विक्षनरी:संस्कृत-हिन्दी शब्दकोश/की-क्
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- मूलशब्द—व्याकरण—संधिरहित मूलशब्द—व्युत्पत्ति—हिन्दी अर्थ
- कीकट—वि॰—-—की शनैः द्रुतं वा कटति गच्छति - की - कट् - अच्—गरीब, दरिद्र
- कीकट—वि॰—-—की शनैः द्रुतं वा कटति गच्छति - की - कट् - अच्—कञ्जूस
- कीकटः—पुं॰—-—की शनैः द्रुतं वा कटति गच्छति - की - कट् - अच्—घोड़ा
- कीकटाः—पुं॰—-—की शनैः द्रुतं वा कटति गच्छति - की - कट् - अच्—एक देश का नाम
- कीकस—वि॰—-—की कुत्सितं यथा स्यात्तथा कसति - की - कस् - अच्—कठोर, दृढ़
- कीकसम्—नपुं॰—-—की कुत्सितं यथा स्यात्तथा कसति - की - कस् - अच्—हड्डी
- कीचकः—पुं॰—-—चीकयति शब्दायते - चीक् - वुन्, आद्यन्तविपर्ययः—खोखला बाँस
- कीचकः—पुं॰—-—चीकयति शब्दायते - चीक् - वुन्, आद्यन्तविपर्ययः—हवा में लड़खड़ाते या साँय साँय करते हुए बाँस
- कीचकः—पुं॰—-—चीकयति शब्दायते - चीक् - वुन्, आद्यन्तविपर्ययः—एक जाति का नाम
- कीचकः—पुं॰—-—चीकयति शब्दायते - चीक् - वुन्, आद्यन्तविपर्ययः—विराट राज का सेनापति
- कीचकजित्—पुं॰—कीचक - जित्—-—द्वितीय पाण्डवराज भीम का विशेषण
- कीटः—पुं॰—-—कीट - अच्—कीड़ा, कृमि
- कीटः—पुं॰—-—कीट - अच्—तिरस्कार और घृणा को व्यक्त करने वाला शब्द
- द्वीपकीटः—पुं॰—-—-—अधम हाथी
- कीटघ्नः—पुं॰—कीट-घ्नः—-—गन्धक
- कीटजम्—नपुं॰—कीट-जम्—-—रेशम
- कीटजा—स्त्री॰—कीट-जा—-—लाख
- कीटमणिः—पुं॰—कीट-मणिः—-—जुगनू
- कीटकः—पुं॰—-—कीट - कन्—कीड़ा
- कीटकः—पुं॰—-—कीट - कन्—मगध जाति का भाट
- कीदृक्ष—अव्य॰—-—किम् - दृश् - क्त, क्नि, कञ् वा, किमः की आदेशः—किस प्रकार का या किस स्वभाव का
- कीदृश्—अव्य॰—-—किम् - दृश् - क्त, क्नि, कञ् वा, किमः की आदेशः—किस प्रकार का या किस स्वभाव का
- कीदृश—अव्य॰—-—किम् - दृश् - क्त, क्नि, कञ् वा, किमः की आदेशः—किस प्रकार का या किस स्वभाव का
- कीनाश—वि॰—-—क्लिश् कन्, ई उपधाया ईत्वम्, लस्य लोपो नामागमश्च—भूमिधर
- कीनाश—वि॰—-—क्लिश् कन्, ई उपधाया ईत्वम्, लस्य लोपो नामागमश्च—गरीब, दरिद्र
- कीनाश—वि॰—-—क्लिश् कन्, ई उपधाया ईत्वम्, लस्य लोपो नामागमश्च—कृपण
- कीनाश—वि॰—-—क्लिश् कन्, ई उपधाया ईत्वम्, लस्य लोपो नामागमश्च—लघु, तुच्छ
- कीनाशः—पुं॰—-—क्लिश् कन्, ई उपधाया ईत्वम्, लस्य लोपो नामागमश्च—मृत्यु के देवता यम की उपाधि
- कीनाशः—पुं॰—-—क्लिश् कन्, ई उपधाया ईत्वम्, लस्य लोपो नामागमश्च—एक प्रकार का बन्दर
- कीरः—पुं॰—-—की इति अव्यक्तशब्दम् ईरयति - की - ईर् - अच्—तोता
- कीराः—पुं॰,ब॰ व॰—-—की इति अव्यक्तशब्दम् ईरयति - की - ईर् - अच्—काश्मीर देश तथा उसके निवासी
- कीरम्—नपुं॰—-—की इति अव्यक्तशब्दम् ईरयति - की - ईर् - अच्—मांस
- कीरेष्टः—पुं॰—कीर-इष्टः—-—आम का वृक्ष
- कीरवर्णकम्—नपुं॰—कीर-वर्णकम्—-—सुगन्धों का शिरोमणि
- कीर्ण—वि॰—-—कॄ - क्त—छितराया हुआ, फैलाया हुआ, फेंका हुआ, बखेरा हुआ
- कीर्ण—वि॰—-—कॄ - क्त—ढका हुआ, भरा हुआ
- कीर्ण—वि॰—-—कॄ - क्त—रक्खा हुआ, धरा हुआ
- कीर्ण—वि॰—-—कॄ - क्त—क्षत, चोट पहुँचाया गया
- कीर्ण—वि॰—-—कॄ - क्त—बिखेरना, इधर-उधर फेंकना, उड़ेलना, डालना, तितर-बितर करना
- कीर्ण—वि॰—-—कॄ - क्त—छितराना, ढँकना, भरना
- कीर्णिः—स्त्री॰—-—कॄ - क्तिन्—बखेरना
- कीर्णिः—स्त्री॰—-—कॄ - क्तिन्—ढकना, छिपाना, गुप्त कर देना
- कीर्णिः—स्त्री॰—-—कॄ - क्तिन्—घायल करना
- कीर्तनम्—नपुं॰—-—कॄ - ल्युट्—कथन, वर्णन
- कीर्तनम्—नपुं॰—-—कॄ - ल्युट्—मन्दिर
- कीर्तना—स्त्री॰—-—कॄ - ल्युट् -टाप्—कीर्तिवर्णन
- कीर्तना—स्त्री॰—-—कॄ - ल्युट् -टाप्—सस्वर पाठ
- कीर्तना—स्त्री॰—-—कॄ - ल्युट् -टाप्—यश, कीर्ति
- कीर्तय्—चुरा॰ उभ॰ <कीर्तयति>, <कीर्तयते>, <कीर्तित>—-—-—उल्लेख करना, दोहराना, उच्चारण करना
- कीर्तय्—चुरा॰ उभ॰ <कीर्तयति>, <कीर्तयते>, <कीर्तित>—-—-—कहना, सस्वर पाठ करना, घोषणा करना, समाचार देना
- कीर्तय्—चुरा॰ उभ॰ <कीर्तयति>, <कीर्तयते>, <कीर्तित>—-—-—नाम लेना, पुकार करना
- कीर्तय्—चुरा॰ उभ॰ <कीर्तयति>, <कीर्तयते>, <कीर्तित>—-—-—स्तुति करना, यशोगान करना, स्मरणार्थ उत्सव मनाना
- कीर्तिः—स्त्री॰—-—कॄ - क्तिन्—यश, प्रसिद्धि, कीर्ति
- कीर्तिः—स्त्री॰—-—कॄ - क्तिन्—अनुग्रह, अनुमोदन
- कीर्तिः—स्त्री॰—-—कॄ - क्तिन्—मैल, कीचड़
- कीर्तिः—स्त्री॰—-—कॄ - क्तिन्—विस्तृति, विस्तार
- कीर्तिः—स्त्री॰—-—कॄ - क्तिन्—प्रकाश, प्रभा
- कीर्तिः—स्त्री॰—-—कॄ - क्तिन्—ध्वनि
- कीर्तिभाज्—वि॰—कीर्ति-भाज्—-—यशस्वी, विख्यात, प्रसिद्ध
- कीर्तिभाज्—पुं॰—कीर्ति-भाज्—-—द्रोण का विशेषण
- कीर्तिशेषः—पुं॰—कीर्ति-शेषः—-—केवल यश के रुप में जीवित रहना
- कील्—भ्वा॰ पर॰—-—-—बाँधना
- कील्—भ्वा॰ पर॰—-—-—नत्थी करना
- कील्—भ्वा॰ पर॰—-—-—कोल गाड़ना
- कीलः—पुं॰—-—कील - घञ्—फन्नी, खूँटी
- कीलः—पुं॰—-—कील - घञ्—भालाः
- कीलः—पुं॰—-—कील - घञ्—बल्ली, खम्भा
- कीलः—पुं॰—-—कील - घञ्—हथियार, कोहनी
- कीलः—पुं॰—-—कील - घञ्—कोहनी का प्रहार
- कीलः—पुं॰—-—कील - घञ्—ज्वाला
- कीलः—पुं॰—-—कील - घञ्—परमाणु
- कीलः—पुं॰—-—कील - घञ्—शिव का नाम
- कीलकः—पुं॰—-—कील - कन्—फन्नी या खूँटी
- कीलकः—पुं॰—-—कील - कन्—खम्बा, स्तम्भ
- कीलालः—पुं॰—-—कील - अल् - अण्—अमृतोपम स्वर्गीय पेय, देवताओं का पेय
- कीलालः—पुं॰—-—कील - अल् - अण्—मधु
- कीलालः—पुं॰—-—कील - अल् - अण्—हैवान
- कीलालम्—नपुं॰—-—-—रुधिर
- कीलालम्—नपुं॰—-—-—जल
- कीलालधिः—पुं॰—कीलाल-धिः—-—समुद्र
- कीलालपः—पुं॰—कीलाल-पः—-—पिशाच, भूत
- कीलिका—स्त्री॰—-—कील - कन् - टाप्, इत्वम्—धुरे की कील
- कीलित—वि॰—-—कील - क्त—बँधा हुआ, बद्ध
- कीलित—वि॰—-—कील - क्त—स्थिरा कील से गड़ा हुआ, कील ठोककर जड़ा हुआ
- कीश—वि॰—-—क - ईश् - क—नंगा
- कीशः—पुं॰—-—क - ईश् - क—लंगूर, बन्दर
- कीशः—पुं॰—-—क - ईश् - क—सूर्य
- कीशः—पुं॰—-—क - ईश् - क—पक्षी
- कुः—स्त्री॰—-—कु - डु—पृथ्वी
- कुः—स्त्री॰—-—कु - डु—त्रिभुज या सपाट आकृति की आधार-रेखा
- कुपुत्रः—पुं॰—कु-पुत्रः—-—मंगल ग्रह
- कु—अव्य॰—-—-—‘खराबी’, ह्रास, अवमूल्यन, पाप, भर्त्सना, ओछापन, अभाव, त्रुटि आदि भावों को संकेत करने वाला उपसर्ग;
- कुकर्मन्—नपुं॰—कु-कर्मन्—-—बुरा कार्य, नीचा कर्म
- कुग्रहः—पुं॰—कु-ग्रहः—-—अमंगल ग्रह
- कुग्रामः—पुं॰—कु-ग्रामः—-—छोटा गाँव या पुरवा
- कुचेल—वि॰—कु-चेल—-—फटे पुराने वस्त्र पहने हुए
- कुचर्या—स्त्री॰—कु-चर्या—-—दुष्टता, अशिष्टाचरण, अनौचित्य
- कुजन्मन्—वि॰—कु-जन्मन्—-—नीच कुल में उत्पन्न
- कुतनु—वि॰—कु-तनु—-—विकृतकाय, कुरुप
- कुतनुः—पुं॰—कु-तनुः—-—कुबेर का विशेषण
- कुतंत्री—स्त्री॰—कु-तंत्री—-—खराब बीणा
- कुतर्कः—पुं॰—कु-तर्कः—-—कूटतर्कात्मक, हेत्वाभासरुप
- कुतर्कः—पुं॰—कु-तर्कः—-—धर्मविरुद्ध, स्वतन्त्र चिन्तन
- कुतर्कपथः—पुं॰—कु-तर्क-पथः—-—तर्क करने की झूठी रीति
- कुतीर्यम्—नपुं॰—कु-तीर्यम्—-—खराब अध्यापक
- कुदृष्टिः—स्त्री॰—कु-दृष्टिः—-—कमजोर नजर
- कुदृष्टिः—स्त्री॰—कु-दृष्टिः—-—पाप दृष्टि, कुटिल आँख
- कुदृष्टिः—स्त्री॰—कु-दृष्टिः—-—वेदविरुद्ध सिद्धान्त, धर्मविरुद्ध सिद्धान्त
- कुदेशः—पुं॰—कु-देशः—-—बुरा देश या बुरी जगह
- कुदेशः—पुं॰—कु-देशः—-—वह देश जहाँ जीवन की आवश्यक सामग्री उपलब्ध न हो, या जो अत्याचार से पीड़ित हो
- कुदेह—वि॰—कु-देह—-—कुरुप विकृतकाय
- कुदेहः—पुं॰—कु-देहः—-—कुबेर का विशेषण
- कुधी—वि॰—कु-धी—-—मूर्ख, बुद्धू, बेवकूफ
- कुधी—वि॰—कु-धी—-—दुष्ट
- कुनटः—पुं॰—कु-नटः—-—बुरा पात्र
- कुनदिका—स्त्री॰—कु-नदिका—-—छोटी नदी, क्षुद्र नदी, लघु स्रोत
- कुनाथः—पुं॰—कु-नाथः—-—बुरा स्वामी
- कुनामन्—वि॰—कु-नामन्—-—कंजूस
- कुरथः—पुं॰—कु-रथः—-—कुमार्ग, बुरा रास्ता
- कुरथः—पुं॰—कु-रथः—-—धर्मविरुद्ध सिद्धान्त
- कुपुत्रः—पुं॰—कु-पुत्रः—-—बुरा या दुष्ट पुत्र
- कुपुरुषः—पुं॰—कु-पुरुषः—-—नीच या दुष्ट पुरुष
- कुपूय—वि॰—कु-पूय—-—नीच दुष्ट, तिरस्करणीय
- कुप्रिय—वि॰—कु-प्रिय—-—अरुचिकर, तिरस्करणीय, नीच, अधम
- कुप्लवः—पुं॰—कु-प्लवः—-—बुरी किश्ती
- कुब्रह्मः—पुं॰—कु-ब्रह्मः—-—पतित ब्राह्मण
- कुब्रह्मन्—पुं॰—कु-ब्रह्मन्—-—पतित ब्राह्मण
- कुमन्त्रः—पुं॰—कु-मन्त्रः—-—बुरा उपदेश
- कुमन्त्रः—पुं॰—कु-मन्त्रः—-—बुरे कार्यों में सफलता प्राप्त करने के लिए प्रयुक्त मंत्र
- कुयोगः —पुं॰—कु-योगः —-—अशुभ संयोग
- कुरस —वि॰—कु-रस —-—बुरे रस या स्वाद वाला
- कुरसः—पुं॰—कु-रसः—-—एक प्रकार की मदिरा
- कुरुप—वि॰—कु-रुप—-—कुरुप विकृत रुप
- कुरुप्यम्—नपुं॰—कु-रुप्यम्—-—टीन, जस्ता
- कुवङ्ग—वि॰—कु-वङ्ग—-—सीसा
- कुवचस्—वि॰—कु-वचस्—-—गाली देने वाला, अश्लील भाषी, दुर्वचन या कुभाषा बोलने वाला
- कुवाक्य—वि॰—कु-वाक्य—-—गाली देने वाला, अश्लील भाषी, दुर्वचन या कुभाषा बोलने वाला
- कुवाक्य—नपुं॰—कु-वाक्य—-—दुर्वचन, दुर्भाषा
- कुवर्षः—पुं॰—कु-वर्षः—-—आकस्मिक प्रचण्ड बौछार
- कुविवाहः—पुं॰—कु-विवाहः—-—विवाह का भर्ष्ट या अनुचित रुप
- कुवृत्तिः—स्त्री॰—कु-वृत्तिः—-—बुरा व्यवहार
- कुवैद्यः—पुं॰—कु-वैद्यः—-—खोटा वैद्य, कठवैद्य, नीम हकीम
- कुशील—वि॰—कु-शील—-—अक्खड़, दुष्ट अशिष्ट, दुष्ट स्वभाव
- कुष्ठलम्—नपुं॰—कु-ष्ठलम्—-—बुरी जगह
- कुसरित्—स्त्री॰—कु-सरित्—-—क्षुद्र नदी, छोटा स्रोत
- कुसृतिः—स्त्री॰—कु-सृतिः—-—दुराचरण, दुष्टता
- कुसृतिः—स्त्री॰—कु-सृतिः—-—जादू दिखाना
- कुसृतिः—स्त्री॰—कु-सृतिः—-—धूर्तता
- कुस्त्री—स्त्री॰—कु-स्त्री—-—खोटी स्त्री
- कु—भ्वा॰ आ॰ <कवते>—-—-—ध्वनि करना
- कु—तुदा॰ आ॰ <कुवते>—-—-—बड़बड़ाना, कराहना
- कु—तुदा॰ आ॰ <कुवते>—-—-—चिल्लाना, क्रन्दन करना
- कु—अदा॰ पर॰ <कौति>—-—-—भिनभिनाना, कूजना, गुञ्जन करना
- कुकभम्—नपुं॰—-—कुकेन अदानेन पानेन भाति - कुक - भा - क—एक प्रकार की तीक्ष्ण मदिरा
- कुकीलः—पुं॰—-—कौ पृथिव्यां कीलः इव—पहाड़
- कुकुदः —पुं॰—-—कूक वा कू इत्यव्ययम् - अलंकृता कन्या तां सत्कृत्य पात्राय ददाति कुकु - दा - क—उपयुक्त श्रृंगारों से सुभूषित कन्या को विधिपूर्वक विवाह में देने वाला
- कुकूदः—पुं॰—-—कूक वा कू इत्यव्ययम् - अलंकृता कन्या तां सत्कृत्य पात्राय ददाति कुकू - दा - क—उपयुक्त श्रृंगारों से सुभूषित कन्या को विधिपूर्वक विवाह में देने वाला
- कुकुन्दरः—पुं॰—-—स्कंद्यते कामिना अत्र, नि॰ साधुः—जघनकूप, कूल्हे के दो गर्त जो नितम्ब के ऊपरी भाग में होते है
- कुकुन्दुरः—पुं॰—-—स्कंद्यते कामिना अत्र, नि॰ साधुः—जघनकूप, कूल्हे के दो गर्त जो नितम्ब के ऊपरी भाग में होते है
- कुकुराः—ब॰ व॰—-—कु - कुर् - क—एक देश का नाम जिसे ‘दुर्शाह’ भी कहते हैं
- कुकूलः—पुं॰—-—कु - ऊलच्, कुगागमः—चोकर, भूसी
- कुकूलः—पुं॰—-—कु - ऊलच्, कुगागमः—भूसी से बनी आग
- कुकूलम्—नपुं॰—-—कु - ऊलच्, कुगागमः—चोकर, भूसी
- कुकूलम्—नपुं॰—-—कु - ऊलच्, कुगागमः—भूसी से बनी आग
- कुकूलम्—नपुं॰—-—को कूलम् ष॰ त॰—छिद्र खाई
- कुकूलम्—नपुं॰—-—को कूलम् ष॰ त॰—कवच, बख्तर
- कुक्कुटः—पुं॰—-—कुक् - क्विप्, तेन् कुटति, कुक् - कुट् - क—मुर्गा, जंगली मुर्गा
- कुक्कुटः—पुं॰—-—कुक् - क्विप्, तेन् कुटति, कुक् - कुट् - क—जले हुए भुस का फिसफिसाना, जलती हुई लकड़ी
- कुक्कुटः—पुं॰—-—कुक् - क्विप्, तेन् कुटति, कुक् - कुट् - क—आग की चिंगारी
- कुकुटिः—स्त्री॰—-—कुक्कुट - इन्—दम्भ, पाखण्ड, धार्मिक अनुष्ठानों से स्वार्थसिद्धि
- कुकूटी—स्त्री॰—-—कुक्कुट - ङीप्—दम्भ, पाखण्ड, धार्मिक अनुष्ठानों से स्वार्थसिद्धि
- कुक्कुभः—पुं॰—-—कुक्कु शब्दं भाषते - कुक्कु - भाष् - ड बा॰—जंगली मुर्गा
- कुक्कुभः—पुं॰—-—कुक्कु शब्दं भाषते - कुक्कु - भाष् - ड बा॰—मुर्गा
- कुक्कुभः—पुं॰—-—कुक्कु शब्दं भाषते - कुक्कु - भाष् - ड बा॰—वार्निश
- कुक्कुरः—पुं॰—-—कोकते आदते - कुक् - क्विप्, कुक् किंचिदपि गृह्लन्तं जनं दृष्टवा कुरति शब्दायते - कुक् - कुर् - क—कुत्ता
- कुक्कुरवाच्—पुं॰—कुक्कुर-वाच्—-—हरिणों की एक जाति
- कुक्षिः—पुं॰—-—कुष् - स—पेट
- कुक्षिः—पुं॰—-—कुष् - स—गर्भाशय, पेट का वह भाग जिसमें भ्रूण रहता हैं
- कुक्षिः—पुं॰—-—कुष् - स—किसी चीज का भीतरी भाग
- कुक्षिः—पुं॰—-—कुष् - स—गर्त
- कुक्षिः—पुं॰—-—कुष् - स—गुफा, कन्दरा
- कुक्षिः—पुं॰—-—कुष् - स—तलवार का म्यान
- कुक्षिः—पुं॰—-—कुष् - स—खाड़ी
- कुक्षिशूलः—पुं॰—कुक्षि-शूलः—-—पेट दर्द, उदरशूल
- कुक्षिम्भरि—वि॰—-—कुक्षि - भृ - इन्, मुम्—अपना पेट भरने की चिन्ता करने वाला, स्वार्थी, पेटू, बहुभोजी
- कुङ्कुमम्—नपुं॰—-—कुक् - उमक्, नि॰ मुम्—केसर, जाफ़रान
- कुङ्कुमाद्रिः—पुं॰—कुङ्कुमम्-अद्रिः—-—एक पहाड़ का नाम
- कुच्—तुदा॰ पर॰ <कुचति>, <कुचित>—-—-—कर्कश ध्वनि करना
- कुच्—तुदा॰ पर॰ <कुचति>, <कुचित>—-—-—जाना, चमकाना
- कुच्—तुदा॰ पर॰ <कुचति>, <कुचित>—-—-—सिकोड़ना, झुकाना
- कुच्—तुदा॰ पर॰ <कुचति>, <कुचित>—-—-—सिकुड़ना
- कुच्—तुदा॰ पर॰ <कुचति>, <कुचित>—-—-—बाधा उपस्थित करना
- कुच्—तुदा॰ पर॰ <कुचति>, <कुचित>—-—-—लिखना, अंकित करना
- सङ्कुच्—तुदा॰ पर॰ <कुचति>, <कुचित>—सम्-कुच्—-—टेढ़ा होना
- सङ्कुच्—तुदा॰ पर॰ <कुचति>, <कुचित>—सम्-कुच्—-—संकुचित करना
- सङ्कुच्—तुदा॰ पर॰ <कुचति>, <कुचित>—सम्-कुच्—-—संकुचित होना
- सङ्कुच्—तुदा॰ पर॰ <कुचति>, <कुचित>—सम्-कुच्—-—बन्द करना, मुर्झाना
- सङ्कुच्—तुदा॰ पर॰, प्रेर॰—सम्-कुच्—-—बन्द करना, सिकोड़ना, घटाना
- कुच्—भ्वा॰ पर॰ <कोचति>, <कुञ्चति>, <कुञ्चित>—-—-—कुटिल बनाना, झुकाना या टेढ़ा करना
- कुच्—भ्वा॰ पर॰ <कोचति>, <कुञ्चति>, <कुञ्चित>—-—-—टेढ़ी तरह से चलना
- कुच्—भ्वा॰ पर॰ <कोचति>, <कुञ्चति>, <कुञ्चित>—-—-—छोटा करना, घटाना
- कुच्—भ्वा॰ पर॰ <कोचति>, <कुञ्चति>, <कुञ्चित>—-—-—सिकोड़ना, संकुचित होना
- कुच्—भ्वा॰ पर॰ <कोचति>, <कुञ्चति>, <कुञ्चित>—-—-—की ओर जाना
- आकुच्—भ्वा॰ पर॰ <कोचति>, <कुञ्चति>, <कुञ्चित>—आ-कुच्—-—सिकोड़ना, टेढ़ा करना, झुकाना
- आकुच्—भ्वा॰ पर॰ <कोचति>, <कुञ्चति>, <कुञ्चित>—आ-कुच्—-—सिकोड़ना, टेढ़ा करना, झुकाना
- विकुच्—भ्वा॰ पर॰ <कोचति>, <कुञ्चति>, <कुञ्चित>—वि-कुच्—-—सिकोड़ना, टेढ़ा करना
- कुञ्चनम्—नपुं॰—-—कुञ्च् - ल्युट्—टेढ़ा करना, झुकाना, सिकोड़ना
- कुञ्चिः— पुं॰—-—कुच् - इन्—आठ मुट्ठियों या अंजलियों की धारिता का माप
- कुञ्चिका—स्त्री॰—-—कुच् - ण्वुल् - टाप्, इत्वम्—कुंजी, चाभी
- कुञ्चिका—स्त्री॰—-—कुच् - ण्वुल् - टाप्, इत्वम्—बाँस का अंकुर
- कुञ्चित—वि॰—-—कुञ्च् - क्त—सिकुड़ा हुआ, टेढ़ा किया हुआ, झुकाया हुआ
- कुञ्जः—पुं॰—-—कु - जन् - ड, पृषो॰ साधुः—लताओं तथा पौधों से आच्छादित स्थान, लतावितान, पर्णशाला
- कुञ्जः—पुं॰—-—-—हाथी का दाँत
- कुञ्जम्—नपुं॰—-—कु - जन् - ड, पृषो॰ साधुः—लताओं तथा पौधों से आच्छादित स्थान, लतावितान, पर्णशाला
- कुञ्जम्—नपुं॰—-—कु - जन् - ड, पृषो॰ साधुः—हाथी का दाँत
- कुञ्जकुटीरः—पुं॰—कुञ्ज-कुटीरः—-—लतामण्डप, लताओं तथा पौधों से परिवेष्टित स्थान
- कुञ्जरः—पुं॰—-—कुञ्जो हस्तिहनुः सोऽस्यास्ति - कुञ्ज - र—हाथी
- कुञ्जरः—पुं॰—-—कुञ्जो हस्तिहनुः सोऽस्यास्ति - कुञ्ज - र—कोई सर्वोत्तम या श्रेष्ठ वस्तु
- कुञ्जरः—पुं॰—-—कुञ्जो हस्तिहनुः सोऽस्यास्ति - कुञ्ज - र—पीपल का वृक्ष
- कुञ्जरः—पुं॰—-—कुञ्जो हस्तिहनुः सोऽस्यास्ति - कुञ्ज - र—हस्त नामक नक्षत्र
- कुञ्जरानीकम्—नपुं॰—कुञ्जर-अनीकम्—-—सेना का एक भाग जिसमें हाथी हों, हस्ति-सेना
- कुञ्जराशनः—पुं॰—कुञ्जर-अशनः—-—अश्वत्थ वृक्ष
- कुञ्जरारातिः—पुं॰—कुञ्जर-अरातिः—-—शेर
- कुञ्जरारातिः—पुं॰—कुञ्जर-अरातिः—-—शरभ
- कुञ्जरग्रहः—पुं॰—कुञ्जर-ग्रहः—-—हाथी पकड़ने वाला
- कुट्—भ्वा॰ पर॰ <कुटति>, <कुटित>—-—-—कुटील या वक्र होना
- कुट्—भ्वा॰ पर॰ <कुटति>, <कुटित>—-—-—टेढ़ा करना या झुकाना
- कुट्—भ्वा॰ पर॰ <कुटति>, <कुटित>—-—-—बेईमानी करना, छल करना, धोखा देना
- कुट्—दिवा॰ पर॰ <कुटयति>—-—-—तोड़ कर टुकड़े-टुकड़े करना, फाड़ देना, विभक्त करना, विघटित करना
- कुटः—पुं॰—-—कुट् - कम्—जलपात्र, करवा, कलश
- कुटम्—नपुं॰—-—कुट् - कम्—जलपात्र, करवा, कलश
- कुटः—पुं॰—-—कुट् - कम्—किला, दुर्ग
- कुटः—पुं॰—-—कुट् - कम्—हथौड़ा
- कुटः—पुं॰—-—कुट् - कम्—वृक्ष
- कुटः—पुं॰—-—कुट् - कम्—घर
- कुटः—पुं॰—-—कुट् - कम्—पहाड़
- कुटजः—पुं॰—कुट-जः—-—एक वृक्ष का नाम
- कुटजः—पुं॰—कुट-जः—-—अगस्त्य
- कुटजः—पुं॰—कुट-जः—-—द्रोण
- कुटहारिका—स्त्री॰—कुट-हारिका—-—सेविका, नौकरानी
- कुटकम्—नपुं॰—-—कुट - कन्—बिना हलस का हल
- कुटङ्कः—पुं॰—-—कु - टङ्क - घञ्—छत, छप्पर
- कुटङ्गकः—पुं॰—-—कुटस्य अङ्गकः - ष॰ त॰—वृक्ष के उपर फैली हुई लताओं से बना लतामण्डप
- कुटङ्गकः—पुं॰—-—कुटस्य अङ्गकः - ष॰ त॰—छोटा घर, झोपड़ी, कुटिया
- कुटपः—पुं॰—-—कुट - पा - क—अनाज की माप
- कुटपः—पुं॰—-—कुट - पा - क—घर के निकट वाटिका
- कुटपः—पुं॰—-—कुट - पा - क—ऋषि, संन्यासी
- कुटपम्—नपुं॰—-—कुट - पा - क—कमल
- कुटरः—पुं॰—-—कुट् - करन् बा॰ —वह थूणी जिसमें मथते समय रई की रस्सी लिपटी रहती है
- कुटलम्—नपुं॰—-—कुट् - कलच्—छत, छप्पर
- कुटिः—पुं॰—-—कुट् - इन—शरीर
- कुटिः—पुं॰—-—कुट् - इन—वृक्ष
- कुटिः—पुं॰—-—कुट् - इन—कुटिया, झोपड़ी
- कुटिः—स्त्री॰—-—कुट् - इन—मोड़, झुकाव
- कुटिचरः—पुं॰—कुटि-चरः—-—सूँस, शिंशुक
- कुटिरम्—नपुं॰—-—कुट् - इरन्—कुटिया, झोपड़ी
- कुटिल—वि॰—-—कुट् - इलच्—टेढ़ा, झुका हुआ, मुड़ा हुआ, घूँघरदार
- कुटिल—वि॰—-—कुट् - इलच्—घुमावदार, बलखाती हुई
- कुटिल—वि॰—-—कुट् - इलच्—कपटी, जालसाज, बेईमान
- कुटिलाशय—वि॰—कुटिल-आशय—-—दुरात्मा, दुर्गति
- कुटिलपक्ष्मन्—वि॰—कुटिल-पक्ष्मन्—-—मुड़ी हुई पलकों वाला
- कुटिलस्वभाव—वि॰—कुटिल-स्वभाव—-—कुटिल प्रकृति, बेईमान, दुर्गति
- कुटिलिका—स्त्री॰—-—कुटिल - कन् - टाप्, इत्वम्—दबे पाँव आना, दुबक कर चलना
- कुटिलिका—स्त्री॰—-—कुटिल - कन् - टाप्, इत्वम्—लुहार की भट्टी
- कुट्टी—स्त्री॰—-—कुटि - ङीष्—मोड़
- कुट्टी—स्त्री॰—-—कुटि - ङीष्—कुटिया, झोपड़ी
- कुट्टी—स्त्री॰—-—कुटि - ङीष्—कुट्टिनि, दूती
- कुट्टीचकः—पुं॰—कुट्टी-चकः—-—किसी संघविशेष का संन्यासी
- कुट्टीचरः—पुं॰—कुट्टी-चरः—-—एक संन्यासी जो अपने परिवार को अपने पुत्र की देख रेख में छोड़कर अपने आप को पूर्णतया धर्मानुष्ठान एवं तपश्चर्या में लगा देता है
- कुटीरः—पुं॰—-—कुटी - र—कुटिया, झोपड़ी
- कुटीरम्—नपुं॰—-—कुटी - र—कुटिया, झोपड़ी
- कुटीरकः—पुं॰—-—कुटीर - कन्—कुटिया, झोपड़ी
- कुटुनी—स्त्री॰—-—कुट् - उन् - ङीष्—कुट्टिनी, दूती
- कुटुम्बम्—नपुं॰—-—कुटुम्ब् - अच्—गृहस्थी, परिवार
- कुटुम्बम्—नपुं॰—-—कुटुम्ब् - अच्—परिवार के कर्तव्य और चिन्ताएँ
- कुटुम्बकम्—नपुं॰—-—कुटुम्ब - कन्—गृहस्थी, परिवार
- कुटुम्बकम्—नपुं॰—-—कुटुम्ब - कन्—परिवार के कर्तव्य और चिन्ताएँ
- कुटुम्बः—पुं॰—-—कुटुम्ब् - अच्—बन्धु, वंश या विवाह के फलस्वरूप सम्बन्ध
- कुटुम्बः—पुं॰—-—कुटुम्ब् - अच्—बाल-बच्चे, संतान
- कुटुम्बः—पुं॰—-—कुटुम्ब् - अच्—नाम
- कुटुम्बः—पुं॰—-—कुटुम्ब् - अच्—वंश
- कुटुम्बम्—नपुं॰—-—कुटुम्ब् - अच्—बन्धु, वंश या विवाह के फलस्वरूप सम्बन्ध
- कुटुम्बम्—नपुं॰—-—कुटुम्ब् - अच्—बाल-बच्चे, सन्तान
- कुटुम्बम्—नपुं॰—-—कुटुम्ब् - अच्—नाम
- कुटुम्बम्—नपुं॰—-—कुटुम्ब् - अच्—वंश
- कुटुम्बकलहः—पुं॰—कुटुम्बम्-कलहः—-—घरेलू झगड़े
- कुटुम्बकलहम्—नपुं॰—कुटुम्बम्-कलहम्—-—घरेलू झगड़े
- कुटुम्बभरः—पुं॰—कुटुम्बम्-भरः—-—परिवार का भार
- कुटुम्बव्यापृत—वि॰—कुटुम्बम्-व्यापृत—-—जो पालन पोषण करता है, तथा परिवार की भलाई का ध्यान रखता है
- कुटुम्बिकः—पुं॰—-—कुटुम्ब - ठन्—गृहस्थ, कुल पिता
- कुटुम्बिकः—पुं॰—-—कुटुम्ब - ठन्—परिवार का एक सदस्य
- कुटुम्बिन्—पुं॰—-—कुटुम्ब - इनि —गृहस्थ, कुल पिता
- कुटुम्बिन्—पुं॰—-—कुटुम्ब - इनि —परिवार का एक सदस्य
- कुटुम्बिकनी—स्त्री॰—-—-—गृहपत्नी, गृहिणी
- कुटुम्बिकनी—स्त्री॰—-—-—स्त्री
- कुटुम्बिनी—स्त्री॰—-—-—गृहपत्नी, गृहिणी
- कुटुम्बिनी—स्त्री॰—-—-—स्त्री
- कुट्ट—चुरा॰ उभ॰ <कुट्टयति>, <कुट्टित>—-—-—काटना, बाँटना
- कुट्ट—चुरा॰ उभ॰ <कुट्टयति>, <कुट्टित>—-—-—पीसना, चूर्ण करना
- कुट्ट—चुरा॰ उभ॰ <कुट्टयति>, <कुट्टित>—-—-—दोष देना, निन्दा करना
- कुट्ट—चुरा॰ उभ॰ <कुट्टयति>, <कुट्टित>—-—-—गुणा करना
- कुट्टकः—पुं॰—-—कुट्ट् - ण्वुल्—कूटने वाला, पीसने वाला
- कुट्टनम्—नपुं॰—-—कुट्ट् - ल्युट्—काटना
- कुट्टनम्—नपुं॰—-—कुट्ट् - ल्युट्—कूटना
- कुट्टनम्—नपुं॰—-—कुट्ट् - ल्युट्—दुर्वचन कहना, निन्दा करना
- कुट्टनी —स्त्री॰—-—कुट्टयति नाशयति स्त्रीणां कुलम् - कुट्ट् - णिच् - ल्युट् - ङीप्—कुटनी, दूती, दल्ली
- कुट्टिनी—स्त्री॰—-—कुट्टयति नाशयति स्त्रीणां कुलम् - कुट्ट् - णिच् - ल्युट् - ङीप्, कुट्ट - इनि वा—कुटनी, दूती, दल्ली
- कुट्टमितम्—नपुं॰—-—कुट्ट् - घञ्, तेन निर्वृत्त इत्यर्थे कुट्ट् - इमप् - इतच्—प्रियतम के प्यार का दिखावटी तिरस्कार
- कुट्टाक—वि॰—-—कुट्ट् - षाकन्—जो विभक्त करता है या काटता है
- कुट्टारः—पुं॰—-—कुट्ट - आरन्—पहाड़
- कुट्टारम्—नपुं॰—-—कुट्ट - आरन्—मैथुन
- कुट्टारम्—नपुं॰—-—कुट्ट - आरन्—ऊनी कंबल
- कुट्टारम्—नपुं॰—-—कुट्ट - आरन्—एकान्त
- कुट्टिमः—पुं॰—-—कुट्ट् - इमप्—खड़ंजा, छोटे-छोटे पत्थरों को जमा कर बनाया हुआ फर्श, पक्का फर्श
- कुट्टिमः—पुं॰—-—कुट्ट् - इमप्—भवन बनाने के लिए तैयार की गई भूमि
- कुट्टिमः—पुं॰—-—कुट्ट् - इमप्—रत्नों की खान
- कुट्टिमः—पुं॰—-—कुट्ट् - इमप्—अनार
- कुट्टिमः—पुं॰—-—कुट्ट् - इमप्—झोपड़ी, कुटिया, छोटा घर
- कुट्टिमम्—नपुं॰—-—कुट्ट् - इमप्—खड़ंजा, छोटे-छोटे पत्थरों को जमा कर बनाया हुआ फर्श, पक्का फर्श
- कुट्टिमम्—नपुं॰—-—कुट्ट् - इमप्—भवन बनाने के लिए तैयार की गई भूमि
- कुट्टिमम्—नपुं॰—-—कुट्ट् - इमप्—रत्नों की खान
- कुट्टिमम्—नपुं॰—-—कुट्ट् - इमप्—अनार
- कुट्टिमम्—नपुं॰—-—कुट्ट् - इमप्—झोपड़ी, कुटिया, छोटा घर
- कुट्टिहारिका—स्त्री॰—-—कुट्टिं मत्स्यमांसादिकं हरति इति - कुट्टि - हृ - ण्वुल् - टाप्, इत्वम्—सेविका, दासी
- कुट्मल—वि॰—-—-—कुड्मल
- कुठः—पुं॰—-—कुठयते छिद्यते - कुठ् - क—वृक्ष
- कुठर—वि॰—-—-—वह थूणी जिसमें मथते समय रई की रस्सी लिपटी रहती है
- कुठारः—पुं॰—-—कुठ् - आरन्—कुल्हाड़ा, कुल्हाड़ी
- कुठारिकः—पुं॰—-—कुठार - ठन्—लकड़हारा, लकड़ी काटने वाला
- कुठारिका—स्त्री॰—-—कुठार - ङीप् - कन् - टाप्, ह्रस्वश्च—छोटा कुल्हाड़ा, फरसा
- कुठारुः—पुं॰—-—कुठ् - आरु—वृक्ष
- कुठारुः—पुं॰—-—कुठ् - आरु—लंगूर, बन्दर
- कुठिः—पुं॰—-—कुठ् - इन् - कित्—वृक्ष
- कुठिः—पुं॰—-—कुठ् - इन् - कित्—पहाड़
- कुडङ्गः—पुं॰—-—कुठ् - इन् - कित्—कुञ्ज, लतागृह
- कुडवः—पुं॰—-—कुड् - कवन्, कपन् वा—एक चौथाई प्रस्थ के बराबर या बारह मुट्ठी अनाज की तोल
- कुड्मल—वि॰—-—कुड् - कल, मुट्—खुलता हुआ, पूरा खिला हुआ, लहराता हुआ
- कुड्मलः—पुं॰—-—कुड् - कल, मुट्—खुलना, कली
- कुड्मलम्—नपुं॰—-—कुड् - कल, मुट्—एक प्रकार का नरक
- कुड्मलित—वि॰—-—कुड्मल - इतच्—कलीदार, खिला हुआ
- कुड्मलित—वि॰—-—कुड्मल - इतच्—प्रसन्न, हंसमुख
- कुड्यम्—नपुं॰—-—कु - यक्, डुगागमः—दीवार
- कुड्यम्—नपुं॰—-—कु - यक्, डुगागमः—पलस्तर करना, लीपना, पोतना
- कुड्यम्—नपुं॰—-—कु - यक्, डुगागमः—उत्सुकता, जिज्ञासा
- कुड्यछेदिन्—पुं॰—कुड्यम्-छेदिन्—-—घर में सेंध लगाने वाला, चोर
- कुड्यछेद्यः—पुं॰—कुड्यम्-छेद्यः—-—खोदने वाला
- कुड्यछेद्यम्—नपुं॰—कुड्यम्-छेद्यम्—-—खाई, गड्ढा, दरार
- कुण्—तुदा॰ पर॰ <कुणति>, <कुणित>—-—-—सहारा देना, सहायता देना
- कुण्—तुदा॰ पर॰ <कुणति>, <कुणित>—-—-—शब्द करना
- कुणकः—पुं॰—-—कुण् - क - कन्—किसी जानवर का अभी पैदा हुआ बच्चा
- कुणप—वि॰—-—कुण् - कपन्—मुर्दे जैसी दुर्गन्ध देने वाला, बदबूदार
- कुणपः—पुं॰—-—कुण् - कपन्—मुर्दा, शव
- कुणपम्—नपुं॰—-—कुण् - कपन्—मुर्दा, शव
- कुणपः—पुं॰—-—कुण् - कपन्—बर्छी
- कुणपः—पुं॰—-—कुण् - कपन्—दुर्गन्ध, बदबू
- कुणिः—पुं॰—-—कुण् - इन्—लुंजा
- कुण्टक—वि॰—-—कुण्ट् - ण्वुल्—मोटा, स्थूल
- कुण्ठ्—भ्वा॰ पर॰ <कुण्ठति>, <कुण्ठित>—-—-—कुण्ठित, ठूण्ठा या मन्द हो जाना
- कुण्ठ्—भ्वा॰ पर॰ <कुण्ठति>, <कुण्ठित>—-—-—लँगड़ा और विकलांग होना
- कुण्ठ्—भ्वा॰ पर॰ <कुण्ठति>, <कुण्ठित>—-—-—मन्दबुद्धि या मूर्ख होना, सुस्त होना
- कुण्ठ्—भ्वा॰ पर॰ <कुण्ठति>, <कुण्ठित>—-—-—ढीला करना
- कुण्ठ्—भ्वा॰ पर॰ प्रेर॰—-—-—छिपाना
- कुण्ठ—वि॰—-—कुण्ठ् - अच्—ठूँठा, सुस्त
- कुण्ठ—वि॰—-—कुण्ठ् - अच्—मन्द, मूर्ख, जड़
- कुण्ठ—वि॰—-—कुण्ठ् - अच्—आलसी, सुस्त
- कुण्ठ—वि॰—-—कुण्ठ् - अच्—दुर्बल
- कुण्ठकः—पुं॰—-—कुण्ठ् - ण्वुल्—मूर्ख
- कुण्ठित—भू॰ क॰ कृ॰—-—कुठ् - क्त—ठूंठा, मन्दीकृत
- कुण्ठित—भू॰ क॰ कृ॰—-—कुठ् - क्त—जड
- कुण्ठित—भू॰ क॰ कृ॰—-—कुठ् - क्त—विकलांग
- कुण्डः—पुं॰—-—कुण् - ड—प्याले की शक्ल का बर्तन, चिलमची, कटोरा
- कुण्डः—पुं॰—-—कुण् - ड—हौज
- कुण्डः—पुं॰—-—कुण् - ड—कूँड़, कुंड
- कुण्डः—पुं॰—-—कुण् - ड—पोखर या पल्वल
- कुण्डः—पुं॰—-—कुण् - ड—कमण्डलु या भिक्षापात्र
- कुण्डम्—नपुं॰—-—कुण् - ड—प्याले की शक्ल का बर्तन, चिलमची, कटोरा
- कुण्डम्—नपुं॰—-—कुण् - ड—हौज
- कुण्डम्—नपुं॰—-—कुण् - ड—कूँड़, कुंड
- कुण्डम्—नपुं॰—-—कुण् - ड—पोखर या पल्वल
- कुण्डम्—नपुं॰—-—कुण् - ड—कमण्डलु या भिक्षापात्र
- कुण्डः—पुं॰—-—कुण् - ड—पति के जीवित रहते व्यभिचार के द्वारा किसी दूसरे पुरुष के संयोग से उत्पन्न सन्तान
- कुण्डाशिन्—पुं॰—कुण्ड-आशिन्—-—भँड़ुवा, विट
- कुण्डोधस्—पुं॰—कुण्ड-ऊधस्—-—वह गाय जिसका ऐन या औड़ी भरी हुई हो
- कुण्डोधस्—पुं॰—कुण्ड-ऊधस्—-—भरे पूरे स्तनों वाली स्त्री
- कुण्डकीटः—पुं॰—कुण्ड-कीटः—-—रखैल स्त्रियाँ रखने वाला
- कुण्डकीटः—पुं॰—कुण्ड-कीटः—-—चार्वाक मतावलम्बी, नास्तिक, जारज ब्राह्मण
- कुण्डकीलः—पुं॰—कुण्ड-कीलः—-—नीच या दुश्चरित्र व्यक्ति
- कुण्डगोलम्—नपुं॰—कुण्ड-गोलम्—-—कांजी
- कुण्डगोलम्—नपुं॰—कुण्ड-गोलम्—-—कुण्ड और गोलक का समुदाय
- कुण्डगोलकम्—नपुं॰—कुण्ड-गोलकम्—-—कांजी
- कुण्डगोलकम्—नपुं॰—कुण्ड-गोलकम्—-—कुण्ड और गोलक का समुदाय
- कुण्डलः—पुं॰—-—कुण्ड - मत्वर्थे ल—कान की बाली, कान का आभूषण
- कुण्डलः—पुं॰—-—कुण्ड - मत्वर्थे ल—कड़ा
- कुण्डलः—पुं॰—-—कुण्ड - मत्वर्थे ल—रस्सी का गोला
- कुण्डलम्—नपुं॰—-—कुण्ड - मत्वर्थे ल—कान की बाली, कान का आभूषण
- कुण्डलम्—नपुं॰—-—कुण्ड - मत्वर्थे ल—कड़ा
- कुण्डलम्—नपुं॰—-—कुण्ड - मत्वर्थे ल—रस्सी का गोला
- कुण्डलना—स्त्री॰—-—कुण्डल् - णिच् - युच् - टाप्—घेरा डालना
- कुण्डलिन्—वि॰—-—कुण्डल - इनि—कुण्डलों से विभूषित
- कुण्डलिन्—वि॰—-—कुण्डल - इनि—गोलाकार, सर्पिल
- कुण्डलिन्—वि॰—-—कुण्डल - इनि—घुमावदार, कुण्डली मारे हुए
- कुण्डलिन्—पुं॰—-—कुण्डल - इनि—साँप
- कुण्डलिन्—पुं॰—-—कुण्डल - इनि—मोर
- कुण्डलिन्—पुं॰—-—कुण्डल - इनि—वरुण की उपाधि
- कुण्डिका—स्त्री॰—-—कुण्ड - कन् - टाप्, इत्वम्—घड़ा
- कुण्डिका—स्त्री॰—-—कुण्ड - कन् - टाप्, इत्वम्—कमण्डलु
- कुण्डिन्—पुं॰—-—कुण्ड् - इनि—शिव की उपाधि
- कुण्डिनम्—नपुं॰—-—कुण्ड् - इनच्—एक नगर का नाम, विदर्भ देश की राजधानी
- कुण्डिर—वि॰—-—कुण्ड् - इ रन्—बलवान
- कुण्डीर—वि॰—-—कुण्ड् - ई रन्—बलवान
- कुण्डिरः—पुं॰—-—कुण्ड् - इ रन्—मनुष्य
- कुण्डीरः—पुं॰—-—कुण्ड् - ई रन्—मनुष्य
- कुतः—अव्य॰—-—किम् - तसिल्—कहाँ से, किधर से
- कुतः—अव्य॰—-—किम् - तसिल्—कहाँ, और कहाँ, और किस स्थान पर आदि
- कुतः—अव्य॰—-—किम् - तसिल्—क्यों, किसलिए किस कारण से, किस प्रयोजन से
- कुतः—अव्य॰—-—किम् - तसिल्—कैसे, किसप्रकार
- कुतः—अव्य॰—-—किम् - तसिल्—और अधिक, और कम
- कुतः—अव्य॰—-—किम् - तसिल्—क्योंकि, कभी कभी
- कुतपः—पुं॰—-—कु - तप् - अच्—ब्राह्मण
- कुतपः—पुं॰—-—कु - तप् - अच्—द्विज
- कुतपः—पुं॰—-—कु - तप् - अच्—सूर्य
- कुतपः—पुं॰—-—कु - तप् - अच्—अग्नि
- कुतपः—पुं॰—-—कु - तप् - अच्—अतिथि
- कुतपः—पुं॰—-—कु - तप् - अच्—बैल, साँड़
- कुतपः—पुं॰—-—कु - तप् - अच्—दोहता
- कुतपः—पुं॰—-—कु - तप् - अच्—भानजा
- कुतपः—पुं॰—-—कु - तप् - अच्—अनाज
- कुतपः—पुं॰—-—कु - तप् - अच्—दिन का आठवाँ मुहूर्त
- कुतपम्—नपुं॰—-—कु - तप् - अच्—कुश घास
- कुतपम्—नपुं॰—-—कु - तप् - अच्—एक प्रकार का कम्बल
- कुतस्त्य—वि॰—-—कुतस् - त्यप्—कहाँ से आया हुआ
- कुतस्त्य—वि॰—-—कुतस् - त्यप्—कैसे हुआ
- कुतुकम्—नपुं॰—-—कुत् - उकञ्—इच्छा, रुचि
- कुतुकम्—नपुं॰—-—कुत् - उकञ्—जिज्ञासा
- कुतुकम्—नपुं॰—-—कुत् - उकञ्—उत्सुकता, उत्कण्ठा, उत्कटता
- कुतुपः—पुं॰—-—कुतू - डुप पृषो॰, कु - तन् - कू टिलोपः बा॰—कुप्पी
- कुतूः—स्त्री॰—-—कुतू - डुप पृषो॰, कु - तन् - कू टिलोपः बा॰—कुप्पी
- कुतूहल—वि॰—-—कुतू - हल् - अच्—आश्चर्यजनक
- कुतूहल—वि॰—-—कुतू - हल् - अच्—श्रेष्ठ सर्वोत्तम
- कुतूहल—वि॰—-—कुतू - हल् - अच्—प्रशंसाप्राप्त, प्रसिद्ध
- कुतूहलम्—नपुं॰—-—कुतू - हल् - अच्—इच्छा, जिज्ञासा
- कुतूहलम्—नपुं॰—-—कुतू - हल् - अच्—उत्सुकता
- कुतूहलम्—नपुं॰—-—कुतू - हल् - अच्—जिज्ञासा को उत्तेजित करने वाला, सुहावना, मनोरञ्जक, कौतुक या जिज्ञासा
- कुत्र—अव्य॰—-—किम् - त्रल्—कहाँ, किस बात में
- कुत्र—अव्य॰—-—किम् - त्रल्—किस विषय में
- कुत्रत्य—वि॰—-—कुत्र - त्यप्—कहाँ रहने वाला या कहाँ वास करने वाला
- कुत्स्—चुरा॰ आ॰ <कुत्सयते>, <कुत्सित>—-—-—गाली देना, बुरा भला कहना, निन्दा करना, कलंक लगाना
- कुत्सनम्—नपुं॰—-—कुत्स् - ल्युट्—दुर्वचन, घृणा, भर्त्सना, गाली देना
- कुत्सा—स्त्री॰—-—कुत्स् - ल्युट्, कुत्स् - अ - टाप्—दुर्वचन, घृणा, भर्त्सना, गाली देना
- कुत्सित—वि॰—-—कुत्स् - क्त—घृणित, तिरस्करणीय
- कुत्सित—वि॰—-—कुत्स् - क्त—नीच, अधम, दुश्चरित्र
- कुथः—पुं॰—-—कु - थक्—कुशा नामक घास
- कुथः—पुं॰—-—कु - थक्—छींट की बनी हाथी की झूल
- कुथम्—नपुं॰—-—कु - थक्—छींट की बनी हाथी की झूल
- कुथा—स्त्री॰—-—कु - थक्+टाप्—छींट की बनी हाथी की झूल
- कुद्दारः—पुं॰—-—कु - दृ - णिच् - अण्, पृषो॰—कुदाली, खुर्पा
- कुद्दारः—पुं॰—-—कु - दृ - णिच् - अण्, पृषो॰—कांचन वृक्ष
- कुद्दालः—पुं॰—-—कु - दृ - णिच् - अण्, पृषो॰, कु - दल् - णिच् - अण् पृषो॰—कुदाली, खुर्पा
- कुद्दालः—पुं॰—-—कु - दृ - णिच् - अण्, पृषो॰, कु - दल् - णिच् - अण् पृषो॰—कांचन वृक्ष
- कुद्दालकः—पुं॰—-—कु - दृ - णिच् - अण्, पृषो॰, कु - दल् - णिच् - अण् पृषो॰, कुद्दाल - कन्—कुदाली, खुर्पा
- कुद्दालकः—पुं॰—-—कु - दृ - णिच् - अण्, पृषो॰, कु - दल् - णिच् - अण् पृषो॰, कुद्दाल - कन्—कांचन वृक्ष
- कुद्यलम्—नपुं॰—-—-—कुड्मलम्
- कुद्रङ्कः—पुं॰—-—कुद्र - कै - क नि॰ साधुः—चौकी
- कुद्रङ्कः—पुं॰—-—कुद्र - कै - क नि॰ साधुः—मचान पर बना मकान
- कुद्रङ्गः—पुं॰—-—कुद्र - कै - क नि॰ साधुः, कु - उत् - रञ्ज् - घञ्—चौकी
- कुद्रङ्गः—पुं॰—-—कुद्र - कै - क नि॰ साधुः, कु - उत् - रञ्ज् - घञ्—मचान पर बना मकान
- कुनकः—पुं॰—-—-—कौवा
- कुन्तः—पुं॰—-—कु - उन्द् - क्त, बा॰ शाक॰ पररूपम्—भाला, पंखदार बाण, बर्छी
- कुन्तः—पुं॰—-—कु - उन्द् - क्त, बा॰ शाक॰ पररूपम्—छोटा जन्तु, कीड़ा
- कुन्तलः—पुं॰—-—कुन्त - ला - क—सिर के बाल, बालों का गुच्छा
- कुन्तलः—पुं॰—-—कुन्त - ला - क—कटोरा
- कुन्तलः—पुं॰—-—कुन्त - ला - क—हल
- कुन्तलाः—पुं॰—-—कुन्त - ला - क—एक देश तथा उसके निवासियों का नाम
- कुन्तिः—पुं॰—-—कमु - झिच्—एक राजा का नाम, क्रथ का पुत्र
- कुन्तिभोजः—पुं॰—कुन्ति-भोजः—-—एक यादव राजकुमार, कुन्तिदेश का राजा
- कुन्ती—स्त्री॰—-—कुन्ति - ङीष्—‘शूर’ नामक यादव की पुत्री पृथा जिसको कुन्तिभोज ने गोद लिया
- कुन्थ्—भ्वा॰ क्र्या॰ पर॰ <कुन्थति>, <कुथ्नाति>, <कुन्थित>—-—-—कष्ट सहन करना
- कुन्थ्—भ्वा॰ क्र्या॰ पर॰ <कुन्थति>, <कुथ्नाति>, <कुन्थित>—-—-—चिपकना
- कुन्थ्—भ्वा॰ क्र्या॰ पर॰ <कुन्थति>, <कुथ्नाति>, <कुन्थित>—-—-—आलिंगन करना
- कुन्थ्—भ्वा॰ क्र्या॰ पर॰ <कुन्थति>, <कुथ्नाति>, <कुन्थित>—-—-—चोट पहुँचाना
- कुन्द—वि॰—-—कु - दै (दो) - क, नि॰ मुम्, या कु - दत्, नुम्—चमेली का एक भेद, मोतिया
- कुन्दम्—नपुं॰—-—कु - दै (दो) - क, नि॰ मुम्, या कु - दत्, नुम्—चमेली का एक भेद, मोतिया
- कुन्दम्—नपुं॰—-—कु - दै (दो) - क, नि॰ मुम्, या कु - दत्, नुम्—इस पौधे का फूल
- कुन्दः—पुं॰—-—कु - दै (दो) - क, नि॰ मुम्, या कु - दत्, नुम्—विष्णु की उपाधि
- कुन्दः—पुं॰—-—कु - दै (दो) - क, नि॰ मुम्, या कु - दत्, नुम्—खैराद
- कुन्दकरः—पुं॰—कुन्द-करः—कुन्द - मा - क—खैरादी
- कुन्दमः—पुं॰—-—कुन्द् - इनि - ङीप्—बिल्ली
- कुन्दिनी—स्त्री॰—-—कु - दृ - डु बा॰ नुम्—कमलों का समूह
- कुन्दुः—पुं॰—-—-—चूहा, मूसा
- कुप्—दिवा॰ पर॰ <कुप्यति>,<कुपित>—-—-—क्रुद्ध होना
- कुप्—दिवा॰ पर॰ <कुप्यति>,<कुपित>—-—-—उत्तेजित होना, सामर्थ्य ग्रहण करना, प्रचण्ड होना
- अतिकुप्—दिवा॰ पर॰—अति-कुप्—-—क्रुद्ध होना
- परिकुप्—दिवा॰ पर॰—परि-कुप्—-—क्रुद्ध होना
- प्रकुप्—दिवा॰ पर॰—प्र-कुप्—-—क्रुद्ध होना
- प्रकुप्—दिवा॰ पर॰—प्र-कुप्—-—उत्तेजित होना, बल प्राप्त करना, बढ़ना
- प्रकुप्—दिवा॰ पर॰—प्र-कुप्—-—उभारना, चिढ़ाना, खिझाना
- कुपिन्दः—पुं॰—-—कुप् - किन्दच्—बुनकर
- कुपिन्दः—पुं॰—-—कुप् - किन्दच्—जुलाहा जाति का नाम
- कुपिनिन्—पुं॰—-—कुपिनी मत्स्यधानी अस्ति अस्य - कुपिनी - इन्—मछुवा
- कुपिनी—वि॰—-—कुप् - इनि - ङीप्—छोटी-छोटी मछलियाँ पकड़ने का एक प्रकार का जाल
- कुपूय—वि॰—-—कु - पूय् - अच्—घृणित, नीच, अधम, तिरस्करणीय
- कुप्यम्—नपुं॰—-—गुप् - क्यप्, कुत्वम्—अपधातु
- कुप्यम्—नपुं॰—-—गुप् - क्यप्, कुत्वम्—चाँदी और सोने को छोड़कर और कोई धातु
- कुबेरः—पुं॰—-—कुत्सितं बे (वे) रं शरीरं यस्य सः—धन दौलत और कोश का स्वामी, उत्तर दिशा का स्वामी
- कुवेरः—पुं॰—-—कुत्सितं बे (वे) रं शरीरं यस्य सः—धन दौलत और कोश का स्वामी, उत्तर दिशा का स्वामी
- कुबेराचलः—पुं॰—कुबेर-अचलः—-—कैलास पर्वत की उपाधि
- कुबेराद्रिः—पुं॰—कुबेर-अद्रिः—-—कैलास पर्वत की उपाधि
- कुबेरदिश्—स्त्री॰—कुबेर-दिश्—-—उत्तर दिशा
- कुब्ज—वि॰—-—कु ईषत् उब्जमार्जवं यत्र शकं॰ तारा॰—कुबड़ा, कुटिल
- कुब्जः—पुं॰—-—कु ईषत् उब्जमार्जवं यत्र शकं॰ तारा॰—मुड़ी हुई तलवार
- कुब्जः—पुं॰—-—कु ईषत् उब्जमार्जवं यत्र शकं॰ तारा॰—पीठ पर निकला हुआ कूब
- कुब्जा—स्त्री॰—-—कु ईषत् उब्जमार्जवं यत्र शकं॰ तारा॰—कंस की एक सेविका, कहते है उसका शरीर तीन स्थानों पर विकृत था
- कुब्जकः—पुं॰—-—कुब्ज - कन्—एक वृक्ष का नाम
- कुब्जिका—स्त्री॰—-—कुब्जक - टाप्, इत्वम्—आठवर्ष की अविवाहित लड़की
- कुभृत्—पुं॰—-—कु - भृ - क्विप्, तुकागमः—पहाड़
- कुमारः—पुं॰—-—कम् - आरन्, उपधायाः उत्वम्—पुत्र, बालक, युवा
- कुमारः—पुं॰—-—कम् - आरन्, उपधायाः उत्वम्—पाँच वर्ष से कम आयु का बालक
- कुमारः—पुं॰—-—कम् - आरन्, उपधायाः उत्वम्—राजकुमार, युवराज
- कुमारः—पुं॰—-—कम् - आरन्, उपधायाः उत्वम्—युद्ध के देवता कार्तिकेय
- कुमारः—पुं॰—-—कम् - आरन्, उपधायाः उत्वम्—अग्नि
- कुमारः—पुं॰—-—कम् - आरन्, उपधायाः उत्वम्—तोता
- कुमारः—पुं॰—-—कम् - आरन्, उपधायाः उत्वम्—सिन्धु नदी
- कुमारपालन—वि॰—कुमार-पालन—-—बच्चों की देखरेख रखने वाला
- कुमारपालन—वि॰—कुमार-पालन—-—राजा शालिवाहन
- कुमारभृत्या—स्त्री॰—कुमार-भृत्या—-—छोटे-छोटे बच्चों की देखरेख
- कुमारभृत्या—स्त्री॰—कुमार-भृत्या—-—गर्भावस्था में स्त्री की देखरेख, प्रसूति विद्या
- कुमारवाहिन्—पुं॰—कुमार-वाहिन्—-—मोर
- कुमारवाहनः—पुं॰—कुमार-वाहनः—-—मोर
- कुमारसू—स्त्री॰—कुमार-सू—-—पार्वती का विशेषण
- कुमारसू—स्त्री॰—कुमार-सू—-—गंगा का विशेषण
- कुमारकः—पुं॰—-—कुमार - कन्—बच्चा, युवा
- कुमारकः—पुं॰—-—कुमार - कन्—आँख का तारा
- कुमारय—ना॰ धा॰ पर॰ <कुमारयति>—-—-—खेलना, क्रीडा करना
- कुमारिक—वि॰—-—कुमारी - ठन्—जिसकी लड़कियाँ हों, जहाँ लड़कियों की बहुतायत हो
- कुमारिन्—वि॰—-—कुमारी - इनि—जिसकी लड़कियाँ हों, जहाँ लड़कियों की बहुतायत हो
- कुमारिका—स्त्री॰—-—कुमारी - ठन् - टाप्—दस से बारह वर्ष के बीच की लड़की
- कुमारिका—स्त्री॰—-—कुमारी - ठन् - टाप्—अविवाहित तरुणी, कन्या
- कुमारिका—स्त्री॰—-—कुमारी - ठन् - टाप्—लड़की, पुत्री
- कुमारिका—स्त्री॰—-—कुमारी - ठन् - टाप्—दुर्गा
- कुमारिका—स्त्री॰—-—कुमारी - ठन् - टाप्—कुछ पौधों के नाम
- कुमारी—स्त्री॰—-—कुमार - ङीष्—दस से बारह वर्ष के बीच की लड़की
- कुमारी—स्त्री॰—-—कुमार - ङीष्—अविवाहित तरुणी, कन्या
- कुमारी—स्त्री॰—-—कुमार - ङीष्—लड़की, पुत्री
- कुमारी—स्त्री॰—-—कुमार - ङीष्—दुर्गा
- कुमारी—स्त्री॰—-—कुमार - ङीष्—कुछ पौधों के नाम
- कुमारिकापुत्रः—पुं॰—कुमारिका-पुत्रः—-—अविवाहित स्त्री का पुत्र
- कुमारिकाश्वसुरः—पुं॰—कुमारिका-श्वसुरः—-—विवाह से पूर्व भ्रष्ट लड़की का श्वसुर
- कुमुद्—वि॰—-—कु - मुद् - क्विप्—कृपाशून्य, अमित्र
- कुमुद्—वि॰—-—कु - मुद् - क्विप्—लोभी
- कुमुद्—नपुं॰—-—कु - मुद् - क्विप्—सफेद कुमुदिनी
- कुमुद्—नपुं॰—-—कु - मुद् - क्विप्—लाल कमल
- कुमुदः—पुं॰—-—कौ मोदते इति कुमुदम्—सफेद कुमुदिनी
- कुमुदः—पुं॰—-—कौ मोदते इति कुमुदम्—लाल कमल
- कुमुदम्—नपुं॰—-—कौ मोदते इति कुमुदम्—सफेद कुमुदिनी
- कुमुदम्—नपुं॰—-—कौ मोदते इति कुमुदम्—लाल कमल
- कुमुदम्—नपुं॰—-—कौ मोदते इति कुमुदम्—चाँदी
- कुमुदः—पुं॰—-—कौ मोदते इति कुमुदम्—विष्णु का विशेषण
- कुमुदः—पुं॰—-—कौ मोदते इति कुमुदम्—दक्षिण दिशा के दिग्गज का नाम
- कुमुदः—पुं॰—-—कौ मोदते इति कुमुदम्—कपूर
- कुमुदः—पुं॰—-—कौ मोदते इति कुमुदम्—बन्दरों की एक जाति
- कुमुदः—पुं॰—-—कौ मोदते इति कुमुदम्—एक नाग जिसने अपनी छोटी बहन कुमुद्वती को राम के पुत्र कुश को प्रदान किया
- कुमुदाकारः—पुं॰—कुमुद-आकारः—-—चाँदी
- कुमुदाकारः—पुं॰—कुमुद-आकारः—-—कमलों से भरा हुआ सरोवर
- कुमुदावासः—पुं॰—कुमुद-आवासः—-—कमलों से भरा हुआ सरोवर
- कुमुदेशः—पुं॰—कुमुद-ईशः—-—चन्द्रमा
- कुमुदखण्डम्—नपुं॰—कुमुद-खण्डम्—-—कमलों का समूह
- कुमुदनाथः—पुं॰—कुमुद-नाथः—-—चन्द्रमा
- कुमुदपतिः—पुं॰—कुमुद-पतिः—-—चन्द्रमा
- कुमुदबन्धुः—पुं॰—कुमुद-बन्धुः—-—चन्द्रमा
- कुमुदबान्धवः—पुं॰—कुमुद-बान्धवः—-—चन्द्रमा
- कुमुदसुहृद्—पुं॰—कुमुद-सुहृद्—-—चन्द्रमा
- कुमुदवती—स्त्री॰—-—कुमुद - मतुप् - ङीष्, वत्वम्—कमल का पौधा
- कुमिदिनी—स्त्री॰—-—कुमुद - इनि - ङीष्—सफेद फूलों की कुमुदिनी
- कुमिदिनी—स्त्री॰—-—कुमुद - इनि - ङीष्—कमलों का समूह
- कुमिदिनी—स्त्री॰—-—कुमुद - इनि - ङीष्—कमलस्थली
- कुमिदिनीनायकः—पुं॰—कुमिदिनी-नायकः—-—चन्द्रमा
- कुमिदिनीपतिः—पुं॰—कुमिदिनी-पतिः—-—चन्द्रमा
- कुमुद्वत्—वि॰—-—कुमुद - मतुप्, वत्वम्—जहाँ कमलों की बहुतायत हो
- कुमुद्वती—स्त्री॰—-—कुमुद - मतुप्, वत्वम्, ङीप्—सफेद फूलों की कुमुदिनी
- कुमुद्वती—स्त्री॰—-—कुमुद - मतुप्, वत्वम्, ङीप्—कमलों का समूह
- कुमुद्वती—स्त्री॰—-—कुमुद - मतुप्, वत्वम्, ङीप्—कमलस्थली
- कुमुद्वतीशः—पुं॰—कुमुद्वती-ईशः—-—चन्द्रमा
- कुमोदकः—पुं॰—-—कु - मुद् - णिच् - ण्वुल्—विष्णु का विशेषण
- कुम्बा—स्त्री॰—-—कुम्ब् - अङ् - टाप्—यज्ञभूमि का अहाता
- कुम्भः—पुं॰—-—कुं भूमि कुत्सितं वा उम्भति पूरयति - उम्भ् - अच् शकं तारा॰—घड़ा, जलपात्र, करवा
- कुम्भः—पुं॰—-—कुं भूमि कुत्सितं वा उम्भति पूरयति - उम्भ् - अच् शकं तारा॰—हाथी के मस्तक का ललाट स्थल
- कुम्भः—पुं॰—-—कुं भूमि कुत्सितं वा उम्भति पूरयति - उम्भ् - अच् शकं तारा॰—राशिचक्र में ग्यारहवीं राशि कुम्भ
- कुम्भः—पुं॰—-—कुं भूमि कुत्सितं वा उम्भति पूरयति - उम्भ् - अच् शकं तारा॰—२० द्रोण के बराबर अनाज की तौल
- कुम्भः—पुं॰—-—कुं भूमि कुत्सितं वा उम्भति पूरयति - उम्भ् - अच् शकं तारा॰—श्वास को स्थगित करने के लिए नाक तथा मुखविवर को बन्द करना
- कुम्भकर्णः—पुं॰—कुम्भ-कर्णः—-—‘घड़े के सदृश कान वाला’ एक महाकाय राक्षस जो रावण का भाई था तथा राम के हाथों मारा गया था
- कुम्भकारः—पुं॰—कुम्भ-कारः—-—कुम्हार
- कुम्भकारः—पुं॰—कुम्भ-कारः—-—वर्ण संकर जाति
- कुम्भघोणः—पुं॰—कुम्भ-घोणः—-—एक नगर का नाम
- कुम्भजः—पुं॰—कुम्भ-जः—-—अगस्त्य मुनि के विशेषण
- कुम्भजः—पुं॰—कुम्भ-जः—-—कौरव और पाण्डवों के सैन्यशिक्षाचार्य गुरु द्रोण का विशेषण
- कुम्भजः—पुं॰—कुम्भ-जः—-—वशिष्ठ का विशेषण
- कुम्भजन्मनः—पुं॰—कुम्भ-जन्मनः—-—अगस्त्य मुनि के विशेषण
- कुम्भजन्मनः—पुं॰—कुम्भ-जन्मनः—-—कौरव और पाण्डवों के सैन्यशिक्षाचार्य गुरु द्रोण का विशेषण
- कुम्भजन्मनः—पुं॰—कुम्भ-जन्मनः—-—वशिष्ठ का विशेषण
- कुम्भयोनिः—पुं॰—कुम्भ-योनिः—-—अगस्त्य मुनि के विशेषण
- कुम्भयोनिः—पुं॰—कुम्भ-योनिः—-—कौरव और पाण्डवों के सैन्यशिक्षाचार्य गुरु द्रोण का विशेषण
- कुम्भयोनिः—पुं॰—कुम्भ-योनिः—-—वशिष्ठ का विशेषण
- कुम्भसम्भवः—पुं॰—कुम्भ-सम्भवः—-—अगस्त्य मुनि के विशेषण
- कुम्भसम्भवः—पुं॰—कुम्भ-सम्भवः—-—कौरव और पाण्डवों के सैन्यशिक्षाचार्य गुरु द्रोण का विशेषण
- कुम्भसम्भवः—पुं॰—कुम्भ-सम्भवः—-—वशिष्ठ का विशेषण
- कुम्भदासी—स्त्री॰—कुम्भ-दासी—-—कुट्टिनी, दूती
- कुम्भलग्नम्—शा॰—कुम्भ-लग्नम्—-—दिन का वह समय जब कि राशि चक्र क्षितिज के ऊपर उदय होता है
- कुम्भमण्डूकः—पुं॰—कुम्भ-मण्डूकः—-—घड़े का मेढ़क
- कुम्भमण्डूकः—पुं॰—कुम्भ-मण्डूकः—-—अनुभवशून्य मनुष्य
- कुम्भसन्धिः—पुं॰—कुम्भ-सन्धिः—-—हाथी के सिर पर ललाटस्थलियों के बीच का गर्त
- कुम्भकः—पुं॰—-—कुम्भ - कन् - कै - क वा—स्तंभ का आधार
- कुम्भकः—पुं॰—-—कुम्भ - कन् - कै - क वा—प्राणायाम का एक प्रकार जिसमें दाहिने हाथ की अंगुलियों से दोनों नथुने और मुख बन्द करके सांस रोका जाता हैं
- कुम्भा—स्त्री॰—-—कुत्सितम् उम्भति पूरयति इति - उम्भ् - अच् - टाप् शक॰ पररूपम—वेश्या, वारांगना
- कुम्भिका—स्त्री॰—-—कुम्भ - कन् - टाप्, इत्वम्—छोटा बर्तन
- कुम्भिका—स्त्री॰—-—कुम्भ - कन् - टाप्, इत्वम्—वेश्या
- कुम्भिन्—पुं॰—-—कुम्भ - इनि—हाथी
- कुम्भिन्—पुं॰—-—कुम्भ - इनि—मगरमच्छ
- कुम्भिनरकः—पुं॰—कुम्भिन्-नरकः—-—एक विशेष प्रकार का नरक
- कुम्भिमदः—पुं॰—कुम्भिन्-मदः—-—हाथी के मस्तक से बहने वाला मद
- कुम्भिलः—पुं॰—-—कुम्भ - इलच्—सेंध लगाकर घर में घूसने वाला चोर
- कुम्भिलः—पुं॰—-—कुम्भ - इलच्—काव्य चोर, लेख चोर
- कुम्भिलः—पुं॰—-—कुम्भ - इलच्—साला, पत्नी का भाई
- कुम्भिलः—पुं॰—-—कुम्भ - इलच्—गर्भ पूरा होने से पहले ही उत्पन्न बालक
- कुम्भी—स्त्री॰—-—कुम्भ - ङीष्—पानी का छोटा पात्र, घड़िया
- कुम्भीनसः—पुं॰,ए॰ व॰ या ब॰ व॰—कुम्भी-नसः—-—एक प्रकार का विषैला साँप
- कुम्भीपाकः—पुं॰—कुम्भी-पाकः—-—एक विशेष प्रकार का नरक जिसमें पापी जन कुम्हार के बर्तनों की भाँति पकाये जाते है
- कुम्भीकः—पुं॰—-—कुम्भी - कै - क—पुन्नागवृक्ष
- कुम्भीकमक्षिका—स्त्री॰—कुम्भीक-मक्षिका—-—एक प्रकार की मक्खी
- कुम्भीरः—पुं॰—-—कुम्भिन् - ईर् - अण्—घड़ियाल
- कुम्भीरकः—पुं॰—-—कुम्भीर - कनु, रस्य लः, ततः कन् च—चोर
- कुम्भीलः—पुं॰—-—कुम्भीर - कनु, रस्य लः, ततः कन् च—चोर
- कुम्भीलकः—पुं॰—-—कुम्भीर - कनु, रस्य लः, ततः कन् च—चोर
- कुर्—तुदा॰ पर॰ <कुरति>—-—-—शब्द करना, ध्वनि करना
- कुरङ्करः —पुं॰—-—कुरम् इति अव्यक्तशब्दं करोति - कुरम् - कृ - ट, कुरम् - कुर् - शच् च—सारस पक्षी
- कुरङ्कुरः—पुं॰—-—कुरम् इति अव्यक्तशब्दं करोति - कुरम् - कृ - ट, कुरम् - कुर् - शच् च—सारस पक्षी
- कुरङ्गः—पुं॰—-—कृ - अङ्गच्—हरिण
- कुरङ्गः—पुं॰—-—कृ - अङ्गच्—हरिण की एक जाति
- कुरङ्गाक्षी—स्त्री॰—कुरङ्ग-अक्षी—-—हरिण जैसी आँखों वाली स्त्री
- कुरङ्गनयना—स्त्री॰—कुरङ्ग-नयना—-—हरिण जैसी आँखों वाली स्त्री
- कुरङ्गनेत्रा—स्त्री॰—कुरङ्ग-नेत्रा—-—हरिण जैसी आँखों वाली स्त्री
- कुरङ्गनाभिः—पुं॰—कुरङ्ग-नाभिः—-—कस्तूरी
- कुरङ्गम्—नपुं॰—-—कुर - गम् - खच्, मुम्—हरिण
- कुरङ्गम्—नपुं॰—-—कुर - गम् - खच्, मुम्—हरिण की एक जाति
- कुरचिल्लः—पुं॰—-—कुर - चिल्ल् - अच्—केकड़ा
- कुरटः—पुं॰—-—कुर् - अटन् - कित्—जूता बनाने वाला, मोची
- कुरण्टः—पुं॰—-—कुर् - अण्टक्—पीला सदाबहार, कटसरैया
- कुरण्टकः—पुं॰—-—कुर् - अण्टक्, कुरण्ट - कन्—पीला सदाबहार, कटसरैया
- कुरण्टिकाः—पुं॰—-—कुर् - अण्टक्, कुरण्ट - कन्, स्त्रियां टाप् इत्वम्—पीला सदाबहार, कटसरैया
- कुरण्डः—पुं॰—-—कुर् - अण्डक्—अण्डकोश की वृद्धि, एक रोग जिसमें पोते बढ़ जाते हैं
- कुररः—पुं॰—-—कु - क्रुरच्—क्रौंच पक्षी, समुद्री उकाब
- कुरलः—पुं॰—-—कु - क्रुरच्, रलयोरभेदः—क्रौंच पक्षी, समुद्री उकाब
- कुररी—स्त्री॰—-—कुरर - ङीष्—मादा क्रौंच
- कुररी—स्त्री॰—-—कुरर - ङीष्—भेड़
- कुररीगणः—पुं॰—कुररी-गणः—-—क्रौञ्च पक्षियों का झुण्ड
- कुरवः—पुं॰—-—ईषत् रवो यत्र इति, कुरव - कन्—सदाबहार या कटसरैया की जाति
- कुरबः—पुं॰—-—ईषत् रवो यत्र इति, कुरव - कन्—सदाबहार या कटसरैया की जाति
- कुरवकः —पुं॰—-—ईषत् रवो यत्र इति, कुरव - कन्—सदाबहार या कटसरैया की जाति
- कुरबकः—पुं॰—-—ईषत् रवो यत्र इति, कुरब - कन्—सदाबहार या कटसरैया की जाति
- कुरवम् —नपुं॰—-—ईषत् रवो यत्र इति, कुरव - कन्—सदाबहार का फूल
- कुरबम्—नपुं॰—-—ईषत् रवो यत्र इति, कुरब - कन्—सदाबहार का फूल
- कुरवकम्—नपुं॰—-—ईषत् रवो यत्र इति, कुरब - कन्—सदाबहार का फूल
- कुरकम्—नपुं॰—-—कृ - ईरन्, उकारादेशः—सदाबहार का फूल
- कुरीरम्—नपुं॰—-—कृ - ईरन्, उकारादेशः—स्त्रियों का एक प्रकार का सिर पर ओढ़ने का कपड़ा
- कुरुः—पुं॰—-—कृ - कु उकारादेशः—वर्तमान दिल्ली के निकट भारत के उत्तर में स्थित एक देश
- कुरुः—पुं॰—-—कृ - कु उकारादेशः—इस देश के राजा
- कुरुः—पुं॰—-—कृ - कु उकारादेशः—पुरोहित
- कुरुः—पुं॰—-—कृ - कु उकारादेशः—भात
- कुरुक्षेत्रम्—नपुं॰—कुरु-क्षेत्रम्—-—दिल्ली के निकट एक विस्तृत क्षेत्र जहाँ कौरव पाण्डवों का महायुद्ध हुआ था
- कुरुजाङ्गलम्—नपुं॰—कुरु-जाङ्गलम्—-—कुरुक्षेत्र
- कुरुराज—वि॰—कुरु-राज—-—दुर्योधन का विशेषण
- कुरुराजः—पुं॰—कुरु-राजः—-—दुर्योधन का विशेषण
- कुरुविस्तः—पुं॰—कुरु-विस्तः—-—७०० ट्राय ग्रेन के बराबर सोने का तोल
- कुरुवृद्धः—पुं॰—कुरु-वृद्धः—-—भीष्म का विशेषण
- कुरुण्टः—पुं॰—-—-—लालरंग का सदाबहार
- कुरुण्टी—स्त्री॰—-—-—काठ की गुड़िया पुत्तलिका
- कुरुलः—पुं॰—-—-—बालों का गुच्छा, विशेषकर माथे पर बिखरी हुई जुल्फ
- कुरुवक—वि॰—-—-—सदाबहार या कटसरैया की जाति
- कुरुविन्द—वि॰—-—कुरु - विद् - श—लालमणि
- कुरुविन्दम्—नपुं॰—-—कुरु - विद् - श, मुम्—लालमणि
- कुरुविन्दम्—नपुं॰—-—कुरु - विद् - श, मुम्—काला नमक, दर्पण
- कुर्कुटः—पुं॰—-—कुरु - कुट् - क—मुर्गा
- कुर्कुटः—पुं॰—-—कुरु - कुट् - क—कूड़ा-करकट
- कुर्कुरः—पुं॰—-—कुर् - कुर् - क—कुत्ता
- कुर्चिका—स्त्री॰—-—-—चित्रकारी करने की कूँची, ब्रुश या पेंसिल
- कुर्चिका—स्त्री॰—-—-—चाबी
- कुर्चिका—स्त्री॰—-—-—कली, फूल
- कुर्चिका—स्त्री॰—-—-—जमाया हुआ दूध
- कुर्चिका—स्त्री॰—-—-—सूई
- कुर्दू—स्त्री॰—-—-—छलाँग लगाना, कूदना
- कुर्दू—स्त्री॰—-—-—खेलना, बालकेलि करना
- कुर्दन—वि॰—-—कूर्द् - ल्युट्—उछलना
- कुर्दन—वि॰—-—कूर्द् - ल्युट्—खेलना, क्रीड़ा करना
- कुर्परः—पुं॰—-—कुर् - क्विप्, कुर् - पृ - अच् पक्षे दीर्घः नि॰—घुटना, कोहनी
- कूर्परः—पुं॰—-—कुर् - क्विप्, कुर् - पृ - अच् पक्षे दीर्घः नि॰—घुटना, कोहनी
- कुर्पासः—पुं॰—-—कुर्पर - अस् - घञ्,पृषो॰—स्त्रियों के पहनने के लिए एक प्रकार की अंगिया या चोली
- कूर्पासः—पुं॰—-—कुर्पर - अस् - घञ्,पृषो॰—स्त्रियों के पहनने के लिए एक प्रकार की अंगिया या चोली
- कुर्पासकः —पुं॰—-—कूर्पास - कन्—स्त्रियों के पहनने के लिए एक प्रकार की अंगिया या चोली
- कूर्पासकः—पुं॰—-—कूर्पास - कन्—स्त्रियों के पहनने के लिए एक प्रकार की अंगिया या चोली
- कुर्वत्—पुं॰—-—कृ - शतृ—करता हुआ
- कुर्वत्—पुं॰—-—कृ - शतृ—नौकर
- कुर्वत्—पुं॰—-—कृ - शतृ—जूते बनाने वाला
- कुलम्—नपुं॰—-—कुल - क—वंश, परिवार
- कुलम्—नपुं॰—-—कुल - क—पारिवारिक आवास, आसन, घर, गृह
- कुलम्—नपुं॰—-—कुल - क—उत्तमकुल, उच्चवंश, भला घराना
- कुलम्—नपुं॰—-—कुल - क—रेवड़, दल, झुंड. संग्रह, समूह
- कुलम्—नपुं॰—-—कुल - क—चट्टा, टोली, दल
- कुलम्—नपुं॰—-—कुल - क—शरीर
- कुलम्—नपुं॰—-—कुल - क—सामने का या अगला भाग
- कुलः—पुं॰—-—कुल - क—किसी निगम या संघ का अध्यक्ष
- कुलाकुल—वि॰—कुलम्-अकुल—-—मिश्र चरित्र बल का
- कुलाकुल—वि॰—कुलम्-अकुल—-—मध्यम श्रेणी का
- कुलाकुलतिथिः—पुं॰—कुलम्-अकुल-तिथिः—-—चन्द्रमास के पक्ष की द्वितीया, षष्ठी और दशमी
- कुलाकुलवारः—पुं॰—कुलम्-अकुल-वारः—-—बुधवार
- कुलाङ्गना—स्त्री॰—कुलम्-अङ्गना—-—आदरणीय तथा उच्च वंश की स्त्री
- कुलाङ्गारः—पुं॰—कुलम्-अङ्गारः—-—जो अपने कुल को नष्ट करता है
- कुलाचलः—पुं॰—कुलम्-अचलः—-—मुख्य पहाड़, जो इस महाद्वीप के प्रत्येक खंड में विद्यमान माने जाते हैं
- कुलाद्रिः—पुं॰—कुलम्-अद्रिः—-—मुख्य पहाड़, जो इस महाद्वीप के प्रत्येक खंड में विद्यमान माने जाते हैं
- कुलपर्वतः—पुं॰—कुलम्-पर्वतः—-—मुख्य पहाड़, जो इस महाद्वीप के प्रत्येक खंड में विद्यमान माने जाते हैं
- कुलशैलः—पुं॰—कुलम्-शैलः—-—मुख्य पहाड़, जो इस महाद्वीप के प्रत्येक खंड में विद्यमान माने जाते हैं
- कुलान्वित—वि॰—कुलम्-अन्वित—-—उच्चकुल में उत्पन्न
- कुलाभिमानः—पुं॰—कुलम्-अभिमानः—-—कुल का गौरव
- कुलाचारः—पुं॰—कुलम्-आचारः—-—किसी परिवार या जाति का विशेष कर्तव्य या रिवाज
- कुलाचार्यः—पुं॰—कुलम्-आचार्यः—-—कुलपुरोहित या कुलगुरु
- कुलाचार्यः—पुं॰—कुलम्-आचार्यः—-—वंशावलीप्रणेता
- कुलालम्बिन्—वि॰—कुलम्-आलम्बिन्—-—परिवार का पालन पोषण करने वाला
- कुलेश्वरः—पुं॰—कुलम्-ईश्वरः—-—परिवार का मुखिया
- कुलेश्वरः—पुं॰—कुलम्-ईश्वरः—-—शिव का नाम
- कुलोत्कट—वि॰—कुलम्-उत्कट—-—उच्चकुलोद्भव
- कुलोत्कटः—पुं॰—कुलम्-उत्कटः—-—अच्छी नस्ल का घोड़ा
- कुलोत्पन्न—वि॰—कुलम्-उत्पन्न—-—भले कुल में उत्पन्न, उच्चकुलोद्भव
- कुलोद्गत—वि॰—कुलम्-उद्गत—-—भले कुल में उत्पन्न, उच्चकुलोद्भव
- कुलोद्भव—वि॰—कुलम्-उद्भव—-—भले कुल में उत्पन्न, उच्चकुलोद्भव
- कुलोद्वहः—पुं॰—कुलम्-उद्वहः—-—कुटुम्ब का मुखिया या उसे अमर बनाने वाला
- कुलोपदेशः—पुं॰—कुलम्-उपदेशः—-—खानदानी नाम
- कुलकज्जलः—पुं॰—कुलम्-कज्जलः—-—कुलकलंक
- कुलकण्टकः—पुं॰—कुलम्-कण्टकः—-—जो अपने कुटुंब के लिए कांटे की भाँति कष्टदायक हो
- कुलकन्यका—स्त्री॰—कुलम्-कन्यका—-—उच्चकुल में उत्पन्न लड़की
- कुलकन्या—स्त्री॰—कुलम्-कन्या—-—उच्चकुल में उत्पन्न लड़की
- कुलकरः—पुं॰—कुलम्-करः—-—कुलप्रवर्तक, कुल का आदिपुरुष
- कुलकर्मन्—नपुं॰—कुलम्-कर्मन्—-—अपने कुल की विशेष रीति
- कुलकलङ्कः—पुं॰—कुलम्-कलङ्कः—-—जो अपने कुल के लिए अपमान का कारण हो
- कुलक्षयः—पुं॰—कुलम्-क्षयः—-—कुटम्ब का नाश
- कुलक्षयः—पुं॰—कुलम्-क्षयः—-—कुल की परिसमाप्ति
- कुलगिरिः—पुं॰—कुलम्-गिरिः—-—मुख्य पहाड़, जो इस महाद्वीप के प्रत्येक खंड में विद्यमान माने जाते हैं
- कुलभूभृत्—पुं॰—कुलम्-भूभृत्—-—मुख्य पहाड़, जो इस महाद्वीप के प्रत्येक खंड में विद्यमान माने जाते हैं
- कुलपर्वतः—पुं॰—कुलम्-पर्वतः—-—मुख्य पहाड़, जो इस महाद्वीप के प्रत्येक खंड में विद्यमान माने जाते हैं
- कुलघ्न—वि॰—कुलम्-घ्न—-—कुल को बर्बाद करने वाला
- कुलज—वि॰—कुलम्-ज—-—अच्छे कुल में उत्पन्न, कुलोद्भव
- कुलजात—वि॰—कुलम्-जात—-—अच्छे कुल में उत्पन्न, कुलोद्भव
- कुलजात—वि॰—कुलम्-जात—-—कुलक्रमागत, आनुवंशिक
- कुलजनः—पुं॰—कुलम्-जनः—-—उच्चकुलोद्भव या सम्मानीय पुरुष
- कुलतन्तुः—पुं॰—कुलम्-तन्तुः—-—जो अपने कुल को बनाये रखता है
- कुलतिथिः—पुं॰—कुलम्-तिथिः—-—महत्त्वपूर्णतिथि, नामतः चांद्र पक्ष की चतुर्थी, अष्टमी, द्वादशी और चतुर्दशी
- कुलतिलकः—पुं॰—कुलम्-तिलकः—-—कुटुंब की कीर्ति, जो अपने कुल को सम्मानित करता है
- कुलदीपः—पुं॰—कुलम्-दीपः—-—जिससे कुल का नाम उजागर हो
- कुलदीपकः—पुं॰—कुलम्-दीपकः—-—जिससे कुल का नाम उजागर हो
- कुलदुहितृ—स्त्री॰—कुलम्-दुहितृ—-—उच्चकुल में उत्पन्न लड़की
- कुलदेवता—स्त्री॰—कुलम्-देवता—-—अभिभावक देवता, कुल का संरक्षक देवता
- कुलधर्मः—पुं॰—कुलम्-धर्मः—-—कुल की रीति, अपने कुल का कर्तव्य या विशेष रीति
- कुलधारकः—पुं॰—कुलम्-धारकः—-—पुत्र
- कुलधुर्यः—पुं॰—कुलम्-धुर्यः—-—परिवार का भरणपोषण करने में समर्थ, वयस्क पुत्र
- कुलनन्दन—वि॰—कुलम्-नन्दन—-—अपने कुल को प्रसन्न तथा सम्मानित करने वाला
- कुलनायिका—स्त्री॰—कुलम्-नायिका—-—वाममार्गी शाक्तों की तान्त्रिकपूजा के उत्सव के अवसर पर जिस लड़की की पूजा की जाय
- कुलनारी—स्त्री॰—कुलम्-नारी—-—उच्चकुलोद्भव सती साध्वी स्त्री
- कुलनाशः—पुं॰—कुलम्-नाशः—-—कुल का नाश या बरबादी
- कुलनाशः—पुं॰—कुलम्-नाशः—-—विधर्मी, आचारहीन, बहिष्कृत
- कुलनाशः—पुं॰—कुलम्-नाशः—-—ऊँट
- कुलपरम्परा—स्त्री॰—कुलम्-परम्परा—-—वंश को बनानेवाली पीढ़ियों की श्रेणी
- कुलपतिः—पुं॰—कुलम्-पतिः—-—कुटुम्ब का मुखिया
- कुलपतिः—पुं॰—कुलम्-पतिः—-—वह ऋषि जो दस सहस्र विद्यार्थियों का पालन पोषण करता है तथा उन्हें शिक्षित करता है
- कुलपांसुका—स्त्री॰—कुलम्-पांसुका—-—कुलटा स्त्री जो अपने कुल को कलंक लगावे, व्यभिचारिणी स्त्री
- कुलपालिः—पुं॰—कुलम्-पालिः—-—उच्चकुलोद्भूत सती स्त्री
- कुलपालिका—स्त्री॰—कुलम्-पालिका—-—उच्चकुलोद्भूत सती स्त्री
- कुलपाली—स्त्री॰—कुलम्-पाली—-—उच्चकुलोद्भूत सती स्त्री
- कुलपुत्रः—पुं॰—कुलम्-पुत्रः—-—अच्छे कुल में उत्पन्न बेटा
- कुलपुरुषः—पुं॰—कुलम्-पुरुषः—-—सम्मान के योग्य तथा उच्चकुल में उत्पन्न पुरुष
- कुलपुरुषः—पुं॰—कुलम्-पुरुषः—-—पूर्वज
- कुलपूर्वगः—पुं॰—कुलम्-पूर्वगः—-—पूर्व पुरुष
- कुलभार्या—स्त्री॰—कुलम्-भार्या—-—सती साध्वी पत्नी
- कुलभृत्या—स्त्री॰—कुलम्-भृत्या—-—गर्भवती स्त्री की परिचर्या
- कुलमर्यादा—स्त्री॰—कुलम्-मर्यादा—-—कुल का सम्मान या प्रतिष्ठा
- कुलमार्गः—पुं॰—कुलम्-मार्गः—-—कुल की रीति, सर्वोत्तमरीति या ईमानदारी का व्यवहार
- कुलयोषित—वि॰—कुलम्-योषित—-—अच्छे कुल की सदाचारिणी स्त्री
- कुलवधू—स्त्री॰—कुलम्-वधू—-—अच्छे कुल की सदाचारिणी स्त्री
- कुलवारः—पुं॰—कुलम्-वारः—-—मुख्य दिन
- कुलविद्या—स्त्री॰—कुलम्-विद्या—-—कुलक्रमागत प्राप्त ज्ञान, परंपराप्राप्त ज्ञान
- कुलविप्रः—पुं॰—कुलम्-विप्रः—-—कुलपुरोहित
- कुलवृद्धः—पुं॰—कुलम्-वृद्धः—-—परिवार का बूढ़ा तथा अनुभवी पुरुष
- कुलव्रतः—पुं॰—कुलम्-व्रतः—-—कुल का व्रत या प्रतिज्ञा
- कुलव्रतम्—नपुं॰—कुलम्-व्रतम्—-—कुल का व्रत या प्रतिज्ञा
- कुलश्रेष्ठिन्—पुं॰—कुलम्-श्रेष्ठिन्—-—किसी कुटुम्ब या श्रमिक संघ का मुखिया
- कुलश्रेष्ठिन्—पुं॰—कुलम्-श्रेष्ठिन्—-—उच्चकुल में उत्पन्न शिल्पकार
- कुलसंख्या—स्त्री॰—कुलम्-संख्या—-—कुल की प्रतिष्ठा
- कुलसंख्या—स्त्री॰—कुलम्-संख्या—-—सम्मानित परिवारों में गणना
- कुलसन्ततिः—स्त्री॰—कुलम्-सन्ततिः—-—संतान, वंशज, वंशपरम्परा
- कुलसम्भवः—वि॰—कुलम्-सम्भवः—-—प्रतिष्ठित कुल में उत्पन्न
- कुलसेवकः—पुं॰—कुलम्-सेवकः—-—श्रेष्ठ नौकर
- कुलस्त्री—स्त्री॰—कुलम्-स्त्री—-—उच्चकुल की स्त्री, कुललक्ष्मी
- कुलस्थितिः—स्त्री॰—कुलम्-स्थितिः—-—कुटुम्ब की प्राचीनता या समृद्धि
- कुलक—वि॰—-—कुल - कन्—अच्छे कुल का, अच्छे कुल में जन्मा हुआ
- कुलकः—पुं॰—-—कुल - कन्—शिल्पियों की श्रेणी का मुखिया
- कुलकः—पुं॰—-—कुल - कन्—उच्च कुल में उत्पन्न शिल्पकार
- कुलकः—पुं॰—-—कुल - कन्—बाँबी
- कुलकम्—पुं॰—-—कुल - कन्—संग्रह, समूह
- कुलकम्—नपुं॰—-—कुल - कन्—व्याकरण की दृष्टि से सम्बन्ध श्लोकों का समूह
- कुलटा—नपुं॰—-—कुल - अट् - अच् - टाप् शक॰ पररूपम्—व्यभिचारिणी स्त्री
- कुलटापतिः—पुं॰—कुलटा-पतिः—-—भ्रष्टा या जारिणी स्त्री का स्वामी
- कुलतः—नपुं॰—-—कुल - तसिल्—जन्म से
- कुलत्थः—पुं॰—-—कुल - स्था - क पृषो॰ साधुः—कुलथी, एक प्रकार की दाल
- कुलन्धर—वि॰—-—कुल - धृ - खच्, मुम्—अपने कुल का सिलसिला चलाने वाला
- कुलम्भरः—पुं॰—-—कुल - भृ - खच्, मुम्—चोर
- कुलम्भलः—पुं॰—-—कुल - भृ - खच्, मुम्—चोर
- कुलवत्—वि॰—-—कुल - मतुप्, मस्य वत्वम्—कुलीन, अच्छे घराने में उत्पन्न
- कुलायः—पुं॰—-—कुलं पक्षिसमूहः अयतेऽअत्र - कुल - अय् - घञ्—पक्षियों का घोंसला
- कुलायः—पुं॰—-—कुलं पक्षिसमूहः अयतेऽअत्र - कुल - अय् - घञ्—शरीर
- कुलायः—पुं॰—-—कुलं पक्षिसमूहः अयतेऽअत्र - कुल - अय् - घञ्—स्थान, जगह
- कुलायः—पुं॰—-—कुलं पक्षिसमूहः अयतेऽअत्र - कुल - अय् - घञ्—बुना हुआ वस्त्र, जाला
- कुलायः—पुं॰—-—कुलं पक्षिसमूहः अयतेऽअत्र - कुल - अय् - घञ्—बक्स या पात्र
- कुलायम्—नपुं॰—-—कुलं पक्षिसमूहः अयतेऽअत्र - कुल - अय् - घञ्—पक्षियों का घोंसला
- कुलायम्—नपुं॰—-—कुलं पक्षिसमूहः अयतेऽअत्र - कुल - अय् - घञ्—शरीर
- कुलायम्—नपुं॰—-—कुलं पक्षिसमूहः अयतेऽअत्र - कुल - अय् - घञ्—स्थान, जगह
- कुलायम्—नपुं॰—-—कुलं पक्षिसमूहः अयतेऽअत्र - कुल - अय् - घञ्—बुना हुआ वस्त्र, जाला
- कुलायम्—नपुं॰—-—कुलं पक्षिसमूहः अयतेऽअत्र - कुल - अय् - घञ्—बक्स या पात्र
- कुलायनिलायः—पुं॰—कुलाय-निलायः—-—घोंसले में बैठना, अंडे सेना, अंडों में से बच्चे निकालने लिए अंडों के ऊपर बैठना
- कुलायस्थः—पुं॰—कुलाय-स्थः—-—पक्षी
- कुलायिका—स्त्री॰—-—कुलाय - ठन् - टाप्—पक्षियों का पिंजड़ा, चिड़ियाघर, कबूतरखाना, दड़बा
- कुलालः—पुं॰—-—कुल् - कालन्—कुम्हार
- कुलालः—पुं॰—-—कुल् - कालन्—जंगली मुर्गा
- कुलिः—पुं॰—-—कुल् - इन्, कित्—हाथ
- कुलिक—वि॰—-—कुल - ठन्—अच्छे कुल का, उत्तम कुल में उत्पन्न
- कुलिकः—पुं॰—-—कुल - ठन्—स्वजन
- कुलिकः—पुं॰—-—कुल - ठन्—शिल्पीसंघ का मुखिया
- कुलिकः—पुं॰—-—कुल - ठन्—उच्चकुलोद्भव कलाकार
- कुलिकवेला—स्त्री॰—कुलिक-वेला—-—दिन का वह समय जब कि कोई शुभ कार्य आरम्भ नहीं करना चाहिए
- कुलिङ्गः—पुं॰—-—कु - लिङ्ग - अच्—पक्षी
- कुलिङ्गः—पुं॰—-—कु - लिङ्ग - अच्—चिड़िया
- कुलिन्—वि॰—-—कुल - इनि—कुलीन, उच्चकुलोद्भव
- कुलिन्—पुं॰—-—कुल - इनि—पहाड़
- कुलिन्दः—ब॰ व॰—-—कुल् - इन्द—एक देश तथा उसके शासकों का नाम
- कुलिरः—पुं॰—-—कुल् - इरन्, कित्—केकड़ा
- कुलिरः—पुं॰—-—कुल् - इरन्, कित्—राशिचक्र में चौथी राशि, कर्कराशि
- कुलिरम्—नपुं॰—-—कुल् - इरन्, कित्—केकड़ा
- कुलिरम्—नपुं॰—-—कुल् - इरन्, कित्—राशिचक्र में चौथी राशि, कर्कराशि
- कुलिशः—पुं॰—-—कुलि - शी - ड—इन्द्र का वज्र
- कुलिशः—पुं॰—-—कुलि - शी - ड—वस्तु का सिरा या किनारा
- कुलीशः—पुं॰—-—कुलि - शी - ड, पक्षे पृषो॰ दीर्घः—इन्द्र का वज्र
- कुलीशः—पुं॰—-—कुलि - शी - ड, पक्षे पृषो॰ दीर्घः—वस्तु का सिरा या किनारा
- कुलिशम्—नपुं॰—-—कुलि - शी - ड—इन्द्र का वज्र
- कुलिशम्—नपुं॰—-—कुलि - शी - ड—वस्तु का सिरा या किनारा
- कुलीशम्—नपुं॰—-—कुलि - शी - ड, पक्षे पृषो॰ दीर्घः—इन्द्र का वज्र
- कुलीशम्—नपुं॰—-—कुलि - शी - ड, पक्षे पृषो॰ दीर्घः—वस्तु का सिरा या किनारा
- कुलिशधरः—पुं॰—कुलिश-धरः—-—इन्द्र का विशेषण
- कुलिशपाणिः—पुं॰—कुलिश-पाणिः—-—इन्द्र का विशेषण
- कुलिशनायकः—पुं॰—कुलिश-नायकः—-—मैथुन की विशेष रीति, रतिसम्बन्ध
- कुली—स्त्री॰—-—कुलि - ङीष्—पत्नी की बड़ी बहन, बड़ी साली
- कुलीन—वि॰—-—कुल - ख—ऊँचे वंश का, अच्छे कुल का, उत्तम परिवार में जन्मा हुआ
- कुलीनः—पुं॰—-—कुल - ख—अच्छी नस्ल का घोड़ा
- कुलीनसम्—नपुं॰—-—कुलीनंभूमिलग्नं द्रव्यं स्यति - कुलीन - सो - क—पानी
- कुलीरः—पुं॰—-—कुल् - ईरन्, कित्—केकड़ा
- कुलीरः—पुं॰—-—कुल् - ईरन्, कित्—राशिचक्र में चौथी राशि, कर्कराशि
- कुलीरकः—पुं॰—-—कुलोर - कन्—केकड़ा
- कुलीरकः—पुं॰—-—कुलोर - कन्—राशिचक्र में चौथी राशि, कर्कराशि
- कुलक्कगुञ्जा—स्त्री॰—-—कौ पृथिव्यां लुक्का, लुक्कायिता गुञ्ज इव—लुकाठी, जलती हुई लकड़ी
- कुलूतः—पुं॰—-—-—एक देश तथा उसके शासकों का नाम
- कुल्माषम्—नपुं॰—-—कुल् - क्विप्, कुल् माषोऽस्मिन् ब॰ स॰—कांजी
- कुल्माषः—पुं॰—-—कुल् - क्विप्, कुल् माषोऽस्मिन् ब॰ स॰—एक प्रकार का अनाज
- कुल्माषाभिषुतम्—नपुं॰—कुल्माषम्-अभिषुतम्—-—कांजी
- कुल्य—वि॰—-—कुल - यत्—कुटुंब, वंश या निगम से सम्बन्ध रखने वाला
- कुल्य—वि॰—-—कुल - यत्—सत्कुलोद्भव
- कुल्यः—पुं॰—-—कुल - यत्—प्रतिष्ठित मनुष्य
- कुल्यम्—नपुं॰—-—कुल - यत्—कौटुंबिक विषयों में मित्रों की भाँति पूछताछ
- कुल्यम्—नपुं॰—-—कुल - यत्—हड्डी
- कुल्यम्—नपुं॰—-—कुल - यत्—मांस
- कुल्यम्—नपुं॰—-—कुल - यत्—छाज
- कुल्या—स्त्री॰—-—कुल - यत्—साध्वी स्त्री
- कुल्या—स्त्री॰—-—कुल - यत्—छोटी नदी, नहर, सरिता
- कुल्या—स्त्री॰—-—कुल - यत्—परिखा, खाई
- कुल्या—स्त्री॰—-—कुल - यत्—आठ द्रोण के बराबर अनाज की तोल
- कुवम्—नपुं॰—-—कु - वा - क—फूल
- कुवम्—नपुं॰—-—कु - वा - क—कमल
- कुवर—वि॰—-—कु+ श्वरच्—कषाय, कसैला
- कुवर—वि॰—-—कु+ श्वरच्—बिना दाढ़ी का
- कुवलम्—नपुं॰—-—कु - वल - अच्—कुमुद
- कुवलम्—नपुं॰—-—कु - वल - अच्—मोती
- कुवलम्—नपुं॰—-—कु - वल - अच्—पानी
- कुवलयम्—नपुं॰—-—कोः पृथिव्याः वलयमिव - उप॰ स॰—नीला कुमुद
- कुवलयम्—नपुं॰—-—कोः पृथिव्याः वलयमिव - उप॰ स॰—कुमुद
- कुवलयम्—नपुं॰—-—कोः पृथिव्याः वलयमिव - उप॰ स॰—पृथ्वी
- कुवलयिनी—स्त्री॰—-—कुवलय - इनि - ङीप्—नीली कुमुदिनी का पौधा
- कुवलयिनी—स्त्री॰—-—कुवलय - इनि - ङीप्—कमलों का समूह
- कुवलयिनी—स्त्री॰—-—कुवलय - इनि - ङीप्—कमलस्थली
- कुवलयिनी—स्त्री॰—-—कुवलय - इनि - ङीप्—कमल का पौधा
- कुवाद—वि॰—-—कु - वद् - अण्—मान घटाने वाला, साख कम करने वाला, निन्दक
- कुवाद—वि॰—-—कु - वद् - अण्—नीच, दुरात्मा, अधम
- कुविकः—पुं॰,ब॰ व॰—-—कु - विद् - श, मुम्—एक देश का नाम
- कुविन्दः—पुं॰—-—कु - विद् - श, मुम्—बुनकर
- कुविन्दः—पुं॰—-—कु - विद् - श, मुम्—जुलाहा जाति का नाम
- कुवेणी—स्त्री॰—-—कु - वेण् - इन् - ङीप्—मछलियाँ रखने की टोकरी
- कुवेणी—स्त्री॰—-—कु - वेण् - इन् - ङीप्—बुरी तरह बँधी हुई सिर की चोटी
- कुवेलम्—नपुं॰—-—कुवेषु जलज पुष्पेषु ईं शोभां लाति - कुव - ई - ला - क—कमल
- कुशः—पुं॰—-—कु - शी - ड—एक प्रकार का घास जो पवित्र माना जाता हैं और बहुत से धर्मानुष्ठानों में जिसका होना आवश्यक समझा जाता हैं
- कुशः—पुं॰—-—कु - शी - ड—राम के बड़े पुत्र का नाम
- कुशम्—नपुं॰—-—कु - शी - ड—पानी
- कुशाग्रम्—नपुं॰—कुश-अग्रम्—-—कुशघास के पत्ते का तेज किनारा
- कुशाग्रम्—नपुं॰—कुश-अग्रम्—-—तीव्रबुद्धि, तेजबुद्धि वाला, तीक्ष्णबुद्धि
- कुशाग्रीय—वि॰—कुश-अग्रीय—-—तीव्र, तेज
- कुशाङ्गरीयम्—वि॰—कुश-अङ्गरीयम्—-—कुशघास की बनी अंगूठी जो धर्मानुष्ठान के अवसर पर पहनी जाती है
- कुशासनम्—नपुं॰—कुश-आसनम्—-—कुश का बना हुआ आसन या चटाई
- कुशस्थलम्—नपुं॰—कुश-स्थलम्—-—उत्तर भारत में एक स्थान का नाम
- कुशल—वि॰—-—कुशान् लातीति - कुश - ला - क—सही, उचित, मंगल शुभ
- कुशलम्—नपुं॰—-—कुशान् लातीति - कुश - ला - क—कल्याण, प्रसन्न तथा समृद्ध अवस्था, प्रसन्नता
- कुशलम्—नपुं॰—-—कुशान् लातीति - कुश - ला - क—गुण
- कुशलम्—नपुं॰—-—कुशान् लातीति - कुश - ला - क—चतुराई, योग्यता
- कुशलकाम—वि॰—कुशल-काम—-—प्रसन्नता का इच्छुक
- कुशलप्रश्नः—पुं॰—कुशल-प्रश्नः—-—किसी से कुशलमंगल पूछना
- कुशलबुद्धि—वि॰—कुशल-बुद्धि—-—बुद्धिमान, समझदार, तीव्रबुद्धि, तीक्ष्णबुद्धि
- कुशलिन्—वि॰—-—कुशल - इनि—प्रसन्न, राजी खुशी, समृद्ध
- कुशा—स्त्री॰—-—कुश - टाप्—रस्सी का गोला
- कुशा—स्त्री॰—-—कुश - टाप्—लगाम
- कुशावती—स्त्री॰—-—कुश - मतुप्, मस्य वः, दीर्घः—इस नाम की एक नगरी, राम के पुत्र कुश की राजधानी
- कुशिक—वि॰—-—कुश - ठन्—भैंगी आँख वाला
- कुशिकः—पुं॰—-—कुश - ठन्—विश्वामित्र के दादा का नाम
- कुशिकः—पुं॰—-—कुश - ठन्—फाली
- कुशिकः—पुं॰—-—कुश - ठन्—तेल की गाद
- कुशी—स्त्री॰—-—कुश - ङीष्—हल की फाली
- कुशीलवः—पुं॰—-—कुत्सितं शीलमस्य - कुशील - व—भाट, गवैया
- कुशीलवः—पुं॰—-—कुत्सितं शीलमस्य - कुशील - व—पात्र, नर्तक
- कुशीलवः—पुं॰—-—कुत्सितं शीलमस्य - कुशील - व—समाचार फैलाने वाला
- कुशीलवः—पुं॰—-—कुत्सितं शीलमस्य - कुशील - व—वाल्मीकि का विशेषण
- कुशुम्भः—पुं॰—-—कु - शुम्भ् - अच्—संन्यासी का जालपात्र, कमण्डलु
- कुशूलः—पुं॰—-—कुस् - ऊलच्, पृषो॰ सस्य शत्वम्—अन्नागार, कोठी, भण्डार
- कुशूलः—पुं॰—-—कुस् - ऊलच्, पृषो॰ सस्य शत्वम्—भूसी से बनाई हुई आग
- कुशेशयम्—नपुं॰—-—कुशे - शी - अच्. अलुक् स॰—कुमुद, कमल
- कुशेशयः—पुं॰—-—कुशे - शी - अच्. अलुक् स॰—सारस पक्षी
- कुष्—क्रिया॰ पर॰ <कुष्णाति>, <कुषित>—-—-—फाड़ना, निचोड़ना, खींचना, निकालना
- कुष्—क्रिया॰ पर॰ <कुष्णाति>, <कुषित>—-—-—जाँचना, परीक्षा लेना
- कुष्—क्रिया॰ पर॰ <कुष्णाति>, <कुषित>—-—-—चमकना
- निष्कुष्—क्रिया॰ पर॰—निस्-कुष्—-—निचोड़ना, फाड़ना, निकालना
- कुषाकुः—पुं॰—-—कुष् - काकु—सूर्य
- कुषाकुः—पुं॰—-—कुष् - काकु—अग्नि
- कुषाकुः—पुं॰—-—कुष् - काकु—लंगूर, बंदर
- कुष्ठः—पुं॰—-—कुष् - कथन—कोढ़
- कुष्ठम्—नपुं॰—-—कुष् - कथन—कोढ़
- कुष्ठारिः—पुं॰—कुष्ठ-अरिः—-—गन्धक
- कुष्ठारिः—पुं॰—कुष्ठ-अरिः—-—कुछ पौधों के नाम
- कुष्ठित—वि॰—-—कुष्ठ - इतच्—कोढ़ से पीडित, कोढ़ग्रस्त
- कुष्ठिन्—वि॰—-—कुष्ठ - इनि—कोढ़ी
- कुष्माण्डः—पुं॰—-—कु ईषत् उष्मा अण्डेषु बीजेषु यस्य ब॰ स॰ शक॰ पररूपम्—एक प्रकार की लौकी, तूमड़ी, कुम्हड़ा
- कुस्—दिवा॰ पर॰ <कुष्यति>, <कुसित>—-—-—आलिंगन करना
- कुस्—दिवा॰ पर॰ <कुष्यति>, <कुसित>—-—-—घेरना
- कुसितः—पुं॰—-—कुस् - क्त—आवाद देश
- कुसितः—पुं॰—-—कुस् - क्त—जो सूद से जीविका चलाता हैं
- कुसीदः—पुं॰—-—कुस् - ईद—साहूकार या सूदखोर
- कुसिदः—पुं॰—-—-—साहूकार या सूदखोर
- कुसीदम् —नपुं॰—-—कुस् - ईद—वह कर्जा या वस्तु जो ब्याज सहित लौटायी जाय
- कुसीदम् —नपुं॰—-—कुस् - ईद—उधार देना, सूदखोरी, सूदखोरी का व्यवसाय
- कुसिदम्—नपुं॰—-—-—वह कर्जा या वस्तु जो ब्याज सहित लौटायी जाय
- कुसिदम्—नपुं॰—-—-—उधार देना, सूदखोरी, सूदखोरी का व्यवसाय
- कुसीदपथः—पुं॰—कुसीद-पथः—-—सूदखोरी, सूदखोर का ब्याज, ५ प्रतिशत से अधिक ब्याज
- कुसीदवृद्धिः—स्त्री॰—कुसीद-वृद्धिः—-—धन पर मिलने वाला ब्याज
- कुसीदा—स्त्री॰—-—कुसीद - टाप्—सूदखोर स्त्री
- कुसीदायी—पुं॰—-—कुसीद - ङीप्, ऐ आदेशः—सूदखोर की पत्नी
- कुसीदिकः—पुं॰—-—कुसीद - ष्ठन्, इनि वा—सूदखोर
- कुसीदिन्—पुं॰—-—कुसीद - ष्ठन्, इनि वा—सूदखोर
- कुसुमम्—नपुं॰—-—कुष् - उम—फूल
- कुसुमम्—नपुं॰—-—कुष् - उम—ऋतु-स्राव
- कुसुमम्—नपुं॰—-—कुष् - उम—फल
- कुसुमाञ्जनम्—नपुं॰—कुसुमम्-अञ्जनम्—-—पीतल की भस्म जो अंजन की भाँति प्रयुक्त होती है
- कुसुमाञ्जलिः—पुं॰—कुसुमम्-अञ्जलिः—-—मुट्ठी भर फूल
- कुसुमाधिपः—पुं॰—कुसुमम्-अधिपः—-—चम्पक वृक्ष
- कुसुमाधिराजः—पुं॰—कुसुमम्-अधिराजः—-—चम्पक वृक्ष
- कुसुमावचायः—पुं॰—कुसुमम्-अवचायः—-—फूलों का चुनना
- कुसुमावतंसकम्—पुं॰—कुसुमम्-अवतंसकम्—-—फूलों का गजरा
- कुसुमास्त्रः—पुं॰—कुसुमम्-अस्त्रः—-—पुष्पमय बाण
- कुसुमास्त्रः—पुं॰—कुसुमम्-अस्त्रः—-—कामदेव
- कुसुमायुधः—पुं॰—कुसुमम्-आयुधः—-—पुष्पमय बाण
- कुसुमायुधः—पुं॰—कुसुमम्-आयुधः—-—कामदेव
- कुसुमेषुः—पुं॰—कुसुमम्-इषुः—-—पुष्पमय बाण
- कुसुमेषुः—पुं॰—कुसुमम्-इषुः—-—कामदेव
- कुसुमबाणः—पुं॰—कुसुमम्-बाणः—-—पुष्पमय बाण
- कुसुमबाणः—पुं॰—कुसुमम्-बाणः—-—कामदेव
- कुसुमशरः—पुं॰—कुसुमम्-शरः—-—पुष्पमय बाण
- कुसुमशरः—पुं॰—कुसुमम्-शरः—-—कामदेव
- कुसुमाकरः—पुं॰—कुसुमम्-आकरः—-—उद्यान
- कुसुमाकरः—पुं॰—कुसुमम्-आकरः—-—फूलों का गुच्छा
- कुसुमाकरः—पुं॰—कुसुमम्-आकरः—-—वसन्त ऋतु
- कुसुमात्मकम्—नपुं॰—कुसुमम्-आत्मकम्—-—केसर, जाफरान
- कुसुमासवम्—नपुं॰—कुसुमम्-आसवम्—-—शहद
- कुसुमासवम्—नपुं॰—कुसुमम्-आसवम्—-—एक प्रकार की मादक मदिरा
- कुसुमोज्जवल—वि॰—कुसुमम्-उज्जवल—-—फूलों से चमकीला
- कुसुमकार्मुकः—पुं॰—कुसुमम्-कार्मुकः—-—कामदेव के विशेषण
- कुसुमचापः—पुं॰—कुसुमम्-चापः—-—कामदेव के विशेषण
- कुसुमधन्वन्—पुं॰—कुसुमम्-धन्वन्—-—कामदेव के विशेषण
- कुसुमचित—वि॰—कुसुमम्-चित—-—पुष्पों का अम्बार हो गया है जहाँ
- कुसुमपुरम्—नपुं॰—कुसुमम्-पुरम्—-—पाटलीपुत्र
- कुसुमलता—स्त्री॰—कुसुमम्-लता—-—खिली हुई लता
- कुसुमशयनम्—नपुं॰—कुसुमम्-शयनम्—-—फूलों की शय्या
- कुसुमस्तवकः—पुं॰—कुसुमम्-स्तवकः—-—फूलों का गुच्छा, गुलदस्ता
- कुसुमवती—स्त्री॰—-—कुसुम - मतुप् - ङीप्, मस्य वः —ऋतुमती या रजस्वला स्त्री
- कुसुमित—वि॰—-—कुसुम् - इतच्—फूलों से युक्त, पुष्पों से सुसज्जित
- कुसुमालः—पुं॰—-—कुसुमवत् लोभनीयानि द्रव्याणि आलयति - इति कुसुम - आ - ला - क—चोर
- कुसुम्भः—पुं॰—-—कुस् - उम्भ—कुसुम्भ
- कुसुम्भः—पुं॰—-—कुस् - उम्भ—केसर
- कुसुम्भः—पुं॰—-—कुस् - उम्भ—संन्यासी का जलपात्र, कमण्डलु
- कुसुम्भम्—नपुं॰—-—कुस् - उम्भ—कुसुम्भ
- कुसुम्भम्—नपुं॰—-—कुस् - उम्भ—केसर
- कुसुम्भम्—नपुं॰—-—कुस् - उम्भ—संन्यासी का जलपात्र, कमण्डलु
- कुसुम्भम्—नपुं॰—-—कुस् - उम्भ—सोना
- कुसुम्भः—पुं॰—-—कुस् - उम्भ—बाह्य स्नेह
- कुसूलः—पुं॰—-—कुस् - ऊलच् —अन्नागार, भण्डार, गृह
- कुसृतिः—स्त्री॰—-—कुत्सिता सृतिः—जालसाजी, धोखादेही, ठगी
- कुस्तुभः—पुं॰—-—कु - स्तुभ् - क—विष्णु
- कुस्तुभः—पुं॰—-—कु - स्तुभ् - क—समुद्र
- कुहः—पुं॰—-—कुह् - णिच् - अच्—कुबेर, धनपति
- कुहकः—पुं॰—-—कुह् - क्वुन्—छली, ठग, चालाक
- कुहकम्—नपुं॰—-—कुह् - क्वुन्—चालाकी, धोखा
- कुहका—स्त्री॰—-—कुह् - क्वुन् - टाप्—चालाकी, धोखा
- कुहककार—वि॰—कुहक-कार—-—कपटी, छलिया
- कुहकचकित—वि॰—कुहक-चकित—-—दाँवपेंच से डरा हुआ, शक करने वाला, सावधान, सजग
- कुहकस्वनः—पुं॰—कुहक-स्वनः—-—मुर्गा
- कुहकस्वरः—पुं॰—कुहक-स्वरः—-—मुर्गा
- कुहनः—पुं॰—-—कु - हन् - अच्—मूसा
- कुहनः—पुं॰—-—कु - हन् - अच्—साँप
- कुहनम्—नपुं॰—-—कु - हन् - अच्—छोटा मिट्टी का बर्तन
- कुहनम्—नपुं॰—-—कु - हन् - अच्—शीशे का बर्तन
- कुहना—स्त्री॰—-—कुह् - यु, कुहन - क - टाप्, इत्वम्—स्वार्थ की पूर्ति के लिए धार्मिक कड़ी साधनाओं का अनुष्ठान, दंभ
- कुहनिका—स्त्री॰—-—कुह् - यु, कुहन - क - टाप्, इत्वम्—स्वार्थ की पूर्ति के लिए धार्मिक कड़ी साधनाओं का अनुष्ठान, दंभ
- कुहरम्—नपुं॰—-—कुह् - क - कुहं राति, रा - क—गुफा, गढ़ा
- कुहरम्—नपुं॰—-—कुह् - क - कुहं राति, रा - क—कान
- कुहरम्—नपुं॰—-—कुह् - क - कुहं राति, रा - क—गला
- कुहरम्—नपुं॰—-—कुह् - क - कुहं राति, रा - क—सामीप्य
- कुहरम्—नपुं॰—-—कुह् - क - कुहं राति, रा - क—मैथुन
- कुहरितम्—नपुं॰—-—कुहर - इतच्—ध्वनि
- कुहरितम्—नपुं॰—-—कुहर - इतच्—कोयल की कुकू
- कुहरितम्—नपुं॰—-—कुहर - इतच्—मैथुन के समय सी सी का शब्द
- कुहुः—स्त्री॰—-—कुह् - कु—नया चन्द्र दिवस अर्थात् चान्द्रमास का अन्तिम दिन
- कुहुः—स्त्री॰—-—कुह् - कु—इस दिन की अधिष्ठात्री देवी
- कुहुः—स्त्री॰—-—कुह् - कु—कोयल की कुक
- कुहूः—स्त्री॰—-—कुहु - ऊङ्—नया चन्द्र दिवस अर्थात् चान्द्रमास का अन्तिम दिन
- कुहूः—स्त्री॰—-—कुहु - ऊङ्—इस दिन की अधिष्ठात्री देवी
- कुहूः—स्त्री॰—-—कुहु - ऊङ्—कोयल की कुक
- कुहुकण्ठः—पुं॰—कुहु-कण्ठः—-—कोयल
- कुहुमुखः—पुं॰—कुहु-मुखः—-—कोयल
- कुहुरवः—पुं॰—कुहु-रवः—-—कोयल
- कुहुशब्दः—पुं॰—कुहु-शब्दः—-—कोयल
- कू—भ्वा॰ तुदा, आ॰ <कवते>, <कुवते>—-—-—ध्वनि करना, कलरव करना
- कू—भ्वा॰ तुदा, आ॰ <कवते>, <कुवते>—-—-—कष्टावस्था में क्रन्दन करना
- कू—क्र्या॰ उभ॰ <कुनाति>, <कूनाति>, <कुनीते>, <कूनीते>—-—-—ध्वनि करना, कलरव करना
- कू—क्र्या॰ उभ॰ <कुनाति>, <कूनाति>, <कुनीते>, <कूनीते>—-—-—कष्टावस्था में क्रन्दन करना
- कः—स्त्री॰—-—कू - क्विप्—पिशाचिनी, चुड़ैल
- कचः—पुं॰—-—कू - चट्—स्त्री का स्तन
- कचिका—स्त्री॰—-—कूच - कन् - टाप्, इत्वम्—बालों का बना छोटा ब्रुश, कुंची
- कचिका—स्त्री॰—-—कूच - कन् - टाप्, इत्वम्—ताली
- कूची—स्त्री॰—-—कूच - ङीष्—बालों का बना छोटा ब्रुश, कुंची
- कूची—स्त्री॰—-—कूच - ङीष्—ताली
- कूज्—भ्वा॰ पर॰ <कूजति>, <कूजित>—-—-—अस्पष्ट ध्वनि करना, गूंजना, कूजना, कूकना
- निकूज्—भ्वा॰ पर॰—नि-कूज्—-—कूजना, कुकू की अस्पष्ट ध्वनि करना
- परिकूज्—भ्वा॰ पर॰—परि-कूज्—-—कूजना, कुकू की अस्पष्ट ध्वनि करना
- विकूज्—भ्वा॰ पर॰—वि-कूज्—-—कूजना, कुकू की अस्पष्ट ध्वनि करना
- कूजः—पुं॰—-—कूज् - अच्—कूजना, कुकू की ध्वनि करना
- कूजः—पुं॰—-—कूज् - अच्—पहियों की घरघराहट
- कूजनम्—नपुं॰—-—कूज् - ल्युट्—कूजना, कुकू की ध्वनि करना
- कूजनम्—नपुं॰—-—कूज् - ल्युट्—पहियों की घरघराहट
- कूजितम्—नपुं॰—-—कूज् - क्त—कूजना, कुकू की ध्वनि करना
- कूजितम्—नपुं॰—-—कूज् - क्त—पहियों की घरघराहट
- कूट—वि॰—-—कूट - अच्—मिथ्या
- कूट—वि॰—-—कूट - अच्—अचल, स्थिर
- कूटः—पुं॰—-—कूट - अच्—जालसाजी, भ्रम, धोखा
- कूटः—पुं॰—-—कूट - अच्—दाँव, जालसाजी से भरी हुई योजना
- कूटः—पुं॰—-—कूट - अच्—जटिल प्रश्न, पेचीदा या उलझनदार स्थल
- कूटः—पुं॰—-—कूट - अच्—मिथ्यात्व, असत्यता
- कूटः—पुं॰—-—कूट - अच्—पहाड़ का शिखर या चोटी
- कूटः—पुं॰—-—कूट - अच्—उभार या उत्तुंगता
- कूटः—पुं॰—-—कूट - अच्—अपने उभारों समेत माथे की हड्डी, सिर का शिखा
- कूटः—पुं॰—-—कूट - अच्—सींग
- कूटः—पुं॰—-—कूट - अच्—सिरा, किनारा
- कूटः—पुं॰—-—कूट - अच्—प्रधान, मुख्य
- कूटः—पुं॰—-—कूट - अच्—राशि, ढेर, समूह
- अभ्रकूटम्—नपुं॰—अभ्र-कूटम्—-—बादलों का समूह
- अन्नकूटम्—नपुं॰—अन्न-कूटम्—-—अनाज का ढेर
- कूटः—पुं॰—-—कूट - अच्—हथौड़ा, घन
- कूटः—पुं॰—-—कूट - अच्—हल की फाली, कुशी
- कूटः—पुं॰—-—कूट - अच्—हरिणों को फसाने का जाल
- कूटः—पुं॰—-—कूट - अच्—गुप्ती
- कूटः—पुं॰—-—कूट - अच्—जलकलश
- कूटम्—नपुं॰—-—कूट - अच्—जालसाजी, भ्रम, धोखा
- कूटम्—नपुं॰—-—कूट - अच्—दाँव, जालसाजी से भरी हुई योजना
- कूटम्—नपुं॰—-—कूट - अच्—जटिल प्रश्न, पेचीदा या उलझनदार स्थल
- कूटम्—नपुं॰—-—कूट - अच्—मिथ्यात्व, असत्यता
- कूटम्—नपुं॰—-—कूट - अच्—पहाड़ का शिखर या चोटी
- कूटम्—नपुं॰—-—कूट - अच्—उभार या उत्तुंगता
- कूटम्—नपुं॰—-—कूट - अच्—अपने उभारों समेत माथे की हड्डी, सिर का शिखा
- कूटम्—नपुं॰—-—कूट - अच्—सींग
- कूटम्—नपुं॰—-—कूट - अच्—सिरा, किनारा
- कूटम्—नपुं॰—-—कूट - अच्—प्रधान, मुख्य
- कूटम्—नपुं॰—-—कूट - अच्—राशि, ढेर, समूह
- अभ्रकूटम्—नपुं॰—अभ्र-कूटम्—-—बादलों का समूह
- अन्नकूटम्—नपुं॰—अन्न-कूटम्—-—अनाज का ढेर
- कूटम्—नपुं॰—-—कूट - अच्—हथौड़ा, घन
- कूटम्—नपुं॰—-—कूट - अच्—हल की फाली, कुशी
- कूटम्—नपुं॰—-—कूट - अच्—हरिणों को फसाने का जाल
- कूटम्—नपुं॰—-—कूट - अच्—गुप्ती
- कूटम्—नपुं॰—-—कूट - अच्—जलकलश
- कूटः—पुं॰—-—कूट - अच्—घर, आवास
- कूटः—पुं॰—-—कूट - अच्—अगस्त्य की उपाधि
- कूटाक्षः—पुं॰—कूट-अक्षः—-—झूठा या कपट से भरा पासा
- कूटागारम्—नपुं॰—कूट-अगारम्—-—छत पर बनी कोठरी
- कूटार्थः—पुं॰—कूट-अर्थः—-—अर्थों की सन्दिग्धता
- कूटार्थः—पुं॰—कूट-अर्थः—-—कहानी, उपन्यास
- कूटोपायः—पुं॰—कूट-उपायः—-—जालसाजी से भरी योजना, कूटचाल, कूटनीति
- कूटकारः—पुं॰—कूट-कारः—-—धोखेबाज, झूठा गवाह
- कूटकृत्—वि॰—कूट-कृत्—-—ठगनेवाला, धोखा देने वाला
- कूटकृत्—वि॰—कूट-कृत्—-—जाली दस्तावेज बनाने वाला
- कूटकृत्—वि॰—कूट-कृत्—-—घूस देने वाला
- कूटकृत्—पुं॰—कूट-कृत्—-—कायस्थ
- कूटकृत्—पुं॰—कूट-कृत्—-—शिव का विशेषण
- कूटकार्षापणः—पुं॰—कूट-कार्षापणः—-—झूठा कार्षापण
- कूटखङ्गः—पुं॰—कूट-खङ्गः—-—गुप्ती
- कूटछद्मन्—पुं॰—कूट-छद्मन्—-—ठग
- कूटतुला—स्त्री॰—कूट-तुला—-—पासंग वाली तराजू
- कूटधर्म—वि॰—कूट-धर्म—-—जहाँ झूठ कर्तव्य कर्म समझा जाय
- कूटपाकलः—पुं॰—कूट-पाकलः—-—पित्तदोषयुक्त ज्वर जिससे हाथी ग्रस्त होता है, हस्तिवातज्वर
- कूटपालकः—पुं॰—कूट-पालकः—-—कुम्हार, कुम्हार का आवा
- कूटपाशः—पुं॰—कूट-पाशः—-—जाल, फन्दा
- कूटवन्धः—पुं॰—कूट-वन्धः—-—जाल, फन्दा
- कूटमानम्—नपुं॰—कूट-मानम्—-—झूठी माप या तोल
- कूटमोहनः—पुं॰—कूट-मोहनः—-—स्कन्द का विशेषण
- कूटयन्त्रम्—नपुं॰—कूट-यन्त्रम्—-—हरिण एवं पक्षियों को फँसाने का जाल या फंदा
- कूटयुद्धम्—नपुं॰—कूट-युद्धम्—-—छल और धोखे की लड़ाई, अधर्मयुद्ध
- कूटशाल्मलिः—पुं॰—कूट-शाल्मलिः—-—सेमल वृक्ष की एक जाति
- कूटशाल्मलिः—पुं॰—कूट-शाल्मलिः—-—तेज काँटों से युक्त वृक्ष
- कूटशासनम्—नपुं॰—कूट-शासनम्—-—जाली आज्ञापत्र या फरमान
- कूटसाक्षिन्—पुं॰—कूट-साक्षिन्—-—झूठा गवाह
- कूटस्थ—वि॰—कूट-स्थ—-—शिखर पर खड़ा हुआ, सर्वोच्च पद पर अधिष्ठित
- कूटस्थः—पुं॰—कूट-स्थः—-—परमात्मा
- कूटस्वर्णम्—नपुं॰—कूट-स्वर्णम्—-—खोटा सोना
- कूटकम्—नपुं॰—-—कुट - कन्—जालसाजी, धोखादेही, चलाकी
- कूटकम्—नपुं॰—-—कुट - कन्—उत्सेध, उत्तुंगता
- कूटकम्—नपुं॰—-—कुट - कन्—कुशी, हल की फाली
- कूटकाख्यानम्—नपुं॰—कूटकम्-आख्यानम्—-—गढ़ी हुई कहानी
- कूटशः—अव्य॰—-—कूट - शस्—ढेरों या समूहों में
- कूड्यम्—नपुं॰—-—-—दीवार
- कूड्यम्—नपुं॰—-—-—पलस्तर करना, लीपना, पोतना
- कूड्यम्—नपुं॰—-—-—उत्सुकता, जिज्ञासा
- कूण्—चुरा॰ उभ॰ <कूणयति>, <कूणयते>, <कूणित—-—-—बोलना, बातचीत करना
- कूण्—चुरा॰ उभ॰ <कूणयति>, <कूणयते>, <कूणित—-—-—सिकोड़ना, बंद करना
- कूणिका—स्त्री॰—-—कूण् - ण्वूल् - टाप्, इत्वम्—किसी पशु का सींग
- कूणिका—स्त्री॰—-—-—वीणा की खूँटी
- कूणित—वि॰—-—कूण् - क्त—बन्द, मुँदा हुआ
- कूद्दालः—पुं॰—-—कु - दल - अण्, पृषो॰—पहाड़ी आबनूस
- कूपः—पुं॰—-—कुवन्ति मण्डूका अस्मिन् - कु - एक् दीर्घश्च—कुआँ
- कूपः—पुं॰—-—कुवन्ति मण्डूका अस्मिन् - कु - एक् दीर्घश्च—छिद्र, रन्ध्र, गढ़ा, गर्त
- कूपः—पुं॰—-—कुवन्ति मण्डूका अस्मिन् - कु - एक् दीर्घश्च—चमड़े की बनी तेल रखने की कुप्पी
- कूपः—पुं॰—-—कुवन्ति मण्डूका अस्मिन् - कु - एक् दीर्घश्च—मस्तूल
- कूपाङ्कः—पुं॰—कूप-अङ्कः—-—रोमाञ्च
- कूपाड़्गः—पुं॰—कूप-अड़्गः—-—रोमाञ्च
- कूपकच्छपः—पुं॰—कूप-कच्छपः—-—कुएँ का कछुवा या मेढक, अनुभवशून्य मनुष्य
- कूपमण्डूकः—पुं॰—कूप-मण्डूकः—-—कुएँ का कछुवा या मेढक, अनुभवशून्य मनुष्य
- कूपयन्त्रम्—नपुं॰—कूप-यन्त्रम्—-—रहट, कुएँ से पानी निकालने का यन्त्र
- कूपयन्त्रघटिका—स्त्री॰—कूप-यन्त्रघटिका—-—रहट में पानी निकालने के लिए लगी डोलचियाँ
- कूपयन्त्रघटी—स्त्री॰—कूप-यन्त्रघटी—-—रहट में पानी निकालने के लिए लगी डोलचियाँ
- कूपकः—पुं॰—-—कूप - कन—कुआँ
- कूपकः—पुं॰—-—कूप - कन—छिद्र, रन्ध्र, गर्त
- कूपकः—पुं॰—-—कूप - कन—कूल्हों के नीचे का गड्ढा
- कूपकः—पुं॰—-—कूप - कन—खूँटा जिसके सहारे किस्ती का लंगर बांध दिया जाता हैं
- कूपकः—पुं॰—-—कूप - कन—मस्तूल
- कूपकः—पुं॰—-—कूप - कन—चिता
- कूपकः—पुं॰—-—कूप - कन—चिता के नीचे का छिद्र
- कूपकः—पुं॰—-—कूप - कन—चमड़े की बनी तेल-कुप्पी
- कूपकः—पुं॰—-—कूप - कन—नदी के बीच की चट्टान या वृक्ष
- कूपारः—पुं॰—-—कूप - कन—समुद्र, सागर
- कूवारः—पुं॰—-—कुत्सितः पारः तरणम् अस्मिन् - ब॰ स॰—समुद्र, सागर
- कूपी—स्त्री॰—-—कुत्सितः पारः तरणम् अस्मिन् - ब॰ स॰—छोटा कुआँ, कुइया
- कूपी—स्त्री॰—-—कूप - ङीष्—पलिघ, बोतल
- कूपी—स्त्री॰—-—कूप - ङीष्—नाभि
- कूबर—वि॰—-—कु - ब रच्—सुन्दर, रुचिकर
- कूबर—वि॰—-—कु - ब रच्—कुबड़ा
- कूवर—वि॰—-—कु - व रच्—सुन्दर, रुचिकर
- कूवर—वि॰—-—कु - व रच्—कुबड़ा
- कूबरः—पुं॰—-—कु - ब रच्—गाड़ी की वल्ली या स्थूण-भुजा जिसमें जूआ बाँधा जाता है
- कूबरम्—नपुं॰—-—कु - ब रच्—गाड़ी की वल्ली या स्थूण-भुजा जिसमें जूआ बाँधा जाता है
- कूबरी—स्त्री॰—-—कु - ब रच्+ङीप्—कम्बल या किसी दूसरे कपड़े के परदे से ढकी हुई गाड़ी
- कूबरी—स्त्री॰—-—कु - ब रच्+ङीप्—गाड़ी की वल्ली जिससे जूआ बाँधा जाय
- कूरः—पुं॰—-—वे - क्विप् = ऊः कौ भूमौ उवं वयनं लाति - ला - कः, लरयोरभेदः—भोजन, भात
- कूरम्—नपुं॰—-—कुर् = चट् नि॰ दीर्घः—भोजन, भात
- कूर्चः—पुं॰—-—कुर् = चट् नि॰ दीर्घः—गुच्छा, गठरी
- कूर्चः—पुं॰—-—कुर् = चट् नि॰ दीर्घः—मुट्ठी भर कुश घास
- कूर्चः—पुं॰—-—कुर् = चट् नि॰ दीर्घः—मोरपंख
- कूर्चः—पुं॰—-—कुर् = चट् नि॰ दीर्घः—दाढ़ी
- कूर्चः—पुं॰—-—कुर् = चट् नि॰ दीर्घः—चुटकी
- कूर्चः—पुं॰—-—कुर् = चट् नि॰ दीर्घः—नाक का ऊपरी भाग, दोनों भौवों के बीच का भाग
- कूर्चः—पुं॰—-—कुर् = चट् नि॰ दीर्घः—कूँची, ब्रुश
- कूर्चः—पुं॰—-—कुर् = चट् नि॰ दीर्घः—धोखा, जालसाजी
- कूर्चः—पुं॰—-—कुर् = चट् नि॰ दीर्घः—शेखी बघारना, डींग मारना
- कूर्चः—पुं॰—-—कुर् = चट् नि॰ दीर्घः—दम्भ
- कूर्चम्—नपुं॰—-—कुर् = चट् नि॰ दीर्घः—गुच्छा, गठरी
- कूर्चम्—नपुं॰—-—कुर् = चट् नि॰ दीर्घः—मुट्ठी भर कुश घास
- कूर्चम्—नपुं॰—-—कुर् = चट् नि॰ दीर्घः—मोरपंख
- कूर्चम्—नपुं॰—-—कुर् = चट् नि॰ दीर्घः—दाढ़ी
- कूर्चम्—नपुं॰—-—कुर् = चट् नि॰ दीर्घः—चुटकी
- कूर्चम्—नपुं॰—-—कुर् = चट् नि॰ दीर्घः—नाक का ऊपरी भाग, दोनों भौवों के बीच का भाग
- कूर्चम्—नपुं॰—-—कुर् = चट् नि॰ दीर्घः—कूँची, ब्रुश
- कूर्चम्—नपुं॰—-—कुर् = चट् नि॰ दीर्घः—धोखा, जालसाजी
- कूर्चम्—नपुं॰—-—कुर् = चट् नि॰ दीर्घः—शेखी बघारना, डींग मारना
- कूर्चम्—नपुं॰—-—कुर् = चट् नि॰ दीर्घः—दम्भ
- कूर्चः—पुं॰—-—कुर् = चट् नि॰ दीर्घः—सिर
- कूर्चः—पुं॰—-—कुर् = चट् नि॰ दीर्घः—भण्डार
- कूर्चशीर्षः—पुं॰—कूर्च-शीर्षः—-—नारियल का पेड़
- कूर्चशेखरः—पुं॰—कूर्च-शेखरः—-—नारियल का पेड़
- कूर्चिका—स्त्री॰—-—कूर्चक - टाप् - इत्वम्—चित्रकारी करने की कूँची, ब्रुश या पेंसिल
- कूर्चिका—स्त्री॰—-—कूर्चक - टाप् - इत्वम्—चाबी
- कूर्चिका—स्त्री॰—-—कूर्चक - टाप् - इत्वम्—कली, फूल
- कूर्चिका—स्त्री॰—-—कूर्चक - टाप् - इत्वम्—जमाया हुआ दूध
- कूर्चिका—स्त्री॰—-—कूर्चक - टाप् - इत्वम्—सूई
- कूर्द्—भ्वा॰ उभ॰ <कूर्दति>, <कूर्दते>, <कूर्दित>—-—-—छलाँग लगाना, कूदना
- कूर्द्—भ्वा॰ उभ॰—-—-—खेलना, बालकेलि करना
- उत्कूर्द्—भ्वा॰ उभ॰—उद्-कूर्द्—-—कूदना, उछलना
- कूर्दनम्—नपुं॰—-—कूर्द् - ल्युट्—उछलना
- कूर्दनम्—नपुं॰—-—कूर्द् - ल्युट्—खेलना, क्रीड़ा करना
- कूर्दनी—स्त्री॰—-—कूर्द् - ल्युट्+ङीप्—चैत्र की पूर्णिमा को कामदेव के सम्मान में मनाया जाने वाला पर्व
- कूर्दनी—स्त्री॰—-—कूर्द् - ल्युट्+ङीप्—चैत्रमास की पूर्णिमा
- कूर्पः—पुं॰—-—कुर् - पा - क, दीर्घः—दोनों भौवों के बीच का भाग
- कूर्परः—पुं॰—-—कुर् - क्विप्, कुर् - पृ - अच् दीर्घः नि॰—कोहनी
- कूर्परः—पुं॰—-—कुर् - क्विप्, कुर् - पृ - अच् दीर्घः नि॰—घुटना
- कूर्मः—पुं॰—-—कौ जले ऊर्मिः वेगोऽस्य पृषो॰ तारा॰—कछुवा
- कूर्मः—पुं॰—-—कौ जले ऊर्मिः वेगोऽस्य पृषो॰ तारा॰—विष्णु का दूसरा अवतार
- कूर्मावतारः—पुं॰—कूर्म-अवतारः—-—विष्णु का कूर्मावतार
- कूर्मपृष्ठम्—नपुं॰—कूर्म-पृष्ठम्—-—कछुवे की कमर या पीठ
- कूर्मपृष्ठम्—नपुं॰—कूर्म-पृष्ठम्—-—तश्तरी का ढकना
- कूर्मराजः—पुं॰—कूर्म-राजः—-—द्वितीय अवतार के साथ कछुवे के रूप में विष्णु
- कूलम्—नपुं॰—-—कूल् - अच्—किनारा, तट
- कूलम्—नपुं॰—-—कूल् - अच्—ढलान, उतार
- कूलम्—नपुं॰—-—कूल् - अच्—छोर, कोर, किनारी, सन्निकटता
- कूलम्—नपुं॰—-—कूल् - अच्—तालाब
- कूलम्—नपुं॰—-—कूल् - अच्—सेना का पिछला भाग
- कूलम्—नपुं॰—-—कूल् - अच्—ढेर, टीला
- कूलचर—वि॰—कूलम्-चर—-—नदी के किनारे चरने वाला या विचरने वाला
- कूलभूः—स्त्री॰—कूलम्-भूः—-—तटस्थित भूखण्ड
- कूलेंडकः—पुं॰—कूलम्-इंडकः—-—भँवर
- कूलहण्डकः—पुं॰—कूलम्-हण्डकः—-—भँवर
- कूलङ्कष—वि॰—-—कूल् - कष् - खच्, मुम्—तट को काटनेवाला, या अन्दर ही अन्दर जड़ खोखली करने वाला
- कूलङ्कषः—पुं॰—-—कूल् - कष् - खच्, मुम्—नदी की धारा या प्रवाह
- कूलङ्कषा—स्त्री॰—-—कूल् - कष् - खच्, मुम्+टाप्—नदी
- कूलन्धय—वि॰—-—-—चूमता हुआ अर्थात् नदी के तट को सीमा बनाने वाला
- कूलन्धय—वि॰—-—कूल - धे - खश्, मुम्—किनारों को तोड़ने वाला
- कूलमुद्वह—वि॰—-—कूल - उद् - रुज् - खश्, मुम्—किनारे को फाड़ डालने वाला तथा बहा कर ले जाने वाला
- कूष्माण्डः—पुं॰—-—कूल - उद् - वह् - खश्, मुम्—पेठा, कुम्हड़ा, तूमड़ी
- कूहा—स्त्री॰—-—कु ईषत् ऊष्मा अण्डेषु बीजेषु यस्य—कुहरा, धुंध
- कृ—स्वादि॰ उभ॰ <कृणोति>, <कृणुते>—-—कु ईषत् उह्यतेऽत्र, कु - उह् - क—प्रहार करना, घायल करना, मार डालना
- कृ—तना॰ उभ॰ <करोति>, <कुरुते>, <कृत>—-—-—करना
- कृ—तना॰ उभ॰ <करोति>, <कुरुते>, <कृत>—-—-—बनाना
- कृ—तना॰ उभ॰ <करोति>, <कुरुते>, <कृत>—-—-—निर्माण करना, गड़ना, तैयार करना
- कृ—तना॰ उभ॰ <करोति>, <कुरुते>, <कृत>—-—-—बनाना, रचना करना
- कृ—तना॰ उभ॰ <करोति>, <कुरुते>, <कृत>—-—-—पैदा करना, निमित्तभूत होना, उत्पन्न करना
- कृ—तना॰ उभ॰ <करोति>, <कुरुते>, <कृत>—-—-—बनाना, क्रमबद्ध करना
- कृ—तना॰ उभ॰ <करोति>, <कुरुते>, <कृत>—-—-—लिखना, रचना करना
- कृ—तना॰ उभ॰ <करोति>, <कुरुते>, <कृत>—-—-—सम्पन्न करना, व्यस्त होना
- कृ—तना॰ उभ॰ <करोति>, <कुरुते>, <कृत>—-—-—कहना, वर्णन करना
- कृ—तना॰ उभ॰ <करोति>, <कुरुते>, <कृत>—-—-—पालन करना, कार्यान्वित करना, आज्ञा मानना
- कृ—तना॰ उभ॰ <करोति>, <कुरुते>, <कृत>—-—-—प्रकाशित करना, पूरा करना, कार्य में परिणत करना
- कृ—तना॰ उभ॰ <करोति>, <कुरुते>, <कृत>—-—-—फेंकना, निकालना, उत्सर्ग करना, छोड़ना
- मूत्रं कृ—तना॰ उभ॰ <करोति>, <कुरुते>, <कृत>—-—-—मूत्रोत्सर्ग करना, पेशाब करना
- पुरीषं कृ—तना॰ उभ॰ <करोति>, <कुरुते>, <कृत>—-—-—टट्टी फिरना
- कृ—तना॰ उभ॰ <करोति>, <कुरुते>, <कृत>—-—-—धारण करना, पहनना, ग्रहण करना
- कृ—तना॰ उभ॰ <करोति>, <कुरुते>, <कृत>—-—-—मुँह से निकलना, उच्चारण करना
- कृ—तना॰ उभ॰ <करोति>, <कुरुते>, <कृत>—-—-—रखना, पहनना
- कृ—तना॰ उभ॰ <करोति>, <कुरुते>, <कृत>—-—-—सौंपना, नियत करना
- कृ—तना॰ उभ॰ <करोति>, <कुरुते>, <कृत>—-—-—पकाना
- कृ—तना॰ उभ॰ <करोति>, <कुरुते>, <कृत>—-—-—सोचना, आदर करना, ख्याल करना
- कृ—तना॰ उभ॰ <करोति>, <कुरुते>, <कृत>—-—-—ग्रहण करना
- कृ—तना॰ उभ॰ <करोति>, <कुरुते>, <कृत>—-—-—ध्वनि करना
- कृ—तना॰ उभ॰ <करोति>, <कुरुते>, <कृत>—-—-—गुजारना, बिताना
- कृ—तना॰ उभ॰ <करोति>, <कुरुते>, <कृत>—-—-—की ओर मुड़ना, ध्यान मोड़ना, दृढ़ निश्चय करना
- कृ—तना॰ उभ॰ <करोति>, <कुरुते>, <कृत>—-—-—दूसरे के लिए कोई काम न करना
- कृ—तना॰ उभ॰ <करोति>, <कुरुते>, <कृत>—-—-—उपयोग करना, काम में लगाना, उपयोग में लाना
- कृ—तना॰ उभ॰ <करोति>, <कुरुते>, <कृत>—-—-—विभक्त करना, टुकड़े-टुकड़े करना
- द्विधा कृ—तना॰ उभ॰ <करोति>, <कुरुते>, <कृत>—-—-—दो टुकड़े करना
- ॰सात् कृ—तना॰ उभ॰ <करोति>, <कुरुते>, <कृत>—-—-—अधीन बनाना, पूर्ण रूप से किसी विशेष अवस्था को प्राप्त करना
- आत्मसात्कृ—तना॰ उभ॰ <करोति>, <कुरुते>, <कृत>—-—-—अधीन करना, अपने में लीन करना
- भस्मसात्कृ—तना॰ उभ॰ <करोति>, <कुरुते>, <कृत>—-—-—राख बना देना
- कृष्णीकृ—तना॰ उभ॰ <करोति>, <कुरुते>, <कृत>—-—-—उस वस्तु को जो पहले से काली नहीं है काली करना
- श्वेतीकृ—तना॰ उभ॰ <करोति>, <कुरुते>, <कृत>—-—-—सफेद करना
- घनीकृत —तना॰ उभ॰ <करोति>, <कुरुते>, <कृत>—-—-—ठोस बना देना
- विरलीकृ —तना॰ उभ॰ <करोति>, <कुरुते>, <कृत>—-—-—दूर-दूर कहीं करना
- क्रोडीकृ —तना॰ उभ॰ <करोति>, <कुरुते>, <कृत>—-—-—छाती से लगाना, आलिङ्गन करना
- भस्मीकृ—तना॰ उभ॰ <करोति>, <कुरुते>, <कृत>—-—-—राख कर देना
- प्रवणीकृ—तना॰ उभ॰ <करोति>, <कुरुते>, <कृत>—-—-—रुचि पैदा करना, झुकना
- तृणीकृ—तना॰ उभ॰ <करोति>, <कुरुते>, <कृत>—-—-—तिनके की भाँति तुच्छ एवं हीन समझना
- मंदीकृ—तना॰ उभ॰ <करोति>, <कुरुते>, <कृत>—-—-—शिथिल करना, चाल धीमी करना
- शूलाकृ—तना॰ उभ॰ <करोति>, <कुरुते>, <कृत>—-—-—नोकदार लोहे की सलाखों के सिरे पर रखकर भूनना
- सुखाकृ—तना॰ उभ॰ <करोति>, <कुरुते>, <कृत>—-—-—प्रसन्न करना
- समयाकृ—तना॰ उभ॰ <करोति>, <कुरुते>, <कृत>—-—-—समय बिताना
- समयाकृ—तना॰ उभ॰ <करोति>, <कुरुते>, <कृत>—-—-—क्षति पहुँचाना
- समयाकृ—तना॰ उभ॰ <करोति>, <कुरुते>, <कृत>—-—-—निन्दा करना, कलंकित करना
- समयाकृ—तना॰ उभ॰ <करोति>, <कुरुते>, <कृत>—-—-—काम देना और
- समयाकृ—तना॰ उभ॰ <करोति>, <कुरुते>, <कृत>—-—-—बलात्कार करना, हिंसात्मक कार्य करना
- समयाकृ—तना॰ उभ॰ <करोति>, <कुरुते>, <कृत>—-—-—तैयारी करना, दशा बदलना, मोड़ना
- समयाकृ—तना॰ उभ॰ <करोति>, <कुरुते>, <कृत>—-—-—सस्वर पाठ करना
- समयाकृ—तना॰ उभ॰ <करोति>, <कुरुते>, <कृत>—-—-—काम में लगाना, प्रयोग में लाना
- पदं कृ—तना॰ उभ॰ <करोति>, <कुरुते>, <कृत>—-—-—कदम रखना
- मनसाकृ—तना॰ उभ॰ <करोति>, <कुरुते>, <कृत>—-—-—सोचना, मध्यस्थता करना
- मनसि कृ—तना॰ उभ॰ <करोति>, <कुरुते>, <कृत>—-—-—सोचना, दृढ़ निश्चय करना, संकल्प करना
- मैत्रीं कृ—तना॰ उभ॰ <करोति>, <कुरुते>, <कृत>—-—-—मित्रता करना
- अस्त्राणि कृ—तना॰ उभ॰ <करोति>, <कुरुते>, <कृत>—-—-—शस्त्रास्त्रों के प्रयोग का अभ्यास करना
- दंड कृ—तना॰ उभ॰ <करोति>, <कुरुते>, <कृत>—-—-—दण्ड देना
- हृदये कृ—तना॰ उभ॰ <करोति>, <कुरुते>, <कृत>—-—-—ध्यान देना
- कालं कृ—तना॰ उभ॰ <करोति>, <कुरुते>, <कृत>—-—-—मरना
- मतिं बुद्धिं कृ—तना॰ उभ॰ <करोति>, <कुरुते>, <कृत>—-—-—सोचना, इरादा करना, अभिप्राय होना
- उदकं कृ—तना॰ उभ॰ <करोति>, <कुरुते>, <कृत>—-—-—पितरों को जल का तर्पण करना
- चिरं कृ—तना॰ उभ॰ <करोति>, <कुरुते>, <कृत>—-—-—देर करना
- दर्दुरं कृ—तना॰ उभ॰ <करोति>, <कुरुते>, <कृत>—-—-—वीणा बजाना
- नखानि कृ—तना॰ उभ॰ <करोति>, <कुरुते>, <कृत>—-—-—नाखून साफ करना
- कन्यां कृ—तना॰ उभ॰ <करोति>, <कुरुते>, <कृत>—-—-—सतीत्वभ्रष्ट करना, कौमार्य भंग करना
- विना कृ—तना॰ उभ॰ <करोति>, <कुरुते>, <कृत>—-—-—अलग करना, छोड़ा जाना
- मध्य कृ—तना॰ उभ॰ <करोति>, <कुरुते>, <कृत>—-—-—बीच में रखना, संकेत करना
- वशे कृ—तना॰ उभ॰ <करोति>, <कुरुते>, <कृत>—-—-—जीतना, वश में करना, दमन करना
- चमत्कृ—तना॰ उभ॰ <करोति>, <कुरुते>, <कृत>—-—-—आश्चर्य पैदा करना, प्रदर्शन करना
- सत्कृ—तना॰ उभ॰ <करोति>, <कुरुते>, <कृत>—-—-—सम्मान करना, सत्कार करना
- तिर्यक् कृ——-—-—एक ओर रख देना
- कृ—तना॰ उभ॰,इच्छा॰ <चिकीर्षति>, <चिकीर्षते>—-—-—करवाना, सम्पन्न करवाना, बनवाना, कार्यान्वित करवाना
- कृ—तना॰ उभ॰,इच्छा॰ <चिकीर्षति>, <चिकीर्षते>—-—-—करने की इच्छा करना
- अङ्गीकृ—तना॰ उभ॰,इच्छा॰ <चिकीर्षति>, <चिकीर्षते>—अङ्गी-कृ—-—स्वीकार करना, अपनाना
- अङ्गीकृ—तना॰ उभ॰,इच्छा॰ <चिकीर्षति>, <चिकीर्षते>—अङ्गी-कृ—-—मान लेना, स्वीकृति देना, अपनाना
- अङ्गीकृ—तना॰ उभ॰,इच्छा॰ <चिकीर्षति>, <चिकीर्षते>—अङ्गी-कृ—-—करने की प्रतिज्ञा करना, जिम्मेवारी लेना
- अङ्गीकृ—तना॰ उभ॰,इच्छा॰ <चिकीर्षति>, <चिकीर्षते>—अङ्गी-कृ—-—दमन करना, अपना बनाना, अनुग्रह करना
- अतिकृ—तना॰ उभ॰,इच्छा॰ <चिकीर्षति>, <चिकीर्षते>—अति-कृ—-—बढ़ जाना, पीछे छोड़ देना
- अधिकृ—तना॰ उभ॰,इच्छा॰ <चिकीर्षति>, <चिकीर्षते>—अधि-कृ—-—अधिकारी होना, हकदार बनाना, अधिकृत बनना, किसी कर्तव्य के लिए पात्रीकरण
- अधिकृ—तना॰ उभ॰,इच्छा॰ <चिकीर्षति>, <चिकीर्षते>—अधि-कृ—-—लक्ष्य बनाना, उल्लेख करना
- अधिकृ—तना॰ उभ॰,इच्छा॰ <चिकीर्षति>, <चिकीर्षते>—अधि-कृ—-—धारण करना
- अधिकृ—तना॰ उभ॰,इच्छा॰ <चिकीर्षति>, <चिकीर्षते>—अधि-कृ—-—अभिभूत करना, दबा लेना, श्रेष्ठ बनाना
- अधिकृ—तना॰ उभ॰,इच्छा॰ <चिकीर्षति>, <चिकीर्षते>—अधि-कृ—-—रोकना, रुकना, हाथ खींचना
- अनुकृ—तना॰ उभ॰,इच्छा॰ <चिकीर्षति>, <चिकीर्षते>—अनु-कृ—-—सूरत शक्ल में मिलना, अनुगमन करना, विशेषतः नकल करना
- अपकृ—तना॰ उभ॰,इच्छा॰ <चिकीर्षति>, <चिकीर्षते>—अप-कृ—-—खींचकर दूर करना, हटाना, दूर खींचकर अनादर करना
- अपकृ—तना॰ उभ॰,इच्छा॰ <चिकीर्षति>, <चिकीर्षते>—अप-कृ—-—प्रहार करना, क्षति पहुँचाना, बुरा करना, हानि पहुँचाना, हानि या क्षति पहुँचाना
- अपाकृ—तना॰ उभ॰,इच्छा॰ <चिकीर्षति>, <चिकीर्षते>—अपा-कृ—-—दूर करना, त्याग देना, हटाना, मिटाना
- अपाकृ—तना॰ उभ॰,इच्छा॰ <चिकीर्षति>, <चिकीर्षते>—अपा-कृ—-—फेंक देना, अस्वीकार करना, एक ओर रख देना, छोड़ देना
- अभ्यन्तरीकृ—तना॰ उभ॰,इच्छा॰ <चिकीर्षति>, <चिकीर्षते>—अभ्यन्तरी-कृ—-—दीक्षित करना
- अभ्यन्तरीकृ—तना॰ उभ॰,इच्छा॰ <चिकीर्षति>, <चिकीर्षते>—अभ्यन्तरी-कृ—-—मित्र बनाना
- अलङ्कृ—तना॰ उभ॰,इच्छा॰ <चिकीर्षति>, <चिकीर्षते>—अलम्-कृ—-—विभूषित करना, सजाना, शोभा बढ़ाना
- आकृ—तना॰ उभ॰,इच्छा॰ <चिकीर्षति>, <चिकीर्षते>—आ-कृ—-—पुकारना, बुलाना, निमंत्रित करना
- आकृ—तना॰ उभ॰,इच्छा॰ <चिकीर्षति>, <चिकीर्षते>—आ-कृ—-—निकट लाना
- आविस्कृ—तना॰ उभ॰,इच्छा॰ <चिकीर्षति>, <चिकीर्षते>—आविस्-कृ—-—प्रकट करना, दर्शनीय बनना, जाहिर करना, प्रदर्शन करना
- उपकृ—तना॰ उभ॰,इच्छा॰ <चिकीर्षति>, <चिकीर्षते>—उप-कृ—-—मित्र बनाना, सेवा करना, सहायता करना, अनुग्रह करना, उपकृत करना
- उपकृ—तना॰ उभ॰,इच्छा॰ <चिकीर्षति>, <चिकीर्षते>—उप-कृ—-—हाजरी में खड़े रहना, सेवा करना
- उपकृ—तना॰ उभ॰,इच्छा॰ <चिकीर्षति>, <चिकीर्षते>—उप-कृ—-—विभूषित करना, सजाना, शोभा बढ़ाना
- उपकृ—तना॰ उभ॰,इच्छा॰ <चिकीर्षति>, <चिकीर्षते>—उप-कृ—-—प्रयत्न करना
- उपकृ—तना॰ उभ॰,इच्छा॰ <चिकीर्षति>, <चिकीर्षते>—उप-कृ—-—तैयार करना, विस्तार से कार्य करना, पूरा करना, निर्मल करना
- उपाकृ—तना॰ उभ॰,इच्छा॰ <चिकीर्षति>, <चिकीर्षते>—उपा-कृ—-—सौंपना, देना
- उपाकृ—तना॰ उभ॰,इच्छा॰ <चिकीर्षति>, <चिकीर्षते>—उपा-कृ—-—प्रारम्भिक संस्कार सम्पन्न करना
- उपाकृ—तना॰ उभ॰,इच्छा॰ <चिकीर्षति>, <चिकीर्षते>—उपा-कृ—-—उठा लाना, लाना
- उपाकृ—तना॰ उभ॰,इच्छा॰ <चिकीर्षति>, <चिकीर्षते>—उपा-कृ—-—आरम्भ करना
- उरीकृ—तना॰ उभ॰,इच्छा॰ <चिकीर्षति>, <चिकीर्षते>—उरी-कृ—-—स्वीकार करना
- उररीकृ—तना॰ उभ॰,इच्छा॰ <चिकीर्षति>, <चिकीर्षते>—उररी-कृ—-—स्वीकार करना
- उरुरीकृ—तना॰ उभ॰,इच्छा॰ <चिकीर्षति>, <चिकीर्षते>—उरुरी-कृ—-—स्वीकार करना
- ऊरीकृ—तना॰ उभ॰,इच्छा॰ <चिकीर्षति>, <चिकीर्षते>—ऊरी-कृ—-—स्वीकार करना
- ऊररीकृ—तना॰ उभ॰,इच्छा॰ <चिकीर्षति>, <चिकीर्षते>—ऊररी-कृ—-—स्वीकार करना
- तिरस्कृ—तना॰ उभ॰,इच्छा॰ <चिकीर्षति>, <चिकीर्षते>—तिरस्-कृ—-—अपशब्द कहना, बुरा भला कहना, अनादर करना, घृणा करना
- तिरस्कृ—तना॰ उभ॰,इच्छा॰ <चिकीर्षति>, <चिकीर्षते>—तिरस्-कृ—-—पीछे छोड़ना, आगे बढ़ना, जीतना
- त्वम्कृ—तना॰ उभ॰,इच्छा॰ <चिकीर्षति>, <चिकीर्षते>—त्वम्-कृ—-—तू, कोई
- दक्षिणीकृ—तना॰ उभ॰,इच्छा॰ <चिकीर्षति>, <चिकीर्षते>—दक्षिणी-कृ—-—किसी वस्तु के चारों ओर घूमना
- प्रदक्षिणीकृ—तना॰ उभ॰,इच्छा॰ <चिकीर्षति>, <चिकीर्षते>—प्रदक्षिणी-कृ—-—किसी वस्तु के चारों ओर घूमना
- दुस्कृ—तना॰ उभ॰,इच्छा॰ <चिकीर्षति>, <चिकीर्षते>—दुस्-कृ—-—बुरे ढंग से करना
- धिक्कृ—तना॰ उभ॰,इच्छा॰ <चिकीर्षति>, <चिकीर्षते>—धिक्-कृ—-—झिड़कना, बुरा भला कहना, अनादर करना
- नमस्कृ—तना॰ उभ॰,इच्छा॰ <चिकीर्षति>, <चिकीर्षते>—नमस्-कृ—-—नमस्कार करना, पूजा करना
- निकृ—तना॰ उभ॰,इच्छा॰ <चिकीर्षति>, <चिकीर्षते>—नि-कृ—-—क्षति पहुँचाना, बुरा करना
- निस्कृ—तना॰ उभ॰,इच्छा॰ <चिकीर्षति>, <चिकीर्षते>—निस्-कृ—-—हटाना, हाँक कर दूर कर देना
- निस्कृ—तना॰ उभ॰,इच्छा॰ <चिकीर्षति>, <चिकीर्षते>—निस्-कृ—-—तोड़ देना, निकम्मा कर देना
- निराकृ—तना॰ उभ॰,इच्छा॰ <चिकीर्षति>, <चिकीर्षते>—निरा-कृ—-—निकाल देना, परे कर देना, निकाल बाहर करना
- निराकृ—तना॰ उभ॰,इच्छा॰ <चिकीर्षति>, <चिकीर्षते>—निरा-कृ—-—निराकरण करना
- निराकृ—तना॰ उभ॰,इच्छा॰ <चिकीर्षति>, <चिकीर्षते>—निरा-कृ—-—छोड़ना, त्यागना
- निराकृ—तना॰ उभ॰,इच्छा॰ <चिकीर्षति>, <चिकीर्षते>—निरा-कृ—-—पूर्ण रूप से नष्ट कर देना, ध्वंस करना
- निराकृ—तना॰ उभ॰,इच्छा॰ <चिकीर्षति>, <चिकीर्षते>—निरा-कृ—-—बुरा भला कहना, नीच समझना, तुच्छ समझना
- न्यक्कृ—तना॰, पर॰—न्यक्-कृ—-—अपमान करना, अनादर करना
- पराकृ—तना॰, पर॰—परा-कृ—-—अस्वीकार करना, अवहेलना करना, निरादर करना, ख्याल नहीं करना
- परिकृ—तना॰, पर॰—परि-कृ—-—घेरना
- परिकृ—तना॰, पर॰—परि-कृ—-—विभूषित करना, सजाना, निर्मल करना, चमकाना, शुद्ध करना
- पुरस्कृ—तना॰, पर॰—पुरस्-कृ—-—सम्मुख रखना
- प्रकृ—तना॰, पर॰—प्र-कृ—-—करना, सम्पन्न करना, आरम्भ करना
- प्रकृ—तना॰, पर॰—प्र-कृ—-—बलात्कार करना, अत्याचार करना, अपमान करना
- प्रकृ—तना॰, पर॰—प्र-कृ—-—सम्मान करना, पूजा करना
- प्रतिकृ—तना॰, पर॰—प्रति-कृ—-—बदला देना, वापिस देना, लौटाना
- प्रतिकृ—तना॰, पर॰—प्रति-कृ—-—उपचार करना
- प्रतिकृ—तना॰, पर॰—प्रति-कृ—-—वापिस देना, ज्यों का त्यों कर देना, पुनः स्थापित करना
- प्रतिकृ—तना॰, पर॰—प्रति-कृ—-—प्रतिशोध करना
- प्रमाणीकृ—तना॰, पर॰—प्रमाणी-कृ—-—भरोसा करना, विश्वास करना
- प्रमाणीकृ—तना॰, पर॰—प्रमाणी-कृ—-—प्रमाण पुरुष मानना, आज्ञा मानना
- प्रमाणीकृ—तना॰, पर॰—प्रमाणी-कृ—-—आँख गड़ाना, वितरण करना, बर्ताव करना या व्यवहार करना
- प्रादुष्कृ—तना॰, पर॰—प्रादुस्-कृ—-—प्रकट करना, प्रदर्शन करना, दिखलाना, जाहिर करना
- प्रत्युपकृ—तना॰, पर॰—प्रत्युप-कृ—-—प्रतिफल देना, प्रत्यर्पण करना
- विकृ—तना॰, पर॰—वि-कृ—-—बदलना, परिवर्तन करना, प्रभावित करना
- विकृ—तना॰, पर॰—वि-कृ—-—आकृति बिगाड़ना, विरूप करना
- विकृ—तना॰, पर॰—वि-कृ—-—उत्पन्न करना, पैदा करना, सम्पन्न करना
- विकृ—तना॰, पर॰—वि-कृ—-—विघ्न डालना, हानि पहुँचाना, क्षति पहुँचाना
- विकृ—तना॰, पर॰—वि-कृ—-—उच्चारण करना
- विकृ—तना॰, पर॰—वि-कृ—-—विश्वासघातक होना
- विनिकृ—तना॰, पर॰—विनि-कृ—-—प्रहार करना, क्षति पहुँचाना
- विप्रकृ—तना॰, पर॰—विप्र-कृ—-—सताना, कष्ट देना, तंग करना, हानि पहुँचाना
- विप्रकृ—तना॰, पर॰—विप्र-कृ—-—बुरा करना, दुर्व्यवहार करना
- विप्रकृ—तना॰, पर॰—विप्र-कृ—-—प्रभावित करना, परिवर्तन लाना
- व्याकृ—तना॰, पर॰—व्या-कृ—-—प्रकट करना, साफ करना
- व्याकृ—तना॰, पर॰—व्या-कृ—-—प्रतिपादन करना, व्याख्या करना
- व्याकृ—तना॰, पर॰—व्या-कृ—-—कहना, वर्णन करना
- सम्कृ—तना॰, पर॰—सम्-कृ—-—करना
- सम्कृ—तना॰, पर॰—सम्-कृ—-—निर्माण करना, तैयार करना
- संस्कृ—तना॰, पर॰—सम्-कृ—-—करना, सम्पन्न करना
- संस्कृ—तना॰, पर॰—सम्-कृ—-—अलंकृत करना, शोभा बढ़ाना
- संस्कृ—तना॰, पर॰—सम्-कृ—-—निर्मल करना, चमकना
- संस्कृ—तना॰, पर॰—सम्-कृ—-—वेदमन्त्रों के उच्चारण से अभिमन्त्रित करना
- संस्कृ—तना॰, पर॰—सम्-कृ—-—वेदविहित संस्कारों से पवित्र करना, शुद्ध करने वाले शास्त्रोक्त विधियों का अनुष्ठान करना
- साचीकृ—तना॰, पर॰—साची-कृ—-—एक ओर मुड़ना, परोक्ष रूप से मुड़ना
- कृकः—पुं॰—-—कृ - कक्—गला
- कृकणः—पुं॰—-—कृ - कण् - अच्—एक प्रकार का तीतर
- कृकरः—पुं॰—-—कृ - कृ - ट—एक प्रकार का तीतर
- कृकलासः <o> कृकुलासः—पुं॰—-—कृक - लस् - अण्—छिपकली, गिरगिट
- कृकवाकुः—पुं॰—-—कृक - वच् - ञुण्, क् आदेशः—मुर्गा, मोर, छिपकली
- कृकवाकुध्वजः—पुं॰—कृकवाकु-ध्वजः—-—कार्तिकेय का विशेषण
- कृकाटिका—स्त्री॰—-—कृक - अट् - अण् = कृकाट - कन् - टाप्, इत्वम्—ग्रीवा का सीधा उठा हुआ भाग
- कृकाटिका—स्त्री॰—-—कृक - अट् - अण् = कृकाट - कन् - टाप्, इत्वम्—गर्दन का पिछला का भाग
- कृच्छ्र—वि॰—-—कृती - रक्, छ आदेशः—कष्ट देने वाला, पीड़ाकर
- कृच्छ्र—वि॰—-—कृती - रक्, छ आदेशः—बुरा, विपदग्रस्त, अनिष्टकर
- कृच्छ्र—वि॰—-—कृती - रक्, छ आदेशः—दुष्ट, पापी
- कृच्छ्र—वि॰—-—कृती - रक्, छ आदेशः—संकटग्रस्त, पीडित
- कृच्छ्रः—पुं॰—-—कृती - रक्, छ आदेशः—कठिनाई, कष्ट, कठोरता, विपद्, संकट, भय
- कृच्छ्रः—पुं॰—-—कृती - रक्, छ आदेशः—शारीरिक तप, तपस्या, प्रायश्चित्त
- कृच्छ्रम्—नपुं॰—-—कृती - रक्, छ आदेशः—कठिनाई, कष्ट, कठोरता, विपद्, संकट, भय
- कृच्छ्रम्—नपुं॰—-—कृती - रक्, छ आदेशः—शारीरिक तप, तपस्या, प्रायश्चित्त
- कृच्छ्रम्—नपुं॰—-—कृती - रक्, छ आदेशः—बड़ी कठिनाई के साथ, दुःखपूर्वक, बड़े कष्ट के साथ
- कृच्छ्रेण—नपुं॰—-—कृती - रक्, छ आदेशः—बड़ी कठिनाई के साथ, दुःखपूर्वक, बड़े कष्ट के साथ
- कृच्छ्रात्—नपुं॰—-—कृती - रक्, छ आदेशः—बड़ी कठिनाई के साथ, दुःखपूर्वक, बड़े कष्ट के साथ
- कृच्छ्रप्राण—वि॰—कृच्छ्र-प्राण—-—जिसका जीवन खतरे में है
- कृच्छ्रप्राण—वि॰—कृच्छ्र-प्राण—-—कष्टपूर्वक साँस लेने वाला
- कृच्छ्रप्राण—वि॰—कृच्छ्र-प्राण—-—कठिनाई से जीवन यापन करने वाला
- कृच्छ्रसाध्य—वि॰—कृच्छ्र-साध्य—-—कठिनाई से ठीक हो सके
- कृच्छ्रसाध्य—वि॰—कृच्छ्र-साध्य—-—कष्टसाध्य
- कृत्—तुदा॰ पर॰ <कृन्तति>, <कृत्त>—-—-—काटना, काटकर फेंक देना, विभक्त करना, फाड़ना, धज्जियाँ उड़ाना, टुकड़े-टुकड़े करना, नष्ट करना
- अवकृत्—तुदा॰ पर॰—अव-कृत्—-—काट फेंकना, विभक्त करना, फाड़कर टुकड़े-टुकड़े करना
- उत्कृत्—तुदा॰ पर॰—उद्-कृत्—-—काटना या काट फेंकना, फाड़ना
- उत्कृत्—तुदा॰ पर॰—उद्-कृत्—-—खण्ड खण्ड करना, टुकड़े काटना
- विकृत्—तुदा॰ पर॰—वि-कृत्—-—काटना, फाड़ना, टुकड़े-टुकड़े करना
- विकृत्—रुधा॰ पर॰ <कृणत्ति>, <कृत्त>—वि-कृत्—-—काटना, घेरना
- ॰कृत्—वि॰—॰कृत्—कृ - क्विप्—निष्पादक, कर्ता, निर्माता, अनुष्ठाता, उत्पादक, रचयिता आदि
- कृत्—पुं॰—-—कृ - क्विप्—प्रत्ययों का समूह जिनको धातु के साथ जोड़ने से संज्ञा, विशेषण आदि बनते है
- कृत्—पुं॰—-—कृ - क्विप्—इस प्रकार बना हुआ शब्द
- कृत—वि॰—-—कृ - क्त—किया हुआ, अनुष्ठित, निर्मित, क्रियान्वित, निष्पन्न, उत्पादित आदि
- कृतम्—नपुं॰—-—कृ - क्त—कार्य, कृत्य, कर्म
- कृतम्—नपुं॰—-—कृ - क्त—सेवा, लाभ
- कृतम्—नपुं॰—-—कृ - क्त—फल, परिणाम
- कृतम्—नपुं॰—-—कृ - क्त—लक्ष्य, उद्देश्य
- कृतम्—नपुं॰—-—कृ - क्त—पासे का वह पहलू जिस पर चार बिन्दु अंकित हैं
- कृतम्—नपुं॰—-—कृ - क्त—संसार के चार युगों में पहला युग जो मनुष्यों के १७२८००० वर्षों के बराबर हैं
- कृताकृत—वि॰—कृत-अकृत—-—किया न किया अर्थात् कुछ भाग किया गया, पूरा नहीं किया गया
- कृताङ्क—वि॰—कृत-अङ्क—-—चिह्नित, दागी
- कृताङ्क—वि॰—कृत-अङ्क—-—संख्यांकित
- कृताङ्क—वि॰—कृत-अङ्क—-—पासे का वह भाग जिसपर चार बिन्दु अंकित हों
- कृताञ्जलि—वि॰—कृत-अञ्जलि—-—विनम्रता के कारण दोनों हाथ जोड़े हुए
- कृतानुकर—वि॰—कृत-अनुकर—-—किये हुए कार्य का अनुकरण करने वाला, अनुसेवी
- कृतानुसारः—पुं॰—कृत-अनुसारः—-—प्रथा, परिपाटी
- कृतान्त—वि॰—कृत-अन्त—-—समाप्त करने वाला, अवसायी
- कृतान्तः—पुं॰—कृत-अन्तः—-—मृत्यु का देवता यम
- कृतान्तः—पुं॰—कृत-अन्तः—-—भाग्य, प्रारब्ध
- कृतान्तः—पुं॰—कृत-अन्तः—-—प्रदर्शित उपसंहार, रुढ़ि, प्रमाणित सिद्धान्त
- कृतान्तः—पुं॰—कृत-अन्तः—-—पापकर्म, अशुभ कर्म
- कृतान्तः—पुं॰—कृत-अन्तः—-—शनि ग्रह का विशेषण
- कृतान्तः—पुं॰—कृत-अन्तः—-—शनिवार
- कृतान्तजनकः—पुं॰—कृत-अन्त-जनकः—-—सूर्य
- कृतान्नम्—नपुं॰—कृत-अन्नम्—-—पकाया हुआ, भोजन
- कृतान्नम्—नपुं॰—कृत-अन्नम्—-—पचा हुआ भोजन
- कृतान्नम्—नपुं॰—कृत-अन्नम्—-—मल
- कृतापराध—वि॰—कृत-अपराध—-—अपराधी, दोषी, मुजरिम
- कृताभय—वि॰—कृत-अभय—-—भय या खतरे से सुरक्षित
- कृताभिषेक—वि॰—कृत-अभिषेक—-—राज्याभिषिक्त, यथा विधि पद पर प्रतिष्ठित किया हुआ
- कृताभ्यास—वि॰—कृत-अभ्यास—-—अभ्यस्त
- कृतार्थ—वि॰—कृत-अर्थ—-—जिसने अपना उद्देश्य सिद्ध कर लिया है, सफल
- कृतार्थ—वि॰—कृत-अर्थ—-—सन्तुष्ट, प्रसन्न, परितृप्त
- कृतार्थ—वि॰—कृत-अर्थ—-—चतुर
- कृतार्थीकृ——-—-—सफल बनाना
- कृतार्थीकृ——-—-—भरपाई होना
- कृतावधान—वि॰—कृत-अवधान—-—होशियार, सावधान
- कृतावधि—वि॰—कृत-अवधि—-—निश्चित, नियत
- कृतावधि—वि॰—कृत-अवधि—-—हदबन्दी किया हुआ, सीमित
- कृतावस्थ—वि॰—कृत-अवस्थ—-—बुलाया हुआ, प्रस्तुत कराया हुआ
- कृतावस्थ—वि॰—कृत-अवस्थ—-—निश्चित, निर्धारित
- कृतास्त्र—वि॰—कृत-अस्त्र—-—हथियारबन्द
- कृतास्त्र—वि॰—कृत-अस्त्र—-—शस्त्र या अस्त्र विज्ञान में प्रकाशित
- कृतागम—वि॰—कृत-आगम—-—प्रगत, प्रवीण
- कृतागम—पुं॰—कृत-आगम—-—परमात्मा
- कृतागस्—वि॰—कृत-आगस्—-—दोषी, अपराधी, मुजरिम, पापी
- कृतात्मन्—वि॰—कृत-आत्मन्—-—संयमी, स्वस्थचित्त, स्थिरात्मा
- कृतात्मन्—वि॰—कृत-आत्मन्—-—पवित्र मन वाला
- कृतायास—वि॰—कृत-आयास—-—परिश्रम करने वाला, सहन करने वाला
- कृताह्वान—वि॰—कृत-आह्वान—-—ललकारा हुआ
- कृतोत्साह—वि॰—कृत-उत्साह—-—परिश्रमी, प्रयत्नशील, उद्यमी
- कृतोद्वाह—वि॰—कृत-उद्वाह—-—विवाहित
- कृतोद्वाह—वि॰—कृत-उद्वाह—-—हाथ उपर उठाकर तपस्या करने वाला
- कृतोपकार—वि॰—कृत-उपकार—-—अनुगृहीत, मित्रवत् आचरित, सहायता प्राप्त
- कृतोपकार—वि॰—कृत-उपकार—-—मित्रसदृश
- कृतोपभोग—वि॰—कृत-उपभोग—-—बरता हुआ, उपभुक्त
- कृतकर्मन्—वि॰—कृत-कर्मन्—-—जिसने अपना काम कर लिया है
- कृतकर्मन्—वि॰—कृत-कर्मन्—-—दक्ष, चतुर
- कृतकर्मन्—पुं॰—कृत-कर्मन्—-—परमात्मा
- कृतकर्मन्—पुं॰—कृत-कर्मन्—-—सन्यासी
- कृतकाम—वि॰—कृत-काम—-—जिसकी इच्छाएँ पूर्ण हो गई हैं
- कृतकाल—वि॰—कृत-काल—-—समय की दृष्टि से जो स्थिर है, निश्चित
- कृतकाल—वि॰—कृत-काल—-—जिसने कुछ काल तक प्रतीक्षा की है
- कृतकालः—वि॰—कृत-कालः—-—नियत समय
- कृतकृत्य—वि॰—कृत-कृत्य—-—कृतार्थ
- कृतकृत्य—वि॰—कृत-कृत्य—-—सन्तुष्ट, परितृप्त
- कृतकृत्य—वि॰—कृत-कृत्य—-—जिसने अपना कर्तव्य पूरा कर लिया है
- कृतक्रयः—पुं॰—कृत-क्रयः—-—खरीदार
- कृतक्षण—वि॰—कृत-क्षण—-—निश्चित समय की आतुरतापूर्वक प्रतीक्षा करने वाला
- कृतक्षण—वि॰—कृत-क्षण—-—जिसे कोई अवसर उपलब्ध हो गया है
- कृतघ्न—वि॰—कृत-घ्न—-—अकृतज्ञ
- कृतघ्न—वि॰—कृत-घ्न—-—जो पहले किये हुए उपकारों को नहीं मानता है
- कृतचूडः—पुं॰—कृत-चूडः—-—जिस बालक का मुण्डनसंस्कार हो गया है
- कृतज्ञ—वि॰—कृत-ज्ञ—-—उपकार मानने वाला, आभारी
- कृतज्ञ—वि॰—कृत-ज्ञ—-—शुद्धाचारी
- कृतज्ञः—पुं॰—कृत-ज्ञः—-—कुत्ता
- कृततीर्थः—वि॰—कृत-तीर्थः—-—जिसने तीर्थों के दर्शन किये हैं
- कृततीर्थः—वि॰—कृत-तीर्थः—-—जो अध्यापक से अध्ययन करता हो
- कृततीर्थः—वि॰—कृत-तीर्थः—-—जिसे तरकीबें खूब सूझती हों
- कृततीर्थः—वि॰—कृत-तीर्थः—-—पथ प्रदर्शक
- कृतदासः—पुं॰—कृत-दासः—-—किसी निश्चित समय के लिए रक्खा हुआ वैतनिक सेवक, वैतनिक सेवक
- कृतधीः—पुं॰—कृत-धीः—-—दूरदर्शी, लिहाज रखने वाला
- कृतधीः—पुं॰—कृत-धीः—-—विद्वान, शिक्षित, बुद्धिमान
- कृतनिर्णेजनः—पुं॰—कृत-निर्णेजनः—-—पश्चात्तापी
- कृतनिश्चय—वि॰—कृत-निश्चय—-—कृतसंकल्प, दृढ़प्रतिज्ञ
- कृतपुङ्ख—वि॰—कृत-पुङ्ख—-—धनुर्विद्या में निपुण
- कृतपूर्व—वि॰—कृत-पूर्व—-—पहले किया हुआ
- कृतप्रतिकृतम्—नपुं॰—कृत-प्रतिकृतम्—-—आक्रमण और प्रत्याक्रमण, धावा बोलना और प्रतिरोध करना
- कृतप्रतिज्ञ—वि॰—कृत-प्रतिज्ञ—-—जिसने किसी से कोई करार किया हुआ हो
- कृतप्रतिज्ञ—वि॰—कृत-प्रतिज्ञ—-—जिसने अपनी प्रतिज्ञा को पूरा कर लिया है
- कृतबुद्धि—वि॰—कृत-बुद्धि—-—विद्वान, शिक्षित, बुद्धिमान
- कृतमुख—वि॰—कृत-मुख—-—विद्वान, बुद्धिमान
- कृतलक्षण—वि॰—कृत-लक्षण—-—मुद्रांकित, चिह्नित
- कृतलक्षण—वि॰—कृत-लक्षण—-—दागी
- कृतलक्षण—वि॰—कृत-लक्षण—-—श्रेष्ठ, सुशील, परिभाषित, विवेचित
- कृतवर्मन्—पुं॰—कृत-वर्मन्—-—कौरवपक्ष का एक योद्धा
- कृतविद्य—वि॰—कृत-विद्य—-—विद्वान, शिक्षित
- कृतवेतन—वि॰—कृत-वेतन—-—वैतनिक, तनखादार
- कृतवेदिन्—वि॰—कृत-वेदिन्—-—आभारी
- कृतवेश—वि॰—कृत-वेश—-—सुवेशित, विभूषित
- कृतशोभ—वि॰—कृत-शोभ—-—शानदार
- कृतशोभ—वि॰—कृत-शोभ—-—सुन्दर
- कृतशोभ—वि॰—कृत-शोभ—-—पटु, दक्ष
- कृतशौच—वि॰—कृत-शौच—-—पवित्र किया हुआ
- कृतश्रमः—पुं॰—कृत-श्रमः—-—अध्येता, जिसने अध्ययन कर लिया है
- कृतपरिश्रमः—पुं॰—कृत-परिश्रमः—-—अध्येता, जिसने अध्ययन कर लिया है
- कृतसङ्कल्प—वि॰—कृत-सङ्कल्प—-—कृतनिश्चय, दृढ़संकल्प
- कृतसङ्केत—वि॰—कृत-सङ्केत—-—नियत करने वाला
- कृतसंज्ञ—वि॰—कृत-संज्ञ—-—पुनः चेतना प्राप्त, होश में आया हुआ
- कृतसंज्ञ—वि॰—कृत-संज्ञ—-—उद्वोधित
- कृतसन्नाह—वि॰—कृत-सन्नाह—-—कवचधारी
- कृतसापत्निका—स्त्री॰—कृत-सापत्निका—-—वह स्त्री जिसके पति ने दूसरा विवाह कर लिया है, एक विवाहित स्त्री जिसकी सपत्नी भी विद्यमान हो
- कृतहस्त—वि॰—कृत-हस्त—-—दक्ष, चतुर, कुशल, पटु
- कृतहस्त—वि॰—कृत-हस्त—-—धनुर्विद्या में कुशल
- कृतहस्तक—वि॰—कृत-हस्तक—-—दक्ष, चतुर, कुशल, पटु
- कृतहस्तक—वि॰—कृत-हस्तक—-—धनुर्विद्या में कुशल
- कृतहस्तता—स्त्री॰—कृत-हस्तता—-—कौशल, दक्षता
- कृतहस्तता—स्त्री॰—कृत-हस्तता—-—धनुर्विद्या या शस्त्रविद्या में कुशल
- कृतक—वि॰—-—कृत - कन्—किया हुआ, निर्मित, सज्जित
- कृतक—वि॰—-—कृत - कन्—कृत्रिम, बनावटी ढंग से किया हुआ
- कृतक—वि॰—-—कृत - कन्—झूठा, व्यपदिष्ट या बहाना किया हुआ, मिथ्या, दिखावटी, कल्पित
- कृतक—वि॰—-—कृत - कन्—दत्तक
- कृतम्—अव्य॰—-—कृत - कम् बा॰—पर्याप्त और अधिक नहीं, बस करो अथवा मत करो
- कृतिः—स्त्री॰—-—कृ - क्तिन्—करनी, उत्पादन, निर्माण, अनुष्ठान
- कृतिः—स्त्री॰—-—कृ - क्तिन्—कार्य, कृत्य, कर्म
- कृतिः—स्त्री॰—-—कृ - क्तिन्—रचना, काम, संरचना
- कृतिः—स्त्री॰—-—कृ - क्तिन्—जादू, इन्द्रजाल
- कृतिः—स्त्री॰—-—कृ - क्तिन्—क्षति पहुँचाना, मार डालना
- कृतिः—स्त्री॰—-—कृ - क्तिन्—बीस की संख्या
- कृतिकरः—पुं॰—कृति-करः—-—रावण का विशेषण
- कृतिन्—वि॰—-—कृत - इनि—कृतकार्य, कृतार्थ, संतुष्ट, परितृप्त, प्रसन्न, सफल
- कृतिन्—वि॰—-—कृत - इनि—सौभाग्यशाली, अच्छी किस्मतवाला, भाग्यवान
- कृतिन्—वि॰—-—कृत - इनि—चतुर, सक्षम, योग्य, विशेषज्ञ, कुशल, बुद्धिमान, विद्वान
- कृतिन्—वि॰—-—कृत - इनि—अच्छा, गुणी, पवित्र, पावन
- कृतिन्—वि॰—-—कृत - इनि—अनुवर्ती, आज्ञाकारी, आदेशानुसार करने वाला
- कृते —अव्य॰—-—-—के लिए, के निमित्त, के कारण
- कृतेन—अव्य॰—-—-—के लिए, के निमित्त, के कारण
- कृत्तिः—स्त्री॰—-—कृत् - क्तिन्—चमड़ा, खाल
- कृत्तिः—स्त्री॰—-—कृत् - क्तिन्—मृगचर्म जिसपर विद्यार्थी बैठता है
- कृत्तिः—स्त्री॰—-—कृत् - क्तिन्—भोजपत्र
- कृत्तिः—स्त्री॰—-—कृत् - क्तिन्—भोजवृक्ष
- कृत्तिः—स्त्री॰—-—कृत् - क्तिन्—कृत्तिका नक्षत्र, कृत्तिका मण्डल
- कृत्तिवासः—पुं॰—कृत्ति-वासः—-—शिव का विशेषण
- कृत्तिवासस्—पुं॰—कृत्ति-वासस्—-—शिव का विशेषण
- कृत्तिका—स्त्री॰,ब॰ व॰—-—कृत् - तिकन्, कित्, टाप्—२७ नक्षत्रों में से तीसरा कृत्तिका नक्षत्र
- कृत्तिका—स्त्री॰,ब॰ व॰—-—कृत् - तिकन्, कित्, टाप्—छः तारे जो, युद्ध के देवता कार्त्तिकेय की परिचारिका का कार्य करने वाली अप्सराओं के रूप में वर्णित हैं
- कृत्तिकातनयः—पुं॰—कृत्तिका-तनयः—-—कार्तिकेय का विशेषण
- कृत्तिकापुत्रः—पुं॰—कृत्तिका-पुत्रः—-—कार्तिकेय का विशेषण
- कृत्तिकासुतः—पुं॰—कृत्तिका-सुतः—-—कार्तिकेय का विशेषण
- कृत्तिकाभवः—पुं॰—कृत्तिका-भवः—-—चाँद
- कृत्नु—वि॰—-—कृ - क्तनु—भली भाँति करने वाला, करने के योग्य शक्तिशाली
- कृत्नु—वि॰—-—कृ - क्तनु—चतुर, कुशल
- कृत्नुः—पुं॰—-—कृ - क्तनु—कारीगर, कलाकार
- कृत्य—वि॰—-—कृ - क्यप्, तुक्—जो किया जाना चाहिए, सही, उचित, उपयुक्त
- कृत्य—वि॰—-—कृ - क्यप्, तुक्—युक्तियुक्त, व्यवहार्य
- कृत्य—वि॰—-—कृ - क्यप्, तुक्—जो राजभक्ति से पथभ्रष्ट किया जा सके, विश्वासघाती
- कृत्यम्—नपुं॰—-—कृ - क्यप्, तुक्—जो किया जाना चाहिए, कर्तव्य, कार्य
- कृत्यम्—नपुं॰—-—कृ - क्यप्, तुक्—कार्य, व्यवसाय, करनी, कार्यभार
- कृत्यम्—नपुं॰—-—कृ - क्यप्, तुक्—प्रयोजन, उद्देश्य, लक्ष्य
- कृत्यम्—नपुं॰—-—कृ - क्यप्, तुक्—मंशा, कारण
- कृत्यः—पुं॰—-—कृ - क्यप्, तुक्—कर्मवाच्य के कृदन्त के सम्भावनार्थक प्रत्ययों का समूह
- कृत्या—स्त्री॰—-—कृ - क्यप्, तुक्+टाप्—कार्य, करनी
- कृत्या—स्त्री॰—-—कृ - क्यप्, तुक्—जादू
- कृत्या—स्त्री॰—-—कृ - क्यप्, तुक्—एक देवी
- कृत्रिम—वि॰—-—कृत्या निर्मितम् - कृ - क्ति - मप्—बनावटी, काल्पनिक, जो स्वतः स्फूर्त या मनमाना न हो, अर्जित
- कृत्रिम—वि॰—-—कृत्या निर्मितम् - कृ - क्ति - मप्—गोद लिया हुआ
- कृत्रिमः—पुं॰—-—कृत्या निर्मितम् - कृ - क्ति - मप्—नकली या गोद लिया हुआ पुत्र
- कृत्रिमपुत्रः—पुं॰—कृत्रिम-पुत्रः—-—नकली या गोद लिया हुआ पुत्र
- कृत्रिमम्—नपुं॰—-—-—एक प्रकार का नमक
- कृत्रिमम्—नपुं॰—-—-—एक प्रकार का सुगन्ध द्रव्य
- कृत्रिमधूपः—पुं॰—कृत्रिम-धूपः—-—एक प्रकार का सुगन्ध द्रव्य, धूप
- कृत्रिमधूपकः—पुं॰—कृत्रिम-धूपकः—-—एक प्रकार का सुगन्ध द्रव्य, धूप
- कृत्रिमपुत्रः—पुं॰—कृत्रिम-पुत्रः—-—नकली या गोद लिया हुआ पुत्र
- कृत्रिमपुत्रकः—पुं॰—कृत्रिम-पुत्रकः—-—गुड्डा, पुत्तलिका
- कृत्रिमभूमिः—स्त्री॰—कृत्रिम-भूमिः—-—बनाया हुआ फर्श
- कृत्रिमवनम्—स्त्री॰—कृत्रिम-वनम्—-—वाटिका, उद्यान
- ॰कृत्वस्—अव्य॰—-—-—एक प्रत्यय जो संख्यावाचक शब्दों के साथ ‘तह’ और ‘गुणा’ अर्थ को प्रकट करने के लिए जोड़ा जाता है
- कृत्सम्—नपुं॰—-—-—जल
- कृत्सम्—नपुं॰—-—-—समूह
- कृत्सः—पुं॰—-—-—पाप
- कृत्स्न—वि॰—-—कृत् - क्स्न—सारे, सम्पूर्ण, समस्त
- कृन्तत्रम्—नपुं॰—-—कृत् - क्तन्, नुमागमः—हल
- कृन्तम्—नपुं॰—-—कृत - ल्युट्—काटना, काटकर फेंक देना, विभक्त करना, फाड़कर टुकड़े-टुकड़े करना
- कृपः—पुं॰—-—कृप् - अच्—अश्वत्थामा का मामा
- कृपण—वि॰—-—कृंप् - क्युन् न स्यणत्वम्—गरीब, दयनीय, अभागा, असहाय
- कृपण—वि॰—-—कृंप् - क्युन् न स्यणत्वम्—विवेकशून्य, किसी कार्य को करने या विवेचन करने के योग्य अथवा अनिच्छुक
- कृपण—वि॰—-—कृंप् - क्युन् न स्यणत्वम्—नीच, अधम, दुष्ट
- कृपण—वि॰—-—कृंप् - क्युन् न स्यणत्वम्—सूम, कंजूस
- कृपणम्—नपुं॰—-—कृंप् - क्युन् न स्यणत्वम्—दुर्दशा
- कृपणः—पुं॰—-—कृंप् - क्युन् न स्यणत्वम्—सूम
- कृपणधीः—स्त्री॰—कृपण-धीः—-—छोटे दिल का, नीच मन का
- कृपणबुद्धिः—स्त्री॰—कृपण-बुद्धिः—-—छोटे दिल का, नीच मन का
- कृपणवत्सल—वि॰—कृपण-वत्सल—-—दीनदयालु
- कृपा—स्त्री॰—-—क्रप् - भिदा॰ अङ - टाप्, संप्र॰—रहम, दयालुता, करुणा
- सकृपम्—नपुं॰—-—-—कृपा करके
- कृपाणः—पुं॰—-—कृपां नुदति - नुद् - ड संज्ञायां णत्वम् - तारा॰—तलवार
- कृपाणः—पुं॰—-—-—चाकू
- कृपाणिका—स्त्री॰—-—कृपाण - कन् - टाप्, इत्वम्—बर्छी, छुरी
- कृपाणी—स्त्री॰—-—कृपाण - ङीष्—कैंची
- कृपाणी—स्त्री॰—-—कृपाण - ङीष्—बर्छी
- कृपालु—वि॰—-—कृपां लाति - कृपा - ला आदाने मि॰ डु—दयालु, करुणापूर्ण, सदय
- कृपी—स्त्री॰—-—कृप - ङीष्—कृप की बहन तथा द्रोण की पत्नी
- कृपीपतिः—पुं॰—कृपी-पतिः—-—द्रोण का विशेषण
- कृपीसुतः—पुं॰—कृपी-सुतः—-—अश्वत्थामा का विशेषण
- कृपीटम्—नपुं॰—-—कृप - कीटन्—तलझाड़ियाँ, जंगल की लकड़ी
- कृपीटम्—नपुं॰—-—कृप - कीटन्—वन, जलाने की लकड़ी
- कृपीटम्—नपुं॰—-—कृप - कीटन्—पानी
- कृपीटम्—नपुं॰—-—कृप - कीटन्—पेट
- कृपीटपालः—पुं॰—कृपीटम्-पालः—-—पतवार
- कृपीटपालः—पुं॰—कृपीटम्-पालः—-—समुद्र
- कृपीटपालः—पुं॰—कृपीटम्-पालः—-—वायु, हवा
- कृपीटयोनि—वि॰—कृपीटम्-योनि—-—अग्नि
- कृमि—वि॰—-—क्रम् - इन्, अत इत्वम् संप्र॰—कीड़ों से भरा हुआ, कीटयुक्त
- कृमि—वि॰—-—क्रम् - इन्, अत इत्वम् संप्र॰—कीड़े
- कृमि—वि॰—-—क्रम् - इन्, अत इत्वम् संप्र॰—गधा
- कृमि—वि॰—-—क्रम् - इन्, अत इत्वम् संप्र॰—मकड़ी
- कृमि—वि॰—-—क्रम् - इन्, अत इत्वम् संप्र॰—लाख
- कृमिकोशः—पुं॰—कृमि-कोशः—-—रेशम का कोया
- कृमिकोषः—पुं॰—कृमि-कोषः—-—रेशम का कोया
- कृमिकोषः—पुं॰—कृमि-कोषः—-—रेशमी कपड़ा
- कृमिजम्—नपुं॰—कृमि-जम्—-—अगर की लकड़ी
- कृमिजग्धम्—नपुं॰—कृमि-जग्धम्—-—अगर की लकड़ी
- कृमिजा—स्त्री॰—कृमि-जा—-—लाख कीड़ों द्वारा उत्पादित लाल रंग
- कृमिजलजः—पुं॰—कृमि-जलजः—-—घोंघा, सीपी में रहने वाला कीड़ा
- कृमिवारिरुहः—पुं॰—कृमि-वारिरुहः—-—घोंघा, सीपी में रहने वाला कीड़ा
- कृमिपर्वतः—पुं॰—कृमि-पर्वतः—-—बाँबी
- कृमिशैलः—पुं॰—कृमि-शैलः—-—बाँबी
- कृमिफलः—पुं॰—कृमि-फलः—-—गूलर का पेड़
- कृमिशङ्खः—पुं॰—कृमि-शङ्खः—-—शंख के भीतर रहने वाली मछली
- कृमिशुक्तिः—स्त्री॰—कृमि-शुक्तिः—-—दोहरी पीठ वाला घोंघा
- कृमिशुक्तिः—स्त्री॰—कृमि-शुक्तिः—-—सीपी में रहने वाला कीड़ा
- कृमिशुक्तिः—स्त्री॰—कृमि-शुक्तिः—-—घोंघा
- कृमिण—वि॰—-—कृमि - न, णत्वम्—कीड़ों से भरा हुआ, कीटयुक्त
- कृमिल—वि॰—-—कृमि - न, ल वा, णत्वम्—कीड़ों से भरा हुआ, कीटयुक्त
- कृमिला—स्त्री॰—-—कृमि - ला - क - टाप्—बहुत सन्तान पैदा करने वाली स्त्री
- कृश्—दिवा॰ पर॰ <कृश्यति>, <कृश>—-—-—दुर्बल या क्षीण होना
- कृश्—दिवा॰ पर॰ <कृश्यति>, <कृश>—-—-—उत्तरोत्तर ह्रास होना
- कृश्—पुं॰—-—-—दुर्बल करना
- कृश—वि॰—-— —दुबला पतला, दुर्बल, शक्तिहीन, क्षीण
- कृश—वि॰—-—-—छोटा, थोड़ा, सूक्ष्म
- कृश—वि॰—-—-—दरिद्र, नगण्य
- कृशाक्षः—पुं॰—कृश-अक्षः—-—मकड़ी
- कृशाङ्गः—वि॰—कृश-अङ्गः—-—दुबला पतला
- कृशाङ्गी—स्त्री॰—कृश-अङ्गी—-—तन्वंगी
- कृशाङ्गी—स्त्री॰—कृश-अङ्गी—-—प्रियंगु लता
- कृशोदर—वि॰—कृश-उदर—-—पतली कमर वाला
- कृशला—स्त्री॰—-—कृश - ला - क - टाप्—बाल
- कृशानुः—पुं॰—-—कृश - आनुक्—आग
- कृशानुरेतस्—पुं॰—कृशानु-रेतस्—-—शिव की उपाधि
- कृशाश्विन्—पुं॰—-—कृशाश्व - इनि—नाटक का पात्र
- कृष्—तुदा॰ उभ॰ <कृषति>, <कृषते>, <कृष्ट>—-—-—हल चलाना, खूड बनाना
- कृष्—भ्वा॰ पर॰ <कर्षति>, <कृष्ट>—-—-—खींचना, घसीटना, चीरना, खींच देना, फाड़ना
- कृष्—भ्वा॰ पर॰ <कर्षति>, <कृष्ट>—-—-—किसी की ओर खींचना, आकृष्ट करना
- कृष्—भ्वा॰ पर॰ <कर्षति>, <कृष्ट>—-—-—नेतृत्व या संचालन करना
- कृष्—भ्वा॰ पर॰ <कर्षति>, <कृष्ट>—-—-—झुकाना
- कृष्—भ्वा॰ पर॰ <कर्षति>, <कृष्ट>—-—-—स्वामी होना, दमन करना, परास्त करना, अभिभूत करना
- कृष्—भ्वा॰ पर॰ <कर्षति>, <कृष्ट>—-—-—हल चलाना, खेती करना
- कृष्—भ्वा॰ पर॰ <कर्षति>, <कृष्ट>—-—-—प्राप्त करना, हासिल करना
- कृष्—भ्वा॰ पर॰ <कर्षति>, <कृष्ट>—-—-—किसी से ले लेना, किसी को वंचित करना
- अपकृष्—भ्वा॰ पर॰—अप-कृष्—-—पीछे खींचना, खींच ले जाना, घसीट कर दूर करना, लंबा करना, निचोड़ना
- अपकृष्—भ्वा॰ पर॰—अप-कृष्—-—हटाना
- अपकृष्—भ्वा॰ पर॰—अप-कृष्—-—कम करना, घटाना
- अवकृष्—भ्वा॰ पर॰—अव-कृष्—-—खींचना, खींच लेना
- आकृष्—भ्वा॰ पर॰—आ-कृष्—-—खींचना, समीप पहुँचाना, धकेलना, खींच लेना, निचोड़ना
- आकृष्—भ्वा॰ पर॰—आ-कृष्—-—झुकाना
- आकृष्—भ्वा॰ पर॰—आ-कृष्—-—निचोड़ना, उधार लेना
- आकृष्—भ्वा॰ पर॰—आ-कृष्—-—छीनना, बलपूर्वक ग्रहण करना
- आकृष्—भ्वा॰ पर॰—आ-कृष्—-—किसी दूसरे नियम या वाक्य से शब्द ला देना
- उत्कृष्—भ्वा॰ पर॰—उद्-कृष्—-—ऊपर खींचना, उखाड़ना
- उत्कृष्—भ्वा॰ पर॰—उद्-कृष्—-—बढ़ाना, वृद्धि करना
- निकृष्—भ्वा॰ पर॰—नि-कृष्—-—डुबोना, कम करना, घटाना
- निष्कृष्—भ्वा॰ पर॰—निस्-कृष्—-—बाहर खींचना
- निष्कृष्—भ्वा॰ पर॰—निस्-कृष्—-—खींचतान कर निकालना, बलपूर्वक निकालना, छीनना या जबरदस्ती लेना
- निष्कृष्—भ्वा॰ पर॰—परि-कृष्—-—खींचना, निकालना, घसीटना
- प्रकृष्—भ्वा॰ पर॰—प्र-कृष्—-—खींचना, खींच लेना, आकृष्ट करना
- प्रकृष्—भ्वा॰ पर॰—प्र-कृष्—-—नेतृत्व करना
- प्रकृष्—भ्वा॰ पर॰—प्र-कृष्—-—झुकाना
- प्रकृष्—भ्वा॰ पर॰—प्र-कृष्—-—बढ़ाना
- विकृष्—भ्वा॰ पर॰—वि-कृष्—-—खींचना
- विकृष्—भ्वा॰ पर॰—वि-कृष्—-—झुकाना
- विप्रकृष्—भ्वा॰ पर॰—विप्र-कृष्—-—हटाना
- संनिकृष्—भ्वा॰ पर॰—संनि-कृष्—-—निकट लाना
- कृषकः—पुं॰—-—कृष् - क्वन्—हलवाहा, किसान, हाली
- कृषकः—पुं॰—-—कृष् - क्वन्—फाली
- कृषकः—पुं॰—-—कृष् - क्वन्—बैल
- कृषाणः—पुं॰—-—कृष् - आनक्, किकन् वा—हलवाहा, किसान
- कृषिकः—पुं॰—-—कृष् - आनक्, किकन् वा—हलवाहा, किसान
- कृषिः—स्त्री॰—-—कृष् - इक्—हल चलाना
- कृषिः—स्त्री॰—-—कृष् - इक्—खेती, काश्तकारी
- कृषिकर्मन्—नपुं॰—कृषि-कर्मन्—-—खेती का काम
- कृषिजीविन्—वि॰—कृषि-जीविन्—-—खेती से निर्वाह से करने वाला किसान
- कृषिफलम्—नपुं॰—कृषि-फलम्—-—खेती से होने वाली उपज, या लाभ
- कृषिसेवा—स्त्री॰—कृषि-सेवा—-—खेती करना, किसानी
- कृषीवलः—पुं॰—-—कृषि - वलच्, दीर्घः—जो खेती से अपना जीविकार्जन करे, किसान
- कृष्करः—पुं॰—-—कृष - कृ = टक् पृषो॰—शिव की उपाधि
- कृष्ट—वि॰—-—कृष् - क्त—खींचा हुआ, उखाड़ा हुआ, घसीटा हुआ, आकृष्ट
- कृष्ट—वि॰—-—कृष् - क्त—हल चलाया हुआ
- कृष्टिः—स्त्री॰—-—कृष् - क्तिन्—विद्वान पुरुष
- कृष्टिः—स्त्री॰—-—कृष् - क्तिन्—खींचना, आकर्षण
- कृष्टिः—स्त्री॰—-—कृष् - क्तिन्—हल चलाना, भूमि जोतना
- कृष्ण—वि॰—-—कृष् - नक्—काला, श्याम, गहरा, नीला
- कृष्ण—वि॰—-—कृष् - नक्—दुष्ट, अनिष्टकर
- कृष्ण—वि॰—-—कृष् - नक्—काला रंग
- कृष्ण—वि॰—-—कृष् - नक्—काला हरिण
- कृष्ण—वि॰—-—कृष् - नक्—कौआ
- कृष्ण—वि॰—-—कृष् - नक्—कोयल
- कृष्ण—वि॰—-—कृष् - नक्—चान्द्रमास का कृष्णपक्ष
- कृष्ण—वि॰—-—कृष् - नक्—कलियुग
- कृष्ण—वि॰—-—कृष् - नक्—आठवाँ अवतारधारी विष्णु
- कृष्ण—वि॰—-—कृष् - नक्—महाभारत का विख्यात प्रणेता व्यास
- कृष्ण—वि॰—-—कृष् - नक्—अर्जुन
- कृष्ण—वि॰—-—कृष् - नक्—अगर की लकड़ी
- कृष्णम्—नपुं॰—-—कृष् - नक्—कालिमा, कालापन
- कृष्णम्—नपुं॰—-—कृष् - नक्—लोहा
- कृष्णम्—नपुं॰—-—कृष् - नक्—अंजन
- कृष्णम्—नपुं॰—-—कृष् - नक्—काली पुतली
- कृष्णम्—नपुं॰—-—कृष् - नक्—काली मिर्च
- कृष्णम्—नपुं॰—-—कृष् - नक्—सीसा
- कृष्णागुरु—नपुं॰—कृष्ण-अगुरु—-—एक प्रकार के चन्दन की लकड़ी
- कृष्णाचलः—पुं॰—कृष्ण-अचलः—-—रैवतक पर्वत का विशेषण
- कृष्णाजिनम्—नपुं॰—कृष्ण-अजिनम्—-—काले हरिण का चर्म
- कृष्णायस्—नपुं॰—कृष्ण-अयस्—-—लोहा, कच्चा या काला लोहा
- कृष्णामिषम्—नपुं॰—कृष्ण-आमिषम्—-—लोहा, कच्चा या काला लोहा
- कृष्णाध्वन्—पुं॰—कृष्ण-अध्वन्—-—आग
- कृष्णार्चिस्—पुं॰—कृष्ण-अर्चिस्—-—आग
- कृष्णाष्टमी—स्त्री॰—कृष्ण-अष्टमी—-—भाद्रपक्ष कृष्णपक्ष का आठवाँ दिन
- कृष्णावासः—पुं॰—कृष्ण-आवासः—-—अश्वत्थ वृक्ष
- कृष्णोदरः—पुं॰—कृष्ण-उदरः—-—एक प्रकार का साँप
- कृष्णकन्दम्—नपुं॰—कृष्ण-कन्दम्—-—लाल कमल
- कृष्णकर्मन्—वि॰—कृष्ण-कर्मन्—-—काली करतूत वाला, मुजरिम, दुष्ट, दुश्चरित्र, दोषी
- कृष्णकाकः—पुं॰—कृष्ण-काकः—-—पहाड़ी कौआ
- कृष्णकायः—पुं॰—कृष्ण-कायः—-—भैंसा
- कृष्णकाष्ठम्—नपुं॰—कृष्ण-काष्ठम्—-—एकप्रकार की चंदन की लकड़ी, काला अगर
- कृष्णकोहलः—पुं॰—कृष्ण-कोहलः—-—जुआरी
- कृष्णगतिः—पुं॰—कृष्ण-गतिः—-—आग
- कृष्णग्रीवः—पुं॰—कृष्ण-ग्रीवः—-—शिव का नाम
- कृष्णतारः—पुं॰—कृष्ण-तारः—-—काले हरिणों की एक जाति
- कृष्णदेहः—पुं॰—कृष्ण-देहः—-—मधुमक्खी
- कृष्णधनम्—नपुं॰—कृष्ण-धनम्—-—बुरे तरीकों से कमाया हुआ धन, पाप की कमाई
- कृष्णद्वैपायनः—पुं॰—कृष्ण-द्वैपायनः—-—व्यास का नाम
- कृष्णपक्षः—पुं॰—कृष्ण-पक्षः—-—चान्द्रमास का अंधेरा पक्ष
- कृष्णमृगः—पुं॰—कृष्ण-मृगः—-—काला हरिण
- कृष्णमुखः—पुं॰—कृष्ण-मुखः—-—काले मुँह का बन्दर
- कृष्णवक्त्रः—पुं॰—कृष्ण-वक्त्रः—-—काले मुँह का बन्दर
- कृष्णवदनः—पुं॰—कृष्ण-वदनः—-—काले मुँह का बन्दर
- कृष्णयजुर्वेदः—पुं॰—कृष्ण-यजुर्वेदः—-—तैत्तिरीय या कृष्ण यजुर्वेद
- कृष्णलोहः—पुं॰—कृष्ण-लोहः—-—चुम्बक पत्थर
- कृष्णवर्णः—पुं॰—कृष्ण-वर्णः—-—काला रंग
- कृष्णवर्णः—पुं॰—कृष्ण-वर्णः—-—राहु
- कृष्णवर्णः—पुं॰—कृष्ण-वर्णः—-—शूद्र
- कृष्णवर्त्मन्—पुं॰—कृष्ण-वर्त्मन्—-—आग
- कृष्णवर्त्मन्—पुं॰—कृष्ण-वर्त्मन्—-—राहु का नाम
- कृष्णवर्त्मन्—पुं॰—कृष्ण-वर्त्मन्—-—नीच पुरुष, दुराचारी, लुच्चा
- कृष्णवेणा—स्त्री॰—कृष्ण-वेणा—-—नदी का नाम
- कृष्णशकुनिः—पुं॰—कृष्ण-शकुनिः—-—कौवा
- कृष्णसारः—पुं॰—कृष्ण-सारः—-—चितकबरा, काला मृग
- कृष्णशारः—पुं॰—कृष्ण-शारः—-—चितकबरा, काला मृग
- कृष्णश्रृङ्गः—पुं॰—कृष्ण-श्रृङ्गः—-—भैंसा
- कृष्णसखः—पुं॰—कृष्ण-सखः—-—अर्जुन का विशेषण
- कृष्णसारथिः—पुं॰—कृष्ण-सारथिः—-—अर्जुन का विशेषण
- कृष्णकम्—नपुं॰—-—कृष्ण - कन्—काले मृग का चमड़ा
- कृष्णलः—पुं॰—-—कृष्ण - ला - क—घुँघचीं का पौधा, गुंजा-पौधा
- कृष्णलम्—नपुं॰—-—कृष्ण - ला - क—घुँघचीं, चहुँटली
- कृष्णा—स्त्री॰—-—कृष्ण - टाप्—द्रौपदी का नाम, पाण्डवों की पत्नी
- कृष्णा—स्त्री॰—-—कृष्ण - टाप्—दक्षिण भारत की एक नदी जो मुसलीपट्टम् में समुद्र में गिरती है
- कृष्णिका—स्त्री॰—-—कृष्ण - ठन् - टाप्—काली सरसों
- कृष्णिमन्—पुं॰—-—कृष्ण - इमनिच्—कालिमा, कालापन
- कृष्णी—स्त्री॰—-—कृष्ण - ङीष्—अँधेरी रात
- कॄ—तुदा॰ पर॰ <किरति>, <कीर्ण>—-—-—बिखेरना, इधर-उधर फेंकना, उड़ेलना, डालना, तितर-बितर करना
- कॄ—तुदा॰ पर॰ <किरति>, <कीर्ण>—-—-—छितराना, ढँकना, भरना
- अपकॄ —तुदा॰ पर॰—अप-कॄ —-—बखेरना, इधर-उधर डालना
- अपकॄ —तुदा॰ पर॰—अप-कॄ —-—पैरों से खुरचना, पूरा हर्ष
- अपाकॄ —तुदा॰ पर॰—अपा-कॄ —-—उतार फेंकना, अस्वीकार करना, निराकरण करना
- अवकॄ —तुदा॰ पर॰—अव-कॄ —-—बखेरना, फेंकना
- आकॄ —तुदा॰ पर॰—आ-कॄ —-—चारों ओर फैलाना
- आकॄ —तुदा॰ पर॰—आ-कॄ —-—खोदना
- उद्कॄ —तुदा॰ पर॰—उद्-कॄ —-—ऊपर को बिखेरना, ऊपर को फेंकना
- उद्कॄ —तुदा॰ पर॰—उद्-कॄ —-—खोदना, खोदकर खोखला करना
- उद्कॄ —तुदा॰ पर॰—उद्-कॄ —-—उत्कीर्ण करना, खुदाई करना, मूर्ति बनाना
- उपकॄ —तुदा॰ पर॰—उप-कॄ —-—काटना, चोट पहुँचाना, क्षति पहुँचाना
- परिकॄ —तुदा॰ पर॰—परि-कॄ —-—घेरना
- परिकॄ —तुदा॰ पर॰—परि-कॄ —-—सोंपना, देना, बाँटना
- प्रकॄ —तुदा॰ पर॰—प्र-कॄ —-—बिखेरना, फेंकना उड़ेलना
- प्रकॄ —तुदा॰ पर॰—प्र-कॄ —-—बोना
- प्रतिकॄ —तुदा॰ पर॰—प्रति-कॄ —-—चोट पहुँचाना, क्षति पहुँचाना, फाड़ना
- विकॄ —तुदा॰ पर॰—वि-कॄ —-—बखेरना, इधर-उधर फेंकना, छितराना, फैलाना
- विनिकॄ—तुदा॰ पर॰—विनि-कॄ—-—फकना, छोड़ना, उतार फेंकना
- संकॄ—तुदा॰ पर॰—सम्-कॄ—-—मिलाना, सम्मिश्रण करना, एक स्थान पर गड्डमड्ड करना
- समुत्कॄ—तुदा॰ पर॰—समुद्-कॄ—-—छेदना, सुराख करना, बींधना
- कॄ—क्र्या॰ उभ॰ <कृणाति>, <कृणीते>—-—-—क्षति पहुँचाना, चोट पहुँचाना, मार डालना
- कॄत्—चुरा॰ उभ॰ <कीर्तयति>, <कीर्तयते>, <कीर्तित>—-—-—उल्लेख करना, दोहराना, उच्चारण करना
- कॄत्—चुरा॰ उभ॰ <कीर्तयति>, <कीर्तयते>, <कीर्तित>—-—-—कहना, सस्वर पाठ करना, घोषणा करना, समाचार देना
- कॄत्—चुरा॰ उभ॰ <कीर्तयति>, <कीर्तयते>, <कीर्तित>—-—-—नाम लेना, पुकार करना
- कॄत्—चुरा॰ उभ॰ <कीर्तयति>, <कीर्तयते>, <कीर्तित>—-—-—स्तुति करना, यशोगान करना, स्मरणार्थ उत्सव मनाना
- कॢप्—भ्वा॰ आ॰ <कल्पते>, <कॢप्त>—-—-—योग्य होना, यथेष्ट होना, फलना, प्रकाशित करना, निष्पन्न करना, पैदा करना, ढुलकना
- कॢप्—भ्वा॰ आ॰ <कल्पते>, <कॢप्त>—-—-—सुप्रबद्ध तथा विनियमित होना, सफल होना
- कॢप्—भ्वा॰ आ॰ <कल्पते>, <कॢप्त>—-—-—होना, घटित होना, घटना
- कॢप्—भ्वा॰ आ॰ <कल्पते>, <कॢप्त>—-—-—तैयार होना, सज्जित होना
- कॢप्—भ्वा॰ आ॰ <कल्पते>, <कॢप्त>—-—-—अनुकूल होना, किसी के काम आना, अनुसेवन करना, भाग लेना
- कॢप्—भ्वा॰ आ॰—-—-—तैयार करना, क्रम से रखना, सँवारना
- कॢप्—भ्वा॰ आ॰—-—-—निश्चित करना, स्थिर करना
- कॢप्—भ्वा॰ आ॰—-—-—बाँटना
- कॢप्—भ्वा॰ आ॰—-—-—समान जुटाना, उपस्कृत करना
- कॢप्—भ्वा॰ आ॰—-—-—विचार करना
- अवकॢप्—भ्वा॰ आ॰—अव-कॢप्—-—फलना, झुकना, सम्पन्न करना
- आकॢप्—भ्वा॰ आ॰—आ-कॢप्—-—अलंकृत करना, सजाना
- उपकॢप्—भ्वा॰ आ॰—उप-कॢप्—-—फलना, परिणाम निकालना
- उपकॢप्—भ्वा॰ आ॰—उप-कॢप्—-—तैयार होना, तत्पर होना
- परिकॢप्—भ्वा॰ आ॰—परि-कॢप्—-—फैसला करना, निर्धारण करना, निश्चित करना
- परिकॢप्—भ्वा॰ आ॰—परि-कॢप्—-—तैयार करना, तैयार होना
- परिकॢप्—भ्वा॰ आ॰—परि-कॢप्—-—गुणयुक्त करना
- प्रकॢप्—भ्वा॰ आ॰—प्र-कॢप्—-—होना, घटित होना
- प्रकॢप्—भ्वा॰ आ॰—प्र-कॢप्—-—सफल होना
- प्रकॢप्—भ्वा॰ आ॰—प्र-कॢप्—-—आविष्कार करना, उपाय निकालना, बनाना
- प्रकॢप्—भ्वा॰ आ॰—प्र-कॢप्—-—तैयार करना, तैयार होना
- विकॢप्—भ्वा॰ आ॰—वि-कॢप्—-—सन्देह करना, सन्दिग्ध होना
- विकॢप्—भ्वा॰ आ॰—वि-कॢप्—-—सन्देह करना
- सम्कॢप्—भ्वा॰ आ॰—सम्-कॢप्—-—दृढ़ निश्चय करना, दृढ़ संकल्प करना, निश्चित करना
- सम्कॢप्—भ्वा॰ आ॰—सम्-कॢप्—-—इरादा करना, प्रस्ताव रखना
- समुपकॢप्—भ्वा॰ आ॰—समुप-कॢप्—-—तैयार होना
- कॢप्त—भू॰ क॰ कृ॰—-—कॢप् - क्त—तैयार किया हुआ, किया हुआ, तैयार हुआ, सुसज्जित, विवाहवेष में सुभूषित
- कॢप्त—भू॰ क॰ कृ॰—-—कॢप् - क्त—काटा हुआ, छिला हुआ
- कॢप्त—भू॰ क॰ कृ॰—-—कॢप् - क्त—उत्पन्न किया हुआ, पैदा किया हुआ
- कॢप्त—भू॰ क॰ कृ॰—-—कॢप् - क्त—स्थिर किया हुआ, निश्चित, सोचा हुआ, आविष्कृत
- कॢप्तकीला—स्त्री॰—कॢप्त-कीला—-—अधिकार पत्र, दस्तावेज
- कॢप्तधूपः—पुं॰—कॢप्त-धूपः—-—लोबान
- कॢप्तिः—स्त्री॰—-—कॢप् - क्तिन्—निष्पत्ति, सफलता
- कॢप्तिः—स्त्री॰—-—कॢप् - क्तिन्—आविष्कार, बनावट
- कॢप्तिः—स्त्री॰—-—कॢप् - क्तिन्—क्रमबद्ध करना
- कॢप्तिक—वि॰—-—कॢप्त - ठन्—खरीदा हुआ, मोल लिया हुआ
- केकयः—पुं॰,ब॰ व॰—-—-—एक देश और उसके निवासी
- केकर—वि॰—-—-—भेंगी आँख वाला
- केकरम्—नपुं॰—-—-—भेंगी आँख
- केकराक्ष—वि॰—केकर-अक्ष—-—वक्रदृष्टि, भेंगी आँख वाला
- केका—स्त्री॰—-—के - कै - ड - टाप्—मोर की बोली
- केकावलः—पुं॰—-—केका - वलच्—मोर
- केकिकः—पुं॰—-—केका - वलच्, केका - ठन्—मोर
- केकिन्—पुं॰—-—केका - वलच्, केका - ठन्, केका - इनि—मोर
- केणिका—स्त्री॰—-—के मूर्ध्नि कुत्सितः अणकः - टाप्—तम्बू
- केतः—पुं॰—-—कित् - घञ्—घर, आवास
- केतः—पुं॰—-—कित् - घञ्—रहना, बस्ती
- केतः—पुं॰—-—कित् - घञ्—झण्डा
- केतः—पुं॰—-—कित् - घञ्—इच्छा शक्ति, इरादा, चाह
- केतकः—पुं॰—-—कित् - ण्वुल्—एक पौधा
- केतकः—पुं॰—-—कित् - ण्वुल्—झण्डा
- केतकम्—नपुं॰—-—कित् - ण्वुल्—केवड़े का फूल
- केतकी—स्त्री॰—-—कित् - ण्वुल्—एक पौधा - केवड़ा
- केतकी—स्त्री॰—-—कित् - ण्वुल्—केतकी का फूल
- केतनम्—नपुं॰—-—कित् - ल्युट्—घर, आवास
- केतनम्—नपुं॰—-—कित् - ल्युट्—निमन्त्रण, बुलावा
- केतनम्—नपुं॰—-—कित् - ल्युट्—स्थान, जगह
- केतनम्—नपुं॰—-—कित् - ल्युट्—पताका, झण्डा
- केतनम्—नपुं॰—-—कित् - ल्युट्—चिह्न, प्रतीक
- केतनम्—नपुं॰—-—कित् - ल्युट्—अनिवार्य कर्म
- केतित—वि॰—-—केत - इतच्—बुलाया गया, आमन्त्रित
- केतित—वि॰—-—केत - इतच्—आबाद, बसा हुआ
- केतुः—पुं॰—-—चाय् - तु, की आदेशः—पताका, झण्डा
- केतुः—पुं॰—-—चाय् - तु, की आदेशः—मुख्य, प्रधान, नेता, प्रमुख, विशिष्ट व्यक्ति
- केतुः—पुं॰—-—चाय् - तु, की आदेशः—पुच्छलतारा, धूमकेतु
- केतुः—पुं॰—-—चाय् - तु, की आदेशः—चिह्न, अंक
- केतुः—पुं॰—-—चाय् - तु, की आदेशः—उज्जवलता, स्वच्छता
- केतुः—पुं॰—-—चाय् - तु, की आदेशः—प्रकाश की किरण
- केतुः—पुं॰—-—चाय् - तु, की आदेशः—सौरमण्डल का नवाग्रह
- केतुग्रहः—पुं॰—केतु-ग्रहः—-—अवरोही शिरोबिन्दु
- केतुभः—पुं॰—केतु-भः—-—बादल
- केतुयष्टिः—स्त्री॰—केतु-यष्टिः—-—ध्वज का दण्ड
- केतुरत्नम्—नपुं॰—केतु-रत्नम्—-—नीलम, वैदूर्य
- केतुवसनम्—नपुं॰—केतु-वसनम्—-—ध्वजा, पताका
- केदारः—पुं॰—-—के शिरसि दारोऽस्य - ब॰ स॰—पानी भरा हुआ खेत, चरागाह
- केदारः—पुं॰—-—के शिरसि दारोऽस्य - ब॰ स॰—थाँवला, आलवाल
- केदारः—पुं॰—-—के शिरसि दारोऽस्य - ब॰ स॰—पहाड़
- केदारः—पुं॰—-—के शिरसि दारोऽस्य - ब॰ स॰—केदार नामक एक पहाड़ जो हिमालय का एक भाग है
- केदारः—पुं॰—-—के शिरसि दारोऽस्य - ब॰ स॰—शिव का नाम
- केदारखण्डम्—नपुं॰—केदार-खण्डम्—-—मिट्टी का बना एक छोटा सा बाँध जो पानी को रोक सके
- केदारनाथः—पुं॰—केदार-नाथः—-—शिव का विशेष रुप
- केनारः—पुं॰—-—के मूर्ध्नि नारः - अलु॰ स॰—सिर
- केनारः—पुं॰—-—के मूर्ध्नि नारः - अलु॰ स॰—खोपड़ी
- केनारः—पुं॰—-—के मूर्ध्नि नारः - अलु॰ स॰—गाल
- केनारः—पुं॰—-—के मूर्ध्नि नारः - अलु॰ स॰—जोड़
- केनिपातः—पुं॰—-—के जले निपात्यतेऽसौ - के - नि - पत् - णिच् - अच्—पतवार, डाँड़, चप्पू
- केन्द्रम्—नपुं॰—-—-—वृत्त का मध्य बिन्दु
- केन्द्रम्—नपुं॰—-—-—वृत्त का प्रमाण
- केन्द्रम्—नपुं॰—-—-—जन्मकुण्डली में लग्न से पहला, चौथा, सातवाँ और दसवाँ स्थान
- केयूरः—पुं॰—-—के बाहौ शिरसि वा याति, या - ऊर किच्च, अलु॰ स॰, तारा॰—टाड, बिजायठ, बाजूबन्द
- केयूरम्—नपुं॰—-—के बाहौ शिरसि वा याति, या - ऊर किच्च, अलु॰ स॰, तारा॰—टाड, बिजायठ, बाजूबन्द
- केयूरः—पुं॰—-—के बाहौ शिरसि वा याति, या - ऊर किच्च, अलु॰ स॰, तारा॰—एक रतिबन्ध
- केरलः—पुं॰—-—-—दक्षिण भारत एक देश और उसके निवासी
- केरली—स्त्री॰—-—-—केरल देश की स्त्री
- केरली—स्त्री॰—-—-—ज्योतिर्विज्ञान
- केल्—भ्वा॰ पर॰ <केलति>, <केलित>—-—-—हिलाना
- केल्—भ्वा॰ पर॰ <केलति>, <केलित>—-—-—खेलना, खिलाड़ी होना, क्रीड़ापरायण या केलिप्रिय होना
- केलकः—पुं॰—-—केल् - ण्वुल्—नर्तक, कलाबाजी करने वाला नट
- केलासः—पुं॰—-—केला विलासः सीदत्यस्मिन् - केला - सद् - ड़—स्फटिक
- केलिः—पुं॰/स्त्री॰—-—केल् - इन्—खेल, क्रीडा
- केलिः—पुं॰/स्त्री॰—-—केल् - इन्—आमोद-प्रमोद, मनोविनोद
- केलिः—पुं॰/स्त्री॰—-—केल् - इन्—परिहास, मखौल, हँसीदिल्लगी
- केलिः—स्त्री॰—-—केल् - इन्—पृथ्वी
- केलिकला—स्त्री॰—केलि-कला—-—क्रीड़ाप्रिय कला विलासिता, श्रृंगारप्रिय सम्बोधन
- केलिकला—स्त्री॰—केलि-कला—-—सरस्वती की वीणा
- केलिकिलः—पुं॰—केलि-किलः—-—नाटक में नायक का विश्वस्त सहचर
- केलिकिलावती—स्त्री॰—केलि-किलावती—-—रति, कामदेव की पत्नी
- केलिकीर्णः—पुं॰—केलि-कीर्णः—-—ऊँट
- केलिकुंचिका—स्त्री॰—केलि-कुंचिका—-—पत्नी की छोटी बहन
- केलिकुपित—वि॰—केलि-कुपित—-—खेल में रुष्ट
- केलिकोषः—पुं॰—केलि-कोषः—-—नाटक का पात्र, नर्तक, नचैया
- केलिगृहम्—नपुं॰—केलि-गृहम्—-—आमोदभवन, निजी कमरा
- केलिनिकेतेनम्—नपुं॰—केलि-निकेतेनम्—-—आमोदभवन, निजी कमरा
- केलिमन्दिरम्—नपुं॰—केलि-मन्दिरम्—-—आमोदभवन, निजी कमरा
- केलिसदनम्—नपुं॰—केलि-सदनम्—-—आमोदभवन, निजी कमरा
- केलिनागरः—पुं॰—केलि-नागरः—-—कामासक्त
- केलिपर—वि॰—केलि-पर—-—क्रीडापर, विलासी, आमोदप्रिय
- केलिमुखः—पुं॰—केलि-मुखः—-—परिहास, क्रीड़ा, मनोरञ्जन
- केलिवृक्षः—पुं॰—केलि-वृक्षः—-—कदम्बवृक्ष की जाति
- केलिशयनम्—नपुं॰—केलि-शयनम्—-—विलासशय्या, सुखशय्या, कोच
- केलिशुषिः—स्त्री॰—केलि-शुषिः—-—पृथ्वी
- केलिसचिवः—पुं॰—केलि-सचिवः—-—आमोदप्रिय सखा, विश्रब्ध मित्र
- केलिकः—पुं॰—-—केलि - कन्—अशोकवृक्ष
- केली—स्त्री॰—-—केलि - ङीष्—खेल, क्रीडा
- केली—स्त्री॰—-—केलि - ङीष्—आमोद-क्रीडा
- केलीपिकः—पुं॰—केली-पिकः—-—मनोविनोदार्थ रखी हुई कोयल
- केलीवनी—स्त्री॰—केली-वनी—-—प्रमोद-वाटिका, केलिकानन, क्रीडोद्यान
- केलीशुकः—पुं॰—केली-शुकः—-—मनोरञ्जनार्थ पाला हुआ तोता
- केवल—वि॰—-—केव् सेवने वृषा कल—विशिष्ट, एकान्तिक, असाधारण
- केवल—वि॰—-—केव् सेवने वृषा कल—अकेला, मात्र, एकल, एकमात्र, इक्का-दुक्का
- केवल—वि॰—-—केव् सेवने वृषा कल—पूर्ण, समस्त, परम, पूरा
- केवल—वि॰—-—केव् सेवने वृषा कल—नग्न अनावृत
- केवल—वि॰—-—केव् सेवने वृषा कल—खालिस, सरल, अभिश्रित, विमल
- केवलम्—अव्य॰—-—-—केवल, सिर्फ, एकमात्र, पूर्णरूप से , नितान्त, सर्वथा
- केवलात्मन्—वि॰—केवल-आत्मन्—-—परम एकता ही जिसका सार है
- केवलनैयायिकः—पुं॰—केवल-नैयायिकः—-—सिर्फ तार्किक
- केवलतः—अव्य॰—-—केवल + तसिल्—केवल, निरा, सर्वथा, निपट, सिर्फ
- केवलिन्—वि॰—-—केवल + तसिल्—अकेला, एकमात्र
- केवलिन्—वि॰—-—केवल + तसिल्—आत्मा की एकता के परम सिद्धान्त का पक्षपाती
- केशः—पुं॰—-—क्लिश्यते क्लिश्नाति वा - क्लिश् + अन्, लोलोपश्च—विकीर्णकेशासु परेतभूमिषु @ कु॰ ५।६८
- केशः—पुं॰—-—क्लिश्यते क्लिश्नाति वा - क्लिश् + अन्, लोलोपश्च—केशेषु गृहीत्वा - या - केशग्राहं युध्यन्ते @ सिद्धा॰ , मुक्तकेशा @ मनु॰ ७।९१, केशव्यपरोपणादिव @ रघु॰ ३।५६, २।८
- केशः—पुं॰—-—क्लिश्यते क्लिश्नाति वा - क्लिश् + अन्, लोलोपश्च—घोड़े या शेर की अयाल
- केशः—पुं॰—-—क्लिश्यते क्लिश्नाति वा - क्लिश् + अन्, लोलोपश्च—प्रकाश की किरण
- केशः—पुं॰—-—क्लिश्यते क्लिश्नाति वा - क्लिश् + अन्, लोलोपश्च—वरूण का विशेषण
- केशः—पुं॰—-—क्लिश्यते क्लिश्नाति वा - क्लिश् + अन्, लोलोपश्च—एकप्रकार का सुगन्धद्रव्य
- केशान्तः—पुं॰—केश-अन्तः—-—बाल का सिरा
- केशान्तः—पुं॰—केश-अन्तः—-—नीचे लटकते हुए लम्बे बाल, बालों का गुच्छा
- केशान्तः—पुं॰—केश-अन्तः—-—मुण्डन संस्कार
- केशोच्चयः—पुं॰—केश-उच्चयः—-—अधिक या सुन्दर बाल
- केशकर्मन्—नपुं॰—केश-कर्मन्—-—बालों को संभालना
- केशकलापः—पुं॰—केश-कलापः—-—बालों का ढेर
- केशकीटः—पुं॰—केश-कीटः—-—जूँ
- केशगर्भः—पुं॰—केश-गर्भः—-—बालों की मींढी
- केशगृहीत—वि॰—केश-गृहीत—-—बालों से पकड़ा हुआ
- केशग्रहः—पुं॰—केश-ग्रहः—-—बालों को पकड़ना, बालों से पकड़ना
- केशग्रहणम्—नपुं॰—केश-ग्रहणम्—-—बालों को पकड़ना, बालों से पकड़ना
- केशध्नम्—नपुं॰—केश-ध्नम्—-—दूषित गंजापन
- केशच्छिद्—पुं॰—केश-च्छिद्—-—नाई, हज्जाम
- केशजाहः—पुं॰—केश-जाहः—-—बालों की जड़
- केशपक्षः—पुं॰—केश-पक्षः—-—बहुत अधिक या संवारे हुए बाल
- केशपाशः—पुं॰—केश-पाशः—-—बहुत अधिक या संवारे हुए बाल
- केशहस्तः—पुं॰—केश-हस्तः—-—बहुत अधिक या संवारे हुए बाल
- केशबन्ध—पुं॰—केश-बन्ध—-—जूड़ा
- केशभूः—पुं॰—केश-भूः—-—सिर या शरीर का अन्य भाग जहाँ बाल उगते है
- केशभूमिः—स्त्री॰—केश-भूमिः—-—सिर या शरीर का अन्य भाग जहाँ बाल उगते है
- केशप्रसाधनी—स्त्री॰—केश-प्रसाधनी—-—कंघी
- केशमार्जकम्—नपुं॰—केश-मार्जकम्—-—कंघी
- केशमार्जनम्—नपुं॰—केश-मार्जनम्—-—कंघी
- केशरचना—स्त्री॰—केश-रचना—-—बालों को संवारना
- केशवेशः—पुं॰—केश-वेशः—-—कबरी-बन्धन
- केशटः—पुं॰—-—केश + अट् + अच्, शक॰ पररूपम्—बकरा
- केशटः—पुं॰—-—केश + अट् + अच्, शक॰ पररूपम्—विष्णु का नाम
- केशटः—पुं॰—-—केश + अट् + अच्, शक॰ पररूपम्—खटमल
- केशटः—पुं॰—-—केश + अट् + अच्, शक॰ पररूपम्—भाई
- केशव—पुं॰—-—केशः प्रशस्ताः सन्त्यस्य, केश + व—बहुत या सुन्दर बालों वाला
- केशवः—पुं॰—-—केशः प्रशस्ताः सन्त्यस्य, केश + व—विष्णु का विशेषण
- केशवायुधः—पुं॰—केशव-आयुधः—-—आम का वृक्ष
- केशवायुधम्—नपुं॰—केशव-आयुधम्—-—विष्णु का शस्त्र
- केशवालयः—पुं॰—केशव-आलयः—-—अश्वत्थ वृक्ष
- केशवावासः—पुं॰—केशव-आवासः—-—अश्वत्थ वृक्ष
- केशाकेशि—अव्य॰—-— केशेषु केशेषु गृहीत्वा प्रवृत्तं युद्धम् - पूर्वपदस्य आकारः इत्वम् च—एक दूसरे के बाल खींचकर, नोचकर ली जाने वाली लड़ाई , झोंटा-झोंटी
- केशिक—वि॰—-— केश + ठन्—सुन्दर या अलंकृत बालों वाला
- केशिन्—पुं॰—-— केश + इनि—सिंह
- केशिन्—पुं॰—-— केश + इनि—एक राक्षस जिसको कृष्ण ने मार गिराया था
- केशिन्—पुं॰—-— केश + इनि—एक और राक्षस जो देव सेना को उठा कर ले गया और बाद में इन्द्र द्वारा मारा गया
- केशिन्—पुं॰—-— केश + इनि—कृष्ण का विशेषण
- केशिन्—पुं॰—-— केश + इनि—सुन्दर बालों वाला
- केशिनिषूदनः—पुं॰—केशिन्-निषूदनः—-—कृष्ण का विशेषण
- केशिमथनः—पुं॰—केशिन्-मथनः—-—कृष्ण का विशेषण
- केशिनी—स्त्री॰—-— केशिन् + डीप्—सुन्दर जुड़े वाली स्त्री
- केशिनी—स्त्री॰—-— केशिन् + डीप्—विश्रवा की पत्नी, रावण और कुम्भकर्ण की माता
- केसरः —पुं॰—-— के + सृ + अच्, अलुक् स॰—अयाल
- केसरः —पुं॰—-— के + सृ + अच्, अलुक् स॰—फूल का रेशा या तन्तु
- केसरः —पुं॰—-— के + सृ + अच्, अलुक् स॰—बकुल का पेड़
- केसरः —पुं॰—-— के + सृ + अच्, अलुक् स॰—रेशा या सूत्र
- केशरः—पुं॰—-— के + शृ + अच्, अलुक् स॰—अयाल
- केशरः—पुं॰—-— के + शृ + अच्, अलुक् स॰—फूल का रेशा या तन्तु
- केशरः—पुं॰—-— के + शृ + अच्, अलुक् स॰—बकुल का पेड़
- केशरः—पुं॰—-— के + शृ + अच्, अलुक् स॰—रेशा या सूत्र
- केसरम्—नपुं॰—-— के + सृ + अच्, अलुक् स॰—अयाल
- केसरम्—नपुं॰—-— के + सृ + अच्, अलुक् स॰—फूल का रेशा या तन्तु
- केसरम्—नपुं॰—-— के + सृ + अच्, अलुक् स॰—बकुल का पेड़
- केसरम्—नपुं॰—-— के + सृ + अच्, अलुक् स॰—रेशा या सूत्र
- केशरम्—नपुं॰—-— के + शृ + अच्, अलुक् स॰—अयाल
- केशरम्—नपुं॰—-— के + शृ + अच्, अलुक् स॰—फूल का रेशा या तन्तु
- केशरम्—नपुं॰—-— के + शृ + अच्, अलुक् स॰—बकुल का पेड़
- केशरम्—नपुं॰—-— के + शृ + अच्, अलुक् स॰—रेशा या सूत्र
- केसरम्—नपुं॰—-— के + सृ + अच्, अलुक् स॰—बकुल वृक्ष का फूल
- केशरम्—नपुं॰—-— के + शृ + अच्, अलुक् स॰—बकुल वृक्ष का फूल
- केसराचलः—पुं॰—केसर-अचलः—-—मेरू पहाड़ का विशेषण
- केसरवरम्—नपुं॰—केसर-वरम्—-—केसर, जाफ़रान
- केसरिन्—पुं॰—-—केसर - इनि—घोड़ा
- केसरिन्—पुं॰—-—केसर - इनि—नींबू या गलगल का पेड़
- केसरिन्—पुं॰—-—केसर - इनि—पुन्नाग का वृक्ष
- केसरिन्—पुं॰—-—केसर - इनि—हनुमान के पिता का नाम
- केसरिसुतः—पुं॰—केसरिन्-सुतः—-—हनुमान का विशेषण
- केशरिन्—पुं॰—-—केशर - इनि—सिंह
- केशरिन्—पुं॰—-—केशर - इनि—श्रेष्ठ, सर्वोत्तम, अपने वर्ग का प्रमुख
- केशरिन्—पुं॰—-—केशर - इनि—घोड़ा
- केशरिन्—पुं॰—-—केशर - इनि—नींबू या गलगल का पेड़
- केशरिन्—पुं॰—-—केशर - इनि—पुन्नाग का वृक्ष
- केशरिन्—पुं॰—-—केशर - इनि—हनुमान के पिता का नाम
- केशरिसुतः—पुं॰—केशरिन्-सुतः—-—हनुमान का विशेषण
- कै—भ्वा॰ पर॰ <कायति>—-—-—शब्द करना, ध्वनि करना
- कैंशुकम्—नपुं॰—-—किंशुक - अण्—किंशुक वृक्ष का फूल
- कैकयः—पुं॰—-—केकय - अण्—केकय देश का राजा
- कैकसः—पुं॰—-—कीकस - अण्—राक्षस, पिशाच
- कैकेयः—पुं॰—-—केकयानां राजा - अण्—केकय देश का राजा राजकुमार
- कैकेयी—स्त्री॰—-—केकय - अण् - ङीप्—केकय देश की राजा की बेटी, राजा दशरथ की सबसे छोटी पत्नी, भरत की माता
- कैटभः—पुं॰—-—कीट - भा - ड - अण्—राक्षस का नाम जिसे विष्णु के मार गिराया
- कैटभारिः—पुं॰—कैटभ-अरिः—-—विष्णु का विशेषण
- कैटभजित्—पुं॰—कैटभ-जित्—-—विष्णु का विशेषण
- कैटभरिपुः—पुं॰—कैटभ-रिपुः—-—विष्णु का विशेषण
- कैटभहन्—पुं॰—कैटभ-हन्—-—विष्णु का विशेषण
- कैतकम्—नपुं॰—-—केतकी - अण्—केवड़े का फूल
- कैतवम्—नपुं॰—-—कितव- अण्—जूए में लगाया गया दाँव
- कैतवम्—नपुं॰—-—कितव- अण्—जूआ खेलना
- कैतवम्—नपुं॰—-—कितव- अण्—झूठ, धोखा, जालसाजी, चालबाजी, चालाकी
- कैतवः—पुं॰—-—कितव- अण्—छली, चालबाज
- कैतवः—पुं॰—-—कितव- अण्—जुआरी
- कैतवः—पुं॰—-—कितव- अण्—धतूरे का पौधा
- कैतवप्रयोगः—पुं॰—कैतव-प्रयोगः—-—चालाकी, दाँव
- कैतववादः—पुं॰—कैतव-वादः—-—झूठ, चालबाजी
- केदारः—पुं॰—-—केदार - अण्—चावल, अनाज
- केदारम्—नपुं॰—-—केदार - अण्—खेतों का समूह
- कैमुतिकः—पुं॰—-—किमुत - ठक्—न्याय, एक प्रकार का तर्क
- कैरवः—पुं॰—-—के जले रौति - केरवः हंसः तस्य प्रियं - केरव - अण्—जुआरी, धोखा देने वाला, चालबाज
- कैरवः—पुं॰—-—के जले रौति - केरवः हंसः तस्य प्रियं - केरव - अण्—शत्रु
- कैरवम्—नपुं॰—-—के जले रौति - केरवः हंसः तस्य प्रियं - केरव - अण्—श्वेत कुमुद जो चन्द्रोदय के समय खिलता है
- कैरवबन्धुः—पुं॰—कैरव-बन्धुः—-—चन्द्रमा का विशेषण
- कैरविन्—पुं॰—-—कैरव - इनि—चन्द्रमा
- कैरविणी—स्त्री॰—-—कैरविन् - ङीप्—श्वेत फूल वाला कुमुद का पौधा
- कैरविणी—स्त्री॰—-—कैरविन् - ङीप्—वह सरोवर जिसमें श्वेत कमल खिले हों
- कैरविणी—स्त्री॰—-—कैरविन् - ङीप्—श्वेत कमलों का समूह
- कैरवी—स्त्री॰—-—कैरव - ङीप्—चाँदनी, ज्योत्सना
- कैलासः—पुं॰—-—के जले लासो दीप्तिरस्य - केलास - अण्—पहाड़ का नाम, हिमालय की एक चोटी, शिव और कुबेर का निवास स्थान
- कैलासनाथः—पुं॰—कैलास-नाथः—-—शिव का विशेषण
- कैलासनाथः—पुं॰—कैलास-नाथः—-—कुबेर का विशेषण
- कैवर्तः—पुं॰—-—के जले वर्तते - वृत् - अच्, केवर्तः ततः स्वार्थे अण् तारा॰ —मछुवारा
- कैवल्यम्—नपुं॰—-—केवल - ष्यञ्—पूर्ण पृथकता, अकेलापन, एकान्तिकता
- कैवल्यम्—नपुं॰—-—केवल - ष्यञ्—व्यक्तित्व
- कैवल्यम्—नपुं॰—-—केवल - ष्यञ्—प्रकृति से आत्मा का पार्थक्य, परमात्मा के साथ आत्मा की तद्रूपता
- कैवल्यम्—नपुं॰—-—केवल - ष्यञ्—मुक्ति, मोक्ष
- कैशिक—वि॰—-—केश - ठक्—बालों के समान, बालों की भाँति सुन्दर
- कैशिकः—पुं॰—-—केश - ठक्—श्रृङ्गाररस, विलासिता
- कैशिकम्—नपुं॰—-—केश - ठक्—बालों का गुच्छा
- कैशिकी—स्त्री॰—-—केश - ठक्+ङीप्—नाट्य शैली का एकप्रकार
- कैशोरम्—नपुं॰—-—किशोर - अञ्—किशोरावस्था, बाल्यकाल, कौमार आयु
- कैश्यम्—नपुं॰—-—केश - ष्यञ्—सारे बाल, बालों का गुच्छा
- कोकः—पुं॰—-—कुक् आदाने अच् - तारा॰—भेड़िया
- कोकः—पुं॰—-—कुक् आदाने अच् - तारा॰—गुलाबी रंग का हंस
- कोकः—पुं॰—-—कुक् आदाने अच् - तारा॰—कोयल
- कोकः—पुं॰—-—कुक् आदाने अच् - तारा॰—मेंढक
- कोकः—पुं॰—-—कुक् आदाने अच् - तारा॰—विष्णु का नाम
- कोकदेवः—पुं॰—कोक-देवः—-—कबूतर
- कोकदेवः—पुं॰—कोक-देवः—-—सूर्य का विशेषण
- कोकनदम्—पुं॰—-—कोकान् चक्रवाकान् नदति नादयति नद् - अच्—लाल कमल
- कोकाहः—पुं॰—-—कोक - आ - हन् - ड—सफेद घोड़ा
- कोकिलः—पुं॰—-—कुक् - इलच्—कोयल
- कोकिलः—पुं॰—-—कुक् - इलच्—जलती हुई लकड़ी
- कोकिलावासः—पुं॰—कोकिल-आवासः—-—आम का वृक्ष
- कोकिलोत्सवः—पुं॰—कोकिल-उत्सवः—-—आम का वृक्ष
- कोङ्कः—पुं॰,ब॰ व॰—-—-—एक देश का नाम, सह्याद्रि और समुद्र का मध्यवर्ती भूखण्ड
- कोङ्कणः—पुं॰,ब॰ व॰—-—-—एक देश का नाम, सह्याद्रि और समुद्र का मध्यवर्ती भूखण्ड
- कोङ्कणा—स्त्री॰—-—कोङ्कण - टाप्—रेणुका, जमदग्नि की पत्नी
- कोङ्कणासुतः—पुं॰—कोङ्कणा-सुतः—-—परशुराम का विशेषण
- कोजागरः—पुं॰—-—को जागर्ति इति लक्ष्मया उक्तिरत्र काले पृषो॰ तारा॰ —आश्विन मास की पूर्णिमा की रात में मनाया जाने वाला आमोदपूर्ण उत्सव
- कोटः—पुं॰—-—कुट् - घञ्—किला
- कोटः—पुं॰—-—कुट् - घञ्—झोपड़ी, छप्पर
- कोटः—पुं॰—-—कुट् - घञ्—कुटिलता
- कोटः—पुं॰—-—कुट् - घञ्—दाढ़ी
- कोटरः—पुं॰—-—कोटं कौटिल्यं राति रा - क ता॰—वृक्ष की खोखर
- कोटरी—स्त्री॰—-—कोटं कौटिल्यं राति रा - क ता॰—नंगी स्त्री
- कोटरी—स्त्री॰—-—कोट - री - क्विथ्—दुर्गा देवी का विशेषण
- कोटवी—स्त्री॰—-—कोट - वी - क्विथ्—नंगी स्त्री
- कोटवी—स्त्री॰—-—कोट - वी - क्विथ्—दुर्गा देवी का विशेषण
- कोटिः—स्त्री॰—-—कुट् - इञ्—धनुष का मुड़ा हुआ सिरा
- कोटिः—स्त्री॰—-—कुट् - इञ्—चरमसीमा का किनारा, नोक या धार
- कोटिः—स्त्री॰—-—कुट् - इञ्—उच्चतम बिन्दु, आधिक्य पराकोटि, पराकाष्ठा, परमोत्कर्ष
- कोटिः—स्त्री॰—-—कुट् - इञ्—चन्द्रमा की कलाएँ
- कोटिः—स्त्री॰—-—कुट् - इञ्—एक करोड़ की संख्या
- कोटिः—स्त्री॰—-—कुट् - इञ्—९० कोटि के चाप की सम्पूरक रेखा
- कोटिः—स्त्री॰—-—कुट् - इञ्—समकोण त्रिभुज की एक भुजा
- कोटिः—स्त्री॰—-—कुट् - इञ्—श्रेणी, विभाग, राज्य
- कोटिः—स्त्री॰—-—कुट् - इञ्— विवादास्पद प्रश्न का एक पहलू, विकल्प
- कोटी—स्त्री॰—-—कोटि - डीष्—धनुष का मुड़ा हुआ सिरा
- कोटी—स्त्री॰—-—कोटि - डीष्—चरमसीमा का किनारा, नोक या धार
- कोटी—स्त्री॰—-—कोटि - डीष्—उच्चतम बिन्दु, आधिक्य पराकोटि, पराकाष्ठा, परमोत्कर्ष
- कोटी—स्त्री॰—-—कोटि - डीष्—चन्द्रमा की कलाएँ
- कोटी—स्त्री॰—-—कोटि - डीष्—एक करोड़ की संख्या
- कोटी—स्त्री॰—-—कोटि - डीष्—९० कोटि के चाप की सम्पूरक रेखा
- कोटी—स्त्री॰—-—कोटि - डीष्—समकोण त्रिभुज की एक भुजा
- कोटी—स्त्री॰—-—कोटि - डीष्—श्रेणी, विभाग, राज्य
- कोटी—स्त्री॰—-—कोटि - डीष्— विवादास्पद प्रश्न का एक पहलू, विकल्प
- कोटीश्वरः—पुं॰—कोटि-ईश्वरः—-—करोड़पति
- कोटिजित्—पुं॰—कोटि-जित्—-—कालिदास का विशेषण
- कोटिज्या—स्त्री॰—कोटि-ज्या—-—समकोण त्रिभुज में एक कोण की कोज्या
- कोटिद्वयम्—नपुं॰—कोटि-द्वयम्—-—दो विकल्प
- कोटिपात्रम्—नपुं॰—कोटि-पात्रम्—-—पतवार
- कोटिपालः—पुं॰—कोटि-पालः—-—दुर्ग रक्षक
- कोटिवेधिन्—वि॰—कोटि-वेधिन्—-—नियत बिन्दू पर प्रहार करने वाला
- कोटिवेधिन्—वि॰—कोटि-वेधिन्—-—अत्यन्त कठिन कार्यों को सम्पन्न करने वाला
- कोटिक—वि॰—-—कोटि - कै - क—किसी वस्तु का उच्चतम सिरा
- कोटिरः—पुं॰—-—कोटिं रातिं रा - क ता॰—सन्यासियों द्वारा मस्तक पर बनी सींग के रुप की बालों की चोटी
- कोटिरः—पुं॰—-—कोटिं रातिं रा - क ता॰—नेवला
- कोटिरः—पुं॰—-—कोटिं रातिं रा - क ता॰—इन्द्र का विशेषण
- कोटिशः—पुं॰—-—कोटि - शो - क—मैड़ा, पटेला
- कोटीशः—पुं॰—-—कोटी - शो - क—मैड़ा, पटेला
- कोटिशः —अव्य॰ —-—कोटि - शस्—करोड़ों, असंख्य
- कोटीरः—पुं॰—-—कोटिमीरयति ईर् - अण्—मुकुट, ताज
- कोटीरः—पुं॰—-—कोटिमीरयति ईर् - अण्—शिखा
- कोटीरः—पुं॰—-—कोटिमीरयति ईर् - अण्—सन्यासियों द्वारा मस्तक पर बाँधी गई बालों की चोटी जो सींग जैसी दिखाई देती है, जटा
- कोट्टः—पुं॰—-—कुट्ट - घञ्—दुर्ग, किला
- कोट्टवी—स्त्री॰—-—कोट्टं वाति वा - क, गौरा॰ ङीष् तारा॰ —नग्न स्त्री जिसके बाल बिखरे हुए हों
- कोट्टवी—स्त्री॰—-—कोट्टं वाति वा - क, गौरा॰ ङीष् तारा॰ —दुर्गा देवी
- कोट्टवी—स्त्री॰—-—कोट्टं वाति वा - क, गौरा॰ ङीष् तारा॰ —बाण की माता का नाम
- कोट्टारः—पुं॰—-—कुट्ट - आरक् पृषो॰—किले बन्दी वाला नगर, दुर्ग
- कोट्टारः—पुं॰—-—कुट्ट - आरक् पृषो॰—तालाब की सीढ़ियाँ
- कोट्टारः—पुं॰—-—कुट्ट - आरक् पृषो॰—कुआँ, तालाब
- कोट्टारः—पुं॰—-—कुट्ट - आरक् पृषो॰—लम्पट, दुराचारी
- कोणः—पुं॰—-—कुण् करणे घञ्, कर्तरि अच् वा तारा॰—किनारा, कोना
- कोणः—पुं॰—-—कुण् करणे घञ्, कर्तरि अच् वा तारा॰—वृत्त का अन्तर्वर्ती बिन्दु
- कोणः—पुं॰—-—कुण् करणे घञ्, कर्तरि अच् वा तारा॰—वीणा की कमानी, सारंगी बजाने का गज
- कोणः—पुं॰—-—कुण् करणे घञ्, कर्तरि अच् वा तारा॰—तलवार या शस्त्र की तेज धार
- कोणः—पुं॰—-—कुण् करणे घञ्, कर्तरि अच् वा तारा॰—लकड़ी, लाठी, गदा
- कोणः—पुं॰—-—कुण् करणे घञ्, कर्तरि अच् वा तारा॰—ढोल बजाने की लकड़ी
- कोणः—पुं॰—-—कुण् करणे घञ्, कर्तरि अच् वा तारा॰—मंगल ग्रह
- कोणः—पुं॰—-—कुण् करणे घञ्, कर्तरि अच् वा तारा॰—शनिग्रह
- कोणाघातः—पुं॰—कोण-आघातः—-—ढोल, ढपड़े बजाना
- कोणकुणः—पुं॰—कोण-कुणः—-—खटमल
- कोणपः—पुं॰—-—-—पिशाच, राक्षस
- कोणाकोणि—अव्य॰ —-—-—एक कोण से दूसरे कोण तक, एक किनारे से दूसरे किनारे तक, तिरछे, आड़े
- कोदण्डः—पुं॰—-—कु - विच् = कोः शब्दायमानो दण्डो यस्य ब॰ स॰—धनुष
- कोदण्डन्—पुं॰—-—कु - विच् = कोः शब्दायमानो दण्डो यस्य ब॰ स॰—धनुष
- कोदण्डः—पुं॰—-—कु - विच् = कोः शब्दायमानो दण्डो यस्य ब॰ स॰—भौं
- कोद्रवः—पुं॰—-—कु - विच् = को, द्रु - अक् = द्रव, कर्म॰ स॰—कोदो का अनाज जिसे गरीब लोग खाते है
- कोपः—पुं॰—-—कुप् - घञ्—क्रोध, गुस्सा, रोष, क्रोध मत करो
- कोपः—पुं॰—-—कुप् - घञ्—शारीरिक त्रिदोष विकार
- कोपाकुल—वि॰—कोप-आकुल—-—क्रुद्ध, प्रकुपित
- कोपाविष्ट—वि॰—कोप-आविष्ट—-—क्रुद्ध, प्रकुपित
- कोपक्रमः—पुं॰—कोप-क्रमः—-—क्रोधी या रुष्ट पुरुष
- कोपक्रमः—पुं॰—कोप-क्रमः—-—क्रोध का मार्ग
- कोपपदम्—नपुं॰—कोप-पदम्—-—क्रोध का कारण
- कोपपदम्—नपुं॰—कोप-पदम्—-—बनावटी क्रोध
- कोपवशः—पुं॰—कोप-वशः—-—क्रोध की वश्यता
- कोपवेगः—पुं॰—कोप-वेगः—-—क्रोध की प्रचण्डता, तीक्ष्णता
- कोपन—वि॰—-—कुप् - ल्युट्—रोषशील, चिड़चिड़ा, क्रोधी
- कोपन—वि॰—-—कुप् - ल्युट्—क्रोध पैदा करने वाला
- कोपन—वि॰—-—कुप् - ल्युट्—प्रकोपी, श्रीर के त्रिदोषों में प्रबल विकार उत्पन्न करने वाला
- कोपना—स्त्री॰—-—कुप् - ल्युट्+टाप्—रोषशील या क्रोधी स्त्री
- कोपिन्—वि॰—-—कोप - इनि—क्रोधी, चिड़चिड़ा
- कोपिन्—वि॰—-—कोप - इनि—क्रोध उत्पन्न करने वाला
- कोपिन्—वि॰—-—कोप - इनि—चिड़चिड़ा, शरीर में त्रिदोष विकारों को उत्पन्न करने वाला
- कोमल—वि॰—-—कु - कलच्, मुट् च नि॰ गुणः—सुकुमार, मृदु, नाजुक
- कोमल—वि॰—-—कु - कलच्, मुट् च नि॰ गुणः—मृदु, मन्द
- कोमल—वि॰—-—कु - कलच्, मुट् च नि॰ गुणः—रुचिकर, सुहावना, मधुर
- कोमल—वि॰—-—कु - कलच्, मुट् च नि॰ गुणः—मनोहर, सुन्दर
- कोमलकम्—नपुं॰—-—कोमल - कन्—कमलडण्डी के रेशे
- कोयष्टिः—पुं॰—-—कं जलं यष्टिरिवास्य ब॰ स॰ पृषो॰ अकारस्य उकारः - कोयष्टि - कन्—टिटहिरी, कुररी
- कोयष्टिकः—पुं॰—-—कं जलं यष्टिरिवास्य ब॰ स॰ पृषो॰ अकारस्य उकारः - कोयष्टि - कन्—टिटहिरी, कुररी
- कोरक—वि॰—-— कुर् - वुन्—कली, अनखिला फूल
- कोरक—वि॰—-— कुर् - वुन्—कली के समान कोई वस्तु
- कोरक—वि॰—-— कुर् - वुन्—कमलडण्डी के रेशे
- कोरक—वि॰—-— कुर् - वुन्—एक प्रकार का सुगन्ध द्रव्य
- कोरकम्—नपुं॰—-— कुर् - वुन्—कली, अनखिला फूल
- कोरकम्—नपुं॰—-— कुर् - वुन्—कली के समान कोई वस्तु
- कोरकम्—नपुं॰—-— कुर् - वुन्—कमलडण्डी के रेशे
- कोरकम्—नपुं॰—-— कुर् - वुन्—एक प्रकार का सुगन्ध द्रव्य
- कोरदूषः—पुं॰—-—-—कोदो का अनाज जिसे गरीब लोग खाते है
- कोरित—वि॰—-—कोर - इतच्—कलीयुक्त, अङ्कुरित
- कोरित—वि॰—-—कोर - इतच्—पिसा हुआ, चूरा किया हुआ, टुकड़े-टुकड़े किया हुआ
- कोलः—पुं॰—-—कुल् - अच्—सुअर, वराह
- कोलः—पुं॰—-—कुल् - अच्—लट्ठों का बना बेड़ा, नाव
- कोलः—पुं॰—-—कुल् - अच्—स्त्री की छाती
- कोलः—पुं॰—-—कुल् - अच्—नितम्ब प्रदेश, कूल्हा, गोद
- कोलः—पुं॰—-—कुल् - अच्—आलिङ्गन
- कोलः—पुं॰—-—कुल् - अच्—शनिग्रह
- कोलः—पुं॰—-—कुल् - अच्—बहिष्कृत, पतित जाति का व्यक्ति
- कोलः—पुं॰—-—कुल् - अच्—जंगली
- कोलम्—नपुं॰—-—कुल् - अच्—एक तोले का भार
- कोलम्—नपुं॰—-—कुल् - अच्—काली मिर्च
- कोलम्—नपुं॰—-—कुल् - अच्—एक प्रकार का बेर
- कोलाञ्चः—पुं॰—कोलम्-अञ्चः—-—कलिंग देश का नाम
- कोलपुच्छः—पुं॰—कोलम्-पुच्छः—-—बगला
- कोलम्बकः—पुं॰—-—-—वीणा का ढाँचा
- कोला—स्त्री॰—-—कुल् - अम्बच् - कन्—बेर का पेड़
- कोला—स्त्री॰—-—कुल् - अम्बच् - कन्—बदरिका
- कोला—स्त्री॰—-—कुल् - ण - टाप्—बेर का पेड़
- कोला—स्त्री॰—-—कुल् - ण - टाप्—बदरिका
- कोलीः—स्त्री॰—-—कुल् - इन्—बेर का पेड़
- कोलीः—स्त्री॰—-—कुल् - इन्—बदरिका
- कोलाहलः—पुं॰—-—कुल - अच् - ङीष् वा—एक साथ बहुत से लोगों के बोलने का शब्द, हंगामा
- कोलाहलम्—नपुं॰—-—कोल - आ - हल् - अच्—एक साथ बहुत से लोगों के बोलने का शब्द, हंगामा
- कोविद्—वि॰—-—कोल - आ - हल् - अच्—अनुभवी, विद्वान, कुशल, बुद्धिमान, प्रवीण
- कोविदारः—पुं॰—-—कु - विच्, तं वेत्ति - विद् - क—एक वृक्ष का नाम, कचनार
- कोविदारम्—नपुं॰—-—कु - वि - दृ - अण्—एक वृक्ष का नाम, कचनार
- कोशः—पुं॰—-—कु - वि - दृ - अण्—तरल पदार्थों को रखने का बर्तन, बाल्टी
- कोशः—पुं॰—-—कुश् - घञ्, अच् वा—डोल, कटोरा
- कोशः—पुं॰—-—कुश् - घञ्, अच् वा—पात्र
- कोशः—पुं॰—-—कुश् - घञ्, अच् वा—संदूक, डोली, दराज, ट्रंक
- कोशः—पुं॰—-—कुश् - घञ्, अच् वा—म्यान, आवरण
- कोशः—पुं॰—-—कुश् - घञ्, अच् वा—पेटी, ढकना, ढक्कन
- कोशः—पुं॰—-—कुश् - घञ्, अच् वा—भण्डार, ढेर
- कोशः—पुं॰—-—कुश् - घञ्, अच् वा—भण्डारगृह
- कोशः—पुं॰—-—कुश् - घञ्, अच् वा—खजाना, रुपया पैसा रखने का स्थान
- कोशः—पुं॰—-—कुश् - घञ्, अच् वा—निधि, रुपया, दौलत
- कोशः—पुं॰—-—कुश् - घञ्, अच् वा—सोना, चाँदी
- कोशः—पुं॰—-—कुश् - घञ्, अच् वा—शब्दकोश, शब्दार्थ संग्रह, शब्दावली
- कोशः—पुं॰—-—कुश् - घञ्, अच् वा—अनखिला फूल, कली
- कोशः—पुं॰—-—कुश् - घञ्, अच् वा—किसी फल की गिरी
- कोशः—पुं॰—-—कुश् - घञ्, अच् वा—फली
- कोशः—पुं॰—-—कुश् - घञ्, अच् वा—जायफल, कठोरत्वचा
- कोशः—पुं॰—-—कुश् - घञ्, अच् वा—रेशम का कोया
- कोशः—पुं॰—-—कुश् - घञ्, अच् वा—झिल्ली, गर्भाशय
- कोशः—पुं॰—-—कुश् - घञ्, अच् वा—अण्डा
- कोशः—पुं॰—-—कुश् - घञ्, अच् वा—अण्डकोश, फोते
- कोशः—पुं॰—-—कुश् - घञ्, अच् वा—शिश्न
- कोशः—पुं॰—-—कुश् - घञ्, अच् वा—गेंद, गोला
- कोशः—पुं॰—-—कुश् - घञ्, अच् वा—पाँच कोष जो सब मिलकर शरीर रचना करते हैं - जिसमें आत्मा निवास करती है, अन्नमय, प्राणमय आदि
- कोशः—पुं॰—-—कुश् - घञ्, अच् वा—एक प्रकार की अपराधियों की अग्निपरीक्षा
- कोषः—पुं॰—-—कुष् - घञ्, अच् वा—तरल पदार्थों को रखने का बर्तन, बाल्टी
- कोषः—पुं॰—-—कुष् - घञ्, अच् वा—डोल, कटोरा
- कोषः—पुं॰—-—कुष् - घञ्, अच् वा—पात्र
- कोषः—पुं॰—-—कुष् - घञ्, अच् वा—संदूक, डोली, दराज, ट्रंक
- कोषः—पुं॰—-—कुष् - घञ्, अच् वा—म्यान, आवरण
- कोषः—पुं॰—-—कुष् - घञ्, अच् वा—पेटी, ढकना, ढक्कन
- कोषः—पुं॰—-—कुष् - घञ्, अच् वा—भण्डार, ढेर
- कोषः—पुं॰—-—कुष् - घञ्, अच् वा—भण्डारगृह
- कोषः—पुं॰—-—कुष् - घञ्, अच् वा—खजाना, रुपया पैसा रखने का स्थान
- कोषः—पुं॰—-—कुष् - घञ्, अच् वा—निधि, रुपया, दौलत
- कोषः—पुं॰—-—कुष् - घञ्, अच् वा—सोना, चाँदी
- कोषः—पुं॰—-—कुष् - घञ्, अच् वा—शब्दकोश, शब्दार्थ संग्रह, शब्दावली
- कोषः—पुं॰—-—कुष् - घञ्, अच् वा—अनखिला फूल, कली
- कोषः—पुं॰—-—कुष् - घञ्, अच् वा—किसी फल की गिरी
- कोषः—पुं॰—-—कुष् - घञ्, अच् वा—फली
- कोषः—पुं॰—-—कुष् - घञ्, अच् वा—जायफल, कठोरत्वचा
- कोषः—पुं॰—-—कुष् - घञ्, अच् वा—रेशम का कोया
- कोषः—पुं॰—-—कुष् - घञ्, अच् वा—झिल्ली, गर्भाशय
- कोषः—पुं॰—-—कुष् - घञ्, अच् वा—अण्डा
- कोषः—पुं॰—-—कुष् - घञ्, अच् वा—अण्डकोश, फोते
- कोषः—पुं॰—-—कुष् - घञ्, अच् वा—शिश्न
- कोषः—पुं॰—-—कुष् - घञ्, अच् वा—गेंद, गोला
- कोषः—पुं॰—-—कुष् - घञ्, अच् वा—पाँच कोष जो सब मिलकर शरीर रचना करते हैं - जिसमें आत्मा निवास करती है, अन्नमय, प्राणमय आदि
- कोषः—पुं॰—-—कुष् - घञ्, अच् वा—एक प्रकार की अपराधियों की अग्निपरीक्षा
- कोशम्—नपुं॰—-—कुश् - घञ्, अच् वा—तरल पदार्थों को रखने का बर्तन, बाल्टी
- कोशम्—नपुं॰—-—कुश् - घञ्, अच् वा—डोल, कटोरा
- कोशम्—नपुं॰—-—कुश् - घञ्, अच् वा—पात्र
- कोशम्—नपुं॰—-—कुश् - घञ्, अच् वा—संदूक, डोली, दराज, ट्रंक
- कोशम्—नपुं॰—-—कुश् - घञ्, अच् वा—म्यान, आवरण
- कोशम्—नपुं॰—-—कुश् - घञ्, अच् वा—पेटी, ढकना, ढक्कन
- कोशम्—नपुं॰—-—कुश् - घञ्, अच् वा—भण्डार, ढेर
- कोशम्—नपुं॰—-—कुश् - घञ्, अच् वा—भण्डारगृह
- कोशम्—नपुं॰—-—कुश् - घञ्, अच् वा—खजाना, रुपया पैसा रखने का स्थान
- कोशम्—नपुं॰—-—कुश् - घञ्, अच् वा—निधि, रुपया, दौलत
- कोशम्—नपुं॰—-—कुश् - घञ्, अच् वा—सोना, चाँदी
- कोशम्—नपुं॰—-—कुश् - घञ्, अच् वा—शब्दकोश, शब्दार्थ संग्रह, शब्दावली
- कोशम्—नपुं॰—-—कुश् - घञ्, अच् वा—अनखिला फूल, कली
- कोशम्—नपुं॰—-—कुश् - घञ्, अच् वा—किसी फल की गिरी
- कोशम्—नपुं॰—-—कुश् - घञ्, अच् वा—फली
- कोशम्—नपुं॰—-—कुश् - घञ्, अच् वा—जायफल, कठोरत्वचा
- कोशम्—नपुं॰—-—कुश् - घञ्, अच् वा—रेशम का कोया
- कोशम्—नपुं॰—-—कुश् - घञ्, अच् वा—झिल्ली, गर्भाशय
- कोशम्—नपुं॰—-—कुश् - घञ्, अच् वा—अण्डा
- कोशम्—नपुं॰—-—कुश् - घञ्, अच् वा—अण्डकोश, फोते
- कोशम्—नपुं॰—-—कुश् - घञ्, अच् वा—शिश्न
- कोशम्—नपुं॰—-—कुश् - घञ्, अच् वा—गेंद, गोला
- कोशम्—नपुं॰—-—कुश् - घञ्, अच् वा—पाँच कोष जो सब मिलकर शरीर रचना करते हैं - जिसमें आत्मा निवास करती है, अन्नमय, प्राणमय आदि
- कोशम्—नपुं॰—-—कुश् - घञ्, अच् वा—एक प्रकार की अपराधियों की अग्निपरीक्षा
- कोषम्—नपुं॰—-—कुष् - घञ्, अच् वा—तरल पदार्थों को रखने का बर्तन, बाल्टी
- कोषम्—नपुं॰—-—कुष् - घञ्, अच् वा—डोल, कटोरा
- कोषम्—नपुं॰—-—कुष् - घञ्, अच् वा—पात्र
- कोषम्—नपुं॰—-—कुष् - घञ्, अच् वा—संदूक, डोली, दराज, ट्रंक
- कोषम्—नपुं॰—-—कुष् - घञ्, अच् वा—म्यान, आवरण
- कोषम्—नपुं॰—-—कुष् - घञ्, अच् वा—पेटी, ढकना, ढक्कन
- कोषम्—नपुं॰—-—कुष् - घञ्, अच् वा—भण्डार, ढेर
- कोषम्—नपुं॰—-—कुष् - घञ्, अच् वा—भण्डारगृह
- कोषम्—नपुं॰—-—कुष् - घञ्, अच् वा—खजाना, रुपया पैसा रखने का स्थान
- कोषम्—नपुं॰—-—कुष् - घञ्, अच् वा—निधि, रुपया, दौलत
- कोषम्—नपुं॰—-—कुष् - घञ्, अच् वा—सोना, चाँदी
- कोषम्—नपुं॰—-—कुष् - घञ्, अच् वा—शब्दकोश, शब्दार्थ संग्रह, शब्दावली
- कोषम्—नपुं॰—-—कुष् - घञ्, अच् वा—अनखिला फूल, कली
- कोषम्—नपुं॰—-—कुष् - घञ्, अच् वा—किसी फल की गिरी
- कोषम्—नपुं॰—-—कुष् - घञ्, अच् वा—फली
- कोषम्—नपुं॰—-—कुष् - घञ्, अच् वा—जायफल, कठोरत्वचा
- कोषम्—नपुं॰—-—कुष् - घञ्, अच् वा—रेशम का कोया
- कोषम्—नपुं॰—-—कुष् - घञ्, अच् वा—झिल्ली, गर्भाशय
- कोषम्—नपुं॰—-—कुष् - घञ्, अच् वा—अण्डा
- कोषम्—नपुं॰—-—कुष् - घञ्, अच् वा—अण्डकोश, फोते
- कोषम्—नपुं॰—-—कुष् - घञ्, अच् वा—शिश्न
- कोषम्—नपुं॰—-—कुष् - घञ्, अच् वा—गेंद, गोला
- कोषम्—नपुं॰—-—कुष् - घञ्, अच् वा—पाँच कोष जो सब मिलकर शरीर रचना करते हैं - जिसमें आत्मा निवास करती है, अन्नमय, प्राणमय आदि
- कोषम्—नपुं॰—-—कुष् - घञ्, अच् वा—एक प्रकार की अपराधियों की अग्निपरीक्षा
- कोशाधिपतिः—पुं॰—कोश-अधिपतिः—-—खजानची, वेतनाध्यक्ष
- कोशाधिपतिः—पुं॰—कोश-अधिपतिः—-—कुबेर
- कोशागारः—पुं॰—कोश-अगारः—-—खजाना, भण्डारगृह
- कोशकारः—पुं॰—कोश-कारः—-—म्यान बनाने वाला
- कोशकारः—पुं॰—कोश-कारः—-—शब्दकोश का निर्माता
- कोशकारः—पुं॰—कोश-कारः—-—कोये के रुप में रेशम का कीड़ा
- कोशकारः—पुं॰—कोश-कारः—-—कोशशायी
- कोशकारकः—पुं॰—कोश-कारकः—-—रेशम का कीड़ा
- कोशकृत्—पुं॰—कोश-कृत्—-—एक प्रकार का ईख
- कोशगृहम्—नपुं॰—कोश-गृहम्—-—खजाना, भाण्डागार
- कोशचञ्चुः—पुं॰—कोश-चञ्चुः—-—सारस
- कोशनायकः—पुं॰—कोश-नायकः—-—खजांची, कोशाध्यक्ष
- कोशपालः—पुं॰—कोश-पालः—-—खजांची, कोशाध्यक्ष
- कोशपेटकः—पुं॰—कोश-पेटकः—-—धन रखने का सन्दूक, तिजौरी
- कोशपेटकम्—नपुं॰—कोश-पेटकम्—-—धन रखने का सन्दूक, तिजौरी
- कोशवासिन्—पुं॰—कोश-वासिन्—-—सीपी में रहने वाला कीड़ा, कोशशायी
- कोशवृद्धिः—पुं॰—कोश-वृद्धिः—-—धन की वृद्धि
- कोशवृद्धिः—पुं॰—कोश-वृद्धिः—-—फोतों का बढ़ जाना
- कोशशायिका—स्त्री॰—कोश-शायिका—-—म्यान में रखा हुआ चाकू, बन्द किया हुआ चाकू
- कोशस्थ—वि॰—कोश-स्थ—-—पेटी में बन्द, म्यान में बन्द
- कोशस्थः—पुं॰—कोश-स्थः—-—कोशकीट, कोशशायी
- कोशहीन—वि॰—कोश-हीन—-—धनहीन, निर्धन
- कोशलिकम्—नपुं॰—-—कुशल - ठन्—रिश्वत, घूस
- कोशातकिन्—पुं॰—-—कोश - अत् - क्वुन् = कोशातक - इनि—वाणिज्य, व्यापार
- कोशातकिन्—पुं॰—-—कोश - अत् - क्वुन् = कोशातक - इनि—व्यापारी, सौदागर
- कोशातकिन्—पुं॰—-—कोश - अत् - क्वुन् = कोशातक - इनि—बड़वानल
- कोशिन्—वि॰—-—कोश - इनि—आम का वृक्ष
- कोषिन्—वि॰—-—कोष - इनि—आम का वृक्ष
- कोष्ठः—पुं॰—-—कुष् - थन्—हृदय, फेफड़ा आदि शरीर के भीतरी अंग या आशय
- कोष्ठः—पुं॰—-—कुष् - थन्—पेट, उदर
- कोष्ठः—पुं॰—-—कुष् - थन्—आभ्यन्तर कक्ष
- कोष्ठः—पुं॰—-—कुष् - थन्—अन्नभण्डार, अन्न का कोठा
- कोष्ठम्—नपुं॰—-—कुष् - थन्—चहारदीवारी
- कोष्ठम्—नपुं॰—-—कुष् - थन्—किसी फल का कड़ा छिलका
- कोष्ठागारम्—नपुं॰—कोष्ठ-अगारम्—-—भण्डार, भण्डारघर
- कोष्ठाग्निः—पुं॰—कोष्ठ-अग्निः—-—पाचनशक्ति, आमाशय का रस
- कोष्ठपालः—पुं॰—कोष्ठ-पालः—-—कोषाध्यक्ष, भण्डारी
- कोष्ठपालः—पुं॰—कोष्ठ-पालः—-—चौकीदार, पहरेदार
- कोष्ठपालः—पुं॰—कोष्ठ-पालः—-—सिपाही
- कोष्ठशुद्धिः—पुं॰—कोष्ठ-शुद्धिः—-—मलोत्सर्ग
- कोष्ठकः—पुं॰—-—कोष्ठ - कन्—अन्नभण्डार
- कोष्ठकः—पुं॰—-—कोष्ठ - कन्—चहारदीवारी
- कोष्ठकम्—नपुं॰—-—कोष्ठ - कन्—ईंट चूने से बनाया गया पशुओं के पानी पीने का स्थान
- कोष्ण—वि॰—-—ईष्दुष्णः - कोः कादेशः—थोड़ा गरम, गुनगुना
- कोष्णम्—नपुं॰—-—ईष्दुष्णः - कोः कादेशः—गरमी
- कोशलः—पुं॰—-—-—एक देश और उसके निवासियों का नाम
- कोसलः—पुं॰—-—-—एक देश और उसके निवासियों का नाम
- कोहलः—पुं॰—-—कौ हलति स्पर्धते - अच् पृषो॰ तारा॰—एक प्रकार का वाद्ययन्त्र
- कोहलः—पुं॰—-—कौ हलति स्पर्धते - अच् पृषो॰ तारा॰—एक प्रकार की मदिरा
- कौक्कटिकः—पुं॰—-—कुक्कुट - ठक्—मुर्गे पालने वाला, या मुर्गे का व्यवसाय करने वाला
- कौक्कटिकः—पुं॰—-—कुक्कुट - ठक्—वह साधु जो चलते समय अपना ध्यान नीचे जमीन पर रखता है जिससे कि कोई कीड़ा आदि पैरों के नीचे न दब जाय
- कौक्कटिकः—पुं॰—-—कुक्कुट - ठक्—दम्भी
- कौक्षः—वि॰—-—कुक्षि - अण्—कोख से बन्धा हुआ या कोख पर होने वाला
- कौक्षः—वि॰—-—कुक्षि - अण्—पेट से सम्बन्ध होने वाला
- कौक्षेय—वि॰—-—कुक्षि - ढञ्—पेट में होने वाला
- कौक्षेय—वि॰—-—कुक्षि - ढञ्—म्यान में स्थित
- कौक्षेयकः—पुं॰—-—कुक्षौ बद्धोऽसिः ढकञ्—तलवार, खङ्ग
- कौङ्कः—पुं॰—-—कुङ्क - अण्—एक देश तथा उसके निवासी शासकों का नाम
- कौङ्कणः—पुं॰—-—कोङ्कण - अण्—एक देश तथा उसके निवासी शासकों का नाम
- कौट—वि॰—-—कूट + अञ्—अपने निजी घर में रहने वाला, स्वतंत्र, मुक्त
- कौट—वि॰—-—कूट + अञ्—पालतु, घरेलू, घर में पला हुआ
- कौट—वि॰—-—कूट + अञ्—जालसाज, बेईमान
- कौट—वि॰—-—कूट + अञ्—जाल में फँसा हुआ
- कौटः—पुं॰—-—कूट + अञ्—जालसाजी, बेईमानी
- कौटः—पुं॰—-—कूट + अञ्—झूठी गवाही देने वाला
- कौटजः—पुं॰—कौट-जः—-—कुटज वृक्ष
- कौटतक्षः—पुं॰—कौट-तक्षः—-—स्वतंत्र बढ़ई जो अपनी इच्छानुसार अपना कार्य करता है, गाँव का कार्य नहीं
- कौटसाक्षिन्—पुं॰—कौट-साक्षिन्—-—झूठा गवाह
- कौटसाक्ष्यम्—नपुं॰—कौट-साक्ष्यम्—-—झूठी गवाही
- कौटकिकः—पुं॰—-—कूट + कन्, कूटक + ठञ्, कूट + ठक्—बहेलिया, जिसका व्यवसाय पक्षियों को पकड़ पिंजरे में बन्द कर बेचना है
- कौटकिकः—पुं॰—-—कूट + कन्, कूटक + ठञ्, कूट + ठक्—पक्षियों के मांस का विक्रेता, कसाई, शिकारचोर
- कौटिकः—पुं॰—-—कूट + कन्, कूटक + ठञ्, कूट + ठक्—बहेलिया, जिसका व्यवसाय पक्षियों को पकड़ पिंजरे में बन्द कर बेचना है
- कौटिकः—पुं॰—-—कूट + कन्, कूटक + ठञ्, कूट + ठक्—पक्षियों के मांस का विक्रेता, कसाई, शिकारचोर
- कौटलिकः—पुं॰—-—कुटिलिकया हरति मृगान् अङ्गारान् वा - कुटिलिका + अण्—शिकारी, लुहार
- कौटिल्यम्—नपुं॰—-—कुटिल + ष्यञ्—कुटिलपना
- कौटिल्यम्—नपुं॰—-—कुटिल + ष्यञ्—दुष्टता
- कौटिल्यम्—नपुं॰—-—कुटिल + ष्यञ्—बेईमानी, जालसाजी
- कौटिल्यः—पुं॰—-—कुटिल + ष्यञ्—नीतिशास्त्र का प्रख्यात प्रणेता चाण्क्य
- कौटुम्ब—वि॰—-—कुटुम्बं तद्भरणं भोजनमस्य - कुटुम्ब + अण्—किसी परिवार या गृहस्थ के लिए आवश्यक
- कौटुम्बम्—नपुं॰—-—कुटुम्बं तद्भरणं भोजनमस्य - कुटुम्ब + अण्—पारिवारिक सम्बन्ध
- कौटुम्बिक—वि॰—-—कुटुम्बे तद्भरणे प्रसृतः - कुटुम्ब + ठक्—परिवार को बनाने वाला
- कौटुम्बिकः—पुं॰—-—कुटुम्बे तद्भरणे प्रसृतः - कुटुम्ब + ठक्—किसी परिवार या पिता का स्वामी
- कौणपः—पुं॰—-—कुणप + अण्—पिशाच, राक्षस
- कौणपदन्तः—पुं॰—कौणप-दन्तः—-—भीष्म का विशेषण
- कौतुकम्—नपुं॰—-—कुतुक + अण्—इच्छा, कुतूहल, कामना
- कौतुकम्—नपुं॰—-—कुतुक + अण्—उत्सुकता, आवेग, आतुरता
- कौतुकम्—नपुं॰—-—कुतुक + अण्—आश्चर्यजनक वस्तु
- कौतुकम्—नपुं॰—-—कुतुक + अण्—वैवाहिक कंगना बांधने की प्रथा
- कौतुकम्—नपुं॰—-—कुतुक + अण्—पर्व, उत्सव
- कौतुकम्—नपुं॰—-—कुतुक + अण्—विशेषकर विवाह आदि शुभ उत्सव
- कौतुकम्—नपुं॰—-—कुतुक + अण्—खुशी, हर्ष, आनन्द, प्रसन्नता
- कौतुकम्—नपुं॰—-—कुतुक + अण्—खेल, मनोविनोद
- कौतुकम्—नपुं॰—-—कुतुक + अण्—गीत, नृत्य, तमाशा
- कौतुकम्—नपुं॰—-—कुतुक + अण्—हँसी, मजाक
- कौतुकम्—नपुं॰—-—कुतुक + अण्—बधाई, अभिवादन
- कौतुकागारः—पुं॰—कौतुकम्-आगारः—-—आमोद-भवन
- कौतुकागारम्—नपुं॰—कौतुकम्-आगारम्—-—आमोद-भवन
- कौतुकगृहम्—नपुं॰—कौतुकम्-गृहम्—-—आमोद-भवन
- कौतुकक्रिया—स्त्री॰—कौतुकम्-क्रिया—-—महान् उत्सव
- कौतुकक्रिया—स्त्री॰—कौतुकम्-क्रिया—-—विशेषता विवाह-संस्कार
- कौतुकमङ्गलम्—नपुं॰—कौतुकम्-मङ्गलम्—-—महान् उत्सव
- कौतुकमङ्गलम्—नपुं॰—कौतुकम्-मङ्गलम्—-—विशेषता विवाह-संस्कार
- कौतुकतोरणः—पुं॰—कौतुकम्-तोरणः—-—उत्सव के अवसरों पर बनायें गए मंगलसूचक विजय द्वार
- कौतुहलम्—नपुं॰—-—कुतुहल + अण्, ष्यञ् वा—इच्छा, जिज्ञासा, रूचि
- कौतुहलम्—नपुं॰—-—कुतुहल + अण्, ष्यञ् वा—उत्सुकता, उत्कण्ठा
- कौतुहलम्—नपुं॰—-—कुतुहल + अण्, ष्यञ् वा—कुतूहलवर्धक, आश्चर्यजनक
- कौन्तिकः—पुं॰—-—कुन्तः प्रहरणमस्य - ठञ्—भाला चलाने वाला, नेजाबरदार
- कौन्तेयः—पुं॰—-—कुन्त्याः अपत्यं ढक्—कुन्ती क पुत्र, युधिष्ठिर, भीम और अर्जुन का विशेषण
- कौप—वि॰—-—कूप + अण्—कुँए से सम्बन्ध रखने वाला या कुँए से आता हुआ
- कौपीनम्—नपुं॰—-—कूप + खञ्—योनि, उपस्थ
- कौपीनम्—नपुं॰—-—कूप + खञ्—गुप्ताङ्ग, गुह्येन्द्रिय
- कौपीनम्—नपुं॰—-—कूप + खञ्—लंगोटी
- कौपीनम्—नपुं॰—-—कूप + खञ्—चिथड़ा
- कौपीनम्—नपुं॰—-—कूप + खञ्—पाप, अनुचित कर्म
- कौब्ज्यम्—नपुं॰—-—कुब्ज + ष्यञ्—टेढ़ापन, कुटिलता
- कौब्ज्यम्—नपुं॰—-—कुब्ज + ष्यञ्—कुबड़ापन
- कौमार—वि॰—-—कुमार + अण्—तरूण, युवा, कन्या, कुँवारी
- कौमार—वि॰—-—कुमार + अण्—मृदु, कोमल
- कौमारम्—नपुं॰—-—कुमार + अण्—बचपन, कुँवारीपना, कुमारीपन
- कौमारभृत्यम्—नपुं॰—कौमार-भृत्यम्—-—बच्चों का पालनपोषण व चिकित्सा
- कौमारहर—वि॰—कौमार-हर—-—विवाह करने वाला, कन्या को पत्नी रूप में ग्रहण करने वाला
- कौमारकम्—नपुं॰—-—कौमार + कन—बचपन, तारूण्य, किशोरावस्था
- कौमारिकः—पुं॰—-—कुमारी + ठक्—वह पिता जिसकी सन्तान लड़कियाँ ही हों
- कौमारिकेयः—पुं॰—-—कुमारिका + ढक्—अविवाहित स्त्री का पुत्र
- कौमुदः—पुं॰—-—कुमुद + अण्—कार्तिक का महीना
- कौमुदी—स्त्री॰—-—कौमुद + ङीप्—चाँदनी, ज्योत्सना
- कौमुदी—स्त्री॰—-—कौमुद + ङीप्—चाँदनी का काम देने वाली कोई चीज
- कौमुदी—स्त्री॰—-—कौमुद + ङीप्—कार्तिक मास की पूर्णिमा
- कौमुदी—स्त्री॰—-—कौमुद + ङीप्—अश्विन मास की पुर्णीमा
- कौमुदी—स्त्री॰—-—कौमुद + ङीप्—उत्सव
- कौमुदी—स्त्री॰—-—कौमुद + ङीप्—विशेषतः वह उत्सव जब घरों में, मन्दिरों में सर्वत्र दीपावली होती है
- कौमुदी—स्त्री॰—-—कौमुद + ङीप्—व्याख्या, स्पष्टीकरण, प्रस्तुत विषय पर विकास डालने वाली
- कौमुदीपतिः—पुं॰—कौमुदी-पतिः—-—चन्द्रमा
- कौमुदीवृक्षः—पुं॰—कौमुदी-वृक्षः—-—दीवट
- कौमोदकी—स्त्री॰—-—कोः पृथिव्याः मोदकः = कुमोदक + अण् + ङीप् कुं पृथिवी मोदयति = कुमोद + अण् + ङीप्—विष्णु की गदा
- कौमोदी—स्त्री॰—-—कोः पृथिव्याः मोदकः = कुमोदक + अण् + ङीप् कुं पृथिवी मोदयति = कुमोद + अण् + ङीप्—विष्णु की गदा
- कौरव—वि॰—-—कुरू + अण्—कुरूओं से सम्बन्ध रखने वाला
- कौरवः—पुं॰—-—कुरू + अण्—कुरू की सन्तान
- कौरवः—पुं॰—-—कुरू + अण्—कुरूओं का राजा
- कौरव्यः—पुं॰—-—कुरू + ण्य—कुरू की सन्तान
- कौरव्यः—पुं॰—-—कुरू + ण्य—कुरूओं का शासक
- कौर्प्यः—पुं॰—-—-—वृश्चिक राशि
- कौल—वि॰—-—कुल + अण्—परिवार से सम्बन्ध रखने वाली, पैतृक, आनुवंशिक
- कौल—वि॰—-—कुल + अण्—अच्छे घराने का, सुजात
- कौलः—पुं॰—-—कुल + अण्—वाममार्गी सिद्धान्तों के अनुसार ‘शक्ति’ का पूजा करने वाला
- कौलम्—नपुं॰—-—कुल + अण्—वाममार्गी शाक्तों के सिद्धान्त और व्यवहार
- कौलकेयः—पुं॰—-—कुल + ढक्, कुक्—व्याभिचारिणी स्त्री का पुत्र, हरामी, वर्णसंकर
- कौलटिनेयः—पुं॰—-—कुलटा + ढक्, इनङादेशः—सती भिखारिणी का पुत्र
- कौलटिनेयः—पुं॰—-—कुलटा + ढक्, इनङादेशः—वर्णसंकर
- कौलिक—वि॰—-—-—किसी वंश से समबन्ध रखने वाला
- कौलिक—वि॰—-—-—कुल में प्रचलित, पैतृक, वंशपरंपरागत
- कौलिकः—पुं॰—-—-—जुलाहा
- कौलिकः—पुं॰—-—-—विधर्मी
- कौलिकः—पुं॰—-—-—वाममार्गी, शाक्त सिद्धान्तों का अनुयायी
- कौलीन—वि॰—-—कुल + खञ्—खदानी, कुलीन
- कौलीनः—पुं॰—-—कुल + खञ्—भिखारिणी स्त्री का पुत्र
- कौलीनः—पुं॰—-—कुल + खञ्—वाममार्गी शाक्त सिद्धान्तों का अनुयायी
- कौलीनम्—नपुं॰—-—कुल + खञ्—लोकापवाद, कुत्सा
- कौलीनम्—नपुं॰—-—कुल + खञ्—अनुचित कर्म, दुराचरण
- कौलीनम्—नपुं॰—-—कुल + खञ्—पशुओं की लड़ाई
- कौलीनम्—नपुं॰—-—कुल + खञ्—मुर्गों की लड़ाई
- कौलीनम्—नपुं॰—-—कुल + खञ्—संग्राम, युद्ध
- कौलीनम्—नपुं॰—-—कुल + खञ्—उच्च कुल में जन्म
- कौलीनम्—नपुं॰—-—कुल + खञ्—गुप्तांग, योनि
- कौलीन्यम्—नपुं॰—-—कुलीन + ष्यञ्—कुलीनता
- कौलीन्यम्—नपुं॰—-—कुलीन + ष्यञ्—वंश की कुत्सा
- कौलूतः—पुं॰—-—कुलूत + अण्—कुलूतों का राजा
- कौलेयकः—पुं॰—-—कूल + ढकञ्—कुत्ता, शिकारी कुत्ता
- कौल्य—वि॰—-—कुल + ष्यञ्—उच्च कुल में उत्पन्न, खानदानी
- कौबेर—वि॰—-—कु्बेर + अण्—कुबेर से सम्बन्ध रखने वाला, कुबेर के पास से आने वाला
- कौवेर—वि॰—-—कु्वेर + अण्—कुबेर से सम्बन्ध रखने वाला, कुबेर के पास से आने वाला
- कौबेरी—स्त्री॰—-—कु्बेर + अण्+ङीप्—उत्तरदिशाः
- कौवेरी—स्त्री॰—-—कु्बेर + अण्+ङीप्—उत्तरदिशाः
- कौश—वि॰—-—कुश् + अण्—रेशमी
- कौश—वि॰—-—कुश् + अण्—कुश घास का बना हुआ
- कौशलम्—नपुं॰—-—कुशल + अण्, ष्यञ् वा—कुशलक्षेम, प्रसन्नता, समृद्धि
- कौशलम्—नपुं॰—-—कुशल + अण्, ष्यञ् वा—कुशलता, दक्षता, चतुराई
- कौशलिकम्—नपुं॰—-—कुशल + ठक्—घूस, रिश्वत
- कौशलिका—स्त्री॰—-—कौशलिक + टाप्—उपहार, चढ़ावा
- कौशलिका—स्त्री॰—-—कौशलिक + टाप्—कुशल प्रश्न पूछना, अभिवादन
- कौशली—स्त्री॰—-—कुशल + अण् + ङीप्—उपहार, चढ़ावा
- कौशली—स्त्री॰—-—कुशल + अण् + ङीप्—कुशल प्रश्न पूछना, अभिवादन
- कौशलेयः—पुं॰—-—कौशल्या + ढक्, यलोपः—राम का विशेषण, कौशल्या का पुत्र
- कौशल्या—स्त्री॰—-—कोशलदेशे भवा - छय—दशरथ की ज्येष्ठ पत्नी तथा राम की माता
- कौशल्यायनिः—पुं॰—-—कौशल्या + फिज्—कौशल्या का पुत्र राम
- कौशाम्बी—स्त्री॰—-—कुशाम्ब + अण् + ङीप्—गंगा के किनारे स्थित एक प्रचीन नगर
- कौशिक—वि॰—-—कुशिक + अण्—डब्बे में बन्द, म्यान में रखा हुआ
- कौशिक—वि॰—-—कुशिक + अण्—रेशमी
- कौशिकः—पुं॰—-—कुशिक + अण्—विश्वामित्र का विशेषण
- कौशिकः—पुं॰—-—कुशिक + अण्—उल्लू
- कौशिकः—पुं॰—-—कुशिक + अण्—कोशकार
- कौशिकः—पुं॰—-—कुशिक + अण्—गूदा
- कौशिकः—पुं॰—-—कुशिक + अण्—गुग्गुल
- कौशिकः—पुं॰—-—कुशिक + अण्—नेवला
- कौशिकः—पुं॰—-—कुशिक + अण्—सपेरा
- कौशिकः—पुं॰—-—कुशिक + अण्—शृङ्गाररस
- कौशिकः—पुं॰—-—कुशिक + अण्—जो गुप्त धन को जानता है
- कौशिकः—पुं॰—-—कुशिक + अण्—इन्द्र का विशेषण
- कौशिका—स्त्री॰—-—कुशिक + अण्+टाप्—प्याला, पानपात्र
- कौशिकी—स्त्री॰—-—कुशिक + अण्+ङीप्—बिहार प्रदेश में बहने वाली एक नदी का नाम
- कौशिकी—स्त्री॰—-—कुशिक + अण्+ङीप्—दुर्गा देवी का नाम
- कौशिकी—स्त्री॰—-—कुशिक + अण्+ङीप्—चार प्रकार की नाट्यशैलियों में एक
- कौशिकारातिः—पुं॰—कौशिक-अरातिः—-—कौवा
- कौशिकारिः—पुं॰—कौशिक-अरिः—-—कौवा
- कौशिकफलः—पुं॰—कौशिक-फलः—-—नारियल का वृक्ष
- कौशिकप्रियः—पुं॰—कौशिक-प्रियः—-—राम का विशेषण
- कौशेयम्—नपुं॰—-—कोशस्य विकारः - ढञ्—रेशम
- कौशेयम्—नपुं॰—-—कोशस्य विकारः - ढञ्—रेशमी कपड़ा
- कौशेयम्—नपुं॰—-—कोशस्य विकारः - ढञ्—रेशम का बना स्त्री का पेटीकोट
- कौषेयम्—नपुं॰—-—कोशस्य विकारः - ढञ्—रेशम
- कौषेयम्—नपुं॰—-—कोशस्य विकारः - ढञ्—रेशमी कपड़ा
- कौषेयम्—नपुं॰—-—कोशस्य विकारः - ढञ्—रेशम का बना स्त्री का पेटीकोट
- कौसीद्यम्—नपुं॰—-—कुसीद + ष्यञ्—ब्याज लेने का व्यवसाय
- कौसीद्यम्—नपुं॰—-—कुसीद + ष्यञ्—आलस्य, अकर्मण्यता
- कौसृतिकः—पुं॰—-—कुसृति + ठक्—ठग, बदमाश
- कौसृतिकः—पुं॰—-—कुसृति + ठक्—बाजीगर
- कौस्तुभः—पुं॰—-—कुस्तुभो जलधिस्तत्र भवः - अण्—एक विख्यात रत्न
- कौस्तुभलक्षणः—पुं॰—कौस्तुभ-लक्षणः—-—विष्णु के विशेषण
- कौस्तुभवक्षः—पुं॰—कौस्तुभ-वक्षस्—-—विष्णु के विशेषण
- कौस्तुभहृदयः—पुं॰—कौस्तुभ-हृदयः—-—विष्णु के विशेषण
- क्रूय्—भ्वा॰ आ॰ - <क्रूयते>—-—-—चूं चूं शब्द करना
- क्रूय्—भ्वा॰ आ॰ - <क्रूयते>—-—-—डूबना
- क्रूय्—भ्वा॰ आ॰ - <क्रूयते>—-—-—गीला होना
- क्रकचः—पुं॰—-—क्र इति कचति शब्दायते - क्र + कच् + अच्—आरा
- क्रकचच्छदः—पुं॰—क्रकच-च्छदः—-—केतक वृक्ष
- क्रकचपत्रः—पुं॰—क्रकच-पत्रः—-—सागौन वृक्ष
- क्रकचपादः—पुं॰—क्रकच-पादः—-—छिपकली
- क्रकरः—पुं॰—-—क्र इति शब्दं कर्तुं शीलमस्य - क्र + कृ + अच्—एक प्रकार का तीतर
- क्रकरः—पुं॰—-—क्र इति शब्दं कर्तुं शीलमस्य - क्र + कृ + अच्—आरा
- क्रकरः—पुं॰—-—क्र इति शब्दं कर्तुं शीलमस्य - क्र + कृ + अच्—निर्धन व्यक्ति
- क्रकरः—पुं॰—-—क्र इति शब्दं कर्तुं शीलमस्य - क्र + कृ + अच्—रोग
- क्रतुः—पुं॰—-—कृ + कतु—यज्ञ
- क्रतुः—पुं॰—-—कृ + कतु—विष्णु का विशेषण
- क्रतुः—पुं॰—-—कृ + कतु—दस प्रजापतियों में एक
- क्रतुः—पुं॰—-—कृ + कतु—प्रज्ञा, बुद्धि
- क्रतुः—पुं॰—-—कृ + कतु—शक्ति, योग्यता
- क्रतूत्तमः—पुं॰—क्रतु- उत्तमः—-—राजसूय यज्ञ
- क्रतुद्रुहू—पुं॰—क्रतु- द्रुहू—-—राक्षस, पिशाच
- क्रतुद्विष्—पुं॰—क्रतु- द्विष्—-—राक्षस, पिशाच
- क्रतुध्वंसिन्—पुं॰—क्रतु- ध्वंसिन्—-—शिव का विशेषण
- क्रतुपतिः—पुं॰—क्रतु- पतिः—-—यज्ञ का अनुष्ठाता
- क्रतुपशुः—पुं॰—क्रतु- पशुः—-—यज्ञीय घोड़ा
- क्रतुपुरूषः—पुं॰—क्रतु- पुरूषः—-—विष्णु का विशेषण
- क्रतुभुज्—पुं॰—क्रतु- भुज्—-—देवता, देव
- क्रतुराज्—पुं॰—क्रतु- राज्—-—यज्ञों का स्वामी
- क्रतुराज्—पुं॰—क्रतु- राज्—-—राजसूय यज्ञ
- क्रथ्—भ्वा॰ पर॰ <क्रथति>, <क्रथित>—-—-—क्षति पहुँचाना, चोट पहुँचाना, मार डालना
- क्रथकैशिकः—पुं॰—-—-—एक देश का नाम
- क्रथनम्—नपुं॰—-—क्रथ् + ल्युट्—वध, हत्या
- क्रथनकः—पुं॰—-—क्रथन + कन्—ऊँट
- क्रन्द्—भ्वा॰ पर॰ <क्रन्दति>, <क्रन्दित>—-—-—चिल्लाना, रोना, आंसू बहाना
- क्रन्द्—भ्वा॰ पर॰ <क्रन्दति>, <क्रन्दित>—-—-—पुकारना, दया की पुकार करना
- क्रन्द्—चुरा॰ पर॰ या प्रेर॰—-—-—लगातार, चिल्लाना
- क्रन्द्—चुरा॰ पर॰ या प्रेर॰—-—-—रूलाना
- आक्रन्द्—चुरा॰ पर॰ —आ-क्रन्द्—-—चिल्लाना, चीखना, चरमराना, चीत्कार करना
- आक्रन्द्—चुरा॰ पर॰ —आ-क्रन्द्—-—पुकार करना
- क्रन्दनम्—नपुं॰—-—क्रन्द् + ल्युट्, क्त वा—आर्तनाद, रोना, विलाप करना
- क्रन्दनम्—नपुं॰—-—क्रन्द् + ल्युट्, क्त वा—पारस्परिक ललकार, चुनौति
- क्रम्—भ्वा॰ उभ॰, दिवा॰ पर॰ <क्रामति>, <क्रमते>, <क्राम्यति>, <क्रान्त>—-—-—चलना, पर्दापण करना, जाना
- क्रम्—भ्वा॰ उभ॰, दिवा॰ पर॰ <क्रामति>, <क्रमते>, <क्राम्यति>, <क्रान्त>—-—-—चले जाना, पहुँचना
- क्रम्—भ्वा॰ उभ॰, दिवा॰ पर॰ <क्रामति>, <क्रमते>, <क्राम्यति>, <क्रान्त>—-—-—जाना, पार करना, पार जाना
- क्रम्—भ्वा॰ उभ॰, दिवा॰ पर॰ <क्रामति>, <क्रमते>, <क्राम्यति>, <क्रान्त>—-—-—कूदना, छलांग मारना
- क्रम्—भ्वा॰ उभ॰, दिवा॰ पर॰ <क्रामति>, <क्रमते>, <क्राम्यति>, <क्रान्त>—-—-—ऊपर जाना, चढ़ना
- क्रम्—भ्वा॰ उभ॰, दिवा॰ पर॰ <क्रामति>, <क्रमते>, <क्राम्यति>, <क्रान्त>—-—-—अधिकार में रखना, वश में करना, अधिकार में लेना, भरना
- क्रम्—भ्वा॰ उभ॰, दिवा॰ पर॰ <क्रामति>, <क्रमते>, <क्राम्यति>, <क्रान्त>—-—-—आगे बढ़ना, आगे निकल जाना
- क्रम्—भ्वा॰ उभ॰, दिवा॰ पर॰ <क्रामति>, <क्रमते>, <क्राम्यति>, <क्रान्त>—-—-—उत्तरदायित्व लेना, संप्रयास करना, योग्य या सक्षम होना, शक्ति दिखलाना
- क्रम्—भ्वा॰ उभ॰, दिवा॰ पर॰ <क्रामति>, <क्रमते>, <क्राम्यति>, <क्रान्त>—-—-—बढ़ना या विकसित होना, पूरा क्षेत्र मिलना, स्वस्थ होना
- क्रम्—भ्वा॰ उभ॰, दिवा॰ पर॰ <क्रामति>, <क्रमते>, <क्राम्यति>, <क्रान्त>—-—-—पूरा करना, निष्पन्न करना
- क्रम्—भ्वा॰ उभ॰, दिवा॰ पर॰ <क्रामति>, <क्रमते>, <क्राम्यति>, <क्रान्त>—-—-—मैथुन करना
- अतिक्रम्—भ्वा॰ उभ॰, दिवा॰ पर॰—अति-क्रम्—-—पार करना, पार जाना
- अतिक्रम्—भ्वा॰ उभ॰, दिवा॰ पर॰—अति-क्रम्—-—परे जाना, लांघना
- अतिक्रम्—भ्वा॰ उभ॰, दिवा॰ पर॰—अति-क्रम्—-—बढ़ जाना, आगे निकल जाना
- अतिक्रम्—भ्वा॰ उभ॰, दिवा॰ पर॰—अति-क्रम्—-—उल्लंघन करना, अतिक्रमण करना, आगे कदम रखना
- अतिक्रम्—भ्वा॰ उभ॰, दिवा॰ पर॰—अति-क्रम्—-—अवहेलना करना, पृथक करना, उपेक्षा करना
- अतिक्रम्—भ्वा॰ उभ॰, दिवा॰ पर॰—अति-क्रम्—-—गुजारना, बीतना
- अधिक्रम्—भ्वा॰ उभ॰, दिवा॰ पर॰—अधि-क्रम्—-—चढ़ना
- अध्याक्रम्—भ्वा॰ उभ॰, दिवा॰ पर॰—अध्या-क्रम्—-—अधिकार करना, भरना, ग्रहण करना
- अनुक्रम्—भ्वा॰ उभ॰, दिवा॰ पर॰—अनु-क्रम्—-—अनुगमन करना
- अनुक्रम्—भ्वा॰ उभ॰, दिवा॰ पर॰—अनु-क्रम्—-—आरम्भ करना
- अनुक्रम्—भ्वा॰ उभ॰, दिवा॰ पर॰—अनु-क्रम्—-—अन्तर्वस्तु देना
- अन्वाक्रम्—भ्वा॰ उभ॰, दिवा॰ पर॰—अन्वा-क्रम्—-—एक के पश्चात दूसरे का दर्शन करना
- अपक्रम्—भ्वा॰ उभ॰, दिवा॰ पर॰—अप-क्रम्—-—छोड़ जाना, चले जाना
- अभिक्रम्—भ्वा॰ उभ॰, दिवा॰ पर॰—अभि-क्रम्—-—जाना, पहुँचना, प्रविष्ट होना
- अभिक्रम्—भ्वा॰ उभ॰, दिवा॰ पर॰—अभि-क्रम्—-—घूमना, भ्रमण करना
- अभिक्रम्—भ्वा॰ उभ॰, दिवा॰ पर॰—अभि-क्रम्—-—आक्रमण करना
- अवक्रम्—भ्वा॰ उभ॰, दिवा॰ पर॰—अव-क्रम्—-—वापिस हटना
- आक्रम्—भ्वा॰ उभ॰, दिवा॰ पर॰—आ-क्रम्—-—पहुँचना, की ओर जाना
- आक्रम्—भ्वा॰ उभ॰, दिवा॰ पर॰—आ-क्रम्—-—आक्रमण करना, दमन करना, जीतना, परास्त करना
- आक्रम्—भ्वा॰ उभ॰, दिवा॰ पर॰—आ-क्रम्—-—भरना, प्रविष्ट होना, अधिकार में करना
- आक्रम्—भ्वा॰ उभ॰, दिवा॰ पर॰—आ-क्रम्—-—आरम्भ करना, शुरू करना
- आक्रम्—भ्वा॰ उभ॰, दिवा॰ पर॰—आ-क्रम्—-—उन्नत होना, उदय होना
- आक्रम्—भ्वा॰ उभ॰, दिवा॰ पर॰—आ-क्रम्—-—चढ़ना, सवारी करना, अधिकार में करना
- उत्क्रम्—भ्वा॰ उभ॰, दिवा॰ पर॰—उद्-क्रम्—-—ऊपर होना, परे जाना, उपर जाना
- उत्क्रम्—भ्वा॰ उभ॰, दिवा॰ पर॰—उद्-क्रम्—-—अवहेलना करना, उपेक्षा करना
- उत्क्रम्—भ्वा॰ उभ॰, दिवा॰ पर॰—उद्-क्रम्—-—परे कदम रखना
- उपक्रम्—भ्वा॰ उभ॰, दिवा॰ पर॰—उप-क्रम्—-—की ओर जाना, पहुँचना
- उपक्रम्—भ्वा॰ उभ॰, दिवा॰ पर॰—उप-क्रम्—-—धावा बोलना, आक्रमण करना
- उपक्रम्—भ्वा॰ उभ॰, दिवा॰ पर॰—उप-क्रम्—-—बर्ताव करना, उपचार करना, चिकित्सा करना, स्वस्थ करना
- उपक्रम्—भ्वा॰ उभ॰, दिवा॰ पर॰—उप-क्रम्—-—प्रेम करना, प्रेम से जीत लेना
- उपक्रम्—भ्वा॰ उभ॰, दिवा॰ पर॰—उप-क्रम्—-— अनुष्ठान करना, प्रस्थान करना
- उपक्रम्—भ्वा॰ उभ॰, दिवा॰ पर॰—उप-क्रम्—-—आरम्भ करना, शुरू करना
- निष्क्रम्—भ्वा॰ उभ॰, दिवा॰ पर॰—निस्-क्रम्—-—चले जाना, चल देना, विदा होना
- निष्क्रम्—भ्वा॰ उभ॰, दिवा॰ पर॰—निस्-क्रम्—-—निकलना, प्रकाशित होना
- पराक्रम्—भ्वा॰ उभ॰, दिवा॰ पर॰—परा-क्रम्—-—साहस प्रदर्शित करना, शक्ति या शूरवीरता दिखाना, बहादुरी के साथ करना
- पराक्रम्—भ्वा॰ उभ॰, दिवा॰ पर॰—परा-क्रम्—-—वापिस मुड़ना
- पराक्रम्—भ्वा॰ उभ॰, दिवा॰ पर॰—परा-क्रम्—-—चढ़ाई करना, आक्रमण करना
- परिक्रम्—भ्वा॰ उभ॰, दिवा॰ पर॰—परि-क्रम्—-—इधर उधर घूमना, चक्कर लगाना
- परिक्रम्—भ्वा॰ उभ॰, दिवा॰ पर॰—परि-क्रम्—-—पकड़ लेना
- प्रक्रम्—भ्वा॰ उभ॰, दिवा॰ पर॰—प्र-क्रम्—-—आरम्भ करना, शुरू करना
- प्रक्रम्—भ्वा॰ उभ॰, दिवा॰ पर॰—प्र-क्रम्—-—कुचलना, ऊपर पैर रखकर चलना
- प्रक्रम्—भ्वा॰ उभ॰, दिवा॰ पर॰—प्र-क्रम्—-—जाना, प्रस्थान करना
- प्रतिक्रम्—भ्वा॰ उभ॰, दिवा॰ पर॰—प्रति-क्रम्—-—वापिस आना
- विक्रम्—भ्वा॰ उभ॰, दिवा॰ पर॰—वि-क्रम्—-—में से चलना
- विक्रम्—भ्वा॰ उभ॰, दिवा॰ पर॰—वि-क्रम्—-—छापा मारना, पराजित करना, जीतना
- विक्रम्—भ्वा॰ उभ॰, दिवा॰ पर॰—वि-क्रम्—-—फाड़ना, खोलना
- व्यतिक्रम्—भ्वा॰ उभ॰, दिवा॰ पर॰—व्यति-क्रम्—-—उल्लंघन करना
- व्यतिक्रम्—भ्वा॰ उभ॰, दिवा॰ पर॰—व्यति-क्रम्—-—समय बिताना
- व्युत्क्रम्—भ्वा॰ उभ॰, दिवा॰ पर॰—उद्-क्रम्—-—ऊपर होना, परे जाना, उपर जाना
- व्युत्क्रम्—भ्वा॰ उभ॰, दिवा॰ पर॰—उद्-क्रम्—-—अवहेलना करना, उपेक्षा करना
- व्युत्क्रम्—भ्वा॰ उभ॰, दिवा॰ पर॰—उद्-क्रम्—-—परे कदम रखना
- सङ्क्रम्—भ्वा॰ उभ॰, दिवा॰ पर॰—सम्-क्रम्—-—आना या एकत्र होना
- सङ्क्रम्—भ्वा॰ उभ॰, दिवा॰ पर॰—सम्-क्रम्—-—पार जाना, पार करना, में से जाना
- सङ्क्रम्—भ्वा॰ उभ॰, दिवा॰ पर॰—सम्-क्रम्—-—पहुँचना, जाना
- सङ्क्रम्—भ्वा॰ उभ॰, दिवा॰ पर॰—सम्-क्रम्—-—पार चले जाना, स्थानान्तरित होना
- सङ्क्रम्—भ्वा॰ उभ॰, दिवा॰ पर॰—सम्-क्रम्—-—दाखिल होना, प्रविष्ट होना
- समाक्रम्—भ्वा॰ उभ॰, दिवा॰ पर॰—समा-क्रम्—-—अधिकार करना, कब्जे में लेना, भरना
- समाक्रम्—भ्वा॰ उभ॰, दिवा॰ पर॰—समा-क्रम्—-—छापा मारना, जीतना, दमन करना
- क्रमः—पुं॰—-—क्रम् + घञ्—कदम, पग
- क्रमः—पुं॰—-—क्रम् + घञ्—पैर
- क्रमः—पुं॰—-—क्रम् + घञ्—गति, प्रगमन, मार्ग
- क्रमात्—पुं॰—-—क्रम् + घञ्—दौरान में, क्रमशः
- क्रमेण—पुं॰—-—क्रम् + घञ्—दौरान में, क्रमशः
- कालक्रमेण—अव्य॰—काल-क्रमेण—-—उत्तरोत्तर, समय पाकर
- भाग्यक्रमः—पुं॰—भाग्यक्रमः—क्रम् + घञ्—भाग्य का उलट जाना
- क्रमः—पुं॰—-—क्रम् + घञ्—प्रदर्शन, आरंभ
- क्रमः—पुं॰—-—क्रम् + घञ्—नियमित मार्ग, क्रम, श्रेणी, उत्तराधिकारिता
- क्रमः—पुं॰—-—क्रम् + घञ्—प्रणाली, रीति
- क्रमः—पुं॰—-—क्रम् + घञ्—ग्रसना, पकड़
- क्रमः—पुं॰—-—क्रम् + घञ्—स्थिति
- क्रमः—पुं॰—-—क्रम् + घञ्—तैयारी, तत्परता
- क्रमः—पुं॰—-—क्रम् + घञ्—व्यवसाय, साहसिक कार्य
- क्रमः—पुं॰—-—क्रम् + घञ्—कर्म या कार्य, कार्यविधि
- क्रमः—पुं॰—-—क्रम् + घञ्—वेदमन्त्रों कों सस्वर उच्चारण करने की विशेष रीति
- क्रमः—पुं॰—-—क्रम् + घञ्—शक्ति, सामर्थ्य
- क्रमम्—नपुं॰—-—क्रम् + घञ्—गारा
- क्रमानुसारः—पुं॰—क्रम-अनुसारः—-—नियमित क्रम, समुचित व्यवस्था
- क्रमान्वयः—पुं॰—क्रम-अन्वयः—-—नियमित क्रम, समुचित व्यवस्था
- क्रमागत—वि॰—क्रम-आगत—-—वंशपरम्पराप्राप्त, आनुवंशिक
- क्रमायात—वि॰—क्रम-आयात—-—वंशपरम्पराप्राप्त, आनुवंशिक
- क्रमज्या—स्त्री॰—क्रम-ज्या—-—ग्रह की लंब रेखा, क्षय
- क्रमभङ्ग—वि॰—क्रम-भङ्ग—-—अनियमितता
- क्रमक—वि॰—-—क्रम् + वुन्—क्रमबद्ध, प्रणाली के अनुसार
- क्रमकः—पुं॰—-—क्रम् + वुन्—वह विद्यार्थी जो किसी नियमित पाठ्यक्रम का अध्ययन करता है ।
- क्रमणः—पुं॰—-—क्रम् + ल्युट्—पैर, घोड़ा
- क्रमणम्—नपुं॰—-—क्रम् + ल्युट्—कदम
- क्रमणम्—नपुं॰—-—क्रम् + ल्युट्—पग रखना
- क्रमणम्—नपुं॰—-—क्रम् + ल्युट्—आगे बढ़ना
- क्रमणम्—नपुं॰—-—क्रम् + ल्युट्—उल्लंघन
- क्रमतः—अव्य॰—-—क्रम् + तसिल्—क्रमशः, उत्तरोत्तर, सिलसिलेवार
- क्रमतः—अव्य॰—-—क्रम् + तसिल्—वंशपरंपरागत, पैतृक, आनुवंशिक
- क्रमुः—पुं॰—-—क्रम् + उ—सुपारी का पेड़
- क्रमुकः—पुं॰—-—क्रम् + उ, कन् च—सुपारी का पेड़
- क्रमेलः—पुं॰—-—क्रम् + एल् + अच्—ऊँट
- क्रमेलकः—पुं॰—-—क्रम् + एल् + अच्, कन् च—ऊँट
- क्रयः—पुं॰—-—क्री + अच्—खरीदना, मोल लेना
- क्रयारोहः—पुं॰—क्रय-आरोहः—-—मंडी, मेला
- क्रयक्रीत—वि॰—क्रय-क्रीत—-—मोल लिया हुआ
- क्रयलेख्यम्—नपुं॰—क्रय-लेख्यम्—-—बैनामा, विक्रयनामा, दानपत्र
- क्रयविक्रयौ—पुं॰—क्रय-विक्रयौ—-—व्यापार, व्यवसाय, खरीद-फरौख्त
- क्रयविक्रयिकः—पुं॰—क्रय-विक्रयिकः—-—व्यापारी सौदागार
- क्रयणम्—नपुं॰—-—क्री + ल्युट्—खरीदना, मोल लेना
- क्रयिकः—पुं॰—-—क्रय + ठन्—व्यापारी, सौदागर
- क्रयिकः—पुं॰—-—क्रय + ठन्—क्रेता, मोल लेने वाला
- क्रव्य—वि॰—-—क्री + यत्, नि॰ —मंडी में विक्रय के लिए रखी हुई वस्तु, बिकाऊ
- क्रव्यम्—नपुं॰—-—क्लव + यत्, रस्य लः—कच्चा मांस, मुरदार
- क्रशिमन्—पुं॰—-—कृश + इमनिच्—पतलापन, कृशता, दुबलापतलापन
- क्राकचिकः—पुं॰—-—क्रकच + ठक्—आराकश
- क्रान्त—वि॰—-—क्रम + क्त—गया हुआ, आरपार गया हुआ
- क्रान्तः—भू॰ क॰ कृ॰—-—क्रम + क्त—घोड़ा
- क्रान्तः—भू॰ क॰ कृ॰—-—क्रम + क्त—पैर, पग
- क्रान्तदर्शिन्—वि॰—क्रान्त-दर्शिन्—-—सर्वज्ञ
- क्रान्तिः—स्त्री॰—-—क्रम् + क्तिन्—गति, प्रगमन
- क्रान्तिः—स्त्री॰—-—क्रम् + क्तिन्—कदम, पग
- क्रान्तिः—स्त्री॰—-—क्रम् + क्तिन्—आगे बढ़ने वाला
- क्रान्तिः—स्त्री॰—-—क्रम् + क्तिन्—आक्रमण करने वाला, अभिभूत करने वाला
- क्रान्तिः—स्त्री॰—-—क्रम् + क्तिन्—नक्षत्र की कोणीय दूरी
- क्रान्तिः—स्त्री॰—-—क्रम् + क्तिन्—क्रांतिवलय, सूर्य का भ्रमण मार्ग
- क्रान्तिकक्षः—पुं॰—क्रान्ति-कक्षः—-—सूर्य का भ्रमण मार्ग
- क्रान्तिमण्डलम्—नपुं॰—क्रान्ति-मण्डलम्—-—सूर्य का भ्रमण मार्ग
- क्रान्तिवृत्तम्—नपुं॰—क्रान्ति-वृत्तम्—-—सूर्य का भ्रमण मार्ग
- क्रान्तिपातः—पुं॰—क्रान्ति-पातः—-—वह बिंदु जहाँ क्रांतिवलय विषुवत रेखा से मिलता है
- क्रान्तिवलयः—पुं॰—क्रान्ति-वलयः—-—सूर्य का भ्रमण मार्ग
- क्रान्तिवलयः—पुं॰—क्रान्ति-वलयः—-—उष्ण कटिबंध
- क्रायकः—पुं॰—-—क्री + ण्वुल् - क्रय + ठक्—क्रेता, खरीददार
- क्रायकः—पुं॰—-—क्री + ण्वुल् - क्रय + ठक्—व्यापारी, सौदागर
- क्रायिकः—पुं॰—-—क्री + ण्वुल् - क्रय + ठक्—क्रेता, खरीददार
- क्रायिकः—पुं॰—-—क्री + ण्वुल् - क्रय + ठक्—व्यापारी, सौदागर
- क्रिमिः—पुं॰—-—क्रम् + इन्, इत्वम्—कीड़ा
- क्रिमिः—पुं॰—-—क्रम् + इन्, इत्वम्—कीट
- क्रिमिः—पुं॰—-—क्रम् + इन्, इत्वम्—कीड़ों से भरा हुआ, कीटयुक्त
- क्रिमिः—पुं॰—-—क्रम् + इन्, इत्वम्—कीड़े
- क्रिमिः—पुं॰—-—क्रम् + इन्, इत्वम्—गधा
- क्रिमिः—पुं॰—-—क्रम् + इन्, इत्वम्—मकड़ी
- क्रिमिः—पुं॰—-—क्रम् + इन्, इत्वम्—लाख
- क्रिमिजम्—नपुं॰—क्रिमि-जम्—-—अगर की लकड़ी
- क्रिमिशैलः—पुं॰—क्रिमि-शैलः—-—बांबी
- क्रिया—स्त्री॰—-—कृ + श, रिङ् आदेशः, इयङ्—करना, कार्यान्वित, कार्य-सम्पादन, निष्पादन करना
- क्रिया—स्त्री॰—-—कृ + श, रिङ् आदेशः, इयङ्—कर्म, कृत्य, व्यवसाय, जिम्मेदारी
- क्रिया—स्त्री॰—-—कृ + श, रिङ् आदेशः, इयङ्—चेष्टा, शारीरिक चेष्टा, श्रम
- क्रिया—स्त्री॰—-—कृ + श, रिङ् आदेशः, इयङ्—अध्यापन, शिक्षण
- क्रिया—स्त्री॰—-—कृ + श, रिङ् आदेशः, इयङ्—किसी कला पर आधिपत्य, ज्ञान
- क्रिया—स्त्री॰—-—कृ + श, रिङ् आदेशः, इयङ्—आचरण
- क्रिया—स्त्री॰—-—कृ + श, रिङ् आदेशः, इयङ्—साहित्यिक रचना
- क्रिया—स्त्री॰—-—कृ + श, रिङ् आदेशः, इयङ्—शुद्धि-संस्कार, धार्मिक संस्कार
- क्रिया—स्त्री॰—-—कृ + श, रिङ् आदेशः, इयङ्—प्रायश्चित्तस्वरूप संस्कार, प्रायश्चित
- क्रिया—स्त्री॰—-—कृ + श, रिङ् आदेशः, इयङ्—श्राद्ध
- क्रिया—स्त्री॰—-—कृ + श, रिङ् आदेशः, इयङ्—और्ध्वदेहिक संस्कार
- क्रिया—स्त्री॰—-—कृ + श, रिङ् आदेशः, इयङ्—पूजन
- क्रिया—स्त्री॰—-—कृ + श, रिङ् आदेशः, इयङ्—औषधोपचार, चिकित्सा-प्रयोग, इलाज, शीतक्रिया,शीतल उपचार
- क्रिया—स्त्री॰—-—कृ + श, रिङ् आदेशः, इयङ्—क्रिया के द्वारा अभिहीत कर्म
- क्रिया—स्त्री॰—-—कृ + श, रिङ् आदेशः, इयङ्—चेष्टा या कर्म
- क्रिया—स्त्री॰—-—कृ + श, रिङ् आदेशः, इयङ्—विशेषतः वैशेषिक दर्शन में प्रतिपादित सात द्रव्यों में से एक
- क्रिया—स्त्री॰—-—कृ + श, रिङ् आदेशः, इयङ्—साक्ष्यादिक मानवसाधनों से तथा अन्य परीक्षाओं द्वारा अभियोग की छानबीन करना
- क्रिया—स्त्री॰—-—कृ + श, रिङ् आदेशः, इयङ्—प्रमाण-भार
- क्रियान्वित—वि॰—क्रिया-अन्वित—-— शास्त्रोक्त सत्कर्मो को करने वाला
- क्रियापवर्गः—पुं॰—क्रिया-अपवर्गः—-—किसी कार्य की संपूर्ति या इतिश्री, कार्यसम्पादन
- क्रियापवर्गः—पुं॰—क्रिया-अपवर्गः—-—कर्मकाण्ड से मुक्ति, छुटकारा
- क्रियाभ्युपगमः—पुं॰—क्रिया-अभ्युपगमः—-—विशेष प्रकार का करार या प्रतिज्ञा-पत्र
- क्रियावसन्न—वि॰—क्रिया-अवसन्न—-—गवाहों के बयान के कारण मुकदमा हार जाने वाला व्यक्ति
- क्रियेन्द्रियम्—नपुं॰—क्रिया-इन्द्रियम्—-—काम करने वाली इन्द्रियाँ जो ज्ञानेन्द्रियों से भिन्न हैं
- क्रियाकलापः—पुं॰—क्रिया-कलापः—-—हिन्दू-धर्मशास्त्र द्वारा विहित समस्त कार्य
- क्रियाकलापः—पुं॰—क्रिया-कलापः—-—किसी व्यवसाय के समस्त विवरण
- क्रियाकारः—पुं॰—क्रिया-कारः—-—अभिकर्ता, कार्यकर्ता
- क्रियाकारः—पुं॰—क्रिया-कारः—-—शिक्षारंभ करने वाला, नौसिखिया, नवच्छात्र
- क्रियाकारः—पुं॰—क्रिया-कारः—-—इकरारनामा, प्रतिज्ञापत्र
- क्रियाद्वेषिन्—पुं॰—क्रिया-द्वेषिन्—-—वह साक्षी जिसका साक्ष्य पक्षपातपूर्ण हो
- क्रियानिर्देशः—पुं॰—क्रिया-निर्देशः—-—गवाही, साक्ष्य
- क्रियापटु—वि॰—क्रिया-पटु—-—कार्यदक्ष
- क्रियापथः—पुं॰—क्रिया-पथः—-—औषधोपचार की रीति
- क्रियापदम्—नपुं॰—क्रिया-पदम्—-—क्रियावाचक शब्द
- क्रियापर—वि॰—क्रिया-पर—-—अपने कर्त्तव्य-पालन में परिश्रम शील
- क्रियापादः—पुं॰—क्रिया-पादः—-—अभियोक्ता या वादी के द्वारा अपने दावे की पुष्टि में दिए गये प्रमाण, दस्तावेज तथा गवाहियाँ आदि जो कानूनी अभियोग का तीसरा अंग है
- क्रियायोगः—पुं॰—क्रिया-योगः—-—क्रिया के साथ संबंध
- क्रियायोगः—पुं॰—क्रिया-योगः—-—तरकीब और साधनों का प्रयोग
- क्रियालोपः—पुं॰—क्रिया-लोपः—-—आवश्यक धार्मिक अनुष्ठानों का परित्याग
- क्रियावशः—पुं॰—क्रिया-वशः—-—आवश्यकता, क्रियाओं का अवश्यंभावी प्रभाव
- क्रियावाचक—वि॰—क्रिया-वाचक—-—क्रम को प्रकट करने वाला, क्रिया से बना संज्ञा शब्द
- क्रियावाचिन्—वि॰—क्रिया-वाचिन्—-—क्रम को प्रकट करने वाला, क्रिया से बना संज्ञा शब्द
- क्रियावादिन्—पुं॰—क्रिया-वादिन्—-—वादी, अभियोक्ता
- क्रियाविधिः—पुं॰—क्रिया-विधिः—-—कार्य करने का नियम, किसी धर्मकृत्य को सम्पन्न करने की रीति
- क्रियाविशेषणम्—नपुं॰—क्रिया-विशेषणम्—-—क्रिया की विशेषता प्रकट करने वाला शब्द
- क्रियाविशेषणम्—नपुं॰—क्रिया-विशेषणम्—-—विधेय विशेषण
- क्रियासङ्क्रान्ति—स्त्री॰—क्रिया-सङ्क्रान्ति—-—दूसरों को ज्ञान देना, अध्यापन
- क्रियासमभिहारः—पुं॰—क्रिया-समभिहारः—-—किसी कार्य की आवृत्ति
- क्रियावत्—वि॰—-—क्रिया + मतुप्—कर्म में व्यस्त, किसी कार्य के व्यवहार को जानने वाला
- क्री—क्रया ॰ उभ॰ <क्रीणाति>, <क्रीणीते>, <क्रीत>—-—-—खरीदना, मोल लेना
- क्री—क्रया ॰ उभ॰ <क्रीणाति>, <क्रीणीते>, <क्रीत>—-—-—विनिमय, अदलाबदली
- आक्री—क्रया ॰ उभ॰—आ-क्री—-—खरीदना
- निष्क्री—क्रया ॰ उभ॰—निस्-क्री—-—कुछ देकर पिंड छुड़ाना, दाम देकर फिर से खरीद लेना, निस्तार करना
- परिक्री—क्रया ॰ उभ॰—परि-क्री—-—मोल लेना
- परिक्री—क्रया ॰ उभ॰—परि-क्री—-—किराये पर लेना, कुछ समय के लिए मोल लेना
- परिक्री—क्रया ॰ उभ॰—परि-क्री—-—वापिस करना, बदला देना, चुकाना
- विक्री—क्रया ॰ उभ॰—वि-क्री—-—बेचना
- विक्री—क्रया ॰ उभ॰—वि-क्री—-—विनिमय, अदलाबदली
- क्रीड्—भ्वा॰ पर॰ <क्रीडति, <क्रीडित>—-—-—खेलना, मनोरंजन करना
- क्रीड्—भ्वा॰ पर॰ <क्रीडति, <क्रीडित>—-—-—जूआ खेलना, पासों से खेलना
- क्रीड्—भ्वा॰ पर॰ <क्रीडति, <क्रीडित>—-—-—हँसी दिल्ल्गी करना, मजाक करना, खिल्ली उड़ाना
- अनुक्रीड्—भ्वा॰ आ॰—अनु-क्रीड्—-—खेलना, किलोल करना, जी बहलाना
- आक्रीड्—भ्वा॰ आ॰—आ-क्रीड्—-—खेलना, कौतुक करना
- परिक्रीड्—भ्वा॰ आ॰—परि-क्रीड्—-—खेलना, कौतुक करना
- सङ्क्रीड्—भ्वा॰ आ॰—सम्-क्रीड्—-—खेलना, कौतुक करना
- सङ्क्रीड्—भ्वा॰ पर॰—सम्-क्रीड्—-—‘कोलाहल करने ’ के अर्थ को प्रकट करता है
- क्रीडः—पुं॰—-—क्रीड् + घञ्—किलोल, मनबहलाव, खेल, आमोद
- क्रीडः—पुं॰—-—क्रीड् + घञ्—हंसी दिल्लगी, मजाक
- क्रीडनम्—नपुं॰—-—क्रीड् + ल्युट्—खेलना, किलोल करना
- क्रीडनम्—नपुं॰—-—क्रीड् + ल्युट्—खेलने की चीज, खिलौना
- क्रीडनकः—पुं॰—-—क्रीडन + कन्—खेलने की चीज, खिलौना
- क्रीडनकम्—नपुं॰—-—क्रीडन + कन्, क्रीड + अनीयर्—खेलने की चीज, खिलौना
- क्रीडनीयम्—नपुं॰—-—क्रीडनीय + कन्—खेलने की चीज, खिलौना
- क्रीडनीयकम्—नपुं॰—-—क्रीडनीय + कन्—खेलने की चीज, खिलौना
- क्रीडा—स्त्री॰—-—क्रीड् + अ + टाप्—किलोल, जी बहलाना, खेलना, आमोद
- क्रीडा—स्त्री॰—-—क्रीड् + अ + टाप्—हंसी, दिल्लगी
- क्रीडागृहम्—नपुं॰—क्रीडा-गृहम्—-—आमोद भवन
- क्रीडाशैलः—पुं॰—क्रीडा-शैलः—-—आमोद
- क्रीडानारी—स्त्री॰—क्रीडा-नारी—-—वेश्या
- क्रीडाकोपः—पुं॰—क्रीडा-कोपः—-—झूठमूठ का क्रोध
- क्रीडामयूरः—पुं॰—क्रीडा-मयूरः—-—मनोरंजन के लिए पाला गया मोर
- क्रीडारत्नम्—नपुं॰—क्रीडा-रत्नम्—-—कामकेलि, मैथुन
- क्रीत—वि॰—-—क्री + क्त—मोल लिया हुआ
- क्रीतः—पुं॰—-—क्री + क्त—हिन्दुधर्मशास्त्र में प्रतिपादित १२ प्रकार के पुत्रों में एक, अपने नैसर्गिक माता पिता से मोल लिया हुआ पुत्र
- क्रीतानुशयः—पुं॰—क्रीत-अनुशयः—-—किसी वस्तु को मोल लेकर पछताना, किये का निराकरण करना, खरीदी हुई वस्तु को वापिस करना
- क्रुञ्च्—पुं॰—-—क्रुञ्च् + क्विन्—जलकुक्कुटी, बगला
- क्रुञ्चः—पुं॰—-—क्रुञ्च् + क्विन् अच् वा—जलकुक्कुटी, बगला
- क्रुध्—दिवा॰ पर॰ <क्रुध्यति>, <क्रुद्ध>—-—-—गुस्से होना
- प्रतिक्रुध्—दिवा॰ पर॰ —प्रति-क्रुध्—-—बदले में कुपित होना
- सङ्क्रुध्—दिवा॰ पर॰ —सम्-क्रुध्—-—कुपित होना
- क्रुध्—स्त्री॰—-—क्रुध् + क्विप्—क्रोध, कोप
- क्रुश्—भ्वा॰ पर॰ <क्रोशति>, <क्रुष्ट>—-—-—चिल्लाना, रोना, विलाप करना, शोक मनाना
- क्रुश्—भ्वा॰ पर॰ <क्रोशति>, <क्रुष्ट>—-—-—चीखना, किलकिलाना, कूका देना, चीत्कार करना, पुकारना
- अनुक्रुश्—भ्वा॰ पर॰—अनु-क्रुश्—-—दया करना, करुणा करना
- अभिक्रुश्—भ्वा॰ पर॰—अभि-क्रुश्—-—विलाप करना
- आक्रुश्—भ्वा॰ पर॰—आ-क्रुश्—-—चिल्लाना, जोर से पुकारना
- आक्रुश्—भ्वा॰ पर॰—आ-क्रुश्—-—खरीखोटी सुनाना, गालियाँ देना
- परिक्रुश्—भ्वा॰ पर॰—परि-क्रुश्—-—विलाप करना
- प्रत्याक्रुश्—भ्वा॰ पर॰—प्रत्या-क्रुश्—-—गाली के उत्तर में गाली देना
- विक्रुश्—भ्वा॰ पर॰—वि-क्रुश्—-—चीखना, चिल्लाना
- विक्रुश्—भ्वा॰ पर॰—वि-क्रुश्—-—उच्चारण करना
- विक्रुश्—भ्वा॰ पर॰—वि-क्रुश्—-—पुकारना
- विक्रुश्—भ्वा॰ पर॰—वि-क्रुश्—-—गूंजना
- व्याक्रुश्—भ्वा॰ पर॰—व्या-क्रुश्—-—विलाप करना, शोक मनाना
- क्रुष्ट—वि॰—-—क्रुश् + क्त—चिल्लाया हुआ
- क्रुष्ट—वि॰—-—क्रुश् + क्त—पुकारा हुआ
- क्रुष्टम्—नपुं॰—-—क्रुश् + क्त—चिल्लाना, चीखना, रोना
- क्रूर—वि॰—-—कृत् + रक् घातोः क्रू—निर्दय, निष्ठुर, कठोरहृदय, निष्करुण
- क्रूर—वि॰—-—कृत् + रक् घातोः क्रू—कठोर, कड़ा
- क्रूर—वि॰—-—कृत् + रक् घातोः क्रू—दारूण, भयंकर, भीषण
- क्रूर—वि॰—-—कृत् + रक् घातोः क्रू—नाशकारी, अनिष्टकर
- क्रूर—वि॰—-—कृत् + रक् घातोः क्रू—घायल, चोट लगा हुआ
- क्रूर—वि॰—-—कृत् + रक् घातोः क्रू—खूनी
- क्रूर—वि॰—-—कृत् + रक् घातोः क्रू—कच्चा
- क्रूर—वि॰—-—कृत् + रक् घातोः क्रू—मजबूत
- क्रूर—वि॰—-—कृत् + रक् घातोः क्रू—गरम, तेज, अरूचिकर
- क्रूरः—पुं॰—-—कृत् + रक् घातोः क्रू—बाज, बगला
- क्रूरम्—नपुं॰—-—कृत् + रक् घातोः क्रू—घाव
- क्रूरम्—नपुं॰—-—कृत् + रक् घातोः क्रू—हत्या, क्रूरता
- क्रूरम्—नपुं॰—-—कृत् + रक् घातोः क्रू—भीषण कृत्य
- क्रूराकृति—वि॰—क्रूर-आकृति—-—डरावनी सूरत वाला
- क्रूराकृतिः—पुं॰—क्रूर-आकृतिः—-—रावण का विशेषण
- क्रूराचार—वि॰—क्रूर-आचार—-—क्रूर और बर्बर आचरण करने वाला
- क्रूराशय—वि॰—क्रूर-आशय—-—भयानक जीवजन्तुओं से भरा हुआ
- क्रूराशय—वि॰—क्रूर-आशय—-—क्रूर स्वभाव का
- क्रूरकर्मन्—नपुं॰—क्रूर-कर्मन्—-—रक्तरंजित करतूत
- क्रूरकर्मन्—नपुं॰—क्रूर-कर्मन्—-—कठोर श्रम्
- क्रूरकृत्—वि॰—क्रूर-कृत्—-—भीषण, क्रूर, निर्मम
- क्रूरकोष्ठ—वि॰—क्रूर-कोष्ठ—-—कड़े कोठे वाला जिस पर मृदु विरेचन का असर न हो
- क्रूरगन्धः—पुं॰—क्रूर-गन्धः—-—गन्धक
- क्रूरदृश्—वि॰—क्रूर-दृश्—-—बुरी दृष्टि वाला, कुदृष्टी डालने वाला
- क्रूरदृश्—वि॰—क्रूर-दृश्—-—खल, दुष्ट
- क्रूरराबिन्—पुं॰—क्रूर-राबिन्—-—पहाड़ी कौवा
- क्रूरलोचनः—पुं॰—क्रूर-लोचनः—-—शनिग्रह का विशेषण
- क्रेतृ—पुं॰—-—क्री + तृच्—क्रेता, खरीददार
- क्रोञ्चः—पुं॰—-—क्रुञ्च् + अच्, बा॰ गुणः—एक पहाड़ का नाम
- क्रोडः—पुं॰—-—क्रुड् + घञ्—सूअर, वृक्ष की खोडर, गढ़ा
- क्रोडः—पुं॰—-—क्रुड् + घञ्—सीना, वक्षस्थल, छाती
- क्रोडीकृ——-—-—छाती से लगाना
- क्रोडः—पुं॰—-—क्रुड् + घञ्—किसी वस्तु मध्य भाग
- क्रोडः—पुं॰—-—क्रुड् + घञ्—शनिग्रह का विशेषण
- क्रोडम्—नपुं॰—-—क्रुड् + घञ्—छाती, सीना, कन्धों के बीच का भाग
- क्रोडम्—नपुं॰—-—क्रुड् + घञ्—किसी वस्तु का मध्यवर्ती भाग, गढ़ा, कोटर
- क्रोडा—स्त्री॰—-—क्रुड् + घञ्+टाप्—छाती, सीना, कन्धों के बीच का भाग
- क्रोडा—स्त्री॰—-—क्रुड् + घञ्+टाप्—किसी वस्तु का मध्यवर्ती भाग, गढ़ा, कोटर
- क्रोडाङ्कः—पुं॰—क्रोड-अङ्कः—-—कछुवा
- क्रोडाङ्घ्रिः—पुं॰—क्रोड-अङ्घ्रिः—-—कछुवा
- क्रोडपादः—पुं॰—क्रोड-पादः—-—कछुवा
- क्रोडपत्रम्—नपुं॰—क्रोड-पत्रम्—-—प्रान्तवर्ती लेख
- क्रोडपत्रम्—नपुं॰—क्रोड-पत्रम्—-—पत्र का पश्चलेख
- क्रोडपत्रम्—नपुं॰—क्रोड-पत्रम्—-—सम्पूरक
- क्रोडपत्रम्—नपुं॰—क्रोड-पत्रम्—-—वसीयतनामे का परवर्ती उत्तराधिकार-पत्र
- क्रोडीकरणम्—नपुं॰—-—क्रोड् + च्वि + कृ + ल्युट—आलिंगन करना, छाती से लगाना
- क्रोडीमुखः—पुं॰—-—क्रोड्याः मुखमिव मुखमस्याः ब॰ स॰—गेंडा
- क्रोधः—पुं॰—-—क्रुध् + घञ्—कोप, गुस्सा
- क्रोधः—पुं॰—-—क्रुध् + घञ्—क्रोध एकप्रकार की भावना है जिससे रौद्ररस का उदय होता है
- क्रोधोज्झित—वि॰—क्रोध-उज्झित—-—क्रोध से मुक्त, शान्त, स्वस्थ
- क्रोधमूर्छित—वि॰—क्रोध-मूर्छित—-—क्रोध से अभिभूत या क्रोधोन्मत्त
- क्रोधन—वि॰—-—क्रुध् + ल्युट्—गुस्से से भरा हुआ, क्रोधाविष्ट, क्रुद्ध, चिड़चिड़ा
- क्रोधनम्—नपुं॰—-—क्रुध् + ल्युट्—क्रुद्ध होना, कोप
- क्रोधालु—वि॰—-—क्रुध् + आलुच्—क्रोधाविष्ट, चिड़चिड़ा, गुस्सैल
- क्रोशः—पुं॰—-—क्रुश् + घञ्—चिल्लाना, चीख, चीत्कार, कूका देना, कोलाहल
- क्रोशः—पुं॰—-—क्रुश् + घञ्—चौथाई योजना, एक कोस
- क्रोशतालः—पुं॰—क्रोश-तालः—-—एक बड़ा ढोल
- क्रोशध्वनिः—पुं॰—क्रोश-ध्वनिः—-—एक बड़ा ढोल
- क्रोशन—वि॰—-—क्रुश् + ल्युट्—चिल्लाने वाला
- क्रोशनम्—नपुं॰—-—क्रुश् + ल्युट्—चीख चिल्लाहट
- क्रोष्टु—पुं॰—-—क्रुश् + तुन्—गीदड़
- क्रौञ्चः—नपुं॰—-—क्रुञ्च् + अण्—जलकुक्कुटी, कुररी, बगला
- क्रौञ्चः—नपुं॰—-—-—एक पर्वत का नाम
- क्रौञ्चादनम्—नपुं॰—क्रौञ्च-अदनम्—-—कमलडंडी के रेशे
- क्रौञ्चारातिः—पुं॰—क्रौञ्च-अरातिः—-—कार्तिकेय का विशेषण
- क्रौञ्चारातिः—पुं॰—क्रौञ्च-अरातिः—-—परशुराम का विशेषण
- क्रौञ्चारिः—पुं॰—क्रौञ्च-अरिः—-—कार्तिकेय का विशेषण
- क्रौञ्चारिः—पुं॰—क्रौञ्च-अरिः—-—परशुराम का विशेषण
- क्रौञ्चरिपुः—पुं॰—क्रौञ्च-रिपुः—-—कार्तिकेय का विशेषण
- क्रौञ्चरिपुः—पुं॰—क्रौञ्च-रिपुः—-—परशुराम का विशेषण
- क्रौञ्चदारणः—पुं॰—क्रौञ्च-दारणः—-—कार्तिकेय का विशेषण
- क्रौञ्चदारणः—पुं॰—क्रौञ्च-दारणः—-—परशुराम का विशेषण
- क्रौञ्चसूदनः—पुं॰—क्रौञ्च-सूदनः—-—कार्तिकेय का विशेषण
- क्रौञ्चसूदनः—पुं॰—क्रौञ्च-सूदनः—-—परशुराम का विशेषण
- क्रौर्यम्—नपुं॰—-—क्रूर + ष्यञ्—क्रूरता, कठोरहृदयता
- क्लन्द्—भ्वा॰ पर॰ <क्लन्दति>, <क्लन्दित>—-—-—पुकारना, चिल्लाना
- क्लन्द्—भ्वा॰ पर॰ <क्लन्दति>, <क्लन्दित>—-—-—रोना, विलाप करना
- क्लन्द्—भ्वा॰ आ॰ <क्लन्दते>, <क्लदते>—-—-—घबड़ा जाना
- क्लम्—भ्वा॰ दिवा॰, पर॰ <क्लामति>, <क्लाम्यति>, <क्लान्त>—-—-—थक जाना, थककर चूर होना, अवसन्न होना
- विक्लम्—भ्वा॰ दिवा॰, पर॰—वि-क्लम्—-—थक जाना
- क्लमः—पुं॰—-—क्लम् + घञ्—थकावट, कलान्ति अवसाद
- क्लमथः—पुं॰—-—क्लम् + घञ्, अथच् वा—थकावट, कलान्ति अवसाद
- क्लान्त—वि॰—-—क्लम् + क्त—थका हुआ, थक कर चूर हुआ
- क्लान्त—वि॰—-—क्लम् + क्त—मुर्झाया हुआ, म्लान
- क्लान्त—वि॰—-—क्लम् + क्त—दुबला-पतला
- क्लान्ति—स्त्री॰—-—क्लम् + क्तिन्—थकावट
- क्लान्तिछिद—वि॰—क्लान्ति-छिद—-—थकावट दूर करने वाला, बलदायक
- क्लिद्—दिवा॰ पर॰ <क्लिद्यति>, <क्लिन्न>—-—-—गीला होना, आर्द्र होना, तर होना
- क्लिद्—पुं॰—-—-—तय करना, गीला करना
- क्लिन्न—वि॰—-—क्लिद् + क्त—गीला, तर
- अक्षक्लिन्न—वि॰—अक्ष-क्लिन्न—-—चौंधियाई आँखों वाला
- क्लिश्—दिवा॰आ॰ <क्लिश्यते>, <क्लिष्ट>, <क्लिशित>—-—-—दुःखी होना, पीड़ित होना, कष्ट होना
- क्लिश्—दिवा॰आ॰ <क्लिश्यते>, <क्लिष्ट>, <क्लिशित>—-—-—दुःख देना, सताना
- क्लिश्—क्रया॰ पर॰ <क्लिश्नाति>, <क्लिष्ट>, <क्लिशित>—-—-—दुःख देना, सताना, पीड़ित करना, सताना, कष्ट देना
- क्लिशित—वि॰—-—क्लिश् + क्त—दुःखी, पीड़ित, संकट ग्रस्त, सताया हुआ
- क्लिशित—वि॰—-—क्लिश् + क्त—मुर्झाया हुआ
- क्लिशित—वि॰—-—क्लिश् + क्त—असंगत, विरोधी
- क्लिशित—वि॰—-—क्लिश् + क्त—परिष्कृत, कृत्रिम
- क्लिशित—वि॰—-—क्लिश् + क्त—लज्जित
- क्लिष्ट—वि॰—-—क्लिश् + क्त—दुःखी, पीड़ित, संकट ग्रस्त, सताया हुआ
- क्लिष्ट—वि॰—-—क्लिश् + क्त—मुर्झाया हुआ
- क्लिष्ट—वि॰—-—क्लिश् + क्त—असंगत, विरोधी
- क्लिष्ट—वि॰—-—क्लिश् + क्त—परिष्कृत, कृत्रिम
- क्लिष्ट—वि॰—-—क्लिश् + क्त—लज्जित
- क्लिष्टिः—स्त्री॰—-—क्लिश् + क्तिन्—कष्ट वेदना, दुःख, पीडा
- क्लिष्टिः—स्त्री॰—-—क्लिश् + क्तिन्—सेवा
- क्लीब —वि॰—-—क्लीब् + क—हिजड़ा, नपुंसक, बधिया किया हुआ
- क्लीब —वि॰—-—क्लीब् + क—पुरूषार्थहीन, भिरू, दुर्बल, दुर्बलमना
- क्लीब —वि॰—-—क्लीब् + क—कायर
- क्लीब —वि॰—-—क्लीब् + क—नीच अधम
- क्लीब —वि॰—-—क्लीब् + क—सुस्त
- क्लीब —वि॰—-—क्लीब् + क—नपुंसक लिंग का
- क्लीव—वि॰—-—क्लीव् + क—हिजड़ा, नपुंसक, बधिया किया हुआ
- क्लीव—वि॰—-—क्लीव् + क—पुरूषार्थहीन, भिरू, दुर्बल, दुर्बलमना
- क्लीव—वि॰—-—क्लीव् + क—कायर
- क्लीव—वि॰—-—क्लीव् + क—नीच अधम
- क्लीव—वि॰—-—क्लीव् + क—सुस्त
- क्लीव—वि॰—-—क्लीव् + क—नपुंसक लिंग का
- क्लीबः—पुं॰—-—क्लीब् + क—नामर्द, हिजड़ा
- क्लीबः—पुं॰—-—क्लीब् + क—नपुंसक लिंग
- क्लीवः—पुं॰—-—क्लीव् + क—नामर्द, हिजड़ा
- क्लीवः—पुं॰—-—क्लीव् + क—नपुंसक लिंग
- क्लीबम्—नपुं॰—-—क्लीब् + क—नामर्द, हिजड़ा
- क्लीबम्—नपुं॰—-—क्लीब् + क—नपुंसक लिंग
- क्लीवम्—नपुं॰—-—क्लीव् + क—नामर्द, हिजड़ा
- क्लीवम्—नपुं॰—-—क्लीव् + क—नपुंसक लिंग
- क्लेदः—पुं॰—-—क्लिद् + घञ्—गीलापन, आर्द्रता, तरी, नमी
- क्लेदः—पुं॰—-—क्लिद् + घञ्—बहने वाला, घाव से निकलने वाला मवाद
- क्लेदः—पुं॰—-—क्लिद् + घञ्—दुःख, कष्ट
- क्लेशः—पुं॰—-—क्लिश् + घञ्—पीड़ा, वेदना, कष्ट, दुःख, तकलीफ
- क्लेशः—पुं॰—-—क्लिश् + घञ्—गुस्सा, क्रोध
- क्लेशः—पुं॰—-—क्लिश् + घञ्—सांसारिक कामकाज
- क्लेशक्षम—वि॰—क्लेश-क्षम—-—कष्ट सहने में समर्थ
- क्लैब्यम्—नपुं॰—-—क्लीब + ष्यञ्—नामर्दी
- क्लैब्यम्—नपुं॰—-—क्लीब + ष्यञ्—पुरूषार्थहीनता, भीरूता, कायरता
- क्लैब्यम्—नपुं॰—-—क्लीब + ष्यञ्—अनुपयुक्तता, नामर्दी, शक्तिहीनता
- क्लैव्यम्—नपुं॰—-—क्लीव + ष्यञ्—नामर्दी
- क्लैव्यम्—नपुं॰—-—क्लीव + ष्यञ्—पुरूषार्थहीनता, भीरूता, कायरता
- क्लैव्यम्—नपुं॰—-—क्लीव + ष्यञ्—अनुपयुक्तता, नामर्दी, शक्तिहीनता
- क्लोमम्—नपुं॰—-—क्लु + मनिन्—फेफड़े
- क्व—अव्य॰—-—किम् + अत्, कु आदेशः—किधर, कहाँ
- क्वक्व—अव्य॰—क्व-क्व—-—जब किसी सामान्य वाक्य खण्ड में प्रयुक्त होता हैं तो इसका अर्थ है -‘भारी’ ‘अन्तर’ ‘असंगति’
- क्वक्व—अव्य॰—क्व-क्व—-—कभी कभी ‘क्व’ का प्रयोग ‘किम्’ शब्द के अधिकार का होता है
- क्वापि—अव्य॰—क्व-अपि—-—कहीं, किसी जगह
- क्वापि—अव्य॰—क्व-अपि—-—कभीकभी
- क्वचित्—अव्य॰—क्व-चित्—-—कुछ स्थानों पर
- क्वचित्—अव्य॰—क्व-चित्—-—कुछ बातों में
- क्वचित्क्वचित्—अव्य॰—क्वचित्-क्वचित्—-—एक जगह - दूसरी जगह, यहाँ-वहाँ
- क्वचित्क्वचित्—अव्य॰—क्वचित्-क्वचित्—-—कभी-कभी
- क्वण्—भ्वा॰ पर॰ <क्वणति>, <क्वणित>—-—-—अस्पष्ट शब्द करना, झनझन शब्द, टनटन शब्द
- क्वण्—भ्वा॰ पर॰ <क्वणति>, <क्वणित>—-—-—भिनभिनाना, गुंजन, अस्पष्ट गायन
- क्वणः—पुं॰—-—क्वण् + अप्—सामान्य शब्द
- क्वणः—पुं॰—-—क्वण् + अप्—किसी भी वाद्ययन्त्र की ध्वनि
- क्वणनम्—नपुं॰—-—क्वण् + ल्युट् क्तम्—किसी भी वाद्ययन्त्र की ध्वनि
- क्वणितम्—नपुं॰—-—क्वण् + ल्युट् क्तम्—किसी भी वाद्ययन्त्र की ध्वनि
- क्वाणः—पुं॰—-—क्वण् + घञ् —किसी भी वाद्ययन्त्र की ध्वनि
- क्वत्य—वि॰—-—क्व + त्यप्—किस स्थान पर सम्बन्ध रखने वाला, कहाँ पर होने वाला
- क्वथ्—भ्वा॰ पर॰ <क्वथति>, <क्वथित>—-—-—उबालना, काढ़ा बनाना
- क्वथ्—भ्वा॰ पर॰ <क्वथति>, <क्वथित>—-—-—पचाना
- क्वथः—पुं॰—-—क्वाथ् + अच्, घञ् वा—काढा, लगातार मन्दी आँच में तैयार किया गया घोल
- क्वाचित्क—वि॰—-—-—अकस्मात घटित, विरल, असाधारण
- क्षः—पुं॰—-—क्षि + ड—नाश
- क्षः—पुं॰—-—क्षि + ड—अन्तर्धान, हानि
- क्षः—पुं॰—-—क्षि + ड—बिजली
- क्षः—पुं॰—-—क्षि + ड—खेत
- क्षः—पुं॰—-—क्षि + ड—किसान
- क्षः—पुं॰—-—क्षि + ड—विष्णु का नरसिंहावतार
- क्षः—पुं॰—-—क्षि + ड—राक्षस
- क्षण् —तना॰ उभ॰ <क्षणोति>, <क्षणुते>, <क्षुत्त>—-—-—चोट पहुँचाना, क्षति पहुँचाना
- क्षण् —तना॰ उभ॰ <क्षणोति>, <क्षणुते>, <क्षुत्त>—-—-—तोड़ना, टुकड़े-टुकड़े करना
- क्षन्—तना॰ उभ॰ <क्षणोति>, <क्षणुते>, <क्षुत्त>—-—-—चोट पहुँचाना, क्षति पहुँचाना
- क्षन्—तना॰ उभ॰ <क्षणोति>, <क्षणुते>, <क्षुत्त>—-—-—तोड़ना, टुकड़े-टुकड़े करना
- उपक्षण्—तना॰ उभ॰ —उप-क्षण्—-—उसी अर्थ में प्रयोग जो ‘क्षण’ का मूल अर्थ है।
- परिक्षण्—तना॰ उभ॰ —परि-क्षण्—-—उसी अर्थ में प्रयोग जो ‘क्षण’ का मूल अर्थ है।
- विक्षण्—तना॰ उभ॰ —वि-क्षण्—-—उसी अर्थ में प्रयोग जो ‘क्षण’ का मूल अर्थ है।
- क्षणः—पुं॰—-—क्षण् + अच्—लमहा, निमेष, एक सैकंड से ४।५ भाग के बराबर समय की माप
- क्षणः—पुं॰—-—क्षण् + अच्—अवकाश
- क्षणः—पुं॰—-—क्षण् + अच्—उपयुक्त क्षण या अवसर
- क्षणः—पुं॰—-—क्षण् + अच्—उत्सव, हर्ष, खुशी
- क्षणः—पुं॰—-—क्षण् + अच्—आश्रय, दासता
- क्षणः—पुं॰—-—क्षण् + अच्—केन्द्र, मध्यभाग
- क्षणम्—नपुं॰—-—क्षण् + अच्—लमहा, निमेष, एक सैकंड से ४।५ भाग के बराबर समय की माप
- क्षणम्—नपुं॰—-—क्षण् + अच्—अवकाश
- क्षणम्—नपुं॰—-—क्षण् + अच्—उपयुक्त क्षण या अवसर
- क्षणम्—नपुं॰—-—क्षण् + अच्—उत्सव, हर्ष, खुशी
- क्षणम्—नपुं॰—-—क्षण् + अच्—आश्रय, दासता
- क्षणम्—नपुं॰—-—क्षण् + अच्—केन्द्र, मध्यभाग
- क्षणान्तरे—अव्य॰—क्षण-अन्तरे—-—दूसरे क्षण, कुछ देर के पश्चात
- क्षणक्षेपः—पुं॰—क्षण-क्षेपः—-—क्षणिक विलंब
- क्षणदः—पुं॰—क्षण-दः—-—ज्योतिषी
- क्षणदम्—नपुं॰—क्षण-दम्—-—पानी
- क्षणदा—स्त्री॰—क्षण-दा—-—रात
- क्षणदा—स्त्री॰—क्षण-दा—-—हल्दी
- क्षणदकरः—पुं॰—क्षण-द-करः—-—चाँद
- क्षणदपतिः—पुं॰—क्षण-द-पतिः—-—चाँद
- क्षणदचरः—पुं॰—क्षण-द-चरः—-—रात में घूमने वाला, राक्षस
- क्षणदान्ध्यम्—पुं॰—क्षण-द-आन्ध्यम्—-—रात्रि में अन्धापन, रतौंधी
- क्षणद्युतिः—स्त्री॰—क्षण-द्युतिः—-—बिजली
- क्षणप्रकाशा—स्त्री॰—क्षण-प्रकाशा—-—बिजली
- क्षणप्रभा—स्त्री॰—क्षण-प्रभा—-—बिजली
- क्षणनिश्वासः—पुं॰—क्षण-निश्वासः—-—शिंशुक
- क्षणभङ्गुर—वि॰—क्षण-भङ्गुर—-—क्षणस्थायी, चंचल, नश्वर
- क्षणमात्रम्—अव्य॰—क्षण-मात्रम्—-—क्षणभर के लिए
- क्षणरामिन्—पुं॰—क्षण-रामिन्—-—कबूतर
- क्षणविध्वंसिन्—वि॰—क्षण-विध्वंसिन्—-—क्षणभर में नष्ट होने वाला
- क्षणविध्वंसिन्—पुं॰—क्षण-विध्वंसिन्—-—नास्तिक दार्शनिकों का सम्प्रदाय जो यह मानता है कि प्रकृति का प्रत्येक पदार्थ प्रतिक्षण नष्ट होकर नया बनता रहता हैं।
- क्षणतुः—पुं॰—-—क्षण् + अतु—घाव, फोड़ा
- क्षणनम्—नपुं॰—-—क्षण् + ल्युट्—क्षति पहुँचाना, घायल करना, मार डालना
- क्षणिक—वि॰—-—क्षण + ठन्—क्षणस्थायी, अचिरस्थायी
- क्षणिका—स्त्री॰—-—क्षण + ठन्—बिजली
- क्षणिन्—वि॰—-—क्षण + इनि—अवकाश रखने वाला
- क्षणिन्—वि॰—-—क्षण + इनि—क्षणस्थायी
- क्षणिनी—स्त्री॰—-—क्षण + इनि—बिजली
- क्षत—वि॰—-—क्षण् + क्त—घायल, चोट लगा हुआ, क्षतिग्रस्त, काटा हुआ, फाड़ा हुआ, चीरा हुआ, तोड़ा हुआ
- क्षतम्—नपुं॰—-—क्षण् + क्त—खरोच
- क्षतम्—नपुं॰—-—क्षण् + क्त—घाव, चोट, क्षति
- क्षतम्—नपुं॰—-—क्षण् + क्त—भय, विनाश, खतरा
- क्षतअरि—वि॰—क्षत-अरि—-—विजयी
- क्षतउदरम्—नपुं॰—क्षत-उदरम्—-—पेचिश
- क्षतकासः—पुं॰—क्षत-कासः—-—आघात से उत्पन्न खांसी
- क्षतजम्—नपुं॰—क्षत-जम्—-—रूधिर
- क्षतजम्—नपुं॰—क्षत-जम्—-—पीप, मवाद
- क्षतयोनिः—स्त्री॰—क्षत-योनिः—-—भ्रष्ट स्त्री, वह स्त्री जिसका कौमार्य भंग हो चुका हो
- क्षतविक्षत—वि॰—क्षत-विक्षत—-—विक्षतांग, जिसका शरीर बहुत जगह से कट गया हो, तथा घावों से भरा हो
- क्षतवृत्तिः—स्त्री॰—क्षत-वृत्तिः—-—दरिद्रता, जीविका के साधनों से वंचित
- क्षतव्रतः—पुं॰—क्षत-व्रतः—-—वह विद्यार्थी जिसने अपनी धार्मिक प्रतिज्ञा या व्रत भंग कर दिया हो
- क्षतिः—स्त्री॰—-—क्षण् +क्तिन्—चोट, घाव
- क्षतिः—स्त्री॰—-—क्षण् +क्तिन्—नाश, काट, फाड़
- क्षतिः—स्त्री॰—-—क्षण् +क्तिन्—बर्बादी, हानि, नुकसान
- क्षतिः—स्त्री॰—-—क्षण् +क्तिन्—ह्रास, क्षय, न्यूनता
- क्षत्तृ—पुं॰—-—क्षद् + तृच्—जो काटने और रूपरेखा खोदने का काम करता है
- क्षत्तृ—पुं॰—-—क्षद् + तृच्—परिचारक, द्वारपाल
- क्षत्तृ—पुं॰—-—क्षद् + तृच्—कोचवान, सारथि
- क्षत्तृ—पुं॰—-—क्षद् + तृच्—शुद्रपिता तथा क्षत्रिय माता से उत्पन्न संतान
- क्षत्तृ—पुं॰—-—क्षद् + तृच्—दासी का पुत्र
- क्षत्तृ—पुं॰—-—क्षद् + तृच्—ब्रह्मा
- क्षत्तृ—पुं॰—-—क्षद् + तृच्—मछली
- क्षत्रः—पुं॰—-—क्षण् + क्विप् = क्षत्, ततः त्रायते - त्रै + क—अधिराज्य, शक्ति, प्रभुता, सामर्थ्य
- क्षत्रः—पुं॰—-—क्षण् + क्विप् = क्षत्, ततः त्रायते - त्रै + क—क्षत्रिय जाति का पुरूष
- क्षत्रान्तकः—पुं॰—क्षत्र-अन्तकः—-—परशुराम का विशेषण
- क्षत्रधर्मः—पुं॰—क्षत्र-धर्मः—-—बहादुरी, सैनिक शूरवीरता
- क्षत्रधर्मः—पुं॰—क्षत्र-धर्मः—-—क्षत्रिय के कर्तव्य
- क्षत्रपः—पुं॰—क्षत्र-पः—-—राज्यपाल, उपशासक
- क्षत्रबन्धुः—पुं॰—क्षत्र-बन्धुः—-—क्षत्रिय जाति का पुरूष
- क्षत्रबन्धुः—पुं॰—क्षत्र-बन्धुः—-—क्षत्रिय मात्र, अपक्षत्रिय, घृणित या निकम्मा क्षत्रिय
- क्षत्रम्—नपुं॰—-—क्षण् + क्विप् = क्षत्, ततः त्रायते - त्रै + क—अधिराज्य, शक्ति, प्रभुता, सामर्थ्य
- क्षत्रम्—नपुं॰—-—क्षण् + क्विप् = क्षत्, ततः त्रायते - त्रै + क—क्षत्रिय जाति का पुरूष
- क्षत्रान्तकः—पुं॰—क्षत्रम्-अन्तकः—-—परशुराम का विशेषण
- क्षत्रधर्मः—पुं॰—क्षत्रम्-धर्मः—-—बहादुरी, सैनिक शूरवीरता
- क्षत्रधर्मः—पुं॰—क्षत्रम्-धर्मः—-—क्षत्रिय के कर्तव्य
- क्षत्रपः—पुं॰—क्षत्रम्-पः—-—राज्यपाल, उपशासक
- क्षत्रबन्धुः—पुं॰—क्षत्रम्-बन्धुः—-—क्षत्रिय जाति का पुरूष
- क्षत्रबन्धुः—पुं॰—क्षत्रम्-बन्धुः—-—क्षत्रिय मात्र, अपक्षत्रिय, घृणित या निकम्मा क्षत्रिय
- क्षत्रियः—पुं॰—-—क्षत्रे राष्ट्रे साधु तस्यापत्यं जातौ वा घः तारा॰)—दूसरे वर्ण या सैनिक जाति का पुरूष
- क्षत्रियहणः—पुं॰—क्षत्रिय-हणः—-—परशुराम का विशेषण
- क्षत्रियका—स्त्री॰—-—क्षत्रिया + कन् + टाप्, ह्रस्वः —क्षत्रिय जाति का स्त्री
- क्षत्रिया—स्त्री॰—-—क्षत्रिय + टाप् —क्षत्रिय जाति का स्त्री
- क्षत्रियिका—स्त्री॰—-—क्षत्रिया + कन् + टाप् इत्वम् वा—क्षत्रिय जाति का स्त्री
- क्षत्रियाणी—स्त्री॰—-—क्षत्रिया + ङीष्, आनुक्—क्षत्रिय जाति का स्त्री
- क्षत्रियाणी—स्त्री॰—-—क्षत्रिया + ङीष्, आनुक्—क्षत्रिय की पत्नी
- क्षन्तृ—वि॰—-—क्षम् + तृच्—प्रशान्त, सहिष्णु, विनम्र
- क्षप्—भ्वा॰ <क्षपति>, <क्षपते>, <क्षपित>—-—-—उपवास करना, संयमी होना
- क्षप्—भ्वा॰ <क्षपति>, <क्षपते>, <क्षपित>—-—-—फेकना, भेजना, डालना
- क्षप्—भ्वा॰ <क्षपति>, <क्षपते>, <क्षपित>—-—-—चूक जाना
- क्षपणः—पुं॰—-—क्षप् + ल्युट्—बौद्धभिक्षु
- क्षपणम्—नपुं॰—-—क्षप् + ल्युट्—अपवित्रता, अशौच
- क्षपणम्—नपुं॰—-—क्षप् + ल्युट्—नाश करना, दबाना, निकाल देना
- क्षपणकः—पुं॰—-—क्षपण + कन्—बौद्ध या जैन साधु
- क्षपणी—स्त्री॰—-—क्षप् + ल्युट् + ङीष्—चप्पू
- क्षपणी—स्त्री॰—-—क्षप् + ल्युट् + ङीष्—जाल
- क्षपण्युः—पुं॰—-—क्षप् + अन्यु, णत्वम्—अपराध
- क्षपा—स्त्री॰—-—क्षप् + अच् + टाप्—रात
- क्षपा—स्त्री॰—-—क्षप् + अच् + टाप्—हल्दी
- क्षपाटः—पुं॰—क्षपा-अटः—-—रात में घूमने वाला
- क्षपाटः—पुं॰—क्षपा-अटः—-—राक्षस, पिशाच
- क्षपाकरः—पुं॰—क्षपा-करः—-—चन्द्रमा
- क्षपाकरः—पुं॰—क्षपा-करः—-—कपूर
- क्षपानाथः—पुं॰—क्षपा-नाथः—-—चन्द्रमा
- क्षपानाथः—पुं॰—क्षपा-नाथः—-—कपूर
- क्षपाघनः—पुं॰—क्षपा-घनः—-—काला बादल
- क्षपाचरः—पुं॰—क्षपा-चरः—-—राक्षस, पिशाच
- क्षम्—भ्वा॰ आ॰ <क्षमते>, <क्षाम्यति>, <क्षान्त> या <क्षमित>—-—-—अनुमति देना, इजाजत देना, चलने देना
- क्षम्—भ्वा॰ आ॰ <क्षमते>, <क्षाम्यति>, <क्षान्त> या <क्षमित>—-—-—क्षमा करना, माफ करना देना
- क्षम्—भ्वा॰ आ॰ <क्षमते>, <क्षाम्यति>, <क्षान्त> या <क्षमित>—-—-—धैर्यवान होना, चुप होना, प्रतीक्षा करना
- क्षम्—भ्वा॰ आ॰ <क्षमते>, <क्षाम्यति>, <क्षान्त> या <क्षमित>—-—-—सहन करना, गम का जाना, भुगतना
- क्षम्—भ्वा॰ आ॰ <क्षमते>, <क्षाम्यति>, <क्षान्त> या <क्षमित>—-—-—विरोध करना, रोकना
- क्षम्—भ्वा॰ आ॰ <क्षमते>, <क्षाम्यति>, <क्षान्त> या <क्षमित>—-—-—सक्षम या योग्य होना
- क्षम—वि॰—-—क्षम् + अच्—धैर्यवान
- क्षम—वि॰—-—क्षम् + अच्—सहनशील, विनम्र
- क्षम—वि॰—-—क्षम् + अच्—पर्याप्त, सक्षम, योग्य
- क्षम—वि॰—-—क्षम् + अच्—समुपयुक्त, योग्य, उचित, उपयुक्त
- क्षम—वि॰—-—क्षम् + अच्—योग्य, समर्थ, अनुरूप
- क्षम—वि॰—-—क्षम् + अच्—सहने योग्य, सह्य
- क्षम—वि॰—-—क्षम् + अच्—अनुकूल, मित्रवत्
- क्षमा—स्त्री॰—-—क्षम् + अङ् + टाप्—धैर्य, सहिष्णुता, माफी
- क्षमा—स्त्री॰—-—क्षम् + अङ् + टाप्—पृथ्वी
- क्षमा—स्त्री॰—-—क्षम् + अङ् + टाप्—दुर्गा का विशेषण
- क्षमाजः—पुं॰—क्षमा-जः—-—मंगलग्रह
- क्षमाभुज्—पुं॰—क्षमा-भुज्—-—राजा
- क्षमाभुजः—पुं॰—क्षमा-भुजः—-—राजा
- क्षमितृ—वि॰—-—क्षम् + तृच्, स्त्रियाँ ङीप्—धैर्यवान, सहनशील, क्षमा करने के स्वभाव वाला
- क्षमिन्—वि॰—-—क्षम् + घिनुण्, स्त्रियाँ ङीप्—धैर्यवान, सहनशील, क्षमा करने के स्वभाव वाला
- क्षयः—पुं॰—-—क्षि + अच्—घर, निवास, आवास
- क्षयः—पुं॰—-—क्षि + अच्—हानि, ह्रास, छीजन, घटाव, पतन, न्य़ूनता
- क्षयः—पुं॰—-—क्षि + अच्—विनाश, अंत, समाप्ति
- क्षयः—पुं॰—-—क्षि + अच्—आर्थिक क्षति
- क्षयः—पुं॰—-—क्षि + अच्—गिरना
- क्षयः—पुं॰—-—क्षि + अच्—हटाना
- क्षयः—पुं॰—-—क्षि + अच्—प्रलय
- क्षयः—पुं॰—-—क्षि + अच्—तपेदिक
- क्षयः—पुं॰—-—क्षि + अच्—रोग
- क्षयः—पुं॰—-—क्षि + अच्—निर्गुणता, ऋण
- क्षयकर—वि॰—क्षय-कर—-—नाश या तबाही करने वाला, बर्बादी करने वाला
- क्षयकालः—पुं॰—क्षय-कालः—-—प्रलयकाल
- क्षयकालः—पुं॰—क्षय-कालः—-—अवनति का समय
- क्षयकासः—पुं॰—क्षय-कासः—-—तपेदिक की खांसी
- क्षयपक्षः—पुं॰—क्षय-पक्षः—-—कृष्णपक्ष, अँधेरापक्ष
- क्षययुक्तिः—स्त्री॰—क्षय-युक्तिः—-—नाश करने का अवसर
- क्षययोगः—पुं॰—क्षय-योगः—-—नाश करने का अवसर
- क्षयरोगः—पुं॰—क्षय-रोगः—-—तपेदिक, राज्यक्षमा
- क्षयवायुः—पुं॰—क्षय-वायुः—-—प्रलयकाल की हवा
- क्षयसम्पद्—स्त्री॰—क्षय-सम्पद्—-—सर्वनाश, बर्बादी
- क्षयथु—नपुं॰—-—क्षि + अथुच्—तपेदिक के रोगी की खांसी, तपेदिक
- क्षयिन्—वि॰—-—क्षय + इनि—ह्रासमान, मुर्झाने वाला
- क्षयिन्—वि॰—-—क्षय + इनि—क्षयरोगग्रस्त
- क्षयिन्—वि॰—-—क्षय + इनि—नश्वर, भंगुर
- क्षयिन्—पुं॰—-—क्षय + इनि—चन्द्रमा
- क्षयिष्णु—वि॰—-—क्षि + इष्णुच्—बर्बाद करने वाला, नाश कारी
- क्षयिष्णु—वि॰—-—क्षि + इष्णुच्—नश्वर, भंगुर
- क्षर्—भ्वा॰ पर॰ <क्षरति>, <क्षरित>—-—-—बहना, सरकना
- क्षर्—भ्वा॰ पर॰ <क्षरति>, <क्षरित>—-—-—भेज देना, नदी की भाँति बहना, उडेलना, निकालना
- क्षर्—भ्वा॰ पर॰ <क्षरति>, <क्षरित>—-—-—बूँद-बूँद करके गिरना, टपकना, रिसना
- क्षर्—भ्वा॰ पर॰ <क्षरति>, <क्षरित>—-—-—नष्ट होना, घटना, मिटना
- क्षर्—भ्वा॰ पर॰ <क्षरति>, <क्षरित>—-—-—व्यर्थ होना, प्रभाव न होना
- क्षर्—भ्वा॰ पर॰ <क्षरति>, <क्षरित>—-—-—खिसकना, वञ्चित होना
- क्षर्—भ्वा॰ पर॰, प्रेर॰—-—-—आरोप लगाना, बदनाम करना
- विक्षर्—भ्वा॰ पर॰—वि-क्षर्—-—पिघलना, घुल जाना
- क्षर—वि॰—-—क्षर् + अच्—पिघलने वाला
- क्षर—वि॰—-—क्षर् + अच्—जंगम
- क्षर—वि॰—-—क्षर् + अच्—नश्वर
- क्षरः—पुं॰—-—क्षर् + अच्—बादल
- क्षरन्—नपुं॰—-—-—पानी
- क्षरन्—नपुं॰—-—-—शरीर
- क्षरनम्—नपुं॰—-—क्षर् + ल्युट्—बहने, टपकने, बूँद-बूँद गिरने और रिसने की क्रिया
- क्षरनम्—नपुं॰—-—क्षर् + ल्युट्—पसीना आ जाना
- क्षरिन्—पुं॰—-—क्षर + इनि—बरसात का मौसम
- क्षल्—चुरा॰ उभ॰ <क्षालयति>, <क्षालयते>, <क्षालित>—-—-—धोना, धो देना, पवित्र करना, साफ करना
- क्षल्—चुरा॰ उभ॰ <क्षालयति>, <क्षालयते>, <क्षालित>—-—-—मिटा देना
- विक्षल्—चुरा॰ उभ॰—वि-क्षल्—-—धोकर साफ करना
- क्षवः—पुं॰—-—क्षु + अप्—छींक
- क्षवः—पुं॰—-—क्षु + अप्—खांसी
- क्षवथुः—पुं॰—-—क्षु + अथुच् —छींक
- क्षवथुः—पुं॰—-—क्षु + अथुच् —खांसी
- क्षात्र—वि॰—-—क्षत्र + अण्—सैनिक जाति से संबंध रखने वाला
- क्षात्रम्—नपुं॰—-—क्षत्र + अण्—क्षत्रिय जाति
- क्षात्रम्—नपुं॰—-—क्षत्र + अण्—क्षत्रिय के गुण
- क्षान्त—भू॰ क॰ कृ॰—-—क्षम् + क्त—धैर्यवान्, सहन शील, सहिष्णु
- क्षान्त—भू॰ क॰ कृ॰—-—क्षम् + क्त—क्षमा किया गया
- क्षान्ता—स्त्री॰—-—-—पृथ्वी
- क्षान्तिः—स्त्री॰—-—-—धैर्य, सहनशीलता, क्षमा
- क्षान्तु—वि॰—-—क्षम् + तुन् , वृद्धि—धैर्यवान, सहनशील
- क्षान्तुः—पुं॰—-—क्षम् + तुन् , वृद्धि—पिता
- क्षाम—वि॰—-—क्षै + क्त—दग्ध, झुलसा हुआ
- क्षाम—वि॰—-—क्षै + क्त—क्षीण, पतला, परिक्षीण, कृश, दुबला-पतला
- क्षाम—वि॰—-—क्षै + क्त—क्षुद्र, तुच्छ, अल्प
- क्षाम—वि॰—-—क्षै + क्त—दुर्बल, निःशक्त
- क्षार—वि॰—-—क्षर् + ण बा॰—संक्षरणशील, क्षारक या दाहक, तिक्त, चरपरा, कटु, खारी
- क्षारः—पुं॰—-—क्षर् + ण बा॰—रस, अर्क
- क्षारः—पुं॰—-—क्षर् + ण बा॰—शीरा, राब
- क्षारः—पुं॰—-—क्षर् + ण बा॰—कोई क्षारीय या खट्टा पदार्थ
- क्षारः—पुं॰—-—क्षर् + ण बा॰—शीशा
- क्षारः—पुं॰—-—क्षर् + ण बा॰—बदमाश, ठग
- क्षारम्—नपुं॰—-—क्षर् + ण बा॰—काला नमक
- क्षारम्—नपुं॰—-—क्षर् + ण बा॰—पानी
- क्षाराच्छम्—नपुं॰—क्षार-अच्छम्—-—समुद्री नमक
- क्षाराञ्जनम्—नपुं॰—क्षार-अञ्जनम्—-—सज्जी का लेप
- क्षाराम्बु—नपुं॰—क्षार-अम्बु—-—खारी रस या खारा पानी
- क्षारोदः—पुं॰—क्षार-उदः—-—खारा समुद्र
- क्षारोदकः—पुं॰—क्षार-उदकः—-—खारा समुद्र
- क्षारोदधिः—पुं॰—क्षार-उदधिः—-—खारा समुद्र
- क्षारसमुद्रः—पुं॰—क्षार-समुद्रः—-—खारा समुद्र
- क्षारत्रयम्—नपुं॰—क्षार-त्रयम्—-—सज्जी, शोरा, सुहागा
- क्षारत्रियतम्—नपुं॰—क्षार-त्रियतम्—-—सज्जी, शोरा, सुहागा
- क्षारनदी—स्त्री॰—क्षार-नदी—-—नरक में खारे पानी की नदी
- क्षारभूमिः—स्त्री॰—क्षार-भूमिः—-—रिहाली भूमि
- क्षारमृत्तिका—स्त्री॰—क्षार-मृत्तिका—-—रिहाली भूमि
- क्षारमेलकः—पुं॰—क्षार-मेलकः—-—खारा पदार्थ
- क्षाररसः—पुं॰—क्षार-रसः—-—खारा रस
- क्षारकः—पुं॰—-—क्षार + कन्—खार, रेह
- क्षारकः—पुं॰—-—क्षार + कन्—रस, अर्क
- क्षारकः—पुं॰—-—क्षार + कन्—पिंजरा, पक्षियों की रहने की टोकरी या जाल
- क्षारकः—पुं॰—-—क्षार + कन्—धोबी
- क्षारकः—पुं॰—-—क्षार + कन्—मंजरी, कलिका
- क्षारणम्—नपुं॰—-—क्षर् + णिच् + ल्युट्, युच् वा—दोषारोपण, विशेषकर व्याभिचार का
- क्षारणा—स्त्री॰—-—क्षर् + णिच् + ल्युट्, युच् वा—दोषारोपण, विशेषकर व्याभिचार का
- क्षारिका—स्त्री॰—-—क्षर् + ण्वुल् + टाप्, इत्वम्—भूख
- क्षारित—वि॰—-—-—खारे पानी में से टपकाया हुआ
- क्षारित—वि॰—-—-—जिस पर मिथ्या अपवाद लगाया गया हो
- क्षालनम्—नपुं॰—-—क्षल् + णिच् + ल्युट्—धोना, साफ करना
- क्षालनम्—नपुं॰—-—क्षल् + णिच् + ल्युट्—छिड़कना
- क्षालित—वि॰—-—क्षल् + णिच् + क्त—धोया हुआ, साफ किया हुआ, पवित्र किया हुआ
- क्षालित—वि॰—-—क्षल् + णिच् + क्त—पोंछा हुआ, प्रतिदत्त
- क्षि—भ्वा॰ पर॰ <क्षयति>, <क्षित>, <क्षीण>—-—-—मुर्झाना, छीजना
- क्षि—भ्वा॰ स्वा॰ क्र्या॰ <क्षयति>, <क्षिणोति>, <क्षिणाति>—-—-—नष्त करना, ग्रस्त कर लेना, बर्बाद करना, भ्रष्ट करना
- क्षि—भ्वा॰ स्वा॰ क्र्या॰ <क्षयति>, <क्षिणोति>, <क्षिणाति>—-—-—न्यून करना, बर्बाद करना
- क्षि—भ्वा॰ स्वा॰ क्र्या॰ <क्षयति>, <क्षिणोति>, <क्षिणाति>—-—-—मार डालना, क्षति पहुँचाना
- क्षि—भ्वा॰ स्वा॰ पर॰ <क्षयति>, <क्षिणोति>, <क्षिणाति>—-—-—नष्त करना, ग्रस्त कर लेना, बर्बाद करना, भ्रष्ट करना
- क्षि—भ्वा॰ स्वा॰ पर॰ <क्षयति>, <क्षिणोति>, <क्षिणाति>—-—-—न्यून करना, बर्बाद करना
- क्षि—भ्वा॰ स्वा॰ पर॰ <क्षयति>, <क्षिणोति>, <क्षिणाति>—-—-—मार डालना, क्षति पहुँचाना
- क्षि—भ्वा॰ स्वा॰, कर्मवाच्य॰ <क्षीयते>—-—-—बर्बाद होना, घटना, नष्ट होना, न्यून होना
- क्षि—भ्वा॰ स्वा॰ पर॰—-—-—नष्ट करना, दूर हटा देना, समाप्त कर देना
- क्षि—भ्वा॰ स्वा॰ पर॰—-—-—समय बिताना
- अपक्षि—भ्वा॰ स्वा॰ पर॰—अप-क्षि—-—घटना, क्षीण होना, न्यून होना
- परिक्षि—भ्वा॰ स्वा॰ पर॰—परि-क्षि—-—कम होना, क्षीण होना
- परिक्षि—भ्वा॰ स्वा॰ पर॰—परि-क्षि—-—कृश होना, दुबला-पतला होना
- प्रक्षि—भ्वा॰ स्वा॰ पर॰—प्र-क्षि—-—कम होना, क्षीण होना
- प्रक्षि—भ्वा॰ स्वा॰ पर॰—प्र-क्षि—-—कृश होना, दुबला-पतला होना
- सङ्क्षि—भ्वा॰ स्वा॰ पर॰—सम्-क्षि—-—कम होना, क्षीण होना
- सङ्क्षि—भ्वा॰ स्वा॰ पर॰—सम्-क्षि—-—कृश होना, दुबला-पतला होना
- क्षितिः—स्त्री॰—-—क्षि + क्तिन्—पृथ्वी
- क्षितिः—स्त्री॰—-—क्षि + क्तिन्—निवास, आवास, घर
- क्षितिः—स्त्री॰—-—क्षि + क्तिन्—हानि, विनाश
- क्षितिः—स्त्री॰—-—क्षि + क्तिन्—प्रलय
- क्षितीशः—पुं॰—क्षिति-ईशः—-—राजा
- क्षितीश्वरः—पुं॰—क्षिति-ईश्वरः—-—राजा
- क्षितिकणः—पुं॰—क्षिति-कणः—-—धूल
- क्षितिकम्पः—पुं॰—क्षिति-कम्पः—-—भूचाल
- क्षितिक्षित्—पुं॰—क्षिति-क्षित्—-—राजा, राजकुमार
- क्षितिजः—पुं॰—क्षिति-जः—-—वृक्ष
- क्षितिजः—पुं॰—क्षिति-जः—-—गंडोआ, केंचुआ
- क्षितिजः—पुं॰—क्षिति-जः—-—मंगल ग्रह
- क्षितिजः—पुं॰—क्षिति-जः—-—विष्णु के द्वारा मारा गया नरक नाम का राक्षस
- क्षितिजम्—नपुं॰—क्षिति-जम्—-—जहाँ पृथ्वी और आकाश मिलते हुए प्रतीत होते हैं
- क्षितिजा—स्त्री॰—क्षिति-जा—-—सीता का विशेषण
- क्षितितलम्—नपुं॰—क्षिति-तलम्—-—पृथ्वी की सतह
- क्षितिदेवः—पुं॰—क्षिति-देवः—-—ब्राह्मण
- क्षितिधरः—पुं॰—क्षिति-धरः—-—पहाड़
- क्षितिनाथः—पुं॰—क्षिति-नाथः—-—राजा, प्रभु
- क्षितिपः—पुं॰—क्षिति-पः—-—राजा, प्रभु
- क्षितिपतिः—पुं॰—क्षिति-पतिः—-—राजा, प्रभु
- क्षितिपालः—पुं॰—क्षिति-पालः—-—राजा, प्रभु
- क्षितिभुज्—पुं॰—क्षिति-भुज्—-—राजा, प्रभु
- क्षितिरक्षिन्—पुं॰—क्षिति-रक्षिन्—-—राजा, प्रभु
- क्षितिपुत्रः—पुं॰—क्षिति-पुत्रः—-—मंगल ग्रह
- क्षितिप्रतिष्ठ—वि॰—क्षिति-प्रतिष्ठ—-—पृथ्वी पर रहने वाला
- क्षितिभृत्—पुं॰—क्षिति-भृत्—-—पहाड़
- क्षितिभृत्—पुं॰—क्षिति-भृत्—-—राजा
- क्षितिमण्डलम्—नपुं॰—क्षिति-मण्डलम्—-—भूमण्डल
- क्षितिरन्ध्रम्—नपुं॰—क्षिति-रन्ध्रम्—-—खाई, खोडर
- क्षितिरुह्—पुं॰—क्षिति-रुह्—-—वृक्ष
- क्षितिवर्धनः—पुं॰—क्षिति-वर्धनः—-—शव, मुर्दा शरीर
- क्षितिवृत्तिः—स्त्री॰—क्षिति-वृत्तिः—-—पृथ्वी की गति, धैर्ययुक्तव्यवहार
- क्षितिव्युदासः—पुं॰—क्षिति-व्युदासः—-—गुफा, बिल
- क्षिद्रः—पुं॰—-—क्षिंद् + रक्—रोग
- क्षिद्रः—पुं॰—-—क्षिंद् + रक्—सूर्य
- क्षिद्रः—पुं॰—-—क्षिंद् + रक्—सींग
- क्षिप्—तुदा॰ उभ॰ <क्षिपति>, <क्षिपते>—-—-—फेंकना, डालना, भेजना, प्रेषित करना, विसर्जन, जाने देना
- क्षिप्—तुदा॰ उभ॰ <क्षिपति>, <क्षिपते>—-—-—रखना, पहनना, लगाना
- क्षिप्—तुदा॰ उभ॰ <क्षिपति>, <क्षिपते>—-—-—आरोपित करना, लगाना
- क्षिप्—तुदा॰ उभ॰ <क्षिपति>, <क्षिपते>—-—-—फेंक देना, डाल देना, उतार देना, मुक्त होना
- क्षिप्—तुदा॰ उभ॰ <क्षिपति>, <क्षिपते>—-—-—दूर करना, नष्ट करना
- क्षिप्—तुदा॰ उभ॰ <क्षिपति>, <क्षिपते>—-—-—अस्वीकार करना, घृणा करना
- क्षिप्—तुदा॰ उभ॰ <क्षिपति>, <क्षिपते>—-—-—अपमान करना, भर्त्सना करना, दुर्वचन कहना, धमकाना
- क्षिप्—दिवा॰ पर॰ <क्षिप्यति>, <क्षिप्त>—-—-—फेंकना, डालना, भेजना, प्रेषित करना, विसर्जन, जाने देना
- क्षिप्—दिवा॰ पर॰ <क्षिप्यति>, <क्षिप्त>—-—-—रखना, पहनना, लगाना
- क्षिप्—दिवा॰ पर॰ <क्षिप्यति>, <क्षिप्त>—-—-—आरोपित करना, लगाना
- क्षिप्—दिवा॰ पर॰ <क्षिप्यति>, <क्षिप्त>—-—-—फेंक देना, डाल देना, उतार देना, मुक्त होना
- क्षिप्—दिवा॰ पर॰ <क्षिप्यति>, <क्षिप्त>—-—-—दूर करना, नष्ट करना
- क्षिप्—दिवा॰ पर॰ <क्षिप्यति>, <क्षिप्त>—-—-—अस्वीकार करना, घृणा करना
- क्षिप्—दिवा॰ पर॰ <क्षिप्यति>, <क्षिप्त>—-—-—अपमान करना, भर्त्सना करना, दुर्वचन कहना, धमकाना
- अधिक्षिप्—तुदा॰ उभ॰,दिवा॰ पर॰—अधि-क्षिप्—-—निन्दा करना, कलंक लगाना
- अधिक्षिप्—तुदा॰ उभ॰,दिवा॰ पर॰—अधि-क्षिप्—-—नाराज करना, अपवाद करना
- अधिक्षिप्—तुदा॰ उभ॰,दिवा॰ पर॰—अधि-क्षिप्—-—आगे बढ़ जाना
- अवक्षिप्—तुदा॰ उभ॰,दिवा॰ पर॰—अव-क्षिप्—-—उतार फेंकना, छोड़ना, त्यागना
- अवक्षिप्—तुदा॰ उभ॰,दिवा॰ पर॰—अव-क्षिप्—-—तिरस्कार करना, भर्त्सना करना
- आक्षिप्—तुदा॰ उभ॰,दिवा॰ पर॰—आ-क्षिप्—-—फेंकना, डाल देना, प्रहार करना
- आक्षिप्—तुदा॰ उभ॰,दिवा॰ पर॰—आ-क्षिप्—-—सिकोड़ना
- आक्षिप्—तुदा॰ उभ॰,दिवा॰ पर॰—आ-क्षिप्—-—वापिस लेना, छीनना, खींचना, ले लेना
- आक्षिप्—तुदा॰ उभ॰,दिवा॰ पर॰—आ-क्षिप्—-—संकेत करना, इशारा करना
- आक्षिप्—तुदा॰ उभ॰,दिवा॰ पर॰—आ-क्षिप्—-—परिस्थितियों से अनुमान लगाना
- आक्षिप्—तुदा॰ उभ॰,दिवा॰ पर॰—आ-क्षिप्—-—आक्षेप करना
- आक्षिप्—तुदा॰ उभ॰,दिवा॰ पर॰—आ-क्षिप्—-—अवहेलना करना, उपेक्षा करना
- आक्षिप्—तुदा॰ उभ॰,दिवा॰ पर॰—आ-क्षिप्—-—तिरस्कार करना
- उत्क्षिप्—तुदा॰ उभ॰,दिवा॰ पर॰—उद्-क्षिप्—-—उछालना
- उपक्षिप्—तुदा॰ उभ॰,दिवा॰ पर॰—उप-क्षिप्—-—डालना, फेंकना
- उपक्षिप्—तुदा॰ उभ॰,दिवा॰ पर॰—उप-क्षिप्—-—संकेत करना, इशारा करना, निष्कर्ष निकालना
- उपक्षिप्—तुदा॰ उभ॰,दिवा॰ पर॰—उप-क्षिप्—-—आरम्भ करना, शुरु करना
- उपक्षिप्—तुदा॰ उभ॰,दिवा॰ पर॰—उप-क्षिप्—-—अपमान करना, डाटना-फटकारना
- निक्षिप्—तुदा॰ उभ॰,दिवा॰ पर॰—नि-क्षिप्—-—नीचे रखना, स्थापित करना, धर देना
- निक्षिप्—तुदा॰ उभ॰,दिवा॰ पर॰—नि-क्षिप्—-—सौपना, देख रेख में सुपुर्द करना
- निक्षिप्—तुदा॰ उभ॰,दिवा॰ पर॰—नि-क्षिप्—-—शिविर में रखना
- निक्षिप्—तुदा॰ उभ॰,दिवा॰ पर॰—नि-क्षिप्—-—फेंक देना, अस्वीकार करना
- निक्षिप्—तुदा॰ उभ॰,दिवा॰ पर॰—नि-क्षिप्—-—प्रदान करना
- परिक्षिप्—तुदा॰ उभ॰,दिवा॰ पर॰—परि-क्षिप्—-—घेरना
- परिक्षिप्—तुदा॰ उभ॰,दिवा॰ पर॰—परि-क्षिप्—-—आलिंगन करना
- पर्याक्षिप्—तुदा॰ उभ॰,दिवा॰ पर॰—पर्या-क्षिप्—-—बाँधना, एकत्र करना
- प्रक्षिप्—तुदा॰ उभ॰,दिवा॰ पर॰—प्र-क्षिप्—-—रखना, डालना
- प्रक्षिप्—तुदा॰ उभ॰,दिवा॰ पर॰—प्र-क्षिप्—-—बीच में डालना, अन्तर्हित करना
- विक्षिप्—तुदा॰ उभ॰,दिवा॰ पर॰—वि-क्षिप्—-—फेंकना, डालना
- विक्षिप्—तुदा॰ उभ॰,दिवा॰ पर॰—वि-क्षिप्—-—मन मोड़ना
- विक्षिप्—तुदा॰ उभ॰,दिवा॰ पर॰—वि-क्षिप्—-—ध्यान हटाना
- संक्षिप्—तुदा॰ उभ॰,दिवा॰ पर॰—सम्-क्षिप्—-—संचय करना, ढेर लगाना
- संक्षिप्—तुदा॰ उभ॰,दिवा॰ पर॰—सम्-क्षिप्—-—पीछे हटना, नष्ट करना
- संक्षिप्—तुदा॰ उभ॰,दिवा॰ पर॰—सम्-क्षिप्—-—छोटा करना, कमी करना, संक्षिप्त करना
- क्षपणम्—नपुं॰—-—क्षिप् + क्युन् बा॰—भेजना, फेंकना, डालना
- क्षपणम्—नपुं॰—-—क्षिप् + क्युन् बा॰—झिड़कना, दुर्वचन कहना
- क्षिपणि—स्त्री॰—-—क्षिप् + अनि—चप्पू
- क्षिपणि—स्त्री॰—-—क्षिप् + अनि—जाल
- क्षिपणि—स्त्री॰—-—क्षिप् + अनि—हथियार
- क्षिपणी—स्त्री॰—-—क्षिप् + अनि, क्षिपणि + ङीष्—चप्पू
- क्षिपणी—स्त्री॰—-—क्षिप् + अनि, क्षिपणि + ङीष्—जाल
- क्षिपणी—स्त्री॰—-—क्षिप् + अनि, क्षिपणि + ङीष्—हथियार
- क्षिपणिः—स्त्री॰—-—क्षिप् + अनि, क्षिपणि + ङीष्—प्रहार
- क्षिपण्युः—पुं॰—-—क्षिप् + क्न्युच्—शरीर
- क्षिपण्युः—पुं॰—-—क्षिप् + क्न्युच्—वसन्त ऋतु
- क्षिपा—स्त्री॰—-—क्षिप् + अङ् + टाप्—भेजना, फेंकना, डालना
- क्षिपा—स्त्री॰—-—क्षिप् + अङ् + टाप्—रात्रि
- क्षिप्त—भू॰ क॰ कृ॰—-—क्षिप् + क्त—फेंका हुआ, बिखेरा हुआ, उछाला हुआ, डाला हुआ
- क्षिप्त—भू॰ क॰ कृ॰—-—क्षिप् + क्त—त्यागा हुआ
- क्षिप्त—भू॰ क॰ कृ॰—-—क्षिप् + क्त—अवज्ञात, उपेक्षित, अनादृत
- क्षिप्त—भू॰ क॰ कृ॰—-—क्षिप् + क्त—स्थापित
- क्षिप्त—भू॰ क॰ कृ॰—-—क्षिप् + क्त—ध्यान हटाया हुआ, पागल
- क्षिप्तम्—नपुं॰—-—क्षिप् + क्त—गोली लगने से बना घाव
- क्षिप्तकुक्कुरः—पुं॰—क्षिप्तम्-कुक्कुरः—-—पागल कुत्ता
- क्षिप्तचित्त—वि॰—क्षिप्तम्-चित्त—-—उचाट मन, विमना
- क्षिप्तदेह—वि॰—क्षिप्तम्-देह—-—प्रसृत शरीर, लेटा हुआ
- क्षिप्तिः—स्त्री॰—-—क्षिप् + क्तिन्—फेंकना, भेज देना
- क्षिप्तिः—स्त्री॰—-—क्षिप् + क्तिन्—कूट अर्थ को प्रकट करना
- क्षिप्र—वि॰—-—क्षिप् + रक्—सजीव, आशुगामी
- क्षिप्रम्—अव्य॰—-—-—जल्दी, फुर्ती से, तुरन्त
- क्षिप्रकारिन्—वि॰—क्षिप्रम्-कारिन्—-—आशुकारी, अविलम्बी
- क्षिया—स्त्री॰—-—क्षि + अङ् + टाप्—हानि, विनाश, बर्वादी, ह्रास
- क्षिया—स्त्री॰—-—क्षि + अङ् + टाप्—अनौचित्य, सर्वसम्मत आचार का उल्लंघन
- क्षीजनम्—नपुं॰—-—क्षीज् + ल्युट्—पोले नरकुलों में से निकली हुई सरसराहट की ध्वनि
- क्षीण—वि॰—-—क्षि + क्त, दीर्घः—पतला, कृश, क्षयप्राप्त, निर्बल घटा हुआ, थका हुआ या समाप्त, खर्च कर डाला हुआ
- क्षीण—वि॰—-—क्षि + क्त, दीर्घः—सुकुमार, नाजुक
- क्षीण—वि॰—-—क्षि + क्त, दीर्घः—थोड़ा अल्प
- क्षीण—वि॰—-—क्षि + क्त, दीर्घः—निर्धन, संकटग्रस्त
- क्षीण—वि॰—-—क्षि + क्त, दीर्घः—शक्तिहीन, दुर्बल
- क्षीणचन्द्रः—पुं॰—क्षीण-चन्द्रः—-—घटता हुआ अर्थात् कृष्णपक्ष का चन्द्रमा
- क्षीणधन—वि॰—क्षीण-धन—-—जिसके पास पैसा न रहा हो, निर्धन
- क्षीणपाप—वि॰—क्षीण-पाप—-—जो अपने पाप कर्मो का फल भुगत कर निष्पाप हो गया हो
- क्षीणपुण्य—वि॰—क्षीण-पुण्य—-—जो अपने सब पुण्य कर्मों का फल भोग चुका हो, तथा अगले जन्म के लिए जिसे और पुण्य कार्य करने चाहिए
- क्षीणमध्य—वि॰—क्षीण-मध्य—-—जिसकी कमर पतली हो
- क्षीणवासिन्—वि॰—क्षीण-वासिन्—-—खंडहर में रहने वाला
- क्षीणविक्रान्त—वि॰—क्षीण-विक्रान्त—-—साहसहीन, पौरुषहीन
- क्षीणवृत्ति—वि॰—क्षीण-वृत्ति—-—जीविका के साधनों से वञ्चित, बेरोजगार
- क्षीब्—भ्वा॰ - दिवा॰, पर॰ <क्षीबति>, <क्षीब्यति>—-—-—मतवाला होना, मदोन्मत्त होना, नशे में होना
- क्षीब्—भ्वा॰ - दिवा॰, पर॰ <क्षीबति>, <क्षीब्यति>—-—-—थूकना, मुंह से निकालना
- क्षीब—वि॰—-—क्षीब् + क्त नि॰—उत्तेजित, मतवाला, मदोन्मत्त
- क्षीरः—पुं॰—-—घस्यते अद्यसे घस् + ईरन्, उपधालोपः, घस्य ककारः षत्वं च—दूध
- क्षीरः—पुं॰—-—घस्यते अद्यसे घस् + ईरन्, उपधालोपः, घस्य ककारः षत्वं च—वृक्षों का दूधिया रस
- क्षीरः—पुं॰—-—घस्यते अद्यसे घस् + ईरन्, उपधालोपः, घस्य ककारः षत्वं च—जल
- क्षीरम्—नपुं॰—-—घस्यते अद्यसे घस् + ईरन्, उपधालोपः, घस्य ककारः षत्वं च—दूध
- क्षीरम्—नपुं॰—-—घस्यते अद्यसे घस् + ईरन्, उपधालोपः, घस्य ककारः षत्वं च—वृक्षों का दूधिया रस
- क्षीरम्—नपुं॰—-—घस्यते अद्यसे घस् + ईरन्, उपधालोपः, घस्य ककारः षत्वं च—जल
- क्षीरादः—पुं॰—क्षीर-अदः—-—शिशु, दूध पीता बच्चा
- क्षीराब्धिः—पुं॰—क्षीर-अब्धिः—-—दुग्धसागर
- क्षीराब्धिजः—पुं॰—क्षीर-अब्धि-जः—-—चन्द्रमा
- क्षीराब्धिजः—पुं॰—क्षीर-अब्धि-जः—-—मोती
- क्षीराब्धिजम्—नपुं॰—क्षीर-अब्धि-जम्—-—समुद्री नमक
- क्षीराब्धिजा—स्त्री॰—क्षीर-अब्धि-जा—-—लक्ष्मी का विशेषण
- क्षीराब्धितनया—स्त्री॰—क्षीर-अब्धि-तनया—-—लक्ष्मी का विशेषण
- क्षीराब्ध्याह्वः—पुं॰—क्षीर-अब्धि-आह्वः—-—सनोवर का वृक्ष
- क्षीराब्ध्युदः—पुं॰—क्षीर-अब्धि-उदः—-—दुग्धसागर
- क्षीराब्धितनयः—पुं॰—क्षीर-अब्धि-तनयः—-—चन्द्रमा
- क्षीराब्धितनया—स्त्री॰—क्षीर-अब्धि-तनया—-—लक्ष्मी का विशेषण
- क्षीराब्धिसुतः—पुं॰—क्षीर-अब्धि-सुतः—-—लक्ष्मी का विशेषण
- क्षीरोदधि—पुं॰—क्षीर-उदधि—-—क्षीरोद
- क्षीरोर्मिः—पुं॰—क्षीर-ऊर्मिः—-—दुग्ध सागर की लहर
- क्षीरौदनः—पुं॰—क्षीर-ओदनः—-—दूध में उबाले हुए चावल
- क्षीरकण्ठः—पुं॰—क्षीर-कण्ठः—-—दूध पीता बच्चा
- क्षीरजम्—नपुं॰—क्षीर-जम्—-—जमा हुआ दूध
- क्षीरद्रुमः—पुं॰—क्षीर-द्रुमः—-—अश्वत्थवृक्ष
- क्षीरधात्री—स्त्री॰—क्षीर-धात्री—-—दूध पिलाने वाली नौकरानी, धाय
- क्षीरधिः—पुं॰—क्षीर-धिः—-—दुग्धसागर
- क्षीरनिधिः—पुं॰—क्षीर-निधिः—-—दुग्धसागर
- क्षीरधेनुः—स्त्री॰—क्षीर-धेनुः—-—दूध देने वाली गाय
- क्षीरनीरम्—नपुं॰—क्षीर-नीरम्—-—पानी और दूध
- क्षीरनीरम्—नपुं॰—क्षीर-नीरम्—-—दूध जैसा पानी
- क्षीरनीरम्—नपुं॰—क्षीर-नीरम्—-—गाढ़ालिंगन
- क्षीरपः—पुं॰—क्षीर-पः—-—बच्चा
- क्षीरवारिः—पुं॰—क्षीर-वारिः—-—दुग्धसागर
- क्षीरवारिधिः—पुं॰—क्षीर-वारिधिः—-—दुग्धसागर
- क्षीरविकृतिः—पुं॰—क्षीर-विकृतिः—-—जमा हुआ दूध
- क्षीरवृक्षः—पुं॰—क्षीर-वृक्षः—-—बड़, गूलर, पीपल और मधूक नाम के वृक्ष
- क्षीरवृक्षः—पुं॰—क्षीर-वृक्षः—-—अंजीर
- क्षीरशरः—पुं॰—क्षीर-शरः—-—मलाई, दूध की मलाई
- क्षीरसमुद्रः—पुं॰—क्षीर-समुद्रः—-—दुग्धसागर
- क्षीरसारः—पुं॰—क्षीर-सारः—-—मक्खन
- क्षीरहिण्डीरः—पुं॰—क्षीर-हिण्डीरः—-—दूध के झाग या फेन
- क्षीरिका—स्त्री॰—-—क्षीर + ठन् + टाप्—दूध से बना भोज्य पदार्थ
- क्षीरिन्—वि॰—-—क्षीर + इनि—दूधिया दुधार दूध देने वाला
- क्षीव्—भ्वा॰ - दिवा॰, पर॰ <क्षीवति>, <क्षीव्यति>—-—-—मतवाला होना, मदोन्मत्त होना, नशे में होना
- क्षीव्—भ्वा॰ - दिवा॰, पर॰ <क्षीवति>, <क्षीव्यति>—-—-—थूकना, मुंह से निकालना
- क्षीव—वि॰—-—क्षीव् + क्त नि॰—उत्तेजित, मतवाला, मदोन्मत्त
- क्षु—अदा॰ पर॰ <क्षौति>, <क्षुत>—-—-—छींकना
- क्षु—अदा॰ पर॰ <क्षौति>, <क्षुत>—-—-—खाँसना
- क्षुण्ण—भू॰ क॰ कृ॰—-—क्षुद् + क्त—कूटा हुआ, कुचला हुआ
- क्षुण्ण—भू॰ क॰ कृ॰—-—क्षुद् + क्त—अभ्यस्त, अनुगत
- क्षुण्ण—भू॰ क॰ कृ॰—-—क्षुद् + क्त—पीसा हुआ
- क्षुण्णमनस्—वि॰—क्षुण्ण-मनस्—-—पश्चात्तापी, पछताने वाला
- क्षुत्—स्त्री॰—-—क्षु + क्विप्, तुगागमः; क्षु + क्त, क्षुत + टाप्—छींकने वाली, छींक
- क्षुतम्—नपुं॰—-—क्षु + क्विप्, तुगागमः; क्षु + क्त, क्षुत + टाप्—छींकने वाली, छींक
- क्षुता—स्त्री॰—-—क्षु + क्विप्, तुगागमः; क्षु + क्त, क्षुत + टाप्—छींकने वाली, छींक
- क्षुद्—रुधा॰, उभ॰ <क्षुणत्ति>, <क्षुते>, <क्षुण्ण>—-—-—कुचलना, घिसना, कुचल डालना, रगड़ना, पीस देना
- क्षुद्—रुधा॰, उभ॰ <क्षुणत्ति>, <क्षुते>, <क्षुण्ण>—-—-—उत्तेजित करना, क्षुब्ध होना
- प्रक्षुद्—रुधा॰, उभ॰—प्र-क्षुद्—-—कुचलना, खरोंचना, पीसना
- क्षुद्र—वि॰—-—क्षुद् + रक्—सूक्ष्म, अल्प, छोटा सा, तुच्छ, हल्का
- क्षुद्र—वि॰—-—क्षुद् + रक्—कमीना, नीच, दुष्ट, अधम्
- क्षुद्र—वि॰—-—क्षुद् + रक्—दुष्ट
- क्षुद्र—वि॰—-—क्षुद् + रक्—क्रूर
- क्षुद्र—वि॰—-—क्षुद् + रक्—गरीब, दरिद्र
- क्षुद्र—वि॰—-—क्षुद् + रक्—कृपण, कंजूस
- क्षुद्रा—स्त्री॰—-—क्षुद् + रक्—मधुमक्खी
- क्षुद्रा—स्त्री॰—-—क्षुद् + रक्—झगड़ालू स्त्री
- क्षुद्रा—स्त्री॰—-—क्षुद् + रक्—अपाहिज या विकलांग स्त्री
- क्षुद्रा—स्त्री॰—-—क्षुद् + रक्—वेश्या
- क्षुद्राञ्जनम्—नपुं॰—क्षुद्र-अञ्जनम्—-—कुछ रोगों में आंखों में लगाया जाने वाला अंजन या लेप
- क्षुद्रान्त्रः—पुं॰—क्षुद्र-अन्त्रः—-—हृदय के भीतर का छोटा सा रंध्र
- क्षुद्रकम्बुः—पुं॰—क्षुद्र-कम्बुः—-—छोटा शंख
- क्षुद्रकुष्ठम्—नपुं॰—क्षुद्र-कुष्ठम्—-—एक प्रकार का हल्का कोढ़
- क्षुद्रघण्टिका—स्त्री॰—क्षुद्र-घण्टिका—-—घूँघरू
- क्षुद्रघण्टिका—स्त्री॰—क्षुद्र-घण्टिका—-—घूँघरू वाली करधनी
- क्षुद्रचन्दनम्—नपुं॰—क्षुद्र-चन्दनम्—-—लाल चंदन की लकड़ी
- क्षुद्रजन्तुः—पुं॰—क्षुद्र-जन्तुः—-—कोई भी छोटा जीव
- क्षुद्रदंशिका—स्त्री॰—क्षुद्र-दंशिका—-—डांस, गोमक्खी
- क्षुद्रबुद्धि—वि॰—क्षुद्र-बुद्धि—-—ओछे मन का, कमीना
- क्षुद्ररसः—पुं॰—क्षुद्र-रसः—-—शहद
- क्षुद्ररोगः—पुं॰—क्षुद्र-रोगः—-—मामूली बीमारी
- क्षुद्रशङ्खः—पुं॰—क्षुद्र-शङ्खः—-—छोटा शंख या घोंघा
- क्षुद्रसुवर्णम्—नपुं॰—क्षुद्र-सुवर्णम्—-—हल्का या खोटा सोना अर्थात् पीतल
- क्षुद्रल—वि॰—-—क्षुद्र + लच्—सूक्ष्म, हल्का
- क्षुध्—दिवा॰ पर॰ <क्षुध्यति>, <क्षुधित>—-—-—भूखा होना, भूख लगना
- क्षुध्—स्त्री॰—-—क्षुध् + क्विप्—भूख
- क्षुधा—स्त्री॰—-—क्षुध् + क्विप्—भूख
- क्षुधार्त—वि॰—क्षुध्-आर्त—-—क्षुदधापीडित
- क्षुधाविष्ट—वि॰—क्षुध्-आविष्ट—-—क्षुदधापीडित
- क्षुत्क्षाम—वि॰—क्षुध्-क्षाम—-—भूखा होने से दुर्बल
- क्षुत्पिपासित—वि॰—क्षुध्-पिपासित—-—भूखा प्यासा
- क्षुन्निवृत्तिः—स्त्री॰—क्षुध्-निवृत्तिः—-—भूख शान्त होना
- क्षुधालु—वि॰—-—क्षुध् + आलुच्—भूखा
- क्षुधित—वि॰—-—क्षुध् + क्त—भूखा
- क्षुपः—पुं॰—-—क्षुप् + क—छोटी जडों के वृक्ष, झाड़, झाड़ी
- क्षुभ्—भ्वा॰ आ॰ , दिवा॰, क्रया॰ पर॰ <क्षोभते>, <क्षुभ्यति>, <क्षुभ्नाति>, <क्षुभित, <क्षुब्ध>—-—-—हिलाना, कंपित करना, क्षुब्ध करना, आन्दोलित करना
- क्षुभ्—भ्वा॰ आ॰ , दिवा॰, क्रया॰ पर॰ <क्षोभते>, <क्षुभ्यति>, <क्षुभ्नाति>, <क्षुभित, <क्षुब्ध>—-—-—अस्थिर होना
- क्षुभ्—भ्वा॰ आ॰ , दिवा॰, क्रया॰ पर॰ <क्षोभते>, <क्षुभ्यति>, <क्षुभ्नाति>, <क्षुभित, <क्षुब्ध>—-—-—लड़खड़ाना
- प्रक्षुभ्—भ्वा॰ आ॰ , दिवा॰, क्रया॰ पर॰—प्र-क्षुभ्—-—कांपना, क्षुब्ध होना, आंदोलित होना
- विक्षुभ्—भ्वा॰ आ॰ , दिवा॰, क्रया॰ पर॰—वि-क्षुभ्—-—कांपना, क्षुब्ध होना, आंदोलित होना
- संक्षुभ्—भ्वा॰ आ॰ , दिवा॰, क्रया॰ पर॰—सम्-क्षुभ्—-—कांपना, क्षुब्ध होना, आंदोलित होना
- क्षुभित—वि॰—-—क्षुभ् + क्त—हिलाया हुआ, आंदोलित आदि
- क्षुभित—वि॰—-—क्षुभ् + क्त—डरा हुआ
- क्षुभित—वि॰—-—क्षुभ् + क्त—क्रुद्ध
- क्षुब्धः—वि॰—-—क्षुभ् + क्त—आन्दोलित, चंचल, अस्थिर
- क्षुब्धः—वि॰—-—क्षुभ् + क्त—डाँवाडोल
- क्षुब्धः—वि॰—-—क्षुभ् + क्त—डरा हुआ
- क्षुब्ध—वि॰—-—क्षुभ् + क्त—मन्थन करने का डंडा
- क्षुब्ध—वि॰—-—क्षुभ् + क्त—रति क्रिया का विशेषण आसन, रतिबन्ध
- क्षुमा—स्त्री॰—-—क्षु + मक्—अलसी, एक प्रकार का सन
- क्षुर्—तुदा॰ पर॰ <क्षुरति>, <क्षुरित>—-—-—काटना, खुरचना
- क्षुर्—तुदा॰ पर॰ <क्षुरति>, <क्षुरित>—-—-—रेखाएँ खींचना, हल से खेत में खू्ड बनाना
- क्षुरः—पुं॰—-—क्षुर् + क—उस्तरा
- क्षुरः—पुं॰—-—क्षुर् + क—उस्तरे जैसी नोंक जो तीर में लगाई जाय
- क्षुरः—पुं॰—-—क्षुर् + क—गाय या घोड़े का सुम
- क्षुरः—पुं॰—-—क्षुर् + क—बाण
- क्षुरकर्मन्—नपुं॰—क्षुर-कर्मन्—-—हजामत बनाना
- क्षुरक्रिया—स्त्री॰—क्षुर-क्रिया—-—हजामत बनाना
- क्षुरचतुष्टयम्—नपुं॰—क्षुर-चतुष्टयम्—-—हजामत करने की चार आवश्यक चीजें
- क्षुरधानम्—नपुं॰—क्षुर-धानम्—-—उस्तरे का खोल
- क्षुरभाण्डम्—नपुं॰—क्षुर-भाण्डम्—-—उस्तरे का खोल
- क्षुरधार—वि॰—क्षुर-धार—-—उस्तरे जैसी तेज
- क्षुरप्रः—पुं॰—क्षुर-प्रः—-—बाण जिसकी नोंक घोडें की नाल जैसी हो
- क्षुरप्रः—पुं॰—क्षुर-प्रः—-—खुर्पी, घास खोदने का खुर्पा
- क्षुरमर्दिन्—पुं॰—क्षुर-मर्दिन्—-—नाई
- क्षुरमुण्डिन्—पुं॰—क्षुर-मुण्डिन्—-—नाई
- क्षुरिका—स्त्री॰—-—क्षुर् + ङीष् + कन् + टाप्, ह्रस्वः—चाकू, छुरी
- क्षुरिका—स्त्री॰—-—क्षुर् + ङीष् + कन् + टाप्, ह्रस्वः—छोटा उस्तरा
- क्षुरी—स्त्री॰—-—क्षुर् + ङीष् + कन् + टाप्, ह्रस्वः, क्षुर + ङीष्—चाकू, छुरी
- क्षुरी—स्त्री॰—-—क्षुर् + ङीष् + कन् + टाप्, ह्रस्वः, क्षुर + ङीष्—छोटा उस्तरा
- क्षुरिणी—स्त्री॰—-—क्षुर + इनि + ङीष्—नाई की पत्नी
- क्षुरिन्—पुं॰—-—क्षुर + इनि —नाई
- क्षुल्ल—वि॰—-—क्षुदं लाति गृह्नाति - क्षुद् + ला + क—छोटा, स्वल्प
- क्षुल्लतातः—वि॰—क्षुल्ल-तातः—-—पिता का छोटा भाई
- क्षुल्लक—वि॰—-—क्षुल्ल + कन्—स्वल्प, सूक्ष्म
- क्षुल्लक—वि॰—-—क्षुल्ल + कन्—नीच, दुष्ट
- क्षुल्लक—वि॰—-—क्षुल्ल + कन्—नगण्य
- क्षुल्लक—वि॰—-—क्षुल्ल + कन्—निर्धन
- क्षुल्लक—वि॰—-—क्षुल्ल + कन्—दुष्ट, द्वेषयुक्त
- क्षुल्लक—वि॰—-—क्षुल्ल + कन्—बच्चा
- क्षेत्रम्—नपुं॰—-—क्षि + ष्ट्रन् —खेत, मैदान, भूमि
- क्षेत्रम्—नपुं॰—-—क्षि + ष्ट्रन् —भूसंपत्ति, भूमि
- क्षेत्रम्—नपुं॰—-—क्षि + ष्ट्रन् —स्थान, आवास, भूखण्ड, गोदाम
- क्षेत्रम्—नपुं॰—-—क्षि + ष्ट्रन् —पुण्यस्थान, तीर्थस्थान
- क्षेत्रम्—नपुं॰—-—क्षि + ष्ट्रन् —बाड़ा
- क्षेत्रम्—नपुं॰—-—क्षि + ष्ट्रन् —उर्वरा भूमि
- क्षेत्रम्—नपुं॰—-—क्षि + ष्ट्रन् —जन्मस्थान
- क्षेत्रम्—नपुं॰—-—क्षि + ष्ट्रन् —पत्नी
- क्षेत्रम्—नपुं॰—-—क्षि + ष्ट्रन् —कायक्षेत्र शरीर
- क्षेत्रम्—नपुं॰—-—क्षि + ष्ट्रन् —मन
- क्षेत्रम्—नपुं॰—-—क्षि + ष्ट्रन् —घर, नगर
- क्षेत्रम्—नपुं॰—-—क्षि + ष्ट्रन् —सपाट आकृति जैसे कि त्रिभुज
- क्षेत्रम्—नपुं॰—-—क्षि + ष्ट्रन् —रेखाचित्र
- क्षेत्राधिदेवता—स्त्री॰—क्षेत्रम्-अधिदेवता—-—किसी पुण्य भूस्थल की अधिष्ठात्री देवता
- क्षेत्राजीवः—पुं॰—क्षेत्रम्-आजीवः—-—कृषक, खेतिहर
- क्षेत्रकरः—पुं॰—क्षेत्रम्-करः—-—कृषक, खेतिहर
- क्षेत्रगणितम्—नपुं॰—क्षेत्रम्-गणितम्—-—ज्यामिति, रेखागणित
- क्षेत्रगत—वि॰—क्षेत्रम्-गत—-—ज्यामितीय
- क्षेत्रगतोपपत्तिः—स्त्री॰—क्षेत्रम्-गत-उपपत्तिः—-—ज्यामितीय प्रमाण
- क्षेत्रज—वि॰—क्षेत्रम्-ज—-—खेत में उत्पन्न
- क्षेत्रज—वि॰—क्षेत्रम्-ज—-—शरीर से उत्पन्न
- क्षेत्रजः—पुं॰—क्षेत्रम्-जः—-—हिन्दूधर्मशास्त्र के अनुसार १२ प्रकार के पुत्रों में से एक
- क्षेत्रजात—वि॰—क्षेत्रम्-जात—-—दूसरे पुरुष की पत्नी में उत्पादित संतान
- क्षेत्रज्ञ—वि॰—क्षेत्रम्-ज्ञ—-—स्थानीयता को जानने वाला
- क्षेत्रज्ञ—वि॰—क्षेत्रम्-ज्ञ—-—चतुर, दक्ष
- क्षेत्रज्ञः—पुं॰—क्षेत्रम्-ज्ञः—-—आत्मा
- क्षेत्रज्ञः—पुं॰—क्षेत्रम्-ज्ञः—-—परमात्मा
- क्षेत्रज्ञः—पुं॰—क्षेत्रम्-ज्ञः—-—व्यभिचारी
- क्षेत्रज्ञः—पुं॰—क्षेत्रम्-ज्ञः—-—किसान
- क्षेत्रपतिः—पुं॰—क्षेत्रम्-पतिः—-—भूस्वामी, भूमिधर
- क्षेत्रपदम्—नपुं॰—क्षेत्रम्-पदम्—-—देवता के लिए पवित्र स्थान
- क्षेत्रपालः—पुं॰—क्षेत्रम्-पालः—-—खेत का रखवाला
- क्षेत्रपालः—पुं॰—क्षेत्रम्-पालः—-—क्षेत्र की रक्षा करने वाला
- क्षेत्रपालः—पुं॰—क्षेत्रम्-पालः—-—शिव का विशेषण
- क्षेत्रफलम्—नपुं॰—क्षेत्रम्-फलम्—-—आकृति की लम्बाई चौड़ाई का गुणनफल
- क्षेत्रभक्तिः—स्त्री॰—क्षेत्रम्-भक्तिः—-—खेत का बँटवारा
- क्षेत्रराशिः—पुं॰—क्षेत्रम्-राशिः—-—जुआमितीय आकृतियों द्वारा प्रकट किया गया परिमाण
- क्षेत्रविद्—वि॰—क्षेत्रम्-विद्—-—किसान
- क्षेत्रविद्—वि॰—क्षेत्रम्-विद्—-—ऋषि जिसे आध्यात्मिक ज्ञान हो
- क्षेत्रविद्—वि॰—क्षेत्रम्-विद्—-—आत्मा
- क्षेत्रक्षेत्रज्ञ—पुं॰—क्षेत्रम्-क्षेत्रज्ञ—-—किसान
- क्षेत्रक्षेत्रज्ञ—पुं॰—क्षेत्रम्-क्षेत्रज्ञ—-—ऋषि जिसे आध्यात्मिक ज्ञान हो
- क्षेत्रक्षेत्रज्ञ—पुं॰—क्षेत्रम्-क्षेत्रज्ञ—-—आत्मा
- क्षेत्रस्थ—वि॰—क्षेत्रम्-स्थ—-—पुण्य भुमि में रहने वाला
- क्षेत्रिक—वि॰—-—क्षेत्र + ठन्—खेत से सम्बन्ध रखने वाला
- क्षेत्रिकः—पुं॰—-—क्षेत्र + ठन्—एक किसान
- क्षेत्रिकः—पुं॰—-—क्षेत्र + ठन्—पति
- क्षेत्रिन्—पुं॰—-—क्षेत्र + इनि—कृषक, कास्तकार, खेतिहार
- क्षेत्रिन्—पुं॰—-—क्षेत्र + इनि—नाम मात्र का पति
- क्षेत्रिन्—पुं॰—-—क्षेत्र + इनि—आत्मा
- क्षेत्रिन्—पुं॰—-—क्षेत्र + इनि—परमात्मा
- क्षेत्रिय—वि॰—-—क्षेत्र + घ—खेत से सम्बन्ध रखने वाला
- क्षेत्रिय—वि॰—-—क्षेत्र + घ—असाध्य रोग जिसका उपचार देहान्तर प्राप्ति परही हो अथवा इ्स जीवन में जिसका उपचार न हो सके
- क्षेत्रियम्—नपुं॰—-—क्षेत्र + घ—आंगिक रोग
- क्षेत्रियम्—नपुं॰—-—क्षेत्र + घ—चरागाह, गोचरभूमि
- क्षेत्रियः—पुं॰—-—क्षेत्र + घ—व्यभिचारी, परदाररत
- क्षेपः—पुं॰—-—क्षिप् + घञ्—फेंकना, उछालना, डालना, इधर-उधर हिलाना, गति
- क्षेपः—पुं॰—-—क्षिप् + घञ्—फेंकना, डालना
- क्षेपः—पुं॰—-—क्षिप् + घञ्—भेजना, प्रेषित करना
- क्षेपः—पुं॰—-—क्षिप् + घञ्—आघात
- क्षेपः—पुं॰—-—क्षिप् + घञ्—उल्लंघन
- क्षेपः—पुं॰—-—क्षिप् + घञ्—समय बिताना, कालक्षेप
- क्षेपः—पुं॰—-—क्षिप् + घञ्—विलम्ब, देरी
- क्षेपः—पुं॰—-—क्षिप् + घञ्—अपमान, दुर्वचन
- क्षेपः—पुं॰—-—क्षिप् + घञ्—अनादर, घृणा
- क्षेपः—पुं॰—-—क्षिप् + घञ्—घमंड, अहंकार
- क्षेपः—पुं॰—-—क्षिप् + घञ्—फूलों का गुच्छा, कुसुमस्तवक
- क्षेपक—वि॰—-—क्षिप् + ण्वुल्—फेंकने वाला, भेजने वाला
- क्षेपक—वि॰—-—क्षिप् + ण्वुल्—मिलाया हुआ, बीच में घुसाया हुआ
- क्षेपक—वि॰—-—क्षिप् + ण्वुल्—गालियों से युक्त, अनादरपूर्ण
- क्षेपकः—पुं॰—-—क्षिप् + ण्वुल्—बनावटी या बीच में मिलाया हुआ
- क्षेपणम्—नपुं॰—-—क्षिप् + ल्युट्—फेंकना, डालना, भेजना, निदेश आदि देना
- क्षेपणम्—नपुं॰—-—क्षिप् + ल्युट्—बिताना
- क्षेपणम्—नपुं॰—-—क्षिप् + ल्युट्—भूलना, गाली देना
- क्षेपणम्—नपुं॰—-—क्षिप् + ल्युट्—गोफन
- क्षेपणिः—स्त्री॰—-—क्षिप् + ल्युट्—चप्पू
- क्षेपणिः—स्त्री॰—-—क्षिप् + ल्युट्—मछली फंसाने का जाल
- क्षेपणिः—स्त्री॰—-—क्षिप् + ल्युट्—गोफन या ऐसा उपकरण जिसमें रखकर कंकड़ फेंके जाय
- क्षेपणी—स्त्री॰—-—क्षिप् + ल्युट्—चप्पू
- क्षेपणी—स्त्री॰—-—क्षिप् + ल्युट्—मछली फंसाने का जाल
- क्षेपणी—स्त्री॰—-—क्षिप् + ल्युट्—गोफन या ऐसा उपकरण जिसमें रखकर कंकड़ फेंके जाय
- क्षेम—वि॰—-—क्षि + भन्—प्रसन्नता, सुख और आराम देने वला, शुभ, उदार, राजिसुखी
- क्षेम—वि॰—-—क्षि + भन्—समृद्ध, आराम में सुखी
- क्षेम—वि॰—-—क्षि + भन्—सुरक्षित, प्रसन्न
- क्षेमः—पुं॰—-—क्षि + भन्—शान्ति, प्रसन्नता, आराम, कल्याण, कुशलता
- क्षेमः—पुं॰—-—क्षि + भन्—सुरक्षा, बचाव
- क्षेमः—पुं॰—-—क्षि + भन्—संरक्षण करने वाला, प्ररक्षा करने वाला
- क्षेमः—पुं॰—-—क्षि + भन्—अवाप्त को सुरक्षित रखना
- क्षेमः—पुं॰—-—क्षि + भन्—मुक्ति, शाश्वत, आनन्द
- क्षेमम्—नपुं॰—-—क्षि + भन्—शान्ति, प्रसन्नता, आराम, कल्याण, कुशलता
- क्षेमम्—नपुं॰—-—क्षि + भन्—सुरक्षा, बचाव
- क्षेमम्—नपुं॰—-—क्षि + भन्—संरक्षण करने वाला, प्ररक्षा करने वाला
- क्षेमम्—नपुं॰—-—क्षि + भन्—अवाप्त को सुरक्षित रखना
- क्षेमम्—नपुं॰—-—क्षि + भन्—मुक्ति, शाश्वत, आनन्द
- क्षेमः—पुं॰—-—क्षि + भन्—एकप्रकार का सुगन्ध द्रव्य
- क्षेमकर—वि॰—क्षेम-कर—-—मंगलप्रद शान्ति औत सुरक्षा करने वाला
- क्षेमिन्—वि॰—-—क्षेम + इनि—सुरक्षित, आक्रमण से रक्षित, प्रसन्न
- क्षै—भ्वा॰ पर॰ <क्षायति>, <क्षाम>—-—-—क्षीण होना, नष्ट होना, कृश होना, ह्रास होना, मुर्झाना
- क्षैण्यम्—नपुं॰—-—क्षीण + ष्यञ्—विनाश
- क्षैण्यम्—नपुं॰—-—क्षीण + ष्यञ्—दुबलापन, सुकुमारता
- क्षैत्रम्—नपुं॰—-—क्षेत्र + अण्—खेतों का समूह
- क्षैत्रम्—नपुं॰—-—क्षेत्र + अण्—खेत
- क्षैरेय—वि॰—-—क्षीर + ढञ्—दूधिया, दूध जैसा
- क्षोडः—पुं॰—-—क्षोड् + घञ्—हाथी बांधने का खंभा
- क्षोणिः—स्त्री॰—-—क्षै + डोनि—पृथ्वी
- क्षोणिः—स्त्री॰—-—क्षै + डोनि—एक
- क्षोणी—स्त्री॰—-—क्षोणि + ङीष्—पृथ्वी
- क्षोणी—स्त्री॰—-—क्षोणि + ङीष्—एक
- क्षोत्तृ—पुं॰—-—क्षुद् + तृच्—मूसली, बट्टा
- क्षोदः—पुं॰—-—क्षुद् + घञ्—चूरा करना, पीसना
- क्षोदः—पुं॰—-—क्षुद् + घञ्—सिल
- क्षोदः—पुं॰—-—क्षुद् + घञ्—धूल, कण कोई छोटा या सूक्ष्म कण
- क्षोद—वि॰—-—क्षुद् + घञ्—जो जांच पड़ताल या अनुसन्धान में ठहर सके
- क्षोदिमन्—पुं॰—-—क्षोद + इमनिच्—सूक्ष्मता
- क्षोभः—पुं॰—-—क्षुभ् + घञ्—डोलना, हिलना, लोटपोट होना
- क्षोभः—पुं॰—-—क्षुभ् + घञ्—हिचकोले खाना
- क्षोभः—पुं॰—-—क्षुभ् + घञ्—आन्दोलन, डाँवाडोल होना, उत्तेजना, संवेग
- क्षोभः—पुं॰—-—क्षुभ् + घञ्—उकसाहट, चिढ़
- क्षोभणम्—नपुं॰—-—क्षुभ् + णिच् + ल्युट्—क्षुब्ध करना, व्याकुल करना
- क्षोभणः—पुं॰—-—क्षुभ् + णिच् + ल्युट्—कामदेव के पांच बाणों में से एक
- क्षोमः—पुं॰—-—क्षु + मन्—घर की छत पर बना कमरा, चौबारा
- क्षोमम्—नपुं॰—-—क्षु + मन्—घर की छत पर बना कमरा, चौबारा
- क्षौणिः—स्त्री॰—-—-—पृथ्वी
- क्षौणिः—स्त्री॰—-—-—एक
- क्षौणी—स्त्री॰—-—-—पृथ्वी
- क्षौणी—स्त्री॰—-—-—एक
- क्षौणीप्राचीरः—पुं॰—क्षौणी-प्राचीरः—-—समुद्र
- क्षौणीभुज्—पुं॰—क्षौणी-भुज्—-—राजा
- क्षौणीभृत्—पुं॰—क्षौणी-भृत्—-—पहाड़
- क्षौद्रः—पुं॰—-—क्षुद्र + अण्—चम्पक, वृक्ष
- क्षौद्रम्—नपुं॰—-—क्षुद्र + अण्—हल्कापन
- क्षौद्रम्—नपुं॰—-—क्षुद्र + अण्—कमीनापन, ओछापन
- क्षौद्रम्—नपुं॰—-—क्षुद्र + अण्—शहद
- क्षौद्रम्—नपुं॰—-—क्षुद्र + अण्—जल
- क्षौद्रम्—नपुं॰—-—क्षुद्र + अण्—धूलकण
- क्षौद्रजम्—नपुं॰—क्षौद्र-जम्—-—मोम
- क्षौद्रेयम्—नपुं॰—-—क्षौद्र + ढञ्—मोम
- क्षौमः—पुं॰—-—क्षु + मन् + अण्—रेशमी कपड़ा, ऊनी कपड़ा
- क्षौमः—पुं॰—-—क्षु + मन् + अण्—चौबारा
- क्षौमः—पुं॰—-—क्षु + मन् + अण्—मकान का पिछला भाग
- क्षौमम्—नपुं॰—-—क्षु + मन् + अण्—रेशमी कपड़ा, ऊनी कपड़ा
- क्षौमम्—नपुं॰—-—क्षु + मन् + अण्—चौबारा
- क्षौमम्—नपुं॰—-—क्षु + मन् + अण्—मकान का पिछला भाग
- क्षौमम्—नपुं॰—-—क्षु + मन् + अण्—अस्तर
- क्षौमम्—नपुं॰—-—क्षु + मन् + अण्—अलसी
- क्षौमी—पुं॰—-—-—सन
- क्षौरम्—नपुं॰—-—क्षुर + अण्—हजामत
- क्षौरिकः—पुं॰—-—क्षौर + ठन्—नाई
- क्ष्णु—अदा॰ पर॰ <क्ष्णोति>, <क्ष्णुत>—-—-—पैना करना, तेज करना
- संक्ष्णु—अदा॰ आ॰—सम्-क्ष्णु—-—तेज करना
- क्ष्मा—स्त्री॰—-—क्षम् + अच् उपधालोपः—पृथ्वी
- क्ष्मा—स्त्री॰—-—-—एक की संख्या
- क्ष्माजः—पुं॰—क्ष्मा-जः—-—मंगलग्रह
- क्ष्मापः—पुं॰—क्ष्मा-पः—-—मंगलग्रह
- क्ष्मापतिः—पुं॰—क्ष्मा-पतिः—-—मंगलग्रह
- क्ष्माभुज्—पुं॰—क्ष्मा-भुज्—-—राजा
- क्ष्माभृत्—पुं॰—क्ष्मा-भृत्—-—राजा या पहाड़
- क्ष्माय्—भ्वा॰ आ॰ <क्ष्मायते>, <क्ष्मायित>—-—-—हिलाना, कांपना
- क्ष्विड्—भ्वा॰ उभ॰ <क्ष्वेडति>, <क्ष्वेडते>, <क्ष्वेट्ट>, या <क्ष्वेडित>—-—-—भिनभिनाना, दाहड़ना, चहचहाना, गुर्राना, बुदबुदाना, अस्पष्ट ध्वनि करना
- क्ष्विड्—भ्वा॰ आ॰ <क्ष्विद्>—-—-—गीला होना, चिपचिपा होना
- क्ष्विड्—भ्वा॰ आ॰ <क्ष्विद्>—-—-—रस निकलना, रस छोड़ना, मवाद बहना, पसीजना
- क्ष्विड्—दिवा॰ पर॰ <क्ष्विद्यति>, <क्ष्वेदित>, <क्ष्विण्ण>—-—-—गीला होना, चिपचिपा होना
- क्ष्विड्—दिवा॰ पर॰ <क्ष्विद्यति>, <क्ष्वेदित>, <क्ष्विण्ण>—-—-—रस निकलना, रस छोड़ना, मवाद बहना, पसीजना
- क्ष्वेडः—पुं॰—-—क्ष्विड् + घञ्, अच् वा—शब्द, शोर, कोलाहल
- क्ष्वेडः—पुं॰—-—-— विष, जहर
- क्ष्वेडः—पुं॰—-—-—आर्द्र या तर करना
- क्ष्वेडः—पुं॰—-—-—त्याग
- क्ष्वेडा—स्त्री॰—-—-—शेर की दहाड़
- क्ष्वेडा—स्त्री॰—-—-—युद्ध के लिए ललकार, रणगुहार
- क्ष्वेडा—स्त्री॰—-—-—बाँस
- क्ष्वेडितम्—नपुं॰—-—क्ष्विड् + क्त—सिंह गर्जना
- क्ष्वेला—स्त्री॰—-—क्ष्वेल + अ + टाप्—खेल, हंसी, मजाक