विक्षनरी:संस्कृत-हिन्दी शब्दकोश/की-क्

विक्षनरी से
मूलशब्द—व्याकरण—संधिरहित मूलशब्द—व्युत्पत्ति—हिन्दी अर्थ
  • कीकट—वि॰—-—की शनैः द्रुतं वा कटति गच्छति - की - कट् - अच्—गरीब, दरिद्र
  • कीकट—वि॰—-—की शनैः द्रुतं वा कटति गच्छति - की - कट् - अच्—कञ्जूस
  • कीकटः—पुं॰—-—की शनैः द्रुतं वा कटति गच्छति - की - कट् - अच्—घोड़ा
  • कीकटाः—पुं॰—-—की शनैः द्रुतं वा कटति गच्छति - की - कट् - अच्—एक देश का नाम
  • कीकस—वि॰—-—की कुत्सितं यथा स्यात्तथा कसति - की - कस् - अच्—कठोर, दृढ़
  • कीकसम्—नपुं॰—-—की कुत्सितं यथा स्यात्तथा कसति - की - कस् - अच्—हड्डी
  • कीचकः—पुं॰—-—चीकयति शब्दायते - चीक् - वुन्, आद्यन्तविपर्ययः—खोखला बाँस
  • कीचकः—पुं॰—-—चीकयति शब्दायते - चीक् - वुन्, आद्यन्तविपर्ययः—हवा में लड़खड़ाते या साँय साँय करते हुए बाँस
  • कीचकः—पुं॰—-—चीकयति शब्दायते - चीक् - वुन्, आद्यन्तविपर्ययः—एक जाति का नाम
  • कीचकः—पुं॰—-—चीकयति शब्दायते - चीक् - वुन्, आद्यन्तविपर्ययः—विराट राज का सेनापति
  • कीचकजित्—पुं॰—कीचक - जित्—-—द्वितीय पाण्डवराज भीम का विशेषण
  • कीटः—पुं॰—-—कीट - अच्—कीड़ा, कृमि
  • कीटः—पुं॰—-—कीट - अच्—तिरस्कार और घृणा को व्यक्त करने वाला शब्द
  • द्वीपकीटः—पुं॰—-—-—अधम हाथी
  • कीटघ्नः—पुं॰—कीट-घ्नः—-—गन्धक
  • कीटजम्—नपुं॰—कीट-जम्—-—रेशम
  • कीटजा—स्त्री॰—कीट-जा—-—लाख
  • कीटमणिः—पुं॰—कीट-मणिः—-—जुगनू
  • कीटकः—पुं॰—-—कीट - कन्—कीड़ा
  • कीटकः—पुं॰—-—कीट - कन्—मगध जाति का भाट
  • कीदृक्ष—अव्य॰—-—किम् - दृश् - क्त, क्नि, कञ् वा, किमः की आदेशः—किस प्रकार का या किस स्वभाव का
  • कीदृश्—अव्य॰—-—किम् - दृश् - क्त, क्नि, कञ् वा, किमः की आदेशः—किस प्रकार का या किस स्वभाव का
  • कीदृश—अव्य॰—-—किम् - दृश् - क्त, क्नि, कञ् वा, किमः की आदेशः—किस प्रकार का या किस स्वभाव का
  • कीनाश—वि॰—-—क्लिश् कन्, ई उपधाया ईत्वम्, लस्य लोपो नामागमश्च—भूमिधर
  • कीनाश—वि॰—-—क्लिश् कन्, ई उपधाया ईत्वम्, लस्य लोपो नामागमश्च—गरीब, दरिद्र
  • कीनाश—वि॰—-—क्लिश् कन्, ई उपधाया ईत्वम्, लस्य लोपो नामागमश्च—कृपण
  • कीनाश—वि॰—-—क्लिश् कन्, ई उपधाया ईत्वम्, लस्य लोपो नामागमश्च—लघु, तुच्छ
  • कीनाशः—पुं॰—-—क्लिश् कन्, ई उपधाया ईत्वम्, लस्य लोपो नामागमश्च—मृत्यु के देवता यम की उपाधि
  • कीनाशः—पुं॰—-—क्लिश् कन्, ई उपधाया ईत्वम्, लस्य लोपो नामागमश्च—एक प्रकार का बन्दर
  • कीरः—पुं॰—-—की इति अव्यक्तशब्दम् ईरयति - की - ईर् - अच्—तोता
  • कीराः—पुं॰,ब॰ व॰—-—की इति अव्यक्तशब्दम् ईरयति - की - ईर् - अच्—काश्मीर देश तथा उसके निवासी
  • कीरम्—नपुं॰—-—की इति अव्यक्तशब्दम् ईरयति - की - ईर् - अच्—मांस
  • कीरेष्टः—पुं॰—कीर-इष्टः—-—आम का वृक्ष
  • कीरवर्णकम्—नपुं॰—कीर-वर्णकम्—-—सुगन्धों का शिरोमणि
  • कीर्ण—वि॰—-—कॄ - क्त—छितराया हुआ, फैलाया हुआ, फेंका हुआ, बखेरा हुआ
  • कीर्ण—वि॰—-—कॄ - क्त—ढका हुआ, भरा हुआ
  • कीर्ण—वि॰—-—कॄ - क्त—रक्खा हुआ, धरा हुआ
  • कीर्ण—वि॰—-—कॄ - क्त—क्षत, चोट पहुँचाया गया
  • कीर्ण—वि॰—-—कॄ - क्त—बिखेरना, इधर-उधर फेंकना, उड़ेलना, डालना, तितर-बितर करना
  • कीर्ण—वि॰—-—कॄ - क्त—छितराना, ढँकना, भरना
  • कीर्णिः—स्त्री॰—-—कॄ - क्तिन्—बखेरना
  • कीर्णिः—स्त्री॰—-—कॄ - क्तिन्—ढकना, छिपाना, गुप्त कर देना
  • कीर्णिः—स्त्री॰—-—कॄ - क्तिन्—घायल करना
  • कीर्तनम्—नपुं॰—-—कॄ - ल्युट्—कथन, वर्णन
  • कीर्तनम्—नपुं॰—-—कॄ - ल्युट्—मन्दिर
  • कीर्तना—स्त्री॰—-—कॄ - ल्युट् -टाप्—कीर्तिवर्णन
  • कीर्तना—स्त्री॰—-—कॄ - ल्युट् -टाप्—सस्वर पाठ
  • कीर्तना—स्त्री॰—-—कॄ - ल्युट् -टाप्—यश, कीर्ति
  • कीर्तय्—चुरा॰ उभ॰ <कीर्तयति>, <कीर्तयते>, <कीर्तित>—-—-—उल्लेख करना, दोहराना, उच्चारण करना
  • कीर्तय्—चुरा॰ उभ॰ <कीर्तयति>, <कीर्तयते>, <कीर्तित>—-—-—कहना, सस्वर पाठ करना, घोषणा करना, समाचार देना
  • कीर्तय्—चुरा॰ उभ॰ <कीर्तयति>, <कीर्तयते>, <कीर्तित>—-—-—नाम लेना, पुकार करना
  • कीर्तय्—चुरा॰ उभ॰ <कीर्तयति>, <कीर्तयते>, <कीर्तित>—-—-—स्तुति करना, यशोगान करना, स्मरणार्थ उत्सव मनाना
  • कीर्तिः—स्त्री॰—-—कॄ - क्तिन्—यश, प्रसिद्धि, कीर्ति
  • कीर्तिः—स्त्री॰—-—कॄ - क्तिन्—अनुग्रह, अनुमोदन
  • कीर्तिः—स्त्री॰—-—कॄ - क्तिन्—मैल, कीचड़
  • कीर्तिः—स्त्री॰—-—कॄ - क्तिन्—विस्तृति, विस्तार
  • कीर्तिः—स्त्री॰—-—कॄ - क्तिन्—प्रकाश, प्रभा
  • कीर्तिः—स्त्री॰—-—कॄ - क्तिन्—ध्वनि
  • कीर्तिभाज्—वि॰—कीर्ति-भाज्—-—यशस्वी, विख्यात, प्रसिद्ध
  • कीर्तिभाज्—पुं॰—कीर्ति-भाज्—-—द्रोण का विशेषण
  • कीर्तिशेषः—पुं॰—कीर्ति-शेषः—-—केवल यश के रुप में जीवित रहना
  • कील्—भ्वा॰ पर॰—-—-—बाँधना
  • कील्—भ्वा॰ पर॰—-—-—नत्थी करना
  • कील्—भ्वा॰ पर॰—-—-—कोल गाड़ना
  • कीलः—पुं॰—-—कील - घञ्—फन्नी, खूँटी
  • कीलः—पुं॰—-—कील - घञ्—भालाः
  • कीलः—पुं॰—-—कील - घञ्—बल्ली, खम्भा
  • कीलः—पुं॰—-—कील - घञ्—हथियार, कोहनी
  • कीलः—पुं॰—-—कील - घञ्—कोहनी का प्रहार
  • कीलः—पुं॰—-—कील - घञ्—ज्वाला
  • कीलः—पुं॰—-—कील - घञ्—परमाणु
  • कीलः—पुं॰—-—कील - घञ्—शिव का नाम
  • कीलकः—पुं॰—-—कील - कन्—फन्नी या खूँटी
  • कीलकः—पुं॰—-—कील - कन्—खम्बा, स्तम्भ
  • कीलालः—पुं॰—-—कील - अल् - अण्—अमृतोपम स्वर्गीय पेय, देवताओं का पेय
  • कीलालः—पुं॰—-—कील - अल् - अण्—मधु
  • कीलालः—पुं॰—-—कील - अल् - अण्—हैवान
  • कीलालम्—नपुं॰—-—-—रुधिर
  • कीलालम्—नपुं॰—-—-—जल
  • कीलालधिः—पुं॰—कीलाल-धिः—-—समुद्र
  • कीलालपः—पुं॰—कीलाल-पः—-—पिशाच, भूत
  • कीलिका—स्त्री॰—-—कील - कन् - टाप्, इत्वम्—धुरे की कील
  • कीलित—वि॰—-—कील - क्त—बँधा हुआ, बद्ध
  • कीलित—वि॰—-—कील - क्त—स्थिरा कील से गड़ा हुआ, कील ठोककर जड़ा हुआ
  • कीश—वि॰—-—क - ईश् - क—नंगा
  • कीशः—पुं॰—-—क - ईश् - क—लंगूर, बन्दर
  • कीशः—पुं॰—-—क - ईश् - क—सूर्य
  • कीशः—पुं॰—-—क - ईश् - क—पक्षी
  • कुः—स्त्री॰—-—कु - डु—पृथ्वी
  • कुः—स्त्री॰—-—कु - डु—त्रिभुज या सपाट आकृति की आधार-रेखा
  • कुपुत्रः—पुं॰—कु-पुत्रः—-—मंगल ग्रह
  • कु—अव्य॰—-—-—‘खराबी’, ह्रास, अवमूल्यन, पाप, भर्त्सना, ओछापन, अभाव, त्रुटि आदि भावों को संकेत करने वाला उपसर्ग;
  • कुकर्मन्—नपुं॰—कु-कर्मन्—-—बुरा कार्य, नीचा कर्म
  • कुग्रहः—पुं॰—कु-ग्रहः—-—अमंगल ग्रह
  • कुग्रामः—पुं॰—कु-ग्रामः—-—छोटा गाँव या पुरवा
  • कुचेल—वि॰—कु-चेल—-—फटे पुराने वस्त्र पहने हुए
  • कुचर्या—स्त्री॰—कु-चर्या—-—दुष्टता, अशिष्टाचरण, अनौचित्य
  • कुजन्मन्—वि॰—कु-जन्मन्—-—नीच कुल में उत्पन्न
  • कुतनु—वि॰—कु-तनु—-—विकृतकाय, कुरुप
  • कुतनुः—पुं॰—कु-तनुः—-—कुबेर का विशेषण
  • कुतंत्री—स्त्री॰—कु-तंत्री—-—खराब बीणा
  • कुतर्कः—पुं॰—कु-तर्कः—-—कूटतर्कात्मक, हेत्वाभासरुप
  • कुतर्कः—पुं॰—कु-तर्कः—-—धर्मविरुद्ध, स्वतन्त्र चिन्तन
  • कुतर्कपथः—पुं॰—कु-तर्क-पथः—-—तर्क करने की झूठी रीति
  • कुतीर्यम्—नपुं॰—कु-तीर्यम्—-—खराब अध्यापक
  • कुदृष्टिः—स्त्री॰—कु-दृष्टिः—-—कमजोर नजर
  • कुदृष्टिः—स्त्री॰—कु-दृष्टिः—-—पाप दृष्टि, कुटिल आँख
  • कुदृष्टिः—स्त्री॰—कु-दृष्टिः—-—वेदविरुद्ध सिद्धान्त, धर्मविरुद्ध सिद्धान्त
  • कुदेशः—पुं॰—कु-देशः—-—बुरा देश या बुरी जगह
  • कुदेशः—पुं॰—कु-देशः—-—वह देश जहाँ जीवन की आवश्यक सामग्री उपलब्ध न हो, या जो अत्याचार से पीड़ित हो
  • कुदेह—वि॰—कु-देह—-—कुरुप विकृतकाय
  • कुदेहः—पुं॰—कु-देहः—-—कुबेर का विशेषण
  • कुधी—वि॰—कु-धी—-—मूर्ख, बुद्धू, बेवकूफ
  • कुधी—वि॰—कु-धी—-—दुष्ट
  • कुनटः—पुं॰—कु-नटः—-—बुरा पात्र
  • कुनदिका—स्त्री॰—कु-नदिका—-—छोटी नदी, क्षुद्र नदी, लघु स्रोत
  • कुनाथः—पुं॰—कु-नाथः—-—बुरा स्वामी
  • कुनामन्—वि॰—कु-नामन्—-—कंजूस
  • कुरथः—पुं॰—कु-रथः—-—कुमार्ग, बुरा रास्ता
  • कुरथः—पुं॰—कु-रथः—-—धर्मविरुद्ध सिद्धान्त
  • कुपुत्रः—पुं॰—कु-पुत्रः—-—बुरा या दुष्ट पुत्र
  • कुपुरुषः—पुं॰—कु-पुरुषः—-—नीच या दुष्ट पुरुष
  • कुपूय—वि॰—कु-पूय—-—नीच दुष्ट, तिरस्करणीय
  • कुप्रिय—वि॰—कु-प्रिय—-—अरुचिकर, तिरस्करणीय, नीच, अधम
  • कुप्लवः—पुं॰—कु-प्लवः—-—बुरी किश्ती
  • कुब्रह्मः—पुं॰—कु-ब्रह्मः—-—पतित ब्राह्मण
  • कुब्रह्मन्—पुं॰—कु-ब्रह्मन्—-—पतित ब्राह्मण
  • कुमन्त्रः—पुं॰—कु-मन्त्रः—-—बुरा उपदेश
  • कुमन्त्रः—पुं॰—कु-मन्त्रः—-—बुरे कार्यों में सफलता प्राप्त करने के लिए प्रयुक्त मंत्र
  • कुयोगः —पुं॰—कु-योगः —-—अशुभ संयोग
  • कुरस —वि॰—कु-रस —-—बुरे रस या स्वाद वाला
  • कुरसः—पुं॰—कु-रसः—-—एक प्रकार की मदिरा
  • कुरुप—वि॰—कु-रुप—-—कुरुप विकृत रुप
  • कुरुप्यम्—नपुं॰—कु-रुप्यम्—-—टीन, जस्ता
  • कुवङ्ग—वि॰—कु-वङ्ग—-—सीसा
  • कुवचस्—वि॰—कु-वचस्—-—गाली देने वाला, अश्लील भाषी, दुर्वचन या कुभाषा बोलने वाला
  • कुवाक्य—वि॰—कु-वाक्य—-—गाली देने वाला, अश्लील भाषी, दुर्वचन या कुभाषा बोलने वाला
  • कुवाक्य—नपुं॰—कु-वाक्य—-—दुर्वचन, दुर्भाषा
  • कुवर्षः—पुं॰—कु-वर्षः—-—आकस्मिक प्रचण्ड बौछार
  • कुविवाहः—पुं॰—कु-विवाहः—-—विवाह का भर्ष्ट या अनुचित रुप
  • कुवृत्तिः—स्त्री॰—कु-वृत्तिः—-—बुरा व्यवहार
  • कुवैद्यः—पुं॰—कु-वैद्यः—-—खोटा वैद्य, कठवैद्य, नीम हकीम
  • कुशील—वि॰—कु-शील—-—अक्खड़, दुष्ट अशिष्ट, दुष्ट स्वभाव
  • कुष्ठलम्—नपुं॰—कु-ष्ठलम्—-—बुरी जगह
  • कुसरित्—स्त्री॰—कु-सरित्—-—क्षुद्र नदी, छोटा स्रोत
  • कुसृतिः—स्त्री॰—कु-सृतिः—-—दुराचरण, दुष्टता
  • कुसृतिः—स्त्री॰—कु-सृतिः—-—जादू दिखाना
  • कुसृतिः—स्त्री॰—कु-सृतिः—-—धूर्तता
  • कुस्त्री—स्त्री॰—कु-स्त्री—-—खोटी स्त्री
  • कु—भ्वा॰ आ॰ <कवते>—-—-—ध्वनि करना
  • कु—तुदा॰ आ॰ <कुवते>—-—-—बड़बड़ाना, कराहना
  • कु—तुदा॰ आ॰ <कुवते>—-—-—चिल्लाना, क्रन्दन करना
  • कु—अदा॰ पर॰ <कौति>—-—-—भिनभिनाना, कूजना, गुञ्जन करना
  • कुकभम्—नपुं॰—-—कुकेन अदानेन पानेन भाति - कुक - भा - क—एक प्रकार की तीक्ष्ण मदिरा
  • कुकीलः—पुं॰—-—कौ पृथिव्यां कीलः इव—पहाड़
  • कुकुदः —पुं॰—-—कूक वा कू इत्यव्ययम् - अलंकृता कन्या तां सत्कृत्य पात्राय ददाति कुकु - दा - क—उपयुक्त श्रृंगारों से सुभूषित कन्या को विधिपूर्वक विवाह में देने वाला
  • कुकूदः—पुं॰—-—कूक वा कू इत्यव्ययम् - अलंकृता कन्या तां सत्कृत्य पात्राय ददाति कुकू - दा - क—उपयुक्त श्रृंगारों से सुभूषित कन्या को विधिपूर्वक विवाह में देने वाला
  • कुकुन्दरः—पुं॰—-—स्कंद्यते कामिना अत्र, नि॰ साधुः—जघनकूप, कूल्हे के दो गर्त जो नितम्ब के ऊपरी भाग में होते है
  • कुकुन्दुरः—पुं॰—-—स्कंद्यते कामिना अत्र, नि॰ साधुः—जघनकूप, कूल्हे के दो गर्त जो नितम्ब के ऊपरी भाग में होते है
  • कुकुराः—ब॰ व॰—-—कु - कुर् - क—एक देश का नाम जिसे ‘दुर्शाह’ भी कहते हैं
  • कुकूलः—पुं॰—-—कु - ऊलच्, कुगागमः—चोकर, भूसी
  • कुकूलः—पुं॰—-—कु - ऊलच्, कुगागमः—भूसी से बनी आग
  • कुकूलम्—नपुं॰—-—कु - ऊलच्, कुगागमः—चोकर, भूसी
  • कुकूलम्—नपुं॰—-—कु - ऊलच्, कुगागमः—भूसी से बनी आग
  • कुकूलम्—नपुं॰—-—को कूलम् ष॰ त॰—छिद्र खाई
  • कुकूलम्—नपुं॰—-—को कूलम् ष॰ त॰—कवच, बख्तर
  • कुक्कुटः—पुं॰—-—कुक् - क्विप्, तेन् कुटति, कुक् - कुट् - क—मुर्गा, जंगली मुर्गा
  • कुक्कुटः—पुं॰—-—कुक् - क्विप्, तेन् कुटति, कुक् - कुट् - क—जले हुए भुस का फिसफिसाना, जलती हुई लकड़ी
  • कुक्कुटः—पुं॰—-—कुक् - क्विप्, तेन् कुटति, कुक् - कुट् - क—आग की चिंगारी
  • कुकुटिः—स्त्री॰—-—कुक्कुट - इन्—दम्भ, पाखण्ड, धार्मिक अनुष्ठानों से स्वार्थसिद्धि
  • कुकूटी—स्त्री॰—-—कुक्कुट - ङीप्—दम्भ, पाखण्ड, धार्मिक अनुष्ठानों से स्वार्थसिद्धि
  • कुक्कुभः—पुं॰—-—कुक्कु शब्दं भाषते - कुक्कु - भाष् - ड बा॰—जंगली मुर्गा
  • कुक्कुभः—पुं॰—-—कुक्कु शब्दं भाषते - कुक्कु - भाष् - ड बा॰—मुर्गा
  • कुक्कुभः—पुं॰—-—कुक्कु शब्दं भाषते - कुक्कु - भाष् - ड बा॰—वार्निश
  • कुक्कुरः—पुं॰—-—कोकते आदते - कुक् - क्विप्, कुक् किंचिदपि गृह्लन्तं जनं दृष्टवा कुरति शब्दायते - कुक् - कुर् - क—कुत्ता
  • कुक्कुरवाच्—पुं॰—कुक्कुर-वाच्—-—हरिणों की एक जाति
  • कुक्षिः—पुं॰—-—कुष् - स—पेट
  • कुक्षिः—पुं॰—-—कुष् - स—गर्भाशय, पेट का वह भाग जिसमें भ्रूण रहता हैं
  • कुक्षिः—पुं॰—-—कुष् - स—किसी चीज का भीतरी भाग
  • कुक्षिः—पुं॰—-—कुष् - स—गर्त
  • कुक्षिः—पुं॰—-—कुष् - स—गुफा, कन्दरा
  • कुक्षिः—पुं॰—-—कुष् - स—तलवार का म्यान
  • कुक्षिः—पुं॰—-—कुष् - स—खाड़ी
  • कुक्षिशूलः—पुं॰—कुक्षि-शूलः—-—पेट दर्द, उदरशूल
  • कुक्षिम्भरि—वि॰—-—कुक्षि - भृ - इन्, मुम्—अपना पेट भरने की चिन्ता करने वाला, स्वार्थी, पेटू, बहुभोजी
  • कुङ्कुमम्—नपुं॰—-—कुक् - उमक्, नि॰ मुम्—केसर, जाफ़रान
  • कुङ्कुमाद्रिः—पुं॰—कुङ्कुमम्-अद्रिः—-—एक पहाड़ का नाम
  • कुच्—तुदा॰ पर॰ <कुचति>, <कुचित>—-—-—कर्कश ध्वनि करना
  • कुच्—तुदा॰ पर॰ <कुचति>, <कुचित>—-—-—जाना, चमकाना
  • कुच्—तुदा॰ पर॰ <कुचति>, <कुचित>—-—-—सिकोड़ना, झुकाना
  • कुच्—तुदा॰ पर॰ <कुचति>, <कुचित>—-—-—सिकुड़ना
  • कुच्—तुदा॰ पर॰ <कुचति>, <कुचित>—-—-—बाधा उपस्थित करना
  • कुच्—तुदा॰ पर॰ <कुचति>, <कुचित>—-—-—लिखना, अंकित करना
  • सङ्कुच्—तुदा॰ पर॰ <कुचति>, <कुचित>—सम्-कुच्—-—टेढ़ा होना
  • सङ्कुच्—तुदा॰ पर॰ <कुचति>, <कुचित>—सम्-कुच्—-—संकुचित करना
  • सङ्कुच्—तुदा॰ पर॰ <कुचति>, <कुचित>—सम्-कुच्—-—संकुचित होना
  • सङ्कुच्—तुदा॰ पर॰ <कुचति>, <कुचित>—सम्-कुच्—-—बन्द करना, मुर्झाना
  • सङ्कुच्—तुदा॰ पर॰, प्रेर॰—सम्-कुच्—-—बन्द करना, सिकोड़ना, घटाना
  • कुच्—भ्वा॰ पर॰ <कोचति>, <कुञ्चति>, <कुञ्चित>—-—-—कुटिल बनाना, झुकाना या टेढ़ा करना
  • कुच्—भ्वा॰ पर॰ <कोचति>, <कुञ्चति>, <कुञ्चित>—-—-—टेढ़ी तरह से चलना
  • कुच्—भ्वा॰ पर॰ <कोचति>, <कुञ्चति>, <कुञ्चित>—-—-—छोटा करना, घटाना
  • कुच्—भ्वा॰ पर॰ <कोचति>, <कुञ्चति>, <कुञ्चित>—-—-—सिकोड़ना, संकुचित होना
  • कुच्—भ्वा॰ पर॰ <कोचति>, <कुञ्चति>, <कुञ्चित>—-—-—की ओर जाना
  • आकुच्—भ्वा॰ पर॰ <कोचति>, <कुञ्चति>, <कुञ्चित>—आ-कुच्—-—सिकोड़ना, टेढ़ा करना, झुकाना
  • आकुच्—भ्वा॰ पर॰ <कोचति>, <कुञ्चति>, <कुञ्चित>—आ-कुच्—-—सिकोड़ना, टेढ़ा करना, झुकाना
  • विकुच्—भ्वा॰ पर॰ <कोचति>, <कुञ्चति>, <कुञ्चित>—वि-कुच्—-—सिकोड़ना, टेढ़ा करना
  • कुञ्चनम्—नपुं॰—-—कुञ्च् - ल्युट्—टेढ़ा करना, झुकाना, सिकोड़ना
  • कुञ्चिः— पुं॰—-—कुच् - इन्—आठ मुट्ठियों या अंजलियों की धारिता का माप
  • कुञ्चिका—स्त्री॰—-—कुच् - ण्वुल् - टाप्, इत्वम्—कुंजी, चाभी
  • कुञ्चिका—स्त्री॰—-—कुच् - ण्वुल् - टाप्, इत्वम्—बाँस का अंकुर
  • कुञ्चित—वि॰—-—कुञ्च् - क्त—सिकुड़ा हुआ, टेढ़ा किया हुआ, झुकाया हुआ
  • कुञ्जः—पुं॰—-—कु - जन् - ड, पृषो॰ साधुः—लताओं तथा पौधों से आच्छादित स्थान, लतावितान, पर्णशाला
  • कुञ्जः—पुं॰—-—-—हाथी का दाँत
  • कुञ्जम्—नपुं॰—-—कु - जन् - ड, पृषो॰ साधुः—लताओं तथा पौधों से आच्छादित स्थान, लतावितान, पर्णशाला
  • कुञ्जम्—नपुं॰—-—कु - जन् - ड, पृषो॰ साधुः—हाथी का दाँत
  • कुञ्जकुटीरः—पुं॰—कुञ्ज-कुटीरः—-—लतामण्डप, लताओं तथा पौधों से परिवेष्टित स्थान
  • कुञ्जरः—पुं॰—-—कुञ्जो हस्तिहनुः सोऽस्यास्ति - कुञ्ज - र—हाथी
  • कुञ्जरः—पुं॰—-—कुञ्जो हस्तिहनुः सोऽस्यास्ति - कुञ्ज - र—कोई सर्वोत्तम या श्रेष्ठ वस्तु
  • कुञ्जरः—पुं॰—-—कुञ्जो हस्तिहनुः सोऽस्यास्ति - कुञ्ज - र—पीपल का वृक्ष
  • कुञ्जरः—पुं॰—-—कुञ्जो हस्तिहनुः सोऽस्यास्ति - कुञ्ज - र—हस्त नामक नक्षत्र
  • कुञ्जरानीकम्—नपुं॰—कुञ्जर-अनीकम्—-—सेना का एक भाग जिसमें हाथी हों, हस्ति-सेना
  • कुञ्जराशनः—पुं॰—कुञ्जर-अशनः—-—अश्वत्थ वृक्ष
  • कुञ्जरारातिः—पुं॰—कुञ्जर-अरातिः—-—शेर
  • कुञ्जरारातिः—पुं॰—कुञ्जर-अरातिः—-—शरभ
  • कुञ्जरग्रहः—पुं॰—कुञ्जर-ग्रहः—-—हाथी पकड़ने वाला
  • कुट्—भ्वा॰ पर॰ <कुटति>, <कुटित>—-—-—कुटील या वक्र होना
  • कुट्—भ्वा॰ पर॰ <कुटति>, <कुटित>—-—-—टेढ़ा करना या झुकाना
  • कुट्—भ्वा॰ पर॰ <कुटति>, <कुटित>—-—-—बेईमानी करना, छल करना, धोखा देना
  • कुट्—दिवा॰ पर॰ <कुटयति>—-—-—तोड़ कर टुकड़े-टुकड़े करना, फाड़ देना, विभक्त करना, विघटित करना
  • कुटः—पुं॰—-—कुट् - कम्—जलपात्र, करवा, कलश
  • कुटम्—नपुं॰—-—कुट् - कम्—जलपात्र, करवा, कलश
  • कुटः—पुं॰—-—कुट् - कम्—किला, दुर्ग
  • कुटः—पुं॰—-—कुट् - कम्—हथौड़ा
  • कुटः—पुं॰—-—कुट् - कम्—वृक्ष
  • कुटः—पुं॰—-—कुट् - कम्—घर
  • कुटः—पुं॰—-—कुट् - कम्—पहाड़
  • कुटजः—पुं॰—कुट-जः—-—एक वृक्ष का नाम
  • कुटजः—पुं॰—कुट-जः—-—अगस्त्य
  • कुटजः—पुं॰—कुट-जः—-—द्रोण
  • कुटहारिका—स्त्री॰—कुट-हारिका—-—सेविका, नौकरानी
  • कुटकम्—नपुं॰—-—कुट - कन्—बिना हलस का हल
  • कुटङ्कः—पुं॰—-—कु - टङ्क - घञ्—छत, छप्पर
  • कुटङ्गकः—पुं॰—-—कुटस्य अङ्गकः - ष॰ त॰—वृक्ष के उपर फैली हुई लताओं से बना लतामण्डप
  • कुटङ्गकः—पुं॰—-—कुटस्य अङ्गकः - ष॰ त॰—छोटा घर, झोपड़ी, कुटिया
  • कुटपः—पुं॰—-—कुट - पा - क—अनाज की माप
  • कुटपः—पुं॰—-—कुट - पा - क—घर के निकट वाटिका
  • कुटपः—पुं॰—-—कुट - पा - क—ऋषि, संन्यासी
  • कुटपम्—नपुं॰—-—कुट - पा - क—कमल
  • कुटरः—पुं॰—-—कुट् - करन् बा॰ —वह थूणी जिसमें मथते समय रई की रस्सी लिपटी रहती है
  • कुटलम्—नपुं॰—-—कुट् - कलच्—छत, छप्पर
  • कुटिः—पुं॰—-—कुट् - इन—शरीर
  • कुटिः—पुं॰—-—कुट् - इन—वृक्ष
  • कुटिः—पुं॰—-—कुट् - इन—कुटिया, झोपड़ी
  • कुटिः—स्त्री॰—-—कुट् - इन—मोड़, झुकाव
  • कुटिचरः—पुं॰—कुटि-चरः—-—सूँस, शिंशुक
  • कुटिरम्—नपुं॰—-—कुट् - इरन्—कुटिया, झोपड़ी
  • कुटिल—वि॰—-—कुट् - इलच्—टेढ़ा, झुका हुआ, मुड़ा हुआ, घूँघरदार
  • कुटिल—वि॰—-—कुट् - इलच्—घुमावदार, बलखाती हुई
  • कुटिल—वि॰—-—कुट् - इलच्—कपटी, जालसाज, बेईमान
  • कुटिलाशय—वि॰—कुटिल-आशय—-—दुरात्मा, दुर्गति
  • कुटिलपक्ष्मन्—वि॰—कुटिल-पक्ष्मन्—-—मुड़ी हुई पलकों वाला
  • कुटिलस्वभाव—वि॰—कुटिल-स्वभाव—-—कुटिल प्रकृति, बेईमान, दुर्गति
  • कुटिलिका—स्त्री॰—-—कुटिल - कन् - टाप्, इत्वम्—दबे पाँव आना, दुबक कर चलना
  • कुटिलिका—स्त्री॰—-—कुटिल - कन् - टाप्, इत्वम्—लुहार की भट्टी
  • कुट्टी—स्त्री॰—-—कुटि - ङीष्—मोड़
  • कुट्टी—स्त्री॰—-—कुटि - ङीष्—कुटिया, झोपड़ी
  • कुट्टी—स्त्री॰—-—कुटि - ङीष्—कुट्टिनि, दूती
  • कुट्टीचकः—पुं॰—कुट्टी-चकः—-—किसी संघविशेष का संन्यासी
  • कुट्टीचरः—पुं॰—कुट्टी-चरः—-—एक संन्यासी जो अपने परिवार को अपने पुत्र की देख रेख में छोड़कर अपने आप को पूर्णतया धर्मानुष्ठान एवं तपश्चर्या में लगा देता है
  • कुटीरः—पुं॰—-—कुटी - र—कुटिया, झोपड़ी
  • कुटीरम्—नपुं॰—-—कुटी - र—कुटिया, झोपड़ी
  • कुटीरकः—पुं॰—-—कुटीर - कन्—कुटिया, झोपड़ी
  • कुटुनी—स्त्री॰—-—कुट् - उन् - ङीष्—कुट्टिनी, दूती
  • कुटुम्बम्—नपुं॰—-—कुटुम्ब् - अच्—गृहस्थी, परिवार
  • कुटुम्बम्—नपुं॰—-—कुटुम्ब् - अच्—परिवार के कर्तव्य और चिन्ताएँ
  • कुटुम्बकम्—नपुं॰—-—कुटुम्ब - कन्—गृहस्थी, परिवार
  • कुटुम्बकम्—नपुं॰—-—कुटुम्ब - कन्—परिवार के कर्तव्य और चिन्ताएँ
  • कुटुम्बः—पुं॰—-—कुटुम्ब् - अच्—बन्धु, वंश या विवाह के फलस्वरूप सम्बन्ध
  • कुटुम्बः—पुं॰—-—कुटुम्ब् - अच्—बाल-बच्चे, संतान
  • कुटुम्बः—पुं॰—-—कुटुम्ब् - अच्—नाम
  • कुटुम्बः—पुं॰—-—कुटुम्ब् - अच्—वंश
  • कुटुम्बम्—नपुं॰—-—कुटुम्ब् - अच्—बन्धु, वंश या विवाह के फलस्वरूप सम्बन्ध
  • कुटुम्बम्—नपुं॰—-—कुटुम्ब् - अच्—बाल-बच्चे, सन्तान
  • कुटुम्बम्—नपुं॰—-—कुटुम्ब् - अच्—नाम
  • कुटुम्बम्—नपुं॰—-—कुटुम्ब् - अच्—वंश
  • कुटुम्बकलहः—पुं॰—कुटुम्बम्-कलहः—-—घरेलू झगड़े
  • कुटुम्बकलहम्—नपुं॰—कुटुम्बम्-कलहम्—-—घरेलू झगड़े
  • कुटुम्बभरः—पुं॰—कुटुम्बम्-भरः—-—परिवार का भार
  • कुटुम्बव्यापृत—वि॰—कुटुम्बम्-व्यापृत—-—जो पालन पोषण करता है, तथा परिवार की भलाई का ध्यान रखता है
  • कुटुम्बिकः—पुं॰—-—कुटुम्ब - ठन्—गृहस्थ, कुल पिता
  • कुटुम्बिकः—पुं॰—-—कुटुम्ब - ठन्—परिवार का एक सदस्य
  • कुटुम्बिन्—पुं॰—-—कुटुम्ब - इनि —गृहस्थ, कुल पिता
  • कुटुम्बिन्—पुं॰—-—कुटुम्ब - इनि —परिवार का एक सदस्य
  • कुटुम्बिकनी—स्त्री॰—-—-—गृहपत्नी, गृहिणी
  • कुटुम्बिकनी—स्त्री॰—-—-—स्त्री
  • कुटुम्बिनी—स्त्री॰—-—-—गृहपत्नी, गृहिणी
  • कुटुम्बिनी—स्त्री॰—-—-—स्त्री
  • कुट्ट—चुरा॰ उभ॰ <कुट्टयति>, <कुट्टित>—-—-—काटना, बाँटना
  • कुट्ट—चुरा॰ उभ॰ <कुट्टयति>, <कुट्टित>—-—-—पीसना, चूर्ण करना
  • कुट्ट—चुरा॰ उभ॰ <कुट्टयति>, <कुट्टित>—-—-—दोष देना, निन्दा करना
  • कुट्ट—चुरा॰ उभ॰ <कुट्टयति>, <कुट्टित>—-—-—गुणा करना
  • कुट्टकः—पुं॰—-—कुट्ट् - ण्वुल्—कूटने वाला, पीसने वाला
  • कुट्टनम्—नपुं॰—-—कुट्ट् - ल्युट्—काटना
  • कुट्टनम्—नपुं॰—-—कुट्ट् - ल्युट्—कूटना
  • कुट्टनम्—नपुं॰—-—कुट्ट् - ल्युट्—दुर्वचन कहना, निन्दा करना
  • कुट्टनी —स्त्री॰—-—कुट्टयति नाशयति स्त्रीणां कुलम् - कुट्ट् - णिच् - ल्युट् - ङीप्—कुटनी, दूती, दल्ली
  • कुट्टिनी—स्त्री॰—-—कुट्टयति नाशयति स्त्रीणां कुलम् - कुट्ट् - णिच् - ल्युट् - ङीप्, कुट्ट - इनि वा—कुटनी, दूती, दल्ली
  • कुट्टमितम्—नपुं॰—-—कुट्ट् - घञ्, तेन निर्वृत्त इत्यर्थे कुट्ट् - इमप् - इतच्—प्रियतम के प्यार का दिखावटी तिरस्कार
  • कुट्टाक—वि॰—-—कुट्ट् - षाकन्—जो विभक्त करता है या काटता है
  • कुट्टारः—पुं॰—-—कुट्ट - आरन्—पहाड़
  • कुट्टारम्—नपुं॰—-—कुट्ट - आरन्—मैथुन
  • कुट्टारम्—नपुं॰—-—कुट्ट - आरन्—ऊनी कंबल
  • कुट्टारम्—नपुं॰—-—कुट्ट - आरन्—एकान्त
  • कुट्टिमः—पुं॰—-—कुट्ट् - इमप्—खड़ंजा, छोटे-छोटे पत्थरों को जमा कर बनाया हुआ फर्श, पक्का फर्श
  • कुट्टिमः—पुं॰—-—कुट्ट् - इमप्—भवन बनाने के लिए तैयार की गई भूमि
  • कुट्टिमः—पुं॰—-—कुट्ट् - इमप्—रत्नों की खान
  • कुट्टिमः—पुं॰—-—कुट्ट् - इमप्—अनार
  • कुट्टिमः—पुं॰—-—कुट्ट् - इमप्—झोपड़ी, कुटिया, छोटा घर
  • कुट्टिमम्—नपुं॰—-—कुट्ट् - इमप्—खड़ंजा, छोटे-छोटे पत्थरों को जमा कर बनाया हुआ फर्श, पक्का फर्श
  • कुट्टिमम्—नपुं॰—-—कुट्ट् - इमप्—भवन बनाने के लिए तैयार की गई भूमि
  • कुट्टिमम्—नपुं॰—-—कुट्ट् - इमप्—रत्नों की खान
  • कुट्टिमम्—नपुं॰—-—कुट्ट् - इमप्—अनार
  • कुट्टिमम्—नपुं॰—-—कुट्ट् - इमप्—झोपड़ी, कुटिया, छोटा घर
  • कुट्टिहारिका—स्त्री॰—-—कुट्टिं मत्स्यमांसादिकं हरति इति - कुट्टि - हृ - ण्वुल् - टाप्, इत्वम्—सेविका, दासी
  • कुट्मल—वि॰—-—-—कुड्मल
  • कुठः—पुं॰—-—कुठयते छिद्यते - कुठ् - क—वृक्ष
  • कुठर—वि॰—-—-—वह थूणी जिसमें मथते समय रई की रस्सी लिपटी रहती है
  • कुठारः—पुं॰—-—कुठ् - आरन्—कुल्हाड़ा, कुल्हाड़ी
  • कुठारिकः—पुं॰—-—कुठार - ठन्—लकड़हारा, लकड़ी काटने वाला
  • कुठारिका—स्त्री॰—-—कुठार - ङीप् - कन् - टाप्, ह्रस्वश्च—छोटा कुल्हाड़ा, फरसा
  • कुठारुः—पुं॰—-—कुठ् - आरु—वृक्ष
  • कुठारुः—पुं॰—-—कुठ् - आरु—लंगूर, बन्दर
  • कुठिः—पुं॰—-—कुठ् - इन् - कित्—वृक्ष
  • कुठिः—पुं॰—-—कुठ् - इन् - कित्—पहाड़
  • कुडङ्गः—पुं॰—-—कुठ् - इन् - कित्—कुञ्ज, लतागृह
  • कुडवः—पुं॰—-—कुड् - कवन्, कपन् वा—एक चौथाई प्रस्थ के बराबर या बारह मुट्ठी अनाज की तोल
  • कुड्मल—वि॰—-—कुड् - कल, मुट्—खुलता हुआ, पूरा खिला हुआ, लहराता हुआ
  • कुड्मलः—पुं॰—-—कुड् - कल, मुट्—खुलना, कली
  • कुड्मलम्—नपुं॰—-—कुड् - कल, मुट्—एक प्रकार का नरक
  • कुड्मलित—वि॰—-—कुड्मल - इतच्—कलीदार, खिला हुआ
  • कुड्मलित—वि॰—-—कुड्मल - इतच्—प्रसन्न, हंसमुख
  • कुड्यम्—नपुं॰—-—कु - यक्, डुगागमः—दीवार
  • कुड्यम्—नपुं॰—-—कु - यक्, डुगागमः—पलस्तर करना, लीपना, पोतना
  • कुड्यम्—नपुं॰—-—कु - यक्, डुगागमः—उत्सुकता, जिज्ञासा
  • कुड्यछेदिन्—पुं॰—कुड्यम्-छेदिन्—-—घर में सेंध लगाने वाला, चोर
  • कुड्यछेद्यः—पुं॰—कुड्यम्-छेद्यः—-—खोदने वाला
  • कुड्यछेद्यम्—नपुं॰—कुड्यम्-छेद्यम्—-—खाई, गड्ढा, दरार
  • कुण्—तुदा॰ पर॰ <कुणति>, <कुणित>—-—-—सहारा देना, सहायता देना
  • कुण्—तुदा॰ पर॰ <कुणति>, <कुणित>—-—-—शब्द करना
  • कुणकः—पुं॰—-—कुण् - क - कन्—किसी जानवर का अभी पैदा हुआ बच्चा
  • कुणप—वि॰—-—कुण् - कपन्—मुर्दे जैसी दुर्गन्ध देने वाला, बदबूदार
  • कुणपः—पुं॰—-—कुण् - कपन्—मुर्दा, शव
  • कुणपम्—नपुं॰—-—कुण् - कपन्—मुर्दा, शव
  • कुणपः—पुं॰—-—कुण् - कपन्—बर्छी
  • कुणपः—पुं॰—-—कुण् - कपन्—दुर्गन्ध, बदबू
  • कुणिः—पुं॰—-—कुण् - इन्—लुंजा
  • कुण्टक—वि॰—-—कुण्ट् - ण्वुल्—मोटा, स्थूल
  • कुण्ठ्—भ्वा॰ पर॰ <कुण्ठति>, <कुण्ठित>—-—-—कुण्ठित, ठूण्ठा या मन्द हो जाना
  • कुण्ठ्—भ्वा॰ पर॰ <कुण्ठति>, <कुण्ठित>—-—-—लँगड़ा और विकलांग होना
  • कुण्ठ्—भ्वा॰ पर॰ <कुण्ठति>, <कुण्ठित>—-—-—मन्दबुद्धि या मूर्ख होना, सुस्त होना
  • कुण्ठ्—भ्वा॰ पर॰ <कुण्ठति>, <कुण्ठित>—-—-—ढीला करना
  • कुण्ठ्—भ्वा॰ पर॰ प्रेर॰—-—-—छिपाना
  • कुण्ठ—वि॰—-—कुण्ठ् - अच्—ठूँठा, सुस्त
  • कुण्ठ—वि॰—-—कुण्ठ् - अच्—मन्द, मूर्ख, जड़
  • कुण्ठ—वि॰—-—कुण्ठ् - अच्—आलसी, सुस्त
  • कुण्ठ—वि॰—-—कुण्ठ् - अच्—दुर्बल
  • कुण्ठकः—पुं॰—-—कुण्ठ् - ण्वुल्—मूर्ख
  • कुण्ठित—भू॰ क॰ कृ॰—-—कुठ् - क्त—ठूंठा, मन्दीकृत
  • कुण्ठित—भू॰ क॰ कृ॰—-—कुठ् - क्त—जड
  • कुण्ठित—भू॰ क॰ कृ॰—-—कुठ् - क्त—विकलांग
  • कुण्डः—पुं॰—-—कुण् - ड—प्याले की शक्ल का बर्तन, चिलमची, कटोरा
  • कुण्डः—पुं॰—-—कुण् - ड—हौज
  • कुण्डः—पुं॰—-—कुण् - ड—कूँड़, कुंड
  • कुण्डः—पुं॰—-—कुण् - ड—पोखर या पल्वल
  • कुण्डः—पुं॰—-—कुण् - ड—कमण्डलु या भिक्षापात्र
  • कुण्डम्—नपुं॰—-—कुण् - ड—प्याले की शक्ल का बर्तन, चिलमची, कटोरा
  • कुण्डम्—नपुं॰—-—कुण् - ड—हौज
  • कुण्डम्—नपुं॰—-—कुण् - ड—कूँड़, कुंड
  • कुण्डम्—नपुं॰—-—कुण् - ड—पोखर या पल्वल
  • कुण्डम्—नपुं॰—-—कुण् - ड—कमण्डलु या भिक्षापात्र
  • कुण्डः—पुं॰—-—कुण् - ड—पति के जीवित रहते व्यभिचार के द्वारा किसी दूसरे पुरुष के संयोग से उत्पन्न सन्तान
  • कुण्डाशिन्—पुं॰—कुण्ड-आशिन्—-—भँड़ुवा, विट
  • कुण्डोधस्—पुं॰—कुण्ड-ऊधस्—-—वह गाय जिसका ऐन या औड़ी भरी हुई हो
  • कुण्डोधस्—पुं॰—कुण्ड-ऊधस्—-—भरे पूरे स्तनों वाली स्त्री
  • कुण्डकीटः—पुं॰—कुण्ड-कीटः—-—रखैल स्त्रियाँ रखने वाला
  • कुण्डकीटः—पुं॰—कुण्ड-कीटः—-—चार्वाक मतावलम्बी, नास्तिक, जारज ब्राह्मण
  • कुण्डकीलः—पुं॰—कुण्ड-कीलः—-—नीच या दुश्चरित्र व्यक्ति
  • कुण्डगोलम्—नपुं॰—कुण्ड-गोलम्—-—कांजी
  • कुण्डगोलम्—नपुं॰—कुण्ड-गोलम्—-—कुण्ड और गोलक का समुदाय
  • कुण्डगोलकम्—नपुं॰—कुण्ड-गोलकम्—-—कांजी
  • कुण्डगोलकम्—नपुं॰—कुण्ड-गोलकम्—-—कुण्ड और गोलक का समुदाय
  • कुण्डलः—पुं॰—-—कुण्ड - मत्वर्थे ल—कान की बाली, कान का आभूषण
  • कुण्डलः—पुं॰—-—कुण्ड - मत्वर्थे ल—कड़ा
  • कुण्डलः—पुं॰—-—कुण्ड - मत्वर्थे ल—रस्सी का गोला
  • कुण्डलम्—नपुं॰—-—कुण्ड - मत्वर्थे ल—कान की बाली, कान का आभूषण
  • कुण्डलम्—नपुं॰—-—कुण्ड - मत्वर्थे ल—कड़ा
  • कुण्डलम्—नपुं॰—-—कुण्ड - मत्वर्थे ल—रस्सी का गोला
  • कुण्डलना—स्त्री॰—-—कुण्डल् - णिच् - युच् - टाप्—घेरा डालना
  • कुण्डलिन्—वि॰—-—कुण्डल - इनि—कुण्डलों से विभूषित
  • कुण्डलिन्—वि॰—-—कुण्डल - इनि—गोलाकार, सर्पिल
  • कुण्डलिन्—वि॰—-—कुण्डल - इनि—घुमावदार, कुण्डली मारे हुए
  • कुण्डलिन्—पुं॰—-—कुण्डल - इनि—साँप
  • कुण्डलिन्—पुं॰—-—कुण्डल - इनि—मोर
  • कुण्डलिन्—पुं॰—-—कुण्डल - इनि—वरुण की उपाधि
  • कुण्डिका—स्त्री॰—-—कुण्ड - कन् - टाप्, इत्वम्—घड़ा
  • कुण्डिका—स्त्री॰—-—कुण्ड - कन् - टाप्, इत्वम्—कमण्डलु
  • कुण्डिन्—पुं॰—-—कुण्ड् - इनि—शिव की उपाधि
  • कुण्डिनम्—नपुं॰—-—कुण्ड् - इनच्—एक नगर का नाम, विदर्भ देश की राजधानी
  • कुण्डिर—वि॰—-—कुण्ड् - इ रन्—बलवान
  • कुण्डीर—वि॰—-—कुण्ड् - ई रन्—बलवान
  • कुण्डिरः—पुं॰—-—कुण्ड् - इ रन्—मनुष्य
  • कुण्डीरः—पुं॰—-—कुण्ड् - ई रन्—मनुष्य
  • कुतः—अव्य॰—-—किम् - तसिल्—कहाँ से, किधर से
  • कुतः—अव्य॰—-—किम् - तसिल्—कहाँ, और कहाँ, और किस स्थान पर आदि
  • कुतः—अव्य॰—-—किम् - तसिल्—क्यों, किसलिए किस कारण से, किस प्रयोजन से
  • कुतः—अव्य॰—-—किम् - तसिल्—कैसे, किसप्रकार
  • कुतः—अव्य॰—-—किम् - तसिल्—और अधिक, और कम
  • कुतः—अव्य॰—-—किम् - तसिल्—क्योंकि, कभी कभी
  • कुतपः—पुं॰—-—कु - तप् - अच्—ब्राह्मण
  • कुतपः—पुं॰—-—कु - तप् - अच्—द्विज
  • कुतपः—पुं॰—-—कु - तप् - अच्—सूर्य
  • कुतपः—पुं॰—-—कु - तप् - अच्—अग्नि
  • कुतपः—पुं॰—-—कु - तप् - अच्—अतिथि
  • कुतपः—पुं॰—-—कु - तप् - अच्—बैल, साँड़
  • कुतपः—पुं॰—-—कु - तप् - अच्—दोहता
  • कुतपः—पुं॰—-—कु - तप् - अच्—भानजा
  • कुतपः—पुं॰—-—कु - तप् - अच्—अनाज
  • कुतपः—पुं॰—-—कु - तप् - अच्—दिन का आठवाँ मुहूर्त
  • कुतपम्—नपुं॰—-—कु - तप् - अच्—कुश घास
  • कुतपम्—नपुं॰—-—कु - तप् - अच्—एक प्रकार का कम्बल
  • कुतस्त्य—वि॰—-—कुतस् - त्यप्—कहाँ से आया हुआ
  • कुतस्त्य—वि॰—-—कुतस् - त्यप्—कैसे हुआ
  • कुतुकम्—नपुं॰—-—कुत् - उकञ्—इच्छा, रुचि
  • कुतुकम्—नपुं॰—-—कुत् - उकञ्—जिज्ञासा
  • कुतुकम्—नपुं॰—-—कुत् - उकञ्—उत्सुकता, उत्कण्ठा, उत्कटता
  • कुतुपः—पुं॰—-—कुतू - डुप पृषो॰, कु - तन् - कू टिलोपः बा॰—कुप्पी
  • कुतूः—स्त्री॰—-—कुतू - डुप पृषो॰, कु - तन् - कू टिलोपः बा॰—कुप्पी
  • कुतूहल—वि॰—-—कुतू - हल् - अच्—आश्चर्यजनक
  • कुतूहल—वि॰—-—कुतू - हल् - अच्—श्रेष्ठ सर्वोत्तम
  • कुतूहल—वि॰—-—कुतू - हल् - अच्—प्रशंसाप्राप्त, प्रसिद्ध
  • कुतूहलम्—नपुं॰—-—कुतू - हल् - अच्—इच्छा, जिज्ञासा
  • कुतूहलम्—नपुं॰—-—कुतू - हल् - अच्—उत्सुकता
  • कुतूहलम्—नपुं॰—-—कुतू - हल् - अच्—जिज्ञासा को उत्तेजित करने वाला, सुहावना, मनोरञ्जक, कौतुक या जिज्ञासा
  • कुत्र—अव्य॰—-—किम् - त्रल्—कहाँ, किस बात में
  • कुत्र—अव्य॰—-—किम् - त्रल्—किस विषय में
  • कुत्रत्य—वि॰—-—कुत्र - त्यप्—कहाँ रहने वाला या कहाँ वास करने वाला
  • कुत्स्—चुरा॰ आ॰ <कुत्सयते>, <कुत्सित>—-—-—गाली देना, बुरा भला कहना, निन्दा करना, कलंक लगाना
  • कुत्सनम्—नपुं॰—-—कुत्स् - ल्युट्—दुर्वचन, घृणा, भर्त्सना, गाली देना
  • कुत्सा—स्त्री॰—-—कुत्स् - ल्युट्, कुत्स् - अ - टाप्—दुर्वचन, घृणा, भर्त्सना, गाली देना
  • कुत्सित—वि॰—-—कुत्स् - क्त—घृणित, तिरस्करणीय
  • कुत्सित—वि॰—-—कुत्स् - क्त—नीच, अधम, दुश्चरित्र
  • कुथः—पुं॰—-—कु - थक्—कुशा नामक घास
  • कुथः—पुं॰—-—कु - थक्—छींट की बनी हाथी की झूल
  • कुथम्—नपुं॰—-—कु - थक्—छींट की बनी हाथी की झूल
  • कुथा—स्त्री॰—-—कु - थक्+टाप्—छींट की बनी हाथी की झूल
  • कुद्दारः—पुं॰—-—कु - दृ - णिच् - अण्, पृषो॰—कुदाली, खुर्पा
  • कुद्दारः—पुं॰—-—कु - दृ - णिच् - अण्, पृषो॰—कांचन वृक्ष
  • कुद्दालः—पुं॰—-—कु - दृ - णिच् - अण्, पृषो॰, कु - दल् - णिच् - अण् पृषो॰—कुदाली, खुर्पा
  • कुद्दालः—पुं॰—-—कु - दृ - णिच् - अण्, पृषो॰, कु - दल् - णिच् - अण् पृषो॰—कांचन वृक्ष
  • कुद्दालकः—पुं॰—-—कु - दृ - णिच् - अण्, पृषो॰, कु - दल् - णिच् - अण् पृषो॰, कुद्दाल - कन्—कुदाली, खुर्पा
  • कुद्दालकः—पुं॰—-—कु - दृ - णिच् - अण्, पृषो॰, कु - दल् - णिच् - अण् पृषो॰, कुद्दाल - कन्—कांचन वृक्ष
  • कुद्यलम्—नपुं॰—-—-—कुड्मलम्
  • कुद्रङ्कः—पुं॰—-—कुद्र - कै - क नि॰ साधुः—चौकी
  • कुद्रङ्कः—पुं॰—-—कुद्र - कै - क नि॰ साधुः—मचान पर बना मकान
  • कुद्रङ्गः—पुं॰—-—कुद्र - कै - क नि॰ साधुः, कु - उत् - रञ्ज् - घञ्—चौकी
  • कुद्रङ्गः—पुं॰—-—कुद्र - कै - क नि॰ साधुः, कु - उत् - रञ्ज् - घञ्—मचान पर बना मकान
  • कुनकः—पुं॰—-—-—कौवा
  • कुन्तः—पुं॰—-—कु - उन्द् - क्त, बा॰ शाक॰ पररूपम्—भाला, पंखदार बाण, बर्छी
  • कुन्तः—पुं॰—-—कु - उन्द् - क्त, बा॰ शाक॰ पररूपम्—छोटा जन्तु, कीड़ा
  • कुन्तलः—पुं॰—-—कुन्त - ला - क—सिर के बाल, बालों का गुच्छा
  • कुन्तलः—पुं॰—-—कुन्त - ला - क—कटोरा
  • कुन्तलः—पुं॰—-—कुन्त - ला - क—हल
  • कुन्तलाः—पुं॰—-—कुन्त - ला - क—एक देश तथा उसके निवासियों का नाम
  • कुन्तिः—पुं॰—-—कमु - झिच्—एक राजा का नाम, क्रथ का पुत्र
  • कुन्तिभोजः—पुं॰—कुन्ति-भोजः—-—एक यादव राजकुमार, कुन्तिदेश का राजा
  • कुन्ती—स्त्री॰—-—कुन्ति - ङीष्—‘शूर’ नामक यादव की पुत्री पृथा जिसको कुन्तिभोज ने गोद लिया
  • कुन्थ्—भ्वा॰ क्र्या॰ पर॰ <कुन्थति>, <कुथ्नाति>, <कुन्थित>—-—-—कष्ट सहन करना
  • कुन्थ्—भ्वा॰ क्र्या॰ पर॰ <कुन्थति>, <कुथ्नाति>, <कुन्थित>—-—-—चिपकना
  • कुन्थ्—भ्वा॰ क्र्या॰ पर॰ <कुन्थति>, <कुथ्नाति>, <कुन्थित>—-—-—आलिंगन करना
  • कुन्थ्—भ्वा॰ क्र्या॰ पर॰ <कुन्थति>, <कुथ्नाति>, <कुन्थित>—-—-—चोट पहुँचाना
  • कुन्द—वि॰—-—कु - दै (दो) - क, नि॰ मुम्, या कु - दत्, नुम्—चमेली का एक भेद, मोतिया
  • कुन्दम्—नपुं॰—-—कु - दै (दो) - क, नि॰ मुम्, या कु - दत्, नुम्—चमेली का एक भेद, मोतिया
  • कुन्दम्—नपुं॰—-—कु - दै (दो) - क, नि॰ मुम्, या कु - दत्, नुम्—इस पौधे का फूल
  • कुन्दः—पुं॰—-—कु - दै (दो) - क, नि॰ मुम्, या कु - दत्, नुम्—विष्णु की उपाधि
  • कुन्दः—पुं॰—-—कु - दै (दो) - क, नि॰ मुम्, या कु - दत्, नुम्—खैराद
  • कुन्दकरः—पुं॰—कुन्द-करः—कुन्द - मा - क—खैरादी
  • कुन्दमः—पुं॰—-—कुन्द् - इनि - ङीप्—बिल्ली
  • कुन्दिनी—स्त्री॰—-—कु - दृ - डु बा॰ नुम्—कमलों का समूह
  • कुन्दुः—पुं॰—-—-—चूहा, मूसा
  • कुप्—दिवा॰ पर॰ <कुप्यति>,<कुपित>—-—-—क्रुद्ध होना
  • कुप्—दिवा॰ पर॰ <कुप्यति>,<कुपित>—-—-—उत्तेजित होना, सामर्थ्य ग्रहण करना, प्रचण्ड होना
  • अतिकुप्—दिवा॰ पर॰—अति-कुप्—-—क्रुद्ध होना
  • परिकुप्—दिवा॰ पर॰—परि-कुप्—-—क्रुद्ध होना
  • प्रकुप्—दिवा॰ पर॰—प्र-कुप्—-—क्रुद्ध होना
  • प्रकुप्—दिवा॰ पर॰—प्र-कुप्—-—उत्तेजित होना, बल प्राप्त करना, बढ़ना
  • प्रकुप्—दिवा॰ पर॰—प्र-कुप्—-—उभारना, चिढ़ाना, खिझाना
  • कुपिन्दः—पुं॰—-—कुप् - किन्दच्—बुनकर
  • कुपिन्दः—पुं॰—-—कुप् - किन्दच्—जुलाहा जाति का नाम
  • कुपिनिन्—पुं॰—-—कुपिनी मत्स्यधानी अस्ति अस्य - कुपिनी - इन्—मछुवा
  • कुपिनी—वि॰—-—कुप् - इनि - ङीप्—छोटी-छोटी मछलियाँ पकड़ने का एक प्रकार का जाल
  • कुपूय—वि॰—-—कु - पूय् - अच्—घृणित, नीच, अधम, तिरस्करणीय
  • कुप्यम्—नपुं॰—-—गुप् - क्यप्, कुत्वम्—अपधातु
  • कुप्यम्—नपुं॰—-—गुप् - क्यप्, कुत्वम्—चाँदी और सोने को छोड़कर और कोई धातु
  • कुबेरः—पुं॰—-—कुत्सितं बे (वे) रं शरीरं यस्य सः—धन दौलत और कोश का स्वामी, उत्तर दिशा का स्वामी
  • कुवेरः—पुं॰—-—कुत्सितं बे (वे) रं शरीरं यस्य सः—धन दौलत और कोश का स्वामी, उत्तर दिशा का स्वामी
  • कुबेराचलः—पुं॰—कुबेर-अचलः—-—कैलास पर्वत की उपाधि
  • कुबेराद्रिः—पुं॰—कुबेर-अद्रिः—-—कैलास पर्वत की उपाधि
  • कुबेरदिश्—स्त्री॰—कुबेर-दिश्—-—उत्तर दिशा
  • कुब्ज—वि॰—-—कु ईषत् उब्जमार्जवं यत्र शकं॰ तारा॰—कुबड़ा, कुटिल
  • कुब्जः—पुं॰—-—कु ईषत् उब्जमार्जवं यत्र शकं॰ तारा॰—मुड़ी हुई तलवार
  • कुब्जः—पुं॰—-—कु ईषत् उब्जमार्जवं यत्र शकं॰ तारा॰—पीठ पर निकला हुआ कूब
  • कुब्जा—स्त्री॰—-—कु ईषत् उब्जमार्जवं यत्र शकं॰ तारा॰—कंस की एक सेविका, कहते है उसका शरीर तीन स्थानों पर विकृत था
  • कुब्जकः—पुं॰—-—कुब्ज - कन्—एक वृक्ष का नाम
  • कुब्जिका—स्त्री॰—-—कुब्जक - टाप्, इत्वम्—आठवर्ष की अविवाहित लड़की
  • कुभृत्—पुं॰—-—कु - भृ - क्विप्, तुकागमः—पहाड़
  • कुमारः—पुं॰—-—कम् - आरन्, उपधायाः उत्वम्—पुत्र, बालक, युवा
  • कुमारः—पुं॰—-—कम् - आरन्, उपधायाः उत्वम्—पाँच वर्ष से कम आयु का बालक
  • कुमारः—पुं॰—-—कम् - आरन्, उपधायाः उत्वम्—राजकुमार, युवराज
  • कुमारः—पुं॰—-—कम् - आरन्, उपधायाः उत्वम्—युद्ध के देवता कार्तिकेय
  • कुमारः—पुं॰—-—कम् - आरन्, उपधायाः उत्वम्—अग्नि
  • कुमारः—पुं॰—-—कम् - आरन्, उपधायाः उत्वम्—तोता
  • कुमारः—पुं॰—-—कम् - आरन्, उपधायाः उत्वम्—सिन्धु नदी
  • कुमारपालन—वि॰—कुमार-पालन—-—बच्चों की देखरेख रखने वाला
  • कुमारपालन—वि॰—कुमार-पालन—-—राजा शालिवाहन
  • कुमारभृत्या—स्त्री॰—कुमार-भृत्या—-—छोटे-छोटे बच्चों की देखरेख
  • कुमारभृत्या—स्त्री॰—कुमार-भृत्या—-—गर्भावस्था में स्त्री की देखरेख, प्रसूति विद्या
  • कुमारवाहिन्—पुं॰—कुमार-वाहिन्—-—मोर
  • कुमारवाहनः—पुं॰—कुमार-वाहनः—-—मोर
  • कुमारसू—स्त्री॰—कुमार-सू—-—पार्वती का विशेषण
  • कुमारसू—स्त्री॰—कुमार-सू—-—गंगा का विशेषण
  • कुमारकः—पुं॰—-—कुमार - कन्—बच्चा, युवा
  • कुमारकः—पुं॰—-—कुमार - कन्—आँख का तारा
  • कुमारय—ना॰ धा॰ पर॰ <कुमारयति>—-—-—खेलना, क्रीडा करना
  • कुमारिक—वि॰—-—कुमारी - ठन्—जिसकी लड़कियाँ हों, जहाँ लड़कियों की बहुतायत हो
  • कुमारिन्—वि॰—-—कुमारी - इनि—जिसकी लड़कियाँ हों, जहाँ लड़कियों की बहुतायत हो
  • कुमारिका—स्त्री॰—-—कुमारी - ठन् - टाप्—दस से बारह वर्ष के बीच की लड़की
  • कुमारिका—स्त्री॰—-—कुमारी - ठन् - टाप्—अविवाहित तरुणी, कन्या
  • कुमारिका—स्त्री॰—-—कुमारी - ठन् - टाप्—लड़की, पुत्री
  • कुमारिका—स्त्री॰—-—कुमारी - ठन् - टाप्—दुर्गा
  • कुमारिका—स्त्री॰—-—कुमारी - ठन् - टाप्—कुछ पौधों के नाम
  • कुमारी—स्त्री॰—-—कुमार - ङीष्—दस से बारह वर्ष के बीच की लड़की
  • कुमारी—स्त्री॰—-—कुमार - ङीष्—अविवाहित तरुणी, कन्या
  • कुमारी—स्त्री॰—-—कुमार - ङीष्—लड़की, पुत्री
  • कुमारी—स्त्री॰—-—कुमार - ङीष्—दुर्गा
  • कुमारी—स्त्री॰—-—कुमार - ङीष्—कुछ पौधों के नाम
  • कुमारिकापुत्रः—पुं॰—कुमारिका-पुत्रः—-—अविवाहित स्त्री का पुत्र
  • कुमारिकाश्वसुरः—पुं॰—कुमारिका-श्वसुरः—-—विवाह से पूर्व भ्रष्ट लड़की का श्वसुर
  • कुमुद्—वि॰—-—कु - मुद् - क्विप्—कृपाशून्य, अमित्र
  • कुमुद्—वि॰—-—कु - मुद् - क्विप्—लोभी
  • कुमुद्—नपुं॰—-—कु - मुद् - क्विप्—सफेद कुमुदिनी
  • कुमुद्—नपुं॰—-—कु - मुद् - क्विप्—लाल कमल
  • कुमुदः—पुं॰—-—कौ मोदते इति कुमुदम्—सफेद कुमुदिनी
  • कुमुदः—पुं॰—-—कौ मोदते इति कुमुदम्—लाल कमल
  • कुमुदम्—नपुं॰—-—कौ मोदते इति कुमुदम्—सफेद कुमुदिनी
  • कुमुदम्—नपुं॰—-—कौ मोदते इति कुमुदम्—लाल कमल
  • कुमुदम्—नपुं॰—-—कौ मोदते इति कुमुदम्—चाँदी
  • कुमुदः—पुं॰—-—कौ मोदते इति कुमुदम्—विष्णु का विशेषण
  • कुमुदः—पुं॰—-—कौ मोदते इति कुमुदम्—दक्षिण दिशा के दिग्गज का नाम
  • कुमुदः—पुं॰—-—कौ मोदते इति कुमुदम्—कपूर
  • कुमुदः—पुं॰—-—कौ मोदते इति कुमुदम्—बन्दरों की एक जाति
  • कुमुदः—पुं॰—-—कौ मोदते इति कुमुदम्—एक नाग जिसने अपनी छोटी बहन कुमुद्वती को राम के पुत्र कुश को प्रदान किया
  • कुमुदाकारः—पुं॰—कुमुद-आकारः—-—चाँदी
  • कुमुदाकारः—पुं॰—कुमुद-आकारः—-—कमलों से भरा हुआ सरोवर
  • कुमुदावासः—पुं॰—कुमुद-आवासः—-—कमलों से भरा हुआ सरोवर
  • कुमुदेशः—पुं॰—कुमुद-ईशः—-—चन्द्रमा
  • कुमुदखण्डम्—नपुं॰—कुमुद-खण्डम्—-—कमलों का समूह
  • कुमुदनाथः—पुं॰—कुमुद-नाथः—-—चन्द्रमा
  • कुमुदपतिः—पुं॰—कुमुद-पतिः—-—चन्द्रमा
  • कुमुदबन्धुः—पुं॰—कुमुद-बन्धुः—-—चन्द्रमा
  • कुमुदबान्धवः—पुं॰—कुमुद-बान्धवः—-—चन्द्रमा
  • कुमुदसुहृद्—पुं॰—कुमुद-सुहृद्—-—चन्द्रमा
  • कुमुदवती—स्त्री॰—-—कुमुद - मतुप् - ङीष्, वत्वम्—कमल का पौधा
  • कुमिदिनी—स्त्री॰—-—कुमुद - इनि - ङीष्—सफेद फूलों की कुमुदिनी
  • कुमिदिनी—स्त्री॰—-—कुमुद - इनि - ङीष्—कमलों का समूह
  • कुमिदिनी—स्त्री॰—-—कुमुद - इनि - ङीष्—कमलस्थली
  • कुमिदिनीनायकः—पुं॰—कुमिदिनी-नायकः—-—चन्द्रमा
  • कुमिदिनीपतिः—पुं॰—कुमिदिनी-पतिः—-—चन्द्रमा
  • कुमुद्वत्—वि॰—-—कुमुद - मतुप्, वत्वम्—जहाँ कमलों की बहुतायत हो
  • कुमुद्वती—स्त्री॰—-—कुमुद - मतुप्, वत्वम्, ङीप्—सफेद फूलों की कुमुदिनी
  • कुमुद्वती—स्त्री॰—-—कुमुद - मतुप्, वत्वम्, ङीप्—कमलों का समूह
  • कुमुद्वती—स्त्री॰—-—कुमुद - मतुप्, वत्वम्, ङीप्—कमलस्थली
  • कुमुद्वतीशः—पुं॰—कुमुद्वती-ईशः—-—चन्द्रमा
  • कुमोदकः—पुं॰—-—कु - मुद् - णिच् - ण्वुल्—विष्णु का विशेषण
  • कुम्बा—स्त्री॰—-—कुम्ब् - अङ् - टाप्—यज्ञभूमि का अहाता
  • कुम्भः—पुं॰—-—कुं भूमि कुत्सितं वा उम्भति पूरयति - उम्भ् - अच् शकं तारा॰—घड़ा, जलपात्र, करवा
  • कुम्भः—पुं॰—-—कुं भूमि कुत्सितं वा उम्भति पूरयति - उम्भ् - अच् शकं तारा॰—हाथी के मस्तक का ललाट स्थल
  • कुम्भः—पुं॰—-—कुं भूमि कुत्सितं वा उम्भति पूरयति - उम्भ् - अच् शकं तारा॰—राशिचक्र में ग्यारहवीं राशि कुम्भ
  • कुम्भः—पुं॰—-—कुं भूमि कुत्सितं वा उम्भति पूरयति - उम्भ् - अच् शकं तारा॰—२० द्रोण के बराबर अनाज की तौल
  • कुम्भः—पुं॰—-—कुं भूमि कुत्सितं वा उम्भति पूरयति - उम्भ् - अच् शकं तारा॰—श्वास को स्थगित करने के लिए नाक तथा मुखविवर को बन्द करना
  • कुम्भकर्णः—पुं॰—कुम्भ-कर्णः—-—‘घड़े के सदृश कान वाला’ एक महाकाय राक्षस जो रावण का भाई था तथा राम के हाथों मारा गया था
  • कुम्भकारः—पुं॰—कुम्भ-कारः—-—कुम्हार
  • कुम्भकारः—पुं॰—कुम्भ-कारः—-—वर्ण संकर जाति
  • कुम्भघोणः—पुं॰—कुम्भ-घोणः—-—एक नगर का नाम
  • कुम्भजः—पुं॰—कुम्भ-जः—-—अगस्त्य मुनि के विशेषण
  • कुम्भजः—पुं॰—कुम्भ-जः—-—कौरव और पाण्डवों के सैन्यशिक्षाचार्य गुरु द्रोण का विशेषण
  • कुम्भजः—पुं॰—कुम्भ-जः—-—वशिष्ठ का विशेषण
  • कुम्भजन्मनः—पुं॰—कुम्भ-जन्मनः—-—अगस्त्य मुनि के विशेषण
  • कुम्भजन्मनः—पुं॰—कुम्भ-जन्मनः—-—कौरव और पाण्डवों के सैन्यशिक्षाचार्य गुरु द्रोण का विशेषण
  • कुम्भजन्मनः—पुं॰—कुम्भ-जन्मनः—-—वशिष्ठ का विशेषण
  • कुम्भयोनिः—पुं॰—कुम्भ-योनिः—-—अगस्त्य मुनि के विशेषण
  • कुम्भयोनिः—पुं॰—कुम्भ-योनिः—-—कौरव और पाण्डवों के सैन्यशिक्षाचार्य गुरु द्रोण का विशेषण
  • कुम्भयोनिः—पुं॰—कुम्भ-योनिः—-—वशिष्ठ का विशेषण
  • कुम्भसम्भवः—पुं॰—कुम्भ-सम्भवः—-—अगस्त्य मुनि के विशेषण
  • कुम्भसम्भवः—पुं॰—कुम्भ-सम्भवः—-—कौरव और पाण्डवों के सैन्यशिक्षाचार्य गुरु द्रोण का विशेषण
  • कुम्भसम्भवः—पुं॰—कुम्भ-सम्भवः—-—वशिष्ठ का विशेषण
  • कुम्भदासी—स्त्री॰—कुम्भ-दासी—-—कुट्टिनी, दूती
  • कुम्भलग्नम्—शा॰—कुम्भ-लग्नम्—-—दिन का वह समय जब कि राशि चक्र क्षितिज के ऊपर उदय होता है
  • कुम्भमण्डूकः—पुं॰—कुम्भ-मण्डूकः—-—घड़े का मेढ़क
  • कुम्भमण्डूकः—पुं॰—कुम्भ-मण्डूकः—-—अनुभवशून्य मनुष्य
  • कुम्भसन्धिः—पुं॰—कुम्भ-सन्धिः—-—हाथी के सिर पर ललाटस्थलियों के बीच का गर्त
  • कुम्भकः—पुं॰—-—कुम्भ - कन् - कै - क वा—स्तंभ का आधार
  • कुम्भकः—पुं॰—-—कुम्भ - कन् - कै - क वा—प्राणायाम का एक प्रकार जिसमें दाहिने हाथ की अंगुलियों से दोनों नथुने और मुख बन्द करके सांस रोका जाता हैं
  • कुम्भा—स्त्री॰—-—कुत्सितम् उम्भति पूरयति इति - उम्भ् - अच् - टाप् शक॰ पररूपम—वेश्या, वारांगना
  • कुम्भिका—स्त्री॰—-—कुम्भ - कन् - टाप्, इत्वम्—छोटा बर्तन
  • कुम्भिका—स्त्री॰—-—कुम्भ - कन् - टाप्, इत्वम्—वेश्या
  • कुम्भिन्—पुं॰—-—कुम्भ - इनि—हाथी
  • कुम्भिन्—पुं॰—-—कुम्भ - इनि—मगरमच्छ
  • कुम्भिनरकः—पुं॰—कुम्भिन्-नरकः—-—एक विशेष प्रकार का नरक
  • कुम्भिमदः—पुं॰—कुम्भिन्-मदः—-—हाथी के मस्तक से बहने वाला मद
  • कुम्भिलः—पुं॰—-—कुम्भ - इलच्—सेंध लगाकर घर में घूसने वाला चोर
  • कुम्भिलः—पुं॰—-—कुम्भ - इलच्—काव्य चोर, लेख चोर
  • कुम्भिलः—पुं॰—-—कुम्भ - इलच्—साला, पत्नी का भाई
  • कुम्भिलः—पुं॰—-—कुम्भ - इलच्—गर्भ पूरा होने से पहले ही उत्पन्न बालक
  • कुम्भी—स्त्री॰—-—कुम्भ - ङीष्—पानी का छोटा पात्र, घड़िया
  • कुम्भीनसः—पुं॰,ए॰ व॰ या ब॰ व॰—कुम्भी-नसः—-—एक प्रकार का विषैला साँप
  • कुम्भीपाकः—पुं॰—कुम्भी-पाकः—-—एक विशेष प्रकार का नरक जिसमें पापी जन कुम्हार के बर्तनों की भाँति पकाये जाते है
  • कुम्भीकः—पुं॰—-—कुम्भी - कै - क—पुन्नागवृक्ष
  • कुम्भीकमक्षिका—स्त्री॰—कुम्भीक-मक्षिका—-—एक प्रकार की मक्खी
  • कुम्भीरः—पुं॰—-—कुम्भिन् - ईर् - अण्—घड़ियाल
  • कुम्भीरकः—पुं॰—-—कुम्भीर - कनु, रस्य लः, ततः कन् च—चोर
  • कुम्भीलः—पुं॰—-—कुम्भीर - कनु, रस्य लः, ततः कन् च—चोर
  • कुम्भीलकः—पुं॰—-—कुम्भीर - कनु, रस्य लः, ततः कन् च—चोर
  • कुर्—तुदा॰ पर॰ <कुरति>—-—-—शब्द करना, ध्वनि करना
  • कुरङ्करः —पुं॰—-—कुरम् इति अव्यक्तशब्दं करोति - कुरम् - कृ - ट, कुरम् - कुर् - शच् च—सारस पक्षी
  • कुरङ्कुरः—पुं॰—-—कुरम् इति अव्यक्तशब्दं करोति - कुरम् - कृ - ट, कुरम् - कुर् - शच् च—सारस पक्षी
  • कुरङ्गः—पुं॰—-—कृ - अङ्गच्—हरिण
  • कुरङ्गः—पुं॰—-—कृ - अङ्गच्—हरिण की एक जाति
  • कुरङ्गाक्षी—स्त्री॰—कुरङ्ग-अक्षी—-—हरिण जैसी आँखों वाली स्त्री
  • कुरङ्गनयना—स्त्री॰—कुरङ्ग-नयना—-—हरिण जैसी आँखों वाली स्त्री
  • कुरङ्गनेत्रा—स्त्री॰—कुरङ्ग-नेत्रा—-—हरिण जैसी आँखों वाली स्त्री
  • कुरङ्गनाभिः—पुं॰—कुरङ्ग-नाभिः—-—कस्तूरी
  • कुरङ्गम्—नपुं॰—-—कुर - गम् - खच्, मुम्—हरिण
  • कुरङ्गम्—नपुं॰—-—कुर - गम् - खच्, मुम्—हरिण की एक जाति
  • कुरचिल्लः—पुं॰—-—कुर - चिल्ल् - अच्—केकड़ा
  • कुरटः—पुं॰—-—कुर् - अटन् - कित्—जूता बनाने वाला, मोची
  • कुरण्टः—पुं॰—-—कुर् - अण्टक्—पीला सदाबहार, कटसरैया
  • कुरण्टकः—पुं॰—-—कुर् - अण्टक्, कुरण्ट - कन्—पीला सदाबहार, कटसरैया
  • कुरण्टिकाः—पुं॰—-—कुर् - अण्टक्, कुरण्ट - कन्, स्त्रियां टाप् इत्वम्—पीला सदाबहार, कटसरैया
  • कुरण्डः—पुं॰—-—कुर् - अण्डक्—अण्डकोश की वृद्धि, एक रोग जिसमें पोते बढ़ जाते हैं
  • कुररः—पुं॰—-—कु - क्रुरच्—क्रौंच पक्षी, समुद्री उकाब
  • कुरलः—पुं॰—-—कु - क्रुरच्, रलयोरभेदः—क्रौंच पक्षी, समुद्री उकाब
  • कुररी—स्त्री॰—-—कुरर - ङीष्—मादा क्रौंच
  • कुररी—स्त्री॰—-—कुरर - ङीष्—भेड़
  • कुररीगणः—पुं॰—कुररी-गणः—-—क्रौञ्च पक्षियों का झुण्ड
  • कुरवः—पुं॰—-—ईषत् रवो यत्र इति, कुरव - कन्—सदाबहार या कटसरैया की जाति
  • कुरबः—पुं॰—-—ईषत् रवो यत्र इति, कुरव - कन्—सदाबहार या कटसरैया की जाति
  • कुरवकः —पुं॰—-—ईषत् रवो यत्र इति, कुरव - कन्—सदाबहार या कटसरैया की जाति
  • कुरबकः—पुं॰—-—ईषत् रवो यत्र इति, कुरब - कन्—सदाबहार या कटसरैया की जाति
  • कुरवम् —नपुं॰—-—ईषत् रवो यत्र इति, कुरव - कन्—सदाबहार का फूल
  • कुरबम्—नपुं॰—-—ईषत् रवो यत्र इति, कुरब - कन्—सदाबहार का फूल
  • कुरवकम्—नपुं॰—-—ईषत् रवो यत्र इति, कुरब - कन्—सदाबहार का फूल
  • कुरकम्—नपुं॰—-—कृ - ईरन्, उकारादेशः—सदाबहार का फूल
  • कुरीरम्—नपुं॰—-—कृ - ईरन्, उकारादेशः—स्त्रियों का एक प्रकार का सिर पर ओढ़ने का कपड़ा
  • कुरुः—पुं॰—-—कृ - कु उकारादेशः—वर्तमान दिल्ली के निकट भारत के उत्तर में स्थित एक देश
  • कुरुः—पुं॰—-—कृ - कु उकारादेशः—इस देश के राजा
  • कुरुः—पुं॰—-—कृ - कु उकारादेशः—पुरोहित
  • कुरुः—पुं॰—-—कृ - कु उकारादेशः—भात
  • कुरुक्षेत्रम्—नपुं॰—कुरु-क्षेत्रम्—-—दिल्ली के निकट एक विस्तृत क्षेत्र जहाँ कौरव पाण्डवों का महायुद्ध हुआ था
  • कुरुजाङ्गलम्—नपुं॰—कुरु-जाङ्गलम्—-—कुरुक्षेत्र
  • कुरुराज—वि॰—कुरु-राज—-—दुर्योधन का विशेषण
  • कुरुराजः—पुं॰—कुरु-राजः—-—दुर्योधन का विशेषण
  • कुरुविस्तः—पुं॰—कुरु-विस्तः—-—७०० ट्राय ग्रेन के बराबर सोने का तोल
  • कुरुवृद्धः—पुं॰—कुरु-वृद्धः—-—भीष्म का विशेषण
  • कुरुण्टः—पुं॰—-—-—लालरंग का सदाबहार
  • कुरुण्टी—स्त्री॰—-—-—काठ की गुड़िया पुत्तलिका
  • कुरुलः—पुं॰—-—-—बालों का गुच्छा, विशेषकर माथे पर बिखरी हुई जुल्फ
  • कुरुवक—वि॰—-—-—सदाबहार या कटसरैया की जाति
  • कुरुविन्द—वि॰—-—कुरु - विद् - श—लालमणि
  • कुरुविन्दम्—नपुं॰—-—कुरु - विद् - श, मुम्—लालमणि
  • कुरुविन्दम्—नपुं॰—-—कुरु - विद् - श, मुम्—काला नमक, दर्पण
  • कुर्कुटः—पुं॰—-—कुरु - कुट् - क—मुर्गा
  • कुर्कुटः—पुं॰—-—कुरु - कुट् - क—कूड़ा-करकट
  • कुर्कुरः—पुं॰—-—कुर् - कुर् - क—कुत्ता
  • कुर्चिका—स्त्री॰—-—-—चित्रकारी करने की कूँची, ब्रुश या पेंसिल
  • कुर्चिका—स्त्री॰—-—-—चाबी
  • कुर्चिका—स्त्री॰—-—-—कली, फूल
  • कुर्चिका—स्त्री॰—-—-—जमाया हुआ दूध
  • कुर्चिका—स्त्री॰—-—-—सूई
  • कुर्दू—स्त्री॰—-—-—छलाँग लगाना, कूदना
  • कुर्दू—स्त्री॰—-—-—खेलना, बालकेलि करना
  • कुर्दन—वि॰—-—कूर्द् - ल्युट्—उछलना
  • कुर्दन—वि॰—-—कूर्द् - ल्युट्—खेलना, क्रीड़ा करना
  • कुर्परः—पुं॰—-—कुर् - क्विप्, कुर् - पृ - अच् पक्षे दीर्घः नि॰—घुटना, कोहनी
  • कूर्परः—पुं॰—-—कुर् - क्विप्, कुर् - पृ - अच् पक्षे दीर्घः नि॰—घुटना, कोहनी
  • कुर्पासः—पुं॰—-—कुर्पर - अस् - घञ्,पृषो॰—स्त्रियों के पहनने के लिए एक प्रकार की अंगिया या चोली
  • कूर्पासः—पुं॰—-—कुर्पर - अस् - घञ्,पृषो॰—स्त्रियों के पहनने के लिए एक प्रकार की अंगिया या चोली
  • कुर्पासकः —पुं॰—-—कूर्पास - कन्—स्त्रियों के पहनने के लिए एक प्रकार की अंगिया या चोली
  • कूर्पासकः—पुं॰—-—कूर्पास - कन्—स्त्रियों के पहनने के लिए एक प्रकार की अंगिया या चोली
  • कुर्वत्—पुं॰—-—कृ - शतृ—करता हुआ
  • कुर्वत्—पुं॰—-—कृ - शतृ—नौकर
  • कुर्वत्—पुं॰—-—कृ - शतृ—जूते बनाने वाला
  • कुलम्—नपुं॰—-—कुल - क—वंश, परिवार
  • कुलम्—नपुं॰—-—कुल - क—पारिवारिक आवास, आसन, घर, गृह
  • कुलम्—नपुं॰—-—कुल - क—उत्तमकुल, उच्चवंश, भला घराना
  • कुलम्—नपुं॰—-—कुल - क—रेवड़, दल, झुंड. संग्रह, समूह
  • कुलम्—नपुं॰—-—कुल - क—चट्टा, टोली, दल
  • कुलम्—नपुं॰—-—कुल - क—शरीर
  • कुलम्—नपुं॰—-—कुल - क—सामने का या अगला भाग
  • कुलः—पुं॰—-—कुल - क—किसी निगम या संघ का अध्यक्ष
  • कुलाकुल—वि॰—कुलम्-अकुल—-—मिश्र चरित्र बल का
  • कुलाकुल—वि॰—कुलम्-अकुल—-—मध्यम श्रेणी का
  • कुलाकुलतिथिः—पुं॰—कुलम्-अकुल-तिथिः—-—चन्द्रमास के पक्ष की द्वितीया, षष्ठी और दशमी
  • कुलाकुलवारः—पुं॰—कुलम्-अकुल-वारः—-—बुधवार
  • कुलाङ्गना—स्त्री॰—कुलम्-अङ्गना—-—आदरणीय तथा उच्च वंश की स्त्री
  • कुलाङ्गारः—पुं॰—कुलम्-अङ्गारः—-—जो अपने कुल को नष्ट करता है
  • कुलाचलः—पुं॰—कुलम्-अचलः—-—मुख्य पहाड़, जो इस महाद्वीप के प्रत्येक खंड में विद्यमान माने जाते हैं
  • कुलाद्रिः—पुं॰—कुलम्-अद्रिः—-—मुख्य पहाड़, जो इस महाद्वीप के प्रत्येक खंड में विद्यमान माने जाते हैं
  • कुलपर्वतः—पुं॰—कुलम्-पर्वतः—-—मुख्य पहाड़, जो इस महाद्वीप के प्रत्येक खंड में विद्यमान माने जाते हैं
  • कुलशैलः—पुं॰—कुलम्-शैलः—-—मुख्य पहाड़, जो इस महाद्वीप के प्रत्येक खंड में विद्यमान माने जाते हैं
  • कुलान्वित—वि॰—कुलम्-अन्वित—-—उच्चकुल में उत्पन्न
  • कुलाभिमानः—पुं॰—कुलम्-अभिमानः—-—कुल का गौरव
  • कुलाचारः—पुं॰—कुलम्-आचारः—-—किसी परिवार या जाति का विशेष कर्तव्य या रिवाज
  • कुलाचार्यः—पुं॰—कुलम्-आचार्यः—-—कुलपुरोहित या कुलगुरु
  • कुलाचार्यः—पुं॰—कुलम्-आचार्यः—-—वंशावलीप्रणेता
  • कुलालम्बिन्—वि॰—कुलम्-आलम्बिन्—-—परिवार का पालन पोषण करने वाला
  • कुलेश्वरः—पुं॰—कुलम्-ईश्वरः—-—परिवार का मुखिया
  • कुलेश्वरः—पुं॰—कुलम्-ईश्वरः—-—शिव का नाम
  • कुलोत्कट—वि॰—कुलम्-उत्कट—-—उच्चकुलोद्भव
  • कुलोत्कटः—पुं॰—कुलम्-उत्कटः—-—अच्छी नस्ल का घोड़ा
  • कुलोत्पन्न—वि॰—कुलम्-उत्पन्न—-—भले कुल में उत्पन्न, उच्चकुलोद्भव
  • कुलोद्गत—वि॰—कुलम्-उद्गत—-—भले कुल में उत्पन्न, उच्चकुलोद्भव
  • कुलोद्भव—वि॰—कुलम्-उद्भव—-—भले कुल में उत्पन्न, उच्चकुलोद्भव
  • कुलोद्वहः—पुं॰—कुलम्-उद्वहः—-—कुटुम्ब का मुखिया या उसे अमर बनाने वाला
  • कुलोपदेशः—पुं॰—कुलम्-उपदेशः—-—खानदानी नाम
  • कुलकज्जलः—पुं॰—कुलम्-कज्जलः—-—कुलकलंक
  • कुलकण्टकः—पुं॰—कुलम्-कण्टकः—-—जो अपने कुटुंब के लिए कांटे की भाँति कष्टदायक हो
  • कुलकन्यका—स्त्री॰—कुलम्-कन्यका—-—उच्चकुल में उत्पन्न लड़की
  • कुलकन्या—स्त्री॰—कुलम्-कन्या—-—उच्चकुल में उत्पन्न लड़की
  • कुलकरः—पुं॰—कुलम्-करः—-—कुलप्रवर्तक, कुल का आदिपुरुष
  • कुलकर्मन्—नपुं॰—कुलम्-कर्मन्—-—अपने कुल की विशेष रीति
  • कुलकलङ्कः—पुं॰—कुलम्-कलङ्कः—-—जो अपने कुल के लिए अपमान का कारण हो
  • कुलक्षयः—पुं॰—कुलम्-क्षयः—-—कुटम्ब का नाश
  • कुलक्षयः—पुं॰—कुलम्-क्षयः—-—कुल की परिसमाप्ति
  • कुलगिरिः—पुं॰—कुलम्-गिरिः—-—मुख्य पहाड़, जो इस महाद्वीप के प्रत्येक खंड में विद्यमान माने जाते हैं
  • कुलभूभृत्—पुं॰—कुलम्-भूभृत्—-—मुख्य पहाड़, जो इस महाद्वीप के प्रत्येक खंड में विद्यमान माने जाते हैं
  • कुलपर्वतः—पुं॰—कुलम्-पर्वतः—-—मुख्य पहाड़, जो इस महाद्वीप के प्रत्येक खंड में विद्यमान माने जाते हैं
  • कुलघ्न—वि॰—कुलम्-घ्न—-—कुल को बर्बाद करने वाला
  • कुलज—वि॰—कुलम्-ज—-—अच्छे कुल में उत्पन्न, कुलोद्भव
  • कुलजात—वि॰—कुलम्-जात—-—अच्छे कुल में उत्पन्न, कुलोद्भव
  • कुलजात—वि॰—कुलम्-जात—-—कुलक्रमागत, आनुवंशिक
  • कुलजनः—पुं॰—कुलम्-जनः—-—उच्चकुलोद्भव या सम्मानीय पुरुष
  • कुलतन्तुः—पुं॰—कुलम्-तन्तुः—-—जो अपने कुल को बनाये रखता है
  • कुलतिथिः—पुं॰—कुलम्-तिथिः—-—महत्त्वपूर्णतिथि, नामतः चांद्र पक्ष की चतुर्थी, अष्टमी, द्वादशी और चतुर्दशी
  • कुलतिलकः—पुं॰—कुलम्-तिलकः—-—कुटुंब की कीर्ति, जो अपने कुल को सम्मानित करता है
  • कुलदीपः—पुं॰—कुलम्-दीपः—-—जिससे कुल का नाम उजागर हो
  • कुलदीपकः—पुं॰—कुलम्-दीपकः—-—जिससे कुल का नाम उजागर हो
  • कुलदुहितृ—स्त्री॰—कुलम्-दुहितृ—-—उच्चकुल में उत्पन्न लड़की
  • कुलदेवता—स्त्री॰—कुलम्-देवता—-—अभिभावक देवता, कुल का संरक्षक देवता
  • कुलधर्मः—पुं॰—कुलम्-धर्मः—-—कुल की रीति, अपने कुल का कर्तव्य या विशेष रीति
  • कुलधारकः—पुं॰—कुलम्-धारकः—-—पुत्र
  • कुलधुर्यः—पुं॰—कुलम्-धुर्यः—-—परिवार का भरणपोषण करने में समर्थ, वयस्क पुत्र
  • कुलनन्दन—वि॰—कुलम्-नन्दन—-—अपने कुल को प्रसन्न तथा सम्मानित करने वाला
  • कुलनायिका—स्त्री॰—कुलम्-नायिका—-—वाममार्गी शाक्तों की तान्त्रिकपूजा के उत्सव के अवसर पर जिस लड़की की पूजा की जाय
  • कुलनारी—स्त्री॰—कुलम्-नारी—-—उच्चकुलोद्भव सती साध्वी स्त्री
  • कुलनाशः—पुं॰—कुलम्-नाशः—-—कुल का नाश या बरबादी
  • कुलनाशः—पुं॰—कुलम्-नाशः—-—विधर्मी, आचारहीन, बहिष्कृत
  • कुलनाशः—पुं॰—कुलम्-नाशः—-—ऊँट
  • कुलपरम्परा—स्त्री॰—कुलम्-परम्परा—-—वंश को बनानेवाली पीढ़ियों की श्रेणी
  • कुलपतिः—पुं॰—कुलम्-पतिः—-—कुटुम्ब का मुखिया
  • कुलपतिः—पुं॰—कुलम्-पतिः—-—वह ऋषि जो दस सहस्र विद्यार्थियों का पालन पोषण करता है तथा उन्हें शिक्षित करता है
  • कुलपांसुका—स्त्री॰—कुलम्-पांसुका—-—कुलटा स्त्री जो अपने कुल को कलंक लगावे, व्यभिचारिणी स्त्री
  • कुलपालिः—पुं॰—कुलम्-पालिः—-—उच्चकुलोद्भूत सती स्त्री
  • कुलपालिका—स्त्री॰—कुलम्-पालिका—-—उच्चकुलोद्भूत सती स्त्री
  • कुलपाली—स्त्री॰—कुलम्-पाली—-—उच्चकुलोद्भूत सती स्त्री
  • कुलपुत्रः—पुं॰—कुलम्-पुत्रः—-—अच्छे कुल में उत्पन्न बेटा
  • कुलपुरुषः—पुं॰—कुलम्-पुरुषः—-—सम्मान के योग्य तथा उच्चकुल में उत्पन्न पुरुष
  • कुलपुरुषः—पुं॰—कुलम्-पुरुषः—-—पूर्वज
  • कुलपूर्वगः—पुं॰—कुलम्-पूर्वगः—-—पूर्व पुरुष
  • कुलभार्या—स्त्री॰—कुलम्-भार्या—-—सती साध्वी पत्नी
  • कुलभृत्या—स्त्री॰—कुलम्-भृत्या—-—गर्भवती स्त्री की परिचर्या
  • कुलमर्यादा—स्त्री॰—कुलम्-मर्यादा—-—कुल का सम्मान या प्रतिष्ठा
  • कुलमार्गः—पुं॰—कुलम्-मार्गः—-—कुल की रीति, सर्वोत्तमरीति या ईमानदारी का व्यवहार
  • कुलयोषित—वि॰—कुलम्-योषित—-—अच्छे कुल की सदाचारिणी स्त्री
  • कुलवधू—स्त्री॰—कुलम्-वधू—-—अच्छे कुल की सदाचारिणी स्त्री
  • कुलवारः—पुं॰—कुलम्-वारः—-—मुख्य दिन
  • कुलविद्या—स्त्री॰—कुलम्-विद्या—-—कुलक्रमागत प्राप्त ज्ञान, परंपराप्राप्त ज्ञान
  • कुलविप्रः—पुं॰—कुलम्-विप्रः—-—कुलपुरोहित
  • कुलवृद्धः—पुं॰—कुलम्-वृद्धः—-—परिवार का बूढ़ा तथा अनुभवी पुरुष
  • कुलव्रतः—पुं॰—कुलम्-व्रतः—-—कुल का व्रत या प्रतिज्ञा
  • कुलव्रतम्—नपुं॰—कुलम्-व्रतम्—-—कुल का व्रत या प्रतिज्ञा
  • कुलश्रेष्ठिन्—पुं॰—कुलम्-श्रेष्ठिन्—-—किसी कुटुम्ब या श्रमिक संघ का मुखिया
  • कुलश्रेष्ठिन्—पुं॰—कुलम्-श्रेष्ठिन्—-—उच्चकुल में उत्पन्न शिल्पकार
  • कुलसंख्या—स्त्री॰—कुलम्-संख्या—-—कुल की प्रतिष्ठा
  • कुलसंख्या—स्त्री॰—कुलम्-संख्या—-—सम्मानित परिवारों में गणना
  • कुलसन्ततिः—स्त्री॰—कुलम्-सन्ततिः—-—संतान, वंशज, वंशपरम्परा
  • कुलसम्भवः—वि॰—कुलम्-सम्भवः—-—प्रतिष्ठित कुल में उत्पन्न
  • कुलसेवकः—पुं॰—कुलम्-सेवकः—-—श्रेष्ठ नौकर
  • कुलस्त्री—स्त्री॰—कुलम्-स्त्री—-—उच्चकुल की स्त्री, कुललक्ष्मी
  • कुलस्थितिः—स्त्री॰—कुलम्-स्थितिः—-—कुटुम्ब की प्राचीनता या समृद्धि
  • कुलक—वि॰—-—कुल - कन्—अच्छे कुल का, अच्छे कुल में जन्मा हुआ
  • कुलकः—पुं॰—-—कुल - कन्—शिल्पियों की श्रेणी का मुखिया
  • कुलकः—पुं॰—-—कुल - कन्—उच्च कुल में उत्पन्न शिल्पकार
  • कुलकः—पुं॰—-—कुल - कन्—बाँबी
  • कुलकम्—पुं॰—-—कुल - कन्—संग्रह, समूह
  • कुलकम्—नपुं॰—-—कुल - कन्—व्याकरण की दृष्टि से सम्बन्ध श्लोकों का समूह
  • कुलटा—नपुं॰—-—कुल - अट् - अच् - टाप् शक॰ पररूपम्—व्यभिचारिणी स्त्री
  • कुलटापतिः—पुं॰—कुलटा-पतिः—-—भ्रष्टा या जारिणी स्त्री का स्वामी
  • कुलतः—नपुं॰—-—कुल - तसिल्—जन्म से
  • कुलत्थः—पुं॰—-—कुल - स्था - क पृषो॰ साधुः—कुलथी, एक प्रकार की दाल
  • कुलन्धर—वि॰—-—कुल - धृ - खच्, मुम्—अपने कुल का सिलसिला चलाने वाला
  • कुलम्भरः—पुं॰—-—कुल - भृ - खच्, मुम्—चोर
  • कुलम्भलः—पुं॰—-—कुल - भृ - खच्, मुम्—चोर
  • कुलवत्—वि॰—-—कुल - मतुप्, मस्य वत्वम्—कुलीन, अच्छे घराने में उत्पन्न
  • कुलायः—पुं॰—-—कुलं पक्षिसमूहः अयतेऽअत्र - कुल - अय् - घञ्—पक्षियों का घोंसला
  • कुलायः—पुं॰—-—कुलं पक्षिसमूहः अयतेऽअत्र - कुल - अय् - घञ्—शरीर
  • कुलायः—पुं॰—-—कुलं पक्षिसमूहः अयतेऽअत्र - कुल - अय् - घञ्—स्थान, जगह
  • कुलायः—पुं॰—-—कुलं पक्षिसमूहः अयतेऽअत्र - कुल - अय् - घञ्—बुना हुआ वस्त्र, जाला
  • कुलायः—पुं॰—-—कुलं पक्षिसमूहः अयतेऽअत्र - कुल - अय् - घञ्—बक्स या पात्र
  • कुलायम्—नपुं॰—-—कुलं पक्षिसमूहः अयतेऽअत्र - कुल - अय् - घञ्—पक्षियों का घोंसला
  • कुलायम्—नपुं॰—-—कुलं पक्षिसमूहः अयतेऽअत्र - कुल - अय् - घञ्—शरीर
  • कुलायम्—नपुं॰—-—कुलं पक्षिसमूहः अयतेऽअत्र - कुल - अय् - घञ्—स्थान, जगह
  • कुलायम्—नपुं॰—-—कुलं पक्षिसमूहः अयतेऽअत्र - कुल - अय् - घञ्—बुना हुआ वस्त्र, जाला
  • कुलायम्—नपुं॰—-—कुलं पक्षिसमूहः अयतेऽअत्र - कुल - अय् - घञ्—बक्स या पात्र
  • कुलायनिलायः—पुं॰—कुलाय-निलायः—-—घोंसले में बैठना, अंडे सेना, अंडों में से बच्चे निकालने लिए अंडों के ऊपर बैठना
  • कुलायस्थः—पुं॰—कुलाय-स्थः—-—पक्षी
  • कुलायिका—स्त्री॰—-—कुलाय - ठन् - टाप्—पक्षियों का पिंजड़ा, चिड़ियाघर, कबूतरखाना, दड़बा
  • कुलालः—पुं॰—-—कुल् - कालन्—कुम्हार
  • कुलालः—पुं॰—-—कुल् - कालन्—जंगली मुर्गा
  • कुलिः—पुं॰—-—कुल् - इन्, कित्—हाथ
  • कुलिक—वि॰—-—कुल - ठन्—अच्छे कुल का, उत्तम कुल में उत्पन्न
  • कुलिकः—पुं॰—-—कुल - ठन्—स्वजन
  • कुलिकः—पुं॰—-—कुल - ठन्—शिल्पीसंघ का मुखिया
  • कुलिकः—पुं॰—-—कुल - ठन्—उच्चकुलोद्भव कलाकार
  • कुलिकवेला—स्त्री॰—कुलिक-वेला—-—दिन का वह समय जब कि कोई शुभ कार्य आरम्भ नहीं करना चाहिए
  • कुलिङ्गः—पुं॰—-—कु - लिङ्ग - अच्—पक्षी
  • कुलिङ्गः—पुं॰—-—कु - लिङ्ग - अच्—चिड़िया
  • कुलिन्—वि॰—-—कुल - इनि—कुलीन, उच्चकुलोद्भव
  • कुलिन्—पुं॰—-—कुल - इनि—पहाड़
  • कुलिन्दः—ब॰ व॰—-—कुल् - इन्द—एक देश तथा उसके शासकों का नाम
  • कुलिरः—पुं॰—-—कुल् - इरन्, कित्—केकड़ा
  • कुलिरः—पुं॰—-—कुल् - इरन्, कित्—राशिचक्र में चौथी राशि, कर्कराशि
  • कुलिरम्—नपुं॰—-—कुल् - इरन्, कित्—केकड़ा
  • कुलिरम्—नपुं॰—-—कुल् - इरन्, कित्—राशिचक्र में चौथी राशि, कर्कराशि
  • कुलिशः—पुं॰—-—कुलि - शी - ड—इन्द्र का वज्र
  • कुलिशः—पुं॰—-—कुलि - शी - ड—वस्तु का सिरा या किनारा
  • कुलीशः—पुं॰—-—कुलि - शी - ड, पक्षे पृषो॰ दीर्घः—इन्द्र का वज्र
  • कुलीशः—पुं॰—-—कुलि - शी - ड, पक्षे पृषो॰ दीर्घः—वस्तु का सिरा या किनारा
  • कुलिशम्—नपुं॰—-—कुलि - शी - ड—इन्द्र का वज्र
  • कुलिशम्—नपुं॰—-—कुलि - शी - ड—वस्तु का सिरा या किनारा
  • कुलीशम्—नपुं॰—-—कुलि - शी - ड, पक्षे पृषो॰ दीर्घः—इन्द्र का वज्र
  • कुलीशम्—नपुं॰—-—कुलि - शी - ड, पक्षे पृषो॰ दीर्घः—वस्तु का सिरा या किनारा
  • कुलिशधरः—पुं॰—कुलिश-धरः—-—इन्द्र का विशेषण
  • कुलिशपाणिः—पुं॰—कुलिश-पाणिः—-—इन्द्र का विशेषण
  • कुलिशनायकः—पुं॰—कुलिश-नायकः—-—मैथुन की विशेष रीति, रतिसम्बन्ध
  • कुली—स्त्री॰—-—कुलि - ङीष्—पत्नी की बड़ी बहन, बड़ी साली
  • कुलीन—वि॰—-—कुल - ख—ऊँचे वंश का, अच्छे कुल का, उत्तम परिवार में जन्मा हुआ
  • कुलीनः—पुं॰—-—कुल - ख—अच्छी नस्ल का घोड़ा
  • कुलीनसम्—नपुं॰—-—कुलीनंभूमिलग्नं द्रव्यं स्यति - कुलीन - सो - क—पानी
  • कुलीरः—पुं॰—-—कुल् - ईरन्, कित्—केकड़ा
  • कुलीरः—पुं॰—-—कुल् - ईरन्, कित्—राशिचक्र में चौथी राशि, कर्कराशि
  • कुलीरकः—पुं॰—-—कुलोर - कन्—केकड़ा
  • कुलीरकः—पुं॰—-—कुलोर - कन्—राशिचक्र में चौथी राशि, कर्कराशि
  • कुलक्कगुञ्जा—स्त्री॰—-—कौ पृथिव्यां लुक्का, लुक्कायिता गुञ्ज इव—लुकाठी, जलती हुई लकड़ी
  • कुलूतः—पुं॰—-—-—एक देश तथा उसके शासकों का नाम
  • कुल्माषम्—नपुं॰—-—कुल् - क्विप्, कुल् माषोऽस्मिन् ब॰ स॰—कांजी
  • कुल्माषः—पुं॰—-—कुल् - क्विप्, कुल् माषोऽस्मिन् ब॰ स॰—एक प्रकार का अनाज
  • कुल्माषाभिषुतम्—नपुं॰—कुल्माषम्-अभिषुतम्—-—कांजी
  • कुल्य—वि॰—-—कुल - यत्—कुटुंब, वंश या निगम से सम्बन्ध रखने वाला
  • कुल्य—वि॰—-—कुल - यत्—सत्कुलोद्भव
  • कुल्यः—पुं॰—-—कुल - यत्—प्रतिष्ठित मनुष्य
  • कुल्यम्—नपुं॰—-—कुल - यत्—कौटुंबिक विषयों में मित्रों की भाँति पूछताछ
  • कुल्यम्—नपुं॰—-—कुल - यत्—हड्डी
  • कुल्यम्—नपुं॰—-—कुल - यत्—मांस
  • कुल्यम्—नपुं॰—-—कुल - यत्—छाज
  • कुल्या—स्त्री॰—-—कुल - यत्—साध्वी स्त्री
  • कुल्या—स्त्री॰—-—कुल - यत्—छोटी नदी, नहर, सरिता
  • कुल्या—स्त्री॰—-—कुल - यत्—परिखा, खाई
  • कुल्या—स्त्री॰—-—कुल - यत्—आठ द्रोण के बराबर अनाज की तोल
  • कुवम्—नपुं॰—-—कु - वा - क—फूल
  • कुवम्—नपुं॰—-—कु - वा - क—कमल
  • कुवर—वि॰—-—कु+ श्वरच्—कषाय, कसैला
  • कुवर—वि॰—-—कु+ श्वरच्—बिना दाढ़ी का
  • कुवलम्—नपुं॰—-—कु - वल - अच्—कुमुद
  • कुवलम्—नपुं॰—-—कु - वल - अच्—मोती
  • कुवलम्—नपुं॰—-—कु - वल - अच्—पानी
  • कुवलयम्—नपुं॰—-—कोः पृथिव्याः वलयमिव - उप॰ स॰—नीला कुमुद
  • कुवलयम्—नपुं॰—-—कोः पृथिव्याः वलयमिव - उप॰ स॰—कुमुद
  • कुवलयम्—नपुं॰—-—कोः पृथिव्याः वलयमिव - उप॰ स॰—पृथ्वी
  • कुवलयिनी—स्त्री॰—-—कुवलय - इनि - ङीप्—नीली कुमुदिनी का पौधा
  • कुवलयिनी—स्त्री॰—-—कुवलय - इनि - ङीप्—कमलों का समूह
  • कुवलयिनी—स्त्री॰—-—कुवलय - इनि - ङीप्—कमलस्थली
  • कुवलयिनी—स्त्री॰—-—कुवलय - इनि - ङीप्—कमल का पौधा
  • कुवाद—वि॰—-—कु - वद् - अण्—मान घटाने वाला, साख कम करने वाला, निन्दक
  • कुवाद—वि॰—-—कु - वद् - अण्—नीच, दुरात्मा, अधम
  • कुविकः—पुं॰,ब॰ व॰—-—कु - विद् - श, मुम्—एक देश का नाम
  • कुविन्दः—पुं॰—-—कु - विद् - श, मुम्—बुनकर
  • कुविन्दः—पुं॰—-—कु - विद् - श, मुम्—जुलाहा जाति का नाम
  • कुवेणी—स्त्री॰—-—कु - वेण् - इन् - ङीप्—मछलियाँ रखने की टोकरी
  • कुवेणी—स्त्री॰—-—कु - वेण् - इन् - ङीप्—बुरी तरह बँधी हुई सिर की चोटी
  • कुवेलम्—नपुं॰—-—कुवेषु जलज पुष्पेषु ईं शोभां लाति - कुव - ई - ला - क—कमल
  • कुशः—पुं॰—-—कु - शी - ड—एक प्रकार का घास जो पवित्र माना जाता हैं और बहुत से धर्मानुष्ठानों में जिसका होना आवश्यक समझा जाता हैं
  • कुशः—पुं॰—-—कु - शी - ड—राम के बड़े पुत्र का नाम
  • कुशम्—नपुं॰—-—कु - शी - ड—पानी
  • कुशाग्रम्—नपुं॰—कुश-अग्रम्—-—कुशघास के पत्ते का तेज किनारा
  • कुशाग्रम्—नपुं॰—कुश-अग्रम्—-—तीव्रबुद्धि, तेजबुद्धि वाला, तीक्ष्णबुद्धि
  • कुशाग्रीय—वि॰—कुश-अग्रीय—-—तीव्र, तेज
  • कुशाङ्गरीयम्—वि॰—कुश-अङ्गरीयम्—-—कुशघास की बनी अंगूठी जो धर्मानुष्ठान के अवसर पर पहनी जाती है
  • कुशासनम्—नपुं॰—कुश-आसनम्—-—कुश का बना हुआ आसन या चटाई
  • कुशस्थलम्—नपुं॰—कुश-स्थलम्—-—उत्तर भारत में एक स्थान का नाम
  • कुशल—वि॰—-—कुशान् लातीति - कुश - ला - क—सही, उचित, मंगल शुभ
  • कुशलम्—नपुं॰—-—कुशान् लातीति - कुश - ला - क—कल्याण, प्रसन्न तथा समृद्ध अवस्था, प्रसन्नता
  • कुशलम्—नपुं॰—-—कुशान् लातीति - कुश - ला - क—गुण
  • कुशलम्—नपुं॰—-—कुशान् लातीति - कुश - ला - क—चतुराई, योग्यता
  • कुशलकाम—वि॰—कुशल-काम—-—प्रसन्नता का इच्छुक
  • कुशलप्रश्नः—पुं॰—कुशल-प्रश्नः—-—किसी से कुशलमंगल पूछना
  • कुशलबुद्धि—वि॰—कुशल-बुद्धि—-—बुद्धिमान, समझदार, तीव्रबुद्धि, तीक्ष्णबुद्धि
  • कुशलिन्—वि॰—-—कुशल - इनि—प्रसन्न, राजी खुशी, समृद्ध
  • कुशा—स्त्री॰—-—कुश - टाप्—रस्सी का गोला
  • कुशा—स्त्री॰—-—कुश - टाप्—लगाम
  • कुशावती—स्त्री॰—-—कुश - मतुप्, मस्य वः, दीर्घः—इस नाम की एक नगरी, राम के पुत्र कुश की राजधानी
  • कुशिक—वि॰—-—कुश - ठन्—भैंगी आँख वाला
  • कुशिकः—पुं॰—-—कुश - ठन्—विश्वामित्र के दादा का नाम
  • कुशिकः—पुं॰—-—कुश - ठन्—फाली
  • कुशिकः—पुं॰—-—कुश - ठन्—तेल की गाद
  • कुशी—स्त्री॰—-—कुश - ङीष्—हल की फाली
  • कुशीलवः—पुं॰—-—कुत्सितं शीलमस्य - कुशील - व—भाट, गवैया
  • कुशीलवः—पुं॰—-—कुत्सितं शीलमस्य - कुशील - व—पात्र, नर्तक
  • कुशीलवः—पुं॰—-—कुत्सितं शीलमस्य - कुशील - व—समाचार फैलाने वाला
  • कुशीलवः—पुं॰—-—कुत्सितं शीलमस्य - कुशील - व—वाल्मीकि का विशेषण
  • कुशुम्भः—पुं॰—-—कु - शुम्भ् - अच्—संन्यासी का जालपात्र, कमण्डलु
  • कुशूलः—पुं॰—-—कुस् - ऊलच्, पृषो॰ सस्य शत्वम्—अन्नागार, कोठी, भण्डार
  • कुशूलः—पुं॰—-—कुस् - ऊलच्, पृषो॰ सस्य शत्वम्—भूसी से बनाई हुई आग
  • कुशेशयम्—नपुं॰—-—कुशे - शी - अच्. अलुक् स॰—कुमुद, कमल
  • कुशेशयः—पुं॰—-—कुशे - शी - अच्. अलुक् स॰—सारस पक्षी
  • कुष्—क्रिया॰ पर॰ <कुष्णाति>, <कुषित>—-—-—फाड़ना, निचोड़ना, खींचना, निकालना
  • कुष्—क्रिया॰ पर॰ <कुष्णाति>, <कुषित>—-—-—जाँचना, परीक्षा लेना
  • कुष्—क्रिया॰ पर॰ <कुष्णाति>, <कुषित>—-—-—चमकना
  • निष्कुष्—क्रिया॰ पर॰—निस्-कुष्—-—निचोड़ना, फाड़ना, निकालना
  • कुषाकुः—पुं॰—-—कुष् - काकु—सूर्य
  • कुषाकुः—पुं॰—-—कुष् - काकु—अग्नि
  • कुषाकुः—पुं॰—-—कुष् - काकु—लंगूर, बंदर
  • कुष्ठः—पुं॰—-—कुष् - कथन—कोढ़
  • कुष्ठम्—नपुं॰—-—कुष् - कथन—कोढ़
  • कुष्ठारिः—पुं॰—कुष्ठ-अरिः—-—गन्धक
  • कुष्ठारिः—पुं॰—कुष्ठ-अरिः—-—कुछ पौधों के नाम
  • कुष्ठित—वि॰—-—कुष्ठ - इतच्—कोढ़ से पीडित, कोढ़ग्रस्त
  • कुष्ठिन्—वि॰—-—कुष्ठ - इनि—कोढ़ी
  • कुष्माण्डः—पुं॰—-—कु ईषत् उष्मा अण्डेषु बीजेषु यस्य ब॰ स॰ शक॰ पररूपम्—एक प्रकार की लौकी, तूमड़ी, कुम्हड़ा
  • कुस्—दिवा॰ पर॰ <कुष्यति>, <कुसित>—-—-—आलिंगन करना
  • कुस्—दिवा॰ पर॰ <कुष्यति>, <कुसित>—-—-—घेरना
  • कुसितः—पुं॰—-—कुस् - क्त—आवाद देश
  • कुसितः—पुं॰—-—कुस् - क्त—जो सूद से जीविका चलाता हैं
  • कुसीदः—पुं॰—-—कुस् - ईद—साहूकार या सूदखोर
  • कुसिदः—पुं॰—-—-—साहूकार या सूदखोर
  • कुसीदम् —नपुं॰—-—कुस् - ईद—वह कर्जा या वस्तु जो ब्याज सहित लौटायी जाय
  • कुसीदम् —नपुं॰—-—कुस् - ईद—उधार देना, सूदखोरी, सूदखोरी का व्यवसाय
  • कुसिदम्—नपुं॰—-—-—वह कर्जा या वस्तु जो ब्याज सहित लौटायी जाय
  • कुसिदम्—नपुं॰—-—-—उधार देना, सूदखोरी, सूदखोरी का व्यवसाय
  • कुसीदपथः—पुं॰—कुसीद-पथः—-—सूदखोरी, सूदखोर का ब्याज, ५ प्रतिशत से अधिक ब्याज
  • कुसीदवृद्धिः—स्त्री॰—कुसीद-वृद्धिः—-—धन पर मिलने वाला ब्याज
  • कुसीदा—स्त्री॰—-—कुसीद - टाप्—सूदखोर स्त्री
  • कुसीदायी—पुं॰—-—कुसीद - ङीप्, ऐ आदेशः—सूदखोर की पत्नी
  • कुसीदिकः—पुं॰—-—कुसीद - ष्ठन्, इनि वा—सूदखोर
  • कुसीदिन्—पुं॰—-—कुसीद - ष्ठन्, इनि वा—सूदखोर
  • कुसुमम्—नपुं॰—-—कुष् - उम—फूल
  • कुसुमम्—नपुं॰—-—कुष् - उम—ऋतु-स्राव
  • कुसुमम्—नपुं॰—-—कुष् - उम—फल
  • कुसुमाञ्जनम्—नपुं॰—कुसुमम्-अञ्जनम्—-—पीतल की भस्म जो अंजन की भाँति प्रयुक्त होती है
  • कुसुमाञ्जलिः—पुं॰—कुसुमम्-अञ्जलिः—-—मुट्ठी भर फूल
  • कुसुमाधिपः—पुं॰—कुसुमम्-अधिपः—-—चम्पक वृक्ष
  • कुसुमाधिराजः—पुं॰—कुसुमम्-अधिराजः—-—चम्पक वृक्ष
  • कुसुमावचायः—पुं॰—कुसुमम्-अवचायः—-—फूलों का चुनना
  • कुसुमावतंसकम्—पुं॰—कुसुमम्-अवतंसकम्—-—फूलों का गजरा
  • कुसुमास्त्रः—पुं॰—कुसुमम्-अस्त्रः—-—पुष्पमय बाण
  • कुसुमास्त्रः—पुं॰—कुसुमम्-अस्त्रः—-—कामदेव
  • कुसुमायुधः—पुं॰—कुसुमम्-आयुधः—-—पुष्पमय बाण
  • कुसुमायुधः—पुं॰—कुसुमम्-आयुधः—-—कामदेव
  • कुसुमेषुः—पुं॰—कुसुमम्-इषुः—-—पुष्पमय बाण
  • कुसुमेषुः—पुं॰—कुसुमम्-इषुः—-—कामदेव
  • कुसुमबाणः—पुं॰—कुसुमम्-बाणः—-—पुष्पमय बाण
  • कुसुमबाणः—पुं॰—कुसुमम्-बाणः—-—कामदेव
  • कुसुमशरः—पुं॰—कुसुमम्-शरः—-—पुष्पमय बाण
  • कुसुमशरः—पुं॰—कुसुमम्-शरः—-—कामदेव
  • कुसुमाकरः—पुं॰—कुसुमम्-आकरः—-—उद्यान
  • कुसुमाकरः—पुं॰—कुसुमम्-आकरः—-—फूलों का गुच्छा
  • कुसुमाकरः—पुं॰—कुसुमम्-आकरः—-—वसन्त ऋतु
  • कुसुमात्मकम्—नपुं॰—कुसुमम्-आत्मकम्—-—केसर, जाफरान
  • कुसुमासवम्—नपुं॰—कुसुमम्-आसवम्—-—शहद
  • कुसुमासवम्—नपुं॰—कुसुमम्-आसवम्—-—एक प्रकार की मादक मदिरा
  • कुसुमोज्जवल—वि॰—कुसुमम्-उज्जवल—-—फूलों से चमकीला
  • कुसुमकार्मुकः—पुं॰—कुसुमम्-कार्मुकः—-—कामदेव के विशेषण
  • कुसुमचापः—पुं॰—कुसुमम्-चापः—-—कामदेव के विशेषण
  • कुसुमधन्वन्—पुं॰—कुसुमम्-धन्वन्—-—कामदेव के विशेषण
  • कुसुमचित—वि॰—कुसुमम्-चित—-—पुष्पों का अम्बार हो गया है जहाँ
  • कुसुमपुरम्—नपुं॰—कुसुमम्-पुरम्—-—पाटलीपुत्र
  • कुसुमलता—स्त्री॰—कुसुमम्-लता—-—खिली हुई लता
  • कुसुमशयनम्—नपुं॰—कुसुमम्-शयनम्—-—फूलों की शय्या
  • कुसुमस्तवकः—पुं॰—कुसुमम्-स्तवकः—-—फूलों का गुच्छा, गुलदस्ता
  • कुसुमवती—स्त्री॰—-—कुसुम - मतुप् - ङीप्, मस्य वः —ऋतुमती या रजस्वला स्त्री
  • कुसुमित—वि॰—-—कुसुम् - इतच्—फूलों से युक्त, पुष्पों से सुसज्जित
  • कुसुमालः—पुं॰—-—कुसुमवत् लोभनीयानि द्रव्याणि आलयति - इति कुसुम - आ - ला - क—चोर
  • कुसुम्भः—पुं॰—-—कुस् - उम्भ—कुसुम्भ
  • कुसुम्भः—पुं॰—-—कुस् - उम्भ—केसर
  • कुसुम्भः—पुं॰—-—कुस् - उम्भ—संन्यासी का जलपात्र, कमण्डलु
  • कुसुम्भम्—नपुं॰—-—कुस् - उम्भ—कुसुम्भ
  • कुसुम्भम्—नपुं॰—-—कुस् - उम्भ—केसर
  • कुसुम्भम्—नपुं॰—-—कुस् - उम्भ—संन्यासी का जलपात्र, कमण्डलु
  • कुसुम्भम्—नपुं॰—-—कुस् - उम्भ—सोना
  • कुसुम्भः—पुं॰—-—कुस् - उम्भ—बाह्य स्नेह
  • कुसूलः—पुं॰—-—कुस् - ऊलच् —अन्नागार, भण्डार, गृह
  • कुसृतिः—स्त्री॰—-—कुत्सिता सृतिः—जालसाजी, धोखादेही, ठगी
  • कुस्तुभः—पुं॰—-—कु - स्तुभ् - क—विष्णु
  • कुस्तुभः—पुं॰—-—कु - स्तुभ् - क—समुद्र
  • कुहः—पुं॰—-—कुह् - णिच् - अच्—कुबेर, धनपति
  • कुहकः—पुं॰—-—कुह् - क्वुन्—छली, ठग, चालाक
  • कुहकम्—नपुं॰—-—कुह् - क्वुन्—चालाकी, धोखा
  • कुहका—स्त्री॰—-—कुह् - क्वुन् - टाप्—चालाकी, धोखा
  • कुहककार—वि॰—कुहक-कार—-—कपटी, छलिया
  • कुहकचकित—वि॰—कुहक-चकित—-—दाँवपेंच से डरा हुआ, शक करने वाला, सावधान, सजग
  • कुहकस्वनः—पुं॰—कुहक-स्वनः—-—मुर्गा
  • कुहकस्वरः—पुं॰—कुहक-स्वरः—-—मुर्गा
  • कुहनः—पुं॰—-—कु - हन् - अच्—मूसा
  • कुहनः—पुं॰—-—कु - हन् - अच्—साँप
  • कुहनम्—नपुं॰—-—कु - हन् - अच्—छोटा मिट्टी का बर्तन
  • कुहनम्—नपुं॰—-—कु - हन् - अच्—शीशे का बर्तन
  • कुहना—स्त्री॰—-—कुह् - यु, कुहन - क - टाप्, इत्वम्—स्वार्थ की पूर्ति के लिए धार्मिक कड़ी साधनाओं का अनुष्ठान, दंभ
  • कुहनिका—स्त्री॰—-—कुह् - यु, कुहन - क - टाप्, इत्वम्—स्वार्थ की पूर्ति के लिए धार्मिक कड़ी साधनाओं का अनुष्ठान, दंभ
  • कुहरम्—नपुं॰—-—कुह् - क - कुहं राति, रा - क—गुफा, गढ़ा
  • कुहरम्—नपुं॰—-—कुह् - क - कुहं राति, रा - क—कान
  • कुहरम्—नपुं॰—-—कुह् - क - कुहं राति, रा - क—गला
  • कुहरम्—नपुं॰—-—कुह् - क - कुहं राति, रा - क—सामीप्य
  • कुहरम्—नपुं॰—-—कुह् - क - कुहं राति, रा - क—मैथुन
  • कुहरितम्—नपुं॰—-—कुहर - इतच्—ध्वनि
  • कुहरितम्—नपुं॰—-—कुहर - इतच्—कोयल की कुकू
  • कुहरितम्—नपुं॰—-—कुहर - इतच्—मैथुन के समय सी सी का शब्द
  • कुहुः—स्त्री॰—-—कुह् - कु—नया चन्द्र दिवस अर्थात् चान्द्रमास का अन्तिम दिन
  • कुहुः—स्त्री॰—-—कुह् - कु—इस दिन की अधिष्ठात्री देवी
  • कुहुः—स्त्री॰—-—कुह् - कु—कोयल की कुक
  • कुहूः—स्त्री॰—-—कुहु - ऊङ्—नया चन्द्र दिवस अर्थात् चान्द्रमास का अन्तिम दिन
  • कुहूः—स्त्री॰—-—कुहु - ऊङ्—इस दिन की अधिष्ठात्री देवी
  • कुहूः—स्त्री॰—-—कुहु - ऊङ्—कोयल की कुक
  • कुहुकण्ठः—पुं॰—कुहु-कण्ठः—-—कोयल
  • कुहुमुखः—पुं॰—कुहु-मुखः—-—कोयल
  • कुहुरवः—पुं॰—कुहु-रवः—-—कोयल
  • कुहुशब्दः—पुं॰—कुहु-शब्दः—-—कोयल
  • कू—भ्वा॰ तुदा, आ॰ <कवते>, <कुवते>—-—-—ध्वनि करना, कलरव करना
  • कू—भ्वा॰ तुदा, आ॰ <कवते>, <कुवते>—-—-—कष्टावस्था में क्रन्दन करना
  • कू—क्र्या॰ उभ॰ <कुनाति>, <कूनाति>, <कुनीते>, <कूनीते>—-—-—ध्वनि करना, कलरव करना
  • कू—क्र्या॰ उभ॰ <कुनाति>, <कूनाति>, <कुनीते>, <कूनीते>—-—-—कष्टावस्था में क्रन्दन करना
  • कः—स्त्री॰—-—कू - क्विप्—पिशाचिनी, चुड़ैल
  • कचः—पुं॰—-—कू - चट्—स्त्री का स्तन
  • कचिका—स्त्री॰—-—कूच - कन् - टाप्, इत्वम्—बालों का बना छोटा ब्रुश, कुंची
  • कचिका—स्त्री॰—-—कूच - कन् - टाप्, इत्वम्—ताली
  • कूची—स्त्री॰—-—कूच - ङीष्—बालों का बना छोटा ब्रुश, कुंची
  • कूची—स्त्री॰—-—कूच - ङीष्—ताली
  • कूज्—भ्वा॰ पर॰ <कूजति>, <कूजित>—-—-—अस्पष्ट ध्वनि करना, गूंजना, कूजना, कूकना
  • निकूज्—भ्वा॰ पर॰—नि-कूज्—-—कूजना, कुकू की अस्पष्ट ध्वनि करना
  • परिकूज्—भ्वा॰ पर॰—परि-कूज्—-—कूजना, कुकू की अस्पष्ट ध्वनि करना
  • विकूज्—भ्वा॰ पर॰—वि-कूज्—-—कूजना, कुकू की अस्पष्ट ध्वनि करना
  • कूजः—पुं॰—-—कूज् - अच्—कूजना, कुकू की ध्वनि करना
  • कूजः—पुं॰—-—कूज् - अच्—पहियों की घरघराहट
  • कूजनम्—नपुं॰—-—कूज् - ल्युट्—कूजना, कुकू की ध्वनि करना
  • कूजनम्—नपुं॰—-—कूज् - ल्युट्—पहियों की घरघराहट
  • कूजितम्—नपुं॰—-—कूज् - क्त—कूजना, कुकू की ध्वनि करना
  • कूजितम्—नपुं॰—-—कूज् - क्त—पहियों की घरघराहट
  • कूट—वि॰—-—कूट - अच्—मिथ्या
  • कूट—वि॰—-—कूट - अच्—अचल, स्थिर
  • कूटः—पुं॰—-—कूट - अच्—जालसाजी, भ्रम, धोखा
  • कूटः—पुं॰—-—कूट - अच्—दाँव, जालसाजी से भरी हुई योजना
  • कूटः—पुं॰—-—कूट - अच्—जटिल प्रश्न, पेचीदा या उलझनदार स्थल
  • कूटः—पुं॰—-—कूट - अच्—मिथ्यात्व, असत्यता
  • कूटः—पुं॰—-—कूट - अच्—पहाड़ का शिखर या चोटी
  • कूटः—पुं॰—-—कूट - अच्—उभार या उत्तुंगता
  • कूटः—पुं॰—-—कूट - अच्—अपने उभारों समेत माथे की हड्डी, सिर का शिखा
  • कूटः—पुं॰—-—कूट - अच्—सींग
  • कूटः—पुं॰—-—कूट - अच्—सिरा, किनारा
  • कूटः—पुं॰—-—कूट - अच्—प्रधान, मुख्य
  • कूटः—पुं॰—-—कूट - अच्—राशि, ढेर, समूह
  • अभ्रकूटम्—नपुं॰—अभ्र-कूटम्—-—बादलों का समूह
  • अन्नकूटम्—नपुं॰—अन्न-कूटम्—-—अनाज का ढेर
  • कूटः—पुं॰—-—कूट - अच्—हथौड़ा, घन
  • कूटः—पुं॰—-—कूट - अच्—हल की फाली, कुशी
  • कूटः—पुं॰—-—कूट - अच्—हरिणों को फसाने का जाल
  • कूटः—पुं॰—-—कूट - अच्—गुप्ती
  • कूटः—पुं॰—-—कूट - अच्—जलकलश
  • कूटम्—नपुं॰—-—कूट - अच्—जालसाजी, भ्रम, धोखा
  • कूटम्—नपुं॰—-—कूट - अच्—दाँव, जालसाजी से भरी हुई योजना
  • कूटम्—नपुं॰—-—कूट - अच्—जटिल प्रश्न, पेचीदा या उलझनदार स्थल
  • कूटम्—नपुं॰—-—कूट - अच्—मिथ्यात्व, असत्यता
  • कूटम्—नपुं॰—-—कूट - अच्—पहाड़ का शिखर या चोटी
  • कूटम्—नपुं॰—-—कूट - अच्—उभार या उत्तुंगता
  • कूटम्—नपुं॰—-—कूट - अच्—अपने उभारों समेत माथे की हड्डी, सिर का शिखा
  • कूटम्—नपुं॰—-—कूट - अच्—सींग
  • कूटम्—नपुं॰—-—कूट - अच्—सिरा, किनारा
  • कूटम्—नपुं॰—-—कूट - अच्—प्रधान, मुख्य
  • कूटम्—नपुं॰—-—कूट - अच्—राशि, ढेर, समूह
  • अभ्रकूटम्—नपुं॰—अभ्र-कूटम्—-—बादलों का समूह
  • अन्नकूटम्—नपुं॰—अन्न-कूटम्—-—अनाज का ढेर
  • कूटम्—नपुं॰—-—कूट - अच्—हथौड़ा, घन
  • कूटम्—नपुं॰—-—कूट - अच्—हल की फाली, कुशी
  • कूटम्—नपुं॰—-—कूट - अच्—हरिणों को फसाने का जाल
  • कूटम्—नपुं॰—-—कूट - अच्—गुप्ती
  • कूटम्—नपुं॰—-—कूट - अच्—जलकलश
  • कूटः—पुं॰—-—कूट - अच्—घर, आवास
  • कूटः—पुं॰—-—कूट - अच्—अगस्त्य की उपाधि
  • कूटाक्षः—पुं॰—कूट-अक्षः—-—झूठा या कपट से भरा पासा
  • कूटागारम्—नपुं॰—कूट-अगारम्—-—छत पर बनी कोठरी
  • कूटार्थः—पुं॰—कूट-अर्थः—-—अर्थों की सन्दिग्धता
  • कूटार्थः—पुं॰—कूट-अर्थः—-—कहानी, उपन्यास
  • कूटोपायः—पुं॰—कूट-उपायः—-—जालसाजी से भरी योजना, कूटचाल, कूटनीति
  • कूटकारः—पुं॰—कूट-कारः—-—धोखेबाज, झूठा गवाह
  • कूटकृत्—वि॰—कूट-कृत्—-—ठगनेवाला, धोखा देने वाला
  • कूटकृत्—वि॰—कूट-कृत्—-—जाली दस्तावेज बनाने वाला
  • कूटकृत्—वि॰—कूट-कृत्—-—घूस देने वाला
  • कूटकृत्—पुं॰—कूट-कृत्—-—कायस्थ
  • कूटकृत्—पुं॰—कूट-कृत्—-—शिव का विशेषण
  • कूटकार्षापणः—पुं॰—कूट-कार्षापणः—-—झूठा कार्षापण
  • कूटखङ्गः—पुं॰—कूट-खङ्गः—-—गुप्ती
  • कूटछद्मन्—पुं॰—कूट-छद्मन्—-—ठग
  • कूटतुला—स्त्री॰—कूट-तुला—-—पासंग वाली तराजू
  • कूटधर्म—वि॰—कूट-धर्म—-—जहाँ झूठ कर्तव्य कर्म समझा जाय
  • कूटपाकलः—पुं॰—कूट-पाकलः—-—पित्तदोषयुक्त ज्वर जिससे हाथी ग्रस्त होता है, हस्तिवातज्वर
  • कूटपालकः—पुं॰—कूट-पालकः—-—कुम्हार, कुम्हार का आवा
  • कूटपाशः—पुं॰—कूट-पाशः—-—जाल, फन्दा
  • कूटवन्धः—पुं॰—कूट-वन्धः—-—जाल, फन्दा
  • कूटमानम्—नपुं॰—कूट-मानम्—-—झूठी माप या तोल
  • कूटमोहनः—पुं॰—कूट-मोहनः—-—स्कन्द का विशेषण
  • कूटयन्त्रम्—नपुं॰—कूट-यन्त्रम्—-—हरिण एवं पक्षियों को फँसाने का जाल या फंदा
  • कूटयुद्धम्—नपुं॰—कूट-युद्धम्—-—छल और धोखे की लड़ाई, अधर्मयुद्ध
  • कूटशाल्मलिः—पुं॰—कूट-शाल्मलिः—-—सेमल वृक्ष की एक जाति
  • कूटशाल्मलिः—पुं॰—कूट-शाल्मलिः—-—तेज काँटों से युक्त वृक्ष
  • कूटशासनम्—नपुं॰—कूट-शासनम्—-—जाली आज्ञापत्र या फरमान
  • कूटसाक्षिन्—पुं॰—कूट-साक्षिन्—-—झूठा गवाह
  • कूटस्थ—वि॰—कूट-स्थ—-—शिखर पर खड़ा हुआ, सर्वोच्च पद पर अधिष्ठित
  • कूटस्थः—पुं॰—कूट-स्थः—-—परमात्मा
  • कूटस्वर्णम्—नपुं॰—कूट-स्वर्णम्—-—खोटा सोना
  • कूटकम्—नपुं॰—-—कुट - कन्—जालसाजी, धोखादेही, चलाकी
  • कूटकम्—नपुं॰—-—कुट - कन्—उत्सेध, उत्तुंगता
  • कूटकम्—नपुं॰—-—कुट - कन्—कुशी, हल की फाली
  • कूटकाख्यानम्—नपुं॰—कूटकम्-आख्यानम्—-—गढ़ी हुई कहानी
  • कूटशः—अव्य॰—-—कूट - शस्—ढेरों या समूहों में
  • कूड्यम्—नपुं॰—-—-—दीवार
  • कूड्यम्—नपुं॰—-—-—पलस्तर करना, लीपना, पोतना
  • कूड्यम्—नपुं॰—-—-—उत्सुकता, जिज्ञासा
  • कूण्—चुरा॰ उभ॰ <कूणयति>, <कूणयते>, <कूणित—-—-—बोलना, बातचीत करना
  • कूण्—चुरा॰ उभ॰ <कूणयति>, <कूणयते>, <कूणित—-—-—सिकोड़ना, बंद करना
  • कूणिका—स्त्री॰—-—कूण् - ण्वूल् - टाप्, इत्वम्—किसी पशु का सींग
  • कूणिका—स्त्री॰—-—-—वीणा की खूँटी
  • कूणित—वि॰—-—कूण् - क्त—बन्द, मुँदा हुआ
  • कूद्दालः—पुं॰—-—कु - दल - अण्, पृषो॰—पहाड़ी आबनूस
  • कूपः—पुं॰—-—कुवन्ति मण्डूका अस्मिन् - कु - एक् दीर्घश्च—कुआँ
  • कूपः—पुं॰—-—कुवन्ति मण्डूका अस्मिन् - कु - एक् दीर्घश्च—छिद्र, रन्ध्र, गढ़ा, गर्त
  • कूपः—पुं॰—-—कुवन्ति मण्डूका अस्मिन् - कु - एक् दीर्घश्च—चमड़े की बनी तेल रखने की कुप्पी
  • कूपः—पुं॰—-—कुवन्ति मण्डूका अस्मिन् - कु - एक् दीर्घश्च—मस्तूल
  • कूपाङ्कः—पुं॰—कूप-अङ्कः—-—रोमाञ्च
  • कूपाड़्गः—पुं॰—कूप-अड़्गः—-—रोमाञ्च
  • कूपकच्छपः—पुं॰—कूप-कच्छपः—-—कुएँ का कछुवा या मेढक, अनुभवशून्य मनुष्य
  • कूपमण्डूकः—पुं॰—कूप-मण्डूकः—-—कुएँ का कछुवा या मेढक, अनुभवशून्य मनुष्य
  • कूपयन्त्रम्—नपुं॰—कूप-यन्त्रम्—-—रहट, कुएँ से पानी निकालने का यन्त्र
  • कूपयन्त्रघटिका—स्त्री॰—कूप-यन्त्रघटिका—-—रहट में पानी निकालने के लिए लगी डोलचियाँ
  • कूपयन्त्रघटी—स्त्री॰—कूप-यन्त्रघटी—-—रहट में पानी निकालने के लिए लगी डोलचियाँ
  • कूपकः—पुं॰—-—कूप - कन—कुआँ
  • कूपकः—पुं॰—-—कूप - कन—छिद्र, रन्ध्र, गर्त
  • कूपकः—पुं॰—-—कूप - कन—कूल्हों के नीचे का गड्ढा
  • कूपकः—पुं॰—-—कूप - कन—खूँटा जिसके सहारे किस्ती का लंगर बांध दिया जाता हैं
  • कूपकः—पुं॰—-—कूप - कन—मस्तूल
  • कूपकः—पुं॰—-—कूप - कन—चिता
  • कूपकः—पुं॰—-—कूप - कन—चिता के नीचे का छिद्र
  • कूपकः—पुं॰—-—कूप - कन—चमड़े की बनी तेल-कुप्पी
  • कूपकः—पुं॰—-—कूप - कन—नदी के बीच की चट्टान या वृक्ष
  • कूपारः—पुं॰—-—कूप - कन—समुद्र, सागर
  • कूवारः—पुं॰—-—कुत्सितः पारः तरणम् अस्मिन् - ब॰ स॰—समुद्र, सागर
  • कूपी—स्त्री॰—-—कुत्सितः पारः तरणम् अस्मिन् - ब॰ स॰—छोटा कुआँ, कुइया
  • कूपी—स्त्री॰—-—कूप - ङीष्—पलिघ, बोतल
  • कूपी—स्त्री॰—-—कूप - ङीष्—नाभि
  • कूबर—वि॰—-—कु - ब रच्—सुन्दर, रुचिकर
  • कूबर—वि॰—-—कु - ब रच्—कुबड़ा
  • कूवर—वि॰—-—कु - व रच्—सुन्दर, रुचिकर
  • कूवर—वि॰—-—कु - व रच्—कुबड़ा
  • कूबरः—पुं॰—-—कु - ब रच्—गाड़ी की वल्ली या स्थूण-भुजा जिसमें जूआ बाँधा जाता है
  • कूबरम्—नपुं॰—-—कु - ब रच्—गाड़ी की वल्ली या स्थूण-भुजा जिसमें जूआ बाँधा जाता है
  • कूबरी—स्त्री॰—-—कु - ब रच्+ङीप्—कम्बल या किसी दूसरे कपड़े के परदे से ढकी हुई गाड़ी
  • कूबरी—स्त्री॰—-—कु - ब रच्+ङीप्—गाड़ी की वल्ली जिससे जूआ बाँधा जाय
  • कूरः—पुं॰—-—वे - क्विप् = ऊः कौ भूमौ उवं वयनं लाति - ला - कः, लरयोरभेदः—भोजन, भात
  • कूरम्—नपुं॰—-—कुर् = चट् नि॰ दीर्घः—भोजन, भात
  • कूर्चः—पुं॰—-—कुर् = चट् नि॰ दीर्घः—गुच्छा, गठरी
  • कूर्चः—पुं॰—-—कुर् = चट् नि॰ दीर्घः—मुट्ठी भर कुश घास
  • कूर्चः—पुं॰—-—कुर् = चट् नि॰ दीर्घः—मोरपंख
  • कूर्चः—पुं॰—-—कुर् = चट् नि॰ दीर्घः—दाढ़ी
  • कूर्चः—पुं॰—-—कुर् = चट् नि॰ दीर्घः—चुटकी
  • कूर्चः—पुं॰—-—कुर् = चट् नि॰ दीर्घः—नाक का ऊपरी भाग, दोनों भौवों के बीच का भाग
  • कूर्चः—पुं॰—-—कुर् = चट् नि॰ दीर्घः—कूँची, ब्रुश
  • कूर्चः—पुं॰—-—कुर् = चट् नि॰ दीर्घः—धोखा, जालसाजी
  • कूर्चः—पुं॰—-—कुर् = चट् नि॰ दीर्घः—शेखी बघारना, डींग मारना
  • कूर्चः—पुं॰—-—कुर् = चट् नि॰ दीर्घः—दम्भ
  • कूर्चम्—नपुं॰—-—कुर् = चट् नि॰ दीर्घः—गुच्छा, गठरी
  • कूर्चम्—नपुं॰—-—कुर् = चट् नि॰ दीर्घः—मुट्ठी भर कुश घास
  • कूर्चम्—नपुं॰—-—कुर् = चट् नि॰ दीर्घः—मोरपंख
  • कूर्चम्—नपुं॰—-—कुर् = चट् नि॰ दीर्घः—दाढ़ी
  • कूर्चम्—नपुं॰—-—कुर् = चट् नि॰ दीर्घः—चुटकी
  • कूर्चम्—नपुं॰—-—कुर् = चट् नि॰ दीर्घः—नाक का ऊपरी भाग, दोनों भौवों के बीच का भाग
  • कूर्चम्—नपुं॰—-—कुर् = चट् नि॰ दीर्घः—कूँची, ब्रुश
  • कूर्चम्—नपुं॰—-—कुर् = चट् नि॰ दीर्घः—धोखा, जालसाजी
  • कूर्चम्—नपुं॰—-—कुर् = चट् नि॰ दीर्घः—शेखी बघारना, डींग मारना
  • कूर्चम्—नपुं॰—-—कुर् = चट् नि॰ दीर्घः—दम्भ
  • कूर्चः—पुं॰—-—कुर् = चट् नि॰ दीर्घः—सिर
  • कूर्चः—पुं॰—-—कुर् = चट् नि॰ दीर्घः—भण्डार
  • कूर्चशीर्षः—पुं॰—कूर्च-शीर्षः—-—नारियल का पेड़
  • कूर्चशेखरः—पुं॰—कूर्च-शेखरः—-—नारियल का पेड़
  • कूर्चिका—स्त्री॰—-—कूर्चक - टाप् - इत्वम्—चित्रकारी करने की कूँची, ब्रुश या पेंसिल
  • कूर्चिका—स्त्री॰—-—कूर्चक - टाप् - इत्वम्—चाबी
  • कूर्चिका—स्त्री॰—-—कूर्चक - टाप् - इत्वम्—कली, फूल
  • कूर्चिका—स्त्री॰—-—कूर्चक - टाप् - इत्वम्—जमाया हुआ दूध
  • कूर्चिका—स्त्री॰—-—कूर्चक - टाप् - इत्वम्—सूई
  • कूर्द्—भ्वा॰ उभ॰ <कूर्दति>, <कूर्दते>, <कूर्दित>—-—-—छलाँग लगाना, कूदना
  • कूर्द्—भ्वा॰ उभ॰—-—-—खेलना, बालकेलि करना
  • उत्कूर्द्—भ्वा॰ उभ॰—उद्-कूर्द्—-—कूदना, उछलना
  • कूर्दनम्—नपुं॰—-—कूर्द् - ल्युट्—उछलना
  • कूर्दनम्—नपुं॰—-—कूर्द् - ल्युट्—खेलना, क्रीड़ा करना
  • कूर्दनी—स्त्री॰—-—कूर्द् - ल्युट्+ङीप्—चैत्र की पूर्णिमा को कामदेव के सम्मान में मनाया जाने वाला पर्व
  • कूर्दनी—स्त्री॰—-—कूर्द् - ल्युट्+ङीप्—चैत्रमास की पूर्णिमा
  • कूर्पः—पुं॰—-—कुर् - पा - क, दीर्घः—दोनों भौवों के बीच का भाग
  • कूर्परः—पुं॰—-—कुर् - क्विप्, कुर् - पृ - अच् दीर्घः नि॰—कोहनी
  • कूर्परः—पुं॰—-—कुर् - क्विप्, कुर् - पृ - अच् दीर्घः नि॰—घुटना
  • कूर्मः—पुं॰—-—कौ जले ऊर्मिः वेगोऽस्य पृषो॰ तारा॰—कछुवा
  • कूर्मः—पुं॰—-—कौ जले ऊर्मिः वेगोऽस्य पृषो॰ तारा॰—विष्णु का दूसरा अवतार
  • कूर्मावतारः—पुं॰—कूर्म-अवतारः—-—विष्णु का कूर्मावतार
  • कूर्मपृष्ठम्—नपुं॰—कूर्म-पृष्ठम्—-—कछुवे की कमर या पीठ
  • कूर्मपृष्ठम्—नपुं॰—कूर्म-पृष्ठम्—-—तश्तरी का ढकना
  • कूर्मराजः—पुं॰—कूर्म-राजः—-—द्वितीय अवतार के साथ कछुवे के रूप में विष्णु
  • कूलम्—नपुं॰—-—कूल् - अच्—किनारा, तट
  • कूलम्—नपुं॰—-—कूल् - अच्—ढलान, उतार
  • कूलम्—नपुं॰—-—कूल् - अच्—छोर, कोर, किनारी, सन्निकटता
  • कूलम्—नपुं॰—-—कूल् - अच्—तालाब
  • कूलम्—नपुं॰—-—कूल् - अच्—सेना का पिछला भाग
  • कूलम्—नपुं॰—-—कूल् - अच्—ढेर, टीला
  • कूलचर—वि॰—कूलम्-चर—-—नदी के किनारे चरने वाला या विचरने वाला
  • कूलभूः—स्त्री॰—कूलम्-भूः—-—तटस्थित भूखण्ड
  • कूलेंडकः—पुं॰—कूलम्-इंडकः—-—भँवर
  • कूलहण्डकः—पुं॰—कूलम्-हण्डकः—-—भँवर
  • कूलङ्कष—वि॰—-—कूल् - कष् - खच्, मुम्—तट को काटनेवाला, या अन्दर ही अन्दर जड़ खोखली करने वाला
  • कूलङ्कषः—पुं॰—-—कूल् - कष् - खच्, मुम्—नदी की धारा या प्रवाह
  • कूलङ्कषा—स्त्री॰—-—कूल् - कष् - खच्, मुम्+टाप्—नदी
  • कूलन्धय—वि॰—-—-—चूमता हुआ अर्थात् नदी के तट को सीमा बनाने वाला
  • कूलन्धय—वि॰—-—कूल - धे - खश्, मुम्—किनारों को तोड़ने वाला
  • कूलमुद्वह—वि॰—-—कूल - उद् - रुज् - खश्, मुम्—किनारे को फाड़ डालने वाला तथा बहा कर ले जाने वाला
  • कूष्माण्डः—पुं॰—-—कूल - उद् - वह् - खश्, मुम्—पेठा, कुम्हड़ा, तूमड़ी
  • कूहा—स्त्री॰—-—कु ईषत् ऊष्मा अण्डेषु बीजेषु यस्य—कुहरा, धुंध
  • कृ—स्वादि॰ उभ॰ <कृणोति>, <कृणुते>—-—कु ईषत् उह्यतेऽत्र, कु - उह् - क—प्रहार करना, घायल करना, मार डालना
  • कृ—तना॰ उभ॰ <करोति>, <कुरुते>, <कृत>—-—-—करना
  • कृ—तना॰ उभ॰ <करोति>, <कुरुते>, <कृत>—-—-—बनाना
  • कृ—तना॰ उभ॰ <करोति>, <कुरुते>, <कृत>—-—-—निर्माण करना, गड़ना, तैयार करना
  • कृ—तना॰ उभ॰ <करोति>, <कुरुते>, <कृत>—-—-—बनाना, रचना करना
  • कृ—तना॰ उभ॰ <करोति>, <कुरुते>, <कृत>—-—-—पैदा करना, निमित्तभूत होना, उत्पन्न करना
  • कृ—तना॰ उभ॰ <करोति>, <कुरुते>, <कृत>—-—-—बनाना, क्रमबद्ध करना
  • कृ—तना॰ उभ॰ <करोति>, <कुरुते>, <कृत>—-—-—लिखना, रचना करना
  • कृ—तना॰ उभ॰ <करोति>, <कुरुते>, <कृत>—-—-—सम्पन्न करना, व्यस्त होना
  • कृ—तना॰ उभ॰ <करोति>, <कुरुते>, <कृत>—-—-—कहना, वर्णन करना
  • कृ—तना॰ उभ॰ <करोति>, <कुरुते>, <कृत>—-—-—पालन करना, कार्यान्वित करना, आज्ञा मानना
  • कृ—तना॰ उभ॰ <करोति>, <कुरुते>, <कृत>—-—-—प्रकाशित करना, पूरा करना, कार्य में परिणत करना
  • कृ—तना॰ उभ॰ <करोति>, <कुरुते>, <कृत>—-—-—फेंकना, निकालना, उत्सर्ग करना, छोड़ना
  • मूत्रं कृ—तना॰ उभ॰ <करोति>, <कुरुते>, <कृत>—-—-—मूत्रोत्सर्ग करना, पेशाब करना
  • पुरीषं कृ—तना॰ उभ॰ <करोति>, <कुरुते>, <कृत>—-—-—टट्टी फिरना
  • कृ—तना॰ उभ॰ <करोति>, <कुरुते>, <कृत>—-—-—धारण करना, पहनना, ग्रहण करना
  • कृ—तना॰ उभ॰ <करोति>, <कुरुते>, <कृत>—-—-—मुँह से निकलना, उच्चारण करना
  • कृ—तना॰ उभ॰ <करोति>, <कुरुते>, <कृत>—-—-—रखना, पहनना
  • कृ—तना॰ उभ॰ <करोति>, <कुरुते>, <कृत>—-—-—सौंपना, नियत करना
  • कृ—तना॰ उभ॰ <करोति>, <कुरुते>, <कृत>—-—-—पकाना
  • कृ—तना॰ उभ॰ <करोति>, <कुरुते>, <कृत>—-—-—सोचना, आदर करना, ख्याल करना
  • कृ—तना॰ उभ॰ <करोति>, <कुरुते>, <कृत>—-—-—ग्रहण करना
  • कृ—तना॰ उभ॰ <करोति>, <कुरुते>, <कृत>—-—-—ध्वनि करना
  • कृ—तना॰ उभ॰ <करोति>, <कुरुते>, <कृत>—-—-—गुजारना, बिताना
  • कृ—तना॰ उभ॰ <करोति>, <कुरुते>, <कृत>—-—-—की ओर मुड़ना, ध्यान मोड़ना, दृढ़ निश्चय करना
  • कृ—तना॰ उभ॰ <करोति>, <कुरुते>, <कृत>—-—-—दूसरे के लिए कोई काम न करना
  • कृ—तना॰ उभ॰ <करोति>, <कुरुते>, <कृत>—-—-—उपयोग करना, काम में लगाना, उपयोग में लाना
  • कृ—तना॰ उभ॰ <करोति>, <कुरुते>, <कृत>—-—-—विभक्त करना, टुकड़े-टुकड़े करना
  • द्विधा कृ—तना॰ उभ॰ <करोति>, <कुरुते>, <कृत>—-—-—दो टुकड़े करना
  • ॰सात् कृ—तना॰ उभ॰ <करोति>, <कुरुते>, <कृत>—-—-—अधीन बनाना, पूर्ण रूप से किसी विशेष अवस्था को प्राप्त करना
  • आत्मसात्कृ—तना॰ उभ॰ <करोति>, <कुरुते>, <कृत>—-—-—अधीन करना, अपने में लीन करना
  • भस्मसात्कृ—तना॰ उभ॰ <करोति>, <कुरुते>, <कृत>—-—-—राख बना देना
  • कृष्णीकृ—तना॰ उभ॰ <करोति>, <कुरुते>, <कृत>—-—-—उस वस्तु को जो पहले से काली नहीं है काली करना
  • श्वेतीकृ—तना॰ उभ॰ <करोति>, <कुरुते>, <कृत>—-—-—सफेद करना
  • घनीकृत —तना॰ उभ॰ <करोति>, <कुरुते>, <कृत>—-—-—ठोस बना देना
  • विरलीकृ —तना॰ उभ॰ <करोति>, <कुरुते>, <कृत>—-—-—दूर-दूर कहीं करना
  • क्रोडीकृ —तना॰ उभ॰ <करोति>, <कुरुते>, <कृत>—-—-—छाती से लगाना, आलिङ्गन करना
  • भस्मीकृ—तना॰ उभ॰ <करोति>, <कुरुते>, <कृत>—-—-—राख कर देना
  • प्रवणीकृ—तना॰ उभ॰ <करोति>, <कुरुते>, <कृत>—-—-—रुचि पैदा करना, झुकना
  • तृणीकृ—तना॰ उभ॰ <करोति>, <कुरुते>, <कृत>—-—-—तिनके की भाँति तुच्छ एवं हीन समझना
  • मंदीकृ—तना॰ उभ॰ <करोति>, <कुरुते>, <कृत>—-—-—शिथिल करना, चाल धीमी करना
  • शूलाकृ—तना॰ उभ॰ <करोति>, <कुरुते>, <कृत>—-—-—नोकदार लोहे की सलाखों के सिरे पर रखकर भूनना
  • सुखाकृ—तना॰ उभ॰ <करोति>, <कुरुते>, <कृत>—-—-—प्रसन्न करना
  • समयाकृ—तना॰ उभ॰ <करोति>, <कुरुते>, <कृत>—-—-—समय बिताना
  • समयाकृ—तना॰ उभ॰ <करोति>, <कुरुते>, <कृत>—-—-—क्षति पहुँचाना
  • समयाकृ—तना॰ उभ॰ <करोति>, <कुरुते>, <कृत>—-—-—निन्दा करना, कलंकित करना
  • समयाकृ—तना॰ उभ॰ <करोति>, <कुरुते>, <कृत>—-—-—काम देना और
  • समयाकृ—तना॰ उभ॰ <करोति>, <कुरुते>, <कृत>—-—-—बलात्कार करना, हिंसात्मक कार्य करना
  • समयाकृ—तना॰ उभ॰ <करोति>, <कुरुते>, <कृत>—-—-—तैयारी करना, दशा बदलना, मोड़ना
  • समयाकृ—तना॰ उभ॰ <करोति>, <कुरुते>, <कृत>—-—-—सस्वर पाठ करना
  • समयाकृ—तना॰ उभ॰ <करोति>, <कुरुते>, <कृत>—-—-—काम में लगाना, प्रयोग में लाना
  • पदं कृ—तना॰ उभ॰ <करोति>, <कुरुते>, <कृत>—-—-—कदम रखना
  • मनसाकृ—तना॰ उभ॰ <करोति>, <कुरुते>, <कृत>—-—-—सोचना, मध्यस्थता करना
  • मनसि कृ—तना॰ उभ॰ <करोति>, <कुरुते>, <कृत>—-—-—सोचना, दृढ़ निश्चय करना, संकल्प करना
  • मैत्रीं कृ—तना॰ उभ॰ <करोति>, <कुरुते>, <कृत>—-—-—मित्रता करना
  • अस्त्राणि कृ—तना॰ उभ॰ <करोति>, <कुरुते>, <कृत>—-—-—शस्त्रास्त्रों के प्रयोग का अभ्यास करना
  • दंड कृ—तना॰ उभ॰ <करोति>, <कुरुते>, <कृत>—-—-—दण्ड देना
  • हृदये कृ—तना॰ उभ॰ <करोति>, <कुरुते>, <कृत>—-—-—ध्यान देना
  • कालं कृ—तना॰ उभ॰ <करोति>, <कुरुते>, <कृत>—-—-—मरना
  • मतिं बुद्धिं कृ—तना॰ उभ॰ <करोति>, <कुरुते>, <कृत>—-—-—सोचना, इरादा करना, अभिप्राय होना
  • उदकं कृ—तना॰ उभ॰ <करोति>, <कुरुते>, <कृत>—-—-—पितरों को जल का तर्पण करना
  • चिरं कृ—तना॰ उभ॰ <करोति>, <कुरुते>, <कृत>—-—-—देर करना
  • दर्दुरं कृ—तना॰ उभ॰ <करोति>, <कुरुते>, <कृत>—-—-—वीणा बजाना
  • नखानि कृ—तना॰ उभ॰ <करोति>, <कुरुते>, <कृत>—-—-—नाखून साफ करना
  • कन्यां कृ—तना॰ उभ॰ <करोति>, <कुरुते>, <कृत>—-—-—सतीत्वभ्रष्ट करना, कौमार्य भंग करना
  • विना कृ—तना॰ उभ॰ <करोति>, <कुरुते>, <कृत>—-—-—अलग करना, छोड़ा जाना
  • मध्य कृ—तना॰ उभ॰ <करोति>, <कुरुते>, <कृत>—-—-—बीच में रखना, संकेत करना
  • वशे कृ—तना॰ उभ॰ <करोति>, <कुरुते>, <कृत>—-—-—जीतना, वश में करना, दमन करना
  • चमत्कृ—तना॰ उभ॰ <करोति>, <कुरुते>, <कृत>—-—-—आश्चर्य पैदा करना, प्रदर्शन करना
  • सत्कृ—तना॰ उभ॰ <करोति>, <कुरुते>, <कृत>—-—-—सम्मान करना, सत्कार करना
  • तिर्यक् कृ——-—-—एक ओर रख देना
  • कृ—तना॰ उभ॰,इच्छा॰ <चिकीर्षति>, <चिकीर्षते>—-—-—करवाना, सम्पन्न करवाना, बनवाना, कार्यान्वित करवाना
  • कृ—तना॰ उभ॰,इच्छा॰ <चिकीर्षति>, <चिकीर्षते>—-—-—करने की इच्छा करना
  • अङ्गीकृ—तना॰ उभ॰,इच्छा॰ <चिकीर्षति>, <चिकीर्षते>—अङ्गी-कृ—-—स्वीकार करना, अपनाना
  • अङ्गीकृ—तना॰ उभ॰,इच्छा॰ <चिकीर्षति>, <चिकीर्षते>—अङ्गी-कृ—-—मान लेना, स्वीकृति देना, अपनाना
  • अङ्गीकृ—तना॰ उभ॰,इच्छा॰ <चिकीर्षति>, <चिकीर्षते>—अङ्गी-कृ—-—करने की प्रतिज्ञा करना, जिम्मेवारी लेना
  • अङ्गीकृ—तना॰ उभ॰,इच्छा॰ <चिकीर्षति>, <चिकीर्षते>—अङ्गी-कृ—-—दमन करना, अपना बनाना, अनुग्रह करना
  • अतिकृ—तना॰ उभ॰,इच्छा॰ <चिकीर्षति>, <चिकीर्षते>—अति-कृ—-—बढ़ जाना, पीछे छोड़ देना
  • अधिकृ—तना॰ उभ॰,इच्छा॰ <चिकीर्षति>, <चिकीर्षते>—अधि-कृ—-—अधिकारी होना, हकदार बनाना, अधिकृत बनना, किसी कर्तव्य के लिए पात्रीकरण
  • अधिकृ—तना॰ उभ॰,इच्छा॰ <चिकीर्षति>, <चिकीर्षते>—अधि-कृ—-—लक्ष्य बनाना, उल्लेख करना
  • अधिकृ—तना॰ उभ॰,इच्छा॰ <चिकीर्षति>, <चिकीर्षते>—अधि-कृ—-—धारण करना
  • अधिकृ—तना॰ उभ॰,इच्छा॰ <चिकीर्षति>, <चिकीर्षते>—अधि-कृ—-—अभिभूत करना, दबा लेना, श्रेष्ठ बनाना
  • अधिकृ—तना॰ उभ॰,इच्छा॰ <चिकीर्षति>, <चिकीर्षते>—अधि-कृ—-—रोकना, रुकना, हाथ खींचना
  • अनुकृ—तना॰ उभ॰,इच्छा॰ <चिकीर्षति>, <चिकीर्षते>—अनु-कृ—-—सूरत शक्ल में मिलना, अनुगमन करना, विशेषतः नकल करना
  • अपकृ—तना॰ उभ॰,इच्छा॰ <चिकीर्षति>, <चिकीर्षते>—अप-कृ—-—खींचकर दूर करना, हटाना, दूर खींचकर अनादर करना
  • अपकृ—तना॰ उभ॰,इच्छा॰ <चिकीर्षति>, <चिकीर्षते>—अप-कृ—-—प्रहार करना, क्षति पहुँचाना, बुरा करना, हानि पहुँचाना, हानि या क्षति पहुँचाना
  • अपाकृ—तना॰ उभ॰,इच्छा॰ <चिकीर्षति>, <चिकीर्षते>—अपा-कृ—-—दूर करना, त्याग देना, हटाना, मिटाना
  • अपाकृ—तना॰ उभ॰,इच्छा॰ <चिकीर्षति>, <चिकीर्षते>—अपा-कृ—-—फेंक देना, अस्वीकार करना, एक ओर रख देना, छोड़ देना
  • अभ्यन्तरीकृ—तना॰ उभ॰,इच्छा॰ <चिकीर्षति>, <चिकीर्षते>—अभ्यन्तरी-कृ—-—दीक्षित करना
  • अभ्यन्तरीकृ—तना॰ उभ॰,इच्छा॰ <चिकीर्षति>, <चिकीर्षते>—अभ्यन्तरी-कृ—-—मित्र बनाना
  • अलङ्कृ—तना॰ उभ॰,इच्छा॰ <चिकीर्षति>, <चिकीर्षते>—अलम्-कृ—-—विभूषित करना, सजाना, शोभा बढ़ाना
  • आकृ—तना॰ उभ॰,इच्छा॰ <चिकीर्षति>, <चिकीर्षते>—आ-कृ—-—पुकारना, बुलाना, निमंत्रित करना
  • आकृ—तना॰ उभ॰,इच्छा॰ <चिकीर्षति>, <चिकीर्षते>—आ-कृ—-—निकट लाना
  • आविस्कृ—तना॰ उभ॰,इच्छा॰ <चिकीर्षति>, <चिकीर्षते>—आविस्-कृ—-—प्रकट करना, दर्शनीय बनना, जाहिर करना, प्रदर्शन करना
  • उपकृ—तना॰ उभ॰,इच्छा॰ <चिकीर्षति>, <चिकीर्षते>—उप-कृ—-—मित्र बनाना, सेवा करना, सहायता करना, अनुग्रह करना, उपकृत करना
  • उपकृ—तना॰ उभ॰,इच्छा॰ <चिकीर्षति>, <चिकीर्षते>—उप-कृ—-—हाजरी में खड़े रहना, सेवा करना
  • उपकृ—तना॰ उभ॰,इच्छा॰ <चिकीर्षति>, <चिकीर्षते>—उप-कृ—-—विभूषित करना, सजाना, शोभा बढ़ाना
  • उपकृ—तना॰ उभ॰,इच्छा॰ <चिकीर्षति>, <चिकीर्षते>—उप-कृ—-—प्रयत्न करना
  • उपकृ—तना॰ उभ॰,इच्छा॰ <चिकीर्षति>, <चिकीर्षते>—उप-कृ—-—तैयार करना, विस्तार से कार्य करना, पूरा करना, निर्मल करना
  • उपाकृ—तना॰ उभ॰,इच्छा॰ <चिकीर्षति>, <चिकीर्षते>—उपा-कृ—-—सौंपना, देना
  • उपाकृ—तना॰ उभ॰,इच्छा॰ <चिकीर्षति>, <चिकीर्षते>—उपा-कृ—-—प्रारम्भिक संस्कार सम्पन्न करना
  • उपाकृ—तना॰ उभ॰,इच्छा॰ <चिकीर्षति>, <चिकीर्षते>—उपा-कृ—-—उठा लाना, लाना
  • उपाकृ—तना॰ उभ॰,इच्छा॰ <चिकीर्षति>, <चिकीर्षते>—उपा-कृ—-—आरम्भ करना
  • उरीकृ—तना॰ उभ॰,इच्छा॰ <चिकीर्षति>, <चिकीर्षते>—उरी-कृ—-—स्वीकार करना
  • उररीकृ—तना॰ उभ॰,इच्छा॰ <चिकीर्षति>, <चिकीर्षते>—उररी-कृ—-—स्वीकार करना
  • उरुरीकृ—तना॰ उभ॰,इच्छा॰ <चिकीर्षति>, <चिकीर्षते>—उरुरी-कृ—-—स्वीकार करना
  • ऊरीकृ—तना॰ उभ॰,इच्छा॰ <चिकीर्षति>, <चिकीर्षते>—ऊरी-कृ—-—स्वीकार करना
  • ऊररीकृ—तना॰ उभ॰,इच्छा॰ <चिकीर्षति>, <चिकीर्षते>—ऊररी-कृ—-—स्वीकार करना
  • तिरस्कृ—तना॰ उभ॰,इच्छा॰ <चिकीर्षति>, <चिकीर्षते>—तिरस्-कृ—-—अपशब्द कहना, बुरा भला कहना, अनादर करना, घृणा करना
  • तिरस्कृ—तना॰ उभ॰,इच्छा॰ <चिकीर्षति>, <चिकीर्षते>—तिरस्-कृ—-—पीछे छोड़ना, आगे बढ़ना, जीतना
  • त्वम्कृ—तना॰ उभ॰,इच्छा॰ <चिकीर्षति>, <चिकीर्षते>—त्वम्-कृ—-—तू, कोई
  • दक्षिणीकृ—तना॰ उभ॰,इच्छा॰ <चिकीर्षति>, <चिकीर्षते>—दक्षिणी-कृ—-—किसी वस्तु के चारों ओर घूमना
  • प्रदक्षिणीकृ—तना॰ उभ॰,इच्छा॰ <चिकीर्षति>, <चिकीर्षते>—प्रदक्षिणी-कृ—-—किसी वस्तु के चारों ओर घूमना
  • दुस्कृ—तना॰ उभ॰,इच्छा॰ <चिकीर्षति>, <चिकीर्षते>—दुस्-कृ—-—बुरे ढंग से करना
  • धिक्कृ—तना॰ उभ॰,इच्छा॰ <चिकीर्षति>, <चिकीर्षते>—धिक्-कृ—-—झिड़कना, बुरा भला कहना, अनादर करना
  • नमस्कृ—तना॰ उभ॰,इच्छा॰ <चिकीर्षति>, <चिकीर्षते>—नमस्-कृ—-—नमस्कार करना, पूजा करना
  • निकृ—तना॰ उभ॰,इच्छा॰ <चिकीर्षति>, <चिकीर्षते>—नि-कृ—-—क्षति पहुँचाना, बुरा करना
  • निस्कृ—तना॰ उभ॰,इच्छा॰ <चिकीर्षति>, <चिकीर्षते>—निस्-कृ—-—हटाना, हाँक कर दूर कर देना
  • निस्कृ—तना॰ उभ॰,इच्छा॰ <चिकीर्षति>, <चिकीर्षते>—निस्-कृ—-—तोड़ देना, निकम्मा कर देना
  • निराकृ—तना॰ उभ॰,इच्छा॰ <चिकीर्षति>, <चिकीर्षते>—निरा-कृ—-—निकाल देना, परे कर देना, निकाल बाहर करना
  • निराकृ—तना॰ उभ॰,इच्छा॰ <चिकीर्षति>, <चिकीर्षते>—निरा-कृ—-—निराकरण करना
  • निराकृ—तना॰ उभ॰,इच्छा॰ <चिकीर्षति>, <चिकीर्षते>—निरा-कृ—-—छोड़ना, त्यागना
  • निराकृ—तना॰ उभ॰,इच्छा॰ <चिकीर्षति>, <चिकीर्षते>—निरा-कृ—-—पूर्ण रूप से नष्ट कर देना, ध्वंस करना
  • निराकृ—तना॰ उभ॰,इच्छा॰ <चिकीर्षति>, <चिकीर्षते>—निरा-कृ—-—बुरा भला कहना, नीच समझना, तुच्छ समझना
  • न्यक्कृ—तना॰, पर॰—न्यक्-कृ—-—अपमान करना, अनादर करना
  • पराकृ—तना॰, पर॰—परा-कृ—-—अस्वीकार करना, अवहेलना करना, निरादर करना, ख्याल नहीं करना
  • परिकृ—तना॰, पर॰—परि-कृ—-—घेरना
  • परिकृ—तना॰, पर॰—परि-कृ—-—विभूषित करना, सजाना, निर्मल करना, चमकाना, शुद्ध करना
  • पुरस्कृ—तना॰, पर॰—पुरस्-कृ—-—सम्मुख रखना
  • प्रकृ—तना॰, पर॰—प्र-कृ—-—करना, सम्पन्न करना, आरम्भ करना
  • प्रकृ—तना॰, पर॰—प्र-कृ—-—बलात्कार करना, अत्याचार करना, अपमान करना
  • प्रकृ—तना॰, पर॰—प्र-कृ—-—सम्मान करना, पूजा करना
  • प्रतिकृ—तना॰, पर॰—प्रति-कृ—-—बदला देना, वापिस देना, लौटाना
  • प्रतिकृ—तना॰, पर॰—प्रति-कृ—-—उपचार करना
  • प्रतिकृ—तना॰, पर॰—प्रति-कृ—-—वापिस देना, ज्यों का त्यों कर देना, पुनः स्थापित करना
  • प्रतिकृ—तना॰, पर॰—प्रति-कृ—-—प्रतिशोध करना
  • प्रमाणीकृ—तना॰, पर॰—प्रमाणी-कृ—-—भरोसा करना, विश्वास करना
  • प्रमाणीकृ—तना॰, पर॰—प्रमाणी-कृ—-—प्रमाण पुरुष मानना, आज्ञा मानना
  • प्रमाणीकृ—तना॰, पर॰—प्रमाणी-कृ—-—आँख गड़ाना, वितरण करना, बर्ताव करना या व्यवहार करना
  • प्रादुष्कृ—तना॰, पर॰—प्रादुस्-कृ—-—प्रकट करना, प्रदर्शन करना, दिखलाना, जाहिर करना
  • प्रत्युपकृ—तना॰, पर॰—प्रत्युप-कृ—-—प्रतिफल देना, प्रत्यर्पण करना
  • विकृ—तना॰, पर॰—वि-कृ—-—बदलना, परिवर्तन करना, प्रभावित करना
  • विकृ—तना॰, पर॰—वि-कृ—-—आकृति बिगाड़ना, विरूप करना
  • विकृ—तना॰, पर॰—वि-कृ—-—उत्पन्न करना, पैदा करना, सम्पन्न करना
  • विकृ—तना॰, पर॰—वि-कृ—-—विघ्न डालना, हानि पहुँचाना, क्षति पहुँचाना
  • विकृ—तना॰, पर॰—वि-कृ—-—उच्चारण करना
  • विकृ—तना॰, पर॰—वि-कृ—-—विश्वासघातक होना
  • विनिकृ—तना॰, पर॰—विनि-कृ—-—प्रहार करना, क्षति पहुँचाना
  • विप्रकृ—तना॰, पर॰—विप्र-कृ—-—सताना, कष्ट देना, तंग करना, हानि पहुँचाना
  • विप्रकृ—तना॰, पर॰—विप्र-कृ—-—बुरा करना, दुर्व्यवहार करना
  • विप्रकृ—तना॰, पर॰—विप्र-कृ—-—प्रभावित करना, परिवर्तन लाना
  • व्याकृ—तना॰, पर॰—व्या-कृ—-—प्रकट करना, साफ करना
  • व्याकृ—तना॰, पर॰—व्या-कृ—-—प्रतिपादन करना, व्याख्या करना
  • व्याकृ—तना॰, पर॰—व्या-कृ—-—कहना, वर्णन करना
  • सम्कृ—तना॰, पर॰—सम्-कृ—-—करना
  • सम्कृ—तना॰, पर॰—सम्-कृ—-—निर्माण करना, तैयार करना
  • संस्कृ—तना॰, पर॰—सम्-कृ—-—करना, सम्पन्न करना
  • संस्कृ—तना॰, पर॰—सम्-कृ—-—अलंकृत करना, शोभा बढ़ाना
  • संस्कृ—तना॰, पर॰—सम्-कृ—-—निर्मल करना, चमकना
  • संस्कृ—तना॰, पर॰—सम्-कृ—-—वेदमन्त्रों के उच्चारण से अभिमन्त्रित करना
  • संस्कृ—तना॰, पर॰—सम्-कृ—-—वेदविहित संस्कारों से पवित्र करना, शुद्ध करने वाले शास्त्रोक्त विधियों का अनुष्ठान करना
  • साचीकृ—तना॰, पर॰—साची-कृ—-—एक ओर मुड़ना, परोक्ष रूप से मुड़ना
  • कृकः—पुं॰—-—कृ - कक्—गला
  • कृकणः—पुं॰—-—कृ - कण् - अच्—एक प्रकार का तीतर
  • कृकरः—पुं॰—-—कृ - कृ - ट—एक प्रकार का तीतर
  • कृकलासः <o> कृकुलासः—पुं॰—-—कृक - लस् - अण्—छिपकली, गिरगिट
  • कृकवाकुः—पुं॰—-—कृक - वच् - ञुण्, क् आदेशः—मुर्गा, मोर, छिपकली
  • कृकवाकुध्वजः—पुं॰—कृकवाकु-ध्वजः—-—कार्तिकेय का विशेषण
  • कृकाटिका—स्त्री॰—-—कृक - अट् - अण् = कृकाट - कन् - टाप्, इत्वम्—ग्रीवा का सीधा उठा हुआ भाग
  • कृकाटिका—स्त्री॰—-—कृक - अट् - अण् = कृकाट - कन् - टाप्, इत्वम्—गर्दन का पिछला का भाग
  • कृच्छ्र—वि॰—-—कृती - रक्, छ आदेशः—कष्ट देने वाला, पीड़ाकर
  • कृच्छ्र—वि॰—-—कृती - रक्, छ आदेशः—बुरा, विपदग्रस्त, अनिष्टकर
  • कृच्छ्र—वि॰—-—कृती - रक्, छ आदेशः—दुष्ट, पापी
  • कृच्छ्र—वि॰—-—कृती - रक्, छ आदेशः—संकटग्रस्त, पीडित
  • कृच्छ्रः—पुं॰—-—कृती - रक्, छ आदेशः—कठिनाई, कष्ट, कठोरता, विपद्, संकट, भय
  • कृच्छ्रः—पुं॰—-—कृती - रक्, छ आदेशः—शारीरिक तप, तपस्या, प्रायश्चित्त
  • कृच्छ्रम्—नपुं॰—-—कृती - रक्, छ आदेशः—कठिनाई, कष्ट, कठोरता, विपद्, संकट, भय
  • कृच्छ्रम्—नपुं॰—-—कृती - रक्, छ आदेशः—शारीरिक तप, तपस्या, प्रायश्चित्त
  • कृच्छ्रम्—नपुं॰—-—कृती - रक्, छ आदेशः—बड़ी कठिनाई के साथ, दुःखपूर्वक, बड़े कष्ट के साथ
  • कृच्छ्रेण—नपुं॰—-—कृती - रक्, छ आदेशः—बड़ी कठिनाई के साथ, दुःखपूर्वक, बड़े कष्ट के साथ
  • कृच्छ्रात्—नपुं॰—-—कृती - रक्, छ आदेशः—बड़ी कठिनाई के साथ, दुःखपूर्वक, बड़े कष्ट के साथ
  • कृच्छ्रप्राण—वि॰—कृच्छ्र-प्राण—-—जिसका जीवन खतरे में है
  • कृच्छ्रप्राण—वि॰—कृच्छ्र-प्राण—-—कष्टपूर्वक साँस लेने वाला
  • कृच्छ्रप्राण—वि॰—कृच्छ्र-प्राण—-—कठिनाई से जीवन यापन करने वाला
  • कृच्छ्रसाध्य—वि॰—कृच्छ्र-साध्य—-—कठिनाई से ठीक हो सके
  • कृच्छ्रसाध्य—वि॰—कृच्छ्र-साध्य—-—कष्टसाध्य
  • कृत्—तुदा॰ पर॰ <कृन्तति>, <कृत्त>—-—-—काटना, काटकर फेंक देना, विभक्त करना, फाड़ना, धज्जियाँ उड़ाना, टुकड़े-टुकड़े करना, नष्ट करना
  • अवकृत्—तुदा॰ पर॰—अव-कृत्—-—काट फेंकना, विभक्त करना, फाड़कर टुकड़े-टुकड़े करना
  • उत्कृत्—तुदा॰ पर॰—उद्-कृत्—-—काटना या काट फेंकना, फाड़ना
  • उत्कृत्—तुदा॰ पर॰—उद्-कृत्—-—खण्ड खण्ड करना, टुकड़े काटना
  • विकृत्—तुदा॰ पर॰—वि-कृत्—-—काटना, फाड़ना, टुकड़े-टुकड़े करना
  • विकृत्—रुधा॰ पर॰ <कृणत्ति>, <कृत्त>—वि-कृत्—-—काटना, घेरना
  • ॰कृत्—वि॰—॰कृत्—कृ - क्विप्—निष्पादक, कर्ता, निर्माता, अनुष्ठाता, उत्पादक, रचयिता आदि
  • कृत्—पुं॰—-—कृ - क्विप्—प्रत्ययों का समूह जिनको धातु के साथ जोड़ने से संज्ञा, विशेषण आदि बनते है
  • कृत्—पुं॰—-—कृ - क्विप्—इस प्रकार बना हुआ शब्द
  • कृत—वि॰—-—कृ - क्त—किया हुआ, अनुष्ठित, निर्मित, क्रियान्वित, निष्पन्न, उत्पादित आदि
  • कृतम्—नपुं॰—-—कृ - क्त—कार्य, कृत्य, कर्म
  • कृतम्—नपुं॰—-—कृ - क्त—सेवा, लाभ
  • कृतम्—नपुं॰—-—कृ - क्त—फल, परिणाम
  • कृतम्—नपुं॰—-—कृ - क्त—लक्ष्य, उद्देश्य
  • कृतम्—नपुं॰—-—कृ - क्त—पासे का वह पहलू जिस पर चार बिन्दु अंकित हैं
  • कृतम्—नपुं॰—-—कृ - क्त—संसार के चार युगों में पहला युग जो मनुष्यों के १७२८००० वर्षों के बराबर हैं
  • कृताकृत—वि॰—कृत-अकृत—-—किया न किया अर्थात् कुछ भाग किया गया, पूरा नहीं किया गया
  • कृताङ्क—वि॰—कृत-अङ्क—-—चिह्नित, दागी
  • कृताङ्क—वि॰—कृत-अङ्क—-—संख्यांकित
  • कृताङ्क—वि॰—कृत-अङ्क—-—पासे का वह भाग जिसपर चार बिन्दु अंकित हों
  • कृताञ्जलि—वि॰—कृत-अञ्जलि—-—विनम्रता के कारण दोनों हाथ जोड़े हुए
  • कृतानुकर—वि॰—कृत-अनुकर—-—किये हुए कार्य का अनुकरण करने वाला, अनुसेवी
  • कृतानुसारः—पुं॰—कृत-अनुसारः—-—प्रथा, परिपाटी
  • कृतान्त—वि॰—कृत-अन्त—-—समाप्त करने वाला, अवसायी
  • कृतान्तः—पुं॰—कृत-अन्तः—-—मृत्यु का देवता यम
  • कृतान्तः—पुं॰—कृत-अन्तः—-—भाग्य, प्रारब्ध
  • कृतान्तः—पुं॰—कृत-अन्तः—-—प्रदर्शित उपसंहार, रुढ़ि, प्रमाणित सिद्धान्त
  • कृतान्तः—पुं॰—कृत-अन्तः—-—पापकर्म, अशुभ कर्म
  • कृतान्तः—पुं॰—कृत-अन्तः—-—शनि ग्रह का विशेषण
  • कृतान्तः—पुं॰—कृत-अन्तः—-—शनिवार
  • कृतान्तजनकः—पुं॰—कृत-अन्त-जनकः—-—सूर्य
  • कृतान्नम्—नपुं॰—कृत-अन्नम्—-—पकाया हुआ, भोजन
  • कृतान्नम्—नपुं॰—कृत-अन्नम्—-—पचा हुआ भोजन
  • कृतान्नम्—नपुं॰—कृत-अन्नम्—-—मल
  • कृतापराध—वि॰—कृत-अपराध—-—अपराधी, दोषी, मुजरिम
  • कृताभय—वि॰—कृत-अभय—-—भय या खतरे से सुरक्षित
  • कृताभिषेक—वि॰—कृत-अभिषेक—-—राज्याभिषिक्त, यथा विधि पद पर प्रतिष्ठित किया हुआ
  • कृताभ्यास—वि॰—कृत-अभ्यास—-—अभ्यस्त
  • कृतार्थ—वि॰—कृत-अर्थ—-—जिसने अपना उद्देश्य सिद्ध कर लिया है, सफल
  • कृतार्थ—वि॰—कृत-अर्थ—-—सन्तुष्ट, प्रसन्न, परितृप्त
  • कृतार्थ—वि॰—कृत-अर्थ—-—चतुर
  • कृतार्थीकृ——-—-—सफल बनाना
  • कृतार्थीकृ——-—-—भरपाई होना
  • कृतावधान—वि॰—कृत-अवधान—-—होशियार, सावधान
  • कृतावधि—वि॰—कृत-अवधि—-—निश्चित, नियत
  • कृतावधि—वि॰—कृत-अवधि—-—हदबन्दी किया हुआ, सीमित
  • कृतावस्थ—वि॰—कृत-अवस्थ—-—बुलाया हुआ, प्रस्तुत कराया हुआ
  • कृतावस्थ—वि॰—कृत-अवस्थ—-—निश्चित, निर्धारित
  • कृतास्त्र—वि॰—कृत-अस्त्र—-—हथियारबन्द
  • कृतास्त्र—वि॰—कृत-अस्त्र—-—शस्त्र या अस्त्र विज्ञान में प्रकाशित
  • कृतागम—वि॰—कृत-आगम—-—प्रगत, प्रवीण
  • कृतागम—पुं॰—कृत-आगम—-—परमात्मा
  • कृतागस्—वि॰—कृत-आगस्—-—दोषी, अपराधी, मुजरिम, पापी
  • कृतात्मन्—वि॰—कृत-आत्मन्—-—संयमी, स्वस्थचित्त, स्थिरात्मा
  • कृतात्मन्—वि॰—कृत-आत्मन्—-—पवित्र मन वाला
  • कृतायास—वि॰—कृत-आयास—-—परिश्रम करने वाला, सहन करने वाला
  • कृताह्वान—वि॰—कृत-आह्वान—-—ललकारा हुआ
  • कृतोत्साह—वि॰—कृत-उत्साह—-—परिश्रमी, प्रयत्नशील, उद्यमी
  • कृतोद्वाह—वि॰—कृत-उद्वाह—-—विवाहित
  • कृतोद्वाह—वि॰—कृत-उद्वाह—-—हाथ उपर उठाकर तपस्या करने वाला
  • कृतोपकार—वि॰—कृत-उपकार—-—अनुगृहीत, मित्रवत् आचरित, सहायता प्राप्त
  • कृतोपकार—वि॰—कृत-उपकार—-—मित्रसदृश
  • कृतोपभोग—वि॰—कृत-उपभोग—-—बरता हुआ, उपभुक्त
  • कृतकर्मन्—वि॰—कृत-कर्मन्—-—जिसने अपना काम कर लिया है
  • कृतकर्मन्—वि॰—कृत-कर्मन्—-—दक्ष, चतुर
  • कृतकर्मन्—पुं॰—कृत-कर्मन्—-—परमात्मा
  • कृतकर्मन्—पुं॰—कृत-कर्मन्—-—सन्यासी
  • कृतकाम—वि॰—कृत-काम—-—जिसकी इच्छाएँ पूर्ण हो गई हैं
  • कृतकाल—वि॰—कृत-काल—-—समय की दृष्टि से जो स्थिर है, निश्चित
  • कृतकाल—वि॰—कृत-काल—-—जिसने कुछ काल तक प्रतीक्षा की है
  • कृतकालः—वि॰—कृत-कालः—-—नियत समय
  • कृतकृत्य—वि॰—कृत-कृत्य—-—कृतार्थ
  • कृतकृत्य—वि॰—कृत-कृत्य—-—सन्तुष्ट, परितृप्त
  • कृतकृत्य—वि॰—कृत-कृत्य—-—जिसने अपना कर्तव्य पूरा कर लिया है
  • कृतक्रयः—पुं॰—कृत-क्रयः—-—खरीदार
  • कृतक्षण—वि॰—कृत-क्षण—-—निश्चित समय की आतुरतापूर्वक प्रतीक्षा करने वाला
  • कृतक्षण—वि॰—कृत-क्षण—-—जिसे कोई अवसर उपलब्ध हो गया है
  • कृतघ्न—वि॰—कृत-घ्न—-—अकृतज्ञ
  • कृतघ्न—वि॰—कृत-घ्न—-—जो पहले किये हुए उपकारों को नहीं मानता है
  • कृतचूडः—पुं॰—कृत-चूडः—-—जिस बालक का मुण्डनसंस्कार हो गया है
  • कृतज्ञ—वि॰—कृत-ज्ञ—-—उपकार मानने वाला, आभारी
  • कृतज्ञ—वि॰—कृत-ज्ञ—-—शुद्धाचारी
  • कृतज्ञः—पुं॰—कृत-ज्ञः—-—कुत्ता
  • कृततीर्थः—वि॰—कृत-तीर्थः—-—जिसने तीर्थों के दर्शन किये हैं
  • कृततीर्थः—वि॰—कृत-तीर्थः—-—जो अध्यापक से अध्ययन करता हो
  • कृततीर्थः—वि॰—कृत-तीर्थः—-—जिसे तरकीबें खूब सूझती हों
  • कृततीर्थः—वि॰—कृत-तीर्थः—-—पथ प्रदर्शक
  • कृतदासः—पुं॰—कृत-दासः—-—किसी निश्चित समय के लिए रक्खा हुआ वैतनिक सेवक, वैतनिक सेवक
  • कृतधीः—पुं॰—कृत-धीः—-—दूरदर्शी, लिहाज रखने वाला
  • कृतधीः—पुं॰—कृत-धीः—-—विद्वान, शिक्षित, बुद्धिमान
  • कृतनिर्णेजनः—पुं॰—कृत-निर्णेजनः—-—पश्चात्तापी
  • कृतनिश्चय—वि॰—कृत-निश्चय—-—कृतसंकल्प, दृढ़प्रतिज्ञ
  • कृतपुङ्ख—वि॰—कृत-पुङ्ख—-—धनुर्विद्या में निपुण
  • कृतपूर्व—वि॰—कृत-पूर्व—-—पहले किया हुआ
  • कृतप्रतिकृतम्—नपुं॰—कृत-प्रतिकृतम्—-—आक्रमण और प्रत्याक्रमण, धावा बोलना और प्रतिरोध करना
  • कृतप्रतिज्ञ—वि॰—कृत-प्रतिज्ञ—-—जिसने किसी से कोई करार किया हुआ हो
  • कृतप्रतिज्ञ—वि॰—कृत-प्रतिज्ञ—-—जिसने अपनी प्रतिज्ञा को पूरा कर लिया है
  • कृतबुद्धि—वि॰—कृत-बुद्धि—-—विद्वान, शिक्षित, बुद्धिमान
  • कृतमुख—वि॰—कृत-मुख—-—विद्वान, बुद्धिमान
  • कृतलक्षण—वि॰—कृत-लक्षण—-—मुद्रांकित, चिह्नित
  • कृतलक्षण—वि॰—कृत-लक्षण—-—दागी
  • कृतलक्षण—वि॰—कृत-लक्षण—-—श्रेष्ठ, सुशील, परिभाषित, विवेचित
  • कृतवर्मन्—पुं॰—कृत-वर्मन्—-—कौरवपक्ष का एक योद्धा
  • कृतविद्य—वि॰—कृत-विद्य—-—विद्वान, शिक्षित
  • कृतवेतन—वि॰—कृत-वेतन—-—वैतनिक, तनखादार
  • कृतवेदिन्—वि॰—कृत-वेदिन्—-—आभारी
  • कृतवेश—वि॰—कृत-वेश—-—सुवेशित, विभूषित
  • कृतशोभ—वि॰—कृत-शोभ—-—शानदार
  • कृतशोभ—वि॰—कृत-शोभ—-—सुन्दर
  • कृतशोभ—वि॰—कृत-शोभ—-—पटु, दक्ष
  • कृतशौच—वि॰—कृत-शौच—-—पवित्र किया हुआ
  • कृतश्रमः—पुं॰—कृत-श्रमः—-—अध्येता, जिसने अध्ययन कर लिया है
  • कृतपरिश्रमः—पुं॰—कृत-परिश्रमः—-—अध्येता, जिसने अध्ययन कर लिया है
  • कृतसङ्कल्प—वि॰—कृत-सङ्कल्प—-—कृतनिश्चय, दृढ़संकल्प
  • कृतसङ्केत—वि॰—कृत-सङ्केत—-—नियत करने वाला
  • कृतसंज्ञ—वि॰—कृत-संज्ञ—-—पुनः चेतना प्राप्त, होश में आया हुआ
  • कृतसंज्ञ—वि॰—कृत-संज्ञ—-—उद्वोधित
  • कृतसन्नाह—वि॰—कृत-सन्नाह—-—कवचधारी
  • कृतसापत्निका—स्त्री॰—कृत-सापत्निका—-—वह स्त्री जिसके पति ने दूसरा विवाह कर लिया है, एक विवाहित स्त्री जिसकी सपत्नी भी विद्यमान हो
  • कृतहस्त—वि॰—कृत-हस्त—-—दक्ष, चतुर, कुशल, पटु
  • कृतहस्त—वि॰—कृत-हस्त—-—धनुर्विद्या में कुशल
  • कृतहस्तक—वि॰—कृत-हस्तक—-—दक्ष, चतुर, कुशल, पटु
  • कृतहस्तक—वि॰—कृत-हस्तक—-—धनुर्विद्या में कुशल
  • कृतहस्तता—स्त्री॰—कृत-हस्तता—-—कौशल, दक्षता
  • कृतहस्तता—स्त्री॰—कृत-हस्तता—-—धनुर्विद्या या शस्त्रविद्या में कुशल
  • कृतक—वि॰—-—कृत - कन्—किया हुआ, निर्मित, सज्जित
  • कृतक—वि॰—-—कृत - कन्—कृत्रिम, बनावटी ढंग से किया हुआ
  • कृतक—वि॰—-—कृत - कन्—झूठा, व्यपदिष्ट या बहाना किया हुआ, मिथ्या, दिखावटी, कल्पित
  • कृतक—वि॰—-—कृत - कन्—दत्तक
  • कृतम्—अव्य॰—-—कृत - कम् बा॰—पर्याप्त और अधिक नहीं, बस करो अथवा मत करो
  • कृतिः—स्त्री॰—-—कृ - क्तिन्—करनी, उत्पादन, निर्माण, अनुष्ठान
  • कृतिः—स्त्री॰—-—कृ - क्तिन्—कार्य, कृत्य, कर्म
  • कृतिः—स्त्री॰—-—कृ - क्तिन्—रचना, काम, संरचना
  • कृतिः—स्त्री॰—-—कृ - क्तिन्—जादू, इन्द्रजाल
  • कृतिः—स्त्री॰—-—कृ - क्तिन्—क्षति पहुँचाना, मार डालना
  • कृतिः—स्त्री॰—-—कृ - क्तिन्—बीस की संख्या
  • कृतिकरः—पुं॰—कृति-करः—-—रावण का विशेषण
  • कृतिन्—वि॰—-—कृत - इनि—कृतकार्य, कृतार्थ, संतुष्ट, परितृप्त, प्रसन्न, सफल
  • कृतिन्—वि॰—-—कृत - इनि—सौभाग्यशाली, अच्छी किस्मतवाला, भाग्यवान
  • कृतिन्—वि॰—-—कृत - इनि—चतुर, सक्षम, योग्य, विशेषज्ञ, कुशल, बुद्धिमान, विद्वान
  • कृतिन्—वि॰—-—कृत - इनि—अच्छा, गुणी, पवित्र, पावन
  • कृतिन्—वि॰—-—कृत - इनि—अनुवर्ती, आज्ञाकारी, आदेशानुसार करने वाला
  • कृते —अव्य॰—-—-—के लिए, के निमित्त, के कारण
  • कृतेन—अव्य॰—-—-—के लिए, के निमित्त, के कारण
  • कृत्तिः—स्त्री॰—-—कृत् - क्तिन्—चमड़ा, खाल
  • कृत्तिः—स्त्री॰—-—कृत् - क्तिन्—मृगचर्म जिसपर विद्यार्थी बैठता है
  • कृत्तिः—स्त्री॰—-—कृत् - क्तिन्—भोजपत्र
  • कृत्तिः—स्त्री॰—-—कृत् - क्तिन्—भोजवृक्ष
  • कृत्तिः—स्त्री॰—-—कृत् - क्तिन्—कृत्तिका नक्षत्र, कृत्तिका मण्डल
  • कृत्तिवासः—पुं॰—कृत्ति-वासः—-—शिव का विशेषण
  • कृत्तिवासस्—पुं॰—कृत्ति-वासस्—-—शिव का विशेषण
  • कृत्तिका—स्त्री॰,ब॰ व॰—-—कृत् - तिकन्, कित्, टाप्—२७ नक्षत्रों में से तीसरा कृत्तिका नक्षत्र
  • कृत्तिका—स्त्री॰,ब॰ व॰—-—कृत् - तिकन्, कित्, टाप्—छः तारे जो, युद्ध के देवता कार्त्तिकेय की परिचारिका का कार्य करने वाली अप्सराओं के रूप में वर्णित हैं
  • कृत्तिकातनयः—पुं॰—कृत्तिका-तनयः—-—कार्तिकेय का विशेषण
  • कृत्तिकापुत्रः—पुं॰—कृत्तिका-पुत्रः—-—कार्तिकेय का विशेषण
  • कृत्तिकासुतः—पुं॰—कृत्तिका-सुतः—-—कार्तिकेय का विशेषण
  • कृत्तिकाभवः—पुं॰—कृत्तिका-भवः—-—चाँद
  • कृत्नु—वि॰—-—कृ - क्तनु—भली भाँति करने वाला, करने के योग्य शक्तिशाली
  • कृत्नु—वि॰—-—कृ - क्तनु—चतुर, कुशल
  • कृत्नुः—पुं॰—-—कृ - क्तनु—कारीगर, कलाकार
  • कृत्य—वि॰—-—कृ - क्यप्, तुक्—जो किया जाना चाहिए, सही, उचित, उपयुक्त
  • कृत्य—वि॰—-—कृ - क्यप्, तुक्—युक्तियुक्त, व्यवहार्य
  • कृत्य—वि॰—-—कृ - क्यप्, तुक्—जो राजभक्ति से पथभ्रष्ट किया जा सके, विश्वासघाती
  • कृत्यम्—नपुं॰—-—कृ - क्यप्, तुक्—जो किया जाना चाहिए, कर्तव्य, कार्य
  • कृत्यम्—नपुं॰—-—कृ - क्यप्, तुक्—कार्य, व्यवसाय, करनी, कार्यभार
  • कृत्यम्—नपुं॰—-—कृ - क्यप्, तुक्—प्रयोजन, उद्देश्य, लक्ष्य
  • कृत्यम्—नपुं॰—-—कृ - क्यप्, तुक्—मंशा, कारण
  • कृत्यः—पुं॰—-—कृ - क्यप्, तुक्—कर्मवाच्य के कृदन्त के सम्भावनार्थक प्रत्ययों का समूह
  • कृत्या—स्त्री॰—-—कृ - क्यप्, तुक्+टाप्—कार्य, करनी
  • कृत्या—स्त्री॰—-—कृ - क्यप्, तुक्—जादू
  • कृत्या—स्त्री॰—-—कृ - क्यप्, तुक्—एक देवी
  • कृत्रिम—वि॰—-—कृत्या निर्मितम् - कृ - क्ति - मप्—बनावटी, काल्पनिक, जो स्वतः स्फूर्त या मनमाना न हो, अर्जित
  • कृत्रिम—वि॰—-—कृत्या निर्मितम् - कृ - क्ति - मप्—गोद लिया हुआ
  • कृत्रिमः—पुं॰—-—कृत्या निर्मितम् - कृ - क्ति - मप्—नकली या गोद लिया हुआ पुत्र
  • कृत्रिमपुत्रः—पुं॰—कृत्रिम-पुत्रः—-—नकली या गोद लिया हुआ पुत्र
  • कृत्रिमम्—नपुं॰—-—-—एक प्रकार का नमक
  • कृत्रिमम्—नपुं॰—-—-—एक प्रकार का सुगन्ध द्रव्य
  • कृत्रिमधूपः—पुं॰—कृत्रिम-धूपः—-—एक प्रकार का सुगन्ध द्रव्य, धूप
  • कृत्रिमधूपकः—पुं॰—कृत्रिम-धूपकः—-—एक प्रकार का सुगन्ध द्रव्य, धूप
  • कृत्रिमपुत्रः—पुं॰—कृत्रिम-पुत्रः—-—नकली या गोद लिया हुआ पुत्र
  • कृत्रिमपुत्रकः—पुं॰—कृत्रिम-पुत्रकः—-—गुड्डा, पुत्तलिका
  • कृत्रिमभूमिः—स्त्री॰—कृत्रिम-भूमिः—-—बनाया हुआ फर्श
  • कृत्रिमवनम्—स्त्री॰—कृत्रिम-वनम्—-—वाटिका, उद्यान
  • ॰कृत्वस्—अव्य॰—-—-—एक प्रत्यय जो संख्यावाचक शब्दों के साथ ‘तह’ और ‘गुणा’ अर्थ को प्रकट करने के लिए जोड़ा जाता है
  • कृत्सम्—नपुं॰—-—-—जल
  • कृत्सम्—नपुं॰—-—-—समूह
  • कृत्सः—पुं॰—-—-—पाप
  • कृत्स्न—वि॰—-—कृत् - क्स्न—सारे, सम्पूर्ण, समस्त
  • कृन्तत्रम्—नपुं॰—-—कृत् - क्तन्, नुमागमः—हल
  • कृन्तम्—नपुं॰—-—कृत - ल्युट्—काटना, काटकर फेंक देना, विभक्त करना, फाड़कर टुकड़े-टुकड़े करना
  • कृपः—पुं॰—-—कृप् - अच्—अश्वत्थामा का मामा
  • कृपण—वि॰—-—कृंप् - क्युन् न स्यणत्वम्—गरीब, दयनीय, अभागा, असहाय
  • कृपण—वि॰—-—कृंप् - क्युन् न स्यणत्वम्—विवेकशून्य, किसी कार्य को करने या विवेचन करने के योग्य अथवा अनिच्छुक
  • कृपण—वि॰—-—कृंप् - क्युन् न स्यणत्वम्—नीच, अधम, दुष्ट
  • कृपण—वि॰—-—कृंप् - क्युन् न स्यणत्वम्—सूम, कंजूस
  • कृपणम्—नपुं॰—-—कृंप् - क्युन् न स्यणत्वम्—दुर्दशा
  • कृपणः—पुं॰—-—कृंप् - क्युन् न स्यणत्वम्—सूम
  • कृपणधीः—स्त्री॰—कृपण-धीः—-—छोटे दिल का, नीच मन का
  • कृपणबुद्धिः—स्त्री॰—कृपण-बुद्धिः—-—छोटे दिल का, नीच मन का
  • कृपणवत्सल—वि॰—कृपण-वत्सल—-—दीनदयालु
  • कृपा—स्त्री॰—-—क्रप् - भिदा॰ अङ - टाप्, संप्र॰—रहम, दयालुता, करुणा
  • सकृपम्—नपुं॰—-—-—कृपा करके
  • कृपाणः—पुं॰—-—कृपां नुदति - नुद् - ड संज्ञायां णत्वम् - तारा॰—तलवार
  • कृपाणः—पुं॰—-—-—चाकू
  • कृपाणिका—स्त्री॰—-—कृपाण - कन् - टाप्, इत्वम्—बर्छी, छुरी
  • कृपाणी—स्त्री॰—-—कृपाण - ङीष्—कैंची
  • कृपाणी—स्त्री॰—-—कृपाण - ङीष्—बर्छी
  • कृपालु—वि॰—-—कृपां लाति - कृपा - ला आदाने मि॰ डु—दयालु, करुणापूर्ण, सदय
  • कृपी—स्त्री॰—-—कृप - ङीष्—कृप की बहन तथा द्रोण की पत्नी
  • कृपीपतिः—पुं॰—कृपी-पतिः—-—द्रोण का विशेषण
  • कृपीसुतः—पुं॰—कृपी-सुतः—-—अश्वत्थामा का विशेषण
  • कृपीटम्—नपुं॰—-—कृप - कीटन्—तलझाड़ियाँ, जंगल की लकड़ी
  • कृपीटम्—नपुं॰—-—कृप - कीटन्—वन, जलाने की लकड़ी
  • कृपीटम्—नपुं॰—-—कृप - कीटन्—पानी
  • कृपीटम्—नपुं॰—-—कृप - कीटन्—पेट
  • कृपीटपालः—पुं॰—कृपीटम्-पालः—-—पतवार
  • कृपीटपालः—पुं॰—कृपीटम्-पालः—-—समुद्र
  • कृपीटपालः—पुं॰—कृपीटम्-पालः—-—वायु, हवा
  • कृपीटयोनि—वि॰—कृपीटम्-योनि—-—अग्नि
  • कृमि—वि॰—-—क्रम् - इन्, अत इत्वम् संप्र॰—कीड़ों से भरा हुआ, कीटयुक्त
  • कृमि—वि॰—-—क्रम् - इन्, अत इत्वम् संप्र॰—कीड़े
  • कृमि—वि॰—-—क्रम् - इन्, अत इत्वम् संप्र॰—गधा
  • कृमि—वि॰—-—क्रम् - इन्, अत इत्वम् संप्र॰—मकड़ी
  • कृमि—वि॰—-—क्रम् - इन्, अत इत्वम् संप्र॰—लाख
  • कृमिकोशः—पुं॰—कृमि-कोशः—-—रेशम का कोया
  • कृमिकोषः—पुं॰—कृमि-कोषः—-—रेशम का कोया
  • कृमिकोषः—पुं॰—कृमि-कोषः—-—रेशमी कपड़ा
  • कृमिजम्—नपुं॰—कृमि-जम्—-—अगर की लकड़ी
  • कृमिजग्धम्—नपुं॰—कृमि-जग्धम्—-—अगर की लकड़ी
  • कृमिजा—स्त्री॰—कृमि-जा—-—लाख कीड़ों द्वारा उत्पादित लाल रंग
  • कृमिजलजः—पुं॰—कृमि-जलजः—-—घोंघा, सीपी में रहने वाला कीड़ा
  • कृमिवारिरुहः—पुं॰—कृमि-वारिरुहः—-—घोंघा, सीपी में रहने वाला कीड़ा
  • कृमिपर्वतः—पुं॰—कृमि-पर्वतः—-—बाँबी
  • कृमिशैलः—पुं॰—कृमि-शैलः—-—बाँबी
  • कृमिफलः—पुं॰—कृमि-फलः—-—गूलर का पेड़
  • कृमिशङ्खः—पुं॰—कृमि-शङ्खः—-—शंख के भीतर रहने वाली मछली
  • कृमिशुक्तिः—स्त्री॰—कृमि-शुक्तिः—-—दोहरी पीठ वाला घोंघा
  • कृमिशुक्तिः—स्त्री॰—कृमि-शुक्तिः—-—सीपी में रहने वाला कीड़ा
  • कृमिशुक्तिः—स्त्री॰—कृमि-शुक्तिः—-—घोंघा
  • कृमिण—वि॰—-—कृमि - न, णत्वम्—कीड़ों से भरा हुआ, कीटयुक्त
  • कृमिल—वि॰—-—कृमि - न, ल वा, णत्वम्—कीड़ों से भरा हुआ, कीटयुक्त
  • कृमिला—स्त्री॰—-—कृमि - ला - क - टाप्—बहुत सन्तान पैदा करने वाली स्त्री
  • कृश्—दिवा॰ पर॰ <कृश्यति>, <कृश>—-—-—दुर्बल या क्षीण होना
  • कृश्—दिवा॰ पर॰ <कृश्यति>, <कृश>—-—-—उत्तरोत्तर ह्रास होना
  • कृश्—पुं॰—-—-—दुर्बल करना
  • कृश—वि॰—-— —दुबला पतला, दुर्बल, शक्तिहीन, क्षीण
  • कृश—वि॰—-—-—छोटा, थोड़ा, सूक्ष्म
  • कृश—वि॰—-—-—दरिद्र, नगण्य
  • कृशाक्षः—पुं॰—कृश-अक्षः—-—मकड़ी
  • कृशाङ्गः—वि॰—कृश-अङ्गः—-—दुबला पतला
  • कृशाङ्गी—स्त्री॰—कृश-अङ्गी—-—तन्वंगी
  • कृशाङ्गी—स्त्री॰—कृश-अङ्गी—-—प्रियंगु लता
  • कृशोदर—वि॰—कृश-उदर—-—पतली कमर वाला
  • कृशला—स्त्री॰—-—कृश - ला - क - टाप्—बाल
  • कृशानुः—पुं॰—-—कृश - आनुक्—आग
  • कृशानुरेतस्—पुं॰—कृशानु-रेतस्—-—शिव की उपाधि
  • कृशाश्विन्—पुं॰—-—कृशाश्व - इनि—नाटक का पात्र
  • कृष्—तुदा॰ उभ॰ <कृषति>, <कृषते>, <कृष्ट>—-—-—हल चलाना, खूड बनाना
  • कृष्—भ्वा॰ पर॰ <कर्षति>, <कृष्ट>—-—-—खींचना, घसीटना, चीरना, खींच देना, फाड़ना
  • कृष्—भ्वा॰ पर॰ <कर्षति>, <कृष्ट>—-—-—किसी की ओर खींचना, आकृष्ट करना
  • कृष्—भ्वा॰ पर॰ <कर्षति>, <कृष्ट>—-—-—नेतृत्व या संचालन करना
  • कृष्—भ्वा॰ पर॰ <कर्षति>, <कृष्ट>—-—-—झुकाना
  • कृष्—भ्वा॰ पर॰ <कर्षति>, <कृष्ट>—-—-—स्वामी होना, दमन करना, परास्त करना, अभिभूत करना
  • कृष्—भ्वा॰ पर॰ <कर्षति>, <कृष्ट>—-—-—हल चलाना, खेती करना
  • कृष्—भ्वा॰ पर॰ <कर्षति>, <कृष्ट>—-—-—प्राप्त करना, हासिल करना
  • कृष्—भ्वा॰ पर॰ <कर्षति>, <कृष्ट>—-—-—किसी से ले लेना, किसी को वंचित करना
  • अपकृष्—भ्वा॰ पर॰—अप-कृष्—-—पीछे खींचना, खींच ले जाना, घसीट कर दूर करना, लंबा करना, निचोड़ना
  • अपकृष्—भ्वा॰ पर॰—अप-कृष्—-—हटाना
  • अपकृष्—भ्वा॰ पर॰—अप-कृष्—-—कम करना, घटाना
  • अवकृष्—भ्वा॰ पर॰—अव-कृष्—-—खींचना, खींच लेना
  • आकृष्—भ्वा॰ पर॰—आ-कृष्—-—खींचना, समीप पहुँचाना, धकेलना, खींच लेना, निचोड़ना
  • आकृष्—भ्वा॰ पर॰—आ-कृष्—-—झुकाना
  • आकृष्—भ्वा॰ पर॰—आ-कृष्—-—निचोड़ना, उधार लेना
  • आकृष्—भ्वा॰ पर॰—आ-कृष्—-—छीनना, बलपूर्वक ग्रहण करना
  • आकृष्—भ्वा॰ पर॰—आ-कृष्—-—किसी दूसरे नियम या वाक्य से शब्द ला देना
  • उत्कृष्—भ्वा॰ पर॰—उद्-कृष्—-—ऊपर खींचना, उखाड़ना
  • उत्कृष्—भ्वा॰ पर॰—उद्-कृष्—-—बढ़ाना, वृद्धि करना
  • निकृष्—भ्वा॰ पर॰—नि-कृष्—-—डुबोना, कम करना, घटाना
  • निष्कृष्—भ्वा॰ पर॰—निस्-कृष्—-—बाहर खींचना
  • निष्कृष्—भ्वा॰ पर॰—निस्-कृष्—-—खींचतान कर निकालना, बलपूर्वक निकालना, छीनना या जबरदस्ती लेना
  • निष्कृष्—भ्वा॰ पर॰—परि-कृष्—-—खींचना, निकालना, घसीटना
  • प्रकृष्—भ्वा॰ पर॰—प्र-कृष्—-—खींचना, खींच लेना, आकृष्ट करना
  • प्रकृष्—भ्वा॰ पर॰—प्र-कृष्—-—नेतृत्व करना
  • प्रकृष्—भ्वा॰ पर॰—प्र-कृष्—-—झुकाना
  • प्रकृष्—भ्वा॰ पर॰—प्र-कृष्—-—बढ़ाना
  • विकृष्—भ्वा॰ पर॰—वि-कृष्—-—खींचना
  • विकृष्—भ्वा॰ पर॰—वि-कृष्—-—झुकाना
  • विप्रकृष्—भ्वा॰ पर॰—विप्र-कृष्—-—हटाना
  • संनिकृष्—भ्वा॰ पर॰—संनि-कृष्—-—निकट लाना
  • कृषकः—पुं॰—-—कृष् - क्वन्—हलवाहा, किसान, हाली
  • कृषकः—पुं॰—-—कृष् - क्वन्—फाली
  • कृषकः—पुं॰—-—कृष् - क्वन्—बैल
  • कृषाणः—पुं॰—-—कृष् - आनक्, किकन् वा—हलवाहा, किसान
  • कृषिकः—पुं॰—-—कृष् - आनक्, किकन् वा—हलवाहा, किसान
  • कृषिः—स्त्री॰—-—कृष् - इक्—हल चलाना
  • कृषिः—स्त्री॰—-—कृष् - इक्—खेती, काश्तकारी
  • कृषिकर्मन्—नपुं॰—कृषि-कर्मन्—-—खेती का काम
  • कृषिजीविन्—वि॰—कृषि-जीविन्—-—खेती से निर्वाह से करने वाला किसान
  • कृषिफलम्—नपुं॰—कृषि-फलम्—-—खेती से होने वाली उपज, या लाभ
  • कृषिसेवा—स्त्री॰—कृषि-सेवा—-—खेती करना, किसानी
  • कृषीवलः—पुं॰—-—कृषि - वलच्, दीर्घः—जो खेती से अपना जीविकार्जन करे, किसान
  • कृष्करः—पुं॰—-—कृष - कृ = टक् पृषो॰—शिव की उपाधि
  • कृष्ट—वि॰—-—कृष् - क्त—खींचा हुआ, उखाड़ा हुआ, घसीटा हुआ, आकृष्ट
  • कृष्ट—वि॰—-—कृष् - क्त—हल चलाया हुआ
  • कृष्टिः—स्त्री॰—-—कृष् - क्तिन्—विद्वान पुरुष
  • कृष्टिः—स्त्री॰—-—कृष् - क्तिन्—खींचना, आकर्षण
  • कृष्टिः—स्त्री॰—-—कृष् - क्तिन्—हल चलाना, भूमि जोतना
  • कृष्ण—वि॰—-—कृष् - नक्—काला, श्याम, गहरा, नीला
  • कृष्ण—वि॰—-—कृष् - नक्—दुष्ट, अनिष्टकर
  • कृष्ण—वि॰—-—कृष् - नक्—काला रंग
  • कृष्ण—वि॰—-—कृष् - नक्—काला हरिण
  • कृष्ण—वि॰—-—कृष् - नक्—कौआ
  • कृष्ण—वि॰—-—कृष् - नक्—कोयल
  • कृष्ण—वि॰—-—कृष् - नक्—चान्द्रमास का कृष्णपक्ष
  • कृष्ण—वि॰—-—कृष् - नक्—कलियुग
  • कृष्ण—वि॰—-—कृष् - नक्—आठवाँ अवतारधारी विष्णु
  • कृष्ण—वि॰—-—कृष् - नक्—महाभारत का विख्यात प्रणेता व्यास
  • कृष्ण—वि॰—-—कृष् - नक्—अर्जुन
  • कृष्ण—वि॰—-—कृष् - नक्—अगर की लकड़ी
  • कृष्णम्—नपुं॰—-—कृष् - नक्—कालिमा, कालापन
  • कृष्णम्—नपुं॰—-—कृष् - नक्—लोहा
  • कृष्णम्—नपुं॰—-—कृष् - नक्—अंजन
  • कृष्णम्—नपुं॰—-—कृष् - नक्—काली पुतली
  • कृष्णम्—नपुं॰—-—कृष् - नक्—काली मिर्च
  • कृष्णम्—नपुं॰—-—कृष् - नक्—सीसा
  • कृष्णागुरु—नपुं॰—कृष्ण-अगुरु—-—एक प्रकार के चन्दन की लकड़ी
  • कृष्णाचलः—पुं॰—कृष्ण-अचलः—-—रैवतक पर्वत का विशेषण
  • कृष्णाजिनम्—नपुं॰—कृष्ण-अजिनम्—-—काले हरिण का चर्म
  • कृष्णायस्—नपुं॰—कृष्ण-अयस्—-—लोहा, कच्चा या काला लोहा
  • कृष्णामिषम्—नपुं॰—कृष्ण-आमिषम्—-—लोहा, कच्चा या काला लोहा
  • कृष्णाध्वन्—पुं॰—कृष्ण-अध्वन्—-—आग
  • कृष्णार्चिस्—पुं॰—कृष्ण-अर्चिस्—-—आग
  • कृष्णाष्टमी—स्त्री॰—कृष्ण-अष्टमी—-—भाद्रपक्ष कृष्णपक्ष का आठवाँ दिन
  • कृष्णावासः—पुं॰—कृष्ण-आवासः—-—अश्वत्थ वृक्ष
  • कृष्णोदरः—पुं॰—कृष्ण-उदरः—-—एक प्रकार का साँप
  • कृष्णकन्दम्—नपुं॰—कृष्ण-कन्दम्—-—लाल कमल
  • कृष्णकर्मन्—वि॰—कृष्ण-कर्मन्—-—काली करतूत वाला, मुजरिम, दुष्ट, दुश्चरित्र, दोषी
  • कृष्णकाकः—पुं॰—कृष्ण-काकः—-—पहाड़ी कौआ
  • कृष्णकायः—पुं॰—कृष्ण-कायः—-—भैंसा
  • कृष्णकाष्ठम्—नपुं॰—कृष्ण-काष्ठम्—-—एकप्रकार की चंदन की लकड़ी, काला अगर
  • कृष्णकोहलः—पुं॰—कृष्ण-कोहलः—-—जुआरी
  • कृष्णगतिः—पुं॰—कृष्ण-गतिः—-—आग
  • कृष्णग्रीवः—पुं॰—कृष्ण-ग्रीवः—-—शिव का नाम
  • कृष्णतारः—पुं॰—कृष्ण-तारः—-—काले हरिणों की एक जाति
  • कृष्णदेहः—पुं॰—कृष्ण-देहः—-—मधुमक्खी
  • कृष्णधनम्—नपुं॰—कृष्ण-धनम्—-—बुरे तरीकों से कमाया हुआ धन, पाप की कमाई
  • कृष्णद्वैपायनः—पुं॰—कृष्ण-द्वैपायनः—-—व्यास का नाम
  • कृष्णपक्षः—पुं॰—कृष्ण-पक्षः—-—चान्द्रमास का अंधेरा पक्ष
  • कृष्णमृगः—पुं॰—कृष्ण-मृगः—-—काला हरिण
  • कृष्णमुखः—पुं॰—कृष्ण-मुखः—-—काले मुँह का बन्दर
  • कृष्णवक्त्रः—पुं॰—कृष्ण-वक्त्रः—-—काले मुँह का बन्दर
  • कृष्णवदनः—पुं॰—कृष्ण-वदनः—-—काले मुँह का बन्दर
  • कृष्णयजुर्वेदः—पुं॰—कृष्ण-यजुर्वेदः—-—तैत्तिरीय या कृष्ण यजुर्वेद
  • कृष्णलोहः—पुं॰—कृष्ण-लोहः—-—चुम्बक पत्थर
  • कृष्णवर्णः—पुं॰—कृष्ण-वर्णः—-—काला रंग
  • कृष्णवर्णः—पुं॰—कृष्ण-वर्णः—-—राहु
  • कृष्णवर्णः—पुं॰—कृष्ण-वर्णः—-—शूद्र
  • कृष्णवर्त्मन्—पुं॰—कृष्ण-वर्त्मन्—-—आग
  • कृष्णवर्त्मन्—पुं॰—कृष्ण-वर्त्मन्—-—राहु का नाम
  • कृष्णवर्त्मन्—पुं॰—कृष्ण-वर्त्मन्—-—नीच पुरुष, दुराचारी, लुच्चा
  • कृष्णवेणा—स्त्री॰—कृष्ण-वेणा—-—नदी का नाम
  • कृष्णशकुनिः—पुं॰—कृष्ण-शकुनिः—-—कौवा
  • कृष्णसारः—पुं॰—कृष्ण-सारः—-—चितकबरा, काला मृग
  • कृष्णशारः—पुं॰—कृष्ण-शारः—-—चितकबरा, काला मृग
  • कृष्णश्रृङ्गः—पुं॰—कृष्ण-श्रृङ्गः—-—भैंसा
  • कृष्णसखः—पुं॰—कृष्ण-सखः—-—अर्जुन का विशेषण
  • कृष्णसारथिः—पुं॰—कृष्ण-सारथिः—-—अर्जुन का विशेषण
  • कृष्णकम्—नपुं॰—-—कृष्ण - कन्—काले मृग का चमड़ा
  • कृष्णलः—पुं॰—-—कृष्ण - ला - क—घुँघचीं का पौधा, गुंजा-पौधा
  • कृष्णलम्—नपुं॰—-—कृष्ण - ला - क—घुँघचीं, चहुँटली
  • कृष्णा—स्त्री॰—-—कृष्ण - टाप्—द्रौपदी का नाम, पाण्डवों की पत्नी
  • कृष्णा—स्त्री॰—-—कृष्ण - टाप्—दक्षिण भारत की एक नदी जो मुसलीपट्टम् में समुद्र में गिरती है
  • कृष्णिका—स्त्री॰—-—कृष्ण - ठन् - टाप्—काली सरसों
  • कृष्णिमन्—पुं॰—-—कृष्ण - इमनिच्—कालिमा, कालापन
  • कृष्णी—स्त्री॰—-—कृष्ण - ङीष्—अँधेरी रात
  • कॄ—तुदा॰ पर॰ <किरति>, <कीर्ण>—-—-—बिखेरना, इधर-उधर फेंकना, उड़ेलना, डालना, तितर-बितर करना
  • कॄ—तुदा॰ पर॰ <किरति>, <कीर्ण>—-—-—छितराना, ढँकना, भरना
  • अपकॄ —तुदा॰ पर॰—अप-कॄ —-—बखेरना, इधर-उधर डालना
  • अपकॄ —तुदा॰ पर॰—अप-कॄ —-—पैरों से खुरचना, पूरा हर्ष
  • अपाकॄ —तुदा॰ पर॰—अपा-कॄ —-—उतार फेंकना, अस्वीकार करना, निराकरण करना
  • अवकॄ —तुदा॰ पर॰—अव-कॄ —-—बखेरना, फेंकना
  • आकॄ —तुदा॰ पर॰—आ-कॄ —-—चारों ओर फैलाना
  • आकॄ —तुदा॰ पर॰—आ-कॄ —-—खोदना
  • उद्कॄ —तुदा॰ पर॰—उद्-कॄ —-—ऊपर को बिखेरना, ऊपर को फेंकना
  • उद्कॄ —तुदा॰ पर॰—उद्-कॄ —-—खोदना, खोदकर खोखला करना
  • उद्कॄ —तुदा॰ पर॰—उद्-कॄ —-—उत्कीर्ण करना, खुदाई करना, मूर्ति बनाना
  • उपकॄ —तुदा॰ पर॰—उप-कॄ —-—काटना, चोट पहुँचाना, क्षति पहुँचाना
  • परिकॄ —तुदा॰ पर॰—परि-कॄ —-—घेरना
  • परिकॄ —तुदा॰ पर॰—परि-कॄ —-—सोंपना, देना, बाँटना
  • प्रकॄ —तुदा॰ पर॰—प्र-कॄ —-—बिखेरना, फेंकना उड़ेलना
  • प्रकॄ —तुदा॰ पर॰—प्र-कॄ —-—बोना
  • प्रतिकॄ —तुदा॰ पर॰—प्रति-कॄ —-—चोट पहुँचाना, क्षति पहुँचाना, फाड़ना
  • विकॄ —तुदा॰ पर॰—वि-कॄ —-—बखेरना, इधर-उधर फेंकना, छितराना, फैलाना
  • विनिकॄ—तुदा॰ पर॰—विनि-कॄ—-—फकना, छोड़ना, उतार फेंकना
  • संकॄ—तुदा॰ पर॰—सम्-कॄ—-—मिलाना, सम्मिश्रण करना, एक स्थान पर गड्डमड्ड करना
  • समुत्कॄ—तुदा॰ पर॰—समुद्-कॄ—-—छेदना, सुराख करना, बींधना
  • कॄ—क्र्या॰ उभ॰ <कृणाति>, <कृणीते>—-—-—क्षति पहुँचाना, चोट पहुँचाना, मार डालना
  • कॄत्—चुरा॰ उभ॰ <कीर्तयति>, <कीर्तयते>, <कीर्तित>—-—-—उल्लेख करना, दोहराना, उच्चारण करना
  • कॄत्—चुरा॰ उभ॰ <कीर्तयति>, <कीर्तयते>, <कीर्तित>—-—-—कहना, सस्वर पाठ करना, घोषणा करना, समाचार देना
  • कॄत्—चुरा॰ उभ॰ <कीर्तयति>, <कीर्तयते>, <कीर्तित>—-—-—नाम लेना, पुकार करना
  • कॄत्—चुरा॰ उभ॰ <कीर्तयति>, <कीर्तयते>, <कीर्तित>—-—-—स्तुति करना, यशोगान करना, स्मरणार्थ उत्सव मनाना
  • कॢप्—भ्वा॰ आ॰ <कल्पते>, <कॢप्त>—-—-—योग्य होना, यथेष्ट होना, फलना, प्रकाशित करना, निष्पन्न करना, पैदा करना, ढुलकना
  • कॢप्—भ्वा॰ आ॰ <कल्पते>, <कॢप्त>—-—-—सुप्रबद्ध तथा विनियमित होना, सफल होना
  • कॢप्—भ्वा॰ आ॰ <कल्पते>, <कॢप्त>—-—-—होना, घटित होना, घटना
  • कॢप्—भ्वा॰ आ॰ <कल्पते>, <कॢप्त>—-—-—तैयार होना, सज्जित होना
  • कॢप्—भ्वा॰ आ॰ <कल्पते>, <कॢप्त>—-—-—अनुकूल होना, किसी के काम आना, अनुसेवन करना, भाग लेना
  • कॢप्—भ्वा॰ आ॰—-—-—तैयार करना, क्रम से रखना, सँवारना
  • कॢप्—भ्वा॰ आ॰—-—-—निश्चित करना, स्थिर करना
  • कॢप्—भ्वा॰ आ॰—-—-—बाँटना
  • कॢप्—भ्वा॰ आ॰—-—-—समान जुटाना, उपस्कृत करना
  • कॢप्—भ्वा॰ आ॰—-—-—विचार करना
  • अवकॢप्—भ्वा॰ आ॰—अव-कॢप्—-—फलना, झुकना, सम्पन्न करना
  • आकॢप्—भ्वा॰ आ॰—आ-कॢप्—-—अलंकृत करना, सजाना
  • उपकॢप्—भ्वा॰ आ॰—उप-कॢप्—-—फलना, परिणाम निकालना
  • उपकॢप्—भ्वा॰ आ॰—उप-कॢप्—-—तैयार होना, तत्पर होना
  • परिकॢप्—भ्वा॰ आ॰—परि-कॢप्—-—फैसला करना, निर्धारण करना, निश्चित करना
  • परिकॢप्—भ्वा॰ आ॰—परि-कॢप्—-—तैयार करना, तैयार होना
  • परिकॢप्—भ्वा॰ आ॰—परि-कॢप्—-—गुणयुक्त करना
  • प्रकॢप्—भ्वा॰ आ॰—प्र-कॢप्—-—होना, घटित होना
  • प्रकॢप्—भ्वा॰ आ॰—प्र-कॢप्—-—सफल होना
  • प्रकॢप्—भ्वा॰ आ॰—प्र-कॢप्—-—आविष्कार करना, उपाय निकालना, बनाना
  • प्रकॢप्—भ्वा॰ आ॰—प्र-कॢप्—-—तैयार करना, तैयार होना
  • विकॢप्—भ्वा॰ आ॰—वि-कॢप्—-—सन्देह करना, सन्दिग्ध होना
  • विकॢप्—भ्वा॰ आ॰—वि-कॢप्—-—सन्देह करना
  • सम्कॢप्—भ्वा॰ आ॰—सम्-कॢप्—-—दृढ़ निश्चय करना, दृढ़ संकल्प करना, निश्चित करना
  • सम्कॢप्—भ्वा॰ आ॰—सम्-कॢप्—-—इरादा करना, प्रस्ताव रखना
  • समुपकॢप्—भ्वा॰ आ॰—समुप-कॢप्—-—तैयार होना
  • कॢप्त—भू॰ क॰ कृ॰—-—कॢप् - क्त—तैयार किया हुआ, किया हुआ, तैयार हुआ, सुसज्जित, विवाहवेष में सुभूषित
  • कॢप्त—भू॰ क॰ कृ॰—-—कॢप् - क्त—काटा हुआ, छिला हुआ
  • कॢप्त—भू॰ क॰ कृ॰—-—कॢप् - क्त—उत्पन्न किया हुआ, पैदा किया हुआ
  • कॢप्त—भू॰ क॰ कृ॰—-—कॢप् - क्त—स्थिर किया हुआ, निश्चित, सोचा हुआ, आविष्कृत
  • कॢप्तकीला—स्त्री॰—कॢप्त-कीला—-—अधिकार पत्र, दस्तावेज
  • कॢप्तधूपः—पुं॰—कॢप्त-धूपः—-—लोबान
  • कॢप्तिः—स्त्री॰—-—कॢप् - क्तिन्—निष्पत्ति, सफलता
  • कॢप्तिः—स्त्री॰—-—कॢप् - क्तिन्—आविष्कार, बनावट
  • कॢप्तिः—स्त्री॰—-—कॢप् - क्तिन्—क्रमबद्ध करना
  • कॢप्तिक—वि॰—-—कॢप्त - ठन्—खरीदा हुआ, मोल लिया हुआ
  • केकयः—पुं॰,ब॰ व॰—-—-—एक देश और उसके निवासी
  • केकर—वि॰—-—-—भेंगी आँख वाला
  • केकरम्—नपुं॰—-—-—भेंगी आँख
  • केकराक्ष—वि॰—केकर-अक्ष—-—वक्रदृष्टि, भेंगी आँख वाला
  • केका—स्त्री॰—-—के - कै - ड - टाप्—मोर की बोली
  • केकावलः—पुं॰—-—केका - वलच्—मोर
  • केकिकः—पुं॰—-—केका - वलच्, केका - ठन्—मोर
  • केकिन्—पुं॰—-—केका - वलच्, केका - ठन्, केका - इनि—मोर
  • केणिका—स्त्री॰—-—के मूर्ध्नि कुत्सितः अणकः - टाप्—तम्बू
  • केतः—पुं॰—-—कित् - घञ्—घर, आवास
  • केतः—पुं॰—-—कित् - घञ्—रहना, बस्ती
  • केतः—पुं॰—-—कित् - घञ्—झण्डा
  • केतः—पुं॰—-—कित् - घञ्—इच्छा शक्ति, इरादा, चाह
  • केतकः—पुं॰—-—कित् - ण्वुल्—एक पौधा
  • केतकः—पुं॰—-—कित् - ण्वुल्—झण्डा
  • केतकम्—नपुं॰—-—कित् - ण्वुल्—केवड़े का फूल
  • केतकी—स्त्री॰—-—कित् - ण्वुल्—एक पौधा - केवड़ा
  • केतकी—स्त्री॰—-—कित् - ण्वुल्—केतकी का फूल
  • केतनम्—नपुं॰—-—कित् - ल्युट्—घर, आवास
  • केतनम्—नपुं॰—-—कित् - ल्युट्—निमन्त्रण, बुलावा
  • केतनम्—नपुं॰—-—कित् - ल्युट्—स्थान, जगह
  • केतनम्—नपुं॰—-—कित् - ल्युट्—पताका, झण्डा
  • केतनम्—नपुं॰—-—कित् - ल्युट्—चिह्न, प्रतीक
  • केतनम्—नपुं॰—-—कित् - ल्युट्—अनिवार्य कर्म
  • केतित—वि॰—-—केत - इतच्—बुलाया गया, आमन्त्रित
  • केतित—वि॰—-—केत - इतच्—आबाद, बसा हुआ
  • केतुः—पुं॰—-—चाय् - तु, की आदेशः—पताका, झण्डा
  • केतुः—पुं॰—-—चाय् - तु, की आदेशः—मुख्य, प्रधान, नेता, प्रमुख, विशिष्ट व्यक्ति
  • केतुः—पुं॰—-—चाय् - तु, की आदेशः—पुच्छलतारा, धूमकेतु
  • केतुः—पुं॰—-—चाय् - तु, की आदेशः—चिह्न, अंक
  • केतुः—पुं॰—-—चाय् - तु, की आदेशः—उज्जवलता, स्वच्छता
  • केतुः—पुं॰—-—चाय् - तु, की आदेशः—प्रकाश की किरण
  • केतुः—पुं॰—-—चाय् - तु, की आदेशः—सौरमण्डल का नवाग्रह
  • केतुग्रहः—पुं॰—केतु-ग्रहः—-—अवरोही शिरोबिन्दु
  • केतुभः—पुं॰—केतु-भः—-—बादल
  • केतुयष्टिः—स्त्री॰—केतु-यष्टिः—-—ध्वज का दण्ड
  • केतुरत्नम्—नपुं॰—केतु-रत्नम्—-—नीलम, वैदूर्य
  • केतुवसनम्—नपुं॰—केतु-वसनम्—-—ध्वजा, पताका
  • केदारः—पुं॰—-—के शिरसि दारोऽस्य - ब॰ स॰—पानी भरा हुआ खेत, चरागाह
  • केदारः—पुं॰—-—के शिरसि दारोऽस्य - ब॰ स॰—थाँवला, आलवाल
  • केदारः—पुं॰—-—के शिरसि दारोऽस्य - ब॰ स॰—पहाड़
  • केदारः—पुं॰—-—के शिरसि दारोऽस्य - ब॰ स॰—केदार नामक एक पहाड़ जो हिमालय का एक भाग है
  • केदारः—पुं॰—-—के शिरसि दारोऽस्य - ब॰ स॰—शिव का नाम
  • केदारखण्डम्—नपुं॰—केदार-खण्डम्—-—मिट्टी का बना एक छोटा सा बाँध जो पानी को रोक सके
  • केदारनाथः—पुं॰—केदार-नाथः—-—शिव का विशेष रुप
  • केनारः—पुं॰—-—के मूर्ध्नि नारः - अलु॰ स॰—सिर
  • केनारः—पुं॰—-—के मूर्ध्नि नारः - अलु॰ स॰—खोपड़ी
  • केनारः—पुं॰—-—के मूर्ध्नि नारः - अलु॰ स॰—गाल
  • केनारः—पुं॰—-—के मूर्ध्नि नारः - अलु॰ स॰—जोड़
  • केनिपातः—पुं॰—-—के जले निपात्यतेऽसौ - के - नि - पत् - णिच् - अच्—पतवार, डाँड़, चप्पू
  • केन्द्रम्—नपुं॰—-—-—वृत्त का मध्य बिन्दु
  • केन्द्रम्—नपुं॰—-—-—वृत्त का प्रमाण
  • केन्द्रम्—नपुं॰—-—-—जन्मकुण्डली में लग्न से पहला, चौथा, सातवाँ और दसवाँ स्थान
  • केयूरः—पुं॰—-—के बाहौ शिरसि वा याति, या - ऊर किच्च, अलु॰ स॰, तारा॰—टाड, बिजायठ, बाजूबन्द
  • केयूरम्—नपुं॰—-—के बाहौ शिरसि वा याति, या - ऊर किच्च, अलु॰ स॰, तारा॰—टाड, बिजायठ, बाजूबन्द
  • केयूरः—पुं॰—-—के बाहौ शिरसि वा याति, या - ऊर किच्च, अलु॰ स॰, तारा॰—एक रतिबन्ध
  • केरलः—पुं॰—-—-—दक्षिण भारत एक देश और उसके निवासी
  • केरली—स्त्री॰—-—-—केरल देश की स्त्री
  • केरली—स्त्री॰—-—-—ज्योतिर्विज्ञान
  • केल्—भ्वा॰ पर॰ <केलति>, <केलित>—-—-—हिलाना
  • केल्—भ्वा॰ पर॰ <केलति>, <केलित>—-—-—खेलना, खिलाड़ी होना, क्रीड़ापरायण या केलिप्रिय होना
  • केलकः—पुं॰—-—केल् - ण्वुल्—नर्तक, कलाबाजी करने वाला नट
  • केलासः—पुं॰—-—केला विलासः सीदत्यस्मिन् - केला - सद् - ड़—स्फटिक
  • केलिः—पुं॰/स्त्री॰—-—केल् - इन्—खेल, क्रीडा
  • केलिः—पुं॰/स्त्री॰—-—केल् - इन्—आमोद-प्रमोद, मनोविनोद
  • केलिः—पुं॰/स्त्री॰—-—केल् - इन्—परिहास, मखौल, हँसीदिल्लगी
  • केलिः—स्त्री॰—-—केल् - इन्—पृथ्वी
  • केलिकला—स्त्री॰—केलि-कला—-—क्रीड़ाप्रिय कला विलासिता, श्रृंगारप्रिय सम्बोधन
  • केलिकला—स्त्री॰—केलि-कला—-—सरस्वती की वीणा
  • केलिकिलः—पुं॰—केलि-किलः—-—नाटक में नायक का विश्वस्त सहचर
  • केलिकिलावती—स्त्री॰—केलि-किलावती—-—रति, कामदेव की पत्नी
  • केलिकीर्णः—पुं॰—केलि-कीर्णः—-—ऊँट
  • केलिकुंचिका—स्त्री॰—केलि-कुंचिका—-—पत्नी की छोटी बहन
  • केलिकुपित—वि॰—केलि-कुपित—-—खेल में रुष्ट
  • केलिकोषः—पुं॰—केलि-कोषः—-—नाटक का पात्र, नर्तक, नचैया
  • केलिगृहम्—नपुं॰—केलि-गृहम्—-—आमोदभवन, निजी कमरा
  • केलिनिकेतेनम्—नपुं॰—केलि-निकेतेनम्—-—आमोदभवन, निजी कमरा
  • केलिमन्दिरम्—नपुं॰—केलि-मन्दिरम्—-—आमोदभवन, निजी कमरा
  • केलिसदनम्—नपुं॰—केलि-सदनम्—-—आमोदभवन, निजी कमरा
  • केलिनागरः—पुं॰—केलि-नागरः—-—कामासक्त
  • केलिपर—वि॰—केलि-पर—-—क्रीडापर, विलासी, आमोदप्रिय
  • केलिमुखः—पुं॰—केलि-मुखः—-—परिहास, क्रीड़ा, मनोरञ्जन
  • केलिवृक्षः—पुं॰—केलि-वृक्षः—-—कदम्बवृक्ष की जाति
  • केलिशयनम्—नपुं॰—केलि-शयनम्—-—विलासशय्या, सुखशय्या, कोच
  • केलिशुषिः—स्त्री॰—केलि-शुषिः—-—पृथ्वी
  • केलिसचिवः—पुं॰—केलि-सचिवः—-—आमोदप्रिय सखा, विश्रब्ध मित्र
  • केलिकः—पुं॰—-—केलि - कन्—अशोकवृक्ष
  • केली—स्त्री॰—-—केलि - ङीष्—खेल, क्रीडा
  • केली—स्त्री॰—-—केलि - ङीष्—आमोद-क्रीडा
  • केलीपिकः—पुं॰—केली-पिकः—-—मनोविनोदार्थ रखी हुई कोयल
  • केलीवनी—स्त्री॰—केली-वनी—-—प्रमोद-वाटिका, केलिकानन, क्रीडोद्यान
  • केलीशुकः—पुं॰—केली-शुकः—-—मनोरञ्जनार्थ पाला हुआ तोता
  • केवल—वि॰—-—केव् सेवने वृषा कल—विशिष्ट, एकान्तिक, असाधारण
  • केवल—वि॰—-—केव् सेवने वृषा कल—अकेला, मात्र, एकल, एकमात्र, इक्का-दुक्का
  • केवल—वि॰—-—केव् सेवने वृषा कल—पूर्ण, समस्त, परम, पूरा
  • केवल—वि॰—-—केव् सेवने वृषा कल—नग्न अनावृत
  • केवल—वि॰—-—केव् सेवने वृषा कल—खालिस, सरल, अभिश्रित, विमल
  • केवलम्—अव्य॰—-—-—केवल, सिर्फ, एकमात्र, पूर्णरूप से , नितान्त, सर्वथा
  • केवलात्मन्—वि॰—केवल-आत्मन्—-—परम एकता ही जिसका सार है
  • केवलनैयायिकः—पुं॰—केवल-नैयायिकः—-—सिर्फ तार्किक
  • केवलतः—अव्य॰—-—केवल + तसिल्—केवल, निरा, सर्वथा, निपट, सिर्फ
  • केवलिन्—वि॰—-—केवल + तसिल्—अकेला, एकमात्र
  • केवलिन्—वि॰—-—केवल + तसिल्—आत्मा की एकता के परम सिद्धान्त का पक्षपाती
  • केशः—पुं॰—-—क्लिश्यते क्लिश्नाति वा - क्लिश् + अन्, लोलोपश्च—विकीर्णकेशासु परेतभूमिषु @ कु॰ ५।६८
  • केशः—पुं॰—-—क्लिश्यते क्लिश्नाति वा - क्लिश् + अन्, लोलोपश्च—केशेषु गृहीत्वा - या - केशग्राहं युध्यन्ते @ सिद्धा॰ , मुक्तकेशा @ मनु॰ ७।९१, केशव्यपरोपणादिव @ रघु॰ ३।५६, २।८
  • केशः—पुं॰—-—क्लिश्यते क्लिश्नाति वा - क्लिश् + अन्, लोलोपश्च—घोड़े या शेर की अयाल
  • केशः—पुं॰—-—क्लिश्यते क्लिश्नाति वा - क्लिश् + अन्, लोलोपश्च—प्रकाश की किरण
  • केशः—पुं॰—-—क्लिश्यते क्लिश्नाति वा - क्लिश् + अन्, लोलोपश्च—वरूण का विशेषण
  • केशः—पुं॰—-—क्लिश्यते क्लिश्नाति वा - क्लिश् + अन्, लोलोपश्च—एकप्रकार का सुगन्धद्रव्य
  • केशान्तः—पुं॰—केश-अन्तः—-—बाल का सिरा
  • केशान्तः—पुं॰—केश-अन्तः—-—नीचे लटकते हुए लम्बे बाल, बालों का गुच्छा
  • केशान्तः—पुं॰—केश-अन्तः—-—मुण्डन संस्कार
  • केशोच्चयः—पुं॰—केश-उच्चयः—-—अधिक या सुन्दर बाल
  • केशकर्मन्—नपुं॰—केश-कर्मन्—-—बालों को संभालना
  • केशकलापः—पुं॰—केश-कलापः—-—बालों का ढेर
  • केशकीटः—पुं॰—केश-कीटः—-—जूँ
  • केशगर्भः—पुं॰—केश-गर्भः—-—बालों की मींढी
  • केशगृहीत—वि॰—केश-गृहीत—-—बालों से पकड़ा हुआ
  • केशग्रहः—पुं॰—केश-ग्रहः—-—बालों को पकड़ना, बालों से पकड़ना
  • केशग्रहणम्—नपुं॰—केश-ग्रहणम्—-—बालों को पकड़ना, बालों से पकड़ना
  • केशध्नम्—नपुं॰—केश-ध्नम्—-—दूषित गंजापन
  • केशच्छिद्—पुं॰—केश-च्छिद्—-—नाई, हज्जाम
  • केशजाहः—पुं॰—केश-जाहः—-—बालों की जड़
  • केशपक्षः—पुं॰—केश-पक्षः—-—बहुत अधिक या संवारे हुए बाल
  • केशपाशः—पुं॰—केश-पाशः—-—बहुत अधिक या संवारे हुए बाल
  • केशहस्तः—पुं॰—केश-हस्तः—-—बहुत अधिक या संवारे हुए बाल
  • केशबन्ध—पुं॰—केश-बन्ध—-—जूड़ा
  • केशभूः—पुं॰—केश-भूः—-—सिर या शरीर का अन्य भाग जहाँ बाल उगते है
  • केशभूमिः—स्त्री॰—केश-भूमिः—-—सिर या शरीर का अन्य भाग जहाँ बाल उगते है
  • केशप्रसाधनी—स्त्री॰—केश-प्रसाधनी—-—कंघी
  • केशमार्जकम्—नपुं॰—केश-मार्जकम्—-—कंघी
  • केशमार्जनम्—नपुं॰—केश-मार्जनम्—-—कंघी
  • केशरचना—स्त्री॰—केश-रचना—-—बालों को संवारना
  • केशवेशः—पुं॰—केश-वेशः—-—कबरी-बन्धन
  • केशटः—पुं॰—-—केश + अट् + अच्, शक॰ पररूपम्—बकरा
  • केशटः—पुं॰—-—केश + अट् + अच्, शक॰ पररूपम्—विष्णु का नाम
  • केशटः—पुं॰—-—केश + अट् + अच्, शक॰ पररूपम्—खटमल
  • केशटः—पुं॰—-—केश + अट् + अच्, शक॰ पररूपम्—भाई
  • केशव—पुं॰—-—केशः प्रशस्ताः सन्त्यस्य, केश + व—बहुत या सुन्दर बालों वाला
  • केशवः—पुं॰—-—केशः प्रशस्ताः सन्त्यस्य, केश + व—विष्णु का विशेषण
  • केशवायुधः—पुं॰—केशव-आयुधः—-—आम का वृक्ष
  • केशवायुधम्—नपुं॰—केशव-आयुधम्—-—विष्णु का शस्त्र
  • केशवालयः—पुं॰—केशव-आलयः—-—अश्वत्थ वृक्ष
  • केशवावासः—पुं॰—केशव-आवासः—-—अश्वत्थ वृक्ष
  • केशाकेशि—अव्य॰—-— केशेषु केशेषु गृहीत्वा प्रवृत्तं युद्धम् - पूर्वपदस्य आकारः इत्वम् च—एक दूसरे के बाल खींचकर, नोचकर ली जाने वाली लड़ाई , झोंटा-झोंटी
  • केशिक—वि॰—-— केश + ठन्—सुन्दर या अलंकृत बालों वाला
  • केशिन्—पुं॰—-— केश + इनि—सिंह
  • केशिन्—पुं॰—-— केश + इनि—एक राक्षस जिसको कृष्ण ने मार गिराया था
  • केशिन्—पुं॰—-— केश + इनि—एक और राक्षस जो देव सेना को उठा कर ले गया और बाद में इन्द्र द्वारा मारा गया
  • केशिन्—पुं॰—-— केश + इनि—कृष्ण का विशेषण
  • केशिन्—पुं॰—-— केश + इनि—सुन्दर बालों वाला
  • केशिनिषूदनः—पुं॰—केशिन्-निषूदनः—-—कृष्ण का विशेषण
  • केशिमथनः—पुं॰—केशिन्-मथनः—-—कृष्ण का विशेषण
  • केशिनी—स्त्री॰—-— केशिन् + डीप्—सुन्दर जुड़े वाली स्त्री
  • केशिनी—स्त्री॰—-— केशिन् + डीप्—विश्रवा की पत्नी, रावण और कुम्भकर्ण की माता
  • केसरः —पुं॰—-— के + सृ + अच्, अलुक् स॰—अयाल
  • केसरः —पुं॰—-— के + सृ + अच्, अलुक् स॰—फूल का रेशा या तन्तु
  • केसरः —पुं॰—-— के + सृ + अच्, अलुक् स॰—बकुल का पेड़
  • केसरः —पुं॰—-— के + सृ + अच्, अलुक् स॰—रेशा या सूत्र
  • केशरः—पुं॰—-— के + शृ + अच्, अलुक् स॰—अयाल
  • केशरः—पुं॰—-— के + शृ + अच्, अलुक् स॰—फूल का रेशा या तन्तु
  • केशरः—पुं॰—-— के + शृ + अच्, अलुक् स॰—बकुल का पेड़
  • केशरः—पुं॰—-— के + शृ + अच्, अलुक् स॰—रेशा या सूत्र
  • केसरम्—नपुं॰—-— के + सृ + अच्, अलुक् स॰—अयाल
  • केसरम्—नपुं॰—-— के + सृ + अच्, अलुक् स॰—फूल का रेशा या तन्तु
  • केसरम्—नपुं॰—-— के + सृ + अच्, अलुक् स॰—बकुल का पेड़
  • केसरम्—नपुं॰—-— के + सृ + अच्, अलुक् स॰—रेशा या सूत्र
  • केशरम्—नपुं॰—-— के + शृ + अच्, अलुक् स॰—अयाल
  • केशरम्—नपुं॰—-— के + शृ + अच्, अलुक् स॰—फूल का रेशा या तन्तु
  • केशरम्—नपुं॰—-— के + शृ + अच्, अलुक् स॰—बकुल का पेड़
  • केशरम्—नपुं॰—-— के + शृ + अच्, अलुक् स॰—रेशा या सूत्र
  • केसरम्—नपुं॰—-— के + सृ + अच्, अलुक् स॰—बकुल वृक्ष का फूल
  • केशरम्—नपुं॰—-— के + शृ + अच्, अलुक् स॰—बकुल वृक्ष का फूल
  • केसराचलः—पुं॰—केसर-अचलः—-—मेरू पहाड़ का विशेषण
  • केसरवरम्—नपुं॰—केसर-वरम्—-—केसर, जाफ़रान
  • केसरिन्—पुं॰—-—केसर - इनि—घोड़ा
  • केसरिन्—पुं॰—-—केसर - इनि—नींबू या गलगल का पेड़
  • केसरिन्—पुं॰—-—केसर - इनि—पुन्नाग का वृक्ष
  • केसरिन्—पुं॰—-—केसर - इनि—हनुमान के पिता का नाम
  • केसरिसुतः—पुं॰—केसरिन्-सुतः—-—हनुमान का विशेषण
  • केशरिन्—पुं॰—-—केशर - इनि—सिंह
  • केशरिन्—पुं॰—-—केशर - इनि—श्रेष्ठ, सर्वोत्तम, अपने वर्ग का प्रमुख
  • केशरिन्—पुं॰—-—केशर - इनि—घोड़ा
  • केशरिन्—पुं॰—-—केशर - इनि—नींबू या गलगल का पेड़
  • केशरिन्—पुं॰—-—केशर - इनि—पुन्नाग का वृक्ष
  • केशरिन्—पुं॰—-—केशर - इनि—हनुमान के पिता का नाम
  • केशरिसुतः—पुं॰—केशरिन्-सुतः—-—हनुमान का विशेषण
  • कै—भ्वा॰ पर॰ <कायति>—-—-—शब्द करना, ध्वनि करना
  • कैंशुकम्—नपुं॰—-—किंशुक - अण्—किंशुक वृक्ष का फूल
  • कैकयः—पुं॰—-—केकय - अण्—केकय देश का राजा
  • कैकसः—पुं॰—-—कीकस - अण्—राक्षस, पिशाच
  • कैकेयः—पुं॰—-—केकयानां राजा - अण्—केकय देश का राजा राजकुमार
  • कैकेयी—स्त्री॰—-—केकय - अण् - ङीप्—केकय देश की राजा की बेटी, राजा दशरथ की सबसे छोटी पत्नी, भरत की माता
  • कैटभः—पुं॰—-—कीट - भा - ड - अण्—राक्षस का नाम जिसे विष्णु के मार गिराया
  • कैटभारिः—पुं॰—कैटभ-अरिः—-—विष्णु का विशेषण
  • कैटभजित्—पुं॰—कैटभ-जित्—-—विष्णु का विशेषण
  • कैटभरिपुः—पुं॰—कैटभ-रिपुः—-—विष्णु का विशेषण
  • कैटभहन्—पुं॰—कैटभ-हन्—-—विष्णु का विशेषण
  • कैतकम्—नपुं॰—-—केतकी - अण्—केवड़े का फूल
  • कैतवम्—नपुं॰—-—कितव- अण्—जूए में लगाया गया दाँव
  • कैतवम्—नपुं॰—-—कितव- अण्—जूआ खेलना
  • कैतवम्—नपुं॰—-—कितव- अण्—झूठ, धोखा, जालसाजी, चालबाजी, चालाकी
  • कैतवः—पुं॰—-—कितव- अण्—छली, चालबाज
  • कैतवः—पुं॰—-—कितव- अण्—जुआरी
  • कैतवः—पुं॰—-—कितव- अण्—धतूरे का पौधा
  • कैतवप्रयोगः—पुं॰—कैतव-प्रयोगः—-—चालाकी, दाँव
  • कैतववादः—पुं॰—कैतव-वादः—-—झूठ, चालबाजी
  • केदारः—पुं॰—-—केदार - अण्—चावल, अनाज
  • केदारम्—नपुं॰—-—केदार - अण्—खेतों का समूह
  • कैमुतिकः—पुं॰—-—किमुत - ठक्—न्याय, एक प्रकार का तर्क
  • कैरवः—पुं॰—-—के जले रौति - केरवः हंसः तस्य प्रियं - केरव - अण्—जुआरी, धोखा देने वाला, चालबाज
  • कैरवः—पुं॰—-—के जले रौति - केरवः हंसः तस्य प्रियं - केरव - अण्—शत्रु
  • कैरवम्—नपुं॰—-—के जले रौति - केरवः हंसः तस्य प्रियं - केरव - अण्—श्वेत कुमुद जो चन्द्रोदय के समय खिलता है
  • कैरवबन्धुः—पुं॰—कैरव-बन्धुः—-—चन्द्रमा का विशेषण
  • कैरविन्—पुं॰—-—कैरव - इनि—चन्द्रमा
  • कैरविणी—स्त्री॰—-—कैरविन् - ङीप्—श्वेत फूल वाला कुमुद का पौधा
  • कैरविणी—स्त्री॰—-—कैरविन् - ङीप्—वह सरोवर जिसमें श्वेत कमल खिले हों
  • कैरविणी—स्त्री॰—-—कैरविन् - ङीप्—श्वेत कमलों का समूह
  • कैरवी—स्त्री॰—-—कैरव - ङीप्—चाँदनी, ज्योत्सना
  • कैलासः—पुं॰—-—के जले लासो दीप्तिरस्य - केलास - अण्—पहाड़ का नाम, हिमालय की एक चोटी, शिव और कुबेर का निवास स्थान
  • कैलासनाथः—पुं॰—कैलास-नाथः—-—शिव का विशेषण
  • कैलासनाथः—पुं॰—कैलास-नाथः—-—कुबेर का विशेषण
  • कैवर्तः—पुं॰—-—के जले वर्तते - वृत् - अच्, केवर्तः ततः स्वार्थे अण् तारा॰ —मछुवारा
  • कैवल्यम्—नपुं॰—-—केवल - ष्यञ्—पूर्ण पृथकता, अकेलापन, एकान्तिकता
  • कैवल्यम्—नपुं॰—-—केवल - ष्यञ्—व्यक्तित्व
  • कैवल्यम्—नपुं॰—-—केवल - ष्यञ्—प्रकृति से आत्मा का पार्थक्य, परमात्मा के साथ आत्मा की तद्रूपता
  • कैवल्यम्—नपुं॰—-—केवल - ष्यञ्—मुक्ति, मोक्ष
  • कैशिक—वि॰—-—केश - ठक्—बालों के समान, बालों की भाँति सुन्दर
  • कैशिकः—पुं॰—-—केश - ठक्—श्रृङ्गाररस, विलासिता
  • कैशिकम्—नपुं॰—-—केश - ठक्—बालों का गुच्छा
  • कैशिकी—स्त्री॰—-—केश - ठक्+ङीप्—नाट्य शैली का एकप्रकार
  • कैशोरम्—नपुं॰—-—किशोर - अञ्—किशोरावस्था, बाल्यकाल, कौमार आयु
  • कैश्यम्—नपुं॰—-—केश - ष्यञ्—सारे बाल, बालों का गुच्छा
  • कोकः—पुं॰—-—कुक् आदाने अच् - तारा॰—भेड़िया
  • कोकः—पुं॰—-—कुक् आदाने अच् - तारा॰—गुलाबी रंग का हंस
  • कोकः—पुं॰—-—कुक् आदाने अच् - तारा॰—कोयल
  • कोकः—पुं॰—-—कुक् आदाने अच् - तारा॰—मेंढक
  • कोकः—पुं॰—-—कुक् आदाने अच् - तारा॰—विष्णु का नाम
  • कोकदेवः—पुं॰—कोक-देवः—-—कबूतर
  • कोकदेवः—पुं॰—कोक-देवः—-—सूर्य का विशेषण
  • कोकनदम्—पुं॰—-—कोकान् चक्रवाकान् नदति नादयति नद् - अच्—लाल कमल
  • कोकाहः—पुं॰—-—कोक - आ - हन् - ड—सफेद घोड़ा
  • कोकिलः—पुं॰—-—कुक् - इलच्—कोयल
  • कोकिलः—पुं॰—-—कुक् - इलच्—जलती हुई लकड़ी
  • कोकिलावासः—पुं॰—कोकिल-आवासः—-—आम का वृक्ष
  • कोकिलोत्सवः—पुं॰—कोकिल-उत्सवः—-—आम का वृक्ष
  • कोङ्कः—पुं॰,ब॰ व॰—-—-—एक देश का नाम, सह्याद्रि और समुद्र का मध्यवर्ती भूखण्ड
  • कोङ्कणः—पुं॰,ब॰ व॰—-—-—एक देश का नाम, सह्याद्रि और समुद्र का मध्यवर्ती भूखण्ड
  • कोङ्कणा—स्त्री॰—-—कोङ्कण - टाप्—रेणुका, जमदग्नि की पत्नी
  • कोङ्कणासुतः—पुं॰—कोङ्कणा-सुतः—-—परशुराम का विशेषण
  • कोजागरः—पुं॰—-—को जागर्ति इति लक्ष्मया उक्तिरत्र काले पृषो॰ तारा॰ —आश्विन मास की पूर्णिमा की रात में मनाया जाने वाला आमोदपूर्ण उत्सव
  • कोटः—पुं॰—-—कुट् - घञ्—किला
  • कोटः—पुं॰—-—कुट् - घञ्—झोपड़ी, छप्पर
  • कोटः—पुं॰—-—कुट् - घञ्—कुटिलता
  • कोटः—पुं॰—-—कुट् - घञ्—दाढ़ी
  • कोटरः—पुं॰—-—कोटं कौटिल्यं राति रा - क ता॰—वृक्ष की खोखर
  • कोटरी—स्त्री॰—-—कोटं कौटिल्यं राति रा - क ता॰—नंगी स्त्री
  • कोटरी—स्त्री॰—-—कोट - री - क्विथ्—दुर्गा देवी का विशेषण
  • कोटवी—स्त्री॰—-—कोट - वी - क्विथ्—नंगी स्त्री
  • कोटवी—स्त्री॰—-—कोट - वी - क्विथ्—दुर्गा देवी का विशेषण
  • कोटिः—स्त्री॰—-—कुट् - इञ्—धनुष का मुड़ा हुआ सिरा
  • कोटिः—स्त्री॰—-—कुट् - इञ्—चरमसीमा का किनारा, नोक या धार
  • कोटिः—स्त्री॰—-—कुट् - इञ्—उच्चतम बिन्दु, आधिक्य पराकोटि, पराकाष्ठा, परमोत्कर्ष
  • कोटिः—स्त्री॰—-—कुट् - इञ्—चन्द्रमा की कलाएँ
  • कोटिः—स्त्री॰—-—कुट् - इञ्—एक करोड़ की संख्या
  • कोटिः—स्त्री॰—-—कुट् - इञ्—९० कोटि के चाप की सम्पूरक रेखा
  • कोटिः—स्त्री॰—-—कुट् - इञ्—समकोण त्रिभुज की एक भुजा
  • कोटिः—स्त्री॰—-—कुट् - इञ्—श्रेणी, विभाग, राज्य
  • कोटिः—स्त्री॰—-—कुट् - इञ्— विवादास्पद प्रश्न का एक पहलू, विकल्प
  • कोटी—स्त्री॰—-—कोटि - डीष्—धनुष का मुड़ा हुआ सिरा
  • कोटी—स्त्री॰—-—कोटि - डीष्—चरमसीमा का किनारा, नोक या धार
  • कोटी—स्त्री॰—-—कोटि - डीष्—उच्चतम बिन्दु, आधिक्य पराकोटि, पराकाष्ठा, परमोत्कर्ष
  • कोटी—स्त्री॰—-—कोटि - डीष्—चन्द्रमा की कलाएँ
  • कोटी—स्त्री॰—-—कोटि - डीष्—एक करोड़ की संख्या
  • कोटी—स्त्री॰—-—कोटि - डीष्—९० कोटि के चाप की सम्पूरक रेखा
  • कोटी—स्त्री॰—-—कोटि - डीष्—समकोण त्रिभुज की एक भुजा
  • कोटी—स्त्री॰—-—कोटि - डीष्—श्रेणी, विभाग, राज्य
  • कोटी—स्त्री॰—-—कोटि - डीष्— विवादास्पद प्रश्न का एक पहलू, विकल्प
  • कोटीश्वरः—पुं॰—कोटि-ईश्वरः—-—करोड़पति
  • कोटिजित्—पुं॰—कोटि-जित्—-—कालिदास का विशेषण
  • कोटिज्या—स्त्री॰—कोटि-ज्या—-—समकोण त्रिभुज में एक कोण की कोज्या
  • कोटिद्वयम्—नपुं॰—कोटि-द्वयम्—-—दो विकल्प
  • कोटिपात्रम्—नपुं॰—कोटि-पात्रम्—-—पतवार
  • कोटिपालः—पुं॰—कोटि-पालः—-—दुर्ग रक्षक
  • कोटिवेधिन्—वि॰—कोटि-वेधिन्—-—नियत बिन्दू पर प्रहार करने वाला
  • कोटिवेधिन्—वि॰—कोटि-वेधिन्—-—अत्यन्त कठिन कार्यों को सम्पन्न करने वाला
  • कोटिक—वि॰—-—कोटि - कै - क—किसी वस्तु का उच्चतम सिरा
  • कोटिरः—पुं॰—-—कोटिं रातिं रा - क ता॰—सन्यासियों द्वारा मस्तक पर बनी सींग के रुप की बालों की चोटी
  • कोटिरः—पुं॰—-—कोटिं रातिं रा - क ता॰—नेवला
  • कोटिरः—पुं॰—-—कोटिं रातिं रा - क ता॰—इन्द्र का विशेषण
  • कोटिशः—पुं॰—-—कोटि - शो - क—मैड़ा, पटेला
  • कोटीशः—पुं॰—-—कोटी - शो - क—मैड़ा, पटेला
  • कोटिशः —अव्य॰ —-—कोटि - शस्—करोड़ों, असंख्य
  • कोटीरः—पुं॰—-—कोटिमीरयति ईर् - अण्—मुकुट, ताज
  • कोटीरः—पुं॰—-—कोटिमीरयति ईर् - अण्—शिखा
  • कोटीरः—पुं॰—-—कोटिमीरयति ईर् - अण्—सन्यासियों द्वारा मस्तक पर बाँधी गई बालों की चोटी जो सींग जैसी दिखाई देती है, जटा
  • कोट्टः—पुं॰—-—कुट्ट - घञ्—दुर्ग, किला
  • कोट्टवी—स्त्री॰—-—कोट्टं वाति वा - क, गौरा॰ ङीष् तारा॰ —नग्न स्त्री जिसके बाल बिखरे हुए हों
  • कोट्टवी—स्त्री॰—-—कोट्टं वाति वा - क, गौरा॰ ङीष् तारा॰ —दुर्गा देवी
  • कोट्टवी—स्त्री॰—-—कोट्टं वाति वा - क, गौरा॰ ङीष् तारा॰ —बाण की माता का नाम
  • कोट्टारः—पुं॰—-—कुट्ट - आरक् पृषो॰—किले बन्दी वाला नगर, दुर्ग
  • कोट्टारः—पुं॰—-—कुट्ट - आरक् पृषो॰—तालाब की सीढ़ियाँ
  • कोट्टारः—पुं॰—-—कुट्ट - आरक् पृषो॰—कुआँ, तालाब
  • कोट्टारः—पुं॰—-—कुट्ट - आरक् पृषो॰—लम्पट, दुराचारी
  • कोणः—पुं॰—-—कुण् करणे घञ्, कर्तरि अच् वा तारा॰—किनारा, कोना
  • कोणः—पुं॰—-—कुण् करणे घञ्, कर्तरि अच् वा तारा॰—वृत्त का अन्तर्वर्ती बिन्दु
  • कोणः—पुं॰—-—कुण् करणे घञ्, कर्तरि अच् वा तारा॰—वीणा की कमानी, सारंगी बजाने का गज
  • कोणः—पुं॰—-—कुण् करणे घञ्, कर्तरि अच् वा तारा॰—तलवार या शस्त्र की तेज धार
  • कोणः—पुं॰—-—कुण् करणे घञ्, कर्तरि अच् वा तारा॰—लकड़ी, लाठी, गदा
  • कोणः—पुं॰—-—कुण् करणे घञ्, कर्तरि अच् वा तारा॰—ढोल बजाने की लकड़ी
  • कोणः—पुं॰—-—कुण् करणे घञ्, कर्तरि अच् वा तारा॰—मंगल ग्रह
  • कोणः—पुं॰—-—कुण् करणे घञ्, कर्तरि अच् वा तारा॰—शनिग्रह
  • कोणाघातः—पुं॰—कोण-आघातः—-—ढोल, ढपड़े बजाना
  • कोणकुणः—पुं॰—कोण-कुणः—-—खटमल
  • कोणपः—पुं॰—-—-—पिशाच, राक्षस
  • कोणाकोणि—अव्य॰ —-—-—एक कोण से दूसरे कोण तक, एक किनारे से दूसरे किनारे तक, तिरछे, आड़े
  • कोदण्डः—पुं॰—-—कु - विच् = कोः शब्दायमानो दण्डो यस्य ब॰ स॰—धनुष
  • कोदण्डन्—पुं॰—-—कु - विच् = कोः शब्दायमानो दण्डो यस्य ब॰ स॰—धनुष
  • कोदण्डः—पुं॰—-—कु - विच् = कोः शब्दायमानो दण्डो यस्य ब॰ स॰—भौं
  • कोद्रवः—पुं॰—-—कु - विच् = को, द्रु - अक् = द्रव, कर्म॰ स॰—कोदो का अनाज जिसे गरीब लोग खाते है
  • कोपः—पुं॰—-—कुप् - घञ्—क्रोध, गुस्सा, रोष, क्रोध मत करो
  • कोपः—पुं॰—-—कुप् - घञ्—शारीरिक त्रिदोष विकार
  • कोपाकुल—वि॰—कोप-आकुल—-—क्रुद्ध, प्रकुपित
  • कोपाविष्ट—वि॰—कोप-आविष्ट—-—क्रुद्ध, प्रकुपित
  • कोपक्रमः—पुं॰—कोप-क्रमः—-—क्रोधी या रुष्ट पुरुष
  • कोपक्रमः—पुं॰—कोप-क्रमः—-—क्रोध का मार्ग
  • कोपपदम्—नपुं॰—कोप-पदम्—-—क्रोध का कारण
  • कोपपदम्—नपुं॰—कोप-पदम्—-—बनावटी क्रोध
  • कोपवशः—पुं॰—कोप-वशः—-—क्रोध की वश्यता
  • कोपवेगः—पुं॰—कोप-वेगः—-—क्रोध की प्रचण्डता, तीक्ष्णता
  • कोपन—वि॰—-—कुप् - ल्युट्—रोषशील, चिड़चिड़ा, क्रोधी
  • कोपन—वि॰—-—कुप् - ल्युट्—क्रोध पैदा करने वाला
  • कोपन—वि॰—-—कुप् - ल्युट्—प्रकोपी, श्रीर के त्रिदोषों में प्रबल विकार उत्पन्न करने वाला
  • कोपना—स्त्री॰—-—कुप् - ल्युट्+टाप्—रोषशील या क्रोधी स्त्री
  • कोपिन्—वि॰—-—कोप - इनि—क्रोधी, चिड़चिड़ा
  • कोपिन्—वि॰—-—कोप - इनि—क्रोध उत्पन्न करने वाला
  • कोपिन्—वि॰—-—कोप - इनि—चिड़चिड़ा, शरीर में त्रिदोष विकारों को उत्पन्न करने वाला
  • कोमल—वि॰—-—कु - कलच्, मुट् च नि॰ गुणः—सुकुमार, मृदु, नाजुक
  • कोमल—वि॰—-—कु - कलच्, मुट् च नि॰ गुणः—मृदु, मन्द
  • कोमल—वि॰—-—कु - कलच्, मुट् च नि॰ गुणः—रुचिकर, सुहावना, मधुर
  • कोमल—वि॰—-—कु - कलच्, मुट् च नि॰ गुणः—मनोहर, सुन्दर
  • कोमलकम्—नपुं॰—-—कोमल - कन्—कमलडण्डी के रेशे
  • कोयष्टिः—पुं॰—-—कं जलं यष्टिरिवास्य ब॰ स॰ पृषो॰ अकारस्य उकारः - कोयष्टि - कन्—टिटहिरी, कुररी
  • कोयष्टिकः—पुं॰—-—कं जलं यष्टिरिवास्य ब॰ स॰ पृषो॰ अकारस्य उकारः - कोयष्टि - कन्—टिटहिरी, कुररी
  • कोरक—वि॰—-— कुर् - वुन्—कली, अनखिला फूल
  • कोरक—वि॰—-— कुर् - वुन्—कली के समान कोई वस्तु
  • कोरक—वि॰—-— कुर् - वुन्—कमलडण्डी के रेशे
  • कोरक—वि॰—-— कुर् - वुन्—एक प्रकार का सुगन्ध द्रव्य
  • कोरकम्—नपुं॰—-— कुर् - वुन्—कली, अनखिला फूल
  • कोरकम्—नपुं॰—-— कुर् - वुन्—कली के समान कोई वस्तु
  • कोरकम्—नपुं॰—-— कुर् - वुन्—कमलडण्डी के रेशे
  • कोरकम्—नपुं॰—-— कुर् - वुन्—एक प्रकार का सुगन्ध द्रव्य
  • कोरदूषः—पुं॰—-—-—कोदो का अनाज जिसे गरीब लोग खाते है
  • कोरित—वि॰—-—कोर - इतच्—कलीयुक्त, अङ्कुरित
  • कोरित—वि॰—-—कोर - इतच्—पिसा हुआ, चूरा किया हुआ, टुकड़े-टुकड़े किया हुआ
  • कोलः—पुं॰—-—कुल् - अच्—सुअर, वराह
  • कोलः—पुं॰—-—कुल् - अच्—लट्ठों का बना बेड़ा, नाव
  • कोलः—पुं॰—-—कुल् - अच्—स्त्री की छाती
  • कोलः—पुं॰—-—कुल् - अच्—नितम्ब प्रदेश, कूल्हा, गोद
  • कोलः—पुं॰—-—कुल् - अच्—आलिङ्गन
  • कोलः—पुं॰—-—कुल् - अच्—शनिग्रह
  • कोलः—पुं॰—-—कुल् - अच्—बहिष्कृत, पतित जाति का व्यक्ति
  • कोलः—पुं॰—-—कुल् - अच्—जंगली
  • कोलम्—नपुं॰—-—कुल् - अच्—एक तोले का भार
  • कोलम्—नपुं॰—-—कुल् - अच्—काली मिर्च
  • कोलम्—नपुं॰—-—कुल् - अच्—एक प्रकार का बेर
  • कोलाञ्चः—पुं॰—कोलम्-अञ्चः—-—कलिंग देश का नाम
  • कोलपुच्छः—पुं॰—कोलम्-पुच्छः—-—बगला
  • कोलम्बकः—पुं॰—-—-—वीणा का ढाँचा
  • कोला—स्त्री॰—-—कुल् - अम्बच् - कन्—बेर का पेड़
  • कोला—स्त्री॰—-—कुल् - अम्बच् - कन्—बदरिका
  • कोला—स्त्री॰—-—कुल् - ण - टाप्—बेर का पेड़
  • कोला—स्त्री॰—-—कुल् - ण - टाप्—बदरिका
  • कोलीः—स्त्री॰—-—कुल् - इन्—बेर का पेड़
  • कोलीः—स्त्री॰—-—कुल् - इन्—बदरिका
  • कोलाहलः—पुं॰—-—कुल - अच् - ङीष् वा—एक साथ बहुत से लोगों के बोलने का शब्द, हंगामा
  • कोलाहलम्—नपुं॰—-—कोल - आ - हल् - अच्—एक साथ बहुत से लोगों के बोलने का शब्द, हंगामा
  • कोविद्—वि॰—-—कोल - आ - हल् - अच्—अनुभवी, विद्वान, कुशल, बुद्धिमान, प्रवीण
  • कोविदारः—पुं॰—-—कु - विच्, तं वेत्ति - विद् - क—एक वृक्ष का नाम, कचनार
  • कोविदारम्—नपुं॰—-—कु - वि - दृ - अण्—एक वृक्ष का नाम, कचनार
  • कोशः—पुं॰—-—कु - वि - दृ - अण्—तरल पदार्थों को रखने का बर्तन, बाल्टी
  • कोशः—पुं॰—-—कुश् - घञ्, अच् वा—डोल, कटोरा
  • कोशः—पुं॰—-—कुश् - घञ्, अच् वा—पात्र
  • कोशः—पुं॰—-—कुश् - घञ्, अच् वा—संदूक, डोली, दराज, ट्रंक
  • कोशः—पुं॰—-—कुश् - घञ्, अच् वा—म्यान, आवरण
  • कोशः—पुं॰—-—कुश् - घञ्, अच् वा—पेटी, ढकना, ढक्कन
  • कोशः—पुं॰—-—कुश् - घञ्, अच् वा—भण्डार, ढेर
  • कोशः—पुं॰—-—कुश् - घञ्, अच् वा—भण्डारगृह
  • कोशः—पुं॰—-—कुश् - घञ्, अच् वा—खजाना, रुपया पैसा रखने का स्थान
  • कोशः—पुं॰—-—कुश् - घञ्, अच् वा—निधि, रुपया, दौलत
  • कोशः—पुं॰—-—कुश् - घञ्, अच् वा—सोना, चाँदी
  • कोशः—पुं॰—-—कुश् - घञ्, अच् वा—शब्दकोश, शब्दार्थ संग्रह, शब्दावली
  • कोशः—पुं॰—-—कुश् - घञ्, अच् वा—अनखिला फूल, कली
  • कोशः—पुं॰—-—कुश् - घञ्, अच् वा—किसी फल की गिरी
  • कोशः—पुं॰—-—कुश् - घञ्, अच् वा—फली
  • कोशः—पुं॰—-—कुश् - घञ्, अच् वा—जायफल, कठोरत्वचा
  • कोशः—पुं॰—-—कुश् - घञ्, अच् वा—रेशम का कोया
  • कोशः—पुं॰—-—कुश् - घञ्, अच् वा—झिल्ली, गर्भाशय
  • कोशः—पुं॰—-—कुश् - घञ्, अच् वा—अण्डा
  • कोशः—पुं॰—-—कुश् - घञ्, अच् वा—अण्डकोश, फोते
  • कोशः—पुं॰—-—कुश् - घञ्, अच् वा—शिश्न
  • कोशः—पुं॰—-—कुश् - घञ्, अच् वा—गेंद, गोला
  • कोशः—पुं॰—-—कुश् - घञ्, अच् वा—पाँच कोष जो सब मिलकर शरीर रचना करते हैं - जिसमें आत्मा निवास करती है, अन्नमय, प्राणमय आदि
  • कोशः—पुं॰—-—कुश् - घञ्, अच् वा—एक प्रकार की अपराधियों की अग्निपरीक्षा
  • कोषः—पुं॰—-—कुष् - घञ्, अच् वा—तरल पदार्थों को रखने का बर्तन, बाल्टी
  • कोषः—पुं॰—-—कुष् - घञ्, अच् वा—डोल, कटोरा
  • कोषः—पुं॰—-—कुष् - घञ्, अच् वा—पात्र
  • कोषः—पुं॰—-—कुष् - घञ्, अच् वा—संदूक, डोली, दराज, ट्रंक
  • कोषः—पुं॰—-—कुष् - घञ्, अच् वा—म्यान, आवरण
  • कोषः—पुं॰—-—कुष् - घञ्, अच् वा—पेटी, ढकना, ढक्कन
  • कोषः—पुं॰—-—कुष् - घञ्, अच् वा—भण्डार, ढेर
  • कोषः—पुं॰—-—कुष् - घञ्, अच् वा—भण्डारगृह
  • कोषः—पुं॰—-—कुष् - घञ्, अच् वा—खजाना, रुपया पैसा रखने का स्थान
  • कोषः—पुं॰—-—कुष् - घञ्, अच् वा—निधि, रुपया, दौलत
  • कोषः—पुं॰—-—कुष् - घञ्, अच् वा—सोना, चाँदी
  • कोषः—पुं॰—-—कुष् - घञ्, अच् वा—शब्दकोश, शब्दार्थ संग्रह, शब्दावली
  • कोषः—पुं॰—-—कुष् - घञ्, अच् वा—अनखिला फूल, कली
  • कोषः—पुं॰—-—कुष् - घञ्, अच् वा—किसी फल की गिरी
  • कोषः—पुं॰—-—कुष् - घञ्, अच् वा—फली
  • कोषः—पुं॰—-—कुष् - घञ्, अच् वा—जायफल, कठोरत्वचा
  • कोषः—पुं॰—-—कुष् - घञ्, अच् वा—रेशम का कोया
  • कोषः—पुं॰—-—कुष् - घञ्, अच् वा—झिल्ली, गर्भाशय
  • कोषः—पुं॰—-—कुष् - घञ्, अच् वा—अण्डा
  • कोषः—पुं॰—-—कुष् - घञ्, अच् वा—अण्डकोश, फोते
  • कोषः—पुं॰—-—कुष् - घञ्, अच् वा—शिश्न
  • कोषः—पुं॰—-—कुष् - घञ्, अच् वा—गेंद, गोला
  • कोषः—पुं॰—-—कुष् - घञ्, अच् वा—पाँच कोष जो सब मिलकर शरीर रचना करते हैं - जिसमें आत्मा निवास करती है, अन्नमय, प्राणमय आदि
  • कोषः—पुं॰—-—कुष् - घञ्, अच् वा—एक प्रकार की अपराधियों की अग्निपरीक्षा
  • कोशम्—नपुं॰—-—कुश् - घञ्, अच् वा—तरल पदार्थों को रखने का बर्तन, बाल्टी
  • कोशम्—नपुं॰—-—कुश् - घञ्, अच् वा—डोल, कटोरा
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  • कोशम्—नपुं॰—-—कुश् - घञ्, अच् वा—म्यान, आवरण
  • कोशम्—नपुं॰—-—कुश् - घञ्, अच् वा—पेटी, ढकना, ढक्कन
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  • कोशम्—नपुं॰—-—कुश् - घञ्, अच् वा—फली
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  • कोशम्—नपुं॰—-—कुश् - घञ्, अच् वा—शिश्न
  • कोशम्—नपुं॰—-—कुश् - घञ्, अच् वा—गेंद, गोला
  • कोशम्—नपुं॰—-—कुश् - घञ्, अच् वा—पाँच कोष जो सब मिलकर शरीर रचना करते हैं - जिसमें आत्मा निवास करती है, अन्नमय, प्राणमय आदि
  • कोशम्—नपुं॰—-—कुश् - घञ्, अच् वा—एक प्रकार की अपराधियों की अग्निपरीक्षा
  • कोषम्—नपुं॰—-—कुष् - घञ्, अच् वा—तरल पदार्थों को रखने का बर्तन, बाल्टी
  • कोषम्—नपुं॰—-—कुष् - घञ्, अच् वा—डोल, कटोरा
  • कोषम्—नपुं॰—-—कुष् - घञ्, अच् वा—पात्र
  • कोषम्—नपुं॰—-—कुष् - घञ्, अच् वा—संदूक, डोली, दराज, ट्रंक
  • कोषम्—नपुं॰—-—कुष् - घञ्, अच् वा—म्यान, आवरण
  • कोषम्—नपुं॰—-—कुष् - घञ्, अच् वा—पेटी, ढकना, ढक्कन
  • कोषम्—नपुं॰—-—कुष् - घञ्, अच् वा—भण्डार, ढेर
  • कोषम्—नपुं॰—-—कुष् - घञ्, अच् वा—भण्डारगृह
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  • कोषम्—नपुं॰—-—कुष् - घञ्, अच् वा—निधि, रुपया, दौलत
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  • कोषम्—नपुं॰—-—कुष् - घञ्, अच् वा—शिश्न
  • कोषम्—नपुं॰—-—कुष् - घञ्, अच् वा—गेंद, गोला
  • कोषम्—नपुं॰—-—कुष् - घञ्, अच् वा—पाँच कोष जो सब मिलकर शरीर रचना करते हैं - जिसमें आत्मा निवास करती है, अन्नमय, प्राणमय आदि
  • कोषम्—नपुं॰—-—कुष् - घञ्, अच् वा—एक प्रकार की अपराधियों की अग्निपरीक्षा
  • कोशाधिपतिः—पुं॰—कोश-अधिपतिः—-—खजानची, वेतनाध्यक्ष
  • कोशाधिपतिः—पुं॰—कोश-अधिपतिः—-—कुबेर
  • कोशागारः—पुं॰—कोश-अगारः—-—खजाना, भण्डारगृह
  • कोशकारः—पुं॰—कोश-कारः—-—म्यान बनाने वाला
  • कोशकारः—पुं॰—कोश-कारः—-—शब्दकोश का निर्माता
  • कोशकारः—पुं॰—कोश-कारः—-—कोये के रुप में रेशम का कीड़ा
  • कोशकारः—पुं॰—कोश-कारः—-—कोशशायी
  • कोशकारकः—पुं॰—कोश-कारकः—-—रेशम का कीड़ा
  • कोशकृत्—पुं॰—कोश-कृत्—-—एक प्रकार का ईख
  • कोशगृहम्—नपुं॰—कोश-गृहम्—-—खजाना, भाण्डागार
  • कोशचञ्चुः—पुं॰—कोश-चञ्चुः—-—सारस
  • कोशनायकः—पुं॰—कोश-नायकः—-—खजांची, कोशाध्यक्ष
  • कोशपालः—पुं॰—कोश-पालः—-—खजांची, कोशाध्यक्ष
  • कोशपेटकः—पुं॰—कोश-पेटकः—-—धन रखने का सन्दूक, तिजौरी
  • कोशपेटकम्—नपुं॰—कोश-पेटकम्—-—धन रखने का सन्दूक, तिजौरी
  • कोशवासिन्—पुं॰—कोश-वासिन्—-—सीपी में रहने वाला कीड़ा, कोशशायी
  • कोशवृद्धिः—पुं॰—कोश-वृद्धिः—-—धन की वृद्धि
  • कोशवृद्धिः—पुं॰—कोश-वृद्धिः—-—फोतों का बढ़ जाना
  • कोशशायिका—स्त्री॰—कोश-शायिका—-—म्यान में रखा हुआ चाकू, बन्द किया हुआ चाकू
  • कोशस्थ—वि॰—कोश-स्थ—-—पेटी में बन्द, म्यान में बन्द
  • कोशस्थः—पुं॰—कोश-स्थः—-—कोशकीट, कोशशायी
  • कोशहीन—वि॰—कोश-हीन—-—धनहीन, निर्धन
  • कोशलिकम्—नपुं॰—-—कुशल - ठन्—रिश्वत, घूस
  • कोशातकिन्—पुं॰—-—कोश - अत् - क्वुन् = कोशातक - इनि—वाणिज्य, व्यापार
  • कोशातकिन्—पुं॰—-—कोश - अत् - क्वुन् = कोशातक - इनि—व्यापारी, सौदागर
  • कोशातकिन्—पुं॰—-—कोश - अत् - क्वुन् = कोशातक - इनि—बड़वानल
  • कोशिन्—वि॰—-—कोश - इनि—आम का वृक्ष
  • कोषिन्—वि॰—-—कोष - इनि—आम का वृक्ष
  • कोष्ठः—पुं॰—-—कुष् - थन्—हृदय, फेफड़ा आदि शरीर के भीतरी अंग या आशय
  • कोष्ठः—पुं॰—-—कुष् - थन्—पेट, उदर
  • कोष्ठः—पुं॰—-—कुष् - थन्—आभ्यन्तर कक्ष
  • कोष्ठः—पुं॰—-—कुष् - थन्—अन्नभण्डार, अन्न का कोठा
  • कोष्ठम्—नपुं॰—-—कुष् - थन्—चहारदीवारी
  • कोष्ठम्—नपुं॰—-—कुष् - थन्—किसी फल का कड़ा छिलका
  • कोष्ठागारम्—नपुं॰—कोष्ठ-अगारम्—-—भण्डार, भण्डारघर
  • कोष्ठाग्निः—पुं॰—कोष्ठ-अग्निः—-—पाचनशक्ति, आमाशय का रस
  • कोष्ठपालः—पुं॰—कोष्ठ-पालः—-—कोषाध्यक्ष, भण्डारी
  • कोष्ठपालः—पुं॰—कोष्ठ-पालः—-—चौकीदार, पहरेदार
  • कोष्ठपालः—पुं॰—कोष्ठ-पालः—-—सिपाही
  • कोष्ठशुद्धिः—पुं॰—कोष्ठ-शुद्धिः—-—मलोत्सर्ग
  • कोष्ठकः—पुं॰—-—कोष्ठ - कन्—अन्नभण्डार
  • कोष्ठकः—पुं॰—-—कोष्ठ - कन्—चहारदीवारी
  • कोष्ठकम्—नपुं॰—-—कोष्ठ - कन्—ईंट चूने से बनाया गया पशुओं के पानी पीने का स्थान
  • कोष्ण—वि॰—-—ईष्दुष्णः - कोः कादेशः—थोड़ा गरम, गुनगुना
  • कोष्णम्—नपुं॰—-—ईष्दुष्णः - कोः कादेशः—गरमी
  • कोशलः—पुं॰—-—-—एक देश और उसके निवासियों का नाम
  • कोसलः—पुं॰—-—-—एक देश और उसके निवासियों का नाम
  • कोहलः—पुं॰—-—कौ हलति स्पर्धते - अच् पृषो॰ तारा॰—एक प्रकार का वाद्ययन्त्र
  • कोहलः—पुं॰—-—कौ हलति स्पर्धते - अच् पृषो॰ तारा॰—एक प्रकार की मदिरा
  • कौक्कटिकः—पुं॰—-—कुक्कुट - ठक्—मुर्गे पालने वाला, या मुर्गे का व्यवसाय करने वाला
  • कौक्कटिकः—पुं॰—-—कुक्कुट - ठक्—वह साधु जो चलते समय अपना ध्यान नीचे जमीन पर रखता है जिससे कि कोई कीड़ा आदि पैरों के नीचे न दब जाय
  • कौक्कटिकः—पुं॰—-—कुक्कुट - ठक्—दम्भी
  • कौक्षः—वि॰—-—कुक्षि - अण्—कोख से बन्धा हुआ या कोख पर होने वाला
  • कौक्षः—वि॰—-—कुक्षि - अण्—पेट से सम्बन्ध होने वाला
  • कौक्षेय—वि॰—-—कुक्षि - ढञ्—पेट में होने वाला
  • कौक्षेय—वि॰—-—कुक्षि - ढञ्—म्यान में स्थित
  • कौक्षेयकः—पुं॰—-—कुक्षौ बद्धोऽसिः ढकञ्—तलवार, खङ्ग
  • कौङ्कः—पुं॰—-—कुङ्क - अण्—एक देश तथा उसके निवासी शासकों का नाम
  • कौङ्कणः—पुं॰—-—कोङ्कण - अण्—एक देश तथा उसके निवासी शासकों का नाम
  • कौट—वि॰—-—कूट + अञ्—अपने निजी घर में रहने वाला, स्वतंत्र, मुक्त
  • कौट—वि॰—-—कूट + अञ्—पालतु, घरेलू, घर में पला हुआ
  • कौट—वि॰—-—कूट + अञ्—जालसाज, बेईमान
  • कौट—वि॰—-—कूट + अञ्—जाल में फँसा हुआ
  • कौटः—पुं॰—-—कूट + अञ्—जालसाजी, बेईमानी
  • कौटः—पुं॰—-—कूट + अञ्—झूठी गवाही देने वाला
  • कौटजः—पुं॰—कौट-जः—-—कुटज वृक्ष
  • कौटतक्षः—पुं॰—कौट-तक्षः—-—स्वतंत्र बढ़ई जो अपनी इच्छानुसार अपना कार्य करता है, गाँव का कार्य नहीं
  • कौटसाक्षिन्—पुं॰—कौट-साक्षिन्—-—झूठा गवाह
  • कौटसाक्ष्यम्—नपुं॰—कौट-साक्ष्यम्—-—झूठी गवाही
  • कौटकिकः—पुं॰—-—कूट + कन्, कूटक + ठञ्, कूट + ठक्—बहेलिया, जिसका व्यवसाय पक्षियों को पकड़ पिंजरे में बन्द कर बेचना है
  • कौटकिकः—पुं॰—-—कूट + कन्, कूटक + ठञ्, कूट + ठक्—पक्षियों के मांस का विक्रेता, कसाई, शिकारचोर
  • कौटिकः—पुं॰—-—कूट + कन्, कूटक + ठञ्, कूट + ठक्—बहेलिया, जिसका व्यवसाय पक्षियों को पकड़ पिंजरे में बन्द कर बेचना है
  • कौटिकः—पुं॰—-—कूट + कन्, कूटक + ठञ्, कूट + ठक्—पक्षियों के मांस का विक्रेता, कसाई, शिकारचोर
  • कौटलिकः—पुं॰—-—कुटिलिकया हरति मृगान् अङ्गारान् वा - कुटिलिका + अण्—शिकारी, लुहार
  • कौटिल्यम्—नपुं॰—-—कुटिल + ष्यञ्—कुटिलपना
  • कौटिल्यम्—नपुं॰—-—कुटिल + ष्यञ्—दुष्टता
  • कौटिल्यम्—नपुं॰—-—कुटिल + ष्यञ्—बेईमानी, जालसाजी
  • कौटिल्यः—पुं॰—-—कुटिल + ष्यञ्—नीतिशास्त्र का प्रख्यात प्रणेता चाण्क्य
  • कौटुम्ब—वि॰—-—कुटुम्बं तद्भरणं भोजनमस्य - कुटुम्ब + अण्—किसी परिवार या गृहस्थ के लिए आवश्यक
  • कौटुम्बम्—नपुं॰—-—कुटुम्बं तद्भरणं भोजनमस्य - कुटुम्ब + अण्—पारिवारिक सम्बन्ध
  • कौटुम्बिक—वि॰—-—कुटुम्बे तद्भरणे प्रसृतः - कुटुम्ब + ठक्—परिवार को बनाने वाला
  • कौटुम्बिकः—पुं॰—-—कुटुम्बे तद्भरणे प्रसृतः - कुटुम्ब + ठक्—किसी परिवार या पिता का स्वामी
  • कौणपः—पुं॰—-—कुणप + अण्—पिशाच, राक्षस
  • कौणपदन्तः—पुं॰—कौणप-दन्तः—-—भीष्म का विशेषण
  • कौतुकम्—नपुं॰—-—कुतुक + अण्—इच्छा, कुतूहल, कामना
  • कौतुकम्—नपुं॰—-—कुतुक + अण्—उत्सुकता, आवेग, आतुरता
  • कौतुकम्—नपुं॰—-—कुतुक + अण्—आश्चर्यजनक वस्तु
  • कौतुकम्—नपुं॰—-—कुतुक + अण्—वैवाहिक कंगना बांधने की प्रथा
  • कौतुकम्—नपुं॰—-—कुतुक + अण्—पर्व, उत्सव
  • कौतुकम्—नपुं॰—-—कुतुक + अण्—विशेषकर विवाह आदि शुभ उत्सव
  • कौतुकम्—नपुं॰—-—कुतुक + अण्—खुशी, हर्ष, आनन्द, प्रसन्नता
  • कौतुकम्—नपुं॰—-—कुतुक + अण्—खेल, मनोविनोद
  • कौतुकम्—नपुं॰—-—कुतुक + अण्—गीत, नृत्य, तमाशा
  • कौतुकम्—नपुं॰—-—कुतुक + अण्—हँसी, मजाक
  • कौतुकम्—नपुं॰—-—कुतुक + अण्—बधाई, अभिवादन
  • कौतुकागारः—पुं॰—कौतुकम्-आगारः—-—आमोद-भवन
  • कौतुकागारम्—नपुं॰—कौतुकम्-आगारम्—-—आमोद-भवन
  • कौतुकगृहम्—नपुं॰—कौतुकम्-गृहम्—-—आमोद-भवन
  • कौतुकक्रिया—स्त्री॰—कौतुकम्-क्रिया—-—महान् उत्सव
  • कौतुकक्रिया—स्त्री॰—कौतुकम्-क्रिया—-—विशेषता विवाह-संस्कार
  • कौतुकमङ्गलम्—नपुं॰—कौतुकम्-मङ्गलम्—-—महान् उत्सव
  • कौतुकमङ्गलम्—नपुं॰—कौतुकम्-मङ्गलम्—-—विशेषता विवाह-संस्कार
  • कौतुकतोरणः—पुं॰—कौतुकम्-तोरणः—-—उत्सव के अवसरों पर बनायें गए मंगलसूचक विजय द्वार
  • कौतुहलम्—नपुं॰—-—कुतुहल + अण्, ष्यञ् वा—इच्छा, जिज्ञासा, रूचि
  • कौतुहलम्—नपुं॰—-—कुतुहल + अण्, ष्यञ् वा—उत्सुकता, उत्कण्ठा
  • कौतुहलम्—नपुं॰—-—कुतुहल + अण्, ष्यञ् वा—कुतूहलवर्धक, आश्चर्यजनक
  • कौन्तिकः—पुं॰—-—कुन्तः प्रहरणमस्य - ठञ्—भाला चलाने वाला, नेजाबरदार
  • कौन्तेयः—पुं॰—-—कुन्त्याः अपत्यं ढक्—कुन्ती क पुत्र, युधिष्ठिर, भीम और अर्जुन का विशेषण
  • कौप—वि॰—-—कूप + अण्—कुँए से सम्बन्ध रखने वाला या कुँए से आता हुआ
  • कौपीनम्—नपुं॰—-—कूप + खञ्—योनि, उपस्थ
  • कौपीनम्—नपुं॰—-—कूप + खञ्—गुप्ताङ्ग, गुह्येन्द्रिय
  • कौपीनम्—नपुं॰—-—कूप + खञ्—लंगोटी
  • कौपीनम्—नपुं॰—-—कूप + खञ्—चिथड़ा
  • कौपीनम्—नपुं॰—-—कूप + खञ्—पाप, अनुचित कर्म
  • कौब्ज्यम्—नपुं॰—-—कुब्ज + ष्यञ्—टेढ़ापन, कुटिलता
  • कौब्ज्यम्—नपुं॰—-—कुब्ज + ष्यञ्—कुबड़ापन
  • कौमार—वि॰—-—कुमार + अण्—तरूण, युवा, कन्या, कुँवारी
  • कौमार—वि॰—-—कुमार + अण्—मृदु, कोमल
  • कौमारम्—नपुं॰—-—कुमार + अण्—बचपन, कुँवारीपना, कुमारीपन
  • कौमारभृत्यम्—नपुं॰—कौमार-भृत्यम्—-—बच्चों का पालनपोषण व चिकित्सा
  • कौमारहर—वि॰—कौमार-हर—-—विवाह करने वाला, कन्या को पत्नी रूप में ग्रहण करने वाला
  • कौमारकम्—नपुं॰—-—कौमार + कन—बचपन, तारूण्य, किशोरावस्था
  • कौमारिकः—पुं॰—-—कुमारी + ठक्—वह पिता जिसकी सन्तान लड़कियाँ ही हों
  • कौमारिकेयः—पुं॰—-—कुमारिका + ढक्—अविवाहित स्त्री का पुत्र
  • कौमुदः—पुं॰—-—कुमुद + अण्—कार्तिक का महीना
  • कौमुदी—स्त्री॰—-—कौमुद + ङीप्—चाँदनी, ज्योत्सना
  • कौमुदी—स्त्री॰—-—कौमुद + ङीप्—चाँदनी का काम देने वाली कोई चीज
  • कौमुदी—स्त्री॰—-—कौमुद + ङीप्—कार्तिक मास की पूर्णिमा
  • कौमुदी—स्त्री॰—-—कौमुद + ङीप्—अश्विन मास की पुर्णीमा
  • कौमुदी—स्त्री॰—-—कौमुद + ङीप्—उत्सव
  • कौमुदी—स्त्री॰—-—कौमुद + ङीप्—विशेषतः वह उत्सव जब घरों में, मन्दिरों में सर्वत्र दीपावली होती है
  • कौमुदी—स्त्री॰—-—कौमुद + ङीप्—व्याख्या, स्पष्टीकरण, प्रस्तुत विषय पर विकास डालने वाली
  • कौमुदीपतिः—पुं॰—कौमुदी-पतिः—-—चन्द्रमा
  • कौमुदीवृक्षः—पुं॰—कौमुदी-वृक्षः—-—दीवट
  • कौमोदकी—स्त्री॰—-—कोः पृथिव्याः मोदकः = कुमोदक + अण् + ङीप् कुं पृथिवी मोदयति = कुमोद + अण् + ङीप्—विष्णु की गदा
  • कौमोदी—स्त्री॰—-—कोः पृथिव्याः मोदकः = कुमोदक + अण् + ङीप् कुं पृथिवी मोदयति = कुमोद + अण् + ङीप्—विष्णु की गदा
  • कौरव—वि॰—-—कुरू + अण्—कुरूओं से सम्बन्ध रखने वाला
  • कौरवः—पुं॰—-—कुरू + अण्—कुरू की सन्तान
  • कौरवः—पुं॰—-—कुरू + अण्—कुरूओं का राजा
  • कौरव्यः—पुं॰—-—कुरू + ण्य—कुरू की सन्तान
  • कौरव्यः—पुं॰—-—कुरू + ण्य—कुरूओं का शासक
  • कौर्प्यः—पुं॰—-—-—वृश्चिक राशि
  • कौल—वि॰—-—कुल + अण्—परिवार से सम्बन्ध रखने वाली, पैतृक, आनुवंशिक
  • कौल—वि॰—-—कुल + अण्—अच्छे घराने का, सुजात
  • कौलः—पुं॰—-—कुल + अण्—वाममार्गी सिद्धान्तों के अनुसार ‘शक्ति’ का पूजा करने वाला
  • कौलम्—नपुं॰—-—कुल + अण्—वाममार्गी शाक्तों के सिद्धान्त और व्यवहार
  • कौलकेयः—पुं॰—-—कुल + ढक्, कुक्—व्याभिचारिणी स्त्री का पुत्र, हरामी, वर्णसंकर
  • कौलटिनेयः—पुं॰—-—कुलटा + ढक्, इनङादेशः—सती भिखारिणी का पुत्र
  • कौलटिनेयः—पुं॰—-—कुलटा + ढक्, इनङादेशः—वर्णसंकर
  • कौलिक—वि॰—-—-—किसी वंश से समबन्ध रखने वाला
  • कौलिक—वि॰—-—-—कुल में प्रचलित, पैतृक, वंशपरंपरागत
  • कौलिकः—पुं॰—-—-—जुलाहा
  • कौलिकः—पुं॰—-—-—विधर्मी
  • कौलिकः—पुं॰—-—-—वाममार्गी, शाक्त सिद्धान्तों का अनुयायी
  • कौलीन—वि॰—-—कुल + खञ्—खदानी, कुलीन
  • कौलीनः—पुं॰—-—कुल + खञ्—भिखारिणी स्त्री का पुत्र
  • कौलीनः—पुं॰—-—कुल + खञ्—वाममार्गी शाक्त सिद्धान्तों का अनुयायी
  • कौलीनम्—नपुं॰—-—कुल + खञ्—लोकापवाद, कुत्सा
  • कौलीनम्—नपुं॰—-—कुल + खञ्—अनुचित कर्म, दुराचरण
  • कौलीनम्—नपुं॰—-—कुल + खञ्—पशुओं की लड़ाई
  • कौलीनम्—नपुं॰—-—कुल + खञ्—मुर्गों की लड़ाई
  • कौलीनम्—नपुं॰—-—कुल + खञ्—संग्राम, युद्ध
  • कौलीनम्—नपुं॰—-—कुल + खञ्—उच्च कुल में जन्म
  • कौलीनम्—नपुं॰—-—कुल + खञ्—गुप्तांग, योनि
  • कौलीन्यम्—नपुं॰—-—कुलीन + ष्यञ्—कुलीनता
  • कौलीन्यम्—नपुं॰—-—कुलीन + ष्यञ्—वंश की कुत्सा
  • कौलूतः—पुं॰—-—कुलूत + अण्—कुलूतों का राजा
  • कौलेयकः—पुं॰—-—कूल + ढकञ्—कुत्ता, शिकारी कुत्ता
  • कौल्य—वि॰—-—कुल + ष्यञ्—उच्च कुल में उत्पन्न, खानदानी
  • कौबेर—वि॰—-—कु्बेर + अण्—कुबेर से सम्बन्ध रखने वाला, कुबेर के पास से आने वाला
  • कौवेर—वि॰—-—कु्वेर + अण्—कुबेर से सम्बन्ध रखने वाला, कुबेर के पास से आने वाला
  • कौबेरी—स्त्री॰—-—कु्बेर + अण्+ङीप्—उत्तरदिशाः
  • कौवेरी—स्त्री॰—-—कु्बेर + अण्+ङीप्—उत्तरदिशाः
  • कौश—वि॰—-—कुश् + अण्—रेशमी
  • कौश—वि॰—-—कुश् + अण्—कुश घास का बना हुआ
  • कौशलम्—नपुं॰—-—कुशल + अण्, ष्यञ् वा—कुशलक्षेम, प्रसन्नता, समृद्धि
  • कौशलम्—नपुं॰—-—कुशल + अण्, ष्यञ् वा—कुशलता, दक्षता, चतुराई
  • कौशलिकम्—नपुं॰—-—कुशल + ठक्—घूस, रिश्वत
  • कौशलिका—स्त्री॰—-—कौशलिक + टाप्—उपहार, चढ़ावा
  • कौशलिका—स्त्री॰—-—कौशलिक + टाप्—कुशल प्रश्न पूछना, अभिवादन
  • कौशली—स्त्री॰—-—कुशल + अण् + ङीप्—उपहार, चढ़ावा
  • कौशली—स्त्री॰—-—कुशल + अण् + ङीप्—कुशल प्रश्न पूछना, अभिवादन
  • कौशलेयः—पुं॰—-—कौशल्या + ढक्, यलोपः—राम का विशेषण, कौशल्या का पुत्र
  • कौशल्या—स्त्री॰—-—कोशलदेशे भवा - छय—दशरथ की ज्येष्ठ पत्नी तथा राम की माता
  • कौशल्यायनिः—पुं॰—-—कौशल्या + फिज्—कौशल्या का पुत्र राम
  • कौशाम्बी—स्त्री॰—-—कुशाम्ब + अण् + ङीप्—गंगा के किनारे स्थित एक प्रचीन नगर
  • कौशिक—वि॰—-—कुशिक + अण्—डब्बे में बन्द, म्यान में रखा हुआ
  • कौशिक—वि॰—-—कुशिक + अण्—रेशमी
  • कौशिकः—पुं॰—-—कुशिक + अण्—विश्वामित्र का विशेषण
  • कौशिकः—पुं॰—-—कुशिक + अण्—उल्लू
  • कौशिकः—पुं॰—-—कुशिक + अण्—कोशकार
  • कौशिकः—पुं॰—-—कुशिक + अण्—गूदा
  • कौशिकः—पुं॰—-—कुशिक + अण्—गुग्गुल
  • कौशिकः—पुं॰—-—कुशिक + अण्—नेवला
  • कौशिकः—पुं॰—-—कुशिक + अण्—सपेरा
  • कौशिकः—पुं॰—-—कुशिक + अण्—शृङ्गाररस
  • कौशिकः—पुं॰—-—कुशिक + अण्—जो गुप्त धन को जानता है
  • कौशिकः—पुं॰—-—कुशिक + अण्—इन्द्र का विशेषण
  • कौशिका—स्त्री॰—-—कुशिक + अण्+टाप्—प्याला, पानपात्र
  • कौशिकी—स्त्री॰—-—कुशिक + अण्+ङीप्—बिहार प्रदेश में बहने वाली एक नदी का नाम
  • कौशिकी—स्त्री॰—-—कुशिक + अण्+ङीप्—दुर्गा देवी का नाम
  • कौशिकी—स्त्री॰—-—कुशिक + अण्+ङीप्—चार प्रकार की नाट्यशैलियों में एक
  • कौशिकारातिः—पुं॰—कौशिक-अरातिः—-—कौवा
  • कौशिकारिः—पुं॰—कौशिक-अरिः—-—कौवा
  • कौशिकफलः—पुं॰—कौशिक-फलः—-—नारियल का वृक्ष
  • कौशिकप्रियः—पुं॰—कौशिक-प्रियः—-—राम का विशेषण
  • कौशेयम्—नपुं॰—-—कोशस्य विकारः - ढञ्—रेशम
  • कौशेयम्—नपुं॰—-—कोशस्य विकारः - ढञ्—रेशमी कपड़ा
  • कौशेयम्—नपुं॰—-—कोशस्य विकारः - ढञ्—रेशम का बना स्त्री का पेटीकोट
  • कौषेयम्—नपुं॰—-—कोशस्य विकारः - ढञ्—रेशम
  • कौषेयम्—नपुं॰—-—कोशस्य विकारः - ढञ्—रेशमी कपड़ा
  • कौषेयम्—नपुं॰—-—कोशस्य विकारः - ढञ्—रेशम का बना स्त्री का पेटीकोट
  • कौसीद्यम्—नपुं॰—-—कुसीद + ष्यञ्—ब्याज लेने का व्यवसाय
  • कौसीद्यम्—नपुं॰—-—कुसीद + ष्यञ्—आलस्य, अकर्मण्यता
  • कौसृतिकः—पुं॰—-—कुसृति + ठक्—ठग, बदमाश
  • कौसृतिकः—पुं॰—-—कुसृति + ठक्—बाजीगर
  • कौस्तुभः—पुं॰—-—कुस्तुभो जलधिस्तत्र भवः - अण्—एक विख्यात रत्न
  • कौस्तुभलक्षणः—पुं॰—कौस्तुभ-लक्षणः—-—विष्णु के विशेषण
  • कौस्तुभवक्षः—पुं॰—कौस्तुभ-वक्षस्—-—विष्णु के विशेषण
  • कौस्तुभहृदयः—पुं॰—कौस्तुभ-हृदयः—-—विष्णु के विशेषण
  • क्रूय्—भ्वा॰ आ॰ - <क्रूयते>—-—-—चूं चूं शब्द करना
  • क्रूय्—भ्वा॰ आ॰ - <क्रूयते>—-—-—डूबना
  • क्रूय्—भ्वा॰ आ॰ - <क्रूयते>—-—-—गीला होना
  • क्रकचः—पुं॰—-—क्र इति कचति शब्दायते - क्र + कच् + अच्—आरा
  • क्रकचच्छदः—पुं॰—क्रकच-च्छदः—-—केतक वृक्ष
  • क्रकचपत्रः—पुं॰—क्रकच-पत्रः—-—सागौन वृक्ष
  • क्रकचपादः—पुं॰—क्रकच-पादः—-—छिपकली
  • क्रकरः—पुं॰—-—क्र इति शब्दं कर्तुं शीलमस्य - क्र + कृ + अच्—एक प्रकार का तीतर
  • क्रकरः—पुं॰—-—क्र इति शब्दं कर्तुं शीलमस्य - क्र + कृ + अच्—आरा
  • क्रकरः—पुं॰—-—क्र इति शब्दं कर्तुं शीलमस्य - क्र + कृ + अच्—निर्धन व्यक्ति
  • क्रकरः—पुं॰—-—क्र इति शब्दं कर्तुं शीलमस्य - क्र + कृ + अच्—रोग
  • क्रतुः—पुं॰—-—कृ + कतु—यज्ञ
  • क्रतुः—पुं॰—-—कृ + कतु—विष्णु का विशेषण
  • क्रतुः—पुं॰—-—कृ + कतु—दस प्रजापतियों में एक
  • क्रतुः—पुं॰—-—कृ + कतु—प्रज्ञा, बुद्धि
  • क्रतुः—पुं॰—-—कृ + कतु—शक्ति, योग्यता
  • क्रतूत्तमः—पुं॰—क्रतु- उत्तमः—-—राजसूय यज्ञ
  • क्रतुद्रुहू—पुं॰—क्रतु- द्रुहू—-—राक्षस, पिशाच
  • क्रतुद्विष्—पुं॰—क्रतु- द्विष्—-—राक्षस, पिशाच
  • क्रतुध्वंसिन्—पुं॰—क्रतु- ध्वंसिन्—-—शिव का विशेषण
  • क्रतुपतिः—पुं॰—क्रतु- पतिः—-—यज्ञ का अनुष्ठाता
  • क्रतुपशुः—पुं॰—क्रतु- पशुः—-—यज्ञीय घोड़ा
  • क्रतुपुरूषः—पुं॰—क्रतु- पुरूषः—-—विष्णु का विशेषण
  • क्रतुभुज्—पुं॰—क्रतु- भुज्—-—देवता, देव
  • क्रतुराज्—पुं॰—क्रतु- राज्—-—यज्ञों का स्वामी
  • क्रतुराज्—पुं॰—क्रतु- राज्—-—राजसूय यज्ञ
  • क्रथ्—भ्वा॰ पर॰ <क्रथति>, <क्रथित>—-—-—क्षति पहुँचाना, चोट पहुँचाना, मार डालना
  • क्रथकैशिकः—पुं॰—-—-—एक देश का नाम
  • क्रथनम्—नपुं॰—-—क्रथ् + ल्युट्—वध, हत्या
  • क्रथनकः—पुं॰—-—क्रथन + कन्—ऊँट
  • क्रन्द्—भ्वा॰ पर॰ <क्रन्दति>, <क्रन्दित>—-—-—चिल्लाना, रोना, आंसू बहाना
  • क्रन्द्—भ्वा॰ पर॰ <क्रन्दति>, <क्रन्दित>—-—-—पुकारना, दया की पुकार करना
  • क्रन्द्—चुरा॰ पर॰ या प्रेर॰—-—-—लगातार, चिल्लाना
  • क्रन्द्—चुरा॰ पर॰ या प्रेर॰—-—-—रूलाना
  • आक्रन्द्—चुरा॰ पर॰ —आ-क्रन्द्—-—चिल्लाना, चीखना, चरमराना, चीत्कार करना
  • आक्रन्द्—चुरा॰ पर॰ —आ-क्रन्द्—-—पुकार करना
  • क्रन्दनम्—नपुं॰—-—क्रन्द् + ल्युट्, क्त वा—आर्तनाद, रोना, विलाप करना
  • क्रन्दनम्—नपुं॰—-—क्रन्द् + ल्युट्, क्त वा—पारस्परिक ललकार, चुनौति
  • क्रम्—भ्वा॰ उभ॰, दिवा॰ पर॰ <क्रामति>, <क्रमते>, <क्राम्यति>, <क्रान्त>—-—-—चलना, पर्दापण करना, जाना
  • क्रम्—भ्वा॰ उभ॰, दिवा॰ पर॰ <क्रामति>, <क्रमते>, <क्राम्यति>, <क्रान्त>—-—-—चले जाना, पहुँचना
  • क्रम्—भ्वा॰ उभ॰, दिवा॰ पर॰ <क्रामति>, <क्रमते>, <क्राम्यति>, <क्रान्त>—-—-—जाना, पार करना, पार जाना
  • क्रम्—भ्वा॰ उभ॰, दिवा॰ पर॰ <क्रामति>, <क्रमते>, <क्राम्यति>, <क्रान्त>—-—-—कूदना, छलांग मारना
  • क्रम्—भ्वा॰ उभ॰, दिवा॰ पर॰ <क्रामति>, <क्रमते>, <क्राम्यति>, <क्रान्त>—-—-—ऊपर जाना, चढ़ना
  • क्रम्—भ्वा॰ उभ॰, दिवा॰ पर॰ <क्रामति>, <क्रमते>, <क्राम्यति>, <क्रान्त>—-—-—अधिकार में रखना, वश में करना, अधिकार में लेना, भरना
  • क्रम्—भ्वा॰ उभ॰, दिवा॰ पर॰ <क्रामति>, <क्रमते>, <क्राम्यति>, <क्रान्त>—-—-—आगे बढ़ना, आगे निकल जाना
  • क्रम्—भ्वा॰ उभ॰, दिवा॰ पर॰ <क्रामति>, <क्रमते>, <क्राम्यति>, <क्रान्त>—-—-—उत्तरदायित्व लेना, संप्रयास करना, योग्य या सक्षम होना, शक्ति दिखलाना
  • क्रम्—भ्वा॰ उभ॰, दिवा॰ पर॰ <क्रामति>, <क्रमते>, <क्राम्यति>, <क्रान्त>—-—-—बढ़ना या विकसित होना, पूरा क्षेत्र मिलना, स्वस्थ होना
  • क्रम्—भ्वा॰ उभ॰, दिवा॰ पर॰ <क्रामति>, <क्रमते>, <क्राम्यति>, <क्रान्त>—-—-—पूरा करना, निष्पन्न करना
  • क्रम्—भ्वा॰ उभ॰, दिवा॰ पर॰ <क्रामति>, <क्रमते>, <क्राम्यति>, <क्रान्त>—-—-—मैथुन करना
  • अतिक्रम्—भ्वा॰ उभ॰, दिवा॰ पर॰—अति-क्रम्—-—पार करना, पार जाना
  • अतिक्रम्—भ्वा॰ उभ॰, दिवा॰ पर॰—अति-क्रम्—-—परे जाना, लांघना
  • अतिक्रम्—भ्वा॰ उभ॰, दिवा॰ पर॰—अति-क्रम्—-—बढ़ जाना, आगे निकल जाना
  • अतिक्रम्—भ्वा॰ उभ॰, दिवा॰ पर॰—अति-क्रम्—-—उल्लंघन करना, अतिक्रमण करना, आगे कदम रखना
  • अतिक्रम्—भ्वा॰ उभ॰, दिवा॰ पर॰—अति-क्रम्—-—अवहेलना करना, पृथक करना, उपेक्षा करना
  • अतिक्रम्—भ्वा॰ उभ॰, दिवा॰ पर॰—अति-क्रम्—-—गुजारना, बीतना
  • अधिक्रम्—भ्वा॰ उभ॰, दिवा॰ पर॰—अधि-क्रम्—-—चढ़ना
  • अध्याक्रम्—भ्वा॰ उभ॰, दिवा॰ पर॰—अध्या-क्रम्—-—अधिकार करना, भरना, ग्रहण करना
  • अनुक्रम्—भ्वा॰ उभ॰, दिवा॰ पर॰—अनु-क्रम्—-—अनुगमन करना
  • अनुक्रम्—भ्वा॰ उभ॰, दिवा॰ पर॰—अनु-क्रम्—-—आरम्भ करना
  • अनुक्रम्—भ्वा॰ उभ॰, दिवा॰ पर॰—अनु-क्रम्—-—अन्तर्वस्तु देना
  • अन्वाक्रम्—भ्वा॰ उभ॰, दिवा॰ पर॰—अन्वा-क्रम्—-—एक के पश्चात दूसरे का दर्शन करना
  • अपक्रम्—भ्वा॰ उभ॰, दिवा॰ पर॰—अप-क्रम्—-—छोड़ जाना, चले जाना
  • अभिक्रम्—भ्वा॰ उभ॰, दिवा॰ पर॰—अभि-क्रम्—-—जाना, पहुँचना, प्रविष्ट होना
  • अभिक्रम्—भ्वा॰ उभ॰, दिवा॰ पर॰—अभि-क्रम्—-—घूमना, भ्रमण करना
  • अभिक्रम्—भ्वा॰ उभ॰, दिवा॰ पर॰—अभि-क्रम्—-—आक्रमण करना
  • अवक्रम्—भ्वा॰ उभ॰, दिवा॰ पर॰—अव-क्रम्—-—वापिस हटना
  • आक्रम्—भ्वा॰ उभ॰, दिवा॰ पर॰—आ-क्रम्—-—पहुँचना, की ओर जाना
  • आक्रम्—भ्वा॰ उभ॰, दिवा॰ पर॰—आ-क्रम्—-—आक्रमण करना, दमन करना, जीतना, परास्त करना
  • आक्रम्—भ्वा॰ उभ॰, दिवा॰ पर॰—आ-क्रम्—-—भरना, प्रविष्ट होना, अधिकार में करना
  • आक्रम्—भ्वा॰ उभ॰, दिवा॰ पर॰—आ-क्रम्—-—आरम्भ करना, शुरू करना
  • आक्रम्—भ्वा॰ उभ॰, दिवा॰ पर॰—आ-क्रम्—-—उन्नत होना, उदय होना
  • आक्रम्—भ्वा॰ उभ॰, दिवा॰ पर॰—आ-क्रम्—-—चढ़ना, सवारी करना, अधिकार में करना
  • उत्क्रम्—भ्वा॰ उभ॰, दिवा॰ पर॰—उद्-क्रम्—-—ऊपर होना, परे जाना, उपर जाना
  • उत्क्रम्—भ्वा॰ उभ॰, दिवा॰ पर॰—उद्-क्रम्—-—अवहेलना करना, उपेक्षा करना
  • उत्क्रम्—भ्वा॰ उभ॰, दिवा॰ पर॰—उद्-क्रम्—-—परे कदम रखना
  • उपक्रम्—भ्वा॰ उभ॰, दिवा॰ पर॰—उप-क्रम्—-—की ओर जाना, पहुँचना
  • उपक्रम्—भ्वा॰ उभ॰, दिवा॰ पर॰—उप-क्रम्—-—धावा बोलना, आक्रमण करना
  • उपक्रम्—भ्वा॰ उभ॰, दिवा॰ पर॰—उप-क्रम्—-—बर्ताव करना, उपचार करना, चिकित्सा करना, स्वस्थ करना
  • उपक्रम्—भ्वा॰ उभ॰, दिवा॰ पर॰—उप-क्रम्—-—प्रेम करना, प्रेम से जीत लेना
  • उपक्रम्—भ्वा॰ उभ॰, दिवा॰ पर॰—उप-क्रम्—-— अनुष्ठान करना, प्रस्थान करना
  • उपक्रम्—भ्वा॰ उभ॰, दिवा॰ पर॰—उप-क्रम्—-—आरम्भ करना, शुरू करना
  • निष्क्रम्—भ्वा॰ उभ॰, दिवा॰ पर॰—निस्-क्रम्—-—चले जाना, चल देना, विदा होना
  • निष्क्रम्—भ्वा॰ उभ॰, दिवा॰ पर॰—निस्-क्रम्—-—निकलना, प्रकाशित होना
  • पराक्रम्—भ्वा॰ उभ॰, दिवा॰ पर॰—परा-क्रम्—-—साहस प्रदर्शित करना, शक्ति या शूरवीरता दिखाना, बहादुरी के साथ करना
  • पराक्रम्—भ्वा॰ उभ॰, दिवा॰ पर॰—परा-क्रम्—-—वापिस मुड़ना
  • पराक्रम्—भ्वा॰ उभ॰, दिवा॰ पर॰—परा-क्रम्—-—चढ़ाई करना, आक्रमण करना
  • परिक्रम्—भ्वा॰ उभ॰, दिवा॰ पर॰—परि-क्रम्—-—इधर उधर घूमना, चक्कर लगाना
  • परिक्रम्—भ्वा॰ उभ॰, दिवा॰ पर॰—परि-क्रम्—-—पकड़ लेना
  • प्रक्रम्—भ्वा॰ उभ॰, दिवा॰ पर॰—प्र-क्रम्—-—आरम्भ करना, शुरू करना
  • प्रक्रम्—भ्वा॰ उभ॰, दिवा॰ पर॰—प्र-क्रम्—-—कुचलना, ऊपर पैर रखकर चलना
  • प्रक्रम्—भ्वा॰ उभ॰, दिवा॰ पर॰—प्र-क्रम्—-—जाना, प्रस्थान करना
  • प्रतिक्रम्—भ्वा॰ उभ॰, दिवा॰ पर॰—प्रति-क्रम्—-—वापिस आना
  • विक्रम्—भ्वा॰ उभ॰, दिवा॰ पर॰—वि-क्रम्—-—में से चलना
  • विक्रम्—भ्वा॰ उभ॰, दिवा॰ पर॰—वि-क्रम्—-—छापा मारना, पराजित करना, जीतना
  • विक्रम्—भ्वा॰ उभ॰, दिवा॰ पर॰—वि-क्रम्—-—फाड़ना, खोलना
  • व्यतिक्रम्—भ्वा॰ उभ॰, दिवा॰ पर॰—व्यति-क्रम्—-—उल्लंघन करना
  • व्यतिक्रम्—भ्वा॰ उभ॰, दिवा॰ पर॰—व्यति-क्रम्—-—समय बिताना
  • व्युत्क्रम्—भ्वा॰ उभ॰, दिवा॰ पर॰—उद्-क्रम्—-—ऊपर होना, परे जाना, उपर जाना
  • व्युत्क्रम्—भ्वा॰ उभ॰, दिवा॰ पर॰—उद्-क्रम्—-—अवहेलना करना, उपेक्षा करना
  • व्युत्क्रम्—भ्वा॰ उभ॰, दिवा॰ पर॰—उद्-क्रम्—-—परे कदम रखना
  • सङ्क्रम्—भ्वा॰ उभ॰, दिवा॰ पर॰—सम्-क्रम्—-—आना या एकत्र होना
  • सङ्क्रम्—भ्वा॰ उभ॰, दिवा॰ पर॰—सम्-क्रम्—-—पार जाना, पार करना, में से जाना
  • सङ्क्रम्—भ्वा॰ उभ॰, दिवा॰ पर॰—सम्-क्रम्—-—पहुँचना, जाना
  • सङ्क्रम्—भ्वा॰ उभ॰, दिवा॰ पर॰—सम्-क्रम्—-—पार चले जाना, स्थानान्तरित होना
  • सङ्क्रम्—भ्वा॰ उभ॰, दिवा॰ पर॰—सम्-क्रम्—-—दाखिल होना, प्रविष्ट होना
  • समाक्रम्—भ्वा॰ उभ॰, दिवा॰ पर॰—समा-क्रम्—-—अधिकार करना, कब्जे में लेना, भरना
  • समाक्रम्—भ्वा॰ उभ॰, दिवा॰ पर॰—समा-क्रम्—-—छापा मारना, जीतना, दमन करना
  • क्रमः—पुं॰—-—क्रम् + घञ्—कदम, पग
  • क्रमः—पुं॰—-—क्रम् + घञ्—पैर
  • क्रमः—पुं॰—-—क्रम् + घञ्—गति, प्रगमन, मार्ग
  • क्रमात्—पुं॰—-—क्रम् + घञ्—दौरान में, क्रमशः
  • क्रमेण—पुं॰—-—क्रम् + घञ्—दौरान में, क्रमशः
  • कालक्रमेण—अव्य॰—काल-क्रमेण—-—उत्तरोत्तर, समय पाकर
  • भाग्यक्रमः—पुं॰—भाग्यक्रमः—क्रम् + घञ्—भाग्य का उलट जाना
  • क्रमः—पुं॰—-—क्रम् + घञ्—प्रदर्शन, आरंभ
  • क्रमः—पुं॰—-—क्रम् + घञ्—नियमित मार्ग, क्रम, श्रेणी, उत्तराधिकारिता
  • क्रमः—पुं॰—-—क्रम् + घञ्—प्रणाली, रीति
  • क्रमः—पुं॰—-—क्रम् + घञ्—ग्रसना, पकड़
  • क्रमः—पुं॰—-—क्रम् + घञ्—स्थिति
  • क्रमः—पुं॰—-—क्रम् + घञ्—तैयारी, तत्परता
  • क्रमः—पुं॰—-—क्रम् + घञ्—व्यवसाय, साहसिक कार्य
  • क्रमः—पुं॰—-—क्रम् + घञ्—कर्म या कार्य, कार्यविधि
  • क्रमः—पुं॰—-—क्रम् + घञ्—वेदमन्त्रों कों सस्वर उच्चारण करने की विशेष रीति
  • क्रमः—पुं॰—-—क्रम् + घञ्—शक्ति, सामर्थ्य
  • क्रमम्—नपुं॰—-—क्रम् + घञ्—गारा
  • क्रमानुसारः—पुं॰—क्रम-अनुसारः—-—नियमित क्रम, समुचित व्यवस्था
  • क्रमान्वयः—पुं॰—क्रम-अन्वयः—-—नियमित क्रम, समुचित व्यवस्था
  • क्रमागत—वि॰—क्रम-आगत—-—वंशपरम्पराप्राप्त, आनुवंशिक
  • क्रमायात—वि॰—क्रम-आयात—-—वंशपरम्पराप्राप्त, आनुवंशिक
  • क्रमज्या—स्त्री॰—क्रम-ज्या—-—ग्रह की लंब रेखा, क्षय
  • क्रमभङ्ग—वि॰—क्रम-भङ्ग—-—अनियमितता
  • क्रमक—वि॰—-—क्रम् + वुन्—क्रमबद्ध, प्रणाली के अनुसार
  • क्रमकः—पुं॰—-—क्रम् + वुन्—वह विद्यार्थी जो किसी नियमित पाठ्यक्रम का अध्ययन करता है ।
  • क्रमणः—पुं॰—-—क्रम् + ल्युट्—पैर, घोड़ा
  • क्रमणम्—नपुं॰—-—क्रम् + ल्युट्—कदम
  • क्रमणम्—नपुं॰—-—क्रम् + ल्युट्—पग रखना
  • क्रमणम्—नपुं॰—-—क्रम् + ल्युट्—आगे बढ़ना
  • क्रमणम्—नपुं॰—-—क्रम् + ल्युट्—उल्लंघन
  • क्रमतः—अव्य॰—-—क्रम् + तसिल्—क्रमशः, उत्तरोत्तर, सिलसिलेवार
  • क्रमतः—अव्य॰—-—क्रम् + तसिल्—वंशपरंपरागत, पैतृक, आनुवंशिक
  • क्रमुः—पुं॰—-—क्रम् + उ—सुपारी का पेड़
  • क्रमुकः—पुं॰—-—क्रम् + उ, कन् च—सुपारी का पेड़
  • क्रमेलः—पुं॰—-—क्रम् + एल् + अच्—ऊँट
  • क्रमेलकः—पुं॰—-—क्रम् + एल् + अच्, कन् च—ऊँट
  • क्रयः—पुं॰—-—क्री + अच्—खरीदना, मोल लेना
  • क्रयारोहः—पुं॰—क्रय-आरोहः—-—मंडी, मेला
  • क्रयक्रीत—वि॰—क्रय-क्रीत—-—मोल लिया हुआ
  • क्रयलेख्यम्—नपुं॰—क्रय-लेख्यम्—-—बैनामा, विक्रयनामा, दानपत्र
  • क्रयविक्रयौ—पुं॰—क्रय-विक्रयौ—-—व्यापार, व्यवसाय, खरीद-फरौख्त
  • क्रयविक्रयिकः—पुं॰—क्रय-विक्रयिकः—-—व्यापारी सौदागार
  • क्रयणम्—नपुं॰—-—क्री + ल्युट्—खरीदना, मोल लेना
  • क्रयिकः—पुं॰—-—क्रय + ठन्—व्यापारी, सौदागर
  • क्रयिकः—पुं॰—-—क्रय + ठन्—क्रेता, मोल लेने वाला
  • क्रव्य—वि॰—-—क्री + यत्, नि॰ —मंडी में विक्रय के लिए रखी हुई वस्तु, बिकाऊ
  • क्रव्यम्—नपुं॰—-—क्लव + यत्, रस्य लः—कच्चा मांस, मुरदार
  • क्रशिमन्—पुं॰—-—कृश + इमनिच्—पतलापन, कृशता, दुबलापतलापन
  • क्राकचिकः—पुं॰—-—क्रकच + ठक्—आराकश
  • क्रान्त—वि॰—-—क्रम + क्त—गया हुआ, आरपार गया हुआ
  • क्रान्तः—भू॰ क॰ कृ॰—-—क्रम + क्त—घोड़ा
  • क्रान्तः—भू॰ क॰ कृ॰—-—क्रम + क्त—पैर, पग
  • क्रान्तदर्शिन्—वि॰—क्रान्त-दर्शिन्—-—सर्वज्ञ
  • क्रान्तिः—स्त्री॰—-—क्रम् + क्तिन्—गति, प्रगमन
  • क्रान्तिः—स्त्री॰—-—क्रम् + क्तिन्—कदम, पग
  • क्रान्तिः—स्त्री॰—-—क्रम् + क्तिन्—आगे बढ़ने वाला
  • क्रान्तिः—स्त्री॰—-—क्रम् + क्तिन्—आक्रमण करने वाला, अभिभूत करने वाला
  • क्रान्तिः—स्त्री॰—-—क्रम् + क्तिन्—नक्षत्र की कोणीय दूरी
  • क्रान्तिः—स्त्री॰—-—क्रम् + क्तिन्—क्रांतिवलय, सूर्य का भ्रमण मार्ग
  • क्रान्तिकक्षः—पुं॰—क्रान्ति-कक्षः—-—सूर्य का भ्रमण मार्ग
  • क्रान्तिमण्डलम्—नपुं॰—क्रान्ति-मण्डलम्—-—सूर्य का भ्रमण मार्ग
  • क्रान्तिवृत्तम्—नपुं॰—क्रान्ति-वृत्तम्—-—सूर्य का भ्रमण मार्ग
  • क्रान्तिपातः—पुं॰—क्रान्ति-पातः—-—वह बिंदु जहाँ क्रांतिवलय विषुवत रेखा से मिलता है
  • क्रान्तिवलयः—पुं॰—क्रान्ति-वलयः—-—सूर्य का भ्रमण मार्ग
  • क्रान्तिवलयः—पुं॰—क्रान्ति-वलयः—-—उष्ण कटिबंध
  • क्रायकः—पुं॰—-—क्री + ण्वुल् - क्रय + ठक्—क्रेता, खरीददार
  • क्रायकः—पुं॰—-—क्री + ण्वुल् - क्रय + ठक्—व्यापारी, सौदागर
  • क्रायिकः—पुं॰—-—क्री + ण्वुल् - क्रय + ठक्—क्रेता, खरीददार
  • क्रायिकः—पुं॰—-—क्री + ण्वुल् - क्रय + ठक्—व्यापारी, सौदागर
  • क्रिमिः—पुं॰—-—क्रम् + इन्, इत्वम्—कीड़ा
  • क्रिमिः—पुं॰—-—क्रम् + इन्, इत्वम्—कीट
  • क्रिमिः—पुं॰—-—क्रम् + इन्, इत्वम्—कीड़ों से भरा हुआ, कीटयुक्त
  • क्रिमिः—पुं॰—-—क्रम् + इन्, इत्वम्—कीड़े
  • क्रिमिः—पुं॰—-—क्रम् + इन्, इत्वम्—गधा
  • क्रिमिः—पुं॰—-—क्रम् + इन्, इत्वम्—मकड़ी
  • क्रिमिः—पुं॰—-—क्रम् + इन्, इत्वम्—लाख
  • क्रिमिजम्—नपुं॰—क्रिमि-जम्—-—अगर की लकड़ी
  • क्रिमिशैलः—पुं॰—क्रिमि-शैलः—-—बांबी
  • क्रिया—स्त्री॰—-—कृ + श, रिङ् आदेशः, इयङ्—करना, कार्यान्वित, कार्य-सम्पादन, निष्पादन करना
  • क्रिया—स्त्री॰—-—कृ + श, रिङ् आदेशः, इयङ्—कर्म, कृत्य, व्यवसाय, जिम्मेदारी
  • क्रिया—स्त्री॰—-—कृ + श, रिङ् आदेशः, इयङ्—चेष्टा, शारीरिक चेष्टा, श्रम
  • क्रिया—स्त्री॰—-—कृ + श, रिङ् आदेशः, इयङ्—अध्यापन, शिक्षण
  • क्रिया—स्त्री॰—-—कृ + श, रिङ् आदेशः, इयङ्—किसी कला पर आधिपत्य, ज्ञान
  • क्रिया—स्त्री॰—-—कृ + श, रिङ् आदेशः, इयङ्—आचरण
  • क्रिया—स्त्री॰—-—कृ + श, रिङ् आदेशः, इयङ्—साहित्यिक रचना
  • क्रिया—स्त्री॰—-—कृ + श, रिङ् आदेशः, इयङ्—शुद्धि-संस्कार, धार्मिक संस्कार
  • क्रिया—स्त्री॰—-—कृ + श, रिङ् आदेशः, इयङ्—प्रायश्चित्तस्वरूप संस्कार, प्रायश्चित
  • क्रिया—स्त्री॰—-—कृ + श, रिङ् आदेशः, इयङ्—श्राद्ध
  • क्रिया—स्त्री॰—-—कृ + श, रिङ् आदेशः, इयङ्—और्ध्वदेहिक संस्कार
  • क्रिया—स्त्री॰—-—कृ + श, रिङ् आदेशः, इयङ्—पूजन
  • क्रिया—स्त्री॰—-—कृ + श, रिङ् आदेशः, इयङ्—औषधोपचार, चिकित्सा-प्रयोग, इलाज, शीतक्रिया,शीतल उपचार
  • क्रिया—स्त्री॰—-—कृ + श, रिङ् आदेशः, इयङ्—क्रिया के द्वारा अभिहीत कर्म
  • क्रिया—स्त्री॰—-—कृ + श, रिङ् आदेशः, इयङ्—चेष्टा या कर्म
  • क्रिया—स्त्री॰—-—कृ + श, रिङ् आदेशः, इयङ्—विशेषतः वैशेषिक दर्शन में प्रतिपादित सात द्रव्यों में से एक
  • क्रिया—स्त्री॰—-—कृ + श, रिङ् आदेशः, इयङ्—साक्ष्यादिक मानवसाधनों से तथा अन्य परीक्षाओं द्वारा अभियोग की छानबीन करना
  • क्रिया—स्त्री॰—-—कृ + श, रिङ् आदेशः, इयङ्—प्रमाण-भार
  • क्रियान्वित—वि॰—क्रिया-अन्वित—-— शास्त्रोक्त सत्कर्मो को करने वाला
  • क्रियापवर्गः—पुं॰—क्रिया-अपवर्गः—-—किसी कार्य की संपूर्ति या इतिश्री, कार्यसम्पादन
  • क्रियापवर्गः—पुं॰—क्रिया-अपवर्गः—-—कर्मकाण्ड से मुक्ति, छुटकारा
  • क्रियाभ्युपगमः—पुं॰—क्रिया-अभ्युपगमः—-—विशेष प्रकार का करार या प्रतिज्ञा-पत्र
  • क्रियावसन्न—वि॰—क्रिया-अवसन्न—-—गवाहों के बयान के कारण मुकदमा हार जाने वाला व्यक्ति
  • क्रियेन्द्रियम्—नपुं॰—क्रिया-इन्द्रियम्—-—काम करने वाली इन्द्रियाँ जो ज्ञानेन्द्रियों से भिन्न हैं
  • क्रियाकलापः—पुं॰—क्रिया-कलापः—-—हिन्दू-धर्मशास्त्र द्वारा विहित समस्त कार्य
  • क्रियाकलापः—पुं॰—क्रिया-कलापः—-—किसी व्यवसाय के समस्त विवरण
  • क्रियाकारः—पुं॰—क्रिया-कारः—-—अभिकर्ता, कार्यकर्ता
  • क्रियाकारः—पुं॰—क्रिया-कारः—-—शिक्षारंभ करने वाला, नौसिखिया, नवच्छात्र
  • क्रियाकारः—पुं॰—क्रिया-कारः—-—इकरारनामा, प्रतिज्ञापत्र
  • क्रियाद्वेषिन्—पुं॰—क्रिया-द्वेषिन्—-—वह साक्षी जिसका साक्ष्य पक्षपातपूर्ण हो
  • क्रियानिर्देशः—पुं॰—क्रिया-निर्देशः—-—गवाही, साक्ष्य
  • क्रियापटु—वि॰—क्रिया-पटु—-—कार्यदक्ष
  • क्रियापथः—पुं॰—क्रिया-पथः—-—औषधोपचार की रीति
  • क्रियापदम्—नपुं॰—क्रिया-पदम्—-—क्रियावाचक शब्द
  • क्रियापर—वि॰—क्रिया-पर—-—अपने कर्त्तव्य-पालन में परिश्रम शील
  • क्रियापादः—पुं॰—क्रिया-पादः—-—अभियोक्ता या वादी के द्वारा अपने दावे की पुष्टि में दिए गये प्रमाण, दस्तावेज तथा गवाहियाँ आदि जो कानूनी अभियोग का तीसरा अंग है
  • क्रियायोगः—पुं॰—क्रिया-योगः—-—क्रिया के साथ संबंध
  • क्रियायोगः—पुं॰—क्रिया-योगः—-—तरकीब और साधनों का प्रयोग
  • क्रियालोपः—पुं॰—क्रिया-लोपः—-—आवश्यक धार्मिक अनुष्ठानों का परित्याग
  • क्रियावशः—पुं॰—क्रिया-वशः—-—आवश्यकता, क्रियाओं का अवश्यंभावी प्रभाव
  • क्रियावाचक—वि॰—क्रिया-वाचक—-—क्रम को प्रकट करने वाला, क्रिया से बना संज्ञा शब्द
  • क्रियावाचिन्—वि॰—क्रिया-वाचिन्—-—क्रम को प्रकट करने वाला, क्रिया से बना संज्ञा शब्द
  • क्रियावादिन्—पुं॰—क्रिया-वादिन्—-—वादी, अभियोक्ता
  • क्रियाविधिः—पुं॰—क्रिया-विधिः—-—कार्य करने का नियम, किसी धर्मकृत्य को सम्पन्न करने की रीति
  • क्रियाविशेषणम्—नपुं॰—क्रिया-विशेषणम्—-—क्रिया की विशेषता प्रकट करने वाला शब्द
  • क्रियाविशेषणम्—नपुं॰—क्रिया-विशेषणम्—-—विधेय विशेषण
  • क्रियासङ्क्रान्ति—स्त्री॰—क्रिया-सङ्क्रान्ति—-—दूसरों को ज्ञान देना, अध्यापन
  • क्रियासमभिहारः—पुं॰—क्रिया-समभिहारः—-—किसी कार्य की आवृत्ति
  • क्रियावत्—वि॰—-—क्रिया + मतुप्—कर्म में व्यस्त, किसी कार्य के व्यवहार को जानने वाला
  • क्री—क्रया ॰ उभ॰ <क्रीणाति>, <क्रीणीते>, <क्रीत>—-—-—खरीदना, मोल लेना
  • क्री—क्रया ॰ उभ॰ <क्रीणाति>, <क्रीणीते>, <क्रीत>—-—-—विनिमय, अदलाबदली
  • आक्री—क्रया ॰ उभ॰—आ-क्री—-—खरीदना
  • निष्क्री—क्रया ॰ उभ॰—निस्-क्री—-—कुछ देकर पिंड छुड़ाना, दाम देकर फिर से खरीद लेना, निस्तार करना
  • परिक्री—क्रया ॰ उभ॰—परि-क्री—-—मोल लेना
  • परिक्री—क्रया ॰ उभ॰—परि-क्री—-—किराये पर लेना, कुछ समय के लिए मोल लेना
  • परिक्री—क्रया ॰ उभ॰—परि-क्री—-—वापिस करना, बदला देना, चुकाना
  • विक्री—क्रया ॰ उभ॰—वि-क्री—-—बेचना
  • विक्री—क्रया ॰ उभ॰—वि-क्री—-—विनिमय, अदलाबदली
  • क्रीड्—भ्वा॰ पर॰ <क्रीडति, <क्रीडित>—-—-—खेलना, मनोरंजन करना
  • क्रीड्—भ्वा॰ पर॰ <क्रीडति, <क्रीडित>—-—-—जूआ खेलना, पासों से खेलना
  • क्रीड्—भ्वा॰ पर॰ <क्रीडति, <क्रीडित>—-—-—हँसी दिल्ल्गी करना, मजाक करना, खिल्ली उड़ाना
  • अनुक्रीड्—भ्वा॰ आ॰—अनु-क्रीड्—-—खेलना, किलोल करना, जी बहलाना
  • आक्रीड्—भ्वा॰ आ॰—आ-क्रीड्—-—खेलना, कौतुक करना
  • परिक्रीड्—भ्वा॰ आ॰—परि-क्रीड्—-—खेलना, कौतुक करना
  • सङ्क्रीड्—भ्वा॰ आ॰—सम्-क्रीड्—-—खेलना, कौतुक करना
  • सङ्क्रीड्—भ्वा॰ पर॰—सम्-क्रीड्—-—‘कोलाहल करने ’ के अर्थ को प्रकट करता है
  • क्रीडः—पुं॰—-—क्रीड् + घञ्—किलोल, मनबहलाव, खेल, आमोद
  • क्रीडः—पुं॰—-—क्रीड् + घञ्—हंसी दिल्लगी, मजाक
  • क्रीडनम्—नपुं॰—-—क्रीड् + ल्युट्—खेलना, किलोल करना
  • क्रीडनम्—नपुं॰—-—क्रीड् + ल्युट्—खेलने की चीज, खिलौना
  • क्रीडनकः—पुं॰—-—क्रीडन + कन्—खेलने की चीज, खिलौना
  • क्रीडनकम्—नपुं॰—-—क्रीडन + कन्, क्रीड + अनीयर्—खेलने की चीज, खिलौना
  • क्रीडनीयम्—नपुं॰—-—क्रीडनीय + कन्—खेलने की चीज, खिलौना
  • क्रीडनीयकम्—नपुं॰—-—क्रीडनीय + कन्—खेलने की चीज, खिलौना
  • क्रीडा—स्त्री॰—-—क्रीड् + अ + टाप्—किलोल, जी बहलाना, खेलना, आमोद
  • क्रीडा—स्त्री॰—-—क्रीड् + अ + टाप्—हंसी, दिल्लगी
  • क्रीडागृहम्—नपुं॰—क्रीडा-गृहम्—-—आमोद भवन
  • क्रीडाशैलः—पुं॰—क्रीडा-शैलः—-—आमोद
  • क्रीडानारी—स्त्री॰—क्रीडा-नारी—-—वेश्या
  • क्रीडाकोपः—पुं॰—क्रीडा-कोपः—-—झूठमूठ का क्रोध
  • क्रीडामयूरः—पुं॰—क्रीडा-मयूरः—-—मनोरंजन के लिए पाला गया मोर
  • क्रीडारत्नम्—नपुं॰—क्रीडा-रत्नम्—-—कामकेलि, मैथुन
  • क्रीत—वि॰—-—क्री + क्त—मोल लिया हुआ
  • क्रीतः—पुं॰—-—क्री + क्त—हिन्दुधर्मशास्त्र में प्रतिपादित १२ प्रकार के पुत्रों में एक, अपने नैसर्गिक माता पिता से मोल लिया हुआ पुत्र
  • क्रीतानुशयः—पुं॰—क्रीत-अनुशयः—-—किसी वस्तु को मोल लेकर पछताना, किये का निराकरण करना, खरीदी हुई वस्तु को वापिस करना
  • क्रुञ्च्—पुं॰—-—क्रुञ्च् + क्विन्—जलकुक्कुटी, बगला
  • क्रुञ्चः—पुं॰—-—क्रुञ्च् + क्विन् अच् वा—जलकुक्कुटी, बगला
  • क्रुध्—दिवा॰ पर॰ <क्रुध्यति>, <क्रुद्ध>—-—-—गुस्से होना
  • प्रतिक्रुध्—दिवा॰ पर॰ —प्रति-क्रुध्—-—बदले में कुपित होना
  • सङ्क्रुध्—दिवा॰ पर॰ —सम्-क्रुध्—-—कुपित होना
  • क्रुध्—स्त्री॰—-—क्रुध् + क्विप्—क्रोध, कोप
  • क्रुश्—भ्वा॰ पर॰ <क्रोशति>, <क्रुष्ट>—-—-—चिल्लाना, रोना, विलाप करना, शोक मनाना
  • क्रुश्—भ्वा॰ पर॰ <क्रोशति>, <क्रुष्ट>—-—-—चीखना, किलकिलाना, कूका देना, चीत्कार करना, पुकारना
  • अनुक्रुश्—भ्वा॰ पर॰—अनु-क्रुश्—-—दया करना, करुणा करना
  • अभिक्रुश्—भ्वा॰ पर॰—अभि-क्रुश्—-—विलाप करना
  • आक्रुश्—भ्वा॰ पर॰—आ-क्रुश्—-—चिल्लाना, जोर से पुकारना
  • आक्रुश्—भ्वा॰ पर॰—आ-क्रुश्—-—खरीखोटी सुनाना, गालियाँ देना
  • परिक्रुश्—भ्वा॰ पर॰—परि-क्रुश्—-—विलाप करना
  • प्रत्याक्रुश्—भ्वा॰ पर॰—प्रत्या-क्रुश्—-—गाली के उत्तर में गाली देना
  • विक्रुश्—भ्वा॰ पर॰—वि-क्रुश्—-—चीखना, चिल्लाना
  • विक्रुश्—भ्वा॰ पर॰—वि-क्रुश्—-—उच्चारण करना
  • विक्रुश्—भ्वा॰ पर॰—वि-क्रुश्—-—पुकारना
  • विक्रुश्—भ्वा॰ पर॰—वि-क्रुश्—-—गूंजना
  • व्याक्रुश्—भ्वा॰ पर॰—व्या-क्रुश्—-—विलाप करना, शोक मनाना
  • क्रुष्ट—वि॰—-—क्रुश् + क्त—चिल्लाया हुआ
  • क्रुष्ट—वि॰—-—क्रुश् + क्त—पुकारा हुआ
  • क्रुष्टम्—नपुं॰—-—क्रुश् + क्त—चिल्लाना, चीखना, रोना
  • क्रूर—वि॰—-—कृत् + रक् घातोः क्रू—निर्दय, निष्ठुर, कठोरहृदय, निष्करुण
  • क्रूर—वि॰—-—कृत् + रक् घातोः क्रू—कठोर, कड़ा
  • क्रूर—वि॰—-—कृत् + रक् घातोः क्रू—दारूण, भयंकर, भीषण
  • क्रूर—वि॰—-—कृत् + रक् घातोः क्रू—नाशकारी, अनिष्टकर
  • क्रूर—वि॰—-—कृत् + रक् घातोः क्रू—घायल, चोट लगा हुआ
  • क्रूर—वि॰—-—कृत् + रक् घातोः क्रू—खूनी
  • क्रूर—वि॰—-—कृत् + रक् घातोः क्रू—कच्चा
  • क्रूर—वि॰—-—कृत् + रक् घातोः क्रू—मजबूत
  • क्रूर—वि॰—-—कृत् + रक् घातोः क्रू—गरम, तेज, अरूचिकर
  • क्रूरः—पुं॰—-—कृत् + रक् घातोः क्रू—बाज, बगला
  • क्रूरम्—नपुं॰—-—कृत् + रक् घातोः क्रू—घाव
  • क्रूरम्—नपुं॰—-—कृत् + रक् घातोः क्रू—हत्या, क्रूरता
  • क्रूरम्—नपुं॰—-—कृत् + रक् घातोः क्रू—भीषण कृत्य
  • क्रूराकृति—वि॰—क्रूर-आकृति—-—डरावनी सूरत वाला
  • क्रूराकृतिः—पुं॰—क्रूर-आकृतिः—-—रावण का विशेषण
  • क्रूराचार—वि॰—क्रूर-आचार—-—क्रूर और बर्बर आचरण करने वाला
  • क्रूराशय—वि॰—क्रूर-आशय—-—भयानक जीवजन्तुओं से भरा हुआ
  • क्रूराशय—वि॰—क्रूर-आशय—-—क्रूर स्वभाव का
  • क्रूरकर्मन्—नपुं॰—क्रूर-कर्मन्—-—रक्तरंजित करतूत
  • क्रूरकर्मन्—नपुं॰—क्रूर-कर्मन्—-—कठोर श्रम्
  • क्रूरकृत्—वि॰—क्रूर-कृत्—-—भीषण, क्रूर, निर्मम
  • क्रूरकोष्ठ—वि॰—क्रूर-कोष्ठ—-—कड़े कोठे वाला जिस पर मृदु विरेचन का असर न हो
  • क्रूरगन्धः—पुं॰—क्रूर-गन्धः—-—गन्धक
  • क्रूरदृश्—वि॰—क्रूर-दृश्—-—बुरी दृष्टि वाला, कुदृष्टी डालने वाला
  • क्रूरदृश्—वि॰—क्रूर-दृश्—-—खल, दुष्ट
  • क्रूरराबिन्—पुं॰—क्रूर-राबिन्—-—पहाड़ी कौवा
  • क्रूरलोचनः—पुं॰—क्रूर-लोचनः—-—शनिग्रह का विशेषण
  • क्रेतृ—पुं॰—-—क्री + तृच्—क्रेता, खरीददार
  • क्रोञ्चः—पुं॰—-—क्रुञ्च् + अच्, बा॰ गुणः—एक पहाड़ का नाम
  • क्रोडः—पुं॰—-—क्रुड् + घञ्—सूअर, वृक्ष की खोडर, गढ़ा
  • क्रोडः—पुं॰—-—क्रुड् + घञ्—सीना, वक्षस्थल, छाती
  • क्रोडीकृ——-—-—छाती से लगाना
  • क्रोडः—पुं॰—-—क्रुड् + घञ्—किसी वस्तु मध्य भाग
  • क्रोडः—पुं॰—-—क्रुड् + घञ्—शनिग्रह का विशेषण
  • क्रोडम्—नपुं॰—-—क्रुड् + घञ्—छाती, सीना, कन्धों के बीच का भाग
  • क्रोडम्—नपुं॰—-—क्रुड् + घञ्—किसी वस्तु का मध्यवर्ती भाग, गढ़ा, कोटर
  • क्रोडा—स्त्री॰—-—क्रुड् + घञ्+टाप्—छाती, सीना, कन्धों के बीच का भाग
  • क्रोडा—स्त्री॰—-—क्रुड् + घञ्+टाप्—किसी वस्तु का मध्यवर्ती भाग, गढ़ा, कोटर
  • क्रोडाङ्कः—पुं॰—क्रोड-अङ्कः—-—कछुवा
  • क्रोडाङ्घ्रिः—पुं॰—क्रोड-अङ्घ्रिः—-—कछुवा
  • क्रोडपादः—पुं॰—क्रोड-पादः—-—कछुवा
  • क्रोडपत्रम्—नपुं॰—क्रोड-पत्रम्—-—प्रान्तवर्ती लेख
  • क्रोडपत्रम्—नपुं॰—क्रोड-पत्रम्—-—पत्र का पश्चलेख
  • क्रोडपत्रम्—नपुं॰—क्रोड-पत्रम्—-—सम्पूरक
  • क्रोडपत्रम्—नपुं॰—क्रोड-पत्रम्—-—वसीयतनामे का परवर्ती उत्तराधिकार-पत्र
  • क्रोडीकरणम्—नपुं॰—-—क्रोड् + च्वि + कृ + ल्युट—आलिंगन करना, छाती से लगाना
  • क्रोडीमुखः—पुं॰—-—क्रोड्याः मुखमिव मुखमस्याः ब॰ स॰—गेंडा
  • क्रोधः—पुं॰—-—क्रुध् + घञ्—कोप, गुस्सा
  • क्रोधः—पुं॰—-—क्रुध् + घञ्—क्रोध एकप्रकार की भावना है जिससे रौद्ररस का उदय होता है
  • क्रोधोज्झित—वि॰—क्रोध-उज्झित—-—क्रोध से मुक्त, शान्त, स्वस्थ
  • क्रोधमूर्छित—वि॰—क्रोध-मूर्छित—-—क्रोध से अभिभूत या क्रोधोन्मत्त
  • क्रोधन—वि॰—-—क्रुध् + ल्युट्—गुस्से से भरा हुआ, क्रोधाविष्ट, क्रुद्ध, चिड़चिड़ा
  • क्रोधनम्—नपुं॰—-—क्रुध् + ल्युट्—क्रुद्ध होना, कोप
  • क्रोधालु—वि॰—-—क्रुध् + आलुच्—क्रोधाविष्ट, चिड़चिड़ा, गुस्सैल
  • क्रोशः—पुं॰—-—क्रुश् + घञ्—चिल्लाना, चीख, चीत्कार, कूका देना, कोलाहल
  • क्रोशः—पुं॰—-—क्रुश् + घञ्—चौथाई योजना, एक कोस
  • क्रोशतालः—पुं॰—क्रोश-तालः—-—एक बड़ा ढोल
  • क्रोशध्वनिः—पुं॰—क्रोश-ध्वनिः—-—एक बड़ा ढोल
  • क्रोशन—वि॰—-—क्रुश् + ल्युट्—चिल्लाने वाला
  • क्रोशनम्—नपुं॰—-—क्रुश् + ल्युट्—चीख चिल्लाहट
  • क्रोष्टु—पुं॰—-—क्रुश् + तुन्—गीदड़
  • क्रौञ्चः—नपुं॰—-—क्रुञ्च् + अण्—जलकुक्कुटी, कुररी, बगला
  • क्रौञ्चः—नपुं॰—-—-—एक पर्वत का नाम
  • क्रौञ्चादनम्—नपुं॰—क्रौञ्च-अदनम्—-—कमलडंडी के रेशे
  • क्रौञ्चारातिः—पुं॰—क्रौञ्च-अरातिः—-—कार्तिकेय का विशेषण
  • क्रौञ्चारातिः—पुं॰—क्रौञ्च-अरातिः—-—परशुराम का विशेषण
  • क्रौञ्चारिः—पुं॰—क्रौञ्च-अरिः—-—कार्तिकेय का विशेषण
  • क्रौञ्चारिः—पुं॰—क्रौञ्च-अरिः—-—परशुराम का विशेषण
  • क्रौञ्चरिपुः—पुं॰—क्रौञ्च-रिपुः—-—कार्तिकेय का विशेषण
  • क्रौञ्चरिपुः—पुं॰—क्रौञ्च-रिपुः—-—परशुराम का विशेषण
  • क्रौञ्चदारणः—पुं॰—क्रौञ्च-दारणः—-—कार्तिकेय का विशेषण
  • क्रौञ्चदारणः—पुं॰—क्रौञ्च-दारणः—-—परशुराम का विशेषण
  • क्रौञ्चसूदनः—पुं॰—क्रौञ्च-सूदनः—-—कार्तिकेय का विशेषण
  • क्रौञ्चसूदनः—पुं॰—क्रौञ्च-सूदनः—-—परशुराम का विशेषण
  • क्रौर्यम्—नपुं॰—-—क्रूर + ष्यञ्—क्रूरता, कठोरहृदयता
  • क्लन्द्—भ्वा॰ पर॰ <क्लन्दति>, <क्लन्दित>—-—-—पुकारना, चिल्लाना
  • क्लन्द्—भ्वा॰ पर॰ <क्लन्दति>, <क्लन्दित>—-—-—रोना, विलाप करना
  • क्लन्द्—भ्वा॰ आ॰ <क्लन्दते>, <क्लदते>—-—-—घबड़ा जाना
  • क्लम्—भ्वा॰ दिवा॰, पर॰ <क्लामति>, <क्लाम्यति>, <क्लान्त>—-—-—थक जाना, थककर चूर होना, अवसन्न होना
  • विक्लम्—भ्वा॰ दिवा॰, पर॰—वि-क्लम्—-—थक जाना
  • क्लमः—पुं॰—-—क्लम् + घञ्—थकावट, कलान्ति अवसाद
  • क्लमथः—पुं॰—-—क्लम् + घञ्, अथच् वा—थकावट, कलान्ति अवसाद
  • क्लान्त—वि॰—-—क्लम् + क्त—थका हुआ, थक कर चूर हुआ
  • क्लान्त—वि॰—-—क्लम् + क्त—मुर्झाया हुआ, म्लान
  • क्लान्त—वि॰—-—क्लम् + क्त—दुबला-पतला
  • क्लान्ति—स्त्री॰—-—क्लम् + क्तिन्—थकावट
  • क्लान्तिछिद—वि॰—क्लान्ति-छिद—-—थकावट दूर करने वाला, बलदायक
  • क्लिद्—दिवा॰ पर॰ <क्लिद्यति>, <क्लिन्न>—-—-—गीला होना, आर्द्र होना, तर होना
  • क्लिद्—पुं॰—-—-—तय करना, गीला करना
  • क्लिन्न—वि॰—-—क्लिद् + क्त—गीला, तर
  • अक्षक्लिन्न—वि॰—अक्ष-क्लिन्न—-—चौंधियाई आँखों वाला
  • क्लिश्—दिवा॰आ॰ <क्लिश्यते>, <क्लिष्ट>, <क्लिशित>—-—-—दुःखी होना, पीड़ित होना, कष्ट होना
  • क्लिश्—दिवा॰आ॰ <क्लिश्यते>, <क्लिष्ट>, <क्लिशित>—-—-—दुःख देना, सताना
  • क्लिश्—क्रया॰ पर॰ <क्लिश्नाति>, <क्लिष्ट>, <क्लिशित>—-—-—दुःख देना, सताना, पीड़ित करना, सताना, कष्ट देना
  • क्लिशित—वि॰—-—क्लिश् + क्त—दुःखी, पीड़ित, संकट ग्रस्त, सताया हुआ
  • क्लिशित—वि॰—-—क्लिश् + क्त—मुर्झाया हुआ
  • क्लिशित—वि॰—-—क्लिश् + क्त—असंगत, विरोधी
  • क्लिशित—वि॰—-—क्लिश् + क्त—परिष्कृत, कृत्रिम
  • क्लिशित—वि॰—-—क्लिश् + क्त—लज्जित
  • क्लिष्ट—वि॰—-—क्लिश् + क्त—दुःखी, पीड़ित, संकट ग्रस्त, सताया हुआ
  • क्लिष्ट—वि॰—-—क्लिश् + क्त—मुर्झाया हुआ
  • क्लिष्ट—वि॰—-—क्लिश् + क्त—असंगत, विरोधी
  • क्लिष्ट—वि॰—-—क्लिश् + क्त—परिष्कृत, कृत्रिम
  • क्लिष्ट—वि॰—-—क्लिश् + क्त—लज्जित
  • क्लिष्टिः—स्त्री॰—-—क्लिश् + क्तिन्—कष्ट वेदना, दुःख, पीडा
  • क्लिष्टिः—स्त्री॰—-—क्लिश् + क्तिन्—सेवा
  • क्लीब —वि॰—-—क्लीब् + क—हिजड़ा, नपुंसक, बधिया किया हुआ
  • क्लीब —वि॰—-—क्लीब् + क—पुरूषार्थहीन, भिरू, दुर्बल, दुर्बलमना
  • क्लीब —वि॰—-—क्लीब् + क—कायर
  • क्लीब —वि॰—-—क्लीब् + क—नीच अधम
  • क्लीब —वि॰—-—क्लीब् + क—सुस्त
  • क्लीब —वि॰—-—क्लीब् + क—नपुंसक लिंग का
  • क्लीव—वि॰—-—क्लीव् + क—हिजड़ा, नपुंसक, बधिया किया हुआ
  • क्लीव—वि॰—-—क्लीव् + क—पुरूषार्थहीन, भिरू, दुर्बल, दुर्बलमना
  • क्लीव—वि॰—-—क्लीव् + क—कायर
  • क्लीव—वि॰—-—क्लीव् + क—नीच अधम
  • क्लीव—वि॰—-—क्लीव् + क—सुस्त
  • क्लीव—वि॰—-—क्लीव् + क—नपुंसक लिंग का
  • क्लीबः—पुं॰—-—क्लीब् + क—नामर्द, हिजड़ा
  • क्लीबः—पुं॰—-—क्लीब् + क—नपुंसक लिंग
  • क्लीवः—पुं॰—-—क्लीव् + क—नामर्द, हिजड़ा
  • क्लीवः—पुं॰—-—क्लीव् + क—नपुंसक लिंग
  • क्लीबम्—नपुं॰—-—क्लीब् + क—नामर्द, हिजड़ा
  • क्लीबम्—नपुं॰—-—क्लीब् + क—नपुंसक लिंग
  • क्लीवम्—नपुं॰—-—क्लीव् + क—नामर्द, हिजड़ा
  • क्लीवम्—नपुं॰—-—क्लीव् + क—नपुंसक लिंग
  • क्लेदः—पुं॰—-—क्लिद् + घञ्—गीलापन, आर्द्रता, तरी, नमी
  • क्लेदः—पुं॰—-—क्लिद् + घञ्—बहने वाला, घाव से निकलने वाला मवाद
  • क्लेदः—पुं॰—-—क्लिद् + घञ्—दुःख, कष्ट
  • क्लेशः—पुं॰—-—क्लिश् + घञ्—पीड़ा, वेदना, कष्ट, दुःख, तकलीफ
  • क्लेशः—पुं॰—-—क्लिश् + घञ्—गुस्सा, क्रोध
  • क्लेशः—पुं॰—-—क्लिश् + घञ्—सांसारिक कामकाज
  • क्लेशक्षम—वि॰—क्लेश-क्षम—-—कष्ट सहने में समर्थ
  • क्लैब्यम्—नपुं॰—-—क्लीब + ष्यञ्—नामर्दी
  • क्लैब्यम्—नपुं॰—-—क्लीब + ष्यञ्—पुरूषार्थहीनता, भीरूता, कायरता
  • क्लैब्यम्—नपुं॰—-—क्लीब + ष्यञ्—अनुपयुक्तता, नामर्दी, शक्तिहीनता
  • क्लैव्यम्—नपुं॰—-—क्लीव + ष्यञ्—नामर्दी
  • क्लैव्यम्—नपुं॰—-—क्लीव + ष्यञ्—पुरूषार्थहीनता, भीरूता, कायरता
  • क्लैव्यम्—नपुं॰—-—क्लीव + ष्यञ्—अनुपयुक्तता, नामर्दी, शक्तिहीनता
  • क्लोमम्—नपुं॰—-—क्लु + मनिन्—फेफड़े
  • क्व—अव्य॰—-—किम् + अत्, कु आदेशः—किधर, कहाँ
  • क्वक्व—अव्य॰—क्व-क्व—-—जब किसी सामान्य वाक्य खण्ड में प्रयुक्त होता हैं तो इसका अर्थ है -‘भारी’ ‘अन्तर’ ‘असंगति’
  • क्वक्व—अव्य॰—क्व-क्व—-—कभी कभी ‘क्व’ का प्रयोग ‘किम्’ शब्द के अधिकार का होता है
  • क्वापि—अव्य॰—क्व-अपि—-—कहीं, किसी जगह
  • क्वापि—अव्य॰—क्व-अपि—-—कभीकभी
  • क्वचित्—अव्य॰—क्व-चित्—-—कुछ स्थानों पर
  • क्वचित्—अव्य॰—क्व-चित्—-—कुछ बातों में
  • क्वचित्क्वचित्—अव्य॰—क्वचित्-क्वचित्—-—एक जगह - दूसरी जगह, यहाँ-वहाँ
  • क्वचित्क्वचित्—अव्य॰—क्वचित्-क्वचित्—-—कभी-कभी
  • क्वण्—भ्वा॰ पर॰ <क्वणति>, <क्वणित>—-—-—अस्पष्ट शब्द करना, झनझन शब्द, टनटन शब्द
  • क्वण्—भ्वा॰ पर॰ <क्वणति>, <क्वणित>—-—-—भिनभिनाना, गुंजन, अस्पष्ट गायन
  • क्वणः—पुं॰—-—क्वण् + अप्—सामान्य शब्द
  • क्वणः—पुं॰—-—क्वण् + अप्—किसी भी वाद्ययन्त्र की ध्वनि
  • क्वणनम्—नपुं॰—-—क्वण् + ल्युट् क्तम्—किसी भी वाद्ययन्त्र की ध्वनि
  • क्वणितम्—नपुं॰—-—क्वण् + ल्युट् क्तम्—किसी भी वाद्ययन्त्र की ध्वनि
  • क्वाणः—पुं॰—-—क्वण् + घञ् —किसी भी वाद्ययन्त्र की ध्वनि
  • क्वत्य—वि॰—-—क्व + त्यप्—किस स्थान पर सम्बन्ध रखने वाला, कहाँ पर होने वाला
  • क्वथ्—भ्वा॰ पर॰ <क्वथति>, <क्वथित>—-—-—उबालना, काढ़ा बनाना
  • क्वथ्—भ्वा॰ पर॰ <क्वथति>, <क्वथित>—-—-—पचाना
  • क्वथः—पुं॰—-—क्वाथ् + अच्, घञ् वा—काढा, लगातार मन्दी आँच में तैयार किया गया घोल
  • क्वाचित्क—वि॰—-—-—अकस्मात घटित, विरल, असाधारण
  • क्षः—पुं॰—-—क्षि + ड—नाश
  • क्षः—पुं॰—-—क्षि + ड—अन्तर्धान, हानि
  • क्षः—पुं॰—-—क्षि + ड—बिजली
  • क्षः—पुं॰—-—क्षि + ड—खेत
  • क्षः—पुं॰—-—क्षि + ड—किसान
  • क्षः—पुं॰—-—क्षि + ड—विष्णु का नरसिंहावतार
  • क्षः—पुं॰—-—क्षि + ड—राक्षस
  • क्षण् —तना॰ उभ॰ <क्षणोति>, <क्षणुते>, <क्षुत्त>—-—-—चोट पहुँचाना, क्षति पहुँचाना
  • क्षण् —तना॰ उभ॰ <क्षणोति>, <क्षणुते>, <क्षुत्त>—-—-—तोड़ना, टुकड़े-टुकड़े करना
  • क्षन्—तना॰ उभ॰ <क्षणोति>, <क्षणुते>, <क्षुत्त>—-—-—चोट पहुँचाना, क्षति पहुँचाना
  • क्षन्—तना॰ उभ॰ <क्षणोति>, <क्षणुते>, <क्षुत्त>—-—-—तोड़ना, टुकड़े-टुकड़े करना
  • उपक्षण्—तना॰ उभ॰ —उप-क्षण्—-—उसी अर्थ में प्रयोग जो ‘क्षण’ का मूल अर्थ है।
  • परिक्षण्—तना॰ उभ॰ —परि-क्षण्—-—उसी अर्थ में प्रयोग जो ‘क्षण’ का मूल अर्थ है।
  • विक्षण्—तना॰ उभ॰ —वि-क्षण्—-—उसी अर्थ में प्रयोग जो ‘क्षण’ का मूल अर्थ है।
  • क्षणः—पुं॰—-—क्षण् + अच्—लमहा, निमेष, एक सैकंड से ४।५ भाग के बराबर समय की माप
  • क्षणः—पुं॰—-—क्षण् + अच्—अवकाश
  • क्षणः—पुं॰—-—क्षण् + अच्—उपयुक्त क्षण या अवसर
  • क्षणः—पुं॰—-—क्षण् + अच्—उत्सव, हर्ष, खुशी
  • क्षणः—पुं॰—-—क्षण् + अच्—आश्रय, दासता
  • क्षणः—पुं॰—-—क्षण् + अच्—केन्द्र, मध्यभाग
  • क्षणम्—नपुं॰—-—क्षण् + अच्—लमहा, निमेष, एक सैकंड से ४।५ भाग के बराबर समय की माप
  • क्षणम्—नपुं॰—-—क्षण् + अच्—अवकाश
  • क्षणम्—नपुं॰—-—क्षण् + अच्—उपयुक्त क्षण या अवसर
  • क्षणम्—नपुं॰—-—क्षण् + अच्—उत्सव, हर्ष, खुशी
  • क्षणम्—नपुं॰—-—क्षण् + अच्—आश्रय, दासता
  • क्षणम्—नपुं॰—-—क्षण् + अच्—केन्द्र, मध्यभाग
  • क्षणान्तरे—अव्य॰—क्षण-अन्तरे—-—दूसरे क्षण, कुछ देर के पश्चात
  • क्षणक्षेपः—पुं॰—क्षण-क्षेपः—-—क्षणिक विलंब
  • क्षणदः—पुं॰—क्षण-दः—-—ज्योतिषी
  • क्षणदम्—नपुं॰—क्षण-दम्—-—पानी
  • क्षणदा—स्त्री॰—क्षण-दा—-—रात
  • क्षणदा—स्त्री॰—क्षण-दा—-—हल्दी
  • क्षणदकरः—पुं॰—क्षण-द-करः—-—चाँद
  • क्षणदपतिः—पुं॰—क्षण-द-पतिः—-—चाँद
  • क्षणदचरः—पुं॰—क्षण-द-चरः—-—रात में घूमने वाला, राक्षस
  • क्षणदान्ध्यम्—पुं॰—क्षण-द-आन्ध्यम्—-—रात्रि में अन्धापन, रतौंधी
  • क्षणद्युतिः—स्त्री॰—क्षण-द्युतिः—-—बिजली
  • क्षणप्रकाशा—स्त्री॰—क्षण-प्रकाशा—-—बिजली
  • क्षणप्रभा—स्त्री॰—क्षण-प्रभा—-—बिजली
  • क्षणनिश्वासः—पुं॰—क्षण-निश्वासः—-—शिंशुक
  • क्षणभङ्गुर—वि॰—क्षण-भङ्गुर—-—क्षणस्थायी, चंचल, नश्वर
  • क्षणमात्रम्—अव्य॰—क्षण-मात्रम्—-—क्षणभर के लिए
  • क्षणरामिन्—पुं॰—क्षण-रामिन्—-—कबूतर
  • क्षणविध्वंसिन्—वि॰—क्षण-विध्वंसिन्—-—क्षणभर में नष्ट होने वाला
  • क्षणविध्वंसिन्—पुं॰—क्षण-विध्वंसिन्—-—नास्तिक दार्शनिकों का सम्प्रदाय जो यह मानता है कि प्रकृति का प्रत्येक पदार्थ प्रतिक्षण नष्ट होकर नया बनता रहता हैं।
  • क्षणतुः—पुं॰—-—क्षण् + अतु—घाव, फोड़ा
  • क्षणनम्—नपुं॰—-—क्षण् + ल्युट्—क्षति पहुँचाना, घायल करना, मार डालना
  • क्षणिक—वि॰—-—क्षण + ठन्—क्षणस्थायी, अचिरस्थायी
  • क्षणिका—स्त्री॰—-—क्षण + ठन्—बिजली
  • क्षणिन्—वि॰—-—क्षण + इनि—अवकाश रखने वाला
  • क्षणिन्—वि॰—-—क्षण + इनि—क्षणस्थायी
  • क्षणिनी—स्त्री॰—-—क्षण + इनि—बिजली
  • क्षत—वि॰—-—क्षण् + क्त—घायल, चोट लगा हुआ, क्षतिग्रस्त, काटा हुआ, फाड़ा हुआ, चीरा हुआ, तोड़ा हुआ
  • क्षतम्—नपुं॰—-—क्षण् + क्त—खरोच
  • क्षतम्—नपुं॰—-—क्षण् + क्त—घाव, चोट, क्षति
  • क्षतम्—नपुं॰—-—क्षण् + क्त—भय, विनाश, खतरा
  • क्षतअरि—वि॰—क्षत-अरि—-—विजयी
  • क्षतउदरम्—नपुं॰—क्षत-उदरम्—-—पेचिश
  • क्षतकासः—पुं॰—क्षत-कासः—-—आघात से उत्पन्न खांसी
  • क्षतजम्—नपुं॰—क्षत-जम्—-—रूधिर
  • क्षतजम्—नपुं॰—क्षत-जम्—-—पीप, मवाद
  • क्षतयोनिः—स्त्री॰—क्षत-योनिः—-—भ्रष्ट स्त्री, वह स्त्री जिसका कौमार्य भंग हो चुका हो
  • क्षतविक्षत—वि॰—क्षत-विक्षत—-—विक्षतांग, जिसका शरीर बहुत जगह से कट गया हो, तथा घावों से भरा हो
  • क्षतवृत्तिः—स्त्री॰—क्षत-वृत्तिः—-—दरिद्रता, जीविका के साधनों से वंचित
  • क्षतव्रतः—पुं॰—क्षत-व्रतः—-—वह विद्यार्थी जिसने अपनी धार्मिक प्रतिज्ञा या व्रत भंग कर दिया हो
  • क्षतिः—स्त्री॰—-—क्षण् +क्तिन्—चोट, घाव
  • क्षतिः—स्त्री॰—-—क्षण् +क्तिन्—नाश, काट, फाड़
  • क्षतिः—स्त्री॰—-—क्षण् +क्तिन्—बर्बादी, हानि, नुकसान
  • क्षतिः—स्त्री॰—-—क्षण् +क्तिन्—ह्रास, क्षय, न्यूनता
  • क्षत्तृ—पुं॰—-—क्षद् + तृच्—जो काटने और रूपरेखा खोदने का काम करता है
  • क्षत्तृ—पुं॰—-—क्षद् + तृच्—परिचारक, द्वारपाल
  • क्षत्तृ—पुं॰—-—क्षद् + तृच्—कोचवान, सारथि
  • क्षत्तृ—पुं॰—-—क्षद् + तृच्—शुद्रपिता तथा क्षत्रिय माता से उत्पन्न संतान
  • क्षत्तृ—पुं॰—-—क्षद् + तृच्—दासी का पुत्र
  • क्षत्तृ—पुं॰—-—क्षद् + तृच्—ब्रह्मा
  • क्षत्तृ—पुं॰—-—क्षद् + तृच्—मछली
  • क्षत्रः—पुं॰—-—क्षण् + क्विप् = क्षत्, ततः त्रायते - त्रै + क—अधिराज्य, शक्ति, प्रभुता, सामर्थ्य
  • क्षत्रः—पुं॰—-—क्षण् + क्विप् = क्षत्, ततः त्रायते - त्रै + क—क्षत्रिय जाति का पुरूष
  • क्षत्रान्तकः—पुं॰—क्षत्र-अन्तकः—-—परशुराम का विशेषण
  • क्षत्रधर्मः—पुं॰—क्षत्र-धर्मः—-—बहादुरी, सैनिक शूरवीरता
  • क्षत्रधर्मः—पुं॰—क्षत्र-धर्मः—-—क्षत्रिय के कर्तव्य
  • क्षत्रपः—पुं॰—क्षत्र-पः—-—राज्यपाल, उपशासक
  • क्षत्रबन्धुः—पुं॰—क्षत्र-बन्धुः—-—क्षत्रिय जाति का पुरूष
  • क्षत्रबन्धुः—पुं॰—क्षत्र-बन्धुः—-—क्षत्रिय मात्र, अपक्षत्रिय, घृणित या निकम्मा क्षत्रिय
  • क्षत्रम्—नपुं॰—-—क्षण् + क्विप् = क्षत्, ततः त्रायते - त्रै + क—अधिराज्य, शक्ति, प्रभुता, सामर्थ्य
  • क्षत्रम्—नपुं॰—-—क्षण् + क्विप् = क्षत्, ततः त्रायते - त्रै + क—क्षत्रिय जाति का पुरूष
  • क्षत्रान्तकः—पुं॰—क्षत्रम्-अन्तकः—-—परशुराम का विशेषण
  • क्षत्रधर्मः—पुं॰—क्षत्रम्-धर्मः—-—बहादुरी, सैनिक शूरवीरता
  • क्षत्रधर्मः—पुं॰—क्षत्रम्-धर्मः—-—क्षत्रिय के कर्तव्य
  • क्षत्रपः—पुं॰—क्षत्रम्-पः—-—राज्यपाल, उपशासक
  • क्षत्रबन्धुः—पुं॰—क्षत्रम्-बन्धुः—-—क्षत्रिय जाति का पुरूष
  • क्षत्रबन्धुः—पुं॰—क्षत्रम्-बन्धुः—-—क्षत्रिय मात्र, अपक्षत्रिय, घृणित या निकम्मा क्षत्रिय
  • क्षत्रियः—पुं॰—-—क्षत्रे राष्ट्रे साधु तस्यापत्यं जातौ वा घः तारा॰)—दूसरे वर्ण या सैनिक जाति का पुरूष
  • क्षत्रियहणः—पुं॰—क्षत्रिय-हणः—-—परशुराम का विशेषण
  • क्षत्रियका—स्त्री॰—-—क्षत्रिया + कन् + टाप्, ह्रस्वः —क्षत्रिय जाति का स्त्री
  • क्षत्रिया—स्त्री॰—-—क्षत्रिय + टाप् —क्षत्रिय जाति का स्त्री
  • क्षत्रियिका—स्त्री॰—-—क्षत्रिया + कन् + टाप् इत्वम् वा—क्षत्रिय जाति का स्त्री
  • क्षत्रियाणी—स्त्री॰—-—क्षत्रिया + ङीष्, आनुक्—क्षत्रिय जाति का स्त्री
  • क्षत्रियाणी—स्त्री॰—-—क्षत्रिया + ङीष्, आनुक्—क्षत्रिय की पत्नी
  • क्षन्तृ—वि॰—-—क्षम् + तृच्—प्रशान्त, सहिष्णु, विनम्र
  • क्षप्—भ्वा॰ <क्षपति>, <क्षपते>, <क्षपित>—-—-—उपवास करना, संयमी होना
  • क्षप्—भ्वा॰ <क्षपति>, <क्षपते>, <क्षपित>—-—-—फेकना, भेजना, डालना
  • क्षप्—भ्वा॰ <क्षपति>, <क्षपते>, <क्षपित>—-—-—चूक जाना
  • क्षपणः—पुं॰—-—क्षप् + ल्युट्—बौद्धभिक्षु
  • क्षपणम्—नपुं॰—-—क्षप् + ल्युट्—अपवित्रता, अशौच
  • क्षपणम्—नपुं॰—-—क्षप् + ल्युट्—नाश करना, दबाना, निकाल देना
  • क्षपणकः—पुं॰—-—क्षपण + कन्—बौद्ध या जैन साधु
  • क्षपणी—स्त्री॰—-—क्षप् + ल्युट् + ङीष्—चप्पू
  • क्षपणी—स्त्री॰—-—क्षप् + ल्युट् + ङीष्—जाल
  • क्षपण्युः—पुं॰—-—क्षप् + अन्यु, णत्वम्—अपराध
  • क्षपा—स्त्री॰—-—क्षप् + अच् + टाप्—रात
  • क्षपा—स्त्री॰—-—क्षप् + अच् + टाप्—हल्दी
  • क्षपाटः—पुं॰—क्षपा-अटः—-—रात में घूमने वाला
  • क्षपाटः—पुं॰—क्षपा-अटः—-—राक्षस, पिशाच
  • क्षपाकरः—पुं॰—क्षपा-करः—-—चन्द्रमा
  • क्षपाकरः—पुं॰—क्षपा-करः—-—कपूर
  • क्षपानाथः—पुं॰—क्षपा-नाथः—-—चन्द्रमा
  • क्षपानाथः—पुं॰—क्षपा-नाथः—-—कपूर
  • क्षपाघनः—पुं॰—क्षपा-घनः—-—काला बादल
  • क्षपाचरः—पुं॰—क्षपा-चरः—-—राक्षस, पिशाच
  • क्षम्—भ्वा॰ आ॰ <क्षमते>, <क्षाम्यति>, <क्षान्त> या <क्षमित>—-—-—अनुमति देना, इजाजत देना, चलने देना
  • क्षम्—भ्वा॰ आ॰ <क्षमते>, <क्षाम्यति>, <क्षान्त> या <क्षमित>—-—-—क्षमा करना, माफ करना देना
  • क्षम्—भ्वा॰ आ॰ <क्षमते>, <क्षाम्यति>, <क्षान्त> या <क्षमित>—-—-—धैर्यवान होना, चुप होना, प्रतीक्षा करना
  • क्षम्—भ्वा॰ आ॰ <क्षमते>, <क्षाम्यति>, <क्षान्त> या <क्षमित>—-—-—सहन करना, गम का जाना, भुगतना
  • क्षम्—भ्वा॰ आ॰ <क्षमते>, <क्षाम्यति>, <क्षान्त> या <क्षमित>—-—-—विरोध करना, रोकना
  • क्षम्—भ्वा॰ आ॰ <क्षमते>, <क्षाम्यति>, <क्षान्त> या <क्षमित>—-—-—सक्षम या योग्य होना
  • क्षम—वि॰—-—क्षम् + अच्—धैर्यवान
  • क्षम—वि॰—-—क्षम् + अच्—सहनशील, विनम्र
  • क्षम—वि॰—-—क्षम् + अच्—पर्याप्त, सक्षम, योग्य
  • क्षम—वि॰—-—क्षम् + अच्—समुपयुक्त, योग्य, उचित, उपयुक्त
  • क्षम—वि॰—-—क्षम् + अच्—योग्य, समर्थ, अनुरूप
  • क्षम—वि॰—-—क्षम् + अच्—सहने योग्य, सह्य
  • क्षम—वि॰—-—क्षम् + अच्—अनुकूल, मित्रवत्
  • क्षमा—स्त्री॰—-—क्षम् + अङ् + टाप्—धैर्य, सहिष्णुता, माफी
  • क्षमा—स्त्री॰—-—क्षम् + अङ् + टाप्—पृथ्वी
  • क्षमा—स्त्री॰—-—क्षम् + अङ् + टाप्—दुर्गा का विशेषण
  • क्षमाजः—पुं॰—क्षमा-जः—-—मंगलग्रह
  • क्षमाभुज्—पुं॰—क्षमा-भुज्—-—राजा
  • क्षमाभुजः—पुं॰—क्षमा-भुजः—-—राजा
  • क्षमितृ—वि॰—-—क्षम् + तृच्, स्त्रियाँ ङीप्—धैर्यवान, सहनशील, क्षमा करने के स्वभाव वाला
  • क्षमिन्—वि॰—-—क्षम् + घिनुण्, स्त्रियाँ ङीप्—धैर्यवान, सहनशील, क्षमा करने के स्वभाव वाला
  • क्षयः—पुं॰—-—क्षि + अच्—घर, निवास, आवास
  • क्षयः—पुं॰—-—क्षि + अच्—हानि, ह्रास, छीजन, घटाव, पतन, न्य़ूनता
  • क्षयः—पुं॰—-—क्षि + अच्—विनाश, अंत, समाप्ति
  • क्षयः—पुं॰—-—क्षि + अच्—आर्थिक क्षति
  • क्षयः—पुं॰—-—क्षि + अच्—गिरना
  • क्षयः—पुं॰—-—क्षि + अच्—हटाना
  • क्षयः—पुं॰—-—क्षि + अच्—प्रलय
  • क्षयः—पुं॰—-—क्षि + अच्—तपेदिक
  • क्षयः—पुं॰—-—क्षि + अच्—रोग
  • क्षयः—पुं॰—-—क्षि + अच्—निर्गुणता, ऋण
  • क्षयकर—वि॰—क्षय-कर—-—नाश या तबाही करने वाला, बर्बादी करने वाला
  • क्षयकालः—पुं॰—क्षय-कालः—-—प्रलयकाल
  • क्षयकालः—पुं॰—क्षय-कालः—-—अवनति का समय
  • क्षयकासः—पुं॰—क्षय-कासः—-—तपेदिक की खांसी
  • क्षयपक्षः—पुं॰—क्षय-पक्षः—-—कृष्णपक्ष, अँधेरापक्ष
  • क्षययुक्तिः—स्त्री॰—क्षय-युक्तिः—-—नाश करने का अवसर
  • क्षययोगः—पुं॰—क्षय-योगः—-—नाश करने का अवसर
  • क्षयरोगः—पुं॰—क्षय-रोगः—-—तपेदिक, राज्यक्षमा
  • क्षयवायुः—पुं॰—क्षय-वायुः—-—प्रलयकाल की हवा
  • क्षयसम्पद्—स्त्री॰—क्षय-सम्पद्—-—सर्वनाश, बर्बादी
  • क्षयथु—नपुं॰—-—क्षि + अथुच्—तपेदिक के रोगी की खांसी, तपेदिक
  • क्षयिन्—वि॰—-—क्षय + इनि—ह्रासमान, मुर्झाने वाला
  • क्षयिन्—वि॰—-—क्षय + इनि—क्षयरोगग्रस्त
  • क्षयिन्—वि॰—-—क्षय + इनि—नश्वर, भंगुर
  • क्षयिन्—पुं॰—-—क्षय + इनि—चन्द्रमा
  • क्षयिष्णु—वि॰—-—क्षि + इष्णुच्—बर्बाद करने वाला, नाश कारी
  • क्षयिष्णु—वि॰—-—क्षि + इष्णुच्—नश्वर, भंगुर
  • क्षर्—भ्वा॰ पर॰ <क्षरति>, <क्षरित>—-—-—बहना, सरकना
  • क्षर्—भ्वा॰ पर॰ <क्षरति>, <क्षरित>—-—-—भेज देना, नदी की भाँति बहना, उडेलना, निकालना
  • क्षर्—भ्वा॰ पर॰ <क्षरति>, <क्षरित>—-—-—बूँद-बूँद करके गिरना, टपकना, रिसना
  • क्षर्—भ्वा॰ पर॰ <क्षरति>, <क्षरित>—-—-—नष्ट होना, घटना, मिटना
  • क्षर्—भ्वा॰ पर॰ <क्षरति>, <क्षरित>—-—-—व्यर्थ होना, प्रभाव न होना
  • क्षर्—भ्वा॰ पर॰ <क्षरति>, <क्षरित>—-—-—खिसकना, वञ्चित होना
  • क्षर्—भ्वा॰ पर॰, प्रेर॰—-—-—आरोप लगाना, बदनाम करना
  • विक्षर्—भ्वा॰ पर॰—वि-क्षर्—-—पिघलना, घुल जाना
  • क्षर—वि॰—-—क्षर् + अच्—पिघलने वाला
  • क्षर—वि॰—-—क्षर् + अच्—जंगम
  • क्षर—वि॰—-—क्षर् + अच्—नश्वर
  • क्षरः—पुं॰—-—क्षर् + अच्—बादल
  • क्षरन्—नपुं॰—-—-—पानी
  • क्षरन्—नपुं॰—-—-—शरीर
  • क्षरनम्—नपुं॰—-—क्षर् + ल्युट्—बहने, टपकने, बूँद-बूँद गिरने और रिसने की क्रिया
  • क्षरनम्—नपुं॰—-—क्षर् + ल्युट्—पसीना आ जाना
  • क्षरिन्—पुं॰—-—क्षर + इनि—बरसात का मौसम
  • क्षल्—चुरा॰ उभ॰ <क्षालयति>, <क्षालयते>, <क्षालित>—-—-—धोना, धो देना, पवित्र करना, साफ करना
  • क्षल्—चुरा॰ उभ॰ <क्षालयति>, <क्षालयते>, <क्षालित>—-—-—मिटा देना
  • विक्षल्—चुरा॰ उभ॰—वि-क्षल्—-—धोकर साफ करना
  • क्षवः—पुं॰—-—क्षु + अप्—छींक
  • क्षवः—पुं॰—-—क्षु + अप्—खांसी
  • क्षवथुः—पुं॰—-—क्षु + अथुच् —छींक
  • क्षवथुः—पुं॰—-—क्षु + अथुच् —खांसी
  • क्षात्र—वि॰—-—क्षत्र + अण्—सैनिक जाति से संबंध रखने वाला
  • क्षात्रम्—नपुं॰—-—क्षत्र + अण्—क्षत्रिय जाति
  • क्षात्रम्—नपुं॰—-—क्षत्र + अण्—क्षत्रिय के गुण
  • क्षान्त—भू॰ क॰ कृ॰—-—क्षम् + क्त—धैर्यवान्, सहन शील, सहिष्णु
  • क्षान्त—भू॰ क॰ कृ॰—-—क्षम् + क्त—क्षमा किया गया
  • क्षान्ता—स्त्री॰—-—-—पृथ्वी
  • क्षान्तिः—स्त्री॰—-—-—धैर्य, सहनशीलता, क्षमा
  • क्षान्तु—वि॰—-—क्षम् + तुन् , वृद्धि—धैर्यवान, सहनशील
  • क्षान्तुः—पुं॰—-—क्षम् + तुन् , वृद्धि—पिता
  • क्षाम—वि॰—-—क्षै + क्त—दग्ध, झुलसा हुआ
  • क्षाम—वि॰—-—क्षै + क्त—क्षीण, पतला, परिक्षीण, कृश, दुबला-पतला
  • क्षाम—वि॰—-—क्षै + क्त—क्षुद्र, तुच्छ, अल्प
  • क्षाम—वि॰—-—क्षै + क्त—दुर्बल, निःशक्त
  • क्षार—वि॰—-—क्षर् + ण बा॰—संक्षरणशील, क्षारक या दाहक, तिक्त, चरपरा, कटु, खारी
  • क्षारः—पुं॰—-—क्षर् + ण बा॰—रस, अर्क
  • क्षारः—पुं॰—-—क्षर् + ण बा॰—शीरा, राब
  • क्षारः—पुं॰—-—क्षर् + ण बा॰—कोई क्षारीय या खट्टा पदार्थ
  • क्षारः—पुं॰—-—क्षर् + ण बा॰—शीशा
  • क्षारः—पुं॰—-—क्षर् + ण बा॰—बदमाश, ठग
  • क्षारम्—नपुं॰—-—क्षर् + ण बा॰—काला नमक
  • क्षारम्—नपुं॰—-—क्षर् + ण बा॰—पानी
  • क्षाराच्छम्—नपुं॰—क्षार-अच्छम्—-—समुद्री नमक
  • क्षाराञ्जनम्—नपुं॰—क्षार-अञ्जनम्—-—सज्जी का लेप
  • क्षाराम्बु—नपुं॰—क्षार-अम्बु—-—खारी रस या खारा पानी
  • क्षारोदः—पुं॰—क्षार-उदः—-—खारा समुद्र
  • क्षारोदकः—पुं॰—क्षार-उदकः—-—खारा समुद्र
  • क्षारोदधिः—पुं॰—क्षार-उदधिः—-—खारा समुद्र
  • क्षारसमुद्रः—पुं॰—क्षार-समुद्रः—-—खारा समुद्र
  • क्षारत्रयम्—नपुं॰—क्षार-त्रयम्—-—सज्जी, शोरा, सुहागा
  • क्षारत्रियतम्—नपुं॰—क्षार-त्रियतम्—-—सज्जी, शोरा, सुहागा
  • क्षारनदी—स्त्री॰—क्षार-नदी—-—नरक में खारे पानी की नदी
  • क्षारभूमिः—स्त्री॰—क्षार-भूमिः—-—रिहाली भूमि
  • क्षारमृत्तिका—स्त्री॰—क्षार-मृत्तिका—-—रिहाली भूमि
  • क्षारमेलकः—पुं॰—क्षार-मेलकः—-—खारा पदार्थ
  • क्षाररसः—पुं॰—क्षार-रसः—-—खारा रस
  • क्षारकः—पुं॰—-—क्षार + कन्—खार, रेह
  • क्षारकः—पुं॰—-—क्षार + कन्—रस, अर्क
  • क्षारकः—पुं॰—-—क्षार + कन्—पिंजरा, पक्षियों की रहने की टोकरी या जाल
  • क्षारकः—पुं॰—-—क्षार + कन्—धोबी
  • क्षारकः—पुं॰—-—क्षार + कन्—मंजरी, कलिका
  • क्षारणम्—नपुं॰—-—क्षर् + णिच् + ल्युट्, युच् वा—दोषारोपण, विशेषकर व्याभिचार का
  • क्षारणा—स्त्री॰—-—क्षर् + णिच् + ल्युट्, युच् वा—दोषारोपण, विशेषकर व्याभिचार का
  • क्षारिका—स्त्री॰—-—क्षर् + ण्वुल् + टाप्, इत्वम्—भूख
  • क्षारित—वि॰—-—-—खारे पानी में से टपकाया हुआ
  • क्षारित—वि॰—-—-—जिस पर मिथ्या अपवाद लगाया गया हो
  • क्षालनम्—नपुं॰—-—क्षल् + णिच् + ल्युट्—धोना, साफ करना
  • क्षालनम्—नपुं॰—-—क्षल् + णिच् + ल्युट्—छिड़कना
  • क्षालित—वि॰—-—क्षल् + णिच् + क्त—धोया हुआ, साफ किया हुआ, पवित्र किया हुआ
  • क्षालित—वि॰—-—क्षल् + णिच् + क्त—पोंछा हुआ, प्रतिदत्त
  • क्षि—भ्वा॰ पर॰ <क्षयति>, <क्षित>, <क्षीण>—-—-—मुर्झाना, छीजना
  • क्षि—भ्वा॰ स्वा॰ क्र्या॰ <क्षयति>, <क्षिणोति>, <क्षिणाति>—-—-—नष्त करना, ग्रस्त कर लेना, बर्बाद करना, भ्रष्ट करना
  • क्षि—भ्वा॰ स्वा॰ क्र्या॰ <क्षयति>, <क्षिणोति>, <क्षिणाति>—-—-—न्यून करना, बर्बाद करना
  • क्षि—भ्वा॰ स्वा॰ क्र्या॰ <क्षयति>, <क्षिणोति>, <क्षिणाति>—-—-—मार डालना, क्षति पहुँचाना
  • क्षि—भ्वा॰ स्वा॰ पर॰ <क्षयति>, <क्षिणोति>, <क्षिणाति>—-—-—नष्त करना, ग्रस्त कर लेना, बर्बाद करना, भ्रष्ट करना
  • क्षि—भ्वा॰ स्वा॰ पर॰ <क्षयति>, <क्षिणोति>, <क्षिणाति>—-—-—न्यून करना, बर्बाद करना
  • क्षि—भ्वा॰ स्वा॰ पर॰ <क्षयति>, <क्षिणोति>, <क्षिणाति>—-—-—मार डालना, क्षति पहुँचाना
  • क्षि—भ्वा॰ स्वा॰, कर्मवाच्य॰ <क्षीयते>—-—-—बर्बाद होना, घटना, नष्ट होना, न्यून होना
  • क्षि—भ्वा॰ स्वा॰ पर॰—-—-—नष्ट करना, दूर हटा देना, समाप्त कर देना
  • क्षि—भ्वा॰ स्वा॰ पर॰—-—-—समय बिताना
  • अपक्षि—भ्वा॰ स्वा॰ पर॰—अप-क्षि—-—घटना, क्षीण होना, न्यून होना
  • परिक्षि—भ्वा॰ स्वा॰ पर॰—परि-क्षि—-—कम होना, क्षीण होना
  • परिक्षि—भ्वा॰ स्वा॰ पर॰—परि-क्षि—-—कृश होना, दुबला-पतला होना
  • प्रक्षि—भ्वा॰ स्वा॰ पर॰—प्र-क्षि—-—कम होना, क्षीण होना
  • प्रक्षि—भ्वा॰ स्वा॰ पर॰—प्र-क्षि—-—कृश होना, दुबला-पतला होना
  • सङ्क्षि—भ्वा॰ स्वा॰ पर॰—सम्-क्षि—-—कम होना, क्षीण होना
  • सङ्क्षि—भ्वा॰ स्वा॰ पर॰—सम्-क्षि—-—कृश होना, दुबला-पतला होना
  • क्षितिः—स्त्री॰—-—क्षि + क्तिन्—पृथ्वी
  • क्षितिः—स्त्री॰—-—क्षि + क्तिन्—निवास, आवास, घर
  • क्षितिः—स्त्री॰—-—क्षि + क्तिन्—हानि, विनाश
  • क्षितिः—स्त्री॰—-—क्षि + क्तिन्—प्रलय
  • क्षितीशः—पुं॰—क्षिति-ईशः—-—राजा
  • क्षितीश्वरः—पुं॰—क्षिति-ईश्वरः—-—राजा
  • क्षितिकणः—पुं॰—क्षिति-कणः—-—धूल
  • क्षितिकम्पः—पुं॰—क्षिति-कम्पः—-—भूचाल
  • क्षितिक्षित्—पुं॰—क्षिति-क्षित्—-—राजा, राजकुमार
  • क्षितिजः—पुं॰—क्षिति-जः—-—वृक्ष
  • क्षितिजः—पुं॰—क्षिति-जः—-—गंडोआ, केंचुआ
  • क्षितिजः—पुं॰—क्षिति-जः—-—मंगल ग्रह
  • क्षितिजः—पुं॰—क्षिति-जः—-—विष्णु के द्वारा मारा गया नरक नाम का राक्षस
  • क्षितिजम्—नपुं॰—क्षिति-जम्—-—जहाँ पृथ्वी और आकाश मिलते हुए प्रतीत होते हैं
  • क्षितिजा—स्त्री॰—क्षिति-जा—-—सीता का विशेषण
  • क्षितितलम्—नपुं॰—क्षिति-तलम्—-—पृथ्वी की सतह
  • क्षितिदेवः—पुं॰—क्षिति-देवः—-—ब्राह्मण
  • क्षितिधरः—पुं॰—क्षिति-धरः—-—पहाड़
  • क्षितिनाथः—पुं॰—क्षिति-नाथः—-—राजा, प्रभु
  • क्षितिपः—पुं॰—क्षिति-पः—-—राजा, प्रभु
  • क्षितिपतिः—पुं॰—क्षिति-पतिः—-—राजा, प्रभु
  • क्षितिपालः—पुं॰—क्षिति-पालः—-—राजा, प्रभु
  • क्षितिभुज्—पुं॰—क्षिति-भुज्—-—राजा, प्रभु
  • क्षितिरक्षिन्—पुं॰—क्षिति-रक्षिन्—-—राजा, प्रभु
  • क्षितिपुत्रः—पुं॰—क्षिति-पुत्रः—-—मंगल ग्रह
  • क्षितिप्रतिष्ठ—वि॰—क्षिति-प्रतिष्ठ—-—पृथ्वी पर रहने वाला
  • क्षितिभृत्—पुं॰—क्षिति-भृत्—-—पहाड़
  • क्षितिभृत्—पुं॰—क्षिति-भृत्—-—राजा
  • क्षितिमण्डलम्—नपुं॰—क्षिति-मण्डलम्—-—भूमण्डल
  • क्षितिरन्ध्रम्—नपुं॰—क्षिति-रन्ध्रम्—-—खाई, खोडर
  • क्षितिरुह्—पुं॰—क्षिति-रुह्—-—वृक्ष
  • क्षितिवर्धनः—पुं॰—क्षिति-वर्धनः—-—शव, मुर्दा शरीर
  • क्षितिवृत्तिः—स्त्री॰—क्षिति-वृत्तिः—-—पृथ्वी की गति, धैर्ययुक्तव्यवहार
  • क्षितिव्युदासः—पुं॰—क्षिति-व्युदासः—-—गुफा, बिल
  • क्षिद्रः—पुं॰—-—क्षिंद् + रक्—रोग
  • क्षिद्रः—पुं॰—-—क्षिंद् + रक्—सूर्य
  • क्षिद्रः—पुं॰—-—क्षिंद् + रक्—सींग
  • क्षिप्—तुदा॰ उभ॰ <क्षिपति>, <क्षिपते>—-—-—फेंकना, डालना, भेजना, प्रेषित करना, विसर्जन, जाने देना
  • क्षिप्—तुदा॰ उभ॰ <क्षिपति>, <क्षिपते>—-—-—रखना, पहनना, लगाना
  • क्षिप्—तुदा॰ उभ॰ <क्षिपति>, <क्षिपते>—-—-—आरोपित करना, लगाना
  • क्षिप्—तुदा॰ उभ॰ <क्षिपति>, <क्षिपते>—-—-—फेंक देना, डाल देना, उतार देना, मुक्त होना
  • क्षिप्—तुदा॰ उभ॰ <क्षिपति>, <क्षिपते>—-—-—दूर करना, नष्ट करना
  • क्षिप्—तुदा॰ उभ॰ <क्षिपति>, <क्षिपते>—-—-—अस्वीकार करना, घृणा करना
  • क्षिप्—तुदा॰ उभ॰ <क्षिपति>, <क्षिपते>—-—-—अपमान करना, भर्त्सना करना, दुर्वचन कहना, धमकाना
  • क्षिप्—दिवा॰ पर॰ <क्षिप्यति>, <क्षिप्त>—-—-—फेंकना, डालना, भेजना, प्रेषित करना, विसर्जन, जाने देना
  • क्षिप्—दिवा॰ पर॰ <क्षिप्यति>, <क्षिप्त>—-—-—रखना, पहनना, लगाना
  • क्षिप्—दिवा॰ पर॰ <क्षिप्यति>, <क्षिप्त>—-—-—आरोपित करना, लगाना
  • क्षिप्—दिवा॰ पर॰ <क्षिप्यति>, <क्षिप्त>—-—-—फेंक देना, डाल देना, उतार देना, मुक्त होना
  • क्षिप्—दिवा॰ पर॰ <क्षिप्यति>, <क्षिप्त>—-—-—दूर करना, नष्ट करना
  • क्षिप्—दिवा॰ पर॰ <क्षिप्यति>, <क्षिप्त>—-—-—अस्वीकार करना, घृणा करना
  • क्षिप्—दिवा॰ पर॰ <क्षिप्यति>, <क्षिप्त>—-—-—अपमान करना, भर्त्सना करना, दुर्वचन कहना, धमकाना
  • अधिक्षिप्—तुदा॰ उभ॰,दिवा॰ पर॰—अधि-क्षिप्—-—निन्दा करना, कलंक लगाना
  • अधिक्षिप्—तुदा॰ उभ॰,दिवा॰ पर॰—अधि-क्षिप्—-—नाराज करना, अपवाद करना
  • अधिक्षिप्—तुदा॰ उभ॰,दिवा॰ पर॰—अधि-क्षिप्—-—आगे बढ़ जाना
  • अवक्षिप्—तुदा॰ उभ॰,दिवा॰ पर॰—अव-क्षिप्—-—उतार फेंकना, छोड़ना, त्यागना
  • अवक्षिप्—तुदा॰ उभ॰,दिवा॰ पर॰—अव-क्षिप्—-—तिरस्कार करना, भर्त्सना करना
  • आक्षिप्—तुदा॰ उभ॰,दिवा॰ पर॰—आ-क्षिप्—-—फेंकना, डाल देना, प्रहार करना
  • आक्षिप्—तुदा॰ उभ॰,दिवा॰ पर॰—आ-क्षिप्—-—सिकोड़ना
  • आक्षिप्—तुदा॰ उभ॰,दिवा॰ पर॰—आ-क्षिप्—-—वापिस लेना, छीनना, खींचना, ले लेना
  • आक्षिप्—तुदा॰ उभ॰,दिवा॰ पर॰—आ-क्षिप्—-—संकेत करना, इशारा करना
  • आक्षिप्—तुदा॰ उभ॰,दिवा॰ पर॰—आ-क्षिप्—-—परिस्थितियों से अनुमान लगाना
  • आक्षिप्—तुदा॰ उभ॰,दिवा॰ पर॰—आ-क्षिप्—-—आक्षेप करना
  • आक्षिप्—तुदा॰ उभ॰,दिवा॰ पर॰—आ-क्षिप्—-—अवहेलना करना, उपेक्षा करना
  • आक्षिप्—तुदा॰ उभ॰,दिवा॰ पर॰—आ-क्षिप्—-—तिरस्कार करना
  • उत्क्षिप्—तुदा॰ उभ॰,दिवा॰ पर॰—उद्-क्षिप्—-—उछालना
  • उपक्षिप्—तुदा॰ उभ॰,दिवा॰ पर॰—उप-क्षिप्—-—डालना, फेंकना
  • उपक्षिप्—तुदा॰ उभ॰,दिवा॰ पर॰—उप-क्षिप्—-—संकेत करना, इशारा करना, निष्कर्ष निकालना
  • उपक्षिप्—तुदा॰ उभ॰,दिवा॰ पर॰—उप-क्षिप्—-—आरम्भ करना, शुरु करना
  • उपक्षिप्—तुदा॰ उभ॰,दिवा॰ पर॰—उप-क्षिप्—-—अपमान करना, डाटना-फटकारना
  • निक्षिप्—तुदा॰ उभ॰,दिवा॰ पर॰—नि-क्षिप्—-—नीचे रखना, स्थापित करना, धर देना
  • निक्षिप्—तुदा॰ उभ॰,दिवा॰ पर॰—नि-क्षिप्—-—सौपना, देख रेख में सुपुर्द करना
  • निक्षिप्—तुदा॰ उभ॰,दिवा॰ पर॰—नि-क्षिप्—-—शिविर में रखना
  • निक्षिप्—तुदा॰ उभ॰,दिवा॰ पर॰—नि-क्षिप्—-—फेंक देना, अस्वीकार करना
  • निक्षिप्—तुदा॰ उभ॰,दिवा॰ पर॰—नि-क्षिप्—-—प्रदान करना
  • परिक्षिप्—तुदा॰ उभ॰,दिवा॰ पर॰—परि-क्षिप्—-—घेरना
  • परिक्षिप्—तुदा॰ उभ॰,दिवा॰ पर॰—परि-क्षिप्—-—आलिंगन करना
  • पर्याक्षिप्—तुदा॰ उभ॰,दिवा॰ पर॰—पर्या-क्षिप्—-—बाँधना, एकत्र करना
  • प्रक्षिप्—तुदा॰ उभ॰,दिवा॰ पर॰—प्र-क्षिप्—-—रखना, डालना
  • प्रक्षिप्—तुदा॰ उभ॰,दिवा॰ पर॰—प्र-क्षिप्—-—बीच में डालना, अन्तर्हित करना
  • विक्षिप्—तुदा॰ उभ॰,दिवा॰ पर॰—वि-क्षिप्—-—फेंकना, डालना
  • विक्षिप्—तुदा॰ उभ॰,दिवा॰ पर॰—वि-क्षिप्—-—मन मोड़ना
  • विक्षिप्—तुदा॰ उभ॰,दिवा॰ पर॰—वि-क्षिप्—-—ध्यान हटाना
  • संक्षिप्—तुदा॰ उभ॰,दिवा॰ पर॰—सम्-क्षिप्—-—संचय करना, ढेर लगाना
  • संक्षिप्—तुदा॰ उभ॰,दिवा॰ पर॰—सम्-क्षिप्—-—पीछे हटना, नष्ट करना
  • संक्षिप्—तुदा॰ उभ॰,दिवा॰ पर॰—सम्-क्षिप्—-—छोटा करना, कमी करना, संक्षिप्त करना
  • क्षपणम्—नपुं॰—-—क्षिप् + क्युन् बा॰—भेजना, फेंकना, डालना
  • क्षपणम्—नपुं॰—-—क्षिप् + क्युन् बा॰—झिड़कना, दुर्वचन कहना
  • क्षिपणि—स्त्री॰—-—क्षिप् + अनि—चप्पू
  • क्षिपणि—स्त्री॰—-—क्षिप् + अनि—जाल
  • क्षिपणि—स्त्री॰—-—क्षिप् + अनि—हथियार
  • क्षिपणी—स्त्री॰—-—क्षिप् + अनि, क्षिपणि + ङीष्—चप्पू
  • क्षिपणी—स्त्री॰—-—क्षिप् + अनि, क्षिपणि + ङीष्—जाल
  • क्षिपणी—स्त्री॰—-—क्षिप् + अनि, क्षिपणि + ङीष्—हथियार
  • क्षिपणिः—स्त्री॰—-—क्षिप् + अनि, क्षिपणि + ङीष्—प्रहार
  • क्षिपण्युः—पुं॰—-—क्षिप् + क्न्युच्—शरीर
  • क्षिपण्युः—पुं॰—-—क्षिप् + क्न्युच्—वसन्त ऋतु
  • क्षिपा—स्त्री॰—-—क्षिप् + अङ् + टाप्—भेजना, फेंकना, डालना
  • क्षिपा—स्त्री॰—-—क्षिप् + अङ् + टाप्—रात्रि
  • क्षिप्त—भू॰ क॰ कृ॰—-—क्षिप् + क्त—फेंका हुआ, बिखेरा हुआ, उछाला हुआ, डाला हुआ
  • क्षिप्त—भू॰ क॰ कृ॰—-—क्षिप् + क्त—त्यागा हुआ
  • क्षिप्त—भू॰ क॰ कृ॰—-—क्षिप् + क्त—अवज्ञात, उपेक्षित, अनादृत
  • क्षिप्त—भू॰ क॰ कृ॰—-—क्षिप् + क्त—स्थापित
  • क्षिप्त—भू॰ क॰ कृ॰—-—क्षिप् + क्त—ध्यान हटाया हुआ, पागल
  • क्षिप्तम्—नपुं॰—-—क्षिप् + क्त—गोली लगने से बना घाव
  • क्षिप्तकुक्कुरः—पुं॰—क्षिप्तम्-कुक्कुरः—-—पागल कुत्ता
  • क्षिप्तचित्त—वि॰—क्षिप्तम्-चित्त—-—उचाट मन, विमना
  • क्षिप्तदेह—वि॰—क्षिप्तम्-देह—-—प्रसृत शरीर, लेटा हुआ
  • क्षिप्तिः—स्त्री॰—-—क्षिप् + क्तिन्—फेंकना, भेज देना
  • क्षिप्तिः—स्त्री॰—-—क्षिप् + क्तिन्—कूट अर्थ को प्रकट करना
  • क्षिप्र—वि॰—-—क्षिप् + रक्—सजीव, आशुगामी
  • क्षिप्रम्—अव्य॰—-—-—जल्दी, फुर्ती से, तुरन्त
  • क्षिप्रकारिन्—वि॰—क्षिप्रम्-कारिन्—-—आशुकारी, अविलम्बी
  • क्षिया—स्त्री॰—-—क्षि + अङ् + टाप्—हानि, विनाश, बर्वादी, ह्रास
  • क्षिया—स्त्री॰—-—क्षि + अङ् + टाप्—अनौचित्य, सर्वसम्मत आचार का उल्लंघन
  • क्षीजनम्—नपुं॰—-—क्षीज् + ल्युट्—पोले नरकुलों में से निकली हुई सरसराहट की ध्वनि
  • क्षीण—वि॰—-—क्षि + क्त, दीर्घः—पतला, कृश, क्षयप्राप्त, निर्बल घटा हुआ, थका हुआ या समाप्त, खर्च कर डाला हुआ
  • क्षीण—वि॰—-—क्षि + क्त, दीर्घः—सुकुमार, नाजुक
  • क्षीण—वि॰—-—क्षि + क्त, दीर्घः—थोड़ा अल्प
  • क्षीण—वि॰—-—क्षि + क्त, दीर्घः—निर्धन, संकटग्रस्त
  • क्षीण—वि॰—-—क्षि + क्त, दीर्घः—शक्तिहीन, दुर्बल
  • क्षीणचन्द्रः—पुं॰—क्षीण-चन्द्रः—-—घटता हुआ अर्थात् कृष्णपक्ष का चन्द्रमा
  • क्षीणधन—वि॰—क्षीण-धन—-—जिसके पास पैसा न रहा हो, निर्धन
  • क्षीणपाप—वि॰—क्षीण-पाप—-—जो अपने पाप कर्मो का फल भुगत कर निष्पाप हो गया हो
  • क्षीणपुण्य—वि॰—क्षीण-पुण्य—-—जो अपने सब पुण्य कर्मों का फल भोग चुका हो, तथा अगले जन्म के लिए जिसे और पुण्य कार्य करने चाहिए
  • क्षीणमध्य—वि॰—क्षीण-मध्य—-—जिसकी कमर पतली हो
  • क्षीणवासिन्—वि॰—क्षीण-वासिन्—-—खंडहर में रहने वाला
  • क्षीणविक्रान्त—वि॰—क्षीण-विक्रान्त—-—साहसहीन, पौरुषहीन
  • क्षीणवृत्ति—वि॰—क्षीण-वृत्ति—-—जीविका के साधनों से वञ्चित, बेरोजगार
  • क्षीब्—भ्वा॰ - दिवा॰, पर॰ <क्षीबति>, <क्षीब्यति>—-—-—मतवाला होना, मदोन्मत्त होना, नशे में होना
  • क्षीब्—भ्वा॰ - दिवा॰, पर॰ <क्षीबति>, <क्षीब्यति>—-—-—थूकना, मुंह से निकालना
  • क्षीब—वि॰—-—क्षीब् + क्त नि॰—उत्तेजित, मतवाला, मदोन्मत्त
  • क्षीरः—पुं॰—-—घस्यते अद्यसे घस् + ईरन्, उपधालोपः, घस्य ककारः षत्वं च—दूध
  • क्षीरः—पुं॰—-—घस्यते अद्यसे घस् + ईरन्, उपधालोपः, घस्य ककारः षत्वं च—वृक्षों का दूधिया रस
  • क्षीरः—पुं॰—-—घस्यते अद्यसे घस् + ईरन्, उपधालोपः, घस्य ककारः षत्वं च—जल
  • क्षीरम्—नपुं॰—-—घस्यते अद्यसे घस् + ईरन्, उपधालोपः, घस्य ककारः षत्वं च—दूध
  • क्षीरम्—नपुं॰—-—घस्यते अद्यसे घस् + ईरन्, उपधालोपः, घस्य ककारः षत्वं च—वृक्षों का दूधिया रस
  • क्षीरम्—नपुं॰—-—घस्यते अद्यसे घस् + ईरन्, उपधालोपः, घस्य ककारः षत्वं च—जल
  • क्षीरादः—पुं॰—क्षीर-अदः—-—शिशु, दूध पीता बच्चा
  • क्षीराब्धिः—पुं॰—क्षीर-अब्धिः—-—दुग्धसागर
  • क्षीराब्धिजः—पुं॰—क्षीर-अब्धि-जः—-—चन्द्रमा
  • क्षीराब्धिजः—पुं॰—क्षीर-अब्धि-जः—-—मोती
  • क्षीराब्धिजम्—नपुं॰—क्षीर-अब्धि-जम्—-—समुद्री नमक
  • क्षीराब्धिजा—स्त्री॰—क्षीर-अब्धि-जा—-—लक्ष्मी का विशेषण
  • क्षीराब्धितनया—स्त्री॰—क्षीर-अब्धि-तनया—-—लक्ष्मी का विशेषण
  • क्षीराब्ध्याह्वः—पुं॰—क्षीर-अब्धि-आह्वः—-—सनोवर का वृक्ष
  • क्षीराब्ध्युदः—पुं॰—क्षीर-अब्धि-उदः—-—दुग्धसागर
  • क्षीराब्धितनयः—पुं॰—क्षीर-अब्धि-तनयः—-—चन्द्रमा
  • क्षीराब्धितनया—स्त्री॰—क्षीर-अब्धि-तनया—-—लक्ष्मी का विशेषण
  • क्षीराब्धिसुतः—पुं॰—क्षीर-अब्धि-सुतः—-—लक्ष्मी का विशेषण
  • क्षीरोदधि—पुं॰—क्षीर-उदधि—-—क्षीरोद
  • क्षीरोर्मिः—पुं॰—क्षीर-ऊर्मिः—-—दुग्ध सागर की लहर
  • क्षीरौदनः—पुं॰—क्षीर-ओदनः—-—दूध में उबाले हुए चावल
  • क्षीरकण्ठः—पुं॰—क्षीर-कण्ठः—-—दूध पीता बच्चा
  • क्षीरजम्—नपुं॰—क्षीर-जम्—-—जमा हुआ दूध
  • क्षीरद्रुमः—पुं॰—क्षीर-द्रुमः—-—अश्वत्थवृक्ष
  • क्षीरधात्री—स्त्री॰—क्षीर-धात्री—-—दूध पिलाने वाली नौकरानी, धाय
  • क्षीरधिः—पुं॰—क्षीर-धिः—-—दुग्धसागर
  • क्षीरनिधिः—पुं॰—क्षीर-निधिः—-—दुग्धसागर
  • क्षीरधेनुः—स्त्री॰—क्षीर-धेनुः—-—दूध देने वाली गाय
  • क्षीरनीरम्—नपुं॰—क्षीर-नीरम्—-—पानी और दूध
  • क्षीरनीरम्—नपुं॰—क्षीर-नीरम्—-—दूध जैसा पानी
  • क्षीरनीरम्—नपुं॰—क्षीर-नीरम्—-—गाढ़ालिंगन
  • क्षीरपः—पुं॰—क्षीर-पः—-—बच्चा
  • क्षीरवारिः—पुं॰—क्षीर-वारिः—-—दुग्धसागर
  • क्षीरवारिधिः—पुं॰—क्षीर-वारिधिः—-—दुग्धसागर
  • क्षीरविकृतिः—पुं॰—क्षीर-विकृतिः—-—जमा हुआ दूध
  • क्षीरवृक्षः—पुं॰—क्षीर-वृक्षः—-—बड़, गूलर, पीपल और मधूक नाम के वृक्ष
  • क्षीरवृक्षः—पुं॰—क्षीर-वृक्षः—-—अंजीर
  • क्षीरशरः—पुं॰—क्षीर-शरः—-—मलाई, दूध की मलाई
  • क्षीरसमुद्रः—पुं॰—क्षीर-समुद्रः—-—दुग्धसागर
  • क्षीरसारः—पुं॰—क्षीर-सारः—-—मक्खन
  • क्षीरहिण्डीरः—पुं॰—क्षीर-हिण्डीरः—-—दूध के झाग या फेन
  • क्षीरिका—स्त्री॰—-—क्षीर + ठन् + टाप्—दूध से बना भोज्य पदार्थ
  • क्षीरिन्—वि॰—-—क्षीर + इनि—दूधिया दुधार दूध देने वाला
  • क्षीव्—भ्वा॰ - दिवा॰, पर॰ <क्षीवति>, <क्षीव्यति>—-—-—मतवाला होना, मदोन्मत्त होना, नशे में होना
  • क्षीव्—भ्वा॰ - दिवा॰, पर॰ <क्षीवति>, <क्षीव्यति>—-—-—थूकना, मुंह से निकालना
  • क्षीव—वि॰—-—क्षीव् + क्त नि॰—उत्तेजित, मतवाला, मदोन्मत्त
  • क्षु—अदा॰ पर॰ <क्षौति>, <क्षुत>—-—-—छींकना
  • क्षु—अदा॰ पर॰ <क्षौति>, <क्षुत>—-—-—खाँसना
  • क्षुण्ण—भू॰ क॰ कृ॰—-—क्षुद् + क्त—कूटा हुआ, कुचला हुआ
  • क्षुण्ण—भू॰ क॰ कृ॰—-—क्षुद् + क्त—अभ्यस्त, अनुगत
  • क्षुण्ण—भू॰ क॰ कृ॰—-—क्षुद् + क्त—पीसा हुआ
  • क्षुण्णमनस्—वि॰—क्षुण्ण-मनस्—-—पश्चात्तापी, पछताने वाला
  • क्षुत्—स्त्री॰—-—क्षु + क्विप्, तुगागमः; क्षु + क्त, क्षुत + टाप्—छींकने वाली, छींक
  • क्षुतम्—नपुं॰—-—क्षु + क्विप्, तुगागमः; क्षु + क्त, क्षुत + टाप्—छींकने वाली, छींक
  • क्षुता—स्त्री॰—-—क्षु + क्विप्, तुगागमः; क्षु + क्त, क्षुत + टाप्—छींकने वाली, छींक
  • क्षुद्—रुधा॰, उभ॰ <क्षुणत्ति>, <क्षुते>, <क्षुण्ण>—-—-—कुचलना, घिसना, कुचल डालना, रगड़ना, पीस देना
  • क्षुद्—रुधा॰, उभ॰ <क्षुणत्ति>, <क्षुते>, <क्षुण्ण>—-—-—उत्तेजित करना, क्षुब्ध होना
  • प्रक्षुद्—रुधा॰, उभ॰—प्र-क्षुद्—-—कुचलना, खरोंचना, पीसना
  • क्षुद्र—वि॰—-—क्षुद् + रक्—सूक्ष्म, अल्प, छोटा सा, तुच्छ, हल्का
  • क्षुद्र—वि॰—-—क्षुद् + रक्—कमीना, नीच, दुष्ट, अधम्
  • क्षुद्र—वि॰—-—क्षुद् + रक्—दुष्ट
  • क्षुद्र—वि॰—-—क्षुद् + रक्—क्रूर
  • क्षुद्र—वि॰—-—क्षुद् + रक्—गरीब, दरिद्र
  • क्षुद्र—वि॰—-—क्षुद् + रक्—कृपण, कंजूस
  • क्षुद्रा—स्त्री॰—-—क्षुद् + रक्—मधुमक्खी
  • क्षुद्रा—स्त्री॰—-—क्षुद् + रक्—झगड़ालू स्त्री
  • क्षुद्रा—स्त्री॰—-—क्षुद् + रक्—अपाहिज या विकलांग स्त्री
  • क्षुद्रा—स्त्री॰—-—क्षुद् + रक्—वेश्या
  • क्षुद्राञ्जनम्—नपुं॰—क्षुद्र-अञ्जनम्—-—कुछ रोगों में आंखों में लगाया जाने वाला अंजन या लेप
  • क्षुद्रान्त्रः—पुं॰—क्षुद्र-अन्त्रः—-—हृदय के भीतर का छोटा सा रंध्र
  • क्षुद्रकम्बुः—पुं॰—क्षुद्र-कम्बुः—-—छोटा शंख
  • क्षुद्रकुष्ठम्—नपुं॰—क्षुद्र-कुष्ठम्—-—एक प्रकार का हल्का कोढ़
  • क्षुद्रघण्टिका—स्त्री॰—क्षुद्र-घण्टिका—-—घूँघरू
  • क्षुद्रघण्टिका—स्त्री॰—क्षुद्र-घण्टिका—-—घूँघरू वाली करधनी
  • क्षुद्रचन्दनम्—नपुं॰—क्षुद्र-चन्दनम्—-—लाल चंदन की लकड़ी
  • क्षुद्रजन्तुः—पुं॰—क्षुद्र-जन्तुः—-—कोई भी छोटा जीव
  • क्षुद्रदंशिका—स्त्री॰—क्षुद्र-दंशिका—-—डांस, गोमक्खी
  • क्षुद्रबुद्धि—वि॰—क्षुद्र-बुद्धि—-—ओछे मन का, कमीना
  • क्षुद्ररसः—पुं॰—क्षुद्र-रसः—-—शहद
  • क्षुद्ररोगः—पुं॰—क्षुद्र-रोगः—-—मामूली बीमारी
  • क्षुद्रशङ्खः—पुं॰—क्षुद्र-शङ्खः—-—छोटा शंख या घोंघा
  • क्षुद्रसुवर्णम्—नपुं॰—क्षुद्र-सुवर्णम्—-—हल्का या खोटा सोना अर्थात् पीतल
  • क्षुद्रल—वि॰—-—क्षुद्र + लच्—सूक्ष्म, हल्का
  • क्षुध्—दिवा॰ पर॰ <क्षुध्यति>, <क्षुधित>—-—-—भूखा होना, भूख लगना
  • क्षुध्—स्त्री॰—-—क्षुध् + क्विप्—भूख
  • क्षुधा—स्त्री॰—-—क्षुध् + क्विप्—भूख
  • क्षुधार्त—वि॰—क्षुध्-आर्त—-—क्षुदधापीडित
  • क्षुधाविष्ट—वि॰—क्षुध्-आविष्ट—-—क्षुदधापीडित
  • क्षुत्क्षाम—वि॰—क्षुध्-क्षाम—-—भूखा होने से दुर्बल
  • क्षुत्पिपासित—वि॰—क्षुध्-पिपासित—-—भूखा प्यासा
  • क्षुन्निवृत्तिः—स्त्री॰—क्षुध्-निवृत्तिः—-—भूख शान्त होना
  • क्षुधालु—वि॰—-—क्षुध् + आलुच्—भूखा
  • क्षुधित—वि॰—-—क्षुध् + क्त—भूखा
  • क्षुपः—पुं॰—-—क्षुप् + क—छोटी जडों के वृक्ष, झाड़, झाड़ी
  • क्षुभ्—भ्वा॰ आ॰ , दिवा॰, क्रया॰ पर॰ <क्षोभते>, <क्षुभ्यति>, <क्षुभ्नाति>, <क्षुभित, <क्षुब्ध>—-—-—हिलाना, कंपित करना, क्षुब्ध करना, आन्दोलित करना
  • क्षुभ्—भ्वा॰ आ॰ , दिवा॰, क्रया॰ पर॰ <क्षोभते>, <क्षुभ्यति>, <क्षुभ्नाति>, <क्षुभित, <क्षुब्ध>—-—-—अस्थिर होना
  • क्षुभ्—भ्वा॰ आ॰ , दिवा॰, क्रया॰ पर॰ <क्षोभते>, <क्षुभ्यति>, <क्षुभ्नाति>, <क्षुभित, <क्षुब्ध>—-—-—लड़खड़ाना
  • प्रक्षुभ्—भ्वा॰ आ॰ , दिवा॰, क्रया॰ पर॰—प्र-क्षुभ्—-—कांपना, क्षुब्ध होना, आंदोलित होना
  • विक्षुभ्—भ्वा॰ आ॰ , दिवा॰, क्रया॰ पर॰—वि-क्षुभ्—-—कांपना, क्षुब्ध होना, आंदोलित होना
  • संक्षुभ्—भ्वा॰ आ॰ , दिवा॰, क्रया॰ पर॰—सम्-क्षुभ्—-—कांपना, क्षुब्ध होना, आंदोलित होना
  • क्षुभित—वि॰—-—क्षुभ् + क्त—हिलाया हुआ, आंदोलित आदि
  • क्षुभित—वि॰—-—क्षुभ् + क्त—डरा हुआ
  • क्षुभित—वि॰—-—क्षुभ् + क्त—क्रुद्ध
  • क्षुब्धः—वि॰—-—क्षुभ् + क्त—आन्दोलित, चंचल, अस्थिर
  • क्षुब्धः—वि॰—-—क्षुभ् + क्त—डाँवाडोल
  • क्षुब्धः—वि॰—-—क्षुभ् + क्त—डरा हुआ
  • क्षुब्ध—वि॰—-—क्षुभ् + क्त—मन्थन करने का डंडा
  • क्षुब्ध—वि॰—-—क्षुभ् + क्त—रति क्रिया का विशेषण आसन, रतिबन्ध
  • क्षुमा—स्त्री॰—-—क्षु + मक्—अलसी, एक प्रकार का सन
  • क्षुर्—तुदा॰ पर॰ <क्षुरति>, <क्षुरित>—-—-—काटना, खुरचना
  • क्षुर्—तुदा॰ पर॰ <क्षुरति>, <क्षुरित>—-—-—रेखाएँ खींचना, हल से खेत में खू्ड बनाना
  • क्षुरः—पुं॰—-—क्षुर् + क—उस्तरा
  • क्षुरः—पुं॰—-—क्षुर् + क—उस्तरे जैसी नोंक जो तीर में लगाई जाय
  • क्षुरः—पुं॰—-—क्षुर् + क—गाय या घोड़े का सुम
  • क्षुरः—पुं॰—-—क्षुर् + क—बाण
  • क्षुरकर्मन्—नपुं॰—क्षुर-कर्मन्—-—हजामत बनाना
  • क्षुरक्रिया—स्त्री॰—क्षुर-क्रिया—-—हजामत बनाना
  • क्षुरचतुष्टयम्—नपुं॰—क्षुर-चतुष्टयम्—-—हजामत करने की चार आवश्यक चीजें
  • क्षुरधानम्—नपुं॰—क्षुर-धानम्—-—उस्तरे का खोल
  • क्षुरभाण्डम्—नपुं॰—क्षुर-भाण्डम्—-—उस्तरे का खोल
  • क्षुरधार—वि॰—क्षुर-धार—-—उस्तरे जैसी तेज
  • क्षुरप्रः—पुं॰—क्षुर-प्रः—-—बाण जिसकी नोंक घोडें की नाल जैसी हो
  • क्षुरप्रः—पुं॰—क्षुर-प्रः—-—खुर्पी, घास खोदने का खुर्पा
  • क्षुरमर्दिन्—पुं॰—क्षुर-मर्दिन्—-—नाई
  • क्षुरमुण्डिन्—पुं॰—क्षुर-मुण्डिन्—-—नाई
  • क्षुरिका—स्त्री॰—-—क्षुर् + ङीष् + कन् + टाप्, ह्रस्वः—चाकू, छुरी
  • क्षुरिका—स्त्री॰—-—क्षुर् + ङीष् + कन् + टाप्, ह्रस्वः—छोटा उस्तरा
  • क्षुरी—स्त्री॰—-—क्षुर् + ङीष् + कन् + टाप्, ह्रस्वः, क्षुर + ङीष्—चाकू, छुरी
  • क्षुरी—स्त्री॰—-—क्षुर् + ङीष् + कन् + टाप्, ह्रस्वः, क्षुर + ङीष्—छोटा उस्तरा
  • क्षुरिणी—स्त्री॰—-—क्षुर + इनि + ङीष्—नाई की पत्नी
  • क्षुरिन्—पुं॰—-—क्षुर + इनि —नाई
  • क्षुल्ल—वि॰—-—क्षुदं लाति गृह्नाति - क्षुद् + ला + क—छोटा, स्वल्प
  • क्षुल्लतातः—वि॰—क्षुल्ल-तातः—-—पिता का छोटा भाई
  • क्षुल्लक—वि॰—-—क्षुल्ल + कन्—स्वल्प, सूक्ष्म
  • क्षुल्लक—वि॰—-—क्षुल्ल + कन्—नीच, दुष्ट
  • क्षुल्लक—वि॰—-—क्षुल्ल + कन्—नगण्य
  • क्षुल्लक—वि॰—-—क्षुल्ल + कन्—निर्धन
  • क्षुल्लक—वि॰—-—क्षुल्ल + कन्—दुष्ट, द्वेषयुक्त
  • क्षुल्लक—वि॰—-—क्षुल्ल + कन्—बच्चा
  • क्षेत्रम्—नपुं॰—-—क्षि + ष्ट्रन् —खेत, मैदान, भूमि
  • क्षेत्रम्—नपुं॰—-—क्षि + ष्ट्रन् —भूसंपत्ति, भूमि
  • क्षेत्रम्—नपुं॰—-—क्षि + ष्ट्रन् —स्थान, आवास, भूखण्ड, गोदाम
  • क्षेत्रम्—नपुं॰—-—क्षि + ष्ट्रन् —पुण्यस्थान, तीर्थस्थान
  • क्षेत्रम्—नपुं॰—-—क्षि + ष्ट्रन् —बाड़ा
  • क्षेत्रम्—नपुं॰—-—क्षि + ष्ट्रन् —उर्वरा भूमि
  • क्षेत्रम्—नपुं॰—-—क्षि + ष्ट्रन् —जन्मस्थान
  • क्षेत्रम्—नपुं॰—-—क्षि + ष्ट्रन् —पत्नी
  • क्षेत्रम्—नपुं॰—-—क्षि + ष्ट्रन् —कायक्षेत्र शरीर
  • क्षेत्रम्—नपुं॰—-—क्षि + ष्ट्रन् —मन
  • क्षेत्रम्—नपुं॰—-—क्षि + ष्ट्रन् —घर, नगर
  • क्षेत्रम्—नपुं॰—-—क्षि + ष्ट्रन् —सपाट आकृति जैसे कि त्रिभुज
  • क्षेत्रम्—नपुं॰—-—क्षि + ष्ट्रन् —रेखाचित्र
  • क्षेत्राधिदेवता—स्त्री॰—क्षेत्रम्-अधिदेवता—-—किसी पुण्य भूस्थल की अधिष्ठात्री देवता
  • क्षेत्राजीवः—पुं॰—क्षेत्रम्-आजीवः—-—कृषक, खेतिहर
  • क्षेत्रकरः—पुं॰—क्षेत्रम्-करः—-—कृषक, खेतिहर
  • क्षेत्रगणितम्—नपुं॰—क्षेत्रम्-गणितम्—-—ज्यामिति, रेखागणित
  • क्षेत्रगत—वि॰—क्षेत्रम्-गत—-—ज्यामितीय
  • क्षेत्रगतोपपत्तिः—स्त्री॰—क्षेत्रम्-गत-उपपत्तिः—-—ज्यामितीय प्रमाण
  • क्षेत्रज—वि॰—क्षेत्रम्-ज—-—खेत में उत्पन्न
  • क्षेत्रज—वि॰—क्षेत्रम्-ज—-—शरीर से उत्पन्न
  • क्षेत्रजः—पुं॰—क्षेत्रम्-जः—-—हिन्दूधर्मशास्त्र के अनुसार १२ प्रकार के पुत्रों में से एक
  • क्षेत्रजात—वि॰—क्षेत्रम्-जात—-—दूसरे पुरुष की पत्नी में उत्पादित संतान
  • क्षेत्रज्ञ—वि॰—क्षेत्रम्-ज्ञ—-—स्थानीयता को जानने वाला
  • क्षेत्रज्ञ—वि॰—क्षेत्रम्-ज्ञ—-—चतुर, दक्ष
  • क्षेत्रज्ञः—पुं॰—क्षेत्रम्-ज्ञः—-—आत्मा
  • क्षेत्रज्ञः—पुं॰—क्षेत्रम्-ज्ञः—-—परमात्मा
  • क्षेत्रज्ञः—पुं॰—क्षेत्रम्-ज्ञः—-—व्यभिचारी
  • क्षेत्रज्ञः—पुं॰—क्षेत्रम्-ज्ञः—-—किसान
  • क्षेत्रपतिः—पुं॰—क्षेत्रम्-पतिः—-—भूस्वामी, भूमिधर
  • क्षेत्रपदम्—नपुं॰—क्षेत्रम्-पदम्—-—देवता के लिए पवित्र स्थान
  • क्षेत्रपालः—पुं॰—क्षेत्रम्-पालः—-—खेत का रखवाला
  • क्षेत्रपालः—पुं॰—क्षेत्रम्-पालः—-—क्षेत्र की रक्षा करने वाला
  • क्षेत्रपालः—पुं॰—क्षेत्रम्-पालः—-—शिव का विशेषण
  • क्षेत्रफलम्—नपुं॰—क्षेत्रम्-फलम्—-—आकृति की लम्बाई चौड़ाई का गुणनफल
  • क्षेत्रभक्तिः—स्त्री॰—क्षेत्रम्-भक्तिः—-—खेत का बँटवारा
  • क्षेत्रराशिः—पुं॰—क्षेत्रम्-राशिः—-—जुआमितीय आकृतियों द्वारा प्रकट किया गया परिमाण
  • क्षेत्रविद्—वि॰—क्षेत्रम्-विद्—-—किसान
  • क्षेत्रविद्—वि॰—क्षेत्रम्-विद्—-—ऋषि जिसे आध्यात्मिक ज्ञान हो
  • क्षेत्रविद्—वि॰—क्षेत्रम्-विद्—-—आत्मा
  • क्षेत्रक्षेत्रज्ञ—पुं॰—क्षेत्रम्-क्षेत्रज्ञ—-—किसान
  • क्षेत्रक्षेत्रज्ञ—पुं॰—क्षेत्रम्-क्षेत्रज्ञ—-—ऋषि जिसे आध्यात्मिक ज्ञान हो
  • क्षेत्रक्षेत्रज्ञ—पुं॰—क्षेत्रम्-क्षेत्रज्ञ—-—आत्मा
  • क्षेत्रस्थ—वि॰—क्षेत्रम्-स्थ—-—पुण्य भुमि में रहने वाला
  • क्षेत्रिक—वि॰—-—क्षेत्र + ठन्—खेत से सम्बन्ध रखने वाला
  • क्षेत्रिकः—पुं॰—-—क्षेत्र + ठन्—एक किसान
  • क्षेत्रिकः—पुं॰—-—क्षेत्र + ठन्—पति
  • क्षेत्रिन्—पुं॰—-—क्षेत्र + इनि—कृषक, कास्तकार, खेतिहार
  • क्षेत्रिन्—पुं॰—-—क्षेत्र + इनि—नाम मात्र का पति
  • क्षेत्रिन्—पुं॰—-—क्षेत्र + इनि—आत्मा
  • क्षेत्रिन्—पुं॰—-—क्षेत्र + इनि—परमात्मा
  • क्षेत्रिय—वि॰—-—क्षेत्र + घ—खेत से सम्बन्ध रखने वाला
  • क्षेत्रिय—वि॰—-—क्षेत्र + घ—असाध्य रोग जिसका उपचार देहान्तर प्राप्ति परही हो अथवा इ्स जीवन में जिसका उपचार न हो सके
  • क्षेत्रियम्—नपुं॰—-—क्षेत्र + घ—आंगिक रोग
  • क्षेत्रियम्—नपुं॰—-—क्षेत्र + घ—चरागाह, गोचरभूमि
  • क्षेत्रियः—पुं॰—-—क्षेत्र + घ—व्यभिचारी, परदाररत
  • क्षेपः—पुं॰—-—क्षिप् + घञ्—फेंकना, उछालना, डालना, इधर-उधर हिलाना, गति
  • क्षेपः—पुं॰—-—क्षिप् + घञ्—फेंकना, डालना
  • क्षेपः—पुं॰—-—क्षिप् + घञ्—भेजना, प्रेषित करना
  • क्षेपः—पुं॰—-—क्षिप् + घञ्—आघात
  • क्षेपः—पुं॰—-—क्षिप् + घञ्—उल्लंघन
  • क्षेपः—पुं॰—-—क्षिप् + घञ्—समय बिताना, कालक्षेप
  • क्षेपः—पुं॰—-—क्षिप् + घञ्—विलम्ब, देरी
  • क्षेपः—पुं॰—-—क्षिप् + घञ्—अपमान, दुर्वचन
  • क्षेपः—पुं॰—-—क्षिप् + घञ्—अनादर, घृणा
  • क्षेपः—पुं॰—-—क्षिप् + घञ्—घमंड, अहंकार
  • क्षेपः—पुं॰—-—क्षिप् + घञ्—फूलों का गुच्छा, कुसुमस्तवक
  • क्षेपक—वि॰—-—क्षिप् + ण्वुल्—फेंकने वाला, भेजने वाला
  • क्षेपक—वि॰—-—क्षिप् + ण्वुल्—मिलाया हुआ, बीच में घुसाया हुआ
  • क्षेपक—वि॰—-—क्षिप् + ण्वुल्—गालियों से युक्त, अनादरपूर्ण
  • क्षेपकः—पुं॰—-—क्षिप् + ण्वुल्—बनावटी या बीच में मिलाया हुआ
  • क्षेपणम्—नपुं॰—-—क्षिप् + ल्युट्—फेंकना, डालना, भेजना, निदेश आदि देना
  • क्षेपणम्—नपुं॰—-—क्षिप् + ल्युट्—बिताना
  • क्षेपणम्—नपुं॰—-—क्षिप् + ल्युट्—भूलना, गाली देना
  • क्षेपणम्—नपुं॰—-—क्षिप् + ल्युट्—गोफन
  • क्षेपणिः—स्त्री॰—-—क्षिप् + ल्युट्—चप्पू
  • क्षेपणिः—स्त्री॰—-—क्षिप् + ल्युट्—मछली फंसाने का जाल
  • क्षेपणिः—स्त्री॰—-—क्षिप् + ल्युट्—गोफन या ऐसा उपकरण जिसमें रखकर कंकड़ फेंके जाय
  • क्षेपणी—स्त्री॰—-—क्षिप् + ल्युट्—चप्पू
  • क्षेपणी—स्त्री॰—-—क्षिप् + ल्युट्—मछली फंसाने का जाल
  • क्षेपणी—स्त्री॰—-—क्षिप् + ल्युट्—गोफन या ऐसा उपकरण जिसमें रखकर कंकड़ फेंके जाय
  • क्षेम—वि॰—-—क्षि + भन्—प्रसन्नता, सुख और आराम देने वला, शुभ, उदार, राजिसुखी
  • क्षेम—वि॰—-—क्षि + भन्—समृद्ध, आराम में सुखी
  • क्षेम—वि॰—-—क्षि + भन्—सुरक्षित, प्रसन्न
  • क्षेमः—पुं॰—-—क्षि + भन्—शान्ति, प्रसन्नता, आराम, कल्याण, कुशलता
  • क्षेमः—पुं॰—-—क्षि + भन्—सुरक्षा, बचाव
  • क्षेमः—पुं॰—-—क्षि + भन्—संरक्षण करने वाला, प्ररक्षा करने वाला
  • क्षेमः—पुं॰—-—क्षि + भन्—अवाप्त को सुरक्षित रखना
  • क्षेमः—पुं॰—-—क्षि + भन्—मुक्ति, शाश्वत, आनन्द
  • क्षेमम्—नपुं॰—-—क्षि + भन्—शान्ति, प्रसन्नता, आराम, कल्याण, कुशलता
  • क्षेमम्—नपुं॰—-—क्षि + भन्—सुरक्षा, बचाव
  • क्षेमम्—नपुं॰—-—क्षि + भन्—संरक्षण करने वाला, प्ररक्षा करने वाला
  • क्षेमम्—नपुं॰—-—क्षि + भन्—अवाप्त को सुरक्षित रखना
  • क्षेमम्—नपुं॰—-—क्षि + भन्—मुक्ति, शाश्वत, आनन्द
  • क्षेमः—पुं॰—-—क्षि + भन्—एकप्रकार का सुगन्ध द्रव्य
  • क्षेमकर—वि॰—क्षेम-कर—-—मंगलप्रद शान्ति औत सुरक्षा करने वाला
  • क्षेमिन्—वि॰—-—क्षेम + इनि—सुरक्षित, आक्रमण से रक्षित, प्रसन्न
  • क्षै—भ्वा॰ पर॰ <क्षायति>, <क्षाम>—-—-—क्षीण होना, नष्ट होना, कृश होना, ह्रास होना, मुर्झाना
  • क्षैण्यम्—नपुं॰—-—क्षीण + ष्यञ्—विनाश
  • क्षैण्यम्—नपुं॰—-—क्षीण + ष्यञ्—दुबलापन, सुकुमारता
  • क्षैत्रम्—नपुं॰—-—क्षेत्र + अण्—खेतों का समूह
  • क्षैत्रम्—नपुं॰—-—क्षेत्र + अण्—खेत
  • क्षैरेय—वि॰—-—क्षीर + ढञ्—दूधिया, दूध जैसा
  • क्षोडः—पुं॰—-—क्षोड् + घञ्—हाथी बांधने का खंभा
  • क्षोणिः—स्त्री॰—-—क्षै + डोनि—पृथ्वी
  • क्षोणिः—स्त्री॰—-—क्षै + डोनि—एक
  • क्षोणी—स्त्री॰—-—क्षोणि + ङीष्—पृथ्वी
  • क्षोणी—स्त्री॰—-—क्षोणि + ङीष्—एक
  • क्षोत्तृ—पुं॰—-—क्षुद् + तृच्—मूसली, बट्टा
  • क्षोदः—पुं॰—-—क्षुद् + घञ्—चूरा करना, पीसना
  • क्षोदः—पुं॰—-—क्षुद् + घञ्—सिल
  • क्षोदः—पुं॰—-—क्षुद् + घञ्—धूल, कण कोई छोटा या सूक्ष्म कण
  • क्षोद—वि॰—-—क्षुद् + घञ्—जो जांच पड़ताल या अनुसन्धान में ठहर सके
  • क्षोदिमन्—पुं॰—-—क्षोद + इमनिच्—सूक्ष्मता
  • क्षोभः—पुं॰—-—क्षुभ् + घञ्—डोलना, हिलना, लोटपोट होना
  • क्षोभः—पुं॰—-—क्षुभ् + घञ्—हिचकोले खाना
  • क्षोभः—पुं॰—-—क्षुभ् + घञ्—आन्दोलन, डाँवाडोल होना, उत्तेजना, संवेग
  • क्षोभः—पुं॰—-—क्षुभ् + घञ्—उकसाहट, चिढ़
  • क्षोभणम्—नपुं॰—-—क्षुभ् + णिच् + ल्युट्—क्षुब्ध करना, व्याकुल करना
  • क्षोभणः—पुं॰—-—क्षुभ् + णिच् + ल्युट्—कामदेव के पांच बाणों में से एक
  • क्षोमः—पुं॰—-—क्षु + मन्—घर की छत पर बना कमरा, चौबारा
  • क्षोमम्—नपुं॰—-—क्षु + मन्—घर की छत पर बना कमरा, चौबारा
  • क्षौणिः—स्त्री॰—-—-—पृथ्वी
  • क्षौणिः—स्त्री॰—-—-—एक
  • क्षौणी—स्त्री॰—-—-—पृथ्वी
  • क्षौणी—स्त्री॰—-—-—एक
  • क्षौणीप्राचीरः—पुं॰—क्षौणी-प्राचीरः—-—समुद्र
  • क्षौणीभुज्—पुं॰—क्षौणी-भुज्—-—राजा
  • क्षौणीभृत्—पुं॰—क्षौणी-भृत्—-—पहाड़
  • क्षौद्रः—पुं॰—-—क्षुद्र + अण्—चम्पक, वृक्ष
  • क्षौद्रम्—नपुं॰—-—क्षुद्र + अण्—हल्कापन
  • क्षौद्रम्—नपुं॰—-—क्षुद्र + अण्—कमीनापन, ओछापन
  • क्षौद्रम्—नपुं॰—-—क्षुद्र + अण्—शहद
  • क्षौद्रम्—नपुं॰—-—क्षुद्र + अण्—जल
  • क्षौद्रम्—नपुं॰—-—क्षुद्र + अण्—धूलकण
  • क्षौद्रजम्—नपुं॰—क्षौद्र-जम्—-—मोम
  • क्षौद्रेयम्—नपुं॰—-—क्षौद्र + ढञ्—मोम
  • क्षौमः—पुं॰—-—क्षु + मन् + अण्—रेशमी कपड़ा, ऊनी कपड़ा
  • क्षौमः—पुं॰—-—क्षु + मन् + अण्—चौबारा
  • क्षौमः—पुं॰—-—क्षु + मन् + अण्—मकान का पिछला भाग
  • क्षौमम्—नपुं॰—-—क्षु + मन् + अण्—रेशमी कपड़ा, ऊनी कपड़ा
  • क्षौमम्—नपुं॰—-—क्षु + मन् + अण्—चौबारा
  • क्षौमम्—नपुं॰—-—क्षु + मन् + अण्—मकान का पिछला भाग
  • क्षौमम्—नपुं॰—-—क्षु + मन् + अण्—अस्तर
  • क्षौमम्—नपुं॰—-—क्षु + मन् + अण्—अलसी
  • क्षौमी—पुं॰—-—-—सन
  • क्षौरम्—नपुं॰—-—क्षुर + अण्—हजामत
  • क्षौरिकः—पुं॰—-—क्षौर + ठन्—नाई
  • क्ष्णु—अदा॰ पर॰ <क्ष्णोति>, <क्ष्णुत>—-—-—पैना करना, तेज करना
  • संक्ष्णु—अदा॰ आ॰—सम्-क्ष्णु—-—तेज करना
  • क्ष्मा—स्त्री॰—-—क्षम् + अच् उपधालोपः—पृथ्वी
  • क्ष्मा—स्त्री॰—-—-—एक की संख्या
  • क्ष्माजः—पुं॰—क्ष्मा-जः—-—मंगलग्रह
  • क्ष्मापः—पुं॰—क्ष्मा-पः—-—मंगलग्रह
  • क्ष्मापतिः—पुं॰—क्ष्मा-पतिः—-—मंगलग्रह
  • क्ष्माभुज्—पुं॰—क्ष्मा-भुज्—-—राजा
  • क्ष्माभृत्—पुं॰—क्ष्मा-भृत्—-—राजा या पहाड़
  • क्ष्माय्—भ्वा॰ आ॰ <क्ष्मायते>, <क्ष्मायित>—-—-—हिलाना, कांपना
  • क्ष्विड्—भ्वा॰ उभ॰ <क्ष्वेडति>, <क्ष्वेडते>, <क्ष्वेट्ट>, या <क्ष्वेडित>—-—-—भिनभिनाना, दाहड़ना, चहचहाना, गुर्राना, बुदबुदाना, अस्पष्ट ध्वनि करना
  • क्ष्विड्—भ्वा॰ आ॰ <क्ष्विद्>—-—-—गीला होना, चिपचिपा होना
  • क्ष्विड्—भ्वा॰ आ॰ <क्ष्विद्>—-—-—रस निकलना, रस छोड़ना, मवाद बहना, पसीजना
  • क्ष्विड्—दिवा॰ पर॰ <क्ष्विद्यति>, <क्ष्वेदित>, <क्ष्विण्ण>—-—-—गीला होना, चिपचिपा होना
  • क्ष्विड्—दिवा॰ पर॰ <क्ष्विद्यति>, <क्ष्वेदित>, <क्ष्विण्ण>—-—-—रस निकलना, रस छोड़ना, मवाद बहना, पसीजना
  • क्ष्वेडः—पुं॰—-—क्ष्विड् + घञ्, अच् वा—शब्द, शोर, कोलाहल
  • क्ष्वेडः—पुं॰—-—-— विष, जहर
  • क्ष्वेडः—पुं॰—-—-—आर्द्र या तर करना
  • क्ष्वेडः—पुं॰—-—-—त्याग
  • क्ष्वेडा—स्त्री॰—-—-—शेर की दहाड़
  • क्ष्वेडा—स्त्री॰—-—-—युद्ध के लिए ललकार, रणगुहार
  • क्ष्वेडा—स्त्री॰—-—-—बाँस
  • क्ष्वेडितम्—नपुं॰—-—क्ष्विड् + क्त—सिंह गर्जना
  • क्ष्वेला—स्त्री॰—-—क्ष्वेल + अ + टाप्—खेल, हंसी, मजाक