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विक्षनरी:शल्यकर्म परिभाषा कोश

विक्षनरी से
  • Abasiq Atacieq -- गतिविभ्रमी गमन-अक्षमता
एक प्रकार की गमन-अक्षमता, जिसमें गति की अनिश्चितता एवं विचित्रता हो।
  • Abasiq Enoreie -- लास्यज गमन-अक्षमता
एक विशिष्ट प्रकार की गमन अक्षमता जिसमें उद्देश्य-हीन कम्प उपस्थित हो।
  • Abasiq Paralytice -- सक्थि-घातज गमन-अक्षमता
सक्थि की मांसपेशीयों के प्रचलन की अक्षमता के कारण गमन अक्षमता।
  • Abasiq Spastice -- संस्तम्भी गमन-अक्षमता
एक विशिष्ट प्रकार की गमन-अक्षमता, जिसमें जब रोगी खड़े होने/ चलने का प्रयास करता है तब उसकी टाँगों की मांसपेशीयों में स्तम्भयुक्त आंकुचन होता है।
  • Abasiq Trembling -- गमन चलन अक्षमता
पादकम्प के कारण चलने की अक्षमता या असमर्थता।
  • Abdominal Appenage -- उदरीय उपांग पुच्छ
उदर से निकलने वाला उपांग या उसी के समान संरचना।
  • Abdominal Ganglion -- उदरीय गण्डिका
आहारनाल और दीर्घ अधर पेशीयों के बीच स्थित छोटा अण्डाकार तंत्रिका केन्द्र जो सामान्य रूप से प्रत्येक उदरीयखण्ड में होता है। कभी-कभी ये गण्डिकाएं संयुक्त होकर उदर के पश्च खंडों में तंत्रिकाओं की आपूर्ति कर देती हैं।
  • Abdom Inohysterectomy -- उदर गर्भाशय छेदन परीक्षणार्थ
साधारणतः प्रौढ़ महिलाओं के लिए किये जाने वाली शल्य क्रिया जिसमें गर्भाशय को उदर गुहा के निचले हिस्से में भेदन द्वारा निकाल दिया जाता है। उदा. प्रोलैप्स (prolapse) या गर्भाशय में अर्बुद (uterine tumor) होने पर।
  • Abdominohysterotomy -- उदर गर्माशय भेदन
गर्भाशय में एक छोटा चीरा लगाने की प्रक्रिया। इस प्रक्रिया द्वारा प्रथम तिमाही (First trimester) के बाद उस परिस्थिति में गर्भपात किया जाता है जिसमें नमक घोल का इन्जेक्शन (saline injection) पूर्ण सफल न हुआ हो या गर्भपात के साथ-साथ नसबंदी भी करनी हो। इस प्रक्रिया में गर्भाशय के निचले हिस्से में चीरा लगाकर गर्भजात हिस्सों (Products of conception) को निकाल दिया जाता है।
  • Abdominoscology -- उदराभ्यन्तर-दर्शन, उदरान्तर्दर्शन
एण्डोस्कोप नामक विशेष यन्त्र द्वारा उदर-गुहा के अवयवों का परीक्षण।
  • Abdominoscopy -- उदर दर्शन
उदरगुहान्तदर्शी या अन्तरउदरदर्शी (endoscope or laproscope) के जरिए उदर (abdomen) के अंगों (organs) की जांच करना।
  • Abdomiocentesis -- उदरवेधन
एक ऐसी साधारण शल्य क्रिया जिसमें उदर-गुहा का वेधन एक या अधिक छोटे छिद्र के रूप में किया जाता है। इसका प्रयोग पेट से पानी निकालने या अन्य उतकों को परीक्षार्थ या चिकित्सार्थ निकालने में किया जाता है।
  • Abducent Nerve (Abducens) -- अपचालिनी तंत्रिका नाड़ी
कशेरुकाओं में छठी युग्मित कपाल तंत्रिका। यह प्रेरक तंत्रिका चतुर्थ वेन्द्रिकल के तल के नीचे से निकलकर आँखों की बाह्य ऋजु पेशी तक चली जाती है।
  • Abenteric -- आन्त्र पृथक्वर्ती
उदर में आन्त्र से अतिरिक्त।
  • Abocelusion -- उर्ध्वाध
दंत-हनु असंपरक्त दन्तोत्पति में जब अधोहनु (निचले जबड़े) के दन्त ऊर्ध्वहनु (ऊपर के जबड़े) के सम्पर्क में नहीं आते हैं।
  • Abortion -- गर्भपात
20 सप्ताह से पूर्व (गर्भभार 500 ग्राम से कम) प्राकृतिक या कृत्रिम किसी भी कारण से गर्भ का बाहर आना।
  • Abrachius -- अप्रगण्डता
एक जन्मजात विकृति जिसमें मनुष्य बाहुरहित हो।
  • Abrasion -- खरोंच, अपघर्षण
त्वचा पर घर्षण अथवा रगड़ने से होने वाली क्षति, खरोंच, किसी सख्त या खुरदरी सतह पर रगड़ने से पैदा होती है। इसमें केवल खाल (त्वचा) की ऊपरी सतह (उपरिस्थ पृष्ठ) को नुकसान पहुंचता है। फोड़े को तकनीकी भाषा में व्रण कहते हैं। इस अवस्था में ऊतकों में स्थानिक पूय (Pus) इकट्ठी हो जाती है। फोड़ा पैदा करने वाले जीवाणु ऊतकों में या तो सीधे रक्त के बहाव के साथ पहुंच सकते है। फोड़ा दो तरह का होता है- (1) तीव्र. दारुण (Acute) तथा (2) चिरकारी (Chronic)। तीव्र फोड़े में चमक के साथ दर्द तथा एक जगह पर ही सूजन के लक्षण होते है। इसके कारण सामान्य घबराहट, बुखार तथा रक्त में बहुत अधिक सफेद कण हो जाते हैं। चिरकारी (पुराने) फोड़े में स्थानिक (एक जगह से सम्बन्धित) तथा सामान्य चिन्ह बहुत कम होते हैं। इस फोड़े की चिकित्सा में पीड़ा दूर करने वाली औषधियों का उपयोग, उसी जगह पर गरम सेंक, जीवाणु मारने वाली दवाईयों का इस्तेमाल और पूय को बाहर निकालना बहुत जरूरी है।
  • Abrasive -- अपघर्षी
अपघर्षण के लिए प्रयुक्त होने वाला पदार्थ।
  • Abrupito Placentae -- गर्भवती त्रियों में अपरा (Placenta) का गर्भाशय के भीतरी सतह से समय से पूर्व पृथक्करण को (Abruptio Placentae) कहते हैं।
  • Abruption -- अकस्मात् पृथक्-भवन
अकस्मात् पृथक् होना।
  • Absorbable Suture -- अवशोष्य सूचर या सीवन
जख्मों (wounds – क्षतों) को बन्द करने में प्रयोग किया जाने वाला धागा जो ऐसी वस्तु का बना होता है जिससे धागे का शरीर के ऊतकों में अवशोषण हो जाता है, जैसे कैटगट (catgut)।
  • Accessory Gland (S) -- सहायक ग्रंथियाँ
शरीर के जनन तन्त्र से सम्बन्धित ग्रंथियां जो जनन संबंधी कुछ गौण कार्यों को भी पूरा करती हैं। इनके द्वारा अण्डों का आवरण अथवा कोष बनाने वाले आसंजनशील पदार्थ का स्रवण होता है। नर में श्लेष्मा ग्रंथि स्खलनीय सहायक ग्रंथि है जो वाहिनी में खुलती है।
  • Accessory Nerve -- अतिरिक्त नाड़ी
अनुदैर्ध्य नाड़ी की एक अतिरिक्त शाखा। ग्यारहवीं कपाल तन्त्रिका।
  • Accidental Abortion -- अभिघातज गर्भपात
अभिघात के कारण अकाल (20 सप्ताह से पूर्व) में गर्भ का बाहर आना आकस्मिक गर्भपात कहलाता है।
  • Acetabulum -- श्रोणि उलूखल
चतुष्पाद कशेरुकाओं की श्रोणिमेखला में ऊरु अस्थि के शीर्ष के लिए चषकाकार गर्तिका जो श्रोणिसांधि बनाती है।
  • Acetabulectomy -- उलूखल-छेदन
श्रोणी प्रदेशास्थि उलूखल का उच्छेदन करना।
  • Acetabuloplasty -- उलूखन संधान
श्रोणी-प्रदेशास्थि उलूखल-सन्धि का पुनः सन्धान।
  • Achard-Thiers Syndrome -- एशार-थेर्ज संलक्षण
अधिवृक्क शीर्ष (adrenal cortex) का अतिकार्य है जिसकी विशिष्टताएँ अग्न्याशय में तंतुमय परिवर्तन, यकृतसिरोसिस, अवटु अतिवृद्धि, डिम्बग्रंथिकाजिन्य, पुंवतरोमता तथा शर्करा मेह (Diabetes) है।
  • Achalasia Cardia Cardiospasm -- अभिह्रद-जठर संकोचन
इस अवस्था में ग्रासनली का नीचे का सिरा (निम्न अन्त) शिथिल अर्थात् खुला नहीं होता। ऐसा तंत्रिका-पेशी के असभंजन (neuro muscular incoordination) अथवा उनमें ताल मेल न होने के कारण हो सकता है, जिससे तरल पदार्थ ग्रासनली (भोजन की नली) में ऊपर को ही रूक जाता है। इस रोग से अक्सर मध्यम आयु की स्त्रियां ग्रसित होती हैं जिन्हें चूषण (aspiration) के कारण निगलने में तकलीफ (निगरण कष्ट), तरल का प्रत्यावहन उलटकर वापस आना (regurgitation) तथा श्वसनी-फु प्फु सशोथ (Bronchopneumonia) की बीमारियां होती रहती हैं। मुंह से बेरियम पीने के बाद ऐक्स-रे लेने पर इस अवस्था का पता लग पाता है, अर्थात्, ग्रासनली के निचले हिस्से में एक दम संकरापन तथा ऊपर का हिस्सा फैला हुआ दिखाई देता है। यह फैलाव तथा संकरापन रोग की अवधि पर निर्भर करेगा। ग्रासनली कार्सिनोमा को जानने के लिऐ ग्रासनली-गुहादर्शन (oesophagoscopy) परीक्षा की जाती है। इसकी चिकित्सा करते समय शस्त्रकर्म द्वारा ग्रासनली के निचले हिससे के पेशी तन्तुओं तथा जठर अभिह्रद्मुख के पेशी तन्तुओं को लम्बाई में काटे होते हैं।
  • Achondroplasia -- उपास्थि-अविकसन
यह अधिवर्ध उपास्थिप्रसू वृद्धि एवं परिपक्वता (epiphyseal chondroblastic growth and maturation) का आनुवंशिक, जन्मजात अथवा पारिवारिक विक्षोभ है जिसके कारण अपर्याप्त अन्तः उपास्थि (inadequate enchondral) अस्थि की रचना होती है। इसके फलस्वरूप विशेष प्रकार की वामनता (बौनापन) हो जाती है। टांगे (dwarfism अधः शाखाएं) छोटी रह जाती हैं तथा धड़ (trunk) का आकार सामान्य रहता है। कपाल के आधार (base of the skull) की वृद्धि ठीक प्रकार से नहीं होती। कपाल का रूप जलशीर्ष (hydrocephalous) जैसा होता है।
  • Acidophil Adenoma -- अम्लरागी ग्रन्थि-अर्बुद
एक सुदम ग्रन्थि-अर्बुद जो पीयूषिका ग्रन्थि (pituitary gland) की अम्लरागी कोशिकाओं से बना होता है। इसकी वजह से वृद्धिकर हार्मोन (growth hormone) (शरीर को बढ़ाने वाला हार्मोन) ज्यादा पैदा होता है, जिससे महाकायता (gigantism) हो जाती है तथा शाखा-बृहत्ता (acromegaly) (यानी बाजू और टांगों का लम्बा हो जाना) हो जाती है। इसका इलाज ऐक्स-रे चिकित्सा (radiotherapy) के जरिए किया जाता है।
  • Acquired Megacolon -- अर्जित महाबृहदांत्र
यह अवस्था मल त्याग करने की बुरी आदतों (समय, असमय पर मल त्याग करना-faulty habits) तथा मल अंतर्घट्टन (faecal impaction- मल का आँत में फंस जाना) के परिणाम स्वरूप उत्पन्न होती है। इस अवस्था में एक विस्फारित या फैले हुए एवं भरे हुये वृहदन्त्र में मरोड़ (torsion) आ सकती है जिससे एक बड़ा बृहदन्त्रावरोध (बड़ी आंत में बड़ी रुकावट) हो सकता है। मल-त्याग की बुरी आदतों को ठीक करना तथा कब्ज (मलबद्धता – constipation) को दूर करना एवं मल के आंत में फंस जाने पर हाथ से मल को बाहर निकालना इस रोग की चिकित्सा है।
  • Acromastitis -- स्तन चुचुक शोथ
स्तन चुचुक में शोथ का उत्पन्न होना।
  • Acromion Process -- अंसकूट प्रवर्ध
अनेक उच्चतर कशेरुकाओं में अंसफलक के कटक का अधर प्रसार जो मानव में कंधे का बाहरी कोण बनाकर अंस उलूखल की रक्षा करते हुए जत्रुक से मिलता है।
  • Acroposthitis -- शिश्नमुंडच्छदशोथ
शिश्न के अग्रभाग को ढकने वाली त्वचा में शोथ।
  • Acrosome -- अग्रपिंडक
शुक्राणु के सिर का वह भाग जो गॉल्जी संमिश्र से उत्पन्न होता है और केन्द्रक के अग्र सिरे को ढँकता है। इसमें हायल्यूरोनिडेज़, प्रटीज़ और अम्ल फास्फेटेज जैसे अनेक एन्जाइम होते हैं।
  • Actin -- ऐक्टिन
एक प्रोटीन भेद जो एक्टोमायसिन के टूटने से बनता है। मांसपेशियों में पाये जाने वालि विभिन्न किस्म के प्रोटीनों में से एक प्रकार। यह मांसपेशियों के संकुचन में महत्वपूर्ण योगदान करता है। संकुचन के दौरान यह मायोसिन नामक दूसरे महत्वपूर्ण प्रोटीन से मिलकर एक्टोमायोसिन नामक अस्थायी संयुक्त प्रोटीन बनाता है। यह मायोफाइब्रिल (Myofibril) के सार्कोमियर (Sarcomere) नामक अंश के पतले तंतु (Thin Filament) का प्रमुख भाग बनाता है।
  • Actinicdermatitis -- विकारकत्वक् शोथ
विद्युच्चुंबकीय रंगावली की रसायन सक्रिय किरणों के सम्पर्क के कारण उत्पन्न होने वाला त्वचा शोथ।
  • Actinism -- किरण रासायनिक क्रियाक्षमत्व
प्रकाशस्रोत की किरणों द्वारा की गई रासायनिक क्रिया।
  • Actinium -- एक्टीनियम
एक्टीनियम नामक रासायनिक तत्व, जिसका रासायनिक सूत्र ए सी (Ac) है एवं परमाणु भार 89 है। इसे डेबिर्ने (Debierne) ने खोजा था।
  • Actinomycosis -- एक्टिनोमाइसीजता
जो मुख गुहा (oral cavity) में एक सामान्य परोपजीवी (commensal) है। फंगस या कवक-ऐक्टिनोमाइसीज इजरायली के जरिए उत्पन्न ऊतकों (tissues) की खास तौर की सूजन। इस संक्रमण से एक ठोस मजबूत पिण्ड बनता है जो बाद में टूट जाता है और उसमें कई नाड़ीव्रण (sinuses) बन जाते हैं। आमतौर पर यह बीमारी मुँह, ग्रीवा, वक्ष तथा उदर में होती है। इसमें से कणिकामय पूय (रवेदार पीप) निकलता है और उसी की परीक्षा करके इस बीमारी का पता लगाया लिया जाता है। इस बीमारी में प्रतिजीवी औषधियाँ (antibiotics) दी जाती हैं। यदि जरूरत हो तो शस्त्रकर्म भी किया जाता है।
  • Acupressure -- आक्यूप्रेसर/विदुदाव
एक विशेष चिकित्सा पद्धति जिसमें रोगों का इलाज शरीर के विशेष हिस्सों में उचित रूप से दाब देकर किया जाता है। यह विधि कुछ किस्म के दर्द के लिये उपयोगी है। इस में उंगलियों या भोंथरे सिरे वाले (blunt ended) यंत्रों का उपयोग किया जाता है। इसी से मिलती एक अन्य चिकित्सा पद्धति को एक्यूपंचर कहते हैं जिसमें तरह-तरह की सुइयों का प्रयोग किया जाता है। एक्यूप्रेशर विधि को प्राकृतिक चिकित्सा (Naturopathy) का एक रूप माना जा सकता है।
  • Acupressure Forceps -- सूचीदाब संदंश/सूची दाब पूलिका
एक्यूप्रेशर में प्रयुक्त संदेशयन्त्र।
  • Acus -- सूची
सूचि अथवा सूचीवत् तीक्ष्णशस्त्र।
  • Acusection -- सूचीपरिच्छेद
वैद्युत शल्य सूची द्वारा परिच्छेदन (काटना-section) करना।
  • Acute -- तीव्र, तीक्ष्ण
तीव्र शब्द रोग की विशेष अवस्था का सूचक है, जो गम्भीर रूप से एवं अल्प काल में उत्पन्न होता है। तीक्ष्णाग्र भाग।
  • Acute Abdomen -- तीव्र उदर
उदर की एक तीव्र अवस्था, जो उदर के भीतर सूजन य रक्त की नलियों के रुक जाने के कारण पैदा होती है। यदि उसका जल्दी से इलाज न किया जाय, तो रोगी में स्तब्धता (सदमे) के चिह्न, जैसे नाड़ी का तेज चलना,रक्त का दबाव कम हो जाना आदि देखने को मिलते हैं। इसलिए ऐसे रोगियों का निदान और इलाज जल्दी से जल्दी करना बहुत जरूरी है, क्योंकि यह रोग बहुत ही खतरनाक रूप धारण कर सकता है।
  • Acute Abscess -- तीव्र विद्रधि
जो विद्रधि अल्पावधि में उत्पन्न हो और उसमें तीव्र पीड़ा, स्थानिक शोथ, उत्सेध एवं ज्वर आदि लक्षण उपस्थित हों।
  • Acute Appendicitis -- तीव्र उण्डुकपुच्छशोथ
यह दो प्रकार का होता है (1) रोधज (obstructive) जहां उण्डूकपुच्छ की अवकाशिका (lumen) सख्त विष्ठा से रुक जाए (मलाश्मरी-), (2) अरोधज अनवरुद्ध (non-obstructive) जहां अवकाशिका में कोई रुकावट नहीं होती। इस रोग का विशिष्ट (खास) लक्षण नामि (टूटी) के चारों तरफ आरम्भ होता हुआ दर्द है। यह दर्द बाद में श्रोणि खात (iliac fossa) की तरफ जाता है। वमन होता है तथा बुखार बढ़ जाता है। यदि फोड़ा नहीं बना हो तो ज्वर 1010F से आगे नहीं जाता। उण्डुक-पुच्छोच्छेदन (Appendicectomy) करके रोगग्रस्त उण्डुक को निकाल दिया जाता है। यदि तीव्र अवस्था सुधर रही है या (पिण्ड) लम्प (conservative treatment) बन गया हो, तो शल्यकर्म नहीं किया जाता। इस प्रकार के रोगियों को साधारण या रूढ़ चिकित्सा (conservative treatment) द्वारा ठीक किया जाता है। कालान्तर में उण्डुकपुच्छोच्छेद किया जाता है।
  • Acute Cholecystitis -- तीव्र पित्ताशयशोथ
इस रोग में पित्त की थैली में तीव्र शोथ हो जाने से अधिक ज्वर तथा दक्षिण अवःपर्शुक प्रदेश (दाहिनी तरफ पसलियों के नीचे, Rt. Hypochondrium) में दर्द हो जाता है। इस हिस्से में एक दुखने वाली गांठ (tender mass) हाथ से छूने पर पाई जा सकती है। प्रतिजीवी औषधियां (antiboitics), जठरांत्र को आराम देना (gastro-intestinal rest) तथा शिरा के द्वारा तरल का देना इस रोग की चिकित्सा है। तीव्र अवस्था के दूर हो जाने पर पित्ताशय-उच्छेदन (cholecystectomy) किया जाता है।
  • Acute Epididymo Orchitis -- तीव्र अधिवृषण-वृषणशोथ
अधिवृषण और वृषण दोनों में सूजन का आ जाना। चोट, पेशाब या रक्त द्वारा लाया हुआ संक्रमण इस बीमारी का सामान्य कारण है। इस रोग में दर्द, बुखार तथा वृषण में सूजन हो जाते है। पृषण कोश को सहारा देना, दर्द दूर करने की दवाइयां तथा प्रतिजीवी औषधियां देना, इस बीमारी का इलाज है। फोड़ा बन जाने पर शस्त्रकर्म करके पीप या बाहर निकाल जाता है।
  • Acute Lymphadenitis -- तीव्र लसीकाग्रंथी शोथ
संक्रमण के बाद होने वाला लसीका पर्वों (lymph nodes) का तीव्र शोथ (acute inflammation) । इस अवस्था के लक्षणों में दर्द, बुखार तथा पर्वों का बढ़ जाना शामिल है। इस रोग की चिकित्सा के लिए प्रतिजीवी (antibiotics) तथा पीड़ाहर औषधियों का सेवन कराया जाता है। फोड़ा या विट्रधि (abcess) बन जाने पर उसका निकास (drainage) कर दिया जाता है। गंभीर ग्रैव प्रावरणी (deep cervical fascia) के नीचे गहराई में तीव्र शोथ होने पर सांस लेने में तकलीफ होती है और तुरन्त निकास एवं विसम्पीड़न (decompression) की जरूरत पड़ती है। इस अवस्था को लुडविग ऐन्जाइना कहते हैं।
  • Acute Prostatitis -- तीव्र पुरःस्थ शोथ
पुरःस्थ ग्रन्थि का तीव्र शोथ (सूजन)। यह रोग प्रायः सूजन या सूत्रमार्ग में यन्त्र-प्रयोग (instrumentation) के कारण पैदा होता है। इस रोग में मूलाधार (perineum) में भयंकर पीड़ा होती है तथा पेशाब में रुकावट होती है तथा फोड़ा बन जाता है। पेशाब की रुकावट को दूर करना और कभी-कभी पुरःस्थ ग्रन्थि के फोड़े (abscess) का शस्त्रकर्म करके मवाद निकालना तथा प्रतिजीवी औषधियों (antibiotics) का प्रयोग इस रोग की चिकित्सा है।
  • Acute Poisoning -- तीव्र विषाक्तता
किसी प्रक्रिया या विषवर्गी द्रव्यों के प्रभाव से होने वाली शीघ्र विषाक्तता। तीव्र गति से शरीर को प्रभावित करने वाली विषाक्तता। यह जैविक व अजैविक दोनों प्रकार के विषों से हो सकती है। जैविक विषाक्तता साधारणतः दूषित भोजन में पाये जाने वाले जीवाणुओं के विष-पदार्थों (Toxins) की वजह से होती है। अअजैविक विषाक्तता रसायनों के संपर्क में आने से होती है। उदा. के लिये कीटनाशक पदार्थ, चूहानाशक पदार्थ, धतूरा, औषधियों की अतिमात्रा आदि। प्रभावित व्यक्ति की जान बचाने के लिए आवश्यक है कि उसे संबंधित विषैले पदार्थ के संपर्क से तुरंतर हटा दिया जाये तथा आकस्मिक व गहन चिकित्सा (Emergency & Intensive care) की जाये।
  • Acutenaculum -- सूचीग्राही यन्त्र
शस्त्र में प्रयुक्त सूची को पकड़ने वाला स्वस्तिक यन्त्र।
  • Acutorsion -- रक्तवाहिनी विमोडन
रक्तवाहिनी को सूची द्वारा रक्तस्तम्भन के उद्देश्य से मरोड़ना।
  • Adamantinoma Or Ameloblastoma -- दन्तवल्क अर्बुद या ऐनेमल प्रसू अर्बुद
एक बहुकोष्ठकी उपकला अर्बुद।
  • Adductor Muscle -- अभिवर्तनी पेशी
वह पेशी, जो किसी अंग या अवयव को शरीर के मुख्य अक्ष की ओर खींचती है। वह पेशी जो दो भागों को परस्पर मिलाती हैं जैसे सीपी में कवच के दोनों कपाटों को मिलाने वाली पेशी।
  • Adenocystoma -- ग्रन्थि पुटी अर्बुद
एक अर्बुद जिसमें ग्रन्थ्यबुर्द (adenomatous) तथा पुटीय (cystic) ऊतक (tissues) होते हैं।
  • Adenography -- ग्रन्थि विकिरण चित्रण
ग्रन्थि का क्ष-किरण द्वारा चित्रण।
  • Adenohypophysectomy -- अग्रपीयूषिका ग्रन्थि छेदन
शस्त्रकर्म द्वारा अग्रपीयूषिका ग्रन्थि को काटकर निकालना।
  • Adenohypophysis -- एडिनॉइड उच्छेदन
चिरकारी पुनरावर्ती संक्रमण होने के कारण एडिनॉइड को शस्त्रकर्म द्वारा काट कर निकाल देना।
  • Adenoidectomy -- एडिनॉइड उच्छेदन
चिरकारी पुनरावर्ती संक्रमण होने के कारण एडिनॉइड को शस्त्रकर्म द्वारा काट कर निकाल देना।
  • Adenolymphoma -- गरन्थिलसीकार्बुद
कान के सामने की ग्रन्थि (कर्णपूर्वग्रन्थि) का एक मूलायम अर्बुद। वह दोनों तरफ हो सकता है। इसका इलाज शस्त्रकर्म के द्वारा काट कर निकाल देना (उच्छेदन-excision) है।
  • Adenoma -- ग्रन्थि अर्बुद
एक सुदम अर्बुद (benign tumour) जो ग्रन्थि उपकला से बनता है इसका इलाज शस्त्रकर्म करके शरीर से काट कर बाहर निकालना (उच्छेदन) है।
  • Adenotome -- कण्ठशालूक छेदक शस्त्र
कण्ठशालूक को काटने के लिए प्रयुक्त शस्त्र।
  • Adenotomy -- कंठशालूक-भेदन
शस्त्रकर्म द्वारा कंठशालूक नामक ग्रन्थि का भेदन करना।
  • Adenotonsillectomy -- कंठशालूक-गलतुण्डिका-छेदन
शस्त्रकर्म द्वारा कंठशालूक एवं गलतुण्डिका का छेदन करना।
  • Adhesion -- आसंजन
शरीर के 2 भिन्न ऊतकों का शोथ जन्य तन्तुओं के द्वारा परस्पर जुड़ना।
  • Adhesiotomy -- आसंजन-विश्लेष
आसंजन-तन्तु का शस्त्रकर्म द्वारा विश्लेषण।
  • Adipectomy -- वसाऊतक उच्छेदन
शस्त्रकर्म द्वारा वसा ऊतक के एक पुंज का उच्छेदन करना; जैसे उदर या नितम्ब से वसा का उच्छेदन करना।
  • Adiposogenital Syndrome -- जननांग वसा सलक्षण
इस अवस्था जिसमें स्त्री के समान मेदुरता (adiposity), जननांग का थोड़ा सा कम विकास होना, द्वितीयक लैंगिक लक्षणों में परिवर्तन तथा चयापचयी विक्षोभ पाये जाते हैं। (वसा-जननांग दुष्पोषण कुपोषण।
  • Adiposis Dolorosa -- शीघ्रकारी मेदुरता, डरकम रोग
यह एक अवस्था है, जिसकी विशिष्टता निम्न शाखा की वसा- अर्बुदता है, जो फैली होती है और जिसके छूने में दर्द होता है। यह अवस्था अक्सर रजोनिवृत स्त्रियों में देखने को मिलती है।
  • Adolscent Kyphosis -- कौमार कुब्जता
10 से 15 साल की आयु के बालकों में कीलाकार कशेरुका (wedged shaped vertebra) के कारण क्रमिक वर्धी वक्षकटि (thoracolumbar) या वक्ष के कुब्जता (thoracic kyphosis) का हो जाना। इस रोग का कारण जन्मजात (congential) पेशी-दुर्बलता हो सकती है, जिसके फलस्वरूप आंगिक स्थिति खराब (bad posture) हो जाती है। इस रोग के सामान्य उपचार (conservative treatment) में व्यायाम (exercise) लाभदायक है।
  • Adrenalectomy -- अधिवृक्क उच्छेदन
ऑपरेशन के जरिये अधिवृक्क ग्रन्थि को काट कर बाहर निकाल देना। यह ऑपरेशन अर्बुद और बढ़ी हुई हार्मोन-प्रेरित दुर्दमता में उपशमन के लिये किया जाता है।
  • Adrenogenital Syndrome -- अधिवृक्क जननांग संलक्षण
इस अवस्था की विशिष्टताओं में कालपूर्व यौवनारम्भ (precocious puberty), पुंवत्रोमता (पुरुषों की तरह बाल) तथा अतिरक्तदाब सम्मिलित हैं। ये विशिष्टतायें अधिवृक्क प्रान्तस्था की अतिक्रिया तथा उसकी अतिवृद्धि या अर्बुद के कारण होती है। इसकी चिकित्सा में अर्बुद को बाहर निकाल देना या अतिवृद्धि का अवपूर्ण अधिवृक्कोच्छेदन (subtotal adrenalectomy) शामिल है। ऑपरेशन के बाद (post-operative) कार्टिसोन चिकित्सा जारी रखी जा सकती है।
  • Adrenomimetic -- अधिवृक्कस्रावानुकारी
एड्रिनिलीन अथवा नारएड्रिनिलीन के समान क्रिया वाला। ऐसे रसायन जो क्रियात्मक रूप से अधिवृक्क ग्रंथियों से स्रावित एड्रिनिलीन या नारएड्रिनिलीन नामक रसायनों से मिलते-जुलते हैं। उदा, आइसोप्रीनालीन (isoprenaline), टाइरामीन (Tyramine), इफेड्रीन (Ephedrine) एम्फेटामिन (Amphetamine) इनका विशेषतः निम्न रक्तचाप (Low BP) रक्ताघात (Shock), क्षेत्रीय संज्ञा शून्यक औषधियों के साथ (along with local anaestheti agents), परिधीय वाहिका रोगों (Peripheral vascular diseases) ह्रदयाघात (cardiac arrest), ए. वी. ब्लाक (A. V. block) आदि में होता है।
  • Aerocele -- वातपुटी
यह एक कोष्ठ (pouch) होता है, जिसमें आमतौर पर हवा भरी रहती है और इसका मूल (संबंध) स्वरयंत्र (larynx) और श्वास- प्रणाल (trachea) से हो जाता है। इसकी चिकित्सा शस्त्रकर्म के द्वारा की जाती है।
  • Aerocystoscopy -- ऐरोसीस्टोस्कोपी
वायुजमूत्राशयवीक्षण नामक यन्त्र द्वार वायु से मूत्राशय का विस्फार करने के बाद मूत्राशय गुहा का परीक्षण।
  • Aerodermectasia -- अधःत्वचीय वात-स्फीति
शल्य कर्म द्वारा त्वचा के नीचे हवा भरी जाती है। अधःत्वचीय वातस्फीति स्वतः आधातजन्य अथवा शस्त्रकृत हो सकती है।
  • Aerotonometer -- वायु तनाव मापी
एक यंत्र, जिससे रक्त में स्थित वायु का तनाव नापा जाता है।
  • Ainhum -- एनहम इयूम
एक अज्ञात कारण जन्य अवस्था, जो मुख्यतः अश्वेत जाति के मनुष्यों में विशेषतः उष्णकटिबन्ध में रहने वालों में होती है। इसमें पैर की पांचवी अँगुली के पर्व संधी में सीधा संकोच पैदा हो जाता है जिससे वह अँगुली क्रमशः स्वतः कटकर गिर जाती है।
  • Air Embolism -- वायु अन्तः शल्यता
वाहिका अन्तः शल्यता का एक विशिष्ट प्रकार, जिसमें वायु के बुलबुले (air bubble) अन्तः शल्य (embolus) का कार्य करते हैं। ये बुलबुले अन्तःशिरा तरल (intravenous fluid) देते समय रक्त में वायु के अधिक तादाद में चले जाने से उत्पन्न हो सकते हैं। ये बुलबुले गर्दन, कक्ष (axillla) तथा गलक्षत (cut throat) की क्षतियों (injuries) में शस्त्रकर्म करते समय भी हो सकते हैं। शिरा (vein) में गई हुई वायु दक्षिण अलिंद (Right atrium) में प्रवेश करती है और वहां पर फेन उत्पन्न कर फुप्फुस धमनियों में वायु अवरोध उत्पन्न करती है, जिके फलस्वरूप दक्षिण ह्रत्पात (right heart failure) की अवस्था उत्पन्न हो जाती है। इस रोग को चिकित्सा में ट्रेनडेलव्रग स्थिति, वायु को शरीर के निचले आधे हिस्से की तरफ जाने के लिए उकसाना तथा रोगी को बाईं करवट (वाम पार्श्व) में लिटाना, जिससे कि वायु दक्षिण निलीय शिखर (apex of ventricle) की तरफ, फुप्फुस धमनी से दूर बह कर जा सके आदि उपाय हैं। आत्ययिक अवस्था में रोगी को बराबर आक्सीजन दी जाती है। एक सूई को बाईं छाती के निचले किनारे के नीचे से ऊपर तथा पीछे की तरफ डालते हैं, जिससे दक्षिण निलय से वायु चूषण (aspiration) किया जा सके।
  • Albright’S Syndrom -- एल्ब्राइट संलक्षण
यह बहुअस्थि दुर्विकसन (polyostitic dysplasia), एक विशिष्ट प्रकार का संलक्षण है, जो स्त्रियों में देखा जाता है। इस रोग में त्वचा की वर्णकता (pigmentation of the skin), यौनकालपूर्व पक्वता (sexual precocity) तथा अवटु अतिक्रियता (hyperthyroidism) सम्मिलित हैं।
  • Albuginea -- श्वेत सोत्रिकच्थद
एक कठिन एवं श्वेत सौत्रिकतन्तु जो शरीर के किसी अंग को आच्छदित करता हो।
  • Albugineotomy -- श्वेत-सौत्रिकच्छद-भेदन
शस्त्रकर्म द्वारा शरीर के अंग को ढकने वाले सौत्रिकच्छद का भेदन।
  • Albuginitis -- श्वेत-सौत्रिकच्छद-शोथ
शरीर के अंगों को ढकने वाले सौत्रिकच्छद का शोथ।
  • Albuminometer -- एब्लुमिनमामी
एक यन्त्र जिससे मूत्र में ऐल्बुमिन अनुपात (proportion) निर्धारित किया जाता है।
  • Alimentary Canal -- आहार-नाल
मुँह से गुदा तक जाने वाला नलिकामय मार्ग, जो भोजन के पाचन, अवशोषण तथा मल-उत्सर्जन का काम करता है।
  • Alimentary System -- आहार-तंत्र
भोजन के अन्तर्गहण, पाचन, अवशोषण तथा अवशिष्ट मल-पदार्थों के उत्सर्जन का कार्य करने वाले अंगों का समूह, जिसमें आहार-नाल और पाचक रसों का स्रवण करने वाले अंगों का समूह, जिसमें आहार-नाल और पाचक रसों का स्रवण करने वाली ग्रंथियाँ आती हैं।
  • Alkaline Encruting Cystitis -- क्षारीय पपड़ीकर मूत्राशयशोथ
यह रोग खण्डनी जीव (splitting organism) के कारण होता है, जिसमें फास्फेट इकट्ठा हो जाता है तथा सूत्राशय (मसाने) की दीवाल में पपड़ी बन जाती है।
  • Alongement -- अनुपर्णिता/अधिवार्धकता/अनुवर्धनीयता
एक शस्त्रकर्म जिसमें किसी रचना की लम्बाई को बढ़ाया जाए, उदाहरणातया स्नायु में।
  • Allotransplantation -- इतर प्रतिरोपण
शस्त्रकर्म द्वारा एक व्यक्ति के ऊतक का प्रतिरोपण उसी की जाति के दूसरे व्यक्ति के शरीर में करना।
  • Alveolar Abscess -- दन्त-उलूखल-विद्रधि
पूय-निर्माण के साथ दन्त उलूखल का शोथ।
  • Alveolectomy -- दन्तउलूखल-उच्छेदन
नकली दांत को लगाने से पहले अतिबृहद् मसूड़ों तथा दन्त उलूखला को काट कर निकाल देना (उच्छेदन-excisioon)।
  • Alveolomerotomy -- दन्तउलूखल-प्रवर्धछेदन
शस्त्रकर्म द्वारा दन्त-उलूखल-प्रवर्ध का आंशिक या पूर्णरूप से उच्छेदन करना।
  • Alveolotomy -- दन्तउलूखल भेदन/वायुकोश भेदन
शस्त्रकर्म द्वारा दन्तउलूखल को खोलना अथवा वायुकोश को शस्त्रकर्म द्वारा पूय निर्हणार्थ खोजना।
  • Ameloblastoma -- अधोहनु अर्बुद
अर्बुद (multilobular epithelial tumour) जो हड्डी का विस्फार कर देता है। इसका स्थान जबड़ा (अधोहुन) है। इसका इलाज ऑपरेशन करके निकाल देना है।
  • Amniocentesis -- उल्बवेधन
वह शस्त्रकर्म जिसमें उदरभित्ति या गर्भाशयग्रीवा द्वारा जरायु में वेधन करके गर्भोदक का आचूषन करके जैविक या बीजसूत्रीय परीक्षण।
  • Amniography -- उल्बचित्रण
क्ष-किरण परीक्षण विधि जो पहले गर्भ निश्चय करने के लिए या पुरःस्थ अपारा का निदान करने में प्रयुक्त होती थी। इसमें पौटैशियम आयोडाइड या अन्य रेडियो अपार्यवर्ग के द्रव्य जैसे स्ट्रोन्शियम आयोडाइड को सीधा जरायु कोश में सूचिका भरण द्वारा भरकर क्ष-किरण परीक्षण करते थे।
  • Amnioinfusion -- उल्बाभ्यन्तराधान
उल्ब के भीतर उदर भित्ति से औषध द्रव्यों को डालना।
  • Amnioscopy -- उल्बगुहा परीक्षण
उल्बगुहा वीक्षण यन्त्र द्वारा गर्भ परीक्षण।
  • Amniotome -- गर्भावारण-वेधक-शस्त्र
गर्भावस्था में गर्भ की प्राकृत-वैकृत अवस्था के परीक्षण हेतु गर्भावरण का व्यधन करने वाला शस्त्र।
  • Amniotomy -- उल्बभेदन/गर्भावरण-भेदन
प्रसव हेतु गर्भ आवरण का शस्त्र द्वारा भेदन करने की प्रक्रिया।
  • Amoebic Abscess -- अमीबी विद्रधि
यकृत तथा अन्य अवयवों में शोथ के उपद्रव स्वरूप एन्टोमिबा नामक जीवाणु द्वारा उत्पन्न विद्रधि जो प्रायः अमीबी प्रवाहिका के पश्चात् होता है। यकृतशोथ के फलस्वरूप यकृत में होने वाली विद्रधि जो एन्टमीबा हिस्टालिटिका के कारण होती है।
  • Amoeboma -- अमीबोमा
यह एक कणिकागुल्मीय पुंज (granulomatous mass) है जो चिरकारी अमीबी संक्रमण के परिणाम स्वरूप बनता है और आमतौर पर शोष-अधांत्र (ileocaecal), मलाशय-अवग्रहान्त्र (rectosigmoid) तथा मलाशय (rectal) क्षेत्रों में देखा जाता है। यह नैदिनिक कठिनाइयाँ उत्पन्न कर सकता है क्योंकि यह दुर्दम वृद्धि या यक्षमा जैसा दिखाई देता है। चिकित्सा मूल रोग की जाती है।
  • Amputation Congenital -- गर्भाडुगच्छेदन
गर्भावस्था में बन्धन द्वारा अङगविच्छेदन करना। गर्भ के कोशिकाओं के अभाव से स्वयं अङग विच्छेदन होना।
  • Amputation In Contiguity -- सन्धिस्थ अंगच्छेदन
सन्धि प्रदेश से किसी शाखा का छेदन।
  • Amputation In Continuity -- सन्धिप्रदेशातिरिक्त अंग-विच्छेदन
सन्धि प्रदेश को छोड़कर अन्यस्थल से अंगच्छेदन।
  • Amputation Knife -- अंग विच्छेदन छुरिका
एक छुरिका जिसका उपयोग अंगोच्छेदन (amputation) करते समय किया जाता है।
  • Amputation Primary -- प्राथमिक विच्छेदन
आघात के पश्चात् किया गया प्रथम विच्छेदन।
  • Amputation Secondary -- कालान्तर विच्छेदन
पूययुकत अंग का कालान्तर में किया गया विच्छेदन।
  • Amputation Spontaneous -- स्वतः अंग-विच्छेद
कोशिकाभावजन्य विकृति के परिणामस्वरूप स्वतः अंग-विच्छद।
  • Amputation Tertiary -- पूयाभावोपरान्त अंग-विच्छेदन
पूयोत्पत्ति के पश्चात् किया जाने वाला अंगविच्छेद।
  • Amputation -- अंग-उच्छेदन शाखोच्छेदन
किसी अंग के पूरे हिस्से या एक अंश को काट कर अलग कर देना। यह शस्त्रकर्म के द्वारा या चोट लगने से (traumatic) हो सकता है। सामान्य रूप पर यह शस्त्रकर्म अभिघात (चोट), विरूपता (deformity) या अर्बुद (tumour) में, जहां एक हिस्से को काट कर निकाल देने की जरूरत होती है, किया जाता है।
  • Anaesthesia -- संज्ञाहर/निःसंज्ञा
शरीर के किसी अंग को या सम्पूर्ण शरीर को विशेष प्रयोजनार्थ निःसंज्ञा करना।
  • Anaesthesiology -- संज्ञाहरणशस्त्र/संज्ञाहरण विज्ञान, संज्ञाहरण विषयक शास्र
संज्ञाहर के लिये उपयुक्त समस्त विवेचन जिसमें विद्यमान हो वह शास्त्र।
  • Anaesthesiologist -- संज्ञाहरणविशेषज्ञ
संज्ञाहरण-विज्ञाता या संज्ञाहरणविशेषज्ञ।
  • Anaesthesiometer -- संज्ञाहरणमापक यंत्र
निःसंज्ञा-अवस्थामापक-यन्त्र।
  • Anaesthetic -- संज्ञाहर/संज्ञाहारी
संज्ञाहरण में उपयुक्त द्रव्य।
  • Anaesthetist -- संज्ञाहारक
संज्ञाहरण हेतु की जाने वाली प्रक्रिया।
  • Anaesthetization -- संज्ञाहरण-क्रिया
संज्ञाहरण हेतु की जाने वाली प्रक्रिया।
  • Anastole -- सन्धानान्तराल
संहत व्रण का स्वतः खुल जाना।
  • Anastomose -- संयोजन
दो नलिकाकार अवयवों को या एक ही अवयव के भागों को जोड़ना।
  • Anastomosis -- संयोजनक्रिया
शरीर के किसी अंग की अलग-अलग शाखाओं को शस्त्रकर्म द्वारा मिलाना।
  • Anastomotic -- संयोजन-सम्बन्धी
संयोजन क्रिया से सम्बन्ध।
  • Anatomy -- शरीर रचना विज्ञान
जीव-विज्ञान की वह शाखा, जिसमें शरीर की संरचना का अध्ययन किया जाता है।
  • Anencephaly -- अमस्तिष्कता
परिवर्धन या विकास की एक असंगति (developmental anomaly) जिसमें करोटि तोरण (cranial vault) तथा प्रमस्तिष्क गोलार्ध (cerebral hemisphres) अनुपस्थित होते हैं। सामान्य रूप से ऐसी परिस्थिति जीवन के साथ असंयोज्य (incompatible) अथवा न चलने वाली है।
  • Anetoderma -- ऐनेटोडर्मा/त्वक्शोष
त्वक्शोष जिसमें गोल ईषत्पारदर्शी विक्षति उत्पन्न हों।
  • Aneurysm Needle -- ऐन्यूरिज्म सूची
एक विशिष्ट सूची अथवा खास सूई जिसका एक हत्था या हैंडिल होता है तथा अन्. के सिरे पर एक नेत्र होता है। इस सूची का उपयोग रक्तवाहिकाओं के चारों ओर बन्ध (ligaturature) डालने में होता है।
  • Aneurysm Needle -- ऐन्यूरिज्म
यह धमनी में उत्पन्न एक थैला (कोश-sac) होता है, जिसमें रक्त भरा होता है। यह थैला धमनी की दीवाल के फूलने से बन जाता है। यह जन्म से या बाद में अर्जित हो सकता है। इससे धमनी की भित्ति में एक स्पंदनशील सूजन तथा ध्वनि (bruit) और छूने पर कम्पन महसूस होते हैं। इसका इलाज शस्त्रकर्म के द्वारा होता है।
  • Aneurysmal Varix Or Arterio-Venousfistula -- ऐन्यूरिज्म वैरिक्स या धमनी शिरा नालण
ऐन्यूरिज्म की चिकित्सा में धमनी का प्लास्टिक शल्य। इस बीमारी में धमनी और शिराओं में असामान्य संचार (communication) हो जाता है, अर्थात् धमनी और शिरा मिल जाती हैं। यह अवस्था एक स्पंदनशील सूजन (pulsatile swelling) के रूप में तथा तरंगों (thrill) के बिना या उसके साथ, उपस्थित हो सकती है। पुराने मरीजों में सांस्थानिक प्रभाव और दर्द तथा सूजन भी देखी जा सकती है। पैदायशी नालव्रण (congenital fistula) में शाखाएँ बढ़ जाती हैं। (systemic effects) भी होते हैं, जिनके कारण दिल के दाहिनी और अधिक जोर पड़ता है, इसका इलाज शस्त्रकर्म के जरिये किया जाता है।
  • Aneurysmoplasty -- ऐन्यूरिज्म संधान
ऐन्यूरिज्म की चिकित्सा में धमनी का प्लास्टिक शल्य क्रिया द्वारा पुनःस्थापन (plastic restoration) करना।
  • Aneurysmorrhaphy -- ऐन्यूरिज्म तन्तुसीवन
शस्त्रकर्म द्वारा ऐन्यूरिज्म का सीवन करना (suturing)।
  • Angioblastoma -- वाहिका-प्रसू-अर्बुद
रक्त-वाहिकाओं (blood vessels) का एक अर्बुद (tumour) जो मस्तिष्क तानिका (meninges of brain) तथा मेरुरज्जु (spinal cord) में पाया जाता है।
  • Angiocholecystitis -- पित्ताशय एवं पित्तनलिका शोथ
पित्ताशय एवं पित्तनलिका शोथ।
  • Angiofibroma -- वाहिका-तन्तु-अर्बुद
एक सूक्ष्म (benign) अर्बुद जिसमें वाहिकामय तथा तन्तु तत्व शामिल है। सामान्य रूप यह नासा-ग्रसनी भाग में मिलता है (naso-pharynx)। इसकी चिकित्सा शस्त्रकर्म है।
  • Angiography -- धमनी-चित्रण
एक विकिरण विज्ञानी नैदानिक प्रक्रिया जिसमें रोडियो अपादर्शी पदार्थ को हृद् कोष्ठों (chambers of the heart) में हृद् कैथेटर द्वारा इन्जेक्ट किया जाता है जिसके परिणामस्वरूप हृद् के भिन्न कोष्ठों तथा हृदय से निकलने वाली बड़ी रक्तवाहिकाएं अपारदर्शी (opaque) हो जाती है। अचल एक्स-रे चित्र (still X-Ray pictures) तथा चल चित्र (cine films) भी लिये जाते हैं।
  • Angiorrhaphy -- नलिका अथवा वाहिनी सीवन
रक्त एवं लसीका वहन करने वाली वाहिनियों का सीवन।
  • Angular Bone -- कोणी अस्थि
स्तनपायियों को छोड़कर अधिकांश कशेरुकाओं के निचले जबड़े के निम्न पश्चभाग में स्थित कलास्थि (कला अस्थि) के विकास के दौरान यह हड्डी जबडे से अलग होकर कर्ण-पटाहास्थि के रूप में परिवर्धित हो जाती है।
  • Angular Stomatitis -- सृक्कपाक कोणीय पाक
मुख कोणों (angles of the mouth) पर विदार (fissuring) या अपरदन (erosion) हो जाना। यह रोग विटामिन ‘बी’ की कमी या सुग्राहिता (sensitivity) या क्षति अर्थात्, चोट (injuty) के कारण हो सकता है।
  • Animal Bite -- पशु दंश
पशु के काटने से रेबीज या अर्लक रोग के हो जाने का भय मुख्य रूप से होता है। जख्म (क्षत-wound) को धोना तथा प्रति-अलर्क या ऐंटिरेबिक का टीका देना इस रोग की चिकित्सा है।
  • Ankylosing Spondylitis -- बद्ध कशेरुका संधि शोथ
यह एक ऐसी अवस्था है जिसमें नीचे से ऊपर की तरफ की रीढ़ की हड्डी (कशेरुका दण्ड) में लगातार सख्ती आती जाती है और साथ में स्नायुओं (ligaments) में कैल्सीभवन (calcification) भी होता जाता है। नतीजा यह होता है कि रीढ़ की हड्डी में कठोरता (rigidity) तथा कुब्जता (kyphosis) आ जाती है। इस रोग के इलाज में पर्याप्त भौतिक चिकित्सा (physiotherapy), मालिश, हाथ पैरों में हरकत कराना तथा शस्त्रकर्म के द्वारा विरूपता को दूर करना आदि शामिल है।
  • Ankylosis -- संधिग्रह
इस अवस्था में जोड़ (joint) जकड़ जाता है, जिसके कारण वह अपना काम करना बन्द कर देता है। इस बीमारी का इलाज शस्त्रकर्म द्वारा किया जाता है।
  • Anoplasty -- गुदसंधान
गुद (anus) का संधान (plastic) अथवा प्रतिस्थापक (restorative) शस्त्रकर्म।
  • Anorchidism -- अवृषणता
दोनों वृषणों (testes) का जन्म से न होना।
  • Anorectal Abscess -- गुद-मलाशय विद्रधि
गुद तथा मलाशय क्षेत्र में उत्पन्न विद्रधि।
  • Antecurvature -- विमार्गी वक्रता
वक्रता जो विपरीत दिशा में जाता हो।
  • Anterior Metatarsalgia -- अग्र प्रपदिकार्ति
यह एक दर्दनाक अवसथा है जिसमें आमतौर पर अग्र, पाद के ऊपर भाग के गलत विभाजन के कारण एक या दो पार्श्वी प्रपदिका संधियों (metatarsal joints) प्रभावित हो जाती हैं और उसके फलस्वरूप भीतरी दर्द होता है। ऐसी दुष्क्रिया (dysfunction), विरुपता, क्षति (चोट) तथा पैरों में सही माप के जूते न होने के कारण भी हो सकती है। इस रोग की चिकित्सा में आराम, भौतिक चिकित्सा (Physio-therapy), विरूपता में सूधार तथा पैरों के सही माप के जूतों का उपयोग सम्मिलित हैं।
  • Anti-Inflammatory -- शोथरोधी
शोथ को रोकने वाला।
  • Antimicrobial -- प्रतिरोगाणु, प्रतिसूक्ष्मजीवी
रोगाणु उपसर्ग को रोकने वाला एवं ठीक करना वाला।
  • Antisepsis -- पूतिरोध
ऊतक में संक्रमण को रोकना।
  • Antiseptic -- पूतिरोधी, एण्टिसैप्टिक
ऊतक में संक्रमण को रोकने वाला।
  • Antrectomy -- कोटर उच्छेदन
शस्त्रकर्म द्वारा जठर-निर्गम कोटर (pyloric antrum) को काट कर निकाल देना। यह शस्त्रकर्म सामान्य रूप से ग्रहणी व्रण (duodenalulcer) में आमाशय के अम्लस्राव की हार्मोनी प्रवस्था को कम करने के लिए किया जाता है, ताकि पेट का अम्ल ज्यादा न बढ़े।
  • Antrography -- कोटर चित्रण
शरीर की महाधमनी के स्पष्ट चित्रण की विधि जिसमें किरण अपारदर्शी (Radio Opaque) पदार्थों को वाहिका-नलिका (Vessel-Catheter) के माध्यम से महाधमनी में डालकर एक्स-रे ले लिया जाता है।
  • Antrostomy -- कोटर छिद्रीकरण, ऐंट्रोस्टोमी
शरीर की गुहा में विद्यमान द्रव आदि को निकालने के लिए छेद करना। ऐसी परिस्थितियों में जिसमें (Antrectomy) संभव नहीं होती आमाशय में उपस्थित अतिअम्लता वाले द्रवों को, शरीर से बाहर निकालने के लिये आमाशय के अंतिम भाग में छिद्र करके नलिका लगा दी जाती है जो शरीर के बाहर खुलती है। इस विधि को (Antrostomy) कहते हैं।
  • Antrotome -- गुहाभेदन शस्त्र
गुहाभेदन के उपयोग में लाया जाने वाला उपकरण।
  • Antrotomy -- गुहा भेदन
शरीर की गुहा या कोटर का भेदन।
  • Aortetomy -- महाधमनीछेदन
महाधमनी का उच्छेद करना।
  • Aortography -- महाधमनी-चित्रण
शरीरस्थ महाधमनी का चित्रण
  • Aortorraphy -- महाधमनी की दीवार की शल्य-क्रिया द्वारा सिलाई करना।
इस प्रक्रिया का उपयोग साधारणतः महाधमनी की चोट, एन्यूरिज्म (Aneurysm) या पुनर्स्थापनीय संयोजनक्रिया (Reconstructive Anastomosis) में किया जाता है।
  • Aortorrhaphy -- महाधमनी-सीवन
महाधमनी को सीना।
  • Aortostenosis -- महाधमनी संकीर्णता
महाधमनी की अवकाशिका (Lumen) का कम हो जाना। इस अवस्था की मुख्य वजह महाधमनी की दीवारों में वसीय पदार्थों (Atherosclerotic Plaque) का जमा हो जाना है। कम अवकाशिका वाले भाग (Stenosed Segment) के नीचे रक्त प्रवाह कम हो जाता है।
  • Aortotomy -- महाधमनीभेदन
महाधमनी भेदनी महाधमनी को चीरा देकर खोलना। इस प्रक्रिया का उपयोग महाधमनी अवकाशिका में फंसे रक्त के थक्के (Embolus or Thrombus) को निकालने के लिये किया जाता है।
  • Aperture -- द्वार
कोई छेद या द्वार।
  • Ape Thumb -- वानरक्ता अंगुष्ठ
यह एक ऐसी अवस्था है जिसमें अंगूठा (thumb) हथेली (palm) के समक्षेत्र में ही स्थित है। यह विरूपता (deformity) अंगुष्ठ मूल की पेशियों के घात (paralysis of thenar muscles) तथा संनिधान की हानि (loss of apposition) के कारण होता है।
  • Apicitis -- शीर्ष शोथ
शरीर के किसी भी अवयव के शीर्ष भाग में शोथ।
  • Apicolysis -- फुफ्फुसाग्र पतन
फुफ्फुस के अग्र भाग का पिचकना।
  • Apicotomy -- दंतमूलाग्र भेदन
सड़न रोकने के लिए आदि दंत मूलाशय का भेदन करना।
  • Apinealism -- अपिनियता
पिनियल ग्रंथि के अभाव अथवा उसकी क्रिया हनिता से उत्पन्न लक्षण। पिनियल ग्रंथि के अभाव अथवा उसकी क्रियाहीनता से निमन कशेरुकियों में, जो कि एक विशेष मौसम में प्रजनन करते हैं प्रजननेच्छा कम होती है पीनियल ग्रंथि मिलैटोनिन नामक हारमोन स्रावित करती है, जिसका प्रमुख कार्य प्रजनन इच्छा व त्वचा-वर्णक निर्माण (Skin Pigmentation) में होता है। मानव में पीनियल ग्रंथि का कार्य अब तक ज्ञात नहीं है अतः इसकी अनुपस्थिति से शरीर-क्रिया पर संभवतः कोई विशेष प्रभाव नहीं पड़ता है।
  • Apituitarism -- अपियूषग्रंथिता
पियूष ग्रन्थि के अभाव अथवा उसकी क्रिया हीनता से उत्पन्न लक्षण। इस ग्रंथि को सभी अंतस्रावी ग्रंथियों का प्रधान (Master of Endocrine Orchestra) कहते हैं क्योंकि इस ग्रंथि द्वारा ही अन्य अंतःस्रावी ग्रंथियों के उत्प्रेरकों का (Tropic hormones of other endocrine glands) स्रावण होता है। अतः इस ग्रंथि की क्रियाहीनता से शरीर के संपूर्ण अंतःस्रावी ग्रंथियों के स्रावण पर विपरीत प्रभाव पड़ता है। कुछ प्रमुख प्रभावित अंतःस्रावी ग्रंथियां हैं- थायरायड (Hypothyroidism) एड्रीनल (Hypoadrenalism), जनन ग्रंथियां (Hypogonadism)। इस ग्रंथि के अभव के कई कारण हो सकते हैं- बच्चा पैदा होने के समय कुछ स्त्रियों में इस ग्रंथि में रक्त-स्राव (Pitutary apobiexy), इस ग्रंथि के अर्बुद होने पर इस ग्रंथि को शल्य-कर्म द्वारा निकाल देना आदि।
  • Apocope -- उच्छेदन
शरीर के किसी अंग को काटकर निकालना।
  • Apocoptic -- अंगोच्छेदन संबंधी
शरीर के किसी अंग के काट देने के बाद की स्थिति।
  • Aponeurectomy -- कंण्डराकला उच्छेदन
शल्यकर्म द्वारा कण्डरा कला को काटकर निकालना इस प्रक्रिया का उपयोग मुख्यतः कण्डराकलाओं की असामान्य सिकुड़न (Cctracture of Aponeurosis) को दूर करने के लिये किया जाता है। उदा, के लिए वृद्धावस्था में हथेली में होने (Dupuytren’s Contracture) के लिये कण्डराकला उच्छेदन।
  • Aponeurotomy -- कण्डराकला छेदन
शस्त्रकर्म द्वारा कंडरा कला का छेदन करना।
  • Apotripsis -- अव्रणशुक्लकार्निया निर्हरण
कृष्णमण्डलश्रित अव्रणशुल्क को निकालना।
  • Appendectomy & Appendicectomy -- उण्डुक पुच्छोच्छेदन
उण्डुक पुच्छ (Vermiform Appendix) को शल्य-कर्म द्वारा काटकर बाहर निकालना। यह प्रक्रिया उण्डुक पुच्छ में तीव्र पदाह होने (Acute Inflammation) पर, जिसे उण्डुक पुच्छ शोथ (Acute Appendicitis) कहते हैं, की जाती है। इस शल्य-कर्म के पहले यह ध्यान देना जरूरी है कि उण्डुक पुच्छ फट न गयी है (No rupture in appendix) और उदर कला शोथ (Peritonitis) न हो गयी है। उण्डुक पुच्छ उदर के दाहिने निचली ओर स्थित होता है अतः चीरा (Incision) उदर की दीवार (Abdominal Wall) के दाहिने निचली ओर (Rt. Lower-Quadrant) में लगाते हैं। साधारण परिस्थिति में शल्य-कर्म पश्चात् देखभाल (Post Operation Care) अन्य उदरीय शल्य-कर्मों के समान होती है किंतु जटिलता (Rupture & Peritonitis) होने की दशा में चीरे में एक नलिका (Drain) लगा देते हैं तथा घाव की पट्टी (Dressing) बार-बार बदलते हैं। इस समय अन्य उदरीय शल्य-कर्मों के साथ (Prophylactically) उण्डुक पुच्छ को नहीं निकालते हैं क्योंकि इसका इस्तेमाल भविष्य में सूत्रसंस्थान के शल्य-कर्मों (Urological Surgery) में किया जा सक्रता है। शल्य-कर्म पश्चात् देखभाल (Other Post-Operative Care) में अंतःशिरीय द्रवों (Intrarenous Fluid) के माध्यम से प्रतिजैविक औषधियों (Antibiotics), पीड़ानाशक (Analgesics) व विद्युत-योजी तत्वों (Electrolytes) को दिया जाता है जिससे संक्रमण व पीड़ा शीघ्र कम हो जाये।
  • Appendicitis -- आंत्रपुच्छ उण्डुकपुच्छशोथ
इस अवस्था में उण्डुकपुच्छ में सूजन (inflammation) हो जाती है। यह रोग मांसाहारी व्यक्तियों में अधिक होता है। तीन महीने की आयु से पहले यह बीमारी अक्सर नहीं होती है। इसके बाद यह किसी भी उम्र में हो सकती है। नैदानिक रूप से यह दो प्रकार की होती है (1) तीव्र उण्डुकपुच्छशोथ तथा (2) पुनः (recurrent) उण्डुकपुच्छशोथ।
  • Appendicolysis -- आन्त्रपुच्छ पृथकन
आन्त्रपुच्छ को संलग्न भागों से शस्त्रकर्म द्वारा पृथक करना।
  • Appendicostomy (Appendico-Enterotymy) -- आंत्रपुच्छ छिद्रण
बृहदान्त्र में शल्य क्रिया हेतु आंत्र पुच्छ में छेद करना जो पहले से उदरभित्ति से संश्लिष्ट हो। आजकल नहीं किया जाता।
  • Appendicular Abscess -- आंत्रपुच्छ, उण्डुकपुच्छ विद्रधि
तीव्रउण्डुक पुच्छ शोथ के विदीर्ण होने से उत्पन्न विद्रधि। ऐसी परिस्थिति में पहले रोगी को सामान्य अवस्था में लाया जाता है (Conservative Management) तथा फिर कुछ समयान्तराल के बाद शल्य-कर्म के द्वारा उण्डुकपुच्छ को काटकर बाहर निकाल देते हैं।
  • Appendicular Skeleton -- उपांगी कंकाल
अक्षीय कंकाल (कशेरुक दंड व करोटि) से पृथक् (हाथ पैर) की हड्डियों का ढाँचा।
  • Appendicular -- उपांगीय
उपांग से संबंधित या उस पर स्थित। (कोई अंग या अंग समूह)
  • Appendix -- आंत्रपुच्छ, उण्डुकपुच्छ, परिशेषिका
उण्डुक से निकालने वाला बाह्य प्रवर्धन शरीर के किसी भाग से निकलने वाला उदवर्ध या प्रवर्ध विशेष रूप से कृमिरूप परिशेषिका।
  • Applicator -- प्रलेपक
स्थानिक औषधि लगाने के काम में लाया जाने वाला यंत्र कोई तंत्र या उपकरण।
  • Apron -- आवरक परिधान
प्रयोगशालाओं में काम करने वाले व्यक्तियों द्वारा कपड़ों के ऊपर से पहने जाने वाला परिधान। इसका मुख्य काम हानिकारक रसायनों से शरीर व कपड़ों की सुरक्षा करना है। साधारणतः सफेद एप्रन (Apron) का ही प्रयोग किया जाता है। एप्रन के साथ दस्तानों (Gloves) व मुहंनकाब (Face mask) का प्रयोग भी आवश्यक है।
  • Architis -- गुदशोथ
गुदप्रदेश में उत्पन्न शोथ।
  • Archo -- गुदा
गुदा से संबंधित।
  • Archocele -- गुदभ्रंश
मलाशय का योनिमार्ग से बाहर निकलना।
  • Archocystocolposyrinx -- गुद-मूत्राशययोनि नाड़ी
मलाशय-बस्ति-योनि नाड़ी।
  • Archoptosis -- गुदभ्रंश
गुदा का अपने स्थान से बाहर आना।
  • Archostenosis -- मलाशय सिकुड़ना
मलाशय का सिकुड़ना।
  • Arnold Chiari Malformation -- आर्नोल्ड चिआरी विकृति
एक जन्मजात विकृति जिसमें अनुमस्तिष्क (cerebllum) महारन्ध्र (foramen magnum) से बहिः सरण (herniation) करता है अर्थात् महारंध्र से बाहर निकलता है। चतुर्थ निलय के स्पीडन (compression) के कारण शीर्षसौषुम्भिक जल (c.s.f.) के मुक्त प्रवाह में रुकावट उत्पन्न होती है। परिणाम-स्वरूप जलशीर्ष (hydrocephalus) हो जाता है।
  • Arrhenoblastoma -- पुंसकारी अर्बुद
डिम्बग्रन्थि (ovary) का दुर्दम अर्बुद जो पुरुष हॉर्मोन को उत्पन्न करता है, जिससे पुरुष द्वितीयक लैंगिक लक्षण (masculine secondary sexual characteristics) उभरते हैं।
  • Arterectomy -- धमनीच्छेदन
किसी धमनी का उच्छेदन (Excision or resection) करना। यह प्रक्रिया मुख्यतः उसी परिस्थिति में की जाती है जब कटी-फटी धमनी की वजह से रक्त स्राव को रोकना संभव न हो।
  • Arterial Bleeding -- धमनीगत रक्तस्राव
धमनी से रक्त का बाहर प्रवाहित होना। धमनियों से रक्तस्राव की प्रमुख वजह धमनियों में लगी चोट हैं। धमनियों में रक्त दबाव सहित संचरित होता है अतः शिराओं की तुलना में धमनियों से ज्यादा रक्त स्रावित होता है। साधारणतः वाहिकाओं में आघात होते ही इनकी दीवारों में संकुचन होने लगता है जिससे स्राव प्रवाह कम हो जाता है किंतु कभी-कभी वाहिकायें ऐसे ऊतकों से होकर गुजरती हैं जो इनके संकुचन (Vasconstriction) को रोक देते हैं जिससे स्राव की अधिकता हो जाती है। उदा. सिर के बाल युक्त हिस्से में लगी चोट से ज्यादा रक्तस्राव की वजह शिरः कपाल (Scap) के एक परत द्वारा संकुचन को रोकना है। धमनी रक्तप्रवाह को बाहरी दबाव डालकर रोका जा सकता है किंतु शरीर की गुहाओं के अंदर हो रहे धमनी रक्तस्राव के लिए आकस्मिक शल्य कर्म की आवश्यकता प़ सकती है।
  • Arteriography -- धमनीचित्रण
किसी रेडियो अपारदर्शी (opaque) पदार्थ का इंजेक्शन देकर एक्सरे द्वारा धमनी वीक्षण (visualization) करना। इस विधि का मुख्य उपयोग संदेहास्पद धमनी रोगों में अवरोध के स्थान व गंभीरता (Location & degree of blockage) पता करने के लिये होता है। इस जानकारी के आधार पर ही रोग के उपचार के सबसे बढ़िया तरीकों को सुनिश्चित किया जाता है। यदि शल्य कर्म की आवश्यकता हो तो शल्य कर्म के प्रकार व गंभीरता (Nature & extent of the surgery) का निश्चयन किया जाता है। उदा. औषधियों से ठीक न होने वाले हृदशूलों (Angina) व बारबार होने वाले हृदयाघातों (Non-fatal heart attacks & myocardial infarction) के लिये कोरोनरी धमनीवीक्षण (coronary arteriography) करवाने पर किसी धमनी में यदि एक या दो जगह अवरोध होते है तो गुब्बारे सदृश यंत्र (balloon angioplasty) की मदद से अवरोध हटाया जाता है किंतु अवरोध अधिक होते हैं तो बाइपास शल्य कर्म (By-pass surgry) की आवश्यकता पड़ती है। शरीर के अन्य भागों के लिये किये जाने धमनीवीक्षण के उदा. मस्तिकीय धमनियों (Cerebral-arteriography) महाधमनी (Aortography), वृक्कीय-धमनियों के लिये (Renal arteriography), पैर के धमनियों के लिये (Femoral-arteriography or iliac-arteriography) आदि।
  • Arteriole -- धनिका
मध्यम मोटाई की धमनियों व केशिकाओं के बीच में उपस्थित सबसे कम मोटाई की धमनियां। शरीर के रक्त दाब को सबसे ज्यादा ऐसी धमनियां ही प्रभावित करती हैं क्योंकि इनके किनारों पर विशेष कुंचनशील भाग (Arteriolar sphincter) लगे होते हैं।
  • Arteriolitis -- धमनिकशोथ
छोटी धमनियों में होन वाला शोथ।
  • Arterioplasty -- धमनीसंधान
शस्त्रकर्म द्वारा किसी धमनी का विरोहण।
  • Arteriosclerosis -- धमनी-कठोरता
:(1) वृद्धावस्था में पाया जाने वाला धमनी-काठिन्य, जिसके अन्तर्गत धमनियों का लचीलापन समाप्त हो जाता है, जिससे रक्त की आपूर्ति में बाधा पहुँचती है।
(2) धमनियों का दीर्घकालिक रोग, जिसमें वाहिकाएँ मोटी तथा कठोर हो जाने के कारण धमनी का लचीलापन समाप्त हो जाता है।
  • Arteriospasm -- धमनी संकोचन
धमनियों के संकुचित होकर अकड़ जाने की विकृति। इस विकृति में धमनी की दीवारें इस तरह संकुचित हो जाती है जिससे उस धमनी में संकुचन के आगे रक्त प्रवाह रूक जाता है। यह संकुचन अधिकांशतः अचानक होता है और इसका कारण भी अधिकांशतः अज्ञात ही रहता है किंतु मानसिक तनाव व ठंडे मौसम में यह अवस्था ज्यादा दिखाई पड़ती है। शरीर के अति आवश्यक अंगों की धमनियों के प्रभावित होने की दशा में गंभीर नुकसान पहुंच सकता है। उदा. के लिये कुछ किस्म के हृदयशूल (angina) व दिमागी दौरों अपस्मार के वेगों (epileptic fits) का कारण धमनी संकुचन ही माना जाता है। इसके अलावा (Raynauds Phenomenon) नामक अवस्था जिसमें हाथ पैर की उगलियां नीली पड़ जाती है। उसमें भी धमनी संकोचन ही मुख्य कारण होता है। इसका उपचार प्रायः पूर्ण व संतुष्टिप्रद नहीं होता तथा रक्त वाहिकाओं का विस्फार करने वाली औषधियां कुछ आराम प्रदान करती हैं।
  • Arteriostosis -- धमन्यस्थीकरण
धमनी का अस्थिकरण होना।
  • Arteriostepsis -- धमनीविमोटन
कटी हुई धमनी में रक्तस्राव को रोकने के लिए सीरे पर विमोटन/ मरोड़ना।
  • Arteriotome -- धमनीछेदक
धमनी का छेदन करने के लिए उपयोग में आने वाला उपकरण।
  • Arteriotomy -- धमनीछेदन
धमनी का छेदन करना।
  • Arterioversion -- धमनी-भित्ति-परिवर्तन
शस्त्रकर्म के समय-रक्त स्राव को रोकने के लिए धमनी-भित्ति को उलट देना होता है।
  • Arteritis -- धमनीशोथ
किसी विशिष्ट तथा सामान्य (specific and nonspecific) कारण से धमनी का शोथ होना। धमनी की दीवार की तीन परतों में से एक या सभी प्रभावित हो सकती हैं। यह धमनी शोथ बिल्कुल स्वतंत्र (isolated) या अन्य किसी रोग से संबंधित हो सकता है जैसे रयूमैटिक धमनी शोथ (Rheumatic arteritis), ताकायासू धमनीशोथ (Takayasu arteritis), टेम्पोरल धमनी शोध (Temporal arteritis) मधुमेह व कुष्ठ रोग में भी धमनी शोथ होता है। धमनी शोथ से प्रभावित अंग में दर्द व रक्त प्रवाह में कमी आ जाती है। सामान्य तौर पर संबंधित रोग का इलाज होने पर धमनी शोथ भी शान्त हो जाता है।
  • Artery -- धमनी
शुद्ध रक्त वाहिका, विशुद्ध रक्त को हृदय से शरीर के विभिन्न अंगों में ले जाती हैं।
  • Artery Forceps -- धमनी संदश
एक संदंश जिसका उपयोग शलय क्रिया के दौरान धमनियों के कटे रक्तस्राव करने वाले सिरों (Bleeding ends) को पकड़ने व दबाने के काम में किया जाता है। पकड़ने के बाद इन सिरों (Bleeding ends) को विशेष धागों से बांध (Ligate) दिया जाता है। ये संदश अलग-अलग प्रकार व आकार के उपलब्ध है तथा स्वयं बंद होने वाले (Self locking) होते है। इन सभी के हत्थे कैंची सदृश होते है।
  • Arthrectomy -- अस्थि सन्धि-उच्छेदन
शल्यृक्रिया द्वारा अस्थिसंधियों का उच्छेदन करना।
  • Arthritide -- संधिशोथ संरूप
संधिशोथ जनित उत्सेद्य।
  • Arthritides (Autoimmunity) -- संधिशोथ
विभिन्न किस्म के संधिशोथ। सभी प्रकार के संधिशोथों का सबसे सामान्य लक्षण जोड़ों का दर्द है। इसके अलावा संबंधित जोड़ में सूजन व लाली भी आ सकती है। कभी-कभी शोथ की तीव्रता की वजह से पूरे शरीर में जकड़न या दर्द हो सकता है। संधिशोथ मोटे तौर पर दो प्रकार का होता है तीव्र (Acute) व दीर्घ (Chronic)। मनुष्य स्वभावतः विचरणशील प्राणी है अतः संधिशोथों के फलस्वरूप विचरण में अयोग्यता अत्यन्त दयनीय व तनाव कारक होती है। संधिशोथों को उत्पन्न करने वाले प्रमुख कारक हैं संक्रमण (Infection), चोटग्रस्त संधि में रक्तस्राव (Haemarthrosis), स्वप्रतिरक्षा (Autoimmune) जैसे रयूमेटायड संधि शोथ (Rheumatoid arthritis), अस्थिक्षरण जन्य (Osteo arthritis) आदि। संधिशोथों की विविधता व जटिलता को देखते हुये चिकित्सा विज्ञान की एक नई शाखा का विकास केवल जोड़ों के रोगों के अध्ययन के लिये किया गया है जिसे संधिरोग विज्ञान (Rheumatology) कहते हैं। इन रोगों का सामान्य उपचार दर्द निवारक दवायें (Non steroidal anti inflamatory drugs-NSAIDS) व चिकित्सीय व्यायाम (Physio therapy) है। विशेष परिस्थितियों में छोटे या बड़े शल्यकर्म (Minor or major surgical Procedures) की आवश्यकता पड़ सकती है। उदा. के लिए संक्रमित संधि शोथ (Infected arthritis) में संबंधित जोड़ का विषैला द्रव निकालकर परीक्षणार्थ भेजा जाता है व तदनुसार उपचार किया जाता है।
  • S -- संधिवेधन
यह कुछ किस्म के संधि शोथों के लिये की जाने वाली नैदानिक प्रक्रिया है। इसमें एक विशेष सुई को संधि गुहा में प्रवेशित कराकर, गुहा में उपस्थित द्रव को बाहर खींच लेते हैं। इस प्रक्रिया के सुचारू रूप से होने के लिये संबंधित जो को विशेष औषधियों (Local anaesthetic agent) की मदद से संज्ञाशून्य कर देते हैं। संबंधित जोड़ की त्वचा का संक्रमण हीन (aseptic) होना आवश्यक है। जोड़ों में प्राकृतिक रूप से पाया जाने वाला संधि-द्र (Synovial fluid) पारदर्शक, पीताभ (Straw coloure) व हल्का चिपचिपा (Viscous) होता है जिसे यदि एसेटिक एसिड (Glacial acetic acid) में मिलाया जाय तो सफेद चिपचिपा थक्का प्राप्त होता है। किंतु संधि रोग होने पर संधि द्रव अपारदर्शक (Turbid) व द्रवीय (Watery) होता है जिसे एसेटिक अम्ल में मिश्रित करने पर भुरफुरा व शीघ्र विखंडीय (Flocculent & easily broken) थक्का बनता है। शोथ होने पर संधि द्रव में श्वेत रक्त कणिकाओं की संख्या और प्रोटीन बढ़ जाता है तथा शर्करा (Glucose) की मात्रा कम हो जाती है। विशेष परिस्थितियों में संधि द्रव का (Culture) व सूक्ष्मदर्शीय अध्ययन भी किया जाता है।
  • Arthrodesis -- सन्धि स्थिरीकरण
जोड़ों को शल्य-कर्म द्वारा स्थायी रूप से संयुग्मित करना। इस प्रकार के शल्य-कर्म का मुख्य उद्देश्य पीड़ा रहित करना, रोग को रोकना (Halt disease) या स्थायित्व (Stability) प्रदान करना है। इस प्रक्रम के शल्य कर्म को अब पहले की तुलना में कम किया जाता है। इसकी प्रमुख वजह पूर्ण संधि परिवर्तन (Total Joint arthroplasty) विशेष तौर पर घुटने व कूल्हे के जोड़ों के लिये। इसी प्रकार जोड़ों के तपेदिक (Joint T.B.) के लिये किये जाने वाले संधि-संघ में कमी आने का कारण ज्यादा प्रभावी निदान व उपचार है। यद्यपि संधि-संघ अभि भी प्रतिरोधी संक्रमण (Resistant infections) के लिये तथा उन परिस्थितियों में जिनमें जोड़ों की हड्डियां नष्ट हो गई हों, सबसे बेहतर विकल्प है। पूर्ण संधि-परिवर्तन की तुलना में इसका एक फायदा यह है कि इसमें क्षरण (Mechanical wear & tear) या ढीलापन (Loosening) नहीं होता जिसकी वजह से युवा (Adolescent & young adults) में संधि-संघ को वरीयता दी जाती है।
  • Arthrogram -- संधिचित्र
जोड़ों का एक विशेष एक्स-रे चित्रण। किरण अपारदर्शक (Ray opaque) रसायनों की मदद से खींचा गया जोड़ों का एक्स-रे।
  • Arthrography -- संधिचित्रण
जोड़ों के एक्स-रे की एक विशेष विधि जो मुख्यतः नैदानिक कठिनाइयों (Diagnostic difficulties) दूर करने के लिये प्रयोग की जाती है। इस विधि में किरण अपरदर्शक (Ray-opaque) रसायनों को जोड़ों (सधियों) की गुहाओं में (Injection) द्वारा प्रवेशित करा कर एक्सरे ले लेते हैं। इस विधि को अब आर्थोस्कोपी नामक विधि ने लगभग हटा दिया है।
  • Arthrometry -- संधिमिति
संधिगतियों का नापना। संधि कोणों को नापने की विधि। इस विधि का प्रमुख उपयोग जोड़ों के रोगों की (Degree of involvement) व (Taging process) उपचार से पड़े प्रभाव के आंकलन के लिये किया जाता है।
  • Arthrophyte Osteophyte -- अस्थि वृद्धि
संधि गुहा में उपस्थित हड्डियों के किनारों में उत्पन्न होने वाली असामान्य वृद्धि। यह वृद्धि हड्डी के गलन व कमजोर होने को (degeneration) दर्शाती है। इस कमजोरी की वजह अवस्था संबंधित (Taging process) या अन्य शरीर यांत्रिक (Biomechancal) हो सकती है। साधारणतः यह वृद्धि उन संधियों में पायी जाती है जहां प्रति क्षेत्रफल दबाव अत्यधिक होता है जैसे कशेरुकाओं (vertebraes) व घुटनों में। कशेरुकाओं में स्थिति वृद्धि संबंधित स्पाइनल तंत्रिका पर दबाव डालकर नष्ट कर सकती है।
  • Arthroplasty -- संधिसंधान
शल्य क्रिया द्वारा दर्द युक्त (Degenerated) व नष्ट हुये जोड़ों को इस प्रकार बदल या परिवर्तित (Reconstruction or replacement) कर देना जिससे जोड़ों की गतिशीलता बनी रहे (Restoring the motility)। इस प्रकार का शल्य कर्म मुख्यतः आस्टियोआर्थराइटिस रयूमेटॉयड आर्थाराइटिस कुछ किस्म के अस्थि अंग या जन्मजात विकृतियों को दूर करने के लिये किया जाता है। जोड़ों को बनाने वाली हड्डियों के सिरों को नया आकार दिया जाता है तथा पुनर्निर्मित सिरों के बीच में मुलायम ऊतक (Soft tissue) या धातु की चकती को रख दिया जाता है। एक दूसरी विधि में पूर्ण या आंशिक जोड़ को कृत्रिम जोड़ (Prosthetic Joint) से बदल देते हैं। यह शस्त्रकर्म उन जोड़ों में किया जाता है जहां हरकत करने में दर्द होता हो और गतिशीलता रोक, स्थिरता की जरूरत पड़ती है।
  • Arthropyema -- सन्धिपूयता
सन्धियों में पूय का उत्पन्न होना।
  • Arthropyosis -- सन्धिपूयता
सन्धि में पाया जाने वाला पूय।
  • Arthroscope -- संधिवीक्षण यंत्र
एक दूरबीन सदृश यंत्र जिसके द्वारा गुहा (Synovial joint) जोड़ों के अंदर की संरचनाओं को विस्तृत रूप से देखा जा सकता है व उपचार किया जा सकता है। मूल रूप से दूरबीन की तरह काम करने वाले इस यंत्र में एक आवर्धक लेंस (Magnifying lens) व प्रकाश व्यवस्था होती है जिससे जोड़ों के अंदर की संरचनायें प्राकृतिक व स्पष्ट रूप से दिखाई पड़ती हैं तथा बाहर जा सकता है। इस यंत्र का इस्तेमाल संधियों के रोगों का निदान (Diagnosis) व चिकित्सा (Treatment) दोनों में किया जा सकता है। विभिन्न किस्म की संधियों के लिये विभिन न किस्म के आर्थोस्कोप उपलब्ध हैं।
  • Arthroscopy -- संधि वीक्षण
आर्थोस्कोप (संधिगुहान्तदर्शी) की सहायता से गुहीय संधियों के अंदर की विस्तृत जांच की विधि। इस विधि में संबंधित संधि के ऊपर की चमड़ी को विशेष रसायनों (Local anaesthetic) की मदद से संज्ञाशून्य कर देते हैं। इसके बाद एक या अधिक विशेष उपयुक्त स्थान में धीरे धीरे लगाकर संधिगुहान्तदर्शी को गुहा के अंदर प्रवेशित कराकर जोड़ों के हर भाग का सावधानी से अध्ययन करते हैं। यदि आवश्यक हुआ तो इसी यंत्र की मदद से कुछ उपचारित शल्य करम भी किया जा सकता है। इस यंत्र में ऐसी व्यवस्था होती है जिससे इस प्रक्रिया के दौरान जोड़ों के अंदर के फोटोग्राफ भी लिये जा सकते हैं। मानविक विकास व जीवन गति तेज हो जाने से दुर्घटनाओं (automobile sport & other) में वृद्धि हो रही है तथा इसी के साथ इस विधि का इस्तेमाल भी लगातार बढ़ता ही जा रहा है। यह विधि घुटनों की परेशानियों के लिये सबसे ज्यादा प्रभावी है तथा घुटनों के चोटों व रोगों के लिये इसका सर्वाधिक उपयोग भी होता है।
  • Arthrotomy -- संधिच्छेदन
:(1) शस्त्र क्रिया द्वारा किया जाने वाला सन्धिविच्छेदन।
(2) शस्त्रकर्म के द्वारा जोड़ को खोलना। यह शस्त्रकर्म सामान्य रूप से जिंदा ऊतकों की परीक्षा (जीवऊति परीक्षा-biopsy) या जोड़ से पानी या पीप को निकालने के लिये किया जाता है।
  • Arthroxesis -- सन्धिलेखन
विकृत ऊतकों को लेखन-कर्म द्वारा सन्धि से पृथक् करना।
  • Articulation -- संधि, विशेषतया अस्थियों का जोड़
:(1) दो जोड़ों के अनुसार स्थूलक (Mono condylic) या द्विस्थूलक (dicondylic) संधियां कही जाती हैं।
(2) दो अंश मिलकर संधि करते हैं।
  • Articulation -- सन्धि, जोड़, उच्चारण
स्वर-यंत्र से निकली आवाज को उचित उच्चारण व समझने योग्य बनाने की प्रक्रिया। इस प्रक्रिया में जीभ, दांत, होंठ, तालु, नासिका (Nasal Cavity) आदि महत्त्वपूर्ण योगदान देते हैं।
  • Ascitis -- जभोदर
उदर गुहा (Intraperitoneal portion of abdominal cavity) में तरल पदार्थ का इकट्ठा हो जाना। इस तरल पदार्थ में प्रोटीन व विद्युत संयोजी तत्व बड़ी मात्रा में रहते है। इस दशा के होने के लिये उदरीय गुहा में कम से कम 500ml तरल होना आवश्यक है। यह दशा उदरीय सूजन, रक्ततनुता (Haemodilution) या मूत्र निकास की कमी (Decreased urine out put) के साथ में हो सकती है। रोगलाक्षणिक रूप से पेट फूल जाता है, नाभि बाहर आ जाती है। इस विकृति की जांच पेट को छूकर दबाकर ठोंककर (Percussion) व आले (Stethoscope) से सुनकर (Ascultation) की जाती है। इसके अलावा दोनों हाथों की मदद से दबाने (Palpation) पर तरलता एक जगह स्थिर और दूसरी जगह गतिमान प्रतीत होती है तथा तरल की स्पृश्य तरंगे (Fluid thrill) भी मिलती है। यह दशा अधिकाशतः दूसरे रोगों की जटिलताओं की वजह से उत्पन्न होती है जैसे जिगर की सिकुड़न (Liver cirrhosis) गुर्दों की गंभीर बीमारी (Nehrosis), दुर्दमता (Malignancy) या परजीवी संक्रमण। इसका उपचार प्रारंभ में भोजन परिवर्तन व मूत्रल औषचियों से किया जाता है। आराम कम मिलने की दशा में या श्वास की परेशानियों व उदर दर्द को कम करने के लिये उदरीय कला भेदन (Abdominal paracentesis) के माध्यम से भी तरल को बाहर शीघ्रता से निकाला जा सकता है। बार-बार होने वाले जलोदर (Relapsing Ascitis) के लिये पेट के अंदर यकृत की रक्त वाहिनीयाँ (Portal system) को शल्य कर्म के द्वारा पुर्नव्यवस्थित कर दिया जाता है।
  • Asepsis -- अपूति
वह दशा जब रोगाणु अनुपस्थित हों। अत्यन्त तीव्र प्रजनन शक्ति व अपनी सूक्ष्मता के कारण रोगाणु वातावरण के हर हिस्से में व हर समय मौजूद रहते हैं, शरीर की विशिष्ट प्रतिरोधक क्षमता के कारण ये स्वस्थ (healthy) शरीर पर विशेष प्रभाव नहीं डाल पाते किंतु शल्य-कर्म के दौरान रक्त के सीधे संपर्क में आने पर संक्रमण बहुत तीव्रता से फैल सकता है जिससे शल्य कर्म के अप्रभावी हो जाने का डर रहता है या रोगी की जान भी जा सकती है। स्पष्ट है कि शल्य कर्म के पहले, दौरान या बाद में उस भाग को रोगाणुमुकत करके ही शल्य क्रिया का पूरा लाभ लिया जा सकता है। रोगाणुमुक्ति की प्रक्रिया को (Asepsis) कहते हैं। यह दो प्रकार से किया जा सकता है औषधीय (Medical asepsis) औषधियों या अन्य रसायनों के माध्यम से रोगाणुओं और संक्रमित वस्तुओं का नष्टीकरण। शल्यक (Surgical asepsis) शल्यकर्म के पहले दौरान या बाद में विसंक्रमित विधियों (Sterile technique) का उपयोग करना।
  • Aseptic Bone-Necrosis -- असंक्रमित अस्थि परिगलन
एक किस्म की हड्डियों और जोड़ों का परिगलन (Necrotic damage)। यह दशा अधिकांशतः उन व्यक्तियों को प्रभावित करती है जो संपीडित वायु दशाओं (Compressed air condition) तथा गोताखोरी (Diving) या सुरंग कार्य (Tunneling) को करते हैं। यह विकृति संभवतः हड्डियों की बारीक धमनियों में नाइट्रोजन के बुलबुलों द्वारा रक्त प्रवाह के रूक जाने से तथा उसके बाद हड्डी के उस हिस्से के मृत हो जाने (Bone Infarction) से होती है। यह दशा लक्षणहीन हो सकती है किंतु जोड़ों के प्रभावित होने की दशा में अत्यन्त तीव्र दर्द होता है। इसका इलाज विस्फार करना (Decompression) है। अस्थि जनित परिगलन जो रक्तसंवहनावरोध प्रायः ऊर्वास्थि, घुटकास्थि (talus) तथा अर्धचन्द्राभ अस्थि (lunate bone) को प्रभावित करती है। इसमें हमेशा दुर्घटना का इतिहास मिलता है। उपचार के लिये शल्य-चिकित्सा आवश्यक है।
  • Aseptic Surgery -- असंक्रमित शल्यक्रिया
शल्य-क्रिया के दौरान शल्यक भाग (Operating part) का रोगाणुओं से संपर्क न होने देने की विधि (Avoidance of contamination)। रोगाणुओं से अलगाव के लिये शल्य कक्ष की हवा को, शल्यचिकित्सक व सहायकों के शल्य कर्म के दौरान पहने जाने वाले सभी वस्त्रों (Face mask, Head cap, Gloves आदि), रोगी के प्रयुक्त वस्त्रों तथा सभी उपकरणों व यंत्रों (Surgical instruments) आदि को पूर्ण विसंक्रमित (Completely sterlized) कर लिया जाता है। असंक्रमित विधि से शल्यकर्म करने पर घाव जल्दी व उचित रूप से भर जाता है तथा रोग को पूर्ण आराम (Cure) मिलने की संभावना बढ़ जाती है।
  • Aspirate -- आचूषण
शरीर के किसी भाग में एकचित्र वह द्रवीय पदार्थ जिसे आचूषण (Injection) के माध्यम से बाहर निकाल लिया गया हो। उदाहरण के लिये जलोदर का द्रव (Ascitic aspirate), फुफ्फसीय कल जल (Aspirate from pleural effusion), स्तन की पुटीय गांठ (Aspirate of cystic breast lump) इन सभी जगहों से निकाले गये द्रव की जांच रोग के उचित निदान (Diagnostic propose) या चिकित्सा के प्रभाव का आंकलन करने के लिये किया जाता है।
  • Aspirating Needle -- चूषकसूची
लम्बी, खोखली (hollow) सूची, जिसके द्वारा गुहा (cavity) से तरल (fluid) निकाला जाता है।
  • Aspirator -- चूषक
एक उपकरण (apparatus) जिसके द्वारा चूषण करके गुहा (cavity) से तरल या गैस को बाहरनिकाला जाता है।
  • Asplenia -- प्लीहाभाव
प्लीहा का न होना।
  • Astragalectomy -- घुटिकास्थि-उच्छेदन
शल्य-क्रिया द्वारा घुटिकास्थि का उच्छेदन।
  • Astrocytoma -- तारिका-कोशिकार्बुद
ग्लायोमा (glioma) का एक प्रकार, जो अन्तः करोटि अर्बुदों (intraranial tumours) की एक सामान्य किस्म है। यह तारिका- कृतिक कोशिकाओं (starshaped cells) से बना होता है जो व्यस्क तंत्रिका सम्बन्धी ऊतकों जैसी मालूम होती है। यह विसरित (disffuse), ठोस (solid) या पुटीमय (cystic) किस्मों का हो सकता है। यह व्यस्कों में मस्तिष्क के लालाट खंड (frontal lobe) तथा युवा रोगियों में प्रमस्थिष्क गोलार्ध (cerebral hemisphere) में होता है।
  • Ateriogram -- धमनीलेख
धमनी का एक्स-रे चित्र।
  • Atheroma -- एथिरोमा
धमनियों का स्थानिक गांठदार धमनीकाठिन्य। सामान्य रूप से यह महाधमनी (aorta), हृदधमनी (coronary) तथा प्रमस्तिष्क (cerebrum) की धमनियों को प्रभावित करता है। आगे चल कर इसकी वजह से ऐन्यूरिज्म, थ्रोम्बोसिस या एम्बोलिज्म जैसी बीमारियाँ हो सकती हैं। रोकथाम की चिकित्सा (preventive treatment) से चयापचय विक्षोभ या गड़बड़ी को ठीक किया जा सकता है। यदि ग्रंथित रचना एक जगह पर कायम है तो उसे शस्त्रकर्म के द्वारा निकाला जा सकता है।
  • Atresia -- अछिद्रता
जन्मजात या सहज विकृति जिसके कारण प्राकृतिक छिद्रों (openings) नलिकाओं (Canal) या वाहिकाओं (ducts) का अभाव रहे। उदाहरण कान के बाहरी नली की अशुप्पीरता (external audiory canal) गुदा द्वार (anus) या गुदा नलिका (anal canal) की अशुप्पीरता योनि आंत (vagina) की अशुप्पीरता हृदय-कपाट (Heart values) की अशुप्पीरता छोटी आंत (usually duodenum) की अशुप्पीरता किसी एक अंग की अशुप्पीरता होने पर अन्य अंगों के भी इस प्रकार से प्रभावित होने की संभावना बढ़ जाती है। अतः प्रभावित शिशु का संपूर्ण शारीरिक परीक्षण अति आवश्यक है। अधिकांशतः इन विकृतियों को शल्य कर्म द्वारा पुनः आकार देना संभव होता है।
  • Artial Septal Defect -- अलिंदपटल-दोष
इस बीमारी में दोनों अलिंदों के मध्य के पटल में कुछ कमी रह जाती है। जिसके कारण दायें अलिंद (सीधे ही बिना फुफ्फुसों के द्वारा प्राणवायु से संलग्न हुये) से रक्त बाँये अलिंद (auricle) में चला जाता है। बचपन में यह अवस्था अशक्तता (disability) उत्पन्न करती है। अधिक उम्र हो जाने पर यह एक गंभीर बीमारी बन सकती है यह अवस्था शस्त्रकर्म के द्वारा ठीक की जा सकती है।
  • Atriomegaly -- वृहदलिंदता
हृदय के अलिंद का असान्य रूप से विस्फारण या वृद्धि। हृदय के चार कोष्ठ कों में से ऊपरी दो अलिंद कहलाते हैं। अलिंदों में शिराओं से रक्त आता है व यहाँ से निलयों में रक्त जाता है। अलिंद से निलय में होने वाले रक्त प्रवाह में किसी रुकावट से अलिंदों को अधिक कार्य करना पड़ेगा और परिणामस्वरूप इनकी दीवारें व गुहा असामान्य रूप से वृद्धि हो जायेंगी। यहां यह स्पष्ट करना आवश्यक है कि अधिकाशतः केवल एक अलिंद (दायां या बांया) ही प्रभावित होता है। दायें अलिंदी-निलय कपाट की संकीर्णता से दायां निलय व बायें अलिंदी निलय कपाट की संकीर्णत से बायां अलिंद प्रभावित होता है। सही समय पर उपचार न करवाने पर अलिंदों में संकुचनविहीनता हो सकती है। दायें अलिंद में संकुचनविहीनता से पूरे शरीर के रक्त संचार (Systemic circulation) व बायें अलिंद में संकुचनविहीनता से फेफड़ों के रक्त-संचार (Pulmonary circulation) में प्रभाव पड़ता है।
  • Atrioseptoplasty/ Atrioseptoplexy -- अलिंदापटल स्थापना
शल्य कर्म द्वारा अंतर-अलिंद पटल पर (interatrial septum) के जन्मजात दोषों (Congenital defects) का विरोपण (Repair) करना। गर्भस्थ (fetus) शिशु में रक्त परिवहन इस प्रकार होता है कि इसके फेफड़ों में रक्त परिवहन (Pulmonary ciruculation) नहीं होता है क्योंकि इसे मां के रक्त परिसंचरण से शुद्ध ऑक्सीजनीकृत रक्त मिल जाता है। अत; दायें अलिंद में आने वाला रक्त दायें निलय में न जाकर, अंतरअलिंद पटल में प्राकृतिक रूप से उपस्थित एक छिद्र (Foramen ovale) द्वारा बायें अलिंद में पहुंच जाता है और फिर यहां से बायें निलय के मध्यम पूरे शरीर में परिसंचरित हो जाता हैथ। जन्म के शीघ्र बाद यह छिद्र पूर्णतया बंद हो जाता है किंतु कभी कभी यह छिद्र या अन्य दोष इस पर में बने रहते हैं जिससे रक्त का शुद्धीकरण (oxygenation) अपूर्ण रहता है। इस दशा में नवजात शिशु की उचित वृद्धि नहीं हो पाती अतः शल्य कर्म द्वारा उपस्थित दोष को दूर करना आवश्यक हो जाता है।
  • Atriotome -- अलिंदछेदक
ऐसा यंत्र, जिसके द्वारा अलिंदछेदन किया जाता है।
  • Atriotomy -- अलिंदछेदन
हृदयदोषों के दूर करने के लिये शस्त्रकर्म द्वारा हृदय के अलिंद का छेदन।
  • Atrium -- अलिंद
हृदय के दो ऊपरी कक्ष। स्थिति के अनुसार इनको दायां व बायां अलिंद कहते हैं। अलिंदों में शरीर की शिराओं का रक्त एकत्रित होता है तथा यहां से रक्त को संबंधित निलयों (Rt. or Lt ventricles) में प्रेषित कर दिया जाता है। प्रत्येक अलिंद का रक्त-परिवहन दूसरे अलिंद से स्वतंत्र होता है इसी प्रकार प्रत्येक निलय का दूसरे से निलय से कोई सीधा संवहन नहीं होता। प्रत्येक अलिंद अपनी और के निलय से मिलकर एक स्वतंत्र रूप से कार्यरत हृदपंप (cardiac pump) बनाता है। दायें अलिंद में पूरे शरीर का शिरीय रक्त (Venous blood) और बायें अलिंद में फेफड़ों का शिरीय रक्त आता है। निलयों की तुलना में अलिंदों की दीवारें ज्यादा पतली होती है। दायें अलिंद की दीवार में पूरे हृदय का गति निर्धारण ऊतक (Rate determining tissue SA node-Pace maker) उपस्थित होता है।
  • Atrophy -- क्षीणता, अपुष्टि
कोषिकीय घात की प्रक्रिया, जिसके परिणामस्वरूप आकार और क्रिया का हास होता है।
  • Attrition -- घर्षणजन्य विदारण
घर्षणजन्य विदारण गतिशील अंगों या उपांगों के बीच अत्यधिक घर्षण के फलस्वरूप होने वाला नुकसान। इस क्रिया द्वारा अंग धीरे धीरे कमजोर होकर कार्यविहीन हो सकते हैं। उदाहरण के लिये कण्डराओं (Tendons) का इनके नीचे की अस्थियों के उभारों (Bony prominences) से बारंबार घर्षण (जब भी मांसपेशियों में संकुचन होगा) इनको इतना कमजोर बना देता है कि ये अचानक टूट भी सकते हैं। इस दशा में कणडरा स्थानान्तरण (Tendon replacement) विधि का उपयोग प्रभावित कण्डरा को पुनः कार्यरत करने में किया जाता है। घर्षणजन्य विदारण दांतों में भी होता है विशेषकर उन दांतों में जिनमें दांतों का सबसे बाहरी आवरण (enamel) किसी भी वजह से निकल गया हो।
  • Audio-Surgery -- कर्ण शल्य कर्म
कानों की किसी भी किस्म की शल्य क्रिया। कान तीन भागों से मिलकर बना होता है, बाह्य (External ear) मध्य (Middle ear) व आंतरिक (Internal ear) इनमें से किसी भी भाग के रचनात्मक दोष या रोग (anatomical defect or pathological change) को शल्य कर्म द्वारा ठीक किया जा सकता है। किंतु साधारण तौर पर मध्य कर्ण के शल्य कर्म को सर्वाधिक किया जाता है। इसका कारण मध्य कर्ण का इन तीनों भागों की तुलना में सर्वांधिक रूप से रोगग्रस्त होना है। कानों की संरचना सूक्ष्म होने के कारण इनके शल्य कर्म के लिये शल्यक-सूक्ष्मदर्शी (operating microscope) का प्रयोग किया जाता है।
  • Augmentation -- संवर्धन
कोशिका विभाजन एवं नाडी/तंतु की कार्मुकता को उतेजित कर हृदय की गति को बढ़ाना।
  • Auricle -- अलिंद उत्कोष्ठ, बहिःकर्ण शुक्तिका
:(1) हृदय के अलिंद नामक कोष्टक का वह हिसा जो साधारणतः दोनों आलिंदों के आगे की ओर स्थित होता है। सामान्यतौर पर इसमें रक्त प्रवेश नहीं करता और यह चपटे उभार (Flaplike structure) के रूप में रहता है। जरूरत पड़ने पर, अलिंदों की दीवारों में बिना किसी अतिरिक्त खिंचाव के, रक्त इसमें एकत्रित हो सकता है।
(2) बाह्य कर्ण का सबसे बाहरी पंखे सदृश भाग जिसे पिन्ना (Pinna) भी कहते है। इसका कार्य वातावरण में उपस्थित ध्वनि तरंगों को एकत्रित करके कर्ण पट (Tympanic memb) की ओर प्रेषित करना है।
  • Auroscope -- कर्णदर्शी, कर्ण परीक्षण यंत्र
कर्णदर्शक यंत्र यह यंत्र कान के बाहरी भाग (external ear) को देखने के काम में आता है। इन बाहरी भागों में वाह्य नलिका (external auditory canal) व कर्णपट (Tympanic membrance) को विशेष तौर पर इस यंत्र से देखा जा सकता है। इस यंत्र में एक आवर्धक लेंस व एक बैटरी से युक्त प्रकाश व्यवस्था होती है। मूल रूप से यह यंत्र दो भागों से मिलकर बना होता है, एक हत्था जिसमें सेल होते हैं तथा ऊपरी शंक्वाकार ङभाग जिसे कान के अंदर प्रवेशित कराया जाता है। शंक्वाकार भाग के अगले सिरे में लेंस स्थित होता है। शंक्वाकार भाग हत्थे से अलग किया जाता है तथा यह अलग-अलग आकार का उपलब्ध होता है।
  • Auscultoplectrum -- श्रवण एवं आकोठन से उत्पन्न शब्द को सुने वाला यंत्र।
  • Autechoscope -- स्व-श्रवण-यंत्र
स्वध्वनि को सुनने वाला यंत्र।
  • Autoclave -- ओटोक्लेव्
वाष्पदाब द्वारा वस्तुओं को विसंक्रमित करने का यंत्र। इस यंत्र की कार्यविधि प्रेशर कुकर से मिलती-जुलती है। इस यंत्र के दो प्रमुख भाग जैकेट (Jacket) व चैंबर (Chamber) हैं। इसके अलावा इसको अनेक कपाट तथा दाब व ताप सुग्राही निर्देशक (indicators) होति हैं। यह विद्युत संचालित यंत्र है।
  • Auto-Claving -- वाष्पदाबी विसंक्रमण
विसंक्रमण या निर्जीवाणुकरण (sterlization) की एक पद्धति जिसमें दाब के जरिये शुष्क या आर्द्रताप दिया जाता है। इस प्रकार वर्धी (Vegetative) तथा बीजाणुधारी (spore bearing) किस्म के जीवों (organisms) को नष्ट किया जाता है। वाष्पदाब द्वारा वस्तुओं का विसंक्रमित करने की विधि। इस यंत्र के एक विशेष भाग में सर्वप्रथम पानी उबलता है व भाप (वाष्प) बनती है। यह वाष्प जैकेट के माध्यम से चैम्बर में प्रवेश करती है। चैबर में पहले से उपस्थित हवा को यह वाष्प तब तक बाहर ढकेलती है जब तक इसमें केवल वाष्प ही रह जाये। इस स्थिति में चैंबर के निकास द्वार (outlets) को बंद कर दिया जाता है। गर्म वाष्प अब भी चैंबर में आती रहती है तथा जब चैंबर के अंदर आवश्यक ताप व दाब (सामान्यतः 121 से, तापमान व 15 पाउंड (1.06 kg/cm2) दाब) हो जाता है वाष्प प्रवेशन को रोक दिया जाता है। इस तापमान में परिपूर्णित वाष्प सभी कायिक कोशिकाओं (vegetative cells) व बीजाणुओं (endospores) को नष्ट कर देती है। साधारणतः इस पूर्ण नष्टीकरण में लगने वाला समय लगभग 10 – 12 मिनट है किंतु सुरक्षा – दायरा (margin of safety) बढ़ाने के लिये प्रक्रिया 15 – 20 मिनट तक की जाती है।
  • Autocystoplasty -- स्वकोशीय मूत्राशय-सन्धान
स्वयं की कोशिका से मूत्राशय का सन्धान कर्म।
  • Autogenous Bone Grafting -- स्व-अस्थि-निरोपण
अपने ही शरीर से प्राप्त अस्थि का शस्त्रकर्म द्वारा आरोपण (implantation)।
  • Auto-Haemotransfusion -- स्वरक्ताधान
किसी व्यक्ति की शिरा से शस्त्रकर्म द्वारा कुछ रक्त निकालकर वही रक्त उसी व्यक्ति में अंतः पेशी (intramuscular) इंजेक्शन द्वारा दे देना।
  • Autonephrectomy -- वृक्क-उच्छेदन
यह एक अवस्था है, जिसमें एक वृक्क में यक्ष्मा होने के बाद यह अत्यधिक कैल्सीभवन (extensive calcification) के कारण क्रिया विहीन हो जाता है।
  • Autorediogram/Autoradiograph -- विघटनामिक स्वचित्रण
शरीर में प्रविष्ट विघटनाभिक द्रव्यों का विभिन्न अंगों में प्रमाण नापने का स्वचित्रण।
  • Autoregulation -- स्वनियमन
शरीर-क्रियात्मक प्रक्रियाओं (Physiological reaction) का स्वयं नियंत्रण। शरीर की लगभग सभी आवश्यक प्रक्रियाओं में इस प्रकार की व्यवस्था होती है जिससे उस प्रक्रिया के शरीर की आवश्यकतानुसार घटाया या बढ़ाया जा सके। प्रक्रियाओं की इस क्षमता को फीडबैक नियंत्रण (Feed back regulation) कहते हैं। इस प्रकार के स्वयं नियंत्रण अंतः स्रावी प्रक्रियाओं, रक्त परिसंचरण (blood circulation), रक्त जमाव (blood-cloting), उत्सर्जन तंत्र (excretory system), इलेक्ट्रोलाइट समानुपात (electrolyte balance) आदि में विशेष उपयोगी है। ये नियंत्रण ऋणात्मक व धनात्मक (Positive & Negative Feedback) दोनों हा प्रभावों के हो सकते हैं। जब प्रक्रियाओं की प्रबलता क्रमशः बढ़ती जाती है उसे धनात्मक नियंत्रण (Post feedback) कहते है उदाहरण के लिये प्रसव के दौरान रार्भाशय के संकुचन का लगातार बढ़ता जाना धनात्मक नियंत्रण है। जब प्रक्रियाओं की प्रबलता कम होती जाती है उसे ऋणात्मक नियंत्रण (Negative feedback) कहते हैं। उदाहरण के लिये शरीर में भोजन के पश्चात् ग्लूकोज अधिकतम होने पर इंसुलिन नामक अंतःस्रावी पदार्थ (Hormone) का स्रावण बढ़ जाता है जिससे ग्लूकोज की मात्रा कम हो जाती है।
  • Autoreinfusion -- स्वतः पुनः द्रवाधान
शिरा सूची द्वारा क्षतिपूर्ति के लिए द्रवाधान।
  • Autorrhaphy -- तंतु-सीवन
1. स्व तंतुओं के द्वारा स्वतः सीवन

2. व्रण का स्वतंतु द्वारा स्वतः सीवन

  • Autosensitization -- स्वसंवेदनाशीलकरण
स्व ऊतक के प्रति संवदेनशीलता उत्पन्न करना। शरीर के प्रतिरक्षा (Immune system) का स्वशरीर के ऊत्तकों के प्रति संवेदनशील हो जाना। शरीर का प्रतिरक्षा तंत्र शरीर की रोगाणुओं (Pathogenic organism) से रक्षा करता है। इस तंत्र की रोगाणुओं या अन्य रोगकारक पदार्थों को पहचानने की एक विशेष विधि है। इस तंत्र की टी. एवं. बी. कोशिकायें (T & B lymphocytes) सर्वप्रथम अपने स्वयं के शरीर की सभी प्रमुख ऊत्तकों के रसायनिक संघटन (Mainly protein types) का एक खाका (Blue print) तैयार कर लेती है तथा बाद में शरीर में प्रवेश करने वाले हर रासायनिक पदार्थ को अंतग्रहण (Phagocytole) करके अपने (Blue Print) से तुलना करती हैं। असमानता होने की परिस्थिति में इस रासायनिक संघटन वाले सभी रोगाणुओं या पदार्थों को सामूहिक रूप से नष्ट करने का आदेश दिया जाता है। कभी-कभी स्वशरीर की रासायनिक ब्लू-प्रिंट बनने की प्रक्रिया अपूर्ण या दोषयुक्त हो जाती है जिससे ये कोशिकायें स्वशरीर के उत्तकों को नष्ट करने लगती हैं इसे स्वसंवेदनशीलता कहते हैं। प्रतिरक्षाशामक (Immune suppresant) औषधियों से कुछ लाभ मिलता है। कुछ उदाहरण हैं रयूमेटायड संधि-शोथ (Rheumatoid arthritis), कुछ किस्म के त्वचा के रोग (vitiligo) आदि यह विकृतियाँ महिलाओं में ज्यादा होती है।
  • Autoserodiagnosis -- स्व सिरम निदान
रक्त-स्कन्दन-जनित द्रव स्व सिरम द्वारा रोगनिदान।
  • Autoserotherapy -- स्व-सीरम-चिकित्सा
स्व-सीरम द्वारा रोग की चिकित्सा करना।
  • Autoserous -- स्वसीरस
स्वयं का सीरम जिसका उपयोग परीक्षण के लिए तथा चिकित्सा के लिए होता है।
  • Autoserum -- ओटोसीरम
स्वयं का सीरम, जिसका उपयोग चिकित्सा के लिए होता है। स्व चिकित्सार्थ स्व सीरम का प्रयोग।
  • Autosomatognosis -- भूतांग अनुभूति/भिथ्याभास
अंग विच्छेदन के बाद भी उसी अंग को अनुभूति, शस्त्रकर्म द्वारा निकाले गये अंग की अनुपस्थिति में भी उसका थ्याभास होना।
  • Auto-Transplantation -- स्वप्रतिरोपण
व्यक्ति के एक भाग से ऊतक (tissue) का एक टुकड़ा शस्त्रकर्म द्वारानिकाल कर उसी व्यक्ति के दूसरे भाग में प्रविष्ट कर देना।
  • A. V. Block -- ए. वी. ब्लॉक
अलिंद से निलय जाने वाली संवेदना (impulse) में अवरोध दायें- अलिंद में हृदय का गति निर्धारक केंद्र (Pacemaker – SA node) होता है। यहां से संवेदनायें पहले दोनों आलिंदों की दीवारों में व ए. वी. नोड (A. V. node) में व (Av. node) से दोनों निलयों में प्रवेश करती हैं। एवी-नोड से निलयों में प्रवाह हिज़ के विशेष तंतुओं (bundle of His & bundle branches) के द्वारा होता है। ए. वी. ब्लाक में इन्हीं तंतुओं में पूर्ण या आंशिक अवरोध आ जाता है फलस्वरूप सवेदनायें निलयों में नहीं पहुंच पाती है। निलयों की स्वयं की गति के कारण (ventricular ghythm) हृदय गति धीमी (Bradycardia) हो जाती है। हृदय के विद्युत संरेखन (ECG- Electrocardiography) में P-wave नामक तरंगें अनुपस्थित रहती हैं। यह विकृति प्रमुखतः हृदय के अरक्त प्रवाही दौरों (Myocardial infarction) की वजह से होती है। कुछ परिस्थितियों में शल्य कर्म द्वारा लाभ मिल सकता है।
  • A V Bundle -- अलिंद-निलय-गुच्छ
इसे हिज़ के तन्तु गुच्छ भी कहते हैं। यह परिवर्तित मांसपेशी से बना है, इसके द्वारा अलिंद-निलय पर्व से संकोच संवेदना निलय मांसपेशी तक पहुँचती है।
  • Avascularization -- अवाहिका-भव
रक्तवाहिनी में अवरोध कर उत्पन्न के रक्त संचार को रोकना। उदा. किसी अंग को तंग (Tight) बंधन बाँधना।
  • Avenolith -- मलाश्मरी
आंत्र अपाचित अन्न कणों के चारों ओर क्रमशः संचित आंत्र अश्मरी।
  • Axillary Abscess -- कक्षाविद्रधि
कक्षा स्थित स्वेद ग्रन्थियों में संक्रमण से होने वाली विद्रधि।
  • Axonotmesis -- अक्षतन्तु-विच्छेद
जिस तंत्रिका आघात में अक्ष तंतु एवं माईलिन आवरण का प्रविहारण हो जाए, परन्तु संयोजी ऊतक खंड सुरक्षित रहे। तंतूका आघात पश्चात के भाग का अपविकास होता है। इसके तंत्रिका का पुनः विकास होता है।
  • Back-Ache -- पृष्ठवेदना
शरीर के पृष्ठ पीड़ा की शायद ही कोई ऐसा मनुष्य होगा जिसने अपने जीवन में पृष्ठ-पीड़ा (Back ache) का अनुभव कभी न किया हो। यह पीड़ा शरीर पृष्ठ के किसी भी हिस्से को प्रभावित कर सकती है किंतु सामान्यतः पीठ के निचले हिस्से (Lower thoracic region) व कमर दर्द (Lumbar pain) को ही पृष्ठ पीड़ा के रूप में समझा जाता है। मानव विज्ञानियों (Physical & Medical anthropologists) के अनुसार मनुष्यों में पृष्ठ पीड़ा वास्तव में उनके द्विपदगामी होने की कीमत (The price of being bipedal) मात्र है। उनके अनुसार कूल्हों के ऊपर का शरीर का पूरा भार कमर की कशेरुकाओं (Lumber vertebral) में टिका होता है क्योंकि इस भाग में अन्य कंकाली सहारा (Skeletal support) नहीं होते केवल मांसपेशियां ही होती हैं। अतः इस भाग में तनाव अत्यधिक होता है। इस तनाव को कुछ विशेष परिस्थितियां और बढ़ा देती हैं उदाहरण गर्भावस्था के दौरान महिलाओं में, अत्यधिक झुककर कार्य करने से, यहां की कशेरुकाओं के कुछ रोग (eg. T. B.) या चोट आदि। इस वजह से कशेरुकाओं, उनके बीच की उपास्थि (intervertebral disk) व अस्थिबंधक तंतुओं (vertebral ligaments) में छीजन व नषअटीकरण (Degeneration) बढ़ जाता है। इसके अलावा वृद्धावस्था में (osteoporotic) या किसी भी अवस्था में कैल्सियम की कमी से भी कशेरुकाये कमजोर हो जाती हैं जिसकी परिणिति पृष्ठ पीड़ा के रूप में होती है। इन परिस्थितियों में कभी-कभी कशेरुकाओं के सिरे बढ़ (osteoporotic growth) जाने से संबंधित तंत्रिका (corresponding spinal nerve) में नुकसान शरीर की भंगिमा को सही रखकर (correct postural positions) इसकी तीव्रता को कम किया जा सकता है। अन्य उपचार कारणानुसार किया जाता है तथा चिकित्सीय व्यायाम (physiotherapy) से विशेष फायदा मिलता है।
  • Back-Bone -- रीढ़, पृष्ठकंकाल
शरीर के पृष्ठ भाग में स्थित एक खोखली नली (Hollow tubular) के आकार की संरचना जो कई हड्डियों से मिलकर बनी होती है। इन हड्डियों को कशेरुकायें (vertebral) रहते हैं अतः इस पूरी संरचना को कशेरुकी-स्तंभ (vertebral) कहते हैं। यह संरचना मेरुरज्जु (spinal cord) को ढककर रखती है। कशेरुकी प्राणियों (chordates) में पृष्ठ भाग को सहारा देने के लिये पृष्ठ- अस्थि (Back-bone) का होना एक विशिषअट लक्षण है। निम्न कशेरुकियों (Lower hordates) में एक ठोस नली (Notochord) तथा उच्च कशेरुकियों (higher chordates) में कशेरुकी-स्तंभ (Vertebral column) पाया जाता है। एक विकसित मनुष्य (Adult man) में इकतीस (31) कशेरुकायें होती हैं। शरीर के अलग-अलग भाग की कशेरुकाओं को अलग-अलग नाम दिया जाता है उदाहरण ग्रीवीय (Cervical vertebrale) वक्षीय (Thoracic) कमर (Lumber) कमर के नीचे (Sacrococcygeal vertebrale) । इन सभी में आपस में एक मूलभूत समानता होते हुये भी क्षेत्रीय रचनात्मक विशेषताओं (Regional anatomical characteristics) की वजह से कुछ अंतर भी होते हैं। उदाहरण के लिये वक्षीय कशेरुकाओं के दोनों ओर एक एक लंबी चपटी हड्डियाँ-पसलियां (Ribs) निकली होती हैं। सभी पसलियां मिलकर वक्षीय पिंजड़ (Thoracic cage) बनाती है जिसमें फेफड़े व्यवस्थित होते हैं। पृष्ठ हड्डी वक्षीय कंकाल (Throcacic skeleton) का एक प्रमुख भाग बनाती है।
  • Backbone (Verterbral Column) -- पृष्ठास्थि
पीठ में स्थित अनेक छोटी-छोटी हड्डियों से बनी एक खोखली संरचना, जो मेरुरज्जु को ढ़क कर सुरक्षित रखती है। यह कशेरुकाओं का विशिष्ट लक्षण है।
  • Bacterial -- जीवाणुज
जीवाणु से सम्बन्धित।
  • Bactriochlorophyll -- जीवाणुपर्णहरित
कुछ जीवाणुओं द्वारा बनाया जाने वाला एक प्रकार का पर्णहरित रसायन एवं प्रकाश-संश्लेषण-क्षमता-युक्त।
  • Balanitis -- शिश्नमुंडशोथ
शिश्न के मुंड (glans penis) में सूजन का हो जाना। ऐसी हालत में सुपाड़ी को ढकने वाली खाल (शिश्न मुंडच्छद) भी सूज जाती है। तब उस दशा को शिश्नमुंड-मुंडच्छद शोथ (balano posthitis) कहते हैं। यह अवस्था उन लोगों में मिलती हैं, जिनको शिश्न के आगे की काल (त्वचा) बढ़ी हुई होती है। खाल की तथा उसके आसपास की सफाई अच्छी तरह न रखने या गर्मी, सूजाक आदि रतिज रोगों (venereal diseases) और कभी-कभी कैंसर के भी कारण यह बीमारी पैदा हो जाती है। इसकी चिकित्सा शस्त्रकर्म है जिसमें पुनःस्थापन (reduction) तथा सुन्नत या खतना (circumcision) करना पड़ता है।
  • Balano Posthits -- शिश्नमुण्डच्छद शोथ
शिश्नमुंड (Glans penis) एवं शिश्न मुंडच्छद (prepuce) का एक साथ शोथ (Inflammation)। आरंभिक अवस्था में कुछ जलन या स्राव हो सकता है किंतु तीव्र शोथ (Severe inflammation) में ये दोनों प्रभावित भाग लाल व मवाद स्रावित करने वाले (Red & Pus discharging) हो सकते हैं। सामान्यतः यह दशा शिश्न की उचित सफाई के अभाव में होती है। इसके अलावा निम्नलिखित अन्य रोग भी संबंधित हो सकते हैं। सामान्यतः यह दशा शिश्न की उचित सफाई के अभाव में होती है। इसके अलावा निम्नलिखित अन्य रोग भी संबंधित हो सकते हैं- मधुमेह, लिंग के अग्रचमड़ी की सिकुड़न (Phimosis) शिश्न दुर्दमता (Penile cancer) आदि इन दशाओं में सामान्यतः जीवाणुवीय (Bacterial) या कवकीय (Fungal mainly candidial) संक्रमण होते हैं। जिनके लिये उचित प्रतिजैविक औषधियों (Broad spectrum anbibiotic) तथा मूल रोग का उचित इलाज किया जाता है।
  • Balanocele -- शिश्न-मुण्डावरण-थैली
विदीर्ण शिश्नमुंडच्छद से शिश्नमुंड का बाहर निकालकर थैली की तरह होना।
  • Balanoplasty -- शिश्न-मुण्ड-संधानकर्म
शिश्नमुण्ड का संधानकर्म।
  • Balance’S Sign -- वैलेन्स चिह्न
प्लीहा विदार की पुष्टि में यह एक सहायक चिह्न है। रोगी की दक्षिण कुक्षि (right flank) में स्थान परिवर्ती मन्दस्वनता (shifting dullness) उपस्थित होगी, परन्तु वाम कुक्षि में मन्दस्वनता का स्थान परिवर्तन नहीं हो सकता, क्योंकि रक्त प्लीहा-वृक्क स्नायु (Splenorenalligament) के अन्दर ही इकट्ठा होता है और शीघ्र ही जम जाता है।
  • Ballooning -- वायुस्फायन
वायु के द्वारा शरीरज गुहा का आध्मान।
  • Bamboo Spine -- वंशवत् मेरुदण्ड
बांस की तरह मेरुदण्ड का चेष्टारहित होकर स्तब्ध होना।
  • Band -- पट्ट
पट्ट वह वस्तु है, जिससे शरीर के दो अंगों को बाँधते हैं
  • Bankart’S Operation -- वेंकर्ट शस्त्रकर्म
यह शस्त्रकर्म लगातार होने वाली स्कंध संधिच्युति (dislocation of the shoulder joint) में किया जाता है। इस शस्त्रकर्म (operation) द्वारा बैंकर्ट विक्षति (lesion) का सुधार या विरोहण (repair) किया जाता है।
  • Bankart’S Lesion -- बेंकर्ट विक्षति
इस अवस्था में स्कंध संधि का समपुट (capsule of the shoulder joint), अंसगर्त लेब्रम (labrum glenoidale) सहित, उलूखल (glenoid cavity) की अग्र परिसीमा (anterior margin) या अगले किनारे से दूर हट जाता है, जिससे बार-बार संधिसच्युति (dislocation) होती रहती है।
  • Banmboo Spine (X-Ray) -- कशेरुकाओं का आपस में जुड़कर (Fusion of vertebral) उनके बीच की गतिशीलता का अभाव हो जाना (Loss of intervertebral movements)
अतः मेरुदंड बांस की तरह चेष्टारहित होकर निम्न कशेरुकियों (Lower chordates) में उपस्थित नोटोकार्ड (Notochord) की तरह व्यवहार करने लगता है। किंतु मेरुरज्जु इस संयोजित संरचना के अंदर स्थित होने की वजह से संरचनात्मक रूप से तनाव में रहती है तथा मेरुतंत्रिकाओं में घर्षण व दबाव (Frictional & compressive neuropathy) से नुकसान पहुंचता है। यह विकृति प्रमुख रूप से हड्डियों की एक स्वप्रतिरोधी दशा (Auto immune condition) एकिलोजिंग स्पॉडिलाइटिस (Ankylosing spondylitis) में पायी जाती है। अस्थि शल्य – कर्म द्वारा उसका निवारण नहीं किया जा सकता है।
  • Barium Enema -- बेरियम ऐनिमा
यह एक विकिरणविज्ञान का अन्वेषण (radiological investigation) है, जिसमें एक्स-रे वीक्षण (visualization) के लिए गुद (anus) के जरिए विलेय बेरियम (soluble barium) को बृहदांत्र में प्रविष्ट कराया जाता है।
  • Barni’S Bag -- बार्नी थैली
एक विशिष्ट प्रकार जलपूरित रबर की थैली जो गर्भाशय मुख का विस्तार करने में प्रयुक्त होती है।
  • Barton’S Bandage -- बार्टन पट्टी
अधः हनु के लिए 8 की आकृति के समान बन्धन।
  • Basal Cell Carcinoma -- आधार कोशिका कार्सिनोमा या रोडेन्ट व्रण
यह धीरे-धीरे बढ़ने वाली दुर्दम विक्षति (malignant lesion) है, जो त्वचा के आधारीस्तर (सबसे नीचे की परत-basal layers) से उत्पन्न होती है। यह ज्यादा उम्र के लोगों के चेहरे पर और हाथों की बिना ढकी हुई सतह पर होती हुई देखी गई है। स्थानिक रूप में अर्बुद आक्रमणकारी होता है, किन्तु इसका दूर तक फैलाव (distant metastasis) बहुत कम होता है। इसका इलाज ऑपरेशन या ऐक्सरे चिकित्सा है।
  • Basophil Adenoma -- क्षाररागी ग्रन्थि अर्बुद
पीयूषिका ग्रन्थि की क्षाररागी कोशिकाओं से बना एक छोटा दर्दम अर्बुद जिसके कारण कॉर्टेसोन अधिक पैदा होता है। इसका इलाज शस्त्रकर्म है।
  • Bassini’S Operation -- बैसिनी शस्त्रकर्म
यह विरोहण (healing) की प्रतिष्ठित पद्धति है, जिसे हार्निया के रोगियों में किया जाता है जिसमें संयुक्त कंडरा (conjoined tendon) का सीवन वृषण रज्जु (spermatic cord) के पीछे वक्षण स्नायु (inguinal ligament) के साथ कर दिया जाता है। इस प्रकार का सीवन वक्षण नलिका (inguinal canal) की पश्च मिति (posterior wall) को मजबूत करने के लिए किया जाता है।
  • Bayonet Leg -- जंघास्थिस्थान-च्युति-जन्य जानुसन्धि-ग्रह
जंघस्थि-स्थानच्युति होने के पश्चात् होने वाला जानु संधि-ग्रह।
  • Bed/Fracture Bed -- भग्नास्थि-रोग-शय्या/कपाटशयन।
  • Bed-Pan -- शय्यामलपात्र
शय्या मल-पात्र जो प्लास्टिक या धातु के बने होते हैं। इनका इस्तेमाल उन रोगियों के लिये होता है जो बिस्तर से उठ नहीं सकते हैं जैसे अर्धपत्राघात रोगी (Hemiplegic patients) दोनों पैरों में अस्थिभंग युक्त रोगी (Fracture of both the lower limb) आदि।
  • Bedsore -- श्य्या-व्रण
एक ही स्थिति में दीर्घकाल तक पड़े रहने के कारण होने वाला व्रण। जो मरीज लगातार खाट पर पड़े रहते हैं, उनकी उन जगहों में, जिन पर पड़े रहने से बराबर दबाव पड़ता रहता है, व्रण बन जाता है। अक्सर यह व्रण त्रिक (कमर का पीछे का हिस्सा) नितम्ब (चूतड़ का भाग) तथा ऐड़ी पर बनता है। आमतौर पर इन व्रणों का कारण पुरानी कमजोर कर देने वाली बीमारियां (deblitating diseases) और तंत्रिका विकार (nervous disorders) हैं। इलाज की सबसे खास बात व्रण की रोकथाम है जो कारण को दूर करके की जा सकती है। इसके अलावा बार बार मरीज की स्थिति को बदलना अर्थात् करवट दिला देना तथा खाल (त्वचा) की देखभाल भी बहुत जरूरी है। मरीज को बहुत देर तक एक ही करवट लेटे रहने देना नहीं चाहिये। उसको थोड़ी देर बाद करवट बदलवा देनी चाहिये। साथ में पाउडर और स्पिरिट की मालिश कर देने से भी खाल की रक्षा हो जाती है और व्रण नहीं बन पाता।
  • Belemoid (Styliod Process) -- शंकु-आहार
अन्तः प्रकोष्ठास्थि के शंकु-आहार के सदृश।
  • Bell’S Palsy -- वेल्स अर्दित
चेहरे के पार्श्व में होने वाला घात (Paralysis) जो आनन तंत्रिका (Facial Nerve) को प्रभावित करता है। इस घात के अधिकांश मामलों में कारण अज्ञात (idiopathic) रहता है किंतु हरपीज सिंपलेक्स टाइप एक (Herpes simplex type-1) नामक विषाणुओं को अंतःतंत्रिका द्रव (endoneurial fluid) व पश्च कर्ण मांसपेशियों (post auricular muscle) में पाया गया है। अन्य कारण हैं इस तंत्रिका में किसी भी वजह से चोट (trauma) किसी अर्बुद के कारण तंत्रिका में दबाव। पूरी तंत्रिका या इसकी शाखायें प्रभावित हो सकती हैं। यह दशा साधारणतः एक पार्श्वीय (unilateral) होती है। यह दशा अचानक उत्पन्न होती है और अड़तालीस (48) घंटों के अंदर अधिकतम कमजोरी आ जाती है। इस कमजोरी के आने के एक या दो दिन पहले कानों के पीछे दर्द हो सकता है। स्वाद (tatse) लार (salivation) एक तरफ प्रभावित हो सकते हैं, इसके अलावा अतिकर्णता (Hyperacusis) भी हो सकती है। 80 फीसदी से ज्यादा रोगी कुछ सप्ताह या महीनों में पूर्णतया ठीक हो जाते हैं।
  • Bellocq’S Cannula -- बेलोक केन्यूला/प्रवेशिनी नाड़ी।
  • Bell’S Palsy -- बेलजात
मुख के किसी भी एक पार्श्व का एक प्रकार का घात जो आननतंत्रिका (फेशियल नर्ब) के घात के कारण होता है।
  • Benign Tumor -- सूदम्य अर्वुद
अर्बुदों की तुलनात्मक रूप से कम खतरनाक (हानिकारक) किस्म। ये अर्बुद शरीर के किसी भी अंग या ऊतक प्रभावित कर सकते हैं किंतु ये प्रारंभ से अंत तक अपने स्थान पर ही बने रहते हैं अर्थात इनका फैलाव दूरस्थ अंगों (metastasis) में नहीं होता। ये शरीर पर अपना प्रभाव अन्य निकटस्थ अंगों या पैतृक अंग पर दबाव (compression or pressure) की वजह से डालते हैं। सामान्य लक्षण दबाव महसूस होना तथा संबंधित हिस्से में दर्द होना। कभी कभी ये अंग की क्रियात्मकता को भी प्रभावित कर देते हैं। उदाहरण के लिये गर्भाशय में होने वाले सुदम्य अर्बुद (fibromyoma) की वजह से महिलाओं में बांझपन (infertility) भी हो सकती है। इनका नामकरण संबंधित ऊत्तक के अंत में ओमा (oma) लगाकर किया जाता है उदाहरण फाइब्रोमा (Fibroma) लाइपा (Lipoma) न्यूरोमा (Neuroma) कान्ड्रोमा (Chondroma) एडीनोमा (adenoma) आदि। इनका उपचार सामान्य तौर पर शल्य कर्म द्वारा किया जाता है।
  • Bennett’S Fracture -- बैनेट अस्थिभंग
इस अवस्था में पहली करम-अस्थि (first metacarpal bone) के आधार की तिरछी अस्थिभंग-च्युति (oblique fracture dislocation) होती है, जो निकटस्थ भाग तक फैलकर संधायक पृष्ठ (articular surface) को ग्रसित करती है। इसमें मणिबंध-करम-संधि (carpometacarpal joint) का जोड़ पूरी तरह अपनी जगह से नहीं खिसकता।
  • Bichat’S Fissure -- बीचाट-विदार
मूलाधार में अनुप्रस्थ विदार।
  • Bicuspid Valve (Mitral Valve) -- द्विपत्रकपाटिका
स्तनपायी जंतुओं (mammals including man) के में बायें अलिंद व निलयपट (atrioventricular septum) में उपस्थित छिद्र में स्थित कपाट जो दो वलनों की सहायता से बंद होता है। इस कपाट का मुख्य काम अलिंद से निलय में रक्त प्रवाह को निर्देशित करना तथा निलय के संकुचन (contractile phase) के दौरान रक्त को अलिंद में पुनः प्रवेशन को रोकना है। इस कपाट का खुलना व बंद होना एक विशेष हृदपेशी (papillary muscle) द्वारा नियंत्रित होता है। इस कपाट के सिंकुड़न (stenosis) से बायें अलिंद व फेफड़ों पर बुरा प्रभाव पड़ता है इसी प्रकार इसकी अकार्यत्मकता (regurgitation) से बायें निलय पर बुरा प्रभाव पड़ता है। इस कपाट की विकृतियों को शल्य कर्म द्वारा किया जा सकता है।
  • Bigelow’S Evacuator -- बिजेलो उत्सारक
यह एक विशिष्ट सिरिंज है, जो मूत्राशय से रक्त-स्कंदों (blood clots) का उत्सारण मूत्र-मार्ग कैथीटर के द्वारा चुम्बकीय चुषण दाब (magnetic suction pressure) उत्पन्न करके करती है। इस सिरिंज का उपयोग मूत्राशय अश्मरीदलन (Litholapasey) के बाद पिच्चित पथरियों को मूत्राशय से बाहर निकालने में भी किया जा सकता है।
  • Bilabe -- अश्मरी-निर्हरण-शलाका
अश्मरी-निर्हरणार्थ दीर्घ संकुचित शलाका।
  • Bile -- पित्त
यकृत से निकलने वाला पीले हरे रंग का गाढ़ा क्षारीय स्राव, जो पित्त-वाहिनी से पित्ताशय तथा ग्रहणी (duodenum) में पहुँचता है और पाचन में सहायता करता है।
  • Biliary Colic -- पैत्तिक शूल
इस अवस्था में दक्षिण अधः पर्शुक क्षेत्र (rt. hypochondrium) में रह रह कर पीड़ा (sporadic pain) होती है जो पीठ तथा दाहिने कन्धे की तरफ फैलती है। यह पीड़ा पित्ताश्मरी (biliary calculi) के कारण उत्पन्न होती है। यह पीड़ा कम या अधिक हो सकती है। इस रोग में शरीर का तापमान सामान्य रूप से सामानय होता है।
  • Biliary Calculus -- पित्ताशय अश्मर
पित्ताश्मरी पित्तवाहिनी नलिकाओं या पित्ताशय (Biliary system or gall bladder) में पत्थरीकृत ऊत्तकों (bite stones) पाये जाने की विकृति। रासायनिक रूप से ये कोलेस्ट्रॉल पित्तवर्णक (bile pigments) या कैल्सियम के बने हो सकते हैं। अधिक कोलेस्ट्राल युक्त भोजन का सेवन करने वाले मनुष्यों तथा प्रौढ़ व स्थूलकाय महिलाओं के इस विकृति से प्रभावित होने की संभावना ज्यादा होती है। ये पित्त नलिकाओं को अवरोधित (obstruct) कर सकती है जिससे निम्न लक्षण उत्पन्न हो सकते हैं पीलिया (Jaundice), सीने के दाहिने निचली ओर दर्द, उबकाई (Nausea), वमन (vomiting), अपच्यता (indigestion) आदि। निदान में संदेह होने या पत्थर की स्थिति का पता लगाने के लिये कोलैन्जियोग्राफी (Cholangiography) या अल्ट्रासाउंड की सहायता ली जा सकती ह। अल्ट्रासांउड (ultrasound) से पत्थर का आकार (size of stone) भी ज्ञात हो जाता है। कभी कभी ये पत्थर अपने आप (spontaneously) अवरोधित जगह से हटते हुये ग्रहणी तक चले जाते हैं किंतु अधिकांशतः इनके लिये शल्य कर्म की आवश्यकता पड़ती है। शल्यकर्म की गंभीरता व प्रकार पित्त संस्थान की दशा व पत्थरों की स्थिति व संख्या पर निर्भर करती है। आजकल खुले शल्यकर्म (open surgery) का इस्तेमाल कम हो रहा है। दूरबीन विधि से इलाज कुछ विशेष परिस्थितियों को छोड़कर ज्यादा कारगर होता है। दो प्रकार के दूरबीन शल्य-कर्म किये जाते हैं उदरीय (Laproscopic) व ई. आर. सी. पी. (Endoscupic retrograde cholangio pancreaticography) इनके अलावा पत्थरों को शरीर के बाहर से ध्वनि तरंगों को डालकर पित्त-नलिकाओं या पित्ताशय के अंदर ही तोड़ा जा सकता है इस विधि को लिथोट्रिप्सी (Lithotripsy) कहते हें।
  • Biliary Fistula -- पैत्तिक नालव्रण
पित्त-पथ (biliary tract) तथा बाहरी वातावरण के बीच अथवा पित्त पथ तथा जठरांत्र परथ के बीच संचार (communication) का होना। पहली वाली अवस्था को बाह्य नालव्रण (external fistula) तथा बाद वाली अवस्था को आभ्यन्तर नालव्रण (एक रास्ते का बन जाना) का इलाज न किया जाय, तो पित्त की चिकित्सा कारण के अनुसार की जाती है।
  • Biopsy -- जीव अति परीक्षा
शरीर से बाहर निकाले गये ऊत्तकों का सूक्ष्मदर्शी से परीक्षण करना। कुछ किस्म के रोगों के सही व प्रामाणिक निदान (correct & Authentic diagnosis) के लिये रोगग्रस्त अंग के ऊत्तकों को शरीर से बाहर निकाल कर सीधे देखना (Direct observation) आवश्यक हो जाता जाता है विशेषकर अर्बुदों के संदेह में। इन दशाओं में संबंधित रोगग्रस्त के अंग के कुछ भाग को निकाल लिया जाता है, इस दौरान यह ध्यान रखा जाता है कि निकाले गये भाग (Biopsy sample) में रोगज व स्वस्थ दोनों ऊत्तक हो जिससे परीक्षण के दौरान तुलना करने में आसानी हो। इन ऊत्तकों को शल्य कर्म (Surgical removal) या सुई द्वारा (FNAC Fine needle aspiration cytology) निकाला जा सकता है। दूसरी विधि (FNAC) पुटीय (Lystic) विकृतियों में विशेष तौर पर उपयोगी होती है। निकाले गये ऊत्तकों को तुरंत (freshly & as such) देखना उपयोगी नहीं होता बल्कि इनको सर्वप्रथम विशेष रूप से प्रयोगशालीय विधियों द्वारा तैयार (Prepared & fixed) किया जाता है। रोगों को पहचानने के लिये करवाये जाने वाले परीक्षणों में उत्तकीय परीक्षण को (Biopsy) अधिकांश मामलों में सबसे प्रमाणिक (Gold standard) माना जाता है।
  • Bisection -- द्विविभाजन
दो भागों में बाँटना।
  • Bistoury -- दीर्घ छुरिका/अर्ध चन्द्राकार छुरिका
अर्ध चन्द्राकार छुरिका जो विद्रधि के भेदन के लिये प्रयोग में लायी जाती है।
  • Bitelock -- दंतकृत-बंधन
मोम के बने हुए आधार-पात्र को धारण करने के लिए बाइटलोक का प्रयोग होता है, जिसमें दांतों को मुख की स्थिति के अनुसार बाहर रखा जा सकता है।
  • Bitot’S Spots -- विटोटस चिह्र
जीवसर व पृष्ठ के अभाव के कारण एक त्रिकोणाकार श्वेत बिंदु जो की श्वेतमंडल में श्वेत और कृष्ण मंडल सन्धि के पास पाया जाता है।
  • Black Out -- द्वाविक अंधता
मस्तिष्क (Brain) में अस्थायी रूप से रक्त प्रवाह में कमी आने पर क्षणिक तमोदर्शन (temporary blindness) व संज्ञानाश (Memontary loss of consciousness)। यह दशा साधारणतः किशोरों व वृद्धों में ज्यादा पाई जाती है। मस्तिकीय रक्त प्रवाह में कमी केवल क्षणिक होने से कोई स्थायी परिवर्तन नहीं आ पाता। यह लक्षण हृदय रोग (cardiac problem), कैरोटिड एथिरोएक्लीरोसिस (carotid atheroscterosis) निम्नरक्त शर्करता (hypoglycemia), कुछ किस्म के सिरदर्द (Migraine) या मिर्गी (epilepsy) में भी मिल सकता है अतः समस्त शरीर का परीक्षण (Examination of the whole body) आवश्यक होता है। इस दशा के बार-बार या ज्यादा देर तक होने पर सिर की विशेष जांचे (EEG Electro encephalography and CT scan) करवा लेनी चाहिये। साधारणतः ये स्वयं बंद हो जाते हैं। (Self limiting) या कारणानुसार उपचार किया जाता है।
  • Black Vomit -- कृष्ण-वर्ण-युक्त वमन/कृष्ण-वमन
पित ज्वर में अमाशन से निर्गत कृष्ण रक्त वमन एव रक्त मिश्रित वमन
  • Black Vomit Hematemesis -- कृष्णरक्त वमन
किसी भी कारण से कृष्ण रंग के रक्त का वमन होना। कृष्ण रंग का वमन रक्त में अम्लीय रसों का प्रभाव होना दर्शाता है अर्थात रक्त का किसी भी वजह से आमाशयी गुहा में प्रवेश व जठर रस के मिशअरण से रक्त का हीमोग्लोबिन नामक वर्णक (pigment) परिवर्तित होकर हीमैटिन (Hematin) में बदल जाता है। साधारणतः अतिअम्लता की (Hyperacidity) वजह से आमाशय के भीतरी आवरण (mucosal lining) में होने वाले घाव (gastric ulcer) से रक्त स्राव होता है जो परिवर्तित होकर कृष्ण रंग का जाता है। अन्य कारण हैं औषधियों विशेषतः दर्दनिवारक, की अधिक मात्रा, ऊपरी आहारनाल (oesophagus) से होने वाला रक्त स्राव जो आमाशय में पहुंच जाये आदि।
  • Bladder -- मूत्राशय वस्ति
वह थैली जिसमें मूत्र एकत्रित होता है। यह थैली सदृश संरचना उदर के निचले हिस्से में श्रोणि-मेखला के गुहीय भाग में स्थिति होता है। इसमें दोनों गुर्दों में बनने वाला मूत्र मूत्र वाहिकाओं के (ureters) माध्यम से आता है तथा वाहय मूत्र नलिका (urethra) के माध्यम से शरीर से बाहर निकाल दिया जाता है। मूत्राशय में लगभग 150 मि. लि. मूत्र एकत्रित हो जाने पर मूत्र त्याग की इच्छा (urge to micturate) होने लगती है। इस अवस्था में मूत्राशय के दीवार में स्थित मांसपेशियां संकुचित होती हैं और मूत्र शरीर के बाहर निकल जाता है। (2) पित्ताशय जिगर के पास स्थित थैली जिसमें जिगर में बनने वाला पित्त (bile) आकर एकत्रित है। पित्ताशय का संबंध नलिकाओं (billiary ducts) के माध्यम से ग्रहणी (Duodenum) से होता है। उचित संवेदना (proper stimulation) मिलने पर पित्ताशय की दीवार में स्थित मांसपेशियों में संकुचन होता है जिससे पित्त की अवकाशिका (lumen) में स्रावित हो जाता है।
  • Blair’S Incision -- ब्लेयर छेदन
यह कर्णपूर्व ग्रन्थि विद्रधि के निकास (drainage) की एक पद्धति है, जिसमें त्वचा तथा अधस्तक् उतक पर (subcutaneous tissue) लम्ब छेदन (vertical incision) किया जाता है, लेकिन विद्रधि के निकास के लिए कर्णपूर्व ग्रन्थि को ढ़कने वाली गभीर प्रावरणी (deep fascia) पर अनुप्रस्थ छेदन (transverse incision) किया जाता है। इस प्रकार आनन-तन्त्रिका (facial nerve) को क्षति (injury) से बचाया जा सकता है।
  • Blalock Taussig Operation -- ब्लेलॉक-टौसिंग शस्त्रकर्म
एक शस्त्रकर्म जो फैलो-चतुष्क (fallot tetralogy) में धमनी संकीर्णता (stenosis) में आराम पहुंचाने के लिये किया जाता है। इसमें अधोजत्रुक धमनी (subclavian artery) या फुप्फुस धमनी के साथ सम्मिलन (anastomosis) कर देते हैं, जिससे आक्सीजनीकरण के लिए फेफड़ों में अधिक रक्त पहुंच सकता है। विवृत हृद्-शस्त्रकर्म (open heart surgery) द्वारा फैलो चतुष्क के पूरी तरह से ठीक होने के कारण अब यह शस्त्रकर्म बहुत कम किया जाने लगा है।
  • Bland Diet -- अक्षोभक या सादा आहार
ऐसा आहार, जिसमें मिर्च मसाले आदि नहीं होते और जो क्षोभक (irritating) भी नहीं होता। यह आहार सामान्य रूप से पेप्टिक व्रण (peptic ulcer) के रोगियों की चिकित्सा में दिया जाता है।
  • Blastomerotomy -- प्रसुखंड विच्छेदन प्रसुखंड का विच्छेद करना। प्रसुखंडो (Blastomeres) का विच्छेदन।
निषेचित अण्ड (Zygote) के प्रारंभिक बारंबार विखण्डन (Early claevage divisions) से बनने वाली एक सदृश कोशिकाओं को प्रसुखंड (Blastomeres) कहते हैं। ये कोशिकायें भौतिक व गुणीय रूप से हमजात (Physically & Qualitatively identical) होती हैं अतः इन कोशिकाओं को अलग करके समरूप जीवों (identical twins) को प्राप्त किया जा सकता है। बाद के विखंडन में परिवर्तनीकरण (Differentiation) होने लगता है, जिनको अलग करने पर अलग अलग अंग, न कि पूरा जीव, प्राप्त होते हैं। प्रसुखंडो का अलगाव व अतिरिक्त वृद्धि (Separation & further development) प्राकृतिक या कृत्रिम रूप (Experimentally in laboratory) से हो सकता है।
  • Bleeding -- रक्तस्राव/रक्तस्रवण
शिरा का वेधन या भेदन होनेवाला रक्तस्राव; किसी भी कार से रक्त का स्राव। रक्त वाहिकाओं की दीवारों में हुए आघात में उनमें भरा हुआ रक्त बाहर बहने लगता है (extravastion of blood) क्योंकि वाहिकाओं के अंदर का दबाव वातावरणीय दबाव से ज्यादा होता है। धमनियों से होनो वाला रक्त-स्राव अत्यन्त तीव्र गीत से बाहर निकलता है (Spurty bleeding) जबकि शिराओं से रक्त रिसकर निकलता है (oozing of blood) क्योंकि धमनियों में रक्त दाब ज्यादा होता है। यही वजह है कि शल्य कर्म के दौरान धमनियों से होने वाले रक्त स्राव को रोकने के लिए एक विशेष चिमटी, जिसे धमनी सदंश (Artery forceps) कहते हैं, प्रयोग की जाती है। एक युवा मनुष्य के शरीर में लगभग 5 लीटर रक्त होता है जिसका लगभग 15 प्रतिशत तक हिस्सा शरीर से बाहर निकल जाने पर भी शरीर उसे झेल ले जाता है (Tolerated by dilutional compensation) यही वजह है कि एक यूनिट (लगभग 350 ml) रक्त का दान करने से शरीर पर कोई भी बुरा प्रभाव नहीं पड़ता है। 15 प्रतिशत से अधिक रक्तस्राव होने पर रक्ताघात (Haemorrhagic shock) की अवस्था आ जाती है। यह दशा साधारणतः वाहन दुर्घटनाओं (Automobile accidents) में देखने को मिलती है। वाह्य रक्त स्राव की तुलना में आंतरिक रक्त स्राव (internal bleeding) ज्यादा खतरनाक होती है क्योंकि इसमें रक्तस्राव की मात्रा का अंदाजा लगाना कठिन होता है। महत्वपूर्ण अंगों में रक्तस्राव (bleeding within organ) होने पर शल्यकर्म की आवश्यकता पड़ सकती है।
  • Bleeding Time -- रक्तस्राव काल
रक्तस्राव बंद होने में लगने वाला समय।
  • Blepharal -- वर्त्मगत
  • Blepharectomy -- वर्त्मोच्छेदन
शस्त्र-क्रिया के द्वारा वर्त्म का छेदन करना।
  • Blepharitis Ciliaris -- वर्त्म पक्ष्म-मूल-शोथ
वर्त्म पक्ष्म के मूल में होने वाला शोथ।
  • Blepharitis Parasitica -- परजीवोत्पन्न वर्त्मशोथ
किमि के कारण होने वाला वर्त्मशोथ-जिसे क्रिमिग्रन्थि कहते हैं।
  • Blepharitis -- वर्त्मशोथ
वर्त्म में होने वाला शोथ/सूजन। पलकों के स्वतंत्र किनारों (Free ending) बरौनियों (lash follicles) व पलकीय ग्रंथियों (Meibomian glands) के शोथ को वर्त्म-शोथ कहते हैं। इस दशा में पलकें लाल सूजनयुक्त जम जाती है। यह दो प्रमुख प्रकार का हो सकता है- घाव वाला (ulcerative blepharitis) जो जीवाणओं के संक्रमण से होता है। बिना घाव वाला (Non ulcerative blepharitis)सीबोरिया (Seborrhoea), सोरिएसिस (Psoriasis) या एलर्जी (Allergy) से हो सकता है।
  • Blepharoadenoma -- वर्त्मगत-ग्रन्थि-अर्बुद
वर्त्म ग्रन्थि में होने वाला अर्बुद।
  • Blepharoplegia -- वर्त्म-घात
वर्त्म में होने वाला घात। वर्त्म (पलकों) की मांसपेशियों में होने वाला घात। यह घात दोनों पलकों या एक पलक में हो सकता है। सातर्वी कपालीय तंत्रिका (The crainial N. facial) के प्रभावित होने पर दोनों पलकों में घात होता है जिससे आंखों बंद नहीं हो पाती हैं। तीसरी कपालीय तंत्रिका (3rd cranial nerve the oculomotor n.) या ग्रीवीय सिम्पैथेटिक ग्रंथि (cervical sympathatic ganglion) के प्रभावित होने पर केवल ऊपरी पलक में घात होता है जिसे टोसिस (Ptosis or Drooping of palpebra) कहते हैं।
  • Blepharotomy -- वर्त्मउच्छेद
वर्त्म का शस्त्रकर्म के द्वारा उच्छेदन करना।
  • Blind Fistula -- अंध नालव्रण
एक नालव्रण या फिस्चुला जो केवल एक ही छोर पर खुला होता है। यह शरीर के त्वचा-पृष्ठ पर (cutaneous surface) अथवा आभ्यन्तर (अन्दर के) श्लेष्मा-पृष्ठ (internal mucous surface) पर खुलता है।
  • Blind-Spot (Eye) -- अंध-बिंदु
कशेरुकायुक्त प्राणी की आंखों में प्रकाश प्रति असंवेदी दृष्टि पटल का भाग, जहां पर दृक्-तांत्रिका प्रवेश करती है।
  • Blockade -- अवरोधन
किसी रसायन द्वारा किसी अंग या ऊत्तक के विशेष कार्य (Specific action) को अवरोधित करना। उदाहरण के लिये कोलीनर्जिक अवरोधन (cholenergic blockade) जो कि एसिटिलकोलीन से उत्पन्न तंत्रिका संवेदनाओं (Nerve impulses) को अनैच्छिक तंत्रिका तंत्र (Autonomic nervous system) में जाने से रोकता है।
  • Block Ear -- कर्णानाह
कर्ण शोथ कर्णनाह आदि रोगों में कर्णविरोध की प्रतीति होती है।
  • Blocker -- रोधक
ऐसा समायन जो किसी विशेष क्रिया को रोके। ये रसायन कोशिकाओं के विशेष सुग्राही हिस्सों (receptors) को प्रभावित करते हैं, इन्हीं हिस्सों के नाम के आधार पर इन रसायनों का कार्योत्मक नामकरण (Functional nomenclature) भी किया जाता है। उदाहरण के लिये रक्त वाहिकाओं में पाये जाने वाले एड्रीनर्जिक रिसेप्टर के b किस्म (b-adrenergic blockage) के अवरोधन से रक्त दबाव कम हो जाता है।
  • Bloo -- रुधिर, रक्त
प्राणियों की वाहिकाओं और कोटरों में बहने वाला तरल संयोजी ऊतक, जो पोषण पदार्थ, आक्सीजन, हॉरमोन आदि पदार्थों को वर्णकयुक्त अंगों तक पहुँचाता है। इसके तरल भाग अर्थात् प्लाज्मा में उत्संगी वर्णकहीन अथवा दोनों प्रकार की कोशिकाएँ होती हैं। कशेरुकाओं का रुधिर हिमोग्लोबिन नामक श्वसन वर्णक के कारण लाल होता है।
  • Blood Bank -- रक्त-भंडार/रक्त-संग्रहालय
जिस स्थान पर रक्त का संग्रह होता है। एक किस्म की प्रयोगशाला व संग्रहण स्थल। रक्त का रक्त से अच्छा कोई विकल्प नहीं है तथा कुछ परिस्थितियों में जीवन रक्षा के लिये रक्ताधान (Blood transfusion) आवश्यक होता है किंतु इसके लिये वाह्य रक्त (Donated external blood) का रोगी के रक्त के समान ही होना चाहिये। कभी-कभी ऐसा रक्त यदि रिश्तेदारों के माध्यम से व्यवस्था की जाती है। तो मिल ही नहीं पाता और यदि मिल भी जाती है तो हो सकता है कि पर्याप्त न हो। इन्ही सब परोशानियों को दूर करने के लिये एक ऐसे स्थान का निर्माण किया गया जो अस्पतालों जांच करने के पश्चात् व अचित वातावरण में किया जाये। इन जांचों में रक्त प्रकार (Blood typing) व सक्रमणता (infectivity) की जांच प्रमुख है। रक्त को रैफ्रिजरेटर में रखते हैं तथा इसकी विद्युत व्यवस्था चौबीसों घंटे बनाये रखते हैं। साधारणतः रक्त को इक्कीस दिनों तक संग्रहित कर सकते हैं।
  • Blood Brain Barrier -- मस्तिष्क रक्त विशिष्ट अवरोधक
मस्तिष्क के एक संरचनात्मक – क्रियात्मक (Anatomical Physiologica) विशेषता। यह मस्तिष्क की केशिका वाहिकाओं की दीवारों (Walls of capillary vessels) और इनके चारों ओर स्थित ग्लायल कलाओं (Sorrounding Glial memb) से मिलकर बनी होती है। यह रोध (Barrier) केंद्रीय तंत्रिका तंत्र के मुख्य भाग (Parenchyma of centre nervous system) को रक्त से अलग करता है। यह रोध इस तरह कुछ औषधियों रसायनों, रेडियोएक्टिव आयनों व कुछ रोगाणुओं को रक्त से मस्तिष्क में प्रवेश को रोकता है। रक्त एक तरल संयोजी उत्तक है अतः यह दो भागों से मिलकर बना होता है तरल भाग जिसे प्लाज्मा कहते हैं तथा कोशिकीय भाग जिन्हें रुधिर कोशिकाएँ (Blood corpuscles) कहते हैं। रक्त का 55 प्रतिशत भाग प्लाज्मा तथा 45 प्रतिशत कोशिकाएं बनाती हैं। रक्त का सामान्य अनुपातिक संघटन निम्नलिखित सारणी में सूचीबद्ध है।

प्रोटीन 7% Albumins 54%; Globulins 38%.Fibrinogen 71%; other 1%

जल 91.5%
अन्य विलेय विद्युत संयोजी तत्व नियंत्रक पदार्थ, विटामिन्स, 1.5% उपसर्जी पदार्थ गौसीय तत्व रक्त
कोशिकीय भाग विंषाणु (platelets) 250,000-400000/mm3 (formed- श्वेताणु (Leukocytes) 5000-10000/mm3 elements) 45% लोहिताणु (Erythrocytes) 4.8-5.4 million/mm3
  • Blood Component -- रक्तघटक
रक्त में पाये जाने वाले विभिन्न तत्व।
  • Blood Corpuscles -- रुधिर-कोशिकाएँ
रुधिर-कोशिकाएँ
रुधिर कणिकओं रक्त का लगभग पैंतालिस फीसदी (45%) भाग बनाती हैं। ये कणिकायें तीन प्रमुख प्रकार की होती हैं लोहिताणु, शवेताणु व विषाणु। रुधिर कणिकाओं की विशेषताओं को निम्नलिखित सारणी में सूचीबद्ध किया गया है-
कोशिकाओं संख्या आकार उग्र कार्य
लोहिताणु 4-8 million/mm3 120 दिन आक्सीजन व कार्बन डाई
(erythrocytes) महिलाओं में आक्साइड का संवहन
5-4 million/mm3 (transport)
पुरुषों में
श्वेताणु 5000- 10000/mm3
(leukocytes)

दानेदार

(Granular Leukcytes) (Phagocytosis)
न्यूट्रोफिल 60-70 10-12 कुछ घंटों से अंतग्रहण द्वारा रोगाणुओं को इओसिनोफिल 2-4% 10-12 लेकर कुछ मारना, कुछ रसायनों का स्रावण
बेसोफिल 0.5.1% 8-10 दिनों तक उदाहरण हिस्टामिन सीरोटोनिन हिस्टामिन सीरोटोनिन इन्टरल्यूकिन, हिपेरिन आदि। प्रतिरक्षा क्रियाओं (immune responses) का संपादन।
दानेरहित
(Agranular leukocytes)
लिंफोसाइट्स 20-25% 7-15
मोनोसाइट्स 3-8% 14-19
विवाणु कणिकाएँ 250000- 2-4 5-9 दिन रक्त जमाव (Blood Cloting)
(Platelets) 40000/mm3
  • Blood Donor -- रक्त दाता
सैद्धान्तिक रूप से (By medical standard) प्रत्येक व्यक्ति रक्त दान नहीं कर सकता। इसके कुछ महत्वपूर्ण बिंदु निम्न हैं-

-दाता के रक्त में किसी भी किस्म के रोगाणु (eg. HIV, Hepatitis B etc) नहीं होने चाहिये। -दाता को किसी भी अन्य गंभीर बीमारी से ग्रसित नहीं होना चाहिए। प्रभावित नहीं होना चाहिये।

-अति वृद्ध व अवयस्कों से रक्तदान नहीं करवाना चाहिये।
-दाता ने तीन महीने के अंदर के कोई और रक्त-दान न किया हो।
-स्वैच्छिक रक्त दाताओं (voluntary donors) का रक्त ही लेना चाहिये।
-व्यवसायिक (Professional donors) का रक्त अत्यन्त विषम परिस्थितियों में ही लेना चाहिये।
  • Blood Group -- रुधिर वर्ग
प्रत्येक व्यक्ति का रक्त प्रत्येक को नहीं दिया जा सकता क्योंकि ऐसा करने पर ग्राही व्यक्ति में कुछ विशेष प्रतिरक्षी क्रियायें (immunological reaction) प्रारंभ हो जाती हैं जो ग्राही के लिये जानलेवा (Fatal) भी हो सकती हैं। इन प्रतिरक्षी क्रियाओं की वजह प्रत्येक व्यक्ति के रक्त में उपस्थित कुछ विशेष प्रोटीन का होना है। इन प्रोटीनों को सर्वप्रथम कार्ल लैंडस्टीनर नामक वैज्ञानिक ने ढूँढा था। इन प्रोटीनों को प्रमुखतः दो रूपों से/प्रकार में वर्गीकृत किया जाता है-ABO प्रकार (ABO type) Rh प्रकार (Rhtype)। दोनों प्रकार के रुधिर वर्गों में प्रोटीनों के दो उपवर्ग होते हैं- एंटीजन (antigen) जो लोहिताणुओं के सतह पर (Studded in plasma membrane of the RBCs) तथा एंटीबाडीज (antibodies) रक्त के तरल भाग प्लाज्मा में उपस्थित होता है। ये एंटीजन भी कई किस्म के होते हैं। जिनके आधार पर रुधिर वर्गों का नामकरण किया जाता है। रुधिर-आधार (Blood transfusion) करने से पूर्व रुधिर वर्ग की जांच अति आवश्यक है।
  • Blood Letting -- रक्त-मोक्षण
रक्त को रक्त वाहिकाओं से जांच या उपचार के लिये निकालना। चिकित्सीय निदान (clinical diagnosis) को सुनिश्चित (confirm) करने के लिये अधिकांश जांचों में (blood investigation) रक्त की एक छोटी मात्रा की आवश्यकता होती है। इन जांचों में साधारणतः एक्त के कोशिकीय भाग (blood corpuscles) या इसमें उपस्थित कुछ रसायनों की मात्रा की जांच की जाती है। साधारणतः शिराओं से रक्त निकाला जाता है किंतु धमनी के रक्त में आक्सीजन सांद्रता (partial pessure of oxygen) ज्ञात करने के लिये निकाला जाता है। कुछ परिस्थितियों में रक्त की एक निश्चित मात्रा निकाल लेने से लक्षणों में आराम मिलता है। उदाहरण के लिये अतिलोहिताणुता (Polycythaemia) नामक विकृति में रक्त निकालने से कुछ आराम मिलता है। रक्तदान में भी रक्त की एक निश्चित मात्रा निकाली जाती है।
  • Blood Plasma -- रक्त प्लाविका रुधिर प्लाज्मा
रक्त का तरल भाग जो लगभग 55% हिस्सा बनाता है। रक्त के विकेंद्रीकरण (ultracentrifugation) से कोशिकाओं व तरल भाग को अलग-अलग किया जा सकता है। इस तरल का रंग लगभग पीताभ (Straw-coloured) होता है। प्लाज्मा का लगभग 91.5% भाग जल व शेष 8.5% विलेय होता है। इन विलेय पदार्थों (Solutes) का भारानुसार अधिकांश हिस्सा लगभग 7%, प्रोटीन बनाते हैं। इन प्रोटीनों में से कुछ प्रकार के प्रोटीन शरीर के अन्य हिस्सों में भी पाये जाते हैं किंतु वे प्रोटीन जो केवल प्लाज्मा में ही पाये जाते हैं प्लाज्मा प्रोटीन कहलाते हैं। ये प्रोटीनरक्त का परासरणीय दबाव (osmotic pressure) बनाये रखते हैं जो शरीर के द्रवीय संतुलन (total body fluid balance) के लिये अति महत्वपूर्ण है। अधिकांश प्लाज्मा प्रोटीनों का निर्माण जिगर (Liver) में होता है। कुछ प्रमुख प्लाज्मा प्रोटीन हैं एल्बूमिन (Albumin) ग्लोब्यूलिन (Globulin) व फाइब्रिनोजन (Fibrinogen) आदि प्लाज्मा के अन्य विलेयों में हैं- उपसर्जी पदार्थ (यूरिया, यूरिक अम्ल क्रियेत्तिनीन, अमोनिया व बाइलीरुबिन) पोषक पदार्थ, विटामिन्स, नियंत्रक पदार्थ (जैसे एन्जाइम व अंतः स्रावी रसायन) गैसीय व विद्युत-संयोजी तत्व आदि।
  • Blood Platelets -- रक्त बिंबाणु
जिनकी रक्तस्राव को रोकने में विशेष भूमिका होती है। रक्त का वह कोशिकीय भाग (cellular fragment) जो रक्त के जमने में (blood cloting) में सहायता करता है और इस तरह रक्त स्रावण गति को कम करता है। प्रत्येक विंबाणु चकत्ती के आकार (disc shaped) होता है। जिसका व्यास 2-4m होता हैं, इसके कोशिकीय द्रव (gloplasm) में अनेक कणिकाएं (granules) होती हैं किंतु केंद्रक (nucleus) का अभाव होता है। रक्त में इनकी संख्या लगभग 2,50,000 – 4,00,000/mm3 होती है। इनका निर्माण अस्थि मज्जा (Bone-marrow) की मेगाकैरियोसाइट्स (Megakaryocytes) नामक कोशिकाओं के विखण्डन (Fragmentation) से होता है। इनकी कणिकाओं में ऐसे रसायन होते है जो बाहर निकलने पर रक्त को जमा देते हैं। इसके अलवा विंबाणु चोट खायी (Demaged) रक्त वाहिकाओं की भी मरम्मत (Repair) करती है। विंबाणुओं का जीवन छोटा होता है साधारणत; पाँच से नौ दिन। वृद्ध और मृत विंबाणु प्लीहा व जिगर द्वारा रक्त परिसंचरण से बाहर कर ली जाती हैं।
  • Blood Pressure -- रक्त दाब, रक्त चाप
रक्त वाहिकाओं की दीवारों में रक्त द्वारा आरोपित दबाव। इस दबाव का मुख्य निर्धारक (generator) हृदय की धड़कनशीलता (Pumping action) व रक्त का द्रवीय दाब (hydrostatic pressure) है। साधारणतः धमनियों के दाब को ही रक्त दाब कहते हैं। एक युवा मनुष्य की महाधमनी में संकुचनावस्था (Systolic phase) में रक्त दाब (aorta) 120 mm Hg तक तथा आरामावस्था (Diastolic phase) में 80 mm Hg तक होता है। रक्त-दाब, हृदय गति (Heart-rate) व प्रति धड़कन आयतन (stroke volume) के अनुसार परिवर्तित होता है। इसके अलावा परिसंचरित रक्त के आयतन के परिवर्तित होने पर भी रक्त-दाब परिवर्तित होता है। महाधमनी से अन्य छोटी धमनियों, केशिकाओं (capillaries) व शिराओं में रक्त-दबाव क्रमशः कम होता जाता है। शिराओं व धमनियों में दबाव के इस अंतर की वजह से ही कोशिकाओं से छनने की प्रक्रिया होती है तथा वाहिकाओं से पोषक पदार्थों, उत्सर्जी पदार्थों व गौसों का आदान-प्रदान संबंधित उत्तकों में होता है। सामान्य युवाओं में सिस्टोलिक रक्त-दाब 100- 140 mm Hg के बीच तथा डायस्टोलिक रक्त-दाब 60-90 mm Hg के। मध्य होना चाहिये। इस निर्धारित सीमा (Normal range) से ऊपर के रक्त दाब को उच्च रक्त चाप (Hypertension) तथा कम को निम्न रक्त चाप (Hypotension) कहते हैं। उच्चरक्त-चाप सामान्यतः वाहिकाओं के दीवारों के कड़े हो जाने से (Arterosclerosis) आरटीरियोस्कली रोसिस मानसिक तनाव से धूम्रपान से व अंतःस्रावी अनियंत्रण से होता है। निम्न रक्त-चाप सामान्यतः अत्याधिक रक्तस्राव (Cardiac problem), हृदयरोगों (Dehydration) या पानी की कमी से हो सकती है।
  • Blood Serum -- रक्तसीरम
रक्त के स्कंदन (clotting) के पश्चात प्राप्त होने वाला पीताभ द्रव। रक्त प्लाज्मा व सीरम में केवल स्कंदन सहायक प्रोटीन (clotting proteins) का अन्तर होता है। रक्त-स्कंदन के दौरान स्कंदन सहायक प्रोटीन स्कंदित भाग (blood-clot) में रह जाते हैं अतः सीरम में स्कंदन-सहायक प्रोटीनों का अभाव होता है। कुछ रक्त-जांचों (Blood investigations) में पूर्ण रक्त का नहीं बल्कि रक्त-सीरम का उपयोग किया जाता है क्योंकि ऐसी जांचों की सुग्राहिता (Senstivity & Specificity) में रक्त के अन्य अवयव बाधा डाल सकते हैं।
  • Blood Shot -- नेत्र रक्ताधिक्य
नेत्र में रक्त की अधिकता का होना।
  • Blood Shunting -- पार्श्व-पथीय-रक्तसंचार
हृदयरोग की एक अवस्था, जिसमें रक्त फुक्फुस में न जाकर शुद्ध रक्त में मिश्रित हो जाता है।
  • Blood Smear -- रक्तालेप
परीक्षणार्थ काँच पट्टिका पर रक्त का आलेप करना। रक्त की सूक्ष्मदर्शीय जांच के लिये कांच पट्टिका (Glass slide) पर रक्त का आलेप करना। इसके लिये रक्त की एक बूंद स्वच्छ व स्पष्ट (clean & transparant) कांच-पट्टिका में एक किनारे पर रखकर दूसरी कांच-पट्टिका के सिरे (end) की सहायता से समान मोटाई की परत (Homogenously thick layer) के रूप में फैला लेते हैं। इस आलेपन की सूक्ष्मदर्शीय स्पष्टता (Microscopic resolution) बढ़ाने के लिये इसको विशेष रसायनों की सहायता से रंजित (Stained) कर लेते हैं। ये रसायन रक्त के अलग-अलग हिस्सों को अलग-अलग रंगों में रंग देते हैं जिससे रक्ताणुओं को पहचानना (identification) आसान हो जाता है। साधारणतः लीशमैन स्टेन (leishmans stain) का प्रयोग किया जाता है। रक्तालेपन का प्रयोग रक्ताणुओं से संबंधित विकृतियों का पता लगाने में किया जाता है। इन जांचों में प्रुख हैं-संपूर्ण श्वेताणु संख्या (Total leukocyte count TLC), विभिन्नता श्वेताणु संख्या (Differential leukocyte count DLC) लोहिताणु संख्या (RBC count) विबाणु संख्या (Platelet count) सभी रक्ताणुओं के आकार व प्रकार का अध्ययन (General blood Picture-GBP) रक्त के परिजीवियों को देखना (Parasites eg. Malarial Parasite) रक्त कैंसर (Blood-cancer) के लिये देखना आदि।
  • Blood Sugar -- रक्तशर्करा, रक्त में उपस्थित शर्करा
रक्त शर्करा का साधारण अर्थ रक्त में ग्लूकोज की मात्रा से लिया जाता है। ग्लूकोज शरीर की कोशिकाओं के लिये वैश्विक ईंधन (universal fuel) की तरह काम करता है किंतु इसका स्रोत आहार नाल से अवशोषित भोजन है अतः अन्य पोषक पदार्थों की तरह यह भी रक्त-परिसंचरण की मदद से संपूर्ण शरीर की कोशिकाओं तक पहुंचाया जाता है। संपूर्ण शरीर की कोशिकाओं द्वारा इसका उपयोग होने के कारण इसकी तुरंत कमी होने की संभावना रहती है किंतु शरीर में इस प्रकार की व्यवस्था होती है कि उपापचयी अभिक्रियाओं (Interconverting metabolic procedures/reactions) की सहायता से अन्य शारीरिक रसायनों यथा प्रोटीन, ग्लाइकोजन व वसीय पदार्थों से ग्लूकोज का निर्माण (Gluconeogenesis) किया जा सकता है। इन अभिक्रियाओं का नियंत्रण विशेष अंतः स्रावी रसायनों (Endocrine Hormones) द्वारा होता है। यह नियंत्रण अत्यन्त दक्ष होने के बावजूद कभी-कभी अनियंत्रित हो जाता है। फलस्वरूप रक्त की शर्करा की मात्रा घट या बढ़ सकती है। रक्त शर्करा की अधिकता (Hyperglycemia) में कोशिकायें, इंसुलिन नामक अंतः स्रावी पदार्थ की कमी के कारण, रक्त शर्करा का उपयोग नही कर पाती। इस दशा को मधुमेह (Diabetes) कहते है तथा कोशिकायें ग्लूकोज के स्थान पर प्रोटीन या वसा का उपयोग ऊर्जा उत्पन्न करने के लिये करने लगती हैं फलस्वरूप शरीर का शिरा (wasting) होने लगती है तथा तरह-तरह के संक्रमण (infection) होने लगते हैं। रक्त शरकरा की कमी (Hypoglycemia) मुख्यतः भोजन की कमी या इंसुलिन की अधिकता से होती है। यह स्थिति अतिशर्करता की तुलना में ज्यादा खतरनाक है क्योंकि मस्तिष्क में शर्करा का कमी थोड़ी ही देर में घातक सिद्ध होती है। उच्चशर्करा का उपचार प्रेरक औषचियों (Oral hypoglycemic agents) की सहायता से इंसुलिन के स्रावण को बढ़ाकर या वाह्य इंसुलिन देकर किया जाता है। निम्न शर्करता का इलाज बाह्य शर्करा देकर किया जाता है।
  • Blood Transfusion -- रक्ताधान
रक्ताल्पता में सूचीवेध द्वारा रक्त की आपूर्ति करना। किसी भी किस्म की रक्ताल्पता (anaemia or loss of blood) में रोगी को रक्त की आपूर्ति करना। रक्त का रक्त का रक्त से बेहतर विकल्प अब तक ज्ञात नहीं है। पूरे शरीर में पोषक पदार्थों, आक्सीजन व अन्य महत्वपूर्ण पदार्थों का फैलाव (Distribution) तथा उत्सर्जी पदार्थों का एकत्रीकरण रक्त के माध्यम से ही होता है। अतः रक्त का उचित मात्रा में होना, शरीर के सुचारु रूप से कार्य करने के लिये अतिआवश्यक है। कुछ परिस्थितियों व विकृतियों में रक्त की मात्रा या गुणों में कमी आ जाती है अतः रक्ताधान आवश्यक होता है। कुछ प्रमुख दशायें ये हैं- दुर्घटनाओं विशेषकर मोटरवाहन (Automobile accidents), गंभीर व विस्तुत शल्य कर्म, अतिरक्ताल्पता (Severe anaemia), हीमोफिलिया, तीव्र मलेरिया (Severe Malaria) आदि। रक्ताघान के लिये वाह्य रक्त की यथोचित जांच (Necessary examination) करवा ली जाती हैं तथा आवश्यक मात्रा की गणना कर ली जाती है।
  • Blood Urea -- रक्त-यूरिया
1. रक्त में उपस्थित यूरिया।

2. प्रोटीन के अपचय से मलरूपी यूरिया का निर्माण होता है। यूरिया एक विषैला उत्सर्जी (excretory) पदार्थ है जिसका निर्माण प्रोटीन के अपचय (catabolism) से होता है। यह अपचय प्रमुखतः जिगर (Liver) में होता है। जिगर में बनने वाले यूरिया को रक्त में प्रवाहित कर किया जाता है। रक्त में उपस्थित यूरिया को गुर्दोद्वारा छानकर मूत्र के माध्यम से शरीर से बाहर निकाल दिया जाता है। स्पष्ट है शरीर में यूरिया की अधिकता (ureamia) दो प्रकार से हो सकती है पहला प्रोटीनों के अधिक विखंडन से, दूसरा उत्सर्जी तंत्र की विकृति से। साधारणतः दूसरा प्रकार ज्यादा पाया जाता है। उत्सर्जी तंत्र में विकृति किसी भी (Level) में हो सकती है उदाहरण गुर्दों में (Renal failure) मूत्र वाहिकाओं (urethra) मूत्राशय (Urinary bladder) या वाह्य मूत्र नलिका (urethra) में। यूरिया की अधिकता से रक्तगलन (Hemolysis) होने लगता है जिससे शरीर के अंदर ही रक्तस्राव (internal bleeding) होने लगती है समय पर उपचार न करने पर बेहोशी (uraemic coma) या मृत्यु भी हो सकती है। रक्त में यूरिया की सामान्य मात्रा 5-40mg/dl or 3.6-7. ommol/lit होती है (dl=deciiter=100ml, mmol-milli mol)*

  • Blood Vessels -- रक्त वाहिकायें
रक्त-वहन करने वाली सिरा अथवा धमनी। संपूर्ण शरीर में रक्त को परिसंचरित करने वाली नलिकाये तीन प्रकार की होती हैं धमनियां (arteries), शिरायें (veins) तथा केशिकायें। हृदय से निकलकर पूरे शरीर में जाने वाली वाहिकाओं को धमनियां कहते हैं, इनमें ऑक्सीजनयुक्त रक्त प्रवाहित होता है किंतु हृदय से फेफड़ों में जाने वाली धमनियों (Pulmonary arteries) में ऑक्सीजन विहीन रक्त प्रवाहित होता है। इसी तरह पूरे शरीर से हृदय में आने वाली वाहिकाओं को शिरायें कहते हैं; फुफ्फुसीय शिराओं (Pulmonary veins) के अतिरिक्त सभी में आक्सीजनविहीन अशुद्धरक्त प्रवाहित होता है। धमनियों में रक्त दबाव ज्यादा होता है अतः धमनियों की दीवारें शिराओं की दीवारों से ज्यादा मोटी होती है। शिराओं और धमनियों के बीच के वाहिका जाल को केशिकीय जाल (Capillary network) कहते हैं। धमनियों तथा शिराओं दोनों की दीवारों में तीन परते होती है आंतरिक (Tunica interna or endothelium) , मध्य (Tunica media), व वाह्य (Tunica extrna) धमनियों में शिराओं की तुलना में मध्य-परत (Tunica-media) ज्यादा मोटी होती है। जिससे धमनियों की दीवार ज्यादा मोटी होती है, केशिकाओं में एक परत (Endothelium) होती है जो कि क्षितिज (Fenestrated) होती है, जिससे रक्त के छनने में आसानी होती है।
  • Blood Warmer -- रक्त को उष्ण करने का यंत्र
यह दो प्रकार का हो सकता है चक्र रूप में (blood warming coil) या विद्युत उष्णक (Electric blood worm) पहले प्रकार में उष्णक एक चक्र रूपी (spiral or-coiled) नलिका की तरह होता है। इसे केवल एक बार इस्तेमाल किया जा सकता है। इसे लगभग 990F (37.60C) उष्ण पानी में डुबो देते हैं और रुधिर आधान थैली में उपस्थित रक्त को इससे बहने देते हैं। इसमें रक्त प्रवाह नियंत्रण की व्यवस्था होती है। लंबे रक्ताधार (Prolonged transfusion) के दौरान इस यंत्र को हर चौबीस घंटे में बदल देना चाहिये। दूसरे प्रकार के उष्णक में एक कोष्ठक (receptacle) होता है जिसमें विद्युत उष्णक (electic heater) व एक बार प्रयोग किये जाने वाला रक्त उष्णक थैली (disposable blood warming bag) होता है इसके अलावा एक थर्मामीटर भी होता है। इसमें भी रकत को 990F (37.60C) पर उष्ण करते हैं।

दो रक्त उष्णकों का प्रयोग उन दशाओं में किया जाता है जहां अत्यधिक रक्ताधान (Massive transfusion) की आवशयकता पड़ती है क्योंकि इन दशाओं में ठंडे रक्त का आधान करने से रोगी रक्ताघात (shock) की अवस्था में जा सकता है।

  • Boil -- फुन्सी
इस बीमारी में रोम-कूप (hair follicle) में तीव्र स्टेफ्लोकोकल संक्रमण हो जाता है, यानि बाल की जड़ में सूजन आ जाती है। जो लोग मधुमेह (Diabetes) बीमारी से पीड़ित हैं, उनके शरीर में अक्सर फुन्सियां निकल आया करती है। इस बीमारी में बाल की जडड में सख्त सूजन हो जाती है तथा छूने पर दर्द होता है। इसके इलाज में गरम सेक, दर्द को कम करने वाली दवाइयां, जीवाणुओं को मारने वाली दवाइयां (प्रतिजीवी औषधियां- (antibiotic) आ का सेवन किया जाता है। पूय पड़ जाने पर फुन्सी को चीर कर साफ कर दिया जाता है और जब तक ठीक नहीं होता; तब तक उसकी ड्रेसिंग करते रहते हैं।
  • Bone -- (अस्थि)
शरीर में उपस्थित दृढ़ उत्तक जिसमें पेशियां संलग्न होती हैं तथा जो शरीर को एक ढांचा (Framework) प्रदान करता है। पेशियों के संलग्न होने के कारण यह ढांचा व शरीर, संतुलित रूप से गति कर सकता है। अस्थियां दृढ़ संयोजी-उत्तकों (hard connective-tissue) का एक प्रमुख प्रकार हैं। दूसरा प्रमुख प्रकार उपास्थि हैं। दोनों प्रकार के दृढ़ उत्तकों का निर्माण, भ्रूण के मध्य स्तर (Embryonic mesoderm) से होता है। दृढ़ता प्रदान करने के अतिरिक्त अस्थियां, कैल्सियम व फास्फेट के चयापचय (Metabolism) में भी योगदान देती है। शरीर के अलग-अलग भाग की अस्थियों की मजबूती व आकार अलग-अलग होती है। एक सामान्य युवा के शरीर में लगभग 206 अस्थियां होती हैं। ये सभी अस्थियां एक-दूसरे से संधियों (Joints) की सहायता से जुड़ी होती हैं। स्थिति के आधार पर शरीर की समस्त अस्थियों को दो हिस्सों में बांटा जा सकता है अक्षीय (axial) कंकाल बनाने वाली तथा उपांगीय कंकाल (appendicular skeleton eg. bones of limbs) बनाने वाली अस्थियां। आकार के आधार पर अस्थियों को तीन भागों में बांटा जा सकता है- लंबी (Long bones) चपटी (Flat bones) व अनियमित (irregular)। इसके उदाहरण निम्न हैं- लंबी-उपांगीय अस्थियां, चपटी-स्टर्नम व कपालीय (skull bones); अनियमित-केरुकाये (vertbral)।
  • Bone-Age -- अस्थि-आयु
अस्थि की वास्तविक (chronological) आयु। अस्थियों का निर्माण उपास्थियों या त्वचा (Dermis) से होता है (chondral & dermal bones respectively)। दोनों ही दशाओं में अस्थि वृद्धि का एक केंद्र (Ossification center) अस्थिजनक उत्तक (ossifying tissue) में होता है। यह केंद्र तब तक सक्रिय रहता है जब तक कि अस्थि वृद्धि पूर्ण नहीं हो जाती। इस केंद्र की उत्पत्ति व विलोपन का समय लगभग निश्चित होता है। इसके अलावा अलग-अलग अस्थियों में यह केंद्र अलग-अलग समय पर उत्पन्न व विलोपित होता है। संबंधित अस्थि का एक्स-रे करने पर अस्थि-वृद्धि केंद्र का पता लगाया जा सकता है। पूर्ण वृद्धित (Mature) अस्थि तथा अस्थि वृद्धि-केंद्र दोनों ही एक्स-रे में किरण अपारदर्शक (radio-opaque) क्षेत्रों के रूप में आते हैं। जबकि अस्थिजनक उत्तक किरण पारदर्शक (radio-luscent) क्षेत्र के रूप में। एक्स- रे के माध्यम से अस्थि-वृद्धि केंद्रों की संख्याओं का भी पता लगाया जा सकता है। शरीर की सभी अस्थियों के अस्थि-वृद्धि केंद्र के उत्पन्न व विलोपन की एक मानक व प्रमाणिक सारणी उपलब्ध है जिससे तुलना करके किसी व्यक्ति की अस्थि-आयु और इस तरह उसकी शरीर-आयु का आंकलन किया जा सकता है। इस विधि का मुख्य इस्तेमाल फारेंसिक विज्ञान के क्षेत्र में किया जाता है।
  • Bone Cutting Forceps -- अस्थि कर्तन सदंश
एक संदंश या फॉरसेप्स जिसका उपयोग अस्थियों के विभाजन में किया जाता है।
  • Bone-Cyst -- अस्थिपुटी
अस्थियों में पायी जाने वाली पुटिया विकृति। यह एक कोष्ठीय (unilocular) या बहुकोष्ठीय (Multilocular) हो सकती है किंतु साधारणतः एक कोष्ठीय पुटियां ही पायी जाता है। सभी अस्थियों में से ये विकृतियां बाहुअस्थि (Humerus) में सर्वाधिक देखी गई है। इन विकृतियों का पता एक्स-रे के माध्यम से किया जा सकता है क्योंकि ये किरण-पारदर्शक (radio-luncent) होती हैं। अस्थियों में जिस जगह यह स्थित होती हैं वहां विकृतीय अस्थिभंग (Pathological fracture) होने की संभावना बहुत अधिक रहती है। अस्थिभंग होने की दशा में प्रभावित हिस्से को काटकर उसकी जगह हड्डी का एक नया टुकड़ा आरोपित (Bone-grafting) कर दी जाती है।
  • Bone Forceps -- अस्थि संदंश
एक संदंश या फॉरसेप्स जिसका उपयोग अस्थि को पकड़ने में किया जाता है।
  • Bone Graft -- अस्थि-निरोप
अस्थि का निरोपण या प्रत्यारोपण में प्रयुक्त अस्थि-रोप।
  • Bonelet -- क्षुद्रास्थि
शरीर में स्थित क्षुद्र/लघु अस्थि।
  • Bone-Marrow -- अस्थि-मज्जा
अस्थियों के बीच में तथा अस्थि सिरों (epiphysis) के छिद्रित भाग (cancellous bone) में पाये जाने वाला एक विशेषीकृत मुलायम उत्तक (Specialized soft-tissue) यह उत्तक रक्ताणुओं (Blood corpuscles) के निर्माण व वृद्धि (Manufacture & Maturation) के लिये अतिआवश्यक होता है। यह दो किस्म का होत है- पीली- मज्जा (yellow-marrow) जो कि वसीय (Fatty) होती है तथा युवाओं के सिरों पर स्थित क्षिद्रित अस्थि (cancellous bone of epiphysis) में पायी जाती है। लाल-मज्जा (Red-marrow) जो कि नवजात शिशुओं और बच्चों (infants & childrens) की कई अस्थियों में तथा युवाओं के अस्थियों के सिरों के स्पंजी भाग (spongy bone of the proximal epiphyses) में होती हैं- युवाओं में निम्न अस्थियों में लाल-मज्जा पायी जाती है- बाहुअस्थि (Humerus), जंधास्थि (Femmur), स्टर्नम पसलियों (Ribs) व कशेरुकायें (vertebrae)।
  • Bone-Marrow Transplant -- रक्त-मज्जा प्रत्यारोपण
शरीर की सभी कोशिकाओं में पोषक पदर्थों को पहुंचाने के लिये तथा उनसे उत्सर्जी पदार्थों के ग्रहण के लिये रक्त अति आवश्यक है इस रक्त का निर्माण अस्थि-मज्जा में होता है। स्पष्ट है कि रक्त-संबंधी कुछ विकृतियों का कारण रक्त-मज्जा में अनियमितता हो सकती है। यदि इन विकृतियों को साधारण तरीके से ठीक नहीं किया जा सकता है तो रोगी की दशा क्रमशः गभीर होती जाती है, इन रोगियों में मज्जा-प्रतयारोपण करके उनके जीवन को बचाया या बढ़ाया जा सकता है। ऐसी कुछ दशायें हैं- अकोशिकीय रक्ताल्पता (aplastic anaemia) रक्त कैंसर (Leukemia), प्रतिरक्षा कमी (immuno deficiency syndromes), तीव्र किरण प्रभाविता (acute radiation syndrome)। इन दशाओं के उपचार के लिये योग्य दाता (Eligible bone-marrow donor) से मज्जा को सुई द्वारा खींचकर (by aspiration), रोगी के शरीर में अंतः शिरीय तरीके से (by intravenous route) प्रवेशित करा दिया जाता है। प्रत्येक व्यक्ति मज्जा-दान नहीं कर सकता है क्योंकि प्रत्येक व्यक्ति का प्रतिरक्षा संघटन (Immunological composition) बिल्कुल अलग व विशिष्ट (Unique & specific) होता है तथा अपने से मिन्न कोशिका के संपर्क में आने पर वाह्य-कोशिका को नष्ट कर देता है। अतः मज्जा दान से पहले दाता का प्रतिरक्षा जांच (Immuno-typing) करवा कर ग्राहक (recepients) से मिलान (cross-matching) करवा लिया जाता है। आदर्श-मिलान (complete similarity) केवल समान – जुड़वां व्यक्तियों (identical-twins) में ही संभव है अतः साधारणतः अधिकतम मिलान की दशा में मज्जा का प्रत्यारोपण प्रतिरक्षा शामक औषधियों (Immune suppressant medicines eg. cortico steroids, Azathoiprine etc.) की उपस्थित में कर दिया जाता है। इन मरीजों की नियमित रूप से जांच (Regular follow-up) अति आवश्यक होती है।
  • Bony-Crepitus -- अस्थि-करकर
:(1) भंग या टूटी अस्थि के टुकड़ों के आपस में रगड़ने पर निकलने वाली ध्वनि। अस्थि-संबंधी-परीक्षण (orthopedic examination) बिना इस लक्षण को दर्शाने वाले तरीके को किये (Methods eliciting this sign) हुये अपूर्ण माना जाता है। उपचारित अस्थिभंग (treated fracture) में इस लक्षण का पाया जाना हड्डी के सिरों में जुड़ान के अभाव (delayed) को दर्शाता है।
(2) वृद्धावस्था संबंधी गठिया (osteoarthritis) में भी हड्डियों के जोड़ों के अंदर उपस्थित सिरों (articular ends of uniting bones) के बीच रगड़न उत्पनन हो जाती है इसका कारण संघीय द्रव (synovial fluids) की कमी होना है। गठिया में होने वाला दर्द इस भाग में स्वतंत्र तंत्रिका सिरों (Free-Nerve endings) के उत्तेजन (Stimulation) से होता है। अस्थि परीक्षण के दौरान संबंधित संधि के ऊपर एक हाथ को रखकर तथा दूसरे हाथ से अंग को चलाकर (on passively moving the part) उस संधि में इस लक्षण का पता लगाया जा सकता है।
  • Bougie -- शलाका या बूजी
धातु या रबर (gum elastic) का बना एक यंतर, जो मूत्रभार्ग संकीर्णता (stricture of urethra) की चिकित्सा में मूत्रमार्ग के विस्फारण (dilatation) या चौड़ा करने में प्रयुक्त होता है। बूजी या शलाका कई आकार की होती है और इसको इंग्लिश (लिस्टर) या फ्रेंच (वलटन) मापनी (scales) में अंशाकित (graduated) किया जा सकता है। विशिष्ट प्रकार की बूजी, जैसे ऋजु शलाका या बूजी (straight bougie) शिश्न संकीर्णताओं (penile stricture) के लिये तथा सूत्रकार शलाका (filifrom bougie) अधिक तंग या अलंघय संकीर्णताओं (tight or impassable strictures) के लिये प्रयुक्त होती है।
  • Bouginage -- बूजी-प्रवेसन, शलाका-प्रवेशन
मूत्रमार्ग, मलाशय आदि रचनाओं के विस्फारण के लिये बूजी या शलाका का प्रवेश करना।
  • Bow Leg (Tibia Varum) -- धनुर्जंघा अन्तर्नत, अन्तर्जंघिका
इस रोग में रोगी की टांगे बाहर की तरफ मुड़ जाती हैं। ऐसी अवस्था में इसे अज्ञातहेतुक (idiopathic) कहा जाता है। रिकेट्स में भी कभी-कभी यह रोग देखने को लता है। हड्डियों के मुड़ने के कारण घुटनों तथा टखनों के जोड़ों (knee and ankle joint) को ठीक प्रकार से घुमाया नहीं जा सकता। अस्थि-संधि-शोथ (osteoarthritis) अर्थात् हड्डी और जोड़ में सूजन हो जाने की सम्भावना भी रहती है। इसके इलाज में टांगों के टेढ़ेपन से पैदा हुई विरूपता (deformity) को दूर किया जाता है।
  • Bow Man’S Capsule -- सर्वमनस केपसूल
:(1) कशेरुकी प्राणियों के युवा में स्थित वृक्क नलिका (Nephron) का प्रारंभिक दोहरी भित्ति वाला प्याले जैसा भाग। इस संपुट में एक कुंडलित केशिकागुच्छ होता (Glomerulus) है। ये दोनों मिलकर मैल्पीघी काय (Malpighian body) बनाते हैं। मैलपीजीयान काय गुर्दों के बाहरी (cortical) भाग में स्थित होते हैं। प्रत्येक संपुट की बाहरी परत (Parietal layer) मोटी तथा आंतरिक परत (Parietal layer) पतली व छिद्रिल कोशिकाओं (fenestrated cells) की बनी होती है। इस कोशिकाओं को पोडोसाइट्स कहते है क्योंकि इनके कोशिकीय प्रवर्ध (cellular appendanges) केशिकागुच्छ की केशिकाओं में छनित द्रव (Glomerular Filtrate) बिना किसी बाधा के वृक्क नलिका में प्रवेशित कर जाता है। ग्लोमेरुलोनेफ्राइटिस (Glomrulonephritis) नामक व्याधि में ये संपुट भी प्रभावित होते हैं।
(2) कशेरुकाधारी प्राणियों के वृक्क-नलिका का प्रारंभिक दोहरी भित्ति वाला फूला हुआ प्याले-जैसा भाग। प्रत्येक संपुट में एक कुंडलित केशिकागुच्छ (glomerulus) होता है। ये दोनों मिलकर मैलपीजी काय बनाते हैं। Malpighian body (मैलपीजी काय)।
  • Brain -- मस्तिष्क
:(1) प्राणियों में केन्द्रीय तंत्रिका तंत्र का प्रमुख भाग, जो शिर में संवेदी अंगों में एकत्र होता है। यह शरीर की प्रतिक्रियाओं का विभिन्न प्रकार से समन्वय करता है।
(2) मस्तिष्क जीवों का विकास (Evolution) वास्तव में दिमाग का विकास ही है क्योंकि अमीबा से लेकर मानव तक के नियंत्रण तंत्र की तुलना करने पर सर्वाधिक विकास दिमाग का ही प्रतीत होता है। यह स्वाभाविक भी है क्योंकि जीव-संधर्ब (struggle of existence) द्वारा निर्धारित योग्यतम की उत्तरजीविता (Survival of the fittest) के लिये प्रयोग किये जाने दैनिक अंगों (Somatic body parts) यथा हाथ पैर, दांत, सींग आदि का नियंत्रण अंततः (ultimately) दिमाग के पास ही होता है। यह आश्चर्य की बात नहीं है कि जिस प्रकार (Metazoa) में कोशिकाओं के बीच-कार्य बंटवारा (Division of labour) होता है उसी प्रकार उच्च विकसित प्राणियों का मस्तिष्क भी अलग-अलग कार्य के लिये अलग-अलग विशेषीकृत भागों में बंटा होता है। मस्तिष्क की संरचनात्मक व कार्यात्मक जटिलता एक घनात्मक फीडबैक (Positive feedback) क्रिया समान प्रतीत होती है ज्यादा और ज्यादा चुनौतियां मिलने पर यह जटिल से जटिलता होता जाता है यह मानव पर भी लागू होता है और यही वजह कि मानवविज्ञानियों ने भविष्य के मानव की (Homeo-futuralis) ऐसी संकल्पना की है जिसमें हाथ पैर व धड़ की अवनति होगी किंतु सिर (या कपात) और बड़ा हो जायेगा। म्तिष्क केंद्रीय तंत्रिका तंत्र (central nervous system) का प्रमुख भाग बनाता है तथा शरीर के कपालीय हिस्से में सुरक्षित व आवरित रहता है। मूलतः यटे ये संवेदी अंगों से संवेनाये एकत्र करता है तथा संवेदनाओं की प्रकृति व तीव्रता के अनुसार शरीर की दैहिक प्रतिक्रियाओं का विभिन्न प्रकार से नियंत्रण करता है। विकसित प्राणियों में संवेदना ग्रहण करने के लिये तथा नियंत्रण के लिये मस्तिष्क के निकटस्थ किंतु अलग भाग होते हैं। स्पष्ट है कि मस्तिष्क में विशेषीकृत संवेदनाओं से सीधे संबंधित कई भाग होते हैं व इसी प्रकार नियंत्रण वाले भी कई भाग होते हैं। भ्रिणिक (embrgologically) रूप से मस्तिष्क को निम्न भागों से मिलकर बना हुआ मानते हैं- अग्रमस्तिष्क (Prosencephalon or forebrain) मध्यमस्तिष्क (Mesencephalon or Mid brain) व अंत्यमस्तिष्क (Rhombencephalon or hind brain) अग्रमस्तिष्क स्वयं दो भागों को मिलकर बना होता है डायनसिफेलान (Diencephalon) व (Telencephalon) डायनसिफेलान के प्रमुख भाग थैलेमस व हाइपोथैलेमस (Thalamus & hypothalamus) हैं तथा टीलेनसिफेलान के दो प्रमस्तिष्क गोलार्द्ध (cerebral hemisphere) हैं। अंतमस्तिष्क भी दो भागों को मिलकर बना होता है- (Myelencephalon) और अनुमस्तिष्क (cerebellum) युवा मनुष्य के मस्तिष्क में लगभग (100 billion) तंत्रिका कोशिकायें (Neuron) होती हैं और यह शरीर के सबसे बड़े अंगों में से एक है। इसका भार लगभग 1300 ग्राम होता है। यह मशरुम के आकार का होता है और इसको सामान्य रूप से चार प्रमुख भागों से बना हुआ मान, सकते हैं- (Brain Stem), (Diencephalon)। प्रमस्तिष्क (cerebrum) व अनुमस्तिष्क (cerebellum)। ब्रेन-स्टेम स्वयं (Medulla oblongata Pons or Midbrain) से मिलकर बना होता है। डायसिफेलान ब्रेन-स्टेम के ऊपर होता है तथा इसके ऊपर प्रमस्तिष्क फैला होता है। प्रमस्तिष्क के नीचे व व्रेन-स्टेम के पीछे अनुमस्तिष्क होता है। जन्म के बाद, मस्तिष्क में होने वाली वृद्धि मुख्यतः कोशिकाओं के आकार में वृद्धि से व (Neuroglia) की संख्या व आकार वृद्धि से होती है। मस्तिष्क कपालीय स्थियों तथा मस्तिकीय झिल्लियों (Meninges) द्वारा सुरक्षित होता है। आंतरिक रूप से इसमें दो प्रमुख भाग होते है धूसर (Gray matter) जिसमें तंत्रिका कोशायों का प्रमुख भाग (cell body) होती हैं तथा श्वेत भाग (white matter) जिसमें कोशिकाओं के तंतुवीय भाग (Fibrillar Portion) रहता है जो तंत्रिकायें (Nerve) व (tracts) बनाता है। इन के श्वेत होने का कारण मायलिन का आवरण है।
  • Brai Abscess -- मस्तिष्क-विद्रधि
मस्तिष्क में होने वाला विद्रधि।
  • Brain Oedema -- मस्तिष्क-शोथ
मस्तिष्क में होने वाला शोथ।
  • Branchral Cyst -- ब्रैकियल -पुटी
यह एक जन्मजात (congenital) पुटी है, जो दूसरे बैंकियल विदर (branchial cleft) से निंकलती है और 20 से 21 वर्ष की आयु में स्पष्ट हो जाती है, जबकि वह धीरे-धीरे बढ़ने लगती है। यह आमतौर पर निचले जबड़े (अधोहनु-mandible) के कोण के नीचे तथा पीछे की तरफ रहती है और उरोजत्रुक-कर्ण मूलिका पेशी (sternocleido mastoid muscle) के ऊपरी 1/3 भाग के सामने के किनारे (अग्र धारा) के नीचे से बाहर को निकली रहती है। इस पुटी में एक तरल होता है। जो यह यक्ष्म (T.B.) के पूय (pus-पीप) के सामने होता है, लेकिन इस तरल में कोलस्ट्रोल क्रिस्टल और उपकला ऊतक (epithelial cells) होते हैं। शस्त्रकर्म द्वारा इस पुटी को काटकर निकाल (उच्छेदन-excision) दिया जाता है, अन्यथा संक्रमण की संभावना होती है।
  • Branchial Fistula -- व्रेंकियल नालव्रण
यह एक जन्मजात नालव्रण है, जो एक तरफ या दोनों तरफ (एक पार्श्विक या द्विपार्श्विक) हो सकता है और शायद लगातार रहने वाले दूसरे ब्रेंकियल विदर का स्थान ले सकता है: नालव्रण का बाहरी द्वार उरोजत्रुककर्णमूलिका (sternocleido mastoideus) पेशी की अग्रधारा के आस-पास होता है और यह अंधा-पथ (blind tract) ग्रसनी (pharynx) की पार्श्व-भित्ति तक फैला रहता है। कभी-कभी यह द्वारा ट्रोंसिली स्तम्भ के सामने के पृष्ठ पर मिलता है। रेडियो-अपार्य पदार्थ (radiopaque material) का इंजेक्शन देकर इस पथ को एक्स-रे के द्वारा देखा जा सकता है। रोगी श्लेज़्म आस्त्राव (mucous discharge) के लगातार निकलने की शिकायत करता है। कभी कभी ब्रैकियल पुटी के फट जाने (rupture) या संक्रमण (infection) के बाद ब्रैंकियल नालव्रण बन जाता है। इस रोग की चिकित्सा शस्त्रकर्म उच्छेदन (surgical excision) द्वारा की जाती है। यदि उच्छेदन पूरी तरह न हो तो इस नालव्रण के फिर से बन जाने की सम्भावना होती है।
  • Brawny Arm -- दृढ़ीभूत बाहु
कक्षा-(Axilla) की लसीका नलिकाओं में रुकावट (कक्षा लसीका वाहिका अवरोध) की वजह से बाहु से मूजन का आ जाना। यह सूजन कभी-कभी स्तन के कैंसर के इलाज के बाद भी हो जाती है और फाइलेरिया रोग में भी होती हुई देखी गई है। इस रोग में संरक्षी चिकित्सा (Conservative treatment) से ही अधिकतम लाभ होता है।
  • Braxton-Hicks Contraction -- ब्राक्सटन हिक्ससंकोच
गर्भावस्था में गर्भाशय का अनियमित वेदना रहित संकोच जो क्रमिक गर्भ-वृद्धि के साथ-साथ तीव्र और जल्दी जल्दी होने लगता है। जिसका माता को अनुभव होने लगता है परन्तु गर्भाशय मुख विस्तृत नहीं होता है।
  • Break Through Bleeding -- कालपूर्व रक्तस्राव
समय के पूर्व होने वाला रक्तस्राव।
  • Breast Abscess -- स्तन-विद्रधि
यह फोड़ा प्रायः दूध पिलाने वाली औरतों की छातियों में होता है। बीमारी के कीड़े आमतौर पर चूचुक (nipple) की चोट से एक जगह से दूसरी जगह पहुंचते हैं। छातियों (स्तनों) में सूजन आ जाती है और बार-बार तेज बुखार हो जाता है। सूजन की वजह से दर्द होता है और बाद में दूसरी बीमारियों के चिह्र भी पैदा हो जाते हैं। स्तन-ऊतकों (tissues) में आगे चलकर और बीमारियां न हों, इसलिए जल्दी ही पीप को निकालना जरूरी है। यदि चिकित्सा ठीक तरह से न की जाए, तो फोड़ा पुराना बन जाता है और दूसरी तकलीफें पैदा कर सकता है।
  • Breast Bone -- वक्ष-अस्थि/उरोस्थि
वक्ष में स्थिति अस्थि, जिसके दोनों ओर पार्शुका स्थित होती है।
  • Breatholyzer -- श्वास वायु विश्लेषक
श्वास में निष्कासित वायु का विश्ळेषण करने वाला यंत्र।
  • Brittle Bones -- भंगुर अस्थियाँ
एक परिवर्धी विकार, (developmental disorder) जिसमें हड्डियाँ बहुत अधिक भंगुर (टूटने वाली) होती जाती हैं। परिणामस्वरूप छोटी-छोटी चोटों के लगने से हड्डियाँ में बहुत से भंग हो जाते हैं, जिससे विरूपता हो जाती है। एक्स-रे में हड्डियाँ अस्थि सुज़िरता से ग्रस्त (osteoporosis), पतली तथा झुकी हुई दिखाई देती हैं।
  • Brodie’S Abscess -- ब्रोडी विद्रधि
यह अस्थि मज्जा में कड़ी सी गुहा (sclerosed cavity) है, जो स्टेफिलोकॉक्स संक्रमण के बाद बनती है। आमतौर पर यह गुहा अन्तर्जंपास्थि (tibia) के ऊर्ध्वांत या ऊर्वस्थि के निम्नांत पर होती है। इसकी चिकित्सा आखुरण (curetage) है।
  • Bronchiectasis -- श्वासनलिका विस्फार/श्वसनिका विस्फार
श्वासनलिका का विस्फारित जन्य विकार जिसमें विस्फारित प्रदेश में श्लेष्मा रुक जाता है एवं पूय के कारण पीत हरित एवं दुर्गन्ध युक्त हो जाता है। श्लेष्मा-निष्ठीवन बहुत कष्ट के साथ होत है।
  • Bronchiolitis -- श्वसनीय-शोथ
श्वसनीय में पाये जाने वाला शोथ।
  • Bronchiospasm -- श्वसनिका-संकोच
श्वसन-नलिका में संकोच, जिसके कारण रोगी को उच्छवास में बहुत कठिनाई होती है।
  • Bronchoesophagoscopy -- श्वासान्ननलिका-वीक्षण-यंत्र
श्वासनलियों एवं ग्रास-नली का यन्त्र द्वारा परीक्षण।
  • Bronchogram -- श्वसन-चित्रण
फेफड़ों तथा श्वास-नलियों का एक्स-रे-चित्र।
  • Bronchography -- श्वसनचित्रीकरण
ऐक्स-रे द्वारा श्वसनी वृक्ष (bronchial tree) चित्रण, जो श्वसनी में अपारदर्शी माध्यम (opaque medium) डालकर (installation) किया जा है।
  • Broncholithiasis -- श्वसनी-अश्मरीयता
श्वसनी के अन्दर पथरी (calculi) का बन जाना।
  • Bronchoplasty -- श्वसनी विरोहण
श्वासनली में उत्सन्न दोष को शल्य क्रिया द्वारा ठीक करना।
  • Bronchorhagia -- श्वसनी-रक्त-स्राव
श्वसनी (bronchus) से रक्त-स्राव (haemorrhage) का होना।
  • Bronchoscope -- श्वसनीदर्शी
एक यंत्र जिससे श्वसनी के भीतर के भाग को देखा जाता है।
  • Bronchotomy -- श्वसनीछेदन
शस्त्रकर्म द्वारा श्वसनी का छेदन करना जो सामन्य रूप से अन्तः शल्य (foreign body) को निकालने के लिये किया जाता है।
  • Bubonocele -- अपूर्ण वंक्षण हर्निया
अपूर्ण तिर्यक वक्षण हर्निया (indirect inguinal hernia) जो वंक्षण नलिका (inguinal canal) तक ही सीमित रहती है। यह पूरी हर्निया नहीं है तथा जांघ और पेट के जोड़ पर होता है।
  • Buccal Cavity (Mouth Cavity) -- मुख-गाहर, मुख-गुहिका
ग्रसनी तक फैला हुआ मुख के अंदर का अवकाश/कशेरुकीयों में इसके भीतर दांत, जिह्वा आदि अंग होते हैं।
  • Buccal Gland -- मुख-ग्रंथि
:(1) श्लेष्म झिल्ली की द्राक्षगुच्छ-जैसी छोटी श्लेष्म ग्रंथि, जो अंतः कपोल को स्तर बनाती है।
(2) कपोलिका (Buccinator) पेशी के निकट स्थित लसिका ग्रंथियों में से एक ग्रंथि।
  • Bucnemia -- श्लीपद/श्लीपदवत् पादशोथ
अधः पाद प्रदेश में होने वाल शोथ।
  • Bulldog Clamp -- बुलडॉग संदंश
एक अनभिघाती (atraumatic) संदंश जिसका उपयोग रक्त-वाहिकाओं का सम्मिलन (anastomosis) करते समय धमनी के कटे हुए सिरे को पकड़ने में किया जाता है।
  • Bullet Forceps -- गोली संदंश
एक संदंश, जिसका उपयोग शरीर से गोली को निकालने में किया जाता है।
  • Bunion -- बुनियन
किसी बाह्य श्लेष-पुटी (adventitious bursa) का बार-बार मामूली चोट लग जाने के कारण सूज जाना। यह सूजन आमतौर पर दबाव वाले स्थानों पर, जैसे अंगुठे, एडी के पीछे के हिस्से, कोडनी के नुकीले भाग और घुटने के सामने वाले हिस्से पर मिलती है। इलाज में इस श्लेषपुटी को काट कर बाहर निकाल दिया जाता है।
  • Bunionectomy -- बुनियन-उच्छेदन
जोड़ के बुनियान को काटना।
  • Burger’S Exercise -- बर्गर व्यायाम
इसमें दो मिनट के लिए टांग को ऊपर उठा दिया जाता है तथा खाट के बगल से दो मिनट के लिए टांग नीचे कर दी जाती है। इस तरह इस क्रिया को 30 मिनट तक प्रतिदिन दो या तीन बार दोहराया जाता है। इसके द्वरा भी स्थानिक अरक्तक शाखा में रक्तप्रवाह को प्रेरणा मिलती है।
  • Burger’S Position -- बर्गर स्थिति
एक पद्धति, जिसके द्वारा निम्न शाखा की स्थानिक अरक्तता (पैरों में रक्त की कमी-ischaemia of the lower limb) में निष्क्रिय रक्ताधिक्य (passive congestion) प्रेरित किया जाता है। खाट के सिराहाने को सारे दिन या एक दो घण्टे के लिए 15 से.मी. ऊपर उठा देते हैं। द्रवस्थैतिक द्रवाधिक्य (hydrostatic congestion) अथवा जल के अधिक दबाव के साथ रक्त प्रवाह में कुछ बढ़ोत्तरी हो जाती है।
  • Burkitt Tumour -- बरकिट अर्बुद
यह लसीका पर्व की दुर्दम वृद्धि (malignant growth) हैं जो आफ्रीका के बच्चों में देखी जाती है। इस वृद्धि का कारण एक विशिष्ट प्रकार का विषाणु (virus) मान गया है। लाक्षणिक रूप से यह अर्बुद आमतौर पर जबड़ों (jaw) को प्रभावित करता है और गुरदों तथा डिम्ब-प्रन्थयों पर असर डालता हुआ पेट (उदर) के अर्बुद के रूप में दिखाई देता है। एक्स-रे चिकित्सा तथा कोशिकाविषी (cytotoxic) औषधियों का प्रयोग किया जाता है।
  • Burn -- दग्ध या जलना
दग्ध (जलना) भी एक चोट है जो तापीय (thermal), रासायनिक (chemical) तथा बिजली के (वैधयुत्), अभिघातों (trauma) से पैदा होती है। चोट की गहराई को देखकर हम इसे ऊपरी तथा गहरे दो वर्गों में बांट सकते हैं। जलन का फैलाव बदन के हिस्से (अर्थात् कम या अधिक) पर निर्भर है। बदन से ज्यादा हिस्से के जलने से मरीज को स्तब्धता या (शॉक) पहुंचता है। इसके इलाज में जले हुए हिस्से की पूरी देखभाल के साथ-साथ सामान्य पुनरुज्जीवनीय उपायों (general resuscitative measure) को अपनाना चाहिए। यदि शॉक की अवस्था हो, तो उसका तुरन्त इलाज करना चहिए। मरीजों की मृत्यु प्रायः जलने के कारण न होकर शॉक तथा डर के कारण होती है। इसलिये पुनरुज्जीवनीय उपायों (फिर से जिन्दा रखने के तरीकों) को काम में लाना चाहिये।
  • Bursitis -- श्लेष्मपुटीशोथ
श्लेष्मपुटी का शोथ साधारण, चिरकारी या तीव्र सपूय (acute suppurative) तेजी से बनने वाले पीप के साथ हो सकता है। तीव्र श्लेष्मपुटी शोथ चोट लग जाने के बाद या अनभ्यास व्यायाम के बाद हो सकता है उदाहरण के तौर पर पार्ष्र्जी-कंडरा के सामने वाली श्लेज़पुटी (bursa anterior to tendocalcaneous) । चिरकारी या पुराना शोथ हल्की चोटों के बार-बार होने के बाद हो जाता है। तीव्र सपूय शोथ (acute suppurative inflammation) वेधक क्षत (भेदने वाले जख्मों) द्वारा या स्थानिक अधस्त्वक् (चमड़ें के नीचे) संक्रमण (local subcutaneous infection) द्वारा फैलने से होता है।
  • Bursotomy -- श्लेष्मपुटी-भेदन
किसी श्लेष्मपुटी में चीरा लगाना।
  • Bypass -- उपमार्ग-वर्जन
रक्त परिवहन के लिए शस्त्रीचिकित्सक द्वारा एक वैकल्पिक मार्ग बनाना। जिन प्राणियों में रक्त की उष्णता (warm blooded) हमेशा समान रहता है, जैसे स्तनपायी जीव।
  • Caecopexy -- उण्डुक स्थिरीकरण
वाल्वुलस को रोकने के लिये शस्त्रकर्म द्वारा उण्डुक का स्थिरीकरण।
  • Caecostomy -- उण्डुक या अन्धान्त्र छिद्रीकरण
शस्त्रकर्म द्वारा उण्डुक या अंधान्त्र (caecum) में बाहर की ओर द्वार का (opening) बनाना। इससे उचित निकास (proper drainage) की सुविधा हो जाती है। इसका लाभ इस प्रक्रिया की सरलता है। नली (drainage tube) को निकालने के बाद निकास स्वतः बन्द हो जाता है।
  • Caecum -- उण्डुक
आहार-नाल से निकली हुई बंद सिरे वाली कोई नली या नली-जैसी संरचना। स्तनपाइयों में यह क्षुद्रांत्र और वृहदांत्र के संगम पर स्थित है। इसके दूरस्थ सिरे, पर कृमि रूप परिशेषिका होता है, जिसे उण्डुपुच्छ कहते हैं।
  • Caesarean Section, Caesarotomy -- शल्य कृत प्रसव
शस्त्र क्रिया द्वारा उदर पाटन करके किया गया प्रसव।
  • Calcaneal Spur -- पार्ष्णिका प्रसर
इस बीमारी में पार्ष्णि गंडक (tuberosity of calcanium) अर्थात् एड़ी की हड्डी के उभरे हुए हिस्से से निकल कर एक नई हड्डी पैर के पंजे की मोटी झिल्ली (plantar fascia) में बन जाती है। इसके साथ एड़ी के निचले हिस्से में अत्यधिक दर्द (स्थानिक वेदना), या स्पर्श असह्यता (tenderness) होने लगती है। इसकी चिकित्सा में आराम तथा एड़ी का दबाव से बचाव करना जरूरी है।
  • Calculus -- अश्मरी
स्रावी या उत्सर्गी अंगों में बनने वाली कणिकाश्मरी। अश्मरी प्रायः वृक्क पित्ताशय तथा मूत्राशय में पायी जाती है।
  • Callosity Corn -- किण तथा घट्टा
देर तक बराबर रगड़ लगने से त्वचा में एक जगह पर सींग-जैसी रचना का बन जाना। यह अवस्था आमतौर पर ऐसे लोगों में पाई जाती है जो बागवानी आदि का कार्य करते हैं। आमतौर पर यह रचना छोटी अंगुली के एक तरफ (पार्श्व में), अंगुलियों के जोड़ों के पीछे के हिस्से में (dorsum of interphalangeal joints) तथा अंगुठे के अगले भाग में नाखून के नीचे पाई जाती है। यह रचना अतिकिरेटिनता (hyper-keratosis) क्षेत्र से युक्त होती है, जिसके बीच में अन्दर को धंसा हुआ केन्द्रीय केन्द्रक (central nucleus) होता है, जो किरेटिनी होता है, लेकिन आंशिक तौर पर व्यपजनित (degenerated) होता है। इसकी चिकित्सा क्षेत्र में पड़ने वाले दबाव को हटाना तथा शस्त्रकर्म करना है।
  • Cancellous Bone -- सुषिर-अस्थि
अस्थि की एक अवस्था जब इकी रचना छिद्रयुक्त हो जाती है।
  • Cancer Cell -- घातक-अर्बुद कोशिका
वह कोशिका, जो दुर्दम अर्बुद के रूप में कोशिकाओं के असामान्य विभाजन के कारण बनती है। उदा कार्सिनोमाय या सार्कोमा। कैसा कोशिकाएँ शरीर के अन्य अंगों में पहुँचकर द्वितीयक अर्बुद बनाती हैं।
  • Canthectomy -- नेत्रकोण-उच्छेदन
किसी नेत्रकोण को काटकर निकाल देना।
  • Canthoplasty -- नेत्रसंधिसंधान/नेत्रकोणसंधान
शस्त्रकर्म द्वारा नेत्र-संधी अपांग एवं कनीनिका का संधान-कर्म।
  • Canthorrhaphy -- नेत्रकोणसीवन
शस्त्रकर्म द्वारा नेत्रकोण (अपांग एवं कनीनिका) को सीना।
  • Canthotomy -- नेत्रकोण-छेदन
शस्त्रकर्म द्वारा नेत्रकोण (उपांग एवं कनीनिका) भेदन करना।
  • Coapt -- व्रण संधान
दो सतहों को मिलाना या जोड़ना।
  • Capline Bandage -- वितान-बंध
टोपी की तरह सिर या स्कन्ध पर बाँधा जाने वाला पट्ट-बन्धन।
  • Cappillary -- कोशिका
शिराओं और धमनियों को जोड़ने वाली बहुत ही बारीक या कम व्यास की एक कोशीय परतवाली दीवारों की सूक्ष्मदर्शीय वाहिका, जिसके द्वारा ऊतकों में पोषण, आक्सीजन आदि घुले पदार्थों का आदान-प्रदान होता है।
  • Capsuloma -- वृक्क-सम्पुट-अर्बुद
वृक्क के सम्पुट में होने वाला अर्बुद-विशेष।
  • Capsuloplasty -- सम्पुट-संधान
शस्त्रकर्म द्वारा संधि सम्पुट का विरोहण करना।
  • Capsulorrhaphy -- सम्पुट सीवन
सम्पुट के ढीले होने से शस्त्रकर्म द्वारा संधि-साम्पुट का सीवन करना।
  • Capsulotome -- वृक्क सम्पुट भेदन यन्त्र
शस्त्र प्रयोग में लाया जाने वाला शस्त्र।
  • Capsulectomy -- सम्पुट-उच्छेदन
सम्पुट (capsule), विशेष रूप से जोड़ या लेन्स से सम्पुट का उच्छेदन (excision) करना।
  • Carbuncle -- कारबंकल
स्टेफ्लोकोकल संक्रमण के जरिए खाल (त्वचा) के नीचे के ऊतकों (subcutaneous tissues) में संक्रमित कोथ (infective gangrene) यानी बीमारी के कीड़ों के जरिए ऊतकों में गलन हो जाती हैं। यह कोथ मधुमेह (diabetes) से पीड़ित मरीजों में देखने को मिलती है। इस बीमारी में एक फुंसी (boils) बनती है और उसके बहुत से छेद या द्वार (openings) बन जाते हैं। यह कारबंकल पीठ और गर्दन के पिछले भाग (nape of the neck) पर पाया जाता है। इलाज करते समय यदि पेशाब में शक्कर जा रही हो मधुमय हो, तो उसको रोकना पड़ता है। इसके अलावा प्रतिजीवी औषधियों (antibiotics) देनी चाहिए। ठीक तरह से पीप (pus) को निकालने का भी प्रबन्ध करना जरूरी है।
  • Carcinectomy -- धातक-अर्बुद-उच्छेदन
शस्त्रकर्म द्वारा घातक अर्बुद को काटकर निकाल देना।
  • Carcinoma -- कार्सीनोमा, उपकलार्बुद
उपकला कोशिका के व्यापक अनियंत्रित गुणन से उत्पन्न घातक अर्बुद।
  • Cardia -- जठरागम
ग्रसनी और आमाशय का सन्धिभाग।
  • Cardiac Gland -- जठर-ग्रंथि
जठर में स्थित ग्रंथि।
  • Cardiac Gland -- हृदय से सम्बन्धित
  • Cardiac Atrophy -- ह्रत्-शोष
हृददय की मांसपेशी का क्षीण होना।
  • Cardiac Catheterization -- हृद् कैथीटर प्रवेशन
यह एक नैदानिक प्रक्रिया (diagnostic procedure) है, जिसमें विशिष्ट अपारदर्शी कथीटर को परिसरीय (peripheral) शिरा द्वारा हृदय के विभिन्न कोष्ठों (chambers) में प्रतिदीप्तिदर्शी नियंत्रण (fluoroscopic control) के अधीन प्रविष्ट किया जाता है, जिससे दाब (pressure) का रिकार्ड लिया जा सके तथा रक्त गैसों की परीक्षा के लिए रक्त नमूने प्राप्त किए जा सकें।
  • Cardiac Pacing -- हृद्गतिचालन
यह उपचार आमतौर पर पूर्ण हृद्रोग (complete heart block) के लिए प्रयोग में लाया जाता है तथा हृद-संरोध (cardiac arrest) के रोगियों में किया जाता है।
  • Cardiomyopexy -- हृद्पेशी स्थिरीकरण
बृहत् वक्षच्छदिका पेशी (pectoralis major) के भाग को विभाजित हृद्पेशी तथा परिहृद् के साथ स्थिर करना। यह शस्त्रकर्म हृद् धमनी रोग से ग्रसित रोगियों के हृदय में सम्पार्श्वी परिसंचरण (collateral circulation) बनाये रखने के लिए का जाता है।
  • Cardio-Omentopexy -- हृद्-वपास्थिरीकरण
वपा (omentum) का हृद्पेशी के साथ सीवन कर देना। यह शस्त्रकर्म हृद्धमनी रोग से ग्रसित रोगियों के हृदय में रक्त सम्भरण को बढ़ाने के लिये किया जाता है।
  • Cardiorrhaphy -- हृद्सीवन
शस्त्रकर्म द्वारा क्षतिग्रस्त (damaged) हृदय की पेशी का सीवन (suturing) करना।
  • Cardiorrhexis -- हृदय-विदार
हृदयघात के पश्चात् हृद्पेशियों का विदारण।
  • Cardiovalvotomy -- हृद-कपटिकाछेदन
एक शस्त्रकर्म जो हृद् कपाटिका सकीर्णता (stenosis) को दूर करने के लिए किया जाता है। इस शास्त्रकर्म में या तो हृद्पेशी (myocardium) के द्वारा फैलाने वाले विस्फारक (expanding dilator) को डालकर या हृद् फुप्फुसी उपमार्ग (cardio-pulmonary bypass) की सहायता से प्रत्यक्ष देख कर कपाटिका-संयोजिका-संयोजिका का छेदन किया जाता है।
  • Carotid Sinus -- करोटिड साइनस
करोटिड धमनी का विस्तारित अंश।
  • Carpal -- मणिबंध
प्रकोष्ठ और करम (मोटाकर्पाल) के बीच स्थित छोटी-छोटी अनेक हड्डियों में से एक। कलाई की कोई एक हड्डी।
  • Carpal-Tunnel Syndrome -- मणिबंध-नलिका-संलक्षण
एक रोगलाक्षणिक अवस्था जिसमें मणिबंध अर्थात् कलाई (wrist) पर की नलिका में स्थित मध्यम तंत्रिका (median nerve) का सम्पीड़न (compression) होता है, जिससे हाथ की पार्श्व (संजतंस) 3-1/2 अंगुलियों में तरह-तरह की संवेदना (paresthesia), दर्द या झुनझुनी (tingling) हो जाती है। इस रोग की चिकित्सा संरक्षी (conservative) हे तथा शस्त्रकर्म द्वारा विसम्पीडन (operative decompression) किया जाता है अर्थात् दबाव को हटाया जाता है।
  • Carpus -- मणिबंध
स्थलीय कशेरुकाधारी प्राणियों में अग्रपाद अथवा हाथ के आधार का क्षेत्र, जिसे सामान्य भाषा में कलाई कहते हैं।
  • Cartilage -- तरुणास्थि/उपास्थि
शरीर में रहने वाली तरुणास्थि।
  • Carbuncle -- मांसाकुर
विकृतमांसका छोटा अंकुर।
  • Caseation -- किलाटीभवन
यह एक आतंची परिगलन अर्थात् जमनेवाला गलाव (coagulative necrosis) है जिससे पनीर की तरह का एक पदार्थ बनता है। यह परिगलन यक्ष्मा-रोग के कारण हो सकता है। बाद में इसमें हरापन लिए पतला पीप (pus) बन जाता है। इसका कैल्सीभवन (calcification) की तरफ खास झुकाव होता है।
  • Cataract -- मोतियाबिन्दु
नेत्र के लेन्स अथवा इसके सम्मुट (capsule) या दोनों की अपारदर्शिता।
  • Catgut -- कैटगट
यह भेड़ की आंतों के अधस्त्वक् स्तर (submucous layer) से तैयार की जाती है। यह अवशोषी सीवन (absorbable suture) के रूप में प्रयोग में लाई जाती है। यह दो प्रकार की होता है (1) क्रोमिक (2) मादा (plain) । क्रोमिक प्रकार की कैटगट क्रोमिक लवण की उपस्थिति के कारण देर से घुलनशील है, इसलिए पर्युदर्या (peritoneum), पेशियों एवं कंडराकलाओं (aponeurosis) के सीवन (suturing) के लिए उपयुक्त है। इसके घुलने में सामान्य रूप से तीन सप्ताह का समय लगता है। सादा या प्लेन कैटगट अपने आप ही सात दिन में घुल जाती है और इसलिए यह वृक्क गोणिका, गवीनी, मूत्राशय पर किए गए छेदनों (incision) को बन्द करने में प्रयुक्त होती है जहां बाहरी वस्तु की अधिक देर तक रहने से पथरी (calculus) बनने की सम्भावना हो सकती है।
  • Catheterization -- कैथीटर प्रवेशन
किसी भी आशय में नालशालाका को प्रविष्ट करना।
  • Catheter -- कैथीटर या नाल
शस्त्रकर्म में प्रयुक्त होने वाला एक नलिकाकार यंत्र जो धातु, रबड़, लेटेक्स, या प्लास्टिक का बना होता है। इसका कार्य सामान्य या असामान्य शरीर गुहाओं (body cavities) से तरल (fuild) को बाहर निकालना है। इसका सामान्य उपयोग मूत्राशय से मूत्र का निकास करना है। कैथीटर या नाल शलाकाएं दो प्रकार की होती हैं- (i) सादा (plain) तथा (ii) स्वधारक (self retaining) । स्वधारक कैथीटर, जैसे फोलीकैथीटर, में अग्रान्त पर पुष्प के समान व्यवस्था या फूलने योग्य गुब्बारे जैसी पुलियां मौजूद होती हैं। कुछ अन्य प्रकार, जैसे कूदे या नतनाल (coude), जिसके अग्रान्त पर एक मोड़ होता है, या द्विनल नाल या बाई कूदे जिसके अग्रान्त पर दो मोड़ होते हैं, बढ़ी हुई पुरःस्थ ग्रन्थि (enlarged prostrate) में आसानी से प्रवेश कर सकते हैं, जहाँ पर पश्च मूत्रमार्ग (posterior urethra) बझ़ा हुआ होता है।
  • Catheter Fever -- नालशलाका ज्वर
नालशलाका प्रेवशन के परिणाम स्वरूप होने वाला ज्वर
  • Causalgia -- दाहार्ति या चोष
एक अवस्था जिसमें अपूर्ण तंत्रिक क्षति (incomplete nerve injury), विशेषरूपसे प्रगंड जालिका (brachial plexus), आसन या मध्यम तंत्रिकाओं (sciatic or median nerves) की क्षति, दर्द के प्रवेगी (paroxysmal) आक्रमण होते हैं। लक्षण या तो चोट लगने के बाद तुरन्त मिलते हैं या बाद में तीन महीने तक मिलते रहते हैं। यह अवस्था हिस्टेमीन जैसे पदार्थों के उत्पन्न होने से होती है जिसके कारण विस्फारण (dilatation) होता है और वह भाग खून से भर जाता है, लाल हो जाता है तथा वह प्रभावित भाग में पसीना अधिक आता है। पोषणज परिवर्तनों (trophic change) के परिणामस्वरूप त्वचा पतली हो जाती है। इस हालत में दर्द बहुत होता है। जिससे रोगी अन्तर्निरीक्षण करने वाला (introspective) तथा असहयोगी हो जाता है। कुछ रोगी धीरे-धीरे स्वस्थ हो जाते हैं लेकिन शल्य-चिकित्सा अनुकम्पी-तंत्रिका-उच्छेदन (sympathectomy) द्वारा भी की जा सकती है।
  • Cauterization -- अग् कर्म/दहन कर्म
भौतिक (physical), रासायनिक (chemical), वैद्युत् (electrical) या तापीय (thermal) कारक के प्रयोग से ऊतकों का विनाश करना। यह दहन कर्म आमतौर पर न भरने वाले घावों में (non healing ulcer) या रक्तस्राव को रोकने में किया जाता है।
  • Cautery Knife -- दहन छुरिका
एक छुरिका जो परिच्छेदन करते समय या काटते समय विद्युत धारा के साथ रक्तस्राव को रोकने के लिए स्रावी बिन्दुओं का स्कंदन करती जाती है।
  • Cavernostomy -- गुहाछिद्रीकरण
किसी भी गुहा (cavity) में शस्त्र द्वारा छेद करना।
  • Cavernous Lymphangioma -- गुहावरी लसीका वाहिकार्बुद
लसीका वाहिकाओं का फैलाव (विस्तार) हो जाने के कारण पुटीमय लसीका अवकाशों (cystic lymph spaces) का बन जाना और इन्हीं थैलों में लसीका का भर जाना। यह अर्बुद त्वचा के केशिका लसीका वाहिकार्बुद (capillary lymphangioma) के साथ भी हो सकता है। इस अर्बुद के किनारे अक्सर सुस्पष्ट नहीं होते जिसकी वजह से अर्बुद को काटकर बाहर निकालना (पूर्ण अच्छेदन-total excision) मुश्किल हो जाता है।
  • Cavernous Haemangioma -- गुहावरी रक्तवाहिकार्बुद
रक्तवाहिकार्बुद का एक प्रकार जो कभी -कभी एक ही व्यक्ति के शरीर के अलग-अलग हिस्सों में मिलता है। यह यकृत् (जिगर), फुप्फुस (फेफड़े), और अस्थियों में पाया जाता है। अस्थियों में अर्बुद धमनी शिरा साहचर्य उत्पन्न करते हैं जिससे एक शाखा (limb) बड़ी हो जाती है। इसकी चिकित्सा भी वही है जो त्वक् विक्षतियों में सामान्य रक्त – वाहिकार्बुद की है। फुप्फुस विक्षतियों के उच्छेदन (काटकर बाहर निकाल देने) की आवश्यकता की सामान्यतः संरक्षी में उत्पन्न विक्षतियों की सामान्यतः संरक्षी चिकित्सा की जाती है।
  • Cholecysto- Duodenostomy -- पित्ताशय ग्रहणी सम्मिलन
शस्त्रकर्म द्वारा पित्ताशय और ग्रहणी को जोड़ना।
  • Cecocolostomy -- उंडुक वृहदान्त्र सम्मिलन
शस्त्रकर्म द्वारा उंडुक तथा वृहदान्त्र को जोड़ना।
  • Cecosigmoidostomy -- उण्डुक अवग्रहान्त्र- सम्मिलन
शस्त्रकर्म द्वारा उंडुक तथा अवग्रहान्त्र को जोड़ना।
  • Cecostomy (Caecostomy) -- उंडुक छिद्रीकरण
शस्त्रकर्म द्वारा उंडुक में छेद करके उदरभित्ति के ऊपर खोलना।
  • Cecum (Caecum) -- उंडुक
बृहदन्त्र का पहला भाग।
  • Celiectomy -- उदरस्थावयव छेदन
शस्त्रकर्म द्वारा उदर से किसी भी अवयव को काटकर निकालना। शस्त्र कर्म द्वारा वेगस् नाड़िकी सीलिएक शाखाओं को काटकर निकाल देना।
  • Celiocentesis -- उदरावरण कला वेधन
  • Celiroenterotomy -- आन्त्र का उदरगुहा से बाहर निकालना
  • Celiogostrostomy -- जठर को उदरावरण कला छेदन
शस्त्रकर्म द्वारा जठर को बाह्य त्वचा के च्छदेन के बाद कृत्रिम मुख का निर्माण।
  • Coelioma -- उदरावरण का अर्बुद
  • Celiomyomectomy -- उदरभेदन द्वारा गर्भाशय अर्बुद का आहरण
  • Celioparacentesis -- उदर वेधन
  • Cellulitis -- संयोणी ऊतक शोथ
त्वचा तथा अधस्त्वक ऊतकों का फैलने वाला शोथ (सूजन)। इसमें सूजन के स्थानिक चिह्न पैदा होते हैं तथा इसमें किनारे स्पष्ट नहीं होते चिकित्सा में मुख्य रूप से उस हिस्से को आराम देना, प्रतिजीवी दवाइयां देना और यदि पीप पड़ गई है तो उसको बाहर निकाल देना शामिल है।
  • Centesis -- छिद्रण, वेधन
  • Central Nervous System -- केन्द्रीय तंत्रिका तंत्र
केन्द्रीय तंत्रिका-तंत्र का प्रमुख भाग, जो कशेरुकाधारी प्राणियों में मस्तिष्क तथा मेरू-रज्जु से बनता है। प्राणियों की विभिन्न गतिविधियों का समन्वय करना इसका प्रमुख कार्य है।
  • Cephalohaematoma -- शीर्ष रक्त संग्रह
इसमें खोपड़ी (करोटि) में सूजन (swelling) हो जाती है जो इसकी परतों (स्तरों-layers) में खून के एक जगह पर रिसते रहने (परिस्रव) के कारण बन जाती है। खून की नली से खून का रिसना किसी ल चोट (इसनदज trauma ) के कारण में होता है। यह रक्तार्बुद हाल के पैदा हुए बच्चों में पैदा होते समय चोट लग जाने के कारण बन जाता है। इसका उपचार खासतौर पर हड्डी या दिमाग (मस्तिष्क-brain) पर की चोट के मुताबिक संरक्षी तौर पर (conservative) जाता है।
  • Cephalotomy-Fetal Craniotomy -- कपाल भेदन, शिशु कपाल भेदन
शिशु की कपाल भेदन अथवा गर्भस्थ शिशु की कपाल भेदन क्रिया।
  • Cephalotribe -- गर्भकपाल खंडन शस्त्र
भ्रूण के सिर का खंडन करने के लिए उपयुक्त शस्त्र।
  • Cephalothoracopagus -- युग्म राक्षसी
राक्षसी जुडवा जिसका सिर और वक्ष प्रदेश जुडा हुआ रहता है। युग्म शिशु जिसमें दोनों का सिर और वक्ष प्रदेश जुडा हुआ रहता है
  • Ceptaltenatoma -- शिरोगत एकन्द्रित रक्त ग्रन्थि
  • Cerebellum -- अनुमस्तिष्क
कशेरुकाधारी प्राणियों में पश्चात् मस्तिष्क का वह स्थूलन या फुलाव, जो पेशियों की गतिविधि पर नियंत्रण और शरीर का संतुलन बनाए रखता है।
  • Cerebral Haemorrhage -- प्रमस्तिष्क रक्तस्राव
मस्तिष्क का रक्त स्राव।
  • Cerebrotomy -- प्रमस्तिष्क छेदन
  • Cerebrum -- प्रमस्तिष्क
कशेरुकाधारी प्राणियों के मस्तिष्क का प्रमुख भाग जो दो गोल फैलाव या संरचना के रूप में घ्राण पालि के पीछे होता है। यह उच्चतर कशेरुकाधारी प्राणियों में विभिन्न आवेगों के समन्वय और मानव आदि उच्चतम स्तनपायियों में बौद्धिक क्षमता से संबंद्ध है।
  • Cervical Spondylosis -- ग्रैव अपकशेरुता
इस अवस्था में अंतराकशेरुक चक्र में दो कशेरुकाओं के बीच के चक्र का व्यपजनन (degeneration) होता है और बाद में नई अस्थि की रचना होती है। कभी-कभी इस अवस्था का पता पश्च अंतराकशेरुक चक्र के अस्थि संधिशोथ (osteoarthritis) से चलता है। अस्थिवर्ध अंतराकशेरुक चक्र के अस्थि संधि शोथ (osteoarthritis) से चलता है। अस्थिवर्घ अंतराकशेरुक रंध्र (intervertebral foramen) में निकल जाते हैं। इससे गर्दन मे दर्द होता है जो बाहु के ऊपरी हिस्से तक पहुंचता है। इसकी चिकितसा संरक्षी (conservative) है- वेदनाहर औषधियाँ ऊष्मा तथा भौतिक चिकित्सा। कभी-कभी यह अवस्था बिना लक्षणों के भी पायी जाती है।
  • Chalinoplasty -- ओष्ठकोण संधान
ओष्ठ कोण की विकृति को ठीक किये जाने वाला संधान कर्म।
  • Chancre -- व्रण/रतिव्रण
यह प्रायः जननोन्द्रिय ओष्ट आदि पर होता।
  • Chondromyxosarcoma -- कोन्ड्रोमिक्सोसारकोमा
घातक उपास्थि श्लेषमा अर्बुद।
  • Chondrotomy -- उपास्थि विभागीकरण
शस्त्रकर्म द्वारा उपास्थियों का विभाजन करना।
  • Choangiostomy -- पित्तनलिका स्राव निष्कासन
पित्तनलिका का भेदन करके स्राव का निकास करना।
  • Cheek -- कपोल
नेत्र और मुख के बीच का पार्श्व भाग।
  • Cheek Bone -- कपोल फलक, गण्ड फलक
कपोल में पायी जाने वाली अस्थि।
  • Cheilectomy -- ओष्ठ छेदन
:(1) रुग्ण संधि में पाये जाने वाले विषम बिन्दुओं का शस्त्रकर्म द्वारा उच्छेदन।
(2) अस्थि सन्धि के ऊपर विषम उभार अस्थि का छेदन।
  • Cheiloplasty -- ओष्ठ संधान
किसी कारण से हुई ओष्ठ विकृति का शस्त्रकर्म द्वारा सन्धान।
  • Cheilostonatoplasty -- ओष्ठायन संधान
अर्बुदादि से उत्पन्न होने वाली मुख एवं ओष्ठ की विकृति को शस्त्रकर्म द्वारा दूर करके पूर्ण रूप में लाना।
  • Cheilotomy, Chilotomy -- अंशोच्छेदन
ओष्ठ का अंशतः उच्छेदन अथवा अस्थि के अन्तिम भाग में वृद्धि का अंसतः उच्छेदन।
  • Cheiroplasty -- हस्त संधान
संन्धानक शस्त्र कर्म द्वारा हस्त विकृति का पुनर्निर्माण।
  • Chemical Gangrene -- रासायनिक कोथ
संक्षारक रासायनिक द्रव्यों (corrosive chemicals) से स्थानिक धमनियों में आकर्ष (ऐंठन-) हो जाने के कारण कोथ बन सकता है। कार्बोलिक एसिड इसका एक सामान्य उदाहरण हे। इस हिस्से का अड़गोच्छेदन (amputation) कर देना इस रोग की चिकित्सा है।
  • Chemocautery -- क्षार दहन/रासायनिक दहन
क्षारीय द्रव्यों द्वारा किया गया दहन कर्म।
  • Cheyne-Stokes Breathing -- छिन्न श्वास
श्वास की एक अवस्था जिसमें प्रथम दीर्घ श्वास लेता है जो क्रमश उत्थान होता है और अन्त में क्षणिक श्वासाभाव होता है। तत्पश्चात् पुनः यह प्रक्रिया शुरु होती है। श्वासाभाव के समय नेत्र तारिका संकोच एवं मूर्छा पायी जाती है। श्वासाधिक्य के समय नेत्र तारिका विस्फार एवं पुनः संज्ञा प्राप्ति होती है।
  • Chirurgia, Chirurgery -- हस्त शस्त्रकर्म
रोगों के लिए उपयुक्त शस्त्रकर्म।
  • Chiropodist -- पाणिपाद शस्त्र विशेषज्ञ
पाद में होने वाले क्षुद्र रोगों को शस्त्रकर्म द्वारा निर्हरण करने वाला विशेषज्ञ।
  • Chiropody -- पाणिपाद सरंक्षण चिकित्सा
पाणिपाद शस्त्र विशेषज्ञ द्वारा पाणिपाद के रोगों की चिकित्सा करना।
  • Cholecystocolostomy -- पित्ताशय बृहदान्त्र मे शस्त्रकर्म द्वारा संबंध स्थापित करना।
  • Chloasma -- त्वक् वैवर्ण्य
पीत, हरित कृष्णादि वर्णों का त्वचा पर दाग।
  • Chloroma -- हरितार्बुद
हरापन लिए हुए एक छोटा अर्बुद। यह सामान्यतया नेत्रगुहा (आंखों के गड्ढ़े-orbit) तथा खोपड़ी की हड्डियों (करोटि की अस्थियों) में देखा जाता है। मज्जाभ श्वेतरक्तता (myeloid leukaemia) से भी इसका सम्बन्ध है।
  • Cholangiotomy -- पित्तनलिका भेदन
अश्मरी निकालने के लिये शस्त्रकर्म द्वारा पित्त नलिका का भेदन।
  • Cholangioenterotomy -- पित्तनलिकान्त्र सम्मिलन
पित्तनलिका एवं आन्त्र को शस्त्रकर्म द्वारा जोड़ना।
  • Cholangiography -- पित्तवाहिनी चित्रण, पित्ताशयनलिका क्षःचित्रण
यह एक्स-रे द्वारा पित्त-पथ (biliary passages) का प्रदर्शन है।
  • Cholangiohepatitis -- पित्तवाहिनी यकृतशोथ
पित्तवाहिनीशोथ (cholangitis) के बाद संक्रमण (infection) का अन्तः यकृत् पित्त मार्ग (intrahepatic biliary passage) में चला जाना। सामान्यतया यह रोग पित्ताशय तथा सामान्य पित्तवाहिनी अश्मरी के हो जाने के बाद होता है। इस रोग की चिकित्सा में सामान्य पित्तवाहिनी (common bile duct) का निकास (drainage) किया जाता है तथा पित्ताशय की पथरी (अश्मरी) को निकाला जाता है।
  • Cholangitis -- पित्तवाहिनी शोथ
पित्त मार्ग अर्थात् पित्त को ले जाने वाली नली (billiary tract) में सूजन आ जाना। यह सूजन पित्त के प्रवाह में रुकावट आ जाने से हो जाती है। सामान्यतया इस रोग में ज्वर, जाड़ा लगना, कम्पकपी (शीत कम्प) तथा पीलिया (jaundice) हो जाते हैं। चिकित्सा में रुकावट करने वाली विकृति को दूर करने तथा अल्प मदद देने वाले उपायों को उपनाना शामिल है।
  • Cholecystography -- पित्ताशय अपरिदर्शी चित्रण
क्ष-किरण द्वारा पिताशय का चित्रण करना।
  • Cholecystectomy -- पित्ताशयोच्छेदन
शस्त्रकर्म द्वारा पित्ताशय निर्हरण करना।
  • Cholecystenterorrhaphy -- पित्ताशयान्त्र सीवन
पित्ताशय का आंत्र के साथ सीवन कर्म।
  • Chlecystocolostomy -- पित्ताशय बृहा दान्त्र संमिलन पित्ताशय बृहदान्त्र में शल्यकर्म द्वारा संबंध स्थापित करना।
  • Chosecystolithiasis -- पित्ताशय-अश्मरी
पित्ताशय में अश्मरी निर्माण।
  • Cholesysto Enterostomy -- पिताशयांत्रभेदन
पित्ताशय एवं आन्त्र का शस्त्रकर्म द्वारा सम्बन्ध स्थापित करना।
  • Cholecystitis -- पित्ताशय शोथ
इस रोग में पित्त की थैली में सूजन हो जाती है। इसकी उत्पत्ति का कारण सामान्य जीव – स्टेफिलो-कोकस एशेरिशिया कोलाई या बेसीलय टाइफोसस है। अधिकतर यह रोग स्त्रियों में 40 वर्ष की अवस्था के बाद होता है। वैसे तो यह रोग पुरुषों में भी होता है। इस रोग से पीड़ित व्यक्ति में दक्षिण अधः पर्सुक क्षेत्र (Rt. hypochondrium) में वेदना (दर्द), बार-बार ज्वर आना तथा आध्मानी दुष्पचन (flatulent) जैसे लक्षण मिलता हैं। इस अवस्था के साथ-साथ अक्सर पित्त की थैली में पत्थरी होती है। कभी-कभी पथरी नहीं भी होती है। रोग से पीड़ित पित्त की थैली को शस्त्रकर्म द्वारा शरीर से बाहर निकाल देना ही इसकी चिकित्सा है।
  • Cholecystocolotomy -- पिताशय बृहदान्त्र भेदन
शस्त्रकर्म द्वारा पित्ताशय एवं वृहदान्त्र का भेदन करना।
  • Cholecysto Duodenostomy -- पित्ताशय-ग्रहणी-सम्मीलन
  • Cholecystogastrostomy -- पित्ताशय जठर सम्मिलप
पित्त की थैली और अमाशय (stomach) को शस्त्रकर्म द्वारा जोड़ देना जिससे दोनों के बीच वस्तु का आना जाना (संचार) बन जाए। यह शस्त्रकर्म सामान्य पित्त वाहिनी के पूरी तरह संकरे पड़ जाने की वजह से करना पड़ता है।
  • Cholecystogram -- पित्ताशय चित्र
अपारदर्शी रंजक का प्रयोग करके क्ष-किरण के जरिए पित्ताशय (gall bladder) का अवलोकन करना। इस परीक्षा के लिये अपारदर्शी रंजक (radio-opaque dye) को अन्तःशिरा (intravenously) या मुख द्वारा दिया जाता है।
  • Cholecystoileostomy -- पित्ताशय-आंत्र सम्मिलन
पित्ताशय (पित्त की थैली) और छोटी आंतों के एक खण्डाश (दुकड़े) को शस्त्रकर्म द्वारा जोड़ देना जिससे वस्तु का आना जाना (संचार) ठीक हो जाए। यह शस्त्रकर्म खासतौर पर रोघज कामला (यानी पित के बहाव के रुक जाने की वजह से पीलिया – obstructive jaundice) के बीमारों में किया जाता है। यह रुकावट सामान्य पित्त वाहिनी के संकीर्ण हो जाने के कारण पैदा हो जाती है।
  • Cholecystolithotripsy -- पित्ताशयाशमरी भंजन (अश्मरी भंजक)
अश्मरी भंजन के द्वारा पित्ताशय अश्मरी को तोडना।
  • Cholecystostomy -- पित्ताशय छिद्रीकरण
शस्त्रकर्म द्वारा पित्ताशय का बाहरी निकास या बहिःस्राव (drainage) करना। प्रायः यह शस्त्रकर्म तीव्र पित्ताशय शोथ (पित्त की थैली में सूजन) होने पर सामान्य साधारण दवाइयों के जरिये चिकित्सा न होने पर, जब पित्ताशय का निकाल देना सम्मव न हो, तब किया जाता है।
  • Cholecystorrhaphy -- पित्ताशयसीवन
शस्त्रकर्म द्वारा पिताशय का सीवन।
  • Cholecystolithiasis -- पित्ताशय-अश्मरी
पित्ताशय में अश्मरी निर्माण।
  • Choledocho- Duoenostomy -- सामान्य पित्तवाहिनी-ग्रहणी सम्मिलन
सामान्य पित्तवाहिनी तथा ग्रहणी का शस्त्रकर्म द्वारा मिलाना। पित्त की रुकावट में कभी-कभी यह शस्त्रकर्म करना पड़ता है।
  • Choledochogram -- पित्तवाहिनीचित्र
रेडियो-अपारदर्शी माध्यम के द्वारा सामान्य पित्त-वाहिनी (common bile duct) को एक्स-रे से देखना (visualization)।
  • Choledochoje- Junostomy -- पित्त नलिका मध्यान्त्र सम्मिलन
शस्त्रकर्म द्वारा पित्त नलिका एवं मध्यान्त्र को मिलाना।
  • Choledocholithotomy -- पित्तवाहिनी-अश्मरीहरण
शस्त्रकर्म द्वारा सामान्य पित्तवाहिनी से छेदन के जरिए पथरी को बाहर निकालना।
  • Choledochoplasty -- पित्तनलिका संधान
पित्तनलिका का शस्त्रकर्म द्वारा संधान।
  • Choledochorrhaphy -- पित्त नलिका सीवन
शस्त्रकर्म द्वारा पित्तनलिका का सीवन।
  • Choledochotomy -- पित्तवाहिनीछेदन
शस्त्रकर्म द्वारा सामान्य पित्तवाहिनी छेदन (incision) करना। यह छेदन प्रायः पथरी या निकास (drainage) के लिए किया जाता है।
  • Choledocho- Gastrostomy -- पित्त नलिका जठर सम्मिलन
  • Choledochography -- पित्त नलिका क्ष किरण
  • Choledocholithiasis -- पित्तवाहिनी अश्मरी
पित्तवाहिनी में अश्मरी निर्माण होना।
  • Choledocholithotomy -- पित्तवाहिनी अश्मरीहरण
पित्तवाहनी में उपस्थित अश्मरी को शस्त्रकर्म द्वारा निकालना।
  • Choledochoen- Terostomy -- पित्तनलिका आन्त्र सम्मिलन
शस्त्रकर्म द्वारा पित्तवाहिनी एवं आन्त्रको मिलाना।
  • Choledocholity -- पित्तवाहिनी अश्मरी
पित्तवाहिनी में अश्मरी होना।
  • Choledocholithotripsy -- पित्तवाहिनी अश्मरी भंजन
अश्मरी भंजक के द्वारा पित्तवाहिनी में उपस्थित अश्मरी को तोड़ना।
  • Choledochotomy -- पित्त नलिका भेदन
शस्त्रकर्म द्वारा पित्तवाहिनी का भेदन करना।
  • Cholelith -- पित्ताश्मरी
पित्ताशय में उपस्थित अश्मरी।
  • Cholelithiasis -- पित्ताशय अश्मरी
इस अवस्था में पित्त की थैली (gall bladder) में पथरियाँ बन जाती है। मुख्यतः पथरियाँ तीन प्रकार की होती हैं- इन सब में सामान्य पथरी को मिली-जुली या मिश्रित पथरी (mixed calculus) कहते हैं। कोलेस्टेरॉल की पथरियाँ अकेली होती हैं और मिली-जुली पथरियों के अपेक्षा बिरले ही देखने को मिलती हैं। वर्णक पथरियों (pigment stones) के साथ-साथ पित्तमेही कामला या पीलिया (choluric jaundice) भी होती है। इन पथरियों के कारण पसलियों के नीचे सीधी तरफ (दक्षिण) अधः पर्शुक क्षेत्र में दर्द होता है जो धी तरफ के कन्धे की नोक तक जाता हुआ मालूम पड़ता है और साथ में वमन भी होता है। इन पथरियों से बहुत से उपद्रव (obstructive jaundice) पैदा हो जाते हैं, जैसे रोधज कामला (obstructive jaundice), आभ्यन्तर पैत्तिक नालव्रण।
  • Cholesteatoma -- कोलीस्ट्रिटोमा
इस प्रकार का, कभी-कभी होने वाला, अर्बुद शरीर के विकास के समय उत्पन्न होता है और इसको मुक्ताभ अर्बुद या बाह्य त्वचाभ अर्बुद (epermoids) कहते हैं। प्रायः यह अर्बुद मृदुतानिका (piamater) में नीचे मिलता है परन्तु यह मस्तिष्क के अन्दर और उसके किसी निलय (ventricle) में भी हो सकता है। अर्बुद गोलाकार सकता है तथा इसका पृष्ठ (सतह- surface) चिकने रेशम के समान होता है। यदि इस अर्बुद तक पहुंच जाए तो शस्त्रकर्म सफल हो जाता है।
  • Choletherapy -- पित्तचिकित्सा
पित्त के द्वारा किए जाने वाली चिकितस्सा।
  • Chondrectomy -- उपास्थिलच्छेदन
शस्त्रकर्म द्वारा उपास्थि का निर्हरण।
  • Chonfroblastoma -- उपास्थि प्रसू अर्बुद
उपास्थि कोशिकाओं (cartilage cells) का एक सुदम (benign) अर्बुद है जो प्रायः हड्डियों के सिरों पर देखा जाता है।
  • Chondroma -- उपास्थि अर्बुद
ये उपास्थि के खण्डकित पुज से बने अर्बुद हैं। यदि हड्डी की सतह (पृष्ठ- sufrace) पर स्थित हैं तो उनको वहिःउपास्थि अर्बुद (enchondroma) कहते हैं और जो हड्डी की मज्जा में होते हैं उनको अन्तः उपास्थि अर्बुद (enchondroma) कहते हैं। अन्तः उपास्थि होने पर वैकृत अस्थिभंग (pathological fracture) होने की आशंका हो सकती है, कारण यह है कि अर्बुद के बढ़ने पर प्रान्तस्था (cortex) पतली पड़ जाती है। ये अर्बुद में दुर्दम परिवर्तन (malignant change) भी हो सकता है।
  • Chondromalacia- Patallae -- जानुका उपास्थि-मृदुता
घुटने की अस्थि की संघाचक उपस्थि का व्यपजन (degeneration) हो जाना। इस अवस्था के बार घुटने की अस्थि एवं सन्धि में परिवर्तन हो जाने की सम्भावना रहती है। मुश्किल से ठीक होने वाले रोगियों में शस्त्रक्रिया के द्वारा उच्छेदन कर देना ठीक रहता है।
  • Dhondronecrosis -- उपास्थि परिगलन
उपस्थि का नाश होना।
  • Dhondromyxoma -- अस्थिश्लेष्मार्बुद
शाखा और ग्रीवा के स्थान में होनेवाला उपास्थि श्लेष्मा मिश्रित अबुर्द।
  • Chondro- Osteodystrophy -- उपास्थि-अस्थि-दुष्पोषण
यह एक बढ़ने वाली खानदानी असंगति है जिसकी कारण आगे चल कर बौनापन (dwarfism) आ जाता है।
  • Chondrosarcoma -- कॉन्ड्रोसार्कोमा
अस्थ्यर्बुद (osteoma) तथा उपास्थि-अर्बुद (chondroma) से साम्मिश्रित एक सार्कोमा।
  • Chondroplasty -- उपास्थि संधान कर्म
च्युत उपास्थि का स्वस्थान पर रखाना या टूटा हुआ उपास्थि का विरोहण (उपास्थि संधान कर्म करना।
  • Chondrosternal -- पर्शुका वक्ष संबंधित
पर्शुकाउपास्थि एवं वक्षास्थि से संबंधित।
  • Chondrotome -- उपास्थि छेदन शस्त्र
तरुणास्थि (उपस्थि) का छदेन करने के लिये छूरी आकार का अस्त्र।
  • Chordotomy -- सुषुम्नाछेदन
सुषुम्ना के अग्र-पार्श्व पथ का शस्त्रक्रिया द्वारा विभाजन अर्थात् शस्त्रकर्म द्वारा सुषुम्ना से निकलने वाली अग्र-पार्श्व शाखायें (antero lateral branches) काट दी जाती हैं। इस शस्त्रकर्म कर देने से शाखाओं (होथों और पैरों) तथा धड़ में होने वाली तीव्र पीड़ा दूर हो जाती है। इसके द्वारा वेदना ऊष्मा स्पर्श तथा आसन की संवेदना समाप्त हो जाती है। स्थायी पूर्ण वेदना-असंवेदिता (analgesia) का उत्पन्न करना बहुत कठिन है अर्थात् इस शस्त्रकर्म से सदा के लिए पूरी संवेदना को दूर करना कठिन है।
  • Chondrosternoplasty -- उरोस्थि-उपास्थि सन्धानकर्म
विकृस उरोस्थि का शास्त्रक्रिया द्वारा ठीक करना।
  • Chromaffinoma -- क्रोमेफिन अर्बुद
यह एक मुलायम, भूरे रंग का सुदम (benign) अर्बुद होता है जिसमें बड़ी विभेदी अनुकम्पी गंडिका कोशिकाएँ (large differentiated sympathetic ganglion cells) होती हैं। इस अर्बुद का यह नाम इसमें उपस्थि क्रोमेफिन कणिकाओं के कारण पड़ा है। यह स्त्री और पुरुष दोनों में आमतौर पर वयस्कावस्था या अधेड़ अवस्था में पाया जाता है। इस अर्बुद के होने पर शरीर में लगातार या रूक रूक कर ऐड्रिनलीन बढ़ता है जिसके कारण प्रवेगी (paroxysmal) या लगातार (दीर्घस्थायी) अतिरक्तदाब (hypertension) रहता है। इसकी चिकित्सा शस्त्रक्रिया है लेकिन शस्त्रक्रिया से पहले तथा बाद में संज्ञाहरण (anaesthesia) करते समय विशेष देख-रेख की आवश्यकता है।
  • Chromophobe Adenoma -- वर्णविरागी अर्बुद
पियूषिका ग्रन्थि की वर्णविरागी कोशिकाओं से बना एक सुदम अर्बुद। इसकी चिकित्सा जल्दी से शस्त्रक्रिया कर देना है।
  • Chronic Abscess -- जीर्ण विद्रधि
मंदगति से उत्पन्न होकर चिरकाल तक रहनेवाला विद्रधि।
  • Chronic Cholecystitis -- चिरकारी पित्ताशय शोथ
इस रोग की अवस्था में पित्त की थैली सिकुड़ जाती है तथा उसमें तन्तुमयता (fibrosis) हो जाती है बार-बार संक्रमण होता रहता है। इस दशा में पित्त थैली में अक्सर पथरी होती है। कभी-कभी पथरी नहीं भी होती। इस रोग के चिह्न (signs) तथा लक्षण (symptoms) पित्ताशय शोथ के समान ही होते हैं। पित्ताशय अच्छेदन (cholecystectomy) इस रोग की चिकित्सा है। Chronic lymphadenitis (चिरकारी लसीकापर्व शोथ) लसीका पर्वो का चिरकारी शोथ (पुरानी सुजन-chronic inflammation), जो अकसर भिन्न भी होता है और जिसकी प्रकृति पक्ष्मज यक्षमज (tuberculus) होती है। इसमें गर्दन के लसीका पर्वों का यक्ष्मा ग्रसित होना औमतौर पर देखा जाता है और इसको ग्रैव पक्ष्मज लसीकापर्वशोथ (cervical tuberculous lymphadenitis) कहते हैं। इस अवस्था में लसीका पर्व आपस में चिपक जाते हैं। चिपकने का कारण लसीका पर्वो का सम्पुट (capsule) है जिसे परिलसीकापर्व शोथ (periadenitis) कहते हैं। परिणामस्वरूप किलाटी भवन (caseation), शीतल विद्रघि (cold abscess) (कालर बटन विद्रधि- collar stud abscess) तथा नाड़ी व्रण (sinus) ब जाते हैं। पूयजनक संक्रमण की प्रतिजीवी चिकित्सा तभा पूति फोकस (septic focus) को अलग अलग करना तथा यक्ष्मज लसीका पर्व शोथ (tuberculus lymphadenitis) में यक्ष्मा-रोधी चिकित्सा तथा यक्ष्मज लसीका पर्वों के एक वर्ग का उच्छेदन करना इस रोग का उपचार है।
  • Chronic Prostatitis -- विरकारी पुरःस्थशोथ
इस रोग में पुरःस्था ग्रन्थि में पुरानी सूजन हो जाती है और आगे चलकर तन्तु ऊतक (fibrous tissue) के बनने के कारण मसाने की गर्दन (मूत्राशय ग्रीवा-bladder neck) सिकुड़ जाती है। कभी-कभी इस रोग का कारण गोनोकोक्स संक्रमण होता है। बाद में मूलाधार तथा जांघ के अन्दर की ओर में दर्द होता रहता है तथा पेशाब करने में तकलीफ (मूत्रकृच्छ-) होती है। इलाज करते समय शूरु में प्रतिजीवी औषधियों (antibiotics) का प्रयोग, विस्फारग (पेशाब के रास्ते का चौड़ा करना- dilatation), पुरःस्थ ग्रन्थि की मालिश करना शामिल है। रुढ़ चिकित्सा (conservative treatment) से ठीक न होने पर आभ्यन्तर (अन्दर के) मूत्रमार्ग द्वार (पेशाब की नली का अन्दरूनी मुंह – ) के पश्च ओष्ठ (posterior lip) का शंकुरूप उच्छेदन (wedge resection) कर दिया जाता है।
  • Ehylocele -- अंडधर कंचुक (tinica vaginalis) कोश में वसा लसीका (Chyle) या लसीका (lymph) का संग्रह।
ऐसी अवस्था प्रायः फाइलेरिया रोग (filariasis) के साथ-साथ होती है। इस रोग की चिकित्सा पहले मूल रोग, जैसे फाइलेरिया रोग, की चिकित्सा करना है। इसके बाद अपस्फीत लसीका वाहिनियों के साथ या उनको छोड़कर कोश का बहिर्वर्तन तथा अवपूर्ण उच्छेदन करना होता है।
  • Chyluria -- वसा लसीकामेह
मूत्र में वसालसीका की उपस्थिति का होना, जिससे मूत्र का रंग दूधिया हो जाता है। यह अवस्था एक परजीवी पर्याक्रमण (parasitic infestation) – काइलूरिया ट्रोपिका-के परिणाम स्वरूप हो सकती है। इस रोग की चिकित्सा कारणानुसार की जाती है।
  • Cicatrization -- क्षतांकन
कोई विरोहण उपक्रम (healing process) जो बाद में क्षत चिह्न (scar) छोड़ जाता है।
  • Circular Bandage -- मंडल पट्टी अथवा बन्ध
गोलाकार पट्टी।
  • Ciliotomy -- रोमक तंत्रिका छेदन
रोमक नाड़ी तंतु का शस्त्रकर्म द्वारा विछेदन।
  • Circulation -- परिसंचरण
रक्त का हृदय से धमनियों, कोशिकाओं और शिराओं में होते हुए सक्रिय रूप से लगातार बहते रहने की अवस्था, जिसके द्वारा श्वसनीय गैसोंस पोषण एवं वर्ज्य पदार्थों तथा हार्मोन आदि का घुली अवस्था में विभिन्न अंगों को पहुंचाना और उनसे वापस लाना संभव होता है।
  • Circumcision -- सुन्नत या खतना
शिश्नमुण्डनच्छेद या सुपाड़ी को ढकने वाली खाल के फालते (redundent) हिस्से को शस्त्रकर्म के द्वारा काट देना। यह शस्त्रक्रिया धार्मिक प्रथा के अनुसार या अर्बुद या फाइमोसिस (निरुद्ध प्रकाश) में किया जाता है।
  • Cisternal Puncture -- महाकुंड-वेधन
निदान एवं चिकित्सा के उद्देश्य से प्रमस्तिष्क मेरु तरल (C.S.F) को बाहर निकालने के लिये पश्चकपाल-शीर्षधर स्नायु के द्वारा महाकुंड में वेधन करना। इसका प्रयोग अवरोही मेरु रज्जु चित्रण (descending myelography) करने के लिये रेडियोअपाक् माध्यम (radio opaque medium) का निवेश करने में भी किया जाता है।
  • Citrated Blood -- साइट्रेटिड रुधिर
रक्त स्कन्दन को रोकने के लिए सोडियम साइड्रेट नामक द्रव मिश्रित रक्त।
  • Clavicotomy -- अक्षकास्थिछेदन
शस्त्रकर्म द्वारा अक्षकास्थि का विभेद करना।
  • Clamp -- संदंश संघर
अंग अथवा अवयव का संघश द्वारा पीडन करना।
  • Clamp Forceps -- संधर यंत्र संदंश
एक संदंश जिसमें स्वतःचालित ताला होता है। इसका उपयोग धमनियों तथा वृत्तों को सम्पीड़ित करने में किया जाता है।
  • Claw Hand -- नखर हस्त
हाथ की एक विरुपता जिसमें हथेली और अंगुलियों की हड्डों के बीच के जोड़ों (करम-अंगुलिं संधियों) का अधिक फैलाव (अतिप्रसार) और अंगुलियों के बीच के जोड़ों (अन्तरांगुलि संधियों) का अति आकुंचन (hyperfusion) हो जाता है। प्रायः इस बीमारी के कारण अन्तः प्रकोष्ठिका तंत्रिका घात (ulnar verve palsy) तथा बाह्यप्रकोष्ठिका तंत्रिका घात (median nerve palsy) हैं। भौतिक चिकित्सा (physiotherapy) तथा शस्त्रकर्म के द्वारा ठीक करना इस बीमारी का उपचार है।
  • Cleft Lip Or Hare Lip -- खण्डोष्ठ
इसका मतलब ऊपर के ओष्ठ (होठ-lip) में पैदायशी दरार या विदर (fissure) का पड़ जाना या दोष होना है जो सामान्यतया मध्यम नासा तथा ऊर्ध्व हनु प्रवधों के न मिलने के कारम उत्पन्न होता है। यह दोष खण्ड तालु के साथ-साथ मिल सकता है। यह पूर्ण या अपूर्ण दो प्रकार का होता है तथा एक पार्श्वी या द्विपार्श्वी (एक तरफ या दोनों तरफ-unilateral or bilateral) हो सकता है। शस्त्रकर्म से इस विरूपता को दूर किया जा सकता है।
  • Cleft Palate -- खण्ड तालु
तालु के बीचों-बीच पैदायशी (जन्मजात-) दरार (विदर- ) का होना। गर्भावस्था में बच्चे के विकास के समय दोनों तरफ के प्रवर्ध (processes) बढ़ते-बढ़ते आपस में मिल नहीं पाते, जिससे बीच में दरार रह जाती है। चिकित्सा का उद्दश्य ठीक से बोलना तथा दातों का ठीक से निकलना (दन्तोद्भेदन-dentition) है।
  • Cleidotomy -- गर्भ अक्षकास्थि छेदन
कष्ट प्रसव को सुखपूर्वक प्रसव कराने के लिये गर्भ के अक्षकास्थि का शस्त्रक्रिया द्वारा छेदन।
  • Clicking Hip -- क्वणनकर नितम्ब
नितम्ब को फैलाने या उसे एक तरफ को घुमाने के समय नितम्ब संधि के आसपास किटकिट की आवाज निकलती है। यह आवाज अंगुलियों को चटकाते समय निकलने वाली आवाज की तरह वायु के न रहने (vaccum) के कारण उत्पन्न होती है।
  • Clinical Surgery -- लाक्षणिक शल्यविज्ञान अथवा शस्त्रक्रिया
रोगी की देखरेख से संबंधित शल्य विज्ञान।
  • Clinodactyly -- वक्रागुंलिता
एक या अधिक अंगुलियों का स्थायी (permanent) रूप से पार्श्व या अभिमध्य (lateral or mediai) और विचलन (deviation) या विक्षेप (deflection) होना।
  • Clitoridectomy -- भगशिश्निका का उच्छेदन
भगशिश्निका का शस्त्रकर्म द्वारा उच्छेदन।
  • Clitoroplasty -- भगश्श्निका संधानकर्म
शस्त्रकर्म द्वारा भगश्श्निका का संधानकर्म या प्लाष्टिक् सर्जरी।
  • Clotted Blood -- स्कन्दित रक्त
जमे हुए रक्त का थक्का।
  • Clotting -- स्कन्दन
रक्त का जमना।
  • Club Foot Or Talipes -- मुद्गर-पाद
पैर की एक पैदायशी विरूपता जिसमें पैर का पादतल आकुंचन (यानी नीचे की तरफ को मुड़ना) तथा अभिवर्तन (शरीर की तरफ को मुड़ना) हो जाता है जिसे उन्नत अनतर्गत टेलिपेस (talipes equinovarus) कहा जाता है। विरूपता को ठीक करना, हाथ से ठीक स्थान पर लाना (manipulation) या शस्त्रकर्म इस रोग की चिकित्सा है।
  • Coagulation -- स्कंदन
प्रायः शरीर के बाहर निकलते ही तरल रूधिर के जम जाने की क्रिया। अन्य कारकों के साथ-साथ थ्रिम्बन (नामक उत्प्रेरक के स्राव से घुलनशील फाइब्रिनोजन (fibrinogen) अघुलनशील फाइब्रिन (fibrin) तंतुओं के जाल में बदल जाता है। इस जाल से रूधिर कोशिकाएँ बाहर नहीं निकल पातीं और उस स्थान पर थक्का बन जाता है। इससे रक्त का बाहर निकलना बंद हो जाता है।
  • Coarctotomy -- निकुंचन निर्हरणकर्म
शस्त्रक्रिया द्वारा निकुंच (stricture) का निर्हरण।
  • Coccygectomy -- अनुत्रिकास्थि छेदन
अनुत्रिकास्थि का शस्त्रक्रिया द्वारा छेदन करना।
  • Coceyx -- अनुत्रिकास्थि
  • Cold Abscess -- शीतल विद्रधि
यह फोड़ा तपेदिक (यक्ष्मा) के कारण उत्पन्न होता है। इसमें सूजन के चिह्न प्रायः नहीं पाये जाते। फोड़ा किसी भी ऊतक (tissue) में हो सकता है। इस प्रकार के रोगियों में तपेदिक के साथ दूसरे चिह्न भी अक्सर मिलते हैं। प्रायशः यह फोड़ा तपेदिक को रोकने वली दवाइयों के इस्तेमाल से ठीक हो जाता है। कभी-कभी इसके अन्दर का पीप को बाहर निकालना जरूरी हो जाता है।
  • Colectomy -- बृहदंत्र उच्छेदन
बृहदंत्र के एक भाग या पूर्ण बृहदंत्र को शस्त्रकर्म द्वारा उच्छेदन करके बाहर निकाल देना। यह शस्त्रकर्म अर्बुद, व्रणीय बृहदांत्र शोथ (ulcerative colitis) जैसी अवस्थाओं में किया जाता है।
  • Clooes’ Fracture -- कॉलिस अस्थिभंग
तने हुए हाथ के ऊपर गिरने से बहिःप्रकोष्ठिका-अस्थि (radius bone) के दूरस्थ अन्त (-दूर के आखिरी हिस्से पर) पर अस्थि भंग हो जाता है। यह चोट 50 साल से कम की आयु के व्यक्तियों में देखी जाती है तथा स्त्रियों में अधिक सामान्य है। रोगी में डिनर फॉर्क विरूपता (dinner fork deformity) देखने को मिलती है। अस्थि भंग बहिः प्रकोष्ठिकास्थि के दूरस्थ संधायक पृष्ठ (distal articular surface) से 2 निकट (proximal) होता है। इसमें स्थानिक दाबवेदना मिलती है (local tenderness)।
  • Collar Bone -- अक्षकास्थि
उरःफलक तथा अंस फलकों को जोड़ने वाली जत्रु प्रदेश में स्थित अस्थि।
  • Coloclyster -- बृहदान्त्र बस्ति
बृहदान्त्र तक दिये जाने वाली बस्ति।
  • Colocholecystostomy -- पित्ताशय वृहदान्त्र सम्मिलन
शस्त्रकर्म द्वारा पित्ताशय एवं वृहदान्त्र को जोड़ना।
  • Colocystoplasy -- बृहदान्त्र-मूत्राशय संधान
एक प्लास्टिक शस्त्रकर्म, जिसके द्वारा मूत्राशय के आकार (size) को बढ़ाया जाता है। मूत्राशय धारिता को बढ़ाने के लिये अलग हुए श्रेणी-बृहदान्त्र (isolated colon) पाश (loop) का मूत्राशय बुध्न (fundus of the urinary bladder) के साथ साम्मिलन (anastomosis) कर देते हैं। कभी-कभी काम के लिए एक रक्त सम्भरित शेषांत्र पाश (loop of ileum) को इस्तेमाल में ले आते हैं। तब इसे शेषान्त्र-मूत्राशय-संधान (ileocystoplasty) कहते हैं। ये शस्त्रकर्म छोटे संकुचित मूत्राशय की धारिता को बढ़ाने के लिये आमतौर पर आवश्यक होते हैं।
  • Colon -- बृहदांत्र
कशेरुकाधारी प्राणियों में छोटी आँत और मलाशय के बीच का भाग जहाँ अपचय भोजन से पानी का अवशोषण होता है।
  • Colonoscopy -- बृहदांत्र दर्शन
बृहदान्त्रदर्शी (colonoscope) द्वारा बृहतान्त्र (large intestine) की गुहान्तर्दर्शी परीक्षा (endoscopic examination) करना।
  • Colostomy -- बृहदांत्र छिद्रीकरण
उदर के पृष्ठ (surface) पर शस्त्रकर्म द्वारा बड़ी आंत का द्वार बनाना। यह अस्थायी (temporary) या स्थायी (permanent) हो सकता है।
  • Coloproctectomy -- बृहदान्त्रमलाशयउचछेद
व्रणज बृहदान्त्र शोथ में शस्त्रकर्म द्वारा बृहदान्त्र और मलाशय का उच्छेदन करना।
  • Colopuncture -- बृहदान्त्र वेधन
आध्मान को दूर करने के लिये बृहदान्त्र में शस्त्र क्रिया द्वारा किये जाने वाला वेधबृहदान्त्र मलाशय सम्मिलन

शस्त्रकर्म द्वारा बृहदान्त्र एवं मलाशय सम्मिलित करना

  • Colorectostomy -- वृहदान्त्र अवग्रहान्त्र सम्मिलन
शस्त्रकर्म द्वारा बृहदान्त्र एवं मलाशय सम्मिलित करना
  • Colosigmoidostomy -- वृहदान्त्र अवग्रहान्त्र सम्मिलन
शस्त्र क्रिया द्वारा अधोवृहदान्त्र एवं श्रोणिवृहदान्त्र को सम्मिलित करना।
  • Colostomy Bag -- बृरदान्त्र छिद्र थैली
आन्त्रोछेदन शस्त्रकर्म के उपरान्त, आन्त्र मुख के ऊपर धारण की जाने वाली थैली जो मल का ग्रहण करे।
  • Colotomy -- बृहदांत्रछेदन
बृहदांत्र के आगन्तुक शल्य (foreign body) तथा सुदम्म अर्बुदों (benign tumours) को बाहर निकालने के लिए शस्त्रकर्म द्वारा एक द्वार बनाना।
  • Colour Blindness -- वर्णांधता
वर्ण विभेदन की क्षमता का अभाव जो एक्स सहलम्नी अप्रभावी जीन से संबंधित एक वंशानुगत दोष है। यह स्त्री द्वारा संप्रेषित होकर पुरुषों में प्रकट होता है। स्त्रियों में यह वर्णांधता दोष समययुग्मजी स्थिति के कारण उत्पन्न होता है, जिसमें दोनों एक्स गुणसूत्र एक ही विस्थल पर आ जाते हैं।
  • Colpatresia -- योनि अछिद्रता
योनि में छिद्र का अभाव होना।
  • Colpectomy -- योनि उच्छेदन
शस्त्रकर्म द्वारा योनि का उच्छेदन करना।
  • Colpocystosyrinx -- मूत्राशय नाड़ी व्रण
मूत्राशय एवं योनि मार्ग को जोड़ने वाला नाड़ी व्रण।
  • Colpomyomectomy (Colpomyomotomy Colpomyotomy) -- गर्भाशयावृद्र योनि मार्ग से उत्छेदन
गर्भाशय के पेशी अर्बुद को योनि मार्ग से शल्य क्रिया द्वारा निर्हरण।
  • Colopopexy -- योनि-उदरभित्ति स्थिरीकरण
योनिभ्रंशादि की अवस्था में योनि का उदरभित्ति स्थिरीकश्णार्थ शस्त्रकर्म।
  • Colpoplasty -- य़ोनि संधान
योनि पर शल्य संधान कर्म।
  • Colpostenotomy -- योनि-निकोचनोच्छेदन
योनि में पाई जाने वाली संकीर्णा का शल्य कर्म द्वारा निर्हरण करना।
  • Colpotomy -- योनि भेदन
योनि पर किये जाने वाले भेदन शल्य कर्म।
  • Colpoureterotomy -- योनि-गवीनी छेदन
योनिमार्ग द्वारा गवीनी या मूत्रवाहिनी छेदन।
  • Colpoperineorrhaphy -- योनि-मलाधार सीवन
मलाधार तथा योनि का सीवन कर्म।
  • Comminuted Fracture -- विखंडित अस्थिभग्न
इस अस्थिभंग में सीधी चोट लगने से हड्डी के कई टुकड़े हो जाते हैं। इसका उपचार भी वही है जो दूसरे भग्नों का है।
  • Commissurotomy -- संयोजिकाछेदन
इस शस्त्रकर्म में संकीर्ण कपाटिका (stenosed valve) अर्थात् द्विपर्दी या महाधमनी कपाटिकाओं (mitral or aortic valves) को विभक्त किया जाता है।
  • Compact Osteoma -- संहत अस्थि-अर्बुद
ह छोटी गांठ के समान, बाहर से सख्त, घना लेकिन अन्यथा सामान्य अस्थि ऊतक है जो कपाल की बाहरी टेबल के अन्दरूनी भाग से निकलता है।
  • Compact Bone -- घन अस्थि/सुसंहत अस्थि
दृढ़ रचना युक्त अस्थि।
  • Complete Abortion -- पूर्ण गर्भपात
जिस गर्भपात में (22 सप्ताह से अधिक का) गर्भ संपूर्णतः एक साथ बाहर आता है, वह पूर्ण गर्भपात कहलाता है।
  • Compound Fracture -- विवृत अस्थिभग्न अथवा सम्मिश्र अस्थि भग्न
इस प्रकार के भग्न में अस्थि टूटकर मांस, त्वचा आदि का छेदन करके बाहर निकल आती है। इसकी चिकित्सा शल्य चिकित्सी आपात (surgical emergency) स्थिति के अनुसार करनी चाहिये अर्थात् (1) स्तबुद्धता का चिकित्सा (shock), (2) व्रण (क्षत-) की सफाई, (3) प्रतिजीवी औषधियों (antibiotics) का प्रयोग, (4) भग्न अस्थि का पुनः स्थापन (reduction) तथा (5) अचलीकरण (immobilisation)
  • Compression Bandage -- सम्पीडन पट्टी
दबाव के साथ बांधी जाने वाली पट्टी।
  • Compression Fracture -- सम्पीडन अस्थिभग्न
इस प्रकार की हड्डी का टूटना प्रायः पर ऊंचाई से एड़ी या नितम्ब (buttocks) के ऊपर से गिरने से लम्ब सम्पीडन बल (vertical compression force) के परिणाम स्वरूप होता है। भग्न होने के सामान्य स्थान कशेरुकाल (रीड़ की हड्डी- vertilebral bodily) तथा पार्ष्णिकास्थि (एड़ी की हड्डी) है। इसकी चिकित्सा भी वही है जो दूसरे अस्थिभग्न की है।
  • Concussion -- संघट्टन
इस अवस्था में रोगी को सिर में चोट लगने से शरीर से शरीर मे बिना किसी नुकसान के थोड़ी देर के लिए होश नहीं रह जाता और बाद में पूरी तरह से होश आ जाता है। रोगी की तंत्रिका और मस्तिष्क सम्बन्धी चोटों (injuries) को, जिसमें सम्पीड़न (compression) भी शामिल है, इस अवस्था में सूक्ष्म निरीक्षण के बाद ही चिकित्सा प्रारम्भ करनी चाहिए।
  • Condyloma -- कॉडिलोमा
गुद या भग (anus or valva) के पास चर्मकील (wart) के समान अपवृद्धि (excrescence) का होना। यह अपवृद्धि प्रायः रतिज रोग (veneral disease) के कारण होती है।
  • Congenital Torticollis -- जन्मजात मन्यास्तम्भ
पैदायशी चोट (birth injury) के कारण उरोजत्रुककर्णमूलिका पेशी में रक्ताबुद बन जाने के कारण नवजात शिशु के सिर का एक तरफ झुक जाना। ऐसी हालत में आगे होने वाली विरूपता (deformity) को बचाने के लिए प्रायः शस्त्रकर्म द्वारा चिकित्सा किया जाता है।
  • Congenital Scoliosis -- जन्मजात पार्श्व कुब्जता
जन्मजात अर्धकशेरुका (hemivertebral) के कारण उत्पन्न होने वाली पार्श्विक कुब्जता। इसके साथ-साथ जन्मजात पर्शुका असंगतियां (rib anomalies) भी हो सकती है।
  • Contrecoup -- विपरीतांग पात
मस्तिष्क में चोट लगने के कारण चोट का प्रभाव शरीर के विपरीत पक्ष के अगों में होने। यह प्रभाव कभी-कभी फुफुस एवं यकृत में भी पायी जाती है।
  • Contusion -- काँन्टयुजन
प्रायः किसी भुथरी चोट (Blunt injury) लगने के कारण त्वचा की सतह के नीचे मृदु ऊतकों में रक्त रिस रिस कर इकट्ठा हो जाता है, जिससे त्वचा के ऊपरी हिस्से पर नील पड़ा हुआ दिखाई देता है।
  • Cornea -- नेत्र स्वच्छमंडल, कार्निया
कशेरूकाधारी प्राणियों में नेत्र गोलक की बाहरी परत की पुतली के सामने वाला पारदर्शी भाग, जिसमें आइरिस और लेंस के बीच नेत्रोद भरा रहता है।
  • Comminute -- अस्थि विखंडन
अस्थिभग्नादि कारण से अस्थि का विखंडन अथवा चूर्णित हो जाना।
  • Costosternoplasty -- पर्शुका-उरोस्थिसंधान
शस्त्रकर्म द्वारा वक्ष की (chest) कीपाकार (funnel shaped) विरुपता (deformity) का सुधार करना।
  • Costotome -- पर्शुकाविच्छेदक
एक यन्त्र, जो पर्शुका विभाजन में प्रयुक्त होता है।
  • Costotransversectomy -- पर्शुका-अनुप्रस्थ प्रवर्ध-उच्छेदन
इस शस्त्रकर्म में पसली (पर्शुका-rib) के पश्च-भाग का कशेरुका अनुप्रस्थ प्रवर्ध (tranverse process of bertebra) के साथ उच्छेदन किया जाता है। यह उच्छेदन यक्ष्मज विद्रधि (तपेदिक के कारण बने फोड़े – ) के उत्सारण (evacuation – बाहर निकालना) के लिये किया जाता है।
  • Cotton Lint -- कपास पट्टी
निम्न स्तर के लिंट जो कपास सूती कपड़े से बनती है।
  • Counter Incision -- सहायक-छेदन
विद्रचि गुहा (abscess cavity) के आश्रित भाग पर एक द्वार बनाना तथा बाद में अधिकतम उद्धर्तित या उभरे हुए स्थान पर (protrusion) छेदन द्वारा पूय का निकास कराना।
  • Counter Punture -- सहायक-वेधन
एक द्वार के विपरीत दूसरा द्वार बनाना।
  • Coxa Vara -- अन्तर्नत नितम्ब
उरू अस्थि ग्रीवा (जांघ की हड्डी की गर्दन) की विरूपता जिसमें ग्रीवा और अस्थि कांड (गर्दन और तने) का कोण (angle) घट जाता है। यह रोग जन्मजात (पैदायशी) या अर्जित (बाद में होने वाली) हो सकती है। जब ग्रीवा और अस्थि कांड का कोण बढ़ जाता है तब इस अवस्था को बहिनर्त नितम्ब (coxa valga) अर्थात नितम्ब (Hip) का बाहर की ओर मुड़ जाना कहा जाता है। इसका चिकित्सा शस्त्रकर्म के द्वारा किया जाता है।
  • Cracked Nipple -- विदीर्ण चूचुक
यह एक सुदम (benign) अवस्था है। यह अधिकतर उन दूध-पिलाने वाली माताओं मं देखी जाती हैं जो चूचुको की सफाई अच्छी प्राकर से नहीं रख पाती। यह अवस्था तीव्र संक्रमी स्तनशोथ (acute infective mastitis) का कारण बन सकती है। इसका निदान (diagnosis) आसानी से हो जाता है। यह रोग न हो, इसकी रोकदान के लिये बच्चों को दूध पिलाने से पहले तथा बाद में चूचुकों को अच्छी तरह साफ कर लेना चाहिये।
  • Cranial Bone -- कपालास्थि
कपाल प्रदेश स्थित अस्थि।
  • Craniectomy -- कपाल-उच्छेदन
कपाल के एक हिस्से को काटकर/(excision) निकाल देना।
  • Cranio-Cleidodysostosis -- करोटि-जत्रुक दुरास्थिता या दुरस्थि विकसन
यह कलास्थियों (membrane bones) का जन्मजात गलत विकास (faulty development) है, जो खासतौर पर हंसली की हड्डी (जत्रुकास्थि), श्रोणि (कूल्हे की हड्डी) और खोपड़ी की हड्डी (करोटि) पर असर करता है।
  • Craniopharyngioma Hypophyseal Duct Tumour -- क्रेनियोफेरिन्जियोमा
अर्बुदों का एक समूह है, जो पीयूषिका ग्रंथि वाहिनी (hypophyseal duct) से उत्पन्न होते हैं। ये अर्बुद पर्याणिका (sella turcica) के अंदर अधिपर्याणिक क्षेत्र (suprasellar region) में या तृतीय निलय (third vertricle) के अंदर हो सकते हैं। चूंकि ये अर्बुद आधारी धमनी तथा पास की लगी हुई तंत्रिकाओं से चिपके रहते हैं, इसलिए इनको काटकर निकाला नहीं जा सकता। इस अर्बुद के होने के लक्षण रोगी की आयु तथा अर्बुद की स्थिति पर निर्भर करते हैं। यदि संभव हो तो इसका इलाज केवल ऑपरेशन ही है।
  • Cranioplasty -- कपाल संधानकर्म
कपाल के दोष (defect) तथा विरूपताओं (deformities) के संधान शस्त्रकर्म (plastic surgery) द्वारा सुधारना।
  • Craniostenosis -- कपालसंकीर्णता
यह एक ऐसी अवस्था है जिसमें करोटि सीवनों (cranial sutures) का कालपूर्व मिलान (premature fusion) हो जाता है जिससे अन्दर में स्थित मस्तिष्क के उचित विकास या परिवर्धन में रुकावट पैदा होती है। यदि इस अवस्था का ज्ञान प्रारम्भिक शैशवावस्था में हो जाए तो शस्त्रकर्म द्वारा करोटि तोरण (cranial vallate) की टेबल को अलग करके मस्तिष्क का उचित विकास होने दिया जा सकता है।
  • Craniotome Cephalotome -- कपाल भेदन शस्त्र
एक शस्त्र जिसका उपयोग गर्भस्थ शिशु की कपालास्थि के भेदन के लिए किया जाता है।
  • Craniostynostosis -- कपाल संयोजन
कपाल के वनों का समय से पहले बंद होना।
  • Craniotabes -- कपालशोथ
इस रोग में कपाल की हड्डियों, (कपालास्थियों) में मुलायमित (मृदुता) और विरलन (rarefaction) हो जाता है जिसकी वजह से उनके सीवन (sutures) जौड़े हो जाते हैं। यह बीमारी सिफिलिस् और मरासमस रोग (rickets) में प्रायः देखी जाती है।
  • Craniotomy -- कपालछेदन
शस्त्रकर्म द्वारा खोपड़ी (कपाल) में छेद करना। यह छेद प्रायः कपाल के अन्दर की जगहों (अन्तर्कपालप्रदेशों) की जाँच (निदान) के लिए बनाया जाता है।
  • Cancerogenic -- कैंसरजनीय, अर्बुदजनीय
कीटनाशी, पीड़कनाशी पदार्थ या रसायन के कैंसर (अर्बुद) उत्पादन करने वाले गुण के लिए प्रयुक्त।
  • Crepitus -- करकर
ध्वनि ओंत से निकलनेवाली वायु से उत्पन्न टूटी हुई हड्डियों के सिरों, अनियमित जोड़ों या कंडरा पृष्ठों के रगड़ने से पैदा होने वाली एक अपसामान्य आवाज। यह आवाज अधस्त्वक ऊतकों (खाल के नीचे के ऊतकों) में वायु के घिर जाने के कारण भी सुनाई देती है।
  • Crile’S Clamp -- क्राइल संघर
एक रबर रहित धमनी संधर जो वाहिका सम्मिलन (vascular anastomosis) करते समय अस्थायी रक्तस्तम्भन का कार्य कारय करता है।
  • Criminal Abortion -- आपराधिक गर्भपात
बिना किसी चिकित्सीय कारण के गैर कानूनी तरीके से गर्भ को गिराना आपराधिक गर्भपात है।
  • Crush Syndrome -- पिच्चन संलक्षण/क्रष सिंण्ड्म
किसी बड़ी पेशी में पिच्चन क्षति (अर्थात् ऐसी चोट जिससे मांस पिच जाए- ), के बाद अक्सर होने वाली अल्पमूत्रता (oliguria) तथा वृक्कपात (renal failure) की अवस्था।
  • Cryosurgery -- शैत-शल्य चिकित्सा
इस शस्त्रकर्म में ऐसे शस्त्र का प्रयोग होता है जो अत्यधिक ठण्डा होने के कारण ऊतकों (tissues) को बिना खून बहाए काटता है।
  • Cubitus Valgus -- बहिर्नत कफोणि या प्रकोष्ठ
कोहनी के जाड़ (कूर्पर संधि) के सामान्य बाहुवाहक कोण (carrying angle) का बढ़ जाना। आमतौर पर यह प्रगण्डास्थि (बाहु की ऊपरी हड्डी) के पार्श्व स्थूलक (lateral condyle of the humerus) के टूट जाने से होता है। इससे अन्तः प्रकोष्ठिका तंत्रिका का हल्का लकवा (घात) हो जाता है। शस्त्रकर्म करके इस विरूमता को ठीक करना ही इस रोग की चिकित्सा है।
  • Cubitus Varus -- अन्तर्नत कफ़ोणि या प्रकोष्ठ
कोहनी के जोड़ (कूर्पर संधि ) के बाहु वाहक कोण का कम हो जाना। यह विरूपता बाहु के ऊपर की हड्डी (प्रगण्डास्थि) के अधिस्थूलक (supracondyle of humerus) के टूट जाने पर उसके ठीक तरह से न जूड़ पाने के कारण उत्पन्न होती है। ऑपरेशन करके उसको ठीक करना ही इसकी चिकित्सा है।
  • Cushing’S Syndrome -- कुशिंग संलक्षण
यह संलक्षण अधिवृक्क प्रान्तस्था (adrenal cortex) के अधिक हार्मोनी उत्पादन (out put) के कारण होता है। यह रोगलाक्षणिक अवस्था प्रान्तस्था के अर्बुद (tumour) या अतिविकसन (hyperplasia) के कारण भी हो सकती है। कभी कभी यह पीयूषिका ग्रन्थि (pituitary gland) की विक्षतियों (lesions) के बाद भी हो सकता है। इसकी चिकित्सा अक्सर शस्त्रकर्म द्वारा की जाती है।
  • Cylindroma -- बेलनाबुर्द
एक दुर्दम ग्रन्थिल अर्बुद जिसमें स्ट्रोमा बेलन के रूप में लगे रहते हैं। शस्त्रकर्म द्वारा काटकर बाहर निकाल देना ही इसका उपचार है।
  • Cyst -- पुटी या थैली
एक थैली जिसमें तरल (fluid) रहता है, ये थैलियां जन्मजात तथा अर्जित होती हैं। इसकी चिकित्सा शस्त्रकर्म है।
  • Cystectomy -- पुटी या मूत्राशय उच्छेदन
पुटी या मूत्राशय का उच्द्वेदन करना।
  • Cystic Hygroma -- लसपुटी अर्बुद
यह लसीका अवकाशों की एक पैदायशी (जन्मजात) अंसगति या गड़बड़ी है जो आमतौर पर गर्दन और बगल (axilla) में बहुत सी कोठरियों (बहुकोष्ठक) वाली पुटीमय सूजन पैदा करती है। इसकी चिकित्सा शस्त्रकर्म करके अर्बुद को काटकर बाहर निकालना (उच्छेदन-excision) है।
  • Cysticercosis -- सिस्टीसर्कसता अथवा सिस्टी सर्कोसिस
टीनिया सोलियम का लार्वा यह दीनिया रूप संक्रमण सोलियम के जीवन इतिहास में एक बीच की पुटीमय अवस्था (cystic stage) है और पुरुषों में कभी-कभी देखी जाती है। शरीर के किसी भी हिस्से में पुटी (cyst) हो सकती है और अक्सर उसमें कैल्सीभवन (calcification) हो जाता है। शस्त्रकर्म द्वारा इसको काटकर बाहर निकाल देना ही इसकी चिकित्सा है।
  • Cystitis -- मूत्राशयशोथ
इस अवस्था में पेशाब की थैली (मसाने अथवा मूत्राशय) में सूजन होती है। अधिकतर संक्रमण ई, कोलाई, स्ट्रेप्टोकोकस फीकलिस, स्टेफिलोकोकस आरियस तथा एल्बस और बी. प्रेटियस द्वारा होता है। सभी आयु के स्त्री-पुरुषों में यह रोग हो सकता है। यह रोग तीव्र तथा चिरकारी (पुराना) होता है। स्त्रियों में यह विशेषकर पाया जाता है। इस अवस्था में बार-बार पेशाब आता है (frequency of micturition) और दर्द तथा रक्तमेह (पेशाब में खून का आना – heamaturia) पाया जाता है। मूत्राशयनिरीक्षण (मूचाशयदर्शन cystoscopy) करने के बाद ही इस रोग का सही (निश्चित) निदान किया जाता है। मूत्रायशोथ कुछ विशेष प्रकार का भी होता है, जैसे तीव्र अजीवाणुज मूत्राशयशोथ (acute abacterial cystitis) जो स्वयं ही सीमित रहने वाला (limiting) रोग है परन्तु इस रोग की अवधि को प्रतिजीवी औषधियों के प्रयोग द्वारा छोटा जा सकता है।
  • Cystocele -- मूत्राशय-हर्निया वहिःसरण
बार-बार पेट में बच्चा पड़ने (सगर्भता) से योनि की दीवाल के कमजोर पड़ जाने के कारण उस कमजोर हिस्से से मूत्राशय का बाहर को निकल आना। ऐसी हालत में बार बार पेशाब आता है और मूत्र के दबाव के कारण पेशाब बाहर निकल आता है। शस्त्रकर्म द्वारा विरोहण (repair) कर दिया जाता है।
  • Cysto-Diathermy -- मूत्राशय-डायाथर्मी
मूत्राशयदर्शी (cystoscopy) के द्वारा मूत्राशय के र्बुदों का डायाथर्मी स्कंदन (diathermy coagualation) तथा विनाश करना।
  • Cystoduodenostomy (Juraz Operation) -- पटी-ग्रहणी सम्मिलन
ग्रहणी (duodenum) में विस्रावण शस्त्रकर्म द्वारा कूट पुटी का अग्न्यान्तर निकास (internal drainage)।
  • Cystoenterocele -- मूत्राशय-आंत्रहर्निया
मूत्राशय के एक भाग तथा आंत का हर्निया।
  • Cystogastrostomy -- पुटी-जठर सम्मिलन
कुट-अग्न्याशय पुटी (seudo-pancreatic cyst) का आमाशय क साथ आभ्यन्तर या भीतरी निकास के लिये शस्त्रकर्म द्वारा सम्मिलन।
  • Cystography -- मूत्राशय चित्रण
मूत्राशय (urinary bladder) का रेडियो-अपारदर्शी पदार्थ के निवेशन (instillation) के बाद एक्स-रे वीक्षण (radiological visualization) करना।
  • Cystojejunostomy (Juraz Operation -- पुटी-मध्यांत्र सम्मिलन
मध्यांत्र में शस्त्रकर्म द्वारा कूट अग्न्याशय पुटी (pseudo pancretic cyst) का आभ्यन्तर निकास (internal drainage)।
  • Jcysto-Lithotomy -- मूत्राशय-अश्मरी हरण
शस्त्रकर्म द्वारा मूत्राशय में अश्मरी (पथरी) को निकालना।
  • Cystopexy -- मूत्राशय-स्थिरीकरण
मूत्राशय हर्निया की चिकित्सा के लिये मूत्राशय को उदर भित्ति से स्थिर करना।
  • Cystoscope -- मूत्राशय दर्शी
एक यंत्र जिसके द्वारा मूत्राशय की परीक्षा करते हैं।
  • Cystocscopy -- मूत्राशय दर्शन
मूत्राशयदर्शी (cystoscope) द्वारा मूत्राशय की परीक्षा करना।
  • Cystostomy -- मूत्राशय-छिद्रीकरण
मूत्राशय के बाहरी निकास (external drainage) के लिये शस्त्रकर्म द्वारा छेद (opening) बनाना।
  • Cystotomy -- मूत्राशयछेदन
मूत्राशय में (प्रायः पथरी को निकालने के लिये) छेदन करना।
  • Cystourethroscope -- मूत्राशय-मूत्रमार्गदर्शी
एक गुहातदर्शी यंत्र जिससे मूत्राशय तथा मूत्रमार्ग की वीकषण किया जाता है।
  • Debridement -- क्षतशोधन
किसी संसर्गित व्रण (साफ तरीके से न रखे गए घाव) से शस्त्रकर्म द्वारा किसी आगंतुक शल्य को, जैसे बन्दुक की गोली, कपड़े के दुकड़े, हड्डियों के छोटे-छोटे टुकड़े तथा मृत्तक ऊतक (dead tissue) को साफ करना।
  • Decryocystitome -- अश्रुकोष छेदन यंत्र
अश्रुकोषगत विकृति को छेदन एवं भेदन द्वारा दूर करने के लिये उपयोगि यंत्र।
  • Dacro-Agogatresia -- अश्रुकोष आलेख
अश्रुकोष नलिका गत विकृति के ऊन हेतु अपारदर्शी द्रव्य द्वारा क्ष-किरण से परीक्षण।
  • Cacryo-Cystectomy -- अश्रुग्रन्थि मुखबन्द
अश्रुग्रन्थि की नलिका के मुख का बन्द होता।
  • Dacrocystitis -- अश्रु-ग्रन्थि उच्छेदन
शस्त्र कर्म द्वारा अश्रु ग्रन्थि के भित्ति को काटकर निकालना।
  • Dacryocystor Rhinostomy -- अश्रुकोश शोथ
संक्रमणादि से अश्रुकोश से नासामार्ग को जोड़ने के लिये शस्त्र कर्म द्वारा रन्ध्र विधान।
  • Dacryocystor Rhinotomy -- अश्रुकोष-नासा सम्मिलनीय शस्त्र कर्म
अश्रुकोष एवं नासा गत द्वार का खोलकर जोड़ना।
  • Dacryocystostenosis -- अश्रुकोश संकीर्णता
  • Dacryocystotomy -- अश्रुकोश भेदन
अश्रुकोश गत अवरोध से उत्पन्न द्रवसंग्रह को निकालने के लिये शस्त्र द्वारा भेदन।
  • Dacryocele -- अश्रुकोषविस्फारण
अशअरु कोष का उसमें संचित पूय अथवा अश्रु से विस्फारण।
  • Dacryocystography -- अश्रुकोष चित्रण
अश्रुकोषनलिकागत विकृति के ज्ञान हेतु अपारदर्शी द्रव्य द्वारा क्ष-किरण से चित्रण।
  • Dacryocystoptosis -- अशअरुकोष भ्रंश
अश्रुकोष का अपने स्थान से भ्रंश होना।
  • Dacryolith -- अश्रुकोषाश्मरी
अश्रुकोष में उत्पन्न होने वाली पथरी।
  • Dacryohaemorrhoea -- सरक्ताश्रुस्राव
रक्त से युक्त अशअरु का निकलना, अश्रुकोष से रक्तस्राव होना।
  • Dacryolithiasis -- अश्रुकोष में पथरी का निर्मा होना अश्रुकोषाश्मरी निर्माण
  • Dacryosps -- अश्रुवाहिनी द्रवाधिक्य
अश्रुवाहिनी की द्रवाधिक्य से अभिवृद्धि।
  • Dactylitis -- अंगुलिशोथ
प्रायः अंगुलियों या अगूंठे में सूजन हो जाना। प्रायशः इसका कारण तपेदिक या यक्ष्मा होता है।
  • Dalldorf’S Test -- डोलडोर्फस्-परीक्षण
कोशिका भंगुरता परीक्षण हेतु डालडोर्फ नामक वैज्ञानिक द्वारा प्रस्तुत किया गया परीक्षा-विधान।
  • Demoiseau’S Curve, Line Or Sign -- डेमोसियस वक्र, रेखा या चिन्ह
परिफुफ्फुस निस्सारण से उत्पन्न अपसंचय का रेखा आकोठन परीक्षा द्वारा ज्ञान, इसे एलिस वक्र भी कहते हैं।
  • Dana’S Operation -- डाना द्वारा विकसित शस्त्रकर्म
मेरुदण्ड से निकलने वाला तन्त्रिकाओं के ऊपर पड़ने वाले दबाव को कम करने के लिए शस्त्र कर्म क्रिया करना।
  • Dandy’S Operation -- डांडी द्वारा विकसित शस्त्रकर्म
थर्ड वैन्ट्रिकल में छेदन क्रिया द्वारा शस्त्रकर्म।
  • Darrow’S Solution -- डैरो विलयन अथवा घोल
यह एक विलयन हैं जो इलैक्ट्रोलाईट असंतुलन (electrolyte imbalance) तथा अम्लरक्तता या अम्लमयता (acidosis) को ठीक करने के लिए सोडियम कलोराइड तथा पोटोशियम के प्रतिस्थापन (replacement) के लिए प्रयुक्त किया जाता है।
  • Dattner Needle -- डाटनर सूची
मेरुदण्ड से प्रमस्तिष्कमेरुद्रव को निकालने के लिए एक विशिष्ट सूची जिसमें बाहृय नलिकार सूची के अन्दर एक और सूई होती है।
  • Davat’S Operation -- डावट डावर वैज्ञानिक द्वारा विकसित शस्त्रकर्म
अपस्फीति शिरा व्रण का शस्त्रकर्म जिसमें सूचीदाब के साथ-साथ सिरा बन्धन के द्वारा चिकित्सा की जाती है।
  • Daviel’S Operation -- डेवियल द्वरा विकसित शस्रकर्म
सन् 1752 में डेवियल नामक वैज्ञानिक मोतिया बिंदु निर्हरण के लिए विकसित शस्त्रकर्म।
  • Daviel’S Scoop Or Spoon -- डेवियल का स्कूप/दर्वी, डेवियल का चम्मच
पतले चम्मच के समान एक यन्त्र जिसका मोतियाबिन्दु निकालने के लिए शस्त्रकर्म में उपोग किया जाता है। डेवियल नामक विज्ञानी ने इका सन् 1752 में उपयोग किया था।
  • Davies-Colley Operation -- डेविस-कोल्ली द्वारा विकसित शस्त्रकर्म
पैर की टलिपस विकृति को दूर करने के लिए पादतल से अस्थि का कीलाकार भाग को निकालने की शस्त्र क्रिया।
  • Davis Graft -- डेविस निरोप/प्रत्यारोप [ पिंच निरोप ]
1/4” व्यास त्वचा के भाग का सूची द्वारा उठा कर और काट कर लिया गया प्रत्यारोप।
  • Davy’S Lever -- डेवी का उत्तोलक
पुरातन काल में श्रोणीफलक धमनी (IIiacartery) को दबाने के लिए प्रयुक्त लकड़ी से बना हुआ उत्तोलक।
  • Dawbarn’S Sign -- डावबार्न-चिह्न
तीव्र अधो अंश श्लेषपुरी शोथ की स्थिति में बांहों को लटकाकर श्लेषपुरी दबाने पर वेदना के जो अनुबूति होती है वह बांह फैलाने पर नहीं होती।
  • De Lange Sing -- डी लांगे चिह्न
नवजात शिशुओं के पाँवों को स्वस्तिक आकार में रखना।
  • De Lee’S Manoeuvre -- डीली की हस्तविधि
प्रसव काल में बाहृय या आन्तरिक हस्तविधि द्वारा आनन प्रस्तुति या अन्य विकृत प्रस्तुति को शीर्ष प्रस्तुति में लाने की विधि।
  • De Lima’S Operation -- डी लीमा का शस्त्रकर्म
नासिका विवर द्वारा नासाश्लेष्मक को बचाते हुए झईरिका का उच्छेदन।
  • De Martel’S Clamp -- डी मार्टेल संधर
तीन धारों से युक्त संधर जिसका बृहदन्त्र के पुनः विभागीकरण के लिए उपयोग किया जाता है।
  • De Morgan’S Spot -- डी मार्गन-चिह्न
प्रायः मध्य शरीर में पाया जाने वाला लघु रक्तवाहिका अर्बुद का।
  • Deafferentate -- अभिवाही तन्त्रिका कर्तन विधि
अभिवाही तंत्रिकाओं को काटना।
  • Deafferentation -- अभिवाही तन्त्रिका कर्तन विधि
अभिवाही तंत्रिकाओं को काटने की विधि।
  • Dearterialization -- धमनी द्वारा रक्त प्रवाह का वियोजन
शस्त्रकर्म द्वारा किसी धमनी के रूधिर के शिरा रूधिर में परिवर्तित करने की क्रिया।
  • Dearticulation -- संधि च्युति/सन्धि वियोजन
किस संधि को अपने स्थान से हट जाना।
  • Debove’S Tube -- डिबोव द्वारा विकसित नलिका
इसका अमाशय प्रक्षालन में उपयोग किया जाता है।
  • De-Bridement -- क्षत शोधन
व्रण प्रदेश से मृत कोशिकाओं तथा अन्य हानिकारक पदार्थों को निकाल कर व्रण शोधन करने की प्रक्रिया।
  • Decannulation -- नलिका निष्कासन
शरीर में प्रविष्ट की गयी नलिका को बाहर निकालना।
  • Decapitation -- शीर्षच्छेदन
शरीर के किसी भी अवयव/अग्र के शीर्ष भाग को शस्त्रकर्म द्वारा काटकर निकालना जैसे-प्राणि के शीर्ष, गर्भशीर्ष या अस्थिशीर्ष आदि को।
  • Decapitator -- शीर्षछेदक शस्त्र
मृत गर्भ निर्हरण के लिए शीर्ष को काटकर निकालने के लिए प्रयुक्त एक शस्त्र विशेष।
  • Decapsulation -- निरावृत्त करना
सम्पुट कोश को निकालना सम्पुट या कोशयुक्त अंग का विसम्पुरीकरण करना।
  • Decerebellation -- अनुमस्तिष्क विच्छेदन
शस्त्रकर्म द्वारा अनुमस्तिष्क को निकालना।
  • Decerebrate -- प्रमस्तिष्क विच्छेदन
शस्त्रकर्म द्वारा प्रमस्तिष्क को निकालना।
  • Decerebration -- प्रमस्तिष्क वियोजन
शस्त्रक्रिया द्वारा प्रमस्तिष्क को निकालने की प्रक्रिया।
  • Deciduoma -- पतनिकार्बुद/डेसिडओमा
गर्भाशय के अन्दर होने वाला पतनिका अर्बुद।
  • Deciduosarcoma -- पतिनिका सार्कोमा
जरायुज सर्कोमा (घातक अर्बुद)
  • Declive -- डिक्लाइव
प्रमस्तिष्क के वर्मिस पुच्छीय भाग का हिस्सा।
  • Decompression -- दबाव को हटाना
शरीर के किसी भी भाग से दबाव को कम करना।
  • Decontamination -- अप्रदूषण
किसी व्यक्ति, वस्तु अथवा पर्यावरण के हानिकारक प्रदूषण से मुक्त करना।
  • Decortication -- विप्रान्तस्थायन
मस्तिक अथवा किसी अवयव अंग के प्रानतस्थ ऊतक (cortical substance Tissue) को निकालना।
  • Decrustation -- पर्पटी निर्हरण
व्र संरोहण प्रक्रिया द्वारा वहिस्त्वक् प्रदेशस्थ पर्पटी का स्वतः अलग हो जाना या किसी प्रक्रिया से उसे अलग कर देना।
  • Decurtation -- अंगसूक्ष्मीकरण
शरीरावयवों को छोटा करना अथवा काटकर छोटा करना।
  • Decussorium -- कपालास्थि छेदकशस्त्र
मस्तिष्क गत शस्त्रकर्म में दृढ़तानिका (Duramater) को अवसाद के लिए उपयुक्त यन्त्र।
  • Dedentition -- दन्तपतन, दन्तपात
दन्तमूलगत सहायकाडास्थि (calveolar bone) विकृतिजन्य दन्तपतन।
  • Dedolation -- कर्तनवत पीड़ा
हाथ पैरों में खरोंच के समान पीड़ा।
  • Defibrillation -- तन्तु विकम्पन हरण
विद्युत तरंगों द्वारा हृदय को उत्तेजित कर अनियमित सम्पन्दन क्रिया को नियमित करना।
  • Defibrillator -- वितन्तु-विकम्पनित्र
एक उपकरण, जो निलय (ventricle) अथवा अलिंद (atrium) तन्तुविकम्पन को विद्युत आघात (electric shock) के द्वारा ठीक करता है। इसके दो प्रकार हैं-बाहृय तथा आभ्यन्तर। बाहय तन्तुविकम्पहरण (external defibrillation) के लिये इलैक्ट्रोड को पुरोहृद् के ऊपर प्रयुक्त किया जाता है, तथा आभ्यन्तर तन्तुविकम्पनहरण (internal defibrillation) के लिये इलैक्ट्रोड का प्रयोग सीधे निलय पिंड पर किया जाता है।
  • Defloration -- योनिछद का छिद्रीकरण (योनिछद भेदन)
योनिछद योनि परीक्षण के समय अथवा संभोग काल में स्वाभाविक स्वरूप से फट जाना।
  • Deform -- विरूप करना।
स्वाभाविक स्वरूप से अन्य रूप में परिवर्तन करना।
  • Deformation -- विरूपण
  • Deformity -- विरूपता
बदन के किसी हिस्से या किसी अंग (organ) के आकार या बनावट में विकार हो जाने से पैदा होने वाला परिवर्तन। यह विरूपता दिखाई देने वाली या न दिखाई देने वाली (छुपी हुई) हो सकती है। यह पैदाइशी (congenital) या तप्तश्चात् होने वाली (acquired) हो सकती है।
  • Defundation, Defundectomy -- गर्भाशय बुध्न विच्छेदन
शस्त्रक्रिया द्वारा गर्माशय बुघ्न का विच्छेदन।
  • Deganglionate -- गंडिका निर्हरण
गण्डिका को शस्त्र क्रिया द्वारा निकालना।
  • Degloving -- शस्त्र क्रिया
हस्त या पाद की त्वचा का दस्ताने की तरह चोट या शस्त्र क्रिया से निकल जाना।
  • Degrease -- स्नेह निर्हरण
वस्तु विशेष से स्नेह स्तर को निकालना।
  • Dehepatized -- वियकृत्कृत
प्रयोगशाला में प्राणियों के यकृत को निकालने के बाद की यकृत रहित अवस्था।
  • Dehiscence -- व्रण विदारण
शस्त्र कर्म के पश्चात् व्रण का पुनः खुलना।
  • De-La Camp’S Sign -- डीला कम्पस् चिह्न
श्वसनिका ग्रन्थि की वृद्धि के कारण पञ्यम एवं षष्ठ कशेरुका अस्थि के दोनों के दोनों पार्श्वों में प्रताड़न से होने वाली मद ध्वनि।
  • Deligation -- विबन्धीकरण, विबन्धन
शरीर के किसी भी अवयव या भाग को बन्धन मुक्त करना/खोलना।
  • Delirium -- प्रलाप
कारण विशेष से केन्द्रीय-तन्त्रिका-तन्त्र के उत्तेजित होने से उत्पन्न होने वाली अवस्था विशेष जिसमें चित-विभ्रम तथा प्रलाप की स्थिति उत्पन्न होती है।
  • Delivery -- प्रसव
शिशु जन्म होने की प्रक्रिया।
  • Delorme’S Operation -- डी लोर्मे का शस्त्रकर्म
हृदयावरण शोथ में स्थूला हृदयावरण का उच्छेद।
  • Delpech’S Abscess -- डेल्पेक विद्रधि
शरीर में होने वाली ऐसी विद्रधि, जिस शरीर में संगघटनात्मक अनियमितताएँ होती हैं तथा मन्द ज्वर भी होता है।
  • Demianoff’S Sigh (Laseguae’S Sign) -- डेमीनोआफ का चिन्ह
गृरसी रोग में पादोत्थान करने पर अत्यधिक वेदना की अनुभूति।
  • Demifacet -- अर्धफलक
अस्थि का अर्थ सन्धि मुख जिससे दो अस्थियों की सन्धियां जोड़ी जा सकती हैं।
  • Demigauntlet Bandgae -- डेमीगान्टलेट पट्टी
हस्त तथा अंगुली के लिये एक बन्ध पट्टी।
  • Deucosation -- विश्लेष्मन
शस्त्रकर्म द्वारा श्लेष्मकला का निर्हरण।
  • Denervate -- वितन्त्रीकरण करना
शरीर की नाड़ी तन्तुओं का कर्तन। यह औषधि या चोट के परिणाम से भी हो सकता है।
  • Denig’S Operation -- डेनीग का शस्त्रकर्म
नेत्रगत अनावृत शुक्ल मण्डल श्लेष्मकला का अन्य श्लेष्म कला से आवृत करना।
  • Denis Broun’S Splint -- डेनिस ब्रान का स्प्लंट कुशा
उन्नत-अन्तर्गत टेलिपेस (talipes equinovarus) की ठीक की हुई स्थिति को बनाए रखने के लिए काम में लाया जाने वाला स्प्लिंट।
  • Denonvillier’S Operation -- डेनोनविलिय का शस्त्रकर्म
नासिका के पार्श्व से त्वक् पालि लेकर विकृत नासा गुहा को प्लास्टिक शस्त्रकर्म द्वारा सुधारना।
  • Densography -- दन्तार्भप्रबर्ध चित्रण
क्ष किरण द्वारा किसी द्रव्य की विविध घटनाओं का चित्रण करना।
  • Dental Abscess -- दन्त विद्रधि
दंतवेष्ट में होनेवाली विद्रधि जो मांसपेशी तथा दंतमूल तक फैल सकती और तत्सम्बधी अस्थिनाश को करती है।
  • Dentalgia -- दन्तशूल
दन्त प्रदेश में होने वाली वेदना।
  • Dentine -- दंतधातु
दाँतों के दंतधातु भीतरी भाग को बनाने वाला कठोर पदार्थ, जो बाहर से इनेमल नामक कठोर पदार्थ से ढ़ँका रहता है। वह त्वचा के चर्म (डर्मिस) स्तर से उत्पन्न होता है, जबकि इनेमल अधिचर्म (एपिडर्मिस) से निकलता है।
  • Depage’S Position -- डीपेज का आसन/स्थिति
अधोमुख शरीर की स्थिति, जिसमें मध्य शरीर एवं अधः शाखा (पाद) उल्टे वी (^) का आकार बनाते है इस अवस्था को डीपेज की अवस्था कहते हैं।
  • Depancreatize -- अग्न्याशय को निकालना
प्राणी के विशिष्ट रोगावस्था में अग्नाशय का छेदन करके निकालना।
  • Depezzer Catheter -- डिपिजर नाल शलाका
ऐसी नाड़ी-शलाका जिसमें कन्दुक संलग्न होती है इससे वह अपने स्थान पर स्थिर रहती है।
  • Depilate -- रोम शातन करना
किसी अंग या अंग भाग से रोम/बालों को निकालना।
  • Depilation -- रोम शातन क्रिया
किसी अंग या अंग भाग से रोम/बाल निकालने की क्रिया।
  • Depressor -- अवनमनी
:(1) शल्य कर्म अथवा रोगी परीक्षण सुविधा के लिए ऐसे यन्त्र का उपयोग जो अवयवों को पकड़कर दबाने का कार्य करता हो।
(2) अभिवाही तन्त्रिका मांस पेशी जिनका कार्य अथवा कर्म का अवरोध करना है।
  • Depressed Fracture -- अवनत अस्थिभंग
यह अवस्था आमतौर पर करोटि (खोपड़ी) में देखी जाती है। खोपड़ी के छोटे से क्षेत्र में सीधे चोट लग जाने से इस प्रकार का अस्थिभंग हो जाता है। इसी प्रकार इसके अन्य स्थान, ऊरू और अन्तर्जंघिका के स्थूलकों (condyles) के पास के हैं जहां इस प्रकार का अस्थिभंग बहिर्नत (valgus) तथा अन्तर्नत (varus) आयास (strain) के परिणाम स्वरूप होता है। खोपड़ी के अवनमित अस्थिभंग में, (जो सिर पर चोट लगने से उत्पन्न होता है) यदि वह मस्तिष्क के किसी विशेष भाग के ऊपर है तो उत्थापन (उठाने-elevation) करने की आवश्यकता पड़ती है। अन्तर्जांघिका स्थूलकों के अवनमित अस्थि भंग में यदि सरंक्षी या रूढ़ चिकित्सा सफल नहीं होती त त्वचा को काटकर पुनः स्थापन (open reduction) द्वारा अस्थि खण्ड (fragment) को ऊपर उठाना आवश्यक हो जाता है।
  • Derivation -- निस्त्रावण, व्युत्पत्ति
किसी पदार्थ उद्गम स्रोत अथवा उद्गम का स्थान।
  • Dermanaplasty, Dermanoplasty -- त्वक्-सन्धान
त्वक् का सन्धान, शस्त्रकर्म द्वारा पुननिर्माण।
  • Dermataneuria -- त्वक् निः संसीकरण
तत्रिका प्रेरण (Nerve stimulation) का अपविन्यास (derangement) से उत्पन्न होने वाला त्वक् गत संज्ञा नाश।
  • Dermatifibrosarcoma -- त्वचा तंतु घातक अर्बुद
त्वचागत तंतुओं में होने वाला घातकार्बुद।
  • Dermatitis -- त्वक् शोथ
त्वचा में सूजन का होना।
  • Dermato-Autoplasty -- त्वक् स्वप्रतिरोपण
एक ही रुग्ण के अन्य भाग से त्वचा लेकर आवश्यक भाग पर प्रतिरोपण करना।
  • Dermato Phylaxis -- त्वचा की जीवाणु रक्षणता
त्वचा की जीवाणु संक्रमण से रक्षण करने की क्रिया।
  • Dermatodysplasia Verrudiformis -- सर्वांग चमकील
समस्त शरीर की त्वचा में उत्पन्न मांसांकुर
  • Dermatocele -- वृन्तयुक्त भेदोर्बुद
वृन्त युक्त अर्बुद में पुटीय अपजनन होता है।
  • Dermatocelidosis -- त्वचा में होने वाले धब्बे
  • Dermatocellulitis -- त्वक् संयोजक ऊतिका शोथ
त्वचा और उसके संयोजक ऊतकों का शोथ।
  • Dermatocyst -- त्वचा-ग्रंथि
त्वचा में उत्पन्न होने वाला पुटी।
  • Dermatocystoma -- त्वचा में होने वाला पुटी अर्बुद
  • Dermatofibroma -- त्वचस्थ तंतु अर्बुद
त्वचा तंतु में होनेवाला अर्बुद।
  • Dermatoheteroplasty -- विषम त्वचा संधान
शस्त्रक्रिया द्वारा अन्य प्राणि प्रजाति की त्वचा का प्रत्यारोपण।
  • Dermatoma -- त्वचा-अर्बुद
त्वचा में होने वाला अर्बुद।
  • Dermatome -- त्वचा छेदक शस्त्र
इसका प्रयोग त्वचा का प्रत्यारोपण के लिए किया जाता है।
  • Dermatomelasma -- एडिसन रोग/वृक्कोपरिक व्याधि
इस रोग में त्वचा गाढ़ (dark) कृष्ण वर्ण की हो जाती है यह अधिवृक्क प्रांतस्थ भाग में शोथ या क्षय के कारण होता है।
  • Dermatomyoma -- त्वक् पेशी अर्बुद
त्वचा में होने वाला/वाले मांसपेशी अर्बुद, प्रायः बहु होते हैं।
  • Dermatophone -- चर्म श्रवण यंत्र
एक विशेष प्रकार का श्रवण यंत्र जिसके द्वारा त्वचा की रक्तवाहिनियों में बहनेवाले रक्तप्रवाह को सुन सकते हैं।
  • Dermatoplasia -- त्वक् विकसन
त्वचागत आघात (Infliction) की स्थिति में की स्वतः संरोहण की शक्ति।
  • Dermatoplasitic -- त्वक् संधान सम्बन्धी
त्वचा के प्लास्टिक सन्धान सम्बन्धी।
  • Dermatoplasty -- प्लास्टिक सन्धान कर्म
जिसमें त्वक गत विकृति निर्हहण के लिए त्वचा आस्फाल (Flap) या निरोपण (Graft) से सन्धान किया जाता है।
  • Dermatotomy -- त्वक्च्छेदन
शस्त्रकर्म द्वारा त्वचा का छेदन करना।
  • Dermepenthesis -- त्वक् संधान
शस्त्रकर्म द्वारा त्वचा का प्लास्टिक संधान करना।
  • Dermis -- डर्मिस
त्वचा, बाह्य त्वचा की अंतरवर्ती परत शिरा धमनी आदि का सघन जाल तथा संयोजक ऊतकों समावेश होता है।
  • Dermo-Epidermal -- त्वचा एवं बाह्य त्वचा सम्बन्धी
  • Dermoid -- डरमोइड
त्वचा की एक ग्रन्थि जो भ्रूण ऊतक से उत्पन्न होती है।
  • Dermoidectomy -- डरमोइड छेदन
शस्त्रकर्म द्वारा त्वचा गत, भ्रूण ऊतक से उत्पन्न ग्रन्थि का छेदन।
  • Dermolipoma -- वसा अर्बुद/मेद अर्बुद
त्वचा में होने वाला मेद अर्बुद।
  • Dermophlebitis -- शिराशोथ
शिराउततान तथा उसके समीपवर्ती त्वचा में होने वाला शोध।
  • Dermophobe -- त्वक् भित्ती/त्वक् संत्रास
वह रोग जिसमें त्वक् रोग से पीड़ित न हाने पर भी मनुष्य को त्वक् रोग से पीड़ित होने का भय होता है।
  • Dermophyma Venereum -- फिरंगज अर्बुद
मलाशय या जननांग स्थित फिरंगज अर्बुद या मृदु ग्रन्थि।
  • Dermoplasty -- त्वचा संधान/त्वक् संधान
डर्मोप्लस्टी के समान।
  • Desmarress Operation -- डेस्मेरस की शस्त्रकर्म
इस शस्त्र कर्म में नेत्र अर्म के मूल नेत्र के कृष्ण भाग से अलग किया जाता है।
  • Desault’S Bandage -- डीसोल्टस् की पट्टी
जत्रुकास्थि-भग्न में कफनी एवं अंस संधि को बांधने के लिए प्रयोग में ली जाने वाली पट्टी।
  • Desault’S Operation -- डीसोल्टस् का शस्त्रकर्म
नासाश्रुनलिका संकोच में किये जाने वाल शस्त्रकर्म जिसमें नासास्रु नलिका में दहनकारी का प्रसारण किया जाता है।
  • Desault’S Sign -- डीसोल्टस् का लक्षण
जानु पृष्ठ गत अन्यूरिज्म (aneurysm) और्वी धमनी का बन्ध करना।
  • Descemetocele -- डीस्मेटोसील
नेत्र गत कृष्णभाग के अन्तिम स्तर की बृद्धि।
  • Descensus -- भ्रंश की प्रक्रिया
किसी अंग का अपने प्राकृत स्थान से नीचे ओर हो जाना उदा. गर्माशय भ्रंश, वृषण भ्रंश।
  • Descent -- अवरोह क्रिया
किसी अंग का अपने प्राकृत स्थान से नीचे की ओर जाना/उतरना उदा. वृषण भ्रंश।
  • Deschamp’S Needle -- देशाम्प की सूची
शरीर गत गम्भीर स्थान स्थित रक्तवाहिनी को बन्धन करके उपयोग में लाई जाने वाली सूची।
  • Desensitize -- ससंवेदन-हरण स्थिति
संवेदनशीलता को कम करना या समाप्त करना।
  • Desexualise -- बन्ध्यत्वीकरण
जननांग को छेदन करना।
  • Desiccatoo -- सोषक पात्र/जलशोषी पात्र
एक कांच का बर्तन जिसकी द्रव्य गत नभी को सुखाने के लिए व्यवहार में लाया जाता है।
  • Desjardin’S Forceps -- डेस्जार्डनस का संदंश यंत्र
पित्त वाहिनी नलिका से अश्मरी को निकालने के लिए उपयोग में लाया जाने वाला यन्त्र।
  • Desjardin’S Gall Stone Probe -- डेसजार्डनस की पित्ताश्मरी शलाका
एक लचकदार कमानी युक्त धातु शलाका, जिसका अंतिम भाग कुंठित होता है और उसका प्रयोग पित्तवाहिनी नलिका में उपस्थित अश्मरी की जानकारी करने के लिए किया जाता है।
  • Desjardin’S Point -- डेस्जार्डिन्स बिन्दु
उदर भित्ति में अग्न्याशय के शीर्ष स्थित बिंदु।
  • Desloughing -- निर्मोकीरण
व्रण अथवा उपसर्गज पर श्रेणी से मृत ऊतक को निकालना।
  • Desmarres Refractor -- डेस्मेरस रिटेक्टर
नेत्रपरीक्षण के समय वर्त्म को उलटाने के लिए एक उथला एवं मुड़ा हुआ यंत्र।
  • Desmitis -- स्नायुशोथ
स्नायु में उत्पन्न होने वाली सुजन।
  • Desmoid -- तंतु अर्बुद/फाइब्रोमा
तंतु अर्बुद जो देखने से स्नायु वत् होता है।
  • Desmoneoplasm -- सोंजी उतक से निर्मित अर्बुद
  • Desmorrheiexis -- स्नायु विदार
स्नायु/स्नायुओं का विदार।
  • Desmotomy -- स्नायु छेदन
स्नायु/स्नायुओं का छेदन।
  • Desmurgia -- पट्टी प्रयोग विज्ञान
शरीर के विभिन्न स्थानों में पट्टी बन्धन संबन्धी विज्ञान।
  • Desnoma -- डैस्नोसायंटोमा
संयोजी ऊतक का तंतु अर्बुद।
  • Despeciation -- गुण विचलन
जाति विशेष के लक्षण में परिवर्तन/नाश होना।
  • Desternalization -- पर्शुका पृथक्करण
उरस्थि (sternum) से पर्शुका (ribs) को अलग करना।
  • Detactiment -- वियोजन
आंशिक या संपूर्ण रूप से रंजित पटल (Ratina) का कोराईट (Choroid) पटल से वियोजन।
  • Determinate Embryology -- पूर्व निर्धारित भ्रूण विज्ञान
भ्रूण विज्ञान के वह शाखा, जिसमें प्रत्येक कोशिका का भविष्य पूर्वनिर्धारित होता है।
  • Dethyroidized -- अवटुक-रहित
शस्त्रकर्म द्वारा अवटुक ग्रन्थि को छेदन करना।
  • Detosion -- अपमोटन
शारीरिक विकृति अथवा वक्रता को ठीक करना।
  • Detubation -- नलिका निर्हरण
डाली हुई नलिका को निकालना।
  • Deustchmans Theory -- डचमैन्नस सिद्धान्त
इस सिद्धान्त के अनुसार स्वयंचालित तंत्र के कारण दृष्टि नाड़ी एवं अक्षि व्यत्यासिका की लसिका वाहिनियों द्वारा उपसर्ग पहुंचने से तीव्र अक्षिशोथ होता है। इसे देशान्तरगामी (Migratory ophthalia) नेत्रशोथ भी कहते हैं।
  • Devascularization -- निर्वाहिकाकरण, निर्वाहिक भवन
शरीरस्थ रक्तसंचार का अवरोध अथवा बन्द करके, स्थानिक रक्त प्रवाह को बन्द करना।
  • Deventers Oblique Diameter -- डीवेन्टरस का तिर्यक् व्यास
श्रोणि द्वार का तिर्यक व्यास।
  • Device -- साधन
  • Devine’S Defunctioning Colostomy -- डेविन का बृहदान्त्र क्रिचाहीन छिद्रीकरण
शस्त्रकर्म द्वारा बुहदांत्र की बाहर की तरफ निकास की पद्धति जिसमें वृहदांत्र के एक पाश (loop) को विभाजित कर दो अलग त्वचा छेदनों द्वारा बाहर निकाल लिया जाता है इससे आंत्र के रोगग्रस्त खंडांश की अच्छी तरह से सफाई (इस भाग का समय-समय पर धोकर) की जा सके तथा बृहदांत्र के निकटस्था पाश से अन्तर्वस्तु (contents) को छलकने (spillage) से रोका जा सके। बृहदांत्र के दूरस्थ पाश को पूर्णरूप से निष्क्रिय कर दिया जाता है।
  • Dexpanthenol -- डेक्सपेन्थनाल
पेन्थनाल का एक विशेष प्रकार।
  • Dextral -- दक्षिण, दक्षिणहस्ती
दाहिने हाथ से काम करने वाला।
  • Dextrocardia -- दक्षिण हृदयता
वक्षः स्थल के दाहिनी ओर हृदय का होना।
  • Dextrocerebral -- दक्षिण आसन/दक्षिण स्थिति
दक्षिणार्ध, स्थिति मस्तिष्क की क्रिया प्रमुखता।
  • Diabetic Gangrene -- मधुमेही जन्म कोथ)
मधुमेह के उपद्रव स्वरूप होने वाला कोथ रूप है। इसके दो प्रकार हैं:- (1) यथार्थ मधुमेही जन्य कोथ तथा (2) मधुमेही में धमनी काठिन्य जन्य कोथ (arteriosclerotic gangrene)। इसमें चिह्नों (दबाव की जगहों- pressure points) पर अपोषणज व्रण (trophic sores) बन जाते हैं। ये व्रण मधुमेह बहुतंत्रिकाशोथ (diabetic polyneuritis) के बाद संरक्षी पीड़ा संवेदना (protective pain sensation) के कारण बन जाते हैं। परिसरीय वाहिका स्पंदन (peripheral vascular pulsation) अपनी सामान्य सीमा में रहता हैं। उपचार रूप में मधुमेह पर नियन्त्रण तथा स्थानिक अंगोच्छेदन (local amputation) किया जाता है। धमनी काठिन्यजन्य कोथ शाखाओं में स्थानिक रक्तक्षीणता के कारण होता है। औषधियों के द्वारा रक्त सग्चाडट को बढ़ाना, अनुकम्पी तंत्रकोच्छेदन (sympathectomy) तथा कोथ के ऊपर के हिस्से में अंगोच्छेदन किया जाता है।
  • Diabrotic -- व्रणीय
संक्षरणीय (corosive), अपरदनीय (erosive) या व्रणीय (ulcerative)।
  • Diabrosis -- व्रण छिद
लगातार संक्षरणीय अथवा व्रणीय प्रक्रिया के परिणामस्वरूप छिद्र का बनना।
  • Diacaustic -- तीव्रदाहक/तीव्रक्षारक
रक्तवाहिनी अथवा किसी अंग में होने वाला व्रणीय छिद्र।
  • Diaclasia, Diaclasis -- भंजन
किसी विकृति की चिकित्सा हेतु उद्देश्य पूवर्क किया जाने वाला अस्थि भंग।
  • Diaclast -- कपालस्थिवेधक शस्त्र
प्रसवकाल में इस शस्त्र का प्रयोग गर्भस्थ शिशु की कपालस्थि का भेदन अथवा उसनें छिद्र करने के लिए किया जाता है।
  • Diacope -- शिरः कपाल का अनुदैर्ध्य एवं गंभीर भेदन
  • Diacresis -- अंगभाजन
प्राकृत अवस्था में दो जुड़े हुए भागों को शस्त्रकर्म या आधात से अलग करना।
  • Diacrinous -- बाह्य सीधा अथवा नलिका द्वारा निष्कासन
  • Diallylnortoxiferine -- मांसपेशी शिथिलता कारक
केल्बेश्युरेरीन का एक अल्कलाईड (Alkaloid) जो मांसपेशी को शिथिल करता है।
  • Dialysable -- अपोहन की क्षमता वाला
प्राकृतिक या कृत्रिम कला में प्रसारित हो सकने वाला।
  • Dialysis -- अपोहन
मिश्र विलयन में से छोटे अणुओं को बड़े अणुओं (जैसे प्रोटीन) से अलग करने की एक विधि, जो एक झिल्ली को प्रयोग करके की जाती है। यह विधि छोटे अणुओं के लिए वरणात्मक रूप से पारगम्य होती है।
  • Diameter -- व्यास
वृत्त के दो विपरीत बिंदुओं को जोड़नेवाली रेखा केन्द्र से होकर जाये।
  • Diaphragm -- मध्यच्छद, डायफ्राम, मध्यपट
वक्ष और उदर गुहा को अलग करने वाला पेशीय पट्ट। इसके वक्ष गुहा की तरफ उभरने और चपटी होने से उच्छवसन और निश्वसन में सहायता मिलती है।
  • Diaphragmatic Hernia -- मध्यच्छद हर्निया
मध्यच्छद पेशीय पट्ट का एक असामान्य द्वार जिससे उदर अंग वक्ष गुहा में बहिःसरण करता है। यह जन्मजात (congential) या अर्जित (acquired) हो सकता है।
  • Diaphyseal -- डायाफिसिस अति-अध्यस्थिता (ऐंजिलमेन रोग)
दीर्घ अस्थियों के कांडों (shafts) की अथवा उनमें होने वाली विकृति हैं जो विशेषतः कर हीन पोषी (undernourished) तथा अविकसित (underdeveloped) बच्चों में 4 10 साल तक की आयु में पाई जाती है।
  • Diaphyseal Aclasia -- डायफिसिस विरुपान्तरण
अस्थि वृद्धि का एक पारिवारिक (familial) विकार (disorder) जिसमें अस्थि के बढ़ने वाले अंतों (growing ends) के स्वरूप का ठीक प्रकार से निर्माण नहीं हो पाता। जिसके कारण अस्थिकांडकोटि-अस्त (metaphyseal ends) लम्बे और मोटे हो जाते हैं। परिणामस्वरूप अनेक बाह्य अध्यस्थियां (exostosis) बन जाती है। इस विकार से ग्रस्त पुरुषों में सामान्यतः कोई लक्षण नहीं मिलते दुर्दम् परिवर्तन (malignant changes) होने की आशंका बहुत ही कम होती है।
  • Diaphysectomy -- डायाफाइसेकटॉमी
किसी लम्बी अस्थि के काण्ड के भाग को शल्य क्रिया द्वारा काटकर निकाल देना।
  • Diaplasis -- डायाप्लेसिस, संधि स्थापन
किसी अस्थि भंग को ठीक करना अथवा संधि च्युति को पुनः स्थापित करना।
  • Diaplastic -- डायाप्लास्टिक
संधि स्थापन संबन्धी।
  • Diaplex -- डायाप्लेकस
मस्तिष्क का त्रिपथ गुहा (Third-ventricle) में पाई जाने वाली शिरा मंजतिका (Choroid plexus)
  • Diaphanoscope -- पार प्रदीपक
इस यंत्र के द्वारा शरीर गुहा को प्रकाशितकरके परीक्षण किया जाता है। तथा उसकी परिधि मापी जाती है।
  • Diaphanoscopy -- पारप्रदीपन
पारप्रदीपक के द्वारा शरीर गुहाका अंतः परीक्षण।
  • Diapyema -- डायापायेमा
एक प्रकार का विद्रधि या फोडा (Abscess)
  • Diapyesis -- डायापायेसिस
पूय का संग्रह।
  • Diascope -- डायास्कोप
त्वचा पर एक कांच अथवा प्लास्टिक की फलक (Plate) दबाते हुए रखकर त्वचागत उपरि विक्षति (Lesion) का निरीक्षण करना।
  • Diascopic
: Diascopy -- डायास्कोप से संबन्धित

डायास्कोप का प्रयोग करके त्वचा की उपरी विक्षतियों का (superticial lesions) का परीक्षण करना।

  • Diastole -- अनुशिथिलन
हृदय की गुहाओं विशेषरूप से निलय (वेन्ट्रिकल) का लयबद्ध फैलाव या प्रसारण, जिसके मध्य वे रक्त से भर जाते हैं।
  • Diastolic Blood Pressure -- अनुशिथिलन रक्त चाप
हृदय की विस्फारावस्था में पाया जाने वाला रक्तचाप
  • Diathermy -- डायाथर्मी
शस्त्रकर्म प्रक्रिया (surgical procedure) में रक्तस्राव (खून के बहाव) को नियंत्रण में रखने के लिए ऊतकों (tissues) का विद्युत् द्वारा रक्त स्कन्दन (coagulation) या दागना (cauterisation)।
  • Diffuse Toxic Goitre -- विसरित विषालु गलगंड
यह अवस्था विमरित बाहिकामय गलगंड (diffuse vascular goitre) के साथ-साथ मिलती है और अवटु अतिक्रियता (hyperthyroidism) सहित दिखाई देता है। यह आमतौर पर युवा स्त्रियों को प्रभावित करती है और इस में नेत्र चिह्न (eye signs) भी मिलते हैं। यह रोग प्राथमिक अवटु विषाक्तता (primary thyrotoxicosis) का संलक्षण (syndrome) कहलाता है।
  • Dilatation -- विस्फारण
नलिकाकार अंग (tubular organ) के व्यास (diameter) को बढ़ाने वाली प्रक्रिया।
  • Digestive Gland -- पाचक ग्रंथि
प्राणियों में आहार पाचन के लिए एंजाइम युक्त स्राव उत्पन्न करने वाली ग्रंथियाँ, जैसे-लार ग्रंथियाँ, अग्न्याशय आदि।
  • Digestive Tract -- पाचन पथ/मार्ग
  • Dilator -- विस्फारक
ऐसा उपकरण जो छिद्र या विवर को विस्फारित करता है।
  • Diploid Number -- द्विगुणित संख्या, डिप्लॉएड संख्या
किसी जीव के युग्मक या नर तथा मादा जनन कोशिकाओं में गुणसूत्र (chromo somes) दुगुनी संख्या में होना, जो किसी जीव-जाति का विशिष्ट लक्षण द्योतक होता है। परिपक्व जनन कोशिकाओं को छोड़कर प्राणीशरीर की सभी कोशिकाओं में गुणसूत्र द्विगुणित संख्या में पाए जाते हैं जैसे मानव में ग्रह संख् 46 है।
  • Direct Inguinal Hernia -- ऋजु वक्षण हर्निया
वक्षण हर्निया कोश का ऋजु बहिः सरण (direct protrusion) वक्षण नलिका (inguinal canal) की पिछली दीवाल (पश्चात् भित्ति) के शिथिल होने के कारण होता है। प्रायशः यह अवस्था प्रौढ़ तथा वृद्धावस्था के पुरुषों में मिलती है। यह हर्निया पुरानी खांसी (chronic cough), मूत्र-कृच्छ्र (पेशाब करने में तकलीफ-dysuria) तथा पुरानी मलावरोध (चिरकारी मलबद्धता-chronic constipation) के कारण अन्तः उदर दाब (पेट के अन्दर का दवाब-intra abdominal pressure) के बढ़ जाने के फलस्वरूप उत्पन्न हो सकता है। यह एक तरफ या दोनों तरफ (एक पार्श्वीय या द्विपार्श्वीय unilateral or bilateral) हो सकता है। इस हर्निया में विपाशन (strangulation) की शंका बहुत कम होता है। यदि कोई सामान्य या स्थानिक प्रतिनिर्देश (contraindications) न हो तो शस्त्रकर्म द्वारा इसकी चिकित्सा की जाती है। प्रतिनिर्देश होने पर हर्निया पेटी का उपयोग कराया जाता है।
  • Disarticulation -- संधि विच्छेदन
किसी शाखा का अस्थि को, काटे बिना, संधि स्थल से अलग करना।
  • Discoidectomy -- चक्रिकाभ-उच्छेदन
अन्तराकशेरुका चक्र (intervertebral disc) का उच्छेदन।
  • Dislocation -- संधिच्युति
जब संधि अस्थियां अपने सामान्य स्थान (anatomical position) से हट जाती है, तो उसे संधिच्यति (हड्डी का उतर जाना) कहते हैं। स्नायुओं (ligaments) में चोट लग जाने के परिणामस्वरूप यह घटना या सूजन (शोथ) के कारण, सम्पुट (capsule) में क्षति आ जाने के परिणामस्वरूप हो सकता है, पीड़ा, सूजन (swelling), दबाने पर दर्द होना (tenderness), असामान्य नियंत्रण अथवा संधि की पूर्ण अचलता आदि लक्षण मिलते हैं पुनः स्थापन (फिर से अपनी जगह पर बैठा देना-reduction) और उसको स्थिर रखना इसकी विशिष्ट चिकित्सा है।
  • Dissecting Aneurysm -- धमनीविस्तारविदार/धमनी विर्दीजीकरण
इसमें धमनी की भीतरी स्तर में विदार (फट जाना) हो सकता है जिससे रक्त इकट्ठा हो जाने के कारण धमनी की भीतरी तथा मध्य हो जाती है। इसमें प्रायशः स्तर विभक्त होकर नलिकाकार ले लेती है जो बाह्य अथवा भीतर फटती है। महाघमनी (aorta) शस्त्र कर्म (operation) से ग्रसित होती है तथा इसकी चिकित्सा के लिए करना पड़ता है।
  • Distal -- दूरस्थ
यह परिभाषा शरीर के आधार मध्य रेखा से दूर पाए जाने वाले भाग या अंग के लिए प्रयुक्त की जाती है। जैसे मस्तिष्क से दूर स्थिर तंत्रिकाएँ आदि।
  • Diverticulectomy -- विपुटी-उच्छेदन
शस्त्रकर्म से विपुटी का उच्छदेन (excision) कर के निकालना।
  • Diverticulitis -- विपुटीशोथ
बड़ी आंत की विपुटी में सूजन। प्रायशः इस रोग से बृहांत्र (colon) ग्रसित होती है। यह तीव्र तथा चिरकारी प्रकार का हो सकता है। तीव्र प्रकार में (acute form) यह शोथ तीव्र उदर (acute abdomen) जैसा मालूम होता है। चिरकारी प्रकार में रुकावट के लक्षण (obstractive symptom) पैदा हो जाते हैं। यह दुर्दमता जैसा रोग दिखाई देने लगता है। इस बीमारी का चिकित्सा मुख्यरूर से औषधियों से किया जाता है। जब उपदव्र (complications) यानी दूसरी बीमारियां शुरू होने लगती हैं तो उस समय शस्त्रकर्म के द्वारा इसका उपचार किया जाता है।
  • Diverticulosis -- विपुटता
बृहदान्त्र के अन्तिम भाग की शिथिल पेशी स्तर से श्लैष्मिक कला बाहर निकल आती है। यह रोग प्रायशः वृद्ध लोगों की बड़ी आतों (बृहदांत्र-large bowel) में पाया जाता है। प्रायशः इसमें कोई लक्षण नहीं मिलते। इसलिये चिकित्सा आवश्यकता नहीं पड़ती। सूजन (inflammation) बढ़ जाने पर चिकित्सा कराना जरूरी हो जाता है।
  • Dizygotic -- द्वियुग्मजी, द्विअंडज
स्तनपायियों में अपवादस्वरूप एक साथ निषेचित होने वाला दो अण्डों से जुड़वा बच्चों को उत्पन्न होना।
  • D.N.A -- डी.एन.ए.
डी आक्सीराइबोन्यूक्लिओटोइटों की स्वतः प्रतिकृतिकारी बहुलक श्रुंखला जो प्रायः द्विकुंडलित होती है और सभी जैव कोशिकाओं और अनेक विषाणुओं में जीने के रचक तत्व के रूप में आनुवंशिक सूचनाओं की संवाहक होती है।
  • Dolichocephaly -- दीर्घपालता
यह एक परिवर्धन या विकासी असंगति है जिससे किरीटी सीवन (coronal suture) के कालपूर्व अस्थीभवन (premature ossification) होने से करोटि का अग्रपश्च व्यास (anteroposterior diameter) बढ़ जाता है।
  • Dorsal Ganglion -- पृष्ठीय गण्डिका
तंत्रिका वलय के पश्च भाग स्थित छोटी गण्डिका जिससे पृष्ठ तंत्रिका निकलती है।
  • Dorso Pleural Line -- पृष्ठ पार्श्वक रेखा
शरीर के पृष्ठक और पार्श्व क्षेत्र के बीच विलगन की वह रेखा, जिसमें प्रायः वलन या खांच का चिह्न होता है।
  • Double Knot -- द्विगुणित गांठ
एक गांठ जिसमें पहली गांठ बांधने के बाद उसके सिरों को फिर से उसी प्रकार घुमाकर बांधा जाता है।
  • Drainage -- निकास
क्षत (wound) या विद्रधि (abscess) से ऑपरेशन के जरिए या अपने आप (स्वतः) तरल पदार्थ का निकास (withdrawal) या विसर्जन (discharge) कराना या होना।
  • Drainage Tube -- निकास नली
शस्त्रकर्म में प्रयुक्त एक नली जिससे शरीर से तरल को बाहर निकालने में सहायता मिलती है।
  • Dressing -- ड्रैसिंग या मरहम पट्टी/व्रण बन्धन/व्रणोचार
क्षत (घाव-) या व्रण (ulcer) में निर्जीवाणुक पदार्थ (sterlized material) को लगाकर पट्टी बांधना।
  • Drill -- वेधनी
एक घूमने वाला यंत्र जो किसी सख्त चीज, जैसे अस्थि, में छेद बनाने में प्रयुक्त होता है।
  • Dorsal Aorta -- पृष्ठमहाधमनी
धमनी चापों से निकलने वाली प्रमुख धमनी, जो कशेरूका-दण्ड के नीचे स्थित होती है। सिर तथा ऊर्ध्व शाखाओं को छोड़कर, रूधिर शरीर के शेष भागों में जाता है।
  • Duct Papilloma -- वाहिनी अंकुरर्बुद
यह स्तन की सुदम (benign) अवस्था है जहाँ पर बड़ी दुग्धवाहिनी (lactiferous duct) में अंकुर जैसी गांठ हो सकती है। यह अर्बुद एक अथवा दोनों स्तनों में हो सकता है। यह 30-35 साल की स्त्रियों में पाया जाता है। इस अवस्था में निदान, चुचुक (nipple) से गहरे लाल रंग के आस्राव (discharge) के निकलने से होता है, साथ ही किसी एक दुग्ध वाहिनी में एक छोटा महसूस होने वाला अर्बुद होता है। वाहिनी अंकरार्बुद में वृद्धि (हतवूजी) होने पर वाहिनी कार्सिनोमा (duct carcinoma) का विकास हो सकता है। इसकी चिकित्सा में माइक्रोडोकेक्टोमी ऑपरेशन किया जाता है जिसमें अंकुरार्बुद को एक त्रिभुजाकार त्वचा के क्षेत्र, वाहिनी तथा उसके चारों तरफ के ऊतकों सहित काट कर (उच्छेदन) निकाल देते हैं।
  • Ductless Gland -- वाहिनीहीन ग्रंथि
शरीर में स्थिति कुछ ऐसी ग्रंथियां जिनका स्राव नली की बजाय सीधा ही रक्त में होता है।
  • Duodeno- Cholecystostomy -- ग्रहणी पित्ताशय सम्मिलन
पित्ताशय और ग्रहणी के बीच शस्त्रकर्म द्वारा जोड़ना। यह ऑपरेशन अग्न्याशय सिर के कार्सिनोमा के कारण उत्पन्न रोधज कामला के असाध्य रोगियों में किया जाता है।
  • Duodeno- Choledochotmy -- ग्रहणी पित्तवाहिनीछेदन
शस्त्रकर्म द्वारा ग्रहणी तथा सामान्य पित्तावाहिनी (common bile duct) का छेदन (incision) करना।
  • Duodenoscopy -- ग्रहणीदर्शन
ग्रहणी की गुहान्तदर्शी परीक्षा।
  • Duodenostomy -- ग्रहणी छिद्रीकरण
शस्त्रकर्म द्वार ग्रहणी में छेद बना देना।
  • Duodenum -- ग्रहणी
आहारनाल में आमाशय के ठीक बाद स्थित छोटी आँत का अग्र भाग, जिसमें अग्नाशय वाहिनी और पित्तवाहिनी खुलती है।
  • Dupuytren’S Contracture -- डुपीट्रेन अवकुंचन
यह करतल (palmar) और कभी-कभी पादतल प्रावरणी (plantar fascia) का स्थानिक तौर पर मोटा हो जाना है। संकुचित प्रावरणी के फलस्वरूप अंगुलियां आकुंचन की दशा में आ जाती है। ऊपर की त्वचा प्रावरणी से चिपक जाती है। रोग पहले पहल छोटी अंगुली में शुरू होता है और बाद में अनामिका में हो जाता है और कभी-कभी मध्यमा और तर्जनी भी ग्रस्त हो जाती हैं। पुराने रोगियों में करभ-अंगुलि (metatarsophalangeal) तथा निकटस्थ अंगुली संधियों (peoximal phalangeal joint) में स्थायी परिवर्तन हो जाते हैं और इस प्रकार अंगुलियां स्थायी तौर पर मुड़ जाती हैं। आमतौर पर यह अवस्था दोनों तरफ होती हैं तथा पुरुषों में अधिकतर मिलती है। शुरू में रोगियों का इलाज स्पिलंट लगा कर तथा कर्षण (traction) करके किया जाता है और बढ़े हुए रोग वाले रोगियों में प्रावरणी में समूल उच्छेदन (radical excision) किया जाता है।
  • Duramater -- डयूरामेटर, तानिका
मस्तिष्क तथा मेरूरज्जु के चारों ओर स्थित मजबूत रेशेदार झिल्ली।
  • Dyschondroplasia -- उपास्थि दुर्विकसन
इस अवस्था में लंबी अस्थियों के अस्थिवर्ध सिरे (diaphyseal end) पर उपास्थि की अपसामान्य वृद्धि हो जाती है जिससे उपास्थि तथा अस्थि के अर्बुद अस्थिकांडों पर अधिवर्ध के नजदीक बन जाते हैं। इनको बहु उपास्थि बाह्य अध्यास्थि (multiple cartilagenous exostosies) भी कहते हैं। चिह्न (signs) कलाई (मणिबंध-wrist) पर मिलते हैं, अन्तःप्रकोष्ठ विचलन (ulnar deviation) होता है तथा कोहनी या कूर्पर (elbow) पर बहिः प्रकोष्ठिकास्थि के सिर (head of the raduis) की संधिच्युति (dislocation) होती है। ऐक्स-रे द्वारा देखने पर डायाफिसिस में एक तरफ से दूसरी तरफ को पार करने वाली पारभासी पट्टियाँ (translucent strips) मिलती हैं। जोड़ में विरूपता होने पर चिकित्सा की आवश्यकता होती है।
  • Dysphagia -- निगरण कष्ट
निगलने में कष्ट होना। इस अवस्था का कारण मुंह, ग्रसनी, स्वरयंत्र तथा ग्रासनली में हो सकता है। अधिकतर शोथ (सूजन) उत्पन्न करने वाली अवस्थाएं, सुदम तथा दुर्दम संरचनाएं (benign and malignent structures) इस बीमारी को उत्पन्न करने में सहायक हैं। कभी-कभी अवटु की बड़ी सूजन (गलगण्ड-goitre) या मध्य- स्थानिक वृद्धि (mediastinal growth) तथा धमनी कुरचनाओं (arterial malformations) द्वारा बाहर से दबाव पड़ने पर ऐसी अवस्था हो जाती है (महाधमनी की दो चापें भी ग्रासनली असंगतिजन्य निगरण कष्ट (dysphagia lusoria) उत्पन्न करती है)। इस रोग की चिकित्सा कारण के अनुसार होती है। यह रोग कुछ तंत्रानुसारी अथवा दैहिक रोगों (systemic diseases) जैसे धनुस्तम्भ (tetanus) तथा अलर्क (rabies) आदि से भी उत्पन्न होता है और इस रोग के साथ उन रोगों के अपने अन्य लक्षण भी देखे जाते हैं।
  • Dysplasia Epiphysealis Multiplex -- बहुअधिवर्ध दुर्विकसन
इस रोग में बहुत से अधिवर्धों (epiphysis) का रूप तथा आकार अनियमित होता है (एक सा नहीं होता)। वे देर में उपस्थित होते हैं तथा देर से जुड़ते हैं। अनियमितता से इनका अस्थिभवन (ossification) होता है जिसके कभी-कभी बहुत से केन्द्र (centres) बन जाते हैं। रोगी कद में छोटा रह जाता है लेकिन बौना (वामन) नहीं होता। टांगे छोटी होती हैं तथा जोड़ों में विरूपतायें (deformities) मिलती हैं।
  • Dysplasia Epiphysealis Punctata & Stippled Epiphysis -- बिंदुकित अधिवर्ध दुर्विकसन
अधिवर्ध, बजाए इसके कि एक केन्द्र हो, अस्थिभवन (ossification) के भिन्न क्षेत्रों से मिलकर बनता है। यह बहुत कम पाई जाने वाली अवस्था है। यह अवस्था न तो पारिवारिक है और न आनुवंशिक। रोगी शिशुओं की तरह देख-रेख के लिए आते हैं क्योंकि वे मानसिक एवं शारीरिक रूप से मंदबुद्ध (retarded) होते हैं।
  • Ectoderm -- बाह्य जनन स्तर
प्राणियों के भ्रूण में तीन प्राथमिक कोशिका स्तरों में से सबसे बाहर की परत, जिससे अधित्वक् और तंत्रिका ऊतक बनते हैं।
  • Ectopia Vesicae -- अस्थानी विवृत मूत्राशय
ऐसी सथिति जिसमें मूत्राशय अपने स्थान पर न होकर उदर-भित्ति के बाहर स्थित होता है।
  • Egg -- अंडा
यथार्थतः केवल मादा युग्मक या अण्डाणु।
  • Elastic Banadage -- प्रत्यास्थ पट्टी
ऐसी पट्टी जो खींचे जाने पर मामूली सी बढ़ जाती है लेकिन छोड़ दिए जाने पर पुनः अपनी मूल अवस्था में आ जाती है।
  • Elephantiasis -- श्लीपद
फाइलेरिया रोग की एक विशिष्ट अभिव्यक्ति (classical manifestation) जो टांगों तथा जनन अंगों (genitalia) को प्रभावित करती है। कभी-कभी अर्बुद, जैसे स्तन कार्सिनोमा, कक्षा लसीका पर्वो (axillary lymph nodes) तथा लसीका वाहिनियों में फैल जाते हैं जिससे ऊपरी शाखा अर्थात् बांह (upper limb) का श्लीपद हो जाता है। इसकी चिकित्सा, संरक्षी (conservative) है। स्थूल या मोटे ऊतकों को काटा (उच्छेदन) जाता है तथा कारण के दुर्दम होने परकोशिकाविषी औषधियों (cytotoxic drugs) का सेवन किया जाता है।
  • Elephantiasis -- श्लीपद फीलपाँव
वह रोग, जिसमें बूचेरेरिया बैन्क्राफ्टाई नामक परजीवी सूत्रकृमि के कारण पाव में अत्यधिक सूजन के कारण वह मोटा हो जाता है।
  • Elisa -- एलाइजा
प्रतिजनों या प्रतिरक्षियों के मापन की प्रक्रियाओं, शोषक मापन में से एक जिसमें विशेष इम्यूनोग्लोबुलिन से सहबद्ध एन्जाइम की मात्रा का मापन किया जाता है।
  • Embolectomy -- अन्तः शल्य-निष्कासन
शस्त्रकर्म द्वारा रक्त वाहिका (blood vessel) से अन्तः शल्य (embolus) को बाहर निकाल देना।
  • Embolus -- अन्तःशल्य
कोई पिण्ड जो रक्त क बहाव (रक्त प्रवाह) के लिये बाहरी वस्तु हो। यह रक्त की नली में कहीं फंस कर एकदम अवरोध या रूकावट पैदा कर देता है। आमतौर पर अन्तः शल्य रक्त का जमा हुआ भाग या थक्का (clot) होता है, जो हृदय के रूमेटिक कपाटिका रोग (rheumatic valvular disease) तथा अनुतीव्र जीवाणुज अन्तर्हृदशोथ (subacute bacterial endocarditis) से उत्पन्न होता है यह जंघा की पिंडलियों की पेशियों की शिराओं में उत्पन्न होता है और तब फुप्फुस धमनी में फंसकर फुप्फुस अन्तःशल्यता (pulmonary embolism) की अवस्था को उत्पन्न करता है जो घातक (fatal) सिद्ध होती है। धमनी अन्तः शल्यता (arterial embolism) के विशिषअट लक्षणों में तुरन्त दर्द का होना, शाखा (limb) में अपसंवेदन (paraesthesia), पीलापन का होना तथा परिसरीय नाड़ी (peripheral pulse) का विलुप्त होना।
  • Embryology -- भ्रूण विज्ञन, भ्रौणिकी
जीव विज्ञान की वह शाखा जिसमें भ्रूण के बनने और उसके परिवर्धन की अवस्थाओं का अध्ययन होता है। इसमें युग्मज या अण्डे से लेकर स्कुटन या शिशु बनने तक की सभी अवस्थाओं का अध्ययन शामिल है।
  • Embryogenesis -- भ्रूणोद्रभव
भ्रूण विकास की प्रक्रिया।
  • Empyema (Thoracis) -- अन्तः पूयता
परिफुप्फुस गुहा यानी फेफड़ों क चारों तरफ की झिल्ली की गुहा में पूय (pus) का इकट्ठा हो जाना। आमतौर पर यह बीमारी आसपास की संरचनाओं, जैसे वक्ष की भित्ति, फेफड़ा, मधयच्छदापेशी (अर्थात् सीने और पेट को अलग करने वाली बीच की माँस पेशी) तथा मध्यस्थानिका (mediastinum) के संक्रमण (infection) के कारण होती है। पीप बनने की क्रिया के अनुसार इस बीमारी की तेजी को तीव्र (acute), अनुतीव्र (subacute), तथा चिरकारी तीन वर्गों में बांटा जा सकता है। चिकित्सा में संक्रमण पर नियंत्रण कियी जाता है तथा अक्रिय अवकाश (dead space) को दूर किया जाता है। (अक्रियावकाश से मतलब किसी ऐसे हिस्से से है जो काम में नहीं आता। वह मरी हुई चीज़ के बराबर है और उसे समाप्त कर देना चाहिये।
  • Empyema Tube -- अन्तःपूयता नली
रबड़ की एक नली जिसका उपयोग अन्तःपूयता के रोगियों में पूय (pus) के निकास में किया जाता है।
  • Enamel -- दंतवल्क, इनेमल
अधिचर्म से उत्पन्न दांत की उपर्रा कड़ी परत, जो-दंतीन (दंत धातु) को ढकती है। यह शरीर का सबसे कठोर पदार्थ है।
  • Encephalocele -- मस्तिष्क हर्निया
दिमाग के पदार्थ का बाहर को निकल आना (हर्निया) जिससे उसके साथ उसकी झिल्लियां (तानिकाएं) भी बाहर आती हैं। खोपड़ी में पैदायशी छेद के होने अथवा बाद में छोट लगने के कारण छेद बन जाने पर छेद में से होकर दिमाग का हिस्सा खोपड़ी से बारह निकल आता है। आमतौर पर स्पंदनशील सूजन देखने को मिलती है, यानी निकले हुए हिस्से को छूने से उंगलियों में धड़कन सी महसूस होती है। इलाज में ऑपरेशन करके छेद को बन्द कर दिया जाता है।
  • Enacephalography -- मस्तिष्कचित्रण
मस्तिष्क पृष्ठ (brain surface) को एक्स-रे के जरिये देखना।
  • Encephalomyelocele -- मस्तिष्क-तानिका-हार्निया
तानिका (meaningies) तथा मस्तिष्क पृष्ठ का बहिः सरण। तानिका, मस्तिष्क पृष्ठ तथा सुषुम्ना (मेरुरज्जु-pinal cord) का हारन्ध्र (foramen magnum) तथा ग्रैव केशरुका (cervicalvertebra) के जरिये बहिः सरण (herniation)
  • Encholndroma -- अन्तः उपास्थि अर्बुद
अस्थि द्रव्य में सुदम उपास्थि वृद्धि (benign cartilagenous growth) का होना।
  • Enchondromatosis -- अन्तपास्थ्यबुर्दता
उपास्थि (cartilage) में अस्थि का विकास (development) हो जाना।
  • Encysted Hydrocele Of The Cord -- वृषण रज्जु पुटित जल-संग्रह
तरल का केवल आच्छादी प्रवर्ध (processus vaginalis) में ही इकट्ठा होना और उसका संचार या संबंध (मेल) अंडधर कंचुक या पर्युदर्या गुहा दोनों में से किसी से न होना।
  • Endocrine Gland -- अंतःस्रावी ग्रंथि
शरीर में ऐसी वाहिनीविहीन ग्रंथियां जिनका स्राव सीधे ही रक्त में होता तथा मुख्यतया चयापवच को नियंत्रित करती है।
  • Endocrinology -- अंतः स्रावविज्ञान, अंतः स्राविकी
आयुर्विज्ञान की वह शाखा जिसमें हार्मोनों के स्रवण, प्रकृति, प्रभाव आदि का अध्ययन किया जाता है।
  • Endoderm -- अंतर्जननस्तर
भ्रूण के तीन प्राथमिक स्तरों में से सबसे भीतरी स्तर, जिससे पाचन तथा श्वसन अंगों की उपकला (एपिथीलियम) बनती है।
  • Endoplasm -- अंतर्द्रव्य
कोशिका के जीव द्रव्य का भीतरी कणिकामय भाग जो बहिर्द्रव्य की अपेक्षा अधिक तरल होता है और जिसमें मुख्य कोशिका अंगक पाये जाते हैं।
  • Endoscopy -- गुहान्त दर्शन
गुहान्तदर्शी (endoscope) के जरिए शरीर की किसी भी गुहा (cavity) का निरीक्षण (inspection) करना।
  • Enotracheal Tube -- अन्तः श्वासप्रणाल नलिका
एक नलिका जिसका उपयोग स्वरयंत्र (larynx) द्वारा श्वास प्रणाल के नलिकाप्रवेशन (intubation) में किया जाता है। इसके जरिए संज्ञाहरण गैस तथा ञक्सीजन दी जाती है। यह दो प्रकार की होती है- बैलून वाली और बिना बैलून वाली।
  • Endotracheal Intubation -- अन्तः श्वासप्रणाल नलिकायन
ऐसा शस्त्रकर्म जिस में स्वरयंत्र के जरिए एक नलिका को श्वासप्रणाल में डाला जाता है। यह संज्ञाहरण (anasesthesia), औषधि देने तथा वायु-पथ में अनवरोध का निश्चय करने के लिये किया जाता है।
  • Enema -- एर्निमा, वस्तिकर्म
मलाशय (rectum) में तरल पदार्थ (liquid) का निवेशन (instillation) करना। इस से आंत्र का रेचन (evacuation) हो जाना है अर्थात् आंत का मल गुदद्वार के जरिये बाहर निकल आता है।
  • Enterctomy -- आंत्र-उच्छेदन
शस्त्रकर्म द्वारा आंत के खण्डांश (segment) या टुकड़े का उच्छेदन।
  • Entero-Anastomosis -- आंत्र सम्मिलन
शस्त्रकर्म द्वारा आँत के दो खंडांशों का सम्मिलन (anastomosis) कराना।
  • Entero- Cholecystostomy -- आन्त्र-पित्ताशय छिद्रीकरण
ऑपरेशन द्वारा पित्ताशय Gall bladder) तथा क्षुद्रान्त्र (small intestine) के बीच एक द्वार का निर्माण करना। यह ऑपरेशन आमतौर पर अग्नाशय शिर के कार्सिनोमा से ग्रसित रोगियों को रोधज कामला (obstructive jaundice) से राहत पहुंचाने के लिये किया जाता है।
  • Entero-Colostomy -- आन्त्र-बृहदान्त्र सम्मिलन
शस्त्रकर्म द्वारा बड़ी आंत के एक खंडांश का छोटी आंत के खंडांश से सम्मिलन करना या जोड़ना।
  • Entero-Enterostomy -- आंत्र-आंत्रसम्मिलन
शस्त्रकर्म द्वारा छोटी आंत (small intestine) के दो छोटे भागों का सम्मिलन करना अथवा जोड़ना।
  • Entero-Epiplocele -- आंत्रवपाहर्निया
छटी आंत तथा वपा (omentum) का हर्निया।
  • Enteroscope -- आंत्रदर्शी
एक गुहांतदर्शी (endoscope) जो आन्त्र की परीक्षा करने में प्रयुक्त होता है।
  • Enterostomy -- आंत्र-छिद्रीकरण
एक शस्त्रकर्म जिसमें बाह्य वातावरण से सम्पर्क के लिये ऑपरेन द्वारा उदर भित्ति (पेट की दीवार) से छोटी आंत में एक छेद बनाया जाता है-जो अस्थायी (temporary) या स्थायी (permanent) हो सकता है।
  • Enterotomy -- आंत्रछेदन
शस्त्रकर्म द्वारा आगन्तुक शल्य (foreign body) या सुदम्य अर्बुदों (benign tumours) को निकालने के लिये द्वार बनाना। बाद में द्वार बन्द कर दिया जाता है।
  • Enuresis -- असंयत-मूत्रता
बिना इच्छा के (involuntary) मूत्र निकल जाने की अवस्था यह रोग उन बच्चों तथा जवानों में देखने को मिलता है जो सुषम्ना (spinal cord) की चोट या तंत्रिका सम्बन्धी विकार (neurological disorder) से पीड़ित हैं। जब पेशाब सोते समय निकल जाता है, तो उस हालत को नैश असंयत मूत्रता (nocturnal enuresis) कहते हैं।
  • Enzyme -- प्रकिण्व, एंजाइम
जैव उत्प्रेरक प्रोटीन जो रासायनिक क्रियाओं में अपने आप को बिना नष्ट किए या बिना विकृत किए उत्प्रेरक का काम करता है।
  • Epidermis -- बाह्यत्वचा
प्राणियों के शरीर में त्वचा की बाहरी रक्षात्मक परत, जो भ्रूण के बाह्य चर्म या अधिकोरक से बनती है।
  • Epididymis -- अधिवृषण
शुक्रवाहनी की लंबी कुंडलित नलिकाकार संरचना। उच्चतर कशेरुकिओं (vertebrates) में यह वृषण और शुक्रवाहक के बीच स्थित होती है। स्तनधारियों में इसके दो भाग हो जाते हैं। शीर्ष (Caput) और पुच्छ (Cauda)
  • Epididymovasostomy -- अधिवृषण शुक्रवाहिका सम्मिलन
अधिवृषण (epididymis) तथा शुक्रवाहिक (Vas deferens) के दूरस्थ भाग के बीच शस्त्रकर्म द्वारा संचार व्यवस्था बनाना। यह ञपरेशन पुरुष बंध्यता (male sterility) की चिकित्सा करने तथा कभी-कभी शुक्रवाहिका उच्छेदित व्यक्तियों में शुक्रवाहिका तथा अधिवृषण के बीच फिर से संचार-व्यवस्था बनाने के लिये किया जाता है।
  • Epipharynx -- अधिग्रसनी
एक महपालि जो कभी-कभी ऊर्ध्वोष्ठ या मुखपालि के पश्च (या अधर) पृष्ठ पर होती है।
  • Epispadias -- अधिमूत्रमार्गता
एक जन्मजात दोष जिसमें पुरुष के मूत्रनली (मूत्रपथ) शिश्न के अभिपृष्ठ भाग (dorsal part) में थोड़े या पूरे तरीके से खुली होती है। अक्सर यह खराबी मूत्राशय की अग्र भिति तथा पेट के निचले हिस्से (निम्न उदर) के बन्द न होने की खराबी के साथ पायी जाती है। इस विकार को ऑपरेशन के जरिये ठीक किया जाता है।
  • Epithelial Cell -- उपकला-कोशिका
शरीर की बाह्य एवं आंतरिक सतहों के आवरण, ग्रंथियों और संवेदांगों के भागों का निर्माण करने वाली स्तराधानित कोशिकांए जिनकी आसन्न झिल्लियों के बीच बंधकाय होते हैं। इनका एक पृष्ठ मुक्त तथा दूसरा आधार झिल्ली पर टिका हुआ रहता है।
  • Epithelioma -- उपकलार्बुद
पट्ट की कोशिका कार्सिनोमा (squamous cell carcinoma) । यह त्वचा में पहले से ही मौजूद कैंसर-पूर्व विक्षति में बन सकता है। लाक्षणिक तौर पर यह एक व्रण (घाव) है जिसके किनारे उलटे हुए (बहुर्वर्तित) होते हैं तथा इकी भूमि (floor) में अस्वस्थ मृत-ऊतक (unhealthy slough) पाये जाते हैं। इसका आधार (base) कठोर या दृढ़ीभूत (indurated) होता है तथा यह बाद में गभीर रचनाओं से चिपक जाता है। यह क्षेत्रीय लसीका पर्वों में फैलता है। चिकित्सा विस्तृत उच्छेदन द्वारा की है। इसके साथ त्वचा निरोपण (skin grafting) किया भी जाता है और नहीं भी।
  • Epulis -- पुप्पुट
मसूड़े (gum) पर एक कठोर सी शोथ। यह सूजन चार तरह की होती है- (1) कणिकामय (granular), (2) रेशायम (fibrous), (3) महाकोशिकामय (gaint celled) और (4) कभी कभी कार्सिनोमाजन्य काणिकामय पुप्पुट। दन्त क्षरण (carries of the tooth) के चारों तरफ कणिकामय ऊतक का एक पुंज उपस्थित होता है या यह पुप्पुट मसूड़े के क्षोभित भाग पर मिलता है। दांत को बाहर निकाल देना और कणिकामय पुंज को खुरजच (आखुरण- scrapping) देना इस रोग की चिकित्सा है। इन चारों प्रकारों में तन्तुमय पुप्पुट सामानय है और इसमें मसूड़े के नीचे एक परा तन्तु-अर्बुद (fibroma) होता है। इस की चिकित्सा में आस पास के दांतों को निकाल देना, ग्रसित समूड़े के हिस्से के साथ साथ हड्डी का कीलाकर उच्छेदन (wedge resection) कर देना शामिल है। महाकोशिकामय पुप्पुट एक अस्थि-अवशोषी-कोशिकार्बुद (osteoclastoma) है।
  • Erythroblastoma -- लोहितकोशिकाप्रसू-अर्बुद
केन्त्रक-युक्त (nucleated) लोहित रक्त कणिकाओं (red blood corpuscles) से युक्त तथा अर्बुद के समान कोई पिंड या पुंज।
  • Erythrocyte -- रक्ताणु
कशेरुकिओं की चपटी बिंब-जैसी गोल कोशिका जो हीमोग्लोबिन वर्णक की उपस्थिति के कारण लाल होती है। हीमोग्लोबिन की सहायता से यह शरीर के विभिन्न भागों में आक्सीजन पहुँचाती है और वहाँ से कार्बन डाइआक्साइड ले लेती है। केवल स्तनपायियों में ये केन्द्रक विहीन होते हैं।
  • Esmarch’S Bandage -- एस्मार्क पट्टी
रबड़ की ऐसी जिसके पट्ट दाब के द्वारा, एकत्रित रक्त को खींच करके काला जाता है।
  • Eustachian Tube -- युस्टेकी नलिका
स्थलीय कशेरूकियों में छोटी पतली युग्मित नली, जो कर्णपटह गुहा को ग्रसनी से जोड़ती है। इसका कार्य झिल्ली से भीतर और बाहर हवा के दबाव को बराबर बनाए रखना है।
  • Excretory System -- उत्सर्जनतंत्र
उन सभी संरचनाओं और अंगों का समुच्चय, जो शरीर से वर्ज्य पदार्थ को बाहर निकालने में योगदान करते हैं।
  • Exercise Bone -- वयायामय अस्थि
अति व्यायाम जन्य अस्थि वृद्धि।
  • Exomphalos -- नाभिनाल हर्निया/नाभिनाल आंत्रवृद्धि
यह एक जन्मजात (extra-embryonic cavity) अवस्था जिसमें बहिर्भ्रूणीय गुहा (extra-embryonic cavity) से आंत (gut) देहगुहा गुहा (coelomic cavity) में वापस नहीं जाती। यह हर्निया दो प्रकार का होता है (1) लघु प्रकार (2) बृहत् प्रकार। लघु प्रकार में नाभि नाल (umbilical cord) कोश के बीच में चिपका रहता है जबकि बृहत् प्रकार में नाभिनाल कोश के सबसे निचले हिस्से में चिपका रहता है तथा पेट के सामने की दीवाल (अग्र उदर भित्ति – anterior abdominal wall ) नहीं होती। बृहत् प्रकार की अन्तर्वस्तुओं (contents) में छोटी आंत, बड़ी, आंत, और प्रायः (यकृत्) होते हैं। इस रोग की चिकित्सा शस्त्रकर्म द्वारा की जाती है। यदि बृहत् प्रकार के नाभिनाल हर्निया का उपचार शीघ्र न किया जाये तो यह रोग घातक (fatal) भी हो सकता है।
  • Expiration -- निःश्वसन
श्वसन अंगों अर्थात फुफ्फुस से वायु का बाहर निकलना।
  • Exploratory Puncture -- अन्वेषी वेधन
निदान के लिए किसी गुहा (cavity) अथवा अर्बुद का भेदन या वेधन करना।
  • Extraction -- समूलोच्छेदन
किसी अंग या उसके भाग को पूर्ण रूप से निकाल देना।
  • Extroversion -- बहुमुखता
अनेक मुखों का होना।
  • Ectopic Testes -- अस्थानिक वृषणता
वृषण के ठीक से नीचे न उतरने की वजह से उसका दूसरी जगह पर उतर जाना। इसका इलाज ऑपरेशन करके इसे अपनी जगह पर ला देना है।
  • Ectomy -- उच्छेदन
शस्त्रकर्म द्वारा अंग का उच्छेदन करना।
  • Facetectomy -- फलकोच्छेदन
कशेरुका के संधायक फलक (articular facet) का उच्छेदन।
  • Facial -- आननी
चेहरे में स्थित या उससे संबद्ध किसी अंग या संरचना के लिए प्रयुक्त। जैसे आनन धमनी या तंत्रिका।
  • Facial Injury -- आनन क्षति
दुर्घटना के कारण चेहरे पर अनिवार्य रूप से लगी चोटें। चेहरे की चोट से मरीज को श्वसन-अवरोध (सांस लेने में रुकावट) या जिह्वा के पीछे की तरफ को फौरन ही सीधे पीठ के सहारे (horizontal) और पार्श्व या करवट (lateral) की स्थिति में या ठीक उसके चेहरे के बल लिटा देते है। शस्त्रकर्म कक्ष (operation theatre) में ले जाकर मरीज को संवेदनाहरण अथवा संज्ञाहरण (anesthesia) की हालत में रखकर (would) का उपचार करते हैं।
  • Facial Nerve -- आनन तंत्रिका
कशेरुकियों में मेरुरज्जु शीर्ष (मेड्युला ओब्लाँगेटा) से निकलने वाली सातवीं कपाल तंत्रिका, जिसकी शाखाएँ चेहरे, मुख, तालु आदि अंगों में जाती हैं।
  • Facioplasty -- आनन-संधान
चेहरे का संधान शस्त्रकर्म (plastic surgery)
  • Faecal Fistula -- विष्ठा नालव्रण
जठरांत्र-पथ और बाह्य वातावरण के बीच या दो खोखले आशयों के बीच का अपसामान्य संचार। यह अवस्था चोट (क्षति), ऑपरेशन आगंतुक शल्य का अंतर्घट्टन (बारही किसी वस्तु का फंस जाना) तथा विशिष्ट अविशिष्ट संक्रमण के बाद पैदा हो सकती है। इस रोग की चिकित्सा शस्त्रकर्म तथा कारण के अनुसार की जाती हैं।
  • Fallectomy -- डिम्भवाहिनीच्छेदन
डिम्भ वहन करने वाली एलिका का उच्छेदन।
  • False Aneurysm -- अयथार्थ ऐन्यूरिज्म
रक्त की नलिका में विदार अथवा फटे हुए स्थान के पास इकट्ठे हुए रक्त के चारों तरफ एक थैली जैसी रचना का बन जाना और इसमें से धमनी का संबंध स्थापित होना।
  • False Ankylosis -- संपुट बाह्य संधिग्रह
जोड़ में होने वाली जकड़न। यह जकड़न जोड़ के बाहर के या अंदरूनी तंतुओं (articular fibres) के कारण होती है। इस जकड़न के कारण जोड़ में गति कम हो जाती है यानी एक सीमा तक हो सकती है। इसका इलाज आमतौर पर शस्त्रकर्म करके किया जाता है।
  • Faradi Puncture -- फेराडी वेधन
मांसपेशी में विद्युत् शक्ति प्रवाह हेतु सूची द्वारा किया गया वेधन।
  • Fascioplasty -- प्रावरणीसंधान
प्रावरणी पर की जानेवाली कोई भी संधान शल्य क्रिया।
  • Fasciodesis -- प्रावरणी बंधन
शल्य क्रिया द्वारा एक प्रावरणी को दूसरी प्रावरणी या कंडरा से जोड़ना।
  • Fasciorrhaphy -- प्रावरणी सीवन
कटी-फटी हुई प्रावरणी को सिलना।
  • Fascitomy -- प्रावरणी विभाजन
शल्यक्रिया द्वारा प्रावरणी का उच्छेदन करना।
  • Fat Embolism -- वसा अंतः शल्यता
अस्थि भंग या हड्डी के टूटने (fracture) का एक घातक उपद्रव (fatal complication) है, जो हड्डी टूटने के तीसरे या चौथे दिन होता है। अंतः शल्यता में वसा के गोलक (fat globules) शामिल हैं जो चोट खाई हुई हड्डी की मज्जा (medulla) से खून की नली की फटी हुई दीवार के द्वारा रक्त परिसंचरण में प्रवेश कर जाते हैं। यह भी संभव है कि अंतः शल्य में रक्त-प्लाज्मा की वसा हो, जो रक्त प्लाज्मा की सामान्य अवस्था के इम्लसीकरण (emulsification) से टूट कर निकली हो। यह इमल्सीकरण पेशी की चोट से उत्पन्न हिस्टामीन या दूसरे उत्पादों के द्वारा होता है। वसा अंतः शल्यता दो प्रकार की होती है- (1) फुप्फुसीय तथा (2) प्रमस्तिष्कीय। शुरू के चिह्नों में से एक दृष्टिपटल (retina) की धमनियों में हो सकता है जो रेखाकार रक्तस्राव तथा निःस्राव के धब्बों का कारण होता है वसा के गोलकों के लिये थूक तथा मूत्र की परीक्षा करनी चाहिये। सावधानी के अलावा, चिकित्सा में ञक्सीजन का प्रयोग भी होता है।
  • Fatty Acid -- वसीय अम्ल
कार्बनिक एलिफैटिक अम्ल, जिसमें प्रायः सीधी श्रुंखलाएँ समसंख्यक कार्बन अणु होते हैं। ये वसाओं और तेलों में पाये जाते हैं।
  • Femur -- उर्विका, फीमर, उर्वस्थि
जाँघ की हड्डी अथवा कशेरुकाओं के पश्च पाद की समीपस्थ हड्डी।
  • Fenestra -- गुहाभित्तिछिद्र
किसी गुहा-भित्ति में पाया जाने वाला अथवा शल्यक्रिया द्वारा किया जाने वाला छेद।
  • Fenestration -- छिद्रीकरण
शल्यक्रिया द्वारा छेद्रों का निर्माण करना ताकि व्रणसंरोहण सुगमता से हो सके।
  • Fergusson’S Incision Speculum -- फर्गुसन छेदन यंत्र
फर्गुसन का विशेष प्रकार का उच्छेदन यंत्र।
  • Fertilization -- निषेचन
लैंगिक रूप से विभेदित, दो युग्मकों का संलयन, जिसके फलस्वरूप युग्मज बनता है।
  • Fibrin -- फाइब्रिन
सफेद अघुलनशील तंतुमय प्रोटीन, जो थ्राम्बिन की क्रिया द्वारा फाइब्रिनोजन से बनता है और स्कंदन के बाद रूधिर (धक्के) में पाया जाता है।
  • Fibroblastoma -- तंतुप्रसू-अर्बुद
साधारण ऊतक कोशिकाओं (connective tissue cells) या तंतुप्रसू (firbroblast) से उत्पन्न अर्बुद। इसमें तंतु अर्बुद (fibroma) तथा तंतुसार्कोमा भी शामिल है।
  • Fibroidectomy -- गर्भाशय अर्बुद छेदन
गर्भाशयभित्ति में स्थित सौत्रिक तंतु से बने अर्बुद (सामान्य) का उच्छेदन।
  • Fibroma -- तंतु अर्बुद
मुख्य रूप से तंतु ऊतको (fibrous tissues) से बना पथार्थ अर्बुद जो बहुत कम देखने को मिलता है। अधिकतर तंतु-अर्बुद में दूसरे मध्यजनस्तर (fibromyoma) ऊतक, जैसे कि पेशी (तन्तु-पेशी-अर्बुद fibromyoma) चर्बी (तन्तु-वसा-अर्बुद fibrolipoma), तथा तंत्रिका पिघान (तंत्रिका-तन्तु-अर्बुद nerve fibroma) इत्यादि मिले रहते हैं। एक से अधिक अर्बुदों का होना सामान्य है, उदाहरण के तौर पर, तंत्रिका-तंतु अर्बुदता (neuro fibromatosis) तंतु अर्बुद का सख्त या मुलायम होना उसमें तंतु तथा कोशिका ऊतक की मात्रा पर निर्भर करता है। अर्बुद को काट कर निकाल फेंकना ही इसका एकमात्र इलाज है।
  • Fibromyectomy -- सौत्रिक तंतु अर्बुदछेदन
तांतव अर्बुद का उच्छेदन।
  • Fibromyotomy -- तंतुपेशीअर्बुद भेदन
तंतु अर्बुद को मात्र विभाजित करना।
  • Figure-8-Bandage -- अष्ट आकार पट्टी
8 की आकृति की तरह की स्वस्तिक बंध।
  • Filariasis -- फाइलेरिया रोग
फाइलेरिया परजीवी (parasite) बुचेरिया बेंक्रोफूटी-का पर्याक्रमण (infestation) या ग्रसन या बीमारी व्यक्ति को मच्छर तथा कृमियों के द्वारा हो जाती है जो लसीका-वाहिनियों में इकट्ठे हो जाते हैं और परिणाम स्वरूप लसीकावाहिनियों में शोथ (सूजन) तथा रुकावट आ जाती है और आगे चलकर लसीफाशोफ (lymphoemema) यहा हाथीपांव (श्लीपद) रोग हो जाता है। माइक्रोफाइलेरिया को रात के समय मरीज के सो जाने पर परिसरीय रक्त प्रवाह (Peripheral blood stream) से रक्त को निकाल कर देख सकते हैं। इस रोग की चिकित्सा फाइलेरिया रोधी औषधियों (हैट्राजन वर्ग की) द्वारा की जाती है तथा साथ ही लसीकाशोथ को भी दूर किया जाता है।
  • Filipuncture -- सूत्रवेधन
शस्त्रकर्म हेतु धमनी विस्फारण का सूत्र द्वारा भेदन।
  • Finney’S Operation -- फिने शस्त्रकर्म
अमाशय-ग्रहणी का छेदनोत्तर सीवनकर्म।
  • Fissure -- विदार
शरीर के किसी भी अंग में रैखिक फटन।
  • Fissure-In-Ano -- गुद विदार
गुदा (anus) की खाल में दरार का फटना अर्थात् गुदा त्वचा में लंबाई में एक डोंगी के समान व्रण बन जाना। आमतौर पर यह व्रण आगे या पीछे की तरफ बीच की रेखा में देखने को मिलता है। यह व्रण तीव्र या चिरकारी (पुराना-chroni) होता है। इस रोग में मल त्याग करते समय तेज दर्द होता है। शस्त्रकर्म से ही इस रोग का सफल उपचार होता है।
  • Fistula -- नालव्रण
इस रोग में एक आशय की अवकाशिका (lumen) का दूसरे आशय की अवकाशिका से या शरीर पृष्ठ से अपसामान्य संचार हो जाता है। उदाहरण के तौर पर, गुदा नालव्रण या भगन्दर विष्ठा नालव्रण (faecal fistula), मूत्र नालव्रण (urinary fistula) आदि। इससे निकले आस्राव में आमतौर पर ग्रसित अवकाशिका के स्राव (secretions) होते हैं।
  • Fistula-In-Ano -- गुदनालव्रण या भगंदर
कणिका ऊतक (granulation tissue) जो गुदनाल या मलाशय (anal canal rectum) को गुदा के चारों तरफ की त्वचा से मिलाता है। यह नालव्रण गुदनाल से बराबर संक्रमित होने के कारण हमेशा के लिए बंद नहीं हो सकता। यह दो प्रकार का होता है- (1) निम्न स्तरीय तथा (2) उच्च स्तरीय। इसका मुख् लक्षण यह है कि इसमें से लगातार सीरम-सपूय आस्राव (seropurulent discharge) निकलता रहता है। कभी-कभी मलाशयदर्शन (proctoscopy) द्वारा अंदरूनी द्वार को देखा जा सकता है। शस्त्रकर्म ही इसका एकमात्र इलाज है।
  • Fistulotomy -- नालव्रण भेदन
नाडी व्रण चिकित्सा हेतु नालव्रण का भेदना।
  • Fistulectomy -- नालव्रण छेदन
पूरे नालव्रण को काटकर हटा देना।
  • Fistulization -- नालव्रणीकरण
दो आशयों के बीच नालव्रण का निर्माण।
  • Fistulo-Enterostomy -- लध्वांत्रनाडी सम्मिलन
छोटी आंत की नाड़ीव्रण का छेदनोपरांत संयुक्तीकरण।
  • Flap -- प्रालम्ब
विभिन्न ऊतकों की एक-दूसरे को ढकने के लिए बनी रचना।
  • Flap Spliting Operation -- वेष्टक-पृथक्करण शस्त्रकर्म
ऐसी शस्त्रकर्म पद्धति, जिसमें त्वचा निरोपण (skin grafting) के लिये पूरी मोटाई का प्रालंन (आस्फाल) बनाया जाता है और बन जाने पर कुछ हफ्तों के बाद इसे ग्राही स्थान पर स्थानान्तरित कर दिया जाता है।
  • Flat Bone -- सपाट अस्थि
शरीर में स्थित चपटी अस्थि संरचना।
  • Foetus -- गर्भ
स्तनपायियों के गर्भाशय में भ्रूण की वह अवस्था, जिससे उसमें जीवन के लक्षण उपस्थित हो जाते हैं।
  • Follicle Cell -- पुटक कोशिका
अंडाशय की अंड नलिका की आंतरिक उपकला कोशिकाएँ।
  • Foot Deformity -- पाद विरूपता
जन्मजात विरूपता। यह दो प्रकार की होती है- टैलिपेस (talipes) तथा उन्नत चापपाद (pes cavus) और साथ में मध्य गुल्फ संधि के अंतर्गत पाद विरूपता तथा बहिर्नत पाद विरूपता (varus and valgus deformity) । टेलिपेस की चिकित्सा बच्चे के पैदा होने के दिन से ही प्रारंभ कर दी जाती है। शिशुओं और बालकों के लिए हस्तोपचार स्प्लिंट लगाना, ठीक करने वाले प्लास्टर तथा विकलांग जूते (orthopaedic shoes) पर्याप्त चिकित्सा है। युवकों के लिये अथवा बच्चों में इन साधनों के प्रयोग के पश्चात् भी ठीक न होने पर शस्त्रकर्म करने की आवश्यकता होती है। कभी-कभी इस विरूपता के साथ मेरुदंड की विरूपता भी होती है, जिसे अयुक्त मेरुदंड (spina bifida) कहते हैं।
  • Foramen Magnum -- महारंध्र
कशेरुकियों की करोटि के पिछले सिरे पर स्थित बड़ा छिद्र, जिससे होकर मेरुरज्जु निकलती है।
  • Foraminotomy -- छिद्रविस्तार
शरीर में उपस्थित छेद को चौड़ा करना।
  • Forceps -- संदंश
एक यंत्र, जिसके दो फलक तथा दो हत्थे होते हैं। यह खींचने, पकड़ने तथा दबाने के काम में लाया जाता है।
  • Foreign Body -- आगंतुक शल्य
इसका अभिप्राय शरीर में बाहरी वस्तु की उपस्थिति से है। यह बाहरी वस्तु ऊतकों या खोखले आशयों की अवकाशिका के भीतर हो सकती है। इस रेडियों अपार्य वस्तु के स्थान की जांच ऐक्स-रे द्वारा ही की जाती है। इस वस्तु को शस्त्रकर्म या गुहांतदर्शन (endoscopy) द्वारा ही निकाला जा सकता है।
  • Forsell’S Sinus -- फोरसेल के विवर
जठर निर्गम कोटर के श्लेष्मा कला पुटकों के बीच का रिक्त स्थान।
  • Fracture -- अस्थिभंग, अस्थिभग्न
हड्डी का टूटना जो साधारण या विवृत हो सकता है। इसके मुख्य लक्षण पीड़ा, सूजन तथा उस जगह दबाने पर पीड़ा होना और विरूपता है। अस्थिभंग का उपचार दो शीर्षकों के अंतर्गत विभाजित किया जा सकता है- (1) रोगी की देखभाल करने की व्यवस्था, (2) अस्थिभंग की स्थानिक व्यवस्था, जिसमें पुनः स्थापन तथा अचलीकरण सम्मिलित हैं। इसके बाद पुनः प्रतिष्ठा भी शामिल है।
  • Fracture Dislocation -- अस्थिभंग-च्युति
संधि में बंधे हड्डी के सिरों का टूट जाना और संधि स्थान से हट जाना।
  • Frenotomy -- सीवनी जिह्वा छेदन
जिह्वा तंतु निवारण हेतु-उच्छेदन।
  • Freyer’S Operation -- फ्रेयर-शस्रकर्म
पौरुषग्रंथि के अर्बुद का शस्त्रकर्म द्वारा निष्कासन।
  • Frey’S Syndrome (Auriculo-Temporal Syndeome) -- फ्रे संलक्षण या कर्ण-शंख संलक्षण
कर्ण-शंख तंत्रिका में चोट लग जाने या क्षति होने के बाद उत्पन्न अवस्था, जिसमें मरीज के कपाल पर रक्त वर्णता और कभी-कभी खाना खाते समय स्वेद उत्पन्न हो जाता है।
  • Fritsch’S Cathetor -- फ्रिश्च नालशलाका
मूत्रादि को निकालने के लिए प्रयुक्त नलिका।
  • Frontal Bone -- ललाट अस्थि
कशेरुकियों में मस्तिष्क के अग्र भाग को ढकने वाली हड्डी।
  • Fukala’S Operation -- फुकाला-शस्त्रकर्म
निकट दृष्टि में शस्त्रकर्म द्वारा लेन्स निष्कासन से दृष्टि लाभ।
  • Fulguration -- विध्युतदहन
डायाथर्मी द्वारा ऊतकों को नष्ट कर दिया जाना।
  • Fundoscopy -- नेत्रबुध्नदर्शन
नेत्रबुध्न की प्राकृत व विकृत अवस्था का प्रेक्षण।
  • Fundoplication -- बुध्नवलीकरण
वह शस्त्रकर्म प्रक्रिया, जो खिसकने वाले हायटस हर्निया की चिकित्सा में की जाती है। इस ऑपरेशन में आमाशय बुध्न का जठरागम (cardia) के चारों ओर सीवन कर दिया जाता है। इस प्रकार आमाशय को मध्यछद हायटस (diaphragmatic hiatus) के जरिये खिसकने से रोक दिया जाता है।
  • Fundoscope -- नेत्रबुध्न वेक्षणयंत्र
नेत्रबुध्न के परीक्षण हेतु दर्शनी यंत्र।
  • Funiculopexy -- वृषणरज्जु स्थिरीकरण शस्त्रकर्म
वृषण ग्रंथियों व वृषणरज्जु को जो स्वस्थान में स्थित नहीं हैं- उनके आसपास के तंतुओं से सीवन करके उन्हें स्वस्थान में स्थायी करने का शस्त्रकर्म।
  • Gag -- गैग
मुख खुला रखने के लिए एक नामक उपकरण।
  • Galactoblast -- स्तनग्रंथि के पीयूष द्रव से पूरित कोष्ठक
  • Galactocele -- स्तन्य पुटी
स्तन की धारण पुटी (retentioncyst), जिसमें दूध रहता है। यह दूध स्तनपायी स्त्रियों में तरल अवस्था में होता है या सांद्रित अवस्था में।
  • Galactography -- स्तनचित्रण
स्तननलिकाओं में रेडियो अपारदर्शी द्रव्य को सूचिका भरण द्वारा पूरित करके स्तन का एक्सरे चित्रण या विकिरण चित्रण।
  • Galactoma -- स्तन्यपुटी अर्बुद
स्त्रियों के स्तन में दुग्ध कोशिकाओं में उत्पन्न एक प्रकार का अर्बुद।
  • Galactophoritis -- दुग्ध नलिकाशोथ
एक अवस्था, जिसमें दुग्ध की नलिकाओं में सूजन हो जाती है।
  • Galactoptysis -- क्षीरी विस्फोट
ऐसे विस्फोटक, जिनमें दूधिया द्रव भरा हो।
  • Galactosaemia -- गेलेक्टोसरक्तता
गेलेक्टोस नामक शर्करा के चयापचय से संबंधित अलिंगी बीजसूत्रीय जो गेलेक्टोस फॉस्फेट यूरीडिल ट्रांसफरेस की कमी के कारण आमतौर पर बच्चों में होता है। इसमें यकृत् वृद्धि मोतियाबिंद तथा बुद्धिमन्दता आदि लक्षण पाए जाते हैं। कुछ रोगियों में केवल मोतियाबिंद पाया जाता है।
  • Galactopexy -- स्तनग्रंथि स्थिरीकरण
  • Galea -- शिरस्त्राणाकार रचना
औसीपिटोफ्रेन्टेलिस मांसपेशी के दो गुच्छों को जोड़ने वाली रचना।
  • Gallie’S Operation -- गेलिस का शस्त्रकर्म
गैली के फेसिया निरोप द्वारा विशाल हर्निया (वृध्न) का शल्यकर्म। यह फेसिया उरु के पार्श्व से लिया जाता है।
  • Galvanopuncture -- वक्ष्यमान वैद्युतशक्ति भेदन
वक्ष्यमान विद्युत शक्ति संबंधी परिपथ के सूची इलैक्ट्रोड द्वारा शरीर भेदन।
  • Galvanoscope -- विद्युतशक्ति मापक यंत्र
एक विद्युतीय यंत्र, जो उसमें बहने वाली विद्युत तरंग की शक्ति तथा दिशा का मापन करता है।
  • Galvanothermy -- गेल्वेनोथर्मी
:(1) प्रत्यक्ष विद्युत् शक्ति द्वारा शरीर में (ऊष्मा) ताप उत्पन्न करना।
(2) प्रत्यक्ष विद्युत् शक्ति द्वारा शरीर में ऊष्मा देना या शरीर के किसी भाग में दाहकर्म करना।
  • Ganglia -- गंडिकाएं
यह एक जगह पर स्थित (स्थानसंश्रयित ), तनी हुई, प्रायः पीड़ाहीन पुटीमय सूजन, जिसमें साफ जिलेटिनी तरल रहता है। ये अक्सर कंडरा पिघान (tendon sheath) या संधि संपुट से संचार बनाए रहती हैं। ये आमतौर पर पादपृष्ठ (dorsum of the foot) या मणिबंध (कलाई) पर दिखाई देती हैं। गंडिका स्वतः समाप्त हो सकती है। कुछ रोगियों में शस्त्रकर्म द्वारा विच्छेदन करने की भी आवश्यकता हो जाती है।
  • Ganglioglicytoma -- विशिष्ट गंडिका अर्बुद
  • Ganglioglioma -- गंडिकातंत्रिबंधार्बुद
वह तंत्रिकार्बुद, जिसमें गंडिका कोशिकाएँ हों।
  • Ganglioglioneuroma -- गंडिकार्बुर्द
वह अर्बुद जिसमें गंडिका कोशिकाएँ हों।
  • Ganglioma -- गंडिकाबुर्द
वह अर्बुद जिसमें गंडिका कोशिकाएँ हों।
  • Ganglionectomy -- गंडिकोच्छेदन
गंडिका का छेदन करना।
  • Ganglioneuroma -- अनुकंपी गंडिका तंत्रिकार्बुद
एक सुदम अर्बुद (benign tumour), जो अनुकंपी गंडिका कोशिकाओं से बना होता है।
  • Ganglionitis -- गंडिका शोथ
गंडिका में उत्पन्न होने वाली सूजन।
  • Gangrene -- कोथ, गैंग्रीन
जिसमें सामूहिक रूप से ऊतकों की मृत्यु और उनका पूतिभवन सड़ना। यह शुष्क हो सकता है, जहां पर रक्त का दौरा धीरे-धीरे कम होता जाता है या आर्द्र जहाँ पर रक्त का दौरा एकदम ही बंद हो जाता है। शुष्क कोथ में वह हिस्सा जो सूखा होता है, सिकुड जाता है, उसका रंग काला पड़ जाता है और एक सीमा रेखा बन जाती है। आर्द्र कोथ में वह हिस्सा सूज जाता है, उसका रंग बदल जाता है और उसमें सीमा रेखा नहीं होती। शल्य चिकित्सा के रूप में (सहायक उपाय), यदि मधुमेह हो तो उस का इलाज तथा रोग ग्रसित हिस्से को काट कर निकाल देना (अंगोच्छेदन) शामिल है।
  • Gangravenosis -- कोथोत्पत्ति
शरीर के किसी भी भाग में कोथ उत्पन्न होना।
  • Garrot -- गैरट
वह यंत्र, जो वर्तुल पट्टी को मरोड़ कर धमनी को दबाने में प्रयुक्त होता है। यह यंत्र धमनी रक्तस्राव के रोगियों में प्राथमिक चिकित्सा के रूप में काम में लाया जाता है।
  • Gas Gangrene -- गैस कोथ
एक संक्रामक कोथ जो गैस उत्पन्न करने वाले क्लोस्ट्रीडियम वर्ग के जीवों के परिणामस्वरूप होता है। यह आमतौर पर सड़क पर होने वाली दुर्घटनाओं के फलस्वरूप, विशेषकर पेशी-ऊतक में चोट लग जाने के कारण होता है। जब कभी भी बहुत ज्यादा भिगे हुए जख्म के चारों तरफ स्थानिक क्रेपीटेशन मौजूद हो तो जख्म से फाहा लेकर परीक्षा करने पर हालत का पता लग जाता है। चिकित्सा के लिए रोगी को अलग रखना, प्रति गैसकोथ सीरम का प्रयोग तथा अंगोच्छेदन आवश्यक है।
  • Gastrectomy -- जठरोच्छेदन
आमाशय (जठर) को पूर्णरूप से या आंशिक रूप से काटकर बाहर निकाल देना। यह ऑपरेशन पेप्टिक व्रण तथा आमाशय में कार्सिनोमा हो जाने पर किया जाता है।
  • Gastrinoma -- अग्न्याशयार्बुद
अग्न्याशय ग्रंथि में गैस्ट्रिन नामक पाचक रस का स्राव करने वाला नॉन बीटा आइलेट कोशिकाओ से उत्पन्न अर्बुद।
  • Gastroacephalus -- गैस्ट्रोसेफेलस
ऐसा विकृत गर्भ, जिसमें शिरविहीन परजीव हो।
  • Gastrocele -- जठर-हर्निया
आमाशय या जठर कोष्ठ (gastric pouch) का बहिःसरण।
  • Gastrocoloptosis -- जठर वृहदांत्रभ्रंश
वह अवस्था जिसमें जठर तथा बृहदांत्र का अधोभ्रंश हो जाता है।
  • Gastrocolostomy -- जठर-बृहदांत्र संधान/संमिलन
वह शस्त्रकर्म जिसमें जठर तथा वृहदांत्र को परस्पर मिलाया जाता है।
  • Gastrocolpotomy -- गैस्ट्रोकॉल्पोटॉमी
उदर भित्ति में भेदन करना।
  • Gastrodiaphane -- आमाशयपरिक्षणार्थ लघुविद्युत दीप
एक लघु विद्युत दीप युक्त नलिका यंत्र, जो भोजन विवर के रास्ते आमाशय में पहुँचकर आमाशय को प्रकाशित करता है और परीक्षण में सहायता देता है।
  • Gastrodiaphanoscopy -- आमाशय वीक्षण
गेस्ट्रोडायाफेन नामक आमाशय वीक्षण यंत्र द्वारा आमाशय गुहा का परीक्षण।
  • Gastrodialysis -- आमाशय डायलिसिस
जठर के श्लेष्मिक स्तर का निर्मोक करना, जिससे उसमें व्रणोत्पत्ति हो जाए और श्लैष्मिक कला में विदार उत्पन्न हो।
  • Gastroduodenitis -- आमाशय ग्रहणी शोथ
आमाशय तथा ग्रहणी का सूजन।
  • Gastro-Duodenoscopy -- जठर ग्रहणी दर्शन
आमाशय तथा ग्रहणी की गुहांतदर्शी परीक्षा (endoscopic examination)
  • Gastro-Duodenostomy -- जठर-ग्रहणी सम्मिलन
शस्त्रकर्म द्वारा आमाशय तथा ग्रहणी को परस्पर मिला देना।
  • Gastroenteritis -- जठरांत्रशोथ
जठर तथा शेष आंत्र में उत्पन्न होने वाली सूजन। इसमें वमन और अतिसार मुख्य रूप से मिलते हैं।
  • Gastroenterostomy -- जठरांतरबृहदांत्र सम्मिलन
शस्त्रकर्म द्वारा जठर, क्षुद्रांत्र, तथा वृहदांत्र को कृत्रिम मार्ग बनाकर जोड़ना।
  • Gastroenterotomy -- जठरांत्र संधान/सम्मिलन
शस्त्रकर्म द्वारा जठर तथा आंत्र को परस्पर मिलाना।
  • Gastroenterotomy -- जठरांत्रछेदन
शस्त्रकर्म द्वारा उदर भित्ति में जठर तथा आंत्र में उच्छेदन।
  • Gastroesophagostomy -- जठर-ग्रासनली सम्मिलन
शस्त्रकर्म द्वारा आमाशय तथा ग्रासनली परस्पर मिला देना। यह आमतौर पर ग्रासनली के निम्न पाश का उच्छेदन करने के बाद ग्रासनली कार्सिनोमा अथवा सुदम संरचनाओ की चिकित्सा के लिए किया जाता है।
  • Gastroesophagitis -- जठरांननलिका शोथ
जठर तथा अन्ननलिका के श्लैष्मिक स्तर की सूजन।
  • Gastroesophagostomy -- जठरान्ननलिका सम्मिलन
जठर और अन्ननलिका को शस्त्रकर्म द्वारा जोड़ना।
  • Gastrofiberoscope -- आमाशय वीक्षणयंत्र
आमाशय परीक्षण हेतु देखने के लिए प्रयुक्त यंत्र।
  • Gastrogastrostomy -- जठरांश सम्मिलन
शस्त्रकर्म द्वारा आमाशय के जठर निर्गम तथा अभिहृद् सिरों को परस्पर जोड़ना। यह ऑपरेशन आमाशय के डमरूवत् अवकुंचन (Hourglass contracture) की चिकित्सा करने के लिए किया जाता है।
  • Gastrogastsi- Canastomosis -- जठरांशसम्मिलन
इस जठर अवकुंचन नामक विकृति में आमाशय के प्रवेश द्वार तथा निर्गम द्वार का सम्मिलन कराया जाता है।
  • Gastrograph -- जठर आलेख
वह यंत्र, जिसके द्वारा आमाशय के ऊपर की त्वचा के संपर्क द्वारा आमाशय के क्रमिक आंकुचन का चित्रण किया जाता है।
  • Gastrohelcosis -- आमाशयस्थव्रण (प्रपाच्चव्रण)
आमाशय में उत्पन्न होने वाला व्रण।
  • Gastrojejunostomy -- जठर-मध्यांत्र सम्मिलन
वह शस्त्रकर्म, जिसमें आमाशय तथा मध्यांत्र को परस्पर मिला दिया जाता है यह शस्त्रकर्म पेप्टिक व्रण की चिकित्सा में तथा जठर निर्गम अवरोध को दूर करने के लिए किया जाता है। सम्मिलन (anastomosis) के स्थान पर सम्मिलनी व्रण का उपद्रव भी कभी-कभी उत्पन्न हो जाता है। यह ऑपरेशन दो प्रकार का होता है। (1) अग्र जठर-मध्यांत्र सम्मिलन, तथा (2) जठर-मध्यांत्र सम्मिलन। आजकल अग्र जठर-मध्यांत्र सम्मिलन बहुत कम किया जाता है। इस प्रकार के ऑपरेशन से अनेक उपद्रव पैदा हो जाते हैं और जठर-मध्यांत्र सम्मिलन में व्रण या घाव बनने का अधिक भय बना रहता है। जठर कार्सिनोमा में भी यह ऑपरेशन किया जाता है।
  • Gastroenteritis -- जठरांत्र शोथ
सालमोनेला नामक जीवाणु के उपसर्ग से आमाशय और आंत्र के श्लैष्मिक स्तर की सूजन।
  • Gastropylorectomy -- जठरनिर्गमोच्छेदन
आमाशय के जठर निर्गम भाग का छेदन करना।
  • Gastroscope -- जठरदर्शी
एक गुहांतदर्शी (endoscope) यंत्र है, जिसके द्वारा आमाशय के अंदूनी भाग का निरीक्षण किया जाता है।
  • Gastrostogavage -- जठर छेदनलिका पोषण
शस्त्रकर्म उदर द्वारा भित्ति में छेदन करके नलिका द्वारा कृत्रिम पोषक पदार्थ देना।
  • Gastrostomy -- जठर छिद्रीकरण
वह ऑपरेशन, जिसमें आमाशय तथा उदर-भित्ति के बीच एक नालव्रण (fistula) बना दिया जाता है। इसके द्वारा रोगी को आहार दिया जाता है। यह ऑपरेशन ग्रासनली (oesophagus) तथा ग्रसनी (pharynx) में रुकावट आ जाने पर किया जाता है। यह ऑपरेशन सामान्यतः अस्थायी उपाय है, लेकिन ऑपरेशन न होने वाले दुर्दम (malignant) रोगों में एक स्थायी उपाय भी है।
  • Gastrothoracopagus -- बध्य उदर वक्ष्ययमल
वक्ष और उदर से बध्य जैसा राक्षसी यमल गर्भ।
  • Gastrotomy -- जठरोच्छेदन
शस्त्रक्रिया द्वारा उदर और आमाशय का उच्छेदन कर्म।
  • Gastrotympanitis -- उदराध्मान
वह आहमान जो उदर और आमाशय में वायु के भर जाने के कारण होता।
  • Gastropexy -- जठर स्थिरीकरण
वाल्वुलस या जठर भ्रंश (gasgroptosis) की चिकित्सा के लिए शस्त्रकर्म द्वारा आमाशय को उदर-भित्ति के साथ स्थिर कर देना।
  • Gastroadenitis -- जठरग्रंथि शोथ
जठर-ग्रंथि की सूजन।
  • Gastrocolotomy -- जठर-वृहदांत्रछेदन
वह शस्त्रकर्म जिसमें जठर तथा बृहदांत्र में उच्छेदन किया जाता है।
  • Gastsocolitis -- जठरवृहदांत्रशोथ
जठर तथा बृहद् आंत्र का शोथ।
  • Gauge -- परिमाण मापक
परिमाण का ज्ञान करने के लिए प्रयुक्त उपकरण।
  • Gauntlet Bandage -- गोन्टले पट्टी
हस्त और अंगुलियों को ग्लोब के सहारे आवृत्त करने वाली पट्टी।
  • General Anaesthesia -- सार्वदैहिक संज्ञाहरण
संपूर्ण शरीर को सुन्न करने की क्रिया।
  • Genu Recurvatum -- पश्चवक्र जानु
जानु संधि (knee joint) का अपसामान्य रूप से अतिप्रसारण (अधिक फैलाव। यह अवस्था या तो जन्मजात हो सकती है या ऊरु चतुः शिरस्का पेशी (quadriceps femris) के घात (paralysis) के कारण उत्पन्न होती है।
  • Genu Valgum -- बहिर्नत जानू
एक विरूपता जिसमें घूटने (जानू-) अन्दर की तरफ को झुक जाते हैं और टांग ऊर्वस्थि (femur) की लम्बी अक्ष (aixs) से एक अपसामान्य बाहरी कोण (angle) की तरफ घूम जाती (deviate) है। इस रोग के कारण अज्ञात (idiopathic) हैं, तथा कुछ रुग्णावस्थाएं भी हैं, जैसे रिकेट्स उपास्थि दुर्विकसन (dyschondroplasia)। यदि घुटनों को मोड़ दिया (flexed) जाए तो विरूपता दूर हो जाती है। यह रोग उन्नत चाप पाद (pes cavus) के साथ-साथ हो सकता है। इस रोग की चिकित्सा शस्त्रकर्म है।
  • Giant Cell Tumour -- अस्थि महाकोशिका अर्बुद
अविभेदी तर्कुरूप कोशिकाओं तथा बहुकेंद्रक महाकोशिकाओं (multimucleated giant cells) का बना अर्बुद। यह 30 तथा 40 साल की आयु में होता है तथा स्त्रियों में सामान्य रूप से पाया जाता है। वह दीर्घ अस्थियों की अधिवर्ध विक्षति (epiphyseal lesion) है अर्थात् हड्डियों के बढ़ने वाले सिरों का विकार है और इस रोग से जानु संधि (घुटने का जोड़) अधिक प्रभावित होती है। अर्बुद अस्थिलायी या हड्डी को गलाने वाला होता है। इस अर्बुद का ऐक्स-रे साबुन के झाग के बुलबुलों के समान होता है। ऑपरेशन करके निकाल देने के बाद भी आमतौर पर यह फिर से हो जाता है। लाक्षणिक रूप से इसमें दर्द, स्पर्शवेदना तथा वैकृत अस्थिभंग होते हैं। उपचार में विकिरण चिकित्सा की जाती है।
  • Gill’S Operation (Arthroesis) -- गिल शस्त्रकर्म (संधिगतिनिरोध)
पाद पात (drop foot) अथवा उन्नत पार्ष्णिपाद (pes equinus) की अवस्थाओं में किया जाने वाला शस्त्रकर्म। इस ऑपरेशन में अस्थि की एक पश्च कील को पादतल आकुंचन को सीमा बाहर करने के लिए प्रवेश करना पड़ता है।
  • Gingivectomy -- दंतमांस-उच्छेदन
समूड़ों के मुलायम ऊतकों को अगल करना। यह (1) मसूड़ों की अतिवृद्धि तथा (2) स्वस्थ दांतो के चारों तरफ हुई परिदन्त कोटरिकाओं को दूर करने के लिए किया जाता है।
  • Gingivoglossitis -- दंतवेष्टक जिह्वाशोथ
दंतवेष्ट ओर जिह्वा की सूजन।
  • Girdlestones Operation -- गर्डिलस्टोन शस्त्रकर्म
इस शस्त्रकर्म में ऊर्वस्थि के शिर तथा ग्रीवा का उच्छेदन किया जाता है। यह ऑपरेशन आमतौर पर नितंब संधि के अस्थिसंधिग्रह (ankylosis) की अवस्था में किया जाता है।
  • Gland -- ग्रंथि
ऐसा अंग, जो विशिष्ट रासायनिक यौगिक- जैसे, एंजाइम या हार्मोन आदि का स्रवण करता है। उदाहरण, लार ग्रंथियाँ, अग्न्याशय, पीयूष आदि।
  • Glandular Abscess -- लसिका-ग्रंथि विद्रधि (ग्रंथि विद्रधि)
लसिकाग्रंथि में उत्पन्न होने वाली विद्रधि।
  • Glenard’S Disease -- ग्लेनार्ड व्याथि
द्वितीयक जलशीर्ष (hydro-cephalus) के रोगियों में हृदय अथवा पर्युदर्यागुहा (peritoneal cavity) में कृत्रिम प्रमस्तिष्क-मेरु तरल के निकास की स्थापना करने हेतु किया गया ऑपरेशन।
  • Glomerulitis -- कोशिकास्तवक शोथ
वृक्क कोशिका के स्तवक की सूजन।
  • Glossitis -- जिह्राशोथ
जिह्रा में यह शोथ भौतिक, रासायनिक अथवा जीवाणुओं के कारण उत्पन्न होने वाली सूजन। जीभ में सूजन हो जाती है और वह बाहर निकल आती है। इस रोग की चिकित्सा कारण के अनुसार की जाती है।
  • Glossoplegia -- जिह्वा घात
जीभ की कर्माल्पता।
  • Glossorrhaphy -- जिह्वा संधान
शस्त्रकर्म द्वारा जीभ का संधान कर्म।
  • Grafting Bone -- निरोप
अपने ही शरीर में प्राप्त अस्थि का रोपने वाला शस्त्रकर्म।
  • Gray Matter -- धूसर द्रव्य
केंद्रीय तंत्रिका तंत्र में भूरे रंग का ऊतक, जो प्रमस्तिष्क का बाहरी ओर मेरूरज्जु का भीतरी भाग बनाता है। इसमें तंत्रिका कोशिकाओं का जमाव होता है।
  • Guerion And Desmarres Operation -- गुअरिन एवं डेस्मेयरस शस्त्रकर्म
नेत्र तारका विकृति दूर करने के लिए किया जाने वाला ऑपरेशन।
  • Habitual Abortion -- पुनः पुनः गर्भपात
जब तीन बार लगातार गर्भपात हो। कुछ पुस्तकों के अनुसार दो बार हो तो उसे पुनः पुनः गर्भपात कहते हैं।
  • Haemangioma -- रक्तवाहिन्यार्बुद
वह अर्बुद जो रक्तवाहिनियों में उत्पन्न होता है।
  • Haematemesis -- रक्तवमन
वमन में रक्त की उपस्थिति। यह मुख्यतः आमाशय तथा ऊपरी अबनलिका में विकार के फलस्वरूप होता है।
  • Haematobilia -- पित्तस्लमयता
पित्त या पित्तनली में रक्त की उपस्थिति।
  • Haematocele -- रक्तवृषण
रक्त की उपस्थिति वाला वृषण कोश। यह मुख्यतः अघातजन्य होता है।
  • Haematoma -- रक्तगुल्म
आघात लगाने से एक स्थान पर जमा हुआ रक्त का थक्का।
  • Haematuria -- रक्तमेह
मूत्र में रक्त की उपस्थिति। मूत्र में रक्त, वृक्क, वृक्कनलिका, मूत्राशय या मूत्रनली किसी एक में विकार होने से आ सकता है।
  • Haemoglobin -- हीमोग्लोबिन/रक्तरंजक द्रव्य
कशेरुकाओं की लाल रुधिर कोशिकाओं में पाये जाने वाला श्वसन वर्क, जिसमें ‘ग्लोबीन’ नामक एक नटिल प्रोटीन के साथ ‘हीम’ नामक एक लौहपुक्त पदार्थ रहता है।
  • Haemolysis -- रुधिर लयन
लाल रुधिर कणिकाओं का टूटना या इन कणिकाओं की बाहरी झिल्ली के टुटने से हीमोग्लोबिन का निकल जाना।
  • Haemophilia -- हीमोफीलिया
एक्स सहलग्न अप्रभावी विकार, जिसके कारण रक्त के थक्के बनने की क्षमता कम हो जाती है। मादाएँ सामान्तया इस विकार की वाहक होती हैं, लेकिन यदि अर्धयुग्मजी हीमोफीलिया ग्रस्त नर या विषम युग्मजी वाहक मादा के बीच संगम होता है तो इससे हीमोफिलियाग्रस्त मादाओं का जन्म हो सकता है।
  • Haemoptysis -- रक्तनिष्ठीवन
कफ के साथ रक्त का निकलना। यह मुख्यतः श्वसन तंत्र की व्याधियों के फलस्वरूप होता है।
  • Haemorrhage -- रकतस्राव
रक्तवाहिनियों से आघात या अन्य कारणों से इसका स्राव होना।
  • Haemorrhoidectomy -- अर्शोच्छेदन
गुदा में उत्पन्न होने वाले अर्श का शस्रकर्म द्वारा छेदन करना।
  • Haemorrhoids -- अर्श, बवासीर
गुदा में उत्पन्न अंकुरजन्य वृद्धि, जिससे रक्त का स्राव होता रहता है।
  • Haemostasis -- हीमोस्टैसिस, रक्तस्तंभन
रुधिर लसिका की हानि का स्तंभन या निरोध।
  • Haemothorax -- रक्तवक्ष
फुफ्फुसीय गुहा में उपस्थित रक्त। यह आघातज या फुफ्फुस की व्याधियों के कारण हो सकता है।
  • Hair Follicle -- रोमकूप
बालों के निकलने का स्थान।
  • Hallux Rigidus -- पादांगुष्ठ स्तंभ
पैर के अंगूठे में का उत्पन्न जकड़न।
  • Hallux Valgus -- पादांगुष्ठ बर्हिर्नात
पैर के अंगूठे का बाहर की ओर मुड़ जाना।
  • Hamartoma -- हेमार्टोमा
प्रभावित भाग में सामान रूप से स्थित परिपक्व कोशिकाओं तथा ऊतकों की अतिवृद्धि से उत्पन्न होने वाला सुदम अर्बुद।
  • Hansen’S Disease -- कुष्ठरोग/गलित कुष्ठ
वह रोग, जिसमें त्वचा के उपर सुन्न धब्बों की उत्पत्ति हो जाती है। बाद में अंग भी गलकर गिरने लग जाते हैं।
  • Hard Palate Cancer -- कठोरतालु कर्कटार्बुद
कठोरतालु में होने वाला दुर्दम अर्बुद।
  • Harmone Therapy -- हॉरमोन चिकित्सा
विभिन्न प्रकार के हॉरमोनों द्वारा शरीर में उत्पन्न व्याधियों का उपचार। जैसे मासिक धर्म समाप्ति के साथ एस्ट्रोजन स्थानांतरण चिकित्सा।
  • Hartmann Resection (For Rectal Carlinoma) -- हार्टमान उच्छेदन (गुदार्बुद हेतु)
दुर्दम गुदार्बुद की चिकित्सा में गुदा का वृहदउच्छेदन।
  • Hartmann’S Operation (For Divertiulitis) -- हार्टमान का शल्यकर्म (विपुटी शोथ हेड)
आंत्र में उपस्थित विपुटी सूजन के उच्छेदन हेतु प्रयुक्त ञपरेशन।
  • Harvey’S Sign -- हार्वे चिह्न
शिराविस्फार आदि में प्रयुक्त एक प्रकार का परीक्षण, जिससे शिरा में रक्त के बहाव की स्थिति का पता लगता है।
  • Hashimoto’S Thyroiditis -- हाशीमोटो अवटुग्रंथि शोथ
अवटुग्रंथि की स्वव्याधिक्षम प्रकार की सूजन।
  • Haustra Coli -- वृहदांत् आवली, वृहदांत्र होस्ट्रम
वृदादांत्र में पेशी द्वारा निर्मित आवली।
  • Hear -- श्रवण
कर्णेन्द्रिय द्वारा शब्द ग्रहण प्रक्रिया।
  • Heart Block -- हृदयावरोध
हृदय का क्रिया का अवरोध।
  • Heart Burn -- हृद्दाह
हृदय प्रदेश में अम्लता से उत्पन्न जलन।
  • Heberden’S Node -- हैबरडन ग्रंथि
जीर्ण आमवात रोग के उपद्रवस्वरूप उत्पन्न ग्रंथि। यह मुख्यतः अंगुलिपर्वों में पायी जाती है।
  • Heel Bone -- पार्षिण अस्थि
एड़ी में पाई जाने वाली हड्डी।
  • Heinz Bodies -- हिंज बॉडीज
हीमोग्लोबिन कणं के क्षतिग्रस्त होने पर परिपक्व लाल रक्त कोशिकाओं में विद्यमान कणिकाएँ, जो रक्तलायी अरक्तता में पायी जाती हैं।
  • Heller’S Myotomy -- हीलर पेशी उच्छेदन शल्यकर्म
इसमें अन्ननलिका के दूरस्थ भाग के अवकुंचन के दूर करने हेतु पेशी छेदन किया जाता है।
  • Hematocrit -- लोहितकोशिकामापी
रक्त में लाल रक्तकोशिकाओं की आयतन प्रतिशतता का पता लगाने के लिए प्रयुक्त किया जाने वाला उपकरण।
  • Hematochezia -- हीमेटोचोज़या
रक्त युक्त मल का विसर्जन होना।
  • Hemiballismus -- अर्द्धजिह्वा उच्छेदन
शरीर के एक पार्श्व में झटके के साथ और फड़फड़ाहट युक्त गतियाँ
  • Hemiclolectomy -- अर्द्ववृहदांत्र उच्छेदन
शल्यक्रिया द्वारा वृहदांत्र के आधे-भाग को काटकर अलग कर देना।
  • Hemi Glossectomy -- अर्द्धजिह्वा उच्छेदन
जीभ के एक पार्श्व को शल्य क्रिया द्वारा काटकर अलग कर देना।
  • Hemilaryngectomy -- अर्द्धस्वरयंत्रोच्छेदन
स्वर यंत्र के पार्श्वीय आधे भाग को शल्यक्रिया द्वारा काटकर अलग कर देना।
  • Hemipelvectomy -- अर्द्ध श्रोणिच्छेदन
श्रोणि के आधे भाग को शल्य क्रिया द्वारा काटकर अलग कर देना।
  • Hemodilution -- रक्ततनुता
रक्त में तरल भाग का बढ़ जाना, जिससे रक्त में लालरक्त कणिकाओं की सांद्रता कम हो जाती है।
  • Hepatic Portal System -- यकृत निवाहिका तंत्र
रुधिर में घुले हुए भोजन पदार्थों को आँत की कोशिकाओं से यकृत् में ले जाने वाली शिराओं का तंत्र। तात्कालिक आवश्यकता के बाद पचे हुए भोजन का बचा हुआ अंश इस तंत्र द्वारा यकृत में सीधे पहुँच कर जमा होता है।
  • Hepatitis -- यकृत्शोथ
यकृत कोशिकाओं में विविध संक्रमणों द्वारा हे वाला एक प्रकार की सूजन।
  • Hepatocellular Carcinoma -- यकृतकोशिकीय दुर्दम्य अर्बुद
यकृत कोशिकाओं में होने वाला दुर्दम अर्बुद।
  • Hernia -- वृद्धिरोग (वृध्नरोग)
  • Herpes -- हर्पीज (परिसर्प)
त्वचा का एक शोथज रोग, जिसमें त्वचा पर गुच्छों के रूप में छोटे- छोटे दाने उत्पन्न हो जाते हैं। यह हर्पींज विषाणु द्वारा उत्पन्न होता है। मुख्य रूप से इसके दो रूप होते हैं। हर्पीज सिम्पलेक्स तथा हर्पीज जोस्टरा।
  • Hiatus Hernia -- हायटस हर्निया
वह अवस्था जिसमें आमाशय का एक भाग मध्यच्छद पेशी में स्थित ग्रासनली छिद्र (oesophageal hiatus) के द्वारा बाहर निकल आता है। यह तीन प्रकार का होता है : (1) सर्पी (2) परा ग्रसनी तथा (3) मिशअरित। सर्पी प्रकार में उरोस्थि के पीछे के भाग में जलन अमाशय से ऐसिड तरल का लौटकर मुंह में आना तथा ग्रसनी के निचले हिस्से में पेप्टिक व्रण का बनना आदि लक्षण पाए जाते हैं। ऐसी दशा में चिकित्सा मुख्यतः रूढ़ प्रकार की होती है। जब सफलता नहीं मिलती तब इसे शस्त्रकर्म द्वारा ठीक किया जाता है। पराग्रसनी प्रकार में लक्षणों का कारण वक्ष गुहा में आमाशय के अधिक भाग का पड़ा रहना है जो सांस लेने में तकलीफ (कष्ट श्वास- dyspnoea) तथा धड़कन पैदा करता है। इसकी चिकित्सा शस्त्रकर्म द्वारा की जाती है।
  • Hibb’S Operation (Spinal Fusion) -- हिब शस्त्रकर्म
मेरुदंड का ऑपरेशन जो अंतःसंधि (intra-articular) तथा बहिः संधि (extra articualar) संयुक्ति को मिलाता है। यह शस्त्रकर्म पुराने विरोहित (healed) यक्ष्मज मेरुदंड (T.B. spine) के रोगियों में किया जाता है। इस शस्त्रकर्म में फलकों से बहुत सी हड्डियों के अपखंड (चिप) निकाले जाते हैं और उनको गूंथ दिया जाता है जिससे एक सख्त पिंड बन जाता है। पार्श्व संधियों का उच्छेदन करके अस्थि अपखंडों )टुकड़ों) को भर दिया जाता है। कशेरुका के कंटक प्रवर्धों (spinous processes) को नीचे इस प्रकार झुका दिया जाता है कि वे एक-दूसरे से आपस में मिल सकते हैं।
  • Hilar Dance, (Hilus Dance) -- हिलर स्पंदन
फुफ्फुस धमनी में अत्यधिक रक्त बहने के कारण स्पंदन का फ्लोरोस्कोपी द्वारा दर्शन (यह प्रमुखतः वैन्ट्रिकुलर सैप्टल डिफैक्ट की स्थिति में दिखायी देता है)।
  • Hip -- नितम्ब
श्रोणि तथा अरु अस्थियों से मिलकर बना जांघ का ऊपरी भाग।
  • Hirschsprung’S Disease -- हिरस्प्रंग रोग
वृहदांत्र में पाये जाने वाला एक विशिष्ट रोग जिसमें वृहदांत्र के एक भाग में तंत्रिका विहीनता की स्थिति उत्पन्न हो जाती है। भाग चौड़ा हो जाता है। यह एक जन्मजात विकृति है। मलबद्धता इसका मुख्य लक्षण है।
  • Histocompatibility -- उतक सात्म्यता
रक्ताधान तथा प्रतिरोपण में दाता की कोशिकाओं को आदाता के रक्त द्वारा स्वीकार कर लेने का गुण।
  • Hoarseness -- स्वरकर्कशता
स्वरयंत्र की विकृति से उत्पन्न कर्कश स्वर।
  • Hodgkin’S Disease -- लसीका-ग्रन्थार्बुद
लसिका ऊतकों का एक रोग, जिसमें गर्दन में आसपास से प्रारम्भ होकर पूरे शरीर में लसिका ग्रंथियों की वेदना रहित वृद्धि हो जाती है तथा यकृत एवं प्लीहा भी बढ़ जाते है।
  • Hodgkin’S Lymphoma -- हॉजिकिन्स लसिका र्बुद
शरीर में लसीकाभ ऊतकों से उत्पन्न होने वाली नई वृद्धि अथवा अर्बुद।
  • Homogenous Bone Grafting -- स्वजातीय अस्थि निरोपण
अपनी ही जाति से प्राप्त अस्थि का शस्त्रकर्म द्वारा आरोपण।
  • Hook -- अंकुश
एक यंत्र जो अपने अग्र भाग पर झुका या वक्र होता है। इसका उपयोग किसी भाग के स्थिरीकरण (fixation) या कर्षण (traction) में किया जाता है। यह अकर्तक (blunt) या तेज (sharp) हो सकता है।
  • Housemaid’S Knee -- गृहसेविका जानु
इस अवस्था में पुरोजानुका श्लेषपुटी (prepatellar bursa) में शोथ हो जाता है जो गृहसेविकाओं में अधिक देखने को मिलता है।
  • Humerus Fracture -- प्रगण्डास्थिभग्न
बाहु स्थित प्रगण्डास्थि में आघातिक कारण से उत्पन्न होने वाला भग्न।
  • Hunner’S Ulcer -- हनर व्रण
एक वशिष्ट प्रकार का चिरकारी मूत्राशय शोथ (chronic cystitis) जो प्रौढ़ावस्था की औरतों में देखने को मिलता है। इस स्रियों में मूत्राशय बुध्न (fundus of the bladder) की श्लैष्मिक कला (mucous membrane) में ताराकार व्रण (stellate shaped ulcer) बन जाता है। तीव्र वेदना, बार-बार मूत्र का आना, मूत्र करने में तकलीफ होना तथा रक्तमेह, अर्थात् पेशाब या मूत्र में रक्त का आना, इस रोग की विशेषताएं हैं। चिकित्सा में डायाथर्मी, दहनकर्म (cauterization) या शस्त्रकर्म द्वारा उच्छेदन कर दिया जाता है।
  • Hutchinson’S Melanotic Freckle -- हचिंसन मैलेनिक त्वक् विवर्णता
धूप में अनावृत होने के फलस्वरूप मैलनिन के इकट्ठा हो जाने से त्वचा पर बना धब्बा।
  • Hydatid Cyst -- हाइडेटिड पुटी
यह मनुष्य में, जो कि मध्यस्थ पोषद (intermediate host) है, टीनिया एकीनोकोक्स के कारण होती है। इसमें भूरापन लिए एक सफेद कला (झिल्ली – membrane) होती है। इस कला को स्तरित कला (laminated membrane) कहते हैं, जो अंकुरित अपकला (germinated epithelium) द्वारा अन्दर की तरफ स्तरित (अस्तर लगाये) है। यह अधिकतर यकृत् (liver) में देखी जाती है परनतु यदि स्कोलेक्स यकृत् के द्वारा छनकर फेफड़ों में पहुंच जाए तो शरीर के किसी भी हिस्से में देखी जा सकती है। यह अवस्था बिना किसी लक्षण के मिलती है तथा मरणोत्तर (post mortem) परीक्षा करने पर इसका पता चलता है चा दक्षिण अधः पर्शुक प्रदेश (पसलियों के नीचे सीधी तरफ (hypochondrium) में बिना दर्द किए पुटीमय सूजन देखी जा सकती है। पुटी के फट जाने पर अधिक प्रोटीन से मुक्त तरल पर्युदर्या गुहा (peritoneal cavity) में चला जाता है जिससे ऐनाफिलेक्टिक स्तब्धता (anaphylactic shock) उत्पन्न हो जाती है। पुटी में छोटी-छोटी पुटियां बनती जाती हैं, जिन्हें अनुजात पुटियां (daughter cysts) कहते हैं। इसकी चिकित्सा ऑपरेशन करके पुटी निकाल देना है।
  • Hydradenitis Suppurativa -- पूययुक्त स्वेद ग्रंथिशोथ
इसमें स्वेद ग्रंथि में संक्रमण के कारण पूययुक्त शोथ उत्पन्न हो जाता है यह मुखअयतः कक्षा में मिलता है।
  • Hydrencephaly -- अमस्तिषअकी-जलशीर्ष
प्रमस्तिष्क गोलार्धों (cerebral hemispheres) की जन्मजात अनुपस्थिति के साथ-साथ रिक्त अवकाश (empty space) में प्रमस्तिषक-मेरु द्रव या तरल (cerebrospinal fluid) की उपस्थिति का होना।
  • Hydrocele -- जलवृषण
अंडधर कंचुक (tunica vaginalis) या आच्छादी प्रवर्ध (processus vaginalis) में जल का इकट्ठा हो जाना। इसका कारण अज्ञात है। लेकिन यह बीमारी श्लीपद (फाइलेरिया), वृषण या अधिवृषण की बीमारी के साथ-साथ हो सकती है। इस बीमारी का इलाज ऑपरेशन के जरिए किया जाता है। इलाज में यह भी देखा जाता हैं कि तरल पदार्थ किस स्थान पर इकट्ठा हुआ है और इसका संबंध पर्युदया गुहा (peritoneal cavity) से तो नहीं है। जलवृषण का वर्गीकरण (classification) भी किया जा सकता है। यदि तरल सिर्फ वृषण गुहा में ही है तो अंडधर जलवृषण (vaginal hydrocele) कहा जाता है। यदि पर्युदर्यागुहा के साथ वृषणरज्जु प्रवर्ध खुल जाय (patency) अर्थात् वृषण रज्जु (spermatic cord) के अंडधर कंचुक का पर्युदर्या गुहा से संबंध हो तो ऐसी अवस्था को जन्मजात जलवृषण (congential hydrocele) कहा जाता है। शिशु जलवृषण (infantile hydrocele) में अंडधर कंचुक (tunica vaginalis) तथा आच्छादी प्रवर्ध (processus vaginalis) दोनों में ही तरल मिलता है ओर उनका संचार या संबंध पर्युदर्या गुहा से नहीं होता।
  • Hydrocephalus -- जलशीर्ष
प्रमस्तिष्क में द्रव (C.S.F) के सामान्य परिसंचरण में रुकावट आ जाने से उसका मस्तिष्क के अवाजालतानिक अवकाश में इकट्ठा हो जाना। यह अवस्था जन्मजात (congenital) या बाद में अर्जित (acquired) भी हो सकती है। यह अवस्था असंचारी (non-communicating type) समझी जाती है जो की इस रोग का मुख्य लक्षण दिखाई पड़ता है। चतुर्थ निलय के छेद के बन्द हो जाने के कारण निलय तंत्र (ventricular system) रुक सा जाता है। यदि विस्फारित निलय का अवजालतानिका अवकाश से खुल कर संचार होता हो तब जलशीर्ष को संचारी प्रकार (communicating) कह सकते हैं। लाक्षणिक रूप से शिर बड़ा हो जाता है और शिरोवल्क की शिराएँ चौड़ी हो जाती हैं तथा फौन्टेनलियां विस्तृत हो जाती हैं। प्रेरक (motor) क्षेत्र के ग्रसित होने पर कोई लक्षण नहीं मिलते। रोगी की सोचने-समझने की शक्ति में भी कमी नहीं आती। पीयूषिका ग्रन्थि (pituitary gland) पर दबाव पड़ने की वजह से द्वितीयक अन्तःस्रावी लक्षण (secondary endocrine symptoms) बढ़ने लगते हैं। जलशीर्ष के रोधी प्रकार (obstructive type) में रुकावट लाने वाले कारक (agent) जैसे अर्बुद (tumour) को हटाया जा सकता है।
  • Hydronephrosis -- जलवृक्कता
वृक्क गोणिका (renal pelvis) का अपूतित विस्फार (aseptic dilation)। यह आगे चल कर वृक्क ऊतक में शोष (atrophy) उत्पन्न करता है। इसका कारण वृक्क से मूत्र के बहाव में अल्प या अधिक रुकावट (obstruction) होना है। रोगी की आरम्भिक अवस्था में रुकावट के कारण को दूर करना आवश्यक है। देर से आने वाले रोगियों में ऑपरेशन करके एक वृक्क को निकाल देना पड़ता है, पशर्ते दूसरा वृक्क ठीक काम कर रहा हो।
  • Hydropneumothorax -- जलवातवक्ष
परिफुप्फुस गुहा (pleural cavity) में तरल एवं वायु का इकट्ठा हो जाना।
  • Hydroureter -- जल-गवीनी
गवीनी की अवकाशिका (lumen) में या मूत्राशय ग्रीवा तथा मूत्रमार्ग (urethra) में रुकावट के कारण गवीनी का फैल जाना (dilation)। जल-गवीनी के साथ-साथ आमतौर पर जल-गोणिका (hydropelvis) तथा जल आलवाल (Hydrocalyces) की हालत भी पाई जाती है। कभी कभी मूत्राशय से मूत्र वापस गवीनी में जाने से भी यह अवस्था पैदा हो सकती है। चिकित्सा कारण के अनुसार की जानी चाहिए।
  • Hygroma Cystic -- लसपुटी अर्बुद
एक कोश, पुटी अथवा श्रेल्मपुटी जिसमें तरल भरा होता है।
  • Hydatid Disease -- हाइडेटिड रोग
फीताकृमि (एकिनोकोकस ग्रेन्य़ूलोलस) के लावो की पुटीयों (Cyst) की अधिकता से यकृत में निर्मित पुटीजन्य रोग।
  • Hyoid Bone -- कण्ठिकास्थि
जिह्वा के आधार पर स्थित घोडे के नाल या अंग्रेजी U आकृति के आकार की अस्थि।
  • Hypercalcaemia -- अतिकैल्शियमरक्तता
रक्त में कैल्शियम का अधिक हो जाना।
  • Hypercorticism -- हाइपरकार्टिसिज्म
एड्रीनल ग्रंथि के कॉर्टेक्स से अत्यधिक हारमोन की उत्पत्ति।
  • Hypernatraemia -- अतिसोडियमरक्तता
रक्त में अधिक सोडियम का हो जाना।
  • Hypernephroma -- हारपरनेफ्रोमा
वृक्क का एक अर्बुद जिसकी रचना एड्रीनल ग्रंथि के कार्टेक्स से मिलती है।
  • Hyperparathyroidism -- अतिपरावटुवता
परावटु ग्रंथियाँ (पैराथॉइरोयड ग्रंथियों) की अत्यधिक सक्रीयता के कारण होने वाला रोग।
  • Hyperplasia -- अतिविकसन
शरीर के किसी अंग अथवा भाग की कोशिकाओँ की संख्या में वृद्धि होने के कारण उस अंग के आकार में अतिवृद्धि।
  • Hyper-Plastic Callus -- अतिसुघट्य कैलस
इस अवस्था में किसी शाखा (limb) के एक हिस्से में अचानक तथा स्वतः सूजन हो जाती है और उसका कैल्सीभवन (calcification) हो जाता है। सूजन जल्दी बढ़ती है तथा मुलायम, गरम और दर्दनाक होती ही। नजदीक का जोड़ अचल (immobilie) हो जाता है और रोगी अपनी पाँव (जांघ leg ) उठा नहीं पाता।
  • Hypersplenism -- प्लीहाअतिक्रियता
प्लीहा की अति सक्रियता।
  • Hyperthyroidism -- अवटु अतिक्रियता
थाररॉयड (अवटु) ग्रंथि की अत्यधिक बढ़ी हुई क्रियाशीलता, जिसमें नेत्रोत्सेधी गलगंड हो जाता है, जिसमें नेत्रगोलक बाहर को निकल आता है तथा ग्रंथि के आकार में वृद्धि हो जाती है।
  • Hypertrophy -- अतिवृद्धि
शरीर के किसी अंग की कोशिकाओं के आकार में असाधारण वृद्धि।
  • Hypertropic Scars -- अति वृद्ध क्षत-चिह्न
ये क्षत-चिह्न या व्रण-चिह्न मोटे (स्थूल) होते हैं जो विरोहित (भरे हुए Healed) जलने से हुए जख्मों (क्षतों या घावों wounds) या द्वितीयक विरोहण (secondary intention) द्वारा भरे हुये घावों में अक्सर देखे जाते हैं। क्षत-चिह्न धीरे-धीरे खिंचता है और कुछ ही वर्षों में पतला हो जाता है।
  • Hypoperistalsis -- आंत्रगतिहीनता
आंत्र की क्रमांकुचन गतियों का कम हो जाना।
  • Hypopharynx Tumours -- अधोग्रसनी अर्बुद
ग्रसनी के सबसे नीचे वाले भाग में पाये जाने वाले अर्बुद।
  • Hypophysectomy -- पीयूषिका-उच्छेदन
एक शस्त्रकर्म जिसमें पीयूषिका ग्रन्थि का उच्छेदन कर दिया जाता है। यह ऑपरेशन अर्बुदों को निकालने के लिये या हार्मोन आश्रित कार्सिनोमा में हार्मोर्न। चिकित्सा के एक भाग के रूप में किया जाता है।
  • Hypospadias -- अधोमूत्र मार्गता
एक निकास विकृति, जिसमें व्यक्ति की पेशाब की नली (मूत्र मार्ग) शिश्न के नीचे की तरफ को खुलती है। यह खुलना इस बात पर निर्भर है कि मूत्र नली का बाहय द्वार कहां पर है। यह खराबी ग्रंथिल (glandular), किरीटी (coronal), शिश्न संबंधी (penial), शिश्न – वृषणकोश संबंधी (penoscrotal) या मूलाधारीय (perineal) हो सकती है। इस विकृति को ऑपरेशन द्वारा दूर किया जाता है।
  • Hypothermia -- अल्पताप/अल्पोष्णता/अल्पतप्तता
ठंड लग जाने से, तेज बुखार को कम करने के लिए किये गये कृत्रिम उपाय, रक्तदाब को कम करने अथवा शल्यक्रिया के दौरान ऑक्सीजन की आवश्यकता को कम करने से उत्पन्न शरीर का सामान्य से नीचे तापमान।
  • Hypothyroidism -- अवटुअल्पक्रियता
थाइराइड ग्रंथि की क्रियाशीलता में कमी हो जाना, जिसके परिणामस्वरूप आधारी चयापचयी दर कम हो जाती है।
  • Hypovolaemia -- अल्पायन रक्तता
रक्त का आयतन कम हो जाना।
  • Hypoxaemia -- अल्परक्तआक्सीयता
शरीर में ऊतकों में ऑक्सीजन की कमी होना।
  • Ice Bag -- हिम पोटली
वर्फ से पूर्ण पोटली
  • Idiopathic Scoliosis -- अज्ञातहेतुक पार्श्वकुब्जता
इर रोग का कारण अज्ञात है। यह कशेरुका वृद्धि में विक्षोभ (गड़बड़ी- disturbance) हो जाने के कारण होता है। मेरुदण्ड (spine) में प्राथमिक वक्रता (primary curve) का संतुलन द्वितीयक वक्रताओं (secondary curves) द्वारा होता है। यह संतुलन प्राथमिक वक्रता की विपरीत दिशा में उसके ऊपर तथा नीचे होता है। जब मरीज कपड़े पहन लेता है, उस समय हल्के प्रकार की पार्श्वकुब्जता ज्यादा दिखाई नहीं देती है। तीव्र (बहुत अधिक) प्रकार में रोगी का कद करीब 15 सेमी कम हो जाता है और परलियों का कूबड़ (hump) निकल आता है। इस प्रकार कुब्जता (hunch back) उत्पन्न हो जाती है। यह 10 से 12 साल की आयु में दिखाई दे सकती है जब तक मेरूदण्ड का विकास पूरा होता है। प्रारंभिक अवस्था में इस कुब्जता को ठीक किया जा सकता है।
  • Ilecaecostomy -- शेषान्य-उण्डुक-सम्मिलन
शस्त्रकर्म द्वारा शेषान्त्र (ileum) तथा उण्डुक (caecum) का सम्मिलन (anasotomosis) कराना।
  • Ileostomy -- शेषान्त्रछिद्रीकरण
एक शस्त्रकर्म जिसमें बाहरी वातावरण उपरभित्ति से शेषांत्र में छेद (छिद्र) का निर्माण किया जाता है।
  • Ileotomy -- शेषन्त्रछेदन
एक शस्त्रकर्म जिसमें शेषांत्र में किया जाने वाला छेदन (incision)।
  • Ileum -- क्षुदांत्र, इलियम
छोटी आँत का अन्तिम तृतीय पंचमांश भाग (अर्थात जेजूनम) और बड़ी आँत के बीच का भाग।
  • Ilium -- इलियम (अस्थि) श्रोणि, अस्थि
श्रोणि मेखला की अग्र पृष्ठीय अस्थि जो चतुष्पादों में जघनास्थि (प्यूबिस) और त्रिक (सैक्रल) कशेरुक के अनुप्रस्थ प्रवर्ध से जुड़ी रहती है।
  • Immune -- प्रतिरक्षित
जीव, कि ऐसी स्थिति जिसमें रोग संक्रमण या किसी दूसरे पीड़कों के प्रति पूर्ण निरोध क्षमता होती है।
  • Immunization -- प्रतिरक्षण
प्रतिजन प्रवेश का एक प्रक्रम।
  • Immunogen -- प्रतिरक्षाजन
प्रोटीन या ग्लाइकोप्रोटीन जैसा वह पदार्थ जो शरीर में प्रवेश करने पर प्रतिरक्षा अनुक्रिया उत्पन्न करता है।
  • Incomplete Abortion -- अपूर्ण गर्भपात
जिस गर्भपात में गर्भ बाहर है परन्तु अपरा एवं जरायु के कुछ अंश बाहर नहीं आते।
  • Inevitable Abortion -- अपरिहार्य गर्भपात
गर्भपात की वह अवस्था जिसमें रक्तस्राव, गर्भाशय मुख का विस्फार, गर्भाशय संकोच के कारण उदरशूल आदि लक्षणों का उत्पन्न होना जिसमें गर्भपात को रोका नहीं जा सकता।
  • Incised Wound -- छेदित व्रण
शरीर में किसी तेज धार वाले शस्त्र (sharp instrument) के लगने उत्पन्न घाव। ऐसे घाव से खून बहुत अधिक मात्रा में निकलने लगता है। इस घाव के किनारे कटे-फटे न होकर तेज धार वाले (sharp edged) होते है।
  • Incision -- छेदन
शस्त्रकर्म छेदन (surgical incision) का ध्येय गहरी (गंभीर) रचनाओं तक पहुंचना होता है। इस काम में ध्यान देने योग्य बात यह है कि त्वचा की प्राकृतिक सलवटें (creases) न कट जाएं। यदि छेदन लेंगर रेखाओं के साथ-साथ (जो त्वचा में प्राकृतिक सिलवटें तथा झुर्रियां हैं) किया गया तो क्षतचिह्न (scar) हल्के बनते हैं।
  • Indigenous -- देशज, देशी
किसी प्रदेश में प्राकृतिक रूप से मिलने वाले पादप या प्राणी।
  • Infantile Multiple Periostitis -- शैशव बहुपर्यस्थिशोथ
इस रोग में कई हड्डियों पर अवपर्यास्थि अस्थि (subperiosteal bone) आ जाती है। ह अवस्था शिशुओं में होती है। वे चिड़चिड़े (irritable) हो जाते हैं और उनके मुलायम भाग के स्थान विशेष में सूजन आ जाती है जो गरम (ऊष्मा सहित) होती हैं तथा दबाने पर दर्द करती है।
  • Infection -- संक्रमण
ऊतकों में किसी परजीवी की स्थापना।
  • Ingestion -- अंतर्ग्रहण
मुख के द्वारा शरीर के अंदर भोजन अथवा औषध ले जाने की क्रिया।
  • Ingrowing Toe Nail -- नखांतः वृद्धि
नाखून के दोनों तरफ के किनारों का मुलायम ऊतक में अन्दर की ओर बढ़ना जिससे दर्द, शोथ तथा पूयीभवन (suppuration) हो जाते हैं। असावधानी से नाखून काटने पर या संकरे नोकदार जूते पहनने से भी यह अवस्था पैदा हो जाती है। अधिकतर यह अवस्था बड़ी अंगुलियों के नाखूनों में देखी जाती है। शोथ होने पर प्रति-जीवी औषधियों (antibiotics) का सेवन लाभदायक है। साथ ही नाखून के खुरदरे किनारे को नखशय्या (nail bed) के एक हिस्से के साथ काट कर निकाल दिया जाता है। इससे बाद में बढ़ने पर किनारे फिर से सामान्य हो जाते हैं। कभी-कभी सम्पूर्ण नाखून को नखशय्या तथा अंगुलि के अन्तभाग के साथ काट कर निकाल देने की आवशयकता भी पड़ जाती है।
  • Inguinal Hernia -- वंक्षण हर्निया
वंक्षण नलिका की पिछली दीवाल (पश्च भित्ति) के जरिए आशय का आभ्यन्तर वलय के द्वारा बहिःसरण होता है तब इस अवस्था को तिर्यक-वंक्षण हर्निया (indirect or oblique hernia) कहते हैं। यदि आश नलिका की पिछली दीवाल से निकलता है तो उसे ऋजु वंक्षण हर्निया (direct hernia) कहते हैं। कभी कभी शिशुओं (infants) तथा बड़े बच्चों में तिर्यक वंक्षण हर्निया के साथ अनवतीर्ण वृषण (undescended testis) भी होता है। हर्निया में एक कोश (sac) होता है जो भित्तिक पर्युदर्यो (parietal peritoneum) से आता है। वंक्षण हर्निया के सामान्य उपद्रव (1) अवरोध (रुकावट-obstruction) तथा (2) विपाशन (strangulation) हैं।
  • Innominate Bone -- नितंबास्थि
शरीर की सबसे चौड़ी अस्थि, जिसके तीन भाग होते हैं इस एक अस्थि में शेषांग, जघनास्थि, आसनास्थि स्थित है।
  • Insect Bite -- कीट दंश
बिच्छू, मधुमक्खी तथा बर्र के डंक शरीर में स्थानिक प्रतिक्रियाएं और कभी-कभी ऐनाफिलेक्सी स्तब्धता (anaphylactic shock) उत्पन्न कर देते हैं। डंक को निकालना, शीत सेक (cold compress) तथा स्थानिक एवं दैहिक हिस्टामीन रोधी औषधियों का सेवन इस रोग की चिकित्सा है।
  • Insecticide -- कीटनाशी
रासायनिक पदार्थों का मिश्रण, जिसका उपयोग हानिकारक कीटों को रोकने या नष्ट करने के लिए किया जाता है।
  • Insemination -- वीर्यसेचन
अंडाणु के निषेच के उद्देश्य से मैथुन या किसी कृत्रिम विधि से शुकाणुओं का मादा जनन-पथ में प्रवेश या अण्डाणु के आस-पास पहुँचाना।
  • Instrumentarium -- यंत्रशाला यन्त्रागार
एक स्थान जहां उपकरण अथवा यंत्र रखे जाते हैं जिनका उपयोग क्लिनिकल कार्य में किया जाता है।
  • Integrator -- समाकलित्र, इन्टिग्रेटर
एक यंत्र जिससे शरीर के पृष्ठ की नाप ली जाती है।
  • Interstitial Cystitis Or Hunner’S Ulcer -- अन्तरालीय मूत्राशयशोथ
यह स्त्रियों में पाई जाने वाली एक विशेष अवस्था है। इस रोग में वेदना के साथ लगातार मूत्र प्रवृत्ति होता है और रोगी कभी कभी औषधि व्यसन (drug addiction) और आत्महत्या (suicide) करने पर उतारू हो जाता है। रोग का कारण अभी तक स्पष्ट नहीं है। यह परावस्ति या परामूत्राशय (paravesicals) ऊतकों के संक्रमण के कारण भी होता है जिससे आगे चलकर संकुचित मूत्राशय (contracted bladder) की अवस्था बन जाती है। मूत्राशय की धारिता (मूत्र को जमा करने की मूत्राशय की शक्ति) में बराबर कमी होती जाती है। प्रारम्भ में औषधियों द्वारा इलाज किया जाता है जो अपर्याप्त है। बाद में किसी प्रकार का मूत्र का विपथगमन (किसी दूसरे रास्ते से निकालना) आवश्यकता हो सकता है।
  • Intervertebral Disc Prolapse -- अन्तराकशेरुक चक्र भ्रंश
एक लाक्षणिक अवस्था जिसमें मज्जी केन्द्रक (nucleus pulposus) तंतुल वलय (anulus fibrosus) से कशेरूक नलिका (spinal canal) के अन्दर निकल आता है (बहिःसरण pronation)। यह बीच में या एक तरफ (मध्य या पार्श्व) हो सकता है। रोगी पीठ में दर्द (backache) की शिकायत ले कर आता है साथ में कभी कभी गुध्रसी तंत्रिकाशोथ या शिआटिका (sciatica) रोग भी हो सकता है। तंत्रिका मूलों (nerve roots) पर दबाव पड़ने से तंत्रिका संबंधी अवरोधनी विक्षोभ (neurological sphincteric disturbance) हो सकता है। चिकित्सा में सख्त शय्या (hard bed), वेदनाहर औषधियां, भौतिक चिकित्सा (physiotherapy) तथा शस्त्रकर्म शामिल हैं। मेरुरज्जु चित्र (myelogram) देखने पर आंशिक या पूर्ण अवरोध मिलता है। भ्रंश (prolapse) अधिकतर ग्रैव (cervical) तथा कटि (lumbar) प्रदेशों में मिलता है।
  • Intestinal Obstruction -- आंत्र-अवरोध
आंत्र अन्तर्वस्तु (आन्त के अन्दर की वस्तु) के सामान्य रूप से बाहर निकलने में अवरोध या रुकावट। इस रोग का कारण आंत की दीवाल के बाहर भी हो सकता है। उदा. के रूप में बंधनी (bans) तथा आंसजन (adhesion)। भित्ति के रोग, जैसे घाटी आंत्रावरोध (paralytic ileus) या आन्त्र अवकाशइका में आगन्तुक शल्य अन्तर्घट्टन (foreign body impaction) भी यह अवरोध उत्पन्न कर सकते हैं। यह अवस्था छोटी या बड़ी आंत्र में हो सकती है। नैदानिक रूप से यह अवरोध तीन प्रकार का होता है:- तीव्र अवरोध (acute obstruction), अनुतीव्र अवरोध (subacute obstruction) या चिरकारी अवरोध (chronic obstruction)। विशिष्ट लक्षणों में उदर में पीड़ा, वमन, आघ्मान (फूलना) (distension) तथा कोष्ठबद्धता या मलबद्धता (कब्ज-constipation) पाये जाते हैं। वमन (उल्टी) यह लक्षण भी प्रधान है।
  • Intestine -- आंत्र
आहार नाल का वह भाग, जो ग्रसनी और मलाशय के बीच होता है।
  • Intracranial Abscess -- अन्तःकरोटि विद्रधि
यह शेफ सिर (करोटि) के अन्दर पैदा होता है। यह दिमाग (मस्तिष्क) की ऊपरी झिल्ली के बाहर, जिसका तकनीकी नाम दृढ़तानिका (duramater) है उसके नीचे तथा दुसरी झिल्ली जालतानिका (arachnoid mater) के अन्दर हो सकता है। इस शोफ को पैदा करने वाले जीवाणु मध्यकर्ण (कान के बीच के हिस्से), नासा विवर (nasal sinus), या सिर में चोट लग जाने से पैदा हो सकते हैं। ऐसी हालत में सिर में तेज दर्द, उल्टी (वमन) और दृष्टि विक्षोभ। (नजर की गड़बड़ी) जैसे लक्षण मिलते हैं। इन लक्षणों के अलावा स्थानिक (local) लक्षण भी मिलते हैं।
  • Intramedullary Nailing -- अन्तर्मज्जा कीलन
एक शस्त्रकर्म जो अस्थि भग्न (fractures) की अवस्था में अस्थि की मज्जा गुहा (medullary cavity) में एक कील से आभ्यन्तर स्थिरीकरण करने के लिये किया जाता है।
  • Intravenous Pyelography -- वृक्क के कार्य का यह एक विश्वसनीय एक्स-रे परीक्षण है जिसके साथ ही मूत्रपथ का चित्रण (out-line) भी हो जाता हैं। इस परीक्षण को उसी समय किया जाता है जब रोगी के रक्त में यूरिया की मातरा सामान्य हो तथा वह आयोडीन सुग्राही (sensitive) न हो।
  • Intubation -- नलिका-प्रवेशन
एक शस्त्रकर्म जिसमें स्वरयंत्र (larynx) या श्वास प्रणाली (trachea) में एक नलिका (tube) को प्रविष्ट कराया जाता है। कंठद्वार (glottis) तथा स्वरयंत्र में अवरोध (obstruction) होने की अवस्था में यह नलिका सामान्य वायु-पथ (air way) का कार्य करती है।
  • Intussusception -- आंत्रांत्र-प्रवेश
इस अवस्था में आन्त्र के समीप का भाग दूर के हिस्से में अन्दर को सरक जाता है। आमतौर पर ऐसी स्थिति शेषांत्र-वृहदान्त्र प्रदेश (ileo-colic region) में पाई जाती है और बच्चों में मां का दूध- छोड़ने के समय देखी जाती है। बच्चे के पेट में दर्द होता है, उल्टी होती है तथा गुदद्वार से रक्त युक्त श्लेष्मा (blood stained mucous) निकलता है। पेट (उदर) को हाथ से छूने पर बड़ी आंत की रेखा में सासेज के आकार का पिण्ड पाया जाता है। मलाशय द्वारा परीक्षा करने पर रक्त तथा श्लेष्मा लाल जैली के समान लगती है। कभी- कभी यह अवस्था वयस्कों में भी देखने को मिलती है। शस्त्रकर्म द्वारा आंत्रांत्र-प्रवेश का पुनःस्थापन (surgical reduction) इस रोग की चिकित्सा है (अर्थात् आन्त्र को आन्त्र से निकाल कर ठीक स्थान पर स्थानापन्न कर दिया जाता है)।
  • Ishchio-Rectal Abscess -- आसन-मलाशय विद्रधि गुदासन विद्रधि
एक विद्रधि जो नितम्ब की एक अस्थि (आसनास्थि) तथा बड़ी आंत के मलाशय (rectum) भाग के बीच एक गड्डे (आसन-मलाशय खात) में होती है। संक्रमण (infection) का सामान्य स्रोत गुदनाल (anal canal) तथा मलाशय है। इसमें से जल्दी ही पूय को निकाल देना बहुत जरूरी है, बरना बाद में गुदनाल व्रण (fistula-in-ano) या भगंदर हो जाने की सम्भावना रहती है।
  • Ivory Or Marble Bone -- संगमरमरीयास्थि
:(1) इस अवस्था में अस्थि हाथी के दांत या संगमरमर की तरह कड़ी हो जाती है। जैसे ओस्टायोपेचट्रोसिस में पाया जाता है।
(2) एक ऐसी अवस्था, जिसमें अस्थि सघनता पायी जाती है।
  • Jaboulay Pyloroplasty -- जैबुले आमाशय निर्गम संधान
आमाशय के निर्गम स्थान का जैबुले विधि द्वारा संधान।
  • Jansen Metaphyseal Chondrodysplasia -- जैन्सन अस्थिकाण्डकोटि उपास्थि दुर्विकसन
अस्थिकाण्ड उपास्थि दुर्विकसन का होना। उपास्थि का असम्यक विकास।
  • Jaundice -- कामला/पीलिया
रक्त में बिलीरुबिन के अधिक हो जाने के परिणामस्वरूप पित्तवर्णक के अधिक हो जाने से उत्पन्न एक रोग, जिसमें त्वचा, आंख में श्वेतपटल, नेत्रश्लेष्मा, श्लेष्म कलाओं, मूत्र तथा मल का रंग पीला हो जाता है।
  • Jaw Bone -- हनु अस्थि
हनु प्रदेश स्थित अस्थि।
  • Jaw Claudication -- हनु क्लोडीकेशन हनु खंजता
अपर्याप्त रक्तपूर्ति के कारण हनु प्रदेश में उत्पन्न तीव्र शूल।
  • Jaw Deformity -- हनु विकृति
हनु प्रदेश में उत्पन्न विकृति जो अनेक कारणों के फलस्वरूप हो सकती है।
  • Jeep Driver’S Disease -- जीप चालक रोग
त्रिक प्रदेश में उत्पन्न होने वाला रोमयुक्त सम्पुटीय नाल व्रण (pilonal sinus)
  • Jejunal Artery -- मध्यांत्र धमनी
मध्यांत्र को रक्त की आपूर्ति करने वाली धमनी।
  • Jejunal Bypass -- मध्यांत्र उपमार्ग
मध्यांत्र में अवरोध होने की स्थिति में आमाशय को क्षुद्रांत्र से जोड़ना।
  • Jejunal Free Autograft -- मध्यांत्र विमुक्त स्व ऊतक निरोप
रोगी के मध्यांत्र से लिया गया स्व ऊतक निरोप जिसे दूसरे किसी भाग पर स्थानांतरित किया जाता है।
  • Jejunal Free Flap -- मध्यांत्र मुक्त प्रालम्ब
प्लास्टिक मर्जरी में निरोपण के लिए मध्यांत्र से प्राप्त मुक्त प्रालम्ब।
  • Jejunectomy -- मध्यांत्र-उच्छेदन
शस्त्रकर्म द्वारा मध्यांत्र का पूर्ण उच्छेदन अथवा उसके एक भाग का उच्छेदन (excision) करना।
  • Jejunocolostomy -- मध्यांत्र वृहदांत्र सम्मिलन
मध्यांत्र एवं वृहादांत्र के मध्य शल्यक्रिया द्वारा एक मार्ग बनाना।
  • Jejunoileal Artery Aneurysm -- मध्यांत्र क्षुद्रांत्र धमनी एन्यूरिज्म रक्तवाहिका स्फिति
मध्यांत्रक्षुद्रांत्र धमनी में जन्मजात दोष अथवा उसकी दीवार कमजोर होने के कारण स्थानीय रूप से विस्फारित हो जाने से बनने वाली थैलीनुमा रचना।
  • Jejunoileostomy -- मध्यांत्र क्षुद्रांत्र सम्मिलन
शस्त्रकर्म द्वारा मध्यांत्र-क्षुद्रांत में कृत्रिम मार्ग बनाना।
  • Jejunorrhaphy -- मध्यांत्रसीवन
मध्यांत्र को शस्त्रकर्म द्वारा सीना।
  • Jejunostomy -- मध्यांत्र-छिद्रीकरण
शस्त्रकर्म द्वारा मध्यांत्र में एक स्थायी द्वार बनाना।
  • Jejunum Iverticula -- मध्यांत्र विपुटी/मध्यांत्र अंधवर्द्ध
मध्यांत्र की भित्ति में बना एक अंधवर्द्ध या विपुटी।
  • Joint Pain -- संधिशूल
विभिन्न कारणों से शरीर की संधियों में उत्पन्न वेदना।
  • Joint Disease -- संधिगत रोग
संधियों में उत्पन्न विभिन्न रोग।
  • Jugular Vein -- ग्रीवागत शिरा अधिमन्या शिरा
ग्रीवा के वाम एवं दक्षिण पार्श्वों में स्थित उपस्थित बाध्य एवं आभ्यंतर भेद से 2-2 सिराएँ।
  • Jugular Venous Oximetry -- ग्रीवागत (सिरा ऑक्सीजन मापन)
ग्रीवा सिरा में स्थित रक्त में ऑक्सीजन की मात्रा का मापन।
  • Junctional Tachycardia -- संगमी हृदक्षिप्रता
अलिंद-निलय नोड (AV Node) क्षेत्र से उत्पन्न नियमित आवेगों के कारण हृदगाति में आयी तेजी।
  • Junction Naevus -- संगमी न्यच्छ
प्रायः एक सपाट जन्मचिन्ह जिसमें गहन वर्णकता तथा त्वचा एवं उपत्वचा (epidermis) के संगम स्थल की कोशिकाएँ होती है। इसके दुर्दम (Malignant) होने की संभावना होती है।
  • Juvenile Adenofibroma -- बाल ग्रन्थितंतु अर्बुद
बालकों अथवा युवावस्था में पाये जाने वाला ग्रंथित एवं तंतु ऊतकों से बना अर्बुद।
  • Juvenile Nasopharyngeal Angiofibroma -- बाल अथवा युवा नासाग्रसनी वाहिकातंतुर्बुद
बालकों ओर युवकों की नासा ग्रसनी में उत्पन्न वाहिकार्बुद, जिसमें तन्तु ऊतक होता है।
  • Juvenile Polyposis -- बाल पॉलिपता/बहुपुवर्गकता
बाल तथा युवकों में बहुत से पालिपो का बनना
  • Juxtahepatic Veins -- आसन्न यकृति सिराएं
यकृति सिरा के समिप या पास।
  • Kallikrein -- कैलीक्रीन
लार ग्रंथियों से स्रावित एक प्रकार का एंजाइम जो रक्तदाब को कम करता है।
  • Kanavels’ Cock Up Splint -- केनावेल कॉक अप स्पिलिंट लकड़ी या धातु का बना एक उपकरण
कलाई (wrist) को अभिपृष्ठ आंकुचन अर्थात् पीछे की तरफ मुड़ी हुई (dorsiflexed) स्थिति में रखने के लिए प्रयोग में लाया जाने वाला स्प्लिंट।
  • Kehr’S Sign -- केर चिह्न
यह एक नैदानिक चिह्न (clinical sign) है जो प्लीहा विदार (rupture of spleen) की ओर संकेत करता है। इसका प्रदर्शन रोगी की शय्या के अगले सिरे को ऊपर उठाने पर किया जा सकता है। उस समय मध्यच्छदा पेशी के वाम सेतुक (copula) के नीचे इकट्ठा हुआ रक्त खिंचाव डालने पर वाम स्कंध के शीर्ष पर वेदना उत्पन्न करता है।
  • Keloid -- कीलॉइड
कीलॉइड अतिवृद्ध क्षतचिह्न का एक प्रकार है। यह उन साधारण ऊतकों में फैलता है जो चोट या ऑपरेशन से प्रभावित नहीं होते। जब यह उरोस्थि (सीने की हड्डी-sternum) के ऊपर बनता है तो इसकी एक खास शक्ल बन जाती है जो तितली के आकार की होती है (तितली के आकार का कीलॉइड) इसके उपद्रव (complications) फोड़े (boils), तेवग्वसीय पुटियाँ (sebaceous cysts) तथा व्रणीभवन (unceration) हां। शस्त्रकर्म द्वारा उच्छेदन (surgical excision) इस रोग की चिकित्सा है परन्तु इसके बाद भी कीलॉइड बनने की सम्भावना रहती है। अच्छेनतीजों को पाने के लिए कीलॉइड को काटकर निकाल देने के बाद विकिरण (radiation) चिकित्सा या निरोपण (grafting) के साथ अन्तः कीलॉइड करना आवश्यक है।
  • Kidney -- वृक्क
कशेरुकायों में उत्सर्जन तथा जल नियमन से संबंधित युग्मित अंग, जिसमें अनेक वृक्क नलिकाएँ एवं रूधिर वाहिकाएँ होती हैं।
  • Knife -- छुरिका
काटने या कतरने वाला हथियार जिसका उपयोग शस्त्रकर्म तथा विच्छेदन में किया जाता है।
  • Knot -- गांठ
रज्जुओं, फीतों या अन्य लंबी नम्य वस्तुओं के सिरों का इस प्रकार अन्तरावलन (intetwining) करना, जिससे वे अलग न हो सकें।
  • Kocher’S Forceps -- कोचर संदश
एक मजबूत ऊतक संदश (tissue forceps), जिसका उपयोग त्वचा, कंडराकला (aponeurosis) तथा प्रावरणी (fascia) को पकड़ने में किया जाता है।
  • Kupfer -- कप्पर कोशिका
यकृत में पाया जाने वाला विशिष्ट महाअक्षकाणु
  • Kussmaul’S Breathing -- कुस्मौल्स व्रीदिंग गहरी सांस
मधुमेह सन्यास में पायी जाने वाली अत्यधिक श्वास वृद्धि जन्य अवस्था।
  • Kyphosis -- कुब्जता
मेरुदण्ड (spine) की वक्षीय प्रदेश में वक्रता बढ़ जाना जिससे कशेरुका दण्ड (vertebral column) में उत्सेघ (prominence) उत्पन्न हो जाता है।
  • Labia Majora -- वृहत् भगोष्ठ
  • Labia Minora -- लघु भगोष्ठ
  • Lacerated Wound -- विदीर्ण क्षत
यह घाव तेज औजार से न हो कर किसी भौंतरे, अकर्तक औजार (blunt weapon) से होता है। इस घाव में ऊपरी सतह की चोट से ज्यादा चोट मुलायम ऊतको को पहुंचती है। इस घाव के किनारे सीधे न होकर कटे-फटे होते हैं।
  • Laceration -- विदार
व्रण अथवा मांस का अव्यवस्थित विदीर्ण होना/फटना।
  • Lacrimal Gland -- अश्रुसंधि, अश्रुग्रंथि
स्थलीय कशेरूकायों के ऊपरी पलक के नीचे स्थित ग्रंथि जो तरल आँखों को गीला या नम रखने में सहायक होता है।
  • Lactation -- स्तन्य स्रवण
प्रसर्वापरान्त-माता में दूध के निकलने की प्रक्रिया।
  • Lactation Adenoma -- स्तन्यार्बुद
स्तन्य स्रवण की अवस्था में उत्पन्न अर्बुद।
  • Lactic Acidosis -- स्तन्य अग्लता
  • Lactiferous Duct -- दुग्ध नलिका
  • Lactiferous Sinus -- स्तन्य नाड़ी गुहा
  • Laminectomy -- कशेरुका फलक-उच्छेदन
एक ऑपरेशन जिस में कशेरूका के पश्च चाप (Posterior arch of vertebra) का उच्छेदन (excision) किया जाता है। यह उच्छेदन अन्तराकशेरुक चक्रों (intervertebral discs) को निकालने तथा मेरूरज्जु अथवा सुषुम्ना (spinal chord) के सम्पीडन के दूर करने के लिए किया जाता है।
  • Lancet -- कुंतिका या लॉन्सेट
शस्त्रकर्म में प्रयुक्त होने वाली एक छोटी नुकीली तथा दो कोर वाली छुरिका (knife)।
  • Langerhan’S Islands -- लेंगरहंस
यह अग्न्याशय में पाया जाने वाली द्वीप सदृश रचना है, जिसमें आल्फा (a), बीटा (b) एवं डेल्टा (δ) केशिकाएं होती है।
  • Langer’S Lines -- लेन्गर रेखा
त्वचा तंतुमय ऊतकों के संरेखण जो त्वचा के अंतर्गत स्थित प्राकृतिक सिलवटों का निर्माण करते है।
  • Laparectomy -- उदर-उच्छेदन
उदर भित्ति के एक भाग का या अनेक भागों का उच्छेदन (excision) करना। यह ऑपरेशन उदर भित्ति के ढीलेपन को दूर करता है तथा उसे सहारा देता है।
  • Laparocystectomy -- उदर पुटी-उच्छेदन
उदर में छेदन (incision) करके पुटी (cyst) को बाहर निकाल देना।
  • Laparocystectomy -- उदर-अन्तर्जठरदर्शन
जठरछेदन के जरिये आमाशय के अन्दरूनी भाग का समीक्षा करना।
  • Laparorrhaphy -- उदर भित्ति सीवन
उदर भित्ति (abdominal wall) को शस्त्रकर्म द्वारा सी कर बन्द कर देना।
  • Laparoscopy -- निदानार्थ उदर पाटन, निरीक्षण, वीक्षण
  • Laparotomy -- निदानार्थ उदर पाटन शस्त्रकर्म
  • Large Intestine -- वृहदांत्र
कशेरूकायों में छोटी आँत और गुदा के बीच स्थित आहार नाल का वह भाग, जो छोटी आँत की अपेक्षा अधिक चौड़ा किन्तु लम्बाई में छोटा होता है।
  • Laryngeal Cancer -- स्वरयंत्र घातकार्बुद
  • Laryngocele -- स्वर यंत्र वायु थैली
एक वायुयुक्त अवकाश जो स्वरयंत्र से संलग्न होता है। वानरों सहित अनेक प्राणियों में यह प्राकृत होता है। परंतु मानव में विकृति दर्शक है।
  • Laryngostomy -- स्वरयंत्र छिद्रीकरण
स्वरयंत्र में एकाएक रकावट आ जाने पर ऑपरेशन करके स्वरयंत्र में एक छेद बना देना।
  • Laryngopharyngectomy -- स्वरयंत्र एवं ग्रसनी छेदन
  • Laryngoscopy -- स्वरयंत्र निरीक्षण
  • Larynx -- स्वर यंत्र
श्वास प्रणाल (Trachea) के उपरी छोर पर स्थित अवयव जो स्वर निर्माण के काम आता है।
  • Lasegue’S Sign -- लेसेग्यू चिन्ह
एक नैदानिक प्रक्रिया जिसमें गृध्रसी (Sciatica) रोग से पीड़ित रुग्ण को पैर सीधे रख उठाने पर दर्द होता है।
  • Laser Ablation -- लेसर निर्हरण
लेसर की सहायता से ग्रंथि, अर्बुद आदि का निर्हरण।
  • Laser Doppler Flowmetry -- लेसर किरण द्वारा डोपलर प्रवाह मापन
  • Latency -- गुप्त
एक ऐसी अवस्था जिसमें वस्तुतः क्रियाशीलता तो होती है परंतु दिखायी नहीं देती। कालान्तर में परिणाम दिखते हैं।
  • Lateral Collateral Ligament -- पार्श्व समपार्श्वी स्नायु
  • Latissimus Dorsi Muscle -- कटिपार्श्वच्छेदिका पेशी
  • Law Foot Or Pes Cavus -- नखाकृति पाद
ऐसा पाद जिसमें असामान्य रूप से खोखला तलुवा होता है।
  • Laxative -- नखाकृति पाद
  • Lefort Osteotomy -- ली फोर्ट (पारिस सर्जन) अस्थिभेदन
  • Leiomyoblastoma -- मसृणिपेषी कोशिका र्बुद
  • Leiomyoma -- सीसा विषाक्तता
  • Leadpoisoning -- सीसा विषाक्तता
सीसा सेवन से उत्पन्न विष्पाक्त लक्षण।
  • Lead Peritonitis -- सीसा जन्य पर्युदर्याशोथ
सीसा विषाक्तता से उत्पन्न उदर्यावरणशोथ
  • Leather Bottle Stomach -- चर्म वोतलकन् आमाशय
आमाशय चर्म बोतल सदृश होना।
  • Left Colic Artery -- बाम वृहदान्त्र धमनी
  • Left Ventricular Aneurysm -- वाम निलय ऐन्युरिजम
वाम निलय जन्मजात अथवा कमजोर हो जाने के कारण स्थानीय रूप से विस्फारित होना।
  • Left Ventricular Hypertrophy -- वाम निलय अति वृद्धि
वाम निलय की अतिवृद्धावस्था।
  • Leg Compression (Intermittent Pneumatic) -- टाँग सम्पीडन (पुनः पुनः वायुदाब से उत्पन्न होता है)
  • Leiomyosarcoma -- अरेखपेषी सारकोमा
समृणपेषी अर्बुद एवं सारकोमा दोनों होना।
  • Leukoplakia -- श्वेत धब्बे
मुख गुहा की श्लेष्मिक कलाओं पर या जिह्वा पर श्वेत, मोटे तथा कठोर अनियमित धब्बे होना।
  • Leontiasis Ossea -- सिंहमुख-अस्थिता
यह स्थान विशेष की विरूपक अस्थिविकृति (osteitis deformans) है जो चेहरे की हड्डियों को प्रभावित करती है। यह विकृति प्रारंभिक युवावस्था में होती है। प्रारम्भ में सिर बढ़ जाता है, बाद में चेहरे की हड्डियां बढ़ जाती है और चेहरा कपोलों के उभार के कारण सिंह के समान, रूप धारण कर लेता है। रोगी सिर तथा चेहरे में दर्द की शिकायत करता है। दाब के कारण बिधरता (deafness) तथा अक्षितंत्रिकाशोष (optic atrophy) हो सकते हैं। इसके अलावा नेत्रोत्सेध (आंखों का बाहर निकल आना-), अश्रुकोष शोथ (dacrocystitis) तथा नासा-अवरोध (nasal obstruction) भी होते हैं।
  • Lesle Parastomach Hernioplasty -- लेसनी परिउदर वृद्धि संधान
  • Lesser Sac -- अमाशय पृष्ठ उदरावरण थैली
  • Lesser Saphenous Vein -- लघु अधः शाखा शिरा
एक प्रमुख शिरा जो पैर के पार्श्व तथा पश्चात् भाग में से रक्त का ग्रहण करती है।
  • Lesser Zac Abscess -- अमाशय पृष्ठ उदावरण थैली विद्रधि
  • Letterer Siwe Disease -- लेटरर सिवा रोग
इस शैशविक रोग जिसमें तीव्र रक्त स्राव, यकृत प्लीहादि वृद्धि के साथ बढ़ी हुई ग्रंथियाँ मिलती है।
  • Leucocyte -- श्वेताणु
रूधिर लसिका और शरीर के ऊतकों में उपस्थित श्वेत कोशिकाएँ। ये हीमोग्लोबिन रहित रूधिर कोशिकाएँ जीवों की आंतरिक रक्षा विधियों से संबंधित होती है। उदा. लसीकाणु, एरलाणु, महाभाक्षाकाणु।
  • Leukaemia (Leukemia) -- श्वेताणु रक्तता श्वेतरक्तता
श्वेताणुओं का कैंसर, जिसमें इनके पूर्वगामि कोशिकाएँ एवं कोशिकाएँ संसरामे बढ़ जाती है। यह अवस्था विषाणुओं या कैंसरजनी कर्मकों द्वारा प्रेरित होती है। इसमें श्वेताणुओं की संख्या बहुत बढ़ जाती है।
  • Leukocytosis -- श्नेताणुता, श्वेत कोशिका बहुलता
रक्त में श्वेताणुओं की संख्या का बढ़ना।
  • Leukotomy -- खण्डछेदन
एक शस्त्रकर्म जिसमें मस्तिष्क के ललाट खण्ड (frontal lobe of brain) में स्थित संयोजन तंतुओं (association fibres) को विभाजित कर दिया जाता है। (पुरोललाट-खण्डछेदन-prefrontal leukotomy)। यह ऑपरेशन दुःसाध्य पीड़ा (intractable pain) को दूर करने तथा कुछ मानसिक विकारों (mental disorders) में किया जाता है।
  • Leukotrienes -- ल्यूकोट्राइन्स
यह शरीर में पार जाने वाला योगिक एलर्जिक और शोथ प्रक्रिया का नियमन करता है।
  • Levator Ani Musle -- (लिवेटर एना मांसपेशी) गुद उन्नधनिका पेशी)
  • Levator Muscle Syndrome -- गुद उन्नमनिका मांसपेशी संलक्षण
  • Levator Sling -- लिवेटर गोफन
उन्नमनिका गोफन/उन्नमनिकालटकन्।
  • Leydig Cell Tumor -- लेडिग कोशिकाबु
शुक्रग्रन्थियों में अन्तरालीय ऊतक कोशिकार्बुद।
  • Lichen Planus -- कंडु, त्वचीय, रोग
यह श्वेताभ रेखा मुख का जननांग इन्द्रिय रोग।
  • Lichen Sclerosus Of Vulva -- चर्मरोग
विशेष जिसमें श्वेत रंग की पिडिका जो वृद्ध स्त्रियों में पाया जाता है।
  • Li-Fraumeni Sydrome -- लिफ्रामिनि संलक्षण
मृदु कोशिक घातकार्बुद।
  • Ligaments Of Cooper -- कूपर स्नायु तन्तु
  • Ligamentum Arteriosus -- लिगामेंट आरविरियोसेस, धमनी धारण तन्तु
  • Ligature -- सीवन/बन्धन
रक्त बाहिकाओं (रक्त की नलियों-) को बांधने के काम आने वाली की वस्तु। प्रयोग में आने वाली आम वस्तुएं जैसे धागा, लिनिन, नायलोन, स्टेनलैस-स्टील तार हैं। कैटगट-बंध दो तरह के होते हैं-(1) सादा (plain) तथा (2) क्रोमिक। प्रावरणियों (fascia), कंडराओं (tendons) तथा त्वचा में शल्य घावों (क्षत्रों- wounds) में सीने के काम में लाये जाते हैं।
  • Lint -- लिंट
एक अवशोषी ड्रेसिंग पदार्थ, जो लिनेन का बना होता है और शस्त्रकर्म से सम्बन्धित कार्यों में प्रयुक्त होता है।
  • Litholapaxy Or Lithotripsy Or Lithotrity -- वस्ति अश्मरी भंजन
एक ऑपरेशन (शस्त्रकर्म), जिसमें एक यंत्र वस्तिअश्मरी भंजक (lithotrite) के द्वारा समाने की छोटी-छोटी पथरियों को तोड़ दिया जाता है। और समाने को खाली (evacuate) कर दिया जाता है।
  • Lithtomy Forceps -- अश्मरी-निष्कासन संदंश
एक संदंश या फॉरसेप्स जिसका उपयोग मूत्राशय से पथरियों को बाहर निकालने में किया जाता है।
  • Livedo Reticularis -- केशिका विस्फार जन्य निलाभ चर्म विवर्णता
  • Liver -- यकृत्, जिगर
शरीर की सबसे बड़ा ग्रंथि जो उदर के दक्षिण भाग में स्थित है।
  • Lobectomy -- खण्डोच्छेदन
एक शस्त्रकर्म जिसमें फुप्फुस (फेफड़ा), मस्तिष्क (brain) या यकृत् (liver) के एक खण्ड को काटकर निकाल दिया जाता है।
  • Local Anaesthesia -- स्थानीय संज्ञाहरण
शरीर के किसी अवयव विशेष को निःसंज्ञ करना।
  • Long Bone -- दीर्घ अस्थि
दीर्घ आकृति वाली अस्थि।
  • Long Face Syndrome -- दीर्घ मुखाकृति
मुखमण्डल में उत्पन्न दीर्घ लक्षण समूह।
  • Loose Bodies -- संधिस्थ पिंड
अस्थि या उपास्थि (cartilage) के टुकड़े जो चोट लग जाने से अलग-अलग हो जाते हैं और संधि के अन्दर स्वतंत्र रूप से पड़े रहते हैं, या शोषकर अस्थि-उपस्थि शोथ की अवस्था के फलस्वरूप जोड़ में निकल सकते (extrude) हैं। इनके सामान्य स्थान जानु तथा कर्पूर संधियां हैं। इस अवस्था में या तो कोई लक्षण नहीं मिलता या संधिग्रह (जोड़ का जकड़ जाना-locking of the joint) हो सकता है।
  • Lordosis -- अग्रकुब्जता
कशेरुका दण्ड की कटि वक्रता (lumbar curve) का बढ़ जाना। इस अवस्था में अनावश्यक रूप से अग्र उत्तलता (anterior convexity) हो जाती है। इस विरूपता के कई कारण होते हैं।
  • Low Residue Diet -- अल्प शेषांश आहार
ऐसा आहार जिसमें मल का शेषांश बहुत ही कम मात्रा में रहता है। इस आहार में खासतौर पर पेय (linguids) तथा प्रोटीन पदार्थ होते है। इस आहार को आमतौर पर आंत में क्षोभ होने पर दिया जाता है।
  • Lumbar Puncture -- कटि वेध
एक प्रक्रिया जिसके द्वारा अवजालतानिका अवकाश (subarachnoid) से प्रमस्तिष्क मेरूद्रव (c.s.f.) को कटिवेध सूचिका (lumbar puncture needle) की सहायता से निकाला जाता है। पूरी तरह से अपूतित (aseptic) की सहायता से निकाला जाता है। पूरी तरह से अपूतित (aseptic) सावधानी रखते हुये तथा स्थानिक संवेदनाहरण का प्रयोग करके सूचिका को तीसरी तथा चौथी कटि कशेरुका के बीच में अन्दर की ओर प्रविष्ट किया जाता है। यह पद्धति निदान तथा चिकित्सा करने के लिये अपनाई जाती है। सिर की चोटों में जब तक कि संकेत न हों मस्तिष्क के हार्निया के होने से बचाने के लिये इस प्रक्रम को नहीं अपनाना चाहिये अन्यथा मन्तिष्क का हर्निया हो सकता है।
  • Lymphandenia, Hodgkin’S Disease -- लसीका-ग्रन्थार्बुद
यह लसीका प्रवो (lymph nodes) के दुर्दम अर्बुदों (malignant tumour) का प्रकार है जो आमतौर पर युवकों में देखने का मिलता है। रोगलाक्षणिक तौर पर लसीका पर्विकायें खंडित (अलग), बिना दर्द के तथा भारतीय रबर जैसी ठोस होती है। एक्स-रे (किरण) चिकित्सा तथा कोशिकाविषी औषधियों (cytotoxic drugs) का सेवन कराया जाता है। निदान को निश्चित करने के लिये ऊति परीक्षा (biopsy) की आवश्यकता होती है।
  • Lymphandenia, Hodgkin’S Disease -- लसिका
वह तरल पदार्थ जो शरीर की ऊतक कोशिकाओं को बाह्य गुहाओं में तर करते हुए प्रवाहित होता है। यह लसिका ऊतकों के रक्त के साथ कोशिका भित्ति के माध्यम से संबंध बनाये रखता है। यह रंगहीन, पारदर्शक स्वच्छ क्षारीय तरल पदार्थ है।
  • Lymphangitis -- लसीकावाहिनी शोथ
  • Lymphangioma -- लसीकावाहिकाअर्बुद
यह लसीका वाहिकाओं (लसीका नलिकाओं) की जन्मजात कुरचना (malformation) है। यह केशिका रूप (caoukkart type) या गहृर रूप (cavernous type) हो सकती है। केशिका रूप में त्वचा पर भूरापन लिये पिटक बन जाती है। और गहृर रूप में जो अक्सर पुटियां (lymphatic cysts) इकट्ठी हो जाती है, जो गर्दन में “लसपुटी अर्बुद” (cystic hygroma) कहलाती है।
  • Lymphangiplasty -- लसीकावाहिनी-संधानकर्म
लसीका अवरोध-(lymphatic obstruction) को दूर करने के लिये, शस्त्रकर्म द्वारा लसीका नलिकाओं का विरोहण (repair) अथवा द्विकपरिवर्तन (diversion) करना है। लसीका अवरोध का उदाहरण लसीकाशोथ (lympoedema) है जो जन्मजात कारणों (congential) या अर्बुद से उत्पन्न होता है।
  • Lymphatic System -- लसीका तंत्र, लसिका संस्थान/लसिका प्रणाली
वह संस्थान जिसके अन्तर्गत ऊतकों से रक्त प्रवाह तक लसिका का वहन करने वाली सभी संरचनाएँ आती है। लसिका को ले जाने वाली नलिकाओं की वह व्यवस्था जो हृदय के निकट शिरातंत्र में मिल जाती है। इसके द्वारा लसिका ऊतक से निकलकर रूधिर में पहुँचती है और जीवाणुओं को नष्ट करने में सहायक होती है।
  • Lymphocytosis -- लसिकाणुता
रूधिर में लसिकाणुओं की बढ़ी हुई संख्या, जो किसी संक्रामक रोग की सूचक हैं।
  • Lymphoedema Or Elephantiasis -- लसीकाशोथ या श्लीपद
इस अवस्था में लसीका व हिनियों में रुकावट हो जाने से तरल पदार्थ (लसीका) इकट्ठा हो जाता है। लाक्षणिक रूप से यह रोग जन्मजात (पैदायशी-congenital) या अर्जित (बाद में हुआ-) हो सकता है। पैदायशी तौर पर लसीका वाहिनियां (नलिकाएं) अनुपस्थित हो सकती है या अविकसित रहती हैं जिससे रुकावट हो जाती है। अर्जित प्रकार में अभिघात (चोट-trauma), बार-बार संक्रमण तथा परजीवी पयाक्रमण (parasitic infestation) जैसे फाइलेरिया रोग (filariasis) रुकावट (अवरोध) पैदा करते हैं। लसीकाशोथ आमतौर पर निम्न शाखाओं में अथवा टांगों में (lower limbs) हो जाता है जिससे टांगे सूज जाती हैं, त्वचा में झुरियां पड़ जाती हैं तथा त्वचा खुरदरी हो जाती है। इस रोग की प्रशामक (palliative) चिकित्सा की जाती है। मोटी खाल (त्वचा) तथा अधस्त्वक ऊतक (subcutancous tissue) के उच्छेदन (काट कर निकाल देने-excision) की जरूरत पड़ सकती है।
  • Lymphorrhage -- लसिकाकोशिका-समुच्चय
पेशी में कोशिकाओं का इक्ट्ठा हो जाना।
  • Lymphorrhoea -- लसीकात्राव
विभाजित या विदीर्ण लसीका-वाहिकाओं से लसीका का निःस्रावण (exudation-रिसना) होना।
  • Macroglossia -- बृहत् जिह्वा
जिह्वा की बिना दर्द के चिरकारी वृद्धि। इसके कारण लसीका वाहिकार्बुद (lymphangioma), रक्तवाहिकार्बुद (haemangioma), तंत्रिकातंतु अर्बुदता (neurofibromatiosis) तथा अवटुवामन सूक्ष्मजिह्वा (microglosia of cretins) हो सकते हैं। बढ़ी हुई अनावरित (exposed) जिह्वा में संक्रमण भी हो सकता है तथा चोट भी लग सकती है।
  • Madelung’S Deformity -- मैडेलंगस विरूपता
कलाई (मणिबंध-wrist) की विरूपता, जिसमें (1) स्नायु की शिथिलता (laxity of ligament) के साथ-साथ कलाई की आगे की ओर अपूर्ण संधि-च्युति (subluxation); (2) अन्तःप्रकोष्ठिकास्थि की पीछे की तरफ को अपूर्ण संधि च्युति तथा; (3) बहिःप्रकोष्ठिकास्थि की बढ़ी हुई वक्रता (घुमाव-curvature) और अन्तः- प्रकोष्ठिकास्थि की संधिच्युति (dislocation) शामिल है। यह विरूपता निचली बहिः प्रकोष्ठिकास्थि के अधिवर्ध की वृद्धि के परिणामस्वरूप उत्पन्न होती है। पीठ के उपरी भाग, कंधो तथा गर्दन पर सार्वदेहिक समरुप वसीय ऊतकों का जमाव होता है।, यदि अशक्तता (disability) बहुत अधिक है तो कलाई के कार्यों तथा विरुपता में ञपरेशन के द्वारा सुधार किया जा सकता है।
  • Maffucci’S Syndrome -- मेफुसीस संलक्षण
इस अवस्था में उपास्थि दुर्विकसन (dyschondroplasia) के साथ साथ गहरी रक्त वाहिकार्बुद (cavernous haemangioma) तथा शिराशोथ (phlebitis) हो जाते हैं।
  • Malignant Melanoma -- दुर्दम मैलेनोमा
यह त्वचा (खाल-skin) का अत्यधिक दुर्दम उपकला कार्सिनोमा है। यह एकवर्णयुक्त एवं दुर्दम केशिकार्वुद रूप में जाना जाता है, वह पहले से ही मौजूद तिल या मोल में हो सकता है। यह क्षेत्रीय लसीका पर्वों तथा रक्त प्रवाह के द्वारा फैलता है। आंख का मैलेनिन-अर्बुद अक्सर यकृत् (liver) में फैल जाता है, इसलिए एक पुरानी कहावत प्रसिद्ध है कि आंखों पर चश्मा, बाल और बढे हुये जिगर वाले आदमी से बचो। विस्तृत उच्छेदन या अंगोच्छेदन (amputation) तथा क्षेत्रीय लसीका पर्वो का सामूहिक विच्छेदन इस रोग की चिकित्सा है।
  • Malignant Tumor -- दुर्दम अर्बुद
अर्बुद का वह दुश्चिकित्स्य प्रकार, जिसके कारण प्रायः मृत्यु हो सकती है।
  • Malignant Tumour Of The Stomach -- आमाशय के दुर्दम अर्बुद
ये अर्बुद अधिकतर कार्सिनोमा होते हैं हालांकि कभी-कभी सार्कोमा भी पाये जाते हैं। कार्सिनोमा आमाशय की दीवाल (भित्ति) में ग्रन्थि कार्सिनोमा (adenocarcinoma) के रूप में होते हैं जो व्रण (ulcer), प्रफलनी पिण्ड (proliferative mass) या विसरित अंतःस्यंदन (diffuse infiltration) के जैसे होते हैं जैसे कि चर्मिल आमाशय (leather bottle stomach)। आमाशय के ग्रसित भाग को लसीका निकास (lymphatic drainage) के साथ काट कर निकाल देना ही इसकी चिकित्सा है।
  • Malognacy -- दुर्दमता
अर्बुद कोशिकाओं की और अधिक घातक बनने की प्रवृत्, जिसके कारण मृत्यु हो सकती है।
  • Malunion -- कुसंयोग
यह अस्थि भंग (हड्डी या टूटना) का सामान्य उपद्रव है जिसमें हड्डी के अलग-अलग टुकड़े (अस्थि खण्ड- fragments) विरूपता (deformity) की स्थिति में जूड़ जाते हैं अर्थात् हड्डी एक सी न जुड़ कर ऊंची नीची जुड़ जाती है। गलत जुड़ने का कारण या तो अस्थि भंग की उपेक्षा या इसके इलाज में असावधानी करना है या अपूर्ण पुनःस्थापन (फिर से अपनी जगह पर बैठाना-reduction) है। इससे काम करने में गड़बड़ी होती है। कुसंयोजित अस्थिभंग की चिकित्सा करने में या तो उसको वैसा ही रहने दिया जाता है या यदि अधिक अशक्ती (disabiltiy) न हो तो भौतिक चिकित्सा (physiotherapy) की जाती है अन्यथा इसकी चिकित्सा विवृत पुनःस्थापना (open reduction) या अस्थि-विच्छेदन (ostoetomy) द्वारा की जाती है।
  • Mammoplasty -- स्तन-संधान
शस्त्रकर्म द्वार स्तन का पुनःनिर्माण।
  • Mammary Gland -- स्तन ग्रंथि
स्तनपायियों स्थित ग्रंथि जो मादा में शिशुओं के पोषण के लिए दूध उत्पन्न करती है। इसकी वृद्धि तथा क्रिया हार्मोनों पर निर्भर होती है।
  • Mandible -- अधोहनु
मुँह का एक जोड़ी उपांग, जो अधो भाग में स्थित है।
  • Marble Bone -- अस्थि-प्रस्तरता
यह बहुत कम पाया जाने वाला परिवारिक विकार है जो पैदा होते समय या पैदा होने के ठीक बाद देखा जाता है। वयस्कों में पहला संकेत अत्यधिक अरक्तता (severe anaemia) है जो रक्तोत्पादी या रक्त बनाने वाली मज्जा (haemopoietic marrow) की कमी हो जाने के कारण देखी जा सकती है।
  • Marjoilin’S Ulcer -- मार्जेलिन व्रण
यह एक पट्टकी कोशिका कार्सिनोमा है जो एक व्रण-चिह्न (scar) में विकसित होता है। यह धीरे धीरे बढ़ता है तथा यह क्षेत्रीय लसीका का पर्वो में उस समय तक विक्षेप (metastasis) करता है जब तक कि विक्षति सामान्य त्वचा तक को आक्रान्त नहीं कर लेती।
  • Marrow -- मज्जा
हड्डियों के बीच की गुहा को भरने वाला वाहिकीय ऊतक, जिसमें रक्ताणु तथा कुछ श्वेताणु उत्पन्न और परिवर्धित होते हैं।
  • Mastectomy -- स्तन-उच्छेदन स्तनोच्छेदन
ऑपरेशन के द्वारा स्तन को काट कर निकाल देना।
  • Metacarpal -- करभिका, मेटाकार्पल, पाणिशालकीय
चतुष्पाद कशेरूकियों के हाथ में करमों (कार्पेल) तथा अंगुलस्थियों के बीच की हड्डियां जैसे मनुष्य में हथेली की पांच हड्डियां।
  • Maxillary Teeth -- ऊर्ध्वहनु दंत
मुख के भीतरी किनारे पर ऊर्ध्व भाग में स्थित दांत जो आहार को पकड काटने और चबाने में काम आते हैं।
  • Mediastinotomy -- मध्यस्थानिका-छेदन
शस्त्रकर्म द्वारा मध्यस्थानिक का निरावरण (खोलना-exposure) करना। यह ऑपरेशन अर्बुद (tumour) को निकालने तथा परिहृद (pericardium) के अग्र भाग को विवृत करने के लिये किया जाता है।
  • Megacolon -- महाबृहदांत्र
बड़ी आंत का फैल जाना (बृहदांत्र विस्फार) नैदनिक रूप से इसके दो प्रकार होते हैं (1) जन्मजात महाबृहदांत्र (congenital megacolon) पैदायशी बड़ी आंत का बढ़ जाना, (2) अर्जित महाबृहदांत्र (aquired megacolon) बाद में किसी कारण से उत्पन्न। पैदायशी महाबृहदांत्र बच्चे के पैदा होते समय से ही देखने को मिलता है। शिशु जातविष्ठा (meconium) नहीं कर पाता, अर्थात् उसको मल त्याग नहीं हो पाता। यह अवस्था बड़ी आंत के एक टुकड़े में तंत्रिका पेशी असमंजन (neuromuscular incordination) के फसस्वरूप, जहां पर तंत्रिका जालिका (nerve plexus) अनुपास्थित (गैरहाजिर) होती है, भी हो सकती है। निकटस्थ हिस्से में विस्फार (फैलाव-) होता रहता है। चिकित्सा के लिये शस्त्रकर्म द्वारा बिना गंड़िका वाले हिस्से (aganglionic segment-अंगडकीय खण्डांश) को काट कर निकाल दिया जाता है।
  • Melanoma (Mole) -- मैलेनिन कोशिका (तिल)
यह मैलेनिन वर्णकित कोशिकाओं का अर्बुद है; अर्बुद तीन प्रकार का होता है – (1) संगमी (junctional) (2) मिश्रित तथा (3) त्वचीय न्यच्छ (dermalnevus)। यह त्वचा में निकालता है लेकिन नखशय्या के नीचे तथा नेत्र के रंजित पटल (choroid of the eye) में भी देखा जाता है। संगमि प्रकार के अर्बुद के दुर्दम (malignant) हो जाने की सम्भावना रहती है। चिरकारी क्षोभ के कारण कुछ क्षेत्रों में मैलेनिन-कोशिका-अर्बुद दुर्दम हो जाते हैं; उदाहरण के रूप में शिरोवल्क (scalp) तथा पादताल में। यदि तिल (mole) के रोम समाप्त हो जाते हैं और वह बड़ा होने लगता है या उसमें रक्तस्राव होने लगता है तो उसको काटकर निकाल देना चाहिये ताकि उसमें दुर्दम परिवर्तन न होने पाएं। यह सुदम और दुर्दम दोनों हो सकता है। दुर्दम अर्बुद जल्दी ही बढ़ती है और दूर दूर तक, खास तौर पर, रक्त प्रवाह के जरिए फैलता है। काफी व्यापक हिस्सा काट कर निकाल देना (विस्तृत उच्छेदन wide excision), अंगोच्छेदन तथा रसायन चिकित्सा इस बीमारी का इलाज है।
  • Malaena -- रुधिरज काला मल
काले तथा राल के समान (black tarry) दस्त अवस्था जठरांत्र पथ में व्रण या अर्बुद बन जाने के बाद रक्त स्राव के कारण देखी जाती है।
  • Meningoblastoma -- मैनिगोब्लास्टोमा
एक अत्यधिक दुर्दम अर्बुद जो मस्तिष्क तथा सुषुम्ना (brain and spinal cord) की तानिकाओं (meninges) से उत्पन्न होता है।
  • Meningocele -- मस्तिष्कावरण हर्निया, मस्तिष्कच्छद वर्ध्य
केन्द्रीय तंत्रिका तंत्र (central nervous system) की कलाओं (Membranes-झिली) का हर्निया जिसमें झिल्ली, हड्डी की पैदापशी या बाद में होने वाली (अर्जित) खराबी (अस्थिदोष) के कारण बाहर निकल आती है। ऑपरेशन ही इसका इलाज है।
  • Meningomyelocele -- मैनिंगोमायलोसील
मेरु रज्जु (सुषुम्ना) की कलाओं (झिल्लियों) का मेरु तंत्रिकाओं (spinal nerves) तथा मेरु रज्जु (spinal cord) के साथ बहिःसरण (बाहर निकालना-herniation)।
  • Mesenteric Cysts -- आंत्रयोजनी पुटी
ये पुटी आन्त्रयोजनी में स्थित रहती हैं। आन्त्र-योजनी मूल (root of the mesentery) के लगाव (attachment) की दिशा के दूसरी ओर गति होना इनका विशिषअट लक्षण है। इनमें वसालसीका (chyle) रहती है। शस्त्रकर्म से इनको निकाल देना इस रोग की चिकित्सा है।
  • Mesenteriplication -- आंत्रयोजनी-पुटकीकरण
आंत्रयोजनी (mesentry) में चुन्नटें डालकर उसे छोटा करना।
  • Mesocolopication -- बृहदान्त्र-योजनीपुटकीकरण
बृहदात्र की गति को सीमा में रखने के लिए शस्त्रकर्म द्वारा बृहदांत्र योजनी का पुटकीकरण करना तथा सीना।
  • Metabolic Bed -- चयापचयी शय्या
  • Metatarsal -- प्रपदिका, मेटाटार्सल पादशांलाका
कशेरुकियों के पाद में गूल्फिका (टार्सल) और अंगुलि अस्थियों के बीच की हड्डियां।
  • Metatarsalgia -- प्रपादिका अर्ति
प्रपादिकास्थियों के सिरों में अस्थि उपास्थि विकृति (osteochondritis) होने के कारण पीड़ा उत्पन्न होना।
  • Microcephaly -- लघुशिरस्कता
यह एक परिवर्धन या विकासी अपसामान्यता (developmental abnormality) है जिसमें मस्तिष्क तथा करोटि का परिवर्धन या विकास कम रह जाता है; परिणामस्वरूप मानसिक मन्दता (mental retardation) हो जाती है। इसके अलावा दिमाग (मस्तिष्क) का अजनन (agenesis) तथा मूढ़ता (imbecility) या कालपूर्व अस्थि संयोजन (premature synostosis) भी हो सकती है।
  • Microradiography (Of Breast) -- सूक्ष्म-स्तनवाहिनी-चित्रण
एक शस्त्रकर्म जिसमें स्तन वाहिनी (mammary duct) का एक्स-रे द्वारा चित्रण किया जाता है। यह चित्रण अर्बुद के निदान हेतु वाहिनी में रेडियो-अपार्य पदार्थ का इन्जेक्शन दे कर किया जाता है।
  • Micrognathia -- लघु-अधोहनु
एक जन्मजात अवस्था जिसमें अधोहनु (नीचे के जबड़े की हड्डी-mandible) की क्षैतिज प्रशाखा (horizontal ramus) का आगे का हिस्सा छोटा हो जाता है। यह अवस्था अक्सर खंड ताल (cleft palate) तथा सामान्य से ज्यादा हरकत करने वाली जिह्वा (mobile tongue) के साथ साथ पाई जाती है। बाद वाले लक्षण में चिह्वा की सूजन के साथ कष्टश्वास (dyspnoea) के बार-बार आक्रमण, श्यावता (cyanosis) तथा खाने में कठिनाई भी मिलती है। प्रारम्भ में सरंक्षी प्रकार (consevative) की चिकित्सा की जाती है, जिसमें चेहरे को नीचे झुकाना, परिचर्या, सांस एवं भोजन के मार्ग को ठीक बनाए रखना शामिल है। बाद में अस्थि निरोपण (bone grafting) भी किया जा सकता है।
  • Mikulic’S Clamp -- मिकुलिज् संधर
एक संधर जिसका उपयोग बृहदांत्रछिद्रीकरण को बन्द करने से पहले, बृहदांत्रछिद्रीकरण की निकटस्थ तथा दूरस्थ अवकाशिका (proximal and distal lumen) के बीच के पट (septum) को पिच्चन (कुचलने) करने में किया जाता है।
  • Miner’S Elbow -- खानिक कूर्पर
इस अवस्था में कूर्पर श्लेषपुटी में पुराना शोथ हो जाता है।
  • Minor Surgery -- लघु शस्त्रकर्म
इस शस्त्रकर्म में वे प्रक्रियायें (procedures) आती हैं जिनका संबंध सरल तकनीकों, कुछ यंत्रों (instruments) तथा औषधियों से है।
  • Missed Abortion -- लीन गर्भपात
मृत गर्भ का दो मास से अधिक समय तक गर्भाशय में रूके रहना।
  • Mitral Stenosis -- द्विकपर्दी संकीर्णता
हृदय की द्विकपर्दी कपाटिका (mitral valve) में संकरापन (narrowing) आ जाना। इस संकीर्णता का सामान्यता कारण रूमेटी हृदय रोग (rheumatic heart disease) है। शुरू में यह अवस्था बिना किसी लक्षण के बनी रहती है। बाद में रक्ताधिक्य-जन्य हृद्पात (congestive heart failure) के लक्षण उत्पन्न होने लगते हैं और हृदय से थक्के (clot) निकलने (dislodgement) के कारण उपद्रव (complications) होते हैं। इस रोग की चिकित्सा में या तो शस्त्रक्म द्वारा कपाटिकाओं को विभक्त या चीर (split) करके बड़ा कर दिया जाता है या उनके स्थान पर किसी समधर्मी (homologus), विषमधर्मी (heterologous) या संश्लिष्ट (synthetic) कपाटिका को लगा दिया जाता है।
  • Mobile Spleen -- चल प्लीहा
यह एक ऐसी विशिष्ट अवस्था है जिसमें प्लीहा में एक दीर्घ वृन्त (pedicle) होता है और जिसके कारण प्लीहा में असामान्य गतिशीलता आ जाती है तथा कभी-कभी मरोड़ (torsion) के कारण दर्द के दौरे पड़ते हैं। यह अवस्था अन्तः उदर पुटियों (inrta-abdominal cyst), जैसे डिम्बग्रन्थि तथा आन्त्रयोजनी पुटी (ovarian and mesentaric cyst) के समान मालूम पड़ती है।
  • Molluscum Contagiosum -- सांसर्गिक मोलस्कम
एक प्रकार का वाइरसी अधिमांस या मस्सा (viral wart’) । ये संख्या में अधिक हो सकते हैं और आमतौर पर हाथों तथा पैरों पर देखे जाते हैं। ये कभी-कभी अपने आप ही समाप्त हो जाते हां। इनकी चिकित्सा में उच्छेदन तथा शल्य काटरी या दहन की आवश्यकता पड़ सकती है।
  • Monorchidism -- एक वृषणता
इस अवस्था में एक वृषण जन्म से ही अनुपस्थित रहता है। फिर भी यह मालूम करना आवश्यक होता है कि प्रतिधृत वृषण (retained testis) की सम्भावना उस के अवरोहण मार्ग में (path of descent) है या आस्थानिक जगहों में (ectopic sides)।
  • Morphology -- आकारिकी, आकृतिविज्ञान
जीवविज्ञान की वह शाखा जिसमें जीवों के रूप और संरचना का अध्ययन किया जाता है।
  • Morrant Baker’S Cyst -- मोरेंट बेकर पुटी
एक पुटीनुमा सूजन, जो खासतौर पर घुटने के जोड़ (knees joint) के पीछे वाले हिस्से में मिलती है। इसकी शुरूआत अक्सर संधि सम्पुट की श्लेषक कला (synovial membrane) से होती है। कभी कभी संधि गुहा (joint cavity) से उसका संबंध ढ़ीला पड़ जाता है। इसका इलाज काट कर बाहर निकाल देना अर्थात् उच्छेदन (excision) है।
  • Mosquito Forceps -- मच्छर संदंश
एक छोटा धमनी संदंश (artery forceps)
  • Movable Kidney Or Floating Kidney -- चल वृक्क
इस हालत में वृक्क अपसामान्य तरीके से गति करने लगता है और यहां तक कि खड़े होने पर पेट (उदर) के निचले हिस्से में गिर जाता है। गुर्दे के साथ-साथ उदर के दूसरे आशय (viscera) या अंग (organs) भी अपसामान्य तौर पर गति करने लगते हैं। इस अवस्था का मुख्य कारण शरीर के भार में भारी कमी है। गुर्दे के चारों ओर की उस चर्बी में कमी हो जाती है जो गुर्दे को आश्रय देती थी। इस हालत में पेट में दर्द होता है जो आराम से लेटने तथा बहुत पेशाब के निकल जाने पर स्वयं ठीक हो जाता है। जिसे डिटल संकट (Dietl’s crisis) कहते हैं। साधारणतः यह अवस्था पौष्टिक आहार से ठीक हो जाती है। उदर भित्ती को आधार प्रदान (dominal support) करने के लिए ऑपरेशन, जिसे वृक्क स्थिरीकरण (nephropexy) कहते है, की आवश्यकता भी पड़ जाती है।
  • Multiple Rib Fractures -- पर्शुका बहु अस्थिभंग
पसली के कई जगहों पर टूटने का कारण कुचलने वाली चोट है। पसलियों (पर्शुकाएं) का टूटना अगले या पिछले कोण (angle) पर सबसे अधिक मोड़ की जगह पर होता है। इसमें सांस लेने के साथ दर्द होता है। और विरोधाभासी श्वसन (paradoxical) भी होने लगता है। सामान्य प्रकार के विरोधाभासी श्वसन को श्वास- प्रणाल छिद्रीकरण (tracheostomy) द्वारा ठीक किया जा सकता है। इससे श्वास प्रणाल-श्वसनी चूषण (trachebronchial suction) के लिये भी एक रास्ता बन जाता है। इस प्रकार के अस्थि भंग को ठीक करने में धनात्मक दाब श्वसित्र (positive pressure respiration) का प्रयोग जीवन दान देने वाला है।
  • Myasthenia Gravis -- गभीर पेशी दुर्बलता
तंत्रिका पेशी संगम (neuromuscular junction) पर, थाइमस ग्रन्थि से निकलने वाले प्रतिपिंडों (antibodies) के कारण रुकावट (अवरोध – blockage ) हो जाता है, जिससे ऐसीटिलकोलीन की क्रिया में अवरोध हो जाता है परिणामस्वरूप व्यक्ति को थोड़ा शारीरिक कार्य करने पर ही बहुत ज्यादा थकावट महसूस होने लगती है। इस रोग की चिकित्सा मुख्यतया औषधियों द्वारा की जाती है और नियोस्टिग्मीन औषधि अतिलाभकारी साबित हुई है। जब दवाईयों से फायदा न हों तो शस्त्रकर्म द्वारा थाइमस ग्रन्थि को अर्बुद के साथ या अकेले ही काटकर निकाल दिया जाता है।
  • Myectomy -- पेशी-उच्छेदन
पेशी के एक या संपूर्ण भाग का उच्छेदन करना।
  • Myelocele -- सुषुम्ना-हर्निया
मेरु रज्जु की केन्द्रीय नलिका (central canal of the Spinal Cord) की पैदायशी असंयुक्ति (non fusion) या न जुड़ना, जिससे कि रज्जु का पृष्ठ (surface) बाहरी वातावरण के सम्पर्क में रहता है।
  • Myelosarcoma -- अस्थिमज्जा सार्कोमा
एक दुर्दम अर्बुद जो मज्जाभ ऊतकों (myeloid tissues) या अस्थिमज्जा ऊतकों से बना होता है।
  • Myoblastoma -- पेशी-प्रसू-अर्बुद
एक अर्बुद जो कंकाल पेशियों (skeletal muscles) से उत्पन्न होता है।
  • Myography -- पेशीलेखन
पेशी ऊतक का रेडियो-अपार्य (radio-opaque) एक्स-रे निरीक्षण करना।
  • Myonephropexy -- पेशी वृक्कस्थिरीकरण
शस्त्रकर्म द्वारा चलनशील वृक्क (moveble kindney) को पेशी ऊतक की पट्टी से सी देना।
  • Myoplasty -- पेशी संधानकर्म
एक प्लास्टिक शस्त्रकर्म प्रक्रिया, जिसमें आंशिक रूप से वियोजित पेशियों (partly detached muscles) के भागों (Portions) का इस्तेमाल दोषों को दूर करने में किया जाता है।
  • Myositis -- पेशीशोथ
ऐच्छिक पेशी का शोथ। यह शोथ पेशी तन्तुओं को खंरोचने वाली मामूली चोटों के बाद होता है। कुछ दिनों तक हरकत करने में दर्द बना रहता है तथा स्थानिक दाब-वेदना (local tenderness) बनी रहता है।
  • Myositis Fibrosa, Volkmann’S Contracture -- तन्तुकर पेशीविकृति बोकमन अवकुंचन
इस अवस्था को स्थानिक-अरक्तक अंगघात (ischaemic paralysis) अवकुंचन कहते हैं। यह अवस्था अधिक जोर से पट्टी बांधने तथा गलत स्प्लिंटों के प्रयोग से, दाब टूर्निक के ज्यादा देर तक बंधे रहने के फलस्वरूप उत्पन्न होती है। चोट लगते समय प्रगंड धमनी (brachial artery) में क्षति हो जाने के कारण यह रोग हो सकता है। आमतौर पर इसके साथ कोहनी के आसपास अस्थिभंग (fracture) होता है तथा इससे अग्रबाहु (forearm) की पेशियां प्रभावित होती है। इसकी चिकित्सा अधिकतर रोगनिरोधी (prophylatic) होती है।
  • Myositis Ossificans -- पेशी अस्थीभवन
पर्यस्थि रक्तार्बुद (periosteal haematoma) में अस्थीभवन (ossification)। विस्थापित पर्यस्थि कला (displaced periosteum) की सामानय सीमा में नई अस्थि की रचना होती है। मालिश तथा निष्क्रिय तनाव (passive stretching) से होने वाली पेशी-कंकाल चोट (musculo-skeletal injury) के बाद यह अवस्था हो सकती है। सामान्यतया यह हालत कोहनी पर होती है। चोट लगने के 4 से 6 हफ्तों के बाद ऐक्स-रे द्वारा देखने पर नई अस्थि की रचना मिलती है। तेज मालिश तथा तीव्र व्यायाम (active exercises) को दूर रखना इसकी चिकित्सा है।
  • Myotomy -- पेशीछेदन
पेशी का विभाजन (division) कर देना।
  • Nailing -- कीलन
एक शस्त्रकर्म जो अस्थि भंग (fracture) में आभ्यन्तर स्थिरीकरण (internal fixation) के लिए किया जाता है।
  • Necrosis -- परिगलन या ऊतक क्षय
सामूहिक रूप में ऊतकों की मृत्यु होना। यदि पीप पड़ गया (putrefaction) हो तो वह जगह काली पड़ जाती है और कोथ (gangrene) हो जाता है।
  • Necrotomy -- शव व्यवच्छेदन
:(1) शव का व्यवच्छेदन करना।
(2) परिगलितांश का निष्कासन।
  • Needle -- सूची
एक तेज औजार जिसका उपयोग जख्मों को सीने (suturing), वेधन करने (puncturing) तथा चूषण (aspiration) में किया जाता है।
  • Needle Biopsy -- सूची जीव-ऊति परीक्षा
यह परीक्षा उस पदार्थ की की जाती है जिसका सूची द्वारा चूषण (aspiration) किया जाता है।
  • Needle Holder -- सूचीधर
एक संदंश जिसका उपयोग उपास्थि या गंभीर ऊतकों को सीते (सीवन करते) समय सूची का पकड़ने में किया जाता है।
  • Neostomy -- नव-छिद्रीकरण
एक अंग में या दो अंगों (organs) के बीच में शस्त्रकर्म द्वारा एक कृत्रिम द्वार (opening) बना देना।
  • Nephrectomize -- वृक्कापहरण
एक वृक्क (kidney) या दोनों वृक्कों का चिकित्सा के लिये अथवा प्रयोगात्मक प्रयोजनों के लिये उच्छेदन करना।
  • Nephrectomy -- वृक्कोच्छेदन
चोट (injury), संक्रमण, अथवा अर्बुद के होने या प्रतिरोपण करते समय शस्त्रकर्म द्वारा वृक्क (kidney) को निकालना। यह शस्त्रकर्म उसी समय किया जाता है जब शरीर का एक गुर्दा खराब हो गया हो या उसमें ऐसी चोट लग जाए जो ठीक नहीं हो सके।
  • Nephrocolopexy -- वृक्क-वृहदांत्र स्थिरीकरण
शस्त्रकर्म द्वारा वृक्क और वृहदांत्र (colon) का, वृक्क-वृहदांत्र स्नायु (renocolic ligament) के जरिये स्थिरीकरण।
  • Nephrogram -- वृक्क का एक्स-रे चित्रण
वृक्क का क्ष-किरण जिसमें वृक्क को अपारदर्शी (opaque) द्रव्यों के माध्यम से अपारदर्शी दिखाया जाता है।
  • Nephrolithotomy -- वृक्काश्मरीछेदन
वृक्काश्मरी को वृक्क शरीर से शल्यकर्म के जरिये काट कर बाहर निकालना।
  • Nephropexy -- वृक्क-स्थिरीकरण
ऑपरेशन द्वारा गुर्दे (वृक्क) को अपनी जगह पर स्थिर करना।
  • Nephropyelolithotomy -- वृक्क गोणिका अश्मरीहरण
शस्त्रकर्म द्वारा वृक्काश्मरी को वृक्क आलवाल (calices of the kidney) से बाहर निकालना।
  • Nephrosclerosis -- वृक्क-काठिन्य
एक अवस्था, जिसमें अतिरक्तदाब (Renal hypertension) के साथ वृक्क में काठिन्य (sclerosis) कठोरता का होना एक विशेषता है।
  • Nephrostomy -- वृक्क छिद्रीकरण
शस्त्रकर्म द्वारा वृक्क की गोणिका (pelvis) या आलवाल (calyx) के बाहर की तरफ (अर्थात् बाहरी वातावरणसे संबंध करने के लिये) एक द्वार (opening) का निर्माण करना। यह ऑपरेशन मरणासन्न रोगी में रोधज मूत्रमार्ग विकृति (obstructive uropathy) से छुटकारा पाने के लिये किया जाता है।
  • Nephrostomy Tube -- वृक्क छिद्रीकरण नली
एक नली जो वृक्क गोणिका के जरिए वृक्क आलवाल (renal calyx) में सीधे मूत्र निकास के लिये प्रविष्ट की जाती है।
  • Nephrotomy -- वृक्कछेदन
शस्त्रकर्म द्वारा वृक्क में छेदन (incision) करना।
  • Nephroureterectomy -- वृक्क-गवीनी उच्छेदन
शस्त्रकर्म द्वारा वृक्क का संपूर्ण या आंशिक उच्छेदन।
  • Nephroureterocystectomy -- वृक्क-गवीनी-वस्ति उच्छेदन
शस्त्रकर्म द्वारा वृक्क का उच्छेदन उसकी गवीनी (Ureter) तथा मूत्राशय के एक भाग के साथ करना। यह ऑपरेशन वृक्क यक्ष्मा (renal tuberculosis) या वृक्क गोणिका के अंकुरक कार्सिनोमा (papillary carcinoma) से ग्रस्त रोगियों में किया जाता है।
  • Nerve -- तंत्रिका
तंत्रिका रेशों का गुच्छ या बंडलों का समूह जो संयोजी ऊतक द्वारा परस्पर आबद्ध एवं एक पूलाच्छद से घिरे होते हैं इसके माध्यम से मस्तिष्क तथा मेरूरज्जु और शरीर के विभिन्न भागों में आवेग संचार होता है।
  • Nerve Cell -- तंत्रिका कोशिका
  • Nerve Suturing -- तंत्रिका-सम्मिलन (तंत्रिका सीवन)
  • Neurectomy -- तंत्रिकाच्छेदन
शस्त्रकर्म द्वारा तंत्रिका के एक भाग का उच्छेदन करना।
  • Neuro Secretory Cell -- तंत्रिका स्रावी कोशिका
हार्मोन को स्रावित करने वाली ग्रंथि के समान विशिष्ट तंत्रिका कोशिका।
  • Neuroanastomosis/ Nerve Suturing -- तंत्रिका-सम्मिलन (तंत्रिका सीवन)
एक ऑपरेशन जो तंत्रिका के एक सिरे से दूसरे सिरे का सम्मिलन कराने के लिए किया जाता है। अर्थात् तंत्रिका का एक सिरा दूसरे सिरे से मिला कर सी दिया जाता है।
  • Neuromuscular Block -- तंत्रिकापेशीरोध
तंत्रिका और मांसपेशी में होने वाला अवरोध।
  • Neuroplasty -- तंत्रिकासंधान
तंत्रिका का प्लास्टिक शस्त्रकर्म।
  • Neuropraxia -- तंत्रिकाक्षति या तंत्रिका-संघट्टन
अक्षतंतु (axon) या तंत्रिका तुंतुओं (nerve fibres) में किसी क्षति (चोट-) के बिना तंत्रिका के कार्य का क्रियात्मक रूप (physiological) से रुक जाना।
  • Neurotmesis -- तंत्रिका विच्छेद
इस अवस्था में तंत्रिका का पूर्ण रूप से विभाजन (complete division) हो जाता है।
  • Nonabsorbable Suture -- अन-अवशोष्य सूचर या सीवन
यह जख्मों को बन्द करने में प्रयोग किया जाने वाला धागा है। धागा ऐसी वस्तु से बना होता है कि शरीर के ऊतकों में अवशोषण नहीं हो पाता, जैसे रेशम का धागा, रूई का धागा अथवा स्टेनलैस स्टील या संश्लिषट द्रव्य (synthetic material) का धागा।
  • Non-Specific Ulcers -- अविशिष्ट व्रण
त्वचा या श्लेष्मिक पृष्ठ में अलगाव या विच्छेद (breach) इनका कारण, भौतिक, रासायनिक या जीवाणुज अभिघात (चोट- pyogenic) है। इसकी चिकित्सा कारण के अनुसार होती है।
  • Non-Toxic Goitre -- अविषालुगलगण्ड
यह गलगण्ड कोलॉइड या पर्विल होता है। पर्विलगलगंड को भी (1) एकल पर्विल या (2) बहुपर्विल गलगंड में वर्गीकृत किया जा सकता है। पहाड़ी इलाकों में यह अवस्था अक्सर स्थानिक (endemic) होती है और इसका कारण आयोडीन की कमी या आयोडीन का कम प्रयोग, चिरकारी, संक्रमण, अस्वास्थ्यकर अवस्थाएं तथा खाद्य पदार्थ में गलगंड उत्पन्न करने वाले (गलगंड जनक goitrogens) कारक (factors) हैं। अवटु ग्रंथि के सूजन के अतिरिक्त रोगलाक्षणिक रुप से या अवस्था लक्षणरहित होती है, जैसे-जैसे ग्रन्थि सूजती जाती है तथा उसका आकार बढ़ता जाता है उसका दबाव श्वास-प्रणाल (tracea) पर पड़ने के परिणाम स्वरूप सांस लेने में तकलीफ (श्वसनकष्ट – dyspnoea) होती है। ग्रन्थि के सीने की हड्डी (उरोस्थि – sternum) के पीछे की तरफ बढ़ने के कारम सांस लेने में कठिनाई बढ़ती जाती है।
  • Normal Blood Pressure -- सामान्य रक्तचाप
व्यक्ति के स्वस्थावस्था में पाया जाने वाला रक्तृचाप। साधारणतः यह 120/80 मि.मि. पारद होता है।
  • Oblique Or Indirect Inguinal Hernia -- तिर्यक् वंक्षण हर्निया
आभ्यांतर वलय के जरिए आशय या अंतरंग (viscera) का वहि: सरण अर्थात् बाहर की ओर आ जाना। आशय बाह्य वलय से निकल कर वृषणकोश में बहिः सरण के विस्तार के अनुसार आ सकता है। हर्निया के बाहर निकलने वाली वस्तुए वपा (omentum) या बड़ी आंत (बृहदांत्र) होती है जो एक कोश से ढकी रहती है तथा उनके ऊपर वृषण रज्जु के आवरण भी रहते हैं। ऋजु वंक्षण हर्निया (direct hernia) की अपेक्षा इस अवस्था में विपाशन (strangulation) या अवरोधन होने की अधिक संभावना होती है। इस अवस्था की चिकित्सा शस्त्रकर्म द्वारा की जाती है।
  • Obturator Foramen -- श्रोणि रंध्र, गवाक्ष रंध्र
आसनास्त्थि (इस्कियम) तथा जघनास्थि (प्यूबिस) के बीच स्थित गोल अंडाकार बड़ा छिद्र।
  • Occipital Condyle -- अनुकपाल अस्थिकंद
करोटि मं पीछे की और हड्डी की एक या दो घुंडियां, जो प्रथम कशेरुक से लगती हैं।
  • Occiput -- अनुकपाल
कपाल का पृष्ठ भाग।
  • Occult Bleeding -- गुप्त रक्तस्राव
आंत्र व्रण में होने वाला रक्तस्राव।
  • Occupational Therapy -- व्यावसायिक चिकित्सा
वह चिकित्सा, जिसमें शारीरिक विरूपताओं और विकारों का उपचार आंगिक गतियों तथा शारीरिक क्रियाओं अथवा व्यायाम आदि से किया जाता है।
  • Ocular -- चाक्षुष, अक्षि
आँखों से संबंधित किसी संरचना के लिए प्रयुक्त।
  • Oesophageal Varix -- ग्रासनली कुटिल शिरा
प्रतिहारी अतिरक्तदाव में प्रतिहारी रक्त परिसंचरण (portal circulation) के अंदर रुकावट होने के कारण ग्रासनली के निचले 1/3 हिससे में प्रतिहारी परिसंचरण तथा दैहिक परिसंचरण (systemic circulation) के मध्य होने वाले आवगमन से अपस्फीति या फुलाव (variosity)। इन विस्फारित शिराओं के कारण बहुत अधिक रक्तवमन (रक्त की उल्टी-haematemesis) होता है और यदि इलाज न किया जाए तो यह घातक भी हो सकता है।
  • Oesophagectomy -- ग्रासनली उच्छेदन
शस्त्रकर्म द्वारा ग्रासनली के एक हिस्से का या उसका संपूर्ण विच्छेदन करना।
  • Oesophagitis -- ग्रासनली शोथ
भौतिक, रासायनिक तथा जीवाणुजन्य कारकों के कारण ग्रासनली की सूजन। इस रोग को उत्पन्न करने वाले कारकों के उदाहरण ग्रासनली में आंगंतुक शल्य (बाहरी चीज-foreign body), संक्षारक पदार्थों का निगलना, अम्लजठर रस का प्रतिवाह (वापस लौट कर आना) तथा मध्यस्थानिकाशोथ (mediastinitis) आदि हैं। चिकित्सा कारण के अनुसार की जाती है।
  • Oesophagogastrectomy -- ग्रासनली जठरोच्छेदन
ग्रासनली तथा आमाशय को ऑपरेशन करके निकाल देना।
  • Oesophagogastrostomy -- ग्रासनली-जठरसम्मिलन
एक ऑपरेशन, जिसमें ग्रासनली तथा आमाशय से थोड़ा-थोड़ा हिस्सा काट देते हैं और ग्रासनली तथा आमाशय के हिस्सों को मिला देते हैं, जिससे उन दोनों का सातन्य बना रहे। यह ऑपरेशन साधारणतया ग्रासनली के निचले एक तिहाई हिस्से में या जठर अभिहृद भाग (cardiac end) में कैंसर होने पर किया जाता है।
  • Oesophagojejuno- Gastrostomy -- ग्रासनली मध्यांत्र-जठर सम्मिलन
इसमें ग्रासनली के एक भाग का शस्त्रकर्म के जरिए प्रतिस्थापन (बदलना) करना होता है। यानी वह शस्त्रकर्म जिसमें मध्यांत्र के एक पाश का, जिसका रक्त संभरण अभिन्न है, निकटस्थ भाग में ग्रासनली से तथा दूरस्थ भाग में आमाशय से मिला देते हैं।
  • Oesophagojejunostomy -- ग्रासनली-मध्यांत्र सम्मिलन
ग्रासनली तथा मध्यांत्र का शस्त्रकर्म द्वारा मेल कराना जिससे कि आंत्र का सातत्य बना रहे। इसकी आवश्यकता पूर्ण आमाशय उच्छेदन या हृद् ग्रासनली क्षेत्र में असाध्य अवरोध के समय उपमार्ग बनाने के लिए पड़ती है।
  • Oesophagoscope -- ग्रासनलीदर्शी
अन्ननली ग्रासनली की परीक्षा करने का गुहांतदर्शी यंत्र।
  • Oesophagoscopy -- ग्रासनली गुहादर्शन
गुहांतदर्शन ग्रासनली प्रकाशमान (lighted oesopha goscope) यंत्र द्वारा अन्ननली ग्रासनली, विकृत अवकाशिका (lumen) की परीक्षा। ग्रासनली की वैकृतिक अव्थाओं को देखने और ढूंढ कर निकालने के साथ-साथ इसकी सहायता से ग्रासनली में पड़े आगंतुक शल्य को भी निकाला जा सकता है।
  • Oesophagostomy -- ग्रासनली छिद्रीकरण
ग्रासनली में शस्त्रकर्म द्वारा एक द्वार या छेद बना देना जिसका संबंध बाहरी पर्यावरण से होता है।
  • Oesophagotomy -- ग्रासनलीछेदन
शस्त्रकर्म द्वारा ग्रासनली में काट-छांट करना। अधिकतर ग्रासनली में से आगंतुक शल्य को निकालने के लिए ही इस शल्य क्रिया का प्रयोग होता है। बाद में इस छेद को बंद कर दिया जाता है।
  • Oesophago- Duodenostomy -- ग्रासनली ग्रहणी सम्मिलन
शस्त्रकर्म द्वारा ग्रासनली का ग्रहणी के साथ संयोजन (anastomosis) करा देना।
  • Ectopia Vesicae Or Urinary Bladder Extroversion -- अस्थानिक मूत्राशय विवर्तन
वह जन्मजात अवस्था, जिसमें मूत्राशय की अग्र भित्ति तथा उदर नीचे की दीवार पूरी तरह से नहीं बनती है। फलस्वरूप मूत्राशय की पिछली दीवार सामने से दिखाई देने लगती है। बिना इलाज किये मरीजों में जवानी में इस खुली हुई लैष्मिक कला का इतर-विकसन (metaplasia) हो जाता है और अंत में कार्सिनोमा अर्थात्, कैंसर हो जाता है। पुरुष में पूर्ण अधिमूत्रमागी शिश्न (epispadic penis) सामान्य की अपेक्षा चौड़ा और छोटा हो जाता है। ऐसी हालत अनवतीर्ण वृषण (undescended testis), नाभि और जांघा मोड़ की हर्निया के साथ-साथ भी हो सकती है। इस रोग की चिकित्सा में सामान्यतः गवीनियों (ureters) का प्रतिरोपण होता है और मूत्राशय की खुली हुई श्लैष्मिक कला को काट कर निकाल दिया जाता हैं।
  • Olfactory -- घ्राणीय
घ्राण संवेद अर्थात् से संबंधित (संरचना)।
  • Oligodendroglioma -- अल्पडेंडोन-कोशिकार्बुद
ग्लायोमा की दूसरी किस्म, जिसमें ‘वयस्क कोशिका अर्बुद’ की कोशिकाएं छोटे रुद्ध विकासी प्रवर्धी सहित होती हैं। ऐसा आमतौर पर वयस्कों के प्रमस्तिष्क गोलार्ध के भीतरी भागों में होता है।
  • Omentocele -- वपा हर्निया
हर्निया के अवरोध या विपाशन (strangulation) की वह स्थिति जिसमें वमन (vomitting) तथा पूरी तरह से कब्ज या कोष्ठबद्धता उत्पन्न हो सकती है।
  • Omentopexy -- वपा-स्थिरीकरण शस्त्रकर्म द्वारा वपा (omentum) को किसी दूसरे ऊतक से स्थापित करना।
  • Omphalopagus -- बद्धनाभियमल नाभि-पर जुड़े दो राक्षस(double monster)
  • Oncology -- अर्बुदविज्ञान, अर्बुदिकी
अर्बुदों की उत्पत्ति, वृद्धि, लक्षण तथा चिकित्सा का अध्ययन करने वाला विज्ञान।
  • Onychia -- नखशोथ, चिप्प
नाखून के आधार में सूजन की स्थिति हो जाना।
  • Onycho Cryptosis Or Onychogryposis -- नखातिवक्रता
नाखून का अतिवक्रित होना।
  • Onycholysis -- नखश्लथता
नाखून का अपनी शय्या (nail bed) से ढीला पड़ जाना अथवा अलग हो जाना।
  • Onychomycosis -- नखकवकता, कुनश्व
अंगुलियों तथा पादांगुलियों के नाखूनों का एक रोग, जो एपिडर्मोफाइटॉन फ्लोकोसम, ट्राइ-फाइटॉन की अनेक जातियों तथा काँडीडा एल्बीकेंस के कारण उत्पन्न होता है। इस रोग में नाखून अपारदर्शी, शवेत, मोटे, भुरभुरे तथा भंगुर हो जाते हैं।
  • Open Operation -- विवृत शस्त्रकर्म
वह ऑपरेशन जिसमें संबंधित अंगों को खुला रखा जाता है।
  • Opertation -- शस्त्रकर्म
:(1) शल्य चिकित्सक के द्वारा हाथों अथवा यंत्रों से किया गया कोई भी कार्य।
(2) शल्य चिकित्सा संबंधी क्रियाविधि।
  • Operation Theatre -- शस्त्रकर्म शाला, शस्त्र कर्मागार
चिकित्सालय का एक भाग हैं जहां पर शल्य चिकित्सा की जाती है।
  • Operative Surgery -- शस्त्रकर्म, प्रायोगिक शल्यतंत्र
रोगी के उपचार में प्रयुक्त होने वाली शस्त्रकर्म प्रक्रियाओं से संबंधित शल्यविज्ञान। इसमें शस्त्रकर्म पूर्व (pre-operative) तथा शस्त्रकर्मोत्तर (post-oprative) देखरेख भी शामिल है।
  • Optic -- चाक्षुष
आंख से संबंधित (कोई संरचना), जैसे- तंत्रिका, पालि आदि।
  • Oral -- मुखीय, मुख संबंधी
मुँह से संबद्ध (कोई संरचना, रोग क्रिया आदि)।
  • Orbit -- अक्षिकोटर, नेत्रकोटर
शिर करोटि में पाये जाने वाली गुहा, जिसमें आंख स्थित होती है।
  • Orchidopexy Or Orchipexy -- वृषण स्थिरीकरण
वह शस्त्रकर्म जिससे अनवतीर्ण अर्थात् स्वस्थान में न आए हुए वृषण को वृषण कोश (scrotum) में स्थिर स्थापित कर दिया जाता है।
  • Orchiectomy -- वृषणउच्छेदन
एक या दोनों वृषणों को काट कर बाहर निकाल देना। यह ऑपरेशन वृषण के खराब होने या उसमें अर्बुद आदि उत्पन्न हो जाने परकिया जाता है। इस शस्त्रकर्म की एक खास किस्म को अवकोशीय अवसंपुटी वृषणोच्छेदन (subcapsular orchiectomy) कहते हैं जो पुरःस्थ ग्रंथि में उत्पन्न कार्सिनोमा को नियंत्रण में लाने वाली हॉर्मोनी चिकित्सा के एक भाग के रूप में व्यवहार में लायी जाती है। वृषण को निकालने के बाद काश संपुट को वहीं छोड़ दिया जाता है जिससे रोगी यह महसूस करता है कि उसका वृषण वहीं मौजूद है। इस प्रकार से रोगी को मानसिक आघात या चोट से बचाया जा सकता है।
  • Orchitis -- वृषणशोथ
चोट (अभिघात) अथवा संक्रमण द्वारा उत्पन्न वृषण की सूजना वेदना, सूजना तथा ज्वर इस रोग की विशेषताएं हैं।
  • Organ -- अंग
शरीर के ऊतकों से बना भाग या अवयव, जो संरचनात्मक तथा कार्यात्मक इकाई के रूप में विशिष्ट कार्य करता है, जैसे- हृदय, वृक्क, यकृक, नेत्र आदि।
  • Orthopaedic Surgery -- अस्थि-संधि शस्त्रकर्म
अस्थियों तथा संधियों जोडों की विरूपताओं (deformities) को ठीक करने के लिए की गई शल्य चिकित्सा।
  • Osteo-Chondroma -- अस्थि-उपास्थि-अर्बुद
एक सुदम अर्बुद (benign tumour) जो हड्डी के उपास्थि भाग से निकलता है। इनकी उत्पत्ति अधिवर्ध (epiphysis) पर अस्थि की वृद्धि में विक्षोभ या विध्न का परिणाम है। उपास्थि में ही बाद में अस्थीभवन होता है। अस्थिकंकाल की वृद्धि के पूरे हो जाने पर बढ़ोत्तरी रुक जाती है। यह खाल (त्वचा) के नीचे एक मुलायम प्रक्षेप बनाता है और कभी-कभी नजदीक की संरचना के साथ रोक-टोक व हस्तक्षेप करता है। इसमें अकरमात् दुर्दम परिवर्तन भी हो सकते हैं।
  • Ostealgia -- अस्थि-आर्ति, अस्थिगत शूल
हड्डी की गहराई में पीड़ा या वेदना होना।
  • Osteitis Fibrosa Cystica -- ग्रंथिक संपुटि तंतुमय अस्थिविकृति
एक सौविर्थकर अस्थिशोथ (rarefying osteitis) जिसमें तंतु व्यपजनन पुटी (cysts) का बनना तथा प्रभावित हड्डियों में तंतु पर्विकाओं की उपस्थि भी शामिल है। यह अवस्था परा-अवटु ग्रंथि (parathyroid gland) के अत्यधिक कार्य करने के कारण उत्पनन होती है।
  • Osteitis Fibrosa (Fibrous Dysplasia) -- तंतुमय अस्थिविकृति (तंतु दुर्विकसन)
हड्डियों के प्रभावित होने का रोग अस्थियों की जगह पर तंतु ऊतक बन जाता है जो पुटीय व्यपजनन (cystic degeneration) के क्षेत्र में हो सकता है। इस रोग में हड्डी का एक अंश या कई उनके पूरे के पूरे भाग ग्रस्त हो सकते हैं। यह रोग एक अस्थि को भी प्रभावित कर सकता है जिसमें यह अस्थि के सीमित क्षेत्र को ही प्रभावित करता है। उभी तक इस रोग की कोई विशिष्ट चिकित्सा नहीं मालूम हो पायी है। अगर स्थानिक दर्द है, तो शस्त्रकर्म से सहायता मिल सकती है।
  • Osteitis Fibrosa Generalisata -- सार्वदैहिक तंतुमय अस्थिविकृति
एक रोग जिसमें अस्थियों में सदोष अस्थिभवन हो जाता है, जिसके फलस्वरूप अस्थियों में स्थूलता, कमजोरी तथा विरूपता उत्पन्न हो जाती है तथा अस्थि ऊतकों की जगह कोशिकीय तंतु ऊतक उत्पन्न हो जाते हैं। यह रोग एक या अधिक परा-अवटु उत्पन्न हो जाने के कारण होता है।
  • Osteoarthritis -- अस्थिसंधिशोथ
हड्डियों के जोड़ की एक प्रकार की जकड़ वाली अवस्था जो चल संधियों को प्रभावित करती है। यह अवस्था नितम्ब तथा घुटने के जोड़ों में अधिक मिलती है। रोगी के जोड़ में दर्द, सख्ती (स्तब्धता) तथा बंधी हुई गतियों की शिकायत करता है। एक्स-रे से देखने पर अव-उपास्थि काठिन्य या कार्टिलेज के नीचे कड़ापन मिलता है।
  • Osteo-Chondritis -- अस्थि-उपास्थिशोथ
बच्चों में रोगलाक्षणिक अवस्था का वह प्रकार है, जिसमें अस्थिकृत केंद्र में रक्त संवहन का अवरोध सामान्य कारण है। स्थानिक रक्तता (ischaemia) के कारण का पता नहीं है। यह दो प्रकार का होता है, अर्थात्-अस्थिकृत केंद्र का पूरा भाग रक्त संवहन से वंचित है या थोड़ा सा।
  • Osteo-Chondritis Dissicans -- शोषकर अस्थि-उपास्थि-शोथ
इस अवस्था में संधायक स्नायु का एक क्षेत्र, नीचे की हड्डी के साथ, जोड़ के संघायक पृष्ठ से अलग हो जाता है। सामान्यतः घुटने तथा कोहनी के जोड़ ही, इस से प्रभावित होते हैं। शुरू में कमजोरी और दर्द या स्पर्श वेदना बंधी हुई गतियां जैसे लक्षण मिलते हैं। कभी-कभी गुटने का जोड़ जकड़ जाता है।
  • Osteoclasis -- अस्थि-भंजन
वह शस्त्रकर्म जिसमें अस्थिभंग करते हैं या बिना काटे हुए हड्डी को तोड़ देते हैं। यह शस्त्रकर्म बच्चों में हाथों से और वयस्क रोगियों में एक यंत्र के द्वारा किया जा सकता है, जिसे अस्थि-भंजक (osteoclast) कहते हैं।
  • Osteo-Clastoma -- अस्थि-अवशोषी-कोशिकार्बुद
महाकोशिकाओं (giant cells) का अर्बुद। ये कोशिकाएं अस्थि-कोशिका- प्रसू (osteo-blasts) की समधर्मी (analogous) हैं। ये अर्बुद दीर्घ अस्थियों, जत्रुकास्थि के उरोस्थि अंत भाग (हंसली की हड्डी का सीने की हड्डी के पास वाला भाग-) तथा संधियों में पाये जाते हैं। इनको सुदम अर्बुद ही समझा जाता है, पद्यपि कभी-कभी विक्षेप (metastasis) भी पाए जाते हैं।
  • Osteodystrophy -- अस्थि-दुष्पोषण
जन्म से हड्डियों का ठीक प्रकार से न बढ़ना।
  • Osteogensis -- अस्थिजनन
हड्डियों का बनना।
  • Osteogenesis Imperjecta -- अपूर्ण अस्थिजनन
वह वंशगत अवस्था जिसमें हड्डियां असामान्य रूप से भंगुर (टूटने वाली) हो जाती हैं और उनमें भंग हो जाना स्वाभाविक हो जाता है। कई रोगियों में आंखों का श्वेतपटल (sclera) नीला होता है और अधेड़ आयु के व्यक्तियों में कर्णगहन-संपुटकाठिन्य (otosclerosis) परिवर्तन सामान्य हैं। इसकी कोई विशिष्ट चिकित्सा नहीं हैं। अस्थि का भंग संतोषजनक ढंग से जुड़ भी जाता है। ज्यादा विरूपता होने पर शस्त्रकर्म आवश्यक है।
  • Osteoid Osteoma (Jaffe Tumour) -- अस्थ्याभ अस्थिगुल्म (जेफे अर्बुद)
बहुत कम पाया जाने वाला वह अर्बुद, जो आकार में एक सेन्टीमीटर से भी छोटा होता है और अपने चारों ओर घनी नई हड्डी बनने को उकसाता है। इस अर्बुद की सामान्य जगह ऊर्वस्थि (femur) और अन्तर्जंघिका (tibia) हैं। इससे पुरुष अधिक प्रभावित होते हैं। इसमें बहुत ज्यादा दर्द होता है जो रात के समय बहुत बढ़ जाता है, तथा इसे छूने पर भी वेदना होती है। ऐक्स-रे में काठिन्य क्षेत्र दिखता है और जिसका घना भाग रेडियो-अपार्य (radio-opaque) होता है, जिसे नाइड अथव नीड कहते हैं। यदि कोई लक्षण न हो तो इस अस्थि गुल्म की परवाह करने की जरूरत नहीं।
  • Osteoma (Ivery Exostosis) -- अस्थि अर्बुद (संहत बाह्य-अध्यस्थि)
वह अवस्था जो हड्डी की अतिवृद्धि (अधिक बढ़ने) के परिणामस्वरूप होती है। यह उपास्थि से अलग अवस्था है। यह वृद्धि अवृत्त है अर्थात् इसमें तना नहीं होता। इस अर्बुद के सामान्य स्थान कपाल तोरण (vault), ललाट (frontal), जतूक (sphenoidal) अस्थिविवर (sinuses) तथा कर्णकुहर (auditory meatus) हैं।
  • Osteomalacia -- अस्थिमार्दव
रिकेट्स रोग का एक प्रकार, जो वयस्कों को विटामिन डी. की कमी होने के कारण होता है। इस अवस्था में हड्डियां मुलायम पड़ जाती है, दर्द, स्पर्शवेदना पेशी दुर्बलता, भूख का न लगना तथा शरीर के भार में कमी हो जाती है। अस्थ्याभ ऊतक की कोई कमी नहीं रहती। अस्थि ऊतक बहुत होते हैं परंतु उनका कैल्सीभवन नहीं हो पाता। कारण के मुताबिक इसका इलाज करना पड़ता है तथा रोगी को विटामिन ड़ी और कैल्सियम का सेवन कराया जाता है।
  • Ostemyelitis -- अस्थिमज्जाशोथ
हड्डी की सूजन यवाली अवस्था अस्थि संक्रमण स्थानिक विस्तार तथा सीधे रक्त प्रवाह के द्वारा हो सकता है। संक्रमण के तरीके और संबंधित जीव तथा रोगी की प्रतिरोध क्षमता या संक्रमण से लड़ने की शक्ति के अनुसार रोग का मार्ग भिन्न होता है। रोग तीव्र, अनुतीव्र या चिरकारी (chronic) हो सकता है। चिकित्सा में प्रतिजीवी औषधियों (antibiotics) का सेवन, उस भाग को स्थिर रखना अर्थात् अचलीकरण तथा विद्रधि या फोड़े का निकास (drainage) करना सम्मिलित है। चिरकारी या पुराने रोगियों में विविक्तांश (sequestrum) के रहने पर विविक्त-उच्छेदन (sequesterectomy) करने की आवश्यकता पड़ती है।
  • Osteoperiostitis -- अस्थिपर्यस्थिशोथ
अस्थि और पर्यस्थि कला की सूजन जिसके फलस्वरूप हड्डी के एक बढ़े भाग की पर्यस्थि कला स्थूल या मटी हो जाती है तथा पास की हड्डी कठोर हो जाती है। सामान्य रूप से सूजन सममित होती है। यह अवस्था अन्तर्जंघास्थि (tibia) में मिलती है और खड्गाकार अंतर्जंघास्थि का विशिष्ट रूप बनाती है। इस अवस्था का कारण पर्यस्थि वाहिकाओं का फिरंगी अंतर्घमनीशोथ (syphilitic endarteritis of the periosteal vessels) है।
  • Osteoporosis -- अस्थि-सुषिरता
हड्डी का असामान्य विरलीकरण या हड्डियों में बहुत से छिद्रों का बनना इसका कारण यह है कि अस्थि कोशिकाप्रसू (osteoblasts) अस्थि आधात्री (bone matrix) को बना नहीं पाता। नहीं हो पाता। इसके कारण पोषणज, हार्मोनी (hormonal), वाहिकाय तथा तंत्रिकासंबंधी हैं।
  • Osteoradionecrosis -- विकिरणजन्य अस्थि-परिगलन
विकिरण के बाद हड्डी का गलना। यह अवस्था अन्तर्जंधास्थि अर्थात् टांग की सामने की हड्डी में पायी जाती है जो खड्गाकार अन्तर्जंघिका (sabre tibia) के नामसे जानी जाती है। इस अवस्था का कारण पर्यस्थि कला की वाहिकाओं का फिरंगी अन्तर्धमनीशोथ (endarteritis) है।
  • Osteosarcoma -- अस्थिसार्कोमा
लंबी हड्डियों के अस्थिकांड-कोटि क्षेत्र (metaphyseal region) में होने वाला बहुत अधिक दुर्दम अर्बुद। अधिकांशतया यह 20 से 30 साल की आयु में होता है। रोगलाक्षणिक रूप से इसमें पीड़ा, स्पर्शवेदना तथा वैकृत अस्थिभंग होते हैं। एक्स-रे में सूर्य किरण जैसा कोडमेन त्रिभुज दिखाई देता है। रक्त संक्रमित द्वितीयक रोग सामान्य है। चिकित्सा में अर्बुद में अस्थि या संधि का पारगामी अंगोच्छेदन (amputation) कर दिया जाता है।
  • Osteosynthesis -- अस्थि-संश्लेषण
शस्त्रकर्म द्वारा हड्डी के टूटे सिरों का, अभिस्थापन (opposition) करना अर्थात् उन्हें आमने-सामने बैठाना।
  • Osteotome -- अस्थिविच्छेदक
वह यंत्र जिसका प्रयोग शस्त्रकर्म करते समय हड्डी को काटने के लिए किया जाता है।
  • Osteotomy -- अस्थिविच्छेदन
शस्त्रकर्म द्वारा हड्डी को काटना। हड्डी का काटना किसी विरुपता को ठीक करने के लिये किया जाता है। यह विरूपता स्वयं हड्डी की बदली हुई आकृति के कारण या किसी रोग के आकृति कारण से या संधि के संधिग्रह (ankylosis) के कारण उत्पन्न होती है।
  • Ovulation -- अंडोत्सर्ग
अंडाशय-पुटक से परिपक्व अंड का बाहर निकलना। यह क्रिया विशिष्ट हार्मोनों के प्रभाव से होती है।
  • Ovum -- अंड
वह परिपक्व मादा युग्मक या मादा जनन कोशिका जिसमें अगुणित संख्या में गुणसूत्र और पीतक छिल्ली से घिरा, कम ज्यादा मात्रा में, पीतक होता है।
  • Oxycephaly -- ऑक्सीसिफेली
इस अवस्था में करोटि, सीवनों की कालपूर्व संयुक्ति के कारण ऊँचाई बढ़ती है।
  • Pace Maker -- गतिचालक, गति प्रेरक
वह उपकरण, जो हृत् पेशी का संकोच करने के लिए, आवेगों (impulses) की श्रुंखला को उत्पन्न करता है। इस यंत्र की दो किस्में होती हैं- (i) बाह्य (बाहरी) गति प्रेरक जो सीमित समयावधि तक कार्य करता है, तथा (ii)आभ्यंतर (भीतरी) गति प्रेरक जो दीर्घ समयावधि तक कार्य करता है। शिरा अलिंद पर्व, दाहिने अलिंद में ऊर्ध्व माहाशिरा के प्रवेश द्वार के निकट कोशिकाओं का एक समूह जिससे आवेग उठकर हृदय के दूसरे भागों में फैलते हैं। गति प्रेरक, हृदय की सामान्य गति के कम हो जाने पर उसे नियंत्रित गति प्रदान करता है।
  • Pachycephaly -- बृहत्कपाल पृथुता
कुछ रोगों में कपालास्थि का असामान्य रूप से मोटा हो जाना।
  • Pachydactyly -- स्थूल अंगुलिता
हाथ एवं पैर की अंगुलियों की असामान्य मोटाई।
  • Pachyderma -- त्वक्स्थूलता
त्वचा का मोटा होना।
  • Pachyderma Alba -- पैकीडर्मा अल्बा
मोटी श्वेत त्वचा यानी एक चर्म रोग श्वेतत्वक्स्थूलता।
  • Pachymeter -- स्थूलता मापी
किसी भी वस्तु की तनुता एवं स्थूलता मापन यंत्र।
  • Pachyonychia Congenita -- जन्मजात नखस्थूलता
जन्म से ही नाखूनों की मोटाई।
  • Paget’S Disease, Osteitis Deformans -- पेजट रोग
रोग जिसमें अस्थियाँ दुर्बलता के साथ झुक जाती है। एक दूसरी हड्डी में धीरे-धीरे इस प्रकार रूपांतरण होते रहना कि अस्थियां पत्रक का रूप धारण कर लें और मोजेक की तरह दिखाई दें। इस रोग का कारण अभी तक अज्ञात है। कपाल तथा जंघा की अस्थियां ज्यादा प्रभावित होती है। रोगी दर्द की शिकायत करता है। हड्डियां मोटी होकर भार के कारण झुक जाती हैं। प्रभावित अस्थि में कभी- कभी दुर्दम परिवर्तन भी हो जाता है। अभी तक इस रोग का सही उपचार नहीं हो पाया है। 40 साल की उम्र के लोग अधिकतर इस रोग से ग्रसित होते हैं।
  • Palatal -- तालव्य
तालू से संबंधित।
  • Palate -- तालु
मुख का ऊपरी भाग, जो मुख-गुहा को नासागुहा से अलग करता है। इसके अगले भाग को कठोर तालु और पिछले भाग को कोमल तालु कहते हैं।
  • Palatine Suture -- तालुसंधि
कठोरतालु में वाम तथा दक्षिण भाग को जोड़ने वाली संधि।
  • Palatitis -- तालु शोथ
तालु प्रदेश में होने वाली सूजन।
  • Palatomaxillary -- तालूर्ध्वहन्वीय
तालु तथा ऊर्ध्वहनु के संबंधित।
  • Palatonasal -- तालु-नासा
तालु तथा नासा से संबंधित।
  • Palatoplasty -- एक संधान शस्त्रकर्म (plastic operation), जिसके द्वारा मृदु तथा कठोर तालुओं में दोष उत्पन्न होने पर विरोहण या सुधार किया जाता है।
  • Palatorrhaphy -- तालु-सीवन
तालु में उत्पन्न विकार (खराबी) को ठीक करना। यह विकार पैदायशी या बार में उत्पन्न हुआ हो सकता है। विरोहण करने से नाक तथा मुंह का असामान्य संचार बंद हो जाता है।
  • Palingenesis -- आनुवंशिक पुनर्भवन
भ्रूण परिवर्धन की प्रक्रिया में पूर्वजों की विशिष्टताओं की अभिव्यक्ति।
  • Palliative Treatment -- लाक्षणिकी चिकित्सा
लक्षणों की आधार पर किया जाने वाला उपचार।
  • Pallor -- पेलर पाण्डुता
रक्त की कमी से होने वाला श्वेत वर्ण/पाण्डु वर्ण।
  • Palmar Aponeurosis -- पामर एपोन्यूरोसिस, हस्ततलकंडराकला
हथेली में कंडराओं से संबंधित जाल।
  • Palmar Erythema -- पामर इरिथिमा, आरक्त हस्तता
हथेली की त्वचा में लाल रंग के चकत्तों का होना।
  • Palm-Chin Reflex -- पॉम-चिन रिफ्लैक्स, हस्त-हनु प्रतिवर्त
हथेली, ठोडी तथा मुंड से संबंधात परीक्षण, जो चिकित्सक द्वारा किया जाता है।
  • Palmo-Mental Reflex -- पॉमो मेन्टल रिक्लैक्स, हस्तमस्तिष्कीय प्रतिवर्त
वह प्रतिवर्त (reflex), जो हथेलियों के थीनार ऐमिनेनस को जोर से रगड़ने से उसी पार्श्व के चिवुक तथा अधोष्ठ की मांसपेशियों में आकुंचन करता है।
  • Palpable -- स्पर्सगम्य
जिसे छूने से जाना जाय।
  • Palpebra -- नेत्रच्छद/वर्त्म
नेत्र पलक तथा आंखों की रक्षा हेतु बाह्य आवरण।
  • Palpebro Superior -- पेलप्रेब्रो सुपिरियर, ऊर्ध्ववर्त्म पेशी
नेत्रच्छेद संबंधित एक मांसपेशी।
  • Palpitation -- धड़कन
हृदय की गति महसूस करना।
  • Palmar Reflex -- पामर रिफ्लैक्स
:(1) वह प्रतिवर्त जिसमें हथेली में अंगुलियों का आकुंचन होता है।
(2) शिशुओं में मुट्ठी बांधने का प्रतिवर्त जो धीरे-धीरे गायब हो जाता है और 4 या 5 माह पश्चात् बिल्कुल समाप्त हो जाता है।
  • Pancolectomy -- पूर्ण बृहदांत्र-उच्छेदन
समस्त बृहदांत्र का विच्छ्दन
  • Pancreatectomy -- अग्न्याशय-उच्छेदन
अग्न्याशय का उच्छेदन। यह शस्त्रकर्म अग्न्याशय के दुर्दम रोगों और कभी कभी शोथज अवस्थाओं में (जिन्हें चिरकारी अग्न्याशयशोथ कहते हैं) किया जाता है।
  • Pancreatic Abscess -- अग्न्याशय विद्रधि
अग्न्याशय में उत्पन्न होने वाला विद्रधि। यह विभिन्न कारणों से होता है।
  • Pancreatic Ascites -- अग्न्याशयजन्य जलोदर
अग्न्याशय की विकृति से होनेवाला जलोदर।
  • Pancreatic Calculus -- अग्न्याशयअश्मरी
अग्न्याशय में होने वाला अश्मरी।
  • Pancreatic Cancer -- अग्न्याशय कैंसर
अग्न्याशय का अर्बुद।
  • Pancreatic Duct -- अग्न्याशय वाहिनी
वह वाहिनी जो अग्न्याशय के स्राव को सामान्य पित्त वाहिनी तक पहुंचाती है।
  • Pancreatic Enzymes -- पैनक्रियाटिक एन्जाइम
अग्न्याशय से संबंधित रासायनिक पाचक रस।
  • Pancreatic Fistula -- अग्न्याशयनाड़ी व्रण
वह नाड़ी व्रण, जो अग्न्याशय में होता है।
  • Pancreatico- Duodenectomy (Whipple’S) Operation) -- (अग्न्याशय-ग्रहणी-उच्छेदन) (व्हिपिल शस्त्रकर्म)
संपूर्ण अग्न्याशय के सिर, उसको चारों तरफ से घेरने वाले ग्रहणी पाश, सामान्य पित्त वाहिनी के अंतिम भाग तथा आमाशय के जठर निर्गम भाग का एक साथ छेदन कर देना। आंत्र (bowel), सामान्य पित्तवाहिनी तथा अग्न्याशय वाहिनी के सातत्य को मध्यांत्र के एक पाश के सम्मिलन के जरिये पुनः स्थापित किया जाता है। यह ऑपरेशन अग्न्याशय-शीर्ष के कार्सिनोमा के शस्त्रकर्म योग्य रोगियों में किया जाता है और कभी-कभी इस ऑपरेशन को दो चरणों में करते हैं। पहले चरण में पित्ताशय का मध्यांत्र के साथ सम्मिलन पित्ताशय- मध्यांत्र सम्मिलन करते हैं जिससे रुद्ध कामला (obstructive jaundice) में आराम मिलता है। दूसरे चरण में अग्न्याशय-ग्रहणी- छेदन शस्त्रकर्म किया जाता है।
  • Pancreaticoduodenal Injury -- अग्न्याशय-ग्रहणी घात
घात कई कारणों से घात उत्पन्न हो सकता है।
  • Pancreaticogastrostomy -- अग्न्याशयवाहिनी-आमाशय-साम्मिलन
अग्न्याशय के एक भाग का उच्छेदन करके अग्न्याशय वाहिनी का आमाशय के साथ मिला देना। यह सम्मिलन कभी-कभी चिरकारी अग्न्याशय-शेथ के रोगियों में किया जाता है।
  • Pancreaticojejunostomy -- अग्न्याशयवाहिनी-मध्यांत्र सम्मिलन
शस्त्रकर्म द्वारा अग्न्याशय को छोटी आंत्र से जोड़ देना। यह शस्त्रकर्म कभी-कभी चिरकारी अग्न्याशयशोथ के रोगियों में अग्न्याशय वाहिनी में रुकावट को दूर करने के लिये किया जाता है। रुकावट के कारण ही दर्द होता है।
  • Pancreatic Resection -- अग्नाशय छेदन
शस्त्रक्रिया द्वारा अग्न्याशय को काट के निकालना।
  • Pancreatic Transplant -- अग्न्याशय प्रत्यारोपण
अग्न्याशय के खराब होने पर दूसरे अग्न्याशय का रोपण।
  • Pancreatography -- अग्न्याशय चित्रण
एक्स-रे द्वारा अग्न्याशय की तस्वीर प्राप्त होना।
  • Paneth Cells -- पेनिथ सैल्स पेनिथ कोशिकाएँ
अग्न्याशय संबंधित कोशिकाएं, जिनको पेनिथ नाम के चिकित्सक ने खोजा था।
  • Panniculitis -- अधसवक् वसास्तरशोथ
उदरगत त्वचा के नीचे के स्तर प्यनिक्युलस की सूजन।
  • Pap Smear -- पैप स्मियर
स्त्रियों में गर्भाशय-ग्रीवा से संबंधित एक परीक्षण, जिससे कैंसर पूर्व स्थिति का पता चलता है।
  • Papilitis -- अक्षि बिम्ब/वृक्क अंकुरक की सूजना
:(1) अक्षि बिंब शोथ
(2) अंकुरा शोथ
  • Papillary Carcinoma -- पैपिलरी कार्सिनोमा
कैन्सर की वह स्थिति, जिसमें अँगुलीवत् वृद्धि होती है।
  • Papilloma -- अंकुरक अर्बुद
सतह उपकला (पृष्ठीय उपकला) की सुदम वृद्धि। इसमें अर्बुद डंठल (व-त्त) हो सकता है या यह अवृत्त भी हो सकता है। इस अर्बुद का इलाज आपरेशन करके उसे काटकर बाहर निकाल देना है।
  • Paracentesis -- पारवेधन पैरासेन्टेसिस
शरीर की बन्द कोठरियों (गुहा), जैसे- वक्ष तथा उदर की गुहा से, सूची द्वारा तरल पदार्थ निकालने के लिए आपरेशन द्वारा छेद करना। यह छेद रोग को जानने या उसकी चिकित्सा के लिये किया जाता है।
  • Paraffinoma -- पैराफिनोमा
एक चिरकारी कणिकामय विक्षति (chronic grannulomatous lesion), जो पैराफिन से काफी समय तक तथा लगातार अनावृत अवस्था में रहती है। यह रोग उन व्यक्तियों में देखने को मिलता है जो पैराफिन से संबंधित उद्योगों में काम करते हैं। जवान व्यक्तियों के फेफड़ों को भी यह रोग प्रभावित करता है। वैसे यह रोग उन व्यक्तियों में भी पाया जाता है जो काफी समय तक पैराफिन तरल का इस्तेमाल करते हैं तथा फेफड़ों में तैल का चूषण करते हैं।
  • Paraganglioma -- पैरागैंगलिओमा
दंडिका कोशिका का सुदम अर्बुद।
  • Parahemophilia -- पैराहीमोफिलिया
फैक्टर-5 की जन्मजात कमी, जिससे रक्त का स्राव बढ़ जाता है।
  • Paralytic Ileus -- घाती आंत्रावरोध
आंत की दीवाल में लकवा हो जाने के कारण आंत के अंदर की वस्तु के सामान्य रूप में बाहर निकलने में रुकावट। यह अवस्था शस्त्रकर्म तथा पर्युदर्याशोथ (peritonitis) के बाद पैदा हो सकती है। लक्षण के रूप में ऐसे रोगियों में पेट का फूलना, वमन तथा पूरी तरह से कब्ज आदि पाए जाते हैं, लेकिन दर्द नहीं पाया जाता। इस रोग में कारणानुसार साधारण या रूढ़ चिकित्सा की जाती है।
  • Paranoia -- पैरानोइआ
मस्तिष्क संबंधी रोग, जिसमें उन्मत्त व्यक्ति स्वयं को अन्य की अपेक्षा श्रेष्ठ समझता है।
  • Paraphimosis -- पैराफाइमोसिस या अवपाटिका
शिश्न के आगे के हिस्से की खाल (शिश्नमुंडच्छद) के सिकुड़ कर सख्त हो जाने के कारण खाल तथा शिश्नमुंड में रक्त का अधिक इकट्ठा हो जाना तथा सूजन हो जाना। यदि इस बीमारी का इलाज न किया जाए तो इसमें संक्रमण हो जाता है, घाव बन जाते हैं (व्रणीभवन) तथा कोथ (गलना) हो जाता है। नए बीमारों में खाल को तुरंत फिर से अपनी जगह परलाना (पुनः स्थापन) चाहिये तथा पुराने बीमारों में सुन्नत या खतना (circumcision) करना चाहिये।
  • Parascapular Flap -- पैरास्कैपुलर फ्लैप
अंसफलक के उभयपक्ष का प्रालंब।
  • Parasternal Mediastinotomy -- पैरास्टैर्नल मीडिआस्टिनोटोमी
उरोस्थि के उभयपक्ष से मध्यास्थि-छेदन।
  • Parasternal Hernia -- पराउरोस्थि हर्निया
उरःफलक के साथ-साथ भ्रंश।
  • Parathyroid Concer -- पैराथायराइड कैंसर
परावटु ग्रंथि का कैंसर।
  • Parathyroid Hormone -- पैराथाइराइड हार्मोन
परावटु ग्रंथि का अंतः स्राव।
  • Parathyroidectomy -- परावटु-उच्छेदन
एक से अधिक परावटु ग्रंथियों का विच्छेदन। यह ऑपरेशन अतिपरावटुता (parathyroidism) के रोगियों में किया जाता है। आमतौर पर परावटु ग्रंथि में अर्बुद होने पर ग्रंथि को काट दिया जाता है। उन रोगियों में, जिनकी सभी परावटु ग्रंथियों में अतिविकसन (hyperplasia) हो जाता है, ग्रंथियों का आंशिक रूप से काटा जा सकता है।
  • Parenteral Administration -- पारएन्टरल एडमिनिस्ट्रेसन
मुख मार्ग के अतिरिक्त औषधि प्रयोग।
  • Perietal Cell -- पैराइटिल सैल
आमाशय की पर्त में स्थित एक प्रकार की कोशिकाएं।
  • Parietal Pain -- पैराइटिल पेन
प्राचीन पीड़ा।
  • Parietal Peritoneum -- पैराटल पेरिटोनियम (प्राचीरोदरच्छद)
प्राचीरा औदर्यावरण कला।
  • Parietal Pleura -- पैराइटिल प्लूरा (प्राचीर फुफुसावरण कला)
  • Parinaud’S Syndrome -- पेरीनोड संलक्षण
दोनों आंखों के उर्ध्व विचलन का आघात। यह एक नेत्रीय उर्ध्व केंद्रीय आघात है जिसमें मध्य-मस्तिष्क में पिंड चतुष्टि (corpora quadrigemina) स्तर पर विकृति होने से उत्पन्न होता है।
  • Periosteal Chondroma -- पेरोस्टियल कोन्ड्रोमा, आसन्नप्रांस्था उपास्थिअर्बुद
उपास्थि का एक प्रकार का सुदम्य अर्बुद।
  • Periosteal Osteosarcoma -- पेरोस्टियल ओस्टियोसारकोमा
हड्डियों का एक प्रकार का घातक कैंसर अर्वुद।
  • Parkinson’S Disease -- पार्किन्सन रोग
एक प्रकार का तंत्रिका रोग, जिसमें लगातार मांसपेशियों में कंपन तथा स्तब्धता जैसी स्थिति होती है।
  • Paronychia -- उपनखपाक, परिनख शोथ
नख पुटकों (nail folds) की सूजन, जो आमतौर पर नाखून को दांतों से काटते रहने वाले व्यक्तियों में पायी जाती है। इस रोग का इलाज आरंभ में प्रतिजीवी औषधियाँ (antibiotics) द्वारा है। जब एक बार पूय अर्थात् पीप (pus) की उपस्थिति का ज्ञान हो जाए तो वहां छेदन करके पीप का निकास कर दिया जाता है। कभी-कभी पीप के निकास के लिये नाखून को भी निकाल दिया जाता है।
  • Prosteal Sarcoma -- परस्थि सार्कोमा
वह दुर्दम अर्बुद जो पर्यस्थि कला (periosteum) से निकलता है। आरंभ में दबाव के कारण प्रांतस्था (cortex) को नष्ट करता है। रोगलाक्षणिक तौर पर अस्थिजनक सार्कोमा (osteogenic sarcoma) के समान यह अस्थि पर एक गांठ-जैसा पिंड बनाता है। शस्त्रकर्म द्वारा इस अर्बुद की चिकित्सा की जाती है।
  • Parotid Gland -- पेरोटिड ग्लैंड
कर्णपूर्व ग्रंथि।
  • Parotitis -- पेरोटाइटिस, कर्णपूर्व ग्रंथि शोथ
कर्णपूर्व ग्रंथि की सूजन।
  • Pars Distalis -- पार्स डिस्टेलिस
पीयूषिका के अग्रिम भाग का निचला अंश।
  • Pars Intermedia -- पार्स इन्टरमीडिया
पीयूषिका के अग्रिम हिस्से के निचले अंश तथा पश्चखंड के नीचे का भाग।
  • Partial Gastrectomy -- आंशिक जठरउच्छेदन
आमाशय के थोड़े से भाग को काट कर निकाल देना। जठर-उचछेदन ऑपरेशन के संकेत ही इस ऑपरेशन के संकेत भी है। आमाशय का कितना भाग रोग ग्रस्त है, उस पर ही आमाशय का काटना निर्भर करता है। निश्चित जठर अर्बुदों में आमाशय का निकाला जाता है तथा ग्रहणी व्रण तथा जठर अर्बुदों में आमाशय का 7/8 , 9/10 भाग काट कर निकाल देते हैं (अवपूर्ण जठरोच्छेदम)।
  • Partial Nephrectomy -- आंशिक वृक्क के भाग का उच्छेदन करके उसे बाहर निकालना।
यह ऑपरेशन आमतौर पर वृक्क के निम्न आलवाल (ट्यूब्यूल) में उपस्थित अश्मरियों के मामले में या तब किया जाता है जब अवशिष्ट यक्ष्मा-रोग वृक्क के किसी एक ध्रुव में बना रहता है।
  • Pharyngoplasty -- ग्रसनी संधान
ग्रसनी का संधान शस्त्रकर्म (Plastic operation) करना, जो खंड तालु (cleft palate) के कुछ रोगियों में मृदु तालु की पश्च धारा तथा पश्च ग्रसनी भित्ति के बीच की दूरी को कम करने के लिए किया जाता है। इससे निगलने के समय मुख गुहा के काफी बंद होने पर प्रभाव पड़ता है। परिणामस्वरूप तरल पदार्थ तथा आहार का नासा ग्रसनी में प्रत्यावहन में अथवा उलट कर वापस आने में रुकावट हो जाती है, अर्थात् भोजन अथवा पानी निगलने पर नासा ग्रसनी में वापस न आकर नीचे की तरफ सामान्य रूप से चला जाता है।
  • Patella -- पटैला, जानुअस्थि
वह अवस्था जिसमें जन्म के बाद भी फोरामेन रन्ध्र बन्द नहीं होता।
  • Patent Ductus Arteriosus -- विवृत धमनी वाहिनी
इस अवस्था में पैदायशी महाधमनी तथा फुप्फुस धमनी के बीच लंबे समय तक रहने वाला संचार बना रहता है। इसकी चिकित्सा के लिये ऑपरेशन करके संचार-व्यवस्था को बंद कर दिया जाता है।
  • Pathogen -- रोगजनक, विकृतिजन, रोगाणु
रोग उत्पन्न करने में समर्थ जीव।
  • Pathogenesis -- रोगजनन
रोग की उत्पत्ति और उसके विकास में घटनाओं की श्रुंखला।
  • Paul Mikuliez Operation -- पॉल-मिकुलिज शस्त्रकर्म
श्रोणि बृहदांत्र (pelvic colon) के कार्सिनोमा के उच्छेदन की रूढ़ पद्धति। इस पद्धति में बृहदांत्र के निकटस्थ तथा दूरस्थ अंगों को आपस में सी दिया जाता है। वहां पर द्विनाली बृहदांत्र छेदन रह जाता है जिसे बाद में पर्युदर्या के बाहर कुचल करके बंद कर दिया जाता है।
  • Peau D’Orange -- प्यू. डी. ओरेंज, प्युडोरेंज
वह स्थिति, जिसमें स्तन की त्वचा संतरे के छिलके जैसी दिखती है (यह स्तन कैंसर में देखा जाता है।)
  • Pectus Carinatum -- पैक्टस कैरिनेटम
वक्षस्थल का कपोत वक्षस्थलवत् विकास संबंधी एक रोग, जिसमें रोगी की घाती के वक्षस्थल की तरह उभार युक्त हो जाती है।
  • Pectus Excavatum -- पैक्टस एक्सकेवेटम
रोग विशेष जिसमें उरोज/वक्षस्थल कीपाकार हो जाता है।
  • Peduncluate Polyp -- आधारभूत ऊतक से विकसित पोटली के आकार की रचना, जो शरीर के किसी भी अंग में हो सकती है।
  • Pel-Ebstein Fever -- पुरावर्तक ज्वर
वह ज्वर, जो अच्छा होने के पश्चात् पुनः हो जाय।
  • Pelvic Abscess -- श्रोणी विद्रधि
श्रोणी प्रदेश की उदरीय कला में होने वाला फोड़ा, जो मलाशय तथा गर्भाशय के बीच में होती है।
  • Pelvic Bone -- श्रोणि अस्थि
श्रोणि प्रदेश में स्थित हड्डी।
  • Pelvic Exenteration -- श्रोणिसर्वांनिरसन/पेलविक एक्सेन्टरेसन
शल्य चिकित्सा की वह विधि, जिसे गुदा तथा गर्भाशय ग्रीवा कैंसर के रोगियों में किया जाता है।
  • Pelvic Floor -- श्रोणी सतह
वह प्रदेश जो पुरुषों में गुदा तथा वृषण के बीच तथा स्त्रियों में गुदा और योनि के बीच होता है।
  • Pelvic Phlebolith -- श्रोणि शिराश्मरी
श्रोणि से निकलने वाली शिरा में होनेवाली पथरी।
  • Pelvis -- श्रोणि
श्रोणि अस्थि, श्रोणि मेखला से घिरा उदर का निचला भाग।
  • Pemberton’S Sign -- पेम्बर्टन लक्षण
अवटु रोग में अनुभव होने वाले लक्षण यानी आहार निगलने में कठिनाई, श्वास लेने में कठिनाई तथा गले में अवरोध जो रोगी द्वारा दोनों हाथ ऊपर की ओर उठाने पर और स्पष्ट रूप से अनुभव होने लगता है।
  • Pendred’S Syndrome -- पेन्ड्रेड सिन्डोम
एक पारिवारिक विकृति, जिसमें बालयावस्ता या इसके बाद गलगंड होता है, तथा जन्म से या आद्य बाल्यावस्था में बाघीर्य उत्पन्न होता है। यह रोग आयोडीन के अभाव वाले स्थान को छोड़कर अन्य प्रदेश में होता है। यह आनुवंशिक गलगंड रोग का एक प्रकार है।
  • Penetrating Injury -- विद्ध अभिघात
किसी तीक्ष्ण शस्त्र, वस्तु से हुआ घाव।
  • Penetrating Wound -- वेधी क्षत
वह घाव, जो किसी तेज या नुकीले औजार तथा तेज रफ्तार वाले अस्त्र अथवा मिसाइल के शरीर में लगने से हो जाता है। इसमें कोई नुकीली चीज शरीर को छेद देती है परंतु आर-पार नहीं जाती।
  • Penis -- शिश्न
नर प्राणियों में पाया जाने वाला जननांग।
  • Pepsin -- पेप्सिन
आमाशय में पाया जाने वाला एक रस जो पाचन क्रिया में सहायक होता है।
  • Pepsinogen -- पेप्सिनोजन
पेप्सिन से मिलता एक रासायनिक तत्त्व।
  • Peptic Ulcer -- पेप्टिक व्रण
आमाशय थवा ग्रहणी के प्रथम भाग में पाये जाने वाला व्रण। ये तीव्र या चिरकारी होते हैं। तीव्र व्रण आमाशय में अम्ल की अधिकता (जठर अत्म्लता), औषधि-अंतर्ग्रहण तथा आमाशय में आगंतुक शल्य (foreign body) की उपस्थिति के कारण बन सकते हैं। या तो ये अपने आप एक दम ठीक हो जाते हैं या उनको चिकित्सा की आवश्यकता पड़ती है। चिरकारी (पुराने) व्रणों में उपद्रवों के होने की संभावना रहती है, जैसे छिद्रण (perforation), रक्तस्राव, (haemorrhage), आमाशय तथा ग्रहणी का संकीर्ण होना तथा जठर व्रण से पीड़ित रोगियों में कार्सिनोमा का बन जाना। ग्रहणी व्रणों में आमाशय के खाली होने पर अधिजठर क्षेत्र में पीड़ा होती है, जो आहार या भोजन के लेने के बाद शांत हो जाती है, जब कि जठर व्रणों (भेदी व्रण) में यह घाव किसी नुकीली वस्तु शरीर में घुस जाने तथा बाहर निकलने का छेद भी बन जाता है, अर्थात् इसे घाव में दो द्वार होते हैं।
  • Percussion -- परि ताडन
कई रोगों के परीक्षण में उपयोगी विधि।
  • Percutaneous Nephrostomy -- परक्युटेनियस नैफ्रोस्टोमी, त्वचाप्रवेशी वृक्कछेदन
शल्य क्रिया द्वारा वृक्क गोणिका से त्वचा तक मूत्र बहिर्गमन हेतु मार्ग का निर्माण।
  • Percutaneeous Suction Discectomy -- परक्युटेनियस सक्सन डिस्सैक्टोमी
त्वचा मार्ग से मेरुदंड चक्रिका को रासायनिक तत्वों से घोलकर उसका आचूषण करना।
  • Percutaneous Transluminal Ballon Angioplasty -- परक्यूटेनियस ट्राँसल्यूमिनल बेलून एंजियोप्लास्टी त्वचा मार्ग नलिकाओं के रास्ते धमनियों में स्थित वसा को निकालना।
  • Percutaneous Transtracheal Ventilation -- परक्यूटेनियस ट्राँसट्रेकियल वैन्टिलेशन
एक प्रकार की शल्य क्रिया, जिसमें त्वचा मार्ग से श्वास में प्राणवायु निर्गमन हेतु पतली नलिका लगाई जाती है।
  • Percutaneous Transhepatic Cholangiography -- परक्यूटेनियस ट्राँसहेपेटिक कोलेन्जिओग्राफी
त्वचा मार्ग से सूचिका द्वारा यकृत में रासायनिक द्रव्य डालकर पित्ताशय और पित्त-नलिकाओं का चित्रण।
  • Perforation -- छिद्रण
यह एक शस्त्रकर्म।
  • Perianal Abscess -- परिगुद विद्रधि
गुदा-मलाशय पर ऊपरी फोड़ा, जो गुदा के चारों ओर की ग्रन्थियों में पीप पड़ जाने के परिणामस्वरूप होता है। आगे चलकर इसके कारण भगंदर रोग हो जाता है। इस रोग के इलाज में फोड़े से पीप को बाहर निकाला जाता है।
  • Perianal Fistula -- परिगुद नालव्रण/परिगुद नाड़ीव्रण
गुदा के चारों ओर विद्रधि उपद्रवावस्था।
  • Periateritis Nodosa -- पर्विल परिधमनीशोथ
यह एक सूजन वाली अवस्था है, जो शरीर की छोटी या बीच के आकार की धमनियों को प्रभावित करती है। इके साथ ही तन्त्रानुसारी संक्रमण (systemic-infection) के लक्षण भी पाये जाते हैं।
  • Pericardial Cyst -- पैरिकार्डिअल सिस्ट, हृदयावरण पुटी
हृदय के बाहरी खोल में होने वाली पुटी।
  • Pericardial Effusion -- पैरिकार्डियल इफ्यूसन, हृदयावरण निःसरण
हृदय के चारों ओर की झिल्ली में शोथ तथा इसके कारण द्रव का एकत्रित होना।
  • Pericardiocentesis -- परिहृद्धेधन
:(1) हृदयावरण में एकत्रित द्रव पदार्थ का आचूषण।
(2) परिहृद्कोश (pericardial sac) के हृदयावरण निःसरण का चूषण। परिहृद्कोश में तरल (fluid) के बढ़ जाने से हृदसंपीड़न अर्थात् दिल पर दबाव का तीव्र संपीडन। इस क्रिया द्वारा तीव्र संपीडन को दूर किया जा सकता है।
(3) शल्य क्रिया द्वारा हृदयावरण में छेद करना।
  • Pericardiectomy -- हृदयावरणोंच्छेदन
शस्त्रकर्म द्वारा हृदयावरण को काटकर अलग कर देना। यह शस्त्रकर्म आमतौर पर उन रोगियों में किया जाता है जो चिरकारी संकीर्णक हृदयावरण शोथ (chronic constrictive pericarditis) से ग्रसित होते हैं। यह उनके हृद् संपीडन को दूर करने के लिए किया जाता है। आमतौर पर सीधे और बायें निलयों (ventricles) की सतहों पर से रुग्ण हृदयावरण को अलग कर देना ही काफी है। पर कभी-कभी संपूर्ण हृदयावरण को भी अलग कर देना जरूरी हो जाता है।
  • Pericardiostomy -- हृदयावरण-छिद्रीकरण
वक्ष भित्ति के जरिये परिहृद् का विवृत निकास करना। यह क्रिया उस समय की जाती है जब परिहृद्कोश में तरल का बनना चूषण के बाद बहुत जल्दी-जल्दी होने लगता है।
  • Pericardium -- हृदयावरण, परिहृद
कशेरुकियों में हृदय तथा प्रमुख रक्त वाहिकाओं के आधार के चारों ओर की झिल्ली, जिसमें उसका तरल भरा होता हैं। इससे हृदय बिना घर्षण के धड़कता रहता है।
  • Perichondrial Bone -- पर्युपास्थि
सामान्यतः तरुणास्थि पर पाया जाने वाला स्तर।
  • Perichondritis -- पर्युपास्थिशोथ
उपास्थि को ढकने वाली पर्युपास्थि कला की सूजन। यह शोथ तीव्र या चिरकारी हो सकता है। तीव्र शोथ की प्रवृत्ति पूयजनक (phogenic) होती है। चिरकारी शोथ यक्ष्मा या सिफिलिस के कारण होता है। अभिघात (trauma) या दुर्दम अर्बुद (malignant tumour), जो उपास्थि को प्रभावित करते हैं, पर्युपास्थि शोथ उत्पन्न कर सकते हैं। यदि शोथ की चिकित्सा न की जाए तो नीचे की उपास्थि पर भी प्रभाव पड़ता है। चिकित्सा में दैहिक प्रतिजीवी औषधियों का प्रयोग, स्थानिक भाग को आराम देना तथा फोड़े की पीप बाहर निकालना शामिल है।
  • Pericolitis -- परिबृहदांत्रशोथ
बृहदांत्र के चारों तरफ सूजन हो जाना। यह बृहदांत्र के पर्युदर्या कंचुक (peritoneal coat) को प्रभावित कर सकता है। इस शोथ के कारण विद्रधि या फोड़ा बन जाता है। यह अवस्था आमतौर पर बृहदांत्र के विपुटीशोथ (diverticulitis) में देखी जाती है।
  • Peridiverticulitis -- परिविपुटी शोथ
एक ऐसी दशा, जिसमें किसी भी अंडे की सतह पर उभार में सूजन हो जाती है।
  • Perineal Body -- मूलाधारीय वस्तु
गुदा तथा भग के मध्य स्थित वाम तथा दक्षिण भाग में आने वाली मांसपेशियों की संधि।
  • Perineal Fistula -- मूलाधारीय नाडीव्रण
श्रोणि सतह में उत्पन्न होने वाला नाडीव्रण।
  • Perinephric Abscess -- परिवृक्कीय विद्रधि
गुर्दे के चारों ओर होने वाला फोड़ा।
  • Perinephric Haematoma -- परिवृक्क रक्तगुल्म
वृक्क के चारों ओर होने वाली रक्त जन्य सूजन।
  • Perinephritis -- परिवृक्कशोथ
गुर्दे के प्रावरणी आवरण तथा आस-पास के ऊतकों की सूजन। वृक्क संक्रमण से ग्रस्त अधिकतर रोगियों में यह अवस्था हल्के प्रकार की पाई जाती है परंतु परिवृक्कशोथ के तीव्र प्रकार परिवृक्क विद्रधि के बनने की संभावना रहती है।
  • Periosteal Bone -- पर्यास्थि कला
वह विशिष्ट संयोजक तंतु, जो सभी हड्डियों को आवृत करता है तथा नए अस्थि निर्माण की क्षमता रखता है।
  • Peripheral Aneurysm -- परिसरीय ऐन्यूरिज्म
शरीरस्थ बाहृय धमनियों का उभार युक्त होना।
  • Peripheral Arterial Disease -- परिसरीय धमनी रोग
शरीरस्थ बाहृय धमनियों का रोग।
  • Peripheral Blood -- परिसरीय रक्त
परिसरीय-रक्त परिभ्रमण।
  • Periphlebitis -- परिशिराशोथ
शिरा के चारों तरफ सूजन का होना। आमतौर पर यह शोथ पड़ोस की तीव्र शोथज प्रक्रिया परिणामस्वरूप होता है। इस अवस्था का अति तीव्र रूप कभी-कभी सपूय कर्णमूलशोथ से ग्रसित तथा चिकित्सा न किये हुये रोगियों में देखा जाता है, जहां शोथ गह्वर शिरानाल (cavernous sinus) की दीवाल एक फैल जाता है और जिसके परिणामस्वरूप गह्वर शिरानाल घनास्रता (cavernous sinus thrombosis) उत्पन्न हो जाती है।
  • Peristalsis -- पुरःसरण
पेशियों के लयबद्ध संकुचन से उत्पन्न गति द्वारा किसी नली में पदार्थों का आगे की ओर बढ़ना, जैसे-आहार नाल में भोजन का आगे बढ़ना।
  • Peritonitis -- पर्युदर्या शोथ
परिउदरी अर्थात् पेट की झिल्ली की सूजन। साथ ही, इस अवस्था में सीरम फाइब्रिन का निःस्रवण, आंतों में सूजन तथा पूय (पीप) होता है। शोथ का कारण भौतिक, रासायनिक अथवा जीवाणुज हो सकता है। जीवाणुओं के विशिष्ट तथा अविशिष्ट दोनों ही प्रकार होते हैं। यक्ष्मा (तपेदिक) के जीवाणु का प्रवेश पर्युदर्या गुहा में आंत ऑपरेशन या चोट (अभिधात) तथा स्त्रियों में योनि के द्वारा गर्भाशय तथा डिंबवाहिनी के सहारे होता है। रासायनिक कारकों के उदाहरण, जो पर्युदर्या शोथ पैदा करते हैं, रक्त, पित्त तथा मूत्र है। साधारणतः इस रोग का उपचार शस्त्रकर्म द्वारा ही किया जाता है। न्यूमोकोक्कसी पर्युदर्या शोथ में शस्त्रकर्म के स्थान पर संरक्षी चिकित्सा अधिक कारगर साबित होती है।
  • Perityphlitis -- परिअंधांत्र शोथ
:(1) प्रायः वह चिरकारी प्रक्रिया, जिसमें कभी-कभी तीव्र उंडुकपुच्छशोथ (appendicitis) संक्रमण में उण्डुकपुच्छ के आधार से पैलता है और आगे चलकर पूयीभवन हो जाता है तथा विष्ठा नालव्रण (faecal fistula) बन जाता है।
(2) यह परिभाषा एपेम्डिसाइटिस शब्द के प्रचलन में आने से पहले व्यवहार में थी।
  • Perivesical Abscess -- परिमूत्राशय विद्रधि
बस्ति प्रदेश में मूत्राशय के समीप होने वाला फोड़ा।
  • Perleche -- सृक्कशोथ, परलेश
मुख-मौनीलीयता (oral moniliasis) का एक प्रकार, जो बच्चों के मुंह के किनारो को प्रभावित करता है। अक्सर ओष्ठ स्यंदी हो जाते हैं जिससे शल्की उपकला स्थूल या मोटी हो जाती है।
  • Perthe’S Disease -- पर्थि रोग
यह निकटस्थ ओर्वी अधिवर्ध (femoral epiphysis) का अस्थि-उपास्थि व्यपजनन है, जिसमें ऊर्वस्थि के सिर में अस्थि केंद्र (ossific centre) का परिगलन हो जाता है। तीन से दस साल तक के बच्चों में यह रोग अधिक देखने को मिलता है। कभी-कभी मामूली चोट का भू वृत मिलता है। रोगी की चलने फिरने की गतियां बंध जाती हैं और वह लंगड़ा कर चलने लगता है। चिकित्सा का उद्देश्य उर्वस्थि के सिर पर कम भार डालना है, जैसे-आराम, त्वचा कर्णण तथा भार को कम करने वाले कैलिपर्स का प्रयोग।
  • Pes Planus -- सपाट-पाद
वह अवस्था जिसमें पाद (foot) का अनुदैर्ध्य और कभी-कभी अनुप्रस्थ चाप नीचे की ओर हो जाता है। इस अवस्था को चपटा पांव (flat foot) भी कहते हैं। यदि सपाट पाद में दर्द होता हो तो चिकित्सा की आवशअयकता पड़ती है।
  • Phagedena -- विनाशी तथा भक्षी व्रण
बहुत कम देखी जाने वाली अवस्था, जो कभी कभी रतिज रोग (venereal disease) गर्मी, सूजाक आदि के बाद जननांगों में देखी जाती है। इस रोग से शिश्न का पूर्ण विनाश हो सकता है। चिकित्सा में प्रतिजीवी औषधियों का सेवन, पृथक्करण (isolation) तथा स्थानिक ड्रैसिंग करना शामिल है।
  • Phallotomy -- शिश्न-भेदन
शिश्न का छेदन करना। यह अप्रचलित (obsolete) शस्त्रकर्म है, क्योंकि प्रतिजीवी औषधियां संक्रमण का नियंत्रण कर लेती हैं।
  • Pharyngolaryngectomy -- ग्रसनी स्वरयन्त्रोच्छेदन
दुर्दम अर्बुदों में ग्रंसनी (भोजन की नली का ऊपरी भाग) और स्वर यंत्र को ऑपरेशन के जरिए काटकर बाहर निकाल देना।
  • Pharyngoscopy -- ग्रसनीदर्शन
ग्रसनीदर्शक (pharyngoscope) के जरिए ग्रसनी को सीधे देख कर उसकी परीक्षा करना।
  • Pharyngotomy -- ग्रसनी छेदन
शस्त्रकर्म द्वारा ग्रसनी (pharynx) का भेदन करना। इस छेदन की आवश्यकता अक्सर प्रत्येक ग्रसनी विद्रधि के निकास के समय पड़ सकती है।
  • Pharynx -- ग्रसनी
कशेरुकियों की आहार नाल में मुख-गुहा और ग्रसिका के बीच का भाग, जिसमें मछलियों के गिलरंध्र और चतुष्पादों की घांटी (ग्लोटिस) खुलती है। अकशेरुकियों में मुख नाल या ग्रसिका के ठीक पीछे आहार-नाल का मांसल भाग।
  • Phelograph -- गोणिकाचित्रण
किसी रेडियो अपार्य (opaque) माध्यम के द्वारा मूत्रपथ के कार्य तथा शरीर (anatomy) का विकिरण संबंधी वीक्षण।
  • Pheochromocytoma -- क्रोमाफिन कोशिकार्बुद
वह अर्बुद, जो अधिवृक्क अंतस्था (andrenal medulla) से निकलता है और जिसमें क्रोमोफिल कोशिकाएं होती हैं। यह अत्यधिक मात्रा में नॉर-एड्रिनलीन निकालता है। इस प्रकार नॉर-एड्रिनलीन के निकलने से रक्त दाब तेजी के साथ बढ़ जाता है और उसे प्रवेगी अतिरिक्त दाव (paroxysmal hypertension) कहते हैं। इसकी चिकित्सा में अर्बुद को काट कर निकाल दिया जाता है।
  • Pneumonectomy -- फुप्फुस उच्छेदन
वह शस्त्रकर्म, जिसमें आंशिक अथवा संपूर्ण फुप्फुस का उच्छेदन (excision) कर दिया जाता है।
  • Phimosis -- फाइमोसिस या निरुद्ध प्रकाश
शिश्न के आगे की खाल शिश्न अग्रच्छद (fore skin) का सख्त हो जाना और पीछे की तरफ को न सरकना। यह हालत अक्सर बच्चों में दैखी जाती है। ऐसी दशा में सुन्नत या खतना (circumcision) किया जाता है।
  • Phlebectasia, Varicose Veins -- शिराविस्फार
शिरा की अपस्फीति (varicosity), शिरा का प्रसार (dilatation) अथवा शिराओं का गुच्छा (bunch)।
  • Phlebolith -- शिराश्मरी
शिरा की भित्ति (दीवाल) में कैल्सियम का इकट्ठा होना या शिरा की अवकाशिका (lumen) में घनास्र (thrombus) का रहना। ऐक्स-रे में यह काणिकाश्मरी (concretion) या पथरी (calculus) के रूप में दिखाई देता है और गवीनी अश्मरी (ureteric calculus) का भ्रम पैदा करता है।
  • Phlebophlebostomy -- शिरा-शिरा-सम्मलिन
शस्त्रकर्म द्वारा दो शिराओं के बीच मेल करना।
  • Phlebostasis -- शिरास्थैतिकता
शिरा में आंशक या पूर्ण रोध रुकावट के कारण रक्त प्रवाह की गति का मन्द होना।
  • Phlebotome -- शिराछेदक
वह छुरी (knife), जो काट कर के शिरा को खोल देती है।
  • Phlebotomy -- शिराछेदन
रक्त को निकालने के लिए शिरा को खोल देना अर्थात् शिरावेधन करना। अब यह प्रक्रिया कभी-कभी ही की जाती है।
  • Phlegmasia Alba Dolens -- श्वेत पाद शोथ
रोग की वह अवस्था जिसमें टांग में सूजन, चमकीलापन तथा दर्द होता है। प्रभावित टांग का रंग सामान्य की अपेक्षा ज्यादा सफेद दिखाई देता है। यह अवस्था खासतौर पर औरतों में प्रसव के बाद देखने को मिलती है। इस अवस्था का कारण श्रोणि पूतिता के बाद शिरा तथा लसीका वाहिनियों की सूजन है। कभी-कभी इस प्रकार की अवस्था उदर ऑपरेशन मं श्रोणि के अंगों पर शस्त्रकर्म करने तथा श्रोणि अंगों को प्रभावित करने वाले दुर्दम अर्बुदों के बाद पाई जाती है। इस रोग की चिकित्सा कारणानुसार की जाती है।
  • Phlegmasia Ceruladolens -- नील पाद शोथ
संक्रमी शिरा घनास्रता (thrombosis) का तीव्र स्फूरजक (fulminating) प्रकार, जिससे आगे चलकर उग्र शोफ (oedema), श्यावता (cyanosis) तथा शाखा में चिह्नी रक्तस्राव (patechial haemorrnage) हो जाते हैं। इस रोग की चिकित्सा में आराम, अंग या शाखा का ऊपर उठाना तथा उचित प्रतिजीवी औषधियों का सेवन शामिल है।
  • Phlebosclerosis -- शिराकाठिन्य
शिरा-भित्ति का कठोर होना (sclerosis)।
  • Phocomelia -- फोकोमिलिया
वह अवस्था, जिसमें शाखा (limb) पूर्ण या आंशिक रूप से वृद्धि नहीं कर पाती है। कुछ टेराटोजन या औषधियां, जो गर्भ परिवर्धन में रुकावट पैदा कर सकती हैं।
  • Phrenic Avulsion -- मध्यच्छद-तंत्रिका अपदारण
वह शस्त्रकर्म जिसके द्वारा मध्यच्छद तंत्रिका के तंतुओं का विभाजन तथा अपदारण (avulsion) किया जाता है। इस का उद्देश्य फुप्फुस यक्ष्मा तथा अनियंत्रित हिचकी से ग्रसित रोगियों से दूसरी ओर के मध्यच्छद पर्ण भाग का धात उत्पन्न करना है।
  • Physiological Goitre Or Parenchymatous Goitre -- शरीरक्रियात्मक गलगंड या सारऊतकी गलगंड
यौवनारम्भ (puberty) तथा सगर्भता काल (pregnancy) में तनाव के कारण अवर्दुग्रन्थि आकार में बढ़ जाती है। इन अवस्थाओं में किसी विशेष चिकित्सा की आवश्यकता नहीं होती केवल अरक्तता (खून की कमी) तथा पोषणज हीनताओं (भोजन में आवश्यकता तत्वों की कमी) को दूर कर दिया जाता है।
  • Pinealoma -- पिनियल अर्बुद
पिनियल पिंड (pineal body) का अर्बुद।
  • Placenta -- अपरा, प्लैसेन्टा
उच्चतर स्तनियों में भ्रूणीय उतकों (जरायु तथा अपरापोषिका) तथा गर्भाशय के ऊतकों के संलग्न होने से बनी संरचना, जिसके माध्यम से परासरण द्वारा मातृ तथा भ्रूण के रक्त प्रवाह से ऑक्सीजन, पोषक तथा वर्ज्य पदार्थों का आदान-प्रदान होता है। अपरा के कई प्रकार है, जैसे पानी, दलीय, मंडलीय (जोनरी) चक्रिका भी आदि।
  • Placental Barrier -- अपरारोध
जरायु का बाहृय स्तर जो माता और शिशु के रक्त को मिश्रित हाने से रोकता है
  • Placental Bleeding -- अपरागत रक्तस्राव
अपरा में होने वाला रक्तस्राव।
  • Plasma -- प्लाजमा
रक्त का तरल अंश, जिसमें अनेक जैव और अजैव पदार्थ होते हैं।
  • Plasmocytoma -- प्लाजमासाइटोमा
प्लाज्मा या प्लाविका कोशिकाओं से बना एक दुर्दम अर्बुद, जो बहु दुर्दम-मज्जार्बुद (multiple myeloma) का एक विभेद है। यह शरीर की चपटी अस्थियों में उत्पन्न हो सकता है और कभी-कभी मृदु अस्थियों में भी।
  • Plaster Bandage -- पलस्तर/प्लास्टर पट्टी
पलस्तर के द्वारा की जाने वाली पट्टी।
  • Plastic Surgery -- संधान शस्त्रकर्म
वह शस्त्रकर्म, जो शरीर की जन्मजात अथवा क्षति या रोग के कारण विरूपित या क्षतिग्रस्त संरचनाओं के पुनर्निर्माण से संबंधित तथा श्रुंगार प्रसाधन की त्रुटियों में सुधार लाने के लिए किया जाता है।
  • Pleomorphic Adenoma(Mixed Parotid Tumour) -- बहुरूपी ग्रंथिअर्बुद (मिश्रित कर्णपूर्व ग्रंथि अर्बुद)
कर्णपूर्व ग्रंथि का एक सामान्य अर्बुद। यह धीरे धीरे बढ़ता है और सख्त होता है। शुरू में यह अधोहनु कोण के पीछे होता है तथा कर्ण (lobule) को ऊपर उठाता है। इस तरह के अर्बुद को काटकर सूक्ष्मदर्शी से देखने पर उपकला, अन्तःकला तथा उपास्थि जैसे ऊतक मिलते हैं। बाद वाला ऊतक पथार्थ में उपास्थि नहीं होता परंतु मिक्सोमेटस ऊतक होता है। दुर्दम (malignant) प्रकार का अर्बुद आनन तंत्रिका (facial nerve) को जल्दी ही ग्रसित करता है और फलस्वरूप आनन घात (facial palsy) हो जाता है। सुदम अर्बुद (benign tumour) का आनन तंत्रिका के ऊपर से कर्णपूर्व ग्रंथि के साथ उच्छेदन कर दिया जाता है। दुर्दम प्रकार में आनन तंत्रिका के साथ या अकेले ही कर्णपूर्व ग्रंथि का उच्छेदन कर देते हैं।
  • Plummer-Vinson Syndrome -- प्लमर-विन्सन संलक्षण
मध्यम आयु में आमतौर पर होने वाली अरक्तता जन्य अवस्था, जो औरतों को प्रभावित करती है और जिसमें मुद्रिका-ग्रसनिका पेशी (cricopharyngeus muscle) के आकर्ष (ऐंठन) तथा सूजन के कारण निगलन कष्ट होता है। यह दुर्दमता से पहले की अवस्था है जिसमें चिकित्सा अरक्तता की होती है तथा कभी-कभी विस्फारण (फैलाव) भी करना पड़ता है।
  • Pneumatocele -- फुप्फुस-हर्निया, वायु पुटी
एक कोश (sac) है जिसमें वायु भरी रहती है।
  • Pneumothorax -- वातवक्ष
बीमारी जिसमें फेफड़े के चारों ओर की झिल्ली (फुप्फुसावरण) गुहा में हवा भर जाती है। यह बीमारी कई किस्म की हो सकती है, जैसे- अनावृत वातवक्ष जो छाती में चोट लग जाने के बाद हो जाता है; संवृत वातवक्ष जो बीमारियों या फेफड़ों में चोट लग जाने के बाद हो जाया करता है, या कपाटिकी या तनावी वातवक्ष जो छाती की चोट, फेफड़ों के रोग और ग्रासनली के फट जाने के बाद हो जाता है।
  • Politjer’S Bag -- पोलित्जर थैली
कर्ण नलिका को विस्फारित करनेवाली थैली।
  • Portacaval Shunt -- प्रतिहारिणी-महाशिरा पार्श्वपथ
प्रतिहारिणी शिरा अतिरक्तदाब (portal hypertension) की चिकित्सा में शस्त्रकर्म द्वारा प्रतिहारिणी शिरा तथा निम्न महाशिरा (inferior vena cava) का सम्मिलन करना।
  • Post Operative Peritonitis -- शस्त्रकर्मोत्तर पर्युदर्याशोथ
उदर शस्त्रकर्म (abdominal operation) के बाद होने वाली पर्युदर्या की सूजन। इसके विशिष्ट या खास लक्षण उदर पीड़ा तथा कठोरता आमतौर पर उपस्थित नहीं होते। घाती आंत्रविरोध से इस अवस्था का विभेद करना मुश्किल होता है। इसकी चिकित्सा संरक्षी (conservative) है। जब संरक्षी चिकित्सा से कोई फायदा नही होता तो ऑपरेशन किया जाता है।
  • Posthitis -- शिश्नमुंडच्छदशोथ
शिश्न के अग्र भाग की कठोर सूजन। यह प्रायः निरुद्ध प्रकाश (phimosis), संक्रमण को कारण होता है। इस रोग की चिकित्सा प्रतिजीवी औषधियों द्वारा की जाती है। और तुरंत बाद में सुत्रत (curcumcision) करते हैं।
  • Postural Drainage -- स्थितिज निकास
रोगी के शरीर को उपयुक्त स्थिति में लाकर श्वसनी वृक्ष (bronchial tree) से सपूय पदार्थ तथा स्राव का निकास करना। यह प्रायः श्वसनी-विस्फार तथा फुप्फुस विद्रधि में किया जाता है।
  • Postural Scoliosis -- स्थितिज पार्श्वकुब्जता
स्कूल में जाने की आयु वाले बच्चों में पाई जाने वाली अवस्था, जिसमें विशेषरूप से अंग्रेजी के अक्षर B के आकार की सरल वक्रता (curve) होती है। यह हिलने-डुलने वाली होती है ओर इस अवस्था को ठीक किया जा सकता है।
  • Premolar -- अग्रचर्वक, अग्र चर्वणक
स्तनियों के जबडे में पीसने वाले दांत जो रदनक (कैनाइन) और चर्वक (मोलर) के बीच में होते हैं। चवर्णकों के विपरीत में पाती दंतविन्यास दूध के दांतों में भी पाये जाते हैं। मानव के प्रत्येक जबड़े में दोनों ओर दो-दो अग्र चवर्णक होते हैं। देखे दंतसूत्र।
  • Pressure Bandage -- दाब पट्टी
दबाव के साथ पट्टी बांधना।
  • Priapism -- प्राएपिज्म
रोग के कारण शिश्न का लगातार उत्तेजित बना रहना।
  • Primary Syphilis -- प्राथमिक सिफिलिस
सिफिलिस की प्रथम अवस्था में देखी जाने वाली विक्षति। इसमें आमतौर पर जननेन्द्रियों और कभी-कभी स्पर्श के दूसरे स्थानों, जैसे ओठों में क्षति दिखाई देती है। पीढ़ाहीन व्रण का बन जाना और क्षेत्रीय-लसीका पर्वों का आकार में बड़ा हो जाना इस विक्षतियों की विशिष्टता है। यह अवस्था स्पर्श के 10 से 48 दिनों के बाद उत्पन्न होती है और धीरे-धीरे सामान्य स्थिति में आ जाती है।
  • Probe -- एषणी
पतली शलाका के आकार का एक यंत्र। यह अनम्य अथवा नम्य होता है। इसका अग्र भाग बल्ब के समान होता है। इसके अन्त सिरे में नेत्र होता भी है और नहीं भी होता।
  • Proctalgia -- गुदार्ति
वह रोग, जिसमें मलाशय (rectum) के निचले भाग में वेदना होती है। यह स्थानिक यह मनःकायिक (psychosomatic) कारणों से हो सकता है।
  • Proctitis -- मलाशयशोथ
वह रोग जिसमें मलाशय तथा गुदनाल (anal canal) में सूजन हो जाती है। यह सूजन सामान्यतः पेचिश, व्रणीय वृहदांत्र शोथ, कृमि पर्याक्रमण और कभी-कभी आगंतुक शल्य (foreign body) के परिणामस्वरूप हो जाती है। इस रोग की चिकित्सा कारण के अनुसार की जाती है।
  • Procto-Colectomy -- मलाशय-बृहदांत्रोच्छेदन
वह शस्त्रकर्म, जिसमें मलाशय तथा बृहदांत्र (colon) को बाहर निकाल दिया जाता है।
  • Procto-Coltis -- मलाशय बृहदांत्रशोथ
मलाशय तथा बड़ी आंत की सूजन।
  • Procto-Colpoplasty -- मलाशय-योनिसंधान
वह शस्त्रकर्म, जिसमें मलाशय-योनि नालव्रण (recto-vaginal fistula) को बंद कर दिया जाता है।
  • Proctocystoplasty -- मलाशय-वस्ति संधान
मलाशय तथा मूत्राशय का संधान शस्त्रकर्म, जिसमें मलाशय-वस्ति नालव्रण (rectoversical fistula) को बंद कर दिया जाता है।
  • Proctopexy -- मलाशय-स्थिरीकरण
वह शस्त्रकर्म जिसमें मलाशय को सुस्थापित कर दिया जाता है। यह चिकित्सा मलाशय भ्रंश (prolapse rectum) की अवस्था में की जाती है।
  • Proctoplasty -- मलाशय संधान
मलाशय तथा गुदा का संधान शस्त्रकर्म।
  • Proctosigmoidectomy -- मलाशय-अवग्रहांतोच्छेदन
शस्त्रकर्म द्वारा गुद नाल, मलाशय तथा अवग्रह बृहदांत्र (sigmoid colon) सातत्य का उच्छेदन करना।
  • Proctosigmoidoscopy -- मलाशय-अवग्रहांत्रदर्शन
मलाशय तथा अवग्रह बृहदान्त्र की गुहांतदर्शी परीक्षण (endoscopic examination)।
  • Proctotomy -- मलाशयछेदन
गुदा अथवा मलाशय निकोचन (stricture) को काटना तथा अछिद्री को विवृत या चौड़ा करना।
  • Prolapse Of The Rectum -- मलाशय भ्रंश
गुद द्वार से गुदा का बाहर निकल जाना। यह रोग दो प्रकार का होता है। (1) आंशिक-जिसमें केवल श्लेष्मिक कला (mucous membrance) ही बाहर निकलती है तथा (2) पूर्ण-जिसमें मलाशय भित्ति की सभी परतें बाहर निकल आती हैं। यह रोग उन्हीं लोगों को होता है जो मल-त्याग के समय नीचे की तरफ अधिक जोर लगाते हैं और जिन्हें कब्ज, मूत्रकृच्छ, पुरानी पेचिश आदि भी होते हैं तथा वजन भी घट जाता है। रोग की चिकित्सा कारण के अनुसार की जाती है। बच्चों तथा आंशिक भ्रंश में तरम रूढ़ चिकित्सा की जाती है जबकि दूसरों में शस्त्रकर्म द्वारा।
  • Prostatectomy -- पुरः स्थोच्छेदन
पुरःस्थ ग्रंथि के बढ़ जाने पर शस्त्रकर्म द्वारा उसको बाहर निकाल देना।
  • Prostatic Abscess -- पौरुषग्रंथि विद्रधि, पुरःस्थ ग्रंथि विद्रधि
पौरुष ग्रंथि में उत्पन्न होने वाला फोड़ा।
  • Prostatic Calculus -- पुरःस्थ अश्मरी
पुरःस्थ ग्रंथि में सूजन होने के साथ-साथ उसके संडाभ पिंड (corpora amylacea) में पथरी का भी बन जाना। ये वास्तविक अन्तर्जात पुरःस्थ अश्मरी हैं। इस रोग की चिकित्सा चिरकारी पुरःस्थ शोथ की चिकित्सा के समान ही होती है।
  • Prostatitis -- पुरःस्थशोथ
पुरःस्थ ग्रंथि की सूजन। यह दो प्रकार की होती है-तीव्र तथा चिरकारी।
  • Prosthetics Or Artificial Limbs -- कृत्रिम-अंग विज्ञान, कृत्रिमांग
कृत्रिम साधनों द्वारा शरीर के विभिन्न भागों को प्रतिस्थापित करने की कला तथा विज्ञान। जन्मजात त्रुटि, अभिघात संक्रमण अथवा अर्बुद के परिणामस्वरूप शरीर के किसी विशेष भाग के न रहने के कारण अथवा दोषी होने पर इसका आश्रय लिया जाता है।
  • Protective Bandage -- सुरक्षा पट्टी
रक्षा के लिए बाँधी गयी पट्टी।
  • Pseudo Coxalgia, Perthe’S Disease -- कूट नितंबार्ति
ऊरु के मुंडक अधिवर्ध (capitular epiphysis) की अस्थि- उपास्थिविकृति (osteochondrosis)। इसको बाल विरूपी अस्थि- उपास्थि व्यपजनन भी कहते हैं।
  • Pseudoankylosis -- कूट संधिग्रह
मिथ्या संधिग्रह (false ankylosis)
  • Pseudocyst -- कूट-पूटि
यह एक अपसामान्य विस्थापित स्थान है जो पुटी जैसा मालूम पड़ता है।
  • Pseudo-Tumour -- कूट-अर्बुद
ये अर्बुद नववर्धित न होकर विक्षेप हैं और अर्बुद की नकल (mimic) है। ये तीन रोगों-श्वेतरक्तता (leukaemia), जालिका कोशिकता (reticulosis) तथा पीतार्बुदता (xanthomatsosis) में उत्पन्न होते हैं।
  • Pubiotomy -- जघनछेदन
शस्त्रकर्म द्वारा जघन संघानक (symphysis pubis) की पार्श्व जघन अस्थियों का विलगन।
  • Pulmonary Calculi -- फुफ्फुसीय अश्मरी
फेफड़े में होने वाली पथरी।
  • Pulmonary Abscess -- फुफ्फुसीय विद्रधि
फेफड़े में होने वाला फोड़ा।
  • Pulmonary Scoliosis -- फुप्फुस पार्श्व कुब्जता
फेफड़े के रोगों के कारण उत्पन्न होने वाली अवस्था, जिसमें रोग ग्रस्त फेफड़ा सीने की दीवाल (वक्षभित्ति) को विपरीत और संकुचित करता है।
  • Punch Biopsy -- पंच जीवऊति परीक्षा
पंच छिद्रण के जरिए शरीर ऊतक से लिए गए पदार्थ की परीक्षा।
  • Purulent -- सपूय
पीप (pus) से युक्त अथवा पीप वाला।
  • Pus -- पूय
शोथ तथा संक्रमण का ऐसा तरल उत्पाद, जिसमें टूटी हुई कोशिकाऐं तथा जीवाणु होते हैं।
  • Pyaemia -- पूयरक्तता
पूति अंतःशल्य (septic embolus) के कारण पूयजनक जीवाणुओं (pyogenic bacteria) का रक्त में परिसंचरण करना। इससे शरीर के विभिन्न भागों में फोड़े बन जाते हैं।
  • Pyelitis Cystica -- पुटीमय गोणिकाशोथ
वृक्क की गोणिका (pelvis) की सूजन, जिसके साथ ही अवश्लेष्मिक कला (submucous membrane) की थैली-सी बन जाती है।
  • Pyelocaliectasis -- गोणिका आलवालविस्फार
वृक्क की गोणिका (pelvis) तथा आलवालों (calices) का फैलाव।
  • Pyelolithotomy -- गोणिका अश्मरीहरण
वह शस्त्रकर्म जिसमें वृक्क गोणिका में छेदन करके पथरी (calculus or ston) को निकाला जाता है।
  • Pyelonephritis -- गोणिका-वृक्कशोथ
गुर्दे की गोणिका तथा मृदूतक (parenchyma) की सूजन (inflammation), जो आमतौर पर निचले मूत्र-पथ के संक्रमण के परिणामस्वरूप होती है। इसके लक्षणों में कमर में दर्द, जाड़ा, कंपकंपी के साथ ज्वर तथा मूत्रकृच्छ (पेशाब करने में पीड़ा-dysuria) हैं। चिरकारी रोगियों के गुर्दे सिकुड़ जाते है। इस रोग की चिकित्सा मूत्र संवर्ध (urine culture) के अनुसार प्रतिजीवी औषधियाँ (antibiotics) द्वारा की जाती है तथा रूकावट पैदा करने वाली किसी भी विकृति को दूर किया जाता है।
  • Pyelonephrolithotomy -- गोणिका-वृक्काश्मरीछेदन
गुर्दे के आलवाल (renal calices) से पथरी को उसकी गोणिका के जरिए छेदन करके बाहर निकालना।
  • Pyelonephrosis -- गोणिका अपवृक्कता
गुर्दे तथा गोणिका का कोई भी रोग जो प्रकृति में तीव्र न होकर चिरकारी होता है। जैसे- संक्रमित जलवृक्कता (hydronephrosis)। इस रोग में गुर्दे में पीप (pus) भर जाती है अर्थात् गुर्दा पीप का एक थैला बन जाता है। इस बीमारी में दर्द, तेज ज्वर, कमर में सूजन और दबाने पर दर्द होता है। आम तौर पर यह रोग एक तरफ मिलता है लेकिन कभी-कभी दोनों तरफ भी हो जाता है। इस रोग की चिकित्सा में खराब हुए गुर्दे को ऑपरेशन करके निकाल देना पड़ता है। साथ में यह भी देखना आवश्यक है कि दूसरा गुर्दा सामान्य रूप से काम कर रहा है। गुर्दे में पड़ी पीप का निकास किया जाता है। यदि रोगी की अवस्था ठीक हो और दूसरा गुर्दा ठीक तरह से काम कर रहा हो तो वृक्कोच्छेदन (nephrectomy) कर दिया जाता है।
  • Pyeloplasty -- गोणिका संधान
गुर्दे की गोणिका का संधान शस्त्रकर्म। यह शस्त्रकर्म जलगोणिका (hydropelvis) तथा जलवृक्कता (hydronephrosis) के रोगियों में वृक्क के आकार को कम करने के लिए किया जाता है।
  • Pyelostomy -- गोणिका छिद्रीकरण
शस्त्रकर्म द्वारा मूत्र निकास के लिए वृक्क गोणिका में छेद बनाना तथा उसका संबंध बाहर से कर देना।
  • Pyloroplasty -- जठर-निर्गम पुननिर्माण
शस्त्रकर्म दवारा जठर निर्गम संवरणी (phloric sphincter) का विभाजन करके नई रचना करना ताकि जठर निर्गम द्वार बड़ा हो जाए।
  • Pylorus -- जठर-निर्गम
कशेरुकियों में आमाशय और ग्रहणी के बीच संधि-स्थल जो आमाशय में भोजन के समय अवरोधनी पेशी द्वारा बंद हो जाता है।
  • Pyoarthrosis, -- पूय संधि
संधि या जोड़ में पीप का बनना पूयीभवन (suppuration)
  • Quadriceps Tendon -- चतुः शिरस्का कंडरा
उरु भाग में पेशी की कंडरा चार सिर वाली।
  • Qudriplegia -- चतुर्शाखाघात
दोनों हाथ और दोनों पैरों में लकवा मारना।
  • Quinidine -- क्विनीडीन
सिन्कोना नामक वृक्ष में बनाया गया रासायनिक सत्व।
  • Raccoon Sign -- रैकून चिन्ह
करोटीय आधार के भग्न में नेत्र के चारों ओर उत्पन्न होने वाला नील वर्ण।
  • Rachiotomy -- पार्श्वकशेरुका छेदन
कशेरुका या कशेरुकादण्ड के खंडांश (segment) का छेदन (incision) करना।
  • Rachischisis -- मेरुनलिकाविदर
कशेरुकादण्ड का जन्मजात विदर (fissure)।
  • Rachitomy -- कशेरूकादण्डछिद्रीकरण
शस्त्रकर्म द्वारा कशेरूका नलिका (vertebra canal) में द्वार बनाना।
  • Radial Artery Graft -- बहिः प्रकोष्ठिकाधमनी निरोप
परिहृदयधमनी के उपमार्गीय शस्त्रक्रिया हेतु बहिः प्रकोष्ठिका धमनी का निरोपण।
  • Radial Nerve Block -- बहिः प्रकोष्ठिका तन्त्रिका सनासु रोध
शस्त्रकर्म के लिए बहिः प्रकोष्ठिका तन्त्रिका को रोध कर क्षेत्रीय संज्ञा हरण उत्पन्न किया जाता है।
  • Radial Tunnel Syndrome -- बहिः प्रकोष्ठिका सुरंग संलक्षण
बहिः प्रकोष्ठिका तन्त्रिकी की शाखा अन्त प्रकोष्ठास्थि तंत्रिका पर दबाब से उत्पन्न संलक्षण जिसमें प्रकोष्ठ के अभिपृष्ठ भाग में शूल होता है।
  • Radiation Enteritis -- विकिरणजन्य आन्त्रशोथ
विकिरण के कारण उत्पन्न हुआ आन्त्रशोथ।
  • Radiation Proctitis -- विकिरण गुदशोथ
विकिरण से उत्पन्न गुदशोथ।
  • Radiation Proctocolitis -- विकिरण जन्य गुद-बृहदान्त्रशोथ
विकिरण से उत्पन्न गुद एवं बृहदान्त्र का शोथ।
  • Radiation Therapy -- विकिरण चिकित्सा
प्रयुक्त विकिरण घातकार्बुद की चिकित्सा हेतु द्वारा चिकित्सा विधि।
  • Radical Operation -- उन्मूलक शस्त्रकर्म
रोग का पूर्णतः उन्मूलन करने के लिये ऊतकों को व्यापक तौर पर निकाल देने के लिये किया जाने वाला शस्त्रकरम। वह शस्त्रकर्म दुर्दम अवस्थाओं (malignant conditions) में किया जाता है।
  • Radiculectomy -- तंत्रिकामूलउच्छेदन
शस्त्रकर्म द्वारा तंत्रिका मूल का, विशेषकर मेरु तंत्रिकामूल का उच्छेदन (resection) करना।
  • Radiculopathy -- तन्त्रिकामूलज व्याधि
तन्त्रिका मूल में उत्पन्न होने वाली व्याधि।
  • Radio Surgery -- विकिरण शस्त्रक्रिया
विकिरण द्वारा मस्तिष्क के किसी भाग में किया जाने वाला शस्त्रकर्म।
  • Radio Ulnar Synostosis -- बहिरन्तः प्रकोष्ठास्थि संयोजन
बहिः प्रकोष्ठास्थि एवं अन्तः प्रकोष्टास्थि के निकटस्थ भाग को संयोजन। यह विकृति गर्भस्थ अवस्था में होती है।
  • Radiodermatitis -- विकिरण-त्वक्शोथ
गभीर (deep) एक्स-रे चिकित्सा के बाद होने वाली एक त्वक् विक्षति। विशल्कन (desquamation), वर्णकता (pigmentation) तथा व्रणीभवन (ulceration) इसके विशिष्ट लक्षण हैं। प्रभावित भाग से बाल (रोम) समाप्त हो जाते हैं। ये विक्षतियों भी कैन्सर-पूर्व (precancerous) होती है।
  • Radio-Ulnar Synostosis -- बहिःअन्तःप्रकोष्ठिका अस्थिसंयोजन
बहिःप्रकोष्ठिकास्थि (radius) और अन्तः प्रकोष्ठिकास्थि (ulna) का अपने निकटस्थ (proximal) 2.5 cm. आपस में मिल जाना जिससे हाथ की अवतानन (pronation) तथा उत्तानन (suppination) क्रिया नहीं हो पाती। यह अवस्था बहुत ही कम मिलती है। ऑपरेशन से विरूपता का दूर होना साधारणतया कठिन है। कभी-कभी ऑपरशन सफल भी हो जाता है। इस विरूपता से उत्पन्न आशक्तता (disability) से अक्सर दूर हो जाता है।
  • Radius -- बहिः प्रकोष्ठिकास्थि
:(1) कशेरूकियों में प्रकोष्ठ की दो हड्डियों में से एक, दुसरी को अल्ना कहते हैं। उदा. मनुष्य के अंगुठे की ओर वाली हड्डी।
(2) कीटो के पंख में एक प्रमुख अनुधैर्य शिरा
  • Ramisetion,Ramisectomy -- तंत्रिका प्रशाखा-उच्छेदन
संस्तभी अंगघात (spastic paralysis) के शमन के लिये अनुकम्पी तंत्रिकाओं (sympathetic nerves) की संगमी प्रशाखाओं (communicanites ) का शस्त्रकर्म द्वारा उच्छेदन करना।
  • Ramstedts Operation, Pyloromyotomy -- रामस्टेड शस्त्रकर्म (पाइलोरोमैयोटामी)
एक शस्त्रकर्म जिसमें जठर निर्गम की ऊपर की पेशी परत को काटकर श्लेष्मिक कला को दिखाई देने योग्य कर दिया जाता है। यह शस्त्रकर्म जन्मजात अतिबृद्ध जठर निर्गम संकीर्णता (congential hypertrophic pyloric stenosis) को दूर करने के लिये किया जाता है।
  • Ranula -- अधः जिह्वा पुटी
मुख की निचली भाग (floor of the mouth) में पारदर्शी पुटीमय सूजन (transparent cystic swelling) जो खासतौर पर एक तरफ (एकपार्श्वी unilateral) होती है। साधारण अधः जिहवा पुटी का निदान चेहरा देखने से ही हो सकता है। कभी कभी अधः जिह्वा पुटी की गभीर ग्रैव वृद्धि (deep cervical prolongation) हो जाती है इस अवस्था में इसको गभीर या लीन अधः जिह्वा पुटी (deep or plunging ranula) कहते हैं। इस रोग की चिकित्सा में सम्पूर्ण उच्छेदन या आँशिक उच्छेदन किया जाता है तथा साथ ही मार्सूपियलीकरण (marsupialization) भी किया जाता है।
  • Rathke’S Cranioplasty -- राथकेंस कपाल संधान शस्त्रकर्म
यह कपाल के दोष (defect) तथा विरूपताओं (deformaties) के संधान शस्त्रकर्म (plastic operation) द्वारा सुधारना।
  • Rathke’S Cleft Cyst -- रैथके विदर पुटी
पीयूष ग्रन्थि के रैथके विदर मे होने वाली पुटी जो प्रायशः लक्षणविहीन होती है।
  • Raynaud’S Syndrome -- रेनॉड संलक्षण
हाथ और पैरों की अंगुलियों की त्वचा के वर्ण में क्रमशः पाण्डु, नील और रक्त वर्ण की अभिव्यक्ति जो परिसरीय वाहिकाओं के संकोचन से प्रायः युवा स्त्रियों में होती है।
  • Rebound Tenderness -- प्रतिस्कन्दी/प्रतिक्षेपी स्पर्शाहसहता
स्पर्शाहसहता जो दबाव के हटाने पर अनुभव होती है।
  • Reconstructive Surgery -- पुर्निमितीय शस्त्रकर्म
किसी अंग के पुनर्निर्माणार्थ किया गया शस्त्रकर्म।
  • Recovery Bed -- पुनरर्जन शय्या
  • Rectal Bleeding -- गुदगत रक्तस्राव
गुदमार्ग से होने वाला रक्तस्राव।
  • Rectal Prolapse -- गुदभ्रंश
गुद द्वार (anal orifice) द्वारा मलाशय का बहिःसरण या बाहर निकलना।
  • Rectocele -- मलाशय-स्त्रंस
मलशय का योनि (vagina) में बहिःसरण (protrusion)।
  • Rectopexy -- मलाशय स्थिरण
मलाशय का पृष्ठवंश प्रावरणी के साथ सीवन।
  • Rectovaginal Fistula -- मलाशय योनिगत नाड़ी व्रण
मलाशय और योनि मार्ग को मिलाने वाला नाड़ी व्रण।
  • Retractor -- निवर्तित्र या रिट्रैक्टर
एक यंत्र जिसका उपयोग किसी क्षत (wound) के किनारों या अंग को खींच कर अलग करने (retract) में किया जाता है।
  • Rectum -- मलाशय
आहार नाल का अंतिक भाग जो गुदा द्वारा बाहर की ओर खुलता है।
  • Recurrent Appendicitis -- पुनरावर्ती उण्डुकपुच्छशोथ
इसका तात्पर्य तीव्र उण्डुकपुच्छशोथ का बार-बार आक्रमण होना है। तीव्र एपेन्डिसाइटिस की भांति ही इसकी चिकित्सा की जाती है।
  • Reduction Of The Fracture -- अस्थिभंग्न का पुनःस्थापन
अस्थिभंग में हुए हड्डी के टुकड़ों का अपनी जगह पर पुनः स्थापन (ठीक से फिर से बैठाना) ही इस क्रिया का उद्देश्य है। संवृत हस्तोपचार (closed manipulation) द्वारा इस काम को किया जा सकता है और जहां पर यह कार्य असफल होता है वहां विवृत पुनःस्थापन (operation reduction-ऑपरेशन करके हड्डी के टुकड़ों को ठीक से बैठाना) करना चाहिये।
  • Referred Pain -- स्थानान्तरित शूल
व्याधि के मूल स्थान के अतिरिक्त स्थल पर पीड़ा का अनुभव होना
  • Reflux Nephropathy -- प्रतिवाह जन्य वृक्क विकृति
विपरीत दिशा में मूत्र का प्रवाह होने से उत्पन्न वृक्क की विकृति।
  • Regional Ileitis, Terminal Ileitis Or Crohn’S Disease -- अन्त्य शेषांत्रशोथ
यह शेषांत्र के अन्त्य भाग (छोटी आंत में आखिरी हिस्से) के अविशिष्ट (non-specific) शोथ की अवस्था है। इसके कारणों का ठीक ज्ञान नहीं है। नैदानिक रूप से इसके दो प्रकार है-तीव्र तथा चिरकारी। तीव्र अवस्था में बार-बार पेट में दर्द होना तथा दस्त लगना (प्रवाहिका diarrhoea) पा जाते हैं। कभी कभी उण्डुकपुच्छशोथ (appendicitis) से भी इसका भ्रम हो जाता है। चिरकारी रोगियों में अन्त्य शेषान्त्र के संकरे होने के कारण अंत्रावरोध अनुतीव्र प्कार का (subacute) हो जाता है। इस रोग का मुख्य उपद्रव नालव्रण (fistula) का बनना है जो अन्दरूनी या बाहरी होता है। तीव्र अवस्था में औषधियों द्वारा सरल तरीके से चिकित्सा की जाती है। चिरकारी या पुराने रोगियों में शस्त्रकर्म की आवश्यकता पड़ती है। यह रोग छोटी आन्तों के दूसरे हिस्सों तथा बड़ी आन्त में भी पाया जाता है जिसको उछाल विक्षतिय (skip lesions) कहते हैं।
  • Regional Ileitis -- शेषान्त्र के स्थानिक शोथ
  • Reifenstein Syndrome -- रेफिन्सटीन संलक्षण
पुरुषों में मिथ्या उभय लिंगता का एक प्रकार।
  • Reimplantation -- पुनः आरोपण
ऊतक या संरचना (tissue or structure) को शस्त्रकर्म द्वारा अपने मूल स्थान पर पुनः आरोपित करना।
  • Reinnervation -- तंत्रिका पुनः स्थापन/संयोजन
  • Rejection -- अस्वीकृति
अवयव प्रत्यारोपण में (वृक्क आदि)
  • Renal Abscess -- वृक्कीय विद्रधि
वृक्क में, वृक्क कोषों में होने वाली विद्रधि।
  • Renal Calculus, Nephrolithiasis -- वृक्काश्मरी
:(1) वृक्क में होने वाली अश्मरी।
(2) वृक्क या गुर्दे की पथरी या सिकता (gravel)। अधिकतर पथरियां तीन प्रकार की होती हैं- (1) ऑक्सलेट (2) फॉस्फेट तथा (3) यूरिक एसिड। पथरी के कारण कमर में एक ओर दर्द होता है जो नीचे की ओर जाता हुआ सा लगता है। कभी-कभी यह दर्द बहुत तीव्र हो उठता है। रक्तमेह (पेशाब में खून का आना-heamaturia) तथा मूत्रकृच्छ भी होता है। यदि संक्रमण हो गया हो तो बुखार (temprature) भी आ जाता है। ऑक्सलेट को पथरियाँ दर्द तथा पेशाब में खून आने के लक्षणों को जल्दी उत्पन्न करती हैं; दूसरी तरफ फ़स्फेट की पथरियाँ गुर्दे के पूरी तरह से नष्ट हो जाने के बाद ही लक्षणों को उत्पन्न करती हैं। दोनों गुर्दों में पथरी पड़ जाने पर यूरीमिया की अवस्था भी पैदा हो सकती है। यदि पथरी बहुत छोटी न हो तो उसकी ञपरेशन द्वारा निकाल देना ही ठीक है। यदि गुर्दा बिलकुल नष्ट हो गया हो तो वृक्कोच्छेदन करके गुर्दे को शरीर से बारह निकाल दिया जाता है। छोटी पथरियां गवीनी (ureter) द्वारा अपने आप ही निकल जाती है।
  • Renal Colic -- वृक्क शूल
वृक्क गोणिका के संकुचन से होने वाली वेदना।
  • Renal Failure -- वृक्क निष्क्रियता/वृक्क कार्य अक्षमत्व
मूत्र निर्माण कार्य में वृक्क की अक्षमता।
  • Renal Rickets (Renal Osteodystrophy) -- वृक्कज रिकेट्ज (वृक्कज अस्थि दुष्पोषण)
इस अवस्था में अस्थि कंकाल (skeleton) में रिकेटी परिवर्तन (ricketic changes) होते हैं। ये परिवर्तन वृक्कों की दुष्क्रिया (Dysfuction) के परिणामस्वरूप होते हैं। वृक्कज रिकेट्स के साथ साथ गुर्दे में तीन (total renal inefficiency), फेनकोनी संलक्षण (Fanconi’s syndrome) तथा वृक्कज अम्लरक्तता (renal acidosis)। वर्धमान संघट्ट जानु (progressive knock knee) सामान्य लक्षण है और पहले पहल दिखाई देता है।
  • Renal Tuberculosis -- वृक्क क्षय
  • Renography -- वृक्कीय क्ष-किरण चित्रण
  • Resectoscope -- रिसक्टोस्कोप
एक गुहांतदर्शी यंत्र जिसका उपयोग पारमूत्रमार्ग पुरःस्थ-ग्रन्थि के उच्छेदन (transurethral prostectomy) में किया जाता है।
  • Retention Of Urine -- मूत्र-अवधारण
इस अवस्था में मूत्राशय सामान्यतः खाली होने में असमर्थ होता है। यह अवस्था तीव्र तथा आकस्मिक या चिरकारी होती है तथा साथ में परिवाह (मूत्र) असंयति (overflow incontinence) होती है और तीव्र या चिरकारी अवस्था में परिवाह (मूत्र) अंसयति भी बन्द हो जाती है। इस रोग के सामान्य कारण हैं:- (1) बच्चों में मूत्राशय ग्रीवा संकोच (bladder neck contraction), पुरःस्थ मूत्रमार्ग में कपाटिकायें (valves in the prostatic urethra), बाह्य मूत्रमार्ग द्वारा संकीर्णत (extenal meatus stenosis) तथा अश्मरी (calculus): (2) वयस्कों में पुरःस्थ ग्रन्थि की वृद्धि (enlargement of prostate) तन्तुमय पुरःस्थ (fibrous prostate), मूत्मार्ग निकोचन, (पेशाब करने वाली नली का सिकुड़ जाना-stricure of the urethra) तथा पथरी। सभी आयु के व्यक्तियों में तंत्रिका सम्बन्धी विकारों (neurological disorders) में यह अवस्था उत्पन्न हो सकती है। चिकित्सा कारण के अनुसार की जाती है।
  • Respiration -- श्वसन
वायुमण्डल एवं शरीर की कोशिकाओं के बीच आक्सीजन तथा कार्बन डाइञक्साइड का खनिमय जिसमें प्रश्वसन तथा निःश्वसन किया जाता है जो फुफुसीय वायुकोशों में पहुँचती हैं और वहां पर विसरम द्वारा ञक्सीजन रक्त में मिशअरित हो जाती है। और शरीर की पेशिकाओं में ले जाई जाती हैं तथा शरीर की कोशिकाओं से कार्बन-डाइ-ऑक्साइड रक्त की वायु कोशों में आ जाती है। जहाँ से वह निःश्वसन में बाहर निकल जाती है। उत्तकों में कार्बोहाइड्रेट वसा आदि पदार्थों के ऑक्सीजन से कार्बन इऑक्साइड तथा पानी बनने के साथ ऊर्जा उत्पन्न होने की प्रक्रिया।
  • Respirator -- श्वसित्र, रेस्पिरेटर, खास यंत्र
धूल के कणों और विषैली गैसों को वायु से बाहर निकालने के लिए प्रयोग किया जाने वाला इस प्रकार का मुखौटा जिसे पहनकर व्यक्ति सुरक्षित रूपसे सांस लेता हुआ काम कर सकता है।
  • Respiratory Alkalosis -- श्वसनजन्य क्षाररक्तता
कार्बन डाईआक्साईड की अत्यधिक क्षय से होने वाली क्षारीयता।
  • Respiratory Acidosis -- श्वसनजन्य अम्लरक्तता
कार्बन डाई आक्साईड संचय से होने वाली रक्त में अम्लता।
  • Rest Pain -- विश्राम व्यथा/विश्रान्ति व्यथा
विश्राम करते होते हुए दर्द का होना।
  • Retention Cyst -- अवरोधजन्यपुटी
अवरोध जन्य पुटी, किसी ग्रन्थि के उत्सर्गी नलिका अवरोध हो जाने के फलस्वरूप होती है।
  • Retina -- दृष्टिपटल, रेटिना
आंख की प्रकाश संवेदी परत लेंस से बना प्रतिबिंब वहां पकड़कर तंत्रिका आवेगों में बदलना है जो दृक्तंत्रिका द्वारा मस्तिष्क में जाकर सूचना देता है।
  • Retinopathy -- दृष्टिपटल विकृति
दृष्टिपटल में उत्पन्न विकृति।
  • Ratinoblastoma -- दृष्टिपटलार्बुद
दृष्टिपटल की कोशिकाओं में होने वाला अर्बुद।
  • Rectosigmoidectomy -- मलाशय-अवग्रहांत्रोच्छेदन
शस्त्रकक्म द्वारा मलाशय एवं अवग्रह बृहदांत्र का उच्छेदन करना।
  • Retroesophageal Recess -- प्रत्यग अन्ननलिका अवकाश
अन्ननलिका के पीछे स्थित स्थान।
  • Retrognathia -- पश्च हन्वास्थि स्थिति
हनु अस्थि का अपनी सामान्य स्थिति से (प्रत्यग हन्वास्थित) पीछे की ओर रहना।
  • Retrograde Menstruation -- प्रत्यगरजोधर्म आर्तव
मासिक स्राव का अर्न्तदिशा में गमन।
  • Retrograde Pyelography -- प्रतिगामी गोणिका चित्रण
मूत्र मार्ग के द्वारा अपारदर्शी रसायन गोणिका में डालकर क्ष-किरण द्वारा चित्रण।
  • Retrograde Pyeloureterography -- पश्चगतिक गोणिका गवीनी चित्रण
मूत्र मार्ग द्वारा गवीनी तथा वृक्क गोणिका में अपारदर्शी रसायन करण क्ष-किरण चित्रण।
  • Retroperitoneum -- प्रत्यगुदर्या प्रज्यक् पर्युदर्यि कला
उदर्या कला के पीछे वाला स्थान।
  • Retropharyngeal Adscess -- प्रत्यक्ग्रसनी विद्रधि
यह फोड़ा ग्रसनी (भोजन की नली) के ऊपरी हिस्से की पिछली दीवार के पीछे होता है। यह फोड़ा आमतौर पर बच्चों को होता है जिसके कारण उन्हें निगलने में तकलीफ होती है। कभी-कभी सांस लेने में भी कष्ट होता है। इसकी चिकित्सा में आमतौर से पीप को निकाल दिया जाता है।
  • Retropublic -- प्रत्यग जघनास्थि पौरुष ग्रन्थि छेदना।
  • Prostatectomy -- जघनास्थि के पीछे से छेदन कर पौरुष ग्रन्थि को निकालना
  • Reye’S Syndrome -- रायी संलक्षण
बच्चों में उपसग्र जन्य मूर्छा जो अन्ततः मृत्यु का कारण बनती है जिसमें मस्तिष्कावरणशोथ एवं वृक्क विकार होते हैं।
  • Rhabdomyolysis -- मांसपेशीय उपहारन
अस्थियों से जुड़ी मांपेशियों का अपघटन। कंकाल पेशी का नष्ट होनाजिसके साथ मूत्र में मायोग्लोविन का उत्सर्जन होता है।
  • Rhabdomyoma -- रेखीपेशी अर्बुद
रेखी पेशियों में निकलने वाले अर्बुद। ये अर्बुद जिह्वा ग्रासनल (oesophagus), वृक्क (kidney) तथा कंकाली पेशियों (skeletal muscels) में देखे जाते हैं।
  • Rhabdomyosarcoma -- मांसपेशीगत सार्कोमा
अस्थि संलग्न मांसपेशियों का सार्कोमा।
  • Rhinophyma,Potato Nose -- राइनोफाइमा (आलू नासिका)
नासा त्वचा की अतिवृद्ध (hypertropic) अवस्था, जो त्वक् वसीय ग्रन्थियों (sebaceous glands) के अवरोध के परिणाम स्वरूप उत्पन्न होती है। इस रोग की चिकित्सा में त्वचा के उपरिस्थ स्तर को शस्त्रकर्म द्वारा छीला जाता है, जिससे की नाक की असली शक्ल को कायम रखा जा सके।
  • Rhinoplasty -- नासासंधान
नाक में हुई विरुपताओं को दूर करने के लिये संधान शस्त्रकर्म द्वारा नाक का पुनः निर्माण करना।
  • Rhinorrhoea -- नासास्राव
नासा से निकलने वाला द्रव।
  • Rhinoplasty -- नासा त्वक्वलय उच्छेदन
त्वक् वलयों को दूर करने के लिये त्वचा को उच्छेदन करना।
  • Rhizotomy -- मेरुतंत्रिकामूलछेदन
एक शस्त्रकर्म जिसमें मेरुतंत्रिकाओं (spinal nerves) के तंत्रिकामूलों (nerve roots) का विभाजन किया जाता है।
  • Rib Raspatory -- पर्शुका रैस्पेटरी
एक यंत्र जिसका उपयोग पर्शुका की पर्यस्थि कला (periosteum) को अलग करने के लिए किया जाता है।
  • Richter’S Hernia -- रिकेटस् हार्निया
आन्त्रभित्ति का एक छोटा भाग हार्निया के रूप में निकलता है।
  • Rickets -- रिक्टस्
यह एक कैलसियम/फास्फोरस का चयापचय विकृति के कारण तथा विटामिन डी के कमी से बच्चों में उत्पन्न होता है।
  • Rodent Ulcer -- रोडेम्ट व्रण
एक प्रकार की आधारी कोशिका धातकार्वुद (Basal cell carcinoma) जो चर्म के आधारी कोशिका से उत्पन्न होता है।
  • Rubor -- लालिमा
शोथ (inflammation) में उत्पन्न होने वाला एक लक्षण (Redness)।
  • Rule Of Nines -- रुल ऑफ नाइन
दग्ध व्रण के तीव्रता का निर्धारण करने में संबंधित नियम।

सिर एवं ग्रीवा दग्ध – 9% उर्ध्व शाखायें – 9 x 2 = 18%

उरःप्रदेश – 9% अधःशाखायें – 18×2 = 36%
पृष्ठ भाग – 9% जननांग – 1%
पूर्व उदर भाग – 9%
पश्चात् उदर भाग – 9%
  • Rupture -- विदार
:(1) किसी भाग का बलपूर्वक विदरण (tearing) करना।
(2) यह शब्द हर्निया के लिये भी प्रयोग में लाया जाता है।
  • Ryle’S Tube -- राइल नली
रबर की एक नली जो गुठली के आकार (olive-shaped) की होती है तथा नैदानिक अथवा चिकित्सा के काम में प्रयुक्त होती है।
  • Sacrum -- त्रिक, सेक्रम
कई कशेरूको के जुड़ से बनी संरचना जो चतुष्पादों में श्रोणि मेखला की इलियम अस्थि से सटी रही है।
  • Salivary Calculus -- लालाश्मरी
लाल ग्रांथियों में होने वाला अश्मरी।
  • Sarcoma -- सार्कोमा
संयोजी ऊतकों (connective) का जल्दी ही बढ़ने वालां दुर्दम अर्बुद। इसका फैलाव (dissemination) खासतौर पर खून के प्रवाह के जरिए होता है। इसकी चिकित्सा इसे ऑपरेशन करके निकाल देना है। साथ में एक्स-रे तथा रसायन चिकित्सा (radiotherapy and chemotherapy) भी हालात के मुताबिक की जाती है। इसका अन्त हमेशा ही बुरा होता है यानि इसका इलाज होना संभव नहीं है।
  • Scalpel -- स्केलपल या छुरिका
एक छोटी सीधी छुरी जिसका किनारा आमतौर पर उन्नतोदर (convex) होता है।
  • Saphocephaly -- नौकाकार-करोटि
इस अवस्था में अग्र पश्च सीवन (sagittal suture) की कालपूर्व संयुक्ति के कारण करोटि अनुप्रस्थ दिशा (transversely) में बढ़ती है।
  • Scar -- व्रणचिन्हन या क्षत चिह्न
यह एक निशान (mark) है जो तन्तु ऊतक (fibrous tissue) का बना होता है और क्षत के विरोहण या घाव के भरने (healing of a wound) के बाद भी बना रहता है।
  • Schmore’S Node -- श्मोर पर्व
विकिरण-चिकित्सा के कारण उत्पन्न होने वाली एक अवस्था (radiological manifestation) जिसमें मज्जी केन्द्रक (nucleus pulpous), कशेरुका काय (vertebral body) की ओर निकल जाता है।
  • Scissors -- कैंची या कर्तरी
एक यंत्र जिसके दोनों फलक एक ही धुरी पर घूमते हैं तथा एक दूसरे के ऊपर काट करते हैं।
  • Scoleosis -- पार्श्व कुब्जता
मेरुदण्ड (spine) का एक तरफ को मुड़ जाना (पार्श्व वक्रता-lateral curvature) लेकिन इस अवस्था के कारण जन्म जात (congenital), अर्जित (acquired), अज्ञातहेतुक (idopathic) स्थितिक अंगधाती, (postural paralysis) या वक्षज (thoracogenic) होते हैं। इसकी चिकित्सा मेरुदण्ड ब्रेस (spinal brace) और उपाचारी व्यायाम (remedial excercises) है। वर्धी प्रकार की पार्श्व कुब्जता (progressive type of scoleosis) में शस्त्रकर्म जरूरी है।
  • Scoop -- स्कूप
संकरे चम्मच के समान एक यंत्र जिसका उपयोग गुहाओं और पुटियों की अनतर्वस्तुओं को बाहर निकालने में किया जाता है।
  • Secondary Syphilis -- द्वितीयक सिफिलिस
प्राथमिक सिफिलिसी व्रण (primary) के विरोहण (healing) के बाद सिफिलिस की द्वितीयक (secondary) अवस्था। चित्तीदार विस्फोट (macular rash) का बनना इसकी एक विशिष्टता है। सिफिलिस की चिकित्सा में रोगनरोध तथा रोगमुक्ति (prevention and cure) शामिल है। निरोध चिकित्सा में सामूहिक शिक्षा (mass education) तथा रोगग्रस्त व्यक्तियों का उपचार शामिल है। रोगमुक्ति चिकित्सा के अन्तर्गत प्रतिजीवी चिकित्सा (antibiotic therapy) का काफी समय तक प्रयोग भी सम्मिलित है।
  • Semilunar Bone -- अर्धचन्द्राकार अस्थि
शरीर में स्थित अर्धचन्द्राकृति अस्थि।
  • Seminal Vescicle -- शुक्राशरा
नर जनन तंत्र का एक भाग जहां वृषण से आए शुक्राणु जमा होते हैं।
  • Senile Kerarosis -- जरा केरेटिनता
एक सूखी शल्की विक्षति जो बूढ़े रोगियों में देखने को मिलती है, जिसके कारण बाद में पट्टकी कोशिका कार्सिनोमा (squarmous cell carcinoma) भ हो सकता है।
  • Septic Abortion -- पूति गर्भपात
गर्भाशय में पूय निर्माण के कारण गर्भपात होना।
  • Septicema -- पूतिजीव रक्तता, सेप्टिसीमिया
रूधिर में सूक्ष्मजीवों के आक्रमण तथा बदुगुणन के कारण उत्पन्न होने वाली एक अस्वस्थ अवस्था।
  • Septum -- पट
प्राणियों के शरीर में दो गुहाओं, उतक पुंजो आदि को एक दुसरे से अलग करने वाली भित्ति कला या संरचना। उदाहरण कशेरूकियों में नासिका पट तथा अलिंद निलय पट।
  • Sequestrum Forceps -- विविक्ति संदंश संहार
एक संदंश है जिसमें छोटे छोटे मजबूत दन्तुर प्रक्षेप होते हैं। इसका उपयोग अस्थि के उस भाग को निकालने में किया जाता है जो विविक्तांश (sequestrum) बनाता है।
  • Serum -- सीरम रक्तोद
प्लाजमा का वह भाग जिसमें से स्कंदन के फलस्वरूप फाइब्रिनोजन तथा स्कंदन में शामिल होने वाले अन्य प्रोटीन निकल गये हों।
  • Shallow Breathing -- उत्थान श्वास
  • Shortbone -- हृस्व अस्थि/लघु अस्थि
शरीर में स्थित लघु अस्थि।
  • Short Wave Diathermy -- लघु तंरंग डायाथर्मी
उच्च आवृत्ति की दोलायमान विद्युत धारा (high frequency oscillating electric current) के द्वारा शरीर के ऊतकों को चिकित्सीय ऊष्मा (therapeutic heating) देना।
  • Sialithotomy -- लालाश्मरी छेदन
अश्मरी को निकालने के लिये लाला ग्रन्थि (salivary gland) अथवा उसकी वाहिनी (duct) का छेदन करना।
  • Sialodochoplasty -- लालावाहिनी संधान
संधान शस्त्रकर्म द्वारा लालावाहिनी का पुनर्निर्माण करना।
  • Sigmoidopexy -- अवग्रहांत्र-स्त्थिरीकरण
अवग्रह वृहदान्त्र के वॉलवुलस तथा मलाशय-भ्रंश का चिकित्सा में शस्त्रकर्म द्वारा अवग्रह वृहदांत्र (sigmoid colon) की स्थिरीकरण।
  • Sigmoidoscopy -- अवग्रहान्त्रदर्शन
अवग्रह-बृहदांत्र का गुहांतदर्शी द्वारा निरीक्षण (जांच) करना।
  • Sigmoidostomy -- अवग्रहान्त्र-छिद्रीकरण
एक शस्त्रकर्म जिसमें अवग्रहबृहदांत्र का बाहरी वातावरण से संबंध एक कृत्रिम द्वार बनाकर स्थापित किया जाता है।
  • Simple Fracture Of Rib -- पर्शुका का साधारण अस्थिभंग
सीधी चोट लगने पर पर्शुका (पसली-हड्डी) टूट जाती है। यह छाती की चोट का एक सामान्य उपद्रव है। इस अवस्था में कभी-कभी दर्द बहुत अधिक होता है जिसकी विशिष्टता यह है कि उस जगह पर दबाने पर दर्द (दाबवेदना-tenderness) तथा करकर (crepitus) की आवाज सुनने को मिलती है। दर्द को दूर करने के लिये मुंह के जरिए तथा उस जगह पर दर्द को दूर करने वाली (analgesic) औषधि का प्रयोग किया जाता है। सामान्यतः किसी ञपरेशन की आवश्यकता नहीं पड़ती।
  • Sinus -- नाड़ीव्रण
एक अंधा रास्ता जो अन्दर से कणिका ऊतक से अस्तरित होता है और उपकला पृष्ठ से प्रारम्भ होता है।
  • Sinusoid -- शिरानालाभ
यह एक विस्फारित रक्त वाहिका (dilated channel) है। इसके चारों तरफ अनियमित सम्मिलनी रक्त वाहिकाएं (anastomosing vessel) होती है। यह जालीय-अन्तः कला (reticuloendothelium) स्तरिन्तः है।
  • Sinusotomy -- साइनुसोटामि
एक शस्त्रकर्म जिसमें शिरानाल में छेदन किया जाता है।
  • Skeletal Traction -- अस्थि कर्षण
एक शस्त्रकर्म जिसमें पिन या तार की मदद से अस्थि का कर्षण (खींचना) किया जाता है। आमतौर पर इसके स्थान अन्तर्जघिका गुलिक (tibial tubercle) तथा ऊर्वस्थि का अधिस्थूलक क्षेत्र (supracondylar region) हैं और कभी कभी यह पार्ष्णिका (calcaneum) के जरिये भी होता है।
  • Skull -- करोटि खोपड़ी
रज्जुकी (कॉर्डेट) प्राणियों में कंकाल का वह भाग जिसमें मस्तिष्क सुरक्षित रहता है।
  • Small Intestine -- क्षुद्रांत्र
कशेरूकियों की हार नाल में आमाशय और वृहदांत्र के बीच का भाग जहां अधिकांश पोषक पदार्थों का अवशोषण होता है।
  • Snapping Hip -- कवगत् नितम्ब
इस अवस्था में एक विशिष्ट गति में आंशिक रूप से कुचित नितम्ब के अभिमध्य घूर्णन के होने पर, एक कड़क (snap) की आवाज सुनाई देती है और हाथ से छूने पर इसके स्थान को महसूस किया जा सकता है। इस कड़क का कारण बृहत निताम्बिका (gluteus maximus) की अग्रधारा (anterior border) के नीचे स्थित प्रावरणी की बंधनी (band of fascia) है, जो बृहत् स्थूणक (greater trochanter) के पार तक लिपटी हुई है। यह कभी-कभी दर्द करती है। यदि इसके कारण वेदना हो रही हो तो प्रावरणी की बंधनी का विभाजन कर देते हैं जिससे काफी कुछ आराम मिल जाता है।
  • Slitfito -- वसालसीका वृषण
वृषण-गुहा में लसीका सदृश पदार्थ का इकट्ठा हो जाना।
  • Spermatocele -- शुक्रपुटी
अधिवृषण (epididymis) तथा वृषण रज्जु दोनों ही जगहों में एक गोल तनी हुई ग्लोव के समान सूजन का हो जाना। इस रोग में कोई लक्षण नही मिलता। यह सूजन धीरे-धीरे बढ़ती है। ऑपरेशन करके पुटी को काटकर निकाल देना (उच्छेदन) ही इसका चिकित्सा है।
  • Spermatocelectomy -- शुक्रपुटी-उच्छेदन
एक शस्त्रकर्म जिसमें शुक्रपुटी अर्थात् वृषण रज्जु की पुटीमय सूजन का उच्छेदन के निर्माणका प्रक्रम।
  • Spermatogenesis -- शुक्राणु जनन
शुक्राणुओ के निर्माणका प्रक्रम।
  • Spermatozoan -- शुक्राणु
परिपक्व शुक्रकोशिका।
  • Spermicide -- शुक्राणुनाशी
वह रासायनिक पदार्थ जो शुक्राणुओं को नष्ट कर देती है।
  • Sphenoid -- जतुक
स्तनियों के कपाल के निचले तल पर स्थित फनाकार अस्थि जो जतुकपूर्वी (प्रिस्फीनाइड) और आधारपूर्वी (बेसीस्फीनाइड) अस्थियों के मिलने से बनती है।
  • Sphincter Muscle -- अवरोधिनी पेशी
अरेखित वर्तल पेशी जो सामान्य अवस्था में संकुचित रहती हैं लेकिन मार्ग के खुलने के समय फैल जाती है। उदा. मलाशय अवरोधिनी पेशी।
  • Sphncteretomy -- संवरणी-उच्छेदन
एक शस्त्रकर्म जिसमें संवंरणी पेशी का उच्छेदन किया जाता है।
  • Spina Bifida Or Rachischisis -- अयुक्त मेरूदण्ड
रीढ़ की हड्डी (मेरुदण्ड) के फलक (laminal) की पैदायशी असंयुक्ति (न जुड़ना)। आमतौर पर यह कटि प्रदेश में (lumbar region) होता है। यह दो तरह का होता है (1) व्यक्त अयुक्त मेरुदण्ड (spina bifida manifesta) तथा (2) गुप्त अयुक्त मेरुदण्ड (spina bifida occulta)। व्यक्त में रोग की जगह पर सूजन (swelling) दिखाई देती है और उसके साथ-साथ तांत्रिका सम्बन्धी (neurological) विक्षोभ (disturbances गड़बड़िया) भी रहता है। गुप्त में सूजन साफ नहीं दिखाई देती तथा कोई लक्षण भी नहीं मिलते।
  • Spinal Concussion, Spinal Shock -- मेरुरज्जु संघट्टन, मेरुरज्जु स्तब्धता
यह अवस्था मेरुरज्जु के लम्बाई में, आकुंचन के साथ, खिंचने के कारण उत्पन्न होती है, जिसके परिणामस्वरूप सूत्रयुग्मन (synaptic condition) में गड़बड़ी (विक्षोभ – disturbance ) होती है। विक्षति (lesion) के नीचे के हिस्से में इच्छानुसार होने वाली गतियों (movement) में कमी हो जाती है तथा तान (tone) एवं प्रतिवर्त सक्रियता (reflex activity) समाप्त हो जाती है लेकिन संधि संवेदना (joint sensation) कायम रहती है। चोट लगने के 24 से 48 घन्टों में ऐच्छिक शक्ति तथा संवदेना (voluntary power and sensation) वापिस आ जाती है। यदि मेरुरज्जु में आंशिक या पूर्णरूप से क्षति हो जाय तो स्तब्धता की अवस्था (stage of shock) बढ़ जाती है।
  • Spider Naevus -- लूताभ न्यच्छ
चिकने पृष्ठ सहित वर्णकित चित्तीदार विक्षति (pigmented macular naevus) । यह यकृत् रोगों के साथ आमतौर पर मिलती है। इसके सूजन (swelling) को दबाया जा सकता है।
  • Spine -- कंटक
क्यूटिकल से उत्पन्न कांटे के समान बहिर्वृद्धि (उद्वर्ध)।
  • Spiral Bandage -- अनुवेल्लित पट्टी
आवर्लयुक्त पट्टी।
  • Splanchnic Blood -- स्प्लांकनिक ब्लड
आभ्यन्तरिक आशयों में प्रवाहित रक्त।
  • Splanchnic Neurectomy -- आशायानुकम्पी तंत्रिका उच्छेदन
बृहत् आशायिक तंत्रिका के खण्डांश (segment) का उच्छेदन करना।
  • Splenectomy -- प्लीहा-उच्छेदन
प्लीहा अर्थात् तिल्ली- (spleen) का समूलोत्पाटन (extirpation) कर देना, अर्थात् उसे जड़ से निकाल देना। इस शस्त्रकर्म के सामान्य संकेत (indications) चोट या अभिघात (trauma), पुटी (cyst), रुचिर सम्बन्धी विकार (haematological disorders) तथा अर्बुद (tumours) हैं।
  • Splint -- स्प्लिंड
विस्थापित (displaced) अथवा चल (movable) भागों को अचलीकृत (immobilization) करने का एक यांत्रिक साधन (mechanical device)।
  • Spondylitis Deformans/Ankylosing Spondylitis -- विरूपकारी कशेरुका संधिशोथ (बद्ध कशेरूकासंधि)
अज्ञात कारणों वाली एक ऐसी रोग-लाक्षणिक अवस्था जिसमें मेरूदण्ड (रीढ़ की हड्डी-) की वर्धमान कठोरता (progressive stiffness) नीचे से ऊपर को होती है और साथ की स्नायुओं (ligaments) का कैल्सीभवन (calcification) भी हो जाता है, जिसके कारण कशेरूका दण्ड (vertebral column) विरुपित एवं द्दढ़ (rigid) हो जाता है। वह त्रिक-श्रोणिफलक संधियों से शुरू होता है। इस रोग की चिकित्सा लाक्षणिक (symptomatic) तथा संरक्षी (conservati