगावत, विद्रोह।
संज्ञा
[अ. ग़दर]


गदर
रुई की बगलबंदी जो जाड़े में ठाकुर जी को पहनाते हैं।
संज्ञा
[हिं. गद्दा]


गदरा
जो अच्छी तरह पका न हो, अधपका।
वि.
[हिं. गद्दर]


गदराना
(फल आदि) पकने लगना।
क्रि. अ.
[अनु. गद]


गदराना
युवावस्था में शरीर का पुष्ट होने लगना।
क्रि. अ.
[अनु. गद]


गदराना
आँखें दुखने पर होना।
क्रि. अ.
[अनु. गद]


गदराना
गदराया हुआ, पुष्ट।
वि.


गदा
लोढ़ जो गदा के आकार का होता है।
संज्ञा
[सं.]


गदा
भिखमंगा।
संज्ञा
[फ़ा.]


गदाई
तुच्छ, नीच।
वि.
[फ़ा. गदा=फकीर+ई (प्रत्य.)]


गदाई
रद्दी, बेकार।
वि.
[फ़ा. गदा=फकीर+ई (प्रत्य.)]


गदाका
सुडौल शरीरवाला।
वि.
[हिं. गद]


गदाका
जमीन पर पटकने की क्रिया।
संज्ञा


गदाधर
गदासुर की हड्डियों की बनी गदा धारण करनेवाले विष्णु।
संज्ञा
[सं.]


गदाला
हाथी पर कसने का गद्दा।
संज्ञा
[हिं. गदा]


गदाला
बहुत मोटा रुई का वस्त्र।
संज्ञा
[हिं. गदा]


गदावारण
एक प्राचीन बाजा।
संज्ञा
[सं.]


गदला
मटमैला या गंदा (पानी)।
वि.
[हिं. गंदा]


गदलाना
पानी गंदा करना।
क्रि. स.
[हिं. गदला]


गदलाना
(पानी का) गंदा या मैला होना।
क्रि. अ.


गदहपचीसी
अनुभवहीनता की उम्र जो १६ से २५ वर्ष तक मानी जाती है।
संज्ञा
[हिं.]


गदहपन
मूर्खता, अनुभवहीनता।
संज्ञा
[हिं. गदहा+पन (प्रत्य.)]


गदहा
रोग हरनेवाला, वैद्य।
संज्ञा
[सं.]


गदहा
गधा, खर, गर्दभ।
संज्ञा
[सं. गर्दभ, प्रा. गद्दह]


गदहा
मूर्ख, नासमझ, अनुभवहीन।
संज्ञा
[सं. गर्दभ, प्रा. गद्दह]


गदांबर
मेघ।
संज्ञा
[सं.]


गदा
लोहे का एक प्राचीन शस्त्र जिसमें डंडे के एक सिरे पर लट्टू होता था।
संज्ञा
[सं.]


गदित
कहा हुआ।
वि.
[सं.]


गदी
रोगी।
वि.
[सं. गदिन्]


गदी
गदाधारी।
वि.
[सं. गदिन्]


गदेला
रुई का मोटा वस्त्र।
संज्ञा
[हिं. गद्दा]


गदेला
हाथी की पीठ का गद्दा।
संज्ञा
[हिं. गद्दा]


गदेला
छोटा बालक।
संज्ञा
[देश.]


गदोरी
हथेली।
संज्ञा
[हिं. गद्दी]


गद्‍गद
अधिक हर्ष प्रेम, श्रद्धा आदि के आवेग से ऐसा युक्त कि अपनी स्थिति का उसे ज्ञान न रहे।
वि.
[सं.]


गद्‍गद
अधिक हर्ष, प्रेम, श्रद्धा आदि के आवेग के कारण रुका या अस्पष्ट।
गद्‍गद सुर पुलक रोम, अंग प्रेम भीजै–१-७२।
वि.
[सं.]


गद्‍गद
प्रसन्न, पुलकित।
वि.
[सं.]


गद्‍गद
हकलाने का रोग।
संज्ञा
[सं.]


गद्द
मुलायम या गुदगुदी जगह पर किसी चीज के गिरने का शब्द।
संज्ञा
[अनु.]


गद्द
किसी चीज के हजम न होने पर पेट का भारीपन।
संज्ञा
[अनु.]


गद्द
एक कल्पित जादू की लकड़ी जिसका स्पर्श करके मनुष्य मूर्ख हो जाता है।
संज्ञा
[अनु.]


गद्द
गद्द मारना- वश में करना।

गद्द मारा जाना- मूर्ख हो जाना।

मु.


गद्द
मूर्ख, जड़।
वि.


गद्दर
अधपका।
वि.
[देश.]


गद्दर
मोटा गद्दा।
वि.
[देश.]


गद्दा
मोटा बिछौना जिसमें रुई या पयाल भरा हो।
संज्ञा
[हिं. ‘गद्द’ से अनु.]


गद्दा
हाथी की पीठ को मोटा बिछौना जिस पर हौदा कसा जाता है।
संज्ञा
[हिं. ‘गद्द’ से अनु.]


गद्दा
घास, रुई आदि का बोझ।
संज्ञा
[हिं. ‘गद्द’ से अनु.]


गद्दा
गुदगुदी चीज की पोली-पोली मार।
संज्ञा
[हिं. ‘गद्द’ से अनु.]


गद्दी
छोटा गद्दा।
संज्ञा
[हिं. गद्दा]


गद्दी
घोड़े, ऊँट आदि की काठी रखने की गद्दी।
संज्ञा
[हिं. गद्दा]


गद्दी
बैठने की छोटी गद्दी।
संज्ञा
[हिं. गद्दा]


गद्दी
किसी बड़े पदाधिकारी का पद।
संज्ञा
[हिं. गद्दा]


गद्दी
राजवंश या शिष्यवंश-परंपरा।
संज्ञा
[हिं. गद्दा]


गद्दी
हाथ-पैर की हथेली या गदेली।
संज्ञा
[हिं. गद्दा]


गद्दीनशीन
जो सिंहासन पर बैठे।
वि.
[हिं. गद्दी+फ़ा. नशीन]


गद्दीनशीन
उत्तराधिकारी।
वि.
[हिं. गद्दी+फ़ा. नशीन]


गद्य
वह रचना जिसमें वर्णमात्रा आदि का नियम न हो, पद्य का उलटा।
संज्ञा
[सं.]


गद्य
काव्य का एक भेद जिसमें छंद-वृत्त का नियम न हो।
संज्ञा
[सं.]


गद्य
शुद्ध राग का एक भेद।
संज्ञा
[सं.]


गद्यात्मक
गद्य का, गद्य में रचा हुआ।
वि.
[सं.]


गधा
खर, गदहा।
संज्ञा
[हिं. गदहा]


गधा
मूर्ख, अनुभवहीन।
संज्ञा
[हिं. गदहा]


गधेड़ी
फूहड़ या गँवार स्त्री।
संज्ञा
[हिं. गधी+एड़ी (प्रत्य.)]


गन
समूह, दल, जत्था।
(क) श्रीपति जू अरि-गन-गर्व प्रहारयौ-१-३१।

(ख) मदन रिस के आदि ते मिल मिली गुनगन ऐन–सा. ६६।

संज्ञा
[सं. गण]


गन
दूत, सेवक।
गनन समेत सती तहँ गयी। तासौं दक्ष बात नहीं कही।
संज्ञा
[सं. गण]


गन
श्रेणी, कोटि।
संज्ञा
[सं. गण]


गन
पक्षपाती।
संज्ञा
[सं. गण]


गन
चोवा नामक सुगंधित द्रव्य।
संज्ञा
[सं. गण]


गनक
ज्योतिषी।
सुनि आनंदे सब लोग, गोकुल-गनक-गुनी-१०-२४।
संज्ञा
[सं. गणक]


गनगनाना
रोमांच होना।
क्रि. अ.
[अनु. गनगन]


गनगनाना
जाड़े आदि से काँपना।
क्रि. अ.
[अनु. गनगन]


गनगौर
चैत्र के शुक्ल पक्ष की तीज जब गणेश और गौरी की पूजा होती है।
संज्ञा
[सं. गण+गौरी]


गनत
गिनते हैं, मानते हैं, समझते हैं।
तिनका-सौं अपने जन कौ गुन मानत मेरु-समान। सकुचि गनत अपराध-समुद्रहिं बूँद- तुल्य भगवान-१-८।
क्रि. स.
[सं. गणन, हिं. गिनना]


गनत
ध्यान में लाते हैं,महत्व को समझते हैं।
राम भक्तबत्सल निज बानौं। जाति, गोत, कुल, नाम गनत नहिं, रंक होइ कै रानौं-१-११।
क्रि. स.
[सं. गणन, हिं. गिनना]


गनत
न गनत काहूँ- किसी को कुछ नहीं समझते, बदते या मानते हैं, बहुत तुच्छ समझते हैं। उ.- एक एक न गनत काहूँ, इक खिलावत गाय -१०-२६।
मु.


गनत
गिनते-गिनते, हिसाब लगाते लगाते, जोड़ते-जोड़ते।
अँखियाँ हरि दरसन की भूखी।….।अवधि गनत इकटक मग जोवत तब एती नहीं झूँखी-३० २९।
क्रि. स.
[सं. गणन, हिं. गिनना]


गनती
गिनती, गणना।
(क) गाइ-गनती करन जैहैं, मोहि लै नँदराइ–६७६। (ख) गनती करत ग्वाल गैयनि की, मोहिं नियरैं तुम रैहौ-६८०।
संज्ञा
[सं. गणना, हिं. गणना, गिनती]


गनती
कौने गनती- किस हिसाब में, बिलकुल तुच्छ, नगण्य। उ.- तुम हरता करता प्रभु जू, मातु-पिता कौने गनती-१२२८।
मु.


गनना
गिनती करना या हिसाब लगाना।
क्रि. स.
[हिं. गिनना]


गनना
गिनती।
संज्ञा
[गिनना]


गननाना
शब्द से भर जाना, गूँजना।
क्रि. अ.
[हिं. गन-गन (अनु.)]


गननाना
घूमना, चक्कर में आना।
क्रि. अ.
[हिं. गन-गन (अनु.)]


गननायक
गणेश।
संज्ञा
[सं गण+नायक]


गननायक
शिव।
संज्ञा
[सं गण+नायक]


गनप
गणेश।
संज्ञा
[सं. गणप]


गनपति
गणों के नायक।
संज्ञा
[सं. गणपति]


गनपति
शिव।
संज्ञा
[सं. गणपति]


गनपति
गणेश।
संज्ञा
[सं. गणपति]


गनराय
गणेश।
संज्ञा
[सं. गणराज]


गनहिं
गिनते हैं, समझते हैं, मानते हैं।
सूरदास प्रभु सदा भक्तबस रंक न गनहिं न राइ -२६३६।
क्रि. स.
[हिं. गिनना]


गनहिं
गणों को।
संज्ञा
[सं. गण+ हिं. हिं (प्रत्य.)]


गनाइ
गिनाकर, गिनवा (लीजिए)।
बहुत विनय करि पाती पठई, नृप लीजैं सब पुहुप गनाइ–५८२।
क्रि. स.
[हिं. गिनाना]


गनाना
गिनती कराना।
क्रि. स.
[हिं. गिनना]


गनाना
गिना जाना, गिनती होना।
क्रि. अ.


गनायौ
मानता है, समझता है।
सूर कहो मुसुकाय प्रानप्रिय मो मन एक गनायौ - सा. ९५
क्रि. स.
[हिं. गिनना]


गनाल
एक तोप।
संज्ञा
[सं. गज+नाल]


कन्हैया
बाँका युवक।
संज्ञा
[सं. कृष्ण, प्रा. कण्ह]


कपट
छल, दंभ, धोखा।
बकी कपट करि मारन आई, सो हरिजू बैकुंठ पठाई - १ - ४।
संज्ञा
[सं.]


कपट
दुराव, छिपाव।
कपट हीन न मीन एरी मरत बिछुरत प्यार - सा० २४।
संज्ञा
[सं.]


कपटना
काटना, छाँटना।
(२) चुपके से किसी चीज का कुछ अंश निकाल लेना।
क्रि. स.
[सं. कपट]


कपटिन
छली- धूर्तों की।
भँवर कुरंग काग अरु कोकिल कपटिन की चटसार - २६८७।
संज्ञा
[हिं. कपट]


कपटी
छली, धूर्त।
साधु निंदक, स्वाद-लंपट, कपटी, गुरु-द्रोही। जेते अपराध जगत, लागत सब मोही - १ - १२४।
वि.
[हिं. कपट]


कपड़ा
वस्त्र, पट।
संज्ञा
[सं. कर्पट, प्रा. कप्पट, कप्पड़]


कपड़ा
पहनावा।
संज्ञा
[सं. कर्पट, प्रा. कप्पट, कप्पड़]


कपनी
कँपकँपी, काँपना, थरथराहट।
चारि चारि दिन सबै सुहागिनि री ह्वै चुकी मैं स्वरूप अपनी। कोउ अपने जिय मान करै माई हो मोहि तौ छुटति अति कपनी - १६६२।
संज्ञा
[सं. कंपन]


कपरा
वस्त्र, पट।
संज्ञा
[हिं. कपड़ा]


गनावत
गिनाते हैं, गिनती कराते हैं, महत्व समझाते हैं।
मेंढा मढ़ी मगर गुडरारो मोर आपु मनवाह गनावत-९७८।
क्रि. स.
[हिं. गिनाना]


गनावन
गणना कराने (के लिए), हिसाब लगवाने (के उद्देश्य से)।
कस्यप रिषि सुर तात, सु लगन गनावन रे-१०-२८।
क्रि. स.
[हिं. गिनाना]


गनावै
गिना रही है।
क्रि. स.
[हिं. गिनाना]


गनावै
बता रही है, संकेत कर रही है।
सूरज प्रभु मिलाप हित स्यानी अनमिल उक्ति गनावै -सा. १५।
क्रि. स.
[हिं. गिनाना]


गनि
समझ कर, अनुमान करके।
अब मिथ्या तप, जाप, ज्ञान सब प्रगट भई ठकुराई। सूरदास उद्धार सहज गनि, चिंता सकल गँवाई-१-२०७।
क्रि. स.
[हिं. गिनना]


गनि
गिनाकर, गणना करके।
सूर-प्रभु चरित अनगित, न गनि जाहिं -४-११।
क्रि. स.
[हिं. गिनना]


गनिका
एक वेश्या जिसका उद्धार तोते को राम नाम पढ़ाते समय हो गया था।
संज्ञा
[सं. गणिका]


गनिका
वेश्या।
गनिका-सुत सोभा नहिं पावत जाके कुल कोऊ न पिता री-१-३४।
संज्ञा
[सं. गणिका]


गनिका
धन के लोभ से प्रेम करनेवाली स्त्री।
संज्ञा
[सं. गणिका]


गनिका
एक फूल।
संज्ञा
[सं. गणिका]


गनिका
एक वृक्ष।
संज्ञा
[सं. गणिका]


गनिकै
गिनकर, गणना करके, हिसाब लगाकर।
(नंद जू) आदि जोतिसी तुम्हरे घर कौ, पुत्र-जन्म सुनि आयौ। लगन सोधि सब जोतिष गनिकै, चाहत तुमहिं सुनायो-१०-८६।
क्रि. स.
[हिं. गिनना]


गनियत
गिनते हैं, गणना करते हैं।
कुसुमित धर्म-कर्म कौ मारग जउ कोउ करत बनाई। तदपि बिमुख पाँती सो गनियत, भक्ति हृदय नहिं आइ–१-९३।
क्रि. स.
[हिं. गिनना]


गनियत
मानते हैं, ध्यान देते हैं।
तुम्हरी प्रीति हमारी सेवा गनियत नाहिन कातें-२५२८।
क्रि. स.
[हिं. गिनना]


गनियारी
एक पौधा।
संज्ञा
[सं. गणिकारी]


गनियै
गिनिए, गणना कीजिए, शुमार लगाइए।
कहा कृपिन की माया गनियै, करत फिरत अपनी अपनी-१-३९।
क्रि. स.
[हिं. गिनना]


गनी
गिनी, गिनकर, गणना करके।
अर्थ, धर्म अरु काम, मोक्ष फल, चारि पदारथ देत गनी- १-३९।
क्रि. स.
[हिं. गिनना]


गनी
गणना, गिननी।
संज्ञा
[हिं. गिनती]


गनी
कहा गनी- क्या गिनती है, क्या समझा जाता है, तुच्छ या नगण्य है। उ.- इन्द्र समान हैं जिनके सेवक नर बपुरे की कहा गनी-१-३९।
मु.


गनी
धनी या धनवान।
वि.
[अ. ग़नी]


गनीम
लुटेरा।
संज्ञा
[अ. गनीम]


गनीम
शत्रु।
संज्ञा
[अ. गनीम]


गनीमत
लूट का माल।
संज्ञा
[अ. गनीमत]


गनीमत
मुफ्त या बेमेहनत का माल।
संज्ञा
[अ. गनीमत]


गनीमत
बड़ी बात, संतोष की बात।
संज्ञा
[अ. गनीमत]


गनेस
हिन्दुओं के पाँच प्रधान देवताओं में एक जिनको महादेवजी का पुत्र माना गया है और जो उनके गणों के अधिपति हैं।
संज्ञा
[सं. गणेश]


गनेस्वर
गणों के नायक, गणेश जी।
गौरि गनेस्वर बीनऊँ (हो) - १० - ४०।
संज्ञा
[सं. गण+ईश्वर]


गनै
समझे, माने, महत्व का जाने।
(क) यह ब्रत धारे लोक मैं बिचरै समकरि गनै महामनि-काँचै - २०११। (ख) चरनसरोज बिना अवलोक, को सुख घरनि गनै- ९ - ५३।

(ग) रुक्म बरबस ब्याहि दैहै गनै पितहि न माई - १० उ.११३।

क्रि. स.
[हिं. गिनना]


गनै
गिनता है।
भूमि रेनु कोउ गनै, नक्षत्रनि गनि समुझावै। कह्मौ चहै अवतार, अन्त सोऊ नहिं पावै - २ - ३६।
क्रि. स.
[हिं. गिनना]


गनैगौ
गिनेगा,मानेगा, समझेगा।
जेइ निरगुन गुनहीन गनैगो सुनि सुन्दर अलसात - २२८२।
क्रि. स.
[हिं. गिनना]


गनो, गनौ
गिनो, गणना करो।
क्रि.
[हिं. गिनना]


गनो, गनौ
ध्यान लगायो
दधिसुत-बाहन मेखला लैके बैठि अनईस गनौ री - सा. उ. ५२।
क्रि.
[हिं. गिनना]


गनौं
गिन लूँ, अनुमानूँ, शुमार लगाऊँ।
जिह्वा रोम रोम प्रति नाहीं, पौरुष गनौं तुम्हार - ९ - १४७।
क्रि. स.
[हिं. गनना, गिनना]


गनौ
समझो, मानों, स्वीकार करो।
मोहिं बिधि, बिष्नु, सिव, इन्द्र, रवि ससि गनौ, नाम मम लेइ आहुतिनि डारौ - ४ - ११।
क्रि. स.
[सं. गणन, हिं. गिनना]


गन्ना
ईख, ऊख।
संज्ञा
[सं. कांड]


गन्नी
टाट।
संज्ञा
[हिं. गोन या गून=रस्सी]


गन्नी
रीहा घास आदि से बना कपड़ा।
संज्ञा
[हिं. गोन या गून=रस्सी]


गप
इधर-उधर की सत्य-असत्य बात।
संज्ञा
[सं. कल्प, प्रा. कप्प]


गप
सारहीन बात।
संज्ञा
[सं. कल्प, प्रा. कप्प]


गप
झूठी बात।
संज्ञा
[सं. कल्प, प्रा. कप्प]


गप
झूठी सूचना।
संज्ञा
[सं. कल्प, प्रा. कप्प]


गप
डींग।
संज्ञा
[सं. कल्प, प्रा. कप्प]


गप
झटपट निगलने का शब्द।
संज्ञा
[अनु.]


गप
खाने या निगलने की क्रिया।
संज्ञा
[अनु.]


गपकना
झटपट खा लेना या निगलना।
क्रि. स.
[हिं. गप (अनु.) + करना]


गपड़चौथ
सारहीन बातचीत
संज्ञा
[हिं. गपोड़=बातचीत + चौथ]


गपड़चौथ
लीप-पोत की हुई, ऊटपटाँग।
वि.


गपत
व्यर्थ की बात या बकवाद करता है।
क्रि. स.
[हिं. गपना]


गपना
व्यर्थ की बात या बकवाद करना।
क्रि. स.
[हिं. गप (अनु.)]


गपिया
गप्पी, बकवादी।
वि.
[हिं. गप]


गपिहा
गप्प हाँकने वाला, गप्पी।
वि.
[हिं. गप+हा (प्रत्य.)]


गपोड़, गपोड़ा
व्यर्थ की बात या बकवाद।
संज्ञा
[हि. गप]


गपोड़, गपोड़ा
झूठी बात करनेवाला।
वि.


गपोड़बाजी
व्यर्थ की बकवाद।
संज्ञा
[हिं. गपोड़ा+ फ़ा. बाजी]


गप्प
व्यर्थ की बात, बकवाद।
संज्ञा
[हिं. गप]


गप्पा
धोखा।
संज्ञा
(अनु. गप]


ग्‍प्‍पी
डींग मारनेवाला।
वि.
[हिं. गप]


गप्‍पी
बकवाद करनेवाला।
वि.
[हिं. गप]


गप्‍पी
झूठा।
वि.
[हिं. गप]


गफ्पा
बड़ा सा कौर।
संज्ञा
[हिं. गप (अनु.)]


गफ्पा
लाभ, फायदा।
संज्ञा
[हिं. गप (अनु.)]


गफ
घनी या गझिन (बुनावट)।
वि.
[सं. ग्रप्स=गुच्छा]


गफलत
लापरवाही।
संज्ञा
[अ. ग़फ़लत]


गफलत
बेखबरी।
संज्ञा
[अ. ग़फ़लत]


गफलत
भूलचूक।
संज्ञा
[अ. ग़फ़लत]


गफिलाई
असावधानी।
संज्ञा
[फा. ग़ाफ़िल]


गफिलाई
बेखबरी।
संज्ञा
[फा. ग़ाफ़िल]


गफिलाई
भ्रम, मोह।
संज्ञा
[फा. ग़ाफ़िल]


गबड़ी, गबड्डी
एक खेल, कबड्डी का खेल।
संज्ञा
[हिं. कबड्डी]


गबदी
एक पेड़।
संज्ञा
[देश.]


गब्बर
घमंडी, अभिमानी।
वि.
[सं. गर्व, पा. गब्ब]


गब्बर
चुप्पी साधनेवाला, काम टालनेवाली, मट्टर।
वि.
[सं. गर्व, पा. गब्ब]


गब्बर
मूल्यवान।
वि.
[सं. गर्व, पा. गब्ब]


गब्बर
धनी।
वि.
[सं. गर्व, पा. गब्ब]


गब्भा
रुई का गद्दा।
संज्ञा
[सं. गर्भ, पा. गब्भ]


गब्भा
चारे का गट्ठा।
संज्ञा
[सं. गर्भ, पा. गब्भ]


गभस्तल
गभस्तिमान नामक द्वीप।
संज्ञा
[सं. गभस्तिमान]


गभस्ति
किरण।
संज्ञा
[सं.]


गभस्ति
सूर्य।
संज्ञा
[सं.]


गभस्ति
हाथ।
संज्ञा
[सं.]


गबद्द
मूर्ख।
वि.
[हिं. गावदी]


गबन
चोरी से माल उड़ा देना।
संज्ञा
[अ. ग़बन]


गबरगंड
मूर्ख, नासमझ।
वि.
[हिं. गबर + सं. गंड]


गबरहा
गोबर मिला या लगा हुआ।
वि.
[हिं. गोबर+ हा (प्रत्य.)]


गबरा
घमंडी।
वि.
[हिं. गब्बर]


गबरा
धनी।
वि.
[हिं. गब्बर]


गबरू
उठती जवानी का।
वि.
[फ़ा. खूबरू]


गबरू
भोला-भाला।
वि.
[फ़ा. खूबरू]


गबरू
पति, दूल्हा।
संज्ञा


गबरून
एक मोटा कपड़ा।
संज्ञा
[फ़ा. ग़बरून]


गभस्ति
अग्नि की स्त्री, स्वाहा।
संज्ञा


गभस्तिमान्
सूर्य।
संज्ञा
[सं.]


गभीर
गहरा।
वि.
[सं. गंभीर]


गभीर
घना।
वि.
[सं. गंभीर]


गभीर
घोर।
वि.
[सं. गंभीर]


गभीर
शांत, सौम्य।
वि.
[सं. गंभीर]


गभुआर, गभुवार
गर्भ काल का (बाल)।
वि.
[सं. गर्भ, पा गब्भ+आर या वार (प्रत्य.)]


गभुआर, गभुवार
जिसके जन्म-काल के बाल न कटे हों, जिसका मुंडन न हुआ हो।
वि.
[सं. गर्भ, पा गब्भ+आर या वार (प्रत्य.)]


गभुआर, गभुवार
छोटा, नादान।
वि.
[सं. गर्भ, पा गब्भ+आर या वार (प्रत्य.)]


गभुआरी
गर्भ-काल की (बालों की लटें)।
वि.
[हिं. गभुआर]


कपरा
पहनावा।
संज्ञा
[हिं. कपड़ा]


कपर्द, कपर्दक, कपर्दिका
शिव की जटा।
संज्ञा
[सं.]


कपर्द, कपर्दक, कपर्दिका
कौड़ी।
संज्ञा
[सं.]


कपर्दिनी
दुर्गा, शिवा, भवानी।
संज्ञा
[सं.]


कपर्दी
शिव।
संज्ञा
[सं. कपर्दिन्]


कपाट
किवाड़, पट।
(क) प्रगट कपाट बिकट दीन्हे हे, बहु जोधा रखवारे। तैंतिस कोटि देव बस कीन्हे, ते तुम सौं क्यौं हारे - ९ - १०५। (ख) काजर कुलफ मेलि मैं राखे पलक कपाट दये री–सा० उ० ७। (ग) नसुत कील कपाट सुलच्छन दै दृग द्वार अकोट–सा० उ० १६।
संज्ञा
[सं.]


कपाटनि
दरवाजे।
तुम बिनु भूलोइ भूलौ डोलत। लालच लागि कोटि देवनि के, फिरत कपाटनि खोलत - १ - १७७।
संज्ञा
[सं. कपाट +नि (प्रत्य.)]


कपार, कपाल
खोपड़ी।
संज्ञा
[सं. कपाल]


कपार, कपाल
मस्तक।
संज्ञा
[सं. कपाल]


कपार, कपाल
अदृष्ट, भाग्य।
संज्ञा
[सं. कपाल]


गभुआरी
नादान, छोटी।
वि.
[हिं. गभुआर]


गभुआरे
गर्भ के (बाल)।
गभुआरे सिर केस हैं, बर घूँघरवारे - १० - १३४।
वि.
[हिं. गभुआर]


गम
राह, मार्ग।
संज्ञा
[सं.]


गम
सहवास।
संज्ञा
[सं.]


गम
(किसी स्थान या विषय में) प्रवेश, पहुँच, पैठ।
(क) जहाँ न काहू कौ गम, दुसह दारुन तम, सकल बिधि बिषम, खल मल खानि - १ - ७७। (ख) असुरपति अति ही गर्व धरयौ। तिहूँ भुवन भरि गम है मेरो मो सन्मुख को आउ १ (ग) स्वर्ग-पतार माहिं गम ताको - ९ - ७४।
संज्ञा
[सं. गम्य]


गम
गम करना- चटपट खा लेना।
मु.


गम
जो जानी जा सकें, जो ज्ञात हो सके।
प्रभु की लीला गम नहीं, कियो गब अति अंग - ४९२।
वि.


गम
दुख, शोक।
संज्ञा
[अ. गम]


गम
गम खाना- क्षमा करना, ध्यान न देना।

गम गलत- दुख भुलाने का प्रयत्न।

मु.


गम
चिंता, फिक्र।
संज्ञा
[अ. गम]


गमक
जानेवाला व्यक्ति।
संज्ञा
[सं.]


गमक
सूचक, बतलानेवाला (व्यक्ति)।
संज्ञा
[सं.]


गमक
एक स्वर से दूसरे पर जाने का एक भेद (संगीत)।
संज्ञा
[सं.]


गमक
तबले की ध्वनि।
संज्ञा
[सं.]


गमक
सुगंध, महक।
संज्ञा
[सं. गमक = फैलनेवाला]


गमकना
महकना, सुगंध फैलाना।
क्रि. अ.
[हिं. गमक]


गमकीला
सुगंधित, महकनेवाला।
वि.
[हिं. गमक + ईला (प्रत्य.)]


गमखोर
सहनशील।
वि.
[फा. ग़म+ख्‍वार]


गमखोरी
सहनशीलता।
संज्ञा
[फ़ा. ग़म+ख्वारी]


गमगीन
दुखी, उदास।
वि.
[फ़ा. गम+गीन]


गमत
मार्ग, पथ।
संज्ञा
[सं. गमन या गमथ = पथिक]


गमत
व्यवसाय, धंधा।
संज्ञा
[सं. गमन या गमथ = पथिक]


गमथ
राह, मार्ग।
संज्ञा
[सं.]


गमथ
व्यवसाय, धंधा।
संज्ञा
[सं.]


गमथ
राही, पथिक।
संज्ञा
[सं.]


गमन
जाना, चलने की क्रिया, यात्रा करना।
अस्व-निमित उत्तर दिसि कैं पथ गमन धनंजय कीन्हौं - १ - २९।
संज्ञा
[सं.]


गमन
संभोग, सहवास।
संज्ञा
[सं.]


गमन
राह, मार्ग।
संज्ञा
[सं.]


गमन
सवारी।
संज्ञा
[सं.]


गमनना
जाना, गमन करना।
क्रि. अ.
[सं. गमन]


गमाना
खोना, गँवाना।
क्रि. स.
[हिं. गँवाना]


गमार
गाँव का, देहाती।
वि.
[हिं. गँवार]


गमार
मूर्ख, असभ्य, उजड्ड।
वि.
[हिं. गँवार]


गमि
पहुँच, प्रवेश, पैठ।
तिहूँ भुवन भरि गमि है मेरो मो सम्मुख को आउ - २३७७।
संज्ञा
[हिं. गम]


गमिना
ध्यान देना।
क्रि. स.
[हिं. गम=ध्यान देना]


गमी
शोक की अवस्था।
संज्ञा
[अ. ग़म, ग़मी]


गमी
मृत व्यक्ति का शोक।
संज्ञा
[अ. ग़म, ग़मी]


गमी
मृत्यु।
संज्ञा
[अ. ग़म, ग़मी]


गम्मत
विनोद, हँसी।
संज्ञा
[मराठी]


गम्मत
मौज, बहार।
संज्ञा
[मराठी]


गम्य
जाने योग्य।
वि.
[सं.]


गम्य
प्राप्य, लभ्य, साध्य।
तन-रिपु काम चित रिपु लीला ज्ञान गम्य नहिं याते - ३११५।
वि.
[सं.]


गम्य
संभोग या सहवास के योग्य।
वि.
[सं.]


गम्य
पहुँच, प्रवेश, पैठ।
तिहूँ भुवन भरि गम्य है जाकौ नर नारी सब गाउ - ११५८।
संज्ञा
[सं.]


गम्यता
गमन।
संज्ञा
[सं. गम्य]


गम्हीर
गहन, जिसको पार करना कठिन हो।
आठ रवि लें देख तब तें परत नाहिं गम्हीर - सा. ४४।
वि.
[सं. गंभीर]


गयंद
हाथी, गज।
संज्ञा
[सं. गजेंद्र, प्रा. गयिंद, गइन्द्र]


गयंद
दोहे का एक भेद।
संज्ञा
[सं. गजेंद्र, प्रा. गयिंद, गइन्द्र]


गय
हाथी।
(क) जो बनिता सुत-जूथ सकेले, हय गय-बिमन घनेरो। सबै समर्पौ सूर स्याम कौं, यह साँचौ मत मेरो - १ - २६६। (ख) अमरा सिव रबि ससि चतुरानन हय गय बसह हंस मृग जावत।
संज्ञा
[सं. गज, प्रा. गय]


गय
घर, मकान।
संज्ञा
[सं.]


गमनपत्र
यात्रा का अधिकारपत्र।
संज्ञा
[सं.]


गमना
जाना, चलना।
क्रि. अ.
[सं. गमन]


गमना
शोक करना, दुख मनाना।
क्रि. अ.
[अ. ग़म=रंज+ना (प्रत्य.)]


गमना
परवाह करना, ध्यान देना।
क्रि. अ.
[अ. ग़म=रंज+ना (प्रत्य.)]


गमनाक
दुख भरा।
वि.
[फ़ा. ग़म+नाक]


गमला
छोटे पौधे लगाने का पात्र।
संज्ञा


गमाई
बीत गयी,समाप्त हुई।
तृतीय पहर जब रैनि गमाई - १०७२।
क्रि. अ.
[सं. गमन, हिं. गमना]


गमाई
खो दी, गँवा दी।
(क) इंद्र ढीठ बलि खाइ हमारी देखौ अकल गमाई - ९८५। (ख) बार बार कहै कुँवर राधिका मोतिसरी कहाँ गमाई–१५४४।

(ग) लोक लाज की कानि गमाई फिरत गुडीबस डोरी - १४७२। (घ) हरि-ग्रह जननी हित न सरस कह सुरभी सुतर गमाई –सा. १६।

क्रि. स.
[हिं. गमाना]


गमाए
खोकर, खो दिये, गँवाए।
कीन्ही प्रीति प्रगट मिलिबे की अँखिया सर्म गमाए।
क्रि. स.
[हिं. गमाना]


गमागम
आना, जाना।
संज्ञा
[सं. गर्म+ आगम]


गय
आकाश।
संज्ञा
[सं.]


गय
धन।
संज्ञा
[सं.]


गय
प्राण।
संज्ञा
[सं.]


गय
श्री रामकी सेना का एक बानर सेनापति
संज्ञा
[सं.]


गय
एक राजर्षि।
संज्ञा
[सं.]


गय
पुत्र, संतान।
संज्ञा
[सं.]


गय
एक असुर।
संज्ञा
[सं.]


गय
गया तीर्थ।
संज्ञा
[सं.]


गयन
मार्ग, राह, गैल।
संज्ञा
[सं. गमन]


गयन
गमन, प्रस्थान।
ना करु बिलँब, भूषन करत दूषन,चिहुर बिहुर ना ना करत गयन - २२१४।
संज्ञा
[सं. गमन]


गयनाल
बड़ी तोप।
संज्ञा
[हिं. गज+नाल]


गयल
मार्ग, राह।
संज्ञा
[हिं. गैल]


गयवली
एक पेड़।
संज्ञा
[देश.]


गयवा
मोहेली मछली।
संज्ञा
[देश.]


गयशिर
आकाश।
संज्ञा
[सं.]


गयशिर
गया के समीप एक पर्वत जो गय नामक असुर के सिर पर माना जाता है।
संज्ञा
[सं.]


गयशिर
गया तीर्थ।
संज्ञा
[सं.]


गया
बिहार या मगध देश का एक पुण्य स्थान जो प्राचीन समय में प्रधान यज्ञस्थल था। यह तीर्थ श्राद्ध और पिंडदान के लिए बहुत प्रसिद्ध है।
अस्व-जज्ञहु जौ कीजै, गया, बनारस अरु केदार–२- ३।
संज्ञा
[सं.]


गया
गया तीर्थ में की जानेवाली पिंडोदक आदि क्रियाएँ।
संज्ञा


गया
‘जाना’ क्रिया का भूतकालिक रूप, प्रस्थानित हुआ।
क्रि. अ.
[सं. गम]


गया
गया-गुजरा (बीता)- बुरा, नष्ट-भ्रष्ट।
मु.


गयापुर
गया तीर्थ।
संज्ञा
[सं.]


गयाल
वह जायदाद जिसका कोई मालिक न हो।
संज्ञा
[देश.]


गयावाल
गया तीर्थं का पंडा।
संज्ञा
[हिं. गया+वाल (प्रत्य.)]


गयो
प्रस्थानित हुआ।
क्रि. अ.
[हिं. गया]


गयो
बीत गयो, समाप्त हुआ।
जनम साहिबी करत गयौ–१६४।
क्रि. अ.
[हिं. गया]


गरंड
चक्की के चारो ओर का घेरा जिसमें पिसा आटा गिरता है।
संज्ञा
[सं. गंड=मंडलाकार रेखा]


गरंथ
पुस्तक, ग्रंथ।
संज्ञा
[सं. ग्रंथ]


गर
गला, गरदन।
(क) कंचन मनि खोलि डारि, काँच गर बँधाऊँ - १ - १६६। (ख) लोचन सजल, प्रेम-पुलकित तन, गर-अंचल, कर माल - १ - १८९।

(ग) सूर परस्पर करत कुलाहल गर-सृग पहिरावैनी–९ - ११। (घ) मुंड-माला मनौ हर-गर - १० - १७०।

संज्ञा
[हिं. गल]


गर
कडुआ और मादक रस।
संज्ञा
[सं.]


गरज
प्रयोजन, मतलब।
प्रीति के बचन बाँचे बिरह अनल आँचे अपनी गरज को तुम एक पाँइ नाचे - २००३।
संज्ञा
[अ. ग़रज]


गरज
आवश्यकता।
संज्ञा
[अ. ग़रज]


गरज
चाह, इच्छा।
संज्ञा
[अ. ग़रज]


गरज
गरज का बावला- बहुत अधिक जरूरतमंद, जो अपनी इच्छा पूरी करने के लिए भला-बुरा सभी कुछ करने को तैयार हो।
मु.


गरज
निदान, आखिरकार।
क्रि. वि.


गरज
अस्तु, अच्छा, खैर।
क्रि. वि.


गरजत
गंभीर और तुमुल शब्द करता है।
गरजत क्रोध-लोभ कौ नारौ, सूझत कहुँ न उतारौ - १ - २०९।
क्रि. अ.
[हिं. गरजना]


गरजत
गर्व से ललकारता है।
कहा कहौं हरि केतिक तारे, पावन पद परतंगी। सूरदास यह बिरद स्रवन सुनि, गरजत अधम अनंगी - १ - २१।
क्रि. अ.
[हिं. गरजना]


गरजत
चटकता है, तड़कता है, कड़कता है।
क्रि. अ.
[हिं. गरजना]


गरजन
गरज,कड़क, गंभीर शब्द।
संज्ञा
[सं. गर्जन]


कपार, कपाल
खप्पर।
संज्ञा
[सं. कपाल]


कपालक
साधु जो हाथ में नर-कपाल लिये रहते हैं और शैव मत मानते हैं।
संज्ञा
[सं. कापालिक]


कपालमाली
शिव, महादेव जो मनुष्य की खोपड़ियों की माला पहनते हैं।
संज्ञा
[सं.]


कपालिक
साधु जो मनुष्य की खोपड़ी लिये रहते हैं और भैरव या शक्ति को बलि चढ़ाते हैं।
जा परसैं जीतैं जग-सैनी, जमन, कपालिक, जैनी–९ - ११।
संज्ञा
[सं. कापालिक]


कपालिका
खोपड़ी।
संज्ञा
[सं.]


कपालिका
काली, रणचंडी।
संज्ञा
[सं. कापालिक= शिव]


कपालिनी
दुर्गा, काली।
संज्ञा
[सं.]


कपाली
शिव।
संज्ञा
[सं. कपालिन्]


कपाली
भैरव।
संज्ञा
[सं. कपालिन्]


कपाली
भिक्षुक।
संज्ञा
[सं. कपालिन्]


गरगज
नाव की ऊपरी छत।
संज्ञा
[हिं. गढ़+गज]


गरगज
फाँसी का तख्ता।
संज्ञा
[हिं. गढ़+गज]


गरगज
बहुत बड़ा, विशाल।
वि.


गरगरा
गराड़ी, चरखी।
संज्ञा
[अनु.]


गरगवा
नर गौरैया।
संज्ञा
[देश.]


गरगवा
एक घास।
संज्ञा
[देश.]


गरगाव
डूबने की क्रिया या भाव।
संज्ञा
[फ़ा. ग़र्क, गरक़ाब]


गरगाव
डूबा हुआ।
वि.


गरगाव
बहुत लीन।
वि.


गरज
गंभीर शब्द।
संज्ञा
[सं. गर्जन]


गर
एक रोग।
संज्ञा
[सं.]


गर
विष, जहर।
संज्ञा
[सं.]


गर
बनानेवाला।
प्रत्‍य.
[फ़ा.]


गरक
डूबा हुआ।
वि.
[अ. ग़र्क]


गरक
नष्ट, बरबाद।
वि.
[अ. ग़र्क]


गरक
(काम में) लीन।
वि.
[अ. ग़र्क]


गरकाब
डूबने का भाव।
संज्ञा
[हिं. गरक]


गरकाब
डूबा हुआ, निमग्न।
वि.


गरगज
किले की दीवारों पर तोपों लिए बना बुर्ज।
संज्ञा
[हिं. गढ़+गज]


गरगज
ऊँचा टीला जहाँ युद्ध-सामग्री रखी जाती थी।
संज्ञा
[हिं. गढ़+गज]


गरजी
चाहनेवाला,गाहक।
तुम्हरी प्रीति ऊधो पूरब जनम की अब जु गये मेरे तनहु के गरजी - ३१६२।
वि.
[हिं.गरज़+ ई(प्रत्य.)]


गरजू
मतलब रखनेवाला।
वि.
[हिं. गरजी]


गरजू
इच्छा रखनेवाला।
वि.
[हिं. गरजी]


गरट्ट
समूह,झुंड।
संज्ञा
[सं. ग्रन्थ, पा. गंठ, हिं. गट्ठ]


गरत
गलता है, क्षीण होता है।
अब सुनि सूर कान्ह केहरि के बिन गरत गात जैसे ओरे - २८१८।
क्रि. अ.
[हिं. गलना]


गरतौ
नष्ट होता, वृथा हो जाता।
तुम गुन की जैसे मिति नाहिंन, हों अघ कोटि बिचरतौ। तुम्हैं-हमैं प्रतिबाद भए तैं गौरव काकौ गरतौ - १ - २०३।
क्रि. अ.
[हिं. गलना]


गरद
धूल, राख, खाक।
संज्ञा
[फ़ा. गर्द]


गरद
गरद समोयौ- धूल में मिला दिया, नष्ट हो गये। उ.- सौ भैया दुरजोधन राजा, पल मैं गरद समोयौ - १-४३।
मु.


गरद
विष देनेवाला।
संज्ञा
[सं.]


गरद
विष।
संज्ञा
[सं.]


गरद
एक कपड़ा।
संज्ञा
[सं.]


गरदन
धड़ और सिर के बीच का अंग, ग्रीवा।
संज्ञा
[फा.]


गरदन
गरदन उठाना- विरोध या विद्रोह करना।

गरदन ऐंठना (मरोड़ना)- (१) गला दबाकर मार डालना। (२) कष्ट पहुँचाना। गरदन काटना - (१) सिरकाटना (२) हानि पहुँचाना। गरदन झुकना - (१) नम्र या अधीन होना। (२) लज्जित होना। (३) बेहोश होना। (४) मरना। गरदन न उठाना- (१) चुपचाप सहन करना। (२) लज्जित होना। (३) दुख या बीमारी से पड़े रहना। गरदन नापना- अपमान करना। गरदन पर- जिम्मे, ऊपर। गरदन पर बोझ रखना- भारी काम सौंपना। गरदन पर बोझ होना- (१) बुरा लगना। (२) भार होना। गरदन मारना - (१) मार डालना। (२) बहुत हानि पहुँचाना।

मु.


गरदन
जुलाहों की एक लकड़ी, साल।
संज्ञा
[फा.]


गरदन
बरतन आदि का ऊपरी पतला भाग।
संज्ञा
[फा.]


गरदना
मोटी गरदन।
संज्ञा
[हिं. गरदन]


गरदना
गरदन पर लगनेवाला झटका या थप्पड़।
संज्ञा
[हिं. गरदन]


गरदनियाँ
गरदन में हाथ डालने की क्रिया।
संज्ञा
[हिं. गरदन+इयाँ (प्रत्य.)]


गरदनी
कुर्ते आदि का गला।
संज्ञा
[हिं. गरदन]


गरदनी
गले का एक गहना।
संज्ञा
[हिं. गरदन]


गरजन
गरज का भाव।
संज्ञा
[सं. गर्जन]


गरजन
गरजने की क्रिया।
संज्ञा
[सं. गर्जन]


गरजना
गंभीर शब्द करना।
क्रि. अ.
[सं. गर्जन]


गरजना
चटकना, तड़कना।
क्रि. अ.
[सं. गर्जन]


गरजना
ललकारना, चुनौती देना।
क्रि. अ.
[सं. गर्जन]


गरजना
गरजनेवाला, जोर से बोलनेवाला।
वि.


गरजमंद
जरूरतवाला।
वि.
[फ़ा. ग़रज़मन्द]


गरजमंद
इच्छा रखनेवाला।
वि.
[फ़ा. ग़रज़मन्द]


गरजी
गंभीर शब्द करने लगी, जोर से बोली।
धर-अम्बर लौं रूप निसाचरि गरजी बदन पसारि - ९ - १०४।
क्रि. अ.
[हिं. गरजना]


गरजी
मतलब गाँठनेवाला, प्रयोजन रखनेवाला।
वि.
[हिं.गरज़+ ई(प्रत्य.)]


गरदुआ
एक तरह का ज्वर।
संज्ञा
[हिं. गरदन]


गरधरन
विष धारण करनेवाले, शिव।
संज्ञा
[सं.]


गरना
गल जाना।
क्रि. अ.
[हिं. गलना]


गरना
चुभ जाना।
क्रि. अ.
[हिं. गड़ना]


गरना
निचोड़ा जाना।
क्रि. अ.
[हिं. गारना]


गरना
निचुड़ना।
क्रि. अ.
[हिं. गारना]


गरनाल
चौड़े मुंह की तोप।
संज्ञा
[हिं. गर+नली]


गरप्रिय
विष पीनेवाले शिव।
संज्ञा
[सं.]


गरब
घमंड, अभिमान।
संज्ञा
[सं. गर्व]


गरब
हाथी को मद।
संज्ञा
[सं. गर्व]


गरबई
गर्व का भाव।
संज्ञा
[सं. गर्व.]


गरबगहेला
गर्वयुक्त, अभिमानी।
वि.
[हिं. गर्व+गहना=ग्रहण करना]


गरबत
गर्व करता है, घमंड या अभिमान दिखाता है।
इहिं तन छन-भंगुर के कारन, गरबत कहा गँवार - १ - ८४।
क्रि. अ.
[सं. गर्व, हिं. गरबना]


गरबना
गर्व या शेखी करना।
क्रि. अ.
[सं. गर्व.]


गरबाइ
गर्व करना, घमंड में आना।
रूप जोबन सकल मिथ्या, देखि जनि गरबाइ। ऐसे हीं अभिमान-आलस, काल ग्रसिहै आइ - १ - ३१५।
क्रि. अ.
[हिं. गरबाना]


गरबाए
गर्व किया, घमंड में आये।
मागधपति बहु जीति महीपति, कछु जिय मैं गरबाए। जीत्यौ जरासंध, रिपु मारयौ, बल करि भूप छुड़ाए - १ - १०९।
क्रि. अ.
[हिं. गरबाना]


गरबाऊ
गर्व हुआ, अभिमान किया।
जब हिरनाच्छ जुद्ध अभिलाष्यौ, मन मैं अति गरबाऊ। धरि बाराह रूप सो मारयौ, लै छिति दंत अगाऊ - १० - २२१।
क्रि. अ.
[हिं. गरबाना]


गरबाना
अभिमान या घमंड करना।
क्रि. अ.
[सं.गर्व.]


गरबानो, गरबानौ
घमंड में आया, अभिमान किया।
भक्ति कब करिहौ जनम सिरानौ। बालापन खेलत ही खोयौ, तरुनाई गरबानौ - १ - ३२९।
क्रि. अ.
[हिं. गरबाना]


गरबाही
गले में बाँह डालने की क्रिया।
संज्ञा
[हिं. गलबाहीं]


गरदनी
कारनिस, कँगनी।
संज्ञा
[हिं. गरदन]


गरदर्प
साँप।
संज्ञा
[सं.]


गरदा
धूल, मिट्टी।
संज्ञा
[फ़ा. गर्द]


गरदान
घूम फिरकर एक ही स्थान पर आ जानेवाला।
वि.
[फ़ा.]


गरदान
एक तरह का कबूतर जो घूम फिर कर अपने स्थान पर आ जाता है।
संज्ञा


गरदान
शब्द रूप साधन।
संज्ञा


गरदान
फेर, चक्कर।
संज्ञा


गरदानना
शब्द-रूप साधना।
क्रि. स.
[फ़ा. गरदान]


गरदानना
बार बार कहना।
क्रि. स.
[फ़ा. गरदान]


गरदानना
मानना, आदर करना।
क्रि. स.
[फ़ा. गरदान]


गरम
तेज, उग्र।
वि.
[फ़ा. गर्म]


गरम
प्रबल, जोरशोर का।
वि.
[फ़ा. गर्म]


गरम
जिसके सेवन से गरमी बढ़े।
वि.
[फ़ा. गर्म]


गरम
आवेशयुक्त, उत्साहपूर्ण, जोश से भरा हुआ।
वि.
[फ़ा. गर्म]


गरमाई
गरमी।
संज्ञा
[हिं. गरम]


गरमागरमी
मुस्तैदी, जोश, उत्साह।
संज्ञा
[हिं. गरम+गरम]


गरमागरमी
कहा-सुनी।
संज्ञा
[हिं. गरम+गरम]


गरमाना
शरीर में गरमी आना, उष्ण होना।
क्रि. अ.
[हिं. गरम]


गरमाना
टेंट (हाथ) गरमाना- पास में रुपया पैसा आना या होना।
मु.


गरमाना
मस्ताना, मद से भर जाना।
क्रि. अ.
[हिं. गरम]


गरबित
गर्वयुक्त, अभिमानी।
दाउँ परयौ अहि जानि कै, लियौ अंग लपटाइ। काली तब गरबित भयौ, दियौ दाउँ बताइ - ५८९।
वि.
[सं. गर्व]


गरबीला
अभिमानी, घमंडी।
वि.
[सं. गर्व]


गरबीली
अभिमानिनी, गर्व करनेवाली।
दधि लै मथति ग्वालि गरबीली - १० - २९९।
वि.
[हिं. पुं. गर्वीला]


गरभ
गर्भाशय।
गरभ-बास दस मास अधोमुख, तहँ न भयौ बिस्राम - १ - ५७।
संज्ञा
[सं. गर्भ]


गरभ
अभिमान, घमंड।
संज्ञा
[सं. गर्व.]


गरभदान
ऋतु प्रदान, पेट रखना।
सज्ञा
[सं. गर्भाधान]


गरभाना
गर्भ से होना।
क्रि. अ.
[हिं. गर्भ]


गरभाना
गेहूँ आदि के पौधों में बाल लगना।
क्रि. अ.
[हिं. गर्भ]


गरभी
अभिमानी।
वि.
[हिं. गर्वी]


गरम
जलता हुआ, तप्त।
वि.
[फ़ा. गर्म]


कपास
रुई का पौधा।
संज्ञा
[सं. कर्पसि]


कपास
रुई।
संज्ञा
[सं. कर्पसि]


कपासी
कपास के फूल की तरह बहुत हल्के रंग का।
वि.
[हिं. कपास]


कपिंजल
चातक, पपीहा।
संज्ञा
[सं.]


कपिंजल
तीतर।
संज्ञा
[सं.]


कपिंजल
एक मुनि।
संज्ञा
[सं.]


कपि
बंदर।
संज्ञा
[सं.]


कपि
हनुमान।
काकी ध्वजा बैठि कपि किलकिहि, किहिं भय दुरजन डरिहै - १ - २६।
संज्ञा
[सं.]


कपि
हाथी।
संज्ञा
[सं.]


कपि
सूर्य।
संज्ञा
[सं.]


गरमाना
क्रोध करना, झल्लाना।
क्रि. अ.
[हिं. गरम]


गरमाना
कुछ परिश्रम करने के बाद पशुओं का तेजी पर आना।
क्रि. अ.
[हिं. गरम]


गरमाना
गरम करना, तपाना।
क्रि. स.


गरमाना
टेंट (हाथ) गरमाना- (१) रुपया देना। (२) रिश्वत या इनाम देना।
मु.


गरमाहट
गरमी, उष्णता।
संज्ञा
[हिं. गरम]


गरमी
ताप, उष्णता।
संज्ञा
[फ़ा. गर्मी]


गरमी
जी, उग्रता।
संज्ञा
[फ़ा. गर्मी]


गरमी
क्रोध, आवेश।
संज्ञा
[फ़ा. गर्मी]


गरमी
उमंग, जोश।
संज्ञा
[फ़ा. गर्मी]


गरमी
ग्रीष्म ऋतु।
संज्ञा
[फ़ा. गर्मी]


गरह
बुरी तरह से पकड़ने या कष्ट पहुँचानेवाला।
वि.


गरहन
काली तुलसी।
संज्ञा
[सं.]


गरहन
एक मछली।
संज्ञा
[देश.]


गरहन
चंद्र या सूर्य-ग्रहण।
संज्ञा
[सं. ग्रहण]


गरहन
पकड़ने की क्रिया।
संज्ञा
[सं. ग्रहण]


गरहर
नटखट चौपायों के गले में बँधा हुआ काठ का टुकड़ा, कुंदा।
संज्ञा
[हिं. गर= गल+ हर]


गरा
एक लता।
संज्ञा
[सं.]


गरा
गरदन, गला।
संज्ञा
[हिं. गला]


गरागरी
एक लता।
संज्ञा
[सं.]


गराज
गरज, गंभीर शब्द।
संज्ञा
[सं. गर्जन]


गररा
एक तरह का घोड़ा।
संज्ञा
[देश. गर्रा]


गररात
भीष्ण ध्वनि करता हुआ, गरजता हुआ।
सुनत मेघवर्तक साजि सैन लै आए।….। घहरात तरतरात गररात हहरात पररात झहरात माथ नाए - ९४४।
क्रि. अ.
[अनु.]


गरराना
गरजना, गड़गड़ाना, गंभीर या भीषण ध्वनि करना।
क्रि. अ.
[अनु.]


गररी
एक चिड़िया जिसका दर्शन अथवा लड़ना अशुभ माना जाता है। इसे किलँहटी, गलगलिया या सिरोही भी कहते हैं।
फटकत स्रवन स्वान द्वारे पर, गररी करत लराई। माथे पर ह्वै काग उड़ान्यौ, कुसगुन बहुतक पाई - ५४१।
संज्ञा
[देश.]


गरल
विष, गर, जहर।
अहि मयंक मकरंद कंद हति दाहक गरल जिवाए - २८५४।
संज्ञा
[सं.]


गरल
साँप का विष।
संज्ञा
[सं.]


गरल
घास का मुट्ठा, अँटिया या पूला।
संज्ञा
[सं.]


गरलधर
विषपान करनेवाले शिव।
संज्ञा
[सं.]


गरलधर
साँप।
संज्ञा
[सं.]


गरलारि
मरकतमणि, पन्ना।
संज्ञा
[सं.]


गरवा
भारी, गरुआ।
वि.
[सं. गुरु]


गरवा
गरदन, गला।
संज्ञा
[हिं. गला]


गरवाना
घमंड करना, अभिमान या गर्व करना।
क्रि. अ.
[हिं. गर्व]


गरवाने
घमंड या अभिमान में आ गये।
कहि कुसलातैं, साँची बातैं आवन कह्यौ हरि नाथै। कै गरवानै राजसभा अब जीवत हम न सुहाथै - ३४४१।
क्रि. अ.
[हिं. गरवाना]


गरवानौ
गर्व में चूर, अभिमान में भरा हुआ।
हँसे स्याम मुख हेरि कै धोवत गरवानो - २५७५।
वि.
[हिं. गरवाना]


गरव्रत
मोर, मयूर।
संज्ञा
[सं.]


गरसना
खाना, भक्षण करना।
क्रि. स.
[हिं. ग्रसना]


गरसना
पकड़ना, थामना, रोकना।
क्रि. स.
[हिं. ग्रसना]


गरह
ग्रह।
संज्ञा
[सं. ग्रह]


गरह
बाधा।
संज्ञा
[सं. ग्रह]


गराड़ी
काठ या लोहे की चरखी जो कुएँ में घड़े की रस्सी डालने के लिए लगायी जाती है, घिरनी, चरखी।
संज्ञा
[सं. कुंडली या हिं. गड़गड़ (अनु.)]


गराड़ी
रगड़ का चिह्न।
संज्ञा
[सं. गंड = चिह्न]


गराना
घुलाना।
क्रि. स.
[हिं. गलाना]


गराना
पिघलाना।
क्रि. स.
[हिं. गलाना]


गराना
निचोड़कर दूर फेक देना।
क्रि. स.
[हिं. गारना]


गरानि, गरानी
लज्जा।
संज्ञा
[सं. ग्लानि]


गरारा
प्रबल, प्रचंड, गर्वीला, उद्धत।
वि.
[सं. गव, पुं. हिं. गारो+आर (प्रत्य.)]


गरारा
गरगर शब्द करके कुल्ली करना।
संज्ञा
[अ. गरगरा]


गरारा
गरगरा करने की दवा।
संज्ञा
[अ. गरगरा]


गरारा
ढीली मोहरी का पायजामा।
संज्ञा
[हिं. घेरा]


गरि
गलकर, सड़कर।
क्रि. अ.
[हिं. रहना]


गरि
जाउ गरि-गल जाय, सड़ जाय, नष्ट हो जाय।
पापी जाउ जीभ गरि तेरी, अजुगुत बात बिचारी - ९७९।
यौ.


गरि
गए गरि- नष्ट हो गये, दूर हो गये।
गज-गीध-गनिका-ब्याध के अघ गए गरि गरि गरि–१- ३०६।
यौ.


गरिमा
भारीपन, गुरुता।
संज्ञा
[सं. गरिमन्]


गरिमा
महिमा, गौरव।
संज्ञा
[सं. गरिमन्]


गरिमा
गर्व, अहंकार।
संज्ञा
[सं. गरिमन्]


गरिमा
आत्मप्रशंसा, शेखी।
संज्ञा
[सं. गरिमन्]


गरिमा
आठ सिद्धियों में एक जिससे साधक अपने को जितना चाहे भारी कर सकता है।
संज्ञा
[सं. गरिमन्]


गरिया
एक पेड़।
संज्ञा
[देश.]


गरियाना
गाली देना।
क्रि. अ.
[हिं. गारी+आना (प्रत्य.)]


गरारा
ढीली मोहरी।
संज्ञा
[हिं. घेरा]


गरारा
चौड़ा थैला।
संज्ञा
[हिं. घेरा]


गरारा
चौपायों का एक रोग।
संज्ञा
[अनु.]


गरारी
कुएँ की चरखी।
संज्ञा
[हिं. गराड़ी]


गरावन
एक तरह का नमक।
संज्ञा
[हिं. गड़ावन]


गरावा
कम उपजाऊ भूमि।
संज्ञा
[देश.]


गरास
कौर, गस्सा।
संज्ञा
[सं. ग्रास]


गरासना
पकड़ना, थामना।
क्रि. स.
[हिं. ग्रसना]


गरासना
खाना, भक्षण करना।
क्रि. स.
[हिं. ग्रसना]


गरासी
पकड़ी या जकड़ा हुआ।
अपनी सीतलता नहिं तजई जद्यपि बिधु भयो राहु गरासी - ३३१५।
वि.
[सं. ग्रस्त, ग्रसित]


गरी
देवताड़।
संज्ञा
[सं.]


गरीब
दीन-हीन।
स्याम गरीबनि हूँ के गाहक। दीनानाथ हमारे ठाकुर, साँचे प्रीति-निबाहक - १ - १९।
वि.
[अ. ग़रीब]


गरीब
निर्धन, दरिद्र।
वि.
[अ. ग़रीब]


गरीब
एक राग।
संज्ञा
[सं.]


गरीबनिवाज, गरीबनेवाज
दीन का दुख हरनेवाला, दयालु।
लीजै पार उतारि सूर कौं महाराज ब्रजराज। नई न करन कहत प्रभु, तुम हौ सदा गरीबनिवाज - १ - १०८।
वि.
[फ़ा. ग़रीब+निवाज]


गरीबपरवर
दीनों को पालनेवाले।
वि.
[फ़ा.]


गरीबाना
गरीबों की हैसियत का।
वि.
[फ़ा.]


गरीबामऊ
गरीबों की हैसियत का।
वि.
[हिं. गरीब+मय (प्रत्य.)]


गरीबी
दीनता, नम्रता।
संज्ञा
[हिं. गरीब+ई (प्रत्य.)]


गरीबी
दरिद्रता, निर्धनता।
संज्ञा
[हिं. गरीब+ई (प्रत्य.)]


गरीयसी
बड़ी भारी।
वि.
[सं.]


गरीयसी
महान, प्रबल।
वि.
[सं.]


गरीयसी
गौरवयुक्त, महत्वपूर्ण।
वि.
[सं.]


गरु, गरुअ,गरुआ
भारी, वजनी।
वि.
[सं. गुरु]


गरु, गरुअ,गरुआ
गौरवयुक्त।
वि.
[सं. गुरु]


गरु, गरुअ,गरुआ
गंभीर, शांत।
वि.
[सं. गुरु]


गरुआई
गुरुता, भारीपन।
संज्ञा
[हिं. गरु]


गरुआना
भारी होना।
क्रि. अ.
[सं. गुरु]


गरुड़
पक्षियों का राजा और विष्णु का वाहन। इसके पिता कश्यप थे और माता विनता थी। यह सर्पौ का शत्रु समझा जाता है।
संज्ञा
[सं.]


गरुड़
उकाव पक्षी।
संज्ञा
[सं.]


गरियार
आलसी।
वि.
[हिं. गड़ना-एक जगह रुकना]


गरियालू
काला या नीला रंग।
संज्ञा
[हिं. करिया, करियालू]


गरियालू
काले-नीले रंग का।
वि.


गरिष्ठ
बहुत भारी।
[सं.]


गरिष्ठ
जो जल्दी न पचे।
[सं.]


गरिष्ठ
एक राजा
संज्ञा


गरिष्ठ
एक दानव।
संज्ञा


गरिष्ठ
एक तीर्थ।
संज्ञा


गरी
नारियल के भीतर का गूदा, गोला।
संज्ञा
[सं. गुलिका, प्रा. गुडिया]


गरी
बीज की गूदी, गिरी, मींगी।
संज्ञा
[सं. गुलिका, प्रा. गुडिया]


कपिकेतु
अर्जुन जिनके रथ की ध्वजा पर हनुमान जी थे।
संज्ञा
[सं.]


कपिध्वज
अर्जुन जिसकी ध्वजा में कपि का चिह्न था।
स्यंदन खंडि महारथि खंडौं, कपिध्वज सहित गिराऊँ - १ - २७०।
संज्ञा
[सं.]


कपिपति
बंदरों का राजा सुग्रीव।
इहिं गिरि पर कपिपति सुनियत है, बालि-त्रास कैसैं दिन जात - ९ - ६९।
संज्ञा
[सं.]


कपिराइ
श्रेष्ठ बंदर हनुमान।
कैसैं पुरी जरी कपिराइ। बड़े दैत्य कैसैं कै मारे, अंतर आप बचाई - ९ - १०५।
संज्ञा
[हिं. कपिराय]


कपिल
एक ऋषि जिन्होंने राजा सगर के साठ हजार पुत्रों को भस्म कर दिया था।
संज्ञा
[सं.]


कपिल
अग्नि।
संज्ञा
[सं.]


कपिल
महादेव।
संज्ञा
[सं.]


कपिल
सूर्य।
संज्ञा
[सं.]


कपिल
विष्णु।
संज्ञा
[सं.]


कपिल
भूरा।
वि.


गरुड़
एक सफेद पक्षी जो पानी के किनारे रहता है।
संज्ञा
[सं.]


गरुड़
सेना के एक व्यूह की रचना।
संज्ञा
[सं.]


गरुड़
एक तरह का प्रसाद।
संज्ञा
[सं.]


गरुड़
श्रीकृष्ण का एक पुत्र।
संज्ञा
[सं.]


गरुड़
छप्पय छंद का एक भेद।
संज्ञा
[सं.]


गरुड़गामी
विष्णु, श्रीकृष्ण।
(क) नाथ सारंगधर, कृपा करि मोहिं पर, सकल अघ-हरन हरि गरुड़गामी–१ - २१४। (ख) इहाँ औ कासौं कैहौं गरुणगामी।
संज्ञा
[सं.]


गरुड़घंटा
घंटा जिस पर गरुड़ की मूर्ति हो।
संज्ञा
[सं.]


गरुड़ध्वज
विष्णु
संज्ञा
[सं.]


गरुड़ध्वज
वह स्तंभ जिस पर गरुड़ की आकृति बनी हो।
संज्ञा
[सं.]


गरुड़पाश
एक तरह का फंदा।
संज्ञा
[सं.]


गरुड़पुराण
अठारह पुराणों में एक।
संज्ञा
[सं.]


गरुड़भक्त
गरुड़ के उपासक भक्त जो भारत में लगभग दो हजार वर्ष पूर्व रहते थे।
संज्ञा
[सं.]


गरुड़यान
विष्णु।
संज्ञा
[सं.]


गरुड़यान
श्रीकृष्ण।
संज्ञा
[सं.]


गरुड़रुत
सोलह अक्षरों का एक छन्द।
संज्ञा
[सं.]


गरुड़व्यूह
सेना की एक व्यूह रचना।
संज्ञा
[सं.]


गरुड़ासन
वाहन गरुड़।
जिन स्रवननि जन की बिपदा सुनि, गरुड़ासन तजि धावै (हो) - १० - १२८।
संज्ञा
[सं. गरुड़+आसन]


गरुत
पंख, पक्ष, पर।
संज्ञा
[सं.]


गरुता
भारीपन, गुरुता।
संज्ञा
[सं. गुरुतर]


गरुता
बड़प्पन, बड़ाई, महत्व।
संज्ञा
[सं. गुरुतर]


गरुवा
भारी, वजनी।
वि.
[सं. गुरु]


गरुवा
गंभीर, शांत।
वि.
[सं. गुरु]


गरुवा
गौरवयुक्त।
वि.
[सं. गुरु]


गरुवाई
भारीपन, गुरुता।
संज्ञा
[हिं. गरुझाई]


गरुहर
बहुत भारी बोझ।
संज्ञा
[हिं. गरू+हर (प्रत्य.)]


गरू
भारी, वजनी।
गरू भए महि मैं बैठाये, सहि न सकी जननी अकुलानी - १० - ७८।
वि.
[सं. गुरु]


गरूर
घमंड, अभिमान।
हरि सरि कटि तटि लरकि जाइ जिनि बिसद नितम्ब गरूर - २११९।
संज्ञा
[अ. ग़रूर]


गरूरता, गरुरताई
घमंड।
संज्ञा
[हिं. गरूर]


गरूरता, गरुरताई
मस्ती।
संज्ञा
[हिं. गरूर]


गरूरा
अभिमानी।
वि.
[हिं. गरूर]


गरूरियो
घमंडी, अभिमानी।
ओषधि बैद गररूरियो हरि नहिं मानै मंत्र दोहाई - २८३९।
वि.
[हिं. गरूरी]


गरूरियो
अभिमान, घमंड।
संज्ञा


गरूरी
घमण्डी, अभिमानी।
वि.
[अ. ग़रूरी]


गरूरी
अभिमान, घमण्ड।
संज्ञा


गरे
गला।
बिच बिच हीरा लगे (नन्द) लाल गरे को हार - १० - ४०।
संज्ञा
[सं. गल, हिं. गला]


गरे
गरे परी- अनिच्छित वस्तु, अनचाही चीज। उ.- सूरदास गाहक नहिं कोऊ दिखिअत गरे परी - ३१०४।
मु.


गरेड़िया
वह व्यक्ति जो भेड़ें पालता हो।
संज्ञा
[हिं. गड़रिया]


गरेबान
अंगे-कुरते आदि का गला।
संज्ञा
[फ़ा. गरेवान]


गरेबान
कोट आदि का कालर।
संज्ञा
[फ़ा. गरेवान]


गरेरना
घेरना।
क्रि. स.
[हिं. घेरना]


गर्ग
बैल, साँड़।
संज्ञा
[सं.]


गर्ग
गगोरी कीड़ा।
संज्ञा
[सं.]


गर्ग
बिच्छु।
संज्ञा
[सं.]


गर्ग
केचुआ।
संज्ञा
[सं.]


गर्ग
एक पर्वत।
संज्ञा
[सं.]


गर्ग
ब्रह्मा का एक पुत्र।
संज्ञा
[सं.]


गर्ग
संगीत में एक ताल।
संज्ञा
[सं.]


गर्गर
भँवर।
संज्ञा
[सं.]


गर्गर
एक प्राचीन बाजा।
संज्ञा
[सं.]


गर्गर
गागर।
संज्ञा
[सं.]


गरेरना
रोकना।
क्रि. स.
[हिं. घेरना]


गरेरा
चक्कर या घुमावदार।
वि.
[हिं. घेरा]


गरेरी, गरेली
चरखी, घिरनी।
संज्ञा
[हिं. घेरा]


गरेरी, गरेली
चक्करदार, घुमावदार।
वि.


गरैं
गले में, गरदन में।
मुकुट सिर धरैं, बनमाल कौस्तुभ गरैं - ४ - १०।
संज्ञा
[हिं. गला]


गरै
गलता है, नष्ट होता है।
राजा कौन बड़ौ रावन तैं गर्बहिं गर्व गरै - १ - ३५।
क्रि. अ.
[हिं. गलता]


गरैयाँ
दोहरी रस्सी जो पशुओं के गले में डाली जाती है, पगहा।
संज्ञा
[हिं. गला]


गरोह
कुंड, समूह, जत्था।
संज्ञा
[फ़ा.]


गर्ग
एक वैदिक ऋषि जो आंगिरस भरद्वाज के वंशज और ऋग्वेद, छठे मंडल के सैंतालीसवें सूक्त के रचयिता माने जाते हैं।
संज्ञा
[सं.]


गर्ग
नंद जी के पुरोहित का नाम।
गर्ग निरूपि कह्यौ सब लच्छनु, अबिगत हैं अबिनासी - १० - ८७।
संज्ञा
[सं.]


गर्गर
एक मछली।
संज्ञा
[सं.]


गर्गरी
दही मथने का बरतन।
संज्ञा
[सं.]


गर्गरी
गगरी, कलसी।
संज्ञा
[सं.]


गर्गरी
मथानी।
संज्ञा
[सं.]


गर्ज
गंभीर या तुमुल शब्द।
मनहुँ सिंह की गर्ज सुनत, गोबच्छ दुखित तनु डोलत - ३४२०।
संज्ञा
[हिं. गरज]


गर्ज
मतलब, स्वार्थ।
संज्ञा
[अ. ग़रज़]


गर्ज
आवश्यकता, जरूरत।
संज्ञा
[अ. ग़रज़]


गर्ज
चाह, इच्छा।
संज्ञा
[अ. ग़रज़]


गर्जत
गर्जता हूँ।
क्रि. अ.
[सं. गर्जन, हिं. गरजना]


गर्जत
निर्भीक होकर विचरता हूँ।
मोहिं बर दियो देवनि मिलि, नाम धरयौ हनुमंत। अंजनि कुँवर राम कौ पायक, ताकैं बल गर्जत–९-८३।
क्रि. अ.
[सं. गर्जन, हिं. गरजना]


गर्जत
गरजता है, गंभीर शब्द करता है।
क्रि. अ.
[हिं. गरजना]


गर्जत
गर्व से बोलता है।
क्रि. अ.
[हिं. गरजना]


गर्जन
भीषण ध्वनि, गंभीर नाद।
गर्जन औ तरपन मानो गो पहरक में गढ़ लेइ - १० उ. - १६८।
संज्ञा
[सं.]


गर्जन
गर्जन-तर्जन - तड़प। डाँटडपट।
यौ.


गर्जन
एक पेड़।
संज्ञा
[देश.]


गर्जना
घोर शब्द करना।
क्रि. अ.
[हिं. गरजना]


गर्जहिं
गर्जना को, गंभीर नाद को।
संज्ञा
[सं. गर्जन+हिं (प्रत्य.)]


गर्जहिं
मतलब, काम, स्वार्थ कामना।
या रथ बैठ बंधु की गर्जहिं पुरवै को कुरु-खेत १ - १ - २९।
संज्ञा
[फ़ा. ग़रज़]


गर्जि
गंभीर ध्वनि करके, भीषण रूप से गरज कर।
इतने में मेघन गर्जि बृष्टि करि तनु भीज्यो मों भई जुड़ाई - २८८५।
क्रि. अ.
[हिं. गरजना]


गर्जित
गर्जनपूर्ण।
संज्ञा
[हिं. गर्जन]


गर्त्‍त
गड्ढा, गढ़हा
संज्ञा
[सं.]


गर्त्‍त
दरार।
संज्ञा
[सं.]


गर्त्‍त
घर।
संज्ञा
[सं.]


गर्त्‍त
रथ।
संज्ञा
[सं.]


गर्त्‍त
जलाशय।
संज्ञा
[सं.]


गर्त्‍त
एक नरक का नाम।
संज्ञा
[सं.]


गर्द
धूल, राख, भस्म।
संज्ञा
[फ़ा.]


गर्द
गर्द उड़ाना- नष्ट करना।

गर्द झड़ना- मार की परवाह न करना। गर्द फाँकना- मारे मारे घूमना। गर्द को पहुँचना- बराबरी न कर सकना। गर्द होना- (१) तुच्छ ठहरना। (२) नष्ट होना।

मु.


गर्दखोर, गर्दखोरा
जो गर्द से खराब न हो।
वि.
[फ़ा. गर्दख़ोर]


गर्दखोर, गर्दखोरा
पैर पोछना।
संज्ञा


गर्दन
गला, गरदन।
संज्ञा
[हिं. गरदन]


गर्दना
मोटा गला।
संज्ञा
[हिं. गरदना]


गर्दभ
गधा, गदहा।
हय गयंद उतरि कहा गर्दभ-चढ़ि धाऊँ - १ - १६६।
संज्ञा
[सं.]


गर्दभ
सफेद कुमुद या कोईं।
संज्ञा
[सं.]


गर्दभ
एक कीड़ा।
संज्ञा
[सं.]


गर्दिश, गर्दिस
घुमाव, चक्कर।
संज्ञा
[फ़ा.]


गर्दिश, गर्दिस
विपत्ति।
संज्ञा
[फ़ा.]


गर्द्ध
लोभ।
संज्ञा
[सं.]


गर्द्ध
एक वृक्ष।
संज्ञा
[सं.]


गर्द्धत, गर्द्धित
लुब्ध।
वि.
[सं.]


कँडरा
रक्त की नाड़ी।
संज्ञा
[सं.]


कंडाल
तुरही नामक बाजा।
संज्ञा
[सं, करनाल]


कंडाल
ढोल नामक बरतन।
संज्ञा
[सं, करनाल]


कंत
पति, स्वामी।
सूरदास लै जाउँ तहाँ जहँ रघुपति कंत तुम्हार - ६ - ८६।
संज्ञा
[सं. कांत]


कंत
ईश्वर।
संज्ञा
[सं. कांत]


कंता
पति, स्वामी।
छीर सिंधु अहि सयन मुरारी। प्रभु स्रवननि तहँ परी गुहारी। तब जान्यौ कमला के कंता। दनुज भार पुहुनी में भंता - २४५६।
संज्ञा
[सं. कांत]


कंथ
पति, स्वामी।
संज्ञा
[सं. कांत]


कंथा
गुदड़ी, कथरी।
(क) सीस सेली कंस मुद्रा कनक बीरी बीर। बिरह भस्म चढ़ाइ बैठी सहज कंथा चीर - ३१२६।

(ख) सृ गी मुंद्रा कनक खपर करिहौं जोगिन भेष। कंथा पहिरि विभूति लगाऊँ जटा बँधाऊँ केस - २७५४। (ग) वे मारे सिर पटिया पारे कंथा काहि उढ़ाऊँ - ३४६६।

संज्ञा
[सं.]


कंथारी
एक वृक्ष।
संज्ञा
[सं.]


कंथी
फकीर जो गुदड़ी धारण करे।
संज्ञा
[सं. कंथा=गुदड़ी]


कपिल
सफेद।
वि.


कपिला
भूरे या सफेद रंग की।
वि.
[सं.]


कपिला
सीधी-सादी।
वि.
[सं.]


कपिला
सफेद रंग की गाय।
संज्ञा


कपिला
दक्षप्रजापति की एक कन्या।
संज्ञा


कपिश
भूरे रंग का, मटमैला।
वि.
[सं.]


कपिस
भूरा या मटमैला।
पुरइन कपिस निचोल बिबिध सँग बिहँसत सचु उपजावै। सूरस्याम आनंन-कंद की सोभा कहत न आवै।
वि.
[सं. कपिश]


कपिस
रेशमी वस्त्र।
संज्ञा


कपी
बंदर।
भक्ति के बस स्याम सुन्दर देह धरे आवैं। नंदघरनि बाँधि बाँधि कपी ज्यौं नचावैं - ३९४।
संज्ञा
[सं. कपि]


कपीश
बानरों का राजा।
संज्ञा
[सं.]


गर्द्धी
लोभी।
वि.
[सं. गर्द्धिन]


गर्द्धी
लुब्ध।
वि.
[सं. गर्द्धिन]


गर्ब
अहंकार, घमंड, अभिमान।
संज्ञा
[सं. गर्व]


गर्ब
गर्ब प्रहारयौ- घमंड चूर कर दिया, गर्व तोड़ दिया। उ. - ग्वालनि हेत धरयौ गोबर्धन, प्रगट इंद्र कौ गर्ब प्रहारयौ - १ - १४।
मु.


गर्बगत
जिसका गर्व नष्ट हो गया हो, गर्वरहित, गर्वहीन।
करुनामय जब चाप लियौ कर, बाँधि सुदृढ़ कटिचीर। भूभृत सीस नमित जो गर्बगत, पावक सींच्यौ नीर - ९ - २६।
वि.
[सं. गर्व+गत=रहित (प्रत्य.)]


गर्बना
गर्व या अभिमान करना।
क्रि. अ.
[सं. गर्व]


गर्ब-प्रहारी
गर्व का नाश करनेवाला, अभिमान तोड़नेवाला, गर्वनाशक।
जाको बिरद है गर्बप्रहारी, सो कैसैं बिसरैं - १ - ३७।
संज्ञा
[सं. गर्व+हिं. प्रहारी]


गर्बहिं-गर्ब
गर्व ही गर्व, बहुत अधिक घमंड।
संज्ञा
[सं. गर्व+हिं=(प्रत्य.) + गर्व]


गर्भ
गर्भ के अंदर का बालक।
ब्रह्म बाण तैं गर्भ उबारयौ, टेरत जरी जरी - १ - १६।
संज्ञा
[सं.]


गर्भ
गर्भाशय।
संज्ञा
[सं.]


गर्भक
एक वृक्ष।
संज्ञा
[सं.]


गर्भकार
पति या प्रेमी जिससे गर्भ रहे।
संज्ञा
[सं.]


गर्भकाल
ऋतुकाल।
संज्ञा
[सं.]


गर्भकाल
वह काल जब स्त्री गर्भवती हो।
संज्ञा
[सं.]


गर्भकेसर
फूलों के पतले सूत जिनसे पराग का मेल होने पर फल और बीज पुष्ट होते हैं।
संज्ञा
[सं.]


गर्भकोष
गर्भाशय।
संज्ञा
[सं.]


गर्भगृह
घर का भीतरी भाग।
संज्ञा
[सं.]


गर्भगृह
आँगन।
संज्ञा
[सं.]


गर्भगृह
तहखाना।
संज्ञा
[सं.]


गर्भगृह
मंदिर की वह कोठरी जिसमें मुख्य प्रतिमा हो।
संज्ञा
[सं.]


गर्भज
गर्भ से उत्पन्न, संतान।
वि.
[सं.]


गर्भज
जन्मकाल से साथ रहनेवाला (रोग आदि)।
वि.
[सं.]


गर्भपत्र
कोंपल, कोमल पत्ता।
संज्ञा
[सं.]


गर्भपत्र
फूल के भीतरी पत्ते जिनमें गर्भकेसर हो।
संज्ञा
[सं.]


गर्भपात
गर्भ गिरना।
संज्ञा
[सं.]


गर्भवती
जिसके पेट में बच्चा हो।
वि.
[सं.]


गर्भांक
नाटक के अंक का वह भाग जिसमें केवल एक दृश्य होता है।
संज्ञा
[सं.]


गर्भाधान
सोलह संस्कारों में पहला।
संज्ञा
[सं.]


गर्भाधान
गर्भ की स्थिति।
संज्ञा
[सं.]


गर्भाशय
पेट का वह स्थान जिसमें बच्चा रहता है।
संज्ञा
[सं.]


गर्भिणी
गर्भवती।
वि.
[सं.]


गर्भिणी
खिरनी का पेड़।
वि.
[सं.]


गर्भिणी
प्राचीन काल की एक नाव।
संज्ञा
[सं.]


गर्भित
गर्भयुक्त।
वि.
[सं.]


गर्भित
भरा हुआ, पूर्ण।
वि.
[सं.]


गर्भित
काव्य में अतिरिक्त वाक्य-दोष।
संज्ञा
[सं.]


गर्रा
लाख के रंग का।
वि.
[सं. गरहाधिक=लाख]


गर्रा
लाख का रंग।
संज्ञा


गर्रा
इस रंग का घोड़ा।
संज्ञा


गर्रा
इस रंग का कबूतर।
संज्ञा


गर्रा
बहते पानी का थपेड़ा।
संज्ञा
[अनु.]


गर्रा
चरखी, फिरकी, घिरनी।
संज्ञा
[हिं. गराड़ी]


गर्री
तार लपेटने की चरखी।
संज्ञा
[हिं. गरेरना]


गर्व
अभिमान, घमंड।
संज्ञा
[सं.]


गर्व
एक संचारी भाव जिसके अनुसार अपने को दूसरों से बड़ा समझा जाता है।
संज्ञा
[सं.]


गर्वप्रहारी
घमंड चूर करनेवाला।
वि.
[सं.]


गर्ववंत
घमंडी, अभिमानी।
गर्ववंत सुरपति चढ़ि आयो। बाम करज गिरि टेकि दिखायौ।
वि.
[सं. गर्ववान का बहु. गर्ववंतः]


गर्वाना
गर्व या अभिमान करना, घमंड दिखाना।
क्रि. अ.
[सं. गर्व]


गर्वानी
गर्व करने लगी, घमंड दिखाने लगी।
कहा तुम इतनेहि को गर्वानी। जोबन रूप दिवस दसही को ज्यों अँजुरी को पानी।
क्रि. अ.
[हिं. गर्वाना]


गर्वानो
गर्व किया, घमंड दिखाने लगा।
यह सुनि हर्ष भयो गर्वानो जबहिं कही अक्रूर सयानी—२४६९।
क्रि. अ.
[हिं. गर्वाना]


गर्विणी
गर्व करनेवाली।
वि.
[सं.]


गर्वित
अहंकारी, अभिमानी।
(क) हस्ती देखि बहुत मन-गर्वित, ता मूरख की मति है थोरी–१-३०३। (ख) सूर सरस सरूप गर्वित दीपकावृत चाइ-सा. १८।
वि.
[सं.]


गर्विता
वह नायिका जिसे रूप, गुण आदि का गर्व हो।
संज्ञा
[सं.]


गर्विष्ठ
अहंकारी, अभिमानी।
वि.
[सं.]


गर्वी, गर्वीला, गर्वीले
घमण्डी, अहंकारी।
जिनि वह सुधा पान मुख कीन्हों वे कैसें कटु देखत। त्यों ए नैन भए गर्वीले अब काहे हम लेखत।
वि.
[सं. गर्व+हिं. ईला (प्रत्य.)]


गर्वै
अहंकार या अभिमान करे।
गगन शिखर उतरै चढ़ै गर्वै जिय धरई -२८६१।
संज्ञा
[सं. गर्व]


गर्हण
निंदा, बुराई।
संज्ञा
[सं.]


गर्हणीय
निन्दा के योग्य, बुरा।
वि.
[सं.]


गर्हित
जिसकी निंदा की जाय, निंदित।
वि.
[सं.]


गर्हित
बुरा, दूषित।
वि.
[सं.]


गलगल
बडा नीबू।
संज्ञा
[देश.]


गलगला
भीगा हुआ, तर।
वि.
[हिं. गीला]


गलगलाना
गीला होना।
क्रि. अ.
[हिं. गलगला]


गलगाजना
गाल बजाना।
क्रि. अ.
[हिं. गाल+गाजना]


गलगाजना
खुशी से किलकारी मारना।
क्रि. अ.
[हिं. गाल+गाजना]


गलजँदड़ा
सदा साथ रहनेवाला।
संज्ञा
[सं. गल+यंत्र या पं. जंदरा]


गलजँदड़ा
गले की पट्टी।
संज्ञा
[सं. गल+यंत्र या पं. जंदरा]


गलजोड़, गलजोत
वह रस्सी जिससे दो बैलों के गले बाँधे जायँ।
संज्ञा
[हिं. गला+जोड़ या जोत]


गलजोड़, गलजोत
गले का हार, सदा साथ रहनेवाला व्यक्ति।
संज्ञा
[हिं. गला+जोड़ या जोत]


गलजोड़, गलजोत
जो सहा न जा सके।
वि.


गर्ह्य
निंदनीय, नीच।
वि.
[सं.]


गल
गला, कण्ठ।
संज्ञा
[सं.]


गल
गल गाजना- हर्षित होना।

गल गाजै- गरजते हैं। उ.- ध्वजा बैठि हनुमत गल गाजै, प्रभु हाँकैं रथ यान - १ - २७५। गल गाजि- (१) हर्षित होकर। उ. - धाये मब गलगाजि कै ऊधो देखो जाइ - ३४ ४३। (२) क्रोध से गरज कर। उ.- खंभ फारि, गल गाजि मत्त बल, क्रोधमान छबि बरन न आई - ७ - ४।

मु.


गल
एक मछली।
संज्ञा
[सं.]


गल
एक बाजा।
संज्ञा
[सं.]


गल
राल।
संज्ञा
[सं.]


गलकंबल
गाय के गले का निचला भाग, झालर।
संज्ञा
[सं.]


गलगंजना
जोर से बोलना, भारी शब्द करना।
क्रि. अ.
[हिं. गाल+गाजना]


गलगंड
गले का एक रोग।
संज्ञा
[सं.]


गलगल
एक छोटी चिड़िया।
संज्ञा
[देश.]


गलझंप
लोहे की झूल जो युद्ध में हाथियों को पहनायी जाती है।
संज्ञा
[हिं. गला+झंप]


गलतंग
जिसे सुधि न हो।
वि.
[हिं. गला+तंग]


गलतंस
मनुष्य जो निसन्तान मरे।
संज्ञा
[सं. गलित+वंश]


गलतंस
ऐसे व्यक्ति की सम्पत्ति जिसके कोई सन्तान न हो।
संज्ञा
[सं. गलित+वंश]


गलत
जो शुद्ध न हो।
वि.
[अ. गलत]


गलत
जो सत्य न हो, मिथ्या।
वि.
[अ. गलत]


गलतफहमी
भ्रम, गलती।
संज्ञा
[हिं. गलत+फहम]


गलतान
चक्कर मारता या लुढ़कता हुआ।
वि.
[फ़ा. गल्ताँ]


गलती
भूल-चूक।
संज्ञा
[अ. ग़लत+ई (प्रत्य.)]


गलती
अशुद्धि।
संज्ञा
[अ. ग़लत+ई (प्रत्य.)]


गलबल
कोलाहल, खलबली।
गलबल सब नगर परयौ प्रगटे जदुबंसी। द्वारपाल इहै कहै जोधा कोउ बच्यौ नहीं, काँधे गजदंत धारे सूर ब्रह्म अंसी - २६१०।
संज्ञा
[अनु.]


गलबहियाँ, गलबाहीं
गले में बाह डालना, कंठालिंगन।
संज्ञा
[हिं. गला+बाँह]


गलमुँदरी
गाल बजाने की मुद्रा।
संज्ञा
[सं. गल+मुद्रा]


गलमुँदरी
व्यर्थ बकवाद करना।
संज्ञा
[सं. गल+मुद्रा]


गलमुद्रा
शिवभक्तों को गालबजाने की मुद्रा।
संज्ञा
[सं. गल+मुद्रा]


गलवाना
गलाने का काम करना।
क्रि. स.
[हिं. ‘गलाना' का प्रे.]


गलशुंडी
जीभ की तरह का मांस का टुकड़ा जो जिह्वा की जड़ के पास रहता है।
संज्ञा
[सं.]


गलसिरी
गले का एक गहना।
संज्ञा
[सं. गल+श्री]


गलसुई
छोटा तकिया जो गाल के नीचे रखा जाता है।
संज्ञा
[हिं. गाल+सुई]


गलस्तन
बकरियों के गले के थन जो व्यर्थ होते हैं।
संज्ञा
[सं.]


कपूत
बुरे चाल-चलन को लड़का।
संज्ञा
[सं. कुपुत्र]


कपूती
पुत्र का बुरा आचरण।
संज्ञा
[हिं. कपूत]


कपूर
सफेद रंग का जमा हुआ एक सुगन्धित द्रव जो जलाने से जलता है और खुला रहने पर हवा में उड़ जाता है।
संज्ञा
[सं. कर्पूर, पा. कप्‍पूर, जावा कापूर]


कपोत
कबूतर।
संज्ञा
[सं.].


कपोत
परेवा।
संज्ञा
[सं.].


कपोत
चिडि़या
संज्ञा
[सं.].


कपोतव्रत
कबूतर की रीति-नीति।
संज्ञा
[सं.]


कपोतव्रत
कबूतर की तरह अत्याचार सहन करना।
संज्ञा
[सं.]


कपोल
गाल।
संज्ञा
[सं.]


कपोल
नृत्य या अभिनय में कपोल की क्रिया अथवा चेष्टा।
संज्ञा
[सं.]


गलथन, गलथना
बकरी के गले के स्तन या थन जिनमें दूध नहीं होता।
संज्ञा
[सं. गलस्तन, पा, गलत्थन, गलथन]


गलन
गिरना
संज्ञा
[सं.]


गलन
गलना।
संज्ञा
[सं.]


गलना
पिघलना, घुल जाना।
क्रि. अ.
[सं. गरण=तर होना]


गलना
क्षीण होना।
क्रि. अ.
[सं. गरण=तर होना]


गलना
शरीर सूख जाना।
क्रि. अ.
[सं. गरण=तर होना]


गलना
सरदी से ठिठुरना।
क्रि. अ.
[सं. गरण=तर होना]


गलना
व्यर्थ हानि होना, बेकार हो जाना, कुछ स्वार्थ न निकलना।
क्रि. अ.
[सं. गरण=तर होना]


गलफाँसी
गले की फाँसी।
संज्ञा
[हिं. गाल+फाँसी]


गलफाँसी
दुखदायी वस्तु या काम।
संज्ञा
[हिं. गाल+फाँसी]


गलस्वर
एक प्राचीन बाजा।
संज्ञा
[सं.]


गला
गरदन, कंठ।
संज्ञा
[सं. गल]


गला
गला काटना- (१) मार डालना। (२) बहुत दुख देना। (३) अन्याय से माल हड़प लेना। (४) बुराई करना।

गला घुटना- (१) दम घुटना। (२) बड़े कष्ट का जीवन व्यतीत करना। गला छूटना- झंझट से पीछा छूटना। गला दबाना (घोटना)- (१) गला दबाकर मार डालना। (२) अनुचित दबाव डालना। गला फाड़ना- बहुत जोर से चिल्लाना। गला बँधना- मजबूर हो जाना। गले का हार- बहुत प्यारा। गले पड़ना- (१) न चाहने पर भी कोई भार माथे मढ़ा जाना। (२) भोगने या सहने को तैयार होना। गले मढ़ना- (१) इच्छा के विरुद्ध देना या सौंपना। (२) इच्छा के विरुद्ध विवाह कर देना। गले लगाना—(१) आलिंगन करना। (२) इच्छा के विरुद्ध सौंपना।

मु.


गला
कंठस्वर।
संज्ञा
[सं. गल]


गला
कपड़े का भाग जो कंठ पर रहता है।
संज्ञा
[सं. गल]


गला
बर्तन का भाग जो उसके मुँहड़े के नीचे होता है।
संज्ञा
[सं. गल]


गलाना
पिघलाना, नरम या द्रव करना।
क्रि. स.
[हिं. गलना]


गलाना
पिघलाकर धीरे धीरे लुप्त या क्षय करना।
क्रि. स.
[हिं. गलना]


गलाना
(रुपया) व्यर्थ खर्च करना।
क्रि. स.
[हिं. गलना]


गलानि
दुख या पछतावे की लज्जा या खिन्नता।
संज्ञा
[सं. ग्लानि]


गलानि
दुख, खेद।
संज्ञा
[सं. ग्लानि]


गलित
गला या पिघला हुआ।
वि.
[सं.]


गलित
प्रयोग या उपयोग के कारण जो चुस्त या कठिन न हो, जिसका बहुत उपयोग हो चुका हो।
वि.
[सं.]


गलित
जीर्ण-शीर्ण, पुराना।
वि.
[सं.]


गलित
चुआ या गिरा हुआ।
वि.
[सं.]


गलित
नष्ट-भ्रष्ट।
वि.
[सं.]


गलित
परिपक्व, परिपुष्ट।
दान लैहौं सब अंगनि कौ। अति मद गलित तालफल ते गुरु जुगल उरोज उतंगनि कौ।
वि.
[सं.]


गलित
बिखरा हुआ, अस्तव्यस्त साज-शृंगारवाला।
छूटी लट छूटी नकबेसरि मोतिन की दुलरी। अरुन नैन सुख सरद निसा-कर कुसुम गलित कबरी–२१०६।
वि.
[सं.]


गलित
शिथिल, क्लांत, थका हुआ।
सुधि न रही अति गलित गात भयो जनु डसि गयौ अह्यौ–२५६७।
वि.
[सं.]


गलित यौवना
वह स्त्री जिसका यौवन ढल गया हो।
संज्ञा
[सं.]


गलिन, गलिनि
गलियाँ, तंग रास्ते।
सो रस गोकुल-गलिनि बहावैं - १० - ३।
संज्ञा
[सं. गल, हिं. गली]


गलियारा
पतली गली, तंग रास्ता।
संज्ञा
[हिं. गली+आरा (प्रत्य.)]


गली
खोरी, कुचा, तंग रास्ता।
आजु मेरी गली होके करत बंसी सोर - सा. ६१।
संज्ञा
[सं. गल]


गली
मौहल्ला।
संज्ञा
[सं. गल]


गली
गली गली फिरना- (१) जीविका के लिए भटकना। (२) बहुत साधारण होना।
मु.


गली
गल गयी, घुल गयी।
क्रि. स. (भूत.)
[हिं. गलना]


गली
क्षीण या नष्ट हो गयी।
क्रि. स. (भूत.)
[हिं. गलना]


गलीचा
ऊन या सूत का मोटा बिछौना जिस पर रंग - बिरंगे बेल-बूटे हों।
संज्ञा
[फ़ा. ग़ालीचा]


गलीज
मैला-कुचैला।
वि.
[अ. ग़लीज़]


गलीज
गंदगी, मैल।
संज्ञा


गलीत
मैला-कुचैला, बुरी दशा को प्राप्त।
वि.
[अ. ग़लीफ़ा=मैला या अशुद्ध]


गलेबाजी
डींग, बढ़ बढ़कर बातें करना।
संज्ञा
[हिं. गला+बाजी]


गलौ
चंद्रमा।
संज्ञा
[सं. ग्लौ]


गल्प
झूठी कथा।
संज्ञा
[सं. जल्प या कल्प]


गल्प
डींग, शेखी।
संज्ञा
[सं. जल्प या कल्प]


गल्प
कहानी।
संज्ञा
[सं. जल्प या कल्प]


गल्ल
गाल।
संज्ञा
[सं.]


गल्ल
बात, चर्चा।
संज्ञा
[हिं. गाल या गल्प अथवा फ़ा. गिला]


गल्ला
शोर, हुल्लड़।
संज्ञा
[अ. गुल, हिं. गुल्ला]


गल्ला
झुंड, समूह।
संज्ञा
[फ़ा. गल्लः]


गल्ला
अन्न जो एक बार चक्की में पिसने के लिए डाला जाय, मुट्ठी भर अन्न, कौरी।
संज्ञा
[हिं. गाल]


गल्ला
फसल, पैदावार।
संज्ञा
[अ. गल्लः]


गल्ला
अन्न, अनाज।
संज्ञा
[अ. गल्लः]


गल्ला
धन की गोलक।
संज्ञा
[अ. गल्लः]


गवँ, गवँही
घात, अवसर।
संज्ञा
[सं. गम, प्रा. गवँ]


गवँ, गवँही
मतलब, प्रयोजन।
संज्ञा
[सं. गम, प्रा. गवँ]


गवँ, गवँही
गवँ से- (१) घात या अवसर देखकर। (२) चुपचाप, धीरे से।
मु.


गव
एक बंदर जो श्रीराम की सेना में था।
संज्ञा
[सं. गवय]


गवई
छोटा गाँव।
अब हरि क्यौं बसैं गोकुल गवई–३३०४।
संज्ञा
[हिं. गाँव]


गवच्छ
एक बंदर जो श्रीराम चंद्र की सेना में था।
नल-नील-द्विविद-केसरि गवच्छ। कपि कहे कछुक, हैं बहुत लच्छ - ९ - १६६।
संज्ञा
[सं. गवाक्ष]


गवन
चलना, जाना, प्रस्थान।
तहाँ गवन प्रभु सूरज कीन्हो - २६४३।
संज्ञा
[सं. गमन]


गवन
वधू का पहिली बार पति के घर जाना, गौना।
संज्ञा
[सं. गमन]


गवन
गवन का वेग या गति।
छाँड़ि सुखधाम अरु गरुड़ तजि साँवरौ पवन के गवन तैं अधिक धायौ - १ - ५।
संज्ञा
[सं. गमन]


गवनचार
वधू का पति के घर पहली बार जाना, गौना।
संज्ञा
[सं. गमन+आचार]


गवनना
जाना, प्रस्थान करना।
क्रि. अ.
[हिं. गवन]


गवना
वधू का पहली बार पति के घर जाना।
संज्ञा
[हिं. गौना]


गवनीं
प्रस्थान किया, (अन्य स्थान को) गयीं।
(क) गृह-गृह तैं गोपी गवनीं जब - १० - ३२। (ख) मुरली सब्द सुनत बन गवनी पति सुत गृह बिसराये - ३०६०।
क्रि. अ.
[हिं. गवनना]


गवने
गये, चले गये, यात्रा की, प्रस्थान किया।
(क) पठवौ दूत भरत कौं ल्यावन, बचन कह्यौ बिलखाई। दसरथ-बचन राम बन गवने, यह कहियौ अरथाइ - ९ - ४७। (ख) जब तैं तुम गवने कानन कौं भरत भोग सब छाँडे–९ - १५४।
क्रि. अ.
[हिं. गमना या गवनना]


गवय
नील गाय।
संज्ञा
[सं.]


गवय
एक बानर जो श्रीराम की सेना में था।
संज्ञा
[सं.]


गवय
एक छंद।
संज्ञा
[सं.]


गवाँए
खो दिये, खो बैठे।
सूरदास तेहिं बनिज कवन गुन मूलहु माँझ गवाँए–३२०१।
क्रि. स.
[हिं. गवाँना]


गवाँना
खोना, नष्ट करना।
क्रि. स.
[हिं. गवना का प्रे.]


गवाँवत
खोते हैं, नष्ट करते हैं।
बचन कठोर कहत कहि दाहत अपनो महत गवाँवत - ३००८ |
क्रि. स.
[हिं. गवाना]


गवाइ
गवाकर, मधुर आलाप कराकर।
सखियनि संग गवाइ, बहु बिधि बाजे बजाइ - १० - ४१।
क्रि. स.
[हिं. ‘गाना' का प्रे.]


गवाक्ष गवाख, गवाछ
छोटी खिड़की, झरोखा।
संज्ञा
[सं. गवाक्ष]


गवाक्ष गवाख, गवाछ
एक बानर जो श्रीराम की सेना में था।
संज्ञा
[सं. गवाक्ष]


गवाक्षी
इंद्रायन।
संज्ञा
[सं.]


गवाक्षी
एक लता।
संज्ञा
[सं.]


गवाय
गवाकर, गाने के लिए प्रेरित करके।
गावत हँसत गवाय हँसावत, पटकि पटकि करतालिका -९०९।
क्रि. स.
[हिं. गाना, गवाना]


गवारा
मनभाता, रुचिकर।
वि.
[फ़ा.]


गवारा
अंगीकार, रुचनेवाला।
वि.
[फ़ा.]


गवास, गवासा
कसाई।
संज्ञा
[सं. गवाशन]


गवास, गवासा
गाने की इच्छा।
संज्ञा
[हिं. गाना]


गवाह
साक्षी, साखी।
संज्ञा
[फ़ा.]


गवाही
गवाह का बयान, साक्षी का कथन, साक्ष्य।
संज्ञा
[हिं. गवाह]


गवीश
गोस्वामी।
संज्ञा
[सं. गवेश]


गवीश
विष्णु।
संज्ञा
[सं. गवेश]


गवीश
साँड़।
संज्ञा
[सं. गवेश]


गवेल
गँवार, देहाती।
वि.
[हिं. गाँव]


गश्त
घूमना-फिरना।
संज्ञा
[फ़ा.]


गश्त
घूम घूम कर पहरा देना।
संज्ञा
[फ़ा.]


गश्ती
घूमनेवाला।
वि.
[फ़ा.]


गश्ती
कई व्यक्तियों के पास भेजा जानेवाला (पत्र आदि।
वि.
[फ़ा.]


गश्ती
व्यभिचारिणी स्त्री।
संज्ञा


गसना
गाँठना, जोड़ना।
क्रि. स.
[सं. गुथना]


गसना
गठी हुई बुनावट करना।
क्रि. स.
[सं. गुथना]


गसीला
गठा हुआ।
वि.
[हिं. गसना]


गसीला
गठी हुई बुनावट का (कपडा)।
वि.
[हिं. गसना]


गस्सा
कौर, ग्रास, नेवाला।
संज्ञा
[सं. ग्रास, प्रा. गास, गस्‍स]


कपोलकल्पना
मनगढ़ंत या बनावटी बात।
संज्ञा
[सं.]


कपोलै, कपोलो
गाल पर।
(क) मकराकृत कुंडल छबि राजति लोल कपोलै - ३१२९।

(ख) चंदन मिटाये तनु अति ही अलसात नागरी की पीक लगी तो कपोलो - १९५९।

संज्ञा
[सं. कपोल]


कप्पर
वस्त्र, कपड़ा, पट।
संज्ञा
[सं. कर्पट, हिं. कपड़ा]


कफ
खाँसने-थूकने से निकलने वाली लसदार चीज, बलगम।
परमारथ उपचार करत हौ बिरह-बिथा है जाहि। जाकौ राजरोग कफ बाढ़त दह्यौ खवावत ताहि - ३१४५।
संज्ञा
[सं.]


कफ
लोहे का टुकड़ा जो चकमक से आग झाड़ने के काम आता है।
संज्ञा
[अ. कफ़]


कफन
वस्त्र जो शव पर लपेटा जाता है।
संज्ञा
[अ. क़फ़न]


कफनी
साधुओं के पहनने का बिना सिला कपड़ा, जिसमें सिर डालने के लिए एक बड़ा छेद होता है।
संज्ञा
[हिं. कफन]


कबंध
बिना धड़ का शरीर।
(क) पारथ बिमल बभ्रुबाहन कौं सीस-खिलौना दीनौ। इतनी सुनत कुंति उठि धाई, बरषत लोचननीर। पुत्र-कबंध अंक भरि लीन्हौ, धरति न इक छिन धीर - १ - २९। (ख) परि कबंध भहराइ रथनि तैं, उठत मनौ झर जागि - ९ - १५८।
संज्ञा
[सं.]


कबंध
एक राक्षस जिसके पेट में मुँह था। यह श्रीरामचन्द्र जी द्वारा दंडकारण्य में पराजित हुआ था। हाथ, पैर काट कर इन्होंने उसे जीता ही भूमि में गाड़ दिया था।
मारग में कबंधरिपु मारयौ सुरपति काज सँवारयौ - सारा. - २७१।
संज्ञा
[सं.]


कबंध
बादल।
संज्ञा
[सं.]


गवेषण
खोज, छानबीन।
संज्ञा
[सं.]


गवेषी, गवेसी
खोजी, ढूँढ़नेवाला।
वि.
[सं. गवेषण]


गवेसना
खोज करना।
क्रि. स.
[सं. गवेषण]


गवैया
गानेवाला, गायक।
वि.
[हिं. गाना+ऐया (प्रत्य.) अथवा गावना]


गवैंहा
गाँव का रहनेवाला।
वि.
[हिं. गाँव+ऐहा (प्रत्य.)]


गवैंहा
गँवार, असभ्य।
वि.
[हिं. गाँव+ऐहा (प्रत्य.)]


गव्य
गाय से प्राप्त दूध, दही, घी, गोबर आदि पदार्थ।
वि.
[सं.]


गव्य
गायों का समूह।
संज्ञा
[सं.]


गव्य
पंचगव्य - गाय से मिलनेवाले पाँच पदार्थ–दूध, दही, घी, गोबर और गोमूत्र।
संज्ञा
[सं.]


गश
मूर्च्‍छा, बेहोशी।
संज्ञा
[फ़ा. ग़श]


गह
मूठ, कब्जा, दस्ता।
संज्ञा
[सं. ग्रह]


गह
कोठरी की ऊचाई।
संज्ञा
[सं. ग्रह]


गह
खंड, मंजिल।
संज्ञा
[सं. ग्रह]


गहकना
चाह या लालसा से ललकना।
क्रि. अ.
[ सं. गद्गद् ]


गहकना
उमंग या उत्साह भरना।
क्रि. अ.
[ सं. गद्गद् ]


गहगह
चाह से युक्त
वि.
[ सं. गद्गद् ]


गहगह
उत्साह या उमंग से भरा हुआ।
वि.
[ सं. गद्गद् ]


गहगह
खूब धूमधाम से।
क्रि.वि.


गहगहा
उमंग या आनंद से युक्त।
वि.
[ सं. गद्गद् ]


गहगहा
जो खूब धूमधाम से हो।
वि.
[ सं. गद्गद् ]


गहति
पकड़ता, रोकता या ग्रहण करता है, थामता है।
चिरजीवौ सुकुमार पवन-सुत, गहति दीन ह्वै पाइ - ९८३।
क्रि. स.
[हिं. गहना]


गहन
पकड़ने अथवा ग्रहण करने (के लिए), धरने या थामने (के लिए)।
क) इंद्र-मय मानि, हय गहन सुत सौ कह्यौ, सो न लै सक्यौ, तब आप लीन्हौं - ४-११ (ख) सकल भूषन मनिनि के बने सकल आँग, बसन बर अरुन सुंदर सुहायौ। देखि सुर असुर सब दौरि लागे गहन, कह्यौ मैं बर बरौं आप भायौ-८८
क्रि. स.
[हिं. गहना]


गहन
गहरा, अथाह।
वि.
[ सं. ]


गहन
घना, दुर्गम।
वि.
[ सं. ]


गहन
कठिन, जटिल।
वि.
[ सं. ]


गहन
घना, निबिड़।
वि.
[ सं. ]


गहन
गहराई, थाह।
संज्ञा


गहन
दुर्गम स्थान।
संज्ञा


गहन
गुप्त स्थान।
संज्ञा


गहन
दुख।
संज्ञा


गहगहात
प्रफुल्लित होकर, उमंग से भरा हुआ।
बायस गहगहत सुभ बानी बिमल पूर्व दिसि बोलै। आजु मिलाओ स्याम मनोहर तू सुनु सखी राधिके भोले - १० उ. - १०६।
क्रि. अ.
[ हिं. गहगहाना ]


गहगहात
खूब घिरता हुआ, बड़ी धूमधाम और जोरशोर के साथ।
गहगहात किलकिलात अंधकार आयौ। रवि कौ रथ सूझत नहिं, धरनि गगन छायौ - ९-१३९।


गहगहाना
आनंद या उमंग से भरा हुआ।
क्रि. अ.
[ हिं. गहगहा ]


गहगहाना
फसल का अच्छा होना।
क्रि. अ.
[ हिं. गहगहा ]


गहगहे
बड़ी प्रफुल्लता या उमंग के साथ, अच्छी तरह।
क्रि. वि.
[हिं. गहगहा]


गहगहे
खूब धूमधाम और जोरशोर से।
बाजन बाजैं गहगहे (हों), बाजैं मंदिर भेरि - १० - ४०।
क्रि. वि.
[हिं. गहगहा]


गहगहो
सानंद, प्रफुल्लित, उत्साहित।
माधव जू आवनहार भये। अंचल उड़त मन होत गहगहो फरकत नैन खये।
वि.
[हिं. गहगहा]


गहडोरना
पानी मथकर गंदा करना।
क्रि. स.
[अनु.]


गहत
पकड़ते, रोकते या ग्रहण करते ही, थामते ही।
रिपु कच गहत द्रुपदतनया जब सरन सरन कहि भाषी। बढ़ै दुकूल-कोट अंबर लौं, सभा माँझ पति राखी - १२७।
क्रि. स.
[हिं. गहना]


गहत
धारण करता है।
क्रि. स.
[हिं. गहना]


गहना
पकड़ना, थामना।
क्रि. स.
[सं. ग्रहण, प्रा. गहण]


गहनि
टेक, हठ, जिद।
(क) छवि तरंग सरितागन लोचन ए सागर जनु प्रेम धार लोभ गहनि नीके अवगाही।

(ख) हरि पिय तुम जिनि चलन कहो। यह जिनि मोहिं सुनावहु। बलि जाउँ जिनि जिय गहनि गहो - २४५५।

संज्ञा
[सं. ग्रहण]


गहनु
ग्रहण।
संज्ञा
[सं. ग्रहण]


गहनु
कलंक।
संज्ञा
[सं. ग्रहण]


गहने
बंधक या रेहन के रूप में।
क्रि. वि.
[हिं. गहना=बंधक]


गहबर, गहबरा
गहन, दुर्गम।
तुम जानकी, जनकपुर जाहु। कहा आनि हम संग भरमिहौ, गहबर बन दुख-सिंधु अथाहु - ९ - ३४।
वि.
[सं. गह्वर]


गहबर, गहबरा
दुखी, व्याकुल।
वि.
[सं. गह्वर]


गहबर, गहबरा
ध्यान में लीन, बेसुध।
वि.
[सं. गह्वर]


गहबरना
घबराना।
क्रि. अ.
[हिं. गहबर]


गहबरना
जी भर आना।
क्रि. अ.
[हिं. गहबर]


गहबराना
घबरा देना, व्याकुल करना।
क्रि. स.
[हिं. गहबर]


गहर
देर, विलंब।
(क) कत हौ गहर करत बिन काजैं, बेगि चलौ उठि धाइ - १० - २०।

(ख) गहर जनि लावहु गोकुल जाइ। तुमहिं बिना ब्याकुल हम होइहैं यदुपति करी चतुराई। (ग) गहर करत हमको कहा मुख कहा निहारत - २५७६।

संज्ञा
[हिं. घड़ी, घरी ; अथवा सं. ग्रह ; अथवा फ़ा. गाह=समय]


गहर
टालना, बहाना करना।
देहो दधि कौ दान नागरी गहर न लाओ चित्त-सारा. ८७९।
संज्ञा
[हिं. घड़ी, घरी ; अथवा सं. ग्रह ; अथवा फ़ा. गाह=समय]


गहर
दुर्गम, कठिन।
वि.
[सं. गह्वर]


गहरना
देर लगना, विलंब करना
क्रि. अ.
[हिं. गहर=देर]


गहरना
झगड़ा करना, उलझना।
क्रि. अ.
[अ. कहर]


गहरना
कुढ़ना, खीझना, झुँझलाना।
क्रि. अ.
[अ. कहर]


गहरा
जिसकी थाह सरलता से न मिले।
वि.
[सं. गंभीर, पा. गहीर]


गहरा
जिसकी सतह बहुत नीचे हो।
वि.
[सं. गंभीर, पा. गहीर]


गहरा
बहुत ज्यादा।
वि.
[सं. गंभीर, पा. गहीर]


गहन
जल।
संज्ञा


गहन
ग्रहण
बड़ो पर्व रवि गहन कहा कहौं तासु बड़ाई - १० उ. - १०५।
संज्ञा
[ सं. ग्रहण]


गहन
कलंक, दोष।
संज्ञा
[ सं. ग्रहण]


गहन
दुख।
संज्ञा
[ सं. ग्रहण]


गहन
बंधक, रेहन।
संज्ञा
[ सं. ग्रहण]


गहन
पकड़।
संज्ञा
[हिं. गहना=पकड़ना]


गहन
हठ, जिद, अड़।
एकै गहन धरी उन हठ करि मेटि बेद बिधि नीति - ३४७८।


गहन
घास खोदने का एक औजार।


गहना
आभूषण, अलंकार।
संज्ञा
[सं. ग्रहण=धारण करना]


गहना
बंधक, रेहन।
संज्ञा
[सं. ग्रहण=धारण करना]


गहरा
गहरा असामी- बड़ा धनी।

गहरा हाथ मारना- (१) पूरा वार करना। (२) बहुत धन पा जाना। (३) बड़े मूल्य या काम की चीज पाना। (४) मजबूत, दृढ़। (५) गाढ़ा, जो पतला न हो।

मु.


गहरा
गहरी घुटना (छानना)- (१) बहुत मेल-जोल होना। (२) घुलघुल कर बातें होना।
मु.


गहराई
गहरापन।
संज्ञा
[हिं. गहरा+ई (प्रत्य.)]


गहराना
गहरा होना।
क्रि. अ.
[हिं. गहरा]


गहराना
खूब गहरा करना या बनाना।
क्रि. स.


गहराना
नाराज होना, खीझना।
क्रि. अ.
[हिं. गहर]


गहरानी
नाराज हुई, रूठ गयी, अप्रसन्न हुई।
अधर कंप, रिस भौंह मरोरयौ, मन ही मन गहरानी - १८६५।
क्रि. अ.
[हिं. गहर, गहराना]


गहराव
गहरापन।
संज्ञा
[हिं. गहरा+आव (प्रत्य.)]


गहरि
झगड़ा करके, रूठ कर, खीझकर।
तुम सौं कहत सकुचत महरि। स्याम के गुन नहीं जानति जात हम सों गहरि - ८६०
क्रि. अ.
[हिं. गहर=झगड़ा]


गहरु
देर, विलंब।
(क) सूर एक पल गहरु न कीन्‍हयौ किहिं जुग इतौ सह्यौ - १ - ४९।

(ख) माखन बाल गोपालहिं भावै। भूखे छिन न रहत मन मोहन, ताहि बदौं जो गहरु लगावै–१० - २३५। (ग) ऊधौ ब्रज जिनि गहरु लगावहु - २९२६। (घ) नव और सात बीस तोहिं सोभित काहे गहरु लगावति - सा. उ. - ११।

संज्ञा
[हिं. घड़ी, घरी अथवा फा. गाह=समय]


गहावन
पकड़ाने की, थमने की।
निज पुर आइ, राइ भीषम सौं, कही जो बातैं हरि उचरी। सूरदास भीषम परतिज्ञा, अस्त्र गहावन पैज करी - १ - २६८।
क्रि. स.
[हिं. 'गहना' का प्रे. गहाना]


गहावै
गहाती है, पकड़ाती है, थमाती है।
कबहुँक पल्लव पानि गहावै, आँगन माँझ रिंगावै–१० - १३०।
क्रि. स.
[हिं. ‘गहन'=पकड़ना का प्रे.]


गहासना
पकड़ना।
क्रि. स.
[सं. ग्रसना]


गहि
रोककर, टेककर, पकड़कर, थामकर।
गहि सारँग, रन रावन जीत्यौ, लंक बिभीषन फिरी दुहाई - १ - १४।
क्रि. स.
[हिं. गहना]


गहिए
पकड़िए, धरिए, थामिए।
जो तुम जोग सिखावन आए निर्गुन क्यों करि गहिए।—२९८७।
क्रि. स.
[हिं. गहना]


गहिबो
पकड़ना, धरना।
क्रि. स.
[हिं. गहना]


गहिबो
चित गहिबो- ध्यान में लाना, ख्याल करना, विचार में रखना। उ. - धोष बसत की चूक हमारी कछू न चित गहिबो - ३३१५।
मु.


गहियत
पकड़ता है, थामता है।
फिरि फिरि वहइ अवधि अवलंबन बुड़त ज्यौं तृन गहियत - ३३००।
क्रि. स.
[हिं. गहना]


गहियै
ग्रहण कीजिए, पकड़िए, अपनाइए, स्वीकारिए।
(क) दुख, सुख, कीरति, भाग आपनैं आइ परै सो गहियै - १ - ६२।

(ख) गऐं सोच आऐं नहिं आनँद ऐसौ मारग गहियै - २ - १८।

क्रि. स.
[हिं. गहना]


गहियौ
पकड़ूँगा, ग्रहण करूँगा।
ये सब बचन सुने मनमोहन यहै राह मन गद्दियौ-१०-३१३।
क्रि. स.
[हिं. गहना]


गहरे
अच्छी तरह, खूब।
क्रि. वि.
[हिं. गहरा]


गहवा
सँडसी।
संज्ञा
[हिं. गहना=पकड़ना]


गहवाना
पकड़ाना।
क्रि. स.
[हिं. गहाना]


गहाइ
पकड़ाकर, थमाकर।
कहौ तौ ताकौं तृन गहाइ कै, जीवत पाइनि पारौं–६-१०८।
क्रि. स.
[हिं. गहाना]


गहाई
पकड़ने का कार्य या भाव, पकड़।
संज्ञा
[हिं. गहना]


गहाऊँ
पकड़ाऊँ, थमाऊँ, उठवाऊँ।
(क) आजु जौ हरिहिं न सस्त्र गहाऊँ। तौ लाजौं गंगा जननी कौं, सांतनु सुत न कहाऊँ - १ - २७०। (ख) जो तुमरे कर सर न गहाऊँ गंगा-सुत न कहाऊँ - सारा. ७८०।
क्रि. स.
[हिं. ‘गहना' को प्रे. गहाना]


गहागह
धूमधाम से।
क्रि. वि.
[हिं. गहगह]


गहाना
पकड़ने या थामने को प्रेरित करना।
क्रि. स.
[हिं. गहना=पकड़ना]


गहायौ
पकड़ाया, धरने को प्रेरित किया।
अति कृपालु आतुर अबलनि कौं व्यापक अंग गहायौ - २९९८।
क्रि. स. (भूत.)
[हिं. गहाया]


गहावत
पकड़ाते हैं, थमाते हैं।
(क) सिखवति चलन जसोदा मैया। अरबराई कर पानि गहावत डगमगाई धरनी धरै पैया - १० - ११५।

(ख) सुफलकसुत ए सखि ऊधौ मिली एक परिपाटी। उनतौ वह कीन्ही तब हमसौं, ए रतन छँड़ाइ गहावत माटी–३०५६।

क्रि. स.
[हिं. गहना=पकड़ना का प्रे. ‘गहाना’]


कबंध
पेट।
संज्ञा
[सं.]


कबंध
राहु।
संज्ञा
[सं.]


कब
किस समय।
क्रि. वि.
[सं. कदा, हिं. कद]


कब
नहीं, कदापि नहीं।
क्रि. वि.
[सं. कदा, हिं. कद]


कबरा
सफेद रंग पर काले-पीले-लाल या काले-पीले-लाल रंग पर सफेद दाग वाला, चितकबरा।
वि.
[सं.कर्वर, पा. कव्वर]


कबरी
स्त्रियों की चोटी, वेणी।
अति सुदेस मृदु चिकुर हरत चित गुँथे सुमन रसालहि। कबरी अति कमनीय सुभग सिर राजति गोरी बालहि - पृ. ३४५ (४१)।
संज्ञा
[सं. कवरी]


कबहुँक
कब, कभी तो।
(क) कबहुँक तृन बूड़ै पानी मैं, कबहुँक सिला तरै - १ - १०५। (ख) इहिं आँगन गोपाल लाल कौ कबहुँक कनियाँ लैहौं–२५५०। (ग) कबहुँक कर करताल बजावत नाना भाँति नचावत - सारा. ४३८।
क्रि. वि.
[हिं. कब]


कबाय
एक ढीला-ढाला कपड़ा जो प्रायः संत पहनते हैं।
संज्ञा
[अ. कबा]


कबार
व्यापार।
संज्ञा
[हिं. कारोबार या कबाड़]


कबार
बेकार चीजें।
संज्ञा
[हिं. कारोबार या कबाड़]


गहिर, गहिरा
जिसकी थाह सरलता से न मिले, अथाह।
वि.
[हिं. गहरा]


गहिराई
गहरापन।
संज्ञा
[हिं. गहराई]


गहिराव
गहरापन।
संज्ञा
[हिं. गहरा]


गहिरो, गहिरौ
जहाँ पानी ज्यादा हो, गहरा।
आगैं जाउँ जमुन-जल गहिरौ, पाछैं सिंह जु लागे-१०-४।
वि.
[हिं. गहरा]


गहिला
पागल, उन्मत्त।
वि.
[हिं. गहेला]


गही
रोकी, पकड़ी, हाथ में ली।
(क) दुस्सासन जब गही द्रौपदी, तब तिहिं बसन बढ़ायौ-१ ३२। (ख) भृकुटी सूर गही कर सारँग निकर कटाछनि चोट–सा. उ. १६।
क्रि. स.
[हिं. गहना]


गहीर
अथाह, गहरा।
वि.
[हिं. गहरा]


गहीली
घमंड में चूर रहनेवाली, अभिमानिनी।
(क) राधा हरि के गर्व गहीली–१३०९। (ख) हम तैं चूक कहा परी जिय गर्व गहीली-१७१५।

(ग) यह तौ जोबन रूप गहीली संका मानत हर की -पृ. ३१७ (६८)।

वि.
[हिं. गहेला, गहिला]


गहीली
पगली, उन्मत्त।
वि.
[हिं. गहेला, गहिला]


गहु
छोटा रास्ता,ली।
संज्ञा
[सं. गह्वर या हिं. गँव]


गहूँ
पकड़ूँ, थामूँ।
चित्र गुप्त सु होत मुस्तौफी, सरन गहूँ मैं काकी-१-१४३।
क्रि. स.
[हिं. गहना]


गहूरी
दूसरे के माल की रक्षा की मजदूरी।
संज्ञा
[हिं. गहना=रखना]


गहे
पकड़े, रोके या थामे हुए।
क्रोध-दुसासन गहे लाज यह, सर्व. अंधगति मेरी-१-१६५।
क्रि. स.
[हिं. गहना]


गहे
किसी के द्वारा पकड़े या ग्रसे जाने पर।
ग्राह गहे गजपति मुकरायौ १-१०।
क्रि. स.
[हिं. गहना]


गहे
ग्रहण करने पर।
ऐसौ को जु न सरन गहे तैं कहत सूर उतरायौ -१-१५।
क्रि. स.
[हिं. गहना]


गहेजुआ
छछूँदर।
संज्ञा
[देश.]


गहेलरा
पागल, उन्मत्त।
वि.
[हिं. गहेला]


गहेलरा
मूर्ख, गँवार।
वि.
[हिं. गहेला]


गहेला
हठी, जिद्दी।
वि.
[हिं. गहना=पकड़ना+ एला (प्रत्य.)]


गहेला
घमंडी, अभिमानी।
वि.
[हिं. गहना=पकड़ना+ एला (प्रत्य.)]


गहेला
पागल, उन्मत्त।
वि.
[हिं. गहना=पकड़ना+ एला (प्रत्य.)]


गहेला
मूर्ख, अज्ञानी।
वि.
[हिं. गहना=पकड़ना+ एला (प्रत्य.)]


गहैं
गहते हैं, रोकते हैं, पकड़ते हैं।
(क) गहैं दुष्ट द्रुपदी कौ सारँग, नैननि बरसति नीर - १ - ३३।

(ख).....चंद्र गहैं ज्यौं केत - १ - २९६।

क्रि. स.
[हिं. गहना]


गहै
पकड़ता है, थामता है।
सूरदास सब सुखदाता-प्रभु-गुन बिचारि नहिं चरन गहै - १ - ५३।
क्रि. स.
[हिं. गहना]


गहै
ग्रहण करता है, प्राप्त करता है।
और कछू विद्या नहिं गहै - ५ - ३।
क्रि. स.
[हिं. गहना]


गहैया
पकड़नेवाला।
वि.
[हिं. गहना+ऐया (प्रत्य.)]


गहैया
मानने या स्वीकार करनेवाला।
वि.
[हिं. गहना+ऐया (प्रत्य.)]


गहोगे
पकड़ोगे, थामोगे।
बाबा नंदहिं पालागन कहि पुनि पुनि चरन गहोगे - २९३२।
क्रि. स.
[हिं. गहना]


गहौं
पकडूँ, थामूँ।
सूरदास-प्रभु भक्त-कृपानिधि, तुम्हरे चरन गहौं - १ - १६१।
क्रि. स.
[हिं. गहना]


गहौंगौ
गहूँगा, पकडूँगा।
मैया री मैं चंद लहौंगो। कहा करौं जलपुट भीतर कौं, बाहर ब्यौंकि गहौंगौ - १० - १९४।
क्रि. स.
[हिं. गहना]


गह्रर
झाड़ी।
संज्ञा
[सं.]


गह्रर
गुप्त स्थान।
संज्ञा
[सं.]


गह्रर
दंभ।
संज्ञा
[सं.]


गह्रर
रोना।
संज्ञा
[सं.]


गह्रर
गूढ़ार्थक वाक्य
संज्ञा
[सं.]


गह्रर
जटिल विषय।
संज्ञा
[सं.]


गह्रर
जल।
संज्ञा
[सं.]


गह्रर
दुर्गम, जटिल
वि.


गह्रर
छिपा हुआ।
वि.


गांग
गंगा-संबंधी।
वि.
[सं.]


गहौ
पकड़ो, रोको, थाम लो।
(क) सूर पतित तुम पतितउधारन, गहौ बिरद की लाज - १ - १०२।

(ख) अजहूँ सूर देखिबौ करिहौ, बेगि गहौ किन बाँह - १ - १७५।

क्रि. स.
[सं. ग्रहण, प्रा. गहण]


गहौ
अपनाओ, स्वीकार करो।
अब तुम नाम गहौ मन नागर - १ - ९१।
क्रि. स.
[सं. ग्रहण, प्रा. गहण]


गह्यो गह्यौ
पकड़ा, थामा, अंगीकार किया।
(क) स्याम गहयौ भुज सहज हीं क्यों मारत हमकौं–२५७७। (ख) सार कौ सार, सकल सुख कौ सुख, हनूमान-सिव जानि गहयौ - २ - ८।
क्रि. स.
[हिं. गहना]


गह्यो गह्यौ
ग्रहण किया, उठाया।
सक्र कौ दान-बलि, मान ग्वारनि लियौ गहयौ गिरि पानि जस जगत छायौ–१ - ५।
क्रि. स.
[हिं. गहना]


गह्रर
जंगल, वन।
कटि तट तून, हाथ सायक-धनु, सीता-बंधु-समेत। सूर गमन गह्वर कौ कीन्हौ जानत पिता अचेत - ९ - ३९।
संज्ञा
[सं.]


गह्रर
अंधकारमय और अनजाना गूढ़ स्थान।
संज्ञा
[सं.]


गह्रर
बिल, सूराख।
संज्ञा
[सं.]


गह्रर
विषम स्थान।
संज्ञा
[सं.]


गह्रर
गड्ढा, गहरा स्थान।
अति गह्वर मैं जाइ परी हम - २४३३।
संज्ञा
[सं.]


गह्रर
कुंज।
संज्ञा
[सं.]


गांग
भीष्म।
संज्ञा


गांग
वर्षा का जल।
संज्ञा


गांग
कार्तिकेय।
संज्ञा


गांग
एक मछली।
संज्ञा


गांग
सोना।
संज्ञा


गांगायनि
भीष्म।
संज्ञा
[सं.]


गांगायनि
कार्तिकेय।
संज्ञा
[सं.]


गांगायनि
एक ऋषि।
संज्ञा
[सं.]


गांगेय
भीष्म।
संज्ञा
[सं.]


गांगेय
कार्तिकेय।
संज्ञा
[सं.]


गाँठ
गाँठ खुलना- समस्या या उलझन दूर होना।

गाँठ खोलना (छोरना)- उलझन मिटाना। मन की गाँठ खोलना- (१) जी खोलकर बात करना (२) इच्छा पूरी करना। मन में गाँठ करना (पड़ना)- बुरा मानना। गाँठ पर गाँठ- (१) उलझन बढ़ना। (२) द्वेष बढ़ना।

मु.


गाँठ
कपड़े में कुछ लपेटकर लगायी हुई गिरह।
संज्ञा
[सं. ग्रंथि, प्रा.गंठि]


गाँठ
गाँठ काटना- (१) गाँठ काट लेना। (२) सौदे में ठगे जाना।

गाँठ करना- (१) अपने पास इकट्ठा करना। (२) याद रखना। गाँठ का- अपना, अपने पास का। गाँठ का पूरा- धनी। गाँठ खोलना- अपने पास का धन खरचना। (बात) गाँठ बाँधना- ध्यान रखना। गाँठ में- पास में। गाँठ से- पास से।

मु.


गाँठ
बोझ, गठरी।
संज्ञा
[सं. ग्रंथि, प्रा.गंठि]


गाँठ
शरीर के अंगों का जोड़।
संज्ञा
[सं. ग्रंथि, प्रा.गंठि]


गाँठ
ईख आदि की पोर।
संज्ञा
[सं. ग्रंथि, प्रा.गंठि]


गाँठ
गाँठ की बनावट की चीज आदि।
संज्ञा
[सं. ग्रंथि, प्रा.गंठि]


गाँठकट
गाँठ काटनेवाला।
संज्ञा
[हिं. गाँठ+काटना]


गाँठकट
ठग।
संज्ञा
[हिं. गाँठ+काटना]


गाँठना
गाँठ लगाना, साँटना।
क्रि. स.
[सं. ग्रंथन, प्रा. गंठन]


गांगेय
एक मछली।
संज्ञा
[सं.]


गांगेय
सोना।
संज्ञा
[सं.]


गांगेय
धतूरा।
संज्ञा
[सं.]


गांग्य
गंगा-संबंधी।
वि.
[सं. गंगा]


गाँछना
(माला आदि) गूँधना।
क्रि. स.
[सं. गुत्सन]


गाँज
राशि।
संज्ञा
[फ़ा. गंज]


गाँज
डंठल या लकड़ी की तले ऊपर लगा हुआ ढेर।
संज्ञा
[फ़ा. गंज]


गाँजना
ढेर लगाना।
क्रि. स.
[हिं. गाँज]


गाँजा
एक नशीला पौधा।
संज्ञा
[सं. गंजा]


गाँठ
गिरह, ग्रंथि।
संज्ञा
[सं. ग्रंथि, प्रा.गंठि]


गाँठना
टाँकना, गूँथना।
क्रि. स.
[सं. ग्रंथन, प्रा. गंठन]


गाँठना
जोड़ना।
क्रि. स.
[सं. ग्रंथन, प्रा. गंठन]


गाँठना
क्रम से लगाना।
क्रि. स.
[सं. ग्रंथन, प्रा. गंठन]


गाँठना
मतलब गाँठना- काम निकालना।
मु.


गाँठना
अपनी तरफ मिला लेना।
क्रि. स.
[सं. ग्रंथन, प्रा. गंठन]


गाँठना
तय कर लेना।
क्रि. स.
[सं. ग्रंथन, प्रा. गंठन]


गाँठना
दबाना, दबोचना।
क्रि. स.
[सं. ग्रंथन, प्रा. गंठन]


गाँठना
वश में करना।
क्रि. स.
[सं. ग्रंथन, प्रा. गंठन]


गाँठि
गाँठ, गिरह, ग्रंथि, फंदा।
(क) बचन बाँह लै चलौं गाँठि दै, पाऊँ सुख अति भारी-१-१४६। (ख) अंचल गाँठि दयी दुख भाज्यौ सुख जु आनि उर पैठयौ-९-१६४।
संज्ञा
[हिं. गाँठ]


गाँठि
कहा गाँठि को लागत- पास का क्या खर्च होता है, क्या जमा जथा खर्च होती है। उ. -इतनो कहा गाँठि को लागत जो बातनि जस पाइए-१६८८।

गाँठि परी- और जकड़ गयी, मामला पेचीदा हो गया। उ.-कठिन जो गाँठि परी माया की तोरी जाति न झटकैं -१-२९३। गाँठि को- अपने पास की। उ.- सूर सुगंध गँवाइ गाँठि को रही बौरई मानि-१५७२।

मु.


गाँठि
किसी कपड़े में लपेटकर लगायी हुई गाँठ।
होतौ नफा साधु की संगति, मूल गाँठि नहिं टरतौ-१-२९७।
संज्ञा
[हिं. गाँठ]


गाँठि
बाँस, ऊख आदि की गाँठ।
मुरली कौन सुकृत फल पाये।.....। मन कठोर तन गाँठि प्रगट ही, छिद्र बिसाल बनाये-६६१।
संज्ञा
[हिं. गाँठ]


गाँठिकटा
जेब काटने वाला, गिरहकट।
बटपारी, ठग, चोर, उचक्का गाँठिकटा, लाठबाँसी - १-१८६।
संज्ञा
[हि. गाँठ+काटना]


गाँठी
गाँठ।
मेरो जिव गाँठी बाँधो पीतांबर की छोर -८८०।
संज्ञा
[हिं. गाँठ]


गाँठी
गाँठी को- अपना, अपने पास का। उ.- हौं तो गयौ गुपालहिं भेंटन और खर्च गाँठी कौ-१० उ.-८७।

गाँठि दै राखति-छिपा कर या बंद करके रखती है। उ.–दधि माखन गाँठी द राखति करत फिरत सुत चोरी -१०-३२४

मु.


गाँठी
हाथ की कोहनी में पहनने का एक गहना।
संज्ञा
[हिं. गाँठ]


गाँठी
गठीला डंठल।
संज्ञा
[हिं. गाँठ]


गाँडर
एक घास।
संज्ञा
[सं. गंडाली]


गाँडर
एक तरह की गँठीली दूब।
संज्ञा
[सं. गंडाली]


गाँडा
कटा हुआ खंड।
संज्ञा
[सं. कांड या खंड]


कबाहट, कबाहत
बुराई।
संज्ञा
[अ.]


कबाहट, कबाहत
अड़चन।
संज्ञा
[अ.]


कबि
काव्य-रचयिता, कवि।
तौ जानौं जौ मोहिं तारिहौ, सूर कूर कबि-ठोट - १ - १३२।
संज्ञा
[सं. कवि]


कबीर
एक प्रसिद्ध संत कवि।
(२) एक प्रकार के अश्लील गीत जो होली में गाये जाते हैं।
संज्ञा
[अ. कबीर=बड़ा, श्रेष्ठ]


कबीला
समूह, झुंड।
संज्ञा
[अ. कबीलः


कबीला
एक परिवार का सदस्य।
संज्ञा
[अ. कबीलः


कबीला
पत्नी, स्त्री।
संज्ञा


कबुलाई
(कोई बात)स्वीकार करायी।
कि. स.
[हिं. कबुलाना]


कबुलाना
(कोई बात) स्वीकार करना।
क्रि. स.
[हिं. कबूलना का प्रे.]


कबूतर
एक पक्षी, कपोत।
संज्ञा
[फ़ा. (सं. कपोत)]


गाँडा
गँडेरी।
संज्ञा
[सं. कांड या खंड]


गाँडा
ईख, गन्ना।
संज्ञा
[सं. कांड या खंड]


गाँडा
चक्की की मेड़।
संज्ञा
[सं. गंड]


गांडीव
अर्जुन के धनुष का नाम।
संज्ञा
[सं.]


गांडीवी
अर्जुन।
संज्ञा
[सं.]


गांडीवी
अर्जुन नामक वृक्ष।
संज्ञा
[सं.]


गाँथना
(माला आदि) गूँधना।
क्रि. स.
[सं. ग्रंथन]


गाँथना
गाँठना, जोड़ना, सीना।
क्रि. स.
[सं. ग्रंथन]


गांदिनी, गांदी
अक्रूर की माता।
संज्ञा
[सं.]


गांदिनी, गांदी
गंगा।
संज्ञा
[सं.]


गांधर्व
गंधर्व का, गंधर्व जातीय।
वि.
[सं.]


गांधर्व
गंधर्व विद्या।
संज्ञा
[सं.]


गांधर्व
गान विद्या।
संज्ञा
[सं.]


गांधर्व
विवाह का एक प्रकार।
संज्ञा
[सं.]


गांधर्व
घोड़ा।
संज्ञा
[सं.]


गांधर्वी
दुर्गा।
संज्ञा
[सं.]


गांधार
सिंधु नद का पश्चिमी प्रदेश।
संज्ञा
[सं.]


गांधार
इस प्रदेश का निवासी।
संज्ञा
[सं.]


गांधार
गंधरस।
संज्ञा
[सं.]


गांधारी
गांधार देश की स्त्री।
संज्ञा
[सं.]


गांभीर्य
(विषय की) जटिलता।
संज्ञा
[सं.]


गाँव
किसानों की बस्ती, खेड़ा।
संज्ञा
[सं. ग्राम, पा. गाम, प्रा. गावँ]


गाँव
गँवई-गाँव - देहात। गाँव-गिराव - जमींदारी। गाँव मारना - डाका डालना।
मु.


गाँव
संकट, आपत्ति, बाधा।
अजहूँ नाहिं डरात मोहन, बचे कितने गाँस - १०-४२७।
संज्ञा
[हिं. गाँसना]


गाँव
गुप्त बात, भेद, रहस्य।
जोबन दान लेहिंगे तुम सौं। चतुराई मिलवति है हम सौं। इनकी गाँस कहा री जानौ। इतनी कही एक जिय मानौ-११६१।
संज्ञा
[हिं. गाँसना]


गाँव
गाँठ, फंदा, गठन, बनावट।
इतने सबै तुम्हारे पास। निरखि न देखहु अंग अंग अब चतुराई की गाँस -११३२।
संज्ञा
[हिं. गाँसना]


गाँव
रोकटोक, बंधन, प्रतिबंध।
संज्ञा
[हिं. गाँसना]


गाँव
वैर, ईर्ष्‍या, द्वेष।
संज्ञा
[हिं. गाँसना]


गाँव
तीर या बरछी की नोक।
संज्ञा
[हिं. गाँसना]


गाँव
नुकीला हथियार, छुरी, बर्छी।
भुजा धरे रज अंग चढ़ायौ, गाँस धरे हरि ऊपर आयौ-२६०६।
संज्ञा
[हिं. गाँसना]


गांधारी
धृतराष्ट्र की पत्नी जो गांधार देश के राजा सुबल की पुत्री थी।
संज्ञा
[सं.]


गांधी
हरे रंग का एक बरसाती कीड़ा।
संज्ञा
[सं. गांधिक]


गांधी
एक घास।
संज्ञा
[सं. गांधिक]


गांधी
हींग।
संज्ञा
[सं. गांधिक]


गांधी
इत्र तेल बेचनेवाला, गंधी।
संज्ञा
[सं. गांधिक]


गांधी
गुजराती वैश्यों की एक जाति।
संज्ञा
[सं. गांधिक]


गांभीर्य
गहराई।
संज्ञा
[सं.]


गांभीर्य
गंभीरता।
संज्ञा
[सं.]


गांभीर्य
स्थिरता।
संज्ञा
[सं.]


गांभीर्य
धीरता।
संज्ञा
[सं.]


गाँव
देखरेख, निगरानी।
संज्ञा
[हिं. गाँसना]


गाँव
गाँस करि राखी - ध्यान में रखी, मन में बैठा ली। उ.- तुम वह बात गाँस करि राखी, हम कहूँ गई भुलाई।
मु.


गाँसना
गूंथना, गाँठना।
क्रि. स.
[हिं. ग्रंथन]


गाँसना
चुभोना, आर-पार करना।
क्रि. स.
[हिं. ग्रंथन]


गाँसना
कसना
क्रि. स.
[हिं. ग्रंथन]


गाँसना
देखरेख में रखना, वश में करना, दबोचना।
क्रि. स.
[हिं. ग्रंथन]


गाँसना
ठूसना, ठूँसकर भरना
क्रि. स.
[हिं. ग्रंथन]


गाँसना
छेद बंद करना।
क्रि. स.
[हिं. ग्रंथन]


गाँसी
तीर या बरछी की नोक।
संज्ञा
[हिं. गाँस]


गाँसी
तीर।
सूरदास सोई पै जानैं जा उर लागै गाँसी- ३१३३।
संज्ञा
[हिं. गाँस]


गाईं
प्रार्थना करने लगीं, स्तुति की।
राजरवनि गाईं ब्याकुल ह्वै, दै दै तिनकौं धीरक। मागध हति राजा सब छोरे, ऐसे प्रभु पर पीरक - १ - ११२।
क्रि. स.
[हिं. गाना]


गाई
मधुर स्वर में अलापी।
क्रि. स.
[हिं. गाना]


गाई
विस्तार के साथ वर्णन की।
एहि थर बनी क्रीड़ा गज-मोचन और अनंत कथा स्रुति गाई - १ - ६
क्रि. स.
[हिं. गाना]


गाउँ
गाँव, खेड़ा।
प्रभु जू , यौं किन्ही हम खेती। बंजर भूमि, गाँउ हर जोते, अरु जेती की तेती - १ - १८५।
संज्ञा
[सं. ग्राम, पा. गाम]


गाउँ
जमीन, जायदाद।
द्याऊँ तोहिं राज-धन-गाँऊँ - ४ - ९।
संज्ञा
[सं. ग्राम, पा. गाम]


गाउँ
राज्य, राजधानी।
भलैं राम कौं सीय मिलाई, जीति कनकपुर गाउँ - ९ - ७५।
संज्ञा
[सं. ग्राम, पा. गाम]


गाउ
गा रहे हैं, मधुर स्वर से बोल रहे हैं।
कुसुमसर रिपु नंद बाहक हहर हरषित गाउ–सा. उ. - ४०।
क्रि. अ.
[हिं. गाना]


गाऊँ
प्रशंसता हूँ, बखानता हूँ, स्तुति करता हूँ।
सूर कूर, आँधरौ, मैं द्वार परयौ गाऊँ - १ - १६६।
क्रि. स.
[हिं. गाना]


गाऊ
गाते हैं, बखानते हैं।
सूरदास प्रभु की यह लीला निगम नेति नित गाऊ - १० - २२१।
क्रि. स.
[हिं. गाना]


गाए
गाये गये, सविस्तार वर्णित किये गये।
दीनबंधु हरि, भक्तकृपानिधि, बेद-पुराननि गाए (हो) - १.७।
क्रि. स.
[हिं. गाना]


गाँसी
गाँठ, गिरह।
संज्ञा
[हिं. गाँस]


गाँसी
कपट।
संज्ञा
[हिं. गाँस]


गाँसी
ईर्ष्‍या, द्वेष।
संज्ञा
[हिं. गाँस]


गाँसी
वश, अधिकार।
संज्ञा
[हिं. गाँस]


गाँसी
जोर करैगो गाँसी- जबरदस्ती वश में करेगा, हठपूर्वक अधिकार या शासन जमायगा। उ.- पावैगो पुनि कियौ आपनो जोर करैगो गाँसी।
मु.


गाइ
मधुर स्वर से गाकर।
क्रि. स.
[हिं. गाना]


गाइ
सविस्तार वर्णन करके।
पारथ के सारथि हरि आप भए हैं। भक्त-बछल नाम निगम गाइ गये हैं-१-२३।
क्रि. स.
[हिं. गाना]


गाइ
गाय।
(क) माधो जू, यह मेरी इक गाइ। अब आज तैं आप आगैं दई, लै आइए चराइ-१-५१। (ख) माधो सखा स्याम इन कहि कहि अपने गाइ-ग्वाल सब घेरो-२५३२।
संज्ञा
[सं. गौ, हिं. गाय]


गाइयै
प्रशंसा या बड़ाई कीजिए, बखानिए।
हरि सुमिरत सुख होइ, सु हरि-गुन गाइयै - उ. - ३ - ११।
क्रि. स.
[हिं. गाना]


गाइबो
(गीत) गाया।
जन मन भयो सूर आनँद हरषि मंगल गाइबो - १० उ. - २४ (८)।
क्रि. स.
[हिं. गाना]


गाऐं
गाने से, वर्णन करने या बखानने से।
जो सुख होत गुपालहिं गाऐँ - २ - ६।
क्रि. स. सवि.
[हिं. गाना]


गाउघप्‍प
जमा मार लेनेवाला।
वि.
[हिं. खाऊ+ गप्प]


गाउघप्‍प
खूब खरचने-उड़ानेवाला।
वि.
[हिं. खाऊ+ गप्प]


गागर, गागरा, गागरि, गागरी
घड़ा, गगरी।
(क) पुलकित सुमुखी भई स्याम-रस ज्यौं जल मैं काँची गगरि गरि - १० - १२०। (ख) ज्यौं जल माँह तेल की गागरि बूँद न ताको लागी - ३३३५।

(ग) मटकति गिरी गागरी सिर तैं अब ऐसी बुधि ठानति।

संज्ञा
[सं. गर्गर, पा, गग्गर, हिं. गगरा]


गाछ
पौधा, पेड़।
संज्ञा
[सं. गच्छ]


गाछो
कुंज, बाग।
संज्ञा
[हिं. गाछ+ ई (प्रत्य.)]


गाछो
(खजूर की) कोंपल।
संज्ञा
[हिं. गाछ+ ई (प्रत्य.)]


गाछो
बोरा या गद्दा जो पशुओं की पीठ पर रखा जाता है।
संज्ञा
[हिं. गाछ+ ई (प्रत्य.)]


गाज
गरज, शोर।
संज्ञा
[सं. गर्ज]


गाज
बिजली गिरने का शब्द।
संज्ञा
[सं. गर्ज]


गाज
बिजली, वज्र।
संज्ञा
[सं. गर्ज]


गाज
गाज पड़ना- बिजली गिरना, वज्रपात होना।

(किसी पर) गाज पड़ना- आफत आना। (किसी बात पर) गाज पड़ना- समूल नष्ट होना। गाज मारना- (१) वज्रपात होना। (२) आफत आना। जिय गाज- जी में भय उत्पन्न होना, भयानक संकट पड़ना। उ.- चक्र धरे हरि आवहीं सुनि असुरन जिय गाज - १० उ.- ८।

मु.


गाज
फेन, झाग।
संज्ञा
[अनु. गजगज]


गाजत
(प्रसन्न होकर) हुंकारते हैं।
जिहिं जल तृन, पसु, दारु बूड़ि, अपनैं सँग औरनि पारत। तिहिं जल गाजत महावीर सब, तरत आँखि नहिं मारत - ९ - १२३
क्रि. अ.
[हिं. गाजना]


गाजत
क्रोध से गरजता है।
(क) रावन तब लौं ही रन गाजत। जब लौं सारँगधर कर नाहीं सारँग-बान बिराजत। तैसें सूर असुर आदिक सब सँग तेरे हैं गाजत - ९ - १३०। (ख) निसि दिन कलमलात सुन सजनी सिर पर गाजत मदन अर - २७६४।
क्रि. अ.
[हिं. गाजना]


गाजति
गरजकर, शब्द करके।
क्रि. अ.
[हिं. गाजना]


गाजति
गाजति बाजति-धूमधाम के साथ।
मुरली मोहे कुँवर कन्हाई।…...। गाजति-बाजति, चढ़ी दुहूँ कर, अपनैं शब्द न सुनत पराई–६५४।
यौ.


गाजन
गर्जन, हुंकार, जोर का शब्द, ध्वनि।
सुनत बन मुरली धुनि की बाजन। पपिहा गुंज कोकिल बन कूँजत, अरु मोरनि कियौ गाजन - ६२२।
संज्ञा.
[सं. गर्जन, पा. गज्जन]


गाजन
गरज कर।
क्रि. अ.
[हिं. गाजना]


गाजन
आए गाजन- गरजने आये हैं, भयंकर ध्वनि करके डराने आये हैं।
ब्रज पर बदरा आये गाजन - २८१७।
प्र.


गाजन
लागे गाजन - गरजने लगे हैं।
ब्रज पर बहुरो लागे गाजन - १० उ. - ९९।
प्र.


गाजना
शब्द करना, गरजना।
क्रि. अ.
[सं. गर्जन, पा. गज्जन]


गाजना
प्रसन्न होना।
क्रि. अ.
[सं. गर्जन, पा. गज्जन]


गाजना
गलगाजना- (१) प्रसन्न होकर हुंकारना या किलकारी मारना। (२) क्रोध से गरजना।
मु.


गाजनु
गरज, हुंकारने की क्रिया।
सूरदास नागर बिन अब यह कौन सहै सिर गाजनु - २८७२।
संज्ञा
[सं. गर्जन, पा. गज्जन]


गाजर
एक पौधा, उसकी जड़।
संज्ञा
[सं. गुंजन]


गाजा
गरज, ध्वनि।
संज्ञा
[हिं. गाज]


गाजा
मुँह पर मलने का पाउडर।
संज्ञा
[फ़ा. ग़ाज़ा]


गाजी
धर्मयुद्ध करनेवाले इस्लामी वीर।
संज्ञा
[अ. ग़ाज़ी]


गाजी
वीर।
संज्ञा
[अ. ग़ाज़ी]


कबै
किस समय, कब।
कमल कोस मैं आनि दुरायौ बहुरि दरस धौं होइ कबै—१३००।
क्रि. वि.
[हिं. कब]


कभी, कभू
किसी समय, किसी अवसर पर।
क्रि. वि.
[हिं. कब+ही]


कमंडल
साधु-संतों का जल पात्र जो दरियाई नारियल या तुमड़ी आदि का होता है।
संज्ञा
[सं. कमंडलु]


कमंडली
ब्रह्मा।
उतै देखि धावै, इत आवै, अचरज पावै, सूर सुरलोक ब्रजलोक एक है रह्यो। बिबस ह्व हार मानी, आपु आयौ नकबानी, देखि गोप मंडली कमंडली चितै रह्यौ - ४८४।
संज्ञा
[सं. कमंडलु+ई (प्रत्य.)]


कमंडली
साधु।
संज्ञा
[सं. कमंडलु+ई (प्रत्य.)]


कमंडली
पाखंडी, आडंबर रखनेवाला।
वि.
[सं. कमंडलु + ई (प्रत्य.)]


कमंडलु
साधु-संन्यासियों की जलपात्र जो प्रायः धातु, मिट्टी, तुमड़ी, दरियाई नारियल आदि का होता है।
संज्ञा
[सं.]


कमंडलु
एक पेड़।
संज्ञा
[सं.]


कमंद
बिना सिर का धड़।
संज्ञा
[सं. कबंध]


कमंद
रेशम, सूत या चमड़े का फंदा।
संज्ञा
[फ़ा.]


गाजी
गरजने लगी।
क्रि. अ.
[हिं. गाजना]


गाजी
हर्षित हुई।
क्रि. अ.
[हिं. गाजना]


गाजी
सबहिनि के सिर गाजी- सबको परास्त करके हर्षित हुई, सबको चुनौती देकर किलकारी भरी। उ.- सुफल भयो पछिलो तप कीन्हो देखि सुरूप काम-रति भाजी। जगत के प्रभु बस किये सूर सुनि सबहिं सुहागिन के सिर गाजी - ३०९४।
मु.


गाजु
गरजा कर, चिल्लाया कर, बकाकर।
राखौ रोकि पाई बंधन कै, अरु रोकौ जल नाजु। हौं तौ तुरत मिलौंगी हरिकौं, घर बैठौ गाजु - ८०८।
क्रि. अ.
[हिं. गाजना]


गाज
गरजते हैं, हुंकारते हैं।
(क) बिप्र सुदामा कों निधि दीन्हीं, अर्जुन रन मैं गाजैं - १ - ३६।

(ख) माई री ए मेघ गाजैं - २८१६।

क्रि. अ.
[हिं. गाजना]


गाजै
हुंकारे, गरजे, चिल्लाये।
क्रि. अ.
[हिं. गाजना]


गाजै
प्रसन्न हुए।
क्रि. अ.
[हिं. गाजना]


गाजै
गल गाजै- हर्षित होकर किलकारता है।

(किसी पर) गाजै- परास्त कर सकता है, चुनौती देता है, बहुत बढ़कर है। उ.- तेजप्रताप राइ केसो कौ तीनि लोक पर गाजै - २६३२।

मु.


गाटर, गाटी
छोटा खेत।
संज्ञा
[हिं. कट्ठा]


गाठी
ग्रंथि, बंधन।
प्रभु कब देखिहौ मम ओर। जान आपुन आपु ते गिरनाथ गाठी छोर - सा. उ. ४२।
संज्ञा
[हिं. गाँठ]


गाड़रू
साँप का विष झाड़ने वाला व्यक्ति।
संज्ञा
[हिं. गारुड़ी]


गाड़ा
बैलगाड़ी, छकड़ा।
सीधो बहुत सुरासुर नंदै गाड़ा भरि पहुँचायौ।
संज्ञा
[सं. शकट, प्रा. सगड़]


गाड़ा
छिपकर बैठने का गड्ढा
संज्ञा
[सं. गर्त्‍त, प्रा. गड्ड]


गाड़ा
कोल्हू के नीचे का गड्ढा।
संज्ञा
[सं. गर्त्‍त, प्रा. गड्ड]


गाड़ि
जमीन में गाड़कर।
(क) भैया-बंधु कुटुंब घनेरे, तिनतैं कछु न सरी।…..। मरती बेर सम्हारन लागे, जो कछु गाड़ि धरी - १ - ७१। (ख) कबहूँ पाप करैं पावत धन, गाड़ि धूरि तिहिं देत - २ - १५।

(ग) सूर जोग-धन राख मधुपुरी कुबिजा के घर गाड़ि - ३००४।

क्रि. वि.
[हिं. गाड़=गड्ढा, गाड़ना]


गाड़िऐ
गढ़े में दबा दीजिए, तोपिए।
ये पांडव क्यौं गाड़िए, धरनीधर डोलैं - १ - २३८।
क्रि. स.
[हिं. गाड़ना]


गाड़ी
सवारी जिसे घोड़े या बैल खींचते हैं।
संज्ञा
[सं. शकट, प्रा. सगड़]


गाड़ी
गढ़े में गाड़कर, तोपकर।
क्रि. स.
[हिं. गाड़ना]


गाड़ी
जबरदस्ती रोककर।
मोको बैरी भए कुटुँब सब फेरि फेरि ब्रज गाड़ी। जो हौं, कैसेहुँ जान पावती तौ कत आवत छाड़ी - २७०१।
क्रि. स.
[हिं. गाड़ना]


गाड़ू
मंत्र, जादू।
कछु पढ़ि-पढ़ि कर, अंग परसि करि, विष अपनौ लियौ झारि। सूरदास प्रभु बड़े गारुड़ी, सिर पर गाड़ू डारि - ७५९।
संज्ञा
[सं. गारुड़]


गाड़
गड्ढा, गढ़ा।
संज्ञा
[सं. गर्त्‍त, प्रा. गड्ड]


गाड़
अन्न रखने का गड्ढा।
संज्ञा
[सं. गर्त्‍त, प्रा. गड्ड]


गाड़
कुएँ की टाल।
संज्ञा
[सं. गर्त्‍त, प्रा. गड्ड]


गाड़
खेत की मेंड़, बाढ़।
संज्ञा
[सं. गर्त्‍त, प्रा. गड्ड]


गाड़ना
गड्ढा खोद कर किसी चीज को मिट्टी आदि से दबा देना, तोपना।
क्रि. स.
[हिं. गाड़=गड्ढा]


गाड़ना
गड्ढा खोद कर किसी चीज को इस तरह खड़ा करना कि वह मजबूती से जमी रहे।
क्रि. स.
[हिं. गाड़=गड्ढा]


गाड़ना
किसी चीज को उसके नुकीले भाग की तरफ से धँसाना।
क्रि. स.
[हिं. गाड़=गड्ढा]


गाड़ना
(किसी बात या रहस्य को) छिपाना या प्रकट न करना।
क्रि. स.
[हिं. गाड़=गड्ढा]


गाडर
भेड़।
संज्ञा
[सं. गड्डरी या गड्डरिका]


गाडर
गाँडर घास जो मूज की तरह होती है।
संज्ञा
[सं. गड्डरी या गड्डरिका]


गाड़े
गड्ढा, गहरा गढ़ा।
गृह गृह प्रति द्वार फिरयौ, तुमकौं प्रभु छोड़े। अंध अंध टेकि चलै, क्यों न परै गाड़े - १ - १२४।
संज्ञा
[सं. गर्त. प्रा. गड्ड, हिं. गाड़]


गाढ़
बहुत अधिक।
वि.
[सं.]


गाढ़
दृढ़, मजबूत।
वि.
[सं.]


गाढ़
घना, गाढ़ा।
वि.
[सं.]


गाढ़
गहरा, अथाह।
वि.
[सं.]


गाढ़
दुर्गम।
वि.
[सं.]


गाढ़
आपत्ति, संकट।
(क) उलटी गाढ़ परी दुर्बासैं दहत सुदरसन जाकौं - १ - ११३। (ख) डसी री माई स्याम भुजंगम कारे।...सूरस्याम गारुड़ी बिना को जो सिर गाढ़ उतारै।

(ग) जहँ-जहँ गाढ़ परै तहँ आवै - ९७०। (घ) जब-जब गाढ़ परति है। हमकौ तहँ करि लेत सहैया - २३७४।

संज्ञा


गाढ़
जुलाहों का करघा।
संज्ञा


गाढ़ा
जो कम पतला हो।
वि.
[सं. गाढ़]


गाढ़ा
जिसके सूत खूब घने मिले हों।
वि.
[सं. गाढ़]


गाढ़ा
घनिष्ट, गहरा।
वि.
[सं. गाढ़]


गाढ़ा
घोर, कठिन।
वि.
[सं. गाढ़]


गाढ़ा
हाथ के सूत को मोटा कपड़ा।
संज्ञा


गाढ़ा
मस्त हाथी।
संज्ञा


गाढ़ी
बढ़ी-चढ़ी, घोर, कठिन।
एती करबर हैं टरी, देवनि करी सहाय। तब तैं अब गाढ़ी पड़ी, मोकौं कछु न सुझाइ–५८९।
वि.
[हिं. गाढ़ा]


गाढ़ी
बहुत बढ़ी हुई, अत्यंत।
धेनु दुहत अतिहीं रति बाढ़ी। मोहन कर तैं धार चलति, परि मोहनि मुख अति ही छबि गाढ़ी–७३६।
वि.
[हिं. गाढ़ा]


गाढ़ी
घनी, गहरी, घोर।
मानहु मेघ घटा अति गाढ़ी - १० - उ. - २।
वि.
[हिं. गाढ़ा]


गाढ़े
घनिष्ट, गूढ़।
वि.
[हिं. गाढ़ा]


गाढ़े
बढ़े-चढ़े, घोर, कठिन, विकट।
सूर उपँग-सुत बोलत नाहीं अति हिरदै हैं गाढ़े - २९६९।
वि.
[हिं. गाढ़ा]


गाढ़े
गाढ़े की कमाई- मेंहनत से कमाई हुई दौलत।

गाढ़े के मीत, साथी या संगी- संकट समय के मित्र, विपत्ति में साथ देनेवाले। उ.- गोबिंद गाढ़े दिन के मीत। गज अरु ब्रज, प्रहलाद, द्रौपदी, सुमिरत ही निहचीत - १ - ३१। गाढ़े दिन- संकट के दिन, विपत्ति-काल। गाढ़े में- विपत्ति या संकट के दिनों में।

मु.


गाढ़े
दृढ़ता से,मजबूती से।
(क) पहुँची आइ जसोदा रिस भरि, दोउ भुज पकरे गाढ़े - ४१३। (ख) हार सहित अँचरा गह्यो गाढ़े एक कर गह्यौ मटुकिया मेरी।
क्रि. वि.
[हिं. गाढ़ा]


गाढ़े
अच्छी तरह, खूब।
क्रि. वि.
[हिं. गाढ़ा]


गाढ़ैं
विपत्ति के दिनों में।
हमारे निर्धन के धन राम। चोर न लेत, घटत नहिं कबहूँ, आवत गाढ़ैं काम - १.९२।
वि., सवि.
[सं. गाढ़, हिं. गाढ़ा]


गाढ़ैं
दृढ़ता से, जोर से, मजबूती से।
(क) इक कर सौं भुज गहि गाढ़ै करि, इक कर लीन्ही साँटी - १० २५५। (ख) दोउ भुज धरि गाढ़ै कर लीन्हें, गई महरि के आगैं - १० - ३१७।

(ग) लिए लगाइ कठिन कुच कौं बिच, गाढ़ैं चापि रही अपनैं कर - १० - ३०१।

क्रि. वि.
[हिं. गाढ़ा]


गाढ़ैं
अच्छी तरह, भली भाँति, खूब, ऊँचे (स्वर) से।
बरजति है घर के लोगनि कौं हरुऐ लै लै नामहिं। गाढ़ैं बोलि न पावत कोऊ डर मोहन बलरामहिं –५१५।
क्रि. वि.
[हिं. गाढ़ा]


गाढ़ो
गहरा, गूढ़, बहुत अधिक, खूब बढ़ा हुआ।
(क) गाढ़ो मान दूरि करि डारयौ हरष भई मन बाम–२१५१। (ख) बहुरि सखी सुफलक सुत आयौ परयौ संदेह जिय गाढ़ौ - २९७१।

(ग) नाम सुदामा कहत नाथ जो दुखी अहि अति गाढ़ो - १० उ. - ७७।

वि.
[हिं. गाढ़ा]


गाढ़ौ
कठिन, विकट, प्रचंड, घोर।
(क) सुनियत हैं, तुम बहु पतितनि कौं, दीन्हौ है सुखधाम। अब तौ आनि परयौ है गाढ़ौ सूर पतित सौं काम - १ - १७९।

(ख) इत पारथ गांगेय बली उत जुरो जुद्ध अति गाढ़ौ - सारा. ७८१।

वि.
[हिं. गाढ़ा]


गाणपत्य
गणपति संबंधी।
वि.
[सं.]


गाणपत्य
गणेश-उपासक-संप्रदाय।
संज्ञा


गात
शरीर, अंग।
(क) ग्राह गह्यौ गज बल बिनु ब्याकुल, बिकल गात गति लंगी। धाइ चक्र लै ताहि उबारयौ, मारयौ ग्राह बिहंगी - १ - २१। (ख) सूरदास प्रभु बोलि न आयौ प्रेम पुलकि सब गात - २५३१।
संज्ञा
[सं. गात्र, पा. गत्त]


गात
शरीर के गुप्तांग।
संज्ञा
[सं. गात्र, पा. गत्त]


गात
स्तन, कुच।
संज्ञा
[सं. गात्र, पा. गत्त]


गात
गर्भ।
संज्ञा
[सं. गात्र, पा. गत्त]


गातन
शरीर में।
पाये जानि सकल सुनि मधुकर जे गुन साँवरे गातन - ३०२५।
संज्ञा
[हिं. गात]


गात
शरीर, अंग।
नैन अलसात अति, बार-बार जमुहात, कंठ लगि जात, हरषात गाता - ४४०।
संज्ञा
[हिं. गात]


गात
गानेवाला, गवैया।
संज्ञा
[सं. गातृ (गीता)]


गात
दफ्‌ती, कुट।
संज्ञा
[सं. गत्ता]


गाती
चद्दर जो शरीर या गले में बाँधी-लपेटी जाय।
सारी सुभग काछ सब दिये। पाटंबर गाती सब दिये।
संज्ञा
[सं. गात्री या गात्रिका]


गाती
गाती या चादर शरीर के चारो ओर लपेटकर गले में बाँधने का ढंग।
संज्ञा
[सं. गात्री या गात्रिका]


गातु
कोयल।
संज्ञा
[सं.]


गाथ
स्तोत्र।
संज्ञा
[सं. गाथा]


गाथ
यश, प्रशंसा।
(हरि) पतित-पावन, दीनबन्धु अनाथनि के नाथ। संतत सब लोकनि स्रुति, गावत यह गाथ - १ - १८२।
संज्ञा
[सं. गाथा]


गाथ
वचन, वाणी, कथन।
तब बोले जगदीस जगतगुरु सुनो सूर मम गाथ। तू कृत मम जस जो गावैगौ सदा रहै मम साथ - सारा.११०४।
संज्ञा
[सं. गाथा]


गाथक
गानेवाला, गायक।
संज्ञा
[सं.]


गाथना
गूँथना, गाँथना।
क्रि. स.
[हिं. गाँथना]


गाथा
स्तुति।
संज्ञा
[सं.]


गाथा
श्लोक।
संज्ञा
[सं.]


गाथा
रचना जिसमें दान, यज्ञ आदि का वर्णन हो।
संज्ञा
[सं.]


गाथा
आर्यावृत्ति।
संज्ञा
[सं.]


गाथा
एक प्राचीन भाषा जिसमें पाली और संस्कृत के विकृत शब्द-रूप रहते थे।
संज्ञा
[सं.]


गातु
भौंरा।
संज्ञा
[सं.]


गातु
गंधर्व।
संज्ञा
[सं.]


गातु
गानेवाला।
संज्ञा
[सं.]


गातु
गान।
संज्ञा
[सं.]


गातु
पथिक।
संज्ञा
[सं.]


गातु
पृथ्वी।
संज्ञा
[सं.]


गाते
शरीर।
गदगद बचन नैन जल पूरित बिलखि बदन कृस गाते - ३४६१ और सा. उ. - ४६।
संज्ञा
[हिं. गात]


गात्र
अंग, देह, शरीर।
पोषे नहिं तुव दास प्रेम सौं, पोष्यौ अपनो गात्र - १ - २१६।
संज्ञा
[सं.]


गात्र
हाथी के अगले पैरों का ऊपरी भाग।
संज्ञा
[सं.]


गाथ
गान, गीत।
सूर स्याम हौं ठगी महानिसि पढ़ि जु सुनाये प्रात के गाथ - २७३६।
संज्ञा
[सं. गाथा]


गाथा
गीत।
संज्ञा
[सं.]


गाथा
कथा, वृत्तांत।
संज्ञा
[सं.]


गाथी
सामवेद-गायक।
संज्ञा
[सं. गाथिन्]


गाद
तरल पदार्थ की निचली गाढ़ी चीज, तलछट।
संज्ञा
[सं. गाध=जल का तल]


गाद
तेल की कीट।
संज्ञा
[सं. गाध=जल का तल]


गाद
गाढ़ी चीज।
संज्ञा
[सं. गाध=जल का तल]


गादड़
कायर।
वि.
[सं. कातर या कदर्य, प्रा. कादर]


गादड़
अड़ियल बैल।
संज्ञा


गादड़
गीदड़।
संज्ञा


गादड़
भेड़ा, मेढ़ा।
संज्ञा
[सं. गड्डर]


कमंध
बिना धड़ का शरीर।
(क) राधे सो रस बरनि न जाई। जा रस को सुर भान सीस दियो सो तैं पियौ अकुलाई। पचि हारे सब बाल कमलमुख चंद्र बदन ठहराई। अजहुँ कमंध फिरत तेहि लालच सुंदरि सैन बुझाई - १२३५। (ख) मन हठ परयौ कमंध जोधा लौं हारेहु नाहीं जीति–३२३७।
संज्ञा
[सं. कबंध]


कमंध
कलह, झगड़ा।
संज्ञा
[सं. कबंध]


कम
थोड़ा, तनिक।
वि.
[फ़ा.]


कम
बुरा।
वि.
[फ़ा.]


कम
प्राय: नहीं, बहुत थोड़ा, कदाचित ही।
क्रि. वि.


कमठ
कछुआ, कच्छप।
(क) बासुकी नेति अरु मंदराचल रई, कमठ मेँ अपनी पीठ धारौं–२ - ८।

(ख) मथि समुद्र सुर असुरन के हित मंदर जलधि धसाऊ। कमठ रूप धरि धरयौ पीठि पर तहाँ न देखे हाऊ - १० - २२१।

संज्ञा
[सं.]


कमठ
साधुअओं को तुंबा।
संज्ञा
[सं.]


कमठ
पुराने ढंग का एक बाजा जिस पर चमड़ा मढ़ा जाता था।
संज्ञा
[सं.]


कमठा
घनुष।
संज्ञा
[सं. कमठ=बाँस]


कमठी
कछुई।
संज्ञा
[सं.]


गादुर
चमगादड़।
संज्ञा
[सं. कातर, प्रा. कादर]


गाध
स्थान, जगह।
संज्ञा
[सं.]


गाध
जल की थाह
संज्ञा
[सं.]


गाध
नदी का बहाव।
संज्ञा
[सं.]


गाध
लोभ।
संज्ञा
[सं.]


गाध
जो बहुत गहरा न हो।
वि.


गाध
थोड़ा।
वि.


गाधा
गायत्री-स्वरूपा महादेवी।
संज्ञा
[सं.]


गाधि
विश्वामित्र के पिता जो कुशिक राजा के पुत्र थे।
संज्ञा
[सं.]


गाधितनय, गाधिपुत्र, गाधिसुत
विश्वामित्र।
संज्ञा
[सं.]


गादर
कायर, भीरु।
वि.
[सं. कातर या कदर्य, प्रा. कादर]


गादर
सुस्त, मट्ठर।
वि.
[सं. कातर या कदर्य, प्रा. कादर]


गादर
अड़ियल बैल।
संज्ञा


गादर
गीदड़।
संज्ञा


गादर
गदराया हुआ।
वि.
[हिं. गदराना]


गादा
अधपका अन्न।
संज्ञा
[सं. गाधा=दलदल]


गादा
कच्ची फसल।
संज्ञा
[सं. गाधा=दलदल]


गादा
हर महुआ।
संज्ञा
[सं. गाधा=दलदल]


गादी
एक पकवान।
संज्ञा
[हिं. गद्दी]


गादी
गद्दी।
संज्ञा
[हिं. गद्दी]


गाधी
गद्दी।
संज्ञा
[हिं. गद्दी]


गाधेय
विश्वामित्र।
संज्ञा
[सं.]


गान
गाने की क्रिया, गाना।
संज्ञा
[सं.]


गान
गाने की चीज, गीत।
संज्ञा
[सं.]


गानत
गाते हैं।
परे रहत द्वारे सोभा के वोई गुन गनि गानत - पृ. ३२८।
क्रि. स.
[हिं. गाना]


गानति
गाती हैं।
ग्वालन संग रहत जे माई, यह कहि कहि गुन गानति - १८०५।
क्रि. स.
[हिं. गाना]


गाना
ताल, स्वर के ध्यान से मधुर ध्वनि निकालना।
क्रि. स.
[सं. गान]


गाना
मधुर ध्वनि करना।
क्रि. स.
[सं. गान]


गाना
विस्तार के साथ वर्णन करना।
क्रि. स.
[सं. गान]


गाना
अपनी गाना- (१) अपन दुखड़ा रोना। (२) अपनी बात कहना।

अपनी ही गाना- अपने मतलब की कहना।

मु.


गाव
एक पेड़।
संज्ञा
[देश.]


गाभ
पशुओं का गर्भ।
संज्ञा
[सं. गर्भ, पा. गब्भ]


गाभ
नया कल्ला, कोंपल।
संज्ञा
[सं. गर्भ, पा. गब्भ]


गाभ
बरतन का साँचा।
संज्ञा
[सं. गर्भ, पा. गब्भ]


गाभा
नया कल्ला,कोंपल।
संज्ञा
[सं. गर्भ, पा. गब्भ]


गाभा
पेड़ के डंठल के बीच का भाग या हीर।
संज्ञा
[सं. गर्भ, पा. गब्भ]


गाभा
लिहाफ आदि से निकली हुई पुरानी रुई।
संज्ञा
[सं. गर्भ, पा. गब्भ]


गाभा
कच्ची खेती।
संज्ञा
[सं. गर्भ, पा. गब्भ]


गाभिन, गाभिनी
मादा पशु जिसके पेट में बच्चा हो।
वि.
[सं. गर्भिणी, पा. गब्भिणी]


गाम
गाँव।
सुभ दिन हरि आये निज धाम। तौलों घर घर प्रति दुर्गा कौ पूजन कियौ सब गाम - सारा - ६५१।
संज्ञा
[सं. ग्राम, पा. गाम]


गाना
स्तुति या प्रशंसा करना।
क्रि. स.
[सं. गान]


गाना
गाने की क्रिया, संगीत।
संज्ञा


गाना
गाने की चीज, गीत।
संज्ञा


गानि
बखान कर, प्रशंसा करके।
तेहि समय सुख स्याम स्यामा सूर क्यों कहै गानि - पृ. ३४३ (१२)।
क्रि. स.
[हिं. गाना]


गानी
वर्णन की, गायी, सविस्तार कही।
(क) तब पठयौ ब्रज-दूत, सुनी नारदमुख-बानी। बार-बार रिषि-काज, कंस अस्तुति मुख गानी - ५८९। (ख) जो तुम अंग अंग अवलोक्यौ धन्य धन्य मुख अस्तुति गानी–१३१९।
क्रि. स.
[हिं. गाना]


गाने
गाये, बखान किये।
ताही के जाहु स्याम जाके निसि बसे धाम मेरे गृह कहा काम सूरदास गाने - १९५२।
क्रि. स.
[हिं. गाना]


गानै
गाता है, स्तुति करता है।
बार बार स्याम राम अक्रूरहि गानै। अबहिं तुम हरष भए तबहिं मन मारि रहे, चले जात रथहिं बात, बूझत हैं बानै - २५५७।
क्रि. स.
[हिं. गाना]


गान्यौ
गाया, बखान किया स्तुति की।
गुरु की कृपा भई जब पूरन तब रसना कहि गान्यौ - पृ. ३५० (५७)।
क्रि. स. (भूत.)
[हिं. गाना]


गाफिल
बेसुध, बेखबर।
वि.
[अ. ग़ाफ़िल]


गाफिल
लापरवाह, असावधान।
वि.
[अ. ग़ाफ़िल]


गाभिनी
एक तरह की नाव।
सं.
[सं.]


गामी
चलनेवाला, चालवाला।
तिनको कौन परेखो कीजै जे हैं गरुड़ के गामी - ३०८०।
वि.
[सं. गामिन्]


गामी
संभोग या रमण करनेवाला।
वि.
[सं. गामिन्]


गामुक
जानेवाला।
वि.
[सं.]


गाय
गैया, गऊ।
संज्ञा
[सं. गो]


गाय
गाय की तरह काँपना- बहुत डरना, थर्राना।

गाय का बछिया और बछिया का गाय के तले करना- थोड़े में काम चलाने के लिए हेरा-फेरी करना |

मु.


गाय
बहुत सीधा आदमी, दीन मनुष्य।
संज्ञा
[सं. गो]


गाय
गाकर, बखान करके।
नंद महर को गारी गाय - २४०९।
क्रि. स.
[हिं. गाना]


गायक
गानेवाला, गवैया।
संज्ञा
[सं.]


गायगोठ
गैयों का बाड़ा, गोशाला।
संज्ञा
[हिं. गाय+सं. गोष्ठ]


गायत
बहुत, अत्यंत।
वि.
[अ. ग़ायत]


गायताल
निकम्मा बैल या चौपाया।
संज्ञा
[हिं. गाय+तल]


गायताल
बेकार या रद्दी चीज।
संज्ञा
[हिं. गाय+तल]


गायताल
निकम्मा, बेकार, गया-गुजरा, रद्दी।
वि.


गायत्र
गायत्री छंद।
संज्ञा
[सं.]


गायत्री
खैर का पेड़।
संज्ञा
[सं. गायत्रिन्]


गायत्री
एक वैदिक छंद।
संज्ञा
[सं.]


गायत्री
एक पवित्र मंत्र।
तिन गायत्री सुने गर्ग सों प्रभु गति अगम अपार - २६२९।
संज्ञा
[सं.]


गायत्री
खैर।
संज्ञा
[सं.]


गायत्री
दुर्गा।
संज्ञा
[सं.]


गायौ
स्तुति की, बखान किया, प्रशंसा की।
(क) कोपि कौरव गहे केस जब सभा मैं, पाँडु की बधू जस नैंकु गायौ। लाज के साज मैं हुती ज्यौं द्रौपदी, बढ़यौ तन-चीर नहिं अंत पायौ - १ - ५। (ख) सरन गए राखि लेत सूर सुजस गायौ १ - २३।
क्रि. स.
[सं. गान, हिं. गाना]


गायौ
गाय (का)।
गायौ-घृत भरि धरी कटोरी - ३९५।
संज्ञा
[हिं. गैया]


गार
गाली।
संज्ञा
[हिं. गाली]


गार
गड्ढा।
संज्ञा
[अ.]


गार
गुफा।
संज्ञा
[अ.]


गारडू
साँप का विष उतारने वाला।
संज्ञा
[हिं. गारुड़ी]


गारत
नष्ट, बरबाद।
वि.
(अ. ग़ारत]


गारना
पानी या रस निकालना या निचोड़ना।
क्रि. स.
[सं. गालन=निचोड़ना]


गारना
घिसकर मिलाना।
क्रि. स.
[सं. गालन=निचोड़ना]


गारना
त्यागना, दूर करना।
क्रि. स.
[सं. गालन=निचोड़ना]


गायन
गानेवाला, गायक, गवैया।
संज्ञा
[सं.]


गायन
गाकर जीविका कमानेवाला।
संज्ञा
[सं.]


गायन
गीत, गान।
संज्ञा
[सं.]


गायन
स्वामी कार्तिकेय।
संज्ञा
[सं.]


गायन
गैयाँ।
गायन घर घर घेर चरावत लोभ नचावन हारे - सा. उ. - ८।
संज्ञा
[ब्रज. गैयन]


गायब
लुप्त, अंतर्धान।
वि.
[अ. ग़ायब]


गायबाना
चुपके से, धीरे धीरे, अनुपस्थिति में।
क्रि. वि.
[हिं. गायब]


गायिका
गानेवाली।
संज्ञा
[सं. गायक]


गायिनी
गानेवाली स्त्री, गायिका।
संज्ञा
[सं.]


गायिनी
एक मात्रिक छंद।
संज्ञा
[सं.]


गारना
गलाना, घुलाना।
क्रि. स.
[सं. गल]


गारना
तन [देह या शरीर] गारना- तप करना जिससे शरीर गले या कष्ट हो।
मु.


गारना
नष्ट करना, बरबाद करना।
क्रि. स.
[सं. गल]


गारभेली
फालसे की जाति का एक जंगली फल।
संज्ञा
[देश.]


गारा
गाढ़ा चूना या मिट्टी जो जोड़ाई या पलस्तर के काम आता है।
संज्ञा
[हिं. गारना]


गारा
नीची भूमि जिसमें पानी न टिके।
संज्ञा
[देश.]


गारि
निकालना, त्यागना, दूर करना।
क्रि. स.
[सं.गालन=निचोड़ना]


गारि
गलाना, घुलाना।
क्रि. स.
[हिं. गारना]


गारि
तन (तनु) गारि- तप द्वारा शरीर को कष्ट देकर या गला कर। उ.- (क) तब तन गारि बहुत स्रम कीन्हो सो फल पूरन दैन। (ख) सरद ग्रीसम डरत नाहीं, करति तप तनु गारि - ७८१।
मु.


गारि
नष्ट करके, खोकर मिटाकर, समाप्त करके।
ससि-गन गारि रच्यौ बिधि अनन, बाँके नैननि जोहै - १० - १५८।
क्रि. स.
[हिं. गारना]


कमत
कम होता है।
क्रि. अ.
[हिं. कमना]


कमना
कम होना, घटना।
क्रि. अ.
[हिं. कम]


कमनी
सुंदर।
वि.
[सं. कमनीय]


कमनीय
सुंदर, मनोहर।
वि.
[सं.]


कमनीय
कामना करने या चाहने योग्य।
वि.
[सं.]


कमनीयता
सुंदरता।
संज्ञा
[सं. कमनीय]


कमनैत
धनुष चलानेवाला, तीरंदाज।
संज्ञा
[फ़ा. कमान+हिं. ऐत (प्रत्य.)]


कमनैती
तीर चलाने की कला या विद्या, धनुर्विद्या।
संज्ञा
[हिं. कमनैत]


कमर
कटि।
संज्ञा
[फा.]


कमरख
एक पेड़ जिसके फल खटमिट्टे होते हैं, कमरंग।
संज्ञा
[सं. कर्मरंग, पा. कम्मरंग]


गारि
दुर्वचन, शाप।
बंस निर्बस करि डारिहौं छिनक मैं गारि दै दै ताहि त्रास दीन्हो - २६०२।
संज्ञा
[हिं. गाली]


गारि
उत्सवों में गाये जाने वाले गीत जिनमें दी हुई गाली प्रिय लगती है।
(क) गावत नारि गारि सब दै दै - ९ - २५।

(ख) सजन प्रीतम नाम लै लै दै परस्पर गारि - १० - २६।

संज्ञा
[हिं. गाली]


गारियाँ
गालियाँ, दुर्वचन।
संज्ञा
[हिं. गाली]


गारियाँ
गीत जो उत्सवों में गाये जाते हैं जिनमें दी हुई गाली प्रिय लगती हैं, उत्सवों में गायी जानेवाली गालियाँ।
आईं जुरि जुवती दूहूँ दिसि मनों देति आनँद गारियाँ - पृ. ३४८ (४)।
संज्ञा
[हिं. गाली]


गारी
गाली, दुर्वचन, अपशब्द।
(क) गारी देहि प्रात उठि मोकौ सुनत रहत यह बानी - २९३६। (ख) नारी गारी बिनु नहिं बोलै पूत करै कलकानी। घर में आदर कादर कोसौं खीझत रैन बिहानी।
संज्ञा
[हिं. गाली]


गारी
कलंकजनक आरोप।
क) सूर स्याम इहिं बरजि कै मेट्यो अब कुल-गारी हो - १ - ४४। (ख) खीझ कह्यो ताहि क्यों इहाँ ल्यायौ मुझे मम पिता-मात कौ लगै गारी - १० उ. - ५६।
संज्ञा
[हिं. गाली]


गारी
गारी आवै (पड़े, लगे)- कलंक लगता है, लांछन लगता है। उ.- लोचन लालच भारी। इनके लए लाज या तन की सबै स्याम सौं हारी। बरजत मात पिता पति बांधव अरु आवै कुल गारी। तदपि रहत न नंद नँदन बिनु कठिन प्रकृति हठ धारी।

हाथ रहेगी गारी- गाली देकर व्यर्थ ही पछताना होगा। उ.- अब दुख मानि कहा धौं करिहौ हाथ रहैगी गारी-२९३८। गारी लाना- कलंक या दाग लगाना।

मु.


गारी
एक गीत जो उत्सवों में स्त्रियाँ गाती हैं जिनमें दी हुई गालियाँ प्रिय लगती हैं।
निर्भय अभय-निसान बजावत, देत महर कौं गारी-१०-४।
संज्ञा
[हिं. गाली]


गारी
गलाया, घुला दिया।
क्रि. स.
[सं. गल]


गारी
कीन्हो तनु गारी- तप करके या कष्ट सहकर, सारा शरीर गला कर। उ.- (क) ब्रतसाधति नीकैं तन गारी–७९९। (ख) षटरितु तप कीन्हो तनु गारी-१००५।
मु.


गारुड़
मंत्र जिसका देवता गरुड़ हो, साँप का विष उतारने का मंत्र
आवति लहर मदन बिरहा की को हरि बेगि हँकारै। सूरदास गिरिधर जौ आवहिं हम सिर गारुड़ डारै-३२५४।
संज्ञा
[सं.]


गारुड़ि, गारुड़ी, गारुड़िक
मंत्र से साँप का विष उतारनेवाला, साँप झाड़नेवाला।
(क) कृष्न सुमंत्र जियावन मूरी जिन जन मरत जिवायौ। बारंबार निकट स्रवनन ह्वै गुरु गारुड़ी सुनायौ-२-३२। (ख) औरै दसा भई छिन भीतर, बोले गुनी नगर तैं। सूर गारुड़ी गुन करि थाके, मंत्र न लागत थर तैं- ७४४।

(ग) चले सब गारुड़ी पछिताइ। नैकुहूँ नहिं मंत्र लागत समुझि काहु न जाइ–७४५। (घ) डसी री स्याम भुअंगम कारे।…..। सूर स्याम गारुड़ी बिना को, जो सिर गाढ़ उतारे-७४७।

संज्ञा
[सं. गारुडिन्]


गारुड़ि, गारुड़ी, गारुड़िक
मंत्र से साँप पकड़नेवाला, सँपेरा।
संज्ञा
[सं. गारुडिन्]


गारुत्मत
मरकत, पन्ना।
संज्ञा
[सं.]


गारुत्मत
गरुड़ जी का अस्त्र।
संज्ञा
[सं.]


गारुरी
साँप का विष उतारने वाला।
उ. - डसी री माई स्याम भुअंगम कारे।….। आनहु बेगि गारुरी गोबिंदहिं जो यहि बिषहिं उतारै।
संज्ञा
[हिं. गारुड़ी]


गारै
गलती या घुलाती हैं।
क्रि. स.
[सं. गल]


गारै
तनु गारै- शरीर गलाती या क्षीण करती हैं। उ.- नैनन ते बिछुरी भौहैं भ्रम ससि अजहूँ तन गारै - ३१८९।
मु.


गारो, गारौ
गर्व, अहंकार, अभिमान।
(क) छुद्रु पतित तुम तारि रमापति, अब न करौ जिय गारौ - १ - १३१। (ख) बिदुर दास के भोजन कीन्हौ, दुरजोधन कौ मेट्यो गारौ - १ - १७२।

(ग) देखत बल दूरि करयौ मेघनाद गारौ। (घ) हमको नँदनंदन को गारो - ६८७। (ङ) बात सुनत रिस भरयौ महावत तुमहि कहा इतनो रे गारो २५९०।

संज्ञा
[सं. गर्व]


गारो, गारौ
मान, प्रतिष्ठा।
जो मेरो लाल खिझावै। सौ अपनो कियो फल पावै। तेहि दैहौं देस-निकारो। ताको ब्रज नाहिंन गारो - १०-१८३।
संज्ञा
[सं. गर्व]


गारो, गारौ
गलाओ, गलाकर समाप्त करो, तप द्वारा क्षीण करो।
(क) राम-नाम सरि तऊ न पूजैं, जौ तन गारौ जाइ हिवार - २ - ३। (ख) जप-तप करि तनु अब जनि गारौ - ७९७।
क्रि. स.
[हिं. गारना, गलाना]


गारौं
गाड़ दूँ, धसा दूँ।
कहौ तौ परबत चाँपि चरन तर, नीर-खार मैं गारौं–९-१०७।
क्रि. स.
[हिं. गाड़ना]


गार्गी
गर्ग गोत्र की एक प्रसिद्ध विदुषी।
संज्ञा
[सं.]


गार्गी
याज्ञवल्क्य की एक स्त्री।
संज्ञा
[सं.]


गार्गी
दुर्गा।
संज्ञा
[सं.]


गार्ग्‍य
गर्ग गोत्रीय व्यक्ति।
संज्ञा
[सं.]


गार्ग्‍य
एक प्राचीन वैयाकरण।
संज्ञा
[सं.]


गारयौ
नष्ट किया, खोया, बरबाद किया।
आछौ जनम अकारथ गारयौ। करी न प्रीति कमल-लोचन सौं, जन्म जुवा ज्यौं हारयौ - १ - १०१।
क्रि. स. (भूत.)
[हिं. गलाना]


गार्हस्थ्य
गृहस्थाश्रम।
संज्ञा
[सं.]


गार्हस्थ्य
गृहस्थ के मुख्य कार्य।
संज्ञा
[सं.]


गार्हस्थ्य
गृहस्थी संबंधी।
वि.


गाल
गंड, कपोल।
संज्ञा
[सं. गंड, गल्ल]


गाल
गाल फुलाना- (१) गर्व प्रकट करना। (२) रूठकर बोलना।

गाल बजाना- (१) बढ़ बढ़ कर बातें करना। (२) व्यर्थ बकबाद करना। गाल बजैहै- बड़ बढ़कर बातें करेगी, डींग मारेगी। उ.- देखहु जाइ चरित तुम वाके जैसे गाल बजैहै - १२६३। गाल में जाना- मुँह में जाना। काल के गाल में जाना- मृत्यु के मुख में पड़ना, मरना। गाल मारना- (१) डींग डाकना। (२) व्यर्थ की बकवाद करना।

मु.


गाल
बड़बड़ाने या मुँहजोरी करने का स्वभाव।
संज्ञा
[सं. गंड, गल्ल]


गाल
गाल करना- (१) मुँहजोरी करना, निसंकोच अंडबंड बकना। (२) बहुत बढ़ बढ़ कर बातें करना, डींग हाँकना।

बहुत करत हैं गाल- निसंकोच अंडबंड बकते हैं। उ.- आई हँसत कहति हरि एई बहुत करत हैं गाल - २४२७। करि करि गाल- बहुत बढ़ बढ़कर बातें करके, खूब डींग हाँककर। उ.- बेगि करो मेरों कह्यौ पकवान रसाल। वह मघवा बलि लेत है नित करि करि गाल।

मु.


गाल
मध्य भाग, बीच का अंश।
संज्ञा
[सं. गंड, गल्ल]


गाल
फंका, कौर।
संज्ञा
[सं. गंड, गल्ल]


गाल
गाल मारना- कौर मुँह में रखना।
मु.


गाल
अन्न जो एक बार में चक्की में डाला जाय।
संज्ञा
[सं. गंड, गल्ल]


गाल
एक तरह की तंबाकू।
संज्ञा
[देश.]


गालगूल
व्यर्थ की गपशप, अंडबंड बात।
संज्ञा
[हिं. गाल (अनु.)]


गालबंद
एक बंधन।
संज्ञा
[हिं. गाल+बंद]


गालमसूरी
एक तरह की मिठाई।
(क) अरु तैसियै गालमसूरी। जो खातहिं मुख-दुख दूरी - १० - १८३। (ख) दूध बरा, उत्तम दधिबाटी, गालमसूरी की रुचि न्यारी - १० - २२७।
संज्ञा
[देश.]


गालव
एक ऋषि।
संज्ञा
[सं.]


गालव
एक प्राचीन वैयाकरण।
संज्ञा
[सं.]


गालव
एक पेड़।
संज्ञा
[सं.]


गाला
कपास की डोंड़ी से निकली हुई रुई।
संज्ञा
[हिं. गाल=ग्रास]


गाला
धुनी हुई रुई की पूनी।
संज्ञा
[हिं. गाल=ग्रास]


गाला
रुई का गाला (गाला सा)- बहुत सफेद।
मु.


गाला
बड़बड़ाने या मुँहजोरी का स्वभाव।
संज्ञा
[हिं. गाल]


गाला
कौर, ग्रास।
संज्ञा
[हिं. गाल]


गालिब
विजयी, श्रेष्ठ।
वि.
[अ. ग़ालिब]


गालिम
प्रबल, बली।
वि.
[अ. ग़ालिब]


गाली
दुर्वचन, अपशब्द।
संज्ञा
[सं. गालि]


गाली
कलंक, कलंकसूचक आरोप।
संज्ञा
[सं. गालि]


गालीगलौज
गाली की अदला-बदली, तू-तू मैं-मैं।
संज्ञा
[हिं. गाली+अनु. गलौज]


गालीगुप्ता
दुर्वचन, अपशब्द।
संज्ञा
[हिं. गाली+फ़ा. गुफ्तार=कहना]


गालीगुप्ता
तू-तू मैं-मैं।
संज्ञा
[हिं. गाली+फ़ा. गुफ्तार=कहना]


गालना
बात करना।
क्रि. अ.
[सं. गल्प=बात


गालू
बढ़ बढ़कर बातें करनेवाला, गाल बजानेवाला।
वि.
[हिं. गाल+ऊ (प्रत्य.)]


गालू
डींग हाँकनेवाला, डींगिया।
वि.
[हिं. गाल+ऊ (प्रत्य.)]


गालोड्य
कमलगट्टा।
संज्ञा
[सं.]


गाल्‍हना
बात करना।
क्रि. अ.
[हिं. गालना]


गाव
गाय-बैल।
संज्ञा
[सं. गो या फ़ा. गाव]


गावकुशी
गोवध।
संज्ञा
[फ़ा.]


गावकुस
लगाम।
संज्ञा
[सं. ग्रीवा+कुश]


गावक़ोहान
घोड़ा जिसके कूबड़ हो।
संज्ञा
[फ़ा.]


गावखाना
गोशाला।
संज्ञा
[फ़ा.]


गावड
गला, गर्दन।
संज्ञा
[सं. ग्रीवा]


गावत
गाते हैं।
क्रि. स.
[हिं. गाना]


गावत
प्रशंसा करते हैं, बखानते हैं।
(क) कमल नैन की लीला गावत कटत अनेक विकार - २ - २।

(ख) बारंबार ग्यान गीता को ब्रज बनितनि आगे गावत - २९८९।

क्रि. स.
[हिं. गाना]


गावतकिया
बड़ा तकिया, मसनद।
संज्ञा
[फ़ा.]


गावति
गाती है।
अति अनुराग परस्पर गावति, प्रफुल्लित मगन होति नँदघरनी - १० - ४४।
क्रि. स.
[हिं. गाना]


गावते
गाते हैं।
कबहुँक काहू भाँति चतुर चित अति ऊँचै सुर गावते–२७३५।
क्रि. स.
[हिं. गाना]


गावदी
मूर्ख, नासमझ।
वि.
[हिं. गाय+दी या सं. धीर]


गावदी
कुंठित बुद्धि का।
वि.
[हिं. गाय+दी या सं. धीर]


गावदुम
ढालू।
वि.
[फ़ा.]


गावदुम
चढ़ाव-उतार।
वि.
[फ़ा.]


गावन
गाने की किया, गाना।
(क) द्वारैं ठाढ़े हैं द्विज बावन। चारौ बेद पढ़त मुख आगर, अति सुकंठ-सुर-गावन - ८-१३। (ख) सूरदास निस्तरिहैं यह जस करि-करि दीन-दुखित जन गावन–९ - १३१।

(ग) अमर-नगर उत्साह अपसरा-गावन रे - १० - २८। (घ) बेनु पानि गहि मोको सिखावत मोहन गावन गौरी - २८७७।

संज्ञा
[सं. गान, हिं. गाना]


गावनो
गाना, बखान करना।
सूर स्याम सुप्रेम उमँग्यौ हरि जस सु लीला गावनो - २२८०।
क्रि. स.
[हिं. गाना]


गावहि
प्रशंसा करता है, बखानता है।
जो गावहि ताकी गति होइ - २ - ५।
क्रि. स.
[हिं. गाना]


गावहिंगे
गायँगे।
तैसेइ मोर पिक करत कुलाहल हरषि हिंडोला गावहिंगे - २८८९।
क्रि. स.
[हिं. गाना]


गावहु
गाओ।
बलि-बलि जाउँ मधुर सुर गावहु - १० - १७९।
संज्ञा
[हिं. गाना]


गावैं
स्वर निकालते हैं, बखानते हैं।
भक्त बछल है बिरद हमारौ, बेद सुमृति हूँ गावैं - १ - २४४।
क्रि. स.
[हिं. गाना]


गावै
गाता है।
क्रि. स.
[हिं. गाना]


गावै
स्तुति करता है, प्रशंसा करता है।
जरासंध बंदी कटैं नृप कुल जस गावै - १ - ४।
क्रि. स.
[हिं. गाना]


गावैगो
गायगा, पढ़ेगा, पाठ करेगा।
तू कृत मम जस जो गावैगो सदा रहै मम साथ - सारा. ११०४।
क्रि. स.
[हिं. गाना]


गावौ
गाओ, मधुर स्वर निकालो, आलापो।
गावौ हरि कौ सोहिलौ (हो) - १० - ४०।
क्रि. स.
[हिं. गाना]


गास
संकट, दुख।
अजहूँ नाहिं डरात मोहन बचे कितने गास।
संज्ञा
[सं. ग्रास]


गास
ग्रसे हुए है, गाँसे है।
सिंधु-सुत-धर सुहित सुत गुन गहक गोपी गास - सा, उ. ४२।
क्रि. स.
[हिं. ग्रसना]


गासिया
जीनपोश।
संज्ञा
[अ. गाशियः]


गाह
दुर्गम या गहन स्थान।
संज्ञा
[सं.]


गाह
गहन स्थान में विचरनेवाला मनुष्य।
संज्ञा
[सं.]


गाह
गाहक।
संज्ञा
[सं. ग्राह]


गाह
घात।
संज्ञा
[सं. ग्राह]


गाह
ग्राह, मगर।
संज्ञा
[सं. ग्राह]


गाहक
खरीदनेवाला, मोल लेनेवाला।
सूरदास गाहक नहिं कौऊ दिखिअत गरे परी–३१०४।
संज्ञा
[सं. ग्राहक, प्रा. गाहक]


गाहक
चाहने वाल, अभिलाषी, प्रेमी, इच्छुक।
(क) स्याम गरीबन हूँ के गाहक। दीनानाथ हमारे ठाकुर, साँचे प्रीति निबाहक - १ - १९।

(ख) हम तौ प्रेम-प्रीति के गाहक - १ - २३९। (ग) सुर नर सब स्वारथ के गाहक - ८ - ६। (घ) तुम अलि सब स्वारथ के ग्राहक नेह न जानत आधो - ३२४४।

संज्ञा
[सं. ग्राहक, प्रा. गाहक]


गाहकी
बिकी, खरीदारी।
संज्ञा
[हिं. गाहक]


गाहकी
ग्राहक की रुचि।
संज्ञा
[हिं. गाहक]


कमलनैन
विष्णु।
संज्ञा
[सं. कमलनयन]


कमलनैन
राम।
संज्ञा
[सं. कमलनयन]


कमलनैन
सुंदर नेत्रवाला।
वि.


कमल बंधु
सूर्य।
संज्ञा
[सं.]


कमलभव, कमलभू
ब्रह्मा।
संज्ञा
[सं.]


कमला
लक्ष्मी।
संज्ञा
[सं.]


कमला
धन, संपत्ति।
संज्ञा
[सं.]


कमला
राधा की एक सखी का नाम।
कहि राधा किन हार चुरायौ।...सुखमा सीला अबधा नंदा बृंदा यमुना सारि। कमला तारा बिमला चंदा चंदावलि सुकुमारि - १५८०।
संज्ञा
[सं.]


कमला
कमलिनी।
चलि सखि तिहिं सरोवर जाहिं। जिहिं सरोवर कमल-कमला, रवि बिना बिकसाहिं - १ - ३३८।
संज्ञा
[सं. कमल]


कमलाकंत, कमलाकांत
विष्णु, श्रीकृष्ण।
सूर कछू यह ह्याँरी अद्भुत लीला कमलाकंत - २२२२।
संज्ञा
[सं. कमला=लक्ष्मी+कांत= पति]


गाहकताई
खरीदारी।
संज्ञा
[सं. ग्राहकता]


गाहकताई
कदरदानी, चाह।
संज्ञा
[सं. ग्राहकता]


गाहत
झाड़ता है, ओहने में लगा है।
झारि झूरि मन तौ तू लै गयो बहुरि पयारहिं गाइत - ३०६५।
क्रि. स.
[हिं. गाहना]


गाहन
स्नान करना।
संज्ञा
[सं.]


गाहना
थाह लेना, अवगाहना।
क्रि. स.
[सं. अवगाहन]


गाहना
विलोड़ना, मथना।
क्रि. स.
[सं. अवगाहन]


गाहना
झाड़ना, ओहना।
क्रि. स.
[सं. अवगाहन]


गाहना
दूर दूर पर खेत जोतना।
क्रि. स.
[सं. अवगाहन]


गाहा
कथा, वृत्तांत।
संज्ञा
[सं. गाथा, प्रा. गाहा]


गाहा
एक छंद।
संज्ञा
[सं. गाथा, प्रा. गाहा]


गाही
गिनने का एक मान जो पाँच पाँच का होता है।
संज्ञा
[हिं. गहना]


गाहे
झाड़ने से, ओहने की क्रिया से।
यह भ्रम तौ अब हीं भजि जैहै ज्यों पयार के गाहे - ३०६७।
क्रि. स.
[हिं. गहना]


गिंजना
कपड़े आदि का सिकुड़ जाना, गींजा जाना।
क्रि. अ.
[हिं. गींजना]


गिंजाई
एक बरसाती कीड़ा।
संज्ञा
[सं. गृंजन]


गिड़नी
एक साग।
संज्ञा
[देश.]


गिंडुरी
गेंडुरी, बिड़ई।
नीके देहु न मेरी गिंडुरी - ८५४।
संज्ञा
[हिं. इँड्डुरी]


गिदौड़ा, गिंदौरा
गलाकर बड़े पेड़े के आकार में ढाली हुई शकर।
संज्ञा
[हिं. गेंद]


गिंदौरी
गला कर बड़े पेड़े के आकार में जमाई हुई चीनी।
पेठा पाक जलेबी कौरी। गोंदपाक तिनगरी, गिंदौरी - ३९६।
संज्ञा
[हिं. पुं. गिदौड़ा, गिंदौरा]


गिआन
जानकारी।
संज्ञा
[सं. ज्ञान]


गिउ
गला, गरदन।
संज्ञा
[सं. ग्रीवा]


गिचपिच, गिचरपिचर, गिचिरपिचिर
बहुत ज्यादा मिलाजुला।
वि.
[अनु.]


गिचपिच, गिचरपिचर, गिचिरपिचिर
अस्पष्ट।
वि.
[अनु.]


गिजगिजा
बहुत मुलायम।
वि.
[अनु.]


गिजगिजा
मुलायम मांस-सा।
वि.
[अनु.]


गिजा
भोजन।
संज्ञा
[अ. ग़िज़ा]


गिटकिरी, गिटकौरी
कंकड़ी।
संज्ञा
[हिं. गिट्टी]


गिट्टी
कंकड़ी।
संज्ञा
[हिं. गेरू+ड़ा (प्रत्य.)]


गिट्टी
ठिकरे का टुकड़ा।
संज्ञा
[हिं. गेरू+ड़ा (प्रत्य.)]


गिट्टी
फिरकी, रील।
संज्ञा
[हिं. गेरू+ड़ा (प्रत्य.)]


गिठुआ
जुलाहे का करघा।
संज्ञा
[देश.]


गिड़गिड़ाना
बहुत दीनता से किसी बात के लिए प्रार्थना करना।
क्रि. अ.
[अनु.]


गिड़गिड़ाहट
दीनता से युक्त प्रार्थना।
क्रि. अ.
[हिं. गिड़गिड़ाना]


गिड़गिड़ाहट
दीनता का भाव।
क्रि. अ.
[हिं. गिड़गिड़ाना]


गिड़राज
सूर्य।
संज्ञा
[सं. ग्रहराज]


गिड्डा
नाटा, ठिगना।
वि.
[देश.]


गिद्ध
एक मांसाहारी बड़ा पक्षी जिसकी दृष्टि बहुत तेज होती है।
संज्ञा
[सं. गृध्र]


गिद्ध
जटायु जिसे भगवान ने तारा था।
संज्ञा
[सं. गृध्र]


गिद्धराज
जटायु जिसे भगवान ने तारा था।
संज्ञा
[हिं. गिद्ध+राज]


गिध
गिद्ध, गीध पक्षी।
संज्ञा
[सं. गृध्र, हिं. गिद्ध]


गिध
जटायु जिसे भगवान ने तारा था।
संज्ञा
[सं. गृध्र, हिं. गिद्ध]


गिधए
लुब्ध हुए, परच गये, रीझ गये।
सारँगरिपु के रहत न रोके हरि स्वरूप गिधए री - पृ. ३३५ और सा. उ. ७।
क्रि. अ.
[हिं. गीधना]


गिनगिनाना
बल लगाते समय काँपना।
क्रि. अ.
[अनु. गनगन= काँपना]


गिनगिनाना
रोंगटे खड़े होना।
क्रि. अ.
[अनु. गनगन= काँपना]


गिनगिनाना
झकझोरना।
क्रि. स.
[हिं. गिन्नी=चक्कर]


गिनत
महत्व देते हैं, मान करते हैं, कुछ समझते हैं, मानते हैं।
ऊँच-नीच हरि गिनत न दोइ - ७ - २।
क्रि. स.
[हिं. गिनना]


गिनती
गणना, शुमार।
संज्ञा
[हिं. गिनना+ती (प्रत्य.)]


गिनती
गिनती में आना (होना)- कुछ समझा जाना, कुछ महत्व का होना।

किहिं गिनती मैं आऊँ- किस काम या महत्व का समझा जाऊँ। उ.- रजनीमुख आवत गुन गावत, नारद तुंबुर नाऊँ। तुमही कहौ कृपानिधि रघुपति, किहिं गिनती मैं आऊँ - ९ - १७२। गिनती कराना- किसी विशेष कोटि या वर्ग में समझा जाना। गिनती कराने (गिनाने) के लिए- नाम मात्र के लिए। गिनती होना- कुछ समझा जाना।

मु.


गिनती
संख्या, तादाद।
संज्ञा
[हिं. गिनना+ती (प्रत्य.)]


गिनती
गिनती के- बहुत थोड़े।
मु.


गिनती
उपस्थिति, हाजिरी।
संज्ञा
[हिं. गिनना+ती (प्रत्य.)]


गिनती
एक से सौ तक की अंकमाला।
संज्ञा
[हिं. गिनना+ती (प्रत्य.)]


गिनना
गणना करना।
क्रि. स.
[सं. गणन]


गिनना
गिनगिन कर सुनाना (गालियाँ देना)- बहुत अधिक और चुभती हुई गालियाँ देना।

गिनगिन कर लगाना (मारना)- खूब मारना। गिनगिन कर दिन काटना- बहुत कष्ट के दिन बिताना। दिन गिनना- (१) आशा या सुख के दिनों की प्रतीक्षा बेचैनी से करना। (२) बेचैनी से समय काटना।

मु.


गिनना
हिसाब लगाना।
क्रि. स.
[सं. गणन]


गिनना
मान या प्रतिष्ठा के योग्य समझना।
क्रि. स.
[सं. गणन]


गिनवाना, गिनाना
गिनने का काम कराना।
क्रि. स.
[हिं. गिनना (प्रे.)]


गिनवाना, गिनाना
अपने को या अन्य किसी को गिनती में शामिल कराना।
क्रि. स.
[हिं. गिनना (प्रे.)]


गिनि
गिनकर, गणना करके।
चार पसार दिसानि, मनोरथ घर, फिरि फिर गिनि आनै - १ - ६०।
क्रि. स.
[सं. गणन, हिं. गिनना]


गिन्नी
चक्कर, चक्कर देने की क्रिया।
संज्ञा
[हिं. घिरनी]


गिय
गला, गरदन।
संज्ञा
[सं. ग्रीवा]


गियाह
एक तरह का घोड़ा।
संज्ञा
[सं. हय (?)]


गिर
पहाड़।
संज्ञा
[सं. गिरि]


गिर
एक तरह के संन्यासी।
संज्ञा
[सं. गिरि]


गिर
एक भैंसा।
संज्ञा
[सं. गिरि]


गिरई
एक मछली।
संज्ञा
[देश.]


गिरगिट, गिरगिटान
छिपकली की जाति का एक जंतु जो कई रंग बदल सकता है, गिरदौना।
(क) नृगतें गिरगिट कीन्हे ताको को करि सकै बखान १० - उ. - ३६।

(ख) कृष्न भक्ति बिन बिप्र साप तैं गिरगिट की गति पाये - सारा. ८२२।

संज्ञा
[सं. कृकलास या गलगति]


गिरगिट, गिरगिटान
गिरगिट की तरह रंग बदलना- बात, नियम या सिद्धांत से जल्दी जल्दी हट जाना।
मु.


गिरगिरी
एक खिलौना जो चिकारे की तरह का होता है।
फूले बजावत गिरगिरी गार मदन भेरि घहराई अपार संतन हित ही फूल डोल।
संज्ञा
[अनु.]


गिरजा
एक पक्षी।
संज्ञा
[देश.]


गिरजा
पार्वती जी।
संज्ञा
[सं. गिरिजा]


गिरजापति-पतनी पति जा सुत-गुन
शीतलता।
गिरजापति-पतनी-पति-जा-सुत-गुन गुनगनन उतारै–सा. ६।
संज्ञा
[सं. गिरिजा (पार्वती जी)+पति (पार्वती के पति=शिवजी)-पत्नी (शिव की पत्नी=गंगा)+पति (गंगा का पति = समुद्र)+जा=पुत्री (समुद्र की पुत्री शुक्ति या सीप)+सुत (शुक्ति का पुत्र मोती)+गुण (मोती का गुण–प्रातःकाले शीतल हो जाना)]


गिरजापति पितु पितु
कमल।
गिरजापति पितु पितु से दोऊ कर-बर देख बिचारो - सा. १०३।
संज्ञा
[सं. गिरिजा=पार्वती + पति (पार्वती के पति शिव) + पितु (शिव के पिता ब्रह्मा) + पितु (ब्रह्मा का पिता कमल)]


गिरजापति पितु पितु पितु
समुद्र।
गिरजापति पितु पितु पितु ही ते सौ गुन सी दरसावै - सा. १५।
संज्ञा
[सं. गिरिजा पति= शिव जी+पितु (शिव के पिता ब्रह्मा)+ पितु (ब्रह्मा का पिता कमल)+ पितु (कमल का पिता समुद्र)]


गिरजापति भूषन
चंद्रमा।
(क) गिरजापति भूषन पै मानहु मुनि भष पंक प्रकासी - सा. १३ (ख) गिरजापति भूषन जिन देखे ते कह देखत हैं नभ तारो–सा. १११।
संज्ञा
[सं. गिरिजा = पार्वती+पति (पार्वती के पति शिव) + भूषण (शिव का भूषण=चंद्रमा)]


गिरत
गिर पड़ता है।
जरत ज्वाला, गिरत गिरि तैं, स्वकर काटत सीस - १ - १०६।
क्रि. अ.
[हिं. गिरना]


गिरत
गिरत-परत- गिरता-पड़ता, उतावली से, हड़बड़ी में। उ.-व्रजवासी नर-नारि सब गिरत-परत चले धाइ-५८९।
मु.


गिरतनया
पार्वती जी।
संज्ञा
[सं. गिरि+तनया=पुत्री]


गिरतनया-पतिभूषन
आग।
गिरतनयापति-भूषन जैसे बिरह जरी दिन रातें -सा. उ. ४६।
संज्ञा
[सं. गिरि+तनया=पुत्री (पर्वत की पुत्री पार्वतीजी) + पति (पार्वती के पति शिव) + भूषण (शिव का भूषण विभूति =राख-विभूति का अर्थ 'आग' भी होता है)]


गिरद
आसपास, चारो ओर।
अव्य.
[हिं. गिर्द]


गिरदा
घेरा, चक्कर।
संज्ञा
[फा. गिर्द]


गिरदा
तकिया।
संज्ञा
[फा. गिर्द]


गिरदा
काठ की थाली।
संज्ञा
[फा. गिर्द]


गिरदा
ढाल।
संज्ञा
[फा. गिर्द]


गिरदा
ढोल आदि का मुड़ेरा।
संज्ञा
[फा. गिर्द]


गिरदान
गिरगिटान।
संज्ञा
[हिं. गिरगिट]


गिरधर, गिरधारन, गिरधारी
पर्वत उठानेवाला।
संज्ञा
[सं. गिरि+धर]


गिरधर, गिरधारन, गिरधारी
श्रीकृष्ण जिन्होंने गोवर्द्धन उठाया था।
जो तिय चढ़त सीस गिरधर के सो अब कंठ गहोरी–सा. उ. ५२।
संज्ञा
[सं. गिरि+धर]


गिरधर, गिरधारन, गिरधारी
हनुमान जी।
संज्ञा
[सं. गिरि+धर]


गिरना
ऊपर से नीचे आ जाना।
क्रि. अ.
[सं. गलन]


गिरना
खड़ा न रह सकना, जमीन पर पड़ जाना।
क्रि. अ.
[सं. गलन]


गिरना
अवनति होना।
क्रि. अ.
[सं. गलन]


गिरना
जलधारा (नाली, नदी आदि) का बड़े जलस्थान में मिलना।
क्रि. अ.
[सं. गलन]


गिरना
प्रतिष्ठा, शक्ति आदि कम होना।
क्रि. अ.
[सं. गलन]


गिरना
गिरे दिन- दुर्दशा का समय।
मु.


गिरना
किसी पर टूटना, झपटना।
क्रि. अ.
[सं. गलन]


गिरना
अपने स्थान से हटना या झड़ना।
क्रि. अ.
[सं. गलन]


गिरना
रोग होना।
क्रि. अ.
[सं. गलन]


गिरना
सहसा आ जाना।
क्रि. अ.
[सं. गलन]


गिरना
युद्ध में मारा जाना।
क्रि. अ.
[सं. गलन]


गिरनाथ
संसार।
प्रभु कब देखिहौ मम ओर। ज्ञान आपुन आप ते गिरनाथ गाठी छोर -सा.उ.४२।
संज्ञा
[सं. गिरि+नाथ (शंकर=भव=संसार)]


कमरख
कमरंग का फल।
संज्ञा
[सं. कर्मरंग, पा. कम्मरंग]


कमरिया
कमली, कंबल।
(क) काँध कमरिया, हाथ लकुटिया, बिहरत बछरनि साथ - ४८७।

(ख) बन बन गाय चरावत डोलत काँध कमरिया राजै - सारा, ७४१।

संज्ञा
[हिं. कमली]


कमरिया
कमर।
संज्ञा
[हिं. कमर]


कमरी
कमली, कंबल।
संज्ञा
[हिं. कमली]


कमल
पानी में होने वाले एक पौधे का फूल जो अधिकतर लाल, सफेद या नीले रंग का होता है।
संज्ञा
[सं.]


कमल
इस पेड़ का फूल।
संज्ञा
[सं.]


कमल
जल।
संज्ञा
[सं.]


कमलनाभ
विष्णु।
संज्ञा
[सं.]


कमलनाल
कमल की डंडी, मृणाल।
संज्ञा
[सं.]


कमलनैन
कमल के समान नेत्र हैं जिसके वह श्रीकृष्ण।
कमलनैन काँधे पर न्यारो पीत बसन फहरात - २५३६।
संज्ञा
[सं. कमलनयन]


गिरफ्त
पकड़, पकड़ने का भाव।
संज्ञा
[फ़ा. गिरफ़्त]


गिरफ्त
पकड़ने की क्रिया।
संज्ञा
[फ़ा. गिरफ़्त]


गिरफ्तार
जो पकड़ा या कैद किया गया हो।
वि.
[फ़ा. गिरफ़्तार]


गिरफ्तार
ग्रसा हुआ।
वि.
[फ़ा. गिरफ़्तार]


गिरफ्तारी
पकड़ने का भाव।
संज्ञा
[फ़ा. गिरफ्तारी]


गिरफ्तारी
पकड़ने की क्रिया।
संज्ञा
[फ़ा. गिरफ्तारी]


गिरवर
श्रेष्ठ पर्वत।
सज्ञा
[सं. गिरि+वर]


गिरवान
सुर, देवता।
संज्ञा
[सं. गीर्वाण]


गिरवान
अंगे या कुरते का गला या कालर।
संज्ञा
[फ़ा. गरेबान]


गिरवान
गला, गरदन।
संज्ञा
[फ़ा. गरेबान]


गिरवाना
गिराने का काम कराना, गिराने की प्रेरणा देना।
क्रि. स.
[हिं. गिराना]


गिरवीं
बंधक, गिरों, रेहन।
वि.
[फ़ा.]


गिरह
गाँठ, ग्रंथि।
संज्ञा
[फ़ा.]


गिरह
जेब, खरीता।
संज्ञा
[फ़ा.]


गिरह
दो पोरों के जुड़ने का स्थान।
संज्ञा
[फ़ा.]


गिरह
कलाबाजी, उलटने की क्रिया।
संज्ञा
[फ़ा.]


गिरहकट
जेब काटने वाला।
वि.
[फ़ा. गिरह+हिं. काटना]


गिरहदार
गाँठदार, गँठीला।
वि.
[फ़ा.]


गिरहबाज
एक कबूतर जो उड़ते उड़ते कलाबाजी खा जाता है।
देखि नृप तमकि हरि चमकि तहाँई गये दमकि लीन्हों गिरहबाज जैसे -२६१५।
वि.
[फ़ा. गिरह+बाज़]


गिरहर
गिरनेवाला, अवनति की ओर बढ़ता हुआ।
वि.
[हिं. गिरना+हर (प्रत्य.)]


गिरही
घरबारी, गृहस्थ।
संज्ञा
[सं. गृहिन्]


गिराँ
मँहगा।
वि.
[फ़ा. गराँ]


गिराँ
जो हलका न हो, भारी।
वि.
[फ़ा. गराँ]


गिराँ
जो भला न लगे, अप्रिय।
वि.
[फ़ा. गराँ]


गिरा
बोलने की शक्ति।
गिरा-रहित बृक ग्रसित अजा लौं अंतक आनि ग्रस्यौ-१-२०१।
संज्ञा
[सं.]


गिरा
जीभ।
संज्ञा
[सं.]


गिरा
वचन, वाणी।
(क) अमृत गिरा बहु बरषि सूर प्रभु भुज गहि पार्थ उठाए–१-२९।

(ख) गदगद गिरा सजल अति लोचन हिय सनेह-जल छायो-९-५५।

संज्ञा
[सं.]


गिरा
भाषा, बोली।
संज्ञा
[सं.]


गिरा
कविता।
संज्ञा
[सं.]


गिरा
सरस्वती देवी।
संज्ञा
[सं.]


गिराइ
किसी ऊँचे स्थान से फेंक कर।
क्रि. स.
[हिं. गिराना]


गिराइ
देहु गिराइ- ऊपर से फेंक दो।
पर्वत सों इहिं देहु गिराइ -७-२।
प्र.


गिराइ
दियौ गिराइ- फेंक दिया, गिराया।
असुरनि गिरि तैं दियौ गिराइ-७-२।
प्र.


गिराऊँ
नीचे डाल दूँ, पतित कराऊँ।
क्रि. स.
[हिं. ‘गिरना' का सक.]


गिराऊँ
युद्ध में मार डालूँ।
स्यंदन खंडि, महारथि खंडौं, कपिध्वज सहित गिराऊँ—१-२७०।
क्रि. स.
[हिं. ‘गिरना' का सक.]


गिराए
खड़ी चीज को तोड़ कर जमीन पर गिरा दिया।
नगर-द्वार तिन सबै गिराए-४-१२।
क्रि. स.
[हिं. गिराना]


गिराना
नीचे फेंकना या डालना।
क्रि. स.
[हिं. गिरना का सक.]


गिराना
घटाना या अवनत करना।
क्रि. स.
[हिं. गिरना का सक.]


गिराना
बहाना।
क्रि. स.
[हिं. गिरना का सक.]


गिराना
शक्ति, मान आदि कम करना।
क्रि. स.
[हिं. गिरना का सक.]


गिराना
रोग उत्पन्न करना।
क्रि. स.
[हिं. गिरना का सक.]


गिराना
सहसा प्रकट करना।
क्रि. स.
[हिं. गिरना का सक.]


गिराना
लड़ाई में मार डालना।
क्रि. स.
[हिं. गिरना का सक.]


गिरानी
महँगी।
संज्ञा
[फ़ा.]


गिरानी
अकाल।
संज्ञा
[फ़ा.]


गिरानी
कमी, घटी।
संज्ञा
[फ़ा.]


गिरानी
किसी चीज का भारीपन।
संज्ञा
[फ़ा.]


गिरापति
ब्रह्मा।
संज्ञा
[सं.]


गिरापितु
ब्रह्मा।
संज्ञा
[सं. गिरा+पितृ]


गिरायौ
गिराया, फेंका, डाल दिया, छोड़ दिया।
लगत त्रिसूल इंद्र मुरझायौ। कर तैं अपनौ बज्र गिरायौ-६-५।
क्रि. स.
[हिं. गिराना]


गिराव
गिरने की क्रिया या भाव, पतन।
संज्ञा
[हिं. गिरना+आव (प्रत्य.)]


गिरावट
गिरने की क्रिया।
संज्ञा
[हिं. गिराव]


गिरास
कौर, ग्रास।
संज्ञा
[सं. ग्रास]


गिरासना
भक्षण करना, खा जाना, ग्रस लेना।
क्रि. स.
[सं. ग्रसना]


गिराह
मगर, ग्राह।
संज्ञा
[सं. ग्रह]


गिराहिं
गिरते हैं, पतित होते हैं।
बहुरि कह्यौ सुरपुर कछु नाहिं। पुन्य-छीन तिहिं ठौर गिराहिं-१-२९०।
क्रि. अ.
[हिं. गिराना]


गिरि
पर्वत, पहाड़।
संज्ञा
[सं.]


गिरि
गोवर्द्धन।
(क) सक्र कौ दान-बलि मान ग्वारनि लियौ, गह्यौ गिरि पानि, जस जगत छायौ - १-५। (ख) गोपी-ग्वाल-गाय-गोसुत-हित सात दिवस गिरि लीन्ह्यौ १-१७।
संज्ञा
[सं.]


गिरि
एक तरह के संन्यासी।
संज्ञा
[सं.]


गिरि
गिरकर, गिरने पर।
धरनि पत्ता गिरि परे तैं फिरि न लागै ड़ार-१-८८।
क्रि. अ.
[हिं. गिरना]


गिरिजा
हिमाचल कन्या पार्वती, गौरी।
संज्ञा
[सं.]


गिरिजा
गंगा।
संज्ञा
[सं.]


गिरिजा
चमेली।
संज्ञा
[सं.]


गिरिजापति-भष
विष।
गिरिजापति-भष बीच को न सो ह्वैगै मोंको माई-सा. ६३।
संज्ञा
[सं. गिरिजा+पति (गिरिजा के पति शिव)+भष=भक्ष्य (शिव का भक्षण विष)]


गिरिजापति रिपु
काम।
गिरिजापति-रिपु नख सिख ब्यापतु बसत सुधा पिय कथा सुनाई–सा. उ. ३०।
संज्ञा
[सं. गिरिजा+पति (शिव)+रिपु (शिव का शत्रु कामदेव)]


गिरिधर
पर्वत उठानेवाला।
संज्ञा
[सं.]


गिरिधर
श्रीकृष्ण जिन्होंने गोवर्द्धन को उठाकर ब्रजवासियों की रक्षा की थी।
सूरदास ए रीझे गिरिधर मनमाने उनही के- सा. उ. ८।
संज्ञा
[सं.]


गिरिधरन
गोवर्द्धन पर्वत को उठानेवाले श्रीकृष्ण।
कबहुँ न रिझए लाल गिरिधरन, बिमल बिमल जस गाइ - १-१५५।
संज्ञा
[सं. गिरिधारिन्]


गिरिधातु
गेरू।
संज्ञा
[सं .]


गिरिधारन
श्रीकृष्ण।
संज्ञा
[सं. गिरि+धारण]


गिरिधारी
श्रीकृष्ण।
संज्ञा
[सं. गिरिधारिन्]


गिरिध्वज
इंद्र।
संज्ञा
[सं.]


गिरिनंदिनी
पार्वती
संज्ञा
[सं.]


गिरिनंदिनी
नदी।
संज्ञा
[सं.]


गिरिनंदिनी
गंगा नदी।
संज्ञा
[सं.]


गिरिनंदी
शिव के गण।
संज्ञा
[सं. गिरिनंदिन्]


गिरिनाथ
शिव, महादेव।
संज्ञा
[सं.]


गिरिपति
शिव।
संज्ञा
[सं.]


गिरिपति
गणेश जी।
जौ गिरिपति मसि घोरि उदधि मैं, लै सुरतरु बिधि हाथ। मम कृत दोष लिखैं बसुधा भरि, तऊ नहीं मिति नाथ -१-१११।
संज्ञा
[सं.]


गिरिपथ
दो पर्वतों के बीच का मार्ग, दर्रा।
संज्ञा
[सं.]


गिरिपथ
पहाड़ी मार्ग।
संज्ञा
[सं.]


गिरिबूटी
एक वनस्पति या औषध।
संज्ञा
[सं.]


गिरिराज, गिरिराजा
बड़ा पर्वत।
संज्ञा
[सं.]


गिरिराज, गिरिराजा
हिमालय।
संज्ञा
[सं.]


गिरिराज, गिरिराजा
गोवर्द्धन पर्वत।
गोपनि सत्य मानि यह लीनो बड़े देव गिरिराजा -९१६।
संज्ञा
[सं.]


गिरिराज, गिरिराजा
सुमेरु पर्वत।
संज्ञा
[सं.]


गिरिवरधारी
गोवर्द्धन को उठानेवाले श्रीकृष्ण।
संज्ञा.
[सं. गिरिवर+धारी =धारण करनेवाले]


गिरिव्रज
जरासंध की राजधानी।
संज्ञा
[सं.]


गिरिशृंग
पहाड़ की चोटी।
संज्ञा
[सं.]


गिरिशृंग
गणेश जी।
संज्ञा
[सं.]


गिरिसुत
मैनाक पर्वत।
संज्ञा
[सं.]


गिरिसुता
पार्वती।
संज्ञा
[सं.]


गिरींद्र
बड़ा पर्वत।
संज्ञा
[सं.]


गिरींद्र
हिमालय।
संज्ञा
[सं.]


गिरींद्र
गोवर्द्धन पर्वत।
संज्ञा
[सं.]


गिरींद्र
शिव जी।
संज्ञा
[सं.]


गिरी
नीचे आ पड़ी।
क्रि. अ.
[हिं. गिरन]


गिरी
अखरोट आदि की गरी।
संज्ञा
[हिं. गरी]


गिरीश, गिरीस
शिव,भव।
भानु अंस गिरीस आखर आदि अंग प्रकास-सा. उ.४१।
संज्ञा
[सं. गिरि+ईश]


गिरीश, गिरीस
हिमालय पर्वत।
संज्ञा
[सं. गिरि+ईश]