विक्षनरी:संस्कृत-हिन्दी शब्दकोश/ख-ग
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- मूलशब्द—व्याकरण—संधिरहित मूलशब्द—व्युत्पत्ति—हिन्दी अर्थ
- खः—पुं॰—-—-—सूर्य
- खम्—नपुं॰—-—-—आकाश
- खम्—नपुं॰—-—-—स्वर्ग
- खम्—नपुं॰—-—-—ज्ञानेन्द्रिय
- खम्—नपुं॰—-—-—एक नगर
- खम्—नपुं॰—-—-—खेत
- खम्—नपुं॰—-—-—शून्य
- खम्—नपुं॰—-—-—एक बिन्दु, अनुस्वार
- खम्—नपुं॰—-—-—गह्वर, द्वारक, विवर, रन्ध्र
- खम्—नपुं॰—-—-—शरीर के द्वारक
- खम्—नपुं॰—-—-—घाव
- खम्—नपुं॰—-—-—प्रसन्नता, आनन्द
- खम्—नपुं॰—-—-—अभ्रक
- खम्—नपुं॰—-—-—कर्म
- खम्—नपुं॰—-—-—ज्ञान
- खम्—नपुं॰—-—-—ब्रह्मा
- खेऽटः—पुं॰—खम्-अटः—-—ग्रह
- खेऽटः—पुं॰—खम्-अटः—-—राहु, आरोही शिरोबिन्दु
- खापगा—स्त्री॰—खम्-आपगा—-—गंगा का विशेषण
- खोल्मुकः—पुं॰—खम्-उल्कः—-—धूमकेतु
- खोल्मुकः—पुं॰—खम्-उल्कः—-—ग्रह
- खोल्मुकः—पुं॰—खम्-उल्मुकः—-—मंगल ग्रह
- खकामिनी—स्त्री॰—खम्-कामिनी—-—दुर्गा
- खकुन्तलः—पुं॰—खम्-कुन्तलः—-—शिव
- खगः—पुं॰—खम्-गः—-—पक्षी
- खगः—पुं॰—खम्-गः—-—वायु, हवा
- खगः—पुं॰—खम्-गः—-—सूर्य
- खगः—पुं॰—खम्-गः—-—ग्रह
- खगः—पुं॰—खम्-गः—-—टिड्डा
- खगः—पुं॰—खम्-गः—-—देवता
- खगः—पुं॰—खम्-गः—-—बाण
- खगाधिपः—पुं॰—खम्-ग-अधिपः—-—गरुड़ का विशेषण
- खगान्तकः—पुं॰—खम्-ग-अन्तकः—-—बाज, श्येन
- खगाभिरामः—पुं॰—खम्-ग-अभिरामः—-—शिव का विशेषण
- खगासनः—पुं॰—खम्-ग-आसनः—-—उदयाचल
- खगासनः—पुं॰—खम्-ग-आसनः—-—विष्णु का विशेषण
- खगेन्द्रः—पुं॰—खम्-ग-इन्द्रः—-—गरुड़ का विशेषण
- खगीश्वरः—पुं॰—खम्-ग-ईश्वरः—-—गरुड़ का विशेषण
- खगपतिः—पुं॰—खम्-ग-पतिः—-—गरुड़ का विशेषण
- खगवती—स्त्री॰—खम्-ग-वती—-—पृथ्वी
- खगस्थानम्—नपुं॰—खम्-ग-स्थानम्—-—वृक्ष की खोडर
- खगस्थानम्—नपुं॰—खम्-ग-स्थानम्—-—पक्षी का घोंसला
- खगङ्गा—स्त्री॰—खम्-गङ्गा—-—आकाशगंगा
- खगतिः—स्त्री॰—खम्-गतिः—-—हवा में उड़ान
- खगमः—पुं॰—खम्-गमः—-—पक्षी
- खगमनः—पुं॰—खम्-गमनः—-—एक प्रकार का जलकुक्कुट
- खगोलः—पुं॰—खम्-गोलः—-—आकाशमण्डल
- खगोलविद्या—स्त्री॰—खम्-गोल-विद्या—-—ज्योतिष विद्या
- खचमसः—पुं॰—खम्-चमसः—-—चाँद
- खचरः—पुं॰—खम्-चरः—-—पक्षी
- खचरः—पुं॰—खम्-चरः—-—बादल
- खचरः—पुं॰—खम्-चरः—-—वृक्ष
- खचरः—पुं॰—खम्-चरः—-—हवा
- खेचरी—स्त्री॰—खम्-चरी—-—उड़ने वाली अप्सरा
- खेचरी—स्त्री॰—खम्-चरी—-—दुर्गा की उपाधि
- खजलम्—पुं॰—खम्-जलम्—-—आकाशीय जल, ओस, वर्षा, कोहरा आदि
- खज्योतिस्—पुं॰—खम्-ज्योतिस्—-—जुगनू
- खतमालः—पुं॰—खम्-तमालः—-—बादल
- खतमालः—पुं॰—खम्-तमालः—-—धूँआ
- खद्योतः—पुं॰—खम्-द्योतः—-—जुगनू
- खद्योतः—पुं॰—खम्-द्योतः—-—सूर्य
- खद्योतनः—पुं॰—खम्-द्योतनः—-—सूर्य
- खधूपः—पुं॰—खम्-धूपः—-—अग्निबाण
- खपरागः—पुं॰—खम्-परागः—-—अंधकार
- खपुष्पम्—नपुं॰—खम्-पुष्पम्—-—आकाश का फूल, असम्भवता को प्रकट करने की अभिव्यक्ति
- खभम्—नपुं॰—खम्-भम्—-—ग्रह
- खभ्रान्ति—पुं॰—खम्-भ्रान्तिः—-—श्येन
- खमणिः—पुं॰—खम्-मणिः—-—‘आकाश की मणि’, सूर्य
- खमीलनम्—नपुं॰—खम्-मीलनम्—-—निद्रालुता, थकावट
- खमूर्तिः—पुं॰—खम्-मूर्तिः—-—शिव का विशेषण
- खवारि—नपुं॰—खम्-वारि—-—वर्षा का पानी ओस आदि
- खवाष्पः—पुं॰—खम्-वाष्पः—-—बर्फ, पाला
- खशय—वि॰—खम्-शय—-—आकाश में विश्राम करने वाला या रहने वाला
- खशरीरम्—नपुं॰—खम्-शरीरम्—-—आकाशीय शरीर
- खश्वासः—पुं॰—खम्-श्वासः—-—हवा, वायु
- खसमुत्थ—वि॰—खम्-समुत्थ—-—आकाश में उत्पन्न
- खसम्भवः—पुं॰—खम्-सम्भवः—-—आकाश में उत्पन्न
- खसिन्धुः—पुं॰—खम्-सिम्धुः—-—चाँद
- खस्तनी—स्त्री॰—खम्-स्तनी—-—पृथ्वी
- खस्फटिकम्—नपुं॰—खम्-स्फटिकम्—-—सूर्यकान्त या चन्द्रकान्त मणि
- खहर—वि॰—खम्-हर—-—जिसका हर शून्य हो
- खक्खट—वि॰—-—खक्ख् - अटन्—कठोर, ठोस
- खक्खटः—पुं॰—-—खक्ख् - अटन्—खड़िया
- खङ्करः—पुं॰—-—ख - कृ - खच्, मुम्—अलक, बालों की लट
- खच्—भ्वा॰ क्या॰ पर॰ <खचति>, <खच्नाति>, <खचित>—-—-—आगे आना, प्रकट होना
- खच्—भ्वा॰ क्या॰ पर॰ <खचति>, <खच्नाति>, <खचित>—-—-—पुनर्जन्म होना
- खच्—भ्वा॰ क्या॰ पर॰ <खचति>, <खच्नाति>, <खचित>—-—-—पवित्र करना
- खच्—चुरा॰ उभ॰ <खचयति>, <खचित>—-—-—जकड़ना, बाँधना, जड़ना
- उत्खच्—चुरा॰ उभ॰—उद्-खच्—-—मिलाना, गडमड करना, जड़ना
- खचित—वि॰—-—खच् - क्त—जकड़ा हुआ, संयुक्त, भरा हुआ, अन्तर्मिश्रित
- खचित—वि॰—-—खच् - क्त—निश्चित, सम्मिश्रित
- खचित—वि॰—-—खच् - क्त—जड़ा हुआ, जटित, भरा हुआ
- खज्—भ्वा॰ पर॰ <खजति>, <खजित>—-—-—मन्थन करना, बिलोना, आन्दोलित करना
- खजः—पुं॰—-—खज् - अच्—मथानी, रई का डंडा
- खजकः—पुं॰—-—खज् - अच्, कन् च—मथानी, रई का डंडा
- खजपम्—नपुं॰—-—खज् - कपन्—घी
- खजाकः—पुं॰—-—खज् - आक्—पक्षी
- खजाजिका—स्त्री॰—-—खज् - अ - टाप् = खजा, अज् - घञ्, खजायै आजो यस्याः ब॰ स॰, खजाज - ङीष् - कन् - टाप्, ह्रस्वः—कड़छी, चम्मच
- खञ्ज्—भ्वा॰ पर॰ <खञ्जति>—-—-—लँगड़ाना, ठहर-ठहर कर चलना
- खञ्ज—वि॰—-—खञ्ज् - अच्—लँगड़ा, विकलांग, पंगु
- खञ्जखेटः—पुं॰—खञ्ज-खेटः—-—खञ्जनपक्षी
- खञ्जखेलः—पुं॰—खञ्ज-खेलः—-—खञ्जनपक्षी
- खञ्जनः—पुं॰—-—खञ्ज् - ल्युट्—खञ्जनपक्षी
- खञ्जनम्—नपुं॰—-—खञ्ज् - ल्युट्—लँगड़ा कर जाने वाला
- खञ्जनरतम्—नपुं॰—खञ्जन-रतम्—-—सन्यासियों का गुप्त मैथुन
- खञ्जना —स्त्री॰—-—खञ्जन - टाप्—खञ्जनपक्षियों की जाति
- खञ्जनिका—स्त्री॰—-—खञ्जन - ठन् - टाप्—खञ्जनपक्षियों की जाति
- खञ्जरीटः—पुं॰—-—खञ्ज - ऋ - कीटन्—खञ्जनपक्षी
- खञ्जरीटकः—पुं॰—-—खञ्ज - ऋ - कीटन्, कन् च—खञ्जनपक्षी
- खञ्जलेखः—पुं॰—-—खञ्ज - ऋ - कीटन्, कन् च, खञ्ज - लिख् - घञ्—खञ्जनपक्षी
- खटः—पुं॰—-—खट् - अच्—कफ
- खटः—पुं॰—-—खट् - अच्—अन्धा कुआँ
- खटः—पुं॰—-—खट् - अच्—कुल्हाड़ी
- खटः—पुं॰—-—खट् - अच्—हल
- खटः—पुं॰—-—खट् - अच्—घास
- खटकटाहकः—पुं॰—खट-कटाहकः—-—पीकदान
- खटखादकः—पुं॰—खट-खादकः—-—गीदड़
- खटखादकः—पुं॰—खट-खादकः—-—कौवा
- खटखादकः—पुं॰—खट-खादकः—-—जानवर
- खटखादकः—पुं॰—खट-खादकः—-—शीशे का बर्तन
- खटकः—पुं॰—-—खट् - वुन्—सगाई-विवाह तय करने का व्यवसाय करने वाला
- खटकः—पुं॰—-—खट् - वुन्—अधमुँदा हाथ
- खटकामुखम्—नपुं॰—-—-—बाण चलाते समय हाथ की विशेष अवस्थिति
- खटिका—स्त्री॰—-—खट् - अच् - कन् - टाप्, इत्वम्—खड़िया
- खटिका—स्त्री॰—-—खट् - अच् - कन् - टाप्, इत्वम्—कान का बाहरी विवर
- खटक्किका—स्त्री॰—-—-—पार्श्वद्वार, खिड़की
- खडक्किका—स्त्री॰—-—-—पार्श्वद्वार, खिड़की
- खटिनी —स्त्री॰—-—-—खड़िया
- खटी—स्त्री॰—-—-—खड़िया
- खट्टन—वि॰—-—खट्ट - ल्युट—ठिंगना
- खट्टनः—पुं॰—-—खट्ट - ल्युट—ठिंगना आदमी
- खट्टा—स्त्री॰—-—खट्ट - अच् - टाप्—खाट
- खट्टा—स्त्री॰—-—खट्ट - अच् - टाप्—एक प्रकार का घास
- खट्टिः—पुं॰—-—खट्ट - इन्—अर्थी
- खट्टिकः—पुं॰—-—खट्ट - अच् - ठन्—कसाई
- खट्टिकः—पुं॰—-—खट्ट - अच् - ठन्—शिकारी, बहेलिया
- खेट्टरक—वि॰—-—खट्ट - एरक—ठिंगना
- खट्वा—स्त्री॰—-—खट् - क्वन - टाप्—खाट, सोफा, खटोला
- खट्वा—स्त्री॰—-—खट् - क्वन - टाप्—झूला, पालना
- खट्वाङ्ग—वि॰—खट्वा-अङ्ग—-—सोटा या लकड़ी जिसके सिरे पर खोपड़ी जड़ी हो
- खट्वाङ्ग—वि॰—खट्वा-अङ्ग—-—दिलीप
- खट्वाङ्ग—पुं॰—खट्वा-अङ्ग—-—शिव की उपाधियाँ
- खट्वाङिगन्—पुं॰—खट्वा-अङिगन्—-—शिव की विशेषण
- खट्वाप्लुत्—पुं॰—खट्वा-आप्लुत्—-—नीच, दुष्ट
- खट्वाप्लुत्—पुं॰—खट्वा-आप्लुत्—-—परित्यक्त, बदमाश
- खट्वाप्लुत्—पुं॰—खट्वा-आप्लुत्—-—मूर्ख, बेवकूफ
- खट्वारुढ—वि॰—खट्वा-आरुढ—-—नीच, दुष्ट
- खट्वारुढ—वि॰—खट्वा-आरुढ—-—परित्यक्त, बदमाश
- खट्वारुढ—वि॰—खट्वा-आरुढ—-—मूर्ख, बेवकूफ
- खट्वाका—स्त्री॰—-—खट्वा - कन् - टाप्—खटोला, छोटी खाट
- खटिवका—स्त्री॰—-—खट्वा - कन् - टाप्, इत्वम् वा—खटोला, छोटी खाट
- खड्—वि॰—-—-—
- खडः—पुं॰—-—खड् - अच्—तोड़ना, टुकड़े टुकड़े करना
- खडिका—स्त्री॰—-—खड् - अच् - ङीष्, कन्, ह्रस्व, खड - ङीष्—खड़ियाँ
- खडी—स्त्री॰—-—खड् - अच् - ङीष्, कन्, ह्रस्व, खड - ङीष्—खड़ियाँ
- खङ्गः—पुं॰—-—खड् - गन्—तलवार
- खङ्गः—पुं॰—-—खड् - गन्—गैंडे के सींग
- खङ्गः—पुं॰—-—खड् - गन्—गैंडा
- खङ्गम्—नपुं॰—-—खड् - गन्—लोहा
- खङ्गाघातः—पुं॰—खङ्ग-आघातः—-—तलवार का घाव
- खङ्गाधारः—पुं॰—खङ्ग-आधारः—-—म्यान, कोश
- खङ्गामिषम्—नपुं॰—खङ्ग-आमिषम्—-—भैंस का मांस
- खङ्गाह्वः—पुं॰—खङ्ग-आह्वः—-—गैंडा
- खङ्गकोशः—पुं॰—खङ्ग-कोशः—-—म्यान
- खङ्गधरः—पुं॰—खङ्ग-धरः—-—खड़गधारी योद्धा
- खङ्गधेनुः—पुं॰—खङ्ग-धेनुः—-—छोटी तलवार
- खङ्गधेनुः—पुं॰—खङ्ग-धेनुः—-—गैंडे की मादा
- खङ्गधेनुका—स्त्री॰—खङ्ग-धेनुका—-—छोटी तलवार
- खङ्गधेनुका—स्त्री॰—खङ्ग-धेनुका—-—गैंडे की मादा
- खङ्गपत्रम्—नपुं॰—खङ्ग-पत्रम्—-—तलवार की धार
- खङ्गपाणि—वि॰—खङ्ग-पाणि—-—हाथ में तलवार लिए हुए
- खङ्गपात्रम्—नपुं॰—खङ्ग-पात्रम्—-—भैंस के सींगों का बना पात्र
- खङ्गपिधानम्—नपुं॰—खङ्ग-पिधानम्—-—म्यान
- खङ्गपिधानकम्—नपुं॰—खङ्ग-पिधानकम्—-—म्यान
- खङ्गपुत्रिका—स्त्री॰—खङ्ग-पुत्रिका—-—चाकू, छोटी तलवार
- खङ्गप्रहारः—पुं॰—खङ्ग-प्रहारः—-—तलवार का आघात
- खङ्गफलम्—नपुं॰—खङ्ग-फलम्—-—तलवार का फलक
- खड्गवत्—वि॰—-—खड् - मतुप्—तलवार से सुसज्जित
- खड्गिकः—पुं॰—-—खड्ग - ठन्—खङ्गधारी योद्धा
- खड्गिकः—वि॰—-—खड्ग - ठन्—कसाई
- खड्गिन्—पुं॰—-—खड्ग - इनि—तलवार से सुसज्जित
- खड्गिन्—पुं॰—-—खड्ग - इनि—गैंडा
- खड्गीकम्—नपुं॰—-—खड्ग - ईक बा॰—दराँती
- खण्ड्—चुरा॰ पर॰ <खण्डयति>, <खण्डित>—-—-—तोड़ना, काटना, टुकडे-टुकडे करना, कुचलना
- खण्ड्—चुरा॰ पर॰ <खण्डयति>, <खण्डित>—-—-—पूरी तरह हराना, नष्ट करना, मिटाना
- खण्ड्—चुरा॰ पर॰ <खण्डयति>, <खण्डित>—-—-—निराश करना, भग्नाश करना, हताश करना
- खण्ड्—चुरा॰ पर॰ <खण्डयति>, <खण्डित>—-—-—विघ्न डालना
- खण्ड्—चुरा॰ पर॰ <खण्डयति>, <खण्डित>—-—-—धोखा देना
- खण्डः—पुं॰—-—खण्ड् - घञ्—दरार, खाई, विच्छेद, कटाव, अस्थिभंग
- खण्डः—पुं॰—-—खण्ड् - घञ्—टुकड़ा, भाग, खण्ड, अंश
- खण्डः—पुं॰—-—-—ग्रन्थ का अनुभाग - अध्याय
- खण्डः—पुं॰—-—-—समुच्चय, संघात, समूह
- खण्डम्—पुं॰—-—खण्ड् - घञ्—दरार, खाई, विच्छेद, कटाव, अस्थिभंग
- खण्डम्—नपुं॰—-—खण्ड् - घञ्—टुकड़ा, भाग, खण्ड, अंश
- खण्डम्—नपुं॰—-—-—ग्रन्थ का अनुभाग - अध्याय
- खण्डम्—नपुं॰—-—-—समुच्चय, संघात, समूह
- खण्डः—नपुं॰—-—-—चीनी, खाँड़
- खण्डः—नपुं॰—-—-—रत्न का एक दोष
- खण्डम्—नपुं॰—-—-—एक प्रकार का नमक
- खण्डम्—नपुं॰—-—-—एक प्रकार का ईख, गन्ना
- खण्डाभ्रम्—नपुं॰—खण्ड-अभ्रम्—-—बिखरे हुए बादल
- खण्डाभ्रम्—नपुं॰—खण्ड-अभ्रम्—-—कामकेलि में दाँतों का चिह्न
- खण्डालिः—स्त्री॰—खण्ड-आलिः—-—तेल की एक नाप
- खण्डालिः—स्त्री॰—खण्ड-आलिः—-—सरोवर या झील
- खण्डालिः—स्त्री॰—खण्ड-आलिः—-—वह स्त्री जिसका पति व्याभिचारी हो
- खण्डकथा—स्त्री॰—खण्ड-कथा—-—छोटी कहानी
- खण्डकाव्यम्—नपुं॰—खण्ड-काव्यम्—-—मेघदूत जैसा छोटा काव्य
- खण्डजः—पुं॰—खण्ड-जः—-—एक प्रकार की खाँड़
- खण्डधारा—स्त्री॰—खण्ड-धारा—-—कैंची
- खण्डपरशुः—पुं॰—खण्ड-परशुः—-—शिव का विशेषण
- खण्डपरशुः—पुं॰—खण्ड-परशुः—-—जमदग्नि का पुत्र, परशुराम का विशेषण
- खण्डपर्शुः—पुं॰—खण्ड-पर्शुः—-—शिव
- खण्डपर्शुः—पुं॰—खण्ड-पर्शुः—-—परशुराम
- खण्डपर्शुः—पुं॰—खण्ड-पर्शुः—-—राहु
- खण्डपर्शुः—पुं॰—खण्ड-पर्शुः—-—टूटे दाँत वाला हाथी
- खण्डपालः—पुं॰—खण्ड-पालः—-—हलवाई
- खण्डप्रलयः—पुं॰—खण्ड-प्रलयः—-—विश्व का आंशिक प्रलय जिसमें स्वर्ग से नीचे के सब लोकों का नाश हो जाता है
- खण्डमण्डलम्—नपुं॰—खण्ड-मण्डलम्—-—वृत्त का अंश
- खण्डमोदकः—पुं॰—खण्ड-मोदकः—-—खांड के लड्डू
- खण्डलवणम्—नपुं॰—खण्ड-लवणम्—-—एक प्रकार का नमक
- खण्डविकारः—पुं॰—खण्ड-विकारः—-—चीनी
- खण्डशर्करा—स्त्री॰—खण्ड-शर्करा—-—मिसरी
- खण्डशीला—स्त्री॰—खण्ड-शीला—-—असती, व्याभिचारिणी स्त्री
- खण्डकः—पुं॰—-—खण्ड - कन्—टुकड़ा, भाग, अंश
- खण्डकम्—नपुं॰—-—खण्ड - कन्—टुकड़ा, भाग, अंश
- खण्डकः—पुं॰—-—-—चीनी, खांड
- खण्डकः—पुं॰—-—-—जिसके नाखून न हो
- खण्डन—वि॰—-—खण्ड - ल्युट्—तोड़ने वाला, काटने वाला, मारने वाला
- खण्डनम्—नपुं॰—-—-—तोड़ना, काटना
- खण्डनम्—नपुं॰—-—-—काट लेना, क्षति पहुँचाना, चोट पहुँचाना
- खण्डनम्—नपुं॰—-—-—हताश करना, निराश करना
- खण्डनम्—नपुं॰—-—-—विघ्न डालना
- खण्डनम्—नपुं॰—-—-—ठगना, धोखा देना
- खण्डनम्—नपुं॰—-—-—निराकरण करना
- खण्डनम्—नपुं॰—-—-—विद्रोह, विरोध
- खण्डनम्—नपुं॰—-—-—बर्खास्तगी
- खण्डलः—पुं॰—-—खण्ड - लच् नि॰—टुकड़ा
- खण्डलम्—नपुं॰—-—खण्ड - लच् नि॰—टुकड़ा
- खण्डशः—अव्य॰—-—खण्ड - शस्—अंशों में, टुकड़ों में
- खण्डशःकृ——खण्डशः-कृ—-—काट कर टुकड़े-टुकड़े करना
- खण्डशःकृ——खण्डशः-कृ—-—थोड़ा-थोड़ा करके, टुकड़ा-टुकड़ा करके, टुकड़े-टुकड़े करके
- खण्डित—भू॰ क॰ कृ॰—-—खण्ड् - क्त—काट कर टुकड़े-टुकड़े किया हुआ
- खण्डित—भू॰ क॰ कृ॰—-—-—नष्ट किया हुआ, ध्वंस किया हुआ
- खण्डित—भू॰ क॰ कृ॰—-—-—निराकरण किया हुआ
- खण्डित—भू॰ क॰ कृ॰—-—-—विद्रोह किया हुआ
- खण्डित—भू॰ क॰ कृ॰—-—-—निराश किया हुआ, धोखा दिया हुआ, परित्यक्त
- खण्डिता—स्त्री॰—-—-—वह स्त्री जिसका पति अपनी पत्नी के प्रति अविश्वास का अपराधी रहा हो और इसलिए उसकी पत्नी उससे क्रुद्ध हो
- खण्डितविग्रह—वि॰—खण्डित-विग्रह—-—अंगहीन, विकलांग
- खण्डितवृत्त—वि॰—खण्डित-वृत्त—-—आचारहीन, दुश्चरित्र
- खण्डिनी—स्त्री॰—-—खण्ड् - इनि - ङीप्—पृथ्वी
- खदिकाः—स्त्री॰ब॰ व॰ —-—-—खील, लाजा, तला हुआ या भुना हुआ अनाज
- खदिरः—पुं॰—-—खद् - किरच्—खैर का पेड़
- खदिरः—पुं॰—-—-—इन्द्र का विशेषण
- खदिरः—पुं॰—-—-—चाँद
- खन्—भ्वा॰ उभ॰ <खनति>, <खनते>, <खात>, कर्म॰ <खन्यते>, <खायते>—-—-—खोदना, खनना, खोखला करना
- अभिखन्—भ्वा॰ उभ॰—अभि-खन्—-—खोदना
- उदखन्—भ्वा॰ उभ॰—उद-खन्—-—खुदाई करना, जड़ निकालना, उन्मूलन करना, उखाड़ना
- निखन्—भ्वा॰ उभ॰—नि-खन्—-—खनना, खोदना
- निखन्—भ्वा॰ उभ॰—नि-खन्—-—दफनाना, गाड़ना
- निखन्—भ्वा॰ उभ॰—नि-खन्—-—उठाना
- निखन्—भ्वा॰ उभ॰—नि-खन्—-—जमाना, स्थिर करना, घुसेड़ना
- परिखन्—भ्वा॰ उभ॰—परि-खन्—-—खोदना
- खनकः—पुं॰—-—खन् - ण्वुल्—खनिक
- खनकः—पुं॰—-—-—सेंध लगाने वाला
- खनकः—पुं॰—-—-—चूहा
- खनकः—पुं॰—-—-—कान
- खननम्—नपुं॰—-—खन् - ल्युट्—खोदना, खोखला करना, पोला करना, गाड़ना
- खनिः —स्त्री॰—-—खन् - इ —खान
- खनिः —स्त्री॰—-—खन् - इ —गुफा
- खनी—स्त्री॰—-—खन् - इ स्त्रियां ङीष्—खान
- खनी—स्त्री॰—-—खन् - इ स्त्रियां ङीष्—गुफा
- खनित्रम्—नपुं॰—-—खन् - इत्र—कुदाल, खुर्पा, गैती
- खपुरः—पुं॰—-—खं पिपर्ति उच्चतया - ख - पृ - क—सुपारी का पेड़
- खर—वि॰—-—खं मुखविलमतिशयेन अस्ति अस्य - ख - र अथवा खमिन्द्रियं राति - ख - रा - क—कठोर, खुर्दरा, ठोस
- खर—वि॰—-—-—अमृदु, तेज, सख्त
- खर—वि॰—-—-—तीखा, चरपरा
- खर—वि॰—-—-—घना, सघन
- खर—वि॰—-—-—पीडाकर, हानिकर, कर्कश
- खर—वि॰—-—-—तेज धार वाला
- खर—वि॰—-—-—गरम
- खर—वि॰—-—-—क्रूर, निष्ठुर
- खरः—पुं॰—-—-—गधा
- खरः—पुं॰—-—-—खच्चर
- खरः—पुं॰—-—-—बगुला
- खरः—पुं॰—-—-—कौवा
- खरः—पुं॰—-—-—एक राक्षस का नाम
- खरांशुः—पुं॰—खर-अंशुः—-—सूर्य
- खरकरः—पुं॰—खर-करः—-—सूर्य
- खररश्मिः—पुं॰—खर-रश्मिः—-—सूर्य
- खरकुटी—स्त्री॰—खर-कुटी—-—गधों का अस्तबल
- खरकुटी—स्त्री॰—खर-कुटी—-—नाई की दुकान
- खरकोणः—पुं॰—खर-कोणः—-—चकोर, तीतर
- खरकोमलः—पुं॰—खर-कोमलः—-—ज्येष्ठ मास
- खरगृहम्—नपुं॰—खर-गृहम्—-—गधों का अस्तबल
- खरगेहम्—नपुं॰—खर-गेहम्—-—गधों का अस्तबल
- खरणस्—वि॰—खर-णस्—-—नुकीली नाक वाला
- खरणस—वि॰—खर-णस—-—नुकीली नाक वाला
- खरदण्डम्—नपुं॰—खर-दण्डम्—-—कमल
- खरध्वंसिन्—पुं॰—खर-ध्वंसिन्—-—खरहन्ता राम का विशेषण
- खरनादः—पुं॰—खर-नादः—-—गधे का रेंकना
- खरनलः—पुं॰—खर-नलः—-—कमल
- खरपात्रम्—नपुं॰—खर-पात्रम्—-—लोहे का बर्तन
- खरपालः—पुं॰—खर-पालः—-—लकड़ी का बर्तन
- खरप्रियः—पुं॰—खर-प्रियः—-—कबूतर
- खरयानम्—नपुं॰—खर-यानम्—-—गधों से खींची जाने वाली गाड़ी
- खरशब्दः—पुं॰—खर-शब्दः—-—गधे का रेंकना
- खरशब्दः—पुं॰—खर-शब्दः—-—समुद्री बाज
- खरशाला—स्त्री॰—खर-शाला—-—गधों का अस्तबल
- खरस्वरा—स्त्री॰—खर-स्वरा—-—जंगली चमेली
- खरिका—स्त्री॰—-—खर - कन् - टाप्, इत्वम्—पिसी हुई कस्तूरी
- खरिन्धम—वि॰—-—खरी - ध्मा (धमादेशः) पक्षे धे - खश्, मुम्—गधी का दूध पीने वाला
- खरिन्धय—वि॰—-—खरी - ध्मा (धमादेशः) पक्षे धे - खश्, मुम्—गधी का दूध पीने वाला
- खरी—स्त्री॰—-—खर - ङीष्—गधी
- खरीजङ्घः—पुं॰—खरी-जङ्घः—-—शिव का विशेषण
- खरीवृषः—पुं॰—खरी-वृषः—-—गधा
- खरु—वि॰—-—खन् - कु, रश्चान्तादेशः—श्वेत, मूर्ख, मूढ़
- खरु—वि॰—-—-—क्रूर
- खरु—वि॰—-—-—निषिद्ध वस्तुओं का इच्छुक
- खरुः—पुं॰—-—-—घोड़ा
- खरुः—पुं॰—-—-—दाँत
- खरुः—पुं॰—-—-—घमण्ड
- खरुः—पुं॰—-—-—कामदेव
- खरुः—पुं॰—-—-—शिव
- खरुः—स्त्री॰—-—-—लड़की जो अपना पति स्वयं चुने
- खर्ज्—भ्वा॰ पर॰ <खर्जति>, <खर्जित>—-—-—पीडा देना, बेचैन करना
- खर्ज्—भ्वा॰ पर॰ <खर्जति>, <खर्जित>—-—-—कड़कड़ शब्द मत करो
- खर्जनम्—नपुं॰—-—खर्ज = ल्युट्—खरोचना
- खर्जिका—स्त्री॰—-—खर्ज् - ण्वुल् - टाप्, इत्वम्—उपदंश रोग
- खर्जिका—स्त्री॰—-—खर्ज् - ण्वुल् - टाप्, इत्वम्—गजक
- खर्जुः—स्त्री॰—-—खर्ज् - उन्—खरोंच
- खर्जुः—स्त्री॰—-—-—खजूर का वृक्ष
- खर्जुः—स्त्री॰—-—-—धतूरे का पेड़
- खर्जूरन्—नपुं॰—-—खर्ज् - उरच्—चाँदी
- खर्जूः—स्त्री॰—-—खर्ज् - ऊ—खाज, खुजली
- खर्जूरः—पुं॰—-—खर्ज् - ऊर—खजूर का पेड़
- खर्जूरः—पुं॰—-—-—बिच्छू
- खर्जूरम्—नपुं॰—-—-—चाँदी
- खर्जूरम्—नपुं॰—-—-—हरताल
- खर्जूरी—स्त्री॰—-—-—खजूर का पेड़
- खर्परः—पुं॰—-—कर्पर पृषो॰ कस्य खः—चोर
- खर्परः—पुं॰—-—कर्पर पृषो॰ कस्य खः—बदमाश, ठग
- खर्परः—पुं॰—-—कर्पर पृषो॰ कस्य खः—भिखारी का कटोरा
- खर्परः—पुं॰—-—कर्पर पृषो॰ कस्य खः—खोपड़ी
- खर्परः—पुं॰—-—कर्पर पृषो॰ कस्य खः—मिट्टी का फूटा हुआ बर्तन ठीकरा
- खर्परः—पुं॰—-—कर्पर पृषो॰ कस्य खः—छाता
- खर्परिका—स्त्री॰—-—खर्पर - अच् - ङीष्, - कन्, टाप्, ह्रस्व—एक प्रकार का सुरमा
- खर्परी—स्त्री॰—-—खर्पर - अच् - ङीष्, - कन्, टाप्, ह्रस्व, खर्पर - ङीष्—एक प्रकार का सुरमा
- खर्व् —भ्वा॰ पर॰ <खर्वति>, <खर्वित>—-—-—जाना, फिरना, चलना
- खर्व् —भ्वा॰ पर॰ <खर्वति>, <खर्वित>—-—-—घमण्ड करना
- खर्ब—भ्वा॰ पर॰ <खर्वति>, <खर्वित>—-—-—जाना, फिरना, चलना
- खर्ब—भ्वा॰ पर॰ <खर्वति>, <खर्वित>—-—-—घमण्ड करना
- खर्व —वि॰—-—खर्व् - अच्—विकलांग, अपाहज, अपूर्ण
- खर्व —वि॰—-—खर्व् - अच्—ठिगना, ओछा, कद में छोटा
- खर्ब—वि॰—-—खर्ब - अच्—विकलांग, अपाहज, अपूर्ण
- खर्ब—वि॰—-—खर्ब - अच्—ठिगना, ओछा, कद में छोटा
- खर्वः —पुं॰—-—खर्व् - अच्—दस अरब की संख्या
- खर्बः—पुं॰—-—खर्ब - अच्—दस अरब की संख्या
- खर्वन् —नपुं॰—-—-—दस अरब की संख्या
- खर्बन्—नपुं॰—-—-—दस अरब की संख्या
- खर्वशाख—वि॰—खर्व-शाख—-—ठिंगना, ओछा, छोटा
- खर्वटः—पुं॰—-—खर्व् - अटन्—नगर जिसमें पेंठ भरती हो, मण्डी
- खर्वटः—पुं॰—-—खर्व् - अटन्—पहाड़ की तराई का गाँव
- खर्वटम्—नपुं॰—-—खर्व् - अटन्—नगर जिसमें पेंठ भरती हो, मण्डी
- खर्वटम्—नपुं॰—-—खर्व् - अटन्—पहाड़ की तराई का गाँव
- खल्—भ्वा॰ पर॰ <खलति>, <खलित>—-—-—चलना-फिरना, हिलना-जुलना
- खल्—भ्वा॰ पर॰ <खलति>, <खलित>—-—-—एकत्र करना, संग्रह करना
- खलः—पुं॰—-—खल् - अच्—खलिहान
- खलः—पुं॰—-—खल् - अच्—पृथ्वी, भूमि
- खलः—पुं॰—-—खल् - अच्—स्थान, जगह
- खलः—पुं॰—-—खल् - अच्—धूल का ढेर
- खलः—पुं॰—-—खल् - अच्—तलछट, गाद, तेल आदि के नीचे जमा हुआ मैल
- खलम्—नपुं॰—-—खल् - अच्—खलिहान
- खलम्—नपुं॰—-—खल् - अच्—पृथ्वी, भूमि
- खलम्—नपुं॰—-—खल् - अच्—स्थान, जगह
- खलम्—नपुं॰—-—खल् - अच्—धूल का ढेर
- खलम्—नपुं॰—-—खल् - अच्—तलछट, गाद, तेल आदि के नीचे जमा हुआ मैल
- खलः—पुं॰—-—खल् - अच्—दुष्ट या शरारती आदमी
- खलीकृ——-—-—कुचलना
- खलीकृ——-—-—घायल करना या क्षति पहुँचाना
- खलीकृ——-—-—दुर्व्यवहार करना, घृणा करना
- खलकः—पुं॰—-—ख - ला - क - कन्—घड़ा
- खलति—वि॰—-—स्खलन्तिकेशा अस्मात् - स्खल् - अतच् नि॰ साधुः—गंजे सिर वाला, गंजा
- खलतिकः—पुं॰—-—खलति - कै - क—पहाड़
- खलिः—स्त्री॰—-—खल् - इन्—तेल की तलछट, खली
- खली—स्त्री॰—-—खल् - इन्-ङीप्—तेल की तलछट, खली
- खलिनः—पुं॰—-—खे अश्वमुखछिद्रे लीनम् @ पृषो॰ वा ह्रस्वः—लगाम का दहाना, लगाम की रस
- खलीनः—पुं॰—-—खे अश्वमुखछिद्रे लीनम् @ पृषो॰ वा ह्रस्वः—लगाम का दहाना, लगाम की रस
- खलिनम् —नपुं॰—-—खे अश्वमुखछिद्रे लीनम् @ पृषो॰ वा ह्रस्वः—लगाम का दहाना, लगाम की रस
- खलीनम्—नपुं॰—-—खे अश्वमुखछिद्रे लीनम् @ पृषो॰ वा ह्रस्वः—लगाम का दहाना, लगाम की रस
- खलिनी—स्त्री॰—-—खल् - इनि - ङीप्—खलिहानों का समूह
- खलीङ्कार—स्त्री॰—-—खल् - च्वि - कृ - घन्—चोट पहुँचाना, क्षति पहुँचाना
- खलीङ्कार—स्त्री॰—-—खल् - च्वि - कृ - घन्—दुर्व्यवहार
- खलीङ्कार—स्त्री॰—-—खल् - च्वि - कृ - घन्—अनिष्ट, उत्पात
- खलीङ्कृतिः—स्त्री॰—-—खल् - च्वि - कृ - क्तिन् —चोट पहुँचाना, क्षति पहुँचाना
- खलीङ्कृतिः—स्त्री॰—-—खल् - च्वि - कृ - क्तिन् —दुर्व्यवहार
- खलीङ्कृतिः—स्त्री॰—-—खल् - च्वि - कृ - क्तिन् —अनिष्ट, उत्पात
- खलु—अव्य॰—-—खल् - उन् बा॰—निस्सन्देह, निश्चय ही, अवश्य, सचमुच
- खलु—अव्य॰—-—खल् - उन् बा॰—अनुरोध, अनुनय-विनय प्रार्थना
- खलु—अव्य॰—-—खल् - उन् बा॰—पूछताछ
- खलु—अव्य॰—-—खल् - उन् बा॰—प्रतिषेध
- खलु—अव्य॰—-—खल् - उन् बा॰—तर्क
- खलु—अव्य॰—-—खल् - उन् बा॰—कभी कभी ‘खलु’ पूरक की भाँति भर्ती कर दिया जाता है
- खलु—अव्य॰—-—खल् - उन् बा॰—कभी कभी वाक्यालंकार की तरह प्रयुक्त होता है
- खलुच्—पुं॰—-—खम् इन्द्रियं लुञ्चति हन्ति इति - ख - लुञ्च् - क्विप्—अन्धकार
- खलुरिका—स्त्री॰—-—-—परेड का मैदान जहाँ सैनिक लोग कवायद करें
- खल्या—स्त्री॰—-—खल - यत् - टाप्—खलिहानों का समूह
- खल्लः—पुं॰—-—खल् - क्विप्, तं लाति -- खल् - ला - क—खरल
- खल्लः—पुं॰—-—खल् - क्विप्, तं लाति -- खल् - ला - क—गढ़ा
- खल्लः—पुं॰—-—खल् - क्विप्, तं लाति -- खल् - ला - क—चमड़ा
- खल्लः—पुं॰—-—खल् - क्विप्, तं लाति -- खल् - ला - क—चातक पक्षी
- खल्लः—पुं॰—-—खल् - क्विप्, तं लाति -- खल् - ला - क—मशक
- खल्लिका—स्त्री॰—-—खल्ल - कन् - टाप्, इत्वम्—कढ़ाई
- खल्लिट—वि॰—-—खल्ल - इन् - टल् - ड —गंजे सिर वाला
- खल्लीट—वि॰—-—खल्लि - ङीष् - टल् - ड—गंजे सिर वाला
- खल्वाट—वि॰—-—खल् - वाट उप॰ स॰—गंजा, गंजे सिर वाला
- खशः—पुं॰—-—-—भारत के उत्तर में स्थित एक पहाड़ी प्रदेश तथा उसके अधिवासी
- खशरः—पुं॰—-—-—एक देश तथा उसके अधिवासियों का नाम
- खष्पः—पुं॰—-—खन् - प नि॰ नस्य षः—क्रोध
- खष्पः—पुं॰—-—खन् - प नि॰ नस्य षः—हिंसा, निष्ठुरता
- खसः—पुं॰—-—खानि इन्द्रियाणी स्यति निश्चलीकरोति - ख - सो - क—खाज, खुजली
- खसः—पुं॰—-—खानि इन्द्रियाणी स्यति निश्चलीकरोति - ख - सो - क—एक देश का नाम
- खसूचिः—पुं॰—-—ख - सूच् - इ—अपमानसूचक अभिव्यक्ति
- खस्खसः—पुं॰—-—खस प्रकारे द्वित्वम्, पृषो॰ अकारलोपः—पोस्त
- खस्खसरसः—पुं॰—खस्खस-रसः—-—अफ़ीम
- खाजिकः—पुं॰—-—खाज - ठन्—तला हुआ या भुना हुआ अनाज
- खाट्—अव्य॰—-—-—गला साफ करते समय होने वाली ध्वनि
- खात्—अव्य॰—-—-—गला साफ करते समय होने वाली ध्वनि
- खात्कृ—वि॰—-—-—खखारना
- खाटः—स्त्री॰—-—ख - अट् - घञ् स्त्रियां टाप् - खाट - कन् - टाप्, इत्वम्, खाट - ङीप्—अर्थी, टिक्ठी जिसपर मुर्दे को रखकर चिता तक ले जाते हैं
- खाटा—स्त्री॰—-—ख - अट् - घञ् स्त्रियां टाप् - खाट - कन् - टाप्, इत्वम्, खाट - ङीप्—अर्थी, टिक्ठी जिसपर मुर्दे को रखकर चिता तक ले जाते हैं
- खाटिका—स्त्री॰—-—ख - अट् - घञ् स्त्रियां टाप् - खाट - कन् - टाप्, इत्वम्, खाट - ङीप्—अर्थी, टिक्ठी जिसपर मुर्दे को रखकर चिता तक ले जाते हैं
- खाटी—स्त्री॰—-—ख - अट् - घञ् स्त्रियां टाप् - खाट - कन् - टाप्, इत्वम्, खाट - ङीप्—अर्थी, टिक्ठी जिसपर मुर्दे को रखकर चिता तक ले जाते हैं
- खाण्डव—वि॰—-—खण्ड - अण् - वा - क—खाँड़, मिश्री
- खाण्डवम्—नपुं॰—-—खण्ड - अण् - वा - क—कुरुक्षेत्र प्रदेश में विद्यमान इन्द्र का प्रिय वन जिसे अर्जुन और कृष्ण की सहायता से अग्नि ने जला दिया था
- खाण्डवप्रस्थः—पुं॰—खाण्डव-प्रस्थः—-—एक नगर का नाम
- खाण्डविकः—पुं॰—-—खाण्डव - ठन्—हलवाई
- खाण्डिकः—पुं॰—-—खाण्डव - ठन्, खण्ड - ठन्—हलवाई
- खात—वि॰—-—खन् - क्त—खुदा हुआ, खोखला किया हुआ
- खात—वि॰—-—खन् - क्त—फाड़ा हुआ, चीरा हुआ
- खातम्—नपुं॰—-—खन् - क्त—खुदाई
- खातम्—नपुं॰—-—खन् - क्त—सूराख
- खातम्—नपुं॰—-—खन् - क्त—खाई, परिखा
- खातम्—नपुं॰—-—खन् - क्त—आयताकार तालाब
- खातभूः—स्त्री॰—खात-भूः—-—खाई, परिखा
- खातकः—पुं॰—-—खात - कन्—खोदने वाला
- खातकः—पुं॰—-—खात - कन्—कर्जदार
- खातकम्—नपुं॰—-—खात - कन्—खाई, परिखा
- खाता—स्त्री॰—-—खात - टाप्—बनाया हुआ तालाब
- खातिः—स्त्री॰—-—खन् - क्तिन्—खुदाई, खोखला करना
- खात्रम्—नपुं॰—-—खन् - ष्ट्रन्, कित्—कुदाली, आयताकार तालाब
- खात्रम्—नपुं॰—-—खन् - ष्ट्रन्, कित्—धागा
- खात्रम्—नपुं॰—-—खन् - ष्ट्रन्, कित्—वन, जंगल
- खात्रम्—नपुं॰—-—खन् - ष्ट्रन्, कित्—विस्मयोत्पादक भय
- खाद्—भ्वा॰ पर॰ <खादति>, <खादित>—-—-—खाना निगल लेना, खिलाना, शिकार करना, काट लेना
- खादक—वि॰—-—खाद् - ण्वुल्—खाने वाला, उपभोग करने वाला
- खादकः—पुं॰—-—खाद् - ण्वुल्—कर्जदार
- खादनः—पुं॰—-—खाद् - ल्युट्—दाँत
- खादनम्—नपुं॰—-—खाद् - ल्युट्—खाना चबाना
- खादनम्—नपुं॰—-—खाद् - ल्युट्—भोजन
- खादिर—वि॰—-—खादिर - अञ्—खैर वृक्ष का, या खैर वृक्ष की लकड़ी का बना हुआ
- खादुक—वि॰—-—खाद् - उन् - कन्—उत्पाती, हानिकर द्वेषपूर्ण
- खाद्यम्—नपुं॰—-—खाद् - ण्यत्—भोजन, भोज्य पदार्थ
- खानम्—नपुं॰—-—कन् - ल्युट्—खुदाई, क्षति
- खानोदकः—पुं॰—खानम्-उदकः—-—नारियल का पेड़
- खानक—वि॰—-—खन् - ण्वुल्—खोदने वाला, खनिक
- खानिः—स्त्री॰—-—खनिरेव पृषो॰ वृद्धिः—खान
- खानिकः—पुं॰—-—खान - ठञ्—दीवार में किया हुआ छेद, दरार, तरेड़
- खानिकम्—नपुं॰—-—खान - ठञ्—दीवार में किया हुआ छेद, दरार, तरेड़
- खानिलः—पुं॰—-—खान - इलच् बा॰—घर में सेंध लगाने वाला
- खारः—पुं॰—-—खम् आकाशम् आधिक्येन ऋच्छति - ख - ऋ - अण्, ख - आ - रा - क - ङीष् वा ह्रस्वः—१६ द्रोण के बराबर अनाज का माप
- खारि—पुं॰—-—खम् आकाशम् आधिक्येन ऋच्छति - ख - ऋ - अण्, ख - आ - रा - क - ङीष् वा ह्रस्वः—१६ द्रोण के बराबर अनाज का माप
- खारिम्पच—वि॰—-—खारिम् - पच् - खश्—एक खारी - भर अनाज पकाने वाला
- खार्वा—स्त्री॰—-—-—त्रेतायुग, दूसरा युग
- खिङ्खरः—पुं॰—-—खिम् इति शब्दं किरति - खिम् - कृ - क पृषो॰—लोमड़ी
- खिङ्खरः—पुं॰—-—खिम् इति शब्दं किरति - खिम् - कृ - क पृषो॰—खाट या चारपाई का पाया
- खिद्—भ्वा॰, तुदा॰ पर॰ <खिन्दति>, <खिन्न>—-—-—प्रहार करना, खींचना, कष्ट देना
- खिद्—दिवा॰ रुधा॰, आ॰ <खिद्यते>, <खिन्ते>, <खिन्न>—-—-—पीडित होना, कष्ट सहना, कष्टग्रस्त होना, क्लान्त होना, थकान अनुभव करना, अवसाद या श्रान्ति अनुभव करना
- खिद्—दिवा॰ रुधा॰, आ॰ <खिद्यते>, <खिन्ते>, <खिन्न>—-—-—डरना, त्रस्त करना
- परिखिद्—दिवा॰ रुधा॰, आ॰—परि-खिद्—-—पीडित होना, कष्ट सहना, दुःखी या क्लान्त होना
- खिदिरः—पुं॰—-—खिद् - किरच्—संन्यासी
- खिदिरः—पुं॰—-—खिद् - किरच्—दरिद्र
- खिदिरः—पुं॰—-—खिद् - किरच्—चन्द्रमा
- खिन्न—भू॰ क॰ कृ॰—-—खिद् - क्त—अवसाद प्राप्त, कष्टग्रस्त, उदास, दुःखी, पीडित
- खिन्न—भू॰ क॰ कृ॰—-—खिद् - क्त—क्लान्त, थका हुआ, श्रान्त
- खिलः—पुं॰—-—खिल् - क—ऊसर भूमि या परती जमीन का टुकड़ा, मरुभूमि, वृक्षहीन भूमि
- खिलः—पुं॰—-—खिल् - क—अतिरिक्त सूक्त जो किसी मूलसंग्रह में जोड़ा गया हो
- खिलः—पुं॰—-—खिल् - क—सम्पूरक
- खिलः—पुं॰—-—खिल् - क—संग्रहग्रन्थ या संकलित ग्रन्थ
- खिलः—पुं॰—-—खिल् - क—खोखलापन, शून्यता
- खिलीभू—स्त्री॰—-—-—अगम्य होना, बन्द होना, अनभ्यस्त रहना
- खिलीकृ——-—-—रोकना, बाधा डालना, अगम्य बनाना, रोकना
- खिलीकृ——-—-—परती छोड़ना, उजाड़ना, पूर्णतः नष्ट कर देना
- खुङ्गाहः—पुं॰—-—खुम् इत्यव्यक्तशब्दं कृत्वा गाहते - खुम् - गाह - अच्—काला टट्टू या घोड़ा
- खुरः—पुं॰—-—खुर - क—सुम
- खुरः—पुं॰—-—खुर - क—एक प्रकार का सुगन्धित द्रव्य
- खुरः—पुं॰—-—खुर - क—उस्तरा
- खुरः—पुं॰—-—खुर - क—खाट का पाया
- खुराघातः—पुं॰—खुर-आघातः—-—लात मारना
- खुरक्षेपः—पुं॰—खुर-क्षेपः—-—लात मारना
- खुरणस्—वि॰—खुर-णस्—-—चिपटी नाक वाला
- खुरणस—वि॰—खुर-णस—-—चिपटी नाक वाला
- खुरपदवी—स्त्री॰—खुर-पदवी—-—घोड़े के पदचिह्न
- खुरप्रः—पुं॰—खुर-प्रः—-—अर्द्धगोलाकार नोंक का बाण
- खुरली—स्त्री॰—-—खुरैः सह लाति पौनः पुन्येन यत्र - खुर - ला - क - ङीष्—सैनिक अभ्यास
- खुरालकः—पुं॰—-—खुर इव अलति पर्याप्नोति - खुर - अल् - ण्वुल्—लोहे का बाण
- खुरालिकः—पुं॰—-—खुराणाम् आलिभिः कायति प्रकाशते - खुरालि - कै - क—उस्तरा रखने का घर
- खुरालिकः—पुं॰—-—खुराणाम् आलिभिः कायति प्रकाशते - खुरालि - कै - क—लोहे का तीर
- खुरालिकः—पुं॰—-—खुराणाम् आलिभिः कायति प्रकाशते - खुरालि - कै - क—तकिया
- खुल्ल—वि॰—-— = क्षुल्ल, पृषो॰—छोटा, ओछा, अधम, नीच
- खुल्लतातः—पुं॰—खुल्ल-तातः—-—चाचा
- खेचरः—पुं॰—-—-—पक्षी
- खेचरः—पुं॰—-—-—बादल
- खेचरः—पुं॰—-—-—वृक्ष
- खेचरः—पुं॰—-—-—हवा
- खटः—पुं॰—-—खे अटति - अट् - अच्, खिच् - अच् वा—गाँव, छोटा नगर, पुरखा
- खटः—पुं॰—-—खे अटति - अट् - अच्, खिच् - अच् वा—कफ
- खटः—पुं॰—-—खे अटति - अट् - अच्, खिच् - अच् वा—बलराम की गदा
- खटः—पुं॰—-—खे अटति - अट् - अच्, खिच् - अच् वा—घोड़ा
- खेटितानः—पुं॰—-—खिट् - इन् = खेटि, खेटिः तानोऽस्य, तालोऽस्य वा—वैतालिक, स्तुतिपाठक जो गृहस्वामी को गा बजा कर जगाता है
- खेटिन्—पुं॰—-—खिट् - णिनि—दुराचारी, दुश्चरित्र
- खेदः—पुं॰—-—खिद् - घञ्—अवसाद, आलस्य, उदासी
- खेदः—पुं॰—-—खिद् - घञ्—थकान, श्रान्ति
- खेदः—पुं॰—-—खिद् - घञ्—पीडा, यन्त्रणा
- खेदः—पुं॰—-—खिद् - घञ्—दुःख, शोक
- खेयम्—नपुं॰—-—खन् - क्यप्, इकारादेशः—खाई, परिखा
- खेयः—पुं॰—-—-—पुल
- खेल्—भ्वा॰ पर॰ <खेलति>, <खेलित>—-—-—हिलाना, इधर-उधर आना जाना
- खेल्—भ्वा॰ पर॰ <खेलति>, <खेलित>—-—-—काँपना
- खेल्—भ्वा॰ पर॰ <खेलति>, <खेलित>—-—-—खेलना
- खेल—वि॰—-—खेल् - अच्—खिलाड़ी, रसिया, क्रीड़ापूर्ण
- खेलनम्—नपुं॰—-—खेल् - ल्युट्—हिलाना
- खेलनम्—नपुं॰—-—खेल् - ल्युट्—खेल, मनोरञ्जन
- खेलनम्—नपुं॰—-—खेल् - ल्युट्—तमाशा
- खेला—स्त्री॰—-—खेल् - अ - टाप्—क्रीडा, खेल
- खेलिः—स्त्री॰—-—खे आकाशे अलति पर्याप्नोति खे - अल् - इन्—क्रीडा, खेल
- खेलिः—स्त्री॰—-—खे आकाशे अलति पर्याप्नोति खे - अल् - इन्—तीर
- खोटिः—पुं॰—-—खोट् - इन्—चालाक और चतुर स्त्री
- खोड—वि॰—-—खोड् - अच्—विकलांग, लंगड़ा, पंगु
- खोर—वि॰—-—खोर् - अच्—लंगड़ा, पंगु
- खोल—वि॰—-—खोल् - अच्—लंगड़ा, पंगु
- खोलकः—पुं॰—-—खोल - कन्—पुरवा
- खोलकः—पुं॰—-—खोल - कन्—बाँबी
- खोलकः—पुं॰—-—खोल - कन्—सुपारी का छिलका
- खोलकः—पुं॰—-—खोल - कन्—डेगची
- खोलिः—पुं॰—-—खोल् - इन्—तरकस
- ख्या—अदा॰ पर॰ <ख्याति>, <ख्यात>—-—-—कहना, घोषणा करना, समाचार देना
- ख्या—अदा॰कर्म॰ <ख्यायते>—-—-—कहलाना
- ख्या—अदा॰कर्म॰ <ख्यायते>—-—-—प्रसिद्ध या परिचित होना
- ख्या—अदा॰ प्रेर॰ <ख्यापयति>, <ख्यापयते>—-—-—ज्ञात करना, प्रकथन करना
- ख्या—अदा॰ प्रेर॰ <ख्यापयति>, <ख्यापयते>—-—-—कहना, घोषणा करना, वर्णन करना
- ख्या—अदा॰ प्रेर॰ <ख्यापयति>, <ख्यापयते>—-—-—स्तुति करना, प्रख्यात करना, प्रशंसा करना
- अभिख्या—अदा॰कर्म॰ —अभि-ख्या—-—ज्ञात होना
- अभिख्या—अदा॰कर्म॰ —अभि-ख्या—-—घोषना करना, प्रकथन करना
- आख्या—अदा॰ —आ-ख्या—-—कहना, घोषणा करना, समाचार देना
- आख्या—अदा॰ —आ-ख्या—-—घोषणा करना, व्यक्त करना
- आख्या—अदा॰ —आ-ख्या—-—पुकारना, नाम लेना
- परिख्या—अदा॰ —परि-ख्या—-—सुपरिचित होना
- परिसंख्या—अदा॰ —परिसम्-ख्या—-—गिनती करना
- प्रख्या—अदा॰ —प्र-ख्या—-—सुपरिचित होना
- प्रत्याख्या—अदा॰ —प्रत्या-ख्या—-—मुकर जाना
- प्रत्याख्या—अदा॰ —प्रत्या-ख्या—-—इनकार करना, मना करना, अस्वीकार करना
- प्रत्याख्या—अदा॰ —प्रत्या-ख्या—-—मना करना, प्रतिषेध करना
- प्रत्याख्या—अदा॰ —प्रत्या-ख्या—-—वर्जित करना
- प्रत्याख्या—अदा॰ —प्रत्या-ख्या—-—पीछे छोड़ देना, आगे बढ़ जाना
- विख्या—अदा॰ —वि-ख्या—-—सुप्रसिद्ध या परिचित होना
- व्याख्या—अदा॰ —व्या-ख्या—-—कहना, घोषणा करना, समाचार देना
- व्याख्या—अदा॰ —व्या-ख्या—-—व्याख्या करना, वर्णन करना
- व्याख्या—अदा॰ —व्या-ख्या—-—नाम लेना, पुकारना
- संख्या—अदा॰ —सम्-ख्या—-—गिनना, गणना करना, हिसाब लगाना, जोड़ना
- ख्यात—भू॰ क॰ कृ॰—-—ख्या - क्त—ज्ञात
- ख्यात—भू॰ क॰ कृ॰—-—ख्या - क्त—नाम लिया गया, पुकारा गया
- ख्यात—भू॰ क॰ कृ॰—-—ख्या - क्त—कहा गया
- ख्यात—भू॰ क॰ कृ॰—-—ख्या - क्त—विश्रुत, प्रसिद्ध, बदनाम
- ख्यातगर्हण—वि॰—ख्यात-गर्हण—-—कुख्यात, दुष्ट, बदनाम
- ख्यातिः—स्त्री॰—-—ख्या - क्तिन्—विश्रुति, प्रसिद्धि, यश, कीर्ति, प्रतिष्ठा
- ख्यातिः—स्त्री॰—-—ख्या - क्तिन्—नाम, शीर्षक, अभिधान
- ख्यातिः—स्त्री॰—-—ख्या - क्तिन्—वर्णन
- ख्यातिः—स्त्री॰—-—ख्या - क्तिन्—प्रशंसा
- ख्यातिः—स्त्री॰—-—ख्या - क्तिन्—ज्ञान, उपयुक्त पद द्वारा वस्तुओं का विवेचन करने की शक्ति
- ख्यापनम्—नपुं॰—-—ख्या - णिच् - ल्युट्—घोषणा करना, उदघाटन करना
- ख्यापनम्—नपुं॰—-—-—अपराध स्वीकार करना, मान लेना, सार्वजनिक घोषणा करना
- ख्यापनम्—नपुं॰—-—-—विख्यात करना, प्रसिद्ध करना
- ग—वि॰—-—-—जो जाता है, जाने वाला, गतिमान होने वाला, ठहरने वाला, शेष रहने वाला, मैथुन करने वाला
- गः—पुं॰—-—-—गन्धर्व
- गः—पुं॰—-—-—गणेश का विशेषण
- गः—पुं॰—-—-—दीर्घ मात्रा
- गम्—नपुं॰—-—-—गायन्
- गगनम्—नपुं॰—-—गच्छन्त्यस्मिन् - गम् - ल्युट्, ग आदेशः—आकाश, अन्तरिक्ष
- गगनम्—नपुं॰—-—-—शून्य
- गगनम्—नपुं॰—-—-—स्वर्ग
- गगणम्—नपुं॰—-—गच्छन्त्यस्मिन् - गम् - ल्युट्, ग आदेशः—आकाश, अन्तरिक्ष
- गगणम्—नपुं॰—-—-—शून्य
- गगणम्—नपुं॰—-—-—स्वर्ग
- गगनाग्रम्—नपुं॰—गगनम्-अग्रम्—-—उच्चतम् आकाश
- गगनाङ्गना—स्त्री॰—गगनम्-अङ्गना—-—स्वर्गीय परी, अप्सरा
- गगनाध्वगः—पुं॰—गगनम्-अध्वगः—-—सूर्य
- गगनाध्वगः—पुं॰—गगनम्-अध्वगः—-—ग्रह
- गगनाध्वगः—पुं॰—गगनम्-अध्वगः—-—स्वर्गीय प्राणी
- गगनाम्बु—नपुं॰—गगनम्-अम्बु—-—वर्षा का पानी
- गगनुल्मुकः—पुं॰—गगनम्-उल्मुकः—-—मंगलग्रह
- गगनकुसुमम्—नपुं॰—गगनम्-कुसुमम्—-—आकाश का फूल अर्थात अवास्तविक वस्तु, असंभावना
- गगनपुष्पम्—नपुं॰—गगनम्-पुष्पम्—-—आकाश का फूल अर्थात अवास्तविक वस्तु, असंभावना
- गगनगतिः—स्त्री॰—गगनम्-गतिः—-—देवता
- गगनगतिः—स्त्री॰—गगनम्-गतिः—-—स्वर्गीय प्राणी
- गगनगतिः—स्त्री॰—गगनम्-गतिः—-—ग्रह
- गगनेचर—वि॰—गगनम्-चर—-—आकाश में घूमने वाला
- गगनेचरः—पुं॰—गगनम्-चरः—-—पक्षी
- गगनेचरः—पुं॰—गगनम्-चरः—-—ग्रह
- गगनेचरः—पुं॰—गगनम्-चरः—-—स्वर्गीय आत्मा
- गगनध्वजः—पुं॰—गगनम्-धवजः—-—सूर्य
- गगनध्वजः—पुं॰—गगनम्-धवजः—-—बादल
- गगनसद्—वि॰—गगनम्-सद्—-—अन्तरिक्ष में रहने वाला
- गगनसद्—पुं॰—गगनम्-सद्—-—स्वर्गीय जीव
- गगनसिन्धु—स्त्री॰—गगनम्-सिन्धु—-—गंगा की उपाधि
- गगनस्थ—वि॰—गगनम्-स्थ—-—आकाश में विद्यमान
- गगनस्थित—वि॰—गगनम्-स्थित—-—आकाश में विद्यमान
- गगनस्पर्शनः—पुं॰—गगनम्-स्पर्शनः—-—वायु, हवा
- गगनस्पर्शनः—पुं॰—गगनम्-स्पर्शनः—-—आठ मरुतों में से एक
- गङ्गा—स्त्री॰—-—गम् - गन् - टाप्—गंगा नदी, भारत की पवित्रतम् नदी
- गङ्गा—स्त्री॰—-—-—गंगा देवी के रुप में मूर्त्त गंगा
- गङ्गाम्बु—नपुं॰—गङ्गा-अम्बु—-—गंगाजल
- गङ्गाम्बु—नपुं॰—गङ्गा-अम्बु—-—वर्षा का विशुद्ध जल
- गङ्गाम्भस्—नपुं॰—गङ्गा-अम्भस्—-—गंगाजल
- गङ्गाम्भस्—नपुं॰—गङ्गा-अम्भस्—-—वर्षा का विशुद्ध जल
- गङ्गावतार—वि॰—गङ्गा-अवतार—-—गंगा का इस पृथ्वी पर पदार्पण
- गङ्गावतार—वि॰—गङ्गा-अवतार—-—पुण्य स्थान का नाम
- गङ्गोद्भेदः—पुं॰—गङ्गा-उद्भेदः—-—गंगा का उद्गम स्थान
- गङ्गाक्षेत्रम्—नपुं॰—गङ्गा-क्षेत्रम्—-—गंगा तथा उसके दोनों किनारों का दो-दो कोश तक का प्रदेश
- गङ्गाचिल्ली—स्त्री॰—गङ्गा-चिल्ली—-—एक जलपक्षी
- गङ्गाजः—पुं॰—गङ्गा-जः—-—भीष्म
- गङ्गाजः—पुं॰—गङ्गा-जः—-—कार्तिकेय
- गङ्गादत्तः—पुं॰—गङ्गा-दत्तः—-—भीष्म का विशेषण
- गङ्गाद्वारम्—नपुं॰—गङ्गा-द्वारम्—-—समतल भूमि का वह स्थान जहाँ गंगा प्रविष्ट होती है
- गङ्गाधरः—पुं॰—गङ्गा-धरः—-—शिव का विशेषण
- गङ्गाधरः—पुं॰—गङ्गा-धरः—-—समुद्र
- गङ्गाधरपुरम्—नपुं॰—गङ्गा-धर-पुरम्—-—एक नगर का नाम
- गङ्गापुत्रः—पुं॰—गङ्गा-पुत्रः—-—भीष्म
- गङ्गापुत्रः—पुं॰—गङ्गा-पुत्रः—-—कार्तिकेय
- गङ्गापुत्रः—पुं॰—गङ्गा-पुत्रः—-—एक संकर जाति जिसका व्यवसाय मुर्दे ढोना है
- गङ्गापुत्रः—पुं॰—गङ्गा-पुत्रः—-—गंगा के घाट पर बैठने वाला पण्डा जो तीर्थयात्रियों का पथप्रदर्शन करता है
- गङ्गाभृत्—पुं॰—गङ्गा-भृत्—-—शिव
- गङ्गाभृत्—पुं॰—गङ्गा-भृत्—-—समुद्र
- गङ्गामध्यम्—नपुं॰—गङ्गा-मध्यम्—-—गंगा का तल भाग
- गङ्गायात्रा—स्त्री॰—गङ्गा-यात्रा—-—गंगा नदी पर जाना
- गङ्गायात्रा—स्त्री॰—गङ्गा-यात्रा—-—रोगी को गंगा तट पर इसलिए ले जाना कि यहीं उसकी मृत्यु हों
- गङ्गासागरः—पुं॰—गङ्गा-सागरः—-—वह स्थान जहाँ गंगा समुद्र से मिलती है
- गङ्गासुतः—पुं॰—गङ्गा-सुतः—-—भीष्म का विशेषण
- गङ्गासुतः—पुं॰—गङ्गा-सुतः—-—कार्तिकेय का विशेषण
- गङ्गाह्लदः—पुं॰—गङ्गा-ह्लदः—-—एक तीर्थ स्थान का नाम
- गङ्गाका—स्त्री॰—-—गङ्गा - कन् - टाप्, ह्रस्वो वा, पक्षे इत्वम अपि—गंगा
- गङ्गका—स्त्री॰—-—गङ्गा - कन् - टाप्, ह्रस्वो वा, पक्षे इत्वम अपि—गंगा
- गङ्गिका—स्त्री॰—-—गङ्गा - कन् - टाप्, ह्रस्वो वा, पक्षे इत्वम अपि—गंगा
- गङ्गोलः—पुं॰—-—-—एक रत्न जिसे गोमेदे भी कहते है
- गच्छः—पुं॰—-—गम् - श—प्रक्रम का समय
- गज्—भ्वा॰ पर॰ <गजति>, <गजित>—-—-—चिंघाडना, दहाड़ना
- गज्—भ्वा॰ पर॰ <गजति>, <गजित>—-—-—मदिरा पीकर मस्त होना, व्याकुल होना, मदोन्मत्त होना
- गज—पुं॰—-—गज् - अच्—हाथी
- गज—पुं॰—-—गज् - अच्—आठ की संख्या
- गज—पुं॰—-—गज् - अच्—लम्बाई की माप, गज
- गज—पुं॰—-—गज् - अच्—एक राक्षस जिसे शिव ने मारा था
- गजाग्रणी—पुं॰—गज-अग्रणी—-—सर्वश्रेष्ठ हाथी
- गजाग्रणी—पुं॰—गज-अग्रणी—-—इन्द्र के हाथी ऐरावत का विशेषण
- गजाधिपतिः—पुं॰—गज-अधिपतिः—-—हाथियों का स्वामी, उत्तम स्वामी
- गजाध्यक्षः—पुं॰—गज-अध्यक्षः—-—हाथियों का अधीक्षक
- गजापसदः—पुं॰—गज-अपसदः—-—दुष्ट या बदमाश हाथी, सामान्य या नीच नस्ल का हाथी
- गजाशनः—पुं॰—गज-अशनः—-—अश्वत्थ वृक्ष
- गजाशनम्—नपुं॰—गज-अशनम्—-—कमल की जड़
- गजारिः—पुं॰—गज-अरिः—-—सिंह
- गजाशनम्—नपुं॰—गज-अशनम्—-—शिव जिसने गज नामक राक्षस को मारा था
- गजाजीव—पुं॰—गज-आजीवः—-—हाथियों से जो अपनी जीविकोपार्जन करता है, महावत
- गजानन—पुं॰—गज-आनन—-—गणेश का विशेषण
- गजास्यः—पुं॰—गज-आस्यः—-—गणेश का विशेषण
- गजायुर्वेदः—पुं॰—गज-आयुर्वेदः—-—हाथियों की चिकित्सा का विज्ञान
- गजारोह—पुं॰—गज-आरोह—-—महावत
- गजाह्वम्—नपुं॰—गज-आह्वम्—-—हस्तिनापुर
- गजाह्वयम्—नपुं॰—गज-आह्वयम्—-—हस्तिनापुर
- गजेन्द्र—पुं॰—गज-इन्द्रः—-—उत्तम हाथी, गजराज
- गजेन्द्र—पुं॰—गज-इन्द्रः—-—इन्द्र का हाथी ऐरावत
- गजेन्द्रकर्ण—वि॰—गज-इन्द्र-कर्ण—-—शिव का विशेषण
- गजकन्दः—पुं॰—गज-कन्दः—-—खाने के योग्य एक बडी जड़
- गजकूर्माशिन्—पुं॰—गज-कूर्माशिन्—-—गरुड़
- गजगतिः—स्त्री॰—गज-गतिः—-—हाथी जैसी मंद चाल, हाथी की सी चाल वाली स्त्री
- गजगामिनी—स्त्री॰—गज-गामिनी—-—हाथी की सी मन्द तथा गौरव भरी चालवाली स्त्री
- गजदघ्न—वि॰—गज-दघ्न—-—हाथी जैसा ऊँचा
- गजद्व्यस—वि॰—गज-द्व्यस—-—हाथी जैसा ऊँचा
- गजदन्तः—पुं॰—गज-दन्तः—-—हाथी का दाँत
- गजदन्तः—पुं॰—गज-दन्तः—-—गणेश का विशेषण
- गजदन्तः—पुं॰—गज-दन्तः—-—हाथीदांत
- गजदन्तः—पुं॰—गज-दन्तः—-—खूंटी या ब्रैकेट जो दीवार में लगा हो
- गजदन्त-मय—वि॰—गज-दन्त-मय—-—हाथी दांत से बना हुआ
- गजदानम्—नपुं॰—गज-दानम्—-—हाथी के गण्डस्थल से निकलने वाला मद
- गजदानम्—नपुं॰—गज-दानम्—-—हाथी का दान
- गजनासा—स्त्री॰—गज-नासा—-—हाथी का गण्डस्थल
- गजपतिः—पुं॰—गज-पतिः—-—हाथियों का स्वामी
- गजपतिः—पुं॰—गज-पतिः—-—विशालकाय हाथी
- गजपतिः—पुं॰—गज-पतिः—-—सर्वश्रेष्ठ हाथी
- गजपुङ्गवः—पुं॰—गज-पुङ्गवः—-—एक विशालकाय श्रेष्ठ हाथी
- गजपुरम्—नपुं॰—गज-पुरम्—-—हस्तिनापुर
- गजबन्धनी—स्त्री॰—गज-बन्धनी—-—हाथियों का अस्तबल
- गजबन्धिनी—स्त्री॰—गज-बन्धिनी—-—हाथियों का अस्तबल
- गजभक्षकः—पुं॰—गज-भक्षकः—-—अश्वत्थ वृक्ष
- गजमण्डनम्—नपुं॰—गज-मण्डनम्—-—हाथियों को सजाने का आभूषण, विशेषकर हाथी के मस्तक की रंगीन रेखाएँ
- गजमण्डलिका—स्त्री॰—गज-मण्डलिका—-—हाथियों की मंडली
- गजमण्डली—स्त्री॰—गज-मण्डली—-—हाथियों की मंडली
- गजमाचलः—पुं॰—गज-माचलः—-—सिंह
- गजमुक्ता—स्त्री॰—गज-मुक्ता—-—मोती जो हाथी के मस्तक से निकला माना हुआ जाता है
- गजमुखः—पुं॰—गज-मुखः—-—गणेश का विशेषण
- गजवक्त्रः—पुं॰—गज-वक्त्रः—-—गणेश का विशेषण
- गजवदनः—पुं॰—गज-वदनः—-—गणेश का विशेषण
- गजमोटनः—पुं॰—गज-मोटनः—-—सिंह
- गजयूथम्—नपुं॰—गज-यूथम्—-—हाथियों का झुँड
- गजयोधिन्—वि॰—गज-योधिन्—-—हाथी पर बैठकर युद्ध करने वाला
- गजराजः—पुं॰—गज-राजः—-—उत्तम या श्रेष्ठ हाथी
- गजव्रजः—पुं॰—गज-व्रजः—-—हाथियों का दल
- गजशिक्षा—स्त्री॰—गज-शिक्षा—-—हस्तिविज्ञान
- गजसाह्वयम्—नपुं॰—गज-साह्वयम्—-—हस्तिनापुर
- गजस्नानम्—नपुं॰—गज-स्नानम्—-—हाथी का स्नान करना
- गजसाह्वयम्—नपुं॰—गज-साह्वयम्—-—हाथी के स्नान का समान और निष्फल प्रयत्न
- गजता—स्त्री॰—-—गज - तल्—हाथियों का समूह
- गजवत्—वि॰—-—गज - मतुप्—हाथियों को रखने वाला
- गञ्ज्—भ्वा॰ पर॰ <गञ्जति>—-—-—विशेष ढंग से ध्वनि करना, शब्द करना
- गञ्जः—पुं॰—-—गंज् - घञ्—खान
- गञ्जः—पुं॰—-—-—खजाना
- गञ्जः—पुं॰—-—-—गोशाला
- गञ्जः—पुं॰—-—-—मंडी, अनाज की मंडी
- गञ्जः—पुं॰—-—-—अनादर, तिरस्कार
- गञ्जा—स्त्री॰—-—-—झोपड़ी, पर्णशाला
- गञ्जा—स्त्री॰—-—-—मधुशाला
- गञ्जा—स्त्री॰—-—-—मदिरापात्र
- गञ्जन—वि॰—-—गञ्ज् - ल्युट्—क्षुद्र समझना, लज्जित करना, आगे बढ़ जाना, सर्वश्रेष्ठ होना
- गञ्जन—वि॰—-—-—पराजित करना, जीतना
- गञ्जिका—स्त्री॰—-—गञ्जा - कन् - टाप्, इत्वम्—मधुशाला, मदिरालय
- गड्—भ्वा॰ पर॰ <गडति>, <गडित>—-—-—खींचना, निकालना
- गड्—भ्वा॰ पर॰ <गडति>, <गडित>—-—-—बहना
- गडः—पुं॰—-—गड् - अच्—पर्दा
- गडः—पुं॰—-—गड् - अच्—बाड़
- गडः—पुं॰—-—गड् - अच्—खाई, परिखा
- गडः—पुं॰—-—गड् - अच्—रुकावट
- गडः—पुं॰—-—गड् - अच्—एक प्रकार की सुनहरी मछली
- गडोत्थम्—नपुं॰—गड-उत्थम्—-—पहाड़ी नमक
- गडदेशजम्—नपुं॰—गड-देशजम्—-—पहाड़ी नमक
- गडलवणम्—नपुं॰—गड-लवणम्—-—पहाड़ी नमक
- गडयन्तः—पुं॰—-—गड् - णिच् - झञ्, इत्नच् वा—बादल
- गडयित्नुः—पुं॰—-—गड् - णिच् - झञ्, इत्नच् वा—बादल
- गडिः—पुं॰—-—गड् - इन्—बछड़ा
- गडिः—पुं॰—-—-—मट्ठा बैल
- गडु—वि॰—-—गड् - उन्—बेडौल, कुबड़ा
- गडुः—पुं॰—-—-—पीठ पर कुबड़
- गडुः—पुं॰—-—-—नेजा
- गडुः—पुं॰—-—-—जालपात्र
- गडुः—पुं॰—-—-— केंचुवा
- गडुः—पुं॰—-—-—गलगण्ड, निर्रथक वस्तु
- गडुकः—पुं॰—-—गडु - कै - क—जालपात्र
- गडुकः—पुं॰—-—गडु - कै - क—अंगूठी
- गडुर—वि॰—-—गडु - र— कुबड़ा, बेडौल, मुड़ा हुआ
- गडुल—वि॰—-—गडु - ल बा॰— कुबड़ा, बेडौल, मुड़ा हुआ
- गडेरः—पुं॰—-—गड् - एरक्—बादल
- गडोलः—पुं॰—-—गड् - ओलच्—मुँहभर
- गडोलः—पुं॰—-—-—कच्ची खांड
- गड्डरिका—स्त्री॰—-—गड्डरं मेषमनुधावति - ठन्—भेडों की पक्ति
- गड्डरिका—स्त्री॰—-—-—अविच्छिन्न पंक्ति, नदी धारा
- गड्डरिकाप्रवाहः—पुं॰—गड्डरिका-प्रवाहः—-—भेडियाधसान
- गड्डुकः—पुं॰—-—गडुक पृषो॰ —सोने का बर्तन
- गण्—चुरा॰ उभ॰ <गणयति>, <गणयते>, <गणित>—-—-—गिनना, गिनती करना, गणना करना
- गण्—चुरा॰ उभ॰ <गणयति>, <गणयते>, <गणित>—-—-—हिसाब लगाना, संगणना या संख्या करना
- गण्—चुरा॰ उभ॰ <गणयति>, <गणयते>, <गणित>—-—-—जोड़ना, संपूर्ण जोड़ लगाना
- गण्—चुरा॰ उभ॰ <गणयति>, <गणयते>, <गणित>—-—-—अन्दाज लगाना, मूल्य निर्धारण करना
- गण्—चुरा॰ उभ॰ <गणयति>, <गणयते>, <गणित>—-—-—श्रेणी में रखना, कोटि में गिनना
- गण्—चुरा॰ उभ॰ <गणयति>, <गणयते>, <गणित>—-—-—हिसाब में लगाना, विचारना
- गण्—चुरा॰ उभ॰ <गणयति>, <गणयते>, <गणित>—-—-—ध्यान देना, विचार करना, सोचना
- गण्—चुरा॰ उभ॰ <गणयति>, <गणयते>, <गणित>—-—-—लगाना, आरोपन करना, मत्थे मढ़ना
- गण्—चुरा॰ उभ॰ <गणयति>, <गणयते>, <गणित>—-—-—ध्यान देना, ख्याल करना, मन लगाना
- गण्—चुरा॰ उभ॰ <गणयति>, <गणयते>, <गणित>—-—-—उपेक्षा करना, ध्यान न देना
- अधिगण्—चुरा॰ उभ॰ —अधि-गण्—-—प्रशंसा करना
- अधिगण्—चुरा॰ उभ॰ —अधि-गण्—-—गणना करना, गिनना
- अवगण्—चुरा॰ उभ॰ —अव-गण्—-—अवहेलना करना
- परिगण्—चुरा॰ उभ॰ —परि-गण्—-—गणना करना, गिनना
- परिगण्—चुरा॰ उभ॰ —परि-गण्—-—विचार करना, ध्यान देना, सोचना
- परिगण्—चुरा॰ उभ॰ —परि-गण्—-—अवहेलना करना, ध्यान न देना
- परिगण्—चुरा॰ उभ॰ —परि-गण्—-—विचार विमर्श करना, चिन्तन करना
- गणः—पुं॰—-—गण - अच्—रेवड़, झुंड, समूह, दल, संग्रह
- गणः—पुं॰—-—गण - अच्—माला, श्रेणी
- गणः—पुं॰—-—गण - अच्—अनुयायी या अनुचर वर्ग
- गणः—पुं॰—-—गण - अच्—विशेषतः अर्धदेवों का गण
- गणः—पुं॰—-—गण - अच्—सामान्य उद्देश्य को प्राप्त करने के लिए बना मनुष्यों का समाज या सभा
- गणः—पुं॰—-—गण - अच्—सम्प्रदाय
- गणः—पुं॰—-—गण - अच्—२७ रथ, २७ हाथी, ८१ घोड़े और १३५ पदाति सैनिकों की छोटी टोली
- गणः—पुं॰—-—गण - अच्—अङ्क
- गणः—पुं॰—-—गण - अच्—पाद, चरण
- गणः—पुं॰—-—गण - अच्—धातुओं या शब्दों का समूह जो एक ही नियम के अधीन हो - तथा उस श्रेणी के पहले शब्द पर जिसका नाम रखा गया हो
- गणः—पुं॰—-—गण - अच्—गणेश का विशेषण
- गणाग्रणी—पुं॰—गण-अग्रणी—-—गणेश
- गणाचलः—पुं॰—गण-अचलः—-—कैलाश पहाड़ जिसपर शिव के गण रहते है
- गणाधिपः—पुं॰—गण-अधिपः—-—शिव
- गणाधिपः—पुं॰—गण-अधिपः—-—गणेश
- गणाधिपः—पुं॰—गण-अधिपः—-—सैन्य दल का मुखिया, सेनापति, शिष्यों के समूह का मुखिया, गुरु, मनुष्यों या जानवरों की टोली का मुखिया, यूथपति
- गणाधिपतिः—पुं॰—गण-अधिपतिः—-—शिव
- गणाधिपतिः—पुं॰—गण-अधिपतिः—-—गणेश
- गणाधिपतिः—पुं॰—गण-अधिपतिः—-—सैन्य दल का मुखिया, सेनापति, शिष्यों के समूह का मुखिया, गुरु, मनुष्यों या जानवरों की टोली का मुखिया, यूथपति
- गणान्नम्—नपुं॰—गण-अन्नम्—-—सहभोजशाला, भोज्य पदार्थ जो बहुत से सामान्य व्यक्तियों के लिए बनाया जाए
- गणाभ्यन्तर—वि॰—गण-अभ्यन्तर—-—दल या टोली का एक व्यक्ति
- गणाभ्यन्तरः—पुं॰—गण-अभ्यन्तरः—-—किसी धार्मिक संस्था का सदस्य या नेता
- गणेशः—पुं॰—गण-ईशः—-—शिव का पुत्र गणपति
- गणेशजननी—स्त्री॰—गण-ईश-जननी—-—पार्वती का विशेषण
- गणेशभूषणम्—नपुं॰—गण-ईश-भूषणम्—-—सिन्दूर
- गणेशानः—पुं॰—गण-ईशानः—-—गणेश का विशेषण
- गणेशानः—पुं॰—गण-ईशानः—-—शिव का विशेषण
- गणेश्वरः—पुं॰—गण-ईश्वरः—-—गणेश का विशेषण
- गणेश्वरः—पुं॰—गण-ईश्वरः—-—शिव का विशेषण
- गणोत्साहः—पुं॰—गण-उत्साहः—-—गैंडा
- गणकारः—पुं॰—गण-कारः—-—वर्गीकरण
- गणकारः—पुं॰—गण-कारः—-—भीमसेन का विशेषण
- गणकृत्वस्—अव्य॰—गण-कृत्वस्—-—सब कालों में, कई बार
- गणगतिः—स्त्री॰—गण-गतिः—-—एक विशेष ऊँची संख्या
- गणचक्रकम्—नपुं॰—गण-चक्रकम्—-—गुणीगण का सहभोज, ज्योनार
- गणछन्दस्—नपुं॰—गण-छन्दस्—-—पादों द्वारा मापा गया तथा विनियमित छन्द
- गणतिथ—वि॰—गण-तिथ—-—दल या टोली बनाने वाला
- गणदीक्षा—स्त्री॰—गण-दीक्षा—-—बहुतों की एक साथ दीक्षा, सामूहिक दीक्षा
- गणदीक्षा—स्त्री॰—गण-दीक्षा—-—बहुत से व्यक्तियों का एक साथ दीक्षा-संस्कार
- गणदेवताः—स्त्री॰—गण-देवताः—-—उन देवताओं का समूह जो प्रायः टोली या श्रेणियों में प्रकट होती है
- गणद्रव्यम्—नपुं॰—गण-द्रव्यम्—-—सार्वजनिक संपत्ति, पंचायती माल
- गणधरः—पुं॰—गण-धरः—-—किसी वर्ग या समूह का मुखिया
- गणधरः—पुं॰—गण-धरः—-—विद्यालय का अध्यापक
- गणनाथः—पुं॰—गण-नाथः—-—शिव की उपाधी
- गणनाथः—पुं॰—गण-नाथः—-—गणेश का विशेषण
- गणनायकः—पुं॰—गण-नायकः—-—शिव की उपाधी
- गणनायकः—पुं॰—गण-नायकः—-—गणेश का विशेषण
- गणनायिका—स्त्री॰—गण-नायिका—-—दुर्गा की उपाधि
- गणपः—पुं॰—गण-पः—-—शिव
- गणनायिका—स्त्री॰—गण-नायिका—-—गणेश
- गणपर्वत्—वि॰—गण-पर्वत्—-—कैलाश पहाड़ जिसपर शिव के गण रहते है
- गणपीठकम्—नपुं॰—गण-पीठकम्—-—छाती, वक्षस्थल
- गणपुङ्गवः—पुं॰—गण-पुंगवः—-—किसी वर्ग या जाति का मुखिया
- गणपूर्वः—पुं॰—गण-पूर्वः—-—किसी जाति या वर्ग का नेता
- गणभर्तृ—पुं॰—गण-भर्तृ—-—शिव का विशेषण
- गणभर्तृ—पुं॰—गण-भर्तृ—-—गणेश का विशेषण
- गणभर्तृ—पुं॰—गण-भर्तृ—-—किसी वर्ग का नेता
- गणभोजनम्—नपुं॰—गण-भोजनम्—-—सहभोज, मिलकर भोजन करना
- गणयज्ञः—पुं॰—गण-यज्ञः—-—सामूहिक संस्कार
- गणराज्यम्—नपुं॰—गण-राज्यम्—-—दक्षिण का एक साम्राज्य
- गणरात्रम्—नपुं॰—गण-रात्रम्—-—रातों का समूह
- गणवृत्तम्—नपुं॰—गण-वृत्तम्—-—पादों द्वारा मापा गया तथा विनियमित छन्द
- गणहासः—पुं॰—गण-हासः—-—सुगन्ध द्रव्य की एक जाति
- गणहासकः—पुं॰—गण-हासकः—-—सुगन्ध द्रव्य की एक जाति
- गणक—वि॰—-—गण् - ण्वुल्—बहुत धन देकर खरीदा हुआ
- गणकः—पुं॰—-—-—अङ्कगणित का ज्ञाता
- गणकी—स्त्री॰—-—-—ज्योतिषी
- गणकी—स्त्री॰—-—-—ज्योतिषी की पत्नी
- गणनम्—नपुं॰—-—गण् - णिच् - ल्युट्—गिनना, हिसाब लगाना
- गणनम्—नपुं॰—-—-—जोड़ना, गणना करना
- गणनम्—नपुं॰—-—-—विचार करना, ध्यान देना, ख्याल करना
- गणनम्—नपुं॰—-—-—विश्वास करना, चिन्तन करना
- गणना—स्त्री॰—-—गण् - णिच् - युच्—हिसाब लगाना, विचार करना, ख्याल करना, गिनती करना
- गणनागतिः—स्त्री॰—गणना-गतिः—गण - शस्—दलों में, खेडों में, श्रेणी के क्रम से
- गणिः—स्त्री॰—-—गण् - इन्—गिनना
- गणिका—स्त्री॰—-—गण - ठञ् - टाप्—रण्डी, वेश्या
- गणिका—स्त्री॰—-—-—हथिनी
- गणिका—स्त्री॰—-—-—एक प्रकार का फूल
- गणित—वि॰—-—गण् - क्त—गिना हुआ, संख्यात, हिसाब लगाया हुआ
- गणित—वि॰—-—-—ख्याल किया हुआ, देखभाल किया हुआ
- गणितम्—नपुं॰—-—-—गिनना, हिसाब लगाना
- गणितम्—नपुं॰—-—-—गनना विज्ञान, गणित
- गणितम्—नपुं॰—-—-—श्रेणी का जोड़
- गणितम्—नपुं॰—-—-—जोड़
- गणितिन्—पुं॰—-—गणित - इनि—जिसने हिसाब लगाया है
- गणितिन्—पुं॰—-—-—गणितज्ञ
- गणिन—वि॰—-—गण - इनि—टोली या खेड़ को रखने वाला
- श्वगणिन्—वि॰—-—-—कुत्तों को झुण्ड को रखने वाला
- गणिन—पुं॰—-—-—अध्यापक
- गणेय—वि॰—-—गण् - एय—गिनती किये जाने के योग्य, जो गिना जा सके
- गणेरु—वि॰—-—गण् - एरु—कर्णिकार वृक्ष
- गणेरु—स्त्री॰—-—-—रंडी
- गणेरु—स्त्री॰—-—-—हथिनी
- गणेरुका—स्त्री॰—-—गणेरु - कै - क—कुटनी, दूती
- गणेरुका—स्त्री॰—-—-—सेविका
- गण्डः—पुं॰—-—गण्ड् - अच्—गाल, कनपटी समेत मुख का समस्त पार्श्व
- गण्डः—पुं॰—-—-—हाथी की कनपटी
- गण्डः—पुं॰—-—-—बुलबुला
- गण्डः—पुं॰—-—-—फोड़ा, रसौली, सूजन, फुंसी
- गण्डः—पुं॰—-—-—गंडमाला या गर्दन के अन्य फोड़ा फुंसी
- गण्डः—पुं॰—-—-—जोड़, गांठ
- गण्डः—पुं॰—-—-—चिह्न, धब्बा
- गण्डः—पुं॰—-—-—गैंडा
- गण्डः—पुं॰—-—-—मूत्राशय
- गण्डः—पुं॰—-—-—नायक, योद्धा
- गण्डः—पुं॰—-—-—घोड़े के साज का एक भाग, आभूषण के रुप में घोड़े के जीन पर लगा हुआ बटन
- गण्डाङ्गः—पुं॰—गण्ड-अङ्गः—-—गैंडा
- गण्डोपधानम्—नपुं॰—गण्ड-उपधानम्—-—तकिया
- गण्डकुसुमम्—नपुं॰—गण्ड-कुसुमम्—-—हाथी के कनपटी से झरने वाला मद
- गण्डकूपः—पुं॰—गण्ड-कूपः—-—पहाड़ की चोटी पर बना हुआ कुआँ
- गण्डग्रामः—पुं॰—गण्ड-ग्रामः—-—बड़ा गाँव
- गण्डदेशः—पुं॰—गण्ड-देशः—-—गाल
- गण्डप्रदेशः—पुं॰—गण्ड-प्रदेशः—-—गाल
- गण्डफलकम्—नपुं॰—गण्ड-फलकम्—-—चौड़ा गाल
- गण्डभित्तिः—स्त्री॰—गण्ड-भित्तिः—-—हाथी के गण्डस्थल का छिद्र जिससे मद झरता है
- गण्डभित्तिः—स्त्री॰—गण्ड-भित्तिः—-—‘भित्ति की भांति गाल’
- गण्डमालः—पुं॰—गण्ड-मालः—-—कंठमाला रोग
- गण्डमाला—स्त्री॰—गण्ड-माला—-—कंठमाला रोग
- गण्डमूर्ख—वि॰—गण्ड-मूर्ख—-—अत्यन्त मूर्ख, बिल्कुल मूढ
- गण्डशिला—स्त्री॰—गण्ड-शिला—-—बड़ी चट्टान
- गण्डशैलः—पुं॰—गण्ड-शैलः—-—भूचाल या आँधी से नीचे गिराई गई विशाल चट्टान
- गण्डशैलः—पुं॰—गण्ड-शैलः—-—मस्तक
- गण्डसाह्वया—नपुं॰—गण्ड-साह्वया—-—नदी का नाम
- गण्डस्थलम्—नपुं॰—गण्ड-स्थलम्—-—गाल
- गण्डस्थलम्—नपुं॰—गण्ड-स्थलम्—-—हाथी की कनपटियाँ
- गण्डस्थली—स्त्री॰—गण्ड-स्थली—-—गाल
- गण्डस्थली—स्त्री॰—गण्ड-स्थली—-—हाथी की कनपटियाँ
- गण्डकः—पुं॰—-—गण्ड - कन्—गैंडा
- गण्डकः—पुं॰—-—-—रुकावट, बाधा
- गण्डकः—पुं॰—-—-—जोड़, गांठ
- गण्डकः—पुं॰—-—-—चिह्न, धब्बा
- गण्डकः—पुं॰—-—-—फोड़ा, रसौली, फुंसी
- गण्डकः—पुं॰—-—-—वियोजन, वियोग
- गण्डकः—पुं॰—-—-—चार कौड़ी के मूल्य का सिक्का
- गण्डकवती—स्त्री॰—गण्डक-वती—-—एक नदी का नाम जो गंगा में मिल जाती है
- गण्डका—स्त्री॰—-—गंडक - टाप्—लौंदा, पिण्ड या डली
- गण्डकी—स्त्री॰—-—गण्डक - ङीष्—एक नदी का नाम जो गंगा में मिल जाती है
- गण्डकी—स्त्री॰—-—-—मादा गैंडा
- गण्डकीपुत्रः—पुं॰—गण्डकी-पुत्रः—-—शालिग्राम
- गण्डकीशिला—स्त्री॰—गण्डकी-शिला—-—शालिग्राम
- गण्डलिन्—पुं॰—-—गण्डल - इनि—शिव
- गण्डिः—स्त्री॰—-—गण्ड - इनि—वृक्ष का तना, जड़ से लेकर उस स्थान तक जहाँ से शाखाएँ आरम्भ होती हैं
- गण्डिका—स्त्री॰—-—गण्डक - टाप्, इत्वम्—एक प्रकार का कंकड़
- गण्डिका—स्त्री॰—-—-—एक प्रकार का पेय
- गण्डीरः—पुं॰—-—गण्ड् - ईरन्—नायक, शूरवीर
- गण्डू—स्त्री॰—-—-—जोड़, गाँठ
- गण्डू—स्त्री॰—-—-—हड्डी
- गण्डू—स्त्री॰—-—-—तकिया
- गण्डू—स्त्री॰—-—-—तेल
- गण्डूपदः—पुं॰—गण्डू-पदः—-—एकप्रकार का कीड़ा, केंचुआ
- गण्डूपदभवम्—नपुं॰—गण्डू-पद-भवम्—-—सीसा
- गण्डूपदी—स्त्री॰—गण्डू-पदी—-—छोटा केंचुआ
- गण्डूषः—पुं॰—-—गण्ड् - ऊषन—मुहभर, मुट्ठी पर
- गण्डूषः—पुं॰—-—-—हाथी के सूँड की नोंक
- गण्डूषा—स्त्री॰—-—गण्ड् - ऊषन—मुहभर, मुट्ठी पर
- गण्डूषा—स्त्री॰—-—-—हाथी के सूँड की नोंक
- गण्डोलः—पुं॰—-—गंड् - ओलच्—कच्ची खांड
- गण्डोलः—पुं॰—-—-—मुँहभर
- गत—भू॰ क॰ कृ॰—-—गम् - क्त—गया हुआ, व्यतीत, सदा के लिए गया हुआ
- गत—भू॰ क॰ कृ॰—-—गम् - क्त— गुजरा हुआ, बीता हुआ, पिछला
- गत—भू॰ क॰ कृ॰—-—गम् - क्त—मृत, मुर्दा, दिवंगत
- गत—भू॰ क॰ कृ॰—-—गम् - क्त—गया हुआ, पहुँचा हुआ, पहुँचने वाला
- गत—भू॰ क॰ कृ॰—-—गम् - क्त—अन्तर्गत, अन्तःस्थित, बैठा हुआ, विश्राम करता हुआ, सम्मिलित
- गत—भू॰ क॰ कृ॰—-—गम् - क्त—फँसा हुआ, घटाया गया, आपद्गत
- गत—भू॰ क॰ कृ॰—-—गम् - क्त—संकेत करते हुए, संबंध रखते हुए, के विषय में, की बावत, विषयक, संबद्ध
- गतम्—नपुं॰—-—गम् - क्त—गति, जाना
- गतम्—नपुं॰—-—गम् - क्त—चाल, चलने की रीति
- गतम्—नपुं॰—-—गम् - क्त—घटना
- गतम्—नपुं॰—-—गम् - क्त—यदि समास में प्रथम पद के रुप में प्रयुक्त हो तो इसका ‘मुक्त’ ‘विरहित’ ‘वंचित’ और ‘बिना’ शब्दों में अनुवाद करते है
- गताक्ष—वि॰—गत-अक्ष—-—दृष्टिहीन, अन्धा
- गताध्वन—वि॰—गत-अध्वन—-—जिसने अपनी यात्रा समाप्त कर ली है
- गताध्वन—वि॰—गत-अध्वन—-—अभिज्ञ, परिचित
- गताध्वन—स्त्री॰—गत-अध्वन—-—चतुर्दशी से युक्त अमावस्या
- गतानुगत—वि॰—गत-अनुगत—-—पूर्वोदाहरण या प्रथा का अनुयायी होना
- गतानुगतिक—वि॰—गत-अनुगतिक—-—दूसरों की नकल करने वाला, अन्धानुयायी
- गतान्त—वि॰—गत-अन्त—-—जिसका अन्त समय आ गया है
- गतार्थ—वि॰—गत-अर्थ—-—निर्धन
- गतार्थ—वि॰—गत-अर्थ—-—अर्थहीन
- गतासु—वि॰—गत-असु—-—समाप्त, मृत
- गतजीवित—वि॰—गत-जीवित—-—समाप्त, मृत
- गतप्राण—वि॰—गत-प्राण—-—समाप्त, मृत
- गतागतम्—नपुं॰—गत-आगतम्—-—जाना-आना, बार-बार मिलना
- गतागतम्—नपुं॰—गत-आगतम्—-—तारों का अनियमित मार्ग
- गताधि—वि॰—गत-आधि—-—चिन्ताओं से मुक्त, प्रसन्न
- गतायुस—वि॰—गत-आयुस—-—जीर्ण, निर्बल, अतिवृद्ध
- गतार्तवा—स्त्री॰—गत-आर्तवा—-—जो ऋतुमति की आयु को पार कर चुकी हो, बुढ़िया
- गतोत्साह—वि॰—गत-उत्साह—-—उत्साहहीन, उदास
- गतोजस्—वि॰—गत-ओजस्—-—शक्ति या सामर्थ्य से विरहित
- गतकल्मष—वि॰—गत-कल्मष—-—पाप या जुर्म से मुक्त, पवित्रीकृत
- गतक्लम—वि॰—गत-क्लम—-—पुनः तरोताजा
- गतचेतन—वि॰—गत-चेतन—-—बेहोश, मूर्छित, चेतनाहीन
- गतदिनम्—अव्य॰—गत-दिनम्—-—बीता हुआ कल
- गतप्रत्यागत—वि॰—गत-प्रत्यागत—-—जाकर वापिस आया हूआ
- गतप्रभ—वि॰—गत-प्रभ—-—दीप्तिरहित, धुंधला, मलिन, मद्धम या म्लान
- गतप्राण—वि॰—गत-प्राण—-—जीवरहित, मृत
- गतप्राय—वि॰—गत-प्राय—-—लगभग गया हुआ, तकरीबन बीता हुआ
- गतभर्तृका—स्त्री॰—गत-भर्तृका—-—विधवा स्त्री
- गतभर्तृका—स्त्री॰—गत-भर्तृका—-—वह स्त्री जिसका पति प्रदेश गया हो
- गतलक्ष्मीक—वि॰—गत-लक्ष्मीक—-—कान्तिहीन, दीप्ति से रहित, म्लान
- गतलक्ष्मीक—वि॰—गत-लक्ष्मीक—-—धन से वञ्चित, निर्धनीकृत, घाटे की यन्त्रणा से पीड़ित
- गतवयस्क—वि॰—गत-वयस्क—-—बहुत आयु का, बूढ़ा, वृद्ध
- गतवर्षः—पुं॰—गत-वर्षः—-—बीता हुआ वर्ष
- गतवर्षम्—नपुं॰—गत-वर्षम्—-—बीता हुआ वर्ष
- गतवैर—वि॰—गत-वैर—-—मेल-मिलाप से रहने वाला, पुनर्मिलित
- गतव्यथ—वि॰—गत-व्यथ—-—पीड़ा से मुक्त
- गतशैशव—वि॰—गत-शैशव—-—जिसका बचपन बित गया है
- गतसत्त्व—वि॰—गत-सत्त्व—-—मृत, ध्वस्त, जीवनरहित
- गतसत्त्व—वि॰—गत-सत्त्व—-—ओछा
- गतसन्नकः—पुं॰—गत-सन्नकः—-—जिसका मद न झरता हो
- गतस्पृह—वि॰—गत-स्पृह—-—सांसारिक विषयवासनाओं से उदासीन
- गतिः—स्त्री॰—-—गम् - क्तिन्—गति, गमन, जाना, चाल
- गतिः—स्त्री॰—-—-—पहुँच, प्रवेश
- गतिः—स्त्री॰—-—-—कार्यक्षेत्र, गुंजायश
- गतिः—स्त्री॰—-—-—मोड़, चर्या
- गतिः—स्त्री॰—-—-—जाना, पहुँचना, प्राप्त करना
- गतिः—स्त्री॰—-—-—भाग्य, फल
- गतिः—स्त्री॰—-—-—अवस्था, दशा
- गतिः—स्त्री॰—-—-—प्रस्थापना, संस्थान, स्थिति, अवस्थिति
- गतिः—स्त्री॰—-—-—साधन, तरकीब, प्रणाली, दूसरा उपाय
- गतिः—स्त्री॰—-—-—आश्रय, रक्षास्थल, शरण, शरणागार, अवलंब
- गतिः—स्त्री॰—-—-—स्रोत, उद्गम, प्राप्तिस्थान
- गतिः—स्त्री॰—-—-—मार्ग, पथ
- गतिः—स्त्री॰—-—-—प्रयाण, प्रयात्रा
- गतिः—स्त्री॰—-—-—घटना, फल, परिणाम
- गतिः—स्त्री॰—-—-—घटनाक्रम, बाग्य, किस्मत
- गतिः—स्त्री॰—-—-—नक्षत्र पथ
- गतिः—स्त्री॰—-—-—ग्रह की अपने ही कक्ष में दैनिक गति
- गतिः—स्त्री॰—-—-—रिसने वाला घाव, नासूर
- गतिः—स्त्री॰—-—-—ज्ञान, बुद्धिमत्ता
- गतिः—स्त्री॰—-—-—पुनःर्जन्म, आवागमन
- गतिः—स्त्री॰—-—-—जीवन की अवस्थाएँ
- गतिः—स्त्री॰—-—-—उपसर्ग तथा क्रिया विशेषणात्मक अव्यय जबकि यह किसी क्रिया या कृदन्तक से पूर्व लगाये जाये।
- गतानुसारः—पुं॰—गति-अनुसारः—-—दूसरे के मार्ग का अनुगमन करने वाला
- गतिभङ्गः—पुं॰—गति-भङ्गः—-—ठहरना
- गतिहीन—वि॰—गति-हीन—-—अशरण, निस्सहाय, परित्यक्त
- गत्वर—वि॰—-—गम् - क्वरप्, अनुनासिक लोपः, तुक्—गतिशील, चर, जंगम
- गत्वर—वि॰—-—-—अस्थायी, विनश्वर
- गद्—भ्वा॰ पर॰ <गदति>, <गदित>—-—-—स्पष्ट कहना, कथन करना, बोलना, वर्णन करना
- गद्—भ्वा॰ पर॰ <गदति>, <गदित>—-—-—गणना करना
- निगद्—भ्वा॰ पर॰—नि-गद्—-—घोषण करना, बोलना, कहना @ रघु॰ २।३३
- गदः—पुं॰—-—गद् - अच्—बोलना, भाषण
- गदः—पुं॰—-—गद् - अच्—वाक्य
- गदः—पुं॰—-—गद् - अच्—रोग, बीमारी
- गदः—पुं॰—-—गद् - अच्—गर्जन, गड़गड़ाहट
- गदम्—नपुं॰—-—गद् - अच्—एकप्रकार का विष
- गदागदौ—पुं॰—गद-अगदौ—-—दो अश्विनी कुमार, देवताओं के वैद्य
- गदाग्रणीः—पुं॰—गद-अग्रणीः—-—सब रोगों का राजा
- गदाम्बरः—पुं॰—गद-अम्बरः—-—बादल
- गदारातिः—पुं॰—गद-अरातिः—-—औषधि, दवा
- गदयित्नु—वि॰—-—गद् - णिच् - इत्नुच्—मुखर, वाचाल, बातूनी
- गदयित्नु—वि॰—-—गद् - णिच् - इत्नुच्—कामुक, विषयी
- गदयित्नुः—पुं॰—-—गद् - णिच् - इत्नुच्—कामदेव
- गदा—स्त्री॰—-—गद् - अच् - टाप्—क्रीडायष्टि या गदा, मुद्गर
- गदाग्रजः—पुं॰—गदा-अग्रजः—-—कृष्ण
- गदाग्रपाणि—वि॰—गदा-अग्रपाणि—-—दाहिने हाथ में गदा लिए हुए
- गदाधरः—पुं॰—गदा-धरः—-—विष्णु की उपाधि
- गदाभृत्—वि॰—गदा-भृत्—-—गदाधारी, गदा से युद्ध करने वाला
- गदाभृत्—पुं॰—गदा-भृत्—-—विष्णु की उपाधि
- गदायुद्धम्—नपुं॰—गदा-युद्धम्—-—गदा से लड़ा जानेवाला युद्ध
- गदाहस्त—वि॰—गदा-हस्त—-—गदा से सुसज्जित
- गदिन्—वि॰—-—गदा - इनि—गदाधारी
- गदिन्—वि॰—-—गदा - इनि—रोगग्रस्त, रुग्ण
- गदिन्—पुं॰—-—गदा - इनि—विष्णु की उपाधि
- गद्गद—वि॰—-—गद् इत्यव्यक्तं वदति - गद् - गद् - अच्—हकलाने वाला, हकला कर बोलने वाला
- गद्गदम्—अव्य॰—-—-—अटकअटककर बोलने या हकलाने का स्वर
- गद्गदः—पुं॰—-—-—हकलान, अस्पष्ट या उलट-पुलट भाषण
- गद्गदम्—नपुं॰—-—-—हकलान, अस्पष्ट या उलट-पुलट भाषण
- गद्गदध्वनिः—पुं॰—गद्गद-ध्वनिः—-—हर्ष या शोक सूचक मन्द अस्पष्ट ध्वनि
- गद्गदवाच्—स्त्री॰—गद्गद-वाच्—-—सुबकी आदि से अन्तर्हित, अस्पष्ट या उलट-पुलट वाणी
- गद्गदस्वर—वि॰—गद्गद-स्वर—-—हकलाने वाले स्वर से उच्चारण करने वाला
- गद्गदस्वर—पुं॰—गद्गद-स्वरः—-—अस्पष्ट तथा हकलाने का उच्चारण
- गद्गदस्वर—पुं॰—गद्गद-स्वरः—-—भैंसा
- गद्य—सं॰ कृ॰—-—गद् - यत्—बोले जाने या उच्चारण किये जाने के योग्य
- गद्यम्—नपुं॰—-—गद् - यत्—नसर, गद्य रचना, छन्दविरहित रचना, तीन प्रकार की रचनाओं में से एक
- गद्याणकः—पुं॰—-—-—४१ घुंघचियों के समान भार, ४१ रत्तियों का वजन
- गद्यानकः—पुं॰—-—-—४२ घुंघचियों के समान भार, ४१ रत्तियों का वजन
- गद्यालकः—पुं॰—-—-—४३ घुंघचियों के समान भार, ४१ रत्तियों का वजन
- गन्तृ—वि॰—-—-—जो जाता है, घूमता है
- गन्तृ—वि॰—-—-—किसी स्त्री से मैथुन करने वाला
- गन्त्री—स्त्री॰—-—गम् - ष्ट्रन् - ङीष्—बैलगाड़ी
- गन्त्रीरथः—पुं॰—गन्त्री-रथः—-—बैलगाड़ी
- गन्धः—पुं॰—-—गन्ध् - अच् —बू, वास्य
- गन्धः—पुं॰—-—-—वैशेषिक दर्शन में प्रतिपादित २४ गुणों में से एक गुण, वहाँ यह पृथ्वी का गुणात्मक लक्षण है, पृथ्वी को गन्धवती कहा गया है
- गन्धः—पुं॰—-—-—वस्तु की केवल गन्धमात्र, जरा सा, बहुत ही थोड़े परिणाम में
- गन्धः—पुं॰—-—-—सुगन्ध, कोई सुगन्धित सामग्री
- गन्धः—पुं॰—-—-—गन्धक
- गन्धः—पुं॰—-—-—पिसा हुआ चन्दन चूरा
- गन्धः—पुं॰—-—-—संयोग, सम्बन्ध, पडौस
- गन्धः—पुं॰—-—-—घमण्ड, अहंकार
- गन्धम्—नपुं॰—-—-—गन्ध, बू
- गन्धम्—नपुं॰—-—-—काली, अगरलकड़ी
- गन्धाधिकम्—नपुं॰—गन्धः-अधिकम्—-—एक प्रकार का सुगन्धद्रव्य
- गन्धापकर्षणम्—नपुं॰—गन्धः-अपकर्षणम्—-—गन्ध दूर करना
- गन्धाम्बु—नपुं॰—गन्धः-अम्बु—-—सुवासित जल
- गन्धाम्ला—स्त्री॰—गन्धः-अम्ला—-—जंगली नींबू का वृक्ष
- गन्धाश्मन्—पुं॰—गन्धः-अश्मन्—-—गन्धक
- गन्धाष्टकम्—नपुं॰—गन्धः-अष्टकम्—-—आठ सुगन्ध द्रव्यों का मिश्रण जो देवताओं पर चढ़ाया जाय, देवताओं की प्रकृति के अनुसार यह भिन्न-भिन्न प्रकार का होता है
- गन्धाखुः—पुं॰—गन्धः-आखुः—-—छछुन्दर
- गन्धाजीवः—पुं॰—गन्धः-आजीवः—-—सुगन्धों का विक्रेता
- गन्धाढ्य—वि॰—गन्धः-आढ्य—-—गन्धसमृद्ध, बहुत सुगन्धित
- गन्धाढ्यः—पुं॰—गन्धः-आढ्यः—-—नारंगी का पेड़
- गन्धाढ्यम्—नपुं॰—गन्धः-आढ्यम्—-—चन्दन की लकड़ी
- गन्धेन्द्रियम्—नपुं॰—गन्धः-इन्द्रियम्—-—नाक, घ्राणेन्द्रिय
- गन्धिभः—पुं॰—गन्धः-इभः—-—हाथी, सर्वोत्तम हाथी
- गन्धगजः—पुं॰—गन्धः-गजः—-—हाथी, सर्वोत्तम हाथी
- गन्धद्विपः—पुं॰—गन्धः-द्विपः—-—हाथी, सर्वोत्तम हाथी
- गन्धहस्तिन्—पुं॰—गन्धः-हस्तिन्—-—हाथी, सर्वोत्तम हाथी
- गन्धोत्तमा—स्त्री॰—गन्धः-उत्तमा—-—मदिरा, शराब
- गन्धोतम्—नपुं॰—गन्धः-उतम्—-—सगन्धित जल
- गन्धोपजीवन्—पुं॰—गन्धः-उपजीवन्—-—गन्धद्रव्यों से आजीविका कमाने वाला, गन्धी
- गन्धोतुः—पुं॰—गन्धः-ओतुः—-—गन्धोतु या गधौतुः, गन्धबिलाव
- गन्धकारिका—स्त्री॰—गन्धः-कारिका—-—सुगन्धद्रव्य बनाने वाली सेविका, शिल्पकार स्त्री जो दूसरे के घर उसके नियंत्रण में रहती है
- गन्धकालिका—स्त्री॰—गन्धः-कालिका—-—व्यास की माता सत्यवती
- गन्धकाली—स्त्री॰—गन्धः-काली—-—व्यास की माता सत्यवती
- गन्धकाष्ठम्—नपुं॰—गन्धः-काष्ठम्—-—अगर की लकड़ी
- गन्धकुटी—स्त्री॰—गन्धः-कुटी—-—एक प्रकार का गन्धद्रव्य
- गन्धकेलिका—स्त्री॰—गन्धः-केलिका—-—कस्तूरी
- गन्धचेलिका—स्त्री॰—गन्धः-चेलिका—-—कस्तूरी
- गन्धगुण—वि॰—गन्धः-गुण—-—गंधगुण वाला, गंधयुक्त
- गन्धघ्राणम्—नपुं॰—गन्धः-घ्राणम्—-—गंध का सूंघना
- गन्धजलम्—नपुं॰—गन्धः-जलम्—-—सुवासित, सुगंधित जल
- गन्धज्ञा—स्त्री॰—गन्धः-ज्ञा—-—नासिका
- गन्धतूर्यम्—नपुं॰—गन्धः-तूर्यम्—-—बिगुल तथा दुंदुभि आदि रणवाद्य
- गन्धतैलम्—नपुं॰—गन्धः-तैलम्—-—खुशबूदार तेल, सुगन्धित द्रव्यों से तैयार किया गया तेल
- गन्धदारु—नपुं॰—गन्धः-दारु—-—अगर की लकड़ी
- गन्धद्रव्यम्—नपुं॰—गन्धः-द्रव्यम्—-—सुगन्धित द्रव्य
- गन्धधूलिः—स्त्री॰—गन्धः-धूलिः—-—कस्तूरी
- गन्धनकुलः—पुं॰—गन्धः-नकुलः—-—छछुन्दर
- गन्धनालिका—स्त्री॰—गन्धः-नालिका—-—नासिका
- गन्धनाली—स्त्री॰—गन्धः-नाली—-—नासिका
- गन्धनिलया—स्त्री॰—गन्धः-निलया—-—एक प्रकार की चमेली
- गन्धपः—पुं॰—गन्धः-पः—-—एक पितृवर्ग
- गन्धपलाशिका—स्त्री॰—गन्धः-पलाशिका—-—हल्दी
- गन्धपलाशी—स्त्री॰—गन्धः-पलाशी—-—आमा हल्दी की जाति
- गन्धपाषाणः—पुं॰—गन्धः-पाषाणः—-—गन्धक
- गन्धपिशाचिका—स्त्री॰—गन्धः-पिशाचिका—-—धूने का धूआँ
- गन्धपुष्पः—पुं॰—गन्धः-पुष्पः—-—बेत का पौधा
- गन्धपुष्पः—पुं॰—गन्धः-पुष्पः—-—केवड़े का पौधा
- गन्धपुष्पम्—नपुं॰—गन्धः-पुष्पम्—-—खुशबूदार फूल
- गन्धपुष्पा—स्त्री॰—गन्धः-पुष्पा—-—नील का पौधा
- गन्धपूतना—स्त्री॰—गन्धः-पूतना—-—भूतनी, प्रेतनी
- गन्धफली—स्त्री॰—गन्धः-फली—-—प्रियंगुलता
- गन्धफली—स्त्री॰—गन्धः-फली—-—चम्पककली
- गन्धबधुः—पुं॰—गन्धः-बधुः—-—आम का वृक्ष
- गन्धमातृ—स्त्री॰—गन्धः-मातृ—-—पृथ्वी
- गन्धमादनः—पुं॰—गन्धः-मादनः—-—भौंरा
- गन्धमादनः—पुं॰—गन्धः-मादनः—-—गन्धक
- गन्धमादनः—पुं॰—गन्धः-मादनः—-—मेरु पहाड़ के पूर्व में स्थित एक पहाड़ जिसमें चन्दन के अनेक जंगल हैं
- गन्धमादनम्—नपुं॰—गन्धः-मादनम्—-—मेरु पहाड़ के पूर्व में स्थित एक पहाड़ जिसमें चन्दन के अनेक जंगल हैं
- गन्धमादनी—स्त्री॰—गन्धः-मादनी—-—मदिरा, शराब
- गन्धमादिनी—स्त्री॰—गन्धः-मादिनी—-—लाख
- गन्धमार्जारः—पुं॰—गन्धः-मार्जारः—-—गन्धबिलाव
- गन्धमुखा—स्त्री॰—गन्धः-मुखा—-—छछुन्दर
- गन्धमूषिकः—पुं॰—गन्धः-मूषिकः—-—छछुन्दर
- गन्धमूषी—स्त्री॰—गन्धः-मूषी—-—छछुन्दर
- गन्धमृगः—पुं॰—गन्धः-मृगः—-—गन्धबिलाव
- गन्धमृगः—पुं॰—गन्धः-मृगः—-—कस्तूरीमृग
- गन्धमैथुनः—पुं॰—गन्धः-मैथुनः—-—साँड
- गन्धमोदनः—पुं॰—गन्धः-मोदनः—-—गन्धक
- गन्धमोहिनी—स्त्री॰—गन्धः-मोहिनी—-—चम्पक की कली
- गन्धयुक्तिः—स्त्री॰—गन्धः-युक्तिः—-—सुगन्धद्रव्यों की तैयार करने की कला
- गन्धराजः—पुं॰—गन्धः-राजः—-—एक प्रकार की चमेली
- गन्धराजम्—नपुं॰—गन्धः-राजम्—-—एकप्रकार का गन्धद्रव्य
- गन्धराजम्—नपुं॰—गन्धः-राजम्—-—चन्दन की लकड़ी
- गन्धलता—स्त्री॰—गन्धः-लता—-—प्रियंगुलता
- गन्धलोलुपा—स्त्री॰—गन्धः-लोलुपा—-—मधुमक्खी
- गन्धवहः—पुं॰—गन्धः-वहः—-—वायु
- गन्धवहा—स्त्री॰—गन्धः-वहा—-—नासिका
- गन्धवाहकः—पुं॰—गन्धः-वाहकः—-— वायु
- गन्धवाहकः—पुं॰—गन्धः-वाहकः—-—कस्तूरी मृग
- गन्धवाही—स्त्री॰—गन्धः-वाही—-—नासिका
- गन्धविह्वलः—पुं॰—गन्धः-विह्वलः—-—गेहूँ
- गन्धवृक्षः—पुं॰—गन्धः-वृक्षः—-—साल का पेड़
- गन्धव्याकुलम्—नपुं॰—गन्धः-व्याकुलम्—-—कंकोल का पेड़
- गन्धशुण्डिनी—स्त्री॰—गन्धः-शुण्डिनी—-—छछुन्दर
- गन्धशेखरः—पुं॰—गन्धः-शेखरः—-—कस्तूरी
- गन्धसारः—पुं॰—गन्धः-सारः—-—चन्दन
- गन्धसोमम्—नपुं॰—गन्धः-सोमम्—-—सफेद कुमुदिनी
- गन्धहारिका—स्त्री॰—गन्धः-हारिका—-—गंधकारिका, स्वामी के पीछे-पीछे सुगंध लेकर चलने वाली सेविका
- गन्धकः—पुं॰—-—गन्ध - कन्—गंधक
- गन्धनम्—नपुं॰—-—गन्ध् - ल्युट्—अध्यवसाय, अविराम प्रयत्न
- गन्धनम्—नपुं॰—-—-—चोट पहुँचाना, क्षति पहुँचाना, मार डालना
- गन्धनम्—नपुं॰—-—-—प्रकाशन
- गन्धनम्—नपुं॰—-—-—सूचना, संसूचन, संकेत
- गन्धर्वः—पुं॰—-—गन्ध - अर्व् - अच्—स्वर्गीय गायक
- गन्धर्वः—पुं॰—-—-—गवैया
- गन्धर्वः—पुं॰—-—-—घोड़ा
- गन्धर्वः—पुं॰—-—-—कस्तूरीमृग
- गन्धर्वः—पुं॰—-—-—मृत्यु के बाद तथा पुनर्जन्म से पूर्व की आत्मा
- गन्धर्वः—पुं॰—-—-—कोयल
- गन्धर्वनगरम्—नपुं॰—गन्धर्व-नगरम्—-—गन्धर्वों का नगर, आकाश में एक काल्पनिक नगर
- गन्धर्वपुरम्—नपुं॰—गन्धर्व-पुरम्—-—गन्धर्वों का नगर, आकाश में एक काल्पनिक नगर
- गन्धर्वराजः—पुं॰—गन्धर्व-राजः—-—चित्ररथ, गंधर्वों का स्वामी
- गन्धर्वविद्या—स्त्री॰—गन्धर्व-विद्या—-—संगीत कला
- गन्धर्वविवाहः—पुं॰—गन्धर्व-विवाहः—-—आठ प्रकार के विवाहों में से एक
- गन्धर्ववेदः—पुं॰—गन्धर्व-वेदः—-—चार उपवेदों में से एक, जिसमें संगीत कला का विवेचन है
- गन्धर्वहस्तः—पुं॰—गन्धर्व-हस्तः—-—एरंड का पौधा
- गन्धर्वहस्तकः—पुं॰—गन्धर्व-हस्तकः—-—एरंड का पौधा
- गन्धारः—पुं॰—-—गन्ध - ऋ - अण्—एक देश और उसके शासकों का नाम
- गन्धाली—स्त्री॰—-—-—भिड़
- गन्धाली—स्त्री॰—-—-—सतत सुगंध
- गन्धालीगर्भः—पुं॰—गन्धाली-गर्भः—-—छोटी इलायची
- गन्धालु—वि॰—-—गन्ध - आलुच्—सुगंधित, सुवासित, खुशबूदार
- गन्धिक—वि॰—-—गन्ध - ठन्—गंधवाला
- गन्धिक—वि॰—-—-—लेशमात्र रखने वाला
- गन्धिकः—पुं॰—-—-—सुगंधों का विक्रेता
- गन्धिकः—पुं॰—-—-—गंधक
- गभस्ति—पुं॰—-—गम्यते ज्ञायते - गम् - ड = गः विषयः तं विभस्ति, भस् - क्तिच्—प्रकाश की किरण, सूर्यकिरण या चन्द्रकिरण
- गभस्तिः—पुं॰—-—-— सूर्य
- गभस्तिः—स्त्री॰—-—-—अग्नि की पत्नी स्वाहा का विशेषण
- गभस्तिकरः—पुं॰—गभस्ति-करः—-—सूर्य
- गभस्तिपाणिः—पुं॰—गभस्ति-पाणिः—-—सूर्य
- गभस्तिहस्तः—पुं॰—गभस्ति-हस्तः—-—सूर्य
- गभस्तिमत्—पुं॰—-—गभस्ति - मतुप्—सूर्य
- गभस्तिमत्—नपुं॰—-—-—पाताल के सात प्रभागों में से एक
- गभीर—वि॰—-—गच्छति जलमात्र; गम् - ईरन्, नि॰ भुगागमः = गम्भीर—गहरा
- गभीर—वि॰—-—-—गहरी आवाज वाला
- गभीर—वि॰—-—-—घना, सटा हुआ, दुर्गम
- गभीर—वि॰—-—-—अगाध, मेघावी
- गभीर—वि॰—-—-—संगीन, संजीदा, महत्त्वपूर्ण, उद्यत
- गभीर—वि॰—-—-—गुप्त, रहस्यपूर्ण
- गभीर—वि॰—-—-—गहन, दुर्बोध, दुर्गाह्य
- गभीरात्मन्—पुं॰—गभीर-आत्मन्—-—परमात्मा
- गभीरवेध—वि॰—गभीर-वेध—-—अत्यन्त भेदक या अन्तः प्रवेशी
- गभीरिका—स्त्री॰—-—गभीर - कन् - टाप्, इत्वम्—गहरी आवाज वाला बड़ा ढोल
- गभोलिकः—पुं॰—-—?—छोटा गावदुम तकिया
- गम्—भ्वा॰ पर॰ <गच्छति>—-—-—जाना, चलना, फिरना
- गम्—भ्वा॰ पर॰ <गच्छति>—-—-—बिदा होना, चले जाना, दूर जाना, खाना होना, प्रस्थान करना
- गम्—भ्वा॰ पर॰ <गच्छति>—-—-—जाना, पहुँचना, सहारा लेना, आ जाना, समीप आना
- गम्—भ्वा॰ पर॰ <गच्छति>—-—-—गुजारना, बीतना, व्यतीत होना
- गम्—भ्वा॰ पर॰ <गच्छति>—-—-—अवस्था या दशा को प्राप्त होना, होना, अनुभव करना, भुगतना, भोगना
- गम्—भ्वा॰ पर॰ <गच्छति>—-—-—सहवास करना, मैथुन करना
- गम्—भ्वा॰ पर॰—-—-—भिजवाना, पहुँचाना, प्राप्त होना
- गम्—भ्वा॰ पर॰—-—-—उपयोग करना, बिताना
- गम्—भ्वा॰ पर॰—-—-—स्पष्ट करना, व्याख्या करना, विवरण देना
- गम्—भ्वा॰ पर॰—-—-—अर्थ बतलाना, संकेत करना, विचार व्यक्त करना
- अतिगम्—भ्वा॰ पर॰—अति-गम्—-—दूर जाना, बीत जाना
- अधिगम्—भ्वा॰ पर॰—अधि-गम्—-—अभिग्रहण करना, अवाप्त करना, ले लेना
- अधिगम्—भ्वा॰ पर॰—अधि-गम्—-—निष्पन्न करना, सुरक्षित करना, पूरा करना
- अधिगम्—भ्वा॰ पर॰—अधि-गम्—-—समीप जाना, की ओर जाना, पहुँचना, पैठ रखना
- अधिगम्—भ्वा॰ पर॰—अधि-गम्—-—जानना, सीखना, अध्ययन करना, समझना
- अधिगम्—भ्वा॰ पर॰—अधि-गम्—-—विवाह करना, ग्रहण करना
- अध्यागम्—भ्वा॰ पर॰—अध्या-गम्—-—प्राप्त करना, होना, घटित होना
- अनुगम्—भ्वा॰ पर॰—अनु-गम्—-—मिलना-जुलना, पीछे चलना, साथ चलना
- अनुगम्—भ्वा॰ पर॰—अनु-गम्—-—नकल करना, समरुप होना, उत्तर देना
- अन्तरगम्—भ्वा॰ पर॰—अन्तर-गम्—-—बीच में जाना, सम्मिलित होना, अन्तर्हित होना
- अपगम्—भ्वा॰ पर॰—अप-गम्—-—दूर चले जाना, जुदा हो जाना, बीत जाना
- अपगम्—भ्वा॰ पर॰—अप-गम्—-—ओझल होना, अन्तर्धान होना, से चले जाना
- अभिगम्—भ्वा॰ पर॰—अभि-गम्—-—निकट जाना, समीप होना, दर्शन करना
- अभिगम्—भ्वा॰ पर॰—अभि-गम्—-—मिलना, घटित होना
- अभिगम्—भ्वा॰ पर॰—अभि-गम्—-—सहवास करना, मैथुन करना
- अभ्यागम्—भ्वा॰ पर॰—अभ्या-गम्—-—समीप आना, पहुँचना, निकट आना
- अभ्यागम्—भ्वा॰ पर॰—अभ्या-गम्—-—प्राप्त करना, हासिल करना
- अभ्युद्गम्—भ्वा॰ पर॰—अभ्युद्-गम्—-—उठना, ऊपर जाना
- अभ्युद्गम्—भ्वा॰ पर॰—अभ्युद्-गम्—-—की ओर जाना, मिलने के लिए आगे बढ़ना
- अभ्युपगम्—भ्वा॰ पर॰—अभ्युप-गम्—-—सहमत होना, स्वीकार करना, जिम्मेवारी लेना, मानना, मंजूर करना, अपनाना
- अवगम्—भ्वा॰ पर॰—अव-गम्—-—जानना, सीखना, विचारना, समझना, विश्वास करना
- अवगम्—भ्वा॰ पर॰—अव-गम्—-—विचार करना, मानना, समझना
- अवगम्—भ्वा॰ पर॰—अव-गम्—-—वहन करना, प्रकट करना, संकेत करना, जाहिर करना, कहना
- आगम्—भ्वा॰ पर॰—आ-गम्—-—आना, पहुँचना
- आगम्—भ्वा॰ पर॰—आ-गम्—-—आ जाना, प्राप्त करना, पहुँच जाना
- आगम्—भ्वा॰ पर॰—आ-गम्—-—ले जाना, वहन करना, लाना
- आगम्—भ्वा॰ पर॰—आ-गम्—-—सीखना, अध्ययन करना
- आगम्—भ्वा॰ पर॰—आ-गम्—-—प्रतीक्षा करना
- उदगम्—भ्वा॰ पर॰—उद-गम्—-—उठना, ऊपर जाना
- उदगम्—भ्वा॰ पर॰—उद-गम्—-—अंकुर फूटना, दिखाई देना
- उदगम्—भ्वा॰ पर॰—उद-गम्—-—उदय होना, निकलना, पैदा हओन, जन्म लेना
- उदगम्—भ्वा॰ पर॰—उद-गम्—-—प्रसिद्ध या विख्यात होना
- उपगम्—भ्वा॰ पर॰—उप-गम्—-—जाना, निकट जान, प्राप्त करना, अभिग्रहण करना
- उपगम्—भ्वा॰ पर॰—उप-गम्—-—पैठना, अन्दर घुसना
- उपगम्—भ्वा॰ पर॰—उप-गम्—-—अनुभव करना, भुगतना
- उपगम्—भ्वा॰ पर॰—उप-गम्—-—अवस्था को प्राप्त होना, प्राप्त करना, अभिग्रहण करना
- उपगम्—भ्वा॰ पर॰—उप-गम्—-—मान लेना, स्वीकृति देना, सहमत होना
- उपगम्—भ्वा॰ पर॰—उप-गम्—-—संभोग के लिए स्त्री के निकट जाना
- उपागम्—भ्वा॰ पर॰—उपा-गम्—-—आ जाना, पहुँचना
- उपागम्—भ्वा॰ पर॰—उपा-गम्—-—पहुँच जाना, अवस्था को ले जाना, प्राप्त करना
- उपागम्—भ्वा॰ पर॰—उपा-गम्—-—लेना, प्राप्त करना
- निगम्—भ्वा॰ पर॰—नि-गम्—-—पहुँच जाना, अभिग्रहण करना, प्राप्त करना, हासिल करना
- निगम्—भ्वा॰ पर॰—नि-गम्—-—ज्ञान प्राप्त करना, सीखना
- निर्गम्—भ्वा॰ पर॰—निस्-गम्—-—बाहर जाना, जुदा होना
- निर्गम्—भ्वा॰ पर॰—निस्-गम्—-—हटाना
- निर्गम्—भ्वा॰ पर॰—निस्-गम्—-—मुक्त होना
- निर्गम्—भ्वा॰ पर॰—निर्-गम्—-—बाहर जाना, जुदा होना
- निर्गम्—भ्वा॰ पर॰—निर्-गम्—-—हटाना
- निर्गम्—भ्वा॰ पर॰—निर्-गम्—-—मुक्त होना
- परागम्—भ्वा॰ पर॰—परा-गम्—-—वापिस आना
- परागम्—भ्वा॰ पर॰—परा-गम्—-—घेरना, लपेटना, व्याप्त करना
- परिगम्—भ्वा॰ पर॰—परि-गम्—-—जाना, चक्कर लगाना
- परिगम्—भ्वा॰ पर॰—परि-गम्—-—घेरना
- परिगम्—भ्वा॰ पर॰—परि-गम्—-—सर्वत्र फैलना, सब दिशाओं में व्याप्त होना
- परिगम्—भ्वा॰ पर॰—परि-गम्—-—प्राप्त करना
- परिगम्—भ्वा॰ पर॰—परि-गम्—-—जानना, समझना, सीखना
- परिगम्—भ्वा॰ पर॰—परि-गम्—-—मरना, चले जाना
- परिगम्—भ्वा॰ पर॰—परि-गम्—-—प्रभावित करना, ग्रस्त करना
- पर्यागम्—भ्वा॰ पर॰—पर्या-गम्—-—निकट जाना, की ओर जाना
- पर्यागम्—भ्वा॰ पर॰—पर्या-गम्—-—पूरा करना, समाप्त करना
- पर्यागम्—भ्वा॰ पर॰—पर्या-गम्—-—जीतना, अभिभूत करना
- प्रतिगम्—भ्वा॰ पर॰—प्रति-गम्—-—वापिस जाना
- प्रतिगम्—भ्वा॰ पर॰—प्रति-गम्—-—बढ़ना, की ओर जाना
- प्रत्यागम्—भ्वा॰ पर॰—प्रत्या-गम्—-—वापिस आना, लौट आना
- प्रत्युद्गम्—भ्वा॰ पर॰—प्रत्युद्-गम्—-—आगे जाना, बढ़ना या मिलना
- विगम्—भ्वा॰ पर॰—वि-गम्—-—बीत जाना
- विगम्—भ्वा॰ पर॰—वि-गम्—-—ओझल होना, अन्तर्धान होना
- विगम्—भ्वा॰ पर॰—वि-गम्—-—व्यतीत करना, बिताना
- विनिस्गम्—भ्वा॰ पर॰—विनिस्-गम्—-—बाहर जाना
- विनिस्गम्—भ्वा॰ पर॰—विनिस्-गम्—-—अन्तर्धान होना, ओझल होना
- विप्रगम्—भ्वा॰ पर॰—विप्र-गम्—-—अलग होना
- संगम्—भ्वा॰ पर॰—सम्-गम्—-—मिल जाना, इकट्ठे चलना, मिलना, मुकाबला करना
- संगम्—भ्वा॰ पर॰—सम्-गम्—-—सहवास करना, संभोग करना
- संगम्—भ्वा॰ पर॰—सम्-गम्—-—इकट्ठा करना, मिलाना या इकत्र करना
- समधिगम्—भ्वा॰ पर॰—समधि-गम्—-—निकट पहुँचना
- समधिगम्—भ्वा॰ पर॰—समधि-गम्—-—अध्ययन करना
- समधिगम्—भ्वा॰ पर॰—समधि-गम्—-—प्राप्त करना, अभिग्रहण करना
- समवगम्—भ्वा॰ पर॰—समव-गम्—-—पूरी तरह से जान लेना
- समुपागम्—भ्वा॰ पर॰—समुपा-गम्—-—पास पहुँचना
- समुपागम्—भ्वा॰ पर॰—समुपा-गम्—-—आ पड़ना
- गम—वि॰—-—गम् -अप्—जाने वाला, हिलने-जुलने वाला, पास जाने वाला, पहुँचाने वाला, हासिल करने वाला आदि
- गमः—पुं॰—-—-—जाना, हिलना, जुलना आदि
- गमः—पुं॰—-—-—प्रयाण करना
- गमः—पुं॰—-—-—आक्रमण कारी का कूच करना
- गमः—पुं॰—-—-—सड़क
- गमः—पुं॰—-—-—अविचारिता, विचारशून्यता
- गमः—पुं॰—-—-—ऊपरीपन, अटकलपच्चू निरीक्षण
- गमः—पुं॰—-—-—स्त्री-संभोग, सहवास
- गमः—पुं॰—-—-—पासे आदि का खेल
- गमागमः—पुं॰—गम-आगमः—-—आना-जाना
- गमक—वि॰—-—गम् - ण्वुल्—संकेतक, सुझाव देने वाला, प्रणाम, अनुक्रमणी
- गमक—वि॰—-—-—विश्वासोत्पादक
- गमनम्—नपुं॰—-—गम् - ल्युट्—जाना, गति, चाल
- गमनम्—नपुं॰—-—-—जाना, गति
- गमनम्—नपुं॰—-—-—निकट पहुँचना, पहुँचना
- गमनम्—नपुं॰—-—-—अभियान
- गमनम्—नपुं॰—-—-—अनुभव करना, भुगतना
- गमनम्—नपुं॰—-—-—प्राप्त करना, पहुँचना
- गमनम्—नपुं॰—-—-—सहवास
- गमिन्—वि॰—-—गम - इनि—जाने के विचार वाला
- गमिन्—पुं॰—-—-—यात्री
- गमनीय—सं॰ कृ॰—-—गम् - अनीयर्, यत् वा—सुगम
- गमनीय—सं॰ कृ॰—-—-—सुबोध, आसानी से समझ में आने के योग्य
- गमनीय—सं॰ कृ॰—-—-—अभिप्रेत, निहित, अर्थयुक्त
- गमनीय—सं॰ कृ॰—-—-—उपयुक्त, वाञ्छित, योग्य
- गमनीय—सं॰ कृ॰—-—-—सहवास के योग्य
- गमनीय—सं॰ कृ॰—-—-—उपचार योग्य
- गम्य—सं॰ कृ॰—-—गम् - अनीयर्, यत् वा—सुगम
- गम्य—सं॰ कृ॰—-—-—सुबोध, आसानी से समझ में आने के योग्य
- गम्य—सं॰ कृ॰—-—-—अभिप्रेत, निहित, अर्थयुक्त
- गम्य—सं॰ कृ॰—-—-—उपयुक्त, वाञ्छित, योग्य
- गम्य—सं॰ कृ॰—-—-—सहवास के योग्य
- गम्य—सं॰ कृ॰—-—-—उपचार योग्य
- गम्भारिका—स्त्री॰—-—गम् - विच् = गम्, तं गमं = निम्नगतिं बिभर्ति - गम् - भृ - ण्वुल् - टाप्, इत्वम्, गम् - भृ - अण् ङीष्—एक वृक्ष का नाम
- गम्भारी—स्त्री॰—-—गम् - विच् = गम्, तं गमं = निम्नगतिं बिभर्ति - गम् - भृ - ण्वुल् - टाप्, इत्वम्, गम् - भृ - अण् ङीष्—एक वृक्ष का नाम
- गम्भीर—वि॰—-—-—गभीर
- गम्भीरः—पुं॰—-—-—कमल
- गम्भीरः—पुं॰—-—-—जंबीर, नींबू
- गम्भीरवेदिन्—वि॰—गम्भीर-वेदिन्—-—दुर्दान्त, अड़ियल
- गयः—पुं॰—-—-—गया प्रदेश तथा उसके आस-पास रहने वाले लोग
- गयः—पुं॰—-—-—एक राक्षस का नाम
- गया—स्त्री॰—-—-—बिहार में एक नगर जो एक तीर्थस्थान है
- गर—वि॰—-—गीर्यते - गॄ - अच्—निगलने वाला
- गरः—पुं॰—-—-—पेय, शरबत
- गरः—पुं॰—-—-—बीमारी, रोग
- गरः—पुं॰—-—-—निगलना
- गरः—पुं॰—-—-—जहर
- गरः—पुं॰—-—-—विषनाशक औषधि
- गरम्—नपुं॰—-—-—जहर
- गरम्—नपुं॰—-—-—विषनाशक औषधि
- गरम्—नपुं॰—-—-—छिड़कना, तर करना
- गराधिका—स्त्री॰—गर-अधिका—-—लाक्षा नामक कीड़ा
- गराधिका—स्त्री॰—गर-अधिका—-—इस कीड़े से प्राप्त लाल रंग
- गरघ्नी—स्त्री॰—गर-घ्नी—-—एक प्रकार की मछली
- गरद—वि॰—गर-द—-—विष देने वाला, जहर देने वाला
- गरदम्—नपुं॰—गर-दम्—-—विष
- गरव्रतः—पुं॰—गर-व्रतः—-—मोर
- गरणम्—नपुं॰—-—गॄ - ल्युट्—निगलने की क्रिया
- गरणम्—नपुं॰—-—-—छिड़कना
- गरणम्—नपुं॰—-—-—विष
- गरभः—पुं॰—-—गॄ - अभच्—भ्रूण, गर्भस्थ बच्चा
- गरलः—पुं॰—-—गिरति जीवनम् - गॄ - अलच्, तारा॰—विष, जहर
- गरलः—पुं॰—-—-—साँप का विष
- गरलम्—नपुं॰—-—-—घास का गट्ठड़
- गरलारिः—पुं॰—गरल -अरिः—-—पन्ना, मरकतमणि
- गरित—वि॰—-—गर - इतच्—विषयुक्त, जिसे जहर दिया गया हो
- गरिमन्—पुं॰—-—गुरु - इमनिच्, गरादेशः—बोझ, भारीपन
- गरिमन्—पुं॰—-—-—महत्त्व, बड़प्पन, महिमा
- गरिमन्—पुं॰—-—-—उत्तमता, श्रेष्ठता
- गरिमन्—पुं॰—-—-—आठ सिद्धियों में से एक सिद्धि जिसके द्वारा अपने आपको इच्छानुसार भारी या हल्का कर सकते है
- गरिष्ठ—वि॰—-—गुरु - इष्ठन्, गरादेशः—सबसे भारी
- गरिष्ठ—वि॰—-—-—अत्यन्त महत्त्वपूर्ण
- गरीयस्—वि॰—-—गुरु - ईयसुन्, गरादेशः—अधिक, भारी, अपेक्षाकृत वजनदार, अपेक्षाकृत महत्त्वपूर्ण
- गरुड़ः—पुं॰—-—गरुद्भ्यां डयते - डी - ड पृषो॰ तलोपः - गॄ - उडच्—पक्षियों का राजा
- गरुड़ः—पुं॰—-—-—गरुड़ की शक्ल का बना भवन
- गरुड़ः—पुं॰—-—-—विशेष सैनिक व्यूह रचना
- गरुडाग्रजः—पुं॰—गरुड़्-अग्रजः—-—सूर्य के सारथि अरुण का विशेषण
- गरुडाङकः—पुं॰—गरुड़्-अङ्कः—-—विष्णु का विशेषण
- गरुडाङिकतम्—पुं॰—गरुड़्-अङ्कितम्—-—पन्ना
- गरुडाश्मन्—पुं॰—गरुड़्-अश्मन्—-—पन्ना
- गरुडोत्तीर्णम्—नपुं॰—गरुड़्-उत्तीर्णम्—-—पन्ना
- गरुडाध्वजः—पुं॰—गरुड़्-ध्वजः—-—विष्णु की उपाधि
- गरुडव्यूहः—पुं॰—गरुड़्-व्यूहः—-—एक प्रकार की विशेष सैनिक व्यव्स्था
- गरुत्—पुं॰—-—गृ (गॄ) - उति—पक्षी के पर, बाजू
- गरुत्—पुं॰—-—-—खाना, निगलना
- गरुत्योधिन्—पुं॰—गरुत्-योधिन्—-—बटेर
- गरुत्मत्—वि॰—-—गरुत् - मतुप्—पक्षी
- गरुत्मत्—पुं॰—-—-—गरुड़
- गरुत्मत्—पुं॰—-—-—पक्षी
- गरुलः—पुं॰—-— = गरुडः, डस्य लः—गरुड़, पक्षियों का राजा
- गर्गः—पुं॰—-—गॄ - ग—एक प्राचीन ऋषि, ब्रह्मा का एक पुत्र
- गर्गः—पुं॰—-—-— साँड़
- गर्गः—पुं॰—-—-—केचुवा, गर्ग की संतान
- गर्गस्रोतः—नपुं॰—गर्ग-स्रोतः—-—एक तीर्थ
- गर्गरः—पुं॰—-—गर्ग इति शब्दं राति - गर्ग - रा - क—भँवर, जलावर्त
- गर्गरः—पुं॰—-—-—एक प्रकार का वाद्ययंत्र
- गर्गरः—पुं॰—-—-—एक प्रकार की मछली
- गर्गरः—पुं॰—-—-—मथानी, दही बिलोने का मटका
- गर्गरी—स्त्री॰—-—-—मथानी, पानी का गागर
- गर्गाटः—पुं॰—-—गर्ग इति शब्देन अटति -गर्ग - अट् - अच्—एक प्रकार की मछली
- गर्ज्—भ्वा॰, पर॰, चुरा॰,उभ॰ ,गर्जति>, <गर्जयति>, <गर्जयते>, <गर्जित>—-—-—दहाड़ना, गुर्राना
- गर्ज्—भ्वा॰, उभ॰ ,गर्जति>, <गर्जयति>, <गर्जयते>, <गर्जित>—-—-—एक गहरी और गड़गड़ाती हुई गर्जना करना
- अनुगर्ज्—भ्वा॰ पर॰ —अनु-गर्ज्—-—बदले में गड़गड़ाना, गूंजना
- प्रतिगर्ज्—भ्वा॰ पर॰ —प्रति-गर्ज्—-—चिंघाड़ना, दहाड़ना
- प्रतिगर्ज्—भ्वा॰ पर॰ —प्रति-गर्ज्—-—मुकाबला करना, विरोध करना
- गर्जः—पुं॰— —गर्ज - घञ्—हाथियों की चिंघाड
- गर्जः—पुं॰—-—-—बादलों की गरज या गड़गड़ाहट
- गर्जनम्—नपुं॰—-—गर्ज् - ल्युट्—दहाड़ना, चिंघाड़ना, गुर्राना, गड़गड़ाना
- गर्जनम्—नपुं॰—-—-—आवाज, कोलाहल
- गर्जनम्—नपुं॰—-—-—आवेश, क्रोध
- गर्जनम्—नपुं॰—-—-—संग्राम, युद्ध
- गर्जनम्—नपुं॰—-—-—झिड़की
- गर्जा—स्त्री॰—-—गर्ज् - टाप्, गर्ज् - इन—बादलों की गड़गड़ाहट, गरज
- गर्जिः—स्त्री॰—-—गर्ज् - टाप्, गर्ज् - इन—बादलों की गड़गड़ाहट, गरज
- गर्जित—वि॰—-—गर्ज् - क्त—गर्जा हुआ, चिंघाड़ा हुआ
- गर्जितम्—नपुं॰—-—-—बादलों की गड़गड़ाहट, गरज
- गर्जितः—पुं॰—-—-—चिंघाडता हुआ, जिसके मस्तक से मद झरता है
- गर्तः—पुं॰—-—गृ - तन्—कोटर, छिद्र, गुफा
- गर्तम्—नपुं॰—-—-—कोटर, छिद्र, गुफा
- गर्तः—पुं॰—-—-—कटिखात
- गर्तः—पुं॰—-—-—एक प्रकार का रोग
- गर्तः—पुं॰—-—-—एक देश का नाम, त्रिगत का एक भाग
- गर्ताश्रयः—पुं॰—गर्त-आश्रयः—-—चूहे की भाँति बिल में रहने वाला जानवर
- गर्तिका—स्त्री॰—-—गर्तः अस्त्यस्याः - गर्त - ठन्—जुलाहे का कारखाना, खड्डी
- गर्द्—भ्वा॰ पर॰, चुरा॰ उभ॰ <गर्दति>, <गर्दयति>, <गर्दयते>—-—-—शब्द करना, दहाड़ना
- गर्दभः—पुं॰—-—गर्द् - अभच्—गधा
- गर्दभः—पुं॰—-—-—गंध, बू
- गर्दभम्—नपुं॰—-—-—सफेद कुमुदिनी
- गर्दभाण्डः—पुं॰—गर्दभ-अण्डः—-—एक वृक्ष विशेष
- गर्दभाण्डः—पुं॰—गर्दभ-अण्डः—-—वृक्ष
- गर्दभडकः—पुं॰—गर्दभ-डकः—-—एक वृक्ष विशेष
- गर्दभडकः—पुं॰—गर्दभ-डकः—-—वृक्ष
- गर्दभाह्वयम्—नपुं॰—गर्दभ-आह्वयम्—-—सफेद कमल
- गर्दभगदः—पुं॰—गर्दभ-गदः—-—चर्मरोग विशेष
- गर्धः—पुं॰—-—गृध् - घञ्, अच् वा—इच्छा, उत्कण्ठा
- गर्धः—पुं॰—-—-—लालच
- गर्धन—वि॰—-—गृध् - ल्युट्, क्त वा—लोभी, लालची
- गर्धित—वि॰—-—गृध् - ल्युट्, क्त वा—लोभी, लालची
- गर्धिन्—वि॰—-—गर्ध - इनि— इच्छुक, लालची, लोभी
- गर्धिन्—वि॰—-—-—उत्सुकतापूर्वक किसी कार्य का पीछा करने वाली
- गर्भः—पुं॰—-—गृ - भन्—गर्भाशय, पेट
- गर्भः—पुं॰—-—-—भ्रूण, गर्भस्थ बच्चा, गर्भाधान
- गर्भः—पुं॰—-—-—गर्भाधान काल
- गर्भः—पुं॰—-—-—बच्चा
- गर्भः—पुं॰—-—-—बच्चा, अण्डशावक
- गर्भः—पुं॰—-—-—किसी वस्तु का अभ्यन्तर, मध्य या भीतरी भाग
- गर्भः—पुं॰—-—-—आकाश-प्रसूति
- गर्भः—पुं॰—-—-—भीतरी कमरा, प्रसूतिकागृह, जच्चा खाना
- गर्भः—पुं॰—-—-—अभ्यन्तरीण प्रकोष्ठ
- गर्भः—पुं॰—-—-—छिद्र
- गर्भः—पुं॰—-—-—अग्नि
- गर्भः—पुं॰—-—-—आहार
- गर्भः—पुं॰—-—-—कटहल का कटीला छिलका
- गर्भः—पुं॰—-—-—नदी का पाट
- गर्भाङ्कः—पुं॰—गर्भ-अङ्कः—-—अकं के बीच में विष्कम्भक
- गर्भावक्रान्तिः—स्त्री॰—गर्भ-अवक्रान्तिः—-—आत्मा का गर्भ में प्रविष्ट होना
- गर्भागारम्—नपुं॰—गर्भ-आगारम्—-—बच्चेदानी
- गर्भागारम्—नपुं॰—गर्भ-आगारम्—-—भीतरी कमरा, निजी कमरा, अन्तःपुर
- गर्भागारम्—नपुं॰—गर्भ-आगारम्—-—प्रसूतिकागृह
- गर्भागारम्—नपुं॰—गर्भ-आगारम्—-—मन्दिर का पूजाकक्ष, जहाँ देवता की मूर्ति स्थापित रहती है
- गर्भाधानम्—नपुं॰—गर्भ-आधानम्—-—गर्भ रहना, गर्भधारण
- गर्भाधानम्—नपुं॰—गर्भ-आधानम्—-—एक संस्कार, ऋतु-स्नान के पश्चात एक शुद्धिसंस्कार
- गर्भाशयः—पुं॰—गर्भ-आशयः—-—योनि, बच्चेदानी
- गर्भास्रायः—पुं॰—गर्भ-आस्रायः—-—गर्भ का कच्चा गिरना, गर्भपात
- गर्भीश्वरः—पुं॰—गर्भ-ईश्वरः—-—जन्म से धनी, जन्मजात धनी, पैदाइशी राजा या रईस
- गर्भोत्पत्तिः—पुं॰—गर्भ-उत्पत्तिः—-—भ्रूण की रचना
- गर्भोपघातः—पुं॰—गर्भ-उपघातः—-—कच्चे गर्भ का गिर जाना
- गर्भोपघातिनी—स्त्री॰—गर्भ-उपघातिनी—-—वह गाय या स्त्री जिसे बिना ऋतु के गर्भ का स्राव हो जाय
- गर्भकर—वि॰—गर्भ-कर—-—गर्भ धारण करने वाला
- गर्भकालः—पुं॰—गर्भ-कालः—-—गर्भधारण का समय, ऋतु काल
- गर्भकोशः—पुं॰—गर्भ-कोशः—-—गर्भाशय, बच्चादानी
- गर्भकोषः—पुं॰—गर्भ-कोषः—-—गर्भाशय, बच्चादानी
- गर्भक्लेशः—पुं॰—गर्भ-क्लेशः—-—गर्भधारण करने का कष्ट, प्रसव की पीड़ा
- गर्भक्षयः—पुं॰—गर्भ-क्षयः—-—गर्भ की कच्ची अवस्था में गिर जाना
- गर्भगृहम्—नपुं॰—गर्भ-गृहम्—-—घर के भीतर का कमरा, घर का मध्य भाग
- गर्भगृहम्—नपुं॰—गर्भ-गृहम्—-—प्रसूतिकागृह
- गर्भगृहम्—नपुं॰—गर्भ-गृहम्—-—मन्दिर का वह कक्ष जिसमें देवता की प्रतिमा स्थापित हो
- गर्भभवनम्—नपुं॰—गर्भ-भवनम्—-—घर के भीतर का कमरा, घर का मध्य भाग
- गर्भभवनम्—नपुं॰—गर्भ-भवनम्—-—प्रसूतिकागृह
- गर्भभवनम्—नपुं॰—गर्भ-भवनम्—-—मन्दिर का वह कक्ष जिसमें देवता की प्रतिमा स्थापित हो
- गर्भवेश्मन्—नपुं॰—गर्भ-वेश्मन्—-—घर के भीतर का कमरा, घर का मध्य भाग
- गर्भवेश्मन्—नपुं॰—गर्भ-वेश्मन्—-—प्रसूतिकागृह
- गर्भवेश्मन्—नपुं॰—गर्भ-वेश्मन्—-—मन्दिर का वह कक्ष जिसमें देवता की प्रतिमा स्थापित हो
- गर्भग्रहणम्—नपुं॰—गर्भ-ग्रहणम्—-—गर्भधारण, गर्भ होना
- गर्भघातिन्—वि॰—गर्भ-घातिन्—-—गर्भपात कराने वाला
- गर्भचलनम्—नपुं॰—गर्भ-चलनम्—-—गर्भस्पन्दन, गर्भाशय में बच्चे का हिलना-डोलना
- गर्भच्युतिः—स्त्री॰—गर्भ-च्युतिः—-—जन्म, प्रसूति
- गर्भच्युतिः—स्त्री॰—गर्भ-च्युतिः—-—गर्भस्राव
- गर्भदासः—पुं॰—गर्भ-दासः—-—जन्म से ही गुलाम
- गर्भदासी—स्त्री॰—गर्भ-दासी—-—जन्म से ही गुलाम
- गर्भद्रुह—वि॰—गर्भ-द्रुह—-—गर्भपात करने वाला
- गर्भधरा—स्त्री॰—गर्भ-धरा—-—गर्भवती
- गर्भधारणम्—नपुं॰—गर्भ-धारणम्—-—गर्भस्थिति, गर्भ में संतान को रखना
- गर्भधारणा—स्त्री॰—गर्भ-धारणा—-—गर्भस्थिति, गर्भ में संतान को रखना
- गर्भध्वंसः—पुं॰—गर्भ-ध्वंसः—-—गर्भपात
- गर्भपाकिन्—पुं॰—गर्भ-पाकिन्—-—साठ दिन में पकने वाला धान, साठी चावल
- गर्भपातः—पुं॰—गर्भ-पातः—-—चौथे महीने के बाद गर्भ क गिर जाना
- गर्भपोषणम्—नपुं॰—गर्भ-पोषणम्—-—गर्भस्थ बालक का पालन-पोषण
- गर्भभर्मन्—नपुं॰—गर्भ-भर्मन्—-—गर्भस्थ बालक का पालन-पोषण
- गर्भमण्डपः—पुं॰—गर्भ-मण्डपः—-—शयनागार, प्रसूतिकागृह
- गर्भमासः—पुं॰—गर्भ-मासः—-—वह महीना जिसमें गर्भ रहे
- गर्भमोचनम्—नपुं॰—गर्भ-मोचनम्—-—प्रसव, बच्चे का जन्म
- गर्भयोषा—स्त्री॰—गर्भ-योषा—-—गर्भवती स्त्री
- गर्भरक्षणम्—नपुं॰—गर्भ-रक्षणम्—-—गर्भस्थ बालक की रक्षा करना
- गर्भरुपः—पुं॰—गर्भ-रुपः—-—बच्चा, शिशु, तरुण
- गर्भरुपकः—पुं॰—गर्भ-रुपकः—-—बच्चा, शिशु, तरुण
- गर्भलक्षणम्—नपुं॰—गर्भ-लक्षणम्—-—गर्भ हो जाने का चिन्ह
- गर्भलम्भनम्—नपुं॰—गर्भ-लम्भनम्—-—गर्भ की रक्षा और उसके विकास के लिए किया जाने वाला एक संस्कार
- गर्भवसतिः—स्त्री॰—गर्भ-वसतिः—-—गर्भाशय
- गर्भवसतिः—स्त्री॰—गर्भ-वसतिः—-—गर्भाशय में रहना
- गर्भवासः—पुं॰—गर्भ-वासः—-—गर्भाशय
- गर्भवासः—पुं॰—गर्भ-वासः—-—गर्भाशय में रहना
- गर्भविच्युतिः—स्त्री॰—गर्भ-विच्युतिः—-—गर्भाधान के आरम्भ में ही गर्भस्राव हो जाना
- गर्भवेदना—स्त्री॰—गर्भ-वेदना—-—प्रसवपीडा
- गर्भव्याकरणम्—नपुं॰—गर्भ-व्याकरणम्—-—गर्भ की उत्पत्ति और वृद्धि
- गर्भशङ्कुः—पुं॰—गर्भ-शङ्कुः—-—एक प्रकार का औजार जिससे मरे हुए बच्चे को पेट से निकाला जाता है
- गर्भशय्या—पुं॰—गर्भ-शय्या—-—गर्भाशय
- गर्भसंभवः—पुं॰—गर्भ-संभवः—-—गर्भवती होना
- गर्भसंभूतिः—स्त्री॰—गर्भ-संभूतिः—-—गर्भवती होना
- गर्भस्थ—वि॰—गर्भ-स्थ—-—गर्भाशय में विद्यमान
- गर्भस्थ—वि॰—गर्भ-स्थ—-—अभ्यन्तर, आन्तरिक
- गर्भस्रावः—पुं॰—गर्भ-स्रावः—-—गर्भ गिर जाना, गर्भ का कच्ची अवस्था में बह जाना
- गर्भकः—पुं॰—-—गर्भ - कन्—बालों के बीच धारण की हुई पुष्पमाला
- गर्भकम्—नपुं॰—-—-—दो रातों और उनके बीच के दिन का समय
- गर्भण्डः—पुं॰—-—गर्भस्य अण्ड इव ष॰ त॰—नाभि का बढ़ का जाना
- गर्भवती—स्त्री॰—-—गर्भ - मतुप् - ङीप्, वत्वम्—गर्भिणी स्त्री
- गर्भिणी—स्त्री॰—-—गर्भ - इनि - ङीप्—गर्भवती स्त्री
- गर्भिणीवेक्षणम्—नपुं॰—गर्भिणी-अवेक्षणम्—-—दाईपना, गर्भवती स्त्री और नवजात बच्चे की सेवा और परिचर्या
- गर्भिणीदोहद्रम्—नपुं॰—गर्भिणी-दोहद्रम्—-—गर्भवती स्त्री की प्रबल इच्छाएँ या रुचि
- गर्भिणीव्याकरणम्—नपुं॰—गर्भिणी-व्याकरणम्—-—गर्भ के विकास का विज्ञान
- गर्भिणीव्याकृतिः—स्त्री॰—गर्भिणी-व्याकृतिः—-—गर्भ के विकास का विज्ञान
- गर्भित—वि॰—-—गर्भ - इतच्—गर्भयुक्त, भरा हुआ
- गर्भेतृप्त—वि॰,अलुक् स॰ त॰—-—-—बालक की भाँति गर्भ में ही सन्तुष्ट
- गर्भेतृप्त—वि॰,अलुक् स॰ त॰—-—-—आहार और सन्तान के विषय में सन्तुष्ट
- गर्भेतृप्त—वि॰,अलुक् स॰ त॰—-—-—आलसी
- गर्मुत्—स्त्री॰—-—गृ - उति, मुट्—एक प्रकार का घास
- गर्मुत्—स्त्री॰—-—गृ - उति, मुट्—एक प्रकार का नरकुल
- गर्मुत्—स्त्री॰—-—गृ - उति, मुट्—सोना
- गर्व—भ्वा॰ पर॰ <गर्वित>, <गर्वति>—-—-—घमंडी या अहंकारी होना
- गर्वः—पुं॰—-—गर्व - घञ्—घमंड, अहंकार
- गर्वः—पुं॰—-—गर्व - घञ्—शास्त्र ३३ व्यभिचारियों में से एक
- गर्वाटः—पुं॰—-—गर्व - अट् - अच्—चौकीदार, द्वारपाल
- गर्ह—भ्वा॰ , चुरा॰ आ॰ <गर्हते>, <गर्हयते>, <गर्हित>—-—-—कलंक लगाना, निन्दा करना, झिड़की देना
- गर्ह—भ्वा॰ , चुरा॰ आ॰ <गर्हते>, <गर्हयते>, <गर्हित>—-—-—दोषी ठहराना, आरोप लगाना
- गर्ह—भ्वा॰ , चुरा॰ आ॰ <गर्हते>, <गर्हयते>, <गर्हित>—-—-—खेद प्रकट करना
- विगर्ह—भ्वा॰ , चुरा॰ आ॰—वि-गर्ह—-—कलंकित करना, निन्दा करना, झिड़की देना
- गर्हणम्—नपुं॰—-—गर्ह - ल्युट्—निन्दा, कलंक, झिड़की, दुर्वचन
- गर्हणा—स्त्री॰—-—गर्ह - युच् - टाप्—निन्दा, कलंक, झिड़की, दुर्वचन
- गर्हा—स्त्री॰—-—गर्ह - अ - टाप्—निन्दा,दुर्वचन
- गर्ह्य—वि॰—-—गर्ह् - ण्यत्—निन्दनीय, निन्दा के योग्य, कलंक दिये जाने के योग्य
- गर्ह्यवादिन्—वि॰—गर्ह्य-वादिन्—-—अपशब्द कहने वाला, दुर्वचन बोलने वाला
- गल्—भ्वा॰ पर॰ <गलति>, <गलित>—-—-—टपकाना, चुआना, पसीजना, चूना
- गल्—भ्वा॰ पर॰ <गलति>, <गलित>—-—-—टपकाना या गिरना
- गल्—भ्वा॰ पर॰ <गलति>, <गलित>—-—-—ओझल होना, अन्तर्धान होना, गुजर जाना, हट जाना
- गल्—भ्वा॰ पर॰ <गलति>, <गलित>—-—-—खाना, निगलना
- गल्—प्रेर॰ या चुरा॰ उभ॰—-—-—उडेलना
- गल्—प्रेर॰ या चुरा॰ उभ॰—-—-—निथारना, निचोड़ना
- गल्—प्रेर॰ या चुरा॰ आ॰—-—-—बहना
- गलित—भू॰ क॰ कृ॰ —-—-—उडेलना
- गलित—भू॰ क॰ कृ॰ —-—-—निथारना, निचोड़ना
- गलित—भू॰ क॰ कृ॰ —-—-—बहना
- निर्गल्—भ्वा॰ पर॰ —निस्-गल्—-—टपकना, रिसना, चूना
- पर्यागल्—भ्वा॰ पर॰ —पर्या-गल्—-—टपकना
- विगल्—भ्वा॰ पर॰ —वि-गल्—-—टपकाना
- विगल्—भ्वा॰ पर॰ —वि-गल्—-—टपकना, चूना
- विगल्—भ्वा॰ पर॰ —वि-गल्—-—ओझल होना, अन्तर्धान होना
- गलः—पुं॰—-—गल् - अच्—कंठ, गर्दन
- गलः—पुं॰—-—गल् - अच्—साल वृक्ष की लाख
- गलः—पुं॰—-—गल् - अच्—एक प्रकार का वाद्ययन्त्र
- गलाङ्कुरः—पुं॰—गल-अङ्कुरः—-—गले का एक विशेष रोग
- गलोद्भवः—पुं॰—गल-उद्भवः—-—घोड़े की गर्दन के बाल, अयाल
- गलोघः—पुं॰—गल-ओघः—-—गले की रसौली
- गलकम्बलः—पुं॰—गल-कम्बलः—-—गाय बैल की गर्दन का नीचे लटकने वाला चमड़ा, झालर
- गलगण्डः—पुं॰—गल-गण्डः—-—गंडमाला, गले का एक रोग जिसमें गांठ सी निकल जाती है
- गलग्रहः—पुं॰—गल-ग्रहः—-—गला पकड़ना, गला घोटना, श्वासावरोध करना
- गलग्रहः—पुं॰—गल-ग्रहः—-—एक प्रकार का रोग
- गलग्रहः—पुं॰—गल-ग्रहः—-—मास में कृष्णपक्ष के कुछ दिन
- गलचर्मन्—नपुं॰—गल-चर्मन्—-—अन्ननाली, गला
- गलद्वारम्—नपुं॰—गल-द्वारम्—-—मुँह
- गलमेखला—स्त्री॰—गल-मेखला—-—हार
- गलवार्त—वि॰—गल-वार्त—-—गले की क्रिया में निपुण, खूब खाने और हजम करने वाला, तन्दरुस्त, स्वस्थ
- गलवार्त—वि॰—गल-वार्त—-—पिछलग्गू, चाटुकार
- गलव्रतः—पुं॰—गल-व्रतः—-—मोर
- गलशुण्डिका—स्त्री॰—गल-शुण्डिका—-—उपजिह्वा
- गलशुण्डी—स्त्री॰—गल-शुण्डी—-—गर्दन की ग्रन्थियों का सूजन
- गलस्तनी—स्त्री॰—गल-स्तनी—-—बकरी
- गलहस्तः—पुं॰—गल-हस्तः—-—गले से पकड़ना, गला घोटना, अर्धचन्द्र या गरदनिया
- गलहस्तः—पुं॰—गल-हस्तः—-—अर्धचन्द्राकार बाण
- गलहस्तित—वि॰—गल-हस्तित—-—गले से पकड़ा हुआ, गर्दनिया देकर निकाला हुआ, गला घोटा हुआ
- गलकः—पुं॰—-—गल् - बुन्—कण्ठ, गर्दन
- गलकः—पुं॰—-—गल् - बुन्—एक प्रकार की मछली
- गलनम्—नपुं॰—-—गल् - ल्युट्—रिसना, चूना, टपकना
- गलनम्—नपुं॰—-—गल् - ल्युट्—चूना, पिघल जाना
- गलन्तिका—स्त्री॰—-—गल् - शतृ - ङीष्, नुम् - कन् - टाप् इत्वम्, -गल् - शतृ - ङीष्, नुम्—छोटा घड़ा
- गलन्तिका—स्त्री॰—-—-—छोटा घड़ा जिसकी पेंदी में छेद करके देव मूर्ति पर टांग देते है, जिससे कि उस छेद के बराबर जल टपकता रहता हैं
- गलन्ती—स्त्री॰—-—गल् - शतृ - ङीष्, नुम् - कन् - टाप् इत्वम्, -गल् - शतृ - ङीष्, नुम्—छोटा घड़ा
- गलन्ती—स्त्री॰—-—-—छोटा घड़ा जिसकी पेंदी में छेद करके देव मूर्ति पर टांग देते है, जिससे कि उस छेद के बराबर जल टपकता रहता हैं
- गलिः—पुं॰—-—गडि, डस्य लः, गल् - इन वा—हृष्ट पुष्ट परन्तु मट्ठा बैल
- गलित—भू॰ क॰ कृ॰—-—गल् - क्त—टपका हुआ, नीचे गिरा हुआ
- गलित—भू॰ क॰ कृ॰—-—-—पिघला हुआ
- गलित—भू॰ क॰ कृ॰—-—-—रिसा हुआ, बहता हुआ
- गलित—भू॰ क॰ कृ॰—-—-—नष्ट, ओझल, वञ्चित
- गलित—भू॰ क॰ कृ॰—-—-—बंधन-रहित, ढीला
- गलित—भू॰ क॰ कृ॰—-—-—खाली हुआ, चू चू कर जो खाली हो गया हो
- गलित—भू॰ क॰ कृ॰—-—-—छाना हुआ
- गलित—भू॰ क॰ कृ॰—-—-—क्षीण, निर्बल किया हुआ
- गलितकुष्ठम्—नपुं॰—गलित-कुष्ठम्—-—बढ़ा हुआ या असाध्य कोढ़ जब कि हाथ पैर की अंगुलियाँ भी गल कर गिर जाती है
- गलितदन्त—वि॰—गलित-दन्त—-—दन्तहीन
- गलितनयन—वि॰—गलित-नयन—-—जिसकी आँखों में देखने की शक्ति न रहे, अंधा
- गलितकः—पुं॰—-—गलित इव कायति - कै - क—एक प्रकार का नृत्य
- गलेगण्डः—पुं॰—-—अलुक् स॰ त॰—एक पक्षी जिसके गले से मांस की थैली सी लटकती रहती है
- गल्भ्—भ्वा॰ आ॰ <गल्भते>, <गल्भित>—-—-—साहसी या विश्वस्त होना
- प्रगल्भ्—भ्वा॰ आ॰—प्र-गल्भ्—-—साहसी या आत्मविश्वासी होना
- गल्भ—वि॰—-—गल्भ् - अच्—साहसी आत्मविश्वासी, जीवट का
- गल्या—स्त्री॰—-—गलानां कण्ठानां समूहः - गल् - यत् - टाप्—कण्ठों का समूह
- गल्लः—पुं॰—-—गल् - ल—गाल, विशेषकर मुख के दोनों किनारों का पार्श्ववर्ती गाल
- गल्लचातुरी—स्त्री॰—गल्ल-चातुरी—-—गाल के नीचे रखा जाने वाला छोटा गोल तकिया
- गल्लकः—पुं॰—-—गल् - क्विप्, = गल्, तं लाति ला - क, ततः स्वार्थे कन्—शराब का गिलास
- गल्लकः—पुं॰—-—-—पुखराज, नीलमणि
- गल्लर्कः—पुं॰—-—-—मदिरा पीने का प्याला
- गल्वर्कः—पुं॰—-—गलुर्मणिभेदः तस्य अर्को दीप्तिरिव - ब॰ स॰—स्फटिक
- गल्वर्कः—पुं॰—-—-—वैदुर्यमणि
- गल्वर्कः—पुं॰—-—-—कटोरा, शराब पीने का गिलास
- गल्ह्—भ्वा॰ आ॰ <गल्हते>, <गल्हित>—-—-—कलंक लगाना, निन्दा करना
- गव—पुं॰—-—-—कुछ समासों, विशेषकर स्वरों से आरम्भ होने वाले शब्दों के आरम्भ में ‘गो’ शब्द का स्थानापन्न पर्याय
- गवाक्षः—पुं॰—गव-अक्षः—-—रोशनदान, झरोखा
- गवाक्षजालम्—नपुं॰—गव-अक्ष-जालम्—-—जाली, झिलमिली
- गवाक्षित—वि॰—गव-अक्षित—-—खिड़कियों वाला
- गवाग्रम्—नपुं॰—गव-अग्रम्—-—गौंवों का झुण्ड
- गवादनम्—नपुं॰—गव-अदनम्—-—चरागाह, गोचरभूमि
- गवादनी—स्त्री॰—गव-अदनी—-—चरागाह
- गवदनी—स्त्री॰—गव-अदनी—-—खोर, नांद जिसमें पशुओं के खाने के लिए घास रका जाता हैं
- गवाधिका—स्त्री॰—गव-अधिका—-—लाख
- गवार्ह—वि॰—गव-अर्ह—-—गाय के मूल्य का
- गवाविकम्—नपुं॰—गव-अविकम्—-—गाय और भेड़े
- गवाशनः—पुं॰—गव-अशनः—-—मोची
- गवाशनः—पुं॰—गव-अशनः—-—जाति से बहिष्कृत
- गवाश्वम्—नपुं॰—गव-अश्वम्—-—बैल और घोड़े
- गवाकृति—वि॰—गव-आकृति—-—गाय की शक्ल वाला
- गवाह्निकम्—नपुं॰—गव-आह्निकम्—-—प्रतिदिन गाय को चारा देने की नाप
- गवेन्द्रः—पुं॰—गव-इन्द्रः—-—गौओं का स्वामी
- गवेन्द्रः—पुं॰—गव-इन्द्रः—-—बढ़िया बैल
- गवेश्वरः—पुं॰—गव-ईश्वरः—-—गौओं का स्वामी
- गवेशः—पुं॰—गव-ईशः—-—गौओं का स्वामी
- गवोद्धः—पुं॰—गव-उद्धः—-—सर्वोत्तम गाय या बैल
- गवयः—पुं॰—-—गो - अय् - अच्—बैल की जाति
- गवालूकः—पुं॰—-—गवाय शब्दाय अलति - गव - अल् - ऊकञ् = गवय—
- गविनी—स्त्री॰—-—गो - इनि - ङीप्—गोओं का झुंड या लहंडा
- गवेडुः—पुं॰—-—-—पशुओं को खिलाने चारा , घास
- गवेधुः—पुं॰—-—-—पशुओं को खिलाने चारा , घास
- गवेधुका—स्त्री॰—-—-—पशुओं को खिलाने चारा , घास
- गवेरुकम्—नपुं॰—-—-—गेरु
- गवेष्—भ्वा॰ आ॰, चुरा॰ पर॰ <गवेषते>, <गवेषयति>, <गवेषित>—-—-—ढूँढना, खोजना, तलाश करना, पूछताछ करना
- गवेष्—भ्वा॰ आ॰, चुरा॰ पर॰ <गवेषते>, <गवेषयति>, <गवेषित>—-—-—प्रयत्न करना, उत्कट इच्छा करना, प्रबल उद्योग करना
- गवेष—वि॰—-—गवेष् - अच्—खोजने वाला
- गवेषः—पुं॰—-—-—खोज, पूछताछ
- गवेषणम्—नपुं॰—-—गवेष् - ल्युट्, युच् - टाप् वा—किसी वस्तु की खोज या तलाश
- गवेषणा—स्त्री॰—-—गवेष् - ल्युट्, युच् - टाप् वा—किसी वस्तु की खोज या तलाश
- गवेषित—वि॰—-—गवेष् - क्त—खोजा हुआ, ढूँढा हुआ, तलाश किया हुआ
- गव्य—वि॰—-—गो - यत्—गौ आदि पशुओं से युक्त
- गव्य—वि॰—-—-—गौओं से प्राप्त दूध, दही आदि
- गव्य—वि॰—-—-—पशुओं के लिए उपयुक्त
- गव्यम्—नपुं॰—-—-—गौओं की हेड़, मवेशी
- गव्यम्—नपुं॰—-—-—गोचरभूमि
- गव्यम्—नपुं॰—-—-—गाय का दूध
- गव्यम्—नपुं॰—-—-—धनुष की डोरी
- गव्यम्—नपुं॰—-—-—रंगीन बनाने की सामग्री, पीला रंग
- गव्य़ूतम्—नपुं॰—-—गोः यूतिः पृषो॰—एक कोस या दो मील की दूरी की माप
- गव्य़ूतम्—नपुं॰—-—-—दो कोस के बराबर दूरी की माप
- गव्य़ूतिः—स्त्री॰—-—गोः यूतिः पृषो॰—एक कोस या दो मील की दूरी की माप
- गव्य़ूतिः—स्त्री॰—-—-—दो कोस के बराबर दूरी की माप
- गह्—चुरा॰ उभ॰ <गाहयति>, <गाहयते>—-—-—सघन या सांद्र होना
- गह्—चुरा॰ उभ॰ <गाहयति>, <गाहयते>—-—-—गहराई तक पहुँचना
- गहन—वि॰—-—गह् - ल्युट्—गहरा, सघन, सांद्र
- गहन—वि॰—-—-—अभेद्य, अप्रवेश्य, अलंघ्य, दुर्गम
- गहन—वि॰—-—-—दुर्बोध, अव्याख्येय, रहस्यपूर्ण
- गहन—वि॰—-—-—कठोर, कठिन, पीडाकर, कष्टकर
- गहन—वि॰—-—-—गहरा किया हुआ, तीव्र किया हुआ
- गहनम्—नपुं॰—-—-—गह्वर, गहराई
- गहनम्—नपुं॰—-—-—जंगली झाड़ी या झुरमुट, घोर या अप्रवेश्य जंगल
- गहनम्—नपुं॰—-—-—छिपने का स्थान
- गहनम्—नपुं॰—-—-—गुफा
- गहनम्—नपुं॰—-—-—पीड़ा, दुःख
- गह्वर—वि॰—-—गह् - वरच्—गहरा, दुस्तर
- गह्वरम्—नपुं॰—-—-—रसातल, अथाह खाई
- गह्वरम्—नपुं॰—-—-—झाड़ी या झुरमुट, जंगल
- गह्वरम्—नपुं॰—-—-—गुफा, कन्दरा
- गह्वरम्—नपुं॰—-—-—दुर्गम् स्थान
- गह्वरम्—नपुं॰—-—-—छिपने की जगह
- गह्वरम्—नपुं॰—-—-—पहेली
- गह्वरम्—नपुं॰—-—-—पाखंड
- गह्वरम्—नपुं॰—-—-—रोना, चिल्लाना
- गह्वरः—पुं॰—-—-—लतामण्डप, निकुंज
- गह्वरी—स्त्री॰—-—-—गुफा, कन्दरा, खोह
- गा—स्त्री॰—-—गै - डा—गाना, श्लोक
- गाङ्ग—वि॰—-—गंगा - अण्—गंगा में या गंगा पर होने वाला
- गाङ्ग—वि॰—-—-—गंगा से प्राप्त या गंगा से आया हुआ
- गाङ्गः—पुं॰—-—-—भीष्म का विशेषण
- गाङ्गः—पुं॰—-—-—कार्तिकेय की उपाधि
- गाङ्गम्—नपुं॰—-—-—विशेष प्रकार का वर्षा का जल
- गाङ्गम्—नपुं॰—-—-— सोना
- गाङ्गटः—पुं॰—-—गाङ्ग - अट् - अच्, शक॰ पररुप, पृषो॰—झींगा मछली या जलवृश्चिक
- गाङ्गटेयः—पुं॰—-—गाङ्ग - अट् - अच्, शक॰ पररुप, पृषो॰—झींगा मछली या जलवृश्चिक
- गाङ्गायनि—पुं॰—-—गङ्गा - फिञ्—भीष्म या कार्तिकेय का नाम
- गाङ्गेय—वि॰—-—गङ्गा - ढक्—गंगा पर या गंगा में होने वाला
- गाङ्गेयः—पुं॰—-—-—भीष्म या कार्तिकेय का नाम
- गाङ्गेयम्—नपुं॰—-—-— सोना
- गाजरम्—नपुं॰—-—गाजं मदम् राति, गाज - रा - क—गाजर
- गञ्जिकायः—पुं॰—-—-—बत्तख
- गाढ—भू॰ क॰ कृ॰—-—गाह् - क्त—डुबकी लगाया हुआ, गोता लगाया हुआ, स्नान किया हुआ, गहरा घुसा हुआ
- गाढ—भू॰ क॰ कृ॰—-—-—बार-बार डुबकी लगाया हुआ, आश्रित, सघन या घना बसा हुआ
- गाढ—भू॰ क॰ कृ॰—-—-—अत्यंत दबा हुआ, कस कर खींचा हुआ, पक्का मुंदा हुआ, कसा हुआ
- गाढ—भू॰ क॰ कृ॰—-—-—सघन, सान्द्र
- गाढ—भू॰ क॰ कृ॰—-—-—गहरा, दुस्तर
- गाढ—भू॰ क॰ कृ॰—-—-—बलवान, प्रचंड, अत्यधिक, तीव्र
- गाढम्—अव्य॰—-—-—ध्यानपूर्वक, जोर से, अत्यधिकता के साथ, भरपूर, प्रचण्डता से, बलपूर्वक
- गाढमुष्टि—वि॰—गाढ-मुष्टि—-—बन्द मुट्ठी वाला, लोलुप, कंजूस
- गाढमुष्टिः—पुं॰—गाढ-मुष्टिः—-—तलवार
- गाणपत—वि॰—-—गणपति - अण्—किसी दल के नेता से संबंध रखने वाला
- गाणपत—वि॰—-—-—गणेश से संबन्ध रखने वाला
- गाणपत्यः—पुं॰—-—गणपति - यक्—गणेश की पूजा करने वाला
- गाणपत्यम्—नपुं॰—-—-—गणेश की पूजा
- गाणपत्यम्—नपुं॰—-—-—किसी दल का नेतृत्व, चौधरात, नेतृत्व
- गाणिक्यम्—नपुं॰—-—गणिकानां समूहः - यञ्—रंडियों का समूह
- गाणेशः—पुं॰—-—गणेश - अण्—गणेश की पूजा करने वाला
- गाण्डिवः—पुं॰—-—गाण्डिरस्त्यस्य संज्ञायां - व पूर्वपददीर्घो विकल्पेन—अर्जुन का बाण
- गाण्डिवः—पुं॰—-—-—धनुष
- गाण्डीवः—पुं॰—-—गाण्डिरस्त्यस्य संज्ञायां - व पूर्वपददीर्घो विकल्पेन—अर्जुन का बाण
- गाण्डीवः—पुं॰—-—-—धनुष
- गाण्डिवधन्वन्—पुं॰—गाण्डिव-धन्वन्—-—अर्जुन का विशेषण
- गाण्डिवम्—नपुं॰—-—गाण्डिरस्त्यस्य संज्ञायां - व पूर्वपददीर्घो विकल्पेन—अर्जुन का बाण
- गाण्डिवम्—नपुं॰—-—-—धनुष
- गाण्डीवम्—नपुं॰—-—गाण्डिरस्त्यस्य संज्ञायां - व पूर्वपददीर्घो विकल्पेन—अर्जुन का बाण
- गाण्डीवम्—नपुं॰—-—-—धनुष
- गाण्डिवधन्वन्—पुं॰—गाण्डिवम्-धन्वन्—-—अर्जुन का विशेषण
- गाण्डीविन्—पुं॰—-—गाण्डीव - इनि—अर्जुन का विशेषण, तृतीय पांडव राजकुमार
- गातागतिक—वि॰—-—गतागत - ठक्—जाने आने के कारण उत्पन्न
- गतानुगतिक—वि॰—-—गतानुगत - ठक्—अंधानुकरण से अथवा पुरानी लकीर का फकीर बनने से उत्पन्न
- गातुः—पुं॰—-—गै - तुन्—गीत
- गातुः—पुं॰—-—-—गाने वाला
- गातुः—पुं॰—-—-—गंधर्व
- गातुः—पुं॰—-—-—कोयल
- गातुः—पुं॰—-—-—भौंरा
- गातृ—पुं॰—-—-—गवैया
- गातृ—पुं॰—-—-—गंधर्व
- गात्रम्—नपुं॰—-—गै - त्रन्, गातुरिदं वा, अण्—शरीर
- गात्रम्—नपुं॰—-—-—शरीर का अंग या अवयव
- गात्रम्—नपुं॰—-—-—हाथी के अगले पैर का ऊपरी भाग
- गात्रानुलेपनी—स्त्री॰—गात्रम्-अनुलेपनी—-—उबटन
- गात्रावरणम्—नपुं॰—गात्रम्-आवरणम्—-—ढाल
- गात्रोत्सादनम्—नपुं॰—गात्रम्-उत्सादनम्—-—सुगन्धित पदार्थों से शरीर को साफ करना
- गात्रकर्षण—वि॰—गात्रम्-कर्षण—-—शरीर को कृश या दुर्बल बनाने वाला
- गात्रमार्जनी—स्त्री॰—गात्रम्-मार्जनी—-—तौलिया
- गात्रयष्टिः—स्त्री॰—गात्रम्-यष्टिः—-—दुबला पतला शरीर
- गात्ररुहम्—नपुं॰—गात्रम्-रुहम्—-—रोंगटे, बाल
- गात्रलता—स्त्री॰—गात्रम्-लता—-—दुबला पतला और सुकुमार शरीर, इकहरा बदन
- गात्रसङ्कोचिन्—पुं॰—गात्रम्-सङ्कोचिन्—-—झाऊ चूहा, साही
- गात्रसम्प्लवः—पुं॰—गात्रम्-सम्प्लवः—-—छोटा पक्षी, गोताखोर
- गाथः—पुं॰—-—गै - थन्—गीत, भजन
- गाथकः—पुं॰—-—गै - थकन्—संगीतवेत्ता, गवैया
- गाथकः—पुं॰—-—-—पुराणों अथवा धार्मिक काव्यों का लय के साथ गायन करने वाला
- गाथिकः—पुं॰—-—गै - थकन्, गाथ - ठन्—संगीतवेत्ता, गवैया
- गाथिकः—पुं॰—-—-—पुराणों अथवा धार्मिक काव्यों का लय के साथ गायन करने वाला
- गाथा—स्त्री॰—-—गाथ - टाप्—छन्द
- गाथा—स्त्री॰—-—-—धार्मिक श्लोक या छन्द जो वेदों से संबंध न रखता हो
- गाथा—स्त्री॰—-—-—श्लोक, गीत
- गाथा—स्त्री॰—-—-—एक प्राकृत बोली
- गाथाकारः—पुं॰—गाथा-कारः—-—प्राकृत काव्यकार
- गाथिका—स्त्री॰—-—गाथा - कन् - टाप्, इत्वम्—गीत, श्लोक
- गाध्—भ्वा॰ आ॰ <गाधते>, <गाधित>—-—-—खड़ा होना, ठहरना, रहना
- गाध्—भ्वा॰ आ॰ <गाधते>, <गाधित>—-—-— कूच करना, गोता लगाना, डुबकी लगाना
- गाध्—भ्वा॰ आ॰ <गाधते>, <गाधित>—-—-—खोजना, तलाश करना, पूछताछ करना
- गाध्—भ्वा॰ आ॰ <गाधते>, <गाधित>—-—-—संकलित कर्ना, गूथना या धागे में पिरोना
- गाध—वि॰—-—गाध् - घञ्—तरणीय, जो बहुत ठहरा न हो, उथला
- गाधम्—नपुं॰—-—-—उथली या छिछली जगह, घाट
- गाधम्—नपुं॰—-—-—स्थान, जगह
- गाधम्—नपुं॰—-—-—लालसा, अतितृष्णा
- गाधम्—नपुं॰—-—-—पेंदी
- गाधिः—पुं॰—-—गाध् - इन्—विश्वामित्र के पिता का नाम
- गाधिन्—पुं॰—-—गाध् - इन्, गाध - इनि—विश्वामित्र के पिता का नाम
- गाधिजः—पुं॰—गाधि-जः—-—विश्वामित्र का विशेषण
- गाधिनन्दनः—पुं॰—गाधि-नन्दनः—-—विश्वामित्र का विशेषण
- गाधिपुत्रः—पुं॰—गाधि-पुत्रः—-—विश्वामित्र का विशेषण
- गाधिनगरम्—नपुं॰—गाधि-नगरम्—-—कान्यकुब्ज का विशेषण
- गाधिपुरम्—नपुं॰—गाधि-पुरम्—-—कान्यकुब्ज का विशेषण
- गाधेयः—पुं॰—-—गाधि - ढक्—विश्वामित्र की उपाधि
- गानम्—नपुं॰—-—गै - ल्युट्—गाना, भजन, गीत
- गान्त्री—स्त्री॰—-—गन्त्री - अण् - ङीप्—बैलगाड़ी
- गान्दिनी—स्त्री॰—-—गो - दा - णिनि, पृषो॰—गंगा का विशेषण
- गान्दिनी—स्त्री॰—-—-—काशी की एक राजकुमारी, स्वफल्क की पत्नी तथा अक्रूर की माता
- गान्दिनीसुतः—पुं॰—गान्दिनी-सुतः—-—भीष्म
- गान्दिनीसुतः—पुं॰—गान्दिनी-सुतः—-—कार्तिकेय तथा
- गान्दिनीसुतः—पुं॰—गान्दिनी-सुतः—-—अक्रूर का विशेषण
- गान्धर्व—वि॰—-—गन्धर्वस्येदम् - अण्—गंधर्वों से संबंध रखने वाला
- गान्धर्वः—पुं॰—-—-—गायक
- गान्धर्वः—पुं॰—-—-—दिव्य गवैया
- गान्धर्वः—पुं॰—-—-—आठ प्रकार के विवाहों में से एक
- गान्धर्वः—पुं॰—-—-—सामवेद का उपवेद जो संगीत से संबंध रखता हैं
- गान्धर्वः—पुं॰—-—-—घोड़ा
- गान्धर्वम्—नपुं॰—-—-—गंधर्वों की कला
- गान्धर्वचित्त—वि॰—गान्धर्व-चित्त—-—जिसके मन पर गन्धर्व ने अधिकार कर लिया है
- गान्धर्वशाला—स्त्री॰—गान्धर्व-शाला—-—संगीतभवन, गायनालय
- गान्धर्वकः—पुं॰—-—गांधर्व - कन्—गवैया
- गान्धर्विका—स्त्री॰—-—गांधर्व - कन्, गन्धर्व - ठक्—गवैया
- गान्धारः—पुं॰—-—गन्ध - अण् = गान्ध - ऋ - अण्—भारतीय सरगम के सात प्रधान स्वरों में तीसरा
- गान्धारः—पुं॰—-—-—सिंदूर
- गान्धारः—पुं॰—-—-—भारत और पर्शिया के बीच का देश, वर्तमान कंधार
- गान्धारः—पुं॰—-—-—उस देश का नागरिक या शासक
- गान्धारिः—पुं॰—-—गान्ध - ऋ - इन्—शकुनि का विशेषण, दुर्योधन का मामा
- गान्धारी—स्त्री॰—-—गान्धारस्यापत्यम् - इञ्—गांधार के राजा सुबल की पुत्री तथा धृतराष्ट्र की पत्नी
- गान्धारेयः—पुं॰—-—गान्धार्या अपत्यम् - ढक्—दुर्योधन का विशेषण
- गान्धिकः—पुं॰—-—गन्ध - ठक्—सुगन्धित द्रव्यों का विक्रेता, गंधी
- गान्धिकः—पुं॰—-—-—लिपिकार, करणिक
- गान्धिकम्—नपुं॰—-—-—सुगन्धित द्रव्य
- गामिन्—वि॰—-—गम् - णिनि—जाने वाला, घूमने वाला, सैर करने वाला
- गामिन्—वि॰—-—-—सवारी करने वाला
- द्विरत्गामिन्—वि॰—द्विरद्-गामिन्—-—
- गामिन्—वि॰—-—-—जाने वाला, पहुँचने वाला, लागू करने वाला, संबंध रखने वाल
- गामिन्—वि॰—-—-—नेतृत्व करने वाला, पहुँचने वाला, घटने वाला
- गामिन्—वि॰—-—-—संयुक्त
- गामिन्—वि॰—-—-—देने वाला, सौंपने वाला
- गाम्भीर्यम्—नपुं॰—-—गम्भीर - ष्यञ्—गहराई, थाह
- गाम्भीर्यम्—नपुं॰—-—-—गहराई, अगाधता
- गायः—पुं॰—-—गै - घञ्—गाना, भजन, गीत
- गायकः—पुं॰—-—गै - ण्वुल्—गवैया, संगीतवेत्ता
- गायत्रः—पुं॰—-—गायत्री - अण्—गीत, सूक्त
- गायत्रम्—नपुं॰—-—गायत्री - अण्—गीत, सूक्त
- गायत्री—स्त्री॰—-—गायन्तं त्रायते - गायत् - त्रा - क - ङीप्—२४ मात्राओं का एक वैदिक छान्द
- गायत्री—स्त्री॰—-—-—संध्या के समय प्रत्येक ब्राह्मण के द्वारा बोला जाने वाला गुरु मंत्र;
- गायत्रीम्—नपुं॰—-—-—गायत्री छन्द में रचित तथा सस्वर उच्चरित सूक्त
- गायत्रिन्—वि॰—-—गायत्र - इनि—वेद सूक्तों का गायक, विशेषकर सामवेद के मंत्रों का गायन करने वाला
- गायनः—पुं॰—-—गै - ल्युट्—गवैया
- गायनम्—नपुं॰—-—-—गाना, गीत
- गायनम्—नपुं॰—-—-—गायन विद्या से अपनी आजीविका चलाने वाला
- गारुड—वि॰—-—गरुडस्येदम् - अण्—गरुड़ की शक्ल का बना हुआ
- गारुड—वि॰—-—-—गरुड़ से प्राप्त या गरुड़ से संबंध रखने वाला
- गारुडः—पुं॰—-—-—पन्ना
- गारुडः—पुं॰—-—-—साँपों के विष को उतारने का मंत्र
- गारुडः—पुं॰—-—-—गरुड द्वारा अधिष्ठित अस्त्र
- गारुडः—पुं॰—-—-—सोना
- गारुडम्—नपुं॰—-—-—पन्ना
- गारुडम्—नपुं॰—-—-—साँपों के विष को उतारने का मंत्र
- गारुडम्—नपुं॰—-—-—गरुड द्वारा अधिष्ठित अस्त्र
- गारुडम्—नपुं॰—-—-—सोना
- गारुडिकः—पुं॰—-—गारुड - ठक्—जादू मंत्र करने वाला, ऐन्द्रजालिक, जहरमोरा या विषनाशक ओषधियों का विक्रेता
- गारुत्मत—वि॰—-—गरुत्मान् अस्त्यस्य - अण्—गरुड की आकृति का बना हुआ
- गारुत्मत—वि॰—-—-—गरुडास्त्र
- गारुत्मतम्—नपुं॰—-—-—पन्ना
- गादर्भ—वि॰—-—गदर्भस्येदम् - अण्—गधे से प्राप्त या गधे से संबंध, गदर्भसंबंधी
- गाद्धर्यम्—नपुं॰—-—गर्द्ध - ष्यञ्—लालच
- गार्ध्र—वि॰—-—गृध्रस्यायम् - अण्—गिद्ध से उत्पन्न
- गार्ध्रः—पुं॰—-—-—लालच
- गार्ध्रः—पुं॰—-—-—बाण
- गार्ध्रपक्षः—पुं॰—गार्ध्र-पक्षः—-—गिद्ध के परों से युक्त बाण
- गार्ध्रवासस्—पुं॰—गार्ध्र-वासस्—-—गिद्ध के परों से युक्त बाण
- गार्भ—वि॰—-—गर्भे साधु - अण् ठक् वा—गर्भाशय संबंधी, भ्रूणविषयक
- गार्भ—वि॰—-—-—गर्भावस्था संबंधी
- गार्भिक—वि॰—-—गर्भे साधु - अण् ठक् वा—गर्भाशय संबंधी, भ्रूणविषयक
- गार्भिक—वि॰—-—-—गर्भावस्था संबंधी
- गार्भिणम्—नपुं॰—-—गर्भिणीनां समूहः भिक्षा अण्—गर्भवती स्त्रियों का समूह
- गार्भिण्यम्—नपुं॰—-—गर्भिणीनां समूहः भिक्षा अण्—गर्भवती स्त्रियों का समूह
- गार्हपतम्—नपुं॰—-—गृहपतेरिदम् - अण्—गृहपति का पद और प्रतिष्ठा
- गार्हपत्याः—पुं॰—-—गृहपतिना नित्यं संयुक्तः, संज्ञायां त्र्य—गृहपति के द्वारा स्थायी रुप से रखी जाने वाली तीन यज्ञाग्नियों में से एक, यह अग्नि पिता से प्राप्त की जाती हैं तथा सन्तान को सौंप को दी जाती हैं, इसी से यज्ञ में अग्न्याधान किया जाता हैं
- गार्हपत्याः—पुं॰—-—-—वह स्थान जहाँ यह अग्नि रखी जाती है
- गार्हपत्यम्—नपुं॰—-—-—एक प्रकार का प्रशासन, गृहपति का पद और प्रतिष्ठा
- गार्हमेध—वि॰—-—गृहमेधस्येदम् - अण्—गृहपति के लिए योग्य या समुचित
- गार्हमेधः—पुं॰—-—-—पाँच यज्ञ जिसका अनुष्ठान गृहपति को नित्य करना होता है
- गार्हस्थ्यम्—नपुं॰—-—गृहस्थ - ष्यञ्—गृहस्थ पुरुष के जीवन की अवस्था या क्रम, घरेलू कामकाज, गृहस्थी
- गार्हस्थ्यम्—नपुं॰—-—-—गृहपति के द्वारा नित्य अनुष्ठेय पंचयज्ञ
- गालनम्—नपुं॰—-—गल् - णिच् - ल्युट्—छन कर रिसना
- गालनम्—नपुं॰—-—-—प्रचंड ताप से गल जाना, गलना, पिघलना
- गालवः—पुं॰—-—गल् - घञ्, तं वाति - वा - क—लोघ्र वृक्ष
- गालवः—पुं॰—-—-—एक प्रकार का आवनूस
- गालवः—पुं॰—-—-—एक ऋषि, विश्वामित्र का शिष्य
- गालिः—पुं॰—-—गल - इन्—अपशब्द, दुर्वचन, गाली
- गालित—वि॰—-—गल् - णिच् - क्त—छाना हुआ
- गालित—वि॰—-—-—खींचा हुआ
- गालित—वि॰—-—-—पिघलाया हुआ, ताप से लगाया हुआ
- गालोड्यम्—नपुं॰—-—गलोड्य - अण्—कमल का बीज
- गावल्गणिः—पुं॰—-—गवल्गण - इञ्—संजय का विशेषण, गवल्गण का पुत्र
- गाह्—भ्वा॰ आ॰ <गाहते>, <गाढ या गाहित>—-—-—डुबकी लगाना, गोता लगाना, स्नान करना, डुबोना
- गाह्—भ्वा॰ आ॰ <गाहते>, <गाढ या गाहित>—-—-—संशयो में डुबा हुआ या संशयालु
- गाह्—भ्वा॰ आ॰ <गाहते>, <गाढ या गाहित>—-—-—गहराई में घुसना, बैठना, घूमना-फिरना
- गाह्—भ्वा॰ आ॰ <गाहते>, <गाढ या गाहित>—-—-—आलोडित करना, क्षुब्ध करना, हिचकोले देना, बिलोना
- गाह्—भ्वा॰ आ॰ <गाहते>, <गाढ या गाहित>—-—-—लीन होना
- गाह्—भ्वा॰ आ॰ <गाहते>, <गाढ या गाहित>—-—-—अपनेआप को छिपाना
- गाह्—भ्वा॰ आ॰ <गाहते>, <गाढ या गाहित>—-—-—नष्ट करना
- अवगाह—भ्वा॰ आ॰ —अव-गाह—-—डुबकी लगाना, स्नान करना, गोता लगाना
- अवगाह—भ्वा॰ आ॰ —अव-गाह—-—घुसना, पैठना, पूरी तरह व्याप्त होना
- उपगाह—भ्वा॰ आ॰ —उप-गाह—-—घुसना, प्रविष्ट होना
- धिगाह—भ्वा॰ आ॰ —धि-गाह—-—गोता लगाना, डुबकी लगाना, स्नान करना
- धिगाह—भ्वा॰ आ॰ —धि-गाह—-—प्रविष्ट होना, पैठना, व्याप्त होना
- धिगाह—भ्वा॰ आ॰ —धि-गाह—-—आन्दोलित करना, विक्षुब्ध करना
- संगाह—भ्वा॰ आ॰ —सम्-गाह—-—घुसना, अन्दर जाना, पैठना
- गाहः—पुं॰—-—गाह् - घञ्—डुबकी लगाना, गोता लगाना, स्नान करना
- गाहः—पुं॰—-—-—गहराई, आभ्यन्तर प्रदेश
- गाहनम्—नपुं॰—-—गाह् - ल्युट्—डुबकी लगाना, गोता लगाना, स्नान करना
- गाहित—वि॰—-—गाह् - क्त—स्नान किया हुआ, गोता लगाया हुआ
- गाहित—वि॰—-—-—पैदा हुआ, घुसा हुआ
- गिन्दुकः—पुं॰—-— =गेन्दुकः पृषो॰—गेंद
- गिन्दुकः—पुं॰—-—-—एक वृक्ष का नाम
- गिर्—स्त्री॰—-—गृ - क्विप्—भाषण, शब्द, भाषा
- गिर्—स्त्री॰—-—-—सरस्वती का आवाहन, स्तुति, गीत
- गिर्—स्त्री॰—-—-—विद्या और वाणी की देवी सरस्वती
- गिर्देवी—स्त्री॰—गिर्-देवी—-—वाणी की देवी सरस्वती
- गिर्पतिः—पुं॰—गिर्-पतिः—-—देवताओं के गुरु वृहस्पतिः
- गिर्पतिः—पुं॰—गिर्-पतिः—-—विद्वान पुरुष
- गिर्रथाः—पुं॰—गिर्-रथाः—-—वृहस्पति
- गिर्वाणः—पुं॰—गिर्-वाणः—-—देव, देवता
- गिर्बाणः—पुं॰—गिर्-बाणः—-—देव, देवता
- गिरा—स्त्री॰—-—गिर् - क्विप् - टाप्—वाणी, बोलना, भाषा, आवाज
- गिरि—वि॰—-—गॄ - इ किच्च—श्रद्धेय, आदरणीय, पूजनीय
- गिरिः—पुं॰—-—-—पहाड़, पर्वत, उत्थापन
- गिरिः—पुं॰—-—-—विशाल चट्टान
- गिरिः—पुं॰—-—-—आँख का रोग
- गिरिः—पुं॰—-—-—संन्यासियों की की सम्मानसूचक उपाधि
- गिरिः—पुं॰—-—-—आठ की संख्या
- गिरिः—पुं॰—-—-—गेंद
- गिरिः—स्त्री॰—-—-—निगलना
- गिरिः—पुं॰—-—-—चूहा, मूसा
- गिरिन्द्रः—पुं॰—गिरि-इन्द्रः—-—ऊँचा पहाड़
- गिरिन्द्रः—पुं॰—गिरि-इन्द्रः—-—शिव का विशेषण
- गिरिन्द्रः—पुं॰—गिरि-इन्द्रः—-—हिमालय
- गिरीशः—पुं॰—गिरि-ईशः—-—हिमालय पर्वत का विशेषण
- गिरीशः—पुं॰—गिरि-ईशः—-—शिव का विशेषण
- गिरिकच्छपः—पुं॰—गिरि-कच्छपः—-—पहाड़ी कछुवा
- गिरिकण्टकः—पुं॰—गिरि-कण्टकः—-—इन्द्र का वज्र
- गिरिकदम्बः—पुं॰—गिरि-कदम्बः—-—कदंब वृक्ष की जाति
- गिरिबकः—पुं॰—गिरि-बकः—-—कदंब वृक्ष की जाति
- गिरिकन्दरः—पुं॰—गिरि-कन्दरः—-—गुफा कन्दरा
- गिरिकर्णिका—स्त्री॰—गिरि-कर्णिका—-—पृथ्वी
- गिरिकाणः—पुं॰—गिरि-काणः—-—एक आँख से अन्धा या एक आँख वाला व्यक्ति
- गिरिकाननम्—नपुं॰—गिरि-काननम्—-—पहाड़ी निकुंज
- गिरिकूटम्—नपुं॰—गिरि-कूटम्—-—पहाड़ की चोटी
- गिरिगंगा—स्त्री॰—गिरि-गंगा—-—एक नदी का नाम
- गिरिगुडः—पुं॰—गिरि-गुडः—-—गेंद
- गिरिगुहा—स्त्री॰—गिरि-गुहा—-—पहाड़ की गुफा
- गिरिचर—वि॰—गिरि-चर—-—पहाड़ पर घूमने वाला
- गिरिचरः—पुं॰—गिरि-चरः—-—चोर
- गिरिज—वि॰—गिरि-ज—-—पहाड़ पर उत्पन्न
- गिरिजम्—नपुं॰—गिरि-जम्—-—अबरक
- गिरिजम्—नपुं॰—गिरि-जम्—-—गेरु
- गिरिजम्—नपुं॰—गिरि-जम्—-—गुग्गुल
- गिरिजम्—नपुं॰—गिरि-जम्—-—शिलाजीत
- गिरिजम्—नपुं॰—गिरि-जम्—-—लोहा
- गिरिजा—स्त्री॰—गिरि-जा—-—पार्वती
- गिरिजा—स्त्री॰—गिरि-जा—-—पहाड़ी केला
- गिरिजा—स्त्री॰—गिरि-जा—-—मल्लिका लता
- गिरिजा—स्त्री॰—गिरि-जा—-—गंगा का विशेषण
- गिरितनयः—पुं॰—गिरि-तनयः—-—कार्तिकेय का विशेषण
- गिरितनयः—पुं॰—गिरि-तनयः—-—गणेश का विशेषण
- गिरिनन्दनः—पुं॰—गिरि-नन्दनः—-—कार्तिकेय का विशेषण
- गिरिनन्दनः—पुं॰—गिरि-नन्दनः—-—गणेश का विशेषण
- गिरिसुतः—पुं॰—गिरि-सुतः—-—कार्तिकेय का विशेषण
- गिरिसुतः—पुं॰—गिरि-सुतः—-—गणेश का विशेषण
- गिरिपति—पुं॰—गिरि-पति—-— शिव का विशेषण
- गिरिमलम्—नपुं॰—गिरि-मलम्—-—अबरक
- गिरिजालम्—नपुं॰—गिरि-जालम्—-—पर्वतमाला
- गिरिज्वरः—पुं॰—गिरि-ज्वरः—-—इन्द्र का वज्र
- गिरिदुर्गम्—नपुं॰—गिरि-दुर्गम्—-—पहाड़ी किला, पहाड़ पर विद्यमान दुर्ग
- गिरिद्वारम्—नपुं॰—गिरि-द्वारम्—-—पहाड़ी मार्ग
- गिरिधातुः—पुं॰—गिरि-धातुः—-—गेरु
- गिरिध्वजम्—नपुं॰—गिरि-ध्वजम्—-—इन्द्र का वज्र
- गिरिनगरम्—नपुं॰—गिरि-नगरम्—-—दक्षिनापथ में विद्यमान एक जिला
- गिरिनदी—स्त्री॰—गिरि-नदी—-—पहाड़ी नदी, छोटा चश्मा या नदी
- गिरिणद्ध—वि॰—गिरि-णद्ध—-—पहाड़ों से घिरा हुआ
- गिरिनद्ध—वि॰—गिरि-नद्ध—-—पहाड़ों से घिरा हुआ
- गिरिनन्दिनी—स्त्री॰—गिरि-नन्दिनी—-—पार्वती
- गिरिनन्दिनी—स्त्री॰—गिरि-नन्दिनी—-—गंगानदी
- गिरिनन्दिनी—स्त्री॰—गिरि-नन्दिनी—-—दरिया
- गिरिनितम्ब—वि॰—गिरि-नितम्ब—-—पहाड़ का ढलान
- गिरिणितम्ब—वि॰—गिरि-णितम्ब—-—पहाड़ का ढलान
- गिरिपीलुः—पुं॰—गिरि-पीलुः—-—एक फलदार वृक्ष फालसा
- गिरिपुष्पकम्—नपुं॰—गिरि-पुष्पकम्—-—शिलाजीत
- गिरिपृष्ठः—पुं॰—गिरि-पृष्ठः—-—पहाड़ की चोटी
- गिरिप्रपातः—पुं॰—गिरि-प्रपातः—-—पहाड़ का ढलान
- गिरिप्रस्थः—पुं॰—गिरि-प्रस्थः—-—पहाड़ की समतल भूमि
- गिरिप्रिया—स्त्री॰—गिरि-प्रिया—-—सुरा, गाय
- गिरिभिद्—पुं॰—गिरि-भिद्—-—इन्द्र का विशेषण
- गिरिभू—वि॰—गिरि-भू—-—पहाड़ पर उत्पन्न
- गिरिभू—स्त्री॰—गिरि-भू—-—गंगा का विशेषण
- गिरिभू—स्त्री॰—गिरि-भू—-—पार्वती का विशेषण
- गिरिमल्लिका—स्त्री॰—गिरि-मल्लिका—-—कुटज वृक्ष
- गिरिमानः—पुं॰—गिरि-मानः—-—हाथी, एक विशालकाय हाथी
- गिरिमृद्—पुं॰—गिरि-मृद्—-—गेरु
- गिरिमृदभवम्—नपुं॰—गिरि-मृदभवम्—-—गेरु
- गिरिराज—पुं॰—गिरि-राज—-—ऊँचा पहाड़
- गिरिराज—पुं॰—गिरि-राज—-—हिमालय का विशेषण
- गिरिराजः—पुं॰—गिरि-राजः—-—हिमालय पहाड़
- गिरिव्रजम्—नपुं॰—गिरि-व्रजम्—-—मगध मे विद्यमान एक नगर का नाम
- गिरिशालः—पुं॰—गिरि-शालः—-—एक प्रकार का पक्षी
- गिरिश्रृङ्गः—पुं॰—गिरि-श्रृङ्गः—-—गणेश का विशेषण
- गिरिश्रृङ्गम्—नपुं॰—गिरि-श्रृङ्गम्—-—पहाड़ की चोटी
- गिरिषद्—पुं॰—गिरि-षद्—-—शिव का विशेषण
- गिरिसद्—पुं॰—गिरि-सद्—-—शिव का विशेषण
- गिरिसानु—नपुं॰—गिरि-सानु—-—पठार, अधित्यका
- गिरिसारः—पुं॰—गिरि-सारः—-—लोहा
- गिरिसारः—पुं॰—गिरि-सारः—-—टीन
- गिरिसारः—पुं॰—गिरि-सारः—-—मलय पहाड़ का विशेषण
- गिरिसुतः—पुं॰—गिरि-सुतः—-—मैनाक पहाड़
- गिरिसुता—स्त्री॰—गिरि-सुता—-—पार्वती का विशेषण
- गिरिस्रवा—स्त्री॰—गिरि-स्रवा—-—पहाड़ी नदी
- गिरिकः—पुं॰—-—गिरि - कै - क—गेंद
- गिरियकः—पुं॰—-—गिरि - कै - क, गिरि - या - क - कन्—गेंद
- गिरियाकः—पुं॰—-—गिरि - कै - क, गिरि - या - क - कन्, गिरि - या - क्विप् - कन्—गेंद
- गिरिका—स्त्री॰—-—गिरि - कन् - टाप्—छोटा चूहा
- गिरिशः—पुं॰—-—गिरौ कैलासपर्वते शेते - गिरि - शी - ड बा— शिव का विशेषण
- गिल्—तुदा॰ पर॰ <गिलति>, <गिलित>—-—-—निगलना
- गिल—वि॰—-—गिल् - क—जो निगलता हैं, उदरस्थ कर लेता हैं
- गिलः—पुं॰—-—-—नींबू का वृक्ष
- गिलग्राहः—पुं॰—गिलः-ग्राहः—-—मगरमच्छ, घड़ियाल
- गिलनम्—नपुं॰—-—गिल् - ल्युट्, गिल - इन्—निगलना या खा लेना
- गिलायुः—पुं॰—-—-—गले के भीतर एक कड़ी गाँठ या रसौली
- गिलित—वि॰—-—गिल् - क्त—खाया हुआ, निगला हुआ
- गिरित—वि॰—-—गिल् - क्त—खाया हुआ, निगला हुआ
- गिष्णुः—पुं॰—-—गै - इष्णुच् आद्गुणः—गवैया
- गिष्णुः—पुं॰—-—-—विशेषकर वह ब्राह्मण जो सामवेद के मंत्रों का गायन करने में सक्षम हो, सामगायक
- गेष्णुः—पुं॰—-—गै - इष्णुच् आद्गुणः—गवैया
- गेष्णुः—पुं॰—-—-—विशेषकर वह ब्राह्मण जो सामवेद के मंत्रों का गायन करने में सक्षम हो, सामगायक
- गीत—भू॰ कृ॰ क॰—-—गै - क्त—गाया हुआ, अलापा हुआ
- गीत—भू॰ कृ॰ क॰—-—-—घोषणा किया हुआ, बतलाया हुआ, कहा हुआ
- गीतम्—नपुं॰—-—-—गाना, भजन
- गीतायनम्—नपुं॰—गीत-अयनम्—-—गाने का साधन या उपकरण अर्थात् वीणा बंसरी आदि
- गीतक्रमः—पुं॰—गीत-क्रमः—-—गीत का गानक्रम
- गीतज्ञ—वि॰—गीत-ज्ञ—-—गानकला में प्रवीण
- गीतप्रिय—वि॰—गीत-प्रिय—-—गाना बजाने का शौकीन
- गीतप्रियः—पुं॰—गीत-प्रियः—-— शिव का विशेषण
- गीतमोदिन्—पुं॰—गीत-मोदिन्—-—किन्नर
- गीतशास्त्रम्—नपुं॰—गीत-शास्त्रम्—-—संगीत विद्या
- गीतकम्—नपुं॰—-—गीत - कन्—स्तोत्र, भजन
- गीता—स्त्री॰—-—गै - क्त - टाप्—संस्कृत पद्य में लिखे गये कुछ धार्मिकग्रंथ जो विशेष रुप से धार्मिक और आध्यात्मिक सिद्धांतों का प्रतिपादन करता हैं
- गीतिः—स्त्री॰—-—गै - क्तिन्—गीत, गाना
- गीतिः—स्त्री॰—-—-—एक छन्द का नाम
- गीतिका—स्त्री॰—-—गीत - कन् - टाप्—छोटा गीत
- गीतिका—स्त्री॰—-—-—गाना
- गीतिन्—वि॰—-—गीत - इनि—जो गाकर सस्वर पाठ करता है
- गीर्ण—वि॰—-—गृ - क्त—निगला हुआ, खाया हुआ
- गीर्ण—वि॰—-—-—वर्णन किया गया, स्तुति किया गया
- गीर्णिः—स्त्री॰—-—गृ - क्तिन्—प्रशंसा
- गीर्णिः—स्त्री॰—-—-—यश
- गीर्णिः—स्त्री॰—-—-—खा लेना, निगल जाना
- गु—तुदा॰ पर॰<गुवति>, <गून>—-—-—विष्ठा उत्सर्ग करना, मलोत्सर्ग करना, पखाना करना
- गुग्गुलः—पुं॰—-—गज् - क्विप् = गक् रोगः ततो गुडति रक्षति - गुक् - गुड् - क डस्य लकार—एक प्रकार का सुगंधित गोंद, राल, गुग्गल
- गुग्गुलुः—पुं॰—-—गज् - क्विप् = गक् रोगः ततो गुडति रक्षति - गुक् - गुड् - कु, डस्य लकार—एक प्रकार का सुगंधित गोंद, राल, गुग्गल
- गुच्छः—पुं॰—-—गु - क्विप् = गुत् तं, श्यति -गुत् - शो - क—बंडल, गुच्छा
- गुच्छः—पुं॰—-—-—फूलों का गुच्छा, गुलदस्ता, झुंड
- गुच्छः—पुं॰—-—-—मयूरपंख
- गुच्छः—पुं॰—-—-—मोतियों का हार
- गुच्छः—पुं॰—-—-—बत्तीस लड़ियों का मुक्ता हार
- गुच्छार्धः—पुं॰—गुच्छ-अर्धः—-— चौबीस लड़ियों का मोतियों का हार
- गुच्छार्धः—पुं॰—गुच्छ-अर्धः—-—आधा गुच्छा
- गुच्छार्धस्—पुं॰—गुच्छ-अर्धस्—-—आधा गुच्छा
- गुच्छकणिशः—पुं॰—गुच्छ-कणिशः—-—एक प्रकार का अनाज
- गुच्छपत्रः—पुं॰—गुच्छ-पत्रः—-—ताड़ क पेड़
- गुच्छफलः—पुं॰—गुच्छ-फलः—-—अंगूर की बेल
- गुच्छफलः—पुं॰—गुच्छ-फलः—-—केले का वृक्ष
- गुच्छकः—पुं॰—-—गुच्छ - कन्—बंडल, गुच्छा
- गुच्छकः—पुं॰—-—गुच्छ - कन्—फूलों का गुच्छा, गुलदस्ता, झुंड
- गुच्छकः—पुं॰—-—गुच्छ - कन्—मयूरपंख
- गुच्छकः—पुं॰—-—गुच्छ - कन्—मोतियों का हार
- गुच्छकः—पुं॰—-—गुच्छ - कन्—बत्तीस लड़ियों का मुक्ता हार
- गुज्—भ्वा॰ पर॰ <गोजति>, महुधा भ्वा॰ पर॰ <गुञ्ज्>, <गुञ्जति>, या <गुजित>—-—-—गुं गुं शब्द करना, गुंजार करना, गूँजना, भनभनाना
- गुजः—पुं॰—-—गुज् - क—भिनभिनाना, गूँजना
- गुजः—पुं॰—-—-—कुसुमस्तवक, फूलों का गुच्छा, गुलदस्ता
- गुजकृत्—पुं॰—गुज-कृत्—-—भौंरा
- गुञ्जनम्—नपुं॰—-—गुञ्ज् - ल्युट्—मन्द-मन्द शब्द करना, भिनभिनाना, गूँजना
- गुञ्जा—स्त्री॰—-—गुञ्ज् - अच् - टाप्—गुंजा नाम की एक छोटी झड़ी जिसके लाल बेर जैसे फल लगते हैं, घूंघची
- गुञ्जा—स्त्री॰—-—-—इस झाड़ी का फल, गुंजा
- गुञ्जा—स्त्री॰—-—-—गुंजार मंद-मंद गुंजन का शब्द
- गुञ्जा—स्त्री॰—-—-—ढपड़ा, ताशा
- गुञ्जा—स्त्री॰—-—-—मधुशाला
- गुञ्जा—स्त्री॰—-—-—चिंतन, मनन
- गुञ्जिका—स्त्री॰—-—गुञ्जा - कन् - टाप्, इत्वम्—घुंघची
- गुञ्जितम्—नपुं॰—-—गुञ्ज् - क्त—भनभनाना, गुनगुनाना
- गुटिका—स्त्री॰—-—गु - टिक् = गुटि - कन् - टाप्—गोली
- गुटिका—स्त्री॰—-—गु - टिक् = गुटि - कन् - टाप्—गोल कंकड़, कोई छोटा गोल या पिंड
- गुटिका—स्त्री॰—-—गु - टिक् = गुटि - कन् - टाप्—रेशम के कीड़े का कोया
- गुटिका—स्त्री॰—-—गु - टिक् = गुटि - कन् - टाप्—मोती
- गुटिकाञ्जनम्—नपुं॰—गुटिका-अञ्जनम्—-—एकप्रकार का सूरमा
- गु्टी—स्त्री॰—-—गुटि - ङीप्—गोली
- गु्टी—स्त्री॰—-—गुटि - ङीप्—गोल कंकड़, कोई छोटा गोल या पिंड
- गु्टी—स्त्री॰—-—गुटि - ङीप्—रेशम के कीड़े का कोया
- गु्टी—स्त्री॰—-—गुटि - ङीप्—मोती
- गुडः—पुं॰—-—गुड् - क—शीरा, राब, ईख के रस से तैयार किया गया गुड़
- गुडः—पुं॰—-—गुड् - क—भेली, पिण्ड
- गुडः—पुं॰—-—गुड् - क—खेलने की गेंद
- गुडः—पुं॰—-—गुड् - क—मुंहभर, ग्रास
- गुडः—पुं॰—-—गुड् - क—हाथी का जिरहबख्तर, कवच
- गुडोदकम्—नपुं॰—गुड-उदकम्—-—गुड का शरबत
- गुडोद्बवा—स्त्री॰—गुड-उद्बवा—-—शक्कर
- गुडोदनन्—नपुं॰—गुड-ओदनन्—-—गुड डालकर उबाले हुए मीठे चावल
- गुडतृणम्—नपुं॰—गुड-तृणम्—-—गन्ना, ईख
- गुडदारुः—पुं॰—गुड-दारुः—-—गन्ना, ईख
- गुडदारुः—पुं॰—गुड-दारुः—-—गन्ना, ईख
- गुडधेनुः—स्त्री॰—गुड-धेनुः—-—दूध देने वाली गाय
- गुडपिष्टन्—नपुं॰—गुड-पिष्टन्—-—गुड के लड्डू
- गुडफलः—पुं॰—गुड-फलः—-—पीलू का पेड़
- गुडशर्करा—स्त्री॰—गुड-शर्करा—-—खांड
- गुडश्रृङ्गम्—नपुं॰—गुड-श्रृङ्गम्—-—गुड-द्रावणी, कलश
- गुडहरीतकी—स्त्री॰—गुड-हरीतकी—-—गुड में रक्खी हुई हर्रे, मुरब्बे की हर्र
- गुडकः—पुं॰—-—गुड - कन्—पिण्ड, भेली
- गुडकः—पुं॰—-—गुड - कन्—ग्रास
- गुडकः—पुं॰—-—गुड - कन्—गुड से तैयार की हुई औषधि
- गुडलम्—नपुं॰—-—गुड - ल - क—गुड से तैयार की हुई शराब
- गुडा—स्त्री॰—-—गुड - टाप्—कपास का पौधा
- गुडा—स्त्री॰—-—-—बटी, गोली
- गुडाका—स्त्री॰—-—गुड्यति इत्येवमयनं यस्य - ब॰ स॰—खांसी आदि के कारण कण्ठ से गुडगुड की आवाज निकलना
- गुडेरः—पुं॰—-—गड् - एरक्— पिण्ड, भेली
- गुडेरः—पुं॰—-—-—कौर, टुकड़ा
- गुण्—चुरा॰ उभ॰ <गुणयति>, <गुणयते>, <गुणित>—-—-—गुना करना
- गुण्—चुरा॰ उभ॰ <गुणयति>, <गुणयते>, <गुणित>—-—-—उपदेश देना
- गुण्—चुरा॰ उभ॰ <गुणयति>, <गुणयते>, <गुणित>—-—-—निमंत्रित करना
- गुणः—पुं॰—-—गुण् - अच्—धर्म, स्वभाव, दुर्गुण, सुगुण
- गुणः—पुं॰—-—-—अच्छी विशेषता, विशिष्टता, उत्कर्ष, श्रेष्ठता
- गुणः—पुं॰—-—-—गौरव
- गुणः—पुं॰—-—-—उपयोग, लाभ, भलाई
- गुणः—पुं॰—-—-—प्रभाव, परिणाम, फल, शुभ परिणाम
- गुणः—पुं॰—-—-—धागा, डोरी, रस्सी, डोर
- गुणः—पुं॰—-—-—धनुष की डोरी
- गुणः—पुं॰—-—-—वाद्ययंत्र के तार
- गुणः—पुं॰—-—-—स्नायु
- गुणः—पुं॰—-—-—खूबी, विशेषण, धर्म
- गुणः—पुं॰—-—-—विशेषता, सब पदार्थों का धर्म या लक्षण, वैशेषिक के सात पदार्थों में से एक
- गुणः—पुं॰—-—-—प्रकृति का अवयव या उपादान, समस्त रचित वस्तुओं से संबद्ध तीन गुणों में से कोई एक
- गुणः—पुं॰—-—-—बत्ती, सूत का धागा
- गुणः—पुं॰—-—-—इन्द्रियजन्य विषय
- गुणः—पुं॰—-—-—आवृत्ति, गुणा
- गुणः—पुं॰—-—-— गौण तत्त्व, आश्रित अंश
- गुणः—पुं॰—-—-—आधिक्य, बहुतायत, बहुलता
- गुणः—पुं॰—-—-—विशेषण, वाक्य में अन्याश्रित शब्द
- गुणः—पुं॰—-—-—इ, उ, ऋ तथा लृ के स्थान में ए, ओ, अर और अल्, अथवा अ, ए, ओ, अर् और अल् स्वर का आदेश
- गुणः—पुं॰—-—-—रस का अन्तर्निहितगुण, मम्मट के अनुसार - ये रस्याङ्गिनो धर्माः शौर्यादय इवात्मनः उत्कर्षहेतवस्ते स्युरचलस्थितयो गुणाः @ काव्य॰ ८
- गुणः—पुं॰—-—-—शब्द समूह का अर्थ, धर्म या गुण माना जाता हैं
- गुणः—पुं॰—-—-—कार्य करने का समुचित प्रक्रम, सही रीति
- गुणः—पुं॰—-—-—तीन गुणों से व्युत्पन्न तीन की संख्या
- गुणः—पुं॰—-—-—सम्पर्क जीवा
- गुणः—पुं॰—-—-—ज्ञानेन्द्रिय
- गुणः—पुं॰—-—-—निचले दर्जे का विशिष्ट भोजन @ मनु॰ ३।२२४, २३३
- गुणः—पुं॰—-—-—रसोइया
- गुणः—पुं॰—-—-—भीम का विशेषण
- गुणः—पुं॰—-—-—परित्याग, उत्सर्ग
- गुणातीत—वि॰—गुण-अतीत—-—सब प्रकार के गुणों से मुक्त, गुणों से परे
- गुणाधिष्ठानकम्—नपुं॰—गुण-अधिष्ठानकम्—-—वक्षस्थल का वह प्रदेश जहाँ पेटी बाँधी जाती हैं
- गुणानुरागः—पुं॰—गुण-अनुरागः—-—दूसरों के सद्गुणों की सराहना करना
- गुणानुरोधः—पुं॰—गुण-अनुरोधः—-—अच्छे गुणों की अनुरुपता या उपयुक्तता
- गुणान्वित—वि॰—गुण-अन्वित—-—अच्छे गुणों से युक्त, श्रेष्ठ, मूल्यवान, अच्छा, सर्वोत्तम
- गुणापवादः—पुं॰—गुण-अपवादः—-—गुणों का तिरस्कार, गुणों का अपकर्षण, गुणनिन्दा
- गुणाकरः—पुं॰—गुण-आकरः—-—‘गुणों की खान’ सर्वगुण सम्पन्न
- गुणाढय—वि॰—गुण-आढय—-—गुणों से समृद्ध
- गुणात्मन्—वि॰—गुण-आत्मन्—-— गुणी
- गुणाधारः—पुं॰—गुण-आधारः—-— गुणों का पात्र, सद्गुणी, गुणवान व्यक्ति
- गुणाश्रय—वि॰—गुण-आश्रय—-— गुणी, श्रेष्ठ
- गुणोत्कर्षः—पुं॰—गुण-उत्कर्षः—-— गुण की श्रेष्ठता, उत्तम गुणों का स्वामित्व
- गुणोत्कीर्तनम्—नपुं॰—गुण-उत्कीर्तनम्—-— गुणों का कीर्तन, स्रुति, प्रशस्ति
- गुणोत्कृष्ट—वि॰—गुण-उत्कृष्ट—-— गुणों में श्रेष्ठ
- गुणकर्मन्—नपुं॰—गुण-कर्मन्—-—अनावश्यक या गौण कार्य
- गुणकर्मन्—नपुं॰—गुण-कर्मन्—-—गौण या कार्य का व्यवधानसहित
- गुणकार—वि॰—गुण-कार—-—अच्छे गुणों का उत्पादक, लाभदायक, हितकर
- गुणकारः—पुं॰—गुण-कारः—-—वह रसोइया जो अतिरिक्त भोजन तैयार करता हैं
- गुणकारः—पुं॰—गुण-कारः—-—भीम का विशेषण
- गुणगानम्—नपुं॰—गुण-गानम्—-—गुणों का गान करना, स्तुति, प्रशंसा
- गुणगृघ्नु—वि॰—गुण-गृघ्नु—-—अच्छे गुणों का इच्छुक
- गुणगृघ्नु—वि॰—गुण-गृघ्नु—-—अच्छे गुणों वाला
- गुणगृह्य—वि॰—गुण-गृह्य—-—गुणों की सराहना करने वाला, गुणों से संलग्न, गुणों का प्रशंसक
- गुणग्रहीतृ—वि॰—गुण-ग्रहीतृ—-—दूसरे के गुणों का प्रशंसक
- गुणग्राहक—वि॰—गुण-ग्राहक—-—दूसरे के गुणों का प्रशंसक
- गुणग्राहिन्—वि॰—गुण-ग्राहिन्—-—दूसरे के गुणों का प्रशंसक
- गुणग्रामः—पुं॰—गुण-ग्रामः—-— गुणों का समूह
- गुणज्ञ—वि॰—गुण-ज्ञ—-— गुणों की सराहना जानने वाला, प्रशंसक
- गुणत्रयम्—नपुं॰—गुण-त्रयम्—-—प्रकृति के तीन घटक धर्म
- गुणधर्मः—पुं॰—गुण-धर्मः—-—कुछ गुणों पर आधिपत्य करने में आनुषंगिक गुण या धर्म
- गुणनिधिः—पुं॰—गुण-निधिः—-—गुणों का भंडार
- गुणप्रकर्षः—पुं॰—गुण-प्रकर्षः—-—गुणों की श्रेष्ठता, बड़ा गुण
- गुणलक्षणम्—नपुं॰—गुण-लक्षणम्—-—आन्तरिक गुण का सांकेतिक चिह्न
- गुणलयनिका—स्त्री॰—गुण-लयनिका—-—तंबू
- गुणलयनी—स्त्री॰—गुण-लयनी—-—तंबू
- गुणवचनम्—नपुं॰—गुण-वचनम्—-—विशेषण, गुण बतलाने वाला शब्द, संज्ञा शब्द जो विशेषण की भांति प्रयुक्त हो
- गुणवाचकः—पुं॰—गुण-वाचकः—-—विशेषण, गुण बतलाने वाला शब्द, संज्ञा शब्द जो विशेषण की भांति प्रयुक्त हो
- गुणविवेचना—स्त्री॰—गुण-विवेचना—-—दूसरे के गुणों का सराहना करने में विवेकबुद्धि
- गुणवृक्ष—वि॰—गुण-वृक्ष—-—एक मस्तूल या स्तंभ जिससे नौका या जहाज बांधा जाय
- गुणवृक्षकः—पुं॰—गुण-वृक्षकः—-—एक मस्तूल या स्तंभ जिससे नौका या जहाज बांधा जाय
- गुणवृत्ति—वि॰—गुण-वृत्ति—-—गौण या अप्रधान संबंध
- गुणवैशेष्यम् —नपुं॰—गुण-वैशेष्यम् —-—गुण की प्रमुखता
- गुणशब्दः—पुं॰—गुण-शब्दः—-—विशेषण
- गुणसंख्यानम्—नपुं॰—गुण-संख्यानम्—-—तीन अनिवार्य गुणों की संगणना, सांख्यदर्शन
- गुणसंगः—पुं॰—गुण-संगः—-—गुणों का साहचर्य
- गुणसंगः—पुं॰—गुण-संगः—-—सांसारिक विषयवासनाओं में आसक्ति
- गुणसंपद्—स्त्री॰—गुण-संपद्—-—गुणों की श्रेष्ठता या समृद्धि, बड़ा गुण, पूर्णता
- गुणसागरः—पुं॰—गुण-सागरः—-—गुणों का समुद्र, एक बहुत गुणी पुरुष
- गुणसागरः—पुं॰—गुण-सागरः—-—ब्रह्मा का विशेषण
- गुणकः—पुं॰—-—गुण् - ण्वुल्—हिसाब करने वाला या हिसाब लगाने वाला
- गुणकः—पुं॰—-—-—वह अंक जिससे गुणा किया जाय
- गुणनम्—नपुं॰—-—गुण् - ल्युट्—गुणा करना
- गुणनम्—नपुं॰—-—-—संगणना
- गुणनम्—नपुं॰—-—-—गुणों का वर्णन करना, गुणों को बतलाना या गिनना
- गुणनी—स्त्री॰—-—-—पुस्तकों की परीक्षा करना, अध्ययन करना, विभिन्न पाठों की मूल्य को निर्धारण करने के लिए पाण्डुलिपियों का मिलान करना
- गुणनिका—स्त्री॰—-—गुण् - युच् - कन्, इत्वम्—अध्ययन, बार-बार पढ़ना, आवृत्ति
- गुणनिका—स्त्री॰—-—-—नाच, नाचने का व्यवसाय या नृत्यकला
- गुणनिका—स्त्री॰—-—-—नाटक की प्रस्तावना
- गुणनिका—स्त्री॰—-—-—माला, हार
- गुणनिका—स्त्री॰—-—-—शून्य, अंकगणित में विशेष चिह्न जो शून्यता को प्रकट करता हैं
- गुणनीय—वि॰—-—गुण् - अनीयर—वह राशि जिसे गुणा किया जाय
- गुणनीय—वि॰—-—-—जिसको गिना जाय
- गुणनीय—वि॰—-—-—जिसे उपदेश दिया जाय
- गुणनीयः—पुं॰—-—-—अध्ययन, अभ्यास
- गुणवत्—वि॰—-—गुण् - मतुप्—गुणों से युक्त, गुणी, श्रेष्ठ
- गुणिका—स्त्री॰—-—गुण् - इन् - कन् - टाप्—रसौली, गिल्टी, सूजन
- गुणित—भू॰ क॰ कृ॰—-—गुण् - क्त—गुणा किया हुआ, एक स्थान पर ढेर लगाया हुआ, संगृहीत
- गुणित—भू॰ क॰ कृ॰—-—-—गिना हुआ
- गुणिन्—वि॰—-—गुण - इनि—गुणों से युक्त, गुणवाला, गुणी
- गुणिन्—वि॰—-—-—भला, शुभ
- गुणिन्—वि॰—-—-—किसी के गुणों से परिचित
- गुणिन्—वि॰—-—-—गुणों को धारण करने वाला
- गुणिन्—वि॰—-—-—अंशो वाला, मुख्य
- गुणीभूत—वि॰—-—अगुणी गुणीभूतः - गुण -च्वि - भू - क्त—मूल महत्वपूर्ण अर्थ से वञ्चित
- गुणीभूत—वि॰—-—-—गौण या अप्रधान बनाया हुआ
- गुणीभूत—वि॰—-—-—विशेषणों से आवेष्टित
- गुणीभूतव्यङ्ग्यम्—नपुं॰—गुणीभूत-व्यङ्ग्यम्—-—काव्य के तीन भेदों में से दूसरा - मध्यम
- गुण्ठ—चुरा॰ उभ॰ <गुण्ठयति>, <गुण्ठयते>, गुण्ठित>—-—-— परिवृत्त करना, घेरना, लपेटना, परिवेष्टित करना
- गुण्ठ—चुरा॰ उभ॰ <गुण्ठयति>, <गुण्ठयते>, गुण्ठित>—-—-—छिपाना, ढक लेना
- अवगुण्ठ—वि॰—अव-गुण्ठ—-—ढकना, परदा डालना, छिपाना, अवगुण्ठित करना
- गुण्ठनम्—नपुं॰—-—गुण्ठ - ल्युट्—छिपाना, ढकना, गोपन
- गुण्ठनम्—नपुं॰—-—गुण्ठ - ल्युट्—मलना
- गुण्ठित—वि॰—-—गुण्ठ् - क्त—घिरा हुआ, ढका हुआ
- गुण्ठित—वि॰—-—-—चूर्ण किया हुआ, पिसा हुआ, चूरा किया हो
- गुण्ड्—चुरा॰ उभ॰ <गुण्डयति>, <गुण्डित>—-—-—ढकना, छिपाना, पीसना, चूरा करना
- गुण्डकः—पुं॰—-—गुण्ड - ठन्—आटा, भोजन, चूर्ण
- गुण्डित—वि॰—-—गुण्ड् - क्त—चूर्ण किया हुआ, पिसा हुआ
- गुण्डित—वि॰—-—-—धूल से ढका हुआ
- गुण्य—वि॰—-—गुण - यत्—गुणों से युक्त
- गुण्य—वि॰—-—-—गिने जाने के योग्य, प्रशस्य
- गुण्य—वि॰—-—-—गुणा करने के योग्य, वह राशि जिसे गुना किया जाय
- गुत्सः—पुं॰—-—-—बंडल, गुच्छा
- गुत्सः—पुं॰—-—-—फूलों का गुच्छा, गुलदस्ता, झुंड
- गुत्सः—पुं॰—-—-—मयूरपंख
- गुत्सः—पुं॰—-—-—मोतियों का हार
- गुत्सः—पुं॰—-—-—बत्तीस लड़ियों का मुक्ता हार
- गुत्सकः—पुं॰—-—गुध् - स - कन्—गट्ठर, गुच्छ
- गुत्सकः—पुं॰—-—-—गुलदस्ता
- गुत्सकः—पुं॰—-—-—चँवर
- गुत्सकः—पुं॰—-—-—पुस्तक का अनुभाग या अध्याय
- गुद्—भ्वा॰ आ॰ <गोदते>, <गुदित>—-—-—क्रीड़ा करना, खेलना
- गुदम्—नपुं॰—-—गुद् - क—गुदा
- गुदाङ्कुरः—पुं॰—गुदम्-अङ्कुरः—-—बवासीर
- गुदावर्तः—पुं॰—गुदम्-आवर्तः—-—कोष्ठबद्धता
- गुदोद्भवः—पुं॰—गुदम्-उद्भवः—-—बवासीर
- गुदोष्ठः—पुं॰—गुदम्-ओष्ठः—-—गुदा का मुख
- गुदकीलः—पुं॰—गुदम्-कीलः—-—बवासीर
- गुदकीलकः—पुं॰—गुदम्-कीलकः—-—बवासीर
- गुदग्रहः—पुं॰—गुदम्-ग्रहः—-—कब्ज, मलावरोध
- गुदपाकः—पुं॰—गुदम्-पाकः—-—गुदा की सूजन
- गुदभ्रंशः—पुं॰—गुदम्-भ्रंशः—-—कांच निकलना
- गुदवर्त्मन्—नपुं॰—गुदम्-वर्त्मन्—-—गुदा मलद्वार
- गुदस्तम्भः—पुं॰—गुदम्-स्तम्भः—-—कब्ज
- गुध्—दिवा॰ पर॰ <गुध्यति>, <गुधित>—-—-—लपेटना, ढकना, आवेष्टित करना, ढांपना
- गुध्—क्र्या॰ पर॰ <गृध्नाति>—-—-—क्रोध होना
- गुध्—भ्वा॰ आ॰ <गोधते>—-—-—क्रीड़ा करना, खेलना
- गुन्दलः—पुं॰—-—गुन् इति शब्देन दल्यतेऽसौ - गुन् - दल् - णिच् - अच्—एक छोटे आयताकार ढोल का शब्द
- गुन्दालः—पुं॰—-—-—चातक पक्षी
- गुन्द्रालः—पुं॰—-—-—चातक पक्षी
- गुप्—भ्वा॰ पर॰ <गोपायति>, <गोपायित>, <गुपुं॰—-—-—रक्षा करना, बचाना, आत्मरक्षा करना, रखवाली करना
- गुप्—भ्वा॰ पर॰ <गोपायति>, <गोपायित>, <गुपुं॰—-—-—छिपाना, ढकना
- गुप्—भ्वा॰ आ॰ <जुगुपुं॰—-—-—तुच्छ समझना, कतराना, घिन करना, अरुचि करना, निन्दा करना
- गुप्—भ्वा॰ आ॰ <जुगुपुं॰—-—-—छिपाना, ढकना
- गुप्—दिवा॰ पर॰ <गुपुं॰—-—-—घबराना, विह्वल हो जाना
- गुप्—चुरा॰ उभ॰ <गोपायति>, <गोपायते>—-—-—चमकना
- गुप्—चुरा॰ उभ॰ <गोपायति>, <गोपायते>—-—-— बोलना
- गुप्—चुरा॰ उभ॰ <गोपायति>, <गोपायते>—-—-—छिपाना
- गुपिलः—पुं॰—-—गुप् - इलच्—राजा
- गुपिलः—पुं॰—-—-—रक्षक
- गुप्त—भू॰ क॰ कृ॰—-—गुप् - क्त—प्ररक्षित, संधृत, रक्षित
- गुप्त—भू॰ क॰ कृ॰—-—-—छिपाया हुआ, ढका हुआ, रहस्यमय
- गुप्त—भू॰ क॰ कृ॰—-—-—अदृश्य, आँख से ओझल
- गुप्त—भू॰ क॰ कृ॰—-—-—संयुक्त
- गुप्तः—पुं॰—-—-—वैश्यों के नाम के साथ जुड़ने वाली वर्ण सूचक उपाधी- चन्द्रगुप्तः, समुद्रगुप्तः आदि
- गुप्तम्—अव्य॰—-—-—गुप्त रुप से, निजी तौर पर, अपने ढंग पर
- गुप्ता—स्त्री॰—-—-—परकीया नायिका, सुरति छिपाने वाली नायिका
- गुप्तकथा—स्त्री॰—गुप्त-कथा—-—गुप्त या गोपनीय समाचार, रहस्य
- गुप्तगतिः—स्त्री॰—गुप्त-गतिः—-—गुप्तचर, जासूस
- गुप्तचर—वि॰—गुप्त-चर—-—जासूस, छिपकर घूमने वाला
- गुप्तचरः—पुं॰—गुप्त-चरः—-—बलराम का विशेषण
- गुप्तचर—वि॰—गुप्त-चर—-—गुप्तचर, जासूस
- गुप्तदानम्—नपुं॰—गुप्त-दानम्—-—छिपाकर दिया जाने वाला दान, गुप्त उपहार
- गुप्तवेशः—पुं॰—गुप्त-वेशः—-—बदला हुआ भेष
- गुप्तकः—पुं॰—-—गुप्त - कन्—संधारक, प्ररक्षक
- गुप्तिः—स्त्री॰—-—गुप् - क्तिन्—छिपाना, लुकाना
- गुप्तिः—स्त्री॰—-—-—ढकना, म्यान में रखना
- गुप्तिः—स्त्री॰—-—-—बिल, कन्दरा, कुण्ड, भूगर्भगृह
- गुप्तिः—स्त्री॰—-—-— भूमि में बिल खोदना
- गुप्तिः—स्त्री॰—-—-—प्ररक्षा का उपाय, दुर्ग, दुर्गप्राचीर
- गुप्तिः—स्त्री॰—-—-—कारागार, जेल
- गुप्तिः—स्त्री॰—-—-—नाव का निचला तल
- गुप्तिः—स्त्री॰—-—-—रोक, थाम
- गुफ्—तुदा॰ पर॰ <गुफति>, <गुम्फति>, <गुफित>—-—-—गुंथना, गुंफन करना, बांधना, लपेटना
- गुफ्—तुदा॰ पर॰ <गुफति>, <गुम्फति>, <गुफित>—-—-—लिखना, रचना करना
- गुम्फ्—तुदा॰ पर॰ <गुफति>, <गुम्फति>, <गुफित>—-—-—गुंथना, गुंफन करना, बांधना, लपेटना
- गुम्फ्—तुदा॰ पर॰ <गुफति>, <गुम्फति>, <गुफित>—-—-—लिखना, रचना करना
- गुफित—भू॰ क॰ कृ॰—-—गुफ् - क्त—इकट्ठा गुँथा हुआ, बांधा हुआ, ब्रुना हुआ
- गुम्फित—भू॰ क॰ कृ॰—-—गुम्फ् - क्त—इकट्ठा गुँथा हुआ, बांधा हुआ, ब्रुना हुआ
- गुम्फः—पुं॰—-—गुम्फ् - घञ्—बांधना, गूँथना
- गुम्फः—पुं॰—-—-—एक स्थान पर रखना, रचना, करना, क्रम पूर्वक रखना
- गुम्फः—पुं॰—-—-—कंकण
- गुम्फः—पुं॰—-—-—गलमूच्छ, मूँछ
- गुम्फना—स्त्री॰—-—गुम्फ् - युच् - टाप्—एक जगह गूंथना, नत्थी करना
- गुम्फना—स्त्री॰—-—-—कर्मपूर्वक रखना, रचना करना
- गुर्—तुदा॰ आ॰ <गुरते>, <गूर्त>, <गूर्ण>—-—-—प्रयत्न करना, चेष्टा करना
- गुर्—दिवा॰ आ॰ - भू॰ क॰ कृ॰ <गूर्ण>—-—-—चोट पहुँचाना, मार डालना, क्षति पहुँचाना
- गुर्—दिवा॰ आ॰ - भू॰ क॰ कृ॰ <गूर्ण>—-—-—जाना
- गुरणम्—नपुं॰—-—गुर् - ल्युट्—प्रयत्न, धैर्य
- गुरु—वि॰—-—गृ - कु, उत्वम्—भारी, बोझल
- गुरु—वि॰ —-—-—प्रशस्त, बड़ा, लम्बा, विस्तृत
- गुरु—वि॰ —-—-—लंबा
- गुरु—वि॰ —-—-—महत्वपूर्ण, आवश्यक, बड़ा
- गुरु—वि॰ —-—-—दुःसाध्य, असह्य
- गुरु—वि॰ —-—-—बड़ा, अत्यधिक, प्रचंड, तीव्र
- गुरु—वि॰ —-—-—श्रद्धेय, आदरणीय
- गुरु—वि॰ —-—-—भारी, दुष्पाच्य
- गुरु—वि॰ —-—-—अभीष्ट, प्रिय
- गुरु—वि॰ —-—-—अहंकारी, घमंडी, दर्पोक्ति
- गुरु—वि॰ —-—-—दीर्घमात्रा
- गुर्वी—वि॰—-—गृ - कु, उत्वम्—भारी, बोझल
- गुर्वी—वि॰ —-—-—प्रशस्त, बड़ा, लम्बा, विस्तृत
- गुर्वी—वि॰ —-—-—लंबा
- गुर्वी—वि॰ —-—-—महत्वपूर्ण, आवश्यक, बड़ा
- गुर्वी—वि॰ —-—-—दुःसाध्य, असह्य
- गुर्वी—वि॰ —-—-—बड़ा, अत्यधिक, प्रचंड, तीव्र
- गुर्वी—वि॰ —-—-—श्रद्धेय, आदरणीय
- गुर्वी—वि॰ —-—-—भारी, दुष्पाच्य
- गुर्वी—वि॰ —-—-—अभीष्ट, प्रिय
- गुर्वी—वि॰ —-—-—अहंकारी, घमंडी, दर्पोक्ति
- गुर्वी—वि॰ —-—-—दीर्घमात्रा
- गुरुः—पुं॰—-—-—पिता
- गुरुः—पुं॰—-—-—कोई भी श्रद्धेय या आदरणीय पुरुष, वृद्ध पुरुष या संबंधी, बुजुर्ग
- गुरुः—पुं॰—-—-—अध्यापक, शिक्षक
- गुरुः—पुं॰—-—-—विशेषतया धार्मिक गुरु, आध्यात्मिक गुरु
- गुरुः—पुं॰—-—-—स्वामी, प्रधान, अधीक्षक, शासक
- गुरुः—पुं॰—-—-—बृहस्पति, देवगुरु
- गुरुः—पुं॰—-—-—बृहस्पति नक्षत्र
- गुरुः—पुं॰—-—-—नय सिद्धान्त का व्याख्याता
- गुरुः—पुं॰—-—-—पुरुष नक्षत्र
- गुरुः—पुं॰—-—-—कौरव और पांडवों के गुरु
- गुरुः—पुं॰—-—-—मीमांसकों के एक सम्प्रदाय का नेता प्रभाकर
- गुर्वर्थः—पुं॰—गुरु-अर्थः—-— शिष्य को शिक्षा देने के उपलक्ष्य में गुरुदक्षिणा
- गुरौत्तम—वि॰—गुरु-उत्तम—-—अत्यंत सम्मानीय
- गुरौत्तम—पुं॰—गुरु-उत्तमः—-—परमात्मा
- गुरुकारः—पुं॰—गुरु-कारः—-—पूजा, उपासना
- गुरुक्रमः—पुं॰—गुरु-क्रमः—-—उपदेश, परम्पराप्राप्त शिक्षा
- गुरुजनः—पुं॰—गुरु-जनः—-—श्रद्धेय पुरुष, वृद्धसंबंधी बुजुर्ग
- गुरुतल्पः—पुं॰—गुरु-तल्पः—-—अध्यापक की शय्या
- गुरुतल्पः—पुं॰—गुरु-तल्पः—-—अध्यापक की शय्या का उल्लंघन
- गुरुतल्पगः—पुं॰—गुरु-तल्पगः—-—गुरु-पत्नी के अनुचित संबंध रखने वाला
- गुरुतल्पिन्—पुं॰—गुरु-तल्पिन्—-—गुरु-पत्नी के अनुचित संबंध रखने वाला
- गुरुतल्पिन्—पुं॰—गुरु-तल्पिन्—-—जो अपनी सौतेली माता के साथ व्याभिचार करता हैं
- गुरुदक्षिणा—स्त्री॰—गुरु-दक्षिणा—-—आध्यात्मिक गुरु को दी जाने वाली दक्षिणा
- गुरुदैवतः—पुं॰—गुरु-दैवतः—-—पुष्य नक्षत्र
- गुरुपाक—वि॰—गुरु-पाक—-—पचने में कठिन
- गुरुभम्—नपुं॰—गुरु-भम्—-—पुष्य नक्षत्र
- गुरुभम्—नपुं॰—गुरु-भम्—-—धनुष
- गुरुमर्दलः—पुं॰—गुरु-मर्दलः—-—एकप्रकार की ढोलक या मृदंग
- गुरुरत्नम्—नपुं॰—गुरु-रत्नम्—-—पुखराज
- गुरुलाघवम्—नपुं॰—गुरु-लाघवम्—-—सापेक्षिक महत्व या मूल्य
- गुरुवर्तिन्—नपुं॰—गुरु-वर्तिन्—-—गुरु के घर रहकर पढ़ने वाला ब्रह्मचारी
- गुरुवासिन्—पुं॰—गुरु-वासिन्—-—गुरु के घर रहकर पढ़ने वाला ब्रह्मचारी
- गुरुवासरः—पुं॰—गुरु-वासरः—-—वृहस्पति वार
- गुरुवृत्तिः—स्त्री॰—गुरु-वृत्तिः—-—ब्रह्मचारी का अपने गुरु के प्रति आचरण
- गुरुक—वि॰—-—गुरु - कन्—जरा भारी
- गुरुक—वि॰—-—-—दीर्घ
- गुर्जरः—पुं॰—-—गुरु - जॄ - णिच् - अण् - पृषो॰—गुजरात का प्रदेश या जिला
- गूर्जरः—पुं॰—-—गुरु - जॄ - णिच् - अण् - पृषो॰—गुजरात का प्रदेश या जिला
- गुर्विणी—स्त्री॰—-—गुरु - इनि - ङीप् —गर्भवती स्त्री
- गुर्वी—स्त्री॰—-—गुरु - इनि - ङीप्, गुरु - ङीष्—गर्भवती स्त्री
- गुलः—पुं॰—-— = गुड, डस्य लः—गुड़
- गुलुच्छः—पुं॰—-— = गुच्छ पृषो॰ गुड् - क्विप्, डेस्य लः—गुच्छ, झुंड
- गुलुञ्छः—पुं॰—-— = गुच्छ पृषो॰ गुड् - क्विप्, डेस्य लः, गुल् - उञ्छ् - अण्—गुच्छ, झुंड
- गुल्फः—पुं॰—-—गल् - फक्, अकारस्य उकारः—टखना
- गुल्मः—पुं॰—-—गुड् - मक्—वृक्षों का झुंड, झुरमुट, वन, झाड़ी
- गुल्मः—पुं॰—-—-—सिपाहियों का दल
- गुल्मः—पुं॰—-—-—दुर्ग
- गुल्मः—पुं॰—-—-—तिल्ली
- गुल्मः—पुं॰—-—-—तिल्ली का बढ़ जाना
- गुल्मः—पुं॰—-—-—गाँव की पुलिस चौकी
- गुल्मः—पुं॰—-—-—घाट
- गुल्मम्—नपुं॰—-—गुड् - मक्, डस्य लः - तारा॰—वृक्षों का झुंड, झुरमुट, वन, झाड़ी
- गुल्मम्—नपुं॰—-—-—सिपाहियों का दल
- गुल्मम्—नपुं॰—-—-—दुर्ग
- गुल्मम्—नपुं॰—-—-—तिल्ली
- गुल्मम्—नपुं॰—-—-—तिल्ली का बढ़ जाना
- गुल्मम्—नपुं॰—-—-—गाँव की पुलिस चौकी
- गुल्मम्—नपुं॰—-—-—घाट
- गुल्मिन्—वि॰—-—गुल्म - इनि—झुरमुट या झाड़वृन्द में उगने वाला, बढ़ी हुई तिल्ली वाला, तिल्ली के रोग से ग्रस्त
- गुल्मी—स्त्री॰—-—गुल्म - अच् - ङीष्—तंबू
- गुवाकः—पुं॰—-—गु - आक—सुपारी का पेड़
- गूवाकः—पुं॰—-—गु - आक—सुपारी का पेड़
- गुह्—भ्वा॰ उभ॰ <गूहति>, <गुहते>—-—-—ढकना, छिपाना, परदा डालना, गुप्त रखना
- उपगुह्—भ्वा॰ उभ॰—उप-गुह्—-—आलिंगन करना
- निगुह्—भ्वा॰ उभ॰—नि-गुह्—-—छिपाना, गुप्त रखना
- गुहः—पुं॰—-—गुह् - क—कार्तिकेय का विशेषण
- गुहः—पुं॰—-—-—घोड़ा
- गुहः—पुं॰—-—-—निषाद या चांडाल का नाम जो श्रृंगवेर का राजा तथा भगवान राम का मित्र था
- गुहा—स्त्री॰—-—गुह - टाप्—गुफा, कन्दरा, छिपने का स्थान
- गुहा—स्त्री॰—-—-—छिपाना, ढकना
- गुहा—स्त्री॰—-—-—गढ़ा, बिल
- गुहा—स्त्री॰—-—-—हृदय
- गुहाहित—वि॰—गुहा-आहित—-—हृदय में रक्खा हुआ
- गुहाचरम्—नपुं॰—गुहा-चरम्—-—ब्रह्म
- गुहामुख—वि॰—गुहा-मुख—-—गुफा जैसे मुँह का, चौड़े मुँह का, खुले मुँह का
- गुहाशयः—पुं॰—गुहा-शयः—-—चूहा
- गुहाशयः—पुं॰—गुहा-शयः—-—शेर
- गुहाशयः—पुं॰—गुहा-शयः—-—परमात्मा
- गुहिनम्—नपुं॰—-—गुह् - इनन्—वन, जंगल
- गुहेरः—पुं॰—-—गुह् - एरक्—अभिभावक, प्ररक्षक
- गुहेरः—पुं॰—-—-—लुहारः
- गुह्य—स॰ कृ॰—-—गुह् - क्यप्—छिपाने के योग्य, गोपनीय, गुप्त रखने के योग्य, निजी
- गुह्य—स॰ कृ॰—-—-—गुप्त,एकान्तवासी, विरक्त
- गुह्य—स॰ कृ॰—-—-—रहस्यपूर्ण
- गुह्यः—पुं॰—-—-—पाखंड
- गुह्यः—पुं॰—-—-—कछुवा
- गुह्यम्—नपुं॰—-—-—भेद, रहस्य
- गुह्यः—पुं॰—-—-—गुप्त इन्द्रिय, पुरुष या स्त्री की जननेन्द्रिय
- गुह्यगुरुः—पुं॰—गुह्य-गुरुः—-—शिव का विशेषण
- गुह्यदीपकः—पुं॰—गुह्य-दीपकः—-—जुगनू
- गुह्यनिष्यन्दः—पुं॰—गुह्य-निष्यन्दः—-—मूत्र
- गुह्यभाषितम्—नपुं॰—गुह्य-भाषितम्—-—गुप्तवार्ता
- गुह्यदीपकः—पुं॰—गुह्य-दीपकः—-—भेद, रहस्य की बात
- गुह्यमयः—पुं॰—गुह्य-मयः—-—कार्तिकेय का विशेषण
- गुह्यकः—पुं॰—-—गुह्यं गोपनीयं कं सुखं येषाम् - ब॰ स॰—यक्ष जैसी एक अर्धदेवों की श्रेणी जो कुबेर के सेवक तथा उसके कोष के संरक्षक हैं
- गूः—स्त्री॰—-—गम् - कू टिलोपः—कूड़ा करकट
- गूः—स्त्री॰—-—-—मल, विष्टा
- गूढ—भू॰ क॰ कृ॰—-—गूह् - क्त—छिपा हुआ, गुप्त, गुप्त रखा हुआ, ढका हुआ
- गूढाङ्गः—पुं॰—गूढ-अङ्गः—-—कछुवा
- गूढाङघ्रिः—पुं॰—गूढ-अङघ्रिः—-—सांप
- गूढात्मन्—पुं॰—गूढ-आत्मन्—-—परमात्मा
- गूढउत्पन्नः—पुं॰—गूढ-उत्पन्नः—-—हिन्दू धर्मशास्त्रों में वर्णित १२ प्रकार के पुत्रों में से एक
- गूढजः—पुं॰—गूढ-जः—-—परमात्मा
- गूढनीडः—पुं॰—गूढ-नीडः—-—खंजनपक्षी
- गूढपथः—पुं॰—गूढ-पथः—-—गुप्तमार्ग
- गूढपथः—पुं॰—गूढ-पथः—-—पगडंडी
- गूढपथः—पुं॰—गूढ-पथः—-—मन बुद्धि
- गूढपाद्—पुं॰—गूढ-पाद्—-—सांप
- गूढपाद—पुं॰—गूढ-पाद—-—सांप
- गूढपुरुषः—पुं॰—गूढ-पुरुषः—-—जासूस, गुप्तचर, भेदिया
- गूढपुष्पकः—पुं॰—गूढ-पुष्पकः—-—बकुलवृक्ष
- गूढमार्गः—पुं॰—गूढ-मार्गः—-—भूगर्भ मार्ग
- गूढमैथुनः—पुं॰—गूढ-मैथुनः—-—कौवा
- गूढवर्चस्—पुं॰—गूढ-वर्चस्—-—गुप्त गवाह, ऐसा साक्षी जिअस्ने प्रतिवादी के बातों को चुचाप सुना हो
- गूथः—पुं॰—-—गू - थक्—मल, विष्ठा
- गूथम्—नपुं॰—-—गू - थक्—मल, विष्ठा
- गून—वि॰—-—गू - क्त—उत्सृष्ट मल
- गूरणम्—नपुं॰—-—गुर् - ल्युट्—प्रयत्न, धैर्य
- गुषणा—स्त्री॰—-—-—मोर के पंख में बनी हुई आंख की आकृति
- गृ—भ्वा॰ पर॰ <गरति>—-—-—छिड़कना, तर करना, गीला करना
- गृज्—भ्वा॰ पर॰ <गर्जति>—-—-—शब्द करना, दहाड़ना, गुर्राना आदि
- गृञ्ज्—भ्वा॰ पर॰ <गृञ्जति>—-—-—शब्द करना, दहाड़ना, गुर्राना आदि
- गृञ्जनः—पुं॰—-—गृञ्ज् - ल्युट्—गाजर
- गृञ्जनः—पुं॰—-—-—शलजम
- गृञ्जनः—पुं॰—-—-—गांजा
- गृञ्जनम्—नपुं॰—-—-—विषैले तीर से मारे हुए पशु का मांस
- गृण्डिवः—पुं॰—-—-—गीदड़ों की एक जाति
- गृण्डीवः—पुं॰—-—-—गीदड़ों की एक जाति
- गृध्—दिवा॰ पर॰ <गृध्यति>, <गृद्ध>—-—-—ललचाना, इच्छा करना, लोभ वश प्रयत्नशील होना, लालायित होना, अभिलाषी होना
- गृधु—वि॰—-—गृध् - कु—कामातुर, लम्पट
- गृधुः—पुं॰—-—-—कामदेव
- गृध्नुः—वि॰—-—गृध् - क्नु—लोभी, लालची
- गृध्नुः—वि॰—-—-—उत्सुक, इच्छुक
- गृध्यम्—नपुं॰—-—गृध् - क्यप्—इच्छा, लोभ
- गृध्या—स्त्री॰—-—गृध् - क्यप्—इच्छा, लोभ
- गृध्र—वि॰—-—गृध् - क्र—लोभी, लालची
- गृध्रः—पुं॰—-—-—गिद्ध
- गृध्रम्—नपुं॰—-—-—गिद्ध
- गृध्रकूटः—पुं॰—गृध्र-कूटः—-—राजगृह के निकट विद्यमान एक पहाड़
- गृध्रपतिः—पुं॰—गृध्र-पतिः—-—गिद्धों का राजा, जटायु
- गृध्रराजः—पुं॰—गृध्र-राजः—-—गिद्धों का राजा, जटायु
- गृध्रवाज—वि॰—गृध्र-वाज—-—गिद्ध के परों से युक्त
- गृध्रवाजित—वि॰—गृध्र-वाजित—-—गिद्ध के परों से युक्त
- गृष्टिः—स्त्री॰—-—गृह्णाति सकृत् गर्भम् - ग्रह् - क्तिच् पृषो॰ तारा॰—एक बार ब्याई हुई गौ, पहलौठी गाय
- गृष्टिः—स्त्री॰—-—-—किसी भी पशु का बच्चा
- वासितागृष्टिः—स्त्री॰—-—-—हथिनी का बच्चा
- गृहम्—नपुं॰—-—गृह् - क—घर, निवास, आवास, भवन
- गृहम्—नपुं॰—-—-—पत्नी
- गृहम्—नपुं॰—-—-—गृहस्थ-जीवन
- गृहम्—नपुं॰—-—-—मेषादि राशि
- गृहम्—नपुं॰—-—-—नाम या अभिधान
- गृहाः—पुं॰—-—-—घर, निवास
- गृहाः—पुं॰—-—-—पत्नी
- गृहाः—पुं॰—-—-—घर के निवासी, कुटुम्ब
- गृहाक्षः—पुं॰—गृहम्-अक्षः—-—झरोखा, मोखा, गोल या आयताकार खिड़की
- गृहाधिपः—पुं॰—गृहम्-अधिपः—-—गृहस्थ
- गृहाधिपः—पुं॰—गृहम्-अधिपः—-—किसी राशि का स्वामी
- गृहीशः—पुं॰—गृहम्-ईशः—-—गृहस्थ
- गृहीशः—पुं॰—गृहम्-ईशः—-—किसी राशि का स्वामी
- गृहीश्वरः—पुं॰—गृहम्-ईश्वरः—-—गृहस्थ
- गृहीश्वरः—पुं॰—गृहम्-ईश्वरः—-—किसी राशि का स्वामी
- गृहायनिकः—पुं॰—गृहम्-अयनिकः—-—गृहस्थ
- गृहार्थः—पुं॰—गृहम्-अर्थः—-—घरेलू मामला, घरेलू बातें
- गृहाम्लम्—नपुं॰—गृहम्-अम्लम्—-—एक प्रकार की कांजी
- गृहावग्रहणी—स्त्री॰—गृहम्-अवग्रहणी—-—देहली
- गृहाश्मन्—पुं॰—गृहम्-अश्मन्—-—सिल
- गृहारामः—पुं॰—गृहम्-आरामः—-—गृहवाटिका
- गृहाश्रमः—पुं॰—गृहम्-आश्रमः—-—गृहस्थों का आश्रम, ब्राह्मण के धार्मिक जीवन की दूसरी अवस्था
- गृहोत्पातः—पुं॰—गृहम्-उत्पातः—-—कोई घरेलू बाधा
- गृहोपकरणम्—नपुं॰—गृहम्-उपकरणम्—-—घरेलू बरतन, गृहस्थ के उपयोग की सामग्री
- गृहकच्छपः—पुं॰—गृहम्-कच्छपः—-—सिल
- गृहकपोतः—पुं॰—गृहम्-कपोतः—-—पालतू कबूतर
- गृहकपोतकः—पुं॰—गृहम्-कपोतकः—-—पालतू कबूतर
- गृहकरणम्—नपुं॰—गृहम्-करणम्—-—घरेलू मामला
- गृहकरणम्—नपुं॰—गृहम्-करणम्—-—घर की इमारत
- गृहकर्मन्—नपुं॰—गृहम्-कर्मन्—-—गृहस्थ के लिए विहित कर्म
- गृहदासः—पुं॰—गृहम्-दासः—-—चाकर, घरेलू नौकर
- गृहकलहः—पुं॰—गृहम्-कलहः—-—घरेलू झगड़ा, भाई भाई की लड़ाई
- गृहकारकः—पुं॰—गृहम्-कारकः—-—घर बनाने वाला, राज
- गृहकुक्कुटः—पुं॰—गृहम्-कुक्कुटः—-—पालतू मुर्गा
- गृहकार्यम्—नपुं॰—गृहम्-कार्यम्—-—घर का कामकाज
- गृहचूल्ली—स्त्री॰—गृहम्-चूल्ली—-—साथ लगे हुए दो कमरों का घर जिसमें से एक का मुख पूर्व और दूसरा का पश्चिम की ओर हो
- गृहछिद्रम्—नपुं॰—गृहम्-छिद्रम्—-—घर की गुप्त बातें या कमजोरियाँ
- गृहछिद्रम्—नपुं॰—गृहम्-छिद्रम्—-—कौटुम्बिक अनबन
- गृहजः—पुं॰—गृहम्-जः—-—घर में ही पैदा हुआ नौकर
- गृहजातः—पुं॰—गृहम्-जातः—-—घर में ही पैदा हुआ नौकर
- गृहजालिका—स्त्री॰—गृहम्-जालिका—-—धोखा, कपटवेष
- गृहज्ञानिन्—पुं॰—गृहम्-ज्ञानिन्—-—‘घर में ही तीसमारखां’, अनुभवशून्य, जड, मूर्ख
- गृहतटी—स्त्री॰—गृहम्-तटी—-—घर के सामने बना चबूतरा
- गृहदासः—पुं॰—गृहम्-दासः—-—घरेलू सेवक
- गृहदेवता—स्त्री॰—गृहम्-देवता—-—घर की अधिष्ठात्री देवता
- गृहदेवता—ब॰ व॰—गृहम्-देवता—-—कुल देवताओं का समूह
- गृहदेहली—स्त्री॰—गृहम्-देहली—-—घर की दहलीज
- गृहनमनं—नपुं॰—गृहम्-नमनं—-—हवा
- गृहनाशनः—पुं॰—गृहम्-नाशनः—-—जंगली कबूतर
- गृहनीडः—पुं॰—गृहम्-नीडः—-—चिड़िया, गौरैया
- गृहपतिः—पुं॰—गृहम्-पतिः—-—गृहस्थ, ब्रह्मचर्य आश्रम के पश्चात विवाहित जीवन बिताने वाला घर का मालिक
- गृहपतिः—पुं॰—गृहम्-पतिः—-—यजमान
- गृहपतिः—पुं॰—गृहम्-पतिः—-—गृहस्थ के उपर्युक्त कर्म
- गृहपालः—पुं॰—गृहम्-पालः—-—घर का संरक्षक
- गृहपालः—पुं॰—गृहम्-पालः—-—घर का कुत्ता
- गृहपोतकः—पुं॰—गृहम्-पोतकः—-—घर की जगह
- गृहप्रवेशः—पुं॰—गृहम्-प्रवेशः—-—नये घर में विधिपूर्वक प्रवेश करना
- गृहबभ्रुः—पुं॰—गृहम्-बभ्रुः—-—पालतू नेवला
- गृहबलिः—पुं॰—गृहम्-बलिः—-—वैश्वदेव यज्ञ में दी जाने वाली आहुति, अवशिष्ट अन्न, सब जीवजन्तुओं को वितरण करना
- गृहभुज्—पुं॰—गृहम्-भुज्—-—कौवा
- गृहभुज्—पुं॰—गृहम्-भुज्—-—चिड़िया
- गृहदेवता—स्त्री॰—गृहम्-देवता—-—घर का देवता जिसे आहुति दी जाती हैं
- गृहभङ्गः—पुं॰—गृहम्-भङ्गः—-—घर से निर्वासित व्यक्ति, प्रवासी
- गृहभङ्गः—पुं॰—गृहम्-भङ्गः—-—घर का नाश करना
- गृहभङ्गः—पुं॰—गृहम्-भङ्गः—-—घर में सेंघ लगाना
- गृहभङ्गः—पुं॰—गृहम्-भङ्गः—-—असफलता किसी दुकान या घर की बर्बादी या नाश
- गृहभूमिः—स्त्री॰—गृहम्-भूमिः—-—वस्तु स्थान, वह जमीन जिसपर कोई मकान बना हुआ हो
- गृहभेदिन्—वि॰—गृहम्-भेदिन्—-—घर के कामों में ताकझांक करने वाला
- गृहभेदिन्—वि॰—गृहम्-भेदिन्—-—घर में कलह कराने वाला
- गृहमणिः—पुं॰—गृहम्-मणिः—-—दीपक
- गृहमाचिका—स्त्री॰—गृहम्-माचिका—-—चमगादड़
- गृहमृगः—स्त्री॰—गृहम्-मृगः—-—कुत्ता
- गृहमेघः—स्त्री॰—गृहम्-मेघः—-—गृहस्थ
- गृहमेघः—स्त्री॰—गृहम्-मेघः—-—पंचयज्ञ
- गृहमेघिन्—पुं॰—गृहम्-मेघिन्—-—गृहस्थ
- गृहयन्त्रम्—नपुं॰—गृहम्-यन्त्रम्—-—उत्सव आदि के अवसर पर झंडा फहराने का डंडा या और कोई उपकरण
- गृहवाटिका—स्त्री॰—गृहम्-वाटिका—-—घर से मिली हुई बगीची
- गृहवाटी—स्त्री॰—गृहम्-वाटी—-—घर से मिली हुई बगीची
- गृहवित्तः—पुं॰—गृहम्-वित्तः—-—घर का स्वामी
- गृहशुकः—पुं॰—गृहम्-शुकः—-—पालतू तोता, आमोद के लिए पाला हुआ तोता
- गृहसंवेशकः—पुं॰—गृहम्-संवेशकः—-—व्यवासायिक भवन निर्माता, स्थपति
- गृहस्थः—पुं॰—गृहम्-स्थः—-—गृही, दूसरे आश्रम में प्रवेश करके रहने वाला
- गृहाश्रमः—पुं॰—गृहम्-आश्रमः—-—गृहस्थ का जीवन
- गृहधर्मः—पुं॰—गृहम्-धर्मः—-—गृहस्थ के कर्तव्य
- गृहयाय्यः—पुं॰—-—गृह - णिच् - आलु—पकड़ने वाला, ग्रहण करने वाला
- गृहिणी—स्त्री॰—-—गृह - इनि - ङीष्—गृहस्वामिनी, पत्नी, गृहपत्नी
- गृहिणीपदम्—नपुं॰—गृहिणी-पदम्—-—गृहस्वामिनी का पद या प्रतिष्ठा
- गृहिन्—वि॰—-—गृह - इनि —घर का स्वामी, गृहस्थ, घरबारी
- गृहीत—भू॰ क॰ कृ॰—-—ग्रह् - क्त—लिया हुआ, पकड़ा हुआ
- गृहीत—भू॰ क॰ कृ॰—-—-—स्वीकृत
- गृहीत—भू॰ क॰ कृ॰—-—-—प्राप्त, अवाप्त
- गृहीत—भू॰ क॰ कृ॰—-—-—परिहित, पहना हुआ
- गृहीत—भू॰ क॰ कृ॰—-—-—लुटा हुआ
- गृहीत—भू॰ क॰ कृ॰—-—-—अधिगत, ज्ञात
- गृहीतगर्भा—स्त्री॰—गृहीत-गर्भा—-—गर्भवती स्त्री
- गृहीतदिश्—वि॰—गृहीत-दिश्—-—भागा हुआ, भगोड़ा, तितरबितर हुआ
- गृहीतदिश्—वि॰—गृहीत-दिश्—-—तिरोभूत, लापता
- गृहीतिन्—वि॰—-— गृहीत - इनि—जिसने कोई बात समझ ली हैं
- गृह्य—वि॰—-—ग्रह् - क्यप्—आकृष्ट या प्रसन्न होने के योग्य
- गृह्य—वि॰—-—-—घरेलू
- गृह्य—वि॰—-—-—जो अपना स्वामी न हो, परतन्त्र
- गृह्य—वि॰—-—-— पालतू, घर में सधाया हुआ
- गृह्य—वि॰—-—-—बाहर, स्थित
- गृह्यः—पुं॰—-—-—घर में रहने वाला
- गृह्यः—पुं॰—-—-—पालतू जानवर
- गृह्यम्—नपुं॰—-—-—गुदा
- गृह्याग्निः—पुं॰—गृह्य-अग्निः—-—अग्निहोत्र की आग जिसको स्थापित रखना प्रत्येक ब्राह्मण का विहित कर्म है
- गृह्या—स्त्री॰—-—गृह्या - टाप्—नगर के निकट बसा हुआ गाँव
- गॄ—क्र्या॰ पर॰ <गृणाति>, <गूर्ण>—-—-—शब्द करना, पुकारना, आवाहन करना
- गॄ—क्र्या॰ पर॰ <गृणाति>, <गूर्ण>—-—-—घोषणा करना, बोलना, उच्चारण करना, प्रकथन करना
- गॄ—क्र्या॰ पर॰ <गृणाति>, <गूर्ण>—-—-—बयान करना, प्रचारित करना
- गॄ—क्र्या॰ पर॰ <गृणाति>, <गूर्ण>—-—-—प्रशंसा करना, स्तुति करना
- अनुगॄ—क्र्या॰ पर॰ —अनु-गॄ—-—प्रोत्साहित करना
- अनुगॄ—तुदा॰ पर॰ <गिरति>, <गिलति>—अनु-गॄ—-—निगलना, हड़प करना, खा जाना
- अनुगॄ—तुदा॰ पर॰ <गिरति>, <गिलति>—अनु-गॄ—-—निकालना, उंडेलना, थूक देना, मुंह से फेंकना
- अवगॄ—तुदा॰ पर॰—अव-गॄ—-—खाना, निगलना
- उत्गॄ—तुदा॰ पर॰—उद्-गॄ—-—फेंकना, थूक देना, वमन करना
- उत्गॄ—तुदा॰ पर॰—उद्-गॄ—-—उत्सर्जन करना, निकाल बाहर करना, उगल देना
- निगॄ—तुदा॰ पर॰—नि-गॄ—-—निगलना, खा जाना
- संगॄ—तुदा॰ पर॰—सम्-गॄ—-—निगलना
- संगॄ—तुदा॰ आ॰—सम्-गॄ—-—प्रतिज्ञा करना, व्रत करना
- समुद्रगॄ—तुदा॰ पर॰—समुद्र-गॄ—-—बाहर फेंक देना, निकाल देना
- समुद्रगॄ—तुदा॰ पर॰—समुद्र-गॄ—-—जोर से चिल्लाना
- समुद्रगॄ—चुरा॰ आ॰ <गारयते>—समुद्र-गॄ—-—बतलाना, वर्णन करना
- समुद्रगॄ—चुरा॰ आ॰ <गारयते>—समुद्र-गॄ—-—अध्यापन करना
- गेण्डुकः —पुं॰—-—गच्छतीति गः इन्दुरिव, गेदु - कन्, गेंडुक पृषो॰—खेलने के लिए गेंद
- गेन्दुकः—पुं॰—-—गच्छतीति गः इन्दुरिव, गेदु - कन्, गेंडुक पृषो॰—खेलने के लिए गेंद
- गेय—वि॰—-—गै - यत्—गायक, गाने वाला
- गेय—वि॰—-—-—गाये जाने के योग्य
- गेयम्—नपुं॰—-—-—गीत, गायन गाने की कला
- गेष्—भ्वा॰ आ॰ <गेषते>, <गेष्ण>—-—-—ढूँढना, खोजना, तलाश करना
- गेहम्—नपुं॰—-—गो गणेशो गंधर्वो वा ईहः ईप्सितो यत्र तारा॰—घर, आवास
- गेहेक्ष्वेडिन्—वि॰—-—-—‘घर पर तीसमारखाँ’ अर्थात् कायर, भीरु
- गेहेदाहिन्—वि॰—-—-—‘घर पर ही तेज, अर्थात् कायर ‘घूरे का मुर्गा या डरपोक
- गेहेनर्दिन्—वि॰—-—-—घर पर ही ललकारने वाला, अर्थात् कायर, घूरे का मुर्गा या डरपोक
- गेहेमेहिन्—वि॰—-—-—‘घर मे ही मूतने वाला अर्थात् आलसी
- गेहेव्याडः—पुं॰—-—-—डींग मारने वाला, आत्मश्लाघी, शेखीखोर
- गेहेशूरः—पुं॰—-—-—‘अपने मोहल्ले में कुत्ता भी शेर होता हैं’ चहारदीवारी के सूरमा, कालीन के शर, डींग मारने वाला कायर
- गेहिन्—वि॰—-—गेह - इनि—गृहिन्
- गेहिनी—स्त्री॰—-—गेहिन् - ङीप्—पत्नी घर की स्वामिनी
- गै—भ्वा॰ पर॰ <गायति>, <गीत>—-—-—गाना, गीत गाना
- गै—भ्वा॰ पर॰ <गायति>, <गीत>—-—-—गाने के स्वर में बोलना या पाठ करना
- गै—भ्वा॰ पर॰ <गायति>, <गीत>—-—-— वर्णन करना या घोषणा करना, कहना
- गै—भ्वा॰ पर॰ <गायति>, <गीत>—-—-—गाने के स्वर में वर्णन करना, बयान करना, या प्रख्य़ात करना
- अनुगै—भ्वा॰ पर॰—अनु-गै—-—गाने में अनुकरण करना
- अवगै—भ्वा॰ पर॰—अव-गै—-—निन्दा करना, कलंकित करना
- उद्गै—भ्वा॰ पर॰—उद्-गै—-—ऊँचे स्वर में गाना, उच्च स्वर में गायन
- उपगै—भ्वा॰ पर॰—उप-गै—-—गाना, निकट गाना
- परिगै—भ्वा॰ पर॰—परि-गै—-—गाना, बयान करना, वर्णन करना
- विगै—भ्वा॰ पर॰—वि-गै—-—बदनाम करना, झिड़कना, कलंकित करना
- परिगै—भ्वा॰ पर॰—परि-गै—-—विषम स्वर में गाना
- गैर—वि॰—-—गिरि - अण्—पहाड़ से आया हुआ, पहाड़ी, पहाड़ पर उत्पन्न
- गैरिक—वि॰—-—गिरि - ठञ्—पहाड़ पर उत्पन्न
- गैरिकः—पुं॰—-—-—गेरु
- गैरिकम्—नपुं॰—-—-—गेरु
- गैरिकम्—नपुं॰—-—-— सोना
- गैरेयम्—नपुं॰—-—गिरि - ढक्—शिलाजीत
- गो—पुं॰—-—गच्छत्यनेन, गम् करणे डो तारा॰—मवेशी, गाय
- गो—पुं॰—-—-—गौ से उपलब्ध वस्तु
- गो—पुं॰—-—-—तारे
- गो—पुं॰—-—-—आकाश
- गो—पुं॰—-—-—इन्द्र का वज्र
- गो—पुं॰—-—-—प्रकाश की किरण
- गो—पुं॰—-—-—हीरा
- गो—पुं॰—-—-—स्वर्ग
- गो—पुं॰—-—-—बाण
- गो—स्त्री॰—-—-—गाय
- गो—स्त्री॰—-—-—पृथ्वी
- गो—स्त्री॰—-—-—वाणी, शब्द
- गो—स्त्री॰—-—-— वाणी की देवता - सरस्वती
- गो—स्त्री॰—-—-—माता
- गो—स्त्री॰—-—-—दिशा
- गो—स्त्री॰ब॰ व॰—-—-—जल
- गो—पुं॰—-—-—आँख
- गो—पुं॰—-—-—साँड, बैल
- गो—पुं॰—-—-—शरीर के बाल, रोंगटे
- गो—पुं॰—-—-—इन्द्रिय
- गो—पुं॰—-—-—वृषराशि
- गो—पुं॰—-—-—सूर्य
- गो—पुं॰—-—-—नौ की संख्या
- गो—पुं॰—-—-—चन्द्रमा
- गो—पुं॰—-—-—घोड़ा
- गोकण्टकः—पुं॰—गो-कण्टकः—-—बैलों द्वारा खूंदा हुआ फलतः जाने के अयोग्य स्थान या सड़क
- गोकण्टकः—पुं॰—गो-कण्टकः—-—गाय के खुर
- गोकण्टकः—पुं॰—गो-कण्टकः—-—गाय के खुर की नोक
- गोकण्टकम्—नपुं॰—गो-कण्टकम्—-—बैलों द्वारा खूंदा हुआ फलतः जाने के अयोग्य स्थान या सड़क
- गोकण्टकम्—नपुं॰—गो-कण्टकम्—-—गाय के खुर
- गोकण्टकम्—नपुं॰—गो-कण्टकम्—-—गाय के खुर की नोक
- गोकर्णः—पुं॰—गो-कर्णः—-—गाय का कान
- गोकर्णः—पुं॰—गो-कर्णः—-—खच्चर
- गोकर्णः—पुं॰—गो-कर्णः—-—साँप
- गोकर्णः—पुं॰—गो-कर्णः—-—बालिश्त
- गोकर्णः—पुं॰—गो-कर्णः—-—दक्षिण में स्थित एक तीर्थस्थान का नाम
- गोकर्णः—पुं॰—गो-कर्णः—-—एकप्रकार का बाण
- गोकिराटा—स्त्री॰—गो-किराटा—-—मैना पक्षी
- गोकिराटिका—स्त्री॰—गो-किराटिका—-—मैना पक्षी
- गोकिलः—पुं॰—गो-किलः—-—हल
- गोकिलः—पुं॰—गो-किलः—-—मूसल
- गोकीलः—पुं॰—गो-कीलः—-—हल
- गोकीलः—पुं॰—गो-कीलः—-—मूसल
- गोकुलम्—नपुं॰—गो-कुलम्—-—गौओं का लहंडा
- गोकुलम्—नपुं॰—गो-कुलम्—-—गौशाला
- गोकुलम्—नपुं॰—गो-कुलम्—-—‘गोकुल’ एक गाँव
- गोकुलिक—वि॰—गो-कुलिक—-—दलदल में फंसी गाय का उद्धार करने में सहायता न देने वाला
- गोकुलिक—वि॰—गो-कुलिक—-—भेंगा, वक्रदृष्टि
- गोकृतम्—नपुं॰—गो-कृतम्—-—गाय का गोबर
- गोक्षीरम्—नपुं॰—गो-क्षीरम्—-—गाय का दूध
- गोखा—स्त्री॰—गो-खा—-—नाखून
- गोगृष्टिः—स्त्री॰—गो-गृष्टिः—-—सकृत्प्रसूता गाय, पहलौठी
- गोगोयुगम्—नपुं॰—गो-गोयुगम्—-—बैलों की जोड़ी
- गोगोष्ठम्—नपुं॰—गो-गोष्ठम्—-—गौशाला, पशुशाला
- गोग्रंथिः—पुं॰—गो-ग्रंथिः—-—कंडे. सूखा गोबर
- गोग्रंथिः—पुं॰—गो-ग्रंथिः—-—गौशाला
- गोग्रहः—पुं॰—गो-ग्रहः—-—पशुओं को पकड़ना
- गोग्रासः—पुं॰—गो-ग्रासः—-—प्रायश्चित्त के रुप में गाय को घास का कौर देना
- गोघृतम्—नपुं॰—गो-घृतम्—-—बारिश का पानी
- गोघृतम्—नपुं॰—गो-घृतम्—-—गाय का घी
- गोचन्दनम्—नपुं॰—गो-चन्दनम्—-—एक प्रकार की चन्दन की लकड़ी
- गोचर—वि॰—गो-चर—-—चारागाह
- गोचर—वि॰—गो-चर—-—बार-बार जाने वाला, आश्रय लेने वाला, बारंबार मंडराने वाला
- गोचर—वि॰—गो-चर—-—क्षेत्र, शक्ति या परास के अन्तर्गत
- गोचर—वि॰—गो-चर—-—पृथ्वी पर घूमने वाला
- गोचरः—पुं॰—गो-चरः—-—पशुओं का क्षेत्र, चरागाह
- गोचरः—पुं॰—गो-चरः—-—मंडल, विभाग, प्रांत, क्षेत्र
- गोचरः—पुं॰—गो-चरः—-—इन्द्रियों का परास, इन्द्रियों का विषय
- गोचरः—पुं॰—गो-चरः—-—क्षेत्र, परास, पहुँच
- गोचरः—पुं॰—गो-चरः—-—पकड़, दबाव, शक्ति, प्रभाव, नियन्त्रण
- गोचरः—पुं॰—गो-चरः—-—क्षितिज
- गोचर्मन्—नपुं॰—गो-चर्मन्—-—गोचर्म
- गोचर्मन्—नपुं॰—गो-चर्मन्—-—विशेष माप
- गोचर्मन्वसनः—पुं॰—गो-चर्मन्-वसनः—-—शिव का विशेषण
- गोचारकः—पुं॰—गो-चारकः—-—ग्वाला, चरवाहा
- गोजरः—पुं॰—गो-जरः—-—बूढ़ा बैल या साँड
- गोजलम्—नपुं॰—गो-जलम्—-—गौमूत्र
- गोजागरिकम्—नपुं॰—गो-जागरिकम्—-—मांगलिकता, आनन्द
- गोतल्लजः—पुं॰—गो-तल्लजः—-—श्रेष्ठ बैल या साँड
- गोतीर्थम्—नपुं॰—गो-तीर्थम्—-—गौशाला
- गोत्रम्—नपुं॰—गो-त्रम्—-—गौशाला
- गोत्रम्—नपुं॰—गो-त्रम्—-—पशुशाला
- गोत्रम्—नपुं॰—गो-त्रम्—-—परिवार, वंश, कुल, परम्परा
- गोत्रम्—नपुं॰—गो-त्रम्—-—नाम. अभिधान
- गोत्रम्—नपुं॰—गो-त्रम्—-—समुच्चय
- गोत्रम्—नपुं॰—गो-त्रम्—-—वृद्धि
- गोत्रम्—नपुं॰—गो-त्रम्—-—वन
- गोत्रम्—नपुं॰—गो-त्रम्—-—खेत
- गोत्रम्—नपुं॰—गो-त्रम्—-—सड़क
- गोत्रम्—नपुं॰—गो-त्रम्—-—संपत्ति, दौलत
- गोत्रम्—नपुं॰—गो-त्रम्—-—छतरी, छाता
- गोत्रम्—नपुं॰—गो-त्रम्—-—भविष्य का ज्ञान
- गोत्रम्—नपुं॰—गो-त्रम्—-—जाति, श्रेणी, वर्ग
- गोत्रः—पुं॰—गो-त्रः—-—पहाड़
- गोत्रकीला—स्त्री॰—गो-त्र-कीला—-—पृथ्वी
- गोत्रज—वि॰—गो-त्र-ज—-—समान कुल में उत्पन्न, एक ही जाति का, संबंधी
- गोत्रपटः—पुं॰—गो-त्र-पटः—-—वंश विवरण, वंशतालिका, वंशवृक्ष, वंशावली
- गोत्रभिदः—पुं॰—गो-त्र-भिदः—-—इन्द्र का विशेषण
- गोत्रस्खलनं—नपुं॰—गो-त्र-स्खलनं—-—नाम लेकर पुकारना, गलत नाम से पुकारना
- गोत्रस्खलितम्—नपुं॰—गो-त्र-स्खलितम्—-—नाम लेकर पुकारना, गलत नाम से पुकारना
- गोत्रा—स्त्री॰—गो-त्रा—-—गौओं का समूह
- गोत्रा—स्त्री॰—गो-त्रा—-—पृथ्वी
- गोदन्तम्—नपुं॰—गो-दन्तम्—-—हरताल
- गोदा—स्त्री॰—गो-दा—-—गोदावरी नामक नदी
- गोदानम्—नपुं॰—गो-दानम्—-—बाल काटने की दक्षिणा
- गोदानम्—नपुं॰—गो-दानम्—-—केशान्त संस्कार
- गोदारणम्—नपुं॰—गो-दारणम्—-—हल
- गोदारणम्—नपुं॰—गो-दारणम्—-—फावड़ा, खुर्पा
- गोदावरी—स्त्री॰—गो-दावरी—-—दक्षिण देश की एक नदी का नाम
- गोदुह्—पुं॰—गो-दुह्—-—ग्वाला
- गोदुहः—पुं॰—गो-दुहः—-—ग्वाला
- गोदोहः—पुं॰—गो-दोहः—-—गौ का दूध निकालना
- गोदोहः—पुं॰—गो-दोहः—-—गाय का दूध
- गोदोहः—पुं॰—गो-दोहः—-—गौओं को दुहने का समय
- गोदोहनम्—नपुं॰—गो-दोहनम्—-—गौओं को दुहने का समय
- गोदोहनम्—नपुं॰—गो-दोहनम्—-—गौओं को दोहना
- गोदोहनी—स्त्री॰—गो-दोहनी—-—वह बर्तन जिसमें दूध दूहा जाय
- गोद्रवः—पुं॰—गो-द्रवः—-—गोमूत्र
- गोधनम्—नपुं॰—गो-धनम्—-—गौओं का समूह, मवेशी
- गोधरः—पुं॰—गो-धरः—-—पहाड़
- गोधुमः—पुं॰—गो-धुमः—-—गेहूँ
- गोधुमः—पुं॰—गो-धुमः—-—संतरा
- गोधूमः—पुं॰—गो-धूमः—-—गेहूँ
- गोधूमः—पुं॰—गो-धूमः—-—संतरा
- गोधूलिः—पुं॰—गो-धूलिः—-—पृथ्वी की धूल, संध्या का समय
- गोधेनुः—स्त्री॰—गो-धेनुः—-—दूध देने वाली गाय जिसके नीचे बछड़ा हो‘
- गोध्रः—पुं॰—गो-ध्रः—-—पहाड़
- गोनन्दी—पुं॰—गो-नन्दी—-—मादा सारस
- गोनर्दः—पुं॰—गो-नर्दः—-—सारस पक्षी
- गोनर्दः—पुं॰—गो-नर्दः—-—एक देश का नाम
- गोनर्दीयः—पुं॰—गो-नर्दीयः—-—महाभाष्य के कर्ता पतंजलि मुनि
- गोनसः—पुं॰—गो-नसः—-—एक प्रकार का साँप
- गोनसः—पुं॰—गो-नसः—-—एक प्रकार का रत्न
- गोनासः—पुं॰—गो-नासः—-—एक प्रकार का साँप
- गोनासः—पुं॰—गो-नासः—-—एक प्रकार का रत्न
- गोनाथः—पुं॰—गो-नाथः—-—साँड़
- गोनाथः—पुं॰—गो-नाथः—-—भूमिधर
- गोनाथः—पुं॰—गो-नाथः—-—ग्वाला
- गोनाथः—पुं॰—गो-नाथः—-—गौओं का स्वामी
- गोनायः—पुं॰—गो-नायः—-—ग्वाला
- गोनिष्यदः—पुं॰—गो-निष्यदः—-—गोमूत्र
- गोपः—पुं॰—गो-पः—-—ग्वाला
- गोपः—पुं॰—गो-पः—-—गौशाला का प्रधान
- गोपः—पुं॰—गो-पः—-—गाँव का अधीक्षक
- गोपः—पुं॰—गो-पः—-—राजा
- गोपः—पुं॰—गो-पः—-—प्ररक्षक, अभिभावक
- गोपी—स्त्री॰—गो-पी—-—ग्वाले की पत्नी
- गोप्यध्यक्षः—पुं॰—गो-पी-अध्यक्षः—-—ग्वालों का मुखिया, कृष्ण का विशेषण
- गोपीन्द्रः—पुं॰—गो-पी-इन्द्रः—-—ग्वालों का मुखिया, कृष्ण का विशेषण
- गोपीशः—पुं॰—गो-पी-ईशः—-—ग्वालों का मुखिया, कृष्ण का विशेषण
- गोपीदलः—पुं॰—गो-पी-दलः—-—सुपारी का पेड़
- गोपीवधूः—स्त्री॰—गो-पी-वधूः—-—ग्वाले की पत्नी
- गोपीवधूटी—स्त्री॰—गो-पी-वधूटी—-—गोपी, ग्वाले की तरुण पत्नी
- गोपतिः—पुं॰—गो-पतिः—-—गौओं का स्वामी
- गोपतिः—पुं॰—गो-पतिः—-—साँड़
- गोपतिः—पुं॰—गो-पतिः—-—नेता, मुखिया
- गोपतिः—पुं॰—गो-पतिः—-—सूर्य
- गोपतिः—पुं॰—गो-पतिः—-—इन्द्र
- गोपतिः—पुं॰—गो-पतिः—-—कृष्ण का नाम
- गोपतिः—पुं॰—गो-पतिः—-—शिव का नाम
- गोपतिः—पुं॰—गो-पतिः—-—वरुण का नाम
- गोपतिः—पुं॰—गो-पतिः—-—राजा
- गोपशुः—पुं॰—गो-पशुः—-—यज्ञीय गाय
- गोपानसी—स्त्री॰—गो-पानसी—-—छप्पर को संभालने के लिए छत के नीचे लगी टेढ़ी बल्ली, बलभी
- गोपालः—पुं॰—गो-पालः—-—ग्वाला
- गोपालः—पुं॰—गो-पालः—-—राजा
- गोपालः—पुं॰—गो-पालः—-—कृष्ण का विशेषण
- गोपालधानी—स्त्री॰—गो-पाल-धानी—-—गौशाला, गौधर
- गोपालकः—पुं॰—गो-पालकः—-—ग्वाला
- गोपालकः—पुं॰—गो-पालकः—-—शिव का विशेषण
- गोपालिका—स्त्री॰—गो-पालिका—-—ग्वाले की पत्नी, गोपी
- गोपाली—स्त्री॰—गो-पाली—-—ग्वाले की पत्नी, गोपी
- गोपीतः—पुं॰—गो-पीतः—-—खंजन पक्षी का एक प्रकार
- गोपुच्छम्—नपुं॰—गो-पुच्छम्—-—गाय की पूँछ
- गोपुच्छः—पुं॰—गो-पुच्छः—-—एक प्रकार का बन्दर
- गोपुच्छः—पुं॰—गो-पुच्छः—-—दो चार या चौंतीस लड़ी का एक हार
- गोपुटिकम्—नपुं॰—गो-पुटिकम्—-—शिव के बैल का सिर
- गोपुत्रः—पुं॰—गो-पुत्रः—-—जवान बछड़ा
- गोपुरम्—नपुं॰—गो-पुरम्—-—नगर द्वार
- गोपुरम्—नपुं॰—गो-पुरम्—-—मुख्य दरवाजा
- गोपुरम्—नपुं॰—गो-पुरम्—-—मन्दिर का सजा हुआ तोरणद्वार
- गोपुरीषम्—नपुं॰—गो-पुरीषम्—-—गाय का गोबर
- गोप्रकाण्डम्—नपुं॰—गो-प्रकाण्डम्—-—बढ़िया गाय का साँड़
- गोप्रचारः—पुं॰—गो-प्रचारः—-—गोचर भूमि, पशुओं का चरागाह
- गोप्रवेशः—पुं॰—गो-प्रवेशः—-—गौओं का जंगल से लौटने का समय, सांयकाल या संध्या समय
- गोभृतः—पुं॰—गो-भृतः—-—पहाड़
- गोमक्षिक—वि॰—गो-मक्षिक—-—डांस, कुत्तामाखी
- गोमंडलम्—नपुं॰—गो-मंडलम्—-—भूगोल, गौओं का समूह
- गोमतम्—नपुं॰—गो-मतम्—-—एक कोस या दो मील की दूरी की माप
- गोमतल्लिका—स्त्री॰—गो-मतल्लिका—-—सीधी गाय, श्रेष्ठ गौ
- गोमथः—पुं॰—गो-मथः—-—ग्वाला
- गोमांसम्—नपुं॰—गो-मांसम्—-—गौ का मांस
- गोमायुः—पुं॰—गो-मायुः—-—एक प्रकार का मेढ़क
- गोमायुः—पुं॰—गो-मायुः—-—गीदड़
- गोमायुः—पुं॰—गो-मायुः—-—गाय का पित्तदोष
- गोमायुः—पुं॰—गो-मायुः—-—एक गन्धर्व का नाम
- गोमुखः—पुं॰—गो-मुखः—-—एक प्रकार का वाद्ययंत्र
- गोमुखम्—नपुं॰—गो-मुखम्—-—एक प्रकार का वाद्ययंत्र
- गोमुखः—पुं॰—गो-मुखः—-—मगरमच्छ, घड़ियाल
- गोमुखः—पुं॰—गो-मुखः—-—एक तरह की सेंघ
- गोमुखम्—नपुं॰—गो-मुखम्—-—टेढ़ामेढ़ा बना हुआ मकान
- गोमुखम्—नपुं॰—गो-मुखम्—-—जपमाला रखने की छायाशंकु के आकार की थैली
- गोमुखी—स्त्री॰—गो-मुखी—-—जपमाला रखने की छायाशंकु के आकार की थैली
- गोमूढ—वि॰—गो-मूढ—-—बैल की भांति बुद्धू
- गोमूत्रम्—नपुं॰—गो-मूत्रम्—-—गाय का मूत्र
- गोमृगः—पुं॰—गो-मृगः—-—नीलगाय, गवय, एक प्रकार का बैल
- गोभेदः—पुं॰—गो-भेदः—-—‘गोमेद’ नाम का एक रत्न
- गोयानम्—नपुं॰—गो-यानम्—-—बैलगाड़ी
- गोरक्षः—पुं॰—गो-रक्षः—-—ग्वाला
- गोरक्षः—पुं॰—गो-रक्षः—-—गोपाल
- गोरक्षः—पुं॰—गो-रक्षः—-—सन्तरा
- गोरङ्कुः—पुं॰—गो-रङ्कुः—-—मुर्गाबी
- गोरङ्कुः—पुं॰—गो-रङ्कुः—-—बन्दी
- गोरङ्कुः—पुं॰—गो-रङ्कुः—-—नग्नपुरुष, दिग्बर, साधु
- गोरसः—पुं॰—गो-रसः—-—गाय का दूध
- गोरसः—पुं॰—गो-रसः—-—दही
- गोरसः—पुं॰—गो-रसः—-—छाछ
- गोरसजम्—नपुं॰—गो-रस-जम्—-—मट्ठा
- गोराजः—पुं॰—गो-राजः—-—बढ़िया साँड
- गोरुतम्—नपुं॰—गो-रुतम्—-—दो कोस के बराबर दूरी का माप
- गोराटिका—स्त्री॰—गो-राटिका—-—मैना पक्षी
- गोराटी—स्त्री॰—गो-राटी—-—मैना पक्षी
- गोरोचना—स्त्री॰—गो-रोचना—-—एक सुगन्धित पदार्थ जिसकी उत्पत्ति गोमूत्र, गोपित्त से मानी जाती हैं
- गोलवणम्—नपुं॰—गो-लवणम्—-—नमक की मात्रा जो गाय को दी जाती हैं
- गोलांगुलः—पुं॰—गो-लांगुलः—-—लंगूर, एक तरह का बन्दर
- गोलांगूलः—पुं॰—गो-लांगूलः—-—लंगूर, एक तरह का बन्दर
- गोलोभी—स्त्री॰—गो-लोभी—-—वेश्या
- गोवत्सः—पुं॰—गो-वत्सः—-—बछड़ा
- गोवत्सआदिन्—पुं॰—गो-वत्स-आदिन्—-—भेड़िया
- गोवर्धनः—पुं॰—गो-वर्धनः—-—मथुरा के निकट वृन्दावन प्रदेश में स्थित एक विख्यात पहाड़
- गोवर्धनधरः—पुं॰—गो-वर्धन-धरः—-—कृष्ण का विशेषण
- गोवर्धनधारिन्—पुं॰—गो-वर्धन-धारिन्—-—कृष्ण का विशेषण
- गोवशा—स्त्री॰—गो-वशा—-—बांझ गाय
- गोवाटम्—नपुं॰—गो-वाटम्—-— गौशाला
- गोविदः—पुं॰—गो-विदः—-— गोपालक, गौशाला का अध्यक्ष
- गोविदः—पुं॰—गो-विदः—-—कृष्ण
- गोविदः—पुं॰—गो-विदः—-—बृहस्पति
- गोविष्—स्त्री॰—गो-विष्—-—गोबर
- गोविष्ठा—स्त्री॰—गो-विष्ठा—-—गोबर
- गोविसर्गः—पुं॰—गो-विसर्गः—-—भोर, तड़के
- गोविर्यम्—नपुं॰—गो-विर्यम्—-—दूध का मूल्य
- गोवृन्दम्—नपुं॰—गो-वृन्दम्—-—गौओं का लहंड़ा
- गोवृन्दारक—वि॰—गो-वृन्दारक—-—बढ़िया साँड या गाय
- गोवृषः—पुं॰—गो-वृषः—-—बढ़िया साँड
- गोवृषध्वजः—पुं॰—गो-वृष-ध्वजः—-—शिव का विशेषण
- गोव्रजः—पुं॰—गो-व्रजः—-—गोशाला
- गोव्रजः—पुं॰—गो-व्रजः—-—गौओं का समूह, गोचर, भूमि
- गोशकृत—नपुं॰—गो-शकृत—-—गोबर
- गोशालम्—नपुं॰—गो-शालम्—-—गौओं को रखने का स्थान
- गोशाला—स्त्री॰—गो-शाला—-—गौओं को रखने का स्थान
- गोषङ्गवम्—नपुं॰—गो-षङ्गवम्—-—गौओं की तीन जोड़ी
- गोष्ठः—पुं॰—गो-ष्ठः—-—गौओं का स्थान, गोठ
- गोसंख्या—स्त्री॰—गो-संख्या—-—ग्वाला
- गोसदृक्षः—पुं॰—गो-सदृक्षः—-—नीलगाय, गवय की एक जाति
- गोसर्गः—पुं॰—गो-सर्गः—-—भोर, तड़के
- गोसूत्रिका—स्त्री॰—गो-सूत्रिका—-—गाय बाँधने की रस्सी
- गोस्तनः—पुं॰—गो-स्तनः—-—गाय का ऐन, औड़ी
- गोस्तनः—पुं॰—गो-स्तनः—-—फूलों का गुच्छा, गुलदस्ता आदि
- गोस्तनः—पुं॰—गो-स्तनः—-—चार लड़ी की मोतियों की माला
- गोस्तना—स्त्री॰—गो-स्तना—-—अंगूरों का गुच्छा
- गोस्तनी—स्त्री॰—गो-स्तनी—-—अंगूरों का गुच्छा
- गोस्थानम्—नपुं॰—गो-स्थानम्—-— गोशाला
- गोस्वामिन्—पुं॰—गो-स्वामिन्—-—गौओं का स्वामी
- गोस्वामिन्—पुं॰—गो-स्वामिन्—-—धार्मिक साधु
- गोस्वामिन्—पुं॰—गो-स्वामिन्—-—संज्ञाओं के साथ लगने वाली सम्मानसूचक पदवी
- गोहत्या—स्त्री॰—गो-हत्या—-—गोवध
- गोहनम्—नपुं॰—गो-हनम्—-—गोबर
- गोहन्न्म्—नपुं॰—गो-हन्न्म्—-—गोबर
- गोहित—वि॰—गो-हित—-—गौओं की रक्षा करने वाला
- गोडुम्बः—पुं॰—-—-—तरबूज
- गोणी—स्त्री॰—-—गुण् - घञ् - ङीष्—गूण, बोरा
- गोणी—स्त्री॰—-—-—‘द्रोण’ के बराबर माप
- गोणी—स्त्री॰—-—-—चीथड़े, फटे पुराने कपड़े
- गोण्डः—पुं॰—-—गोः अण्ड इव—मांसल नाभि
- गोण्डः—पुं॰—-—-—निम्न जाति का पुरुष, पहाड़ी, नर्मदा तथा कृष्णा नदी के मध्यवर्ती विंध्य प्रदेश के पूर्वी भाग का निवासी
- गोतमः—पुं॰—-—गोभि ध्वस्तं तमो यस्य ब॰ स॰ पृषो॰—अङ्गिराकुल से सम्बन्ध रखने वाला एक ऋषि
- गोतमः—पुं॰—-—गोभिः ध्वस्तं तमो यस्य ब॰ स॰ पृषो॰—अङ्गिराकुल से सम्बन्ध रखने वाला एक ऋषि
- गोतमी—स्त्री॰—-—गोतम् - ङीप्—गोतम की पत्नी अहल्या
- गोतमीपुत्रः—पुं॰—गोतमी-पुत्रः—-—शतानन्द का विशेषण
- गोधा—स्त्री॰—-—गुध्यते, वेष्टयते बहुरनया - गुध - घञ् - टाप्—धनुष की चिल्ले की चोट से बचने के लिए बाएँ हाथ में बांधी जाने वाली चमड़े की पट्टी
- गोधा—स्त्री॰—-—-—घड़ियाल, मगरमच्छ
- गोधा—स्त्री॰—-—-—स्नायु, तांत
- गोधिः—पुं॰—-—गौर्नेत्रम् धीयतेऽस्मिन् आधारे इन्—मस्तक
- गोधिः—पुं॰—-—-—गंगा में रहने वाला घड़ियाल
- गोधिका—स्त्री॰—-—गुध्नाति - गुध् - ण्वुल् - टाप्—एक प्रकार की छिपकली, गोह
- गोपः—पुं॰—-—गुप् - अच्; घञ् वा—रक्षक, रक्षा करने वाला
- गोपः—पुं॰—-—-—छिपाना, गुप्त रखना
- गोपः—पुं॰—-—-—दुर्वचन, गाली
- गोपः—पुं॰—-—-—हड़बड़ी, क्षोभ
- गोपः—पुं॰—-—-—प्रकाश, प्रभा, दीप्ति
- गोपायनम्—नपुं॰—-—गुप् - आय् - ल्युट्—प्ररक्षण, संरक्षण, बचाव
- गोपायित—वि॰—-—गुप् - आय् - क्त—प्ररक्षित, बचाया हुआ
- गोप्तृ—वि॰—-—गुप् - तृच्—प्ररक्षक, संधारक, अभिभावक
- गोप्तृ—वि॰—-—-—छिपाने वाला, गुप्त रखने वाल्
- गोप्तृ—पुं॰—-—-—विष्णु का विशेषण
- गोमत्—वि॰—-—गो - मतुप्—गौओं से सम्पन्न
- गोमती—स्त्री॰—-—-—एक नदी का नाम
- गोमयः—पुं॰—-—गो - मयट्—गोबर
- गोमयम्—नपुं॰—-—गो - मयट्—गोबर
- गोमयछत्रम्—नपुं॰—गोमय-छत्रम्—-—कुकुरमुत्ता, साँप की छतरी, खुंभी
- गोमयप्रियम्—नपुं॰—गोमय-प्रियम्—-—कुकुरमुत्ता, साँप की छतरी, खुंभी
- गोमिन्—पुं॰—-—गो - मिनि—मवेशियों का स्वामी
- गोमिन्—पुं॰—-—-—गीदड़
- गोमिन्—पुं॰—-—-—पूजा करने वाला
- गोमिन्—पुं॰—-—-—बुद्धदेव का सेवक
- गोरणम्—नपुं॰—-—गुर् - ल्युट्—स्फूर्ति, अध्यवसाय, धैर्य
- गोर्दम्—नपुं॰—-—गुर् - ददन्, नि॰—मस्तिष्क, दिमाग
- गोलः—पुं॰—-—गुड् - अच् डस्य लः—पिण्ड, भूगोल
- गोलः—पुं॰—-—-—दिव्य लोक, अन्तरिक्ष
- गोलः—पुं॰—-—-—आकाश मंडल
- गोलः—पुं॰—-—-—विधवा का जारज पुत्र
- गोलः—पुं॰—-—-—एक राशि पर कई ग्रहों का समागम
- गोला—स्त्री॰—-—-—काठ की गेंद
- गोला—स्त्री॰—-—-— गोल, पानी भरने का बड़ा घड़ा
- गोला—स्त्री॰—-—-—लाल संखिया, मैनसिल
- गोला—स्त्री॰—-—-—मसी, स्याही
- गोला—स्त्री॰—-—-—सखी, सहेली
- गोला—स्त्री॰—-—-—दुर्गा देवी
- गोला—स्त्री॰—-—-—गोदावरी नदी
- गोलकः—पुं॰—-—गुड् - ण्वुल्, डस्य लः—पिंड, भूगोल
- गोलकः—पुं॰—-—-—बच्चों के खेलने के लिए काठ की गेंद
- गोलकः—पुं॰—-—-—पानी का मटका
- गोलकः—पुं॰—-—-—विधवा का जारज पुत्र
- गोलकः—पुं॰—-—-—पाँच या पाँच से अधिक ग्रहों का सम्मिलन
- गोलकः—पुं॰—-—-—गुड़ की पिंडियाँ
- गोलकः—पुं॰—-—-—खुशबूदार गोंद
- गोष्ठ्—भ्वा॰ आ॰ <गोष्ठते>—-—-—एकत्र होना, इकट्ठें होना, ढेर लगाना
- गोष्ठः—पुं॰—-—गोष्ठ - अच्—व्रज, गोशाला, गो-धर
- गोष्ठः—पुं॰—-—-—ग्वालों का स्थान
- गोष्ठम्—नपुं॰—-—गोष्ठ - अच्—व्रज, गोशाला, गो-धर
- गोष्ठम्—नपुं॰—-—-—ग्वालों का स्थान
- गोष्ठः—पुं॰—-—-—सभा या समाज
- गोष्ठश्वः—पुं॰—-—-—व्रज का कुत्ता जो हर किसी को भौंकता हैं
- गोष्ठश्वः—पुं॰—-—-—वह आलसी पुरुष जो अपने पड़ौसियों की निन्दा करता हैं
- गोष्ठेपण्डितः—पुं॰—-—-—व्रज में निपुण शेखीखोरा, मिथ्या डींग हांकने वाला
- गोष्ठि —स्त्री॰—-—गोष्ठ - इन्—सभा, सम्मेलन
- गोष्ठि —स्त्री॰—-—गोष्ठ - इन्—जन समुदाय, समाज
- गोष्ठि —स्त्री॰—-—गोष्ठ - इन्—संलाप, बातचीत, प्रवचन
- गोष्ठि —स्त्री॰—-—गोष्ठ - इन्—समुदाय, जमाव
- गोष्ठि —स्त्री॰—-—गोष्ठ - इन्—पारिवारिक संबंध, रिश्तेदार
- गोष्ठि —स्त्री॰—-—गोष्ठ - इन्—एक प्रकार का एकांकी नाटक
- गोष्ठी—स्त्री॰—-—गोष्ठ - ङीप्—सभा, सम्मेलन
- गोष्ठी—स्त्री॰—-—गोष्ठ - ङीप्—जन समुदाय, समाज
- गोष्ठी—स्त्री॰—-—गोष्ठ - ङीप्—संलाप, बातचीत, प्रवचन
- गोष्ठी—स्त्री॰—-—गोष्ठ - ङीप्—समुदाय, जमाव
- गोष्ठी—स्त्री॰—-—गोष्ठ - ङीप्—पारिवारिक संबंध, रिश्तेदार
- गोष्ठी—स्त्री॰—-—गोष्ठ - ङीप्—एक प्रकार का एकांकी नाटक
- गोष्ठीपतिः—पुं॰—-—-—सभा का प्रधान, , सभापति
- गोष्पदम्—नपुं॰—-—गोः पदम्, ष॰ त॰ - गो - पद - अच्, नि॰ सुट् षत्वं च—गाय का पैर
- गोष्पदम्—नपुं॰—-—गोः पदम्, ष॰ त॰ - गो - पद - अच्, नि॰ सुट् षत्वं च—धरती पर बना गाय के पैर का चिह्न
- गोष्पदम्—नपुं॰—-—गोः पदम्, ष॰ त॰ - गो - पद - अच्, नि॰ सुट् षत्वं च—पैर के चिह्न में समा जाने वाले जल की मात्रा, अर्थात् बहुत ही छोटा गड्ढा
- गोष्पदम्—नपुं॰—-—गोः पदम्, ष॰ त॰ - गो - पद - अच्, नि॰ सुट् षत्वं च—गाय के खुर-चिह्न में समाने के योग्य मात्रा
- गोष्पदम्—नपुं॰—-—गोः पदम्, ष॰ त॰ - गो - पद - अच्, नि॰ सुट् षत्वं च—वह स्थान जहाँ गौओं का आना-जाना बहुतायत से हो
- गोह्य—वि॰—-—गुह् - ण्यत्—गोपनीय, छिपाने के योग्य
- गौञ्जिकः—पुं॰—-—गुञ्जा - ठक्—सुनार
- गौडः—पुं॰—-—-—एक देश का नाम
- गौडः—पुं॰—-—-—ब्राह्मणों का एक भेद
- गौडाः—पुं॰—-—-—गौड देश के निवासी
- गौडी—स्त्री॰—-—-—गुड़ से बनाई हुई शराब
- गौडी—स्त्री॰—-—-—एक रागिनी
- गौडी—स्त्री॰—-—-—रीति, वृत्ति या काव्य रचना की एक शैली
- गौडिकः—पुं॰—-—गुड - ठक्—ईख, गन्ना
- गौण—वि॰—-—गुण् - अण्—मातहत, द्वितीय कोटी का, अनावश्यक
- गौण—वि॰—-—-—अप्रत्यक्ष या व्यवधान-सहित
- गौण—वि॰—-—-—प्रधान और अप्रधान अर्थ की समानता पर स्थापित
- गौण—वि॰—-—-—गुणा की गणना से संबंध
- गौण—वि॰—-—-—विशेषण
- गौण्यम्—नपुं॰—-—गुण् - ष्यञ्—मातहती निचली या घटिया अवस्थिति
- गौतमः—पुं॰—-—गोतम - अण्—भारद्वाज ऋषि का नाम
- गौतमः—पुं॰—-—-—गौतम का पुत्र, शतानन्द
- गौतमः—पुं॰—-—-—द्रोण का साला, कृपाचार्य
- गौतमः—पुं॰—-—-— बुद्ध
- गौतमः—पुं॰—-—-—न्यायशास्त्र का प्रणेता
- गौतमसंभवा—स्त्री॰—गौतम-संभवा—-—गोदावरी नदी
- गौतमी—स्त्री॰—-—गौतम् - ङीप्—द्रोण की पत्नी, कृपी
- गौतमी—स्त्री॰—-—-—गोदावरी का विशेषण
- गौतमी—स्त्री॰—-—-—बुद्ध की शिक्षा
- गौतमी—स्त्री॰—-—-—गौतम द्वारा प्रणीत न्यायशास्त्र
- गौतमी—स्त्री॰—-—-—हल्दी
- गौतमी—स्त्री॰—-—-—गोरोचन
- गौधूमीनम्—नपुं॰—-—गौधूम - खञ्—गेहूँ का खेत
- गौर्नदः—पुं॰—-—गोनर्द - अण्—महाभाष्य के प्रणेता पतंजलि मुनि का विशेषण
- गौपिकः—पुं॰—-—गोपिका - अण्—गोपी या ग्वाले की स्त्री का पुत्र
- गौप्तेयः—पुं॰—-—गुप्ता - ढक्—वैश्य स्त्री का पुत्र
- गौर—वि॰—-—गु - र, नि॰—श्वेत
- गौर—वि॰—-—-—पीला सा पीत
- गौर—वि॰—-—-—लाल रंग का
- गौर—वि॰—-—-—चमकता हुआ उज्जवल
- गौर—वि॰—-—-—विशुद्ध, स्वच्छ, सुन्दर
- गौरः—पुं॰—-—-—सफेद रंग
- गौरः—पुं॰—-—-—पीला रंग
- गौरः—पुं॰—-—-—लाल रंग
- गौरः—पुं॰—-—-—सफेद सरसों
- गौरः—पुं॰—-—-—चन्द्रमा
- गौरः—पुं॰—-—-—एक प्रकार का भैंसा
- गौरः—पुं॰—-—-—एक प्रकार का हरिण
- गौरम—नपुं॰—-—-—पद्मकेसर
- गौरम—नपुं॰—-—-—जाफरान, सोना
- गौरास्यः—पुं॰—गौर-आस्यः—-—एक प्रकार का काल बन्दर जिसका मुहँ सफेद हो
- गौरसंघर्षः—पुं॰—गौर-संघर्षः—-—सफेद सरसों
- गौरक्ष्यम्—नपुं॰—-—गोरक्षा - ष्यञ्—ग्वाले का कार्य, गोपालन
- गौरवम्—नपुं॰—-—गुरु - अण्—बोझ, भार
- गौरवम्—नपुं॰—-—-—महत्त्व, ऊँचा मूल्य या मूल्यांकन
- गौरवम्—नपुं॰—-—-—सम्मान, आदर, विचार
- गौरवम्—नपुं॰—-—-—सम्मान, मर्यादा, श्रद्धा
- गौरवम्—नपुं॰—-—-—दुष्करता
- गौरवम्—नपुं॰—-—-—दीर्घता
- गौरवम्—नपुं॰—-—-—गहराई
- गौरवासनम्—नपुं॰—गौरवम् - आसनम्—-—सम्मान का पद
- गौरवीरित—वि॰—गौरवम् - ईरित—-—प्रशस्त, यशस्वी, विख्यात
- गौरवित—वि॰—-—गौरव - इतच—अत्यंत सम्मानित, गौरवयुक्त
- गौरिका—स्त्री॰—-—गौरी - कन् - टाप्, इत्वम्—कुमारी कन्या, अविवाहिता लड़की
- गौरिलः—पुं॰—-—-—सफेद सरसों
- गौरिलः—पुं॰—-—-—इस्पात या लोहे का चूरा
- गौरी—स्त्री॰—-—गौर ङीष्—पार्वती
- गौरी—स्त्री॰—-—-—आठवर्ष की आयु की कन्या
- गौरी—स्त्री॰—-—-—वह लड़की जो रजस्वाला नहीं हुई, कुमारी कन्या
- गौरी—स्त्री॰—-—-—गोरे या पीले रंग की स्त्री
- गौरी—स्त्री॰—-—-—पृथ्वी
- गौरी—स्त्री॰—-—-—हल्दी
- गौरी—स्त्री॰—-—-—गोरोचन
- गौरी—स्त्री॰—-—-—वरुण की पत्नी
- गौरी—स्त्री॰—-—-—मल्लिका लता
- गौरी—स्त्री॰—-—-—तुलसी का पौधा
- गौरी—स्त्री॰—-—-—मजीठ का पौधा
- गौरीकान्तः—पुं॰—गौरी-कान्तः—-—शिव का विशेषण
- गौरीनाथः—पुं॰—गौरी-नाथः—-—शिव का विशेषण
- गौरीगुरुः—पुं॰—गौरी-गुरुः—-—हिमालय पहाड़
- गौरीजः—पुं॰—गौरी-जः—-—कार्तिकेय
- गौरीजम्—नपुं॰—गौरी-जम्—-—अभरक
- गौरीपट्टः—पुं॰—गौरी-पट्टः—-—योनिरुपी अर्धा जिसमें शिवलिंग स्थापित किया जाता हैं
- गौरीपुत्रः—पुं॰—गौरी-पुत्रः—-—कार्तिकेय
- गौरीललितम्—नपुं॰—गौरी-ललितम्—-—हरताल
- गौरीसुतः—पुं॰—गौरी-सुतः—-—कार्तिकेय
- गौरीसुतः—पुं॰—गौरी-सुतः—-—गणेश
- गौरीसुतः—पुं॰—गौरी-सुतः—-—ऐसी स्त्री का पुत्र जो जिसका विवाह आठ वर्ष की अवस्था में हुआ था
- गौरुतल्पिकः—पुं॰—-—गुरुतल्प - ठक्—गुरुपत्नी के साथ व्याभिचार करने वाला
- गौलक्षणिकः—पुं॰—-—गोलक्षण - ठक्—जो गाय के शुभ या अशुभ चिह्नों को पहचानता हो
- गौल्मिकः—पुं॰—-—गुल्म - ठक्—किसी सेना की टोली का एक सिपाही
- गौशतिक—वि॰—-—गोशत - ठञ्—सौ गौओं का स्वामी
- ग्मा—स्त्री॰—-—गम् - मा, डित्, डित्त्वात् अमो लोपः—पृथ्वी
- ग्रथ्—भ्वा॰ आ॰ <ग्रथते>—-—-—टेढ़ा होना
- ग्रथ्—भ्वा॰ आ॰ <ग्रथते>—-—-—दुष्ट होना
- ग्रथ्—भ्वा॰ आ॰ <ग्रथते>—-—-—झुकना
- ग्रन्थ्—भ्वा॰ आ॰ <गन्थते>—-—-—टेढ़ा होना
- ग्रन्थ्—भ्वा॰ आ॰ <गन्थते>—-—-—दुष्ट होना
- ग्रन्थ्—भ्वा॰ आ॰ <गन्थते>—-—-—झुकना
- ग्रथनम्—नपुं॰—-—ग्रन्थ् - ल्युट् नलोपः—जमाना, गाढ़ा करना, जाम हो जाना
- ग्रथनम्—नपुं॰—-—ग्रन्थ् - ल्युट् नलोपः—एक जगह नत्थी करना
- ग्रथनम्—नपुं॰—-—ग्रन्थ् - ल्युट् नलोपः—रचना करना लिखना
- ग्रन्थः—पुं॰—-—ग्रन्थ - नङ्—झुंड, गुच्छा, लच्छा
- ग्रथित—भू॰ क॰ कृ॰—-—ग्रन्थ - क्त, नलोपः—एक जगह नत्थी किया हुआ या बांधा हुआ
- ग्रथित—भू॰ क॰ कृ॰—-—-—रचित
- ग्रथित—भू॰ क॰ कृ॰—-—-—क्रमबद्ध, श्रेणीबद्ध
- ग्रथित—भू॰ क॰ कृ॰—-—-—गाढ़ा किया हुआ
- ग्रथित—भू॰ क॰ कृ॰—-—-—गांठवाला
- ग्रन्थ—भ्वा॰ <ग्रन्थति>—-—-—गूंथना, बांधना, नत्थी करना
- ग्रन्थ—भ्वा॰ <ग्रन्थति>—-—-—क्रम से रखना, श्रेणीबद्ध करना, नियमित सिलसिले में जोड़ना
- ग्रन्थ—भ्वा॰ <ग्रन्थति>—-—-—बटना, बटा चढ़ाना
- ग्रन्थ—भ्वा॰ <ग्रन्थति>—-—-—लिखना, रचना करना
- ग्रन्थ—भ्वा॰ <ग्रन्थति>—-—-—बनाना, निर्माण करना, पैदा करना
- ग्रन्थ—क्रया॰ पर॰ <ग्रन्थनाति>—-—-—गूंथना, बांधना, नत्थी करना
- ग्रन्थ—क्रया॰ पर॰ <ग्रन्थनाति>—-—-—क्रम से रखना, श्रेणीबद्ध करना, नियमित सिलसिले में जोड़ना
- ग्रन्थ—क्रया॰ पर॰ <ग्रन्थनाति>—-—-—बटना, बटा चढ़ाना
- ग्रन्थ—क्रया॰ पर॰ <ग्रन्थनाति>—-—-—लिखना, रचना करना
- ग्रन्थ—क्रया॰ पर॰ <ग्रन्थनाति>—-—-—बनाना, निर्माण करना, पैदा करना
- ग्रन्थ—चुरा॰ उभ॰ <ग्रथयति>, <ग्रथयते>—-—-—गूंथना, बांधना, नत्थी करना
- ग्रन्थ—चुरा॰ उभ॰ <ग्रथयति>, <ग्रथयते>—-—-—क्रम से रखना, श्रेणीबद्ध करना, नियमित सिलसिले में जोड़ना
- ग्रन्थ—चुरा॰ उभ॰ <ग्रथयति>, <ग्रथयते>—-—-—बटना, बटा चढ़ाना
- ग्रन्थ—चुरा॰ उभ॰ <ग्रथयति>, <ग्रथयते>—-—-—लिखना, रचना करना
- ग्रन्थ—चुरा॰ उभ॰ <ग्रथयति>, <ग्रथयते>—-—-—बनाना, निर्माण करना, पैदा करना
- ग्रन्थ—भ्वा॰ आ॰ <ग्रथति>, <ग्रथते>—-—-—गूंथना, बांधना, नत्थी करना
- ग्रन्थ—भ्वा॰ आ॰ <ग्रथति>, <ग्रथते>—-—-—क्रम से रखना, श्रेणीबद्ध करना, नियमित सिलसिले में जोड़ना
- ग्रन्थ—भ्वा॰ आ॰ <ग्रथति>, <ग्रथते>—-—-—बटना, बटा चढ़ाना
- ग्रन्थ—भ्वा॰ आ॰ <ग्रथति>, <ग्रथते>—-—-—लिखना, रचना करना
- ग्रन्थ—भ्वा॰ आ॰ <ग्रथति>, <ग्रथते>—-—-—बनाना, निर्माण करना, पैदा करना
- उत्ग्रन्थ—भ्वा॰ आ॰—उद्-ग्रन्थ—-—बांधना, नत्थी करना
- उत्ग्रन्थ—भ्वा॰ आ॰—उद्-ग्रन्थ—-—खोलना, ढीला करना
- ग्रन्थः—पुं॰—-—ग्रन्थ् - घञ्—बांधना, गूंथना
- ग्रन्थः—पुं॰—-—-—कृषि, प्रबन्ध, रचना, साहित्यिक कृति, पुस्तक
- ग्रन्थः—पुं॰—-—-—दौलत, सम्पत्ति
- ग्रन्थः—पुं॰—-—-—३२ मात्राओं का श्लोक
- ग्रन्थकारः—पुं॰—ग्रन्थ-कारः—-—लेखक, रचयिता
- ग्रन्थकृत्—पुं॰—ग्रन्थ-कृत्—-—लेखक, रचयिता
- ग्रन्थकुटी—स्त्री॰—ग्रन्थ-कुटी—-—पुस्तकालय
- ग्रन्थकुटी—स्त्री॰—ग्रन्थ-कुटी—-—कलामन्दिर
- ग्रन्थकूटी—स्त्री॰—ग्रन्थ-कूटी—-—पुस्तकालय
- ग्रन्थकूटी—स्त्री॰—ग्रन्थ-कूटी—-—कलामन्दिर
- ग्रन्थविस्तरः—पुं॰—ग्रन्थ-विस्तरः—-—ग्रन्थ का कई भागों में विभाजन, विस्तारमयी शैली
- ग्रन्थविस्तारः—पुं॰—ग्रन्थ-विस्तारः—-—ग्रन्थ का कई भागों में विभाजन, विस्तारमयी शैली
- ग्रन्थसन्धिः—पुं॰—ग्रन्थ-सन्धिः—-—किसी पुस्तक का अनुभाग या अध्याय
- ग्रन्थनम्—नपुं॰—-—ग्रन्थ् - ल्युट् —जमाना, गाढ़ा करना, जाम हो जाना
- ग्रन्थनम्—नपुं॰—-—ग्रन्थ् - ल्युट् —एक जगह नत्थी करना
- ग्रन्थनम्—नपुं॰—-—ग्रन्थ् - ल्युट् —रचना करना लिखना
- ग्रन्थना—स्त्री॰—-—ग्रन्थ् - ल्युट् - टाप् —जमाना, गाढ़ा करना, जाम हो जाना
- ग्रन्थना—स्त्री॰—-—ग्रन्थ् - ल्युट् - टाप् —एक जगह नत्थी करना
- ग्रन्थना—स्त्री॰—-—ग्रन्थ् - ल्युट् - टाप् —रचना करना लिखना
- ग्रन्थिः—पुं॰—-—ग्रन्थ् - इन्—गाँठ, गुच्छा, उभार
- ग्रन्थिः—पुं॰—-—-—रस्सी का बंधन या गाँठ, वस्त्र की गाँठ
- ग्रन्थिः—पुं॰—-—-—रुपया पैसा रखने के लिए कपड़े के अंचल में गाँठ अतएव बटुवा, धन, सम्पत्ति
- ग्रन्थिः—पुं॰—-—-—नरकुल की गाँठ, गन्ने आदि की पोरों की गाँठ या जोड़
- ग्रन्थिः—पुं॰—-—-—शरीर के अवयवों का जोड़
- ग्रन्थिः—पुं॰—-—-—टेढ़ापन, तोड़ना-मरोड़ना, मिथ्यात्व, सच्चाई में उलट-फेर
- ग्रन्थिः—पुं॰—-—-—शरीर की वाहिकाओं में सूजन, कठोरता
- ग्रन्थिछेदकः—पुं॰—ग्रन्थिः-छेदकः—-—गिरहकट, जेबकतरा
- ग्रन्थिभेदः—पुं॰—ग्रन्थिः-भेदः—-—गिरहकट, जेबकतरा
- ग्रन्थिमोचकः—पुं॰—ग्रन्थिः-मोचकः—-—गिरहकट, जेबकतरा
- ग्रन्थिपर्णः—पुं॰—ग्रन्थिः-पर्णः—-—एक सुगन्धयुक्त वृक्ष
- ग्रन्थिपर्णः—पुं॰—ग्रन्थिः-पर्णः—-—एक प्रकार का सुगन्ध द्रव्य
- ग्रन्थिपर्णम्—नपुं॰—ग्रन्थिः-पर्णम्—-—एक सुगन्धयुक्त वृक्ष
- ग्रन्थिपर्णम्—नपुं॰—ग्रन्थिः-पर्णम्—-—एक प्रकार का सुगन्ध द्रव्य
- ग्रन्थिबन्धनम्—नपुं॰—ग्रन्थिः-बन्धनम्—-—विवाह के अवसर पर दूल्हे और दूलहिन का गठजोड़ा करना
- ग्रन्थिबन्धनम्—नपुं॰—ग्रन्थिः-बन्धनम्—-—बन्धन
- ग्रन्थिहरः—पुं॰—ग्रन्थिः-हरः—-—मन्त्री
- ग्रन्थिकः—पुं॰—-—ग्रन्थि - कै - क—ज्योतिषी, दैवज्ञ
- ग्रन्थिकः—पुं॰—-—-—राजा विराट के यहाँ अज्ञातवाश के अवसर पर नकुल का नाम
- ग्रन्थित—वि॰—-—-—
- ग्रन्थिन्—पुं॰—-—ग्रन्थ - इनि—जो बहुत सी पुस्तकें पढ़ता हो, किताबी
- ग्रन्थिन्—पुं॰—-—-—विद्वान, पण्डित
- ग्रन्थिल—वि॰—-—ग्रन्थिविद्यतेऽस्य - लच्—गाँठवाला, जटिल
- ग्रस्—भ्वा॰ आ॰ <ग्रसते>, <ग्रस्त>—-—-—निगलना, भसकना, खा जाना, समाप्त कर देना
- ग्रस्—भ्वा॰ आ॰ <ग्रसते>, <ग्रस्त>—-—-—पकड़ना
- ग्रस्—भ्वा॰ आ॰ <ग्रसते>, <ग्रस्त>—-—-—ग्रहण लगाना
- ग्रस्—भ्वा॰ आ॰ <ग्रसते>, <ग्रस्त>—-—-—शब्दों को मिला-जुलाकर अस्पष्ट लिखना
- ग्रस्—भ्वा॰ आ॰ <ग्रसते>, <ग्रस्त>—-—-—नष्ट करना
- सङ्ग्रस्—भ्वा॰ आ॰ —सम्-ग्रस्—-—नष्ट करना
- सङ्ग्रस्—भ्वा॰ पर॰ <ग्रसति>—सम्-ग्रस्—-—खाना निगलना
- सङ्ग्रस्—चुरा॰ उभ॰ <ग्रासयति>, <ग्रासयते>—सम्-ग्रस्—-—खाना निगलना
- ग्रसनम्—नपुं॰—-—ग्रस् - ल्युट्—निगलना, खा लेना
- ग्रसनम्—नपुं॰—-—-—पकड़ना, सूर्य या चन्द्रमा का खण्डग्रास
- ग्रस्त—भू॰ क॰ कृ॰—-—ग्रस् - क्त—खाया हुआ, निगला हुआ
- ग्रस्त—भू॰ क॰ कृ॰—-—-—पकड़ा हुआ, पीड़ित, ग्रस्त, अधिकृत
- ग्रस्त—भू॰ क॰ कृ॰—-—-—ग्रहणग्रस्त
- ग्रस्तम्—नपुं॰—-—-—अर्धोच्चारित शब्द या वाक्य
- ग्रस्तास्तम्—नपुं॰—ग्रस्त-अस्तम्—-—ग्रहणग्रस्त सूर्य या चन्द्रमा का अस्त होना
- ग्रस्तोदयः—पुं॰—ग्रस्त-उदयः—-—ग्रहणग्रस्त सूर्य या चन्द्रमा का उदय होना
- ग्रह्—क्र्या॰ उभ॰ वेद में ‘ग्रभ्’ <गृहणाति>, <गृहीत>, पुं॰—-—-—पकड़ना, लेना, ग्रहण करना, पकड़ लेना, थामना, लपक लेना, कसकर पकड़ना
- ग्रह्—क्र्या॰ उभ॰ वेद में ‘ग्रभ्’ <गृहणाति>, <गृहीत>, पुं॰—-—-—प्राप्त करना, लेना, स्वीकार करना, बलपूर्वक वसूल करना
- ग्रह्—क्र्या॰ उभ॰ वेद में ‘ग्रभ्’ <गृहणाति>, <गृहीत>, पुं॰—-—-—हिरासत में लेना, गिरफ्तार करना, बन्दी करना
- ग्रह्—क्र्या॰ उभ॰ वेद में ‘ग्रभ्’ <गृहणाति>, <गृहीत>, पुं॰—-—-—गिरफ्तार करना, रोकना, पकड़ना
- ग्रह्—क्र्या॰ उभ॰ वेद में ‘ग्रभ्’ <गृहणाति>, <गृहीत>, पुं॰—-—-—मोह लेना, आकृष्ट करना
- ग्रह्—क्र्या॰ उभ॰ वेद में ‘ग्रभ्’ <गृहणाति>, <गृहीत>, पुं॰—-—-—जीत लेना, उकसाना, अपनी ओर करने के लिए फुसलाना
- ग्रह्—क्र्या॰ उभ॰ वेद में ‘ग्रभ्’ <गृहणाति>, <गृहीत>, पुं॰—-—-—प्रसन्न करना, सन्तुष्ट करना, तृप्त करना, अनुकूल करना
- ग्रह्—क्र्या॰ उभ॰ वेद में ‘ग्रभ्’ <गृहणाति>, <गृहीत>, पुं॰—-—-—ग्रस्त करना, चिपटना, खुलना
- ग्रह्—क्र्या॰ उभ॰ वेद में ‘ग्रभ्’ <गृहणाति>, <गृहीत>, पुं॰—-—-—धारणा करना, लेना
- ग्रह्—क्र्या॰ उभ॰ वेद में ‘ग्रभ्’ <गृहणाति>, <गृहीत>, पुं॰—-—-—सीखना, जानना, पहचानना, समझना
- ग्रह्—क्र्या॰ उभ॰ वेद में ‘ग्रभ्’ <गृहणाति>, <गृहीत>, पुं॰—-—-—ध्यान देना, विचार करना, विश्वास करना, मान लेना
- ग्रह्—क्र्या॰ उभ॰ वेद में ‘ग्रभ्’ <गृहणाति>, <गृहीत>, पुं॰—-—-—समझ लेना, या प्रत्यक्ष करना
- ग्रह्—क्र्या॰ उभ॰ वेद में ‘ग्रभ्’ <गृहणाति>, <गृहीत>, पुं॰—-—-—पारंगत होना, मस्तिष्क से पकड़ना, समझ लेना
- ग्रह्—क्र्या॰ उभ॰ वेद में ‘ग्रभ्’ <गृहणाति>, <गृहीत>, पुं॰—-—-—अनुमान लगाना, अटकल लगाना, अन्दाज करना
- ग्रह्—क्र्या॰ उभ॰ वेद में ‘ग्रभ्’ <गृहणाति>, <गृहीत>, पुं॰—-—-—उच्चारण करना, उल्लेख करना
- ग्रह्—क्र्या॰ उभ॰ वेद में ‘ग्रभ्’ <गृहणाति>, <गृहीत>, पुं॰—-—-—मोल लेना, खरीदना
- ग्रह्—क्र्या॰ उभ॰ वेद में ‘ग्रभ्’ <गृहणाति>, <गृहीत>, पुं॰—-—-—किसी को वंचित करना, छीन लेना, लूट लेना, बलपूर्वक ले लेना
- ग्रह्—क्र्या॰ उभ॰ वेद में ‘ग्रभ्’ <गृहणाति>, <गृहीत>, पुं॰—-—-—पहनना, धारण करना
- ग्रह्—क्र्या॰ उभ॰ वेद में ‘ग्रभ्’ <गृहणाति>, <गृहीत>, पुं॰—-—-—गर्भ धारण करना
- ग्रह्—क्र्या॰ उभ॰ वेद में ‘ग्रभ्’ <गृहणाति>, <गृहीत>, पुं॰—-—-—उपवास रखना
- ग्रह्—क्र्या॰ उभ॰ वेद में ‘ग्रभ्’ <गृहणाति>, <गृहीत>, पुं॰—-—-—ग्रहण लगना
- ग्रह्—क्र्या॰ उभ॰ वेद में ‘ग्रभ्’ <गृहणाति>, <गृहीत>, पुं॰—-—-—उत्तरदायित्व लेना
- ग्रह्—क्र्या॰ उभ॰, पुं॰—-—-—ग्रहण करवाना, पकड़वाना, स्वीकार करवाना
- ग्रह्—क्र्या॰ उभ॰, पुं॰—-—-—विवाह में उपहार देना
- ग्रह्—क्र्या॰ उभ॰, पुं॰—-—-—सिखाना, परिचित करवाना
- अनुग्रह्—क्र्या॰ उभ॰—अनु-ग्रह्—-—अनुग्रह करना, आभार मानना, कृपा प्रदर्शित करना
- अनुसंग्रह्—क्र्या॰ उभ॰—अनुसम्-ग्रह्—-—विनम्र नमस्कार करना
- अपग्रह्—क्र्या॰ उभ॰—अप-ग्रह्—-—दूर करना, फाड़ना
- अभिग्रह्—क्र्या॰ उभ॰—अभि-ग्रह्—-—बलपूर्वक पकड़ना
- अवग्रह्—क्र्या॰ उभ॰—अव-ग्रह्—-—विरोध करना, मुकाबला करना
- अवग्रह्—क्र्या॰ उभ॰—अव-ग्रह्—-—दण्ड देना
- अवग्रह्—क्र्या॰ उभ॰—अव-ग्रह्—-—हस्तगत करना, पराभूत करना
- आग्रह्—क्र्या॰ उभ॰—आ-ग्रह्—-—आग्रह करना
- उदग्रह्—क्र्या॰ उभ॰—उद्-ग्रह्—-—उठाना, ऊपर करना, सीधा खड़ा करना
- उदग्रह्—क्र्या॰ उभ॰—उद्-ग्रह्—-—जमा करना, निकालना
- उपग्रह्—क्र्या॰ उभ॰—उप-ग्रह्—-—जुटाना
- उपग्रह्—क्र्या॰ उभ॰—उप-ग्रह्—-—पकड़ना लेना, अधिकार में ले लेना
- उपग्रह्—क्र्या॰ उभ॰—उप-ग्रह्—-—स्वीकार करना, मंजूरी देना
- उपग्रह्—क्र्या॰ उभ॰—उप-ग्रह्—-—सहायता करना, अनुग्रह करना
- निग्रह्—क्र्या॰ उभ॰—नि-ग्रह्—-—थाम लेना, जांच-पड़ताल करना
- निग्रह्—क्र्या॰ उभ॰—नि-ग्रह्—-—दमन करना, रोकना, दबाना, निमंत्रण करना
- निग्रह्—क्र्या॰ उभ॰—नि-ग्रह्—-—ठहराना, बाधा डालना
- निग्रह्—क्र्या॰ उभ॰—नि-ग्रह्—-—दण्ड देना, सजा देना
- निग्रह्—क्र्या॰ उभ॰—नि-ग्रह्—-—पकड़ना, लेना, हाथ डालना
- निग्रह्—क्र्या॰ उभ॰—नि-ग्रह्—-—बन्द करना. मूंदना
- परिग्रह्—क्र्या॰ उभ॰—परि-ग्रह्—-—कौली भरना, आलिंगन करना
- परिग्रह्—क्र्या॰ उभ॰—परि-ग्रह्—-—घेरना
- परिग्रह्—क्र्या॰ उभ॰—परि-ग्रह्—-—हस्तगत करना, पकड़ना
- परिग्रह्—क्र्या॰ उभ॰—परि-ग्रह्—-—लेना, धारण करना
- परिग्रह्—क्र्या॰ उभ॰—परि-ग्रह्—-—स्वीकार करना
- परिग्रह्—क्र्या॰ उभ॰—परि-ग्रह्—-—सहायता करना, संरक्षण देना
- प्रग्रह्—क्र्या॰ उभ॰—प्र-ग्रह्—-—लेना, पकड़ लेना
- प्रग्रह्—क्र्या॰ उभ॰—प्र-ग्रह्—-—दमन करना, रोकना
- प्रग्रह्—क्र्या॰ उभ॰—प्र-ग्रह्—-—फैलाना, विस्तार करना
- प्रतिग्रह्—क्र्या॰ उभ॰—प्रति-ग्रह्—-—थामना, पकड़ना, सहायता देना
- प्रतिग्रह्—क्र्या॰ उभ॰—प्रति-ग्रह्—-—लेना, स्वीकार करना, प्राप्त करना
- प्रतिग्रह्—क्र्या॰ उभ॰—प्रति-ग्रह्—-—उपहार स्वरुप लेना या स्वीकार करना
- प्रतिग्रह्—क्र्या॰ उभ॰—प्रति-ग्रह्—-—शत्रुवत व्यवहार करना, विरोध करना, मुकाबला करना, रोकना
- प्रतिग्रह्—क्र्या॰ उभ॰—प्रति-ग्रह्—-—पाणिग्रहण करना
- प्रतिग्रह्—क्र्या॰ उभ॰—प्रति-ग्रह्—-—आज्ञा मानना, समनुरुप होना, ध्यान से सुनना
- प्रतिग्रह्—क्र्या॰ उभ॰—प्रति-ग्रह्—-—आश्रय लेना, अवलंबित होना
- विग्रह्—क्र्या॰ उभ॰—वि-ग्रह्—-—थामना या पकड़ना
- विग्रह्—क्र्या॰ उभ॰—वि-ग्रह्—-—कलह करना, लड़ना, विवाद करना
- संग्रह्—क्र्या॰ उभ॰—सम्-ग्रह्—-—संग्रह करना, एकत्र करना, संचय करना, जोड़ना
- संग्रह्—क्र्या॰ उभ॰—सम्-ग्रह्—-—सानुग्रह प्राप्त करना
- संग्रह्—क्र्या॰ उभ॰—सम्-ग्रह्—-—दमन करना, रोकना, लगाम देना
- संग्रह्—क्र्या॰ उभ॰—सम्-ग्रह्—-—डोरी डालना
- संग्रह्—भ्वा॰ पर॰ <ग्रहति>—सम्-ग्रह्—-—लेना, प्राप्त करना आदि
- संग्रह्—चुरा॰ उभ॰ <ग्राहयति>, <ग्राहयते>—सम्-ग्रह्—-—लेना, प्राप्त करना आदि
- ग्रहः—पुं॰—-—ग्रह - अच्—पकड़ना, ग्रहण करना, अधिकार जमाना, अभिग्रहण
- ग्रहः—पुं॰—-—-—पकड़, ग्रहण, प्रभाव
- ग्रहः—पुं॰—-—-—लेना, प्राप्त करना, स्वीकार करना, प्राप्ति
- ग्रहः—पुं॰—-—-—चुराना, लूटना
- ग्रहः—पुं॰—-—-—लूट का माल, बटमारी
- ग्रहः—पुं॰—-—-—ग्रहण लगना,
- ग्रहः—पुं॰—-—-—ग्रह
- ग्रहः—पुं॰—-—-—उल्लेख, उच्चारण, गुहराना
- ग्रहः—पुं॰—-—-—मगरमच्छ, घड़ियाल
- ग्रहः—पुं॰—-—-—पिशाचशिशु, भूतना
- ग्रहः—पुं॰—-—-—अनिष्टकर राक्षसों का एक विशेष वर्ग जो बच्चों से चिपटकर उन्हें ऐंठन मरोड़ या कुमेड़ों से ग्रस्त कर देता हैं
- ग्रहः—पुं॰—-—-—ग्रहण, प्रत्यक्षीकरण
- ग्रहः—पुं॰—-—-—समझने का अंग या उपकरण
- ग्रहः—पुं॰—-—-—दृढ़ग्राहिता, धैर्य, अध्यवसाय
- ग्रहः—पुं॰—-—-—प्रयोजन, आकल्पन
- ग्रहः—पुं॰—-—-—अनुग्रह, संरक्षण
- ग्रहाधीन—वि॰—ग्रह-अधीन—-—ग्रहों के प्रभाव पर निर्भर
- ग्रहावमर्दनः—पुं॰—ग्रह-अवमर्दनः—-—राहु का विशेषण
- ग्रहावमर्दनम्—नपुं॰—ग्रह-अवमर्दनम्—-—ग्रहों की टक्कर
- ग्रहाधीशः—पुं॰—ग्रह-अधीशः—-—सूर्य
- ग्रहाधारः—पुं॰—ग्रह-आधारः—-—ध्रुव, नक्षत्र
- ग्रहाश्रयः—पुं॰—ग्रह-आश्रयः—-—ध्रुव, नक्षत्र
- ग्रहामयः—पुं॰—ग्रह-आमयः—-—मिर्गी
- ग्रहामयः—पुं॰—ग्रह-आमयः—-—भूतावेश
- ग्रहालुञ्चनम्—नपुं॰—ग्रह-आलुञ्चनम्—-—अपने शिकार पर झपटना और उसे फाड़ डालना
- ग्रहीशः—पुं॰—ग्रह-ईशः—-—सूर्य
- ग्रहकल्लोलः—पुं॰—ग्रह-कल्लोलः—-—राहु का विशेषण
- ग्रहगतिः—पुं॰—ग्रह-गतिः—-—ग्रहों की चाल
- ग्रहचिन्तकः—पुं॰—ग्रह-चिन्तकः—-—ज्योतिषी
- ग्रहदशा—स्त्री॰—ग्रह-दशा—-—जन्म राशि की दृष्टि से ग्रहों की स्थिति
- ग्रहदेवता—स्त्री॰—ग्रह-देवता—-—ग्रह विशेष का अधिष्ठात्री देवता
- ग्रहनायकः—पुं॰—ग्रह-नायकः—-—सूर्य
- ग्रहनायकः—पुं॰—ग्रह-नायकः—-—शनि का विशेषण
- ग्रहनेमिः—पुं॰—ग्रह-नेमिः—-—चन्द्रमा
- ग्रहपतिः—पुं॰—ग्रह-पतिः—-—सूर्य
- ग्रहपतिः—पुं॰—ग्रह-पतिः—-—चन्द्रमा
- ग्रहपीडनम्—नपुं॰—ग्रह-पीडनम्—-—ग्रहजनित पीडा, बाधा
- ग्रहपीडनम्—नपुं॰—ग्रह-पीडनम्—-—ग्रहण लगना
- ग्रहपीडा—स्त्री॰—ग्रह-पीडा—-—ग्रहजनित पीडा, बाधा
- ग्रहपीडा—स्त्री॰—ग्रह-पीडा—-—ग्रहण लगना
- ग्रहमण्डलम्—नपुं॰—ग्रह-मण्डलम्—-—ग्रहों का वृत्त
- ग्रहमण्डली—स्त्री॰—ग्रह-मण्डली—-—ग्रहों का वृत्त
- ग्रहयुतिः—पुं॰—ग्रह-युतिः—-—एक ही राशि पर ग्रहों का संयोग
- ग्रहयुद्धम्—नपुं॰—ग्रह-युद्धम्—-—ग्रहों का परस्पर विरोध या संघर्ष
- ग्रहराजः—पुं॰—ग्रह-राजः—-—सूर्य
- ग्रहराजः—पुं॰—ग्रह-राजः—-—चन्द्रमा
- ग्रहराजः—पुं॰—ग्रह-राजः—-—बृहस्पति
- ग्रहवर्षः—पुं॰—ग्रह-वर्षः—-—ग्रहों की चाल के अनुसार माना जाने वाला वर्ष
- ग्रहविप्रः—पुं॰—ग्रह-विप्रः—-—ज्योतिषी
- ग्रहशान्तिः—स्त्री॰ —ग्रह-शान्तिः—-—यज्ञ, जप, पूजनादि के द्वारा ग्रहदोष की निवृत्ति का उपाय किया जाना, ग्रहों को प्रसन्न करना
- ग्रहसंगमम्—नपुं॰—ग्रह-संगमम्—-—कई ग्रहों का इकट्ठा हो जाना
- ग्रहणम्—नपुं॰—-—ग्रह - ल्युट्—पकड़ना, फांसना, अभिग्रहण
- ग्रहणम्—नपुं॰—-—-—प्राप्त करना, स्वीकार करना, ले लेना
- ग्रहणम्—नपुं॰—-—-—उल्लेख करना, उच्चारण करना
- ग्रहणम्—नपुं॰—-—-—पहनना, धारण करना
- ग्रहणम्—नपुं॰—-—-—ग्रहण लगना
- ग्रहणम्—नपुं॰—-—-—अवबोधन, समझ, ज्ञान
- ग्रहणम्—नपुं॰—-—-—अधिगम, अवाप्ति, मन से समझ लेना, पारंगत होना
- ग्रहणम्—नपुं॰—-—-—शब्द पकड़ना, प्रतिध्वनि
- ग्रहणम्—नपुं॰—-—-—हाथ
- ग्रहणम्—नपुं॰—-—-—इन्द्रिय
- ग्रहणिः—स्त्री॰—-—ग्रह् - अनि—अतिसार, पेचिश
- ग्रहणी—स्त्री॰—-—ग्रहणि - ङीष्—अतिसार, पेचिश
- ग्रहिल—वि॰—-—ग्रह - इलच्—लेनेवाला, स्वीकार करने वाला
- ग्रहिल—वि॰—-—-—न दबने वाला, अटल, कठोर
- ग्रहीतृ—वि॰—-—ग्रह् - तृच्, इटो दीर्घः—प्राप्तकर्ता
- ग्रहीतृ—वि॰—-—-—प्रत्यक्षज्ञाता, निरीक्षक
- ग्रहीतृ—वि॰—-—-—कर्जदार
- ग्रामः—पुं॰—-—ग्रस् - मन्, अदन्तादेशः—गाँव, पुरवा
- ग्रामः—पुं॰—-—-—वंश, जाति
- ग्रामः—पुं॰—-—-—समुच्चय, संग्रह
- ग्रामः—पुं॰—-—-—सरगम, स्वरग्राम या सुरक्रम
- ग्रामाधिकृतः—पुं॰—ग्राम-अधिकृतः—-—ग्राम का अधीक्षक, मुखिया या प्रधान
- ग्रामाध्यक्षः—पुं॰—ग्राम-अध्यक्षः—-—ग्राम का अधीक्षक, मुखिया या प्रधान
- ग्रामीशः—पुं॰—ग्राम-ईशः—-—ग्राम का अधीक्षक, मुखिया या प्रधान
- ग्रामीश्वरः—पुं॰—ग्राम-ईश्वरः—-—ग्राम का अधीक्षक, मुखिया या प्रधान
- ग्रामान्तः—पुं॰—ग्राम-अन्तः—-—गाँव की सीमा, गाँव की समीपवर्ती जगह
- ग्रामान्तरम्—नपुं॰—ग्राम-अन्तरम्—-—दूसरा गाँव
- ग्रामान्तिकम्—नपुं॰—ग्राम-अन्तिकम्—-—गाँव का पडौस
- ग्रामाचारः—पुं॰—ग्राम-आचारः—-—गाँव के रस्म-रिवाज
- ग्रामाधानम्—नपुं॰—ग्राम-आधानम्—-—शिकार
- ग्रामोपाध्यायः—पुं॰—ग्राम-उपाध्यायः—-—गाँव का पुरोहित
- ग्रामकण्टकः—पुं॰—ग्राम-कण्टकः—-—गाँव के लिए कांटा’ जो गाँव के लिए कष्ट देने वाला हो
- ग्रामकण्टकः—पुं॰—ग्राम-कण्टकः—-—चुगलखोर
- ग्रामकुक्कुटः—पुं॰—ग्राम-कुक्कुटः—-—पालतू मुर्गा
- ग्रामकुमारः—पुं॰—ग्राम-कुमारः—-—ग्राम का सुन्दर बालक
- ग्रामकुमारः—पुं॰—ग्राम-कुमारः—-—देहाती लड़का
- ग्रामकूटः—पुं॰—ग्राम-कूटः—-—गाँव का श्रेष्ठ पुरुष
- ग्रामकूटः—पुं॰—ग्राम-कूटः—-—शूद्र
- ग्रामगृह्य—वि॰—ग्राम-गृह्य—-—गाँव के बाहर होने वाला
- ग्रामगोदुहः—पुं॰—ग्राम-गोदुहः—-—गाँव का ग्वाला
- ग्रामघातः—पुं॰—ग्राम-घातः—-—गाँव को लूटना
- ग्रामघोषिन्—पुं॰—ग्राम-घोषिन्—-—इन्द्र का विशेषण
- ग्रामचर्या—स्त्री॰—ग्राम-चर्या—-—स्त्री संभोग
- ग्रामचैत्यः—पुं॰—ग्राम-चैत्यः—-—गाँव का पवित्र ‘गूलर’ का वृक्ष
- ग्रामजालम्—नपुं॰—ग्राम-जालम्—-—गाँवों का समूह, ग्राममंडलम्
- ग्रामणीः—स्त्री॰—ग्राम-णीः—-—गाँव या जाति का नेता या मुखिया
- ग्रामणीः—स्त्री॰—ग्राम-णीः—-—नेता, प्रधान
- ग्रामणीः—स्त्री॰—ग्राम-णीः—-—नाई
- ग्रामणीः—स्त्री॰—ग्राम-णीः—-—विषयासक्त पुरुष
- ग्रामणीः—स्त्री॰—ग्राम-णीः—-—वारांगना, वेश्या
- ग्रामणीः—स्त्री॰—ग्राम-णीः—-—नील का पौधा
- ग्रामतक्षः—पुं॰—ग्राम-तक्षः—-—गाँव का बढ़ई
- ग्रामदेवता—स्त्री॰—ग्राम-देवता—-—गाँव का अभिरक्षक देवता
- ग्रामधर्मः—पुं॰—ग्राम-धर्मः—-—स्त्री संभोग
- ग्रामप्रेष्यः—पुं॰—ग्राम-प्रेष्यः—-—किसी गाँव या जाति का दूत या सेवक
- ग्राममद्गुरिका—स्त्री॰—ग्राम-मद्गुरिका—-—झगड़ा, फसाद, हंगामा, हल्लागुल्ला
- ग्राममुखः—पुं॰—ग्राम-मुखः—-—बाजार, मंडी
- ग्राममृगः—पुं॰—ग्राम-मृगः—-—कुत्ता
- ग्रामयाजकः—पुं॰—ग्राम-याजकः—-—ग्राम पुरोहित
- ग्रामयाजकः—पुं॰—ग्राम-याजकः—-—पुजारी
- ग्रामयाजिन्—पुं॰—ग्राम-याजिन्—-—ग्राम पुरोहित
- ग्रामयाजिन्—पुं॰—ग्राम-याजिन्—-—पुजारी
- ग्रामलुण्ठनम्—नपुं॰—ग्राम-लुण्ठनम्—-—गाँव को लूटना
- ग्रामवासः—पुं॰—ग्राम-वासः—-—गाँव में रहना
- ग्रामषण्डः—पुं॰—ग्राम-षण्डः—-—नपुंसक, क्लीव
- ग्रामसंघः—पुं॰—ग्राम-संघः—-—ग्राम-निगम
- ग्रामसिंह—पुं॰—ग्राम-सिंह—-—कुत्ता
- ग्रामस्थ—वि॰—ग्राम-स्थ—-—गाँव में रहने वाला, ग्रामीण
- ग्रामस्थ—वि॰—ग्राम-स्थ—-—गाँव का सहवासी, एक ही गाँव का रहने वाला साथी
- ग्रामहासकः—पुं॰—ग्राम-हासकः—-—बहनोई, जीजा
- ग्रामटिका—स्त्री॰—-—?—गाँवड़ी, अभागा गाँव, दरिद्र गाँव
- ग्रामिक—वि॰—-—ग्राम - ठञ्—देहाती, गंवार
- ग्रामिक—वि॰—-—-—अक्खड़
- ग्रामिकः—पुं॰—-—-—गाँव का चौधरी या मुखिया
- ग्रामीणः—पुं॰—-—ग्राम - खञ्—ग्रामवासी, गाँव का रहने वाला
- ग्रामीणः—पुं॰—-—-—कुत्ता
- ग्रामीणः—पुं॰—-—-—कौवा
- ग्रामीणः—पुं॰—-—-—सूअर
- ग्रामेय—वि॰—-—ग्राम - ढक्—गाँव में उत्पन्न, गंवार
- ग्रामेयी—स्त्री॰—-—-—रंडी, वेश्या
- ग्राम्य—वि॰—-—ग्राम - यत्—गाँव से संबंध रखने वाला, गाँव में रहने का अभ्यस्त
- ग्राम्य—वि॰—-—-—गाँव में रहने वाला, देहाती, गंवार
- ग्राम्य—वि॰—-—-—घरेलू, पालतू
- ग्राम्य—वि॰—-—-—आवर्धित
- ग्राम्य—वि॰—-—-—नीच, अशिष्ट, केवल ओछे व्यक्तियों द्वारा प्रयुक्त
- ग्राम्य—वि॰—-—-—अभद्र, अश्लील
- ग्राम्यः—पुं॰—-—-—पालतू सूअर
- ग्राम्यम्—नपुं॰—-—-—गंवारु भाषण
- ग्राम्यम्—नपुं॰—-—-—देहात में तैयार किया हुआ भोजन
- ग्राम्यम्—नपुं॰—-—-—मैथुन
- ग्राम्याश्वः—पुं॰—ग्राम्य-अश्वः—-—गधा
- ग्राम्यकर्मन्—नपुं॰—ग्राम्य-कर्मन्—-—ग्रामीण का व्यवसाय
- ग्राम्यकुङ्कुमम्—नपुं॰—ग्राम्य-कुङ्कुमम्—-—कुसुम
- ग्राम्यधर्मः—पुं॰—ग्राम्य-धर्मः—-—ग्रामीण का कर्तव्य
- ग्राम्यधर्मः—पुं॰—ग्राम्य-धर्मः—-—स्त्री संभोग, मैथुन
- ग्राम्यबुद्धि—वि॰—ग्राम्य-बुद्धि—-—उजड्ड, मजाकिया, अनाड़ी
- ग्राम्यवल्लभा—स्त्री॰—ग्राम्य-वल्लभा—-—वेश्या, रंडी
- ग्राम्यसुखम्—नपुं॰—ग्राम्य-सुखम्—-—स्त्री संभोग, मैथुन
- ग्रावन्—पुं॰—-—ग्रस् = ड = ग्रः, ग्र - आ - वन् - विच्—पत्थर, चट्टान
- ग्रावन्—पुं॰—-—-—पहाड़
- ग्रावन्—पुं॰—-—-— बादल
- ग्रासः—पुं॰—-—ग्रस् - घञ्—कौर, कौर के बराबर कोई वस्तु
- ग्रासः—पुं॰—-—-—भोजन, पोषण
- ग्रासः—पुं॰—-—-—सूर्य और चन्द्रमा का ग्रहणग्रस्त भाग
- ग्रासाच्छादनम्—नपुं॰—ग्रास-आच्छादनम्—-—भोजन, वस्त्र
- ग्रासशल्यम्—नपुं॰—ग्रास-शल्यम्—-—गले में अटकने वाला कोई पदार्थ
- ग्राह—वि॰—-—ग्रह् - घञ्—पकड़ने वाला, मुट्ठी से जकड़ने वाला, लेने वाला, थामने वाला, प्राप्त करने वाला
- ग्राहः—पुं॰—-—-—पकड़ना, जकड़ना
- ग्राहः—पुं॰—-—-—घडियाल, मगरमच्छ
- ग्राहः—पुं॰—-—-—बन्दी
- ग्राहः—पुं॰—-—-—स्वीकरण
- ग्राहः—पुं॰—-—-—समझना, ज्ञान
- ग्राहः—पुं॰—-—-—हठ, दृढाग्रह
- ग्राहः—पुं॰—-—-—निर्धारण, दृढ़ निश्चय
- ग्राहः—पुं॰—-—-—रोग
- ग्राहक—वि॰—-—ग्रह् - ण्वुल्—प्राप्त करने वाला, लेने वाला
- ग्राहकः—पुं॰—-—-—बाज, श्येन
- ग्राहकः—पुं॰—-—-—विष-चिकित्सका
- ग्राहकः—पुं॰—-—-—क्रेता, खरीदार
- ग्राहकः—पुं॰—-—-—पुलिस अधिकारी
- ग्रीवा—स्त्री॰—-—गिरत्यनया - गृ - वनिप्, नि॰—गर्दन का पिछला भाग
- ग्रीवाघण्टा—स्त्री॰—ग्रीवा-घण्टा—-—घोड़े के गले में लटकता हुआ घण्टा
- ग्रीवालिका—स्त्री॰—-—-—
- ग्रीविन्—पुं॰—-—ग्रीवा - इनि—उँट
- ग्रीष्म—वि॰—-—ग्रसते रसान् - ग्रस् - मनिन्—गरम, उष्ण
- ग्रीष्मः—पुं॰—-—-—गर्मी का मौसम, गरम ऋतु
- ग्रीष्मः—पुं॰—-—-—गर्मी, उष्णता
- ग्रीष्मकालीन—वि॰—ग्रीष्म-कालीन—-—गर्मी के मौसम से संबंध रखने वाला
- ग्रीष्मोद्भवा—वि॰—ग्रीष्म-उद्भवा—-—नवमल्लिका लता, नेवारी
- ग्रीष्मजा—स्त्री॰—ग्रीष्म-जा—-—नवमल्लिका लता, नेवारी
- ग्रीष्मभवा—स्त्री॰—ग्रीष्म-भवा—-—नवमल्लिका लता, नेवारी
- ग्रैव—वि॰—-—ग्रीवा - अण, ढञ् वा—गर्दन पर होने वाला या गर्दनसंबंधी
- ग्रैवेय—वि॰—-—ग्रीवा - अण, ढञ् वा—गर्दन पर होने वाला या गर्दनसंबंधी
- ग्रैवम्—नपुं॰—-—-—गले का पट्टा या हार
- ग्रैवम्—नपुं॰—-—-—हाथी के गर्दन में पहनी जाने वाली जंजीर
- ग्रैवेयम्—नपुं॰—-—-—गले का पट्टा या हार
- ग्रैवेयम्—नपुं॰—-—-—हाथी के गर्दन में पहनी जाने वाली जंजीर
- ग्रैवेयकम्—नपुं॰—-—ग्रीवा- ढकञ्—गले का आभूषण
- ग्रैवेयकम्—नपुं॰—-—-—हाथी के गले में पहने जाने वाली जंजीर
- ग्रैष्मक—वि॰—-—ग्रीष्म् - बुञ्—गरमी के मौसम में बोया हुआ
- ग्रैष्मक—वि॰—-—-—गरमी के ऋतु में दिया जाने वाला
- ग्लपनम्—नपुं॰—-—ग्लै - णिच् - ल्युट्, पुक्, ह्रस्व—मुरझाना, सूख जाना
- ग्लपनम्—नपुं॰—-—-—थकावट
- ग्लस्—भ्वा॰ आ॰ <ग्लराते>, <ग्लस्त>—-—-—खाना, निगलना
- ग्लह्—भ्वा॰ उभ॰ <ग्लहति>, <ग्लहते>—-—-—जूआ खेलना, जूए में जीतना
- ग्लह्—भ्वा॰ उभ॰ <ग्लहति>, <ग्लहते>—-—-—लेना, प्राप्त करना
- ग्लह्—चुरा॰ आ॰ <ग्लाहयति>, <ग्लाहयते>—-—-—जूआ खेलना, जूए में जीतना
- ग्लह्—चुरा॰ आ॰ <ग्लाहयति>, <ग्लाहयते>—-—-—लेना, प्राप्त करना
- ग्लहः—पुं॰—-—ग्लह् - अप्—पासे से खेलने वाला
- ग्लहः—पुं॰—-—ग्लह् - अप्—दाव, बाजी लगाना, शर्त लगाना
- ग्लहः—पुं॰—-—ग्लह् - अप्—पासा
- ग्लहः—पुं॰—-—ग्लह् - अप्—जूआ खेलना
- ग्लहः—पुं॰—-—ग्लह् - अप्—बिसात
- ग्लान—भू॰ क॰ कृ॰—-—ग्लै - क्त—क्लान्त, श्रान्त, थका हुआ, ग्लान, अवसन्न
- ग्लान—भू॰ क॰ कृ॰—-—ग्लै - क्त—रोगी, बीमार
- ग्लानिः—स्त्री॰—-—ग्लै - नि—अवसाद, क्लान्ति, थकावट
- ग्लानिः—स्त्री॰—-—ग्लै - नि—ह्रास क्षय
- ग्लानिः—स्त्री॰—-—ग्लै - नि—दुर्बलता, निर्बलता
- ग्लानिः—स्त्री॰—-—ग्लै - नि—बीमारी
- ग्लास्नु—वि॰—-—ग्लै - स्नु—क्लान्त, श्रान्त
- ग्लुच्—भ्वा॰ पर॰ <ग्लोचति>, <ग्लुक्त>—-—-—जाना, चलना-फिरना
- ग्लुच्—भ्वा॰ पर॰ <ग्लोचति>, <ग्लुक्त>—-—-—चुराना, लूटना
- ग्लुच्—भ्वा॰ पर॰ <ग्लोचति>, <ग्लुक्त>—-—-—छिन लेना, वञ्चित करना
- ग्लै—भ्वा॰ पर॰ <ग्लायति>, <ग्लान>—-—-—विरक्ति या अरुचि अनुभव करना, काम करने को जी न करना
- ग्लै—भ्वा॰ पर॰ <ग्लायति>, <ग्लान>—-—-—क्लान्त या श्रान्त होना, थका हुआ या अवसन्न अनुभव करना
- ग्लै—भ्वा॰ पर॰ <ग्लायति>, <ग्लान>—-—-—साहस छोड़ना, हतोत्साह होना, उदास होना
- ग्लै—भ्वा॰ पर॰ <ग्लायति>, <ग्लान>—-—-—क्षीण होना, मूर्छित होना
- ग्लै—पुं॰—-—-—सुखा देना, शुष्क कर देना, चोट पहुँचाना, क्षति पहुँचाना
- ग्लै—पुं॰—-—-—थका देना
- ग्लौ—पुं॰—-—ग्लै - डौ—चन्द्रमा
- ग्लौ—पुं॰—-—-—कपूर