विक्षनरी:संस्कृत-हिन्दी शब्दकोश/पत-पा
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- मूलशब्द—व्याकरण—संधिरहित मूलशब्द—व्युत्पत्ति—हिन्दी अर्थ
- पत्—भ्वा॰ पर॰ <पतति>, <पतित>—-—-—गिरना, गिर पड़ना, नीचे आना, उतरना
- पत्—भ्वा॰ पर॰ <पतति>, <पतित>—-—-—उड़ना, वायु में आना जाना, उड़ान भरना
- पत्—भ्वा॰ पर॰ <पतति>, <पतित>—-—-—छिपाना, डूबना
- पत्—भ्वा॰ पर॰ <पतति>, <पतित>—-—-—अपने आप को डालना, नीचे फेंकना
- पत्—भ्वा॰ पर॰ <पतति>, <पतित>—-—-—(नैतिक दृष्टि से) गिरना, जाति से पतित होना, प्रतिष्ठा का नष्ट होना, भ्रष्ट होना
- पत्—भ्वा॰ पर॰ <पतति>, <पतित>—-—-—(स्वर्ग से) नीचे आना
- पत्—भ्वा॰ पर॰ <पतति>, <पतित>—-—-—घटना, आपद्ग्रस्त या संकटापन्न होना
- पत्—भ्वा॰ पर॰ <पतति>, <पतित>—-—-—नरक में जाना, नारकीय यातना सहन करना
- पत्—भ्वा॰ पर॰ <पतति>, <पतित>—-—-—पड़ना, घटित होना, हो जाना, संपन्न होना
- पत्—भ्वा॰ पर॰ <पतति>, <पतित>—-—-—निर्दिष्ट होना, उतरना या पड़ना
- पत्—भ्वा॰ पर॰ <पतति>, <पतित>—-—-—भाग्य में होना
- पत्—भ्वा॰ पर॰ <पतति>, <पतित>—-—-—ग्रस्त होना, फँसना
- पत्—भ्वा॰ पर॰—-—-—नीचे गिराना, उतारना, डुबोना
- पत्—भ्वा॰ पर॰—-—-—गिरने देना, नीचे को फेंकना, गिराना (वृक्ष आदि का) गिराना
- पत्—भ्वा॰ पर॰—-—-—बर्बाद करना, परास्त करना
- पत्—भ्वा॰ पर॰—-—-—(आँसू) गिराना
- पत्—भ्वा॰ पर॰—-—-—फेंकना, (दृष्टि) डालना, सन्नन्त
- पत्—भ्वा॰ पर॰—-—-—गिरने की इच्छा करना
- अनुपत्—भ्वा॰ पर॰—अनु-पत्—-—उड़ना
- अनुपत्—भ्वा॰ पर॰—अनु-पत्—-—पीछे दौड़ना, अनुसरण करना, पीछे लगे रहना, पीछा करना
- अभिपत्—भ्वा॰ पर॰—अभि-पत्—-—निकट उड़ना, नज़दीक जाना, पास पहुँचना
- अभिपत्—भ्वा॰ पर॰—अभि-पत्—-—आक्रमण करना, धावा बोलना, टूट पड़ना
- अभिपत्—भ्वा॰ पर॰—अभि-पत्—-—उड़ कर पकड़ लेना
- अभिपत्—भ्वा॰ पर॰—अभि-पत्—-—वापिस आना, लौट पड़ना, पीछे हटना
- अभ्युत्पत्—भ्वा॰ पर॰—अभ्युद्-पत्—-—टूट पड़ना, आक्रमण करना
- आपत्—भ्वा॰ पर॰—आ-पत्—-—टूट पड़ना, आक्रमण करना, धावा बोलना
- आपत्—भ्वा॰ पर॰—आ-पत्—-—उड़ना, पिल पड़ना, झपटना
- आपत्—भ्वा॰ पर॰—आ-पत्—-—निकट जाना
- आपत्—भ्वा॰ पर॰—आ-पत्—-—होना, घटित होना, आ पड़ना
- आपत्—भ्वा॰ पर॰—आ-पत्—-—सूझना, (मन में ) आना
- उत्पत्—भ्वा॰ पर॰—उद्-पत्—-—उछलना कूदना
- उत्पत्—भ्वा॰ पर॰—उद्-पत्—-—सूझना, विचार में आना
- उत्पत्—भ्वा॰ पर॰—उद्-पत्—-—(गेंद की भांति) उछल कर आना
- उत्पत्—भ्वा॰ पर॰—उद्-पत्—-—उदय होना, जन्म लेना, फूटना, उत्पन्न होना
- निपत्—भ्वा॰ पर॰—नि-पत्—-—नीचे गिरना या आना, अवरोहण करना, उतरना, डूबना
- निपत्—भ्वा॰ पर॰—नि-पत्—-—फेंका जाना, निर्दिष्ट होना
- निपत्—भ्वा॰ पर॰—नि-पत्—-—(पैरों में ) डालना, साष्टांग लेटना
- निपत्—भ्वा॰ पर॰—नि-पत्—-—गिरना, उतरना, मिल जाना
- निपत्—भ्वा॰ पर॰—नि-पत्—-—टूट पड़ना, आक्रमण करना, पिल पड़ना
- निपत्—भ्वा॰ पर॰—नि-पत्—-—होना, घटित होना, आ पड़ना, भाग्य में होना
- निपत्—भ्वा॰ पर॰—नि-पत्—-—रक्खा जाना, स्थान पर अधिकार करना
- निपत्—भ्वा॰ पर॰—नि-पत्—-—नीचे गिराना, फेंकना, पटक देना
- निपत्—भ्वा॰ पर॰—नि-पत्—-—मार डालना, नष्ट करना, बर्बाद करना
- निष्पत्—भ्वा॰ पर॰—निस्-पत्—-—निकालना, फूट पड़ना, फल निकलना, निकल पड़ना
- परापत्—भ्वा॰ पर॰—परा-पत्—-—पहुँचना, निकट आना, पास जाना
- परापत्—भ्वा॰ पर॰—परा-पत्—-—वापिस आना
- परिपत्—भ्वा॰ पर॰—परि-पत्—-—इधर उधर उड़ना, चक्कर काटना, छा जाना
- परिपत्—भ्वा॰ पर॰—परि-पत्—-—झपट्टा मारना, आक्रमण करना, टूट पड़ना (युद्ध में)
- परिपत्—भ्वा॰ पर॰—परि-पत्—-—सब दिशाओं में दौड़ना
- परिपत्—भ्वा॰ पर॰—परि-पत्—-—चले जाना, गिर पड़ना
- प्रपत्—भ्वा॰ पर॰—प्र-पत्—-—नीचे आना, नीचे गिरना, उतरना
- प्रपत्—भ्वा॰ पर॰—प्र-पत्—-—गिरकर अलग या दूर हो जाना
- प्रपत्—भ्वा॰ पर॰—प्र-पत्—-—उड़ना, इधर उधर झपटना
- प्रणिपत्—भ्वा॰ पर॰—प्रणि-पत्—-—प्रणाम करना, अभिवादन करना
- प्रोत्पत्—भ्वा॰ पर॰—प्रोद-पत्—-—ऊपर उड़ना, उड़ान भरना
- विनिपत्—भ्वा॰ पर॰—विनि-पत्—-—उड़ना, गिरना, उतरना
- विनिपत्—भ्वा॰ पर॰—विनि-पत्—-—गिराना, बर्बाद करना, नष्ट करना
- सम्पत्—भ्वा॰ पर॰—सम्-पत्—-—मिल कर उड़ना, एकत्र होना
- सम्पत्—भ्वा॰ पर॰—सम्-पत्—-—इधर उधर जाना या घूमना
- सम्पत्—भ्वा॰ पर॰—सम्-पत्—-—आक्रमण करना, टूट पड़ना, धावा बोलना
- सम्पत्—भ्वा॰ पर॰—सम्-पत्—-—होना, घटित होना
- सम्पत्—भ्वा॰ पर॰—सम्-पत्—-—निकट लाना
- सम्पत्—भ्वा॰ पर॰—सम्-पत्—-—संग्रह करना, एकत्र करना, मिलाना
- पतः—पुं॰—-—पत् + अच्—उड़ना, उड़ान
- पतः—पुं॰—-—पत् + अच्—जाना, गिरना, उतरना
- पतगः—पुं॰—पतः-गः—-—पक्षी
- पतङ्गः—पुं॰—-—पतन् उत्प्लवन् गच्छति-गम् + ड, नि॰—पक्षी
- पतङ्गः—पुं॰—-—पतन् उत्प्लवन् गच्छति-गम् + ड, नि॰—सूर्य
- पतङ्गः—पुं॰—-—पतन् उत्प्लवन् गच्छति-गम् + ड, नि॰—शलभ, टिड्डी-दल, टिड्डा
- पतङ्गः—पुं॰—-—पतन् उत्प्लवन् गच्छति-गम् + ड, नि॰—मधुमक्खी
- पतङ्गम्—नपुं॰—-—-—पारा
- पतङ्गम्—नपुं॰—-—-—एक प्रकार की चंदन की लकड़ी
- पतगमः—पुं॰—-—पत + गम् + खच्, मुम्—पक्षी
- पतगमः—पुं॰—-—पत + गम् + खच्, मुम्—शलभ
- पतङ्गिका—स्त्री॰—-—पतंग + कन् + टाप्, इत्वम्—छोटी चिड़िया
- पतङ्गिका—स्त्री॰—-—पतंग + कन् + टाप्, इत्वम्—एक छोटी मधुमक्खी
- पतङ्गिन्—पुं॰—-—पतंग + इनि—पक्षी
- पतञ्चिका—स्त्री॰—-—पतं शत्रुं चिक्कयति पीडयति-पृषो॰—धनुष की डोरी
- पतञ्जलिः—पुं॰—-—-—पाणिनि के सूत्रों पर लिखे गये-महाभाष्य के प्रसिद्ध निर्माता, दार्शनिक, योगदर्शन के प्रवर्तक
- पतत्—वि॰—-—पत् + शतृ—उड़ने वाला, अवरोहण करने वाला, उतरने वाला, नीचे आने वाला
- पतत्—पुं॰—-—पत् + शतृ—पक्षी
- पतद्ग्रहः—पुं॰—पतत्-ग्रहः—-—प्रारक्षित सेना
- पतद्ग्रहः—पुं॰—पतत्-ग्रहः—-—थूकने का बर्तन, पीकदान
- पतद्भीरुः—पुं॰—पतत्-भीरुः—-—बाज़, श्येन
- पतत्रम्—नपुं॰—-—पत्-करणे अत्रन्—बाज़ू, डैना
- पतत्रम्—नपुं॰—-—पत्-करणे अत्रन्—पर, पंख
- पतत्रम्—नपुं॰—-—पत्-करणे अत्रन्—सवारी
- पतत्रिः—पुं॰—-—पत् + अत्रिन्—पक्षी
- पतत्रिन्—पुं॰—-—पतत्र + इनि—पक्षी
- पतत्रिन्—पुं॰—-—पतत्र + इनि—बाण
- पतत्रिन्—पुं॰—-—पतत्र + इनि—घोड़ा
- पतत्रिकेतनः—पुं॰—पतत्रिन्-केतनः—-—विष्णु का विशेषण
- पतनम्—नपुं॰—-—पत् + ल्युट्—उड़ने या नीचे आने की क्रिया, उतरना, अवरोहण करना, अपने आपको नीचे पटकना
- पतनम्—नपुं॰—-—पत् + ल्युट्—(सूर्यादिका) अस्त होना
- पतनम्—नपुं॰—-—पत् + ल्युट्—नरक में जाना
- पतनम्—नपुं॰—-—पत् + ल्युट्—धर्मभ्रंश
- पतनम्—नपुं॰—-—पत् + ल्युट्—मर्यादा या प्रतिष्ठा से गिरना
- पतनम्—नपुं॰—-—पत् + ल्युट्—अवपात, ह्रास, नाश, विपत्ति
- पतनम्—नपुं॰—-—पत् + ल्युट्—मृत्यु
- पतनम्—नपुं॰—-—पत् + ल्युट्—नीचे लटकना, (छाती का) ढरकना
- पतनम्—नपुं॰—-—पत् + ल्युट्—गर्भस्राव होना
- पतनीय—वि॰—-—पत् + अनीयर्—गिराने वाला, जातिभ्रष्ट करने वाला
- पतनीयम्—नपुं॰—-—पत् + अनीयर्—पतित करने वाला पाप या जुर्म
- पतमः—पुं॰—-—पत् + अम—चाँद
- पतमः—पुं॰—-—पत् + अम—पक्षी
- पतमः—पुं॰—-—पत् + अम—टिड्डा
- पतसः—पुं॰—-—पत् + असच्—चाँद
- पतसः—पुं॰—-—पत् + असच्—पक्षी
- पतसः—पुं॰—-—पत् + असच्—टिड्डा
- पतयालु—वि॰—-—पत् + णिच् + आलुच्—पतनोन्मुख, पतनशील
- पताका—स्त्री॰—-—पत्यते ज्ञायते कस्यचिद्भेदोऽनया-पत् + आक + टाप्—झण्डा, ध्वज
- पताका—स्त्री॰—-—पत्यते ज्ञायते कस्यचिद्भेदोऽनया-पत् + आक + टाप्—ध्वजदण्ड
- पताका—स्त्री॰—-—पत्यते ज्ञायते कस्यचिद्भेदोऽनया-पत् + आक + टाप्—संकेत, लक्षण, चिह्न, प्रतीक
- पताका—स्त्री॰—-—पत्यते ज्ञायते कस्यचिद्भेदोऽनया-पत् + आक + टाप्—उपाख्यान या नाटकों में आई हुई प्रासंगिक कथा
- पताका—स्त्री॰—-—पत्यते ज्ञायते कस्यचिद्भेदोऽनया-पत् + आक + टाप्—मांगलिकता, सौभाग्य
- पताकांशुकम्—नपुं॰—पताका-अंशुकम्—-—झंडा
- पताकास्थानकम्—नपुं॰—पताका-स्थानकम्—-—प्रांसगिक कथा की सूचना जब कि अप्रत्याशित रूप से, किसी परिस्थितिवश उसी लक्षण वाली कोई दूसरी आकस्मिक अविचारित वस्तु प्रदर्शित की जाती है
- पताकिक—वि॰—-—पताका + ठन्—झंडा उड़ाने वाला, ध्वजदंडधारी
- पताकिन्—वि॰—-—पताका + इनि—झंडा ले जाने वाला, पताकाओं से अलंकृत
- पताकिन्—पुं॰—-—पताका + इनि—झंडाधारी, झंडाबरदार
- पताकिन्—पुं॰—-—पताका + इनि—ध्वजा
- पताकिनी—स्त्री॰—-—पताका + इनि+ङीप्—सेना
- पतिः—पुं॰—-—पाति रक्षति-पा + इति—स्वामी, प्रभू
- पतिः—पुं॰—-—पाति रक्षति-पा + इति—मालिक, अधिपति, स्वामी- क्षेत्रपति
- पतिः—पुं॰—-—-—राज्यपाल, शासक, प्रधानता करने वाला
- पतिः—पुं॰—-—-—भर्ता
- पतिघातिनी—स्त्री॰—पतिः-घातिनी—-—वह स्त्री जो अपने पति का वध कर देती है
- पतिघ्नी—स्त्री॰—पतिः-घ्नी—-—वह स्त्री जो अपने पति का वध कर देती है
- पतिदेवता—स्त्री॰—पतिः-देवता—-—वह स्त्री जो अपने पति को देवता समझती है, पतिव्रता, सती स्त्री
- पतिधर्मः—पुं॰—पतिः-धर्मः—-—अपने पति के प्रति (पत्नी का) कर्तव्य
- पतिप्राणा—स्त्री॰—पतिः-प्राणा—-—सती स्त्री
- पतिलोकः—पुं॰—पतिः-लोकः—-—वह लोक जहाँ मृत्यु हो जाने के पश्वात् पति पहुंचता है
- पतिव्रता—स्त्री॰—पतिः-व्रता—-—भक्त, श्रद्धालु, निष्ठावती स्त्री, सती स्त्री
- पतिव्रत्वम्—नपुं॰—पतिः-व्रत्वम्—-—पति के प्रति निष्ठा, स्वामिभक्ति
- पतिसेवा—स्त्री॰—पतिः-सेवा—-—पति के प्रति भक्ति
- पतिवरा—स्त्री॰—-—पति + वृ + खच्, मुम्—अपना वर चुनने के लिए तत्पर स्त्री
- पतितः—भू॰ क॰ कृ॰—-—पत् + क्त—गिरा हुआ, अवरूढ, उतरा हुआ
- पतितः—भू॰ क॰ कृ॰—-—पत् + क्त—नीचे गिरा हुआ
- पतितः—भू॰ क॰ कृ॰—-—पत् + क्त—(नैतिक दृष्टि से) पतित, भ्रष्ट, दुश्चरित्र
- पतितः—भू॰ क॰ कृ॰—-—पत् + क्त—स्वधर्मभ्रष्ट
- पतितः—भू॰ क॰ कृ॰—-—पत् + क्त—अपमानित, जातिबहिष्कृत
- पतितः—भू॰ क॰ कृ॰—-—पत् + क्त—युद्ध में हारा हुआ, पराजित, परास्त
- पतितः—भू॰ क॰ कृ॰—-—पत् + क्त—ग्रस्त, फंसा हुआ
- पतेरः—पुं॰—-—पत् + एरक्—पक्षी
- पतेरः—पुं॰—-—पत् + एरक्—छिद्र या विवर
- पत्तनम्—नपुं॰—-—पतित गच्छति जना यस्मिन्, पत् + तनन्—कस्बा, नगर
- पत्तिः—पुं॰—-—पद् + ति—पैदल, पैदल सैनिक
- पत्तिः—पुं॰—-—पद् + ति—पैदल, चलने वाला यात्री
- पत्तिः—पुं॰—-—पद् + ति—वीर
- पत्तिः—स्त्री॰—-—-—सेना का छोटे से छोटा दस्ता जिसमें एक रथ, एक हाथी, तीन घुड़सवार और पाँच पैदल सैनिक हों
- पत्तिः—स्त्री॰—-—-—जाने वाला, चलने वाला
- पत्तिकायः—पुं॰—पत्तिः-कायः—-—पैदल सेना
- पत्तिगणकः—पुं॰—पत्तिः-गणकः—-—सेना का अधिकारी जिसका काम पैदल सेना की गिनती करना
- पत्तिसंहतिः—स्त्री॰—पत्तिः-संहतिः—-—पैदल सिपाहियों की टुकड़ी, पैदल सेना
- रत्तिन्—पुं॰—-—पद्भ्यां तेलति, पाद + तिल् + डिन्, पदादेशः—पैदल सिपाही
- पत्नी—स्त्री॰—-—पति + ङीप्, नुक्—सहधर्मिणी, भार्या
- पत्न्याटः—पुं॰—पत्नी-आटः—-—रनिवास, अंतपुर
- पत्नीसन्नहनम्—नपुं॰—पत्नी-सन्नहनम्—-—धर्मपत्नी का कटिसूत्र या करधनी
- पत्रम्—नपुं॰—-—पत् + ष्ट्रन्— (वृक्ष का) पत्ता
- पत्रम्—नपुं॰—-—पत् + ष्ट्रन्—फूल की पत्ती, कमल का पत्ता
- पत्रम्—नपुं॰—-—पत् + ष्ट्रन्—पत्ता जिसके ऊपर लिखा जाय, कागज, लिखा हुआ पत्र
- पत्रम्—नपुं॰—-—पत् + ष्ट्रन्—पत्र, दस्तावेज
- पत्रम्—नपुं॰—-—पत् + ष्ट्रन्—किसी धातु का पतला पत्रा, स्वर्ण-पत्र
- पत्रम्—नपुं॰—-—पत् + ष्ट्रन्—पक्षी का बाजू, पंख, पर
- पत्रम्—नपुं॰—-—पत् + ष्ट्रन्—बाण का पंख
- पत्रम्—नपुं॰—-—पत् + ष्ट्रन्—सामान्य सवारी (रथ, घोड़ा, ऊँट आदि)
- पत्रम्—नपुं॰—-—पत् + ष्ट्रन्—शरीर पर (विशेष कर मुख पर) चन्दन आदि सुगंधित द्रव्य का लेप करना
- पत्रम्—नपुं॰—-—पत् + ष्ट्रन्—तलवार या चाकू का फल
- पत्रम्—नपुं॰—-—पत् + ष्ट्रन्—चाकू, छूरी
- पत्राङ्गम्—नपुं॰—पत्रम्-अङ्गम्—-—भूर्ज वृक्ष
- पत्राङ्गम्—नपुं॰—पत्रम्-अङ्गम्—-—लाल चंदन
- पत्राङ्गुलिः—स्त्री॰—पत्रम्-अङ्गुलिः—-—शरीर (गर्दन, मस्तक आदि) पर अंगुलियों से केसर मिश्रित चंदन या अन्य किसी सुगंधित पदार्थ से चित्रण करना
- पत्राञ्जनम्—नपुं॰—पत्रम्-अञ्जनम्—-—मसी
- पत्रावलिः—स्त्री॰—पत्रम्-आवलिः—-—गेरु
- पत्रावलिः—स्त्री॰—पत्रम्-आवलिः—-—पत्तों का कतार
- पत्रावलिः—स्त्री॰—पत्रम्-आवलिः—-—शरीर पर सजावट की दृष्टि से चंदनादि से रेखाचित्रण करना
- पत्रावली—स्त्री॰—पत्रम्-आवली—-—पत्तों की पंक्ति
- पत्राहारः—पुं॰—पत्रम्-आहारः—-—पत्ते खाकर निर्वाह करना
- पत्रौर्णम्—नपुं॰—पत्रम्-ऊर्णम्—-—बुनने वाली रेशम, रेशमी वस्त्र
- पत्रकाहला—स्त्री॰—पत्रम्-काहला—-—परों की फटफटाहट, पत्तों की खड़खड़ाहट
- पत्रदारकः—पुं॰—पत्रम्-दारकः—-—आरा
- पत्रनाडिका—स्त्री॰—पत्रम्-नाडिका—-—पत्ते के रेशे
- पत्रपरशुः—पुं॰—पत्रम्-परशुः—-—रेती
- पत्रपालः—पुं॰—पत्रम्-पालः—-—लंबी छुरी, बड़ा चाकू
- पत्रपाली—स्त्री॰—पत्रम्-पाली—-—बाण का पंख वाला भाग
- पत्रपाली—स्त्री॰—पत्रम्-पाली—-—कैंची
- पत्रपाश्या—स्त्री॰—पत्रम्-पाश्या—-—मस्तक का सोने का आभूषण, टीका
- पत्रपुटम्—नपुं॰—पत्रम्-पुटम्—-—पत्तों से बना पात्र, दोना
- पत्रबालः—पुं॰—पत्रम्-बालः—-—चप्पू
- पत्रवालः—पुं॰—पत्रम्-वालः—-—चप्पू
- पत्रभङ्गः—स्त्री॰—पत्रम्-भङ्गः—-—शरीर को अलंकृत करने के लिए चंदन, केसर, महंदी या किसी अन्य सुगंधित द्रव्य से शरीर पर लेप करना या चित्रण करना
- पत्रभङ्गिः—स्त्री॰—पत्रम्-भङ्गिः—-—शरीर को अलंकृत करने के लिए चंदन, केसर, महंदी या किसी अन्य सुगंधित द्रव्य से शरीर पर लेप करना या चित्रण करना
- पत्रभङ्गी—स्त्री॰—पत्रम्-भङ्गी—-—शरीर को अलंकृत करने के लिए चंदन, केसर, महंदी या किसी अन्य सुगंधित द्रव्य से शरीर पर लेप करना या चित्रण करना
- पत्रयौवनम्—नपुं॰—पत्रम्-यौवनम्—-—नया पत्ता या कोंपल
- पत्ररथः—पुं॰—पत्रम्-रथः—-—पक्षी
- पत्रेन्द्रः—पुं॰—पत्रम्-इन्द्रः—-—गरूड़ का नाम
- पत्रेन्द्रकेतुः—पुं॰—पत्रम्-इन्द्रः-केतुः—-—विष्णु का नाम
- पत्ररेखा—वि॰—पत्रम्-रेखा—-—शरीर को अलंकृत करने के लिए चंदन, केसर, महंदी या किसी अन्य सुगंधित द्रव्य से शरीर पर लेप करना या चित्रण करना
- पत्रलेखा—वि॰—पत्रम्-लेखा—-—शरीर को अलंकृत करने के लिए चंदन, केसर, महंदी या किसी अन्य सुगंधित द्रव्य से शरीर पर लेप करना या चित्रण करना
- पत्रवल्लरी—वि॰—पत्रम्-वल्लरी—-—शरीर को अलंकृत करने के लिए चंदन, केसर, महंदी या किसी अन्य सुगंधित द्रव्य से शरीर पर लेप करना या चित्रण करना
- पत्रवल्लिः—वि॰—पत्रम्-वल्लिः—-—शरीर को अलंकृत करने के लिए चंदन, केसर, महंदी या किसी अन्य सुगंधित द्रव्य से शरीर पर लेप करना या चित्रण करना
- पत्रवल्ली—वि॰—पत्रम्-वल्ली—-—शरीर को अलंकृत करने के लिए चंदन, केसर, महंदी या किसी अन्य सुगंधित द्रव्य से शरीर पर लेप करना या चित्रण करना
- पत्रवाज—वि॰—पत्रम्-वाज—-—बाण आदि पंखों से युक्त
- पत्रवाहः—पुं॰—पत्रम्-वाहः—-—पक्षी
- पत्रवाहः—पुं॰—पत्रम्-वाहः—-—बाण
- पत्रवाहः—पुं॰—पत्रम्-वाहः—-—डाकिया, चिट्टीरसा
- पत्रविशेषकः—पुं॰—पत्रम्-विशेषकः—-—शरीर को अलंकृत करने के लिए चंदन, केसर, महंदी या किसी अन्य सुगंधित द्रव्य से शरीर पर लेप करना या चित्रण करना
- पत्रवेष्टः—पुं॰—पत्रम्-वेष्टः—-—एक प्रकार का कानों का आभूषण
- पत्रशाकः—पुं॰—पत्रम्-शाकः—-—शाकभाजी, जिसमें मुख्यरूप से पत्ते हों
- पत्रश्रेष्ठः—पुं॰—पत्रम्-श्रेष्ठः—-—बेल का पेड़
- पत्रसूचिः—स्त्री॰—पत्रम्-सूचिः—-—कांटा
- पत्रहिमम्—नपुं॰—पत्रम्-हिमम्—-—जाड़े की ऋतु जब पाला या बर्फ पड़े
- पत्रकम्—नपुं॰—-—पत्र + कन्—पत्ता
- पत्रकम्—नपुं॰—-—पत्र + कन्—सौन्दर्य बढ़ाने की दृष्टि से शरीर पर बनाई गई रेखाएँ या चित्रकारी
- पत्रणा—स्त्री॰—-—पत्र + णिच् + युच् + टाप्—सौन्दर्य वृद्धि के लिए शरीर पर बनाई गई रेखाएँ और चित्रकारी
- पत्रणा—स्त्री॰—-—पत्र + णिच् + युच् + टाप्—बाण में पंख लगाना
- पत्रिका—स्त्री॰—-—पत्री + कन् + टाप्, ह्रस्वः—लिखने के लिए काग़ज
- पत्रिका—स्त्री॰—-—पत्री + कन् + टाप्, ह्रस्वः—चिट्टी, लेख, प्रलेख
- पत्रिन्—वि॰—-—पत्रम् अस्त्यर्थ इनि—पंखो से युक्त, परों वाला
- पत्रिन्—वि॰—-—पत्रम् अस्त्यर्थ इनि—जिसमें पत्ते या पृष्ठ हो
- पत्रिन्—पुं॰—-—पत्रम् अस्त्यर्थ इनि—बाण
- पत्रिन्—पुं॰—-—पत्रम् अस्त्यर्थ इनि—पक्षी
- पत्रिन्—पुं॰—-—पत्रम् अस्त्यर्थ इनि—बाज
- पत्रिन्—पुं॰—-—पत्रम् अस्त्यर्थ इनि—पहाड़
- पत्रिन्—पुं॰—-—पत्रम् अस्त्यर्थ इनि—रथ
- पत्रिन्—पुं॰—-—पत्रम् अस्त्यर्थ इनि—वृक्ष
- पत्रिवाहः—पुं॰—पत्रिन्-वाहः—-—पक्षी
- पत्सलः—पुं॰—-—पत् + सरन्, रस्य लः—रास्ता, मार्ग
- पथः—पुं॰—-—पथ् + क (घञर्थे)—रास्था, मार्ग, प्रसार, किनारा
- पथकल्पना—स्त्री॰—पथः-कल्पना—-—जाड्ड के खेल
- पथदर्शकः—पुं॰—पथः-दर्शकः—-—मार्ग बतलाने वाला
- पथिकः—पुं॰—-—पथिन् + ष्कन्—यात्री, मुसाफिर, बटोही
- पथिकः—पुं॰—-—पथिन् + ष्कन्—पथप्रदर्शक
- पथिकसंततिः—स्त्री॰—पथिकः-संततिः—-—यात्रियों का समूह, काफला
- पथिकसंहतिः—स्त्री॰—पथिकः-संहतिः—-—यात्रियों का समूह, काफला
- पथिकसार्थः—पुं॰—पथिकः-सार्थः—-—यात्रियों का समूह, काफला
- पथिन्—पुं॰—-—पथ् आधारे इनि—मार्ग, रास्ता
- पथिन्—पुं॰—-—पथ् आधारे इनि—यात्रा, राहगीरी या पर्यटन
- पथिन्—पुं॰—-—पथ् आधारे इनि—परास, पहुंच
- पथिन्—पुं॰—-—पथ्+इनि—कार्यपद्धति, आचरण की रेखा, व्यवहारक्रमः
- पथिन्—पुं॰—-—पथ्+इनि—संप्रदाय, सिद्धांत
- पथिन्—पुं॰—-—पथ्+इनि—नरक का प्रभाग
- पथिदेयम्—नपुं॰—पथिन्-देयम्—-—सार्वजनिक मार्गों पर लगाया गया राजकर
- पथिद्रुमः—पुं॰—पथिन्-द्रुमः—-—खैर का पेड़
- पथिप्रज्ञ—वि॰—पथिन्-प्रज्ञ—-—मार्गों का जानकार
- पथिवाहक—वि॰—पथिन्-वाहक—-—क्रूर
- पथिवाहकः—पुं॰—पथिन्-वाहकः—-—शिकारी, चिड़ीमार
- पथिवाहकः—पुं॰—पथिन्-वाहकः—-—बोझा ढोने वाला, कुली
- पथिलः—पुं॰—-—पथ् + इलच्—यात्री, राहगीर, बटोही
- पथ्य—वि॰—-—पथिन् + यत् + इनो लोपः—स्वास्थ्यप्रद, स्वास्थ्यवर्धक, कल्याणकारी, उपयोगी (औषधि, आहार, सम्मति आदि)
- पथ्य—वि॰—-—पथिन् + यत् + इनो लोपः—योग्य उचित, उपयुक्त
- पथ्यम्—नपुं॰—-—पथिन् + यत् + इनो लोपः—स्वास्थ्यबर्धक या पौष्टिक आहार
- पथ्यम्—नपुं॰—-—पथिन् + यत् + इनो लोपः—कल्याण, कुशलक्षेम
- पथ्यापथ्यम्—नपुं॰—पथ्य-अपथ्यम्—-—उन पदार्थों का समूह जो किसी रोग में स्वास्थ्यवर्धक या हानिकर समझे जाते है
- पद्—चुरा॰ आ॰ <पदयते>—-—-—जाना, हिलना-जुलना
- पद्—दिवा॰ आ॰ <पद्यते>, <पन्न>, पुं॰—-—-—जाना, चलना-फिरना
- पद्—दिवा॰ आ॰ <पद्यते>, <पन्न>, पुं॰—-—-—पास जाना, पहुँचना
- पद्—दिवा॰ आ॰ <पद्यते>, <पन्न>, पुं॰—-—-—हासिल करना, प्राप्त करना, उपलब्ध करना
- पद्—दिवा॰ आ॰ <पद्यते>, <पन्न>, पुं॰—-—-—पालन करना, अनुसरण करना
- अनुपद्—दिवा॰ आ॰—अनु-पद्—-—पीछे चलना, अनुगमन करना, सेवा करना
- अनुपद्—दिवा॰ आ॰—अनु-पद्—-—स्नेहशील होना, अनुरक्त होना
- अनुपद्—दिवा॰ आ॰—अनु-पद्—-—प्रविष्ट होना, अन्दर जाना
- अनुपद्—दिवा॰ आ॰—अनु-पद्—-—अपनाना
- अनुपद्—दिवा॰ आ॰—अनु-पद्—-—मालूम करना, देखना, निरीक्षण करना, समझना
- अभिपद्—दिवा॰ आ॰—अभि-पद्—-—पास जाना, नजदीक होना, पहुँचना
- अभिपद्—दिवा॰ आ॰—अभि-पद्—-—संमिल्लित होना
- अभिपद्—दिवा॰ आ॰—अभि-पद्—-—अवलोकन करना, विचार करना, खवाल करना, समझना
- अभिपद्—दिवा॰ आ॰—अभि-पद्—-—सहायता करना, मदद करना
- अभिपद्—दिवा॰ आ॰—अभि-पद्—-—पकड़ना, परास्त करना, आक्रमण करना, दबोच लेना, अधिकार में कर लेना, ग्रस्त करना
- अभिपद्—दिवा॰ आ॰—अभि-पद्—-—लेना, धारण करना
- अभिपद्—दिवा॰ आ॰—अभि-पद्—-—स्वीकार करना, प्राप्त करना
- अभ्यपपद्—दिवा॰ आ॰—अभ्यप-पद्—-—दया करना, सांत्वना देना, आराम पहुँचाना, तरस खाना, अनुग्रह करना (कष्ट से) मुक्त करना
- अभ्यपपद्—दिवा॰ आ॰—अभ्यप-पद्—-—सहायता मांगना, दीनता प्रकट करना
- अभ्यपपद्—दिवा॰ आ॰—अभ्यप-पद्—-—सहमत होना, स्वीकृति देना
- आपद्—दिवा॰ आ॰—आ-पद्—-—निकट जाना, की और चलना, पहुँचना
- आपद्—दिवा॰ आ॰—आ-पद्—-—प्रविष्ट होना, (किसी स्थान या स्थिति को चले जाना या प्राप्त करना
- आपद्—दिवा॰ आ॰—आ-पद्—-—कष्ट फँसना, दुर्भाग्यग्रस्त होना
- आपद्—दिवा॰ आ॰—आ-पद्—-—होना, घटित होना
- आपद्—पुं॰—आ-पद्—-—प्रकाशित करना, सामने लाना, कार्यान्वित करना, निष्पन्न करना
- आपद्—पुं॰—आ-पद्—-—निकालना, जन्म देना, पैदा करना
- आपद्—पुं॰—आ-पद्—-—घटाना, कष्टग्रस्त करना, ले जाना
- आपद्—पुं॰—आ-पद्—-—बदलना
- आपद्—पुं॰—आ-पद्—-—नियंत्रण में लाना
- उत्पद्—दिवा॰ आ॰—उद्-पद्—-—जन्म लेना, पैदा होना, उदय होना, उत्पन्न होना, उगना
- उत्पद्—दिवा॰ आ॰—उद्-पद्—-—होना, घटित होना
- उत्पद्—पुं॰—उद्-पद्—-—पैदा करना, सर्जन करना, जन्म देना, उत्पन्न करना, कार्यान्वित करना, प्रकाशित करना
- उत्पद्—पुं॰—उद्-पद्—-—सामने लाना
- उपपद्—दिवा॰ आ॰—उप-पद्—-—पहुँचना, निकट जाना, पास जाना, पधारना
- उपपद्—दिवा॰ आ॰—उप-पद्—-—हासिल होना, प्राप्त होना, हिस्से में आना
- उपपद्—दिवा॰ आ॰—उप-पद्—-—होना, घटित होना, आ पड़ना, पैदा हो जाना
- उपपद्—दिवा॰ आ॰—उप-पद्—-—संभव होना, संभाव्य होना
- उपपद्—दिवा॰ आ॰—उप-पद्—-—उपयुक्त होना, योग्य होना, पर्याप्त होना, अनुरूप समुचित
- उपपद्—दिवा॰ आ॰—उप-पद्—-—आक्रमण करना
- उपपद्—पुं॰—उप-पद्—-—किसी स्थिति में लाना, पहुँचाना, प्राप्त कराना
- उपपद्—पुं॰—उप-पद्—-—नेतृत्व करना, ले जाना
- उपपद्—पुं॰—उप-पद्—-—तैयार होना
- उपपद्—पुं॰—उप-पद्—-—किसी को कोई वस्तु प्रदान करना, प्रस्तुत करना, उपहार देना
- उपपद्—पुं॰—उप-पद्—-—प्रकाशित करना, निष्पन्न करना, उपार्जन करना, कार्यान्वित करना, काम में लाना, अनुष्ठान करना
- उपपद्—पुं॰—उप-पद्—-—न्याय्य ठहराना, तर्क देना, प्रदर्शित करना, प्रमाणित करना
- उपपद्—पुं॰—उप-पद्—-—संपन्न करना, युक्त करना
- निष्पद्—दिवा॰ आ॰—निस्-पद्—-—निकलना, उगना
- निष्पद्—दिवा॰ आ॰—निस्-पद्—-—पैदा होना, प्रकाशित होना, उदय होना, कार्यान्वित होना
- निष्पद्—पुं॰—निस्-पद्—-—पैदा करना, प्रकाशित करना, जन्म देना, कार्यान्वित करना, तैयार करना
- प्रपद्—दिवा॰ आ॰—प्र-पद्—-—की ओर जाना, पहुँचना, आश्रय लेना, चले जाना, पहुँच जाना
- प्रपद्—दिवा॰ आ॰—प्र-पद्—-—आश्रय ग्रहण करना
- प्रपद्—दिवा॰ आ॰—प्र-पद्—-—किसी विशिष्ट अवस्था को जाना, पहुँचना या किसी विशिष्ट दशा में होना
- प्रपद्—दिवा॰ आ॰—प्र-पद्—-—प्राप्र करना, खोज लेना, हस्तगत करना, प्राप्त करना, हासिल करना
- प्रपद्—दिवा॰ आ॰—प्र-पद्—-—व्यवहार करना, बर्ताव करना
- प्रपद्—दिवा॰ आ॰—प्र-पद्—-—प्रविष्ट करना, अनुमति देना, सहमत होना, स्वीकार करना
- प्रपद्—दिवा॰ आ॰—प्र-पद्—-—निकट खिसकना, आना, (समय आदि का) पहुँचना
- प्रपद्—दिवा॰ आ॰—प्र-पद्—-—चले चलना, प्रगति करना
- प्रपद्—दिवा॰ आ॰—प्र-पद्—-—प्रत्यक्षज्ञान प्राप्त करना
- प्रतिपद्—दिवा॰ आ॰—प्रति-पद्—-—कदम रखना, जाना, पहुँचना, सहारा लेना (किसी व्यक्ति का) आश्रय लेना
- प्रतिपद्—दिवा॰ आ॰—प्रति-पद्—-—ग्रहण करना, कदम रखना, लेना, अनुसरण करना, (मार्ग आदि)
- प्रतिपद्—दिवा॰ आ॰—प्रति-पद्—-—पधारना, पहुँचना, प्राप्त करना
- प्रतिपद्—दिवा॰ आ॰—प्रति-पद्—-—हासिल करना, उपलब्ध करना, प्राप्त करना, भाग लेना, हिस्सा लेना
- प्रतिपद्—दिवा॰ आ॰—प्रति-पद्—-—स्वीकार करना, मान लेना
- प्रतिपद्—दिवा॰ आ॰—प्रति-पद्—-—वसूल करना, फिर प्राप्त करना, पुनः उपलब्ध करना, ग्रहण करना
- प्रतिपद्—दिवा॰ आ॰—प्रति-पद्—-—मान लेना, स्वीकार करना
- प्रतिपद्—दिवा॰ आ॰—प्रति-पद्—-—थामना, ग्रहण करना, पकड़ना
- प्रतिपद्—दिवा॰ आ॰—प्रति-पद्—-—विचार करना, ख़याल करना, सोचना, अवलोकन करना
- प्रतिपद्—दिवा॰ आ॰—प्रति-पद्—-—अपने जिम्मे लेना, करने की प्रतिज्ञा करना, हाथ में लेना
- प्रतिपद्—दिवा॰ आ॰—प्रति-पद्—-—हामी भरना, सहमत होना, स्वीकृति देना
- प्रतिपद्—दिवा॰ आ॰—प्रति-पद्—-—करना, अनुष्ठान करना, अभ्यास करना, पालन करना
- प्रतिपद्—दिवा॰ आ॰—प्रति-पद्—-—व्यवहार करना, बर्ताव करना, किसी का कोई कार्य करना
- प्रतिपद्—दिवा॰ आ॰—प्रति-पद्—-—(उत्तर) देना, (प्रत्युत्तर) देना
- प्रतिपद्—दिवा॰ आ॰—प्रति-पद्—-—प्रत्यक्षज्ञान प्राप्त करना, जानकार होना
- प्रतिपद्—दिवा॰ आ॰—प्रति-पद्—-—जानना, समझना, परिचित होना, सीखना, मालूम करना
- प्रतिपद्—दिवा॰ आ॰—प्रति-पद्—-—घूमना, भ्रमण करना
- प्रतिपद्—दिवा॰ आ॰—प्रति-पद्—-—होना, घटित होना
- प्रतिपद्—दिवा॰ आ॰—प्रति-पद्—-—देना, प्रस्तुत करना, प्रदान करना, अभिदान करना, समर्पित करना
- प्रतिपद्—दिवा॰ आ॰—प्रति-पद्—-—सिद्ध करना, प्रमाणित करना, प्रमाण देकर पक्का करना
- प्रतिपद्—दिवा॰ आ॰—प्रति-पद्—-—व्याख्या करना, स्पष्ट करना
- प्रतिपद्—दिवा॰ आ॰—प्रति-पद्—-—लाना या वापिस मोड़ना, (किसी स्थान पर) ले जाना
- प्रतिपद्—दिवा॰ आ॰—प्रति-पद्—-—ख़याल करना, विचार करना
- प्रतिपद्—दिवा॰ आ॰—प्रति-पद्—-—उपस्थिति की घोषणा करना, पुनः प्रस्तुत करना
- प्रतिपद्—दिवा॰ आ॰—प्रति-पद्—-—उपार्जन करना
- प्रतिपद्—दिवा॰ आ॰—प्रति-पद्—-—कार्यान्वित करना, निष्पन्न करना
- विपद्—दिवा॰ आ॰—वि-पद्—-—बुरी तरह विफल होना, असफल होना, (व्यवसाय आदि), का विफल होना
- विपद्—दिवा॰ आ॰—वि-पद्—-—दुर्भाग्यग्रस्त या दुर्दशाग्रस्त होना
- विपद्—दिवा॰ आ॰—वि-पद्—-—विकलांग होना, अशक्त होना
- विपद्—दिवा॰ आ॰—वि-पद्—-—मरना, नष्ट होना
- व्यापद्—दिवा॰ आ॰—व्या-पद्—-—(पृथ्वी पर) उतरना, नीचे आना
- व्यापद्—दिवा॰ आ॰—व्या-पद्—-—मरना, नष्ट होना
- व्यापद्—दिवा॰ आ॰—व्या-पद्—-—मारना, कतल करना
- सम्पद्—दिवा॰ आ॰—सम्-पद्—-—(तैयार माल) बाहर निकालना, सफलता प्राप्त करना, समृद्ध होना, सम्पन्न होना, पूरा होना
- सम्पद्—दिवा॰ आ॰—सम्-पद्—-—पूरा होना, (संख्या आदि) जुड़ कर होना
- सम्पद्—दिवा॰ आ॰—सम्-पद्—-—बन जाना, होना
- सम्पद्—दिवा॰ आ॰—सम्-पद्—-—उदय होना, जन्म लेना, पैदा होना
- सम्पद्—दिवा॰ आ॰—सम्-पद्—-—एक जगह पड़ना, एकत्र होना
- सम्पद्—दिवा॰ आ॰—सम्-पद्—-—सुसज्जित होना, संपन्न होना, स्वामी होना
- सम्पद्—दिवा॰ आ॰—सम्-पद्—-—(किसी ओर) प्रवृत्त होना, करवाना, पैदा करना
- सम्पद्—दिवा॰ आ॰—सम्-पद्—-—प्राप्त करना, उपलब्ध करना, अधिग्रहण करना, हासिल करना
- सम्पद्—दिवा॰ आ॰—सम्-पद्—-—संलग्न होना, लीन होना
- सम्पद्—दिवा॰ आ॰—सम्-पद्—-—करवाना, होना, पैदा करना, सम्पन्न करना, पूरा करना, कार्यान्वित करना
- सम्पद्—दिवा॰ आ॰—सम्-पद्—-—उपार्जन करना, प्राप्त करना, सज्जित करना, तैयार करना, अधिग्रहण करना, हासिल करना
- सम्पद्—दिवा॰ आ॰—सम्-पद्—-—सज्जित करना, संपन्न करना, युक्त करना
- सम्पद्—दिवा॰ आ॰—सम्-पद्—-—बदलना, रूपान्तरित करना
- सम्पद्—दिवा॰ आ॰—सम्-पद्—-—करार या वादा करना
- सम्प्रतिपद्—दिवा॰ आ॰—सम्प्रति-पद्—-—की ओर जाना, पहुँचना
- सम्प्रतिपद्—दिवा॰ आ॰—सम्प्रति-पद्—-—विचार करना, ख़याल करना
- समापद्—दिवा॰ आ॰—समा-पद्—-—घटित होना, घटना होना
- समापद्—दिवा॰ आ॰—समा-पद्—-—हासिल करना, प्राप्त करना, उपलब्ध करना
- पद्—पुं॰—-—पद् + क्विप्—पैर
- पद्—पुं॰—-—पद् + क्विप्—चरण, चौथाई भाग (किसी कविता या श्लोक का)
- पत्काशिन्—पुं॰—पद्-काशिन्—-—पैदल चलने वाला
- पद्धतिः—स्त्री॰—पद्-हतिः—-—रास्ता, पथ, मार्ग, बटिया
- पद्धतिः—स्त्री॰—पद्-हतिः—-—रेखा, पंक्ति, शृंखला
- पद्धतिः—स्त्री॰—पद्-हतिः—-—उपनाम, वंशनाम, उपाधि या विशेषण, व्यक्तिवाचक संज्ञा शब्दों के समास में प्रयुक्त होने वाला शब्द जो जाति या व्यवसाय का बोधक हो
- पद्धतिः—स्त्री॰—पद्-हतिः—-—विवाहादि विधि को सूचित करने वाली पुस्तक
- पद्धती—स्त्री॰—पद्-हती—-—रास्ता, पथ, मार्ग, बटिया
- पद्धती—स्त्री॰—पद्-हती—-—रेखा, पंक्ति, शृंखला
- पद्धती—स्त्री॰—पद्-हती—-—उपनाम, वंशनाम, उपाधि या विशेषण, व्यक्तिवाचक संज्ञा शब्दों के समास में प्रयुक्त होने वाला शब्द जो जाति या व्यवसाय का बोधक हो
- पद्धती—स्त्री॰—पद्-हती—-—विवाहादि विधि को सूचित करने वाली पुस्तक
- पद्धिमम्—नपुं॰—पद्-हिमम्—-—पैरों का ठंडापन
- पदम्—नपुं॰—-—पद् + अच्—पैर
- पदेन—नपुं॰—-—-—पैदल
- पदङ्कृ——पदम्- कृ—-—कदम रखना
- पदङ्कृ——पदम्- कृ—-—प्रवृत्त होना, अधिकार करना, कब्जा करना
- मूध्निपदङ्कृ——मूध्निपदम्- कृ—-—किसी के सिर पर चढ़ना, दीन बनाना
- मूध्निपदङ्कृ——मूध्निपदम्- कृ—-—कदम, पग, डग
- पदे पदे—अव्य॰—-—-—हर कदम पर
- पदे पदे—अव्य॰—-—-—पदचिह्न, पद-छाप
- पदे पदे—अव्य॰—-—-—चिह्न, अंक, छाप, निशान
- पदे पदे—अव्य॰—-—-—स्थान, अवस्था, स्थिति
- पदे पदे—अव्य॰—-—-—मर्यादा, दर्जा, पद, स्थिति या अवस्था
- पदे पदे—अव्य॰—-—-—कारण, विषय, अवसर, वस्तु मामला या बात
- पदे पदे—अव्य॰—-—-—आवास, पदार्थ, आशय
- पदे पदे—अव्य॰—-—-—श्लोक का एक चरण, एक लाइन -विरचितपद (गेयम्) @ मेघ॰ ८६, १३३ @ मालवि॰ ५/२, @ श॰ ३/१६
- पदे पदे—अव्य॰—-—-—विभक्तिचिह्न से युक्त पूरा शब्द
- पदे पदे—अव्य॰—-—-—कर्तृ॰ , ए॰ व॰ को छोड़ कर शेष सभी व्यंजनादि विभक्तिचिह्नों का सांकेतिक नाम
- पदे पदे—अव्य॰—-—-—वैदिक शब्दों को सन्धिविच्छेद करके पृथक् २ रखना, वैदिक मन्त्रों का पद-पाठ निर्धारित करना
- पदे पदे—अव्य॰—-—-—बहाना
- पदे पदे—अव्य॰—-—-—वर्गमूल
- पदे पदे—अव्य॰—-—-—(वाक्य का) प्रभाग या खंड
- पदे पदे—अव्य॰—-—-—लम्बाई की माप
- पदे पदे—अव्य॰—-—-—प्ररक्षा, संधारण या प्ररक्षण
- पदे पदे—अव्य॰—-—-—शतरंज की बिसात पर बना वर्गाकार घर
- पदः—पुं॰—-—-—प्रकाश की किरण
- पदाङ्कः—पुं॰—पदम्-अङ्कः—-—पदछाप
- पदचिह्नम्—नपुं॰—पदम्-चिह्नम्—-—पदछाप
- पदागुङ्ष्ठः—पुं॰—पदम्-अङ्गुष्ठः—-—पैर का अँगूठा
- पदानुगः—पुं॰—पदम्-अनुगः—-—अनुगामी, सहचर
- पदानुशासनम्—नपुं॰—पदम्-अनुशासनम्—-—शब्द विज्ञान, व्याकरण
- पदान्तः—पुं॰—पदम्-अन्तः—-—शब्द का अन्त
- पदान्तरम्—नपुं॰—पदम्-अन्तरम्—-—दूसरा पग, एक पग का अन्तराल
- पदाब्जम्—नपुं॰—पदम्-अब्जम्—-—चरणकमल, कमल जैसे पग
- पदाम्भोजम्—नपुं॰—पदम्-अम्भोजम्—-—चरणकमल, कमल जैसे पग
- पदारविन्दम्—नपुं॰—पदम्-अरविन्दम्—-—चरणकमल, कमल जैसे पग
- पदकमलम्—नपुं॰—पदम्-कमलम्—-—चरणकमल, कमल जैसे पग
- पदपङ्कजम्—नपुं॰—पदम्-पङ्कजम्—-—चरणकमल, कमल जैसे पग
- पदपद्मम्—नपुं॰—पदम्-पद्मम्—-—चरणकमल, कमल जैसे पग
- पदार्थः—पुं॰—पदम्-अर्थः—-—शब्द का अर्थ
- पदार्थः—पुं॰—पदम्-अर्थः—-—वस्तु या पदार्थ
- पदार्थः—पुं॰—पदम्-अर्थः—-—शीर्षक या विषय (नैयायिक इसके आगे १६ उपशीर्षक गिनाते हैं)
- पदार्थः—पुं॰—पदम्-अर्थः—-—अभिधेय, वह वस्तु जिसका कुछ नाम रक्खा जा सके, प्रवर्ग
- पदाघातः—पुं॰—पदम्-आघातः—-—पैर का प्रहार या ठोकर
- पदाजिः—पुं॰—पदम्-आजिः—-—पैदलसिपाही
- पदावली—स्त्री॰—पदम्-आवली—-—शब्दों का समूह, शब्दों या पंक्तियों का अविच्छिन्न क्रम
- पदासनम्—नपुं॰—पदम्-आसनम्—-—पादपीठ, पैर रखने की चौकी
- पदक्रमः—पुं॰—पदम्-क्रमः—-—चलना, क़दम रखना
- पदगः—पुं॰—पदम्-गः—-—पैदल सिपाही
- पदच्युतः—वि॰—पदम्-च्युतः—-—पद से हटाया गया, गद्दी से उतारा हुआ
- पदछेदः—पुं॰—पदम्-छेदः—-—शब्दों को अलग २ करना, पदच्छेद करना, वाक्य का संघटकों में पृथक्करण
- पदविच्छेदः—पुं॰—पदम्-विच्छेदः—-—शब्दों को अलग २ करना, पदच्छेद करना, वाक्य का संघटकों में पृथक्करण
- पदविग्रहः—पुं॰—पदम्-विग्रहः—-—शब्दों को अलग २ करना, पदच्छेद करना, वाक्य का संघटकों में पृथक्करण
- पदन्यासः—पुं॰—पदम्-न्यासः—-—क़दम रखना, डग भरना, पग रखना
- पदन्यासः—पुं॰—पदम्-न्यासः—-—पदचिह्न
- पदन्यासः—पुं॰—पदम्-न्यासः—-—पैरों की एक मुद्रा विशेष
- पदन्यासः—पुं॰—पदम्-न्यासः—-—गोखरु का पौधा
- पदपङ्क्तिः—स्त्री॰—पदम्-पङ्क्तिः—-—पदचिह्नो की क़तार
- पदपङ्क्तिः—स्त्री॰—पदम्-पङ्क्तिः—-—शब्दों का क्रम
- पदपङ्क्तिः—स्त्री॰—पदम्-पङ्क्तिः—-—ईंट, पवित्र इष्टका
- पदपाठः—पुं॰—पदम्-पाठः—-—वैदिक मंत्रों का एक विशेषक्रम जिसमें मंत्र का प्रत्येक शब्द उच्चारणविकारों से निरपेक्ष होकर अपने मूलरूप में ही लिखा जाता है और इसी मूलरूप में उच्चारण किया जाता है
- पदपातः—पुं॰—पदम्-पातः—-—क़दम, (घोड़े का भी) क़दम
- पदभञ्जनम्—नपुं॰—पदम्-भञ्जनम्—-—शब्दों का विग्रह, निरुक्ति
- पदभञ्जिका—स्त्री॰—पदम्-भञ्जिका—-—एक टीका जिसमें किसी संदर्भ के शब्द, पृथक् २ किये जाते हैं तथा समासों का विग्रह कर दिया जाता है
- पदमाला—स्त्री॰—पदम्-माला—-—जादू का गुर
- पदवृत्तिः—स्त्री॰—पदम्-वृत्तिः—-—दो शब्दों के बीच अंतर या विराम
- पदकम्—नपुं॰—-—पद + कन्—क़दम, स्थिति, पदवी
- पदकः—पुं॰—-—पद + कन्—कण्ठ का एक आभूषण
- पदकः—पुं॰—-—पद + कन्—पद पाठ का ज्ञाता
- पदविः—स्त्री॰—-—पद् + अवि —रास्ता, मार्ग, पथ, बटिया, पवन पदवी
- पदविः—स्त्री॰—-—पद् + अवि —अवस्था, स्थिति, दर्जा, मर्यादा, पदवी, पद
- पदविः—स्त्री॰—-—पद् + अवि —जगह, स्थान
- पदवी—स्त्री॰—-—पद् + ङीष्—रास्ता, मार्ग, पथ, बटिया, पवन पदवी
- पदवी—स्त्री॰—-—पद् + ङीष्—अवस्था, स्थिति, दर्जा, मर्यादा, पदवी, पद
- पदवी—स्त्री॰—-—पद् + ङीष्—जगह, स्थान
- पदातः—पुं॰—-—पद्भ्यामतति-अत् + अच्—पैदल सिपाही
- पदातः—पुं॰—-—पद्भ्यामतति-अत् + अच्—पैदल यात्री (पैदल चलने वाला)
- पदातिः—पुं॰—-—पद्भ्यामतति-अत् + इन्—पैदल सिपाही
- पदातिः—पुं॰—-—पद्भ्यामतति-अत् + इन्—पैदल यात्री (पैदल चलने वाला)
- पदातिन्—वि॰—-—पदात + इनि—(सेना) जिसमें पैदल सिपाही हों
- पदातिन्—वि॰—-—पदात + इनि—पैदल चलने वाला
- पदातिन्—पुं॰—-—-—पैदल सिपाही
- पदिक—वि॰—-—पादेन चरति-पाद + ष्ठन्, पादस्य पदादेश—पैदल चलने वाला
- पदिक—पुं॰—-—-—पैदल आदमी
- पद्मम्—नपुं॰—-—पद् + मन्—कमल
- पद्मम्—नपुं॰—-—पद् + मन्—कमल जैसा आभूषण
- पद्मम्—नपुं॰—-—पद् + मन्—कमल का रूप या आकृति
- पद्मम्—नपुं॰—-—पद् + मन्—कमल की जड़
- पद्मम्—नपुं॰—-—पद् + मन्—हाथी सूँड और चेहरे पर रंगीन निशान
- पद्मम्—नपुं॰—-—पद् + मन्—कमल के आकार खड़ी की हुई सेना
- पद्मम्—नपुं॰—-—पद् + मन्—विशेषरूप से बड़ी संख्या, (१०००००००००००००००)
- पद्मम्—नपुं॰—-—पद् + मन्—सीसा
- पद्मः—पुं॰—-—-—एक प्रकार का मंदिर
- पद्मः—पुं॰—-—-—हाथी
- पद्मः—पुं॰—-—-—साँप की एक जाती
- पद्मः—पुं॰—-—-—राम का विशेषण
- पद्मः—पुं॰—-—-—कुबेर के नौ ख़जानों में से एक
- पद्मः—पुं॰—-—-—एक प्रकार का रतिबंध, मैथुन
- पद्मा—स्त्री॰—-—-—सौभाग्य की देवी लक्ष्मी, विष्णु की पत्नी
- पद्माक्ष—वि॰—पद्मम्-अक्ष—-—कमल जैसी सुन्दर आँखों वाला
- पद्माक्षः—पुं॰—पद्मम्-अक्षः—-—विष्णु या सूर्य का विशेषण
- पद्माक्षम्—नपुं॰—पद्मम्-अक्षम्—-—कमल गट्टा
- पद्माकरः—पुं॰—पद्मम्-आकरः—-—एक विशाल सरोवर जिसमें कमल खिले हों
- पद्माकरः—पुं॰—पद्मम्-आकरः—-—पोखर, पल्वल
- पद्माकरः—पुं॰—पद्मम्-आकरः—-—कमलों का समूह
- पद्मालयः—पुं॰—पद्मम्-आलयः—-—जगत्स्रष्टा ब्रह्मा या विशेषण
- पद्मालया—स्त्री॰—पद्मम्-आलया—-—लक्ष्मी का विशेषण
- पद्मासनम्—नपुं॰—पद्मम्-आसनम्—-—कमल पीठ
- पद्मासनम्—नपुं॰—पद्मम्-आसनम्—-—एक प्रकार का योगासन
- पद्मासनः—पुं॰—पद्मम्-आसनः—-—जगत्स्रष्टा ब्रह्मा या विशेषण
- पद्माह्वम्—नपुं॰—पद्मम्-आह्वम्—-—लौंग
- पद्मोद्धवः—पुं॰—पद्मम्-उद्धवः—-—ब्रह्मा का विशेषण
- पद्मकरः—पुं॰—पद्मम्-करः—-—विष्णु का विशेषण
- पद्महस्त—पुं॰—पद्मम्-हस्त—-—विष्णु का विशेषण
- पद्मकरा—स्त्री॰—पद्मम्-करा—-—लक्ष्मी का नाम
- पद्महस्ता—स्त्री॰—पद्मम्-हस्ता—-—लक्ष्मी का नाम
- पद्मकर्णिका—स्त्री॰—पद्मम्-कर्णिका—-—पद्म का बीजकोश
- पद्मकलिका—स्त्री॰—पद्मम्-कलिका—-—कमल का अनखिला फूल, कली
- पद्मकेशरः—पुं॰—पद्मम्-केशरः—-—कमल फूल का रेशा
- पद्मकेशरकम्—नपुं॰—पद्मम्-केशरकम्—-—कमल फूल का रेशा
- पद्मकोशः—पुं॰—पद्मम्-कोशः—-—कमल का संपुट
- पद्मकोशः—पुं॰—पद्मम्-कोशः—-—संपुटित कमल के आकार की उँगलियों की एक मुद्रा
- पद्मकोषः—पुं॰—पद्मम्-कोषः—-—कमल का संपुट
- पद्मकोषः—पुं॰—पद्मम्-कोषः—-—संपुटित कमल के आकार की उँगलियों की एक मुद्रा
- पद्मखण्डम्—नपुं॰—पद्मम्-खण्डम्—-—कमलों का समूह
- पद्मषण्डम्—नपुं॰—पद्मम्-षण्डम्—-—कमलों का समूह
- पद्मगन्ध—वि॰—पद्मम्-गन्ध—-—कमल की गंधवाला या कमल की सी गंधवाला
- पद्मगन्धि—वि॰—पद्मम्-गन्धि—-—कमल की गंधवाला या कमल की सी गंधवाला
- पद्मगर्भः—पुं॰—पद्मम्-गर्भः—-—ब्रह्मा का विशेषण
- पद्मगर्भः—पुं॰—पद्मम्-गर्भः—-—विष्णु का विशेषण
- पद्मगर्भः—पुं॰—पद्मम्-गर्भः—-—सूर्य का विशेषण
- पद्मगुणा—स्त्री॰—पद्मम्-गुणा—-—धन की देवी लक्ष्मी का विशेषण
- पद्मगृहा—स्त्री॰—पद्मम्-गृहा—-—धन की देवी लक्ष्मी का विशेषण
- पद्मजः—पुं॰—पद्मम्-जः—-—कमल से उत्पन्न ब्रह्मा के विशेषण
- पद्मजातः—पुं॰—पद्मम्-जातः—-—कमल से उत्पन्न ब्रह्मा के विशेषण
- पद्मभयः—पुं॰—पद्मम्-भयः—-—कमल से उत्पन्न ब्रह्मा के विशेषण
- पद्मभूः—पुं॰—पद्मम्-भूः—-—कमल से उत्पन्न ब्रह्मा के विशेषण
- पद्मयोनिः—पुं॰—पद्मम्-योनिः—-—कमल से उत्पन्न ब्रह्मा के विशेषण
- पद्मसम्भवः—पुं॰—पद्मम्-सम्भवः—-—कमल से उत्पन्न ब्रह्मा के विशेषण
- पद्मतन्तुः—पुं॰—पद्मम्-तन्तुः—-—कमल का रेशेदार डंठल
- पद्मनाभः—पुं॰—पद्मम्-नाभः—-—विष्णु का विशेषण
- पद्मनाभि—पुं॰—पद्मम्-नाभि—-—विष्णु का विशेषण
- पद्मनालम्—नपुं॰—पद्मम्-नालम्—-—कमल का डंठल
- पद्मपाणिः—पुं॰—पद्मम्-पाणिः—-—ब्रह्मा का विशेषण
- पद्मपाणिः—पुं॰—पद्मम्-पाणिः—-—विष्णु का विशेषण
- पद्मपुष्पः—पुं॰—पद्मम्-पुष्पः—-—कर्णिकार का पौधा
- पद्मबन्धः—पुं॰—पद्मम्-बन्धः—-—एक प्रकार की कृत्रिम रचना जिससें शब्दो को कमल-फूल के रूप में व्यवस्थित किया हो
- पद्मबन्धुः—पुं॰—पद्मम्-बन्धुः—-—सूर्य
- पद्मबन्धुः—पुं॰—पद्मम्-बन्धुः—-—मधुमक्खी
- पद्मरागः—पुं॰—पद्मम्-रागः—-—लाल, माणिक्य
- पद्मरागम्—नपुं॰—पद्मम्-रागम्—-—लाल, माणिक्य
- पद्मरेखा—स्त्री॰—पद्मम्-रेखा—-—हथेली में (कमल फूल के आकार की) रेखायें जो अत्यन्त धनबान होने का लक्षण हैं
- पद्मलाञ्छन—पुं॰—पद्मम्-लाञ्छन—-—ब्रह्मा का विशेषण
- पद्मलाञ्छन—पुं॰—पद्मम्-लाञ्छन—-—कुबेर का विशेषण
- पद्मलाञ्छन—पुं॰—पद्मम्-लाञ्छन—-—सूर्य और राजा का विशेषण
- पद्मलाञ्छना—स्त्री॰—पद्मम्-लाञ्छना—-—धन की देवी लक्ष्मी का विशेषण
- पद्मलाञ्छना—स्त्री॰—पद्मम्-लाञ्छना—-—या विद्या की देवी सरस्वती का विशेषण
- पद्मवासा—स्त्री॰—पद्मम्-वासा—-—लक्ष्मी का विशेषण
- पद्मकम्—नपुं॰—-—पद्म + कन्—कमलफूल के आकार की व्यूहरचना में स्थित सेना
- पद्मकम्—नपुं॰—-—पद्म + कन्—हाथी की सूँड और चेहरे पर रंगीन स्थान
- पद्मकम्—नपुं॰—-—पद्म + कन्—बैठने की विशेष मुद्रा
- पद्मकिन्—पुं॰—-—पद्मक + इनि—हाथी
- पद्मकिन्—पुं॰—-—पद्मक + इनि—भोजपत्र का वृक्ष
- पद्मावती—स्त्री॰—-—पद्म + मतुप्, वत्वम्, दीर्घश्च—लक्ष्मी का विशेषण
- पद्मावती—स्त्री॰—-—पद्म + मतुप्, वत्वम्, दीर्घश्च—एक नदी का नाम
- पद्मिन्—वि॰—-—पद्म + इनि—कमल रख़ने वाला
- पद्मिन्—वि॰—-—पद्म + इनि—चितकबरा
- पद्मिन्—पुं॰—-—पद्म + इनि—हाथी
- पद्मिनी—स्त्री॰—-—पद्म + इनि+ङीप्—कमल का पौधा
- पद्मिनी—स्त्री॰—-—पद्म + इनि+ङीप्—कमलफूलों का समूह
- पद्मिनी—स्त्री॰—-—पद्म + इनि+ङीप्—सरोवर या झील जिसमें कमल लगे हुए हों
- पद्मिनी—स्त्री॰—-—पद्म + इनि+ङीप्—कमल का रेशेदार डंठल
- पद्मिनी—स्त्री॰—-—पद्म + इनि+ङीप्—हथिनी
- पद्मिनी—स्त्री॰—-—पद्म + इनि+ङीप्—रतिशास्त्र के लेखकों ने स्त्रियों के चार भेद किये हैं उसमें प्रथम प्रकार की स्त्री,
- पद्मेशयः—पुं॰—-—पद्मे शेते-शी + अच्, अलु॰ स॰—विष्णु का विशेषण
- पद्म—वि॰—-—पद् + यत्—पद या पंक्तियों वाला
- पद्म—वि॰—-—पद् + यत्—चरण या पद को मापने वाला
- पद्मः—पुं॰—-—-—शूद्र
- पद्मः—पुं॰—-—-—शब्द का एक भाग
- पद्मा—स्त्री॰—-—-—पगडंडी, पथ, बटिया
- पद्मम्—नपुं॰—-—-—(चार चरणों से युक्त) श्लोक, कविता
- पद्मम्—नपुं॰—-—-—प्रशंसा, स्तुति
- पद्र—पुं॰—-—पद्यतेऽस्मिन् पद् + रक्—गाँव
- पद्वः—पुं॰—-—पद् + वन्—भूलोक, मर्त्य लोक
- पद्वः—पुं॰—-—पद् + वन्—रथ
- पद्वः—पुं॰—-—पद् + वन्—मार्ग
- पन्—भ्वा॰ उभ॰ <पनायति>, <पनायते>, <पनायित>, <पनित>—-—-—प्रशंसा करना, स्तुति करना
- पनसः—पुं॰—-—पनाय्यते स्तूयतेऽनेन देवः-पन् + असच्—कटहल का वृक्ष
- पनसः—पुं॰—-—पनाय्यते स्तूयतेऽनेन देवः-पन् + असच्—काँटा
- पनसम्—नपुं॰—-—-—कटहल का फल
- पंथक—वि॰—-—पथि जातः-पथिन् + कन्, पन्थादेशः—मार्ग में उत्पन्न
- पन्न—भू॰ क॰ कृ॰—-—पद् + क्त—गिरा हुआ, डूबा हुआ, नीचे गया हुआ, अवतरित
- पन्न—भू॰ क॰ कृ॰—-—पद् + क्त—बीता हुआ
- पन्नगः—पुं॰—पन्न-गः—-—साँप, सर्प
- पन्नगम्—नपुं॰—पन्न-गम्—-—सीसा
- पन्नारिः—पुं॰—पन्न-अरिः—-—गरुड के विशेषण
- पन्नाशनः—पुं॰—पन्न-अशनः—-—गरुड के विशेषण
- पन्ननाशनः—पुं॰—पन्न-नाशनः—-—गरुड के विशेषण
- पपिः—पुं॰—-—पातिलोकम्-पिबति वा, पा + कि, द्वित्वम्—चन्द्रमा
- पपीः—पुं॰—-—पा + ई, द्वित्वं किच्च—चन्द्रमा
- पपीः—पुं॰—-—पा + ई, द्वित्वं किच्च—सूर्य
- पपु—वि॰—-—पा + कु, द्वित्वम्—पालन-पोषण करने वाला, रक्षा करने वाला
- पपुः—स्त्री॰—-—पा + कु, द्वित्वम्—धात्री माता, प्रतिपालिका
- पम्पा—स्त्री॰—-—पाति रक्षति महर्ष्यादीन्-पा॰ द्वित्वम् मुडागमश्च, नि॰—दंडकारण्य का एक सरोवर
- पम्पा—स्त्री॰—-—पाति रक्षति महर्ष्यादीन्-पा॰ द्वित्वम् मुडागमश्च, नि॰—भारत के दक्षिण में एक नदी का नाम
- पयस्—नपुं॰—-—पय् + असुन्, पा + असुन्, इकारादेश्च—पानी
- पयस्—नपुं॰—-—पय् + असुन्, पा + असुन्, इकारादेश्च—दूध
- पयस्—नपुं॰—-—पय् + असुन्, पा + असुन्, इकारादेश्च—वीर्य
- पयोगलः—पुं॰—पयस्-गलः—-—ओला
- पयोगलः—पुं॰—पयस्-गलः—-—टापू
- पयोडः—पुं॰—पयस्-डः—-—ओला
- पयोडः—पुं॰—पयस्-डः—-—टापू
- पयोघनम्—नपुं॰—पयस्-घनम्—-—ओला
- पयोचयः—पुं॰—पयस्-चयः—-—जलाशय या सरोवर
- पयोजन्मन्—पुं॰—पयस्-जन्मन्—-—बादल
- पयोदः—पुं॰—पयस्-दः—-—बादल
- पयोसुहृद्—पुं॰—पयस्-सुहृद्—-—मोर
- पयोधरः—पुं॰—पयस्-धरः—-—बादल
- पयोधरः—पुं॰—पयस्-धरः—-—स्त्री की छाती
- पयोधरः—पुं॰—पयस्-धरः—-—ऐन औडी
- पयोधरः—पुं॰—पयस्-धरः—-—नारियल का पेड़
- पयोधरः—पुं॰—पयस्-धरः—-—रीढ़ की हड्डी
- पयोधस्—पुं॰—पयस्-धस्—-—समुद्र
- पयोधस्—पुं॰—पयस्-धस्—-—तालाब, सरोवर, जलाशय
- पयोधिः—पुं॰—पयस्-धिः—-—समुद्र
- पयोनिधः—पुं॰—पयस्-निधः—-—समुद्र
- पयोमुच्—पुं॰—पयस्-मुच्—-—बादल
- पयोवाहः—पुं॰—पयस्-वाहः—-—बादल
- पयस्य—वि॰—-—पयसो विकारः पयसः इदं वा-पयस् + यत्—दूध से युक्त, दूध से बना हुआ
- पयस्य—वि॰—-—पयसो विकारः पयसः इदं वा-पयस् + यत्—पानी से युक्त
- पयस्यः—पुं॰—-—-—बिल्ली
- पयस्या—स्त्री॰—-—पयसो विकारः पयसः इदं वा-पयस् + यत्+टाप्—दही
- पयस्वल—वि॰—-—पयस् + वलच्—दूध से भरा हुआ, यथेष्ट दूध देने वाला
- पयस्वलः—पुं॰—-—पयस् + वलच्—बकरी
- पयस्विन्—वि॰—-—पयस् + विनि—दूधिया, जल से युक्त
- पयस्विनी—स्त्री॰—-—पयस् + विनि+ङीप्—दूध देने वाली गाय
- पयस्विनी—स्त्री॰—-—पयस् + विनि+ङीप्—नदी
- पयस्विनी—स्त्री॰—-—पयस् + विनि+ङीप्—बकरी
- पयस्विनी—स्त्री॰—-—पयस् + विनि+ङीप्—रात
- पयोधिकम्—नपुं॰—-—पयोधि + फै + क—समुद्रझग
- पयोष्णी—स्त्री॰—-—-—विन्ध्यपर्वत से निकलने वाली एक नदी
- पर—वि॰—-—पृ॰ + अप्, कर्तरि अच् वा—दूसरा, भिन्न, अम्य
- पर—वि॰—-—पृ॰ + अप्, कर्तरि अच् वा—दूरस्थित, हटाया हुआ, दूर का
- पर—वि॰—-—पृ॰ + अप्, कर्तरि अच् वा—परे, आगे, के दूसरी ओर
- पर—वि॰—-—पृ॰ + अप्, कर्तरि अच् वा— बाद का, पीछे का, आगे का
- पर—वि॰—-—पृ॰ + अप्, कर्तरि अच् वा—उच्चतर, श्रेष्ठ
- पर—वि॰—-—पृ॰ + अप्, कर्तरि अच् वा—उच्चतम, महत्तम, पूज्यतम, प्रमुख, मुख्य़, सर्वोत्तम, प्रधान
- पर—वि॰—-—पृ॰ + अप्, कर्तरि अच् वा—आगे का वर्ण या ध्वनि रखने वाला, पीछे का
- पर—वि॰—-—पृ॰ + अप्, कर्तरि अच् वा—विदेशी, अपरिचित, अजनवी
- पर—वि॰—-—पृ॰ + अप्, कर्तरि अच् वा—विरोधी, शत्रुतापूर्ण, प्रतिकूल
- पर—वि॰—-—पृ॰ + अप्, कर्तरि अच् वा—अधिक, अतिरिक्त, बचा हुआ
- पर—वि॰—-—पृ॰ + अप्, कर्तरि अच् वा—अन्तिम, आखीर का
- पर—वि॰—-—पृ॰ + अप्, कर्तरि अच् वा—किसी वस्तु की उच्चतम पदार्थ समझने वाला, लीन, तुला हुआ, अनन्यभक्त, पूर्णतः व्यस्त
- परः—पुं॰—-—पृ॰ + अप्, कर्तरि अच् वा—दूसरा, व्यक्ति, अपरिचित, विदेशी
- परः—पुं॰—-—पृ॰ + अप्, कर्तरि अच् वा—शत्रु, दुश्मन
- परम्—नपुं॰—-—पृ॰ + अप्, कर्तरि अच् वा—उच्चतम स्वर या बिन्दु, चरम बिन्दु
- परम्—नपुं॰—-—पृ॰ + अप्, कर्तरि अच् वा—परमात्मा
- परम्—नपुं॰—-—पृ॰ + अप्, कर्तरि अच् वा—मोक्ष
- परम्—अपा॰—-—पृ॰ + अप्, कर्तरि अच् वा—परे, अधिक, में से
- परम्—अपा॰—-—पृ॰ + अप्, कर्तरि अच् वा—के पश्चात्
- परम्—नपुं॰—-—पृ॰ + अप्, कर्तरि अच् वा—उस पर, उसके बाद
- परम्—नपुं॰—-—पृ॰ + अप्, कर्तरि अच् वा—परंतु, लोभी
- परम्—नपुं॰—-—पृ॰ + अप्, कर्तरि अच् वा—अन्यथा
- परम्—नपुं॰—-—पृ॰ + अप्, कर्तरि अच् वा—ऊँची मात्रा में , अधिकता के साथ, अत्यधिक, पूरी तरह से, सर्वथा
- परम्—नपुं॰—-—पृ॰ + अप्, कर्तरि अच् वा—अत्यंत
- परेण—अव्य॰—-—-—आगे, परे, अपेक्षाकृत अधिक
- परेण—अव्य॰—-—-—इसके पश्चात्
- परेण—अव्य॰—-—-—के बाद
- परे —अव्य॰—-—-—बाद में, उसके पश्चात्
- परे —अव्य॰—-—-—भविष्य में
- पराङ्गम्—नपुं॰—पर-अङ्गम्—-—शरीर का पिछला
- पराङ्गदः—पुं॰—पर-अङ्गदः—-—शिव का विशेषण
- परादनः—पुं॰—पर-अदनः—-—अरब या पर्शिया के देशों में पाया जाने वाला घोड़ा
- पराधीन—वि॰—पर-अधीन—-—पराधीन, पराश्रित, परवश
- परान्ताः—पुं॰—पर-अन्ताः—-—एक राष्ट्र का नाम
- परान्तकः—पुं॰—पर-अन्तकः—-—शिव का विशेषण
- परान्न—वि॰—पर-अन्न—-—दूसरे के भोजन पर निर्वाह करने वाला
- परान्नम्—नपुं॰—पर-अन्नम्—-—दूसरेका भोजन
- परपरिपुष्टता—स्त्री॰—पर-परिपुष्टता—-—दूसरों के भोजन से पालन-पोषण
- परभोजिन्—वि॰—पर-भोजिन्—-—दूसरों के भोजन पर निर्वाह करने वाला
- परापर—वि॰—पर-अपर—-—दूर और निकट, दूर और समीप
- परापर—वि॰—पर-अपर—-—पूर्ववर्ती और पश्चवर्ती
- परापर—वि॰—पर-अपर—-—पहले और बाद में , पहले और पीछे
- परापर—वि॰—पर-अपर—-—ऊंचा और नीचा, सबसे उत्तम और सबसे खराब
- परापरम्—नपुं॰—पर-अपरम्—-—महत्तम और लघूत्तम संख्याओं के बीच की वस्तु, जाति (जो श्रेणी और व्यक्ति दोनों के मध्य विद्यमान हो)
- परामृतम्—नपुं॰—पर-अमृतम्—-—वृष्टि
- परायण—वि॰—पर-अयण—-—अनुरक्त, भक्त, संसक्त
- परायण—वि॰—पर-अयण—-—आश्रित, वशीभूत
- परायण—वि॰—पर-अयण—-—तुला हुआ, अनन्य भक्त, सर्वथा लीन
- परायन—वि॰—पर-अयन—-—अनुरक्त, भक्त, संसक्त
- परायन—वि॰—पर-अयन—-—आश्रित, वशीभूत
- परायन—वि॰—पर-अयन—-—तुला हुआ, अनन्य भक्त, सर्वथा लीन
- शोकपर—वि॰—शोक-पर—-—
- परायणम्—नपुं॰—पर-अयणम्—-—प्रधान या चरम उद्देश्य, मुख्य ध्येय, सर्वोत्तम या अन्तिम सहारा
- परार्थ—वि॰—पर-अर्थ—-—दूसरा ही उद्देश्य या अर्थ रखने वाला
- परार्थ—वि॰—पर-अर्थ—-—दूसरे के लिए अभिप्रेत, अन्य के लिए किया हुआ
- परार्थः—पुं॰—पर-अर्थः—-—सर्वोच्च हित या लाभ
- परार्थः—पुं॰—पर-अर्थः—-—किसी दूसरे का हित
- परार्थः—पुं॰—पर-अर्थः—-—मुख्य अर्थ
- परार्थः—पुं॰—पर-अर्थः—-—सर्वोच्च उद्देश्य (अर्थात् मैथुन)
- परार्थम्—अव्य॰—पर-अर्थम्—-—दूसरे के लिए
- परार्थे—अव्य॰—पर-अर्थे—-—दूसरे के लिए
- परार्धम्—नपुं॰—पर-अर्धम्—-—दूसरा भाग , उत्तरार्ध
- परार्धम्—नपुं॰—पर-अर्धम्—-—विशेष रूप से बड़ी संख्या अर्थात् १००, ०००,०००,०००,०००,०००
- परार्ध्य—वि॰—पर-अर्ध्य—-—दूसरे किनारे पर होने वाला
- परार्ध्य—वि॰—पर-अर्ध्य—-—संख्या में अत्यंत दूर का
- परार्ध्य—वि॰—पर-अर्ध्य—-—अत्यंत श्रेष्ठ, सर्वोत्तम, परम श्रेष्ठ, अत्यंत मूल्यवान, सर्वोच्च, परम
- परार्ध्य—वि॰—पर-अर्ध्य—-—अत्यंत कीमती
- परार्ध्य—वि॰—पर-अर्ध्य—-—अत्यंत सुन्दर, प्रियतम, मनोज्ञतम
- परार्ध्यम्—नपुं॰—पर-अर्ध्यम्—-—अधिकतम
- परार्ध्यम्—नपुं॰—पर-अर्ध्यम्—-—अनन्त या असीम संख्या
- परावरम्—वि॰—पर-अवरम्—-—दूर और निकट
- परावरम्—वि॰—पर-अवरम्—-—सवेरी और अवेरी
- परावरम्—वि॰—पर-अवरम्—-—पहले का और बाद का या आगामी
- परावरम्—वि॰—पर-अवरम्—-—उच्चतर और निम्नतर
- परावरम्—वि॰—पर-अवरम्—-—परंपराप्राप्त
- परावरम्—वि॰—पर-अवरम्—-—सर्वसम्मिलित
- पराहः—पुं॰—पर-अहः—-—दूसरे दिन
- पराह्लः—पुं॰—पर-अह्लः—-—तीसरा पहर, दिन का उत्तरार्ध भाग
- पराचित—वि॰—पर-आचित—-—दूसरे द्वारा पाला-पोसा हुआ
- पराचितः—पुं॰—पर-आचितः—-—दास
- परात्मन्—पुं॰—पर-आत्मन्—-—परमात्मा
- परायत्त—वि॰—पर-आयत्त—-—दूसरे के अधीन, पराश्रित, पराधीन
- परायुस्—पुं॰—पर-आयुस्—-—ब्रह्मा का विशेषण
- पराविद्धः—पुं॰—पर-आविद्धः—-—कुवेर का विशेषण
- पराविद्धः—पुं॰—पर-आविद्धः—-—विष्णु की उपाधि
- पराश्रयः—पुं॰—पर-आश्रयः—-—परावलंबन, दूसरे की अधीनता
- परासङ्गः—पुं॰—पर-आसङ्गः—-—परावलंबन, दूसरे की अधीनता
- परास्कन्दिन्—पुं॰—पर-आस्कन्दिन्—-—चोर, लुटेरा
- परेतर—वि॰—पर-इतर—-—शत्रुता से भिन्न अर्थात् मैत्री पूर्ण, कृपालु
- परेतर—वि॰—पर-इतर—-—अपना, निजी
- परेशः—पुं॰—पर-ईशः—-—ब्रह्मा का विशेषण
- परोत्कर्षः—पुं॰—पर-उत्कर्षः—-—दूसरे की समृद्धि
- परोपकारः—पुं॰—पर-उपकारः—-—दूसरों की भलाई करना जनहितैषिता, उदारता, धर्मार्थ
- परोपजापः—पुं॰—पर-उपजापः—-—शत्रुओं में फूट डालना
- परोपरुद्धः—वि॰—पर-उपरुद्धः—-—शत्रु के द्वारा घेरा हुआ
- परोढा—स्त्री॰—पर-ऊढा—-—दूसरे की पत्नी
- परैधित—वि॰—पर-एधित—-—दूसरे द्वारा पालित-पोषित
- परैधितः—पुं॰—पर-एधितः—-—सेवक
- परैधितः—पुं॰—पर-एधितः—-—कोयल
- परकलत्रम्—नपुं॰—पर-कलत्रम्—-—दूसरे की पत्नी
- पराभिगमनम्—नपुं॰—पर-अभिगमनम्—-—व्यभिचार
- परकार्यम्—नपुं॰—पर-कार्यम्—-—दूसरे का व्यवसाय या काम
- परक्षेत्रम्—नपुं॰—पर-क्षेत्रम्—-—दूसरे का शरीर
- परक्षेत्रम्—नपुं॰—पर-क्षेत्रम्—-—दूसरे का क्षेत्र
- परक्षेत्रम्—नपुं॰—पर-क्षेत्रम्—-—दूसरे की पत्नी
- परगामिम्—वि॰—पर-गामिम्—-—दूसरे के साथ रहने वाला
- परगामिम्—वि॰—पर-गामिम्—-—दूसरे से संबंध रखने वाला
- परगामिम्—वि॰—पर-गामिम्—-—दूसरे के लिए लाभदायक
- परग्रंथिः—स्त्री॰—पर-ग्रंथिः—-—जोड़, गांठ
- परचक्रम्—नपुं॰—पर-चक्रम्—-—शत्रु की सेना
- परचक्रम्—नपुं॰—पर-चक्रम्—-—शत्रु के द्वारा आक्रमण ६ ईतियों में से एक
- परछंदः—पुं॰—पर-छंदः—-—दूसरे की इच्छा
- परानुवर्तनम्—नपुं॰—पर-अनुवर्तनम्—-—दूसरे की इच्छा का अनुगमन करना
- परछिद्रम्—नपुं॰—पर-छिद्रम्—-—दूसरे की कमजोरी, दूसरे की त्रुटि
- परजात—वि॰—पर-जात—-—दूसरे से उत्पन्न
- परजात—वि॰—पर-जात—-—जीविका के लिए दूसरे पर आश्रित
- परजातः—पुं॰—पर-जातः—-—सेवक
- परजित—वि॰—पर-जित—-—दूसरे से जीता हुआ
- परजितः—पुं॰—पर-जितः—-—कोयल
- परतंत्र—वि॰—पर-तंत्र—-—दूसरे पर आश्रित, पराधीन, अनुसेवी
- परदाराः—पुं॰—पर-दाराः—-—दूसरे की पत्नी
- परदारिन्—पुं॰—पर-दारिन्—-—व्यभिचारी, परस्त्रीगामी
- परदुखम्—नपुं॰—पर-दुःखम्—-—दूसरे का कष्ट या दुःख
- परदेशः—पुं॰—पर-देशः—-—विदेश
- परदेशिन्—पुं॰—पर-देशिन्—-—विदेशी
- परद्रोहिन्—वि॰—पर-द्रोहिन्—-—दूसरों से घृणा करने वाला, विरोधी, शत्रुतापूर्ण
- परद्वेषिध्—वि॰—पर-द्वेषिध्—-—दूसरों से घृणा करने वाला, विरोधी, शत्रुतापूर्ण
- परधनम्—नपुं॰—पर-धनम्—-—दूसरे की संपत्ति
- परधर्मः—पुं॰—पर-धर्मः—-—दूसरे का धर्म
- परधर्मः—पुं॰—पर-धर्मः—-—दूसरे का कर्तव्य या कार्य
- परधर्मः—पुं॰—पर-धर्मः—-—दूसरी जाति का कर्तव्य
- परनिपातः—पुं॰—पर-निपातः—-—समास में शब्द की अनियमित पश्चवर्तिता अर्थात् भूतपूर्वः
- परपक्षः—पुं॰—पर-पक्षः—-—शत्रु का दल या पक्ष
- परपदम्—नपुं॰—पर-पदम्—-—उच्चतम स्थिति, प्रमुखता
- परपदम्—नपुं॰—पर-पदम्—-—मोक्ष
- परपिंडः—पुं॰—पर-पिंडः—-—दूसरे का भोजन, दूसरों से दिया गया भोजन
- पराद्—वि॰—पर-अद्—-—वह जो दूसरों का भोजन कर या जो दूसरे के खर्च पर जीवन निर्वाह करे
- पराद्—पुं॰—पर-अद्—-—सेवक
- पररत—वि॰—पर-रत—-—दूसरे के भोजन पर पलने वाला
- परपुरुषः—पुं॰—पर-पुरुषः—-—दूसरा मनुष्य, अपरिचित
- परपुरुषः—पुं॰—पर-पुरुषः—-—परमात्मा, विष्णु
- परपुरुषः—पुं॰—पर-पुरुषः—-—दूसरी स्त्री का पति
- परपुष्ट—वि॰—पर-पुष्ट—-—दूसरे के द्वारा पाला पोसा हुआ
- परपुष्टः—पुं॰—पर-पुष्टः—-—कोयल
- परमहोत्सवः—पुं॰—पर-महोत्सवः—-—आम का वृक्ष
- परपुष्टा—स्त्री॰—पर-पुष्टा—-—कोयल
- परपुष्टा—स्त्री॰—पर-पुष्टा—-—वेश्या, रंडी
- परपूर्वा—स्त्री॰—पर-पूर्वा—-—वह स्त्री जिसका दूसरा पति हो
- परप्रेष्यः—पुं॰—पर-प्रेष्यः—-—सेवक, घरेलू नौकर
- परब्रह्मन्—नपुं॰—पर-ब्रह्मन्—-—परमात्मा
- परभागः—पुं॰—पर-भागः—-—दूसरे का हिस्सा
- परभागः—पुं॰—पर-भागः—-—श्रेष्ठ गुण
- परभागः—पुं॰—पर-भागः—-—सौभाग्य, समृद्धि
- परभागः—पुं॰—पर-भागः—-—सर्वोत्तमता, श्रेष्ठता, सर्वोपरिता
- परभागः—पुं॰—पर-भागः—-—अधिकता, बाहुल्य, ऊँचाई
- परभाषा—स्त्री॰—पर-भाषा—-—विदेशी भाषा
- परभुक्त—वि॰—पर-भुक्त—-—दूसरे के द्वारा भोगा हुआ
- परभृत्—पुं॰—पर-भृत्—-—कौवा (क्योंकि यह दूसरे का अर्थात् कोयल का पालन-पोषण करता हैं )
- परभृतः—पुं॰—पर-भृतः—-—कोयल (क्योंकि यह दूसरे दे द्वारा अर्थात् कौवे से पाली पोसी जाती है)
- परभृता—स्त्री॰—पर-भृता—-—कोयल (क्योंकि यह दूसरे दे द्वारा अर्थात् कौवे से पाली पोसी जाती है)
- परमृत्युः—पुं॰—पर-मृत्युः—-—कौवा
- पररमणः—पुं॰—पर-रमणः—-—विवाहित स्त्री का यार या जार
- परलोकः—पुं॰—पर-लोकः—-—दूसरा (आगामी) दुनिया
- परविधिः—पुं॰—पर-विधिः—-—अन्त्येष्टि संस्कार
- परवश—वि॰—पर-वश—-—दूसरे के अधीन, पराश्रित
- परवश्य—वि॰—पर-वश्य—-—दूसरे के अधीन, पराश्रित
- परवाच्यम्—नपुं॰—पर-वाच्यम्—-—दोष या त्रुटि
- परवाणिः—पुं॰—पर-वाणिः—-—न्यायकर्ता
- परवाणिः—पुं॰—पर-वाणिः—-—वर्ष
- परवाणिः—पुं॰—पर-वाणिः—-—कार्तिकेय के मोर का नाम
- परवादः—पुं॰—पर-वादः—-—अफ़वाह, जनश्रुति
- परवादः—पुं॰—पर-वादः—-—आपत्ति, विवाद
- परवादिन्—पुं॰—पर-वादिन्—-—झगड़ालू विवादी
- परव्रतः—पुं॰—पर-व्रतः—-—धृतराष्ट्र का विशेषण
- परश्वस्—अव्य॰—पर-श्वस्—-—परसों (आगामी)
- परसंज्ञकः—पुं॰—पर-संज्ञकः—-—आत्मा
- परस्वर्ण—वि॰ —पर-स्वर्ण—-—अग्रवर्ती वर्ण का सजातीय
- परसेवा—स्त्री॰—पर-सेवा—-—दूसरे को सेवा
- परस्त्री—स्त्री॰—पर-स्त्री—-—दूसरे की पत्नी
- परस्वम्—नपुं॰—पर-स्वम्—-—दूसरे की संपत्ति
- परहरणम्—नपुं॰—पर-हरणम्—-—दूसरे की संपत्ति हर लेना
- परहन्—वि॰—पर-हन्—-—शत्रुओं को मारने वाला
- परहितम्—नपुं॰—पर-हितम्—-—दूसरे का भला
- परकीय—वि॰—-—परस्य इदम्-पर + छ, कुक्—दूसरे से संबंध रखने वाला
- परकीया—स्त्री॰—-—-—दूसरे की पत्नी, जो अपनी न हो, नायिकाओं के तीन मुख्य प्रकारों में से एक
- परञ्जः—पुं॰—-—-—तेल कोल्हू
- परञ्जः—पुं॰—-—-—तलवार का फल
- परञ्जनः—पुं॰—-—परस्याः पश्चिमस्याः दिशोजनः स्वामी नि॰ —वरुण का विशेषण
- परञ्जयः—पुं॰—-—पर + जि + अच्, मुम्—वरुण का विशेषण
- परतः—अव्य॰—-—पर + तस्—दूसरे से
- परतः—अव्य॰—-—पर + तस्—शत्रु से
- परतः—अव्य॰—-—पर + तस्—आगे, अपेक्षाकृत अधिक, परे, बाद, ऊपर
- परतः—अव्य॰—-—पर + तस्—अन्यथा
- परतः—अव्य॰—-—पर + तस्—भिन्न प्रकार से
- परत्र—अव्य॰—-—पर + त्र—दूसरे लोक में , भावी जन्म में
- परत्र—अव्य॰—-—पर + त्र—उत्तर भाग में, आगे या बाद में
- परत्र—अव्य॰—-—पर + त्र—आने वाले समय में, भविष्य में
- परत्रभीरुः—पुं॰—परत्र-भीरुः—-—परलोक के भय से विस्मित हो, धर्मात्मा पुरुष
- परन्तप—वि॰—-—परान् शत्रुन् तापयति- पर + तप् + णिच् + खच्, ह्रस्वः, मुम् च—दूसरों को सताने वाला, अपने शत्रुओं का दमन करने वाला
- परन्तपः—पुं॰—-—-—शूरवीर, विजेता
- परम—वि॰—-—परं परत्वं माति-क तारा॰—दूरतम, अन्तिम
- परम—वि॰—-—परं परत्वं माति-क तारा॰—उच्चतम, सर्वोत्तम, अत्यंत श्रेष्ठ, महत्तम
- परम—वि॰—-—परं परत्वं माति-क तारा॰—मुख्य, प्रधान, प्राथमिक, सर्वोपरि
- परम—वि॰—-—परं परत्वं माति-क तारा॰—अत्यधिक, अन्तिम
- परम—वि॰—-—परं परत्वं माति-क तारा॰—यथेष्ट, पर्याप्त
- परमम्—नपुं॰—-—-—सर्वोच्च या उच्चतम मुख्य या प्रमुख भाग, प्रधानतया युक्त, पूर्णतः संलग्न
- परमम्—अव्य॰—-—-—स्वीकृतिबोधक, अंगीकार या सहमति बोधक, अध्यय (अच्छा, बहुत अच्छा, हाँ, ऐसा ही)
- परमम्—अव्य॰—-—-—अत्यधिक, अत्यन्त परमक्रुद्धः आदि
- परमाङ्गना—स्त्री॰—परम-अङ्गना—-—श्रेष्ठ श्री
- परामाणुः—पुं॰—परम-अणुः—-—अत्यणु, अत्यल्पमात्रा का अणु
- परमाद्वैतम्—नपुं॰—परम-अद्वैतम्—-—परमात्मा
- परमाद्वैतम्—नपुं॰—परम-अद्वैतम्—-—विशुद्ध एकेश्वरवाद
- परमान्नम्—नपुं॰—परम-अन्नम्—-—खीर, दूध में पके हुए चावल
- परमार्थः—पुं॰—परम-अर्थः—-—सर्वोच्च या नितांत अलौकिक सत्य, वास्तविक आत्मज्ञान, ब्रह्मा या परमात्मासंबंधी ज्ञान
- परमार्थः—पुं॰—परम-अर्थः—-—सचाई, वास्तविकता, आन्तरिकता
- परमार्थः—पुं॰—परम-अर्थः—-—कोई श्रेष्ठ या महत्वपूर्ण पदार्थ
- परमार्थः—पुं॰—परम-अर्थः—-—सर्वोत्तम अर्थ
- परमार्थतः—अव्य॰—परम-अर्थतः—-—सचमुच, वस्तुतः, यथार्थतः, सत्यतः
- परमाहः—पुं॰—परम-अहः—-—श्रेष्ठ दिन
- परमात्मन—पुं॰—परम-आत्मन—-—सर्वोपरि आत्मा या ब्रह्म
- परमापद—स्त्री॰—परम-आपद—-—अत्यंत भारी संकट या दुर्भाग्य
- परमेशः—पुं॰—परम-ईशः—-—विष्णु का विशेषण
- परमेशः—पुं॰—परम-ईशः—-—इन्द्र की उपाधि
- परमेशः—पुं॰—परम-ईशः—-—शिव का विशेषण
- परमेशः—पुं॰—परम-ईशः—-—सर्वशक्तिमान परमात्मा का विशेषण
- परमर्षिः—पुं॰—परम-ऋषिः—-—उच्चाकोटिका ऋषि
- परमैश्वर्यम्—नपुं॰—परम-ऐश्वर्यम्—-—सर्वशक्तिमत्ता, सर्वोपरिता
- परमगतिः—स्त्री॰—परम-गतिः—-—मोक्ष, निर्वाण
- परमगवः—पुं॰—परम-गवः—-—श्रेष्ठजाति का बैल या गाय
- परमपदम्—नपुं॰—परम-पदम्—-—सर्वोत्तम स्थिति, उच्चतम दर्जा
- परमपदम्—नपुं॰—परम-पदम्—-—मोक्ष
- परमपुरुषः—पुं॰—परम-पुरुषः—-—परमात्मा
- परमपूरुषः—पुं॰—परम-पूरुषः—-—परमात्मा
- परमप्रख्य—वि॰—परम-प्रख्य—-—प्रसिद्ध विख्यात
- परमब्रह्मन्—नपुं॰—परम-ब्रह्मन्—-—परमात्मा
- परमहंसः—पुं॰—परम-हंसः—-—उच्चतम कोटि का संन्यासी, वह जिसने भावात्मक समाधि दे द्वारा अपनी इन्द्रियों का दमन करके उनको वश में कर लिया है
- परमेष्ठः—पुं॰—-—परम + इष्ठन्—ब्रह्मा का विशेषण
- परमेष्ठिन—पुं॰—-—परमेष्ठ + इनि—ब्रह्मा की विशेषण
- परमेष्ठिन—पुं॰—-—परमेष्ठ + इनि—विष्णु की विशेषण
- परमेष्ठिन—पुं॰—-—परमेष्ठ + इनि—गरुड की विशेषण
- परमेष्ठिन—पुं॰—-—परमेष्ठ + इनि—अग्नि की उपाधि
- परमेष्ठिन—पुं॰—-—परमेष्ठ + इनि—कोई भी आध्यात्मिक गुरु
- परम्पर—वि॰—-—परं पिपर्ति पृ + अच्, अलु॰ स॰—एक के बाद दूसरा
- परम्पर—वि॰—-—परं पिपर्ति पृ + अच्, अलु॰ स॰—पूर्वानुपर, उत्तरोत्तर
- परम्परः—पुं॰—-—-—प्रपौत्र
- परम्परा—स्त्री॰—-—-—अविच्छिन्न, शृंखला, नियमित सिलसिला, आनुपूर्व्य
- परम्परया आगम्—नपुं॰—-—-—नियमित परम्परा के क्रम से प्राप्त होना
- परम्परया आगम्—नपुं॰—-—-—(नियमित वस्तुओं की) पंक्ति, क़तार, संग्रह समूह
- परम्परया आगम्—नपुं॰—-—-—प्रणाली, क्रम, सुव्यवस्था
- परम्परया आगम्—नपुं॰—-—-—वंश, कुटुंब, कुल
- परम्परया आगम्—नपुं॰—-—-—क्षति, चोट, मार डालना
- परम्पराक—वि॰—-—परंपरया कायेत प्रकाशते- कै + क—यज्ञ में पशु का बध करना
- परम्परीण—वि॰—-—परंपर + ख—उत्तराधिकार में प्राप्त, आनुवंशिक
- परम्परीण—वि॰—-—परंपर + ख—परंपराप्राप्त
- परवत्—वि॰—-—पर + मतुप् मस्य वः—पराधीन, दूसरे के वश में, आज्ञापालन के लिए तत्पर
- परवत्—वि॰—-—पर + मतुप् मस्य वः—शक्ति से वंचित, निःशक्त
- परवत्—वि॰—-—पर + मतुप् मस्य वः—पूर्णरूप से (दूसरे के) अधीन जो स्वयं अपना स्वामी न हो, विजित, पराभूत
- परवत्ता—स्त्री॰—-—पखत् + तल् + टाप्—दूसरे की अधीनता, पराधीनता
- परशः—पुं॰—-—स्पृशति इति पृषो॰—पारसमणि जिसके स्पर्श से, कहा जाता है कि लोहा आधि दूसरी धातुएँ सोना बन जाती हैं
- परशुः—पुं॰—-—परं शृणति-शृ + कु ङिच्च— कुल्हाड़ा, कुल्हाड़ी, कुठार फरसा
- परशुः—पुं॰—-—परं शृणति-शृ + कु ङिच्च—शस्त्र, हथियार
- परशुः—पुं॰—-—परं शृणति-शृ + कु ङिच्च—बज्र
- परशुधरः—पुं॰—परशुः-धरः—-—परशुराम का विशेषण
- परशुधरः—पुं॰—परशुः-धरः—-—गणेश की उपाधि
- परशुधरः—पुं॰—परशुः-धरः—-—कुठारधारी सैनिक
- परशुरामः—पुं॰—परशुः-रामः—-—‘कुठारधारी राम’ एक विख्यात ब्राह्मणयोद्धा जो जमदग्नि का पुत्र और विष्णु का छठा अवतार था
- परश्वधः—पुं॰—-—पर + श्वि + ड= परश्वः, तंदधाति- धा + क, नि॰ शस्य सत्वम्—कुल्हाड़ी, कुठार, फरसा
- परस्—अव्य॰—-—पर + असि—परे, आगे, और भी
- परस्—अव्य॰—-—पर + असि—इसके दूसरी ओर
- परस्—अव्य॰—-—पर + असि—दूर, दूरी पर
- परस्—अव्य॰—-—पर + असि—अपवाद रूप से
- परः कृष्ण—वि॰—परस्-कृष्ण—-—अत्यन्त काला
- परःपुरुषः—वि॰—परस्-पुरुषः—-—मनुष्य से लंबा या ऊँचा
- परःशत—वि॰—परस्-शत—-— सौ से अधिक
- परःश्वस्—अव्य॰—परस्-श्वस्—-—आगामी परसों
- परःसहस्र—वि॰—परस्-सहस्र—-—एक हजार से अधिक
- परस्तात्—अव्य॰—-—पर + अस्ताति—परे, के दूसरी ओर, और आगे
- परस्तात्—अव्य॰—-—पर + अस्ताति—इसके पश्वात्, बाद में
- परस्तात्—अव्य॰—-—पर + अस्ताति—अपेक्षाकृत ऊँचा
- परस्पर—वि॰—-—परः परः इति विग्रहे समासवद्भावे पूर्वपदस्य सुः—आपस में
- परस्मैपदम्—नपुं॰—-—परस्मै पदार्थ पदं —दूसरे के लिए प्रयुक्त वाच्य
- परस्मैभाषा—स्त्री॰—-—परस्मै पदार्थ भाषा—दूसरे के लिए प्रयुक्त वाच्य
- परा—अव्य॰—-—पृ + अच् + टाप्—‘दूर’ ‘पीछे’ ‘उल्टे क्रम से’ ‘एक ओर’ ‘की ओर’ अर्थो को प्रकट करने के लिए धातु या संज्ञा से पूर्व लगने वाला उपसर्ग
- पराकरणम्—नपुं॰—-—परा + कृ + ल्युट्—एक ओर रख देने की क्रिया अस्वीकार करना, अवहेलना करना, तिरस्कृत करना
- पराक्रमः—पुं॰—-—परा + क्रम् + घञ्—शूरवीरता, बहादुरी, साहस
- पराक्रमः—पुं॰—-—परा + क्रम् + घञ्—विरोधी अभियान करना, आक्रमण करना
- पराक्रमः—पुं॰—-—परा + क्रम् + घञ्—प्रयत्न, कोशिश, उद्योग
- पराक्रमः—पुं॰—-—परा + क्रम् + घञ्—विष्णु का नाम
- परागः—पुं॰—-—परा + गम् + ड—पुष्पराज
- परागः—पुं॰—-—परा + गम् + ड—धूलि
- परागः—पुं॰—-—परा + गम् + ड—स्नान के पश्चात् सेवन किया जाने वाला सुगंधित चूर्ण
- परागः—पुं॰—-—परा + गम् + ड—चन्दन
- परागः—पुं॰—-—परा + गम् + ड—सूर्य या चन्द्रमा का ग्रहण
- परागः—पुं॰—-—परा + गम् + ड—यश, प्रसिद्धि
- परागः—पुं॰—-—परा + गम् + ड—स्वाधीनता
- पराङ्गवः—पुं॰—-—परांगं प्रचुरशरीरं वाति प्राप्नोति- वा + क—समुद्र
- पराच्—वि॰—-—-—परे या दूसरी ओर स्थित
- पराच्—वि॰—-—-—मुँह मोड़ कर (पराङमुख)
- पराच्—वि॰—-—-—जो अनुकूल न हो, प्रतिकूल
- पराच्—वि॰—-—-—दूरस्थ
- पराच्—वि॰—-—-—बाहरकी ओर निदेशित
- पराञ्च्—वि॰—-—परा + अंच् + क्विन्—परे या दूसरी ओर स्थित
- पराञ्च्—वि॰—-—परा + अंच् + क्विन्—मुँह मोड़ कर (पराङमुख)
- पराञ्च्—वि॰—-—परा + अंच् + क्विन्—जो अनुकूल न हो, प्रतिकूल
- पराञ्च्—वि॰—-—परा + अंच् + क्विन्—दूरस्थ
- पराञ्च्—वि॰—-—परा + अंच् + क्विन्—बाहरकी ओर निदेशित
- पराङ्मुख—वि॰—पराच्-मुख—-—
- पराङ्मुख—वि॰—पराच्-मुख—-—विमुख, उलट
- पराङ्मुख—वि॰—पराच्-मुख—-—उदासीन, कतराने वाला, टाल जाने वाला
- पराङ्मुख—वि॰—पराच्-मुख—-—प्रतिकूल, अनुकूल
- पराङ्मुख—वि॰—पराच्-मुख—-—उपेक्षा करने वाला
- पराचीन—वि॰—-—पराच् + ख—विरूद्ध दिशा में मुड़ा हुआ, विमुख़
- पराचीन—वि॰—-—पराच् + ख—पराङ्मुख, अरूचि रखने वाला
- पराचीन—वि॰—-—पराच् + ख—परवाह न करने वाला, उपेक्षा करने वाला
- पराचीन—वि॰—-—पराच् + ख—बाद में होने वाला, उत्तरकालभव
- पराचीन—वि॰—-—पराच् + ख—दूसरी ओर स्थित, परे होने वाला
- पराजयः—पुं॰—-—परा + जि + अच्—परास्त करना, विजय, जीतना, अधीनीकरण, हार
- पराजयः—पुं॰—-—परा + जि + अच्—परास्त होना, सहन करने के योग्य न होना
- पराजयः—पुं॰—-—परा + जि + अच्—हारना, हार असफलता (मुकदमे आदि में)
- पराजयः—पुं॰—-—परा + जि + अच्—पदच्युति, वंचना
- पराजयः—पुं॰—-—परा + जि + अच्—परित्याग
- पराजित—भू॰ क॰ कृ॰—-—परा + जि + क्त—जीता हुआ, वश में किया हुआ, हराया हुआ
- पराजित—भू॰ क॰ कृ॰—-—परा + जि + क्त— कानून द्वारा दण्डित, (मुकदमे में) हारा हुआ, पछाड़ा हुआ
- परानसा—स्त्री॰—-—वरा + अन् + अस + टाप्—औषधीय चिकित्सा, वैद्य, हकीम या डाक्टर द्वारा इलाज़, वैद्य का व्यवसाय
- पराणसा—स्त्री॰—-—वरा + अण् + अस + टाप्—औषधीय चिकित्सा, वैद्य, हकीम या डाक्टर द्वारा इलाज़, वैद्य का व्यवसाय
- पराभवः—पुं॰—-—परा + भू + अप्—हार, असफलता, पराजय
- पराभवः—पुं॰—-—परा + भू + अप्—मानभंग, मानमर्दन, प्रतिष्ठाभंग
- पराभवः—पुं॰—-—परा + भू + अप्—घृणा, अवहेलना, तिरस्कार
- पराभवः—पुं॰—-—परा + भू + अप्—विनाश
- पराभवः—पुं॰—-—परा + भू + अप्—लोप, वियोग
- पराभूतिः—स्त्री॰—-—परा + भू + क्तिन्—हार, असफलता, पराजय
- पराभूतिः—स्त्री॰—-—परा + भू + क्तिन्—मानभंग, मानमर्दन, प्रतिष्ठाभंग
- पराभूतिः—स्त्री॰—-—परा + भू + क्तिन्—घृणा, अवहेलना, तिरस्कार
- पराभूतिः—स्त्री॰—-—परा + भू + क्तिन्—विनाश
- पराभूतिः—स्त्री॰—-—परा + भू + क्तिन्—लोप, वियोग
- परामर्शः—पुं॰—-—परा + मृश् + घञ्—पकड़ लेना, ख़ीचना
- परामर्शः—पुं॰—-—परा + मृश् + घञ्—हिंसा, आक्रमण, हमला
- परामर्शः—पुं॰—-—परा + मृश् + घञ्—बाधा विघ्न
- परामर्शः—पुं॰—-—परा + मृश् + घञ्—ध्यान करना, प्रत्यास्मरण
- परामर्शः—पुं॰—-—परा + मृश् + घञ्—विचार, विमर्श, चिन्तन
- परामर्शः—पुं॰—-—परा + मृश् + घञ्—निर्णय
- परामर्शः—पुं॰—-—परा + मृश् + घञ्—घटाना, निश्चय करना कि अपना पक्ष या विषय सहेतुक है
- परामृष्ट—भू॰ क॰ कृ॰—-—परा + मृश् + क्त—छूआ गया, हाथ लगाया गया, दबोचा गया, पकड़ा गया
- परामृष्ट—भू॰ क॰ कृ॰—-—परा + मृश् + क्त—रूखा व्यवहार किया गया, दुर्व्यवहार किया गया
- परामृष्ट—भू॰ क॰ कृ॰—-—परा + मृश् + क्त—तोला गया, विचार किया गया, कूता गया
- परामृष्ट—भू॰ क॰ कृ॰—-—परा + मृश् + क्त—सहन किया गया
- परामृष्ट—भू॰ क॰ कृ॰—-—परा + मृश् + क्त—संबद्ध
- परामृष्ट—भू॰ क॰ कृ॰—-—परा + मृश् + क्त—(रोग से) ग्रस्त
- परारि—अव्य॰—-—पूर्वतरे वत्सरे इत्यर्थे परभावः आदि च संवत्सरे—पूर्वतर वर्ष में, विगतवर्ष में, परियार साल
- परायण—वि॰—-—-—अनुरक्त, भक्त, संसक्त
- परायण—वि॰—-—-—आश्रित, वशीभूत
- परायण—वि॰—-—-—तुला हुआ, अनन्य भक्त, सर्वथा लीन
- परावर्तः—पुं॰—-—परा + वृत् + घञ्—पीछे मुड़ना, वापसी, प्रत्यावर्तन
- परावर्तः—पुं॰—-—परा + वृत् + घञ्—अदल-बदल, विनिमय
- परावर्तः—पुं॰—-—परा + वृत् + घञ्—पुनः प्राप्ति
- परावर्तः—पुं॰—-—परा + वृत् + घञ्—(कानुन में) दण्ड या सजा की उलट-पलट
- परावृत्तिः—स्त्री॰—-—परा + वृत् + क्तिन्—पीछे मुड़ना, वापसी, प्रत्यावर्तन
- परावृत्तिः—स्त्री॰—-—परा + वृत् + क्तिन्—अदल-बदल, विनिमय
- परावृत्तिः—स्त्री॰—-—परा + वृत् + क्तिन्—पुनः प्राप्ति
- परावृत्तिः—स्त्री॰—-—परा + वृत् + क्तिन्—(कानुन में) दण्ड या सजा की उलट-पलट
- पराशरः—पुं॰—-—परान् आशृणाति- शृ + अच्—एक प्रसिद्ध ऋषि का नाम जो व्यास के पिता तथा एक स्मृतिकार थे
- परासम्—नपुं॰—-—परा + अस् + घञ्—रांगा, टीन
- परासनम्—नपुं॰—-—परा + अस् + ल्युट्—बध, हत्या
- परासु—वि॰—-—परागताः असवो यस्य प्रा॰ ब॰ स॰—निजीव, मृतक
- परास्त—वि॰, भू॰ क॰ कृ॰—-—परा + अस्+ क्त—फेंका हुआ, डाला हुआ
- परास्त—वि॰, भू॰ क॰ कृ॰—-—परा + अस्+ क्त—निष्कासित, निकाला हुआ
- परास्त—वि॰, भू॰ क॰ कृ॰—-—परा + अस्+ क्त—अस्वीकृत
- परास्त—वि॰, भू॰ क॰ कृ॰—-—परा + अस्+ क्त—निराकृत, त्यक्त
- परास्त—वि॰, भू॰ क॰ कृ॰—-—परा + अस्+ क्त—हराया हुआ
- पराहत—वि॰, भू॰ क॰ कृ॰—-—परा + हन् + क्त—पटका हुआ, पछाड़ा हुआ
- पराहत—वि॰, भू॰ क॰ कृ॰—-—परा + हन् + क्त—पीछे हटाया हुआ, पीछे ढकेला हुआ
- पराहतम्—नपुं॰—-—परा + हन् + क्त—प्रहार, आघात
- परि—अव्य॰—-—पृ + इन्—एक प्रकार का उपसर्ग
- परि—अव्य॰—-—पृ + इन्—चारों ओर, इधर उधर, इर्दगिर्द
- परि—अव्य॰—-—पृ + इन्—बहुत, अत्यन्त
- परि—अव्य॰—-—पृ + इन्—पृथक्करणीय अव्यय
- परि—अव्य॰—-—पृ + इन्—क्रिया विशेषण उपसर्ग के रूप में संज्ञाओं से पूर्व लग कर जब कि क्रिया से सीधा संबंध न हो, ‘बहुत’ ‘अति’ ‘अत्यधिक’ अत्यन्त आदि अर्थ प्रकट करता है
- परि—अव्य॰—-—पृ + इन्—बिना, सिबाय, के बाहर, इसको छोड़ कर
- परि—अव्य॰—-—पृ + इन्—इर्दगिर्द, चारों ओर, घिरा हुआ
- परि—अव्य॰—-—पृ + इन्—‘श्रान्त’, ‘क्लान्त’, ‘उबा हुआ’
- परिकथा—स्त्री॰, पुं॰, प्रा॰स॰—-—-—आख्यानप्रिय व्यक्ति के इतिवृत्त तथा उसके साहसिक कार्यों को बतलाने वाली रचना, काल्पनिक कथा
- परिकम्पः—पुं॰,प्रा॰स॰—-—-—भारी त्रास
- परिकम्पः—पुं॰,प्रा॰स॰—-—-—प्रचंड कंपकंपी या थरथराहट
- परिकरः—पुं॰—-—-—परिजन, अनुचर वर्ग, नौकर-चाकर, अनुयायिवर्ग
- परिकरः—पुं॰—-—-—समुच्चय, संग्रह, समूह
- परिकरः—पुं॰—-—-—आरंभ, उपक्रम
- परिकरः—पुं॰—-—-—परिधि, कटिबंध, कटिवस्त्र
- परिकरं बन्ध——-—-—कमर कसना, तैयार होना, किसी कार्य के लिए अपने आपको सज्जित करना
- परिकरं कृ——-—-—कमर कसना, तैयार होना, किसी कार्य के लिए अपने आपको सज्जित करना
- परिकरः—पुं॰—-—-—सोफा
- परिकरः—पुं॰—-—-—एक अलंकार जिसके सार्थक विशेषणों का उपयोग होता है
- परिकरः—पुं॰—-—-—नाटक की वस्तु कथा में आने वाली घटनाओं का परोक्षसूचन, बीज का मूलतत्त्व
- परिकरः—पुं॰—-—-—निर्णय
- परिकर्तृ—पुं॰—-—-—वह पुरोहित जो बड़े भाई के अविवाहित रहते हुए छोटे भाई का विवाह संस्कार करता है
- परिकर्मन्—पुं॰—-—परि + कृ + मनिन्—सेवक
- परिकर्मन्—नपुं॰—-—परि + कृ + मनिन्—शरीर को चित्रित या सुगंधित करना, वैयक्तिक सजावट, अलंकृत करना, प्रसाधन
- परिकर्मन्—नपुं॰—-—परि + कृ + मनिन्—पैरों में महावर लगाना
- परिकर्मन्—नपुं॰—-—परि + कृ + मनिन्—सज्जा, तैयारी
- परिकर्मन्—नपुं॰—-—परि + कृ + मनिन्—पूजा, अर्चना
- परिकर्मन्—नपुं॰—-—परि + कृ + मनिन्—शुद्ध करना, पवित्रीकरण, मन को शुद्ध करने के साधन
- परिकर्मन्—नपुं॰—-—परि + कृ + मनिन्—गणित की प्रक्रिया
- परिकर्षः—पुं॰—-—परि + कृष् + घञ्—ख़ीच कर बाहर निकालना, उखाड़ना
- परिकर्षणम्—नपुं॰—-—परि + कृष् + ल्युट्—ख़ीच कर बाहर निकालना, उखाड़ना
- परिकल्कनम्—नपुं॰—-—परि + कल् + क + ल्युट्—धोखा, ठगी, छल-कपट
- परिकल्पनम्—नपुं॰—-—परि + कृप् + ल्युट्—निर्णय करना, स्थिर करना, फैसला करना, निर्धारण करना
- परिकल्पनम्—नपुं॰—-—परि + कृप् + ल्युट्—उपाय निकालना, आविष्कार करना, रूप वेना, क्रमबद्ध करना
- परिकल्पनम्—नपुं॰—-—परि + कृप् + ल्युट्—जुटाना, सम्पन्न करना
- परिकल्पनम्—नपुं॰—-—परि + कृप् + ल्युट्—वितरण करना
- परिकल्पना—स्त्री॰—-—परि + कृप् + ल्युट्+टाप्—निर्णय करना, स्थिर करना, फैसला करना, निर्धारण करना
- परिकल्पना—स्त्री॰—-—परि + कृप् + ल्युट्+टाप्—उपाय निकालना, आविष्कार करना, रूप वेना, क्रमबद्ध करना
- परिकल्पना—स्त्री॰—-—परि + कृप् + ल्युट्+टाप्—जुटाना, सम्पन्न करना
- परिकल्पना—स्त्री॰—-—परि + कृप् + ल्युट्+टाप्—वितरण करना
- परिकांक्षितः—पुं॰—-—परि + कांक्ष् + क्त—धर्म परायण साधु या सन्यासी, भक्त
- परिकीर्ण—वि॰, भू॰ क॰ कृ॰—-—परि + कृ + क्त—फैलाया हुआ, प्रसृत, इधर उधर बखेरा हुआ
- परिकीर्ण—वि॰, भू॰ क॰ कृ॰—-—परि + कृ + क्त—घिरा हुआ, भीड़भिड़क्का से युक्त, भरा हुआ
- परिकूटम्—नपुं॰—-—-—अवरोध, आड़, नगर के फाटक के सामने की खाई
- परिकोपः—पुं॰—-—परि + कुप् + घञ्—असह्य क्रोध, भीषणता
- परिक्रमः—पुं॰—-—परि + क्रम् + घञ्—इधर उधर भ्रमण करना, इतस्ततः घूमना
- परिक्रमः—पुं॰—-—परि + क्रम् + घञ्—भ्रमण, घूमना, टहलना
- परिक्रमः—पुं॰—-—परि + क्रम् + घञ्—प्रदक्षिणा करना
- परिक्रमः—पुं॰—-—परि + क्रम् + घञ्—इच्छानुसार टहलना
- परिक्रमः—पुं॰—-—परि + क्रम् + घञ्—सिलसिला, क्रम
- परिक्रमः—पुं॰—-—परि + क्रम् + घञ्—यथाक्रम, उत्तरोत्तर
- परिक्रमः—पुं॰—-—परि + क्रम् + घञ्—घुसना
- परिक्रमसहः—पुं॰—परिक्रमः-सहः—-—बकरी
- परिक्रयः—पुं॰—-—परि + क्री + घञ्—मजदूरी, भाड़ा
- परिक्रयः—पुं॰—-—परि + क्री + घञ्—मजदूरी पर काम में लगाना
- परिक्रयः—पुं॰—-—परि + क्री + घञ्—मोल लेना, खरीद डालना
- परिक्रयः—पुं॰—-—परि + क्री + घञ्—विनिमय, अदल-बदल
- परिक्रयः—पुं॰—-—परि + क्री + घञ्—रुपया देकर की गई संधि
- परिक्रमणम्—नपुं॰—-—परि + क्री + ल्युट्—मजदूरी, भाड़ा
- परिक्रमणम्—नपुं॰—-—परि + क्री + ल्युट्—मजदूरी पर काम में लगाना
- परिक्रमणम्—नपुं॰—-—परि + क्री + ल्युट्—मोल लेना, खरीद डालना
- परिक्रमणम्—नपुं॰—-—परि + क्री + ल्युट्—विनिमय, अदल-बदल
- परिक्रमणम्—नपुं॰—-—परि + क्री + ल्युट्—रुपया देकर की गई संधि
- परिक्रया—स्त्री॰—-—परितः क्रिया—बाड़ लगाना, चारों ओर खाई खोदना
- परिक्रया—स्त्री॰—-—परितः क्रिया—घेरना
- परिक्रया—स्त्री॰—-—परितः क्रिया— नाट्य॰ में = परिकर ७
- परिक्लांत—वि॰, भू॰ क॰ कृ॰—-—परि + क्लम् + क्त—थका हुआ, परिश्रांत, उकताया हुआ
- परिक्लेदः—पुं॰—-—परि + क्लिद् + घञ्—गीलापन, नमी, आर्द्रता
- परिक्लेशः—पुं॰—-—परि + क्लिश् + घञ्—कठिनाई , थकावट, कष्ट
- परिक्षयः—पुं॰—-—परि + क्षि + अच्—ह्रास, वर्बादी, विनाश
- परिक्षयः—पुं॰—-—परि + क्षि + अच्—अन्तर्धान होना, समाप्त होना
- परिक्षयः—पुं॰—-—परि + क्षि + अच्—बर्बादी, नाश, असफलता
- परिक्षाम—वि॰—-—परि + क्षै + क्त, मकारा देशः—कृश, क्षीण, दुर्बल
- परिक्षालनम्—नपुं॰—-—परि + क्षल् + णिच् + ल्युट्—धोना, मांजना
- परिक्षालनम्—नपुं॰—-—परि + क्षल् + णिच् + ल्युट्—धोने के लिए पानी
- परिक्षिप्त—वि॰, भू॰ क॰ कृ॰—-—परि + क्षिप् + क्त—बखेरा हुआ, प्रसृत
- परिक्षिप्त—वि॰, भू॰ क॰ कृ॰—-—परि + क्षिप् + क्त—परिवेष्टित, घेरा हुआ
- परिक्षिप्त—वि॰, भू॰ क॰ कृ॰—-—परि + क्षिप् + क्त—खाई से घेरा हुआ
- परिक्षिप्त—वि॰, भू॰ क॰ कृ॰—-—परि + क्षिप् + क्त—ऊपर से फैलाया हुआ, ऊपर डाला हुआ
- परिक्षिप्त—वि॰, भू॰ क॰ कृ॰—-—परि + क्षिप् + क्त—छोड़ा हुआ, परित्यक्त
- परिक्षीण—वि॰, भू॰ क॰ कृ॰—-—परि + क्षि + क्त—अन्तर्हित, लुप्त
- परिक्षीण—वि॰, भू॰ क॰ कृ॰—-—परि + क्षि + क्त—बर्बाद हुआ, ह्रासित
- परिक्षीण—वि॰, भू॰ क॰ कृ॰—-—परि + क्षि + क्त—कृश, घिसा हुआ, थका हुआ
- परिक्षीण—वि॰, भू॰ क॰ कृ॰—-—परि + क्षि + क्त—दरिद्र किया हुआ, सर्वथा बर्बाद किया हुआ
- परिक्षीण—वि॰, भू॰ क॰ कृ॰—-—परि + क्षि + क्त—ख़ोया हुआ, नाश किया हुआ
- परिक्षीण—वि॰, भू॰ क॰ कृ॰—-—परि + क्षि + क्त—कम किया हुआ, घटाया हुआ
- परिक्षीण—वि॰, भू॰ क॰ कृ॰—-—परि + क्षि + क्त—(कानून में) दिवालिया
- परिक्षीव—वि॰—-—परि + क्षीव् + क्त, तस्य लोपः—बिल्कुल नशे में चूर
- परिक्षेपः—पुं॰—-—परि + क्षिप् + घञ्—इधर उधर घूमना, टहलना
- परिक्षेपः—पुं॰—-—परि + क्षिप् + घञ्—बखेरना, फैलाना
- परिक्षेपः—पुं॰—-—परि + क्षिप् + घञ्—घेरना, परिवेष्टन, चारों ओर बहना
- परिक्षेपः—पुं॰—-—परि + क्षिप् + घञ्—घेरे की सीमा, हद जिससे कोई चीज घेरी जाय
- परिखा—स्त्री॰—-—परितः खन्यते- खन् + ड + टाप्—प्रतिकूप, खाई, नगर या किले के चारों ओर बनी नाली या खात
- परिखातम्—नपुं॰—-—परि + खन् + क्त—प्रतिकूप, खाई
- परिखातम्—नपुं॰—-—परि + खन् + क्त—लीक, खूड
- परिखातम्—नपुं॰—-—परि + खन् + क्त—चारों ओर से खोदना
- परिखेदः—पुं॰—-—परितः खेदः —थकावट, परिश्रान्ति, थकान
- परिख्यातिः—स्त्री॰—-—परि + ख्या + क्तिन्—यश, प्रसिद्धि
- परिगणनम्—नपुं॰—-—परि + गण् + ल्युट्—पूर्ण गिनती, सही वर्णन या हिसाब
- परिगणना—स्त्री॰—-—परि + गण् + ल्युट्+टाप्—पूर्ण गिनती, सही वर्णन या हिसाब
- परिगत—वि॰, भू॰ क॰ कृ॰—-—परि + गम् + क्त—घेरा हुआ, आवेष्टित, अहाता बनाया हुआ
- परिगत—वि॰, भू॰ क॰ कृ॰—-—परि + गम् + क्त—प्रसृत, चारों ओर फैलाया हुआ
- परिगत—वि॰, भू॰ क॰ कृ॰—-—परि + गम् + क्त—ज्ञात, समझा हुआ
- परिगत—वि॰, भू॰ क॰ कृ॰—-—परि + गम् + क्त—भरा हुआ, ढका हुआ, सम्पन्न
- परिगत—वि॰, भू॰ क॰ कृ॰—-—परि + गम् + क्त—हासिल, प्राप्त
- परिगत—वि॰, भू॰ क॰ कृ॰—-—परि + गम् + क्त—याद किया हुआ
- परिगलित—वि॰, भू॰ क॰ कृ॰—-—परि + गल् + क्त—डूबा हुआ
- परिगलित—वि॰, भू॰ क॰ कृ॰—-—परि + गल् + क्त—उथला हुआ
- परिगलित—वि॰, भू॰ क॰ कृ॰—-—परि + गल् + क्त—लुप्त
- परिगलित—वि॰, भू॰ क॰ कृ॰—-—परि + गल् + क्त—पिघला हुआ
- परिगलित—वि॰, भू॰ क॰ कृ॰—-—परि + गल् + क्त—बहता हुआ
- परिगर्हणम्—नपुं॰—-—परि + गर्ह् + ल्युट्—भारी कलङ्क
- परिगूढ—वि॰, भू॰ क॰ कृ॰—-—परि + गुह् + क्त—बिल्कुल गुप्त
- परिगूढ—वि॰, भू॰ क॰ कृ॰—-—परि + गुह् + क्त—अबोध्य, जो समझने में अत्यंत कठिन हो
- परिगृहीत्—वि॰, भू॰ क॰ कृ॰—-—परि + ग्रह् + क्त—अपनाया हुआ, पकड़ा हुआ, ग्रहण किया हुआ
- परिगृहीत्—वि॰, भू॰ क॰ कृ॰—-—परि + ग्रह् + क्त—आलिंगन किया हुआ, घेरा हुआ
- परिगृहीत्—वि॰, भू॰ क॰ कृ॰—-—परि + ग्रह् + क्त—स्वीकार किया हुआ, लिया हुआ, प्राप्त किया हुआ
- परिगृहीत्—वि॰, भू॰ क॰ कृ॰—-—परि + ग्रह् + क्त—हामी भरा हुआ, स्वीकृत किया हुआ, माना हुआ
- परिगृहीत्—वि॰, भू॰ क॰ कृ॰—-—परि + ग्रह् + क्त—संरक्षण दिया हुआ, अनुग्रह किया हुआ
- परिगृहीत्—वि॰, भू॰ क॰ कृ॰—-—परि + ग्रह् + क्त—अनुसरण किया हुआ, आज्ञा माना हुआ
- परिगृहीत्—वि॰, भू॰ क॰ कृ॰—-—परि + ग्रह् + क्त—विरोध किया हुआ
- परिगृह्या—स्त्री॰—-—परि + ग्रह् + क्यप् + टाप्—विवाहित स्त्री
- परिग्रहः—पुं॰—-—परि + ग्रह् + घञ्—पकड़ना, थामना, लेना, ग्रहण करना
- परिग्रहः—पुं॰—-—परि + ग्रह् + घञ्—घेरना, बन्द करना, चारों ओर से घेरा डालना, बाड़ बनाना
- परिग्रहः—पुं॰—-—परि + ग्रह् + घञ्—पहनना (वेशभूषा की भांति) लपेटना
- परिग्रहः—पुं॰—-—परि + ग्रह् + घञ्—धारण करना, लेना
- परिग्रहः—पुं॰—-—परि + ग्रह् + घञ्—प्राप्त करना, लेना, स्वीकार करना, अंगीगार करना
- परिग्रहः—पुं॰—-—परि + ग्रह् + घञ्—वैभव, संपत्ति, सामान
- परिग्रहः—पुं॰—-—परि + ग्रह् + घञ्—आवाह, विवाह
- परिग्रहः—पुं॰—-—परि + ग्रह् + घञ्—अपने रक्षण में लेना, अनुग्रह करना
- परिग्रहः—पुं॰—-—परि + ग्रह् + घञ्—अनुचर, अनुसेवी, नौकर-चाकर, परिजन, सेवक समूह
- परिग्रहः—पुं॰—-—परि + ग्रह् + घञ्—गृहस्थ, परिवार, परिवार के सदस्य
- परिग्रहः—पुं॰—-—परि + ग्रह् + घञ्—राजा का अन्तःपुर, रनिवास
- परिग्रहः—पुं॰—-—परि + ग्रह् + घञ्—जड, मूल
- परिग्रहः—पुं॰—-—परि + ग्रह् + घञ्—सूर्य या चन्द्रमा का ग्रहण
- परिग्रहः—पुं॰—-—परि + ग्रह् + घञ्—शपथ
- परिग्रहः—पुं॰—-—परि + ग्रह् + घञ्—सेना का पिछला भाग
- परिग्रहः—पुं॰—-—परि + ग्रह् + घञ्—विष्णु का नाम
- परिग्रहः—पुं॰—-—परि + ग्रह् + घञ्—संक्षेप, उपसंहार
- परिग्रहीतृ—पुं॰—-—परि + ग्रह् + तृच्—पति
- परिक्लान—वि॰, भू॰ क॰ कृ॰—-—परि + ग्लै + क्त—शिथिल, थका हुआ
- परिक्लान—वि॰, भू॰ क॰ कृ॰—-—परि + ग्लै + क्त—विमुख, पराङमुख
- परिधः—पुं॰—-—परि + हन् + अप्, आदेशः—लोहे की छड़ या लकड़ी का मूसल जो द्वार को बंद रखने के लिए प्रयुक्त की जाय, अर्गला
- परिधः—पुं॰—-—परि + हन् + अप्, आदेशः—(अतः) रोक, अवरोध,विध्न, बावा
- परिधः—पुं॰—-—परि + हन् + अप्, आदेशः—लोहे की स्याम लगी हुई लाठी, मुद्गर जिसमें लोहे की स्याम जड़ दी गई हो
- परिधः—पुं॰—-—परि + हन् + अप्, आदेशः—लोहे की गदा
- परिधः—पुं॰—-—परि + हन् + अप्, आदेशः—जलपात्र, घड़ा
- परिधः—पुं॰—-—परि + हन् + अप्, आदेशः—शीशे की झारी
- परिधः—पुं॰—-—परि + हन् + अप्, आदेशः—घर
- परिधः—पुं॰—-—परि + हन् + अप्, आदेशः—मारना, नष्ट करना
- परिधः—पुं॰—-—परि + हन् + अप्, आदेशः—प्रहार करना (आघात या थप्पड़)
- परिघट्टनम्—नपुं॰—-—परि + घट्ट + ल्युट्—घोटना, कड़छी चलाना
- परिघातः—पुं॰—-—परि + हन् + णिच् घञ्—मारना, प्रहार करना, हटाना, छुटकारा पाना
- परिघातः—पुं॰—-—परि + हन् + णिच् घञ्—मुद्गर ,मोटे सिरे की छड़ी
- परिघातनम्—नपुं॰—-—परि + हन् + णिच् घञ्, नस्य तः, ल्युट्—मारना, प्रहार करना, हटाना, छुटकारा पाना
- परिघातनम्—नपुं॰—-—परि + हन् + णिच् घञ्, नस्य तः, ल्युट्—मुद्गर ,मोटे सिरे की छड़ी
- परिघोषः—पुं॰—-—परि + घुष् + घञ्—कोलाहल
- परिघोषः—पुं॰—-—परि + घुष् + घञ्—अनुचित भाषण
- परिघोषः—पुं॰—-—परि + घुष् + घञ्—गर्जन
- परिचतुर्दशन्—वि॰,प्रा॰स॰—-—-—पूरे चौदह
- परिचयः—पुं॰—-—परि + चि + अप्—ढेर लगाना, एकत्र करना
- परिचयः—पुं॰—-—परि + चि + अप्—जान पहचान, परिचिति, घनिष्ठता, सरकारी संरक्षण
- परिचयः—पुं॰—-—परि + चि + अप्—जांच, अध्ययन, अभ्यास, मुहुर्मुहु
- परिचयः—पुं॰—-—परि + चि + अप्—ज्ञान
- परिचयः—पुं॰—-—परि + चि + अप्—पहचान
- परिचरः—पुं॰—-—परि + चर् + अच्—सेवक, अनुचर, टहलुआ
- परिचरः—पुं॰—-—परि + चर् + अच्—शरीर रक्षक
- परिचरः—पुं॰—-—परि + चर् + अच्—रक्षक, पहरेदार
- परिचरः—पुं॰—-—परि + चर् + अच्—श्रद्धांजलि, सेवा
- परिचरणः—पुं॰—-—परि + चर् + ल्युट्—सेवक, टहलुवा, सहायक
- परिचरणम्—नपुं॰—-—-—सेवा, टहल
- परिचरणम्—नपुं॰—-—-—इधर उधर जाना
- परिचर्या—स्त्री॰—-—परि + चर् + क्यप् + टाप्—सेवा, टहल
- परिचर्या—स्त्री॰—-—परि + चर् + क्यप् + टाप्—अर्चना, पूजा
- परिचाय्यः—पुं॰—-—परि + चि + ण्यत्—यज्ञानि (कुण्ड में स्थापित)
- परिचारः—पुं॰—-—परि + चर् + घञ्—सेवा, टहल
- परिचारः—पुं॰—-—परि + चर् + घञ्—सेवक
- परिचारः—पुं॰—-—परि + चर् + घञ्—टहलने का स्थान
- परिचारकः—पुं॰—-—परि + चर् + ण्वुल्—सेवक, टहलुवा
- परिचारिकः—पुं॰—-—परिचार + ठन्—सेवक, टहलुवा
- परिचित—वि॰, भू॰ क॰ कृ॰—-—परि + चि + क्त—ढेर लगाया हुआ, इकट्ठा किया हुआ
- परिचित—वि॰, भू॰ क॰ कृ॰—-—परि + चि + क्त—जानकार, घनिष्ठ, जान पहचान का
- परिचित—वि॰, भू॰ क॰ कृ॰—-—परि + चि + क्त—सीखा गया, अभ्यस्त
- परिचितिः—स्त्री॰—-—परि + चि + क्तिन्—जान पहचान, परिचय, घनिष्टता
- परिच्छद्—स्त्री॰—-—परि + छद् + क्विप्—परिजन, अनुचरवर्ग
- परिच्छद्—स्त्री॰—-—परि + छद् + क्विप्—साज-सामान
- परिच्छदः—पुं॰—-—परि + छद् + णिच् + घ—आवरण, चादर, पोशाक
- परिच्छदः—पुं॰—-—परि + छद् + णिच् + घ—वस्त्र,वेशभूषा
- परिच्छदः—पुं॰—-—परि + छद् + णिच् + घ—नौकरचाकर, परिजन, टहलुए, आश्रितमंडली
- परिच्छदः—पुं॰—-—परि + छद् + णिच् + घ—साज-सामान, (छत्र, चामर आदि) ऊपरी सामान
- परिच्छदः—पुं॰—-—परि + छद् + णिच् + घ—सामान, असबाब, व्यक्तिगत सामान, निजी चीज़े व सामान (बर्तनभांडे, तथा अन्य उपकरण आदि)
- परिच्छदः—पुं॰—-—परि + छद् + णिच् + घ—यात्रा का आवश्यक सामान
- परिच्छंदः—पुं॰—-—परि + छन्द् + क—नौकर-चाकर, परिजन
- परिच्छन्न—वि॰, भू॰ क॰ कृ॰—-—परि + छद् + क्त—वेष्टित, ढका हुआ, वस्त्राच्छादित, जिसने वस्त्र पहने हुए हों
- परिच्छन्न—वि॰, भू॰ क॰ कृ॰—-—परि + छद् + क्त—ऊपर फैलाया हुआ, या बिछाया हुआ
- परिच्छन्न—वि॰, भू॰ क॰ कृ॰—-—परि + छद् + क्त—घिरा हुआ, (परिजनों से)
- परिच्छन्न—वि॰, भू॰ क॰ कृ॰—-—परि + छद् + क्त—छिपा हुआ
- परिच्छित्तिः—स्त्री॰—-—परि + छिद् + किन्—यथार्थ परिभाषा, सीमित करना
- परिच्छित्तिः—स्त्री॰—-—परि + छिद् + किन्—विभाजन, अलग अलग करना
- परिच्छिन्न—वि॰, भू॰ क॰ कृ॰—-—परि + छिद् + क्त—काटा हुआ, विभक्त
- परिच्छिन्न—वि॰, भू॰ क॰ कृ॰—-—परि + छिद् + क्त—यथार्थ परिभाषा से युक्त, निर्धारित, निश्चयीकृत
- परिच्छिन्न—वि॰, भू॰ क॰ कृ॰—-—परि + छिद् + क्त—सीमित, सीमाबद्ध, परिसीमित
- परिच्छेदः—पुं॰—-—परि + छिद् + घञ्—काटना, वियुक्त करना, विभक्त करना, (उचित और अनुचित में) विवेचन
- परिच्छेदः—पुं॰—-—परि + छिद् + घञ्—यथार्थ परिभाषा, फैसला, यथार्थ निर्धारण, निश्चय करना
- परिच्छेदः—पुं॰—-—परि + छिद् + घञ्—विवेक, निर्णय, सूक्ष्मदृष्टि
- परिच्छेदः—पुं॰—-—परि + छिद् + घञ्—सीमा, हद, सीमा स्थिर करना, हदबन्दी
- परिच्छेदः—पुं॰—-—परि + छिद् + घञ्—अनुभाग या पुस्तक का कांड
- परिच्छेद्य—वि॰—-—परि + छिद् + ण्यत्—यथार्थरूप से परिभाषा के योग्य, परिभाषणीय
- परिच्छेद्य—वि॰—-—परि + छिद् + ण्यत्—तोलने या अनुमान लगाने के योग्य
- परिजनः—पुं॰—-—-—सदा साथ रहने वाले नौकर-चाकर, अनुयायिवर्ग, अनुचरवर्ग
- परिजनः—पुं॰—-—-—अरदली लोग, सेवकसमूह, सेविकाओं का समूह, बांदियाँ, दासियाँ
- परिजनः—पुं॰—-—-—सेवक, दास
- परिजल्पितम्—नपुं॰—-—परि + जल्प् + क्त—(नौकर या सेवक का) गुप्त संकेत जिससे अपनी कुशलता श्रेष्ठता तथा स्वामी की क्रूरता एवं शठता तथा और दूसरे इसी प्रकार के दोष प्रकट हों
- परिज्ञप्तिः—स्त्री॰—-—परि + ज्ञप् + क्तिन्—संलाप, संवाद
- परिज्ञप्तिः—स्त्री॰—-—परि + ज्ञप् + क्तिन्—पहचान
- परिज्ञानम्—नपुं॰—-—परि + ज्ञा + ल्युट्—पूरा ज्ञान, पूरी जानकारी
- परोडीनम्—नपुं॰—-—परि + डी + क्त—पक्षियों का गोल बना कर उड़ना या पक्षियों के गोल की उड़ान
- परिणत—वि॰, भू॰ क॰ कृ॰—-—परि + नम् + क्त—झुका हुआ, विनत, ढलता हुआ
- परिणत—वि॰, भू॰ क॰ कृ॰—-—परि + नम् + क्त—वृद्ध, ढलता हुआ
- परिणत—वि॰, भू॰ क॰ कृ॰—-—परि + नम् + क्त—पक्का, परिपक्व, पका हुआ, पूर्णविकसित
- परिणत—वि॰, भू॰ क॰ कृ॰—-—परि + नम् + क्त—(भोजन आदि) पचा हुआ
- परिणत—वि॰, भू॰ क॰ कृ॰—-—परि + नम् + क्त—रूपान्तरित या परिवर्तित
- परिणत—वि॰, भू॰ क॰ कृ॰—-—परि + नम् + क्त—समाप्त, पर्यवसित, अवसायी
- परिणत—वि॰, भू॰ क॰ कृ॰—-—परि + नम् + क्त—(सूर्य आदि) अस्त
- परिणतः—पुं॰—-—परि + नम् + क्त—अपने दांत से प्रहार करने के लिए झुका हुआ या पार्श्वाघात देने वाला हाथी
- परिणतिः—स्त्री॰—-—परि + नम् + क्तिन्—झुकना, ढलना, नत होना
- परिणतिः—स्त्री॰—-—परि + नम् + क्तिन्—पक्कापन, परिपक्वता, विकास
- परिणतिः—स्त्री॰—-—परि + नम् + क्तिन्—परिवर्तन, रूपान्तरण, कायापलट
- परिणतिः—स्त्री॰—-—परि + नम् + क्तिन्—पूर्णता
- परिणतिः—स्त्री॰—-—परि + नम् + क्तिन्—नतीजा, परिणाम, फल
- परिणतिः—स्त्री॰—-—परि + नम् + क्तिन्—अन्त, उपसंहार, समाप्ति, अवसान
- परिणतिः—स्त्री॰—-—परि + नम् + क्तिन्—जीवन की अन्तिम झांकी, बुढ़ापा
- परिणतिः—स्त्री॰—-—परि + नम् + क्तिन्—(भोजन का) पचना
- परिणद्धः—वि॰, भू॰ क॰ कृ॰—-—परि + नह् + क्त—बँधा हुआ, लिपटा हुआ
- परिणद्धः—वि॰, भू॰ क॰ कृ॰—-—परि + नह् + क्त—विस्तृत, विशाल
- परिणयः—पुं॰—-—परि + नी + अप्—विवाह
- परिणयनम्—नपुं॰—-—परि + नी + ल्युट्—विवाह
- परिणहनम्—नपुं॰—-—परि + नह् + ल्युट्—कमर कसना, कमर पर कापड़ा लपेटना
- परिणामः—पुं॰—-—परि + नम् + घञ्—बदलना, परिवर्तन, रूपान्तरण
- परिणामः—पुं॰—-—परि + नम् + घञ्—पाचन
- परिणामः—पुं॰—-—परि + नम् + घञ्—नतीजा, निष्पत्ति, फल, प्रभाव
- परिणामः—पुं॰—-—परि + नम् + घञ्—पकना, परिपक्वता, पूर्णविकास
- परिणामः—पुं॰—-—परि + नम् + घञ्—अन्त, समाप्ति, उपसंहार, अवसान, ह्रास
- परिणामः—पुं॰—-—परि + नम् + घञ्—बुढ़ापा
- परिणामः—पुं॰—-—परि + नम् + घञ्—(समय का) बीतना
- परिणामः—पुं॰—-—परि + नम् + घञ्—रूपक से मिलता जुलता एक अलंकार जिसमें उपमेय के गुण उपमान में परिवर्तित कर दिये जाते हैं
- परीणामः—पुं॰—-—परि + नम् + घञ्, पक्षे उपसर्गस्य दीर्घः—बदलना, परिवर्तन, रूपान्तरण
- परीणामः—पुं॰—-—परि + नम् + घञ्, पक्षे उपसर्गस्य दीर्घः—पाचन
- परीणामः—पुं॰—-—परि + नम् + घञ्, पक्षे उपसर्गस्य दीर्घः—नतीजा, निष्पत्ति, फल, प्रभाव
- परीणामः—पुं॰—-—परि + नम् + घञ्, पक्षे उपसर्गस्य दीर्घः—पकना, परिपक्वता, पूर्णविकास
- परीणामः—पुं॰—-—परि + नम् + घञ्, पक्षे उपसर्गस्य दीर्घः—अन्त, समाप्ति, उपसंहार, अवसान, ह्रास
- परीणामः—पुं॰—-—परि + नम् + घञ्, पक्षे उपसर्गस्य दीर्घः—बुढ़ापा
- परीणामः—पुं॰—-—परि + नम् + घञ्, पक्षे उपसर्गस्य दीर्घः—(समय का) बीतना
- परीणामः—पुं॰—-—परि + नम् + घञ्, पक्षे उपसर्गस्य दीर्घः—रूपक से मिलता जुलता एक अलंकार जिसमें उपमेय के गुण उपमान में परिवर्तित कर दिये जाते हैं
- परिणामदर्शिन्—वि॰—परिणामः-दर्शिन्—-—बुद्धिमान्, दूरदर्शी
- परिणामदृष्टि—वि॰—परिणामः-दृष्टि—-—बुद्धिमान्
- परिणामदृष्टिः—स्त्री॰—परिणामः-दृष्टिः—-—बुद्धिमत्ता, दूरदर्शिता
- परिणामपथ्य—वि॰—परिणामः-पथ्य—-—जिसका फल स्वास्थ्यप्रद हो शूलम् पीडायुक्त अजीर्ण या मन्दाग्नि, उदरपीडा, पीड़ा के साथ उदरवायु, बायगोले का दर्द
- परिणायः—पुं॰—-—परि + नी + घञ्—शतरंज की गोट का चलाना
- परिणायः—पुं॰—-—परि + नी + घञ्—(शतरंज की) चाल
- परीणायः—पुं॰—-—परि + नी + घञ् पक्षे उपसर्गस्य दीर्घः—शतरंज की गोट का चलाना
- परीणायः—पुं॰—-—परि + नी + घञ् पक्षे उपसर्गस्य दीर्घः—(शतरंज की) चाल
- परिणायकः—पुं॰—-—परि + नी + ण्वुल्—नेता
- परिणायकः—पुं॰—-—परि + नी + ण्वुल्—पति
- परिणाहः—पुं॰—-—परि + नह् + घञ्—परिधि, वृत्त, विस्तार, फैलाव, चौड़ाई, अर्ज
- परिणाहः—पुं॰—-—परि + नह् + घञ्—वृत्त की परिधि
- परीणाहः—पुं॰—-—परि + नह् + घञ्, पक्षे उपसर्गस्य दीर्घः—परिधि, वृत्त, विस्तार, फैलाव, चौड़ाई, अर्ज
- परीणाहः—पुं॰—-—परि + नह् + घञ्, पक्षे उपसर्गस्य दीर्घः—वृत्त की परिधि
- परिणाहवत्—वि॰—-—परिणाह + मतुप्, मस्य वत्वम्—विशाल, बड़ा, विस्तृत
- परिणाहिन्—वि॰—-—परिणाह + इनि—विशाल, बड़ा
- परिणिंसक—वि॰—-—परि + निंस् + ण्वुल्—स्वाद चखने वाला, खाने वाला
- परिणिंसक—वि॰—-—परि + निंस् + ण्वुल्—चुम्बन
- परिणिष्ठा—स्त्री॰—-—परि + निष्ठा प्रा॰ स॰—पूरा कौशल
- परिणीत—वि॰, भू॰ क॰ कृ॰—-—परि + नी + क्त—विवाहित
- परिणीता—स्त्री॰—-—-—विवाहित स्त्री
- परिणेतृ—पुं॰—-—परि + नी + तृच्—पति
- परितर्पणम्—नपुं॰—-—परि + तृप् + ल्युट्—तृप्त करना, सन्तुष्ट करना
- परितस्—अव्य॰—-—परि + तस्—इर्दगिर्द, सब ओर, घुमा फिराकर, सब दिशाओं में, सर्वत्र, चारों ओर
- परितस्—अव्य॰—-—परि + तस्—की ओर, की दिशा में
- परितापः—पुं॰—-—परि + तप् + घञ्—अत्यंत या झुलसा देने वाली गर्मी
- परितापः—पुं॰—-—परि + तप् + घञ्—पीड़ा, वेदना, व्यथा, शोक
- परितापः—पुं॰—-—परि + तप् + घञ्—विलाप, मातम, शोक
- परितापः—पुं॰—-—परि + तप् + घञ्—कांपना, भय
- परितुष्ट—वि॰, भू॰ क॰ कृ॰—-—परि + तुष् + क्त—पूर्ण रूप से संतुष्ट
- परितुष्ट—वि॰, भू॰ क॰ कृ॰—-—परि + तुष् + क्त—प्रसन्न, खुश
- परितुष्टिः—स्त्री॰—-—परि + तुष् + क्तिन्—संतृप्ति, पूर्ण संतोष
- परितुष्टिः—स्त्री॰—-—परि + तुष् + क्तिन्—खुशी, हर्ष
- परितोषः—पुं॰—-—परि + तुष् + घञ्—सन्तोष, इच्छा का अभाव
- परितोषः—पुं॰—-—परि + तुष् + घञ्—पूर्ण संतोष, तृप्ति
- परितोषः—पुं॰—-—परि + तुष् + घञ्—प्रसन्नता, खुशी, हर्ष, पसन्दगी
- परितोषण—वि॰—-—परि + तुष् + णिच् + ल्युट्—संतुष्ट करने वाला, तृप्त करने वाला
- परितोषणम्—नपुं॰—-—परि + तुष् + णिच् + ल्युट्—संतुष्ट करना
- परित्यक्त—वि॰, भू॰ क॰ कृ॰—-—परि + त्यज् + क्त—छोड़ा हुआ, उत्सृष्ट, सर्वथा त्यागा हुआ
- परित्यक्त—वि॰, भू॰ क॰ कृ॰—-—परि + त्यज् + क्त—वञ्चित, रहित
- परित्यक्त—वि॰, भू॰ क॰ कृ॰—-—परि + त्यज् + क्त—(तीर आदि) छोड़ा हुआ
- परित्यक्त—वि॰, भू॰ क॰ कृ॰—-—परि + त्यज् + क्त—अभावग्रस्त
- परित्यागः—पुं॰—-—परि + त्यज् + घञ्—छोड़ना, उत्सर्ग करना, सर्वथा त्यागना, छोड़कर भाग जाना, (पत्नी आदि का) सम्बन्ध विच्छेद
- परित्यागः—पुं॰—-—परि + त्यज् + घञ्—छोड़ देना, त्यागना, फेंक देना, विरक्त होना, गद्दी छोड़ देना
- परित्यागः—पुं॰—-—परि + त्यज् + घञ्—अवहेलना, भूलचूक
- परित्यागः—पुं॰—-—परि + त्यज् + घञ्—वदान्यता, उदारता
- परित्यागः—पुं॰—-—परि + त्यज् + घञ्—हानि, कंगाली
- परित्राणम्—नपुं॰—-—परि + त्रै + ल्युट्—संधारण, संरक्षण, बचाना प्रतिरक्षा, मुक्ति, छुटकारा
- परित्रासः—पुं॰—-—परि + त्रस् + घञ्—त्रास, भय, डर
- परिदंशित—वि॰—-—परि + देश् + क्त—कवच से ढका हुआ, आपादमस्तक शस्त्रों से सुसज्जित
- परिदानम्—नपुं॰—-—परि + दा + ल्युट्—विनिमय, अदला-बदली
- परिदानम्—नपुं॰—-—परि + दा + ल्युट्—भक्ति
- परिदानम्—नपुं॰—-—परि + दा + ल्युट्—धरोहर का वापिस मिलना
- परिदायिन्—पुं॰—-—परि + दा + णिनि—वह पिता जो अपनी पुत्री का विवाह ऐसे पुरुष से करता है जिसका बड़ा भाई अभी तक अविवाहित है
- परिदाहः—पुं॰—-—परि + दह् + घञ्—जलन
- परिदाहः—पुं॰—-—परि + दह् + घञ्—व्यथा, पीडा, दुःख, शोक
- परीदाहः—पुं॰—-—परि + दह् + घञ्, पक्षे उपसर्गस्य दीर्घः—जलन
- परीदाहः—पुं॰—-—परि + दह् + घञ्, पक्षे उपसर्गस्य दीर्घः—व्यथा, पीडा, दुःख, शोक
- परीदेवः—पुं॰—-—परि + दिव् + घञ्—शोक मनाना, मातम, विलाप
- परिदेवनम्—नपुं॰—-—परि + दिव् + ल्युट्—विलाप, विलखना, रोना-धोना
- परिदेवनम्—नपुं॰—-—परि + दिव् + ल्युट्—पश्चात्ताप, खेद
- परिदेवना—स्त्री॰—-—-—विलाप, विलखना, रोना-धोना
- परिदेवना—स्त्री॰—-—-—पश्चात्ताप्, खेद
- परिदेवितम्—नपुं॰—-—परि + दिव् + क्त—विलाप, विलखना, रोना-धोना
- परिदेवितम्—नपुं॰—-—परि + दिव् + क्त—पश्चात्ताप्, खेद
- परिदेवन—वि॰—-—परि + दिव् + ल्युट्—शोकसंतप्त, खेदजनक, दुःखी
- परिद्रष्ट्ट—पुं॰—-—परि + दृश् + तृच्—तमाशबीन, दर्शक
- परिधर्षणम्—नपुं॰—-—परि + धृष् + ल्युट्—हमला, आक्रमण, बलात्कार
- परिधर्षणम्—नपुं॰—-—परि + धृष् + ल्युट्—अपमान, निरादर, तिरस्कार
- परिधर्षणम्—नपुं॰—-—परि + धृष् + ल्युट्—दुर्व्यवहार, रूखा व्यवहार
- परिधानम्—नपुं॰—-—परि + धा + ल्युट्—कपड़े पहनना, वस्त्र धारण करना
- परिधानम्—नपुं॰—-—परि + धा + ल्युट्—पोशाक, अधीवस्त्र, कपड़े
- परीधानम्—नपुं॰—-—परि + धा + ल्युट्, पक्षे उपसर्गस्य दीर्घः—कपड़े पहनना, वस्त्र धारण करना
- परीधानम्—नपुं॰—-—परि + धा + ल्युट्, पक्षे उपसर्गस्य दीर्घः—पोशाक, अधीवस्त्र, कपड़े
- परिधानीयम्—नपुं॰—-—परि + धा + अनीयर्—अधोवस्त्र, नाभि से नीचे का पहरावा
- परिधायः—पुं॰—-—परि + धा + घञ्—नौकर-चाकर, अनुचर टहलुए
- परिधायः—पुं॰—-—परि + धा + घञ्—आधार, आशय
- परिधायः—पुं॰—-—परि + धा + घञ्—नितंब, चूतड़
- परिधिः—पुं॰—-—परि + धा + कि—दीवार, मेंड़, बाड़, घेरा
- परिधिः—पुं॰—-—परि + धा + कि—सूर्य या चन्द्रमा का परिवेश
- परिधिः—पुं॰—-—परि + धा + कि—प्रकाशमंडल
- परिधिः—पुं॰—-—परि + धा + कि—क्षितिज
- परिधिः—पुं॰—-—परि + धा + कि—परिधि या वृत्त
- परिधिः—पुं॰—-—परि + धा + कि—वृत्त की परिधि
- परिधिः—पुं॰—-—परि + धा + कि—पहिये का घेरा
- परिधिः—पुं॰—-—परि + धा + कि—(‘पलाश’ आदि पवित्र वृक्ष की)समिधा या लकड़ी जो यज्ञकुण्ड के चारों ओर रक्खी रहती हैं
- परिधिपतिखेचरः—पुं॰—परिधिः-पतिखेचरः—-—शिव का विशेषण
- परिधिस्थः—पुं॰—परिधिः-स्थः—-—चौकीदार
- परिधिस्थः—पुं॰—परिधिः-स्थः—-—किसी राजा या सेनापति का सहायक अधिकारी
- परिधूपित—वि॰—-—परि + धूप + क्त—धूप द्वारा सुवासित या सुंगधित किया हुआ
- परिधूसर—वि॰—-—परितः सर्वतो भावेन धूसरः- प्रा॰ स॰—बिल्कुल भूरा
- परिधेयम्—नपुं॰—-—परि + धा + यत्—अधोवस्त्र, नीचे पहनने का कपड़ा
- परिध्वंसः—पुं॰—-—परि + ध्वंस् + घञ्—दुःख, विनाश,बर्बादी, कष्ट
- परिध्वंसः—पुं॰—-—परि + ध्वंस् + घञ्—असफलता, विध्वंस, संहार
- परिध्वंसः—पुं॰—-—परि + ध्वंस् + घञ्—जातिच्युति
- परिध्वंसिन्—वि॰—-—परि + ध्वंस् + णिनि—गिर कर अलग होने वाला
- परिध्वंसिन्—वि॰—-—परि + ध्वंस् + णिनि—बर्बाद होने वाला, नष्ट हो जाने वाला
- परिनिर्वाण—वि॰, पुं॰—-—-—बिल्कुल बुझा हुआ
- परिनिर्वाणम्—नपुं॰—-—-—(भक्ति की) अन्तिम विलुप्ति, परिमृति
- परिनिर्वृत्तिः—स्त्री॰—-—परि + निर् + वृत् + क्तिन्—आत्मा की शरीर से पूर्णमुक्ति, पुनर्जन्म से छुटकारा, पूर्ण मोक्ष
- परिनिष्ठा—स्त्री॰, पुं॰—-—-—(किसी वस्तु का) पूरा ज्ञान या परिचय
- परिनिष्ठा—स्त्री॰, पुं॰—-—-—पूर्ण निष्पत्ति
- परिनिष्ठा—स्त्री॰, पुं॰—-—-—चरम सीमा
- परिनिष्ठित—वि॰, भू॰ क॰ कृ॰—-—परि + नि + स्था + क्त—पूर्ण कुशल
- परिनिष्ठित—वि॰, भू॰ क॰ कृ॰—-—परि + नि + स्था + क्त—सुनिश्चित
- परिपक्व—वि॰, भू॰ क॰ कृ॰—-—परि + पच् + क्त—पूरी तरह पका हुआ
- परिपक्व—वि॰, भू॰ क॰ कृ॰—-—परि + पच् + क्त—भलीभाँति सेका हुआ
- परिपक्व—वि॰, भू॰ क॰ कृ॰—-—परि + पच् + क्त—बिल्कुल पक्का, प्रौढ़, सिद्ध, पूर्णता को प्राप्त
- परिपक्व—वि॰, भू॰ क॰ कृ॰—-—परि + पच् + क्त—सुसंवधित, समझदार, काईयाँ
- परिपक्व—वि॰, भू॰ क॰ कृ॰—-—परि + पच् + क्त—पूरी तरह पचा हुआ
- परिपक्व—वि॰, भू॰ क॰ कृ॰—-—परि + पच् + क्त—मुर्झाने वाला, मृत्यु के निकट
- परिपणम्—नपुं॰—-—परि + पण् + घ —पूंजी, मूलधन, वारदाना
- परिपनम्—नपुं॰—-—-—पूंजी, मूलधन, वारदाना
- परिपणनन्—नपुं॰—-—परि + पण् + ल्युट्—वादा करना, प्रतिज्ञा करना
- परिपणित—भू॰ क॰ कृ॰—-—परि + पण् + क्त—वादा किया हुआ, वचन दिया हुआ, प्रतिज्ञा की हुई
- परिपंथकः—पुं॰—-—परि + पंथ् + ण्वुल्—शत्रु, विरोधी, दुश्मन
- परिपंथिन्—वि॰—-—परि + पंथ् + णिनि—रास्ता रोकने वाला, रोड़ा अटकाने वाला, विरोध करने वाला, विघ्न डालने वाला
- परिपंथिन्—पुं॰—-—परि + पंथ् + णिनि—रिपु, शत्रु, प्रतिद्वन्दी, दुश्मन
- परिपंथिन्—पुं॰—-—परि + पंथ् + णिनि—लुटेरा, चोर डाकू
- परिपाकः—पुं॰—-—परि + पच् + घञ्—पूरी तरह से पकाया जाना या संवारा जाना
- परिपाकः—पुं॰—-—परि + पच् + घञ्—पचना
- परिपाकः—पुं॰—-—परि + पच् + घञ्—पकजाना, परिपक्वन, विकास, पूर्णता
- परिपाकः—पुं॰—-—परि + पच् + घञ्—फल, नतीजा, परिणाम
- परिपाकः—पुं॰—-—परि + पच् + घञ्—चतुराई, दूरदर्शिता, कुशलता
- परीपाकः—पुं॰—-—परि + पच् + घञ्,पक्षे उपसर्गस्य दीर्घः—पूरी तरह से पकाया जाना या संवारा जाना
- परीपाकः—पुं॰—-—परि + पच् + घञ्,पक्षे उपसर्गस्य दीर्घः—पचना
- परीपाकः—पुं॰—-—परि + पच् + घञ्,पक्षे उपसर्गस्य दीर्घः—पकजाना, परिपक्वन, विकास, पूर्णता
- परीपाकः—पुं॰—-—परि + पच् + घञ्,पक्षे उपसर्गस्य दीर्घः—फल, नतीजा, परिणाम
- परीपाकः—पुं॰—-—परि + पच् + घञ्,पक्षे उपसर्गस्य दीर्घः—चतुराई, दूरदर्शिता, कुशलता
- परिपाटल—वि॰,प्रा॰स॰—-—-—पीला लाल
- परिपाटिः—स्त्री॰, प्रा॰ब॰स॰—-—परि भागेन पाटिः पाटनं गतिः यस्या —प्रणाली, रीति, प्रक्रम
- परिपाटिः—स्त्री॰, प्रा॰ब॰स॰—-—परि भागेन पाटिः पाटनं गतिः यस्या —व्यवस्था, क्रम, उत्तराधिकार
- परिपाटी—स्त्री॰—-—परिपाटि + ङीष्—प्रणाली, रीति, प्रक्रम
- परिपाटी—स्त्री॰—-—परिपाटि + ङीष्—व्यवस्था, क्रम, उत्तराधिकार
- परिपाठः—पुं॰—-—-—परिगणना, पूर्ण निर्देशन, पूरा विवरण
- परिपार्श्व—वि॰,अत्या॰ स॰ —-—-—निकट, पार्श्व में, पास, नजदीक ही
- परिपालनम्—नपुं॰—-—परि + पल् + णिच् + ल्युट्—भलीभाँति पालना, रक्षा करना, संधारण करना, संभाले रखना, जीवित रखना
- परिपालनम्—नपुं॰—-—परि + पल् + णिच् + ल्युट्—भरण पोषण, संवर्धन
- परिपिष्टकम्—नपुं॰—-—परि + पिष् + क्त + कन्—सीसा
- परिपीडनम्—नपुं॰—-—परि + पीड् + ल्युट्—निचोड़ना, भींचना
- परिपीडनम्—नपुं॰—-—परि + पीड् + ल्युट्—क्षति पहुँचाना, चोट लगाना, नुकसान पहुँचाना
- परिपुटनम्—नपुं॰—-—परि + पुट् + ल्युट्—हटाकर अलग करना
- परिपुटनम्—नपुं॰—-—परि + पुट् + ल्युट्—बल्कल या छाल उतारना
- परिपूजनम्—नपुं॰—-—परि + पूज् + ल्युट्—सम्मान करना, पूजा करना, अर्चना करना
- परिपूजा—स्त्री॰—-—-—सम्मान करना, पूजा करना, अर्चना करना
- परिपूत—भू॰ क॰ कृ॰—-—परि + पू + क्त—विशुद्ध किया गया, विशुद्ध
- परिपूत—भू॰ क॰ कृ॰—-—परि + पू + क्त—पूरी तरह फटका हुआ, पिछोड़ा हुआ, भूसी से पृथक् किया हुआ
- परिपूणम्—नपुं॰—-—परि + पूर् + ल्युट्—भरना
- परिपूणम्—नपुं॰—-—परि + पूर् + ल्युट्—पूर्णता को पहुँचाना, पूरा करना
- परिपूर्ण—भू॰ क॰ कृ॰—-—परि + पूर् + क्त—पूरी तरह भरा हुआ
- परिपूर्णेंदुः—पुं॰—परिपूर्ण-इंदुः—-—पूरा चाँद, समस्त, सारा, भली भाँति भरा हुआ
- परिपूर्णेंदुः—पुं॰—परिपूर्ण-इंदुः—-—स्वसंतुष्ट, संतृप्त
- परिपूर्तिः—स्त्री॰—-—परि + पूर् + क्तिन्—पूर्णता, पर्याप्तता
- परिपृच्छा—स्त्री॰—-—परि + प्रच्छ् -अङ + टाप्—पूछ-ताछ, प्रश्न
- परिपेलव—वि॰—-—-—अति कोमल, सूक्ष्म, अत्यन्त मृदु
- परिपोटः—पुं॰—-—परि + पूट + घञ्—एक प्रकार कर्ण रोग (जिसमें कान की खाल गलने लगती है)
- परिपोटकः—पुं॰—-—परिपोट + कन्—एक प्रकार कर्ण रोग (जिसमें कान की खाल गलने लगती है)
- परिपोषणम्—नपुं॰—-—परि + पुष् + ल्युट्—खिलाना-पिलाना ,भरण-पोषण
- परिपोषणम्—नपुं॰—-—परि + पुष् + ल्युट्—आगे बढ़ाना, उन्नति करना
- परिप्रश्नः—पुं॰—-—-—पूछताछ, प्रश्नवाचकता, सवाल
- परिप्राप्तिः—स्त्री॰—-—-—अधिग्रहण, उपलब्धि
- परिप्रेष्यः—पुं॰—-—-—सेवक
- परिप्लव—वि॰—-—परि + प्लु + अच्—बहता हुआ
- परिप्लव—वि॰—-—परि + प्लु + अच्—थरथराता हुआ, कांपता हुआ, डोलता हुआ, हिलोरे लेता हुआ, कम्पायमान
- परिप्लव—वि॰—-—परि + प्लु + अच्—अस्थिर, चंचल
- परिप्लवः—पुं॰—-—परि + प्लु + अच्—जलप्लावन
- परिप्लवः—पुं॰—-—परि + प्लु + अच्—जल में डुबोना, गीला करना
- परिप्लवः—पुं॰—-—परि + प्लु + अच्—किश्ती, नाव
- परिप्लवः—पुं॰—-—परि + प्लु + अच्—उत्पीड़न, अत्याचार
- परिप्लुत—भू॰ क॰ कृ॰—-—परि + प्लु + क्त—बाढ़ग्रस्त, जलप्लावित
- परिप्लुत—भू॰ क॰ कृ॰—-—परि + प्लु + क्त—घवड़ाया हुआ, व्याकुल
- परिप्लुत—भू॰ क॰ कृ॰—-—परि + प्लु + क्त—आद्रीकृत, क्लिन्न, स्नात
- परिप्लुतम्—नपुं॰—-—परि + प्लु + क्त—उछल छलांग
- परिप्लुता—स्त्री॰—-—परि + प्लु + क्त+ टाप्—शराब
- परिप्लुष्ट—भू॰ क॰ कृ॰—-—परि + प्लुष् + क्त—जला हुआ, झुलसा हुआ, भनभनाया हुआ
- परिबर्हः—पुं॰—-—परि + बर्ह् + घञ्—अनुचर, नौकर-चाकर, टहलुए
- परिबर्हः—पुं॰—-—परि + बर्ह् + घञ्—उपस्कर, घर के अन्दर का सामान
- परिबर्हः—पुं॰—-—परि + बर्ह् + घञ्—राज चिह्न
- परिबर्हः—पुं॰—-—परि + बर्ह् + घञ्—संपत्ति, धनदौलत
- परिवर्हः—पुं॰—-—परि + वर्ह् + घञ्—अनुचर, नौकर-चाकर, टहलुए
- परिवर्हः—पुं॰—-—परि + वर्ह् + घञ्—उपस्कर, घर के अन्दर का सामान
- परिवर्हः—पुं॰—-—परि + वर्ह् + घञ्—राज चिह्न
- परिवर्हः—पुं॰—-—परि + वर्ह् + घञ्—संपत्ति, धनदौलत
- परिबर्हणम्—नपुं॰—-—परि + बर्ह् + ल्युट्—अनुचर, नौकर-चाकर
- परिबर्हणम्—नपुं॰—-—परि + बर्ह् + ल्युट्—बनाव-सिंगार, काट-छांट
- परिबर्हणम्—नपुं॰—-—परि + बर्ह् + ल्युट्—वृद्धि
- परिबर्हणम्—नपुं॰—-—परि + बर्ह् + ल्युट्—पूजा
- परिवर्हणम्—नपुं॰—-—परि + वर्ह् + ल्युट्—अनुचर, नौकर-चाकर
- परिवर्हणम्—नपुं॰—-—परि + वर्ह् + ल्युट्—बनाव-सिंगार, काट-छांट
- परिवर्हणम्—नपुं॰—-—परि + वर्ह् + ल्युट्—वृद्धि
- परिवर्हणम्—नपुं॰—-—परि + वर्ह् + ल्युट्—पूजा
- परिबाधा—स्त्री॰—-—-—कष्ट, पीड़ा, संतापन
- परिबाधा—स्त्री॰—-—-—थकावट, उग्र व्यथा
- परिबृंहणम्—नपुं॰—-—परि + बृंह् + ल्युट्—समृद्धि, कल्याण
- परिबृंहणम्—नपुं॰—-—परि + बृंह् + ल्युट्—परिशिष्ट, सम्पूरक
- परिवृंहणम्—नपुं॰—-—परि + वृंह् + ल्युट्—समृद्धि, कल्याण
- परिवृंहणम्—नपुं॰—-—परि + वृंह् + ल्युट्—परिशिष्ट, सम्पूरक
- परिबृंहित—भू॰ क॰ कृ॰—-—-—बढ़ा हुआ, आवर्धित
- परिबृंहित—भू॰ क॰ कृ॰—-—-—फलाफूला, समृद्ध हुआ
- परिबृंहित—भू॰ क॰ कृ॰—-—-—से युक्त, संपन्न
- परिवृंहित—भू॰ क॰ कृ॰—-—-—बढ़ा हुआ, आवर्धित
- परिवृंहित—भू॰ क॰ कृ॰—-—-—फलाफूला, समृद्ध हुआ
- परिवृंहित—भू॰ क॰ कृ॰—-—-—से युक्त, संपन्न
- परिबृंहितम्—नपुं॰—-—-—हाथी की चिघाड़
- परिवृंहितम्—नपुं॰—-—-—हाथी की चिघाड़
- परिभंगः—पुं॰—-—-—छिन्नभिन्न होना, टूट कर टुकड़े २ होना
- परिभर्त्सनम्—नपुं॰—-—परि + भर्त्स् + ल्युट्—धमकाना, घुड़कना
- परिभवः—पुं॰—-—परि + भू + अप्—अपमान, क्षति पहुँचाना, प्रतिष्ठा भंग, तिरस्कार, निरादर, मानहानि
- परिभवः—पुं॰—-—परि + भू + अप्—हार, पराजय
- परीभवः—पुं॰—-—परि + भू + अप्, पक्षे उपसर्गस्य दीर्घः—अपमान, क्षति पहुँचाना, प्रतिष्ठा भंग, तिरस्कार, निरादर, मानहानि
- परीभवः—पुं॰—-—परि + भू + अप्, पक्षे उपसर्गस्य दीर्घः—हार, पराजय
- परिभवास्पदम्—नपुं॰—परिभवः-आस्पदम्—-—घृणा का पात्र
- परिभवास्पदम्—नपुं॰—परिभवः-आस्पदम्—-—अपमान, अपमानपूर्ण स्थिति
- परिभवस्पदम्—नपुं॰—परिभवः-पदम्—-—घृणा का पात्र
- परिभवस्पदम्—नपुं॰—परिभवः-पदम्—-—अपमान, अपमानपूर्ण स्थिति
- परिभवविधिः—पुं॰—परिभवः-विधिः—-—प्रतिष्ठाभंग
- परिभविन्—वि॰—-—परि + भू + इनि—मानहर, तुच्छ, अनादर या घृणायुक्त व्यवहार करने वाला
- परिभविन्—वि॰—-—परि + भू + इनि—अपमानग्रस्त, तिरस्कार, पीडित
- परिभावः—पुं॰—-—परि + भू + घञ्—अपमान, क्षति पहुँचाना, प्रतिष्ठा भंग, तिरस्कार, निरादर, मानहानि
- परिभावः—पुं॰—-—परि + भू + घञ्—हार, पराजय
- परिभाविन्—वि॰—-—परि + भू + णिनि—मानमर्दन करने वाला, घृणा करने वाला, तिरस्कारयुक्त व्यवहार करने वाला
- परिभाविन्—वि॰—-—परि + भू + णिनि—लज्जित करने वाला, आगे बढ़ जाने वाला, श्रेष्ठ होने वाला
- परिभाविन्—वि॰—-—परि + भू + णिनि—तुच्छ समझने वाला, उपेक्षा करने वाला
- परिभाषण—पुं॰—-—परि + भाष् + ल्युट्—वार्तालाप, प्रवचन, बातचीत करना, गपशप लगाना, गप्पें हाँकना
- परिभाषण—पुं॰—-—परि + भाष् + ल्युट्—निन्दाभिव्यक्ति, धिक्कारना, झिड़की, अपशब्द
- परिभाषण—पुं॰—-—परि + भाष् + ल्युट्—नियम, विधि
- परिभाषा—स्त्री॰—-—परि + भाष् + अ + टाप्—व्याख्यान, प्रवचन
- परिभाषा—स्त्री॰—-—परि + भाष् + अ + टाप्—निन्दा, झिड़की, कलङ्क, गाली
- परिभाषा—स्त्री॰—-—परि + भाष् + अ + टाप्—पारिभाषिक शब्दावली, पारिभाषिक पदावली, (किसी ग्रंथ में प्रयुक्त) तकनीकी शब्दावली
- परिभाषा—स्त्री॰—-—परि + भाष् + अ + टाप्—(अतः) कोई सामान्य नियम, विधि या परिभाषा जो सर्वत्र घट सके
- परिभाषा—स्त्री॰—-—परि + भाष् + अ + टाप्—किसी भी पुस्तक में प्रयुक्त संकेत या संक्षेपकों की सूची
- परिभाषा—स्त्री॰—-—परि + भाष् + अ + टाप्—पाणिनि के अन्य सूत्रों में मिला हुआ व्याख़्यानात्मक सूत्र जो उन सूत्रों के प्रयोग की रीति बतलाता है
- परिभुक्त—भू॰ क॰ कृ॰—-—परि + भुज् + क्त—खाया हुआ, प्रयोग में लाया हुआ
- परिभुक्त—भू॰ क॰ कृ॰—-—परि + भुज् + क्त—उपभुक्त
- परिभुक्त—भू॰ क॰ कृ॰—-—परि + भुज् + क्त—अधिकृत
- परिभुग्न—वि॰—-—परि + भुज् + क्त—विनत, वक्रीकृत, झुका हुआ
- परिभूतिः—स्त्री॰—-—परि + भू + क्तिन्—तिरस्कार, अपमान, अनादर, अवमानना
- परिभूषणः—पुं॰—-—परि + भूष् + ल्युट्—किसी भूमि का समस्त राजस्व छोड़ कर जो संधि की गई हो
- परिभोगः—पुं॰—-—परि + भुज् + घञ्—उपभोग
- परिभोगः—पुं॰—-—परि + भुज् + घञ्—विशेष कर मैंथुन
- परिभोगः—पुं॰—-—परि + भुज् + घञ्—दूसरे के सामान का अवैध प्रयोग
- परिभ्रंशः—पुं॰—-—परि + भ्रंशू + घञ्—बच निकलना
- परिभ्रंशः—पुं॰—-—परि + भ्रंशू + घञ्—गिरना
- परिभ्रमः—पुं॰—-—परि + भ्रम् + घञ्—घूमना, इधर उधर टहलना
- परिभ्रमः—पुं॰—-—परि + भ्रम् + घञ्—घुमा-फिरा कर बात कहना, वाग्जाल, वक्रोक्ति
- परिभ्रमः—पुं॰—-—परि + भ्रम् + घञ्—भूल, भ्रम
- परिभ्रमणम्—नपुं॰—-—परि + भ्रम् + ल्युट्—घूमना, इधर उधर टहलना, पर्यटन
- परिभ्रमणम्—नपुं॰—-—परि + भ्रम् + ल्युट्—चारों ओर घूमना, चक्कर काटना, परिधि
- परिभ्रष्ट—भू॰ क॰ कृ॰—-—परि + भ्रंश् + क्त—गिरा हुआ, स्खलित
- परिभ्रष्ट—भू॰ क॰ कृ॰—-—परि + भ्रंश् + क्त—बच कर निकला हुआ
- परिभ्रष्ट—भू॰ क॰ कृ॰—-—परि + भ्रंश् + क्त—फेंका हुआ, अधःपतित
- परिभ्रष्ट—भू॰ क॰ कृ॰—-—परि + भ्रंश् + क्त—वञ्चित, शून्य
- परिभ्रष्ट—भू॰ क॰ कृ॰—-—परि + भ्रंश् + क्त—अवहेलना करने वाला
- परिमण्डल—वि॰, पुं॰—-—-—गोलाकार, गोल, वर्तुलाकार
- परिमण्डलम्—नपुं॰—-—-—पिंड, गोलक
- परिमण्डलम्—नपुं॰—-—-—गेंद
- परिमण्डलम्—नपुं॰—-—-—वृत्त
- परिमन्थर—वि॰—-—-—अत्यन्त मंद
- परिमन्द—वि॰—-—-—अत्यंत मंद, धुंधला, बिल्कुल फीका
- परिमन्द—वि॰—-—-—अत्यंत मंद
- परिमन्द—वि॰—-—-—बहुत थका हुआ
- परिमन्द—वि॰—-—-—बहुत थोड़ा
- परिमरः—पुं॰—-—परि + मृ + अप्—विनाश
- परिमर्दः—पुं॰—-—परि + मृद् + घञ्—रगड़ना, पीसना
- परिमर्दः—पुं॰—-—परि + मृद् + घञ्—कुचलना, पैरों के नीचे रौंदना
- परिमर्दः—पुं॰—-—परि + मृद् + घञ्—विनाश
- परिमर्दः—पुं॰—-—परि + मृद् + घञ्—चोट पहुँचाना, क्षति पहुँचाना
- परिमर्दः—पुं॰—-—परि + मृद् + घञ्—आलिंगन, परिरंभण
- परिमर्दनम्—नपुं॰—-—परि + मृद् + ल्युट्—रगड़ना, पीसना
- परिमर्दनम्—नपुं॰—-—परि + मृद् + ल्युट्—कुचलना, पैरों के नीचे रौंदना
- परिमर्दनम्—नपुं॰—-—परि + मृद् + ल्युट्—विनाश
- परिमर्दनम्—नपुं॰—-—परि + मृद् + ल्युट्—चोट पहुँचाना, क्षति पहुँचाना
- परिमर्दनम्—नपुं॰—-—परि + मृद् + ल्युट्—आलिंगन, परिरंभण
- परिमर्षः—पुं॰—-—परि + मृष् + घञ्—ईर्ष्या, अरुचि
- परिमर्षः—पुं॰—-—परि + मृष् + घञ्—क्रोध
- परिमलः—पुं॰—-—परि + मल् + अच्—सुगंध, सुवास, सौरभ, महक
- परिमलः—पुं॰—-—परि + मल् + अच्—सुगंधयुक्त पदार्थो का पीसना
- परिमलः—पुं॰—-—परि + मल् + अच्—सुगंधद्रव्य
- परिमलः—पुं॰—-—परि + मल् + अच्—सहवास
- परिमलः—पुं॰—-—परि + मल् + अच्—विद्वत्सभा
- परिमलः—पुं॰—-—परि + मल् + अच्—कलंक, धब्बा
- परिमलित—वि॰—-—परि + मल् + क्त—सुगंधित
- परिमलित—वि॰—-—परि + मल् + क्त—कलुषित, सौन्दर्य भ्रष्ट
- परिमाणम्—नपुं॰—-—परि + मा + ल्युट्—मापना, (शक्ति या ताक़त की) माप
- परिमाणम्—नपुं॰—-—परि + मा + ल्युट्—तोल, संख्या, मूल्य
- परीमाणम्—नपुं॰—-—परि + मा + ल्युट्, पक्षे उपसर्गस्य दीर्घः—मापना, (शक्ति या ताक़त की) माप
- परीमाणम्—नपुं॰—-—परि + मा + ल्युट्, पक्षे उपसर्गस्य दीर्घः—तोल, संख्या, मूल्य
- परिमार्गः—पुं॰—-—परि + मार्ग् + घञ्—ढूंढना, खोज करना, तलाश करना, पता लगाना, पदचिह्न देखते हुए खोज निकालना
- परिमार्गः—पुं॰—-—परि + मार्ग् + घञ्—स्पर्श, सम्पर्क
- परिमार्गः—पुं॰—-—परि + मार्ग् + घञ्—साफ़ करना, पोछना
- परिमार्गणम्—नपुं॰—-—परि + मार्ग् + ल्युट्—ढूंढना, खोज करना, तलाश करना, पता लगाना, पदचिह्न देखते हुए खोज निकालना
- परिमार्गणम्—नपुं॰—-—परि + मार्ग् + ल्युट्—स्पर्श, सम्पर्क
- परिमार्गणम्—नपुं॰—-—परि + मार्ग् + ल्युट्—साफ़ करना, पोछना
- परिमार्जनम्—नपुं॰—-—परि + मृज् + णिच् + ल्युट्—मांजना, साफ़ करना, झाड़-पोछ करना
- परिमार्जनम्—नपुं॰—-—परि + मृज् + णिच् + ल्युट्—घी और शहद से बनी मिठाई
- परिमित—भू॰ क॰ कृ॰—-—परि + मा + क्त—मध्यम, मितव्ययी
- परिमित—भू॰ क॰ कृ॰—-—परि + मा + क्त—सीमित
- परिमित—भू॰ क॰ कृ॰—-—परि + मा + क्त—मापा हुआ, नपातुला
- परिमित—भू॰ क॰ कृ॰—-—परि + मा + क्त—विनियमित, समंजित
- परिमिताभरण—वि॰—परिमित-आभरण—-—थोड़े आभूषण धारण करने वाला, मध्यमरूप से अलंकृत
- परिमितायुस्—वि॰—परिमित-आयुस्—-—अल्पायु, थोड़ी उम्र जीने वाला
- परिमिताहार—वि॰—परिमित-आहार—-—परेहज़गार, मिताहारी, कमभोजन करने वाला
- परिमितभोजन—वि॰—परिमित-भोजन—-—परेहज़गार, मिताहारी, कमभोजन करने वाला
- परिमितकथ—वि॰—परिमित-कथ—-—थोड़ा बोलने वाला, मितभाषी, नपे तुले शब्द बोलने वाला
- परिमितिः—स्त्री॰—-—परि + मा + क्तिन्—माप, परिमाण
- परिमितिः—स्त्री॰—-—परि + मा + क्तिन्—सीमाबंधन
- परिमिलनम्—नपुं॰—-—परि + मिल् + ल्युट्—स्पर्श, संपर्क
- परिमिलनम्—नपुं॰—-—परि + मिल् + ल्युट्—सम्मिश्रण, मेल
- परिमुखम्—अव्य॰ —-—अव्य॰ सं॰—मुँह के सामने, (किसी के) इर्द गिर्द, चारों ओर
- परिमुग्ध—वि॰—-—परि + मुह् + क्त—भोला भाला, प्रिय, सरल, मनोहर
- परिमुग्ध—वि॰—-—परि + मुह् + क्त—आकर्षक परन्तु मूर्ख
- परिमृदित—भू॰ क॰ कृ॰—-—परि + मृद् + क्त—पैरों तले रौंदा हुआ, कुचला हुआ, पददलित, दुर्व्यवहारग्रस्त
- परिमृदित—भू॰ क॰ कृ॰—-—परि + मृद् + क्त—आलिंगन, परिरंभण किया हुआ
- परिमृदित—भू॰ क॰ कृ॰—-—परि + मृद् + क्त—मसला हुआ, पीसा हुआ
- परिमृष्ट—भू॰ क॰ कृ॰—-—परि + मृज् + क्त—धोया हुआ, मांजा हुआ, शुद्ध किया हुआ
- परिमृष्ट—भू॰ क॰ कृ॰—-—परि + मृज् + क्त—मसला हुआ, स्पर्श किया हुआ, थपथपाया हुआ
- परिमृष्ट—भू॰ क॰ कृ॰—-—परि + मृज् + क्त—आलिंगन
- परिमृष्ट—भू॰ क॰ कृ॰—-—परि + मृज् + क्त—फैला हुआ, व्याप्त, भरा हुआ
- परिमेय—वि॰—-—परि + मा + यत्—थोड़े, सीमित
- परिमेय—वि॰—-—परि + मा + यत्—जो मापा जा सके, गिना जा सके
- परिमेय—वि॰—-—परि + मा + यत्—सान्त, जिसकी सीमा हो, समापिका
- परिमोक्षः—पुं॰—-—परि + मोक्ष् + घञ्—हटाया, मुक्त करना
- परिमोक्षः—पुं॰—-—परि + मोक्ष् + घञ्—मुक्त करना, स्वतंत्र करना, छुटकारा
- परिमोक्षः—पुं॰—-—परि + मोक्ष् + घञ्—ख़ाली करना, मलत्याग
- परिमोक्षः—पुं॰—-—परि + मोक्ष् + घञ्—बच निकलना
- परिमोक्षः—पुं॰—-—परि + मोक्ष् + घञ्—मोक्ष, निर्वाण
- परिमोक्षणम्—नपुं॰—-—परि + मोक्ष् + ल्युट्—मुक्ति, छुटकारा
- परिमोक्षणम्—नपुं॰—-—परि + मोक्ष् + ल्युट्—खोल देना
- परिमोषः—पुं॰—-—परि + मुष् + घञ्—चुराना, लूटाना, चोरी
- परिमोषिन्—पुं॰—-—परि + मुष् + णिनि—चोर, लुटेरा
- परिमोहनम्—नपुं॰—-—-—बहकाना, प्रलोभन देना, फुसलाना, मंत्रमुग्ध करना
- परिमोहनम्—नपुं॰—-—-—व्यामोहित करना, प्रेम में अन्धा करना
- परिम्लान—भू॰ क॰ कृ॰—-—परि + म्ला + क्त—मुर्झाया हुआ, मूर्छित, कुम्हालाया हुआ
- परिम्लान—भू॰ क॰ कृ॰—-—परि + म्ला + क्त—श्रान्त, शिथिल
- परिम्लान—भू॰ क॰ कृ॰—-—परि + म्ला + क्त—क्षीण, निस्तेज, हतप्रभ
- परिम्लान—भू॰ क॰ कृ॰—-—परि + म्ला + क्त—कलंकित
- परिरक्षकः—पुं॰—-—परि + रक्ष् + ण्वुल्—रक्षा करनेवाला, अभिभावक
- परिरक्षणम्—नपुं॰—-—परि + रक्ष् + ल्युट्—रक्षा, संधारण, देखभाल करना
- परिरक्षणम्—नपुं॰—-—परि + रक्ष् + ल्युट्—ध्यान रखना, बनाये रखना, पालन-पोषण
- परिरक्षणम्—नपुं॰—-—परि + रक्ष् + ल्युट्—छुटकारा, बचाव
- परिरक्षा—स्त्री॰—-—परि + रक्ष् + अङ् + टाप् च—रक्षा, संधारण, देखभाल करना
- परिरक्षा—स्त्री॰—-—परि + रक्ष् + अङ् + टाप् च—ध्यान रखना, बनाये रखना, पालन-पोषण
- परिरक्षा—स्त्री॰—-—परि + रक्ष् + अङ् + टाप् च—छुटकारा, बचाव
- परिरथ्या—स्त्री॰—-—-—गली, सड़क
- परिरंभः—पुं॰—-—परि + रभ् + घञ्—आलिंगन करना, अंङ्ग में भर लेना
- परीरंभः—पुं॰—-—परि + रभ् + घञ,पक्षे उपसर्गस्य दीर्घः—आलिंगन करना, अंङ्ग में भर लेना
- परिरंभणम्—नपुं॰—-—परि + रभ् + ल्युट्—आलिंगन करना, अंङ्ग में भर लेना
- परिराटिन्—वि॰ —-—परि + रट् + घिनुण्—जोर से चिल्लाने वाला, चीखने वाला, रट लगाने वाला
- परिलघु—वि॰—-—-—बहुत हल्का
- परिलघु—वि॰—-—-—बहुत हल्का या जल्दी पचने वाला
- परिलघु—वि॰—-—-—बहुत छोटा
- परिलुप्त—भू॰ क॰ कृ॰—-—परि + लुप् + क्त—अन्तर्बाधित, सबाध, घटाया हुआ
- परिलुप्त—भू॰ क॰ कृ॰—-—परि + लुप् + क्त—नष्ट, लुप्त
- परिलेखः—पुं॰—-—परि + लिख् + पञ्—रूपरेखा, आलेखन, चित्रण, खाका
- परिलेखः—पुं॰—-—परि + लिख् + पञ्—चित्र
- परिलोपः—पुं॰—-—परि + लुप् + घञ्—क्षतिः
- परिलोपः—पुं॰—-—परि + लुप् + घञ्—उपेक्षा, भूलचूक
- परिवत्सरः—पुं॰—-—-—वर्ष, एक समूचा वर्ष, वर्ष का आवर्तन
- परिवर्जनम्—नपुं॰—-—परि + वृज् + ल्युट्—छोड़ना, त्यागना, तजना
- परिवर्जनम्—नपुं॰—-—परि + वृज् + ल्युट्—छोड़ देना, तिलांजलि देना
- परिवर्जनम्—नपुं॰—-—परि + वृज् + ल्युट्—वध, हत्या
- परिवर्तः—पुं॰—-—परि + वृत् + घञ्—परिक्रमण, (ग्रह आदि का) घूमना
- परिवर्तः—पुं॰—-—परि + वृत् + घञ्—कालचक्र, कालक्रम, कालगति
- परिवर्तः—पुं॰—-—परि + वृत् + घञ्—युग का अन्त
- परिवर्तः—पुं॰—-—परि + वृत् + घञ्—आवृत्ति, पुनरावर्तन
- परिवर्तः—पुं॰—-—परि + वृत् + घञ्—परिवर्तन, अदल-बदल
- परिवर्तः—पुं॰—-—परि + वृत् + घञ्—प्रत्यावर्तन, पलायन, अपक्रमण
- परिवर्तः—पुं॰—-—परि + वृत् + घञ्—वर्ष
- परिवर्तः—पुं॰—-—परि + वृत् + घञ्—पुनर्जन्म, आवागमन
- परिवर्तः—पुं॰—-—परि + वृत् + घञ्—विनिमय, अदला-बदली
- परिवर्तः—पुं॰—-—परि + वृत् + घञ्—पुनरागमन, वापसी
- परिवर्तः—पुं॰—-—परि + वृत् + घञ्—आवास
- परिवर्तः—पुं॰—-—परि + वृत् + घञ्—किसी पुस्तक का अध्याय या परिच्छेद
- परिवर्तः—पुं॰—-—परि + वृत् + घञ्—कुर्मावतार, विष्णु का दूसरा अवतार
- परीवर्तः—पुं॰—-—परि + वृत् + घञ्, पक्षे उपसर्गस्य दीर्घः—परिक्रमण, (ग्रह आदि का) घूमना
- परीवर्तः—पुं॰—-—परि + वृत् + घञ्, पक्षे उपसर्गस्य दीर्घः—कालचक्र, कालक्रम, कालगति
- परीवर्तः—पुं॰—-—परि + वृत् + घञ्, पक्षे उपसर्गस्य दीर्घः—युग का अन्त
- परीवर्तः—पुं॰—-—परि + वृत् + घञ्, पक्षे उपसर्गस्य दीर्घः—आवृत्ति, पुनरावर्तन
- परीवर्तः—पुं॰—-—परि + वृत् + घञ्, पक्षे उपसर्गस्य दीर्घः—परिवर्तन, अदल-बदल
- परीवर्तः—पुं॰—-—परि + वृत् + घञ्, पक्षे उपसर्गस्य दीर्घः—प्रत्यावर्तन, पलायन, अपक्रमण
- परीवर्तः—पुं॰—-—परि + वृत् + घञ्, पक्षे उपसर्गस्य दीर्घः—वर्ष
- परीवर्तः—पुं॰—-—परि + वृत् + घञ्, पक्षे उपसर्गस्य दीर्घः—पुनर्जन्म, आवागमन
- परीवर्तः—पुं॰—-—परि + वृत् + घञ्, पक्षे उपसर्गस्य दीर्घः—विनिमय, अदला-बदली
- परीवर्तः—पुं॰—-—परि + वृत् + घञ्, पक्षे उपसर्गस्य दीर्घः—पुनरागमन, वापसी
- परीवर्तः—पुं॰—-—परि + वृत् + घञ्, पक्षे उपसर्गस्य दीर्घः—आवास
- परीवर्तः—पुं॰—-—परि + वृत् + घञ्, पक्षे उपसर्गस्य दीर्घः—किसी पुस्तक का अध्याय या परिच्छेद
- परीवर्तः—पुं॰—-—परि + वृत् + घञ्, पक्षे उपसर्गस्य दीर्घः—कुर्मावतार, विष्णु का दूसरा अवतार
- परिवर्तक—वि॰—-—परि + वृत् + णिच् + ण्वुल्—घुमाने वाला, चक्कर देने वाला
- परिवर्तक—वि॰—-—परि + वृत् + णिच् + ण्वुल्—बदला चुकाने वाला, वापिस करने वाला
- परिवर्तनम्—नपुं॰—-—परि + वृत् + ल्युट्—इधर उधर घूमना, इधर उधर मुड़ना (बिस्तर आदि पर) करवटें बदलना
- परिवर्तनम्—नपुं॰—-—परि + वृत् + ल्युट्—इधर उधर मुँह फिराना, चक्कर काटना, चकराना
- परिवर्तनम्—नपुं॰—-—परि + वृत् + ल्युट्—क्रान्तिकाल, चक्र का अन्त
- परिवर्तनम्—नपुं॰—-—परि + वृत् + ल्युट्—बदलना
- परिवर्तनम्—नपुं॰—-—परि + वृत् + ल्युट्—अदला-बदली, विनिमय
- परिवर्तनम्—नपुं॰—-—परि + वृत् + ल्युट्—पलटना, उलटना
- परिवर्तिका—स्त्री॰—-—परि + वृत् + ण्वुल् + टाप्, इत्वम्—लिंग की अग्रत्वचा का सिकुड़ जाना
- परिवर्तिन्—वि॰—-—परि + वृत् + णिनि—इधर उधर मुड़ने वाला, घूमने वाला
- परिवर्तिन्—वि॰—-—परि + वृत् + णिनि—सदा प्रत्यावर्ती, वार २ आने वाला
- परिवर्तिन्—वि॰—-—परि + वृत् + णिनि—बदलने वाला
- परिवर्तिन्—वि॰—-—परि + वृत् + णिनि—निकट रहने वाला, इधर उधर घूमने वाला
- परिवर्तिन्—वि॰—-—परि + वृत् + णिनि—प्रत्यावर्ती, पलायन शील
- परिवर्तिन्—वि॰—-—परि + वृत् + णिनि—विनिमयशील
- परिवर्तिन्—वि॰—-—परि + वृत् + णिनि—क्षतिपूर्ति करने वाला, बदला देने वाला
- परिवर्धनम्—नपुं॰—-—परि + वृध् + ल्युट्—बढ़ना, विस्तृत होना
- परिवर्धनम्—नपुं॰—-—परि + वृध् + ल्युट्—संवर्धन, पालन-पोषण करना
- परिवर्धनम्—नपुं॰—-—परि + वृध् + ल्युट्—बड़ा होना, वृद्धि
- परिवसथः—पुं॰—-—परितो वसन्ति अत्र- परि + वस् + अथ—गाँव
- परिवहः—पुं॰—-—परि + वह + अच्—वायु के सात मार्गों में एक - छठा मार्ग
- परिवादः—पुं॰—-—परि + वद् + घञ्—कलंक, निन्दा, बदनामी, गाली
- परिवादः—पुं॰—-—परि + वद् + घञ्—लोकापवाद, कलंक, दूषण, अपकीर्ति
- परिवादः—पुं॰—-—परि + वद् + घञ्—दोषी ठहराना, दोषारोपण करना
- परिवादः—पुं॰—-—परि + वद् + घञ्—सारंगी बजाने का उपकरण
- परीवादः—पुं॰—-—परि + वद् + घञ्, पक्षे उपसर्गस्य दीर्घः—वायु के सात मार्गों में एक - छठा मार्ग
- परीवादः—पुं॰—-—परि + वद् + घञ्, पक्षे उपसर्गस्य दीर्घः—कलंक, निन्दा, बदनामी, गाली
- परीवादः—पुं॰—-—परि + वद् + घञ्, पक्षे उपसर्गस्य दीर्घः—लोकापवाद, कलंक, दूषण, अपकीर्ति
- परीवादः—पुं॰—-—परि + वद् + घञ्, पक्षे उपसर्गस्य दीर्घः—दोषी ठहराना, दोषारोपण करना
- परीवादः—पुं॰—-—परि + वद् + घञ्, पक्षे उपसर्गस्य दीर्घः—सारंगी बजाने का उपकरण
- परिवादकः—पुं॰—-—परि + वद् + णिच् + ण्वुल्—वादी, अभियोक्ता, दोषारोपक
- परिवादकः—पुं॰—-—परि + वद् + णिच् + ण्वुल्—सारंगी बजाने वाला
- परिवादिन्—वि॰—-—परि + वद् + णिनि—खरीखोटी सुनाने वाला, निन्दा करने वाला, गाली देने वाला, बुरा-भला कहने वाला
- परिवादिन्—वि॰—-—परि + वद् + णिनि—दोषारोपण करने वाला
- परिवादिन्—वि॰—-—परि + वद् + णिनि—चीखने वाला, चिल्लाने वाला
- परिवादिन्—वि॰—-—परि + वद् + णिनि—निन्दित, कलंकित
- परिवादिन्—पुं॰—-—-—दोषारोपण करने वाला, वादी, अभियोक्ता
- परिवादिनी—स्त्री॰—-—-—सात तारों की वीणा
- परिवापः—पुं॰—-—परि + वप् + घञ्—मुंडन या हजामत करना, मूंडना या बाल काटना
- परिवापः—पुं॰—-—परि + वप् + घञ्—बोना
- परिवापः—पुं॰—-—परि + वप् + घञ्—जलाशय, पल्वल, पोखर, जोहड़
- परिवापः—पुं॰—-—परि + वप् + घञ्—सामान (घरका)
- परिवापः—पुं॰—-—परि + वप् + घञ्—नौकर-चाकर, अनुचर वर्ग
- परीवापः—पुं॰—-—परि + वप् + घञ्, पक्षे उपसर्गस्य दीर्घः—मुंडन या हजामत करना, मूंडना या बाल काटना
- परीवापः—पुं॰—-—परि + वप् + घञ्, पक्षे उपसर्गस्य दीर्घः—बोना
- परीवापः—पुं॰—-—परि + वप् + घञ्, पक्षे उपसर्गस्य दीर्घः—जलाशय, पल्वल, पोखर, जोहड़
- परीवापः—पुं॰—-—परि + वप् + घञ्, पक्षे उपसर्गस्य दीर्घः—सामान (घरका)
- परीवापः—पुं॰—-—परि + वप् + घञ्, पक्षे उपसर्गस्य दीर्घः—नौकर-चाकर, अनुचर वर्ग
- परिवापित—वि॰—-—परि + वप् + णिच् + क्त—मुंडा हुआ
- परिवारः—पुं॰—-—परिव्रियते अनेन- परि + वृ + घञ्—नौकर-चाकर, अनुचर वर्ग, टहलुए, अनुयायी
- परिवारः—पुं॰—-—परिव्रियते अनेन- परि + वृ + घञ्—ढक्कन, चादर
- परिवारः—पुं॰—-—परिव्रियते अनेन- परि + वृ + घञ्—म्यान, कोष
- परीवारः—पुं॰—-—परिव्रियते अनेन- परि + वृ + घञ्, पक्षे उपसर्गस्य दीर्घः—नौकर-चाकर, अनुचर वर्ग, टहलुए, अनुयायी
- परीवारः—पुं॰—-—परिव्रियते अनेन- परि + वृ + घञ्, पक्षे उपसर्गस्य दीर्घः—ढक्कन, चादर
- परीवारः—पुं॰—-—परिव्रियते अनेन- परि + वृ + घञ्, पक्षे उपसर्गस्य दीर्घः—म्यान, कोष
- परिवारणम्—नपुं॰—-—परि + वृ + णिच् + ल्युट्—ढक्कन, लिफ़ाफ़ा
- परिवारणम्—नपुं॰—-—परि + वृ + णिच् + ल्युट्—नौकर-चाकर, अनुचर
- परिवारणम्—नपुं॰—-—परि + वृ + णिच् + ल्युट्—दूर हटाना
- परिवारित—भू॰ क॰ कृ॰—-—परि + वृ + णिच् + क्त—परिवेष्टित, लपेटा हुआ, घेरा हुआ
- परिवारित—भू॰ क॰ कृ॰—-—परि + वृ + णिच् + क्त—व्याप्त, फैलाया हुआ
- परिवारितम्—नपुं॰—-—-—ब्रह्मा का धनुष
- परिवासः—पुं॰—-—परि + वस् + घञ्—आवास स्थान, ठहरना, टिकना, प्रवास, बसेरा
- परिवाहः—पुं॰—-—परि + वह् + घञ्— तालाब का
- परीवाहः—पुं॰—-—परि + वह् + घञ्, पक्षे उपसर्गस्य दीर्घः— तालाब का
- परिवाहिन्—वि॰—-—परि + वह् + णिनि—छलकता हुआ
- परिविण्णः—पुं॰—-—परि + विद् + क्त, पक्षे णत्वयोरभावः—अविवाहित बड़ा भाई जिसके छोटे भाई का विवाह हो गया हो
- परिविन्नः—पुं॰—-—परि + विद् + क्त, पक्षे नत्वयोरभावः—अविवाहित बड़ा भाई जिसके छोटे भाई का विवाह हो गया हो
- परिवित्तः—पुं॰—-—परि + विद् + क्त—अविवाहित बड़ा भाई जिसके छोटे भाई का विवाह हो गया हो
- परिवित्तिः—पुं॰—-—परि + विद् + क्तिच्—अविवाहित बड़ा भाई जिसके छोटे भाई का विवाह हो गया हो
- परिविद्धः—पुं॰—-—परि + व्यध् + क्त—कुबेर का विशेषण
- परिविंदकः—पुं॰—-—परि + विंद् + ण्वुल—विवाहित छोटा भाई जिसका बड़ा भाई अविवाहित हो
- परिविंदत्—पुं॰—-—परि + विंद् + शतृ—विवाहित छोटा भाई जिसका बड़ा भाई अविवाहित हो
- परिविहारः—पुं॰—-—परितो विहारः —इधर उधर सैर करना, घूमना, टहलना
- परिविह्वल—वि॰—-—-—अत्यन्त व्याकुल, क्षुब्ध या घबड़ाया हुआ
- परिवृढः—पुं॰—-—परि + वृंह् + क्त—स्वामी, प्रभु, मालिक, प्रधान, मुख्य
- परिवृत—भू॰ क॰ कृ॰—-—परि + वृ + क्त—घिरा हुआ, परिवेष्टित, सेवित
- परिवृत—भू॰ क॰ कृ॰—-—परि + वृ + क्त—प्रच्छन्न, गुप्त
- परिवृत—भू॰ क॰ कृ॰—-—परि + वृ + क्त—व्याप्त, फैला हुआ
- परिवृत—भू॰ क॰ कृ॰—-—परि + वृ + क्त—ज्ञात
- परिवृत्त—भू॰ क॰ कृ॰—-—परि + वृत् + क्त—घुमा हुआ, मोड़ा हुआ अर्धमुखी
- परिवृत्त—भू॰ क॰ कृ॰—-—परि + वृत् + क्त—प्रत्यावर्तित पीछे मुड़ा हुआ
- परिवृत्त—भू॰ क॰ कृ॰—-—परि + वृत् + क्त—अबला-बदली किया हुआ, विनिमय किया हुआ
- परिवृत्त—भू॰ क॰ कृ॰—-—परि + वृत् + क्त—समाप्त किया हुआ, अन्त किया हुआ
- परिवृत्तम्—नपुं॰—-—-—आलिंगन
- परिवृत्तिः—स्त्री॰—-—परि + वृत् + क्तिन्—क्रांति
- परिवृत्तिः—स्त्री॰—-—परि + वृत् + क्तिन्—वापसी, लौटना
- परिवृत्तिः—स्त्री॰—-—परि + वृत् + क्तिन्—विनिमय,अदला-बदली
- परिवृत्तिः—स्त्री॰—-—परि + वृत् + क्तिन्—अन्त, समाप्ति
- परिवृत्तिः—स्त्री॰—-—परि + वृत् + क्तिन्—घेरा
- परिवृत्तिः—स्त्री॰—-—परि + वृत् + क्तिन्—किसी स्थान पर टिकना, बसना
- परिवृत्तिः—स्त्री॰—-—परि + वृत् + क्तिन्—एक अलंकार जिसमें किसी समान, कम या बड़ी वस्तु से विनिमय हो
- परिवृत्तिः—स्त्री॰—-—परि + वृत् + क्तिन्—अर्थ को बिना बदले एक शब्द के स्थान में दूसरा शब्द रखना
- परिवृद्धिः—स्त्री॰, पुं॰—-—-—संवर्धन, बढ़ती, उन्नति
- परिवेत्तृ—पुं॰—-—-—विवाहित छोटा भाई जिसका बड़ा भाई अविवाहित हो
- परिवेतदकः—पुं॰—-—-—विवाहित छोटा भाई जिसका बड़ा भाई अविवाहित हो
- परिवेदनम्—नपुं॰—-—परि + विद् + ल्युट्—बड़े भाई के अविवाहित रहते छोटे भाई का विवाह
- परिवेदनम्—नपुं॰—-—परि + विद् + ल्युट्—विवाह
- परिवेदनम्—नपुं॰—-—परि + विद् + ल्युट्—पूरा या सही ज्ञान
- परिवेदनम्—नपुं॰—-—परि + विद् + ल्युट्—उपलब्धि, अधिग्रहण
- परिवेदनम्—नपुं॰—-—परि + विद् + ल्युट्—अग्न्याधान
- परिवेदनम्—नपुं॰—-—परि + विद् + ल्युट्—सर्वव्याप्ति, विश्वव्यापी या विश्वसत्ता
- परिवेदना—स्त्री॰—-—-—समझदारी, बुद्धिमानी
- परिवेदना—स्त्री॰—-—-—बुद्धिमत्ता, दूरदर्शिता
- परिवेदनीया—स्त्री॰—-—परि + विद् + अनीयर् + टाप्—उस छोटे भाई की पत्नी जिसका बड़ा भाई अविवाहित हो
- परिवेदिनी—स्त्री॰—-—परि + विद् + णिनि ङीप्—उस छोटे भाई की पत्नी जिसका बड़ा भाई अविवाहित हो
- परिवेशः—पुं॰—-—परि + विश् + घञ्—भोजन के समय सेवा करना, भोजन बांटना, भोजन परोसना
- परिवेशः—पुं॰—-—परि + विश् + घञ्—वृत्त, चक्र, (दीप्ति) मंडल
- परिवेशः—पुं॰—-—परि + विश् + घञ्—(विशेषतः) सूर्यमंडल या चन्द्रमण्डल
- परिवेशः—पुं॰—-—परि + विश् + घञ्—वृत्त की परिधि
- परिवेशः—पुं॰—-—परि + विश् + घञ्—सूर्यबिंब, चन्द्रबिंब
- परिवेशः—पुं॰—-—परि + विश् + घञ्—कोई वस्तु जो घेरती है या रक्षा करती है
- परिवेषः—पुं॰—-—परि + विष् + घञ्—भोजन के समय सेवा करना, भोजन बांटना, भोजन परोसना
- परिवेषः—पुं॰—-—परि + विष् + घञ्—वृत्त, चक्र, (दीप्ति) मंडल
- परिवेषः—पुं॰—-—परि + विष् + घञ्—(विशेषतः) सूर्यमंडल या चन्द्रमण्डल
- परिवेषः—पुं॰—-—परि + विष् + घञ्—वृत्त की परिधि
- परिवेषः—पुं॰—-—परि + विष् + घञ्—सूर्यबिंब, चन्द्रबिंब
- परिवेषः—पुं॰—-—परि + विष् + घञ्—कोई वस्तु जो घेरती है या रक्षा करती है
- परीवेशः—पुं॰—-—परि + विश् + घञ्, पक्षे उपसर्गस्य दीर्घः—भोजन के समय सेवा करना, भोजन बांटना, भोजन परोसना
- परीवेशः—पुं॰—-—परि + विश् + घञ्, पक्षे उपसर्गस्य दीर्घः—वृत्त, चक्र, (दीप्ति) मंडल
- परीवेशः—पुं॰—-—परि + विश् + घञ्, पक्षे उपसर्गस्य दीर्घः—(विशेषतः) सूर्यमंडल या चन्द्रमण्डल
- परीवेशः—पुं॰—-—परि + विश् + घञ्, पक्षे उपसर्गस्य दीर्घः—वृत्त की परिधि
- परीवेशः—पुं॰—-—परि + विश् + घञ्, पक्षे उपसर्गस्य दीर्घः—सूर्यबिंब, चन्द्रबिंब
- परीवेशः—पुं॰—-—परि + विश् + घञ्, पक्षे उपसर्गस्य दीर्घः—कोई वस्तु जो घेरती है या रक्षा करती है
- परीवेषः—पुं॰—-—परि + विष् + घञ्, पक्षे उपसर्गस्य दीर्घः—भोजन के समय सेवा करना, भोजन बांटना, भोजन परोसना
- परीवेषः—पुं॰—-—परि + विष् + घञ्, पक्षे उपसर्गस्य दीर्घः—वृत्त, चक्र, (दीप्ति) मंडल
- परीवेषः—पुं॰—-—परि + विष् + घञ्, पक्षे उपसर्गस्य दीर्घः—(विशेषतः) सूर्यमंडल या चन्द्रमण्डल
- परीवेषः—पुं॰—-—परि + विष् + घञ्, पक्षे उपसर्गस्य दीर्घः—वृत्त की परिधि
- परीवेषः—पुं॰—-—परि + विष् + घञ्, पक्षे उपसर्गस्य दीर्घः—सूर्यबिंब, चन्द्रबिंब
- परीवेषः—पुं॰—-—परि + विष् + घञ्, पक्षे उपसर्गस्य दीर्घः—कोई वस्तु जो घेरती है या रक्षा करती है
- परिवेषकः—पुं॰—-—परि + विष् + ण्वुल्—भोजन परोसने वाला
- परिवेषणम्—नपुं॰—-—परि + विष् + ल्युट्—भोजन परोसना, (सेवा के लिए) प्रस्तुत रहना, भोजन वितरण करना
- परिवेषणम्—नपुं॰—-—परि + विष् + ल्युट्—लपेटना, घेरना
- परिवेषणम्—नपुं॰—-—परि + विष् + ल्युट्—सूर्यमंडल, चन्द्रमंडल
- परिवेषणम्—नपुं॰—-—परि + विष् + ल्युट्—परिधि
- परिवेष्टनम्—नपुं॰—-—परि + वेष्ट् + ल्युट्—घेरना, लपेटना
- परिवेष्टनम्—नपुं॰—-—परि + वेष्ट् + ल्युट्—परिधि
- परिवेष्टनम्—नपुं॰—-—परि + वेष्ट् + ल्युट्—ढक्कन, आवरण
- परिवेष्ठ्ट—पुं॰—-—परि + वेष्ट् + तुच्—भोजन के समय सेवा करने वाला, भोजन परोसने वाला
- परिव्ययः—पुं॰—-—-—लागत, मूल्य
- परिव्ययः—पुं॰—-—-—मिर्चमसाला
- परिव्याधः—पुं॰—-—परि + व्यध् + ण—नरकुल या सरकंडे की एक जाति
- परिव्रज्या—स्त्री॰—-—परि + व्रज् + क्यप् + टाप्—चहलकदमी करना, जगह जगह घूमते फिरना
- परिव्रज्या—स्त्री॰—-—परि + व्रज् + क्यप् + टाप्—सन्यासी होना, साधु महात्माओं का जीवन बिताना
- परिव्रज्या—स्त्री॰—-—परि + व्रज् + क्यप् + टाप्—सांसारिक मोहमाया का त्याग, वैराग्य में अनुराग, धार्मिक साधना
- परिव्राज्—पुं॰—-—परित्यज्य सर्वान् विषयभोगान् व्रजति परि + व्रज् + क्विप्—भ्रमणशील साधु, अवधूत, तपस्वी, सन्यासी (चौथे आश्रम में) जिसने सांसारिक मायामोह का त्याग कर दिया हो
- परिव्राजः—पुं॰—-—परित्यज्य सर्वान् विषयभोगान् व्रजति परि + व्रज् + घञ्—भ्रमणशील साधु, अवधूत, तपस्वी, सन्यासी (चौथे आश्रम में) जिसने सांसारिक मायामोह का त्याग कर दिया हो
- परिव्राजकः—पुं॰—-—परित्यज्य सर्वान् विषयभोगान् व्रजति परि + व्रज् + ण्वुल्—भ्रमणशील साधु, अवधूत, तपस्वी, सन्यासी (चौथे आश्रम में) जिसने सांसारिक मायामोह का त्याग कर दिया हो
- परिशाश्वत—वि॰—-—-—सदा के लिए उसी रूप में बना रहने वाला
- परिशिष्ट—वि॰—-—परि + शिष् + क्त—छोड़ा हुआ, बचा हुआ
- परिशिष्टम्—नपुं॰—-—परि + शिष् + क्त—सम्पूरक, अतिरिक्त
- परिशीलनम्—नपुं॰—-—परि + शील् + ल्युट्—स्पर्श, सम्पर्क
- परिशीलनम्—नपुं॰—-—परि + शील् + ल्युट्—अनवरत सम्पर्क, आपसीमेलजोल, पत्र व्यवहार
- परिशीलनम्—नपुं॰—-—परि + शील् + ल्युट्—अध्ययन, (किसी वस्तु में) आसक्ति, स्थिर या निश्चित वृत्ति
- परिशुद्धिः—स्त्री॰—-—-—पूर्ण शुद्धि
- परिशुद्धिः—स्त्री॰—-—-—दोष-शुद्धि, रिहाई
- परिशुष्क—भू॰ क॰ कृ॰—-—परि + शुष् + क्त—पूरी तरह सूखा हुआ, सुखाया हुआ, तपाया हुआ
- परिशुष्क—भू॰ क॰ कृ॰—-—परि + शुष् + क्त— मुर्झाया हुआ, कुम्हलाया हुआ, (गालों की भांति) चिपका हुआ
- परिशुष्कम्—नपुं॰—-—-—एक प्रकार का तला हुआ मांस
- परिशून्य—वि॰—-—-—बिल्कुल खाली
- परिशून्य—वि॰—-—-—सर्वथा स्वतन्त्र, नितान्त शून्य
- परिशृतः—पुं॰—-—परि + शृ + क्त—तीक्ष्ण मदिरा
- परिशेषः—पुं॰—-—परि + शिष् + घञ्—बचा हुआ, बाकी
- परिशेषः—पुं॰—-—परि + शिष् + घञ्—परिशिष्ट
- परिशेषः—पुं॰—-—परि + शिष् + घञ्—समाप्ति, उपसंहार, संपूर्ति
- परीशेषः—पुं॰—-—परि + शिष् + घञ्, उपसर्गस्य दीर्घः—बचा हुआ, बाकी
- परीशेषः—पुं॰—-—परि + शिष् + घञ्, उपसर्गस्य दीर्घः—परिशिष्ट
- परीशेषः—पुं॰—-—परि + शिष् + घञ्, उपसर्गस्य दीर्घः—समाप्ति, उपसंहार, संपूर्ति
- परिशोधः—पुं॰—-—परि + शुध्—शुद्ध करना, मांजना
- परिशोधः—पुं॰—-—परि + शुध्—छुटकारा, भारावतरण, (ऋण आदि का) भुगतान
- परिशोषः—पुं॰—-—परि + शुप् + घञ्—बिल्कुल सूख जाना, पूरी तरह भुन जाना
- परिश्रमः—पुं॰—-—परि + श्रम् + घञ्—थकान, थक कर चूर २ होना, कष्ट, पीड़ा
- परिश्रमः—पुं॰—-—परि + श्रम् + घञ्—चेष्टा, उद्योग, गहन अध्ययन, लगातार व्यस्त रहना
- परिश्रयः—पुं॰—-—परि + श्रि + अच्—सम्मिलन, सभा
- परिश्रयः—पुं॰—-—परि + श्रि + अच्—शरण, आश्रय
- परिश्रान्तिः—स्त्री॰—-—परि + श्रम् + क्तिन्—थकान, ऊब, कष्ट, थक कर चूर चूर होना
- परिश्रान्तिः—स्त्री॰—-—परि + श्रम् + क्तिन्—उद्योग, चेष्टा
- परिश्लेषः—पुं॰—-—परि + श्लिष् + घञ्—आलिंगन
- परिषद्—स्त्री॰—-—परितः सीदन्ति अस्याम् परि + सद् + क्विप्—सभा, सम्मिलन, मन्त्राणासभा, श्रोत्रृगण
- परिषद्—स्त्री॰—-—परितः सीदन्ति अस्याम् परि + सद् + क्विप्—धर्मसभा, मीमांसासभा
- परिषदः—पुं॰—-—परितः सीदति- परि + सद् + अच्—किसी सभा का सदस्य या मेंबर
- परिषद्यः—पुं॰—-—परितः सीदति- परि + सद् + यत्—किसी सभा का सदस्य या मेंबर
- परिषेकः—पुं॰—-—परि + सिच् + घञ्—पानी छिड़कना या उडेलना, गीला या तर करना
- परिषेचनम्—नपुं॰—-—परि + सिच् + ल्युट्—पानी छिड़कना या उडेलना, गीला या तर करना
- परिष्कन्न—वि॰—-—परि + स्कन्द् + क—दूसरे से पालित
- परिष्कण्ण—वि॰—-—परि + स्कन्द् + क्त, णत्वं —पोष्यपुत्र, जिसे किसी अपरिचित ने पाला पोसा हो
- परिष्कन्द—वि॰—-—परि + स्कन्द् + क्त—दूसरे के द्वारा पाला गया
- परिष्कन्द—वि॰—-—परि + स्कन्द् + घञ्—दूसरे के द्वारा पाला गया
- परिष्कन्दः—पुं॰—-—परि + स्कन्द् + घञ्—पोष्य पुत्र
- परिष्कन्दः—पुं॰—-—परि + स्कन्द् + घञ्—भृत्य, सेवक
- परिष्कन्दः—पुं॰—-—परि + स्कन्द् + घञ्—पोष्य पुत्र
- परिष्कन्दः—पुं॰—-—परि + स्कन्द् + घञ्—भृत्य, सेवक
- परिष्कारः—पुं॰—-—परि + कृ + अप्, सुट्, षत्वम्—सजावट, अलंकृत करना
- परिष्कारः—पुं॰—-—परि + कृ + घञ्, सुट् षत्वम्—सजावट, आभूषण, अलंकरण
- परिष्कारः—पुं॰—-—परि + कृ + घञ्, सुट् षत्वम्—पाचनक्रिया, खाना पकाना
- परिष्कारः—पुं॰—-—परि + कृ + घञ्, सुट् षत्वम्—दीक्षा, आरंभिक संस्कारों द्वारा पवित्रीकरण
- परिष्कारः—पुं॰—-—परि + कृ + घञ्, सुट् षत्वम्—(घर का) सामान
- परिष्कृत—भू॰ क॰ कृ॰—-—परि + कृ + क्त, सुट्, षत्वम्—अलंकृत, सजाया हुआ
- परिष्कृत—भू॰ क॰ कृ॰—-—परि + कृ + क्त, सुट्, षत्वम्—पकाया गया, प्रसाधित किया गया
- परिष्कृत—भू॰ क॰ कृ॰—-—परि + कृ + क्त, सुट्, षत्वम्—आरंभिक संस्कारों द्वारा अभिमन्त्रित
- परिष्क्रिया—स्त्री॰—-—परि + कृ + श + टाप्, सुट्—अलंकरण, सजावट, शृंगार
- परिष्टोमः—पुं॰—-—परि + स्तु + मन्, षत्वं —हाथी की रंगीन झूल
- परिष्टोमः—पुं॰—-—परि + स्तु + मन्, षत्वं —आच्छादन, आवरण
- परिस्तोमः—पुं॰—-—परि + स्तु + मन्—हाथी की रंगीन झूल
- परिस्तोमः—पुं॰—-—परि + स्तु + मन्—आच्छादन, आवरण
- परिष्पन्दः—पुं॰—-—परि + स्पंद् + घञ्—नौकर-चाकर, अनुचर
- परिष्पन्दः—पुं॰—-—परि + स्पंद् + घञ्—(फूलों से) केश शृंगार
- परिष्पन्दः—पुं॰—-—परि + स्पंद् + घञ्—शृंगार, सजावट
- परिष्पन्दः—पुं॰—-—परि + स्पंद् + घञ्—धड़कन, थरथराहट, धकधक, स्पंदन
- परिष्पन्दः—पुं॰—-—परि + स्पंद् + घञ्—खाद्यसामग्री, संवर्धन
- परिष्पन्दः—पुं॰—-—परि + स्पंद् + घञ्—कुचलना
- परिस्पन्दः—पुं॰—-—परि + स्पंद् + घञ्, षत्वं —नौकर-चाकर, अनुचर
- परिस्पन्दः—पुं॰—-—परि + स्पंद् + घञ्, षत्वं —(फूलों से) केश शृंगार
- परिस्पन्दः—पुं॰—-—परि + स्पंद् + घञ्, षत्वं —शृंगार, सजावट
- परिस्पन्दः—पुं॰—-—परि + स्पंद् + घञ्, षत्वं —धड़कन, थरथराहट, धकधक, स्पंदन
- परिस्पन्दः—पुं॰—-—परि + स्पंद् + घञ्, षत्वं —खाद्यसामग्री, संवर्धन
- परिस्पन्दः—पुं॰—-—परि + स्पंद् + घञ्, षत्वं —कुचलना
- परिष्वक्त—भू॰ क॰ कृ॰—-—परि + स्वंज् + क्त—परिरब्ध आलिंगित या आलिंगनबद्ध
- परिष्वङ्गः—पुं॰—-—परि + स्वंज् + घञ्—आलिंगन
- परिष्वङ्गः—पुं॰—-—परि + स्वंज् + घञ्—स्पर्श, सम्पर्क, मेल-मिलाप
- परिसंवत्सर—वि॰—-—ऊर्ध्व संवत्सरात्- अव्य॰ स॰—पूरा एक वर्ष का
- परिसंवत्सरः—पुं॰—-—ऊर्ध्व संवत्सरात्- अव्य॰ स॰—पूरा वर्ष
- परिसंवत्सरात्—पुं॰—-—ऊर्ध्व संवत्सरात्- अव्य॰ स॰—पूरे एक वर्ष से ऊपर
- परिसंख्या—स्त्री॰—-—परि + सम् + ख्या + अङ + टाप्—गिनती, संगणना
- परिसंख्या—स्त्री॰—-—परि + सम् + ख्या + अङ + टाप्—योगफल, जोड़, पूर्ण संख्या
- परिसंख्या—स्त्री॰—-—परि + सम् + ख्या + अङ + टाप्—अपाकरण, विशेष विवरण
- परिसंख्या—स्त्री॰—-—परि + सम् + ख्या + अङ + टाप्—विशेष उल्लेख या एकान्तिक विशेष विवरण
- परिसंख्यात—भू॰ क॰ कृ॰—-—परि + सम् + ख्या + अङ +क्त—गिना हुआ, हिसाब लगाया हुआ
- परिसंख्यात—भू॰ क॰ कृ॰—-—परि + सम् + ख्या + अङ +क्त—एकान्तिकरूप से विशिष्ट या निर्दिष्ट
- परिसंख्यानम्—नपुं॰—-—परि + संख्या + ल्युट्—गिनती, जोड़, पूर्णंसंख्या
- परिसंख्यानम्—नपुं॰—-—परि + संख्या + ल्युट्—एकान्तिक विशेष निर्देश
- परिसंख्यानम्—नपुं॰—-—परि + संख्या + ल्युट्—सही अनुमान, ठीक अंदाजा
- परिसञ्चरः—पुं॰—-—परि + सम् + चर् + अच्—विश्वप्रलय का समय
- परिसमापन—स्त्री॰—-—परि + सम् + आप् + ल्युट्—समाप्त करना, पूरा करना
- परिसमाप्तिः—स्त्री॰—-—परि + सम् + आप् + क्तिन्—समाप्त करना, पूरा करना
- परिसमूहनम्—नपुं॰—-—परि + सम् + ऊह् + ल्युट्—एकत्र करना, ढेर लगाना
- परिसमूहनम्—नपुं॰—-—परि + सम् + ऊह् + ल्युट्—यज्ञाग्नि के चारों ओर (विशेष रीति से) जल छिड़कना
- परिसरः—पुं॰—-—परि + सृ + घ—तट, किनारा, सामीप्य, आसपास, पड़ौस, पर्यावरण (किसी नदी, पहाड़ या नगर का)
- परिसरः—पुं॰—-—परि + सृ + घ—स्थिति, स्थान
- परिसरः—पुं॰—-—परि + सृ + घ—चौड़ाई, अर्ज
- परिसरः—पुं॰—-—परि + सृ + घ—मृत्यु
- परिसरः—पुं॰—-—परि + सृ + घ—नियम, विधि
- परिसरणम्—नपुं॰—-—परि + सृ + ल्युट्—इधर-उधर दौड़ना
- परिसर्पः—पुं॰—-—परि + सृप् + घञ्—इधर-उधर घूमना
- परिसर्पः—पुं॰—-—परि + सृप् + घञ्—खोज में निकलना, पीछा करना, अनुसरण करना
- परिसर्पः—पुं॰—-—परि + सृप् + घञ्—घेरना, मण्डलाकार करना
- परिसर्पणम्—नपुं॰—-—परि + सृप् + ल्युट्—चलना, रेंगना
- परिसर्पणम्—नपुं॰—-—परि + सृप् + ल्युट्—इधर-उधर दौड़ना, उड़ना, भागना
- परिसर्या—स्त्री॰—-—परि + सृ + श + यक् + टाप्—इधर उधर घूमना फिरना, प्रदक्षिणा, फेरी
- परीसर्या—स्त्री॰—-—परि + सृ + श + यक् + टाप् पक्षे उपसर्गस्य दीर्घः—इधर उधर घूमना फिरना, प्रदक्षिणा, फेरी
- परिसारः—पुं॰—-—परि + सृ + श + यक् + घञ्—इधर उधर घूमना फिरना, प्रदक्षिणा, फेरी
- परीसारः—पुं॰—-—परि + सृ + श + यक् + टाप् पक्षे उपसर्गस्य दीर्घः—इधर उधर घूमना फिरना, प्रदक्षिणा, फेरी
- परिस्तरणम्—नपुं॰—-—परि + स्तृ + ल्युट्—बिछाना, फैलाना, इधर उधर बखेरना
- परिस्तरणम्—नपुं॰—-—परि + स्तृ + ल्युट्—आवरण, ढक्कन
- परिस्फुट—वि॰, पुं॰—-—-—सर्वथा समतल, व्यक्त, स्पष्टगोचर
- परिस्फुट—वि॰, पुं॰—-—-—पूर्णविकसित, फूला हुआ, बढ़ा हुआ
- परिस्फुरणम्—नपुं॰—-—परि + स्फुर् + ल्युट्—कंपकंपी, थरथरी
- परिस्फुरणम्—नपुं॰—-—परि + स्फुर् + ल्युट्—कली का खिलना
- परिस्यंदः—पुं॰—-—परि + स्यन्द् + घञ्—रसना, बूंद २ टपकना, चूना
- परिस्यंदः—पुं॰—-—परि + स्यन्द् + घञ्—बहाव, धारा
- परिस्यंदः—पुं॰—-—परि + स्यन्द् + घञ्—अनुचरवर्ग
- परिस्रवः—पुं॰—-—परि + स्रु + अप्—बहना, बहाव
- परिस्रवः—पुं॰—-—परि + स्रु + अप्—नीचे सरकना
- परिस्रवः—पुं॰—-—परि + स्रु + अप्—नदी, निर्झर
- परिस्रावः—पुं॰—-—परि + स्रु + णिच् + अच्—निकास, निस्राव
- परिस्रुत्—पुं॰—-—परि + स्रु + क्विप् + तुक्—एक प्रकार की नशीली शराब
- परिस्रुत्—पुं॰—-—परि + स्रु + क्विप् + तुक्—रिसना, टपकना, बहना
- परिहत—वि॰—-—परि + हन् + क्त—ढीला किया हुआ
- परिहरणम्—नपुं॰—-—परि + हृ + ल्युट्—छोड़ना, तजना, तिलांजलि देना
- परिहरणम्—नपुं॰—-—परि + हृ + ल्युट्—टालना, कतराना
- परिहरणम्—नपुं॰—-—परि + हृ + ल्युट्—निराकरण करना
- परिहरणम्—नपुं॰—-—परि + हृ + ल्युट्—पकड़ना, ले जाना
- परिहारः—पुं॰—-—परि + हृ + घञ्—छोड़ना, तजना, तिलांजलि देना, त्याग देना
- परिहारः—पुं॰—-—परि + हृ + घञ्—हटाना, दूर करना
- परिहारः—पुं॰—-—परि + हृ + घञ्—निराकरण करना, निवारण करना
- परिहारः—पुं॰—-—परि + हृ + घञ्—उल्लेख न करना, भूल, चूक
- परिहारः—पुं॰—-—परि + हृ + घञ्—आरक्षण, गुप्त रखना
- परिहारः—पुं॰—-—परि + हृ + घञ्—गाँव या नगर के चारों ओर सामान्य भूखण्ड
- परिहारः—पुं॰—-—परि + हृ + घञ्—विशेष अनुदान, छूट, विशेषाधिकार, शुक्ल से माफ़ी या छुटकारा
- परिहारः—पुं॰—-—परि + हृ + घञ्—तिरस्कार, अनादर
- परिहारः—पुं॰—-—परि + हृ + घञ्—आपत्ति
- परीहारः—पुं॰—-—परि + हृ + घञ्, पक्षे उपसर्गस्य दीर्घः—छोड़ना, तजना, तिलांजलि देना, त्याग देना
- परीहारः—पुं॰—-—परि + हृ + घञ्, पक्षे उपसर्गस्य दीर्घः—हटाना, दूर करना
- परीहारः—पुं॰—-—परि + हृ + घञ्, पक्षे उपसर्गस्य दीर्घः—निराकरण करना, निवारण करना
- परीहारः—पुं॰—-—परि + हृ + घञ्, पक्षे उपसर्गस्य दीर्घः—उल्लेख न करना, भूल, चूक
- परीहारः—पुं॰—-—परि + हृ + घञ्, पक्षे उपसर्गस्य दीर्घः—आरक्षण, गुप्त रखना
- परीहारः—पुं॰—-—परि + हृ + घञ्, पक्षे उपसर्गस्य दीर्घः—गाँव या नगर के चारों ओर सामान्य भूखण्ड
- परीहारः—पुं॰—-—परि + हृ + घञ्, पक्षे उपसर्गस्य दीर्घः—विशेष अनुदान, छूट, विशेषाधिकार, शुक्ल से माफ़ी या छुटकारा
- परीहारः—पुं॰—-—परि + हृ + घञ्, पक्षे उपसर्गस्य दीर्घः—तिरस्कार, अनादर
- परीहारः—पुं॰—-—परि + हृ + घञ्, पक्षे उपसर्गस्य दीर्घः—आपत्ति
- परिहाणिः—स्त्री॰, पुं॰—-—-—घटी, कमी, नुक़सान
- परिहाणिः—स्त्री॰, पुं॰—-—-—मुर्झाना, क्षीण होना
- परिहानिः—स्त्री॰, पुं॰—-—-—घटी, कमी, नुक़सान
- परिहानिः—स्त्री॰, पुं॰—-—-—मुर्झाना, क्षीण होना
- परिहार्य—वि॰—-—परि + हृ + घञ्—कतराये जाने के योग्य, टाले जाने के योग्य, जिससे बचा जाय, जिसे ले जाया जाय या दूर किया जा
- परिहार्यः—पुं॰—-—परि + हृ + घञ्—कंकण
- परिहासः—पुं॰—-—परि + हस् + घञ्—मख़ौल, मज़ाक, हँसी, ठट्ठा
- परिहासः—पुं॰—-—परि + हस् + घञ्—हँसी उड़ाना, उपहास करना
- परीहासः—पुं॰—-—परि + हस् + घञ्, दीर्घः—मख़ौल, मज़ाक, हँसी, ठट्ठा
- परीहासः—पुं॰—-—परि + हस् + घञ्, दीर्घः—हँसी उड़ाना, उपहास करना
- परिहृत—भू॰ क॰ कृ॰—-—परि + हृ + क्त—कतराया हुआ टाला हुआ
- परिहृत—भू॰ क॰ कृ॰—-—परि + हृ + क्त—छोड़ा हुआ, परित्यक्त
- परिहृत—भू॰ क॰ कृ॰—-—परि + हृ + क्त—निराकृत, अपास्त
- परिहृत—भू॰ क॰ कृ॰—-—परि + हृ + क्त—लिया हुआ, पकड़ा हुआ
- परीक्षकः—पुं॰—-—परि + ईक्ष् + ण्वुल्—परीक्षा लेने वाला, जाँच करने वाला, न्याय करने वाला
- परीक्षणम्—नपुं॰—-—परि + ईक्ष् + ल्युट्—जाँच पड़ताल करना, परखना, इम्तहान लेना
- परीक्षा—स्त्री॰—-—परि + ईक्ष् + अ + टाप्—इम्तहान, जाँच, परख
- परीक्षा—स्त्री॰—-—परि + ईक्ष् + अ + टाप्—जाँच-पड़ताल के विविध प्रकार
- परीक्षित्—पुं॰—-—परि + क्षि + क्विप्, तुक्, उपसर्गस्य दीर्घः—अर्जुन का पौत्र, अभिमन्यु का पुत
- परीक्षित—भू॰ क॰ कृ॰—-—परि + ईक्ष् + क्त—परखा किया, जाँच पड़ताल की गई
- परीत—भू॰ क॰ कृ॰—-—परि + इ + क्त—घिरा हुआ, पर्यावृत
- परीत—भू॰ क॰ कृ॰—-—परि + इ + क्त—समाप्त हुआ, बीता हुआ
- परीत—भू॰ क॰ कृ॰—-—परि + इ + क्त—विगत, व्यतीत
- परीत—भू॰ क॰ कृ॰—-—परि + इ + क्त—पकड़ा हुआ, अधिकार में किया हुआ, भरा हुआ
- परीताप—पुं॰—-—-—अत्यंत या झुलसा देने वाली गर्मी,पीड़ा, वेदना, व्यथा, शोक,विलाप, मातम, शोक,कांपना, भय
- परीपाक—पुं॰—-—-—पूरी तरह से पकाया जाना या संवारा जाना,पचना,पकजाना, परिपक्वन, विकास, पूर्णता,फल, नतीजा, परिणाम
- परीवार—पुं॰—-—-—नौकर-चाकर, अनुचर वर्ग, टहलुए, अनुयायी,ढक्कन, चादर,म्यान, कोष
- परीवाह—पुं॰—-—-—तालाब का
- परीहास—पुं॰—-—-—मख़ौल, मज़ाक, हँसी, ठट्ठा,हँसी उड़ाना, उपहास करना,
- परीप्सा—स्त्री॰—-—परि + आप् + सन् + अ + टाप्—प्राप्त करने की इच्छा
- परीप्सा—स्त्री॰—-—परि + आप् + सन् + अ + टाप्—जल्दी, शीघ्रता
- परीरम्—नपुं॰—-—पृ + ईरन्—एक फल
- परीरणम्—नपुं॰—-—परि + ईर् + ल्युट्—कछुवा
- परीरणम्—नपुं॰—-—परि + ईर् + ल्युट्—छड़ी
- परीरणम्—नपुं॰—-—परि + ईर् + ल्युट्—पोशाक, वेशभूषा
- परीष्टिः—स्त्री॰—-—परि + इष् + क्तिन्—अनुसंधान, पूछताछ, गवेषणा
- परीष्टिः—स्त्री॰—-—परि + इष् + क्तिन्—सेवा, परिचर्या
- परीष्टिः—स्त्री॰—-—परि + इष् + क्तिन्—आदर, पूजा, श्रद्धांजलि
- परुः—पुं॰—-—पृ + उ—जोड़, गाँठ
- परुः—पुं॰—-—पृ + उ—अवयव, अंग
- परुः—पुं॰—-—पृ + उ—समुद्र
- परुः—पुं॰—-—पृ + उ—स्वर्ग, बैकुण्ठ
- परुः—पुं॰—-—पृ + उ—पहाड़
- परुत्—अव्य॰—-—पूर्वास्मिन् वत्सरे- इति पूर्वस्य परभावः उत् च—गत वर्ष, पिछला साल
- परुद्वारः—पुं॰—-—-—घोड़ा
- परुष—वि॰—-—पृ + उषन्—कठोर, रूखा, सख्त़, कड़ा
- परुष—वि॰—-—पृ + उषन्—(शब्द आदि) कटु, अपभाषित, निष्ठुर, निष्करुण, क्रूर, निर्मम (वाक्)
- परुष—वि॰—-—पृ + उषन्—(शब्द) कर्णकटु, अरुचिकर
- परुष—वि॰—-—पृ + उषन्—रूखा, स्थूल, खुरदरा, (बाल) मैला-कुचैला
- परुष—वि॰—-—पृ + उषन्—तीक्ष्ण, प्रचण्ड, मजबूत, उत्सुक, (वायु आदि) वेधक
- परुष—वि॰—-—पृ + उषन्—ठोस, गाढ़ा
- परुष—वि॰—-—पृ + उषन्—मलिन, मैला
- परुषम्—नपुं॰—-—-—कठोर या दुर्वचनयुक्त भाषण, अपभाषण
- परुषेतर—वि॰—परुष-इतर—-—जो रूखा न हो, कोमल, मृदु
- परुषोक्तिः—स्त्री॰—परुष-उक्तिः—-—अपभाषित
- परुषवचनम्—नपुं॰—परुष-वचनम्—-—अपभाषित
- परुस्—नपुं॰—-—पृ + उस्—सन्धि, ग्रन्थि, जोड़, गाँठ
- परुस्—नपुं॰—-—पृ + उस्—अवयव, शरीर का अंग
- परेत—भू॰ क॰ कृ॰—-—पर + इ + त—दिवंगत, मृत्युप्राप्त, मृत
- परेतः—पुं॰—-—पर + इ + त—प्रेत
- परेतभर्तृ—पुं॰—परेत-भर्तृ—-—मृत्यु का देवता, यमराज
- परेतराज्—पुं॰—परेत-राज्—-—मृत्यु का देवता, यमराज
- परेतभूमिः—स्त्री॰—परेत-भूमिः—-—कब्रिस्तान
- परेतवासः—पुं॰—परेत-वासः—-—कब्रिस्तान
- परेद्यवि—अव्य॰—-—परस्मिन् अहनि, नि॰ साधु॰—दूसरे दिन, और दिन
- परेद्युः—अव्य॰—-—परस्मिन् अहनि, नि॰ साधु॰—दूसरे दिन, और दिन
- परेष्टुः—स्त्री॰—-—पर + इस + तु—वह गाय जो कई बार ब्या चुकी हो
- परेष्टुका—स्त्री॰—-—परेष्टु + कन् + टाप्—वह गाय जो कई बार ब्या चुकी हो
- परोक्ष—वि॰—-—अक्ष्णः परम- अ॰ स॰—दृष्टिपरास से परे, या बाहर, जो दिखाई न दे, अगोचर
- परोक्ष—वि॰—-—अक्ष्णः परम- अ॰ स॰—अनुपस्थित
- परोक्ष—वि॰—-—अक्ष्णः परम- अ॰ स॰—गुप्त, अज्ञात, अपरिचित
- परोक्षः—पुं॰—-—-—सन्यासी
- परोक्षम्—नपुं॰—-—-—अनुपस्थिति अगोचरता
- परोक्षम्—नपुं॰—-—-—भूतकाल (जो वक्ता ने न देखा हो)
- परोक्षभोगः—पुं॰—परोक्ष-भोगः—-—स्वामी की अनुपस्थिति में किसी वस्तु का उपभोग
- परोक्षवृत्ति—वि॰—परोक्ष-वृत्ति—-—आँखो से दूर रहने वाला
- परोक्षवृत्तिः—स्त्री॰—परोक्ष-वृत्तिः—-—अदृष्ट और अज्ञात जीवन
- परोष्टिः—स्त्री॰—-—पर + उष् + क्तिन्—तेलचट्टा (झींगर के आकार काले रंग का एक कीड़ा)
- परोष्णी—स्त्री॰—-—पर + उष् + क्तिन्,परः शत्रुः उष्णो यस्याः ब॰ स॰—तेलचट्टा (झींगर के आकार काले रंग का एक कीड़ा)
- पजंन्यः—पुं॰—-—पृष् + शन्य, नि॰ षकारस्य जकारः—बरसने वाला मेघ, गरजने वाला बादल, बादल या मेघ
- पजंन्यः—पुं॰—-—पृष् + शन्य, नि॰ षकारस्य जकारः—बारिश
- पजंन्यः—पुं॰—-—पृष् + शन्य, नि॰ षकारस्य जकारः—वृष्टि का देवता अर्थात् इन्द्र
- पर्ण्—चुरा॰ उभ॰ <पर्णयति>, <पर्णयते>—-—-—हराभरा करना
- पर्णम्—नपुं॰—-—पर्ण् + अच्—पंख, बाजू
- पर्णम्—नपुं॰—-—पर्ण् + अच्—बाण का पंख
- पर्णम्—नपुं॰—-—पर्ण् + अच्—पत्ता
- पर्णम्—नपुं॰—-—पर्ण् + अच्—पान का पत्ता
- पर्णः—पुं॰—-—-—ढाक का पेड़
- पर्णाशनम्—नपुं॰—पर्णम्-अशनम्—-—पत्ते खाकर जीना
- पर्णाशनः—पुं॰—पर्णम्-अशनः—-—बादल
- पर्णासिः—पुं॰—पर्णम्-असिः—-—काली तुलसी
- पर्णाहार—वि॰—पर्णम्-आहार—-—पत्ते खाकर निर्वाह करने वाला
- पर्णोटजम्—नपुं॰—पर्णम्-उटजम्—-—पत्तों की कुटिया, साधुओं की झोपड़ी, आश्रम
- पर्णकारः—पुं॰—पर्णम्-कारः—-—पनवाड़ी, तमोली, पान बेचने वाला
- पर्णकुटिका—स्त्री॰—पर्णम्-कुटिका—-—पत्तों की बनी कुटिया
- पर्णकृच्छ्रः—पुं॰—पर्णम्-कृच्छ्रः—-—प्रायश्चित्त संबंधी साधना जिसमें प्रायश्चित्तकार को पाँच दिन तक पत्ते और कुशाओं का का काढ़ा पीकर रहना पड़ता है
- पर्णखंडः—पुं॰—पर्णम्-खंडः—-—फूलपत्तों के बिना वृक्ष
- पर्णखंडम्—नपुं॰—पर्णम्-खंडम्—-—पत्तों का ढेर
- पर्णचीरपटः—पुं॰—पर्णम्-चीरपटः—-—शिव का विशेषण
- पर्णचोरकः—पुं॰—पर्णम्-चोरकः—-—एक प्रकार का सुगंध द्रव्य
- पर्णनरः—पुं॰—पर्णम्-नरः—-—पत्तों से बनाया गया पुतला जो अप्राप्त शव की जगह रखकर जलाया जाता है
- पर्णमेदिनी—स्त्री॰—पर्णम्-मेदिनी—-—प्रियंगुलता
- पर्णभोजनः—पुं॰—पर्णम्-भोजनः—-—वकरी
- पर्णमुच—पुं॰—पर्णम्-मुच्—-—जाड़े की मौसम, शिर्शिर ऋतु
- पर्णमृगः—पुं॰—पर्णम्-मृगः—-—वृक्षों की शाखाओं पर रहने वाला जंगली जानवर
- पर्णरुह्—पुं॰—पर्णम्-रुह्—-—वसंत ऋतु
- पर्णलता—स्त्री॰—पर्णम्-लता—-—पान की बेल
- पर्णवीटिका—स्त्री॰—पर्णम्-वीटिका—-—पान का बीड़ा
- पर्णशय्या—स्त्री॰—पर्णम्-शय्या—-—पत्तों की सेज
- पर्णशाला—स्त्री॰—पर्णम्-शाला—-—पत्तों की बनी कुटिया, साधुओं का
- पर्णल—वि॰—-—पर्ण + लच्—पत्तों से भरा हुआ, पत्तों वाला
- पर्णसिः—पुं॰—-—पृ+असि,णुक्—पानी के मध्य खड़ा भवन, ग्रीष्म भवन
- पर्णसिः—पुं॰—-—पृ+असि,णुक्—कमल
- पर्णसिः—पुं॰—-—पृ+असि,णुक्—शाक सब्जी
- पर्णसिः—पुं॰—-—पृ+असि,णुक्—सजावट, प्रसाधन, शृंगार
- पर्णिन्—पुं॰—-—पर्ण + इनि—वृक्ष
- पर्णिल—वि॰—-—पर्ण + इलच्—पत्तों से भरा हुआ, पत्तों वाला
- पर्द्—भ्वा॰ आ॰ <पर्दते>—-—-—पाद मारना, अपानवायु छोड़ना
- पर्दः—पुं॰—-—पर्द + अच्—केश समूह, घना बाल
- पर्दः—पुं॰—-—पर्द + अच्—पाद, अपान वायु
- पर्पः—पुं॰—-—पृ + प—नया उगा घास
- पर्पः—पुं॰—-—पृ + प—पंगु-पीठ, पंगुगाड़ी
- पर्पः—पुं॰—-—पृ + प—घर
- पर्परीकः—पुं॰—-—पृ + ईकन्—सूर्य
- पर्परीकः—पुं॰—-—पृ + ईकन्—आग
- पर्परीकः—पुं॰—-—पृ + ईकन्—जलाशय, तालाब
- पर्यक्—अव्य॰ —-—परि + अंच् + क्विप्—चारों ओर, सब दिशाओं में
- पर्यकः—पुं॰—-—परिगतः अङ्कम्-अत्या॰ स॰—खाट, पलंग, सोफा
- पर्यकः—पुं॰—-—परिगतः अङ्कम्-अत्या॰ स॰—अरूमाली
- पर्यकः—पुं॰—-—परिगतः अङ्कम्-अत्या॰ स॰—समाधि-अवस्था में योगी के बैठने की विशेष अंगस्थिति- योगासन
- पर्यकः—पुं॰—-—परिगतः अङ्कम्-अत्या॰ स॰—वीरासन
- पर्यकबन्धः—पुं॰—पर्यकः-बन्धः—-—जांघ के सहारे बैठने की स्थिति
- पर्यकभोगिन्—पुं॰—पर्यकः-भोगिन्—-—एक प्रकार का साँप
- पर्यटनम्—नपुं॰—-—परि + अट् + ल्युट्—घूमना, इधर उधर भ्रमण करना, यात्रा करना
- पर्यटितम्—नपुं॰—-—परि + अट् + क्त—घूमना, इधर उधर भ्रमण करना, यात्रा करना
- पर्यनुयोगः—पुं॰—-—परि + अनु + युज् + घञ्—किसी उक्ति का खंडन करने के उद्देश्य से पूछताछ
- पर्यत—वि॰—-—-—से सीमा बद्ध, तक फैला हुआ
- पर्यतः—वि॰—-—-—आवर्त, परिधि
- पर्यतः—वि॰—-—-—गोट, किनारा, मगजी, चरमसीमा, हद
- पर्यतः—वि॰—-—-—पार्श्व, कक्ष
- पर्यतः—वि॰—-—-—अन्त, उपसंहार, समाप्ति
- पर्यतदेशः—पुं॰—पर्यतः-देशः—-—मिला हुआ या जुड़ा हुआ प्रदेश
- पर्यतभूः—स्त्री॰—पर्यतः-भूः—-—मिला हुआ या जुड़ा हुआ प्रदेश
- पर्यतभूमिः—स्त्री॰—पर्यतः-भूमिः—-—मिला हुआ या जुड़ा हुआ प्रदेश
- पर्यतपर्वतः—पुं॰—पर्यतः-पर्वतः—-—संलग्न पहाड़
- पर्यतिका—स्त्री॰—-—-—अच्छे गुणों की हानि, भ्रष्टाचार, नैतिक पतन
- पर्यय—पुं॰—-—परि + इ + अच्—क्रान्ति, पतन, निःश्वास
- पर्यय—पुं॰—-—परि + इ + अच्—(समय की) बर्बादी, या खोना
- पर्यय—पुं॰—-—परि + इ + अच्—परिवर्तन, अदल-बदल
- पर्यय—पुं॰—-—परि + इ + अच्—उलट-पुलट, अव्यवस्था, अनियमितता
- पर्यय—पुं॰—-—परि + इ + अच्—शास्त्रीय मर्यादा का अतिक्रमण, कर्तव्य की अवहेलना
- पर्यय—पुं॰—-—परि + इ + अच्—विरोध
- पर्ययणम्—नपुं॰—-—परि + अय् + ल्युट्—चारों ओर घूमना, प्रदक्षिणा
- पर्ययणम्—नपुं॰—-—परि + अय् + ल्युट्—घोड़े की जीन
- पर्यवदात—वि॰—-—-—पूरी तरह शुद्ध पवित्र
- पर्यवरोधः—पुं॰—-—-—बाधा, विघ्न
- पर्यवसित—भू॰ क॰ कृ॰—-—परि + अव + सो + क्त—समाप्त किया गया, अन्त तक किया हुआ, पूरा किया हुआ
- पर्यवसित—भू॰ क॰ कृ॰—-—परि + अव + सो + क्त—नष्ट, लुप्त
- पर्यवसित—भू॰ क॰ कृ॰—-—परि + अव + सो + क्त—निर्धारित
- पर्यवस्था—स्त्री॰—-—परि + अव + स्था + अङ् + टाप्—विरोध, मुकाबला, बाधा
- पर्यवस्था—स्त्री॰—-—परि + अव + स्था + अङ् + टाप्—वैपरीत्य
- पर्यवस्थानम्—नपुं॰—-—परि + अव + स्था + अङ् + ल्युट्—विरोध, मुकाबला, बाधा
- पर्यवस्थानम्—नपुं॰—-—परि + अव + स्था + अङ् + ल्युट्—वैपरीत्य
- पर्यश्रु—वि॰—-—प्रा॰ ब॰ स॰—आँसुओं से भरा हुआ,अश्रुपरिप्लावित, आँसू बहाने वाला, अश्रुयुक्त
- पर्यसनम्—नपुं॰—-—परि + अस् + ल्युट्—फेंकना, इधर उधर डालना
- पर्यसनम्—नपुं॰—-—परि + अस् + ल्युट्—भेजना, धकेलना
- पर्यसनम्—नपुं॰—-—परि + अस् + ल्युट्—भेज देना
- पर्यसनम्—नपुं॰—-—परि + अस् + ल्युट्—स्थगित करना
- पर्यस्त—भू॰ क॰ कृ॰—-—परि + अस् + क्त—इधर उधर फेंका गया, बखेरा गया
- पर्यस्त—भू॰ क॰ कृ॰—-—परि + अस् + क्त—घेरा हुआ, मण्डलाकृतः
- पर्यस्त—भू॰ क॰ कृ॰—-—परि + अस् + क्त—उलटाया गया, उथला हुआ
- पर्यस्त—भू॰ क॰ कृ॰—-—परि + अस् + क्त—पदच्युत, एक ओर रक्खा हुआ
- पर्यस्त—भू॰ क॰ कृ॰—-—परि + अस् + क्त—प्रहार किया हुआ, चोट पहुँचाया हुआ, मारा हुआ
- पर्यस्तिः—स्त्री॰—-—परि + अस् + क्तिन्—वीरासन, पलंग
- पर्यस्तिका—स्त्री॰—-—परि + अस् + टाप्—वीरासन, पलंग
- पर्याकुल—वि॰, पुं॰—-—-—मैला, गंदा (पानी आदि)
- पर्याकुल—वि॰, पुं॰—-—-—अव्यवस्थित, उद्विग्न, भयभीत
- पर्याकुल—वि॰, पुं॰—-—-—क्रमहीन, अव्यवस्थित, उथल-पुथल
- पर्याकुल—वि॰, पुं॰—-—-—उत्तेजित, क्षुब्ध, घबराया हुआ
- पर्याकुल—वि॰, पुं॰—-—-—भरा हुआ, पूरा
- पर्याणम्—नपुं॰—-—परि + या + ल्युट्, पृषो॰—जीन, काठी
- पर्याप्त—भू॰ क॰ कृ॰—-—परि + अप् + क्त—प्राप्त किया हुआ, हासिल किया हुआ, उपलब्ध
- पर्याप्त—भू॰ क॰ कृ॰—-—परि + अप् + क्त—समाप्त किया हुआ, पूरा किया हुआ
- पर्याप्त—भू॰ क॰ कृ॰—-—परि + अप् + क्त—भरा हुआ, पूर्ण, समस्त, सारा, समग्र
- पर्याप्त—भू॰ क॰ कृ॰—-—परि + अप् + क्त—योग्य, सक्षम, यथेष्ट
- पर्याप्त—भू॰ क॰ कृ॰—-—परि + अप् + क्त—काफी, यथोचित
- पर्याप्तम्—नपुं॰—-—-—स्वेच्छापूर्वक, तत्परता के साथ
- पर्याप्तम्—नपुं॰—-—-—ससन्तोष, काफी, यथेष्ट रूप से
- पर्याप्तम्—नपुं॰—-—-—पूरी तरह से, योग्यतापूर्वक, सक्षमता के साथ
- पर्याप्तिः—स्त्री॰—-—परि + आप् + क्तिन्—प्राप्त करना, अधिग्रहण
- पर्याप्तिः—स्त्री॰—-—परि + आप् + क्तिन्—अन्त, उपसंहार, समाप्ति
- पर्याप्तिः—स्त्री॰—-—परि + आप् + क्तिन्—काफी, पूर्णता, यथेष्टता
- पर्याप्तिः—स्त्री॰—-—परि + आप् + क्तिन्—तृप्ति, संतोष
- पर्याप्तिः—स्त्री॰—-—परि + आप् + क्तिन्—साधारण, प्रहार को रोकना
- पर्याप्तिः—स्त्री॰—-—परि + आप् + क्तिन्—उपयुक्तता, सक्षमता
- पर्यायः—पुं॰—-—परि + इ + घञ्—चक्कर लगाना, क्रान्ति
- पर्यायः—पुं॰—-—परि + इ + घञ्—(समय की) समाप्ति, व्यतीत होना, बीतना
- पर्यायः—पुं॰—-—परि + इ + घञ्—नियमित परावर्तन, या आवृत्ति
- पर्यायः—पुं॰—-—परि + इ + घञ्—बारी, उत्तराधिकार, उचित या नियमित क्रम
- पर्यायः—पुं॰—-—परि + इ + घञ्—प्रणाली व्यवस्था
- पर्यायः—पुं॰—-—परि + इ + घञ्—तरीका, रीति, प्रक्रिया की प्रणाली
- पर्यायः—पुं॰—-—परि + इ + घञ्—समानार्थक, पर्यायवाची
- पर्यायः—पुं॰—-—परि + इ + घञ्—सृष्टि, निर्माण, तैयारी, रचना
- पर्यायः—पुं॰—-—परि + इ + घञ्—धर्म, गुण
- पर्यायः—पुं॰—-—परि + इ + घञ्—एक अलंकार
- पर्यायेण—क्रि॰वि॰—-—-—बारी बारी से, उत्तरोत्तर, नंबरवार, नियमित क्रम से
- पर्यायेण—क्रि॰वि॰—-—-—यथावसर, कभी कभी
- पर्यायोक्तम्—नपुं॰—पर्यायः-उक्तम्—-—एक अलंकार, घुमाफिरा कर कहना, वक्रोक्ति या वाक्प्रपंच से कहने की रीति
- पर्यायच्युत—वि॰—पर्यायः-च्युत—-—गुप्त रूप से उखाड़ा हुआ, जिसका स्थान छलपूर्वक ले लिया गया है
- पर्यायवचनम्—नपुं॰—पर्यायः-वचनम्—-—समानार्थक
- पर्यायशब्दः—पुं॰—पर्यायः-शब्दः—-—समानार्थक
- पर्यायशयनम्—नपुं॰—पर्यायः-शयनम्—-—बारी २ सोना और चौकसी रखना
- पर्याली—अव्य॰—-—परि + आ + अल् + ई—हानि या क्षति को (हिंसन) अभिव्यक्त करने वाला अव्यय जो प्रायः कृ, भू या अस् से पूर्व लगाया जाता है
- पर्यालोचनम्—नपुं॰—-—परि + आ + लोच् + ल्युट्—सावधानता, समीक्षा, विचार, परिपक्व विमर्श
- पर्यालोचनम्—नपुं॰—-—परि + आ + लोच् + ल्युट्—जानना, पहचानना
- पर्यालोचना—स्त्री॰—-—परि + आ + लोच् + ल्युट्—जानना, पहचानना
- पर्यावर्तः—पुं॰—-—परि + आ + वृत् + घञ्—वापिस आना, प्रत्यागमन
- पर्यावर्तनम्—नपुं॰—-—परि + आ + वृत् + ल्युट्—वापिस आना, प्रत्यागमन
- पर्याविल—वि॰—-—-—बड़ा गदला, मैला, मिट्टी में भरा हुआ
- पर्यासः—पुं॰—-—परि + अस् + घञ्—अन्त, उपसंहार, समाप्ति
- पर्यासः—पुं॰—-—परि + अस् + घञ्—परावर्तन, क्रान्ति
- पर्यासः—पुं॰—-—परि + अस् + घञ्—उलटा क्रम या स्थिति
- पर्याहारः—पुं॰—-—परि + आ + हृ + घञ्—बोझा घोने के लिए कंधों पर रक्खा गया जूआ
- पर्याहारः—पुं॰—-—परि + आ + हृ + घञ्—ले जाना
- पर्याहारः—पुं॰—-—परि + आ + हृ + घञ्—बोझा, भार
- पर्याहारः—पुं॰—-—परि + आ + हृ + घञ्—धड़ा
- पर्याहारः—पुं॰—-—परि + आ + हृ + घञ्—अनाज को भंडार में रखना
- पर्युक्षणम्—नपुं॰—-—परि + उक्ष् + ल्युट्—बिना किसी मन्त्रोच्चारण के चारों ओर चुपचाप जल के छींटे देना
- पर्युत्थानम्—नपुं॰—-—परि + उद् + स्था + ल्युट्—खड़ा होना
- पर्युत्सुक—वि॰—-—-—शोक पूर्ण, ख़ेद युक्त, खिन्न, दुःखद
- पर्युत्सुत्वम्—नपुं॰—-—-—शोक
- पर्युत्सुत्वम्—नपुं॰—-—-—अत्यन्त इच्छुक, आतुर, सोत्सुक, प्रबल इच्छा रखने वाला
- पर्युदञ्चनम्—नपुं॰—-—परि + उध् + अञ्च् + ल्युट्—ऋण, उधार
- पर्युदञ्चनम्—नपुं॰—-—परि + उध् + अञ्च् + ल्युट्—उधार लेना, उठाना, उद्धार करना
- पर्युदस्त—भू॰ क॰ कृ॰—-—परि + उद् + अस् + क्त—बर्हिष्कृत किया हुआ, निकाला हुआ
- पर्युदस्त—भू॰ क॰ कृ॰—-—परि + उद् + अस् + क्त—रोका गया (नियमित) आपत्ति उठाई गई
- पर्युदासः—पुं॰—-—परि + उद् + अस् + घञ्—अपवाद, निषेध सूचक नियम या विधि
- पर्युपस्थानम्—नपुं॰—-—परि + उप + स्था + ल्युट्—सेवा, टहल, उपस्थिति
- पर्युपासनम्—नपुं॰—-—परि + उप + आस् + ल्युट्—पूजा, सम्मान, सेवा
- पर्युपासनम्—नपुं॰—-—परि + उप + आस् + ल्युट्—मित्रता, शिष्टता
- पर्युपासनम्—नपुं॰—-—परि + उप + आस् + ल्युट्—पास पास बैठाना
- पर्युप्तिः—स्त्री॰—-—परि + वप् + क्तिन्—बोना, बीजना
- पर्युषणम्—नपुं॰—-—परि + उष् + ल्युट्—पूजा, अर्चा, सेवा
- पर्युषित—वि॰—-—परि + वस् + क्त—बासी, जो ताजा न हो
- पर्युषित—वि॰—-—परि + वस् + क्त—फीका
- पर्युषित—वि॰—-—परि + वस् + क्त—मूर्ख
- पर्युषित—वि॰—-—परि + वस् + क्त—घमंडी
- पर्येषणम्—नपुं॰—-—परि + इष् + ल्युट्—तर्क द्वारा गवेषणा
- पर्येषणम्—नपुं॰—-—परि + इष् + ल्युट्—खोज, सामान्य पूछ-ताछ
- पर्येषणम्—नपुं॰—-—परि + इष् + ल्युट्—श्रद्धांजलि, पूजा
- पर्येषणा—स्त्री॰—-—परि + इष् + ल्युट्—तर्क द्वारा गवेषणा
- पर्येषणा—स्त्री॰—-—परि + इष् + ल्युट्—खोज, सामान्य पूछ-ताछ
- पर्येषणा—स्त्री॰—-—परि + इष् + ल्युट्—श्रद्धांजलि, पूजा
- पर्येष्टिः—स्त्री॰—-—परि + इष् + क्तिन्—खोज, पूछ-ताछ
- पर्वकम्—नपुं॰—-—पर्वणा ग्रन्थिना कायति- पर्वन् + कै + क—घुटने का जोड़
- पर्वणी—स्त्री॰—-—पर्व् + ल्युट्, स्त्रियां ङीप्—पूर्णिमा, या शुक्लप्रतिपदा
- पर्वणी—स्त्री॰—-—पर्व् + ल्युट्, स्त्रियां ङीप्—उत्सव
- पर्वणी—स्त्री॰—-—पर्व् + ल्युट्, स्त्रियां ङीप्—आँख की संधि का विशेष रोग
- पर्वतः—पुं॰—-—पर्व् + अचच्—पहाड़, गिरि
- पर्वतः—पुं॰—-—पर्व् + अचच्—चट्टान
- पर्वतः—पुं॰—-—पर्व् + अचच्—कृत्रिम पहाड़ या ढेर
- पर्वतः—पुं॰—-—पर्व् + अचच्—‘सात’ की संख्या
- पर्वतः—पुं॰—-—पर्व् + अचच्—वृक्ष
- पर्वतारिः—पुं॰—पर्वतः-अरिः—-—इन्द्र का विशेषण
- पर्वतात्मजः—पुं॰—पर्वतः-आत्मजः—-—मैनाक पर्वत का विशेषण
- पर्वतात्मजा—स्त्री॰—पर्वतः-आत्मजा—-—पार्वती का विशेषण
- पर्वताधारा—स्त्री॰—पर्वतः-आधारा—-—पृथ्वी
- पर्वताशयः—पुं॰—पर्वतः-आशयः—-—बादल
- पर्वताश्रयः—पुं॰—पर्वतः-आश्रयः—-—शरभ नामक काल्पनिक जंतु
- पर्वतकाकः—पुं॰—पर्वतः-काकः—-—पहाड़ी कौवा
- पर्वतजा—स्त्री॰—पर्वतः-जा—-—नदी
- पर्वतपतिः—पुं॰—पर्वतः-पतिः—-—हिमालय पहाड़ का विशेषण
- पर्वतमोचा—स्त्री॰—पर्वतः-मोचा—-—पहाड़ी केला
- पर्वतराज्—पुं॰—पर्वतः-राज्—-—विशाल पहाड़
- पर्वतराज्—पुं॰—पर्वतः-राज्—-—पर्वतों का स्वामी हिमालय
- पर्वतराजः—पुं॰—पर्वतः-राजः—-—विशाल पहाड़
- पर्वतराजः—पुं॰—पर्वतः-राजः—-—पर्वतों का स्वामी हिमालय
- पर्वतस्थ—वि॰—पर्वतः-स्थ—-—पहाड़ी, पर्वत पर स्थित
- पर्वन्—नपुं॰—-—पृ + वनिप्—गांठ, जोड़
- पर्वन्—नपुं॰—-—पृ + वनिप्—अवयव, अंग
- पर्वन्—नपुं॰—-—पृ + वनिप्—अंश, भाग, खण्ड
- पर्वन्—नपुं॰—-—पृ + वनिप्—पुस्तक, अध्याय
- पर्वन्—नपुं॰—-—पृ + वनिप्—जीने की सीढ़ी
- पर्वन्—नपुं॰—-—पृ + वनिप्—अवधि, निश्चित समय
- पर्वन्—नपुं॰—-—पृ + वनिप्—विशेष कर, चन्द्रमा के चार परिवर्तन अर्थात् दोनों पक्ष की अष्टमी पूर्णिमा तथा अमावस्या
- पर्वन्—नपुं॰—-—पृ + वनिप्—चन्द्रमा के परिवर्तन काल के अवसर पर अनुष्ठित यज्ञ
- पर्वन्—नपुं॰—-—पृ + वनिप्—पूर्णिमा या अमावस्या
- पर्वन्—नपुं॰—-—पृ + वनिप्—सूर्य या चन्द्रमा का ग्रहण
- पर्वन्—नपुं॰—-—पृ + वनिप्—उत्सर्व, त्योहार, हर्ष का अवसर
- पर्वन्—नपुं॰—-—पृ + वनिप्—सामान्य अवसर
- पर्वकालः—पुं॰—पर्वन्-कालः—-—चन्द्रमा का आवर्तिक परिवर्तन
- पर्वकालः—पुं॰—पर्वन्-कालः—-—वह काल जब चन्द्रमा पर्वसन्धि में से गुजरता है (मिलते या निकलते समय)
- पर्वकारिन्—पुं॰—पर्वन्-कारिन्—-—वह ब्राह्मण जो अमावस्या आदि के आवर्तिक अनुष्ठान या संस्कारो को अपने लाभ के कारण सामान्य दिनों में करता है
- पर्वगामिन्—पुं॰—पर्वन्-गामिन्—-—पर्व आदि शास्त्र निषिद्ध अवसरों पर भी अपनी पत्नी से मैथुन करने वाला व्यक्ति
- पर्वधिः—पुं॰—पर्वन्-धिः—-—चन्द्रमा
- पर्वयोनिः—स्त्री॰—पर्वन्-योनिः—-—बेत, नरकुल
- पर्वरुह्—पुं॰—पर्वन्-रुह्—-—अनार का वृक्ष
- पर्वसन्धिः—पुं॰—पर्वन्-सन्धिः—-—पूर्णिमा या अमावस्या तथा प्रतिपदा के मध्य का समय, अर्थात् पूर्णिमा या अमावस्या की समाप्ति पर प्रतिपदा आरम्भ
- पर्शुः—पुं॰—-—परं शत्रुं शृणाति- पर + शृ + कु स च डित् वा स्पृशति शत्रून्- स्पृश् + शुन्, पृ आदेशः—कुठार, कुल्हाड़ी
- पर्शुः—पुं॰—-—परं शत्रुं शृणाति- पर + शृ + कु स च डित् वा स्पृशति शत्रून्- स्पृश् + शुन्, पृ आदेशः—शस्त्र, हथियार
- पर्शुपाणिः—पुं॰—पर्शुः-पाणिः—-—गणेश का विशेषण
- पर्शुपाणिः—पुं॰—पर्शुः-पाणिः—-—परशुराम का विशेषण
- पर्शुंका—स्त्री॰—-—पर्शुं= कन् + टाप्—पसली
- पर्श्वधः—पुं॰—-—परश्व + धा + क, पृषो॰—कुल्हाड़ी, कुठार, फरसा
- पर्षद्—स्त्री॰—-—पृष् + आदि—सभा, सम्मिलन, सम्मर्द
- पर्षद्—स्त्री॰—-—पृष् + आदि—विशेषकर धर्मसभा
- पलः—पुं॰—-—पल् + अच्—पुआल, भूसी
- पलम्—नपुं॰—-—-—मांस, आमिष
- पलम्—नपुं॰—-—-—कर्ष का तोल
- पलम्—नपुं॰—-—-—तरल पदार्थों को मापने का मान
- पलम्—नपुं॰—-—-—समय मापने का मान
- पलाग्निः—पुं॰—पलः-अग्निः—-—पित्त
- पलाङ्गः—पुं॰—पलः-अङ्गः—-—कछुवा
- पलादः—पुं॰—पलः-अदः—-—पिशाच, राक्षस
- पलक्षारः—पुं॰—पलः-क्षारः—-—रुधिर
- पलगण्डः—पुं॰—पलः-गण्डः—-—पलस्तर करने वाला, राज
- पलप्रियः—पुं॰—पलः-प्रियः—-—राक्षस
- पलप्रियः—पुं॰—पलः-प्रियः—-—पहाड़ी कौवा
- पलभा—स्त्री॰—पलः-भा—-—मध्याह्न की विषुवीय छाया
- पलङ्कट—वि॰—-—पलं मांस कटति- पल् + काट् + खच्, मुम्—भीरु, बुजदिल
- पलङ्करः—पुं॰—-—पलं मांस करोति- पलम् + कृ + अच्, द्वितीया या अलुक्—पित्त
- पलङ्कषः—पुं॰—-—पलं कषति- पलम् + कष् + अच्, द्वितीयाया अलुक्—राक्षस, पिशाच, दानव
- पलङ्कषलम्—नपुं॰—-—पलं कषति- पलम् + कष् + अच्, द्वितीयाया अलुक्—मांस
- पलङ्कषलम्—नपुं॰—-—पलं कषति- पलम् + कष् + अच्, द्वितीयाया अलुक्—कीचड़, दलदल
- पलङ्कषलम्—नपुं॰—-—पलं कषति- पलम् + कष् + अच्, द्वितीयाया अलुक्—पिसे हुए तिल व चीनी मिला कर बनाई गई मिठाई, गजक
- पलङ्कषज्वरः—पुं॰—पलङ्कषः-ज्वरः—-—पहाड़ी कौवा
- पलङ्कषज्वरः—पुं॰—पलङ्कषः-ज्वरः—-—राक्षस
- पलङ्कषप्रियः—पुं॰—पलङ्कषः-प्रियः—-—पहाड़ी कौवा
- पलङ्कषप्रियः—पुं॰—पलङ्कषः-प्रियः—-—राक्षस
- पलवः—पुं॰—-—पल + वा + क—मछलियाँ पकड़ने का जाल या टोकरी
- पलाण्डु—पुं॰—-—पलस्य मांसस्य अंडामिव-पलं + अंड् + कु—प्याज
- पलापम्—नपुं॰—-—पलं मासम् आप्यते बाहुल्येन अत्र- पल + आप् + घञ्—हाथी की पुटपुड़ी
- पलापम्—नपुं॰—-—पलं मासम् आप्यते बाहुल्येन अत्र- पल + आप् + घञ्—पगहा, रस्सी
- पलायनम्—नपुं॰—-—परा + अय् + ल्युट् रस्य लः—भागना, लौटना, उड़ान, बच निकलना
- पलायित—भू॰ क॰ कृ॰—-—परा + अय् + क्त—भागा हुआ, लौटा हुआ, दौड़ा हुआ, बच निकला हुआ
- पलालः—पुं॰—-—पल + कालन्—पुआल, भूसी
- पलालम्—नपुं॰—-—-—पुआल, भूसी
- पलालदोहदः—पुं॰—पलालः-दोहदः—-—आम का वृक्ष
- पलालिः—पुं॰—-—पल + अल् + इन्—माँस का ढेर
- पलाशः—पुं॰—-—पल + अश् + अण्—एक वृक्ष, ढाक का पेड़
- पलाशम्—नपुं॰—-—पल + अश् + अण्—इस वृक्ष का फूल
- पलाशम्—नपुं॰—-—पल + अश् + अण्—पत्ता, पंखड़ी
- पलाशम्—नपुं॰—-—पल + अश् + अण्—हरा रंग
- पलाशिन्—पुं॰—-—पलाश + इन्—ढाक का पेड़
- पलिक्नी—स्त्री॰—-—पलित + अच्, तस्य क्न, डीप्—बूढ़ी स्त्री जिसके बाल सफेद हो गये हों
- पलिक्नी—स्त्री॰—-—पलित + अच्, तस्य क्न, डीप्—पहली बार ही ब्याई हुई गौ, बालगर्भिणी
- पलिघः—पुं॰—-—परि + हन् + अप्, आदेशः, रस्य लः—शीशे का बर्तन, घड़ा
- पलिघः—पुं॰—-—परि + हन् + अप्, आदेशः, रस्य लः—फसील, परकोटा
- पलिघः—पुं॰—-—परि + हन् + अप्, आदेशः, रस्य लः—लोहे की गदा
- पलिघः—पुं॰—-—परि + हन् + अप्, आदेशः, रस्य लः—गोशाला, गोगृह
- पलित—वि॰—-—पल् + क्त—भूरा, धवल, सफेंद बालों वाला, बृद्ध, बूढ़ा
- पलितम्—नपुं॰—-—पल् + क्त—सफेद बाल या बालों की सफेदी जो बुढ़ापे के कारण हुई हो
- पलितम्—नपुं॰—-—पल् + क्त—अधिक या अलंकृत केश
- पलितङ्करण—वि॰—-—अपलितं पलितं क्रियतेऽनेन - पलित + कृ + ख्युन्, मुम्—सफेद करने वाला
- पलितम्भविष्णु—वि॰—-—अपलितं पलितो भवति-पलित + भू + खिष्णुच्, मुम्—सफेद होने वाला
- पल्यङ्कः—पुं॰—-—परितः अंक्यतेऽत्र, परि + अंक् + घञ् रस्य लः—पलंग, खाट
- पल्ययनम्—नपुं॰—-—परि + अय् + ल्युट्, रस्यलः—जीन, काठी
- पल्ययनम्—नपुं॰—-—परि + अय् + ल्युट्, रस्यलः—रास, लगाम
- पल्लः—पुं॰—-—पल्ल् + अच्—अनाज का बड़ा भंडार, खत्ती
- पल्लवः—पुं॰—-—पल् + क्विप्= पल्, लू + अप्= लव, पल् चासौ लवश्च कर्म॰ स॰—अंकुर, कोंपल, टहनी
- पल्लवः—पुं॰—-—पल् + क्विप्= पल्, लू + अप्= लव, पल् चासौ लवश्च कर्म॰ स॰—कली, मंजरी
- पल्लवः—पुं॰—-—पल् + क्विप्= पल्, लू + अप्= लव, पल् चासौ लवश्च कर्म॰ स॰—विस्तार, फलाव, अभिस्तृति
- पल्लवः—पुं॰—-—पल् + क्विप्= पल्, लू + अप्= लव, पल् चासौ लवश्च कर्म॰ स॰—लालरंग, महावर, अलक्त
- पल्लवः—पुं॰—-—पल् + क्विप्= पल्, लू + अप्= लव, पल् चासौ लवश्च कर्म॰ स॰—सामर्थ्य, शक्ति
- पल्लवः—पुं॰—-—पल् + क्विप्= पल्, लू + अप्= लव, पल् चासौ लवश्च कर्म॰ स॰—घास की पत्ती
- पल्लवः—पुं॰—-—पल् + क्विप्= पल्, लू + अप्= लव, पल् चासौ लवश्च कर्म॰ स॰—कंकण, बाजूबंद
- पल्लवः—पुं॰—-—पल् + क्विप्= पल्, लू + अप्= लव, पल् चासौ लवश्च कर्म॰ स॰—प्रेम, केलि
- पल्लवः—पुं॰—-—पल् + क्विप्= पल्, लू + अप्= लव, पल् चासौ लवश्च कर्म॰ स॰—चञ्चलता
- पल्लवम्—नपुं॰—-—पल् + क्विप्= पल्, लू + अप्= लव, पल् चासौ लवश्च कर्म॰ स॰—अंकुर, कोंपल, टहनी
- पल्लवम्—नपुं॰—-—पल् + क्विप्= पल्, लू + अप्= लव, पल् चासौ लवश्च कर्म॰ स॰—कली, मंजरी
- पल्लवम्—नपुं॰—-—पल् + क्विप्= पल्, लू + अप्= लव, पल् चासौ लवश्च कर्म॰ स॰—विस्तार, फलाव, अभिस्तृति
- पल्लवम्—नपुं॰—-—पल् + क्विप्= पल्, लू + अप्= लव, पल् चासौ लवश्च कर्म॰ स॰—लालरंग, महावर, अलक्त
- पल्लवम्—नपुं॰—-—पल् + क्विप्= पल्, लू + अप्= लव, पल् चासौ लवश्च कर्म॰ स॰—सामर्थ्य, शक्ति
- पल्लवम्—नपुं॰—-—पल् + क्विप्= पल्, लू + अप्= लव, पल् चासौ लवश्च कर्म॰ स॰—घास की पत्ती
- पल्लवम्—नपुं॰—-—पल् + क्विप्= पल्, लू + अप्= लव, पल् चासौ लवश्च कर्म॰ स॰—कंकण, बाजूबंद
- पल्लवम्—नपुं॰—-—पल् + क्विप्= पल्, लू + अप्= लव, पल् चासौ लवश्च कर्म॰ स॰—प्रेम, केलि
- पल्लवम्—नपुं॰—-—पल् + क्विप्= पल्, लू + अप्= लव, पल् चासौ लवश्च कर्म॰ स॰—चञ्चलता
- पल्लवः—पुं॰—-—-—स्वेच्छाचारी
- पल्लवाङ्कुरः—पुं॰—पल्लवः-अङ्कुरः—-—शाखा
- पल्लवाधारः—पुं॰—पल्लवः-आधारः—-—शाखा
- पल्लवास्त्रः—पुं॰—पल्लवः-अस्त्रः—-—कामदेव का विशेषण
- पल्लवद्रुः—पुं॰—पल्लवः-द्रुः—-—अशोक वृक्ष
- पल्लवकः—पुं॰—-—पल्लव + कै + क—स्वेच्छाचारी
- पल्लवकः—पुं॰—-—पल्लव + कै + क—लौंडा, गांडू
- पल्लवकः—पुं॰—-—पल्लव + कै + क—रंडी का प्रेमी
- पल्लवकः—पुं॰—-—पल्लव + कै + क—अशोक वृक्ष
- पल्लवकः—पुं॰—-—पल्लव + कै + क—एक प्रकार की मछली
- पल्लवकः—पुं॰—-—पल्लव + कै + क—अंकुर
- पल्लविकः—पुं॰—-—पल्लवः शृंगारो रसः अस्ति अस्य- पल्लव + ठन्—स्वेच्छाचारी, रसिया
- पल्लविकः—पुं॰—-—पल्लवः शृंगारो रसः अस्ति अस्य- पल्लव + ठन्—लौंडा, बांका, छैल
- पल्लवित—वि॰—-—पल्लव + इतच्—अंकुरित होने वाला, नई २ कोंपलों से युक्त
- पल्लवित—वि॰—-—पल्लव + इतच्—फैला हुआ, विस्तृत
- पल्लवित—वि॰—-—पल्लव + इतच्—लाख से लाल रंग हुआ
- पल्लवितः—पुं॰—-—पल्लव + इतच्—लाखका रंग
- पल्लविन्—वि॰—-—पल्लव + इनि—नई २ कोंपलों से युक्त, नये किसलयों वाला
- पल्लविन्—पुं॰—-—-—वृक्ष
- पल्लि—स्त्री॰—-—पल्ल् + इन्—छोटा गाँव
- पल्लि—स्त्री॰—-—पल्ल् + इन्—झोंपड़ी
- पल्लि—स्त्री॰—-—पल्ल् + इन्—घर, पड़ाव
- पल्लि—स्त्री॰—-—पल्ल् + इन्—नगर या क़स्वा
- पल्लि—स्त्री॰—-—पल्ल् + इन्—छिपकली
- पल्ली—स्त्री॰—-—पल्लि + ङीष्—छोटा गाँव
- पल्ली—स्त्री॰—-—पल्लि + ङीष्—झोंपड़ी
- पल्ली—स्त्री॰—-—पल्लि + ङीष्—घर, पड़ाव
- पल्ली—स्त्री॰—-—पल्लि + ङीष्—नगर या क़स्वा
- पल्ली—स्त्री॰—-—पल्लि + ङीष्—छिपकली
- पल्लिका—स्त्री॰—-—पल्लि + कन् + टाप्—छोटा गाँव, पड़ाव
- पल्लिका—स्त्री॰—-—पल्लि + कन् + टाप्—छिपकली
- पल्वलम्—नपुं॰—-—पल् + ववच्—छोटा तालाब, छप्पड़, जोहड़, तडाग
- पल्वलावासः—पुं॰—पल्वलम्-आवासः—-—कछुवा
- पल्वलपङ्कः—पुं॰—पल्वलम्-पङ्कः—-—छप्पड़ का गारा, कीचड़
- पवः—पुं॰—-—पू + अप्—वायु
- पवः—पुं॰—-—पू + अप्—पवित्रीकरण
- पवः—पुं॰—-—पू + अप्—अनाज फटकना
- पवम्—नपुं॰—-—पू + अप्—गोबर
- पवनः—पुं॰—-—पू + ल्युट्—हवा, वायु
- पवनम्—नपुं॰—-—-—पवित्रीकरण
- पवनम्—नपुं॰—-—-—फटकना
- पवनम्—नपुं॰—-—-—चलनी, झरना
- पवनम्—नपुं॰—-—-—पानी
- पवनम्—नपुं॰—-—-—कुम्हार का आवा
- पवनम्—पुं॰—-—-—कुम्हार का आवा
- पवनी—स्त्री॰—-—-—झाड़ू
- पवनाशनः—पुं॰—पवनः-अशनः—-—साँप
- पवनभुज्—पुं॰—पवनः-भुज्—-—साँप
- पवनात्मजः—पुं॰—पवनः-आत्मजः—-—हनुमान का विशेषण
- पवनात्मजः—पुं॰—पवनः-आत्मजः—-—भीम का विशेषण
- पवनात्मजः—पुं॰—पवनः-आत्मजः—-—आग
- पवनाशः—पुं॰—पवनः-आशः—-—साँप, सर्प
- पवनाशः—पुं॰—पवनः-नाशः—-—गरुड़ का विशेषण
- पवनाशः—पुं॰—पवनः-नाशः—-—मोर
- पवनतनयः—पुं॰—पवनः-तनयः—-—हनुमान का विशेषण
- पवनसुतः—पुं॰—पवनः-सुतः—-—भीम का विशेषण
- पवनव्याधिः—पुं॰—पवनः-व्याधिः—-—कृष्ण के सलाहकार और मित्र उद्धव का विशेषण
- पवनव्याधिः—पुं॰—पवनः-व्याधिः—-—गठिया
- पवमानः—पुं॰—-—पू + शानच्, मुक्—हवा, वायु
- पवमानः—पुं॰—-—पू + शानच्, मुक्—एक प्रकार की यज्ञाग्नि जिसे गार्हपत्य कहते हैं
- पवाका—स्त्री॰—-—पू + आप्, नि॰ साधुः—बवंडर, आँधी, झंझावात
- पविः—पुं॰—-—पू + इ—इन्द्र का वज्र
- पवित—वि॰—-—पू + क्त—पवित्र किया हुआ, छाना हुआ
- पवितम्—नपुं॰—-—पू + क्त—काली मिर्च
- पवित्र—वि॰—-—पू + इत्र—पुनीत, पावन, निष्पाप, पवित्रीकृत (व्यक्ति या वस्तुएँ)
- पवित्र—वि॰—-—पू + इत्र—शुद्ध, छना हुआ
- पवित्र—वि॰—-—पू + इत्र—यज्ञादि के अनुष्ठानों द्वारा पवित्र किया गया
- पवित्र—वि॰—-—पू + इत्र—पवित्र करना, पाप धोना
- पवित्रम्—नपुं॰—-—पू + इत्र—छानने या शुद्ध करने का उपकरण, चलनी झरना
- पवित्रम्—नपुं॰—-—पू + इत्र—कुश की दो पत्तियाँ जो यज्ञ में घी को पवित्र करने तथा छींटे देने के काम आती हैं
- पवित्रम्—नपुं॰—-—पू + इत्र—कुशा की बनी अंगूठी जो कई धार्मिक अवसरों पर चौथी अँगुली में पहनी जाती है
- पवित्रम्—नपुं॰—-—पू + इत्र—जनेऊ जो हिन्दुजाति के प्रथम तीन वर्ण पहनते हैं
- पवित्रम्—नपुं॰—-—पू + इत्र—ताँबा
- पवित्रम्—नपुं॰—-—पू + इत्र—वृष्टि
- पवित्रम्—नपुं॰—-—पू + इत्र—जल
- पवित्रम्—नपुं॰—-—पू + इत्र—रगड़ना, मांजना
- पवित्रम्—नपुं॰—-—पू + इत्र—अर्घ्य देने का पात्र
- पवित्रम्—नपुं॰—-—पू + इत्र—घी
- पवित्रम्—नपुं॰—-—पू + इत्र—शहद, मधु
- पवित्रारोपणम्—नपुं॰—पवित्र-आरोपणम्—पू + इत्र—यज्ञोपवीत धारण करने का संस्कार, उपनयन संस्कार
- पवित्रारोहणम्—नपुं॰—पवित्र-आरोहणम्—पू + इत्र—यज्ञोपवीत धारण करने का संस्कार, उपनयन संस्कार
- पवित्रपाणि—वि॰—पवित्र-पाणि—-—दर्भघास को हाथ से थामने वाला
- पवित्रधान्यम्—नपुं॰—पवित्र-धान्यम्—-—जौ
- पवित्रकम्—नपुं॰—-—पवित्र + कै + क—सन या सुतली का बना जाल या रस्सा
- पशव्य—वि॰—-—पशु + यत्—मवेशियों (गाय भैंसो आदि) के लिए उचित या उपयुक्त
- पशव्य—वि॰—-—पशु + यत्—पशुओं से या रेवड़ या लहड़े से संबंध रखने वाला
- पशव्य—वि॰—-—पशु + यत्—पशुओं का स्वामी
- पशव्य—वि॰—-—पशु + यत्—पशुतापूर्ण
- पशुः—पुं॰—-—सर्वमविशेषेण पश्यति- दृश् + कु, पशादेशः—मवेशी, (एक या समष्टि)
- पशुः—पुं॰—-—सर्वमविशेषेण पश्यति- दृश् + कु, पशादेशः—जानवर
- पशुः—पुं॰—-—सर्वमविशेषेण पश्यति- दृश् + कु, पशादेशः—बलिपशु जैसे कि बकरा
- पशुः—पुं॰—-—सर्वमविशेषेण पश्यति- दृश् + कु, पशादेशः—नृशंस, जंगली, तिरस्कार प्रकटा करने के लिए नर वाचक शब्दों के साथ जोड़ा जाता है
- पशुः—पुं॰—-—सर्वमविशेषेण पश्यति- दृश् + कु, पशादेशः—एक उपदेवता, शिव का एक अनुचर
- पशोवदानम्—नपुं॰—पशुः-अवदानम्—-—पशुबलि
- पशुक्रिया—स्त्री॰—पशुः-क्रिया—-—बलियज्ञ को प्रक्रिया
- पशुक्रिया—स्त्री॰—पशुः-क्रिया—-—स्त्रीप्रसंग
- पशुगायत्री—स्त्री॰—पशुः-गायत्री—-—वह मन्त्र जो कि बलि के पशु के कान में बोला जाता है, यह प्रसिद्ध गायत्रीमंत्र हास्यमय अनुकृति है
- पशुघातः—पुं॰—पशुः-घातः—-—यज्ञ के लिए पशुओं का वध
- पशुचर्या—स्त्री॰—पशुः-चर्या—-—सहवास, स्त्री प्रसंग
- पशुधर्मः—पुं॰—पशुः-धर्मः—-—पशुओं की प्रकृति या लक्षण
- पशुधर्मः—पुं॰—पशुः-धर्मः—-—पशुओं की चिकित्सा
- पशुधर्मः—पुं॰—पशुः-धर्मः—-—स्वच्छन्द मैथुन
- पशुधर्मः—पुं॰—पशुः-धर्मः—-—विधवाविवाह
- पशुनाथः—पुं॰—पशुः-नाथः—-—शिव का विशेषण
- पशुनाथः—पुं॰—पशुः-नाथः—-—शिव का विशेषण
- पशुपः—पुं॰—पशुः-पः—-—ग्वाला
- पशुपतिः—पुं॰—पशुः-पतिः—-—शिव का विशेषण
- पशुपतिः—पुं॰—पशुः-पतिः—-—ग्वाला, पशुओं का स्वामी
- पशुपतिः—पुं॰—पशुः-पतिः—-—‘पाशुपत’ नामक दार्शनिक सिद्धान्त का प्रतिपादन करने वाला दर्शन शास्त्र
- पशुपालः—पुं॰—पशुः-पालः—-—ग्वाला, पशुओं का पालन करने वाला
- पशुपालकः—पुं॰—पशुः-पालकः—-—ग्वाला, पशुओं का पालन करने वाला
- पशुपालनम्—नपुं॰—पशुः-पालनम्—-—पशुओं को पालना, रखना
- पशुरक्षणम्—नपुं॰—पशुः-रक्षणम्—-—पशुओं को पालना, रखना
- पशुपाशकः—पुं॰—पशुः-पाशकः—-—एक प्रकार का रतिबन्ध या मैथुन प्रकार
- पशुप्रेरणम्—नपुं॰—पशुः-प्रेरणम्—-—पशुओं को हांकना
- पशुमारम्—अव्य॰—पशुः-मारम्—-—पशुबध की रीति के अनुसार
- पशुयज्ञः—पुं॰—पशुः-यज्ञः—-—पशु यज्ञ
- पशुयागः—पुं॰—पशुः-यागः—-—पशु यज्ञ
- पशुद्रव्यम्—नपुं॰—पशुः-द्रव्यम्—-—पशु यज्ञ
- पशुरञ्जुः—स्त्री॰—पशुः-रञ्जुः—-—पशुओं को सँभालने के लिए रस्सी
- पशुराजः—पुं॰—पशुः-राजः—-—सिंह, केसरी
- पश्चात्—अव्य॰—-—अपर + अति, पश्चभावः—पीछे से, पिछली ओर से
- पश्चात्—अव्य॰—-—अपर + अति, पश्चभावः—पीछे, पीछे की ओर, पीछे की तरफ
- पश्चात्—अव्य॰—-—अपर + अति, पश्चभावः—(समय और स्थान की दृष्टि से) बाद में , तब, इसके बाद, उसके अन्तर
- पश्चात्—अव्य॰—-—अपर + अति, पश्चभावः—आखिरकार, अन्त में अन्ततोगत्वा
- पश्चात्—अव्य॰—-—अपर + अति, पश्चभावः—पश्चिम से
- पश्चात्—अव्य॰—-—अपर + अति, पश्चभावः—पश्चिम की ओर, पश्चिम दिशा की तरफ
- पश्चात्कृत—वि॰—पश्चात्-कृत—-—पीछे छोड़ा हुआ, आगे बढ़ा हुआ, पृष्ठभूमि में फेंका हुआ
- पश्चात्तापः—पुं॰—पश्चात्-तापः—-—पछताना, ग्लानि, पछतावा
- पश्चात्पंकृ——पश्चात्-पं कृ—-—पछताना
- पश्चार्धः—पुं॰—-—अपरश्चासौ अर्धः, कु॰ स॰, अपरस्य पश्चभावः—(शरीर का) पिछला भाग, या पार्श्व
- पश्चार्धः—पुं॰—-—अपरश्चासौ अर्धः, कु॰ स॰, अपरस्य पश्चभावः—(समय और देश की दृष्टि से) अन्तिम
- पश्चार्धः—पुं॰—-—अपरश्चासौ अर्धः, कु॰ स॰, अपरस्य पश्चभावः—पश्चिमी, पश्चिमी ढंग का
- पश्चार्धार्धः—पुं॰—पश्चार्धः-अर्धः—-—उत्तरार्ध
- पश्चार्धार्धः—पुं॰—पश्चार्धः-अर्धः—-—रात का पिछला पहर
- पश्चार्धार्धः—पुं॰—पश्चार्धः-अर्धः—-—रात्रि का पिछला भाग
- पश्चिमा—स्त्री॰—-—पश्चिम + टाप्—पश्चिम दिशा
- पश्चिमोत्तरा—स्त्री॰—पश्चिमा-उत्तरा—-—उत्तरपश्चिम
- पश्यत्—वि॰—-—दृश् + शतृ, पश्यादेशः—देखने वाला, प्रत्यक्ष ज्ञान करने वाला, अवलोकन करने वाला, दृष्टिपात करने वाला, निरीक्षण करने वाला आदि
- पश्यतोहरः—पुं॰—-—पश्यन्तं जनम् अनादृत्य हरति-हृ + अच्, ष॰ त॰ अलुक् समासः—चोर, लुटेरा, डाकू
- पश्यन्ती—स्त्री॰—-—दृश् + शतृ, पश्यादेशः, नुम्—वेश्या, रंडी
- पश्यन्ती—स्त्री॰—-—दृश् + शतृ, पश्यादेशः, नुम्—विशेष-प्रकार की ध्वनि
- पस्त्यम्—नपुं॰—-—अपस्त्यायन्ति संगीभूय तिष्ठति यत्र-अप + स्त्यै + क नि॰ अकारलोपः—घर, निवास, आवास
- पस्पशः—पुं॰—-—-—पतंजलिप्रणीत महाभाष्य के प्रथम अध्याय का प्रथम आह्णिक
- पस्पशः—पुं॰—-—-—प्रस्तावना, उपाद्धोत
- पह्णवाः—पुं॰—-—-—एक जाति का नाम, संभवतः पर्शिया देशवासी
- पह्नवाः—पुं॰—-—-—एक जाति का नाम, संभवतः पर्शिया देशवासी
- पह्निकः—पुं॰—-—-—एक जाति का नाम, संभवतः पर्शिया देशवासी
- पा—भ्वा॰ पर॰ <पिवति>, <पति>, कर्मवा॰ <पीयते>—-—-—पीना, एक सांस में चढ़ा जाना
- पा—भ्वा॰ पर॰ <पिवति>, <पति>, कर्मवा॰ <पीयते>—-—-—चूमना
- पा—भ्वा॰ पर॰ <पिवति>, <पति>, कर्मवा॰ <पीयते>—-—-—चिंतन करना (आंख और कान से पीना), उत्सव मनाना, ध्यान पूर्वक सुनना
- पा—भ्वा॰ पर॰ <पिवति>, <पति>, कर्मवा॰ <पीयते>—-—-—अवशोषण करना, पी जाना
- पा—पुं॰—-—-—पिलाना, पीने के लिए देना
- पा—पुं॰—-—-—सींचना
- पा—इच्छा॰ <पिपासति>—-—-—पीने की इच्छा
- अनुपा—भ्वा॰ पर॰ —अनु-पा—-—बाद में पीना, अनुसरण करना
- आपा—भ्वा॰ पर॰ —आ-पा—-—पीना
- आपा—भ्वा॰ पर॰ —आ-पा—-—पी जाना, अवशोषण करना, चूस लेना
- आपा—भ्वा॰ पर॰ —आ-पा—-—(आँख, कान से) पीने का उत्सव मनाना
- निपा—भ्वा॰ पर॰ —नि-पा—-—पीना, चूमना
- निपा—भ्वा॰ पर॰ —नि-पा—-—(आँख, कान से) पीना, सौन्दर्यावलोकन करना
- परिपा—भ्वा॰ पर॰ —परि-पा—-—आत्मसात् करना
- परिपा—अदा॰ पर॰ <पाति>, <पात>—परि-पा—-—रक्षा करना, देखभाल करना, चौकसी रखना, बचाना, संधारण करना
- परिपा—अदा॰ पर॰ <पाति>, <पात>—परि-पा—-—हुकूमत करना, शासन करना
- परिपा—पुं॰—परि-पा—-—रक्षा करना, देखभाल करना, चौकसी रखना, बचाना, संधारण करना
- परिपा—पुं॰—परि-पा—-—हुकूमत करना, शासन करना
- परिपा—पुं॰—परि-पा—-—पालन करना, स्थिर रखना, अनुपालन करना, पूरा करना (प्रतिज्ञा, व्रत आदि)
- परिपा—पुं॰—परि-पा—-—पालन पोषण करना, संवर्धन करना, स्थापित रखना
- परिपा—पुं॰—परि-पा—-—प्रतीक्षा करना
- अनुपा—पुं॰—अनु-पा—-—बचाना, संधारण करना, देखभाल करना, रक्षा करना
- अनुपा—पुं॰—अनु-पा—-—पालन पोषण करना, संवर्धन करना, सहारा देना
- अनुपा—पुं॰—अनु-पा—-—स्थिर रखना, पालन करना, जमे रहना, धैर्य रखना
- अनुपा—पुं॰—अनु-पा—-—प्रतीक्षा करना, इंतजार करना
- प्रतिपा—पुं॰—प्रति-पा—-—बचाना, संधारण करना
- प्रतिपा—पुं॰—प्रति-पा—-—प्रतीक्षा करना, इंतजार करना
- प्रतिपा—पुं॰—प्रति-पा—-—अमल करना, आज्ञा मानना
- पा—वि॰—-—पा + विच्—पीने वाला, चढ़ा जाने वाला
- पा—वि॰—-—पा + विच्—बचाने वाला, देखभाल करने वाला, स्थिर रखने वाला
- पांसन—वि॰—-—पंस् + ल्युट्, पृषो॰ दीर्घ॰—कलंकित करने वाला, अपमानित करने वाला, दूषित करने वाला
- पांसन—वि॰—-—पंस् + ल्युट्, पृषो॰ दीर्घ॰—विषाक्त करने वाला, भ्रष्ट करने वाला
- पांसन—वि॰—-—पंस् + ल्युट्, पृषो॰ दीर्घ॰—दुष्ट, तिरस्करणीय
- पांसन—वि॰—-—पंस् + ल्युट्, पृषो॰ दीर्घ॰—बदनाम
- पांशन—वि॰—-—पंश् + ल्युट्, पृषो॰ दीर्घ॰—कलंकित करने वाला, अपमानित करने वाला, दूषित करने वाला
- पांशन—वि॰—-—पंश् + ल्युट्, पृषो॰ दीर्घ॰—विषाक्त करने वाला, भ्रष्ट करने वाला
- पांशन—वि॰—-—पंश् + ल्युट्, पृषो॰ दीर्घ॰—दुष्ट, तिरस्करणीय
- पांशन—वि॰—-—पंश् + ल्युट्, पृषो॰ दीर्घ॰—बदनाम
- पांसव—वि॰—-—पांसु + अण्—धूल से भरा हुआ
- पांशव—वि॰—-—पांशु + अण्—धूल से भरा हुआ
- पांसुः—पुं॰—-—पंस् + कु, दीर्घः—धूल, गर्द, चूरा (जीर्ण होकर गिरने वाला)
- पांसुः—पुं॰—-—पंस् + कु, दीर्घः—धूलकण
- पांसुः—पुं॰—-—पंस् + कु, दीर्घः—गोबर, खाद
- पांसुः—पुं॰—-—पंस् + कु, दीर्घः—एक प्रकार का कूपर
- पांशुः—पुं॰—-—पंश् + कु, दीर्घः—धूल, गर्द, चूरा (जीर्ण होकर गिरने वाला)
- पांशुः—पुं॰—-—पंश् + कु, दीर्घः—धूलकण
- पांशुः—पुं॰—-—पंश् + कु, दीर्घः—गोबर, खाद
- पांशुः—पुं॰—-—पंश् + कु, दीर्घः—एक प्रकार का कूपर
- पांसुकासीसम्—नपुं॰—पांसुः-कासीसम्—-—कसीस
- पांसुकुली—पुं॰—पांसुः-कुली—-—प्रशस्त पथ, राजमार्ग
- पांसुकूलम्—नपुं॰—पांसुः-कूलम्—-—धूल का ढेर
- पांसुकूलम्—नपुं॰—पांसुः-कूलम्—-—ऐसा कानूनी दस्तावेज जो किसी व्यक्ति विशेष के नाम न हो ,निरुपपदशासन
- पांसुकृत—वि॰—पांसुः-कृत—-—धूल से भरा हुआ
- पांसुक्षारम्—नपुं॰—पांसुः-क्षारम्—-—एक प्रकार का नमक
- पांसुक्षारजम्—नपुं॰—पांसुः-क्षारजम्—-—एक प्रकार का नमक
- पांसुचत्वरम्—नपुं॰—पांसुः-चत्वरम्—-—ओला
- पांसुचंदनः—पुं॰—पांसुः-चंदनः—-—शिव का विशेषण
- पांसुचामरः—पुं॰—पांसुः-चामरः—-—धूल का ढेर
- पांसुचामरः—पुं॰—पांसुः-चामरः—-—तंबू
- पांसुचामरः—पुं॰—पांसुः-चामरः—-—दूम से ढका नदीतट
- पांसुचामरः—पुं॰—पांसुः-चामरः—-—प्रशंसा
- पांसुजालिकः—पुं॰—पांसुः-जालिकः—-—विष्णु का विशेषण
- पांसुपटलम्—नपुं॰—पांसुः-पटलम्—-—धूल की परत या तह
- पांसुमर्दनः—पुं॰—पांसुः-मर्दनः—-—पेड़ की जड़ों के पास चारो ओर से खोद कर पानी सींचने का स्थान, आलवाल, थांवला
- पांसुरः—पुं॰—-—पांसु + रा + क—डांस, गोमक्खी
- पांसुरः—पुं॰—-—पांसु + रा + क—विकलांग, लुंजा जो गाड़ी में बैठकर इधर उधर घूमे
- पांशुरः—पुं॰—-—पांशु + रा + क—डांस, गोमक्खी
- पांशुरः—पुं॰—-—पांशु + रा + क—विकलांग, लुंजा जो गाड़ी में बैठकर इधर उधर घूमे
- पांसुलः—वि॰—-—पांसु + लच्—धूल से भरा हुआ, धूलिधूसरित
- पांसुलः—वि॰—-—पांसु + लच्—अपवित्र, दूषित, कलुषित, कलंकित
- पांसुलः—वि॰—-—पांसु + लच्—दूषित करने वाला, कलंकित करने वाला, अपमानित करने वाला
- पांशुलः—वि॰—-—पांशु + लच्—धूल से भरा हुआ, धूलिधूसरित
- पांशुलः—वि॰—-—पांशु + लच्—अपवित्र, दूषित, कलुषित, कलंकित
- पांशुलः—वि॰—-—पांशु + लच्—दूषित करने वाला, कलंकित करने वाला, अपमानित करने वाला
- पांसुलः—पुं॰—-—-—दुश्चरित्र, स्वेच्छाचारी, लम्पट
- पांसुलः—पुं॰—-—-—शिव का विशेषण
- पांसुला—स्त्री॰—-—-—रजस्वला स्त्री
- पांसुला—स्त्री॰—-—-—असती या व्यभिचारिणी स्त्री
- अपांसुला—स्त्री॰—अ-पांसुला—-—सती स्त्री
- पांसुला—स्त्री॰—-—-—पृथ्वी
- पाकः—पुं॰—-—पच् + घञ्—पकाना, प्रसाधन, सेकना, उबालना
- पाकः—पुं॰—-—पच् + घञ्—(ईंट आदि) आँच लगाना, सेकना
- पाकः—पुं॰—-—पच् + घञ्—(भोजन का) पचना
- पाकः—पुं॰—-—पच् + घञ्—पका होना
- पाकः—पुं॰—-—पच् + घञ्—परिपक्वता, पूर्ण विकास
- पाकः—पुं॰—-—पच् + घञ्—सम्पूर्ति, निष्पन्नता, पूरा करना
- पाकः—पुं॰—-—पच् + घञ्—नतीजा परिणाम, फल, परिफलन
- पाकः—पुं॰—-—पच् + घञ्—अनाज, अन्न
- पाकः—पुं॰—-—पच् + घञ्—पकने की क्रिया, (फोड़े आदि का) पकना, पीप पड़ना
- पाकः—पुं॰—-—पच् + घञ्—बुढ़ापे के कारण बालों का सफेद हो जाना
- पाकः—पुं॰—-—पच् + घञ्—गार्हपत्याग्नि
- पाकः—पुं॰—-—पच् + घञ्—उल्लू
- पाकः—पुं॰—-—पच् + घञ्—बच्चा, शिशु
- पाकः—पुं॰—-—पच् + घञ्—एक राक्षस जिसे इन्द्र ने मारा था
- पाकागारः—पुं॰—पाकः-अगारः—-—रसोई
- पाकागारम्—नपुं॰—पाकः-अगारम्—-—रसोई
- पाकागारः—पुं॰—पाकः-आगारः—-—रसोई
- पाकागारम्—नपुं॰—पाकः-आगारम्—-—रसोई
- पाकशाला—स्त्री॰—पाकः-शाला—-—रसोई
- पाकस्थानम्—नपुं॰—पाकः-स्थानम्—-—रसोई
- पाकातीसारः—पुं॰—पाकः-अतीसारः—-—पुरानी पेंचिश
- पाकाभिमुख—वि॰—पाकः-अभिमुख—-—पकाने के लिए तैयार, बिकासोन्मुख
- पाकाभिमुख—वि॰—पाकः-अभिमुख—-—कृपापरायण
- पाकजम्—नपुं॰—पाकः-जम्—-—काला नमक
- पाकजम्—नपुं॰—पाकः-जम्—-—उदरवायु
- पाकापात्रम्—नपुं॰—पाकः-पात्रम्—-—पकाने का बर्तन
- पाकपुटी—स्त्री॰—पाकः-पुटी—-—कुम्हार का आवा
- पाकयज्ञः—पुं॰—पाकः-यज्ञः—-—गृह्ययज्ञ
- पाकशुक्ला—स्त्री॰—पाकः-शुक्ला—-—खड़िया
- पाकशासनः—पुं॰—पाकः-शासनः—-—इन्द्र का विशेषण
- पाकशासनिः—पुं॰—पाकः-शासनिः—-—इन्द्र का पुत्र जयन्त का विशेषण
- पाकशासनिः—पुं॰—पाकः-शासनिः—-—वालि का विशेषण
- पाकशासनिः—पुं॰—पाकः-शासनिः—-—अर्जुन का विशेषण
- पाकलः—पुं॰—-—पाक + ला + क—आग
- पाकलः—पुं॰—-—पाक + ला + क—हवा
- पाकलः—पुं॰—-—पाक + ला + क—हाथी का ज्चर
- पाकिम—वि॰—-—पाकेन निर्वृत्तम्- पाक + इमप्—पका हुआ, प्रसाधित
- पाकिम—वि॰—-—पाकेन निर्वृत्तम्- पाक + इमप्—(प्राकृतिक या कृत्रिम रूप से) पका हुआ
- पाकिम—वि॰—-—पाकेन निर्वृत्तम्- पाक + इमप्—(नमक आदि) उबाल कर प्राप्त किया हुआ
- पाकुः—पुं॰—-—पच् + उण्—रसोइया
- पाकुकः—पुं॰—-—पच् + उण्, क आदेशः—रसोइया
- पाक्य—वि॰—-—पच् + ण्यत्, क आदेशः—पकाने के योग्य प्रसाधित होने के लायक, परिपक्व होने के योग्य
- पाक्यः—पुं॰—-—पच् + ण्यत्, क आदेशः—जवाखार शोरा
- पाक्ष—वि॰—-—पक्ष + अण्—(कृष्ण या शुक्ल) पक्ष से संबंध रखने वाला, पाक्षिक
- पाक्ष—वि॰—-—पक्ष + अण्—किसी दल या पाटी से संबद्ध
- पाक्षिक—वि॰—-—पक्ष + ठक्—पक्ष से संबद्ध, अर्धमासिक
- पाक्षिक—वि॰—-—पक्ष + ठक्—पक्षी से संबद्ध
- पाक्षिक—वि॰—-—पक्ष + ठक्—किसी दल या पार्टी का पक्ष लेने वाला
- पाक्षिक—वि॰—-—पक्ष + ठक्—तर्क विषयक
- पाक्षिक—वि॰—-—पक्ष + ठक्—ऐच्छिक, वैकल्पिक, अनुमत परन्तु विशेष रूप से निर्धारित न हो
- पाक्षिकः—पुं॰—-—पक्ष + ठक्—बहेलिया, चिड़ीमार
- पाखण्डः—पुं॰—-—पातीति- पा + क्विप्, पाः त्रयीधर्मः, तं खण्डयति- पा + खण्ड् + अच्—विधर्मी, नास्तिक
- पागल—वि॰—-—पारक्षणम्, तस्मात् गलति विच्युतो भवति- पा + गल् + अच्—विक्षिप्त, जिसका दिमाग खराब हो
- पाङ्क्तेय—वि॰—-—पंक्ति + ढक्—भोजन पंक्ति में एक साथ बैठने के योग्य
- पाङ्क्तेय—वि॰—-—पंक्ति + ढक्—साहचर्य के उपयुक्त
- पाङ्क्त्य—वि॰—-—पंक्ति + यत्—भोजन पंक्ति में एक साथ बैठने के योग्य
- पाङ्क्त्य—वि॰—-—पंक्ति + यत्—साहचर्य के उपयुक्त
- पाचक—वि॰—-—पच् + ण्वुल्—पकाना, सेकना
- पाचक—वि॰—-—पच् + ण्वुल्—पचाने वाला, पौष्टिक
- पाचकः—पुं॰—-—पच् + ण्वुल्—रसोइया
- पाचकः—पुं॰—-—पच् + ण्वुल्—आग
- पाचकम्—नपुं॰—-—-—पित्त
- पाचकस्त्री—स्त्री॰—पाचक-स्त्री—-—महाराजिन, रसोई बनाने वाली स्त्री
- पाचन—वि॰—-—पच् + णिच् + ल्युट्—पकाने वाला
- पाचन—वि॰—-—पच् + णिच् + ल्युट्—पकने वाला
- पाचन—वि॰—-—पच् + णिच् + ल्युट्—पचाने वाला, हाजिम
- पाचनः—पुं॰—-—पच् + णिच् + ल्युट्—आग
- पाचनः—पुं॰—-—पच् + णिच् + ल्युट्—खटास, अम्लता
- पाचनम्—नपुं॰—-—पच् + णिच् + ल्युट्—पकाने की क्रिया
- पाचनम्—नपुं॰—-—पच् + णिच् + ल्युट्—पकने की क्रिया
- पाचनम्—नपुं॰—-—पच् + णिच् + ल्युट्—घुलनशील, भोजन पचाने वाली औषधि
- पाचनम्—नपुं॰—-—पच् + णिच् + ल्युट्—घाव भरना
- पाचनम्—नपुं॰—-—पच् + णिच् + ल्युट्—तपस्या, प्रायश्चित्त
- पाचल—पुं॰—-—पच् + णिच् + कलन्—रसोइया
- पाचल—पुं॰—-—पच् + णिच् + कलन्—आग
- पाचल—पुं॰—-—पच् + णिच् + कलन्—हवा
- पाचलम्—नपुं॰—-—पच् + णिच् + कलन्—पकाना, परिपक्व करना
- पाचा—स्त्री॰—-—पच् + णिच् + अङ + टाप्—पकाना
- पाञ्चकपाल—वि॰—-—पञ्चकपाल + अण्—पाँच कपालों में भर कर दी गई आहुति से संबंध रखने वाला
- पाञ्चजन्यः—पुं॰—-—पञ्चजन + ञ्य—कृष्ण के शंख का नाम
- पाञ्चजन्यधरः—पुं॰—पाञ्चजन्यः-धरः—-—कृष्ण का विशेषण
- पाञ्चदश—वि॰—-—पञ्चदशी + अण्—मास की पन्द्रहवीं तिथि से संबंध रखने वाला
- पाञ्चदश्यम्—नपुं॰—-—पञ्चदशन् + ष्यञ्—पन्द्रह का समुच्चय
- पाञ्चनद—वि॰—-—पञ्चनद + अण्—पंचनद या पंजाब में प्रचलित
- पाञ्चभौतिक—वि॰—-—पञ्चभूत + ठक्, द्विपदवृद्धि—पाँच तत्त्वों के समूह से बना हुआ, या पाँच तत्वों वाला
- पाञ्चवर्षिक—वि॰—-—पञ्चवर्ष + ठञ्—पाँच वर्ष का
- पाञ्चशाब्दिकम्—नपुं॰—-—पञ्चशब्द + ठक्—पाँच प्रकार का संगीत
- पाञ्चशाब्दिकम्—नपुं॰—-—पञ्चशब्द + ठक्—गायन संबंधी वाद्ययंत्र
- पाञ्चाल—वि॰—-—पञ्चाल + अण्—पंचाल से संबंद्ध या पंचालों के शासक
- पाञ्चालः—पुं॰—-—पञ्चाल + अण्—पंचालों का देश
- पाञ्चालः—पुं॰—-—पञ्चाल + अण्—पंचालों का राजकुमार
- पाञ्चालाः—पुं॰—-—पञ्चाल + अण्—पंचाल देश के लोग
- पाञ्चालिका—स्त्री॰—-—पाञ्चाली + कप् + टाप्, हस्वः—गुड़िया
- पाञ्चाली—स्त्री॰—-—पाञ्चाल + अण् + ङीप्—पंचाल देश की राज कुमारी या स्त्री
- पाञ्चाली—स्त्री॰—-—पाञ्चाल + अण् + ङीप्—पांडवों की पत्नी, द्रौपदी
- पाञ्चाली—स्त्री॰—-—पाञ्चाल + अण् + ङीप्—गुड़िया, पुतली
- पाञ्चाली—स्त्री॰—-—पाञ्चाल + अण् + ङीप्—रचना की चार शैलियों में से एक
- पाट्—अव्य॰—-—पट् + णिच् + क्विप्—एक अव्यय जो बुलाने के लिए
- पाटकः—पुं॰—-—पट् + णिच् + ण्वुल्—विदारक, विभाजक
- पाटकः—पुं॰—-—पट् + णिच् + ण्वुल्—गाँव का एक भाग
- पाटकः—पुं॰—-—पट् + णिच् + ण्वुल्—गाँव का आधा हिस्सा
- पाटकः—पुं॰—-—पट् + णिच् + ण्वुल्—एक प्रकार का संगीत-उपकरण
- पाटकः—पुं॰—-—पट् + णिच् + ण्वुल्—तट, किनारा
- पाटकः—पुं॰—-—पट् + णिच् + ण्वुल्—घाट की चौड़ियाँ
- पाटकः—पुं॰—-—पट् + णिच् + ण्वुल्—मूलधन या पूंजी की हानि
- पाटकः—पुं॰—-—पट् + णिच् + ण्वुल्—वित्ता या बालिस्त
- पाटकः—पुं॰—-—पट् + णिच् + ण्वुल्—पासे फेंकना
- पाटच्चरः—पुं॰—-—पाटयन् छिन्दन् चरति चर + अच्, पृषो॰—चोर, लुटेरा, पाड़ लगाने वाला,
- पाटनम्—नपुं॰—-—पट् + णिच् + ल्युट्—विदीर्ण करना, तोड़ना, फाड़ना, नष्ट करना
- पाटल—वि॰—-—पट् + णिच् + कलच्—पीतरक्त वर्ण, गुलाबी रंग
- पाटलः—पुं॰—-—-—पीतरक्त प्याजी या गुलाबी रंग
- पाटलः—पुं॰—-—-—पादर का फूल
- पाटलम्—नपुं॰—-—-—पाटल वृक्ष का फूल
- पाटलम्—नपुं॰—-—-—एक प्रकार का चावल जो बरसात में तैयार होता है
- पाटलम्—नपुं॰—-—-—केसर, जाफरान
- पाटलोपलः—पुं॰—पाटल-उपलः—-—लाल
- पाटलद्रुमः—पुं॰—पाटल-द्रुमः—-—पादर वृक्ष
- पाटला—स्त्री॰—-—पाटल + अच् + टाप्—लाल लोध्र
- पाटला—स्त्री॰—-—पाटल + अच् + टाप्—पादर का वृक्ष तथा उसका फूल
- पाटला—स्त्री॰—-—पाटल + अच् + टाप्—दूर्गा का विशेषण
- पाटलिः—स्त्री॰—-—पाटल + इनि—पादर का फूल
- पाटलिपुत्रम्—नपुं॰—पाटलिः-पुत्रम्—-—एक प्राचीन नगर, मगध की राजधानी
- पाटलिकः—पुं॰—-—पाटलि + कन्—छात्र, विद्यार्थी
- पाटलिमन्—पुं॰—-—पाटल + इमनिच्—पीतरक्त वर्ण
- पाटल्या—स्त्री॰—-—पाटल + यत् + टाप्—पाटल के फूलों का गुच्छा
- पाटवम्—नपुं॰—-—पटु + अण्—तीक्ष्णता, पैनापन
- पाटवम्—नपुं॰—-—पटु + अण्—चतुराई, कौशल, दक्षता, प्रवीणता
- पाटवम्—नपुं॰—-—पटु + अण्—ऊर्जा
- पाटवम्—नपुं॰—-—पटु + अण्—फुर्ती, उतावलापना
- पाटविक—वि॰—-—पाटव + ठन्—चतुर, तीक्ष्ण, कुशल
- पाटविक—वि॰—-—पाटव + ठन्—धूर्त, चालबाज, मक्कार
- पाटित—भू॰ क॰ कृ॰—-—पट् + णिच् + क्त—फाड़ा हुआ, चीरा हुआ, टुकड़े २ किया हुआ, तोड़ा हुआ
- पाटित—भू॰ क॰ कृ॰—-—पट् + णिच् + क्त—विद्ध, छिद्रित
- पाटी—स्त्री॰—-—पट् + णिच् + इन् + ङीष्—अंकगणित
- पाटीगणितम्—नपुं॰—पाटी-गणितम्—-—अंकगणित
- पाटीर—पुं॰—-—पाटीर + अण्—चन्दन
- पाटीर—पुं॰—-—पाटीर + अण्—खेत
- पाटीर—पुं॰—-—पाटीर + अण्—राँगा
- पाटीर—पुं॰—-—पाटीर + अण्—बादल
- पाटीर—पुं॰—-—पाटीर + अण्—चलनी
- पाठः—पुं॰—-—पठ् + घञ्—प्रपठन, सस्वर पाठ, आवृति करना
- पाठः—पुं॰—-—पठ् + घञ्—पढ़ना, वाचन, अध्ययन
- पाठः—पुं॰—-—पठ् + घञ्—वेदाध्ययन, वेदपाठ, ब्रह्मयज्ञ, ब्राह्मणों के द्वारा पाँच दैनिक यज्ञों में से एक
- पाठः—पुं॰—-—पठ् + घञ्—पुस्तक का मूलपाठ, स्वाध्याय, पाठभेद
- पाठान्तरम्—नपुं॰—पाठः-अन्तरम्—-—दूसरा पाठ, पाठभेद
- पाठछेदः—पुं॰—पाठः-छेदः—-—विराम, यति
- पाठदोषः—पुं॰—पाठः-दोषः—-—दूषित पाठ, पाठ की अशुद्धियाँ
- पाठनिश्चयः—पुं॰—पाठः-निश्चयः—-—किसी संदर्भ का पाठ निर्धारित करना
- पाठमञ्जरी—स्त्री॰—पाठः-मञ्जरी—-—मैना, सारिका
- पाठशालिनी—स्त्री॰—पाठः-शालिनी—-—मैना, सारिका
- पाठशाला—स्त्री॰—पाठः-शाला—-—विद्यालय, महाविद्यालय, विद्यामंदिर
- पाठकः—पुं॰—-—पठ् + णिच् + ण्वुल्—अध्यापक, प्राध्यापक, गुरु
- पाठकः—पुं॰—-—पठ् + णिच् + ण्वुल्— पुराण या अन्य धार्मिक ग्रन्थों का सार्वजनिक पाठ करने वाला
- पाठकः—पुं॰—-—पठ् + णिच् + ण्वुल्—आध्यात्मिक गुरु
- पाठकः—पुं॰—-—पठ् + णिच् + ण्वुल्—छात्र, विद्यार्थी, विद्वान
- पाठनम्—नपुं॰—-—पठ् + णिच् + ल्युट्—अध्यापन, व्याख्यान देना
- पाठित—भू॰ क॰ कृ॰—-—पठ् + णिच् + क्त—पढ़ाया हुआ, शिक्षा दिया हुआ
- पाठिन्—वि॰—-—पठ् + णिनि, पाठ + इनि वा—जिसने किसी विषय का अध्ययन किया हो
- पाठिन्—वि॰—-—पठ् + णिनि, पाठ + इनि वा—जानकार, परिचित
- पाठीनः—पुं॰—-—पठ् + ईनण्—पुराना या अन्य धार्मिक ग्रंथों की कथा करने वाला
- पाठीनः—पुं॰—-—पठ् + ईनण्—एक प्रकार की मछली
- पाणः—पुं॰—-—पण् + घञ्—व्यापार, व्यवसाय
- पाणः—पुं॰—-—पण् + घञ्—व्यापारी
- पाणः—पुं॰—-—पण् + घञ्—खेल
- पाणः—पुं॰—-—पण् + घञ्—खेल पर लगा या गया दाँव
- पाणः—पुं॰—-—पण् + घञ्—करार
- पाणः—पुं॰—-—पण् + घञ्—प्रशंसा
- पाणः—पुं॰—-—पण् + घञ्—हाथ
- पाणिः—पुं॰—-—पण् + इण्—हाथ
- पाणिः—स्त्री॰—-—-—मंडी
- पाणौ कृ——-—-—हाथ में थामना, विवाह करना
- पाणौ करणम्—नपुं॰—-—-—विवाह
- पाणिगृहीती—स्त्री॰—पाणिः-गृहीती—-—हाथ से ग्रहण की गई, ब्याही गई, पत्नी
- पाणिग्रहः—पुं॰—पाणिः-ग्रहः—-—विवाह करना, शादी
- पाणिग्रहणम्—नपुं॰—पाणिः-ग्रहणम्—-—विवाह करना, शादी
- पाणिग्रहीतृ—पुं॰—पाणिः-ग्रहीतृ—-—दूह्ला, पति
- पाणिघः—पुं॰—पाणिः-घः—-—ढोल बजाने वाला
- पाणिघः—पुं॰—पाणिः-घः—-—कारीगर, शिल्पकार
- पाणिघातः—पुं॰—पाणिः-घातः—-—हाथ का प्रहार, घूँसा
- पाणिजः—पुं॰—पाणिः-जः—-—नाख़ून
- पाणितलम्—नपुं॰—पाणिः-तलम्—-—हथेली
- पाणिधर्मः—पुं॰—पाणिः-धर्मः—-—विवाह की विधि
- पाणिपीडनम्—नपुं॰—पाणिः-पीडनम्—-—विवाह
- पाणिप्रणयिनी—स्त्री॰—पाणिः-प्रणयिनी—-—पत्नी
- पाणिबन्धः—पुं॰—पाणिः-बन्धः—-—हाथों का मिलना, विवाह
- पाणिभुज्—पुं॰—पाणिः-भुज्—-—बड़ का वृक्ष, गूलर का वृक्ष
- पाणिमुक्तम्—नपुं॰—पाणिः-मुक्तम्—-—हाथ के फेंक कर मारा जाने वाला आयुध, अस्त्र
- पाणिरुह्—पुं॰—पाणिः-रुह्—-—अंगुली का नाख़ून
- पाणिवादः—पुं॰—पाणिः-वादः—-—तालियाँ बजाना
- पाणिवादः—पुं॰—पाणिः-वादः—-—ढोल बजाना
- पाणिसर्ग्या—स्त्री॰—पाणिः-सर्ग्या—-—रस्सी
- पाणिनिः—पुं॰—-—-—एक प्रसिद्ध वैयाकरण का नाम
- पाणिनीय—वि॰—-—पाणिनि + छ—पाणिनि से संबंध रखने वाला, या उसके द्वारा बनाया गया
- पाणिनीयः—पुं॰—-—पाणिनि + छ—पाणिनि का अनुयायी
- पाणिनीयम्—नपुं॰—-—पाणिनि + छ—पाणिनि द्वारा प्रणीत व्याकरण
- पाणिधम—वि॰—-—पाणि + ध्मा + खुश्—हाथ से धौंकने वाला, हाथ से फूंकने वाला, हाथ से पीने वाला
- पाणिधय—वि॰—-—पाणि + धे + खुश्, मुम्—हाथ से धौंकने वाला, हाथ से फूंकने वाला, हाथ से पीने वाला
- पाण्डर—वि॰—-—पाण्डर + अच्—धवल, पीतधवल, सफ़ेद
- पाण्डर—पुं॰—-—पाण्डर + अच्—गेरु
- पाण्डर—पुं॰—-—पाण्डर + अच्—चमेली का फूल
- पाण्डव—पुं॰—-—पाण्डोः अपत्यम् पाण्डु + अण्—पाण्डु का पुत्र या सन्तान, पांडु के पाँचों पुत्रों में से कोई सा एक- युधिष्ठिर, भीम, अर्जुन, नकुल और सहदेव
- पाण्डवाभीलः—पुं॰—पाण्डव-आभीलः—-—कृष्ण का नाम
- पाण्डवश्रेष्ठः—पुं॰—पाण्डव-श्रेष्ठः—-—युधिष्ठिर का नाम
- पाण्डवीय—वि॰—-—पांडव + छ—पांडवों से संबंध रखने वाला
- पाण्डवेय—वि॰—-—-—पाण्डु का पुत्र या सन्तान, पांडु के पाँचों पुत्रों में से कोई सा एक- युधिष्ठिर, भीम, अर्जुन, नकुल और सहदेव
- पाण्डित्यम्—नपुं॰—-—पंडित + ष्यञ्—विद्वत्ता, गहन अधिगम
- पाण्डित्यम्—नपुं॰—-—पंडित + ष्यञ्—चतुराई, कुशलता, दक्षता, तीक्ष्णता
- पाण्डु—वि॰—-—पण्ड् + कु, नि॰ दीर्घः—पीत-धवल, सफ़ेद सा
- पाण्डुः—पुं॰—-—पण्ड् + कु, नि॰ दीर्घः—पीत-धवल, या पीताभ श्वेत रंग
- पाण्डुः—पुं॰—-—पण्ड् + कु, नि॰ दीर्घः—पीलिया, यरकान
- पाण्डुः—पुं॰—-—पण्ड् + कु, नि॰ दीर्घः—सफ़ेद हाथी
- पाण्डुः—पुं॰—-—पण्ड् + कु, नि॰ दीर्घः—पांडवों के पिता का नाम
- पाण्डुकम्बलः—पुं॰—पाण्डु-कम्बलः—-—सफ़ेद कंबल
- पाण्डुकम्बलः—पुं॰—पाण्डु-कम्बलः—-—गरम चादर
- पाण्डुकम्बलः—पुं॰—पाण्डु-कम्बलः—-—राजकीय हाथी की झूल
- पाण्डुपुत्रः—पुं॰—पाण्डु-पुत्रः—-—पांडु का पुत्र, पाँचों में से कोई एक
- पाण्डुमृत्तिका—स्त्री॰—पाण्डु-मृत्तिका—-—सफ़ेद या पीली मिट्टी
- पाण्डुरागः—पुं॰—पाण्डु-रागः—-—सफ़ेदी, पीलापन
- पाण्डुलेखः—पुं॰—पाण्डु-लेखः—-—खड़िया से बनाई गई कोई रूपरेखा
- पाण्डुशर्मिला—स्त्री॰—पाण्डु-शर्मिला—-—द्रौपदी का विशेषण
- पाण्डुसोपाकः—पुं॰—पाण्डु-सोपाकः—-—एक वर्ण संकर जाति
- पाण्डुर—वि॰—-—पाण्डुवर्णोऽस्यास्ति- पांडु + र—सफेद सा, पीत-धवल, पीताभ-श्वेत, पीला
- पाण्डुरम्—नपुं॰—-—पांडु + र—श्वेत कुष्ठ
- पाण्डुरेक्षुः—पुं॰—पाण्डुर-इक्षुः—-—एक प्रकार की ईख, पौण्डा
- पाण्डुरिमन्—पुं॰—-—पांडुर + इमनिच्—पीलापन, सफेदी या पीला रंग
- पाण्ड्याः—पुं॰—-—पांडु देशः, अभिजनोऽस्य राजा वा- पाण्डु + ड्यन्—एक देश का नाम, देश के निवासियों का नाम
- पाण्ड्यः—पुं॰—-—पाण्डु + ड्यन्—उस देश का राजा
- पात—वि॰—-—पा + क्न—रक्षित, देखभाल किया गया, संधारित
- पातः—पुं॰—-—पत् + घञ्—उड़ना, उड़ान
- पातः—पुं॰—-—पत् + घञ्—उतरना, अवतरण करना, उतार
- पातः—पुं॰—-—पत् + घञ्—नीचे गिरना, पतन, पराजय
- चरणपातः—पुं॰—चरण-पातः—-—पैरों में गिरना
- पातोत्पातौ—पुं॰—-—-—उदय और अस्त
- पातः—पुं॰—-—पत् + घञ्—नाश, विघटन, बर्वादी
- पातः—पुं॰—-—पत् + घञ्—आघात प्रहार
- पातः—पुं॰—-—पत् + घञ्—बहना, छूटना, निकलना
- पातः—पुं॰—-—पत् + घञ्—डालना, फेंकना, निशाना बनाना
- पातः—पुं॰—-—पत् + घञ्—आक्रमण, हमला
- पातः—पुं॰—-—पत् + घञ्—घटना, होना, घटित होना
- पातः—पुं॰—-—पत् + घञ्—दोष, त्रुटि
- पातः—पुं॰—-—पत् + घञ्—राहु का विशेषण
- पातकः—पुं॰—-—पत् + णिच् + ण्वुल्—पाप, जुर्म
- पातकम्—नपुं॰—-—पत् + णिच् + ण्वुल्—पाप, जुर्म
- पातङ्गिः—पुं॰—-—पतङ्ग + इञ्—शनि
- पातङ्गिः—पुं॰—-—पतङ्ग + इञ्—यम
- पातङ्गिः—पुं॰—-—पतङ्ग + इञ्—कर्ण और सुग्रीव का विशेषण
- पातञ्जल—वि॰—-—पतंजलि + अण्—पतंजलि द्वारा, रचित
- पातञ्जलम्—नपुं॰—-—-—पतंजलि द्वारा प्रणीत योगदर्शन
- पातनम्—नपुं॰—-—पत् + णिच् + ल्युट्—गिरने का कारण बनना, गिराना, नीचे लाना या फेंक देना, पछाड़ देना, नीचे पटक देना
- पातनम्—नपुं॰—-—पत् + णिच् + ल्युट्—फेंकना, डालना
- पातनम्—नपुं॰—-—पत् + णिच् + ल्युट्—हीन करना, नीचा दिखाना
- पातालम्—नपुं॰—-—पतत्यास्मिन्नधर्मेण- पत् + आलञ्—पृथ्वी के नीचे स्थित सात लोकों में से अन्तिम लोक-नागलोक
- पातालम्—नपुं॰—-—पतत्यास्मिन्नधर्मेण- पत् + आलञ्—निम्नप्रदेश, या नीचे का लोक
- पातालम्—नपुं॰—-—पतत्यास्मिन्नधर्मेण- पत् + आलञ्—गढ़ा, छिद्र
- पातालम्—नपुं॰—-—पतत्यास्मिन्नधर्मेण- पत् + आलञ्—वडवानल
- पातालगङ्गा—स्त्री॰—पातालम्-गङ्गा—-—नीचे के लोक में बहने वाली
- पातालोकस्—पुं॰—पातालम्-ओकस्—-—राक्षस
- पातालोकस्—पुं॰—पातालम्-ओकस्—-—नाग या सर्पदैत्य
- पातालनिलयः—पुं॰—पातालम्-निलयः—-—राक्षस
- पातालनिलयः—पुं॰—पातालम्-निलयः—-—नाग या सर्पदैत्य
- पातालनिवासः—पुं॰—पातालम्-निवासः—-—राक्षस
- पातालनिवासः—पुं॰—पातालम्-निवासः—-—नाग या सर्पदैत्य
- पातालवासिन्—पुं॰—पातालम्-वासिन्—-—राक्षस
- पातालवासिन्—पुं॰—पातालम्-वासिन्—-—नाग या सर्पदैत्य
- पातिकः—पुं॰—-—पात + ठन्—गंगा में रहन वाला सूँस, शिशु मार
- पातित—भू॰ क॰ कृ॰—-—पत् + णिच् + क्त—डाल गया, फेंका गया नीचे गिराया, पटक दिया गया
- पातित—भू॰ क॰ कृ॰—-—पत् + णिच् + क्त—परास्त किया गया, नीचा दिखाया गया
- पातित—भू॰ क॰ कृ॰—-—पत् + णिच् + क्त—नीचा किया गया
- पातित्यम्—नपुं॰—-—पतित + ष्यञ्—पद या जाति का पतन, पदच्युति, जातिभ्रंशता
- पातिन्—वि॰—-—पत् + णिनि—जाने वाला, अवतरण करनेवाला, उतरने वाला
- पातिन्—वि॰—-—पत् + णिनि—पतनशील, डूबनेवाला
- पातिन्—वि॰—-—पत् + णिनि—पड़ने वाला
- पातिन्—वि॰—-—पत् + णिनि—गिरने वाला, फेंकने वाला
- पातिन्—वि॰—-—पत् + णिनि—उड़ेलने वाला, छोड़ने वाला, निकालने वाला
- पातिली—स्त्री॰—-—पातिः संपातिः पक्षियूथं लीयतेऽत्र-पानि + ली + ड + ङीष्—जाल, फंदा
- पातिली—स्त्री॰—-—पातिः संपातिः पक्षियूथं लीयतेऽत्र-पानि + ली + ड + ङीष्—छोटा मिट्टी का बर्तन, हांडी
- पातुक—वि॰—-—पत् + उकञ्—पतनशील
- पातुक—वि॰—-—पत् + उकञ्—गिरने की आदत वाला
- पातुकः—पुं॰—-—पत् + उकञ्—पहाड़ का ढलान, चट्टान
- पातुकः—पुं॰—-—पत् + उकञ्—शिशुमार, सूँस
- पात्रम्—नपुं॰—-—पाति रक्षति, पिबन्नि अनेन वा-पा + ष्ट्रन्—पीने का बर्तन, प्याला, गिलास
- पात्रम्—नपुं॰—-—पाति रक्षति, पिबन्नि अनेन वा-पा + ष्ट्रन्—कोई भी बर्तन
- पात्रम्—नपुं॰—-—पाति रक्षति, पिबन्नि अनेन वा-पा + ष्ट्रन्—किसी वस्तु का आधार, प्राप्तकर्त्ता
- पात्रम्—नपुं॰—-—पाति रक्षति, पिबन्नि अनेन वा-पा + ष्ट्रन्—जलाशय
- पात्रम्—नपुं॰—-—पाति रक्षति, पिबन्नि अनेन वा-पा + ष्ट्रन्—योग्य व्यक्ति, दान पाने के योग्य, दानपात्र
- पात्रम्—नपुं॰—-—पाति रक्षति, पिबन्नि अनेन वा-पा + ष्ट्रन्—अभिनेता, नाटक का पात्र
- पात्रम्—नपुं॰—-—पाति रक्षति, पिबन्नि अनेन वा-पा + ष्ट्रन्—राजा का मंत्री
- पात्रम्—नपुं॰—-—पाति रक्षति, पिबन्नि अनेन वा-पा + ष्ट्रन्—नहर या नदी का पाट
- पात्रम्—नपुं॰—-—पाति रक्षति, पिबन्नि अनेन वा-पा + ष्ट्रन्—योग्यता, औचित्य
- पात्रम्—नपुं॰—-—पाति रक्षति, पिबन्नि अनेन वा-पा + ष्ट्रन्—आदेश, हुक्म
- पात्रोपकरणम्—नपुं॰—पात्रम्-उपकरणम्—-—घटिया प्रकार की सजावट
- पात्रपालः—पुं॰—पात्रम्-पालः—-—चप्पू, डांड
- पात्रपालः—पुं॰—पात्रम्-पालः—-—तराजू की डंडी
- पात्रसंस्कारः—पुं॰—पात्रम्-संस्कारः—-—बर्तनों को मांज धोकर साफ करना
- पात्रसंस्कारः—पुं॰—पात्रम्-संस्कारः—-—नदी का प्रवाह
- पात्रिक—वि॰—-—पात्र + ठन्—किसी बर्तन की नाप आढक
- पात्रिक—वि॰—-—पात्र + ठन्—योग्य, यथोचित, समुचित
- पात्रिकम्—नपुं॰—-—पात्र + ठन्—बर्तन, प्याला, तश्तरी
- पात्रिय—वि॰—-—पात्रमर्हति - पात्र + घ—भोजन में भाग लेने के योग्य
- पात्र्य—वि॰—-—पात्रमर्हति-पात्र + यत्—भोजन में भाग लेने के योग्य
- पात्रीयम्—नपुं॰—-—पात्र + छ—यज्ञीय पात्र
- पात्रीरः—पुं॰—-—पाश्यै राति-पात्री + रा + क—आहुति
- पात्रीरम्—नपुं॰—-—पाश्यै राति-पात्री + रा + क—आहुति
- पात्रे बहुलः—पुं॰—-—पात्रे भोजनसमये एव बहुल संगतो वा न तु कार्ये- अलुक् समास—केवल भोजन का साथी, परान्नभोजी
- पात्रे बहुलः—पुं॰—-—पात्रे भोजनसमये एव बहुल संगतो वा न तु कार्ये- अलुक् समास—धोखेबाज, कपटी, पाखंड़ी
- पात्रेसमितः—पुं॰—-—पात्रे भोजनसमये एव बहुल संगतो वा न तु कार्ये- अलुक् समास—केवल भोजन का साथी, परान्नभोजी
- पात्रेसमितः—पुं॰—-—पात्रे भोजनसमये एव बहुल संगतो वा न तु कार्ये- अलुक् समास—धोखेबाज, कपटी, पाखंड़ी
- पाथः—पुं॰—-—पीयतेऽदः, पा + थ—अग्नि
- पाथः—पुं॰—-—पीयतेऽदः, पा + थ—सूर्य
- पाथम्—नपुं॰—-—पा + थ—जल
- पाथस्—नपुं॰—-—पा + असुथुन्, थुक् च—जल
- पाथस्—नपुं॰—-—पा + असुथुन्, थुक् च—हवा, वायु
- पाथस्—नपुं॰—-—पा + असुथुन्, थुक् च—आहार
- पाथोजम्—नपुं॰—पाथस्-जम्—-—कमल
- पाथोजम्—नपुं॰—पाथस्-जम्—-—शंख
- पाथोदः—पुं॰—पाथस्-दः—-—बादलः
- पाथोधरः—पुं॰—पाथस्-धरः—-—बादलः
- पाथोधिः—पुं॰—पाथस्-धिः—-—समुद्र
- पाथोनिधिः—पुं॰—पाथस्-निधिः—-—समुद्र
- पाथःपतिः—पुं॰—पाथस्-पतिः—-—समुद्र
- पाथेयम्—नपुं॰—-—पथिन् + ढञ्—भोज्य सामग्री जिसे यात्री राह में खाने के लिए साथ ले जाता है, मार्गव्यय
- पाथेयम्—नपुं॰—-—पथिन् + ढञ्—कन्याराशि
- पादः—पुं॰—-—पद् + घञ्—पैर (चाहे मनुष्य का हो या किसी जानवर का)
- पादः—पुं॰—-—पद् + घञ्—प्रकाश की किरण
- पादः—पुं॰—-—पद् + घञ्—पैर या पावा (जड़ पदार्थों का, खाट आदि का)
- पादः—पुं॰—-—पद् + घञ्—वृक्ष की जड़ या पैर
- पादः—पुं॰—-—पद् + घञ्—गिरिपाद, तलहटी
- पादः—पुं॰—-—पद् + घञ्—चौथाई, चौथाभाग
- पादः—पुं॰—-—पद् + घञ्—श्लोक का एक चरण, पंक्ति
- पादः—पुं॰—-—पद् + घञ्—किसी पुस्तक के अध्याय का चौथा भाग
- पादः—पुं॰—-—पद् + घञ्—भाग
- पादः—पुं॰—-—पद् + घञ्—स्तंभ, खंभा
- पादाग्रम्—नपुं॰—पादः-अग्रम्—-—पैर का आगे का भाग
- पादाङ्कः—पुं॰—पादः-अङ्कः—-—पदचिह्न
- पादाङ्गदम्—नपुं॰—पादः-अङ्गदम्—-—पैर का आभूषण, नूपुर, पायल
- पाददी—पुं॰—पादः-दी—-—पैर का आभूषण, नूपुर, पायल
- पादाङ्गुष्ठः—पुं॰—पादः-अङ्गुष्ठः—-—पैर का अंगूठा
- पादान्तः—पुं॰—पादः-अन्तः—-—पैरों का अन्तिम भाग
- पादान्तरम्—नपुं॰—पादः-अन्तरम्—-—एक पग के बीच का अन्तराल, एक पग की दूरी
- पादान्तरे—अव्य॰—पादः-अन्तरे—-—एक पद की दूरी के बाद
- पादान्तरे—अव्य॰—पादः-अन्तरे—-—निकट, सटा हुआ
- पादाम्बूः—नपुं॰—पादः-अम्बुः—-—छाछ जिसमें एक चौथाई पानी हो
- पादाम्भस्—नपुं॰—पादः-अम्भस्—-—जल जिसमें श्रद्धेय व्यक्तियों के चरण धोये हो
- पादरविन्दम्—नपुं॰—पादः-अरविन्दम्—-—कमल जैसा पैर, कमलचरण
- पादकमलम्—नपुं॰—पादः-कमलम्—-—कमल जैसा पैर, कमलचरण
- पादपङ्कजम्—नपुं॰—पादः-पङ्कजम्—-—कमल जैसा पैर, कमलचरण
- पादपद्मम्—नपुं॰—पादः-पद्मम्—-—कमल जैसा पैर, कमलचरण
- पादालिन्दी—स्त्री॰—पादः-अलिन्दी—-—किश्ती, नाव
- पादावसेचनम्—नपुं॰—पादः-अवसेचनम्—-—चरण धोना
- पादावसेचनम्—नपुं॰—पादः-अवसेचनम्—-—पैर धोने के लिए पानी
- पादाघातः—पुं॰—पादः-आघातः—-—ठोकर
- पादानत—वि॰—पादः-आनत—-—भूशापी, पैरों में पड़ा हुआ
- पादावर्तः—पुं॰—पादः-आवर्तः—-—कुएँ से जल निकालने के लिए पैरों से चलाया जाने वाला यंत्र, रहट
- पादासनम्—नपुं॰—पादः-आसनम्—-—पैर रखने का पीढ़ा
- पादास्फालनम्—नपुं॰—पादः-आस्फालनम्—-—पैरों से रौंदना, कुचलना, रुक रुक कर आगे बढने की चेष्टा
- पादाहत—वि॰—पादः-आहत—-—ठोकर खाया हुआ, ठुकराया हुआ
- पादोदकम्—नपुं॰—पादः-उदकम्—-—पैर धोने के लिए पानी
- पादोदकम्—नपुं॰—पादः-उदकम्—-—वह पानी जिसमें पुण्यात्मा, तथा सम्मानित व्यक्तियों ने पैर धोये है ओर इसीलिए जो पवित्र समझा जाता हैं
- पादजलम्—नपुं॰—पादः-जलम्—-—पैर धोने के लिए पानी
- पादजलम्—नपुं॰—पादः-जलम्—-—वह पानी जिसमें पुण्यात्मा, तथा सम्मानित व्यक्तियों ने पैर धोये है ओर इसीलिए जो पवित्र समझा जाता हैं
- पादोदरः—पुं॰—पादः-उदरः—-—साँप
- पादकटकः—पुं॰—पादः-कटकः—-—नूपुर, पायल
- पादकटकम्—नपुं॰—पादः-कटकम्—-—नूपुर, पायल
- पादकीलिका—स्त्री॰—पादः-कीलिका—-—नूपुर, पायल
- पादक्षेपः—पुं॰—पादः-क्षेपः—-—कदम, पग
- पादग्रन्थिः—स्त्री॰—पादः-ग्रन्थिः—-—टखना
- पादग्रहणम्—नपुं॰—पादः-ग्रहणम्—-—(आदरयुक्त अभिवादन के रूप में) पैर पकड़ना
- पादचतुरः—पुं॰—पादः-चतुरः—-—मिथ्यानिन्दक
- पादचतुरः—पुं॰—पादः-चतुरः—-—बकरा
- पादचतुरः—पुं॰—पादः-चतुरः—-—रेतीला तट
- पादचतुरः—पुं॰—पादः-चतुरः—-—ओला
- पादचत्वरः—पुं॰—पादः-चत्वरः—-—मिथ्यानिन्दक
- पादचत्वरः—पुं॰—पादः-चत्वरः—-—बकरा
- पादचत्वरः—पुं॰—पादः-चत्वरः—-—रेतीला तट
- पादचत्वरः—पुं॰—पादः-चत्वरः—-—ओला
- पादचारः—पुं॰—पादः-चारः—-—पैदल चलना, टहलना
- पादचारिन्—वि॰—पादः-चारिन्—-—पैदल चलने वाला, पैदल योद्धा
- पादचारिन्—पुं॰—पादः-चारिन्—-—फेरी वाला
- पादचारिन्—पुं॰—पादः-चारिन्—-—पैदल सैनिक
- पादजः—पुं॰—पादः-जः—-—शूद्र
- पादजाहम्—नपुं॰—पादः-जाहम्—-—पपोटा, टखने की हड्डी
- पादतलम्—नपुं॰—पादः-तलम्—-—पैर का तलवा
- पादत्रः—पुं॰—पादः-त्रः—-—जूता, बूट
- पादत्रा—स्त्री॰—पादः-त्रा—-—जूता, बूट
- पादत्राणम्—नपुं॰—पादः-त्राणम्—-—जूता, बूट
- पादपः—पुं॰—पादः-पः—-—वृक्ष
- पादखण्डः—पुं॰—पादः-खण्डः—-—बाग, वृक्षों का झुरमुट
- पादखण्डम्—नपुं॰—पादः-खण्डम्—-—बाग, वृक्षों का झुरमुट
- पादपालिका—स्त्री॰—पादः-पालिका—-—नूपुर, पाजेब
- पादपाशः—पुं॰—पादः-पाशः—-—पैकड़ा, पशुओं के पैरों को बाँधने की रस्सी
- पादपाशी—पुं॰—पादः-पाशी—-—हथकड़ी
- पादपाशी—पुं॰—पादः-पाशी—-—चटाई
- पादपाशी—पुं॰—पादः-पाशी—-—लता
- पादटीठः—पुं॰—पादः-टीठः—-—पैर रखने का पीढ़ा
- पादठम्—नपुं॰—पादः-ठम्—-—पैर रखने का पीढ़ा
- पादपूरणम्—नपुं॰—पादः-पूरणम्—-—पंक्ति पूरी करना
- पादपूरणम्—नपुं॰—पादः-पूरणम्—-—पादपूरक
- पादप्रक्षालनम्—नपुं॰—पादः-प्रक्षालनम्—-—पैर धोना
- पादप्रतिष्ठानम्—नपुं॰—पादः-प्रतिष्ठानम्—-—पैर धोना
- पादप्रहारः—पुं॰—पादः-प्रहारः—-—ठोकर
- पादबन्धनम्—नपुं॰—पादः-बन्धनम्—-—बेड़ी
- पादमुद्रा—स्त्री॰—पादः-मुद्रा—-—पदचिह्न
- पादमूलम्—नपुं॰—पादः-मूलम्—-—पपोटा
- पादमूलम्—नपुं॰—पादः-मूलम्—-—पैर का तलवा
- पादमूलम्—नपुं॰—पादः-मूलम्—-—एडी
- पादमूलम्—नपुं॰—पादः-मूलम्—-—पहाड़ की तलहटी
- पादमूलम्—नपुं॰—पादः-मूलम्—-—किसी से बात करने की विनम्र रीति
- पादरसस्—नपुं॰—पादः-रसस्—-—पैरों की धूल
- पादरज्जुः—स्त्री॰—पादः-रज्जुः—-—हाथी के पैर बाँधने की चमड़े की रस्सी
- पादरथी—स्त्री॰—पादः-रथी—-—जूता, बूट
- पादरोहः—पुं॰—पादः-रोहः—-—बड़ का पेड़
- पादरोहणः—पुं॰—पादः-रोहणः—-—बड़ का पेड़
- पादवन्दनम्—नपुं॰—पादः-वन्दनम्—-—चरणवंदना, चरणों में प्रणाम
- पादविरजस्—नपुं॰—पादः-विरजस्—-—जूता, बूट
- पादविरजस्—पुं॰—पादः-विरजस्—-—देवता
- पादशाखा—स्त्री॰—पादः-शाखा—-—पैर की अंगुली
- पादशैलः—पुं॰—पादः-शैलः—-—गिरिपाद, पहाड़ की तलहटी में विद्यमान पहाड़ी
- पादशोथः—पुं॰—पादः-शोथः—-—पैर की सूजन
- पादशौचम्—नपुं॰—पादः-शौचम्—-—पैर धोकर साफ करना, पैर धोना
- पादसेवनम्—नपुं॰—पादः-सेवनम्—-—पैर छूकर सम्मान प्रदर्शित करना
- पादसेवनम्—नपुं॰—पादः-सेवनम्—-—सेवा
- पादसेवा—स्त्री॰—पादः-सेवा—-—पैर छूकर सम्मान प्रदर्शित करना
- पादसेवा—स्त्री॰—पादः-सेवा—-—सेवा
- पादस्फोटः—पुं॰—पादः-स्फोटः—-—बवाई फटना विपदिका, सरदी से पैर फटना
- पादहत—वि॰—पादः-हत—-—ठुकराया हुआ
- पादविकः—पुं॰—-—पदवी + ठक्—यात्री, पथिक
- पादात्—पुं॰—-—पादाभ्यामतति- पाद + अत + क्विप्—पैदल सिपाही, प्यादा
- पादातः—पुं॰—-—पदातीनां समूहः- पदति + अण्—पैदल-सिपाही
- पादातम्—नपुं॰—-—पदातीनां समूहः- पदति + अण्—पैदल-सेना
- पादातिः—पुं॰—-—पाद + अत् + इन् —पैदल-सिपाही
- पादाविकः—पुं॰—-—पादेन अवः रक्षणम्- पादाव + ठक्—पैदल-सिपाही
- पादिक—वि॰—-—पाद + ठक्—चतुर्थांश, चौथा भाग
- पादिन्—वि॰—-—पाद + इनि—सपाद, पैरों वाला
- पादिन्—वि॰—-—पाद + इनि—श्लोक की भांति चार चरणों से युक्त
- पादिन्—वि॰—-—पाद + इनि—चौथे भाग को लेने वाला, या चतुर्थांश का अधिकारी
- पादिनः—पुं॰—-—पाद + इनि—चौथा भाग, चतुर्थांश
- पादुकः—वि॰—-—पद् + उकञ्—पैदल चलने वाला
- पादुका—स्त्री॰—-—पद् + उकञ्+टाप्—खड़ाऊँ, जूता
- पादुककारः—पुं॰—पादुकः-कारः—-—मोची, जुता बनाने वाला
- पादू—स्त्री॰—-—पद् + ऊ, णित्—जूता
- पादूकृत्—पुं॰—पादू-कृत्—-—जूता बनाने वाला
- पाद्य—वि॰—-—पाद + यत्—पैरों से संबंध रखने वाला
- पाद्यम्—नपुं॰—-—पाद + यत्—पैर धोने के लिए जल
- पानम्—नपुं॰—-—पा + ल्युट्—पीना, चढ़ा जाना, (ओष्ठ का) चुम्बन
- पानम्—नपुं॰—-—पा + ल्युट्—सुरापान करना
- पानम्—नपुं॰—-—पा + ल्युट्—पान के योग्य, पेय पदार्थ
- पानम्—नपुं॰—-—पा + ल्युट्—पान- पात्र
- पानम्—नपुं॰—-—पा + ल्युट्—तेज करना, पैनाना
- पानम्—नपुं॰—-—पा + ल्युट्—बचाना, रक्षा
- पानः—पुं॰—-—पा + ल्युट्—शराब खींचने वाला, कलवार
- पानागारः—पुं॰—पानम्-अगारः—-—मदिरालय
- पानागारम्—नपुं॰—पानम्-अगारम्—-—मदिरालय
- पानागारः—पुं॰—पानम्-आगारः—-—मदिरालय
- पानागारम्—नपुं॰—पानम्-आगारम्—-—मदिरालय
- पानत्ययः—पुं॰—पानम्-अत्ययः—-—अत्यधिक पीना
- पानगोष्ठिका—स्त्री॰—पानम्-गोष्ठिका—-—शराबियों की मंडली
- पानगोष्ठिका—स्त्री॰—पानम्-गोष्ठिका—-—शराब की दुकार, मदिरालय
- पानगोष्ठी—स्त्री॰—पानम्-गोष्ठी—-—शराबियों की मंडली
- पानगोष्ठी—स्त्री॰—पानम्-गोष्ठी—-—शराब की दुकार, मदिरालय
- पानप—वि॰—पानम्-प—-—सुरापान करने वाला
- पानपात्रम्—नपुं॰—पानम्-पात्रम्—-—पान-पात्र, प्याला
- पानभाजनम्—नपुं॰—पानम्-भाजनम्—-—पान-पात्र, प्याला
- पानभाण्डम्—नपुं॰—पानम्-भाण्डम्—-—पान-पात्र, प्याला
- पानभूः—स्त्री॰—पानम्-भूः—-—शराब पीने का स्थान
- पानभूमिः—स्त्री॰—पानम्-भूमिः—-—शराब पीने का स्थान
- पानभूमी—स्त्री॰—पानम्-भूमी—-—शराब पीने का स्थान
- पानमण्डलम्—नपुं॰—पानम्-मण्डलम्—-—शराबियों की मंडली
- पानरत—वि॰—पानम्-रत—-—सुरापान की लतवाला
- पानवणिज्—पुं॰—पानम्-वणिज्—-—शराब-बिक्रेता
- पानविभ्रमः—पुं॰—पानम्-विभ्रमः—-—नशा
- पानशौण्ड—वि॰—पानम्-शौण्ड—-—पियक्कड़, अत्यधिक पीने वाला
- पानकम्—नपुं॰—-—पान + कन्—पानीय, पेय, घूंट
- पानिकः—पुं॰—-—पान + ठक्—शराब-बिक्रेता, कलाल
- पानिलम्—नपुं॰—-—पान + इलच्—पान-पात्र, प्याला
- पानीयम्—नपुं॰—-—पा + अनीयर्—जल
- पानीयम्—नपुं॰—-—पा + अनीयर्—पेय, घूँट, पानीय- पीने के योग्य शर्बत आदि
- पानीयनकुलः—पुं॰—पानीयम्-नकुलः—-—ऊदबिलाव
- पानीयवर्णिका—स्त्री॰—पानीयम्-वर्णिका—-—रेत, बालू
- पानीयशाला—स्त्री॰—पानीयम्-शाला—-—प्याऊ, जहाँ यात्रियों को पानी पिलाया जाय
- पानीयशालिका—स्त्री॰—पानीयम्-शालिका—-—प्याऊ, जहाँ यात्रियों को पानी पिलाया जाय
- पान्थः—पुं॰—-—पन्थानं नित्यं गच्छति- पथिन् + अण्, पंथादेशः—यात्री, बटोही
- पाप—वि॰—-—पाति रक्षति, आत्मानम् अस्मात्- पा + प—अनिष्टकर, पापमय, दुष्ट, दुर्वृत्त
- पाप—वि॰—-—पाति रक्षति, आत्मानम् अस्मात्- पा + प—उपद्रवकारी, विनाशक, अभिशप्त
- पाप—वि॰—-—पाति रक्षति, आत्मानम् अस्मात्- पा + प—नीच, अधम, पतित
- पाप—वि॰—-—पाति रक्षति, आत्मानम् अस्मात्- पा + प—अशुभ, प्रद्वेषी, अनिष्ट सूचक (पाप ग्रह आदि)
- पापम्—नपुं॰—-—-—बुराई, बुरी अवस्था, दुर्भाग्य
- पापम्—नपुं॰—-—-—बुराई, जुर्म, दुर्व्यसन, दोष
- पापः—पुं॰—-—-—पाजी, पापी, दुष्ट, दुराचारी
- पापाधम—वि॰—पाप-अधम—-—अत्यंत दुष्ट, अधम
- पापापनुत्तिः—स्त्री॰—पाप-अपनुत्तिः—-—प्रायश्चित्त
- पापाहः—नपुं॰—पाप-अहः—-—दुर्भाग्यपूर्ण दिवस
- पापाचार—वि॰—पाप-आचार—-—पापमय आचरण वाला, पापपूर्ण जीवन बिताने वाला, दुर्व्यसनी, दुष्ट
- पापात्मन्—वि॰—पाप-आत्मन्—-—दुष्टमना, पापपूर्ण, दुष्ट
- पापात्मन्—पुं॰—पाप-आत्मन्—-—पापी
- पापाशय—वि॰—पाप-आशय—-—दुष्ट इरादे वाला, दुष्ट हृदय
- पापकर—वि॰—पाप-कर—-—पापपूर्ण, पापी, अधम
- पापकारिन्—वि॰—पाप-कारिन्—-—पापपूर्ण, पापी, अधम
- पापकृत्—वि॰—पाप-कृत्—-—पापपूर्ण, पापी, अधम
- पापक्षयः—पुं॰—पाप-क्षयः—-—पाप का दूर करना, पाप का नाश
- पापग्रहः—पुं॰—पाप-ग्रहः—-—दुष्ट ग्रह, प्रद्वेषी
- पापघ्न—वि॰—पाप-घ्न—-—पाप को दूर करने वाला, प्रायश्चित्त कारी
- पापचर्यः—पुं॰—पाप-चर्यः—-—पापी
- पापचर्यः—पुं॰—पाप-चर्यः—-—राक्षस
- पापदृष्टि—वि॰—पाप-दृष्टि—-—बुरी निगाह वाला, खोटी आँख वाला
- पापधी—वि॰—पाप-धी—-—दुष्ट हृदय, दुर्बुद्धि
- पापनापितः—पुं॰—पाप-नापितः—-—चालाक या दुष्ट नाई
- पापनाशन—वि॰—पाप-नाशन—-—पापनाशक या प्रायश्चितकारी
- पापपतिः—पुं॰—पाप-पतिः—-—जार, उपपति
- पापपुरुषः—पुं॰—पाप-पुरुषः—-—दुष्ट प्रकृति वाला मनुष्य
- पापफल—वि॰—पाप-फल—-—अनिष्टकर, अशुभ
- पापबुद्धि—वि॰—पाप-बुद्धि—-—दुष्टहृदय, दुष्ट, दुश्चरित्र
- पापभाव—वि॰—पाप-भाव—-—दुष्टहृदय, दुष्ट, दुश्चरित्र
- पापमति—वि॰—पाप-मति—-—दुष्टहृदय, दुष्ट, दुश्चरित्र
- पापभाज्—वि॰—पाप-भाज्—-—पापपूर्ण, पापी
- पापमुक्तम्—वि॰—पाप-मुक्तम्—-—पाप से छूटा हुआ, पवित्र
- पापमोचनम्—नपुं॰—पाप-मोचनम्—-—पाप का नाश
- पापविनाशनम्—नपुं॰—पाप-विनाशनम्—-—पाप का नाश
- पापयोनि—वि॰—पाप-योनि—-—नीच जाति में उत्पन्न
- पापयोनिः—स्त्री॰—पाप-योनिः—-—नीच कुल में जन्म
- पापरोगः—पुं॰—पाप-रोगः—-—कोई बुरा रोग
- पापरोगः—पुं॰—पाप-रोगः—-—शीतला, चेचक
- पापशील—वि॰—पाप-शील—-—दुष्ट कार्यों में प्रवृत्त होने वाला, दुष्टप्रकृति, दुष्टहृदय
- पापसङ्कल्प—वि॰—पाप-सङ्कल्प—-—दुष्टहृदय, दुरात्मा
- पापसङ्कल्पः—पुं॰—पाप-सङ्कल्पः—-—दुष्ट विचार
- पापार्द्धिः—पुं॰—-—पापानामृद्धिर्यत्र- ब॰ स॰—शिकार, आखेट
- पापल—वि॰—-—पाप + ला + क—पाप कमाने वाला, पाप कर
- पापिन्—वि॰—-—पाप + इनि—पापपूर्ण, दुष्ट
- पापिन्—पुं॰—-—-—पाप करने वाला
- पापिष्ठ—वि॰—-—अतिशयेन पापी- पाप + इष्ठन्—अत्यंत पापपूर्ण, अधम, दुष्टतम
- पापीयस्—वि॰—-—पाप ईयसुन्, अयमनयो रतिशयेन पापी, तुलना-अवस्था—अपेक्षाकृत पापी, अपेक्षाकृत दुष्ट या अनिष्टकर
- पाप्मन्—पुं॰—-—पा + मानिन्, पुगागमः—पाप, जुर्म, दुष्टता, अपराध
- पामन्—पुं॰—-—पा + मनिन्—एक प्रकार का चर्मरोग, खुजली
- पामघ्नः—पुं॰—पामन्-घ्नः—-—गंधक
- पामन—वि॰—-—पामन् + न, नलोपः—खुजली रोग से ग्रस्त, सकुण्डू
- पामर—वि॰—-—-—खुजली वाला, अनिष्टकर, दुष्ट
- पामर—वि॰—-—-—नीच, गंवारु, अधम
- पामर—वि॰—-—-—मूर्ख, जड़
- पामर—वि॰—-—-—निर्धन, असहाय
- पामरः—वि॰—-—-—मूढ, जड़बुद्धि
- पामरः—वि॰—-—-—दुष्ट या नीच पुरुष
- पामरः—वि॰—-—-—अत्यंत नीच कर्म में प्रवृत्त व्यक्ति
- पामा—पुं॰—-—पामन् + ङीप्निषेधः, नलोपः, दीर्घः—
- पामारिः—पुं॰—पामा-अरिः—-—गंधक
- पायना—स्त्री॰—-—पा + णिच् + युच् + टाप्—पीलाना
- पायना—स्त्री॰—-—पा + णिच् + युच् + टाप्—सींचना, तर करना
- पायना—स्त्री॰—-—पा + णिच् + युच् + टाप्—तेज करना, पैनाना
- पायस—वि॰—-—पयस् + अण्—दूध या पानी से बना हुआ
- पायसः—पुं॰—-—पयस् + अण्—खीर, दूध में उबले हुए चावल
- पायसः—पुं॰—-—पयस् + अण्—तारपीन
- पायसम्—नपुं॰—-—पयस् + अण्—खीर, दूध में उबले हुए चावल
- पायसम्—नपुं॰—-—पयस् + अण्—तारपीन
- पायसम्—नपुं॰—-—पयस् + अण्—दूध
- पायिकः—पुं॰—-—-—पैदल सिपाही
- पायुः—पुं॰—-—पा + उण्, युक—गुदा, मलद्वार
- पाय्यम्—नपुं॰—-—मा + ण्यत्, नि॰ पत्वम्, युगागमः—जल
- पाय्यम्—नपुं॰—-—मा + ण्यत्, नि॰ पत्वम्, युगागमः—पेय पदार्थ
- पाय्यम्—नपुं॰—-—मा + ण्यत्, नि॰ पत्वम्, युगागमः—प्ररक्षण
- पाय्यम्—नपुं॰—-—मा + ण्यत्, नि॰ पत्वम्, युगागमः—परिमाण
- पारः—पुं॰—-—परं तीरं परमेव अण्—या नदी का परला- सामने वाला दूसरा किनारा
- पारः—पुं॰—-—परं तीरं परमेव अण्—किसी भी वस्तु का विरोधी पक्ष
- पारः—पुं॰—-—परं तीरं परमेव अण्—किसी वस्तु का अन्तिम किनारा, अन्तिम सीमा
- पारः—पुं॰—-—परं तीरं परमेव अण्—किसी वस्तु का अधिकतम परिमाण, समष्टि
- पारं गम्——-—-—पार जाना, ऊपर चढ़ना
- पारं गम्——-—-—निष्पन्न करना, पूरा करना,
- पारं गमि—पुं॰—-—-—पार जाना, ऊपर चढ़ना
- पारं गमि—पुं॰—-—-—निष्पन्न करना, पूरा करना,
- पारं गम्या—स्त्री॰—-—-—पार जाना, ऊपर चढ़ना
- पारं गम्या—स्त्री॰—-—-—निष्पन्न करना, पूरा करना,
- पारः—पुं॰—-—-—पारा
- पारापारम्—नपुं॰—पारः-अपारम्—-—दोनों तट, पास का और दूर का
- पारावारम्—नपुं॰—पारः-अवारम्—-—दोनों तट, पास का और दूर का
- पारावारः—पुं॰—पारः-अवारः—-—समुद्र, सागर
- पारायणम्—नपुं॰—पारः-अयणम्—-—पार जाना
- पारायणम्—नपुं॰—पारः-अयणम्—-—पूरा पढ़ना, अनुशीलन, आद्योपान्त अध्ययन
- पारायणम्—नपुं॰—पारः-अयणम्—-—समग्रता, सम्पूर्णता, या किसी वस्तु की समष्टि
- पारायणी—स्त्री॰—पारः-अयणी—-—सरस्वती देवी
- पारायणी—स्त्री॰—पारः-अयणी—-—चिन्तन, मनन
- पारायणी—स्त्री॰—पारः-अयणी—-—कृत्य, कर्म
- पारायणी—स्त्री॰—पारः-अयणी—-—प्रकाश
- पारकाम—वि॰—पारः-काम—-—दूसरे किनारे तक जाने का इच्छुक
- पारग—वि॰—पारः-ग—-—पार जाने वाला, नाव से पार उतरने वाला
- पारग—वि॰—पारः-ग—-—जो पार पहुंच चुका है, जिसने किसी ग्रंथ का पूरा अध्ययन कर लिया है, पूर्णपरिचित, पूरा ज्ञाता
- पारगत—वि॰—पारः-गत—-—जो तट के दूसरी ओर पहुंच गया है
- पारगामिन्—वि॰—पारः-गामिन्—-—जो तट के दूसरी ओर पहुंच गया है
- पारदर्शक—वि॰—पारः-दर्शक—-—सामने के तट को दिखलाने वाला
- पारदर्शक—वि॰—पारः-दर्शक—-—जिसके आर पार दिखाई दे
- पारदृश्वन्—वि॰—पारः-दृश्वन्—-—दूरदर्शी, बुद्धिमान्, समझदार
- पारदृश्वन्—वि॰—पारः-दृश्वन्—-—जिसने किसी वस्तु का दूसरा किनारा देख लिया है, जिसने किसी बात को पूर्ण रूप से जान लिया है
- पारक—वि॰—-—पृ + ण्वुल्—पार करने की योग्यता रखने वाला
- पारक—वि॰—-—पृ + ण्वुल्—आगे ले जाने वाला, बचाने वाला, सौंपने वाला
- पारक—वि॰—-—पृ + ण्वुल्—प्रसन्न करने वाला, संतुष्ट करने वाला
- पारक्य—वि॰—-—परस्मै लोकाय हितम्- पर + ष्यञ्, कुक्—पराया, दूसरे का
- पारक्य—वि॰—-—परस्मै लोकाय हितम्- पर + ष्यञ्, कुक्—दूसरों के लिए उद्दिष्ट
- पारक्य—वि॰—-—परस्मै लोकाय हितम्- पर + ष्यञ्, कुक्—विरोधी, शत्रुतापूर्ण
- पारक्यम्—नपुं॰—-—परस्मै लोकाय हितम्- पर + ष्यञ्, कुक्—परलोक साधन, पवित्र आचरण
- पारग्रामिक—वि॰—-—परग्राम + ठक्—पराया, विरोधी, शत्रुतापूर्ण
- पारज्—पुं॰—-—पार् + णिच् + अजि—सोना, स्वर्ण
- पारजायिकः—पुं॰—-—परछायां गच्छति- परजाया + ठक्—व्यभिचारी पुरुष
- पारटीटः—पुं॰—-—-—पत्थर, चट्टान्
- पारटीनः—पुं॰—-—-—पत्थर, चट्टान
- पारण—वि॰—-—पृ + ल्युट्—पार ले जाने वाला, उबारने वाला
- पारण—वि॰—-—पृ + ल्युट्—बचाने वाला, उद्धार करने वाला
- पारणः—पुं॰—-—पृ + ल्युट्—बादल
- पारणः—पुं॰—-—पृ + ल्युट्—संतोष
- पारणम्—नपुं॰—-—पृ + ल्युट्—निष्पन्न करना, पूरा करना,
- पारणम्—नपुं॰—-—पृ + ल्युट्—पाठ करना, बांचना
- पारणम्—नपुं॰—-—पृ + ल्युट्—व्रत (उपवास) के पश्चात् भोजन करना, व्रत खोलना
- पारतः—पुं॰—-—पारं तनोति - पार + तन् + ड—पारा
- पारतंत्र्यम्—नपुं॰—-—परतंत्र + ष्यञ्—पराश्रयता, अधीनता, अनुसेवा
- पारत्रिक—वि॰—-—परत्र + ठक्—परलोक फल
- पारदः—पुं॰—-—पारं ददाति- पार + दा + क—पारा
- पारदारिकः—पुं॰—-—परदारा + ठक्—व्यभिचारी, परदारगामी
- परदार्यम्—नपुं॰—-—परदार + ष्यञ्—व्यभिचार, परदारगमन
- पारदेश्य—वि॰—-—परदेश + ष्यञ्—विदेश से संबंध रखने वाला, विदेशी
- पारदेश्यः—वि॰—-—परदेश + ष्यञ्—अन्य देश का रहने वाला
- पारदेश्यः—पुं॰—-—परदेश + ष्यञ्—यात्री
- पारभृतम्—नपुं॰—-—इसका शुद्ध रूप संभवतः ‘प्राभृत’ है—उपहार, भेंट
- पारमहंस्यम्—नपुं॰—-—परमहंस + ष्यञ्—सर्वोत्कृष्ट सन्यासवृत्ति, मनन
- पारमहंस्यपरि—अव्य॰—पारमहंस्यम्-परि—-—इस प्रकार के सन्यासी से सम्बन्ध रखने वाला
- पारमार्थिक—वि॰—-—परमार्थ + ठक्—‘परमार्थ’ अर्थात् सर्वोपरि सत्य अथवा अध्यात्म ज्ञान से संबन्ध रखने वाला
- पारमार्थिक—वि॰—-—परमार्थ + ठक्—वास्तविक, आवश्यक, यथार्थ में विद्यमान सत्ता विविधा पारमार्थिकी
- पारमार्थिक—वि॰—-—परमार्थ + ठक्—सत्य का ध्यान रखने वाला
- पारमार्थिक—वि॰—-—परमार्थ + ठक्—सर्वश्रेष्ठ, सर्वोत्कृष्ट, सर्वोत्तम
- पारमिक—वि॰—-—परम + ठक्—सर्वोपरि, सर्वोत्तम, मुख्य, प्रधान
- पारमित—वि॰—-—पारमितः प्राप्तः- अलुक् स॰—दूसरे तट या किनारे पर गया हुआ
- पारमित—वि॰—-—पारमितः प्राप्तः- अलुक् स॰—पार पहुँचा हुआ, आर-पार गया हुआ
- पारमित—वि॰—-—पारमितः प्राप्तः- अलुक् स॰—परमोत्कृष्ट
- पारमेष्ठ्यम्—नपुं॰—-—परमेष्ठिन् + प्यञ्—सर्वोपरिता, उच्चतम पद
- पारमेष्ठ्यम्—नपुं॰—-—परमेष्ठिन् + प्यञ्—राजचिह्न
- पारम्परीण—वि॰—-—परंपरा + खञ्—परंपरा प्राप्त, आनुवंशिक, वंशक्रमागत
- पारम्परीय—वि॰—-—परम्परा + छ—परम्पराप्राप्त, आनुवंशिक
- पारम्पर्यम्—नपुं॰—-—परम्परा + ष्यञ्—आनुवंशिक क्रम, अविच्छिन्न क्रम
- पारम्पर्यम्—नपुं॰—-—परम्परा + ष्यञ्—परम्परा से प्राप्त शिक्षा, परम्परा
- पारम्पर्यम्—नपुं॰—-—परम्परा + ष्यञ्—अन्तर्वर्तिता, मध्यस्थता
- पारम्पर्योपदेशः—पुं॰—पारम्पर्यम्-उपदेशः—-—परंपरा प्राप्त शिक्षा, परम्परा
- पारयिष्णु—वि॰—-—पार् + णिच् + इष्णुच्—सुहावना, तृप्तिकारक
- पारयिष्णु—वि॰—-—पार् + णिच् + इष्णुच्—किसी कार्य को पूरा करने के योग्य, पार जाने के लिए समर्थ
- पारलौकिक—वि॰—-—परलोकाय हितम् पर लोक + ठक् द्विपदवृद्धिः—परलोक से संबंध रखने वाला या परलोकोपयोगी
- पारवतः—पुं॰—-—पारापत ( पार + आ + पत् + अच्)—कबूतर
- पारवश्यम्—नपुं॰—-—परवेश + ष्यञ्—परावलंबन, पराश्रयता, अधीनता
- पारशव—वि॰—-—परशु + अण्—लोहे का बना हुआ
- पारशव—वि॰—-—परशु + अण्—कुठार से संबंध रखने वाला
- पारशवः—पुं॰—-—परशु + अण्—लोहा
- पारशवः—पुं॰—-—परशु + अण्—शूद्र स्त्री में उत्पन्न ब्राह्मण का पुत्र
- पारशवः—पुं॰—-—परशु + अण्—दोगला, हरामी
- पारश्वधः—पुं॰—-—परश्वधः प्रहरणमस्य- अण्—फरसा धारण करने वाला, कुठार धारी
- पारश्वधिकः—पुं॰—-—परश्वध + ठक्—फरसा धारण करने वाला, कुठार धारी
- पारस—वि॰—-—पारस्यदेशे भवः- अण् बा॰ यलोपः —पारसी फरस देश का रहने वाला
- पारसिकः—पुं॰—-—-—फारस देश
- पारसिकः—पुं॰—-—-—फारस देश का, पारसीक
- पारसी—स्त्री॰—-—-—फारसी भाषा
- पारसीकः—पुं॰—-—पृषो॰ साधुः—फारस देश
- पारसीकः—पुं॰—-—पृषो॰ साधुः—फारस देश का घोड़ा
- पारसीकाः—पुं॰—-—-—फारस देश के रहने वाले
- पारस्त्रैणेयः—पुं॰—-—परस्त्री + ढक्, इनङ, उभय पदवृद्धिः—दोगला, हरामी
- पारहंस्य—वि॰—-—परहंस + ष्यञ्—उस सन्यासी से संबंध रखने वाला जिसने सब इन्द्रियों का दमन कर लिया है
- पारा—स्त्री॰—-—पार + अच् + टाप्—एक नदी का नाम
- पारापतः—पुं॰—-—पार + आ + पत् + अच्—कबूतर
- पारायणिकः—पुं॰—-—पारायण + ठञ्—व्याख्यानदाता, पुराण तथा अन्य धार्मिक ग्रन्थों का पाठ करने वाला
- पारायणिकः—पुं॰—-—पारायण + ठञ्—शिष्य, विद्यार्थी
- पारारुकः—पुं॰—-—पार + ऋ + उकञ्—पत्थर, चट्टान
- पारावतः—पुं॰—-—पारापतः, पृषो॰ पस्य वः—कबूतर, फाख्ता, पेंडुकी
- पारावतः—पुं॰—-—पारापतः, पृषो॰ पस्य वः—बन्दर
- पारावतः—पुं॰—-—पारापतः, पृषो॰ पस्य वः—पहाड़
- पारावताङ्घ्रिः—पुं॰—पारावतः-अङ्घ्रिः—-—एक प्रकार का कबूतर
- पारावतपिच्छः—पुं॰—पारावतः-पिच्छः—-—एक प्रकार का कबूतर
- पारावारीण—वि॰—-—पारावार + रव—दोनों छोर तक जाने वाला
- पारावारीण—वि॰—-—पारावार + रव—पूर्ण रूप से जानकर
- पाराशरः—पुं॰—-—पराशर + अण्—पराशर के पुत्र व्यास का विशेषण
- पाराशर्यः—पुं॰—-—पराशर + यञ्—पराशर के पुत्र व्यास का विशेषण
- पाराशरिः—पुं॰—-—पराशर + इञ्—शुकदेव का विशेषण
- पाराशरिः—पुं॰—-—पराशर + इञ्—व्यास का नाम
- पाराशरिन्—पुं॰—-—पाराशर + इनि—साधु, सन्यासी
- पाराशरिन्—पुं॰—-—पाराशर + इनि—विशेषकर वह जो व्यास के शरीर सूत्रों के अध्येता हों
- पारिकांक्षिन्—पुं॰—-—पारयति संसारात् पारि ब्रह्मज्ञानम् तत्कांक्षति- पारि + कांक्ष् + णिनि—ध्यानमग्न या चिन्ताशील सन्त, सन्यासी जो भावात्मक समाधि का भक्त हो
- पारिक्षितः—पुं॰—-—परिक्षित् + अण्—जनमेजय का कुल सूचक नाम, अर्जुन का प्रपौत्र और परीक्षित् का पुत्र
- पारिखेय—वि॰—-—परिखा + द—चारों ओर परिखा या खाई से घिरा हुआ
- पारिजातः—पुं॰—-—पारमस्य अस्ति इतिपारी समुद्रः तस्माज्जातः- पारिजात + कन्—स्वर्ग के पाँच वृक्षों में से एक
- पारिजातः—पुं॰—-—पारमस्य अस्ति इतिपारी समुद्रः तस्माज्जातः- पारिजात + कन्—मूंगे का पेड़
- पारिजातः—पुं॰—-—पारमस्य अस्ति इतिपारी समुद्रः तस्माज्जातः- पारिजात + कन्—सुगन्ध
- पारिजातकः—पुं॰—-—पारमस्य अस्ति इतिपारी समुद्रः तस्माज्जातः- पारिजात + कन्—स्वर्ग के पाँच वृक्षों में से एक
- पारिजातकः—पुं॰—-—पारमस्य अस्ति इतिपारी समुद्रः तस्माज्जातः- पारिजात + कन्—मूंगे का पेड़
- पारिजातकः—पुं॰—-—पारमस्य अस्ति इतिपारी समुद्रः तस्माज्जातः- पारिजात + कन्—सुगन्ध
- पारिणाय्य—वि॰—-—परिणय + ष्यञ्—विवाह से संबन्ध रखने वाला
- पारिणाय्य—वि॰—-—परिणय + ष्यञ्—विवाह के अवसर पर प्राप्त किया हुआ
- पारिणाय्यम्—नपुं॰—-—परिणय + ष्यञ्—विवाह के अवसर पर स्त्री को मिली हुई सम्पत्ति
- पारिणाय्यम्—नपुं॰—-—परिणय + ष्यञ्—विवाह व्यवस्था
- पारितथ्या—स्त्री॰—-—-—बालों को बांधने के लिए मोतियों की लड़ी
- पारितोषिक—वि॰—-—परितोष + ठञ्—सुखकर, तृप्तिकर, सान्त्वनाप्रद
- पारितोषिकम्—नपुं॰—-—-—उपहार, पुरस्कार
- पारिध्वजिकः—पुं॰—-—परितः ध्वजा- परिध्वजा + ठक्—झंडा बरदार, झंडा ले चलने वाला
- पारिन्द्रः—पुं॰—-—पारीन्द्रः, पृषो॰ हृस्वः—सिंह, केसरी
- पारिपंथिकः—पुं॰—-—परिपंथ + ठक्—लुटेरा, डाकू
- पारिपाट्यम्—नपुं॰—-—परिपाटी + ष्यञ्—ढंग, प्रणाली, रीति (परिपाटी)
- पारिपाट्यम्—नपुं॰—-—परिपाटी + ष्यञ्—नियमितता
- पारिपार्श्वम्—नपुं॰—-—पारिपार्श्व + अण्—अनुचरवर्ग, सेवक, अनुयायी
- पारिपार्श्वकः—पुं॰—-—पारिपार्श्व + कन्—सेवक, टहलुआ
- पारिपार्श्वकः—पुं॰—-—पारिपार्श्व + कन्—नाटक में सूत्रधार का सहायक, नान्दीपाठ के अवसर एक अन्तर्वादी
- पारिपार्श्विकः—पुं॰—-—परिपार्श्व + ठक्—सेवक, टहलुआ
- पारिपार्श्विकः—पुं॰—-—परिपार्श्व + ठक्—नाटक में सूत्रधार का सहायक, नान्दीपाठ के अवसर एक अन्तर्वादी
- पारिपार्श्विका—स्त्री॰—-—पारिपार्श्विका + टाप्—दासी, सेविका, निजी नौकरानी
- पारिप्लव—वि॰—-—परिप्लव + अण्—इधर उधर घूमने वाला, डांवाडोल, चंचल, अस्थिर, कम्पायमान
- पारिप्लव—वि॰—-—परिप्लव + अण्—तैरना, बहना
- पारिप्लव—वि॰—-—परिप्लव + अण्—क्षुब्ध, उद्विग्न, परेशान, घबराया हुआ
- पारिप्लवः—पुं॰—-—परिप्लव + अण्—नाव
- पारिप्लवम्—नपुं॰—-—परिप्लव + अण्—बेचैनी, विकलता
- पारिप्लाव्यः—पुं॰—-—परिपप्लव + ष्यञ्—हंस
- पारिप्लाव्यम्—नपुं॰—-—परिपप्लव + ष्यञ्—परेशानी, बेचैनी, क्षोभ
- पारिप्लाव्यम्—नपुं॰—-—परिपप्लव + ष्यञ्—कंपकंपी, थरथराहट
- पारिबर्हः—पुं॰—-—परिबर्ह + अण्—वैवाहिक उपहार
- पारिभद्रः—पुं॰—-—परिभद्र + अण्—मूंगे का वृक्ष
- पारिभद्रः—पुं॰—-—-—देवदारू वृक्ष
- पारिभद्रः—पुं॰—-—-—सरल वृक्ष
- पारिभद्रः—पुं॰—-—-—नीम का पेड़
- पारिभाव्यम्—नपुं॰—-—परिभू + ष्यञ्—जमानत, प्रतिभूति, जमानत के रूप में रक्खी गई वस्तु
- पारिभाषिक—वि॰—-—परिभाषा + ठक्—चालू, सामान्य प्रचलित
- पारिभाषिक—वि॰—-—परिभाषा + ठक्—(शब्द आदि) तकनीकी, किसी विशेषार्थ का संकेतक
- पारिमांडल्यम्—नपुं॰—-—परिमंडल + ष्यञ्—अणु, सूर्य की किरण में विद्यमान रजकण
- पारिमुखिक—वि॰—-—परिमुख + ठक्—मुंह के सामने का, निकटवर्ती, पास का
- पारिमुख्यम्—नपुं॰—-—परिमुख + ष्यञ्—उपस्थिति, समीप होना
- पारियात्रः—पुं॰—-—-—सात मुख्य पर्वत शृंखलाओं में से एक
- पारिपात्रः—पुं॰—-—-—सात मुख्य पर्वत शृंखलाओं में से एक
- पारियात्रिकः—पुं॰—-—पारियात्र + ठक्—पारियात्र पहाड़ का निवासी
- पारियात्रिकः—पुं॰—-—पारियात्र + ठक्—पारियात्र पहाड़
- पारिपात्रिकः—पुं॰—-—-—पारियात्र पहाड़ का निवासी
- पारिपात्रिकः—पुं॰—-—-—पारियात्र पहाड़
- पारियानिकः—पुं॰—-—पारियान + ठक्—यात्रा पर जाने के लिए गाड़ी
- पारिरक्षकः—पुं॰—-—परिरक्षति आत्मान - परि + रक्ष् + ण्वुल् + अण्—साधु, सन्यासी
- पारिवित्त्यम्—नपुं॰—-—परिवित्त + ष्यञ्—छोटे भाई का विवाह हो जाने पर भी बड़े भाई का अविवाहित रहना
- पारिवेत्र्यम्—नपुं॰—-—परिवेतृ + ष्यञ्—छोटे भाई का विवाह हो जाने पर भी बड़े भाई का अविवाहित रहना
- पारिब्राजकम्—नपुं॰—-—परिव्राजक + अण्—साधु सन्यासी का भ्रमणशील जीवन, सन्यास
- पारिब्राज्यम्—नपुं॰—-—परिब्राज् + ष्यञ्—साधु सन्यासी का भ्रमणशील जीवन, सन्यास
- पारिशीलः—पुं॰—-—परिशील + अण्—रोटी, पूड़ा, मालपुआ
- पारिशेष्यम्—नपुं॰—-—परिशेष + ष्यञ्—बचा हुआ, शेष, बाकी
- पारिषद—वि॰—-—परिषद् + अण्—सभा या परिषद् से संबन्ध रख़ने वाला
- पारिषदः—पुं॰—-—परिषद् + अण्—सभा में उपस्थित व्यक्ति, सभा का सदस्य, परामर्शक
- पारिषदः—पुं॰—-—परिषद् + अण्—राजा का सहचर
- पारिषदाः—पुं॰—-—परिषद् + अण्—देव का अनुचरवर्ग
- पारिषद्यः—पुं॰—-—परिषद् + ण्यत्—सभा में विद्यमान व्यक्ति, दर्शक
- पारिहारिकी—स्त्री॰—-—पारिहर + ठक् + ङीप्—एक प्रकार की बुझौवल, पहेली
- परिहार्यः—पुं॰—-—परि + हृ + ण्यत् + अण्—कड़ा, कंगण
- पारिहार्यम्—नपुं॰—-—-—लेना, ग्रहण करना
- पारिहास्यम्—नपुं॰—-—परिहास + ष्यञ्—हंसी-दिल्लगी, ठठोली, हंसी-मजाक
- पारी—स्त्री॰—-—पृ + णिच् + घञ् + ङीष्—हाथी के पैरों को बांधने का रस्सा
- पारी—स्त्री॰—-—पृ + णिच् + घञ् + ङीष्—जल का परिमाण
- पारी—स्त्री॰—-—पृ + णिच् + घञ् + ङीष्—पानपात्र, सुराही, प्याला
- पारी—स्त्री॰—-—पृ + णिच् + घञ् + ङीष्—दूध की बाल्टी
- पारीक्षितः—पुं॰—-—-—जनमेजय का कुल सूचक नाम, अर्जुन का प्रपौत्र और परीक्षित् का पुत्र
- पारीण—वि॰—-—पार + ख—दूसरी पार रहने या जाने वाला
- पारीण—वि॰—-—पार + ख—सुविज्ञ, सुपरिचित
- पारीणह्यम्—नपुं॰—-—परिणह + ष्यञ्, उपसर्गस्य दीर्घः—घर का सामान, या बर्तन आदि
- पारीन्द्रः—पुं॰—-—पारि पशुः तस्येन्द्रः—सिंह
- पारीन्द्रः—पुं॰—-—पारि पशुः तस्येन्द्रः—अजगर, बड़ा साँप
- पारीरणः—पुं॰—-—पायां जलपूरे रण यस्य—कछुवा
- पारीरणः—पुं॰—-—पायां जलपूरे रण यस्य—छड़ी, लाठी
- पारुः—पुं॰—-—पिबति रसान्- पा + रु—सूर्य
- पारुः—पुं॰—-—-—अग्नि
- पारुष्यम्—नपुं॰—-—परुष + ष्यञ्—खुरदरापन, ऊबड़खाबड़पन, कड़ापन
- पारुष्यम्—नपुं॰—-—परुष + ष्यञ्—कठोरता, क्रूरता, (स्वभाव की) निर्दयता
- पारुष्यम्—नपुं॰—-—परुष + ष्यञ्—अपभाषा, गाली देना, बुराभला कहना, अश्लील भाषा, अपमान
- पारुष्यम्—नपुं॰—-—परुष + ष्यञ्—(वाणी से या कर्म से) हिंसा
- पारुष्यम्—नपुं॰—-—परुष + ष्यञ्—इन्द्र का उद्यान
- पारुष्यम्—नपुं॰—-—परुष + ष्यञ्—अगर
- पारुष्यः—पुं॰—-—-—बृहस्पति का विशेषण
- पारोवर्यम्—नपुं॰—-—परोवर + ष्यञ्—परंपरा
- पार्घटम्—नपुं॰—-—पादे घटते इति अच्, पृषो॰ साधुः—धूल, राख
- पार्जन्य—वि॰—-—पर्जन्य + अण्—वृष्टि से संबंध रखने वाला
- पार्ण—वि॰—-—पर्ण + अण्—पत्तों से संबंध रखने वाला या पत्तों का बना हुआ
- पार्ण—वि॰—-—पर्ण + अण्—पत्तों से उठाया हुआ
- पार्श्वः—पुं॰—-—पृथा + अण्—युधिष्ठिर, भीम और अर्जुन का मातृकुलसूचक नाम, परन्तु अर्जुन का विशेषरूप से
- पार्श्वः—पुं॰—-—पृथा + अण्—राजा
- पार्श्वसारथिः—पुं॰—पार्श्वः-सारथिः—-—कृष्ण का विशेषण
- पार्थक्यम्—नपुं॰—-—पृथक + ष्यञ्—पृथकता, अलहदगी, अलग २ होने का भाव, अकेलापन, अनेकता
- पार्थवम्—नपुं॰—-—पृथु + अण्—विशालता, विस्तार, फैलाव, चौड़ाई
- पार्थिव—वि॰—-—पृथिवी + अण्—मिट्टी का बना हुआ, पृथ्वी संबंधी, भूमिसंबंधी, धरती से संबंध रखने वाला
- पार्थिव—वि॰—-—पृथिवी + अण्—धरती पर शासन करने वाला
- पार्थिव—वि॰—-—पृथिवी + अण्—राजसी, राजकीय
- पार्थिवः—पुं॰—-—-—पृथ्वी पर रहने वाला
- पार्थिवः—पुं॰—-—-—राजा, प्रभु
- पार्थिवः—पुं॰—-—-—मिट्टी का वर्तन
- पार्थिवनन्दनः—पुं॰—पार्थिव-नन्दनः—-—राजकुमार, राजपुत्र
- पार्थिवसुतः—पुं॰—पार्थिव-सुतः—-—राजकुमार, राजपुत्र
- पार्थिवकन्या—स्त्री॰—पार्थिव-कन्या—-—राजा की पुत्री, राजकुमारी
- पार्थिवनन्दिनी—स्त्री॰—पार्थिव-नन्दिनी—-—राजा की पुत्री, राजकुमारी
- पार्थिवसुता—स्त्री॰—पार्थिव-सुता—-—राजा की पुत्री, राजकुमारी
- पार्थिवी—स्त्री॰—-—पार्थिव + ङीप्—सीता का विशेषण, धरती की पुत्री
- पार्थिवी—स्त्री॰—-—पार्थिव + ङीप्—लक्ष्मी का विशेषण
- पार्परः—पुं॰—-—-—मुट्ठी भर चावल
- पार्परः—पुं॰—-—-—क्षयरोग, तपेदिक
- पार्यतिक—वि॰—-—पर्यन्त + ठक्—अन्तिम, आख़री, निर्णायक
- पार्वण—वि॰—-—पर्वन् + अण्—पर्वसंबंधी
- पार्वण—वि॰—-—पर्वन् + अण्—वृद्धि की प्राप्त होना, बढ़ना (जैसे कि चन्द्रमा का)
- पार्वणम्—नपुं॰—-—पर्वन् + अण्—पर्व के अवसर पर (अमावस्या के दिन) सभी पितरों के निमित्त आहुति देने का सामान्य संस्कार
- पार्वत—वि॰—-—पर्वत + अण्—पहाड़ पर होने या रहने वाला
- पार्वत—वि॰—-—पर्वत + अण्—पहाड़ पर उगने वाला, पहाड़ से प्राप्त होने वाला
- पार्वत—वि॰—-—पर्वत + अण्—पहाड़ी
- पार्वतिकम्—नपुं॰—-—पर्वत + ठञ्—पहाड़ों का समुच्चय, पर्वतशृंखला
- पार्वती—स्त्री॰—-—पार्वत + ङीप्—दुर्गा का नाम, हिमालय की पुत्री के रूप में उत्पन्न
- पार्वती—स्त्री॰—-—पार्वत + ङीप्—ग्वालिन
- पार्वती—स्त्री॰—-—पार्वत + ङीप्—द्रौपदी का विशेषण
- पार्वती—स्त्री॰—-—पार्वत + ङीप्—पहाड़ी नदी
- पार्वती—स्त्री॰—-—पार्वत + ङीप्—एक प्रकार की सुगंधयुक्त मिट्टी
- पार्वतीनन्दनः—पुं॰—पार्वती-नन्दनः—-—कार्तिकेय की उपाधि
- पार्वतीनन्दनः—पुं॰—पार्वती-नन्दनः—-—गणेश का विशेषण
- पार्वतीय—वि॰—-—पर्वत + छ—पहाड़ में रहने वाला
- पार्वतीयः—पुं॰—-—पर्वत + छ—पहाड़ी
- पार्वतीयः—पुं॰—-—-—एक विशेष पहाड़ी जाति का नाम
- पार्वतेय—वि॰—-—पार्वती + ढक्—पहाड़ पर उत्पन्न
- पार्वतेयम्—नपुं॰—-—पार्वती + ढक्—अंजन, सुरमा
- पार्शवः—पुं॰—-—पर्शु + अण्—कुठार से सुसज्जित योद्धा
- पार्श्वः—पुं॰—-—पशूनां समूहः—काँख से नीचे का शरीर का भाग, स्थान जहाँ पसलियाँ है
- पार्श्वः—पुं॰—-—पशूनां समूहः—पाँसू, कोख, (सजीव और निर्जीव पदार्थों का) पार्श्वांग
- पार्श्वः—पुं॰—-—पशूनां समूहः—आस-पास
- पार्श्वः—पुं॰—-—पशूनां समूहः—जिनका विशेषण
- पार्श्वम्—नपुं॰—-—पशूनां समूहः—काँख से नीचे का शरीर का भाग, स्थान जहाँ पसलियाँ है
- पार्श्वम्—नपुं॰—-—पशूनां समूहः—पाँसू, कोख, (सजीव और निर्जीव पदार्थों का) पार्श्वांग
- पार्श्वम्—नपुं॰—-—पशूनां समूहः—आस-पास
- पार्श्वम्—नपुं॰—-—-—पसलियों का समूह
- पार्श्वम्—नपुं॰—-—-—जालसाज़ी से भरी हुई तरकीब, असम्मानजनक उपाय
- पार्श्वानुचरः—पुं॰—पार्श्वः-अनुचरः—-—टहलुआ, सेवक
- पार्श्वास्थि—नपुं॰—पार्श्वः-अस्थि—-—पसली
- पार्श्वायात—वि॰—पार्श्वः-आयात—-—जो बहुत निकट आ गया है
- पार्श्वासन्न—वि॰—पार्श्वः-आसन्न—-—पास ही विद्यमान
- पार्श्वोदरप्रियः—पुं॰—पार्श्वः-उदरप्रियः—-—केकड़ा
- पार्श्वगः—पुं॰—पार्श्वः-गः—-—टहलुआ, सेवक
- पार्श्वगत—वि॰—पार्श्वः-गत—-—पार्श्ववर्ती, पास ही स्थित, सेवा करने वाला
- पार्श्वगत—वि॰—पार्श्वः-गत—-—शरणागत
- पार्श्वचरः—पुं॰—पार्श्व-चरः—-—सेवक, टहलुआ
- पार्श्वदः—पुं॰—पार्श्वः-दः—-—टहलुआ, सेवक
- पार्श्वदेशः—पुं॰—पार्श्वः-देशः—-—(शरीर की) कोख, पाँसू
- पार्श्वपरिवर्तनम्—नपुं॰—पार्श्वः-परिवर्तनम्—-—विस्तर पर करवट बदलना
- पार्श्वपरिवर्तनम्—नपुं॰—पार्श्वः-परिवर्तनम्—-—भाद्रपदशुक्ल ११ में होने वाला पर्व
- पार्श्वभागः—पुं॰—पार्श्वः-भागः—-—कोख, पाँसू
- पार्श्ववर्तिन्—वि॰—पार्श्वः-वर्तिन्—-—पास होने वाला, उपस्थित, सेवा में खड़ा हुआ
- पार्श्ववर्तिन्—वि॰—पार्श्वः-वर्तिन्—-—साथ ही लगा हुआ
- पार्श्वशय—वि॰—पार्श्वः-शय—-—पास ही सोने वाला, बगल में सोने वाला
- पार्श्वशूलः—पुं॰—पार्श्वः-शूलः—-—कोख में मीठा दर्द
- पार्श्वशूलम्—नपुं॰—पार्श्वः-शूलम्—-—कोख में मीठा दर्द
- पार्श्वसूत्रकः—पुं॰—पार्श्वः-सूत्रकः—-—एक प्रकार का आभूषण
- पार्श्वस्थ—वि॰—पार्श्वः-स्थ—-—पार्श्ववर्ती, नजदीकी, निकटवर्ती, समीपस्थ
- पार्श्वस्थः—पुं॰—पार्श्वः-स्थः—-—सहचर
- पार्श्वस्थः—पुं॰—पार्श्वः-स्थः—-—सूत्रधार का सहायक
- पार्श्वकः—पुं॰—-—पार्श्व + कन्—ठग, प्रवंचक, चोर
- पार्श्वतः—अव्य॰—-—पार्श्व + तस्—निकट, नजदीक, समीप, पास
- पार्श्विक—वि॰—-—पार्श्व + ठच्—पाँसू से संबंध रखने वाला
- पार्श्विकः—पुं॰—-—पार्श्व + ठच्—पक्ष लेने वाला, आदमी, साझीदार
- पार्श्विकः—पुं॰—-—पार्श्व + ठच्—साथी, सहचर
- पार्श्विकः—पुं॰—-—पार्श्व + ठच्—जादूगर
- पार्षत—वि॰—-—पृषत + अण्—चितकबरे हरिण से संबंध रखने वाला
- पार्षतः—पुं॰—-—पृषत + अण्—राजा द्रुपद और उसके पुत्र धृष्टद्युम्न का पित्रृकुलसूचक नाम
- पार्षती—स्त्री॰—-—पार्षत + ङीप्—द्रौपदी का विशेषण
- पार्षती—स्त्री॰—-—पार्षत + ङीप्—दूर्गा की उपाधि
- पार्षद्—स्त्री॰—-—परिषद्, पृषो॰—सभा
- पार्षदः—पुं॰—-—पार्षद मर्हति अण्—साथी, सहचर
- पार्षदः—पुं॰—-—पार्षद मर्हति अण्—टहलुआ, अनुचरवर्ग
- पार्षदः—पुं॰—-—पार्षद मर्हति अण्—सभा में उपस्थित, दर्शक, सभासद्
- पार्षद्यः—पुं॰—-—पर्षद् + ण्य—सभासद्, सदस्य
- पार्ष्णिः—पुं॰—-—पृष् + नि, नि॰ वृद्धिः—एड़ी
- पार्ष्णिः—पुं॰—-—पृष् + नि, नि॰ वृद्धिः—सेना की पिछाड़ी
- पार्ष्णिः—पुं॰—-—पृष् + नि, नि॰ वृद्धिः—पिछड़ी, पिछला भाग
- पार्ष्णिः—पुं॰—-—पृष् + नि, नि॰ वृद्धिः—ठोकर
- पार्ष्णिः—स्त्री॰—-—-—व्यभिचारिणी स्त्री
- पार्ष्णिः—स्त्री॰—-—-—कुन्ती का विशेषण
- पार्ष्णिग्रहः—पुं॰—पार्ष्णिः-ग्रहः—-—अनुयायी
- पार्ष्णिग्रहणम्—नपुं॰—पार्ष्णिः-ग्रहणम्—-—शत्रु की पीठ पर आक्रमण करना
- पार्ष्णिग्राहः—पुं॰—पार्ष्णिः-ग्राहः—-—पृष्ठवर्ती शत्रु
- पार्ष्णिग्राहः—पुं॰—पार्ष्णिः-ग्राहः—-—पृष्ठवर्ती सेना का सेनापति
- पार्ष्णिग्राहः—पुं॰—पार्ष्णिः-ग्राहः—-—मित्रराजा जो किसी राजा की सहायता करे
- पार्ष्णित्रम्—नपुं॰—पार्ष्णित्रम्—-—पृष्ठरक्षक, पीछे रहने वाली सेना की टुकड़ी, प्रारक्षित
- पार्ष्णिवाहः—पुं॰—पार्ष्णिवाहः—-—बाह्यवर्ती घोड़ा
- पालः—पुं॰—-—पाल् + अच्—प्ररक्षक, अभिभावक, संरक्षक
- पालः—पुं॰—-—पाल् + अच्—ग्वाला
- पालः—पुं॰—-—पाल् + अच्—राजा
- पालः—पुं॰—-—पाल् + अच्—पीकदान
- पालघ्नः—पुं॰—पालः- घ्नः—-—कुकुरमुत्ता, साँप की छतरी
- पालकः—पुं॰—-—पाल् + ण्वुल्—अभिभावक, प्ररक्षक
- पालकः—पुं॰—-—पाल् + ण्वुल्—राज कुमार, राजा, शासक, प्रभु
- पालकः—पुं॰—-—पाल् + ण्वुल्—साईस, घोड़े का रख वाला
- पालकः—पुं॰—-—पाल् + ण्वुल्—घोड़ा
- पालकः—पुं॰—-—पाल् + ण्वुल्—चित्रक वृक्ष
- पालकः—पुं॰—-—पाल् + ण्वुल्—पालक पिता
- पालकाप्यः—पुं॰—-—-—एक ऋषि करेणु का पुत्र, (इन्होंने ही सर्वप्रथम हस्तिविज्ञान की शिक्षा दी)
- पालकाप्यः—पुं॰—-—-—हस्तिविज्ञान
- पालङ्कः—पुं॰—-—पाल् + किप्= पाल् + अंक् + घञ्—पालक का साग
- पालङ्कः—पुं॰—-—पाल् + किप्= पाल् + अंक् + घञ्—बाजपक्षी
- पालङ्की—स्त्री॰—-—-—एक गंधद्रव्य
- पालङ्क्य—स्त्री॰—-—पालंक + ष्यञ्—एक सुगंध द्रव्य
- पालङ्क्या—स्त्री॰—-—पालंक + ष्यञ्, स्त्रियाँ टाप् च—एक सुगंध द्रव्य
- पालन—वि॰—-—पाल् + ल्यूट्—रक्षा करने वाला, संरक्षण देने वाला
- पालनम्—नपुं॰—-—पाल् + ल्यूट्—प्ररक्षण, संरक्षण, पालना, पोसना, लालन-पालन करना
- पालनम्—नपुं॰—-—पाल् + ल्यूट्—बनाये रखना, अनुपालन करना, (व्रत, प्रतिज्ञा, आदि को) पूरा करना
- पालनम्—नपुं॰—-—पाल् + ल्यूट्—बाजी ब्याई हुई गो का दूध, खीस
- पालयितृ—पुं॰—-—पाल् +णिच् + तृच्—प्ररक्षक, संरक्षक, परवरिश करने वाला
- पालाश—वि॰—-—पलाश + अण्—ढाक का, ढाक से उत्पन्न
- पालाश—वि॰—-—पलाश + अण्—ढाक की लकड़ी का बना हुआ
- पालाश—वि॰—-—पलाश + अण्—हरा
- पालाशः—पुं॰—-—पलाश + अण्—हरा रंग
- पालाशखण्डः—पुं॰—पालाश-खण्डः—-—मगध देश का विशेषण
- पालाशषण्डः—पुं॰—पालाश-षण्डः—-—मगध देश का विशेषण
- पालिः—स्त्री॰—-—पाल् + इन्—कान का सिरा
- पालिः—स्त्री॰—-—पाल् + इन्—किनारा, गोट, मगजी
- पालिः—स्त्री॰—-—पाल् + इन्—तेज़ सिरा, धार या नोक
- पालिः—स्त्री॰—-—पाल् + इन्—हद, सीमा
- पालिः—स्त्री॰—-—पाल् + इन्—श्रेणी, पंक्ति
- पालिः—स्त्री॰—-—पाल् + इन्—धब्बा, चिह्न
- पालिः—स्त्री॰—-—पाल् + इन्—बांध, पुल
- पालिः—स्त्री॰—-—पाल् + इन्—गोद, अंक
- पालिः—स्त्री॰—-—पाल् + इन्—आयताकार तालाब
- पालिः—स्त्री॰—-—पाल् + इन्—अध्ययनकाल में गुरु द्वारा छात्र का भरण-पोषण
- पालिः—स्त्री॰—-—पाल् + इन्—जूँ
- पालिः—स्त्री॰—-—पाल् + इन्—प्रशंसा, स्तुति
- पालिः—स्त्री॰—-—पाल् + इन्—वह स्त्री जिसके दाढ़ी-मूंछे हों
- पाली—स्त्री॰—-—पाल् + इन्—कान का सिरा
- पाली—स्त्री॰—-—पाल् + इन्—किनारा, गोट, मगजी
- पाली—स्त्री॰—-—पाल् + इन्—तेज़ सिरा, धार या नोक
- पाली—स्त्री॰—-—पाल् + इन्—हद, सीमा
- पाली—स्त्री॰—-—पाल् + इन्—श्रेणी, पंक्ति
- पाली—स्त्री॰—-—पाल् + इन्—धब्बा, चिह्न
- पाली—स्त्री॰—-—पाल् + इन्—बांध, पुल
- पाली—स्त्री॰—-—पाल् + इन्—गोद, अंक
- पाली—स्त्री॰—-—पाल् + इन्—आयताकार तालाब
- पाली—स्त्री॰—-—पाल् + इन्—अध्ययनकाल में गुरु द्वारा छात्र का भरण-पोषण
- पाली—स्त्री॰—-—पाल् + इन्—जूँ
- पाली—स्त्री॰—-—पाल् + इन्—प्रशंसा, स्तुति
- पाली—स्त्री॰—-—पाल् + इन्—वह स्त्री जिसके दाढ़ी-मूंछे हों
- पालिका—स्त्री॰—-—पालि + कन् + टाप्—कान का सिरा
- पालिका—स्त्री॰—-—पालि + कन् + टाप्—तलवार या किसी छुरी आदि काटने वाले उपकरण की तेज़ धार
- पालिका—स्त्री॰—-—पालि + कन् + टाप्—पनीर या मक्खन आदि काटने की छुरी
- पालित—भू॰ क॰ कृ॰—-—पाल् + क्त—प्ररक्षित, संरक्षित, आरक्षित
- पालित—भू॰ क॰ कृ॰—-—पाल् + क्त—पालन किया हुआ, पूरा किया हुआ
- पालित्यम्—नपुं॰—-—पलित + ष्यञ्—वृद्धावस्था के कारण वालों की सफ़ेदी, धवलता
- पाल्वल—वि॰—-—पल्वल + अण्—पोखर में उत्पन्न, तलैया से प्राप्त
- पावकः—पुं॰—-—पू + ण्वुल्—आग
- पावकः—पुं॰—-—पू + ण्वुल्—अग्नि देवता
- पावकः—पुं॰—-—पू + ण्वुल्—विजली की आग
- पावकः—पुं॰—-—पू + ण्वुल्—चित्रक वृक्ष
- पावकः—पुं॰—-—पू + ण्वुल्—तीन की संख्या
- पावकात्मजः—पुं॰—पावकः-आत्मजः—-—कार्तिकेय का विशेषण
- पावकात्मजः—पुं॰—पावकः-आत्मजः—-—सुदर्शन नामक ऋषि
- पावकिः—पुं॰—-—पावक + इञ्—कार्तिकेय का विशेषण
- पावन—वि॰—-—पू + णिच् + ल्युट्—निर्मल करने वाला, पाप से मुक्त करने वाला, शुद्ध करने वाला, पवित्र वनाने वाला
- पावन—वि॰—-—पू + णिच् + ल्युट्—पवित्र, पुनीत, विशुद्ध, परिष्कृत
- पावनः—पुं॰—-—-—आग
- पावनः—पुं॰—-—-—गंध द्रव्य
- पावनः—पुं॰—-—-—सिद्ध
- पावनः—पुं॰—-—-—व्यास कवि
- पावनम्—नपुं॰—-—-—पवित्री करण, विशुद्धीकरण
- पावनम्—नपुं॰—-—-—तप
- पावनम्—नपुं॰—-—-—जल
- पावनम्—नपुं॰—-—-—गोबर
- पावनम्—नपुं॰—-—-—संप्रदायसूचक तिलक
- पावनध्वनिः—पुं॰—पावन-ध्वनिः—-—शंखनाद
- पावनी—स्त्री॰—-—पावन + ङीप्—पवित्र तुलसी
- पावनी—स्त्री॰—-—पावन + ङीप्—गाय
- पावनी—स्त्री॰—-—पावन + ङीप्—गंगा नदी
- पावमानी—स्त्री॰—-—पचमानम् अधिकृत्य प्रवृत्तम्- पवमान + अण् + ङीप्—विशिष्ट वैदिक ऋचाओं का विशेषण
- पावरः—पुं॰—-—-—पासे को विशेष ढंग से फेकना
- पाशः—पुं॰—-—पश्यते बध्यतेऽनेन, पश् करणे घञ्—डोरी, शृंखला, बेड़ी, फंदा
- पाशः—पुं॰—-—पश्यते बध्यतेऽनेन, पश् करणे घञ्—जाल, खटकेदार पिंजड़ा, या फंदा
- पाशः—पुं॰—-—पश्यते बध्यतेऽनेन, पश् करणे घञ्—बन्धन ज़ो (वरुण के द्वारा) शस्त्र की भांति प्रयुक्त होता है
- पाशः—पुं॰—-—पश्यते बध्यतेऽनेन, पश् करणे घञ्—पाँसा
- पाशः—पुं॰—-—पश्यते बध्यतेऽनेन, पश् करणे घञ्—किसी बुनी हुई वस्तु की किनारी
- पाशः—पुं॰—-—पश्यते बध्यतेऽनेन, पश् करणे घञ्—तिरस्कार, अवमान
- पाशः—पुं॰—-—पश्यते बध्यतेऽनेन, पश् करणे घञ्—सौन्दर्य, सराहना
- पाशः—पुं॰—-—पश्यते बध्यतेऽनेन, पश् करणे घञ्—बहुतायत, ढेर, राशि
- पाशान्तः—पुं॰—पाशः-अन्तः—-—कपड़े का पृष्ठभाग
- पाशक्रीडा—स्त्री॰—पाशः-क्रीडा—-—जूआ खेलना, पांसे के साथ खेलना
- पाशधरः—पुं॰—पाशः-धरः—-—वरुण का विशेषण
- पाशपाणिः—पुं॰—पाशः-पाणिः—-—वरुण का विशेषण
- पाशबद्ध—वि॰—पाशः-बद्ध—-—पिंजड़े में फंसा हुआ, जाल में पकड़ा हुआ, फंदे में पड़ा हुआ
- पाशबन्धः—पुं॰—पाशः-बन्धः—-—बंधन, जाल, फांसी की डोरी
- पाशबन्धकः—पुं॰—पाशः-बन्धकः—-—बलेलिया, पक्षी पकड़ने वाला
- पाशबन्धनम्—नपुं॰—पाशः-बन्धनम्—-—जाल
- पाशभृत्—पुं॰—पाशः-भृत्—-—वरुण का विशेषण
- पाशरज्जुः—स्त्री॰—पाशः-रज्जुः—-—वेड़ी, रस्सी
- पाशहस्तः—पुं॰—पाशः-हस्तः—-—‘हाथ में जाल पकड़े हुए’ वरुण का विशेषण
- पाशकः—पुं॰—-—पाश्यति पीडयति- पश् + णिच् + ण्वुल्—अक्ष, पाँसा
- पाशकपीठम्—नपुं॰—पाशकः-पीठम्—-—जूआ खेलने की चौकी
- पाशनम्—नपुं॰—-—पश् + णिच् + ल्युट्—बंधन, फंदा, जाल, गुलेल या गोफिया
- पाशनम्—नपुं॰—-—पश् + णिच् + ल्युट्—डोरी, चाबुक या सोटे में लगी चमड़े की डोरी या तस्मा
- पाशनम्—नपुं॰—-—पश् + णिच् + ल्युट्—जाल में फंसाना, पिंजरे में बन्द करना
- पाशव—वि॰—-—पशु + अण्—जानवरों से प्राप्त, या संबंध रखने वाला
- पाशवम्—नपुं॰—-—पशु + अण्—रेवड़, लहंडा
- पाशवपालनम्—नपुं॰—पाशव-पालनम्—-—पशुचरण या चरागाह, गोचरभूमि
- पाशित—वि॰—-—पश् + णिच् + क्त—बद्ध, जाल में फंसा, बेड़ियों से जकड़ा हुआ
- पाशिन्—पुं॰—-—पाश + इति—वरुण का विशेषण
- पाशिन्—पुं॰—-—पाश + इति—यम का विशेषण
- पाशिन्—पुं॰—-—पाश + इति—हिरणों को पकड़ने वाला, बहेलिया, जाल में फंसने वाला
- पाशुपत—वि॰—-—पशुपति + अण्—पशुपति से प्राप्त, या पशुपति से सम्बद्ध अथवा पशुपति के लिए पावन
- पाशुपतः—पुं॰—-—पशुपति + अण्—शिव का अनुयायी और पूजक
- पाशुपतः—पुं॰—-—पशुपति + अण्—पशुपति के सिद्धान्तों का पालन करने वाला
- पाशुपतम्—नपुं॰—-—पशुपति + अण्—पाशुपत सिद्धांत
- पाशुपतस्त्रम्—नपुं॰—पाशुपत- अस्त्रम्—-—पशुपति या शिव द्वारा अधिष्ठित एक अस्त्र का नाम
- पाशुपाल्यम्—नपुं॰—-—पशुपाल + ष्यञ्—पशुओं का पालना, ग्वाले की वृत्ति या धंधा
- पाश्चात्य—वि॰—-—पश्चात् + त्यक्—पिछला
- पाश्चात्य—वि॰—-—पश्चात् + त्यक्—पश्चिमी
- पाश्चात्य—वि॰—-—पश्चात् + त्यक्—पश्चवर्ती, बाद का
- पाश्चात्य—वि॰—-—पश्चात् + त्यक्—बाद में होने वाला
- पाश्चात्यम्—नपुं॰—-—पश्चात् + त्यक्—पिछला भाग
- पाश्या—स्त्री॰—-—पाश + य + टाप्—जाल
- पाश्या—स्त्री॰—-—पाश + य + टाप्—रस्सियों या पौड़ियों का समूह
- पाषंडः—पुं॰—-—पा त्रयीधर्मः तं षंडयति- पा + षंड् + अच्—पांखड
- पाषंडकः—पुं॰—-—पाषंड + कन्—नास्तिक, धर्मभ्रष्ट, धर्म के नाम पर झूठा आडंबर रचने वाला धूर्त व्यक्ति
- पाषंडिन्—पुं॰—-—पा + षड् + णिनि—नास्तिक, धर्मभ्रष्ट, धर्म के नाम पर झूठा आडंबर रचने वाला धूर्त व्यक्ति
- पाषाणः—पुं॰—-—पिनष्टि पिष् संचूर्ण ने आनच् पृषो॰ तारा॰—पत्थर
- पाषाणी—स्त्री॰—-—-—बाट का काम देने वाला छोटा पत्थर
- पाषाणदारकः—पुं॰—पाषाणः-दारकः—-—टांकी
- पाषाणदारणः—पुं॰—पाषाणः-दारणः—-—टांकी
- पाषाणसंधिः—पुं॰—पाषाणः-संधिः—-—चट्टान के अन्दर गुफा या दरार
- पाषाणहृदय—वि॰—पाषाणः-हृदय—-—पत्थर की भांति कठोरहृदय, क्रूर, निष्ठुर