विक्षनरी:संस्कृत-हिन्दी शब्दकोश/ऊ-अः

विक्षनरी से


मूलशब्द—व्याकरण—संधिरहित मूलशब्द—व्युत्पत्ति—हिन्दी अर्थ
  • ऊः—पुं॰—-—अवतीति-अव्+क्विप्—शिव
  • ऊः—पुं॰—-—अवतीति-अव्+क्विप्—चन्द्रमा
  • ऊः—अव्य॰—-—-—आरम्भ-सूचक अव्यय
  • ऊः—अव्य॰—-—-—बुलावा
  • ऊः—अव्य॰—-—-—करुणा
  • ऊः—अव्य॰—-—-—संरक्षा को प्रकट करने वाला विस्मयादि द्योतक अव्यय
  • ऊढ—वि॰—-—वह्+क्त संप्र॰—ढोया गया, ले जाया गया
  • ऊढ—वि॰—-—वह्+क्त संप्र॰—लिया गया
  • ऊढ—वि॰—-—वह्+क्त —विवाहित
  • ऊढः—पुं॰—-—वह्+क्त —विवाहित पुरुष
  • ऊढा—स्त्री॰—-—वह्+क्त +टाप्—विवाहिता लड़की
  • ऊढकङ्कट—वि॰—ऊढ-कङ्कट—-—कवचधारी
  • ऊढभार्य—वि॰—ऊढ-भार्य—-—जिसने विवाह कर लिया है
  • ऊढवयसः—पुं॰—ऊढ-वयसः—-—नवयुवक
  • ऊढिः—स्त्री॰—-—वह्+क्तिन्—विवाह
  • ऊतिः—स्त्री॰—-—अव्+क्तिन्—बुनना, सीना
  • ऊतिः—स्त्री॰—-—अव्+क्तिन्—संरक्षा
  • ऊतिः—स्त्री॰—-—अव्+क्तिन्—उपभोग
  • ऊतिः—स्त्री॰—-—अव्+क्तिन्—क्रीड़ा, खेल
  • ऊधस्—नपुं॰—-—उन्द्+असुन्, ऊध आदेशः—ऐन, औड़ी
  • ऊधन्यम्—नपुं॰—-—ऊधन्+यत्—दूध
  • ऊधस्यम्—नपुं॰—-—ऊधस्+यत्—दूध
  • ऊन—वि॰—-—ऊन्+अच्—अभावग्रस्त, अधूरा, कम, अपूर्ण, अपर्याप्त
  • ऊन—वि॰—-—ऊन्+अच्—अपेक्षाकृत कम
  • ऊन—वि॰—-—ऊन्+अच्—अपेक्षाकृत दुर्बल, घटिया
  • ऊन—वि॰—-—ऊन्+अच्—घटा कर
  • एकोन—वि॰—एक-ऊन—-—एक घटा कर
  • ऊम्—अव्य॰—-—ऊय्+मुक्—प्रश्नवाचकता
  • ऊम्—अव्य॰—-—ऊय्+मुक्—क्रोध
  • ऊम्—अव्य॰—-—ऊय्+मुक्—भर्त्सना, दुर्वचन
  • ऊम्—अव्य॰—-—ऊय्+मुक्—धृष्टता
  • ऊम्—अव्य॰—-—ऊय्+मुक्—ईर्ष्या को प्रकट करने वाला विस्मयादिद्योतक अव्यय
  • ऊय्—भ्वा॰ आ॰—-—-—बुनना, सीना
  • ऊररी—अव्य॰—-—-—सहमति या स्वीकृति बोधक अव्यय
  • ऊररी—अव्य॰—-—-—विस्तार
  • ऊरव्यः—पुं॰—-—ऊरु+यत्—वैश्य, तृतीय वर्ण का पुरुष
  • ऊरुः—पुं॰—-—ऊर्णु+कु, नुलोपः—जंघा
  • ऊर्वष्ठीवम्—नपुं॰—ऊरुः-अष्ठीवम्—-—जंघा और घुटना
  • ऊरूद्भव—वि॰—ऊरुः-उद्भव—-—जंघा से उत्पन्न
  • ऊरुज—वि॰—ऊरुः-ज—-—जंघा से उत्पन्न
  • ऊरुज—पुं॰—ऊरुः-ज—-—वैश्य
  • ऊरुजन्मन्—वि॰—ऊरुः-जन्मन्—-—जंघा से उत्पन्न
  • ऊरुजन्मन्—पुं॰—ऊरुः-जन्मन्—-—वैश्य
  • ऊरुसम्भव—वि॰—ऊरुः-सम्भव—-—जंघा से उत्पन्न
  • ऊरुसम्भव—पुं॰—ऊरुः-सम्भव—-—वैश्य
  • ऊरुदध्न—वि॰—ऊरुः-दध्न—-—जंघाओं तक पहुंचने वाला, घुटनों तक
  • ऊरुद्वयस्—वि॰—ऊरुः-द्वयस्—-—जंघाओं तक पहुंचने वाला, घुटनों तक
  • ऊरुमात्र—वि॰—ऊरुः-मात्र—-—जंघाओं तक पहुंचने वाला, घुटनों तक
  • ऊरुपर्वन्—पुं॰—ऊरुः-पर्वन्—-—घुटना
  • ऊरुफलकम्—नपुं॰—ऊरुः-फलकम्—-—जांघ की हड्डी, कूल्हे की हड्डी
  • ऊरुरी—अव्य॰—-—उर्+अरीक् बा॰—सहमति या स्वीकृति बोधक अव्यय
  • ऊरुरी—अव्य॰—-—उर्+अरीक् बा॰—विस्तार
  • ऊर्ज्—स्त्री॰—-—ऊर्ज्+क्विप्—सामर्थ्य, बल
  • ऊर्ज्—स्त्री॰—-—ऊर्ज्+क्विप्—सत्त्व, भोजन
  • ऊर्जः—पुं॰—-—ऊर्ज्+णिच्+अच्—कार्तिक का महीना
  • ऊर्जः—पुं॰—-—ऊर्ज्+णिच्+अच्—स्फूर्ति
  • ऊर्जः—पुं॰—-—ऊर्ज्+णिच्+अच्—सामर्थ्य
  • ऊर्जः—पुं॰—-—ऊर्ज्+णिच्+अच्—प्रजननात्मक शक्ति
  • ऊर्जः—पुं॰—-—ऊर्ज्+णिच्+अच्—जीवन, प्राण
  • ऊर्जा—स्त्री॰—-—-—भोजन
  • ऊर्जा—स्त्री॰—-—-—स्फूर्ति
  • ऊर्जा—स्त्री॰—-—-—सामर्थ्य, सत्त्व
  • ऊर्जा—स्त्री॰—-—-—वृद्धि
  • ऊर्जस्—नपुं॰—-—ऊर्ज्+असुन्—बल, स्फूर्ति
  • ऊर्जस्—नपुं॰—-—ऊर्ज्+असुन्—भोजन
  • ऊर्जस्वत्—वि॰—-—ऊर्जस्+मतुप्—भोज्य-समृद्धि, रसीला
  • ऊर्जस्वत्—वि॰—-—ऊर्जस्+मतुप्—शक्तिशाली
  • ऊर्जस्वल—वि॰—-—ऊर्जस्+वलच्—बड़ा, शक्तिशाली, दृढ़, ताकतवर
  • ऊर्जस्विन्—वि॰—-—उर्जस्+विन्—ताकतवर, दृढ़, बड़ा
  • ऊर्जित—वि॰—-—ऊर्ज्+क्त—शक्तिशाली, दृढ़, ताकतवर, बलशाली, दृढ़
  • ऊर्जित—वि॰—-—ऊर्ज्+क्त—पूज्य, बढ़िया, श्रेष्ठ, सुन्दर
  • ऊर्जित—वि॰—-—ऊर्ज्+क्त—उच्च, भव्य, तेजस्वी, जोशीला या शानदार
  • ऊर्जितम्—नपुं॰—-—ऊर्ज्+क्त—सामर्थ्य, ताकत
  • ऊर्जितम्—नपुं॰—-—ऊर्ज्+क्त—स्फूर्ति
  • ऊर्णम्—नपुं॰—-—ऊर्णु+ड—ऊन
  • ऊर्णम्—नपुं॰—-—ऊर्णु+ड—ऊनी वस्त्र
  • ऊर्णनाभः—पुं॰—ऊर्णम्-नाभः—-—मकड़ी
  • ऊर्णनाभिः—पुं॰—ऊर्णम्-नाभिः—-—मकड़ी
  • ऊर्णपटः—पुं॰—ऊर्णम्-पटः—-—मकड़ी
  • ऊर्णम्रद—वि॰—ऊर्णम्-म्रद—-—ऊन की भांति नरम
  • ऊर्णदस्—वि॰—ऊर्णम्-दस्—-—ऊन की भांति नरम
  • ऊर्णा—स्त्री॰—-—ऊर्ण+टाप्—ऊन
  • ऊर्णा—स्त्री॰—-—ऊर्ण+टाप्—भौंहों का मध्यवर्ती केशपुंज
  • ऊर्णापिण्डः—पुं॰—ऊर्णा-पिण्डः—-—ऊन का गोला
  • ऊर्णायु—वि॰—-—ऊर्णा+यु—ऊनी
  • ऊर्णायुः—पुं॰—-—ऊर्णा+यु—मेंढा
  • ऊर्णायुः—पुं॰—-—ऊर्णा+यु—मकड़ी
  • ऊर्णायुः—पुं॰—-—ऊर्णा+यु—ऊनी कंबल
  • ऊर्णु—अदा॰ उभ॰, <ऊर्णोति>, <ऊर्णौति>, <उर्णुते>, <ऊर्णित>—-—-—ढकना, घेरना, छिपाना
  • ऊर्णु—पुं॰—-—-—ढकना, घेरना, छिपाना
  • प्रौर्णु—पुं॰—प्र+ऊर्णु—-—ढकना, छिपाना आदि
  • ऊर्ध्व—वि॰—-—उद्+हा+ड पृषो॰ ऊर् आदेशः—सीधा, खड़ा, ऊपर का, ऊपर की ओर उठता हुआ
  • ऊर्ध्व—वि॰—-—उद्+हा+ड पृषो॰ ऊर् आदेशः—उठाया हआ, उन्नत, सीधा खड़ा
  • ऊर्ध्व—वि॰—-—उद्+हा+ड पृषो॰ ऊर् आदेशः—ऊँचा, बढ़िया, अपेक्षाकृत ऊँचा या ऊपर का
  • ऊर्ध्व—वि॰—-—उद्+हा+ड पृषो॰ ऊर् आदेशः—खड़ा हुआ
  • ऊर्ध्व—वि॰—-—उद्+हा+ड पृषो॰ ऊर् आदेशः—फटा हुआ, टूटा हुआ
  • ऊर्ध्वम्—नपुं॰—-—उद्+हा+ड पृषो॰ ऊर् आदेशः—उन्नतता, ऊँचाई
  • ऊर्ध्वम्—अव्य॰—-—-—ऊपर की ओर, ऊँचाई पर, ऊपर
  • ऊर्ध्वम्—अव्य॰—-—-—बाद में
  • ऊर्ध्वम्—अव्य॰—-—-—ऊँचे स्वर से, जोर से
  • ऊर्ध्वम्—अव्य॰—-—-—बाद में, पश्चात्
  • ऊर्ध्वकच—वि॰—ऊर्ध्व-कच—-—खड़े बालों वाला
  • ऊर्ध्वकच—वि॰—ऊर्ध्व-कच—-—जिसके बाल टूट गये हों
  • ऊर्ध्वकेश—वि॰—ऊर्ध्व-केश—-—खड़े बालों वाला
  • ऊर्ध्वकेश—वि॰—ऊर्ध्व-केश—-—जिसके बाल टूट गये हों
  • ऊर्ध्वचः—पुं॰—ऊर्ध्व-चः—-—केतु
  • ऊर्ध्वकर्मन्—नपुं॰—ऊर्ध्व-कर्मन्—-—ऊपर को गति
  • ऊर्ध्वकर्मन्—नपुं॰—ऊर्ध्व-कर्मन्—-—ऊँचा पद प्राप्त करने के लिए चेष्टा
  • ऊर्ध्वकर्मन्—पुं॰—ऊर्ध्व-कर्मन्—-—विष्णु
  • ऊर्ध्वक्रिया—नपुं॰—ऊर्ध्व-क्रिया—-—ऊपर को गति
  • ऊर्ध्वक्रिया—नपुं॰—ऊर्ध्व-क्रिया—-—ऊँचा पद प्राप्त करने के लिए चेष्टा
  • ऊर्ध्वक्रिया—पुं॰—ऊर्ध्व-क्रिया—-—विष्णु
  • ऊर्ध्वकायः—पुं॰—ऊर्ध्व-कायः—-—शरीर का ऊपरी भाग
  • ऊर्ध्वकायम्—नपुं॰—ऊर्ध्व-कायम्—-—शरीर का ऊपरी भाग
  • ऊर्ध्वगः—वि॰—ऊर्ध्व-गः—-—ऊपर जाने वाला
  • ऊर्ध्वगामिन्—वि॰—ऊर्ध्व-गामिन्—-—ऊपर जाने वाला
  • ऊर्ध्वगति—वि॰—ऊर्ध्व-गति—-—ऊपर की ओर जाने वाला
  • ऊर्ध्वगमः—पुं॰—ऊर्ध्व-गमः—-—चढ़ाव, उन्नतता
  • ऊर्ध्वगमः—पुं॰—ऊर्ध्व-गमः—-—स्वर्ग में जाना
  • ऊर्ध्वगमनम्—नपुं॰—ऊर्ध्व-गमनम्—-—चढ़ाव, उन्नतता
  • ऊर्ध्वगमनम्—नपुं॰—ऊर्ध्व-गमनम्—-—स्वर्ग में जाना
  • ऊर्ध्वचरण—वि॰—ऊर्ध्व-चरण—-—ऊपर की ओर पैर किये हुए
  • ऊर्ध्वपाद—वि॰—ऊर्ध्व-पाद—-—ऊपर की ओर पैर किये हुए
  • ऊर्ध्वणः—पुं॰—ऊर्ध्व-णः—-—शरभ नाम का एक काल्पनिक जन्तु
  • ऊर्ध्वजानु—वि॰—ऊर्ध्व-जानु—-—घुटने उठाये हुए, पुट्ठों के बल बैठा हुआ
  • ऊर्ध्वजानु—वि॰—ऊर्ध्व-जानु—-—उकडूं बैठा हुआ
  • ऊर्ध्वज्ञ—वि॰—ऊर्ध्व-ज्ञ—-—घुटने उठाये हुए, पुट्ठों के बल बैठा हुआ
  • ऊर्ध्वज्ञ—वि॰—ऊर्ध्व-ज्ञ—-—उकडूं बैठा हुआ
  • ऊर्ध्वज्ञु—वि॰—ऊर्ध्व-ज्ञु—-—घुटने उठाये हुए, पुट्ठों के बल बैठा हुआ
  • ऊर्ध्वज्ञु—वि॰—ऊर्ध्व-ज्ञु—-—उकडूं बैठा हुआ
  • ऊर्ध्वदृष्टि—वि॰—ऊर्ध्व-दृष्टि—-—ऊपर को देखता हुआ,
  • ऊर्ध्वदृष्टिः—स्त्री॰—ऊर्ध्व-दृष्टिः—-—उच्चाकांक्षी, महत्त्वाकांक्षी, भौंहों के बीच में अपनी दृष्टि संकेन्द्रित करना
  • ऊर्ध्वनेत्र—वि॰—ऊर्ध्व-नेत्र—-—ऊपर को देखता हुआ,
  • ऊर्ध्वनेत्र—वि॰—ऊर्ध्व-नेत्र—-—उच्चाकांक्षी, महत्त्वाकांक्षी, भौंहों के बीच में अपनी दृष्टि संकेन्द्रित करना
  • ऊर्ध्वदेहः—पुं॰—ऊर्ध्व-देहः—-—अन्त्येष्टि संस्कार
  • ऊर्ध्वपातनम्—नपुं॰—ऊर्ध्व-पातनम्—-—ऊपर चढ़ाना, परिष्करण
  • ऊर्ध्वपात्रम्—नपुं॰—ऊर्ध्व-पात्रम्—-—यज्ञीय पात्र
  • ऊर्ध्वमुख—वि॰—ऊर्ध्व-मुख—-—ऊपर को मुंह किये हुए, उन्मुख
  • ऊर्ध्वमौहूर्तिक—वि॰—ऊर्ध्व-मौहूर्तिक—-—थोड़ी देर के पश्चात् होने वाला
  • ऊर्ध्वरेतस्—वि॰—ऊर्ध्व-रेतस्—-—अनवरत ब्रह्मचर्य का पालन करने वाला, स्त्री-संभोग से सदैव विरत रहने वाला
  • ऊर्ध्वरेतस्—पुं॰—ऊर्ध्व-रेतस्—-—शिव
  • ऊर्ध्वरेतस्—पुं॰—ऊर्ध्व-रेतस्—-—भीष्म
  • ऊर्ध्वलोकः—पुं॰—ऊर्ध्व-लोकः—-—ऊपर की दुनिया, स्वर्ग
  • ऊर्ध्ववर्त्मन्—पुं॰—ऊर्ध्व-वर्त्मन्—-—पर्यावरण
  • ऊर्ध्ववातः—पुं॰—ऊर्ध्व-वातः—-—शरीर के ऊपरी भाग में रहने वाली वायु
  • ऊर्ध्ववायुः—पुं॰—ऊर्ध्व-वायुः—-—शरीर के ऊपरी भाग में रहने वाली वायु
  • ऊर्ध्वशायिन्—वि॰—ऊर्ध्व-शायिन्—-—ऊपर को मुंह करके चित सोया हुआ
  • ऊर्ध्वशायिन्—पुं॰—ऊर्ध्व-शायिन्—-—शिव
  • ऊर्ध्वशोधनम्—नपुं॰—ऊर्ध्व-शोधनम्—-—वमन करना
  • ऊर्ध्वश्वासः—पुं॰—ऊर्ध्व-श्वासः—-—साँस छोड़ना, प्राण त्यागना
  • ऊर्ध्वस्थितिः—स्त्री॰—ऊर्ध्व-स्थितिः—-—अश्व पालन
  • ऊर्ध्वस्थितिः—स्त्री॰—ऊर्ध्व-स्थितिः—-—घोड़े की पीठ
  • ऊर्ध्वस्थितिः—स्त्री॰—ऊर्ध्व-स्थितिः—-—उन्नतता, श्रेष्ठता
  • ऊर्मिः—पुं॰—-—ऋ+मि, अर्तेरुच्च—लहर, झाल
  • ऊर्मिः—पुं॰—-—ऋ+मि, अर्तेरुच्च—धाराप्रवाह
  • ऊर्मिः—पुं॰—-—ऋ+मि, अर्तेरुच्च—प्रकाश
  • ऊर्मिः—पुं॰—-—ऋ+मि, अर्तेरुच्च—गति, वेग
  • ऊर्मिः—पुं॰—-—ऋ+मि, अर्तेरुच्च—कष्ट, बेचैनी, चिन्ता
  • ऊर्मिमालिन्—वि॰—ऊर्मिः-मालिन्—-—तरंग मालाओं से विभूषित
  • ऊर्मिमालिन्—पुं॰—ऊर्मिः-मालिन्—-—समुद्र
  • ऊर्मिका—स्त्री॰—-—ऊर्मि+कन्+टाप्—लहर,
  • ऊर्मिका—स्त्री॰—-—ऊर्मि+कन्+टाप्—अंगूठी
  • ऊर्मिका—स्त्री॰—-—ऊर्मि+कन्+टाप्—खेद, खोई वस्तु के लिए शोक
  • ऊर्मिका—स्त्री॰—-—ऊर्मि+कन्+टाप्—मक्खी का भिनभिनाना
  • ऊर्मिका—स्त्री॰—-—ऊर्मि+कन्+टाप्—वस्त्र में पड़ी शिकन या चुन्नट
  • ऊर्व—वि॰—-—उरु+अ—विस्तृत, बड़ा
  • ऊर्वः—पुं॰—-—उरु+अ—वडवानल
  • ऊर्वरा—स्त्री॰—-—उरु शस्यादिकमृच्छति-ऋ+अच्+टाप्—उपजाऊ भूमि
  • ऊलुपिन्—पुं॰—-—-—शिंशुक, सूँस
  • ऊलूकः—पुं॰—-—-—उल्लू
  • ऊलूकः—पुं॰—-—-—इन्द्र
  • ऊष्—भ्वा॰ पर॰—-—-—रुग्ण होना, अस्वस्थ होना, बीमार होना
  • ऊषः—पुं॰—-—ऊष्+क—रिहाली धरती
  • ऊषः—पुं॰—-—ऊष्+क—अम्ल
  • ऊषः—पुं॰—-—ऊष्+क—दरार, तरेड़
  • ऊषः—पुं॰—-—ऊष्+क—कर्णविवर
  • ऊषः—पुं॰—-—ऊष्+क—मलय पर्वत
  • ऊषः—पुं॰—-—ऊष्+क—प्रभात, पौ फटना
  • ऊषकम्—नपुं॰—-—ऊष+कन्—प्रभात, पौ फटना
  • ऊषणम्—नपुं॰—-—ऊष्+ल्युट्, स्त्रियां टाप् च—काली मिर्च
  • ऊषणम्—नपुं॰—-—ऊष्+ल्युट्, स्त्रियां टाप् च—अदरक
  • ऊषणा—स्त्री॰—-—ऊष्+ल्युट्, स्त्रियां टाप् च—काली मिर्च
  • ऊषणा—स्त्री॰—-—ऊष्+ल्युट्, स्त्रियां टाप् च—अदरक
  • ऊषर—वि॰—-—ऊष्+रा+क—नमक या रेहकणों से युक्त
  • ऊषरः—पुं॰—-—ऊष्+रा+क—बंजर भूमि जो रिहाल हो
  • ऊषरम्—नपुं॰—-—ऊष्+रा+क—बंजर भूमि जो रिहाल हो
  • ऊषवत्—वि॰—-—-—नमक या रेहकणों से युक्त
  • ऊष्मः—पुं॰—-—ऊष्+मक्—ताप
  • ऊष्मः—पुं॰—-—ऊष्+मक्—ग्रीष्म ऋतु
  • ऊष्मन्—पुं॰—-—ऊष्+मनिन्—ताप, गर्मी
  • ऊष्मन्—पुं॰—-—ऊष्+मनिन्—ग्रीष्म ऋतु, निदाघ
  • ऊष्मन्—पुं॰—-—ऊष्+मनिन्—भाप, वाष्प, उच्छ्वास
  • ऊष्मन्—पुं॰—-—ऊष्+मनिन्—सरगरमी, जोश, प्रचण्डता
  • ऊष्मन्—पुं॰—-—ऊष्+मनिन्—श्, ष्, स् और ह् की ध्वनियाँ
  • ऊष्मोपगमः—पुं॰—ऊष्मन्-उपगमः—-—ग्रीष्म ऋतु का आगमन
  • ऊष्मपः—पुं॰—ऊष्मन्-पः—-—अग्नि
  • ऊष्मपः—पुं॰—ऊष्मन्-पः—-—पितरों की एक श्रेणी
  • ऊह्—भ्वा॰ उभ॰, <ऊहति>, <ऊहते>, <ऊहित>—-—-—टाँकना, अंकित करना, अवक्षेण करना
  • ऊह्—भ्वा॰ उभ॰, <ऊहति>, <ऊहते>, <ऊहित>—-—-—अटकल लगाना, अंदाज करना, अनुमान लगाना
  • ऊह्—भ्वा॰ उभ॰, <ऊहति>, <ऊहते>, <ऊहित>—-—-—समझना, सोचना, पहचानना, आशा करना
  • ऊह्—भ्वा॰ उभ॰, <ऊहति>, <ऊहते>, <ऊहित>—-—-—तर्क करना, विचार करना
  • ऊह्—भ्वा॰ उभ॰—-—-—तर्क या चिन्तन करवाना, अनुमान या अटकल लगवाना
  • अपोह्—भ्वा॰ उभ॰—अप-ऊह्—-—हटाना, दूर करना
  • अपोह्—भ्वा॰ उभ॰—अप-ऊह्—-—तुरन्त अनुकरण करना
  • अपव्यूह्—भ्वा॰ उभ॰—अपवि-ऊह्—-—रोकना, हटाना
  • अभ्यूह्—भ्वा॰ उभ॰—अभि-ऊह्—-—अटकल लगाना, अंदाज लगाना
  • अभ्यूह्—भ्वा॰ उभ॰—अभि-ऊह्—-—ढकना
  • उपोह्—भ्वा॰ उभ॰—उप-ऊह्—-—निकट लाना
  • निर्व्यूह्—भ्वा॰ उभ॰—निर्वि-ऊह्—-—सम्पन्न करना, प्रकाशित करना
  • परिसमूह्—भ्वा॰ उभ॰—परिसम्-ऊह्—-—इधर-उधर छिड़कना
  • प्रत्यूह्—भ्वा॰ उभ॰—प्रति-ऊह्—-—विरोध करना, बाधा डालना, रुकावट डालना
  • प्रत्यूह्—भ्वा॰ उभ॰—प्रति-ऊह्—-—मुकरना
  • प्रतिव्यूह्—भ्वा॰ उभ॰—प्रतिवि-ऊह्—-—शत्रु के विरुद्ध सैनिक मोर्चा लगाना
  • व्यूह्—भ्वा॰ उभ॰—वि-ऊह्—-—युद्ध के अवसर पर सेना की व्यवस्था करना
  • समूह्—भ्वा॰ उभ॰—सम्-ऊह्—-—एकत्र करना, इकट्ठे होना
  • ऊहः—पुं॰—-—ऊह्+घञ्—अटकल, अंदाज
  • ऊहः—पुं॰—-—ऊह्+घञ्—परीक्षण, निर्धारण
  • ऊहः—पुं॰—-—ऊह्+घञ्—समझ-बूझ
  • ऊहः—पुं॰—-—ऊह्+घञ्—तर्कना, युक्ति देना
  • ऊहः—पुं॰—-—ऊह्+घञ्—अध्याहार करना
  • ऊहापोहः—पुं॰—ऊहः-अपोहः—-—पूरी चर्चा, अनुकूल व प्रतिकूल स्थितियों पर पूरा सोच-विचार
  • ऊहनम्—नपुं॰—-—ऊह्+ल्युट्—अनुमान लगाना, अटकलबाजी
  • ऊहनी—स्त्री॰—-—ऊहन+ङीप्—झाड़ू, बुहारी
  • ऊहिन्—वि॰—-—ऊह्+इनि—तर्क करने वाला, अनुमान लगाने वाला
  • ऊहिनी—स्त्री॰—-—ऊह्+इनि+ङीप्—संघात, संचय
  • ऊहिनी—स्त्री॰—-—ऊह्+इनि+ङीप्—क्रम, क्रमबद्ध समुदाय
  • —अव्य॰—-—-—बुलाना,परिहास और निन्दा या अपशब्दव्यंजक विस्मयादिबोधक अव्यय
  • —भ्वा॰ पर॰<ऋच्छति, ऋत>—-—-—जाना, हिलना-डुलना
  • —भ्वा॰ पर॰<ऋच्छति, ऋत>—-—-—उठाना, उन्मुख होना
  • —जु॰ पर॰<इयर्ति, ऋत>—-—-—जाना,
  • —जु॰ पर॰<इयर्ति, ऋत>—-—-—हिलना-डुलना, डगमग होना
  • —जु॰ पर॰<इयर्ति, ऋत>—-—-—प्राप्त करना, अवाप्त करना, अधिगत करना, भेंट होना,
  • —जु॰ पर॰<इयर्ति, ऋत>—-—-—चलायमान करना, उत्तेजित करना
  • —स्वा॰ पर॰<ऋणोति, ऋण>—-—-—चोट पहुँचाना, घायल करना
  • —स्वा॰ पर॰<ऋणोति, ऋण>—-—-—आक्रमण करना
  • —स्वा॰ पर॰,प्रेर॰—-—-—फेंकना, ढालना, स्थिर करना या जमाना
  • —स्वा॰ पर॰,प्रेर॰—-—-—रखना, स्थापित करना, स्थिर करना, निर्देश देना या फेरना
  • —स्वा॰ पर॰,प्रेर॰—-—-—रखना, सम्मिलित करना, देना, बैठा देना, जमा देना
  • —स्वा॰ पर॰,प्रेर॰—-—-—सौंपना, दे देना, सुपुर्द कर देना, हवाले कर देना
  • ऋक्ण—वि॰—-—व्रश्च-क्त पृषो॰ वलोपः—घायल, क्षत-विक्षत, आहत
  • ऋक्थम्—नपुं॰—-—ऋच्-थक्—धन-दौलत
  • ऋक्थम्—नपुं॰—-—ऋच्-थक्—विशेषकर सम्पत्ति, हस्तगत सामग्री या सामान
  • ऋक्थम्—नपुं॰—-—ऋच्-थक्—सोना
  • ऋक्थग्रहणम्—नपुं॰—ऋक्थम्-ग्रहणम्—-—प्राप्त करना या उत्तराधिकार में पाना
  • ऋक्थग्राहः—पुं॰—ऋक्थम्-ग्राहः—-—उत्तराधिकारी या संपत्ति का प्राप्तकर्ता
  • ऋक्थभागः—पुं॰—ऋक्थम्-भागः—-—संपत्ति का बँटवारा, विभाजन
  • ऋक्थभागः—पुं॰—ऋक्थम्-भागः—-—अंश, दाय
  • ऋक्थभागिन्—पुं॰—ऋक्थम्-भागिन्—-—उत्तराधिकारी
  • ऋक्थभागिन्—पुं॰—ऋक्थम्-भागिन्—-—सह उत्तराधिकारी
  • ऋक्थहर—पुं॰—ऋक्थम्-हर—-—उत्तराधिकारी
  • ऋक्थहर—पुं॰—ऋक्थम्-हर—-—सह उत्तराधिकारी
  • ऋक्थहारिन्—पुं॰—ऋक्थम्-हारिन्—-—उत्तराधिकारी
  • ऋक्थहारिन्—पुं॰—ऋक्थम्-हारिन्—-—सह उत्तराधिकारी
  • ऋक्षः—पुं॰—-—ऋ्ष्-स किच्च—रीक्ष
  • ऋक्षः—पुं॰—-—ऋ्ष्-स किच्च—पर्वत का नाम
  • ऋक्षः—पुं॰—-—-—तारा, तारकपुंज, नक्षत्र
  • ऋक्षः—पुं॰—-—-—राशिमाला का चिह्न, राशि
  • ऋक्षम्—नपुं॰—-—-—तारा, तारकपुंज, नक्षत्र
  • ऋक्षम्—नपुं॰—-—-—राशिमाला का चिह्न, राशि
  • ऋक्षाः—पुं॰—-—-—कृत्तिका-मण्डल के सात तारे, जो बाद मे सप्तर्षि कहलाए
  • ऋक्षा—स्त्री॰—-—-—उत्तर दिशा
  • ऋक्षी—स्त्री॰—-—-—रीछनी, मादा भालू
  • ऋक्षचक्रम्—नपुं॰—ऋक्षः-चक्रम्—-—तारामंडल
  • ऋक्षनाथः—पुं॰—ऋक्षः-नाथः—-—‘तारों का स्वामी’, चन्द्रमा
  • ऋक्षेशः—पुं॰—ऋक्षः-ईशः—-—‘तारों का स्वामी’, चन्द्रमा
  • ऋक्षनेमिः—पुं॰—ऋक्षः-नेमिः—-—विष्णु
  • ऋक्षराज्—पुं॰—ऋक्षः-राज्—-—चन्द्रमा
  • ऋक्षराज्—पुं॰—ऋक्षः-राज्—-—रीछों का स्वामी, जांबवान्
  • ऋक्षराजः—पुं॰—ऋक्षः-राजः—-—चन्द्रमा
  • ऋक्षराजः—पुं॰—ऋक्षः-राजः—-—रीछों का स्वामी, जांबवान्
  • ऋक्षहरीश्वरः—पुं॰—ऋक्षः-हरीश्वरः—-—रीछों और लंगुरों का स्वामी
  • ऋक्षरः—पुं॰—-—ऋष्-क्सरन्—ऋत्विज
  • ऋक्षरः—पुं॰—-—-—काँटा
  • ऋक्षवत्—पुं॰—-—ऋक्ष-मतुप्-मस्य वः—नर्मदा के निकट स्थित एक पहाड़
  • ऋच्—तुदा॰ पर॰<ऋचति>—-—-—प्रशंसा करना, स्तुति गान करना
  • ऋच्—तुदा॰ पर॰<ऋचति>—-—-—ढकना, पर्दा डालना
  • ऋच्—तुदा॰ पर॰<ऋचति>—-—-—चमकना
  • ऋच्—स्त्री॰—-—ऋच्-क्विप्—सूक्त
  • ऋच्—स्त्री॰—-—ऋच्-क्विप्—ऋग्वेद का मंत्र, ऋचा
  • ऋच्—स्त्री॰,ब॰ व॰—-—ऋच्-क्विप्—ऋक्संहिता
  • ऋच्—स्त्री॰ —-—ऋच्-क्विप्—दीप्ति
  • ऋच्—स्त्री॰ —-—ऋच्-क्विप्—प्रशंसा
  • ऋच्—स्त्री॰ —-—ऋच्-क्विप्—पूजा
  • ऋग्विधानम्—नपुं॰—ऋच्-विधानम्—-—ऋग्वेद के मंत्रों का पाठ करके कुछ संस्कारों का अनुष्ठान
  • ऋग्वेदः—पुं॰—ऋच्-वेदः—-—चारों वेदों में सबसे पुराना वेद, हिन्दुओं का अत्यंत पवित्र और प्राचीन ग्रन्थ
  • ऋग्संहिता—स्त्री॰ —ऋच्-संहिता—-—ऋग्वेद के सूक्तों का क्रम्बद्ध संग्रह
  • ऋचीषः—पुं॰—-—ऋच्-ईषन्—घण्टी
  • ऋचीषम्—नपुं॰—-—-—कड़ाही
  • ऋछ्—तुदा॰ पर॰<ऋच्छति>—-—-—कड़ा, या सख्त होना
  • ऋछ्—तुदा॰ पर॰<ऋच्छति>—-—-—जाना
  • ऋछ्—तुदा॰ पर॰<ऋच्छति>—-—-—क्षमता का न रहना
  • ऋच्छका—स्त्री॰ —-—ऋच्छ्-कन्-टाप्—कामना, इच्छा
  • ऋज्—भ्वा॰ आ॰<अर्जते, ऋजित>—-—-—जाना
  • ऋज्—भ्वा॰ आ॰<अर्जते, ऋजित>—-—-—प्राप्त करना, हासिल करना
  • ऋज्—भ्वा॰ आ॰<अर्जते, ऋजित>—-—-—खड़े होना या स्थिर होना
  • ऋज्—भ्वा॰ आ॰<अर्जते, ऋजित>—-—-—स्वस्थ या ह्रष्ट-पुष्ट होना
  • ऋज्—भ्वा॰ पर॰—-—-—अवाप्त करना, उपार्जन करना
  • ऋजीष—पुं॰—-—-—घण्टी
  • ऋजु—वि॰—-—अर्जयति गुणान्, अर्ज्-उ—सीधा
  • ऋजु—वि॰—-—अर्जयति गुणान्, अर्ज्-उ—खरा, ईमानदार, स्पष्टवादी
  • ऋजु—वि॰—-—अर्जयति गुणान्, अर्ज्-उ—अनुकूल, अच्छा
  • ऋजुक्—वि॰—-—-—सीधा
  • ऋजुक्—वि॰—-—-—खरा, ईमानदार, स्पष्टवादी
  • ऋजुक्—वि॰—-—-—अनुकूल, अच्छा
  • ऋजुगः—पुं॰—ऋजु-गः—-—व्यवहार में ईमानदार
  • ऋजुगः—पुं॰—ऋजु-गः—-—तीर
  • ऋजुरोहितम्—नपुं॰—ऋजु-रोहितम्—-—इन्द्र का सीधा लाल धनुष
  • ऋज्वी—स्त्री॰ —-—ऋजु-ड़ीष्—सीधीसाधी सरल स्त्री
  • ऋज्वी—स्त्री॰ —-—ऋजु-ड़ीष्—तारों की विशेष गति
  • ऋणम्—नपुं॰—-—ऋ-क्त—कर्जा, पितरों को दिया जानेवाला अन्तिम ऋण अर्थात् पुत्रोत्पादन
  • ऋणम्—नपुं॰—-—ऋ-क्त—कर्तव्यता, दायित्व
  • ऋणम्—नपुं॰—-—ऋ-क्त—नकारात्मक चिह्न या परिमाण, घटा-चिह्न
  • ऋणम्—नपुं॰—-—ऋ-क्त—किला, दुर्ग
  • ऋणम्—नपुं॰—-—ऋ-क्त—पानी
  • ऋणम्—नपुं॰—-—ऋ-क्त—भूमि
  • ऋणान्तकः—पुं॰—ऋणम्-अन्तकः—-—मंगल ग्रह
  • ऋणापनयनम्—नपुं॰—ऋणम्-अपनयनम्—-—ऋणपरिशोध करना, ऋण चुकाना,
  • ऋणापनयनम्—नपुं॰—ऋणम्-अपनोदनम्—-—ऋणपरिशोध करना, ऋण चुकाना,
  • ऋणापाकरणम्—नपुं॰—ऋणम्-अपाकरणम्—-—ऋणपरिशोध करना, ऋण चुकाना,
  • ऋणदानम्—नपुं॰—ऋणम्-दानम्—-—ऋणपरिशोध करना, ऋण चुकाना,
  • ऋणमुक्ति—स्त्री॰ —ऋणम्-मुक्तिः—-—ऋणपरिशोध करना, ऋण चुकाना,
  • ऋणमोक्षः—पुं॰—ऋणम्-मोक्षः—-—ऋणपरिशोध करना, ऋण चुकाना,
  • ऋणशोधनम्—नपुं॰—ऋणम्-शोधनम्—-—ऋणपरिशोध करना, ऋण चुकाना,
  • ऋणादानम्—नपुं॰—ऋणम्-आदानम्—-—कर्जा वसूल करना, उधार दिया हुआ द्रव्य वापिस लेना
  • ऋणऋणम्—नपुं॰—ऋणम्-ऋणम्—-—एक कर्ज के लिए दूसरा कर्ज, एक ऋण चुकाने के लिए दूसरा ऋण ले लेना
  • ऋणग्रहः—पुं॰—ऋणम्-ग्रहः—-—रुपया उधार लेना, उधार लेने वाला
  • ऋणदातृ—वि॰—ऋणम्-दातृ—-—जो ऋण दे देता है
  • ऋणदायिन्—वि॰—ऋणम्-दायिन्—-—जो ऋण दे देता है
  • ऋणदासः—पुं॰—ऋणम्-दासः—-—वह क्रीत दास जिसका ऋण परिशोध करके उसे लिया गया है
  • ऋणमत्कुणः—पुं॰—ऋणम्-मत्कुणः—-—प्रतिभूति, जमानत
  • ऋणमार्गणः—पुं॰—ऋणम्-मार्गणः—-—प्रतिभूति, जमानत
  • ऋणमुक्त—वि॰—ऋणम्-मुक्त—-—ऋण से मुक्त
  • ऋणमुक्तिः—नपुं॰—ऋणम्-अपनयनम्—-—ऋणपरिशोध करना, ऋण चुकाना,
  • ऋणमुक्तिः—नपुं॰—ऋणम्-अपनोदनम्—-—ऋणपरिशोध करना, ऋण चुकाना,
  • ऋणलेख्यम्—नपुं॰—ऋणम्-लेख्यम्—-—ऋण-बन्धपत्र' तमस्सुक जिसमें ऋण की स्वीकृति दर्ज हो
  • ऋणिकः—पुं॰—-—ऋण-ष्ठन्—कर्जदार
  • ऋणिन्—वि॰—-—ऋण्-इनि—ऋणग्रस्त, अनुगृहीत
  • ऋत—वि॰—-—ऋ-क्त—उचित, सही
  • ऋत—वि॰—-—ऋ-क्त—ईमानदार, सच्चा
  • ऋत—वि॰—-—ऋ-क्त—पूजित, प्रतिष्ठाप्राप्त
  • ऋतम्—अव्य॰—-—ऋ-क्त—सही ढंग से, उचित रीति से
  • ऋतम्—नपुं॰—-—ऋ-क्त—स्थिर और निश्चित नियम, विधि
  • ऋतम्—नपुं॰—-—ऋ-क्त—पावन प्रथा
  • ऋतम्—नपुं॰—-—ऋ-क्त—दिव्य नियम, दिव्य सचाई
  • ऋतम्—नपुं॰—-—ऋ-क्त—जल
  • ऋतम्—नपुं॰—-—ऋ-क्त—सचाई, अधिकार
  • ऋतम्—नपुं॰—-—ऋ-क्त—खेतों में उञ्छवृत्ति द्वारा जीविका
  • ऋतधामन्—वि॰—ऋत-धामन्—-—सच्चे या पवित्र स्वभाव वाला
  • ऋतधामन्—पुं॰—ऋत-धामन्—-—विष्णु
  • ऋतीया—स्त्री॰ —-—ऋत-ईयड़्-टाप्—निन्दा, भर्त्सना
  • ऋतु—पुं॰—-—ऋ-तु, कित्—मौसम, वर्ष का एक भाग
  • ऋतु—पुं॰—-—-—युगारंभ, निश्चित काल
  • ऋतु—पुं॰—-—-—आर्तव, ऋतुस्राव, माहवारी
  • ऋतु—पुं॰—-—-—गर्भाधान के लिए उपयुक्त काल
  • ऋतु—पुं॰—-—-—उपयुक्त मौसम या ठीक समय
  • ऋतु—पुं॰—-—-—प्रकाश, आभा
  • ऋतु—पुं॰—-—-—छः की संज्ञा के लिए प्रतीकात्मक अभिव्यक्ति
  • ऋतुकालः—पुं॰—ऋतु-कालः—-—गर्भाधान के लिए अनुकूल समय अर्थात् ऋतुस्राव से लेकर १६ रातें
  • ऋतुकालः—पुं॰—ऋतु-कालः—-—गर्भाधान के लिए उपयुक्त काल
  • ऋतुकालः—पुं॰—ऋतु-कालः—-—मौसम की अवधि
  • ऋतुसमयः—पुं॰—ऋतु-समयः—-—गर्भाधान के लिए अनुकूल समय अर्थात् ऋतुस्राव से लेकर १६ रातें
  • ऋतुसमयः—पुं॰—ऋतु-समयः—-—गर्भाधान के लिए उपयुक्त काल
  • ऋतुसमयः—पुं॰—ऋतु-समयः—-—मौसम की अवधि
  • ऋतुवेला—स्त्री॰ —ऋतु-वेला—-—गर्भाधान के लिए अनुकूल समय अर्थात् ऋतुस्राव से लेकर १६ रातें
  • ऋतुवेला—स्त्री॰ —ऋतु-वेला—-—गर्भाधान के लिए उपयुक्त काल
  • ऋतुवेला—स्त्री॰ —ऋतु-वेला—-—मौसम की अवधि
  • ऋतुकणः—पुं॰—ऋतु-कणः—-—ऋतुओं का समुदाय
  • ऋतुगामिन्—पुं॰—ऋतु-गामिन्—-—स्त्री से संभोग करने वाला
  • ऋतुपर्णः—पुं॰—ऋतु-पर्णः—-—अयोध्या के राजा का नाम, आयुतायु का पुत्र, इक्ष्वाकु की सन्तान
  • ऋतुपर्यायः—पुं॰—ऋतु-पर्यायः—-—ऋतुओं का आना-जाना
  • ऋतुवृत्तिः—स्त्री॰ —ऋतु-वृत्तिः—-—ऋतुओं का आना-जाना
  • ऋतुमुखम्—नपुं॰—ऋतु-मुखम्—-—ऋतु का आरम्भ या पहला दिन
  • ऋतुराजः—पुं॰—ऋतु-राजः—-—वसन्त ऋतु
  • ऋतुलिङ्गम्—नपुं॰—ऋतु-लिङ्गम्—-—राजःस्राव का लक्षण या चिह्न
  • ऋतुलिङ्गम्—नपुं॰—ऋतु-लिङ्गम्—-—मासिक स्राव का चिह्न
  • ऋतुसन्धिः—स्त्री॰ —ऋतु-सन्धिः—-—दो ऋतुओं का मिलन
  • ऋतुस्नाता—स्त्री॰ —ऋतु-स्नाता—-—रजोदर्शन के पश्चात् स्नान करके निवृत हुई, और इसीलिए संभोग के लिए उपयुक्त स्त्री
  • ऋतुस्नानम्—नपुं॰—ऋतु-स्नानम्—-—रजोदर्शन के पश्चात् स्नान करना
  • ऋतुमती—स्त्री॰ —-—ऋतु-मतुप्-ड़ीप्—रजस्वला स्त्री
  • ऋते—अव्य॰—-—-—सिवाय, बिना
  • ऋत्विज्—पुं॰—-—ऋतु-यज्-क्विन्—यज्ञ के पुरोहित के रूप मे कार्य करने वाला
  • ऋद्ध—भू॰ क॰ कृ॰—-—ऋध्-क्त—सम्पन्न, फलता-फूलता, धनवान
  • ऋद्ध—भू॰ क॰ कृ॰—-—-—वृद्धि-प्राप्त, वर्धमान
  • ऋद्ध—भू॰ क॰ कृ॰—-—-—जमा किया हुआ
  • ऋद्धः—पुं॰—-—-—विष्णु
  • ऋद्धम्—नपुं॰—-—-—वृद्धि, विकास
  • ऋद्धम्—नपुं॰—-—-—प्रर्दशित उपसंहार, स्पष्ट परिणाम
  • ऋद्धिः—स्त्री॰—-—ऋध्-क्तिन्—विकास, वृद्धि
  • ऋद्धिः—स्त्री॰—-—-—सफलता, सम्पन्नता, बहुतायत
  • ऋद्धिः—स्त्री॰—-—-—विस्तार, विस्तृति, विभूति
  • ऋद्धिः—स्त्री॰—-—-—अतिप्राकृतिक शक्ति, सर्वोपरिता
  • ऋद्धिः—स्त्री॰—-—-—सम्पन्नता
  • ऋध्—दिवा॰ स्वा॰ पर॰<ऋध्यति, ऋध्नोति, ऋद्ध>—-—-—सम्पन्न होना, समृद्ध होना, सफल होना
  • ऋध्—दिवा॰ स्वा॰ पर॰<ऋध्यति, ऋध्नोति, ऋद्ध>—-—-—विकसित होना, बढना,
  • ऋध्—दिवा॰ स्वा॰ पर॰<ऋध्यति, ऋध्नोति, ऋद्ध>—-—-—संतुष्ट करना, तृप्त करना, प्रसन्न करना, मनाना
  • समृध्—वि॰—सम्-ऋध्—-—फलना-फूलना
  • ऋभुः—पुं॰—-—अरि स्वर्गे अदितौ वा भवति इति - ऋ-भू-डु—देवता, दिव्यता, देव
  • ऋभुक्षः—पुं॰—-—ऋभवो देवा क्षियन्ति वसन्ति अत्रेति - ऋभु-क्षि-ड—इन्द्र
  • ऋभुक्षः—पुं॰—-—-—स्वर्ग
  • ऋभुक्षिन्—पुं॰—-—ऋभुक्षः वज्रं स्वर्गो वास्यास्ति-इनि—इन्द्र
  • ऋल्लकः—पुं॰—-—-—एक प्रकार के वाद्ययंत्र को बजाने वाला
  • ऋश्यः—पुं॰—-—ऋश्-क्यप्—सफेद पैरों वाला बारहसिंघा हरिण
  • ऋश्यम्—नपुं॰—-—-—हत्या
  • ऋश्यकेतुः—पुं॰—ऋश्य-केतुः—-—अनिरुद्ध, प्रद्युम्न का पुत्र
  • ऋश्यकेतुः—पुं॰—ऋश्य-केतुः—-—कामदेव
  • ऋश्यकेतनः—पुं॰—ऋश्य-केतनः—-—अनिरुद्ध, प्रद्युम्न का पुत्र
  • ऋश्यकेतनः—पुं॰—ऋश्य-केतनः—-—कामदेव
  • ऋष्—तुदा॰ पर॰ <ऋषति>, <ऋष्ट>—-—-—जाना, पहुँचना
  • ऋष्—तुदा॰ पर॰ <ऋषति>, <ऋष्ट>—-—-—मार डालना, चोट पहुँचाना
  • ऋष्—भ्वा॰ पर॰ <अर्षति>—-—-—बहना
  • ऋष्—भ्वा॰ पर॰ <अर्षति>—-—-—फिसलना
  • ऋषभः—पुं॰—-—ऋशष्-अभक्—साँड़
  • ऋषभः—पुं॰—-—-—श्रेष्ठ, सर्वश्रेष्ठ
  • ऋषभः—पुं॰—-—-—संगीत के सात स्वरों मे से दूसरा
  • ऋषभः—पुं॰—-—-—सूअर की पूँछ
  • ऋषभः—पुं॰—-—-—मगरमच्छ की पूँछ
  • ऋषभी—स्त्री॰—-—-—पुरुष के आकार प्रकार की स्त्री
  • ऋषभी—स्त्री॰—-—-—गाय
  • ऋषभी—स्त्री॰—-—-—विधवा
  • ऋषभकूटः—पुं॰—ऋषभः-कूटः—-—एक पहाड़ का नाम
  • ऋषभध्वजः—पुं॰—ऋषभः-ध्वजः—-—शिव
  • ऋषिः—पुं॰—-—ऋष्-इन्, कित्—एक अन्तःस्फूर्त कवि या मुनि, मंत्र द्रष्टा
  • ऋषिः—पुं॰—-—-—पुण्यात्मा मुनि, सन्यासी, विरक्त योगी
  • ऋषिः—पुं॰—-—-—प्रकाश की किरण
  • ऋषिकुल्या—स्त्री॰—ऋषिः-कुल्या—-—पवित्र नदी
  • ऋषितर्पणम्—नपुं॰—ऋषिः-तर्पणम्—-—ऋषियों की सेवा में प्रस्तुत किया गया तर्पण
  • ऋषिपंचमी—स्त्री॰—ऋषिः-पंचमी—-—भाद्रपदकृष्णा पंचमी को होनेवाला एक पर्व
  • ऋषिलोकः—पुं॰—ऋषिः-लोकः—-—ऋषियों क संसार
  • ऋषिस्तोमः—पुं॰—ऋषिः-स्तोमः—-—ऋषियों का स्तुति-गान
  • ऋषिस्तोमः—पुं॰—ऋषिः-स्तोमः—-—एक दिन में समाप्त होनेवाला एक विशेष यज्ञ
  • ऋष्टिः—पुं॰—-—ऋष्-क्तिन्—दुधारी तलवार
  • ऋष्टिः—पुं॰—-—ऋष्-क्तिन्—तलवार, कृपाण
  • ऋष्टिः—पुं॰—-—ऋष्-क्तिन्—शस्त्र
  • ऋष्यः—पुं॰—-—ऋष्-क्यप्—सफेद पैरों वाला बारहसिंघा हरिण
  • ऋष्यङ्कः—पुं॰—ऋष्यः-अङ्कः—-—अनिरुद्ध
  • ऋष्यकेतनः—पुं॰—ऋष्यः-केतनः—-—अनिरुद्ध
  • ऋष्यकेतुः—पुं॰—ऋष्यः-केतुः—-—अनिरुद्ध
  • ऋष्यमूकः—पुं॰—ऋष्यः-मूकः—-—पंपा सरोवर के निकट स्थित एक पर्वत जहां कुछ दिनों तक राम वानरराज सुग्रीव के साथ रहे थे
  • ऋष्यशृङ्गः—पुं॰—ऋष्यः-शृङ्गः—-—एक मुनि का नाम
  • ऋष्यकः—पुं॰—-—ऋष्-कन्—चित्तीदार सफेद पैरों वाला बारहसिंघा हरिण
  • —अव्य॰—-—-—त्रास
  • —अव्य॰—-—-—दुरदुराना
  • —अव्य॰—-—-—भर्त्सना, निन्दा
  • —अव्य॰—-—-—करुणा तथा
  • —अव्य॰—-—-—स्मृति का व्यंजक विस्मयादि द्योतक अव्यय
  • ॠः—पुं॰—-—-—भैरव
  • ॠः—पुं॰—-—-—एक राक्षस
  • —क्र्या॰ पर॰ <ॠणाति>,<ईर्ण>—-—-—जाना, हिलना-डुलना
  • एः—पुं॰—-—इ-विच्—विष्णु
  • एः—अव्यय—-—-—स्मरण
  • एः—अव्यय—-—-—ईर्ष्या
  • एः—अव्यय—-—-—करुणा
  • एः—अव्यय—-—-—आमन्त्रण
  • एः—अव्यय—-—-—घृणा तथा निन्दा व्यंजक अव्यय
  • एक—सर्व॰ वि॰—-—इ-कन्—एक , अकेला, एकाकी, केवल मात्र
  • एक—सर्व॰ वि॰—-—इ-कन्—जिसके साथ् कोई और न हो
  • एक—सर्व॰ वि॰—-—इ-कन्—वही बिल्कुल वही, समरूप
  • एक—सर्व॰ वि॰—-—इ-कन्—स्थिर, अपरिवर्तित
  • एक—सर्व॰ वि॰—-—इ-कन्—अपनी प्रकार का अकेला, अद्वितीय, एक वचन
  • एक—सर्व॰ वि॰—-—इ-कन्—मुख्य, सर्वोपरि, प्रमुख, अनन्य
  • एक—सर्व॰ वि॰—-—इ-कन्—अनुपम, बेजोड़
  • एक—सर्व॰ वि॰—-—इ-कन्—दो या बहुत में से एक
  • एक—सर्व॰ वि॰—-—इ-कन्—बहुधा अंग्रेजी के अनिश्चयवाचक निपात की भांति प्रयुक्त, एक, दूसरा; 'कुछ' अर्थ को प्रकट करने के लिए बहुवचनान्त प्रयोग; अन्ये, अपरे इसके सहसम्बन्धी शब्द हैं
  • एकाक्ष—वि॰—एक-अक्ष—-—एक धुरी वाला
  • एकाक्ष—वि॰—एक-अक्ष—-—एक आँख वाला
  • एकाक्षः—पुं॰—एक-अक्षः—-—कौआ
  • एकाक्षः—पुं॰—एक-अक्षः—-—शिव
  • एकाक्षर—वि॰—एक-अक्षर—-—एक अक्षर वाला
  • एकाक्षरम्—नपुं॰—एक-अक्षरम्—-—एक अक्षर वाला,पावन अक्षर 'ओम्'
  • एकाग्र—वि॰—एक-अग्र—-—केवल एक पदार्थ या बिन्दु पर स्थिर
  • एकाग्र—वि॰—एक-अग्र—-—एक ही ओर ध्यान में मग्न, एकाग्रचित्त, तुला हुआ
  • एकाग्र—वि॰—एक-अग्र—-—अव्यग्र, अचंचल
  • एकाग्र्य—वि॰—एक-अग्र्य—-—एकाग्र
  • एकाग्र्यम्—नपुं॰—एक-अग्र्यम्—-—एकाग्रता
  • एकाङ्गः—पुं॰—एक-अङ्गः—-—शरीर रक्षक
  • एकाङ्गः—पुं॰—एक-अङ्गः—-—मंगल ग्रह या बुद्ध ग्रह
  • एकानुदिष्टम्—नपुं॰—एक-अनुदिष्टम्—-—अन्त्येष्टि संस्कार जो केवल एक ही पूर्वज को उद्देश्य करके किया गया हो
  • एकान्त—वि॰—एक-अन्त—-—अकेला
  • एकान्त—वि॰—एक-अन्त—-—एक ओर, पार्श्व में
  • एकान्त—वि॰—एक-अन्त—-—जो केवल एक ही पदार्थ या बिन्दु की ओर निर्दिष्ट हो
  • एकान्त—वि॰—एक-अन्त—-—अत्यधिक, बहुत
  • एकान्त—वि॰—एक-अन्त—-—निरपेक्ष, अचल, सतत
  • एकान्तः—पुं॰—एक-अन्तः—-—एकमात्र आश्रय, निश्चित नियम
  • एकान्तम्—अव्य॰—एक-अन्तम्—-—केवल मात्र, अवश्य, सदैव, नितांत
  • एकान्तम्—अव्य॰—एक-अन्तम्—-—अत्यन्त, बिल्कुल, सर्वथा
  • एकान्तेन—अव्य॰—एक-अन्तेन—-—केवल मात्र, अवश्य, सदैव, नितांत
  • एकान्तेन—अव्य॰—एक-अन्तेन—-—अत्यन्त, बिल्कुल, सर्वथा
  • एकान्ततः—अव्य॰—एक-अन्ततः—-—केवल मात्र, अवश्य, सदैव, नितांत
  • एकान्ततः—अव्य॰—एक-अन्ततः—-—अत्यन्त, बिल्कुल, सर्वथा
  • एकान्तते—अव्य॰—एक-अन्ते—-—केवल मात्र, अवश्य, सदैव, नितांत
  • एकान्तते—अव्य॰—एक-अन्ते—-—अत्यन्त, बिल्कुल, सर्वथा
  • एकान्तरे—वि॰—एक-अन्तर—-—अगला, जिसमें केवल एक का ही अन्तर रहे, एक के बाद एक को छोड़ कर
  • एकान्तिक—वि॰—एक-अन्तिक—-—अन्तिम निर्णायक
  • एकायन—वि॰—एक-अयन—-—जहाँ से केवल एक ही जा सके
  • एकायन—वि॰—एक-अयन—-—नितान्त ध्यानमग्न, तुला हुआ
  • एकायनम्—नपुं॰—एक-अयनम्—-—एकान्त स्थल या विश्राम स्थली
  • एकायनम्—नपुं॰—एक-अयनम्—-—मिलने का स्थान, संकेत-स्थल
  • एकायनम्—नपुं॰—एक-अयनम्—-—अद्वैतवाद्
  • एकायनम्—नपुं॰—एक-अयनम्—-—केवलमात्र उद्देश्य
  • एकार्थः—पुं॰—एक-अर्थः—-—वही वस्तु, वही पदार्थ या वही आशय
  • एकार्थः—पुं॰—एक-अर्थः—-—वही भाव
  • एकाहः—पुं॰—एक-अहन्—-—एक दिन का समय
  • एकाहः—पुं॰—एक-अहन्—-—एक दिन तक चलने वाला यज्ञ
  • एकातपत्र—वि॰—एक-आतपत्र—-—एकच्छत्र से विशिष्टीकृत
  • एकादेशः—पुं॰—एक-आदेशः—-—दो या दो से अधिक अक्षरों का एक स्थानापन्न
  • एकावलिः—स्त्री॰—एक-आवलिः—-—मोतियों की या अन्य मनकों की एक लड़, ऐसी उक्तियों की पंक्ति कर्त्ता का विधेय और विधेय का कर्त्ता के रूप में नियमित संक्रमण पाया जाय
  • एकावली—स्त्री॰—एक-आवली—-—मोतियों की या अन्य मनकों की एक लड़, ऐसी उक्तियों की पंक्ति कर्त्ता का विधेय और विधेय का कर्त्ता के रूप में नियमित संक्रमण पाया जाय
  • एकोदकः—पुं॰—एक-उदकः—-—जो एक ही मृत पूर्वज से जल के तर्पण द्वारा संबंद्ध हो
  • एकोदरः—पुं॰—एक-उदरः—-—सगा भाई
  • एकोदरा—स्त्री॰—एक-उदरा—-—सगी बहन
  • एकोदिष्टम्—नपुं॰—एक-उद्दिष्टम्—-—श्राद्धकृत्य जो केवल एक ही मृत व्यक्ति को उद्देश्य करके किया गया हो
  • एकोन—वि॰—एक-उन—-—एक कम, एक घटाकर
  • एकैक—वि॰—एक-एक—-—एक एक करके, व्यष्टिरूप से, एक अकेला
  • एकैकम्—अव्य॰—एक-एकम्—-—एक-एक करके, व्यक्तिशः, पृथक्-पृथक्
  • एकोघः—पुं॰—एक-ओघः—-—एक सतत धारा
  • एककर—वि॰—एक-कर—-—एक ही कार्य करने वाला
  • एककर—वि॰—एक-कर—-—एक ही हाथ वाली
  • एककर—वि॰—एक-कर—-—एक किरण वाली
  • एककार्य—वि॰—एक-कार्य—-—मिलकर काम करने वाला, सहयोगी, सहकारी
  • एककार्यम्—नपुं॰—एक-कार्यम्—-—एक मात्र कार्य, वही कार्य
  • एककालः—पुं॰—एक-कालः—-—एक समय
  • एककालः—पुं॰—एक-कालः—-—उसी समय
  • एककालिक—वि॰—एक-कालिक—-—केवल एक बार होनेवाला
  • एककालिक—वि॰—एक-कालिक—-—समवयस्क, समसामयिक
  • एककालीन—वि॰—एक-कालीन—-—केवल एक बार होनेवाला
  • एककालीन—वि॰—एक-कालीन—-—समवयस्क, समसामयिक
  • एककुण्डलः—पुं॰—एक-कुण्डलः—-—कुबेर, बलभद्र, शेषनाग
  • एकगुरु—वि॰—एक-गुरु—-—एक ही गुरु वाला
  • एकगुरुक—वि॰—एक-गुरुक—-—एक ही गुरु वाला
  • एकगुरुः—पुं॰—एक-गुरुः—-—गुरुभाई
  • एकगुरुकः—पुं॰—एक-गुरुकः—-—गुरुभाई
  • एकचक्रः—वि॰—एक-चक्रः—-—एक ही पहिये वाला
  • एकचक्रः—वि॰—एक-चक्रः—-—एक ही राजा द्वारा शासित
  • एकक्रः—पुं॰—एक-क्रः—-—सूर्य का रथ
  • एकचत्वारिंशत्—स्त्री॰—एक-चत्वारिंशत्—-—इकतालिस
  • एकचर—वि॰—एक-चर—-—अकेला घूमने या रहने वाला
  • एकचर—वि॰—एक-चर—-—एक ही अनुचर रखने वाला
  • एकचर—वि॰—एक-चर—-—असहाय रहने वाला
  • एकचारिन्—वि॰—एक-चारिन्—-—अकेला
  • एकचारिणी —स्त्री॰—एक-चारिणी —-—पतिव्रता स्त्री
  • एकचित्त—वि॰—एक-चित्त—-—केवल एक ही बात को सोचने वाला
  • एकचित्तम्—नपुं॰—एक-चित्तम्—-—एक ही वस्तु पर चित्त की स्थिरता
  • एकचित्तम्—नपुं॰—एक-चित्तम्—-—ऐकमत्य, एक मत से
  • एकचेतस्—वि॰—एक-चेतस्—-—एक मत
  • एकमनस्—वि॰—एक-मनस्—-—एक मत
  • एकजन्मन्—पुं॰—एक-जन्मन्—-—राजा
  • एकजन्मन्—पुं॰—एक-जन्मन्—-—शूद्र
  • एकजात—वि॰—एक-जात—-—एक ही माता-पिता से उत्पन्न
  • एकजातिः—स्त्री॰—एक-जातिः—-—शूद्र
  • एकजातीय—वि॰—एक-जातीय—-—एक ही प्रकार का या एक ही परिवार का
  • एकज्योतिस्—पुं॰—एक-ज्योतिस्—-—शिव
  • एकतान—वि॰—एक-तान—-—केवल एक पदार्थ पर स्थिर या केन्द्रित, नितान्त ध्यानमग्न
  • एकतालः—पुं॰—एक-तालः—-—संगति, गीतों का यथार्थ समंजन, नृत्य, वाद्य यंत्र
  • एकतीर्थिन्—वि॰—एक-तीर्थिन्—-—उसी पावन जल में स्नान करनेवाला
  • एकतीर्थिन्—वि॰—एक-तीर्थिन्—-—एक ही धर्मसंघ से संबंध रखने वाला
  • एकतीर्थिन्—पुं॰—एक-तीर्थिन्—-—सहपाठी, गुरुभाई
  • एकत्रिंशत्—स्त्री॰—एक-त्रिंशत्—-—इकतीस
  • एकदंष्ट्रः—पुं॰—एक-दंष्ट्रः—-—एक दांत वाला, गणेश का विशेषण
  • एकदन्तः—पुं॰—एक-दन्तः—-—एक दांत वाला, गणेश का विशेषण
  • एकदण्डिन्—पुं॰—एक-दण्डिन्—-—सन्यासियों या भिक्षुकों का एक समुदाय
  • एकदृश—वि॰—एक-दृश—-—एक आँख वाला
  • एकदृश—पुं॰—एक-दृश—-—कौवा
  • एकदृश—पुं॰—एक-दृश—-—शिव
  • एकदृश—पुं॰—एक-दृश—-—दार्शनिक
  • एकदृष्टि—वि॰—एक-दृष्टि—-—एक आँख वाला
  • एकदृष्टि—पुं॰—एक-दृष्टि—-—कौवा
  • एकदृष्टि—पुं॰—एक-दृष्टि—-—शिव
  • एकदृष्टि—पुं॰—एक-दृष्टि—-—दार्शनिक
  • एकदेवः—पुं॰—एक-देवः—-—परब्रह्म
  • एकदेशः—पुं॰—एक-देशः—-—एक स्थान या स्थल
  • एकदेशः—पुं॰—एक-देशः—-—एक भाग या अंश
  • एकधर्मन्—वि॰—एक-धर्मन्—-—एक ही प्रकार के गुणों को रखने वाला, या एक ही प्रकार की संपत्ति को रखने वाला
  • एकधर्मन्—वि॰—एक-धर्मन्—-—एक ही धर्म को मानने वाला
  • एकधर्मिन्—वि॰—एक-धर्मिन्—-—एक ही प्रकार के गुणों को रखने वाला, या एक ही प्रकार की संपत्ति को रखने वाला
  • एकधर्मिन्—वि॰—एक-धर्मिन्—-—एक ही धर्म को मानने वाला
  • एकधुर—वि॰—एक-धुर—-—जो एक ही प्रकार कर सके
  • एकधुर—वि॰—एक-धुर—-—जो एक ही प्रकार से जुत सके
  • एकधुरावह—वि॰—एक-धुरावह—-—जो एक ही प्रकार कर सके
  • एकधुरावह—वि॰—एक-धुरावह—-—जो एक ही प्रकार से जुत सके
  • एकधुरीण—वि॰—एक-धुरीण—-—जो एक ही प्रकार कर सके
  • एकधुरीण—वि॰—एक-धुरीण—-—जो एक ही प्रकार से जुत सके
  • एकनटः—पुं॰—एकः-नटः—-—नाटक में प्रधान पात्र, सूत्रधार जो नान्दीपाठ करता है
  • एकनवतिः—स्त्री॰—एक-नवतिः—-—इक्यानवे
  • एकपक्षः—पुं॰—एक-पक्षः—-—एक पक्ष या दल
  • एकपत्नी—स्त्री॰—एक-पत्नी—-—पतिव्रता स्त्री
  • एकपत्नी—स्त्री॰—एक-पत्नी—-—सपत्नी, सोत
  • एकपदी—स्त्री॰—एक-पदी—-—पगडंडी
  • एकपदे—अव्य॰—एक-पदे—-—अकस्मात्,एकदम, अचानक
  • एकपादः—पुं॰—एक-पादः—-—एक या अकेला पैर
  • एकपादः—पुं॰—एक-पादः—-—एक या वही चरण
  • एकपादः—पुं॰—एक-पादः—-—विष्णु, शिव
  • एकपिङ्गः—पुं॰—एक-पिङ्गः—-—कुबेर
  • एकपिङ्गलः—पुं॰—एक-पिङ्गलः—-—कुबेर
  • एकपिण्ड—वि॰—एक-पिण्ड—-—अन्त्येष्ठि पिंड- दान के द्वारा संयुक्त
  • एकभार्या—स्त्री॰—एक-भार्या—-—एक पतिव्रता और सती स्त्री
  • एकभार्यः—पुं॰—एक-भार्यः—-—केवल एक पत्नी रखने वाला
  • एकभाव—वि॰—एक-भाव—-—सच्चा भक्त, ईमानदार
  • एकयष्टिः—स्त्री॰—एक-यष्टिः—-—मोतियों की एक लड़ी
  • एकयष्टिका—स्त्री॰—एक-यष्टिका—-—मोतियों की एक लड़ी
  • एकयोनि—वि॰—एक-योनि—-—सहोदर
  • एकयोनि—वि॰—एक-योनि—-—एक ही कुल या जाति के
  • एकरसः—पुं॰—एक-रसः—-—उद्देश्य या भावना की एकता
  • एकरसः—पुं॰—एक-रसः—-—केवल मात्र रस या आनन्द
  • एकराज्—पुं॰—एक-राज्—-—निरंकुश या स्वेच्छाचारी राजा
  • एकराजः—पुं॰—एक-राजः—-—निरंकुश या स्वेच्छाचारी राजा
  • एकरात्रः—पुं॰—एक-रात्रः—-—एक पूरी रात तक रहने वाला पर्व
  • एकरिक्थिन्—पुं॰—एक-रिक्थिन्—-—सह-उत्तराधिकारी
  • एकरूप—वि॰—एक-रूप—-—एक सा, समान
  • एकरूप—वि॰—एक-रूप—-—समरूप
  • एकलिङ्गः—पुं॰—एक-लिङ्गः—-—एक ही लिंग रखने वाला शब्द
  • एकलिङ्गः—पुं॰—एक-लिङ्गः—-—कुबेर
  • एकवचनम्—नपुं॰—एक-वचनम्—-—एक संख्या को प्रकट करने वाला शब्द
  • एकवर्णः—पुं॰—एक-वर्णः—-—एक जाति
  • एकवर्षिका—स्त्री॰—एक-वर्षिका—-—एक वर्ष की बछिया
  • एकवाक्यता—स्त्री॰—एक-वाक्यता—-—अर्थ की संगति, ऐकमत्य, विभिन्न उक्तियों का सामंजस्य
  • एकवारम्—अव्य॰—एक-वारम्—-—केवल एक बार
  • एकवारम्—अव्य॰—एक-वारम्—-—तुरन्त, अकस्मात्
  • एकवारम्—अव्य॰—एक-वारम्—-—एक ही समय
  • एकवारे—अव्य॰—एक-वारे—-—केवल एक बार
  • एकवारे—अव्य॰—एक-वारे—-—तुरन्त, अकस्मात्
  • एकवारे—अव्य॰—एक-वारे—-—एक ही समय
  • एकविंशतिः—स्त्री॰—एक-विंशतिः—-—इक्कीस
  • एकविलोचन—वि॰—एक-विलोचन—-—एक आँख वाला
  • एकविषयिन्—पुं॰—एक-विषयिन्—-—प्रतिद्वन्द्वी
  • एकवीरः—पुं॰—एक-वीरः—-—प्रमुख योद्धा या शूरवीर
  • एकवेणिः—स्त्री॰—एक-वेणिः—-—बालों की एक मात्र चोटी
  • एकवेणी—स्त्री॰—एक-वेणी—-—बालों की एक मात्र चोटी
  • एकशफ—वि॰—एक-शफ—-—अखंड खुर वाला
  • एकशफः—पुं॰—एक-शफः—-—ऐसा पशु जिसके खुर या सुम फटे हुए न हों
  • एकशरीर—वि॰—एक-शरीर—-—रक्तसंबद्ध एक खून का
  • एकावयवः—पुं॰—एक-अवयवः—-—एक रक्त के बन्धु - बांधव
  • एकशाखः—पुं॰—एक-शाखः—-—एक ही शाखा या विचार का ब्राह्मण
  • एकशृड़्ग—वि॰—एक-शृड़्ग—-—केवल एक सींग धारी
  • एकशृड़्गः—पुं॰—एक-शृड़्गः—-—अरण्याश्व, गेंडा
  • एकशृड़्गः—पुं॰—एक-शृड़्गः—-—विष्णु
  • एकशेषः—पुं॰—एक-शेषः—-—एकशेष' द्वन्द्व समास का एक भेद जिसमें केवल एक ही पद अवशिष्ट रहता है
  • एकश्रुत—वि॰—एक-श्रुत—-—एक ही बार सुना हुआ
  • एकधर—वि॰—एक-धर—-—एक बार सुनी हुई बात को ध्यान में रखने वाला
  • एकश्रुतिः—स्त्री॰—एक-श्रुतिः—-—एकस्वरता
  • एकसप्ततिः—स्त्री॰—एक-सप्ततिः—-—इकह्त्तर
  • एकसर्ग—वि॰—एक-सर्ग—-—नितान्त ध्यानमग्न
  • एकसाक्षिक—वि॰—एक-साक्षिक—-—एक व्यक्ति द्वारा देखा हुआ
  • एकहायन—वि॰—एक-हायन—-—एक वर्ष की आयु का
  • एकहायनी—स्त्री॰—एक-हायनी—-—एक वर्ष की बछिया
  • एकक—वि॰—-—एक-कन्—इकहरा, अकेला, एकाकी, बिना किसी सहयक के
  • एकक—वि॰—-—एक-कन्—वही, समरूप
  • एकतम—वि॰—-—एक-डतमच्—बहुतों में से एक
  • एकतम—वि॰—-—एक-डतमच्—एक
  • एकतर—नपुं॰—-—एक-डतरच्—दो में से कोई एक, कोई सा
  • एकतर—नपुं॰—-—एक-डतरच्—दूसरा, भिन्न
  • एकतर—नपुं॰—-—एक-डतरच्—बहुतों में से एक
  • एकतः—अव्य॰—-—एक-तसिल्—एक ओर से, एक ओर
  • एकतः—अव्य॰—-—एक-तसिल्—एक एक करके, एक एक
  • एकतोऽन्यतः—अव्य॰—एकतः-अन्यतः—-—एक ओर, दूसरी ओर
  • एकत्र—अव्य॰—-—एक-त्रल्—एक स्थान पर
  • एकत्र—अव्य॰—-—एक-त्रल्—इकठ्ठे, सब इकठ्ठे मिलकर
  • एकदा—अव्य॰—-—एक-दा—एक बार, एक दफा, एक समय
  • एकदा—अव्य॰—-—एक-दा—उसी समय, सर्वथा एक बार, साथ ही साथ
  • एकधा—अव्य॰—-—एक-धा—एक प्रकार से,
  • एकधा—अव्य॰—-—एक-धा—अकेले
  • एकधा—अव्य॰—-—एक-धा—तुरन्त, उसी समय
  • एकधा—अव्य॰—-—एक-धा—मिलकर, साथ साथ
  • एकल—वि॰—-—एक-ला-क—अकेला, एकाकी
  • एकशः—अव्य॰—-—एक-शस्—एक एक करके, अकेले
  • एकाकिन्—वि॰—-—एक-आकिनच्—अकेला, केवल एक
  • एकादशन्—सं॰ वि॰—-—एकेन अधिका दश इति—ग्यारह
  • एकादश—वि॰—-—-—ग्यारहवाँ
  • एकादशी—स्त्री॰—-—-—चान्द्र मास के प्रत्येक पक्ष का ग्यरहवाँ दिन, विष्णु संबंधी पुनीत दिवस
  • एकादशद्वारम्—नपुं॰—एकादश-द्वारम्—-—शरीर के ग्यारह छिद्र
  • एकादशरुद्राः—ब॰ व॰—एकादश-रुद्राः—-—११ रुद्र
  • एकीभावः—पुं॰—-—एक-च्वि-भू-घञ्—संहति, साहचर्य
  • एकीभावः—पुं॰—-—एक-च्वि-भू-घञ्—सामान्य स्वभाव या गुण
  • एकीय—वि॰—-—एक-छ—एक का या एक से
  • एकीयः—पुं॰—-—एक-छ—तरफदार, सहकारी
  • एज्—भ्वा॰ आ॰<एजते>, <एजित>—-—-—काँपना
  • एज्—भ्वा॰ आ॰<एजते>, <एजित>—-—-—हिलना-डुलना
  • एज्—भ्वा॰ आ॰<एजते>, <एजित>—-—-—चमकना
  • अपेज्—भ्वा॰ आ॰—अप-एज्—-—दूर हाँक देना
  • उदेज्—भ्वा॰ आ॰—उद-एज्—-—उठना, ऊपर को होना
  • एठ्—भ्वा॰ आ॰ <एठते>,<एठितज़्>—-—-—छेदना, रोकना, विरोध करना
  • एड—वि॰—-—इल्-अच्, डलयोरभेदः—बहरा
  • एडः—पुं॰—-—-—एक प्रकार की भेंड़
  • एडमूक—वि॰—एड-मूक—-—बहरा और गूगा
  • एडमूक—वि॰—एड-मूक—-—दुष्ट, कुटिल
  • एडकः—पुं॰—-—एड-कन्—भेड़ा, जंगली बकरा
  • एडका—स्त्री॰—-—एड-कन्+ टाप्—भेड़ी
  • एणः—पुं॰—-—एति द्रुतं गच्छति इति - इ-ण-एण-कन् च—एक प्रकार का काला बारासिंघा हरिण
  • एणकः—पुं॰—-—एति द्रुतं गच्छति इति - इ-ण-एण-कन् च—एक प्रकार का काला बारासिंघा हरिण
  • एणाजिनम्—नपुं॰—एणः-अजिनम्—-—मृगचर्म
  • एणतिलकः—पुं॰—एणः-तिलकः—-—चन्द्रमा
  • एणभृत्—पुं॰—एणः-भृत्—-—चन्द्रमा
  • एणाङ्कः—पुं॰—एणः-अङ्कः—-—चन्द्रमा
  • एणलाञ्छनः—पुं॰—एणः-लाञ्छनः—-—चन्द्रमा
  • एणदृश्—वि॰—एणः-दृश्—-—हरिण जैसी आँखों वाला
  • एणदृश्—वि॰—एणः-दृश्—-—हरिण जैसी आँखों वाला
  • एणी—स्त्री॰—-—एण-ङीष्—काली हरिणी
  • एत—वि॰—-—-—रंगबिरंगा, चमकीला
  • एतः—पुं॰—-—-—हरिण या बारहसिंघा
  • एतद्—सर्व॰ वि॰—-—इ-अदि, तुक्—यह, यहाँ, सामने
  • एतद्—सर्व॰ वि॰—-—इ-अदि, तुक्—यह प्रायः अपने पूर्ववर्ती शब्द की ओर संकेत करता है, विशेषकर जबकि यह 'इदम्' या किसी और सर्वनाम के साथ संयुक्त किया जाय
  • एतद्—सर्व॰ वि॰—-—इ-अदि, तुक्—यह संबंधबोधक वाक्यखंड में भी प्रायः प्रयुक्त होता है और उस अवस्था में - संबंधबोधक बाद में आता है
  • एतद्—अव्य॰—-—-—इस रीति से, इस प्रकार, अतः, ध्यान दो
  • एतदनन्तरम्—नपुं॰—एतद्-अनन्तरम्—-—इसके तुरन्त बाद
  • एतदंत—वि॰—एतद्-अंत—-—इस प्रकार समाप्त करते हुए
  • एतद्द्वितीय—वि॰—एतद्-द्वितीय—-—जो किसी कार्य को दोबारा करे
  • एतत्प्रथम—वि॰—एतद्-प्रथम—-—जो किसी को पहली बार करे
  • एतदीय—वि॰—-—एतद्-छ—इसका, के,की
  • एतनः—पुं॰—-—आ-इ-तन—श्वास, साँस छोड़ना
  • एतर्हि—अव्य॰—-—इदम्-र्हिल्, एत आदेशः—अब, इस समय, वर्तमान समय में
  • एतादृश्—वि॰—-—-—ऐसा, इस प्रकार का
  • एतादृश्—वि॰—-—-—इस प्रकार का
  • एतादृश—वि॰—-—-—ऐसा, इस प्रकार का
  • एतादृश—वि॰—-—-—इस प्रकार का
  • एतादृक्ष—वि॰—-—-—ऐसा, इस प्रकार का
  • एतादृक्ष—वि॰—-—-—इस प्रकार का
  • एतावत्—वि॰—-—एतद्-वतुप्—इतना अधिक, इतना बड़ा, इतने अधिक, इतना विस्तृत, इतनी दूर, इस गुण का या ऐसे प्रकार का
  • एतावत्—अव्य॰—-—-—इतनी दूर, इतना अधिक, इतने अंश में, इस प्रकार
  • एध्—भ्वा॰ आ॰ <एधते>, <एधित>—-—-—उगना, बढ़ना
  • एध्—भ्वा॰ आ॰ <एधते>, <एधित>—-—-—फलना-फूलना, सुख में जीवन बिताना
  • एध्—पुं॰—-—-—उगवाना, बढ़वाना, अभिवादन करना, सम्मान करना
  • एधः—पुं॰—-—इन्ध्-घञ्, नि॰—इंधन
  • एधतुः—पुं॰—-—एध्-चतु—मनुष्य
  • एधतुः—पुं॰—-—एध्-चतु—अग्नि
  • एधस्—नपुं॰—-—इन्ध्-असि—इंधन
  • एधा—स्त्री॰—-—एध्-अ-टाप्—फलना-फूलना, हर्ष
  • एधित—भू॰ क॰ कृ॰—-—एध्-क्त—विकसित, बढ़ा हुआ
  • एधित—भू॰ क॰ कृ॰—-—एध्-क्त—पाला पोसा
  • एनस्—नपुं॰—-—इ-असुन्, नुडागमः—पाप, अपराध, दोष
  • एनस्—नपुं॰—-—इ-असुन्, नुडागमः—कुचेष्टा, जुर्म
  • एनस्—नपुं॰—-—इ-असुन्, नुडागमः—खिन्नता
  • एनस्—नपुं॰—-—इ-असुन्, नुडागमः—निन्दा, कलंक
  • एनस्वत्—वि॰—-—एनस्-मतुप्, व आदेशः, विनि वा—दुष्ट, पापी
  • एनस्विन्—वि॰—-—एनस्-मतुप्, व आदेशः, विनि वा—दुष्ट, पापी
  • एरण्डः—पुं॰—-—आ-ईर्-अण्डच्—अरंडी का पौधा
  • एलकः—पुं॰—-—इल्-अच्-कन्—मेढ़ा
  • एलवालु—नपुं॰—-—-—कैथ वृक्ष की सुगन्धयुक्त छाल
  • एलवालु—नपुं॰—-—-—एक रवेदार या दानेदार द्रव्य
  • एलवालुकम्—नपुं॰—-—एला-वल्-उण् ह्रस्वः कन् च—कैथ वृक्ष की सुगन्धयुक्त छाल
  • एलवालुकम्—नपुं॰—-—एला-वल्-उण् ह्रस्वः कन् च—एक रवेदार या दानेदार द्रव्य
  • एलविलः—पुं॰—-—इल्विला-अण्—कुबेर
  • एला—स्त्री॰—-—इल्-अच्-टाप्—इलायची का पौधा
  • एला—स्त्री॰—-—इल्-अच्-टाप्—इलायची
  • एलापर्णी—स्त्री॰—एला-पर्णी—-—लाजवन्ती जाति का एक पौधा
  • एलीका—स्त्री॰—-—आ-ईल्-ईकन्-टाप्—छोटी इलायची
  • एव—अव्य॰—-—इ-वन्—ठीक, बिल्कुल, सही तौर पर
  • एवमेव—अव्य॰—-—इ-वन्—बिल्कुल ऐसा ही, ठीक इसी प्रकार का
  • एव—अव्य॰—-—इ-वन्—वही, सही, समरूप
  • एव—अव्य॰—-—इ-वन्—केवल, अकेला, मात्र,केवल मात्र सचाई, सचाई के अतिरिक्त और कुछ नहीं
  • एव—अव्य॰—-—इ-वन्—पहले ही
  • एव—अव्य॰—-—इ-वन्—कठिनाई से, उसी क्षण, ज्यूँही
  • एव—अव्य॰—-—इ-वन्—की भाँति, जैसे कि
  • एव—अव्य॰—-—इ-वन्—सामान्यतः किसी उक्ति पर बल देने के लिए, यह बात निश्चित रूप से होगी
  • एव—अव्य॰—-—इ-वन्—अपयश
  • एव—अव्य॰—-—इ-वन्—न्यूनता
  • एव—अव्य॰—-—इ-वन्—आज्ञा
  • एव—अव्य॰—-—इ-वन्—नियंत्रण
  • एव—अव्य॰—-—इ-वन्—केवल पूर्ति के लिए
  • एवम्—अव्य॰—-—इ-वमु—अतः, इसलिए, इस रीति से, यह इस प्रकार से है
  • एवमस्तु—अव्य॰—-—-—ऐसा ही हो
  • यद्येवम्—अव्य॰—-—-—यदि ऐसा है
  • यद्येवम्—अव्य॰—-—-—बिल्कुल ऐसा ही
  • एवमवस्थ—वि॰—एवम्-अवस्थ—-—इस प्रकार स्थित, या ऐसी परिस्थितियों में फँसा हुआ
  • एवमादि—वि॰—एवम्-आदि—-—ऐसा और इस प्रकार का
  • एवमाद्य—वि॰—एवम्-आद्य—-—ऐसा और इस प्रकार का
  • एवङ्कारम्—अव्य॰—एवम्-कारम्—-—इस रीति से
  • एवङ्गुण—वि॰—एवम्-गुण—-—ऐसे गुणों वाला
  • एवम्प्रकार—वि॰—एवम्-प्रकार—-—इस प्रकार का
  • एवम्प्राय—वि॰—एवम्-प्राय—-—इस प्रकार का
  • एवम्भूत—वि॰—एवम्-भूत—-—इस प्रकार के गुणों वाला, ऐसा, इस ढंग का
  • एवंरूप—वि॰—एवम्-रूप—-—इस प्रकार का, ऐसे रूप का
  • एवंविध—वि॰—एवम्-विध—-—इस प्रकार का, ऐसा
  • एष्—भ्वा॰ उभ॰ <एषति>, <एषते>, <एषित>—-—-—जाना, पहुँचना
  • एष्—भ्वा॰ उभ॰ <एषति>, <एषते>, <एषित>—-—-—शीघ्रता से जाना, दौड़ कर् जाना
  • पर्येषः—पुं॰—परि-एषः—-—ढूढ़ना
  • एषणः—पुं॰—-—एष्-ल्युट्—लोहे का तीर
  • एषणम्—नपुं॰—-—एष्-ल्युट्—ढूढ़ना
  • एषणम्—नपुं॰—-—एष्-ल्युट्—कामना करना
  • एषणा—स्त्री॰—-—एष्-ल्युट्+ टाप्—कामना, इच्छा
  • एषणिका—स्त्री॰—-—इष्-ल्युट्-कन्-टाप्, इत्वम्—सुनार का काँटा तोलने की तराजू
  • एषा—स्त्री॰—-—इष्-अ-टाप्—इच्छा, कामना
  • एषिन्—वि॰—-—इष्-णिनि—इच्छा करते हुए
  • ऐः—पुं॰—-—आ-इ-विच्—शिव
  • ऐः—अव्य॰—-—-—बुलाने
  • ऐः—अव्य॰—-—-—स्मरण करने
  • ऐः—अव्य॰—-—-—आमंत्रण को प्रकट करने वाला विस्मयादि द्योतक चिह्न
  • ऐकद्यम्—अव्य॰—-—-—तुरन्त
  • ऐकध्यम्—नपुं॰—-—एकधा-ध्यमुञ्—समय या घटना की ऐकान्तितता
  • ऐकपत्यम्—नपुं॰—-—एकपति-ष्यञ्—परम प्रभुता, सर्वोपरि शक्ति
  • ऐकपदिक—वि॰—-—एकपद-ठञ्—एक पद से संबंध रखने वाला
  • ऐकपद्यम्—नपुं॰—-—एक पद-ष्यञ्—शब्दों की एकता
  • ऐकपद्यम्—नपुं॰—-—एक पद-ष्यञ्—एक शब्द बनना
  • ऐकमत्यम्—नपुं॰—-—एकमत-ष्यञ्—एकमतता, सहमति
  • ऐकागारिकः—पुं॰—-—एकागार-ठक्—चोर
  • ऐकागारिकः—पुं॰—-—एकागार-ठक्—एक घर का मालिक
  • ऐकाग्र्यम्—नपुं॰—-—एकाग्र-ष्यञ्—एक ही पदार्थ पर जुट जाना, एकाग्रता
  • ऐकाङ्गः—पुं॰—-—ऐकाङ्ग-अण—शरीर रक्षक दल का एक सिपाही
  • ऐकात्म्यम्—नपुं॰—-—एकात्मन्-ष्यञ्—एकता, आत्मा की एकता
  • ऐकात्म्यम्—नपुं॰—-—एकात्मन्-ष्यञ्—समरूपता, समता
  • ऐकात्म्यम्—नपुं॰—-—एकात्मन्-ष्यञ्—परमात्मा के साथ एकता या तादात्म्य
  • ऐकाधिकरण्यम्—नपुं॰—-—एकाधिकरण-ष्यञ्—संबंध की एकता
  • ऐकाधिकरण्यम्—नपुं॰—-—एकाधिकरण-ष्यञ्—एक ही विषय में व्याप्ति
  • ऐकान्तिक—वि॰—-—-—पूर्ण, समग्र, पूरा
  • ऐकान्तिक—वि॰—-—-—विश्वस्त, निश्चित
  • ऐकान्तिक—वि॰—-—-—अनन्य
  • ऐकान्यिकः—पुं॰—-—एकान्य-ठक्—वह शिष्य जो वेद का सस्वर पाठ करने में एक अशुद्धि करे
  • ऐकार्थ्यम्—नपुं॰—-—एकार्थ-ष्यञ्—उद्देश्य या प्रयोजन की समानता
  • ऐकार्थ्यम्—नपुं॰—-—एकार्थ-ष्यञ्—अर्थों की संगति
  • ऐकाहिक—वि॰—-—एकाह-ठक्—आह्निक
  • ऐकाहिक—वि॰—-—एकाह-ठक्—एक दिन का, उसी दिन का, दैनिक
  • ऐक्यम्—नपुं॰—-—एक-ष्यञ्—एकपना, एकता
  • ऐक्यम्—नपुं॰—-—एक-ष्यञ्—एकमतता
  • ऐक्यम्—नपुं॰—-—एक-ष्यञ्—समरूपता, समता
  • ऐक्यम्—नपुं॰—-—एक-ष्यञ्—विशेषकर मानव आत्मा की समरूपता, या विश्व की परमात्मा से एकरूपता
  • ऐक्षव—वि॰—-—इक्षु-अण्—गन्ने से बना या उत्पन्न
  • ऐक्षवम्—नपुं॰—-—इक्षु-अण्—चीनी
  • ऐक्षवम्—नपुं॰—-—इक्षु-अण्—मादक शराब
  • ऐक्षव्य—वि॰—-—इक्षु-ण्यत्—गन्ने से बना पदार्थ
  • ऐक्षुक—वि॰—-—इक्षु-ठञ्—गन्ने के लिए उपयुक्त
  • ऐक्षुक—वि॰—-—इक्षु-ठञ्—गन्ने वाला
  • ऐक्षुकः—पुं॰—-—इक्षु-ठञ्—गन्ने ले जाने वाला
  • ऐक्षुभारिकः—वि॰—-—इक्षुभार-ठक्—गन्ने का बोझा ढोने वाला
  • ऐक्ष्वाक—वि॰—-—इक्ष्वाकु-अ—इक्ष्वाकु से संबंध रखने वाला
  • ऐक्ष्वाकः—पुं॰—-—इक्ष्वाकु-अ—इक्ष्वाकु की सन्तान
  • ऐक्ष्वाकः—पुं॰—-—इक्ष्वाकु-अ—इक्ष्वाकु वंश के लोगों द्वारा शासित देश
  • ऐक्ष्वाकुः—पुं॰—-—इक्ष्वाकु-अ—इक्ष्वाकु की सन्तान
  • ऐक्ष्वाकुः—पुं॰—-—इक्ष्वाकु-अ—इक्ष्वाकु वंश के लोगों द्वारा शासित देश
  • ऐङ्गुद—वि॰—-—इङ्गुदी-अण्—इङ्गुदी वृक्ष से उत्पन्न
  • ऐङ्गुदम्—नपुं॰—-—इङ्गुदी-अण्—इङ्गुदी वृक्ष का फल
  • ऐच्छिक—वि॰—-—-—इच्छा पर निर्भर, इच्छापरक
  • ऐच्छिक—वि॰—-—-—मनमाना
  • ऐडक—वि॰—-—-—भेड़ का
  • ऐडविडः—पुं॰—-—इडविडा-अण् पक्षे डलयोरभेद्ः—कुबेर
  • ऐडलविडलः—पुं॰—-—इडविडा-अण् पक्षे डलयोरभेद्ः—कुबेर
  • ऐण—वि॰—-—-—बारहसिंघा हरिण की
  • ऐणेय—वि॰—-—एणी-ढक्—काली हरिणी या तत्संबंधी किसी पदार्थ से उत्पन्न
  • ऐणेयः—पुं॰—-—एणी-ढक्—काला हरिण
  • ऐणेयम्—नपुं॰—-—एणी-ढक्—रतिबंध, रति क्रिया का एक प्रकार
  • ऐतदात्म्यम्—नपुं॰—-—एतदात्मन्-ष्यञ्—इस प्र्अकार के गुण या विशिष्टता को रखने की अवस्था
  • ऐतरेयिन्—पुं॰—-—ऐतरेय-इनि—ऐतरेय ब्राह्मण का अध्येता
  • ऐतिहासिक—वि॰—-—इतिहास-ठक्—परम्परा प्राप्त
  • ऐतिहासिक—वि॰—-—इतिहास-ठक्—इतिहास संबंधी
  • ऐतिहासिकः—पुं॰—-—इतिहास-ठक्—इतिहासकार
  • ऐतिहासिकः—पुं॰—-—इतिहास-ठक्—वह व्यक्ति जो पौराणिक उपाख्यानों को जानता है या उनका अध्ययन करता है
  • ऐतिह्यम्—नपुं॰—-—इतिह-ष्यञ्—परम्परा प्राप्त शिक्षा, उपाख्यानात्मक वर्णन
  • ऐदम्पर्यम्—नपुं॰—-—इदम्पर-ञ्य—आशय, क्षेत्र, संबंध
  • ऐनसम्—नपुं॰—-—एनस्-अण्—पाप
  • ऐन्दव—वि॰—-—इन्दु-अण्—चन्द्रमा संबंधी
  • ऐन्दवः—पुं॰—-—इन्दु-अण्—चांद्रमास
  • ऐन्द्र—वि॰—-—इन्द्र-अण्—इन्द्र संबंधी या इन्द्र के लिए पवित्र
  • ऐन्द्रः—पुं॰—-—इन्द्र-अण्—अर्जुन और बाली
  • ऐन्द्री—स्त्री॰—-—इन्द्र-अण्+ ङीप्—ऋग्वेद का मन्त्र जिसमें इन्द्र को संबोधित किया गया है
  • ऐन्द्री—स्त्री॰—-—इन्द्र-अण्+ ङीप्—पूर्व दिशा
  • ऐन्द्री—स्त्री॰—-—इन्द्र-अण्+ ङीप्—मुसीबत, संकट
  • ऐन्द्री—स्त्री॰—-—इन्द्र-अण्+ ङीप्—दुर्गा की उपाधि
  • ऐन्द्री—स्त्री॰—-—इन्द्र-अण्+ ङीप्—छोटी इलायची
  • ऐन्द्रजालिक—वि॰—-—इन्द्रजाल-ठक्—धोखे में डालने वाला
  • ऐन्द्रजालिक—वि॰—-—इन्द्रजाल-ठक्—जादु-टोना विषयक
  • ऐन्द्रजालिक—वि॰—-—इन्द्रजाल-ठक्—मायावी, भ्रान्ति जनक
  • ऐन्द्रजालिक—वि॰—-—इन्द्रजाल-ठक्—जादु-टोने का जानकार
  • ऐन्द्रजालिकः—पुं॰—-—इन्द्रजाल-ठक्—बाजीगर
  • ऐन्द्रलुप्तिक—वि॰—-—इन्द्रलुप्त-ठक्—गंजरोग से पीड़ित, गंजा
  • ऐन्द्रशिरः—पुं॰—-—इन्द्रशिर-अण्—हाथियों की एक जाति
  • ऐन्द्रिः—पुं॰—-—इन्द्रस्यापत्यम् - इन्द्र-इञ्—जयन्त, अर्जुन, बानरराज वालि
  • ऐन्द्रिः—पुं॰—-—इन्द्रस्यापत्यम् - इन्द्र-इञ्—कौवा
  • ऐन्द्रिय—वि॰—-—इन्द्रिय+अण् —इन्द्रियों से संबंध रखने वाला, विषयी
  • ऐन्द्रिय—वि॰—-—इन्द्रिय+अण् —विद्यमान, ज्ञानेन्द्रियों के लिए प्रत्यक्ष इन्द्रियगोचर
  • ऐन्द्रियक—वि॰—-—इन्द्रिय+वुञ् —इन्द्रियों से संबंध रखने वाला, विषयी
  • ऐन्द्रियक—वि॰—-—इन्द्रिय+वुञ् —विद्यमान, ज्ञानेन्द्रियों के लिए प्रत्यक्ष इन्द्रियगोचर
  • ऐन्द्रियम्—नपुं॰—-—इन्द्रिय+अण् —ज्ञानेन्द्रियों का विषय
  • ऐंधन—वि॰—-—इन्धन-अण्—जिसमें इन्धन विद्यमान हो
  • ऐंधनः—पुं॰—-—इन्धन-अण्—सूर्य
  • ऐयत्यम्—नपुं॰—-—इयत्-ष्यञ्—परिमाण, संख्या
  • ऐरावणः—पुं॰—-—इरा आपः ताभिः वनति शब्दायते - इरा-वन-अच् इरावणः - ततः अन्—इन्द्र का हाथी
  • ऐरावतः—पुं॰—-—इरा आपः तद्वान् इरावान् समुद्रः, तस्मादुत्पन्नः अण्—इन्द्र का हाथी
  • ऐरावतः—पुं॰—-—इरा आपः तद्वान् इरावान् समुद्रः, तस्मादुत्पन्नः अण्—श्रेष्ठ हाथी
  • ऐरावतः—पुं॰—-—इरा आपः तद्वान् इरावान् समुद्रः, तस्मादुत्पन्नः अण्—पाताल निवासी नागजाति का एक मुखिया
  • ऐरावतः—पुं॰—-—इरा आपः तद्वान् इरावान् समुद्रः, तस्मादुत्पन्नः अण्—पूर्व दिशा का दिग्गज
  • ऐरावतः—पुं॰—-—इरा आपः तद्वान् इरावान् समुद्रः, तस्मादुत्पन्नः अण्—एक प्रकार का इन्द्रधनुष
  • ऐरावती—स्त्री॰—-—इरा आपः तद्वान् इरावान् समुद्रः, तस्मादुत्पन्नः अण्—इन्द्र की हथिनी
  • ऐरावती—स्त्री॰—-—इरा आपः तद्वान् इरावान् समुद्रः, तस्मादुत्पन्नः अण्—बिजली
  • ऐरावती—स्त्री॰—-—इरा आपः तद्वान् इरावान् समुद्रः, तस्मादुत्पन्नः अण्—पंजाब में बहने वाली नदी, राप्ती
  • ऐरेयम्—नपुं॰—-—इरायाम् अन्ने भवम् - इरा-ढक्—मदिरा
  • ऐलः—पुं॰—-—इलाया अपत्यम् - अण्—पूरूरवा
  • ऐलः—पुं॰—-—इलाया अपत्यम् - अण्—मंगल ग्रह
  • ऐलबालुकः—पुं॰—-—एलवालुक-अण्—एक सुगंध-द्रव्य
  • ऐलविलः—पुं॰—-—इलविला-अण्—कुबेर
  • ऐलविलः—पुं॰—-—इलविला-अण्—मंगल ग्रह
  • ऐलेयः—पुं॰—-—इला-ढक्—एक प्रकार का गंध-द्रव्य
  • ऐलेयः—पुं॰—-—इला-ढक्—मंगल ग्रह
  • ऐश—वि॰—-—ईश-अण्—शिव से संबंध रखने वाला
  • ऐश—वि॰—-—ईश-अण्—सर्वोपरि, राजकीय
  • ऐशान—वि॰—-—ईशान-अण्—शिव से संबंध रखने वाला
  • ऐशानी—स्त्री॰—-—ईशान-अण्+ ङीप्—उत्तरपूर्वी दिशा
  • ऐशानी—स्त्री॰—-—ईशान-अण्+ ङीप्—दुर्गादेवी
  • ऐश्वर—वि॰—-—ईश्वर-अण्—शानदार
  • ऐश्वर—वि॰—-—ईश्वर-अण्—शक्तिशाली, ताकतवर
  • ऐश्वर—वि॰—-—ईश्वर-अण्—शिव से संबंध रखने वाला
  • ऐश्वर—वि॰—-—ईश्वर-अण्—सर्वोपरि, राजकीय
  • ऐश्वर—वि॰—-—ईश्वर-अण्—दिव्य
  • ऐश्वरी—स्त्री॰—-—ईश्वर-अण्—दुर्गादेवी
  • ऐश्वर्यम्—नपुं॰—-—ईश्वर-ष्यञ्—सर्वोपरिता, प्रभुता
  • ऐश्वर्यम्—नपुं॰—-—ईश्वर-ष्यञ्—ताकत, शक्ति, आधिपत्य
  • ऐश्वर्यम्—नपुं॰—-—ईश्वर-ष्यञ्—उपनिवेश
  • ऐश्वर्यम्—नपुं॰—-—ईश्वर-ष्यञ्—विभव, धन, बड़प्पन
  • ऐश्वर्यम्—नपुं॰—-—ईश्वर-ष्यञ्—सर्वशक्तिमत्ता तथा सर्वव्यापकता की दिव्य शक्तियाँ
  • ऐषमस्—अव्य॰—-—अस्मिन् वत्सरे इति नि॰ साधुः—इस वर्ष में, चालू वर्ष में
  • ऐषमस्तन—वि॰—-—ऐषमस्-तनप्, त्यप् वा—चालू वर्ष से संबंध रखने वाला
  • ऐषमस्त्य—वि॰—-—ऐषमस्-तनप्, त्यप् वा—चालू वर्ष से संबंध रखने वाला
  • ऐष्टिक—वि॰—-—इष्टि-ठक्—यज्ञसम्बन्धी, संस्कार विषयक
  • ऐष्टिकपूर्तिक—वि॰—ऐष्टिक-पूर्तिक—-—इष्टापूर्त से संबंध रखने वाला
  • ऐहलौकिक—वि॰—-—इहलोक-ठञ्—इस संसार से संबंध रखने वाला, या इस लोक में घटित होने वाला, ऐहिक, दुनियावी
  • ऐहिक—वि॰—-—-—इस लोक या स्थान से संबंध रखने वाला, सांसांरिक, दुनियावी, लौकिक
  • ऐहिक—वि॰—-—-—स्थानीय
  • ऐहिकम्—नपुं॰—-—-—व्यवसाय
  • —पुं॰—-—उ+विच्—ब्रह्मा
  • —अव्य॰—-—-—सम्बोधनात्मक अव्यय
  • —अव्य॰—-—-—बुलावा, स्मरण करना और करुणा बोधक विस्मयादि द्योतक चिह्न्न
  • ओकः—पुं॰—-—उच्-क नि॰ चस्य कः—घर
  • ओकः—पुं॰—-—उच्-क नि॰ चस्य कः—शरण, आश्रय
  • ओकः—पुं॰—-—उच्-क नि॰ चस्य कः—पक्षी
  • ओकः—पुं॰—-—उच्-क नि॰ चस्य कः—शूद्र
  • ओकणः—पुं॰—-—ओ-कण्-अच्, इन् वा—खटमल
  • ओकस्—नपुं॰—-—उच्-असुन्—घर, आवास
  • ओकस्—नपुं॰—-—उच्-असुन्—आश्रय, शरण
  • ओख्—भ्वा॰ पर॰ - <ओखति>, <ओखित>—-—-—सूख जाना
  • ओख्—भ्वा॰ पर॰ - <ओखति>, <ओखित>—-—-—योग्य होना, प्रर्याप्त होना
  • ओख्—भ्वा॰ पर॰ - <ओखति>, <ओखित>—-—-—सजाना, सुशोभित करना
  • ओख्—भ्वा॰ पर॰ - <ओखति>, <ओखित>—-—-—अस्वीकृत करना
  • ओख्—भ्वा॰ पर॰ - <ओखति>, <ओखित>—-—-—रोक लगाना
  • ओघः—पुं॰—-—उच्-घञ्, पृषो॰—जलप्लावन, नदी, धारा
  • ओघः—पुं॰—-—उच्-घञ्, पृषो॰—जल की बाढ़
  • ओघः—पुं॰—-—उच्-घञ्, पृषो॰—राशि, परिमाण, समुदाय
  • ओघः—पुं॰—-—उच्-घञ्, पृषो॰—समग्र
  • ओघः—पुं॰—-—उच्-घञ्, पृषो॰—सातत्य
  • ओघः—पुं॰—-—उच्-घञ्, पृषो॰—परम्परा, परम्पराप्राप्त उपदेश
  • ओघः—पुं॰—-—उच्-घञ्, पृषो॰—एक प्रमुख नृत्य
  • ओज्—भ्वा॰ चुरा॰ उभ॰ <ओजति>, <ओजयति>, <ओजते>, <ओजित>—-—-—सक्षम या योग्य होना
  • ओज—वि॰—-—ओज्-अच्—विषम, असम
  • ओजम्—नपुं॰—-—ओज्-अच्—ओजस्
  • ओजस्—नपुं॰—-—उब्ज्-असुन् बलोपः, गुणश्च—शारीरिक सामर्थ्य, बल, शक्ति
  • ओजस्—नपुं॰—-—उब्ज्-असुन् बलोपः, गुणश्च—वीर्य, जननात्मक शक्ति
  • ओजस्—नपुं॰—-—उब्ज्-असुन् बलोपः, गुणश्च—आभा, प्रकाश
  • ओजस्—नपुं॰—-—उब्ज्-असुन् बलोपः, गुणश्च—शैली का विस्तृत रूप, समास की बहुलता
  • ओजस्—नपुं॰—-—उब्ज्-असुन् बलोपः, गुणश्च—पानी
  • ओजस्—नपुं॰—-—उब्ज्-असुन् बलोपः, गुणश्च—धातु की चमक
  • ओजसीन्—वि॰—-—ओजस्-ख, यत् वा—मजबूत, शक्तिशाली
  • ओजस्य—वि॰—-—ओजस्-ख, यत् वा—मजबूत, शक्तिशाली
  • ओजस्वत्—वि॰—-—ओजस्-मतुप्—मजबूत, वीर्यवान्, तेजस्वी, शक्तिशाली
  • ओजस्विन्—वि॰—-—ओजस्+विनि —मजबूत, वीर्यवान्, तेजस्वी, शक्तिशाली
  • ओड्रः—पुं॰—-—-—एक देश का तथा उसके निवासियों का नाम
  • ओड्रम्—नपुं॰—-—-—जवाकुसुम
  • ओत—वि॰—-—आ-वे-क्त—बुना हुआ, धागे से एक सिरे से दूसरे तक सिला हुआ
  • ओतप्रोत—वि॰—ओत-प्रोत—-—लम्बाई और चौड़ाई के बल आर-पार सिला हुआ
  • ओतप्रोत—वि॰—ओत-प्रोत—-—सब दिशाओं में फैला हुआ
  • ओतुः—पुं॰—-—अव-तुन्, ऊठ्, गुणः—बिलाव, बिल्ली
  • ओदनः—पुं॰—-—उन्द्-युच्—भोजन, भात
  • ओदनः—पुं॰—-—उन्द्-युच्—दलिया बनाकर दूध में पकाया हुआ अन्न
  • ओम्—अव्य॰—-—अव्-मन्, ऊठ्, गुण—पावन अक्षर 'ओम्' वेद-पाठ के आरम्भ और समाप्ति पर किया गया पावन उच्चारण, या मंत्र के आरम्भ में बोला जाने वाला
  • ओम्—अव्य॰—-—अव्-मन्, ऊठ्, गुण—औपचारिक पुष्टिकरण तथा सम्माननीय स्वीकृति
  • ओम्—अव्य॰—-—अव्-मन्, ऊठ्, गुण—स्वीकृति, अंगीकरण
  • ओम्—अव्य॰—-—अव्-मन्, ऊठ्, गुण—आदेश
  • ओम्—अव्य॰—-—अव्-मन्, ऊठ्, गुण—मांगलिकता
  • ओम्—अव्य॰—-—अव्-मन्, ऊठ्, गुण—दूर करना या रोक लगाना की भावना को प्रकट करने वाला अव्यय
  • ओम्—अव्य॰—-—अव्-मन्, ऊठ्, गुण—ब्रह्म
  • ओङ्कारः—पुं॰—ओम्-कारः—-—पवित्र ध्वनि ॐ
  • ओङ्कारः—पुं॰—ओम्-कारः—-—पवित्र उद्गार ॐ
  • ओरम्फः—पुं॰—-—-—गहरी खरोंच
  • ओल—वि॰—-—आ-उन्द्-क पृषो॰—आर्द्र, गीला
  • ओलण्ड्—भ्वा॰ पर॰, चुरा॰ उभ॰ <ओलंडति>, <ओलंडयति>, <ओलंडित>—-—-—ऊपर की ओर फेंकना, ऊपर उछालना
  • ओल्ल—वि॰—-—ओल - पृषो॰—आर्द्र, गीला
  • ओल्लः—पुं॰—-—-—प्रतिभू
  • ओल्लागतः—पुं॰—ओल्ल-आगतः—-—प्रतिभू या जामिन के रूप में आया हुआ
  • ओषः—पुं॰—-—उष्-घञ्—जलन, संवाह
  • ओषणः—पुं॰—-—उष्-ल्युट्—तिक्तता, तीक्ष्णता, तीखा रस
  • ओषधिः—पुं॰—-—ओष-धा-कि, स्त्रियां ड़ीष् —जड़ीबूटी, वनस्पति
  • ओषधिः—पुं॰—-—ओष-धा-कि, स्त्रियां ड़ीष् —औषधि का पौधा, ओषधि
  • ओषधिः—पुं॰—-—ओष-धा-कि—फसली पौधा या जड़ीबूटी जो कि पक कर सूख जाती है
  • ओषधी—स्त्री॰—-—ओष-धा-कि+ड़ीष् —जड़ीबूटी, वनस्पति
  • ओषधी—स्त्री॰—-—ओष-धा-कि+ड़ीष् —औषधि का पौधा, ओषधि
  • ओषधी—स्त्री॰—-—ओष-धा-कि+ड़ीष् —फसली पौधा या जड़ीबूटी जो कि पक कर सूख जाती है
  • ओषधीशः —पुं॰—ओषधिः-ईशः—-—चन्द्रमा
  • ओषधिगर्भः—पुं॰—ओषधिः-गर्भः—-—चन्द्रमा
  • ओषधिनाथः—पुं॰—ओषधिः-नाथः—-—चन्द्रमा
  • ओषधिज—वि॰—ओषधिः-ज—-—वनस्पति से उत्पन्न
  • ओषधिधरः—पुं॰—ओषधिः-धरः—-—ओषधि-विक्रेता
  • ओषधिधरः—पुं॰—ओषधिः-धरः—-—वैद्य
  • ओषधिधरः—पुं॰—ओषधिः-धरः—-—चन्द्रमा
  • ओषधिपतिः—पुं॰—ओषधिः-पतिः—-—ओषधि-विक्रेता
  • ओषधिपतिः—पुं॰—ओषधिः-पतिः—-—वैद्य
  • ओषधिपतिः—पुं॰—ओषधिः-पतिः—-—चन्द्रमा
  • ओषधिप्रस्थः—पुं॰—ओषधिः-प्रस्थः—-—हिमालय की राजधानी
  • ओष्ठः—पुं॰—-—उष्-थन्—होठ
  • ओष्ठाधरौ—पुं॰—ओष्ठ-अधरौ—-—ऊपर और नीचे का होठ
  • ओष्ठाधरम्—वि॰—ओष्ठ-अधरम्—-—ऊपर और नीचे का होठ
  • ओष्ठज—वि॰—ओष्ठ-ज—-—ओष्ठस्थानीय
  • ओष्ठजाहः—पुं॰—ओष्ठ-जाहः—-—होठ की जड़
  • ओष्ठपल्लवः—पुं॰—ओष्ठ-पल्लवः—-—किसलय जैसा, कोमल ओष्ठ
  • ओष्ठपल्लवम्—नपुं॰—ओष्ठ-पल्लवम्—-—किसलय जैसा, कोमल ओष्ठ
  • ओष्ठपुटम्—नपुं॰—ओष्ठ-पुटम्—-—होठों को खोलने पर बना हुआ गड्ढा
  • ओष्ठ्य—वि॰—-—ओष्ठ-यत्—होठों पर रहने वाला
  • ओष्ठ्य—वि॰—-—ओष्ठ-यत्—ओष्ठ- स्थानीय
  • ओष्ण—वि॰—-—ईषद् उष्णः - ग॰ स॰—थोड़ा गरम, गुनगुना
  • —अव्य॰—-—आ-अव्-क्विप्, ऊठ—आमंत्रण
  • —अव्य॰—-—आ-अव्-क्विप्, ऊठ—संबोधन
  • —अव्य॰—-—आ-अव्-क्विप्, ऊठ—विरोध
  • —अव्य॰—-—आ-अव्-क्विप्, ऊठ—शपथोक्ति अथवा संकल्पद्योतक अव्यय
  • औक्थिक्यम्—नपुं॰—-—उक्थ-ठक्-ष्यञ्—उक्थ का पाठ
  • औक्थम्—नपुं॰—-—उक्थ-अण्—पाठ करने की विशेष रीति
  • औक्षकम्—नपुं॰—-—उक्ष्णां समूह इत्यर्थे उक्षन्-अण्, तिलोपः वुञ् वा—बैलों का झुण्ड
  • औक्षम्—नपुं॰—-—उक्ष्णां समूह इत्यर्थे उक्षन्-अण्, तिलोपः वुञ् वा—बैलों का झुण्ड
  • औग्र्यम्—नपुं॰—-—उग्र-ष्यञ्—दृढ़ता, भीषणता, भयंकरता, क्रूरता आदि
  • औघः—पुं॰—-—ओघ-अण्—बाढ़, जलप्लावन
  • औचित्यम्—नपुं॰—-—उचित-ष्यञ्—उपयुक्तता, योग्यता, उचितपना
  • औचित्यम्—नपुं॰—-—उचित-ष्यञ्—संगति या योग्यता, वाक्य में शब्द के यथार्थ अर्थ का निर्धारण करने के लिए कल्पित परिस्थितियों में से एक
  • औचिती—स्त्री॰—-—उचित-ष्यञ्, स्त्रियां ड़ीष्, यलोपश्च—उपयुक्तता, योग्यता, उचितपना
  • औचिती—स्त्री॰—-—उचित-ष्यञ्, स्त्रियां ड़ीष्, यलोपश्च—संगति या योग्यता, वाक्य में शब्द के यथार्थ अर्थ का निर्धारण करने के लिए कल्पित परिस्थितियों में से एक
  • औच्चैःश्रवसः—पुं॰—-—उच्चैः श्रवस्-अण्—इन्द्र का घोड़ा
  • औजसिक—वि॰—-—ओजस्-ठक्—ऊर्जस्वी, बलवान
  • औजसिकः—पुं॰—-—ओजस्-ठक्—नायक शूरवीर
  • औजस्य—वि॰—-—ओजस्-ष्यञ्—बल और स्फूर्ति का संचारक
  • औजस्यम्—नपुं॰—-—ओजस्-ष्यञ्—सामर्थ्य, जीवनशक्ति, ऊर्जा, स्फूर्ति
  • औज्ज्वल्यम्—नपुं॰—-—उज्ज्वल-ष्यञ्—उज्ज्वलता, कान्ति
  • औडुपिक—वि॰—-—उडुप-ठक्—किश्ती में बैठकर पार करने वाला
  • औडुपिकः—पुं॰—-—उडुप-ठक्—किश्ती या लठ्ठे का यात्री
  • औडुम्बर—वि॰—-—उदुम्बर-अञ्—गूलर के वृक्ष से या उससे प्राप्त,
  • औडुम्बरः—पुं॰—-—उदुम्बर-अञ्—ऐसा प्रदेश जहां गूलर के वृक्ष बहुतायत से हों
  • औडुम्बरी—स्त्री॰—-—उदुम्बर-अञ्—गूलर की शाखा
  • औडुम्बरम्—नपुं॰—-—उदुम्बर-अञ्—गूलर की लकड़ी
  • औडुम्बरम्—नपुं॰—-—उदुम्बर-अञ्—गूलर का फल
  • औडुम्बरम्—नपुं॰—-—उदुम्बर-अञ्—तांबा
  • औड्रः—पुं॰—-—ओड्र-अण्—ओड्र देश का निवासी या राजा
  • औत्कण्ठ्यम्—नपुं॰—-—उत्कण्ठा-ष्यञ्—इच्छा, लालसा
  • औत्कण्ठ्यम्—नपुं॰—-—उत्कण्ठा-ष्यञ्—चिन्ता
  • औत्कर्ष्यम्—नपुं॰—-—उत्कर्ष-ष्यञ्—श्रेष्ठता, उत्कृष्टता
  • औत्तमिः—पुं॰—-—उत्तम-इञ्—१४ मनुओं में से तीसरा
  • औत्तरः—वि॰—-—-—उत्तरी
  • औत्तरेयः—पुं॰—-—उत्तरा-ढक्—अभिमन्यु और उत्तरा का पुत्र परीक्षित
  • औत्तानपादः—पुं॰—-—उत्तानपाद-अण्, इञ् वा—ध्रुव
  • औत्तानपादः—पुं॰—-—उत्तानपाद-अण्, इञ् वा—उत्तर दिशा में वर्त्तमान तारा
  • औत्पत्तिक—वि॰—-—उत्पत्ति-ठक्—अन्तर्जात, सहज
  • औत्पत्तिक—वि॰—-—उत्पत्ति-ठक्—एक ही समय पर उत्पन्न
  • औत्पात—वि॰—-—उत्पात-अण्—अपशकुनों का विश्लेषक
  • औत्पातिक—वि॰—-—उत्पात-ठक्—अमंगलकारी, अलौकिक, संकटमय
  • औत्पातिकम्—नपुं॰—-—उत्पात-ठक्—अपशकुन या अमंगल
  • औत्सङ्गिक—वि॰—-—उत्संग-ठक्—कूल्हे पर रखा हुआ, या कूल्हे पर धारण किया हुआ
  • औत्सर्गिक—वि॰—-—उत्सर्ग-ठञ्—सामान्य विधि जो अपवाद रूप में ही त्यागने योग्य हो
  • औत्सर्गिक—वि॰—-—उत्सर्ग-ठञ्—सामान्य, प्रतिबन्धरहित, सहज
  • औत्सर्गिक—वि॰—-—उत्सर्ग-ठञ्—व्युत्पन्न, यौगिक
  • औत्सुक्यम्—नपुं॰—-—उत्सुक-ष्यञ्—चिन्ता, बेचैनी
  • औत्सुक्यम्—नपुं॰—-—उत्सुक-ष्यञ्—प्रबल इच्छा, उत्सुकता, उत्साह
  • औदक—वि॰—-—उदक-अण्—जलीय, पनीला, जल से संबंध रखने वाला
  • औदञ्चन—वि॰—-—उदञ्चन-अण्—डोल या घड़े में रखा हुआ
  • औदनिकः—पुं॰—-—ओदन-ठञ्—रसोइया
  • औदरिक—वि॰—-—उदर-ठक्—बहुभोजी, पेटू, खाऊ
  • औदर्य—वि॰—-—उदरे भवः यत्—गर्भस्थित
  • औदर्य—वि॰—-—उदरे भवः यत्—गर्भान्तः-प्रविष्ट
  • औदश्वितम्—नपुं॰—-—उदश्वित्-अण्—आधा पानी मिलाकर तैयार किया हुआ मट्ठा।
  • औदार्यम्—नपुं॰—-—उदार-ष्यञ्—उदारता, कुलीनता, महत्ता
  • औदार्यम्—नपुं॰—-—उदार-ष्यञ्—बड़प्पन, श्रेष्ठता
  • औदार्यम्—नपुं॰—-—उदार-ष्यञ्—अर्थगांभीर्य
  • औदासीन्यम्—नपुं॰—-—उदासीन-ष्यञ्—उपेक्षा,निःस्पृहता
  • औदासीन्यम्—नपुं॰—-—उदासीन-ष्यञ्—एकान्तिकता, अकेलापन
  • औदासीन्यम्—नपुं॰—-—उदासीन-ष्यञ्—पूर्ण विराग, वैराग्य
  • औदास्यम्—नपुं॰—-—उदास-ष्यञ्—उपेक्षा,निःस्पृहता
  • औदास्यम्—नपुं॰—-—उदास-ष्यञ्—एकान्तिकता, अकेलापन
  • औदास्यम्—नपुं॰—-—उदास-ष्यञ्—पूर्ण विराग, वैराग्य
  • औदुम्बर—वि॰—-—उदुम्बर-अञ्—गूलर के वृक्ष से या उससे प्राप्त,
  • औदुम्बरः—पुं॰—-—उदुम्बर-अञ्—ऐसा प्रदेश जहां गूलर के वृक्ष बहुतायत से हों
  • औदुम्बरी—स्त्री॰—-—उदुम्बर-अञ्—गूलर की शाखा
  • औदुम्बरम्—नपुं॰—-—उदुम्बर-अञ्—गूलर की लकड़ी
  • औदुम्बरम्—नपुं॰—-—उदुम्बर-अञ्—गूलर का फल
  • औदुम्बरम्—नपुं॰—-—उदुम्बर-अञ्—तांबा
  • औद्गात्रम्—नपुं॰—-—उद्गातृ-अञ्—उद्गाता ऋत्विज का पद या कार्य ।
  • औद्दालकम्—नपुं॰—-—उद्दाल-अण्, संज्ञायां कन्—मधु जैसा एक पदार्थ जो तीखा और कड़वा होता है।
  • औद्देशिक—वि॰—-—उद्देश-ठक्—प्रकट करने वाला ,निर्देशक, संकेतक।
  • औद्धत्यम्—नपुं॰—-—उद्धत-ष्यञ्—हेकड़ी, ढीठपना
  • औद्धत्यम्—नपुं॰—-—उद्धत-ष्यञ्—साहसिकता, जीवटवाले कार्यों मे हिम्मत
  • औद्धारिक—वि॰—-—उद्धार-ठञ्—पैतृक सम्पत्ति में से घटाया हुआ, विभक्त करने योग्य, दाययोग्य
  • औद्धारिकम्—नपुं॰—-—उद्धार-ठञ्—एक अंश या दायभाग।
  • औद्भिदम्—नपुं॰—-—उद्भिद्-अण्—झरने का पानी
  • औद्भिदम्—नपुं॰—-—उद्भिद्-अण्—सेंधा नमक
  • औद्वाहिक—वि॰—-—उद्वाह-ठञ्—विवाह से संबंध रखने वाला
  • औद्वाहिक—वि॰—-—उद्वाह-ठञ्—विवाह में प्राप्त
  • औद्वाहिकम्—नपुं॰—-—उद्वाह-ठञ्—विवाह के अवसर पर वधू को दिये गये उपहार, स्त्रीधन।
  • औधस्यम्—नपुं॰—-—ऊधस्-ष्यञ्—दूध
  • औन्नत्यम्—वि॰—-—उन्नत-ष्यञ्—ऊँचाई, ऊँचा उठना
  • औपकर्णिक—वि॰—-—उपकर्ण-ठक्—कान के निकट रहने वाला ।
  • औपकार्यम्—नपुं॰—-—उपकार्य-अण्, स्त्रियां टाप् च—आवास, तम्बू।
  • औपकार्या—स्त्री॰—-—उपकार्य-अण्, स्त्रियां टाप् च—आवास, तम्बू।
  • औपग्रस्तिकः—पुं॰—-—उपग्रस्त-ठञ्—ग्रहण
  • औपग्रस्तिकः—पुं॰—-—उपग्रस्त-ठञ्—ग्रहण-ग्रस्त सूर्य या चन्द्रमा।
  • औपग्रहिकः—पुं॰—-—उपग्रह-ठञ्—ग्रहण
  • औपग्रहिकः—पुं॰—-—उपग्रह-ठञ्—ग्रहण-ग्रस्त सूर्य या चन्द्रमा।
  • औपचारिक—वि॰—-—उपचार-ठक्—लाक्षणिक, आलंकारिक, गौण
  • औपचारिकम्—नपुं॰—-—उपचार-ठक्—आलंकारिक प्रयोग।
  • औपजानुक—वि॰—-—उपजानु-ठक्—घुटनों के पास होने वाला।
  • औपदेशिक—वि॰—-—उपदेश-ठक्—अध्यापन या उपदेश द्वारा जीविका कमाने वाला
  • औपदेशिक—वि॰—-—उपदेश-ठक्—शिक्षण द्वारा प्राप्त
  • औपधर्म्यम्—वि॰—-—उपधर्म-ष्यञ्—मिथ्या सिद्धान्त, धर्मद्रोह
  • औपधर्म्यम्—वि॰—-—उपधर्म-ष्यञ्—घटिया गुण या गुण का अपकृष्ट नियम ।
  • औपधिक—वि॰—-—उपाधि-ठञ्—धूर्त, धोखेबाज।
  • औपधेयम्—नपुं॰—-—उपाधि-ढञ्—रथ क पहिया, रथांग।
  • औपनायनिक—वि॰—-—उपनयन-ठक्—उपनयन संबंधी, या उपनयन के काम का
  • औपनिधिक—वि॰—-—उपनिधि-ठक्—धरोहर से संबंध रखने वाला
  • औपनिधिकम्—नपुं॰—-—उपनिधि-ठक्—धरोहर या अमानत जो वस्तु धरोहर या अमानत के रूप में रखी जाय
  • औपनिषद—वि॰—-—उपनिषद्-अण्—उपनिषदों में बताया हुआ या सिखाया हुआ, वेद विहित, आध्यात्मिक
  • औपनिषद—वि॰—-—उपनिषद्-अण्—उपनिषदों पर आधारित, स्थापित या उपनिषदों से गृहीत
  • औपनिषदः—पुं॰—-—उपनिषद्-अण्—परमात्मा, ब्रह्म
  • औपनिषदः—पुं॰—-—उपनिषद्-अण्—उपनिषदों के सिद्धान्तों का अनुयायी
  • औपनीविक—वि॰—-—उपनीवि-ठक्—स्त्री या पुरुषों की धोती की गाँठ या नाड़े के निकट रखा हुआ
  • औपपत्तिक—वि॰—-—उपपत्ति-ठक्—तैयार, निकट
  • औपपत्तिक—वि॰—-—उपपत्ति-ठक्—योग्य, समुचित
  • औपपत्तिक—वि॰—-—उपपत्ति-ठक्—प्राक्काल्पनिक
  • औपमिक—वि॰—-—उपमा-ठक्—तुलना या उपमान का काम देने वाला
  • औपमिक—वि॰—-—उपमा-ठक्—उपमा द्वारा प्रदर्शित
  • औपम्यम्—नपुं॰—-—उपमा-ष्यञ्—तुलना, समरूपता, सादृश्य
  • औपयिक—वि॰—-—उपाय-ठक्—समुचित, योग्य, यथार्थ
  • औपयिक—वि॰—-—उपाय-ठक्—प्रयत्नों द्वारा प्राप्त
  • औपयिकः—पुं॰—-—उपाय-ठक्—उपाय, तरकीब, युक्ति
  • औपयिकम्—नपुं॰—-—उपाय-ठक्—उपाय, तरकीब, युक्ति
  • औपरिष्ट—वि॰—-—उपरिष्ट-अण्—ऊपर होने वाला, ऊपर का
  • औपरोधिक—वि॰—-—उपरोध-ठक्—अनुग्रह संबंधी, कृपा संबंधी, अनुग्रह या कृपा के फलस्वरूप
  • औपरोधिक—वि॰—-—उपरोध-ठक्—विरोध करने वाला, बाधा डालने वाला
  • औपरौधिक—वि॰—-—उपरोध-ठक्—अनुग्रह संबंधी, कृपा संबंधी, अनुग्रह या कृपा के फलस्वरूप
  • औपरौधिक—वि॰—-—उपरोध-ठक्—विरोध करने वाला, बाधा डालने वाला
  • औपरोधिकः—पुं॰—-—उपरोध-ठक्—पीलू वृक्ष की लकड़ी का डंडा
  • औपल—वि॰—-—उपल-अण्—प्रस्तरमय, पत्थर का
  • औपवस्तम्—नपुं॰—-—उपवस्त-अण्—उपवास रखना, उपवास
  • औपवस्त्रम्—नपुं॰—-—उपवस्त्र-अण्—उपवास के उपयुक्तभोजन, फलाहार
  • औपवस्त्रम्—नपुं॰—-—उपवस्त्र-अण्—उपवास करना
  • औपवास्यम्—नपुं॰—-—उपवास-ष्यञ्—उपवास रखना
  • औपवाह्य—वि॰—-—उपवाह्य-अण्—सवारी के काम आने वाला
  • औपवाह्यः—पुं॰—-—उपवाह्य-अण्—राजा का हाथी
  • औपवाह्यः—पुं॰—-—उपवाह्य-अण्—कोई राजकीय सवारी
  • औपवेशिक—वि॰—-—उपवेश-ठञ्—पूरी लगन के साथ काम करके अपनी आजीविका कमाने वाला
  • औपसंख्यानिक—वि॰—-—उपसड़्ख्यान-ठक्—जिसका परिशिष्ट में वर्णन किया गया हो
  • औपसंख्यानिक—वि॰—-—उपसड़्ख्यान-ठक्—परिशिष्ट
  • औपसर्गिक—वि॰—-—उपसर्ग-ठञ्—विपत्ति का सामना करने योग्य
  • औपसर्गिक—वि॰—-—उपसर्ग-ठञ्—अमंगलसूचक
  • औपस्थिक—वि॰—-—उपस्थ-ठक्—व्यभिचार द्वारा अपनी जीविका चलाने वाला
  • औपस्थ्यम्—नपुं॰—-—उपस्थ-ष्यञ्—सहवास, स्त्रीसंभोग
  • औपहारिक—वि॰—-—उपहार-ठक्—उपहार या आहुति के काम आने वाला
  • औपहारिकम्—वि॰—-—उपहार-ठक्—उपहार या आहुति
  • औपाधिक—वि॰—-—उपाधि-ठञ्—विशेष परिस्थितियों में होने वाला
  • औपाधिक—वि॰—-—उपाधि-ठञ्—उपाधि या विशेष गुणों से संबंध रखने वाला ,फलित कार्य
  • औपाध्यायक—वि॰—-—उपाध्याय-वुञ्—अध्यापक से प्राप्त से प्राप्त या आने वाला
  • औपासन—वि॰—-—उपासन-अण्—गृह्याग्नि से संबंध रखने वाला
  • औपासनः—पुं॰—-—उपासन-अण्—गार्ह्यस्थ्य पूजा के लिये प्रयुक्त अग्नि, गृह्याग्नि
  • औम्—अव्य॰—-—-—शूद्रों के लिये पावन ध्वनि
  • औरभ्र—वि॰—-—उरभ्र-अण्—भेंड़ से संबंध रखने वाला, या भेड़ से उत्पन्न
  • औरभ्रम्—नपुं॰—-—उरभ्र-अण्—भेंड़ या बकरे का माँस
  • औरभ्रम्—नपुं॰—-—उरभ्र-अण्—ऊनी वस्त्र, मोटा ऊनी कम्बल
  • औरभ्रकम्—नपुं॰—-—उरभ्राणां समूहः - वुञ्—भेड़ों का झुण्ड
  • ओरभ्रिकः—पुं॰—-—उरभ्र-ठञ्—गड़रिया
  • औरस—वि॰—-—उरसा निर्मितः - अण्—कोख से उत्पन्न, विवाहिता पत्नी से उत्पन्न, वैध
  • औरसः—पुं॰—-—उरसा निर्मितः - अण्—वैध पुत्र या पुत्री
  • औरसी—स्त्री॰—-—उरसा निर्मितः - अण्—वैध पुत्र या पुत्री
  • औरस्य—वि॰—-—उरसा निर्मितः - अण्—औरस
  • और्ण—वि॰—-—ऊर्णा-अञ्, वुञ् वा—ऊनी, ऊन से बना हुआ
  • और्णक—वि॰—-—ऊर्णा-अञ्, वुञ् वा—ऊनी, ऊन से बना हुआ
  • और्णिक—वि॰—-—ऊर्णा-अञ्, वुञ् वा—ऊनी, ऊन से बना हुआ
  • और्ध्वकालिक—वि॰—-—ऊर्ध्वकाल-ष्ठञ्—पिछले समय से संबद्ध या बाद का
  • और्ध्वदेहम्—नपुं॰—-—ऊर्ध्वदेह-अण्—अन्त्येष्टि संस्कार, प्रेतकर्म
  • और्ध्वदेहिक—वि॰—-—ऊर्ध्वदेहाय साधु - ठञ्—मृत व्यक्ति से संबद्ध, अन्त्येष्टि
  • और्ध्वदैहिक—वि॰—-—ऊर्ध्वदेहाय साधु - ठञ्—मृत व्यक्ति से संबद्ध, अन्त्येष्टि
  • और्ध्वदैहिकक्रिया—स्त्री॰—और्ध्वदेहिक-क्रिया—-—प्रेतकर्म, अन्त्येष्टि संस्कार, प्रेतकर्म।
  • और्ध्वदैहिकक्रिया—स्त्री॰—और्ध्वदैहिक-क्रिया—-—प्रेतकर्म, अन्त्येष्टि संस्कार, प्रेतकर्म।
  • और्ध्वदेहिकम्—नपुं॰—-—-—अन्त्येष्टि संस्कार, प्रेतकर्म।
  • और्ध्वदैहिकम्—नपुं॰—-—-—अन्त्येष्टि संस्कार, प्रेतकर्म।
  • और्व—वि॰—-—ऊरु-अण्—धरती से सम्बन्ध रखने वाला
  • और्व—वि॰—-—ऊरु-अण्—जंघा से उत्पन्न
  • और्वः—पुं॰—-—ऊरु-अण्—एक प्रसिद्ध ऋषि का नाम
  • और्वः—पुं॰—-—ऊरु-अण्—वडवाग्नि
  • औलूकम्—नपुं॰—-—उलूकानां समूहः-अञ्—उल्लुओं का झुण्ड
  • औलूक्यः—पुं॰—-—उलूकस्यापत्य-यञ्—वैशेषिक दर्शन के निर्माता कणाद मुनि
  • औल्वण्यम्—नपुं॰—-—उल्वण-ष्यञ—आधिक्य, बहुतायत, प्राबल्य
  • औशन—वि॰—-—-—उशना अर्थात शुक्राचार्य से सम्बन्ध रखने वाला, उशना से उत्पन्न या उशना से पढ़ा हुआ
  • औशनस—वि॰—-—-—उशना अर्थात शुक्राचार्य से सम्बन्ध रखने वाला, उशना से उत्पन्न या उशना से पढ़ा हुआ
  • औशनसम्—नपुं॰—-—-—उशना का धर्मशास्त्र
  • औशीनरः—पुं॰—-—उशीनरस्यापत्यम्-अड़्—ऊशीनर का पुत्र
  • औशीनरी—स्त्री॰—-—-—राजा पुरुरवा की पत्नी
  • औशीरम्—नपुं॰—-—उशीर-अण्—पंखे या चँवर की डंडी
  • औशीरम्—नपुं॰—-—उशीर-अण्—बिस्तरा
  • औशीरम्—नपुं॰—-—उशीर-अण्—आसन
  • औशीरम्—नपुं॰—-—उशीर-अण्—खस का लेप
  • औशीरम्—नपुं॰—-—उशीर-अण्—खस की जड़
  • औशीरम्—नपुं॰—-—उशीर-अण्—पंखा
  • औषणम्—नपुं॰—-—उषण-अण्—तीक्ष्णता, तीखापन
  • औषणम्—नपुं॰—-—उषण-अण्—काली मिर्च
  • औषधम्—नपुं॰—-—औषधि-अण्—जड़ी-बूटी,जड़ी-बू्टियों का समूह
  • औषधम्—नपुं॰—-—औषधि-अण्—दवादारू, सामान्य औषधि
  • औषधम्—नपुं॰—-—औषधि-अण्—खनिज
  • औषधिः—स्त्री॰—-—-—जड़ी-बूटी, बनस्पति
  • औषधिः—स्त्री॰—-—-—रोगनाशक जड़ी-बूटी
  • औषधिः—स्त्री॰—-—-—आग उगलने वाली जड़ी
  • औषधिः—स्त्री॰—-—-—वर्ष भर रहने वाला या सालाना पतझड़ वाला पौधा
  • औषधी—स्त्री॰—-—-—जड़ी-बूटी, बनस्पति
  • औषधी—स्त्री॰—-—-—रोगनाशक जड़ी-बूटी
  • औषधी—स्त्री॰—-—-—आग उगलने वाली जड़ी
  • औषधी—स्त्री॰—-—-—वर्ष भर रहने वाला या सालाना पतझड़ वाला पौधा
  • औषधिपतिः—पुं॰—औषधिः-धिपतिः—-—सोम, औषधियों का स्वामी
  • औषधिपतिः—पुं॰—औषधी-धिपतिः—-—सोम, औषधियों का स्वामी
  • औषधीय—वि॰—-—औषध-छ—औषधि संबन्धी रोगनाशक, जड़ी-बूटियों से युक्त
  • औषरम्—नपुं॰—-—उषरे भवम्-अण्, ततः कन्—सेंधा नमक,पहाड़ी नमक
  • औषरकम्—नपुं॰—-—उषरे भवम्-अण्, ततः कन्—सेंधा नमक,पहाड़ी नमक
  • औषस—वि॰—-—उषस्-अण्—उषा या प्रभात से सम्बन्ध ररखने वाला
  • औषसी—स्त्री॰—-—उषस्-अण्—पौ फटना, प्रभात काल
  • औषसिक—वि॰—-—उषस्-ठञ् उषा-ठञ् वा—जिसने प्रभात काल में जन्म लिया है, उषःकाल में उत्पन्न।
  • औषिक—वि॰—-—उषस्-ठञ् उषा-ठञ् वा—जिसने प्रभात काल में जन्म लिया है, उषःकाल में उत्पन्न।
  • औष्ट्र—वि॰—-—उष्ट्र-अण्—ऊँट से उत्पन्न या ऊँट से सम्बन्ध रखने वाला
  • औष्ट्र—वि॰—-—उष्ट्र-अण्—जहाँ ऊँटों की बहुतायत हो
  • औष्ट्रम्—नपुं॰—-—उष्ट्र-अण्—ऊँटनी का दूध
  • औष्ट्रकम्—नपुं॰—-—उष्ट्र-वुञ्—ऊँटों का झुण्ड
  • औष्ठ्य—वि॰—-—ओष्ठ-यत्—होठ से सम्बद्ध, ओष्ठ स्थानीय
  • औष्ठ्यवर्णः—पुं॰—औष्ठ्य-वर्णः—-—ओष्ठस्थानीय अक्षर-अर्थात् उ,ऊ,प्,फ्,ब्,भ्,म्,और व्
  • औष्ठ्यस्थान—वि॰—औष्ठ्य-स्थान—-—होठों द्वारा उच्चरित
  • औष्ठयस्वरः—पुं॰—औष्ठय-स्वरः—-—ओष्ठस्थानीय अस्वर
  • औष्णम्—नपुं॰—-—उष्ण-अण्—गर्मी,ताप
  • औष्ण्यम्—नपुं॰—-—उष्ण-ष्यञ्—गर्मी
  • औष्म्यम्—नपुं॰—-—उष्म-ष्यञ्—गर्मी