विक्षनरी:संस्कृत-हिन्दी शब्दकोश/प्
दिखावट
- मूलशब्द—व्याकरण—संधिरहित मूलशब्द—व्युत्पत्ति—हिन्दी अर्थ
- प्याट्—अव्य॰—-—प्याय्+डाटि (बा॰)—हो, अहो आदि अव्यय जो बुलाने या पुकारने के लिए व्यवहृत होते हैं
- प्याय्—भ्वा॰ आ॰ <प्यायते>, <प्यान>, <पीन>—-—-—फूलना, मोटा होना, बढ़ना
- प्यायनम्—नपुं॰—-—प्याय्+ल्युट्—वर्धन, वृद्धि
- प्यायित—वि॰—-—प्याय्+क्त—वर्धित, वृद्धि को प्राप्त
- प्यायित—वि॰—-—प्याय्+क्त—जो मोटा हो गया हो
- प्यायित—वि॰—-—प्याय्+क्त—विश्रान्त, सशक्त किया हुआ
- प्यै—भ्वा॰ आ॰<प्यायते>, <पीन>—-—-—बढ़ना, वृद्धि को प्राप्त होना, मोटा होना
- प्यै—भ्वा॰ आ॰<प्यायते>, <पीन>—-—-—पुष्कल होना, समृद्ध
- प्यै—प्रेर॰ <प्याययति>, <प्याययते>—-—-—बढ़ाना
- प्यै—प्रेर॰ <प्याययति>, <प्याययते>—-—-—बड़ा करना, मोटा बनाना, सुखी करना
- प्यै—प्रेर॰ <प्याययति>, <प्याययते>—-—-—तृप्त करना, इच्छानुसार संतुष्ट करना
- प्र—अव्य॰—-—प्रथ्+ड—धातुओं के पूर्व उपसर्ग के रूप में लग कर इसका अर्थ है-आगे, आगे का, सामने, आगे की ओर, पहले, दूर यथा प्रगम्, प्रस्था, प्रचुर, प्रया आदि
- प्र—अव्य॰—-—प्रथ्+ड—विशेषणों के पूर्व लग कर इसका अर्थ है-बहुत, बहुत अधिक, अत्यंत आदि, प्रकृष्ट, प्रमत्त आदि,
- प्र—अव्य॰—-—प्रथ्+ड—आरंभ, उपक्रम यथा प्रयाणम्, प्रस्थानम् प्राह्ण
- प्र—अव्य॰—-—प्रथ्+ड—लम्बाई यथा प्रवालमूषिक
- प्र—अव्य॰—-—प्रथ्+ड—शक्ति यथा प्रभु
- प्र—अव्य॰—-—प्रथ्+ड—तीव्रता, आधिक्य यथा प्रवाद, प्रकर्ष, प्रच्छाय, प्रगुण
- प्र—अव्य॰—-—प्रथ्+ड—स्रोत या मूल यथा प्रभव, प्रपौत्र
- प्र—अव्य॰—-—प्रथ्+ड—पूर्ति, पूर्णता, तृप्ति यथा प्रभुक्तमन्नम्
- प्र—अव्य॰—-—प्रथ्+ड—अभाव, वियोग, अनस्तित्व यथा प्रोषिता, प्रपर्ण वृक्षः
- प्र—अव्य॰—-—प्रथ्+ड—अतिरिक्त यथा प्रज्ञु
- प्र—अव्य॰—-—प्रथ्+ड—श्रेष्ठता यथा प्राचार्यः
- प्र—अव्य॰—-—प्रथ्+ड—पवित्रता यथा प्रसन्नं जलम्
- प्र—अव्य॰—-—प्रथ्+ड—अभिलाषा यथा प्रार्थना
- प्र—अव्य॰—-—प्रथ्+ड—विराम यथा प्रशम
- प्र—अव्य॰—-—प्रथ्+ड—सम्मान आदर यथा प्रांजलिः
- प्र—अव्य॰—-—प्रथ्+ड—प्रमुखता यथा प्रणस, प्रवाल
- प्रकट—वि॰—-—प्र+कट्+अच्—स्पष्ट, साफ, जाहिर, प्रतीयमान, प्रत्यक्ष
- प्रकट—वि॰—-—प्र+कट्+अच्—बेपरदा, खुला हुआ
- प्रकट—वि॰—-—प्र+कट्+अच्—दृश्यमान
- प्रकटम्—अव्य॰—-—-—साफ तौर से, प्रत्यक्षतः, सार्वजनिक रूप से, स्पष्ट रूप से
- प्रकटप्रीतिवर्धः—पुं॰—प्रकट-प्रीतिवर्धः—-—शिव का विशेषण
- प्रकटनम्—नपुं॰—-—प्र+कट्+ल्युट्—व्यक्त होने की क्रिया, खोलना, उघाड़ देना
- प्रकटित—भू॰ क॰ कृ॰—-—प्रकट्+क्त—व्यक्त, प्रदर्शित, अनावृत
- प्रकटित—भू॰ क॰ कृ॰—-—प्रकट्+क्त—सार्वजनिक रूप से प्रदर्शित
- प्रकटित—भू॰ क॰ कृ॰—-—प्रकट्+क्त—जाहिर
- प्रकंपः—पुं॰—-—प्र+कम्प्+घञ्—कांपना, हिलाना, थरथराना, प्रचंड थरथरी या धक्के
- प्रकम्पन—वि॰—-—प्र+कम्प्+ल्युट्—हिलाने वाला
- प्रकम्पनः—पुं॰—-—-—हवा, प्रचंड वायु, आंधी का झोंका
- प्रकम्पनः—पुं॰—-—-—नरक का नाम
- प्रकम्पनम्—नपुं॰—-—-—अत्यधिक या प्रचंड कंपकंपी, जोरदार थरथरी
- प्रकरः—पुं॰—-—प्र+कृ(कॄ)+अप्—ढेर, समुच्चय, मात्रा, संग्रह
- प्रकरः—पुं॰—-—प्र+कृ(कॄ)+अप्—गुलदस्ता, पुष्पचय
- प्रकरः—पुं॰—-—प्र+कृ(कॄ)+अप्—मदद, सहायता, मित्रता
- प्रकरः—पुं॰—-—प्र+कृ(कॄ)+अप्—रिबाज, प्रचलन
- प्रकरः—पुं॰—-—प्र+कृ(कॄ)+अप्—आदर
- प्रकरः—पुं॰—-—प्र+कृ(कॄ)+अप्—सतीत्वहरण, अपहरण
- प्रकरम्—नपुं॰—-—-—अगर की लकड़ी
- प्रकरणम्—नपुं॰—-—प्र+कृ+ल्युट्—निरूपण करना, व्याख्या करना, विचारविमर्श करना
- प्रकरणम्—नपुं॰—-—प्र+कृ+ल्युट्—विषय, प्रसंग, विभाग, विषय
- प्रकरणम्—नपुं॰—-—प्र+कृ+ल्युट्—अनुभाग, पाठ, परिच्छेद आदि किसी कृति का छोटा प्रभाग
- प्रकरणम्—नपुं॰—-—प्र+कृ+ल्युट्—मौका, अवसर
- प्रकरणम्—नपुं॰—-—प्र+कृ+ल्युट्—मामला, बात
- प्रकरणम्—नपुं॰—-—प्र+कृ+ल्युट्—प्रस्तावना, आमुख
- प्रकरणम्—नपुं॰—-—प्र+कृ+ल्युट्—नाटक का एक भेद जिसकी कथावस्तु कृत्रिम हो
- प्रकरणिका—स्त्री॰—-—प्रकरणि+कन्+टाप्, ह्रस्वः—एक नाटक जो प्रकरण के लक्षणों से ही युक्त हो
- प्रकरणी—स्त्री॰—-—प्रकरण+ङीप्—एक नाटक जो प्रकरण के लक्षणों से ही युक्त हो
- प्रकरिका—स्त्री॰—-—प्रकरी+कन्+टाप्, ह्रस्वः—एक प्रकार का विष्कंभ या उपकथा जो नाटक में आगे वाली घटना को बतलाने के लिए सम्मिलित कर दी जाय
- प्रकरी—स्त्री॰—-—प्रकर+ङीष्—एक प्रकार का विष्कंभ या उपकथा जो नाटक में आगे वाली घटना को बतलाने के लिए सम्मिलित कर दी जाय
- प्रकरी—स्त्री॰—-—प्रकर+ङीष्—नटों की पोशाक
- प्रकरी—स्त्री॰—-—प्रकर+ङीष्—रंगस्थली
- प्रकरी—स्त्री॰—-—प्रकर+ङीष्—चौराहा
- प्रकरी—स्त्री॰—-—प्रकर+ङीष्—एक प्रकार का गीत
- प्रकरी—स्त्री॰—-—प्रकर+ङीष्—श्रेष्ठता, प्रमुखता, सर्विपरिता
- प्रकर्षः—पुं॰—-—प्र+कृष्+घञ्—तीव्रता, प्रबलता, आधिक्य
- प्रकर्षः—पुं॰—-—प्र+कृष्+घञ्—सामर्थ्य, शक्ति
- प्रकर्षः—पुं॰—-—प्र+कृष्+घञ्—निरपेक्षता, लम्बाई, विस्तार
- प्रकर्षणम्—नपुं॰—-—प्र+कृष्+ल्युट्—खींचने की क्रिया, आकर्षण
- प्रकर्षणम्—नपुं॰—-—प्र+कृष्+ल्युट्—हल चलाना
- प्रकर्षणम्—नपुं॰—-—प्र+कृष्+ल्युट्—अवधि, लंबाई, विस्तार
- प्रकर्षणम्—नपुं॰—-—प्र+कृष्+ल्युट्—श्रेष्ठता, सर्वोपरिता
- प्रकर्षणम्—नपुं॰—-—प्र+कृष्+ल्युट्—ध्यान हटाना
- प्रकला—स्त्री॰, प्रा॰ स॰—-—-—अत्यन्त सूक्षम अंश
- प्रकल्पना—स्त्री॰—-—प्र+क्लृप्+णिच्+क्त—स्थिर करना, निश्चयन, नियत करना
- प्रकल्पित—भू॰ क॰ कृ॰—-—प्र+क्लृप्+णिच्+क्त—बनाया हुआ, कृत, निर्मित
- प्रकल्पित—भू॰ क॰ कृ॰—-—प्र+क्लृप्+णिच्+क्त—निश्चित किया हुआ, नियत किय हुआ
- प्रकल्पिता—स्त्री॰—-—-—एक प्रकार की पहेली
- प्रकाण्डः—पुं॰, प्रा॰ स॰—-—प्रकृष्टः काण्डः—वृक्ष का तना जड़ से शाखाओं तक
- प्रकाण्डः—पुं॰, प्रा॰ स॰—-—प्रकृष्टः काण्डः—शाखा, किसलय
- प्रकाण्डः—पुं॰, प्रा॰ स॰—-—प्रकृष्टः काण्डः—कोई भी श्रेष्ठ या प्रमुख प्रकार का पदार्थ
- प्रकाण्डः—पुं॰, प्रा॰ स॰—-—प्रकृष्टः काण्डः—क्षत्र
- प्रकाण्डः—पुं॰, प्रा॰ स॰—-—प्रकृष्टः काण्डः—भुजा का ऊपरी भाग
- प्रकाण्डम्—नपुं॰, प्रा॰ स॰—-—प्रकृष्टं काण्डम्—वृक्ष का तना जड़ से शाखाओं तक
- प्रकाण्डम्—नपुं॰, प्रा॰ स॰—-—प्रकृष्टं काण्डम्—शाखा, किसलय
- प्रकाण्डम्—नपुं॰, प्रा॰ स॰—-—प्रकृष्टं काण्डम्—कोई भी श्रेष्ठ या प्रमुख प्रकार का पदार्थ
- प्रकाण्डम्—नपुं॰, प्रा॰ स॰—-—प्रकृष्टं काण्डम्—क्षत्र
- प्रकाण्डम्—नपुं॰, प्रा॰ स॰—-—प्रकृष्टं काण्डम्—भुजा का ऊपरी भाग
- प्रकाण्डकः—पुं॰—-—प्रकाण्ड+कन्—वृक्ष का तना जड़ से शाखाओं तक
- प्रकाण्डकः—पुं॰—-—प्रकाण्ड+कन्—शाखा, किसलय
- प्रकाण्डकः—पुं॰—-—प्रकाण्ड+कन्—कोई भी श्रेष्ठ या प्रमुख प्रकार का पदार्थ
- प्रकाण्डकः—पुं॰—-—प्रकाण्ड+कन्—क्षत्र
- प्रकाण्डकः—पुं॰—-—प्रकाण्ड+कन्—भुजा का ऊपरी भाग
- प्रकाण्डरः—पुं॰—-—प्रकण्ड+रा+क—वृक्ष, पेड़
- प्रकाम—वि॰, प्रा॰ स॰—-—-—श्रृंगारप्रिय
- प्रकाम—वि॰, प्रा॰ स॰—-—-—अत्यन्त, अति, मनभर कर, सानन्द
- प्रकामः—पुं॰—-—-—इच्छा, आनन्स्द, संतोष
- प्रकामम्—अव्य॰—-—-—अत्यधिक, अत्यंत
- प्रकामम्—अव्य॰—-—-—पर्याप्त रूप से, मन भर कर, इच्छानुकूल
- प्रकामम्—अव्य॰—-—-—स्वेच्छापूर्वक, मन से
- प्रकामभुज्—वि॰—प्रकाम-भुज्—-—अघा कर खाने वाला, मन भर कर खाने वाला
- प्रकारः—पुं॰—-—प्र+कृ+घञ्—ढंग, रीति, तरीका, शैली
- प्रकारः—पुं॰—-—प्र+कृ+घञ्—किस्म, जिन्स, भेद, जाति
- प्रकारः—पुं॰—-—प्र+कृ+घञ्—समरूपता
- प्रकारः—पुं॰—-—प्र+कृ+घञ्—विशेषता, विशिष्ट गुण
- प्रकाश—वि॰—-—प्र+काश्+अच्—चमकीला, चमकने वाला, उज्ज्वल
- प्रकाश—वि॰—-—प्र+काश्+अच्—साफ, स्पष्ट, प्रत्यक्ष
- प्रकाश—वि॰—-—प्र+काश्+अच्—विशद, प्रांजल
- प्रकाश—वि॰—-—प्र+काश्+अच्—विख्यात, विश्रुत, प्रसिद्ध, माना हुआ
- प्रकाश—वि॰—-—प्र+काश्+अच्—खुला, सार्वजनिक वृक्षादि काट कर साफ किया हुआ स्थान, खुली जगह
- प्रकाश—वि॰—-—प्र+काश्+अच्—खिला हुआ, विस्तरित
- प्रकाश—वि॰—-—प्र+काश्+अच्—समान दिखाई देने वाला, सदृश, मोलता-जुलता
- प्रकाशः—पुं॰—-—प्र+काश्+अच्—दीप्ति, कान्ति, आभा, उज्ज्वलता
- प्रकाशः—पुं॰—-—प्र+काश्+अच्—प्रकाशन, स्पष्टीकरण, व्याख्या करना
- प्रकाशः—पुं॰—-—प्र+काश्+अच्—धूप
- प्रकाशः—पुं॰—-—प्र+काश्+अच्—प्रदर्शन, स्पष्टीकरण
- प्रकाशः—पुं॰—-—प्र+काश्+अच्—कीर्ति, ख्याति, प्रसिद्ध, यश
- प्रकाशः—पुं॰—-—प्र+काश्+अच्—विस्तार, प्रसार
- प्रकाशः—पुं॰—-—प्र+काश्+अच्—खुली जगह, खुली हवा
- प्रकाशः—पुं॰—-—प्र+काश्+अच्—सुनहरी शीशा
- प्रकाशः—पुं॰—-—प्र+काश्+अच्—अध्याय, परिच्छेद या अनुभाग
- प्रकाशम्—अव्य॰—-—-—कखुले रूप से, सार्वजनिक रूप से
- प्रकाशम्—अव्य॰—-—-—ऊँचे स्वर से, प्रकट होकर
- प्रकाशात्मक—वि॰—प्रकाश-आत्मक—-—चमकीला, उजला
- प्रकाशात्मन्—वि॰—प्रकाश-आत्मन्—-—उज्ज्वल, चमकदार
- प्रकाशात्मन्—पुं॰—प्रकाश-आत्मन्—-—शिव का विशेषण
- प्रकाशात्मन्—पु॰—प्रकाश-आत्मन्—-—सूर्य
- प्रकाशेतर—वि॰—प्रकाश-इतर—-—जो दिखाई न दे, अदृश्य
- प्रकाशक्रयः—पुं॰—प्रकाश-क्रयः—-—खुल्लमखुल्ला खरीदना
- प्रकाशनारी—स्त्री॰—प्रकाश-नारी—-—आआरांगना, रंडी, वेश्या
- प्रकाशक—वि॰—-—प्र+काश्+णिच्+ण्वुल्—प्रकट करने वाला, खोजने वाला, उघाड़्ने वाला, सूचित करने वाला, बतलाने वाला, प्रदर्शित करने वाला
- प्रकाशक—वि॰—-—प्र+काश्+णिच्+ण्वुल्—अभिव्यक्त करने वाला, संकेत करने वाला
- प्रकाशक—वि॰—-—प्र+काश्+णिच्+ण्वुल्—व्याख्या करने व्आला
- प्रकाशक—वि॰—-—प्र+काश्+णिच्+ण्वुल्—उज्ला, चमकीला, उज्ज्वल
- प्रकाशक—वि॰—-—प्र+काश्+णिच्+ण्वुल्—माना हुआ, प्रसिद्ध, विख्यात
- प्रकाशकः—पुं॰—-—प्र+काश्+णिच्+ण्वुल्—सूर्य
- प्रकाशकः—पुं॰—-—प्र+काश्+णिच्+ण्वुल्—खोजी
- प्रकाशकः—पुं॰—-—प्र+काश्+णिच्+ण्वुल्—प्रकाशित करने वाला
- प्रकाशकज्ञातृ—पुं॰—प्रकाशक-ज्ञातृ—-—मुर्गा
- प्रकाशन—वि॰—-—प्र+काश्+णिच्+ल्युट्—रोशनी करने वाला, विख्यात करने वाला
- प्रकाशनम्—नपुं॰—-—प्र+काश्+णिच्+ल्युट्—जतलाना, प्रकट करना, प्रकाश में लाना, उघाड़ना
- प्रकाशनम्—नपुं॰—-—प्र+काश्+णिच्+ल्युट्—प्रदर्शन, स्पष्टीकरण
- प्रकाशनम्—नपुं॰—-—प्र+काश्+णिच्+ल्युट्—रोशनी करना, चमकाना, उजला करना
- प्रकाशनः—पुं॰—-—प्र+काश्+णिच्+ल्युट्—विष्णु
- प्रकाशित—भू॰ क॰ कृ॰—-—प्र+काश्+णिच्+क्त—प्रकट किया गया, स्पष्ट किया गया, प्रदर्शित, प्रकटीकृत
- प्रकाशित—भू॰ क॰ कृ॰—-—प्र+काश्+णिच्+क्त—छापा गया
- प्रकाशित—भू॰ क॰ कृ॰—-—प्र+काश्+णिच्+क्त—रोशन किया गया, चमकाया गया, ज्योतिर्मान किया गया
- प्रकाशित—भू॰ क॰ कृ॰—-—प्र+काश्+णिच्+क्त—जो दिखलाई दे, दृश्य, स्पष्ट, प्रकट
- प्रकाशिन्—वि॰—-—प्रकाश+इनि—साफ, उजला, चमकदारा आदि
- प्रकिरणम्—नपुं॰—-—प्र+कृ+ल्युट्—इधर उधर बिखेरना, छितराना
- प्रकीर्ण—भू॰ क॰ कृ॰—-—प्र+कृ+क्त—इधर उधर बिखरा हुआ, छितराया हुआ, खिंडाया हुआ, तितर बितर किया हुआ
- प्रकीर्ण—भू॰ क॰ कृ॰—-—प्र+कृ+क्त—फैलाया हुआ, प्रकाशित, उद्घोषित
- प्रकीर्ण—भू॰ क॰ कृ॰—-—प्र+कृ+क्त—लहराया हुआ, लहराता हुआ
- प्रकीर्ण—भू॰ क॰ कृ॰—-—प्र+कृ+क्त—विपर्यस्त, शिथिल, अस्तव्यस्त, असंबद्ध
- प्रकीर्ण—भू॰ क॰ कृ॰—-—प्र+कृ+क्त—क्षुब्द्ह, उत्तेजित
- प्रकीर्ण—भू॰ क॰ कृ॰—-—प्र+कृ+क्त—विविध, मिश्रित
- प्रकीर्णम्—नपुं॰—-—-—नाना-संग्रह, फुटकर संग्रह
- प्रकीर्णम्—नपुं॰—-—-—फुटकर नियमों के संग्रह का एक अध्याय
- प्रकीर्णक—वि॰—-—प्रकीर्ण+कन्—इधर उधर बिखरे हुए, छितरे हुए
- प्रकीर्णकः—पुं॰—-—प्रकीर्ण+कन्—चंवर, मोरछल
- प्रकीर्णकः—पुं॰—-—प्रकीर्ण+कन्—घोड़ा
- प्रकीर्णकम्—नपुं॰—-—प्रकीर्ण+कन्—चंवर, मोरछल
- प्रकीर्णकम्—नपुं॰—-—प्रकीर्ण+कन्—नाना संग्रह, फुटकर वस्तुओं का संग्रह
- प्रकीर्णकम्—नपुं॰—-—प्रकीर्ण+कन्—विविध विषयों का अध्याय
- प्रकीर्तनम्—वि॰—-—प्र+कृ+ल्युट्—उद्घोषन, घोषणा
- प्रकीर्तनम्—वि॰—-—प्र+कृ+ल्युट्—प्रशंसा करना, स्तुति करना, श्लाघा करना
- प्रकीर्तिः—स्त्री॰, प्रा॰ स॰—-—-—प्रसिद्धि, प्रशंसा
- प्रकीर्तिः—स्त्री॰, प्रा॰ स॰—-—-—यश, ख्याति
- प्रकीर्तिः—स्त्री॰, प्रा॰ स॰—-—-—घोषणा
- प्रकुंचः—पुं॰—-—प्र+कुञ्च्+घञ्—धारिता का विशेष माप
- प्रकुपित—भू॰ क॰ कृ॰—-—प्र+कुप्+क्त—अतिक्रुद्ध, कोपाविष्ट, रुष्ट
- प्रकुपित—भू॰ क॰ कृ॰—-—प्र+कुप्+क्त—उत्तेजित
- प्रकुलम्—नपुं॰—-—प्र+कुल्+क्त—सुन्सर शरीर, सुडौल काया
- प्रकूष्मांडी—प्रा॰ ब॰—-—ङीष्—दुर्गा का विशेषण
- प्रकृत—भू॰ क॰ कृ॰—-—प्र+कृ+क्त—निशष्पन्न, पूरा किया हुआ
- प्रकृत—भू॰ क॰ कृ॰—-—प्र+कृ+क्त—आरंभ किया हुआ, शुरु किया हुआ
- प्रकृत—भू॰ क॰ कृ॰—-—प्र+कृ+क्त—नियुक्त किया हुअअ, जिसे कार्य भार सँभाला जा चुका
- प्रकृत—भू॰ क॰ कृ॰—-—प्र+कृ+क्त—असली, वास्तविक
- प्रकृत—भू॰ क॰ कृ॰—-—प्र+कृ+क्त—चर्चा का विषय, विचारणीय विषय, प्रस्तुत विषय
- प्रकृत—भू॰ क॰ कृ॰—-—प्र+कृ+क्त—महत्वपूर्ण, मनोरंजक
- प्रकृतम्—नपुं॰—-—प्र+कृ+क्त—मूलविषय, प्रस्तुत विषय,
- प्रकृतार्थ—वि॰—प्रकृत-अर्थ—-—मूल अर्थ को रखने वाला
- प्रकृतार्थः—पुं॰—प्रकृत-अर्थः—-—मूल अर्थ
- प्रकृतिः—स्त्री॰—-—प्र+कृ+क्तिन्—किसी वस्तु की नैसर्गिक स्थिति, माया, जड़जगत्, स्वाभाविक रूप
- प्रकृतिः—स्त्री॰—-—प्र+कृ+क्तिन्—नैसर्गिक स्वभाव, मिजाज, स्वभाव, आदत, रचना, वृत्ति
- प्रकृतिः—स्त्री॰—-—प्र+कृ+क्तिन्—बनावट, रूप, आकृति
- प्रकृतिः—स्त्री॰—-—प्र+कृ+क्तिन्—वंशानुक्रम, वंशपरंपरा
- प्रकृतिः—स्त्री॰—-—प्र+कृ+क्तिन्—मूल, स्रोत, मौलिक या भौतिक कारण, उपादान कारण
- प्रकृतिः—स्त्री॰—-—प्र+कृ+क्तिन्—प्रकृति , भौतिक सृष्टि का मूलस्रोत जिसमें तीन प्रधान गुण सन्निविष्ट है
- प्रकृतिः—स्त्री॰—-—प्र+कृ+क्तिन्—मूलधातु या शब्द जिसमें लकार और कारकों के प्रत्यय लगाए जाते हैं
- प्रकृतिः—स्त्री॰—-—प्र+कृ+क्तिन्—आदर्श, नमूना, मानक
- प्रकृतिः—स्त्री॰—-—प्र+कृ+क्तिन्—स्त्री
- प्रकृतिः—स्त्री॰—-—प्र+कृ+क्तिन्—सृष्टि रचना में परमात्मा की मूर्त इच्छा
- प्रकृतिः—स्त्री॰—-—प्र+कृ+क्तिन्—स्त्री या पुरुष की जनेन्द्रिय, योनि, लिङ्ग
- प्रकृतिः—स्त्री॰—-—प्र+कृ+क्तिन्—माता
- प्रकृतिः—स्त्री॰, ब॰ व॰—-—प्र+कृ+क्तिन्—राजा के मन्त्री, मन्त्रिपरिषद्, मन्त्रालय
- प्रकृतिः—स्त्री॰, ब॰ व॰—-—प्र+कृ+क्तिन्—प्रजा
- प्रकृतिः—स्त्री॰, ब॰ व॰—-—प्र+कृ+क्तिन्—राज्य के संविधायी सात तत्त्व या अंग अर्थत् १. राजा, २. मन्त्री, ३. मित्रराष्ट्र, ४. कोष, ५. सेना, ६. प्रदेश, ७. गढ़ आदि, ८. नगरपालिका या निगम
- प्रकृतिः—स्त्री॰, ब॰ व॰—-—प्र+कृ+क्तिन्—अनेक प्रभु जो युद्ध के समय विचारणीय होते हैं
- प्रकृतिः—स्त्री॰, ब॰ व॰—-—प्र+कृ+क्तिन्—आठ प्रधान तत्त्व जिनसे सांख्यशास्त्रियों के अनुसार प्रत्येक वस्तु उत्पन्न होती है,
- प्रकृतिः—स्त्री॰, ब॰ व॰—-—प्र+कृ+क्तिन्—सृष्टि के पांच प्रधान तत्त्व, पंच महाभूत अर्थात् पृथ्वी, जल, अग्नि, वायु और आकाश
- प्रकृतीशः—पुं॰—प्रकृतिः-ईशः—-—राजा या दण्डाधिकारी
- प्रकृतिकृपण—वि॰—प्रकृतिः-कृपण—-—स्वभाव से सुस्त, या विवेकहीन
- प्रकृतितरल—वि॰—प्रकृतिः-तरल—-—चंचल स्वभाव का, असंगत, बेमेल
- प्रकृतिपुरुषः—पुं॰—प्रकृतिः-पुरुषः—-—मन्त्री, कार्य निर्वाहक
- प्रकृतिमण्डलम्—नपुं॰—प्रकृतिः-मण्डलम्—-—समस्त प्रदेश या राजधानी
- प्रकृतिलयः—पुं॰—प्रकृतिः-लयः—-—प्रकृति में समा जाना, विश्व का विघटन
- प्रकृतिसिद्ध—वि॰—प्रकृतिः-सिद्ध—-—अन्तर्जात, सहज, नैसर्गिक
- प्रकृतिसुभग—वि॰—प्रकृतिः-सुभग—-—स्वभाव से प्रिय, रुचिकर
- प्रकृतिस्थ—वि॰—प्रकृतिः-स्थ—-—प्राकृतिक अवस्था में होने वाला, स्वाभाविक, असली
- प्रकृतिस्थ—वि॰—प्रकृतिः-स्थ—-—अंतर्हित, सहज, प्रकृति के अनुरूप
- प्रकृतिस्थ—वि॰—प्रकृतिः-स्थ—-—स्वस्थ, तन्दुरुस्त
- प्रकृतिस्थ—वि॰—प्रकृतिः-स्थ—-—जिसने आरोग्य प्राप्त कर लिया हो
- प्रकृतिस्थ—वि॰—प्रकृतिः-स्थ—-—स्वस्थ, आत्मलीन
- प्रकृतिस्थ—वि॰—प्रकृतिः-स्थ—-—विवस्त्र, नंगा
- प्रकृष्ट—भू॰ क॰ कृ॰—-—प्र+कृष्+क्त—कखींचकर निकाला हुआ
- प्रकृष्ट—भू॰ क॰ कृ॰—-—प्र+कृष्+क्त—सुदीर्घ, लंबा, अतिविस्तृत
- प्रकृष्ट—भू॰ क॰ कृ॰—-—प्र+कृष्+क्त—सर्वोत्तम, पूज्य, श्रेष्ठ प्रमुख, गौरवशाली
- प्रकृष्ट—भू॰ क॰ कृ॰—-—प्र+कृष्+क्त—मुख्य, प्रधान
- प्रकृष्ट—भू॰ क॰ कृ॰—-—प्र+कृष्+क्त—विक्षिप्त, अशांत
- प्रक्लृप्त—भू॰ क॰ कृ॰—-—प्र+क्लृप्+क्त—तैयार किया हुआ, सज्जीकृत, व्यवस्थित
- प्रकोथः—पुं॰—-—प्र+कुथ्+घञ्—सड़ांध, बदबू
- प्रकोष्ठः—पुं॰—-—प्र+कुष्+स्थन्—कोहनी से नीचे की भुजा, गट्टे से ऊपर का हाथ
- प्रकोष्ठः—पुं॰—-—प्र+कुष्+स्थन्—फाटक के निकट का कमरा
- प्रकोष्ठः—पुं॰—-—प्र+कुष्+स्थन्—घर का आँगन, चौकोर या वर्गाकार आँगन
- प्रकोष्ठकः—पुं॰—-—प्रकोष्ठ+कण्—फाटक के पास का कमरा
- प्रक्खरः—पुं॰—-— = प्रखरः पृषो॰—हाथी या घोड़े की रक्षा के लिए कवच
- प्रक्खरः—पुं॰—-— = प्रखरः पृषो॰—कुत्ता
- प्रक्खरः—पुं॰—-— = प्रखरः पृषो॰—खच्चर
- प्रक्रमः—पुं॰—-—प्र+क्रम्+घञ्—पग, कदम
- प्रक्रमः—पुं॰—-—प्र+क्रम्+घञ्—दूरी मापने का गज, पग का अन्तर
- प्रक्रमः—पुं॰—-—प्र+क्रम्+घञ्—आरंभ, शुरू
- प्रक्रमः—पुं॰—-—प्र+क्रम्+घञ्—प्रगमन, मार्ग
- प्रक्रमः—पुं॰—-—प्र+क्रम्+घञ्—प्रस्तुत बात
- प्रक्रमः—पुं॰—-—प्र+क्रम्+घञ्—अवकाश, अवसर
- प्रक्रमः—पुं॰—-—प्र+क्रम्+घञ्—नियमितता, क्रम, प्रणाली
- प्रक्रमः—पुं॰—-—प्र+क्रम्+घञ्—मात्रा, अनुपात, माप
- प्रक्रमभङ्गः—पुं॰—प्रक्रमः-भङ्गः—-—नियमितता और सममिति का अभाव, क्रम का टूट जाना, राना का एक दोष
- प्रक्रान्त—भू॰ क॰ कृ॰—-—प्र+क्रम्+क्त—आरंभ किया गया, शुरू किया गया
- प्रक्रान्त—भू॰ क॰ कृ॰—-—प्र+क्रम्+क्त—गत, प्रगत
- प्रक्रान्त—भू॰ क॰ कृ॰—-—प्र+क्रम्+क्त—प्रस्तुत, विवादग्रस्त
- प्रक्रान्त—भू॰ क॰ कृ॰—-—प्र+क्रम्+क्त—बहादुर
- प्रक्रिया—स्त्री॰—-—प्र+कृ+श+टाप्—रीति, प्रणाली, पद्धति
- प्रक्रिया—स्त्री॰—-—प्र+कृ+श+टाप्—कर्मकांड, संस्कार
- प्रक्रिया—स्त्री॰—-—प्र+कृ+श+टाप्—राजचिह्न का धारण करना
- प्रक्रिया—स्त्री॰—-—प्र+कृ+श+टाप्—उच्च पद, समुन्नति
- प्रक्रिया—स्त्री॰—-—प्र+कृ+श+टाप्—एक अध्याय य अनुभाग यथा-उणादिक्रिया
- प्रक्रिया—स्त्री॰—-—प्र+कृ+श+टाप्—व्युत्पत्तिजन्य रूपनिर्मान
- प्रक्रिया—स्त्री॰—-—प्र+कृ+श+टाप्—प्राधिकार
- प्रक्रीडः—पुं॰—-—प्र+क्रीड्+अच्—क्रीडा, मनोरंजन, खेल या आमोद-प्रमोद
- प्रक्लिन्न—भू॰ क॰ कृ॰—-—प्र+क्लिद्+क्त—तर, नमी वाला, गीला
- प्रक्लिन्न—भू॰ क॰ कृ॰—-—प्र+क्लिद्+क्त—तृप्त
- प्रक्लिन्न—भू॰ क॰ कृ॰—-—प्र+क्लिद्+क्त—दया से पसीजा हुआ
- प्रक्वणः—पुं॰—-—प्र+क्वण्+अप्, घञ् च—वीणा की झनकार
- प्रक्वाणः—पुं॰—-—प्र+क्वण्+अप्, घञ् च—वीणा की झनकार
- प्रक्षयः—पुं॰—-—प्र+क्षि+अप्—नाश, बरबादी
- प्रक्षर—पुं॰—-— = प्रखरः पृषो॰—खच्चर
- प्रक्षर—पुं॰—-— = प्रखरः पृषो॰—हाथी या घोड़े की रक्षा के लिए कवच
- प्रक्षर—पुं॰—-— = प्रखरः पृषो॰—कुत्ता
- प्रक्षरणम्—नपुं॰—-—प्र+क्षर्+ल्युट्—मन्द-मन्द स्रावित होना, रिसना
- प्रक्षालनम्—नपुं॰—-—प्र+क्षल्+किध्+ल्युट्—धोना, धो डालना
- प्रक्षालनम्—नपुं॰—-—प्र+क्षल्+किध्+ल्युट्—मांजना, साफ करना, स्वच्छ करना
- प्रक्षालनम्—नपुं॰—-—प्र+क्षल्+किध्+ल्युट्—धोने के लिए पानी
- प्रक्षालित—भू॰ क॰ कृ॰—-—प्र+क्षल्+णिच्+क्त—धोया गया, मांजा गया
- प्रक्षालित—भू॰ क॰ कृ॰—-—प्र+क्षल्+णिच्+क्त—स्वच्छ किया गया
- प्रक्षालित—भू॰ क॰ कृ॰—-—प्र+क्षल्+णिच्+क्त—जिसने प्रायश्चित कर लिया है
- प्रक्षिप्त—भू॰ क॰ कृ॰—-—प्र+क्षिप्+क्त—फेंका गया, ढाला गया, उछाला गया
- प्रक्षिप्त—भू॰ क॰ कृ॰—-—प्र+क्षिप्+क्त—डाला गया
- प्रक्षिप्त—भू॰ क॰ कृ॰—-—प्र+क्षिप्+क्त—निकला हुआ
- प्रक्षिप्त—भू॰ क॰ कृ॰—-—प्र+क्षिप्+क्त—बीच में डाला गया, नकली या खोटा यथा 'प्रक्षिप्तोऽयं श्लोकः' में
- प्रक्षीण—भू॰ क॰ कृ॰—-—प्र+क्षि+क्त—मुर्झाया हुआ, दुर्बला होने वाला
- प्रक्षीण—भू॰ क॰ कृ॰—-—प्र+क्षि+क्त—नष्ट किया हुआ
- प्रक्षीण—भू॰ क॰ कृ॰—-—प्र+क्षि+क्त—जिसने प्रायश्चित कर लिया है
- प्रक्षीण—भू॰ क॰ कृ॰—-—प्र+क्षि+क्त—लुप्त, ओझल
- प्रक्षुण्ण—भू॰ क॰ कृ॰—-—प्र+क्षुद्+क्त—कुचला हुआ
- प्रक्षुण्ण—भू॰ क॰ कृ॰—-—प्र+क्षुद्+क्त—आरपार भेदा हुआ
- प्रक्षुण्ण—भू॰ क॰ कृ॰—-—प्र+क्षुद्+क्त—उत्तेजित किया हुआ
- प्रक्षेपः—पुं॰—-—प्र+क्षिप्+घञ्—आगे फेंकना, उभारना, फेंकना, डालना
- प्रक्षेपः—पुं॰—-—प्र+क्षिप्+घञ्—बखेरना
- प्रक्षेपः—पुं॰—-—प्र+क्षिप्+घञ्—खोट धसाना, बीच में मिलाना
- प्रक्षेपः—पुं॰—-—प्र+क्षिप्+घञ्—गाड़ी का बक्स
- प्रक्षेपः—पुं॰—-—प्र+क्षिप्+घञ्—किसी व्यापारिक संघ के प्रत्येक सदस्य द्वारा जमा की गई धनराशि
- प्रक्षेपणम्—नपुं॰—-—प्र+क्षिप्+णिच्+ल्युट्—फेंकना, डालना, उछालना
- प्रक्षोभणम्—नपुं॰—-—प्र+क्षुभ्+ल्युट्—उत्तेजना, क्षोभ
- प्रक्ष्वेडनः—पुं॰—-—प्र+क्ष्विड्+ल्युट्—लोहे का तीर
- प्रक्ष्वेडनः—पुं॰—-—प्र+क्ष्विड्+ल्युट्—हल्ला-गुल्ला, हड़बड़ी
- प्रक्ष्वेडित—वि॰—-—प्र+क्ष्विड्+णिच्+क्त—मुखर, चीत्कार से पूर्ण, कोलाहलमय
- प्रखर—वि॰, प्रा॰ स॰—-—प्रकृष्टः+खरः—अत्यन्त गरम उअथा प्रखरकिरण
- प्रखर—वि॰—-—प्रकृष्टः+खरः—तेज गंधयुक्त, तीक्ष्ण
- प्रखर—वि॰—-—प्रकृष्टः+खरः—अत्यंत कठोर, रूखा
- प्रखरः—पुं॰—-—प्रकृष्टः+खरः—हाथी या घोड़े की रक्षा के लिए कवच
- प्रखरः—पुं॰—-—प्रकृष्टः+खरः—कुत्ता
- प्रखरः—पुं॰—-—प्रकृष्टः+खरः—खच्चर
- प्रख्य—वि॰—-—प्र+ख्या+क—साफ, प्रत्यक्ष, स्पष्ट
- प्रख्य—वि॰—-—प्र+ख्या+क—दिखाई देने वाला, मिलता-जुलता, अमृतप्रख्य, शशाकप्रख्य आदि
- प्रख्या—स्त्री॰—-—प्र+ख्या+अङ+टाप्—प्रत्यक्षज्ञेयता, दृश्यता
- प्रख्या—स्त्री॰—-—प्र+ख्या+अङ+टाप्—विश्रुति, यश, प्रसिद्धि
- प्रख्या—स्त्री॰—-—प्र+ख्या+अङ+टाप्—उखाड़ना
- प्रख्या—स्त्री॰—-—प्र+ख्या+अङ+टाप्—समरूपता, समानता
- प्रख्यात—भू॰ क॰ कृ॰—-—प्र+ख्या+क्त—मशहूर, प्रसिद्ध, विश्रुत माना हुआ
- प्रख्यात—भू॰ क॰ कृ॰—-—प्र+ख्या+क्त—पहले से मोल लिया हुआ, पूर्वक्र्याधिकार केवल पर अभ्यर्थित
- प्रख्यात—भू॰ क॰ कृ॰—-—प्र+ख्या+क्त—खुश, प्रसन्न
- प्रख्यातवप्तृक—वि॰—प्रख्यात-वप्तृक—-—प्रसिद्ध पिता वाला
- प्रख्यातिः—स्त्री॰—-—प्र+ख्या+क्तिन्—कीर्ति, विश्रुति, प्रसिद्धि
- प्रख्यातिः—स्त्री॰—-—प्र+ख्या+क्तिन्—प्रशंसा, स्तुति
- प्रगंडः—पुं॰, प्रा॰ ब॰—-—प्रकृष्टः गंडो यस्य —कोहनी से ऊपर कंधे तक की भुजा
- प्रगंडी—स्त्री॰—-—प्रगंड+ङीष्—परकोटा, बाहरी दीवाल
- प्रगत—भू॰ क॰ कृ॰—-—प्र+गम्+क्त—आगे गया हुआ
- प्रगत—भू॰ क॰ कृ॰—-—प्र+गम्+क्त—पृथक्, अलग
- प्रगतजानु—वि॰—प्रगत-जानु—-—धनुष्पदी, घुटने पर मुड़ी हुई टाँगों वाला
- प्रगतजानुक—वि॰—प्रगत-जानुक—-—धनुष्पदी, घुटने पर मुड़ी हुई टाँगों वाला
- प्रगमः—पुं॰—-—प्र+गम्+अप्—प्रेम की आराधना में प्रथम प्रगति, प्रेम की प्रथम अभिव्यक्ति
- प्रगमनम्—नपुं॰—-—प्र+गम्+ल्युट्—आगे बढ़ना, प्रगति
- प्रगमनम्—नपुं॰—-—प्र+गम्+ल्युट्—प्रेम की आराधना में पहला कदम
- प्रगर्जनम्—नपुं॰—-—प्र+गर्ज्+ल्युट्—दहाड़ना, चिघाड़ना, गरजना
- प्रगल्भ—वि॰—-—प्र+गल्भ्+अच्—साहसी, भरोसा करने वाला
- प्रगल्भ—वि॰—-—प्र+गल्भ्+अच्—हिम्मती, बहादुर, निःशंक, उत्साही, साहसी
- प्रगल्भ—वि॰—-—प्र+गल्भ्+अच्—वाग्मी, वाक्पटु
- प्रगल्भ—वि॰—-—प्र+गल्भ्+अच्—हाजिर जवाब, मुस्तैद
- प्रगल्भ—वि॰—-—प्र+गल्भ्+अच्—दृढ़ संकल्पी, ऊर्जस्वी
- प्रगल्भ—वि॰—-—प्र+गल्भ्+अच्—परिपक्व
- प्रगल्भ—वि॰—-—प्र+गल्भ्+अच्—परिपक्व, विकसित, पूरा बढ़ा हुआ, बलवान्
- प्रगल्भ—वि॰—-—प्र+गल्भ्+अच्—कुशल
- प्रगल्भ—वि॰—-—प्र+गल्भ्+अच्—बेधड़क, उद्धत, घमंडी, उपकारशील
- प्रगल्भ—वि॰—-—प्र+गल्भ्+अच्—निर्लज्ज, ढीठ
- प्रगल्भ—वि॰—-—प्र+गल्भ्+अच्—गौरवशाली प्रमुख
- प्रगल्भा—स्त्री॰—-—प्र+गल्भ्+अच्+ टाप्—साहसी स्त्री
- प्रगल्भा—स्त्री॰—-—प्र+गल्भ्+अच्+ टाप्—कर्कशा, झगड़ालू स्त्री
- प्रगल्भा—स्त्री॰—-—प्र+गल्भ्+अच्+ टाप्—उद्धत या प्रौढ़ स्त्री, काव्यनाटक को नायिकों में से एक
- प्रगाढ—भू॰ क॰ कृ॰—-—प्र+गाह्+क्त—डुबोया हुआ, तर किया हुआ, भिगोया हुआ
- प्रगाढ—भू॰ क॰ कृ॰—-—प्र+गाह्+क्त—अति, अत्यधिक, तीब्र
- प्रगाढ—भू॰ क॰ कृ॰—-—प्र+गाह्+क्त—दृढ़, मजबूत
- प्रगाढ—भू॰ क॰ कृ॰—-—प्र+गाह्+क्त—कठोर, कठिन
- प्रगाढम्—अव्य॰—-—-—अत्यधिक, अत्यंत
- प्रगाढम्—अव्य॰—-—-—दृढ़तापूर्वक
- प्रगातृ—पुं॰—-—प्र+गै+तृच्—उत्तम गाने वाला
- प्रगुण—वि॰—-—प्रकर्षेण गुणो यत्र - प्रा॰ ब॰—सीधा, ईमानदार, खरा
- प्रगुण—वि॰—-—प्रकर्षेण गुणो यत्र - प्रा॰ ब॰—सुदशासम्पन्न, उत्तम गुणों से युक्त
- प्रगुण—वि॰—-—प्रकर्षेण गुणो यत्र - प्रा॰ ब॰—योग्य, उपयुक्त, गुणी
- प्रगुण—वि॰—-—प्रकर्षेण गुणो यत्र - प्रा॰ ब॰—प्रवीण
- प्रगुण—वि॰—-—प्रकर्षेण गुणो यत्र - प्रा॰ ब॰—कुशल, चतुर
- प्रगुणी कृ——-—-—सीधा करना, क्रम से रखना, व्यवस्थित करना
- प्रगुणी कृ——-—-—चिकन करना
- प्रगुणी कृ——-—-—पालन-पोषण करना, परवरिश करना
- प्रगुणित—वि॰—-—प्र+गुण्+क्त—सीधा या समतल किया हुआ
- प्रगुणित—वि॰—-—प्र+गुण्+क्त—चिकना किया हुआ
- प्रगृहीत—भू॰ क॰ कृ॰—-—प्र+ग्रह्+क्त—थामा हुआ, संभाला हुआ
- प्रगृहीत—भू॰ क॰ कृ॰—-—प्र+ग्रह्+क्त—प्राप्त, स्वीकृत
- प्रगृहीत—भू॰ क॰ कृ॰—-—प्र+ग्रह्+क्त—संधि के नियमों की अधीनता का अभाव
- प्रगृह्यम्—नपुं॰—-—प्र+ग्रह्+क्यप्—संधि के नियमों से मुक्त स्वर जो स्वतंत्र रूप से बोला या लिखा जाय
- प्रगे—अव्य॰—-—प्रकर्षेण गीयतेऽत्र - प्र+गै+-के—भोर होते ही, पौ फटते ही
- प्रगेतन—वि॰—प्रगे-तन—-—प्रातः काल अनुष्ठेय कर्म
- प्रगेनिश—वि॰—प्रगे-निश—-—जो दिन निकल जाने पर भी सोया पड़ा है
- प्रगेशय—वि॰—प्रगे-शय—-—जो दिन निकल जाने पर भी सोया पड़ा है
- प्रगोपनम्—नपुं॰—-—प्र+गुप्+ल्युट्—रक्षण, संधारण
- प्रग्रथनम्—नपुं॰—-—प्र+ग्रन्थ्+ल्युट्—नत्थी करना, गूंथना, बुनना
- प्रग्रहः—पुं॰—-—प्र+ग्रह+अप्—फैलाना, थमाना
- प्रग्रहः—पुं॰—-—प्र+ग्रह+अप्—पकड़ना, लेना, ग्रहण करना, हथियार लेना
- प्रग्रहः—पुं॰—-—प्र+ग्रह+अप्—ग्रहण का आरंभ
- प्रग्रहः—पुं॰—-—प्र+ग्रह+अप्—रास, लगाम
- प्रग्रहः—पुं॰—-—प्र+ग्रह+अप्—रोक थाम, पाबन्दी
- प्रग्रहः—पुं॰—-—प्र+ग्रह+अप्—बंधन, कैद
- प्रग्रहः—पुं॰—-—प्र+ग्रह+अप्—कैदी, बन्दी
- प्रग्रहः—पुं॰—-—प्र+ग्रह+अप्—पालना, संधाना
- प्रग्रहः—पुं॰—-—प्र+ग्रह+अप्—प्रकाश की किरण
- प्रग्रहः—पुं॰—-—प्र+ग्रह+अप्—तराजू की डोरी
- प्रग्रहः—पुं॰—-—प्र+ग्रह+अप्—संधि के नियमों से मुक्त स्वर
- प्रग्रहणम्—नपुं॰—-—प्र+ग्रह+ल्युट्—लेना, पकड़ना, धरना
- प्रग्रहणम्—नपुं॰—-—प्र+ग्रह+ल्युट्—ग्रहण का आरम्भ
- प्रग्रहणम्—नपुं॰—-—प्र+ग्रह+ल्युट्—रास, लगाम
- प्रग्रहणम्—नपुं॰—-—प्र+ग्रह+ल्युट्—रोक थाम, पाबन्दी
- प्रग्राहः—पुं॰—-—प्र+ग्रह+घञ्—पकड़ना, लेना, ग्रहण करना, हथियार लेना
- प्रग्राहः—पुं॰—-—प्र+ग्रह+घञ्—ले जाना, ढोना
- प्रग्राहः—पुं॰—-—प्र+ग्रह+घञ्—तराजू की डोरी
- प्रग्राहः—पुं॰—-—प्र+ग्रह+घञ्—रास, लगाम
- प्रग्रीवः—पुं॰, प्रा॰ ब॰—-—प्रकृष्टा ग्रीवा यस्य—रंगी हुई बुर्जी
- प्रग्रीवः—पुं॰, प्रा॰ ब॰—-—प्रकृष्टा ग्रीवा यस्य—किसी मकान के चारो ओर लकड़ी की बाड़
- प्रग्रीवः—पुं॰, प्रा॰ ब॰—-—प्रकृष्टा ग्रीवा यस्य—तबेला
- प्रग्रीवः—पुं॰, प्रा॰ ब॰—-—प्रकृष्टा ग्रीवा यस्य—वृक्ष की चोटी
- प्रग्रीवम्—नपु, प्रा॰ ब॰—-—प्रकृष्टा ग्रीवा यस्य—रंगी हुई बुर्जी
- प्रग्रीवम्—नपु, प्रा॰ ब॰—-—प्रकृष्टा ग्रीवा यस्य—किसी मकान के चारो ओर लकड़ी की बाड़
- प्रग्रीवम्—नपु, प्रा॰ ब॰—-—प्रकृष्टा ग्रीवा यस्य—तबेला
- प्रग्रीवम्—नपु, प्रा॰ ब॰—-—प्रकृष्टा ग्रीवा यस्य—वृक्ष की चोटी
- प्रघटकः—पुं॰—-—प्र+घट्+णिच्+ण्वुल्—नियम, सिद्धान्त, विधि
- प्रघटा—स्त्री॰, प्रा॰ स॰—-—-—किसी विज्ञान के आरंभिक सिद्धान्त या मूल तत्त्व
- प्रघटाविद्—पुं॰—प्रघटा-विद्—-—ऊपर ऊपर का पाठ करने वाला, पल्लवग्राही
- प्रघणः—पुं॰—-—प्र+हन्+अप्, पक्षेवृद्धिः, णत्वाभावाश्च—भवन के द्वार के सामने बनी ड्योढ़ी, पौली
- प्रघणः—पुं॰—-—प्र+हन्+अप्, पक्षेवृद्धिः, णत्वाभावाश्च—तांबे का बर्तन
- प्रघणः—पुं॰—-—प्र+हन्+अप्, पक्षेवृद्धिः, णत्वाभावाश्च—लोहे की गदा या घन
- प्रघनः—पुं॰—-—प्र+हन्+अप्, पक्षेवृद्धिः, णत्वाभावाश्च—भवन के द्वार के सामने बनी ड्योढ़ी, पौली
- प्रघनः—पुं॰—-—प्र+हन्+अप्, पक्षेवृद्धिः, णत्वाभावाश्च—तांबे का बर्तन
- प्रघनः—पुं॰—-—प्र+हन्+अप्, पक्षेवृद्धिः, णत्वाभावाश्च—लोहे की गदा या घन
- प्रघाणः—पुं॰—-—प्र+हन्+अप्, पक्षेवृद्धिः, णत्वाभावाश्च—भवन के द्वार के सामने बनी ड्योढ़ी, पौली
- प्रघाणः—पुं॰—-—प्र+हन्+अप्, पक्षेवृद्धिः, णत्वाभावाश्च—तांबे का बर्तन
- प्रघाणः—पुं॰—-—प्र+हन्+अप्, पक्षेवृद्धिः, णत्वाभावाश्च—लोहे की गदा या घन
- प्रघानः—पुं॰—-—प्र+हन्+अप्, पक्षेवृद्धिः, णत्वाभावाश्च—भवन के द्वार के सामने बनी ड्योढ़ी, पौली
- प्रघानः—पुं॰—-—प्र+हन्+अप्, पक्षेवृद्धिः, णत्वाभावाश्च—तांबे का बर्तन
- प्रघानः—पुं॰—-—प्र+हन्+अप्, पक्षेवृद्धिः, णत्वाभावाश्च—भवन के द्वार के सामने बनी ड्योढ़ी, पौली
- प्रघस—वि॰—-—प्र+अद्+शप, घसादेशः—खाऊ, पेटू
- प्रघसः—पुं॰—-—-—राक्षस खाऊपना, पेटूपन
- प्रघातः—पुं॰—-—प्र+हन्+घञ्—हत्या
- प्रघातः—पुं॰—-—प्र+हन्+घञ्—संघर्ष, युद्ध
- प्रघुणः—पुं॰—-—प्र+घुण+क—अतिथि
- प्रघूर्णः—पुं॰—-—प्र+घूर्ण्+अच्—अतिथि
- प्रघोषः—पुं॰—-—प्र+घूष्+घञ्—शोर, शब्द, कोलाहल
- प्रघोषः—पुं॰—-—प्र+घूष्+घञ्—हंगामा, होहल्ला
- प्रचक्रम्—नपुं॰, प्रा॰ स॰—-—प्रगतश्चक्रम —कूच करने वाली सेना, प्रयाणोन्मुख फौज
- प्रचक्षस्—पुं॰—-—प्र+चक्ष्+अस्—बृहस्पति ग्रह
- प्रचक्षस्—पुं॰—-—प्र+चक्ष्+अस्—बृहस्पति का विशेषण
- प्रचण्ड—वि॰, प्रा॰स॰—-—प्रकर्षेण चण्डः—उत्कट, अत्यन्त तीव्र, उग्र
- प्रचण्ड—वि॰, प्रा॰स॰—-—प्रकर्षेण चण्डः—मजबूत, शक्तिशाली, भीषण
- प्रचण्ड—वि॰, प्रा॰स॰—-—प्रकर्षेण चण्डः—अत्युष्ण, दम घोटने वाली
- प्रचण्ड—वि॰, प्रा॰स॰—-—प्रकर्षेण चण्डः—क्रूद्ध, कोपाविष्ट
- प्रचण्ड—वि॰, प्रा॰स॰—-—प्रकर्षेण चण्डः—साहसी, भरोसा करने वाला
- प्रचण्ड—वि॰, प्रा॰स॰—-—प्रकर्षेण चण्डः—भयंकर, भयावह
- प्रचण्ड—वि॰, प्रा॰स॰—-—प्रकर्षेण चण्डः—असहिष्णु, असह्य
- प्रचण्डातपः—पुं॰—प्रचण्ड-आतपः—-—भीषण गर्मी
- प्रचण्डघोण—वि॰—प्रचण्ड-घोण—-—लंबी नाक वाला
- प्रचण्डसूर्य—वि॰—प्रचण्ड-सूर्य—-—उष्ण या जलते हुए सूर्य वाला
- प्रचयः—पुं॰—-—प्र+चि+अच्, घञ् च—संग्रह करना, चुनना
- प्रचयः—पुं॰—-—प्र+चि+अच्, घञ् च—समुच्चय, मात्रा, संचय, राशि
- प्रचयः—पुं॰—-—प्र+चि+अच्, घञ् च—वृद्धि, वर्धन
- प्रचयः—पुं॰—-—प्र+चि+अच्, घञ् च—साधारण मेलजोल
- प्रचायः—पुं॰—-—प्र+चि+अच्, घञ् च—संग्रह करना, चुनना
- प्रचायः—पुं॰—-—प्र+चि+अच्, घञ् च—समुच्चय, मात्रा, संचय, राशि
- प्रचायः—पुं॰—-—प्र+चि+अच्, घञ् च—वृद्धि, वर्धन
- प्रचायः—पुं॰—-—प्र+चि+अच्, घञ् च—साधारण मेलजोल
- प्रचयनम्—नपुं॰—-—प्र+चि+ल्युट्—संग्रह करना, एकत्र करना
- प्रचरः—पुं॰—-—प्र+चर्+अप्—मार्ग, पथ, रास्ता
- प्रचरः—पुं॰—-—प्र+चर्+अप्—प्रथा, रिवाज
- प्रचल—वि॰—-—प्र+चल्+अच्—काँपता हुआ, हिलता हुआ, थरथराता हुआ
- प्रचल—वि॰—-—प्र+चल्+अच्—प्रचलित, प्रथानुकूल
- प्रचलाकः—पुं॰—-—प्र+चक्+आकन्—धनुर्विद्या
- प्रचलाकः—पुं॰—-—प्र+चक्+आकन्—मोर की पूँछ
- प्रचलाकः—पुं॰—-—प्र+चक्+आकन्—साँप
- प्रचलाकिन्—पुं॰—-—प्रचलाक+इनि—मोर
- प्रचलायिक—वि॰—-—प्रचल+क्यङ्—इधर उधर करवट बदलने वाला, लुढ़कने वाला
- प्रचलायिकतम्—नपुं॰—-—प्रचल+क्यङ्+क्त—सिर हिलाना,
- प्रचायिका—स्त्री॰—-—प्र+चि+णिच्+ण्वुल्+टाप्—बारी बारी से चुनना
- प्रचायिका—स्त्री॰—-—प्र+चि+णिच्+ण्वुल्+टाप्—चुनने वाली स्त्री
- प्रचारः—पुं॰—-—प्र+चर्+घञ्—विचरण करना, भ्रमण करना
- प्रचारः—पुं॰—-—प्र+चर्+घञ्—इधर उधर टहलना, घूमना
- प्रचारः—पुं॰—-—प्र+चर्+घञ्—दर्शन, प्रकटीभवन
- प्रचारः—पुं॰—-—प्र+चर्+घञ्—प्रचलन, प्रसिद्धि, रिवाज, व्यवहर, प्रयोग
- प्रचारः—पुं॰—-—प्र+चर्+घञ्—आचरण, व्यवहार
- प्रचारः—पुं॰—-—प्र+चर्+घञ्—प्रतथा, रिवाज
- प्रचारः—पुं॰—-—प्र+चर्+घञ्—गोचरभूमि, चरागाह
- प्रचारः—पुं॰—-—प्र+चर्+घञ्—रास्ता, पथ
- प्रचालः—पुं॰, प्रा॰ स॰—-—प्रकृष्टश्चालः—वीणा की गरदन
- प्रचालनम्—नपुं॰—-—प्र+चल्+णिच्+ल्युट्—विलोडन, हिलाना, हलचल
- प्रचित—भू॰ क॰ कृ॰—-—प्र+चि+क्त—एकत्र किया हुआ, संचय किया हुआ, तोड़ा हुआ
- प्रचित—भू॰ क॰ कृ॰—-—प्र+चि+क्त—ढेर किया गया, संचित
- प्रचित—भू॰ क॰ कृ॰—-—प्र+चि+क्त—ढका गया, भरा गया
- प्रचुर—वि॰—-—प्र+चुर्+क—अति, यथेष्ट, बहुल, पुष्कल
- प्रचुर—वि॰—-—प्र+चुर्+क—बड़ा, विशाल, विस्तृत
- प्रचुर—वि॰—-—प्र+चुर्+क—बहुत अधक, भरपुर, परिपूर्ण
- प्रचुरः—पुं॰—-—-—चोर
- प्रचुरपुरुष—वि॰—प्रचुर-पुरुष—-—जनसंकुल, घना आबाद
- प्रचुरपुरुषः—पुं॰—प्रचुर-पुरुषः—-—चोर
- प्रचेतस्—पुं॰—-—प्र+चित्+असुन्—वरुण का विशेषण
- प्रचेतस्—पुं॰—-—प्र+चित्+असुन्—एक प्राचीन ऋषि जो स्मृतिकार था
- प्रचेतृ—पुं॰—-—प्र+चि+तृच्—रथवान्, सारथि
- प्रचेलम्—नपुं॰—-—प्र+चेल्+अच्—चन्दन की पीली लकड़ी
- प्रचेलकः—पुं॰—-—प्र+चेल+ण्वुल्—घोड़ा
- प्रचोदः—पुं॰—-—प्र+चुद्+घञ्—आगे हाँकना, बलपूर्वक चलाना, आगे बढ़ने के लिए उकसना भड़काना, प्रेरित करना
- प्रचोदनम्—नपुं॰—-—प्र+चुद्+ल्युट्—हाँक कर आगे बढ़ाना, बलपूर्वक चलाना, उकसानाभड़कान, जमा देना
- प्रचोदनम्—नपुं॰—-—प्र+चुद्+ल्युट्—आदेश देना, निर्देश देना
- प्रचोदनम्—नपुं॰—-—प्र+चुद्+ल्युट्—नियम, विधि, समादेश
- प्रचोदित—भू॰ क॰ कृ॰—-—प्र+चुद्+क्त—बलपूर्वक बढ़ाया हुआ, उकसाया हुआ
- प्रचोदित—भू॰ क॰ कृ॰—-—प्र+चुद्+क्त—भड़काया हुआ
- प्रचोदित—भू॰ क॰ कृ॰—-—प्र+चुद्+क्त—निर्देशित, आदिष्ट, नियत किया हुआ
- प्रचोदित—भू॰ क॰ कृ॰—-—प्र+चुद्+क्त—भेजा गया, प्रेषित
- प्रचोदित—भू॰ क॰ कृ॰—-—प्र+चुद्+क्त—निर्णीत, निर्धारित
- प्रच्छ्—तुदा॰ पर॰ <पृच्छति>, <पृष्ट> प्रेर॰ <प्रच्छयति>, कर्म॰ <पृछयते>, इच्छा॰ <पिपृच्छिषति>—-—-—पूछना, सवाल करना, प्रश्न करना, पूछताछ करना
- प्रच्छ्—तुदा॰ पर॰ <पृच्छति>, <पृष्ट> प्रेर॰ <प्रच्छयति>, कर्म॰ <पृछयते>, इच्छा॰ <पिपृच्छिषति>—-—-—ढूँढना, तलाश करना
- अनुप्रच्छ्—तुदा॰ पर॰ —अनु-प्रच्छ्—-—पूछताछ करना, इधर उधर के प्रश्न करना
- आप्रच्छ्—तुदा॰ पर॰ —आ-प्रच्छ्—-—पूछना, प्रश्न करना
- आप्रच्छ्—तुदा॰ पर॰ —आ-प्रच्छ्—-—बिदा करना
- आप्रच्छ्—तुदा॰ पर॰ —आ-प्रच्छ्—-—बिदा होना
- परिप्रच्छ्—तुदा॰ पर॰ —परि-प्रच्छ्—-—पूछना, प्रश्न करना, पूछताछ करना
- प्रच्छदः—पुं॰—-—प्र+च्छद+णिच्+घ—आवरण, आच्छादन, लपेटन, चादर, बिछावन, बिस्तरे की चादर
- प्रच्छदपटः—पुं॰—प्रच्छदः-पटः—-—बिछावन, चअदर
- प्रच्छनम्—नपुं॰—-—प्रच्छ्+ल्युट्—पूछताछ, परिपृच्छा
- प्रच्छना—स्त्री॰—-—प्रच्छ्+ल्युट्—पूछताछ, परिपृच्छा
- प्रच्छन्न—भू॰ क॰ कृ॰—-—प्र+च्छद्+क्त—ढका हुआ, वस्त्राच्छादित, वस्त्र पहने हुए, लपेटा हुआ, लिफाफे में बन्द किया हुआ
- प्रच्छन्न—भू॰ क॰ कृ॰—-—प्र+च्छद्+क्त—निजी, गोपनीय
- प्रच्छन्न—भू॰ क॰ कृ॰—-—प्र+च्छद्+क्त—छिपा हुआ, गुप्त
- प्रच्छन्नम्—नपुं॰—-—प्र+च्छद्+क्त—निजी द्वार
- प्रच्छन्नम्—नपुं॰—-—प्र+च्छद्+क्त—झरोखा, जाली, खिड़की
- प्रच्छन्नम्—अव्य॰—-—-—गुप्त रूप से चुपचाप
- प्रच्छन्नतस्करः—पुं॰—प्रच्छन्न-तस्करः—-—गुप्तचर, जो चोरी करता हुआ दिखाई न दे, परन्तु चोरी करे अवश्य
- प्रच्छर्दनम्—नपुं॰—-—प्र+छर्द्+ल्युट्—वमन
- प्रच्छर्दनम्—नपुं॰—-—प्र+छर्द्+ल्युट्—बाहर निकालना, फेंकना
- प्रच्छर्दनम्—नपुं॰—-—प्र+छर्द्+ल्युट्—उलटी आने वाली
- प्रच्छर्दिका—स्त्री॰—-—प्र+छर्द्+ण्वुल्+टाप्, इत्वम्—उलटी होना, कै आना
- प्रच्छादनम्—नपुं॰—-—प्र+छद्+णिच्+ल्युट्—ढकना, छ्इपाना
- प्रच्छादनम्—नपुं॰—-—प्र+छद्+णिच्+ल्युट्—उत्तरीय, ओढ़नी
- प्रच्छादनपटः—पुं॰—प्रच्छादनम्-पटः—-—लपेटन, ढकना, चादर
- प्रच्छादित—भू॰ क॰ कृ॰—-—प्र+छद्+णिच्+क्त—ढका हुआ, लपेटा हुआ, वस्त्राच्छादित आदि
- प्रच्छादित—भू॰ क॰ कृ॰—-—प्र+छद्+णिच्+क्त—गुप्त, छिपा हुआ
- प्रच्छायम्—नपुं॰—-—प्रकृष्टा छाया यत्र—सघन छायअ, छायादार स्थान
- प्रच्छिल—वि॰—-—प्रच्छ्+इलच्—शुष्क, न्इर्जल
- प्रच्यवः—पुं॰—-—प्र+च्यु+अच्—पात, बर्बादी
- प्रच्यवः—पुं॰—-—प्र+च्यु+अच्—सुधार, प्रगति, विकास
- प्रच्यवः—पुं॰—-—प्र+च्यु+अच्—वापसी
- प्रच्यवनम्—नपुं॰—-—प्र+च्यु+ल्युट्—विदा होना, मुड़ना, वापसी
- प्रच्यवनम्—नपुं॰—-—प्र+च्यु+ल्युट्—हानि, वंचना
- प्रच्यवनम्—नपुं॰—-—प्र+च्यु+ल्युट्—रिसना, झरना
- प्रच्युत—भू॰ क॰ कृ॰—-—प्र+च्यु+क्त—टूट कर गिरा हुआ, झड़ा हुआ
- प्रच्युत—भू॰ क॰ कृ॰—-—प्र+च्यु+क्त—भटका हुआ, विचलित
- प्रच्युत—भू॰ क॰ कृ॰—-—प्र+च्यु+क्त—स्थान भ्रष्ट, विस्थापित, पतित
- प्रच्युत—भू॰ क॰ कृ॰—-—प्र+च्यु+क्त—खदेड़ा हुआ, भगाया हुआ
- प्रच्युतिः—स्त्री॰—-—प्र+च्यु+क्तिन्—बिदा होना, वापसी
- प्रच्युतिः—स्त्री॰—-—प्र+च्यु+क्तिन्—हानि, वञ्चना, अधःपतन
- प्रच्युतिः—स्त्री॰—-—प्र+च्यु+क्तिन्—पात, बर्बादी
- प्रजः—पुं॰—-—प्रविश्य जायायां जायते-जन्+ड—पति, स्वामी
- प्रजनः—पुं॰—-—प्र+जत्+घञ्—गर्भाधान करना, पैदा कराना, जन्म देना, उत्पादन
- प्रजनः—पुं॰—-—प्र+जत्+घञ्—पशु में गर्भाधान करना
- प्रजनः—पुं॰—-—प्र+जत्+घञ्—उत्पन्न करना, पैदा करना
- प्रजननम्—नपुं॰—-—प्र+जन्+ल्युट्—प्रस्रुजन, जनन, योनि में वीर्य-संसेचन
- प्रजननम्—नपुं॰—-—प्र+जन्+ल्युट्—उत्पादन, जन्म, प्रसव
- प्रजननम्—नपुं॰—-—प्र+जन्+ल्युट्—वीर्य
- प्रजननम्—नपुं॰—-—प्र+जन्+ल्युट्—पुरुष या स्त्री की जननेन्द्रिय
- प्रजननम्—नपुं॰—-—प्र+जन्+ल्युट्—सन्तान
- प्रजनिका—स्त्री॰—-—प्र+जन्+णिच्+ण्वुल्+टाप्, इत्वम्—माता
- प्रजनुकः—पुं॰—-—प्र+जन्+उक—शरीर, काया
- प्रजल्पः—पुं॰—-—प्र+जल्प्+घञ्—बालकलरव, गपशप, असावधान या ऊटपटांग शब्द
- प्रजल्पनम्—नपुं॰—-—प्र+जल्प्+ल्युट्—बातचीत करनअ, बोलना
- प्रजल्पनम्—नपुं॰—-—प्र+जल्प्+ल्युट्—बालकलरव, गपशप
- प्रजविन्—वि॰—-—प्र+जु+इनि—आशु, द्रुतगामी, वेगयान्
- प्रजविन्—पुं॰—-—प्र+जु+इनि—आशुगामी दूत, हरकारा
- प्रजा—स्त्री॰—-—प्र+जन्+ड+टाप्—प्रसृजन, प्रसूति, जनन, प्रजोत्पत्ति, जन्म, उत्पादन
- प्रजा—स्त्री॰—-—प्र+जन्+ड+टाप्—सन्तान, प्रजा, सन्तति, बच्चे, पक्षिशावक
- प्रजा—स्त्री॰—-—प्र+जन्+ड+टाप्—लोग, मनुष्य
- प्रजा—स्त्री॰—-—प्र+जन्+ड+टाप्—वीर्य
- प्रजान्तकः—पुं॰—प्रजा-अंतकः—-—मृत्यु का देवता यम
- प्रजेप्सु—वि॰—प्रजा-ईप्सु—-—सन्तान की ईच्छा वाला
- प्रजेशः—पुं॰—प्रजा-ईशः—-—मनुष्यों का राजा, प्रभु
- प्रजेश्वरः—पुं॰—प्रजा-ईश्वरः—-—मनुष्यों का राजा, प्रभु
- प्रजोत्पत्तिः—स्त्री॰—प्रजा-उत्पत्तिः—-—सन्तान का पैदा करना
- प्रजोत्पादनम्—नपुं॰—प्रजा-उत्पादनम्—-—सन्तान का पैदा करना
- प्रजाकाम—वि॰—प्रजा-काम—-—सन्तान की इच्छा वाला
- प्रजातन्तुः—पुं॰—प्रजा-तन्तुः—-—वंश परम्परा, कुल
- प्रजादानम्—नपुं॰—प्रजा-दानम्—-—चाँदी
- प्रजानाथः—पुं॰—प्रजा-नाथः—-—ब्रह्मा का विशेषण
- प्रजानाथः—पुं॰—प्रजा-नाथः—-—राजा, प्रभु, राजकुमार
- प्रजापः—पुं॰—प्रजा-पः—-—राजा
- प्रजानिषेकः—पुं॰—प्रजा-निषेकः—-—गर्भाधान, बीज
- प्रजापतिः—पुं॰—प्रजा-पतिः—-—सृष्टि की अधिष्ठात्री देवता
- प्रजापतिः—पुं॰—प्रजा-पतिः—-—ब्रह्मा का विशेषण
- प्रजापतिः—पुं॰—प्रजा-पतिः—-—ब्रह्मा क दस वंशप्रवर्तक पुत्र
- प्रजापतिः—पुं॰—प्रजा-पतिः—-—देवशिल्पी विश्वकर्मा का विशेषण
- प्रजापतिः—पुं॰—प्रजा-पतिः—-—सूर्य
- प्रजापतिः—पुं॰—प्रजा-पतिः—-—राजा
- प्रजापतिः—पुं॰—प्रजा-पतिः—-—जामाता
- प्रजापतिः—पुं॰—प्रजा-पतिः—-—विष्णु का विशेषण
- प्रजापतिः—पुं॰—प्रजा-पतिः—-—पिता, जनक
- प्रजापतिः—पुं॰—प्रजा-पतिः—-—लिंग
- प्रजापालः—पुं॰—प्रजा-पालः—-—राजा, प्रभु्
- प्रजापालकः—पुं॰—प्रजा-पालकः—-—राजा, प्रभु्
- प्रजापालिः—पुं॰—प्रजा-पालिः—-—शिव का विशेषण
- प्रजावृद्धिः—स्त्री॰—प्रजा-वृद्धिः—-—सन्तान की वृद्धि
- प्रजासृज्—पुं॰—प्रजा-सृज्—-—ब्रह्मा का विशेषण
- प्रजाहित—वि॰—प्रजा-हित—-—बच्चों के या लोगों के लिए हितकर
- प्रजाहितम्—नपुं॰—प्रजा-हितम्—-—पानी
- प्रजागरः—पुं॰—-—प्र+जागृ+अप्—रात को जागते रहन, निद्रा का अभाव
- प्रजागरः—पुं॰—-—प्र+जागृ+अप्—चौकसी, सावधानी
- प्रजागरः—पुं॰—-—प्र+जागृ+अप्—अभिभावक, संरक्षक
- प्रजागरः—पुं॰—-—प्र+जागृ+अप्—कृष्ण का विशेषण
- प्रजात—भू॰ क॰ कृ॰—-—प्र+जन्+क्त—पैदा हुआ, उत्पन्न
- प्रजाता—स्त्री॰—-—प्र+जन्+क्त—वह स्त्री जच्चा जिसके बच्चा पैदा हुआ हो
- प्रजातिः—स्त्री॰—-—प्र+जन्+क्तिन्—प्रसृजन्, प्रसूति, उत्पादन, जन्म देना
- प्रजातिः—स्त्री॰—-—प्र+जन्+क्तिन्—प्रसव
- प्रजातिः—स्त्री॰—-—प्र+जन्+क्तिन्—प्रजननात्मक शक्ति
- प्रजातिः—स्त्री॰—-—प्र+जन्+क्तिन्—प्रसववेदना, प्रसवपीड़ा
- प्रजावत्—वि॰—-—प्रजा+मतुप्—प्रजा या सन्तान वाला
- प्रजावत्—वि॰—-—प्रजा+मतुप्—गर्भवती
- प्रजावती—स्त्री॰—-—प्रजा+मतुप्+ङीप्—भाई की पत्नी, भाभी
- प्रजावती—स्त्री॰—-—प्रजा+मतुप्+ङीप्—विवाहिता नारी, मातृका, माता
- प्रजिनः—पुं॰—-—प्र+जि+नक्—वायु
- प्रजीवनम्—नपुं॰—-—प्र+जीव्+ल्युट्—जीविका, जीवन निर्वाह का साधन
- प्रजुष्ट—वि॰—-—प्र+जुष्+क्त—अनुरक्त, भक्त, जुटा हुआ
- प्रज्ञ—वि॰—-—प्र+ज्ञा+क—बुद्धिमान, मेधावी, विद्वान्
- प्रज्ञप्तिः—स्त्री॰—-—त+ज्ञा+णिच्+क्तिन्—सहमति, प्रतिज्ञा
- प्रज्ञप्तिः—स्त्री॰—-—त+ज्ञा+णिच्+क्तिन्—शिक्षा, सूचना, समाआर देना
- प्रज्ञप्तिः—स्त्री॰—-—त+ज्ञा+णिच्+क्तिन्—सिद्धान्त
- प्रज्ञा—स्त्री॰—-—प्र+ज्ञा+अ+टाप्—मेधा, समझ, बुद्धिमत्ता
- प्रज्ञा—स्त्री॰—-—प्र+ज्ञा+अ+टाप्—विवेक, विवेचन, निर्णय
- प्रज्ञा—स्त्री॰—-—प्र+ज्ञा+अ+टाप्—तरकीब, योजना
- प्रज्ञा—स्त्री॰—-—प्र+ज्ञा+अ+टाप्—बुद्धिमती और विदुषी स्त्री
- प्रज्ञाचक्षुस्—वि॰—प्रज्ञा-चक्षुस्—-—अंधा
- प्रज्ञाचक्षुस्—पुं॰—प्रज्ञा-चक्षुस्—-—धृतराष्ट्र का विशेषण
- प्रज्ञाचक्षुस्—नपुं॰—प्रज्ञा-चक्षुस्—-—मन की आँख, मानसिक चक्षु, मन
- प्रज्ञावृद्ध—वि॰—प्रज्ञा-वृद्ध—-—समझदारी में बूढ़ा
- प्रज्ञाहीन—वि॰—प्रज्ञा-हीन—-—निर्बुद्धि मूर्ख, बेवकूफ
- प्रज्ञात—भू॰ क॰ कृ॰—-—प्र+ज्ञा+क्त—जाना हुआ, समझा हुआ
- प्रज्ञात—भू॰ क॰ कृ॰—-—प्र+ज्ञा+क्त—अन्तरयुक्त, विविक्त
- प्रज्ञात—भू॰ क॰ कृ॰—-—प्र+ज्ञा+क्त—स्पष्ट, साफ
- प्रज्ञात—भू॰ क॰ कृ॰—-—प्र+ज्ञा+क्त—प्रसिद्ध, सुविख्यात, विश्रुत
- प्रज्ञानम्—नपुं॰—-—प्र+ज्ञा+ल्युट्—बुद्धि, जानकारी, समझ
- प्रज्ञानम्—नपुं॰—-—प्र+ज्ञा+ल्युट्—चिह्न, प्रतीक, निशान
- प्रज्ञावत्—वि॰—-—प्रज्ञा+मतुप्—समझदार, बुद्धिमान
- प्रज्ञाल—वि॰—-—प्रज्ञा+लच्—समझदार, बुद्धिमान, मनीषी
- प्रज्ञिन्—वि॰—-—प्रज्ञा+इनि—समझदार, बुद्धिमान, मनीषी
- प्रज्ञिल—वि॰—-—प्रज्ञा+इलच्—समझदार, बुद्धिमान, मनीषी
- प्रज्ञु—वि॰—-—प्रगते विरले जानुनी यस्य ब॰ स॰, ज्ञु आदेशः—धनुष्पदी, घुटने पर मुड़ी हुई टाँगों वाला
- प्रज्वलनम्—नपुं॰—-—प्र+ज्वल्+ल्युट्—देदीप्यमान होना, लपटें उठना, जलना, दहकना
- प्रज्वलित—भू॰ क॰ कृ॰—-—प्र+ज्वल्+क्त—लपटों में होना, जलना, लपटें उठना, देदीप्यमान होना
- प्रज्वलित—भू॰ क॰ कृ॰—-—प्र+ज्वल्+क्त—चमकीला, जगमगाता हुआ
- प्रडीनम्—नपुं॰—-—प्र+डी+क्त—हर दिशा में उड़ना, आगे दौड़ना
- प्रडीनम्—नपुं॰—-—प्र+डी+क्त—भाग आना
- प्रण—वि॰—-—पुरा भवः - प्र+न—पुराना, प्राचीन
- प्रणखः—पुं॰—-—प्रकृष्टः नखः -प्रा॰ स॰—कील का सिरा
- प्रणत—भू॰ क॰ कृ॰—-—प्र+नम्+क्त—झुका हुआ, रुझानेवाला, प्रवण
- प्रणत—भू॰ क॰ कृ॰—-—प्र+नम्+क्त—प्रणम करना, नमस्कार करना
- प्रणत—भू॰ क॰ कृ॰—-—प्र+नम्+क्त—विनम्र
- प्रणत—भू॰ क॰ कृ॰—-—प्र+नम्+क्त—कुशल, चतुर
- प्रणतिः—स्त्री॰—-—प्र+नम्+क्तिन्—प्रणाम, नमस्कार, अभिवादन
- प्रणतिः—स्त्री॰—-—प्र+नम्+क्तिन्—विनयशीलता, नम्रता, शिष्टाचार
- प्रणदनम्—नपुं॰—-—प्र+नद्+ल्युट्—शब्द करना, आवाज करना, शब्द, ध्वनि
- प्रणयः—पुं॰—-—प्र+नी+अच्—विवाह करना, पाणि ग्रहण करना
- प्रणयः—पुं॰—-—प्र+नी+अच्—प्रेम स्नेह, चव, अनुरक्ति, अभिरुचि
- प्रणयः—पुं॰—-—प्र+नी+अच्—अभिलाषा, इच्छा, लालसा
- प्रणयः—पुं॰—-—प्र+नी+अच्—मित्रतापूर्ण परिचय, प्रीति, मैत्री, घनिष्ठता
- प्रणयः—पुं॰—-—प्र+नी+अच्—परिचय, भरोसा, विश्वास
- प्रणयः—पुं॰—-—प्र+नी+अच्—अनुग्रह, कृपा, सौजन्य
- प्रणयः—पुं॰—-—प्र+नी+अच्—अनुरोध, प्रार्थना, निवेदन
- प्रणयः—पुं॰—-—प्र+नी+अच्—श्रद्धा, भक्ति, मोक्ष
- प्रणयापराधः—पुं॰—प्रणयः-अपराधः—-—प्रेम या मित्रता के विरूद्ध अपचार
- प्रणयोन्मुख—वि॰—प्रणयः-उन्मुख—-—प्रेमाविष्ट, अपना प्रेम प्रकट करने को उद्यत
- प्रणयोन्मुख—वि॰—प्रणयः-उन्मुख—-—प्रेमावेश के कारण आतुर
- प्रणयकलहः—पुं॰—प्रणयः-कलहः—-—प्रेमी का झगड़ा, कृत्रिम या झुठमुठ का झगड़ा
- प्रणयकुपित—वि॰—प्रणयः-कुपित—-—प्रेम के कारण क्रुद्ध
- प्रणयकोपः—पुं॰—प्रणयः-कोपः—-—किसी नायिका का अपने नायक के प्रति झूठमूठ का क्रोध, नखरों से भरा क्रोध
- प्रणयप्रकर्षः—पुं॰—प्रणयः-प्रकर्षः—-—अत्यधिक प्रेम, तीव्र अनुराग
- प्रणयभङ्गः—पुं॰—प्रणयः-भङ्गः—-—मित्रता का टूट जाना
- प्रणयभङ्गः—पुं॰—प्रणयः-भङ्गः—-—विश्वासघात
- प्रणयवचनम्—नपुं॰—प्रणयः-वचनम्—-—प्रेमाभिव्यक्ति
- प्रणयविमुख—वि॰—प्रणयः-विमुख—-—प्रेम से पराङ्मुख
- प्रणयविमुख—वि॰—प्रणयः-विमुख—-—मित्रता करने मे अनिच्छुक
- प्रणयविहतिः—स्त्री॰—प्रणयः-विहतिः—-—अस्वीकृति, न मानना
- प्रणयविघातः—पुं॰—प्रणयः-विघातः—-—अस्वीकृति, न मानना
- प्रणयनम्—नपुं॰—-—प्र+नी+ल्युट्—लाना, ले आना
- प्रणयनम्—नपुं॰—-—प्र+नी+ल्युट्—स्ंचालन करना, पहुँचाना
- प्रणयनम्—नपुं॰—-—प्र+नी+ल्युट्—पालन करना, कार्यान्वयन करना, अनुष्ठान करना
- प्रणयनम्—नपुं॰—-—प्र+नी+ल्युट्—लिखना, अक्षरयोजन करना
- प्रणयनम्—नपुं॰—-—प्र+नी+ल्युट्—निर्नयादेश देना, दण्डाज्ञा देना, परिनिर्णय या पंचनिर्णय देना, यथा दण्डस्य प्रणयनम्
- प्रणयवत्—वि॰—-—प्रणय+मतुप्—प्रेम करने वाला, प्रीतिकर, स्नेही
- प्रणयवत्—वि॰—-—प्रणय+मतुप्—स्पष्टवक्ता, खरा
- प्रणयवत्—वि॰—-—प्रणय+मतुप्—अत्यन्त उत्कण्ठित, आतुर
- प्रणयिन्—वि॰—-—प्रणय+इनि—प्रेम करनए वाल, स्नेही, कृपालु, अनुरक्त
- प्रणयिन्—वि॰—-—प्रणय+इनि—प्रिय, अत्यम्त प्यारा
- प्रणयिन्—वि॰—-—प्रणय+इनि—इच्छुक, लालायित, उत्कण्ठित
- प्रणयिन्—वि॰—-—प्रणय+इनि—सुपरिचित, घनिष्ठ
- प्रणयिन्—पुं॰—-—प्रणय+इनि—मित्र, साथी, कृपापात्र
- प्रणयिन्—पुं॰—-—प्रणय+इनि—पति, प्रेमी
- प्रणयिन्—पुं॰—-—प्रणय+इनि—कृतांजलि, विनम्र निवेदक, प्रार्थी
- प्रणयिन्—पुं॰—-—प्रणय+इनि—पूजक, भक्त
- प्रणयिनी—स्त्री॰—-—प्रणय+इनि+ ङीप्—गृहिणी, प्रियतमा, पत्नी
- प्रणयिनी—स्त्री॰—-—प्रणय+इनि+ ङीप्—सखी, सहेली
- प्रणवः—पुं॰—-—प्र+नू+अप्, णत्वम्—पवित्र अक्षर
- प्रणवः—पुं॰—-—प्र+नू+अप्, णत्वम्—एक प्रकार का वाद्ययंत्र
- प्रणवः—पुं॰—-—प्र+नू+अप्, णत्वम्—विष्णु या परमपुरुष परमात्मा का विशेषण
- प्रणस—वि॰—-—प्रगता नासिका यस्य, सादेशः, अच्, णत्वम्—लम्बी नाक वाला, बड़ी नाक वाला
- प्रणाडी—स्त्री॰—-—प्रणाली, लस्य डः—अन्तरायण, अन्तः प्रवेशन, माध्यम
- प्रणादः—पुं॰—-—प्र+नद्+घञ्—ऊँची आवाज, चीत्कार, क्रंदन
- प्रणादः—पुं॰—-—प्र+नद्+घञ्—दहाड़ना, दहाड़
- प्रणादः—पुं॰—-—प्र+नद्+घञ्—हिनहिनानअ, रेंकना
- प्रणादः—पुं॰—-—प्र+नद्+घञ्—हर्षातिरेक की कलकलध्वनि, वाहवा, क्या खूब
- प्रणादः—पुं॰—-—प्र+नद्+घञ्—दुहाई देना
- प्रणादः—पुं॰—-—प्र+नद्+घञ्—कान का विशेष रोग
- प्रणामः—पुं॰—-—प्र+नम्+घञ्—झुकना, नमस्कार करना, नमन या नति
- प्रणामः—पुं॰—-—प्र+नम्+घञ्—सादर नमस्कार, अभिवादन, दण्डवत् प्रणाम, प्रणति, यथा साष्टांग प्रणाम
- प्रणायकः—पुं॰—-—प्र+नी+ण्वुल्—नेता, सेनापति
- प्रणायकः—पुं॰—-—प्र+नी+ण्वुल्—पथ-प्रदर्शक, प्रधान, मुख्य
- प्रणाय्य—वि॰—-—प्र+नी+ण्यत्—प्रिय, प्यारा
- प्रणाय्य—वि॰—-—प्र+नी+ण्यत्—खरा, ईमानदार, स्पष्टवादी
- प्रणाय्य—वि॰—-—प्र+नी+ण्यत्—अप्रिय, अनभिमत
- प्रणाय्य—वि॰—-—प्र+नी+ण्यत्—आवेश शून्य, विरक्त
- प्रणालः—पुं॰—-—प्र+नल्+घञ्—नहर, जलमार्ग, नाली
- प्रणालः—पुं॰—-—प्र+नल्+घञ्—परंपरा, अविच्छिन्न सिलसिला
- प्रणाली—स्त्री॰—-—प्रणाल+ङीष्—नहर, जलमार्ग, नाली
- प्रणाली—स्त्री॰—-—प्रणाल+ङीष्—परंपरा, अविच्छिन्न सिलसिला
- प्रणालिका—स्त्री॰—-—प्रणाली+क+टाप्, ह्रस्वः—नहर, जलमार्ग, नाली
- प्रणालिका—स्त्री॰—-—प्रणाली+क+टाप्, ह्रस्वः—परंपरा, अविच्छिन्न सिलसिला
- प्रणाशः—पुं॰—-—प्र+नश्+घञ्—विराम, हानि, लोप
- प्रणाशः—पुं॰—-—प्र+नश्+घञ्—मृत्यु, विनाश
- प्रणाशन—वि॰—-—प्र+नश्+णिच्+ल्युट्—नष्ट करने वाला, हटाने वाला
- प्रणाशनम्—नपुं॰—-—प्र+नश्+णिच्+ल्युट्—समुच्छेदन, उन्मूलन
- प्रणिसित—वि॰—-—प्र+निस्+क्त—जिसका चुम्बन किया हो
- प्रणिधानम्—नपुं॰—-—प्र+नि+धा+ल्युट्—प्रयोग करना, नियुक्त करना, व्यवहार, उपयोग
- प्रणिधानम्—नपुं॰—-—प्र+नि+धा+ल्युट्—महान् प्रयत्न, शक्ति
- प्रणिधानम्—नपुं॰—-—प्र+नि+धा+ल्युट्—धार्मिक मनन, भावचिन्तन
- प्रणिधानम्—नपुं॰—-—प्र+नि+धा+ल्युट्—सम्मानपूर्ण व्यवहार
- प्रणिधानम्—नपुं॰—-—प्र+नि+धा+ल्युट्—कर्मफलत्याग
- प्रणिधिः—पुं॰—-—प्र+नि+धा+कि—चौकन्ना रहन वाला, ताक-झांक करने वाला
- प्रणिधिः—पुं॰—-—प्र+नि+धा+कि—गुप्तचर भेजना
- प्रणिधिः—पुं॰—-—प्र+नि+धा+कि—जासूस, भेदिया
- प्रणिधिः—पुं॰—-—प्र+नि+धा+कि—टहलुआ, अनुचर
- प्रणिधिः—पुं॰—-—प्र+नि+धा+कि—देखभाल, ध्यान
- प्रणिधिः—पुं॰—-—प्र+नि+धा+कि—निवेदन, अनुरोध, प्रार्थना
- प्रणिनादः—पुं॰—-—प्र+नि+नद्+घञ्—गहरी ध्वनि
- प्रणिपतनम्—नपुं॰—-—प्र+नि+पत्+ल्युट्—पैरों में गिरना, साष्टांग प्रणाम, विनति
- प्रणिपतनम्—नपुं॰—-—प्र+नि+पत्+ल्युट्—अभिवादन, नमस्कार, सादर प्रणति
- प्रणिपातः—पुं॰—-—प्र+नि+पत्+घञ्—पैरों में गिरना, साष्टांग प्रणाम, विनति
- प्रणिपातः—पुं॰—-—प्र+नि+पत्+घञ्—अभिवादन, नमस्कार, सादर प्रणति
- प्रणिपतनरसः—पुं॰—प्रणिपतनम्-रसः—-—श्स्त्रास्त्रों पर उच्चारण किया जाने वाला जादू का मंत्र
- प्रणिपातरसः—पुं॰—प्रणिपातः-रसः—-—श्स्त्रास्त्रों पर उच्चारण किया जाने वाला जादू का मंत्र
- प्रणिहित—भू॰ क॰ कृ॰—-—प्र+नि+धा+क्त—रक्खा हुआ, व्यवहृत
- प्रणिहित—भू॰ क॰ कृ॰—-—प्र+नि+धा+क्त—जमा किया हुआ
- प्रणिहित—भू॰ क॰ कृ॰—-—प्र+नि+धा+क्त—फैलाया हुआ, पसारा हुआ
- प्रणिहित—भू॰ क॰ कृ॰—-—प्र+नि+धा+क्त—न्यस्त, समर्पित, सुपुर्द
- प्रणिहित—भू॰ क॰ कृ॰—-—प्र+नि+धा+क्त—एकाग्रचित्त, लवलीन, जूटा हुआ
- प्रणिहित—भू॰ क॰ कृ॰—-—प्र+नि+धा+क्त—निर्धारित, निश्चित
- प्रणिहित—भू॰ क॰ कृ॰—-—प्र+नि+धा+क्त—सावधान, चौकस
- प्रणिहित—भू॰ क॰ कृ॰—-—प्र+नि+धा+क्त—अवाप्त, उपलब्ध
- प्रणिहित—भू॰ क॰ कृ॰—-—प्र+नि+धा+क्त—भेद लिया हुआ
- प्रणीत—भू॰ क॰ कृ॰—-—प्र+नी+क्त—सामने प्रस्तुत, आगे पेश किया हुआ, उपस्थित
- प्रणीत—भू॰ क॰ कृ॰—-—प्र+नी+क्त—सौंपा गया, दिया गया, प्रस्तुत किया गया, उपस्थित किया गया
- प्रणीत—भू॰ क॰ कृ॰—-—प्र+नी+क्त—लाया गया, कम किया गया
- प्रणीत—भू॰ क॰ कृ॰—-—प्र+नी+क्त—कार्यान्वित, कार्य में परिणत, अनुष्ठित
- प्रणीत—भू॰ क॰ कृ॰—-—प्र+नी+क्त—सिखाया गया, नियत किया गया
- प्रणीत—भू॰ क॰ कृ॰—-—प्र+नी+क्त—फेंका हुआ, भेजा गया, सेवामुक्त
- प्रणीतः—पुं॰—-—-—मंत्रों से अभिसंस्कृत की गई यज्ञाग्नि
- प्रणीतम्—नपुं॰—-—-—पकाया हुआ य संवारा हुआ कोई पदार्थ यथा चटनी, अचार आदि
- प्रणुत—भू॰ क॰ कृ॰—-—प्र+नु+क्त—प्रशंसा किया गया, श्लाघा किया गया
- प्रणुत्त—भू॰ क॰ कृ॰—-—प्र+नुद्+क्त—हाँककर दूर भगाया हुआ, पीछे ढकेला हुआ
- प्रणुत्त—भू॰ क॰ कृ॰—-—प्र+नुद्+क्त—भगाया हुआ
- प्रणुन्न—भू॰ क॰ कृ॰—-—प्र+नुद्+क्त, नत्वम्—हाँककर दूर भगाया हुआ
- प्रणुन्न—भू॰ क॰ कृ॰—-—प्र+नुद्+क्त, नत्वम्—गतिशील किया हुआ
- प्रणुन्न—भू॰ क॰ कृ॰—-—प्र+नुद्+क्त, नत्वम्—भगाया हुआ
- प्रणुन्न—भू॰ क॰ कृ॰—-—प्र+नुद्+क्त, नत्वम्—हिलता हुआ, काँपता हुआ
- प्रणेतृ—पुं॰—-—प्र+नी+तृच्—नेता
- प्रणेतृ—पुं॰—-—प्र+नी+तृच्—निर्माता, स्रष्टा
- प्रणेतृ—पुं॰—-—प्र+नी+तृच्—किसी सिद्धांत का उद्घोषक, व्याख्याता, अध्यापक
- प्रणेतृ—पुं॰—-—प्र+नी+तृच्—पुस्तक का रचयिता
- प्रणेय—वि॰—-—प्र+नी+य—पथप्रदर्शन किये जने योग्य, नेतृत्व दिये जाने योग्य, शिक्षणीय, विनम्र, विनीत, आज्ञाकारी
- प्रणेय—वि॰—-—प्र+नी+य—कार्यान्वित या निष्पन्न किये जाने योग्य
- प्रणेय—वि॰—-—प्र+नी+य—निश्चित या स्थिर किये जाने योग्य
- प्रणोदः—पुं॰—-—प्र+नुद्+घञ्—हाँकना
- प्रणोदः—पुं॰—-—प्र+नुद्+घञ्—निदेश देना
- प्रतत—भू॰ क॰ कृ—-—प्र+तन्+क्त—बिछाया हुआ, ढका हुआ
- प्रतत—भू॰ क॰ कृ—-—प्र+तन्+क्त—फैलाया हुआ, पसारा हुआ
- प्रततिः—स्त्री॰—-—प्र+तन्+क्तिन्—विस्तार, फैलाव, प्रसार
- प्रततिः—स्त्री॰—-—प्र+तन्+क्तिन्—लता
- प्रतन—वि॰—-—प्र+तन्+अच्—पुराना, प्राचीन
- प्रतनु—वि॰—-—प्रकृष्टः तनुः, प्रा॰ स॰—पतला, सूक्ष्म, सुकुमार
- प्रतनु—वि॰—-—प्रकृष्टः तनुः, प्रा॰ स॰—अत्यल्प, सीमित, भीड़ा
- प्रतनु—वि॰—-—प्रकृष्टः तनुः, प्रा॰ स॰—दुबला पतला, कृश
- प्रतनु—वि॰—-—प्रकृष्टः तनुः, प्रा॰ स॰—नगण्य, मामूली
- प्रतपनम्—नपुं॰—-—प्र+तप्+ल्युट्—गरमाना, गरम करना
- प्रतप्त—भू॰ क॰ कृ—-—प्र+तप्+क्त—तपाया हुआ
- प्रतप्त—भू॰ क॰ कृ—-—प्र+तप्+क्त—गर्म, उष्ण
- प्रतप्त—भू॰ क॰ कृ—-—प्र+तप्+क्त—संतप्त, सताया हुआ, पीडित
- प्रतरः—पुं॰—-—प्र+तृ+अप्—पार जाना, पार करना या जाना
- प्रतर्कः—पुं॰—-—प्र+तर्क्+अप्—अटकट, कल्पना,आनुमान
- प्रतर्कः—पुं॰—-—प्र+तर्क्+अप्—विचारविमर्श
- प्रतर्कणम्—नपुं॰—-—प्र+तर्क्+ल्युट्—अटकट, कल्पना,आनुमान
- प्रतर्कणम्—नपुं॰—-—प्र+तर्क्+ल्युट्—विचारविमर्श
- प्रतलम्—नपुं॰, प्रा॰ स॰—-—प्रकृष्टं तलम्—निम्नलोक के सात विभागों में से एक
- प्रतलः—पुं॰—-—प्रकृष्टं तलम्—खुले हाथ की हथेली
- प्रतानः—पुं॰—-—प्र+तन्+घञ्—अंकुर्, तन्तु
- प्रतानः—पुं॰—-—प्र+तन्+घञ्—लता, नीचे भूमि पर ही फैलने वाला पौधा
- प्रतानः—पुं॰—-—प्र+तन्+घञ्—शाखा-प्रशाखा, शाखा संविभाग
- प्रतानः—पुं॰—-—प्र+तन्+घञ्—धनुर्बात रोग या मिरगी रोग
- प्रतानिन्—वि॰—-—प्रतान+इनि—फैलाने वाला
- प्रतानिन्—वि॰—-—प्रतान+इनि—अंकुर या तन्तु वाला
- प्रतानिनी—स्त्री॰—-—-—फैलाने वाली लता
- प्रपातः—पुं॰—-—प्र+तप्+घञ्—ताप, गर्मी
- प्रपातः—पुं॰—-—प्र+तप्+घञ्—दीप्ति, दहकती हुई गर्मी
- प्रपातः—पुं॰—-—प्र+तप्+घञ्—आभा, उज्ज्वलता
- प्रपातः—पुं॰—-—प्र+तप्+घञ्—मर्यादा, शान, यश
- प्रपातः—पुं॰—-—प्र+तप्+घञ्—साहस, पराक्रम, शौर्य
- प्रपातः—पुं॰—-—प्र+तप्+घञ्—शक्ति, बल, ऊर्जा
- प्रपातः—पुं॰—-—प्र+तप्+घञ्—उत्कण्ठा, उत्साह
- प्रतापन—वि॰—-—प्र+तप्+णिच्+ल्युट्—गर्माने वाला
- प्रतापन—वि॰—-—प्र+तप्+णिच्+ल्युट्—संताप देने वाला
- प्रतापनम्—नपुं॰—-—प्र+तप्+णिच्+ल्युट्—जलाना, तपाना, गर्माना
- प्रतापनम्—नपुं॰—-—प्र+तप्+णिच्+ल्युट्—पीड़ित करना, सताना, दण्ड देना
- प्रतापनः—पुं॰—-—प्र+तप्+णिच्+ल्युट्—एक नरक का नाम
- प्रतापवत्—वि॰—-—प्रताप+मतुप्, वत्वम्—कीर्तिशाली, ओजस्वी
- प्रतापवत्—वि॰—-—प्रताप+मतुप्, वत्वम्—बलशाली, शक्तिसंपन्न, ताकत
- प्रतापवत्—पुं॰—-—प्रताप+मतुप्, वत्वम्—शिव का विशेषण
- प्रतारः —पुं॰—-—प्र+तृ+णिच्+घञ्—पार ले जाने वाला
- प्रतारः —पुं॰—-—प्र+तृ+णिच्+घञ्—धोखा, जालसाजी
- प्रतारकः—पुं॰—-—प्र+तृ+णिच्+ण्वुल्—ठग, छद्मवेषी
- प्रतारणम्—नपुं॰—-—प्र+तृ+णिच्+ल्युट्—पार ले जाना
- प्रतारणम्—नपुं॰—-—प्र+तृ+णिच्+ल्युट्—धोखा देना, ठगना, छल, कपट
- प्रतारणा—स्त्री॰—-—प्र+तृ+णिच्+ल्युट्+टाप्—जालसाजी, धोखा, मक्कारी, धूर्तता, बदमाशी, दगाबाजी, पाखंड
- प्रतारित—अव्य॰—-—प्र+तृ+णिच्+क्त—छला हुआ, ठगा हुआ
- प्रति—अव्य॰—-—प्रथ्+डति—धातु के पूर्व उपसर्ग के रूप में लग कर निम्नांकित अर्थ है - (क) की ओर, की दिशा में, (ख) वापिस, लौट कर, फिर, (ग) के विरुद्ध, के मुल्काबले में, विपरीत, (घ) ऊपर, घृणा
- प्रति—अव्य॰—-—प्रथ्+डति—संज्ञाओं से पूर्व उपसर्ग के रूप में निम्नांकित अर्थ - (क) समानता, समरूपता, सादृश्य, (ख) प्रतिस्पर्धा - यथा प्रतिचन्द्र, प्रतिपुरुष आदि, (ग) की तुलना में, सममूल्य पर, के अनुपात में, पर
- प्रति—अव्य॰—-—प्रथ्+डति—स्वतंत्र रूप से संबंधबोधक अव्यय के रूप में प्रयुक्त निमनांकित अर्थ - (क) की ओर, की दिशा में, की तरफ, (ख) के विरुद्द, प्रतिकूल, की विपरीत दिशा में, सम्मुख, (घ) निकट, के आसपास, पास की ओर, में, पर, (ङ) के समय, लगभग, दौरान में, (च) की ओर से, के, पक्ष में, के भाग्य में, (छ) प्रत्येक में , हरेक में, अलग-अलग, वर्ष प्रति, प्रतिवर्षम्, (ज) के विषय मेम्, के संबंध में, के बारे में , विषयक, बाबत, विषय मेंम्, (झ) के अनुसार, के समनुरूप, (ञ) के सामने, की उपस्थिति में, (ट) क्योंकि, के कारण
- प्रति—अव्य॰—-—प्रथ्+डति—स्वतंत्र संबंधबोधक अव्यय के रूप में इसका अर्थ है - (क) प्रतिनिधि, के स्थान में, के बजाय, (ख) की एवज में, के बदले में
- प्रति—अव्य॰—-—प्रथ्+डति—अव्ययीभाव समास के प्रथम पद के रूप में प्रायः इसका अर्थ है - (क) प्रत्येक में या पर, यथा प्रतिसंवत्सरम्, प्रतिक्षणं, प्रत्यहं आदि, (ख) की ओर, की दिशा में
- प्रति—अव्य॰—-—प्रथ्+डति—प्रति' कभी कभी 'अल्पार्थ' प्रकट करने के लिए अव्ययीभाव समास के अन्तिम पद के रूप में प्रयुक्त होता है सूपप्रति, शाकप्रति
- प्रत्यक्षरम्—अव्य॰—प्रति-अक्षरम्—-—प्रत्येक अक्षर में
- प्रत्यग्नि—अव्य॰—प्रति-अग्नि—-—अग्नि की ओर
- प्रत्यङ्गम्—नपुं॰—प्रति-अंगम्—-—गौण या छोटा अंग जैसे कि नाक
- प्रत्यङ्गम्—नपुं॰—प्रति-अंगम्—-—प्रभाग, अध्याय, अनुभाग
- प्रत्यङ्गम्—नपुं॰—प्रति-अंगम्—-—प्रत्येक अंग
- प्रत्यङ्गम्—नपुं॰—प्रति-अंगम्—-—अस्त्र
- प्रत्यङ्गम्—अव्य॰—प्रति-अंगम्—-—शरीर के प्रत्येक अंग पर
- प्रत्यङ्गम्—अव्य॰—प्रति-अंगम्—-—प्रत्येक उपप्रभाग या उपांग के लिए
- प्रत्यनन्तर—वि॰—प्रति-अनन्तर—-—सट कर पड़ौस में होने वालाउत्तरादिकारी के रूप मेम् , निकटतम विद्यमान
- प्रत्यनन्तर—वि॰—प्रति-अनन्तर—-—तुरन्त बाद का, बिल्कुल जुड़ा हुआ
- प्रत्यनिलम्—अव्य॰—प्रति-अनिलम्—-—हवा की ओर, या हवा के विरुद्ध
- प्रत्यनीक—वि॰—प्रति-अनीक—-—विरोधी, विरुद्ध, विद्वेषी
- प्रत्यनीक—वि॰—प्रति-अनीक—-—मुकाबला करने वाला, विरोध करने वाला
- प्रत्यनीकः—पुं॰—प्रति-अनीकः—-—शत्रु
- प्रत्यनीकम्—नपुं॰—प्रति-अनीकम्—-—विरोध, शत्रुता, विपरीत ढंग या स्थिति
- प्रत्यनीकम्—नपुं॰—प्रति-अनीकम्—-—शत्रु की सेना
- प्रत्यनीकम्—नपुं॰—प्रति-अनीकम्—-—अलंकार-इसमें एक व्यक्ति उस शत्रु को जो स्वयं घायल नहीं हो सकता, चोट पहुंचाने का प्रयत्न करता है
- प्रत्यनुमानम्—नपुं॰—प्रति-अनुमानम्—-—प्रतिकूल उपसंहार
- प्रत्यन्त—वि॰—प्रति- अन्त—-—संसक्त, सटा हुआ, साथ लगा हुआ, सीमावर्ती
- प्रत्यन्तः—पुं॰—प्रति- अन्तः—-—सीमा, हद
- प्रत्यन्तः—पुं॰—प्रति- अन्तः—-—सीमावर्ती देश, विशेषतः म्लेच्छों द्वारा अधिकृत प्रदेश
- प्रतिदेशः—पुं॰—प्रति-देशः—-—सीमावर्ती देश
- प्रतिपर्वतः—पुं॰—प्रति-पर्वतः—-—साथ लगी हुई पहाड़ी
- प्रत्यपकारः—पुं॰—प्रति-अपकारः—-—प्रतिशोध, बदले में क्षति पहुंचाना
- प्रत्यब्दम्—अव्य॰—प्रति-अब्दम्—-—प्रतिवर्ष
- प्रत्यभियोगः—पुं॰—प्रति-अभियोगः—-—बदले में दोषारोपण, प्रत्यारोप
- प्रत्यमित्रम्—अव्य॰—प्रति-अमित्रम्—-—शत्रु की ओर
- प्रत्यर्कः—पुं॰—प्रति-अर्कः—-—झूठमूठ का सूरज
- प्रत्यवयवम्—अव्य॰—प्रति-अवयवम्—-—प्रत्येक अंग में
- प्रत्यवयवम्—अव्य॰—प्रति-अवयवम्—-—प्रत्येक विशेषता के साथ, विवरण सहित
- प्रत्यवर—अव्य॰—प्रति-अवर—-—निम्न पद का, कम सम्मानित
- प्रत्यवर—अव्य॰—प्रति-अवर—-—अधम, पतित, अत्यंत निगण्य
- प्रत्यश्मन्—पुं॰—प्रति-अश्मन्—-—गेरु
- प्रत्यहम्—अव्य॰—प्रति-अहम्—-—प्रतिदिन, हररोज, रोज
- प्रत्याकारः—पुं॰—प्रति-आकारः—-—कोष, म्यान
- प्रत्याघातः—पुं॰—प्रति-आघातः—-—प्रत्याक्रमण
- प्रत्याघातः—पुं॰—प्रति-आघातः—-—प्रतिक्रिया
- प्रत्याचारः—पुं॰—प्रति-आचारः—-—उपयुक्त अचरण या व्यवहार
- प्रत्यात्मम्—नपुं॰—प्रति-आत्मम्—-—अकेला, अलग अलग
- प्रत्यादित्य—नपुं॰—प्रति-आदित्य—-—झूठमूठ का सूरज
- प्रत्यारम्भः—पुं॰—प्रति-आरम्भः—-—फिर शुरु करना, दूसरी बार आरंभ करना
- प्रत्यारम्भः—पुं॰—प्रति-आरम्भः—-—प्रतिषेध
- प्रत्याशा—स्त्री॰—प्रति-आशा—-—उम्मीद, पूर्वधारणा
- प्रत्याशा—स्त्री॰—प्रति-आशा—-—विश्वास, भरोसा
- प्रत्युत्तरम्—नपुं॰—प्रति-उत्तरम्—-—जवाब, उत्तर का उत्तर
- प्रत्युलूकः —पुं॰—प्रति-उलूकः —-—कौवा
- प्रत्युलूकः —पुं॰—प्रति-उलूकः —-—उल्लू से मिलता-जुलता पक्षी
- प्रत्यर्च—अव्य॰—प्रति-ऋच—-—प्रत्येक ऋचा में
- प्रत्येक—वि॰—प्रति-एक—-—प्रत्येक, हरेक, हरकोई
- प्रत्येकम्—अव्य॰—प्रति-एकम्—-—एक एक करके, एक बर में एक, अलग, अलग, अकेला, हर एक में, हर एक को
- प्रति्कञ्चुकः—पुं॰—प्रति-कञ्चुकः—-—शत्रु
- प्रतिकण्ठम्—अव्य॰—प्रति-कण्ठम्—-—अलग अलग, एक एक करके
- प्रतिकण्ठम्—नपुं॰—प्रति-कण्ठम्—-—गले के निकट
- प्रतिकशः—वि॰—प्रति-कशः—-—उद्दंड, जो हण्टर से भी वश में न आवे
- प्रतिकायः—पुं॰—प्रति-कायः—-—पुतला, परतिमा, चित्र, समानता
- प्रतिकायः—पुं॰—प्रति-कायः—-—शत्रु
- प्रतिकायः—पुं॰—प्रति-कायः—-—लक्ष्य, चाँदमारी, निशान
- प्रतिकितवः—पुं॰—प्रति-कितवः—-—जूए में प्रतिद्वन्द्वी
- प्रतिकुञ्जरः—पुं॰—प्रति-कुञ्जरः—-—प्रतिरोधी हाथी
- प्रतिकूपः—पुं॰—प्रति-कूपः—-—परिवार, खाई
- प्रतिकूल—वि॰—प्रति-कूल—-—अननुकूल विरोधी, प्रतिपक्षी, विरुद्ध
- प्रतिकूल—वि॰—प्रति-कूल—-—कठोर, बेमेल, अप्रिय, अरुचिकर
- प्रतिकूल—वि॰—प्रति-कूल—-—अशुभ
- प्रतिकूल—वि॰—प्रति-कूल—-—विरोधी
- प्रतिकूल—वि॰—प्रति-कूल—-—उल्टा, व्युत्क्रान्त
- प्रतिकूल—वि॰—प्रति-कूल—-—विपरीत, आड़ा, कर्कश, कठोर
- प्रत्याचरितम्—नपुं॰—प्रति-आचरितम्—-—कुत्सित या आक्रमणात्मक कार्य अथवा आचरण
- प्रत्युक्तम्—स्त्री॰—प्रति-उक्तम्—-—विरोध
- प्रत्युक्तिः—स्त्री॰—प्रति-उक्तिः—-—विरोध
- प्रतिकारिन्—वि॰—प्रति-कारिन्—-—विरोध करने वाला
- प्रतिदर्शन्—वि॰—प्रति-दर्शन्—-—अशुभ अथवा अभद्र दर्शनों वाला
- प्रतिप्रवर्तिन्—अव्य॰—प्रति-प्रवर्तिन्—-—विपरीत कार्य करने वाला, उलटा मार्ग ग्रहन करने वाला
- प्रतिवर्तिन्—अव्य॰—प्रति-वर्तिन्—-—विपरीत कार्य करने वाला, उलटा मार्ग ग्रहन करने वाला
- प्रतिभाषिन्—वि॰—प्रति-भाषिन्—-—विरोध करने वाला, असंगत बोलने वाला
- प्रतिवचनम्—नपुं॰—प्रति-वचनम्—-—अरुचिकर या अप्रिय भाषण
- प्रतिकूलम्—अव्य॰—प्रति-कूलम्—-—विरोधी ढंग से, विपरीतता के साथ
- प्रतिकूलम्—अव्य॰—प्रति-कूलम्—-—उलटी तरह से, विपर्यस्त क्रम से
- प्रतिक्षणम्—अव्य॰—प्रति-क्षणम्—-—प्रत्येक क्षण, हर समय
- प्रतिगजः—पुं॰—प्रति-गजः—-—आक्रमणकारी हाथी
- प्रतिगात्रम्—अव्य॰—प्रति-गात्रम्—-—प्रत्येक अंग में
- प्रतिगिरिः—पुं॰—प्रति-गिरिः—-—सामने का पहाड़
- प्रतिगिरिः—पुं॰—प्रति-गिरिः—-—छोटा पहाड़
- प्रतिगृहम्—अव्य॰—प्रति-गृहम्—-—हर घर में
- प्रतिगेहम्—अव्य॰—प्रति-गेहम्—-—हर घर में
- प्रतिग्रामम्—अव्य॰—प्रति-ग्रामम्—-—हर गाँव में
- प्रतिचन्द्रः—पुं॰—प्रति-चन्द्रः—-—झूठमूठ का चाँद
- प्रतिचरणम्—अव्य॰—प्रति-चरणम्—-—प्रत्येक सिद्धान्त या शाखा में
- प्रतिचरणम्—अव्य॰—प्रति-चरणम्—-—हर पग पर
- प्रतिछाया—स्त्री॰—प्रति-छाया—-—प्रतिबिम्ब, परछाईं, खाया
- प्रतिछाया—स्त्री॰—प्रति-छाया—-—प्रतिमा, चित्र
- प्रतिजङ्घा—स्त्री॰—प्रति-जङ्घा—-—टाँग का अगला भाग
- प्रतिजिह्वा—स्त्री॰—प्रति-जिह्वा—-—गले की भीतर की घंटी, मांस-तालु, कोमल तालु
- प्रतिजिह्विका—स्त्री॰—प्रति-जिह्विका—-—गले की भीतर की घंटी, मांस-तालु, कोमल तालु
- प्रतितन्त्रम्—अव्य॰—प्रति-तन्त्रम्—-—प्रत्येक तंत्र या सम्मति के अनुसार
- प्रतितन्त्रसिद्धान्तः—पुं॰—प्रति-तन्त्रसिद्धान्तः—-—एक ऐसा सिद्धांत जिसको एक ही पक्ष ने माना हो
- प्रतित्र्यहम्—अव्य॰—प्रति-त्र्यहम्—-—लगातार तीन दिन तक
- प्रतिदिनम्—अव्य॰—प्रति-दिनम्—-—हर रोज
- प्रतिदिशम्—अव्य॰—प्रति-दिशम्—-—हर दिशा में, चारों ओर, सर्वत्र
- प्रतिदेशम्—अव्य॰—प्रति-देशम्—-—प्रत्येक देश में
- प्रतिदेहम्—अव्य॰—प्रति-देहम्—-—हरेक शरीर में
- प्रतिदैवतम्—अव्य॰—प्रति-दैवतम्—-—प्रत्येक देवता के निमित्त
- प्रतिद्वन्द्वः—पुं॰—प्रति-द्वन्द्वः—-—प्रतिस्पर्धी, विरोधी, शत्रु, प्रतिद्वंद्वी
- प्रतिद्वन्द्वः—पुं॰—प्रति-द्वन्द्वः—-—शत्रु
- प्रतिद्वन्द्वम्—नपुं॰—प्रति-द्वन्द्वम्—-—विरोध, शत्रुता
- प्रतिद्वन्द्विन्—वि॰—प्रति-द्वन्द्विन्—-—विरोधी, शत्रुतापूर्ण
- प्रतिद्वन्द्विन्—वि॰—प्रति-द्वन्द्विन्—-—प्रतिकूल
- प्रतिद्वन्द्विन्—वि॰—प्रति-द्वन्द्विन्—-—लागडांट रखने वाला, प्रतिस्पर्धाशील
- प्रतिद्वन्द्विन्—पुं॰—प्रति-द्वन्द्विन्—-—विरोधी, प्रतिपक्षी, प्रतिस्पर्धी
- प्रतिद्वारम्—अव्य॰—प्रति-द्वारम्—-—प्रत्येक दरवाजे पर
- प्रतिधुरः—पुं॰—प्रति-धुरः—-—दूसरे घोड़े के साथ जुड़ा हुआ घोड़ा
- प्रतिनप्तृ—पुं॰—प्रति-नप्तृ—-—प्रपौत्र, पौत्र का पुत्र
- प्रतिनव—वि॰—प्रति-नव—-—नूतन, युवा, ताजा
- प्रतिनव—वि॰—प्रति-नव—-—हाल का खिला हुआ, जिसमें अभी कलियाँ आई हों
- प्रतिनाडी—स्त्री॰—प्रति-नाडी—-—प्रशिरा, उपनाडी
- प्रतिनायकः—पुं॰—प्रति-नायकः—-—किसी काव्य का खलनायक जैसे रामायण में रावण, तथा माघकाव्य में शिशुपाल
- प्रतिपक्षः—पुं॰—प्रति-पक्षः—-—विरोधी पक्ष, दल या गुटबन्दी, शत्रुता
- प्रतिपक्षः—पुं॰—प्रति-पक्षः—-—प्रतिकूल, शत्रु, दुश्मन, प्रतिद्वंद्वी
- प्रतिकामिनी—स्त्री॰—प्रति-कामिनी—-—प्रतिद्वंद्वी पत्नी
- प्रतिकामिनी—स्त्री॰—प्रति-कामिनी—-—प्रतिवादी, मुद्दाल
- प्रतिपक्षित—वि॰—प्रति-पक्षित—-—विरोध से युक्त
- प्रतिपक्षिन्—वि॰—प्रति-पक्षिन्—-—विरोधात्मक प्रतिज्ञा से विफल किया हुआ, जो सत्प्रतिपक्ष नामक दोष से युक्त हो
- प्रतिपथम्—अव्य॰—प्रति-पथम्—-—मार्ग के साथ साथ, रास्ते की , रास्ते की ओर
- प्रतिपदम्—अव्य॰—प्रति-पदम्—-—प्रत्येक प्अग पर
- प्रतिपदम्—अव्य॰—प्रति-पदम्—-—प्रत्येक स्थान पर, सर्वत्र
- प्रतिपदम्—अव्य॰—प्रति-पदम्—-—प्रत्येक शब्द में
- प्रतिपादम्—अव्य॰—प्रति-पादम्—-—प्रत्येक चरण में
- प्रतिपात्रम्—अव्य॰—प्रति-पात्रम्—-—प्रत्येक भाग के विषय में
- प्रतिपात्रम्—अव्य॰—प्रति-पात्रम्—-—प्रत्येक पात्र के विषय में
- प्रतिपादपम्—अव्य॰—प्रति-पादपम्—-—प्रत्येक वृक्ष में
- प्रतिपाप—वि॰—प्रति-पाप—-—पाप के बदले पाप करने वाला, बुराई के बदले बुराई करने वाला
- प्रतिपुरुषः—पुं॰—प्रति-पुरुषः—-—समान या सदृश पुरुष
- प्रतिपुरुषः—पुं॰—प्रति-पुरुषः—-—स्थानापन्न, प्रतिनिधि
- प्रतिपुरुषः—पुं॰—प्रति-पुरुषः—-—साथी
- प्रतिपुरुषः—पुं॰—प्रति-पुरुषः—-—पुतला
- प्रतिपुरुषः—पुं॰—प्रति-पुरुषः—-—पुतला
- प्रतिपूरुषः—पुं॰—प्रति-पूरुषः—-—समान या सदृश पुरुष
- प्रतिपूरुषः—पुं॰—प्रति-पूरुषः—-—स्थानापन्न, प्रतिनिधि
- प्रतिपूरुषः—पुं॰—प्रति-पूरुषः—-—साथी
- प्रतिपूरुषः—पुं॰—प्रति-पूरुषः—-—पुतला
- प्रतिपूरुषः—पुं॰—प्रति-पूरुषः—-—पुतला
- प्रतिपूर्वाह्णम्—अव्य॰—प्रति-पूर्वाह्णम्—-—प्रत्येक मध्याह्नपूर्व, हर दोपहर से पहले
- प्रतिप्रभातम्—अव्य॰—प्रति-प्रभातम्—-—प्रत्येक सुबह
- प्रतिप्राकारः—पुं॰—प्रति-प्राकारः—-—बाहरी परकोटा या फसील
- प्रतिप्रियम्—नपुं॰—प्रति-प्रियम्—-—बदले में की गई कृपा या सेवा
- प्रतिबन्धुः—पुं॰—प्रति-बन्धुः—-—जो पद या स्थिति में समान हो
- प्रतिबल—वि॰—प्रति-बल—-—बल में समान, अपने जोड़े का, समान शक्तिशाली
- प्रतिबलम्—नपुं॰—प्रति-बलम्—-—शत्रु की सेना
- प्रतिबाहुः—पुं॰—प्रति-बाहुः—-—भुजा का अगला भाग, कोहनी से नीचे का भाग
- प्रतिविम्बः—पुं॰—प्रति-विम्बः—-—परछाईं, प्रतिमूर्ति
- प्रतिविम्बः—पुं॰—प्रति-विम्बः—-—प्रतिमा, चित्र
- प्रतिविम्बः—पुं॰—प्रति-विम्बः—-—परछाईं, प्रतिमूर्ति
- प्रतिविम्बः—पुं॰—प्रति-विम्बः—-—प्रतिमा, चित्र
- प्रति-बिम्बम्—नपुं॰—प्रति-बिम्बम्—-—परछाईं, प्रतिमूर्ति
- प्रति-बिम्बम्—नपुं॰—प्रति-बिम्बम्—-—प्रतिमा, चित्र
- प्रतिभट—वि॰—प्रति-भट—-—प्रतिस्पर्धी, प्रतिद्वंद्वी
- प्रतिभटः—पुं॰—प्रति-भटः—-—प्रतिद्वंद्वी, प्रतिपक्षी
- प्रतिभटः—पुं॰—प्रति-भटः—-—शत्रुपक्ष का योद्धा
- प्रतिभय—वि॰—प्रति-भय—-—भयावह, भीषण, भयंकर, भयानक
- प्रतिभय—वि॰—प्रति-भय—-—खतरनाक
- प्रतिभयम्—नपुं॰—प्रति-भयम्—-—भय, खतरा
- प्रतिमण्डलम्—नपुं॰—प्रति-मण्डलम्—-—केन्द्रभ्रष्ट परिवेश
- प्रतिमन्दिरम्—अव्य॰—प्रति-मन्दिरम्—-—प्रत्येक घर में
- प्रतिमल्लः—पुं॰—प्रति-मल्लः—-—प्रतिस्पर्धी, प्रतिद्वंद्वी
- प्रतिमायाः—स्त्री॰—प्रति-मायाः—-—जवाबी जादू
- प्रतिमासम्—अव्य॰—प्रति-मासम्—-—प्रतिमास, मासिक
- प्रतिमित्रम्—नपुं॰—प्रति-मित्रम्—-—शत्रु, विरोधी
- प्रतिमुख—वि॰—प्रति-मुख—-—मुंह के सामने खड़ा हुआ, सामने स्थित
- प्रतिमुख—वि॰—प्रति-मुख—-—निकटवर्ती, उपस्थित
- प्रतिमुखम्—नपुं॰—प्रति-मुखम्—-—नाटक की एक घटना या गौणकथावस्तु जो नाटक के महान् परिवर्तन या उलट फेर को या तो जल्दी लादे या और भी अधिक देर कर दे
- प्रतिमुद्रा—स्त्री॰—प्रति-मुद्रा—-—मुकाबले की मोहर
- प्रतिमुहूर्तम्—अव्य॰—प्रति-मुहूर्तम्—-—प्रतिक्षण
- प्रतिमूर्तिः—स्त्री॰—प्रति-मूर्तिः—-—प्रतिना, समानता
- प्रतियूथपः—पुं॰—प्रति-यूथपः—-—आक्रमणकारी हाथियों के झुंड का अगुआ या नेता
- प्रतिरथः—पुं॰—प्रति-रथः—-—प्रतिपक्षी योद्धा
- प्रतिराजः—पुं॰—प्रति-राजः—-—विरोधी राजा
- प्रतिरात्रम्—अव्यं—प्रति-रात्रम्—-—हर रात
- प्रतिरूप—वि॰—प्रति-रूप—-—तदनुरूप, समान, मुकाबले का भाग रखने वाला
- प्रतिरूप—वि॰—प्रति-रूप—-—उपयुक्त, समुचित
- प्रतिरूपम्—नपुं॰—प्रति-रूपम्—-—चित्र, प्रतिमा
- प्रतिलक्षणम्—नपुं॰—प्रति-लक्षणम्—-—निशान, चिह्न, प्रतीक
- प्रतिलिपिः—स्त्री॰—प्रति-लिपिः—-—लेख की नकल, लिखी हुई प्रति
- प्रतिलोम—वि॰—प्रति-लोम—-—नैसर्गिक क्रम के बिरुद्ध, व्युत्क्रान्त. उलटा
- प्रतिलोम—वि॰—प्रति-लोम—-—जाति विरुद्ध
- प्रतिलोम—वि॰—प्रति-लोम—-—विरोधी
- प्रतिलोम—वि॰—प्रति-लोम—-—नीच, दुष्ट, अधम
- प्रतिलोम—वि॰—प्रति-लोम—-—वाम
- प्रतिलोमम्—अव्य॰—प्रति-लोमम्—-—बालों के विपरीत, अनाज के विरुद्ध उलटा, विपर्यस्त रूप से
- प्रतिज—वि॰—प्रति-ज—-—जाति के विपरीत क्रम में उत्पन्न अर्थात् अपने पति से उच्चवर्ण की स्त्री की सन्तान
- प्रतिलोमकम्—नपुं॰—प्रति-लोमकम्—-—उलटा क्रम, विपरीत क्रम
- प्रतिवत्सरम्—अव्य॰—प्रति-वत्सरम्—-—प्रतिवर्ष, हर साल
- प्रतिवनम्—नपुं॰—प्रति-वनम्—-—हर जंगल में
- प्रतिवर्षम्—अव्य॰—प्रति-वर्षम्—-—हरसाल
- प्रतिवस्तु—नपुं॰—प्रति-वस्तु—-—समान, प्रतिमूर्ति
- प्रतिवस्तु—नपुं॰—प्रति-वस्तु—-—प्रतिदान
- प्रतिवस्तु—नपुं॰—प्रति-वस्तु—-—समानता, तुल्यता
- प्रतिउपमा—स्त्री॰—प्रति-उपमा—-—एक अलंकार जिसकी परिभाषा मम्मट ने यह दी है-प्रतिवस्तूपमा तु सा, सामान्यस्य द्विरेकस्य यत्र वाक्यद्वये स्थितिः @ काव्य॰ १०
- प्रतिवातः—पुं॰—प्रति-वातः—-—उलटी हवा
- प्रतिवातम्—अव्य॰—प्रति-वातम्—-—हवा के विरुद्ध
- प्रतिवासरम्—अव्य॰—प्रति-वासरम्—-—प्रतिदिन
- प्रतिविपटम्—अव्य॰—प्रति-विपटम्—-—प्रत्येक शाखा पर
- प्रतिविपटम्—अव्य॰—प्रति-विपटम्—-—एक एक शाखा पर
- प्रतिवेदम्—अव्य॰—प्रति-वेदम्—-—प्रत्येक वेद में या हरेक वेद के लिए
- प्रतिविषम्—नपुं॰—प्रति-विषम्—-—विषप्रतीकारक औषधि
- प्रतिविष्णुकः—पुं॰—प्रति-विष्णुकः—-—मुचकुन्द वृक्ष
- प्रतिवीरः—पुं॰—प्रति-वीरः—-—विपक्षी, शत्रु
- प्रतिवृषः—पुं॰—प्रति-वृषः—-—आक्रमणकारी बैल
- प्रतिवेलम्—अव्य॰—प्रति-वेलम्—-—हर समय, प्रत्येक अवसर पर
- प्रतिवेशः—पुं॰—प्रति-वेशः—-—पड़ौस का घर, आसपास
- प्रतिवेशः—पुं॰—प्रति-वेशः—-—पड़ौसी
- प्रतिवैरम्—नपुं॰—प्रति-वैरम्—-—वैर प्रतिशोध, बदला, प्रतिहिंसा
- प्रतिशब्दः—पुं॰—प्रति-शब्दः—-—प्रतिदध्वनि, गूँज
- प्रतिशब्दः—पुं॰—प्रति-शब्दः—-—गरज, दहाड़
- प्रतिशशिन्—पुं॰—प्रति-शशिन्—-—झूठमूठ का चाँद
- प्रतिसंवत्सरम्—अव्य॰—प्रति-संवत्सरम्—-—प्रतिवर्ष, हर साल
- प्रतिसम—वि॰—प्रति-सम—-—तुल्य, जोड़ का
- प्रतिसव्य—वि॰—प्रति-सव्य—-—विपर्यस्त क्रम में
- प्रतिसायम्—अव्य॰—प्रति-सायम्—-—प्रतिसंध्या, हर साँझ
- प्रतिसूर्यः—अव्य॰—प्रति-सूर्यः—-—झूठमूठ का सूरज
- प्रतिसूर्यः—अव्य॰—प्रति-सूर्यः—-—छिपकली, गिरगिट
- प्रतिसूर्यकः—अव्य॰—प्रति-सूर्यकः—-—झूठमूठ का सूरज
- प्रतिसूर्यकः—अव्य॰—प्रति-सूर्यकः—-—छिपकली, गिरगिट
- प्रतिसेना—स्त्री॰—प्रति-सेना—-—शत्रु की सेना
- प्रतिस्थानम्—अव्य॰—प्रति-स्थानम्—-—हर स्थान में, हर स्थान पर
- प्रतिस्रोतम्—नपुं॰—प्रति-स्रोतम्—-—धारा के विपरीत
- प्रतिहस्तः—पुं॰—प्रति-हस्तः—-—प्रतिनिधि, अभिकर्ता, स्थानापन्न, प्रतिपुरुष
- प्रतिहस्तकः—पुं॰—प्रति-हस्तकः—-—प्रतिनिधि, अभिकर्ता, स्थानापन्न, प्रतिपुरुष
- प्रतिक—वि॰—-—कार्षापण+टिठन्, कार्षापणस्य प्रत्यादेशः—कार्षापण के मूल्य का या कार्षापण से खरीदा हुआ
- प्रतिकरः—पुं॰—-—प्रति+कृ+अप्—प्रतिशोध, क्षतिपूर्ति
- प्रतिकर्तृ—वि॰—-—प्रति+कृ+तृच्—प्रतिशोध लेने वाला, क्षतिपूर्ति करने वाला
- प्रतिकर्तृ—पुं॰—-—प्रति+कृ+तृच्—विरोधॊ, विपक्षी
- प्रतिकर्मन्—नपुं॰—-—प्रति+कृ+मनिन्—प्रतिशोध, प्रतिहिंसा
- प्रतिकर्मन्—नपुं॰—-—प्रति+कृ+मनिन्—हर्जाना, उपचार, प्रतिकार, शारीरिक श्रृंगार, रूपसज्जा, प्रसाधन, शरीर-सज्जा
- प्रतिकर्मन्—नपुं॰—-—प्रति+कृ+मनिन्—विरोध, शत्रुता
- प्रतिकर्षः—पुं॰—-—प्रति+कृष्+घञ्—एकत्रीकरण, संयोजन
- प्रतिकर्षः—पुं॰—-—प्रति+कृष्+घञ्—पूर्व विचार
- प्रतिकषः—पुं॰—-—प्रति+कष्+अच्—नेता
- प्रतिकषः—पुं॰—-—प्रति+कष्+अच्—सहायक
- प्रतिकषः—पुं॰—-—प्रति+कष्+अच्—संदेशहर
- प्रतिकारः—पुं॰—-—प्रति=कृ+घञ्, पक्षे उपसर्गस्य दीर्घः—प्रतिशोध, पुरस्कार, प्रतिदान
- प्रतिकारः—पुं॰—-—प्रति=कृ+घञ्, पक्षे उपसर्गस्य दीर्घः—बदला, प्रतिहिंसा, प्रतिफल
- प्रतिकारः—पुं॰—-—प्रति=कृ+घञ्, पक्षे उपसर्गस्य दीर्घः—प्रतिविधान, निवारन, रोक-थाम, उपचार, इलाज या चिकित्सा
- प्रतिकारः—पुं॰—-—प्रति=कृ+घञ्, पक्षे उपसर्गस्य दीर्घः—विरोध
- प्रतीकारः—पुं॰—-—प्रति=कृ+घञ्, पक्षे उपसर्गस्य दीर्घः—प्रतिशोध, पुरस्कार, प्रतिदान
- प्रतीकारः—पुं॰—-—प्रति=कृ+घञ्, पक्षे उपसर्गस्य दीर्घः—बदला, प्रतिहिंसा, प्रतिफल
- प्रतीकारः—पुं॰—-—प्रति=कृ+घञ्, पक्षे उपसर्गस्य दीर्घः—प्रतिविधान, निवारन, रोक-थाम, उपचार, इलाज या चिकित्सा
- प्रतीकारः—पुं॰—-—प्रति=कृ+घञ्, पक्षे उपसर्गस्य दीर्घः—विरोध
- प्रतिकारकर्मन्—नपुं॰—प्रतिकारः-कर्मन्—-—जीणोद्धार करना, सुधार करना
- प्रतिकारकर्मन्—नपुं॰—प्रतीकारः-कर्मन्—-—जीणोद्धार करना, सुधार करना
- प्रतिकारविधानम्—नपुं॰—प्रतिकारः-विधानम्—-—इलाज करना, चिकित्सा करना
- प्रतिकारविधानम्—नपुं॰—प्रतीकारः-विधानम्—-—इलाज करना, चिकित्सा करना
- प्रतिकाशः—पुं॰—-—प्रति+कश्+घञ्, पक्षे उपसर्गस्य दीर्घः—परछाईं
- प्रतिकाशः—पुं॰—-—प्रति+कश्+घञ्, पक्षे उपसर्गस्य दीर्घः—दृष्टि, दर्शन, सादृश्य
- प्रतीकाशः—पुं॰—-—प्रति+कश्+घञ्, पक्षे उपसर्गस्य दीर्घः—परछाईं
- प्रतीकाशः—पुं॰—-—प्रति+कश्+घञ्, पक्षे उपसर्गस्य दीर्घः—दृष्टि, दर्शन, सादृश्य
- प्रतिकुंचित—वि॰—-—प्रति+कुञ्च्+क्त—झुका हुआ, मुड़ा हुआ
- प्रतिकृत—भू॰ क॰ कृ—-—प्रति+कृ+क्त—वापिस किया हुआ, लौटाया हुआ, प्रतिशोधित, प्रतिहिंसित
- प्रतिकृत—भू॰ क॰ कृ—-—प्रति+कृ+क्त—प्रतिविहित, उपचार किया हुआ
- प्रतिकृतिः—स्त्री॰—-—प्रति+कृ+क्तिन्—बदला, प्रतिहिंसा
- प्रतिकृतिः—स्त्री॰—-—प्रति+कृ+क्तिन्—वापसी, प्रतिशोध
- प्रतिकृतिः—स्त्री॰—-—प्रति+कृ+क्तिन्—परछाईं, प्रतिबिंब
- प्रतिकृतिः—स्त्री॰—-—प्रति+कृ+क्तिन्—समानता, चित्र, मूर्ति, प्रतिमा
- प्रतिकृतिः—स्त्री॰—-—प्रति+कृ+क्तिन्—स्थानापन्न
- प्रतिकृष्टः—भू॰ क॰ कृ—-—प्रति+कृष्+क्त—दोबारा जोता हुआ
- प्रतिकृष्टः—भू॰ क॰ कृ—-—प्रति+कृष्+क्त—पीछे ढकेला हुआ, तिरस्कृत, अस्वीकृत
- प्रतिकृष्टः—भू॰ क॰ कृ—-—प्रति+कृष्+क्त—छिपाया हुआ, गुप्त
- प्रतिकृष्टः—भू॰ क॰ कृ—-—प्रति+कृष्+क्त—नीच, दुष्ट, अधम
- प्रतिकोपः—पुं॰—-—प्रति+कुप्+घञ्—क्रोध के प्रति होने वाला क्रोध
- प्रतिक्रोधः—पुं॰—-—प्रति+क्रुध्+घञ्—क्रोध के प्रति होने वाला क्रोध
- प्रतिक्रमः—पुं॰—-—प्रति+क्रम्+घञ्—उलटा क्रम
- प्रतिक्रिया—स्त्री॰—-—प्रति+कृ+श, इयङ+टाप्—क्षतिपूर्ति, प्रतिशोध
- प्रतिक्रिया—स्त्री॰—-—प्रति+कृ+श, इयङ+टाप्—प्रतिहिंसा, बदला, प्रतिफल
- प्रतिक्रिया—स्त्री॰—-—प्रति+कृ+श, इयङ+टाप्—प्रतिविधान, प्रतीकार, दूरीकरण
- प्रतिक्रिया—स्त्री॰—-—प्रति+कृ+श, इयङ+टाप्—विरोध
- प्रतिक्रिया—स्त्री॰—-—प्रति+कृ+श, इयङ+टाप्—शरीरसज्जा, श्रृंगार, रूपसज्जा
- प्रतिक्रिया—स्त्री॰—-—प्रति+कृ+श, इयङ+टाप्—रक्षा
- प्रतिक्रिया—स्त्री॰—-—प्रति+कृ+श, इयङ+टाप्—सहायता, कुमक या सहाय्य
- प्रतिक्रुष्ट—वि॰—-—प्रति+क्रुश्+क्त—दयनीय, बेचारा, गरीब
- प्रतिक्षयः—पुं॰—-—प्रति+क्षि+अच्—संरक्षक, टहलुआ
- प्रतिक्षिप्त—भू॰ क॰ कृ—-—प्रति+क्षिप्+क्त—रद्द किया हुआ, अस्वीकृत, हटाया हुआ
- प्रतिक्षिप्त—भू॰ क॰ कृ—-—प्रति+क्षिप्+क्त—प्रतिकृत, प्रतिरुद्ध, पीछे ढकेला हुआ, अवरुद्ध किया हुआ
- प्रतिक्षिप्त—भू॰ क॰ कृ—-—प्रति+क्षिप्+क्त—अपभाषित, भर्त्सना किया हुआ, बदनाम किया हुआ
- प्रतिक्षिप्त—भू॰ क॰ कृ—-—प्रति+क्षिप्+क्त—भेजा हुआ, प्रेषित
- प्रतिक्षुतम्—नपुं॰—-—प्रति+क्षु+क्त—छींक
- प्रतिक्षेपः—पुं॰—-—प्रति+क्षिप्+घञ्—प्राप्ति, स्वीकार न करना, अस्वीकृति
- प्रतिक्षेपः—पुं॰—-—प्रति+क्षिप्+घञ्—विरोध करना, खण्डन करना, प्रतिवाद करना
- प्रतिक्षेपः—पुं॰—-—प्रति+क्षिप्+घञ्—विवाद
- प्रतिख्यातिः—स्त्री॰—-—प्रति+ख्या+क्तिन्—विश्रुति, प्रसिद्धि
- प्रतिगत—भू॰ क॰ कृ—-—प्रति+गम्+क्त—अआगे या पीछे उड़ान भरना, इधर उधर चक्कर काटना
- प्रतिगमनम्—नपुं॰—-—प्रति+गम्+ल्युट्—लौटना, वापिस जाना, वापसी
- प्रतिगर्हित—भू॰ क॰ कृ—-—प्रति+गर्ह्+क्त—कलंलित, निन्दित
- प्रतिगर्जना—स्त्री॰—-—प्रति+गर्ज्+युच्+टाप्—गर्जन के जवाब में गर्जना करना, किसी की दहाड़ सुनकर दहाड़ना
- प्रतिगृहीत—भू॰ क॰ कृ—-—प्रति+ग्रह्+क्त—लिया, ग्रहण किया, स्वीकार किया
- प्रतिगृहीत—भू॰ क॰ कृ—-—प्रति+ग्रह्+क्त—मान लिया, हामी भरी
- प्रतिगृहीत—भू॰ क॰ कृ—-—प्रति+ग्रह्+क्त—विवाह किया
- प्रतिग्रहः—पुं॰—-—प्रति+ग्रह्+अप्—ग्रहण करना, स्वीकार करना
- प्रतिग्रहः—पुं॰—-—प्रति+ग्रह्+अप्—दान ग्रहण करना या स्वीकार करना
- प्रतिग्रहः—पुं॰—-—प्रति+ग्रह्+अप्—दान ग्रहण करने का अधिकार
- प्रतिग्रहः—पुं॰—-—प्रति+ग्रह्+अप्—उपहार ग्रहण करने का अधिकार
- प्रतिग्रहः—पुं॰—-—प्रति+ग्रह्+अप्—भेंट, उपहार, दान
- प्रतिग्रहः—पुं॰—-—प्रति+ग्रह्+अप्—ग्रहण करने वाला
- प्रतिग्रहः—पुं॰—-—प्रति+ग्रह्+अप्—सादर स्वागत
- प्रतिग्रहः—पुं॰—-—प्रति+ग्रह्+अप्—अनुग्रह, शान
- प्रतिग्रहः—पुं॰—-—प्रति+ग्रह्+अप्—पाणिग्रहण
- प्रतिग्रहः—पुं॰—-—प्रति+ग्रह्+अप्—ध्यान पूर्वक सुननासेना का पिछला भाग
- प्रतिग्रहः—पुं॰—-—प्रति+ग्रह्+अप्—पीक दान
- प्रतिग्रहणम्—नपुं॰—-—प्रति+ग्रह्+ल्युट्—उपहार ग्रहण
- प्रतिग्रहणम्—नपुं॰—-—प्रति+ग्रह्+ल्युट्—स्वागत
- प्रतिग्रहणम्—नपुं॰—-—प्रति+ग्रह्+ल्युट्—पाणिग्रहण
- प्रतिग्रहिन्—पुं॰—-—प्रतिग्रह+इनि—ग्रहण करने वाला, ग्रहीता
- प्रतिगृहीतृ—पुं॰—-—प्रति+ग्रह्+तृच्—ग्रहण करने वाला, ग्रहीता
- प्रतिग्राहः—पुं॰—-—प्रति+ग्रह्+ण—उपहार स्वीकार करना
- प्रतिग्राहः—पुं॰—-—प्रति+ग्रह्+ण—थूकदान, पीक दान
- प्रतिघः—पुं॰—-—प्रति+हन्+ड, कुत्वम्—विरोध, मुकाबला
- प्रतिघः—पुं॰—-—प्रति+हन्+ड, कुत्वम्—लड़ाई, संघर्ष, आपस की मारपीट
- प्रतिघः—पुं॰—-—प्रति+हन्+ड, कुत्वम्—क्रोध, रोष
- प्रतिघः—पुं॰—-—प्रति+हन्+ड, कुत्वम्—मूर्छा
- प्रतिघः—पुं॰—-—प्रति+हन्+ड, कुत्वम्—शत्रु
- प्रतिघातः—पुं॰—-—प्रति+हन्+णिच्+अप्, पक्षे उपसर्गस्य दीर्घः—दूर हटाना, पीछे ढकेलना,
- प्रतिघातः—पुं॰—-—प्रति+हन्+णिच्+अप्, पक्षे उपसर्गस्य दीर्घः—विरोध, मुकाबला
- प्रतिघातः—पुं॰—-—प्रति+हन्+णिच्+अप्, पक्षे उपसर्गस्य दीर्घः—आघात के बदले आघात, जवाबी आघात
- प्रतिघातः—पुं॰—-—प्रति+हन्+णिच्+अप्, पक्षे उपसर्गस्य दीर्घः—प्रतिक्षेप, प्रतिकार
- प्रतिघातः—पुं॰—-—प्रति+हन्+णिच्+अप्, पक्षे उपसर्गस्य दीर्घः—प्रतिषेध
- प्रतीघातः—पुं॰—-—प्रति+हन्+णिच्+अप्, पक्षे उपसर्गस्य दीर्घः—दूर हटाना, पीछे ढकेलना,
- प्रतीघातः—पुं॰—-—प्रति+हन्+णिच्+अप्, पक्षे उपसर्गस्य दीर्घः—विरोध, मुकाबला
- प्रतीघातः—पुं॰—-—प्रति+हन्+णिच्+अप्, पक्षे उपसर्गस्य दीर्घः—आघात के बदले आघात, जवाबी आघात
- प्रतीघातः—पुं॰—-—प्रति+हन्+णिच्+अप्, पक्षे उपसर्गस्य दीर्घः—प्रतिक्षेप, प्रतिकार
- प्रतीघातः—पुं॰—-—प्रति+हन्+णिच्+अप्, पक्षे उपसर्गस्य दीर्घः—प्रतिषेध
- प्रतिघातनम्—नपुं॰—-—प्रति+हन्+णिच्+ल्युट्—पीछे ढकेलना, दूर हटाना
- प्रतिघातनम्—नपुं॰—-—प्रति+हन्+णिच्+ल्युट्—वध, हत्या
- प्रतिघ्नम्—नपुं॰—-—प्रति+हन्+क—शरीर
- प्रतिचिकीर्षा—स्त्री॰—-—प्रति+कृ+सन्+टाप्—बदले की इच्छा, प्रतिहिंसा की इच्छा, बदला लेने की अभिलाषा
- प्रतिचिन्तनम्—नपुं॰—-—प्रति+चिन्त्+ल्युट्—मनन करना, गहन चिंतन करना
- प्रतिच्छदनम्—नपुं॰—-—प्रति+छद्+ल्युट्—ढकना, चादर
- प्रतिच्छंदः—पुं॰—-—प्रति+छन्द्+घञ्—समानता, चित्र, मूर्ति, प्रतिमा
- प्रतिच्छंदः—पुं॰—-—प्रति+छन्द्+घञ्—स्थानापन्न
- प्रतिच्छंदकः—पुं॰—-—प्रति+छन्द्+कन्—समानता, चित्र, मूर्ति, प्रतिमा
- प्रतिच्छंदकः—पुं॰—-—प्रति+छन्द्+कन्—स्थानापन्न
- प्रतिच्छिन्न—भू॰ क॰ कृ—-—प्रति+छद्+क्त—ढका हुआ, आच्छादित, लपेटा हुआ
- प्रतिच्छिन्न—भू॰ क॰ कृ—-—प्रति+छद्+क्त—छिपाया हुआ, गुप्त
- प्रतिच्छिन्न—भू॰ क॰ कृ—-—प्रति+छद्+क्त—जुटाया हुआ, पूर्वसंचित
- प्रतिच्छिन्न—भू॰ क॰ कृ—-—प्रति+छद्+क्त—गोट या मग्जी लगाया हुआ, जड़ा हुआ
- प्रतिच्छेदः—पुं॰—-—प्रति+छिद्+घञ्—मुकाबला, विरोध
- प्रतिजल्पः—पुं॰—-—प्रति+जल्प्+घञ्—उत्तर, जवाब
- प्रतिजल्पकः—पुं॰—-—प्रतिजल्प+कन्—सादर सहमति
- प्रतिजागरः—पुं॰—-—प्रति+जागृ+घञ्‘—निगरानी, देख-रेख, सावधानी
- प्रतिजीवनम्—नपुं॰—-—प्रति+जीव्+ल्युट्—पुनर्जीवन, पुनः सजीवता
- प्रतिज्ञा—स्त्री॰—-—प्रति+ज्ञा+अङ्+टाप्—मानना, अंगीकार करना
- प्रतिज्ञा—स्त्री॰—-—प्रति+ज्ञा+अङ्+टाप्—व्रत, वचन, वादा, औपचारिक घोषणा
- प्रतिज्ञा—स्त्री॰—-—प्रति+ज्ञा+अङ्+टाप्—उक्ति, दृढोक्ति, घोषणा, प्रकथन
- प्रतिज्ञा—स्त्री॰—-—प्रति+ज्ञा+अङ्+टाप्—प्रस्थापना, सवाक्य पंचागी अनुमान का प्रथम अंग, दे॰ न्याय के अन्तर्गत
- प्रतिज्ञा—स्त्री॰—-—प्रति+ज्ञा+अङ्+टाप्—अभियोग, आरोपपत्र
- प्रतिज्ञापत्रम्—नपुं॰—प्रतिज्ञा-पत्रम्—-—बंधपत्र, लिखित संविदापत्र
- प्रतिज्ञाभङ्गः—पुं॰—प्रतिज्ञा-भङ्गः—-—प्रतिज्ञा का तोड़ देना
- प्रतिज्ञाविरोधः—पुं॰—प्रतिज्ञा-विरोधः—-—वचन के विरुद्ध आचरण करना
- प्रतिज्ञाविवाहित—वि॰—प्रतिज्ञा-विवाहित—-—जिसकी सगाई हो गई हो
- प्रतिज्ञासन्यासः—पुं॰—प्रतिज्ञा-सन्यासः—-—वचन भंग करना
- प्रतिज्ञासन्यासः—पुं॰—प्रतिज्ञा-सन्यासः—-—मूल प्रस्ताव का त्याग कर देना
- प्रतिज्ञात—भू॰ क॰ कृ॰—-—प्रति+ज्ञा+अङ्+टाप्—उद्घोषित, उक्त, दृढ़ता पूर्वक कथित
- प्रतिज्ञात—भू॰ क॰ कृ॰—-—प्रति+ज्ञा+अङ्+टाप्—वचनबद्ध, सहमत
- प्रतिज्ञात—भू॰ क॰ कृ॰—-—प्रति+ज्ञा+अङ्+टाप्—माना हुआ, अंगीकृत
- प्रतिज्ञातम्—नपुं॰—-—प्रति+ज्ञा+अङ्+टाप्+ क्त—वचन, वादा
- प्रतिज्ञानम्—नपुं॰—-—प्रति+ज्ञा+ल्युट्—दृढ़ोक्ति, प्रकथन
- प्रतिज्ञानम्—नपुं॰—-—प्रति+ज्ञा+ल्युट्—करार, वादा
- प्रतिज्ञानम्—नपुं॰—-—प्रति+ज्ञा+ल्युट्—मानना, स्वीकार करना
- प्रतितरः—पुं॰—-—प्रति+तृ+अप्—डांड खेने वाला, मल्लाह या नाविक
- प्रतिताली—स्त्री॰, प्रा॰ स॰ —-—प्रतिगता तालम्-ङीष्—कुंजी, चाबी
- प्रतिदर्शनम्—नपुं॰—-—प्रति+दृश्+ल्युट्—देखना, प्रत्यक्ष करना
- प्रतिदानम्—नपुं॰—-—प्रति+दा+ल्युट्—पलटाना, प्रत्यर्पण, वापिस देना, पुनराप्ति
- प्रतिदानम्—नपुं॰—-—प्रति+दा+ल्युट्—विनिमय, वस्तुओं की अदलाबदली
- प्रतिदारणम्—नपुं॰—-—प्रति+दृ+णिच्+ल्युट्—लड़ाई, युद्ध
- प्रतिदारणम्—नपुं॰—-—प्रति+दृ+णिच्+ल्युट्—फाड़ना
- प्रतिदिवन्—पुं॰—-—प्रति+दिव्+कनिन्—दिन
- प्रतिदिवन्—पुं॰—-—प्रति+दिव्+कनिन्—सूर्य
- प्रतिदृष्ट—भू॰ क॰ कृ॰—-—प्रति+दृश्+क्त—देखा हुआ
- प्रतिदृष्ट—भू॰ क॰ कृ॰—-—प्रति+दृश्+क्त—दृष्टिगोचर, दृश्यमान
- प्रतिधावनम्—नपुं॰—-—प्रति+धाव+ल्युट्—धावा बोलना, हमला करना, आक्रमण करना
- प्रतिध्वनिः—पुं॰—-—प्रति+ध्वन्+इ—गूँज, प्रतिधवनन
- प्रतिध्वानः—पुं॰—-—प्रति+ध्वन्+धञ्—गूँज, प्रतिधवनन
- प्रतिध्वस्त—भू॰ क॰ कृ॰—-—प्रति+ध्वंस्+क्त—पछाड़ कर नीचे गिराया हुआ, अधोमुख, खिन्न
- प्रतिनन्दनम्—नपुं॰—-—प्रति+नन्द्+ल्युट्—बधाई देना, स्वागत करना
- प्रतिनन्दनम्—नपुं॰—-—प्रति+नन्द्+ल्युट्—धन्यवाद देना
- प्रतिनादः—पुं॰—-—प्रति+नद्+धञ्—गूँज, प्रतिधवनि
- प्रतिनाहः—पुं॰—-—प्रति+नह+घञ्, पक्षे उपसर्गस्य दीर्घः—झंडा, पताका
- प्रतीनाहः—पुं॰—-—प्रति+नह+घञ्, पक्षे उपसर्गस्य दीर्घः—झंडा, पताका
- प्रतिनिधिः—पुं॰—-—प्रति+नि+धा+कि—स्थानापन्न, एवजी, वह व्यक्ति जो किसी दूसरे के बदले काम पर लगाया जाय
- प्रतिनिधिः—पुं॰—-—प्रति+नि+धा+कि—सहायक, प्रणिधि
- प्रतिनिधिः—पुं॰—-—प्रति+नि+धा+कि—स्थानापत्ति
- प्रतिनिधिः—पुं॰—-—प्रति+नि+धा+कि—जामिन
- प्रतिनिधिः—पुं॰—-—प्रति+नि+धा+कि—प्रतिमा, समानता, चित्र
- प्रतिनियमः—पुं॰, प्रा॰ स॰—-—-—सामान्य नियम
- प्रतिनिर्जित—भू॰ क॰ कृ॰—-—प्रति+नि+जि+क्त—पराजित, परास्त्त
- प्रतिनिर्जित—भू॰ क॰ कृ॰—-—प्रति+नि+जि+क्त—निराकृत, निरस्त
- प्रतिनिर्देश्य—वि॰—-—प्रति+निर्+दिश्+ण्यत्—जो पहला कहा हुआ होने पर भी फिर दोहराया जाय जिससे कि तत्संबंधी और कुछ फिर दोहराया जाय जिससे कि तत्संबंधी और कुच भी कह दिया जाय
- प्रतिनिर्यातम्—नपुं॰—-—प्रति+निर्+यत्+णिच्+ल्युट्—प्रतिशोध, प्रतिहिंसा
- प्रतिनिविष्ट—वि॰—-—प्रति+नि+विश्+क्त—दुराग्रही, हठी, पक्का, जिद्दी
- प्रतिनिविष्टमूर्खः—पुं॰—प्रतिनिविष्ट-मूर्खः—-—दुराग्रही, बेवकूफ, पक्का बुद्धु
- प्रतिनिवर्तनम्—नपुं॰—-—प्रति+नि+वृत्+ल्युट्—लौटाना, वापसी
- प्रतिनिवर्तनम्—नपुं॰—-—प्रति+नि+वृत्+ल्युट्—मुड़ना
- प्रतिनोदः—पुं॰—-—प्रति+नुद+घञ्—पीछे ढकेलना, पीछे हटाना
- प्रतिपत्तिः—स्त्री॰—-—प्रति+पद्+क्तिन्—हासिल करना, अवाप्ति, उपलब्धि
- प्रतिपत्तिः—स्त्री॰—-—प्रति+पद्+क्तिन्—प्रत्यक्षज्ञान, अवक्षेण, चेतना, ज्ञान
- प्रतिपत्तिः—स्त्री॰—-—प्रति+पद्+क्तिन्—हामी भरना, आज्ञा पालन, स्वीकरण
- प्रतिपत्तिः—स्त्री॰—-—प्रति+पद्+क्तिन्—माल लेना, अभिस्वीकृति
- प्रतिपत्तिः—स्त्री॰—-—प्रति+पद्+क्तिन्—दृढ़ोक्ति, उक्ति
- प्रतिपत्तिः—स्त्री॰—-—प्रति+पद्+क्तिन्—समारंभ, शुरु, उपक्रम
- प्रतिपत्तिः—स्त्री॰—-—प्रति+पद्+क्तिन्—कार्यवाही, प्रगमन, क्रियाविधि
- प्रतिपत्तिः—स्त्री॰—-—प्रति+पद्+क्तिन्—अनुष्ठान, करना, प्रगमन करना
- प्रतिपत्तिः—स्त्री॰—-—प्रति+पद्+क्तिन्—दृढ़ संकल्प, निश्चित धारणा
- प्रतिपत्तिः—स्त्री॰—-—प्रति+पद्+क्तिन्—समाचार, गुप्त वार्ता
- प्रतिपत्तिः—स्त्री॰—-—प्रति+पद्+क्तिन्—सम्मान, आदर, पूजनीयता का चिह्न, आदरयुक्त व्यवहार
- प्रतिपत्तिः—स्त्री॰—-—प्रति+पद्+क्तिन्—प्रणाली, उपाय
- प्रतिपत्तिः—स्त्री॰—-—प्रति+पद्+क्तिन्—बुद्धि, प्रज्ञा
- प्रतिपत्तिः—स्त्री॰—-—प्रति+पद्+क्तिन्—रिवाज, प्रयोग
- प्रतिपत्तिः—स्त्री॰—-—प्रति+पद्+क्तिन्—उन्नति, तरक्की, उच्चपद प्राप्ति
- प्रतिपत्तिः—स्त्री॰—-—प्रति+पद्+क्तिन्—यश, प्रसिद्धि, ख्याति
- प्रतिपत्तिः—स्त्री॰—-—प्रति+पद्+क्तिन्—साहस, भरोसा, विश्वास
- प्रतिपत्तिः—स्त्री॰—-—प्रति+पद्+क्तिन्—सम्प्रत्याय, प्रमाण
- प्रतिपत्तिदक्ष—वि॰—प्रतिपत्तिः-दक्ष—-—कार्य विधि का ज्ञाता
- प्रतिपत्तिपटहः—पुं॰—प्रतिपत्तिः-पटहः—-—एक प्रकार का नगाड़ा
- प्रतिपत्तिभेदः—पुं॰—प्रतिपत्तिः-भेदः—-—मतभेद, दृढ्टिकोण में अन्तर
- प्रतिपत्तिविशारद—वि॰—प्रतिपत्तिः-विशारद—-—कार्यविधि से परिचित, कुशल, चतुर
- प्रतिपद्—स्त्री॰—-—प्रति+पद्+क्विप्—पहुँच,प्रवेश, मार्ग
- प्रतिपद्—स्त्री॰—-—प्रति+पद्+क्विप्—आरम्भ, शुरु
- प्रतिपद्—स्त्री॰—-—प्रति+पद्+क्विप्—प्रज्ञा, बुद्धि
- प्रतिपद्—स्त्री॰—-—प्रति+पद्+क्विप्—शुक्लपक्ष का पहला दिन
- प्रतिपद्—स्त्री॰—-—प्रति+पद्+क्विप्—नगाड़ा
- प्रतिपच्चन्द्रः—पुं॰—प्रतिपद्-चन्द्रः—-—नया चाँद
- प्रतिपत्तूर्यम्—नपुं॰—प्रतिपद्-तूर्यम्—-—एक प्रकार का नगाड़ा
- प्रतिपदा—स्त्री॰—-—प्रतिपद्+टाप्—शुक्लपक्ष का पहला दिन
- प्रतिपदी—स्त्री॰—-—प्रतिपद्+ङीष्—शुक्लपक्ष का पहला दिन
- प्रतिपन्न—भू॰ क॰ कृ॰—-—प्रति+पद्+क्त—उपलब्ध, प्राप्त
- प्रतिपन्न—भू॰ क॰ कृ॰—-—प्रति+पद्+क्त—किया ग्या, अनुष्ठित, कार्यान्वित, निष्पन्न
- प्रतिपन्न—भू॰ क॰ कृ॰—-—प्रति+पद्+क्त—हाथ में लिया हुआ, आरब्ध
- प्रतिपन्न—भू॰ क॰ कृ॰—-—प्रति+पद्+क्त—वचन दिया हुआ, लगा हुआ
- प्रतिपन्न—भू॰ क॰ कृ॰—-—प्रति+पद्+क्त—सहमत, माना हुआ, स्वीकार किया हुआ
- प्रतिपन्न—भू॰ क॰ कृ॰—-—प्रति+पद्+क्त—ज्ञात समझा हुआ
- प्रतिपन्न—भू॰ क॰ कृ॰—-—प्रति+पद्+क्त—जवाब दिया गया, उत्तर दिया गया
- प्रतिपन्न—भू॰ क॰ कृ॰—-—प्रति+पद्+क्त—प्रमाणित प्रदर्शित
- प्रतिपादक—वि॰—-—प्रति+पद्+णिच्+ण्वुल्—देने वाला, स्वीकार करने वाला, प्रदान करने वाला, समर्पित करने वाला
- प्रतिपादक—वि॰—-—प्रति+पद्+णिच्+ण्वुल्—प्रदर्शित करने वाला, सहायता करने वाला, प्रमाणित करने वाला, स्थापित करने वाला
- प्रतिपादक—वि॰—-—प्रति+पद्+णिच्+ण्वुल्—सोच-विचार करने वाला
- प्रतिपादक—वि॰—-—प्रति+पद्+णिच्+ण्वुल्—उन्नत करने वाला, आगे बढ़ाने वाला, प्रगति करने वाला
- प्रतिपादक—वि॰—-—प्रति+पद्+णिच्+ण्वुल्—प्रभावशाली, निष्पादन करने वाला
- प्रतिपादनम्—नपुं॰—-—प्रति+पद्+णिच्+ल्युट्—देना, स्वीकार करना, प्रदान करना
- प्रतिपादनम्—नपुं॰—-—प्रति+पद्+णिच्+ल्युट्—प्रदर्शन, प्रमाणन, स्थापन
- प्रतिपादनम्—नपुं॰—-—प्रति+पद्+णिच्+ल्युट्—अनुशीलन, व्याख्यान विस्तृत रूप से प्रस्तुत करना, सोदाहरण निरूपण
- प्रतिपादनम्—नपुं॰—-—प्रति+पद्+णिच्+ल्युट्—कार्यान्विति, निष्पन्नता, पूर्णता
- प्रतिपादनम्—नपुं॰—-—प्रति+पद्+णिच्+ल्युट्—जन्म देना, पैदा करना
- प्रतिपादनम्—नपुं॰—-—प्रति+पद्+णिच्+ल्युट्—आवृत्ति, अभ्यास
- प्रतिपादनम्—नपुं॰—-—प्रति+पद्+णिच्+ल्युट्—आरम्भ
- प्रतिपादित—भू॰ क॰ कृ॰—-—प्रति+पद्+णिच्+क्त—दिया हुआ, प्रदत्त, स्वीकृत, प्रस्तुत
- प्रतिपादित—भू॰ क॰ कृ॰—-—प्रति+पद्+णिच्+क्त—स्थापित, प्रमाणित, प्रदर्शित
- प्रतिपादित—भू॰ क॰ कृ॰—-—प्रति+पद्+णिच्+क्त—व्याख्यात, सविवरण प्रस्तुत
- प्रतिपादित—भू॰ क॰ कृ॰—-—प्रति+पद्+णिच्+क्त—उद्घोषित, उक्त
- प्रतिपादित—भू॰ क॰ कृ॰—-—प्रति+पद्+णिच्+क्त—जन्म दिया, पैदा किया
- प्रतिपालकः—पुं॰—-—प्रति+पाल्+णिच्+ण्वुल्—बचाने वाला, संरक्षक, अभिभावक
- प्रतिपालनम्—नपुं॰—-—प्रति+पाल्+णिच्+ल्युट्—संरक्षण, बचाना, रक्षा करना, पालन करना, अभ्यास करना
- प्रतिपीडनम्—नपुं॰—-—प्रति+पीड्+णिच्+ल्युट्—अत्याचार करना, सताना
- प्रतिपूजनम्—नपुं॰—-—प्रति+पूज्+ल्युट्—श्रद्धांजलि अर्पित करना, सम्मान प्रदर्शित करना
- प्रतिपूजनम्—नपुं॰—-—प्रति+पूज्+ल्युट्—पारस्परिक अभिवादन, शिष्टाचार का विनिमय
- प्रतिपूजा—स्त्री॰—-—प्रतिपूज्+अ+टाप्—श्रद्धांजलि अर्पित करना, सम्मान प्रदर्शित करना
- प्रतिपूजा—स्त्री॰—-—प्रतिपूज्+अ+टाप्—पारस्परिक अभिवादन, शिष्टाचार का विनिमय
- प्रतिपूरणम्—नपुं॰—-—प्रति+पुर्+ल्युट्—पूरा करना, भरना
- प्रतिपूरणम्—नपुं॰—-—प्रति+पुर्+ल्युट्—अन्तःक्षिप्त करना
- प्रतिप्रणामः—नपुं॰—-—प्रति+प्र+नम्+घञ्—बदले में किया गया अभिवादन
- प्रतिप्रदानम्—नपुं॰—-—प्रति+प्र+दा+ल्युट्—वापिस करना, लौटाना
- प्रतिप्रदानम्—नपुं॰—-—प्रति+प्र+दा+ल्युट्—विवाह में देना
- प्रतिप्रयाणम्—नपुं॰—-—प्रति+प्र+या+ल्युट्—वापसी, प्रत्यावर्तन
- प्रति प्रश्नः—पुं॰—-—प्रति+प्रच्छ्+नङ्—के बदले में पूछा गया प्रश्न
- प्रति प्रश्नः—पुं॰—-—प्रति+प्रच्छ्+नङ्‘—उत्तर
- प्रति प्रसवः—पुं॰—-—प्रति+प्र+सू+अप्—प्रत्यपवाद, अपवाद का अपवाद
- प्रति प्रहारः—पुं॰—-—प्रति+प्र+हृ+घञ्—बदले में प्रहार करना, थप्पड़ के बदले थप्पड़ लगाना
- प्रतिप्लवनम्—नपुं॰—-—प्रति+प्लु+ल्युट्—पीछे की ओर कूदना
- प्रतिफलः—पुं॰—-—प्रति+फल्+अच्—परछाईं, प्रतिबिम्ब, प्रतिमा, छाया
- प्रतिफलः—पुं॰—-—प्रति+फल्+अच्—पारिश्रमिक, प्रतिदान
- प्रतिफलः—पुं॰—-—प्रति+फल्+अच्—प्रतिहिंसा, प्रतिशोध
- प्रतिफलनम्—नपुं॰—-—प्रतिफल्+ल्युट्—परछाईं, प्रतिबिम्ब, प्रतिमा, छाया
- प्रतिफलनम्—नपुं॰—-—प्रतिफल्+ल्युट्—पारिश्रमिक, प्रतिदान
- प्रतिफलनम्—नपुं॰—-—प्रतिफल्+ल्युट्—प्रतिहिंसा, प्रतिशोध
- प्रतिफुल्लक—वि॰—-—प्रति+फुल्ल्+ण्वुल्—खिलने वाला, पूरा खिला हुआ
- प्रतिवद्ध—भू॰ क॰ कृ॰—-—प्रति+बंध+क्त—बांधा गया, बंधा हुआ, कसा हुआ
- प्रतिवद्ध—भू॰ क॰ कृ॰—-—प्रति+बंध+क्त—जोड़ा गया
- प्रतिवद्ध—भू॰ क॰ कृ॰—-—प्रति+बंध+क्त—अवरुद्ध, रुकावट डाली गई, बाधित
- प्रतिवद्ध—भू॰ क॰ कृ॰—-—प्रति+बंध+क्त—टंका हुआ, जड़ा हुआ
- प्रतिवद्ध—भू॰ क॰ कृ॰—-—प्रति+बंध+क्त—समासयुक्त, अधिकार में करने वाला
- प्रतिवद्ध—भू॰ क॰ कृ॰—-—प्रति+बंध+क्त—फँसा हुआ, अन्तर्ग्रस्त
- प्रतिवद्ध—भू॰ क॰ कृ॰—-—प्रति+बंध+क्त—दूर रक्खा हुआ, निराश
- प्रतिवद्ध—भू॰ क॰ कृ॰—-—प्रति+बंध+क्त—अनिवार्य तथा अविछिन्न रूप से संयुक्त
- प्रतिबन्धः—पुं॰—-—प्रति+बंध्+घञ्—बंधन, बाँधना
- प्रतिबन्धः—पुं॰—-—प्रति+बंध्+घञ्—अवरोध, रुकावट, विघ्न
- प्रतिबन्धः—पुं॰—-—प्रति+बंध्+घञ्—विरोध, मुकाबला
- प्रतिबन्धः—पुं॰—-—प्रति+बंध्+घञ्—आवरण, नाकेबंदी, घेरा
- प्रतिबन्धः—पुं॰—-—प्रति+बंध्+घञ्—संबंध
- प्रतिबन्धः—पुं॰—-—प्रति+बंध्+घञ्—अनिवार्य तथा अविछिन्न संयोग
- प्रतिबन्धक—वि॰—-—प्रति+बंध्+ण्वुल्—बांधने वाला, जकड़ने वाला
- प्रतिबन्धक—वि॰—-—प्रति+बंध्+ण्वुल्—रुकावट डालने वाला, अवरोध करने वाला, विघ्नकारक
- प्रतिबन्धक—वि॰—-—प्रति+बंध्+ण्वुल्—मुकाबले करने वाला, विरोध करने वाला
- प्रतिबन्धकः—पुं॰—-—प्रति+बंध्+ण्वुल्—शाखा, अंकुर
- प्रतिबन्धिः—पुं॰—-—प्रतिबन्ध्+इनि—आक्षेप
- प्रतिबन्धिः—पुं॰—-—प्रतिबन्ध्+इनि—ऐसा तर्क जो विपक्ष पर समान रूप से प्रभाव डाले
- प्रतीबन्धी—स्त्री॰—-—प्रतिबन्ध्+ङीष्—आक्षेप
- प्रतीबन्धी—स्त्री॰—-—प्रतिबन्ध्+ङीष्—ऐसा तर्क जो विपक्ष पर समान रूप से प्रभाव डाले
- प्रतिबाधक—वि॰—-—प्रति+बाध्+ण्वुल्—हटाने वाला, दूर करने वाला
- प्रतिबाधक—वि॰—-—प्रति+बाध्+ण्वुल्—रोकने वाला, अवरुद्ध करने वाला
- प्रतिवाधनम्—नपुं॰—-—प्रति+बाध्+ल्युट्—हटाना, दूर करना, अस्वीकार करना
- प्रतिबिम्बनम्—नपुं॰—-—प्रतिबिम्ब+क्विप्+ल्युट्—परछाईं
- प्रतिबिम्बनम्—नपुं॰—-—प्रतिबिम्ब+क्विप्+ल्युट्—तुलना
- प्रतिबिम्बित—वि॰—-—प्रतिबिंब+क्विप्+क्त—जिसकी परछाईं पड़ी हो, दर्पण में प्रतिफलित
- प्रतिबुद्ध—भू॰ क॰ कृ॰—-—प्रति+बुध्+क्त—जागा हुआ, जगाया हुआ
- प्रतिबुद्ध—भू॰ क॰ कृ॰—-—प्रति+बुध्+क्त—पहचाना हुआ, देखा हुआ
- प्रतिबुद्ध—भू॰ क॰ कृ॰—-—प्रति+बुध्+क्त—प्रसिद्ध, विख्यात
- प्रतिबुद्धिः—स्त्री॰—-—प्रति+बुध्+क्तिन्—जागरण
- प्रतिबुद्धिः—स्त्री॰—-—प्रति+बुध्+क्तिन्—विरोधी अभिप्राय या इरादा
- प्रतिबोधः—पुं॰—-—प्रति+बुध्+धञ्—जागना, जागरण, जगाया जाना
- प्रतिबोधः—पुं॰—-—प्रति+बुध्+धञ्—प्रत्यक्षज्ञान, जानकारी
- प्रतिबोधः—पुं॰—-—प्रति+बुध्+धञ्—अनुदेश, शिक्षण
- प्रतिबोधः—पुं॰—-—प्रति+बुध्+धञ्—तर्क, तर्कना, मनःशक्ति
- प्रतिबोधनम्—नपुं॰—-—प्रतिबुध्+णिच्+ल्युट्—जगाना
- प्रतिबोधनम्—नपुं॰—-—प्रतिबुध्+णिच्+ल्युट्—शिक्षण, अनुदेश
- प्रतिबोधित—वि॰—-—प्रति+बुध्+णिच्+क्त—जगया हुआ
- प्रतिबोधित—वि॰—-—प्रति+बुध्+णिच्+क्त—अनुदिष्ट, शिक्षित
- प्रतिभा—स्त्री॰—-—प्रति+भा+क+टाप्—दर्शन, दृष्टि
- प्रतिभा—स्त्री॰—-—प्रति+भा+क+टाप्—प्रकाश, प्रभा
- प्रतिभा—स्त्री॰—-—प्रति+भा+क+टाप्—बुद्धि, समझ
- प्रतिभा—स्त्री॰—-—प्रति+भा+क+टाप्—मेधा, प्रखर बुद्धि, विशद कल्पना, प्रज्ञा
- प्रतिभा—स्त्री॰—-—प्रति+भा+क+टाप्—प्रतिबिंब, परछाईं
- प्रतिभा—स्त्री॰—-—प्रति+भा+क+टाप्—धृष्टता, ढिठाई
- प्रतिभान्वित—वि॰—प्रतिभा-अन्वित—-—मेधावी, प्रज्ञावान
- प्रतिभान्वित—वि॰—प्रतिभा-अन्वित—-—बेधड़क, साहसी
- प्रतिभामुख—वि॰—प्रतिभा-मुख—-—साहसी, दिलेर
- प्रतिभाहानिः—स्त्री॰—प्रतिभा-हानिः—-—अंधकार
- प्रतिभाहानिः—स्त्री॰—प्रतिभा-हानिः—-—प्रज्ञा या मेधा का अभाव
- प्रतिभात—भू॰ क॰ कृ॰—-—प्रति+भा+क्त—उज्ज्वल, प्रभायुक्त
- प्रतिभात—भू॰ क॰ कृ॰—-—प्रति+भा+क्त—ज्ञान, अध्याहृत, अवगत
- प्रतिभानम्—नपुं॰—-—प्रति+भा+ल्युट्—प्रकाश, दीप्ति
- प्रतिभानम्—नपुं॰—-—प्रति+भा+ल्युट्—बुद्धि या समझ, ज्ञान की चमक
- प्रतिभानम्—नपुं॰—-—प्रति+भा+ल्युट्—हाजिर जवाबी
- प्रतिभावः—पुं॰—-—प्रति+भू+घञ्—तदनुरूप वृत्ति
- प्रतिभाषा—स्त्री॰—-—प्रति+भाष्+अ+टाप्—उत्तर, जवाब
- प्रतिभासः—पुं॰—-—प्रति+भास्+घञ्—मन में स्फुरित होना, चमकना, झलकना
- प्रतिभासः—पुं॰—-—प्रति+भास्+घञ्—दृष्टि, दर्शन
- प्रतिभासः—पुं॰—-—प्रति+भास्+घञ्—भ्रम, माया
- प्रतिभासनम्—नपुं॰—-—प्रति+भास्+ल्युट्—दृष्टि, दर्शन, झलक
- प्रतिभिन्न—भू॰ क॰ कृ॰—-—प्रति+भिद्+क्त—पारविद्ध
- प्रतिभिन्न—भू॰ क॰ कृ॰—-—प्रति+भिद्+क्त—सटा हुआ, जुड़ा हुआ
- प्रतिभिन्न—भू॰ क॰ कृ॰—-—प्रति+भिद्+क्त—विभक्त
- प्रतिभूः—पुं॰—-—प्रति+भू+क्विप्—जमानत, प्रतिभूति, जमानत देने वाला, विश्वास
- प्रतिभेदनम्—नपुं॰—-—प्रति+भिद्+ल्युट्—आर पार बींधना, घुसेड़ना
- प्रतिभेदनम्—नपुं॰—-—प्रति+भिद्+ल्युट्—काटना, खण्डित करना, फाड़ना
- प्रतिभेदनम्—नपुं॰—-—प्रति+भिद्+ल्युट्—निकाल लेना
- प्रतिभेदनम्—नपुं॰—-—प्रति+भिद्+ल्युट्—विभक्त करना
- प्रतिभोगः—पुं॰—-—प्रति+भुज्+घञ्—उपभोग
- प्रतिमा—स्त्री॰—-—प्रति+मा+अङ्+टाप्—प्रतिबिंब, समानता, प्रतिमा, आकृति, बुत
- प्रतिमा—स्त्री॰—-—प्रति+मा+अङ्+टाप्—स्मरूपता, सादृश्य
- प्रतिमा—स्त्री॰—-—प्रति+मा+अङ्+टाप्—परछाईं, प्रतिबिंब
- प्रतिमा—स्त्री॰—-—प्रति+मा+अङ्+टाप्—माप, विस्तार
- प्रतिमा—स्त्री॰—-—प्रति+मा+अङ्+टाप्—दोनों दांतों के बीच का हाथी के सिर का भाग
- प्रतिमागत—वि॰—प्रतिमा-गत—-—मूर्ति में वर्तमान
- प्रतिमाचन्द्रः—पुं॰—प्रतिमा-चन्द्रः—-—प्रतिबिंबित चन्द्रमा, चन्द्रमा का प्रतिबिंब
- प्रतिमापरिचारकः—पुं॰—प्रतिमा-परिचारकः—-—पुजारी, मूर्ति का सेवक
- प्रतिमानम्—नपुं॰—-—प्रति+मा+ल्युट्—नमूना, प्रतिमूर्ति
- प्रतिमानम्—नपुं॰—-—प्रति+मा+ल्युट्—प्रतिमा, मूर्ति
- प्रतिमानम्—नपुं॰—-—प्रति+मा+ल्युट्—समानता, उपमा, समरूपता
- प्रतिमानम्—नपुं॰—-—प्रति+मा+ल्युट्—बोझ
- प्रतिमानम्—नपुं॰—-—प्रति+मा+ल्युट्—दांतों का मध्यवर्ती सिर काभाग
- प्रतिमानम्—नपुं॰—-—प्रति+मा+ल्युट्—परछाईं
- प्रतिमुक्त—वि॰—-—प्रति+मुच्+क्त—धारण किया हुआ, पहना हुआ, प्रयुक्त किया हुआ
- प्रतिमुक्त—वि॰—-—प्रति+मुच्+क्त—कसा हुआ, बाँधा हुआ, जकड़ा हुआ
- प्रतिमुक्त—वि॰—-—प्रति+मुच्+क्त—शास्त्र से सज्जित, हथियारबंद
- प्रतिमुक्त—वि॰—-—प्रति+मुच्+क्त—मुक्त, छोड़ा हुआ
- प्रतिमुक्त—वि॰—-—प्रति+मुच्+क्त—लौटाया हुआ, वापिस किया हुआ
- प्रतिमुक्त—वि॰—-—प्रति+मुच्+क्त—फेंका हुआ, उछाला हुआ
- प्रतिमोक्षः—पुं॰—-—प्रति+मोक्ष्+घञ्—मुक्ति, छुटकारा
- प्रतिमोक्षणम्—नपुं॰—-—प्रति+मोक्ष्+ल्युट्—मुक्ति, छुटकारा
- प्रतिमोचनम्—नपुं॰—-—प्रति+मुच्+ल्युट्—शिथिल करना
- प्रतिमोचनम्—नपुं॰—-—प्रति+मुच्+ल्युट्—प्रतिशोध, प्रतिहिंसा, प्रतिदान
- प्रतिमोचनम्—नपुं॰—-—प्रति+मुच्+ल्युट्—मुक्ति, छुटकारा
- प्रतियत्नः—पुं॰—-—प्रति+यत्+नङ्—प्रयास, उद्योग, चेष्टा
- प्रतियत्नः—पुं॰—-—प्रति+यत्+नङ्—तैयारी, परिश्रम द्वारा सम्पादन
- प्रतियत्नः—पुं॰—-—प्रति+यत्+नङ्—पूर्ण या पूरा करना
- प्रतियत्नः—पुं॰—-—प्रति+यत्+नङ्—नया गुण सिखाना
- प्रतियत्नः—पुं॰—-—प्रति+यत्+नङ्—अभिलाषा, इच्छा
- प्रतियत्नः—पुं॰—-—प्रति+यत्+नङ्—विरोध, मुकाबला
- प्रतियत्नः—पुं॰—-—प्रति+यत्+नङ्—प्रतिहिंसा, प्रतिशोध, बदला
- प्रतियत्नः—पुं॰—-—प्रति+यत्+नङ्—बंदी बनाना, कैद करना
- प्रतियत्नः—पुं॰—-—प्रति+यत्+नङ्—अनुग्रह
- प्रतियातनम्—नपुं॰—-—प्रति+यत्+णिच्+ल्युट्—प्रतिशोध, प्रतिहिंसा
- प्रतियातना—स्त्री॰—-—प्रति+यत्+णिच्+युच्+टाप्—चित्र, प्रतिमा, मूर्ति
- प्रतियानम्—नपुं॰—-—प्रति+या+ल्युट्—लौटाना, प्रत्यावर्तन, वापसी
- प्रतियोगः—पुं॰—-—प्रति+युज्+घञ्—किसी वस्तु का प्रतिरूप होना या बनाना
- प्रतियोगः—पुं॰—-—प्रति+युज्+घञ्—विरोध, मुकाबला
- प्रतियोगः—पुं॰—-—प्रति+युज्+घञ्—अन्तर्विरोध, वचनविरोध
- प्रतियोगः—पुं॰—-—प्रति+युज्+घञ्—स्हयोग
- प्रतियोगः—पुं॰—-—प्रति+युज्+घञ्—विषनिवारक औषधि, उपचार
- प्रतियोगिन्—वि॰—-—प्रति+युज्+घिनुण्—विरोध करने वाला, प्रतीकारक, बाधक
- प्रतियोगिन्—वि॰—-—प्रति+युज्+घिनुण्—संबद्ध या तदनुरूप, किसी वस्तु का प्रतिरूप बनाने वाला, प्रायः न्यायविषयक रचनाओं में प्रयुक्त
- प्रतियोगिन्—वि॰—-—प्रति+युज्+घिनुण्—सहयोग करने वाला
- प्रतियोगिन्—पुं॰—-—-—विरोधी, विपक्षी, शत्रु
- प्रतियोगिन्—पुं॰—-—-—प्रतिरूप, जोड़ का
- प्रतियोद्धृ—पुं॰—-—प्रति+युध्+तृच्—शत्रु, विपक्षी
- प्रयोधः—पुं॰—-—प्रति+युध्+घञ्—शत्रु, विपक्षी
- प्रतिरक्षणम्—नपुं॰—-—प्रति+रक्ष्+ल्युट्—बचाव, संधारण, रक्षा
- प्रतिरक्षा—स्त्री॰—-—प्रति+रक्ष्+अङ्+टाप्—बचाव, संधारण, रक्षा
- प्रतिरम्भः—पुं॰—-—प्रति+रंभ्+घञ्—क्रोध, रोष
- प्रतिरवः—पुं॰—-—प्रति+रु+अच्—कलह, झगड़ा
- प्रतिरवः—पुं॰—-—प्रति+रु+अच्—गूँज, प्रतिधवनि
- प्रतिरुद्ध—भू॰ क॰ कृ॰—-—प्रति+रुध्+क्त—अवरुद्ध, बाधित, विघ्नयुक्त
- प्रतिरुद्ध—भू॰ क॰ कृ॰—-—प्रति+रुध्+क्त—रुका हुआ, अन्तरित
- प्रतिरुद्ध—भू॰ क॰ कृ॰—-—प्रति+रुध्+क्त—क्षतियुक्त
- प्रतिरुद्ध—भू॰ क॰ कृ॰—-—प्रति+रुध्+क्त—विकलीकृत
- प्रतिरुद्ध—भू॰ क॰ कृ॰—-—प्रति+रुध्+क्त—वेष्टित, घेरा डाला हुआ
- प्रतिरोधः—पुं॰—-—प्रति+रुध्+घञ्—अटकाव, रुकावट, विघ्न
- प्रतिरोधः—पुं॰—-—प्रति+रुध्+घञ्—घेरा, नाकेबंदी
- प्रतिरोधः—पुं॰—-—प्रति+रुध्+घञ्—विपक्षी
- प्रतिरोधः—पुं॰—-—प्रति+रुध्+घञ्—छिपाना
- प्रतिरोधः—पुं॰—-—प्रति+रुध्+घञ्—चोरी, डकैती
- प्रतिरोधः—पुं॰—-—प्रति+रुध्+घञ्—निन्दा, घृणा
- प्रतिरोधकः—पुं॰—-—प्रति+रुध्+ण्वुल्—विपक्षी
- प्रतिरोधकः—पुं॰—-—प्रति+रुध्+ण्वुल्—लुटेरा, चोर
- प्रतिरोधकः—पुं॰—-—प्रति+रुध्+ण्वुल्—रुकावट
- प्रतिरोधिन्—पुं॰—-—प्रति+रुध्+णिनि—विपक्षी
- प्रतिरोधिन्—पुं॰—-—प्रति+रुध्+णिनि—लुटेरा, चोर
- प्रतिरोधिन्—पुं॰—-—प्रति+रुध्+णिनि—रुकावट
- प्रतिरोधनम्—नपुं॰—-—प्रति+रुध्+ल्युट्—विरोध करना, रुकावट डालना
- प्रतिलम्भः—पुं॰—-—प्रति+लम्भ्+घञ्—हासिल करना, प्राप्त करना, ग्रहण करना
- प्रतिलम्भः—पुं॰—-—प्रति+लम्भ्+घञ्—निन्दा, गाली, खरी-खोटी
- प्रतिलाभः—पुं॰—-—प्रति+लभ्+घञ्—वापिस लेना, ग्रहण करना, हासिल करना
- प्रतिवचनम्—नपुं॰—-—प्रति+वच्+ल्युट्, वच्+णिच्+क्विप्—उत्तर, जवाब
- प्रतिवचस्—नपुं॰—-—प्रति+वच्+ल्युट्, वच्+णिच्+क्विप्—उत्तर, जवाब
- प्रतिवाच्—स्त्री॰—-—प्रति+वच्+ल्युट्, वच्+णिच्+क्विप्—उत्तर, जवाब
- प्रतिवाक्यम्—नपुं॰—-—प्रति+वच्+ल्युट्, वच्+णिच्+क्विप्—उत्तर, जवाब
- प्रतिवर्तनम्—नपुं॰—-—प्रति+वृत्+ल्युट्—लौटाना, वापिस करना
- प्रतिवसथः—पुं॰—-—प्रति+वस्+अथच्—ग्राम, गाँव
- प्रतिवहनम्—नपुं॰—-—प्रति+वह्+ल्युट्—वापिस ले जाना, वापिस ले जाने में नेतृत्व करना
- प्रतिवादः—पुं॰—-—प्रति+वद्+घञ्—उत्तर, प्रत्युत्तर, जवाब
- प्रतिवादः—पुं॰—-—प्रति+वद्+घञ्—इंकार करना, अस्वीकृती
- प्रतिवादिन्—पुं॰—-—प्रति+वद्+णिनि—विपक्षी
- प्रतिवादिन्—पुं॰—-—प्रति+वद्+णिनि—प्रतिपक्षी, उत्तरवादी
- प्रतिवारः—पुं॰—-—प्रति+वृ+घञ्—परे रखना, दूर रखना
- प्रतिवारणम्—नपुं॰—-—प्रति+वृ+णिच्+ल्युट्—परे रखना, दूर रखना
- प्रतिवार्ता—स्त्री॰, प्रा॰ स॰—-—-—वर्णन, सूचना, समाचार, संवाद
- प्रतिवासिन्—वि॰—-—प्रति+वस्+णिनि—निकट रहने वाला, पड़ौस में रहने वाला
- प्रतिवासिन्—पुं॰—-—-—पड़ौसी
- प्रतिविघातः—पुं॰—-—प्रति+वि+हन्+घञ्—प्रहार के बदले प्रहार करना, बचाव
- प्रतिविधानम्—नपुं॰—-—प्रति+वि+धा+ल्युट्—प्रतिकार करना, विरोध में काम करना, विफल करना, विरुद्ध कार्य्७अ करना
- प्रतिविधानम्—नपुं॰—-—प्रति+वि+धा+ल्युट्—व्यवस्था, क्रम
- प्रतिविधानम्—नपुं॰—-—प्रति+वि+धा+ल्युट्—रोक थाम
- प्रतिविधानम्—नपुं॰—-—प्रति+वि+धा+ल्युट्—स्थानापन्न संस्कार, सहकारी संस्कार
- प्रतिविधिः—पुं॰—-—प्रति+वि+धा+कि—प्रतिशोध
- प्रतिविधिः—पुं॰—-—प्रति+वि+धा+कि—उपचार, प्रतिक्रिया के उपाय
- प्रतिविशिष्ट—वि॰—-—प्रति+वि+शास्+क्त—अत्यन्त श्रेष्ठ
- प्रतिवेशः—पुं॰—-—प्रति+विश्+घञ्—पड़ौसी का वासस्थान, पड़ौस
- प्रतिवेशवासिन्—वि॰—प्रतिवेशः-वासिन्—-—पड़ौस में रहने वाला
- प्रतिवेशवासिन्—पुं॰—प्रतिवेशः-वासिन्—-—पड़ौसी
- प्रतिवेशिन्—वि॰—-—प्रतिवेश+इनि—पड़ौसी
- प्रतिवेश्यः—पुं॰—-—प्रति+विश्+ण्यत्—पड़ौसी
- प्रतिवेष्टित—भू॰ क॰ कृ॰—-—प्रति+वेष्ट्+क्त—प्रत्यावृत्त विपर्यस्त, पीछे की ओर मुदा हुआ
- प्रतिव्यूढ—भू॰ क॰ कृ॰—-—प्रति+वि+ऊह्+क्त—संग्राम-व्यूह रचना में परास्त
- प्रतिव्यूहः—पुं॰—-—प्रति+वि+ऊह्+घञ्—शत्रु के विरुद्ध सेना की व्यूह रचना
- प्रतिव्यूहः—पुं॰—-—प्रति+वि+ऊह्+घञ्—समुच्चय, संग्रह
- प्रतिशमः—पुं॰—-—प्रति+शम्+धञ्—विश्राम, विराम
- प्रतिशयनम्—नपुं॰—-—प्रति+शी+ल्युट्—किसी अभीष्ट पदार्थ की प्राप्ति के लिए अनशन करके देवता के सामने पड़े रहना, धरना देना
- प्रतिशयित—वि॰—-—प्रति+शी+क्त—अपने किसी अभीष्ट पदार्थ की प्राप्ति के लिए बिना खाये पीये देवता के सामने धरना देने वाला
- प्रतिशापः—पुं॰—-—प्रति+शप्+घञ्—शाप के बदले शाप, बदले में शाप
- प्रतिशासनम्—नपुं॰—-—प्रति+शास्+ल्युट्—आदेश देना, दूत के रूप में भेजना, आज्ञा देना
- प्रतिशासनम्—नपुं॰—-—प्रति+शास्+ल्युट्—किसी दूत को बाहर से बुला भेजना
- प्रतिशासनम्—नपुं॰—-—प्रति+शास्+ल्युट्—वापस बुलाना
- प्रतिशासनम्—नपुं॰—-—प्रति+शास्+ल्युट्—विरोधी अआदेश, अधिकृत कथन
- प्रतिशिष्ट—भू॰ क॰ कॄ॰—-—प्रति+शास्+ल्युट्—आदिष्ट, प्रेषित
- प्रतिशिष्ट—भू॰ क॰ कॄ॰—-—प्रति+शास्+ल्युट्—विसर्जित किया हुआ, अस्वीकृत
- प्रतिशिष्ट—भू॰ क॰ कॄ॰—-—प्रति+शास्+ल्युट्—विख्यात, प्रसिद्ध
- प्रतिश्या—स्त्री॰—-—प्रति+श्यै+क+टाप्, ल्युट्, ण वा—जुकाम, सर्दी
- प्रतिश्यानम्—नपुं॰—-—प्रति+श्यै+क+टाप्, ल्युट्, ण वा—जुकाम, सर्दी
- प्रतिश्यायः—पुं॰—-—प्रति+श्यै+क+टाप्, ल्युट्, ण वा—जुकाम, सर्दी
- प्रतिश्रयः—पुं॰—-—प्रति+श्रि+अच्—शरणगृह, आश्रम
- प्रतिश्रयः—पुं॰—-—प्रति+श्रि+अच्—घर, आवासस्थान, निवासस्थल
- प्रतिश्रयः—पुं॰—-—प्रति+श्रि+अच्—सभा
- प्रतिश्रयः—पुं॰—-—प्रति+श्रि+अच्—यज्ञ भवन
- प्रतिश्रयः—पुं॰—-—प्रति+श्रि+अच्—नदद, सहायता
- प्रतिश्रयः—पुं॰—-—प्रति+श्रि+अच्—प्रतिज्ञा
- प्रतिश्रवः—पुं॰—-—प्रति+श्रु+अप्—स्वीकृति, सहमति, प्रतिज्ञा
- प्रतिश्रवः—पुं॰—-—प्रति+श्रु+अप्—गूंज
- प्रतिश्रवणम्—नपुं॰—-—प्रति+श्रु+ल्युट्—ध्यान पूर्वक सुनना
- प्रतिश्रवणम्—नपुं॰—-—प्रति+श्रु+ल्युट्—वचन देना, हामी भरना, सहमत होना
- प्रतिश्रवणम्—नपुं॰—-—प्रति+श्रु+ल्युट्—प्रतिज्ञा
- प्रतिश्रुत्—स्त्री॰—-—प्रति+श्रु+क्विप्—प्रतिज्ञा
- प्रतिश्रुत्—स्त्री॰—-—प्रति+श्रु+क्विप्—गूंज, प्रतिध्वनि
- प्रतिश्रूतिः—स्त्री॰—-—प्रति+श्रु+क्तिन्—प्रतिज्ञा
- प्रतिश्रूतिः—स्त्री॰—-—प्रति+श्रु+क्तिन्—गूंज, प्रतिध्वनि
- प्रतिश्रुत—भू॰ क॰ कॄ॰—-—प्रति+श्रु+क्त—वचन दिया हुआ, सहमत, हामी भरी हुई
- प्रतिषिद्ध—भू॰ क॰ कृ॰—-—प्रति+सिध्+क्त—निषिद्ध, वर्जित, अननुमत, अस्वीकृत
- प्रतिषिद्ध—भू॰ क॰ कृ॰—-—प्रति+सिध्+क्त—खण्डित, प्रत्युक्त
- प्रतिषेधः—पुं॰—-—प्रति+सिध्+घञ्—दूर रखना, परे हटाना, हांक कर दूर कर देना, निकाल देना
- प्रतिषेधः—पुं॰—-—प्रति+सिध्+घञ्—प्रतिपेध-यथा 'शास्त्रप्रतिषेधः' में
- प्रतिषेधः—पुं॰—-—प्रति+सिध्+घञ्—मुकरना, अस्वीकृति
- प्रतिषेधः—पुं॰—-—प्रति+सिध्+घञ्—निषेध करना, विरुद्ध कथन
- प्रतिषेधाक्षरम्—स्त्री॰—प्रतिषेधः-अक्षरम्—-—मुकर जाने के शब्द, अस्वीकृति
- प्रतिषेधोक्तिः—स्त्री॰—प्रतिषेधः-उक्तिः—-—मुकर जाने के शब्द, अस्वीकृति
- प्रतिषेधोपमा—स्त्री॰—प्रतिषेधः-उपमा—-—दण्डि द्वारा वर्णित उपमा का एक भेद
- प्रतिषेधकः—वि॰—-—प्रति+सिध्+ण्वुल्—हटाने वाला, निषेध करने वाला, रोकने वाला
- प्रतिषेधकः—वि॰—-—प्रति+सिध्+ण्वुल्—मना करने वाला
- प्रतिषेधकः—पुं॰—-—प्रति+सिध्+ण्वुल्—विघ्नकारक, निवारक
- प्रतिषेद्धृ—वि॰—-—प्रति+सिध्+तृच्—हटाने वाला, निषेध करने वाला, रोकने वाला
- प्रतिषेद्धृ—वि॰—-—प्रति+सिध्+तृच्—मना करने वाला
- प्रतिषेद्धृ—पुं॰—-—प्रति+सिध्+तृच्—विघ्नकारक, निवारक
- प्रतिषेधनम्—नपुं॰—-—प्रति+सिध्+ल्युट्—दूर रखना, परे हटना, रोकना
- प्रतिषेधनम्—नपुं॰—-—प्रति+सिध्+ल्युट्—निवारण करना
- प्रतिषेधनम्—नपुं॰—-—प्रति+सिध्+ल्युट्—मुकरना, अस्वीकृति
- प्रतिष्कः—पुं॰—-—प्रति+स्कंद्+ड—जासूस, संदेशवाहक, दूत
- प्रतिष्कसः—पुं॰—-—प्रति+कस्+अच्, सुट्—जासूस, संदेशवाहक, दूत
- प्रतिष्कशः—पुं॰—-—प्रति+कश्+अच्, सुट्—भेदिया, दूत
- प्रतिष्कशः—पुं॰—-—प्रति+कश्+अच्, सुट्—चाबुक, हंटरः
- प्रतिष्कषः—पुं॰—-—प्रति+कष्+अच्, सुट्—चाबुक, चमड़े का कोड़ा
- प्रतिष्टम्भः—पुं॰—-—प्रति+स्तंभ्+घञ्, षत्व—अवरोध, रुकावट, मुकाबला, विरोध, विघ्न
- प्रतिष्ठा—स्त्री॰—-—प्रति+स्था+अङ्+टाप्—ठहरना, रहना, स्थिति, अवस्था
- प्रतिष्ठा—स्त्री॰—-—प्रति+स्था+अङ्+टाप्—गघर, निवसस्थान, जन्मभूमि, आवास @ रघु॰ ६/२१, १४/५
- प्रतिष्ठा—स्त्री॰—-—प्रति+स्था+अङ्+टाप्—स्थैर्य, स्थिरता, दृढ़ता, स्थायिता, दृढाधार
- प्रतिष्ठा—स्त्री॰—-—प्रति+स्था+अङ्+टाप्—आधार, नींव, ठिकाना
- प्रतिष्ठा—स्त्री॰—-—प्रति+स्था+अङ्+टाप्—पाया, टेक, सहारा, कीर्तिभाजन, विश्रुत अलंकार
- प्रतिष्ठा—स्त्री॰—-—प्रति+स्था+अङ्+टाप्—उच्चपद, प्रमुखता, उच्च अधिकार
- प्रतिष्ठा—स्त्री॰—-—प्रति+स्था+अङ्+टाप्—ख्याति, यश, कीर्ति, प्रसिद्धि
- प्रतिष्ठा—स्त्री॰—-—प्रति+स्था+अङ्+टाप्—अभीष्ट पदार्थ की प्राप्ति, निष्पत्ति, पूर्ति
- प्रतिष्ठा—स्त्री॰—-—प्रति+स्था+अङ्+टाप्—शांति, विश्राम, विश्रान्ति
- प्रतिष्ठा—स्त्री॰—-—प्रति+स्था+अङ्+टाप्—आधार
- प्रतिष्ठा—स्त्री॰—-—प्रति+स्था+अङ्+टाप्—पृथिवी
- प्रतिष्ठा—स्त्री॰—-—प्रति+स्था+अङ्+टाप्—किसी देवप्रतिमा की स्थापना
- प्रतिष्ठा—स्त्री॰—-—प्रति+स्था+अङ्+टाप्—सीमा हद
- प्रतिष्ठानम्—नपुं॰—-—प्रति+स्था+ल्युट्—आधार, नींव
- प्रतिष्ठानम्—नपुं॰—-—प्रति+स्था+ल्युट्—ठिकाना, स्थिति, अवस्था
- प्रतिष्ठानम्—नपुं॰—-—प्रति+स्था+ल्युट्—टाँग, पैर
- प्रतिष्ठानम्—नपुं॰—-—प्रति+स्था+ल्युट्—गंगा यमुना के संगम पर स्थित एक नगर जो चन्द्रवंश के आदिकालीन राजाओं की राजधानी था
- प्रतिष्ठानम्—नपुं॰—-—प्रति+स्था+ल्युट्—गोदावरी पर स्थित एक नगर का नाम
- प्रतिष्ठित—भू॰ क॰ कृ॰—-—प्रति+स्था+क्त—जमाया हुआ, खड़ा किया हुआ
- प्रतिष्ठित—भू॰ क॰ कृ॰—-—प्रति+स्था+क्त—स्थिर किया हुआ, स्थापित किया हुआ
- प्रतिष्ठित—भू॰ क॰ कृ॰—-—प्रति+स्था+क्त—रक्खा हुआ, अवस्थित
- प्रतिष्ठित—भू॰ क॰ कृ॰—-—प्रति+स्था+क्त—संस्थापित, प्रतिष्ठापित, अभिमंत्रित
- प्रतिष्ठित—भू॰ क॰ कृ॰—-—प्रति+स्था+क्त—पूर्ण, कार्यान्वित
- प्रतिष्ठित—भू॰ क॰ कृ॰—-—प्रति+स्था+क्त—कीमती, मूल्यवान्
- प्रतिष्ठित—भू॰ क॰ कृ॰—-—प्रति+स्था+क्त—विख्यात, प्रसिद्ध
- प्रतिसंविद्—स्त्री॰—-—प्रति+सम्+विद्+क्विप्—किसी वस्तु के विवरण का यथार्थ ज्ञान
- प्रतिसंहारः—पुं॰—-—प्रति+सम्+हृ+घञ्—पीछे ले जाना, वापिस हटाना
- प्रतिसंहारः—पुं॰—-—प्रति+सम्+हृ+घञ्—अल्पता, संपीडन
- प्रतिसंहारः—पुं॰—-—प्रति+सम्+हृ+घञ्—धारणा शक्ति, समावेश
- प्रतिसंहारः—पुं॰—-—प्रति+सम्+हृ+घञ्—परित्यक्त करना, छोड़ना
- प्रतिसंहृत—भू॰ क॰ कृ॰—-—प्रति+सम्+हृ+क्त—वापिस लिया हुआ, पीछे को खींचा हुआ,
- प्रतिसंहृत—भू॰ क॰ कृ॰—-—प्रति+सम्+हृ+क्त—सम्मिलित करना, अन्तर्गत करना
- प्रतिसंहृत—भू॰ क॰ कृ॰—-—प्रति+सम्+हृ+क्त—संपीडित
- प्रतिसङ्क्रमः—पुं॰—-—प्रति+सम्+क्रम्+घञ्—पुनश्चूषण
- प्रतिसङ्क्रमः—पुं॰—-—प्रति+सम्+क्रम्+घञ्—प्रतिच्छाया, परछाईं
- प्रतिसंख्या—स्त्री॰—-—प्रति+सम्+ख्या+अङ्+टाप्—चेतना
- प्रतिसञ्चरः—पुं॰—-—प्रति+सम्+चर्+ट—पीछे मुड़ना
- प्रतिसञ्चरः—पुं॰—-—प्रति+सम्+चर्+ट—पुनश्चूषण
- प्रतिसञ्चरः—पुं॰—-—प्रति+सम्+चर्+ट—विशेषतः विराट् जगत का फिर प्रकृति के रूप में लीन हो जाना
- प्रतिसन्देशः—पुं॰—-—प्रति+सम्+दिश्+घञ्—संदेश का जवाब, संदेश के बदले संदेश
- प्रतिसन्धानम्—नपुं॰—-—प्रति+सम्+धा+ल्युट्—एक स्थान पर मिलना, एकत्र होना
- प्रतिसन्धानम्—नपुं॰—-—प्रति+सम्+धा+ल्युट्—दो युगों का मध्यवर्ती संक्रमणकाल
- प्रतिसन्धानम्—नपुं॰—-—प्रति+सम्+धा+ल्युट्—उपाय, उपचार
- प्रतिसन्धानम्—नपुं॰—-—प्रति+सम्+धा+ल्युट्—आत्मनियंत्रण, आत्मदमन
- प्रतिसन्धानम्—नपुं॰—-—प्रति+सम्+धा+ल्युट्—प्रशंसा
- प्रतिसन्धिः—पुं॰—-—प्रति+सम्+धा+कि—पुनर्मिलन
- प्रतिसन्धिः—पुं॰—-—प्रति+सम्+धा+कि—गर्भाशय में प्रवेशकरण
- प्रतिसन्धिः—पुं॰—-—प्रति+सम्+धा+कि—दो युगों का मध्यवर्ती संक्रमणकाल
- प्रतिसन्धिः—पुं॰—-—प्रति+सम्+धा+कि—विराम, उपरम
- प्रतिसमाधानम्—नपुं॰—-—प्रति+सम्+आ+धा+ल्युट्—चिकित्सा, उपचार
- प्रतिसमासनम्—नपुं॰—-—प्रति+सम्+आ+अस्+ल्युट्—सामना होना, जोड़ का होना
- प्रतिसमासनम्—नपुं॰—-—प्रति+सम्+आ+अस्+ल्युट्—मुकाबला करना, विरोध करना, टक्कर लेना
- प्रतिसरः—पुं॰—-—प्रति+सृ+अच्—कलाई या गरदन में पहनाने का ताबीज
- प्रतिसरः—पुं॰—-—प्रति+सृ+अच्—सेवक, अनुचर
- प्रतिसरः—पुं॰—-—प्रति+सृ+अच्—कड़ा, विवाह
- प्रतिसरः—पुं॰—-—प्रति+सृ+अच्—पुष्पमाला या हार
- प्रतिसरः—पुं॰—-—प्रति+सृ+अच्—प्रभात काल
- प्रतिसरः—पुं॰—-—प्रति+सृ+अच्—सेना का पृष्ठभाग
- प्रतिसरः—पुं॰—-—प्रति+सृ+अच्—एक प्रकार का जादू
- प्रतिसरः—पुं॰—-—प्रति+सृ+अच्—घाव का पुरना, या घाव पर पट्टी बांधना
- प्रतिसरम्—नपुं॰—-—प्रति+सृ+अच्—कलाई या गरदन में पहनाने का ताबीज
- प्रतिसर्गः—पुं॰—-—प्रति+सृज्+घञ्—गौण रचना
- प्रतिसर्गः—पुं॰—-—प्रति+सृज्+घञ्—विघ्टन, प्रलय
- प्रतिसान्धानिकः—पुं॰—-—प्रतिसंधान+ठक्—भाट, चारण, बंदी
- प्रतिसारणम्—नपुं॰—-—प्रति+सृ+णिच्+ल्युट्—घाव के किनारों की मल्हमपट्टी करना
- प्रतिसारणम्—नपुं॰—-—प्रति+सृ+णिच्+ल्युट्—घाव में मल्हम लगाने का उपकरन
- प्रतिसीरा—स्त्री॰—-—प्रति+सि+कुन्+टाप्, दीर्घः—परदा, चिक, कनात
- प्रतिसृष्ट—भू॰ क॰ कृ॰—-—प्रति+सृज्+क्त—भेजा गया, प्रेषित
- प्रतिसृष्ट—भू॰ क॰ कृ॰—-—प्रति+सृज्+क्त—प्रसिद्ध
- प्रतिसृष्ट—भू॰ क॰ कृ॰—-—प्रति+सृज्+क्त—पीछे ढकेला गया, अस्वीकृत
- प्रतिसृष्ट—भू॰ क॰ कृ॰—-—प्रति+सृज्+क्त—नशे में चूर
- प्रतिस्नात—भू॰ क॰ कृ॰—-—प्रति+स्ना+क्त—स्नान किया हुआ
- प्रतिस्नेहः—पुं॰, प्रा॰ स॰—-—-—बदले में प्यार, प्रतिप्रेम या बदले मे किया गया प्रेम
- प्रतिस्पन्दनम्—नपुं॰, प्रा॰ स॰—-—-—हृदय की धड़कन
- प्रतिस्वनः—पुं॰, प्रा॰ स॰—-—-—गूँज, प्रतिध्वनि
- प्रतिस्वरः—पुं॰, प्रा॰ स॰—-—-—गूँज, प्रतिध्वनि
- प्रतिहित—भू॰ क॰ कृ॰—-—प्रति+हन्+क्त—उलटा मारा हुआ, पछाड़ा हुआ
- प्रतिहित—भू॰ क॰ कृ॰—-—प्रति+हन्+क्त—भगाया हुआ, दूर किया हुआ, पीछे ढकेला हुआ
- प्रतिहित—भू॰ क॰ कृ॰—-—प्रति+हन्+क्त—विरोध किया हुआ, अवरुद्ध
- प्रतिहित—भू॰ क॰ कृ॰—-—प्रति+हन्+क्त—भेजा हुआ, प्रेषित
- प्रतिहित—भू॰ क॰ कृ॰—-—प्रति+हन्+क्त—घृणिन, नापसंद
- प्रतिहित—भू॰ क॰ कृ॰—-—प्रति+हन्+क्त—हताश, भग्नाश
- प्रतिहितमति—वि॰—प्रतिहित-मति—-—घृणा करने वाला, नापसंद करने वाला
- प्रतिहतिः—स्त्री॰—-—प्रति+हन्+क्तिन्—उलटकर प्रहार करना, पछाड़ना, ढकेलना
- प्रतिहतिः—स्त्री॰—-—प्रति+हन्+क्तिन्—पलट पड़ना, परावर्तन
- प्रतिहतिः—स्त्री॰—-—प्रति+हन्+क्तिन्—नाउम्मीदी, भग्नाशा
- प्रतिहतिः—स्त्री॰—-—प्रति+हन्+क्तिन्—क्रोध
- प्रतिहननम्—नपुं॰—-—प्रति+हन्+ल्युट्—उलट कर प्रहार करना, पछाड़ देना, पलट कर मारना, आघात के बदले आघात करना
- प्रतिहर्तृ—पुं॰—-—प्रति+हृ+तृच्—पछाड़ने वाला, हटाने वाला, पीछे धकेलने वाला, दूर करने वाला
- प्रतिहारः—पुं॰—-—प्रति+हृ+घञ्, पक्षे उपसर्गस्य दीर्घः—उलट कर प्रहार करना
- प्रतिहारः—पुं॰—-—प्रति+हृ+घञ्, पक्षे उपसर्गस्य दीर्घः—दरवाजा, फाटक
- प्रतिहारः—पुं॰—-—प्रति+हृ+घञ्, पक्षे उपसर्गस्य दीर्घः—दरबान, द्वारपाल
- प्रतिहारः—पुं॰—-—प्रति+हृ+घञ्, पक्षे उपसर्गस्य दीर्घः—जादूगर
- प्रतिहारः—पुं॰—-—प्रति+हृ+घञ्, पक्षे उपसर्गस्य दीर्घः—ऐन्द्रजालिक, जादूभरी चाल
- प्रतीहारः—पुं॰—-—प्रति+हृ+घञ्, पक्षे उपसर्गस्य दीर्घः—उलट कर प्रहार करना
- प्रतीहारः—पुं॰—-—प्रति+हृ+घञ्, पक्षे उपसर्गस्य दीर्घः—दरवाजा, फाटक
- प्रतीहारः—पुं॰—-—प्रति+हृ+घञ्, पक्षे उपसर्गस्य दीर्घः—दरबान, द्वारपाल
- प्रतीहारः—पुं॰—-—प्रति+हृ+घञ्, पक्षे उपसर्गस्य दीर्घः—जादूगर
- प्रतीहारः—पुं॰—-—प्रति+हृ+घञ्, पक्षे उपसर्गस्य दीर्घः—ऐन्द्रजालिक, जादूभरी चाल
- प्रतिहारभूमिः—स्त्री॰—प्रतिहारः-भूमिः—-—देहली
- प्रतीहारभूमिः—स्त्री॰—प्रतीहारः-भूमिः—-—देहली
- प्रतिहाररक्षी—स्त्री॰—प्रतिहारः-रक्षी—-—स्त्री द्वारपाल, प्रतिहारी
- प्रतीहाररक्षी—स्त्री॰—प्रतीहारः-रक्षी—-—स्त्री द्वारपाल, प्रतिहारी
- प्रतिहारकः—पुं॰—-—प्रति+हृ+ण्वुल्—ऐन्द्रजालिक, जादूगर
- प्रतिहासः—पुं॰—-—प्रति+हस्+घञ्—हंसी के बदले हंसी
- प्रतिहिंसा—स्त्री॰—-—प्रति+हिंस्+अ+टाप्—प्रतिशोध, बदला
- प्रतिहित—भू॰ क॰ कृ॰—-—प्रति+धा+क्त—साथ जड़ा गया, साथ सटा दिया गया
- प्रतीक—वि॰—-—प्रति+कन्, नि॰ दीर्घः—की ओर मुड़ा हुआ
- प्रतीक—वि॰—-—प्रति+कन्, नि॰ दीर्घः—विपर्यस्त, उलटा
- प्रतीक—वि॰—-—प्रति+कन्, नि॰ दीर्घः—विरुद्ध, प्रतिकूल, विपरीत
- प्रतीकः—पुं॰—-—-—अवयव, अंग
- प्रतीकः—पुं॰—-—-—भाग, अंग
- प्रतीकम्—नपुं॰—-—-—प्रतिमा
- प्रतीकम्—नपुं॰—-—-—मुँह, चेहरा
- प्रतीकम्—नपुं॰—-—-—अग्र भाग
- प्रतीकम्—नपुं॰—-—-—प्रथम शब्द
- प्रतीक्षणम्—नपुं॰—-—प्रति+ईक्ष्+ल्युट्—इंतजार करना
- प्रतीक्षणम्—नपुं॰—-—प्रति+ईक्ष्+ल्युट्—अपेक्षा, आशा
- प्रतीक्षणम्—नपुं॰—-—प्रति+ईक्ष्+ल्युट्—ख्याल, विचार, ध्यान
- प्रतीक्षा—स्त्री॰—-—प्रति+ईक्ष्+अङ+टाप्—इंतजार करना
- प्रतीक्षा—स्त्री॰—-—प्रति+ईक्ष्+अङ+टाप्—अपेक्षा, आशा
- प्रतीक्षा—स्त्री॰—-—प्रति+ईक्ष्+अङ+टाप्—इंतजार करना
- प्रतीक्षित—भू॰ क॰ कृ॰—-—प्रति+उक्ष्+क्त—जिसकी इंतजार की गई, अपेक्षा की गई
- प्रतीक्षित—भू॰ क॰ कृ॰—-—प्रति+उक्ष्+क्त—विचार किया गया
- प्रतीक्ष्य—सं॰ कृ॰—-—प्रति+ईक्ष्+ण्यत्—प्रतीक्षा किये जाने योग्य
- प्रतीक्ष्य—सं॰ कृ॰—-—प्रति+ईक्ष्+ण्यत्—ख्याल या विचार के योग्य
- प्रतीक्ष्य—सं॰ कृ॰—-—प्रति+ईक्ष्+ण्यत्—श्रद्धेय, आदरणीय
- प्रतीक्ष्य—सं॰ कृ॰—-—प्रति+ईक्ष्+ण्यत्—अनुसरणीय, प्रतिपालनीय, परिपूरणीय
- प्रतीची—स्त्री॰—-—प्रति+अञ्च्+क्विन्+ङीप्—पश्चिम दिशा
- प्रतीचीन—वि॰—-—प्रत्यञ्च+ख, नलोपो दीर्घश्च—पश्चिमी, पाश्चात्य
- प्रतीचीन—वि॰—-—प्रत्यञ्च+ख, नलोपो दीर्घश्च—भावी, परवर्ती, अनुवर्ती
- प्रतीच्छकः—पुं॰, प्रा॰ ब॰—-—प्रतिगता इच्छा यस्य कप्—ग्रहण करने वाला
- प्रतीच्य—वि॰—-—प्रतीची+यत्—पश्चिम में रहने वाला पछाहीं, पाश्चात्यदेशवासी
- प्रतीत—भू॰ क॰ कृ॰—-—प्रति+इ+क्त—प्रस्थित, प्रयात
- प्रतीत—भू॰ क॰ कृ॰—-—प्रति+इ+क्त—गुजरा हुआ, बीता हुआ, गया हुआ
- प्रतीत—भू॰ क॰ कृ॰—-—प्रति+इ+क्त—विश्वस्त, भरोसे का
- प्रतीत—भू॰ क॰ कृ॰—-—प्रति+इ+क्त—प्रमाणित, संस्थापित
- प्रतीत—भू॰ क॰ कृ॰—-—प्रति+इ+क्त—स्वीकृति, माना हुआ
- प्रतीत—भू॰ क॰ कृ॰—-—प्रति+इ+क्त—पुकारा गया, ज्ञात, नामक
- प्रतीत—भू॰ क॰ कृ॰—-—प्रति+इ+क्त—विख्यात, विश्रुत, प्रसिद्ध
- प्रतीत—भू॰ क॰ कृ॰—-—प्रति+इ+क्त—दृढ़संकल्पयुक्त
- प्रतीत—भू॰ क॰ कृ॰—-—प्रति+इ+क्त—विश्वास करने वाला, भरोसा रखने वाला, विश्रब्ध
- प्रतीत—भू॰ क॰ कृ॰—-—प्रति+इ+क्त—प्रस्न्न, खुश
- प्रतीत—भू॰ क॰ कृ॰—-—प्रति+इ+क्त—प्रतिष्ठित
- प्रतीत—भू॰ क॰ कृ॰—-—प्रति+इ+क्त—चतुर, विद्वान्, बुद्धिमान्
- प्रतीतिः—स्त्री॰—-—प्रति+इ+क्तिन्—धारणा, निश्चित भरोसा
- प्रतीतिः—स्त्री॰—-—प्रति+इ+क्तिन्—विश्वास
- प्रतीतिः—स्त्री॰—-—प्रति+इ+क्तिन्—ज्ञान, निश्चय, स्पष्ट प्रत्यक्षज्ञान या समझ
- प्रतीतिः—स्त्री॰—-—प्रति+इ+क्तिन्—यश, कीर्ति
- प्रतीतिः—स्त्री॰—-—प्रति+इ+क्तिन्—आदर
- प्रतीतिः—स्त्री॰—-—प्रति+इ+क्तिन्—खुशी
- प्रतीत्त—वि॰—-—प्रति+दा+क्त—वापिस दिया हुआ, लौटाया हुआ
- प्रतीन्धक—पुं॰—-—-—विदेह देश का नाम
- प्रतीप—वि॰—-—प्रतिगताः आपो यत्र, प्ति+अप्+अच्, अप ईप् च—विरुद्ध, प्रतिकूल, विपरीत, विरोधी
- प्रतीप—वि॰—-—प्रतिगताः आपो यत्र, प्ति+अप्+अच्, अप ईप् च—उलटा, विपर्यस्त, बिगड़ा हुआ
- प्रतीप—वि॰—-—प्रतिगताः आपो यत्र, प्ति+अप्+अच्, अप ईप् च—पिछड़ा हुआ, प्रतिगामी
- प्रतीप—वि॰—-—प्रतिगताः आपो यत्र, प्ति+अप्+अच्, अप ईप् च—अरुचिकर, अप्रिय
- प्रतीप—वि॰—-—प्रतिगताः आपो यत्र, प्ति+अप्+अच्, अप ईप् च—अड़ियल, आज्ञा का उल्लंघन करने वाला, हठी, दुराग्रही
- प्रतीप—वि॰—-—प्रतिगताः आपो यत्र, प्ति+अप्+अच्, अप ईप् च—विघ्नकारी
- प्रतीपः—पुं॰—-—-—एक राजा का नाम, महाराज शान्तनु के पिता तथा भीष्म के पितामह का नाम
- प्रतीपम्—नपुं॰—-—-—एक अलंकार का नाम जिसमें तुलना के सामान्य रूप को बदल कर उपमान की उपमेय से तुलना करते हैं
- प्रतीपम्—अव्य॰—-—-—इसके विपरीत
- प्रतीपम्—अव्य॰—-—-—विपरीत क्रमानुसार
- प्रतीपम्—अव्य॰—-—-—के विरुद्ध, के विरोध में
- प्रतीपग—वि॰—प्रतीप-ग—-—विरुद्ध चलने वाला
- प्रतीपग—वि॰—प्रतीप-ग—-—विपरीत, प्रतिकूल
- प्रतीपगमनम्—स्त्री॰—प्रतीप-गमनम्—-—उलटा चलना
- प्रतीपगतिः—स्त्री॰—प्रतीप-गतिः—-—उलटा चलना
- प्रतीपतरणम्—स्त्री॰—प्रतीप-तरणम्—-—धार के विरुद्ध जाना या नाव चलाना
- प्रतीपदर्शिनी—स्त्री॰—प्रतीप-दर्शिनी—-—स्त्री
- प्रतीपवचनम्—नपुं॰—प्रतीप-वचनम्—-—खण्डन
- प्रतीपवचनम्—नपुं॰—प्रतीप-वचनम्—-—दुराग्रहपूर्ण या टालमटोल करने वाला कहने का ढंग
- प्रतीपविपाकिन्—पुं॰—प्रतीप-विपाकिन्—-—विपरीत फलदायक
- प्रतीरम्—नपुं॰—-—प्र+तीर्+क—तट, किनारा
- प्रतीवापः—पुं॰—-—प्र+वप्+घञ्, उपसर्गस्य दीर्घः—जोड़ी जाय या मिलायी जाय
- प्रतीवापः—पुं॰—-—प्र+वप्+घञ्, उपसर्गस्य दीर्घः—धातु को भस्म करना या पिघलाना
- प्रतीवापः—पुं॰—-—प्र+वप्+घञ्, उपसर्गस्य दीर्घः—छूत की बीमारी, महामारी
- प्रतीवेशः—पुं॰—-—प्रति+विश्+घञ्—पड़ौसी का वासस्थान, पड़ौस
- प्रतीहासः—पुं॰—-—प्रति+हस्+घञ्—हंसी के बदले हंसी
- प्रतीवेशिन्—वि॰—-—प्रतिवेश+इनि—पड़ौसी
- प्रतिहारी—स्त्री॰—-—प्रतिहार+अच्+ङीष्—स्त्री द्वारपाल
- प्रतिहारी—स्त्री॰—-—प्रतिहार+अच्+ङीष्—ड्योढ़ीवान
- प्रतुदः—पुं॰—-—प्र+तुद्+क—पक्षियों की एक जाति
- प्रतुदः—पुं॰—-—प्र+तुद्+क—चुभोने का उपकरण
- प्रतुष्टिः—स्त्री॰—-—प्र+तुष्+क्तिन्—तृप्ति, सन्तोष
- प्रतोदः—पुं॰—-—प्र+तुद्+घञ्—अङ्कुश
- प्रतोदः—पुं॰—-—प्र+तुद्+घञ्—लम्बा चाबुक
- प्रतोदः—पुं॰—-—प्र+तुद्+घञ्—चुभोने वाला उपकरण
- प्रतूर्ण—वि॰—-—प्र+त्वर्+क्त—त्वरित, क्षिप्रगामी, फुर्तीला, तेज
- प्रतोली—स्त्री॰—-—प्र+तुल्+घञ्+ङीष्—ग्ल्ली, मुख्य मार्ग, नगर की मुख्य सड़क
- प्रत्त—भू॰ क॰ कृ॰—-—प्र+दा+क्त—दिया हुआ, प्रदत्त, प्रदान किया हुआ, प्रस्तुत किया हुआ
- प्रत्त—भू॰ क॰ कृ॰—-—प्र+दा+क्त—विवाह में दिया हुआ, विवाहित
- प्रत्न—वि॰—-—प्र+त्नप्—पुराना, प्राचीन
- प्रत्न—वि॰—-—प्र+त्नप्—पहला
- प्रत्न—वि॰—-—प्र+त्नप्—परम्परा प्राप्त, प्रथागत
- प्रत्यक्—अव्य॰—-—प्रति+अञ्च्+क्विन्—विरुद्ध दिशा में, पीछे की ओर
- प्रत्यक्—अव्य॰—-—प्रति+अञ्च्+क्विन्—के विरुद्ध
- प्रत्यक्—अव्य॰—-—प्रति+अञ्च्+क्विन्—से पश्चिम में
- प्रत्यक्ष—वि॰—-—अक्ष्णः प्रति—दृष्टिगोचर, दृश्य
- प्रत्यक्ष—वि॰—-—अक्ष्णः प्रति—उपस्थित, दृष्टिगत, आँख के सामने
- प्रत्यक्ष—वि॰—-—अक्ष्णः प्रति—इन्द्रियग्राह्य, इन्द्रियसंज्ञेय
- प्रत्यक्ष—वि॰—-—अक्ष्णः प्रति—स्पष्ट, विशद, साफ
- प्रत्यक्ष—वि॰—-—अक्ष्णः प्रति—सीधा, व्यवधानशून्य
- प्रत्यक्ष—वि॰—-—अक्ष्णः प्रति—सुस्पष्ट, सुव्यक्त
- प्रत्यक्ष—वि॰—-—अक्ष्णः प्रति—शारीरिक, भौतिक
- प्रत्यक्षम्—नपुं॰—-—अक्ष्णः प्रति—प्रत्यक्षज्ञान, आँखों देखा साक्ष्य, इन्द्रियों द्वारा बोध, एक प्रकार का प्रमाण
- प्रत्यक्षम्—नपुं॰—-—अक्ष्णः प्रति—सुव्यक्तता, सुस्पष्टाटता
- प्रत्यक्षज्ञानम्—नपुं॰—प्रत्यक्ष-ज्ञानम्—-—आँखों देखी गवाही, सीधा इन्द्रियों द्वारा प्राप्त ज्ञान
- प्रत्यक्षदर्शनः—वि॰—प्रत्यक्ष-दर्शनः—-—आँखों देखा गवाह
- प्रत्यक्षदर्शिन्—वि॰—प्रत्यक्ष-दर्शिन्—-—आँखों देखा गवाह
- प्रत्यक्षदृष्ट—वि॰—प्रत्यक्ष-दृष्ट—-—स्वयं देखा हुआ
- प्रत्यक्षप्रमा—स्त्री॰—प्रत्यक्ष-प्रमा—-—सही ज्ञान या वह जानकारी जो सीधे ज्ञानेन्द्रियों द्वारा प्राप्त की जाय
- प्रत्यक्षप्रमाणम्—नपुं॰—प्रत्यक्ष-प्रमाणम्—-—आँखों से देखा सबूत, स्वयं ज्ञानेन्द्रियों का साक्षी होना
- प्रत्यक्षफल—वि॰—प्रत्यक्ष-फल—-—स्पष्ट और दृश्य फलों के रखने वाला
- प्रत्यक्षबादिन्—पुं॰—प्रत्यक्ष-बादिन्—-—वह बौद्ध जो प्रत्यक्ष प्रमाण के अतिरिक्त और किसी प्रमाण को न मानता हो
- प्रत्यक्षविहित—वि॰—प्रत्यक्ष-विहित—-—सीधा और स्पष्ट विधान किया हुआ
- प्रत्यक्षिन्—पुं॰—-—प्रत्यक्ष+इनि—आँखों देखा गवाह, प्रत्यक्ष द्रष्टा
- प्रत्यग्र—वि॰—-—प्रतिगतम् अग्रम् श्रेष्ठं यस्य-प्रा॰ ब॰—ताजा, नया, नूतन, अभिनव
- प्रत्यग्र—वि॰—-—प्रतिगतम् अग्रम् श्रेष्ठं यस्य-प्रा॰ ब॰—दोहराया हुआ
- प्रत्यग्र—वि॰—-—प्रतिगतम् अग्रम् श्रेष्ठं यस्य-प्रा॰ ब॰—विशुद्ध
- प्रत्यग्रवयस्—वि॰—प्रत्यग्र-वयस्—-—अल्पवयस्क, जीवन की परिपक्वावस्था में, तरुण
- प्रत्यञ्च्—वि॰—-—प्रति+अञ्च्+क्विन्—की ओर मुड़ा हुआ
- प्रत्यञ्च्—वि॰—-—प्रति+अञ्च्+क्विन्—पश्चवर्ती
- प्रत्यञ्च्—वि॰—-—प्रति+अञ्च्+क्विन्—अनुवर्ती, भावी
- प्रत्यञ्च्—वि॰—-—प्रति+अञ्च्+क्विन्—परे किया हुआ, हटाया हुआ
- प्रत्यञ्च्—वि॰—-—प्रति+अञ्च्+क्विन्—पाश्चात्य, पश्चिम दिशा का
- प्रत्यगक्षम्—नपुं॰—प्रत्यञ्च्-अक्षम्—-—आन्तरिक अवयव
- प्रत्यगात्मन्—पुं॰—प्रत्यञ्च्-आत्मन्—-—वैयक्तिक जीव, आत्मा
- प्रत्यगाशापतिः—पुं॰—प्रत्यञ्च्-आशापतिः—-—पश्चिम दिशा का स्वामी, वरुण का विशेषण
- प्रत्यगुदच्—स्त्री॰—प्रत्यञ्च्-उदच्—-—उत्तर पश्चिमी
- प्रत्यग्दक्षिणतः—अव्य॰—प्रत्यञ्च्-दक्षिणतः—-—दक्षिणपश्चिम की ओर
- प्रत्यग्दृश्—स्त्री॰—प्रत्यञ्च्-दृश्—-—आन्तरिक झांकी, अन्तर्दृष्टि
- प्रत्यङ्मुख—वि॰—प्रत्यञ्च्-मुख—-—पश्चिमाभिमुखी
- प्रत्यङ्मुख—वि॰—प्रत्यञ्च्-मुख—-—मुँह मोड़े हुए
- प्रत्क्स्रोतस्—वि॰—प्रत्यञ्च्-स्रोतम्—-—पश्चिम की ओर बहने वाला
- प्रत्क्स्रोतस्—स्त्री॰—प्रत्यञ्च्-स्रोतम्—-—नर्मदा नदी का विशेषण
- प्रत्यञ्चित—वि॰—-—प्रति+अञ्च्+क्त—सम्मानित, पूजित, अर्चित
- प्रत्यदनम्—नपुं॰—-—प्रति+अद्+ल्युट्—भोजन करना
- प्रत्यदनम्—नपुं॰—-—प्रति+अद्+ल्युट्—भोजन
- प्रत्यभिज्ञा—स्त्री॰—-—प्रति+अभि+ज्ञा+अङ्+टाप्—जानना, पहचानना
- प्रत्यभिज्ञानम्—नपुं॰—-—प्रति+अभि+ज्ञा+ल्युट्—पहचानना
- प्रत्यभिज्ञात—भू॰ क॰ कृ॰—-—प्रति+अभि+ज्ञा+क्त—पहचाना हुआ
- प्रत्यभिभूत—भू॰ क॰ कृ॰—-—प्रति+अभि+भू+क्त—पराजित, जीता हुआ
- प्रत्यभियुक्त—भू॰ क॰ कृ॰—-—प्रति+अभि+युज्+क्त—बदले में अभियोग लगाया हुआ
- प्रत्यभियोगः—पुं॰—-—प्रति+अभि+युज्+घञ्—अभियोक्ता के विरुद्ध दोषारोप, बदले में दोषारोपण करना
- प्रत्यभिवादः—पुं॰—-—प्रति+अभि+वद्+णिच्+घञ्—नमस्कार के बदले नमस्कार
- प्रत्यभिवादनम्—नपुं॰—-—प्रति+अभि+वद्+णिच्+ल्युट्—नमस्कार के बदले नमस्कार
- प्रत्यभिस्कंदनम्—नपुं॰—-—प्रति+अभि+स्कन्द्+ल्युट्—ज्वाबी नालिशा, प्रत्यारोप
- प्रत्ययः—पुं॰—-—प्रति+इ+अच्—धारणा, निश्चित विश्वास
- प्रत्ययः—पुं॰—-—प्रति+इ+अच्—विश्वास, भरोसा, श्रद्धा, विश्रंभ
- प्रत्ययः—पुं॰—-—प्रति+इ+अच्—संबोध, विचारम् भाव, सम्मति
- प्रत्ययः—पुं॰—-—प्रति+इ+अच्—यकीन, निश्चयता
- प्रत्ययः—पुं॰—-—प्रति+इ+अच्—जानकारी, अनुभव, संज्ञान
- प्रत्ययः—पुं॰—-—प्रति+इ+अच्—कारण, आधार, क्रिया का साधन
- प्रत्ययः—पुं॰—-—प्रति+इ+अच्—प्रसिद्धि, यश, कीर्ति
- प्रत्ययः—पुं॰—-—प्रति+इ+अच्—सुप्, तिङ् आदि प्रत्यय जो शब्द व धातुओं के आगे लगते हैं , कृदन्त व तद्धित के प्रत्यय
- प्रत्ययः—पुं॰—-—प्रति+इ+अच्—शपथ
- प्रत्ययः—पुं॰—-—प्रति+इ+अच्—पराश्रयी
- प्रत्ययः—पुं॰—-—प्रति+इ+अच्—प्रचलन, अभ्यास
- प्रत्ययः—पुं॰—-—प्रति+इ+अच्—छिद्र
- प्रत्ययः—पुं॰—-—प्रति+इ+अच्—बुद्धि, समझ
- प्रत्ययकारक—वि॰—प्रत्ययः-कारक—-—विश्वास पैदा करने वाला, भरोसा देने वाला
- प्रत्ययकारिन्—वि॰—प्रत्ययः-कारिन्—-—विश्वास पैदा करने वाला, भरोसा देने वाला
- प्रत्ययकारिणी—स्त्री॰—प्रत्ययः-कारिणी—-—विश्वास पैदा करने वाला, भरोसा देने वाला
- प्रत्ययित—वि॰—-—प्रत्यय+इतच्—विश्वस्त, भरोसे का
- प्रत्ययित—वि॰—-—प्रत्यय+इतच्—विश्वासी, विश्वास पूर्वक कहा या लिखा हुआ
- प्रत्ययिन्—वि॰—-—प्रत्यय+इनि—निर्भर करने वाला, विश्वास करने वाला, भरोसा रखने वाला
- प्रत्ययिन्—वि॰—-—प्रत्यय+इनि—विश्वासपात्र, विश्वास या भरोसे के योग्य
- प्रत्यर्थ—वि॰—-—प्रति+अर्थ्+अच्—उपभोगी, युक्तिसंगत
- प्रत्यर्थम्—नपुं॰—-—-—उत्तर, जवाब
- प्रत्यर्थम्—नपुं॰—-—-—शत्रुता, विरोध
- प्रत्यर्थिन्—वि॰—-—प्रति+अर्थ्+णिनि—विपक्षी, विरोधी, शत्रुतापूर्ण
- प्रत्यर्थिन्—पुं॰—-—प्रति+अर्थ्+णिनि—प्रतिद्वन्द्वी, सम, जोड़ का
- प्रत्यर्थिन्—पुं॰—-—प्रति+अर्थ्+णिनि—प्रतिवादी
- प्रत्यर्थीभूत—वि॰—प्रत्यर्थिन्-भूत—-—मार्ग में रुकावट, बधक बना हुआ
- प्रत्यर्पणम्—नपुं॰—-—प्रति+ऋ+णिच्+ल्युट्, पुकागमः—वापिस देना, लौटा देना
- प्रत्यर्पित—भू॰ क॰ कृ—-—प्रति+ऋ+णिच्+क्त, पुकागमः—लौटाया हुआ, वापिस दिया हुआ
- प्रत्यवमर्शः—पुं॰—-—प्रति+अव+मृश्+घञ्—गंभीर चिंतन, गहन मनन
- प्रत्यवमर्शः—पुं॰—-—प्रति+अव्+मृश्+घञ्—परामर्श, नसीहत
- प्रत्यवमर्शः—पुं॰—-—प्रति+अव्+मृश्+घञ्—प्रत्युपसंहार
- प्रत्यवमर्षः—पुं॰—-—प्रति+अव+मृश्+घञ्—गंभीर चिंतन, गहन मनन
- प्रत्यवमर्षः—पुं॰—-—प्रति+अव+मृश्+घञ्—परामर्श, नसीहत
- प्रत्यवमर्षः—पुं॰—-—प्रति+अव्+मृश्+घञ्—प्रत्युपसंहार
- प्रत्यवरोधनम्—नपुं॰—-—प्रति+अव+रुध्+ल्युट्—रुकावट, विघ्न
- प्रत्यवसानम्—नपुं॰—-—प्रति+अव+सो+ल्युट्—खाना या पीना
- प्रत्यवसित—वि॰—-—प्रति+अव+सो+क्त—खाया हुआ, पीया हुआ
- प्रत्यवस्कन्दः—पुं॰—-—प्रति+अव+स्कन्द्+घञ्—विशेष तर्क जिसको कि प्रतिवादी उत्तर के रूप में प्रस्तुत करता है परन्तु वह आरोप के रूप में नहीं समझा जाता, प्रतिवादी का वह उत्तर जिसमें वह वादी के अभियोग का खंडन करता है
- प्रत्यवस्कन्दनम्—नपुं॰—-—प्रति+अव+स्कन्द्+ल्युट्—विशेष तर्क जिसको कि प्रतिवादी उत्तर के रूप में प्रस्तुत करता है परन्तु वह आरोप के रूप में नहीं समझा जाता, प्रतिवादी का वह उत्तर जिसमें वह वादी के अभियोग का खंडन करता है
- प्रत्यवस्थानम्—नपुं॰—-—प्रति+अव+स्था+ल्युट्—अपाकरण
- प्रत्यवस्थानम्—नपुं॰—-—प्रति+अव+स्था+ल्युट्—शत्रुता, विरोध
- प्रत्यवस्थानम्—नपुं॰—-—प्रति+अव+स्था+ल्युट्—यथास्थिति, पूर्वस्थिति
- प्रत्यवहारः—पुं॰—-—प्रति+अव+हृ+घञ्—वापस खींचना
- प्रत्यवहारः—पुं॰—-—प्रति+अव+हृ+घञ्—विश्व का विनाश, प्रलय
- प्रत्यवायः—पुं॰—-—प्रति+अव+अय्+घञ्—ह्रास, न्यूनता
- प्रत्यवायः—पुं॰—-—प्रति+अव+अय्+घञ्—अवरोध, रुकावट
- प्रत्यवायः—पुं॰—-—प्रति+अव+अय्+घञ्—विरुद्ध या विपरीत मार्ग, वैपरीत्य
- प्रत्यवायः—पुं॰—-—प्रति+अव+अय्+घञ्—पाप, अपराध, पापमयता
- प्रत्यवेक्षणम्—नपुं॰—-—प्रति+अव+ईक्ष्+ल्युट्—ध्यान रखना, खयाल करना, देखरेख करना
- प्रत्यवेक्षा—स्त्री॰—-—प्रति+अव+ईक्ष्+अङ्+टाप्—ध्यान रखना, खयाल करना, देखरेख करना
- प्रत्यस्तमयः—पुं॰—-—प्रति+अस्तम्+अय्+अच्—छिपना
- प्रत्यस्तमयः—पुं॰—-—प्रति+अस्तम्+अय्+अच्—अन्त, समाप्ति
- प्रत्याक्षेपक—वि॰—-—प्रति+आ+क्षिप्, ण्वु्ल्—ताना मारने वाला, व्यंग्यपूर्ण, उपहासजनक, चिढ़ाने वाला
- प्रत्यख्यात—भू॰ क॰ कृ॰—-—प्रति+आ+ख्या+क्त—मना किया हुआ
- प्रत्यख्यात—भू॰ क॰ कृ॰—-—प्रति+आ+ख्या+क्त—मुकरा हुआ
- प्रत्यख्यात—भू॰ क॰ कृ॰—-—प्रति+आ+ख्या+क्त—प्रतिषिद्ध, निषिद्ध
- प्रत्यख्यात—भू॰ क॰ कृ॰—-—प्रति+आ+ख्या+क्त—एक ओर रक्खा हुआ, अस्वीकृत
- प्रत्यख्यात—भू॰ क॰ कृ॰—-—प्रति+आ+ख्या+क्त—पीछे ढकेला हुआ
- प्रत्याख्यानम्—नपुं॰—-—प्रति+आ+ख्या+ल्युट्—पीछे हटाना, अस्वीकार करना
- प्रत्याख्यानम्—नपुं॰—-—प्रति+आ+ख्या+ल्युट्—मुकरना, मना करना, इनकार
- प्रत्याख्यानम्—नपुं॰—-—प्रति+आ+ख्या+ल्युट्—अवहेलना
- प्रत्याख्यानम्—नपुं॰—-—प्रति+आ+ख्या+ल्युट्—भर्त्सना
- प्रत्याख्यानम्—नपुं॰—-—प्रति+आ+ख्या+ल्युट्—निराकरण
- प्रत्यागतिः—स्त्री॰— —प्रति+आ+गम्+क्तिन्—वापिस आना, लौटन
- प्रत्यागमः—पुं॰—-—प्रति+आ+गम्+अप्—लौटना, वापिस आना
- प्रत्यागमनम्—नपुं॰—-—प्रति+आ+गम्+ल्युट्—लौटना, वापिस आना
- प्रत्यादानम्—नपुं॰—-—प्रति+आ+दा+ल्युट्—वापिस लेना, पुनर्ग्रहण, पुनःप्राप्ति
- प्रत्यादिष्ट—भू॰क॰ कृ॰—-—प्रति+आ+दिश्+क्त—नियत
- प्रत्यादिष्ट—भू॰क॰ कृ॰—-—प्रति+आ+दिश्+क्त—सूचित
- प्रत्यादिष्ट—भू॰क॰ कृ॰—-—प्रति+आ+दिश्+क्त—अस्वीकृत, पीछे ढकेला हुआ
- प्रत्यादिष्ट—भू॰क॰ कृ॰—-—प्रति+आ+दिश्+क्त—ह्टाया हुआ, एक ओर रक्खा हुआ
- प्रत्यादिष्ट—भू॰क॰ कृ॰—-—प्रति+आ+दिश्+क्त—तिरोहित, अंधकार में डाला हुआ
- प्रत्यादिष्ट—भू॰क॰ कृ॰—-—प्रति+आ+दिश्+क्त—चेताया हुआ, सावधान किया हुआ
- प्रत्यादेशः—पुं॰—-—प्रति+आ+दिश्+घञ्—आदेश, हुक्म
- प्रत्यादेशः—पुं॰—-—प्रति+आ+दिश्+घञ्—संसूचन, घोषणा
- प्रत्यादेशः—पुं॰—-—प्रति+आ+दिश्+घञ्—मना करना, मुकरना, अस्वीकृति, पीछे हटाना, ,निराकरण
- प्रत्यादेशः—पुं॰—-—प्रति+आ+दिश्+घञ्—तिरोहित करना, ग्रस्त करना, तिरोधाता, लज्जित करने वाला, अंधकारावृत करने वाला
- प्रत्यादेशः—पुं॰—-—प्रति+आ+दिश्+घञ्—सावधानी, चेतावनी
- प्रत्यादेशः—पुं॰—-—प्रति+आ+दिश्+घञ्—विशेष रूप से दिव्य सावधानता, अतिप्राकृतिक चेतावनी
- प्रत्यानयनम्—नपुं॰—-—प्रति+आ+नी+ल्युट्—वापिस लाना, लौटा लाना
- प्रत्यापत्तिः—स्त्री॰—-—प्रति+आ+पद्+क्तिन्—वापसी
- प्रत्यापत्तिः—स्त्री॰—-—प्रति+आ+पद्+क्तिन्—अरुचि, सांसारिक विषयों के प्रति विराग, वैराग्य
- प्रत्याम्नायः—पुं॰—-—प्रति+आ+म्ना+घञ्—अनुमान प्रक्रिया का पाँचवाँ अंग अर्थात् निगमन
- प्रत्यायः—पुं॰—-—प्रति+अय्+घञ्—चुंगी, कर
- प्रत्यायक—वि॰—-—प्रति+आ+इ+णिच्+ण्वुल्—प्रमाणित करने वाला, व्याख्या करने वाला
- प्रत्यायक—वि॰—-—प्रति+आ+इ+णिच्+ण्वुल्—विश्वास दिलाने वाला, भरोसा उत्पन्न करने वाला
- प्रत्यायनम्—नपुं॰—-—प्रति+आ+इ+णिच्+ल्युट्—घर ले जाना, विवाह करना
- प्रत्यायनम्—नपुं॰—-—प्रति+आ+इ+णिच्+ल्युट्—छिपना
- प्रत्यालीढम्—नपुं॰—-—प्रति+आ+लिह्+क्त—निशाना लगाते समय का विशेष आसन
- प्रत्यावर्तनम्—नपुं॰—-—प्रति+आ+वृत्+ल्युट्—लौटना, वापिस आना
- प्रत्याश्वासः—पुं॰—-—प्रति+आ+श्वस्+घञ्—फिर से सांस लेना, फिर लौट आना, फिर चलने लगना
- प्रत्याश्वासनम्—नपुं॰—-—प्रति+आ+श्चस्+णिच्+ल्युट्—ढाढस बधाना, सान्त्वना देना
- प्रत्यासत्तिः—स्त्री॰—-—प्रति+आ+सद्+क्तिन्—अत्यंत सामीप्य, संसक्ति
- प्रत्यासत्तिः—स्त्री॰—-—प्रति+आ+सद्+क्तिन्—घनिष्ठ संपर्क
- प्रत्यासत्तिः—स्त्री॰—-—प्रति+आ+सद्+क्तिन्—सादृश्य
- प्रत्यासन्न—भू॰ क॰ कृ॰—-—प्रति+आ+सद्+क्त—समीप, निकट, संसक्त, सटा हुआ
- प्रत्यासरः—पुं॰—-—प्रति+आ+सृ+अप्—सेना का पृष्ठभाग
- प्रत्यासरः—पुं॰—-—प्रति+आ+सृ+अप्—एक व्यूह के पीछे दूसरा व्यूह - ऐसी व्यूह रचना या मोर्चा बन्दी
- प्रत्यासारः—पुं॰—-—प्रति+आ+सृ+घञ्—सेना का पृष्ठभाग
- प्रत्यासारः—पुं॰—-—प्रति+आ+सृ+घञ्—एक व्यूह के पीछे दूसरा व्यूह - ऐसी व्यूह रचना या मोर्चा बन्दी
- प्रत्याहरणम्—नपुं॰—-—प्रति+आ+हृ+ल्युट्—वापिस लेना, पुनः ग्रहण करना, वसूली
- प्रत्याहरणम्—नपुं॰—-—प्रति+आ+हृ+ल्युट्—रोकना
- प्रत्याहरणम्—नपुं॰—-—प्रति+आ+हृ+ल्युट्—ज्ञानेन्द्र्यों का नियन्त्रण करना
- प्रत्याहारः—पुं॰—-—प्रति+आ+हृ+घञ्—पीछे हटाना, अआपिस चलना, प्रत्यावर्तन
- प्रत्याहारः—पुं॰—-—प्रति+आ+हृ+घञ्—पीछे रखना, रोकना
- प्रत्याहारः—पुं॰—-—प्रति+आ+हृ+घञ्—इन्द्रिय दमन करना
- प्रत्याहारः—पुं॰—-—प्रति+आ+हृ+घञ्—सृष्टि का विघटन या प्रलय
- प्रत्याहारः—पुं॰—-—प्रति+आ+हृ+घञ्—एक ही ध्वनि के उच्चारण में कई अक्षरों का बोध, सूत्र के प्रथम अक्षर से लेकर अन्तिम सांकेतिक वर्ण तक जोड़ना या कई सूत्रों के होने पर अन्तिम सूत्र के अन्तिम वर्ण तक - यथा 'अ इ उ ण्' सूत्र का प्रत्याहार 'अण्' तथा 'अ इ उ ण्, ऋलृक्, ए ओङ्, ऐ औच्' इन चार सूत्रों का प्रत्याहार 'अच्' है प्रत्याहार है; व्यंजनों का प्रत्याहार 'हल्' तथा सभी वर्णों का द्योतक 'अल्' प्रत्याहार है
- प्रत्युक्त—भू॰ क॰ कृ॰—-—प्रति+वच्+क्त—उत्तर दिया गया, बदले में कहा गया, जबाब दिया हुआ
- प्रत्युक्ति—स्त्री॰—-—प्रति+वच्+क्तिन्—उत्तर, जबाब
- प्रत्युच्चारः—पुं॰—-—प्रति+उद्+चर्+णिच्+घञ्—आवृत्ति, दोहराना
- प्रत्युच्चारणम्—नपुं॰—-—प्रति+उद्+चर्+णिच्+ल्युट्—आवृत्ति, दोहराना
- प्रत्युज्जीवनम्—नपुं॰—-—प्रति+उद्+जीव्+ल्युट्—पुनर्जीवन होना, जीवन का फिर संचार होना, फिर से जी उठना
- प्रत्युत—अव्य॰—-—प्रति+उत द्व॰ स॰—इसके विपरीत
- प्रत्युत—अव्य॰—-—प्रति+उत द्व॰ स॰—बल्कि, भी
- प्रत्युत—अव्य॰—-—प्रति+उत द्व॰ स॰—दूसरी ओर
- प्रत्युत्क्रमः—स्त्री॰—-—प्रति+उद्+क्रम्+घञ्—बीड़ा उठाना
- प्रत्युत्क्रमः—स्त्री॰—-—प्रति+उद्+क्रम्+घञ्—युद्ध की तैयारी
- प्रत्युत्क्रमः—स्त्री॰—-—प्रति+उद्+क्रम्+घञ्—शत्रु पर चढ़ाई करने में सहायक हो
- प्रत्युत्क्रमः—स्त्री॰—-—प्रति+उद्+क्रम्+घञ्—गौण कार्य जो मुख्य कार्य में सहायक हो
- प्रत्युत्क्रमः—स्त्री॰—-—प्रति+उद्+क्रम्+घञ्—किसी व्यवसाय का समारम्भ
- प्रत्युत्क्रमणम्—स्त्री॰—-—प्रति+उद्+क्रम्+ल्युट्—बीड़ा उठाना
- प्रत्युत्क्रमणम्—स्त्री॰—-—प्रति+उद्+क्रम्+ल्युट्—युद्ध की तैयारी
- प्रत्युत्क्रमणम्—स्त्री॰—-—प्रति+उद्+क्रम्+ल्युट्—शत्रु पर चढ़ाई करने में सहायक हो
- प्रत्युत्क्रमणम्—स्त्री॰—-—प्रति+उद्+क्रम्+ल्युट्—गौण कार्य जो मुख्य कार्य में सहायक हो
- प्रत्युत्क्रमणम्—स्त्री॰—-—प्रति+उद्+क्रम्+ल्युट्—किसी व्यवसाय का समारम्भ
- प्रत्युत्क्रान्तिः—स्त्री॰—-—प्रति+उद्+क्रम्+क्तिन्—बीड़ा उठाना
- प्रत्युत्क्रान्तिः—स्त्री॰—-—प्रति+उद्+क्रम्+क्तिन्—युद्ध की तैयारी
- प्रत्युत्क्रान्तिः—स्त्री॰—-—प्रति+उद्+क्रम्+क्तिन्—शत्रु पर चढ़ाई करने में सहायक हो
- प्रत्युत्क्रान्तिः—स्त्री॰—-—प्रति+उद्+क्रम्+क्तिन्—गौण कार्य जो मुख्य कार्य में सहायक हो
- प्रत्युत्क्रान्तिः—स्त्री॰—-—प्रति+उद्+क्रम्+क्तिन्—किसी व्यवसाय का समारम्भ
- प्रत्युत्थानम्—नपुं॰—-—प्रति+उद्+स्था+ल्युट्—किसी के विरुद्ध उठना
- प्रत्युत्थानम्—नपुं॰—-—प्रति+उद्+स्था+ल्युट्—युद्ध की तैयारी करना
- प्रत्युत्थानम्—नपुं॰—-—प्रति+उद्+स्था+ल्युट्—किसी अभ्यागत का स्वागत करने के लिए अपने आस न से उठना
- प्रत्युत्थित—भू॰ क॰ कृ॰—-—प्रति+उद्+स्था+क्त—मिलने के लिए उठा हुआ
- प्रत्युत्पन्न—भू॰ क॰ कृ॰—-—प्रति+उद्+पद्+क्त—पुनरुत्पादित, फिर से उत्पन्न
- प्रत्युत्पन्न—भू॰ क॰ कृ॰—-—प्रति+उद्+पद्+क्त—उद्यत, तत्पर, फुर्तीला
- प्रत्युत्पन्न—भू॰ क॰ कृ॰—-—प्रति+उद्+पद्+क्त—गुणा किया हुआ
- प्रत्युत्पन्नम्—नपुं॰—-—-—गुणा
- प्रत्युत्पन्नमति—वि॰—प्रत्युत्पन्न-मति—-—समय पर जिसकी बुद्धि ठीक कार्य करे, हजिर जबाब
- प्रत्युत्पन्नमति—वि॰—प्रत्युत्पन्न-मति—-—साहसी, दिलेर
- प्रत्युत्पन्नमति—वि॰—प्रत्युत्पन्न-मति—-—तीव्र, तीक्ष्ण
- प्रत्युदाहरणम्—नपुं॰—-—प्रति+उद्+आ+हृ+ल्युट्—मुकाबले का उदाहरण, विपक्ष का उदाहरण
- प्रत्युद्गत—भू॰ क॰ कृ॰—-—प्रति+उद्+गम्+क्त—अतिथि का स्वागत करने के लिए अपने आसन से उठा हुआ
- प्रत्युद्गत—भू॰ क॰ कृ॰—-—प्रति+उद्+गम्+क्त—किसी के विरुद्ध आगे बढ़ा हुआ
- प्रत्युद्गतिः—स्त्री॰—-—प्रति+उद्+गम्+क्तिन्—अतिथि का सत्कार करने के लिए अपने आसन से उठना या बाहर जाना
- प्रत्युद्गमः—पुं॰—-—प्रति+उद्+गम्+अप्—अतिथि का सत्कार करने के लिए अपने आसन से उठना या बाहर जाना
- प्रत्युद्गमनम्—नपुं॰—-—प्रति+उद्+गम्+ल्युट्—अतिथि का सत्कार करने के लिए अपने आसन से उठना या बाहर जाना
- प्रत्युद्गमनीयम्—नपुं॰—-—प्रति+उद्+गम्+अनीयर्—अतिथि का सत्कार करने के लिए अपने आसन से उठना या बाहर जाना
- प्रत्युद्धरणम्—नपुं॰—-—प्रति+उद्+हृ+ल्युट्—पुनः प्राप्त करना, दी हुई वस्तु को वापिस लेना
- प्रत्युद्धरणम्—नपुं॰—-—प्रति+उद्+हृ+ल्युट्—फिर उठाना
- प्रत्युद्यमः—पुं॰—-—प्रति+उद्+यम्+अप्—प्रतिसंतुलन, समतोलन
- प्रत्युद्यमः—पुं॰—-—प्रति+उद्+यम्+अप्—रोक थाम, प्रतिक्रिया
- प्रत्युद्यात—वि॰—-—प्रति+उद्+या क्त—अतिथि का स्वागत करने के लिए अपने आसन से उठा हुआ
- प्रत्युद्यात—वि॰—-—प्रति+उद्+या क्त—किसी के विरुद्ध आगे बढ़ा हुआ
- प्रत्युन्नमनम्—नपुं॰—-—प्रति+उद्+नम्+ल्युट्—पुनः उठना, फिर उछलना, पलटा खाकर आना
- प्रत्युपकारः—पुं॰—-—प्रति+उप+कृ+घञ्—किसी की कृपा या सेवा का बदला चुकाना, उपकार का प्रतिदन, बदले में सेवा
- प्रत्युपक्रिया—स्त्री॰—-—प्रति+उप+कृ+श, इयङ्, टाप्—सेवा का प्रतिफल
- प्रत्युपदेशः—पुं॰—-—प्रति+उप+दिश्+घञ्—बदले में परामर्श या उपदेश
- प्रत्युपपन्न—वि॰—-—प्रति+उप+पद्+क्त—पुनरुत्पादित, फिर से उत्पन्न
- प्रत्युपपन्न—वि॰—-—प्रति+उप+पद्+क्त—उद्यत, तत्पर, फुर्तीला
- प्रत्युपपन्न—वि॰—-—प्रति+उप+पद्+क्त—गुणा किया हुआ
- प्रत्युपमानम्—नपुं॰—-—प्रति+उप+मा+ल्युट्—सम्रूपता का प्रतिरूप
- प्रत्युपमानम्—नपुं॰—-—प्रति+उप+मा+ल्युट्—नमूना, आदर्श
- प्रत्युपमानम्—नपुं॰—-—प्रति+उप+मा+ल्युट्—मुकाबले की तुलना
- प्रत्युपलब्ध—भू॰ क॰ कृ॰—-—प्रति+उप+कभ्+क्त—वापिस प्राप्त, फिर लाया हुआ
- प्रत्युपवेशः—पुं॰—-—प्रति+उप+विश+णिच्+घञ्—आज्ञा-पालन कराने के लिए किसी को घेरना
- प्रत्युपवेशनम्—नपुं॰—-—प्रति+उप+विश+णिच्+ल्युट्—आज्ञा-पालन कराने के लिए किसी को घेरना
- प्रत्युपस्थानम्—नपुं॰—-—प्रति+उप+स्था+ल्युट्—आसपास, पड़ौस
- प्रत्युप्त—भू॰ क॰ कृ॰—-—प्रति+वप्+क्त—जड़ा हुआ, या जमाया हुआ, जटित, भरा हुअ
- प्रत्युप्त—भू॰ क॰ कृ॰—-—प्रति+वप्+क्त—बोया हुआ
- प्रत्युप्त—भू॰ क॰ कृ॰—-—प्रति+वप्+क्त—स्थिर किया हुआ, गाड़ा हुआ, दृढ़तापूर्वक टिकया हुआ, जमाया हुआ
- प्रत्युषः—नपुं॰—-—प्रत्योषति नाशयति अन्धकारम् - प्रति+उष्+क—भोर, प्रभात, तड़का
- प्रत्युषस्—नपुं॰—-—प्रत्योषति नाशयति अन्धकारम् - प्रति+उष्+असि—भोर, प्रभात, तड़का
- प्रत्यूषः—पुं॰—-—प्रति+ऊष्+क—भोर, प्रभात, तड़का
- प्रत्यूषः—पुं॰—-—प्रति+ऊष्+क—सूर्य
- प्रत्यूषः—पुं॰—-—प्रति+ऊष्+क—आठ वस्तुओं में से एक वस्तु का नाम
- प्रत्यूषम्—नपुं॰—-—प्रति+ऊष्+क—भोर, प्रभात, तड़का
- प्रत्यूषस्—नपुं॰—-—प्रति+ऊष्+असि—भोर, प्रभात, तड़का
- प्रत्यूहः—पुं॰—-—प्रति+ऊह+घञ्—रुकावट, बाधा, विघ्न
- प्रथ्—भ्वा॰ आ॰ - <प्रथते>, <प्रथितम्>—-—-—बढ़ना
- प्रथ्—भ्वा॰ आ॰ - <प्रथते>, <प्रथितम्>—-—-—फैलाना
- प्रथ्—भ्वा॰ आ॰ - <प्रथते>, <प्रथितम्>—-—-—सुविख्यात होना, प्रसिद्ध होना
- प्रथ्—भ्वा॰ आ॰ - <प्रथते>, <प्रथितम्>—-—-—प्रकट होना, उदय होना, प्रकाश में आना
- प्रथ्—चुरा॰ उभ॰ - <प्रथयति>, <प्रथयते>, <प्रथित>—-—-—फैलाना, उद्घोषणा करना
- प्रथ्—चुरा॰ उभ॰ - <प्रथयति>, <प्रथयते>, <प्रथित>—-—-—दिखलाना, प्रकट करना, प्रदर्
- प्रथ्—चुरा॰ उभ॰ - <प्रथयति>, <प्रथयते>, <प्रथित>—-—-—बढ़ाना, विस्तृत करन, ऊँचा करन, अधिक करना, बड़ा करना
- प्रथ्—चुरा॰ उभ॰ - <प्रथयति>, <प्रथयते>, <प्रथित>—-—-—खोलना
- प्रथनम्—नपुं॰—-—प्रथ्+ल्युट्—फैलाना, विस्तार करना
- प्रथनम्—नपुं॰—-—प्रथ्+ल्युट्—बखेरना
- प्रथनम्—नपुं॰—-—प्रथ्+ल्युट्—फेंकना, आगे की ओर बढ़ाना
- प्रथनम्—नपुं॰—-—प्रथ्+ल्युट्—बतलाना, प्रकाशित करना, प्रदर्शन करना
- प्रथनम्—नपुं॰—-—प्रथ्+ल्युट्—वह स्थान जहाँ कोई चीज फैलायी जाय
- प्रथम—वि॰—-—प्रथ्+अमच्—पहला, सबसे आगे का
- प्रथम—वि॰—-—प्रथ्+अमच्—प्रमुख, मुख्य, प्रधान, श्रेष्ठतम, बेजोड़, अनुपम
- प्रथम—वि॰—-—प्रथ्+अमच्—आदि कालीन, अत्यंत प्राचीन, प्राक्कालीन, प्राथमिक
- प्रथम—वि॰—-—प्रथ्+अमच्—पहले का, पूर्वकालीन, पहला इससे पूर्व का
- प्रथम—वि॰—-—प्रथ्+अमच्—प्रथम पुरुष
- प्रथमः—पुं॰—-—प्रथ्+अमच्—प्रथम पुरुष
- प्रथमः—पुं॰—-—प्रथ्+अमच्—वर्ग का प्रथम व्यंजन
- प्रथमा—स्त्री॰—-—प्रथ्+अमच्+टाप्—कर्तृकारक
- प्रथमम्—अव्य॰—-—-—पहले, प्रथमतः, सर्वप्रथम
- प्रथमम्—अव्य॰—-—-—पहले ही, पहले ही से, पूर्वकाल में
- प्रथमम्—अव्य॰—-—-—तुरन्त, तत्काल
- प्रथमम्—अव्य॰—-—-—पहले
- प्रथमम्—अव्य॰—-—-—अभी अभी, हाल में
- प्रथमार्धः—पुं॰—प्रथम-अर्धः—-—पूर्वाध
- प्रथमार्धम्—नपुं॰—प्रथम-अर्धम्—-—पूर्वाध
- प्रथमाश्रमः—पुं॰—प्रथम-आश्रमः—-—चार आश्रमों में से पहला आश्रम अर्थात् ब्रह्मचर्य आश्रम
- प्रथमेतर—वि॰—प्रथम- इतर—-—प्रथम कि अपेक्षा और' अर्थात् दूसरा
- प्रथमोदित—वि॰—प्रथम-उदित—-—पहले उच्चारण किया हुआ
- प्रथमकल्पः—पुं॰—प्रथम-कल्पः—-—चलने के लिए बढ़िया मार्ग, प्रथम नियम
- प्रथमकल्पित—वि॰—प्रथम-कल्पित—-—पहले सोचा हुआ
- प्रथमकल्पित—वि॰—प्रथम-कल्पित—-—पद या महत्त्व की दृष्टि से सर्वोच्च
- प्रथमज—वि॰—प्रथम-ज—-—सबसे पहले पैदा हुआ
- प्रथमदर्शनम्—नपुं॰—प्रथम-दर्शनम्—-—पहला दर्शन
- प्रथमदिवसः—पुं॰—प्रथम-दिवसः—-—सबसे पहला दिन
- प्रथमपुरुषः—पुं॰—प्रथम-पुरुषः—-—प्रथम पुरुष, अन्य पुरुष
- प्रथमयौवनम्—नपुं॰—प्रथम-यौवनम्—-—युवावस्था का आरंभ, किशोरावस्था
- प्रथमवयस्—नपुं॰—प्रथम-वयस्—-—बचपन, शैशव
- प्रथमविरहः—पुं॰—प्रथम-विरहः—-—पहली बार का वियोग
- प्रथमवैयाकरणः—पुं॰—प्रथम-वैयाकरणः—-—अत्यंत पूज्य वैयाकरण
- प्रथमवैयाकरणः—पुं॰—प्रथम-वैयाकरणः—-—व्याकरण में शिशिक्षु
- प्रथमसाहसः—पुं॰—प्रथम-साहसः—-—दण्ड की निम्नतम या प्रथम स्थिति
- प्रथमसुकृतम्—नपुं॰—प्रथम-सुकृतम्—-—पूर्वकृपा
- प्रथा—स्त्री॰—-—प्रथ+अङ्+टाप्—ख्याति, प्रसिद्धि
- प्रथित—भू॰ क॰ कृ॰—-—प्रथ्+क्त—बढ़ाया हुआ, विस्तार किया हुआ
- प्रथित—भू॰ क॰ कृ॰—-—प्रथ्+क्त—प्रकाशित, उद्घोषित, फैलाया हुआ, घोषणा की हुई
- प्रथित—भू॰ क॰ कृ॰—-—प्रथ्+क्त—दिखाया गया, प्रदर्शन किया गया, प्रकट किया गया, प्रकाशित किया गया
- प्रथित—भू॰ क॰ कृ॰—-—प्रथ्+क्त—विख्यात, प्रसिद्ध, विश्रुत
- प्रथिमन्—पुं॰—-—पृथोर्भावः - पृथु+इमनिच्—चौड़ाई, विशालता, विस्तार, महत्ता
- प्रथिविः—स्त्री॰—-— =पृथिवि, पृषो॰ —पृथ्वी, धरती
- प्रथिष्ठ—वि॰—-—पृथु+इष्ठन्, प्रथादेशः—स्बसे बड़ा, सबसे चौड़ा, अत्यन्त विशाल
- प्रथियस्—वि॰—-—पृथु+ईयसुन्—अपेक्षाकृत बड़ा, चौड़ा, विशाल
- प्रथु —वि॰—-—प्रथ्+उण्—व्यापक, दूर दूर तक फैला हुआ
- प्रथुकः—पुं॰—-—प्रथ+उक—चिउड़े, चौले
- प्रदक्षिण—वि॰, प्रा॰ स॰—-—-—दाईं ओर रक्खा हुआ, या खड़ा हुआ दाईं ओर को घूमने वाला
- प्रदक्षिण—वि॰, प्रा॰ स॰—-—-—सम्मानपूर्ण, श्रद्धालु
- प्रदक्षिण—वि॰, प्रा॰ स॰—-—-—शुभ, शुभलषणयुक्त
- प्रदक्षिणः—पुं॰—-—-—बाईं ओर से दाईं ओर को घूमना जिससे कि दाहिना पार्श्व सदैव उस व्यक्ति या वस्तु की ओर हो जिसकी परिक्रमा की जा रही है, श्रद्धापूर्ण अभिवादन जो इस प्रकार प्रदक्षिणा द्वारा किया जाय
- प्रदक्षिणा—स्त्री॰—-—-—बाईं ओर से दाईं ओर को घूमना जिससे कि दाहिना पार्श्व सदैव उस व्यक्ति या वस्तु की ओर हो जिसकी परिक्रमा की जा रही है, श्रद्धापूर्ण अभिवादन जो इस प्रकार प्रदक्षिणा द्वारा किया जाय
- प्रदक्षिणम्—नपुं॰—-—-—बाईं ओर से दाईं ओर को घूमना जिससे कि दाहिना पार्श्व सदैव उस व्यक्ति या वस्तु की ओर हो जिसकी परिक्रमा की जा रही है, श्रद्धापूर्ण अभिवादन जो इस प्रकार प्रदक्षिणा द्वारा किया जाय
- प्रदक्षिणम्—अव्य॰—-—-—बाईं ओर से दाईं ओर को
- प्रदक्षिणम्—अव्य॰—-—-—दाईं ओर को, जिससे कि दाहिना पार्श्व सदैव प्रदक्षिणा की गई व्यक्ति या वस्तु की ओर रहे
- प्रदक्षिणम्—अव्य॰—-—-—दक्षिण दिशा में, दक्षिण दिशा की ओर
- प्रदक्षिण कृ——-—-—बाईं ओर से दाईं ओर को जाना
- प्रदक्षिणार्चिप्त—वि॰—प्रदक्षिण-अर्चिप्त—-—जिसकी दाईं ओर को ज्वालाएँ उठती हों, दाईं ओर को ज्वालाएँ रखने वाला
- प्रदक्षिणार्चिप्त—स्त्री॰—प्रदक्षिण-अर्चिप्त—-—दाईं ओर मुड़ी हुई ज्वालाएँ
- प्रदक्षिणक्रिया—स्त्री॰—प्रदक्षिण-क्रिया—-—प्रदक्षिणा करना, सम्मान प्रदर्शित करने के लिए सम्माननीय व्यक्ति को दाईं ओर रखना
- प्रदक्षिणपट्टिका—स्त्री॰—प्रदक्षिण-पट्टिका—-—सहन, आंगन
- प्रदग्ध—भू॰ क॰ कृ॰—-—प्र+दह्+क्त—जलाया गया, भस्म किया गया
- प्रदत्त—भू॰ क॰ कृ॰—-—प्र+दा+क्त—दिया हुआ, प्रदत्त, प्रदान किया हुआ, प्रस्तुत किया हुआ
- प्रदत्त—भू॰ क॰ कृ॰—-—प्र+दा+क्त—विवाह में दिया हुआ, विवाहित
- प्रदरः—पुं॰—-—प्र+दृ+अप्—तोड़ना, फाड़न
- प्रदरः—पुं॰—-—प्र+दृ+अप्—अस्थिभंग होना, दरार पड़ना, फटाव, छिद्र, विवर
- प्रदरः—पुं॰—-—प्र+दृ+अप्—सेना का तितर बितर होना
- प्रदरः—पुं॰—-—प्र+दृ+अप्—तीर
- प्रदरः—पुं॰—-—प्र+दृ+अप्—स्त्रियों को होने वाला एक रोग
- प्रदर्पः—पुं॰, प्रा॰ स॰—-—प्र+दृ+अप्—घमंड, अहंकार
- प्रदर्शः—पुं॰—-—प्र+दृश्+घञ्—दृष्टि, दर्शन
- प्रदर्शः—पुं॰—-—प्र+दृश्+घञ्—निदेश, आज्ञा
- प्रदर्शक—वि॰—-—प्र+दृश्+ण्वुल्—दिखलाने वाला, प्रकट करने वाला
- प्रदर्शनम्—नपुं॰—-—प्र+दृश्+ल्युट्—दृष्टि, दर्शन जैसा को 'घोरप्रदर्शनः' में
- प्रदर्शनम्—नपुं॰—-—प्र+दृश्+ल्युट्—प्रकट होना, प्रदर्शन करन, दिखलाना, प्रदर्शनी, नुमायश
- प्रदर्शनम्—नपुं॰—-—प्र+दृश्+ल्युट्—अध्यापन, व्याख्या करना
- प्रदर्शनम्—नपुं॰—-—प्र+दृश्+ल्युट्—उदाहरण
- प्रदर्शित—भू॰ क॰ कृ॰—-—प्र+दृश्+णिच्+क्त—दिखलाया हुआ, सामने रक्खा हुआ, प्रकट किया हुआ, प्रकाशित किया हुआ, प्रदर्शन किया हुआ
- प्रदर्शित—भू॰ क॰ कृ॰—-—प्र+दृश्+णिच्+क्त—जतलाया गया
- प्रदर्शित—भू॰ क॰ कृ॰—-—प्र+दृश्+णिच्+क्त—सिखाया हुआ
- प्रदर्शित—भू॰ क॰ कृ॰—-—प्र+दृश्+णिच्+क्त—व्याख्या किया गया, उद्घोषित किया गया
- प्रदलः—पुं॰—-—प्र+दल्+अच्—बाण, तीर
- प्रदवः—पुं॰—-—प्र+दु+अप्—जलना, ज्वालाएँ उठना
- प्रदातृ—पुं॰—-—प्र+दा+तृच्—देने वाला, दानी
- प्रदातृ—पुं॰—-—प्र+दा+तृच्—उदार व्यक्ति
- प्रदातृ—पुं॰—-—प्र+दा+तृच्—कन्या दान करने वाला
- प्रदातृ—पुं॰—-—प्र+दा+तृच्—इन्द्र का विशेषण
- प्रदानम्—नपुं॰—-—प्र+दा+ल्युट्—देना, प्रदान करना, अर्पन करना, प्रस्तुत करना
- प्रदानम्—नपुं॰—-—प्र+दा+ल्युट्—कन्या दान करना, कन्याप्रदानम्
- प्रदानम्—नपुं॰—-—प्र+दा+ल्युट्—समर्पित करना, अध्यापन करना, शिक्षा देना, विद्याप्रदानम्
- प्रदानकम्—नपुं॰—-—प्रदान+कन्—पुरस्कार, भेंट, दान, उपहार
- प्रदायम्—नपुं॰—-—प्र+दा+घञ्, युक्—उपहार, भेंट
- प्रदिः—पुं॰—-—प्र+दा+कि, यत् वा—उपहार, भेंट
- प्रदेयः—पुं॰—-—प्र+दा+कि, यत् वा—उपहार, भेंट
- प्रदिग्ध—भू॰ क॰ कृ॰—-—प्र+दिह्+क्त—चिकनाई लपेटी हुई, पोती हुई, मालिश किया हुआ
- प्रदिग्धम्—नपुं॰—-—-—विशेष प्रकार से तला हुआ मांस
- प्रदिश्—स्त्री॰—-—प्रगता दिग्भ्यः-प्र+दिश्+क्विप्—संकेत करना
- प्रदिश्—स्त्री॰—-—प्रगता दिग्भ्यः-प्र+दिश्+क्विप्—आदेश, निदेश, आज्ञा
- प्रदिश्—स्त्री॰—-—प्रगता दिग्भ्यः-प्र+दिश्+क्विप्—परिधि का अन्तर्वर्ती बिन्दु जैसे कि नैऋती, आग्नेयी, ऐशानी और वायवी
- प्रदिष्ट—भू॰ क॰ कृ॰—-—प्र+दिश्+क्त—दिखाया हुआ, संकेतित
- प्रदिष्ट—भू॰ क॰ कृ॰—-—प्र+दिश्+क्त—निदिष्ट, आदिष्ट
- प्रदिष्ट—भू॰ क॰ कृ॰—-—प्र+दिश्+क्त—स्थिर किया हुआ, आदेश लागू किया हुआ, नियोजित किया हुआ
- प्रदीपः—पुं॰—-—प्र+दीप्+णिच्+क—दीपक, चिराग, कुल का दीपक या अवतंस
- प्रदीपः—पुं॰—-—प्र+दीप्+णिच्+क—जो जानकारी कराता है, या बात को खोलकर कहता है, व्याख्या, विशेषतः ग्रन्थों के नामों के अन्त में प्रयुक्त, यथा महाभाष्य प्रदीप, काव्यप्रदीप आदि
- प्रदीपन—वि॰—-—प्र+दीप्+णिच्+ल्युट्—जलाना
- प्रदीपन—वि॰—-—प्र+दीप्+णिच्+ल्युट्—उद्दीपित करना, उत्तेजित करना
- प्रदीपनम्—नपुं॰—-—-—सुलगाने की क्रिया, जलाना, उदीप्त करना
- प्रदीपनः—पुं॰—-—-—एक प्रकार का खनिज
- प्रदीप्त—भू॰ क॰ कृ॰—-—प्र+दीप्+क्त—सुलगाया हुआ, जलाया हुआ, प्रज्वलित, प्रकशित
- प्रदीप्त—भू॰ क॰ कृ॰—-—प्र+दीप्+क्त—देदीप्यमान, जाज्वल्यमान, प्रकाशमान
- प्रदीप्त—भू॰ क॰ कृ॰—-—प्र+दीप्+क्त—उठाया हुआ, विस्तारित
- प्रदीप्त—भू॰ क॰ कृ॰—-—प्र+दीप्+क्त—उद्दीपित, उत्तेजित
- प्रदुष्ट—भू॰ क॰ कृ॰—-—प्र+दुष्+क्त—बिगड़ा हुआ, भ्रष्ट
- प्रदुष्ट—भू॰ क॰ कृ॰—-—प्र+दुष्+क्त—दूषित, मलन, पापमय
- प्रदुष्ट—भू॰ क॰ कृ॰—-—प्र+दुष्+क्त—लम्पट, स्वेच्छाचारी
- प्रदूषित—भू॰ क॰ कृ॰—-—प्र+दूष्+णिच्+क्त—भ्रष्ट, विषाक्त, विकृत, पतित
- प्रदूषित—भू॰ क॰ कृ॰—-—प्र+दूष्+णिच्+क्त—अपवित्र, मलिन, भ्रष्ट
- प्रदेय—सं॰ कृ॰—-—प्र+दा+यत्—दिए जाने के योग्य, दिये जाने के लायक, संवहन किये जाने के उपयुक्त
- प्रदेशः—पुं॰—-—प्र+दिश्+घञ्—संकेत करना, इशारा करना
- प्रदेशः—पुं॰—-—प्र+दिश्+घञ्—स्थान, क्षेत्र, जगह, देश, प्रदेश, मंडल
- प्रदेशः—पुं॰—-—प्र+दिश्+घञ्—बित्त, बालिश्त
- प्रदेशः—पुं॰—-—प्र+दिश्+घञ्—निश्चय, निर्धारण
- प्रदेशः—पुं॰—-—प्र+दिश्+घञ्—दीवार
- प्रदेशः—पुं॰—-—प्र+दिश्+घञ्—उदाहरण
- प्रदेशनम्—नपुं॰—-—प्र+दिश्+ल्युट्—संकेत करना
- प्रदेशनम्—नपुं॰—-—प्र+दिश्+ल्युट्—उपदेश, अनुदेश
- प्रदेशनम्—नपुं॰—-—प्र+दिश्+ल्युट्—भेंट, उपहार, चढ़ावा विशेष कर देवताओं को या श्रेष्ठतर व्यक्तियों को
- प्रदेशनी—स्त्री॰—-—प्रदेशन+ङीप्—तर्जनी अंगुली, अभिसूचक अंगुली
- प्रदेशिनी—स्त्री॰—-—प्र+दिश्+णिनि+ङीप्—तर्जनी अंगुली, अभिसूचक अंगुली
- प्रदेहः—पुं॰—-—प्र+दिह्+घञ्—लेप करना, तेल या औषधि आदि की मालिश करना
- प्रदेहः—पुं॰—-—प्र+दिह्+घञ्—लेप, पलस्तर
- प्रदोष—वि॰—-—प्रकृष्टः दोषो यस्य-प्रा॰ ब॰—बुरा, भ्रष्ट
- प्रदोषः—पुं॰—-—-—दोष, त्रुटि, पाप, अपराध
- प्रदोषः—पुं॰—-—-—अवयवस्थित स्थिति, विद्रोह, बगावत
- प्रदोषः—पुं॰—-—-—संध्याकाल, रात्रि का आरंभ
- प्रदोषकालः—पुं॰—प्रदोषः-कालः—-—संध्या समय, रात्रि का आरंभ
- प्रदोषतिमिरम्—नपुं॰—प्रदोषः-तिमिरम्—-—संध्याकालीन अंधेरा, सांझ का झुटपुटा
- प्रदोहः—पुं॰—-—प्र+दुह्+घञ्—दुहना, दूध निकालना
- प्रद्युम्नः—पुं॰—-—प्रकृष्टं द्युम्नं बलं यस्य - प्रा॰ ब॰—कामदेव का विशेषण, कामदेव
- प्रद्योतः—पुं॰—-—प्रकृष्टो द्योतः - प्रा॰ स॰—जगमगाना, प्रकाश, रोशनी
- प्रद्योतः—पुं॰—-—प्रकृष्टो द्योतः - प्रा॰ स॰—आभा, प्रकाश, कान्ति
- प्रद्योतः—पुं॰—-—प्रकृष्टो द्योतः - प्रा॰ स॰—प्रकाश की किरण
- प्रद्योतः—पुं॰—-—प्रकृष्टो द्योतः - प्रा॰ स॰—उज्जयिनी के एक राजा का नम जिसकी पुत्री से वत्स के राजा उदयन ने विवाह किया था
- प्रद्योतनम्—नपुं॰—-—प्र+द्युत्+ल्युट्—जगमगाना, चमकना
- प्रद्योतनम्—नपुं॰—-—प्र+द्युत्+ल्युट्—प्रकाश
- प्रद्योतनः—पुं॰—-—प्र+द्युत्+ल्युट्—सूर्य
- प्रद्रवः—पुं॰—-—प्र+द्रु+अप्—दौड़ना, पलायन
- प्रद्रावः—पुं॰—-—प्र+द्रु+घञ्—भाग जाना, पलायन, प्रत्यावर्तन, बच निकलना
- प्रद्रावः—पुं॰—-—प्र+द्रु+घञ्—द्रुतगमन, तेजी से जाना
- प्रद्वारः—पुं॰—-—प्रगतं द्वारम् - प्रा॰ स॰—दरवाजे या फाटक के सामने का स्थान
- प्रद्वारम्—नपुं॰—-—प्रगतं द्वारम् - प्रा॰ स॰—दरवाजे या फाटक के सामने का स्थान
- प्रद्वेषः—पुं॰—-—प्र+द्विष्+घञ्, ल्युट् वा—नापसन्दगी, घृणा, अरुचि
- प्रद्वेषणम्—नपुं॰—-—प्र+द्विष्+घञ्, ल्युट् वा—नापसन्दगी, घृणा, अरुचि
- प्रधनम्—नपुं॰—-—प्र+धा+क्यु—युद्ध, लड़ाई, संग्राम, संघर्ष
- प्रधनम्—नपुं॰—-—प्र+धा+क्यु—युद्ध में लूट का माल
- प्रधनम्—नपुं॰—-—प्र+धा+क्यु—विनाश
- प्रधनम्—नपुं॰—-—प्र+धा+क्यु—फाड़ना, तोड़ना, चीरफाड़
- प्रधमनम्—नपुं॰—-—प्र+धम्+ल्युट्—लंबा सांस लेना
- प्रधमनम्—नपुं॰—-—प्र+धम्+ल्युट्—सुंघनी, नस्य
- प्रधर्षः—पुं॰—-—प्र+धृष्+घञ्—हमला, आक्रमण
- प्रधर्षः—पुं॰—-—प्र+धृष्+घञ्—बलात्कार
- प्रधर्षणम्—नपुं॰—-—प्र+धृष्+णिच्+ल्युट्—हमला, आक्रमण
- प्रधर्षणम्—नपुं॰—-—प्र+धृष्+णिच्+ल्युट्—बलात्कार, दुर्व्यवहार, अपमान
- प्रधर्षणा—स्त्री॰—-—प्र+धृष्+णिच्+ल्युट्—हमला, आक्रमण
- प्रधर्षणा—स्त्री॰—-—प्र+धृष्+णिच्+ल्युट्—बलात्कार, दुर्व्यवहार, अपमान
- प्रधर्षित—भू॰ क॰ कृ॰—-—प्र+धृष्+णिच्+क्त—हमला किया गया, आक्रान्त
- प्रधर्षित—भू॰ क॰ कृ॰—-—प्र+धृष्+णिच्+क्त—क्षतिग्रस्त, चोट पहुँचाया हुआ
- प्रधर्षित—भू॰ क॰ कृ॰—-—प्र+धृष्+णिच्+क्त—घमंडी, अहंकारी
- प्रधान —वि॰—-—प्र+धा+ल्युट्—मुख्य, मूल, प्रमुख, बड़ा, उत्तम, सर्वश्रेष्ठ जैसा कि प्रधानामात्य, प्रधान-पुरुश्ःआ आआडी ंऎम्
- प्रधान —वि॰—-—प्र+धा+ल्युट्—मुख्य रूप से अन्तर्हित, प्रचलित, प्रबल
- प्रधानम् —नपुं॰—-—प्र+धा+ल्युट्—मुख्य पदार्थ, अत्यन्त महत्त्वपूर्ण वस्तु, अधिष्ठाता, मुख्य
- प्रधानम् —नपुं॰—-—प्र+धा+ल्युट्—प्रथम विकासकर्ता, जन्मदाता, भौतिक सृष्टि का स्रोत, प्रथम जीवाणु जिसमें से यह समस्त भौतिक संसार विकसित हुआ है
- प्रधानम् —नपुं॰—-—प्र+धा+ल्युट्—परमात्मा
- प्रधानम् —नपुं॰—-—प्र+धा+ल्युट्—बुद्धि
- प्रधानम् —नपुं॰—-—प्र+धा+ल्युट्—किसी मिश्रण का मुख्य अंग
- प्रधानम् —नपुं॰—-—प्र+धा+ल्युट्—राजा का मुख्य सेवक या सहचर
- प्रधानम् —नपुं॰—-—प्र+धा+ल्युट्—महानुभाव, राजसभासद
- प्रधानम् —नपुं॰—-—प्र+धा+ल्युट्—महावत
- प्रधानः—पुं॰—-—प्र+धा+ल्युट्—राजा का मुख्य सेवक या सहचर
- प्रधानः—पुं॰—-—प्र+धा+ल्युट्—महानुभाव, राजसभासद
- प्रधानः—पुं॰—-—प्र+धा+ल्युट्—महावत
- प्रधानाङ्गम्—नपुं॰—प्रधान-अङ्गम्—-—किसी वस्तु की मुख्य शाखा
- प्रधानाङ्गम्—नपुं॰—प्रधान-अङ्गम्—-—शरीर का मुख्य अंग
- प्रधानाङ्गम्—नपुं॰—प्रधान-अङ्गम्—-—राजा का प्रधान या प्रमुख व्यक्ति
- प्रधानामात्यः—पुं॰—प्रधान-अमात्यः—-—प्रधानमंत्री, मुख्यमंत्री
- प्रधानात्मन्—पुं॰—प्रधान-आत्मन्—-—विष्णु का विशेषण
- प्रधानधातुः—पुं॰—प्रधान- धातुः—-—शरीर का मुख्य तत्त्व अर्थात् वीर्य, शुक्र
- प्रधानपुरुषः—पुं॰—प्रधान- पुरुषः—-—प्रमुख व्यक्ति
- प्रधानपुरुषः—पुं॰—प्रधान- पुरुषः—-—शिव का विशेषण
- प्रधानमन्त्रिन्—पुं॰—प्रधान- मन्त्रिन्—-—राज्य का सबसे बड़ा मन्त्री
- प्रधानवासस्—नपुं॰—प्रधान- वासस्—-—मुख्य वस्त्र
- प्रधानवृष्टिः—स्त्री॰—प्रधान- वृष्टिः—-—वर्षा की भारी बौछार
- प्रधावनः—पुं॰—-—प्र+धाव्+ल्युट्—वायु, हवा
- प्रधावनम्—नपुं॰—-—प्र+धाव्+ल्युट्—रगड़ देना, धो देना
- प्रधिः—पुं॰—-—प्र+धा+कि—पहिये की नाभि या परिणाह
- प्रधिः—पुं॰—-—प्र+धा+कि—कुआँ
- प्रधी—वि॰, प्रा॰ व॰—-—प्रकृष्टा धीः यस्य—कुशाग्रबुद्धि
- प्रधी—स्त्री॰, प्रा॰ व॰—-—प्रकृष्टा धीः यस्य—बड़ी बुद्धि, प्रज्ञा
- प्रधूपित—भू॰ क॰ कृ॰—-—प्र+धूप्+क्त—सुवासित, सुगंधयुत
- प्रधूपित—भू॰ क॰ कृ॰—-—प्र+धूप्+क्त—गर्माया हुआ, तपाया हुआ
- प्रधूपित—भू॰ क॰ कृ॰—-—प्र+धूप्+क्त—प्रज्वलित
- प्रधूपित—भू॰ क॰ कृ॰—-—प्र+धूप्+क्त—संतप्त
- प्रधूपिता—स्त्री॰—-—प्र+धूप्+क्त+ टाप्—कष्टग्रस्त स्त्री
- प्रधूपिता—स्त्री॰—-—प्र+धूप्+क्त+ टाप्—वह दिशा जिस ओर सूर्य बढ़ रहा हो
- प्रधृष्ट—भू॰ क॰ कृ॰—-—प्र+धृष्+क्त—तिरस्कार पूर्वक बर्ताव किया गया
- प्रधृष्ट—भू॰ क॰ कृ॰—-—प्र+धृष्+क्त—घमंडी, अहंकारी, दृप्त या अभिमानी
- प्रध्यानम्—नपुं॰—-—प्र+ध्यै+ल्युट्—गहन विचार या विमर्श
- प्रध्यानम्—नपुं॰—-—प्र+ध्यै+ल्युट्—विचार या विमर्श
- प्रध्वंसः—पुं॰—-—प्र+ध्वंस्+घञ्—सर्वथा विनाश, संहार
- प्रध्वंसाभावः—पुं॰—प्रध्वंसः-अभावः—-—विनाशजनित अभाव
- प्रध्वस्त—भू॰ क॰ कृ॰—-—प्र+ध्वंस्+क्त—संहार किया हुआ, पूर्ण रूप से नष्ट किया हुआ
- प्रनप्तृ—पुं॰, प्रा॰ स॰—-—प्रगतो नप्तारं जनकतया—पौत्र का पुत्र, प्रपौत्र
- प्रनष्ट—भू॰ क॰ कृ॰—-—प्र+नश्+क्त—अन्तर्धान, लुप्त, अदृश्य
- प्रनष्ट—भू॰ क॰ कृ॰—-—प्र+नश्+क्त—खोया हुआ
- प्रनष्ट—भू॰ क॰ कृ॰—-—प्र+नश्+क्त—मिटा हुआ, मृत
- प्रनष्ट—भू॰ क॰ कृ॰—-—प्र+नश्+क्त—बरबाद, समुच्छिन्न, उन्मूलित
- प्रनायक—वि॰, प्रा॰ स॰ ब॰—-—प्रगतो नायको यस्मात् —जिसका नेता विद्यमान न हो
- प्रनायक—वि॰, प्रा॰ स॰ ब॰—-—प्रगतो नायको यस्मात्—नायक या पथप्रदर्शक से रहित
- प्रनालः—पुं॰—-—प्र+नल्+घञ्—नहर, जलमार्ग, नाली
- प्रनालः—पुं॰—-—प्र+नल्+घञ्—परंपरा, अविच्छिन्न सिलसिला
- प्रनाली—स्त्री॰—-—प्रनाल+ङीष्—नहर, जलमार्ग, नाली
- प्रनाली—स्त्री॰—-—प्रनाल+ङीष्—परंपरा, अविच्छिन्न सिलसिला
- प्रनिघातनम्—नपुं॰—-—प्र+नि+हन्+णिच्+ ल्युट्—वध, हत्या
- प्रनृत्त—वि॰—-—प्र+नृत्+क्त—नाचने वाला
- प्रनृत्तम्—नपुं॰—-—प्र+नृत्+क्त—नाच
- प्रपक्षः—पुं॰, प्रा॰ स॰—-—-—पंख का अंतिम सिरा
- प्रपञ्चः—पुं॰, प्रा॰ स॰—-—-—प्रदर्शन, प्रकटीकरण
- प्रपञ्चः—पुं॰, प्रा॰ स॰—-—-—विकास, फैलाव, विस्तार
- प्रपञ्चः—पुं॰, प्रा॰ स॰—-—-—विस्तारण, विशद व्याख्या, स्पष्टीकरण, विवरण
- प्रपञ्चः—पुं॰, प्रा॰ स॰—-—-—सुविस्तारता, प्रसार बाहुल्य
- प्रपञ्चः—पुं॰, प्रा॰ स॰—-—-—बहुविधता, विविधता
- प्रपञ्चः—पुं॰, प्रा॰ स॰—-—-—ढेर, प्राचुर्य, मात्रा
- प्रपञ्चः—पुं॰, प्रा॰ स॰—-—-—दर्शन, दृश्यवस्तु
- प्रपञ्चः—पुं॰, प्रा॰ स॰—-—-—माया, जालसाजी
- प्रपञ्चः—पुं॰, प्रा॰ स॰—-—-—दृश्यमान जगत् जो केवल माया, और नानात्व का प्रदर्शन मात्र है
- प्रपञ्चर्बुद्धि—वि॰—प्रपञ्चः-बुद्धि—-—धूर्त, कपटी
- प्रपञ्चवचनम्—नपुं॰—प्रपञ्चः-वचनम्—-—विस्तृत प्रवचन, प्रसारयुक्त बातचीत
- प्रपञ्चयति—ना॰धा॰,पर॰—-—-—दिखलाना, प्रदर्शन करना
- प्रपञ्चयति—ना॰धा॰,पर॰—-—-—विस्तार करना, प्रसार करना
- प्रपञ्चित—भू॰ क॰ कृ॰—-—प्र+पंच्+क्त—प्रदर्शित
- प्रपञ्चित—भू॰ क॰ कृ॰—-—प्र+पंच्+क्त—विस्तारित, प्रसारित
- प्रपञ्चित—भू॰ क॰ कृ॰—-—प्र+पंच्+क्त—फैलाया गया, पूरी व्याख्या की गई, विशदीकृत
- प्रपञ्चित—भू॰ क॰ कृ॰—-—प्र+पंच्+क्त—भूल जाने वाला, भटका हुआ
- प्रपञ्चित—भू॰ क॰ कृ॰—-—प्र+पंच्+क्त—धोखे में आया हुआ, छला हुआ
- प्रयतनम्—नपुं॰—-—प्र+यत्+ल्युट्—उड़ जाना
- प्रयतनम्—नपुं॰—-—प्र+यत्+ल्युट्—गिराना, अवपात
- प्रयतनम्—नपुं॰—-—प्र+यत्+ल्युट्—अवतरण
- प्रयतनम्—नपुं॰—-—प्र+यत्+ल्युट्—मृत्यु, विनाश
- प्रयतनम्—नपुं॰—-—प्र+यत्+ल्युट्—खड़ी चट्टान, ढलवाँ चट्टान
- प्रपदम्—नपुं॰, प्रा॰ स॰—-—-—पैर का अग्रभाग
- प्रपदीन—वि॰—-—प्रपद+ख—पैर के अग्रभाग से संबद्ध, या अग्रभाग तक विस्तृत
- प्रपन्न—भू॰ क॰ कृ॰—-—प्र+पद्+क्त—पधारने वाला, पहुँचने या जाने वाला
- प्रपन्न—भू॰ क॰ कृ॰—-—प्र+पद्+क्त—आश्रय ग्रहण करने वाला, अपनाने वाला
- प्रपन्न—भू॰ क॰ कृ॰—-—प्र+पद्+क्त—शरण लेने वाला, संरक्षण ढूंढने वाला, प्रार्थी, दीन, याचक
- प्रपन्न—भू॰ क॰ कृ॰—-—प्र+पद्+क्त—अनुसरण करने वाला
- प्रपन्न—भू॰ क॰ कृ॰—-—प्र+पद्+क्त—सुसज्जित, युक्त, आधिपत्य प्राप्त
- प्रपन्न—भू॰ क॰ कृ॰—-—प्र+पद्+क्त—प्रतिज्ञात
- प्रपन्न—भू॰ क॰ कृ॰—-—प्र+पद्+क्त—हासिल, प्राप्त
- प्रपन्न—भू॰ क॰ कृ॰—-—प्र+पद्+क्त—बेचारा, कष्टग्रस्त
- प्रपन्नाडः—पुं॰—-—प्रपन्न+अल्+अण्, डलयोरभेदः—
- प्रपर्ण—वि॰—-—प्रपतितानि पर्णानि यस्य- प्रा॰ ब॰—पत्तों से रहित(वृक्ष)
- प्रपर्णम्—नपुं॰—-—-—गिरा हुआ पत्ता
- प्रपलायनम्—नपुं॰—-—प्र+परा+अय्+ल्युट्, रस्य लः—भाग खड़ा होना, प्रत्यावर्तन
- प्रपा—स्त्री॰—-—प्र+पा+अङ्+टाप्—प्याऊ
- प्रपा—स्त्री॰—-—प्र+पा+अङ्+टाप्—कूआँ, कुण्ड
- प्रपा—स्त्री॰—-—प्र+पा+अङ्+टाप्—पशुओं को पानी पिलाने का स्थान, खेल
- प्रपा—स्त्री॰—-—प्र+पा+अङ्+टाप्—पानी का भंडार
- प्रपापालिका—स्त्री॰—प्रपा-पालिका—-—बटोहियों को जल पिलाने वाली स्त्री
- प्रपावनम्—नपुं॰—प्रपा-वनम्—-—शीतोद्यान
- प्रपाठकः—पुं॰, प्रा॰ ब॰—-—प्रकृष्टः पाठोऽत्र—पाठ, व्याख्यान
- प्रपाठकः—पुं॰, प्रा॰ ब॰—-—प्रकृष्टः पाठोऽत्र—किसी का अध्याय या भाग
- प्रपाणिः—पुं॰, प्रा॰ स॰—-—प्रकृष्टः पाणिः—हाथ का अगला भाग
- प्रपाणिः—पुं॰, प्रा॰ स॰—-—प्रकृष्टः पाणिः—हाथ की खुली हथेली
- प्रपातः—पुं॰—-—प्र+पत्+घञ्—चले जाना, विदायगी
- प्रपातः—पुं॰—-—प्र+पत्+घञ्—नीचे गिरना, अवपात
- प्रपातः—पुं॰—-—प्र+पत्+घञ्—आकस्मिक आक्रमण
- प्रपातः—पुं॰—-—प्र+पत्+घञ्—वारिप्रवाह, झरना, झाल, वह स्थान जिसके ऊपर पानी गिरता रहता है
- प्रपातः—पुं॰—-—प्र+पत्+घञ्—तट, बेला
- प्रपातः—पुं॰—-—प्र+पत्+घञ्—खड़ी चट्टान, ढलवाँ चट्टान
- प्रपातः—पुं॰—-—प्र+पत्+घञ्—गिरजाना, झड़ जाना
- प्रपातः—पुं॰—-—प्र+पत्+घञ्—उत्त्सर्जन, प्रस्रवण, स्खलन
- प्रपातः—पुं॰—-—प्र+पत्+घञ्—किसी चट्टान से अपने आपको नीचे गिरा देना
- प्रपातः—पुं॰—-—प्र+पत्+घञ्—उड़ान की एक विशेष रीति
- प्रपातनम्—नपुं॰—-—प्र+पत्+णिच्+ल्युट्—गिराना, (भूमि पर) गिराना
- प्रपादिकः—पुं॰, प्रा॰ स॰—-—-—मोर
- प्रपानम्—नपुं॰—-—प्र+पा+ल्युट्—पीना, पेय पदार्थ
- प्रपानकम्—नपुं॰—-—प्रपान+कन्—एक प्रकार का पेय
- प्रपितामहः—पुं॰,प्रा॰ स॰—-—प्रकर्षेण पितामह—पड़ बाबा पड़दादा
- प्रपितामहः—पुं॰,प्रा॰ स॰—-—प्रकर्षेण पितामह—कृष्ण का विशेषण
- प्रपितामहः—पुं॰,प्रा॰ स॰—-—प्रकर्षेण पितामह—ब्रह्मा की उपाधि
- प्रपितामही—स्त्री॰—-—-—पड़दादी
- प्रपितृव्य—पुं॰, प्रा॰ स॰—-—-—ताऊ
- प्रपीडनम्—नपुं॰—-—प्र+पीड्+णिच्+ल्युट्—भींचना, निचोड़ना
- प्रपीडनम्—नपुं॰—-—प्र+पीड्+णिच्+ल्युट्—रक्तस्रावावरोधक औषधि
- प्रपीत—वि॰—-—प्र+प्रा+क्त—सूजा हुआ, फूला हुआ
- प्रपीन—वि॰—-—प्र+प्याय्+क्त—सूजा हुआ, फूला हुआ
- प्रपुनाटः—पुं॰—-—प्रकर्षेण पुमांसं नाटयति-प्र+पुम्+नट् +णिच्+ अण्—चक्रमर्द नाम का वृक्ष, चकवंड
- प्रपुन्नाटः—पुं॰—-—प्रकर्षेण पुमांसं नाटयति-प्र+पुम्+नट् +णिच्+ अण्—चक्रमर्द नाम का वृक्ष, चकवंड
- प्रपूरणम्—नपुं॰—-—प्र+पूर्+ल्युट्—पूरा करना, भरना, पूर्ति करना
- प्रपूरणम्—नपुं॰—-—प्र+पूर्+ल्युट्—सन्निविष्ट करना, सुई लगाना
- प्रपूरणम्—नपुं॰—-—प्र+पूर्+ल्युट्—सन्तुष्ट करना, तृप्त करना
- प्रपूरणम्—नपुं॰—-—प्र+पूर्+ल्युट्—संबद्ध करना
- प्रपूरित—भू॰ क॰ कृ॰—-—प्र+पूर्+क्त—भरा हुआ
- प्रपृष्ठ—वि॰, प्रा॰ ब॰—-—-—विशिष्ट पीठ वाला
- प्रपौत्रः—पुं॰, प्रा॰ स॰—-—-—पड़पोता
- प्रपौत्री—स्त्री॰—-—-—पड़पोती
- प्रफूल्ल—भू॰ क॰ कृ॰—-—प्र+फुल्+क्त—खिला हुआ, पूर्ण, विकसित
- प्रफुल्लिः—स्त्री॰—-—प्र+फुल्+क्तिन्—खिलना, विस्तरण, पुष्पित होना
- प्रफुल्ल—भू॰ क॰ कृ॰—-—प्र+फल्+क्त, उत्वम् लत्वं च—पूरा खिला हुआ, मंजरित, मुकुलित
- प्रफुल्ल—भू॰ क॰ कृ॰—-—प्र+फल्+क्त, उत्वम् लत्वं च—खिले हुए फूल की भांति फैली हुई या विस्तारयुक्त (आँख आदि)
- प्रफुल्ल—भू॰ क॰ कृ॰—-—प्र+फल्+क्त, उत्वम् लत्वं च—मुस्कराता हुआ
- प्रफुल्ल—भू॰ क॰ कृ॰—-—प्र+फल्+क्त, उत्वम् लत्वं च—प्रमुदित, उल्लसित, प्रसन्न
- प्रफुल्लनयन—वि॰—प्रफुल्ल-नयन—-—हर्ष के कारण खिली हुई आँखों वाला
- प्रफुल्लनेत्र—वि॰—प्रफुल्ल-नेत्र—-—हर्ष के कारण खिली हुई आँखों वाला
- प्रफुल्ललोचन—वि॰—प्रफुल्ल-लोचन—-—हर्ष के कारण खिली हुई आँखों वाला
- प्रफुल्लवदन—वि॰—प्रफुल्ल-वदन—-—हर्षोत्फुल्ल या हंसमुख, हंसमुख चेहरे वाला
- प्रबद्ध—भू॰ क॰ कृ॰—-—प्र+बंध्+क्त—बांधा हुआ, बंधा हुआ, कसा हुआ
- प्रबद्ध—भू॰ क॰ कृ॰—-—प्र+बंध्+क्त—रोका हुआ, अवरुद्ध, अटकाया हुआ
- प्रबद्धृ—पुं॰—-—प्र+बंध्+तृच्—प्रणेता, ग्रन्थकार
- प्रबन्धः—पुं॰—-—प्र+बन्ध+घञ्—बंधन, जोड़ या गाठ
- प्रबन्धः—पुं॰—-—प्र+बन्ध+घञ्—अविच्छिन्नता, सातत्य, नैरंतर्य, अविच्छिन्न श्रेणी या परम्परा
- प्रबन्धः—पुं॰—-—प्र+बन्ध+घञ्—अविच्छिन्न या सुसंगत वर्णन या प्रवचन
- प्रबन्धः—पुं॰—-—प्र+बन्ध+घञ्—साहित्यिक कृति या रचना, विशेषतः काव्यरचना
- प्रबन्धः—पुं॰—-—प्र+बन्ध+घञ्—व्यवस्था, योजना, कल्पना
- प्रबन्धकल्पना—स्त्री॰—प्रबन्ध-कल्पना—-—झूठमूठ की कहानी, किसी तथ्य के उपस्तर पर आधारित कल्पनाकृति
- प्रबन्धनम्—नपुं॰—-—प्र-बन्ध् + ल्युट्—बंधन, जोड़ या गाँठ
- प्रबभ्रः—पुं॰—-—-—इन्द्र का नामान्तर
- प्रबर्ह—वि॰—-—प्र+बर्ह्+अच्—सर्वश्रेष्ठ, सर्वोत्तम
- प्रवर्ह—वि॰—-—प्र+वर्ह+अच्—सर्वश्रेष्ठ, सर्वोत्तम
- प्रबल—वि॰—-—प्रकृष्टं बलं यस्य- प्रा॰ ब॰—बहुत मज़बूत, शक्तिशाली, ताकतवर, शूरवीर (पुरुष)
- प्रबल—वि॰—-—प्रकृष्टं बलं यस्य- प्रा॰ ब॰—प्रचंड, मजबूत, तीव्र, अत्यधिक, बहुत बड़ा
- प्रबल—वि॰—-—प्रकृष्टं बलं यस्य- प्रा॰ ब॰—महत्त्वपूर्ण
- प्रबल—वि॰—-—प्रकृष्टं बलं यस्य- प्रा॰ ब॰—भरपूर
- प्रबल—वि॰—-—प्रकृष्टं बलं यस्य- प्रा॰ ब॰—भयानक, विनाशकारी
- प्रबह्लिका—स्त्री॰—-—प्र+बह्ल्+ण्वुल्+टाप् इत्वम्—
- प्रवह्लिका—स्त्री॰—-—प्र+वह्ल्+ण्वुल्+टाप् इत्वम्—
- प्रबाधनम्—नपुं॰—-—प्र+बाध्+ल्युट्—प्रत्याचार, प्रपीडन
- प्रबाधनम्—नपुं॰—-—प्र+बाध्+ल्युट्—अस्वीकृति, मुकरना
- प्रबाधनम्—नपुं॰—-—प्र+बाध्+ल्युट्—दूर रखना
- प्रबालः—पुं॰—-—प्र+बल्+णिच्+अच्—कोंपल, अंकुर, किसलय
- प्रबालः—पुं॰—-—प्र+बल्+णिच्+अच्—मूँगा
- प्रबालः—पुं॰—-—प्र+बल्+णिच्+अच्—वीणा की गरदन
- प्रबालः—पुं॰—-—प्र+बल्+णिच्+अच्—शिष्य
- प्रबालः—पुं॰—-—प्र+बल्+णिच्+अच्—जन्तु
- प्रवालः—पुं॰—-—प्र+वल्+णिच्+अच्—कोंपल, अंकुर, किसलय
- प्रवालः—पुं॰—-—प्र+वल्+णिच्+अच्—मूँगा
- प्रवालः—पुं॰—-—प्र+वल्+णिच्+अच्—वीणा की गरदन
- प्रवालः—पुं॰—-—प्र+वल्+णिच्+अच्—शिष्य
- प्रवालः—पुं॰—-—प्र+वल्+णिच्+अच्—जन्तु
- प्रबालम्—नपुं॰—-—-—कोंपल, अंकुर, किसलय
- प्रबालम्—नपुं॰—-—-—मूँगा
- प्रबालम्—नपुं॰—-—-—वीणा की गरदन
- प्रवालम्—नपुं॰—-—-—कोंपल, अंकुर, किसलय
- प्रवालम्—नपुं॰—-—-—मूँगा
- प्रवालम्—नपुं॰—-—-—वीणा की गरदन
- प्रबालाश्मन्तकः—पुं॰—प्रबालः-अश्मन्तकः—-—लाल अश्मंतक वृक्ष
- प्रबालाश्मन्तकः—पुं॰—प्रबालः-अश्मन्तकः—-—मूंगे का वृक्ष
- प्रबालपद्मम्—नपुं॰—प्रबालः-पद्मम्—-—लाल कमल
- प्रबालफलम्—नपुं॰—प्रबालः-फलम्—-—लाल चन्दन की लकड़ी
- प्रबालभस्मन्—नपुं॰—प्रबालः-भस्मन्—-—मूंगे की भस्म
- प्रबाहुः—पुं॰,प्रा॰ स॰—-—प्रकृष्टो बाहुः—भुजा का अग्रभाग, पहुँचा
- प्रबाहुकम्—अव्य॰—-—प्रबाहु+कप्—ऊँचाई पर
- प्रबाहुकम्—अव्य॰—-—प्रबाहु+कप्—उसी समय
- प्रबुद्ध—भू॰ क॰ कृ॰—-—प्र+बुध+क्त—जगाया हुआ, जागा हुआ
- प्रबुद्ध—भू॰ क॰ कृ॰—-—प्र+बुध+क्त—बुद्धिमान, विद्वान्, चतुर
- प्रबुद्ध—भू॰ क॰ कृ॰—-—प्र+बुध+क्त—ज्ञाता, जानकार
- प्रबुद्ध—भू॰ क॰ कृ॰—-—प्र+बुध+क्त—पूरा खिला हुआ, फैला हुआ
- प्रबुद्ध—भू॰ क॰ कृ॰—-—प्र+बुध+क्त—कार्यारंभ करने वाला, या कार्यान्वित होने वाला (जादू, मंत्र आदि)
- प्रबोधः—पुं॰—-—प्र+बुध्+घञ्—जागना, जागरण, होश में आना, चेतना
- प्रबोधः—पुं॰—-—प्र+बुध्+घञ्—(फूलों का) खिलना, फैलना
- प्रबोधः—पुं॰—-—प्र+बुध्+घञ्—जागरण, नींद का अभाव
- प्रबोधः—पुं॰—-—प्र+बुध्+घञ्—सतर्कता, सावधानी
- प्रबोधः—पुं॰—-—प्र+बुध्+घञ्—ज्ञान, समझ, बुद्धिमत्ता, भ्रम को दूर करना, यथार्थ ज्ञान
- प्रबोधः—पुं॰—-—प्र+बुध्+घञ्—सांत्वना
- प्रबोधः—पुं॰—-—प्र+बुध्+घञ्—किसी सुगंध द्रव्य में सुगंध का पुनर्जीवन
- प्रबोधन—वि॰—-—प्र+बुध्+णिच्+ल्युट्—जागरण, जागना
- प्रबोधनम्—नपुं॰—-—-—जागते रहना
- प्रबोधनम्—नपुं॰—-—-—जाग, जगना
- प्रबोधनम्—नपुं॰—-—-—सचेत होना
- प्रबोधनम्—नपुं॰—-—-—ज्ञान, बुद्धिमत्ता
- प्रबोधनम्—नपुं॰—-—-—शिक्षण, उपदेश देना
- प्रबोधनम्—नपुं॰—-—-—किसी गंधद्रव्य की सुगंध का पुनर्जीवन
- प्रबोधनी—स्त्री॰—-—प्रबोधन+ ङीप्—देव उठनी एकादशी
- प्रबोधिनी—स्त्री॰—-—प्र+बुध्+णिच्+णिनि+ङीप्—देव उठनी एकादशी
- प्रबोधित—भू॰ क॰ कृ॰—-—प्र+बुध्+णिच्+क्त—जागा हुआ, जगाया हुआ
- प्रबोधित—भू॰ क॰ कृ॰—-—प्र+बुध्+णिच्+क्त—शिक्षण, प्राप्त, सूचना दिया हुआ
- प्रभञ्जनम्—नपुं॰—-—प्र+भञ्ज्+ल्युट्—टुकड़े टुकड़े करना
- प्रभञ्जनः—पुं॰—-—प्र+भञ्ज्+ल्युट्—हवा, विशेषकर आँधी, झंझावात
- प्रभद्रः—पुं॰—-—प्रगतं भद्रं यस्मात्- प्रा॰ ब॰—नीम का पेड़
- प्रभवः—पुं॰—-—प्र+भु+अप्—स्रोत, मूल
- प्रभवः—पुं॰—-—प्र+भु+अप्—जन्म, पैदायश
- प्रभवः—पुं॰—-—प्र+भु+अप्—नदी का उद्गमस्थान
- प्रभवः—पुं॰—-—प्र+भु+अप्—उत्पत्ति का कारण, (माता, पिता आदि) जन्मदाता
- प्रभवः—पुं॰—-—प्र+भु+अप्—प्रणेता, रचयिता
- प्रभवः—पुं॰—-—प्र+भु+अप्—जन्म स्थान
- प्रभवः—पुं॰—-—प्र+भु+अप्—शक्ति, सामर्थ्य, शौर्य, भव्य गरिमा (प्रभाव)
- प्रभवः—पुं॰—-—प्र+भु+अप्—विष्णु की उपाधि
- प्रभवः—पुं॰—-—प्र+भु+अप्—उत्पन्न होने वाला, व्युत्पन्न
- प्रभवितृ—पुं॰—-—प्र+भू+तृच्—शासक, महाप्रभु
- प्रभविष्णु—वि॰—-—प्र+भू+इष्णुच्—मजबूत, ताकतवर, शक्तिशाली
- प्रभविष्णुः—पुं॰—-—प्र+भू+इष्णुच्—प्रभु, स्वामी
- प्रभविष्णुः—पुं॰—-—प्र+भू+इष्णुच्—विष्णु की उपाधि
- प्रभा—स्त्री॰—-—प्र+भा+अङ्+टाप्—प्रकाश, दीप्ति, कान्ति,जगमगाहट, चमक
- प्रभा—स्त्री॰—-—प्र+भा+अङ्+टाप्—प्रकाश की किरण
- प्रभा—स्त्री॰—-—प्र+भा+अङ्+टाप्—धूप घड़ी पर सुरज की छाया
- प्रभा—स्त्री॰—-—प्र+भा+अङ्+टाप्—दूर्गा की उपाधि
- प्रभा—स्त्री॰—-—प्र+भा+अङ्+टाप्—कुवेर की नगरी का नाम
- प्रभा—स्त्री॰—-—प्र+भा+अङ्+टाप्—एक अप्सरा का नाम
- प्रभाकरः—पुं॰—प्रभा-करः—-—सूर्य
- प्रभाकरः—पुं॰—प्रभा-करः—-—चन्द्रमा
- प्रभाकरः—पुं॰—प्रभा-करः—-—अग्नि
- प्रभाकरः—पुं॰—प्रभा-करः—-—समुद्र
- प्रभाकरः—पुं॰—प्रभा-करः—-—शिव का विशेषण
- प्रभाकरः—पुं॰—प्रभा-करः—-—एक विद्वान् लेखक का नाम
- प्रभाकीटः—पुं॰—प्रभा-कीटः—-—जुगनू
- प्रभातरल—वि॰—प्रभा-तरल—-—जगमगाता हुआ
- प्रभामण्डलम्—नपुं॰—प्रभा-मण्डलम्—-—प्रकाश का एक वृत्त, परिवेश
- प्रभालेपिन्—वि॰—प्रभा-लेपिन्—-—कान्तियुक्त, कान्ति का प्रसारक
- प्रभागः—पुं॰—-—प्र+भज्+घञ्—भाग, टुकड़ी
- प्रभागः—पुं॰—-—प्र+भज्+घञ्—(गणित॰) भिन्न का भिन्न
- प्रभात—भू॰ क॰ कृ॰—-—प्र+भा+क्त—जो स्पष्ट या प्रकाशित होने लगा हो
- प्रभातम्—नपुं॰—-—प्र+भा+क्त—दिन निकलना, पौ फटना
- प्रभानम्—नपुं॰—-—प्र+भा+ल्युट्—प्रकाश, कान्ति, दीप्ति, ज्योति, चमक
- प्रभावः—पुं॰—-—प्र+भू+घञ्—कान्ति, दीप्ति, उजाला
- प्रभावः—पुं॰—-—प्र+भू+घञ्—गरिमा, यश, महिमा, तेज, भव्य कान्ति
- प्रभावः—पुं॰—-—प्र+भू+घञ्—सामर्थ्य, शौर्य, शक्ति, अव्यर्थता
- प्रभावः—पुं॰—-—प्र+भू+घञ्—राजोचित शक्ति (तीन शक्तियों में से एक)
- प्रभावः—पुं॰—-—प्र+भू+घञ्—अतिमानव शक्ति, अलौकिकशक्ति, महानुभावता
- प्रभावज—वि॰—प्रभावः-ज—-—राजशक्ति से उत्पन्न प्रभाव से युक्त
- प्रभाषणम्—नपुं॰—-—प्र+भाष्+ल्युट्—व्याख्या, अर्थकरण
- प्रभासः—पुं॰—-—प्र+भास्+घञ्—दीप्ति, सौन्दर्य, कान्ति
- प्रभासः—पुं॰—-—प्र+भास्+घञ्—द्वारका के निकट स्थित एक सुविख्यात तीर्थस्थान
- प्रभासम्—नपुं॰—-—प्र+भास्+घञ्—द्वारका के निकट स्थित एक सुविख्यात तीर्थस्थान
- प्रभासनम्—नपुं॰—-—प्र+भास्+ल्युट्—प्रकाशित होना, जगमग होना, चमकना
- प्रभास्वर—वि॰—-—प्र+भास्+ वरच्—उज्ज्वल, चमकीला, चमकदार
- प्रभिन्न—भू॰ क॰ कृ॰—-—प्र+भिद्+क्त—अलग किया हुआ, खंडित, फाड़ा हुआ, विभक्त किया हुआ
- प्रभिन्न—भू॰ क॰ कृ॰—-—प्र+भिद्+क्त—टुकड़े टुकड़े किया हुआ
- प्रभिन्न—भू॰ क॰ कृ॰—-—प्र+भिद्+क्त—काटा हुआ, वियुक्त किया हुआ
- प्रभिन्न—भू॰ क॰ कृ॰—-—प्र+भिद्+क्त—मुकुलित, विकसित, खिला हुआ
- प्रभिन्न—भू॰ क॰ कृ॰—-—प्र+भिद्+क्त—बदला हुआ, परिवर्तित
- प्रभिन्न—भू॰ क॰ कृ॰—-—प्र+भिद्+क्त—विरूपित, विकृत
- प्रभिन्न—भू॰ क॰ कृ॰—-—प्र+भिद्+क्त—शिथिलित, ढीला
- प्रभिन्न—भू॰ क॰ कृ॰—-—प्र+भिद्+क्त—नशे में चूर, मदमस्त
- प्रभिन्नः—पुं॰—-—प्र+भिद्+क्त—मतवाला हाथी
- प्रभिन्नाञ्जनम्—नपुं॰—प्रभिन्न-अञ्जनम्—-—काजल
- प्रभु—वि॰—-—प्र+भू+डु—बलवान्, मज़बूत, शक्तिशाली
- प्रभु—वि॰—-—प्र+भू+डु—जोड़ का
- प्रभुः—पुं॰—-—प्र+भू+डु—अधिपति, स्वामी
- प्रभुः—पुं॰—-—प्र+भू+डु—राज्यपाल, शासक, सर्वोच्च अधिकारी
- प्रभुः—पुं॰—-—प्र+भू+डु—स्वामी, मालिक
- प्रभुः—पुं॰—-—प्र+भू+डु—पारा
- प्रभुः—पुं॰—-—प्र+भू+डु—विष्णु
- प्रभुः—पुं॰—-—प्र+भू+डु—शिव
- प्रभुः—पुं॰—-—प्र+भू+डु—ब्रह्मा
- प्रभुः—पुं॰—-—प्र+भू+डु—इन्द्र
- प्रभुभक्त—वि॰—प्रभु-भक्त—-—अपने स्वामी में अनुरक्त, राजभक्त
- प्रभुभक्तः—पुं॰—प्रभु-भक्तः—-—बढ़िया घोड़ा
- प्रभुभक्तिः—स्त्री॰—प्रभु-भक्तिः—-—अपने स्वामी की भक्ति, राजभक्ति, स्वामिभक्त
- प्रभुता—स्त्री॰—-—प्रभु+तल्+टाप्—आधिपत्य, सर्वोपरिता, स्वामित्व, शासन, अधिकार
- प्रभुता—स्त्री॰—-—प्रभु+तल्+टाप्—मिल्कियत
- प्रभुत्वम्—नपुं॰—-—प्रभु+त्व—आधिपत्य, सर्वोपरिता, स्वामित्व, शासन, अधिकार
- प्रभुत्वम्—नपुं॰—-—प्रभु+त्व—मिल्कियत
- प्रभूत—भू॰ क॰ कृ॰—-—प्र+भू+क्त—उद्भूत, उत्पन्न
- प्रभूत—भू॰ क॰ कृ॰—-—प्र+भू+क्त—प्रचुर, विपुल
- प्रभूत—भू॰ क॰ कृ॰—-—प्र+भू+क्त—असंख्य, अनेक
- प्रभूत—भू॰ क॰ कृ॰—-—प्र+भू+क्त—परिपक्व, पूर्ण
- प्रभूत—भू॰ क॰ कृ॰—-—प्र+भू+क्त—ऊँचा, उत्तुंग
- प्रभूत—भू॰ क॰ कृ॰—-—प्र+भू+क्त—लंबा
- प्रभूत—भू॰ क॰ कृ॰—-—प्र+भू+क्त—प्रधानत्व में
- प्रभूतयवसेन्धन—वि॰—प्रभूत-यवसेन्धन—-—जहाँ हरीघास और इंधन की बहुतायत हो
- प्रभूतवयस्—वि॰—प्रभूत-वयस्—-—वयोवृद्ध, बूढ़ा, उमररसीदा
- प्रभूतिः—स्त्री॰—-—प्र+भू+क्तिन्—उद्गम, मूल
- प्रभूतिः—स्त्री॰—-—प्र+भू+क्तिन्—शक्ति, सामर्थ्य
- प्रभूतिः—स्त्री॰—-—प्र+भू+क्तिन्—पर्याप्तता
- प्रभृतिः—अव्य॰—-—प्र+भृ+क्तिन्—आरंभ, शुरु
- प्रभृतिः—अव्य॰—-—प्र+भृ+क्तिन्—से, से लेकर, शुरु करके
- अद्यप्रभृति—अव्य॰—-—-—आज (अब) से लेकर
- प्रभेदः—पुं॰—-—प्र+भिद्+घञ्—फाड़ना, चीरना, खोलना
- प्रभेदः—पुं॰—-—प्र+भिद्+घञ्—प्रभाग, वियोग
- प्रभेदः—पुं॰—-—प्र+भिद्+घञ्—हाथी के गण्डस्थल से मद का बहना
- प्रभेदः—पुं॰—-—प्र+भिद्+घञ्—अन्तर, भेद
- प्रभेदः—पुं॰—-—प्र+भिद्+घञ्—प्रकार या क़िस्म
- प्रभ्रंशः—पुं॰—-—प्र+भ्रंश्+घञ्—गिरना, गिरकर अलग हो जाना
- प्रभ्रंशथुः—पुं॰—-—प्र+भ्रंश्+अथुच्—नाक का एक रोग, पीनस
- प्रभ्रंशित—भू॰ क॰ कृ॰—-—प्र+भ्रंश्+णिच्+क्त—फेंका गया, डाल दिया गया
- प्रभ्रंशित—भू॰ क॰ कृ॰—-—प्र+भ्रंश्+णिच्+क्त—वञ्चित
- प्रभ्रंशिन्—वि॰—-—प्र+भ्रंश्+णिनि—टूटकर गिरना, झड़ना
- प्रभ्रष्ट—भू॰ क॰ कृ॰—-—प्र+भ्रंश्+क्त—गिरा हुआ, नीचे पड़ा हुआ
- प्रभ्रष्टम्—नपुं॰—-—प्र+भ्रंश्+क्त—सिर पर विराजमान मुकुट की शिखापर धारण की गई फूल-माला, शिखावलंबिनी फूलमाला
- प्रभ्रष्टकम्—नपुं॰—-—प्रभ्रष्ट+कन्—
- प्रमग्न—भू॰ क॰ कृ॰—-—प्र+मस्ज्+क्त—डूबा हुआ, गोता दिया हुआ, डुबोया हुआ
- प्रमत—भू॰ क॰ कृ॰—-—प्र+मन्+क्त—विचारा हुआ
- प्रमत्त—भू॰ क॰ कृ॰—-—प्र+मद्+क्त—नशे में चूर, मदोन्मत्त
- प्रमत्त—भू॰ क॰ कृ॰—-—प्र+मद्+क्त—उन्मत, पागल
- प्रमत्त—भू॰ क॰ कृ॰—-—प्र+मद्+क्त—लापरवाह, उपेक्षक, अनवधान, असावधान, अनपेक्ष
- प्रमत्त—भू॰ क॰ कृ॰—-—प्र+मद्+क्त—उन्मार्गगामी, भूल करने वाला
- प्रमत्त—भू॰ क॰ कृ॰—-—प्र+मद्+क्त—चौपट करने वाला
- प्रमत्त—भू॰ क॰ कृ॰—-—प्र+मद्+क्त—स्वेच्छाचारी, लम्पट
- प्रमत्तगीत—वि॰—प्रमत्त-गीत—-—असावधानपूर्वक गाया हुआ
- प्रमत्तचित्त—वि॰—प्रमत्त-चित्त—-—लापरवाह, असावधान, बेख़बर
- प्रमथः—पुं॰—-—प्र+मथ्+अच्—घोड़ा
- प्रमथः—पुं॰—-—प्र+मथ्+अच्—शिव के गण (जो भूत प्रेत माने जाते हैं) जो उसक़ी सेवा में रत है
- प्रमथाधिपः—पुं॰—प्रमथः-अधिपः—-—शिव की उपाधि
- प्रमथनाथः—पुं॰—प्रमथः-नाथः—-—शिव की उपाधि
- प्रमथपतिः—पुं॰—प्रमथः-पतिः—-—शिव की उपाधि
- प्रमथनम्—नपुं॰—-—प्र+मथ्+ल्युट्—चोट पहुंचाना, क्षति पहुंचाना, संतप्त करना
- प्रमथनम्—नपुं॰—-—प्र+मथ्+ल्युट्—वध, हत्या
- प्रमथनम्—नपुं॰—-—प्र+मथ्+ल्युट्—मन्थन करना, विलोना
- प्रमथित—भू॰ क॰ कृ॰—-—प्र+मथ्+क्त—प्रपीड़ित, कष्टग्रस्त
- प्रमथित—भू॰ क॰ कृ॰—-—प्र+मथ्+क्त—कुचला हुआ
- प्रमथित—भू॰ क॰ कृ॰—-—प्र+मथ्+क्त—कतल किया हुआ, वध किया हुआ
- प्रमथित—भू॰ क॰ कृ॰—-—प्र+मथ्+क्त—भली भांति बिलोया हुआ
- प्रमथितम्—नपुं॰—-—प्र+मथ्+क्त—जल रहित छाछ, मठ्ठा
- प्रमद—वि॰, प्रा॰ ब॰—-—प्रकृष्टो मदो यस्य—मतवाला, नशे में चूर
- प्रमद—वि॰, प्रा॰ ब॰—-—प्रकृष्टो मदो यस्य—आवेशपूर्ण
- प्रमद—वि॰, प्रा॰ ब॰—-—प्रकृष्टो मदो यस्य—लापरवाह
- प्रमद—वि॰, प्रा॰ ब॰—-—प्रकृष्टो मदो यस्य—स्वेच्छाचारी, बदचलन
- प्रमदः—पुं॰—-—-—हर्षा, प्रसन्नता, खुशी
- प्रमदः—पुं॰—-—-—धतूरे का पौधा
- प्रमदकाननम्—नपुं॰—प्रमद-काननम्—-—राजकीय अन्तःपुर से जुड़ा हुआ, प्रमोद वन
- प्रमदवनम्—नपुं॰—प्रमद-वनम्—-—राजकीय अन्तःपुर से जुड़ा हुआ, प्रमोद वन
- प्रमदक—वि॰—-—प्रमद+कन्—लम्पट, कामुक
- प्रमदनम्—नपुं॰—-—प्र+मद्+ल्युट्—कामेच्छा
- प्रमदा—स्त्री॰—-—प्रमद्+अच्+टाप्—सुन्दरी नवयुवती
- प्रमदा—स्त्री॰—-—प्रमद्+अच्+टाप्—पत्नी या स्त्री
- प्रमदा—स्त्री॰—-—प्रमद्+अच्+टाप्—कन्याराशि
- प्रमदाकाननम्—नपुं॰—प्रमदा-काननम्—-—राजकीय अन्तःपुर के साथ जुड़ा हुआ प्रमोद उद्यान
- प्रमदावनम्—नपुं॰—प्रमदा-वनम्—-—राजकीय अन्तःपुर के साथ जुड़ा हुआ प्रमोद उद्यान
- प्रमदाजनः—पुं॰—प्रमदा-जनः—-—नवयुवती, तरुणी
- प्रमदाजनः—पुं॰—प्रमदा-जनः—-—स्त्री
- प्रमद्वर—वि॰—-—प्र+मद्+ष्वरच्—लापरवाह, अनवघान, असावधान
- प्रमनस्—वि॰—-—प्रकृष्टं मनो यस्य-प्रा॰ ब॰—खुश, हर्षयुत, प्रसन्न, आनन्दित
- प्रमन्यु—वि॰—-—प्रकृष्टो मन्युः यस्य- प्रा॰ ब॰—क्रोधाविष्ट, चिड़चिड़ा चिढ़ा हुआ
- प्रमन्यु—वि॰—-—प्रकृष्टो मन्युः यस्य- प्रा॰ ब॰—कष्टग्रस्त शोकान्वित, शोकसंतप्त
- प्रमयः—पुं॰—-—प्र+मी+अच्—मृत्यु
- प्रमयः—पुं॰—-—प्र+मी+अच्—बरबादी, नाश, निधन
- प्रमयः—पुं॰—-—प्र+मी+अच्—वध, हत्या
- प्रमर्दनम्—नपुं॰—-—प्र+मृद्+ल्युट्—मसल डालना, नष्ट करना, कुचल देना
- प्रमर्दनः—पुं॰—-—-—विष्णु का विशेषण
- प्रमा—स्त्री॰—-—प्र+मा+अङ्+टाप्—प्रतिबोध, प्रत्यक्षज्ञान
- प्रमा—स्त्री॰—-—प्र+मा+अङ्+टाप्—सही भाव, विशुद्ध ज्ञान, यथार्थ, जानकारी, ठीक ठीक प्रत्यय
- प्रमाणम्—नपुं॰—-—प्र+मा+ल्युट्—(लंबाई चौड़ाई) माप
- प्रमाणम्—नपुं॰—-—प्र+मा+ल्युट्—आकार, विस्तार, परिमाण (लंबाई चौड़ाई)
- प्रमाणम्—नपुं॰—-—प्र+मा+ल्युट्—मान, मानक
- प्रमाणम्—नपुं॰—-—प्र+मा+ल्युट्—सीमा, परिमाण
- प्रमाणम्—नपुं॰—-—प्र+मा+ल्युट्—साक्ष्य, शहादत, प्रमाण
- प्रमाणम्—नपुं॰—-—प्र+मा+ल्युट्—अधिकारी, सम्मोदन, निर्णैता, निश्चायक, वह जिसका शब्द प्रमाण माना जाय
- प्रमाणम्—नपुं॰—-—प्र+मा+ल्युट्—सत्य ज्ञान, यथार्थ प्रत्यय या भाव
- प्रमाणम्—नपुं॰—-—प्र+मा+ल्युट्—प्रमाण की रींति, यथार्थ ज्ञान प्राप्त करने का उपाय
- प्रमाणम्—नपुं॰—-—प्र+मा+ल्युट्—मुख्य, मूल
- प्रमाणम्—नपुं॰—-—प्र+मा+ल्युट्—एकता
- प्रमाणम्—नपुं॰—-—प्र+मा+ल्युट्—वेद, शास्त्र, धर्मग्रन्थ
- प्रमाणम्—नपुं॰—-—प्र+मा+ल्युट्—कारण, हेतु
- प्रमाणी कृ——-—-—अधिकारी मानना या समझना
- प्रमाणी कृ——-—-—आज्ञा मानना, अनुमत होना
- प्रमाणी कृ——-—-—साबित करना, सिद्ध करना
- प्रमाणी कृ——-—-—यथोचित भाग बांटना
- प्रमाणाधिक—वि॰—प्रमाणम्-अधिक—-—सामान्य से अधिक, अपरिमित, अत्यधिक
- प्रमाणान्तरम्—नपुं॰—प्रमाणम्-अन्तरम्—-—प्रमाण की अन्य रीति
- प्रमाणाभावः—पुं॰—प्रमाणम्-अभावः—-—प्रमाणशून्यता
- प्रमाणज्ञ—वि॰—प्रमाणम्-ज्ञ—-—(तार्किक की भांति) प्रमाण पद्धति का जानकार
- प्रमाणज्ञः—पुं॰—प्रमाणम्-ज्ञः—-—शिव का विशेषण
- प्रमाणदुष्ट—वि॰—प्रमाणम्-दुष्ट—-—अधिकारी द्वारा स्वीकृत
- प्रमाणपत्रम्—नपुं॰—प्रमाणम्-पत्रम्—-—लिखित अधिकारपत्र
- प्रमाणपुरुषः—पुं॰—प्रमाणम्-पुरुषः—-—विवाचक, निर्णायक, मध्यस्थ
- प्रमाणवचनम्—नपुं॰—प्रमाणम्-वचनम्—-—अधिकृत वक्तव्य
- प्रमाणवाक्यम्—नपुं॰—प्रमाणम्-वाक्यम्—-—अधिकृत वक्तव्य
- प्रमाणशास्त्रम्—नपुं॰—प्रमाणम्-शास्त्रम्—-—वेद, धर्मशास्त्र
- प्रमाणशास्त्रम्—नपुं॰—प्रमाणम्-शास्त्रम्—-—तर्क विज्ञान
- प्रमाणसूत्रम्—नपुं॰—प्रमाणम्-सूत्रम्—-—मापने की डोरी
- प्रमाणयति—ना॰ धा॰ पर॰—-—-—अधिकृत समझना, प्रमाण स्वरूप मानना
- प्रमाणिक—वि॰—-—प्रमाण+ठन्—‘नाप’ का आकार ग्रहण करने वाला
- प्रमाणिक—वि॰—-—प्रमाण+ठन्—प्रमाण या अधिकार का रूप धारण करने वाला
- प्रमातामहः—पुं॰, प्रा॰ स॰—-—प्रकृष्टो मातामहः—परनाना,
- प्रमातामही—स्त्री॰,प्रा॰ स॰—-—प्रकृष्टा मातामही—परनानी
- प्रमाथः—पुं॰—-—प्र+मथ्+घञ्—प्रपीड़न, संताप देना, सताना
- प्रमाथः—पुं॰—-—प्र+मथ्+घञ्—क्षुब्ध करना, बिलोना
- प्रमाथः—पुं॰—-—प्र+मथ्+घञ्—वध, हत्या, विनाश
- प्रमाथः—पुं॰—-—प्र+मथ्+घञ्—हिंसा, अत्याचार
- प्रमाथः—पुं॰—-—प्र+मथ्+घञ्—बलत्कार, बलपूर्वक अपहरण
- प्रमाथिन्—वि॰—-—प्र+मथ्+णिनि—यन्त्रणा देने वाला, तंग करने वाला, संपीडित करने वाला, कष्ट देने वाला, दुःख पहुंचाने वाला
- प्रमाथिन्—वि॰—-—प्र+मथ्+णिनि—बध करने वाला, विनाशकारी
- प्रमाथिन्—वि॰—-—प्र+मथ्+णिनि—क्षुब्ध करने वाला, गतिमान् करने वाला
- प्रमाथिन्—वि॰—-—प्र+मथ्+णिनि—फाड़ने वाला, गिराने वाला, पछाड़ने वाला
- प्रमाथिन्—वि॰—-—प्र+मथ्+णिनि—काट कर गिराने वाला
- प्रमादः—पुं॰—-—प्र+मद्+घञ्—अवहेलना, असावधानी, अनवधान, लापरवाही, भुल-चूक
- प्रमादः—पुं॰—-—प्र+मद्+घञ्—मादकता, पागलपन, उन्मत्तता
- प्रमादः—पुं॰—-—प्र+मद्+घञ्—गलती, भारी भूल, गलत निर्णय
- प्रमादः—पुं॰—-—प्र+मद्+घञ्—दुर्घटना, उत्पात, संकट, भय
- प्रमापणम्—नपुं॰—-—प्र+मी+पिच्+ल्युट्, पुक्—वध, हत्या
- प्रमार्जनम्—नपुं॰—-—प्र+मृज्+णिच्+ल्युट्—मिटा देना, रगड़ देना, धो देना
- प्रमित—भू॰ क॰ कृ॰—-—प्र+मा (मि) + क्त—नपातुला, सीमित
- प्रमित—भू॰ क॰ कृ॰—-—प्र+मा (मि) + क्त—कुछ, थोड़ा
- प्रमित—भू॰ क॰ कृ॰—-—प्र+मा (मि) + क्त—ज्ञात, समझा हुआ
- प्रमित—भू॰ क॰ कृ॰—-—प्र+मा (मि) + क्त—प्रमाणित, प्रदर्शित
- प्रमितिः—स्त्री॰—-—प्र+मा(मि)+क्तिन्—माप, नाप
- प्रमितिः—स्त्री॰—-—प्र+मा(मि)+क्तिन्—सत्य या निश्चित ज्ञान, यथार्थ भाव या प्रत्यय
- प्रमितिः—स्त्री॰—-—प्र+मा(मि)+क्तिन्—किसी प्रमाण या ज्ञान के स्रोत से प्राप्त जानकारी
- प्रमीढ़—वि॰—-—प्र+मिह्+क्त—घना, सघन, सटा हुआ
- प्रमीढ़—वि॰—-—प्र+मिह्+क्त—मूत्र बनकर निकला हुआ
- प्रमीत—भू॰ क॰ कृ॰—-—प्र+मी+क्त—मरा हुआ, मृतक
- प्रमीतः—पुं॰—-—प्र+मी+क्त—यज्ञ के अवसर पर बलि चढ़ाया हुआ या वध किया हुआ पशु
- प्रमीतिः—स्त्री॰—-—प्र+मी+क्तिन्—मृत्यु, विनाश, निधन
- प्रमीला—स्त्री॰—-—प्र+मील्+अ+टाप्—तन्द्रा, आलस्य, उत्साहहीनता
- प्रमीला—स्त्री॰—-—प्र+मील्+अ+टाप्—स्त्रियों के राज्य की प्रभुसत्ता प्राप्त स्त्री का नाम
- प्रमीलित—भू॰ क॰ कृ॰—-—प्र+मील्+क्त—मुँदी हुई आँखों वाला
- प्रमुक्त—भू॰ क॰ कृ॰—-—प्र+मुच्+ क्त—शिथिलित
- प्रमुक्त—भू॰ क॰ कृ॰—-—प्र+मुच्+ क्त—स्वाधीन किया हुआ, स्वतंत्र छोड़ा हुआ
- प्रमुक्त—भू॰ क॰ कृ॰—-—प्र+मुच्+ क्त—तितिक्षु, विरक्त
- प्रमुक्त—भू॰ क॰ कृ॰—-—प्र+मुच्+ क्त—डाला हुआ, फेंका हुआ
- प्रमुक्तकण्ठम्—अव्य॰—प्रमुक्त-कण्ठम्—-—फूटफूट कर
- प्रमुख—वि॰,प्रा॰ ब॰—-—-—मुँह किये हुए, मुँह मोड़े हुए
- प्रमुख—वि॰,प्रा॰ ब॰—-—-—मुख्य, प्रधान, अग्रणी, प्रथम
- प्रमुख—वि॰,प्रा॰ ब॰—-—-—प्रधानता में, प्रधान या मुख्य बनाकर
- प्रमुख—वि॰,प्रा॰ ब॰—-—-—से युक्त, सहित
- प्रमुखः—पुं॰—-—-—आदरणीय पुरुष
- प्रमुखः—पुं॰—-—-—ढेर, समुच्चय
- प्रमुखम्—नपुं॰—-—-—मुंह
- प्रमुखम्—नपुं॰—-—-—अध्याय या परिच्छेद का आरम्भ
- प्रमुग्ध—वि॰—-—प्र+मुह्+क्त—मूर्छित, अचेत
- प्रमुग्ध—वि॰—-—प्र+मुह्+क्त—अत्यंत प्रिय
- प्रमुद्—स्त्री॰—-—प्र+मुद्+क्विप्—अत्यंत हर्ष
- प्रमुदित—भू॰ क॰ कृ॰—-—प्र+मुद्+क्त—उल्लसित, आह्लादित, प्रसन्न, आनन्दित
- प्रमुदितहृदय—वि॰—प्रमुदित-हृदय—-—प्रसन्नमना
- प्रमुषित—भू॰ क॰ कृ॰—-—प्र+मुष्+क्त—चुराया हुआ, अपहृत
- प्रमुषिता—स्त्री॰—-—प्र+मुष्+क्त—एक प्रकार की पहेली
- प्रमूढ—भू॰ क॰ कृ॰—-—प्र+ मुह्+क्त—विस्मित, उद्विग्न, व्याकुल
- प्रमूढ—भू॰ क॰ कृ॰—-—प्र+ मुह्+क्त—मूर्ख, जड़
- प्रमृत—भू॰ क॰ कृ॰—-—प्र+मृ+क्त—मरा हुआ, मृतक
- प्रमृतम्—नपुं॰—-—प्र+मृ+क्त—मृत्यु
- प्रमृतम्—नपुं॰—-—-—खेती
- प्रमृष्ट—भू॰ क॰ कृ॰—-—प्र+मृज्+क्त—रगड़ दिया गया, धो दिया गया, मिटा दिया गया, साफ किया गया
- प्रमृष्ट—भू॰ क॰ कृ॰—-—प्र+मृज्+क्त—चमकाया हुआ, चमकीला, स्वच्छ
- प्रमेय—वि॰—-—प्र+मा+यत्—मापे जाने योग्य, निश्चित
- प्रमेय—वि॰—-—प्र+मा+यत्—प्रमाणित किये जाने योग्य, प्रदर्शनीय
- प्रमेयम्—नपुं॰—-—-—निश्चित ज्ञान की वस्तु, प्रदर्शित उपसंहार, साध्य
- प्रमेयम्—नपुं॰—-—-—सिद्ध करने योग्य बात, जो विषय सिद्ध (प्रमाणित) किया जा सके
- प्रमेहः—पुं॰—-—प्र+मिह्+घञ्—एक प्रकार का मूत्र रोग
- प्रमोक्षः—पुं॰—-—प्र+ मोक्ष्+ घञ्—गिरना, गिरने देना
- प्रमोक्षः—पुं॰—-—प्र+ मोक्ष्+ घञ्—मुक्त करना, स्वतंत्र करना
- प्रमोचनम्—नपुं॰—-—प्र+मुच्+ल्युट्—मुक्त करना, स्वतंत्र छोड़ना
- प्रमोचनम्—नपुं॰—-—प्र+मुच्+ल्युट्—उगलना, छोड़ना
- प्रमोदः—पुं॰—-—प्र+मुद्+घञ्—हर्ष, आह्लाद, उल्लास, प्रसन्नता
- प्रमोदनम्—नपुं॰—-—प्र+मुद्+णिच्+ ल्युट्—आह्लादित करना आनंदित करना, प्रसन्न करना
- प्रमोदनम्—नपुं॰—-—प्र+मुद्+णिच्+ ल्युट्—प्रसन्नता
- प्रमोदः—पुं॰—-—प्र+मुद्+घञ्—विष्णु का विशेषण
- प्रमोदित—भू॰ क॰ कृ॰—-—प्र+मुद्+णिच्+क्त—प्रसन्न, आह्लादित, हृष्ट, आनंदित
- प्रमोदितः—पुं॰—-—प्र+मुद्+णिच्+क्त—कुबेर का विशेषण
- प्रमोहः—पुं॰—-—प्र+मुह्+घञ्—मूर्छा, बेहोशी, जडता
- प्रमोहः—पुं॰—-—प्र+मुह्+घञ्—विकलता, घबड़ाहट
- प्रमोहित—भू॰ क॰ कृ॰—-—प्र+मुह्+णिच्+क्त—आकुलित, उद्विग्न, घबड़ाया हुआ
- प्रयत—भू॰ क॰ कृ॰—-—प्र+यम्+क्त—नियंत्रित, जितेन्द्रिय, पूत, पावन, भक्त, धार्मिक अनुष्ठानों एवं साधनाओं से जिसने अपने आपको पवित्र बना लिया है, आत्मसंयमी
- प्रयत—भू॰ क॰ कृ॰—-—प्र+यम्+क्त—सोत्साह, अत्युत्सुक
- प्रयत—भू॰ क॰ कृ॰—-—प्र+यम्+क्त—सुशील, विनम्र
- प्रयत्नः—पुं॰—-—प्र+यत्+नङ्—प्रयास, चेष्टा, उद्योग
- प्रयत्नः—पुं॰—-—प्र+यत्+नङ्—अनवरत प्रयास, धैर्य
- प्रयत्नः—पुं॰—-—प्र+यत्+नङ्—श्रम कठिनाई
- प्रयत्नः—पुं॰—-—प्र+यत्+नङ्—बड़ी सावधानी, चौकसी
- प्रयत्नः—पुं॰—-—प्र+यत्+नङ्—उच्चारण में प्रयास, मुख का वह व्यापार जिसके सहारे वर्णों का उच्चारण होता है
- प्रयस्त—भू॰ क॰ कृ॰—-—प्र+यस्+क्त—अभ्यस्त, सिझाया हुआ, मसाले आदि डाल कर स्वादिष्ट किया हुआ
- प्रयागः—पुं॰, प्रा॰ ब॰—-—प्रकृष्टं यागफलं यत्र—यज्ञ
- प्रयागः—पुं॰, प्रा॰ ब॰—-—प्रकृष्टं यागफलं यत्र—इन्द्र
- प्रयागः—पुं॰, प्रा॰ ब॰—-—प्रकृष्टं यागफलं यत्र—घोड़ा
- प्रयागः—पुं॰, प्रा॰ ब॰—-—प्रकृष्टं यागफलं यत्र—वर्तमान इलाहाबाद के पास गंगा यमुना के संगम पर बना प्रसिद्ध तीर्थस्थान
- प्रयागभयः—पुं॰—प्रयागः-भयः—-—इन्द्र का विशेषण
- प्रयाचनम्—नपुं॰—-—प्र+याच्+ ल्युट्—माँगना, प्रार्थना करना, गिड़गिड़ाना
- प्रयाजः—पुं॰—-—प्र+यज्+घञ्—प्रधानज्ञ संबंधी एक अनुष्ठान
- प्रयाणम्—नपुं॰—-—प्र+या+ल्युट्—कूच करना, प्रस्थान करना, बिदा
- प्रयाणम्—नपुं॰—-—प्र+या+ल्युट्—अभियान, मात्रा
- प्रयाणम्—नपुं॰—-—प्र+या+ल्युट्—प्रगति, अग्रगमन
- प्रयाणम्—नपुं॰—-—प्र+या+ल्युट्—(शत्रु का) अभियान, हमला, आक्रमण, चढ़ाई
- प्रयाणम्—नपुं॰—-—प्र+या+ल्युट्—आरंभ, शुरु
- प्रयाणम्—नपुं॰—-—प्र+या+ल्युट्—मृत्यु (इस संसार से) बिदा
- प्रयाणम्—नपुं॰—-—प्र+या+ल्युट्—घोड़े की पीठ
- प्रयाणम्—नपुं॰—-—प्र+या+ल्युट्—किसी भी जन्तु का पिछला भाग
- प्रयाणभंगः—पुं॰—प्रयाणम्-भंगः—-—यात्रा के वीच कहीं रुक जाना, ठहरना
- प्रयाणकम्—नपुं॰—-—प्रयाण+कन्—यात्रा, प्रस्थान
- प्रयात—भू॰ क॰ कृ॰—-—प्र+या+क्त—आगे बड़ा हुआ, गया हुआ, विसर्जित
- प्रयात—भू॰ क॰ कृ॰—-—प्र+या+क्त—मृतक, मरा हुआ
- प्रयातः—पुं॰—-—-—आक्रमण
- प्रयातः—पुं॰—-—-—चट्टान, दलवाँ चट्टान
- प्रयापित—भू॰ क॰ कृ॰—-—प्र+या+णिच्+क्त, पक्—आगे पहुँचाया हुआ, भेजा हुआ
- प्रयापित—भू॰ क॰ कृ॰—-—प्र+या+णिच्+क्त, पक्—भगाया हुआ
- प्रयामः—भू॰ क॰ कृ॰—-—प्र+यम्+घञ्—अभाव, कमी, (अन्नादि की) महँगाई
- प्रयामः—भू॰ क॰ कृ॰—-—प्र+यम्+घञ्—रोकथाम, नियन्त्रण
- प्रयामः—भू॰ क॰ कृ॰—-—प्र+यम्+घञ्—लम्बाई
- प्रयासः—पुं॰—-—प्र+यस्+घञ्—प्रयत्न, चेष्टा, उद्योग
- प्रयासः—पुं॰—-—प्र+यस्+घञ्—श्रम, कठिनाई
- प्रयुक्त—भू॰ क॰ कृ॰—-—प्र+युज्+क्त—जोता हुआ, काठी जीन आदि कसा हुआ
- प्रयुक्त—भू॰ क॰ कृ॰—-—प्र+युज्+क्त—प्रचलित, (शब्द आदि) व्यवहार में लाया हुआ
- प्रयुक्त—भू॰ क॰ कृ॰—-—प्र+युज्+क्त—प्रयोग में लाया गया
- प्रयुक्त—भू॰ क॰ कृ॰—-—प्र+युज्+क्त—नियत किया हुआ, मनोनीत
- प्रयुक्त—भू॰ क॰ कृ॰—-—प्र+युज्+क्त—किया हुआ, प्रतिनिहित
- प्रयुक्त—भू॰ क॰ कृ॰—-—प्र+युज्+क्त—उदित, उद्गत, उत्पन्न, फलित
- प्रयुक्त—भू॰ क॰ कृ॰—-—प्र+युज्+क्त—युक्त
- प्रयुक्त—भू॰ क॰ कृ॰—-—प्र+युज्+क्त—ध्यानमग्न, बेसुध
- प्रयुक्त—भू॰ क॰ कृ॰—-—प्र+युज्+क्त—(रुपया आदि) ब्याज पर दिया हुआ
- प्रयुक्त—भू॰ क॰ कृ॰—-—प्र+युज्+क्त—प्रेरित किया हुआ, उकसाया हुआ
- प्रयुक्तिः—स्त्री॰—-—प्रयुज्+क्तिन्—इस्तेमाल, उपयोग प्रयोग
- प्रयुक्तिः—स्त्री॰—-—प्रयुज्+क्तिन्—उत्तेजना, उकसाना
- प्रयुक्तिः—स्त्री॰—-—प्रयुज्+क्तिन्—प्रयोजन, मुख्य उद्देश्य या ध्येय, अवसर
- प्रयुक्तिः—स्त्री॰—-—प्रयुज्+क्तिन्—परिणाम, फल
- प्रयुतम्—नपुं॰, प्रा॰ स॰—-—-—दस लाख की संख्या
- प्रयुयुत्सुः—पुं॰—-—प्र+युध्+सन्+उ—योद्धा
- प्रयुयुत्सुः—पुं॰—-—प्र+युध्+सन्+उ—मेंढा
- प्रयुयुत्सुः—पुं॰—-—प्र+युध्+सन्+उ—हवा, वायु
- प्रयुयुत्सुः—पुं॰—-—प्र+युध्+सन्+उ—सन्यासी
- प्रयुयुत्सुः—पुं॰—-—प्र+युध्+सन्+उ—इन्द्र
- प्रयुद्धम्—नपुं॰, प्रा॰ स॰—-—-—संग्राम, लड़ाई
- प्रयोक्तृ—वि॰—-—प्र+युज्+तृच्—उपाय, शब्द आदि का उपयोग करने वाला
- प्रयोक्तृ—वि॰—-—प्र+युज्+तृच्—अनुष्ठाता, निदेशक, परिणायक
- प्रयोक्तृ—वि॰—-—प्र+युज्+तृच्—प्रेरक, उत्तेजक, उकसाने वाला
- प्रयोक्तृ—वि॰—-—प्र+युज्+तृच्—प्रणेता, अभिकर्ता
- प्रयोक्तृ—वि॰—-—प्र+युज्+तृच्—(नाटक का) अभिनयकर्ता
- प्रयोक्तृ—वि॰—-—प्र+युज्+तृच्—ब्याज पर रुपया देने वाला, साहूकार
- प्रयोक्तृ—वि॰—-—प्र+युज्+तृच्—तीरंदाज
- प्रयोगः—पुं॰—-—प्र+युज्+घञ्—इस्तेमाल, व्यवहार, उपयोग
- प्रयोगः—पुं॰—-—प्र+युज्+घञ्—प्रचलित रूप, सामान्य प्रचलन
- प्रयोगः—पुं॰—-—प्र+युज्+घञ्—फेंकना, प्रक्षेपण, मुक्त करना
- प्रयोगः—पुं॰—-—प्र+युज्+घञ्—प्रदर्शनी, अनुष्ठान, (नाटकीय) अभिनयन, नाटक, खेलना
- प्रयोगः—पुं॰—-—प्र+युज्+घञ्—अभ्यास, (किसी विषय का) प्रायोगिक भाग
- प्रयोगः—पुं॰—-—प्र+युज्+घञ्—कार्यविधि का क्रम, सांस्कारिक रूप
- प्रयोगः—पुं॰—-—प्र+युज्+घञ्—कृत्य, कार्य
- प्रयोगः—पुं॰—-—प्र+युज्+घञ्—पाठ करना, पढ़कर सुनाना
- प्रयोगः—पुं॰—-—प्र+युज्+घञ्—आरंभ, शुरु
- प्रयोगः—पुं॰—-—प्र+युज्+घञ्—योजना, साधन, युक्ति, तरकीब
- प्रयोगः—पुं॰—-—प्र+युज्+घञ्—साधन, उपकरण
- प्रयोगः—पुं॰—-—प्र+युज्+घञ्—फल, परिणाम
- प्रयोगः—पुं॰—-—प्र+युज्+घञ्—जादूप्रयोग, ऐन्द्रजालिक रचना, अभिचार
- प्रयोगः—पुं॰—-—प्र+युज्+घञ्—ब्याज पर रुपया देना
- प्रयोगः—पुं॰—-—प्र+युज्+घञ्—घोड़ा
- प्रयोगातोशयः—पुं॰—प्रयोगः-अतिशयः—-—प्रस्तावना के पाँच भेदों में से एक
- प्रयोगनिपुण—वि॰—प्रयोगः-निपुण—-—नृत्याभ्यास में कुशल
- प्रयोजक—वि॰—-—प्र+युज्+ण्वुल्—निमित्त बनने वाला, कारण बनने वाला, सम्पन्न करने वाला, नेतृत्व करने वाला, उकसाने वाला, उद्दीपक
- प्रयोजकः—पुं॰—-—प्र+युज्+ण्वुल्—नियुक्त करने वाला, जो इस्तेमाल करे या काम ले
- प्रयोजकः—पुं॰—-—प्र+युज्+ण्वुल्—ग्रंथकर्ता
- प्रयोजकः—पुं॰—-—प्र+युज्+ण्वुल्—संस्थापक, प्रवर्तक
- प्रयोजकः—पुं॰—-—प्र+युज्+ण्वुल्—साहूकार, महाजन
- प्रयोजकः—पुं॰—-—प्र+युज्+ण्वुल्—धर्म शास्त्री, विधायक
- प्रयोजनम्—नपुं॰—-—प्र+युज्+ल्युट्—इस्तेमाल, काम में लगाना, नियुक्ति
- प्रयोजनम्—नपुं॰—-—प्र+युज्+ल्युट्—उपयोग, आवश्यकता
- प्रयोजनम्—नपुं॰—-—प्र+युज्+ल्युट्—ध्येय, लक्ष्य, उद्देश्य, अभिप्राय
- प्रयोजनम्—नपुं॰—-—प्र+युज्+ल्युट्—प्राप्ति का साधन
- प्रयोजनम्—नपुं॰—-—प्र+युज्+ल्युट्—कारण, उद्देश्य, निपित्त
- प्रयोजनम्—नपुं॰—-—प्र+युज्+ल्युट्—लाभ, स्वार्थ
- प्रयोज्य—सं॰ कृ॰—-—प्र+युज्+ण्यत्—इस्तेमाल करने के योग्य, काम में लाने के योग्य
- प्रयोज्य—सं॰ कृ॰—-—प्र+युज्+ण्यत्—अभ्यास करने के लायक
- प्रयोज्य—सं॰ कृ॰—-—प्र+युज्+ण्यत्—उत्पन्न या पैदा करने के योग्य
- प्रयोज्य—सं॰ कृ॰—-—प्र+युज्+ण्यत्—नियुक्त करने के योग्य
- प्रयोज्य—सं॰ कृ॰—-—प्र+युज्+ण्यत्—चलाने या फेंकने के योग्य (अस्त्र)
- प्रयोज्य—सं॰ कृ॰—-—प्र+युज्+ण्यत्—कार्य आरम्भ करने के योग्य
- प्ररुदित—भू॰ क॰ कृ॰—-—प्र+रुद्+क्त—फूट फूट कर रोया हुआ, मुक्त कंठ से रुदन
- प्ररूढ—भू॰ क॰ कृ॰—-—प्र+रुह्+क्त—पूरा बढ़ा हुआ, पूर्ण विकसित
- प्ररूढ—भू॰ क॰ कृ॰—-—प्र+रुह्+क्त—उत्पन्न, उद्भूत, पैदा हुआ
- प्ररूढ—भू॰ क॰ कृ॰—-—प्र+रुह्+क्त—बढ़ा हुआ
- प्ररूढ—भू॰ क॰ कृ॰—-—प्र+रुह्+क्त—गहराई तक गया हुआ
- प्ररूढ—भू॰ क॰ कृ॰—-—प्र+रुह्+क्त—लम्बे बढ़े हुए
- प्ररूढिः—स्त्री॰—-—प्र+रुह्+क्तिन्—वर्धन, वृद्धि
- प्ररोचनम्—नपुं॰—-—प्र+रुच्+णिच्+ल्युट्—उत्तेजना, उद्दीपन
- प्ररोचनम्—नपुं॰—-—प्र+रुच्+णिच्+ल्युट्—निदर्शन, व्याख्या
- प्ररोचनम्—नपुं॰—-—प्र+रुच्+णिच्+ल्युट्—(किसी व्यक्ति का) प्रदर्शन जिससे लोग देख सकें और पसंद करें
- प्ररोचनम्—नपुं॰—-—प्र+रुच्+णिच्+ल्युट्—नाटक में आगे आने वाली बात का रोचक वर्णन
- प्ररोचनम्—नपुं॰—-—प्र+रुच्+णिच्+ल्युट्—ध्येय की पूर्णरूप से प्रतिस्थापना
- प्ररोहः—पुं॰—-—प्र+रुह्+घञ्—अंकुरित होना, अंखुवा निकलना, बढ़ना, बीजांकुरण
- प्ररोहः—पुं॰—-—प्र+रुह्+घञ्—अंकुर, अंखुवा
- प्ररोहः—पुं॰—-—प्र+रुह्+घञ्—किसलय, सन्तान
- प्ररोहः—पुं॰—-—प्र+रुह्+घञ्—प्रकाशांकुर
- प्ररोहः—पुं॰—-—प्र+रुह्+घञ्—नवपल्लव या टहनी, शाखा, कोंपल
- प्ररोहणम्—नपुं॰—-—प्र+रुह्+ल्युट्—वर्धन, अंकुरण, स्फुटन
- प्ररोहणम्—नपुं॰—-—प्र+रुह्+ल्युट्—कली खिलना, अंकुरण या उगाव
- प्ररोहणम्—नपुं॰—-—प्र+रुह्+ल्युट्—टहनी, किसलय स्फुटन, कोंपल
- प्रलपनम्—नपुं॰—-—प्र+लप्+ल्युट्—बात चीत करना, बात, शब्द, संलाप
- प्रलपनम्—नपुं॰—-—प्र+लप्+ल्युट्—बाचालता, बालकलख बड़बड़, असंबद्ध बात, बकवास
- प्रलपनम्—नपुं॰—-—प्र+लप्+ल्युट्—बिलाप, रोना-धोना
- प्रलपित—भू॰ क॰ कृ॰—-—प्र+लप्+क्त—कहा हुआ, प्रलाप किया हुआ
- प्रलपितम्—नपुं॰—-—प्र+लप्+क्त—बात
- प्रलब्ध—भू॰ क॰ कृ॰—-—प्र+लभ्+क्त—धोखा दिया हुआ, ठगा हुआ
- प्रलम्ब—वि॰—-—प्र+लम्ब्+अच्, घञ् वा—लटकनशील, नीचे की ओर लटकने वाला
- प्रलम्ब—वि॰—-—प्र+लम्ब्+अच्, घञ् वा—उन्नत
- प्रलम्ब—वि॰—-—प्र+लम्ब्+अच्, घञ् वा—मन्थर, विलंबकारी
- प्रलम्बः—पुं॰—-—प्र+लम्ब्+अच्, घञ् वा—लटकता हुआ, आश्रित
- प्रलम्बः—पुं॰—-—प्र+लम्ब्+अच्, घञ् वा—कोई भी नीचे को लटकने वाली वस्तु
- प्रलम्बः—पुं॰—-—प्र+लम्ब्+अच्, घञ् वा—शाखा
- प्रलम्बः—पुं॰—-—प्र+लम्ब्+अच्, घञ् वा—कण्ठहार
- प्रलम्बः—पुं॰—-—प्र+लम्ब्+अच्, घञ् वा—एक प्रकार का हार
- प्रलम्बः—पुं॰—-—प्र+लम्ब्+अच्, घञ् वा—स्त्री की छाती
- प्रलम्बः—पुं॰—-—प्र+लम्ब्+अच्, घञ् वा—जस्ता या सीसा
- प्रलम्बः—पुं॰—-—प्र+लम्ब्+अच्, घञ् वा—एक राक्षस का नाम जिसको बलराम ने मार डाला था
- प्रलम्बाण्डः—पुं॰—प्रलम्बः-अण्डः—-—वह पुरुष जिसके पोते लटकते हों
- प्रलम्बघ्नः—पुं॰—प्रलम्बः-घ्नः—-—बलराम का विशेषण
- प्रलम्बमथनः—पुं॰—प्रलम्बः-मथनः—-—बलराम का विशेषण
- प्रलम्बहन्—पुं॰—प्रलम्बः-हन्—-—बलराम का विशेषण
- प्रलम्बनम्—नपुं॰—-—प्र+लम्ब्+ल्युट्—नीचे लटकना, आश्रित रहना
- प्रलम्बित—वि॰—-—प्र+लंब्+क्त—लटकनशील, लटकने वाला, निलंबित
- प्रलम्भः—पुं॰—-—प्र+लभ्+घञ्, मुमागमः—प्राप्त करना, लाभ उठाना, अवाप्ति
- प्रलम्भः—पुं॰—-—प्र+लभ्+घञ्, मुमागमः—धोखा देना, छलना, ठगना, प्रवंचना
- प्रलयः—पुं॰—-—प्र+ली+अच्—विनाश, संहार, विघटन
- प्रलयः—पुं॰—-—प्र+ली+अच्—संसार का विनाश, विश्वव्यापी विनाश
- प्रलयः—पुं॰—-—प्र+ली+अच्—व्यापक विनाश या बरबादी
- प्रलयः—पुं॰—-—प्र+ली+अच्—मृत्यु, मरना, निधन
- प्रलयः—पुं॰—-—प्र+ली+अच्—मूर्छा, बेहोशी, चेतना का न रहना,
- प्रलयः—पुं॰—-—प्र+ली+अच्—चेतना की हानि, ३ व्यभिचारिभावों में से एक
- प्रलयः—पुं॰—-—प्र+ली+अच्—रहस्यध्वनि, ‘ओम्’ या प्रणव
- प्रलयकालः—पुं॰—प्रलयः-कालः—-—विश्वनाश का समय
- प्रलयजलधरः—पुं॰—प्रलयः-जलधरः—-—सृष्टि-विघटन के अवसर की काली घटा
- प्रलयदहनः—पुं॰—प्रलयः-दहनः—-—सृष्टि विघटन के अवसर पर आग
- प्रलयपयोधिः—पुं॰—प्रलयः-पयोधिः—-—सृष्टि के विनाश का समुद्र
- प्रललाट—वि॰,प्रा॰ स॰—-—-—उन्नत मस्तक वाला
- प्रलवः—पुं॰—-—प्र+ल्+अप्—टुकड़ा, कतला, खंड
- प्रलवित्रम्—नपुं॰—-—प्र+ल्+इत्र—काटने का उपकरण
- प्रलापः—पुं॰—-—प्र+लप्+घञ्—बात, वार्तालाप, प्रवचन
- प्रलापः—पुं॰—-—प्र+लप्+घञ्—वाचालता, बालकलरव, असंबद्ध बात या बकवाद
- प्रलापः—पुं॰—-—प्र+लप्+घञ्—विलाप, रोना धोना
- प्रलापहन्—पुं॰—प्रलापः-हन्—-—एक प्रकार का अंजन
- प्रलापिन्—वि॰—-—प्र+लप्+णिनि—बातूनी, बोलने वाला
- प्रलापिन्—वि॰—-—प्र+लप्+णिनि—वाचालता, बालकलरव
- प्रलीन—भू॰ क॰ कृ॰—-—प्र+ली+क्त—पिधला हुआ, घुला हुआ
- प्रलीन—भू॰ क॰ कृ॰—-—प्र+ली+क्त—लुप्त, विनष्ट
- प्रलीन—भू॰ क॰ कृ॰—-—प्र+ली+क्त—निर्बुद्धि, चेतना शून्य
- प्रलून—भू॰ क॰ कृ॰—-—प्र+लू+क्त—काट कर गिराया हुआ
- प्रलेपः—पुं॰—-—प्र+लिप्+घञ्—लेप, मल्हम, चोपड़
- प्रलेपक—वि॰—-—प्र+लिप्+ण्वुल्—मलने वाला, लेप करने वाला
- प्रलेपक—पुं॰—-—प्र+लिप्+ण्वुल्—एक प्रकार का मन्दज्वर
- प्रलेहः—पुं॰—-—प्र+लिह्+घञ्—एक प्रकार का रसा, शोरवा
- प्रलोढनम्—नपुं॰—-—प्र+लुठ्+ल्युट्—(भूमि पर) लोटना
- प्रलोढनम्—नपुं॰—-—प्र+लुठ्+ल्युट्—उत्तोलन, उछालना
- प्रलोभः—पुं॰—-—प्र+लुभ+घञ्—अतितृष्णा, लालच, लालसा
- प्रलोभः—पुं॰—-—प्र+लुभ+घञ्—ललचाना, उछालना
- प्रलोभनम्—नपुं॰—-—प्र+लुभ्+ल्युट्—आकर्षण
- प्रलोभनम्—नपुं॰—-—प्र+लुभ्+ल्युट्—ललचाना, फुसलाना, लालच देना
- प्रलोभनम्—नपुं॰—-—प्र+लुभ्+ल्युट्—प्रलोभन की वस्तु, चारा, दाना
- प्रलोभनी—स्त्री॰—-—प्रलोभन+ङीप्—रेत, बालू
- प्रलोल—वि॰, प्रा॰ स॰—-—-—अत्यंत क्षुब्ध, थरथर करने वाला
- प्रवक्तृ—पुं॰—-—प्र+वच्+तृच्—वर्णन करने वाला, वक्ता, उद्धोपक
- प्रवक्तृ—पुं॰—-—प्र+वच्+तृच्—अध्यापक, व्याख्याता
- प्रवक्तृ—पुं॰—-—प्र+वच्+तृच्—सुवक्ता, धाराप्रवाह बोलने वाला
- प्रवगः—पुं॰—-—-—बंदर
- प्रवङ्गः—पुं॰—-—-—
- प्रवङ्गमः—पुं॰—-—-—
- प्रवचनम्—नपुं॰—-—प्र+वच्+ल्युट्—बोलना, प्रकथन करना, धोषणा करना
- प्रवचनम्—नपुं॰—-—प्र+वच्+ल्युट्—अध्यापन, व्याख्यान
- प्रवचनम्—नपुं॰—-—प्र+वच्+ल्युट्—खोलकर समझना, व्याख्या करना, अर्थ करना
- प्रवचनम्—नपुं॰—-—प्र+वच्+ल्युट्—वाग्मिता
- प्रवचनम्—नपुं॰—-—प्र+वच्+ल्युट्—धर्मशास्त्र
- प्रवचनपटु—वि॰—प्रवचन-पटु—-—बात करने में कुशल, वाग्मी
- प्रवटः—पुं॰—-—प्र+वट्+अच्—गेहूँ
- प्रवण—वि॰—-—प्र+वण्+अच्—ढलवाँ, रुझान वाला, झुकावदार, नीचे को वहने वाला
- प्रवण—वि॰—-—प्र+वण्+अच्—ढालू, दुरारोह, विप्रपाती, चट्टान जैसा
- प्रवण—वि॰—-—प्र+वण्+अच्—कुटिल, झुका हुआ, अनुरक्त, प्रवृत्त, संलग्न
- प्रवण—वि॰—-—प्र+वण्+अच्—भक्त, अनुरक्त, व्यस्त, तुला हुआ, झुका हुआ, भरा हुआ
- प्रवण—वि॰—-—प्र+वण्+अच्—अनुकूल, उत्सुक
- प्रवण—वि॰—-—प्र+वण्+अच्—आतुर, तत्पर
- प्रवण—वि॰—-—प्र+वण्+अच्—युक्त, सम्पन्न
- प्रवण—वि॰—-—प्र+वण्+अच्—विनम्र, सुशील, विनीत
- प्रवण—वि॰—-—प्र+वण्+अच्—मुर्झाया हुआ, वर्बाद, क्षीण
- प्रवणः—पुं॰—-—प्र+वण्+अच्—चौराहा
- प्रवणम्—नपुं॰—-—प्र+वण्+अच्—उतार, ढलवाँ उतार, चट्टान
- प्रवणम्—नपुं॰—-—प्र+वण्+अच्—पहाड़ का पार्श्वभाग, ढलान, झुकाव
- प्रवत्स्यत्—वि॰—-—प्र+वस्+स्य (लृट्)+शतृ—यात्रा पर जाने के लिए तैयार
- प्रवत्स्यतपतिका—स्त्री॰—प्रवत्स्यत्-पतिका—-—उस नायक की पत्नी जो यात्रा पर जाने के लिए तैयार बैठा है
- प्रवयणम्—नपुं॰—-—प्र+वे+ल्युट्—बुने हुए कपड़े का ऊपर का भाग
- प्रवयणम्—नपुं॰—-—प्र+वे+ल्युट्—अङ्कुश
- प्रवयस्—वि॰—-—प्रगतं वयो यस्य- प्रा॰ ब॰—वड़ी उम्र का, वृद्ध, बूढ़ा
- प्रवर—वि॰—-—प्र+वृ+अप्—मुख्य, प्रधान, सर्वश्रेष्ठ या पूज्य, सर्वोत्तम, श्रीमान्
- प्रवर—वि॰—-—प्र+वृ+अप्—ज्येष्ठ
- प्रवरः—पुं॰—-—प्र+वृ+अप्—बुलावा, आह्वान
- प्रवरः—पुं॰—-—प्र+वृ+अप्—एक विशेष प्रकार का आवाहन जो अग्न्याधान के अवसर पर अग्नि को संबोधित किया जाता है
- प्रवरः—पुं॰—-—प्र+वृ+अप्—वंश परम्परा
- प्रवरः—पुं॰—-—प्र+वृ+अप्—कुल, परिवार, वंश
- प्रवरः—पुं॰—-—प्र+वृ+अप्—पूर्वज
- प्रवरः—पुं॰—-—प्र+वृ+अप्—गोत्रप्रवर्तक ऋषि
- प्रवरः—पुं॰—-—प्र+वृ+अप्—सन्तान, वंशज
- प्रवरः—पुं॰—-—प्र+वृ+अप्—ढकना, चादर
- प्रवरम्—नपुं॰—-—प्र+वृ+अप्—अगर की लकड़ी
- प्रवरवाहनौ—पुं॰,द्वि॰ व॰—प्रवर-वाहनौ—-—अश्विनी कुमारों का विशेषण
- प्रवगः—पुं॰—-—प्रवृज्यते निःक्षिप्यते हविरादिकमस्मिन्- प्र+ वृज्+घञ्—यज्ञीय अग्नि
- प्रवगः—पुं॰—-—प्रवृज्यते निःक्षिप्यते हविरादिकमस्मिन्- प्र+ वृज्+घञ्—विष्णु का विशेषण
- प्रवर्ग्यः—पुं॰—-—प्र+वृज्+ण्यत्—सोमयाग से पूर्व किया जाने वाला अनुष्ठान
- प्रवर्तः—पुं॰—-—प्र+वृत्+घञ्—आरंभ, उपक्रम, काम में लगाना
- प्रवर्तक—वि॰—-—प्र+वृत्+णिच्+ण्वुल्—चालू करने वाला, स्थापित करने वाला
- प्रवर्तक—वि॰—-—प्र+वृत्+णिच्+ण्वुल्—प्रगतिशील, उन्नेता, आगे बढ़ाने वाला
- प्रवर्तक—वि॰—-—प्र+वृत्+णिच्+ण्वुल्—पैदा करने वाला, जन्म देने वाला
- प्रवर्तक—वि॰—-—प्र+वृत्+णिच्+ण्वुल्—प्रबोधक, प्रोत्साहक, उकसाने वाला, भड़काने वाला (बुरे अर्थ में)
- प्रवर्तकः—पुं॰—-—प्र+वृत्+णिच्+ण्वुल्—जन्मदाता, प्रवर्तक, प्रणेता
- प्रवर्तकः—पुं॰—-—प्र+वृत्+णिच्+ण्वुल्—प्रबोधक, प्रोत्साहक
- प्रवर्तकः—पुं॰—-—प्र+वृत्+णिच्+ण्वुल्—विवाचक, मध्यस्थ
- प्रवर्तनम्—नपुं॰—-—प्र+वृत्+ल्युट्—चलते रहना, आगे बढ़ना
- प्रवर्तनम्—नपुं॰—-—प्र+वृत्+ल्युट्—आरंभ, शुरु
- प्रवर्तनम्—नपुं॰—-—प्र+वृत्+ल्युट्—कार्यारम्भ, नींव डालना, संस्थापन, प्रतिष्ठापन
- प्रवर्तनम्—नपुं॰—-—प्र+वृत्+ल्युट्—प्रोत्साहन, बलपूर्वक चलाना, उद्दीपन
- प्रवर्तनम्—नपुं॰—-—प्र+वृत्+ल्युट्—व्यस्त होना, काम में लगना
- प्रवर्तनम्—नपुं॰—-—प्र+वृत्+ल्युट्—होना, घटित होना
- प्रवर्तनम्—नपुं॰—-—प्र+वृत्+ल्युट्—क्रियता, कार्य
- प्रवर्तनम्—नपुं॰—-—प्र+वृत्+ल्युट्—व्यवहार, आचरण, कार्यविधि
- प्रवर्तना—स्त्री॰—-—प्र+वृत्+ल्युट्+टाप्—कार्य में प्रेरित करना, प्रोत्साहन देना
- प्रवर्तयितृ—वि॰—-—प्र+वृत्+णिच्+तृच्—संचालन करने वाला
- प्रवर्तित—भू॰ क॰ कृ॰—-—प्र+वृत्+ (णिच्) +क्त—मोड़ दिया हुआ, चलाया हुआ, लुढ़काया हुआ, चक्कर खाने वाला
- प्रवर्तित—भू॰ क॰ कृ॰—-—प्र+वृत्+ (णिच्) +क्त—नींव डाला हुआ
- प्रवर्तित—भू॰ क॰ कृ॰—-—प्र+वृत्+ (णिच्) +क्त—प्रेरित किया हुआ, उकसाया हुआ, भड़काया हुआ
- प्रवर्तित—भू॰ क॰ कृ॰—-—प्र+वृत्+ (णिच्) +क्त—सुलगाया हुआ
- प्रवर्तित—भू॰ क॰ कृ॰—-—प्र+वृत्+ (णिच्) +क्त—जन्म दिया हुआ, निर्मित
- प्रवर्तित—भू॰ क॰ कृ॰—-—प्र+वृत्+ (णिच्) +क्त—पवित्र किया हुआ, छाना हुआ
- प्रवर्तिन्—वि॰—-—प्र+वृत्+णिच्+णिन्—प्रगतिशील, आगे बढ़न वाला
- प्रवर्तिन्—वि॰—-—प्र+वृत्+णिच्+णिन्—सक्रिय रहने वाला
- प्रवर्तिन्—वि॰—-—प्र+वृत्+णिच्+णिन्—जन्म देने वाला, प्रभावी
- प्रवर्तिन्—वि॰—-—प्र+वृत्+णिच्+णिन्—इस्तेमाल करने वाला
- प्रवर्धनम्—नपुं॰—-—प्र+वृध्+ल्युट्—बुद्धि करना, बढ़ाना
- प्रवर्षः—पुं॰—-—प्र+वृष्+घञ्—भारी वृष्टि, मूसलाधार वर्षा
- प्रवर्षणम्—नपुं॰—-—प्र+वृष्+ल्युट्—बरसना
- प्रवर्षणम्—नपुं॰—-—प्र+वृष्+ल्युट्—पहली वृष्टि
- प्रवसनम्—नपुं॰—-—प्र+वस्+ल्युट्—विदेश जाना, विदेश यात्रा, यात्रा पर जाना
- प्रवहः—पुं॰—-—प्र+वह्+अच्—बहना, धार बनकर बहना
- प्रवहः—पुं॰—-—प्र+वह्+अच्—वायु
- प्रवहः—पुं॰—-—प्र+वह्+अच्—वायु के सात मार्गों में से एक
- प्रवहणम्—नपुं॰—-—प्र+वह्+ल्युट्—बन्द गाड़ी या पालकी (स्त्रियों के लिए)
- प्रवहणम्—नपुं॰—-—प्र+वह्+ल्युट्—गाड़ी, वाहन, सवारी
- प्रवहणम्—नपुं॰—-—प्र+वह्+ल्युट्—जहाज़
- प्रवह्लिः—स्त्री॰—-—प्र+वह्ल्+इन्—पहेली, बुझौवल, कूट प्रश्न
- प्रवह्ली—स्त्री॰—-—प्रवह्लि+ङीष्—पहेली, बुझौवल, कूट प्रश्न
- प्रवाच्—वि॰, प्रा॰ ब॰—-—-—वाग्मी, वक्ता
- प्रवाच्—वि॰, प्रा॰ ब॰—-—-—बातूनी, वाचाल
- प्रवाचनम्—नपुं॰—-—प्र+वच्+णिच्+ल्युट्—घोषणा, उद्धोषणा, प्रकथन
- प्रवाणम्—नपुं॰—-—प्र+वे+ल्युट्—बुने हुए कपड़ों के किनारों के गोट लगाना या छाँटना या सम्भालना
- प्रवाणिः—स्त्री॰—-—प्रवाण+ङीप्, नि॰ ह्रस्वो —जुलाहे की ढरकी
- प्रवाणी—स्त्री॰—-—प्रवाण+ङीप्—जुलाहे की ढरकी
- प्रवात—भू॰ क॰ कृ॰, प्रा॰ ब॰—-—प्रकृष्टो वातो यस्मिन्—तूफ़ान में पड़ा हुआ
- प्रवातम्—नपुं॰—-—प्रकृष्टो वातो यस्मिन्—वायु का झोका, ताजा हवा
- प्रवातम्—नपुं॰—-—प्रकृष्टो वातो यस्मिन्—तूफ़ानी हवा, आँधी
- प्रवातम्—नपुं॰—-—प्रकृष्टो वातो यस्मिन्—हवादार स्थान
- प्रवादः—पुं॰—-—प्र+वद्+घञ्—शब्द या ध्वनि का उच्चारण
- प्रवादः—पुं॰—-—प्र+वद्+घञ्—अभिधान करना, उल्लेख करना, प्रकथन करना
- प्रवादः—पुं॰—-—प्र+वद्+घञ्—प्रवचन, वार्तालाप
- प्रवादः—पुं॰—-—प्र+वद्+घञ्—बात, प्रतिवेदन, अफवाह, किंवदन्ती
- प्रवादः—पुं॰—-—प्र+वद्+घञ्—आख्यायिका, गल्प
- प्रवादः—पुं॰—-—प्र+वद्+घञ्—विवाद, संबन्धी भाषा
- प्रवादः—पुं॰—-—प्र+वद्+घञ्—चुनौती के शब्द, पारस्परिक विरोध
- प्रवारः—पुं॰—-—प्र+वृ+घञ्—चादर, आच्छादन
- प्रवारकः—पुं॰—-—प्रवार+कन्—चादर, आच्छादन
- प्रवारणम्—नपुं॰—-—प्र+वृ+णिच्+ल्युट्—(इच्छा) पूर्ण करना छाँट की प्राथमिकता
- प्रवारणम्—नपुं॰—-—प्र+वृ+णिच्+ल्युट्—निषेश, विरोध
- प्रवारणम्—नपुं॰—-—प्र+वृ+णिच्+ल्युट्—काम्यदान
- प्रवासः—पुं॰—-—प्र+वस्+घञ्—विदेशगमन, विदेशयात्रा, घर पर न रहना, परदेशनिवास
- प्रवासगतः—वि॰—प्रवासः-गतः—-—विदेश की यात्रा करना, घर पर न रहने वाला
- प्रवासस्थ—वि॰—प्रवासः-स्थ—-—विदेश की यात्रा करना, घर पर न रहने वाला
- प्रवासस्थित—वि॰—प्रवासः-स्थित—-—विदेश की यात्रा करना, घर पर न रहने वाला
- प्रवासनम्—नपुं॰—-—प्र+वस्+णिच्+ल्युट्—विदेश निवास, अस्थायी रूप से वास करना
- प्रवासनम्—नपुं॰—-—प्र+वस्+णिच्+ल्युट्—निर्वासन, देशनिकाला, वध, हत्या
- प्रवासिन्—पुं॰—-—प्र+वस्+णिनि—यात्री, बटोही, परदेशी
- प्रवाहः—पुं॰—-—प्र+वह्+घञ्—बहाव, धार बन कर बहना
- प्रवाहः—पुं॰—-—प्र+वह्+घञ्—नदी, पेटा या जलमार्ग, धारा
- प्रवाहः—पुं॰—-—प्र+वह्+घञ्—बहाव, बहता हुआ पानी
- प्रवाहः—पुं॰—-—प्र+वह्+घञ्—अविच्छिन्न बहाव, अटूट शृंखला, नैरन्तर्य
- प्रवाहः—पुं॰—-—प्र+वह्+घञ्—घटना क्रम (नदी की धार की भाँति लुढ़कना)
- प्रवाहः—पुं॰—-—प्र+वह्+घञ्—क्रियता, सक्रिय व्यस्तता
- प्रवाहः—पुं॰—-—प्र+वह्+घञ्—तालाब, झील
- प्रवाहः—पुं॰—-—प्र+वह्+घञ्—बढ़िया घोड़ा
- प्रवाहे मूत्रितम्—नपुं॰—-—-—नदी में मूतना, व्यर्थ कार्य करना
- प्रवाहकः—पुं॰—-—प्र+वह्+ण्वुल्—भूत प्रेत, पिशाच
- प्रवाहनम्—नपुं॰—-—प्र+वह्+णिच्+ल्युट्—हांक कर आगे बढ़ना
- प्रवाहनम्—नपुं॰—-—प्र+वह्+णिच्+ल्युट्—दस्त कराना
- प्रवाहिका—स्त्री॰—-—प्र+वह्+ण्वुल्+टाप्, इत्वम्—दस्त लग जाना
- प्रवाही—स्त्री॰—-—प्रवाह+ङीष्—रेत, बालू
- प्रविकीर्ण—भू॰ क॰ कृ॰—-—प्र+वि+कृ+क्त—बखेरा हुआ, इधर उधर छितराया हुआ
- प्रविकीर्ण—भू॰ क॰ कृ॰—-—प्र+वि+कृ+क्त—तितर बितर किया हुआ, फैलाया हुआ
- प्रविख्यात—भू॰ क॰ कृ॰—-—प्र+वि+ख्या+क्त—नामी, बुलाया हुआ
- प्रविख्यात—भू॰ क॰ कृ॰—-—प्र+वि+ख्या+क्त—प्रसिद्ध, मशहूर, विश्रुत
- प्रविचयः—पुं॰—-—प्र+वि+चि+अच्—परीक्षा, खोज, अनुसंधान
- प्रविचारः—पुं॰, प्रा॰ स॰—-—-—विवेचन, विवेक
- प्रविचेतनम्—नपुं॰—-—प्र+वि+चित्+ल्युट्—समझ
- प्रवितत—भू॰ क॰ कृ॰—-—प्र+वि+तन्+क्त—बिछाया हुआ, फैलाया हुआ
- प्रवितत—भू॰ क॰ कृ॰—-—प्र+वि+तन्+क्त—विखरे हुए, अस्तव्यस्त (बाल)
- प्रविदार—पुं॰—-—प्र+वि+दृ+घञ्—फट कर टुकड़े टुकड़े होना, खुलना
- प्रविदारणम्—नपुं॰—-—प्र+वि+दृ+णिच्+ल्युट्—फाड़ना, विदीर्ण करना, तोड़ना, फट कर टुकड़े टुकड़े होना
- प्रविदारणम्—नपुं॰—-—प्र+वि+दृ+णिच्+ल्युट्—कली लगना
- प्रविदारणम्—नपुं॰—-—प्र+वि+दृ+णिच्+ल्युट्—संघर्ष, युद्ध, लड़ाई
- प्रविदारणम्—नपुं॰—-—प्र+वि+दृ+णिच्+ल्युट्—भीड़भाड़, गड़बड़ी, हल्ला-गुल्ला
- प्रविद्ध—भू॰ क॰ कृ॰—-—प्र+व्यध्+क्त—डाला हुआ, फेंका हुआ
- प्रविद्रुत—भू॰ क॰ कृ॰—-—प्र+वि+द्रु+क्त—तितर-बितर किया हुआ, भगाया हुआ, बखेरा हुआ
- प्रविभक्त—भू॰ क॰ कृ॰—-—प्र+वि+भज्+क्त—अलग किया गया, वियुक्त
- प्रविभक्त—भू॰ क॰ कृ॰—-—प्र+वि+भज्+क्त—हिस्से किया गया, विभाजन किया गया, बाँटा गया, वितरित किया गया
- प्रविभागः—पुं॰—-—प्र+वि+भज्+घञ्—भाग, तक़सीम, बितरण, वर्गीकरण
- प्रविभागः—पुं॰—-—प्र+वि+भज्+घञ्—हिस्सा, अंश
- प्रविरः—पुं॰—-—-—पीला चन्दन
- प्रविरल—वि, प्रा॰ स॰॰—-—-—बहुत दूर दूर, वियुक्त, अलगाया
- प्रविरल—वि, प्रा॰ स॰॰—-—-—बहुत कम, बहुत थोड़े, स्वल्प, थोड़ा
- प्रविलयः—पुं॰—-—प्र+वि+ली+अच्—पिघलनकर बह जाना
- प्रविलयः—पुं॰—-—प्र+वि+ली+अच्—पूरी तरह घुल जाना या अवशुष्क हो जाना
- प्रविलुप्त—भू॰ क॰ कृ॰—-—प्र + वि + लुप् + क्त—काटा हुआ, निकाला हुआ, हटाया हुआ
- प्रविवादः—पुं॰—-—प्र + वि + वद् + घञ्—झगड़ा कलह, तकरार
- प्रविविक्त—वि॰, प्रा॰ स॰—-—-—बिल्कुल अकेला
- प्रविविक्त—वि॰, प्रा॰ स॰—-—-—वियुक्त, अलग किया हुआ
- प्रविश्लेषः—पुं॰—-—प्र + वि + श्लिष् + घञ्—वियोग, जुदाई
- प्रविषण्ण—भू॰ क॰ कृ॰—-—प्र + वि + सद् + क्त—खिन्न, उदास, हतोत्साह
- प्रविष्ट—भू॰ क॰ कृ॰— —प्र + विश् + क्त—अन्दर गया हुआ, घुसा हुआ
- प्रविष्ट—भू॰ क॰ कृ॰—-—प्र + विश् + क्त—लगा हुआ, व्यस्त
- प्रविष्ट—भू॰ क॰ कृ॰—-—प्र + विश् + क्त—आरब्ध
- प्रविष्टकम्—नपुं॰—-—प्रविष्ट + कन्—रंग भूमि का द्वार
- प्रविस्तरः—पुं॰—-—प्र + वि + स्तृ + अप्, घञ् वा—परिधि, वृत्त
- प्रवीण—वि॰, प्रा॰ ब॰—-—प्रकृष्टा संसाधिता वीणा येन—चतुर, कुशल, जानकार
- प्रवीर—अ॰, प्रा॰ स॰—-—-—अग्रणी, उत्तम, सर्वश्रेष्ठ या पूज्य
- प्रवीर—अ॰, प्रा॰ स॰—-—-—मजबूत, शक्तिशाली, शौर्यसम्पन्न
- प्रवीरः—पुं॰—-—-—बहादुर व्यक्ति, नायक, योद्धा
- प्रवीरः—पुं॰—-—-—मुख्य, पूज्य व्यक्तित्व
- प्रवृत—भू॰ क॰ कृ॰—-—प्र + वृ + क्त—चुना हुआ, संकलित, छांटा हुआ
- प्रवृत्त—भू॰ क॰ कृ॰—-—प्र + वृत् + क्त—आरंभ किया गया, शुरु किया गया, प्रगत
- प्रवृत्त—भू॰ क॰ कृ॰—-—प्र + वृत् + क्त—स्थिर किया हुआ
- प्रवृत्त—भू॰ क॰ कृ॰—-—प्र + वृत् + क्त—व्यस्त, संलग्न
- प्रवृत्त—भू॰ क॰ कृ॰—-—प्र + वृत् + क्त—जाने के लिए उद्यत, कटिबद्ध
- प्रवृत्त—भू॰ क॰ कृ॰—-—प्र + वृत् + क्त—स्थिर, निश्चित, निर्धारित
- प्रवृत्त—भू॰ क॰ कृ॰—-—प्र + वृत् + क्त—निर्बाध, विवादरहित
- प्रवृत्त—भू॰ क॰ कृ॰—-—प्र + वृत् + क्त—गोल
- प्रवृत्तः—पुं॰—-—प्र + वृत् + क्त—गोल आभूषण
- प्रवृत्तकम्—नपुं॰—-—प्रवृत्त + कन्—रंग भूमि में अवतरण
- प्रवृत्तिः—स्त्री॰—-—प्र + वृत् + क्तिन्—निरन्तर प्रगमन, प्रयति, आगे बढना
- प्रवृत्तिः—स्त्री॰—-—प्र + वृत् + क्तिन्—उदय, मूल, स्रोत, प्रवाह
- प्रवृत्तिः—स्त्री॰—-—प्र + वृत् + क्तिन्—दर्शन, प्रकटीकरण
- प्रवृत्तिः—स्त्री॰—-—प्र + वृत् + क्तिन्—उदय, आरंभ, शुरु
- प्रवृत्तिः—स्त्री॰—-—प्र + वृत् + क्तिन्—प्रयोग, व्यसन, झुकाव, रुझान, रुचि, प्रवणता
- प्रवृत्तिः—स्त्री॰—-—प्र + वृत् + क्तिन्—आचरण, व्यवहार
- प्रवृत्तिः—स्त्री॰—-—प्र + वृत् + क्तिन्—काम में लगाना, व्यवसाय, क्रियाशीलता
- प्रवृत्तिः—स्त्री॰—-—प्र + वृत् + क्तिन्—प्रयोग, नियोजन, प्रचलन
- प्रवृत्तिः—स्त्री॰—-—प्र + वृत् + क्तिन्—अनवरत प्रयत्न, धैर्य
- प्रवृत्तिः—स्त्री॰—-—प्र + वृत् + क्तिन्—सार्थकता, भावार्थ, स्वीकृति
- प्रवृत्तिः—स्त्री॰—-—प्र + वृत् + क्तिन्—निरन्तरता, स्थायिता, प्राबल्य
- प्रवृत्तिः—स्त्री॰—-—प्र + वृत् + क्तिन्—सक्रिय सांसारिक जीवन, सांसारिक जीवन में सक्रिय भाग लेना
- प्रवृत्तिः—स्त्री॰—-—प्र + वृत् + क्तिन्—समाचार, खबर, गुप्त वार्ता
- प्रवृत्तिः—स्त्री॰—-—प्र + वृत् + क्तिन्—नियम की प्रयोजनीयता या वैधता
- प्रवृत्तिः—स्त्री॰—-—प्र + वृत् + क्तिन्—भाग्य, नियति, किस्मत
- प्रवृत्तिः—स्त्री॰—-—प्र + वृत् + क्तिन्—संज्ञान, सीधा प्रत्यक्षज्ञान, समयबोध
- प्रवृत्तिः—स्त्री॰—-—प्र + वृत् + क्तिन्—हाथी का मद
- प्रवृत्तिः—स्त्री॰—-—प्र + वृत् + क्तिन्—उज्जयिनी नगरी का नामान्तर
- प्रवृत्तिज्ञः—पुं॰—प्रवृत्तिः- ज्ञः—-—जासूस, भेदिया, दूत, गुप्तचर
- प्रवृत्तिनिमित्तम्—नपुं॰—प्रवृत्तिः- निमित्तम्—-—किसी शब्द का किसी विशिष्ट अर्थ में प्रयुक्त होने का कारण
- प्रवृत्तिमार्गः—पुं॰—प्रवृत्तिः- मार्गः—-—सक्रिय या सांसारिक जीवन, कार्य में अनुरक्ति, संसार में सुख तथा आनन्द
- प्रवृद्ध—भू॰ क॰ कृ॰—-—प्र + वृध् + क्त—पूरा बढ़ा हुआ
- प्रवृद्ध—भू॰ क॰ कृ॰—-—प्र + वृध् + क्त—बढ़ा हुआ, वृद्धि को प्राप्त, विस्तारित, बड़ा किया हुआ
- प्रवृद्ध—भू॰ क॰ कृ॰—-—प्र + वृध् + क्त—पूरा, गहरा
- प्रवृद्ध—भू॰ क॰ कृ॰—-—प्र + वृध् + क्त—घमंडी, अहंकारी
- प्रवृद्ध—भू॰ क॰ कृ॰—-—प्र + वृध् + क्त—प्रचण्ड
- प्रवृद्ध—भू॰ क॰ कृ॰—-—प्र + वृध् + क्त—विशाल
- प्रवृद्धिः—स्त्री॰—-—प्र + वृध् + क्तिन्—बढ़ना, वृद्धि
- प्रवृद्धिः—स्त्री॰—-—प्र + वृध् + क्तिन्—उन्नति, समृद्धि, पदोन्नति, तरक्की, उत्कर्ष
- प्रवेक—वि॰—-—प्र + विच् + घञ्—उत्तम, मुख्य, छांट का, अत्यंत श्रेष्ठ
- प्रवेगः—पुं॰—-—प्र + विज् + घञ्—तीव्र चाल, वेग
- प्रवेटः—पुं॰—-—प्र + वी + ट—जौ, यव
- प्रवेणिः—स्त्री॰—-—प्र + वेण् + इन्—बालों का जूड़ा
- प्रवेणिः—स्त्री॰—-—प्र + वेण् + इन्—बिखरे हुए या शृंगारहीन बाल
- प्रवेणिः—स्त्री॰—-—प्र + वेण् + इन्—हाथी की झूल
- प्रवेणिः—स्त्री॰—-—प्र + वेण् + इन्—रंगीन ऊनी कपड़े का टुकड़ा
- प्रवेणिः—स्त्री॰—-—प्र + वेण् + इन्—प्रवाह या धार
- प्रवेणी—स्त्री॰—-—प्रवेणि + ङीष्—बालों का जूड़ा
- प्रवेणी—स्त्री॰—-—प्रवेणि + ङीष्—बिखरे हुए या शृंगारहीन बाल
- प्रवेणी—स्त्री॰—-—प्रवेणि + ङीष्—हाथी की झूल
- प्रवेणी—स्त्री॰—-—प्रवेणि + ङीष्—रंगीन ऊनी कपड़े का टुकड़ा
- प्रवेणी—स्त्री॰—-—प्रवेणि + ङीष्—प्रवाह या धार
- प्रवेतृ—पुं॰—-—प्र + अच् + तृन्’ अजेः वी आदेशः—सारथि, रथवान्
- प्रवेदनम्—नपुं॰—-—प्र + विद् + णिच् + ल्युट्—जतलाना, ऐलान करना, घोषणा करना
- प्रवेपः—पुं॰—-—प्र + वेप् + घञ्—कंपकंपी, ठिठुरन, थरथराना, सिहरन
- प्रवेपकः—पुं॰—-—प्रवेप + कन्—कंपकंपी, ठिठुरन, थरथराना, सिहरन
- प्रवेपथुः—पुं॰—-—प्र + वेष् + अथुच्—कंपकंपी, ठिठुरन, थरथराना, सिहरन
- प्रवेपनम्—नपुं॰—-—प्र + वेप् + ल्युट्—कंपकंपी, ठिठुरन, थरथराना, सिहरन
- प्रवेरित—वि॰—-—प्रवेर + इतच्—इधर- उधर डाला हुआ, फेंका हुआ
- प्रवेलः—पुं॰—-—प्र + वेल् + अच्—एक प्रकार की मूँग
- प्रवेशः—पुं॰—-—प्र + विश् + घञ्—भीतर जाना, घुसना
- प्रवेशः—पुं॰—-—प्र + विश् + घञ्—अन्तर्गमन, पैठ, पहुँच
- प्रवेशः—पुं॰—-—प्र + विश् + घञ्—रंगभूमि में प्रवेश
- प्रवेशः—पुं॰—-—प्र + विश् + घञ्—दरवाजा, घुसने का स्थान
- प्रवेशः—पुं॰—-—प्र + विश् + घञ्—आय, राजस्व
- प्रवेशः—पुं॰—-—प्र + विश् + घञ्—पीछा करना, प्रयोजन की तत्परता
- प्रवेशकः—पुं॰—-—प्र + विश् + ण्वुल्—परिचायक, निम्नपात्रों द्वारा अभिनीत विष्कंभक
- प्रवेशनम्—नपुं॰—-—प्र + विण् + ल्युट्—दाखिल होना, घुसना, अन्दर जाना
- प्रवेशनम्—नपुं॰—-—प्र + विण् + ल्युट्—परिचय देना, नेतृत्व करना, संचालन
- प्रवेशनम्—नपुं॰—-—प्र + विण् + ल्युट्—घर का मुख्य द्वार, फाटक
- प्रवेशनम्—नपुं॰—-—प्र + विण् + ल्युट्—मैथुन, स्त्री संगम
- प्रवेशित—भू॰ क॰ कृ॰—-—प्र + विश् + णिच् क्त—परिचित कराया हुआ, अन्दर पहुँचाया हुआ, अन्दर ले जाया गया, घुसाया हुआ
- प्रवेष्टः—पुं॰—-—प्र + वेष्ट् + अच्—भुजा
- प्रवेष्टः—पुं॰—-—प्र + वेष्ट् + अच्—कलाई,पहुँचा
- प्रवेष्टः—पुं॰—-—प्र + वेष्ट् + अच्—हाथी की पीठ का मांसल भाग
- प्रवेष्टः—पुं॰—-—प्र + वेष्ट् + अच्—हाथी के मसूड़े
- प्रवेष्टः—पुं॰—-—प्र + वेष्ट् + अच्—हाथी की झूल
- प्रव्यक्त—भू॰ क॰ कृ॰—-—प्रकर्षेण व्यक्तः- प्री॰ स॰—स्पष्ट, साफ, प्रकट, जाहिर
- प्रव्यक्तिः—स्त्री॰—-—प्र + वि + अंज् + क्तिन्—प्रकटी भवन, दर्शन
- प्रव्याहारः—पुं॰—-—प्र + वि + आ + हृ + घञ्—प्रवचन का फैलाव या विस्तार
- प्रव्रजनम्—नपुं॰—-—प्र + व्रज् + ल्युट्—विदेश जाना, अस्थायी रूप से बसना
- प्रव्रजनम्—नपुं॰—-—प्र + व्रज् + ल्युट्—निर्वासित होना
- प्रव्रजनम्—नपुं॰—-—प्र + व्रज् + ल्युट्—वानप्रस्थ हो जाना
- प्रव्रजित—भू॰ क॰ कृ॰—-—प्र + व्रज् + क्त—विदेश गया हुआ या निर्वासित
- प्रव्रजितः—भू॰ क॰ कृ॰—-—प्र + व्रज् + क्त—संन्यासी या परिव्राजक बना हुआ
- प्रव्रजितः—पुं॰—-—प्र + व्रज् + क्त—साधु, संन्यासी
- प्रव्रजितः—पुं॰—-—प्र + व्रज् + क्त—चौथे आश्रम में स्थित ब्राह्मण, भिक्षु
- प्रव्रजितः—पुं॰—-—प्र + व्रज् + क्त—जैन या बौद्ध भिक्षु का शिष्य
- प्रव्रजितम्—नपुं॰—-—प्र + व्रज् + क्त—संन्यासी बन जाना, साधु का जीवन
- प्रव्रज्या—स्त्री॰—-—प्र + व्रज् + क्यप् + टाप्—विदेश जाना, देशान्तरगमन
- प्रव्रज्या—स्त्री॰—-—प्र + व्रज् + क्यप् + टाप्—पर्यटन, भ्रमण
- प्रव्रज्या—स्त्री॰—-—प्र + व्रज् + क्यप् + टाप्—संन्यास आश्रम, संन्यासी का जीवन, ब्राह्मण की जीवनचर्या में चौथा आश्रम
- प्रव्रज्यावसितः—पुं॰—प्रव्रज्या-अवसितः—-—वह पुरुष जिसने सन्यास ग्रहण करके उस आश्रम को छोड़ दिया हो।
- प्रव्रश्चनः—पुं॰—-—प्र + व्रश्च् + ल्युट्—लकड़ी काटने का उपकरण
- प्रवाज्—पुं॰—-—प्र + व्रज् + क्विप्—साधु, संन्यासी
- प्रव्राजकः—पुं॰—-—प्रव्राज्, ण्वुल् वा—साधु, संन्यासी
- प्रव्राजनम्—नपुं॰—-—प्र + व्रज् + णिच् + ल्युट्—निर्वासन, देश- निकाला, निर्वासित करना
- प्रशंसनम्—नपुं॰—-—प्र + शंस् + ल्युट्—प्रशंसा करना, स्तुति करना
- प्रशंसा—स्त्री॰—-—प्र + शंस् + अङ् + टाप्—प्रशंसा, स्तुति, प्रशस्ति, गुणगान करना
- प्रशंसा—स्त्री॰—-—प्र + शंस् + अङ् + टाप्—वर्णन, उल्लेख
- प्रशंसा—स्त्री॰—-—प्र + शंस् + अङ् + टाप्—कीर्ति ख्याति, प्रसिद्धि
- प्रशंसोपमा—स्त्री॰—प्रशंसा- उपमा—-—दण्डि द्वारा वर्णित उपमा के अनेक भेदों में से एक
- प्रशंसामुखर—वि॰—प्रशंसा- मुखर—-—ऊँचे स्वर से प्रशंसा करने वाला
- प्रशंसित—भू॰ क॰ कृ॰—-—प्र + शंस् + क्त—प्रशंसा किया गया, स्तुति किया गया, गुणगान किया गया, तारीफ़ किया गया
- प्रशत्त्वन्—पुं॰—-—प्र + शद् + क्वनिप्, तुटू—समुद्र, सागर
- प्रशत्त्वरी—स्त्री॰—-—प्रशत्त्वन् + ङीप्, र आदेशः—नदी
- प्रशमः—पुं॰—-—प्र + शम् + घञ्—शमन, शान्ति, स्वस्थचित्तता
- प्रशमः—पुं॰—-—प्र + शम् + घञ्—शान्ति, विश्राम
- प्रशमः—पुं॰—-—प्र + शम् + घञ्—बुझाना, उपशमन
- प्रशमः—पुं॰—-—प्र + शम् + घञ्—विराम, अन्त, विनाश
- प्रशमः—पुं॰—-—प्र + शम् + घञ्—सान्त्वना, तुष्टीकरण
- प्रशमन—वि॰—-—प्रम् + णिच् + ल्युट्—शान्त करने वाला, शान्ति स्थापित करने वाला, धीरज बंधाने वाला, दूर करने वाला
- प्रशमनम्—वि॰—-—प्रम् + णिच् + ल्युट्—शान्त करना, शान्ति स्थापित करना, धीरज बंधाना
- प्रशमनम्—वि॰—-—प्रम् + णिच् + ल्युट्—दमन करना, धैर्य बंधाना, दिलासा देना, हल्का करना
- प्रशमनम्—वि॰—-—प्रम् + णिच् + ल्युट्—चिकित्सा करना, स्वस्थ करना
- प्रशमनम्—वि॰—-—प्रम् + णिच् + ल्युट्—बुझाना, दमन करना, मिटा देना
- प्रशमनम्—वि॰—-—प्रम् + णिच् + ल्युट्—विराम, थामना
- प्रशमनम्—वि॰—-—प्रम् + णिच् + ल्युट्—उपयुक्त रूप से प्रदान करना, सत्पात्र को प्रदान करना
- प्रशमनम्—नपुं॰—-—प्रम् + णिच् + ल्युट्—प्राप्त करना, रक्षा करना, सुरक्षित रखना
- प्रशमनम्—नपुं॰—-—प्रम् + णिच् + ल्युट्—वध, हत्या
- प्रशमित—भू॰ क॰ कृ॰—-—प्र + शम् + णिच् + क्त—सान्त्वना दी गई, धीरज बंधाया गया, स्वस्थचित्त, तुष्टीकृत, शान्त किया गया
- प्रशमित—भू॰ क॰ कृ॰—-—प्र + शम् + णिच् + क्त—बुझाई गई, शान्त की गई
- प्रशमित—भू॰ क॰ कृ॰—-—प्र + शम् + णिच् + क्त—प्रायश्चित्त किया गया, परिशोधन किया गया
- प्रशस्त—भू॰ क॰ कृ॰—-—प्र + शंस् + क्त—प्रशंसा किया गया, तारीफ़ किया गया, श्लाघा की गई, स्तुति की गई
- प्रशस्त—भू॰ क॰ कृ॰—-—प्र + शंस् + क्त—प्रशंसनीय, तारीफ़ के योग्य
- प्रशस्त—भू॰ क॰ कृ॰—-—प्र + शंस् + क्त—सर्वोत्तम, श्रेष्ठ
- प्रशस्त—भू॰ क॰ कृ॰—-—प्र + शंस् + क्त—सौभाग्यशाली, प्रसन्न, आनन्दित, शुभ
- प्रशस्ताद्रिः—पुं॰—प्रशस्त- अद्रिः—-—एक पहाड़ का नाम
- प्रशस्तिः—स्त्री॰—-—प्र + शंस् + क्तिन्—प्रशंसा, स्तुति, तारीफ़
- प्रशस्तिः—स्त्री॰—-—प्र + शंस् + क्तिन्—वर्णन
- प्रशस्तिः—स्त्री॰—-—प्र + शंस् + क्तिन्—किसी की प्रशंसा में लिखी गई कविता
- प्रशस्तिः—स्त्री॰—-—प्र + शंस् + क्तिन्—श्रेष्ठता, महत्त्व
- प्रशस्तिः—स्त्री॰—-—प्र + शंस् + क्तिन्—शुभ कामना
- प्रशस्तिः—स्त्री॰—-—प्र + शंस् + क्तिन्—निर्देशन, शिक्षण, निर्देश- नियम
- प्रशस्य—वि॰—-—प्र + शंस् + क्यप्—प्रशंसा के योग्य, तारीफ़ के लायक, श्रेष्ठ
- प्रशाख—वि॰, प्रा॰ ब॰—-—प्रशस्ता शाखा यस्य —जिसकी अनेक शाखाएँ इधर-उधर फैली हों
- प्रशाख—वि॰, प्रा॰ ब॰—-—प्रशस्ता शाखा यस्य —गर्भपिण्ड की पाँचवीं अवस्था
- प्रशाखा—स्त्री॰—-—-—छोटी शाखा या टहनी
- प्रशाखिका—स्त्री॰—-—प्रशाखा + कन् + टाप्, इत्वम्—छोटी शाखा, टहनी
- प्रशान्त—भू॰ क॰ कृ॰—-—प्र + शम् + णिच् + क्त—शांत, शान्तिप्राप्त, स्वस्थचित्त
- प्रशान्त—भू॰ क॰ कृ॰—-—प्र + शम् + णिच् + क्त—निश्चल, सौम्य, निस्तब्ध, धीर, निश्चेष्ट
- प्रशान्त—भू॰ क॰ कृ॰—-—प्र + शम् + णिच् + क्त—पालतू, वशीकृत, दबाया हुआ
- प्रशान्त—भू॰ क॰ कृ॰—-—प्र + शम् + णिच् + क्त—समाप्त, विरत, निवृत्त
- प्रशान्त—भू॰ क॰ कृ॰—-—प्र + शम् + णिच् + क्त—कार्य करने से रुका हुआ या निवृत्त
- प्रशान्त—भू॰ क॰ कृ॰—-—प्र + शम् + णिच् + क्त—मृत, मरा हुआ
- प्रशान्तात्मन्—वि॰—प्रशान्त- आत्मन्—-—स्वस्थमना, शान्तिपूर्ण, अचंचल
- प्रशान्तोर्ज—वि॰—प्रशान्त- ऊर्ज—-—क्षीणशक्ति, निस्तेज, विषण्ण
- प्रशान्तकाम—वि॰—प्रशान्त-काम—-—सन्तुष्ट
- प्रशान्तचेष्ट—वि॰—प्रशान्त- चेष्ट—-—आराम करने वाला, विश्रांत, विरत
- प्रशान्तबाध—वि॰—प्रशान्त- बाध—-—जिसकी समस्त बाधाएँ व संकट दूर हो गये हैं।
- प्रशान्तिः—स्त्री॰, प्रा॰ स॰—-—-—धैर्य, शान्ति, मन की स्थिरता, निःशब्दता, विश्राम
- प्रशान्तिः—स्त्री॰, प्रा॰ स॰—-—-—आराम, विराम, ठहराव
- प्रशान्तिः—स्त्री॰, प्रा॰ स॰—-—-—निराकरण करना, बुझाना
- प्रशामः—पुं॰—-—प्र + शम् + घञ्—शान्ति, धैर्य, मन की स्वस्थता
- प्रशामः—पुं॰—-—प्र + शम् + घञ्—बुझाना, निराकरण करना
- प्रशामः—पुं॰—-—प्र + शम् + घञ्—विश्राम
- प्रशासनम्—नपुं॰—-—प्र + शास् + ल्युट्—शासन करना, हुकूमत करना
- प्रशासनम्—नपुं॰—-—प्र + शास् + ल्युट्—आदेश देना, बलपूर्वक वसूल करना
- प्रशासनम्—नपुं॰—-—प्र + शास् + ल्युट्—राज्य शासन
- प्रशास्तृ—पुं॰—-—प्र + शास् + तृच्—राजा, शासक, राज्यपाल
- प्रशिथिल—वि॰, प्रा॰ स॰—-—-—बहुत ढीला
- प्रशिष्यः—पुं॰,प्रा॰ स॰—-—-—शिष्य का शिष्य, पड़शिष्य
- प्रशुद्धिः—स्त्री॰, प्रा॰ स॰—-—-—स्वच्छता, पवित्रता
- प्रशोषः—पुं॰—-—प्र + शुष् + घञ्—सूखना, सूख जाना, सूखापन
- प्रश्चोतनम्—नपुं॰—-—प्र + श्चुत् + ल्युट्—छिड़कना, क्षरण
- प्रश्नः—पुं॰—-—प्रच्छ् + नङ्—सवाल, पूछताछ, परिपृच्छा, परिप्रश्न
- प्रश्नः—पुं॰—-—प्रच्छ् + नङ्—अदालती जाँच-पड़ताल या गवेषणा
- प्रश्नः—पुं॰—-—प्रच्छ् + नङ्—विवादपद, विवादास्पद विषय, विवादग्रस्त दृष्टिकोण
- प्रश्नः—पुं॰—-—प्रच्छ् + नङ्—समस्या, हिसाब का प्रश्न
- प्रश्नः—पुं॰—-—प्रच्छ् + नङ्—भविष्य संबंधी पूछताछ
- प्रश्नः—पुं॰—-—प्रच्छ् + नङ्—किसी ग्रन्थ का अनुभाग या परिच्छेद
- प्रश्नोपनिषद्—नपुं॰—प्रश्नः- उपनिषद्—-—एक उपनिषद् का नाम
- प्रश्नदूतिः—स्त्री॰—प्रश्नः-दूतिः—-—पहेली, बुझौवल
- प्रश्नदूती—स्त्री॰—प्रश्नः- दूती—-—पहेली, बुझौवल
- प्रश्रथः—पुं॰—-—प्र + श्रय् + अच्—शिथिलता, ढीलापन, शिथिलीकरण
- प्रश्रयः—पुं॰—-—प्र + श्रि + अच्—आदर, शिष्टता, सुजनता, विनम्रता, सम्मानपूर्ण अथवा शिष्टतायुक्त व्यवहार, विनय
- प्रश्रयः—पुं॰—-—प्र + श्रि + अच्—प्रेम, स्नेह, आदर
- प्रश्रयणम्—नपुं॰—-—प्र + श्रि + ल्युट् —आदर, शिष्टता, सुजनता, विनम्रता, सम्मानपूर्ण अथवा शिष्टतायुक्त व्यवहार, विनय
- प्रश्रयणम्—नपुं॰—-—प्र + श्रि + ल्युट् —प्रेम, स्नेह, आदर
- सप्रश्रयम्—नपुं॰—-—-—आदरपूर्वक, सविनय
- प्रश्रित—भू॰ क॰ कृ॰—-—प्र + श्रि + क्त—सुजन, नम्र, शिष्ट, विनीत, शिष्टाचरणयुक्त
- प्रश्लथ—वि॰, प्रा॰ स॰—-—-—बहुत ढीला या पिलपिला
- प्रश्लथ—वि॰, प्रा॰ स॰—-—-—उत्साह-हीन, निस्तेज
- प्रश्लिष्ट—भू॰ क॰ कृ॰—-—प्र + श्लिष् + क्त—मरोड़ा दिया हुआ, ऐंठा दिया हुआ
- प्रश्लिष्ट—भू॰ क॰ कृ॰—-—प्र + श्लिष् + क्त—तर्कसंगत, युक्तियुक्त
- प्रश्लेषः—पुं॰—-—प्र + श्लिष् + घञ्—घना संपर्क, संहति
- प्रश्वासः—पुं॰—-—प्र + श्वास् + घञ्—साँस, श्वसन, श्वास-प्रश्वासक्रिया
- प्रष्ठ—वि॰—-—प्र + स्था + क—सामने खड़ा हुआ
- प्रष्ठ—वि॰—-—प्र + स्था + क—मुख्य, प्रधान, अग्रणी, उत्तम, नेता
- प्रष्ठवाह्—पुं॰—प्रष्ठ- वाह्—-—हल जोतने के लिए सधाया जाता हुआ जवान बैल
- प्रस्—भ्वा॰, दिवा॰- आ॰ < प्रसते>, < प्रस्यते>—-—-—बच्चे को जन्म देना
- प्रस्—भ्वा॰, दिवा॰- आ॰ < प्रसते>, < प्रस्यते>—-—-—फैलाना, प्रसार करना, विस्तार करना, बढ़ाना
- प्रसक्त—भू॰ क॰ कृ॰—-—प्र + सञ्ज् + क्त—लग्न, युक्त
- प्रसक्त—भू॰ क॰ कृ॰—-—प्र + सञ्ज् + क्त—अत्यन्त आसक्त या स्नेहशील
- प्रसक्त—भू॰ क॰ कृ॰—-—प्र + सञ्ज् + क्त—अनुगामी, अनुषक्त
- प्रसक्त—भू॰ क॰ कृ॰—-—प्र + सञ्ज् + क्त—स्थिर, तुला हुआ, भक्त, व्यस्त, व्यसनग्रस्त, प्रयुक्त
- प्रसक्त—भू॰ क॰ कृ॰—-—प्र + सञ्ज् + क्त—सटा हुआ, निकटस्थ
- प्रसक्त—भू॰ क॰ कृ॰—-—प्र + सञ्ज् + क्त—अविच्छिन्न, निरन्तर, अनवरत
- प्रसक्त—भू॰ क॰ कृ॰—-—प्र + सञ्ज् + क्त—हासिल, प्राप्त, लब्ध
- प्रसक्तम्—अव्य॰—-—-—निरन्तर, लगातार
- प्रसक्तिः—स्त्री॰—-—प्र + सञ्ज् + क्तिन्—आसक्ति, भक्ति, व्यसन, संलग्नता, अनुरक्ति
- प्रसक्तिः—स्त्री॰—-—प्र + सञ्ज् + क्तिन्—संबंध, संयोग, साहचर्य
- प्रसक्तिः—स्त्री॰—-—प्र + सञ्ज् + क्तिन्—प्रयोजनीयता, संबंध, प्रयोग
- प्रसक्तिः—स्त्री॰—-—प्र + सञ्ज् + क्तिन्—ऊर्जा, धैर्य
- प्रसक्तिः—स्त्री॰—-—प्र + सञ्ज् + क्तिन्—उपसंहार, घटाना
- प्रसक्तिः—स्त्री॰—-—प्र + सञ्ज् + क्तिन्—विषय, प्रवचन का विषय
- प्रसक्तिः—स्त्री॰—-—प्र + सञ्ज् + क्तिन्—संभावना का घटित होना
- प्रसंख्या—स्त्री॰, प्रा॰ स॰—-—-—कुल योग, राशि
- प्रसंख्या—स्त्री॰, प्रा॰ स॰—-—-—विचार विमर्श
- प्रसंख्यानम्—नपुं॰—-—प्र + सम् + ख्या + ल्युट्—गिनना
- प्रसंख्यानम्—नपुं॰—-—प्र + सम् + ख्या + ल्युट्—विचारण, मनन, गहन चिन्तन, भाव चिन्तन
- प्रसंख्यानम्—नपुं॰—-—प्र + सम् + ख्या + ल्युट्—कीर्ति, प्रसिद्धि, विश्रुति
- प्रसंख्यानः—पुं॰—-—प्र + सम् + ख्या + ल्युट्—अदायगी, भुगतान
- प्रसङ्गः—पुं॰—-—प्र + सञ्ज् + घञ्—आसक्ति, भक्ति, व्यसन, संलग्नता
- प्रसङ्गः—पुं॰—-—प्र + सञ्ज् + घञ्—मेल-जोल, अन्तःसंपर्क, साहचर्य, संबंध
- प्रसङ्गः—पुं॰—-—प्र + सञ्ज् + घञ्—अवैध मैथुन
- प्रसङ्गः—पुं॰—-—प्र + सञ्ज् + घञ्—व्यस्तता, एकाग्रता, कार्यपरता
- प्रसङ्गः—पुं॰—-—प्र + सञ्ज् + घञ्—विषय, शीर्षक
- प्रसङ्गः—पुं॰—-—प्र + सञ्ज् + घञ्—अवसर, घटना
- प्रसङ्गः—पुं॰—-—प्र + सञ्ज् + घञ्—संयोग, समय, अवसर
- प्रसङ्गः—पुं॰—-—प्र + सञ्ज् + घञ्—दैवयोग, घटना, काण्ड, संभावना का होना
- प्रसङ्गः—पुं॰—-—प्र + सञ्ज् + घञ्—संबद्ध तर्कना, या युक्ति
- प्रसङ्गः—पुं॰—-—प्र + सञ्ज् + घञ्—उपसंहार, अनुमान
- प्रसङ्गः—पुं॰—-—प्र + सञ्ज् + घञ्—संबद्ध भाषा
- प्रसङ्गः—पुं॰—-—प्र + सञ्ज् + घञ्—अवियोज्य प्रयोग या संबंध
- प्रसङ्गः—पुं॰—-—प्र + सञ्ज् + घञ्—माता- पिता का उल्लेख
- प्रसङ्गेन—क्रि॰वि॰—-—-—के संबंध में
- प्रसङ्गेन—क्रि॰वि॰—-—-—के फलस्वरुप, के कारण, क्योंकि, के रूप में
- प्रसङ्गेन—क्रि॰वि॰—-—-—अवसरानुसार
- प्रसङ्गेन—क्रि॰वि॰—-—-—के क्रम में
- प्रसङ्गतः—क्रि॰वि॰—-—-—के संबंध में
- प्रसङ्गतः—क्रि॰वि॰—-—-—के फलस्वरुप, के कारण, क्योंकि, के रूप में
- प्रसङ्गतः—क्रि॰वि॰—-—-—अवसरानुसार
- प्रसङ्गतः—क्रि॰वि॰—-—-—के क्रम में
- प्रसङ्गात्—क्रि॰वि॰—-—-—के संबंध में
- प्रसङ्गात्—क्रि॰वि॰—-—-—के फलस्वरुप, के कारण, क्योंकि, के रूप में
- प्रसङ्गात्—क्रि॰वि॰—-—-—अवसरानुसार
- प्रसङ्गात्—क्रि॰वि॰—-—-—के क्रम में
- प्रसङ्गनिवारणम्—नपुं॰—प्रसङ्गः- निवारणम्—-—भविष्य में इस प्रकार की स्थिति को रोकना
- प्रसङ्गवशात्—अव्य॰—प्रसङ्गः- वशात्—-—समय के अनुसार, परिस्थितिवश
- प्रसङ्गविनिवृत्तिः—स्त्री॰—प्रसङ्गः-विनिवृत्तिः—-—इस प्रकार की संकटस्थिति की पुनरावृत्ति का न होना
- प्रसञ्जनम्—नपुं॰—-—प्र + सञ्ज् + ल्युट्—जोड़ने की क्रिया, मिलाना, एकत्र करना
- प्रसञ्जनम्—नपुं॰—-—प्र + सञ्ज् + ल्युट्—व्यवहार में लाना, सबल बनाना, उपयोग में लाना
- प्रसत्तिः—स्त्री॰—-—प्र + सद् + क्तिन्—अनुग्रह, कृपालुता, शिष्टाचार
- प्रसत्तिः—स्त्री॰—-—प्र + सद् + क्तिन्—स्वच्छता, पवित्रता, विशदता
- प्रसन्धानम्—नपुं॰—-—प्र + सम् + धा + ल्युट्—मिलान, मेल
- प्रसन्न—भू॰ क॰ कृ॰—-—प्र + सद् + क्त—पवित्र, स्वच्छ, उज्ज्वल, निर्मल, विमल, पारदर्शी
- प्रसन्न—भू॰ क॰ कृ॰—-—प्र + सद् + क्त—खुश, आनन्दित, प्रतुष्ट, शान्तं
- प्रसन्न—भू॰ क॰ कृ॰—-—प्र + सद् + क्त—दयालु, अनुग्रहशील, कृपालु, मंगलप्रद
- प्रसन्न—भू॰ क॰ कृ॰—-—प्र + सद् + क्त—सरल, सीधा, स्पष्ट, सुबोध
- प्रसन्न—भू॰ क॰ कृ॰—-—प्र + सद् + क्त—सत्य, सही
- प्रसन्नाः—पुं॰, ब॰व—-—प्र + सद् + क्त—प्रसादन, अनुरंजन
- प्रसन्नाः—पुं॰, ब॰व—-—प्र + सद् + क्त—खींची हुई मदिरा
- प्रसन्नात्मन्—वि॰—प्रसन्न- आत्मन्—-—कृपालुमना, मंगलप्रद
- प्रसन्नेरा—स्त्री॰—प्रसन्न-ईरा—-—खींची हुई मदिरा
- प्रसन्नकल्प—वि॰—प्रसन्न-कल्प—-—शान्तप्राय
- प्रसन्नकल्प—वि॰—प्रसन्न-कल्प—-—सत्यप्राय
- प्रसन्नमुख—वि॰—प्रसन्न-मुख—-—कृपालुदृष्टि वाला, प्रसन्न चेहरे वाला, मुस्कराता हुआ
- प्रसन्नवदन—वि॰—प्रसन्न-वदन—-—कृपालुदृष्टि वाला, प्रसन्न चेहरे वाला, मुस्कराता हुआ
- प्रसन्नसलिल—वि॰—प्रसन्न- सलिल—-—स्वच्छ पानी वाला
- प्रसभः—पुं॰, प्रा॰ ब॰—-—प्रगता सभा समानाधिकारो यस्मात्—बल, हिंसा, प्रचण्डता
- प्रसभम्—अव्य॰—-—-—बलपूर्वक, जबरदस्ती
- प्रसभम्—अव्य॰—-—-—बहुत अधिक, अत्यंत
- प्रसभम्—अव्य॰—-—-—आग्रहपूर्वक
- प्रसभदमनम्—नपुं॰—प्रसभः-दमनम्—-—बलपूर्वक दबाना
- प्रसभहरणम्—नपुं॰—प्रसभः-हरणम्—-—बलपूर्वक अपहरण
- प्रसमीक्षणम्—नपुं॰—-—प्र + सम् + ईक्ष् + ल्युट्—विचारण, विचारविमर्श, निर्धारण
- प्रसमीक्षा—स्त्री॰—-—प्रसम् + ईक्ष् + अङ् + टाप्—विचारण, विचारविमर्श, निर्धारण
- प्रसयनम्—नपुं॰—-—प्र + सि + ल्युट्—बंधन, कसना
- प्रसयनम्—नपुं॰—-—प्र + सि + ल्युट्—जाल
- प्रसरः—पुं॰—-—प्र + सृ + अप्—आगे जाना, प्रगमन करना
- प्रसरः—पुं॰—-—प्र + सृ + अप्—मुक्त या निर्बाध गति, मुक्त क्षेत्र, पहुँच, गति
- प्रसरः—पुं॰—-—प्र + सृ + अप्—फैलाव, प्रसार, विस्तर, विस्तार, फैलना
- प्रसरः—पुं॰—-—प्र + सृ + अप्—विस्तार, आयाम, बड़ी मात्रा
- प्रसरः—पुं॰—-—प्र + सृ + अप्—प्रचलन, प्रभाव
- प्रसरः—पुं॰—-—प्र + सृ + अप्—सरिता, प्रवाह, धारा, बाढ़
- प्रसरः—पुं॰—-—प्र + सृ + अप्—समूह
- प्रसरः—पुं॰—-—प्र + सृ + अप्—समुच्चय, युद्ध, लड़ाई
- प्रसरः—पुं॰—-—प्र + सृ + अप्—लोहे का बाण
- प्रसरः—पुं॰—-—प्र + सृ + अप्—चाल
- प्रसरः—पुं॰—-—प्र + सृ + अप्—विनम्र याचना
- प्रसरणम्—नपुं॰—-—प्र + सृ + ल्युट्—आगे जाना, दौड़ना, बहना
- प्रसरणम्—नपुं॰—-—प्र + सृ + ल्युट्—बच निकलना, भाग जाना
- प्रसरणम्—नपुं॰—-—प्र + सृ + ल्युट्—दूर तक फैलाना
- प्रसरणम्—नपुं॰—-—प्र + सृ + ल्युट्—शत्रु को घेरना
- प्रसरणम्—नपुं॰—-—प्र + सृ + ल्युट्—सौजन्य
- प्रसरणिः—पुं॰—-—प्र + सृ + अनि—शत्रु को घेर लेना
- प्रसरणी—स्त्री॰—-—प्रसरणि + ङीष्—शत्रु को घेर लेना
- प्रसर्पणम्—नपुं॰—-—प्र + सृप् + ल्युट्—चलना, सरकना, आगे बढ़ना
- प्रसर्पणम्—नपुं॰—-—प्र + सृप् + ल्युट्—व्याप्त करना, सब दिशाओं में फैलना
- प्रसलः—पुं॰—-—प्र + शल् + अच्, पक्षे पृषो॰ शस्य सः—हेमंत ऋतु
- प्रसवः—पुं॰—-—प्र + सू + अप्—जन्म देना, जनन, प्रसूति, जन्म, उत्पादन
- प्रसवः—पुं॰—-—प्र + सू + अप्—बच्चे का जन्म, गर्भ मोचन, प्रसूति
- प्रसवः—पुं॰—-—प्र + सू + अप्—सन्तान, प्रजा, छोटे बच्चे, बालक
- प्रसवः—पुं॰—-—प्र + सू + अप्—स्रोत, मूल, जन्मस्थान
- प्रसवः—पुं॰—-—प्र + सू + अप्—फूल, मंजरी
- प्रसवः—पुं॰—-—प्र + सू + अप्—फल, उत्पादन
- प्रसवोन्मुख—वि॰—प्रसवः-उन्मुख—-—गर्भ से मुक्त होने वाला, उत्पन्न होने वाला
- प्रसवगृहम्—नपुं॰—प्रसवः-गृहम्—-—प्रसूतिकागृह, जच्चाघर
- प्रसवधर्मिन्—वि॰—प्रसवः-धर्मिन्—-—उपजाऊ, उर्वर
- प्रसवबन्धनम्—नपुं॰—प्रसवः- बन्धनम्—-—फूल या पत्ते की डंठल, वृन्त
- प्रसववेदना—स्त्री॰—प्रसवः-वेदना—-—प्रसव काल की पीडा, बच्चा जनने का कष्ट
- प्रसवव्यथा—स्त्री॰—प्रसवः-व्यथा—-—प्रसव काल की पीडा, बच्चा जनने का कष्ट
- प्रसवस्थली—स्त्री॰—प्रसवः-स्थली—-—माता
- प्रसवस्थानम्—नपुं॰—प्रसवः-स्थानम्—-—प्रसूतिका-गृह
- प्रसवस्थानम्—नपुं॰—प्रसवः-स्थानम्—-—जाल
- प्रसवकः—पुं॰—-—प्रसवेन पुष्पादिना कायति शोभते- प्रसव + कै + क—पियाल वृक्ष, चिरौंजी का पेड़
- प्रसवनम्—नपुं॰—-—प्र + सू + ल्युट्—पैदा करना
- प्रसवनम्—नपुं॰—-—प्र + सू + ल्युट्—बच्चे को जन्म देना, उपजाऊपन
- प्रसवन्तिः—स्त्री॰—-—प्र + सू + झिच्, अन्तादेशः—जच्चा स्त्री
- प्रसवन्ती—स्त्री॰—-—प्र + सू + शतृ + ङीप्—जच्चा स्त्री
- प्रसवितृ—पुं॰—-—प्र + सू + तृ—पिता, प्रजनक
- प्रसवित्री—स्त्री॰—-—प्रसवितृ + ङीप्—माता
- प्रसव्य—वि॰—-—प्रगतं सव्यात्- प्रा॰ स॰—प्रतिकूल, व्युत्क्रांत, बायाँ, उलटा
- प्रसह—वि॰—-—प्र + सह् + अच्—सहनशील, सहिष्णु, सहन करने वाला
- प्रसहः—पुं॰—-—प्र + सह् + अच्—शिकारी जानवर या पक्षी
- प्रसहः—पुं॰—-—प्र + सह् + अच्—मुकाबला, सहन शक्ति, विरोध
- प्रसहनः—पुं॰—-—प्र + सह् + ल्युट्—शिकारी जानवर या पक्षी
- प्रसहनम्—नपुं॰—-—प्र + सह् + ल्युट्—सामना करना, मुकाबला करना
- प्रसहनम्—नपुं॰—-—प्र + सह् + ल्युट्—सहन करना, बर्दाश्त करना
- प्रसहनम्—नपुं॰—-—प्र + सह् + ल्युट्—पराजित करना, विजय प्राप्त करना
- प्रसहनम्—नपुं॰—-—प्र + सह् + ल्युट्—आलिंगन, परिरम्भण
- प्रसह्य—अव्य॰—-—प्र + सह् + ल्यप्—बलपूर्वक, प्रचण्डता के साथ, जबरदस्ती
- प्रसह्य—अव्य॰—-—प्र + सह् + ल्यप्—अत्यधिक, अत्यंत
- प्रसातिका—स्त्री॰—-—प्रगता सातिः- सी + क्तिन्- यस्याः- प्रा॰ ब॰, कप् + टाप्—एक प्रकार का चावल
- प्रसादः—पुं॰—-—प्र + सद् + घञ्—अनुग्रह, कृपा, दाक्षिण्य, कल्याणकारिता
- प्रसादः—पुं॰—-—प्र + सद् + घञ्—अच्छा स्वभाव, स्वभाव में करुणाशीलता
- प्रसादः—पुं॰—-—प्र + सद् + घञ्—धीरता, शान्ति, मन की स्वस्थता, सौम्यता, गांभीर्य, उत्तेजना का अभाव
- प्रसादः—पुं॰—-—प्र + सद् + घञ्—स्वच्छता, निर्मलता, उज्ज्वलता, पारदर्शिता, पवित्रता
- प्रसादः—पुं॰—-—प्र + सद् + घञ्—प्रसादगुणयुक्तता, शैली की विशदता, मम्मट के अनुसार, तीन गुणों में एक- प्रसाद गुण
- प्रसादः—पुं॰—-—प्र + सद् + घञ्—प्रसादगुणयुक्तता, शैली की विशदता, मम्मट के अनुसार, तीन गुणों में एक- प्रसाद गुण
- प्रसादः—पुं॰—-—प्र + सद् + घञ्—भगवान् की मूर्ति को भोग लगाया हुआ नैवेद्य का अवशिष्ट
- प्रसादः—पुं॰—-—प्र + सद् + घञ्—चढ़ावा, पुरस्कार
- प्रसादः—पुं॰—-—प्र + सद् + घञ्—शान्तिकर भेंट
- प्रसादः—पुं॰—-—प्र + सद् + घञ्—कुशल, क्षेम
- प्रसादोन्मुख—वि॰—प्रसादः- उन्मुख—-—अनुग्रह करने के लिए तत्पर
- प्रसादपराङ्मुख—वि॰—प्रसादः-पराङ्मुख—-—अनुग्रह को वापिस खींचने वाला
- प्रसादपराङ्मुख—वि॰—प्रसादः-पराङ्मुख—-—जो किसी के अनुग्रह की अपेक्षा न करे
- प्रसादपात्रम्—नपुं॰—प्रसादः-पात्रम्—-—अनुग्रह का पात्र
- प्रसादस्थ—वि॰—प्रसादः-स्थ—-—कृपालु, मंगलप्रद
- प्रसादस्थ—वि॰—प्रसादः-स्थ—-—शान्त, तुष्ट, आनंदित
- प्रसादक—वि॰—-—प्र + सद् + णिच् + ण्वुल्—पवित्र करने वाला, स्वच्छ करने वाला, स्फटिक सदृश विशद करने वाला
- प्रसादक—वि॰—-—प्र + सद् + णिच् + ण्वुल्—तसल्ली देने वाला, ढाढस बंधाने वाला
- प्रसादक—वि॰—-—प्र + सद् + णिच् + ण्वुल्—आनन्दित करने वाला, खुश करने वाला
- प्रसादक—वि॰—-—प्र + सद् + णिच् + ण्वुल्—अनुग्रह करने वाला, प्रसन्न करने वाला
- प्रसादन—वि॰—-—प्र + सद् + णिच् + ल्युट्—पवित्र करने वाला, स्वच्छ करने वाला, निर्मल या विशुद्ध करने वाला
- प्रसादन—वि॰—-—प्र + सद् + णिच् + ल्युट्—सांत्वना देने वाला, ढाढस बंधाने वाला
- प्रसादन—वि॰—-—प्र + सद् + णिच् + ल्युट्—खुश करने वाला, आनन्दित करने वाला
- प्रसादनः—पुं॰—-—-—राजकीय तंबू
- प्रसादनम्—नपुं॰—-—-—निर्मल करना, पवित्र करना
- प्रसादनम्—नपुं॰—-—-—सांत्वना देना, ढाढस बंधाना, शान्त करना, मन स्वस्थ करना
- प्रसादनम्—नपुं॰—-—-—प्रसन्न करना, तुष्ट करना
- प्रसादनम्—नपुं॰—-—-—कल्याण करना, अनुग्रह करना
- प्रसादना—स्त्री॰—-—-—सेवा, पूजा
- प्रसादना—स्त्री॰—-—-—निर्मलीकरण
- प्रसादित—भू॰ क॰ कृ॰—-—प्र + सद् + णिच् + क्त—पवित्र किया हुआ, स्वच्छ किया हुआ
- प्रसादित—भू॰ क॰ कृ॰—-—प्र + सद् + णिच् + क्त—खुश किया हुआ, प्रसन्न किया हुआ
- प्रसादित—भू॰ क॰ कृ॰—-—प्र + सद् + णिच् + क्त—पूजा किया हुआ
- प्रसादित—भू॰ क॰ कृ॰—-—प्र + सद् + णिच् + क्त—धीरज बंधाया हुआ, सांत्वना दिया हुआ
- प्रसाधक—वि॰—-—प्र + साध् + ण्वुल्—निष्पन्न करने वाला, पूरा करने वाला
- प्रसाधक—वि॰—-—प्र + साध् + ण्वुल्—पवित्र करने वाला, छानने वाला
- प्रसाधक—वि॰—-—प्र + साध् + ण्वुल्—सजाने वाला, अलंकृत करने वाला
- प्रसाधकः—पुं॰—-—-—पार्श्वचर, अपने स्वामी को वस्त्र पहनाने वाला सेवक
- प्रसाधनम्—नपुं॰—-—प्र + साध् + ल्युट्—निष्पन्न करना, कार्यान्वित करना, करवाना
- प्रसाधनम्—नपुं॰—-—प्र + साध् + ल्युट्—व्यवस्थित करना, क्रमबद्ध करना
- प्रसाधनम्—नपुं॰—-—प्र + साध् + ल्युट्—सजाना, अलंकृत करना, विभूषित करना, शरीरसज्जा, वेशभूषा
- प्रसाधनम्—नपुं॰—-—प्र + साध् + ल्युट्—सजावट, आभूषण, सजाने या विभूषित करने का साधन
- प्रसाधनः—पुं॰—-—-—कंघी
- प्रसाधनम्—नपुं॰—-—-—कंघी
- प्रसाधनी—स्त्री॰—-—-—कंघी
- प्रसाधनविधिः—पुं॰—प्रसाधनम्-विधिः—-—सजावट, शृंगार
- प्रसाधनविशेषः—पुं॰—प्रसाधनम्-विशेषः—-—सबसे ऊँचा शृंगार- प्रसाधन
- प्रसाधिका—स्त्री॰—-—प्रसाधक + टाप् + इत्वम्—सेविका, वह दासी जो अपनी स्वामिनी के शृंगार की देख-रेख करे।
- प्रसाधित—भू॰ क॰ कृ॰—-—प्र + साध् + क्त—निष्पन्न, पूरा किया हुआ, पूर्ण किया हुआ
- प्रसाधित—भू॰ क॰ कृ॰—-—प्र + साध् + क्त—विभूषित, सुसज्जित
- प्रसारः—पुं॰—-—प्र + सृ + घञ्—फैलाना, विस्तार करना
- प्रसारः—पुं॰—-—प्र + सृ + घञ्—फैलाव, प्रसृति, विस्तार, प्रसारण
- प्रसारः—पुं॰—-—प्र + सृ + घञ्—बिछावन
- प्रसारः—पुं॰—-—प्र + सृ + घञ्—खाद्यान्वेषण के लिए देश में इधर-उधर फैल जाना
- प्रसारणम्—नपुं॰—-—प्र + सृ + णिच् + ल्युट्—विदेशों में फैलना, बढ़ना, वृद्धि, प्रसृति, फैलाव
- प्रसारणम्—नपुं॰—-—प्र + सृ + णिच् + ल्युट्—फैलाना
- प्रसारणम्—नपुं॰—-—प्र + सृ + णिच् + ल्युट्—शत्रु को घेरना
- प्रसारणम्—नपुं॰—-—प्र + सृ + णिच् + ल्युट्—इंधन और घास के लिए समस्त देश में फैल जाना
- प्रसारणम्—नपुं॰—-—प्र + सृ + णिच् + ल्युट्—अर्धस्वर वर्णों का स्वरों में बदल जाना, संप्रसारण
- प्रसारिणी—स्त्री॰—-—प्र + सृ + णिनि ङीप्—शत्रु को घेरना
- प्रसारित—भू॰ क॰ कृ॰—-—प्र + सृ + णिच् + क्त—प्रसार किया हुआ, फैलाया हुआ, प्रसृत किया हुआ, बढ़ाया हुआ
- प्रसारित—भू॰ क॰ कृ॰—-—प्र + सृ + णिच् + क्त—फैलाया हुआ
- प्रसारित—भू॰ क॰ कृ॰—-—प्र + सृ + णिच् + क्त—प्रदर्शित किया हुआ, रक्खा हुआ
- प्रसाहः—पुं॰—-—प्र + सह् + घञ्—अपने प्रभाव में लाना, जीत लेना, पराजित करना
- प्रसित—भू॰ क॰ कृ॰—-—प्र + सि + क्त—बांधा हुआ, कसा हुआ
- प्रसित—भू॰ क॰ कृ॰—-—प्र + सि + क्त—संलग्न, व्यस्त, काम में लगा हुआ
- प्रसित—भू॰ क॰ कृ॰—-—प्र + सि + क्त—तुला हुआ, प्रबल इच्छुक, लालायित
- प्रसितम्—नपुं॰—-—प्र + सि + क्त—पीव, मवाद
- प्रसितिः—स्त्री॰—-—प्र + सि + क्तिन्—जाल
- प्रसितिः—स्त्री॰—-—प्र + सि + क्तिन्—पट्टी
- प्रसितिः—स्त्री॰—-—प्र + सि + क्तिन्—बंधन, नमदे की पट्टी
- प्रसिद्ध—भू॰ क॰ कृ॰—-—प्र + सिध् + क्त—विश्रुत, विख्यात, मशहूर
- प्रसिद्ध—भू॰ क॰ कृ॰—-—प्र + सिध् + क्त—सजा हुआ, अलंकृत, विभूषित
- प्रसिद्धिः—स्त्री॰—-—प्र + सिध् + क्तिन्—कीर्ति, ख्याति, मशहूरी, विश्रुति
- प्रसिद्धिः—स्त्री॰—-—प्र + सिध् + क्तिन्—सफलता, निष्पन्नता, पूर्ति
- प्रसिद्धिः—स्त्री॰—-—प्र + सिध् + क्तिन्—शृंगार, सजावट
- प्रसीदिका—स्त्री॰—-—प्रसाद्यतेऽस्याम्- प्र + सद् + ण्वुल्, इत्वम्, टाप्, सीदादेशः—वाटिका, छोटा उद्यान
- प्रसुप्त—भू॰ क॰ कृ॰—-—प्र + स्वप् + क्त—सोया हुआ, निद्रित
- प्रसुप्त—भू॰ क॰ कृ॰—-—प्र + स्वप् + क्त—प्रगाढ़ निद्रा में
- प्रसुप्तिः—स्त्री॰—-—प्र + स्वप् + क्तिन्—निद्रालुता, प्रगाढ़ निद्रा
- प्रसुप्तिः—स्त्री॰—-—प्र + स्वप् + क्तिन्—लकवे का रोग
- प्रसू—वि॰—-—प्र + सू + क्विप्—प्रकाशित करने वाला, पैदा करने वाला, जन्म देने वाला
- प्रसू—स्त्री॰—-—प्र + सू + क्विप्—माता
- प्रसू—स्त्री॰—-—प्र + सू + क्विप्—घोड़ी
- प्रसू—स्त्री॰—-—प्र + सू + क्विप्—फैलने वाली लता
- प्रसू—स्त्री॰—-—प्र + सू + क्विप्—केला
- प्रसूका—स्त्री॰—-—प्र + सू + कन् + टाप्—घोड़ी
- प्रसूत—भू॰ क॰ कृ॰—-—प्र + सू + क्त—उत्पन्न, जनित
- प्रसूत—भू॰ क॰ कृ॰—-—प्र + सू + क्त—पैदा किया हुआ, जन्म दिया हुआ, उत्पादित
- प्रसूतम्—नपुं॰—-—प्र + सू + क्त—फूल
- प्रसूतम्—नपुं॰—-—प्र + सू + क्त+ टाप्—कोई उपजाऊ स्रोत
- प्रसूता—स्त्री॰—-—प्र + सू + क्त—जच्चा स्त्री
- प्रसूतिः—स्त्री॰—-—प्र + सू + क्तिन्—प्रसर्जन, जनन, प्रसव
- प्रसूतिः—स्त्री॰—-—प्र + सू + क्तिन्—जन्म देना, पैदा करना, गर्भमोचन, बच्चे को जन्म देना
- प्रसूतिः—स्त्री॰—-—प्र + सू + क्तिन्—बछड़े को जन्म देना
- प्रसूतिः—स्त्री॰—-—प्र + सू + क्तिन्—अंडे देना
- प्रसूतिः—स्त्री॰—-—प्र + सू + क्तिन्—जन्म, उत्पादन, जनन
- प्रसूतिः—स्त्री॰—-—प्र + सू + क्तिन्—दर्शन, प्रकट होना, विकसन
- प्रसूतिः—स्त्री॰—-—प्र + सू + क्तिन्—फल, पैदावार
- प्रसूतिः—स्त्री॰—-—प्र + सू + क्तिन्—संतति, प्रजा, अपत्य
- प्रसूतिः—स्त्री॰—-—प्र + सू + क्तिन्—उत्पादक, जनक, प्रस्रष्टा
- प्रसूतिः—स्त्री॰—-—प्र + सू + क्तिन्—माता
- प्रसूतिजम्—नपुं॰—प्रसूतिः-जम्—-—प्रसव से उत्पन्न होने वाली पीडा
- प्रसूतिवायुः—पुं॰—प्रसूतिः- वायुः—-—प्रसव के समय गर्भाशय में उत्पन्न होने वाली वायु
- प्रसूतिका—स्त्री॰—-—प्रसूत + ठन् + टाप्—जच्चा स्त्री, वह स्त्री जिसने अभी हाल में बच्चे को जन्म दिया है।
- प्रसून—भू॰ क॰ कृ॰—-—प्र + सू + क्त, तस्य नत्वम्—पैदा किया गया, उत्पन्न
- प्रसूनम्—नपुं॰—-—प्र + सू + क्त, तस्य नत्वम्—फूल
- प्रसूनम्—नपुं॰—-—प्र + सू + क्त, तस्य नत्वम्—कली, मंजरी
- प्रसूनम्—नपुं॰—-—प्र + सू + क्त, तस्य नत्वम्—फल
- प्रसूनेषुः—पुं॰—प्रसून-इषुः—-—कामदेव का विशेषण
- प्रसूनबाणः—पुं॰—प्रसून-बाणः—-—कामदेव का विशेषण
- प्रसूनवाणः—पुं॰—प्रसून-वाणः—-—कामदेव का विशेषण
- प्रसूनवर्षः—पुं॰—प्रसून-वर्षः—-—पुष्पवृष्टि
- प्रसूनकम्—नपुं॰—-—प्रसून + कन्—फूल
- प्रसूनकम्—नपुं॰—-—प्रसून + कन्—कली, मंजरी
- प्रसृत—भू॰ क॰ कृ॰—-—प्र + सृ + क्त—आगे बढ़ा हुआ
- प्रसृत—भू॰ क॰ कृ॰—-—प्र + सृ + क्त—पसारा हुआ, बढ़ाया हुआ
- प्रसृत—भू॰ क॰ कृ॰—-—प्र + सृ + क्त—फैलाया गया, प्रसारित किया गया
- प्रसृत—भू॰ क॰ कृ॰—-—प्र + सृ + क्त—लंबा, लम्बा किया हुआ
- प्रसृत—भू॰ क॰ कृ॰—-—प्र + सृ + क्त—व्यस्त, लगा हुआ
- प्रसृत—भू॰ क॰ कृ॰—-—प्र + सृ + क्त—फुर्तीला, तेज
- प्रसृत—भू॰ क॰ कृ॰—-—प्र + सृ + क्त—सुशील, विनीत
- प्रसृतः—पुं॰—-—-—हाथ की खुली हथेली, अंजलि
- प्रसृतः—पुं॰—-—-—दो पल का माप
- प्रसृतम्—नपुं॰—-—-—दो पल का माप
- प्रसृता—स्त्री॰—-—-—टांग
- प्रसृतजः—पुं॰—प्रसृत-जः—-—पुत्रों का विशिष्ट वर्ग, व्यभिचार जनित पुत्र, कुंडगोलकरूप
- प्रसृतिः—स्त्री॰—-—प्र + सृ+ क्तिन्—आगे जाना, प्रगति
- प्रसृतिः—स्त्री॰—-—प्र + सृ+ क्तिन्—वहना
- प्रसृतिः—स्त्री॰—-—प्र + सृ+ क्तिन्—फैलाये हुए हाथ की हथेली, अंजलि
- प्रसृतिः—स्त्री॰—-—प्र + सृ+ क्तिन्—मुट्ठी भर
- प्रसृत्वर—वि॰—-—प्र + सृ + क्वरप्, तुकागमः—इधर- उधर फैलने वाला
- प्रसृमर—वि॰—-—प्र + सृ + क्मरच्—बहता हुआ, चूने वाला, टपकने वाला
- प्रसृष्ट—भू॰ क॰ कृ॰ —-—प्र + सृज् + क्त—एक ओर डाला हुआ, त्यागा हुआ
- प्रसृष्ट—भू॰ क॰ कृ॰ —-—प्र + सृज् + क्त—घायल, क्षतिग्रस्त
- प्रसृष्टा—स्त्री॰—-—प्र + सृज् + क्त—फैलाई हुई अंगुली
- प्रसेकः—पुं॰—-—प्र + सिच् + घञ्—बहना, रिसना, टपकना
- प्रसेकः—पुं॰—-—प्र + सिच् + घञ्—छिड़कना, आर्द्र करना
- प्रसेकः—पुं॰—-—प्र + सिच् + घञ्—उद्गिरण, प्रस्रवण
- प्रसेकः—पुं॰—-—प्र + सिच् + घञ्—उद्वमन, कै
- प्रसेदिका—स्त्री॰—-— = प्रसीदिका, पृषो॰—छोटा उद्यान, वाटिका
- प्रसेवः—पुं॰—-—प्र + सिव् + घञ्—थैला, बोरी
- प्रसेवः—पुं॰—-—प्र + सिव् + घञ्—चमड़े की बोतल
- प्रसेवः—पुं॰—-—प्र + सिव् + घञ्—काष्ठ का बना छोटा उपकरण जो वीणा की गर्दन के नीचे लगाया जाता है जिससे कि उसका स्वर अपेक्षाकृत कुछ गहरा हो जाय।
- प्रसेवकः—पुं॰—-—प्रसेव + कन्—थैला, बोरी
- प्रसेवकः—पुं॰—-—प्रसेव + कन्—चमड़े की बोतल
- प्रसेवकः—पुं॰—-—प्रसेव + कन्—काष्ठ का बना छोटा उपकरण जो वीणा की गर्दन के नीचे लगाया जाता है जिससे कि उसका स्वर अपेक्षाकृत कुछ गहरा हो जाय।
- प्रस्कन्दनम्—नपुं॰—-—प्र + स्कन्द् + ल्युट्—कूद जाना, छलांग लगाना
- प्रस्कन्दनम्—नपुं॰—-—प्र + स्कन्द् + ल्युट्—विरेचन, जुलाब, अतिसार
- प्रस्कन्दनः—पुं॰—-—प्र + स्कन्द् + ल्युट्—शिव का विशेषण
- प्रस्कन्न—भू॰ क॰ कृ॰—-—प्र + स्कन्द् + क्त—फलांगा हुआ, छलाँग लगाकर पार किया हुआ
- प्रस्कन्न—भू॰ क॰ कृ॰—-—प्र + स्कन्द् + क्त—पतित, टपका हुआ
- प्रस्कन्न—भू॰ क॰ कृ॰—-—प्र + स्कन्द् + क्त—परास्त
- प्रस्कन्नः—पुं॰—-—प्र + स्कन्द् + क्त—जातिबहिष्कृत
- प्रस्कन्नः—पुं॰—-—प्र + स्कन्द् + क्त—पापी, अतिक्रमणकारी
- प्रस्कुन्दः—पुं॰—-—प्रगतः कुन्दं चक्रम्- प्रा॰ स॰—गोलाकार वेदी
- प्रस्खलनम्—नपुं॰—-—प्र + स्खल् + ल्युट्—लड़खड़ाना
- प्रस्खलनम्—नपुं॰—-—प्र + स्खल् + ल्युट्—डगमगाना, गिर जाना
- प्रस्तरः—पुं॰—-—प्र + स्तृ + अच्—पर्णशय्या, पुष्पशय्या
- प्रस्तरः—पुं॰—-—प्र + स्तृ + अच्—पर्यंक, खटिया
- प्रस्तरः—पुं॰—-—प्र + स्तृ + अच्—समतल शिखर, हमवार, समतल
- प्रस्तरः—पुं॰—-—प्र + स्तृ + अच्—पत्थर, चट्टान
- प्रस्तरः—पुं॰—-—प्र + स्तृ + अच्—मूल्यवान् पत्थर, रत्न
- प्रस्तरणम्—नपुं॰—-—प्र + स्तृ + ल्युट्—पलंग
- प्रस्तरणम्—नपुं॰—-—प्र + स्तृ + ल्युट्—शय्या
- प्रस्तरणम्—नपुं॰—-—प्र + स्तृ + ल्युट्—बिछौना
- प्रस्तरणा—स्त्री॰—-—प्र + स्तृ + ल्युट्—पलंग
- प्रस्तरणा—स्त्री॰—-—प्र + स्तृ + ल्युट्—शय्या
- प्रस्तरणा—स्त्री॰—-—प्र + स्तृ + ल्युट्—बिछौना
- प्रस्तारः—पुं॰—-—प्र + स्तृ + घञ्—बखेरना, फैलाना, आच्छादित करना
- प्रस्तारः—पुं॰—-—प्र + स्तृ + घञ्—पुष्पशय्या, पर्णशय्या
- प्रस्तारः—पुं॰—-—प्र + स्तृ + घञ्—पलंग, खाट
- प्रस्तारः—पुं॰—-—प्र + स्तृ + घञ्—चपटी सतह, समतल हमवार
- प्रस्तारः—पुं॰—-—प्र + स्तृ + घञ्—वनस्थली, जंगल
- प्रस्तारः—पुं॰—-—प्र + स्तृ + घञ्—संभावित भेदों समेत छन्द की ह्रस्व तथा दीर्घ मात्राओं की द्योतिका तालिका
- प्रस्तावः—पुं॰—-—प्र + स्तु + घञ्—आरंभ, शुरू
- प्रस्तावः—पुं॰—-—प्र + स्तु + घञ्—आमुख
- प्रस्तावः—पुं॰—-—प्र + स्तु + घञ्—उल्लेख, संकेत, संदर्भ
- प्रस्तावः—पुं॰—-—प्र + स्तु + घञ्—अवसर, मौका, समय, ऋतु, उपयुक्तकाल
- प्रस्तावः—पुं॰—-—प्र + स्तु + घञ्—प्रवचन का प्रयोजन, विषय, शीर्षक
- प्रस्तावः—पुं॰—-—प्र + स्तु + घञ्—नाटक की प्रस्तावना
- प्रस्तावयज्ञः—पुं॰—प्रस्तावः-यज्ञः—-—ऐसा वार्तालाप जिसमें प्रत्येक अन्तर्वादी भाग ले।
- प्रस्तावना—स्त्री॰—-—प्र + स्तु + णिच् + युच् + टाप्—प्रशंसित या उल्लिखित होने का कारण बनना, प्रशंसा, सराहना
- प्रस्तावना—स्त्री॰—-—प्र + स्तु + णिच् + युच् + टाप्—शुरू, आरंभ
- प्रस्तावना—स्त्री॰—-—प्र + स्तु + णिच् + युच् + टाप्—परिचय, भूमिका, आमुख
- प्रस्तावना—स्त्री॰—-—प्र + स्तु + णिच् + युच् + टाप्—नाटक के आरंभ में सूत्रधार तथा किसी एक पात्र के बीच में हुआ परिचयात्मक वार्तालाप
- प्रस्तावित—वि॰—-—प्र + स्तु + णिच् + क्त—आरंभ किया हुआ, शुरु किया हुआ
- प्रस्तावित—वि॰—-—प्र + स्तु + णिच् + क्त—उल्लिखित, इङ्गित- @ मा॰ ३/३
- प्रस्तिरः—पुं॰—-— = प्रस्तरः नि॰ इत्वम्—पर्णशय्या, पुष्पशय्या
- प्रस्तीत—वि॰—-—प्र + स्त्यै + क्त, संप्र॰ —कोलाहल करने वाला, शब्दायमान
- प्रस्तीत—वि॰—-—प्र + स्त्यै + क्त, संप्र॰ —भीड़भड़क्का, झुण्ड बनाते हुए
- प्रस्तीतम—वि॰—-—प्र + स्त्यै + क्त, संप्र॰ , तस्य मः—कोलाहल करने वाला, शब्दायमान
- प्रस्तीतम—वि॰—-—प्र + स्त्यै + क्त, संप्र॰ , तस्य मः—भीड़भड़क्का, झुण्ड बनाते हुए
- प्रस्तुत—भू॰ क॰ कृ॰—-—प्र + स्तु + क्त—जिसकी प्रशंसा की गई हो, या स्तुति की गई हो
- प्रस्तुत—भू॰ क॰ कृ॰—-—प्र + स्तु + क्त—आरंभ किया हुआ, शुरु किया हुआ
- प्रस्तुत—भू॰ क॰ कृ॰—-—प्र + स्तु + क्त—निष्पन्न, कृत, कार्यान्वित
- प्रस्तुत—भू॰ क॰ कृ॰—-—प्र + स्तु + क्त—घटित
- प्रस्तुत—भू॰ क॰ कृ॰—-—प्र + स्तु + क्त—उपागत
- प्रस्तुत—भू॰ क॰ कृ॰—-—प्र + स्तु + क्त—प्रस्तुत किया गया, उद्धोषित, विचाराधीन या विचारणीय
- प्रस्तुतम्—नपुं॰—-—प्र + स्तु + क्त—उपस्थित विषय, विचाराधीन विषय
- प्रस्तुतम्—नपुं॰—-—प्र + स्तु + क्त—विचार के विषय की रूपरेखा बनाना, उपमेय
- प्रस्तुताङ्कुरः—पुं॰—प्रस्तुत-अङ्कुरः—-—एक अलंकार जिसमें श्रोता के मन में निहित किसी बात को प्रकाशित करने के लिए संचारी परिस्थिति का उल्लेख किया जाता है|
- प्रस्थ—वि॰—-—प्र + स्था + क—जाने वाला, दर्शन करने वाला, पालन करने वाला
- प्रस्थ—वि॰—-—प्र + स्था + क—यात्रा पर जाने वाला
- प्रस्थ—वि॰—-—प्र + स्था + क—फैलाने वाला, विस्तार करने वाला
- प्रस्थ—वि॰—-—प्र + स्था + क—दृढ़, स्थिर
- प्रस्थः—पुं॰—-—प्र + स्था + क—समतल भूमि, चौरस मैदान
- प्रस्थः—पुं॰—-—प्र + स्था + क—पर्वत के शिखर पर समतल या चौरस भूमि
- प्रस्थः—पुं॰—-—प्र + स्था + क—पहाड़ का शिखर या चोटी
- प्रस्थः—पुं॰—-—प्र + स्था + क—एक विशिष्ट माप जो ३२ पलों के बराबर होता है।)
- प्रस्थः—पुं॰—-—प्र + स्था + क—’प्रस्थ’ के तोल के बराबर कोई वस्तु
- प्रस्थम्—नपुं॰—-—प्र + स्था + क—समतल भूमि, चौरस मैदान
- प्रस्थम्—नपुं॰—-—प्र + स्था + क—पर्वत के शिखर पर समतल या चौरस भूमि
- प्रस्थम्—नपुं॰—-—प्र + स्था + क—पहाड़ का शिखर या चोटी
- प्रस्थम्—नपुं॰—-—प्र + स्था + क—एक विशिष्ट माप जो ३२ पलों के बराबर होता है।)
- प्रस्थम्—नपुं॰—-—प्र + स्था + क—’प्रस्थ’ के तोल के बराबर कोई वस्तु
- प्रस्थपुष्पः—पुं॰—प्रस्थ-पुष्पः—-—तुलसी का एक भेद, दोना मरुआ
- प्रस्थम्पच—वि॰—-—प्रस्थ + पच् + अच्, मुमागमः—प्रस्थमात्र पकाने वाला
- प्रस्थानम्—नपुं॰—-—प्र + स्था + ल्युट्—प्रयाण करना, कूच करना, विदा, प्रगमन करना
- प्रस्थानम्—नपुं॰—-—प्र + स्था + ल्युट्—पहुँचना
- प्रस्थानम्—नपुं॰—-—प्र + स्था + ल्युट्—कूच करना, किसी सेना का या आक्राम का कूच करना
- प्रस्थानम्—नपुं॰—-—प्र + स्था + ल्युट्—प्रणाली, पद्धति
- प्रस्थानम्—नपुं॰—-—प्र + स्था + ल्युट्—मृत्यु, मरण
- प्रस्थानम्—नपुं॰—-—प्र + स्था + ल्युट्—निकृष्ट श्रेणी का नाटक
- प्रस्थापनम्—नपुं॰—-—प्र + स्था + णिच् + ल्युट्, पुकागमः—भेजना, तितर-बितर करना, प्रेषित करना
- प्रस्थापनम्—नपुं॰—-—प्र + स्था + णिच् + ल्युट्, पुकागमः—दूतावास में नियुक्ति
- प्रस्थापनम्—नपुं॰—-—प्र + स्था + णिच् + ल्युट्, पुकागमः—प्रमाणित करना, प्रदर्शन करना
- प्रस्थापनम्—नपुं॰—-—प्र + स्था + णिच् + ल्युट्, पुकागमः—उपयोग करना, काम में लगाना
- प्रस्थापनम्—नपुं॰—-—प्र + स्था + णिच् + ल्युट्, पुकागमः—पशुओं का अपहरण
- प्रस्थापित—भू॰ क॰ कृ॰—-—प्र + स्था + णिच् + क्त, पुकागमः—भेजा गया, प्रेषित
- प्रस्थापित—भू॰ क॰ कृ॰—-—प्र + स्था + णिच् + क्त, पुकागमः—स्थापित, सिद्ध
- प्रस्थित—भू॰ क॰ कृ॰—-—प्र + स्था + क्त—प्रयात, आगे बढ़ा हुआ, विदा हुआ, विसर्जित, यात्रा पर गया हुआ
- प्रस्थितिः—स्त्री॰—-—प्र + स्था + क्तिन्—चले जाना, विदा होना
- प्रस्थितिः—स्त्री॰—-—प्र + स्था + क्तिन्—कूच करना, यात्रा
- प्रस्नः—पुं॰—-—प्र + स्ना + क—स्नान-पात्र
- प्रस्नवः—पुं॰—-—प्र + स्नु + अप्—उमड़ कर बहना, बह निकलना, निःस्रवण
- प्रस्नवः—पुं॰—-—प्र + स्नु + अप्—धार या प्रवाह
- प्रस्नुत—भू॰ क॰ कृ॰—-—प्र + स्नु + क्त—झरता हुआ, रिसता हुआ, बहकर निकलता हुआ
- प्रस्नुतस्तनी—स्त्री॰—प्रस्नुत- स्तनी—-—वह स्त्री जिसकी छाती से दूध टपकता है- @ उत्तर॰ ३
- प्रस्नुषा—स्त्री॰, प्रा॰ स॰—-—-—पौत्रवधू
- प्रस्पन्दनम्—नपुं॰—-—प्र + स्पन्द् + ल्युट्—धड़्कन, थरथराहट, कंपकंपी
- प्रस्फुट—वि॰—-—प्र + स्फुट् + क—खिला हुआ, विकसित, फूला हुआ
- प्रस्फुट—वि॰—-—प्र + स्फुट् + क—उद्घोषित, प्रकाशित, फैलाई हुई
- प्रस्फुट—वि॰—-—प्र + स्फुट् + क—सरल, साफ, प्रकट, स्पष्ट
- प्रस्फुरित—भू॰ क॰ कृ॰—-—प्र + स्फुर् + क्त—ठिठुरता हुआ, कांपता हुआ, थरथराता हुआ, कम्पायमान
- प्रस्फोटनम्—नपुं॰—-—प्र + स्फुट् + ल्युट्—फूट निकलना, खिलना, मुकुलित होना
- प्रस्फोटनम्—नपुं॰—-—प्र + स्फुट् + ल्युट्—स्पष्ट या साफ करना, खोलना, प्रकट करना
- प्रस्फोटनम्—नपुं॰—-—प्र + स्फुट् + ल्युट्—टुकड़े-टुकड़े करना
- प्रस्फोटनम्—नपुं॰—-—प्र + स्फुट् + ल्युट्—खिलाना, विकसित करना
- प्रस्फोटनम्—नपुं॰—-—प्र + स्फुट् + ल्युट्—अनाज फटकना
- प्रस्फोटनम्—नपुं॰—-—प्र + स्फुट् + ल्युट्—छाज
- प्रस्फोटनम्—नपुं॰—-—प्र + स्फुट् + ल्युट्—छेतना, पीटना
- प्रस्रंसिन्—वि॰—-—प्र + स्रंस् + णिनि—समय से पूर्व गिर जाने वाला, कच्चा गिरना
- प्रस्रवः—पुं॰—-—प्र + स्रु + अप्—बूँद-बूँद गिरना, टपकना, बहना, रिसना
- प्रस्रवः—पुं॰—-—प्र + स्रु + अप्—बहाव, धारा
- प्रस्रवः—पुं॰—-—प्र + स्रु + अप्—औड़ी या स्तन से टपकने वाला दूध
- प्रस्रवः—पुं॰—-—प्र + स्रु + अप्—मूत्र
- प्रस्रवाः—पुं॰, ब॰ व॰—-—प्र + स्रु + अप्—उमड़ते हुए आँसू
- प्रस्रवणम्—नपुं॰—-—प्र + स्रु कान् + ल्युट्—बह निकलना, उमड़ना, टपकना, झरना, बूंद-बूंद गिरना
- प्रस्रवणम्—नपुं॰—-—प्र + स्रु कान् + ल्युट्—स्तन या औड़ी से दूध बहना
- प्रस्रवणम्—नपुं॰—-—प्र + स्रु कान् + ल्युट्—जलप्रपात, प्रपातिका, निर्झर
- प्रस्रवणम्—नपुं॰—-—प्र + स्रु कान् + ल्युट्—झरना, फौवारा
- प्रस्रवणम्—नपुं॰—-—प्र + स्रु कान् + ल्युट्—नाली, टोंटी
- प्रस्रवणम्—नपुं॰—-—प्र + स्रु कान् + ल्युट्—पहाड़ी सरिताओं से बना पोखर, पल्वल
- प्रस्रवणम्—नपुं॰—-—प्र + स्रु कान् + ल्युट्—स्वेद, पसीना
- प्रस्रवणम्—नपुं॰—-—प्र + स्रु कान् + ल्युट्—मूत्रोत्सर्ग
- प्रस्रवणः—पुं॰—-—प्र + स्रु कान् + ल्युट्—एक पहाड़ का नाम
- प्रस्रावः—पुं॰—-—प्र + स्रु + घञ्—बहाव, उमड़न
- प्रस्रावः—पुं॰—-—प्र + स्रु + घञ्—मूत्र
- प्रस्रुत—भू॰ क॰ कृ॰—-—प्र + स्रु + क्त—उमड़ा हुआ, टपका हुआ, बूँद-बूँद कर गिरा हुआ, रिसा हुआ
- प्रस्वनः—पुं॰—-—प्र + स्वन् + अप्, घञ् वा—ऊँची आवाज
- प्रस्वापः—पुं॰—-—प्र + स्वप् + घञ्—निद्रा
- प्रस्वापः—पुं॰—-—प्र + स्वप् + घञ्—स्वप्न
- प्रस्वापः—पुं॰—-—प्र + स्वप् + घञ्—निद्रा लाने वाला अस्त्र
- प्रस्वापनम्—नपुं॰—-—प्र + स्वष् + णिच् + ल्युट्—सुलाना, निद्रित करना
- प्रस्वापनम्—नपुं॰—-—प्र + स्वष् + णिच् + ल्युट्—ऐसा अस्त्र जो आक्रान्त व्यक्ति को सुला दे
- प्रस्विन्न—भू॰ क॰ कृ॰—-—प्र + स्विद् + क्त—पसीना आया हुआ, पसीने से तर
- प्रस्वेदः—पुं॰—-—प्र + स्विद् + घञ्—बहुत अधिक पसीना
- प्रस्वेदित—भू॰ क॰ कृ॰—-—प्र + स्विद् + णिच् + क्त—स्वेदाच्छन्न, पसीने से सराबोर, पसीना आया हुआ
- प्रस्वेदित—भू॰ क॰ कृ॰—-—प्र + स्विद् + णिच् + क्त—पसीना लाने वाला, गर्म
- प्रहणनम्—नपुं॰—-—प्र + हन् + ल्युट्—वध, हत्या
- प्रहत—वि॰—-—प्र + हन् + क्त—घायल, वध किया हुआ, मारा हुआ
- प्रहत—वि॰—-—प्र + हन् + क्त—पीटा हुआ, बजाना
- प्रहत—वि॰—-—प्र + हन् + क्त—पीछे ढकेला हुआ, विजित, पराजित
- प्रहत—वि॰—-—प्र + हन् + क्त—फैलाया हुआ, फुलाया हुआ
- प्रहत—वि॰—-—प्र + हन् + क्त—सटा हुआ
- प्रहत—वि॰—-—प्र + हन् + क्त—घिसा-पिटा, गतानुगतिक
- प्रहत—वि॰—-—प्र + हन् + क्त—निष्पन्न, विद्वान्
- प्रहरः—पुं॰—-—प्र + ह + अप्—दिन का आठवाँ भाग, प्रहर
- प्रहरकः—पुं॰—-—प्रहर + कन्—एक पहर
- प्रहरणम्—नपुं॰—-—प्र + हृ + ल्युट्—प्रहार करना, मारना
- प्रहरणम्—नपुं॰—-—प्र + हृ + ल्युट्—डालना, फेंकना
- प्रहरणम्—नपुं॰—-—प्र + हृ + ल्युट्—धावा करना, आक्रमण करना
- प्रहरणम्—नपुं॰—-—प्र + हृ + ल्युट्—घायल करना
- प्रहरणम्—नपुं॰—-—प्र + हृ + ल्युट्—हटाना, बाहर निकालना
- प्रहरणम्—नपुं॰—-—प्र + हृ + ल्युट्—शस्त्र अस्त्र
- प्रहरणम्—नपुं॰—-—प्र + हृ + ल्युट्—संग्राम, युद्ध, लड़ाई
- प्रहरणम्—नपुं॰—-—प्र + हृ + ल्युट्—ढकी हुई पालकी या डोला
- प्रहरणीयम्—नपुं॰—-—प्र + हृ + अनीयर्—अस्त्र, शस्त्र
- प्रहरिन्—पुं॰—-—प्रहर + इनि—रखवाला
- प्रहरिन्—पुं॰—-—प्रहर + इनि—पहरेदार, घंटी वाला
- प्रहर्तृ—वि॰—-—प्र + हृ + तृच्—प्रहार करने वाला, पीटने वाला, हमला करने वाला
- प्रहर्तृ—वि॰—-—प्र + हृ + तृच्—लड़ने वाला, संयोधी, योद्धा
- प्रहर्तृ—वि॰—-—प्र + हृ + तृच्—तीरंदाज, निशानेबाज, धनुर्धर
- प्रहर्षः—पुं॰—-—प्र + हृष् + घञ्—अत्यधिक हर्ष, अत्यानन्द, उल्लास
- प्रहर्षः—पुं॰—-—प्र + हृष् + घञ्—लिङ्ग का खड़ा होना
- प्रहर्षणम्—नपुं॰—-—प्र + हृष् + ल्युट्—उल्लसित करना, प्रहृष्ट करना, आनन्दित करना
- प्रहर्षणः—पुं॰—-—-—बुध ग्रह
- प्रहर्षणी—स्त्री॰—-—प्र + हृष् + णिच् + ल्युट् + ङीप् + प्र + हृष् + णिच् + णिनि + ङीष्—हल्दी
- प्रहर्षणी—स्त्री॰—-—प्र + हृष् + णिच् + ल्युट् + ङीप् + प्र + हृष् + णिच् + णिनि + ङीष्—एक छन्द का नाम
- प्रहर्षुलः—पुं॰—-—प्र + हृष् + उलच्—बुध ग्रह
- प्रहसनम्—नपुं॰—-—प्र + हस् + ल्युट्—जोर की हँसी, अट्टहास, खिलखिलाकर हँसना
- प्रहसनम्—नपुं॰—-—प्र + हस् + ल्युट्—मजाक, ठिठोली, व्यंग्योक्ति, उपहास
- प्रहसनम्—नपुं॰—-—प्र + हस् + ल्युट्—व्यंग्यलेख, व्यंग्य
- प्रहसनम्—नपुं॰—-—प्र + हस् + ल्युट्—स्वांग, तमाशा, हँसी का सुखान्त नाटक
- प्रहसन्ती—स्त्री॰—-—प्र + हस् + शतृ + ङीप्—एक प्रकार की चमेली, जुही, यूथिका, बासन्ती
- प्रहसन्ती—स्त्री॰—-—प्र + हस् + शतृ + ङीप्—एक बड़ी अंगीठी
- प्रहसित—भू॰ क॰ कृ॰—-—प्र + हस् + क्त—हँसता हुआ
- प्रहसितम्—नपुं॰—-—प्र + हस् + क्त—हँसी, हास्य
- प्रहस्तः—पुं॰—-—प्रततः प्रसृतो हस्तः- प्रा॰ स॰—खुला हाथ जिसकी अँगुलियाँ फैली हों
- प्रहस्तः—पुं॰—-—प्रततः प्रसृतो हस्तः- प्रा॰ स॰—रावण के एक सेनापति का नाम
- प्रहाणम्—नपुं॰—-—प्र + हा + ल्युट्—त्यागना, छोड़ना, भूल जाना
- प्रहाणिः—स्त्री॰—-—प्र + हा + नि, णत्वम्—त्यागना
- प्रहाणिः—स्त्री॰—-—प्र + हा + नि, णत्वम्—कमी, अभाव
- प्रहारः—पुं॰—-—प्र + हृ + घञ्—वार करना, पीटना, चोट करना
- प्रहारः—पुं॰—-—प्र + हृ + घञ्—घायल करना, मार डालना
- प्रहारः—पुं॰—-—प्र + हृ + घञ्—आघात, मुक्का, चोट, ठोकर, धौल
- प्रहारः—पुं॰—-—प्र + हृ + घञ्—मुष्टिप्रहार, तलप्रहार
- प्रहारः—पुं॰—-—प्र + हृ + घञ्—ठोकर
- प्रहारः—पुं॰—-—प्र + हृ + घञ्—गोली मारना
- प्रहारणम्—नपुं॰—-—प्र + हृ + णिच् + ल्युट्—वाञ्छनीय उपहार
- प्रहासः—पुं॰—-—प्र + हस् + घञ्—जोर की हँसी, अट्टहास
- प्रहासः—पुं॰—-—प्र + हस् + घञ्—मज़ाक, दिल्लगी, हंसी
- प्रहासः—पुं॰—-—प्र + हस् + घञ्—व्यंग्योक्ति, व्यंग्य
- प्रहासः—पुं॰—-—प्र + हस् + घञ्—नर्तक, नट, पात्र
- प्रहासः—पुं॰—-—प्र + हस् + घञ्—शिव
- प्रहासः—पुं॰—-—प्र + हस् + घञ्—दर्शन, दिखावा
- प्रहासः—पुं॰—-—प्र + हस् + घञ्—एक तीर्थस्थान का नाम
- प्रहासिन्—पुं॰—-—प्र + हस् + णिच् + णिनि—विदूषक, मसखरा
- प्रहिः—पुं॰—-—प्र + हि + क्विप्—कुआँ
- प्रहित—भू॰ क॰ कृ॰—-—प्र + धा + क्त—रक्खा हुआ, प्रस्तुत किया हुआ
- प्रहित—भू॰ क॰ कृ॰—-—प्र + धा + क्त—बढ़ाया हुआ, फैलाया हुआ
- प्रहित—भू॰ क॰ कृ॰—-—प्र + धा + क्त—भेजा हुआ, प्रेषित, निदेशित
- प्रहित—भू॰ क॰ कृ॰—-—प्र + धा + क्त—छोड़ा हुआ, निशाना लगाया हुआ
- प्रहित—भू॰ क॰ कृ॰—-—प्र + धा + क्त—नियुक्त किया गया
- प्रहित—भू॰ क॰ कृ॰—-—प्र + धा + क्त—समुचित,उपयुक्त
- प्रहितम्—नपुं॰—-—प्र + धा + क्त—चाट, चटनी
- प्रहीण—भू॰ क॰ कृ॰—-—प्र + हा + क्त, ईत्, तस्य नः, णत्वम्—छोड़ा गया, खाली किया गया, त्यागा गया
- प्रहीणम्—नपुं॰—-—प्र + हा + क्त, ईत्, तस्य नः, णत्वम्—विनाश, निराकरण, घाटा
- प्रहुतः<o> प्रहुतम्—नपुं॰—-—प्र + हु + क्त—भूतयज्ञ, बलिवैश्यवदेव, दैनिक पाँच यज्ञों में एक
- प्रहृत—भू॰ क॰ कृ॰—-—प्र + हृ + क्त—पीटा गया, आघात किया गया, चोट किया गया, घायल किया गया
- प्रहृतम्—नपुं॰—-—प्र + हृ + क्त—मुक्का, प्रहार, चोट
- प्रहृष्ट—भू॰ क॰ कृ॰—-—प्र + हृष् + क्त—खुश,प्रसन्न, अनंदित, आह्लादित
- प्रहृष्ट—भू॰ क॰ कृ॰—-—प्र + हृष् + क्त—पुलकित करना, रोमांचित करना
- प्रहृष्टात्मन्—वि॰—प्रहृष्ट-आत्मन्—-—मन से खुश, हृदय से आनन्दित
- प्रहृष्टचित्त—वि॰—प्रहृष्ट-चित्त—-—मन से खुश, हृदय से आनन्दित
- प्रहृष्टमनस्—वि॰—प्रहृष्ट-मनस्—-—मन से खुश, हृदय से आनन्दित
- प्रहृष्टकः—पुं॰—-—प्रहृष्ट + कन्—काक, कौवा
- प्रहेलकः—पुं॰—-—प्र + हिल् + ण्वुल्—एक प्रकार का सुहाल, मीठी रोटी
- प्रहेलकः—पुं॰—-—प्र + हिल् + ण्वुल्—पहेली
- प्रहेला—स्त्री॰—-—प्र + हिल् + अ + टाप् —मुक्त या अनियंत्रित व्यवहार, शिथिल आचरण, रंगरेली, विहार
- प्रहेलिः—स्त्री॰—-—प्र + हिल् + इन्—पहेली, बुझौवल, कूट प्रश्न
- प्रहेलिका—स्त्री॰—-—प्रहेलि+ कन् +टाप्—पहेली, बुझौवल, कूट प्रश्न
- प्रह्लन्न—भू॰ क॰ कृ॰—-—प्र + ह्लाद् + क्त, ह्र्स्वः—खुश, आनंदित, प्रसन्न
- प्रह्रादः—पुं॰—-—प्र + ह्लाद् + घञ्, रलयोरैक्यम्—अत्यधिक हर्ष, प्रसन्नता, खुशी, आनन्द
- प्रह्रादः—पुं॰—-—प्र + ह्लाद् + घञ्, रलयोरैक्यम्—शब्द, आवाज़
- प्रह्रादः—पुं॰—-—प्र + ह्लाद् + घञ्, रलयोरैक्यम्—हिरण्यकशिपु राक्षस के पुत्र का नाम
- प्रह्रादन—वि॰—-—प्र + ह्लाद् + णिच् + ल्युट्, रलयोरैक्यम्—आनन्द देने वाला, प्रसन्न करने वाला
- प्रह्लादनम्—नपुं॰—-—-—हर्ष या प्रसन्नता पैदा करना, आनन्द देना, खुश करना
- प्रह्व—वि॰—-—प्र + ह्व + वन्, नि॰ साधुः—ढलुवाँ, तिरछा, झुका हुआ
- प्रह्व—वि॰—-—प्र + ह्व + वन्, नि॰ साधुः—झुकता हुआ, नीचे को झुका हुआ, विनम्र
- प्रह्व—वि॰—-—प्र + ह्व + वन्, नि॰ साधुः—दीन, विनीत, सुशील, विनयी
- प्रह्व—वि॰—-—प्र + ह्व + वन्, नि॰ साधुः—अनुरक्त, भक्त, व्यस्त, आसक्त
- प्रह्वाञ्जलि—वि॰—प्रह्व- अञ्जलि—-—सम्मान के चिह्न स्वरूप दोनों हाथ जोड़ कर सिर झुकाए हुए
- प्रह्वयति—ना॰ धा॰- पर॰—-—-—विनीत करना, वशवर्ती बनाना
- प्रह्वलिका—स्त्री॰—-—-—पहेली, बुझौवल, कूट प्रश्न
- प्रह्वायः—पुं॰—-—प्र + ह्वे + घञ्—बुलावा, आमंत्रण, निमंत्रण
- प्रांशु—वि॰, प्रा॰ ब॰—-—प्रकृष्टा अंशवो यस्य—ऊँचा, लंबा, कद्दांवर, ऊँचे कद का
- प्रांशु—वि॰, प्रा॰ ब॰—-—प्रकृष्टा अंशवो यस्य—लंबा, बढ़ाया हुआ
- प्रांशुः—पुं॰, प्रा॰ ब॰—-—प्रकृष्टा अंशवो यस्य—लंबा मनुष्य, बड़े क़द का आदमी
- प्राक्—अव्य॰—-—प्राचि सप्तम्यर्थे असिः तस्य लुक्—पहले
- प्राक्—अव्य॰—-—प्राचि सप्तम्यर्थे असिः तस्य लुक्—सबसे पहले, पहले ही-
- प्राक्—अव्य॰—-—प्राचि सप्तम्यर्थे असिः तस्य लुक्—पहले, पूर्व, पूर्व अंश में
- प्राक्—अव्य॰—-—प्राचि सप्तम्यर्थे असिः तस्य लुक्—पूर्व में, से पूर्व दिशा में
- प्राक्—अव्य॰—-—प्राचि सप्तम्यर्थे असिः तस्य लुक्—सामने
- प्राक्—अव्य॰—-—प्राचि सप्तम्यर्थे असिः तस्य लुक्—जहाँ तक हो वहाँ तक, पर्यंत, तक
- प्राकटयम्—नपुं॰—-—प्रकट + ष्यञ्—प्रकट करना, प्रकाशित करना, कुख्याति
- प्राकरणिक—वि॰—-—प्रकरण + ठक्—विचारणीय विषय से संबंध रखने वाला, प्रस्तुत विषय से संबद्ध
- प्राकर्षिक—वि॰—-—प्रकर्ष + ठक्—श्रेष्ठतर या अधिक अच्छा समझा जाने का अधिकारी
- प्राकषिकः—पुं॰—-—प्र + आ + कष् + इकन्—लौंडा, गांडु
- प्राकषिकः—पुं॰—-—प्र + आ + कष् + इकन्—दूसरे की स्त्री से अपनी जीविका चलाने वाला
- प्राकाम्यम्—नपुं॰—-—प्रकाम + ष्यञ्—इच्छा की स्वतंत्रता
- प्राकाम्यम्—नपुं॰—-—प्रकाम + ष्यञ्—स्वेच्छाचारिता
- प्राकाम्यम्—नपुं॰—-—प्रकाम + ष्यञ्—अनिवार्य संकल्प, शिव की आठ प्रकार की सिद्धियों में से एक
- प्राकृत—वि॰—-—प्रकृति + अण्—मौलिक, नैसर्गिक, अपरिवर्तित, अविकृत
- प्राकृत—वि॰—-—प्रकृति + अण्—प्रचलित, सामान्य, साधारण
- प्राकृत—वि॰—-—प्रकृति + अण्—असंस्कृत, गंवार, असभ्य, अशिक्षित
- प्राकृत—वि॰—-—प्रकृति + अण्—नगण्य, महत्त्वहीन, तुच्छ
- प्राकृत—वि॰—-—प्रकृति + अण्—प्रकृति से उत्पन्न
- प्राकृत—वि॰—-—प्रकृति + अण्—प्रान्तीय, देहाती
- प्राकृतः—पुं॰—-—प्रकृति + अण्—ओछा मनुष्य, साधारण व्यक्ति, देहाती पुरुष
- प्राकृतम्—नपुं॰—-—प्रकृति + अण्—एक देहाती या प्रान्तीय बोली जो संस्कृत से व्युत्पन्न तथा उससे मिलती- जुलती है
- प्राकृतारिः—पुं॰—प्राकृत-अरिः—-—नैसर्गिक शत्रु अर्थात् पड़ोसी देश का शासक
- प्राकृतोदासीनः—पुं॰—प्राकृत-उदासीनः—-—नैसर्गिक तटस्थ अर्थात् वह राजा जिसका राज्य नैसर्गिक मित्र राज्य के परे है।
- प्राकृतज्वरः—पुं॰—प्राकृत-ज्वरः—-—सामान्य या साधारण बुखार
- प्राकृतप्रलयः—पुं॰—प्राकृत- प्रलयः—-—विश्व का पूर्ण विघटन
- प्राकृतमित्रम्—नपुं॰—प्राकृत-मित्रम्—-—नैसर्गिक मित्र अर्थात् वह राजा जिसका राज्य नैसर्गिक शत्रु राज्य से मिला हुआ है।
- प्राकृतिक—वि॰—-—प्रकृति + ठञ्—नैसर्गिक, प्रकृति से व्युत्पन्न
- प्राकृतिक—वि॰—-—प्रकृति + ठञ्—भ्रान्तिजनक, भ्रमोत्पादक
- प्राक्तन—वि॰—-—प्राच् + टयु, तुडागमः—पहला, पूर्व का, पिछला
- प्राक्तन—वि॰—-—प्राच् + टयु, तुडागमः—पुराना, प्राचीन, पहले का
- प्राक्तन—वि॰—-—प्राच् + टयु, तुडागमः—पूर्वजन्म से संबद्ध, या पूर्वजन्म में किये हुए कार्य
- प्राखर्यम्—नपुं॰—-—प्रखर + ष्यञ्—पैनापन
- प्राखर्यम्—नपुं॰—-—प्रखर + ष्यञ्—तीक्ष्णता
- प्राखर्यम्—नपुं॰—-—प्रखर + ष्यञ्—दुष्टता
- प्रागल्भ्यम्—नपुं॰—-—प्रगल्भ + ष्यञ्—साहस, भरोसा
- प्रागल्भ्यम्—नपुं॰—-—प्रगल्भ + ष्यञ्—घमंड, अहंकार
- प्रागल्भ्यम्—नपुं॰—-—प्रगल्भ + ष्यञ्—प्रवीणता, कुशलता
- प्रागल्भ्यम्—नपुं॰—-—प्रगल्भ + ष्यञ्—विकास, बड़प्पन, परिपक्वता
- प्रागल्भ्यम्—नपुं॰—-—प्रगल्भ + ष्यञ्—प्रकटीकरण, प्रतीति
- प्रागल्भ्यम्—नपुं॰—-—प्रगल्भ + ष्यञ्—वाक्पटुता
- प्रागल्भ्यम्—नपुं॰—-—प्रगल्भ + ष्यञ्—धूमधाम, मर्यादा
- प्रागल्भ्यम्—नपुं॰—-—प्रगल्भ + ष्यञ्—धृष्ठता, ढिठाई
- प्रागारः—पुं॰, प्रा॰ स॰—-—प्रकृष्टः आगारः—घर, भवन
- प्राग्रम्—नपुं॰, प्रा॰ स॰—-—-—उच्चतम बिन्दु
- प्राग्रसर—वि॰—प्राग्रम्-सर—-—प्रथम, अग्रणी
- प्राग्रहर—वि॰—प्राग्रम्-हर—-—मुख्य, प्रधान
- प्राग्राटः—पुं॰—-—प्राग्र + अट् + अच्—पतला जमा हुआ दूध
- प्राग्य—वि॰—-—प्राग्र + यत्—मुख्य, अग्रणी, उत्तम, अतिश्रेष्ठ
- प्राघातः—पुं॰, प्रा॰ स॰—-—प्रकृष्ट आघातः—युद्ध, लड़ाई
- प्राघारः—पुं॰—-—प्र + घृ + घञ्—टपकना, बूंद-बूंद गिरना, रिसना
- प्राघुणः—पुं॰—-—प्र + घुण् + क—अतिथि, पाहुना, अभ्यागत, मेहमान
- प्राघुणकः—पुं॰—-—प्राघुण + कन्—अतिथि, पाहुना, अभ्यागत, मेहमान
- प्राघुणिकः—पुं॰—-—प्राघुण + ठक्—अतिथि, पाहुना, अभ्यागत, मेहमान
- प्राघूर्णकः—पुं॰—-—प्र + आ + घूर्ण् + ण्वुल्—अतिथि, पाहुना, अभ्यागत, मेहमान
- प्राघूर्णिकः—पुं॰—-—प्राघूर्ण + ठञ्—अतिथि, पाहुना, अभ्यागत, मेहमान
- प्राङ्गम्—नपुं॰, प्रा॰ ब॰—-—प्रकृष्टमगं यस्य—एक प्रकार की ढोलक
- प्राच्—वि॰—-—प्र + अञ्च् + क्विन्—सामने की ओर मुड़ा हुआ, सामने बिल्कुल आगे रहने वाला
- प्राच्—वि॰—-—प्र + अञ्च् + क्विन्—पूर्वदिशा संबंधी, पूर्व का
- प्राच्—वि॰—-—प्र + अञ्च् + क्विन्—प्राथमिक, पहला, पूर्वकाल का
- प्राञ्च्—वि॰—-—प्र + अञ्च् + क्विन्—सामने की ओर मुड़ा हुआ, सामने बिल्कुल आगे रहने वाला
- प्राञ्च्—वि॰—-—प्र + अञ्च् + क्विन्—पूर्वदिशा संबंधी, पूर्व का
- प्राञ्च्—वि॰—-—प्र + अञ्च् + क्विन्—प्राथमिक, पहला, पूर्वकाल का
- प्राच्—पुं॰ ब॰ व॰—-—-—पूर्वदेश के लोग
- प्राच्—पुं॰ ब॰ व॰—-—-—पूर्वीय वैयाकरण
- प्रागग्र—वि॰—प्राच्-अग्र—-—पूर्वदिशा की ओर दृष्टि फेरे हुए
- प्रागभावः—पुं॰—प्राच्-अभावः—-—पिछला, सत्ता का अभाव, किसी वस्तु की उत्पत्ति के पूर्व का अनस्तित्व, उत्पत्ति से पूर्व की अवस्था
- प्रागभिहित—वि॰—प्राच्-अभिहित—-—पूर्वोक्त
- प्रागवस्था—स्त्री॰—प्राच्-अवस्था—-—पहली दशा
- प्रागायत—वि॰—प्राच्-आयत—-—पूर्वदिशा की ओर बढ़ा हुआ
- प्रागुक्तिः—स्त्री॰—प्राच्-उक्तिः—-—पूर्वकथित
- प्रागुत्तर—वि॰—प्राच्-उत्तर—-—पूर्वोत्तर का
- प्रागुदीची—स्त्री॰—प्राच्-उदीची—-—पूर्वोत्तर दिशा
- प्राक्कर्मन्—नपुं॰—प्राच्-कर्मन्—-—पूर्वजन्म में किया हुआ कार्य
- प्राक्कालः—पुं॰—प्राच्-कालः—-—पहला युग
- प्राक्कालीन—वि॰—प्राच्-कालीन—-—पूर्वकाल से संबंध रखने वाला, पुराना, प्राचीन
- प्राक्कूल—वि॰—प्राच्-कूल—-—जिसकी नोक पूर्वदिशा की ओर मुड़ी हुई हो
- प्राक्कृतम्—नपुं॰—प्राच्-कृतम्—-—पूर्वजन्म में किया गया कार्य
- प्राक्चरणा—स्त्री॰—प्राच्-चरणा—-—स्त्री की जननेन्द्रिय, योनि
- प्राक्चिरम्—अव्य॰—प्राच्-चिरम्—-—समय रहते, देर न करके
- प्राग्जन्मन्—नपुं॰—प्राच्-जन्मन्—-—पूर्वजन्म
- प्राग्जातिः—स्त्री॰—प्राच्-जातिः—-—पूर्वजन्म
- प्राग्ज्योतिषः—पुं॰—प्राच्-ज्योतिषः—-—एक देश का नाम, कामरूप देश का नामांतर
- प्राग्ज्योतिषः—ब॰ व॰—प्राच्-ज्योतिषः—-—इस देश के रहने वाले लोग
- प्राग्ज्योतिषम्—नपुं॰—प्राच्-ज्योतिषम्—-—एक नगर का नाम
- प्राग्ज्येष्ठः—पुं॰—प्राच्-ज्येष्ठः—-—विष्णु का विशेषण
- प्राग्दक्षिण—वि॰—प्राच्-दक्षिण—-—दक्षिणपूर्वी
- प्राग्देशः—पुं॰—प्राच्-देशः—-—पूर्वदिशा का देश
- प्राग्द्वार—वि॰—प्राच्-द्वार—-—जिसका दरवाजा पूर्वदिशा की ओर हो
- प्राग्द्वारिक—वि॰—प्राच्-द्वारिक—-—जिसका दरवाजा पूर्वदिशा की ओर हो
- प्राङ्न्यायः—पुं॰—प्राच्-न्यायः—-—पहली जांचपड़ताल का तर्क, पहले से ही निर्णीत मुकदमा
- प्राक्प्रहारः—पुं॰—प्राच्-प्रहारः—-—पहला मुक्का
- प्राक्फलः—पुं॰—प्राच्-फलः—-—कटहल का पेड़
- प्राक्फल्गुनी—स्त्री॰—प्राच्-फल्गुनी—-—ग्यारहवाँ नक्षत्र, पूर्वाफाल्गुनी
- प्राग्भवः—पुं॰—प्राच्-भवः—-—बृहस्पतिग्रह
- प्राग्भवः—पुं॰—प्राच्-भवः—-—बृहस्पति का नाम
- प्राक्फाल्गुनः—पुं॰—प्राच्-फाल्गुनः—-—बृहस्पतिग्रह
- प्राक्फाल्गुनेयः—पुं॰—प्राच्-फाल्गुनेयः—-—बृहस्पतिग्रह
- प्राग्भक्तम्—नपुं॰—प्राच्-भक्तम्—-—भोजन से पूर्व औषधिसेवन
- प्राग्भागः—पुं॰—प्राच्-भागः—-—सामने का भाग
- प्राग्भागः—पुं॰—प्राच्-भागः—-—अगला भाग
- प्राग्भारः—पुं॰—प्राच्-भारः—-—पहाड़ का शिखर या चोटी
- प्राग्भारः—पुं॰—प्राच्-भारः—-—सामने का भाग, अगला भाग या किनारा
- प्राग्भारः—पुं॰—प्राच्-भारः—-—बड़ा परिमाण, ढेर, समुच्चय, बाढ
- प्राग्भावः—पुं॰—प्राच्-भावः—-—पूर्वजन्म
- प्राग्भावः—पुं॰—प्राच्-भावः—-—श्रेष्ठता, उत्तमता
- प्राङ्मुख—वि॰—प्राच्-मुख—-—पूर्व की ओर को मुड़ा हुआ
- प्राङ्मुख—वि॰—प्राच्-मुख—-—झुका हुआ, कामना करता हुआ, इच्छुक
- प्राग्वंशः—पुं॰—प्राच्-वंशः—-—यज्ञशाला जिसके स्तंभ पूर्व की ओर मुड़े हुए हों
- प्राग्वंशः—पुं॰—प्राच्-वंशः—-—पहला वंश या पीढ़ी
- प्राग्वृत्तम्—नपुं॰—प्राच्-वृत्तम्—-—पहली जांचपड़ताल का तर्क, पहले से ही निर्णीत मुकदमा
- प्राग्वृत्तान्तः—पुं॰—प्राच्-वृत्तान्तः—-—पहली घटना
- प्राक्शिरस्—वि॰—प्राच्-शिरस्—-—पूर्वदिशा की ओर सिर मोड़े हुए
- प्राक्शिरस—वि॰—प्राच्-शिरस—-—पूर्वदिशा की ओर सिर मोड़े हुए
- प्राक्शिरस्क—वि॰—प्राच्-शिरस्क—-—पूर्वदिशा की ओर सिर मोड़े हुए
- प्राक्सन्ध्या—स्त्री॰—प्राच्-संन्ध्या—-—प्रातःकालीन संध्या
- प्राक्सेवनम्—नपुं॰—प्राच्-सेवनम्—-—प्रातःकालीन जलतर्पण या यज्ञ
- प्राक्स्रोतस्—वि॰—प्राच्-स्रोतस्—-—पूर्व की ओर बहने वाला
- प्राचण्डयम्—नपुं॰—-—प्रचण्ड + ष्यञ्—उत्कटता, उग्रता
- प्राचण्डयम्—नपुं॰—-—प्रचण्ड + ष्यञ्—भीषणता, विकराल दृष्टि
- प्राचिका—स्त्री॰—-—प्र + अञ्च् + क्कुन् + टाप्, इत्वम्—मच्छर
- प्राचिका—स्त्री॰—-—प्र + अञ्च् + क्कुन् + टाप्, इत्वम्—डांस की जाति की एक जंगली मक्खी
- प्राची—स्त्री॰—-—प्र + अञ्च् + क्विन् + ङीप्—पूर्व दिशा
- प्राचीपतिः—पुं॰—प्राची-पतिः—-—इन्द्र का विशेषण
- प्राचीमूलम्—नपुं॰—प्राची-मूलम्—-—पूर्वी क्षितिज
- प्राचीन—वि॰—-—प्राच् + ख—सामने की ओर या पूर्व दिशा की ओर मुड़ा हुआ, पूर्वी, पुरवैया,पूर्वाभिमुखी
- प्राचीन—वि॰—-—प्राच् + ख—पहला, पूर्वकाल का, पूर्वोक्त
- प्राचीन—वि॰—-—प्राच् + ख—पुराना, पुरातन,
- प्राचीनः—पुं॰—-—प्राच् + ख—वाड़, दीवार
- प्राचीनम्—नपुं॰—-—प्राच् + ख—वाड़, दीवार
- प्राचीनाग्र—वि॰—प्राचीन-अग्र—-—पूर्वदिशा की ओर दृष्टि फेरे हुए
- प्राचीनावीतम्—नपुं॰—प्राचीन-आवीतम्—-—यज्ञोपवीत, जनेऊ
- प्राचीनावीतिन्—वि॰—प्राचीन-आवीतिन्—-—जनेऊ को दायें कंधे के ऊपर से तथा बाईं भुजा के नीचे से पहनने वाला
- प्राचीनोपवीत—वि॰—प्राचीन-उपवीत—-—जनेऊ को दायें कंधे के ऊपर से तथा बाईं भुजा के नीचे से पहनने वाला
- प्राचीनकल्पः—पुं॰—प्राचीन- कल्पः—-—पहला कल्प
- प्राचीनगाथा—स्त्री॰—प्राचीन-गाथा—-—पुरानी कहानी
- प्राचीनतिलकः—पुं॰—प्राचीन- तिलकः—-—चन्द्रमा
- प्राचीनपनसः—पुं॰—प्राचीन-पनसः—-—बेल का वृक्ष
- प्राचीनबर्हिस्—पुं॰—प्राचीन-बर्हिस्—-—इन्द्र का विशेषण
- प्राचीनमतम्—नपुं॰—प्राचीन-मतम्—-—पुरानी सम्मति
- प्राचीरम्—नपुं॰—-—प्र + आ + चि + क्रन्, दीर्घः—घेरा, बाड़, दीवार
- प्राचुर्यम्—नपुं॰—-—प्रचुर + ष्यञ्—बहुतायत, पर्याप्तता, बहुलता
- प्राचुर्यम्—नपुं॰—-—प्रचुर + ष्यञ्—समुच्चय
- प्राचेतसः—पुं॰—-—प्रचेतसः अपत्यम्- प्रचेतस् + अण्—मनु का पैतृक नाम
- प्राचेतसः—पुं॰—-—प्रचेतसः अपत्यम्- प्रचेतस् + अण्—दक्ष का कुलसूचक नाम
- प्राचेतसः—पुं॰—-—प्रचेतसः अपत्यम्- प्रचेतस् + अण्—वाल्मीकि का गोत्रीय नाम
- प्राच्य—वि॰—-—प्राचि भवः यत्—सामने से स्थित या विद्यमान
- प्राच्य—वि॰—-—प्राचि भवः यत्—पूर्व दिशा में रहने वाला, पुरवैया, पूर्वाभिमुखी
- प्राच्य—वि॰—-—प्राचि भवः यत्—प्राथमिक पूर्ववर्ती, पहला
- प्राच्य—वि॰—-—प्राचि भवः यत्—प्राचीन, पुराना
- प्राच्याः—ब॰ व॰—-—-—पूर्वी देश, सरस्वती के दक्षिण में या पूर्व में स्थित देश
- प्राच्याः—ब॰ व॰—-—-—इस देश के निवासी
- प्राच्यभाषा—स्त्री॰—प्राच्य-भाषा—-—पूर्वी बोली, भारत के पूर्व में बोली जाने वाली भाषा
- प्राच्यक—वि॰—-—प्राच्य + कन्—पूर्वी, पुरवैया, पूर्वाभिमुखी
- प्राछ्—वि॰—-—प्रच्छ् + क्विप्, नि॰ दीर्घः—पूछने वाला, पूछताछ करने वाला, प्रश्न करने वाला
- प्राड्विवाकः—पुं॰—प्राछ्- विवाकः—-—न्यायाधीश, कचहरी या अदालत में प्रधान पद पर अधिष्ठित अधिकारी
- प्राजकः—पुं॰—-—प्र + अज् + णिच् + ण्वुल्—सारथि, चालक, रथवान्
- प्राजनः—पुं॰—-—प्र + अज् + णिच् + ण्वुल्—हंटर, चाबुक, अंकुश
- प्राजनम्—नपुं॰—-—प्र + अज् + ल्युट्—हंटर, चाबुक, अंकुश
- प्राजापत्य—वि॰—-—प्रजापति + यक्—प्रजापति से संबंध रखने वाला या जो प्रजापति के लिए पुण्यप्रद हो
- प्राजापत्यः—पुं॰—-—प्रजापति + यक्—हिन्दू धर्मशास्त्र के अनुसार आठ प्रकार के विवाहों में से एक, जिसमें लड़की का पिता वर से बिना किसी प्रकार का उपहार लिए केवल इसलिए कन्यादान करता है जिससे वह सानन्द, श्रद्धा और भक्तिपूर्वक साथ-साथ रहकर दाम्पत्य जीवन बिताएँ।
- प्राजापत्यः—पुं॰—-—प्रजापति + यक्—गंगा और यमुना का संगम, प्रयाग
- प्राजापत्यम्—नपुं॰—-—प्रजापति + यक्—एक प्रकार का यज्ञ जो पुत्रहीन पिता अपनी लड़्की के पुत्र को अपना उत्तराधिकारी नियत करने से पूर्व करता है।
- प्राजापत्यम्—नपुं॰—-—प्रजापति + यक्—सर्जनात्मक ऊर्जा या शक्ति
- प्राजापत्या—स्त्री॰—-—प्रजापति + यक्+ टाप्—संन्यासी बनने से पूर्व अपनी सारी संपत्ति को दान कर देना
- प्राजिकः—पुं॰—-—प्र + अज् + ठञ्—बाज, पक्षी, श्येन
- प्राजितृ—पुं॰—-—प्र + अज् + तृच्—सारथि, चालक, रथवान्
- प्राजिन्—पुं॰—-—प्र + अज् + णिनि—सारथि, चालक, रथवान्
- प्राजेशम्—नपुं॰—-—प्रजेशो देवताऽस्य- प्रजेश + अण्—रोहिणी नक्षत्र
- प्राज्ञ—वि॰—-—प्रकर्षेण जानाति इति- प्र + ज्ञा + क = प्रज्ञ, ततः स्वार्थे- अण्—मनीषी
- प्राज्ञ—वि॰—-—प्रकर्षेण जानाति इति- प्र + ज्ञा + क = प्रज्ञ, ततः स्वार्थे- अण्—बुद्धिमान्, विद्वान्, चतुर
- प्राज्ञः—पुं॰—-—प्रकर्षेण जानाति इति- प्र + ज्ञा + क = प्रज्ञ, ततः स्वार्थे- अण्—बुद्धिमान् पुरुष
- प्राज्ञः—पुं॰—-—प्र + ज्ञा + क = प्रज्ञ, ततः स्वार्थे- अण्—एक प्रकार का तोता
- प्राज्ञा—स्त्री॰—-—प्र + ज्ञा + क = प्रज्ञ, ततः स्वार्थे- अण् टाप्—बुद्धि, समझ
- प्राज्ञा—स्त्री॰—-—प्र + ज्ञा + क = प्रज्ञ, ततः स्वार्थे- अण् टाप्—चतुर या समझदार स्त्री
- प्राज्ञी—स्त्री॰—-—प्र + ज्ञा + क = प्रज्ञ, ततः स्वार्थे- अण् ङीप्—चतुर या विदुषी स्त्री
- प्राज्ञी—स्त्री॰—-—प्र + ज्ञा + क = प्रज्ञ, ततः स्वार्थे- अण् ङीप्—विद्वान् पुरुष की पत्नी
- प्राज्ञी—स्त्री॰—-—प्र + ज्ञा + क = प्रज्ञ, ततः स्वार्थे- अण् ङीप्—सूर्य की पत्नी का नाम
- प्राज्व—वि॰—-—प्र + अज् + ण्यत्—प्रचुर, पर्याप्त, बहुल, अधिक, बहुत
- प्राज्व—वि॰—-—प्र + अज् + ण्यत्—बड़ा, विशाल, महत्त्वपूर्ण
- प्राञ्जल—वि॰—-—प्र + अञ्ज् + अलच्—निश्छल, स्पष्टवक्ता, खरा, ईमानदार, निष्कपट
- प्राञ्जलि—वि॰—-—प्रबद्धा अञ्जलि येन- प्रा॰ ब॰—विनम्रता और सम्मान के चिह्नस्वरूप जिसने अपने हाथ जोड़े हुए हैं।
- प्राञ्जलिक—वि॰—-—प्रांजलि + कन्—विनम्रता और सम्मान के चिह्नस्वरूप जिसने अपने हाथ जोड़े हुए हैं।
- प्राञ्जलिन्—वि॰—-—प्रांजलि + इनि —विनम्रता और सम्मान के चिह्नस्वरूप जिसने अपने हाथ जोड़े हुए हैं।
- प्राणः—पुं॰—-—प्र + अन् + अच्, घञ् वा—सांस, श्वास
- प्राणः—पुं॰—-—प्र + अन् + अच्, घञ् वा—जीवन का सांस, जीवनशक्ति, जीवन, जीवनदायी वायु, जीवन का मूलतत्त्व
- प्राणः—पुं॰—-—प्र + अन् + अच्, घञ् वा—जीवन के पाँच प्राणों में से पहला
- प्राणः—पुं॰—-—प्र + अन् + अच्, घञ् वा—वायु, अन्दर खींचा हुआ साँस
- प्राणः—पुं॰—-—प्र + अन् + अच्, घञ् वा—ऊर्जा, बल, सामर्थ्य, शक्ति
- प्राणः—पुं॰—-—प्र + अन् + अच्, घञ् वा—जीव या आत्मा
- प्राणः—पुं॰—-—प्र + अन् + अच्, घञ् वा—परमात्मा
- प्राणः—पुं॰—-—प्र + अन् + अच्, घञ् वा—ज्ञानेन्द्रिय
- प्राणः—पुं॰—-—प्र + अन् + अच्, घञ् वा—प्राणों के समान आवश्यक या प्रिय, प्रिय व्यक्ति या पदार्थ
- प्राणः—पुं॰—-—प्र + अन् + अच्, घञ् वा—कविता का सत्, काव्यमयी प्रतिभा, स्फूर्ति
- प्राणः—पुं॰—-—प्र + अन् + अच्, घञ् वा—महत्त्वाकांक्षा, श्वासग्रहण
- प्राणः—पुं॰—-—प्र + अन् + अच्, घञ् वा—पाचन
- प्राणः—पुं॰—-—प्र + अन् + अच्, घञ् वा—समय का मापक सांस
- प्राणः—पुं॰—-—प्र + अन् + अच्, घञ् वा—लोबान,गोंद
- प्राणातिपातः—पुं॰—प्राणः- अतिपातः—-—जीवित प्राणी का वध, जान लेना
- प्राणात्ययः—पुं॰—प्राणः-अत्ययः—-—जीवन की हानि
- प्राणाधिक—वि॰—प्राणः-अधिक—-—प्राणों से भी प्रिय
- प्राणाधिक—वि॰—प्राणः-अधिक—-—सामर्थ्य और बल में श्रेष्ठ
- प्राणाधिनाथः—पुं॰—प्राणः-अधिनाथः—-—पति
- प्राणाधिपः—पुं॰—प्राणः-अधिपः—-—आत्मा
- प्राणान्तः—पुं॰—प्राणः-अन्तः—-—मृत्यु
- प्राणान्तिक—वि॰—प्राणः-अन्तिक—-—घातक, नश्वर
- प्राणान्तिक—वि॰—प्राणः-अन्तिक—-—जीवन भर रहने वाला, जीवन के साथ ही समाप्त होने वाला
- प्राणान्तिक—वि॰—प्राणः-अन्तिक—-—फांसी का दण्ड, वध
- प्राणापहारिन्—वि॰—प्राणः- अपहारिन्—-—घातक, प्राणनाशक
- प्राणायनम्—नपुं॰—प्राणः-अयनम्—-—ज्ञानेन्द्रिय
- प्राणाघातः—पुं॰—प्राणः-आघातः—-—जीवन का नाश, जीवित प्राणी का वध
- प्राणाचार्यः—पुं॰—प्राणः-आचार्यः—-—राजा का वैद्य
- प्राणाद—वि॰—प्राणः-आद—-—घातक, नश्वर, प्राणघातक
- प्राणाबाधः—पुं॰—प्राणः-आबाधः—-—जीवन की क्षति
- प्राणायामः—पुं॰—प्राणः-आयामः—-—देवगुणों का मानस-पाठ करते हुए साँस रोकना
- प्राणेशः—पुं॰—प्राणः-ईशः—-—प्रेमी, पति
- प्राणेश्वरः—पुं॰—प्राणः-ईश्वरः—-—प्रेमी, पति
- प्राणेशा—स्त्री॰—प्राणः- ईशा—-—पत्नी, प्रिया, गृहस्वामिनी
- प्राणेश्वरी—स्त्री॰—प्राणः- ईश्वरी—-—पत्नी, प्रिया, गृहस्वामिनी
- प्राणोत्क्रमणम्—नपुं॰—प्राणः-उत्क्रमणम्—-—आत्मा द्वारा शरीर को छोड़ देना, मृत्यु
- प्राणोत्सर्गः—पुं॰—प्राणः-उत्सर्गः—-—आत्मा द्वारा शरीर को छोड़ देना, मृत्यु
- प्राणोपाहारः—पुं॰—प्राणः-उपाहारः—-—भोजन
- प्राणकृच्छ्रम्—नपुं॰—प्राणः-कृच्छ्रम्—-—जीवन का खतरा, प्राणों को भय
- प्राणघातक—वि॰—प्राणः- घातक—-—जीवन का नाश करने वाला
- प्राणघ्न—वि॰—प्राणः-घ्न—-—घातक, जीवन-नाशक
- प्राणछेदः—पुं॰—प्राणः-छेदः—-—वध, हत्या
- प्राणत्यागः—पुं॰—प्राणः-त्यागः—-—आत्महत्या
- प्राणत्यागः—पुं॰—प्राणः-त्यागः—-—मृत्यु
- प्राणदम्—नपुं॰—प्राणः-दम्—-—पानी
- प्राणदम्—नपुं॰—प्राणः-दम्—-—रुधिर
- प्राणदक्षिणा—स्त्री॰—प्राणः-दक्षिणा—-—प्राणों की भेंट
- प्राणदण्डः—पुं॰—प्राणः-दण्डः—-—फांसी का दण्ड
- प्राणदयितः—पुं॰—प्राणः-दयितः—-—पति
- प्राणदानम्—नपुं॰—प्राणः-दानम्—-—प्राणों की भेंट, किसी की जान बचाना
- प्राणद्रोहः—पुं॰—प्राणः-द्रोहः—-—किसी की जान पर आक्रमण
- प्राणधारः—पुं॰—प्राणः-धारः—-—जीवित प्राणी
- प्राणधारणम्—नपुं॰—प्राणः-धारणम्—-—भरण-पोषण, जीवन का सहारा
- प्राणधारणम्—नपुं॰—प्राणः-धारणम्—-—जीवनशक्ति
- प्राणनाथः—पुं॰—प्राणः-नाथः—-—प्रेमी, पति
- प्राणनाथः—पुं॰—प्राणः-नाथः—-—यम का विशेषण
- प्राणनिग्रहः—पुं॰—प्राणः-निग्रहः—-—साँस रोकना, श्वासावरोध
- प्राणपतिः—पुं॰—प्राणः-पतिः—-—प्रेमी, पति
- प्राणपतिः—पुं॰—प्राणः-पतिः—-—आत्मा
- प्राणपरिक्रयः—पुं॰—प्राणः-परिक्रयः—-—जान जोखिम में डालना
- प्राणपरिग्रहः—पुं॰—प्राणः-परिग्रहः—-—जीवन-धारण करना, जीवन या अस्तित्व रखना
- प्राणप्रद—वि॰—प्राणः- प्रद—-—जीवन देने वाला, जीवन बचाने वाला
- प्राणप्रयाणम्—नपुं॰—प्राणः- प्रयाणम्—-—प्राणों का चला जाना, मृत्यु
- प्राणप्रियः—पुं॰—प्राणः-प्रियः—-—’प्राणों के समान प्यारा’ प्रेमी, पति
- प्राणभक्ष—वि॰—प्राणः- भक्ष—-—वायुपक्षी
- प्राणभास्वत्—पुं॰—प्राणः-भास्वत्—-—समुद्र
- प्राणभृत्—पुं॰—प्राणः-भृत्—-—प्राणधारी जन्तु
- प्राणमोक्षणम्—नपुं॰—प्राणः-मोक्षणम्—-—प्राणों का चला जाना, मृत्यु
- प्राणमोक्षणम्—नपुं॰—प्राणः-मोक्षणम्—-—आत्महत्या
- प्राणयात्रा—स्त्री॰—प्राणः- यात्रा—-—जीवन का सहारा, भरण-पोषण, जीविका
- प्राणयोनिः—स्त्री॰ —प्राणः-योनिः—-—जीवन का स्रोत
- प्राणरन्ध्रम्—नपुं॰—प्राणः-रन्ध्रम्—-—मुंह
- प्राणरन्ध्रम्—नपुं॰—प्राणः-रन्ध्रम्—-—नथना
- प्राणरोधः—पुं॰—प्राणः- रोधः—-—श्वासावरोध
- प्राणरोधः—पुं॰—प्राणः- रोधः—-—जीवन को खतरा
- प्राणविनाशः—पुं॰—प्राणः-विनाशः—-—जीवन की हानि, मृत्यु
- प्राणविप्लवः—पुं॰—प्राणः-विप्लवः—-—जीवन की हानि, मृत्यु
- प्राणवियोगः—पुं॰—प्राणः-वियोगः—-—शरीर से आत्मा का विच्छेद, मृत्यु
- प्राणव्ययः—पुं॰—प्राणः-व्ययः—-—प्राणों का उत्सर्ग
- प्राणसंयमः—पुं॰—प्राणः- संयमः—-—सांस का रोकना
- प्राणसंशयः—पुं॰—प्राणः-संशयः—-—जीवन को खतरा, जीवन को भय, भीषण खतरा
- प्राणसङ्कटम्—नपुं॰—प्राणः-सङ्कटम्—-—जीवन को खतरा, जीवन को भय, भीषण खतरा
- प्राणसन्देहः—पुं॰—प्राणः-सन्देहः—-—जीवन को खतरा, जीवन को भय, भीषण खतरा
- प्राणसद्यन्—नपुं॰—प्राणः-सद्यन्—-—शरीर
- प्राणसार—वि॰—प्राणः-सार—-—जीवन ही जिसका बल है, सामर्थ्य से युक्त, बलवान्, बलिष्ठ
- प्राणहर—वि॰—प्राणः-हर—-—प्राणघातक, जीवन का अपहरण करने वाला, घातक
- प्राणहर—वि॰—प्राणः-हर—-—फांसी
- प्राणहारक—वि॰—प्राणः-हारक—-—घातक, भयंकर विष
- प्राणकः—पुं॰—-—प्राण + कै + क—जीवित प्राणी, जीवधारी जन्तु
- प्राणकः—पुं॰—-—प्राण + कै + क—लोबान
- प्राणथः—पुं॰—-—प्र + अन् + अथ—वायु, हवा
- प्राणथः—पुं॰—-—प्र + अन् + अथ—तीर्थ स्थान
- प्राणथः—पुं॰—-—प्र + अन् + अथ—प्राणधारियों का स्वामी
- प्राणनः—पुं॰—-—प्र + अन् + ल्युट्—गला
- प्राणनम्—नपुं॰—-—प्र + अन् + ल्युट्—श्वासप्रश्वास, सांस लेना
- प्राणनम्—नपुं॰—-—प्र + अन् + ल्युट्—जीवन, जीवित रहना
- प्राणन्तः—पुं॰—-—प्र + अन् + झ, अन्तादेशः—वायु, हवा
- प्राणन्ती—स्त्री॰—-—प्राणन्त + ङीष्—भूख
- प्राणन्ती—स्त्री॰—-—प्राणन्त + ङीष्—सुबकना
- प्राणन्ती—स्त्री॰—-—प्राणन्त + ङीष्—हिचकी
- प्राणाय्य—वि॰—-—प्र + अन् + णिच् + ण्यत्—उचित, योग्य, उपयुक्त
- प्राणित—वि॰—-—प्र + अन् + क्त—जीवित, जीवधारी
- प्राणिन्—वि॰—-—प्राण + इनि—साँस लेने वाला, जीने वाला, जीवित
- प्राणिन्—पुं॰—-—प्राण + इनि—जीवित या जीवधारी प्राणी, जीवित जंतु
- प्राणिन्—पुं॰—-—प्राण + इनि—मनुष्य
- प्राण्यङ्गम्—नपुं॰—प्राणिन्-अङ्गम्—-—किसी जन्तु का अंग
- प्राणिजातम्—नपुं॰—प्राणिन्-जातम्—-—प्राणीवर्ग
- प्राणिद्यूतम्—नपुं॰—प्राणिन्-द्यूतम्—-—तीतर बटेर आदि जन्तुओं को लड़ा कर जुआ खेलना
- प्राणिपीडा—स्त्री॰—प्राणिन्-पीडा—-—जन्तुओं के प्रति क्रूरता
- प्राणिहिंसा—स्त्री॰—प्राणिन्-हिंसा—-—जीवन को क्षति, जीवित जन्तुओं को कष्ट देना
- प्राणिहिता—स्त्री॰—प्राणिन्-हिता—-—जूता, बूट
- प्राणीत्यम्—नपुं॰—-—प्रणीत + ष्यञ्—ऋण
- प्रातर्—अव्य॰—-—प्र + अत् + अरन्—तड़के, पौ फटने पर, प्रभात काल में
- प्रातर्—अव्य॰—-—प्र + अत् + अरन्—कल तड़के, अगले दिन सुबह, कल प्रातः काल
- प्रातरह्णः—पुं॰—प्रातर्-अह्नः—-—दिन का प्रारम्भिक काल, दोपहर पहले
- प्रातराशः—पुं॰—प्रातर्-आशः—-—प्रातःकालीन भोजन, कलेवा
- प्रातराशिन्—पुं॰—प्रातर्-आशिन्—-—जिसने कलेवा कर लिया है, या प्रातःकाल का भोजन कर लिया है।
- प्रातःकर्मन्—नपुं॰—प्रातर्-कर्मन्—-—प्रातःकालीन कर्म
- प्रातःकार्यम्—नपुं॰—प्रातर्-कार्यम्—-—प्रातःकालीन कर्म
- प्रातःकृत्यम्—नपुं॰—प्रातर्-कृत्यम्—-—प्रातःकालीन कर्म
- प्रातःकालः—पुं॰—प्रातर्-कालः—-—प्रातः का समय
- प्रातर्गेयः—पुं॰—प्रातर्-गेयः—-—चारण जिसका कर्तव्य किसी राजा या अन्य महापुरुष को उपयुक्त गान द्वारा प्रातः काल जगाना है।
- प्रातस्त्रिवर्गा—स्त्री॰—प्रातर्-त्रिवर्गा—-—गंगा नदी
- प्रातर्दिनम्—नपुं॰—प्रातर्-दिनम्—-—दोपहर से पहले
- प्रातर्प्रहरः—पुं॰—प्रातर्-प्रहरः—-—दिन का पहला पहर
- प्रातर्भोक्तृ—पुं॰—प्रातर्-भोक्तृ—-—कौवा
- प्रातर्भोजनम्—नपुं॰—प्रातर्-भोजनम्—-—प्रातःकाल का भोजन, कलेवा
- प्रातःसन्ध्या—स्त्री॰—प्रातर्-सन्ध्या—-—प्रातः काल की संध्या या भजन
- प्रातःसन्ध्या—स्त्री॰—प्रातर्-सन्ध्या—-—प्रातः काल की संध्या या भजन
- प्रातःसमयः—पुं॰—प्रातर्-समयः—-—सवेरे का समय, प्रभातकाल
- प्रातःसवः—पुं॰—प्रातर्-सवः—-—सोमयाग द्वारा प्रातःकालीन तर्पण
- प्रातःसवनम्—नपुं॰—प्रातर्-सवनम्—-—सोमयाग द्वारा प्रातःकालीन तर्पण
- प्रातःस्नानम्—नपुं॰—प्रातर्-स्नानम्—-—सवेरे ही नहाना
- प्रातर्होमः—पुं॰—प्रातर्-होमः—-—प्रातःकाल का यज्ञ
- प्रातस्तन—वि॰—-—प्रातर् + टयु, तुट्—प्रातःकाल से संबद्ध, सुबह का
- प्रातस्तराम्—अव्य॰—-—प्रातर् + तरप् + आम्—सुबह बहुत सवेरे
- प्रातस्त्य—वि॰—-—प्रातर् + त्यक्—सुबह का, प्रभात कालीन
- प्रातिः—स्त्री॰—-—प्र + अत् + इन्—अंगूठे और तर्जनी के बीच का स्थान
- प्रातिः—स्त्री॰—-—प्र + अत् + इन्—भरना
- प्रातिका—स्त्री॰—-—प्र + अत् + ण्वुल् + टाप्, इत्वम्—जवा का पौधा
- प्रातिकूलिक—वि॰—-—प्रतिकूल + ठक्—विरुद्ध, विरोधी, प्रतिकूल रहने वाला
- प्रातिकूल्यम्—नपुं॰—-—प्रतिकूल + ष्यञ्—प्रतिकूलता, विरोध, शत्रुता, अननुकूलता, अमैत्रीपूर्णता
- प्रातिजनीन—वि॰—-—प्रतिजन + खञ्—शत्रु का मुकाबला करने करने के लिए उपयुक्त
- प्रातिज्ञम्—नपुं॰—-—प्रतिज्ञा + अण्—विचाराधीन विषय
- प्रातिदैवसिक—वि॰—-—प्रतिदिवस् + ठक्—प्रतिदिन होने वाला
- प्रातिपक्ष—वि॰—-—प्रतिपक्ष + अण्—विरुद्ध, प्रतिकूल
- प्रातिपक्ष—वि॰—-—प्रतिपक्ष + अण्—शत्रुतापूर्ण, शत्रुसंबन्धी
- प्रातिपक्ष्यम्—नपुं॰—-—प्रतिपक्ष + ष्यञ्—शत्रुता, विरोधिता
- प्रातिपद—वि॰—-—प्रतिपदा + अण्—उपक्रम करने वाला
- प्रातिपद—वि॰—-—प्रतिपदा + अण्—प्रतिपदा के दिन उत्पन्न, प्रतिपदा से संबद्ध
- प्रातिपदिकः—पुं॰—-—प्रतिपदा + ठञ्—अग्नि
- प्रातिपदिकम्—नपुं॰—-—प्रतिपदा + ठञ्—नाम शब्द का परिपक्व रूप, विभक्ति चिह्न के जुड़ने से पूर्व संज्ञा शब्द
- प्रातिपौरुषिक—वि॰—-—प्रतिपुरुष + ठक्—पौरुषेय मर्दानगी या पराक्रम से संबद्ध
- प्रातिभ—वि॰—-—प्रतिभा + अण्—प्रतिभा या दिव्यता से संबंध रखने वाला
- प्रातिभम्—नपुं॰—-—प्रतिभा + अण्—प्रतिभा या विशद कल्पना, जमानत देने के लिए खड़ा होना
- प्रातिभाव्यम्—नपुं॰—-—प्रतिभू + ष्यञ्—जमानत या प्रतिभूति होना, जामिनपना, किसी कर्जदार को उपस्थित करने का उत्तरदायित्व होना
- प्रातिभासिक—वि॰—-—प्रतिभास + ठक्—जो केवल दिखाई तो दे पर वस्तुतः हो उसका अभाव
- प्रातिभासिक—वि॰—-—प्रतिभास + ठक्—वास्तविक
- प्रातिभासिक—वि॰—-—प्रतिभास + ठक्—दिखाई सी देने वाली
- प्रातिलोमिक—वि॰—-—प्रतिलोम + ठक्—लाभ के विरुद्ध, विरोधी, शत्रुतापूर्ण, अरुचिकर
- प्रातिलोम्यम्—नपुं॰—-—प्रतिलोम + ष्यञ्—उलटापन, व्युत्क्रान्त या प्रतिकूल क्रम
- प्रातिलोम्यम्—नपुं॰—-—प्रतिलोम + ष्यञ्—शत्रुता, विरोध, शत्रु जैसी भावना
- प्रातिवेशिकः—पुं॰—-—प्रतिवेश + ठक्—पड़ोसी
- प्रातिवेश्मकः—पुं॰—-—प्रतिवेश्म + अण् + कन्—पड़ोसी
- प्रातिवेश्यकः—पुं॰—-—प्रतिवेश + ष्यञ् + कन्—पड़ोसी
- प्रातिवेश्यः—पुं॰—-—प्रतिवेश + ष्यञ्—सामान्यतः पड़ोसी
- प्रातिवेश्यः—पुं॰—-—प्रतिवेश + ष्यञ्—बराबर के घर में रहने वाला पड़ोसी
- प्रातिशाख्यम्—नपुं॰—-—प्रतिशाख भव- ञ्य—व्याकरण का एक ग्रंथ जिसमें स्वरसंधि तथा अन्य वर्णपरिवर्तनों के नियमों का उल्लेख है जो कि वेद की किसी भी शाखा में पाये जाते हैं तथा जिसमें स्वराघात समेत उच्चारण की पद्धति बतलई गई है।
- प्रातिस्विक—वि॰—-—प्रतिस्व + ठक्—विशिष्ट, असामान्य, अपना निजी
- प्रातिहन्त्रम्—नपुं॰—-—प्रतिहन्तृ + अण्—बदला, प्रतिशोध
- प्रातिहारः—पुं॰—-—प्रतिहार + अण्—जादूगर, ऐन्द्रजालिक
- प्रातिहारकः—पुं॰—-—प्रातिहार + कन्—जादूगर, ऐन्द्रजालिक
- प्रातिहारिकः—पुं॰—-—प्रतिहार + ठक्—जादूगर, ऐन्द्रजालिक
- प्रातीतिक—वि॰ —-—प्रतीति + ठञ्—मानसिक, केवल मन में विद्यमान, काल्पनिक
- प्रातीपः—पुं॰—-—प्रतीप + अण्—शन्तनु का पैतृक नाम
- प्रातीपिक—वि॰—-—प्रतीप + ठक्—उलटा, विरोधी, विपरीत
- प्रात्यन्तिक—पुं॰—-—प्रत्यन्त + ठक्—प्रत्यन्त का एक राजकुमार
- प्रात्ययिक—वि॰—-—प्रत्यय + ठक्—भरोसे का, विश्वासपात्र
- प्रात्ययिक—वि॰—-—प्रत्यय + ठक्—किसी ऋणी की विश्वासपात्रता के हेतु जमानत देने के लिए खड़ा होना।
- प्रात्यहिक—वि॰—-—प्रत्यह + ठक्—प्रतिदिन होने वाला, नित्य, प्रतिदिन
- प्राथमिक—वि॰—-—प्रथम + ठक्—प्रारंभिक
- प्राथमिक—वि॰—-—प्रथम + ठक्—पूर्व जन्म का, पूर्वकाल का, पहली बार होने वाला
- प्राथम्यम्—नपुं॰—-—प्रथम + ष्यञ्—प्रथम होना, पहला उदाहरण, प्राथमिकता
- प्रादक्षिण्यम्—नपुं॰—-—प्रदक्षिण + ष्यञ्—किसी व्यक्ति या पदार्थ के चारों ओर बायें से चल कर दायें को जाना, और प्रदक्षिणा किये जाने वाले पदार्थ को सदैव अपनी दाई ओर रखना।
- प्रादुस्—अव्य॰—-—प्र + अद् + डसि—दिखाई देने के साथ, स्पष्टतः प्रकटरूप से, दृष्टि में
- प्रादुष्करणम्—नपुं॰—प्रादुस्-करणम्—-—प्रकटीकरण, दृश्यमान करना
- प्रादुर्भावः—पुं॰—प्रादुस्- भावः—-—अस्तित्व में आना, उदय होना
- प्रादुर्भावः—पुं॰—प्रादुस्- भावः—-—प्रकट या दृश्यमान होना, प्रकटीकरण, दर्शन
- प्रादुर्भावः—पुं॰—प्रादुस्- भावः—-—सुनने के योग्य होना
- प्रादुर्भावः—पुं॰—प्रादुस्- भावः—-—पृथ्वी पर देवता का प्रगट होना
- प्रादुष्यम्—नपुं॰—-—प्रादुस् + यत्—प्रकटीकरण
- प्रादेशः—पुं॰—-—प्र + दिश् + घञ्, उपसर्गस्य दीर्घः—अँगूठे और तर्जनी के बीच का स्थान
- प्रादेशः—पुं॰—-—प्र + दिश् + घञ्, उपसर्गस्य दीर्घः—स्थान, जगह, प्रदेश
- प्रादेशनम्—नपुं॰—-—प्र + आ + दिश् + ल्युट्—भेंट, दान
- प्रादेशिक—वि॰—-—प्रदेश + ठक्—पूर्व दृष्टांत वाला
- प्रादेशिक—वि॰—-—प्रदेश + ठक्—सीमित, स्थानीय
- प्रादेशिक—वि॰—-—प्रदेश + ठक्—यथार्थ
- प्रादेशिकः—पुं॰—-—प्रदेश + ठक्—एक जिले का स्वामी
- प्रादेशिनी—स्त्री॰—-—प्रादेश + इनि + ङीप्—तर्जनी अँगुली
- प्रादोष—वि॰—-—प्रदोष + अण्—संध्याकालीन, संध्या से संबद्ध
- प्रादोषिक—वि॰—-—प्रदोष + अण्, प्रादोष + घञ्—संध्याकालीन, संध्या से संबद्ध
- प्राधनिकम्—नपुं॰—-—प्रधनं संग्रामं, तत्साधनमस्य प्रधन + ठक्—नाशकारक शस्त्र, कोई भी युद्धोपकरण
- प्राधानिक—वि॰—-—प्रधान + ठक्—अत्यंत श्रेष्ठ या प्रमुख, सर्वोपरि, अत्यन्त पूज्य
- प्राधानिक—वि॰—-—प्रधान + ठक्—प्रधान से संबद्ध या उससे उत्पन्न
- प्राधान्यम्—नपुं॰—-—प्रधान + ष्यञ्—प्रमुखता, सर्वोपरिता, प्रभुत्व, उदग्रता
- प्राधान्यम्—नपुं॰—-—प्रधान + ष्यञ्—प्राबल्य, सर्वोच्चता
- प्राधान्यम्—नपुं॰—-—प्रधान + ष्यञ्—मुख्य या प्रधान कारण
- प्राचीत—वि॰—-—प्र + अधि + इ + क्त—भली-भांति पढ़ा-लिखा, अत्यन्त शिक्षित
- प्राध्व—वि॰, प्रा॰ स॰—-—प्रगतोऽध्वानम् —दूर का, दूरवर्ती, दूर
- प्राध्व—वि॰, प्रा॰ स॰—-—प्रगतोऽध्वानम् —झुका हुआ, रुचि रखता हुआ
- प्राध्व—वि॰, प्रा॰ स॰—-—प्रगतोऽध्वानम् —कसा हुआ, बंधा हुआ
- प्राध्व—वि॰, प्रा॰ स॰—-—प्रगतोऽध्वानम् —अनुकूल
- प्राध्वः—पुं॰—-—-—गाड़ी
- प्राध्वम्—अव्य॰—-—-—अनुकूलता के साथ, रुचिपूर्वक, समनुरूपता के साथ, उपयुक्तता से युक्त
- प्राध्वम्—अव्य॰—-—-—टेढ़ेपन से
- प्रान्तः—पुं॰, प्रा॰ स॰—-—प्रकृष्टः अन्तः—किनारा, हाशिया, झालर, मगजी, छोर
- प्रान्तः—पुं॰, प्रा॰ स॰—-—प्रकृष्टः अन्तः—किनारा
- प्रान्तः—पुं॰, प्रा॰ स॰—-—प्रकृष्टः अन्तः—हद, सीमा
- प्रान्तः—पुं॰, प्रा॰ स॰—-—प्रकृष्टः अन्तः—अन्तिम किनारा, सीमा
- प्रान्तः—पुं॰, प्रा॰ स॰—-—प्रकृष्टः अन्तः—बिन्दु, नोक
- प्रान्तग—वि॰—प्रान्तः-ग—-—पास ही रहने वाला
- प्रान्तर्दुर्गम्—नपुं॰—प्रान्तः-दुर्गम्—-—नगर के बाहर का, नगरांचल, किले के निकट होने वाला उपनगर
- प्रान्तविरस—वि॰—प्रान्तः-विरस—-—अन्त में रसहीन
- प्रान्तशून्य—वि॰—प्रान्तः-शून्य—-—
- प्रान्तस्थ—वि॰—प्रान्तः-स्थ—-—जो सीमा पर रहता है।
- प्रान्तरम्—नपुं॰, प्रा॰ ब॰—-—प्रकृष्टम् अन्तरं व्यवधानं यत्र—लंबा और सुनसान मार्ग, जनशून्य या वीरान सड़क
- प्रान्तरम्—नपुं॰, प्रा॰ ब॰—-—प्रकृष्टम् अन्तरं व्यवधानं यत्र—छायारहित सड़क, निर्जन भूखण्ड
- प्रान्तरम्—नपुं॰, प्रा॰ ब॰—-—प्रकृष्टम् अन्तरं व्यवधानं यत्र—जंगल, उजाड़
- प्रान्तरम्—नपुं॰, प्रा॰ ब॰—-—प्रकृष्टम् अन्तरं व्यवधानं यत्र—वृक्ष की कोटर
- प्रान्तरशून्यः—पुं॰—प्रान्तरम्-शून्यः—-—लंबी सुनसान सड़क
- प्रापक—वि॰—-—प्र + आप् + ण्वुल्—ले जाने वाला, पहुँचाने वाला
- प्रापक—वि॰—-—प्र + आप् + ण्वुल्—प्राप्त कराने वाला, सामग्री से युक्त कराने वाला
- प्रापक—वि॰—-—प्र + आप् + ण्वुल्—स्थापित करने वाला, वैध बनाने वाला
- प्रापणम्—नपुं॰—-—प्र + आप् + ल्युट्—पहुँचना, बढ़ जाना
- प्रापणम्—नपुं॰—-—प्र + आप् + ल्युट्—प्राप्त करना, अधिग्रहण, अवाप्ति
- प्रापणम्—नपुं॰—-—प्र + आप् + ल्युट्—ले आना, पहुँचाना, ले जाना
- प्रापणम्—नपुं॰—-—प्र + आप् + ल्युट्—सामग्री से युक्त करना
- प्रापणिकः—पुं॰—-—प्र + आ + पण् + किकन्—सौदागर, व्यापारी
- प्राप्त—भू॰ क॰ कृ॰—-—प्र + आप् + क्त—हासिल, अवाप्त, उपलब्ध, अर्जित
- प्राप्त—भू॰ क॰ कृ॰—-—प्र + आप् + क्त—पहुँचा हुआ, निष्पन्न
- प्राप्त—भू॰ क॰ कृ॰—-—प्र + आप् + क्त—घटित, मिला हुआ
- प्राप्त—भू॰ क॰ कृ॰—-—प्र + आप् + क्त—उठाया हुआ, ग्रस्त, सहन किया हुआ
- प्राप्त—भू॰ क॰ कृ॰—-—प्र + आप् + क्त—पहुँचा हुआ, आया हुआ, उपस्थित
- प्राप्त—भू॰ क॰ कृ॰—-—प्र + आप् + क्त—पूरा किया हुआ
- प्राप्त—भू॰ क॰ कृ॰—-—प्र + आप् + क्त—उचित, सही
- प्राप्त—भू॰ क॰ कृ॰—-—प्र + आप् + क्त—नियम के अनुसार
- प्राप्तानुज्ञ—वि॰—प्राप्त-अनुज्ञ—-—जाने के लिए अनुमति, विदा होने के लिए जिसने अनुमति प्राप्त कर ली है।
- प्राप्तार्थ—वि॰—प्राप्त-अर्थ—-—सफल
- प्राप्तार्थः—पुं॰—प्राप्त-अर्थः—-—लब्ध पदार्थ
- प्राप्तावसर—वि॰—प्राप्त-अवसर—-—जिसे मौका या अवसर मिल चुका है।
- प्राप्तोदय—वि॰—प्राप्त-उदय—-—जो उन्नत हो गया है, या जिसने उन्नति अथवा उन्नत पद प्राप्त कर लिया है।
- प्राप्तकारिन्—वि॰—प्राप्त-कारिन्—-—सही कार्य करने वाला
- प्राप्तकाल—वि॰—प्राप्त-काल—-—समयानुकूल, यथाऋतु, उपयुक्त
- प्राप्तकाल—वि॰—प्राप्त-काल—-—विवाह के योग्य
- प्राप्तकाल—वि॰—प्राप्त-काल—-—नियत, भाग्य में लिखा
- प्राप्तकालः—पुं॰—प्राप्त-कालः—-—उचित समय, उपयुक्त या अनुकूल क्षण
- प्राप्तपञ्चत्व—वि॰—प्राप्त-पञ्चत्व—-—पाँचों तत्त्वों में समाविष्ट अर्थात् मृत
- प्राप्तप्रसव—वि॰—प्राप्त-प्रसव—-—जिसने बच्चे को जन्म दे दिया है।
- प्राप्तबुद्धि—वि॰—प्राप्त-बुद्धि—-—शिक्षण प्राप्त किया हुआ, प्रकाशयुक्त
- प्राप्तभारः—पुं॰—प्राप्त-भारः—-—बोझा ढोने वाला पशु
- प्राप्तमनोरथ—वि॰—प्राप्त-मनोरथ—-—जिसका मनोरथ पूरा हो गया है।
- प्राप्तयौवन—वि॰—प्राप्त-यौवन—-—तरूण, वयस्क, जवान
- प्राप्तरूप—वि॰—प्राप्त-रूप—-—सुन्दर, मनोहर
- प्राप्तरूप—वि॰—प्राप्त-रूप—-—बुद्धिमान्, विद्वान्
- प्राप्तरूप—वि॰—प्राप्त-रूप—-—उपयुक्त, समुचित, सुयोग्य
- प्राप्तव्यवहार—वि॰—प्राप्त-व्यवहार—-—वयस्क, बालिग जो कानून की दृष्टि से अपने कार्यों को संभालने का अधिकारी हो
- प्राप्तश्री—वि॰—प्राप्त-श्री—-—जिसकी उन्नति किसी और के द्वारा हुई हो।
- प्राप्तिः—स्त्री॰—-—प्र + आप् + क्तिन्—प्राप्त करना, अधिग्रहण, उपलब्धि, अवाप्ति, लाभ
- प्राप्तिः—स्त्री॰—-—प्र + आप् + क्तिन्—पहुँचना, प्राप्त करना
- प्राप्तिः—स्त्री॰—-—प्र + आप् + क्तिन्—पहुँच, आगमन
- प्राप्तिः—स्त्री॰—-—प्र + आप् + क्तिन्—देखना, मिलना
- प्राप्तिः—स्त्री॰—-—प्र + आप् + क्तिन्—परास, पहुँच
- प्राप्तिः—स्त्री॰—-—प्र + आप् + क्तिन्—अनुमान, अटकल
- प्राप्तिः—स्त्री॰—-—प्र + आप् + क्तिन्—हिस्सा, अंश,ढेर
- प्राप्तिः—स्त्री॰—-—प्र + आप् + क्तिन्—भाग्य, किस्मत
- प्राप्तिः—स्त्री॰—-—प्र + आप् + क्तिन्—उदय, पैदावार
- प्राप्तिः—स्त्री॰—-—प्र + आप् + क्तिन्—किसी पदार्थ को प्राप्त करने की शक्ति
- प्राप्तिः—स्त्री॰—-—प्र + आप् + क्तिन्—संघ, समुच्चय, संहति
- प्राप्तिः—स्त्री॰—-—प्र + आप् + क्तिन्—किसी योजना की सफल समाप्ति, सुखागम
- प्राप्त्याशा—स्त्री॰—प्राप्तिः-आशा—-—किसी चीज को प्राप्त करने की आशा
- प्राबल्यम्—नपुं॰—-—प्रबल + ष्यञ्—प्रभुता, सर्वोच्चता, बोल-बाला
- प्राबल्यम्—नपुं॰—-—प्रबल + ष्यञ्—शक्ति, बल, ताकत
- प्राबालिकः—पुं॰—-—प्रबा(वा) ल + ठक्—मूंगों का व्यापार करने वाला
- प्रबोधकः—पुं॰—-—प्र + आ + बुध् + णिच् + ण्वुल्, प्रबोध + ठञ्—तड़का, प्रभात
- प्रबोधकः—पुं॰—-—प्र + आ + बुध् + णिच् + ण्वुल्, प्रबोध + ठञ्—चारण जिसका कर्तव्य प्रातःकाल उपयुक्त भजन गाकर अपने आश्रयदाता राजा को जगाना है।
- प्राभञ्जनम्—नपुं॰—-—प्रभंजन + अण्—स्वाति नक्षत्र
- प्राभञ्जनिः—पुं॰—-—प्रभञ्जन + इञ्—हनुमान् का विशेषण
- प्राभञ्जनिः—पुं॰—-—प्रभञ्जन + इञ्—भीम का विशेषण
- प्राभवम्—पुं॰—-—प्रभु + अण्—सर्वोच्चता, सर्वोपरिता, प्रभुता
- प्राभवत्यम्—नपुं॰—-—प्रभवत् + ष्यञ्—सर्वोपरिता, अधिकार, सत्ता, शक्ति
- प्रभाकरः—पुं॰—-—प्रभाकर + अण्—’प्रभाकर का अनुयायी’, मीमांसा के आचार्य प्रभाकर के मत का अनुयायी
- प्राभातिक—वि॰—-—प्रभात + ठञ्—प्रातः-काल संबंधी, प्रभातकालीन
- प्राभृतम्—नपुं॰—-—प्र + आ + भृ + क्त—उपहार, भेंट, किसी राजा या देवता को भेंट, नजराना
- प्राभृतम्—नपुं॰—-—प्र + आ + भृ + क्त—रिश्वत
- प्राभृतकम्—नपुं॰—-—प्राभृत + कन्—उपहार, भेंट, किसी राजा या देवता को भेंट, नजराना
- प्राभृतकम्—नपुं॰—-—प्राभृत + कन्—रिश्वत
- प्रामाणिक—वि॰—-—प्रमाण + ठक्—प्रमाण द्वारा सिद्ध, प्रमाण पर आधारित या आश्रित
- प्रामाणिक—वि॰—-—प्रमाण + ठक्—शास्त्रसिद्ध
- प्रामाणिक—वि॰—-—प्रमाण + ठक्—अधिकृत, विश्वसनीय
- प्रामाणिक—वि॰—-—प्रमाण + ठक्—प्रमाण संबंधी
- प्रामाणिकः—पुं॰—-—प्रमाण + ठक्—जो प्रमाण को मानता है
- प्रामाणिकः—पुं॰—-—प्रमाण + ठक्—जो नैयायिकों के प्रमाणों का ज्ञाता है, तार्किक
- प्रामाणिकः—पुं॰—-—प्रमाण + ठक्—किसी व्यवसाय का प्रधान
- प्रामाण्यम्—नपुं॰—-—प्रमाण + ष्यञ्—प्रमाण होना या प्रमाण पर आश्रित होना
- प्रामाण्यम्—नपुं॰—-—प्रमाण + ष्यञ्—विश्वसनीयता, प्रामाणिकता
- प्रामाण्यम्—नपुं॰—-—प्रमाण + ष्यञ्—प्रमाण, साक्ष्य, अधिकार
- प्रामादिक—वि॰—-—प्रमाद + ठक्—असावधानतावश, गलत, दोषयुक्त, अशुद्ध
- प्रामाद्यम्—नपुं॰—-—प्रमाद + ष्यञ्—त्रुटि, दोष, गलती, अशुद्धि
- प्रामाद्यम्—नपुं॰—-—प्रमाद + ष्यञ्—पागलपन, उन्माद
- प्रामाद्यम्—नपुं॰—-—प्रमाद + ष्यञ्—नशा, मादकता
- प्रायः—पुं॰—-—प्र + अय् + घञ्—अपगमन, विदायगी, जीवन से प्रयाण
- प्रायः—पुं॰—-—प्र + अय् + घञ्—आमरण अनशन, व्रत रखना, किसी इष्टसिद्धि के लिए खाना -पीना छोड़ कर धरना देना
- प्रायः—पुं॰—-—प्र + अय् + घञ्—बड़े से बड़ा भोग, अधिकांश अवस्था
- प्रायः—पुं॰—-—प्र + अय् + घञ्—अधिकता, बहुतायत, प्रचुरता
- प्रायः—पुं॰—-—प्र + अय् + घञ्—जीवन की एक दशा
- पतनप्रायौ—पुं॰—-—-—गिरने वाले
- मृतप्रायः—पुं॰—-—-—लगभग मरा हुआ, मरने से जरा कम, तकरीबन मरा हुआ
- प्रायः—पुं॰—-—-—से युक्त, समृद्ध, भरा हुआ, अत्यधिक, प्रचुर, सुगन्ध से भरा हुआ
- प्रायः—पुं॰—-—-—के समान, मिलता-जुलता
- प्रायोपगमनम्—नपुं॰—प्रायः-उपगमनम्—-—बिना खाये-पीये धरना देना और इस प्रकार मरने की तैयारी करना, आमरण अनशन
- प्रायोपवेशः—पुं॰—प्रायः-उपवेशः—-—बिना खाये-पीये धरना देना और इस प्रकार मरने की तैयारी करना, आमरण अनशन
- प्रायोपवेशनम्—नपुं॰—प्रायः-उपवेशनम्—-—बिना खाये-पीये धरना देना और इस प्रकार मरने की तैयारी करना, आमरण अनशन
- प्रायोपवेशनिका—स्त्री॰—प्रायः-उपवेशनिका—-—बिना खाये-पीये धरना देना और इस प्रकार मरने की तैयारी करना, आमरण अनशन
- प्रायोपेत—वि॰—प्रायः- उपेत—-—बिना खाये रहकर मृत्यु की बाट जोहने वाला
- प्रायोपविष्ट—वि॰—प्रायः-उपविष्ट—-—आमरण अनशन करने वाला
- प्रायदर्शनम्—नपुं॰—प्रायः-दर्शनम्—-—सामान्य घटनातत्त्व
- प्रायणम्—नपुं॰—-—प्र + अय् + ल्युट्—प्रवेश, आरंभ, शुरू
- प्रायणम्—नपुं॰—-—प्र + अय् + ल्युट्—जीवनपथ
- प्रायणम्—नपुं॰—-—प्र + अय् + ल्युट्—ऐच्छिक मृत्यु
- प्रायणम्—नपुं॰—-—प्र + अय् + ल्युट्—शरण लेना
- प्रायणीय—वि॰—-—प्र + अय् + अनीयर्—परिचयात्मक, आरंभिक, दीक्षात्मक
- प्रायणीयम्—नपुं॰—-—प्र + अय् + अनीयर्—सोमयाज्ञ का प्रथम दिन
- प्रायशस्—अव्य॰—-—प्राय + शस्—बहुधा, अधिकतर, अधिकांश में, सर्वथा
- प्रायश्चित्तम्—स्त्री॰—-—प्रायस्य पापस्यचित्तं विशोधनं यस्मात्- ब॰ स॰, नि॰ सुट्—परिशोध, पापनिष्कृति, क्षतिपूर्ति, पाप से निस्तार पाने के लिए धार्मिक साधना
- प्रायश्चित्तम्—स्त्री॰—-—प्रायस्य पापस्यचित्तं विशोधनं यस्मात्- ब॰ स॰, नि॰ सुट्—संतोष, सुधार
- प्रायश्चित्तिः—स्त्री॰—-—प्रायस्य पापस्यचित्तं विशोधनं यस्मात्- ब॰ स॰, नि॰ सुट्—परिशोध, पापनिष्कृति, क्षतिपूर्ति, पाप से निस्तार पाने के लिए धार्मिक साधना
- प्रायश्चित्तिः—स्त्री॰—-—प्रायस्य पापस्यचित्तं विशोधनं यस्मात्- ब॰ स॰, नि॰ सुट्—संतोष, सुधार
- प्रायश्चित्तिन्—वि॰—-—प्रायश्चित्त + इनि—जो पापों का परिशोध करे।
- प्रायस्—अव्य॰—-—प्र + अय् + असुन्—अधिकतर, बहुधा, साधारणतः, अधिकांशतः
- प्रायस्—अव्य॰—-—प्र + अय् + असुन्—सर्वथा, अधिकतर, संभवतः
- प्रायाणिक—वि॰—-—प्रयाण + ठक्—यात्रा के लिए आवश्यक या उपयुक्त
- प्रायात्रिक—वि॰—-—प्रयात्रा + ठक्—यात्रा के लिए आवश्यक या उपयुक्त
- प्रायिक—वि॰—-—प्राय + ठक्—प्रचलित, सामान्य
- प्रायुद्धेषिन्—पुं॰—-—प्रायुधि हेषते- प्रायुध् + हेष् + णिनि—घोड़ा
- प्रायेण—अव्य॰—-—करण॰—अधिकतर, साधारण नियम के अनुसार
- प्रायोगिक—वि॰—-—प्रयोग + ठक्—प्रयुक्त
- प्रायोगिक—वि॰—-—प्रयोग + ठक्—प्रयुज्यमान
- प्रारब्ध—भू॰ क॰ कृ॰—-—प्र + आ + रभ् + क्त—आरंभ किया गया, शुरू किया गया
- प्रारब्धम्—नपुं॰—-—प्र + आ + रभ् + क्त—जो शुरू किया गया है, व्यवसाय
- प्रारब्धम्—नपुं॰—-—प्र + आ + रभ् + क्त—भाग्य, नियति
- प्रारब्धिः—स्त्री॰—-—प्र + आ + रभ् + क्तिन्—आरंभ, शुरू
- प्रारब्धिः—स्त्री॰—-—प्र + आ + रभ् + क्तिन्—खूंटा जिससे हाथी बांधा जाय, हाथी को बांधने के लिए रस्सी
- प्रारम्भः—पुं॰—-—प्र + आ + रभ् + घञ् -मुम्—आरंभ, शुरू
- प्रारम्भः—पुं॰—-—प्र + आ + रभ् + घञ् -मुम्—व्यवसाय, काम, साहसिक कार्य
- प्रारम्भणम्—नपुं॰—-—प्र + आ + रभ् + ल्युट्, मुम्—आरम्भ करना, शुरू करना
- प्रारोहः—पुं॰—-—प्ररोह + ण—अंकुर, अंखुवा, किसलय
- प्रार्णम्—नपुं॰, प्रा॰ स॰—-—प्रकृष्टमृणम्—मुख्य ऋण
- प्रार्थक—वि॰—-—प्र + अर्थ + ण्वुल्—पूछने वाला, मांगने वाला, प्रार्थना करने वाला, निवेदन करने वाला, अनुरोध करने वाला, इच्छा करने वाला, कामना करने वाला
- प्रार्थकः—पुं॰—-—प्र + अर्थ + ण्वुल्—आवेदक, प्रार्थी
- प्रार्थना—स्त्री॰—-—प्र + अर्थ + ल्युट्+ टाप्—याचना, अनुरोध, प्रार्थना, निवेदन
- प्रार्थना—स्त्री॰—-—प्र + अर्थ + ल्युट्+ टाप्—कामना, इच्छा
- प्रार्थना—स्त्री॰—-—प्र + अर्थ + ल्युट्+ टाप्—नालिश, आवेदन, विनती, प्रणय-प्रार्थना
- प्रार्थनम्—नपुं॰—-—प्र + अर्थ + ल्युट्—याचना, अनुरोध, प्रार्थना, निवेदन
- प्रार्थनम्—नपुं॰—-—प्र + अर्थ + ल्युट्—कामना, इच्छा
- प्रार्थनम्—नपुं॰—-—प्र + अर्थ + ल्युट्—नालिश, आवेदन, विनती, प्रणय-प्रार्थना
- प्रार्थनभङ्गः—पुं॰—प्रार्थनम्-भङ्गः—-—प्रार्थना अस्वीकार करना
- प्रार्थनम्-सिद्धिः—स्त्री॰—प्रार्थनम्-सिद्धिः—-—इच्छा की पूर्ति
- प्रार्थनीय—सं॰ कृ॰—-—प्र + अर्थ + अनीयर्—प्रार्थना या आवेदन किये जाने के उपयुक्त
- प्रार्थनीय—सं॰ कृ॰—-—प्र + अर्थ + अनीयर्—अभिलषणीय, चाहने के योग्य
- प्रार्थनीयम्—नपुं॰—-—-—तृतीय या द्वापर युग
- प्रार्थित—भू॰ क॰ कृ॰—-—प्र + अर्थ + क्त—याचना किया हुआ, प्रार्थना किया हुआ, पूछा हुआ, आवेदन किया गया
- प्रार्थित—भू॰ क॰ कृ॰—-—प्र + अर्थ + क्त—अभिलषित, इच्छित
- प्रार्थित—भू॰ क॰ कृ॰—-—प्र + अर्थ + क्त—आक्रान्त, शत्रु के द्वारा विरोध किया गया
- प्रार्थित—भू॰ क॰ कृ॰—-—प्र + अर्थ + क्त—मारा गया, चोट की गई
- प्रार्थिन्—वि॰—-—प्र + अर्थ + णिनि—मांगने वाला, प्रार्थना करने वाला
- प्रार्थिन्—वि॰—-—प्र + अर्थ + णिनि—कामना करने वाला, इच्छा करने वाला
- प्रालम्ब—वि॰—-—प्र + आ + लम्ब् + अच्—झूलता, लटकता हुआ
- प्रालम्बवः—पुं॰—-—-—मोतियों का बना आभूषण
- प्रालम्बवः—पुं॰—-—-—स्त्री का स्तन
- प्रालम्बम्—नपुं॰—-—-—छाती तक लटकने वाला कंठहार
- प्रालम्बकम्—नपुं॰—-—प्रालम्ब + कन्—झूलता, लटकता हुआ
- प्रालम्बिका—स्त्री॰—-—प्रालम्ब + कन् + टाप्, इत्वम्—सोने का हार
- प्रालेयम्—नपुं॰—-—प्र + ली + ण्यत् = प्रलेय + अण्—हिम, कुहरा, ओस, तुषार
- प्रालेयाद्रिः—पुं॰—प्रालेयम्-अद्रिः—-—हिमाच्छादित पहाड़्, हिमालय
- प्रालेयशैलः—पुं॰—प्रालेयम्-शैलः—-—हिमाच्छादित पहाड़्, हिमालय
- प्रालेयांशु—पुं॰—प्रालेयम्-अंशु—-—चन्द्रमा
- प्रालेयांशु—पुं॰—प्रालेयम्-अंशु—-—कपूर
- प्रालेयकारः—पुं॰—प्रालेयम्-कारः—-—चन्द्रमा
- प्रालेयकारः—पुं॰—प्रालेयम्-कारः—-—कपूर
- प्रालेयरश्मि—पुं॰—प्रालेयम्-रश्मि—-—चन्द्रमा
- प्रालेयरश्मि—पुं॰—प्रालेयम्-रश्मि—-—कपूर
- प्रालेयलेशः—पुं॰—प्रालेयम्-लेशः—-—ओला
- प्रावटः—पुं॰—-—प्र + अव + अट् + अच्—जौ
- प्रावणम्—नपुं॰—-—प्र + आ + वन् + घ—फावड़ा, खुरपा, कुदाल
- प्रावरः—पुं॰—-—प्र + आ + वृ + अप्—बाड़, घेरा
- प्रावरः—पुं॰—-—प्र + आ + वृ + अप्—उत्तरीय वस्त्र
- प्रावरः—पुं॰—-—प्र + आ + वृ + अप्—एक देश का नाम
- प्रावरणम्—नपुं॰—-—प्र + आ + वृ + ल्युट्—ओढ़नी, चादर विशेषतः कोई उत्तरीय वस्त्र, चोंगा, लबादा या दुपट्टा
- प्रावरणीयम्—नपुं॰—-—प्र + आ + वृ + अनीयर्—उत्तरीय वस्त्र
- प्रावरः—पुं॰—-—प्र + आ + वृ + घञ्—उत्तरीय वस्त्र, चोंगा, लबादा
- प्रावरः—पुं॰—-—प्र + आ + वृ + घञ्—एक जिले का नाम
- प्रावरकीटः—पुं॰—प्रावरः-कीटः—-—दीमक, पतंग
- प्रावारकः—पुं॰—-—प्रावार + कन्—उत्तरीय वस्त्र, चोगा या लबादा
- प्रावारिकः—पुं॰—-—प्रावार + ठक्—उत्तरीय वस्त्रों का निर्माता
- प्रावास—वि॰—-—प्रवास + अण्—यात्रा संबंधी, यात्रा में करने या दिये जाने के योग्य
- प्रावासिक—वि॰—-—प्रवास + ठक्—यात्रा के लिए उपयुक्त
- प्रावीण्यम्—नपुं॰—-—प्रवीण + ष्यञ्—चतुराई, कुशलता, प्रवीणता, दक्षता
- प्रावृत—भू॰ क॰ कृ॰—-—प्र + आ + वृ + क्त—घिरा हुआ, घेरा हुआ, ढका हुआ, परदों वाला
- प्रावृतः—पुं॰—-—प्र + आ + वृ + क्त—घूंघट, बुरका, चादर
- प्रावृतम्—नपुं॰—-—प्र + आ + वृ + क्त—घूंघट, बुरका, चादर
- प्रावृतिः—स्त्री॰—-—प्र + आ + वृ + क्तिन्—घेरा, बाड़, आड़
- प्रावृतिः—स्त्री॰—-—प्र + आ + वृ + क्तिन्—आध्यात्मिक अन्धकार
- प्रावृत्तिक—वि॰—-—प्रवृत्ति + ठक्—गौण, अप्रधान
- प्रावृत्तिकः—पुं॰—-—प्रवृत्ति + ठक्—दूत
- प्रावृष्—स्त्री॰—-—प्र + आ + वृष् + क्विप्—वर्षा ऋतु, मौसमी हवा, वर्षा काल
- प्रावृडत्ययः—पुं॰—प्रावृष्-अत्ययः—-—वर्षा ऋतु का अन्त
- प्रावृट्कालः—पुं॰—प्रावृष्-कालः—-—वर्षा ऋतु
- प्रावृषः—पुं॰—-—प्र + आ + वृष् + क—वर्षा ऋतु, वर्षा काल
- प्रावृषा—स्त्री॰—-—प्रावृष + टाप्—वर्षा ऋतु, वर्षा काल
- प्रावृषिक—वि॰—-—प्रावृष + ठञ्—वर्षा ऋतु में उत्पन्न
- प्रावृषिकः—पुं॰—-—प्रावृष + ठञ्—मोर
- प्रावृषिज—वि॰—-—प्रावृषि जायते जन् + ड, अलुक् स॰—वर्षा ऋतु में उत्पन्न
- प्रावृषेण्य—वि॰—-—प्रावृष + एण्य—वर्षा ऋतु में उत्पन्न, वर्षा ऋतु से संबद्ध
- प्रावृषेण्य—वि॰—-—प्रावृष + एण्य—वर्षा ऋतु में देय
- प्रावृषेण्यः—पुं॰—-—प्रावृष + एण्य—कदम्ब वृक्ष
- प्रावृषेण्यः—नपुं॰—-—प्रावृष + एण्य—कुटज वृक्ष
- प्रावृषेण्यम्—नपुं॰—-—प्रावृष + एण्य—बहुसंख्यकता, बाहुल्य, प्राचुर्य
- प्रावृष्यः—पुं॰—-—प्रावृष् + यत्—एक प्रकार का कदंब का वृक्ष
- प्रावृष्यः—पुं॰—-—प्रावृष् + यत्—कुटज वृक्ष
- प्रावृष्यम्—नपुं॰—-—प्रावृष् + यत्—वैदूर्यमणि, नीलम
- प्रावेण्यभ्—नपुं॰—-—-—बढ़िया ऊनी चादर
- प्रावेशन—वि॰—-—प्रवेशन + अण्—प्रवेश करने पर जो दिया जाय या किया जाय
- प्राव्रज्यम्—नपुं॰—-—प्रव्रज्या + यण्—धार्मिक साधु या सन्यासी का जीवन
- प्रावाज्यम्—नपुं॰—-—प्रव्रज्या + यण्, पक्षे उत्तरपदवृद्धिश्च—धार्मिक साधु या सन्यासी का जीवन
- प्राशः—पुं॰—-—प्र + अश् + घञ्—खाना, स्वाद चखना, निर्वाह करना, पुष्ट होना
- प्राशः—पुं॰—-—प्र + अश् + घञ्—आहार, भोजन
- प्राशनम्—नपुं॰—-—प्र + अश् + ल्युट्—खाना, पुष्ट होना, स्वाद चखना
- प्राशनम्—नपुं॰—-—प्र + अश् + ल्युट्—खिलाना, स्वाद चखाना
- प्राशनम्—नपुं॰—-—प्र + अश् + ल्युट्—आहार, भोजन
- प्राशनीयम्—नपुं॰—-—प्र + अश् + अनीयर्—आहार, भोजन
- प्राशस्त्यम्—नपुं॰—-—प्रशस्त + ष्यञ्—श्रेष्ठता, स्तुत्यता, प्रमुखता
- प्राशित—भू॰ क॰ कृ॰—-—प्र + अश् + क्त—खाया हुआ, चखा हुआ, उपभुक्त
- प्राशितम्—नपुं॰—-—प्र + अश् + क्त—मृत् पुरखाओं के पितरों को उदकदान और पिण्डदान, पितरों के और्ध्वदेहिक संस्कार- प्राशितम् पितृतर्पणम्- @ मनु॰ ३/७४
- प्राश्निकः—पुं॰—-—प्रश्न + ठक्—परीक्षक
- प्राश्निकः—पुं॰—-—प्रश्न + ठक्—मध्यस्थ, विवाचक, न्यायाधीश
- प्रासः—पुं॰—-—प्र + अस् + घञ्—फेंकना, डालना, छोड़ना
- प्रासः—पुं॰—-—प्र + अस् + घञ्—बर्छी, भाला, फलकदार अस्त्र
- प्रासकः—पुं॰—-—प्रास + कन्—बर्छी, भाला, या फल लगा हुआ अस्त्र
- प्रासकः—पुं॰—-—प्रास + कन्—पासा
- प्रासंगः—पुं॰—-—प्र + सञ्ज् + घञ्, उपसर्गस्य दीर्घः—बैलों के लिए जूआ
- प्रासाङ्गिक—वि॰—-—प्रसंग + ठक्—घनिष्ठ संयोग से उत्पन्न
- प्रासाङ्गिक—वि॰—-—प्रसंग + ठक्—संयुक्त, सहज
- प्रासाङ्गिक—वि॰—-—प्रसंग + ठक्—प्रसंगानुकूल, आकस्मिक, आपाती, यदाकदा होने वाला
- प्रासाङ्गिक—वि॰—-—प्रसंग + ठक्—संबंधानुकूल, ऋत्वनुकूल, अवसरानुकूल
- प्रासाङ्गिक—वि॰—-—प्रसंग + ठक्—उपाख्यान विषयक
- प्रासङ्ग्यः—पुं॰—-—प्रासंग + यत्—हल में जुतने वाला बैल
- प्रासादः—पुं॰—-—प्रसीदन्ति अस्मिन्- प्रसद् + घञ्, उपसर्गस्य दीर्घः—महल, भवन, गगनचुंबी, विशाल भवन
- प्रासादः—पुं॰—-—प्रसीदन्ति अस्मिन्- प्रसद् + घञ्, उपसर्गस्य दीर्घः—राजभवन
- प्रासादः—पुं॰—-—प्रसीदन्ति अस्मिन्- प्रसद् + घञ्, उपसर्गस्य दीर्घः—मंदिर का देवालय
- प्रासादाङ्गनम्—नपुं॰—प्रासादः- अङ्गनम्—-—किसी महल या मन्दिर का आंगन
- प्रासादारोहणम्—नपुं॰—प्रासादः-आरोहणम्—-—महल में जाना या प्रविष्ट होना
- प्रासादकुक्कुटः—पुं॰—प्रासादः-कुक्कुटः—-—पालतू कबूतर
- प्रासादतलम्—नपुं॰—प्रासादः-तलम्—-—महल की समतल चपटी छत
- प्रासादपृष्ठः—पुं॰—प्रासादः-पृष्ठः—-—महल की चोटी पर बना छज्जा
- प्रासादप्रतिष्ठा—स्त्री॰—प्रासादः-प्रतिष्ठा—-—मन्दिर की प्रतिष्ठा, या अभिमन्त्रण
- प्रासादशायिन्—वि॰—प्रासादः-शायिन्—-—महल में सोने वाला
- प्रासादशृङ्गम्—नपुं॰—प्रासादः-शृङ्गम्—-—किसी महल या मन्दिर का कलस या मीनार, कंगूरा
- प्रासिकः—पुं॰—-—प्रास् + ठक्—भाला रखने वाला, बर्छी-धारी
- प्रासूतिक—वि॰—-—प्रसूति + ठक्—प्रसव से संबंध रखने वाला, बच्चे के जन्म से संबद्ध
- प्रास्त—भू॰ क॰ कृ॰—-—प्र + अस् + क्त—फेंका गया, चलाया गया, डाला गया, छोड़ा गया
- प्रास्त—भू॰ क॰ कृ॰—-—प्र + अस् + क्त—निर्वासित किया गया, बाहर निकाला गया
- प्रास्ताविक—वि॰—-—प्रस्ताव + ठक्—प्रस्तावना का काम देने वाला, प्रस्तावना या परिचय, भूमिका विषयक
- प्रास्ताविक—वि॰—-—प्रस्ताव + ठक्—ऋतु के अनुकूल, अवसरानुसार, सामयिक
- प्रास्ताविक—वि॰—-—प्रस्ताव + ठक्—संगत, प्रसंगानुकूल, संबद्ध
- प्रास्तुत्यम्—नपुं॰—-—प्रस्तुत + ष्यञ्—विचार विमर्श का विषय होना
- प्रास्थानिक—वि॰—-—प्रस्थान + ठञ्—प्रयाण से संबद्ध या विदा के अवसर के उपयुक्त
- प्रास्थानिक—वि॰—-—प्रस्थान + ठञ्—विदा के अनुकूल
- प्रास्थिक—वि॰—-—प्रस्थ + ठण्—तोल में एक प्रस्थ
- प्रास्थिक—वि॰—-—प्रस्थ + ठण्—एक प्रस्थ में मोल लिया हुआ
- प्रास्थिक—वि॰—-—प्रस्थ + ठण्—प्रस्थभर तोल का
- प्रास्थिक—वि॰—-—प्रस्थ + ठण्—एक प्रस्थ बीज से बोया गया
- प्रास्रवण—वि॰—-—प्रस्रवण + अण्—झरने से उत्पन्न स्रोत से निकला हुआ
- प्राहः—पुं॰—-—प्रकर्षेण ’आह’ शब्दो यत्र- प्रा॰ ब॰—नृत्यकला की शिक्षा
- प्राह्वः—पुं॰—-—प्रथमं च तदहश्च, कर्म॰ स॰ , टच्, अह्नादेशः, णत्वम्—दोपहर से पहले का समय
- प्राह्णेतन—वि॰—-—प्राह्ण + टयु, तुट्, नि॰ एत्वम्—मध्याह्न से पूर्व होने वाला, या मध्याह्नपूर्व संबंधी
- प्राह्णेतराम्—अव्य॰—-—प्राह्ण + तरप् ( तमप्), नि॰ एत्वम्—प्रातःकाल, बहुत सवेरे
- प्राह्णेतमाम्—अव्य॰—-—प्राह्ण + तरप् ( तमप्), आम्, नि॰ एत्वम्—प्रातःकाल, बहुत सवेरे
- प्रिय—वि॰—-—प्री + क—प्रिय, प्यारा, पसन्द आया हुआ, रमणीय
- प्रिय—वि॰—-—प्री + क—सुहावना, रुचिकर
- प्रिय—वि॰—-—प्री + क—चाहने वाला, अनुरक्त, भक्त
- प्रियः—पुं॰—-—प्री + क—प्रेमी, पति
- प्रियः—पुं॰—-—प्री + क—एक प्रकार का मृग
- प्रिया—स्त्री॰—-—प्री + क+ टाप्—प्रिया, पत्नी, स्वामिनी
- प्रिया—स्त्री॰—-—प्री + क+ टाप्—स्त्री
- प्रिया—स्त्री॰—-—प्री + क+ टाप्—छोटी इलायची
- प्रिया—स्त्री॰—-—प्री + क+ टाप्—समाचार, संसूचन
- प्रिया—स्त्री॰—-—प्री + क+ टाप्—खींची हुई मदिरा
- प्रिया—स्त्री॰—-—प्री + क+ टाप्—एक प्रकार का चमेली
- प्रियम्—नपुं॰—-—प्री + क—प्रेम
- प्रियम्—नपुं॰—-—प्री + क—कृपा, सेवा अनुग्रह
- प्रियम्—नपुं॰—-—प्री + क—सुखद समाचार
- प्रियम्—नपुं॰—-—प्री + क—आनन्द, सुख
- प्रियम्—अव्य॰—-—-—बड़े सुहावने या रुचिकर ढंग से
- प्रियातिथि—वि॰—प्रिय-अतिथि—-—आतिथेय, अतिथिसत्कार करने वाला
- प्रियापायः—पुं॰—प्रिय-अपायः—-—किसी प्रिय वस्तु का अभाव या हानि
- प्रियाप्रिय—वि॰—प्रिय-अप्रिय—-—सुखद और दुःखद, रुचिकर और अरुचिकर
- प्रियाप्रियम्—नपुं॰—प्रियम्-अप्रियम्—-—सेवा और अनिष्ट, अनुग्रह और क्षति
- प्रियाम्बुः—पुं॰—प्रिय-अम्बुः—-—आम का वृक्ष
- प्रियार्ह—वि॰—प्रिय-अर्ह—-—प्रेम या कृपा का अधिकारी
- प्रियार्ह—वि॰—प्रिय-अर्ह—-—मिलनसार
- प्रियार्हः—पुं॰—प्रिय-अर्हः—-—विष्णु का नाम
- प्रियासु—वि॰—प्रिय-असु—-—जीवन का प्रेमी
- प्रियाख्य—वि॰—प्रिय-आख्य—-—अच्छा समाचार सुनाने वाला
- प्रियाख्यानम्—नपुं॰—प्रिय-आख्यानम्—-—रुचिकर समाचार
- प्रियात्मन्—वि॰—प्रिय-आत्मन्—-—मिलनसार, सुखद, रुचिकर
- प्रियोक्तिः—स्त्री॰—प्रिय-उक्तिः—-—कृपा से युक्त या मैत्रीपूर्ण वक्तृता, चापलूसी के वचन
- प्रियोदितम्—नपुं॰—प्रिय-उदितम्—-—कृपा से युक्त या मैत्रीपूर्ण वक्तृता, चापलूसी के वचन
- प्रियोपपत्तिः—स्त्री॰—प्रिय-उपपत्तिः—-—आनन्दप्रद या सुखद घटना
- प्रियोपभोगः—पुं॰—प्रिय-उपभोगः—-—किसी प्रेमी या प्रेयसी के साथ रंगरेलियाँ
- प्रियैषिन्—वि॰—प्रिय-एषिन्—-—भला चाहने वाला, सेवा करने का इच्छुक
- प्रियैषिन्—वि॰—प्रिय-एषिन्—-—मित्रता से युक्त, स्नेही
- प्रियकर—वि॰—प्रिय-कर—-—सुख देने वाला या पैदा करने वाला
- प्रियकर्मन्—वि॰—प्रिय-कर्मन्—-—अनुग्रहपूर्वक या मित्रता से युक्त व्यवहार करने वाला
- प्रियकलत्रः—पुं॰—प्रिय-कलत्रः—-—अपनी पत्नी से प्रेम करने वाला पति, अपनी भार्या को अत्यन्त चाहने वाला
- प्रियकाम—वि॰—प्रिय-काम—-—मित्रवत् व्यवहार करने वाला, सेवा करने का इच्छुक
- प्रियकार—वि॰—प्रिय-कार—-—अनुग्रह करने वाला, भला करने वाला
- प्रियकारिन्—वि॰—प्रिय-कारिन्—-—अनुग्रह करने वाला, भला करने वाला
- प्रियकृत्—पुं॰—प्रिय-कृत्—-—भला करने वाला, मित्र, हितैषी
- प्रियजनः—पुं॰—प्रिय-जनः—-—प्रेमपात्र या प्यारा व्यक्ति
- प्रियजानिः—पुं॰—प्रिय-जानिः—-—अपनी पत्नी को अत्यन्त प्यार करने वाला पति
- प्रियतोषणः—पुं॰—प्रिय-तोषणः—-—एक प्रकार का रतिबन्ध, मैथुन का आसन विशेष
- प्रियदर्श—वि॰—प्रिय-दर्श—-—देखने में सुन्दर
- प्रियदर्शन—वि॰—प्रिय-दर्शन—-—देखने में सुहावना, सुन्दर दर्शनों वाला, सुन्दर, मनोहर, खूबसूरत
- प्रियदर्शनः—पुं॰—प्रिय-दर्शनः—-—तोता
- प्रियदर्शनः—पुं॰—प्रिय-दर्शनः—-—एक प्रकार का छुहारे का वृक्ष
- प्रियदर्शनः—पुं॰—प्रिय-दर्शनः—-—गन्धर्वों के राजा का नाम
- प्रियदर्शिन्—वि॰—प्रिय-दर्शिन्—-—राजा अशोक का विशेषण
- प्रियदेवन—वि॰—प्रिय-देवन—-—जूआ खेलने का शौकीन
- प्रियधन्वः—पुं॰—प्रिय-धन्वः—-—शिव का विशेषण
- प्रियपुत्रः—पुं॰—प्रिय-पुत्रः—-—एक प्रकार का पक्षी
- प्रियप्रसादनम्—नपुं॰—प्रिय-प्रसादनम्—-—पति को प्रसन्न करना
- प्रियप्रायः—वि॰—प्रिय-प्रायः—-—अत्यन्त कृपालु या सुशील
- प्रियप्रायम्—नपुं॰—प्रिय-प्रायम्—-—भाषा में वाक्पटुता
- प्रियप्रायस्—नपुं॰—प्रिय-प्रायस्—-—बहुत ही रोचक वक्तृता, जैसा कि एक प्रेमी का अपनी प्रेयसी के प्रति कथन
- प्रियप्रेप्सु—वि॰—प्रिय-प्रेप्सु—-—अपने अभीष्ट पदार्थ को प्राप्त करने की इच्छा करने वाला
- प्रियभावः—पुं॰—प्रिय-भावः—-—प्रेम की भावना
- प्रियभाषणम्—नपुं॰—प्रिय-भाषणम्—-—कृपा से युक्त या रुचिकर शब्द
- प्रियभाषिन्—वि॰—प्रिय-भाषिन्—-—मधुरभाषी
- प्रियमण्डन—वि॰—प्रिय-मण्डन—-—अलंकारों का प्रेमी
- प्रियमधु—वि॰—प्रिय-मधु—-—मदिरा का शौकीन
- प्रियमधुः—पुं॰—प्रिय-मधुः—-—बलराम का विशेषण
- प्रियरण—वि॰—प्रिय-रण—-—बहादुर, शूरवीर
- प्रियवचन—वि॰—प्रिय-वचन—-—रोचक तथा कृपापूर्ण शब्द बोलने वाला
- प्रियवचनम्—नपुं॰—प्रिय-वचनम्—-—कृपा से युक्त, प्रोत्साहक एवं मधुर शब्द
- प्रियवयस्यः—पुं॰—प्रिय-वयस्यः—-—प्रिय मित्र
- प्रियवर्णी—पुं॰—प्रिय-वर्णी—-—प्रियंगु नामक पौधा
- प्रियवस्तु—नपुं॰—प्रिय-वस्तु—-—प्यारी चीज
- प्रियवाच्—वि॰—प्रिय-वाच्—-—कृपा से युक्त शब्द बोलने वाला, प्यारी बातें करने वाला
- प्रियवाच्—स्त्री॰—प्रिय-वाच्—-—कृपामय और रोचक शब्द
- प्रियवादिका—स्त्री॰—प्रिय-वादिका—-—एक प्रकार का वाद्ययंत्र
- प्रियवादिन्—वि॰—प्रिय-वादिन्—-—कृपा से युक्त तथा मधुर शब्द बोलने वाला, चापलूस
- प्रियश्रवस्—पुं॰—प्रिय-श्रवस्—-—कृष्ण का विशेषण
- प्रियसंवासः—पुं॰—प्रिय-संवासः—-—प्रिय व्यक्ति का सत्संग
- प्रियसखः—पुं॰—प्रिय-सखः—-—प्रिय मित्र
- प्रियसखी—स्त्री॰—प्रिय-सखी—-—सहेली, अन्तरंग सहेली
- प्रियसत्य—वि॰—प्रिय-सत्य—-—सत्य का प्रेमी
- प्रियसत्य—वि॰—प्रिय-सत्य—-—सत्य होने पर भी प्रिय
- प्रियसन्देशः—पुं॰—प्रिय-सन्देशः—-—प्रिय समाचार, प्रेमी का समाचार
- प्रियसन्देशः—पुं॰—प्रिय-सन्देशः—-—’चंपक’ नाम का वृक्ष
- प्रियसमागमः—पुं॰—प्रिय-समागमः—-—अपने प्रिय व्यक्ति से मिलन
- प्रियसहचरी—स्त्री॰—प्रिय-सहचरी—-—प्यारी पत्नी
- प्रियसुहृद्—पुं॰—प्रिय-सुहृद्—-—प्रिय या प्राणप्रिय मित्र, हार्दिक मित्र
- प्रियस्वप्न—वि॰—प्रिय-स्वप्न—-—सोने का प्रेमी
- प्रियंवद—वि॰—-—प्रियं वदति प्रिय + वद् + खच्, मुम्—मधुरभाषी, प्रिय बोलने वाला, प्यारी बातें करने वाला, मिलनसार
- प्रियंवदः—पुं॰—-—प्रियं वदति प्रिय + वद् + खच्, मुम्—एक प्रकार का पक्षी
- प्रियंवदः—पुं॰—-—प्रियं वदति प्रिय + वद् + खच्, मुम्—एक गन्धर्व का नाम
- प्रियकः—पुं॰—-—प्रिय + कन्—एक प्रकार का हरिण
- प्रियकः—पुं॰—-—प्रिय + कन्—नीप नामक वृक्ष
- प्रियकः—पुं॰—-—प्रिय + कन्—प्रियंगु नाम की लता
- प्रियकः—पुं॰—-—प्रिय + कन्—मधुमक्खी
- प्रियकः—पुं॰—-—प्रिय + कन्—एक प्रकार का पक्षी
- प्रियकः—पुं॰—-—प्रिय + कन्—जाफरान, केसर
- प्रियकम्—नपुं॰—-—प्रिय + कन्—असन वृक्ष का फूल
- प्रियङ्कर—वि॰—-—प्रिय + कृ + खच्—अनुग्रह दर्शाने वाला, कृपा करने वाला, स्नेह करने वाला
- प्रियङ्कर—वि॰—-—प्रिय + कृ + खच्—रुचिकर
- प्रियङ्कर—वि॰—-—प्रिय + कृ + खच्—मिलनसार
- प्रियङ्करण—वि॰—-—प्रिय + कृ + ख्युन् , मुम्—अनुग्रह दर्शाने वाला, कृपा करने वाला, स्नेह करने वाला
- प्रियङ्करण—वि॰—-—प्रिय + कृ + ख्युन् , मुम्—रुचिकर
- प्रियङ्करण—वि॰—-—प्रिय + कृ + ख्युन् , मुम्—मिलनसार
- प्रियङ्कार—वि॰—-—प्रिय + कृ + अण् , मुम्—अनुग्रह दर्शाने वाला, कृपा करने वाला, स्नेह करने वाला
- प्रियङ्कार—वि॰—-—प्रिय + कृ + अण् , मुम्—रुचिकर
- प्रियङ्कार—वि॰—-—प्रिय + कृ + अण् , मुम्—मिलनसार
- प्रियङ्गुः—पुं॰—-—प्रिय + गम् + कु—एक लता का नाम
- प्रियङ्गुः—पुं॰—-—-—बड़ी पीपल
- प्रियङ्गु—नपुं॰—-—-—जाफ़रान, केसर
- प्रियतम—वि॰—-—प्रिय + तमप्—अत्यंत प्रिय, सबसे अधिक प्यारा
- प्रियतमः—पुं॰—-—प्रिय + तमप्—प्रेमी, पति
- प्रियतमा—स्त्री॰—-—प्रिय + तमप्+ टाप्—पत्नी, स्वामिनी, बल्लभा, प्रेयसी
- प्रियतर—वि॰—-—प्रिय + तरप्—अधिक प्रिय, अपेक्षाकृत प्यारा
- प्रियता—स्त्री॰—-—प्रिय + तल् + टाप्—प्रिय होना, प्यार
- प्रियता—स्त्री॰—-—प्रिय + तल् + टाप्—प्रेम, स्नेह
- प्रियत्वम्—नपुं॰—-—प्रिय + त्व—प्रिय होना, प्यार
- प्रियत्वम्—नपुं॰—-—प्रिय + त्व—प्रेम, स्नेह
- प्रियम्भविष्णु—वि॰—-—प्रिय + भू + खिष्णुच्, मुम्—स्नेह का पात्र, अत्यंत प्रिय
- प्रियम्भावुक—वि॰—-—प्रिय + भू + खुकञ्, मुम्—स्नेह का पात्र, अत्यंत प्रिय
- प्रियालः—पुं॰—-—प्रिय + अल् + अच्—पियाल नामक वृक्ष
- प्रियाला—स्त्री॰—-—प्रिय + अल् + अच्+ टाप्—अंगूरों की बेल
- प्री—क्रया॰ उभ॰ < प्रीणाति>, < प्रोणीते>, < प्रीत>—-—-—प्रसन्न करना, खुश करना, सन्तुष्ट करना, आनन्दित करना
- प्री—क्रया॰ उभ॰ < प्रीणाति>, < प्रोणीते>, < प्रीत>—-—-—प्रसन्न होना, खुश होना
- प्री—क्रया॰ उभ॰ < प्रीणाति>, < प्रोणीते>, < प्रीत>—-—-—कृपामय बर्ताव करना, अनुग्रह दर्शाना
- प्री—क्रया॰ उभ॰ < प्रीणाति>, < प्रोणीते>, < प्रीत>—-—-—प्रसन्न या हँसमुख रहना
- प्री—प्रेर॰ < प्रीणयति>, < प्रीणयते>—-—-—प्रसन्न करना, सन्तुष्ट करना
- प्री—दिवा॰ आ॰—-—-—सन्तुष्ट या प्रसन्न होना, तृप्त होना
- प्री—दिवा॰ आ॰—-—-—स्नेह करना, प्रेम करना
- प्री—दिवा॰ आ॰—-—-—सहमति या मंजूरी देना, सन्तुष्ट होना
- प्रीण—वि॰—-—प्री + क्त, तस्य नः—प्रसन्न, सन्तुष्ट, तृप्त
- प्रीण—वि॰—-—प्री + क्त, तस्य नः—पुराना, प्राचीन
- प्रीण—वि॰—-—प्री + क्त, तस्य नः—पहला
- प्रीणनम्—नपुं॰—-—प्रीण् + ल्युट्—प्रसन्न करना, सन्तुष्ट करना
- प्रीणनम्—नपुं॰—-—प्रीण् + ल्युट्—जो प्रसन्न या सन्तुष्ट करता है।
- प्रीत—भू॰ क॰ कृ॰—-—प्री + क्त, नत्वाभावः—प्रसन्न, खुश, प्रहृष्ट, आनन्दित
- प्रीत—भू॰ क॰ कृ॰—-—प्री + क्त, नत्वाभावः—आनंदयुक्त, आह्लादित, हर्षपूर्ण- @ मेघ॰ ४
- प्रीत—भू॰ क॰ कृ॰—-—प्री + क्त, नत्वाभावः—सन्तुष्ट
- प्रीत—भू॰ क॰ कृ॰—-—प्री + क्त, नत्वाभावः—प्रिय, प्यारा
- प्रीत—भू॰ क॰ कृ॰—-—प्री + क्त, नत्वाभावः—कृपालु, स्नेही
- प्रीतात्मन्—वि॰—प्रीत- आत्मन्—-—ह्रुदय से खुश, मन से आनन्दित
- प्रीतचित्—वि॰—प्रीत-चित्—-—ह्रुदय से खुश, मन से आनन्दित
- प्रीतमनस्—वि॰—प्रीत-मनस्—-—ह्रुदय से खुश, मन से आनन्दित
- प्रीतिः—स्त्री॰—-—प्री + क्तिन्—प्रसन्नता, आह्लाद, संतोष, खुशी, आनंद, हर्ष, तृप्ति
- प्रीतिः—स्त्री॰—-—प्री + क्तिन्—अनुग्रह, कृपालुता
- प्रीतिः—स्त्री॰—-—प्री + क्तिन्—प्रेम, स्नेह, आदर
- प्रीतिः—स्त्री॰—-—प्री + क्तिन्—पसन्द, चाह, खुशी, व्यसन
- प्रीतिः—स्त्री॰—-—प्री + क्तिन्—मित्रता, सौहार्द
- प्रीतिः—स्त्री॰—-—प्री + क्तिन्—कामदेव की एक पत्नी का नाम, रति की सौत
- प्रीतिकर—वि॰—प्रीतिः-कर—-—प्रेम या अनुराग उत्पन्न करने वाला, रुचिकर
- प्रीतिकर्मन्—नपुं॰—प्रीतिः-कर्मन्—-—मैत्री या प्रेम का बर्ताव, कृपापूर्ण कार्य
- प्रीतिदः—पुं॰—प्रीतिः-दः—-—नाटक में विदूषक या मसखरा
- प्रीतिदत्त—वि॰—प्रीतिः-दत्त—-—स्नेह के कारण दिया हुआ
- प्रीतिदत्तम्—नपुं॰—प्रीतिः-दत्तम्—-—स्त्री को दी हुई संपत्ति, विशेषकर विवाह के अवसर पर सास या श्वसुर द्वारा
- प्रीतिदानम्—नपुं॰—प्रीतिः- दानम्—-—प्रेमोपहार, मित्रता के नाते दिया गया उपहार
- प्रीतिदायः—पुं॰—प्रीतिः-दायः—-—प्रेमोपहार, मित्रता के नाते दिया गया उपहार
- प्रीतिधनम्—नपुं॰—प्रीतिः-धनम्—-—प्रेम या सौहार्द के कारण दिया हुआ धन
- प्रीतिपात्रम्—नपुं॰—प्रीतिः-पात्रम्—-—प्रेम की वस्तु, कोई प्रिय व्यक्ति, या वस्तु
- प्रीतिपूर्वम्—अव्य॰—प्रीतिः-पूर्वम्—-—कृपा के साथ, स्नेहपूर्वक
- प्रीतिपूर्वकम्—अव्य॰—प्रीतिः-पूर्वकम्—-—कृपा के साथ, स्नेहपूर्वक
- प्रीतिमनस्—वि॰—प्रीतिः-मनस्—-—मन में खुश, प्रसन्न, आनंदित
- प्रीतियुज्—वि॰—प्रीतिः-युज्—-—प्रिय, स्नेही, प्यारा
- प्रीतिवचस्—नपुं॰—प्रीतिः- वचस्—-—मैत्री से भरी हुई या कृपापूर्ण वाणी
- प्रीतिवचनम्—नपुं॰—प्रीतिः-वचनम्—-—मैत्री से भरी हुई या कृपापूर्ण वाणी
- प्रीतिवर्धन—वि॰—प्रीतिः-वर्धन—-—प्रेम या हर्ष को बढ़ाने वाला
- प्रीतिवर्धनः—पुं॰—प्रीतिः-वर्धनः—-—विष्णु का विशेषण
- प्रीतिवादः—पुं॰—प्रीतिः-वादः—-—मित्रवत् विचारविमर्श
- प्रीतिविवाहः—पुं॰—प्रीतिः- विवाहः—-—प्रीति या प्रेम के कारण होने वाला विवाह, प्रेम-संबंध
- प्रीतिश्राद्धम्—नपुं॰—प्रीतिः- श्राद्धम्—-—पितरों के सम्मानार्थ किया जाने वाला और्ध्वदैहिक संस्कार या श्राद्ध
- प्रु—भ्वा॰ आ॰- < प्रवते>—-—-—जाना, चलना-फिरना
- प्रु—भ्वा॰ आ॰- < प्रवते>—-—-—कूदना, उछलना
- प्रुष्—भ्वा॰ पर॰- < प्रोषति>, < प्रुष्ट>—-—-—जलाना, खा-पी जाना
- प्रुष्—भ्वा॰ पर॰- < प्रोषति>, < प्रुष्ट>—-—-—भस्म करना
- प्रुष्—क्रया॰ पर॰- < पुष्णाति>—-—-—आर्द्र या तर होना
- प्रुष्—क्रया॰ पर॰- < पुष्णाति>—-—-—उड़ेलना, छिड़कना
- प्रुष्—क्रया॰ पर॰- < पुष्णाति>—-—-—भरना
- प्रुष्ट—भू॰ क॰ कृ॰—-—प्रुष् + क्त—जलाया हुआ, खाया-पीया हुआ, जला कर राख किया गया
- प्रुष्वः—पुं॰—-—प्रुष् + क्वन्—वर्षा ऋतु
- प्रुष्वः—पुं॰—-—प्रुष् + क्वन्—सूर्य
- प्रुष्वः—पुं॰—-—प्रुष् + क्वन्—पानी की बूंद
- प्रेक्षकः—पुं॰—-—प्र + ईक्ष् + ण्वुल्—दर्शक, तमाशबीन, देखने वाला, दृश्य- द्रष्टा
- प्रेक्षणम्—नपुं॰—-—प्र + ईक्ष् + ल्युट्—देखना, दृष्टि डालना
- प्रेक्षणम्—नपुं॰—-—प्र + ईक्ष् + ल्युट्—दृश्य, दृष्टि, दर्शन
- प्रेक्षणम्—नपुं॰—-—प्र + ईक्ष् + ल्युट्—आँख
- प्रेक्षणम्—नपुं॰—-—प्र + ईक्ष् + ल्युट्—तमाशा, सार्वजनिक दृश्य, दिखावा
- प्रेक्षणकूटम्—नपुं॰—प्रेक्षणम्-कूटम्—-—आँख का डेला
- प्रेक्षणकम्—नपुं॰—-—प्रेक्षण + कन्—दिखावा, तमाशा
- प्रेक्षणिका—स्त्री॰—-—प्र + ईक्ष् + ण्वुल्, इत्वम्—तमाशा देखने की शौक़ीन स्त्री
- प्रेक्षणीय—वि॰—-—प्र + ईक्ष् + अनीयर्—दर्शनीय, विचारणीय, निगाह डालने के योग्य
- प्रेक्षणीय—वि॰—-—प्र + ईक्ष् + अनीयर्—देखने के लिए उपयुक्त, मनोहर, सुन्दर
- प्रेक्षणीय—वि॰—-—प्र + ईक्ष् + अनीयर्—विचारणीय, ध्यान देने के योग्य
- प्रेक्षणीयकम्—नपुं॰—-—प्रेक्षणीय + कन्—दिखावा, दृश्य, तमाशा
- प्रेक्षा—स्त्री॰—-—प्र + ईक्ष् + अङ् + टाप्—दृष्टि डालना, देखना, तमाशा देखना
- प्रेक्षा—स्त्री॰—-—प्र + ईक्ष् + अङ् + टाप्—अवलोकन, दृश्य, दृष्टि, दर्शन
- प्रेक्षा—स्त्री॰—-—प्र + ईक्ष् + अङ् + टाप्—तमाशवीन होना
- प्रेक्षा—स्त्री॰—-—प्र + ईक्ष् + अङ् + टाप्—कोई सार्वजनिक तमाशा, दिखावा, दृष्टि
- प्रेक्षा—स्त्री॰—-—प्र + ईक्ष् + अङ् + टाप्—विशेष कर थियेटर का तमाशा, नाटकीय प्रदर्शन, अभिनय
- प्रेक्षा—स्त्री॰—-—प्र + ईक्ष् + अङ् + टाप्—बुद्धि, समझ
- प्रेक्षा—स्त्री॰—-—प्र + ईक्ष् + अङ् + टाप्—विमर्श, विचारणा, पर्यालोचन
- प्रेक्षा—स्त्री॰—-—प्र + ईक्ष् + अङ् + टाप्—वृक्ष की शाखा
- प्रेक्षागारः—पुं॰—प्रेक्षा-अगारः—-—थियेटर, नाटयशाला, रंगशाला
- प्रेक्षागारः—पुं॰—प्रेक्षा-अगारः—-—मन्त्रणा-भवन
- प्रेक्षागारम्—नपुं॰—प्रेक्षा-अगारम्—-—थियेटर, नाटयशाला, रंगशाला
- प्रेक्षागारम्—नपुं॰—प्रेक्षा-अगारम्—-—मन्त्रणा-भवन
- प्रेक्षागृहम्—नपुं॰—प्रेक्षा-गृहम्—-—थियेटर, नाटयशाला, रंगशाला
- प्रेक्षागृहम्—नपुं॰—प्रेक्षा-गृहम्—-—मन्त्रणा-भवन
- प्रेक्षास्थानम्—नपुं॰—प्रेक्षा-स्थानम्—-—थियेटर, नाटयशाला, रंगशाला
- प्रेक्षास्थानम्—नपुं॰—प्रेक्षा-स्थानम्—-—मन्त्रणा-भवन
- प्रेक्षासमाजः—पुं॰—प्रेक्षा-समाजः—-—श्रोता दर्शकों की भीड़, सभा
- प्रेक्षावत्—वि॰—-—प्रेक्षा + मतुप्—विचारशील, बुद्धिमान्, विद्वान्
- प्रेक्षित—भू॰ क॰ कृ॰—-—प्र + ईक्ष् + क्त—देखा हुआ, विचार किया हुआ, नजर डाला हुआ, निगाह में से निकाला हुआ, अवलोकन किया हुआ
- प्रेक्षितम्—नपुं॰—-—प्र + ईक्ष् + क्त—रूप, छवि, झलक
- प्रेङ्खः—पुं॰—-—प्र + इङ्ख् + घञ्—झूलना, पेंग लेना
- प्रेङ्खम्—नपुं॰—-—प्र + इङ्ख् + घञ्—झूलना, पेंग लेना
- प्रेङ्खण—वि॰—-—प्र + इङ्ख् + ल्युट्—घूमने वाला, इधर-उधर फिरने वाला, प्रविष्ट होने वाला
- प्रेङ्खणम्—नपुं॰—-—प्र + इङ्ख् + ल्युट्—झूलना
- प्रेङ्खणम्—नपुं॰—-—प्र + इङ्ख् + ल्युट्—झूला
- प्रेङ्खणम्—नपुं॰—-—प्र + इङ्ख् + ल्युट्—नायक, सूत्रधार आदि पात्रों से शून्य एकांकी नाटक
- प्रेङ्खा—स्त्री॰—-—प्र + इंख् + अङ् + टाप्—झूला
- प्रेङ्खा—स्त्री॰—-—प्र + इंख् + अङ् + टाप्—नृत्य
- प्रेङ्खा—स्त्री॰—-—प्र + इंख् + अङ् + टाप्—पर्यटन, घूमना, यात्रा करना
- प्रेङ्खा—स्त्री॰—-—प्र + इंख् + अङ् + टाप्—एक प्रकार का भवन या घर
- प्रेङ्खा—स्त्री॰—-—प्र + इंख् + अङ् + टाप्—घोड़े का विशेष कदम
- प्रेङ्खत—भू॰ क॰ कृ॰—-—प्र + इङ्ख् + क्त—झूला हुआ, हिलाया हुआ, प्रदोलित या डांवाडोल
- प्रेङ्खोल्—चुरा॰ उभ॰- < प्रेङ्खोलयति>, < प्रेङ्खोलयते>—-—-—झूलना, हिलना, डांवाडोल होना
- प्रेङ्खोलनम्—नपुं॰—-—प्रेङ्खोल् + ल्युट्—झूलना, हिलना, इधर से उधर प्रदोलित होना
- प्रेङ्खोलनम्—नपुं॰—-—प्रेङ्खोल् + ल्युट्—झूला, पेंग
- प्रेत—भू॰ क॰ कृ॰—-—प्र + इ + क्त—इस संसार से गया हुआ, मृत
- प्रेतः—पुं॰—-—प्र + इ + क्त—दिवंगत आत्मा, और्ध्वदेहिक क्रिया किये जाने से पूर्व जीव की अवस्था
- प्रेतः—पुं॰—-—प्र + इ + क्त—भूत, पिशाच
- प्रेताधिपः—पुं॰—प्रेत-अधिपः—-—यम का विशेषण
- प्रेतान्नम्—नपुं॰—प्रेत-अन्नम्—-—पितरों को अर्पित आहार
- प्रेतास्थि—नपुं॰—प्रेत-अस्थि—-—मृतक पुरुष की हड्डी
- प्रेतधारिन्—पुं॰—प्रेत-धारिन्—-—शिव का विशेषण
- प्रेतेशः—पुं॰—प्रेत-ईशः—-—यम का विशेषण
- प्रेतेश्वरः—पुं॰—प्रेत-ईश्वरः—-—यम का विशेषण
- प्रेतोद्देशः—पुं॰—प्रेत-उद्देशः—-—पितरों के निमित्त अर्पण
- प्रेतकर्मन्—नपुं॰—प्रेत-कर्मन्—-—और्ध्वदेहिक या अन्त्येष्टि संस्कार
- प्रेतकृत्यम्—नपुं॰—प्रेत-कृत्यम्—-—और्ध्वदेहिक या अन्त्येष्टि संस्कार
- प्रेतकृत्या—स्त्री॰—प्रेत-कृत्या—-—और्ध्वदेहिक या अन्त्येष्टि संस्कार
- प्रेतगृहम्—नपुं॰—प्रेत-गृहम्—-—कब्रिस्तान, शवस्थान
- प्रेतचारिन्—पुं॰—प्रेत-चारिन्—-—शिव का विशेषण
- प्रेतदाहः—पुं॰—प्रेत-दाहः—-—मुर्दे का जलाना, शवदाह
- प्रेतधूमः—पुं॰—प्रेत-धूमः—-—चिता से उठता हुआ धूआँ
- प्रेतपक्षः—पुं॰—प्रेत-पक्षः—-—पितृपक्ष
- प्रेतपटहः—पुं॰—प्रेत-पटहः—-—अर्थी ले जाते समय बजाया जाने वाला ढोल
- प्रेतपतिः—पुं॰—प्रेत-पतिः—-—यम का विशेषण
- प्रेतपुरम्—नपुं॰—प्रेत-पुरम्—-—यमराज की नगरी
- प्रेतभावः—पुं॰—प्रेत-भावः—-—मृत्यु
- प्रेतभूमिः—स्त्री॰—प्रेत-भूमिः—-—कब्रिस्तान, शवस्थान
- प्रेतशरीरम्—नपुं॰—प्रेत-शरीरम्—-—वियुक्त जीव का शरीर, मृत शरीर
- प्रेतशुद्धिः—स्त्री॰—प्रेत-शुद्धिः—-—किसी संबंधी की मृत्यु हो जाने पर शुद्धि, पातक शुद्धि
- प्रेतशौचम्—नपुं॰—प्रेत-शौचम्—-—किसी संबंधी की मृत्यु हो जाने पर शुद्धि, पातक शुद्धि
- प्रेतश्राद्धम्—नपुं॰—प्रेत-श्राद्धम्—-—किसी मृत संबंधी के निमित्त वरसी से पहले-पहले किये जाने वाली और्ध्वदेहिक क्रियाएँ
- प्रेतहारः—पुं॰—प्रेत-हारः—-—मृत शरीर को ले जाने वाला
- प्रेतहारः—पुं॰—प्रेत-हारः—-—निकट संबंधी
- प्रेतिक—पुं॰, प्रा॰ ब॰—-—प्रकर्षेण इति गमनं यस्य प्र + इति + कन्—भूत, प्रेत
- प्रत्य—अव्य॰—-—प्र + इ + क्त्वा + ल्यप्—विदा होकर मरने के पश्चात् दूसरे लोक में
- प्रत्यजातिः—स्त्री॰—प्रत्य-जातिः—-—परलोक की स्थिति
- प्रत्यभावः—पुं॰—प्रत्य-भावः—-—मरने के पश्चात् आत्मा की अवस्था
- प्रेत्वन्—पुं॰—-—प्र + इ + क्वनिप्, तुकागमः—वायु
- प्रेत्वन्—पुं॰—-—प्र + इ + क्वनिप्, तुकागमः—इन्द्र का विशेषण
- प्रेप्सा—स्त्री॰—-—प्र + आप् + सन् + अ + टाप्—प्राप्त करने की इच्छा
- प्रेप्सा—स्त्री॰—-—प्र + आप् + सन् + अ + टाप्—इच्छा
- प्रेप्सु—वि॰—-—प्र + आप् + सन् + उ—प्राप्त करने का इच्छुक, कामना करता हुआ, अभिलाषी, प्रबल इच्छुक
- प्रेप्सु—वि॰—-—प्र + आप् + सन् + उ—उद्देश्य रखने वाला
- प्रेमन्—पुं॰, नपुं॰—-—प्रियस्य भावः इमनिच् प्रादेशः एकाच्कत्वात् न टिलोपः- तारा॰—प्रेम, स्नेह
- प्रेमन्—पुं॰, नपुं॰—-—प्रियस्य भावः इमनिच् प्रादेशः एकाच्कत्वात् न टिलोपः- तारा॰—अनुग्रह, कृपा, कृपापूर्ण या मृदु व्यवहार
- प्रेमन्—पुं॰, नपुं॰—-—प्रियस्य भावः इमनिच् प्रादेशः एकाच्कत्वात् न टिलोपः- तारा॰—आमोद-प्रमोद, मनोविनोद
- प्रेमन्—पुं॰, नपुं॰—-—प्रियस्य भावः इमनिच् प्रादेशः एकाच्कत्वात् न टिलोपः- तारा॰—हर्ष, खुशी, उल्लास
- प्रेमाश्रु—नपुं॰—प्रेमन्-अश्रु—-—हर्षाश्रु, स्नेहाश्रु
- प्रेमर्द्धिः—स्त्री॰—प्रेमन्-ऋद्धिः—-—स्नेहवर्धन, उत्कट प्रेम
- प्रेमपर—वि॰—प्रेमन्-पर—-—स्नेहशील, प्रिय
- प्रेमपातनम्—नपुं॰—प्रेमन्-पातनम्—-—आँसू
- प्रेमपातनम्—नपुं॰—प्रेमन्-पातनम्—-—आँख
- प्रेमपात्रम्—नपुं॰—प्रेमन्-पात्रम्—-—प्रेम की वस्तु, कोई प्रिय व्यक्ति या वस्तु
- प्रेमबन्धः—पुं॰—प्रेमन्-बन्धः—-—स्नेहबन्धन, प्रेम की फाँस
- प्रेमबन्धनम्—नपुं॰—प्रेमन्-बन्धनम्—-—स्नेहबन्धन, प्रेम की फाँस
- प्रेमिन्—वि॰—-—प्रेमन् + इनि—प्रिय, स्नेह-शील
- प्रेयस्—वि॰—-—अयमनयोः अतिशयन प्रियः प्रिय + ईयसुन्, प्रादेशः ’प्रिय’ की म॰ अ॰—अधिक प्यारा, अपेक्षाकृत प्रिय या रुचिकर
- प्रेयस्—पुं॰—-—अयमनयोः अतिशयन प्रियः प्रिय + ईयसुन्, प्रादेशः ’प्रिय’ की म॰ अ॰—प्रेमी, पति
- प्रेयस्—पुं॰, नपुं॰—-—अयमनयोः अतिशयन प्रियः प्रिय + ईयसुन्, प्रादेशः ’प्रिय’ की म॰ अ॰—चापलूसी
- प्रेयसी—स्त्री॰—-—-—पत्नी, स्वामिनी
- प्रेयोपत्यः—पुं॰—-—अपत्यानां प्रेयः—बगुला, कंक पक्षी
- प्रेरक—वि॰—-—प्र + ईर् + णिच् + ण्वुल्—प्रेरित करने वाला, उत्तेजक, उद्दीपक
- प्रेरक—वि॰—-—प्र + ईर् + णिच् + ण्वुल्—भेजने वाला, निदेशक
- प्रेरणा—स्त्री॰—-—प्र + ईर् + णिच् + ल्युट्—प्रेरित करना, उत्तेजित करना, आगे बढ़ाना, उकसाना, भड़काना
- प्रेरणा—स्त्री॰—-—प्र + ईर् + णिच् + ल्युट्—आवेग, आवेश
- प्रेरणा—स्त्री॰—-—प्र + ईर् + णिच् + ल्युट्—फेंकना, डालना
- प्रेरणा—स्त्री॰—-—प्र + ईर् + णिच् + ल्युट्—भेजना, प्रेषित करना
- प्रेरणा—स्त्री॰—-—प्र + ईर् + णिच् + ल्युट्—आदेश, निदेश
- प्रेरणा—स्त्री॰—-—प्र + ईर् + णिच् + ल्युट्—किसी ओर से कार्य कराने की क्रिया, प्रेरणार्थक क्रिया
- प्रेरणम्—नपुं॰—-—प्र + ईर् + णिच् + ल्युट्—प्रेरित करना, उत्तेजित करना, आगे बढ़ाना, उकसाना, भड़काना
- प्रेरणम्—नपुं॰—-—प्र + ईर् + णिच् + ल्युट्—आवेग, आवेश
- प्रेरणम्—नपुं॰—-—प्र + ईर् + णिच् + ल्युट्—फेंकना, डालना
- प्रेरणम्—नपुं॰—-—प्र + ईर् + णिच् + ल्युट्—भेजना, प्रेषित करना
- प्रेरणम्—नपुं॰—-—प्र + ईर् + णिच् + ल्युट्—आदेश, निदेश
- प्रेरणम्—नपुं॰—-—प्र + ईर् + णिच् + ल्युट्—किसी ओर से कार्य कराने की क्रिया, प्रेरणार्थक क्रिया
- प्रेरित—भू॰ क॰ कृ॰—-—प्र + ईर् + णिच् + क्त—आगे बढ़ाया गया, उत्तेजित किया गया, उकसाया गया
- प्रेरित—भू॰ क॰ कृ॰—-—प्र + ईर् + णिच् + क्त—उत्तेजित, उद्दीपित, प्रणोदित
- प्रेरित—भू॰ क॰ कृ॰—-—प्र + ईर् + णिच् + क्त—भेजा गया, प्रेषित
- प्रेरित—भू॰ क॰ कृ॰—-—प्र + ईर् + णिच् + क्त—स्पर्श किया गया
- प्रेरितः—पुं॰—-—-—दूत, एलची
- प्रेष्—भ्वा॰ उभ॰ < प्रेषति>, < प्रेषते>—-—-—जाना, चलना-फिरना
- प्रेषः—पुं॰—-—प्र + इष् + घञ्—भेजना, प्रेषण करना
- प्रेषः—पुं॰—-—प्र + इष् + घञ्—दूत के रूप में भेजना, निदेश देना, भार या बोझ डालना, आयुक्त करना
- प्रेषित—भू॰ क॰ कृ॰—-—प्र + इष् + क्त—भेजा हुआ
- प्रेषित—भू॰ क॰ कृ॰—-—प्र + इष् + क्त—आदिष्ट, निदेशित
- प्रेषित—भू॰ क॰ कृ॰—-—प्र + इष् + क्त—मुड़ा हुआ, स्थिर, निदिष्ट होकर, डाली हुई
- प्रेषित—भू॰ क॰ कृ॰—-—प्र + इष् + क्त—निर्वासित
- प्रेष्ठ—वि॰—-—अयमेषामतिशयेन प्रियः- प्रिय + इष्टन्, उ॰ अ॰—अत्यंत प्यारा, प्रियतम
- प्रेष्ठः—पुं॰—-—-—प्रेमी, पति
- प्रेष्ठा—स्त्री॰—-—-—पत्नी, स्वामिनी
- प्रेष्य—वि॰—-—प्र + ईष् + ण्यत्—आदेश दिये जाने के योग्य, भेजे जाने या प्रेषित किये जाने के योग्य
- प्रेष्यः—पुं॰—-—प्र + ईष् + ण्यत्—सेवक, भृत्य, दास
- प्रेष्या—स्त्री॰—-—प्र + ईष् + ण्यत्—सेविका, दासी
- प्रेष्यम्—नपुं॰—-—प्र + ईष् + ण्यत्—दूतमंडली को भेजना
- प्रेष्यम्—नपुं॰—-—प्र + ईष् + ण्यत्—सेवा
- प्रेष्यजनः—पुं॰—प्रेष्य- जनः—-—सेवकों का समूह
- प्रेष्यभावः—पुं॰—प्रेष्य- भावः—-—सेवक की धारिता, सेवा, बन्धन
- प्रेष्यवधूः—स्त्री॰—प्रेष्य-वधूः—-—सेवक की पत्नी
- प्रेष्यवधूः—स्त्री॰—प्रेष्य-वधूः—-—सेविका, दासी
- प्रेष्यवर्गः—पुं॰—प्रेष्य-वर्गः—-—सेवकवृन्द, अनुचरवर्ग
- प्रेहि——-—प्र पूर्वक इ धातु, लोट्, मध्य॰ पु॰, एक व॰—
- प्रेहिकटा—स्त्री॰—प्रेहि- कटा—-—विशेष प्रकार की आचारविधि जिसमें चटाइयों का निषेध है।
- प्रेहिकर्दमा—स्त्री॰—प्रेहि-कर्दमा—-—एक विशेष अनुष्ठान जिसमें सब प्रकार की अपवित्रता वर्जित है।
- प्रेहिद्वितीया—स्त्री॰—प्रेहि-द्वितीया—-—एक अनुष्ठान विशेष जिसमें किसी और की उपस्थिति वर्जित है।
- प्रेहिवाणिजा—स्त्री॰—प्रेहि-वाणिजा—-—एक अनुष्ठानविशेष जिसमें व्यापारियों की उपस्थिति निषिद्ध है।
- प्रेयम्—नपुं॰—-—प्रिय + अण्—कृपालु होना, अनुग्रह, प्रेम
- प्रेषः—पुं॰—-—प्र + इष् + घञ्, वृद्धि—भेजना, निदेश देना
- प्रेषः—पुं॰—-—प्र + इष् + घञ्, वृद्धि—आदेश, समादेश, आमन्त्रण
- प्रेषः—पुं॰—-—प्र + इष् + घञ्, वृद्धि—दुःख, कष्ट
- प्रेषः—पुं॰—-—प्र + इष् + घञ्, वृद्धि—पागलपन, उन्माद
- प्रेषः—पुं॰—-—प्र + इष् + घञ्, वृद्धि—कुचलना, दबाना, मर्दन करना, भींचना
- प्रेष्यः—पुं॰—-—प्र + इष् + ण्यत्, वृद्धिः—सेवक, भृत्य, दास
- प्रेष्या—स्त्री॰—-—-—दासी, सेविका
- प्रेष्यम्—नपुं॰—-—-—सेवा, दासता
- प्रेष्यभावः—पुं॰—प्रेष्य-भावः—-—सेवक की क्षमता, सेवक की भाँति उपयोग करना, सेवा
- प्रोक्त—भू॰ क॰ कृ॰—-—प्र + वच् + क्त—कहा हुआ, बोला हुआ, उच्चारण किया हुआ
- प्रोक्त—भू॰ क॰ कृ॰—-—प्र + वच् + क्त—नियत किया हुआ, निर्धारित किया हुआ
- प्रोक्षणम्—नपुं॰—-—प्र + उक्ष् + ल्युट्—छिड़काव, पानी छिड़कना
- प्रोक्षणम्—नपुं॰—-—प्र + उक्ष् + ल्युट्—छींटे देकर अभिमंत्रित करना
- प्रोक्षणम्—नपुं॰—-—प्र + उक्ष् + ल्युट्—यज्ञ में पशु का वध
- प्रोक्षणी—स्त्री॰—-—प्र + उक्ष् + ल्युट्+टाप्—छिड़कने या अभिमंत्रण के लिए जल, पुण्यजल
- प्रोक्षणीयम्—नपुं॰—-—प्र + उक्ष् + अनीयर्—पवित्रीकरण( प्रोक्षण) के लिए उपयुक्त जल
- प्रोक्षित—भू॰ क॰ कृ॰—-—प्र + उक्ष् + क्त—जलमार्जन से पवित्र किया हुआ
- प्रोक्षित—भू॰ क॰ कृ॰—-—प्र + उक्ष् + क्त—यज्ञ के अवसर पर बलि चढ़ाया हुआ
- प्रोच्चंड—वि॰, प्रा॰ स॰—-—-—अत्यन्त भीषण या भयानक
- प्रोच्चैः—अव्य॰, प्रा॰ स॰—-—-—बहुत ऊँचे स्वर से, जोर से
- प्रोच्चैः—अव्य॰, प्रा॰ स॰—-—-—बहुत अधिकता से
- प्रोच्छ्रित—भू॰ क॰ कृ॰, प्रा॰ स॰—-—-—अति ऊँचा, उत्तुंग, उन्नत
- प्रोज्जासनम्—नपुं॰—-—प्र + उद् + जस् + णिच् + ल्युट्—वध, हत्या
- प्रोज्झनम्—नपुं॰—-—प्र + उज्झ् + ल्युट्—त्यागना, खाली कर देना, छोड़ना
- प्रोज्झित—भू॰ क॰ कृ॰—-—प्र + उज्झ् + क्त—त्यागा हुआ, खाली किया हुआ, परित्यक्त, हटाया हुआ
- प्रोञ्छनम्—नपुं॰—-—प्र + उञ्छ् + ल्युट्—मिटा देना, पीछे देना, छील देना
- प्रोञ्छनम्—नपुं॰—-—प्र + उञ्छ् + ल्युट्—अवशिष्ट पड़े हुए को चुन लेना
- प्रोड्डीन—वि॰—-—प्र + उद् + डी + क्त—जो ऊपर उड़ गया हो, या उड़ गया हो।
- प्रोढ—वि॰—-—प्र + वह् + क्त सम्प्रसारण—पूरा बढ़ा हुआ, पूर्णविकसित परिपक्व, पका हुआ, पूरा बना हुआ, पूर्ण
- प्रोढ—वि॰—-—प्र + वह् + क्त सम्प्रसारण—वयस्क, बूढ़ा, वृद्ध
- प्रोढ—वि॰—-—प्र + वह् + क्त सम्प्रसारण—घना, सघन घोर
- प्रोढ—वि॰—-—प्र + वह् + क्त सम्प्रसारण—विशाल, बलवान्, समर्थ
- प्रोढ—वि॰—-—प्र + वह् + क्त सम्प्रसारण—प्रचंड, उत्कट
- प्रोढ—वि॰—-—प्र + वह् + क्त सम्प्रसारण—भरोसा करनेवाला, साहसी, बेधड़क
- प्रोढ—वि॰—-—प्र + वह् + क्त सम्प्रसारण—घमंडी
- प्रोढि—स्त्री॰—-—प्र + वह् + क्तिन्, सम्प्रसारण—पूर्ण वृद्धि या विकास, परिपक्वता, पूर्णता
- प्रोढि—स्त्री॰—-—प्र + वह् + क्तिन्, सम्प्रसारण—वृद्धि, वर्धन
- प्रोढि—स्त्री॰—-—प्र + वह् + क्तिन्, सम्प्रसारण—गौरव, ऐश्वर्य, समुन्नति, प्रताप
- प्रोढि—स्त्री॰—-—प्र + वह् + क्तिन्, सम्प्रसारण—साहस, निर्भीकता
- प्रोढि—स्त्री॰—-—प्र + वह् + क्तिन्, सम्प्रसारण—घमंड, अहंकार, आत्मविश्वास
- प्रोढि—स्त्री॰—-—प्र + वह् + क्तिन्, सम्प्रसारण—उत्साह, चेष्टा, उद्योग
- प्रोत—भू॰ क॰ कृ॰—-—प्र + वे + क्त, संप्रसारणम्—सिला हुआ, टांका लगाया हुआ
- प्रोत—भू॰ क॰ कृ॰—-—प्र + वे + क्त, संप्रसारणम्—लंबा या सीधा फैलाया हुआ
- प्रोत—भू॰ क॰ कृ॰—-—प्र + वे + क्त, संप्रसारणम्—बंधा हुआ, बाँधा हुआ, कसा हुआ
- प्रोत—भू॰ क॰ कृ॰—-—प्र + वे + क्त, संप्रसारणम्—विद्ध किया हुआ, आर-पार किया हुआ
- प्रोत—भू॰ क॰ कृ॰—-—प्र + वे + क्त, संप्रसारणम्—पारित, आर-पार निकला हुआ
- प्रोत—भू॰ क॰ कृ॰—-—प्र + वे + क्त, संप्रसारणम्—जमाया हुआ, जड़ा हुआ
- प्रोतम्—नपुं॰—-—-—वस्त्र, बुना हुआ कपड़ा
- प्रोतोत्सादनम्—नपुं॰—प्रोत-उत्सादनम्—-—छतरी
- प्रोतोत्सादनम्—नपुं॰—प्रोत-उत्सादनम्—-—वस्त्र-भंडार, तंबू
- प्रोत्कण्ठ—वि॰, प्रा॰ स॰—-—प्रकर्षेण उत्कण्ठः—गर्दन ऊपर उठाये हुए या फैलाये हुए
- प्रोत्क्रुष्टम्—नपुं॰—-—प्र + उत् + क्रुश् + क्त—कोलाहल, हल्ला-गुल्ला
- प्रोत्खात—भू॰ क॰ कृ॰—-—प्र + उत् + खन् + क्त—खोदा हुआ
- प्रोत्तुङ्ग—वि॰, प्रा॰ स॰—-—-—बहुत ऊँचा या उन्नत
- प्रोत्फुल्ल—वि॰, प्रा॰ स॰—-—-—पूरा खिला हुआ, फूला हुआ
- प्रोत्सारणम्—नपुं॰—-—प्र + उत् + सृ + णिच् + ल्युट्—छुटकारा करना, साफ कर देना, हटाना, निर्वासित करना
- प्रोत्सारित—भू॰ क॰ कृ॰—-—प्र + उत् + सृ + णिच् + क्त—हटाया गया, छुटकारा पाया हुआ, निष्कासित
- प्रोत्सारित—भू॰ क॰ कृ॰—-—प्र + उत् + सृ + णिच् + क्त—आगे बढ़ाया गया, उकसाया
- प्रोत्सारित—भू॰ क॰ कृ॰—-—प्र + उत् + सृ + णिच् + क्त—परित्यक्त
- प्रोत्साहः—पुं॰—-—प्र + उत् + सह् + घञ्—अत्यनुरक्ति, उत्कटता
- प्रोत्साहः—पुं॰—-—प्र + उत् + सह् + घञ्—बढ़ावा, उद्दीपन
- प्रोत्साहकः—पुं॰—-—प्र + उत् + सह् + णिच् + ण्वुल्—उकसाने वाला, भड़काने वाला
- प्रोत्साहनम्—नपुं॰—-—प्र + उत् + सह् + णिच् + ल्युट्—उकसाना, उद्दीपन, भड़काना, प्रणोदन
- प्रोथ्—भ्वा॰ उभ॰- < प्रोथति>, < प्रोथते>—-—-—समान होना, जोड़ का होना, मुकाबला करना
- प्रोथ्—भ्वा॰ उभ॰- < प्रोथति>, < प्रोथते>—-—-—योग्य होना, यथेष्ट होना, सक्षम होना
- प्रोथ्—भ्वा॰ उभ॰- < प्रोथति>, < प्रोथते>—-—-—भरा हुआ या पूरा होना
- प्रोथ—वि॰—-—प्रोथ् + घ—विख्यात, सुविश्रुत
- प्रोथ—वि॰—-—प्रोथ् + घ—रक्खा हुआ, स्थिर किया हुआ
- प्रोथ—वि॰—-—प्रोथ् + घ—भ्रमण करना, यात्रा पर जाना, मार्ग चलना
- प्रोथः—पुं॰—-—प्रोथ् + घ—घोड़े की नाक या नथुना
- प्रोथः—पुं॰—-—प्रोथ् + घ—सूअर की थूथन
- प्रोथम्—नपुं॰—-—प्रोथ् + घ—घोड़े की नाक या नथुना
- प्रोथम्—नपुं॰—-—प्रोथ् + घ—सूअर की थूथन
- प्रोथः—पुं॰—-—प्रोथ् + घ—कूल्हा, नितंब
- प्रोथः—पुं॰—-—प्रोथ् + घ—खुदाई
- प्रोथः—पुं॰—-—प्रोथ् + घ—वस्त्र, पुराने कपड़े
- प्रोथः—पुं॰—-—प्रोथ् + घ—गर्भ, कलल
- प्रोथिन्—पुं॰—-—प्रोथ + इनि—घोड़ा
- प्रोद्घुष्ट—भू॰ क॰ कृ॰—-—प्र + उद् + द्युष् + क्त—गूंजना, प्रतिध्वनि करना
- प्रोद्घुष्ट—भू॰ क॰ कृ॰—-—प्र + उद् + द्युष् + क्त—कोलाहल करना
- प्रोद्घोषणा —स्त्री॰—-—प्र + उद् + घुष् + ल्युट्—ऐलान करना, घोषणा
- प्रोद्घोषणा —स्त्री॰—-—प्र + उद् + घुष् + ल्युट्—ऊँचा शब्द करना
- प्रोद्घोषणम्—नपुं॰—-—प्र + उद् + घुष् + ल्युट्—ऐलान करना, घोषणा
- प्रोद्घोषणम्—नपुं॰—-—प्र + उद् + घुष् + ल्युट्—ऊँचा शब्द करना
- प्रोद्दीप्त—भू॰ क॰ कृ॰—-—प्र + उद् + दीप् + क्त—आग पर रक्खा हुआ, जलता हुआ, देदीप्यमान
- प्रोद्भिन्न—भू॰ क॰ कृ॰—-—प्र + उद् + भिद् + क्त—अंकुरित, अँखुवा फूटा हुआ
- प्रोद्भिन्न—भू॰ क॰ कृ॰—-—प्र + उद् + भिद् + क्त—फूट कर निकला हुआ
- प्रोद्भूत—भू॰ क॰ कृ॰—-—प्र + उद् + भू + क्त—फूटा हुआ, निकला हुआ
- प्रोद्यत—भू॰ क॰ कृ॰—-—प्र + उद् + यम् + क्त—उठाया हुआ
- प्रोद्यत—भू॰ क॰ कृ॰—-—प्र + उद् + यम् + क्त—सक्रिय, परिश्रमशील
- प्रोद्वाहः—पुं॰—-—प्र + उद् + वह् + घञ्—विवाह
- प्रोन्नत—भू॰ क॰ कृ॰—-—प्र + उद् + नम् + क्त—बहुत ऊँचा या उन्नत
- प्रोन्नत—भू॰ क॰ कृ॰—-—प्र + उद् + नम् + क्त—उभरा हुआ
- प्रोल्लाघित—वि॰—-—प्र + उद् + लाघ् + क्त—रोग से मुक्त हो उठा हुआ, स्वास्थ्योन्मुख
- प्रोल्लाघित—वि॰—-—प्र + उद् + लाघ् + क्त—सुगठित, हट्टाकट्टा
- प्रोल्लेखनम्—नपुं॰—-—प्र + उद् + लिख् + ल्युट्—खुरचना, चिह्न लगाना
- प्रोषित—भू॰ क॰ कृ॰—-—प्र + वस् + क्त—परदेश में गया हुआ, विदेश में रहने वाला, घर से दूर, अनुपस्थित, परदेश में रहने वाला
- प्रोषितभर्तृका—स्त्री॰—प्रोषित-भर्तृका—-—वह स्त्री जिसका पति परदेश गया हो,शृंगारकाव्यान्तर्गत आठ नायिकाओं में से एक
- प्रोष्ठः—पुं॰—-—प्रकृष्टः ओष्ठो यस्य- प्रा॰ ब॰, पररूपम्, पक्षेवृद्धिः—बैल, बलीवर्द
- प्रोष्ठः—पुं॰—-—प्रकृष्टः ओष्ठो यस्य- प्रा॰ ब॰, पररूपम्, पक्षेवृद्धिः—तिपाई, चौकी
- प्रोष्ठः—पुं॰—-—प्रकृष्टः ओष्ठो यस्य- प्रा॰ ब॰, पररूपम्, पक्षेवृद्धिः—एक प्रकार की मछली
- प्रोष्ठपदः—पुं॰—प्रोष्ठः-पदः—-—भाद्रपद भास
- प्रोष्ठपदा—स्त्री॰—प्रोष्ठः-पदा—-—पूर्वाभाद्रपदा और उत्तराभाद्रपदा नाम का पच्चीसवाँ व छब्बीसवाँ नक्षत्र
- प्रोह—वि॰—-—प्र + उह् + घञ्, पररूपम्—तार्किक, विवादी
- प्रोहः—पुं॰—-—प्र + उह् + घञ्, पररूपम्—तर्क,उक्ति
- प्रोहः—पुं॰—-—प्र + उह् + घञ्, पररूपम्—हाथी का पैर
- प्रोहः—पुं॰—-—प्र + उह् + घञ्, पररूपम्—ग्रंथि, जोड़
- प्रौढ—वि॰—-—प्र + वह् + क्त, सम्प्रसारणम्, वृद्धिः—पूरा बढ़ा हुआ, पूर्णविकसित परिपक्व, पका हुआ, पूरा बना हुआ, पूर्ण
- प्रौढ—वि॰—-—प्र + वह् + क्त, सम्प्रसारणम्, वृद्धिः—वयस्क, बूढ़ा, वृद्ध
- प्रौढ—वि॰—-—प्र + वह् + क्त, सम्प्रसारणम्, वृद्धिः—घना, सघन घोर
- प्रौढ—वि॰—-—प्र + वह् + क्त, सम्प्रसारणम्, वृद्धिः—विशाल, बलवान्, समर्थ
- प्रौढ—वि॰—-—प्र + वह् + क्त, सम्प्रसारणम्, वृद्धिः—प्रचंड, उत्कट
- प्रौढ—वि॰—-—प्र + वह् + क्त, सम्प्रसारणम्, वृद्धिः—भरोसा करनेवाला, साहसी, बेधड़क
- प्रौढ—वि॰—-—प्र + वह् + क्त, सम्प्रसारणम्, वृद्धिः—घमंडी
- प्रौढा—वि॰—-—प्र + वह् + क्त + टाप् सम्प्रसारणम्, वृद्धिः —साहसी और बड़ी उम्र की स्त्री, अपने स्वामी के सामने भी निर्भीक और निर्लज्ज, काव्यरचनाओं में वर्णित चार प्रकार की मुख्य स्त्रियों में से एक भेद
- प्रौढाङ्गना—स्त्री॰—प्रौढ-अङ्गना—-—साहसी स्त्री
- प्रौढोक्तिः—स्त्री॰—प्रौढ-उक्तिः—-—साहसयुक्त या दर्पपूर्ण उक्ति
- प्रौढप्रताप—वि॰—प्रौढ-प्रताप—-—बड़ा तेजस्वी, बलवान्
- प्रौढयौवन—वि॰—प्रौढ-यौवन—-—जवानी में बढ़ा हुआ, ढलती जवानी का
- प्रौढिः—स्त्री॰—-—प्र + वह् + क्तिन्—पूर्ण वृद्धि या विकास, परिपक्वता, पूर्णता
- प्रौढिः—स्त्री॰—-—प्र + वह् + क्तिन्—वृद्धि, वर्धन
- प्रौढिः—स्त्री॰—-—प्र + वह् + क्तिन्—गौरव, ऐश्वर्य, समुन्नति, प्रताप
- प्रौढिः—स्त्री॰—-—प्र + वह् + क्तिन्—साहस, निर्भीकता
- प्रौढिः—स्त्री॰—-—प्र + वह् + क्तिन्—घमंड, अहंकार, आत्मविश्वास
- प्रौढिः—स्त्री॰—-—प्र + वह् + क्तिन्—उत्साह, चेष्टा, उद्योग
- प्रौढिवादः—पुं॰—प्रौढिः- वादः—-—वाग्विदग्धता से युक्त गर्वीली वाणी
- प्रौढिवादः—पुं॰—प्रौढिः- वादः—-—साहसपूर्ण उक्ति
- प्रौण—वि॰—-—प्र + ओण् + अच्—चतुर, विद्वान्, कुशल
- प्लक्षः—पुं॰—-—प्लक्ष् + घञ्—वटवृक्ष, गूलर का पेड़
- प्लक्षः—पुं॰—-—प्लक्ष् + घञ्—संसार के सात द्वीपों में से एक
- प्लक्षः—पुं॰—-—प्लक्ष् + घञ्—पार्श्व द्वार या पिछवाड़े का दरवाजा, निजी गुप्त द्वार
- प्लक्षजाता—स्त्री॰—प्लक्षः- जाता—-—सरस्वती नदी का विशेषण
- प्लक्षसमुद्रवाचका—स्त्री॰—प्लक्षः-समुद्रवाचका—-—सरस्वती नदी का विशेषण
- प्लक्षतीर्थम्—पुं॰—प्लक्षः-तीर्थम्—-—वह स्थान जहाँ से सरस्वती निकलती है।
- प्लक्षप्रस्रवणम्—पुं॰—प्लक्षः-प्रस्रवणम्—-—वह स्थान जहाँ से सरस्वती निकलती है।
- प्लक्षराज्—पुं॰—प्लक्षः-राज्—-—वह स्थान जहाँ से सरस्वती निकलती है।
- प्लव—वि॰—-—प्लु + अच्—तैरता हुआ, बहता हुआ
- प्लव—वि॰—-—प्लु + अच्—कूदता हुआ, छलांग लगाता हुआ
- प्लवः—पुं॰—-—-—तैरना, बहना
- प्लवः—पुं॰—-—-—बाढ़, दरिया का चढ़ाव
- प्लवः—पुं॰—-—-—कुलांच, छलाँग
- प्लवः—पुं॰—-—-—बेड़ा, घड़नई, डोंगी, छोटी नौका
- प्लवः—पुं॰—-—-—मेंढक
- प्लवः—पुं॰—-—-—बन्दर
- प्लवः—पुं॰—-—-—ढलान, ढलुवाँ स्थान
- प्लवः—पुं॰—-—-—शत्रु
- प्लवः—पुं॰—-—-—भेंड़
- प्लवः—पुं॰—-—-—नीच जाति का पुरुष, चांडाल
- प्लवः—पुं॰—-—-—मछली पकड़ने का जाल
- प्लवः—पुं॰—-—-—अंजीर का पेड़
- प्लवः—पुं॰—-—-—कारण्डव पक्षी, एक प्रकार की बत्तख
- प्लवः—पुं॰—-—-—पदयोजना की दृष्टि से जुड़ी हुई पाँच या अधिक पंक्तियाँ, कुलक
- प्लवः—पुं॰—-—-—स्वर का दीर्घोच्चारण
- प्लवगः—पुं॰—प्लवः- गः—-—बन्दर
- प्लवगः—पुं॰—प्लवः- गः—-—मेंढक
- प्लवगः—पुं॰—प्लवः- गः—-—जलीय पक्षी, पनडुब्बी पक्षी
- प्लवगः—पुं॰—प्लवः- गः—-—शिरीष का वृक्ष
- प्लवगः—पुं॰—प्लवः- गः—-—सूर्य के सारथि का नाम
- प्लवगा—स्त्री॰—प्लवः-गा—-—कन्याराशि
- प्लवगतिः—स्त्री॰—प्लवः-गतिः—-—मेंढक
- प्लवकः—पुं॰—-—प्लु वाहु॰ अक—मेंढक
- प्लवकः—पुं॰—-—प्लु वाहु॰ अक—कूदने वाला व्यक्ति, कलावाज, रस्से पर नाचने वाला नट
- प्लवकः—पुं॰—-—प्लु वाहु॰ अक—वड़ या पाकर का वृक्ष
- प्लवकः—पुं॰—-—प्लु वाहु॰ अक—चाण्डाल, जाति-बहिष्कृत
- प्लवकः—पुं॰—-—प्लु वाहु॰ अक—बन्दर
- प्लवंगः—पुं॰—-—प्लव + गम् + खच्, डित्, टिलोपः मुम्—लँगूर, बन्दर
- प्लवंगः—पुं॰—-—प्लव + गम् + खच्, डित्, टिलोपः मुम्—हरिण
- प्लवंगः—पुं॰—-—प्लव + गम् + खच्, डित्, टिलोपः मुम्—वटवृक्ष, पाकर का वृक्ष
- प्लवङ्गमः—पुं॰—-—प्लव + गम् + खच्, मुम्—बंदर
- प्लवङ्गमः—पुं॰—-—प्लव + गम् + खच्, मुम्—मेंढक
- प्लवनम्—नपुं॰—-—प्लु + ल्युट्—तैरना
- प्लवनम्—नपुं॰—-—प्लु + ल्युट्—स्नान करना, गोता लगाना
- प्लवनम्—नपुं॰—-—प्लु + ल्युट्—छलाँग लगाना, कूदना
- प्लवनम्—नपुं॰—-—प्लु + ल्युट्—बड़ी भारी बाढ़, प्रलय
- प्लवनम्—नपुं॰—-—प्लु + ल्युट्—ढलान
- प्लवाका—स्त्री॰—-—प्लु + आकन् + टाप्—घड़नई, बेड्रा
- प्लविक—वि॰—-—प्लव + ठन्—नाव में बिठाकर ले जाने वाला, खिवैया
- प्लाक्षम्—नपुं॰—-—प्लक्ष + अण्—प्लक्ष का फल
- प्लावः—पुं॰—-—प्लु + घञ्—बह निकलना
- प्लावः—पुं॰—-—प्लु + घञ्—कूदना, छलांग लगाना
- प्लावः—पुं॰—-—प्लु + घञ्—इतना भरना कि किनारे से बाहर निकल जाय
- प्लावः—पुं॰—-—प्लु + घञ्—तरल पदार्थ को छानना
- प्लावनम्—नपुं॰—-—प्लु + णिच् + ल्युट्—स्नान, आचमन
- प्लावनम्—नपुं॰—-—प्लु + णिच् + ल्युट्—बाहर निकल कर बहना, बाढ़ आ जाना, जलमय हो जाना
- प्लावनम्—नपुं॰—-—प्लु + णिच् + ल्युट्—बाढ़, प्रलय
- प्लावित—भू॰ क॰ कृ॰—-—प्लु + णिच् + क्त—तैराया गया, बहाया गया, जलथल किया गया
- प्लावित—भू॰ क॰ कृ॰—-—प्लु + णिच् + क्त—जलमय किया गया, बाढ़ में डुबोया गया, जल से लबालब भरा गया
- प्लावित—भू॰ क॰ कृ॰—-—प्लु + णिच् + क्त—तर किया गया, गीला किया गया, छिड़का गया
- प्लावित—भू॰ क॰ कृ॰—-—प्लु + णिच् + क्त—ढका हुआ, आच्छादित
- प्लह्—भ्वा॰ आ॰- < प्लेहते>—-—-—जाना, चलना-फिरना
- प्ली—क्रया॰- पर॰ < प्लीनाति>—-—-—जाना, चलना-फिरना
- प्लीहन्—पुं॰—-—प्लिह् + क्वनिन्, नि॰ दीर्घः—तिल्ली, तिल्ली का बढ़ जाना
- प्लीहोदरम्—नपुं॰—प्लीहन्-उदरम्—-—तिल्ली का बढ़ जाना
- प्लीहोदरिन्—पुं॰—प्लीहन्-उदरिन्—-—वह पुरुष जो तिल्ली की वृद्धि से पीड़ित हो।
- प्लीहा—स्त्री॰—-—-—तिल्ली
- प्लु—भ्वा॰ आ॰- < प्लवते>, < प्लुत>—-—-—बहना, तैरना
- प्लु—भ्वा॰ आ॰- < प्लवते>, < प्लुत>—-—-—नाव में बैठ कर पार जाना
- प्लु—भ्वा॰ आ॰- < प्लवते>, < प्लुत>—-—-—इधर-उधर झूलना, थरथराना
- प्लु—भ्वा॰ आ॰- < प्लवते>, < प्लुत>—-—-—कूदना, छलांग लगाना, फलांगना
- प्लु—भ्वा॰ आ॰- < प्लवते>, < प्लुत>—-—-—उड़ना, उड़ान भरना, हवा में मंडराना
- प्लु—भ्वा॰ आ॰- < प्लवते>, < प्लुत>—-—-—फुदकना
- प्लु—भ्वा॰ आ॰- < प्लवते>, < प्लुत>—-—-—दीर्घ होना
- प्लु—प्रेर॰- < प्लावयति>, < प्लावयते>—-—-—तैराना, बहाना
- प्लु—प्रेर॰- < प्लावयति>, < प्लावयते>—-—-—हटाना, बहा ले जाना
- प्लु—प्रेर॰- < प्लावयति>, < प्लावयते>—-—-—स्नान करना
- प्लु—प्रेर॰- < प्लावयति>, < प्लावयते>—-—-—जलथल एक करना, प्रलय आना, बाढ़ आना, जल में डुबोना, घट-बढ़ कराना
- अभिप्लु—भ्वा॰ आ॰—अभि-प्लु—-—बह निकलना
- अभिप्लु—भ्वा॰ आ॰—अभि-प्लु—-—हावी हो जाना, पराभूत करना
- अवप्लु—भ्वा॰ आ॰—अव-प्लु—-—कूकना, छलांग लगाकर बाहर होना
- उत्प्लु—भ्वा॰ आ॰—उद्-प्लु—-—बहना, तैरना
- उत्प्लु—भ्वा॰ आ॰—उद्-प्लु—-—उछलना, फलांगना, कूदना, उचकना
- उपप्लु—भ्वा॰ आ॰—उप-प्लु—-—बहना, तैरना
- उपप्लु—भ्वा॰ आ॰—उप-प्लु—-—प्रहार करना, हमला करना, आक्रमण करना
- उपप्लु—भ्वा॰ आ॰—उप-प्लु—-—अत्याचार करना, कष्ट देना, तंग करना, सताना
- परिप्लु—भ्वा॰ आ॰—परि-प्लु—-—तैरना, बहना
- परिप्लु—भ्वा॰ आ॰—परि-प्लु—-—स्नान करना, डुबकी लगाना
- परिप्लु—भ्वा॰ आ॰—परि-प्लु—-—कूदना, उछलना
- परिप्लु—भ्वा॰ आ॰—परि-प्लु—-—जल प्रलय होना, जलथल होना, बाढ़ आना
- परिप्लु—भ्वा॰ आ॰—परि-प्लु—-—ढकना
- परिप्लु—भ्वा॰ आ॰—परि-प्लु—-—हावी हो जाना
- विप्लु—भ्वा॰ आ॰—वि-प्लु—-—इधर-उधर बहना, इधर-उधर डावाँडोल होना, घटबढ़ होना
- विप्लु—भ्वा॰ आ॰—वि-प्लु—-—निरुद्देश्य संचरण करना, तितरबितर होना
- विप्लु—भ्वा॰ आ॰—वि-प्लु—-—अव्यवस्थित होना
- विप्लु—भ्वा॰ आ॰—वि-प्लु—-—बर्बाद होना, नष्ट हो जाना
- विप्लु—भ्वा॰ आ॰—वि-प्लु—-—असफल होना
- प्लु—भ्वा॰ आ॰ प्रेर॰—-—-—बहाना, तैरना
- प्लु—भ्वा॰ आ॰ प्रेर॰—-—-—अध्यापन करना
- प्लु—भ्वा॰ आ॰ प्रेर॰—-—-—अव्यवस्थित होना, घबड़ाना, उद्विग्न होना
- सम्प्लु—भ्वा॰ आ॰—सम्-प्लु—-—घट बढ़ होना, इधर-उधर बहना
- सम्प्लु—भ्वा॰ आ॰—सम्-प्लु—-—इकट्ठे बहना, मिलना
- प्लुत—भू॰ क॰ कृ॰—-—प्लु + क्त—तैरता हुआ, बहता हुआ
- प्लुत—भू॰ क॰ कृ॰—-—प्लु + क्त—जलमय हुआ, जल में डूबा हुआ, जल में बहा हुआ
- प्लुत—भू॰ क॰ कृ॰—-—प्लु + क्त—कूदा हुआ, फलांगा हुआ
- प्लुत—भू॰ क॰ कृ॰—-—प्लु + क्त—दीर्घोकृत, प्रदीर्घ हुआ
- प्लुत—भू॰ क॰ कृ॰—-—प्लु + क्त—ढका हुआ
- प्लुतम्—नपुं॰—-—प्लु + क्त—कूद, उछल, उचक
- प्लुतम्—नपुं॰—-—प्लु + क्त—कूद फांद, घोड़े का कदम विशेष
- प्लुतगतिः—स्त्री॰—प्लुत-गतिः—-—खरगोश
- प्लुतगतिः—स्त्री॰—प्लुत-गतिः—-—उछल कूद कर चलना
- प्लुतगतिः—स्त्री॰—प्लुत-गतिः—-—सरपट दौड़ना, घोड़े की टप्पेदार चाल
- प्लुतिः—स्त्री॰—-—प्लु + क्तिन्—बाढ़, ऊपर से बहना, जलमय होना
- प्लुतिः—स्त्री॰—-—प्लु + क्तिन्—उछल, कूद, उचक
- प्लुतिः—स्त्री॰—-—प्लु + क्तिन्—कूदफांद कर चलना, घोड़े की एक चाल विशेष
- प्लुतिः—स्त्री॰—-—प्लु + क्तिन्—स्वर की ध्वनि का लंबा करना, प्रदीर्घ करना
- प्लुष्—भ्वा॰, दिवा॰ क्रया॰ पर॰- < प्लोषति>, < प्लुष्यति>, < प्लुष्णाति>, < प्लुष्ट>—-—-—जलाना, झुलसना, धकधकाना, गर्म लोहे से दागना
- प्लुष्—क्रया॰ पर॰ <प्लुष्णाति>—-—-—छिड़कना, गीला करना
- प्लुष्—क्रया॰ पर॰ < प्लुष्णाति—-—-—लेप करना
- प्लुष्—क्रया॰ पर॰ < प्लुष्णाति—-—-—भरना
- प्लुष्ट—भू॰ क॰ कृ॰—-—प्लुष् + क्त—झुलसाया गया, जलाया गया, दागा गया
- प्लेव्—भ्वा॰ आ॰ < प्लेवते>—-—-—सेवा करना, हाजरी देना, सेवा मे उपस्थित रहना
- प्लोषः—पुं॰—-—प्लुष् + घञ्—जलाना, अन्तर्दाह होना
- प्लोषण—वि॰—-—प्लुष् + ल्युट्—जलना, झुलसना, जल कर राख हो जाना
- प्लोषणम्—नपुं॰—-—प्लुष् + ल्युट्—जलना, झुलसना
- प्सा—अदा॰ पर॰ < प्साति>, < प्सात>—-—-—खाना, निगल जाना
- प्सात—भू॰ क॰ कृ॰—-—प्सा + क्त—खाया हुआ
- प्सात—भू॰ क॰ कृ॰—-—प्सा + क्त—भूखा
- प्सानम्—नपुं॰—-—प्सा + ल्युट्—खाना
- प्सानम्—नपुं॰—-—प्सा + ल्युट्—भोजन