विक्षनरी:संस्कृत-हिन्दी शब्दकोश/पि-पौ
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- मूलशब्द—व्याकरण—संधिरहित मूलशब्द—व्युत्पत्ति—हिन्दी अर्थ
- पि—तुदा॰ पर॰ <पियति>—-—-—जाना, हिलना-जुलना
- पिकः—पुं॰—-—अपि कायति शब्दायते- अपि + कै + क, अकारलोपः—कोयल
- पिकानन्दः—पुं॰—पिकः-आनन्दः—-—बसन्तऋतु
- पिकबांधवः—पुं॰—पिकः-बांधवः—-—बसन्तऋतु
- पिकबंधुः—पुं॰—पिकः-बंधुः—-—आम का पेड़
- पिकरागः—पुं॰—पिकः-रागः—-—आम का पेड़
- पिकबल्लभः—पुं॰—पिकः-बल्लभः—-—आम का पेड़
- पिक्कः—पुं॰—-—पिक इत्यव्यक्तसब्देन कायति- पिक + कै + क—२० वर्ष की आयु का हाथी
- पिक्कः—पुं॰—-—पिक इत्यव्यक्तसब्देन कायति- पिक + कै + क—हाथी का बच्चा
- पिङ्ग—वि॰—-—पिञ्ज् वर्णो अच् कुत्वम्—लालिमा लिये भूरा रंग, खाकी, पीला-लाल रंग
- पिङ्गः—पुं॰—-—-—ख़ाकी या भूरा रंग
- पिङ्गः—पुं॰—-—-—भैंसा
- पिङ्गः—पुं॰—-—-—चूहा
- पिङ्गमा—पुं॰—-—-—हल्दी
- पिङ्गमा—पुं॰—-—-—केशर
- पिङ्गमा—पुं॰—-—-—एक प्रकार का पीला रोगन
- पिङ्गमा—पुं॰—-—-—चंडिका की उपाधि
- पिङ्गाक्ष—वि॰—पिङ्ग-अक्ष—-—ललाई लिये भूरे रंग की आँखों वाला, लाल आँखों वाला
- पिङ्गक्ष—पुं॰—पिङ्ग-क्ष—-—लंगूर
- पिङ्गक्ष—पुं॰—पिङ्ग-क्ष—-—शिव का विशेषण
- पिङ्गीक्षणः—पुं॰—पिङ्ग-ईक्षणः—-—शिव की उपाधि
- पिङ्गीशः—पुं॰—पिङ्ग-ईशः—-—अग्नि का विशेषण
- पिङ्गकपिशा—स्त्री॰—पिङ्ग-कपिशा—-—तेल चट्टा
- पिङ्गचक्षुस्—पुं॰—पिङ्ग-चक्षुस्—-—केकड़ा
- पिङ्गजटः—पुं॰—पिङ्ग-जटः—-—शिव का विशेषण
- पिङ्गसारः—पुं॰—पिङ्ग-सारः—-—हरताल
- पिङ्गस्फटिकः—पुं॰—पिङ्ग-स्फटिकः—-—‘पीला बिल्लौर’, गोमेद रत्न
- पिङ्गल—वि॰—-—पिङ्ग॰- सिध्मा॰ लच्, पिंगलाति ला + क व तारा॰—ललाई लिये भूरे रंग का, पीताभ, भूरा, खाकी
- पिङ्गलः—पुं॰—-—पिङ्ग॰- सिध्मा॰ लच्, पिंगलाति ला + क व तारा॰—खाकी रंग
- पिङ्गलः—पुं॰—-—पिङ्ग॰- सिध्मा॰ लच्, पिंगलाति ला + क व तारा॰—अग्नि
- पिङ्गलः—पुं॰—-—पिङ्ग॰- सिध्मा॰ लच्, पिंगलाति ला + क व तारा॰—बंदर
- पिङ्गलः—पुं॰—-—पिङ्ग॰- सिध्मा॰ लच्, पिंगलाति ला + क व तारा॰—एक प्रकार का नेक्ला
- पिङ्गलः—पुं॰—-—पिङ्ग॰- सिध्मा॰ लच्, पिंगलाति ला + क व तारा॰—छोटा उल्लू
- पिङ्गलः—पुं॰—-—पिङ्ग॰- सिध्मा॰ लच्, पिंगलाति ला + क व तारा॰—एक प्रकार का साँप
- पिङ्गलः—पुं॰—-—पिङ्ग॰- सिध्मा॰ लच्, पिंगलाति ला + क व तारा॰—सूर्य के एक अनुचर का नाम
- पिङ्गलः—पुं॰—-—पिङ्ग॰- सिध्मा॰ लच्, पिंगलाति ला + क व तारा॰—कुबेर के एक कोष का नाम
- पिङ्गलः—पुं॰—-—पिङ्ग॰- सिध्मा॰ लच्, पिंगलाति ला + क व तारा॰—एक प्रसिद्ध ऋषि का नाम, संस्कृत के छन्दः शास्त्र का प्रणेता, उसकी कृति का नास
- पिङ्गलम्—नपुं॰—-—पिङ्ग॰- सिध्मा॰ लच्, पिंगलाति ला + क व तारा॰—पीतल
- पिङ्गलम्—नपुं॰—-—पिङ्ग॰- सिध्मा॰ लच्, पिंगलाति ला + क व तारा॰—पीले रंग की हरताल
- पिङ्गला—स्त्री॰—-—पिङ्ग॰- सिध्मा॰ लच्, पिंगलाति ला + क व तारा॰—एक प्रकार का उल्लू
- पिङ्गला—स्त्री॰—-—पिङ्ग॰- सिध्मा॰ लच्, पिंगलाति ला + क व तारा॰—शीशम का वृक्ष
- पिङ्गला—स्त्री॰—-—पिङ्ग॰- सिध्मा॰ लच्, पिंगलाति ला + क व तारा॰—एक प्रकार की धातु
- पिङ्गला—स्त्री॰—-—पिङ्ग॰- सिध्मा॰ लच्, पिंगलाति ला + क व तारा॰—शरीर की विशेष वाहिका
- पिङ्गला—स्त्री॰—-—पिङ्ग॰- सिध्मा॰ लच्, पिंगलाति ला + क व तारा॰—दक्षिण देश की हथिनी
- पिङ्गला—स्त्री॰—-—पिङ्ग॰- सिध्मा॰ लच्, पिंगलाति ला + क व तारा॰—एक गणिका जो अपनी पवित्रता तथा पावन जीवन के कारण प्रसिद्ध है
- पिङ्गलाक्षः—पुं॰—पिङ्गल-अक्षः—-—शिव का विशेषण
- पिङ्गलिका—स्त्री॰—-—पिंगल + ठन् + टाप्—एक प्रकार का सारस
- पिङ्गलिका—स्त्री॰—-—पिंगल + ठन् + टाप्—एक प्रकार का उल्लू
- पिङ्गाशः—पुं॰—-—पिंग + अश् + अण्—गाँव का मुखिया या मालिक
- पिङ्गाशः—पुं॰—-—पिंग + अश् + अण्—एक प्रकार की मछली
- पिङ्गाशम्—नपुं॰—-—पिंग + अश् + अण्—प्राकृत स्वर्ण
- पिङ्गाशी—स्त्री॰—-—पिंग + अश् + अण्+ ङीप्—नील का पौधा
- पिचण्डः—पुं॰—-—अपि + चण्ड् + द्यञ्—पेट, उदर
- पिचण्डम्—नपुं॰—-—अपि + चण्ड् + द्यञ्—पेट, उदर
- पिचिण्डः—पुं॰—-—अपि + चण्ड् + द्यञ्, अकारलोपः—पेट, उदर
- पिचिण्डम्—नपुं॰—-—अपि + चण्ड् + द्यञ्, अकारलोपः, पृषो॰—पेट, उदर
- पिचण्डकः—पुं॰—-—पिचण्ड + कन्—पेटू, औदरिक
- पिचिण्डिका—स्त्री॰—-—पिचिंड + ठन् + टाप्—पिंडली, टांग की पिंडली
- पिचिण्डिल—वि॰—-—पिचिंड + इलच्—मोटे पेट वाला, स्थूलकाय
- पिचुः—पुं॰—-—पच् + उ पृषो॰ तारा॰—रूई
- पिचुः—पुं॰—-—पच् + उ पृषो॰ तारा॰—एक प्रकार का बाट, (दो तोल के बराबर) कर्ष
- पिचुः—पुं॰—-—पच् + उ पृषो॰ तारा॰—एक प्रकार का कोढ़
- पिचुतलम्—नपुं॰—पिचुः-तलम्—-—रूई
- पिचुमन्दः—पुं॰—पिचुः-मन्दः—-—नीम का पेड़
- पिचुमर्दः—पुं॰—पिचुः-मर्दः—-—नीम का पेड़
- पिचुलः—पुं॰—-—पिचु + ला + क—रूई
- पिचुलः—पुं॰—-—पिचु + ला + क—एक प्रकार का जलकाक या समुद्री कौवा
- पिच्चट—वि॰—-—पिच्च् +अटन्—दबाकर चपटा किया हुआ
- पिच्चटः—पुं॰—-—-—आँखों की सूजन, नेत्र-प्रवाह
- पिच्चटम्—नपुं॰—-—-—राँगा, जस्ता
- पिच्चटम्—नपुं॰—-—-—सीसा
- पिच्चा—स्त्री॰—-—पिच्च् + अच् + टाप्—१६ मोतियों की एक लड़ जिसका वज़न एक धरण (मोतियों की विशेष तोल) हो
- पिच्छम्—नपुं॰—-—पिच्छ् + अच्—पूँछ का पर (जैसे मौर का)
- पिच्छम्—नपुं॰—-—पिच्छ् + अच्—मोर की पूँछ
- पिच्छम्—नपुं॰—-—पिच्छ् + अच्—बाण के पंख
- पिच्छम्—नपुं॰—-—पिच्छ् + अच्—बाजू
- पिच्छम्—नपुं॰—-—पिच्छ् + अच्—कलगी, शिखा
- पिच्छः—पुं॰—-—पिच्छ् + अच्—पूँछ
- पिच्छा—स्त्री॰—-—पिच्छ् + अच्+ टाप्—म्यान, गिलाफ, कोष
- पिच्छा—स्त्री॰—-—पिच्छ् + अच्+ टाप्—चावल का मांड
- पिच्छा—स्त्री॰—-—पिच्छ् + अच्+ टाप्—पंक्ति, श्रेणी
- पिच्छा—स्त्री॰—-—पिच्छ् + अच्+ टाप्—ढेर, समुच्चय
- पिच्छा—स्त्री॰—-—पिच्छ् + अच्+ टाप्—रेशमीकपास के पौधे का गोंद या रस
- पिच्छा—स्त्री॰—-—पिच्छ् + अच्+ टाप्—केला
- पिच्छा—स्त्री॰—-—पिच्छ् + अच्+ टाप्—कवच
- पिच्छा—स्त्री॰—-—पिच्छ् + अच्+ टाप्—टाँग की पिंडली
- पिच्छा—स्त्री॰—-—पिच्छ् + अच्+ टाप्—साँप की विषमय लार
- पिच्छा—स्त्री॰—-—पिच्छ् + अच्+ टाप्—सुपारी
- पिच्छवाणः—पुं॰—पिच्छम्-वाणः—-—बाज़, श्येन
- पिच्छल—वि॰—-—पिच्छ् + लच्—चिपचिपा, चिकना, फिसलनवाला, लसलसा
- पिच्छल—वि॰—-—पिच्छ् + लच्—पूँछवाला
- पिच्छलः—पुं॰—-—पिच्छ् + लच्—चावलों का मांड, भुक्तमंड
- पिच्छलः—पुं॰—-—पिच्छ् + लच्—चावल की कांजी से युक्त चटनी
- पिच्छलः—पुं॰—-—पिच्छ् + लच्—मलाई समेत दही
- पिच्छला—स्त्री॰—-—पिच्छ् + लच्+टाप्—चावलों का मांड, भुक्तमंड
- पिच्छला—स्त्री॰—-—पिच्छ् + लच्+टाप्—चावल की कांजी से युक्त चटनी
- पिच्छला—स्त्री॰—-—पिच्छ् + लच्+टाप्—मलाई समेत दही
- पिच्छलम्—नपुं॰—-—पिच्छ् + लच्—चावलों का मांड, भुक्तमंड
- पिच्छलम्—नपुं॰—-—पिच्छ् + लच्—चावल की कांजी से युक्त चटनी
- पिच्छलम्—नपुं॰—-—पिच्छ् + लच्—मलाई समेत दही
- पिच्छलत्वच्—पुं॰—-—-—संतरे का पेड़ या छिल्का
- पिञ्ज्—अदा॰ आ॰ <पिक्ते>—-—-—हल्के रंग की, पुट देना, रगना
- पिञ्ज्—अदा॰ आ॰ <पिक्ते>—-—-—स्पर्श करना
- पिञ्ज्—अदा॰ आ॰ <पिक्ते>—-—-—सजाना
- पिञ्ज्—चुरा॰ उभ॰ <पिंजयति>, <पिंजयते>—-—-—देना
- पिञ्ज्—चुरा॰ उभ॰ <पिंजयति>, <पिंजयते>—-—-—लेना
- पिञ्ज्—चुरा॰ उभ॰ <पिंजयति>, <पिंजयते>—-—-—चमकना
- पिञ्ज्—चुरा॰ उभ॰ <पिंजयति>, <पिंजयते>—-—-—शक्तिशाली होना
- पिञ्ज्—चुरा॰ उभ॰ <पिंजयति>, <पिंजयते>—-—-—रहना, बसना
- पिञ्ज्—चुरा॰ उभ॰ <पिंजयति>, <पिंजयते>—-—-—चोट पहुंचाना, क्षति पहुंचाना, मार डालना
- पिञ्जः—पुं॰—-—पिंज् + घञ्, अच् वा—चन्द्रमा
- पिञ्जः—पुं॰—-—पिंज् + घञ्, अच् वा—कपूर
- पिञ्जः—पुं॰—-—पिंज् + घञ्, अच् वा—हत्या, वध
- पिञ्जः—पुं॰—-—पिंज् + घञ्, अच् वा—ढेर
- पिञ्जम्—नपुं॰—-—-—सामर्थ्य, शक्ति
- पिञ्जा—स्त्री॰—-—-—क्षति, चोट
- पिञ्जा—स्त्री॰—-—-—हल्दी
- पिञ्जा—स्त्री॰—-—-—कपास
- पिञ्जटः—पुं॰—-—पिंज् + अटन्—दीद, आँख की कीच
- पिञ्जनम्—नपुं॰—-—पिंज् + ल्युट्—धुनकी, रूई धुनने का धनुषाकार उपकरण
- पिञ्जर—वि॰—-—पिंज् + अरच्—ललाई लिये पीले रंग का खाकी, सुनहरी रंग का
- पिञ्जरः—पुं॰—-—पिंज् + अरच्—ललाई लिये पीला या खाकी भूरा रंग
- पिञ्जरः—पुं॰—-—पिंज् + अरच्—पीला रंग
- पिञ्जरम्—नपुं॰—-—पिंज् + अरच्—सोना
- पिञ्जरम्—नपुं॰—-—पिंज् + अरच्—हरताल
- पिञ्जरम्—नपुं॰—-—पिंज् + अरच्—अस्थिपंजर
- पिञ्जरम्—नपुं॰—-—पिंज् + अरच्—पिंजड़ा
- पिञ्जरकम्—नपुं॰—-—पिंजर + कन्—हरताल
- पिञ्जरित—वि॰—-—पिंजर + इतच्—पीले रंग का, हल्के भूरे रंग का
- पिञ्जल—वि॰—-—पिंज् + कलच्—शोकसंतप्त, भयभीत, व्याकुल, विस्मित
- पिञ्जल—वि॰—-—पिंज् + कलच्—(सेना आदि) आतंकित
- पिञ्जलम्—नपुं॰—-—पिंज् + कलच्—हरताल
- पिञ्जलम्—नपुं॰—-—पिंज् + कलच्—कुश की पत्ती
- पिञ्जालम्—नपुं॰—-—पिंज् + आलच्—सोना,सुवर्ण
- पिञ्जिका—स्त्री॰—-—पिंज + ण्वुल् + टाप्, इत्वम्—पूनी, रूई का गोल गल्हा जिससे कातने पर सूत निकलता है
- पिञ्जूषः—पुं॰—-—पिंज् + ऊषण्—कान का मैल
- पिञ्जटः—पुं॰—-—पिंजट, पृषो॰—आँखों की कीच, दीद
- पिञ्जोला—स्त्री॰—-—पिंज् + ओल + टाप्—पत्तों की खड़खड़ाहट, पत्तों छप्पर, छत
- पिटकः—पुं॰—-—पिट + कन्—सन्दूक, टोकरी
- पिटकः—पुं॰—-—पिट + कन्—खत्ती
- पिटकः—पुं॰—-—पिट + कन्—फुंसी फफोला, छोटा फोड़ा, नासूर
- पिटकः—पुं॰—-—पिट + कन्—इन्द्र के झंडे पर एक प्रकार का आभूषण
- पिटकम्—नपुं॰—-—पिट + कन्—सन्दूक, टोकरी
- पिटकम्—नपुं॰—-—पिट + कन्—खत्ती
- पिटकम्—नपुं॰—-—पिट + कन्—फुंसी फफोला, छोटा फोड़ा, नासूर
- पिटकम्—नपुं॰—-—पिट + कन्—इन्द्र के झंडे पर एक प्रकार का आभूषण
- पिटक्या—स्त्री॰—-—पिटक + य + टाप्—सन्दूकों का ढेर
- पिटाकः—पुं॰—-—पिट् + काक बा॰—पिटारी, सन्दूक
- पिट्टकम्—नपुं॰—-—किट्टक, पृषो॰ कस्य पः—दाँतो का जमा हुआ मैल
- पिठरः—पुं॰—-—पिठ् + करन्—बर्तन, तसला, बटलोई
- पिठरम्—नपुं॰—-—पिठ् + करन्—बर्तन, तसला, बटलोई
- पिठरम्—नपुं॰—-—पिठ् + करन्—रई का डंडा
- पिठरकः—पुं॰—-—पिठर + कन्—बर्तन, तसला
- पिठरकम्—नपुं॰—-—पिठर + कन्—बर्तन, तसला
- पिठरककपाल—पुं॰—पिठरकः-कपाल—-—ठीकरा, खपड़ी, खप्पर
- पिठरककपालम्—नपुं॰—पिठरकः-कपालम्—-—ठीकरा, खपड़ी, खप्पर
- पिण्डकः—वि॰—-—पीड् + ण्वुल्, नि॰ साधुः—छोटा फोड़ा, फुंसी, फफोला
- पिण्डका—वि॰—-—पीड् + ण्वुल्, नि॰ साधुः—छोटा फोड़ा, फुंसी, फफोला
- पिण्ड्—भ्वा॰ आ॰ <पिंडते>, चुरा॰ उभ॰ <पिंडयति>, <पिंडयते>—-—-—इकट्ठा करके पिंडी या गोला बनाना
- पिण्ड्—भ्वा॰ आ॰ <पिंडते>, चुरा॰ उभ॰ <पिंडयति>, <पिंडयते>—-—-—जोड़ना, मिलाना
- पिण्ड्—भ्वा॰ आ॰ <पिंडते>, चुरा॰ उभ॰ <पिंडयति>, <पिंडयते>—-—-—ढेर लगाना, इकट्ठा करना
- पिण्ड—वि॰—-—पिण्ड् + अच्—ठोस, घन
- पिण्ड—वि॰—-—पिण्ड् + अच्—मिला हुआ, सघन, सटा हुआ
- पिण्डः—पुं॰—-—पिण्ड् + अच्—पिंडी, गोला, गोलक
- पिण्डः—पुं॰—-—पिण्ड् + अच्—लौंदा, ढेला (मिट्टी का)
- पिण्डः—पुं॰—-—पिण्ड् + अच्—कौर, ग्रास, मुंहभर कवल
- पिण्डः—पुं॰—-—पिण्ड् + अच्—श्राद्ध में पितरों को दिया जाने वाला चावलों का पिंड
- पिण्डः—पुं॰—-—पिण्ड् + अच्—भोजन
- पिण्डः—पुं॰—-—पिण्ड् + अच्—जीविका, वृत्ति, निर्वाह
- पिण्डः—पुं॰—-—पिण्ड् + अच्—दान
- पिण्डः—पुं॰—-—पिण्ड् + अच्—मांस, आमिष
- पिण्डः—पुं॰—-—पिण्ड् + अच्—गर्भधारण को आरंभिक अवस्था का गर्भ
- पिण्डः—पुं॰—-—पिण्ड् + अच्—शरीर, शारीरिक ढांचा
- पिण्डः—पुं॰—-—पिण्ड् + अच्—ढेर, संग्रहम् समुच्चय
- पिण्डः—पुं॰—-—पिण्ड् + अच्—टांग की पिंडली
- पिण्डः—पुं॰—-—पिण्ड् + अच्—हाथी का कुंभस्थल
- पिण्डः—पुं॰—-—पिण्ड् + अच्—मकान के आगे का निकाला हुआ छज्जा
- पिण्डः—पुं॰—-—पिण्ड् + अच्—धूप, या गंध द्रव्य
- पिण्डः—पुं॰—-—पिण्ड् + अच्—जोड़, कुलयोग
- पिण्डः—पुं॰—-—पिण्ड् + अच्—घनत्व
- पिण्डम्—नपुं॰—-—पिण्ड् + अच्—पिंडी, गोला, गोलक
- पिण्डम्—नपुं॰—-—पिण्ड् + अच्—लौंदा, ढेला (मिट्टी का)
- पिण्डम्—नपुं॰—-—पिण्ड् + अच्—कौर, ग्रास, मुंहभर कवल
- पिण्डम्—नपुं॰—-—पिण्ड् + अच्—श्राद्ध में पितरों को दिया जाने वाला चावलों का पिंड
- पिण्डम्—नपुं॰—-—पिण्ड् + अच्—भोजन
- पिण्डम्—नपुं॰—-—पिण्ड् + अच्—जीविका, वृत्ति, निर्वाह
- पिण्डम्—नपुं॰—-—पिण्ड् + अच्—दान
- पिण्डम्—नपुं॰—-—पिण्ड् + अच्—मांस, आमिष
- पिण्डम्—नपुं॰—-—पिण्ड् + अच्—गर्भधारण को आरंभिक अवस्था का गर्भ
- पिण्डम्—नपुं॰—-—पिण्ड् + अच्—शरीर, शारीरिक ढांचा
- पिण्डम्—नपुं॰—-—पिण्ड् + अच्—ढेर, संग्रहम् समुच्चय
- पिण्डम्—नपुं॰—-—पिण्ड् + अच्—टांग की पिंडली
- पिण्डम्—नपुं॰—-—पिण्ड् + अच्—हाथी का कुंभस्थल
- पिण्डम्—नपुं॰—-—पिण्ड् + अच्—मकान के आगे का निकाला हुआ छज्जा
- पिण्डम्—नपुं॰—-—पिण्ड् + अच्—धूप, या गंध द्रव्य
- पिण्डम्—नपुं॰—-—पिण्ड् + अच्—जोड़, कुलयोग
- पिण्डम्—नपुं॰—-—पिण्ड् + अच्—घनत्व
- पिण्डम्—नपुं॰—-—पिण्ड् + अच्—शक्ति, सामर्थ्य, ताक़त
- पिण्डम्—नपुं॰—-—पिण्ड् + अच्—लोहा
- पिण्डम्—नपुं॰—-—पिण्ड् + अच्—ताज़ा मक्खन
- पिण्डम्—नपुं॰—-—पिण्ड् + अच्—सेना
- पिण्ड कृ——-—-—गोले बनाना, निष्पीडित करना, ढेर लगाना
- पिण्डीभू——-—-—गोले या लौंदे बनाना
- पिण्डान्वाहार्य—वि॰—पिण्ड-अन्वार्हाय—-—पितरों को पिंड दान के पश्वात् खाने के योग्य
- पिण्डान्वाहार्यकम्—नपुं॰—पिण्ड-अन्वार्हायकम्—-—पितरों के उद्देश्य से दिया हुआ भोजन
- पिण्डाभ्रम्—नपुं॰—पिण्ड-अभ्रम्—-—ओला
- पिण्डायसम्—नपुं॰—पिण्ड-अयसम्—-—इस्पात
- पिण्डालक्तकः—पुं॰—पिण्ड-अलक्तकः—-—महावर, लाल रंग
- पिण्डांशनः—पुं॰—पिण्ड-अंशनः—-—भिक्षुक
- पिण्डाशः—पुं॰—पिण्ड-आशः—-—भिक्षुक
- पिण्डाशकः—पुं॰—पिण्ड-आशकः—-—भिक्षुक
- पिण्डाशिन्—पुं॰—पिण्ड-आशिन्—-—भिक्षुक
- पिण्डोदकक्रिया—स्त्री॰—पिण्ड-उदकक्रिया—-—मृतव्यक्तियों के निमित्त पिण्डदान तथा जलदान, श्राद्ध और तर्पण
- पिण्डोद्धरणम्—नपुं॰—पिण्ड-उद्धरणम्—-—पिंडदान में भाग लेना
- पिण्डगोसः—पुं॰—पिण्ड-गोसः—-—रसगंध, लोबान की तरह का सुगंधित गोंद
- पिण्डतैलम्—नपुं॰—पिण्ड-तैलम्—-—गंधद्रव्य विशेष, लोबान
- पिण्डतैलकः—नपुं॰—पिण्ड-तैलकः—-—गंधद्रव्य विशेष, लोबान
- पिण्डद—वि॰—पिण्ड-द—-—जो भोजन देता है, जीवन निर्वाह के लिए आहार देने वाला
- पिण्डद—वि॰—पिण्ड-द—-—मृत पितरों को पिण्ड देने का अधिकारी
- पिण्डदः—पुं॰—पिण्ड-दः—-—पिंडदान करने वाला निकटतम संबंधी पुरुष
- पिण्डदः—पुं॰—पिण्ड-दः—-—स्वामी, अभिरक्षक
- पिण्डदानम्—नपुं॰—पिण्ड-दानम्—-—अन्त्येष्टि क्रिया के समय पिंड देना
- पिण्डदानम्—नपुं॰—पिण्ड-दानम्—-—अमावस्या की संध्या के समय पितरों को पिंडदान देना
- पिण्डनिर्वपणम्—नपुं॰—पिण्ड-निर्वपणम्—-—पितरों को पिंडदान देना
- पिण्डपातः—पुं॰—पिण्ड-पातः—-—भिक्षा देना
- पिण्डपातिकः—पुं॰—पिण्ड-पातिकः—-—भिक्षा से जीविका चलाने वाला
- पिण्डपादः—पुं॰—पिण्ड-पादः—-—हाथी
- पिण्डपाद्यः—पुं॰—पिण्ड-पाद्यः—-—हाथी
- पिण्डपुष्पः—पुं॰—पिण्ड-पुष्पः—-—अशोक वृक्ष
- पिण्डपुष्पः—पुं॰—पिण्ड-पुष्पः—-—चीन का गुलाब
- पिण्डपुष्पः—पुं॰—पिण्ड-पुष्पः—-—अनार
- पिण्डपुष्पम्—नपुं॰—पिण्ड-पुष्पम्—-—अशोक वृक्ष पर फूल आना, मंजरी
- पिण्डपुष्पम्—नपुं॰—पिण्ड-पुष्पम्—-—चीनी गुलाब का फूल
- पिण्डपुष्पम्—नपुं॰—पिण्ड-पुष्पम्—-—कमल फूल
- पिण्डभाज्—वि॰—पिण्ड-भाज्—-—पिंड प्राप्त करने का अधिकारी
- पिण्डभाज्—पुं॰—पिण्ड-भाज्—-—स्वर्गीय मृत पुरुष या पितर
- पिण्डभृतिः—स्त्री॰—पिण्ड-भृतिः—-—जीविका, जीवन निर्वाह का साधन
- पिण्डमूलम्—नपुं॰—पिण्ड-मूलम्—-—गाजर
- पिण्डमूलकम्—नपुं॰—पिण्ड-मूलकम्—-—गाजर
- पिण्डयज्ञः—पुं॰—पिण्ड-यज्ञः—-—श्राद्ध करके पितरों का पिंडदान देना
- पिण्डलेपः—पुं॰—पिण्ड-लेपः—-—पिंड का वह अंश जो हाथ में चिपका रह जाता है
- पिण्डलोपः—पुं॰—पिण्ड-लोपः—-—(संतान न होने के कारण) पिंडदान का अभाव
- पिण्डसंबन्धः—पुं॰—पिण्ड-संबन्धः—-—जीवित तथा मृत व्यक्ति के बीच का संबंध जिससे कि पिंडदाता की पिंडभोक्ता के प्रति पात्रता का निर्धारण किया जाय
- पिण्डकः—पुं॰—-—पिण्ड + कै + क—लौंदा, गोला, गोलक
- पिण्डकः—पुं॰—-—पिण्ड + कै + क—गूमड़ा या सूजन
- पिण्डकः—पुं॰—-—पिण्ड + कै + क—भोजन का ग्रास
- पिण्डकः—पुं॰—-—पिण्ड + कै + क—टांग की पिंडली
- पिण्डकः—पुं॰—-—पिण्ड + कै + क—गंधद्रव्य, लोबान
- पिण्डकः—पुं॰—-—पिण्ड + कै + क—गाजर
- पिण्डकम्—नपुं॰—-—पिण्ड + कै + क—लौंदा, गोला, गोलक
- पिण्डकम्—नपुं॰—-—पिण्ड + कै + क—गूमड़ा या सूजन
- पिण्डकम्—नपुं॰—-—पिण्ड + कै + क—भोजन का ग्रास
- पिण्डकम्—नपुं॰—-—पिण्ड + कै + क—टांग की पिंडली
- पिण्डकम्—नपुं॰—-—पिण्ड + कै + क—गंधद्रव्य, लोबान
- पिण्डकम्—नपुं॰—-—पिण्ड + कै + क—गाजर
- पिण्डकः—पुं॰—-—पिण्ड + कै + क—बैताल, पिशाच
- पिण्डनम्—पुं॰—-—पिंड् + ल्युट्—गोले या पिण्ड बनाना
- पिण्डलः—पुं॰—-—पिंड् + कलच्—पुल, बाँध
- पिण्डलः—पुं॰—-—पिंड् + कलच्—टीला, ऊर्ध्वभूमि या शैलशिला
- पिण्डसः—पुं॰—-—पिंड + सन् + ड—भिक्षुक, भिक्षा पर जीवन यापन करने वाला साधु
- पिण्डातः—पुं॰—-—पिंड + अत् + अच्—लोबान, गंधद्रव्य
- पिण्डातः—पुं॰—-—पिंड + ऋ + अण्—साधु, भिक्षुक
- पिण्डातः—पुं॰—-—पिंड + ऋ + अण्—ग्वाला
- पिण्डातः—पुं॰—-—पिंड + ऋ + अण्—भैसों को चराने वाला
- पिण्डातः—पुं॰—-—पिंड + ऋ + अण्—विकंकत वृक्ष
- पिण्डातः—पुं॰—-—पिंड + ऋ + अण्—निन्दा की अभिव्यक्ति
- पिण्डिः—पुं॰—-—पिंड् + इन्—पिन्नी, गोला
- पिण्डिः—पुं॰—-—पिंड् + इन्—पहिये की नाभि
- पिण्डिः—पुं॰—-—पिंड् + इन्—टांग की पिंडली
- पिण्डिः—पुं॰—-—पिंड् + इन्—लौकी, घीया
- पिण्डिः—पुं॰—-—पिंड् + इन्—घर
- पिण्डिः—पुं॰—-—पिंड् + इन्—ताड़ की जाति का वृक्ष
- पिण्डी —स्त्री॰—-—पिंडि + ङीष्—पिन्नी, गोला
- पिण्डी —स्त्री॰—-—पिंडि + ङीष्—पहिये की नाभि
- पिण्डी —स्त्री॰—-—पिंडि + ङीष्—टांग की पिंडली
- पिण्डी —स्त्री॰—-—पिंडि + ङीष्—लौकी, घीया
- पिण्डी —स्त्री॰—-—पिंडि + ङीष्—घर
- पिण्डी —स्त्री॰—-—पिंडि + ङीष्—ताड़ की जाति का वृक्ष
- पिण्डिपुष्पः—पुं॰—पिण्डिः-पुष्पः—-—अशोक वृक्ष
- पिण्डिलेपः—पुं॰—पिण्डिः-लेपः—-—एक प्रकार का लेप या उबटन
- पिण्डिशूरः—पुं॰—पिण्डि-शूरः—-—‘गेहेशूरः’ पेटू, डींग हाकने वाला, कायर, आत्मश्लाघी, भीरु, मेहरा
- पिण्डिका—स्त्री॰—-—पिण्ड् + ण्वुल्, इत्वम्—घूम, गोलाकार सूजन
- पिण्डिका—स्त्री॰—-—पिण्ड् + ण्वुल्, इत्वम्—टांग की पिंडली
- पिण्डित—वि॰—-—पिण्ड् + क्त—दबा दबा कर बनाया गया गोला या पिण्डा
- पिण्डित—वि॰—-—पिण्ड् + क्त—पिंडाकार बकाया हुआ, लौंदे जैसा
- पिण्डित—वि॰—-—पिण्ड् + क्त—ढेर किया हुआ, बटौड़ा
- पिण्डित—वि॰—-—पिण्ड् + क्त—मिश्रित
- पिण्डित—वि॰—-—पिण्ड् + क्त—जोड़ा हुआ, गुणा किया हुआ
- पिण्डित—वि॰—-—पिण्ड् + क्त—गिना हुआ, संख्यात
- पिण्डिन्—वि॰—-—पिंड + इनि—पिंड प्राप्त करने वाला (पितर)
- पिण्डिन्—वि॰—-—पिंड + इनि—भिखारी
- पिण्डिन्—पुं॰—-—पिंड + इनि—पितरों को पिण्डदान देने वाला
- पिण्डिलः—पुं॰—-—पिण्ड + इलच्—पुल, बाँध
- पिण्डिलः—पुं॰—-—पिण्ड + इलच्—ज्योतिषी, गणक
- पिण्डीर—वि॰—-—पिण्ड + ईर् + णिच्—फीका, रसहीन, नीरस, सूखा
- पिण्डीरः—वि॰—-—पिण्ड + ईर् + णिच्—अनार का वृक्ष
- पिण्डीरः—वि॰—-—पिण्ड + ईर् + णिच्—मसीक्षेपी का भीतरीं कवच
- पिण्डीरः—वि॰—-—पिण्ड + ईर् + णिच्—समुद्रफेन
- पिण्डोलिः—स्त्री॰—-—पिण्ड् + ओलि—खाते समय मुँह से गिरा कण, जूठन, उच्छिष्ट
- पिण्याकः—पुं॰—-—पिष् + आक, नि॰ साधुः—खल (तिल या सरसों की)
- पिण्याकः—पुं॰—-—पिष् + आक, नि॰ साधुः—गन्ध द्रव्य, लोबान
- पिण्याकः—पुं॰—-—पिष् + आक, नि॰ साधुः—केशर
- पिण्याकः—पुं॰—-—पिष् + आक, नि॰ साधुः—हींग
- पिण्याकम्—नपुं॰—-—पिष् + आक, नि॰ साधुः—खल (तिल या सरसों की)
- पिण्याकम्—नपुं॰—-—पिष् + आक, नि॰ साधुः—गन्ध द्रव्य, लोबान
- पिण्याकम्—नपुं॰—-—पिष् + आक, नि॰ साधुः—केशर
- पिण्याकम्—नपुं॰—-—पिष् + आक, नि॰ साधुः—हींग
- पितामहः—पुं॰—-—पितृ + डामहच्—दादा, बाबा
- पितामहः—पुं॰—-—पितृ + डामहच्—ब्रह्मा का विशेषण
- पितृ—पुं॰—-—पाति रक्षति - पा + तृच्—पिता
- पितरौ—पुं॰—-—-—पिता-माता, माता-पिता
- पितरः—पुं॰—-—-—पूर्वपुरुष, पूर्वज, पिता
- पितरः—पुं॰—-—-—पितृकुल के पितर, पितृवर्ग
- पित्रर्जित—वि॰—पितृ-अर्जित—-—पिता द्वारा कमाई हुई पैतृक (संपत्ति)
- पितृकर्मन्—नपुं॰—पितृ-कर्मन्—-—मृत पूर्व पुरुषों के निमित्त किया जाने वाला याग या श्राद्धकर्म
- पितृकार्यम्—नपुं॰—पितृ-कार्यम्—-—मृत पूर्व पुरुषों के निमित्त किया जाने वाला याग या श्राद्धकर्म
- पितृकृत्यम्—नपुं॰—पितृ-कृत्यम्—-—मृत पूर्व पुरुषों के निमित्त किया जाने वाला याग या श्राद्धकर्म
- पितृक्रिया—स्त्री॰—पितृ-क्रिया—-—मृत पूर्व पुरुषों के निमित्त किया जाने वाला याग या श्राद्धकर्म
- पितृकाननम्—नपुं॰—पितृ-काननम्—-—कब्रिस्तान
- पितृकुल्या—स्त्री॰—पितृ- कुल्या—-—मलय पर्वत से निकलने वाली नदी
- पितृगणः—पुं॰—पितृ-गणः—-—पूर्वपुरुषों के समस्त वर्ग
- पितृगणः—पुं॰—पितृ-गणः—-—पितर, वंश प्रवर्तक जो प्रजापति के पुत्र थे
- पितृगृहम्—नपुं॰—पितृ-गृहम्—-—पिता का घर
- पितृगृहम्—नपुं॰—पितृ-गृहम्—-—कब्रिस्तान, जहाँ दफन किये जायँ
- पितृघातकः—पुं॰—पितृ-घातकः—-—पिता की हत्या करने वाला
- पितृघातिन्—पुं॰—पितृ-घातिन्—-—पिता की हत्या करने वाला
- पितृतर्पणम्—नपुं॰—पितृ-तर्पणम्—-—पितरों को दी जाने वाली आहुति या जलदान
- पितृतर्पणम्—नपुं॰—पितृ-तर्पणम्—-—(मार्जन के अवसर पर) पितर तथा अन्य दिवंगत पूर्वजों के निमित्त दायें हाथ से जल छोड़ना
- पितृतर्पणम्—नपुं॰—पितृ-तर्पणम्—-—तिल
- पितृतिथिः—स्त्री॰—पितृ-तिथिः—-—अमावस्या
- पितृतीर्थम्—नपुं॰—पितृ-तीर्थम्—-—गया तीर्थ जहाँ जाकर पितरों के निमित्त श्राद्ध करना विशेष रूप से फलदायक विहित है
- पितृतीर्थम्—नपुं॰—पितृ-तीर्थम्—-—अँगूठे और तर्जनी के मध्य का भाग
- पितृदानम्—नपुं॰—पितृ-दानम्—-—पितरों के निमित्त किया जाने वाला दान
- पितृदायः—पुं॰—पितृ-दायः—-—पिता से प्राप्त संपत्ति
- पितृदिनम्—नपुं॰—पितृ-दिनम्—-—अमावस्या
- पितृदेव—वि॰—पितृ-देव—-—पिता की पूजा करने वाला
- पितृदेव—वि॰—पितृ-देव—-—पितरों की पूजा से संबद्ध
- पितृदेवाः—पुं॰—पितृ-देवाः—-—अग्निष्वात्त आदि दिव्य पितर
- पितृदैवत—वि॰—पितृ-दैवत—-—पितरों द्वारा अधिष्ठित
- पितृदैवतम्—नपुं॰—पितृ-दैवतम्—-—दसवाँ (मघा) नक्षत्र
- पितृद्रव्यम्—नपुं॰—पितृ-द्रव्यम्—-—पिता से प्राप्त संपत्ति
- पितृपक्षः—पुं॰—पितृ-पक्षः—-—पितृकुल, पैतृक संबंध
- पितृपक्षः—पुं॰—पितृ-पक्षः—-—पितृकुल के संबंधी
- पितृपक्षः—पुं॰—पितृ-पक्षः—-—पितृ पक्ष आश्विन मास का कृष्ण पक्ष जिसमें पितृकृत्य करना प्रशस्त माना गया है
- पितृपतिः—पुं॰—पितृ-पतिः—-—यम का विशेषण
- पितृपदम्—नपुं॰—पितृ-पदम्—-—पितरों का लोक
- पितृपितृ—पुं॰—पितृ-पितृ—-—दादा, बाबा, पितामह
- पितृपुत्रौ—पुं॰—पितृ-पुत्रौ—-—पिता और पुत्र
- पितृपूजनम्—नपुं॰—पितृ-पूजनम्—-—पितरों की पूजा
- पितृपैतामह—वि॰—पितृ-पैतामह—-—पूर्व पुरुषों से प्राप्त, पैतृक, आनुवंशिक
- पितृपैतामहाः—ब॰ व॰—पितृ-पैतामहाः—-—पूर्व पुरुष
- पितृप्रसूः—स्त्री॰—पितृ-प्रसूः—-—दादी
- पितृप्रसूः—स्त्री॰—पितृ-प्रसूः—-—सांध्यकालीन झुटपुटा
- पितृप्राप्तः—वि॰—पितृ-प्राप्तः—-—पिता से प्राप्त
- पितृप्राप्तः—वि॰—पितृ-प्राप्तः—-—पितृकुल क्रमागत से प्राप्त
- पितृबन्धुः—पुं॰—पितृ-बन्धुः—-—पितृकुल के नातेदार
- पितृबन्धुः—नपुं॰—पितृ-बन्धुः—-—पिता के संबंध से रिश्तेदारी
- पितृभक्त—वि॰—पितृ-भक्त—-—पिता का कर्तव्य परायण भक्त
- पितृभक्तिः—स्त्री॰—पितृ-भक्तिः—-—पिता के प्रति कर्तव्य
- पितृभोजनम्—नपुं॰—पितृ-भोजनम्—-—पितरों को दिया गया भोजन
- पितृभ्रातृ—पुं॰—पितृ-भ्रातृ—-—पिता का भाई, चाचा या ताऊ
- पितृमन्दिरम्—नपुं॰—पितृ-मन्दिरम्—-—पितृगृह
- पितृमन्दिरम्—नपुं॰—पितृ-मन्दिरम्—-—कबिस्तान
- पितृमेधः—पुं॰—पितृ-मेधः—-—पितरों के निमित्त किया जाने वाला, यज्ञ, श्राद्ध
- पितृयज्ञः—पुं॰—पितृ-यज्ञः—-—मृत पूर्व पुरुषों को प्रतिदिन तर्पण या जलदान, ब्राह्मण द्वारा अनुष्ठेय दैनिक पंच यज्ञों में से एक
- पितृराज्—पुं॰—पितृ-राज्—-—यम का विशेषण
- पितृराजः—पुं॰—पितृ-राजः—-—यम का विशेषण
- पितृराजन्—पुं॰—पितृ-राजन्—-—यम का विशेषण
- पितृरूपः—पुं॰—पितृ-रूपः—-—शिव का विशेषण
- पितृलोकः—पुं॰—पितृ-लोकः—-—पितरों का लोक
- पितृवंशः—पुं॰—पितृ-वंशः—-—पिता का कुल
- पितृवनम्—नपुं॰—पितृ-वनम्—-—श्मशान, कब्रिस्तान
- पितृवनेचरः—पुं॰—पितृ-वनेचरः—-—राक्षस, पिशाच, शिव का विशेषण
- पितृवसतिः—स्त्री॰—पितृवसतिः—-—श्मशान, कब्रिस्तान
- पितृसद्मन्—नपुं॰—पितृ-सद्मन्—-—श्मशान, कब्रिस्तान
- पितृव्रतः—पुं॰—पितृ-व्रतः—-—श्राद्ध, पितृकर्म
- पितृश्राद्धम्—नपुं॰—पितृ-श्राद्धम्—-—पिता या मृत पूर्व पुरुषों के निमित्त किया जाने वाला श्राद्ध
- पितृष्वसृ—स्त्री॰—पितृ-स्वसृ—-—भुवा, फूफी
- पितृष्वम्रीयः—पुं॰—पितृ-ष्वम्रीयः—-—फुफेरा भाई
- पितृसंनिभ—वि॰—पितृ-संनिभ—-—पितृतुल्य, पितृवत्
- पितृसूः—पुं॰—पितृ-सूः—-—पितामह, दादा, बाबा
- पितृसूः—पुं॰—पितृ-सूः—-—सांध्यकालीन झुटपुटा
- पितृस्थानः—पुं॰—पितृ-स्थानः—-—अभिभावक (जो पिता के स्थान में है)
- पितृस्थानीयः—पुं॰—पितृ-स्थानीयः—-—अभिभावक (जो पिता के स्थान में है)
- पितृहत्या—स्त्री॰—पितृ-हत्या—-—पिता का वध
- पितृहन्—पुं॰—पितृ-हन्—-—पिता की हत्या करने वाला
- पितृक—वि॰—-—पितुः आगतम् - पितृ + कन्—पैतृक, कुलक्रमागत, आनुवंशिक
- पितृक—वि॰—-—पितुः आगतम् - पितृ + कन्—और्ध्वदैहिक
- पितृव्यः—पुं॰—-—पितृ + व्यत्—पिता का भाई, चाचा
- पितृव्यः—पुं॰—-—पितृ + व्यत्—कोई भी वयोवृद्ध पुरुष-नातेदार
- पित्तम्—नपुं॰—-—अपि + दो + क्त अपेः अकारलोपः—पित्तदोष, शरीर में स्थित तीन दोषों में एक
- पित्ततीसारः—पुं॰—पित्तम्-अतीसारः—-—पित्त के प्रकोप से उत्पन्न दस्तों का रोग
- पित्तोपहतः—वि॰—पित्तम्-उपहतः—-—पित्त से ग्रस्त
- पित्तकोषः—पुं॰—पित्तम्-कोषः—-—पित्ताशय
- पित्तक्षोभः—पुं॰—पित्तम्-क्षोभः—-—पित्तदोष की अधिकता, पित्तप्रकोप
- पित्तज्वरः—पुं॰—पित्तम्-ज्वरः—-—पित्त के प्रकोप से होने वाला ज्वर या बुख़ार
- पित्तप्रकृति—वि॰—पित्तम्-प्रकृति—-—जिसके शरीर में पित्त की प्रधानता हो, या जो क्रोधी स्वभाव का हो
- पित्तप्रकोपः—पुं॰—पित्तम्-प्रकोपः—-—पित्त का आधिक्य या पित्त का कुपित हो जाना
- पित्तरक्तम्—नपुं॰—पित्तम्-रक्तम्—-—रक्तपित्त नामक रोग
- पित्तवायुः—पुं॰—पित्तम्-वायुः—-—पित्त के प्रकोप से पेट में वायु का पैदा होना, अफारा
- पित्तविदग्ध—वि॰—पित्तम्-विदग्ध—-—पित्त के प्रकोप से आक्रांत
- पित्तशमन—वि॰—पित्तम्-शमन—-—पित्त के प्रकोप को शान्त करने वाला
- पित्तहर—वि॰—पित्तम्-हर—-—पित्त के प्रकोप को शान्त करने वाला
- पित्तल—वि॰—-—पित्त + ला + क—पित्त बहुल, जिसमें पित्त की अधिकता हो
- पित्तलम्—नपुं॰—-—पित्त + ला + क—पीतल
- पित्तलम्—नपुं॰—-—पित्त + ला + क—भोजपत्र का वृक्ष विशेष
- पित्र्य—वि॰—-—पितुः इदम्- पितृ + यत्, रीङ् आदेशः—पैतृक, बपौती का, पुश्तैनी
- पित्र्य—वि॰—-—पितुः इदम्- पितृ + यत्, रीङ् आदेशः—मृत पितरों से संबंध रखने वाला
- पित्र्य—वि॰—-—पितुः इदम्- पितृ + यत्, रीङ् आदेशः—और्ध्वदैहिकक्रियासंबंधी
- पित्र्यः—पुं॰—-—पितुः इदम्- पितृ + यत्, रीङ् आदेशः—ज्येष्ठ भाई
- पित्र्यः—पुं॰—-—-—माघमास
- पित्र्या—स्त्री॰—-—-—मघा नक्षत्रपुंज
- पित्र्या—स्त्री॰—-—-—पूर्णिमा और अमावस्या का दिन
- पित्र्यम्—नपुं॰—-—-—मघा नाम का नक्षत्र
- पित्र्यम्—नपुं॰—-—-—अंगूठे और तर्जनी के बीच का हथेली का भाग (पितरों के लिए पूज्य)
- पित्सत्—पुं॰—-—पत् + सन्, इस् अभ्यासलोपः, पित्स + शतृ—पक्षी
- पित्सलः—पुं॰—-—पत् + सल्, इत्—मार्ग, पथ
- पिधानम्—नपुं॰—-—अपि + धा + ल्युट् अपेः अकारलोपः—ढकना, छिपाना
- पिधानम्—नपुं॰—-—अपि + धा + ल्युट् अपेः अकारलोपः—म्यान
- पिधानम्—नपुं॰—-—अपि + धा + ल्युट् अपेः अकारलोपः—चादर, चोगा
- पिधानम्—नपुं॰—-—अपि + धा + ल्युट् अपेः अकारलोपः—ढक्कन, चोटी
- पिधायक—वि॰—-—अपि + धा + ण्वुल्, अपेः अकारलोपः—ढकने वाला, छिपाने वाला, प्रच्छन्न रखने वाला
- पिनद्ध—भू॰ क॰ कृ॰—-—अपि + नह् + क्त, अपेः अकारलोपः—जकड़ा हुआ, बंधा हुआ या धारण किया हुआ
- पिनद्ध—भू॰ क॰ कृ॰—-—अपि + नह् + क्त, अपेः अकारलोपः—सुसज्जित
- पिनद्ध—भू॰ क॰ कृ॰—-—अपि + नह् + क्त, अपेः अकारलोपः—छोपाया हुआ, प्रच्छन्न
- पिनद्ध—भू॰ क॰ कृ॰—-—अपि + नह् + क्त, अपेः अकारलोपः—चुभाया हुआ, छिदा हुआ
- पिनद्ध—भू॰ क॰ कृ॰—-—अपि + नह् + क्त, अपेः अकारलोपः—लपेटा हुआ, ढका हुआ, आवेष्टित
- पिनाकः—पुं॰—-—पा रक्षणे आकान् नुट् धातोरात इत्वस्—शिव का धनुष
- पिनाकः—पुं॰—-—पा रक्षणे आकान् नुट् धातोरात इत्वस्—त्रिशूल
- पिनाकः—पुं॰—-—पा रक्षणे आकान् नुट् धातोरात इत्वस्—सामान्य धनुष
- पिनाकः—पुं॰—-—पा रक्षणे आकान् नुट् धातोरात इत्वस्—लाठी या छड़ी
- पिनाकः—पुं॰—-—पा रक्षणे आकान् नुट् धातोरात इत्वस्—धूल की बौछार
- पिनाकम्—नपुं॰—-—पा रक्षणे आकान् नुट् धातोरात इत्वस्—शिव का धनुष
- पिनाकम्—नपुं॰—-—पा रक्षणे आकान् नुट् धातोरात इत्वस्—त्रिशूल
- पिनाकम्—नपुं॰—-—पा रक्षणे आकान् नुट् धातोरात इत्वस्—सामान्य धनुष
- पिनाकम्—नपुं॰—-—पा रक्षणे आकान् नुट् धातोरात इत्वस्—लाठी या छड़ी
- पिनाकम्—नपुं॰—-—पा रक्षणे आकान् नुट् धातोरात इत्वस्—धूल की बौछार
- पिनाकगोप्तृ—पुं॰—पिनाकः-गोप्तृ—-—शिव की उपाधियाँ
- पिनाकधृक्—पुं॰—पिनाकः-धृक्—-—शिव की उपाधियाँ
- पिनाकधृत्—पुं॰—पिनाकः-धृत्—-—शिव की उपाधियाँ
- पिनाकपाणिः—पुं॰—पिनाकः-पाणिः—-—शिव की उपाधियाँ
- पिनाकिन्—पुं॰—-—पिनाक + इनि—शिव का विशेषण
- पिपतिषत्—पुं॰—-—पत् + सन् + शतृ—पक्षी
- पिपतिषु—वि॰—-—पत् + सन् + उ—गिरने की इच्छा वाला, पतनशील
- पिपतिषुः—पुं॰—-—पत् + सन् + उ—पक्षी
- पिपासा—स्त्री॰—-—पा + सन् + अ + टाप्—प्यास
- पिपासित—वि॰—-—पा + सन् + क्त—प्यासा
- पिपासिन्—वि॰—-—पिपासा + इनि—प्यासा
- पिपासु—वि॰—-—पा + सन् + उ—प्यासा
- पिपीलः—पुं॰—-—अपि + पील् + अच्, अपेः अकारलोपः—चीटा, चींटी
- पिपीली—स्त्री॰—-—पिपील + ङीष्—चीटा, चींटी
- पिपीलकः—पुं॰—-—पिपील + कन्—मकौड़ा
- पिपीलिकः—पुं॰—-—अपि + पील् +इकन्, अपेः अकारलोपः—चींटा
- पिपीलिकम्—नपुं॰—-—-—एक प्रकार का सोना (चीटों द्वारा एकत्र किया हुआ माना जाना जाता है)
- पिपीलिका—स्त्री॰—-—पिपीलक + टाप्, इत्वम्—चींटी
- पिपीलिकापरिसर्पणम्—नपुं॰—पिपीलिका-परिसर्पणम्—-—चींटोयों का इधर उधर दौड़ना
- पिप्पलः—पुं॰—-—पा + अलच्, पृषो॰ —पीपल का पेड़
- पिप्पलः—पुं॰—-—पा + अलच्, पृषो॰ —चूचुक
- पिप्पलः—पुं॰—-—पा + अलच्, पृषो॰ —जाकेट या कोट की आस्तीन
- पिप्पलम्—नपुं॰—-—पा + अलच्, पृषो॰ —बरबंटा
- पिप्पलम्—नपुं॰—-—पा + अलच्, पृषो॰ —पीपल का बरबंटा
- पिप्पलम्—नपुं॰—-—पा + अलच्, पृषो॰ —सम्भोग
- पिप्पलम्—नपुं॰—-—पा + अलच्, पृषो॰ —जल
- पिप्पलिः—स्त्री॰—-—पृ + अचल् + ङीष् पृषो॰ पक्षे ह्रस्वाभावः—पिपरामूल, पीपल नाम की औषध
- पिप्पली—स्त्री॰—-—पृ + अचल् + ङीष् —पिपरामूल, पीपल नाम की औषध
- पिप्पिका—स्त्री॰—-—-—दाँतों पर जमी हुई मैल का पपड़ी
- पिप्लुः—पुं॰—-—अपि + प्लु + डु अपेः अकारलोपः—निशान, तिल, मस्सा, चित्ती
- पियालः—पुं॰—-—पीय् + कालन्, ह्रस्वः—एक वृक्षविशेष (चिरौंजी)
- पियालम्—नपुं॰—-—-—इस वृक्ष (चिरौंजी) का फल
- पिल्—चुरा॰ उभ॰ <पेलयति>, <पेलयते>—-—-—फेंकना, डालना
- पिल्—चुरा॰ उभ॰ <पेलयति>, <पेलयते>—-—-—भेंजना, चलता करना
- पिल्—चुरा॰ उभ॰ <पेलयति>, <पेलयते>—-—-—उत्तेजित करना, उकसाना
- पिलुः—पुं॰—-—-—बाण
- पिलुः—पुं॰—-—-—अणु
- पिलुः—पुं॰—-—-—कीड़ा
- पिलुः—पुं॰—-—-—हाथी
- पिलुः—पुं॰—-—-—ताड का तना
- पिलुः—पुं॰—-—-—फूल
- पिलुः—पुं॰—-—-—ताड के वृक्षों का समूह
- पिलुः—पुं॰—-—-—‘पीलु’ नाम का एक वृक्ष
- पिल्ल—वि॰—-—क्लिन्ने चक्षुषी यस्य, क्लिन्न + अच्, पिल्लादेशः—चौंधियाई आँखों वाला
- पिल्लम्—नपुं॰—-—-—चुँधियाने वाली आँख
- पिल्लका—स्त्री॰—-—पिल्ल + कै + क + टाप्—हथिनी
- पिश्—तुदा॰ उभ॰ <पिशति>, <पिशते>—-—-—रूप देना, वनाना, निर्माण करना
- पिश्—तुदा॰ उभ॰ <पिशति>, <पिशते>—-—-—संघटित होना
- पिश्—तुदा॰ उभ॰ <पिशति>, <पिशते>—-—-—प्रकाश करना, उजाला करना
- पिशङ्ग—वि॰—-—पिश् + अंगच् किच्च—ललाई लिये भूरे रंग का, लाल सा खाकी रंग का
- पिशाङ्गः—पुं॰—-—-—खाकी रंग
- पिशाचः—पुं॰—-—पिशितमाचमति-आ + चम्, बा॰ ड पृषो॰—भूत, बैताल, शैतान, प्रेत, दुष्ट प्राणी
- पिशाचालयः—पुं॰—पिशाचः-आलयः—-—वह स्थान जहाँ फास्फोरस के कारण अंधेरे में प्रकाश होता हो
- पिशाचद्रुः—पुं॰—पिशाचः-द्रुः—-—एक प्रकार का वृक्ष (सिहोर)
- पिशाचबाधा—स्त्री॰—पिशाचः-बाधा—-—पिशाच द्वारा आविष्ट होना
- पिशाचसञ्चारः—पुं॰—पिशाचः-सञ्चारः—-—पिशाच द्वारा आविष्ट होना
- पिशाचभाषा—स्त्री॰—पिशाचः-भाषा—-—शैतानों की भाषा, पैशाची प्राकृत जिसका प्रयोग नाटकों में मिलता है, संस्कृत का अपभ्रंश
- पिशाचसभम्—नपुं॰—पिशाचसभम्—-—शैतानों की सभा
- पिशाचसभम्—नपुं॰—पिशाचसभम्—-—भूतों का घर, प्रेतावास
- पिशाचकिन्—पुं॰—-—पिशाच + इनि, कुक्—धन के स्वामी कुबेर का विशेषण
- पिशाचिका—स्त्री॰—-—पिशाच + ङीष् + कन् + टाप्, ह्रस्वः—पिशाचिनी, भूतनी, स्त्री पिशाच
- पिशाचिका—स्त्री॰—-—पिशाच + ङीष् + कन् + टाप्, ह्रस्वः—किसी पदार्थ के लिए शैतानी या पैशाचिकी आसक्ति
- पिशाचिका—स्त्री॰—-—पिशाच + ङीष् + कन् + टाप्, ह्रस्वः—युद्ध के लिए घोर अनुरक्ति
- पिशाची—स्त्री॰—-—पिशाच + ङीष् —युद्ध के लिए घोर अनुरक्ति
- पिशितम्—नपुं॰—-—पिश् + क्त—मांस
- पिशिताशनः—पुं॰—पिशितम्-अशनः—-—मांसभक्षी, पिशाच, बैताल
- पिशिताशनः—पुं॰—पिशितम्-अशनः—-—मनुष्यभक्षी, नरभक्षी
- पिशिताशः—पुं॰—पिशितम्-आशः—-—मांसभक्षी, पिशाच, बैताल
- पिशिताशः—पुं॰—पिशितम्-आशः—-—मनुष्यभक्षी, नरभक्षी
- पिशिताशिन्—पुं॰—पिशितम्-आशिन्—-—मांसभक्षी, पिशाच, बैताल
- पिशिताशिन्—पुं॰—पिशितम्-आशिन्—-—मनुष्यभक्षी, नरभक्षी
- पिशितभुज्—पुं॰—पिशितम्-भुज्—-—मांसभक्षी, पिशाच, बैताल
- पिशितभुज्—पुं॰—पिशितम्-भुज्—-—मनुष्यभक्षी, नरभक्षी
- पिशुन—वि॰—-—पिश् + उनच्, किच्च—संकेत करने वाला, बतलाने वाला, प्रकट करने वाला, प्रदर्शन करने वाला, परिचायक
- पिशुन—वि॰—-—पिश् + उनच्, किच्च—स्मरणीय, स्मारक
- पिशुन—वि॰—-—पिश् + उनच्, किच्च—मिथ्यानिन्दक, चुगलखोर, चुगली खाने वाला
- पिशुन—वि॰—-—पिश् + उनच्, किच्च—दुष्ट, क्रूर, प्रद्वेषी
- पिशुन—वि॰—-—पिश् + उनच्, किच्च—अधम, कमीना, तिरस्करणीय
- पिशुन—वि॰—-—पिश् + उनच्, किच्च—मूर्ख, मन्दबुद्धि
- पिशुनः—पुं॰—-—-—मिथ्या निन्दा करने वाला, चुगलखोर, ढिंढोरवा, अधम, भेदिया, द्रोही, कलंकित करने वाला
- पिशुनः—पुं॰—-—-—रूई
- पिशुनः—पुं॰—-—-—नारद का विशेषण
- पिशुनः—पुं॰—-—-—कौवा
- पिशुनवचनम्—नपुं॰—पिशुन-वचनम्—-—चुगली, गुणनिन्दा, बदनामी
- पिशुनवाच्यम्—नपुं॰—पिशुन-वाच्यम्—-—चुगली, गुणनिन्दा, बदनामी
- पिष्—रुधा॰ पर॰ <पिनष्टि>, <पिष्ट>—-—-—कूटना, पीसना, चूरा करना, कुचलना
- पिष्—रुधा॰ पर॰ <पिनष्टि>, <पिष्ट>—-—-—चोट पहुंचाना, क्षति पहुंचाना,नष्ट करना, मार डालना
- उत्पिष्—रुधा॰ पर॰—उद्-पिष्—-—कुचलना, पीस डालना
- निष्पि—रुधा॰ पर॰—निस्-पिष्—-—कूटना, चूर्ण करना, कण कण करना, (तं) निष्पिपेक्ष क्षितौ क्षिप्रं पूर्णकुंभमिवांभसि @ महा॰ , शिलानिष्पिष्टमुद्गरः @ रघु॰ १२/७३
- निष्पि—रुधा॰ पर॰—निस्-पिष्—-—चोट पहुँचाना, क्षति पहुँचाना, खरोंच मारना
- पिष्ट—भू॰ क॰ कृ॰—-—पिष् + क्त—पिसा हुआ, चूर्ण किया हुआ, कुचला हुआ
- पिष्ट—भू॰ क॰ कृ॰—-—पिष् + क्त—रगड़ा हुआ, भींचा हुआ, (हाथ) मिलाया हुआ
- पिष्टम्—नपुं॰—-—-—पिसी हुई कोई चीज, पिसा हुआ मसाला
- पिष्टम्—नपुं॰—-—-—आटा, बेसन
- पिष्टम्—नपुं॰—-—-—सीसा
- पिष्टोदकम्—नपुं॰—पिष्ट-उदकम्—-—आटे में मिला हुआ जल
- पिष्टपचनम्—नपुं॰—पिष्ट-पचनम्—-—आटा भूनने के लिए कड़ाही, पतीली आदि
- पिष्टपशुः—पुं॰—पिष्ट-पशुः—-—आटे का बना हुआ किसी पशु का पुतला
- पिष्टपिण्डः—पुं॰—पिष्ट-पिण्डः—-—आटे की बाटी या पेड़ी
- पिष्टपूरः—पुं॰—पिष्ट-पूरः—-—एक प्रकार की मिठाई
- पिष्टपेषः—पुं॰—पिष्ट-पेषः—-—पिसे को पीसना, व्यर्थ काम करना, बिना किसी लाभ के दोहराना
- पिष्टपेषणम्—नपुं॰—पिष्ट-पेषणम्—-—पिसे को पीसना, व्यर्थ काम करना, बिना किसी लाभ के दोहराना
- पिष्टन्यायः—पुं॰—पिष्ट-न्यायः—-—पिसे को पीसना, यह न्याय उस समय प्रयुक्त होता हैजब कोई किये हुए कार्य को ही दुबारा करने लगता है, क्योंकि पिसे को पीसना फाल्तू और व्यर्थ कार्य है
- पिष्टमेहः—पुं॰—पिष्ट-मेहः—-—एक प्रकार का मधुमेह
- पिष्टवर्तिः—पुं॰—पिष्ट-वर्तिः—-—एक प्रकार का लड्डू जो घी, दाल या चावल से बनाया जाता है
- पिष्टसौरभम्—नपुं॰—पिष्ट-सौरभम्—-—(घिसा हुआ) चन्दन
- पिष्टकः—पुं॰—-—पिष्ट + कन्—बाटी जो किसी अनाज के आटे से बनाई गई हो
- पिष्टकः—पुं॰—-—पिष्ट + कन्—सिकी हुई बाटी, रोटी, पूरी
- पिष्टकम्—नपुं॰—-—पिष्ट + कन्—बाटी जो किसी अनाज के आटे से बनाई गई हो
- पिष्टकम्—नपुं॰—-—पिष्ट + कन्—सिकी हुई बाटी, रोटी, पूरी
- पिष्टकम्—नपुं॰—-—पिष्ट + कन्—तिलकुट, तिल के लड्डू
- पिष्टपः—पुं॰—-—विशन्ति अत्र सुकृतिनः- विश् + कप् नि॰—विश्व का एक भाग
- पिष्टपम्—नपुं॰—-—विशन्ति अत्र सुकृतिनः- विश् + कप् नि॰—विश्व का एक भाग
- पिष्टातः—पुं॰—-—पिष्ट + अत् + अण्—सुगंधयुक्त या खुशबूदार चूर्ण
- पिष्टिक—पुं॰—-—पिष्ट + ठन्—चावलों के आटे की बनी टिकिया
- पिस्—भ्वा॰ पर॰ <पेसति>—-—-—जाना, चलना
- पिस्—चुरा॰ उभ॰ <पेसयति>, <पेसयते>—-—-—जाना
- पिस्—चुरा॰ उभ॰ <पेसयति>, <पेसयते>—-—-—मजबूत बनना
- पिस्—चुरा॰ उभ॰ <पेसयति>, <पेसयते>—-—-—रहना
- पिस्—चुरा॰ उभ॰ <पेसयति>, <पेसयते>—-—-—चोट पहुँचाना, क्षति पहुँचाना
- पिस्—चुरा॰ उभ॰ <पेसयति>, <पेसयते>—-—-—देना या लेना
- पिहित—भू॰ क॰ कृ॰—-—अपि + धा + क्त, अपेः आकारलोपः—बन्द, अवरुद्ध, रुका हुआ, जकड़ा हुआ
- पिहित—भू॰ क॰ कृ॰—-—अपि + धा + क्त, अपेः आकारलोपः—ढका हुआ, छिपा हुआ, गुप्त
- पिहित—भू॰ क॰ कृ॰—-—अपि + धा + क्त, अपेः आकारलोपः—भरा हुआ, ढका हुआ
- पी—दिवा॰ आ॰ <पीयते>—-—-—पीना
- पीचम्—नपुं॰—-—-—ठोडी
- पीठम्—नपुं॰—-—पेठन्ति उपविशन्ति अत्र- पि + घञ् वा॰ दीर्घः पीयते अत्र पी + ठक्—आसन (तिपाई, चौकी, कुर्सी पलंग आदि)
- पीठम्—नपुं॰—-—पेठन्ति उपविशन्ति अत्र- पि + घञ् वा॰ दीर्घः पीयते अत्र पी + ठक्—ब्रह्मचारी के बैठने के लिए कुशासन
- पीठम्—नपुं॰—-—पेठन्ति उपविशन्ति अत्र- पि + घञ् वा॰ दीर्घः पीयते अत्र पी + ठक्—देवासन, वेदी
- पीठम्—नपुं॰—-—पेठन्ति उपविशन्ति अत्र- पि + घञ् वा॰ दीर्घः पीयते अत्र पी + ठक्—पादपीठ, आधार
- पीठम्—नपुं॰—-—पेठन्ति उपविशन्ति अत्र- पि + घञ् वा॰ दीर्घः पीयते अत्र पी + ठक्—बैठने की विशेष मुद्रा
- पीठकेलिः—पुं॰—पीठम्-केलिः—-—विश्वासपात्र पुरुष परोपजीवी
- पीठगर्भः—पुं॰—पीठम्-गर्भः—-—मूर्ति के आधार में वह गड्ढा जिसमें वह जमाई जाती है
- पीठनायिका—स्त्री॰—पीठम्-नायिका—-—वह चौदह वर्ष की कन्या जो दुर्गा-पूजा के अवसर पर दुर्गा मान कर पूजी जाती हैं
- पीठभूः—स्त्री॰—पीठम्-भूः—-—आधार, नींव, भूगृह, तहखाना
- पीठमर्दः—पुं॰—पीठम्-मर्दः—-—सहचर, परोपजीवी, जो नाटक में बड़े २ कार्यों में नायक की सहायता करता है
- पीठमर्दिका—स्त्री॰—पीठम्-मर्दिका—-—वह स्त्री है जो नायिका के प्रेमी नायक को प्राप्त कराने में उसको सहायता करती है
- पीठमर्दिका—स्त्री॰—पीठम्-मर्दिका—-—नृत्य शिक्षक जो वेश्याओं को नृत्यकला की शिक्षा देता हैं
- पीठसर्प—वि॰—पीठम्-सर्प—-—लंगड़ा, विकलांग
- पीठिका—स्त्री॰—-—पीठ + ङीष् + क + टाप्, ह्रस्वः—आसन (चौकी, तिपाई)
- पीठिका—स्त्री॰—-—पीठ + ङीष् + क + टाप्, ह्रस्वः—पीढ़ा, आधार
- पीठिका—स्त्री॰—-—पीठ + ङीष् + क + टाप्, ह्रस्वः—पुस्तक का अनुभाग या प्रभाग
- पीड्—चुरा॰ उभ॰ <पीडयति>, <पीडयते>, <पीड़ित>—-—-—पीडित करना, सताना, नुक़सान पहुँचाना, घायल करना, क्षति पहुँचाना, तंग करना, छेड़ना, परेशान करना
- पीड्—चुरा॰ उभ॰ <पीडयति>, <पीडयते>, <पीड़ित>—-—-—विरोध करना, सामना करना
- पीड्—चुरा॰ उभ॰ <पीडयति>, <पीडयते>, <पीड़ित>—-—-—(नगर आदि को) घेरना
- पीड्—चुरा॰ उभ॰ <पीडयति>, <पीडयते>, <पीड़ित>—-—-—दबाना, भींचना, निचोड़ना, चुटकी काटना
- पीड्—चुरा॰ उभ॰ <पीडयति>, <पीडयते>, <पीड़ित>—-—-—दबाना, नष्ट करना
- पीड्—चुरा॰ उभ॰ <पीडयति>, <पीडयते>, <पीड़ित>—-—-—अवहेलना करना
- पीड्—चुरा॰ उभ॰ <पीडयति>, <पीडयते>, <पीड़ित>—-—-—किसी अशुभ वस्तु से ढकना
- पीड्—चुरा॰ उभ॰ <पीडयति>, <पीडयते>, <पीड़ित>—-—-—ग्रहण-ग्रस्त होना
- अभिपीड्—चुरा॰ उभ॰ —अभि-पीड्—-—दबाना, निचोड़ना, पीड़ित करना
- अवपीड्—चुरा॰ उभ॰ —अव-पीड्—-—दबाना, निचोड़ना, पीड़ित करना
- आपीड्—चुरा॰ उभ॰ —आ-पीड्—-—दबाना, भार से झुका देना
- उत्पीड्—चुरा॰ उभ॰ —उद्-पीड्—-—मसलना, घिसना, रगड़ना
- उत्पीड्—चुरा॰ उभ॰ —उद्-पीड्—-—पिचकाना, ऊपर को फेंकना, धकेलना, पेलना
- उपपीड्—चुरा॰ उभ॰ —उप-पीड्—-—चोट पहुँचाना, क्षति पहुँचाना, दुःखी करना, तंग करना, परेशान करना
- उपपीड्—चुरा॰ उभ॰ —उप-पीड्—-—अत्याचार करना, बरबाद करना
- निपीड्—चुरा॰ उभ॰ —नि-पीड्—-—तंग करना, पीडित करना, परेशान करना, दंड देना, कष्ट देना
- निपीड्—चुरा॰ उभ॰ —नि-पीड्—-—निचोड़ना, दबाना, कस कर पकड़ना, हथिया लेना, थामना
- निष्पीड्—चुरा॰ उभ॰ —निस्-पीड्—-—निचोड़ना
- परिपीड्—चुरा॰ उभ॰ —परि-पीड्—-—पीडा देना, कष्ट देना, परेशान करना
- परिपीड्—चुरा॰ उभ॰ —परि-पीड्—-—दबाना, भींचना
- पीडद्र—चुरा॰ उभ॰ —पीड्-द्र—-—अत्यधिक पीडित करना, यातना देना, सताना
- पीडद्र—चुरा॰ उभ॰ —पीड्-द्र—-—दबाना, भींचना
- संपीड्—चुरा॰ उभ॰ —सम्-पीड्—-—भींचना, चुटको काटना
- पीडकः—पुं॰—-—पीड् + ण्वुल्—अत्याचारी
- पीडनम्—नपुं॰—-—पीड् + ल्युट्—पीडित करना, कष्ट देना, अत्याचार करना, पीड़ा पहुँचाना
- पीडनम्—नपुं॰—-—पीड् + ल्युट्—भींचना, दबाना
- पीडनम्—नपुं॰—-—पीड् + ल्युट्—दवाने का उपकरण
- पीडनम्—नपुं॰—-—पीड् + ल्युट्—लेना, थामना, पकड़ना
- पीडनम्—नपुं॰—-—पीड् + ल्युट्—बर्बाद करना, उजाड़ना
- पीडनम्—नपुं॰—-—पीड् + ल्युट्—अनाज गाहना
- पीडनम्—नपुं॰—-—पीड् + ल्युट्—ग्रहण
- पीडनम्—नपुं॰—-—पीड् + ल्युट्—ध्वनि निरोध, स्वरोच्चारण का एक दोष
- पीडा—स्त्री॰—-—पीड् + अङ् + टाप्—दर्द, कष्ट, भोगना, सताना, परेशानी, वेदना
- पीडा—स्त्री॰—-—पीड् + अङ् + टाप्—क्षति पहुँचाना, हानि पहुँचाना, नुकसान पहुँचाना
- पीडा—स्त्री॰—-—पीड् + अङ् + टाप्—उजाड़ना, बर्बाद करना
- पीडा—स्त्री॰—-—पीड् + अङ् + टाप्—उल्लंघन, अतिक्रमण
- पीडा—स्त्री॰—-—पीड् + अङ् + टाप्—प्रतिबंध
- पीडा—स्त्री॰—-—पीड् + अङ् + टाप्—दया, करुणा
- पीडा—स्त्री॰—-—पीड् + अङ् + टाप्—ग्रहण
- पीडा—स्त्री॰—-—पीड् + अङ् + टाप्—सुमिरनी, शिरोमाल्य
- पीडा—स्त्री॰—-—पीड् + अङ् + टाप्—सरलवृक्ष
- पीडाकर—वि॰—-—-—कष्टकर, पीड़ामय
- पीडित—भू॰ क॰ कृ॰—-—पीड् + क्त— पीडा से युक्त, तंग किया हुआ, सताया हुआ, अत्याचारग्रस्त, नोचा गया
- पीडित—भू॰ क॰ कृ॰—-—पीड् + क्त—निचोड़ा हुआ, दबाया हुआ
- पीडित—भू॰ क॰ कृ॰—-—पीड् + क्त—विवाहित पाणिगृहीत
- पीडित—भू॰ क॰ कृ॰—-—पीड् + क्त—अतिक्रान्त, तोड़ा हुआ
- पीडित—भू॰ क॰ कृ॰—-—पीड् + क्त—उजाड़ा हुआ, बर्बाद किया हुआ
- पीडित—भू॰ क॰ कृ॰—-—पीड् + क्त—ग्रहणग्रस्त
- पीडित—भू॰ क॰ कृ॰—-—पीड् + क्त—बाँधा हुआ, बंधनग्रस्त
- पीडितम्—नपुं॰—-—पीड् + क्त—दर्द करना, क्षति पहुँचाना, तंग करना
- पीडितम्—नपुं॰—-—पीड् + क्त—मैथुन का विशेष प्रकार, रतिबंध
- पीडितम्—अव्य॰—-—पीड् + क्त—मजबूती से, सटा कर, दृढ़ता पूर्वक
- पीत—वि॰—-—पा + क्त—पीया हुआ, चढ़ाया हुआ
- पीत—वि॰—-—पा + क्त—परिव्याप्त, सिक्त, भरा हुआ, संतृप्त
- पीत—वि॰—-—पा + क्त—पीला
- पीतः—पुं॰—-—पा + क्त—पीला रंग
- पीतः—पुं॰—-—पा + क्त—पुखराज
- पीतः—पुं॰—-—पा + क्त—कुसुम्भ
- पीतम्—नपुं॰—-—पा + क्त—सोना
- पीतम्—नपुं॰—-—पा + क्त—हरताल
- पीताब्धिः—पुं॰—पीत-अब्धिः—-—अगस्त्य का विशेषण
- पीताम्बरः—पुं॰—पीत-अम्बरः—-—विष्णु का विशेषण
- पीताम्बरः—पुं॰—पीत-अम्बरः—-—अभिनेता
- पीताम्बरः—पुं॰—पीत-अम्बरः—-—पीले वस्त्र पहने हुए साधु सन्यासी
- पीतारुण—वि॰—पीत-अरुण—-—पीताभरक्त, पीलेपन से युक्त लाल
- पीताश्मन्—पुं॰—पीत-अश्मन्—-—पुखराज
- पीतकदली—स्त्री॰—पीत-कदली—-—केले का एक भेद, सुनहरी केला
- पीतकंदम्—नपुं॰—पीत-कंदम्—-—गाजर
- पीतकाबेरम्—नपुं॰—पीत-काबेरम्—-—केसर
- पीतकाबेरम्—नपुं॰—पीत-काबेरम्—-—पीतल
- पीतकाष्ठम्—नपुं॰—पीत-काष्ठम्—-—पीला चंदन
- पीतगन्धम्—नपुं॰—पीत-गन्धम्—-—पीला चंदन
- पीतचन्दनम्—नपुं॰—पीत-चन्दनम्—-—एक प्रकार का चंदन
- पीतचन्दनम्—नपुं॰—पीत-चन्दनम्—-—केसर
- पीतचन्दनम्—नपुं॰—पीत-चन्दनम्—-—हल्दी
- पीतचम्पकः—पुं॰—पीत-चम्पकः—-—दीपक
- पीततुण्डः—पुं॰—पीत-तुण्डः—-—कारंडव पक्षी
- पीतदारु—नपुं॰—पीत-दारु—-—एक प्रकार की चीड का पेड़, या सरल वृक्ष
- पीतदुग्धा—स्त्री॰—पीत-दुग्धा—-—दुधारु गाय
- पीतद्रुः—पुं॰—पीत-द्रुः—-—सरल वृक्ष
- पीतपादा—स्त्री॰—पीत-पादा—-—एक प्रकार का पक्षी, मैना
- पीतमणिः—पुं॰—पीत-मणिः—-—पुखराज
- पीतमाक्षिकम्—नपुं॰—पीत-माक्षिकम्—-—एक प्रकार का क्षनिज द्रव्य, सोनामाखी
- पीतमूलकम्—नपुं॰—पीत-मूलकम्—-—गाजर
- पीतरक्त—वि॰—पीत-रक्त—-—पीलेपन से युक्त लाल रंग का, संतरे के रंग का
- पीतरक्तम्—नपुं॰—पीत-रक्तम्—-—एक प्रकार का पीले रंग का रत्न, पुखराज
- पीतरागः—पुं॰—पीत-रागः—-—पीला रंग
- पीतरागः—पुं॰—पीत-रागः—-—मोम
- पीतरागः—पुं॰—पीत-रागः—-—पद्मकेसर
- पीतबालुका—स्त्री॰—पीत-बालुका—-—हल्दी
- पीतवासस्—पुं॰—पीत-वासस्—-—कृष्ण का विशेषण
- पीतसारः—पुं॰—पीत-सारः—-—पुखराज
- पीतसारः—पुं॰—पीत-सारः—-—चन्दन का वृक्ष
- पीतसारम्—नपुं॰—पीत-सारम्—-—पीली चंदन की लकड़ी
- पीतसारि—नपुं॰—पीत-सारि—-—अंजन, सुर्मा
- पीतस्कन्धः—पुं॰—पीत-स्कन्धः—-—सूअर
- पीतस्फटिकः—पुं॰—पीत-स्फटिकः—-—पुखराज
- पीतहरित—पुं॰—पीत-हरित—-—पीलापन लिये हुए हरा
- पीतकम्—नपुं॰—-—पीत + कन्—हरताल
- पीतकम्—नपुं॰—-—पीत + कन्—पीतल
- पीतकम्—नपुं॰—-—पीत + कन्—केसर
- पीतकम्—नपुं॰—-—पीत + कन्—शहद
- पीतकम्—नपुं॰—-—पीत + कन्—अगर की लकड़ी
- पीतकम्—नपुं॰—-—पीत + कन्—चन्दन की लकड़ी
- पीतनः—पुं॰—-—पीत करोति इति- पीत + णिच् + ल्युट् वा पीतं नयति इति पीत + नी + ड—गूलर की जाति का वृक्ष
- पीतनम्—नपुं॰—-—पीत करोति इति- पीत + णिच् + ल्युट् वा पीतं नयति इति पीत + नी + ड—हरताल
- पीतनम्—नपुं॰—-—पीत करोति इति- पीत + णिच् + ल्युट् वा पीतं नयति इति पीत + नी + ड—केसर
- पीतल—वि॰—-—पीत + ला + क—पीले रंग का
- पीतलः—पुं॰—-—पीत + ला + क—पीला रंग
- पीतलम्—नपुं॰—-—पीत + ला + क—पीतल
- पीतिः—पुं॰—-—पा + क्तिच्—घोड़ा
- पीतिः—स्त्री॰—-—पा + क्तिन्—घूँट, पीना
- पीतिः—स्त्री॰—-—पा + क्तिन्—मदिरालय
- पीतिः—स्त्री॰—-—पा + क्तिन्—हाथी की सूँड
- पीतिका—स्त्री॰—-—पीत + ठन् + टाप्, इत्वम्—केसर
- पीतिका—स्त्री॰—-—पीत + ठन् + टाप्, इत्वम्—हल्दी
- पीतिका—स्त्री॰—-—पीत + ठन् + टाप्, इत्वम्—पीली चमेली, या सोनजही
- पीतुः—पुं॰—-—पा + क्तुन्—सूर्य
- पीतुः—पुं॰—-—पा + क्तुन्—काल
- पीतुः—पुं॰—-—पा + क्तुन्—अग्नि
- पीतुः—पुं॰—-—पा + क्तुन्—पेय
- पीतुः—पुं॰—-—पा + क्तुन्—जल
- पीथिः—पुं॰—-—पीति, पृषो॰ तस्य थः—घोड़ा
- पीन—वि॰—-—प्याय + क्त, संप्रसारणे दीर्घः—स्थूल, मांसल, हृष्टपुष्ट
- पीन—वि॰—-—प्याय + क्त, संप्रसारणे दीर्घः—भरापूरा, विशाल, मोटा
- पीनोध्नी—स्त्री॰—पीन-ऊधस्—-—भरे पूरे ऐन (औड़ी) वाली गाय
- पीनवक्षस्—वि॰—पीन-वक्षस्—-—विशालवक्षःस्थल वाला, भरी पूरी छाती वाला
- पीनसः—पुं॰—-—पीनं स्थूलमपि जनं स्यति नाशयति-पीन + सो + क—नाक परदुष्प्रभाव डालने वाला जुकाम
- पीनसः—पुं॰—-—पीनं स्थूलमपि जनं स्यति नाशयति-पीन + सो + क—खांसी, जुकाम
- पीयुः—पुं॰—-—पा + कु नि॰ युक्, ईत्वम्—कौवा
- पीयुः—पुं॰—-—पा + कु नि॰ युक्, ईत्वम्—सूर्य
- पीयुः—पुं॰—-—पा + कु नि॰ युक्, ईत्वम्—अग्नि
- पीयुः—पुं॰—-—पा + कु नि॰ युक्, ईत्वम्—उल्लू
- पीयुः—पुं॰—-—पा + कु नि॰ युक्, ईत्वम्—काल
- पीयुः—पुं॰—-—पा + कु नि॰ युक्, ईत्वम्—सोना
- पीयूषः—पुं॰—-—पीय् + ऊषन्—सुधा
- पीयूषः—पुं॰—-—पीय् + ऊषन्—दूध
- पीयूषः—पुं॰—-—पीय् + ऊषन्—ब्याने के बाद पहले सात दिन का गाय का दूध
- पीयूषम्—नपुं॰—-—पीय् + ऊषन्—सुधा
- पीयूषम्—नपुं॰—-—पीय् + ऊषन्—दूध
- पीयूषम्—नपुं॰—-—पीय् + ऊषन्—ब्याने के बाद पहले सात दिन का गाय का दूध
- पीयूषमहस्—पुं॰—पीयूषः-महस्—-—चन्द्रमा
- पीयूषमहस्—पुं॰—पीयूषः-महस्—-—कपूर
- पीयूषरुचिः—पुं॰—पीयूषः-रुचिः—-—चन्द्रमा
- पीयूषरुचिः—पुं॰—पीयूषः-रुचिः—-—कपूर
- पीयूषवर्षः—पुं॰—पीयूषः-वर्षः—-—अमृतवर्षा
- पीयूषवर्षः—पुं॰—पीयूषः-वर्षः—-—चन्द्रमा
- पीयूषवर्षः—पुं॰—पीयूषः-वर्षः—-—कपूर
- पीलकः—पुं॰—-—पील् + ण्वुल्—मकौड़ा
- पीलुः—पुं॰—-—पील् + उ—बाण
- पीलुः—पुं॰—-—पील् + उ—अणु
- पीलुः—पुं॰—-—पील् + उ—कीड़ा
- पीलुः—पुं॰—-—पील् + उ—हाथी
- पीलुः—पुं॰—-—पील् + उ—ताड का तना
- पीलुः—पुं॰—-—पील् + उ—फूल
- पीलुः—पुं॰—-—पील् + उ—ताड के वृक्षों का समूह
- पीलुः—पुं॰—-—पील् + उ—‘पीलु’ नाम का एक वृक्ष
- पीलुकः—पुं॰—-—पीलु + कन्—चींटा
- पीव्—भ्वा॰ पर॰ <पिवति>—-—-—मोटा- ताजा या हृष्ट पुष्ट होना
- पीवन्—वि॰—-—प्यै + क्वनिप्, संप्र॰ दीर्घः—भरापूरा, स्थूल, मोटा
- पीवन्—वि॰—-—प्यै + क्वनिप्, संप्र॰ दीर्घः—हृष्ट पुष्ट, बलवान्
- पीवन्—पुं॰—-—-—पवन
- पीवर—वि॰—-—प्यै + ष्वरच्, सं प्र॰ दीर्घः—स्थूल, विशाल, हृष्टपुष्ट, मांसल, मोटाताजा
- पीवर—वि॰—-—प्यै + ष्वरच्, सं प्र॰ दीर्घः—फूला हुआ मोटा
- पीवरः—पुं॰—-—-—कछुवा
- पीवरी—स्त्री॰—-—-—तरुणी
- पीवरी—स्त्री॰—-—-—गाय
- पीवा—स्त्री॰—-—पीयते- पी + व + टाप्—जल
- पुंस्—चुरा॰ उभ॰<पुंसयति>,<पुंसयते> —-—-—कुचलना, पीसना
- पुंस्—चुरा॰ उभ॰<पुंसयति>,<पुंसयते> —-—-—पीडा देना, कष्ट देना, दण्ड देना
- पुंस्—पुं॰—-—या + डुयसुन्—पुरुष
- पुंस्—पुं॰—-—या + डुयसुन्—नर
- पुंस्—पुं॰—-—या + डुयसुन्—इंसान, मानव
- पुंस्—पुं॰—-—या + डुयसुन्—मनुष्य, मनुष्य जाति, क़ौम, राष्ट्र
- पुंस्—पुं॰—-—या + डुयसुन्—टहलुआ, सेवक
- पुंस्—पुं॰—-—या + डुयसुन्—पुंल्लिंग शब्द
- पुंस्—पुं॰—-—या + डुयसुन्—पुंल्लिग
- पुंस्—पुं॰—-—या + डुयसुन्—आत्मा
- पुंसानुज—वि॰—पुंस्-अनुज—-—वह जिसका बड़ा भाई भी हो
- पुंसानुजा—स्त्री॰—पुंस्-अनुजा—-—लकड़ा होने के बाद जन्म लेने वाली लड़की अर्थात् बड़े भाई वाली लड़की
- पुमपत्यम्—नपुं॰—पुंस्-अपत्यम्—-—लड़का
- प्रमर्थः—पुं॰—पुंस्-अर्थः—-—पुरुष या मनुष्य का उद्देश्य
- प्रमर्थः—पुं॰—पुंस्-अर्थः—-—मानव-जीवन के चार ध्येयों में से कोई सा एक, अर्थात् धर्म, अर्थ, काम या मोक्ष
- प्रमाख्या—स्त्री॰—पुंस्-आख्या—-—नर की संज्ञा
- पुमाचार—पुं॰—पुंस्-आचारः—-—पुरुष का आचार, चालचलन
- पुंस्कटिः—स्त्री॰—पुंस्-कटिः—-—पुरुष की कमर
- पुंस्कामा—स्त्री॰—पुंस्-कामा—-—पति की कामना करने वाली स्त्री
- पुंस्कोकिलः—पुं॰—पुंस्-कोकिलः—-—नर-कोयल
- पुंखैटः—पुं॰—पुंस्-खैटः—-—नरग्रह
- पुंगवः—पुं॰—पुंस्-गवः—-—बैल, सांड
- पुंगवः—पुं॰—पुंस्-गवः—-—मुख्य, सर्वोत्तम, श्रेष्ठतम, पूज्य या किसी भी श्रेणी का प्रमुख व्यक्ति
- पुंस्केतुः—पुं॰—पुंस्-केतुः—-—शिव का विशेषण
- पुंश्चली—पुं॰—पुंस्-चली—-—रंडी का बेटा
- पुंश्चिह्नम्—नपुं॰—पुंस्-चिह्नम्—-—शिश्न, पुरुष की जननेन्द्रिय
- पुंजन्मन्—नपुं॰—पुंस्-जन्यन्—-—लड़के का पैदा होना, नर-सन्तान का जन्म लेना
- पुंयोगः—पुं॰—पुंस्-योगः—-—वह नक्षत्रपुंज जिसमें कि लड़कों या नरसन्तान का जन्म होता है
- पुंदासः—पुं॰—पुंस्-दासः—-—पुरुष-दास
- पुंध्वजः—पुं॰—पुंस्-ध्वजः—-—प्राणिमात्र में किसी भी जाति का नर
- पुंध्वजः—पुं॰—पुंस्-ध्वजः—-—चूहा
- पुन्नक्षत्रम्—नपुं॰—पुंस्-नक्षत्रम्—-—नर जाति का नक्षत्र
- पुन्नागः—पुं॰—पुंस्-नागः—-—पुरुषों में हाथी, पूज्य या आदरणीय पुरुष
- पुन्नागः—पुं॰—पुंस्-नागः—-—सफेद हाथी
- पुन्नागः—पुं॰—पुंस्-नागः—-—सफ़ेद कमल
- पुन्नागः—पुं॰—पुंस्-नागः—-—जायफल
- पुन्नागः—पुं॰—पुंस्-नागः—-—नाग केशर नाम का वृक्ष
- पुन्नाटः—पुं॰—पुंस्-नाटः—-—इस नाम का वृक्ष
- पुन्नाडः—पुं॰—पुंस्-नाडः—-—इस नाम का वृक्ष
- पुन्नामधेयः—पुं॰—पुंस्-नामधेयः—-—नर, पुरुषवाची
- पुन्नामन्—वि॰—पुंस्-नामन्—-—पुंलिग नामधारी
- पुन्नामन्—पुं॰—पुंस्-नामन्—-—पुंनाग नामक वृक्ष
- पुंपुत्रः—पुं॰—पुंस्-पुत्रः—-—नर-सन्तान, लड़का
- पुंप्रजननम्—नपुं॰—पुंस्-प्रजननम्—-—पुरुष की जननेन्द्रिय, लिङ्ग
- पुंभूमन्—पुं॰—पुंस्-भूमन्—-—वह शब्द ज़ो केवल पुंल्लिंग बहुबचनांत ही होता है
- पुंयोगः—पुं॰—पुंस्-योगः—-—पुरुष के साथ सहवास या संबंध
- पुंयोगः—पुं॰—पुंस्-योगः—-—किसी पुरुष या पति का संकेत
- पुंरत्नम्—नपुं॰—पुंस्-रत्नम्—-—श्रेष्ठ
- पुंराशिः—पुं॰—पुंस्-राशिः—-—नरराशि
- पुंरूपम्—नपुं॰—पुंस्-रूपम्—-—नर का रूप
- पुंल्लिङ्ग—वि॰—पुंस्-लिंग—-—पुरुषवाचक शब्द, पुरुष वाचक
- पुंल्लिङ्गम्—वि॰—पुंस्-लिंगम्—-—पुरुष वाचक चिह्न
- पुंल्लिङ्गम्—वि॰—पुंस्-लिंगम्—-—वीर्य, पौरुष
- पुंल्लिङ्गम्—वि॰—पुंस्-लिंगम्—-—पुरुष की जननेन्द्रिय
- पुंवत्सः—पुं॰—पुंस्-वत्सः—-—बछड़ा
- पुंवृषः—पुं॰—पुंस्-वृषः—-—छ्छूँदर
- पुंवेष—वि॰—पुंस्-वेष—-—पुरुष की वेश भूषा में, मर्दानी पोशाक पहने हुए
- पुंसवन—वि॰—पुंस्-सवन—-—पुत्रोत्पत्ति करने वाला
- पुंसवनम्—नपुं॰—पुंस्-सवनम्—-—सर्व प्रथम पर्रिप्कारात्मक या शुद्धीकरण संबंधी संस्कार, स्त्री के गर्भाधान के प्रथम चिह्न प्रकट होने पर पुत्रोत्पत्ति के उद्देश्य से यह संस्कार किया जाता है
- पुंसवनम्—नपुं॰—पुंस्-सवनम्—-—भ्रूण, गर्भ
- पुंसवनम्—नपुं॰—पुंस्-सवनम्—-—दूध
- पुंस्त्वम्—नपुं॰—-—पुंस् + त्व—पुरुष का लक्षण, वीर्य, पुरुषत्व, मर्दानगी
- पुंस्त्वम्—नपुं॰—-—पुंस् + त्व—शुक्र, वीर्य
- पुंस्त्वम्—नपुं॰—-—पुंस् + त्व—पुंलिंग
- पुंवत्—अव्य॰—-—पुंस् + वति—पुरुष की भांति
- पुंवत्—अव्य॰—-—पुंस् + वति—पुंलिंग में
- पुक्कश—वि॰—-—पुक् कुत्सितं कशति गच्छति- पुक् + कश् + अच्—अधम, नीच
- पुक्कस—वि॰—-—पुक् कुत्सितं कशति गच्छति- पुक् + कस् + अच्—अधम, नीच
- पुक्कशः—पुं॰—-—पुक् कुत्सितं कशति गच्छति- पुक् + कस् + अच्—एक पतित वर्णसंकर जाति, शूद्र स्त्री में उत्पन्न निषाद की सन्तान
- पुक्कसः—पुं॰—-—पुक् कुत्सितं कशति गच्छति- पुक् + कस् + अच्—एक पतित वर्णसंकर जाति, शूद्र स्त्री में उत्पन्न निषाद की सन्तान
- पुक्कशी—स्त्री॰—-—-—कलो नील का पौधा
- पुक्कशी—स्त्री॰—-—-—पुक्कस जाति की स्त्री
- पुक्कसी—स्त्री॰—-—-—कलो नील का पौधा
- पुक्कसी—स्त्री॰—-—-—पुक्कस जाति की स्त्री
- पुङ्खः—पुं॰—-—पुमांसं खनति-पुम् + खन् + ड—बाण का पंख वाला भाग
- पुङ्खः—पुं॰—-—पुमांसं खनति-पुम् + खन् + ड—बाज, श्येन
- पुङ्खम्—नपुं॰—-—पुमांसं खनति-पुम् + खन् + ड—बाण का पंख वाला भाग
- पुङ्खम्—नपुं॰—-—पुमांसं खनति-पुम् + खन् + ड—बाज, श्येन
- पुङ्खितः—वि॰—-—पुंख + इतच्—पंखों से युक्त
- पुङ्गः—पुं॰—-—पुञ्च, पृषो॰—ढेर, संग्रह, समुच्चय
- पुङ्गम्—नपुं॰—-—पुञ्च, पृषो॰—ढेर, संग्रह, समुच्चय
- पुङ्गलः—पुं॰—-—पुंग + ला + क—आत्मा
- पुच्छः—पुं॰—-—पुच्छ् + अच्—पूँछ
- पुच्छः—पुं॰—-—पुच्छ् + अच्—वालों वाली पूँछ
- पुच्छः—पुं॰—-—पुच्छ् + अच्—मोर की पूँछ
- पुच्छः—पुं॰—-—पुच्छ् + अच्—पिछला भाग
- पुच्छः—पुं॰—-—पुच्छ् + अच्—किसी वस्तु का किनारा
- पुच्छम्—नपुं॰—-—पुच्छ् + अच्—पूँछ
- पुच्छम्—नपुं॰—-—पुच्छ् + अच्—वालों वाली पूँछ
- पुच्छम्—नपुं॰—-—पुच्छ् + अच्—मोर की पूँछ
- पुच्छम्—नपुं॰—-—पुच्छ् + अच्—पिछला भाग
- पुच्छम्—नपुं॰—-—पुच्छ् + अच्—किसी वस्तु का किनारा
- पुच्छाग्रम्—नपुं॰—पुच्छ-अग्रम्—-—पूँछ का सिरा
- पुच्छमूलम्—नपुं॰—पुच्छ-मूलम्—-—पूँछ का सिरा
- पुच्छकण्टकः—पुं॰—पुच्छ-कण्टकः—-—बिच्छू
- पुच्छजाहम्—नपुं॰—पुच्छ-जाहम्—-—पूंछ की जड़
- पुच्छटिः—स्त्री॰—-—पुच्छ् + अट् + इन्—अंगुलियाँ चटकाना
- पुच्छटी—स्त्री॰—-—पुच्छटि + ङीष्—अंगुलियाँ चटकाना
- पुच्छिन्—पुं॰—-—पुच्छ + इनि—मुर्गा
- पुञ्जः—पुं॰—-—पुंस् + जि + ड—ढेर, समुच्चय, मात्रा, राशि, संग्रह
- पुञ्जि—स्त्री॰—-—पिञ्ज् + इनि, पृषो॰—ढेर, मात्रा, राशि
- पुञ्जिकः—पुं॰—-—पुंजि + कन्—ओला
- पुञ्जित—वि॰—-—पुंज + इतच्—ढेरी, संगृहीत, एक जगह लगाया हुआ ढेर
- पुञ्जित—वि॰—-—पुंज + इतच्—मिलाकर भींचा हुआ, दबाया हुआ
- पुट्—तुदा॰ पर॰ <पुटति>—-—-—आलिंगन करना, लिपटना
- पुट्—तुदा॰ पर॰ <पुटति>—-—-—अन्तर्जटित करना, बटना, गूथना
- पुट्—चुरा॰ उभ॰ <पुटयति>,<पुटयते>—-—-—मिलना
- पुट्—चुरा॰ उभ॰ <पुटयति>,<पुटयते>—-—-—बांधना, जकड़ना
- पुट्—चुरा॰ उभ॰ <पोटयति>, <पोटयते>—-—-—पीसना, चूर्ण करना
- पुट्—चुरा॰ उभ॰ <पोटयति>, <पोटयते>—-—-—बोलना
- पुट्—चुरा॰ उभ॰ <पोटयति>, <पोटयते>—-—-—चमकना
- पुट्—भ्वा॰ पर॰ <पोटति>—-—-—पीसना
- पुट्—भ्वा॰ पर॰ <पोटति>—-—-—मलना
- पुटः—पुं॰—-—पुट्क—तह
- पुटः—पुं॰—-—पुट्क—खोखली जगह, विवर, खोखलापन
- पुटः—पुं॰—-—पुट्क—दोना, पत्तों की तहकरके बनाया गया, पुस्तड़ा
- पुटः—पुं॰—-—पुट्क—कोई उथला पात्र
- पुटः—पुं॰—-—पुट्क—फली, छीमी
- पुटः—पुं॰—-—पुट्क—म्यान, ढकना, आच्छादन
- पुटः—पुं॰—-—पुट्क—पलक
- पुटः—पुं॰—-—पुट्क—घोड़े का सुम
- पुटः—पुं॰—-—पुट्क—रत्नपेटी
- पुटम्—नपुं॰—-—-—तह
- पुटम्—नपुं॰—-—-—खोखली जगह, विवर, खोखलापन
- पुटम्—नपुं॰—-—-—दोना, पत्तों की तहकरके बनाया गया, पुस्तड़ा
- पुटम्—नपुं॰—-—-—कोई उथला पात्र
- पुटम्—नपुं॰—-—-—फली, छीमी
- पुटम्—नपुं॰—-—-—म्यान, ढकना, आच्छादन
- पुटम्—नपुं॰—-—-—पलक
- पुटम्—नपुं॰—-—-—घोड़े का सुम
- पुटम्—नपुं॰—-—-—जायफल
- पुटोजम्—नपुं॰—पुटः-उटजम्—-—सफेद छतरी
- पुटोदकः—पुं॰—पुटः-उदकः—-—नारियल
- पुटग्रीवः—पुं॰—पुटः-ग्रीवः—-—बर्तन, कलसा, घड़ा
- पुटग्रीवः—पुं॰—पुटः-ग्रीवः—-—तांबे का पात्र
- पुटपाकः—पुं॰—पुटः-पाकः—-—औषधियाँ तैयार करने की विशेष पद्धति
- पुटभेदः—पुं॰—पुटः-भेदः—-—पुर, नगर
- पुटभेदः—पुं॰—पुटः-भेदः—-—एक प्रकार का वाद्ययंत्र, आतोद्य
- पुटभेदः—पुं॰—पुटः-भेदः—-—जलावर्त या भंवर
- पुटभेदनम्—नपुं॰—पुट-भेदनम्—-—कस्बा या नगर
- पुटकम्—नपुं॰—-—पुट + कन्—तह
- पुटकम्—नपुं॰—-—पुट + कन्—उथला या कम गहरा प्याला
- पुटकम्—नपुं॰—-—पुट + कन्—दोना या पुस्तड़ा
- पुटकम्—नपुं॰—-—पुट + कन्—कमल
- पुटकम्—नपुं॰—-—पुट + कन्—जायफल
- पुटकिनी—स्त्री॰—-—पुटक + इनि + ङीप्—कमल
- पुटकिनी—स्त्री॰—-—पुटक + इनि + ङीप्—कमल समूह
- पुटिका—स्त्री॰—-—पुट् +ण्वुल् + टाप्, इत्वम्—इलायची
- पुटित—वि॰—-—पुट् + क्त—रगड़ा हुआ, पीसा हुआ
- पुटित—वि॰—-—पुट् + क्त—सिकुड़ा हुआ
- पुटित—वि॰—-—पुट् + क्त—टाँका लगाया हुआ, सीया हुआ
- पुटित—वि॰—-—पुट् + क्त—खण्डित
- पुटी—स्त्री॰—-—पुट + ङीप्—
- पुड्—तुदा॰ पर॰ —-—-—छोड़ना, त्याग देना, तिलांजलि दे देना
- पुड्—तुदा॰ पर॰ —-—-—पदच्युत करना
- पुड्—तुदा॰ पर॰ —-—-—निकालना, बिदा करना, खोजना
- पुण्ड्—भ्वा॰ पर॰ <पुण्डति>—-—-—पीसना, चूरा करना, चूर्ण बना देना या पीस डालना
- पुण्डः—पुं॰—-—पुण्ड् + घञ्—चिह्न, निशान
- पुण्डरीकम्—नपुं॰—-—पुंड् + ईकन्, नि॰—श्वेतकमल
- पुण्डरीकम्—नपुं॰—-—पुंड् + ईकन्, नि॰—सफ़ेद छाता
- पुण्डरीकः—पुं॰—-—-—सफ़ेद रंग
- पुण्डरीकः—पुं॰—-—-—दक्षिणपूर्व या आग्नेयी दिशा का अधिष्ठातृदिक्पाल
- पुण्डरीकः—पुं॰—-—-—व्याघ्र
- पुण्डरीकः—पुं॰—-—-—एक प्रकार का साँप
- पुण्डरीकः—पुं॰—-—-—एक प्रकार का चावल
- पुण्डरीकः—पुं॰—-—-—एक प्रकार का कोढ़
- पुण्डरीकः—पुं॰—-—-—हाथी का बुख़ार
- पुण्डरीकः—पुं॰—-—-—एक प्रकार का आम वृक्ष
- पुण्डरीकः—पुं॰—-—-—घड़ा, जलपात्र
- पुण्डरीकः—पुं॰—-—-—आग
- पुण्डरीकः—पुं॰—-—-—मस्तक पर सम्प्रदाय द्योतक तिलक
- पुण्डरीकाक्षः—पुं॰—पुण्डरीकः-अक्षः—-—विष्णु का विशेषण
- पुण्डरीकप्लवः—पुं॰—पुण्डरीकः-प्लवः—-—एक तरह का पक्षी
- पुण्डरीकमुखी—पुं॰—पुण्डरीकः-मुखी—-—एक तरह की जोक
- पुण्ड्रः—पुं॰—-—पुंड् + रक्—एक प्रकार का गन्ना (लाल रंग का) पौंधा
- पुण्ड्रः—पुं॰—-—पुंड् + रक्—कमल
- पुण्ड्रः—पुं॰—-—पुंड् + रक्—श्वेत कमल
- पुण्ड्रः—पुं॰—-—पुंड् + रक्—(मस्तक पर) सम्प्रदायद्योतक तिलक (चन्दनादिक का)
- पुण्ड्रः—पुं॰—-—पुंड् + रक्—कीड़ा
- पुण्ड्रा—पुं॰,ब॰ व॰—-—पुंड् + रक्—एक देश तथा उसके निवासियों का नाम
- पुण्ड्रकेलिः—पुं॰—पुण्ड्र-केलिः—-—हाथी
- पुण्ड्रकः—पुं॰—-—पुंड्र + कन्—एक प्रकार का ईख (लाल रंग का) पौंधा
- पुण्ड्रकः—पुं॰—-—पुंड्र + कन्—सम्प्रदाय द्योतक तिलक
- पुण्य—वि॰—-—पू॰ + यण्, णुक्, ह्रस्वः—पवित्र, पुनीत, शुचि
- पुण्य—वि॰—-—पू॰ + यण्, णुक्, ह्रस्वः—अच्छा, भला, गुणी, सच्चा, न्याय
- पुण्य—वि॰—-—पू॰ + यण्, णुक्, ह्रस्वः—शुभ, कल्याणकारी, भाग्यशाली, अनुकूल (दिन आदि)
- पुण्य—वि॰—-—पू॰ + यण्, णुक्, ह्रस्वः—रुचिकर, सुहावना, प्रिय, सुन्दर
- पुण्य—वि॰—-—पू॰ + यण्, णुक्, ह्रस्वः—मधुर, गंधयुक्त
- पुण्य—वि॰—-—पू॰ + यण्, णुक्, ह्रस्वः—औपचारिक, उत्सव या संस्कार संबंधी
- पुण्यम्—नपुं॰—-—-—सद्गुण, धार्मिक या नैतिक गुण
- पुण्यम्—नपुं॰—-—-—सद्गुणसंपन्न कृत्य, प्रशस्य कार्य
- पुण्यम्—नपुं॰—-—-—पवित्रता, पवित्रीकरण
- पुण्यम्—नपुं॰—-—-—पशुओं को पानी पिलाने के लिए कूँड
- पुण्या—स्त्री॰—-—-—पवित्र तुलसी
- पुण्याहम्—नपुं॰—पुण्य-अहम्—-—मंगलमय या शुभ दिवस
- पुण्यवाचनम्—नपुं॰—पुण्य-वाचनम्—-—बहुत से धार्मिक संस्कारो के आरंभ में तीन बार उच्चारण करना ‘यह शुभदिवस है’
- पुण्योदयः—पुं॰—पुण्य-उदयः—-—सौभाग्य का प्रभात
- पुण्योद्यान—वि॰—पुण्य-उद्यान—-—सुन्दर उद्यान रखने वाला
- पुण्यकर्तृ—पुं॰—पुण्य-कर्तृ—-—स्तुत्य या गुणवान् पुरुष
- पुण्योकर्मन्—वि॰—पुण्य-कर्मन्—-—स्तुत्य कार्यों के करने वाला, खरा, ईमानदार
- पुण्योकर्मन्—नपुं॰—पुण्य-कर्मन्—-—स्तुत्य कार्य
- पुण्यकालः—पुं॰—पुण्य-कालः—-—शुभ समय
- पुण्यकीर्ति—वि॰—पुण्य-कीर्ति—-—अच्छे नाम वाला, यशस्वी, विख्यात
- पुण्यकृत्—वि॰—पुण्य-कृत्—-—सद्गुणसंपन्न, प्रशंसनीय, स्तुत्य
- पुण्यकृत्या—स्त्री॰—पुण्य-कृत्या—-—धर्मकार्य, ऐसा काम जिसके करने से पुण्य हो
- पुण्यक्षेत्रम्—नपुं॰—पुण्य-क्षेत्रम्—-—पवित्रस्थान, तीर्थस्थान
- पुण्यक्षेत्रम्—नपुं॰—पुण्य-क्षेत्रम्—-—‘पुण्यभूमि’ अर्थात् आर्यावर्त
- पुण्यगंध—वि॰—पुण्य-गंध—-—मधुर गंध से युक्त
- पुण्यगृहम्—नपुं॰—पुण्य-गृहम्—-—बह स्थान जहाँ अन्न आदि ख़ैरात बाँटी जाय
- पुण्यगृहम्—नपुं॰—पुण्य-गृहम्—-—देवालय
- पुण्यजनः—पुं॰—पुण्य-जनः—-—सद्गुणी
- पुण्यजनः—पुं॰—पुण्य-जनः—-—राक्षस, पिशाच
- पुण्यजनः—पुं॰—पुण्य-जनः—-—यक्ष
- पुण्यीश्वरः—पुं॰—पुण्य-ईश्वरः—-—कुबेर का विशेषण
- पुण्यजित—वि॰—पुण्य-जित—-—पुण्यद्वारा प्राप्त किया हुआ
- पुण्यतीर्थम्—नपुं॰—पुण्य-तीर्थम्—-—तीर्थयात्रा का शुभस्थान
- पुण्यदर्शन—वि॰—पुण्य-दर्शन—-—सुन्दर
- पुण्यदर्शनः—पुं॰—पुण्य-दर्शनः—-—नीलकंठपक्षी
- पुण्यदर्शनम्—नपुं॰—पुण्य-दर्शनम्—-—पवित्रस्थान, मन्दिर आदि का दर्शन
- पुण्यपुरुष—वि॰—पुण्य-पुरुष—-—धर्मात्मा या पुण्यात्मा
- पुण्यप्रतापः—पुं॰—पुण्य-प्रतापः—-—अच्छे गुणों या नैतिक कार्यों का प्रभाव
- पुण्यफलम्—नपुं॰—पुण्य-फलम्—-—सत्कर्मों का पुरस्कार
- पुण्यफलः—पुं॰—पुण्य-फलः—-—वह उद्यान जहाँ पुण्यरूपी फलों की प्राप्ति होती है
- पुण्यभाज्—वि॰—पुण्य-भाज्—-—सौभाग्यशाली, धर्मात्मा, अच्छे गुणों वाला
- पुण्यभूः—स्त्री॰—पुण्य-भूः—-—पुण्यभूमि अर्थात् आर्यावर्त
- पुण्यभूमिः—स्त्री॰—पुण्य-भूमिः—-—पुण्यभूमि अर्थात् आर्यावर्त
- पुण्यरात्रः—पुं॰—पुण्य-रात्रः—-—शुभरात्रि
- पुण्यलोकः—पुं॰—पुण्य-लोकः—-—स्वर्ग, वैकुण्ठ
- पुण्यशकुनम्—नपुं॰—पुण्य-शकुनम्—-—शुभशकुन
- पुण्यशकुनः—पुं॰—पुण्य-शकुनः—-—शुभशकुनसूचक पक्षी
- पुण्यशील—वि॰—पुण्य-शील—-—अच्छ स्वभाव वाला, सत्कर्मों में रुचि रखने वाला, धर्मपरायण, ईमानदार
- पुण्यश्लोक—वि॰—पुण्य-श्लोक—-—सुविख्यात, जिसका नामोच्चारण ही शुभ समझा जाय, उत्तम यशवाला, पावनचरित्र वाला
- पुण्यश्लोकः—पुं॰—पुण्य-श्लोकः—-—(निषध देश के राजा) नल का विशेषण, युधिष्ठिर और जनार्दन का विशेषण
- पुण्यश्लोका—स्त्री॰—पुण्य-श्लोका—-—सीता और द्रौपदी का विशेषण
- पुण्यस्थानम्—नपुं॰—पुण्य-स्थानम्—-—पुण्यभूमि, पवित्रस्थान, तीर्थस्थान
- पुण्यवत्—वि॰—-—पुण्य + मतुप्, मस्यवः —सत्कर्म करने वाला, सद्गुणी
- पुण्यवत्—वि॰—-—पुण्य + मतुप्, मस्यवः —भाग्यशाली, मंगलमय, अच्छी किस्मत वाला
- पुण्यवत्—वि॰—-—पुण्य + मतुप्, मस्यवः —सुखी, भाग्यवान्
- पुत्—नपुं॰—-—पृ + डुति-पृषो॰—नरक का एक विशेष प्रभाग जहाँ पुत्रहीन व्यक्ति डाले जाते है
- पुत्नामन्—वि॰—पुत्-नामन्—-—पुत् नाम वाला
- पुत्तलः—पुं॰—-—पुत्त् + घञ्= पुत्तं गमनं लाति- पुत्त + ला + क—प्रतिमा, मूर्ति, बुत, पुतला
- पुत्तलः—पुं॰—-—पुत्त् + घञ्= पुत्तं गमनं लाति- पुत्त + ला + क—गुड़िया कठपुतली
- पुत्तली—स्त्री॰—-—पुत्त् + घञ्= पुत्तं गमनं लाति- पुत्त + ला + क, स्त्रियाँ ङींष्—प्रतिमा, मूर्ति, बुत, पुतला
- पुत्तली—स्त्री॰—-—पुत्त् + घञ्= पुत्तं गमनं लाति- पुत्त + ला + क, स्त्रियाँ ङींष्—गुड़िया कठपुतली
- पुत्तलदहनम्—नपुं॰—पुत्तलः-दहनम्—-—विदेश में जिसका प्राणांत हुआ हो अथवा अप्राप्त शव के बदले उसका पुतला बना कर जलाना
- पुत्तलविधिः—पुं॰—पुत्तलः-विधिः—-—विदेश में जिसका प्राणांत हुआ हो अथवा अप्राप्त शव के बदले उसका पुतला बना कर जलाना
- पुत्तलकः—पुं॰—-—पुत्तल + कन्—गुड़िया, मूर्ति आदि
- पुत्तलिका—स्त्री॰—-—पुत्तली + कन् + टाप्, हस्यः—गुड़िया मूर्ति आदि
- पुत्तिका—स्त्री॰—-—पुत्त + ठन् + टाप्—एक प्रकार की मधुमक्खी
- पुत्तिका—स्त्री॰—-—पुत्त + ठन् + टाप्—दीमक
- पुत्रः—पुं॰—-—युत् + त्रै + क—बेटा
- पुत्रः—पुं॰—-—युत् + त्रै + क—बच्चा, किसी जानवर का बच्चा
- पुत्रः—पुं॰—-—युत् + त्रै + क—प्रिय वत्स (छोटे बच्चों को प्यार से संबोधित करने का शब्द
- पुत्रः—पुं॰—-—युत् + त्रै + क—कोई भी छोटी वस्तु यथा- असिपुत्र, शिलापुत्र आदि
- पुतौ—पुं॰,द्वि॰ व॰—-—-—पुत्र और पुत्री
- पुत्रीकृ——-—-—पुत्र के रूप में गोद लेना
- पुत्रान्नादः—पुं॰—पुत्रः-अन्नादः—-—जो पुत्र को कमाई पर निर्वाह करता है, या जिसके निर्वाह की व्यवस्था पुत्र द्वारा की जाय
- पुत्रान्नादः—पुं॰—पुत्रः-अन्नादः—-—एक विशेष प्रकार का साधु
- पुत्रार्थिन्—वि॰—पुत्रः-अर्थिन्—-—पुत्र चाहने वाला
- पुत्रेष्टिः—स्त्री॰—पुत्रः-इष्टिः—-—पुत्र लाभ की इच्छा से किया जाने वाला यज्ञ विशेष
- पुत्रेष्टिका—स्त्री॰—पुत्रः-इष्टिका—-—पुत्र लाभ की इच्छा से किया जाने वाला यज्ञ विशेष
- पुत्रकाम—वि॰—पुत्रः-काम—-—पुत्र की कामना करने वाला
- पुत्रकार्यम्—नपुं॰—पुत्रः-कार्यम्—-—पुत्र संबंधी संस्कारादि
- पुत्रकृतकः—पुं॰—पुत्रः-कृतकः—-—जो पुत्र की भांति माना गया हो, गोद लिया हुआ पुत्र
- पुत्रजात—वि॰—पुत्रः-जात—-—जिसे पुत्र उत्पन्न हुआ हो
- पुत्रदारम्—नपुं॰—पुत्रः-दारम्—-—पुत्र और पत्नी
- पुत्रधर्मः—पुं॰—पुत्रः-धर्मः—-—पुत्र का पिता के प्रति अपेक्षित कर्तव्य
- पुत्रपौत्रम्—नपुं॰—पुत्रः-पौत्रम्—-—बेटे और पोते
- पुत्रपौत्राः—पुं॰—पुत्रः-पौत्राः—-—बेटे और पोते
- पुत्रपौत्रीण—वि॰—पुत्रः-पौत्रीण—-—पुत्र से पौत्र को प्राप्त होने वाला, आनुवंशिक
- पुत्रप्रतिनिधिः—पुं॰—पुत्रः-प्रतिनिधिः—-—पुत्र के स्थान पर अपनाया हुआ
- पुत्रलाभः—पुं॰—पुत्रः-लाभः—-—पुत्र की प्राप्ति
- पुत्रवधूः—स्त्री॰—पुत्र-वधूः—-—पुत्र की पत्नी, स्नुषा
- पुत्रसखः—पुं॰—पुत्रः-सखः—-—बच्चों से प्रेम करने वाला, बच्चों का प्रेमी
- पुत्रहीन—वि॰—पुत्रः-हीन—-—जिसके पुत्र न हो, निस्सन्तान
- पुत्रकः—पुं॰—-—पुत्र + कन्—छोटा पुत्र, बालक, बच्चा, तात, वत्स (वात्सल्य को प्रकट करने वाला शब्द)
- पुत्रकः—पुं॰—-—पुत्र + कन्—गुड़िया, कठपुतली
- पुत्रकः—पुं॰—-—पुत्र + कन्—धूर्त, ठग
- पुत्रकः—पुं॰—-—पुत्र + कन्—टिड्डी, टिड्डा
- पुत्रकः—पुं॰—-—पुत्र + कन्—शरभ या परवाना, पतंग
- पुत्रकः—पुं॰—-—पुत्र + कन्—बाल
- पुत्रका—स्त्री॰—-—पुत्रक् + टाप्—बेटी
- पुत्रका—स्त्री॰—-—पुत्रक् + टाप्—गुड़िया, पुतली
- पुत्रका—स्त्री॰—-—पुत्रक् + टाप्—कोई भी छोटी वस्तु यथा- असिपत्रिका, खड्ग पुत्रिका आदि
- पुत्रिका—स्त्री॰—-—पुत्री + कन् + टाप्, ह्रस्वः—बेटी
- पुत्रिका—स्त्री॰—-—पुत्री + कन् + टाप्, ह्रस्वः—गुड़िया, पुतली
- पुत्रिका—स्त्री॰—-—पुत्री + कन् + टाप्, ह्रस्वः—कोई भी छोटी वस्तु यथा- असिपत्रिका, खड्ग पुत्रिका आदि
- पुत्री —स्त्री॰—-—पुत्र + ङीष्—बेटी
- पुत्री —स्त्री॰—-—पुत्र + ङीष्—गुड़िया, पुतली
- पुत्री —स्त्री॰—-—पुत्र + ङीष्—कोई भी छोटी वस्तु यथा- असिपत्रिका, खड्ग पुत्रिका आदि
- पुत्रकापुत्रः—पुं॰—पुत्रका-पुत्रः—-—बेटी का बेटा, दौहित्र, नाना के द्वारा पुत्र के स्थान पर माना हुआ
- पुत्रकापुत्रः—पुं॰—पुत्रका-पुत्रः—-—बेटी जो पुत्रवत् मानी जाती है, तथा पिता के घर रहती है
- पुत्रकापुत्रः—पुं॰—पुत्रका-पुत्रः—-—पौत्र
- पुत्रकासुतः—पुं॰—पुत्रका-सुतः—-—बेटी का बेटा, दौहित्र, नाना के द्वारा पुत्र के स्थान पर माना हुआ
- पुत्रकासुतः—पुं॰—पुत्रका-सुतः—-—बेटी जो पुत्रवत् मानी जाती है, तथा पिता के घर रहती है
- पुत्रकासुतः—पुं॰—पुत्रका-सुतः—-—पौत्र
- पुत्रकाप्रसूः—स्त्री॰—पुत्रका-प्रसूः—-—वह माता जिसके कन्याएँ ही हों, पुत्र न हो
- पुत्रकाभर्तृ—पुं॰—पुत्रका-भर्तृ—-—‘बेटी का पति’ जामाता, दामाद
- पुत्रिन्—वि॰—-—पुत्र + इनि—बेटे वाला, बेटों वाला
- पुत्रिन्—वि॰—-—पुत्र + इनि—पुत्र का पिता
- पुत्रिय—वि॰—-—पुत्र + घ—पुत्रसंबंधी, पुत्रविषयक
- पुत्रीय—वि॰—-—पुत्र + छ—पुत्रसंबंधी, पुत्रविषयक
- पुत्र्य—वि॰—-—पुत्र + यत्—पुत्रसंबंधी, पुत्रविषयक
- पुत्रीया—स्त्री॰—-—पुत्र + क्यच् + अ + टाप्—पुत्र प्राप्ति की इच्छा
- पुद्गल—वि॰—-—पुत् कुत्सितं -गलो यस्मात् ब॰ स॰—सुन्दर, प्रिय, मनोहर
- पुद्गलः—पुं॰—-—पुत् कुत्सितं -गलो यस्मात् ब॰ स॰—परमाणु
- पुद्गलः—पुं॰—-—पुत् कुत्सितं -गलो यस्मात् ब॰ स॰—शरीर, भूतद्रव्य
- पुद्गलः—पुं॰—-—पुत् कुत्सितं -गलो यस्मात् ब॰ स॰—आत्मा
- पुद्गलः—पुं॰—-—पुत् कुत्सितं -गलो यस्मात् ब॰ स॰—शिव का विशेषण
- पुनर्—अव्य॰—-—पन् + अर् + उत्वम्—फिर, एक बार फिर, नये सिरे से
- पुनर्भू—स्त्री॰—-—-—फिर पत्नी बनना
- पुनर्—अव्य॰—-—पन् + अर् + उत्वम्—वापिस, विपरीत दिशा में (अधिकतर क्रियाओं के साथ)
- पुनर्दा——-—-—वापिस देना, लौटाना
- पुनर्या——पुनर्+या—-—वापिस जाना, लौटना
- पुनरि——पुनर्+इ—-—वापिस जाना, लौटना
- पुनर्गम्——पुनर्+गम्—-—वापिस जाना, लौटना
- पुनर्—अव्य॰—-—पन् + अर् + उत्वम्—इसके विपरीत, उलटे, परन्तु, तोभी, तथापि इतना होते हुए भी
- पुनः पुनः—अव्य॰—-—-—‘फिर- फिर’, ‘बार-बार’, ‘बहुधा’
- किम्पुनः—अव्य॰—-—-—कितना अधिक, कितना कम
- पुनरपि—अव्य॰—-—-—फिर, एक बार और, इसके विपरीत
- पुनरर्थिता—स्त्री॰—पुनर्-अर्थिता—-—बार बार की हुई प्रार्थना
- पुनरागत—वि॰—पुनर्-आगत—-—फिर आया हुआ, लौटा हुआ
- पुनराधानम्—नपुं॰—पुनर्-आधानम्—-—अभिमंत्रित अग्नि का पुनः स्थापन
- पुनराधेयम्—नपुं॰—पुनर्-आधेयम्—-—अभिमंत्रित अग्नि का पुनः स्थापन
- पुनरावर्तः—पुं॰—पुनर्-आवर्तः—-—वापसी
- पुनरावर्तः—पुं॰—पुनर्-आवर्तः—-—बार बार जन्म होना
- पुनरावर्तिन्—वि॰—पुनर्-आवर्तिन्—-—फिर से संसार में जन्म लेने वाला
- पुनरावृत्—स्त्री॰—पुनर्-आवृत्—-—दोहराना
- पुनरावृत्—स्त्री॰—पुनर्-आवृत्—-—फिर से संसार में आना, बार बार जन्म लेना
- पुनरावृत्—स्त्री॰—पुनर्-आवृत्—-—दोहराना, (पुस्तक आदि का) दूसरा संस्करण
- पुनरावृत्तिः—स्त्री॰—पुनर्-आवृत्तिः—-—दोहराना
- पुनरावृत्तिः—स्त्री॰—पुनर्-आवृत्तिः—-—फिर से संसार में आना, बार बार जन्म लेना
- पुनरावृत्तिः—स्त्री॰—पुनर्-आवृत्तिः—-—दोहराना, (पुस्तक आदि का) दूसरा संस्करण
- पुनरुक्त—वि॰—पुनर्-उक्त—-—फिर कहा हुआ, दोहराया गया, दुबारा कहा गया
- पुनरुक्त—वि॰—पुनर्-उक्त—-—फालतू, अनावश्यक
- पुनरुक्तम्—नपुं॰—पुनर्-उक्तम्—-—दोहराना
- पुनरुक्तम्—नपुं॰—पुनर्-उक्तम्—-—बाहुल्य, आधिक्य, निरर्थकता, द्विरुक्ति या पुनरूक्ति
- पुनरुक्तता—स्त्री॰—पुनर्-उक्तता—-—दोहराना
- पुनरुक्तता—स्त्री॰—पुनर्-उक्तता—-—बाहुल्य, आधिक्य, निरर्थकता, द्विरुक्ति या पुनरूक्ति
- पुनर्जन्मन्—पुं॰—पुनर्-जन्मन्—-—द्विजन्मा, ब्राह्मण
- पुनरुक्तवदाभासः—पुं॰—पुनर्-उक्तवदाभासः—-—प्रतीयमान पुनरुक्ति, पुनरुक्ति का आभास होना, एक अलंकार
- पुनरुक्तिः—स्त्री॰—पुनर्-उक्तिः—-—दोहराना
- पुनरुक्तिः—स्त्री॰—पुनर्-उक्तिः—-—बाहुल्य, निरर्थकता, द्विरुक्ति
- पुनरुत्थानम्—नपुं॰—पुनर्-उत्थानम्—-—फिर उठना, पुनर्जीवित करना
- पुनरुप्तत्तिः—स्त्री॰—पुनर्-उत्पत्तिः—-—पुनरुत्पादन
- पुनरुप्तत्तिः—स्त्री॰—पुनर्-उत्पत्तिः—-—फिर जन्म होना, देहान्तरागमन
- पुनरुपगमः—पुं॰—पुनर्-उपगमः—-—वापसी
- पुनरूपोढा—स्त्री॰—पुनर्-ऊपोढा—-—दुबारा ब्याही हुई स्त्री
- पुनरूढा—स्त्री॰—पुनर्-ऊढा—-—दुबारा ब्याही हुई स्त्री
- पुनरगमनम्—नपुं॰—पुनर्-गमनम्—-—वापसी, फिर जाना
- पुनर्जन्मन्—नपुं॰—पुनर्-जन्मन्—-—बार बार जन्म होना, देहान्तरागमन
- पुनर्जात—वि॰—पुनर्-जात—-—फिर उत्पन्न हुआ
- पुनर्णवः—पुं॰—पुनर्-णवः—-—वार वार उगना, नाखून
- पुनर्नवः—पुं॰—पुनर्-नवः—-—वार वार उगना, नाखून
- पुनर्दारक्रिया—स्त्री॰—पुनर्-दारक्रिया—-—पुनर्विवाह करना (पुरुष का) दूसरी पत्नी लाना
- पुनर्प्रत्युपकारः—पुं॰—पुनर्-प्रत्युपकारः—-—किसी के उपकार का बदला चुकाना, वार वार जन्म होना, देहान्तरागमन
- पुनर्प्रत्युपकारः—पुं॰—पुनर्-प्रत्युपकारः—-—नाखून
- पुनर्भावः—पुं॰—पुनर्-भावः—-—नया जन्म, पुनर्जन्म
- पुनर्धूः—स्त्री॰—पुनर्-धूः—-—विधवा जिसका पुनर्विवाह हो गया हो
- पुनर्धूः—स्त्री॰—पुनर्-धूः—-—पुनर्जन्म
- पुनर्यात्रा—स्त्री॰—पुनर्-यात्रा—-—फिर जाना
- पुनर्यात्रा—स्त्री॰—पुनर्-यात्रा—-—वार वार प्रगति करना (जलूस निकलना)
- पुनर्वचनम्—नपुं॰—पुनर्-वचनम्—-—फिर कहना
- पुनर्वसुः—पुं॰—पुनर्-वसुः—-—सातवाँ नक्षत्र (दो या तीन तारों का पुंज)
- पुनर्वसुः—पुं॰—पुनर्-वसुः—-—विष्णु का विशेषण
- पुनर्वसुः—पुं॰—पुनर्-वसुः—-—शिव का विशेषण
- पुनर्विवाह—पुं॰—पुनर्-विवाह—-—फिर विवाह होना
- पुनःसंस्कारः—पुं॰—पुनर्-संस्कारः—-—किसी संस्कार या शुद्धिकारक कृत्य का दोहराना
- पुनःसङ्गमः—पुं॰—पुनर्-सङ्गमः—-—फिर से मिलना
- पुनःसन्धानम्—नपुं॰—पुनर्-सन्धानम्—-—फिर से मिलना
- पुनःसम्भवः—पुं॰—पुनर्-सम्भवः—-—(संसार में) फिर जन्म लेना, देहान्तरागमन
- पुप्फुलः—पुं॰—-—पुप्फुसः, पृषो॰ सस्य लत्वम्—उदरवायु, अफारा
- पुप्फुसः—पुं॰—-—पुप्फुस् + अच्—फेफड़ा
- पुप्फुसः—पुं॰—-—पुप्फुस् + अच्—कमल का बीज कोष
- पुर्—स्त्री॰—-—पृ + क्वित्—नगर, शहर जिसके चारो ओर सुरक्षादीवार हो
- पुर्—स्त्री॰—-—पृ + क्वित्—दुर्ग, किला, गढ़
- पुर्—स्त्री॰—-—पृ + क्वित्—दीवार, दुर्गप्राचीर
- पुर्—स्त्री॰—-—पृ + क्वित्—शरीर
- पुर्—स्त्री॰—-—पृ + क्वित्—बुद्धि
- पुर्द्वार्—स्त्री॰—पुर्-द्वार्—-—नगर का फाटक
- पुर्द्वारम्—नपुं॰—पुर्-द्वारम्—-—नगर का फाटक
- पुरम्—नपुं॰—-—पृ + क—नगर, शहर (बड़े बड़े विशाल भवनों से युक्त, चारों ओर परिखा से घिरा हुआ, तथा विस्तार में जो एक कोस से कम न हो)
- पुरम्—नपुं॰—-—पृ + क—किला, दुर्ग, गढ़
- पुरम्—नपुं॰—-—पृ + क—घर, निवास, आवास
- पुरम्—नपुं॰—-—पृ + क—शरीर
- पुरम्—नपुं॰—-—पृ + क—अन्तःपुर, रनिवास
- पुरम्—नपुं॰—-—पृ + क—पाटलिपुत्र
- पुरम्—नपुं॰—-—पृ + क—पुष्पकोश, पत्तों की बनी फूलकटोरी
- पुरम्—नपुं॰—-—पृ + क—चमड़ा
- पुरम्—नपुं॰—-—पृ + क—गुग्गुल
- पुराट्टः—पुं॰—पुरम्-अट्टः—-—नगरभित्ति पर बना कंगूरा या मीनार
- पुराधिपः—पुं॰—पुरम्-अधिपः—-—नगरपाल
- पुराध्यक्षः—पुं॰—पुरम्-अध्यक्षः—-—नगरपाल
- पुरारातिः—पुं॰—पुरम्-अरातिः—-—असुहृद
- पुरारिः—पुं॰—पुरम्-अरिः—-—असुहृद
- पुररिपुः—पुं॰—पुरम्-रिपुः—-—शिव का विशेषण
- पुरोत्सवः—पुं॰—पुरम्-उत्सवः—-—नगर में मनाया जाने वाला उत्सव
- पुरोद्यानम्—नपुं॰—पुरम्-उद्यानम्—-—नगरोद्यान, उपवन
- पुरौकस्—पुं॰—पुरम्-ओकस्—-—नगर में रहने वाला
- पुरकोट्टम्—नपुं॰—पुरम्-कोट्टम्—-—नगररक्षक दुर्ग
- पुरग—वि॰—पुरम्-ग—-—नगर को जाने वाला
- पुरग—वि॰—पुरम्-ग—-—अनुकूल
- पुरजित्—पुं॰—पुरम्-जित्—-—शिव का विशेषण
- पुरद्विष्—पुं॰—पुरम्-द्विष्—-—शिव का विशेषण
- पुरभिद्—पुं॰—पुरम्-भिद्—-—शिव का विशेषण
- पुरज्योतिस्—पुं॰—पुरम्-ज्योतिस्—-—अग्नि का विशेषण
- पुरज्योतिस्—पुं॰—पुरम्-ज्योतिस्—-—अग्निलोक
- पुरतटी—स्त्री॰—पुरम्-तटी—-—छोटी पेंठ, छोटा गाँव जहाँ पेंठ लगती हो
- पुरतोरणम्—नपुं॰—पुरम्-तोरणम्—-—नगर का बाहरी फाटक
- पुरद्वारम्—नपुं॰—पुरम्-द्वारम्—-—नगर का फाटक
- पुरनिवेशः—पुं॰—पुरम्-निवेशः—-—नगर की नींव डालना
- पुरपालः—पुं॰—पुरम्-पालः—-—नगरशासक, दुर्ग का सेनापति
- पुरमथनः—पुं॰—पुरम्-मथनः—-—शिव का विशेषण
- पुरमार्गः—पुं॰—पुरम्-मार्गः—-—नगर की गली
- पुररक्षः—पुं॰—पुरम्-रक्षः—-—कांस्टेबल, सिपाही, पुलिस-अधिकारी
- पुररक्षकः—पुं॰—पुरम्-रक्षकः—-—कांस्टेबल, सिपाही, पुलिस-अधिकारी
- पुररक्षिन्—पुं॰—पुरम्-रक्षिन्—-—कांस्टेबल, सिपाही, पुलिस-अधिकारी
- पुररोधः—पुं॰—पुरम्-रोधः—-—दुर्ग का घेरा
- पुरवासिन्—पुं॰—पुरम्-वासिन्—-—नागरिक, नगर का रहने वाला
- पुरशासनः—पुं॰—पुरम्-शासनः—-—विष्णु का विशेषण
- पुरशासनः—पुं॰—पुरम्-शासनः—-—शिव की उपाधि
- पुरटम्—नपुं॰—-—पुर् + अटन्—सोना, स्वर्ण
- पुरणः—पुं॰—-—पृ + क्यु, उत्वम्, रपरः—समुद्र, महासागर
- पुरतः—अव्य॰—-—पुर + तस्—सामने, आगे
- पुरतः—अव्य॰—-—पुर + तस्—की उपस्थिति में
- पुरतः—अव्य॰—-—पुर + तस्—बाद में
- पुरन्दरः—पुं॰—-—पुरं दारयति- इति दृ + णिच् + खच्, मुम्—इन्द्र
- पुरन्दरः—पुं॰—-—पुरं दारयति- इति दृ + णिच् + खच्, मुम्—शिव का विशेषण
- पुरन्दरः—पुं॰—-—पुरं दारयति- इति दृ + णिच् + खच्, मुम्—अग्नि की उपाधि
- पुरन्दरः—पुं॰—-—पुरं दारयति- इति दृ + णिच् + खच्, मुम्—चोर, सेंध लगाने वाला
- पुरन्दरा—स्त्री॰—-—पुरं दारयति- इति दृ + णिच् + खच्, मुम्+ टाप्—गंगा का विशेषण
- पुरन्ध्रिः—स्त्री॰—-—पुरं गेहस्थजनं धारयति धृ + खच् + ङीप्, पृषो॰ वा ह्रस्वः -तारा॰—प्रौढ़ विवाहिता स्त्री, मातृका, विवाहिता स्त्री
- पुरन्ध्रिः—स्त्री॰—-—पुरं गेहस्थजनं धारयति धृ + खच् + ङीप्, पृषो॰ वा ह्रस्वः -तारा॰—वह स्त्री जिसका पति व बच्चे जीवित हों
- पुरला—स्त्री॰—-—पुर + ला + क + टाप्—दुर्गा का विशेषण
- पुरस्—अव्य॰—-—पूर्व + असि, पुर् आदेशः—सामने, आगे, उपस्थिति में, आँखों के सामने (स्वतंत्र रूप से या संबंध के साथ)
- पुरस्—अव्य॰—-—पूर्व + असि, पुर् आदेशः—पूर्व में , पूर्व से
- पुरस्—अव्य॰—-—पूर्व + असि, पुर् आदेशः—पूर्व की ओर
- पुरस्करणम्—नपुं॰—पुरस्-करणम्—-—सामने या आगे रखना
- पुरस्करणम्—नपुं॰—पुरस्-करणम्—-—अधिमान
- पुरस्करणम्—नपुं॰—पुरस्-करणम्—-—ससम्मान बर्ताव, आदर-प्रदर्शन, अनुरोध
- पुरस्करणम्—नपुं॰—पुरस्-करणम्—-—पूजा
- पुरस्करणम्—नपुं॰—पुरस्-करणम्—-—सहचारिता, हाजरी देना
- पुरस्करणम्—नपुं॰—पुरस्-करणम्—-—तैयारी
- पुरस्करणम्—नपुं॰—पुरस्-करणम्—-—व्यवस्थापन
- पुरस्करणम्—नपुं॰—पुरस्-करणम्—-—पूर्ण करना
- पुरस्करणम्—नपुं॰—पुरस्-करणम्—-—आक्रमण करना
- पुरस्करणम्—नपुं॰—पुरस्-करणम्—-—दोषारोपण करना
- पुरस्कारः—पुं॰—पुरस्-कारः—-—सामने या आगे रखना
- पुरस्कारः—पुं॰—पुरस्-कारः—-—अधिमान
- पुरस्कारः—पुं॰—पुरस्-कारः—-—ससम्मान बर्ताव, आदर-प्रदर्शन, अनुरोध
- पुरस्कारः—पुं॰—पुरस्-कारः—-—पूजा
- पुरस्कारः—पुं॰—पुरस्-कारः—-—सहचारिता, हाजरी देना
- पुरस्कारः—पुं॰—पुरस्-कारः—-—तैयारी
- पुरस्कारः—पुं॰—पुरस्-कारः—-—व्यवस्थापन
- पुरस्कारः—पुं॰—पुरस्-कारः—-—पूर्ण करना
- पुरस्कारः—पुं॰—पुरस्-कारः—-—आक्रमण करना
- पुरस्कारः—पुं॰—पुरस्-कारः—-—दोषारोपण करना
- पुरस्कृत—वि॰—पुरस्-कृत—-—सामने रक्खा हुआ
- पुरस्कृत—वि॰—पुरस्-कृत—-—सम्मानित, आदर से बर्ताव किया गया, पूज्य
- पुरस्कृत—वि॰—पुरस्-कृत—-—छांटा गया, मानागया, अनुगमन किया
- पुरस्कृत—वि॰—पुरस्-कृत—-—आराधित, पूजित
- पुरस्कृत—वि॰—पुरस्-कृत—-—सेवा में प्रस्तुत, संलग्न, संयुक्त
- पुरस्कृत—वि॰—पुरस्-कृत—-—तैयार, तत्पर
- पुरस्कृत—वि॰—पुरस्-कृत—-—अभिमंत्रित
- पुरस्कृत—वि॰—पुरस्-कृत—-—दोषारोपित, कलंकित
- पुरस्कृत—वि॰—पुरस्-कृत—-—पूरा किया हुआ
- पुरस्कृत—वि॰—पुरस्-कृत—-—प्रत्याशित
- पुरस्क्रिया—स्त्री॰—पुरस्-क्रिया—-—आदर प्रदर्शित करना, सम्मानित बर्ताव
- पुरस्क्रिया—स्त्री॰—पुरस्-क्रिया—-—आरम्भिक या दीक्षासंबंधी कृत्य
- पुरोग—वि॰—पुरस्-ग—-—मुख्य, अग्रणी, सर्व प्रथम, प्रमुख, प्रायः संज्ञा के बल सहित
- पुरोग—वि॰—पुरस्-ग—-—अधिष्ठित
- पुरोगम—वि॰—पुरस्-गम—-—मुख्य, अग्रणी, सर्व प्रथम, प्रमुख, प्रायः संज्ञा के बल सहित
- पुरोगम—वि॰—पुरस्-गम—-—अधिष्ठित
- पुरोगतिः—स्त्री॰—पुरस्-गतिः—-—पूर्ववर्तिता
- पुरोगतिः—स्त्री॰—पुरस्-गतिः—-—कुत्ता
- पुरोगंतृ—वि॰—पुरस्-गंतृ—-—पहले या आगे जाने वाला
- पुरोगंतृ—वि॰—पुरस्-गंतृ—-—मुख्य, नृतृत्व करने वाला, नेता
- पुरोगंतृ—पुं॰—पुरस्-गंतृ—-—कुत्ता
- पुरोगामिन्—वि॰—पुरस्-गामिन्—-—पहले या आगे जाने वाला
- पुरोगामिन्—वि॰—पुरस्-गामिन्—-—मुख्य, नृतृत्व करने वाला, नेता
- पुरोगामिन्—पुं॰—पुरस्-गामिन्—-—कुत्ता
- पुरोचरणम्—नपुं॰—पुरस्-चरणम्—-—आरंभिक या दीक्षा विषयक कृत्य
- पुरोचरणम्—नपुं॰—पुरस्-चरणम्—-—तैयारी, दीक्षा
- पुरोचरणम्—नपुं॰—पुरस्-चरणम्—-—किसी देवता के नाम का जप तथा हवन में आहुति
- पुरोछ्दः—पुं॰—पुरस्-छदः—-—चूचुक
- पुरोजन्मन्—वि॰—पुरस्-जन्मन्—-—पहले पैदा हुआ
- पुरोडाश्—पुं॰—पुरस्-डाश्—-—चावलों को पीस कर बनाई गई तथा कपाल में रख कर प्रस्तुत की गई यज्ञ की आहुति
- पुरोडाशः—पुं॰—पुरस्-डाशः—-—चावलों को पीस कर बनाई गई तथा कपाल में रख कर प्रस्तुत की गई यज्ञ की आहुति
- पुरोधस्—पुं॰—पुरस्-धस्—-—कुलुपुरोहित, विशेषकर किसी राजा का
- पुरोधानम्—नपुं॰—पुरस्-धानम्—-—सामने रखना, पुरोहित द्वारा कराया गया उपचार
- पुरोधिका—स्त्री॰—पुरस्-धिका—-—(और अव अन्य स्त्रियों की अपेक्षा मनचहेती पत्नी
- पुरोपाक—वि॰—पुरस्-पाक—-—पूरा होने के निकट, पूरा होने वाला
- पुरोप्रहर्तृ—पुं॰—पुरस्-प्रहर्तृ—-—पहली पंक्ति में जाकर लड़ने वाला सैनिक
- पुरोफल—वि॰—पुरस्-फल—-—जिसका फल निकट ही हो, (निकट भविष्य में) फल देने वाला
- पुरोभाग—वि॰—पुरस्-भाग—-—बलात् प्रवेशी, अनधिकार प्रवेशी
- पुरोभाग—वि॰—पुरस्-भाग—-—छिद्रान्वेषण करने वाला
- पुरोभाग—वि॰—पुरस्-भाग—-—स्पृहाशील, ईर्ष्यालु
- पुरोभागः—पुं॰—पुरस्-भागः—-—आगे का भाग, अगला भाग, गाड़ी
- पुरोभागः—पुं॰—पुरस्-भागः—-—बलात् प्रवेश, अनधिकार प्रवेश
- पुरोभागः—पुं॰—पुरस्-भागः—-—डाह, स्पर्धा
- पुरोभागिन्—वि॰—पुरस्-भागिन्—-—आगे रहने वाला, स्वेच्छावान्, नटखट
- पुरोभागिन्—वि॰—पुरस्-भागिन्—-—बलात् प्रवेशी, अनधिकार प्रवेशी
- पुरोमारुतः—पुं॰—पुरस्-मारुतः—-—आगे की हवा, सामने चलने वाली हवा
- पुरोवातः—पुं॰—पुरस्-वातः—-—आगे की हवा, सामने चलने वाली हवा
- पुरःसर—वि॰—पुरस्-सर—-—अग्रेसर
- पुरःसरः—पुं॰—पुरस्-सरः—-—आगे चलने वाला, अग्रदूत
- पुरःसरः—पुं॰—पुरस्-सरः—-—अनुचर, टहलुआ, सेवक
- पुरःसरः—पुं॰—पुरस्-सरः—-—नेता, जो नेतृत्व करे, सर्वप्रथम, प्रमुख
- पुरःसरः—पुं॰—पुरस्-सरः—-—अनुचरों सहित, परिचरों सहित, के साथ
- पुरःस्थायिन्—वि॰—पुरस्-स्थायिन्—-—सामने खड़े रहने वाला
- पुरोहित—वि॰—पुरस्-हित—-—सामने रक्खा हुआ
- पुरोहित—वि॰—पुरस्-हित—-—नियुक्त, दूत, आयुक्त
- पुरोहितः—पुं॰—पुरस्-हितः—-—कार्यभार संभालने वाला, अभिकर्ता, दूत
- पुरोहितः—पुं॰—पुरस्-हितः—-—कुलपुरोहित, जो कुल में होने वाले सभी कर्मकाण्ड या संस्कारों का संचालन करता है
- पुरस्तात्—अव्य॰—-—पूर्व + अस्ताति, पुर् आदेशः—आगे, सामने
- पुरस्तात्—अव्य॰—-—पूर्व + अस्ताति, पुर् आदेशः—सिर पर, सर्व प्रथम
- पुरस्तात्—अव्य॰—-—पूर्व + अस्ताति, पुर् आदेशः—पहले स्थान पर, आरंभ में
- पुरस्तात्—अव्य॰—-—पूर्व + अस्ताति, पुर् आदेशः—पहले, पूर्वतः
- पुरस्तात्—अव्य॰—-—पूर्व + अस्ताति, पुर् आदेशः—पूर्व की ओर, पूर्व में, या पूर्व की तरफ
- पुरस्तात्—अव्य॰—-—पूर्व + अस्ताति, पुर् आदेशः—बाद में, आगे, अन्त में
- पुरा—अव्य॰—-—पुर् + का—पूर्व काल में, पहले, प्राचीन काल में
- पुरा—अव्य॰—-—पुर् + का—पहले अव तक, इस समय तक
- पुरा—अव्य॰—-—पुर् + का—पहले पहले, सबसे पहले
- पुरा—अव्य॰—-—पुर् + का—थोड़े समय में, शीघ्र, अचिरात् थोड़ी देर में
- पुरोपनीत—वि॰—पुरा-उपनीत—-—जिस पुर पहले अधिकार किया हुआ था, जो पहले आधिवत्य में था
- पुराकथा—स्त्री॰—पुरा-कथा—-—पुराना उपाख्यान
- पुराकल्पः—पुं॰—पुरा-कल्पः—-—पूर्व सृष्टि
- पुराकल्पः—पुं॰—पुरा-कल्पः—-—अतीत की कहानी
- पुराकल्पः—पुं॰—पुरा-कल्पः—-—पहला युग
- पुराकृत—वि॰—पुरा-कृत—-—पहले किया हुआ
- पुरायोनि—वि॰—पुरा-योनि—-—प्राचीन मूल (उत्पत्ति)
- पुरावसुः—पुं॰—पुरा-वसुः—-—भीष्म का विशेषण
- पुराविद्—वि॰—पुरा-विद्—-—अतीत से परिचित, पूर्व घटित बातों का जानकार
- पुरावृत्त—वि॰—पुरा-वृत्त—-—प्राचीन काल में होने वाला या उससे संवद्ध
- पुरावृत्त—वि॰—पुरा-वृत्त—-—पुराना, प्राचीन
- पुराकथा—स्त्री॰—पुरा-कथा—-—पुराना उपाख्यान
- पुरावृत्तम्—नपुं॰—पुरा-वृत्तम्—-—इतिहास
- पुरावृत्तम्—नपुं॰—पुरा-वृत्तम्—-—पुरानी या काल्पनिक घटना
- पुरा—स्त्री॰—-—पुर + टाप्—गंगा का विशेषण
- पुरा—स्त्री॰—-—पुर + टाप्—एक प्रकार का गंधद्रव्य
- पुरा—स्त्री॰—-—पुर + टाप्—पूर्व दिशा
- पुरा—स्त्री॰—-—पुर + टाप्—किला
- पुराण—वि॰—-—पुरा नवम्- निरु॰—पुराना, प्राचीन, पूर्वकाल संबंधी
- पुराण—वि॰—-—पुरा नवम्- निरु॰—वयोवृद्ध, पुरातन
- पुराण—वि॰—-—पुरा नवम्- निरु॰—क्षीण, घिसाघिसाया
- पुराणम्—नपुं॰—-—-—अतीत घटना, या वृत्तान्त
- पुराणम्—नपुं॰—-—-—अतीत की कहानी, उपाख्यान, प्राचीन या पौराणिक इतिहास
- पुराणम्—नपुं॰—-—-—कुछ विख्यात धार्मिक पुस्तकें जो गिनती में १८ हैं व्यास द्वारा प्रणीत मानी जाती हैं
- पुराणः—पुं॰—-—-—८० कौड़ियों के बराबर मूल्य का एक सिक्का
- पुराणान्तः—पुं॰—पुराण-अन्तः—-—यम का विशेषण
- पुराणोक्त—वि॰—पुराण-उक्त—-—पुराणों में निर्दिष्ट या विहित
- पुराणगः—पुं॰—पुराण-गः—-—ब्राह्मण का विशेषण
- पुराणगः—पुं॰—पुराण-गः—-—पुराण पाठक, पुराण की कथा करने वाला
- पुराणपुरुषः—पुं॰—पुराण-पुरुषः—-—विष्णु का विशेषण
- पुरातन—वि॰—-—पुरा + ट्यु, तुटु—पुराना, प्राचीन
- पुरातन—वि॰—-—पुरा + ट्यु, तुटु—वयोवृद्ध, प्राक्कालीन
- पुरातन—वि॰—-—पुरा + ट्यु, तुटु—घिसाघिसाया, क्षीण
- पुरातनः—पुं॰—-—-—विष्णु का विशेषण
- पुरिः—स्त्री॰—-—पृ + इ—नगर, शहर
- पुरिः—स्त्री॰—-—पृ + इ—नदी
- पुरिशय—वि॰—-—पुरि + शी + अच्—शरीर में विश्राम करने वाला
- पुरी—स्त्री॰—-—पुरि + ङीष्—शहर, नगर
- पुरी—स्त्री॰—-—पुरि + ङीष्—गढ़
- पुरी—स्त्री॰—-—पुरि + ङीष्—शरीर
- पुरीमोहः—पुं॰—पुरी-मोहः—-—धतूरे का पौधा
- पुरीतत्—पुं॰—-—पुरीं देहं तनोति- तन् + क्विप्—हृदय के पास की एक विशेष अंतड़ी
- पुरीतत्—पुं॰—-—पुरीं देहं तनोति- तन् + क्विप्—अंतड़ियाँ
- पुरीषम्—नपुं॰—-—पृ + ईषन्, किच्च—मल, विष्ठा, गूथ (गोबर)
- पुरीषम्—नपुं॰—-—पृ + ईषन्, किच्च—कूड़ाकरकट, गंदगी
- पुरीषोत्सर्गः—पुं॰—पुरीषम्-उत्सर्गः—-—मलत्याग
- पुरीषनिग्रहणम्—नपुं॰—पुरीषम्-निग्रहणम्—-—कोष्ठबद्धता
- पुरीषणः—पुं॰—-—पुरी + इष् + ल्युट्—मल, विष्ठा
- पुरीषणम्—नपुं॰—-—पुरी + इष् + ल्युट्—मलोत्सर्ग करना, मलत्याग करना
- पुरीषमः—पुं॰—-—पुरीषं मिमीतें - पुरीष + मा + क—उड़द, माष
- पुरु—वि॰—-—पृ पालनपोषणयोः - कु—अति, प्रचुर, अधिक, बहूत से
- पुरुः—वि॰—-—पृ पालनपोषणयोः - कु—‘फुलों का पराग
- पुरुः—वि॰—-—पृ पालनपोषणयोः - कु—स्वर्ग, देवलोक
- पुरुः—वि॰—-—पृ पालनपोषणयोः - कु—एक राजकुमार का नाम, चन्द्रवंशी राजाओं में छठा राजा
- पुरुजित्—पुं॰—पुरु-जित्—-—विष्णु का विशेषण
- पुरुजित्—पुं॰—पुरु-जित्—-—राजा कुन्तीभोज या उसके भाई का नाम
- पुरुदम्—नपुं॰—पुरु-दम्—-—सोना, स्वर्ण
- पुरुदंशकः—पुं॰—पुरु-दंशकः—-—हंस
- पुरुलम्पट—वि॰—पुरु-लम्पट—-—बहुत विषयी, या कामातुर
- पुरुह—वि॰—पुरु-ह—-—बहुत, बहुत से
- पुरुहु—वि॰—पुरु-हु—-—बहुत, बहुत से
- पुरुहूत—वि॰—पुरु-हूत—-—बहुतों से आवाहन किया गया
- पुरुहूतः—पुं॰—पुरु-हूतः—-—इन्द्र का विशेषण
- पुरुद्विष्—पुं॰—पुरु-द्विष्—-—इन्द्रजित का विशेषण
- पुरुषः—पुं॰—-—पुरि देहे शेते- शी + ड पृषो॰ तारा॰, पुर् + कुषन्—नर, मनुष्य, मर्द
- पुरुषः—पुं॰—-—पुरि देहे शेते- शी + ड पृषो॰ तारा॰, पुर् + कुषन्—मनुष्य, मनुष्य जाति
- पुरुषः—पुं॰—-—पुरि देहे शेते- शी + ड पृषो॰ तारा॰, पुर् + कुषन्—किसी पीढ़ी का प्रतिनिधि या सदस्य
- पुरुषः—पुं॰—-—पुरि देहे शेते- शी + ड पृषो॰ तारा॰, पुर् + कुषन्—अधिकारी, कार्यकर्ता, अभिकर्ता, अनुचर, सेवक
- पुरुषः—पुं॰—-—पुरि देहे शेते- शी + ड पृषो॰ तारा॰, पुर् + कुषन्—मनुष्य की ऊँचाई या माप, दोनों हाथ फैला कर लम्बाई की माप
- पुरुषः—पुं॰—-—पुरि देहे शेते- शी + ड पृषो॰ तारा॰, पुर् + कुषन्—आत्मा
- पुरुषः—पुं॰—-—पुरि देहे शेते- शी + ड पृषो॰ तारा॰, पुर् + कुषन्—परमात्मा, ईश्वर (विश्व की आत्मा)
- पुरुषः—पुं॰—-—पुरि देहे शेते- शी + ड पृषो॰ तारा॰, पुर् + कुषन्—पुरुष (व्या॰ में) प्रथम पुरुष, मध्यम पुरुष और उत्तम पुरुष
- पुरुषः—पुं॰—-—पुरि देहे शेते- शी + ड पृषो॰ तारा॰, पुर् + कुषन्—आँख की पुतली
- पुरुषः—पुं॰—-—पुरि देहे शेते- शी + ड पृषो॰ तारा॰, पुर् + कुषन्—आत्मा (विप॰ प्रकृति) सांख्यमतानुसार यह न उत्पन्न होता है, न उत्पादक है, यह निष्क्रिय है, तथा प्रकृति का दर्शक है
- पुरुषम्—नपुं॰—-—-—मेरु पर्वत का विशेषण
- पुरुषाङ्गम्—नपुं॰—पुरुषः-अङ्गम्—-—पुरुष को जननेन्द्रिय, लिंग
- पुरुषादः—पुं॰—पुरुषः-अदः—-—नरभक्षक, मनुष्य का मांस खाने वाला, पिशाच
- पुरुषाधमः—पुं॰—पुरुषः-अधमः—-—अत्यंत नीच पुरुष, बहुत ही जघन्य और घृणित व्यक्ति
- पुरुषाधिकारः—पुं॰—पुरुषः-अधिकारः—-—पुरुष का पद या कर्तव्य
- पुरुषाधिकारः—पुं॰—पुरुषः-अधिकारः—-—मनुष्य का मूल्यांकन या प्राक्कलन
- पुरुषान्तरम्—नपुं॰—पुरुषः-अन्तरम्—-—दूसरा मनुष्य
- पुरुषार्थः—पुं॰—पुरुषः-अर्थः—-—मानवजीवन के चार मुख्य पदार्थों (अर्थात् धर्म, अर्थ, काम और मोक्ष) में से एक
- पुरुषार्थः—पुं॰—पुरुषः-अर्थः—-—मानवप्रयत्न या चेष्टा, पुरुषकार
- पुरुषास्थिमालिन्—पुं॰—पुरुषः-अस्थिमालिन्—-—शिव का विशेषण
- पुरुषाद्यः—पुं॰—पुरुषः-आद्यः—-—विष्णु का विशेषण
- पुरुषायुषम्—नपुं॰—पुरुषः-आयुषम्—-—मानव-जीवन की अवधि
- पुरुषायुस्—नपुं॰—पुरुषः-आयुस्—-—मानव-जीवन की अवधि
- पुरुषाशिन्—पुं॰—पुरुषः-आशिन्—-—नरभक्षी, राक्षस, पिशाच
- पुरुषेन्द्रः—पुं॰—पुरुषः-इन्द्रः—-—राजा
- पुरुषोत्तमः—पुं॰—पुरुषः-उत्तमः—-—श्रेष्ठ पुरुष
- पुरुषोत्तमः—पुं॰—पुरुषः-उत्तमः—-—परमात्मा, विष्णु या कृष्ण का विशेषण
- पुरुषकारः—पुं॰—पुरुषः-कारः—-—मानवप्रयत्न, मनुष्यचेष्टा, मर्दाना काम, मर्दानगी, पराक्रम
- पुरुषकारः—पुं॰—पुरुषः-कारः—-—पौरुष, वीर्य
- पुरुषकुणपः—पुं॰—पुरुषः-कुणपः—-—मानवशव
- पुरुषकुणपम्—नपुं॰—पुरुषः-कुणपम्—-—मानवशव
- पुरुषकेसरिन्—पुं॰—पुरुषः-केसरिन्—-—‘नरसिंह’ विष्णु का चौथा अवतार
- पुरुषज्ञानम्—नपुं॰—पुरुषः-ज्ञानम्—-—मानवजाति का ज्ञान
- पुरुषदघ्न—वि॰—पुरुषः-दघ्न—-—मनुष्य की ऊँचाई के बराबर लंबा
- पुरुषद्वयस्—वि॰—पुरुषः-द्वयस्—-—मनुष्य की ऊँचाई के बराबर लंबा
- पुरुषद्विष्—पुं॰—पुरुषः-द्विष्—-—विष्णु का शत्रु
- पुरुषनाथः—पुं॰—पुरुषः-नाथः—-—चमूपति, सेनापति
- पुरुषनाथः—पुं॰—पुरुषः-नाथः—-—राजा
- पुरुषपशुः—पुं॰—पुरुषः-पशुः—-—नरपशु, क्रूरव्यक्ति
- पुरुषपुङ्गवः—पुं॰—पुरुषः-पुङ्गवः—-—श्रेष्ठपुरुष, प्रमुख व्यक्ति
- पुरुषपुण्डरीकः—पुं॰—पुरुषः-पुण्डरीकः—-—श्रेष्ठपुरुष, प्रमुख व्यक्ति
- पुरुषवहुमानः—पुं॰—पुरुषः-वहुमानः—-—मनुष्यजाति की प्रतिष्ठा
- पुरुषमेघः—पुं॰—पुरुषः-मेघः—-—नरमेध, पुरुषयज्ञ
- पुरुषवरः—पुं॰—पुरुषः-वरः—-—विष्णु का विशेषण
- पुरुषवाहः—पुं॰—पुरुषः-वाहः—-—गरुड़ का विशेषण
- पुरुषवाहः—पुं॰—पुरुषः-वाहः—-—कुबेर की उपाधि
- पुरुषव्याघ्रः—पुं॰—पुरुषः-व्याघ्रः—-—‘मनुष्यों में शेर’ पूज्य या प्रमुख व्यक्ति
- पुरुषव्याघ्रः—पुं॰—पुरुषः-व्याघ्रः—-—शूरवीर, बहादुर आदमी
- पुरुषशार्दूलः—पुं॰—पुरुषः-शार्दूलः—-—‘मनुष्यों में शेर’ पूज्य या प्रमुख व्यक्ति
- पुरुषशार्दूलः—पुं॰—पुरुषः-शार्दूलः—-—शूरवीर, बहादुर आदमी
- पुरुषसिंहः—पुं॰—पुरुषः-सिंहः—-—‘मनुष्यों में शेर’ पूज्य या प्रमुख व्यक्ति
- पुरुषसिंहः—पुं॰—पुरुषः-सिंहः—-—शूरवीर, बहादुर आदमी
- पुरुषसमवायः—पुं॰—पुरुषः-समवायः—-—मनुष्यों का समूह
- पुरुषसूक्तम्—नपुं॰—पुरुषः-सूक्तम्—-—ऋग्वेद के दसवें मण्डल का ९०वाँ सूक्त
- पुरुषकः—पुं॰—-—पुरुष + कन्—मनुष्य की भांति दो पैरों पर खड़ा होने वाला, घोड़े का पालना
- पुरुषकम्—नपुं॰—-—पुरुष + कन्—मनुष्य की भांति दो पैरों पर खड़ा होने वाला, घोड़े का पालना
- पुरुषता—स्त्री॰—-—पुरुष + तल् + टाप्—पुरुषत्व, मर्दानगी, पराक्रम
- पुरुषता—स्त्री॰—-—पुरुष + तल् + टाप्—वीर्य
- पुरुषत्वम्—नपुं॰—-—पुरुष + तल् + त्व—पुरुषत्व, मर्दानगी, पराक्रम
- पुरुषत्वम्—नपुं॰—-—पुरुष + तल् + त्व—वीर्य
- पुरुषायित—वि॰—-—पुरुष + क्यङ् + क्त—मनुष्य की भांति आचरण करने वाला
- पुरुषायितम्—नपुं॰—-—पुरुष + क्यङ् + क्त—मनुष्य का अभिनय करना, मनुष्यपात्र का अभिनय, संचालन
- पुरुषायितम्—नपुं॰—-—पुरुष + क्यङ् + क्त—एक प्रकार का स्त्रीमैथुन जिससें स्त्री पुरुषवत् आचरण करती है
- पुरूरवस्—पुं॰—-—पुरु प्रवुरं यथास्यात्तथा रौति-पुरु + रु + असि नि॰ साधुः—बुध और इला का पुत्र, चन्द्रवंशी राजकुल का प्रवर्तक
- पुरोटिः—पुं॰—-—पुरस् + अट् + इन्—नदी का प्रवाह
- पुरोटिः—पुं॰—-—पुरस् + अट् + इन्—पत्तों की सरसराहट या मर्मरध्वनि, पत्र शब्द
- पुरोडास—पुं॰—-—-—चावलों को पीस कर बनाई गई तथा कपाल में रख कर प्रस्तुत की गई यज्ञ की आहुति
- पुरोधस्—पुं॰—-—-—कुलुपुरोहित, विशेषकर किसी राजा का
- पुर्व्—भ्वा॰ पर॰ <पुर्वति>—-—-—भरना
- पुर्व्—भ्वा॰ पर॰ <पुर्वति>—-—-—बसना, रहना
- पुर्व्—भ्वा॰ पर॰ <पुर्वति>—-—-—निमंत्रित करना
- पुल—वि॰—-—पुल् + क—महान्, विशाल, व्यापक विस्तृत
- पुलः—पुं॰—-—पुल् + क—रोमाञ्च होना
- पुलकः—पुं॰—-—तुल + कन्—शरीर के बालों का सीधा खड़ा होना, (भय या हर्ष से) शिहरन, रोमाचं
- पुलकः—पुं॰—-—तुल + कन्—एक प्रकार का पत्थर या रत्न
- पुलकः—पुं॰—-—तुल + कन्—रत्न में दोष
- पुलकः—पुं॰—-—तुल + कन्—एक प्रकार का खनिज पदार्थ
- पुलकः—पुं॰—-—तुल + कन्—अन्नपिंड जिससे हाथी पलते हैं
- पुलकः—पुं॰—-—तुल + कन्—हरताल
- पुलकः—पुं॰—-—तुल + कन्—शराब पीने का गिलास
- पुलकः—पुं॰—-—तुल + कन्—एक प्रकार की सरसों, राई
- पुलकाङ्गः—पुं॰—पुलकः-अङ्गः—-—वरुण का जाल
- पुलकालयः—पुं॰—पुलकः-आलयः—-—कुबेर का विशेषण
- पुलकोद्गमः—पुं॰—पुलकः-उद्गमः—-—शरीर के रोंगटों का खड़ा होना, रोमांच होना
- पुलकित—वि॰—-—पुलक + इतच्—जिसके रोंगटे खड़े हो गये हैं, रोमांचित, गद्गद, आनन्दित, हर्षोत्फुल्ल
- पुलकिन्—वि॰—-—पुलक + इनि—रोमांचित, जिसके शरीर के रोंगटे खड़े हो गये है
- पुलकिन्—पुं॰—-—-—कलम्ब वृक्ष का एक प्रकार
- पुलस्तिः—पुं॰—-—पुल् + क्विप्= पुल् + अस् + ति—एक ऋषि का नाम, ब्रह्मा का एक मानस पुत्र
- पुलस्त्यः—पुं॰—-—पुलस्ति + यत्—एक ऋषि का नाम, ब्रह्मा का एक मानस पुत्र
- पुला—स्त्री॰—-—पुल + टाप्—मृदु तालु, गले का कौव्वा, तालु जिह्वा
- पुलाकः—पुं॰—-—पुल् + आक् नि॰—थोथा या मुरझाया हुआ अन्न, कदन्न
- पुलाकः—पुं॰—-—पुल् + आक् नि॰—भात का पिंड
- पुलाकः—पुं॰—-—पुल् + आक् नि॰—संक्षेप, संग्रह
- पुलाकः—पुं॰—-—पुल् + आक् नि॰—संक्षिप्तता, संहृति
- पुलाकः—पुं॰—-—पुल् + आक् नि॰—चावलों का मांड
- पुलाकः—पुं॰—-—पुल् + आक् नि॰—क्षिप्रता, द्रुतता, त्वरा
- पुलाकिन्—पुं॰—-—पुलाक + इनि—वृक्ष
- पुलायितम्—नपुं॰—-—पलायित, पृषो॰—घोड़े की सरपट चाल
- पुलिनः—पुं॰—-—पुल् + इनन् किच्च—रेतीला किनारा, रेतीला समुद्रतट
- पुलिनः—पुं॰—-—पुल् + इनन् किच्च—नदी का प्रवाह हट जाने से तट पर बना छोटा टापू, लघुद्वीप
- पुलिनः—पुं॰—-—पुल् + इनन् किच्च—नदीतट
- पुलिनवती—स्त्री॰—-—पुलिन + मतुप्, वत्वम्, डीप्—नदी
- पुलिंदकः—पुं॰—-—पुल् + किंदच्, कन्—एक असभ्य जाति का नाम
- पुलिंदकः—पुं॰—-—पुल् + किंदच्, कन्—इस जाति का एक मनुष्य, बर्बर, अशिष्ट, जंगली, पहाड़ी
- पुलिरिकः—पुं॰—-—-—साँप
- पुलोमन्—पुं॰—-—-—एक राक्षस का नाम, इन्द्र का श्वसुर
- पुलोमारिः—पुं॰—पुलोमन्-अरिः—-—इन्द्र के विशेषण
- पुलोमजित्—पुं॰—पुलोमन्-जित्—-—इन्द्र के विशेषण
- पुलोमभिद्—पुं॰—पुलोमन्-भिद्—-—इन्द्र के विशेषण
- पुलोमद्विष्—पुं॰—पुलोमन्-द्विष्—-—इन्द्र के विशेषण
- पुलोमजा—स्त्री॰—पुलोमन्-जा—-—शची, पुलोमा की पुत्री तथा इन्द्र की पत्नी
- पुलोमपुत्री—स्त्री॰—पुलोमन्-पुत्री—-—शची, पुलोमा की पुत्री तथा इन्द्र की पत्नी
- पुष्—भ्वा॰ <पोषति>, दिवा॰ पर॰ <पुष्यति>,क्र्या॰ पर॰<पुष्णाति>—-—-—पोषण करना, (छाती से लगाकर) दूध पिलाना, पालना, पोसना, शिक्षित करना
- पुष्—भ्वा॰ <पोषति>, दिवा॰ पर॰ <पुष्यति>,क्र्या॰ पर॰<पुष्णाति>—-—-—सहारा देना, भरण पोषण करना, परवरिश करना
- पुष्—भ्वा॰ <पोषति>, दिवा॰ पर॰ <पुष्यति>,क्र्या॰ पर॰<पुष्णाति>—-—-—बढ़ने देना, खिलना, विकसित होना, राहत मिलना
- पुष्—भ्वा॰ <पोषति>, दिवा॰ पर॰ <पुष्यति>,क्र्या॰ पर॰<पुष्णाति>—-—-—बढ़ाना वृद्धि करना, आगे बढ़ाना, वर्धन (मूल्यादि)
- पुष्—भ्वा॰ <पोषति>, दिवा॰ पर॰ <पुष्यति>,क्र्या॰ पर॰<पुष्णाति>—-—-—प्राप्त करना, अधिकार में करना, रखना, उपभोग करना
- पुष्—भ्वा॰ <पोषति>, दिवा॰ पर॰ <पुष्यति>,क्र्या॰ पर॰<पुष्णाति>—-—-—बतलाना, दिखलाना, धारण करना, प्रदर्शन करना
- पुष्—भ्वा॰ <पोषति>, दिवा॰ पर॰ <पुष्यति>,क्र्या॰ पर॰<पुष्णाति>—-—-—बढ़ना, पुष्ट होना, फलना-फूलना, समृद्ध होना
- पुष्—भ्वा॰ <पोषति>, दिवा॰ पर॰ <पुष्यति>,क्र्या॰ पर॰<पुष्णाति>—-—-—प्रशंसा करना, स्तुति करना
- पुष्—भ्वा॰प्रेर॰—-—-—पालन-पोषण करना, परवरिश करना, भरणपोषण करना आदि
- पुष्—भ्वा॰प्रेर॰—-—-—बढ़ाना, उन्नति करना
- पुष्—चुरा॰ उभ॰ <पोषयति>, <पोषयते>—-—-—पालन-पोषण करना, परवरिश करना, भरणपोषण करना आदि
- पुष्—चुरा॰ उभ॰ <पोषयति>, <पोषयते>—-—-—बढ़ाना, उन्नति करना
- पुष्करम्—नपुं॰—-—पुष्कं पुष्टि राति- रा + क—नीला कमल
- पुष्करम्—नपुं॰—-—पुष्कं पुष्टि राति- रा + क—हाथी की जिह्वा की नोक
- पुष्करम्—नपुं॰—-—पुष्कं पुष्टि राति- रा + क—ढोल की चमड़ा अर्थात् वह स्थान जहाँ उस पर चोट मारी जाती है
- पुष्करम्—नपुं॰—-—पुष्कं पुष्टि राति- रा + क—तलवार का फल
- पुष्करम्—नपुं॰—-—पुष्कं पुष्टि राति- रा + क—तलवार का म्यान
- पुष्करम्—नपुं॰—-—पुष्कं पुष्टि राति- रा + क—बाण
- पुष्करम्—नपुं॰—-—पुष्कं पुष्टि राति- रा + क—वायु, आकाश, अन्तरिक्ष
- पुष्करम्—नपुं॰—-—पुष्कं पुष्टि राति- रा + क—पिंजड़ा
- पुष्करम्—नपुं॰—-—पुष्कं पुष्टि राति- रा + क—जल
- पुष्करम्—नपुं॰—-—पुष्कं पुष्टि राति- रा + क—मादकता
- पुष्करम्—नपुं॰—-—पुष्कं पुष्टि राति- रा + क—नृत्यकला
- पुष्करम्—नपुं॰—-—पुष्कं पुष्टि राति- रा + क—युद्ध, संग्राम
- पुष्करम्—नपुं॰—-—पुष्कं पुष्टि राति- रा + क—एकता
- पुष्करम्—नपुं॰—-—पुष्कं पुष्टि राति- रा + क—अजमेर के निकट एक प्रसिद्ध तीर्थस्थान
- पुष्करः—पुं॰—-—पुष्कं पुष्टि राति- रा + क—सरोवर, तालाब
- पुष्करः—पुं॰—-—पुष्कं पुष्टि राति- रा + क—एक प्रकार का ढोल, धौंसा, ताशा
- पुष्करः—पुं॰—-—पुष्कं पुष्टि राति- रा + क—सूर्य
- पुष्करः—पुं॰—-—पुष्कं पुष्टि राति- रा + क—अनावृष्टि या दुर्भिक्ष पैदा करने वाले बादलों का समूह
- पुष्करः—पुं॰—-—पुष्कं पुष्टि राति- रा + क—शिव का विशेषण
- पुष्करः—पुं॰—-—पुष्कं पुष्टि राति- रा + क—शिव के सात विशाल प्रभागों में से एक
- पुष्करम्—नपुं॰—-—पुष्कं पुष्टि राति- रा + क—शिव के सात विशाल प्रभागों में से एक
- पुष्कराक्षः—पुं॰—पुष्करम्-अक्षः—-—विष्णु का विशेषण
- पुष्कराख्यः—पुं॰—पुष्करम्-आख्यः—-—सारस
- पुष्कराह्वः—पुं॰—पुष्करम्-आह्वः—-—सारस
- पुष्करतीर्थः—पुं॰—पुष्करम्-तीर्थः—-—स्नान करने का एक प्रसिद्ध स्थान
- पुष्करपत्रम्—नपुं॰—पुष्करम्-पत्रम्—-—कमल का पत्ता
- पुष्करप्रियः—पुं॰—पुष्करम-प्रियः—-—मोम
- पुष्करबीजम्—नपुं॰—पुष्करम्-बीजम्—-—कमलगट्टा
- पुष्करव्याघ्रः—पुं॰—पुष्करम्-व्याघ्रः—-—घड़ियाल
- पुष्करशिखा—स्त्री॰—पुष्करम्-शिखा—-—कमल की जड़
- पुष्करस्थपतिः—पुं॰—पुष्करम्-स्थपतिः—-—शिव का विशेषण
- पुष्करसृज्—स्त्री॰—पुष्करम्-सृज्—-—कमलों की माला
- पुष्करिणी—स्त्री॰—-—पुष्करिन् + ङीप्—हथिनी
- पुष्करिणी—स्त्री॰—-—पुष्करिन् + ङीप्—कमलसरोवर
- पुष्करिणी—स्त्री॰—-—पुष्करिन् + ङीप्—सरोवर, जलाशय
- पुष्करिणी—स्त्री॰—-—पुष्करिन् + ङीप्—कमल का पोधा
- पुष्करिन्—वि॰—-—पुष्कर + इनि—कमलों से भरी स्थली
- पुष्करिन्—पुं॰—-—पुष्कर + इनि—हाथी
- पुष्कल—वि॰—-—पुष् + कलच्, किच्च, पुष्कसिध्मा॰ लच् वा - तारा॰—बहुत, काफ़ी, प्रचुर
- पुष्कल—वि॰—-—पुष् + कलच्, किच्च, पुष्कसिध्मा॰ लच् वा - तारा॰—पूरा, समस्त
- पुष्कल—वि॰—-—पुष् + कलच्, किच्च, पुष्कसिध्मा॰ लच् वा - तारा॰—समृद्ध, उज्ज्वल, शानदार
- पुष्कल—वि॰—-—पुष् + कलच्, किच्च, पुष्कसिध्मा॰ लच् वा - तारा॰—श्रेष्ठ, सर्वोत्तम, प्रमुख
- पुष्कल—वि॰—-—पुष् + कलच्, किच्च, पुष्कसिध्मा॰ लच् वा - तारा॰—निकटवर्ती
- पुष्कल—वि॰—-—पुष् + कलच्, किच्च, पुष्कसिध्मा॰ लच् वा - तारा॰—निर्घोषमय, गूँजने वाला, प्रतिध्वनि करने वाला
- पुष्कलः—पुं॰—-—-—एक प्रकार का ढोल
- पुष्कलः—पुं॰—-—-—मेरु पर्वत का विशेषण
- पुष्कलम्—नपुं॰—-—-—६४ मुट्ठियों के बराबर एक विशेष तोल या माप
- पुष्कलम्—नपुं॰—-—-—चार ग्रास की भिक्षा
- पुष्कलकः—पुं॰—-—पुष्कल + कन्—कस्तूरी-मृग
- पुष्कलकः—पुं॰—-—पुष्कल + कन्—कुंडी, चटख़नी, फन्नी
- पुष्ट—भू॰ क॰कृ॰—-—पुष् + क्त—पाला-पोसा, खिलाया-पिलाया, परवरिश किया गया, शिक्षित किया गया
- पुष्ट—भू॰ क॰कृ॰—-—पुष् + क्त—फलता-फूलता हुआ, बढ़ता हुआ, बलवान्, हृष्टपुष्ट
- पुष्ट—भू॰ क॰कृ॰—-—पुष् + क्त—टहल किया गया, देखभाल किया हुआ
- पुष्ट—भू॰ क॰कृ॰—-—पुष् + क्त—समृद्ध, पूरी तरह सम्पन्न
- पुष्ट—भू॰ क॰कृ॰—-—पुष् + क्त—पूर्ण, पूरा
- पुष्ट—भू॰ क॰कृ॰—-—पुष् + क्त—पूरीध्वनि वाला, ऊँची आबाज़ वाला
- पुष्ट—भू॰ क॰कृ॰—-—पुष् + क्त—प्रमुख
- पुष्टि—स्त्री॰—-—पुष्ट + क्तिन्—पालन-पोषण कला, पालना परवरिश, करना
- पुष्टि—स्त्री॰—-—पुष्ट + क्तिन्—पालन-पोषण, संवर्धन, वृद्धि, प्रगति
- पुष्टि—स्त्री॰—-—पुष्ट + क्तिन्—पराक्रम शालिता, स्थूलता
- पुष्टि—स्त्री॰—-—पुष्ट + क्तिन्—धन-दौलत, सम्पत्ति, सुख का साधन
- पुष्टि—स्त्री॰—-—पुष्ट + क्तिन्—समृद्धि, सम्पन्नता
- पुष्टि—स्त्री॰—-—पुष्ट + क्तिन्—विकास, पूर्णता
- पुष्टिकर—वि॰—पुष्टि-कर—-—पौष्टिक, पुष्टि कारक
- पुष्टिकर्मन्—नपुं॰—पुष्टि-कर्मन्—-—सांसारिक सम्पन्नता प्राप्त करने के लिए किया जाने वाला धार्मिक अनुष्ठान
- पुष्टिद—वि॰—पुष्टि-द—-—संवर्धनकारी, समृद्धिकर
- पुष्टिवर्धन—वि॰—पुष्टि-वर्धन—-—कल्याणकारी, समृद्धि कारक
- पुष्टिवर्धनः—वि॰—पुष्टि-वर्धनः—-—मुर्ग़ा
- पुष्प्—दिवा॰ पर॰ <पुष्प्यति>—-—-—खुलना, धौंकना या फूंकना, विस्तार करना, खिलना
- पुष्पम्—नपुं॰—-—पुष्प् + अच्—फूल, कुसुम
- पुष्पम्—नपुं॰—-—पुष्प् + अच्—रजः स्राव, रजोधर्म
- पुष्पम्—नपुं॰—-—पुष्प् + अच्—पुखराज
- पुष्पम्—नपुं॰—-—पुष्प् + अच्—आंखों का रोग विशेष, श्वेतक
- पुष्पम्—नपुं॰—-—पुष्प् + अच्—कुबेर का रथ
- पुष्पम्—नपुं॰—-—पुष्प् + अच्—शौर्य, (प्रेमकी भाषा में) नम्रता
- पुष्पम्—नपुं॰—-—पुष्प् + अच्—विस्तार होना, खिलना, प्रफूल्ल होना
- पुष्पाञ्जनम्—नपुं॰—पुष्पम्-अञ्जनम्—-—पीतल की भस्म जो अंजन की भांति प्रयुक्त होती है
- पुष्पाञ्जलिः—स्त्री॰—पुष्पम्-अञ्जलिः—-—फूलों की अंजलि
- पुष्पाभिषेक—पुं॰—पुष्पम्-अभिषेक—-—पुष्पस्नान
- पुष्पाम्बुजम्—नपुं॰—पुष्पम्-अम्बुजम्—-—पुष्प रस या मकरन्द
- पुष्पाचयः—पुं॰—पुष्पम्-अवचयः—-—फूलों का चुनना, फूल एकत्र करना
- पुष्पास्त्रः—पुं॰—पुष्पम्-अस्त्रः—-—कामदेव का विशेषण
- पुष्पाकार—वि॰—पुष्पम्-आकार—-—फूलों से समृद्ध
- पुष्पागमः—पुं॰—पुष्पम्-आगमः—-—बसन्त ऋतु
- पुष्पाजीवः—पुं॰—पुष्पम्-आजीवः—-—माली, मालाकार
- पुष्पापीडः—पुं॰—पुष्पम्-आपीडः—-—फूलों का गजरा
- पुष्पायुधः—पुं॰—पुष्पम्-आयुधः—-—कामदेव
- पुष्पिषुः—पुं॰—पुष्पम्-इषुः—-—कामदेव
- पुष्पासवम्—नपुं॰—पुष्पम्-आसवम्—-—मधु
- पुष्पासारः—पुं॰—पुष्पम्-आसारः—-—फूलों की बौछार
- पुष्पोद्गमः—पुं॰—पुष्पम्-उद्गमः—-—फूलों का निकलना
- पुष्पोद्यानम्—नपुं॰—पुष्पम्-उद्यानम्—-—पुष्प वाटिका
- पुष्पोजीविन्—पुं॰—पुष्पम्-उपजीविन्—-—माली, बागवान, मालाकार
- पुष्पकालः—पुं॰—पुष्पम्-कालः—-—फुलों का समय, बसन्त ऋतु
- पुष्पकालः—पुं॰—पुष्पम्-कालः—-—मासिक रजोधर्म का समय
- पुष्पकासीसम्—नपुं॰—पुष्पम्-कासीसम्—-—एक प्रकार का कसीस
- पुष्पकीटः—पुं॰—पुष्पम्-कीटः—-—भौंरा
- पुष्पकेतनः—पुं॰—पुष्पम्-केतनः—-—कामदेव
- पुष्पकेतुः—पुं॰—पुष्पम्-केतुः—-—कामदेव
- पुष्पकेतुः—नपुं॰—पुष्पम्-केतुः—-—पुष्परस, मकरंद
- पुष्पकेतुः—नपुं॰—पुष्पम्-केतुः—-—पुष्पांजन
- पुष्पगृहम्—नपुं॰—पुष्पम्-गृहम्—-—फूलों का घर, पुष्प संधारक
- पुष्पघातकः—पुं॰—पुष्पम्-घातकः—-—बाँस
- पुष्पचयः—पुं॰—पुष्पम्-चयः—-—फूल चुनना
- पुष्पचयः—पुं॰—पुष्पम्-चयः—-—फूलों का संग्रह
- पुष्पचापः—पुं॰—पुष्पम्-चापः—-—कामदेव
- पुष्पचामरः—पुं॰—पुष्पम्-चामरः—-—एक प्रकार की बेंत
- पुष्पजम्—नपुं॰—पुष्पम्-जम्—-—फूलों का रस
- पुष्पदः—पुं॰—पुष्पम्-दः—-—वृक्ष
- पुष्पदन्तः—पुं॰—पुष्पम्-दन्तः—-—शिव के एक गण का नाम
- पुष्पदन्तः—पुं॰—पुष्पम्-दन्तः—-—महिम्नस्तोत्र के रचयिता का नाम वायव्य कोण में अधिष्ठित दिग्गज
- पुष्पदामन—नपुं॰—पुष्पम्-दामन—-—फूलमाला
- पुष्पद्रवः—पुं॰—पुष्पम्-द्रवः—-—फूलों का रस मकरंद
- पुष्पद्रवः—पुं॰—पुष्पम्-द्रवः—-—फूलों का आसव
- पुष्पद्रुमः—पुं॰—पुष्पम्-द्रुमः—-—पुष्पप्रयान वृक्ष
- पुष्पधः—पुं॰—पुष्पम्-धः—-—व्रात्य ब्राह्मण की सन्तान
- पुष्पधनुस्—पुं॰—पुष्पम्-धनुस्—-—कामदेव
- पुष्पधन्वन्—पुं॰—पुष्पम्-धन्वन्—-—कामदेव
- पुष्पधारणः—पुं॰—पुष्पम्-धारणः—-—विष्णु का विशेषण
- पुष्पध्वजः—पुं॰—पुष्पम्-ध्वजः—-—कामदेव
- पुष्पनिक्षः—पुं॰—पुष्पम्-निक्षः—-—भौंरा
- पुष्पनिर्यासः—पुं॰—पुष्पम्-निर्यासः—-—पुष्परस, मकरंद, फूलों का रस
- पुष्पनेत्रम्—नपुं॰—पुष्पम्-नेत्रम्—-—फूलनली
- पुष्पपत्रिन्—पुं॰—पुष्पम्-पत्रिन्—-—कामदेव
- पुष्पपथः—पुं॰—पुष्पम्-पथः—-—योनि
- पुष्पपुरम्—नपुं॰—पुष्पम्-पुरम्—-—पाटलिपुत्र
- पुष्पप्रचयः—पुं॰—पुष्पम्-प्रचयः—-—फूल तोड़ना, फूलचुनना
- पुष्पप्रचायः—पुं॰—पुष्पम्-प्रचायः—-—फूल तोड़ना, फूलचुनना
- पुष्पप्रचायिका—स्त्री॰—पुष्पम्-प्रचयिका—-—फूलों का चुनना
- पुष्पप्रस्तारः—पुं॰—पुष्पम्-प्रस्तारः—-—पुष्पशय्या, फूलों का बिछौना
- पुष्पबलिः—पुं॰—पुष्पम्-बलिः—-—फूलों की भेंट या चढ़ावा
- पुष्पबाणः—पुं॰—पुष्पम्-बाणः—-—कामदेव
- पुष्पवाणः—पुं॰—पुष्पम्-वाणः—-—कामदेव
- पुष्पभवः—पुं॰—पुष्पम्-भवः—-—पुष्परस, मकरंद
- पुष्पमञ्जरिका—स्त्री॰—पुष्पम्-मञ्जरिका—-—नीला कमल
- पुष्पमाला—स्त्री॰—पुष्पम्-माला—-—फूलमाला
- पुष्पमासः—पुं॰—पुष्पम्-मासः—-—चैत्र का महीना
- पुष्पमासः—पुं॰—पुष्पम्-मासः—-—वसंत ऋतु
- पुष्परजस्—नपुं॰—पुष्पम्-रजस्—-—पराग
- पुष्परथः—पुं॰—पुष्पम्-रथः—-—हवा खोरी के काम आनेवाला रथ (जो युद्ध के लिए न हो)
- पुष्परसः—पुं॰—पुष्पम्-रसः—-—फूलों का रस, मकरंद
- पुष्पाह्वयम्—नपुं॰—पुष्पम्-आह्वयम्—-—मधु
- पुष्परागः—पुं॰—पुष्पम्-रागः—-—पुखराज
- पुष्पराजः—पुं॰—पुष्पम्-राजः—-—पुखराज
- पुष्परेणुः—पुं॰—पुष्पम्-रेणुः—-—पराग
- पुष्परोचनः—पुं॰—पुष्पम्-रोचनः—-—नागकेसर का वृक्ष
- पुष्पलावः—पुं॰—पुष्पम्-लावः—-—फुल चुनने वाला
- पुष्पलावी—स्त्री॰—पुष्पम्-लावी—-—फूल चुनने वाली, मालिन
- पुष्पलिक्षः—पुं॰—पुष्पम्-लिक्षः—-—भौंरा
- पुष्पलिह—पुं॰—पुष्पम्-लिह—-—भौंरा
- पुष्पवटुकः—पुं॰—पुष्पम्-वटुकः—-—रसिया, बाँका, छैल-छबीला
- पुष्पवर्षः—पुं॰—पुष्पम्-वर्षः—-—फूलों की बौछार
- पुष्पवर्षणम्—नपुं॰—पुष्पम्-वर्षणम्—-—फूलों की बौछार
- पुष्पवाटिका—स्त्री॰—पुष्पम्-वाटिका—-—फुलवाटी
- पुष्पवाटी—स्त्री॰—पुष्पम्-वाटी—-—फुलवाटी
- पुष्पवृक्षः—पुं॰—पुष्पम्-वृक्षः—-—पुष्पप्रधान वृक्ष
- पुष्पवेणी—स्त्री॰—पुष्पम्-वेणी—-—चोटी में लगाया हुआ फूलों का गजरा, फूलों की माला
- पुष्पशकटी—स्त्री॰—पुष्पम्-शकटी—-—आकाशवाणी
- पुष्पशय्या—स्त्री॰—पुष्पम्-शय्या—-—फूलों की सेज, फूलों का बिछौना
- पुष्पशरः—पुं॰—पुष्पम्-शरः—-—कामदेव
- पुष्पशरासनः—पुं॰—पुष्पम्-शरासनः—-—कामदेव
- पुष्पसायकः—पुं॰—पुष्पम्-सायकः—-—कामदेव
- पुष्पसमयः—पुं॰—पुष्पम्-समयः—-—बसन्त
- पुष्पसारः—पुं॰—पुष्पम्-सारः—-—फूलों का रस, मकरंद
- पुष्पहासा—स्त्री॰—पुष्पम्-हासा—-—रजस्वला स्त्री
- पुष्पहीना—स्त्री॰—पुष्पम्-हीना—-—गतार्तवा स्त्री, जिसकी बच्चे पैदा करने कों आयु बीत चुकी है
- पुष्पकम्—नपुं॰—-—पुष्प + कन्—फूल
- पुष्पकम्—नपुं॰—-—पुष्प + कन्—पीतल की भस्म
- पुष्पकम्—नपुं॰—-—पुष्प + कन्—लोहे का प्याला
- पुष्पकम्—नपुं॰—-—पुष्प + कन्—कुबेर का रथ (जिसे कुबेर से रावण ने छीन लिया था, तथा जो फिर राम ने ले लिया था
- पुष्पकम्—नपुं॰—-—पुष्प + कन्—कंकण
- पुष्पकम्—नपुं॰—-—पुष्प + कन्—एक प्रकार का पुष्पाजंन
- पुष्पकम्—नपुं॰—-—पुष्प + कन्—आंखों का एक विशेष रोग
- पुष्पन्धयः—पुं॰—-—पुष्प + धे + खश्, मुम्—भौंरा
- पुष्पलकः—पुं॰—-—पुष्प + लक् + अच्—स्थाणु, खूँटा, फन्नी, कील
- पुष्पवत्—वि॰—-—पुष्प + मतुप्, वत्वम्—प्रफुल्ल, फूलों से युक्त
- पुष्पवत्—वि॰—-—पुष्प + मतुप्, वत्वम्—फूलों से जड़ा हुआ
- पुष्पवत्—पुं॰—-—-—सूर्य और चन्द्रमा
- पुष्पवती—स्त्री॰—-—-—रजस्वला स्त्री
- पुष्पा—स्त्री॰—-—पुष्प् + अच् + टाप्—चम्पा नाम की नगरी
- पुष्पिका—स्त्री॰—-—पुष्प् + ण्वुल् + टाप्, इत्वम्—दांतो पर जमी हुई मैल
- पुष्पिका—स्त्री॰—-—पुष्प् + ण्वुल् + टाप्, इत्वम्—लिंगच्छद में जमी हुई मैल
- पुष्पिका—स्त्री॰—-—पुष्प् + ण्वुल् + टाप्, इत्वम्—अध्याय के अन्तिम शब्द जिनमें वर्णित विषय की सूचना दी जाती है
- पुष्पिणी—स्त्री॰—-—पुष्पिन् + ङीप्—रजस्वला स्त्री
- पुष्पित—वि॰—-—पुष्प् + क्त—फूलों से युक्त, विकसित फूलों से भरा हुआ, खिला हुआ
- पुष्पित—वि॰—-—पुष्प् + क्त—फूलों से अलंकृत, (भाषण) भड़कीला
- पुष्पित—वि॰—-—पुष्प् + क्त—फूलों से लदा हुआ, फूलों से सम्पन्न
- पुष्पित—वि॰—-—पुष्प् + क्त—पूर्ण विकसित, पूरी तरह खिला हुआ
- पुष्पिता—स्त्री॰—-—पुष्प् + क्त+टाप्—रजस्वला स्त्री
- पुष्पिन्—वि॰—-—पुष्प + इनि—फूल धारण करने वाला, प्रफुल्ल
- पुष्पिन्—वि॰—-—पुष्प + इनि—फूलों से भरा हुआ, फूलों से समद्ध
- पुष्यः—पुं॰—-—पुष् + क्यप्—कलियुग
- पुष्यः—पुं॰—-—पुष् + क्यप्—पौष का महीना
- पुष्यः—पुं॰—-—पुष् + क्यप्—आठवाँ नक्षत्र (तीन तारों का पुँज)
- पुष्यरथः—पुं॰—पुष्यः-रथः—-—पुष्प रथ
- पुष्यलकः—पुं॰—-—पुष्य + लक् + अच्—
- पुस्तम्—नपुं॰—-—पुस्त् + घञ्—पलस्तर करना, लेप करना, रेखाचित्र बनाना
- पुस्तम्—नपुं॰—-—पुस्त् + घञ्—मिट्टी का शिल्पकार्य, मिट्टी के खिलौना बनाना
- पुस्तम्—नपुं॰—-—पुस्त् + घञ्—मिट्टी, काष्ठ या किसी धातु की बनी कोई वस्तु
- पुस्तम्—नपुं॰—-—पुस्त् + घञ्—पुस्तक, हाथ से लिखी पुस्तक
- पुस्तकर्मनु—नपुं॰—-—-—लीपना-पोतना, चित्रकारी करना
- पुस्तक—पुं॰—-—पुस्त + कन्—पोथी, हाथ की लिखी पुस्तक
- पुस्तकम्—नपुं॰—-—पुस्त + कन्—पोथी, हाथ की लिखी पुस्तक
- पुस्ती—स्त्री॰—-—पुस्त + ङीप्—पोथी, हाथ की लिखी पुस्तक
- पू—भ्वा॰ आ॰ <पवते>, दिवा॰ आ॰ <पुनाति>, क्या॰ उभ॰ <पुनीते>, <पूत>, प्रेर॰ <पावयति>, इच्छा॰ <पुपूषति>, <पिपविषते>—-—-—पवित्र करना, छानना, शुद्ध करना
- पू—भ्वा॰ आ॰ <पवते>, दिवा॰ आ॰ <पुनाति>, क्या॰ उभ॰ <पुनीते>, <पूत>, प्रेर॰ <पावयति>, इच्छा॰ <पुपूषति>, <पिपविषते>—-—-—निथारना
- पू—भ्वा॰ आ॰ <पवते>, दिवा॰ आ॰ <पुनाति>, क्या॰ उभ॰ <पुनीते>, <पूत>, प्रेर॰ <पावयति>, इच्छा॰ <पुपूषति>, <पिपविषते>—-—-—भूसी साफ करना, फटकना
- पू—भ्वा॰ आ॰ <पवते>, दिवा॰ आ॰ <पुनाति>, क्या॰ उभ॰ <पुनीते>, <पूत>, प्रेर॰ <पावयति>, इच्छा॰ <पुपूषति>, <पिपविषते>—-—-—प्रायश्चित करना, परिमार्जन करना
- पू—भ्वा॰ आ॰ <पवते>, दिवा॰ आ॰ <पुनाति>, क्या॰ उभ॰ <पुनीते>, <पूत>, प्रेर॰ <पावयति>, इच्छा॰ <पुपूषति>, <पिपविषते>—-—-—पहचानना, विवेक करना
- पू—भ्वा॰ आ॰ <पवते>, दिवा॰ आ॰ <पुनाति>, क्या॰ उभ॰ <पुनीते>, <पूत>, प्रेर॰ <पावयति>, इच्छा॰ <पुपूषति>, <पिपविषते>—-—-—सोचना, उपाय ढूंढना, आविष्कार करना
- पूगः—पुं॰—-—पू + गन्, कित्—समुच्चय, ढेर, संग्रह, मात्रा
- पूगः—पुं॰—-—पू + गन्, कित्—समाज, निगम, संघ
- पूगः—पुं॰—-—पू + गन्, कित्—सुपारी, पूगी
- पूगः—पुं॰—-—पू + गन्, कित्—प्रकृति, गुण, स्वभाव
- पूगम्—नपुं॰—-—पू + गन्, कित्—सुपारी
- पूगपात्रम्—नपुं॰—पूगः-पात्रम्—-—थूकने का बर्तन, पीकदान
- पूगपात्रम्—नपुं॰—पूगः-पात्रम्—-—पान-दान
- पूगपीटम्—नपुं॰—पूगः-पीटम्—-—थूकने का बर्तन
- पूगपीडम्—नपुं॰—पूगः-पीडम्—-—थूकने का बर्तन
- पूगफलम्—नपुं॰—पूगः-फलम्—-—सुपारी
- पूगवैरम्—नपुं॰—पूगः-वैरम्—-—अनेक लोगों से शत्रुता
- पूज्—चुरा॰ उभ॰ <पूजयति>,<पूजयते>,<पूजित>—-—-—आराधना करना, पूजा करना, अर्चना करना, सम्मान करना, सादर स्वागत करना
- पूज्—चुरा॰ उभ॰ <पूजयति>,<पूजयते>,<पूजित>—-—-—उपहार देना, भेंट चढ़ाना
- संपूज्—चुरा॰ उभ॰—सम्-पूज्—-—पूजना, अर्चना करना, सम्मान करना
- संपूज्—चुरा॰ उभ॰—सम्-पूज्—-—उपहार देना, (दक्षिणादि से) सम्मानित करना
- पूजक—वि॰—-—पूज् + ण्वुल्—सम्मान करने वाला, आराधक, पूजा करने वाला, आदर करने वाला आदि
- पूजनम्—नपुं॰—-—पूज् + ल्युट्—पूजना, सम्मान करना, आराधना करना
- पूजा—स्त्री॰—-—पूज् + अ + टाप्—पूजा, सम्मान, आराधना, आदर, श्रद्धांजलि
- पूजार्ह—वि॰—पूजा + अर्ह—-—श्रद्धेय, आदरणीय, पूज्य, श्रद्धास्पद
- पूजित—भू॰ क॰कृ॰—-—पूज् + क्त—सम्मानित, आदृत
- पूजित—भू॰ क॰कृ॰—-—पूज् + क्त—आराधित, प्रतिष्ठित
- पूजित—भू॰ क॰कृ॰—-—पूज् + क्त—स्वीकृत
- पूजित—भू॰ क॰कृ॰—-—पूज् + क्त—संपन्न
- पूजित—भू॰ क॰कृ॰—-—पूज् + क्त—अनुशंसित, सिफारिश किया हुआ
- पूजिल—वि॰—-—पूज् + इलच्—श्रद्धेय, आदरणीय
- पूजिलः—पुं॰—-—पूज् + इलच्—देव
- पूज्य—वि॰—-—पूज् + ण्यच्—आदर का अधिकारी, सम्मान के योग्य, आदरणीय श्रद्धेय
- पूज्यः—पुं॰—-—पूज् + ण्यच्—श्वसुर
- पूण्—चुरा॰ उभ॰ <पूणयति>, <पूणयते>—-—-—एक जगह ढेर लगाना, संचय करना, राशि लगाना
- पूत्—अव्य॰—-—-—फूंक मारने की अनुकृति का सूचक शब्द
- पूत—भू॰ क॰ कृ॰—-—पू + क्त—शुद्ध किया हुआ, छाना हुआ, धोया हुआ
- पूत—भू॰ क॰ कृ॰—-—पू + क्त—पिछोड़ा हुआ, फटका हुआ
- पूत—भू॰ क॰ कृ॰—-—पू + क्त—प्रायश्चित किया हुआ
- पूत—भू॰ क॰ कृ॰—-—पू + क्त—योजनाकृत, आविष्कृत
- पूत—भू॰ क॰ कृ॰—-—पू + क्त—सड़ने वाला, गला-सड़ा, दुर्गन्धमय, बदबूदार
- पूतः—पुं॰—-—पू + क्त—शंख
- पूतः—पुं॰—-—पू + क्त—सफेद कुश घास
- पूतम्—नपुं॰—-—पू + क्त—सचाई
- पूतात्मन्—वि॰—पूत-आत्मन्—-—पवित्र मन वाला
- पूतात्मन्—पुं॰—पूत-आत्मन्—-—विष्णु का विशेषण
- पूतक्रतायी—स्त्री॰—पूत-क्रतायी—-—इन्द्र की पत्नी शची
- पूर्ततुः—पुं॰—पूत-ऋतुः—-—इन्द्र का विशेषण
- पूततृणम्—नपुं॰—पूत-तृणम्—-—सफ़ेद कुश घास
- पूतद्रुः—पुं॰—पूत-द्रुः—-—पलाश वृक्ष
- पूतधान्यम्—नपुं॰—पूत-धान्यम्—-—तिल
- पूतपाप—वि॰—पूत-पाप—-—निष्पाप, पाप से रहित
- पूतपाप्यन्—वि॰—पूत-पाप्यन्—-—निष्पाप, पाप से रहित
- पूतफलः—पुं॰—पूत-फलः—-—कटहल का वृक्ष
- पूतना—स्त्री॰—-—पू + णिच् + युच् + टाप्—एक राक्षसी जो कृष्ण को जव वह अबोध बालक था, मारने का प्रयत्न करती हुई, स्वयं उनके द्वारा मृत्यु को प्राप्त हुई
- पूतना—स्त्री॰—-—पू + णिच् + युच् + टाप्—राक्षसी
- पूतनारिः—पुं॰—पूतना-अरिः—-—कृष्ण के विशेषण
- पूतनासूदनः—पुं॰—पूतना-सूदनः—-—कृष्ण के विशेषण
- पूतनाहन्—पुं॰—पूतना-हन्—-—कृष्ण के विशेषण
- पूति—वि॰—-—पूय् + क्तिच्—बदबूदार, सड़ा हुआ, दुर्गंधयुक्त, दुर्गंध देनेवाला
- पूतिः—स्त्री॰—-—पूय् + क्तिच्—पवित्रीकरण
- पूतिः—स्त्री॰—-—पूय् + क्तिच्—दुर्गंध, सड़ांद
- पूतिः—स्त्री॰—-—पूय् + क्तिच्—बदबू
- पूति—नपुं॰—-—पूय् + क्तिच्—गंदा पानी
- पूति—नपुं॰—-—पूय् + क्तिच्—पीप, मवाद
- पूत्यण्डः—पुं॰—पूति-अण्डः—-—कस्तूरी-मृग
- पूतिकाष्ठम्—नपुं॰—पूति-काष्ठम्—-—देव दारु वृक्ष
- पूतिकाष्ठकः—पुं॰—पूति-काष्ठकः—-—सरल वृक्ष
- पूतिगन्ध—वि॰—पूति-गन्ध—-—बदबुदार, दुर्गंधयुक्त, दुर्गंध देने वाला, सड़ा हुआ
- पूतिगन्धः—पुं॰—पूति-गन्धः—-—सड़ांद, दुर्गंध, बदबू
- पूतिगन्धः—पुं॰—पूति-गन्धः—-—गंधक
- पूतिगन्धम्—नपुं॰—पूति-गन्धम्—-—जस्ता, रांगा
- पूतिगन्धम्—नपुं॰—पूति-गन्धम्—-—गंधक
- पूतिगन्धि—वि॰—पूति-गन्धि—-—बदबूदार, दुर्गंध देनेवाला
- पूतिनासिक—वि॰—पूति-नासिक—-—दुर्गंधमय नाक वाला
- पूतिवक्तृ—वि॰—पूति-वक्तृ—-—जिसके मुँह से बदबू आती हो
- पूतिव्रणम्—नपुं॰—पूति-व्रणम्—-—दूषित फोड़ा (जिसमें से पीप निकले)
- पूकित—वि॰—-—पूति + कै + क—सड़ा हुआ, बदबूदार, सड़ागला
- पूकितकम्—नपुं॰—-—पूति + कै + क—लीद, मल, विष्ठा
- पूतिका—स्त्री॰—-—पूतिक + टाप्—एक प्रकार की जड़ी
- पूतिकामुखः—पुं॰—पूतिका-मुखः—-—दो कोष वाला शंख
- पून—वि॰—-—पू + क्त तस्य नः—नष्ट किया गया
- पूपः—पुं॰—-—पू + किप्, पा + क—पूआ
- पूपला—स्त्री॰—-—पूप + ला + क + टाप्—एक प्रकार का मीठा पुआ, मालपुआ
- पूपली—स्त्री॰—-—पूप + ला + क + ङीप्—एक प्रकार का मीठा पुआ, मालपुआ
- पूपलिका—स्त्री॰—-—पूपाय अलति-पूप + अल् + अच् + ङीष् + कन् + टाप्, ह्रस्वः—एक प्रकार का मीठा पुआ, मालपुआ
- पूपाली—स्त्री॰—-—पूप + अल् + पच्, ङीष्—एक प्रकार का मीठा पुआ, मालपुआ
- पूपिका—स्त्री॰—-—पूप् + ठन् + टाप्—एक प्रकार का मीठा पुआ, मालपुआ
- पूयः—नपुं॰—-—पूय् + अच्—पीप, फोड़ या घाव से निकलने वाला मवाद, पीप आना, मवाद निकलना
- पूयम्—पुं॰—-—पूय् + अच्—पीप, फोड़ या घाव से निकलने वाला मवाद, पीप आना, मवाद निकलना
- पूयरक्तः—पुं॰—पूयः-रक्तः—-—नाक का एक रोग विशेष (इसमें पीप से युक्त रक्त, या मवाद नाक से बहता है)
- पूयरक्तम्—नपुं॰—पूयः-रक्तम्—-—कचलोहू, मवाद
- पूयरक्तम्—नपुं॰—पूयः-रक्तम्—-—नथनों से मवाद का वहना
- पूयनम्—नपुं॰—-—पूय् + ल्युट्—
- पूर्—दिवा॰ आ॰ <पूर्यते>, <पूर्ण>—-—-—भरना, पूर्ण करना
- पूर्—दिवा॰ आ॰ <पूर्यते>, <पूर्ण>—-—-—प्रसन्न करना, सन्तुष्ट करना
- पूर्—चुरा॰ उभ॰ <पूरयति>, <पूरयते>, <पूरितः>, पृ॰ का प्रेर॰ रूप—-—-—भरना
- पूर्—चुरा॰ उभ॰ <पूरयति>, <पूरयते>, <पूरितः>, पृ॰ का प्रेर॰ रूप—-—-—हवा से भर जाना, (शंख आदि में) फूंक मारना
- पूर्—चुरा॰ उभ॰ <पूरयति>, <पूरयते>, <पूरितः>, पृ॰ का प्रेर॰ रूप—-—-—ढकना, घेरना
- पूर्—चुरा॰ उभ॰ <पूरयति>, <पूरयते>, <पूरितः>, पृ॰ का प्रेर॰ रूप—-—-—पूरा करना, संतुष्ट करना
- पूर्—चुरा॰ उभ॰ <पूरयति>, <पूरयते>, <पूरितः>, पृ॰ का प्रेर॰ रूप—-—-—तीव्र करना, (ध्वनि आदि) सबल करना
- पूर्—चुरा॰ उभ॰ <पूरयति>, <पूरयते>, <पूरितः>, पृ॰ का प्रेर॰ रूप—-—-—गुंजायमान करना
- पूर्—चुरा॰ उभ॰ <पूरयति>, <पूरयते>, <पूरितः>, पृ॰ का प्रेर॰ रूप—-—-—बोझ लादना, समृद्ध करना
- आपूर्—चुरा॰ उभ॰ —आ-पूर्—-—भरना, पूर्ण करना, पूरा करना, ऊपर तक भरना
- आपूर्—चुरा॰ उभ॰ —आ-पूर्—-—हवा से भरना, (शंख आदि) बजाना
- आपूर्—चुरा॰ उभ॰ —आ-पूर्—-—अन्तर्ग्रथित करना, पिरोना
- परिपूर्—चुरा॰ उभ॰ —परि-पूर्—-—भरना, पूरी तरह से भर लेना
- प्रपूर्—चुरा॰ उभ॰ —प्र-पूर्—-—भरना, उपहारों से भरना, समृद्ध करना
- संपूर्—चुरा॰ उभ॰ —सम्-पूर्—-—पूरा करना, भरना
- पूरः—पुं॰—-—पूर् + क—भरना, पूरा करना
- पूरः—पुं॰—-—पूर् + क—संतोष देना, प्रसन्न करना, तृप्त करना
- पूरः—पुं॰—-—पूर् + क—उडेलना, पूर्ति करना
- पूरः—पुं॰—-—पूर् + क—नदी का चढ़ना, समुद्र में पानी का बढ़ना, बाढ़
- पूरः—पुं॰—-—पूर् + क—धारा या नदी का रूप होना, बाढ़ आना
- पूरः—पुं॰—-—पूर् + क—जलखण्ड, सरोवर, तालाव
- पूरः—पुं॰—-—पूर् + क—घाव का साफ़ होना या भरना
- पूरः—पुं॰—-—पूर् + क—एक प्रकार की रोटी या पूरी
- पूरम्—नपुं॰—-—पूर् + क—एक प्रकार का गंधद्रव्य
- पूरोत्पीडः—पुं॰—पूरः-उत्पीडः—-—बाढ़ या जलाधिक्य
- पूरक—वि॰—-—पूर् + ण्वुल्—भरने वाला, पूरा करने वाला
- पूरक—वि॰—-—पूर् + ण्वुल्—संतुष्ट करने वाला, तृप्त करने वाला
- पूरकः—पुं॰—-—पूर् + ण्वुल्—नींबू का पौधा
- पूरकः—पुं॰—-—पूर् + ण्वुल्—श्राद्ध की समाप्ति पर पितरों को दिया जाने वाला पिंड
- पूरकः—पुं॰—-—पूर् + ण्वुल्—(अंकगणित में) गुणक
- पूरण—वि॰—-—पूर् + ल्युट्—भरना, पूरा करना
- पूरण—वि॰—-—पूर् + ल्युट्—क्रम सूचक (अंको के साथ प्रयुक्त)
- पूरण—वि॰—-—पूर् + ल्युट्—संतुष्ट करने वाला
- पूरणः—पुं॰—-—पूर् + ल्युट्—पुल, बांध, सेतु
- पूरणः—पुं॰—-—पूर् + ल्युट्—समुद्र
- पूरणम्—नपुं॰—-—पूर् + ल्युट्—भरना
- पूरणम्—नपुं॰—-—पूर् + ल्युट्—ऊपर तक भरना, पूरा करना
- पूरणम्—नपुं॰—-—पूर् + ल्युट्—फूलना, सूजना
- पूरणम्—नपुं॰—-—पूर् + ल्युट्—पूरा करना, सम्पन्न करना
- पूरणम्—नपुं॰—-—पूर् + ल्युट्—एक प्रकार की पूरी या रोटी
- पूरणम्—नपुं॰—-—पूर् + ल्युट्—मृतक कार्य में प्रयुक्त रोटी
- पूरणम्—नपुं॰—-—पूर् + ल्युट्—वृष्टि, बरसना
- पूरणम्—नपुं॰—-—पूर् + ल्युट्—ऐंठन, मरोड़
- पूरणम्—नपुं॰—-—पूर् + ल्युट्—गुणा
- पूरणप्रत्ययः—पुं॰—पूरण-प्रत्ययः—-—क्रम सूचक संख्या बनाने वाला प्रत्यय
- पूरिका—स्त्री॰—-—पूर + ङीष् + कन् + टाप्, ह्रस्वः—पूरी, कचौरी
- पूरित—भू॰ क॰ कृ॰—-—पूर् + क्त—भरा हुआ, पूरा
- पूरित—भू॰ क॰ कृ॰—-—पूर् + क्त—बिछाया हुआ, आच्छादित
- पूरित—भू॰ क॰ कृ॰—-—पूर् + क्त—गुणा किया हुआ
- पूरुषः—पुं॰—-—पुर् + कुषन्, नि॰ दीर्घः—
- पूर्ण—भू॰ क॰ कृ॰—-—पूर् + क्त, नि॰—भरा हुआ, आपूरित, पूरा किया हुआ
- पूर्ण—भू॰ क॰ कृ॰—-—पूर् + क्त, नि॰—संपूर्ण, अखंड, समग्र, समूचा
- पूर्ण—भू॰ क॰ कृ॰—-—पूर् + क्त, नि॰—पूरा किया हुआ, सम्पन्न
- पूर्ण—भू॰ क॰ कृ॰—-—पूर् + क्त, नि॰—समाप्त, पूरा
- पूर्ण—भू॰ क॰ कृ॰—-—पूर् + क्त, नि॰—अतीत, बीता हुआ
- पूर्ण—भू॰ क॰ कृ॰—-—पूर् + क्त, नि॰—संतुष्ट, तृप्त
- पूर्ण—भू॰ क॰ कृ॰—-—पूर् + क्त, नि॰—घोष पूर्ण, गुंजायमान
- पूर्ण—भू॰ क॰ कृ॰—-—पूर् + क्त, नि॰—बलवान्, शक्तिशाली
- पूर्ण—भू॰ क॰ कृ॰—-—पूर् + क्त, नि॰—स्वार्थी, स्वलीन
- पूर्णाङ्कः—पुं॰—पूर्ण-अङ्कः—-—पूर्ण संख्या
- पूर्णाभिलाष—वि॰—पूर्ण-अभिलाष—-—संतुष्ट, तृप्त
- पूर्णानकम्—नपुं॰—पूर्ण-आनकम्—-—ढोल
- पूर्णानकम्—नपुं॰—पूर्ण-आनकम्—-—ढोल की आवाज
- पूर्णानकम्—नपुं॰—पूर्ण-आनकम्—-—बर्तन
- पूर्णानकम्—नपुं॰—पूर्ण-आनकम्—-—चंद्रकिरण
- पूर्णानकम्—नपुं॰—पूर्ण-आनकम्—-—पुर्ण पात्र
- पूर्णेन्दुः—पुं॰—पूर्ण-इन्दुः—-—पूरा चाँद
- पूर्णोपमा—स्त्री॰—पूर्ण-उपमा—-—पूरी या समूची उपमा अर्थात् जिसमें उपमान “उपमेय’ ‘साधारणधर्म’ और ‘उपमाप्रतिपादक शब्द’ यह चारों अपेक्षित बातें अभिव्यक्त की गई हो
- पूर्णककुद्—वि॰—पूर्ण-ककुद्—-—पूरे कोहान से युक्त
- पूर्णकाम—वि॰—पूर्ण-काम—-—जिसकी इच्छाएँ पूरी हो गई हैं, संतुष्ट तृप्त
- पूर्णकुम्भः—पुं॰—पूर्ण-कुम्भः—-—पूरा कलश
- पूर्णकुम्भः—पुं॰—पूर्ण-कुम्भः—-—पानी से भरा घड़ा
- पूर्णकुम्भः—पुं॰—पूर्ण-कुम्भः—-—युद्ध करने की विशेष रीति
- पूर्णकुम्भः—पुं॰—पूर्ण-कुम्भः—-—(दिबार में) कलश के आकार का गर्त
- पूर्णपात्रम्—नपुं॰—पूर्ण-पात्रम्—-—जल से भरी गागर
- पूर्णपात्रम्—नपुं॰—पूर्ण-पात्रम्—-—कलशपूर, गागर भर
- पूर्णपात्रम्—नपुं॰—पूर्ण-पात्रम्—-—२५६ मुट्ठी भर (अनाज का) तोल
- पूर्णपात्रम्—नपुं॰—पूर्ण-पात्रम्—-—(वस्त्रालंकार आदि) मूल्यवान वस्तुओं से भरा हुआ (संदूक, टोकरी आदि) बर्तन जो बंधुबांधवों द्वारा किसी उत्सवादि के अवसर पर उपहार के रूप में बांटा जाय
- पूर्णबीजः—पुं॰—पूर्ण-बीजः—-—नींबू
- पूर्णवीजः—पुं॰—पूर्ण-वीजः—-—नींबू
- पूर्णमासी—स्त्री॰—पूर्ण-मासी—-—पूर्णिमा, पूनो
- पूर्णकः—पुं॰—-—पूर्ण + कन्—एक प्रकार का वृक्ष
- पूर्णकः—पुं॰—-—पूर्ण + कन्—रसोइया
- पूर्णकः—पुं॰—-—पूर्ण + कन्—नीलकंठ
- पूर्णिमा—स्त्री॰—-—पृ + निङ्=पूर्णि, मा + क + टाप्—वह दिन जब चन्द्रमा पूर्ण हो जाता है,
- पूर्णिमासी—स्त्री॰—-—पूर्णि + मास + ङीप्—वह दिन जब चन्द्रमा पूर्ण हो जाता है,
- पूर्त—वि॰—-—पूर् + क्त—पूर्ण, पूरा
- पूर्त—वि॰—-—पूर् + क्त—छिपाया हुआ, ढका हुआ
- पूर्त—वि॰—-—पूर् + क्त—पालन-पोषण किया गया, रक्षा किया गया
- पूर्तम्—नपुं॰—-—पूर् + क्त—पूर्ति
- पूर्तम्—नपुं॰—-—पूर् + क्त—पोषण, पालन
- पूर्तम्—नपुं॰—-—पूर् + क्त—पुरस्कार, पात्रता
- पूर्तम्—नपुं॰—-—पूर् + क्त—पावन, उदारता का कृत्य
- पूर्तिः—स्त्री॰—-—पूर् + क्तिन्—भरना
- पूर्तिः—स्त्री॰—-—पूर् + क्तिन्—पूरा करना, पूर्णता, सम्पन्नता
- पूर्तिः—स्त्री॰—-—पूर् + क्तिन्—तृप्ति, संतुष्टि
- पूर्व—वि॰—-—पूर्व + अच्—सामने होने वाला, प्रथम, प्रमुख
- पूर्व—वि॰—-—पूर्व + अच्—पूर्वी, पूर्व दिशा में स्थित, के पूर्व में
- पूर्व—वि॰—-—पूर्व + अच्—पहले का, से पहला
- पूर्व—वि॰—-—पूर्व + अच्—पुराना, प्राचीन
- पूर्व—वि॰—-—पूर्व + अच्—पूर्वोक्त, विगत, पिछ्ला, पहला, पूर्वगामी
- पूर्व—वि॰—-—पूर्व + अच्—उपर्युक्त, पूर्वोक्त
- पूर्व—वि॰—-—पूर्व + अच्—पूर्ववर्ती, से युक्त
- अबोधपूर्वम्—नपुं॰—अबोध-पूर्वम्—-—अनजाने
- अबोधपूर्वः—पुं॰—अबोध-पूर्वः—-—पूर्वज, पूर्व पुरुखा, बाप दादा
- पूर्वम्—नपुं॰—-—-—अगला भाग
- पूर्वम्—अव्य॰—-—-—से पहले
- पूर्वम्—अव्य॰—-—-—विगत काल में, पहले, प्रारंभ में, पूर्वतः
- पूर्वेण—अव्य॰—-—-—से पूर्व में
- अद्य पूर्वम्—अव्य॰—-—-—‘अब तक’ इससे पहले
- पूर्वःततः—अव्य॰—-—-—पहले तब
- पूर्वःपश्चात्—अव्य॰—-—-—पहले बाद में
- पूर्वः उपरि—अव्य॰—-—-—विगत काल में
- पूर्वम् अधुना—अव्य॰—-—-—पहले आज
- पूर्वम् अद्य—अव्य॰—-—-—पहले आज
- पूर्वाचलः—पुं॰—पूर्व-अचलः—-—उदयाचल (पूर्व दिशा का पहाड़ जिसके पीछे से सूर्य और चन्द्रमा का उदय होता है)
- पूर्वाद्रिः—पुं॰—पूर्व-अद्रिः—-—उदयाचल (पूर्व दिशा का पहाड़ जिसके पीछे से सूर्य और चन्द्रमा का उदय होता है)
- पूर्वांतः—पुं॰—पूर्व-अंतः—-—पूर्ववर्ती शब्द की समाप्ति
- पूर्वापर—वि॰—पूर्व-अपर—-—पूर्वी और पश्चिमी
- पूर्वापर—वि॰—पूर्व-अपर—-—पहला और अन्तिम
- पूर्वापर—वि॰—पूर्व-अपर—-—पहले का और बाद का, पूर्ववर्ती और परवर्ती
- पूर्वापर—वि॰—पूर्व-अपर—-—किसी दूसरे से युक्त
- पूर्वापरम्—नपुं॰—पूर्व-परम्—-—जो पहले और बाद में हो
- पूर्वापरम्—नपुं॰—पूर्व-परम्—-—संबंध
- पूर्वापरम्—नपुं॰—पूर्व-परम्—-—प्रमाण और प्रमेय
- पूर्वविरोधः—पुं॰—पूर्व-विरोधः—-—असंगति, असंबद्धता
- पूर्वाभिमुख—वि॰—पूर्व-अभिमुख—-—पूर्व दिशा की ओर मुख किए हुए, या मुड़े हुए
- पूर्वाम्बुधिः—पुं॰—पूर्व-अम्बुधिः—-—पूर्वी समुद्र
- पूर्वार्जित—वि॰—पूर्व-अर्जित—-—पूर्वकर्मों द्वारा प्राप्त
- पूर्वार्जितम्—नपुं॰—पूर्व-अर्जितम्—-—पैतृक संपत्ति
- पूर्वार्धः—पुं॰—पूर्व-अर्धः—-—पहला आधा भाग
- पूर्वार्धः—पुं॰—पूर्व-अर्धः—-—(शरीर का) ऊपर का भाग
- पूर्वार्धः—पुं॰—पूर्व-अर्धः—-—श्लोकार्ध का प्रथम भाग
- पूर्वार्धम्—नपुं॰—पूर्व-अर्धम्—-—पहला आधा भाग
- पूर्वार्धम्—नपुं॰—पूर्व-अर्धम्—-—(शरीर का) ऊपर का भाग
- पूर्वार्धम्—नपुं॰—पूर्व-अर्धम्—-—श्लोकार्ध का प्रथम भाग
- पूर्वाह्णः—पुं॰—पूर्व-अह्णः—-—मध्याह्न से पूर्व, दोपहर से पूर्व
- पूर्वाह्णतन—वि॰—पूर्व-अह्णः-तन—-—मध्याह्न से पूर्वकाल संबंधी
- पूर्वाह्णतेन—वि॰—पूर्व-अह्णः-तेन—-—मध्याह्न से पूर्वकाल संबंधी
- पूर्वावेदकः—पुं॰—पूर्व-अवेदकः—-—वादी, मुद्दई
- पूर्वाषाढ़ा—स्त्री॰—पूर्व-आषाढ़ा—-—बीसवाँ नक्षत्र, (दो नक्षत्रों का पुंज)
- पूर्वेतर—वि॰—पूर्व-इतर—-—पश्चिमी
- पूर्वक्त—वि॰—पूर्व-उक्त—-—पहले कहा हुआ, उपर्युक्त
- पूर्वोर्दित—वि॰—पूर्व-उर्दित—-—पहले कहा हुआ, उपर्युक्त
- पूर्वोत्तर—वि॰—पूर्व-उत्तर—-—उत्तरपूर्वी
- पूर्वोत्तरे—द्वि॰ व॰—पूर्व-उत्तरे—-—पूर्ववर्ती पहले का और बाद का
- पूर्वकर्मन्—नपुं॰—पूर्व-कर्मन्—-—पहला काम या कार्य
- पूर्वकर्मन्—नपुं॰—पूर्व-कर्मन्—-—प्रथम कार्य, पहले किया जाने वाला कार्य
- पूर्वकर्मन्—नपुं॰—पूर्व-कर्मन्—-—पूर्व जन्म में किया गया कार्य
- पूर्वकल्पः—पुं॰—पूर्व-कल्पः—-—विगत काल
- पूर्वकायः—पुं॰—पूर्व-कायः—-—जानवरों के शरीर का अगला भाग
- पूर्वकायः—पुं॰—पूर्व-कायः—-—मनुष्यों के शरीर का ऊपरी भाग
- पूर्वकालः—पुं॰—पूर्व-कालः—-—विगत काल, प्राचीन समय
- पूर्वकालिक—वि॰—पूर्व-कालिक—-—प्राचीन
- पूर्वकालीन—वि॰—पूर्व-कालीन—-—प्राचीन
- पूर्वकाष्ठा—स्त्री॰—पूर्व-काष्ठा—-—पूर्व, पूर्व दिशा
- पूर्वकृतम्—नपुं॰—पूर्व-कृतम्—-—पूर्वजन्म में किया हुआ कार्य
- पूर्वकोटिः—स्त्री॰—पूर्व-कोटिः—-—वाक्प्रतियोगिता की आरंभिक उक्ति, विवादविषय, पूर्वपक्ष
- पूर्वगंगा—स्त्री॰—पूर्व-गंगा—-—नर्मदा नदी
- पूर्वचोदित—वि॰—पूर्व-चोदित—-—उपर्युक्त, ऊपर बताया हुआ
- पूर्वचोदित—वि॰—पूर्व-चोदित—-—पहले से कहा हुआ, या पूर्व प्रस्तुत (आक्षेप आदि)
- पूर्वज—वि॰—पूर्व-ज—-—जिसकी उत्पत्ति पहले हुई हो, पहले जन्मा हुआ
- पूर्वज—वि॰—पूर्व-ज—-—प्राचीन, पुराना
- पूर्वज—वि॰—पूर्व-ज—-—पूर्वी
- पूर्वजः—पुं॰—पूर्व-जः—-—बडा भाई
- पूर्वजः—पुं॰—पूर्व-जः—-—बड़ी पत्नी का लड़का
- पूर्वजः—पुं॰—पूर्व-जः—-—पूर्वपुरुष, बापदादा
- पूर्वजन्मन्—नपुं॰—पूर्व-जन्मन्—-—पहला जन्म
- पूर्वजन्मन्—पुं॰—पूर्व-जन्मन्—-—बड़ा भाई
- पूर्वजा—स्त्री॰—पूर्व-जा—-—बड़ी बहन
- पूर्वजातिः—स्त्री॰—पूर्व-जातिः—-—पूर्वजन्म
- पूर्वज्ञानम्—नपुं॰—पूर्व-ज्ञानम्—-—पूर्वजन्म का ज्ञान
- पूर्वदक्षिण—वि॰—पूर्व-दक्षिण—-—दक्षिणपूर्वी
- पूर्वदक्षिणा—स्त्री॰—पूर्व-दक्षिणा—-—दक्षिण पूर्व दिशा
- पूर्वदिक्पतिः—पुं॰—पूर्व-दिक्पतिः—-—पूर्वदिशा का अधिपति इन्द्र
- पूर्वदिनम्—नपुं॰—पूर्व-दिनम्—-—दिन का पूर्वभाग, दोपहर से पूर्व का समय
- पूर्वदिश्—स्त्री॰—पूर्व-दिश्—-—पूर्व दिशा
- पूर्वदिष्टम्—नपुं॰—पूर्व-दिष्टम्—-—भाग्य में लिखा
- पूर्वदेवः—पुं॰—पूर्व-देवः—-—प्राचीन देवता
- पूर्वदेवः—पुं॰—पूर्व-देवः—-—राक्षस या असुर
- पूर्वदेवः—पुं॰—पूर्व-देवः—-—प्रजनक, पिता
- पूर्वदेशः—पुं॰—पूर्व-देशः—-—पूर्वी प्रदेश, भारत का पूर्वी भाग
- पूर्वनिपातः—पुं॰—पूर्व-निपातः—-—समास में शब्द की अनियमित प्राथमिकता
- पूर्वपक्षः—पुं॰—पूर्व-पक्षः—-—अगला हिस्सा या पार्श्व
- पूर्वपक्षः—पुं॰—पूर्व-पक्षः—-—कृष्णपक्ष (चान्द्रमास का प्रथमपक्ष)
- पूर्वपक्षः—पुं॰—पूर्व-पक्षः—-—विवाद का पूर्वपक्ष, प्रथमदर्शनाधारित तर्क या प्रश्न का दृष्टिकोण
- पूर्वपक्षः—पुं॰—पूर्व-पक्षः—-—किसी तर्क का प्रथम आक्षेप
- पूर्वपक्षः—पुं॰—पूर्व-पक्षः—-—वादी की प्रतिज्ञा
- पूर्वपक्षः—पुं॰—पूर्व-पक्षः—-—अभियोग, नालिश
- पूर्वपदम्—नपुं॰—पूर्व-पदम्—-—किसी समास या वाक्य का प्रथम पद
- पूर्वपर्वतः—पुं॰—पूर्व-पर्वतः—-—उदयाचल जिसके पीछे सूर्य का उदय होना माना जाता है
- पूर्वपांचालक—वि॰—पूर्व-पांचालक—-—पूर्वी पंचालों से संबंध रखने वाला
- पूर्वपाणिनीयाः—पुं॰, ब॰ व॰—पूर्व-पाणिनीयाः—-—पूर्व देश के रहनेवाला पाणिनि के शिष्य
- पूर्वपितामहः—पुं—पूर्व-पितामहः—-—बापदादा, पूर्वज
- पूर्वपुरुषः—पुं—पूर्व-पुरुषः—-—ब्रह्मा का विशेषण
- पूर्वपुरुषः—पुं—पूर्व-पुरुषः—-—पिता, पितामह या प्रपितामह में से कोई एक
- पूर्वपुरुषः—पुं—पूर्व-पुरुषः—-—पूर्वपुरखा
- पूर्वपूर्व—वि॰—पूर्व-पूर्व—-—प्रत्येक पूर्ववर्ती- फाल्गुनी ग्यारहवाँ नक्षत्र जिसमें दो तारे सम्मिलित हैं
- पूर्वभवः—पुं॰—पूर्व-भवः—-—बृहस्पति ग्रह का विशेषण
- पूर्वभागः—पुं—पूर्व-भागः—-—अगला हिस्सा
- पूर्वभाद्रपदा—स्त्री॰—पूर्व-भाद्रपदा—-—पच्चीसवाँ नक्षत्र जिसमें दो तारे सम्मिलित हैं
- पूर्वभुक्तिः—स्त्री॰—पूर्व-भुक्तिः—-—पहले से किया हुआ अधिकार
- पूर्वभूत—वि॰—पूर्व-भूत—-—पूर्ववर्ती, पहले का
- पूर्वमीमांसा—स्त्री॰—पूर्व-मीमांसा—-—प्रथम मीमांसा, वेद के अंतर्गत कर्मकाण्डविषयक पृच्छा
- पूर्वरङ्गः—पुं॰—पूर्व-रङ्गः—-—नाटक का उपक्रम या आरंभ, आमुख या प्रस्तावना
- पूर्वरागः—पुं॰—पूर्व-रागः—-—आरंभिक प्रेम, दो व्यक्तियों के मिलन से पूर्व (श्रवण दर्शन आदि के कारण) उनमें उत्पन्न होनेवाला प्रेम
- पूर्वरात्रः—पुं॰—पूर्व-रात्रः—-—रात का पहला भाग
- पूर्वरूपम्—नपुं॰—पूर्व-रूपम्—-—होने वाले परिवर्तन का संकेत
- पूर्वरूपम्—नपुं॰—पूर्व-रूपम्—-—रोग होने का लक्षण
- पूर्वरूपम्—नपुं॰—पूर्व-रूपम्—-—दो सहवर्ती स्वर या व्यंजनो में से पहला जो स्थिर रहे
- पूर्वबयस्—वि॰—पूर्व-बयस्—-—बच्चा
- पूर्ववर्तिन्—वि॰—पूर्व-वर्तिन्—-—पहले से विद्यमान, पहले का, पहले होने वाला
- पूर्ववाद—वि॰—पूर्व-वाद—-—बादी द्वारा प्रस्तुत अभियोग, मुद्दई द्वारा की गई नालिश
- पूर्ववादिन्—पुं॰—पूर्व-वादिन्—-—अभियोक्ता या मुद्दई
- पूर्ववृत्तम्—नपुं॰—पूर्व-वृत्तम्—-—पहली घटना
- पूर्ववृत्तम्—नपुं॰—पूर्व-वृत्तम्—-—पहला आचरण
- पूर्वशारद—वि॰—पूर्व-शारद—-—शरद् ऋतु के पूर्वार्ध से संबंध रखने वाला
- पूर्वशैलः—पुं॰—पूर्व-शैलः—-—
- पूर्वसक्थम्—नपुं॰—पूर्व-सक्थम्—-—जंघा का ऊपरी भाग
- पूर्वसन्ध्या—स्त्री॰—पूर्व-सन्ध्या—-—प्रभातकाल, पौ फाटना
- पूर्वसर—वि॰—पूर्व-सर—-—अग्रेसर
- पूर्वसागरः—पुं॰—पूर्व-सागरः—-—पूर्वी समुद्र
- पूर्वसाहसः—पुं॰—पूर्व-साहसः—-—पहला या सबसे भारी अर्थदण्ड
- पूर्वस्थितिः—स्त्री॰—पूर्व-स्थितिः—-—पहली या प्रथम अवस्था
- पूर्वक—वि॰—-—पूर्व + कन्—पूर्ववर्ती, अनुसेवित
- पूर्वक—वि॰—-—पूर्व + कन्—पूर्ववर्ती, पिछला
- पूर्वकः—पुं॰—-—पूर्व + कन्—पूर्वज, वापदादा
- पूर्वगम—वि॰—-—पूर्व + गम् + खच्—पहले जाने वाला, पूर्ववर्ती
- पूर्वतः—अव्य॰—-—पूर्व + तस्—पूर्व में, पूर्व की ओर
- पूर्वतः—अव्य॰—-—पूर्व + तस्—पहले, सामने
- पूर्वत्र—अव्य॰—-—पूर्व + त्रल्—पूर्ववर्ती भाग में, पहली जगह
- पूर्ववत्—अव्य॰—-—पूर्व + वर्ति—पहले की भांति
- पूर्विन्—वि॰—-—पूर्व + इनि—प्राचीन
- पूर्विन्—वि॰—-—पूर्व + इनि—पैतृक
- पूर्विण—वि॰—-—पूर्व + ख—प्राचीन
- पूर्विण—वि॰—-—पूर्व + ख—पैतृक
- पूर्वेद्युः—अव्य॰—-—पूर्वस्मिन् अहनि-पूर्व + एद्युस् नि॰ साधु—पहले दिन
- पूर्वेद्युः—अव्य॰—-—पूर्वस्मिन् अहनि-पूर्व + एद्युस् नि॰ साधु—गत दिवस, बीते हुए कल
- पूर्वेद्युः—अव्य॰—-—पूर्वस्मिन् अहनि-पूर्व + एद्युस् नि॰ साधु—दिन के प्रथम भाग में, पौ फटने पर
- पूर्वेद्युः—अव्य॰—-—पूर्वस्मिन् अहनि-पूर्व + एद्युस् नि॰ साधु—भोर में, सबेरे
- पूल्—भ्वा॰ पर॰ <पूलति>, चुरा॰ उभ॰ <पूलयति>, <पूलयते>—-—-—ढेर लगाना, संचय करना, एकत्र करना
- पूलः—पुं॰—-—पूल् + अच् —गठरी, पुली
- पूलकः—पुं॰—-—पूल् + ण्वुल् —गठरी, पुली
- पूलाकः—पुं॰—-—-—
- पूलिका—स्त्री॰—-—पूरिका, रस्य लः—एक प्रकार की रोटी, पूरी
- पूषः—पुं॰—-—पूष् + क—शहतूत का वृक्ष
- पूषकः—पुं॰—-—पूष् + कन्—शहतूत का वृक्ष
- पूषन्—पुं॰—-—पूष् + कनिन्—सूर्य
- पूषासुहृद्—पुं॰—पूषन्-असुहृद्—-—शिव का विशेषण
- पूषात्मजः—पुं॰—पूषन्-आत्मजः—-—बादल
- पूषात्मजः—पुं॰—पूषन्-आत्मजः—-—इन्द्र का विशेषण
- पूषाभासा—स्त्री॰—पूषन्-भासा—-—इन्द्र का नगर (अमरावती)
- पृ—तुदा॰ आ॰ <प्रियते>, <पृत>—-—-—व्यस्त होना, सक्रिय होना
- पृ—प्रेर॰ <पारयति>, <पारयते>—-—-—काम कराना, काम पर लगाना, सौंपना, नियत करना
- पृ—प्रेर॰ <पारयति>, <पारयते>—-—-—रखना, जड़ देना, निश्चित करना, निदेश देना, ढालना
- पृ—जुहो॰ पर॰ <पिपर्ति> ,<पूर्ण>—-—-—आगे ले जाना
- पृ—जुहो॰ पर॰ <पिपर्ति> ,<पूर्ण>—-—-—से मुक्त करना, प्रकाशित करना
- पृ—जुहो॰ पर॰ <पिपर्ति> ,<पूर्ण>—-—-—भरना
- पृ—जुहो॰ पर॰ <पिपर्ति> ,<पूर्ण>—-—-—रक्षा करना, जीवित रखना, जीवित रहना
- पृ—जुहो॰ पर॰ <पिपर्ति> ,<पूर्ण>—-—-—उन्नति करना, प्रगति करना
- पृ—क्र्य॰ पर॰ <पृणाति>—-—-—रक्षा करना
- पृ—चुरा॰ उभ॰ <पारयति>, <पारयते>—-—-—पार ले जाना, नाव से पार उतारना
- पृ—चुरा॰ उभ॰ <पारयति>, <पारयते>—-—-—किसी वस्तु के दूसरे पार्श्व पर पहुंचना, निष्पन्न करना, अनुष्ठान करना, सम्पन्न करना, (व्रत का) पूरा करना
- पृ—चुरा॰ उभ॰ <पारयति>, <पारयते>—-—-—योग्य या समर्थ होना
- पृ—चुरा॰ उभ॰ <पारयति>, <पारयते>—-—-—सौंपना, बचाना, उद्धार करना, निस्तार करना
- पृ—स्वा॰ पर॰ <पृणेति>—-—-—प्रसन्न करना, खुश करना, तृप्त करना
- पृ—स्वा॰ पर॰ <पृणेति>—-—-—प्रसन्न होना, खुश होना
- पृक्त—भू॰ क॰ कृ॰—-—पृच् + क्त—मिश्रित, संपृक्त
- पृक्त—भू॰ क॰ कृ॰—-—पृच् + क्त—स्पृष्ट, संपर्क में लाया गया, स्पर्श करने वाला, संयुक्त
- पृक्तम्—नपुं॰—-—पृच् + क्त—संपत्ति, दौलत
- पृक्तिः—स्त्री॰—-—पृच् + क्तिन्—स्पर्श, संपर्क, संयोग
- पृक्थम्—नपुं॰—-—पृच् + थन्—संपत्ति, धन-दौलत, वैभव
- पृच्—अदा॰ आ॰ <पृक्ते>, <पृक्ण>—-—-—संपर्क में आना
- पृच्—रुधा॰ पर॰ <पृणक्ति>, <पृक्त>—-—-—संपर्क में लाना, सम्मिलित होना, मिल जाना
- पृच्—रुधा॰ पर॰ <पृणक्ति>, <पृक्त>—-—-—मिश्रण करना, मिलाना
- पृच्—रुधा॰ पर॰ <पृणक्ति>, <पृक्त>—-—-—संपर्क में होना, स्पर्श करना
- पृच्—रुधा॰ पर॰ <पृणक्ति>, <पृक्त>—-—-—संतुष्ट करना, भरना, संतृप्त करना
- पृच्—रुधा॰ पर॰ <पृणक्ति>, <पृक्त>—-—-—बढाना, वृद्धि करना
- संपृच्—रुधा॰ पर—सम्-पृच्—-—मिश्रण करना, घोलना, मिलना
- संपृच्—भ्वा॰ पर॰ <पर्चर्ति>, चुरा॰ उभ॰ <पर्चयति>, <पर्चयते>—सम्-पृच्—-—स्पर्श करना, संपर्क में आना
- संपृच्—भ्वा॰ पर॰ <पर्चर्ति>, चुरा॰ उभ॰ <पर्चयति>, <पर्चयते>—सम्-पृच्—-—रोकना, विरोध करना
- पृच्छकः—पुं॰—-—प्रच्छ् + ण्वुल्—पूछताछ करने वाला, गवेषणा करने वाला
- पृच्छनम्—नपुं॰—-—प्रच्छ् + ल्युट्—पूछना, पूछ-ताछ करना
- पृच्छा—स्त्री॰—-—प्रच्छ् + अङ् + टाप्—प्रश्न करना, पूछना, पूछताछ करना
- पृच्छा—स्त्री॰—-—प्रच्छ् + अङ् + टाप्—भविष्य विपयक पूछ-ताछ
- पृज्—अदा॰ आ॰ <पृंक्ते>—-—-—संपर्क में आना, स्पर्श करना
- पृत्—स्त्री॰—-—पृ + क्विप्, तुक्—सेना
- पृतना—स्त्री॰—-—पृ + तनन् + टाप्—सेना
- पृतना—स्त्री॰—-—पृ + तनन् + टाप्—सेना का एक प्रभाग जिसमें २४३ हाथी, २४३ रथ, ७२९ घोड़े और १२१५ पैदल होते हैं
- पृतना—स्त्री॰—-—पृ + तनन् + टाप्—युद्ध, संग्राम, मुठभेड़
- पृतनासाहः—पुं॰—पृतना-साहः—-—इन्द्र का विशेषण
- पृथ्—चुरा॰ उभ॰ <पर्थयति>, <पर्थयते>—-—-—विस्तार करना
- पृथ्—चुरा॰ उभ॰ <पर्थयति>, <पर्थयते>—-—-—फेंकना, डालना
- पृथ्—चुरा॰ उभ॰ <पर्थयति>, <पर्थयते>—-—-—भेजना, निदेश देना
- पृथक्—अव्य॰—-—प्रथ् + अज्, कित्, संप्रसारण—अलग-अलग, जुदा-जुदा, एक एक करके
- पृथक्—अव्य॰—-—प्रथ् + अज्, कित्, संप्रसारण—भिन्न, अलग, भिन्नतापूर्वक
- पृथक्—अव्य॰—-—प्रथ् + अज्, कित्, संप्रसारण—जुदा, एक ओर, एकाकी
- पृथक्—अव्य॰—-—प्रथ् + अज्, कित्, संप्रसारण—छोड़ कर, सिवाय, अपवाद के साथ, बिना
- पृथक् कृ——-—-—अलग २ करना, बाँटना, जुदा-जुदा करना, विश्लेषण करना
- पृथकात्मता—स्त्री॰—पृथक्-आत्मता—-—अलग-अलग होना, पृथकता
- पृथकात्मता—स्त्री॰—पृथक्-आत्मता—-—भेद, भिन्नता
- पृथकात्मता—स्त्री॰—पृथक्-आत्मता—-—विवेक, निर्णय
- पृथकात्मन्—वि॰—पृथक्-आत्मन्—-—भिन्न, अलग
- पृथकात्मिका—स्त्री॰—पृथक्-आत्मिका—-—व्यक्तिगत सत्ता, वैयक्तिकता
- पृथककरणम्—नपुं॰—पृथक्-करणम्—-—अलग-अलग करना, भेद करना
- पृथककरणम्—नपुं॰—पृथक्-करणम्—-—विश्लेषण करना
- पृथकक्रिया—स्त्री॰—पृथक्-क्रिया—-—अलग-अलग करना, भेद करना
- पृथकक्रिया—स्त्री॰—पृथक्-क्रिया—-—विश्लेषण करना
- पृथककूल—वि॰—पृथक्-कूल—-—भिन्न कुल से संबंध रखने वाला
- पृथकक्षेत्रः—पुं॰ ब॰ व॰—पृथक्-क्षेत्रः—-—एक पिता की विभिन्न पत्नियों से सन्तान, या भिन्न-भिन्न जातियों की पत्नियों से सन्तान
- पृथकचर—वि॰—पृथक्-चर—-—एकाकी जाने वाला, अलग जाने वाला
- पृथकजनः—पुं॰—पृथक्-जनः—-—नीच पुरुष, ज्ञानरहित, गँवार आदमी, प्राकृत जन, नीच लोग
- पृथकजनः—पुं॰—पृथक्-जनः—-—मूर्ख, बुद्धू, अज्ञानी
- पृथकजनः—पुं॰—पृथक्-जनः—-—दुष्ट आदमी, पापी
- पृथकभावः—पुं॰—पृथक्-भावः—-—पृथक्ता, वैयक्तिकता
- पृथकरूप—वि॰—पृथक्-रूप—-—भिन्न- भिन्न रूपों या प्रकारों का
- पृथकविध—वि॰—पृथक्-विध—-—भिन्न भिन्न प्रकार का, नाना प्रकार विविध
- पृथकशय्या—स्त्री॰—पृथक्-शय्या—-—अलग सोना
- पृथकस्थितिः—स्त्री॰—पृथक्-स्थितिः—-—अलग सत्ता
- पृथवी—स्त्री॰—-—प्रथ्+षवन्, संप्रसारण—
- पृथा—स्त्री॰—-—-—पाण्डु की दो पत्नियों में से एक, कुन्ती का नाम
- पृथाजः—पुं॰—पृथा-जः—-—पहले तीन पांडवों का विशेषण परन्तु प्रायः 'अर्जुन' के लिए व्यवहृत
- पृथातनयः—पुं॰—पृथा-तनयः—-—पहले तीन पांडवों का विशेषण परन्तु प्रायः 'अर्जुन' के लिए व्यवहृत
- पृथासुतः—पुं॰—पृथा-सुतः—-—पहले तीन पांडवों का विशेषण परन्तु प्रायः 'अर्जुन' के लिए व्यवहृत
- पृथासूनुः—पुं॰—पृथा-सूनुः—-—पहले तीन पांडवों का विशेषण परन्तु प्रायः 'अर्जुन' के लिए व्यवहृत
- पृथापतिः—पुं॰—पृथा-पतिः—-—पाँडु का विशेषण
- पृथिका—स्त्री॰—-—प्रथ्+क+क+टाप् संप्रसारणम्, इत्वम् —कनखजूरा
- पृथिवी—स्त्री॰—-—प्रथ्+षिंवन्, संप्रसारणम्—पृथ्वी
- पृथिवीन्द्रः—पुं॰—पृथिवी-इन्द्रः—-—राजा
- पृथिवीशः—पुं॰—पृथिवी-ईशः—-—राजा
- पृथिवीक्षित्—पुं॰—पृथिवी-क्षित्—-—राजा
- पृथिवीपालः—पुं॰—पृथिवी-पालः—-—राजा
- पृथिवीपालकः—पुं॰—पृथिवी-पालकः—-—राजा
- पृथिवीभुज्—पुं॰—पृथिवी-भुज्—-—राजा
- पृथिवीभुजः—पुं॰—पृथिवी-भुजः—-—राजा
- पृथिवीशक्रः—पुं॰—पृथिवी-शक्रः—-—राजा
- पृथिवीतलम्—नपुं॰—पृथिवी-तलम्—-—धरातल
- पृथिवीपतिः—पुं॰—पृथिवी-पतिः—-—राजा
- पृथिवीपतिः—पुं॰—पृथिवी-पतिः—-—मृत्यु का देवता यम
- पृथिवीमण्डलः—पुं॰—पृथिवी-मण्डलः—-—भृमंडल
- पृथिवीमण्डलम्—नपुं॰—पृथिवी-मण्डलम्—-—भृमंडल
- पृथिवीरुहः—पुं॰—पृथिवी-रुहः—-—वृक्ष
- पृथिवीलोकः—पुं॰—पृथिवी-लोकः—-—मर्त्यलोक, भूलोकः
- पृथु—वि॰—-—-—चौड़ा, विस्तृत, प्रशस्त, फैलावदार
- पृथु—वि॰—-—प्रथ्+कु, संप्रसारणम्—यथेष्ट, बहुल, पर्याप्त
- पृथु—वि॰—-—प्रथ्+कु, संप्रसारणम्—विस्तीर्ण, बड़ा
- पृथु—वि॰—-—प्रथ्+कु, संप्रसारणम्—विवरणयुक्त, अतिविस्तृत
- पृथु—वि॰—-—प्रथ्+कु, संप्रसारणम्—बहुसंख्यक
- पृथु—वि॰—-—प्रथ्+कु, संप्रसारणम्—चुस्त, फुर्तीला, चतुर
- पृथु—वि॰—-—प्रथ्+कु, संप्रसारणम्—महत्वपूर्ण
- पृथुः—पुं॰—-—-—अग्नि का नाम
- पृथुः—पुं॰—-—-—एक राजा का नाम
- पृथुः—स्त्री॰—-—-—अफीम
- पृथूदर—वि॰—पृथु-उदर—-—मोटे पेट वाला, हृष्ट-पुष्ट
- पृथूदरः—पुं॰—पृथु-उदरः—-—मेंढा
- पृथुजघन—वि॰—पृथु-जघन—-—मोटे और विस्तार युक्त कूल्हों से युक्त
- पृथुनितम्ब—वि॰—पृथु-नितम्ब—-—मोटे और विस्तार युक्त कूल्हों से युक्त
- पृथुपत्रः—पुं॰—पृथु-पत्रः—-—लाल लहसुन
- पृथुपत्रम्—नपुं॰—पृथु-पत्रम्—-—लाल लहसुन
- पृथुप्रथ—वि॰—पृथु-प्रथ—-—दूर-दूर तक प्रसिद्ध, व्यापक, यशस्वी
- पृथुयशस्—वि॰—पृथु-यशस्—-—दूर-दूर तक प्रसिद्ध, व्यापक, यशस्वी
- पृथुरोमन्—पुं॰—पृथु-रोमन्—-—मछली
- पृथु युग्मः—पुं॰—-—-—मीन राशि
- पृथुश्री—वि॰—पृथु-श्री—-—अत्यन्त समृद्ध
- पृथुश्रोणी—वि॰—पृथु-श्रोणी—-—बड़े भारी कूल्हों वाल
- पृथुसम्पद—वि॰—पृथु-संपद—-—धनवान्, दौलतमंद
- पृथुस्कन्धः—पुं॰—पृथु-स्कन्धः—-—सूअर
- पृथुकः—पुं॰—-—पृथु+कै+क—चौले, चिवड़े, बच्चा
- पृथुकम्—नपुं॰—-—पृथु+कै+क—चौले, चिवड़े
- पृथुका—स्त्री॰—-—पृथु+कै+क+टाप्—लड़की
- पृथुल—वि॰—-—पृत्थु+लच्, ला+क वा—चौड़ा, प्रशस्त, विस्तृत
- पृथ्वी—स्त्री॰—-—पृथु+ङीष्—पृथिवी, धरा
- पृथ्वी—स्त्री॰—-—पृथु+ङीष्—पाँच मूल तत्त्वों में से एक, पृथ्वी
- पृथ्वी—स्त्री॰—-—पृथु+ङीष्—बड़ी इलायची
- पृथ्वी—स्त्री॰—-—पृथु+ङीष्—एक छंद
- पृथ्वीशः—पुं॰—पृथ्वी-ईशः—-—राजा, प्रभु
- पृथ्वीपतिः—पुं॰—पृथ्वी-पतिः—-—राजा, प्रभु
- पृथ्वीपालः—पुं॰—पृथ्वी-पालः—-—राजा, प्रभु
- पृथ्वीभुज्—पुं॰—पृथ्वी-भुज्—-—राजा, प्रभु
- पृथ्वीखातम्—नपुं॰—पृथ्वी-खातम्—-—गुफा
- पृथ्वीगर्भः—पुं॰—पृथ्वी-गर्भः—-—गणेश का विशेषण
- पृथ्वीगृहम्—नपुं॰—पृथ्वी-गृहम्—-—गुफा, कृत्रिम खोह
- पृथ्वीजः—पुं॰—पृथ्वी-जः—-—वृक्ष
- पृथ्वीजः—पुं॰—पृथ्वी-जः—-—मंगल ग्रह
- पृथ्वीका—स्त्री॰—-—पृथ्वी+कन्+टाप्—बड़ी इलायची
- पृथ्वीका—स्त्री॰—-—पृथ्वी+कन्+टाप्—छोटी इलायची
- पृदाकुः—पुं॰—-—पर्द्+काकु, संप्रसारणम्, प्रकारलोपः—बिच्छू
- पृदाकुः—पुं॰—-—पर्द्+काकु, संप्रसारणम्, प्रकारलोपः—व्याघ्र
- पृदाकुः—पुं॰—-—पर्द्+काकु, संप्रसारणम्, प्रकारलोपः—सांप, छोटा विषैला सांप
- पृदाकुः—पुं॰—-—पर्द्+काकु, संप्रसारणम्, प्रकारलोपः—वृक्ष
- पृदाकुः—पुं॰—-—पर्द्+काकु, संप्रसारणम्, प्रकारलोपः—हाथी
- पृदाकुः—पुं॰—-—पर्द्+काकु, संप्रसारणम्, प्रकारलोपः—चीता
- पृश्नि—वि॰—-—स्पृश्+नि नि॰ पृषो॰ सलोपः—छोटा, छोटे कद का बौना
- पृश्नि—वि॰—-—स्पृश्+नि नि॰ पृषो॰ सलोपः—सुकुमार, दुबला-पतला
- पृश्नि—वि॰—-—स्पृश्+नि नि॰ पृषो॰ सलोपः—विविध प्रकार का, चित्तीदार
- पृष्नि—वि॰—-—स्पृश्+नि नि॰ पृषो॰ सलोपः—छोटा, छोटे कद का बौना
- पृष्नि—वि॰—-—स्पृश्+नि नि॰ पृषो॰ सलोपः—सुकुमार, दुबला-पतला
- पृष्नि—वि॰—-—स्पृश्+नि नि॰ पृषो॰ सलोपः—छोटा, छोटे कद का बौना
- पृश्निः—पुं॰—-—-—प्रकाश की किरण
- पृश्निः—पुं॰—-—-—पृथ्वी
- पृश्निः—पुं॰—-—-—तारा समूह से युक्त आकाश
- पृश्निः—पुं॰—-—-—कृष्ण की माता देवकी
- पृश्निगर्भः—पुं॰—पृश्नि-गर्भः—-—कृष्ण का विशेषण
- पृश्निधरः—पुं॰—पृश्नि-धरः—-—कृष्ण का विशेषण
- पृश्निभद्रः—पुं॰—पृश्नि-भद्रः—-—कृष्ण का विशेषण
- पृश्निशृङ्गः—पुं॰—पृश्नि-शृङ्गः—-—कृष्ण का विशेषण
- पृश्निशृङ्गः—पुं॰—पृश्नि-शृङ्गः—-—गणेश का विशेषण
- पृश्निका—स्त्री॰—-—पृश्नौ जले कायति शोभते - पृश्नि+कै+क+टाप्, पृश्नि+ङीष्—जल में पैदा होने वाला एक पौधा, जलकुंभी
- पृष्णिका—स्त्री॰—-—पृश्नौ जले कायति शोभते - पृश्नि+कै+क+टाप्, पृश्नि+ङीष्—जल में पैदा होने वाला एक पौधा, जलकुंभी
- पृश्नी—स्त्री॰—-—पृश्नौ जले कायति शोभते - पृश्नि+कै+क+टाप्, पृश्नि+ङीष्—जल में पैदा होने वाला एक पौधा, जलकुंभी
- पृष्णी—स्त्री॰—-—पृश्नौ जले कायति शोभते - पृश्नि+कै+क+टाप्, पृश्नि+ङीष्—जल में पैदा होने वाला एक पौधा, जलकुंभी
- पृषत्—नपुं॰—-—पृष्+अति—जल या कसी और तरल पदार्थ की बूँद
- पृषतंशः—पुं॰—पृषत्-अंशः—-—वायु, हवा
- पृषतंशः—पुं॰—पृषत्-अंशः—-—शिव का विशेषण
- पृषतश्वः—पुं॰—पृषत्-अश्वः—-—वायु, हवा
- पृषतश्वः—पुं॰—पृषत्-अश्वः—-—शिव का विशेषण
- पृषदाज्यम्—नपुं॰—पृषत्-आज्यम्—-—दही में मिला हुआ घी
- पृषत्पतिः—पुं॰—पृषत्-पतिः—-—वायु्
- पृषद्बलः—पुं॰—पृषत्-बलः—-—वायु का घोड़ा
- पृषतः—पुं॰—-—पृष्+अतच्—चित्तीदार हरिण
- पृषतः—पुं॰—-—पृष्+अतच्—पानी की बूँद
- पृषतः—पुं॰—-—पृष्+अतच्—धब्बा, निशान
- पृषताश्वः—पुं॰—पृषतः-अश्वः—-—हवा, वायु
- पृषत्कः—पुं॰—-—पृषत्+कन्—बाण
- पृषंतिः—पुं॰—-—पृष्+झिच्—पानी की बूँद
- पृषभाषा—स्त्री॰—-—-—
- पृषाकरा—स्त्री॰—-—पृष्+क्विप्, पृषे सेचनाय आकीर्यते - पृष्+आ+कृ+अप्+टाप्—छोटा पत्थर
- पृषातकम्—नपुं॰—-—पृषत्+आ+तक्+अच्—दही और घी का संमिश्रण
- पृषोदरः—पुं॰—-—पृषत् उदरं यस्य, पृषो॰ तलोपः—
- पृष्ट—भू॰ क॰ कृ॰—-—प्रच्छ्+क्त—पूछा हुआ, पता लगया हुआ, प्रश्न किया हुआ, सवाल किया हुआ
- पृष्ट—भू॰ क॰ कृ॰—-—प्रच्छ्+क्त—छिड़का हुआ
- पृष्टायनः—पुं॰—पृष्ट-आयनः—-—धान्य विशेष, अनाज
- पृष्टायनः—पुं॰—पृष्ट-आयनः—-—हाथी
- पृष्टिः—स्त्री॰—-—प्रच्छ्+क्तिन्—पूछ-ताछ, प्रश्न वाचकता
- पृष्ठम्—नपुं॰—-—पृष् स्पृश् वा थक्, नि॰ साधुः—पीठ, पिछला हिस्सा, पिछाड़ी
- पृष्ठम्—नपुं॰—-—पृष् स्पृश् वा थक्, नि॰ साधुः—जानवर की पीठ
- पृष्ठम्—नपुं॰—-—पृष् स्पृश् वा थक्, नि॰ साधुः—सतह या ऊपर का पार्श्व
- पृष्ठम्—नपुं॰—-—पृष् स्पृश् वा थक्, नि॰ साधुः—पीठ या दूसरी तरफ
- पृष्ठम्—नपुं॰—-—पृष् स्पृश् वा थक्, नि॰ साधुः—घर की चपटी छत
- पृष्ठम्—नपुं॰—-—पृष् स्पृश् वा थक्, नि॰ साधुः—पुस्तक का पृष्ठ
- पृष्टास्थि—नपुं॰—पृष्ठम्-अस्थि—-—रीढ़ की हड्डी
- पृष्ठगोपः—पुं॰—पृष्ठम्-गोपः—-—जो किसी लड़ते हुए योद्धा की पीठ की रक्षा करे
- पृष्ठरक्षः—पुं॰—पृष्ठम्-रक्षः—-—जो किसी लड़ते हुए योद्धा की पीठ की रक्षा करे
- पृष्ठग्रन्थि—वि॰—पृष्ठम्-ग्रन्थि—-—ककुद्मान, कूबड़ युक्त
- पृष्ठचक्षुस्—पुं॰—पृष्ठम्-चक्षुस्—-—केकड़ा
- पृष्ठतल्पनम्—नपुं॰—पृष्ठम्-तल्पनम्—-—हाथी की पीठ की बाहरी मांसपेशियाँ
- पृष्ठदृष्टिः—स्त्री॰—पृष्ठम्-दृष्टिः—-—केकड़ा, रीक्ष
- पृष्ठफलम्—नपुं॰—पृष्ठम्-फलम्—-—किसी आकृति का फालतू भाग
- पृष्ठभागः—पुं॰—पृष्ठम्-भागः—-—पीठ
- पृष्ठमांसम्—नपुं॰—पृष्ठम्-मांसम्—-—पीठ का मांस
- पृष्ठमांसम्—नपुं॰—पृष्ठम्-मांसम्—-—पीठ पर की गूमड़ी
- पृष्ठम् अद—वि॰—-—-—चुगलखोर, बदनाम करने वाला, कलंकित करने वाला, चुगली
- पृष्ठम् अदन—वि॰—-—-—चुगलखोर, बदनाम करने वाला, कलंकित करने वाला, चुगली
- पृष्ठयानम्—नपुं॰—पृष्ठम्-यानम्—-—सवारी
- पृष्ठवंशः—पुं॰—पृष्ठम्-वंशः—-—रीढ़ की हड्डी
- पृष्ठवास्तु—नपुं॰—पृष्ठम्-वास्तु—-—मकान की ऊपर की मंजिल
- पृष्ठवाह्—पुं॰—पृष्ठम्-वाह्—-—लद्दू बैल
- पृष्ठवाह्यः—पुं॰—पृष्ठम्-वाह्यः—-—लद्दू बैल
- पृष्ठशय—वि॰—पृष्ठम्-शय—-—पीठ के बल सोने वाला
- पृष्ठशृङ्गः—पुं॰—पृष्ठम्-शृङ्गः—-—जंगली बकरी
- पृष्ठशृङ्गिन्—पुं॰—पृष्ठम्-श्रृंगिन्—-—मेंढा
- पृष्ठशृङ्गिन्—पुं॰—पृष्ठम्-श्रृंगिन्—-—भैंसा
- पृष्ठशृङ्गिन्—पुं॰—पृष्ठम्-श्रृंगिन्—-—हिजड़ा
- पृष्ठशृङ्गिन्—पुं॰—पृष्ठम्-श्रृंगिन्—-—भीम का विशेषण
- पृष्ठकम्—नपुं॰—-—पृष्ठ+कन्—पीठ
- पृष्ठतस्—अव्य॰—-—पृष्ठ+तसिल्—पीछे, पीठ पीछे, पीछे से
- पृष्ठतस्—अव्य॰—-—पृष्ठ+तसिल्—पीठ की ओर, पीछे की ओर
- पृष्ठतस्—अव्य॰—-—पृष्ठ+तसिल्—पीठ पर
- पृष्ठतस्—अव्य॰—-—पृष्ठ+तसिल्—पीठ पीछे चुपचाप, प्रच्छन रूप से
- पृष्ठतः कृ——-—-—पीठ पर रखना, पीछे छोड़ना
- पृष्ठतः कृ——-—-—उपेक्षा करना, तिलांजलि देना, छोड़ देना
- पृष्ठतः कृ——-—-—विरक्त होना, हाथ खींचना, त्याग देना, तिलांजलि देना
- पृष्ठतो गम्——-—-—अनुसरण करना
- पृष्ठतो भू——-—-—पीछे खड़े होना
- पृष्ठतो भू——-—-—उपेक्षित होना
- पृष्ठ्य—वि॰—-—पृष्ठ+यत्—पीठ से संबंध रखने वाला
- पृष्ठ्यः—पुं॰—-—पृष्ठ+यत्—लट्टू घोड़ा
- पृष्णिः—स्त्री॰—-— =पृश्नि पृषो॰—एडी
- पृ—जुहो॰, क्रया॰-पर॰ <पिपर्ति>, <पृणाति>, <पूर्ण>-कर्म॰ पूर्यते, प्रेर॰ <पूरयति>, <पूरयते>, इच्छा॰ <पिपरिषति>, पिपरीषति>, <पुपूर्षति>—-—-—भरना, भर देना, पूरा करना
- पृ—जुहो॰, क्रया॰-पर॰ <पिपर्ति>, <पृणाति>, <पूर्ण>-कर्म॰ पूर्यते, प्रेर॰ <पूरयति>, <पूरयते>, इच्छा॰ <पिपरिषति>, पिपरीषति>, <पुपूर्षति>—-—-—पूरा करना, पूरी करना, तृप्त करना
- पृ—जुहो॰, क्रया॰-पर॰ <पिपर्ति>, <पृणाति>, <पूर्ण>-कर्म॰ पूर्यते, प्रेर॰ <पूरयति>, <पूरयते>, इच्छा॰ <पिपरिषति>, पिपरीषति>, <पुपूर्षति>—-—-—हवा भरना, बजाना
- पृ—जुहो॰, क्रया॰-पर॰ <पिपर्ति>, <पृणाति>, <पूर्ण>-कर्म॰ पूर्यते, प्रेर॰ <पूरयति>, <पूरयते>, इच्छा॰ <पिपरिषति>, पिपरीषति>, <पुपूर्षति>—-—-—संतुष्ट करना, थकावट दूर करना, प्रसन्न करना
- पृ—जुहो॰, क्रया॰-पर॰ <पिपर्ति>, <पृणाति>, <पूर्ण>-कर्म॰ पूर्यते, प्रेर॰ <पूरयति>, <पूरयते>, इच्छा॰ <पिपरिषति>, पिपरीषति>, <पुपूर्षति>—-—-—पालना, परवरिश करना, पुष्ट करना, पालनपोषण करना, पालन करना
- पेचकः—पुं॰—-—पच्+वुन्, इत्वम्—उल्लू
- पेचकः—पुं॰—-—पच्+वुन्, इत्वम्—हाथी की पूँछ की जड़
- पेचकः—पुं॰—-—पच्+वुन्, इत्वम्—पलंग, शय्या
- पेचकः—पुं॰—-—पच्+वुन्, इत्वम्—बादल
- पेचकः—पुं॰—-—पच्+वुन्, इत्वम्—जूँ
- पेत्रकिन्—पुं॰—-—पेचक+इनि—हाथी
- पेचिलः—पुं॰—-—पच्+इलच् इत्वम्—हाथी
- पेंजूषः—पुं॰—-—-—कान का मैल, घूघ
- पेटः—पुं॰—-—पिट्+अच्—थैला, टोकरी
- पेटः—पुं॰—-—पिट्+अच्—पेटी, संदूक
- पेटः—पुं॰—-—पिट्+अच्—खुला हाथ जिसकी अंगुलियाँ फैलाई हुई हों
- पेटम्—नपुं॰—-—पिट्+अच्—थैला, टोकरी
- पेटम्—नपुं॰—-—पिट्+अच्—पेटी, संदूक
- पेटकः—पुं॰—-—पेट+कन्—पेटी, संदूक, थैला
- पेटकः—पुं॰—-—पेट+कन्—समुच्चय, गठरी
- पेटकम्—नपुं॰—-—पेट+कन्—पेटी, संदूक, थैला
- पेटकम्—नपुं॰—-—पेट+कन्—समुच्चय, गठरी
- पेटाकः—पुं॰—-— =पेटकः, पृषो॰—थैला, टोकरी, संदूक
- पेटिका—स्त्री॰—-—पिट्+ण्वुल्+टाप्, इत्वम्—छोटा थैला, टोकरी
- पेटी—स्त्री॰—-—पेट+ङीष्—छोटा थैला, टोकरी
- पेडा—स्त्री॰—-— =पेट, पृषो॰ —बड़ा थैला
- पेय—वि॰—-—पा+ण्यत्—पीने के योग्य, चढ़ा जाने के लायक
- पेय—वि॰—-—पा+ण्यत्—स्वादिष्ट
- पेयम्—नपुं॰—-—पा+ण्यत्—पानीय, मद्य या शर्बत आदि या भात का मांड, चावलों की लपसी
- पेयुः—पुं॰—-—-—समुद्र
- पेयुः—पुं॰—-—-—अग्नि
- पेयुः—पुं॰—-—-—सूर्य
- पेयूषः—पुं॰—-—पीय्+ऊषन्, बा॰ गुणः—अमृत
- पेयूषः—पुं॰—-—पीय्+ऊषन्, बा॰ गुणः—उस गाय का दूध जिसे ब्याये अभी एक सप्ताह से अधिक नहीं हुआ
- पेयूषः—पुं॰—-—पीय्+ऊषन्, बा॰ गुणः—ताजा घी
- पेयूषम्—नपुं॰—-—पीय्+ऊषन्, बा॰ गुणः—अमृत
- पेयूषम्—नपुं॰—-—पीय्+ऊषन्, बा॰ गुणः—उस गाय का दूध जिसे ब्याये अभी एक सप्ताह से अधिक नहीं हुआ
- पेयूषम्—नपुं॰—-—पीय्+ऊषन्, बा॰ गुणः—ताजा घी
- पेरा—स्त्री॰—-—-—एक प्रकार का वाद्ययंत्र
- पेल्—भ्वा॰ पर॰, चुरा॰ उभ॰ <पेलति>, <पेलयति>, <पेलयते>—-—-—जाना, चलना-फिरना
- पेल्—भ्वा॰ पर॰, चुरा॰ उभ॰ <पेलति>, <पेलयति>, <पेलयते>—-—-—हिलना, काँपना
- पेलम्—नपुं॰—-—पेल्+अच्—अण्डकोष
- पेलकः—पुं॰—-—पेल्_कन्—अण्डकोष
- पेलव—वि॰—-—पेल+वा+क—सुकुमार, सुकोमल, मृदु, मुलायम
- पेलव—वि॰—-—पेल+वा+क—दुर्बल, पतला, क्षीण
- पेलिः—पुं॰—-—पेल्+इन्—घोड़ा
- पेलिन्—पुं॰—-—पेल्+इनि—घोड़ा
- पेशल—वि॰—-—पिश्+अलच्—मृदु, मुलायम्, सुकुमार
- पेशल—वि॰—-—पिश्+अलच्—दुबला-पतला, क्षीण
- पेशल—वि॰—-—पिश्+अलच्—मनोहर, सुन्दर, लावण्ययुक्त, अच्छा
- पेशल—वि॰—-—पिश्+अलच्—विशेषज्ञ, चतुर, कुशल
- पेशल—वि॰—-—पिश्+अलच्—चालाक, छली
- पेषल—वि॰—-—पिष्+अलच्—मृदु, मुलायम्, सुकुमार
- पेषल—वि॰—-—पिष्+अलच्—दुबला-पतला, क्षीण
- पेषल—वि॰—-—पिष्+अलच्—मनोहर, सुन्दर, लावण्ययुक्त, अच्छा
- पेषल—वि॰—-—पिष्+अलच्—विशेषज्ञ, चतुर, कुशल
- पेषल—वि॰—-—पिष्+अलच्—चालाक, छली
- पेसल—वि॰—-—पिस्+अलच्—मृदु, मुलायम्, सुकुमार
- पेसल—वि॰—-—पिस्+अलच्—दुबला-पतला, क्षीण
- पेसल—वि॰—-—पिस्+अलच्—मनोहर, सुन्दर, लावण्ययुक्त, अच्छा
- पेसल—वि॰—-—पिस्+अलच्—विशेषज्ञ, चतुर, कुशल
- पेसल—वि॰—-—पिस्+अलच्—चालाक, छली
- पेशिः—पुं॰—-—पिश्+इन्—मांस का पिंड
- पेशिः—पुं॰—-—पिश्+इन्—मांस राशि
- पेशिः—पुं॰—-—पिश्+इन्—अंडा
- पेशिः—पुं॰—-—पिश्+इन्—पुट्ठा
- पेशिः—पुं॰—-—पिश्+इन्—गर्भाधान के पश्चात् शीघ्र बाद का कच्चा गर्भ-पिण्ड
- पेशिः—पुं॰—-—पिश्+इन्—खिलने के लिए तैयार कली
- पेशिः—पुं॰—-—पिश्+इन्—इन्द्र का वज्र
- पेशिः—पुं॰—-—पिश्+इन्—एक प्रकार का वाद्ययंत्र
- पेशी—स्त्री॰—-—पेशि+ङीष्—मांस का पिंड
- पेशी—स्त्री॰—-—पेशि+ङीष्—मांस राशि
- पेशी—स्त्री॰—-—पेशि+ङीष्—अंडा
- पेशी—स्त्री॰—-—पेशि+ङीष्—पुट्ठा
- पेशी—स्त्री॰—-—पेशि+ङीष्—गर्भाधान के पश्चात् शीघ्र बाद का कच्चा गर्भ-पिण्ड
- पेशी—स्त्री॰—-—पेशि+ङीष्—खिलने के लिए तैयार कली
- पेशी—स्त्री॰—-—पेशि+ङीष्—इन्द्र का वज्र
- पेशी—स्त्री॰—-—पेशि+ङीष्—एक प्रकार का वाद्ययंत्र
- पेशिकोशः—पुं॰—पेशिः-कोशः—-—पक्षी का अंडा
- पेशिकोषः—पुं॰—पेशिः-कोषः—-—पक्षी का अंडा
- पेशीकोशः—पुं॰—पेशी-कोशः—-—पक्षी का अंडा
- पेशीकोषः—पुं॰—पेशी-कोषः—-—पक्षी का अंडा
- पेषः—पुं॰—-—पिष्+घञ्—पीसना, चूरा करना, कुचलना
- पेषणम्—नपुं॰—-—पिष्+ल्युट्—चूर्ण बनाना, पीसना
- पेषणम्—नपुं॰—-—पिष्+ल्युट्—खलिहान का वह स्थान जहाँ अनाज की बालों पर दायँ चलाई जाती है
- पेषणम्—नपुं॰—-—पिष्+ल्युट्—सिल और लोढी, पीसने का कोई भी उपकरण
- पेषणिः—स्त्री॰—-—पिष्+अनि—चक्की, सिल, खरल
- पेषणी—स्त्री॰—-—पेषणि+ङीष्—चक्की, सिल, खरल
- पेषाकः—स्त्री॰—-—पेष्+आ+कन्—चक्की, सिल, खरल
- पेस्वर—वि॰—-—पेस्+वरच्—जाने वाला, घूमने वाला
- पेस्वर—वि॰—-—पेस्+वरच्—नाशकारी
- पै—भ्वा॰ पर॰ <पायति>—-—-—सूखना, मुरझाना
- पैगिः—पुं॰—-—पिंग+इञ्—यास्क का पैतृक नाम
- पैंजूषः—पुं॰—-—पिंजूष+अण्—कान
- पैठर—वि॰—-—पिठर+अण्—किसी पात्र में उबाला हुआ
- पैठीनसिः—पुं॰—-—-—एक प्राचीन ऋषि जो एक धर्मशास्त्र का प्रणेता है
- पैंडिक्यम्—नपुं॰—-—पिंड+ठन्+ष्यञ्—भिक्षा पर जीवन निर्वाह करना, भिक्षा वृत्ति
- पैंडिन्यम्—नपुं॰—-—पिंड+इन्+ष्यञ्—भिक्षा पर जीवन निर्वाह करना, भिक्षा वृत्ति
- पैतामह—वि॰—-—पितामह+अण्—दादा या पितामह से संबंध रखने वाला
- पैतामह—वि॰—-—पितामह+अण्—उत्तराधिकार में पितामह से प्राप्त
- पैतामह—वि॰—-—पितामह+अण्—ब्रह्मा से गृहीत, ब्रह्मा से अधिष्ठित, या ब्रह्मा से सम्बन्ध रखने वाला
- पैतामहाः—पुं॰, ब॰ व॰—-—पितामह+अण्—पूर्वपुरखा, बाप दादा
- पैतामहिक—वि॰—-—पितामह+ठक्—पितामह से सम्बन्ध रखने वाला
- पैतृक—वि॰—-—पितृ+ठञ्—पिता से सम्बन्ध रखने वाला
- पैतृक—वि॰—-—पितृ+ठञ्—पिता से प्राप्त या आगत, पुरखाओं से संबंध, पिता की परंपरा से प्राप्त
- पैतृक—वि॰—-—पितृ+ठञ्—पितरोंके लिए पुनीत
- पैतृकम्—नपुं॰—-—-—मृत पुर्वजों या पितरों के सम्मान में अनुष्ठित श्राद्ध
- पैतृमत्यः—पुं॰—-—पितृमती+ण्य—अविवाहिता स्त्री का पुत्र
- पैतृमत्यः—पुं॰—-—पितृमती+ण्य—किसी प्रसिद्ध पुरुष का पुत्र
- पैतृष्वसेयः—पुं॰—-—पितृष्वसृ+ढक्, छण् वा—फूफी, या बुवा का बेटा
- पैतृत्वश्रीयः—पुं॰—-—पितृष्वसृ+ढक्, छण् वा—फूफी, या बुवा का बेटा
- पैत्त—वि॰—-—पित्त+अण्, ठञ् वा—पित्तीय, पित्तसंबंधी
- पैत्तिक—वि॰—-—पित्त+अण्, ठञ् वा—पित्तीय, पित्तसंबंधी
- पैत्र—वि॰—-—पितृ+अण्—पिता या पुरखाओं से संबंध रखने वाला, पैतृक, पुश्तैनी
- पैत्र—वि॰—-—पितृ+अण्—पित्रों के लिए पुनीत
- पैत्रम्—नपुं॰—-—पितृ+अण्—तर्जनी और अंगूठे का मध्यवर्ती हाथ का भाग
- पैलव—वि॰—-—पीलु+अण्—पीलु वृक्ष की लकड़ी से बना हुआ
- पैशल्यम्—नपुं॰—-—पेशल+ष्यञ्—मृदुता, सुशीलता, सुकुमारता
- पैशाच—वि॰—-—पिशाच+अण्—राक्षसी, नारकीय
- पैशाचः—वि॰—-—पिशाच+अण्—हिन्दु-धर्मशास्त्र में वर्णित आठ प्रकार के विवाहों में से आठवाँ या निम्नतम श्रेणी का विवाह
- पैशाचः—वि॰—-—पिशाच+अण्—एक प्रकार का राक्षस या पिशाच
- पैशाची—स्त्री॰—-—पिशाच+अण्+ङीप्—किसी धार्मिक संस्कार के अवसर पर तैयार किया गया नैवेद्य
- पैशाची—स्त्री॰—-—पिशाच+अण्+ङीप्—रात
- पैशाची—स्त्री॰—-—पिशाच+अण्+ङीप्—एक प्रकार की अंडबंड भाषा जो रंगमंच पर पिशाचों द्वारा बोली जाय, प्राकृत भाषा का एक निम्नतम रूप
- पैशाचिक—वि॰—-—पिशाच+ठक्—नारकीय, राक्षसी
- पैशुनम्—नपुं॰—-—पिशुनस्य भावः कर्म वा, पिशुन+ष्यञ् वा—चुगली, बदनामी, इधर की उधर लगाना, कलंक
- पैशुनम्—नपुं॰—-—पिशुनस्य भावः कर्म वा, पिशुन+ष्यञ् वा—बदमाशी, ठग्गी
- पैशुनम्—नपुं॰—-—पिशुनस्य भावः कर्म वा, पिशुन+ष्यञ् वा—दुष्टता, दुर्भावना
- पैशुन्यम्—नपुं॰—-—पिशुनस्य भावः कर्म वा, पिशुन+ष्यञ् वा—चुगली, बदनामी, इधर की उधर लगाना, कलंक
- पैशुन्यम्—नपुं॰—-—पिशुनस्य भावः कर्म वा, पिशुन+ष्यञ् वा—बदमाशी, ठग्गी
- पैशुन्यम्—नपुं॰—-—पिशुनस्य भावः कर्म वा, पिशुन+ष्यञ् वा—दुष्टता, दुर्भावना
- पैष्ट—वि॰—-—पिष्ट+अण्—आटे का पीठी का बना हुआ
- पैष्टिक—वि॰—-—पिष्ट+ठञ्—आटे का पीठी का बना हुआ
- पैष्टिकम्—नपुं॰—-—-—कचौड़ियों का ढेर
- पैष्टिकम्—नपुं॰—-—-—अनाज से खींची हुई मदिरा
- पैष्टी—स्त्री॰—-—पैष्ट+ङीष्—अनाज को सड़ाकर उससे तैयार की हुई मदिरा
- पोगंड—वि॰—-—पौः शुद्धो गंड एकदेशो यस्य-तारा॰—बच्चा, अवयस्क, अपूर्ण विकसित
- पोगंड—वि॰—-—पौः शुद्धो गंड एकदेशो यस्य-तारा॰—कम या विकृत अंग वाला
- पोगंड—वि॰—-—पौः शुद्धो गंड एकदेशो यस्य-तारा॰—विकृत, विरूप
- पोगंडः—पुं॰—-—-—बालक जिसकी आयु ५ से सोलहवर्ष के भीतर की हो
- पोटः—पुं॰—-—पुट+घञ्—घर की नींव
- पोटदलः—पुं॰—पोटः-दलः—-—एक प्रकार का नर-कुल
- पोटदलः—पुं॰—पोटः-दलः—-—कास
- पोटदलः—पुं॰—पोटः-दलः—-—एक प्रकार की मछली
- पोटक—पुं॰—-—पुट्+ण्वुल्—नौकर
- पोटा—स्त्री॰—-—पुट्+अच्+टाप्—मरदानी स्त्री, पुरुषों की भाँति दाढ़ी वाली स्त्री
- पोटा—स्त्री॰—-—पुट्+अच्+टाप्—हिजड़ा, उभयलिंगी
- पोटा—स्त्री॰—-—पुट्+अच्+टाप्—नौकरानी
- पोटी—स्त्री॰—-—पोट+ङीष्—स्थूलकाय मगरमच्छ
- पोट्टलिका—स्त्री॰—-—पोट्टली+कन्+टाप्, ह्रस्व—पोटली, पुलिंदा, गठरी
- पोट्टली—स्त्री॰—-—पोट+ली+ड ङीप्, पृषो॰—पोटली, पुलिंदा, गठरी
- पोतः—पुं॰—-—पू+तन्—किसी भी जानवर का बच्चा, पशु-शावक, बछड़ा, अश्वशावक आदि
- पोतः—पुं॰—-—पू+तन्—दस बरस का हाथी
- पोतः—पुं॰—-—पू+तन्—जहाज, बेड़ा, किश्ती
- पोतः—पुं॰—-—पू+तन्—वस्त्र, कपड़ा
- पोतः—पुं॰—-—पू+तन्—पौधे का अंकुर
- पोतः—पुं॰—-—पू+तन्—घर बनाने की जगह
- पोताच्छादनम्—नपुं॰—पोतः-आच्छादनम्—-—तंबु
- पोताधानम्—नपुं॰—पोतः-आधानम्—-—छोटी-छोटी मछलियों का झुण्ड
- पोतधारिन्—पुं॰—पोतः-धारिन्—-—जहाज का स्वामी
- पोतभङ्गः—पुं॰—पोतः-भङ्गः—-—जहाज का टूट जाना
- पोतरक्षः—पुं॰—पोतः-रक्षः—-—किश्ती या नाव का चप्पू या डांड
- पोतवणिज्—पुं॰—पोतः-वणिज्—-—व्यापारी जो समुद्र से आ जाकर व्यापार करे
- पोतवाहः—पुं॰—पोतः-वाहः—-—खिवैया, नाविक
- पोतकः—पुं॰—-—पोत+कन्—पशुशावक
- पोतकः—पुं॰—-—पोत+कन्—छोटा पौधा
- पोतकः—पुं॰—-—पोत+कन्—घर बनाने के निमित्त भूखण्ड
- पोतासः—पुं॰—-—पोत+अस्+अच्—एक प्रकार का कपूर
- पोतृ—पुं॰—-—पू+तृन्—यज्ञ में कार्य कराने वाले सोलह ऋत्विजों में से एक
- पोत्या—स्त्री॰—-—पोत+य+टाप्—नौकाओं का बेड़ा
- पोत्रम्—नपुं॰—-—पू+ष्ट्रन्—सूअर की थूथन
- पोत्रम्—नपुं॰—-—पू+ष्ट्रन्—नौका, जहाज
- पोत्रम्—नपुं॰—-—पू+ष्ट्रन्—हल का फलका
- पोत्रम्—नपुं॰—-—पू+ष्ट्रन्—बज्र
- पोत्रम्—नपुं॰—-—पू+ष्ट्रन्—वस्त्र
- पोत्रम्—नपुं॰—-—पू+ष्ट्रन्—पोतृ का पद
- पोत्रायुधः—पुं॰—पोत्रम्-आयुधः—-—सूअर, वराह
- पोत्रिन्—पुं॰—-—पोत्र+इनि—सूअर, वराह
- पोलः—पुं॰—-—पुल्+ण—ढेर
- पोलः—पुं॰—-—पुल्+ण—राशि, विस्तार
- पोलिका—स्त्री॰—-—पोली+कन्+टाप्, ह्रस्वः—एक प्रकार की पूरी
- पोली—स्त्री॰—-—पोल+ङीप्—एक प्रकार की पूरी
- पोलिन्दः—पुं॰—-—पोतस्य अलिन्द इव-पृषो॰—जहाज का मस्तूल
- पोषः—पुं॰—-—पुष्+घञ्—पोषण, संपालन, संधारण
- पोषः—पुं॰—-—पुष्+घञ्—पुष्टि, वृद्धि, संवर्धन, प्रगति
- पोषः—पुं॰—-—पुष्+घञ्—समृद्धि, प्राचुर्य, बाहुल्य
- पोषणम्—नपुं॰—-—पुष्+णिच्+ल्युट्—पोसना, दूध पिलाना, पालना, संधारण करना
- पोषयित्नुः—पुं॰—-—पुष्+णिच+इत्वुच्—कोयल
- पोषितृ—वि॰—-—पुष्+णीच्+तृच्—दूध पिला कर पालने वाला, पालन-पोषण करने वाला
- पोषितृ—पुं॰—-—-—परवरिश करने वाला, दूध पिलाने वाला
- पोषिन्—वि॰—-—पुष्+णिनि, तृच् च—दूध पिलाने वाला, पालन-पोषण करने वाला
- पोष्टृ—वि॰—-—पुष्+णिनि, तृच् च—दूध पिलाने वाला, पालन-पोषण करने वाला
- पोषिन्—पुं॰—-—-—पालक, पोषक, रक्षक
- पोष्टृ—पुं॰—-—-—पालक, पोषक, रक्षक
- पोष्य—वि॰—-—पुष्+ण्यत्—खिलाये जाने के योग्य, पालन-पोषण किये जाने योग्य, संपालनीय
- पोष्य—वि॰—-—पुष्+ण्यत्—सुपालित, फलता-फूलता, समृद्ध
- पोष्यपुत्रः—पुं॰—पोष्य-पुत्रः—-—गोद लोया हुआ पुत्र
- पोष्यसुतः—पुं॰—पोष्य-सुतः—-—गोद लोया हुआ पुत्र
- पोष्यवर्गः—पुं॰—पोष्य-वर्गः—-—ऐसे संबंधियों का समूह जो पालन पोषण तथा रक्षा किये जाने का योग्य हो
- पौंश्चलीय—वि॰—-—पुंश्चली+छण्—वेश्याओं से संबंध रखने वाला
- पौंश्चल्यम्—नपुं॰—-—पुंश्चली+ष्यञ्—वेश्यापन, कुलटापन
- पौंसवनम्—नपुं॰—-—पुंसवन्+अण्—पुत्रोत्पत्ति करने वाला
- पौंसवनम्—नपुं॰—-—पुंसवन्+अण्—सर्व प्रथम पर्रिप्कारात्मक या शुद्धीकरण संबंधी संस्कार, स्त्री के गर्भाधान के प्रथम चिह्न प्रकट होने पर पुत्रोत्पत्ति के उद्देश्य से यह संस्कार किया जाता है
- पौंसवनम्—नपुं॰—-—पुंसवन्+अण्—भ्रूण, गर्भ
- पौंसवनम्—नपुं॰—-—पुंसवन्+अण्—दूध
- पौंस्नः—वि॰—-—पुंस्+स्नञ्—पुरुषोचित
- पौंस्नः—वि॰—-—पुंस्+स्नञ्—मर्दाना, पौरुषेय
- पौंस्नम्—नपुं॰—-—पुंस्+स्नञ्—मर्दानगी, पौरुष
- पौगण्ड—वि॰—-—पोडंग+अण्—बालोचित
- पौगण्डम्—नपुं॰—-—पोडंग+अण्—बचपन, बाल्यावस्था
- पौण्ड्रः—पुं॰—-—पुंड्र+अण्—एक देश का नाम
- पौण्ड्रः—पुं॰—-—पुंड्र+अण्—उस देश का राजा, या निवासी
- पौण्ड्रः—पुं॰—-—पुंड्र+अण्—र्क प्रकार का गन्ना
- पौण्ड्रः—पुं॰—-—पुंड्र+अण्—संप्रदायबोधक तिलक
- पौण्ड्रः—पुं॰—-—पुंड्र+अण्—भीम के शंख का नाम
- पौण्ड्रकः—पुं॰—-—पुंड्र+कन्—गन्ने का एक भेद
- पौण्ड्रकः—पुं॰—-—पुंड्र+कन्—वर्णसंकर जाति
- पौण्ड्रकः—पुं॰—-—पुंड्र+ठक्—एक प्रकार का गन्ना पौंडा
- पौन्तवम्—नपुं॰—-— = यौतव पृषो॰—एक तोल
- पौत्तिकम्—नपुं॰—-—पूतिक अण्—एक प्रकार का शहद
- पौत्र—वि॰—-—पुत्रस्यापत्यम्-अण्—पुत्र से प्राप्त या संबद्ध
- पौत्रः—पुं॰—-—-—पोता, पुत्र का बेटा
- पौत्री—स्त्री॰—-—-—पोती, पुत्र की बेटी
- पौत्रिकेयः—पुं॰—-—पुत्रिका+ढक्—लड़की का पुत्र जो अपने नाना का वंश चलाये
- पौनः पुनिकः—वि॰—-—पुनः पुनः+ठञ्, टिलोपः—बार-बार दोहराया गया, बार-बार होने वाला
- पौनः पुन्यम्—नपुं॰—-—पुनः पुनः+ष्यञ्—बार बार आवृत्ति, लागातार दोहराया जाना
- पौनरुक्तम्—नपुं॰—-—पुनरुक्त+न्, ष्यञ् च—आवृत्ति
- पौनरुक्तम्—नपुं॰—-—पुनरुक्त+न्, ष्यञ् च—आधिक्य, अनावश्यकता, निरर्थकता
- पौनरुक्त्यम्—नपुं॰—-—पुनरुक्त+न्, ष्यञ् च—आवृत्ति
- पौनरुक्त्यम्—नपुं॰—-—पुनरुक्त+न्, ष्यञ् च—आधिक्य, अनावश्यकता, निरर्थकता
- पौनर्भव—वि॰—-—पुनर्भू+अञ्—जिसने दूसरे पति से विवाह कर लिया है ऐसी विधवा से संबंध रखने वाला
- पौनर्भव—वि॰—-—पुनर्भू+अञ्—दोहराया हुआ
- पौनर्भवः—पुं॰—-—पुनर्भू+अञ्—पुनर्विवाहिता विधव का पुत्र, प्राचीन हिन्दु-धर्मशास्त्र में स्वीकृत बारह पुत्रों में से एक
- पौनर्भवः—पुं॰—-—-—स्त्री का दूसरा पति
- पौर —वि॰—-—पुर+अण्—किसी नगर या शहर से संबंध रखने वाला
- पौरः—पुं॰—-—पुर+अण्—शहरी, नागरिक
- पौराङ्गना—स्त्री॰—पौर-अङ्गना—-—नगर में रहने वाली स्त्री
- पौरयोषित—स्त्री॰—पौर- योषित—-—नगर में रहने वाली स्त्री
- पौरस्त्री—स्त्री॰—पौर- स्त्री—-—नगर में रहने वाली स्त्री
- पौरजानपद—वि॰—पौर- जानपद—-—शहर या नगर से संबंध रखने वाला
- पौरदाः —पुं॰—पौर-दाः —-—नागरिक और ग्रामीण, शहरी और देहाती
- पौरवृद्धः—पुं॰—पौर- वृद्धः—-—प्रमुख नागरिक, उपनगरपाल
- पौरकम्—नपुं॰—-—पौर+कै+क—घर के निकट बगीचा
- पौरकम्—नपुं॰—-—पौर+कै+क—नगर के निकट उद्यान
- पौरंदर—वि॰—-—पुरंदर+अण्—इन्द्र से प्राप्त, इन्द्र संबंधी, इन्द्र के लिए पुनीत
- पौरंदरम्—नपुं॰—-—पुरंदर+अण्—ज्येष्ठा नक्षत्र
- पौरव—वि॰—-—पुरु+अण्—पुरु के वंश में उत्पन्न
- पौरवः—पुं॰—-—पुरु+अण्—पुरु की सन्तान, पुरुवंशी
- पौरवः—पुं॰—-—पुरु+अण्—भारत के उत्तर में स्थित एक देश तथा उसके नागरिक
- पौरवः—पुं॰—-—पुरु+अण्—उस प्रदेश का निवासी या राजा
- पौरवीय—वि॰—-—पौरव+छ—पौरवों का भक्त
- पौरस्त्य—वि॰—-—पुरस्+त्यक्—पूर्वी
- पौरस्त्य—वि॰—-—पुरस्+त्यक्—प्रमुख
- पौरस्त्य—वि॰—-—पुरस्+त्यक्—पहला, प्रथम, पूर्ववर्ती
- पौराण—वि॰—-—पुरान+अण्—भूत काल का, प्राचीन, अतीत काल का
- पौराण—वि॰—-—पुरान+अण्—प्राक्कालीन
- पौराण—वि॰—-—पुरान+अण्—पुराणों से संबंध रखने वाला या उनसे प्राप्त
- पौराणिक—वि॰—-—पुराण+ठक्—भूत काल का, प्राचीन
- पौराणिक—वि॰—-—पुराण+ठक्—पुराणों से संबद्ध या उनसे प्राप्त
- पौराणिक—वि॰—-—पुराण+ठक्—अतीत काल के उपाख्यानों का ज्ञाता
- पौराणिकः—पुं॰—-—पुराण+ठक्—पुराणों का सुविज्ञ ब्राह्मण, पुराणों का पाठक
- पौराणिकः—पुं॰—-—पुराण+ठक्—पुराणविद्, पौराणिक कथा जानने वाला व्यक्ति
- पौरुष—वि॰—-—पुरुष+अण्—पुरुष संबंधी, मानवी
- पौरुष—वि॰—-—पुरुष+अण्—मर्दाना, पुरुषोचित
- पौरुषः—पुं॰—-—पुरुष+अण्—एक मनुष्य के द्वारा ढोये जाने योग्य बोझा
- पौरुषी—स्त्री॰—-—पुरुष+अण्+ङीष्—स्त्री
- पौरुषम्—नपुं॰—-—पुरुष+अण्—मानवी कृत्य, मनुष्य का काम, चेष्टा, प्रयत्न
- पौरुषम्—नपुं॰—-—पुरुष+अण्—शौर्य, विक्रम, वीरता, मर्दानगी, साहस
- पौरुषम्—नपुं॰—-—पुरुष+अण्—वीर्य, शुक्र
- पौरुषम्—नपुं॰—-—पुरुष+अण्—पुरुष की जननेन्द्रिय, लिंग
- पौरुषम्—नपुं॰—-—पुरुष+अण्—मनुष्य की पूरी ऊँचाई, खुली हुई अंगुलियों समेत अपने दोनों हाथ ऊपर उठाकर जितनी ऊँचाई तक मनुष्य पहुँचे
- पौरुषम्—नपुं॰—-—पुरुष+अण्—धूपघड़ी
- पौरुषेय—वि॰—-—पुरुष+ढञ्—मनुष्य से प्राप्त,मनुष्य कृत, मनुष्य द्वारा स्थापित या प्रवर्तित
- पौरुषेय—वि॰—-—पुरुष+ढञ्—मर्दाना, पुरुषोचित्त
- पौरुषेय—वि॰—-—पुरुष+ढञ्—आध्यात्मिक
- पौरुषेयः—पुं॰—-—पुरुष+ढञ्—मनुष्यवध
- पौरुषेयः—पुं॰—-—पुरुष+ढञ्—मनुष्यों की भीड़
- पौरुषेयः—पुं॰—-—पुरुष+ढञ्—रोजनदारी पर काम करने वाला श्रमिक, कमेरा
- पौरुषेयः—पुं॰—-—पुरुष+ढञ्—मानवी काम, मनुष्य का कार्य
- पौरोगवः—पुं॰—-—पुरोऽग्रेगौः नेत्रं यस्य पुरोगु+अण्—राज भवन का अधीक्षक, विशेषतः राजा की रसोई का
- पौरोभाग्यम्—नपुं॰—-—पुरोभागिन्+ष्यञ्, अन्य लोपः, वृद्धिः—छिद्रान्वेषण, दोषदर्शन
- पौरोभाग्यम्—नपुं॰—-—पुरोभागिन्+ष्यञ्, अन्य लोपः, वृद्धिः—दुर्भावना, ईर्ष्या, डाह
- पौरोहित्यम्—नपुं॰—-—पुरोहित+ष्यञ्—कुलपुरोहित का पद, पुरोहिताई
- पौर्णमास—वि॰—-—पूर्णमासी+अण्—पूर्णिमा से संबंध रखने वाला
- पौर्णमासः—पुं॰—-—पूर्णमासी+अण्—अग्निहोत्री द्वारा पूर्णिमा के दिन अनुष्ठित संस्कार
- पौर्णमासी—स्त्री॰—-—पौर्णमास+ङीप्—पूर्णिमा, पूर्णमासी
- पौर्णमी—स्त्री॰—-—पूर्ण+मा+क+अण्+ङीप्—पूर्णिमा, पूर्णमासी
- पौर्णमास्यम्—नपुं॰—-—पौर्णमासी+यत् बा॰—पूर्णिमा के दिन किया जाने वाला यज्ञ
- पौर्णिमा—स्त्री॰—-—पूर्णमा+अण्+टाप्—पूर्णमासी का दिन
- पौर्तिक—वि॰—-—पूर्त+ठक्—पुण्यप्रद धर्मार्थ कार्यों से संबंध रखने वाला
- पौर्व—वि॰—-—पूर्व+अण्—भूतकाल संबंधी
- पौर्व—वि॰—-—पूर्व+अण्—पूर्व दिशा से संबंध रखने वाला, पौर्वी
- पौर्वदेहिक—वि॰—-—पूर्वदेह+ठक्—पूर्वजन्म संबंधी, पहले जन्म में किया हुआ, पूर्वजन्म कृत
- पौर्वदैहिक—वि॰—-—पूर्वदेह+ठक्—पूर्वजन्म संबंधी, पहले जन्म में किया हुआ, पूर्वजन्म कृत
- पौर्वपदिक—वि॰—-—पूर्वपद+ठञ्—समास के प्रथम पद से संबंध रखने वाला
- पौर्वापर्यम्—नपुं॰—-—पूर्वापरि+ष्यञ्—पहले का और बाद का संबंध, पूर्ववर्ती और पश्चवर्ती संबंध
- पौर्वापर्यम्—नपुं॰—-—पूर्वापरि+ष्यञ्—उचित क्रम, अनुक्रम, सातत्य
- पौर्वाह्णिकम्—वि॰—-—पूर्वाह्ण+ठञ्—दोपहर के पूर्वकाल से संबंध रखने वाला, मध्याह्न पूर्व संबंधी
- पौर्विक—वि॰—-—पूर्व+ठञ्—पहला, पूर्वकालीन, पहले का
- पौर्विक—वि॰—-—पूर्व+ठञ्—पैतृक
- पौर्विक—वि॰—-—पूर्व+ठञ्—पुराना, प्राचीन
- पौलस्त्यः—पुं॰—-—पुल्स्तेः अपत्यम्-पुलस्ति+यञ्—रावण का विशेषण
- पौलस्त्यः—पुं॰—-—पुल्स्तेः अपत्यम्-पुलस्ति+यञ्—कुबेर का विशेषण
- पौलस्त्यः—पुं॰—-—पुल्स्तेः अपत्यम्-पुलस्ति+यञ्—विभीषण का विशेषण
- पौलस्त्यः—पुं॰—-—पुल्स्तेः अपत्यम्-पुलस्ति+यञ्—चन्द्रमा
- पौलिः—पुं॰, स्त्री॰—-—पुल्+ण, पोलेन निवृत्तः-पोल+इञ्, पौलि+ङीप्—एक प्रकार की पूरी
- पौली—स्त्री॰—-—पुल्+ण, पोलेन निवृत्तः-पोल+इञ्, पौलि+ङीप्—एक प्रकार की पूरी
- पौलोमी—स्त्री॰—-—पुलोमन्+अण्, अनो लोपः, पौलोम+ङीप्—शची, पुलोमा को पुत्री, इन्द्र की पत्नी
- पौलोमीसम्भवः—पुं॰—पौलोमी-सम्भवः—-—जयन्त का विशेषण
- पौषः—पुं॰—-—पौषी+अण्—एक चांद्रमास का नाम जिसमें चन्द्रमा पुष्य नक्षत्र में रहता है
- पौषी—स्त्री॰—-—पौषी+अण्+ङीप्—पौष मास में आने वाली पूर्णिमा
- पौष्कर—वि॰—-—पुष्कर+अण्—नील कमल से संबंध रखने वाला
- पौष्करक—वि॰—-—पुष्कर+अण्, पौष्कर+कन्—नील कमल से संबंध रखने वाला
- पौष्करिणी—स्त्री॰—-—पुष्कराणां समूहः-पौष्कर+इनि+ङीप्—कमलों से भरा हुआ सरोवर, सरोवर
- पौष्कलः—पुं॰—-—पुष्कल+अण्—अनाज का एक भेद
- पौष्कल्यम्—नपुं॰—-—पुष्कल+ष्यञ्—परिपक्वता, पूर्ण विकास, पूरी वृद्धि
- पौष्कल्यम्—नपुं॰—-—पुष्कल+ष्यञ्—बाहुल्य
- पौष्टिक—वि॰—-—पुष्टि+ठञ्—वृद्धि करने वाला, कल्यान कारक
- पौष्टिक—वि॰—-—पुष्टि+ठञ्—पोषण करने वाला, पोषक, पुआष्टिकारक, बलवर्धक
- पौष्णम्—नपुं॰—-—पूषादेवता अस्य-पूषन्+अण्, उपधालोपः—रेवती नक्षत्र
- पौष्प—वि॰—-—पुष्प+अण्—फूल संबंधी या फुलों से प्राप्त, पुष्पमय, पुष्पित
- पौष्पी—स्त्री॰—-—पुष्प+अण्+ङीप्—पटलिपुत्र नगर, पटना
- पौष्पी—स्त्री॰—-—पुष्प+अण्+ङीप्—शराब