विक्षनरी:संस्कृत-हिन्दी शब्दकोश/फ-भा
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- मूलशब्द—व्याकरण—संधिरहित मूलशब्द—व्युत्पत्ति—हिन्दी अर्थ
- फक्क्—भ्वा॰पर॰<फक्कति>,<फक्कित>—-—-—शनैः-शनैः चलना-फिरना,फुर्ती से जाना,सरकना,धीरे-धीरे चलना
- फक्क्—भ्वा॰पर॰<फक्कति>,<फक्कित>—-—-—गलती करना,दुर्व्यवहार करना
- फक्क्—भ्वा॰पर॰<फक्कति>,<फक्कित>—-—-—फूल उठना
- फक्किका—स्त्री॰—-—फक्क्+ण्वुल्+टाप्,इत्वम्—एक अवस्था,सिद्ध करने के लिए पूर्वपक्ष,उक्ति या प्रतिज्ञा जिसको बनाये रखना है
- फक्किका—स्त्री॰—-—-—पक्षपात,पूर्वचिन्तित सम्मति
- फट्—अव्य॰—-—-—एक अनुकरणमूलक शब्द जिसे जादू मंत्रादिक के उच्चारण करने में रहस्यमय रीति से प्रयुक्त किया जाता है-अस्त्राय फट्
- फटः—पुं॰—-—स्फुट्+अच्,पृषो॰—साँप का प्रसारित किया हुआ फणा
- फटः—पुं॰—-—-—दाँत
- फटः—पुं॰—-—-—धूर्त,ठग,कितव
- फडिगा—स्त्री॰—-—फड् इति शब्दमिङ्गति॰फड्+इड्ग+अच् टाप्—झींगुर,टिड्डी,टिड्डा,फतिंगा
- फण्—भ्वा॰पर॰<फणति>,<फणित>—-—-—चलना-फिरना,इधर-उधर घूमना
- फण्—भ्वा॰पर॰<फणति>,<फणित>—-—-—अनायास उत्पन्न करना,बिना किसी परिश्रम के पैदा करना
- फणः—स्त्री॰—-—फण्+अच्—किसी भी साँप का फैलाया हुआ फण
- फणा—स्त्री॰—-—फण्+अच्,स्त्रियां टाप्—किसी भी साँप का फैलाया हुआ फण
- फणकरः—पुं॰—फणः-करः—-—साँप
- फणधरः—पुं॰—फणः-धरः—-—साँप
- फणधरः—पुं॰—फणः-धरः—-—शिव का नाम
- फणभृत्—पुं॰—फणः-भृत्—-—साँप
- फणमणिः—पुं॰—फणः-मणिः—-—साँप के फण में पाई जाने वाली मणि
- फणमण्डलम्—नपुं॰—फणः-मण्डलम्—-—साँप का कुंडलीकृत शरीर
- फणिन्—पुं॰—-—फणा+इनि—फणधारी साँप,सामान्य साँप,सर्प
- फणिन्—पुं॰—-—-—राहु का विशेषण
- फणिन्—पुं॰—-—-—पतंजलि का विशेषण
- फणीन्द्रः—पुं॰—फणिन्-इन्द्रः—-—शेषनाग का विशेषण
- फणीन्द्रः—पुं॰—फणिन्-इन्द्रः—-—साँपों के अधिपति अनन्त का विशेषण
- फणीन्द्रः—पुं॰—फणिन्-इन्द्रः—-—पतंजलि का विशेषण
- फणीश्वरः—पुं॰—फणिन्-ईश्वरः—-—शेषनाग का विशेषण
- फणीश्वरः—पुं॰—फणिन्-ईश्वरः—-—साँपों के अधिपति अनन्त का विशेषण
- फणीश्वरः—पुं॰—फणिन्-ईश्वरः—-—पतंजलि का विशेषण
- फणिखेलः—पुं॰—फणिन्-खेलः—-—लवा,बटेर
- फणितल्पगः—पुं॰—फणिन्-तल्पगः—-—विष्णु का विशेषण
- फणिपतिः—पुं॰—फणिन्-पतिः—-—वासुकि या शेषनाग का विशेषण
- फणिपतिः—पुं॰—फणिन्-पतिः—-—पतंजलि का विशेषण
- फणिप्रियः—पुं॰—फणिन्-प्रियः—-—वायु
- फणिफेनः—पुं॰—फणिन्-फेनः—-—अफीम
- फणिभाष्यम्—नपुं॰—फणिन्-भाष्यम्—-—महाभाष्य
- फणिभुज्—पुं॰—फणिन्-भुज्—-—मोर
- फणिभुज्—पुं॰—फणिन्-भुज्—-—गरुण का विशेषण
- फत्कारिन्—पुं॰—-—फत्कार+इनि—पक्षी
- फरम्—नपुं॰—-—फल्+अच्,रलयोभेदः—फलक
- फरुबकम्—नपुं॰—-—-—पानदान पान रखने का डब्बा
- फर्फरीकः—पुं॰—-—स्फुर्+ईकन्,धातोः फर्फरादेशः—खुले हुए हाथ की हथेली
- फर्फरीकम्—नपुं॰—-—-—ताजा अंकुर या टहनी का अंखुवा
- फर्फरीकम्—नपुं॰—-—-—मृदुता
- फर्फरीका—स्त्री॰—-—-—जूता
- फल्—भ्वा॰पर॰<फलति>,<फलित>—-—-—फल आना,फल पैदा करना ‘निष्पन्न या घटित करना’
- फल्—भ्वा॰पर॰<फलति>,<फलित>—-—-—परिणामयुक्त होना,सफल होना,पूरा होना,निष्पन्न होना,कामयाब होना
- फल्—भ्वा॰पर॰<फलति>,<फलित>—-—-—फल निकलना,परिणाम या नतीजा पैदा करना,‘दुष्ट व्यक्ति बुरे कार्य करते हैं और भले पुरुषों को उनका परिणाम भुगतना पड़ता है
- फल्—भ्वा॰पर॰<फलति>,<फलित>—-—-—पक्का होना,पक जाना
- फल्—भ्वा॰पर॰<फलति>,<फुल्ल या फुल्त>—-—-—बलपूर्वक तोड़ना,खंड-खंड करना,फट जाना,दरार पड़ना
- फल्—भ्वा॰पर॰<फलति>,<फुल्ल या फुल्त>—-—-—प्रतिफलित होना,अक्स पड़ना
- फल्—भ्वा॰पर॰<फलति>,<फुल्ल या फुल्त>—-—-—जाना
- फलम्—नपुं॰—-—फल्+अच्—फल जैसे वृक्ष का
- फलम्—नपुं॰—-—फल्+अच्—फसल,पैदवार
- फलम्—नपुं॰—-—फल्+अच्—परिणाम,फल,नतीजा,प्रभाव
- फलम्—नपुं॰—-—फल्+अच्—पुरस्कार,क्षतिपूर्ति,पारितोषक प्रतिफल
- फलम्—नपुं॰—-—फल्+अच्—कृत्य,कर्म‘ भले पुरुष अपनी उपयोगिता कर्मों से सिद्ध करते है न कि वचनों से’
- फलम्—नपुं॰—-—फल्+अच्—उद्देश्य,आशय,प्रयोजन‘ किस आशय को विचार में रखकर’
- फलम्—नपुं॰—-—फल्+अच्—उपयोग,भलाई,लाभ,हित
- फलम्—नपुं॰—-—फल्+अच्—लाभ या मूलराशि का ब्याज
- फलम्—नपुं॰—-—फल्+अच्—प्रजा,सन्तान
- फलम्—नपुं॰—-—फल्+अच्—गिरी
- फलम्—नपुं॰—-—फल्+अच्—पट्टिका या फलक
- फलम्—नपुं॰—-—फल्+अच्—फल
- फलम्—नपुं॰—-—फल्+अच्—तीर की नोक या सिरा,बाण,गीतकार
- फलम्—नपुं॰—-—फल्+अच्—ढाल
- फलम्—नपुं॰—-—फल्+अच्—अंडकोष
- फलम्—नपुं॰—-—फल्+अच्—उपहार
- फलम्—नपुं॰—-—फल्+अच्—गणना फल
- फलम्—नपुं॰—-—फल्+अच्—गुणनफल
- फलम्—नपुं॰—-—फल्+अच्—रजःस्त्रावः
- फलम्—नपुं॰—-—फल्+अच्—जायफल
- फलम्—नपुं॰—-—फल्+अच्—हल का फल,फाली
- फलादनः—पुं॰—फलम् +अदनः—-—फलाशन
- फलानुबन्धः—पुं॰—फलम्+अनुबन्धः—-—परिणामक्रम,फलपरम्परा
- फलानुमेय—वि॰—फलम्+अनुमेय—-—जिसका अनुमान फल या परिणाम पर निर्भर हो
- फलान्तः—पुं॰—फलम्+अन्तः—-—बांस
- फलान्वेषिन्—वि॰—फलम्+अन्वेषिन्—-—पुरस्कार या क्षतिपूर्ति की खोज करने वाला
- फलापेक्षा—स्त्री॰—फलम्+अपेक्षा—-—फल या परिणामों की आशा,नतीजे का ध्यान
- फलाशनः—पुं॰—फलम्+अशनः—-—तोता
- फलाम्लम्—नपुं॰—फलम्+अम्लम्—-—इमली
- फलास्थि—नपुं॰—फलम्+अस्थि—-—नारियल
- फलाकाङ्क्षा—स्त्री॰—फलम्+आकाङ्क्षा—-—आशा
- फलागमः—पुं॰—फलम्+आगमः—-—फलों की पैदवार,फलों का भार
- फलागमः—पुं॰—फलम्+आगमः—-—फलों का मौसम,पतझड़
- फलाढ्य—वि॰—फलम्+आढ्य—-—फलों से भरा हुया
- फलाढ्य—स्त्री॰ —फलम्+आढ्या—-—एक प्रकार के अंगुर
- फलोत्पत्तिः—स्त्री॰ —फलम्+उत्पत्तिः—-—फलों की पैदवार
- फलोत्पत्तिः—स्त्री॰ —फलम्+उत्पत्तिः—-—फायदा,लाभ,आम का वृक्ष
- फलोदयः—पुं॰—फलम्+उदयः—-—फलों का दिखाई देना,फल या परिणाम का निकलना,अभीष्ट पदार्थ या सफलता की प्राप्ति
- फलोद्देशः—पुं॰—फलम्+ उद्देशः—-—फलों का ध्यान
- फलकामना—स्त्री॰ —फलम्+कामना—-—परिणाम या फल की इच्छा
- फलकालः—पुं॰—फलम्+कालः—-—फलों का समय
- फलकेशरः—पुं॰—फलम्+केशरः—-—नारियल का पेड़
- फलग्रहः+ग्रहिन्—वि॰—फलम्+ग्रहः+ग्रहिन्—-—फलों से भरा हुआ,मौसम मे फल देने
- फलद—वि॰—फलम्+द—-—उपजाऊ,फलदार,फल देने वाला
- फलद—वि॰—फलम्+द—-—लाभकर या फायदा पहुंचाने वाला
- फलदः—पुं॰—फलम्+ दः—-—वृक्ष
- फलनिवृत्तिः—स्त्री॰—फलम्+निवृत्तिः—-—परिणामों की समाप्ति
- फलनिष्पत्तिः—स्त्री॰—फलम्+निष्पत्तिः—-—फलों का उत्पादन
- फलपाकः—पुं॰—फलम्+पाकः—-—फलों का पकना
- फलपाकः—पुं॰—फलम्+पाकः—-—परिणामों की पूर्णता
- फलपादपः—पुं॰—फलम्+पादपः—-—फलवृक्ष
- फलपूरः—पुं॰—फलम्+पूरः—-—सामान्य नीबू का पेड़्
- फलपूरकः—पुं॰—फलम्+पूरकः—-—सामान्य नीबू का पेड़्
- फलप्रदानम्—नपुं॰—फलम्+प्रदानम्—-—फलों का देना
- फलप्रदानम्—नपुं॰—फलम्+प्रदानम—-—विवाह के अवसर पर एक संस्कार विशेष
- फलबन्धिन्—वि॰—फलम्+बन्धिन्—-—फल को विकसित करने वाला या रुप देने वाला
- फलभूमिः—स्त्री॰—फलम्+भूमिः—-—वह स्थान जहाँ मनुष्य अपने कर्मों का शुभाशुभ फल भोगता है
- फलभृत्—वि॰—फलम्+भृत्—-—फलदायी,फलों से पूर्ण
- फलभोगः—पुं॰—फलम्+भोगः—-—फलों का आनन्द लेना
- फलभोगः—पुं॰—फलम्+भोगः—-—भोगाधिकार
- फलयोगः—पुं॰—फलम्+योगः—-—अभीष्टपदार्थ या फल की प्राप्ति
- फलयोगः—पुं॰—फलम्+योगः—-—मजदूरी,पारिश्रमिक
- फलराजन्—पुं॰—फलम्+राजन्—-—तरबूजा
- फलवतुलम्—नपुं॰—फलम्+वतुलम्—-—तरबूज
- फलवृक्षः—पुं॰—फलम्+वृक्षः—-—फलदारवृक्ष
- फलवृक्षक—पुं॰—फलम्+वृक्षक—-—कटहल का वृक्ष
- फलशाडवः—पुं॰—फलम्+शाडवः—-—अनार का पेड़
- फलश्रेष्ठः—पुं॰—फलम्+श्रेष्ठः—-—आम का पेड़
- फलसम्पद्—स्त्री॰—फलम्+सम्पद्—-—फलों की बहुतायत
- फलसम्पद्—स्त्री॰—फलम्+सम्पद्—-—सफलता
- फलसाधनम्—नपुं॰—फलम्+साधनम्—-—अभीष्ट पदार्थ की उपलब्धि का उपाय,उद्देश्य की पूर्ति
- फलस्नेहः—पुं॰—फलम्+स्नेहः—-—अखरोट का पेड़
- फलहारी—स्त्री॰—फलम्+हारी—-—काली या दुर्गा का विशेषण
- फलकम्—नपुं॰—-—फल+कन्—पट्ट,तख्ता,शिला,पटल या पट्टी
- फलकम्—नपुं॰—-—फल+कन्—चपटी सतह
- फलकम्—नपुं॰—-—फल+कन्—ढाल
- फलकम्—नपुं॰—-—फल+कन्—पत्र पृष्ठ
- फलकम्—नपुं॰—-—फल+कन्—नितंब,कूल्हा
- फलकम्—नपुं॰—-—फल+कन्—हाथ की हथेली
- फलकपाणि—वि॰—फलकम्+पाणि—-—ढाल से सुसज्जित
- फलकयन्त्रम्—नपुं॰—फलकम्+यन्त्रम्—-—भास्कराचार्य द्वारा आविष्कृत एक ज्योतिर्विषयक उपकरण
- फलतः—अव्य॰—-—फल+तसिल्—फलस्वरुप,परिणामरुप,यथार्थतः
- फलनम्—नपुं॰—-—फल्+ल्युट्—फल आना,फलवान् होना
- फलनम्—नपुं॰—-—फल्+ल्युट्—फल या परिणाम उत्पन्न करना
- फलवत्—वि॰—-—फल+मतुप्—फलवान,फलदार
- फलवत्—वि॰—-—-—फलदायी,परिणामदर्शी सफल,लाभकारी
- फलवती—स्त्री॰—-—-—‘प्रियंगु’ नामक लता
- फलिता—स्त्री॰—-—फल+इतच्+टाप्—रजस्वला स्त्री
- फलिन्—वि॰—-—फल+इनि—फलों से पूर्ण,फलदायी
- फलिन्—पुं॰—-—फल+इनि—वृक्ष
- फलिन—वि॰ —-—फल+इनच्—फलों से पूर्ण,फलदायी
- फलिनः—पुं॰—-—-—कटहल का पेड़
- फलिनी—स्त्री॰—-—फलिन्+ङीप्,फल्+अच्+ङीप्—प्रियंगु लता
- फलीनी—स्त्री॰—-—फलिन्+ङीप्,फल्+अच्+ङीप्—प्रियंगु लता
- फल्गु—वि॰—-—फल्+उ,गुक् च—बिना गूदे का,रसहीन,तत्वरहित,सारविहीन
- फल्गु—वि॰—-—-—अयोग्य,निरर्थक,महत्वहीन
- फल्गु—वि॰—-—-—अल्प,सुक्ष्म्
- फल्गु—वि॰—-—-—निर्मूल,व्यर्थ
- फल्गु—वि॰—-—-—दुर्बल,बलहीन,निस्सार
- फल्गुः—स्त्री॰—-—-—वसन्तऋतु
- फल्गुः—पुं॰—-—-—गूलर का वृक्ष
- फल्गुः—पुं॰—-—-—गया के पास एक नदी
- फल्गूत्सवः—पुं॰—फल्गु+उत्सवः—-—वसन्तोत्सव,होली का त्योहार
- फल्गुनः—पुं॰—-—फल्+उनन्,गुक् च्—फाल्गुन का महीना
- फल्गुनः—पुं॰—-—-—इन्द्र का नामान्तर
- फाल्गुनी—स्त्री॰—-—-—एक नक्षत्र का नाम
- फल्यम्—नपुं॰—-—फल्+यत्—फूल
- फाणिः—पुं॰—-—फण्+णिच्+इञ्, क्त वा—सीरा,राब
- फाणितम्—नपुं॰—-—फण्+णिच्+इञ्, क्त वा—सीरा,राब
- फाण्ट—वि॰—-—फण्+क्त,नि० साधुः—सुगम प्रक्रिया द्वारा निर्मित,आसानी से बनाया हुआ
- फाण्टः—पुं॰—-—-—अर्क,काढ़ा
- फाण्टम्—नपुं॰—-—-—अर्क,काढ़ा
- फालः—पुं॰—-—फल+अण,फल्+घञ् वा—हल का फल,फाली
- फालः—पुं॰—-—-—बालों की मांग निकालना,सीमंतभाग
- फालम्—नपुं॰—-—फल+अण,फल्+घञ् वा—हल का फल,फाली
- फालम्—नपुं॰—-—-—बालों की मांग निकालना,सीमंतभाग
- फालः—पुं॰—-—-—बलराम का विशेषण
- फालः—पुं॰—-—-—शिव का विशेषण
- फालः—पुं॰—-—-—नीबू का पेड़
- फालम्—नपुं॰—-—-—सूती कपड़ा
- फालम्—नपुं॰—-—-—जोता हुआ खेत
- फाल्गुनः—पुं॰—-—फाल्गुन+अण्—महीने का नाम
- फाल्गुनः—पुं॰—-—-—अर्जुन का विशेषण महा०में नाम की व्याख्या इस प्रकार है
- फाल्गुनः—पुं॰—-—-—वृक्ष का नाम,जिसे ‘अर्जुन’ कहते हैं
- फाल्गुनानुजः—पुं॰—फाल्गुनः+अनुजः—-—चैत्र का महीना
- फाल्गुनानुजः—पुं॰—फाल्गुनः+अनुजः—-—वसंतकाल
- फाल्गुनानुजः—पुं॰—फाल्गुनः+अनुजः—-—नकुल और सहदेव का विशेषण
- फाल्गुनी—स्त्री॰—-—फाल्गुनी+अण्+ङीप्—फाल्गुन मास की पूर्णिमा
- फाल्गुनीभवः—पुं॰—फाल्गुनी+भवः—-—वृहस्पति ग्रह का विशेषण
- फिरङ्गः—पुं॰—-—-—फिरंगियों अर्थात् यूरोपियनों का देश
- फिरङ्गिन्—पूं॰—-—फिरंग+इनि—फिरंगी,अंग्रेज,युरोपियन
- फुकः—पुं॰—-—फु+कै+क—पक्षी
- फुत्—अव्य॰—-—-—अनुकरणमूलक शब्द जो प्रायः ‘कृ’ के साथ प्रयुक्त होता है,तरल पदार्थों में फूंक मारने से पैदा होने वाली ध्वनि,कभी-कभी इससे घृणा सूचित होती है
- फूत्—अव्य॰—-—-—अनुकरणमूलक शब्द जो प्रायः ‘कृ’ के साथ प्रयुक्त होता है,तरल पदार्थों में फूंक मारने से पैदा होने वाली ध्वनि,कभी-कभी इससे घृणा सूचित होती है
- फुत्कृ—वि॰—-—-—फूँक मारना
- फूत्कृ—वि॰—-—-—फूँक मारना
- फुत्कारः—पुं॰—फुत्+कारः—-—फूँक मारना
- फुत्कारः—पुं॰—फुत्+कारः—-—साँप की फुफकार
- फुत्कारः—पुं॰—फुत्+कारः—-—सी सी करना,सायं सायं की ध्वनि
- फुत्कारः—पुं॰—फुत्+कारः—-—सुबकना
- फुत्कारः—पुं॰—फुत्+कारः—-—चीख मारना,जोर की चीख,चीत्कार
- फूत्कारः—पुं॰—फूत्+कारः—-—फूँक मारना
- फूत्कारः—पुं॰—फूत्+कारः—-—साँप की फुफकार
- फूत्कारः—पुं॰—फूत्+कारः—-—सी सी करना,सायं सायं की ध्वनि
- फूत्कारः—पुं॰—फूत्+कारः—-—सुबकना
- फूत्कारः—पुं॰—फूत्+कारः—-—चीख मारना,जोर की चीख,चीत्कार
- फुत्कृतम्—नपुं॰—फुत्+कृतम्—-—फूँक मारना
- फुत्कृतम्—नपुं॰—फुत्+कृतम्—-—साँप की फुफकार
- फुत्कृतम्—नपुं॰—फुत्+कृतम्—-—सी सी करना,सायं सायं की ध्वनि
- फुत्कृतम्—नपुं॰—फुत्+कृतम्—-—सुबकना
- फुत्कृतम्—नपुं॰—फुत्+कृतम्—-—चीख मारना,जोर की चीख,चीत्कार
- फूत्कृतम्—नपुं॰—फूत्+कृतम्—-—फूँक मारना
- फूत्कृतम्—नपुं॰—फूत्+कृतम्—-—साँप की फुफकार
- फूत्कृतम्—नपुं॰—फूत्+कृतम्—-—सी सी करना,सायं सायं की ध्वनि
- फूत्कृतम्—नपुं॰—फूत्+कृतम्—-—सुबकना
- फूत्कृतम्—नपुं॰—फूत्+कृतम्—-—चीख मारना,जोर की चीख,चीत्कार
- फुत्कृति—स्त्री॰—फुत्+कृति—-—फूँक मारना
- फुत्कृति—स्त्री॰—फुत्+कृति—-—साँप की फुफकार
- फुत्कृति—स्त्री॰—फुत्+कृति—-—सी सी करना,सायं सायं की ध्वनि
- फुत्कृति—स्त्री॰—फुत्+कृति—-—सुबकना
- फुत्कृति—स्त्री॰—फुत्+कृति—-—चीख मारना,जोर की चीख,चीत्कार
- फूत्कृति—स्त्री॰—फूत्+कृति—-—फूँक मारना
- फूत्कृति—स्त्री॰—फूत्+कृति—-—साँप की फुफकार
- फूत्कृति—स्त्री॰—फूत्+कृति—-—सी सी करना,सायं सायं की ध्वनि
- फूत्कृति—स्त्री॰—फूत्+कृति—-—सुबकना
- फूत्कृति—स्त्री॰—फूत्+कृति—-—चीख मारना,जोर की चीख,चीत्कार
- फुप्फुसः—नपुं॰—-—-—फेफड़े
- फुप्फुसम्—नपुं॰—-—-—फेफड़े
- फुल्ल्—भ्वा॰पर॰<फुल्लति><फुल्लित>—-—-—कली आना,फूलना,फुलाना,खिलना
- फुल्ल— भू॰ क॰कृ॰—-—फल्+क्त,उत्वं लत्वम्—फैलाया हुआ,खिला हुआ,फूला हुआ
- फुल्ल— भू॰ क॰कृ॰—-—-—फूल आना,खिला हुआ
- फुल्ल— भू॰ क॰कृ॰—-—-—विस्तारित,फैलाया हुआ,खूबखुला हुआ
- फुल्ललोचन—वि॰—फुल्ल+लोचन—-—खिली हुई आँखों वाला
- फुल्ललोचनः—पुं॰—फुल्ल+लोचनः—-—एक प्रकार का मृग
- फेट्कारः—पुं॰—-—फेट्+कृ+घञ्—चीख,हूक
- फेणः—पुं॰—-—स्फाय्+न,फे शब्दादेशः,पक्षे णत्वम्—झाग,फेन
- फेणः—पुं॰—-—स्फाय्+न,फे शब्दादेशः,पक्षे णत्वम्—मुँह का झाग या बुलबुला
- फेणः—पुं॰—-—स्फाय्+न,फे शब्दादेशः,पक्षे णत्वम्—थूक
- फेनः—पुं॰—-—स्फाय्+न,फे शब्दादेशः—झाग,फेन
- फेनः—पुं॰—-—स्फाय्+न,फे शब्दादेशः—मुँह का झाग या बुलबुला
- फेनः—पुं॰—-—स्फाय्+न,फे शब्दादेशः—थूक
- फेणनपिण्डः—पुं॰—फेणनः+पिण्डः—-—बुलबुला
- फेणनपिण्डः—पुं॰—फेणनः+पिण्डः—-—खोखला विचार,अनस्तित्व
- फेणनवाहिन्—पुं॰—फेणनः+वाहिन्—-—छानने के काम का कपड़ा
- फेणक—वि॰—-—फेण+कन्—झाग,फेन
- फेणक—वि॰—-—फेण+कन्—मुँह का झाग या बुलबुला
- फेणक—वि॰—-—फेण+कन्—थूक
- फेनक—वि॰—-—फेन+कन्—झाग,फेन
- फेनक—वि॰—-—फेन+कन्—मुँह का झाग या बुलबुला
- फेनक—वि॰—-—फेन+कन्—थूक
- फेनिल—वि॰—-—फेन+इलच्—झागदार,बुलबुले वाला,
- फेरः—पुं॰—-—फे+रा+क,फ+रण्ड्+अच्—गीदड़
- फेरण्डः—पुं॰—-—फे+रा+क,फ+रण्ड्+अच्—गीदड़
- फेरवः—पुं॰—-—फे इति रवो यस्य ब॰ स॰—गीदड़
- फेरवः—पुं॰—-—-—धूर्त,बदमाश,ठग
- फेरवः—पुं॰—-—-—राक्षस,पिशाच
- फेरुः—पुं॰—-—फे+रु+डु—गीदड़
- फेलम्—नपुं॰—-—फेल्यते दूरे निक्षिप्यते,फेल्+अङ्,स्त्रियां टाप्,फेल्+इन्+कन्+टाप्,फेलि+ङीप्—उच्छिष्ट भोजन,भोजन का वचा खुचा भाग,जूठन
- फेला—स्त्री॰—-—फेल्यते दूरे निक्षिप्यते,फेल्+अङ्,स्त्रियां टाप्,फेल्+इन्+कन्+टाप्,फेलि+ङीप्—उच्छिष्ट भोजन,भोजन का वचा खुचा भाग,जूठन
- फेलिका—स्त्री॰—-—फेल्यते दूरे निक्षिप्यते,फेल्+अङ्,स्त्रियां टाप्,फेल्+इन्+कन्+टाप्,फेलि+ङीप्—उच्छिष्ट भोजन,भोजन का वचा खुचा भाग,जूठन
- फेली—स्त्री॰—-—फेल्यते दूरे निक्षिप्यते,फेल्+अङ्,स्त्रियां टाप्,फेल्+इन्+कन्+टाप्,फेलि+ङीप्—उच्छिष्ट भोजन,भोजन का वचा खुचा भाग,जूठन
- बंह्—भ्वा॰ आ॰ <बंहते>, <बंहित>—-—-—बढ़ना, उगना
- बंहिमन्—पुं॰—-—बहुल + इमनिच्, बंहादेशः—बहुतायत, बाहुल्य
- बंहिष्ठ—वि॰—-—बहुल् + इष्ठन्, बंहादेसः उ॰ अ॰—अत्यंत अधिक, अत्यंत बड़ा, बहुत ही ज्यादा
- बंहीयस्—वि॰—-—बहुल् + ईयसुन्, बंहादेशः म॰ अ॰—अपेक्षाकृत अधिक, बहुत ज्यादा, अपेक्षाकृत बहुसंख्यक
- बकः—पुं॰—-—बङ्क् + अच्, पृषो॰ साधुः—बगुला
- बकः—पुं॰—-—बङ्क् + अच्, पृषो॰ साधुः—ठग, धूर्त, पाखंडी
- बकः—पुं॰—-—बङ्क् + अच्, पृषो॰ साधुः—एक रक्षस का नाम जिसे भीम ने मारा था
- बकः—पुं॰—-—बङ्क् + अच्, पृषो॰ साधुः—एक रक्षस का नाम जिसे कृष्ण ने मारा था
- बकः—पुं॰—-—बङ्क् + अच्, पृषो॰ साधुः—कुबेर का नामान्तर्
- बकचरः—पुं॰—बक-चरः—-—बगुले की भांति आचरण करने वाला, ढोंगी, पाखंडी
- बकवृत्तिः—पुं॰—बक-वृत्तिः—-—बगुले की भांति आचरण करने वाला, ढोंगी, पाखंडी
- बकव्रतचरः—पुं॰—बक-व्रतचरः—-—बगुले की भांति आचरण करने वाला, ढोंगी, पाखंडी
- बकव्रतिकः—पुं॰—बक-व्रतिकः—-—बगुले की भांति आचरण करने वाला, ढोंगी, पाखंडी
- बकव्रतिन्—पुं॰—बक-व्रतिन्—-—बगुले की भांति आचरण करने वाला, ढोंगी, पाखंडी
- बकजित्—पुं॰—बक-जित्—-—भीम का विशेषण
- बकजित्—पुं॰—बक-जित्—-—कृष्ण का विशेषण
- बकनिषूदनः—पुं॰—बक-निषूदनः—-—कृष्ण का विशेषण
- बकनिषूदनः—पुं॰—बक-निषूदनः—-—भीम का विशेषण
- बकव्रतम्—नपुं॰—बक-व्रतम्—-—बगुले की भांति आचरण, पाखंड
- बकुलः—पुं॰—-—बङ्क् + उरच्, रेफस्य लत्वम्, नलोपः—मौलसिरी वृक्ष
- बकुलम्—नपुं॰—-—-—मौलसिरि वृक्ष का सुगंधित फूल
- बकेरुका—स्त्री॰—-—बकानां बकसमूहानाम् ईरुकं गतिर्यत्र-ब॰ स॰—छोटी बगुली
- बकोटः—पुं॰—-—-—बगुला
- बटुः—पुं॰—-—बट् + उ, बवयोरभेदः—बालक, लड़का, छोकर (बहुधा तिरस्कारसूचक)
- बडिशम्—नपुं॰—-—-—मछली पकड़ने का कांटा
- बलिशम्—नपुं॰—-—-—मछली पकड़ने का कांटा
- बत—अव्य॰—-—वन् + क्त, बवयोरभेदः —शोक, खेद
- बत—अव्य॰—-—वन् + क्त, बवयोरभेदः —दया या करुणा
- बत—अव्य॰—-—वन् + क्त, बवयोरभेदः —संबोधन, पुकरना
- बत—अव्य॰—-—वन् + क्त, बवयोरभेदः —हर्ष या संतोष
- बत—अव्य॰—-—वन् + क्त, बवयोरभेदः —आश्चर्य, अचम्भा
- बत—अव्य॰—-—वन् + क्त, बवयोरभेदः —निन्दा
- बदरः—पुं॰—-—बद् + अरच्—बेर का पेड़
- बदरम्—नपुं॰—-—-—बेर का फल
- बदरपाचनम्—नपुं॰—बदर-पाचनम्—-—एक पुण्यतीर्थ स्थान
- बदरिका—स्त्री॰—-—बदरी + कन् + टाप्, ह्रस्वः—बेर का पेड़ या फल
- बदरिका—स्त्री॰—-—बदरी + कन् + टाप्, ह्रस्वः—गंगा का एक स्रोत्
- बदरिकाश्रमः—पुं॰—बदरिका-आश्रमः—-—बदरिका क आश्रम
- बदरी—स्त्री॰—-—बदर + ङीष्—बेर का पेड़
- बदरी—स्त्री॰—-—बदर + ङीष्—बदरिका
- बदरीतपोवनम्—नपुं॰—बदरी-तपोवनम्—-—बदरी स्थित तपस्या करने का उद्यान
- बदरीफलम्—नपुं॰—बदरी-फलम्—-—बेर के पेड़ का फल
- बदरीवनम्—नपुं॰—बदरी-वनम्—-—बेर की झाड़ी या जंगल
- बदरीवणम्—नपुं॰—बदरी-वणम्—-—बेर की झाड़ी या जंगल
- बदरीशैलः—पुं॰—बदरी-शैलः—-—बदरी पर स्थित पहाड़
- बद्ध—भू॰ क॰ कृ॰—-—बन्ध् + क्त—बाँधा हुआ, बंधा हुआ, कसा हुआ
- बद्ध—भू॰ क॰ कृ॰—-—बन्ध् + क्त—शृंखलित, बेड़ियों से जकड़ा हुआ
- बद्ध—भू॰ क॰ कृ॰—-—बन्ध् + क्त—बंदी, पकड़ा हुआ
- बद्ध—भू॰ क॰ कृ॰—-—बन्ध् + क्त—अवरुद्ध, कारावासित
- बद्ध—भू॰ क॰ कृ॰—-—बन्ध् + क्त—कमर कसे हुए
- बद्ध—भू॰ क॰ कृ॰—-—बन्ध् + क्त—संयत, दबाया हुआ, रोका हुआ
- बद्ध—भू॰ क॰ कृ॰—-—बन्ध् + क्त—निर्मित, बनाया हुआ
- बद्ध—भू॰ क॰ कृ॰—-—बन्ध् + क्त—प्यार किया गया, रिझाया गया
- बद्ध—भू॰ क॰ कृ॰—-—बन्ध् + क्त—मिलाया गया, संहित
- बद्ध—भू॰ क॰ कृ॰—-—बन्ध् + क्त—पक्का जमाया गया, दृढ़
- बद्धाङ्गुलित्र—वि॰—बद्ध-अङ्गुलित्र—-—दस्ताना पहने हुए
- बद्धाङ्गुलित्राण—वि॰—बद्ध-अङ्गुलित्राण—-—दस्ताना पहने हुए
- बद्धाञ्जलि—वि॰—बद्ध-अञ्जलि—-—हथ जोड़े हुए, आदर या सम्मान प्रदर्शित करने के लिये नम्रता पूर्वक दोनो हाथ जोड़ कर नमस्कार करते हुए
- बद्धानुराग—वि॰—बद्ध-अनुराग—-—स्नेह में बंधा हुआ, प्रेम के कारण अनुरक्त, प्रेमबंधन में जकड़ा हुआ
- बद्धानुशय—वि॰—बद्ध-अनुशय—-—पश्चाताप करने वाला
- बद्धाशङ्क—वि॰—बद्ध-आशङ्क—-—जिसकी आशङ्काएँ बढ़ गई हैं, शङ्काकुल
- बद्धोत्सव—वि॰—बद्ध-उत्सव—-—उत्सव या त्यौहार मनाते हुए
- बद्धोद्यम—वि॰—बद्ध-उद्यम—-—मिलकर प्रयत्न करने वाले
- बद्धकक्ष—वि॰—बद्ध-कक्ष—-—कमर बांधे हुए, कमर कसे हुए, तैयार, सज्जित
- बद्धकक्ष्य—वि॰—बद्ध-कक्ष्य—-—कमर बांधे हुए, कमर कसे हुए, तैयार, सज्जित
- बद्धकोप—वि॰—बद्ध-कोप—-—क्रोध अनुभव करते हुए, क्रोध या रोष की भावना रखते हुए
- बद्धकोप—वि॰—बद्ध-कोप—-—अपने क्रोध को दमन करने वाला
- बद्धमन्यु—वि॰—बद्ध-मन्यु—-—क्रोध अनुभव करते हुए, क्रोध या रोष की भावना रखते हुए
- बद्धमन्यु—वि॰—बद्ध-मन्यु—-—अपने क्रोध को दमन करने वाला
- बद्धरोष—वि॰—बद्ध-रोष—-—क्रोध अनुभव करते हुए, क्रोध या रोष की भावना रखते हुए
- बद्धरोष—वि॰—बद्ध-रोष—-—अपने क्रोध को दमन करने वाला
- बद्धचित्त—वि॰—बद्ध-चित्त—-—मन को किसी ओर जमाये हुए, मन को किसी ओर दृढ़तापूर्वक लगाने वाला
- बद्धमनस्—वि॰—बद्ध-मनस्—-—मन को किसी ओर जमाये हुए, मन को किसी ओर दृढ़तापूर्वक लगाने वाला
- बद्धजिह्व—वि॰—बद्ध-जिह्व—-—जिसकी जिह्वा कील दी गई है
- बद्धदृष्टि—वि॰—बद्ध-दृष्टि—-—आँख को एक ओर लगा कर तकने वाला, टकटकी लगाकर देखने वाला
- बद्धनेत्र—वि॰—बद्ध-नेत्र—-—आँख को एक ओर लगा कर तकने वाला, टकटकी लगाकर देखने वाला
- बद्धलोचन—वि॰—बद्ध-लोचन—-—आँख को एक ओर लगा कर तकने वाला, टकटकी लगाकर देखने वाला
- बद्धधार—वि॰—बद्ध-धार—-—लगातार अविच्छिन्न रूप से बहने वाला
- बद्धनेपथ्य—वि॰—बद्ध-नेपथ्य—-—नाटकीय वेशभूषा धारण किये हुए
- बद्धपरिकर—वि॰—बद्ध-परिकर—-—कमर बांधे हुए, कमर कसे हुए, तैयार, सज्जित
- बद्धप्रतिज्ञ—वि॰—बद्ध-प्रतिज्ञ—-—जिसने कोई व्रत या प्रतिज्ञा की है
- बद्धप्रतिज्ञ—वि॰—बद्ध-प्रतिज्ञ—-—दृढ़ संकल्प वाला
- बद्धभाव—वि॰—बद्ध-भाव—-—स्नेहशील, दिल लगये हुए, मुग्ध
- बद्धमुष्टि—वि॰—बद्ध-मुष्टि—-—मुट्ठी बांधे हुए
- बद्धमुष्टि—वि॰—बद्ध-मुष्टि—-—मुट्ठी भींचे हुए, कंजूस
- बद्धमूल—वि॰—बद्ध-मूल—-—जिसकी जड़ गहराई तक गई हो, जड़ पकड़े हुए
- बद्धमौन—वि॰—बद्ध-मौन—-—जीभ थामे हुए, मौन रहने वाला, चुप
- बद्धराग—वि॰—बद्ध-राग—-—आसक्त, मुग्ध, अनुरक्त
- बद्धवसति—वि॰—बद्ध-वसति—-—अपना वास स्थान स्थिर करने वाला
- बद्धवाच्—वि॰—बद्ध-वाच्—-—जिह्वा रोके हुए,चुप रहने वाला
- बद्धवेपथु—वि॰—बद्ध-वेपुथु—-—कंपकंपी से ग्रस्त
- बद्धवैर—वि॰—बद्ध-वैर—-—जिसको किसी से घोर घृणा हो गई हो य पक्की शत्रुता हो गई हो
- बद्धशिख—वि॰—बद्ध-शिख—-—जिसने अपनी चोटी बांध ली है (चोटी में गाँठ दे ली है)
- बद्धशिख—वि॰—बद्ध-शिख—-—जो अभी बच्चा है, बालक
- बद्धस्नेह—वि॰—बद्ध-स्नेह—-—अनुराग करने वाला, स्नेहशील
- बध्—भ्वा॰ आ॰ <बीभत्सते>—-—-—घिन करना, घृणा करना, अरुचि रखना, संकोच करना, झिझका, ऊबना
- बधिर—वि॰—-—बन् + किरच्—बहरा
- बधिरय—ना॰ धा॰ पर॰ <बधिरयति>—-—-—बहरा बनाना
- बधिरित—वि॰ —-—बधिर + इतच्—बहरा किया गया, बहरा बनाया गया
- बधिरिमन्—पुं॰—-—बधिर + इमनिच्—बहरापन
- बन्दिः—स्त्री॰—-—बन्द + इन्—बन्धन, कारावास
- बन्दिः—स्त्री॰—-—बन्द + इन्—क़ैदी, बंधुआ
- बन्दी—स्त्री॰—-—बन्दि + ङीष्—बन्धन, कारावास
- बन्दी—स्त्री॰—-—बन्दि + ङीष्—क़ैदी, बंधुआ
- बन्ध्—क्र्या॰ पर॰ <बध्नाति>, <बद्ध> कर्म॰ <बध्यते>—-—-—बांधना, कसना, जकड़ना
- बन्ध्—क्र्या॰ पर॰ <बध्नाति>, <बद्ध> कर्म॰ <बध्यते>—-—-—दबोचना, पकड़ना, जेल में डालना, जाल में फांसना, बंदी बनाना
- बन्ध्—क्र्या॰ पर॰ <बध्नाति>, <बद्ध> कर्म॰ <बध्यते>—-—-—जंजीर में बांधना, बेड़ी में जकड़ना
- बन्ध्—क्र्या॰ पर॰ <बध्नाति>, <बद्ध> कर्म॰ <बध्यते>—-—-—रोकना, ठहराना, दमन करना
- बन्ध्—क्र्या॰ पर॰ <बध्नाति>, <बद्ध> कर्म॰ <बध्यते>—-—-—पहनना, धारण करना
- बन्ध्—क्र्या॰ पर॰ <बध्नाति>, <बद्ध> कर्म॰ <बध्यते>—-—-—आकृष्ट करना, गिरफ्तार करना
- बन्ध्—क्र्या॰ पर॰ <बध्नाति>, <बद्ध> कर्म॰ <बध्यते>—-—-—स्थिर करना, जमाना, निदेशित करना, डालना
- बन्ध्—क्र्या॰ पर॰ <बध्नाति>, <बद्ध> कर्म॰ <बध्यते>—-—-—बाँधना, मिलाकर जकड़ना
- बन्ध्—क्र्या॰ पर॰ <बध्नाति>, <बद्ध> कर्म॰ <बध्यते>—-—-—निर्माण करना, संरचना करना, रूप देना, व्यवस्थित करना
- बन्ध्—क्र्या॰ पर॰ <बध्नाति>, <बद्ध> कर्म॰ <बध्यते>—-—-—एकत्र करना, रचना करना, निर्माण करना
- बन्ध्—क्र्या॰ पर॰ <बध्नाति>, <बद्ध> कर्म॰ <बध्यते>—-—-—बनाना, पैदा करना, जन्म देना
- बन्ध्—क्र्या॰ पर॰ <बध्नाति>, <बद्ध> कर्म॰ <बध्यते>—-—-—रखना, अधिकार मे करना, ग्रहण करना, संजो कर रखना
- भ्रुकुटिं बन्ध्—क्र्या॰ पर॰—-—-—बन्ध भौंहों मे बल डालना, त्योरी चढ़ाना
- मुष्टिं बन्ध्—क्र्या॰ पर॰—-—-—मुट्ठी बांधना
- अञ्जलिं बन्ध्—क्र्या॰ पर॰—-—-—नम्र निवेदन के लिये हाथ जोड़ना
- चित्तं बन्ध्—क्र्या॰ पर॰—-—-—मन लगाना, दिल लगाना
- धियं बन्ध्—क्र्या॰ पर॰—-—-—मन लगाना, दिल लगाना
- मनः बन्ध्—क्र्या॰ पर॰—-—-—मन लगाना, दिल लगाना
- हृदयं बन्ध्—क्र्या॰ पर॰—-—-—मन लगाना, दिल लगाना
- प्रीतिं बन्ध्—क्र्या॰ पर॰—-—-—प्रेम पाश में बद्ध होना, मुग्ध होना
- भावं बन्ध्—क्र्या॰ पर॰—-—-—प्रेम पाश में बद्ध होना, मुग्ध होना
- रागं बन्ध्—क्र्या॰ पर॰—-—-—प्रेम पाश में बद्ध होना, मुग्ध होना
- सेतुं बन्ध्—क्र्या॰ पर॰—-—-—पुल बनाना, सेतु का निर्माण करना
- वैरं बन्ध्—क्र्या॰ पर॰—-—-—घृणा पैदा होना, शत्रुता
- सख्यं बन्ध्—क्र्या॰ पर॰—-—-—मैत्री करना
- सौहृदं बन्ध्—क्र्या॰ पर॰—-—-—मैत्री करना
- गोलं बन्ध्—क्र्या॰ पर॰—-—-—गोल बांधना
- मण्डलं बन्ध्—क्र्या॰ पर॰—-—-—मंडल बनाना, गोल बांध कर बैठना
- मौनं बन्ध्—क्र्या॰ पर॰—-—-—चुप्पी साधना
- परिकरं बन्ध्—क्र्या॰ पर॰—-—-—कमर कसना, तैयार हो जाना
- कक्षां बन्ध्—क्र्या॰ पर॰—-—-—कमर कसना, तैयार हो जाना
- बन्ध्—क्र्या॰ पर॰प्रेर॰—-—-—बंधवाना, बनवाना, रचवाना, निर्माण करवाना
- अनुबन्ध्—क्र्या॰ पर॰—अनु-बन्ध्—-—बांधना, जकड़ना
- अनुबन्ध्—क्र्या॰ पर॰—अनु-बन्ध्—-—लग जाना, चिपकना, जुड़ जाना
- अनुबन्ध्—क्र्या॰ पर॰—अनु-बन्ध्—-—उपस्थित रखना, चुपचाप अनुसरण करना, पदचिन्हों पर चलना
- अनुबन्ध्—क्र्या॰ पर॰—अनु-बन्ध्—-—दबाव डालना, प्रेरित करना, अत्यन्त आग्रह करना
- आबन्ध्—क्र्या॰ पर॰—आ-बन्ध्—-—बांधना, जकड़ना, कसना
- आबन्ध्—क्र्या॰ पर॰—आ-बन्ध्—-—बनाना, निर्माण करना, व्यवस्थित करना
- आबन्ध्—क्र्या॰ पर॰—आ-बन्ध्—-—स्थिर करना, जमाना, निदेशित करना
- उद्बन्ध्—क्र्या॰ पर॰—उद्-बन्ध्—-—बांधना, लटकाना
- निबन्ध्—क्र्या॰ पर॰—नि-बन्ध्—-—बांधना, कसना, जकड़ना, जकड़ना, शृंखलित करना, बेड़ी में बांधना
- निबन्ध्—क्र्या॰ पर॰—नि-बन्ध्—-—स्थिर करना, जमाना
- निबन्ध्—क्र्या॰ पर॰—नि-बन्ध्—-—बनाना, निर्माण करना, संरचना करना, व्यवस्थित करना
- निबन्ध्—क्र्या॰ पर॰—नि-बन्ध्—-—लिखना, रचना करना
- निर्बन्ध्—क्र्या॰ पर॰—निस-बन्ध्—-—दबाव डालना, प्रेरित करना, अत्यन्त आग्रह् करना
- परिबन्ध्—क्र्या॰ पर॰—परि-बन्ध्—-—कसना, बांधना
- परिबन्ध्—क्र्या॰ पर॰—परि-बन्ध्—-—पहनना
- परिबन्ध्—क्र्या॰ पर॰—परि-बन्ध्—-—घेरा डालना, चारों ओर से बांधना
- परिबन्ध्—क्र्या॰ पर॰—परि-बन्ध्—-—गिरफ़्तार करना, ठहराना
- परिबन्ध्—क्र्या॰ पर॰—परि-बन्ध्—-—विघ्न डालना, रुकावट डालना
- प्रतिबन्ध्—क्र्या॰ पर॰—प्रति-बन्ध्—-—कसना, जकड़ना, बांधना
- प्रतिबन्ध्—क्र्या॰ पर॰—प्रति-बन्ध्—-—स्थिर करना, निदेशित करना
- प्रतिबन्ध्—क्र्या॰ पर॰—प्रति-बन्ध्—-—खचित करना, जड़ना, मढ़ना
- प्रतिबन्ध्—क्र्या॰ पर॰—प्रति-बन्ध्—-—अवरोध करना, विघ्न डालना, पीछे हटना, निकाल देना, बन्द कर देना
- प्रतिबन्ध्—क्र्या॰ पर॰—प्रति-बन्ध्—-—रोकना, हस्तक्षेप करना
- सम्बन्ध्—क्र्या॰ पर॰—सम्-बन्ध्—-—मिला कर बांधना य कसना, एकत्र करना, संयुक्त करना, साथ लगाना
- सम्बन्ध्—क्र्या॰ पर॰—सम्-बन्ध्—-—संरचन करना, बनाना
- बन्धः—पुं॰—-—बन्ध् + घञ्—ग्रंथि, बन्धन
- बन्धः—पुं॰—-—बन्ध् + घञ्—बालों को बांधने की पट्टी, फीता
- बन्धः—पुं॰—-—बन्ध् + घञ्—शृंखला, बेड़ी
- बन्धः—पुं॰—-—बन्ध् + घञ्—बेड़ी डालना, कारागार में डालना, जेल में बन्द करना
- बन्धः—पुं॰—-—बन्ध् + घञ्—दबोचना, पकड़ना, पकड़ लेना
- बन्धः—पुं॰—-—बन्ध् + घञ्—निर्माण करना, संरचना, व्यवस्थापन
- बन्धः—पुं॰—-—बन्ध् + घञ्—भावना, धारणा, विचारना
- बन्धः—पुं॰—-—बन्ध् + घञ्—संयोग, मिलन, अन्तः सम्पर्क
- बन्धः—पुं॰—-—बन्ध् + घञ्—जोड़ना, मिलाना, मिश्रण करना
- बन्धः—पुं॰—-—बन्ध् + घञ्—पट्टी, तनी
- बन्धः—पुं॰—-—बन्ध् + घञ्—सहमति, सांमनस्य
- बन्धः—पुं॰—-—बन्ध् + घञ्—प्रकटीकरण, प्रदर्शन, निरूपण
- बन्धः—पुं॰—-—बन्ध् + घञ्—बंधन, भवबंधन
- बन्धः—पुं॰—-—बन्ध् + घञ्—फल, परिणाम
- बन्धः—पुं॰—-—बन्ध् + घञ्—स्थिति, अंग विन्यास
- बन्धः—पुं॰—-—बन्ध् + घञ्—मैथुन करते समय विशेष आसन
- बन्धः—पुं॰—-—बन्ध् + घञ्—गोट, किनारी, रूपरेखा, ढांचा
- बन्धः—पुं॰—-—बन्ध् + घञ्—किसी श्लोक का कोई विशिष्ट रूप
- बन्धः—पुं॰—-—बन्ध् + घञ्—स्नायु, कण्डरा
- बन्धः—पुं॰—-—बन्ध् + घञ्—शरीर
- बन्धः—पुं॰—-—बन्ध् + घञ्—अमानत, धरोहर
- बन्धकरणम्—नपुं॰—बन्धः - करणम्—-—बेड़ी डालना, कारागार में डालना
- बन्धतन्त्रम्—नपुं॰—बन्धः - तन्त्रम्—-—पूरी सेना य चतुरंगिणी सेना
- बन्धपारुष्यम्—नपुं॰—बन्धः - पारुष्यम्—-—अस्वाभाविक या कृत्रिम शब्दरचना
- बन्धस्तम्भः—पुं॰—बन्धः - स्तम्भः—-—पशुओं को बांधने का खूंटा
- बन्धकः—पुं॰—-—बन्ध् + ण्वुल्—बांधने वाला, पकड़ने वाला
- बन्धकः—पुं॰—-—बन्ध् + ण्वुल्—बोचने वाला
- बन्धकः—पुं॰—-—बन्ध् + ण्वुल्—बंध, गांठ, रस्सी चमड़े क तस्मा
- बन्धकः—पुं॰—-—बन्ध् + ण्वुल्—मेंढ, किनारा, बांध
- बन्धकः—पुं॰—-—बन्ध् + ण्वुल्—धरोहर, अमानत
- बन्धकः—पुं॰—-—बन्ध् + ण्वुल्—शरीर का अंगन्यास
- बन्धकः—पुं॰—-—बन्ध् + ण्वुल्—अदलाबदली, विनिमय
- बन्धकः—पुं॰—-—बन्ध् + ण्वुल्—भंग करने वाला, तोड़ने वाला
- बन्धकः—पुं॰—-—बन्ध् + ण्वुल्—प्रतिज्ञा
- बन्धकः—पुं॰—-—बन्ध् + ण्वुल्—नगर
- बन्धकः—पुं॰—-—बन्ध् + ण्वुल्—भाग या अंश
- बन्धकम्—नपुं॰—-—-—बांधना, सीमित करना
- बन्धकी—स्त्री॰—-—-—असती स्त्री
- बन्धकी—स्त्री॰—-—-—वेश्या, वारांगना
- बन्धकी—स्त्री॰—-—-—हथिनी
- बन्धनम्—नपुं॰—-—बन्ध् + ल्युट्—बांधने की क्रिया, जकड़ना, कसना
- बन्धनम्—नपुं॰—-—बन्ध् + ल्युट्—चारों ओर से बाँधना, लपेटना, आलिंगन
- बन्धनम्—नपुं॰—-—बन्ध् + ल्युट्—गाँठ, ग्रंथि
- बन्धनम्—नपुं॰—-—बन्ध् + ल्युट्—बेड़ी डालना, जंजीर से बाँधना, कैद करना
- बन्धनम्—नपुं॰—-—बन्ध् + ल्युट्—शृंखला, बेड़ी, पगहा, रज्जु आदि
- बन्धनम्—नपुं॰—-—बन्ध् + ल्युट्—गिरफ्तार करना, पकड़ना
- बन्धनम्—नपुं॰—-—बन्ध् + ल्युट्—बाँधना, कैद, जेल, कारा
- बन्धनम्—नपुं॰—-—बन्ध् + ल्युट्—बन्दीगृह, कारागार, जेलखाना
- बन्धनम्—नपुं॰—-—बन्ध् + ल्युट्—बनाना, निर्माण, संरचना
- बन्धनम्—नपुं॰—-—बन्ध् + ल्युट्—संयुक्त करना, मिलाना, जोड़ना
- बन्धनम्—नपुं॰—-—बन्ध् + ल्युट्—चोट पहुचाना, क्षति पहुचाना
- बन्धनम्—नपुं॰—-—बन्ध् + ल्युट्—डंडी, डंठल (फूल का)वृन्त
- बन्धनम्—नपुं॰—-—बन्ध् + ल्युट्—स्नायु, पुट्ठा
- बन्धनम्—नपुं॰—-—बन्ध् + ल्युट्—पट्टी
- बन्धनागारः—पुं॰—बन्धन-अगारः—-—कारागार, जेलखाना
- बन्धनागारः—पुं॰—बन्धन - आगारः—-—कारागार, जेलखाना
- बन्धनागारम्—नपुं॰—बन्धन-अगारम्—-—कारागार, जेलखाना
- बन्धनागारम्—नपुं॰—बन्धन - आगारम्—-—कारागार, जेलखाना
- बन्धनालयः—पुं॰—बन्धन - आलयः—-—कारागार, जेलखाना
- बन्धनग्रन्थिः—पुं॰—बन्धन - ग्रन्थिः—-—पट्टी की गाँठ
- बन्धनग्रन्थिः—पुं॰—बन्धन - ग्रन्थिः—-—जाल
- बन्धनग्रन्थिः—पुं॰—बन्धन - ग्रन्थिः—-—पशुओं को बाँधने का रस्सा
- बन्धनपालकः—पुं॰—बन्धन - पालकः—-—काराध्यक्ष, जेल का अधीक्षक
- बन्धनरक्षिन्—पुं॰—बन्धन - रक्षिन्—-—काराध्यक्ष, जेल का अधीक्षक
- बन्धनवेश्मन्—नपुं॰—बन्धन - वेश्मन्—-—कारागार
- बन्धनस्थः—पुं॰—बन्धन - स्थः—-—बंदी, कैदी
- बन्धनस्तम्भः—पुं॰—बन्धन - स्तम्भः—-—खूंटा, खंभा
- बन्धनस्थानम्—नपुं॰—बन्धन - स्थानम्—-—अस्तबल, घुड़साल
- बन्धित—वि॰—-—बंध् + इतच्—बंधा हुआ, जकड़ा हुआ
- बन्धित—वि॰—-—बंध् + इतच्—कैदी, बंदी
- बन्धित्रः—वि॰—-—बंध् + इत्र—कामदेव
- बन्धित्रः—वि॰—-—बंध् + इत्र—चमड़े का पंखा
- बन्धित्रः—वि॰—-—बंध् + इत्र—धब्बा, मस्सा
- बन्धुः—पुं॰—-—बन्ध् + उ—रिस्तेदार, बंधु, बांधव, संबंधी
- बन्धुः—पुं॰—-—बन्ध् + उ—किसी प्रकार के संबंध में बंधा हुआ, भाई
- प्रवासबन्धुः—पुं॰—प्रवास - बन्धुः—-—सहयात्री
- धर्मबन्धुः—पुं॰—धर्म - बन्धुः—-—आध्यात्मिक भ्राता
- बन्धुः—पुं॰—-—बन्ध् + उ—(विधि में) सजातीय बंधुजन, अपना निजी सगोत्र बंधु
- बन्धुः—पुं॰—-—बन्ध् + उ—मित्र
- बन्धुः—पुं॰—-—बन्ध् + उ—पति
- बन्धुः—पुं॰—-—बन्ध् + उ—पिता
- बन्धुः—पुं॰—-—बन्ध् + उ—माता
- बन्धुः—पुं॰—-—बन्ध् + उ—भ्राता
- बन्धुः—पुं॰—-—बन्ध् + उ—बंधुजीव नाम का वृक्ष
- बन्धुः—पुं॰—-—बन्ध् + उ—वह व्यक्ति जिसका किसी जाति या व्यवसाय से नाममत्र का संबंध हो, अर्थात् जो जाति में जन्म लेकर अपनी उस जाति के कर्तव्यों का पलन न करता हो
- बन्धुकृत्यम्—नपुं॰—बन्धुः - कृत्यम्—-—सगोत्र बन्धु का कर्तव्य
- बन्धुकृत्यम्—नपुं॰—बन्धुः - कृत्यम्—-—मैत्रीपूर्ण कार्य या सेवा
- बन्धुजनः—पुं॰—बन्धुः - जनः—-—रिस्तेदार, भाई-बंधु
- बन्धुजनः—पुं॰—बन्धुः - जनः—-—बंधुवर्ग, स्वजन
- बन्धुजीवः—पुं॰—बन्धुः - जीवः—-—वृक्ष का नाम
- बन्धुजीवकः—पुं॰—बन्धुः - जीवकः—-—वृक्ष का नाम
- बन्धुदत्तम्—नपुं॰—बन्धुः - दत्तम्—-—एक प्रकार का स्त्रीधन या स्त्री की संपत्ति, विवाह के अवसर पर कन्या के संबंधियों द्वारा कन्या को दिया गया धन
- बन्धुप्रीतिः—स्त्री॰—बन्धुः - प्रीतिः—-—रिस्तेदार का प्रेम
- बन्धुप्रीतिः—स्त्री॰—बन्धुः - प्रीतिः—-—मित्र के लिए प्रेम
- बन्धुभावः—पुं॰—बन्धुः - भावः—-—मित्रता
- बन्धुभावः—पुं॰—बन्धुः - भावः—-—रिस्तेदारी
- बन्धुवर्गः—पुं॰—बन्धुः - वर्गः—-—भाई-बन्धु, स्वजन
- बन्धुहीन—वि॰—बन्धुः - हीन—-—बंधुबांधवों या मित्रों से रहित
- बन्धुकः—पुं॰—-—-—बन्धुजीव नाम का पेड़
- बन्धुकः—पुं॰—-—-—हरामी (संतान), वर्ण संकर
- बन्धुका—स्त्री॰—-—-—असती स्त्री
- बन्धुकी—स्त्री॰—-—-—असती स्त्री
- बन्धुता—स्त्री॰—-—बन्धु + तल् + टाप्—रिस्तेदार, भाई-बंधु, स्वजन (सामूहिक रूप से)
- बन्धुता—स्त्री॰—-—बन्धु + तल् + टाप्—रिस्तेदारी, संबंध
- बन्धुदा—स्त्री॰—-—बन्धु + दा + क टाप्—असती स्त्री
- बन्धुर—वि॰—-—बन्ध् + उरच्—डाँवाडोल, लहरदार, उँचा-नीचा
- बन्धुर—वि॰—-—बन्ध् + उरच्—झुका हुआ, रुझान वाल, विनत
- बन्धुर—वि॰—-—बन्ध् + उरच्—टेढ़ा, वक्र
- बन्धुर—वि॰—-—बन्ध् + उरच्—सुहावना, मनोहर, सुन्दर, प्रिय
- बन्धुर—वि॰—-—बन्ध् + उरच्—बहरा
- बन्धुर—वि॰—-—बन्ध् + उरच्—हानिकर, उत्पातप्रिय
- बन्धुरः—पुं॰—-—-—हंस
- बन्धुरः—पुं॰—-—-—सारस
- बन्धुरः—पुं॰—-—-—औषधि
- बन्धुरः—पुं॰—-—-—खली
- बन्धुरः—पुं॰—-—-—योनि
- बन्धुराः—पुं॰—-—-—मुर्मुरे या खाद्य पदार्थ
- बन्धुरा—स्त्री॰—-—-—असती स्त्री
- बन्धुरम्—नपुं॰—-—-—मुकुट्, ताज
- बन्धुल—वि॰—-—बन्धु + उलच्—झुका हुआ, वक्र, रुझान वाला
- बन्धुल—वि॰—-—बन्धु + उलच्—सुहावन, खुशनुमा, आकर्षक, सुन्दर
- बन्धुलः—पुं॰—-—-—हरामी (संतान)
- बन्धुलः—पुं॰—-—-—वेश्या का सेवक
- बन्धुलः—पुं॰—-—-—बंधूक नाम का पेड़
- बन्धूकः—पुं॰—-—बन्ध् + ऊकः—एक वृक्ष का नाम
- बन्धूकम्—नपुं॰—-—-—इस वृक्ष का फूल
- बन्धूर—वि॰—-—बन्ध् + ऊरच्—डांवाडोल, उन्नतावनत
- बन्धूर—वि॰—-—बन्ध् + ऊरच्—झुका हुआ, रुझानवाला, विनत
- बन्धू्र—वि॰—-—बन्ध् + ऊरच्—सुहावना, खुशनुमा, प्रिय
- बन्धूरम्—नपुं॰—-—-—छिद्र, सूराख
- बन्धूलिः—पुं॰—-—बन्ध् + ऊलि—बन्धुजीव नामक वृक्ष
- बन्ध्य—वि॰—-—बन्ध् + ण्यत्—बांधे जाने योग्य, बेड़ी द्वारा जकड़े जाने योग्य, कैद किये जाने या बन्दी बनाये जाने के योग्य
- बन्ध्य—वि॰—-—बन्ध् + ण्यत्—मिलाकर बाँधने या जोड़ने के योग्य
- बन्ध्य—वि॰—-—बन्ध् + ण्यत्—निर्माण किये जाने के योग्य, बनाये जाने या संरचित किये जाने के योग्य
- बन्ध्य—वि॰—-—बन्ध् + ण्यत्—निरुद्ध, निगृहीत
- बन्ध्य—वि॰—-—बन्ध् + ण्यत्—बाँझ, बंजर जो उपजाऊ न हो, निष्फल, निरर्थक(व्यक्ति या वस्तु)
- बन्ध्य—वि॰—-—बन्ध् + ण्यत्—जिसका मासिक रजःस्राव आना बन्द हो गया हो
- बन्ध्य—वि॰—-—बन्ध् + ण्यत्—विहीन, विरहित
- बन्ध्यफल—वि॰—बन्ध्य - फल—-—निरर्थक, अर्थहीन, सुस्त
- बन्ध्या—स्त्री॰—-—बन्ध्य + टाप्—बाँझ स्त्री
- बन्ध्या—स्त्री॰—-—बन्ध्य + टाप्—बाँझ गौ
- बन्ध्या—स्त्री॰—-—बन्ध्य + टाप्—एक प्रकार का गन्धद्रव्य
- बन्ध्यातनयः—पुं॰—बन्ध्या - तनयः—-—बाँझ स्त्री का पुत्र अर्थात् घोर असंभव्यता, जिसका अस्तित्व न है न हो सकता है
- बन्ध्यापुत्रः—पुं॰—बन्ध्या - पुत्रः—-—बाँझ स्त्री का पुत्र अर्थात् घोर असंभव्यता, जिसका अस्तित्व न है न हो सकता है
- बन्ध्यासुतः—पुं॰—बन्ध्या - सुतः—-—बाँझ स्त्री का पुत्र अर्थात् घोर असंभव्यता, जिसका अस्तित्व न है न हो सकता है
- बन्ध्यादुहितृ—स्त्री॰—बन्ध्या - दुहितृ—-—बाँझ स्त्री की पुत्री अर्थात् घोर असंभव्यता, जिसका अस्तित्व न है न हो सकता है
- बन्ध्यासुता—स्त्री॰—बन्ध्या - सुता—-—बाँझ स्त्री की पुत्री अर्थात् घोर असंभव्यता, जिसका अस्तित्व न है न हो सकता है
- बन्ध्रम्—नपुं॰—-—बन्ध् + ष्ट्रन—बन्धन, गाँठ
- बभ्रवी—स्त्री॰—-—बभ्रु + अण् + ङीप्, नवृद्धि—दुर्गा की उपाधि
- बभ्रु—वि॰—-—भृ + कु, द्वित्वम् <बभ्रू + उ वा>—गहरा भूरा, खाकी, लाली लिये हुए भूरा
- बभ्रु—वि॰—-—भृ + कु, द्वित्वम् <बभ्रू + उ वा>—किसी रोग के कारण गंजे सिर वाला
- बभ्रुः—पुं॰—-—-—आग
- बभ्रुः—पुं॰—-—-—नेवला
- बभ्रुः—पुं॰—-—-—खाकी रंग
- बभ्रुः—पुं॰—-—-—भूरे बालों वाला
- बभ्रुः—पुं॰—-—-—एक यादव का नाम
- बभ्रुः—पुं॰—-—-—शिव का विशेषण
- बभ्रुः—पुं॰—-—-—विष्णु का विशेषण
- बभ्रुधातुः—पुं॰—बभ्रु - धातुः—-—सोना
- बभ्रुधातुः—पुं॰—बभ्रु - धातुः—-—गेरु, सुवर्णगैरिक
- बभ्रुवाहनः—पुं॰—बभ्रु - वाहनः—-—चित्रांगदा के गर्भ से उत्पन्न अर्जुन का एक पुत्र
- बम्ब्—भ्वा॰ पर॰ <बम्बति>—-—-—जाना, चलना-फिरना
- बम्भरः—पुं॰—-—भृ + अच्, द्वित्वं मुम् च—मधुमक्खी, भौंरा
- बम्भराली—स्त्री॰—-—बम्भर् + अल् + अच् + ङीष्—मक्खी
- बरटः—पुं॰—-—वृ + अटन् <बवयोरभेदः>—एक प्रकार का अन्न
- बर्व्—भ्वा॰ पर॰ <बर्बति>—-—-—जाना, चलना-फिरना
- बर्बटः—पुं॰—-—बर्व् + अटन्—एक प्रकार का अनाज, राजमाष
- बर्बटी—स्त्री॰—-—बर्बट + ङीष्—एक प्रकार का अनाज, राजमाष
- बर्बटी—स्त्री॰—-—बर्बट + ङीष्—वेश्या, रंडी
- बर्बणा—स्त्री॰—-—-—नीली मक्खी
- बर्बरः—पुं॰—-—वृ + अरच्, वुट् बवयोरभेदः—जो आर्य ना हो, अनार्य, असभ्य, नीच
- बर्बरः—पुं॰—-—वृ + अरच्, वुट् बवयोरभेदः—मूर्ख, बुद्धू
- बर्बुरः—पुं॰—-—बर्ब् + उरच्—एक वृक्ष, बाभल
- बर्ह्—भ्वा॰ आ॰ <बर्हते>—-—-—बोलना
- बर्ह्—भ्वा॰ आ॰ <बर्हते>—-—-—देना
- बर्ह्—भ्वा॰ आ॰ <बर्हते>—-—-—ढकना
- बर्ह्—भ्वा॰ आ॰ <बर्हते>—-—-—क्षति पहुचाना, मार डालना, नष्ट करना
- बर्ह्—भ्वा॰ आ॰ <बर्हते>—-—-—फैलाना
- निबर्ह्—भ्वा॰ आ॰ —नि-बर्ह्—-—मार डालना, नष्ट करना
- बर्हः—पुं॰—-—बर्ह् + अच्—मोर की पूँछ
- बर्हम्—पुं॰—-—बर्ह् + अच्—मोर की पूँछ
- बर्हः—पुं॰—-—बर्ह् + अच्—पक्षी की पूँछ
- बर्हम्—नपुं॰—-—बर्ह् + अच्—पक्षी की पूँछ
- बर्हः—पुं॰—-—बर्ह् + अच्—पूँछ का पंख
- बर्हम्—नपुं॰—-—बर्ह् + अच्—पूँछ का पंख
- बर्हः—पुं॰—-—बर्ह् + अच्—पत्ता
- बर्हम्—नपुं॰—-—बर्ह् + अच्—पत्ता
- बर्हः—पुं॰—-—बर्ह् + अच्—अनुचरवर्ग, नौकर-चाकर
- बर्हम्—नपुं॰—-—बर्ह् + अच्—अनुचरवर्ग, नौकर-चाकर
- बर्हभारः—पुं॰—बर्ह - भारः—-—मोर की पूँछ
- बर्हभारः—पुं॰—बर्ह - भारः—-—मोरछल, लाठी की मूठ में बंधा मोर के पंखों का गुच्छा
- बर्हणम्—नपुं॰—-—बर्ह + ल्युट्—पत्ता
- बर्हिः—पुं॰—-—बर्ह् + इन्—आग
- बर्हिः—नपुं॰—-—-—कुश नामक घास
- बर्हिणः—पुं॰—-—बर्ह् + इनच्—मोर
- बर्हिणवाजः—पुं॰—बर्हिण - वाजः—-—मोर के पंख से युक्त बाण
- बर्हिणवाहनः—पुं॰—बर्हिण - वाहनः—-—कार्तिकेय का विशेषण
- बर्हिन्—पुं॰—-—बर्ह् + इनि—मोर
- बर्हिकुसुमम्—नपुं॰—बर्हिन् - कुसुमम्—-—एक प्रकार का गंधद्रव्य
- बर्हिपुष्पम्—नपुं॰—बर्हिन् - पुष्पम्—-—एक प्रकार का गंधद्रव्य
- बर्हिध्वजा—स्त्री॰—बर्हिन् - ध्वजा—-—दुर्गा का विशेषण
- बर्हियानः—पुं॰—बर्हिन् - यानः—-—कार्तिकेय का विशेषण
- बर्हिवाहनः—पुं॰—बर्हिन् - वाहनः—-—कार्तिकेय का विशेषण
- बर्हिस्—पुं॰—-—बर्ह् + <कर्मणि> इसि—कुश नामक घास
- बर्हिस्—पुं॰—-—बर्ह् + <कर्मणि> इसि—बिस्तरा या कुशघास का बिछौना
- बर्हिस्—पुं॰—-—-—आग
- बर्हिस्—पुं॰—-—-—प्रकाश, दीप्ति
- बर्हिस्—नपुं॰—-—-—जल
- बर्हिस्—नपुं॰—-—-—यज्ञ
- बर्हिष्केशः—पुं॰—बर्हिस् - केशः—-—आग का विशेषण
- बर्हिर्ज्योतिः—पुं॰—बर्हिस् - ज्योतिः—-—आग का विशेषण
- बर्हिर्मुखः—पुं॰—बर्हिस् - मुखः—-—आग का विशेषण
- बर्हिर्मुखः—पुं॰—बर्हिस् - मुखः—-—देवता
- बर्हिःशुष्मन्—पुं॰—बर्हिस् - शुष्मन्—-—आग का विशेषण
- बर्हिषद्—वि॰—बर्हिस् - सद्—-—कुश नामक घास के आसन पर बैठा हुआ
- बर्हिषद्—पुं॰—बर्हिस् - सद्—-—पितर
- बल्—भ्वा॰ पर॰ <बलति>—-—-—सांस लेना, जीना
- बल्—भ्वा॰ पर॰ <बलति>—-—-—अनाज संग्रह करना
- बल्—भ्वा॰ उभ॰ <बलति>, <बलते>—-—-—देना
- बल्—भ्वा॰ उभ॰ <बलति>, <बलते>—-—-—चोट पहुँचाना, क्षति पहुँचाना मार डालना
- बल्—भ्वा॰ उभ॰ <बलति>, <बलते>—-—-—बोलना
- बल्—भ्वा॰ उभ॰ <बलति>, <बलते>—-—-—देखना, चिह्न लगाना
- बल्—भ्वा॰ प्रेर॰ <बालयति>, <बालयते>—-—-—पालना-पोसना, भरणपोषण करना
- बलम्—नपुं॰—-—बल् + अच्—सामर्थ्य, शक्ति, ताकत, वीर्य, ओज
- बलम्—नपुं॰—-—बल् + अच्—जबरदस्ती, हिंसा
- बलम्—नपुं॰—-—बल् + अच्—मोटापन, पुष्टि (शरीर की)
- बलम्—नपुं॰—-—बल् + अच्—सेना,चमू, फौज, सैन्यदल
- बलम्—नपुं॰—-—बल् + अच्—शरीर, आकृति, रूप
- बलम्—नपुं॰—-—बल् + अच्—वीर्य, शुक्र
- बलम्—नपुं॰—-—बल् + अच्—रुधिर
- बलम्—नपुं॰—-—बल् + अच्—गोंद, रसगंध
- बलम्—नपुं॰—-—बल् + अच्—अंकुर, अँखुवा
- बलेन—नपुं॰—-—-—सामर्थ्य के आधार पर, की बदौलत
- बलात्—नपुं॰—-—-—बलपूर्वक, जबरदस्ती, हिंसापूर्वक, इच्छा के विरुद्ध
- बलः—पुं॰—-—-—कौवा
- बलः—पुं॰—-—-—कृष्ण के बड़े भाई
- बलः—पुं॰—-—-—एक राक्षस का नाम जिसे इन्द्र ने मारा था
- बलाग्रम्—नपुं॰—बल - अग्रम्—-—अत्यधिक सामर्थ्य, शक्ति
- बलाग्रः—पुं॰—बल - अग्रः—-—सेना का प्रधान
- बलाङ्गकः—पुं॰—बल - अङ्गकः—-—बसन्त
- बलाञ्चिता—स्त्री॰—बल - अञ्चिता—-—बलराम की वीणा
- बलाटः—पुं॰—बल - अटः—-—एक प्रकार का शहतीर
- बलाधिक—वि॰—बल - अधिक—-—सामर्थ्य में बढ़ चढ़ कर, अत्यंत बलशाली
- बलाध्यक्षः—पुं॰—बल - अध्यक्षः—-—सेनापति
- बलाध्यक्षः—पुं॰—बल - अध्यक्षः—-—युद्धमंत्री
- बलानुजः—पुं॰—बल - अनुजः—-—कृष्ण का विशेषण
- बलान्वित—वि॰—बल - अन्वित—-—सामर्थ्य से युक्त, बलवान, शक्तिशाली
- बलाबलम्—नपुं॰—बल - अबलम्—-—तुलनात्मक सामर्थ्य और असमर्थता, आपेक्षिक सामर्थ्य तथा दुर्बलता
- बलाबलम्—नपुं॰—बल - अबलम्—-—आपेक्षिक सार्थकता तथा नगण्यता, तुलनात्मक महत्त्व तथा महत्त्वशून्यता
- बलाभ्रः—पुं॰—बल - अभ्रः—-—बादल के रूप में सेना
- बलारातिः—पुं॰—बल - अरातिः—-—इन्द्र का विशेषण
- बलावलेपः—पुं॰—बल - अवलेपः—-—सामर्थ्य का अभिमान
- बलाशः—पुं॰—बल - अशः—-—क्षयरोग, तपेदिक
- बलाशः—पुं॰—बल - अशः—-—कफ का आधिक्य
- बलाशः—पुं॰—बल - अशः—-—गले में सूजन
- बलासः—पुं॰—बल - असः—-—क्षयरोग, तपेदिक
- बलासः—पुं॰—बल - असः—-—कफ का आधिक्य
- बलासः—पुं॰—बल - असः—-—गले में सूजन
- बलात्मिका—स्त्री॰—बल - आत्मिका—-—एक प्रकार का सूरजमुखी फूल, हस्तिशुण्डी
- बलाहः—पुं॰—बल - आहः—-—पानी
- बलोपपन्न—वि॰—बल - उपपन्न—-—सामर्थ्य से युक्त, मजबूत, शक्तिशाली
- बलोपेत—वि॰—बल - उपेत—-—सामर्थ्य से युक्त, मजबूत, शक्तिशाली
- बलौघः—पुं॰—बल - ओघः—-—सैन्य दल का समूह, असंख्य सेना
- बलक्षोभः—पुं॰—बल - क्षोभः—-—अव्यवस्था, गदर, विद्रोह
- बलचक्रम्—नपुं॰—बल - चक्रम्—-—उपनिवेश, साम्राज्य
- बलचक्रम्—नपुं॰—बल - चक्रम्—-—सेना, समूह
- बलजम्—नपुं॰—बल - जम्—-—नगर का फाटक, मुख्यद्वार
- बलजम्—नपुं॰—बल - जम्—-—खेत
- बलजम्—नपुं॰—बल - जम्—-—अनाज, अन्न का ढेर
- बलजम्—नपुं॰—बल - जम्—-—युद्ध, लड़ाई
- बलजम्—नपुं॰—बल - जम्—-—वसा, मज्ज
- बलजा—स्त्री॰—बल - जा—-—पृथ्वी
- बलजा—स्त्री॰—बल - जा—-—सुन्दरी स्त्री
- बलजा—स्त्री॰—बल - जा—-—एक प्रकार की चमेली
- बलदः—पुं॰—बल - दः—-—बैल, बलीवर्द
- बलदर्पः—पुं॰—बल - दर्पः—-—शक्ति का अभिमान
- बलदेवः—पुं॰—बल - देवः—-—वायु, हावा
- बलदेवः—पुं॰—बल - देवः—-—कृष्ण के बड़े भाई का नाम
- बलद्विष्—पुं॰—बल - द्विष्—-—इन्द्र के विशेषण
- बलनिषूदनः—पुं॰—बल - निषूदनः—-—इन्द्र के विशेषण
- बलपतिः—पुं॰—बल - पतिः—-—सेनापति, सेनानायक
- बलपतिः—पुं॰—बल - पतिः—-—इन्द्र का विशेषण
- बलप्रद—वि॰—बल - प्रद—-—ताकत देने वाल, बलवर्धक
- बलप्रसूः—पुं॰—बल - प्रसूः—-—बलराम की माता रोहिणी
- बलभद्रः—पुं॰—बल - भद्रः—-—बलवान मनुष्य
- बलभद्रः—पुं॰—बल - भद्रः—-—एक प्रकार का बैल
- बलभद्रः—पुं॰—बल - भद्रः—-—बलराम का नाम
- बलभद्रः—पुं॰—बल - भद्रः—-—लोध्र नामक वृक्ष
- बलभिद्—पुं॰—बल - भिद्—-—इन्द्र का विशेषण
- बलभृत्—वि॰—बल - भृत्—-—बलवान, शक्तिशाली
- बलरामः—पुं॰—बल - रामः—-—बलवान राम' कृष्ण के बड़े भाई का नाम
- बलविन्यासः—पुं॰—बल - विन्यासः—-—सैन्य दल की व्यूह रचना
- बलव्यसनम्—नपुं॰—बल - व्यसनम्—-—सेना की हार
- बलसूदनः—पुं॰—बल - सूदनः—-—इन्द्र का विशेषण
- बलस्थः—पुं॰—बल - स्थः—-—योद्धा, सैनिक
- बलस्थितिः—स्त्री॰—बल - स्थितिः—-—शिविर, पड़ाव
- बलस्थितिः—स्त्री॰—बल - स्थितिः—-—राजकीय छावनी
- बलहन्—पुं॰—बल - हन्—-—इन्द्र का विशेषण
- बलहीन—वि॰—बल - हीन—-—बलहीन, दुर्बल, अशक्त
- बलक्ष—वि॰—-—बलं क्षायत्यस्मात् क्षै + क—श्वेत
- बलक्षगुः—पुं॰—बलक्ष - गुः—-—चन्द्रमा
- बललः—पुं॰—-—बल + ला + क—इन्द्र का विशेषण
- बलवत्—वि॰—-—बल + मतुप्—मजबूत, शक्तिशाली, ताकतवर
- बलवत्—वि॰—-—बल + मतुप्—बलिष्ठ, हट्टा-कट्टा
- बलवत्—वि॰—-—बल + मतुप्—सघन, घिनका (अंधकार आदि)
- बलवत्—वि॰—-—बल + मतुप्—अधिभावी, सर्वप्रमुख, प्रभुविष्णु
- बलवत्—वि॰—-—बल + मतुप्—अति महत्त्वपूर्ण, अत्यावश्यक
- बलवत्—अव्य॰—-—-—मजबूती से, शक्ति के साथ
- बलवत्—अव्य॰—-—-—अत्यधिक, अत्यन्त, अतिशय मत्रा में
- बला—स्त्री॰—-—बल + अच् + टाप्—शक्तिसंपन्न ज्ञान या मन्त्रयोग
- बलाकः—पुं॰—-—बल + अक् + अच्—बगुला
- बलाका—स्त्री॰—-—बल + अक् + स्त्रियां टाप् च—बगुला
- बलाका—स्त्री॰—-—बल + अक् + स्त्रियां टाप् च—प्रिया, कान्ता
- बलाकिका—स्त्री॰—-—बलाका + कन् + टाप्, इत्वम्—छोटी जाति बगुला
- बलाकिन्—वि॰—-—बलाका + इनि—बगुलों या सरसों से भरा हुआ
- बलात्कारः—पुं॰—-—बल + अत् + क्विप्=बलात्+ कृ॰+ अण्—हिंसा का प्रयोग करना, बल लगाना
- बलात्कारः—पुं॰—-—बल + अत् + क्विप्=बलात्+ कृ॰+ अण्—सतीत्वनाशन, विनयभंग, बल, अत्याचार, छीनाझपटी
- बलात्कारः—पुं॰—-—बल + अत् + क्विप्=बलात्+ कृ॰+ अण्—अन्याय
- बलात्कारः—पुं॰—-—बल + अत् + क्विप्=बलात्+ कृ॰+ अण्—उत्तमर्ण द्वारा अधमर्ण को रोकना, ऋण वापसी के लिये बल का प्रयोग करना
- बलात्कृत—वि॰—-—बलात् + कृ + क्त—जिसके साथ जबर्दस्ती की गई हो या जो परास्त कर दिया गया हो
- बलाहकः—पुं॰—-—बल + आ + हा + क्कुन्—बादल
- बलाहकः—पुं॰—-—बल + आ + हा + क्कुन्—एक प्रकार का बगुला या सरस
- बलाहकः—पुं॰—-—बल + आ + हा + क्कुन्—पहाड़
- बलाहकः—पुं॰—-—बल + आ + हा + क्कुन्—प्रलयकालीन सात बादलों में से एक
- बलिः—पुं॰—-—बल् + इन्—आहुति, भेंट, चढ़ावा
- बलिः—पुं॰—-—बल् + इन्—दैनिक आहार में से कुछ अंश का सब जीवों को उपहार, दैनिक पंच महायज्ञों में से एक, बलिवैश्वदेव यज्ञ
- बलिः—पुं॰—-—बल् + इन्—पूजा, आरधना
- बलिः—पुं॰—-—बल् + इन्—उच्छिष्ट
- बलिः—पुं॰—-—बल् + इन्—देवमूर्ति पर चढ़ाया नैवेद्य
- बलिः—पुं॰—-—बल् + इन्—शुल्क, कर, चुंगी
- बलिः—पुं॰—-—बल् + इन्—चंवर का डंडा
- बलिः—पुं॰—-—बल् + इन्—एक प्रसिद्ध राक्षस का नाम
- बलिः—स्त्री॰—-—-—तह, झुर्री
- बलिकर्मन्—नपुं॰—बलि - कर्मन्—-—सब जीव-जन्तुओं को भोजन देना
- बलिकर्मन्—नपुं॰—बलि - कर्मन्—-—कर अदायगी
- बलिदानम्—नपुं॰—बलि - दानम्—-—देवताओं को नैवेद्य अर्पण करना
- बलिदानम्—नपुं॰—बलि - दानम्—-—सब जीव-जन्तुओं को भोजन देना
- बलिध्वंसिन्—पुं॰—बलि - ध्वंसिन्—-—विष्णु का अवतार
- बलिनन्दनः—पुं॰—बलि - नन्दनः—-—बलि के पुत्र बाण का विशेषण
- बलिपुत्रः—पुं॰—बलि - पुत्रः—-—बलि के पुत्र बाण का विशेषण
- बलिसुतः—पुं॰—बलि - सुतः—-—बलि के पुत्र बाण का विशेषण
- बलिपुष्टः—पुं॰—बलि - पुष्टः—-—कौवा
- बलिभोजनः—पुं॰—बलि - भोजनः—-—कौवा
- बलिप्रियः—पुं॰—बलि - प्रियः—-—लोध्र वृक्ष
- बलिबन्धनः—पुं॰—बलि - बन्धनः—-—विष्णु का विशेषण
- बलिभुज्—पुं॰—बलि - भुज्—-—कौवा
- बलिभुज्—पुं॰—बलि - भुज्—-—चिड़िया
- बलिभुज्—पुं॰—बलि - भुज्—-—बगुला या सारस
- बलिमन्दिरम्—नपुं॰—बलि - मन्दिरम्—-—पाताल लोक, बलि का आवासस्थान
- बलिवेश्मन्—नपुं॰—बलि - वेश्मन्—-—पाताल लोक, बलि का आवासस्थान
- बलिसद्मम्—नपुं॰—बलि - सद्मम्—-—पाताल लोक, बलि का आवासस्थान
- बलिव्याकुल—वि॰—बलि - व्याकुल—-—पूजा में अथवा सब जीव जन्तुओं को भोजन देने वाला
- बलिहन्—पुं॰—बलि - हन्—-—विष्णु का विशेषण
- बलिहरणम्—नपुं॰—बलि - हरणम्—-—सब जीव-जन्तुओं को भोजन देना
- बलिन्—वि॰—-—बल् + इनि—मजबूत, शक्तीशाली, ताकतवर
- बलिन्—पुं॰—-—-—भैंसा
- बलिन्—पुं॰—-—-—सूअर
- बलिन्—पुं॰—-—-—ऊँट
- बलिन्—पुं॰—-—-—साँड
- बलिन्—पुं॰—-—-—सैनिक
- बलिन्—पुं॰—-—-—एक प्रकार की चमेली
- बलिन्—पुं॰—-—-—कफात्मक वृत्ति
- बलिन्—पुं॰—-—-—बलराम का विशेषण
- बलिन —वि॰—-—बलि + न—झुर्रीदार, सिकुड़नदार, झुर्रियाँ पड़ी हुई हों, पिलपिला
- बलिभ—वि॰—-—बलि + भ, बवयोरभेदः—झुर्रीदार, सिकुड़नदार, झुर्रियाँ पड़ी हुई हों, पिलपिला
- बलिन्दमः—पुं॰—-—बलि + दम् + खच्, मुम्—विष्णु का विशेषण
- बलिमत्—वि॰—-—बलि + मतुप्—पूजा या आहुति की सामग्री तैयार रखने वाला
- बलिमत्—वि॰—-—बलि + मतुप्—कर उगाहने वाला
- बलिमन्—पुं॰—-—बल + इमनिच्—सामर्थ्य, ताकत, शक्ति
- बलिवर्द—वि॰—-—-—साँड़, बैल
- बलिष्ठ—वि॰—-—बलवत् <बलिन्> + इष्ठन्—अत्यन्त बलशाली, अत्यन्त मजबूत, अतिशय शक्तिशाली
- बलिष्ठः—पुं॰—-—-—ऊँट
- बलिष्णु—वि॰—-—बल् + इष्णुच्—अपमानित, अनादृत, तिरस्कृत
- बलीकः—पुं॰—-—बल् + ईकन्—छप्पर की मुंडेर
- बलीयस्—वि॰—-—बलवत् <बलिन्> + इयसुन्—अपेक्षाकृत मजबूत, अधिक शक्तिशाली
- बलीयस्—वि॰—-—बलवत् <बलिन्> + इयसुन्—अधिक प्रभवी
- बलीयस्—वि॰—-—बलवत् <बलिन्> + इयसुन्—अपेक्षाकृत महत्त्वपूर्ण
- बलीवर्दः—पुं॰—-—दा + क, ईवर्दः, बली चासौ ईवर्दश्च कर्म॰ स॰—साँड़, बैल
- बरीवर्दः—पुं॰—-—वृ + क्विप् = वर्, ई वश्च=ईश्वरौ तौ ददाति—साँड़, बैल
- बल्य—वि॰—-—बल् + यत्—मजबूत, शक्तिशाली
- बल्य—वि॰—-—बल् + यत्—शक्तिप्रद
- बल्यः—पुं॰—-—-—बौद्ध भिक्षु
- बल्यम्—नपुं॰—-—-—वीर्य, शुक्र
- बल्लवः—पुं॰—-—बल्ल् + अच् तं वाति वा + कः—ग्वाला
- बल्लवः—पुं॰—-—बल्ल् + अच् तं वाति वा + कः—रसोइया
- बल्लवः—पुं॰—-—बल्ल् + अच् तं वाति वा + कः—विराट के यहाँ भीम का नाम जब वह रसोइये का कर्य करता था
- बल्लवी—स्त्री॰—-—-—ग्वालिन
- बल्लवयुवतिः—स्त्री॰—बल्लव - युवतिः—-—जवान ग्वालिन (गोपी)
- बल्लवयुवती—स्त्री॰—बल्लव - युवती—-—जवान ग्वालिन (गोपी)
- बल्वजः—पुं॰—-—-—एक प्रकार का मोटा घास
- बल्वजा—स्त्री॰—-—-—एक प्रकार का मोटा घास
- बल्हिकाः—पुं॰ब॰ व॰—-—-—एक (बलख) देश का तथा उसके अधिवासियों का नाम्
- बल्हीकाः—पुं॰ब॰ व॰—-—-—एक (बलख) देश का तथा उसके अधिवासियों का नाम्
- बष्कय—वि॰—-—बष्क + अयन्—बहड़ा (एक वर्ष का बछड़ा)
- बष्कयणी—स्त्री॰—-—बष्कय + इनि + ङीप्—वह गाय जिसका बछड़ा पूरा बढ़ गया हो
- बष्कयणी—स्त्री॰—-—बष्कय + इनि + ङीप्—बहुप्रसवी गाय
- बष्कयिनी—स्त्री॰—-—बष्कय + इनि + ङीप्—वह गाय जिसका बछड़ा पूरा बढ़ गया हो
- बष्कयिनी—स्त्री॰—-—बष्कय + इनि + ङीप्—बहुप्रसवी गाय
- बस्तः—पुं॰—-—बस्त् + घञ्—बकरा
- बस्तकर्णः—पुं॰—बस्त - कर्णः—-—साल वृक्ष
- बहल—वि॰—-—वह् + अलच्—अत्यधिक, यथेष्ट, प्रचुर, पुष्कल, बहुविध, महान, मजबूत
- बहल—वि॰—-—वह् + अलच्—घिनका, सघन
- बहल—वि॰—-—वह् + अलच्—लोमश (पूँछ की भांति)
- बहल—वि॰—-—वह् + अलच्—कठोर, दृढ़, सटा हुआ
- बहलः—पुं॰—-—-—एक प्रकार का इक्षुरस, ईख, गन्ना
- बहला—स्त्री॰—-—-—बड़ी इलायची
- बहलगन्धः—पुं॰—बहल - गन्धः—-—एक प्रकार का चन्दन
- बहिस्—अव्य॰—-—वह् + इयसुन्—में से, बाहर
- बहिस्—अव्य॰—-—वह् + इयसुन्—बाहर की ओर, दरवाजे के बाहर
- बहिस्—अव्य॰—-—वह् + इयसुन्—बाह्यतः, बाहर की ओर से
- बहिष्कृ——-—-—बाहर की ओर रखना, से निकालना, हाँक कर बाहर कर देना
- बहिष्कृ——-—-—जाति से बाहर करना
- बहिर्गम्——-—-—बाहर जाना, चले जाना
- बहिर्या——-—-—बाहर जाना, चले जाना
- बहिरि——-—-—बाहर जाना, चले जाना
- बहिरङ्ग—वि॰—बहिस् - अङ्ग—-—बाहर का, बाहर की ओर का
- बहिरङ्गम्—नपुं॰—बहिस् - अङ्गम्—-—बाहरी भाग
- बहिरङ्गम्—नपुं॰—बहिस् - अङ्गम्—-—बाहरी अंग
- बहिरुपाधिः—पुं॰—बहिस् - उपाधिः—-—बाहरी दशा या परिस्थिति
- बहिश्चर—वि॰—बहिस् - चर—-—बाहर का, बाहर की ओर का, बाहर की तरफ का
- बहिर्द्वारम्—नपुं॰—बहिस् - द्वारम्—-—बाहर का दरवाजा, दहलीज
- बहु—वि॰ —-—बंह् + कु, नलोपः म्॰ अ॰ <भूयस्>, उ॰ अ॰ <भूयिष्ठ>—अधिक, पुष्कल, प्रचुर, बहुत
- बहु—वि॰ —-—बंह् + कु, नलोपः म्॰ अ॰ <भूयस्>, उ॰ अ॰ <भूयिष्ठ>—अनेक, असंख्य
- बहु—वि॰ —-—बंह् + कु, नलोपः म्॰ अ॰ <भूयस्>, उ॰ अ॰ <भूयिष्ठ>—बार-बार किया गया, दोहराया गया
- बहु—वि॰ —-—बंह् + कु, नलोपः म्॰ अ॰ <भूयस्>, उ॰ अ॰ <भूयिष्ठ>—बड़ा, विशाल
- बहु—वि॰ —-—बंह् + कु, नलोपः म्॰ अ॰ <भूयस्>, उ॰ अ॰ <भूयिष्ठ>—भरापूरा, समृद्ध
- बहु—अव्य॰—-—-—अति, बहुतायत से, अत्यधिक, अत्यंत, अतिशयपूर्वक, बड़े परिमाण में
- बहु—अव्य॰—-—-—कुछ लगभग
- किं बहुना—अव्य॰—-—-—अधिक कहने से क्या लाभ? ‘संक्षेप में’
- बहुमन्——-—-—बहुत सोचना, बहुत मानना, ऊँचा मूल्य लगाना, बहुमूल्य मानना, कद्र करना
- बह्वक्षर—वि॰ —बहु - अक्षर—-—अनेक अक्षरों वाला, (शब्द) बहुत से अक्षरों से बना हुआ
- बह्वच्—वि॰ —बहु - अच्—-—अनेक स्वरों से युक्त, बहुत स्वरों वाला
- बह्वच्क—वि॰ —बहु - अच्क—-—अनेक स्वरों से युक्त, बहुत स्वरों वाला
- बह्वप्—वि॰ —बहु - अप्—-—जलयुक्त
- बह्वपम्—वि॰ —बहु - अपम्—-—जलयुक्त
- बह्वपत्य—वि॰ —बहु - अपत्य—-—अनेक संतानों से युक्त
- बह्वपत्यः—वि॰ —बहु - अपत्यः—-—सूअर
- बह्वपत्यः—वि॰ —बहु - अपत्यः—-—मूसा, चूहा
- बह्वपत्या—स्त्री॰—बहु - अपत्या—-—वह गाय जिसके बहुत बछड़े बछड़ियाँ हैं
- बह्वर्थ—वि॰—बहु - अर्थ—-—अनेक अर्थों से युक्त
- बह्वर्थ—वि॰—बहु - अर्थ—-—बहुत से उद्देश्य रखने वाला
- बह्वर्थ—वि॰—बहु - अर्थ—-—महत्त्वपूर्ण
- बह्वाशिन्—वि॰—बहु - आशिन्—-—बहुभोजी, पेटू
- बहूदकः—पुं॰—बहु - उदकः—-—एक प्रकार का भिक्षु जो अज्ञात नगर में निवास करता है तथा घर घर भिक्षा मांग कर अपना निर्वाह करता है
- बहूपाय—वि॰—बहु- उपाय—-—प्रभावी, क्रियावान्
- बह्वृच्—वि॰—बहु - ऋच्—-—अनेक ऋचाओं से युक्त
- बह्वृच्—स्त्री॰—बहु - ऋच्—-—ऋग्वेद का नामान्तर
- बह्वेनस्—वि॰—बहु - एनस्—-—अति पापमय
- बहुकर—वि॰—बहु - कर—-—अति क्रियाशील, व्यस्त, उद्योगी
- बहुकरः—पुं॰—बहु - करः—-—भङ्गी, झाड़ू देने वाला
- बहुकरः—पुं॰—बहु - करः—-—ऊँट
- बहुकरी—स्त्री॰—बहु - करी—-—झाड़ू
- बहुकालम्—अव्य॰—बहु - कालम्—-—बहत देर तक
- बहुकालीन—वि॰—बहु - कालीन—-—बहुत समय का, पुराना, प्राचीन
- बहुकूर्चः—पुं॰—बहु - कूर्चः—-—एक प्रकार का नारियल का वृक्ष
- बहुगन्धदा—स्त्री॰—बहु - गन्धदा—-—क्स्तूरी, मुश्क
- बहुगन्धा—स्त्री॰—बहु - गन्धा—-—युथिका लता
- बहुगन्धा—स्त्री॰—बहु - गन्धा—-—चंपाकली
- बहुगुण—वि॰—बहु - गुण—-—अनेक सद्गुणों से युक्त
- बहुगुण—वि॰—बहु - गुण—-—कई प्रकार का, तरह-तरह का
- बहुगुण—वि॰—बहु - गुण—-—अनेक धागों से युक्त
- बहुजल्प—वि॰—बहु - जल्प—-—बहुभाषी, मुखर, वाचाल
- बहुज्ञ—वि॰—बहु - ज्ञ—-—बहुत जानकारी रखने वाला, अच्छा जानकार, सुविज्ञ
- बहुतृणम्—नपुं॰—बहु - तृणम्—-—कोई पदार्थ जो बहुधा घास की भांति हो अतः महत्त्वशून्य या तिरस्करणीय
- बहुत्वक्कः—पुं॰—बहु - त्वक्कः—-—एक प्रकार का भोजवृक्ष
- बहुत्वच्—पुं॰—बहु - त्वच्—-—एक प्रकार का भोजवृक्ष
- बहुदक्षिण—वि॰—बहु - दक्षिण—-—जिसमें बहुत दान और उपहार प्रस्तुत किया जाय
- बहुदक्षिण—वि॰—बहु - दक्षिण—-—उदार, दानशील
- बहुदायिन्—वि॰—बहु - दायिन्—-—उदार, दानशील, उदारतापूर्वक दान देने वाला
- बहुदुग्ध—वि॰—बहु - दुग्ध—-—बहुत दूध देने वाला
- बहुदुग्धः—पुं॰—बहु - दुग्धः—-—गेहूँ
- बहुदुग्धा—स्त्री॰—बहु - दुग्धा—-—बहुत दूध देने वाली गाय
- बहुदृश्वन्—वि॰—बहु - दृश्वन्—-—बड़ा अनुभवी, जिसने बहुत देखा सुना हो
- बहुदोष—वि॰—बहु - दोष—-—जिसमें अनेक दोष हों, बहुत सी त्रुटियाँ हों, अतिदुष्ट, पापपूर्ण
- बहुदोष—वि॰—बहु - दोष—-—अपराधों से युक्त, भयदायी
- बहुधन—वि॰—बहु - धन—-—बहुत धनी, धनाढ्य
- बहुधारम्—नपुं॰—बहु - धारम्—-—इन्द्र का वज्र
- बहुधेनुकम्—नपुं॰—बहु - धेनुकम्—-—दूध देने वाली गौओं की बड़ी संख्या
- बहुनादः—पुं॰—बहु - नादः—-—शंख
- बहुपत्रः—पुं॰—बहु - पत्रः—-—प्याज
- बहुपत्रम्—नपुं॰—बहु - पत्रम्—-—अभ्रक
- बहुपत्री—स्त्री॰—बहु - पत्री—-—तुलसी का पौधा
- बहुपद्—पुं॰—बहु - पद्—-—बड़ का वृक्ष
- बहुपाद्—पुं॰—बहु - पाद्—-—बड़ का वृक्ष
- बहुपादः—पुं॰—बहु - पादः—-—बड़ का वृक्ष
- बहुपुष्पः—पुं॰—बहु - पुष्पः—-—मूँगे का पेड़
- बहुपुष्पः—पुं॰—बहु - पुष्पः—-—नीम का वृक्ष
- बहुप्रकार—वि॰—बहु - प्रकार—-—बहुत प्रकार का, नाना प्रकार का, विविध प्रकार का
- बहुप्रज—वि॰—बहु - प्रज—-—बहुत सन्तान वाला, अनेक बच्चों वाला
- बहुजः—पुं॰—बहु - जः—-—सूअर
- बहुजः—पुं॰—बहु - जः—-—मंजू, एक घास
- बहुप्रतिज्ञ—वि॰—बहु - प्रतिज्ञ—-—नाना प्रकार की उक्ति और वाक्यों से युक्त, पेचीदा
- बहुप्रतिज्ञ—वि॰—बहु - प्रतिज्ञ—-—अभियोग पत्र के रूप में जहाँ कई प्रकार का शुल्क लगे
- बहुप्रद—वि॰—बहु - प्रद—-—अत्यन्त उदार, उदार, दाता
- बहुप्रसूः—स्त्री॰—बहु - प्रसूः—-—अनेक बच्चों की माँ
- बहुप्रेयसी—वि॰—बहु - प्रेयसी—-—जिसके बहुत स प्रेमी हों
- बहुफल—वि॰—बहु - फल—-—फलों से समृद्ध
- बहुफलः—पुं॰—बहु - फलः—-—कदम्ब का वृक्ष
- बहुबलः—पुं॰—बहु - बलः—-—सिंह
- बहुभाषिन्—वि॰—बहु - भाषिन्—-—मुखर, वाचाल
- बहुमञ्जरी—स्त्री॰—बहु - मञ्जरी—-—तुलसी का पौधा
- बहुमत—वि॰—बहु - मत—-—बहुत माना हुआ, मूल्यवान्, कीमती, सम्मनित
- बहुमतिः—स्त्री॰—बहु-मतिः—-—बड़ा मूल्य या मूल्याङ्कन
- बहुमलम्—नपुं॰—बहु - मलम्—-—सीसा
- बहुमानः—पुं॰—बहु - मानः—-—बड़ा सम्मान या आदर, ऊँचा मूल्याङ्कन
- बहुमानम्—नपुं॰—बहु - मानम्—-—उपहार जो बड़ों द्वारा छोटों को दिया जाय
- बहुमान्य—वि॰—बहु - मान्य—-—आदरणीय, माननीय
- बहुमाय—वि—बहु - माय—-—कालमय, छलयुक्त, द्रोही
- बहुमार्गगा—स्त्री॰—बहु - मार्गगा—-—गंगा
- बहुमार्गी—स्त्री॰—बहु - मार्गी—-—जाहाँ बहुत सी सड़कें मिलती हों
- बहुमूत्र—वि॰—बहु - मूत्र—-—मधुमेह रोग से पीड़ित
- बहुमूर्धन्—वि॰—बहु - मूर्धन्—-—विष्णु का विशेषण
- बहुमूल्य—वि॰—बहु - मूल्य—-—मूल्यवान, ऊँची कीमत का
- बहुमृग—वि॰—बहु - मृग—-—जहाँ बहुत से मृग हों
- बहुरत्न—वि॰—बहु - रत्न—-—रत्नों से समृद्ध
- बहुरूप—वि॰—बहु - रूप—-—अनेक रूपी, बहुरूपी, विश्वरूपी
- बहुरूप—वि॰—बहु - रूप—-—चितकवरा, धब्बेदार, रंगविरंगा या चारखानेदार
- बहुरूपः—पुं॰—बहु - रूपः—-—छिपकली, गिरगिट
- बहुरूपः—पुं॰—बहु - रूपः—-—बाल
- बहुरूपः—पुं॰—बहु - रूपः—-—सूर्य
- बहुरूपः—पुं॰—बहु - रूपः—-—शिव
- बहुरूपः—पुं॰—बहु - रूपः—-—विष्णु
- बहुरूपः—पुं॰—बहु - रूपः—-—ब्रह्मा
- बहुरूपः—पुं॰—बहु - रूपः—-—कामदेव
- बहुरेतस्—पुं॰—बहु - रेतस्—-—ब्रह्मा का विशेषण
- बहुरोमन्—वि॰—बहु - रोमन्—-—बहुलोमी, रोंएदार
- बहुरोमन्—पुं॰—बहु - रोमन्—-—भेड़
- बहुलवणम्—नपुं॰—बहु - लवणम्—-—लुनिया धरती
- बहुवचनम्—नपुं॰—बहु - वचनम्—-—एक से अधिक वस्तुओं का ज्ञान कराने का प्रकार
- बहुवर्ण—वि॰—बहु - वर्ण—-—बहुरंगी, रंगविरंगा
- बहुवार्षिक—वि॰—बहु - वार्षिक—-—बहुत वर्षों तक रहने वाला
- बहुविघ्न—वि॰—बहु - विघ्न—-—अनेक कठिनाइयों से युक्त, नाना विघ्नबाधाओं से भरा हुआ
- बहुविध—वि॰—बहु - विध—-—अनेक प्रकार का, तरह-तरह का, विविध प्रकार का
- बहुवीजम्—नपुं॰—बहु - वीजम्—-—शरीफा
- बहुबीजम्—नपुं॰—बहु - बीजम्—-—शरीफा
- बहुव्रीहि—वि॰—बहु - व्रीहि—-—बहुत चावलों वाला
- बहुव्रीहिः—पुं॰—बहु - व्रीहिः—-—संस्कृत के चार मुख्य समासों मे एक
- बहुशत्रुः—पुं॰—बहु - शत्रुः—-—गोरैया चिड़िया
- बहुशल्यः—पुं॰—बहु - शल्यः—-—खदिर वृक्ष का एक भेद
- बहुशृङ्गः—पुं॰—बहु - शृङ्गः—-—विष्णु का विशेषण
- बहुश्रुत—वि॰—बहु - श्रुत—-—विज्ञ पुरुष, प्रविद्वान्
- बहुश्रुत—वि॰—बहु - श्रुत—-—वेदों का जानकार
- बहुसन्तति—वि॰—बहु - सन्तति—-—अनेक बाल-बच्चों वाला
- बहुसन्ततिः—पुं॰—बहु - सन्ततिः—-—एक प्रकार का बाँस
- बहुसार—वि॰—बहु - सार—-—बहुत अधिक मज्जा या रस से युक्त, सारयुक्त
- बहुसारः—पुं॰—बहु - सारः—-—खदिरवृक्ष, खैर
- बहुसूः—स्त्री॰—बहु - सूः—-—अनेक बच्चों की माँ
- बहुसूः—स्त्री॰—बहु - सूः—-—शूकरी, सरी
- बहुसूतिः—स्त्री॰—बहु - सूतिः—-—अनेक बच्चों की माँ
- बहुसूतिः—स्त्री॰—बहु - सूतिः—-—बहुत बार ब्याने वाली गाय
- बहुस्वन—वि॰—बहु - स्वन—-—कोलाहलपूर्ण
- बहुस्वनः—पुं॰—बहु - स्वनः—-—उल्लू
- बहुस्वामिक—वि॰—बहु - स्वामिक—-—जिसके स्वामी अनेक हों
- बहुक—वि॰—-—बहु + कन्—महंगा खरीदा हुआ
- बहुकः—पुं॰—-—-—सूर्य
- बहुकः—पुं॰—-—-—मदार का पौधा
- बहुकः—पुं॰—-—-—केकड़ा
- बहुकः—पुं॰—-—-—एक प्रकार का जलकुक्कट
- बहुतर—वि॰—-—बहु + तरप्—अपेक्षाकृत असंख्य, अधिक, ज्यादह
- बहुतम—वि॰—-—बहु + तमप्—अत्यन्त अधिक, अतिशय
- बहुतः—अव्य॰—-—बहु + तस्—नाना पार्श्वों से, कई तरफ से
- बहुता—स्त्री॰—-—बहु + तल् + टाप्—बहुतायत, प्राचुर्य, असंख्यता
- बहुत्वम्—नपुं॰—-—बहु + तल् + त्व—बहुतायत, प्राचुर्य, असंख्यता
- बहुतिथ—वि॰—-—बहु + तिथुक्—ज्यादह, अधिक
- बहुधा—अव्य॰—-—बहु + धाच्—कई प्रकार से, विविध प्रकार से, बहुत तरह से
- बहुधा—अव्य॰—-—बहु + धाच्—भिन्न-भिन्न रूप से या रीतियों से
- बहुधा—अव्य॰—-—बहु + धाच्—बारंबार, दोहराकर
- बहुधा—अव्य॰—-—बहु + धाच्—विविध स्थानों या दिशाओं में
- बहुल—वि॰—-—बंह् + कुलच्, नलोपः—घिनका, सघन, सटा हुआ
- बहुल—वि॰—-—बंह् + कुलच्, नलोपः—विशाल, विस्तृत, आयत, विपुल, बड़ा
- बहुल—वि॰—-—बंह् + कुलच्, नलोपः—प्रचुर, यथेष्ट, पुष्कल, अधिक, असंख्य
- बहुल—वि॰—-—बंह् + कुलच्, नलोपः—अनेक, बहुत प्रकार का, अनगिनत
- बहुल—वि॰—-—बंह् + कुलच्, नलोपः—भरापूरा, समृद्ध, प्रभूत
- बहुल—वि॰—-—बंह् + कुलच्, नलोपः—संयुक्त, संलग्न
- बहुल—वि॰—-—बंह् + कुलच्, नलोपः—कृत्तिका नक्षत्र में जिसका जन्म हुआ है
- बहुल—वि॰—-—बंह् + कुलच्, नलोपः—काल
- बहुलः—पुं॰—-—-—मास का कृष्णपक्ष
- बहुलः—पुं॰—-—-—अग्नि का विशेषण
- बहुला—स्त्री॰—-—-—गाय
- बहुला—स्त्री॰—-—-—इलायची
- बहुला—स्त्री॰—-—-—नील का पौधा
- बहुला—स्त्री॰—-—-—कृत्तिकानक्षत्र
- बहुलम्—नपुं॰—-—-—आकाश, सफेद मिर्च
- बहुलीकृ——-—-—प्रकाशित करना, खोलना, भंडाफोड़ करना
- बहुलीकृ——-—-—सघन या सटाकर बनाना
- बहुलीकृ——-—-—बढ़ाना, विस्तार करना, वृद्धि करना
- बहुलीकृ——-—-—फटकना
- बहुलीभू——-—-—फैलाना, विस्तृत करना, गुणा करना
- बहुलीभू——-—-—दूर तक फैलना, प्रकाशित होना, बदनाम होना, सुविदित होना, दूर दूर तक फैल जाना
- बहुलालाप—वि॰—बहुल-आलाप—-—बातूनी, वाचाल, मुखर
- बहुलगन्धा—स्त्री॰—बहुल-गन्धा—-—इलायची
- बहुलिका—स्त्री॰ ब॰ व॰—-—-—कृत्तिकानक्षत्र
- बहुशः—अव्य॰—-—बहु + शस्—अत्यंत, बहुतायत के साथ, अत्यधिकता के साथ
- बहुशः—अव्य॰—-—बहु + शस्—बार बार, दोहरा कर, मुहुर्मुहुः
- बहुशः—अव्य॰—-—बहु + शस्—साधारणतः, सामान्य रूप से
- बाकुलम्—नपुं॰—-—बकुल + अच्—बकुल वृक्ष का फल
- बाड्—भ्वा॰ आ॰ <बाडते>—-—-—स्नान करना
- बाड्—भ्वा॰ आ॰ <बाडते>—-—-—गोता लगाना
- बाडवः—पुं॰—-—वडवा + अण्, बवयोरभेदः—बडवानल
- बाडवः—पुं॰—-—वडवा + अण्, बवयोरभेदः—ब्राह्मण
- बाडवेय—पुं॰—-—वडवा + ढक्—साँड़
- बाडवेय—पुं॰—-—वडवा + ढक्—घोड़ा
- बाडव्यम्—नपुं॰—-—वाडव + यत्—ब्राहर्णो का समूह
- बाढ—वि॰—-—वह् + क्त नि॰ साधुः—दृढ़, मज़बूत
- बाढ—वि॰—-—वह् + क्त नि॰ साधुः—ऊँचे स्वर का
- बाढम्—नपुं॰—-—-—यक़ीनन, निश्चय ही, अवश्य, वस्तुतः, हाँ (प्रश्न के उत्तर के रूप में )
- बाढम्—नपुं॰—-—-—बहुत अच्छा, तथास्तु, शुभम्
- बाढम्—नपुं॰—-—-—अत्यंत, बहुत ज्यादह
- बाणः—पुं॰—-—बण् + घञ्—तीर, बाण, शर
- बाणः—पुं॰—-—बण् + घञ्—तीर का निशाना, बाण का लक्ष्य
- बाणः—पुं॰—-—बण् + घञ्—तीर का पंखयुक्त भाग
- बाणः—पुं॰—-—बण् + घञ्—गाय का ऐन या औड़ी
- बाणः—पुं॰—-—बण् + घञ्—एक प्रकार का पौधा (नीलझिंटी भी)
- बाणः—पुं॰—-—बण् + घञ्—एक राक्षस का नाम, बलि का पुत्र
- बाणः—पुं॰—-—बण् + घञ्—एक प्रसिद्ध कवि का नाम
- बाणः—पुं॰—-—बण् + घञ्—पाँच की संख्या के लिए प्रतीकात्मक उक्ति
- बाणासनम्—नपुं॰—बाणः-असनम्—-—धनुष
- बाणावलिः—स्त्री॰—बाणः-आवलिः—-—बाणों की श्रेणी
- बाणावलिः—स्त्री॰—बाणः-आवलिः—-—एक वाक्य में अन्वित पाँच श्लोकों का एक कुलक
- बाणावली—स्त्री॰—बाणः-आवली—-—बाणों की श्रेणी
- बाणावली—स्त्री॰—बाणः-आवली—-—एक वाक्य में अन्वित पाँच श्लोकों का एक कुलक
- बाणाश्रयः—पुं॰—बाणः-आश्रयः—-—तरकस
- बाणगोचरः—पुं॰—बाणः-गोचरः—-—बाण का परास
- बाणजालम्—नपुं॰—बाणः-जालम्—-—बाणों का समूह
- बाणजित्—पुं॰—बाणः-जित्—-—विष्णु का विशेषण
- बाणतूणः—पुं॰—बाणः-तूणः—-—तरकस
- बाणधिः—पुं॰—बाणः-धिः—-—तरकस
- बाणपन्थः—पुं॰—बाणः-पन्थः—-—बाण का परास
- बाणपाणि—वि॰—बाणः-पाणि—-—बाणों से सुसज्जित
- बाणपातः—पुं॰—बाणः-पातः—-—तीर की मार (दूरी की माप)
- बाणपातः—पुं॰—बाणः-पातः—-—तीर की परास
- बाणमुक्तिः—पुं॰—बाणः-मुक्तिः—-—बाण मारना, तीर छोड़ना
- बाणमोक्षणम्—नपुं॰—बाणः-मोक्षणम्—-—बाण मारना, तीर छोड़ना
- बाणयोजनम्—नपुं॰—बाणः-योजनम्—-—तरकस
- बाणवृष्टिः—स्त्री॰—बाणः-वृष्टिः—-—तीरों की बौछार
- बाणवारः—पुं॰—बाणः-वारः—-—वक्षस्त्राण, कवच, उरस्त्राण
- बाणसुताः—स्त्री॰—बाणः-सुताः—-—बाण की पुत्री ऊषा का विशेषण
- बाणहन्—पुं॰—बाणः-हन्—-—विष्णु का विशेषण
- बाणिनी—स्त्री॰ —-—बाण + इनि + ङीप्—चतुर और धूर्त स्त्री
- बाणिनी—स्त्री॰ —-—बाण + इनि + ङीप्—नर्तकी, अभिनेत्री
- बाणिनी—स्त्री॰ —-—बाण + इनि + ङीप्—मत्त स्त्री, शृङ्गारप्रिय स्वेच्छाचारिणी स्त्री
- बादर—वि॰—-—बदर + अण्—बेर के वृक्ष से प्राप्त या संबद्ध
- बादर—वि॰—-—बदर + अण्—रूई का बना हुआ
- बादरः—पुं॰—-—-—रूई का पौधा, बाड़ी
- बादरम्—नपुं॰—-—-—बेर
- बादरम्—नपुं॰—-—-—रेशम
- बादरम्—नपुं॰—-—-—पानी
- बादरम्—नपुं॰—-—-—रूई का वस्त्र
- बादरम्—नपुं॰—-—-—दक्षिणावर्त शंख
- बादरा—स्त्री॰—-—-—कपास का पेड़
- बादरायणः—पुं॰—-—बदरी + फक्—वेदान्त दर्शन के शारीरक सूत्रों का प्रणेता बादरायण
- बादरायणसूत्रम्—नपुं॰—बादरायणः-सूत्रम्—-—वेदान्त दर्शन के सूत्र
- बादरायणसम्बन्धः—पुं॰—बादरायणः-सम्बन्धः—-—कल्पित या दूर का सम्बन्ध (आधुनिक रूप)
- बादरायणिः—पुं॰—-—बादरायण + इञ्—व्यास का पुत्र शुक
- बादरिक—वि॰—-—बदर + ठञ्—बेर एकत्र करने वाला
- बाध्—भ्वा॰ आ॰ <बाधते>, <बाधित>—-—-—तंग करना, उत्पीडित करना, सताना, अत्याचार करना, छेड़ना, कष्ट देना, दुःखी करना, परेशान करना, पीड़ा देना
- बाध्—भ्वा॰ आ॰ <बाधते>, <बाधित>—-—-—मुकाबला करना, विरोध करना, निष्फल करना, रोकना, रूकावट डालना, अवरोध करना, हस्तक्षेप करना
- बाध्—भ्वा॰ आ॰ <बाधते>, <बाधित>—-—-—आक्रमण करना, हमला करना, धावा बोलना
- बाध्—भ्वा॰ आ॰ <बाधते>, <बाधित>—-—-—अनुचित व्यवहार करना, अन्याय करना
- बाध्—भ्वा॰ आ॰ <बाधते>, <बाधित>—-—-—चोट पहुँचाना, क्षति पहुँचाना
- बाध्—भ्वा॰ आ॰ <बाधते>, <बाधित>—-—-—हांक कर दूर करना, पीछे ढकेलना, हटाना
- बाध्—भ्वा॰ आ॰ <बाधते>, <बाधित>—-—-—स्थगित करना, एक ओर रखना, रद्द करना, तोड़ना, मिटाना (नियम आदि)
- अभिबाध्—भ्वा॰ आ॰ —अभि-बाध्—-—चोट पहुँचाना, क्षति पहुँचाना
- अभिबाध्—भ्वा॰ आ॰ —अभि-बाध्—-—दुःख देना, तंग करना, सताना
- आबाध्—भ्वा॰ आ॰ —आ-बाध्—-—दुःख देना, सताना
- परिबाध्—भ्वा॰ आ॰ —परि-बाध्—-—कष्ट देना, पीडा पहुँचाना
- प्रबाध्—भ्वा॰ आ॰ —प्र-बाध्—-—कष्ट देना, सताना, तंग करना, चिढ़ाना, क्षति पहुँचाना
- प्रबाध्—भ्वा॰ आ॰ —प्र-बाध्—-—हांक कर दूर हटाना, मिटाना, पार करना
- संबाध्—भ्वा॰ आ॰ —सम्-बाध्—-—कष्ट देना, सताना
- बाधः—पुं॰—-—बाध् + घञ्—पीडा, यातना, कष्ट, सन्ताप
- बाधः—पुं॰—-—बाध् + घञ्—रुकावट, छेड़छाड़, परेशानी
- बाधः—पुं॰—-—बाध् + घञ्—हानि, क्षति, घाटा, चोट
- बाधः—पुं॰—-—बाध् + घञ्—भय, खतरा
- बाधः—पुं॰—-—बाध् + घञ्—मुकाबला, विरोध
- बाधः—पुं॰—-—बाध् + घञ्—आपत्ति
- बाधः—पुं॰—-—बाध् + घञ्—प्रत्याख्यान, निराकरण
- बाधः—पुं॰—-—बाध् + घञ्—स्थगन, रद्द करना
- बाधः—पुं॰—-—बाध् + घञ्—अनुमान प्रक्रिया में त्रुटि, हेत्वाभास के पाँच रूपों में से
- बाधा—स्त्री॰—-—-—पीडा, यातना, कष्ट, सन्ताप
- बाधा—स्त्री॰—-—-—रुकावट, छेड़छाड़, परेशानी
- बाधा—स्त्री॰—-—-—हानि, क्षति, घाटा, चोट
- बाधा—स्त्री॰—-—-—भय, खतरा
- बाधा—स्त्री॰—-—-—मुकाबला, विरोध
- बाधा—स्त्री॰—-—-—आपत्ति
- बाधा—स्त्री॰—-—-—प्रत्याख्यान, निराकरण
- बाधा—स्त्री॰—-—-—स्थगन, रद्द करना
- बाधा—स्त्री॰—-—-—अनुमान प्रक्रिया में त्रुटि, हेत्वाभास के पाँच रूपों में से
- बाधक—वि॰—-—बाध् + ण्वुल्—कष्ट देने वाला, सताने वाला, उत्पीडक
- बाधक—वि॰—-—बाध् + ण्वुल्—छेड़छाड़ करने वाला, परेशान करने वाला
- बाधक—वि॰—-—बाध् + ण्वुल्—उन्मूलन
- बाधक—वि॰—-—बाध् + ण्वुल्—बाधा डालने वाला
- बाधनम्—नपुं॰—-—बाध् + ल्युट्—तंग करना, उत्पीडन, परेशान करना, अशान्ति, पीडा
- बाधनम्—नपुं॰—-—बाध् + ल्युट्—मिटाना
- बाधनम्—नपुं॰—-—बाध् + ल्युट्—हटाना, स्थगन
- बाधनम्—नपुं॰—-—बाध् + ल्युट्—निराकरण, प्रत्याख्यान
- बाधना—स्त्री॰—-—-—पीडा, कष्ट, चिन्ता, अशान्ति
- बाधित—भू॰ क॰ कृ॰—-—बाध् + क्त—तंग किया हुआ, उत्पीडित, परेशान
- बाधित—भू॰ क॰ कृ॰—-—बाध् + क्त—पीडित, सन्तप्त, कष्टग्रस्त
- बाधित—भू॰ क॰ कृ॰—-—बाध् + क्त—विरुद्ध, अवरूद्ध
- बाधित—भू॰ क॰ कृ॰—-—बाध् + क्त—रोका हुआ, प्रगृहीत
- बाधित—भू॰ क॰ कृ॰—-—बाध् + क्त—एक ओर रक्खा गया, स्थगित
- बाधित—भू॰ क॰ कृ॰—-—बाध् + क्त—निराकृत
- बाधित—भू॰ क॰ कृ॰—-—बाध् + क्त—खण्डित, विवादग्रस्त, असंगत (फलतः व्यर्थ)
- बाधिर्यम्—नपुं॰—-—बधिर + ष्यञ्—बहरापन
- बान्धकिनेयः—पुं॰—-—बन्धकी + ढक्, इनङादेशः—दोगला, वर्णसंकर
- बान्धवः—पुं॰—-—बन्धु +अण्—रिश्तेदार, संबंधी
- बान्धवः—पुं॰—-—बन्धु +अण्—मातृपरक रिश्तेदार
- बान्धवः—पुं॰—-—बन्धु +अण्—मित्र
- बान्धवः—पुं॰—-—बन्धु +अण्—भाई
- बान्धवजनः—पुं॰—बान्धवः-जनः—-—रिश्तेदार, बन्धु-बांधव
- बान्धव्यम्—नपुं॰—-—बान्धब + ष्यञ्—सगोत्रता, रिश्तेदारी
- बाभ्रवी—स्त्री॰—-—बभ्रु + अण् + ङीप्—दुर्गा का विशेषण
- बार्बटीरः—पुं॰—-—-—आम का गूदा
- बार्बटीरः—पुं॰—-—-—जस्त
- बार्बटीरः—पुं॰—-—-—नया अंकुर
- बार्बटीरः—पुं॰—-—-—वेश्या का पुत्र
- बार्ह—वि॰—-—बर्ह् + अण्—मोर की पूँछ के चंदवों से बना हुआ
- बार्हद्रथ—वि॰—-—बृहद्रथ + अण्—राजा जरासंध का पितृपरक नाम
- बार्हद्रथिः—पुं॰—-—बृहद्रथ + इञ्—राजा जरासंध का पितृपरक नाम
- बार्हस्पत—वि॰—-—बृहस्पति + अण्—बृहस्पति से संबद्ध, बृहस्पति की सन्तान या बृहस्पति को प्रिय
- बार्हस्पत्य—वि॰—-—बृहस्पति + यक्—बृहस्पति से संबद्ध रखने वाला
- बार्हस्पत्यः—पुं॰—-—-—बृहस्पति का शिष्य
- बार्हस्पत्यः—पुं॰—-—-—भौतिकबाद के उग्ररूप के शिक्षक बृहस्पति का अनुयायी, भौतिकवादी
- बार्हस्पत्यम्—नपुं॰—-—-—पुण्यनक्षत्र
- बार्हिण—वि॰—-—बर्हिन् + अण्—मोर से संबद्ध या उत्पन्न
- बाल—वि॰—-—बल् + ण या बाल + अच्—बच्चा, शिशुवत्, अवयस्क, न्याना
- बाल—वि॰—-—बल् + ण या बाल + अच्—नया उगा हुआ वाल (रवि या अर्क)
- बाल—वि॰—-—बल् + ण या बाल + अच्—नूतन, वर्धमान (चन्द्रमा)
- बाल—वि॰—-—बल् + ण या बाल + अच्—बालिश
- बाल—वि॰—-—बल् + ण या बाल + अच्—अनजान, अबोध
- बालः—पुं॰—-—-—बालक, शिशु
- बालः—पुं॰—-—-—बालक, युवा, तरुण
- बालः—पुं॰—-—-—अवयस्क (१६ वर्ष से कम आयु का)
- बालः—पुं॰—-—-—बछेरा, अश्वक
- बालः—पुं॰—-—-—मूर्ख, भोंदू
- बालः—पुं॰—-—-—पूँछ
- बालः—पुं॰—-—-—बाल
- बालः—पुं॰—-—-—पाँच वर्ष का हाथी
- बालः—पुं॰—-—-—एक प्रकार का गन्धद्रव्य
- बालाग्रम्—नपुं॰—बालः-अग्रम्—-—बाल की नोक
- बालाध्यापकः—पुं॰—बालः-अध्यापकः—-—बच्चों का शिक्षक
- बालाभ्यासः—पुं॰—बालः-अभ्यासः—-—बाल्यावस्था में अध्ययन, (अध्ययन में ) शीघ्र लगाना
- बालारुण—वि॰—बालः-अरुण—-—प्रभातकालीन उषा की भाँति लाल
- बालारुणः—पुं॰—बालः-अरुणः—-—प्रभातकालीन उषा
- बालार्कः—पुं॰—बालः-अर्कः—-—नवोदित सूर्य
- बालावबोधः—पुं॰—बालः-अवबोधः—-—बच्चों की शिक्षा
- बालावस्थ—वि॰—बालः-अवस्थ—-—तरुण, नवयुवक
- बालावस्था—स्त्री॰—बालः-अवस्था—-—बचपन
- बालातपः—पुं॰—बालः-आतपः—-—प्रातःकालीन धूप
- बालेन्दुः—पुं॰—बालः-इन्दुः—-—नया बढ़ता हुआ चन्द्रमा
- बालेष्टः—पुं॰—बालः-इष्टः—-—बेरी, बेर का पेड़
- बालोपचारः—पुं॰—बालः-उपचारः—-—बच्चों की चिकित्सा
- बालोपवीतम्—नपुं॰—बालः-उपवीतम्—-—लंगोटी, रुमाली
- बालकदली—स्त्री॰—बालः-कदली—-—केले का नया पौधा
- बालकुन्दः—पुं॰—बालः-कुन्दः—-—एक प्रकार की नई चमेली
- बालकुन्दम्—नपुं॰—बालः-कुन्दम्—-—एक प्रकार की नई चमेली
- बालकुन्दम्—नपुं॰—बालः-कुन्दम्—-—चमेली की नई खिली हुई कली
- बालकृमिः—पुं॰—बालः-कृमिः—-—जूँ
- बालकृष्णः—पुं॰—बालः-कृष्णः—-—बालक के रूप में कृष्ण
- बालक्रीडनम्—नपुं॰—बालः-क्रीडनम्—-—बच्चे का ख़िलौना या खेल
- बालक्रीडनकम्—नपुं॰—बालः-क्रीडनकम्—-—बच्चे का ख़िलौना
- बालक्रीडनकः—पुं॰—बालः-क्रीडनकः—-—गेंद
- बालक्रीडनकः—पुं॰—बालः-क्रीडनकः—-—शिव का विशेषण
- बालक्रीडा—स्त्री॰—बालः-क्रीडा—-—बच्चों का खेल, बालकों या तरुणों का खेल
- बालखिल्यः—पुं॰—बालः-खिल्यः—-—ब्रह्मा के रोम से उत्पन्न, अंगूठे के समान आकारवली दिव्य मूर्तियाँ (जो गिनती में साठ हजार समझी जाती हैं )
- बालगर्भिणी—स्त्री॰—बालः-गर्भिणी—-—पहली बार गाभिन हुई गाय
- बालगोपालः—पुं॰—बालः-गोपालः—-—‘तरुण ग्वाला’ बालगोपाल के रूप में कृष्ण का विशेषण
- बालग्रहः—पुं॰—बालः-ग्रहः—-—बालकों को पीडा पहुँचाने वाला पिशाच (या उपग्रह)
- बालचन्द्रः—पुं॰—बालः-चन्द्रः—-—दूज का चाँद, बढ़ता हुआ चाँद
- बालचन्द्रमस्—पुं॰—बालः-चन्द्रमस्—-—दूज का चाँद, बढ़ता हुआ चाँद
- बालचरितम्—नपुं॰—बालः-चरितम्—-—तरुणों के खेल
- बालचरितम्—नपुं॰—बालः-चरितम्—-—बाललीला, बाल्यजीवन के कारनामें
- बालचर्यः—पुं॰—बालः-चर्यः—-—कार्तिकेय का नाम
- बालचर्या—स्त्री॰—बालः-चर्या—-—बच्चे का व्यवहार
- बालज—वि॰—बालः-ज—-—बालों से उत्पन्न
- बालतनयः—पुं॰—बालः-तनयः—-—खदिर का वृक्ष, खैर
- बालतन्त्रम्—नपुं॰—बालः-तन्त्रम्—-—धात्रीकर्म
- बालतृणम्—नपुं॰—बालः-तृणम्—-—नई दूब, हरी घास
- बालदलकः—पुं॰—बालः-दलकः—-—खैर
- बालधिः—पुं॰—बालः-धिः—-—बालों वाली पूँछ
- बालपाश्या—स्त्री॰—बालः-पाश्या—-—बालों की माँग में पहने जाने के योग्य आभूषण
- बालपाश्या—स्त्री॰—बालः-पाश्या—-—बालों की चोटी में धारण की जाने वाली मोतियों की लड़ियाँ
- बालपुष्टिका—स्त्री॰—बालः-पुष्टिका—-—एक प्रकार की चमेली
- बालपुष्टी—स्त्री॰—बालः-पुष्टी—-—एक प्रकार की चमेली
- बालबोधः—पुं॰—बालः-बोधः—-—बच्चों की शिक्षा
- बालबोधः—पुं॰—बालः-बोधः—-—अनुभवशून्य नये बालकों की शक्ति के अनुसार कोई कार्य
- बालभद्रकः—पुं॰—बालः-भद्रकः—-—एक प्रकार का विष
- बालभारः—पुं॰—बालः-भारः—-—बालो से भरी हुई लम्बी पूँछ
- बालभावः—पुं॰—बालः-भावः—-—बचपन, बाल्यावस्था
- बालभैषज्यम्—नपुं॰—बालः-भैषज्यम्—-—एक प्रकार का अंजन
- बालभोज्यः—पुं॰—बालः-भोज्यः—-—मटर
- बालमृगः—पुं॰—बालः-मृगः—-—मृग छौना
- बालयज्ञोपवीतकम्—नपुं॰—बालः-यज्ञोपवीतकम्—-—वक्षःस्थल के ऊपर से पहने जाने वाला जनेऊ
- बालराजम्—नपुं॰—बालः-राजम्—-—वैदूर्यमणि, नीलम्
- बालरोगः—पुं॰—बालः-रोगः—-—बच्चों का रोग
- बाललता—स्त्री॰—बालः-लता—-—नूतन बेल
- बाललीला—स्त्री॰—बालः-लीला—-—बच्चों के खेल, बालकों का मनोविनोद
- बालवत्सः—पुं॰—बालः-वत्सः—-—नन्हा बछड़ा
- बालवत्सः—पुं॰—बालः-वत्सः—-—कबूतर
- बालवायजम्—नपुं॰—बालः-वायजम्—-—वैदूर्यमणि, नीलम्
- बालवासस्—नपुं॰—बालः-वासस्—-—ऊनी वस्त्र
- बालवाह्यः—पुं॰—बालः-वाह्यः—-—जंगली बकरा
- बालविधवा—स्त्री॰—बालः-विधवा—-—बाल्यावस्था में ही जिसका पति मर गया हो
- बालव्यजनम्—नपुं॰—बालः-व्यजनम्—-—चंवर, चौरी (सुरागाय के बालों से बनी चौरी जो एक प्रकार का राजचिह्न है)
- बालसखिः—पुं॰—बालः-सखिः—-—बाल्यावस्था से बना मित्र, बचपन का दोस्त
- बालसन्ध्या—स्त्री॰—बालः-सन्ध्या—-—झुटपुटा
- बालसुहृद्—पुं॰—बालः-सुहृद्—-—बचपन का मित्र
- बालसूर्यः—पुं॰—बालः-सूर्यः—-—वैदूर्यमणि, नीलम्
- बालसूर्यकः—पुं॰—बालः-सूर्यकः—-—वैदूर्यमणि, नीलम्
- बालहत्या—स्त्री॰—बालः-हत्या—-—बच्चे की हत्या
- बालहस्तः—पुं॰—बालः-हस्तः—-—बालों वाली पूँछ
- बालक—वि॰—-—बाल + कन्—बच्चों जैसा, नन्हा, अवयस्क
- बालक—वि॰—-—बाल + कन्—अनजान
- बालकः—पुं॰—-—-—बच्चा, बाल
- बालकः—पुं॰—-—-—अवयस्क
- बालकः—पुं॰—-—बाल + कन्—अँगूठी
- बालकः—पुं॰—-—बाल + कन्—मूर्ख या बुद्धू
- बालकः—पुं॰—-—बाल + कन्—कड़ा, कंकण
- बालकः—पुं॰—-—बाल + कन्—हाथी या घोड़े की पूँछ
- बालकम्—नपुं॰—-—-—अँगूठी
- बालकहत्या—स्त्री॰—बालकः-हत्या—-—बच्चे की हत्या
- बाला—स्त्री॰—-—बाल + टाप्—लड़की, कन्या
- बाला—स्त्री॰—-—बाल + टाप्—सोलह वर्ष से कम आयु की युवती
- बाला—स्त्री॰—-—बाल + टाप्—तरुणी, युवती
- बाला—स्त्री॰—-—बाल + टाप्—चमेली का एक भेद
- बाला—स्त्री॰—-—बाल + टाप्—नारियल
- बाला—स्त्री॰—-—बाल + टाप्—घृतकुमारी का पौधा
- बाला—स्त्री॰—-—बाल + टाप्—इलायची
- बाला—स्त्री॰—-—बाल + टाप्—हल्दी
- बालाहत्या—स्त्री॰—बाला-हत्या—-—स्त्रीहत्या
- बालिः—पुं॰—-—बल् + इन्—एक प्रसिद्ध बानरराज का नाम
- बालिहन्—पुं॰—बालिः-हन्—-—राम का विशेषण
- बालिहन्तृ—पुं॰—बालिः-हन्तृ—-—राम का विशेषण
- बालिका—स्त्री॰—-—बाला + कन् + टाप्, इत्वम्—लड़की
- बालिका—स्त्री॰—-—-—कान की बाली की घुंडी
- बालिका—स्त्री॰—-—-—छोटी इलायची
- बालिका—स्त्री॰—-—-—रेत
- बालिका—स्त्री॰—-—-—पत्तों की सरसराहट
- बालिन्—पुं॰—-—बाल + इनि—एक बानर का नाम
- बालिनी—स्त्री॰—-—बालिन् + ङीप्—अश्विनी नक्षत्र
- बालिमन्—पुं॰—-—बाल + इमनिच्—बचपन, बाल्यावस्था, लड़कपन
- बालिश—वि॰—-—बांडि श्यति, बाडि + शो + ड डलयोरभेदः—बच्चों जैसा, अबोध, मूर्ख
- बालिश—वि॰—-—बांडि श्यति, बाडि + शो + ड डलयोरभेदः—बच्चा
- बालिश—वि॰—-—बांडि श्यति, बाडि + शो + ड डलयोरभेदः—मूर्ख, अनजान
- बालिश—वि॰—-—बांडि श्यति, बाडि + शो + ड डलयोरभेदः—लापरवाह
- बालिशः—पुं॰—-—-—मूर्ख, बुद्धू
- बालिशः—पुं॰—-—-—बच्चा, बालक
- बालिशम्—नपुं॰—-—-—तकिया
- बालिश्यम्—नपुं॰—-—बालिश + ष्यञ्—लड़कपन, बचपन
- बालिश्यम्—नपुं॰—-—बालिश + ष्यञ्—बचकानापन, मूर्खता, बेवक़ूफी
- बाली—स्त्री॰—-—बालि + ङीष्—एक प्रकार की कान की वाली
- बालीशः—पुं॰—-—-—मूत्रावरोध
- बालुः—पुं॰—-—बल + उण्—एक प्रकार का गंध द्रव्य
- बालुकम्—नपुं॰—-—बालु + कन्—एक प्रकार का गंध द्रव्य
- बालुका—स्त्री॰—-—-—रेत, बजरी,चुर्ण,कपूर
- बालुकी—स्त्री॰—-—बल + उकञ् + ङीप्—एक प्रकार की ककड़ी
- बालुङ्की—स्त्री॰—-—बल + उकञ् + ङीप्—एक प्रकार की ककड़ी
- बालुङ्गी—स्त्री॰—-—बल + उकञ् + ङीप्—एक प्रकार की ककड़ी
- बालूकः—पुं॰—-—बल + ऊकञ् —एक प्रकार का बिष
- बालेय—वि॰—-—बलि + ढञ्—बलि देने के लिए उपयुक्त
- बालेय—वि॰—-—-—मृदु, मुलायम
- बालेय—वि॰—-—-—बलि देने के लिए उपयुक्त
- बालेयः—पुं॰—-—-—गधा
- बाल्यम्—नपुं॰—-—बाल + ष्यञ्—लड़कपन, बचपन
- बाल्यम्—नपुं॰—-—बाल + ष्यञ्—(चन्द्रमा के) बढ़ने की अवधि
- बाल्यम्—नपुं॰—-—बाल + ष्यञ्—समझ की अपरिपक्वता, मूर्खता, अबोधता
- बाल्हकाः—पुं॰—-—बल्हिदेशे भवाः- बल्हि + वुञ्—बल्हि के अधिवासी
- बाल्हिकाः—पुं॰—-—बल्हिदेशे भवाः- बल्हि + ठञ्—बल्हि के अधिवासी
- बाल्हीकाः—पुं॰—-—बल्हिदेशे भवाः- बल्हि + ठञ, पृषो॰ पक्षे दीर्घत्वम्—बल्हि के अधिवासी
- बाल्हकः—पुं॰—-—-—बाल्हीकों का राजा
- बाल्हकः—पुं॰—-—-—वलख का घोड़ा
- बाल्हकम्—नपुं॰—-—-—केसर, ज़ाफरान
- बाल्हकम्—नपुं॰—-—-—हींग
- बाल्हिः—पुं॰—-—-—एक देश का नाम
- बाल्हिज—वि॰—बाल्हिः-ज—-—वलख देश में पला, बल्ख देश की नसल
- बाष्पः—पुं॰—-—बाध् - पृषो॰ सत्वं पत्वं वा—आँसू
- बाष्पः—पुं॰—-—बाध् - पृषो॰ सत्वं पत्वं वा—भाप, प्रवाष्प, कुहरा
- बाष्पः—पुं॰—-—बाध् - पृषो॰ सत्वं पत्वं वा—लोहा
- बाष्पम्—नपुं॰—-—-—आँसू
- बाष्पम्—नपुं॰—-—-—भाप, प्रवाष्प, कुहरा
- बाष्पम्—नपुं॰—-—-—लोहा
- बाष्पाम्बु—नपुं॰—बाष्पः-अम्बु—-—आँसू
- बाष्पोद्भवः—पुं॰—बाष्पः-उद्भवः—-—आँसुओं का आना
- बाष्पकण्ठ—वि॰—बाष्पः-कण्ठ—-—जिसका गला भर आया हो, गद्गद् कंठ वाला
- बाष्पदुर्दिनम्—नपुं॰—बाष्पः-दुर्दिनम्—-—आँसुओं की बाढ़
- बाष्पपूरः—पुं॰—बाष्पः-पूरः—-—आँसुओं का फूट पड़ना, आँसुओं का बाढ़
- बाष्पमोक्षः—पुं॰—बाष्पः-मोक्षः—-—आँसू वहाना
- बाष्पमोचनम्—नपुं॰—बाष्पः-मोचनम्—-—आँसू वहाना
- बाष्पबिन्दुः—पुं॰—बाष्पः-बिन्दुः—-—आँसू की बूँद
- बाष्पसन्दिग्ध—वि॰—बाष्पः-सन्दिग्ध—-—जों आँसुओं के कारण अस्पष्ट हो
- बाष्पाय—ना॰ धा॰ आ॰ <बाष्पायते>—-—-—आँसू बहाना, रोना
- बास्त—वि॰—-—बस्त + अण्—बकरे से उत्पन्न या प्राप्त
- बाहः—पुं॰—-—बाहुः पृषो॰ वह् + णिच् + अच्, बवयोरभेदः—भुजा
- बाहः—पुं॰—-—बाहुः पृषो॰ वह् + णिच् + अच्, बवयोरभेदः—घोड़ा
- बाहा—पुं॰—-—-—भुजा
- बाहाबाहवि —अव्य॰—बाहा-बाहवि—-—हस्ताहस्ति, भुजा से भुजा
- बाहीकाः—पुं॰,ब॰ व॰—-—वह् + ईकण् ववयोरभेदः—पंजाब के अधिवासी
- बाहीकः—पुं॰—-—-—पंजाबी
- बाहीकः—पुं॰—-—-—बैल
- बाहुः—पुं॰—-—बाध् + कु, धस्य हः—भुजा
- बाहुः—पुं॰—-—बाध् + कु, धस्य हः—कलई
- बाहुः—पुं॰—-—बाध् + कु, धस्य हः—पशु का अगला पैर
- बाहुः—पुं॰—-—बाध् + कु, धस्य हः—द्वार की चौखट का बाज़ू
- बाहुः—पुं॰—-—बाध् + कु, धस्य हः—समकोण त्रिभुज का आधार
- बाहू—पुं॰,द्वि॰ व॰—-—-—आर्द्रा नक्षत्र
- बाहूत्क्षेपम्—अव्य॰—बाहुः-उत्क्षेपम्—-—भुजाओं को ऊपर उठा कर
- बाहुकुण्ठ—वि॰—बाहुः-कुण्ठ—-—लुंजा, जिसका हाथ विकृत हो गया हो
- बाहुकुब्ज—वि॰—बाहुः-कुब्ज—-—लुंजा, जिसका हाथ विकृत हो गया हो
- बाहुकुन्थः—पुं॰—बाहुः-कुन्थः—-—(पक्षी का) बाज़ू, डैना
- बाहुचापः—पुं॰—बाहुः-चापः—-—पौरुष की माप, अर्थात् दोनों हाथों को फैलाकर मापी हुई दूरी
- बाहुजः—पुं॰—बाहुः-जः—-—क्षत्रिय वर्ण का व्यक्ति
- बाहुजः—पुं॰—बाहुः-जः—-—तोता
- बाहुज्या—स्त्री॰—बाहुः-ज्या—-—चाप के सिरों को मिलाने वाली सीधी रेखा
- बाहुत्रः—पुं॰—बाहुः-त्रः—-—भुजाओं की रक्षा करने वाला कवचविशेष
- बाहुत्रम्—नपुं॰—बाहुः-त्रम्—-—भुजाओं की रक्षा करने वाला कवचविशेष
- बाहुत्राणम्—नपुं॰—बाहुः-त्राणम्—-—भुजाओं की रक्षा करने वाला कवचविशेष
- बाहुदण्डः—पुं॰—बाहुः-दण्डः—-—डंडे की भांति लंबी भुजा
- बाहुदण्डः—पुं॰—बाहुः-दण्डः—-—भुजा या मुक्के से दण्डित करना
- बाहुपाशः—पुं॰—बाहुः-पाशः—-—मल्लयुद्ध में एक घेरा बनाना
- बाहुप्रहरणम्—नपुं॰—बाहुः-प्रहरणम्—-—घूँसों की लड़ाई, मल्लयुद्ध
- बाहुबलम्—नपुं॰—बाहुः-बलम्—-—भुजा की ताक़त मांसपेशियों की शक्ति
- बाहुभूषणम्—नपुं॰—बाहुः-भूषणम्—-—भुजा में पहना जाने वाला आभूषण, बाजूबंद, अंगद
- बाहुभूषा—स्त्री॰—बाहुः-भूषा—-—भुजा में पहना जाने वाला आभूषण, बाजूबंद, अंगद
- बाहुभेदिन्—पुं॰—बाहुः-भेदिन्—-—विष्णु का विशेषण
- बाहुमूलम्—नपुं॰—बाहुः-मूलम्—-—कांख
- बाहुमूलम्—नपुं॰—बाहुः-मूलम्—-—कंधे और बाहु का जोड़
- बाहुयुद्धम्—नपुं॰—बाहुः-युद्धम्—-—हाथापाई, मल्लयुद्धम् घूँसों की लड़ाई
- बाहुयोधः—पुं॰—बाहुः-योधः—-—मुष्टि योद्धा, घूँसेबाज़
- बाहुयोधिन्—पुं॰—बाहुः-योधिन्—-—मुष्टि योद्धा, घूँसेबाज़
- बाहुलता—स्त्री॰—बाहुः-लता—-—भुजा की भांति बेल
- बाह्वन्तरम्—नपुं॰—बाहुः-अन्तरम्—-—स्तन, वक्षःस्थल
- बाहुवीर्यम्—नपुं॰—बाहुः-वीर्यम्—-—भुजाओं की शक्ति
- बाहुव्यायाम—वि॰—बाहुः-व्यायाम—-—कसरत
- बाहुशालिन्—पुं॰—बाहुः-शालिन्—-—शिव का विशेषण
- बाहुशालिन्—पुं॰—बाहुः-शालिन्—-—भीम का विशेषण
- बाहुशिखरम्—नपुं॰—बाहुः-शिखरम्—-—भुजा का ऊपरी भाग, कंधा
- बाहुसंभवः—पुं॰—बाहुः-संभवः—-—क्षत्रिय जाति का पुरुष
- बाहुसहस्रभृत्—पुं॰—बाहुः-सहस्रभृत्—-—कार्तवीर्य राजा का विशेषण
- बाहुकः—पुं॰—-—बाहु + कै + क—बन्दर
- बाहुकः—पुं॰—-—बाहु + कै + क—कर्कोटक के द्वारा बौना बना दिये जाने पर नल का बदला हुआ नाम
- बाहुगुण्यम्—नपुं॰—-—बहुगुण + ष्यञ्—अनेक सद्गुण और श्रेष्ठताओं का स्वामित्व
- बाहुदन्तकम्—नपुं॰—-—बहुदन्तक + अण्—नैतिक कर्तव्यों का स्मृति के रूप में निरूपण जिसके रचयति इन्द्र कहे जाते हैं
- बाहुदन्तेयः—पुं॰—-—बहुदन्त + ढ—इन्द्र का विशेषण
- बाहुदा—पुं॰—-—बाहु + दा + क + टाप्—एक नदी का नाम
- बाहुभाष्यम्—नपुं॰—-—बहुभाष् + ष्यञ्—मुखरता, वाचालता
- बाहुरूप्यम्—नपुं॰—-—बहुरूप + ष्यञ्—बहुरूपता, विविधता
- बाहुलः—पुं॰—-—बहुल + अण्—अग्नि
- बाहुलः—पुं॰—-—बहुल + अण्—कार्तिक का महीना
- बाहुलम्—नपुं॰—-—-—बहुरूपता
- बाहुलम्—नपुं॰—-—-—भुजाओं की रक्षा के लिए कवच विशेष
- बाहुलग्रीवः—पुं॰—बाहुलम्-ग्रीवः—-—मोर
- बाहुलकम्—नपुं॰—-—बाहुल + कन्—अनेकरूपता
- बाहुलकम्—नपुं॰—-—बाहुल + कन्—व्याकरण में प्रयुक्त विधिविशेष
- बाहुलेयः—पुं॰—-—बहुला + ढक्—कार्तिकेय जा विशेषण
- बहुल्यम्—नपुं॰—-—बहुला + ष्यञ्—बहुतायत, प्राचुर्य, यथेष्टता
- बहुल्यम्—नपुं॰—-—बहुला + ष्यञ्—बहुरूपता, अनेकता, विविधता
- बहुल्यम्—नपुं॰—-—बहुला + ष्यञ्—बस्तुओं का सामान्य क्रम या प्रचलित व्यवस्था
- बाहूबाहवि—अव्य॰—-—बाहुभिर्बाहुभिः-प्रहृअत्येदं प्रवृत्तं युद्धम्—भुजा से भुजा मिला कर, हस्ताहस्ति, धमासान युद्ध
- बाह्य—वि॰ —-—बहिर्भवः-ष्यञ्, टिलोपः—बाहर का, बाहर की ओर का, बाहरी, बहिर्देश, बाहर स्थित
- बाह्यनामन्—नपुं॰—-—-—बाहरी नाम, अर्थात् पत्र की पीठ् पर लिखा हुआ पता या शिरोनाम, सरनामा
- बाह्य—वि॰—-—-—विदेशी, अपरिचित
- बाह्य—वि॰—-—-—बहिष्कृत, कटघरे से बाहर
- बाह्य—वि॰—-—-—समाज से बहिष्कृत, जातिबहिष्कृत
- बाह्यः—पुं॰—-—-—अपरिचित
- बाह्यम्—अव्य॰—-—-—बाहर, बाहर की ओर, बाहरी ढंस से
- बाह्येन—अव्य॰—-—-—बाहर, बाहर की ओर, बाहरी ढंस से
- बाह्ये —अव्य॰—-—-—बाहर, बाहर की ओर, बाहरी ढंस से
- बाह्वृच्यम्—नपुं॰—-—बह् वृच + ष्यञ्—ऋग्वेद का परम्परागत अध्यापन
- बिट्—भ्वा॰ पर॰ <बेटति>—-—-—शपथ लेना
- बिट्—भ्वा॰ पर॰ <बेटति>—-—-—अभिशाप देना
- बिट्—भ्वा॰ पर॰ <बेटति>—-—-—चिल्लाना, जोर से बोलना
- बिटकः—पुं॰—-—पिटक, पृषो॰—फोड़ा, फुंसी
- बिटकम्—नपुं॰—-—पिटक, पृषो॰—फोड़ा, फुंसी
- बिटका—स्त्री॰—-—पिटक, पृषो॰—फोड़ा, फुंसी
- बिडम्—नपुं॰—-—बिड् + क—एक प्रकार का नमक
- बिडालः—पुं॰—-—बिड् + कालन्—बिस्ता, बिलाब
- बिडालः—पुं॰—-—बिड् + कालन्—आँख का डेला
- बिडालपदः—पुं॰—बिडालः-पदः—-—१६ माशे के तोल का बट्टा
- बिडालपदकम्—नपुं॰—बिडालः-पदकम्—-—१६ माशे के तोल का बट्टा
- बिडालकः—पुं॰—-—बिडाल + कन्—बिलाव
- बिडालकः—पुं॰—-—बिडाल + कन्—आँख के बाहरी भाग पर मल्हम लगाना
- बिडालकम्—नपुं॰—-—-—पीली मल्हम
- बिडौजस्—पुं॰—-—वेवेष्टि विट् व्यापकमोजो यस्य विडौजाः, पृषो॰ वृद्धिः—इन्द्र का विशेषण
- बिद् —भ्वा॰ पर॰ —-—-—खण्ड खण्ड करना
- बिद् —भ्वा॰ पर॰—-—-—बाँटना
- बिन्द्—भ्वा॰ पर॰ <बिंदति>—-—-—खण्ड खण्ड करना
- बिन्द्—भ्वा॰ पर॰ <बिंदति>—-—-—बाँटना
- बिदलम्—नपुं॰—-— विघट्टितानि दलानि यस्य - वि + दल् + क—टुकड़े टुकड़े हुए, आरपार चीरा हुआ
- बिदलम्—नपुं॰—-—-—खुला हुआ, (फूल आदि) खिला हुआ
- बिन्दुः—पुं॰—-—बिन्द् + उ—बूंद, बिंदी
- बिन्दुः—पुं॰—-—बिन्द् + उ—बिंदु, बिंदी
- बिन्दुः—पुं॰—-—बिन्द् + उ—हाथी के शरीर पर रंगीन बिंद या चिह्न
- बिन्दुः—पुं॰—-—बिन्द् + उ—शून्य, सिफर
- बिन्दुचित्रकः—पुं॰—बिन्दुः-चित्रकः—-—चित्तीदार हरिण
- बिन्दुजालम्—नपुं॰—बिन्दुः-जालम्—-—बूंदो का समूह
- बिन्दुजालम्—नपुं॰—बिन्दुः-जालम्—-—हाथी के सूंड और शरीर पर बनाये गये चित्रण, चित्तियाँ
- बिन्दुजालकम्—नपुं॰—बिन्दुः-जालकम्—-—बूंदो का समूह
- बिन्दुजालकम्—नपुं॰—बिन्दुः-जालकम्—-—हाथी के सूंड और शरीर पर बनाये गये चित्रण, चित्तियाँ
- बिन्दुतन्त्रः—पुं॰—बिन्दुः-तन्त्रः—-—पासा
- बिन्दुतन्त्रः—पुं॰—बिन्दुः-तन्त्रः—-—शतरंज की बिसात
- बिन्दुदेवः—पुं॰—बिन्दुः-देवः—-—शिव का विशेषण
- बिन्दुपत्रः—पुं॰—बिन्दुः-पत्रः—-—एक प्रकार का भोजपत्र
- बिन्दुफलम्—नपुं॰—बिन्दुः-फलम्—-—मोती
- बिन्दुरेखकः—पुं॰—बिन्दुः-रेखकः—-—अनुस्वार
- बिन्दुरेखकः—पुं॰—बिन्दुः-रेखकः—-—एक प्रकार का पक्षी
- बिन्दुरेखा—स्त्री॰—बिन्दुः-रेखा—-—विन्दुओं की पंक्ति
- बिन्दुवासरः—पुं॰—बिन्दुः-वासरः—-—गर्भाधान का दिन
- बिब्बोकः—पुं॰—-—-—अभिमान के कारण अपने प्रियतम पदार्थ की ओर उदासीनता का प्रदर्शन
- बिब्बोकः—पुं॰—-—-—घमंड के कारण उदासीनता
- बिब्बोकः—पुं॰—-—-—केलिपरक या प्रीतिविषयक संकेत
- बिभित्सा—स्त्री॰—-—भिद् + सन् + अ + टाप्—भेदने की इच्छा, बींधने की या छेद करने की इच्छा
- बिभित्सु—वि॰—-—भिद् + सन् + उ—छेदने या बींधने की इच्छा
- बिभीषणः—पुं॰—-—भी + सन् + ल्युट्—एक राक्षस का नाम, रावण का भाई
- बिभ्रक्षुः—पुं॰—-—भ्रस्ज् + सन् + उ—आग
- बिभ्रज्जिसुः—पुं॰—-—भ्रस्ज् + सन् + उ, विकल्पेन इट्—आग
- बिम्बः —पुं॰—-—बी + वन् नि॰ साधुः—सूर्यमण्डल या चन्द्रमंडल
- बिम्बम्—नपुं॰—-—बी + वन् नि॰ साधुः—सूर्यमण्डल या चन्द्रमंडल
- बिम्बः—पुं॰—-—बी + वन् नि॰ साधुः—सूर्यमण्डल या चन्द्रमण्डल
- बिम्बः—पुं॰—-—-—कोई गोल या मंडलाकार सतह, मंडल या गोला
- बिम्बः—पुं॰—-—बी + वन् नि॰ साधुः—प्रतिमा, छाया, प्रतिविंब
- बिम्बः—पुं॰—-—बी + वन् नि॰ साधुः—शीशा, दर्पण
- बिम्बः—पुं॰—-—बी + वन् नि॰ साधुः—कलश
- बिम्बः—पुं॰—-—बी + वन् नि॰ साधुः—उपमित पदार्थ
- बिम्बम्—नपुं॰—-—-—सूर्यमण्डल या चन्द्रमण्डल
- बिम्बम्—नपुं॰—-—-—कोई गोल या मंडलाकार सतह, मंडल या गोला
- बिम्बम्—नपुं॰—-—-—प्रतिमा, छाया, प्रतिविंब
- बिम्बम्—नपुं॰—-—-—शीशा, दर्पण
- बिम्बम्—नपुं॰—-—-—कलश
- बिम्बम्—नपुं॰—-—-—उपमित पदार्थ
- बिम्बम्—नपुं॰—-—-—एक वृक्ष का फल
- बिम्बोष्ठ—वि॰—बिम्बः-ओष्ठ—-—बिंब फल के समान लाल-लाल सुंदर होठों वाला
- बिम्बोष्ठः—पुं॰—बिम्बः-ओष्ठः—-—बिंब फल की भांति ओष्ठ
- बिम्बकम्—नपुं॰—-—बिम्ब + कन्—सूर्यमंडल या चन्द्रमण्डल
- बिम्बकम्—नपुं॰—-—बिम्ब + कन्—बिंबफल
- बिम्बिका—स्त्री॰—-—बिम्ब + कन्, इत्वम्—सूर्यमंडल या चन्द्रमण्डल
- बिम्बिका—स्त्री॰—-—बिम्ब + कन्, इत्वम्—बिंब का पौधा
- बिम्बित—वि॰—-—बिम्ब + इतच्—प्रतिबिंबित, प्रति छाया पड़ी हुई
- बिम्बित—वि॰—-—बिम्ब + इतच्—चित्रित
- बिल्—तु॰ पर॰ <बिलति>, चुरा॰ उभ॰ <बेलयति>, <बेलयते>—-—-—खंड खंड करना फाड़ना, तोड़ना, बांटना, टुकड़े-टुकड़े करना
- बिलम्—नपुं॰—-—बिल् + क—छिद्र, विवर, खूड (हल चलाने से बनी गहरी सीधी रेखा)
- बिलम्—नपुं॰—-—बिल् + क—रिक्तस्थान, गर्त, छिद्र
- बिलम्—नपुं॰—-—बिल् + क—द्वारक, छिद्र, सूराख
- बिलम्—नपुं॰—-—बिल् + क—कंदरा, कोटरा
- बिलः—पुं॰—-—-—इन्द्र के घोड़े ‘उच्चैः श्रवा’ का नामान्तर
- बिलौकस्—पुं॰—बिलम्-ओकस्—-—बिल में रहने वाला जानवर
- बिलकारिन्—पुं॰—बिलम्-कारिन्—-—चूहा
- बिलयोनि—वि॰—बिलम्-योनि—-—बिलजन्तुओं की नस्ल के जानवर
- बिलवासः—पुं॰—बिलम्-वासः—-—गंधमार्जार
- बिलवासिन्—पुं॰—बिलम्-वासिन्—-—साँप
- बिलङ्गमः—पुं॰—-—बिल + गम् + खच्, मुम्—सर्प, साँप
- बिलेशयः—पुं॰—-—बिले शेते-शी + अच्, अलुक् स॰—साँप
- बिलेशयः—पुं॰—-—बिले शेते-शी + अच्, अलुक् स॰—मूसा, चूहा
- बिलेशयः—पुं॰—-—बिले शेते-शी + अच्, अलुक् स॰—मांद में रहने वाला कोई भी जन्तु
- बिल्लः—पुं॰—-—बिल + ला + क, नि॰ अकार लोपः—गर्त
- बिल्लः—पुं॰—-—-—विशेषतः थाँवला, आलवाल
- बिल्लसूः—स्त्री॰—बिल्लः-सूः—-—दस बच्चों की माँ
- बिल्वः—पुं॰—-—बिल् + वन्—बेल नामक वृक्ष
- बिल्वम्—नपुं॰—-—-—बेल का फल
- बिल्वम्—नपुं॰—-—-—एक विशेष तोल, पल भर
- बिल्वण्दडः—पुं॰—बिल्वः-दण्डः—-—शिव का विशेषण
- बिल्वपेशिका—स्त्री॰—बिल्वः-पेशिका—-—बेल का छिल्का (जो लकड़ी के समान कड़ा होता है)
- बिल्वपेशी—स्त्री॰—बिल्वः-पेशी—-—बेल का छिल्का (जो लकड़ी के समान कड़ा होता है)
- बिल्ववनम्—नपुं॰—बिल्वः-वनम्—-—बेलों का जंगल
- बिल्वकीया—स्त्री॰—-—बिल्व + छ, कुक्—वह स्थान जहाँ बेल के पौधे लगाये गए हों
- बिस्—दिवा॰ पर॰ <बिस्यति>—-—-—जाना, हिलना-डुलना
- बिस्—दिवा॰ पर॰ <बिस्यति>—-—-—उकसाना, प्रेरित करना, भड़काना
- बिस्—दिवा॰ पर॰ <बिस्यति>—-—-—फेंकना, डाल देना
- बिस्—दिवा॰ पर॰ <बिस्यति>—-—-—टुकड़े टुकड़े करना
- बिसम्—नपुं॰—-—बिस् + क—कमल तंतु
- बिसम्—नपुं॰—-—बिस् + क—कमल की तन्तु वाली डंडी
- बिसकण्ठिका—पुं॰—बिसम्-कण्ठिका—-—छोटा सारस
- बिसकण्ठिन्—पुं॰—बिसम्-कण्ठिन्—-—छोटा सारस
- बिसकुसुमम्—नपुं॰—बिसम्-कुसुमम्—-—कमल का फूल
- बिसपुष्पम्—नपुं॰—बिसम्-पुष्पम्—-—कमल का फूल
- बिसप्रसूनम्—नपुं॰—बिसम्-प्रसूनम्—-—कमल का फूल
- बिसखादिका—स्त्री॰—बिसम्-खादिका—-—कमल तन्तुओं को खाने वाली
- बिसग्रन्थिः—पुं॰—बिसम्-ग्रन्थिः—-—कमलडंडी के ऊपर की गांठ
- बिसच्छेदः—पुं॰—बिसम्-छेदः—-—कमल की तंतुमय डंडी का टुकड़ा
- बिसच्छेदजम्—नपुं॰—बिसम्-छेदजम्—-—कमल का फूल, कमल
- बिसतन्तुः—पुं॰—बिसम्-तन्तुः—-—कमल का रेशा
- बिसनाभिः—स्त्री॰—बिसम्-नाभिः—-—कमल का पौधा, पद्मिनी
- बिसनासिका—स्त्री॰—बिसम्-नासिका—-—एक प्रकार का सारस
- बिसलम्—नपुं॰—-—बिस + ला + क —नया अंकुर, अंखुवा, कली
- बिसिनी—स्त्री॰—-—बिस + इनि—कमलिनी, कमल का पौधा
- बिसिनी—स्त्री॰—-—बिस + इनि—कमल तंतु
- बिसिनी—स्त्री॰—-—बिस + इनि—कमलों का समूह
- बिसिल—वि॰—-—बिस + इलच्—बिस से संबद्ध या प्राप्त
- बिस्तः—पुं॰—-—बिस् + क्त—(८० रत्तियों के बराबर) सोने का तोल
- बिह्लणः—पुं॰—-—-—विक्रमांकदेवचरित नामक काव्य का रचयिता
- बीजम्—नपुं॰—-—वि + जन् + ड उपसर्गस्य दीर्घः बवयोरभेदः—बीज, बीज का दाना, अनाज
- बीजम्—नपुं॰—-—वि + जन् + ड उपसर्गस्य दीर्घः बवयोरभेदः—जीवाणु, तत्त्व
- बीजम्—नपुं॰—-—वि + जन् + ड उपसर्गस्य दीर्घः बवयोरभेदः—मूल, स्रोत, कारण
- बीजम्—नपुं॰—-—वि + जन् + ड उपसर्गस्य दीर्घः बवयोरभेदः—वीर्य, शुक्र
- बीजम्—नपुं॰—-—वि + जन् + ड उपसर्गस्य दीर्घः बवयोरभेदः—किसी नाटक की कथावस्तु का बीज, कहानी आदि
- बीजम्—नपुं॰—-—वि + जन् + ड उपसर्गस्य दीर्घः बवयोरभेदः—गूदा
- बीजम्—नपुं॰—-—वि + जन् + ड उपसर्गस्य दीर्घः बवयोरभेदः—बीजगणित
- बीजम्—नपुं॰—-—वि + जन् + ड उपसर्गस्य दीर्घः बवयोरभेदः—बीजमंत्र
- बीजः—पुं॰—-—-—नींबू का पेड़
- बीजाकृ——-—-—बीज बोना
- बीजाकृ——-—-—बीज बोने के बाद हल चलाना
- बीजाक्षरम्—नपुं॰—बीजम्-अक्षरम्—-—मन्त्र का प्रथम अक्षर
- बीजाङ्कुरः—पुं॰—बीजम्-अङ्कुरः—-—बीज का अंकुर
- बीजन्यायः—पुं॰—बीजम्-न्यायः—-—बीज और अंकुर का न्याय
- बीजाध्यक्षः—पुं॰—बीजम्-अध्यक्षः—-—शिव का विशेषण
- बीजाश्वः—पुं॰—बीजम्-अश्वः—-—जननाश्व, सांड़ घोड़ा
- बीजाढ्यः—पुं॰—बीजम्-आढ्यः—-—बिजौरा नीबू, चकोतरा
- बीजपूरः—पुं॰—बीजम्-पूरः—-—बिजौरा नीबू, चकोतरा
- बीजपूरकः—पुं॰—बीजम्-पूरकः—-—बिजौरा नीबू, चकोतरा
- बीजपूरम्—नपुं॰—बीजम्-पूरम्—-—नींबू का फल
- बीजपूरकम्—नपुं॰—बीजम्-पूरकम्—-—नींबू का फल
- बीजोत्कृष्टम्—नपुं॰—बीजम्-उत्कृष्टम्—-—अच्छा बीज
- बीजोदकम्—नपुं॰—बीजम्-उदकम्—-—ओला
- बीजकर्तृ—पुं॰—बीजम्-कर्तृ—-—शिव का विशेषण
- बीजकोशः—पुं॰—बीजम्-कोशः—-—बीज पात्र
- बीजकोशः—पुं॰—बीजम्-कोषः—-—कमल का बीजपात्र
- बीजकोषः—पुं॰—बीजम्-कोषः—-—बीज पात्र
- बीजकोषः—पुं॰—बीजम्-कोषः—-—कमल का बीजपात्र
- बीजगणितम्—नपुं॰—बीजम्-गणितम्—-—बीजगणित का विज्ञान
- बीजगुप्तिः—स्त्री॰—बीजम्-गुप्तिः—-—बीजकोश, फली, सेम, छीमी
- बीजदर्शकः—पुं॰—बीजम्-दर्शकः—-—रंगशाला का व्यवस्थापक
- बीजधान्यम्—नपुं॰—बीजम्-धान्यम्—-—धनिया
- बीजन्यासः—पुं॰—बीजम्-न्यासः—-—नाटक की कथावस्तु के स्रोत को बतलाना
- बीजपुरुषः—पुं॰—बीजम्-पुरुषः—-—कुल प्रवर्तक
- बीजफलकः—पुं॰—बीजम्-फलकः—-—बीजपूर का पेड़
- बीजमन्त्रः—पुं॰—बीजम्-मन्त्रः—-—रहस्यमय अक्षर जिससे मंत्र आरम्भ होता है
- बीजमातृका—स्त्री॰—बीजम्-मातृका—-—कमल का बीजकोष
- बीजरुहः—पुं॰—बीजम्-रुहः—-—दाना, अनाज
- बीजवापः—पुं॰—बीजम्-वापः—-—बीज बोने वाला
- बीजवापः—पुं॰—बीजम्-वापः—-—बीज का बोना
- बीजवाहनः—पुं॰—बीजम्-वाहनः—-—शिव का विशेषण
- बीजसूः—स्त्री॰—बीजम्-सूः—-—पृथ्वी
- बीजसेक्तृ—पुं॰—बीजम्-सेक्तृ—-—प्रस्रष्टा, प्रजापति
- बीजकः—पुं॰—-—बीज + कन्—सामान्य नींबू
- बीजकः—पुं॰—-—बीज + कन्—नींबू या चकोतरा
- बीजकः—पुं॰—-—बीज + कन्—जन्म के समय बच्चे को भुजाओं की स्थिति
- बीजकम्—नपुं॰—-—-—बीज
- बीजल—वि॰—-—बीज + लच्—बीजों से युक्त, बीजों वाला
- बीजिक—वि॰—-—बीज + ठन्—बीजों से भरा हुआ, जिसमें बहुत बीज हों
- बीजिन्—वि॰—-—बीज + इनि—बीजों से युक्त, बीज रखने वाला
- बीजिन्—पुं॰—-—-—वास्तविक पिता या प्रजनक (बीज का बोने वाला)
- बीजिन्—पुं॰—-—-—पिता
- बीजिन्—पुं॰—-—-—सूर्य
- बीज्य—वि॰—-—बीज + यत्—बीज से उत्पन्न
- बीज्य—वि॰—-—बीज + यत्—सम्मानित कुल का , सत्कुलोद्भव
- बीभत्स—वि॰—-—बध् + सन् + घञ्—घृणोत्पादक, घिनौना, दुर्गंधयुक्त, भीषण, जुगुप्साजनक
- बीभत्स—वि॰—-—-—ईर्ष्यालु, प्रद्वेषी, विद्वेषपूर्ण
- बीभत्स—वि॰—-—-—बर्बर, क्रूर, खूंख्वार
- बीभत्स—वि॰—-—-—मन से विरक्त
- बीभत्सः—पुं॰—-—-—जुगुप्सा, घिनौनापन, गर्हणा
- बीभत्सः—पुं॰—-—-—बीभत्सरस, काव्य के आठ या नौ रसों में से एक
- बीभत्सः—पुं॰—-—-—अर्जुन का नामान्तर
- बीभत्सुः—पुं॰—-—बध् + सन् + उ—अर्जुन का विशेषण
- बुक्—अव्य॰—-—बुक्क् + क्विप् पृषो॰ उपधालोपः—अनुकरणमूलक शब्द
- बुक्कारः—पुं॰—बुक्-कारः—-—सिंह की दहाड़
- बुक्क्—भ्वा॰ पर॰ <बुक्कति>, चुरा॰ उभ॰ <बुक्कयति>, <बुक्कयते>—-—-—भौंकना
- बुक्क्—भ्वा॰ पर॰ <बुक्कति>, चुरा॰ उभ॰ <बुक्कयति>, <बुक्कयते>—-—-—बोलना, बातें करना
- बुक्कः—पुं॰—-—बुवक् + अच्—हृदय
- बुक्कम्—नपुं॰—-—बुवक् + अच्—हृदय
- बुक्कः—पुं॰—-—बुवक् + अच्—दिल, छाती
- बुक्कम्—नपुं॰—-—बुवक् + अच्—दिल, छाती
- बुक्कः—पुं॰—-—बुवक् + अच्—रुधिर
- बुक्कम्—नपुं॰—-—बुवक् + अच्—रुधिर
- बुक्कः —पुं॰—-—बुवक् + अच्—बकरा
- बुक्कः —पुं॰—-—बुवक् + अच्—समय
- बुक्कन्—पुं॰—-—बुक्क् + शतृ—हृदय, दिल
- बुक्कनम्—नपुं॰—-—बुक्क् + ल्युट्—भौंकना, भौं भौं करना
- बुक्कसः—पुं॰—-—पुक्कस, पृषो॰ साधुः—चंडाल
- बुक्का—स्त्री॰—-—बुक्क + टाप्—हृदय, दिल
- बुक्की—स्त्री॰—-—बुक्क + ङीष्—हृदय, दिल
- बुद्—भ्वा॰ उभ॰ <बोदति>, <बोदते>—-—-—प्रत्यक्ष करना, देखना, समझना, पहचानना
- बुद्—भ्वा॰ उभ॰ <बोदति>, <बोदते>—-—-—समझ लेना, जान लेना
- बुद्ध—भू॰ क॰ कृ॰—-—बुध् + क्त—ज्ञात, समझा हुआ, प्रत्यक्ष किया हुआ
- बुद्ध—भू॰ क॰ कृ॰—-—बुध् + क्त—जगाया हुआ, जागरूक
- बुद्ध—भू॰ क॰ कृ॰—-—बुध् + क्त—देखा हुआ
- बुद्ध—भू॰ क॰ कृ॰—-—बुध् + क्त—प्रकाशमान
- बुद्धिमान्—पुं॰—-—-—
- बुद्धः—पुं॰—-—-—बुद्धिमान् या विद्वान् पुरुष, ऋषि
- बुद्धः—पुं॰—-—-—(बौद्धों के साथ) बुद्धिमान या ज्ञानज्योति से प्रकाशमान पुरुष जो सत्य के प्रत्यक्ष ज्ञानद्वारा जन्म-मरण से छुटकारा पा चुका है तथा जो स्वयं मुक्त होने से पूर्व संसार की मोक्ष या निर्वाण प्राप्त करने की रीति बतलाता है
- बुद्धः—पुं॰—-—-—शाक्यसिंह का नाम ‘बुद्ध’ जो बौद्धधर्म का प्रसिद्ध प्रवर्तक था
- बुद्धागमः—पुं॰—बुद्धः-आगमः—-—बौद्धधर्म के सिद्धान्त और मन्तव्य
- बुद्धोपासकः—पुं॰—बुद्धः-उपासकः—-—बुद्ध की पूजा करने वाला
- बुद्धगया—स्त्री॰—बुद्धः-गया—-—एक पुण्यतीर्थस्थान का नाम
- बुद्धमार्गः—पुं॰—बुद्धः-मार्गः—-—बुद्ध के सिद्धांत और मत, बुद्धवाद
- बुद्धिः—स्त्री॰—-—बुध् + क्तिन्—प्रत्यक्ष ज्ञान, संबोध
- बुद्धिः—स्त्री॰—-—बुध् + क्तिन्—मति, समझ, प्रज्ञा, प्रतिभा
- बुद्धिः—स्त्री॰—-—बुध् + क्तिन्—ज्ञान
- बुद्धिः—स्त्री॰—-—बुध् + क्तिन्—विवेक, विवेचन, सूक्ष्म विचारणा
- बुद्धिः—स्त्री॰—-—बुध् + क्तिन्—मन
- बुद्धिः—स्त्री॰—-—-—औसान रहना, प्रत्युत्पन्नमतित्व
- बुद्धिः—स्त्री॰—-—-—धारणा, सम्मति, विश्वास, विचार, भावना, भाव
- बुद्धिः—स्त्री॰—-—-—आशय, प्रयोजन, प्रायोजना
- बुद्ध्या—स्त्री॰—-—-—‘इरादतन’ ‘प्रयोजन से; ‘जानबूझ कर’
- बुद्धिः—स्त्री॰—-—-—सचेत होना, मूर्छा से जागना
- बुद्धिः—स्त्री॰—-—-—सांख्यशास्त्र में वर्णित पच्चीस तत्त्वों में से दूसरा
- बुद्ध्यतीत—वि॰—बुद्धिः-अतीत—-—बुद्धि की पहुँच से परे
- बुद्ध्यवज्ञानम्—नपुं॰—बुद्धिः-अवज्ञानम्—-—किसी को समझ का तिरस्कार करना या निकृष्ट मत रखना
- बुद्धीन्द्रियम्—नपुं॰—बुद्धिः-इन्द्रियम्—-—प्रत्यक्षीकरण की इन्द्रिय
- बुद्धिगम्य—वि॰—बुद्धिः-गम्य—-—पहुँच के भीतर, उपलब्ध करने योग्य, प्रतिभा
- बुद्धिग्राह्य—वि॰—बुद्धिः-ग्राह्य—-—पहुँच के भीतर, उपलब्ध करने योग्य, प्रतिभा
- बुद्धिजीवन्—वि॰—बुद्धिः-जीवन्—-—‘तर्क’ का व्यवहार करने वाला, तर्कयुक्त बात करने वाला
- बुद्धिपूर्वम्—अव्य॰—बुद्धिः-पूर्वम्—-—इरादतन, जानबूझ कर स्वेच्छा से
- बुद्धिपूर्वकम्—अव्य॰—बुद्धिः-पूर्वकम्—-—इरादतन, जानबूझ कर स्वेच्छा से
- बुद्धिपुरःसरम्—अव्य॰—बुद्धिः-पुरःसरम्—-—इरादतन, जानबूझ कर स्वेच्छा से
- बुद्धिभ्रमः—पुं॰—बुद्धिः-भ्रमः—-—मन का उचाट, मन की विपथगामिता
- बुद्धियोगः—पुं॰—बुद्धिः-योगः—-—ब्रह्म से बौद्धिक सायुज्य
- बुद्धिलक्षणम्—नपुं॰—बुद्धिः-लक्षणम्—-—बुद्धिमत्ता या प्रतिभा का चिह्न
- बुद्धिवैभवम्—नपुं॰—बुद्धिः-वैभवम्—-—प्रतिभा की शक्ति
- बुद्धिशस्त्र—वि॰—बुद्धिः-शस्त्र—-—समझ या बुद्धि से युक्त
- बुद्धिशालिन्—वि॰—बुद्धिः-शालिन्—-—बुद्धिमान् समझदार
- बुद्धिसंपन्न—वि॰—बुद्धिः-संपन्न—-—बुद्धिमान् समझदार
- बुद्धिसखः—पुं॰—बुद्धिः-सखः—-—परामर्शदाता
- बुद्धिसहायः—पुं॰—बुद्धिः-सहायः—-—परामर्शदाता
- बुद्धिहीन—वि॰—बुद्धिः-हीन—-—प्रतिभाशून्य, मूर्ख, बेवकूफ
- बुद्धिमत्—वि॰—-—बुद्धि + मतुप्—समझ से युक्त, प्रज्ञावान्, विवेकपूर्ण
- बुद्धिमत्—वि॰—-—बुद्धि + मतुप्—समझदार, विद्वान्
- बुद्धिमत्—वि॰—-—बुद्धि + मतुप्—तेज, चतुर, तीक्ष्ण
- बुद्बुदः—पुं॰—-—-—बुलबुला
- बुध्—भ्वा॰ उभ॰ <बोधति>, <बोधते>, दिवा॰ आ॰ <बुध्यते>, <बुद्ध>—-—-—जानना, समझना, संबोध होना
- बुध्—भ्वा॰ उभ॰ <बोधति>, <बोधते>, दिवा॰ आ॰ <बुध्यते>, <बुद्ध>—-—-—प्रत्यक्ष करना, देखना, पहचानना, ध्यान से देखना
- बुध्—भ्वा॰ उभ॰ <बोधति>, <बोधते>, दिवा॰ आ॰ <बुध्यते>, <बुद्ध>—-—-—सोचना, विचार करना, समझना, मानना आदि
- बुध्—भ्वा॰ उभ॰ <बोधति>, <बोधते>, दिवा॰ आ॰ <बुध्यते>, <बुद्ध>—-—-—ध्यान देना, चित्त लगाना
- बुध्—भ्वा॰ उभ॰ <बोधति>, <बोधते>, दिवा॰ आ॰ <बुध्यते>, <बुद्ध>—-—-—सोचना, विमर्श करना
- बुध्—भ्वा॰ उभ॰ <बोधति>, <बोधते>, दिवा॰ आ॰ <बुध्यते>, <बुद्ध>—-—-—जागना, सचेत होना, सोकर उठना
- बुध्—भ्वा॰ उभ॰ <बोधति>, <बोधते>, दिवा॰ आ॰ <बुध्यते>, <बुद्ध>—-—-—फिर से सचेत होना, होश में आना
- बुध्—भ्वा॰ उभ॰प्रेर॰<बोधयति>,<बोधयते>—-—-—जतलाना, ज्ञात करना, सूचित करना, परिचित करना
- बुध्—भ्वा॰ उभ॰प्रेर॰<बोधयति>,<बोधयते>—-—-—अध्यापन करना, समाचार देना (शिक्षा आदि) प्रदान करना
- बुध्—भ्वा॰ उभ॰प्रेर॰<बोधयति>,<बोधयते>—-—-—परामर्श देना, चेताना
- बुध्—भ्वा॰ उभ॰प्रेर॰<बोधयति>,<बोधयते>—-—-—पुनर्जीवित करना, फिर जान डालना, होश दिलाना, सचेत करना
- बुध्—भ्वा॰ उभ॰प्रेर॰<बोधयति>,<बोधयते>—-—-—फिर ध्यान दिलाना, याद दिलाना
- बुध्—भ्वा॰ उभ॰प्रेर॰<बोधयति>,<बोधयते>—-—-—जगाना, उठाना, उत्तेजित करना
- बुध्—भ्वा॰ उभ॰प्रेर॰<बोधयति>,<बोधयते>—-—-—(गंधद्रव्य को) फिर से सुवासित करना
- बुध्—भ्वा॰ उभ॰प्रेर॰<बोधयति>,<बोधयते>—-—-—फैलाना, खिलाना
- बुध्—भ्वा॰ उभ॰प्रेर॰<बोधयति>,<बोधयते>—-—-—द्योदित करना, संवहन करना, संकेत करना
- बुध्—भ्वा॰ उभ॰ इच्छा॰ <बुबुधिषति>, <बुबुधिषते>, <बुबोधिषति>, <बुबोधिषते>, <बुभुत्सते>—-—-—जानने की इच्छा करना आदि
- अनुबुध्—भ्वा॰ उभ॰ —अनु-बुध्—-—जानना, समझना
- अनुबुध्—भ्वा॰ उभ॰ —अनु-बुध्—-—सीखना, जानकार होना, सचेत होना
- अनुबुध्—भ्वा॰ उभ॰प्रेर॰—अनु-बुध्—-—परामर्श देना, चेताना
- अनुबुध्—भ्वा॰ उभ॰प्रेर॰—अनु-बुध्—-—ध्यान दिलाना
- अवबुध्—भ्वा॰ उभ॰ —अव-बुध्—-—जानना, ज्ञात करना, समझना
- अवबुध्—भ्वा॰ उभ॰प्रेर॰—अव-बुध्—-—ज्ञात कराना, सूचित करना, परिचय देना
- अवबुध्—भ्वा॰ उभ॰ —अव-बुध्—-—उठाना, जगाना
- उद्बुध्—भ्वा॰ उभ॰ —उद्-बुध्—-—जमाना, उठाना
- उद्बुध्—भ्वा॰ उभ॰ —उद्-बुध्—-—फैलाना, खिलाना
- उद्बुध्—भ्वा॰ उभ॰प्रेर॰—उद्-बुध्—-—जागरूक करना, उत्तेजित करना, प्रबुद्ध करना, जगाना
- निबुध्—भ्वा॰ उभ॰ —नि-बुध्—-— जानना, समझना, ज्ञात करना
- निबुध्—भ्वा॰ उभ॰ —नि-बुध्—-—मानना, विचार करना, समझना
- प्रबुध्—भ्वा॰ उभ॰ —प्र-बुध्—-—जागना, उठना, आंख खोलना
- प्रबुध्—भ्वा॰ उभ॰ —प्र-बुध्—-—खिलाना, फैलाना, खिलना
- प्रबुध्—भ्वा॰ उभ॰प्रेर॰—प्र-बुध्—-—सूचित करना, जतलाना
- प्रबुध्—भ्वा॰ उभ॰प्रेर॰—प्र-बुध्—-—जगाना, उठाना
- प्रबुध्—भ्वा॰ उभ॰प्रेर॰—प्र-बुध्—-—फैलाना, खिलाना
- प्रतिबुध्—भ्वा॰ उभ॰ —प्रति-बुध्—-—जगाना, उठना
- प्रतिबुध्—भ्वा॰ उभ॰प्रेर॰—प्रति-बुध्—-—सूचित करना, जतलाना, परिचित करना, समाचार देना
- प्रतिबुध्—भ्वा॰ उभ॰प्रेर॰—प्रति-बुध्—-—जगाना, उठाना
- विबुध्—भ्वा॰ उभ॰ —वि-बुध्—-—जागना, उठाना
- विबुध्—भ्वा॰ उभ॰प्रेर॰—वि-बुध्—-—जगाना, उठाना
- विबुध्—भ्वा॰ उभ॰प्रेर॰—वि-बुध्—-—फिर से सचेत करना
- संबुध्—भ्वा॰ उभ॰ —सम्-बुध्—-—जानना, समझना, ज्ञात करना, जानकार होना
- संबुध्—भ्वा॰ उभ॰प्रेर॰—सम्-बुध्—-—सूचित करना, परिचित कराना, सूचना देना
- संबुध्—भ्वा॰ उभ॰प्रेर॰—सम्-बुध्—-—संबोधित करना
- बुध—वि॰—-—बुध् + क—बुद्धिमान्, चतुर, विद्वान्
- बुधः—पुं॰—-—-—बुद्धिमान् या विद्वान् पुरुष
- बुधः—पुं॰—-—-—देव
- बुधः—पुं॰—-—-—बुध ग्रह
- बुधजनः—पुं॰—बुध-जनः—-—बुद्धिमान् या विद्वान् पुरुष
- बुधतातः—पुं॰—बुध-तातः—-—चन्द्रमा
- बुधदिनम्—नपुं॰—बुध-दिनम्—-—बुधवार
- बुधवारः—पुं॰—बुध-वारः—-—बुधवार
- बुधवासरः—पुं॰—बुध-वासरः—-—बुधवार
- बुधरत्नम्—नपुं॰—बुध-रत्नम्—-—मरकतमणि, पन्ना
- बुधसुतः—पुं॰—बुध-सुतः—-—पुरूरवा का विशेषण
- बुधानः—पुं॰—-—बुध् + आनच्, कित् च—बुद्धिमान् पुरुष, ऋषि
- बुधानः—पुं॰—-—बुध् + आनच्, कित् च—धर्मोपदेष्टा, अध्यात्मपथदर्शक
- बुधित—वि॰—-—बुध् + क्त—जाना हुआ, समझा हुआ
- बुधिल—वि॰—-—बुध् + किलच्—विद्वान्, बुद्धिमान्
- बुध्नः—पुं॰—-—बन्ध् + नक्, बुधादेशः—बर्तन की तली
- बुध्नः—पुं॰—-—बन्ध् + नक्, बुधादेशः—पेड़ की जड़
- बुध्नः—पुं॰—-—बन्ध् + नक्, बुधादेशः—निम्नतम भाग
- बुध्नः—पुं॰—-—बन्ध् + नक्, बुधादेशः—शिव का विशेषण
- बुन्द्—भ्वा॰ उभ॰ <वुन्दति>, <वुन्दते>—-—-—प्रत्यक्ष करना, देखना, भांपना
- बुन्द्—भ्वा॰ उभ॰ <वुन्दति>, <वुन्दते>—-—-—विमर्श करना, समझना
- बुन्ध्—भ्वा॰ उभ॰ <वुन्धति>, <वुन्धते>—-—-—प्रत्यक्ष करना, देखना, भांपना
- बुन्ध्—भ्वा॰ उभ॰ <वुन्धति>, <वुन्धते>—-—-—विमर्श करना, समझना
- बुभुक्षा—स्त्री॰—-—भुज् + सन् + अ + टाप्—खाने की इच्छा, भूख
- बुभुक्षा—स्त्री॰—-—भुज् + सन् + अ + टाप्—किसी भी पदार्थ के उपयोग की इच्छा
- बुभुक्षित—वि॰—-—बुभुक्षा + इतच्—भूखा, भुखामरा, क्षुधापीडित
- बुभुक्षु—वि॰—-—भुज् + सन् + उ—भूखा, सांसारिक उपभोगों का इच्छुक
- बुभूषा—स्त्री॰—-—भुज् + सन् + अ + टाप्—होने की इच्छा
- बुभूषु—वि॰—-—भू + सन् + उ—बनने की या होने की इच्छा वाला
- बुल्—चुरा॰ उभ॰ <बोलयति>, <बोलयते>—-—-—डूबना,गोता लगाना
- बुल्—चुरा॰ उभ॰ <बोलयति>, <बोलयते>—-—-—डुबोना
- बुलिः—स्त्री॰—-—बुल् + इन्, कित्—भयः डर
- बुस्—दिवा॰ पर॰ <बुष्यति>—-—-—छोड़ना, उगलना, उडलना
- बुसम्—नपुं॰—-—बुस् + क पक्षे पृषो॰ षत्वम्—बूर, भूसी
- बुसम्—नपुं॰—-—बुस् + क पक्षे पृषो॰ षत्वम्—कूड़ा, गंदगी
- बुसम्—नपुं॰—-—बुस् + क पक्षे पृषो॰ षत्वम्—गाय का सूखा गोबर
- बुसम्—नपुं॰—-—बुस् + क पक्षे पृषो॰ षत्वम्—धन, दौलत
- बुषम्—नपुं॰—-—-—बूर, भूसी
- बुषम्—नपुं॰—-—-—कूड़ा, गंदगी
- बुषम्—नपुं॰—-—-—गाय का सूखा गोबर
- बुषम्—नपुं॰—-—-—धन, दौलत
- बुस्त्—चुरा॰ उभ॰ <बुस्तयति>, <बुस्तयते>—-—-—सम्मान करना, आदर करना
- बुस्त्—चुरा॰ उभ॰ <बुस्तयति>, <बुस्तयते>—-—-—अनादर करना, तिरस्कारपूर्वक अर्थात् घृणायुक्त व्यवहार करना
- बुस्तम्—नपुं॰—-—बुस्त् + घञ्—भुने हुए माँस का टुकड़ा
- बूक्कम्—नपुं॰—-—बुवक् + अच्—हृदय
- बूक्कम्—नपुं॰—-—बुवक् + अच्—दिल, छाती
- बूक्कम्—नपुं॰—-—बुवक् + अच्—रुधिर
- बूक्कम्—नपुं॰—-—बुवक् + अच्—बकरा
- बूक्कम्—नपुं॰—-—बुवक् + अच्—समय
- बृशी—स्त्री॰—-—ब्रुवन्तोऽस्यां सीदन्ति -ब्रुवत् + सद् + ड + ङीष् पृषो॰ साधुः—किसी सन्यासी या साधु महात्मा की गद्दी
- बृषी—स्त्री॰—-—ब्रुवन्तोऽस्यां सीदन्ति -ब्रुवत् + सद् + ड + ङीष् पृषो॰ साधुः—किसी सन्यासी या साधु महात्मा की गद्दी
- बृसी—स्त्री॰—-—ब्रुवन्तोऽस्यां सीदन्ति -ब्रुवत् + सद् + ड + ङीष् पृषो॰ साधुः—किसी सन्यासी या साधु महात्मा की गद्दी
- बृंह्—भ्वा॰ पर॰ <बृंहति>, <बृंहित>, तुदा॰ पर॰ <बृंहति>, <बृंहित>—-—-—बढ़ना, उगना
- बृंह्—भ्वा॰ पर॰ <बृंहति>, <बृंहित>, तुदा॰ पर॰ <बृंहति>, <बृंहित>—-—-—दहाड़ना
- बृंह्—भ्वा॰प्रेर॰—-—-—पालन-पोषण करना
- बृंहणम्—नपुं॰—-—बृंह् + ल्युट्—(हाथी के) चिंघाड़ने का शब्द
- बृंहित—भू॰ क॰ कृ॰—-—बृंह् + क्त—उगा हुआ, बढ़ा हुआ
- बृंहित—भू॰ क॰ कृ॰—-—बृंह् + क्त—चिंघाड़ा हुआ
- बृंहितम्—नपुं॰—-—-—हाथी की चिंघाड़
- बृह्—भ्वा॰ पर॰ <बर्हति>, <बृहति>, तुदा॰ पर॰ <बर्हति>, <बृहति>—-—-—उगना, बढ़ना, फैलाना
- बृह्—भ्वा॰ पर॰ <बर्हति>, <बृहति>, तुदा॰ पर॰ <बर्हति>, <बृहति>—-—-—दहाड़ना
- उद्बृह्—भ्वा॰ पर॰—उद्-बृह्—-—उठाना, ऊपर को करना
- निबृह्—भ्वा॰ पर॰—नि-बृह्—-—नष्ट करना, हटाना
- बृहत्—वि॰—-—बृह् + अति—विस्तृत, विशाल, बड़ा, स्थूल
- बृहत्—वि॰—-—बृह् + अति—चौड़ा, प्रशस्त, विस्तृत, दूर तक फैला हुआ
- बृहत्—वि॰—-—बृह् + अति—विस्तृत, यथेष्ट, प्रचुर
- बृहत्—वि॰—-—बृह् + अति—मजबूत, शक्तिशाली
- बृहत्—वि॰—-—बृह् + अति—लम्बा, ऊँचा
- बृहत्—वि॰—-—बृह् + अति—पूर्णविकसित
- बृहत्—वि॰—-—बृह् + अति—सटा हुआ, सघन
- बृहत्—स्त्री॰—-—-—वाणी
- बृहत्—नपुं॰—-—-—वेद
- बृहत्—नपुं॰—-—-—सामवेद का मंत्र (साम)
- बृहत्—नपुं॰—-—-—ब्रह्म
- बृहदङ्ग—वि॰—बृहत्-अङ्ग—-—स्थूलकाय, विशालकाय
- बृहत्काय—वि॰—बृहत्-काय—-—स्थूलकाय, विशालकाय
- बृहद्गः—पुं॰—बृहत्-गः—-—बड़े डीलडौल का हाथी
- बृहदारण्यम्—नपुं॰—बृहत्-आरण्यम्—-—एक प्रसिद्ध उपनिषद्, शतपथ ब्राह्मण के अन्तिम छः अध्याय
- बृहदारण्यकम्—नपुं॰—बृहत्-आरण्यकम्—-—एक प्रसिद्ध उपनिषद्, शतपथ ब्राह्मण के अन्तिम छः अध्याय
- बृहदेला—स्त्री॰—बृहत्-एला—-—बड़ी इलायची
- बृहत्कुक्षि—वि॰—बृहत्-कुक्षि—-—तुंदिल, बड़े पेट वाला
- बृहत्केतुः—पुं॰—बृहत्-केतुः—-—अग्नि का विशेषण
- बृहद्गृहः—पुं॰—बृहत्-गृहः—-—एक देश का नाम
- बृहद्गोलम्—नपुं॰—बृहत्-गोलम्—-—तरबूज
- बृहच्चित्तः—पुं॰—बृहत्-चित्तः—-—नींबू का पेड़
- बृहज्जघन—वि॰—बृहत्-जघन—-—प्रशस्तकूल्हों वाला
- बृहज्जीवन्तिका—स्त्री॰—बृहत्-जीवन्तिका—-—एक प्रकार का पौधा
- बृहज्जीवन्ती—स्त्री॰—बृहत्-जीवन्ती—-—एक प्रकार का पौधा
- बृहड्ढक्का—स्त्री॰—बृहत्-ढक्का—-—बड़ा ढोल
- बृहन्नटः—पुं॰—बृहत्-नटः—-—राजा विराट के दरबार में नृत्य और संगीत शिक्षक के रूप में रहते हुए अर्जुन का नाम
- बृहन्नलः—पुं॰—बृहत्-नलः—-—राजा विराट के दरबार में नृत्य और संगीत शिक्षक के रूप में रहते हुए अर्जुन का नाम
- बृहन्नला—स्त्री॰—बृहत्-नला—-—राजा विराट के दरबार में नृत्य और संगीत शिक्षक के रूप में रहते हुए अर्जुन का नाम
- बृहन्नेत्र—वि॰—बृहत्-नेत्र—-—दूरदर्शी, मनीषी
- बृहत्पाटलिः—पुं॰—बृहत्-पाटलिः—-—धतूरा
- बृहत्पालः—पुं॰—बृहत्-पालः—-—बड़ या गूलर का वृक्ष
- बृहद्भट्टारिका—स्त्री॰—बृहत्-भट्टारिका—-—दुर्गा का विशेषण
- बृहद्भानुः—पुं॰—बृहत्-भानुः—-—अग्नि
- बृहद्रथः—पुं॰—बृहत्-रथः—-—इन्द्र का विशेषण
- बृहद्रथः—पुं॰—बृहत्-रथः—-—एक राजा का नाम, जरासंध का पिता
- बृहद्राविन्—पुं॰—बृहत्-राविन्—-—एक प्रकार का छोटा उल्लू
- बृहत्स्फिच्—वि॰—बृहत्-स्फिच्—-—प्रशस्त कूल्हों वाला, बड़े नितंबो वाला
- बृहतिका—स्त्री॰—-—बृहत् + ङीष् + कन् + टाप्, ह्रस्वः—उत्तरीय वस्त्र, दुपट्टा, चोगा, चादर
- बृहस्पतिः—पुं॰—-—बृहतः वाचः पतिः-पारस्करादि॰—देवों के गुरु
- बृहस्पतिः—पुं॰—-—-—बृहस्पति ग्रह
- बृहस्पतिः—पुं॰—-—-—एक स्मृतिकार का नाम
- बृहस्पतिपुरोहितः—पुं॰—बृहस्पतिः-पुरोहितः—-—इन्द्र का विशेषण
- बृहस्पतिवारः—पुं॰—बृहस्पतिः-वारः—-—गुरुवार
- बृहस्पतिवासरः—पुं॰—बृहस्पतिः-वासरः—-—गुरुवार
- बेडा—स्त्री॰—-—बेड + टाप्—नाव, किश्ती
- बेह्—भ्वा॰ आ॰ <बेहते>—-—-—उद्योग करना, चेष्टा करना, प्रयत्न करना
- बैजिक—वि॰—-—बीज + ठक्—वीर्यसंबंधी
- बैजिक—वि॰—-—बीज + ठक्—मौलिक
- बैजिक—वि॰—-—बीज + ठक्—गर्भविषयक
- बैजिक—वि॰—-—बीज + ठक्—मैथुनसंबंधी
- बैजिकः—पुं॰—-—-—अंखुवा, नया अंकुर
- बैजिकम्—नपुं॰—-—-—कारण, स्रोत, मूल
- बैडाल—वि॰—-—बिडाल + अण्—बिलाव से संबंध रखने वाला
- बैडाल—वि॰—-—बिडाल + अण्—बिलाव की विशिष्टता को रखने वाला
- बैडालव्रतम्—नपुं॰—बैडाल-व्रतम्—-—बिलाव जैसा ब्रत
- बैडालव्रतिः—पुं॰—बैडाल-व्रतिः—-—जो स्त्री सहवास न मिलने के कारण ही साधु जीवन बिताये (इस लिए नहीं कि उसने अपनी इन्दियों को वश में कर लिया है)
- बैडालव्रतिकः—पुं॰—बैडाल-व्रतिकः—-—धर्म का आडंबर करने वाला, पाखंडी, ढोंगी
- बैडालव्रतिन्—पुं॰—बैडाल-व्रतिन्—-—धर्म का आडंबर करने वाला, पाखंडी, ढोंगी
- बैदल—वि॰—-—बिदल + अण् बवयोरभेदः—बेंत या टहनियों से बनाया हुआ
- बैदलः—पुं॰—-—बिदल + अण् बवयोरभेदः—एक प्रकार की रोटी
- बैदलः—पुं॰—-—बिदल + अण् बवयोरभेदः—कोई भी दाल का अनाज
- बैदलम्—नपुं॰—-—बिदल + अण् बवयोरभेदः—भिक्षुओं का कामगहरा भिक्षापात्र
- बैदलम्—नपुं॰—-—बिदल + अण् बवयोरभेदः—बाँस या टहनियों की बनी डलिया, या आसन
- बैम्बिकः—पुं॰—-—बिम्ब + ठञ्—जो महिलाविषयक कार्यों में मनोयोगपूर्वक लगनेवाला हो, प्रेमनिपुण, प्रेमी
- बैल्व—वि॰—-—बिल्व + अण्—बेल के वृक्ष या लकड़ी से संबद्ध या निर्मित
- बैल्व—वि॰—-—बिल्व + अण्—बेल के पेड़ों से ढका हुआ
- बैल्वम्—नपुं॰—-—-—बेल के पेड़ का फल
- बोधः—पुं॰—-— बुध् + घञ्—प्रत्यक्ष ज्ञान, जानकारी, समझ, आलोचना, विचार
- बोधः—पुं॰—-— बुध् + घञ्—विचार, चिन्तन
- बोधः—पुं॰—-— बुध् + घञ्—समझ, प्रतिभा, प्रज्ञा, बुद्धिमत्ता
- बोधः—पुं॰—-— बुध् + घञ्—जागना, जागरूक होना, जागर्ति की स्थिति, चेतावनी
- बोधः—पुं॰—-— बुध् + घञ्—खिलना, फ़ूलना, फैलना
- बोधः—पुं॰—-— बुध् + घञ्—शिक्षण, परामर्श, चेतावनी
- बोधः—पुं॰—-— बुध् + घञ्—जगाना, उठाना
- बोधः—पुं॰—-— बुध् + घञ्—उपाधि, पद
- बोधातीत—वि॰—बोधः-अतीत—-—अज्ञेय, ज्ञान के परे
- बोधकर—वि॰—बोधः-कर—-—सिखाने वाला, सूचित करने वाला
- बोधकरः—पुं॰—बोधः-करः—-—चारण या भाट (जो उपयुक्त भजन गाकर प्रातःकाल अपने स्वामी को जगाता है)
- बोधकरः—पुं॰—बोधः-करः—-—शिक्षक, अध्यापक
- बोधपूर्व—वि॰—बोधः-पूर्व—-—सप्रयोजन, सचेत
- बोधवासरः—पुं॰—बोधः-वासरः—-—कार्तिक शुक्ला एकादशी, जब विष्णु भगवान् अपनी चार मास की निद्रा को त्याग कर जागे हुए समझे जाते हैं
- बोधक—वि॰—-—बुध् + णिच् + ण्णुल्—सूचना देने वाला, (स्थिति से) अवगत कराने वाला
- बोधक—वि॰—-—बुध् + णिच् + ण्णुल्—शिक्षण देने वाला, अध्यापन करने वाला
- बोधक—वि॰—-—बुध् + णिच् + ण्णुल्—अभिसूचक
- बोधक—वि॰—-—बुध् + णिच् + ण्णुल्—जागने वाला, उठाने वाला
- बोधकः—पुं॰—-—-—भेदिया, जासूस
- बोधनः—पुं॰—-—बुध् + णिच् + ल्युट्—बुधग्रह
- बोधनम्—नपुं॰—-—-—संसूचन, अध्यापन, शिक्षण, ज्ञान देना
- बोधनम्—नपुं॰—-—-—ज्ञापन करना, निर्देश करना
- बोधनम्—नपुं॰—-—-—जगाना, उठाना
- बोधनम्—नपुं॰—-—-—धूप देना
- बोधनी—स्त्री॰—-—-—कार्तिक शुक्ला एकादशी, जब विष्णु भगवान् अपनी चार मास की निद्रा को त्याग कर उठते हैं, देव उठनी एकादशी
- बोधनी—स्त्री॰—-—-—बड़ी पीपल
- बोधानः—पुं॰—-—बुध् + आनच्—बुद्धिमान् पुरुष
- बोधानः—पुं॰—-—बुध् + आनच्—बृहस्पति का विशेषण
- बोधिः—पुं॰—-—बुध् + इन्—पूर्ण मति या ज्ञान का प्रकाश
- बोधिः—पुं॰—-—बुध् + इन्—बुद्ध की ज्ञान से प्रकाशित प्रतिभा
- बोधिः—पुं॰—-—बुध् + इन्—पावन वटवृक्ष
- बोधिः—पुं॰—-—बुध् + इन्—मुर्गा
- बोधिः—पुं॰—-—बुध् + इन्—बुद्ध का विशेषण
- बोधितरुः—पुं॰—बोधिः-तरुः—-—पावन वटवृक्ष
- बोधिद्रुमः—पुं॰—बोधिः-द्रुमः—-—पावन वटवृक्ष
- बोधिवृक्षः—पुं॰—बोधिः-वृक्षः—-—पावन वटवृक्ष
- बोधिदः—पुं॰—बोधिः-दः—-—(जैनियों का) अर्हत्
- बोधिसत्त्वः—पुं॰—बोधिः-सत्त्वः—-—बौद्ध संन्यासी या महात्मा
- बोधित—भू॰ क॰ कृ॰—-—बुध् + णिच् + क्त—जताया गया, सूचित किया गया, अवगत कराया गया
- बोधित—भू॰ क॰ कृ॰—-—बुध् + णिच् + क्त—फिर ध्यान दिलाया गया
- बोधित—भू॰ क॰ कृ॰—-—बुध् + णिच् + क्त—परामर्श दिया गया, शिक्षण प्रदान किया गया
- बौद्ध—वि॰—-—बुद्धि + अण्—बुद्धि या समझ से संबंध रखने वाला
- बौद्ध—वि॰—-—बुद्धि + अण्—बुद्ध विषयक
- बौद्धः—पुं॰—-—-—बुद्ध द्वारा प्रचारित धर्म का अनुयायी
- बौधः—पुं॰—-—बुध + अण्—बुध का पुत्र, पुरूरवा का विशेषण
- बौधायनः—पुं॰—-—बोधस्यापत्यं पुमान्-बोध + फक्—एक प्राचीन मुनि का पितृपरक नाम जिसने श्रौतादि सूत्रों की रचना की
- ब्रध्नः—पुं॰—-—बन्ध् + नक्, ब्रधादेशः—सूर्य
- ब्रध्नः—पुं॰—-—बन्ध् + नक्, ब्रधादेशः—वृक्ष की जड़
- ब्रध्नः—पुं॰—-—बन्ध् + नक्, ब्रधादेशः—दिन
- ब्रध्नः—पुं॰—-—बन्ध् + नक्, ब्रधादेशः—मदार का पौधा
- ब्रध्नः—पुं॰—-—बन्ध् + नक्, ब्रधादेशः—सीसा
- ब्रध्नः—पुं॰—-—बन्ध् + नक्, ब्रधादेशः—घोड़ा
- ब्रध्नः—पुं॰—-—बन्ध् + नक्, ब्रधादेशः—शिव या ब्रह्मा का विशेषण
- ब्रह्मम्—नपुं॰—-—बृंह् + मनिन् नकारस्याकारे ऋतो रत्वम्- ये ये नान्ताः ते अकारान्त अपि इत्युक्तेः अकारान्तोऽयं शब्दः—परमात्मा
- ब्रह्मण्य—वि॰—-—ब्रह्मन् + यत्—ब्रह्म से संबद्ध
- ब्रह्मण्य—वि॰—-—ब्रह्मन् + यत्—ब्रह्मा या प्रजापति से संबद्ध
- ब्रह्मण्य—वि॰—-—ब्रह्मन् + यत्—पुनीत ज्ञान के ग्रहण से संबद्ध, पवित्र, पावन
- ब्रह्मण्य—वि॰—-—ब्रह्मन् + यत्—ब्राह्मण के योग्य
- ब्रह्मण्य—वि॰—-—ब्रह्मन् + यत्—ब्राह्मण के लिए सौहार्दपूर्ण या आतिथ्यकारी
- ब्रह्मण्यः—पुं॰—-—-—वेदों में निष्णात व्यक्ति
- ब्रह्मण्यः—पुं॰—-—-—शहतूत का वृक्ष
- ब्रह्मण्यः—पुं॰—-—-—ताड़ का पेड़
- ब्रह्मण्यः—पुं॰—-—-—मूंज नामक घास
- ब्रह्मण्यः—पुं॰—-—-—शनिग्रह
- ब्रह्मण्यः—पुं॰—-—-—विष्णु का विशेषण
- ब्रह्मण्यः—पुं॰—-—-—कार्तिकेय का विशेषण
- ब्रह्मण्या—पुं॰—-—-—दुर्गा का विशेषण
- ब्रह्मण्यदेवः—पुं॰—ब्रह्मण्य-देवः—-—विष्णु का विशेषण
- बह्मवत्—पुं॰—-—ब्रह्मन् + मतुप्, वत्वम्—अग्नि का विशेषण
- ब्रह्मता—स्त्री॰—-—ब्रह्मन् + तल् + टाप्—परमात्मा में लीन होना
- ब्रह्मता—स्त्री॰—-—ब्रह्मन् + तल् + टाप्—दिव्य प्रकृति
- ब्रह्मत्वम्—नपुं॰—-—ब्रह्मन् + तल् + त्व—परमात्मा में लीन होना
- ब्रह्मत्वम्—नपुं॰—-—ब्रह्मन् + तल् + त्व—दिव्य प्रकृति
- ब्रह्मन्—नपुं॰—-—बृंह् + मनिन् नकारस्याकारे ऋतो रत्वम्—परमात्मा जो निराकार और निर्गुण समझा जाता है
- ब्रह्मन्—नपुं॰—-—बृंह् + मनिन् नकारस्याकारे ऋतो रत्वम्—स्तुतिपरक सूक्त
- ब्रह्मन्—नपुं॰—-—बृंह् + मनिन् नकारस्याकारे ऋतो रत्वम्—पुनीत पाठ
- ब्रह्मन्—नपुं॰—-—बृंह् + मनिन् नकारस्याकारे ऋतो रत्वम्—वेद
- ब्रह्मन्—नपुं॰—-—बृंह् + मनिन् नकारस्याकारे ऋतो रत्वम्—ईश्वरपरक पावन अक्षर,
- ब्रह्मन्—नपुं॰—-—बृंह् + मनिन् नकारस्याकारे ऋतो रत्वम्—पुरोहितवर्ग या ब्रह्मण समुदाय
- ब्रह्मन्—नपुं॰—-—बृंह् + मनिन् नकारस्याकारे ऋतो रत्वम्—ब्राह्मण की शक्ति या ऊर्जा
- ब्रह्मन्—नपुं॰—-—बृंह् + मनिन् नकारस्याकारे ऋतो रत्वम्—धार्मिक साधना या तपस्या
- ब्रह्मन्—नपुं॰—-—बृंह् + मनिन् नकारस्याकारे ऋतो रत्वम्—ब्रह्मचर्य, सतीत्व
- ब्रह्मन्—नपुं॰—-—बृंह् + मनिन् नकारस्याकारे ऋतो रत्वम्—मोक्ष या निर्वाण
- ब्रह्मन्—नपुं॰—-—बृंह् + मनिन् नकारस्याकारे ऋतो रत्वम्—ब्रह्मज्ञान, अध्यात्मविद्या
- ब्रह्मन्—नपुं॰—-—बृंह् + मनिन् नकारस्याकारे ऋतो रत्वम्—बेदों का ब्राह्मणभाग
- ब्रह्मन्—नपुं॰—-—बृंह् + मनिन् नकारस्याकारे ऋतो रत्वम्—धनदौलत, संपत्ति
- ब्रह्मन्—पुं॰—-—-—परमात्मा, ब्रह्मा, पावन त्रिदेवों (ब्रह्मा, विष्णु, महेश) में प्रथम जिनको संसार की रचना का कार्य सौंपा गया है
- ब्रह्मन्—पुं॰—-—-—ब्राह्मण
- ब्रह्मन्—पुं॰—-—-—भक्त
- ब्रह्मन्—पुं॰—-—-—सोमयाग में नियुक्त चार ऋत्विजों (पुरोहितों) में से एक
- ब्रह्मन्—पुं॰—-—-—धर्मज्ञान का ज्ञाता
- ब्रह्मन्—पुं॰—-—-—सूर्य
- ब्रह्मन्—पुं॰—-—-—प्रतिभा
- ब्रह्मन्—पुं॰—-—-—सता प्रजापतियों (मरीचि, अत्रि, अंगिरस्, पुलस्त्य, पुलह, ऋतु और और वसिष्ठ ) का विशेषण
- ब्रह्मन्—पुं॰—-—-—बृहस्पति का विशेषण
- ब्रह्मन्—पुं॰—-—-—शिव का विशेषण
- ब्रह्माक्षरम्—नपुं॰—ब्रह्मन्-अक्षरम्—-—पावन अक्षर ‘ॐ’
- ब्रह्माङ्गभूः—पुं॰—ब्रह्मन्-अङ्गभूः—-—घोड़ा
- ब्रह्माञ्जलिः—पुं॰—ब्रह्मन्-अञ्जलिः—-—वेद पाठ करते समय हाथ जोड़ कर सादर अभिवादन
- ब्रह्माञ्जलिः—पुं॰—ब्रह्मन्-अञ्जलिः—-—आचार्य या गुरु का सम्मान (वेद पाठ के आरम्भ तथा समाप्ति पर)
- ब्रह्माण्डम्—नपुं॰—ब्रह्मन्-अण्डम्—-—ब्रह्मा का अंडा, बीजभूत अंडा जिससे यह समस्त संसार या विश्व का उद्भव हुआ
- ब्रह्मपुराणम्—नपुं॰—ब्रह्मन्-पुराणम्—-—अठारह पुराणों में से एक पुराण
- ब्रह्माभिजाता—स्त्री॰—ब्रह्मन्-अभिजाता—-—गोदावरी नदी का एक विशेषण
- ब्रह्माधिगमः—पुं॰—ब्रह्मन्-अधिगमः—-—वेदों का अध्ययन
- ब्रह्माधिगमनम्—नपुं॰—ब्रह्मन्-अधिगमनम्—-—वेदों का अध्ययन
- ब्रह्माभ्यासः—पुं॰—ब्रह्मन्-अभ्यासः—-—वेदों का अध्ययन
- ब्रह्माम्भस्—नपुं॰—ब्रह्मन्-अम्भस्—-—गोमूत्र
- ब्रह्मायणः—पुं॰—ब्रह्मन्-अयणः—-—नारायण का विशेषण
- ब्रह्मायनः—पुं॰—ब्रह्मन्-अयनः—-—नारायण का विशेषण
- ब्रह्मार्पणम्—नपुं॰—ब्रह्मन्-अर्पणम्—-—ब्रह्मज्ञान का अर्पण
- ब्रह्मार्पणम्—नपुं॰—ब्रह्मन्-अर्पणम्—-—परमात्मा में अनुरक्ति
- ब्रह्मार्पणम्—नपुं॰—ब्रह्मन्-अर्पणम्—-—एक प्रकार का जादू या मन्त्र
- ब्रह्मास्त्रम्—नपुं॰—ब्रह्मन्-अस्त्रम्—-—ब्रह्मा से अधिष्ठित एक अस्त्र
- ब्रह्मात्मभूः—पुं॰—ब्रह्मन्-आत्मभूः—-—घोड़ा
- ब्रह्मानन्दः—पुं॰—ब्रह्मन्-आनन्दः—-—ब्रह्म में लीन होने का आत्यंतिक सुख या आनंद
- ब्रह्मारम्भः—पुं॰—ब्रह्मन्-आरम्भः—-—वेदों का पाठ आरंभ करना
- ब्रह्मावर्तः—पुं॰—ब्रह्मन्-आवर्तः—-—(हस्तिनापुर के पश्चिमोत्तर में) सरस्वती और दृषद्वती नदियों के बीच का मार्ग
- ब्रह्मासनम्—नपुं॰—ब्रह्मन्-आसनम्—-—गहन समाधि के लिए विशिष्ट आसन
- ब्रह्माहुतिः—स्त्री॰—ब्रह्मन्-आहुतिः—-—प्रार्थनापरक मंत्रो का पाठ, स्वस्तिवाचन
- ब्रह्मोज्झता—स्त्री॰—ब्रह्मन्-उज्झता—-—वेदों को भूल जाना या उनकी उपेक्षा करना
- ब्रह्मोद्यम्—नपुं॰—ब्रह्मन्-उद्यम्—-—वेद की व्याख्या करना, ब्रह्मज्ञानविषयक समस्याओं पर विचार विमर्श
- ब्रह्मोपदेशः—पुं॰—ब्रह्मन्-उपदेशः—-—ब्रह्मज्ञान या वेद का शिक्षण
- ब्रह्मनेतृ—पुं॰—ब्रह्मन्-नेतृ—-—ढाक का वृक्ष
- ब्रह्मर्षिः—पुं॰—ब्रह्मन्-ऋषिः—-—ब्राह्मण ऋषि
- ब्रह्मदेशः—पुं॰—ब्रह्मन्-देशः—-—मंडल, जिला
- ब्रह्मकन्यका—स्त्री॰—ब्रह्मन्-कन्यका—-—सरस्वती का विशेषण
- ब्रह्मकरः—पुं॰—ब्रह्मन्-करः—-—पुरोहित वर्ग को दिया जाने वाला शुल्क
- ब्रह्मकर्मन्—नपुं॰—ब्रह्मन्-कर्मन्—-—ब्राह्मण के धार्मिक कर्तव्य
- ब्रह्मकर्मन्—नपुं॰—ब्रह्मन्-कर्मन्—-—यज्ञ के चार मुख्य पुरोहितों में ब्राह्मण का पद
- ब्रह्मकल्पः—पुं॰—ब्रह्मन्-कल्पः—-—ब्रह्मा की आयु
- ब्रह्मकाण्डम्—नपुं॰—ब्रह्मन्-काण्डम्—-—ब्रह्मज्ञान से संबद्ध वेद का भाग
- ब्रह्मकाष्ठः—पुं॰—ब्रह्मन्-काष्ठः—-—शहतूत का पेड़
- ब्रह्मकूर्चम्—नपुं॰—ब्रह्मन्-कूर्चम्—-—एक प्रकार की साधना
- ब्रह्मकृत्—वि॰—ब्रह्मन्-कृत्—-—स्तुति करने वाला
- ब्रह्मकृत्—पुं॰—ब्रह्मन्-कृत्—-—विष्णु का विशेषण
- ब्रह्मगुप्तः—पुं॰—ब्रह्मन्-गुप्तः—-—एक ज्योतिर्विद् का नाम जो सन् ५९८ ई॰ में उत्पन्न हुआ था
- ब्रह्मगोलः—पुं॰—ब्रह्मन्-गोलः—-—विश्व
- ब्रह्मगौरवम्—नपुं॰—ब्रह्मन्-गौरवम्—-—ब्रह्मा से अधिष्ठित एक अस्त्र का सम्मान
- ब्रह्मग्रन्थिः—पुं॰—ब्रह्मन्-ग्रन्थिः—-—शरीर का विशिष्ट जोड़, ब्रह्मगांठ
- ब्रह्मग्रहः—पुं॰—ब्रह्मन्-ग्रहः—-—एक प्रकार का भूत, पिशाच, ब्रह्मराक्षस
- ब्रह्मपिशाचः—पुं॰—ब्रह्मन्-पिशाचः—-—एक प्रकार का भूत, पिशाच, ब्रह्मराक्षस
- ब्रह्मपुरुषः—पुं॰—ब्रह्मन्-पुरुषः—-—एक प्रकार का भूत, पिशाच, ब्रह्मराक्षस
- ब्रह्मरक्षस्—नपुं॰—ब्रह्मन्-रक्षस्—-—एक प्रकार का भूत, पिशाच, ब्रह्मराक्षस
- ब्रह्मराक्षसः—पुं॰—ब्रह्मन्-राक्षसः—-—एक प्रकार का भूत, पिशाच, ब्रह्मराक्षस
- ब्रह्मघातकः—पुं॰—ब्रह्मन्-घातकः—-—ब्राह्मण की हत्या करने वाला
- ब्रह्मघातिनी—स्त्री॰—ब्रह्मन्-घातिनी—-—ऋतु के दूसरे दिन की रजस्वला स्त्री
- ब्रह्मघोषः—पुं॰—ब्रह्मन्-घोषः—-—वेद का सस्वर पाठ
- ब्रह्मघोषः—पुं॰—ब्रह्मन्-घोषः—-—पावन शब्द
- ब्रह्मघ्नः—पुं॰—ब्रह्मन्-घ्नः—-—ब्राहण की हत्या करने वाला
- ब्रह्मचर्यम्—नपुं॰—ब्रह्मन्-चर्यम्—-—धार्मिक शिष्यवृत्ति, वेदाध्ययन के समय ब्राह्मण बालक का ब्रह्मचर्यजीवन, जीवन का प्रथम आश्रम
- ब्रह्मचर्यम्—नपुं॰—ब्रह्मन्-चर्यम्—-—धार्मिक अध्ययन, आत्मसंयम
- ब्रह्मचर्यम्—नपुं॰—ब्रह्मन्-चर्यम्—-—कौमार्य, सतीत्व, विरति, इन्द्रियनिग्रह
- ब्रह्मचर्यः—पुं॰—ब्रह्मन्-चर्यः—-—वेदाध्ययनशील
- ब्रह्मचर्या—स्त्री॰—ब्रह्मन्-चर्या—-—सतीत्व, कौमार्य
- ब्रह्मव्रतम्—नपुं॰—ब्रह्मन्-व्रतम—-—सतीत्व रक्षण की प्रतिज्ञा
- ब्रह्मस्खलनम्—नपुं॰—ब्रह्मन्-स्खलनम्—-—सतीत्व या ब्रह्मचर्य से गिर जाना, इन्द्रियनिग्रह का अभाव
- ब्रह्मचारिन्—पुं॰—ब्रह्मन्-चारिन्—-—वेद का विद्यार्थी
- ब्रह्मचारिन्—पुं॰—ब्रह्मन्-चारिन्—-—जो आजन्म ब्रह्मचारी रहने की प्रतिज्ञा करता है
- ब्रह्मचारिणी—स्त्री॰—ब्रह्मन्-चारिणी—-—दुर्गा का विशेषण
- ब्रह्मचारिणी—स्त्री॰—ब्रह्मन्-चारिणी—-—वह स्त्री जो सतीत्व व्रत का पालन करती है
- ब्रह्मजः—पुं॰—ब्रह्मन्-जः—-—कार्तिकेय का विशेषण
- ब्रह्मजारः—पुं॰—ब्रह्मन्-जारः—-—ब्राह्मण की पत्नी का प्रेमी
- ब्रह्मजीविन्—पुं॰—ब्रह्मन्-जीविन्—-—जो ब्रह्मज्ञान के द्वारा ही अपनी आजीविका कमाता है
- ब्रह्मज्ञ—वि॰—ब्रह्मन्-ज्ञ—-—जो ब्रह्मा को जानता है
- ब्रह्मज्ञः—पुं॰—ब्रह्मन्-ज्ञः—-—कार्तिकेय का विशेषण
- ब्रह्मज्ञः—पुं॰—ब्रह्मन्-ज्ञः—-—विष्णु का विशेषण
- ब्रह्मज्ञानम्—नपुं॰—ब्रह्मन्-ज्ञानम्—-—सत्यज्ञान, दिव्यज्ञान, विश्व की ब्रह्म के साथ एकरूपता का ज्ञान
- ब्रह्मज्येष्ठः—पुं॰—ब्रह्मन्-ज्येष्ठः—-—ब्राह्मण का बड़ा भाई
- ब्रह्मज्योतिस्—नपुं॰—ब्रह्मन्-ज्योतिस्—-—ब्रह्म या परमात्मा की ज्ञानज्योतिः
- ब्रह्मतत्त्वम्—नपुं॰—ब्रह्मन्-तत्त्वम्—-—परमात्मा का यथार्थ ज्ञान
- ब्रह्मतेजस्—नपुं॰—ब्रह्मन्-तेजस्—-—ब्रह्मा की कीर्ति
- ब्रह्मतेजस्—नपुं॰—ब्रह्मन्-तेजस्—-—ब्रह्म की कान्ति, वह कीर्ति या कान्ति जो ब्राह्मण को चारों ओर से घेरे हुए समझी जाती है
- ब्रह्मदः—पुं॰—ब्रह्मन्-दः—-—वेदज्ञान के प्रदाता गुरु
- ब्रह्मदण्डः—पुं॰—ब्रह्मन्-दण्डः—-—ब्राह्मण का शाप
- ब्रह्मदण्डः—पुं॰—ब्रह्मन्-दण्डः—-—ब्राह्मण को दिया गया उपहार
- ब्रह्मदण्डः—पुं॰—ब्रह्मन्-दण्डः—-—शिव का विशेषण
- ब्रह्मदानम्—नपुं॰—ब्रह्मन्-दानम्—-—वेद पढ़ाना
- ब्रह्मदानम्—नपुं॰—ब्रह्मन्-दानम्—-—वेद का ज्ञान जो उत्तराधिकार में या वंशानुक्रम से प्राप्त होता है
- ब्रह्मदायादः—पुं॰—ब्रह्मन्-दायादः—-—ब्राह्मण, जो वेदों को आनुवंशिक उपहार के रूप में प्राप्त करता है
- ब्रह्मदायादः—पुं॰—ब्रह्मन्-दायादः—-—ब्राह्मण का पुत्र
- ब्रह्मदारुः—पुं॰—ब्रह्मन्-दारुः—-—शहतूत का पेड़
- ब्रह्मदिनम्—नपुं॰—ब्रह्मन्-दिनम्—-—ब्रह्मा का दिन
- ब्रह्मदैत्यः—पुं॰—ब्रह्मन्-दैत्यः—-—वह ब्राह्मण जो राक्षस बन जाय
- ब्रह्मद्विष्—वि॰—ब्रह्मन्-द्विष्—-—ब्राह्मणों से घृणा करने वाला
- ब्रह्मद्विष्—वि॰—ब्रह्मन्-द्विष्—-—वेदविहित कृत्यों या भक्ति का विरोधी, अपावन, निरीश्वरवादी
- ब्रह्मद्वेषिन्—वि॰—ब्रह्मन्-द्वेषिन्—-—ब्राह्मणों से घृणा करने वाला
- ब्रह्मद्वेषिन्—वि॰—ब्रह्मन्-द्वेषिन्—-—वेदविहित कृत्यों या भक्ति का विरोधी, अपावन, निरीश्वरवादी
- ब्रह्मद्वेषः—पुं॰—ब्रह्मन्-द्वेषः—-—ब्राह्मणों की घृणा
- ब्रह्मनदी—स्त्री॰—ब्रह्मन्-नदी—-—सरस्वती नदी का विशेषण
- ब्रह्मनाभः—पुं॰—ब्रह्मन्-नाभः—-—विष्णु का विशेषण
- ब्रह्मनिर्वाणम्—नपुं॰—ब्रह्मन्-निर्वाणम्—-—परमब्रह्म में लीन होना
- ब्रह्मनिष्ठ—वि॰—ब्रह्मन्-निष्ठ—-—परमात्माचिन्तन में लीन
- ब्रह्मनिष्ठः—पुं॰—ब्रह्मन्-निष्ठः—-—शहतूत का पेड़
- ब्रह्मपदम्—नपुं॰—ब्रह्मन्-पदम्—-—ब्राह्मण का पद या दर्जा
- ब्रह्मपदम्—नपुं॰—ब्रह्मन्-पदम्—-—परमात्मा का स्थान
- ब्रह्मपवित्रः—पुं॰—ब्रह्मन्-पवित्रः—-—कुश नामक घास
- ब्रह्मपरिषद्—स्त्री॰—ब्रह्मन्-परिषद्—-—ब्राह्मणों की सभा
- ब्रह्मपादपः—पुं॰—ब्रह्मन्-पादपः—-—ढाक का पेड़
- ब्रह्मपारायणम्—नपुं॰—ब्रह्मन्-पारायणम्—-—वेदों का पूर्ण अध्ययन, सारे वेद
- ब्रह्मपाशः—पुं॰—ब्रह्मन्-पाशः—-—ब्रह्मा द्वारा अधिष्ठित अस्त्र विशेष
- ब्रह्मपितृ—पुं॰—ब्रह्मन्-पितृ—-—विष्णु का विशेषण
- ब्रह्मपुत्रः—पुं॰—ब्रह्मन्-पुत्रः—-—ब्राह्मण का बेटा
- ब्रह्मपुत्रः—पुं॰—ब्रह्मन्-पुत्रः—-—हिमालय की पूर्वी सीमा से निकलने वाला तथा गंगा के साथ मिल कर बंगाल की खाड़ी में गिरने वाला ‘ब्रह्मपुत्र’ नाम का दरिया
- ब्रह्मपुत्री—स्त्री॰—ब्रह्मन्-पुत्री—-—सरस्वती नदी का विशेषण
- ब्रह्मपुरम्—नपुं॰—ब्रह्मन्-पुरम्—-—(स्वर्ग में) ब्रह्मा का नगर
- ब्रह्मपुरम्—नपुं॰—ब्रह्मन्-पुरम्—-—बाराणसी
- ब्रह्मपुरी—स्त्री॰—ब्रह्मन्-पुरी—-—(स्वर्ग में) ब्रह्मा का नगर
- ब्रह्मपुरी—स्त्री॰—ब्रह्मन्-पुरी—-—बाराणसी
- ब्रह्मपुराणम्—नपुं॰—ब्रह्मन्-पुराणम्—-—अठारह पुराणों में से एक का नाम
- ब्रह्मप्रलयः—पुं॰—ब्रह्मन्-प्रलयः—-—ब्रह्मा के सौ वर्ष बीतने पर सृष्टि का विनाश जिसमें स्वयं परमात्मा भी विलीन माना जाता है
- ब्रह्मप्राप्तिः—स्त्री॰—ब्रह्मन्-प्राप्तिः—-—परमात्मा में लीन होना
- ब्रह्मबन्धुः—पुं॰—ब्रह्मन्-बन्धुः—-—ब्राह्मण के लिए तिरस्कार-सूचक शब्द, अयोग्य ब्राह्मण हो
- ब्रह्मबन्धुः—पुं॰—ब्रह्मन्-बन्धुः—-—जो केवल जाति से ब्राह्मण हो, नाम मात्र का ब्रह्मण
- ब्रह्मबीजम्—नपुं॰—ब्रह्मन्-बीजम्—-—ईश्वरवाचक अक्षर ‘ॐ’
- ब्रह्मब्रुवाणः—पुं॰—ब्रह्मन्-ब्रुवाणः—-—जो ब्राह्मण होने का बहाना करता है
- ब्रह्मभवनम्—नपुं॰—ब्रह्मन्-भवनम्—-—ब्राह्मण का आवास
- ब्रह्मभागः—पुं॰—ब्रह्मन्-भागः—-—शहतूत का वृक्ष
- ब्रह्मभावः—पुं॰—ब्रह्मन्-भावः—-—परमात्मा में लीन होना
- ब्रह्मभुवनम्—नपुं॰—ब्रह्मन्-भुवनम्—-—ब्रह्मा की सृष्टि
- ब्रह्मभूत—वि॰—ब्रह्मन्-भूत—-—जो ब्रह्मा के साथ एक रूप हो गया है, परमात्मा में लीन
- ब्रह्मभूतिः—स्त्री॰—ब्रह्मन्-भूतिः—-—संध्या
- ब्रह्मभूयम्—नपुं॰—ब्रह्मन्-भूयम्—-—ब्रह्म के साथ एकरूपता
- ब्रह्मभूयम्—नपुं॰—ब्रह्मन्-भूयम्—-—ब्रह्म में लीनता, मोक्ष, निर्वाण
- ब्रह्मभूयम्—नपुं॰—ब्रह्मन्-भूयम्—-—ब्राह्मत्व, ब्राह्मण का पद या स्थिति
- ब्रह्मभूयस्—नपुं॰—ब्रह्मन्-भूयस्—-—ब्रह्म में लय
- ब्रह्ममङ्गलदेवता—स्त्री॰—ब्रह्मन्-मङ्गलदेवता—-—लक्ष्मी का विशेषण
- ब्रह्ममीमांसा—स्त्री॰—ब्रह्मन्-मीमांसा—-—वेदान्तदर्शन जिसमें ब्रह्म या परमात्माविषयक चर्चा है
- ब्रह्ममूर्ति—वि॰—ब्रह्मन्-मूर्ति—-—शिव का विशेषण
- ब्रह्ममूर्धभृत्—पुं॰—ब्रह्मन्-मूर्धभृत्—-—शिव का विशेषण
- ब्रह्ममेखलः—पुं॰—ब्रह्मन्-मेखलः—-—मूंज घास का पौधा
- ब्रह्मयज्ञः—पुं॰—ब्रह्मन्-यज्ञः—-—(गृहस्थ द्वारा अनुष्ठेय) दैनिक पंचयज्ञों में से एक, वेद का अध्यापन तथा सस्वर पाठ
- ब्रह्मयोगः—पुं॰—ब्रह्मन्-योगः—-—ब्रह्मज्ञान का अनुशीलन या अभिग्रहण
- ब्रह्मयोनि—वि॰—ब्रह्मन्-योनि—-—ब्रह्म से उत्पन्न
- ब्रह्मरत्नम्—नपुं॰—ब्रह्मन्-रत्नम्—-—ब्राह्मण को दिया गया मूल्यवान् उपहार
- ब्रह्मरन्ध्रम्—नपुं॰—ब्रह्मन्-रन्ध्रम्—-—मूर्धा में एक प्रकार का विवर जहाँ से जीव इस शरीर को छोड़ कर निकल जाता है
- ब्रह्मराक्षसः—पुं॰—ब्रह्मन्-राक्षसः—-—एक प्रकार का भूत, पिशाच, ब्रह्मराक्षस
- ब्रह्मरातः—पुं॰—ब्रह्मन्-रातः—-—शुकदेव का विशेषण
- ब्रह्मराशिः—पुं॰—ब्रह्मन्-राशिः—-—ब्रह्मज्ञान का मंडल या समस्त राशि, संपूर्ण वेद
- ब्रह्मराशिः—पुं॰—ब्रह्मन्-राशिः—-—परशुराम का विशेषण
- ब्रह्मरीतिः—स्त्री॰—ब्रह्मन्-रीतिः—-—एक प्रकार का पीतल
- ब्रह्मरेखा—स्त्री॰—ब्रह्मन्-रेखा—-—विधाता के द्वारा मस्तक पर लिखी गई पंक्तियाँ जिनसे मनुष्य का भाग्य प्रकट होता है, मनुष्य का प्रारब्ध
- ब्रह्मलेखा—स्त्री॰—ब्रह्मन्-लेखा—-—विधाता के द्वारा मस्तक पर लिखी गई पंक्तियाँ जिनसे मनुष्य का भाग्य प्रकट होता है, मनुष्य का प्रारब्ध
- ब्रह्मलिखितम्—नपुं॰—ब्रह्मन्-लिखितम्—-—विधाता के द्वारा मस्तक पर लिखी गई पंक्तियाँ जिनसे मनुष्य का भाग्य प्रकट होता है, मनुष्य का प्रारब्ध
- ब्रह्मलेखः—पुं॰—ब्रह्मन्-लेखः—-—विधाता के द्वारा मस्तक पर लिखी गई पंक्तियाँ जिनसे मनुष्य का भाग्य प्रकट होता है, मनुष्य का प्रारब्ध
- ब्रह्मलोकः—पुं॰—ब्रह्मन्-लोकः—-—ब्रह्मा का लोक
- ब्रह्मक्तृ—पुं॰—ब्रह्मन्-क्तृ—-—वेदों का व्याख्याता
- ब्रह्मवद्यम्—नपुं॰—ब्रह्मन्-वद्यम्—-—ब्रह्म का ज्ञान
- ब्रह्मवधः—पुं॰—ब्रह्मन्-वधः—-—ब्राह्मण की हत्या
- ब्रह्मवध्या—स्त्री॰—ब्रह्मन्-वध्या—-—ब्राह्मण की हत्या
- ब्रह्महत्या—स्त्री॰—ब्रह्मन्-हत्या—-—ब्राह्मण की हत्या
- ब्रह्मवर्चस्—नपुं॰—ब्रह्मन्-वर्चस्—-—दिव्य आभा या कीर्ति, ब्रह्मज्ञान से उत्पन्न आत्मशक्ति या तेज
- ब्रह्मवर्चस्—नपुं॰—ब्रह्मन्-वर्चस्—-—ब्राह्मण की अन्तर्हित पवित्रता या शक्ति, ब्रह्मतेज
- ब्रह्मवर्चसम्—नपुं॰—ब्रह्मन्-वर्चसम्—-—दिव्य आभा या कीर्ति, ब्रह्मज्ञान से उत्पन्न आत्मशक्ति या तेज
- ब्रह्मवर्चसम्—नपुं॰—ब्रह्मन्-वर्चसम्—-—ब्राह्मण की अन्तर्हित पवित्रता या शक्ति, ब्रह्मतेज
- ब्रह्मवर्चसिन्—वि॰—ब्रह्मन्-वर्चसिन्—-—ब्रह्म तेज से पवित्रीकृत, शुद्धात्मा
- ब्रह्मवर्चसिन्—पुं॰—ब्रह्मन्-वर्चसिन्—-—प्रमुख या श्रद्धेय ब्राह्मण
- ब्रह्मवर्चस्विन्—वि॰—ब्रह्मन्-वर्चस्विन्—-—ब्रह्म तेज से पवित्रीकृत, शुद्धात्मा
- ब्रह्मवर्चस्विन्—पुं॰—ब्रह्मन्-वर्चस्विन्—-—प्रमुख या श्रद्धेय ब्राह्मण
- ब्रह्मवर्तः—पुं॰—ब्रह्मन्-वर्तः—-—(हस्तिनापुर के पश्चिमोत्तर में) सरस्वती और दृषद्वती नदियों के बीच का मार्ग
- ब्रह्मवर्धनम्—नपुं॰—ब्रह्मन्-वर्धनम्—-—तांबा
- ब्रह्मवादिन्—पुं॰—ब्रह्मन्-वादिन्—-—जो वेदों का अध्यापन करता है, वेदव्याख्याता
- ब्रह्मवादिन्—पुं॰—ब्रह्मन्-वादिन्—-—वेदान्त दर्शन का अनुयायी
- ब्रह्मवासः—पुं॰—ब्रह्मन्-वासः—-—ब्राह्मण का आवासस्थल
- ब्रह्मविद्—वि॰—ब्रह्मन्-विद्—-—परमात्मा को जानने वाला, ब्रह्मज्ञ
- ब्रह्मविद्—पुं॰—ब्रह्मन्-विद्—-—ऋषि, ब्रह्मवेत्ता, वेदान्ती
- ब्रह्मविद—वि॰—ब्रह्मन्-विद—-—परमात्मा को जानने वाला, ब्रह्मज्ञ
- ब्रह्मविद—पुं॰—ब्रह्मन्-विद—-—ऋषि, ब्रह्मवेत्ता, वेदान्ती
- ब्रह्मविद्या—स्त्री॰—ब्रह्मन्-विद्या—-—ब्रह्मज्ञान
- ब्रह्मविन्दु—वि॰—ब्रह्मन्-विन्दु—-—वेद का पाठ करते समय मुँह से निकालने वाला थुक का छींटा
- ब्रह्मबिन्दु—वि॰—ब्रह्मन्-बिन्दु—-—वेद का पाठ करते समय मुँह से निकालने वाला थुक का छींटा
- ब्रह्मविवर्धनः—पुं॰—ब्रह्मन्- विवर्धनः—-—इन्द्र का विशेषण
- ब्रह्मवृक्षः—पुं॰—ब्रह्मन्-वृक्षः—-—ढाक का पेड़
- ब्रह्मवृक्षः—पुं॰—ब्रह्मन्-वृक्षः—-—गूलर का वृक्ष
- ब्रह्मवृत्तिः—स्त्री॰—ब्रह्मन्-वृत्तिः—-—ब्राह्मण की आजीविका
- ब्रह्मवृन्दम्—नपुं॰—ब्रह्मन्-वृन्दम्—-—ब्राह्मणों की समूह
- ब्रह्मवेदः—पुं॰—ब्रह्मन्-वेदः—-—वेदों का ज्ञान
- ब्रह्मवेदः—पुं॰—ब्रह्मन्-वेदः—-—ब्रह्म का ज्ञान
- ब्रह्मवेदः—पुं॰—ब्रह्मन्-वेदः—-—अथर्ववेद का नाम
- ब्रह्मवेदिन्—वि॰—ब्रह्मन्-वेदिन्—-—वेदवेत्ता
- ब्रह्मवैवर्तम्—नपुं॰—ब्रह्मन्-वैवर्तम्—-—अठारह पुराणों मे से एक
- ब्रह्मव्रतम्—नपुं॰—ब्रह्मन्-व्रतम्—-—सतीत्व या शुचिता की प्रतिज्ञा
- ब्रह्मशिरस्—नपुं॰—ब्रह्मन्-शिरस्—-—एक विशिष्ट अस्त्र का नाम
- ब्रह्मशीर्षन्—नपुं॰—ब्रह्मन्-शीर्षन्—-—एक विशिष्ट अस्त्र का नाम
- ब्रह्मसंसद्—स्त्री॰—ब्रह्मन्-संसद्—-—ब्राह्मणों की सभा
- ब्रह्मसती—स्त्री॰—ब्रह्मन्-सती—-—सरस्वती नदी का विशेषण
- ब्रह्मसत्रम्—नपुं॰—ब्रह्मन्-सत्रम्—-—वेद का पढ़ना-पढ़ाना, ब्रह्मयज्ञ
- ब्रह्मसत्रम्—नपुं॰—ब्रह्मन्-सत्रम्—-—परमात्मा में लय होना
- ब्रह्मसदस्—नपुं॰—ब्रह्मन्-सदस्—-—ब्रह्मा का निवासस्थान
- ब्रह्मसभा—स्त्री॰—ब्रह्मन्-सभा—-—ब्रह्मा का दरबार, ब्रह्मा की सभा या भवन
- ब्रह्मसंभव—वि॰—ब्रह्मन्-संभव—-—ब्रह्मा से उत्पन्न या प्राप्त
- ब्रह्मवः—पुं॰—ब्रह्मन्-वः—-—नारद का नामान्तर
- ब्रह्मसर्पः—पुं॰—ब्रह्मन्-सर्पः—-—एक प्रकार का साँप
- ब्रह्मसायुज्यम्—नपुं॰—ब्रह्मन्-सायुज्यम्—-—परमात्मा के साथ पूर्ण एकरूपता
- ब्रह्मसार्ष्टिका—स्त्री॰—ब्रह्मन्-सार्ष्टिका—-—ब्रह्म के साथ एकरूपता
- ब्रह्मसावर्णिः—पुं॰—ब्रह्मन्-सावर्णिः—-—दसवें मनु का नामान्तर
- ब्रह्मसुतः—पुं॰—ब्रह्मन्-सुतः—-—नारद का नामान्तर, मरीचि आदि
- ब्रह्मसुतः—पुं॰—ब्रह्मन्-सुतः—-—एक प्रकार का केतु
- ब्रह्मसूः—स्त्री॰—ब्रह्मन्-सूः—-—अनिरुद्ध का नामान्तर
- ब्रह्मसूः—स्त्री॰—ब्रह्मन्-सूः—-—कामदेव का नामान्तर
- ब्रह्मसूत्रम्—नपुं॰—ब्रह्मन्-सूत्रम्—-—जनेऊ या यज्ञोपवीत जिसे ब्राह्मण या द्विजमात्र कंधे के ऊपर से धारणा करते हैं
- ब्रह्मसूत्रम्—नपुं॰—ब्रह्मन्-सूत्रम्—-—बादरायण द्वारा रचित वेदान्तदर्शन के सूत्र
- ब्रह्मसूत्रिन्—वि॰—ब्रह्मन्-सूत्रिन्—-—जिसका उपनयन संस्कार हो चुका हो, यज्ञोपवीतधारी
- ब्रह्मसृज्—पुं॰—ब्रह्मन्-सृज्—-—शिव का विशेषण
- ब्रह्मस्तम्ब—वि॰—ब्रह्मन्-स्तम्ब—-—संसार, विश्व
- ब्रह्मस्तेयम्—नपुं॰—ब्रह्मन्-स्तेयम्—-—अवैध उपायों से उपर्जित वेदज्ञान
- ब्रह्मस्वम्—नपुं॰—ब्रह्मन्-स्वम्—-—ब्राह्मण की संपत्ति या धनदौलत
- ब्रह्महारिन्—वि॰—ब्रह्मन्-हारिन्—-—ब्राह्मण का धन चुराने वाला
- ब्रह्महन्—वि॰—ब्रह्मन्-हन्—-—ब्रह्महत्यारा, ब्राहण की हत्या करने वाला
- ब्रह्महुतम्—नपुं॰—ब्रह्मन्-हुतम्—-—दैनिक पाँच यज्ञों में से एक जिसमें अतिथिसत्कार की क्रियाएँ सम्मिलित हैं
- ब्रह्महृदयः—पुं॰—ब्रह्मन्-हृदयः—-—एक नक्षत्र का नाम जिसे अंग्रेजी में कैपेल्ला कहते हैं
- ब्रह्महृदम्—नपुं॰—ब्रह्मन्-हृदयम्—-—एक नक्षत्र का नाम जिसे अंग्रेजी में कैपेल्ला कहते हैं
- ब्रह्ममय—वि॰—-—ब्रह्मन् + यमट्—वेद से युक्त या व्युत्पन्न, वेद या वेदज्ञान से संबद्ध
- ब्रह्ममय—वि॰—-—ब्रह्मन् + यमट्—ब्राह्मण के योग्य
- ब्रह्ममयम्—नपुं॰—-—-—ब्रह्मा से अधिष्ठित अस्त्र
- ब्रह्मवत्—वि॰—-—ब्रह्म + मतुप्—वेदज्ञान रखने वाला
- ब्रह्मसात्—अव्य॰—-—ब्रह्मन् + साति—ब्रह्म या परमात्मा की स्थिति
- ब्रह्मसात्—अव्य॰—-—ब्रह्मन् + साति—ब्राह्मणों की देखरेख में
- ब्रह्माणी—स्त्री॰—-—ब्रह्मन् + अण् + ङीप्—ब्रह्मा की पत्नी
- ब्रह्माणी—स्त्री॰—-—ब्रह्मन् + अण् + ङीप्—दुर्गा का विशेषण
- ब्रह्माणी—स्त्री॰—-—ब्रह्मन् + अण् + ङीप्—एक प्रकार का गन्धद्रव्य (रेणुका)
- ब्रह्माणी—स्त्री॰—-—ब्रह्मन् + अण् + ङीप्—एक प्रकार का पीतल
- ब्रह्मिन्—वि॰—-—ब्रह्मन् + इनि, टिलोपः—ब्रह्मा से संबद्ध
- ब्रह्मिन्—पुं॰—-—-—विष्णु का विशेषण
- ब्रह्मिष्ठ—वि॰—-—ब्रह्मन् + इष्ठन्, टिलोपः—वेदों का पूर्ण पंडित, अतिशय विद्वान्, या पुण्यात्मा
- ब्रह्मिष्ठा—स्त्री॰—-—-—दुर्गा का विशेषण
- ब्रह्मी—स्त्री॰—-—ब्रह्मन् + अण् + ङीप्—ब्राह्मी बूटी का पौधा
- ब्रह्मेशयः—पुं॰—-—ब्रह्मणि तपसि शेते-शी + अच्, पृषो॰ साधुः—कार्तिकेय का विशेषण
- ब्रह्मेशयः—पुं॰—-—ब्रह्मणि तपसि शेते-शी + अच्, पृषो॰ साधुः—विष्णु की उपाधि
- ब्राह्म—वि॰—-—ब्रह्मन् + अण्, टिलोपः—ब्रह्मा, विधाता या परमात्मा से संबद्ध
- ब्राह्म—वि॰—-—ब्रह्मन् + अण्, टिलोपः—ब्राह्मणों से संबद्ध
- ब्राह्म—वि॰—-—ब्रह्मन् + अण्, टिलोपः—वेदाध्ययन या ब्रह्मज्ञान से संबद्ध
- ब्राह्म—वि॰—-—ब्रह्मन् + अण्, टिलोपः—वेदविहित, वैदिक
- ब्राह्म—वि॰—-—ब्रह्मन् + अण्, टिलोपः—विशुद्ध, पवित्र, दिव्य
- ब्राह्म—वि॰—-—ब्रह्मन् + अण्, टिलोपः—ब्रह्मा द्वारा अधिष्ठित जैसा कि मुहूर्त या अस्त्र
- ब्राह्मः—पुं॰—-—-—हिन्दूधर्मशास्त्र के अनुसार आठ प्रकार के विवाहों में से एक
- ब्राह्मः—पुं॰—-—-—नारद का नामान्तर
- ब्राह्मम्—नपुं॰—-—-—हथेली का अंगुष्ठमूल के नीचे का भाग
- ब्राह्मम्—नपुं॰—-—-—वेदाध्ययन
- ब्राह्माहोरात्रः—पुं॰—ब्राह्म-अहोरात्रः—-—ब्रह्मा का एक दिन और एक रात
- ब्राह्मदेया—स्त्री॰—ब्राह्म-देया—-—ब्राह्म विवाह की रीति से विवाहित की जाने वाली कन्या
- ब्राह्ममुहूर्तः—पुं॰—ब्राह्म-मुहूर्तः—-—दिन का विशिष्ट भाग, दिन का सर्वथा सवेरे का समय
- ब्राह्मण—वि॰—-—ब्रह्म वेदं शुद्धं चैतन्यं वा वेत्त्यधीते वा-अण्—ब्राह्मण का
- ब्राह्मण—वि॰—-—ब्रह्म वेदं शुद्धं चैतन्यं वा वेत्त्यधीते वा-अण्—ब्राह्मण के योग्य
- ब्राह्मण—वि॰—-—ब्रह्म वेदं शुद्धं चैतन्यं वा वेत्त्यधीते वा-अण्—ब्राह्मण द्वारा दिया गया
- ब्राह्मणः—पुं॰—-—-—हिंदू धर्म के माने हुए चार वर्णों में सर्वप्रथम वर्ण का
- ब्राह्मणः—पुं॰—-—-—पुरोहित, ब्रह्मज्ञानी या धर्मशास्त्री
- ————
- ब्राह्मणः—पुं॰—-—-—अग्नि का विशेषण
- ब्राह्मणः—पुं॰—-—-—वेद का वह भाग जो विविध यज्ञों के विषय में मन्त्रों के विनियोग तथा विवरणात्मक व्याख्या को तत्संबधी निदर्शनों के साथ जो उपाख्यानों के रूप में विद्यमान हैं, प्रस्तुत करता है; वेद के मन्त्रभाग से यह बिल्कुल पृथक् है
- ब्राह्मणः—पुं॰—-—-—वैदिक रचनाओं का समूह जिसमें ब्राह्मण भाग सम्मिलित है
- ब्राह्मणातिक्रमः—पुं॰—ब्राह्मणः-अतिक्रमः—-—ब्राह्मणों के प्रति सदोष या तिरस्कार सूचक व्यवहार, ब्राह्मणों का अनादर
- ब्राह्मणापाश्रयः—पुं॰—ब्राह्मणः-अपाश्रयः—-—ब्राह्मणों की शरण में जाना
- ब्राह्मणाभ्युपपत्तिः—स्त्री॰—ब्राह्मणः-अभ्युपपत्तिः—-—ब्राह्मण की रक्षा या पालन-पोषण, ब्राह्मण के प्रति प्रदर्शित कृपा
- ब्राह्मणघ्नः—पुं॰—ब्राह्मणः-घ्नः—-—ब्राह्मण की हत्या करने वाला
- ब्राह्मणजातम्—स्त्री॰—ब्राह्मणः-जातम्—-—ब्राह्मण की जाति
- ब्राह्मणजातिः—स्त्री॰—ब्राह्मणः-जातिः—-—ब्राह्मण की जाति
- ब्राह्मणजीविका—स्त्री॰—ब्राह्मणः-जीविका—-—ब्राह्मण के लिए विहित वृत्ति के साधन
- ब्राह्मणद्रव्यम्—नपुं॰—ब्राह्मणः-द्रव्यम्—-—ब्राह्मण की संपत्ति
- ब्राह्मणस्वम्—नपुं॰—ब्राह्मणः-स्वम्—-—ब्राह्मण की संपत्ति
- ब्राह्मणनिन्दकः—पुं॰—ब्राह्मणः-निन्दकः—-—ब्राह्मणों की निन्दा करने वाला
- ब्राह्मणब्रुवः—पुं॰—ब्राह्मणः-ब्रुवः—-—जो ब्राह्मण होने का बहाना करता है, नाम मात्र का ब्राह्मण जो ब्राह्मण जाति के विहित कर्तव्यों का पालन नहीं करता है
- ब्राह्मणभूयिष्ठ—वि॰—ब्राह्मणः-भूयिष्ठ—-—जिसमें अधिकतर ब्राह्मण ही रहते हों
- ब्राह्मणवधः—पुं॰—ब्राह्मणः-वधः—-—ब्राह्मण की हत्या, ब्रह्महत्या
- ब्राह्मणसन्तर्पणम्—नपुं॰—ब्राह्मणः-सन्तर्पणम्—-—ब्राह्मणों को खिलाना या तृप्त करना
- ब्राह्मणकः—पुं॰—-—ब्राह्मण + कन्—अयोग्य या नीच ब्राह्मण, नाम का ब्राह्मण
- ब्राह्मणकः—पुं॰—-—ब्राह्मण + कन्—एक देश का नाम जहाँ योद्धा ब्राह्मणों का वास हो
- ब्राह्मणत्रा—अव्य॰—-—ब्राह्मण + त्राच्—ब्राह्मणों में
- ब्राह्मणत्रा—अव्य॰—-—ब्राह्मण + त्राच्—ब्राह्मण की पदवी को
- ब्राह्मणाच्छंसिन्—पुं॰—-—ब्राह्मणे विहितानि शास्त्राणि शंसति द्वितीयार्थे पंचम्युपसंख्यानम्-अलुक् स॰, शंस् + इनि—एक पुरोहित का नामान्तर, ब्रह्मा नामक ऋत्विज् का सहायक
- ब्राह्मणी—स्त्री॰—-—ब्राह्मण + ङीष्—ब्राह्मण जाति की स्त्री
- ब्राह्मणी—स्त्री॰—-—ब्राह्मण + ङीष्—ब्राह्मण की पत्नी
- ब्राह्मणी—स्त्री॰—-—ब्राह्मण + ङीष्—प्रतिभा
- ब्राह्मणी—स्त्री॰—-—ब्राह्मण + ङीष्—एक प्रकार की छिपकली
- ब्राह्मणी—स्त्री॰—-—ब्राह्मण + ङीष्—एक प्रकार की भिरड़
- ब्राह्मणी—स्त्री॰—-—ब्राह्मण + ङीष्—एक प्रकार का घास
- ब्राह्मणीगामिन्—पुं॰—ब्राह्मणी-गामिन्—-—ब्राह्मण स्त्री का प्रेमी
- ब्राह्मण्य—वि॰—-—ब्राह्मण + ष्यञ् वा यत्—ब्राह्मण के योग्य
- ब्राह्मण्यः—पुं॰—-—-—शनिग्रह का विशेषण
- ब्राह्मण्यम्—नपुं॰—-—-—ब्राह्मण की पदवी या दर्जा, पौरोहित्य या याजकीय वृत्ति
- ब्राह्मण्यम्—नपुं॰—-—-—ब्राह्मणों का समुदाय
- ब्राह्मी—स्त्री॰—-—ब्राह्म + ङीप्—ब्रह्म की मूर्तिमती शक्ति
- ब्राह्मी—स्त्री॰—-—ब्राह्म + ङीप्—वाणी की देवी सरस्वति
- ब्राह्मी—स्त्री॰—-—ब्राह्म + ङीप्—वाणी
- ब्राह्मी—स्त्री॰—-—ब्राह्म + ङीप्—कहानी, कथा
- ब्राह्मी—स्त्री॰—-—ब्राह्म + ङीप्—धार्मिक प्रथा या रिवाज
- ब्राह्मी—स्त्री॰—-—ब्राह्म + ङीप्—रोहिणी नक्षत्र
- ब्राह्मी—स्त्री॰—-—ब्राह्म + ङीप्—दुर्गा का नामान्तर
- ब्राह्मी—स्त्री॰—-—ब्राह्म + ङीप्—ब्राह्मविवाह की विधि से परिणीता स्त्री
- ब्राह्मी—स्त्री॰—-—ब्राह्म + ङीप्—ब्राह्मण की पत्नी
- ब्राह्मी—स्त्री॰—-—ब्राह्म + ङीप्—एक प्रकार की बूटी
- ब्राह्मी—स्त्री॰—-—ब्राह्म + ङीप्—एक प्रकार का पीपल
- ब्राह्मी—स्त्री॰—-—ब्राह्म + ङीप्—नदी का नामान्तर
- ब्राह्मीकन्दः—पुं॰—ब्राह्मी-कन्दः—-—वाहारी कंद
- ब्राह्मीपुत्रः—पुं॰—ब्राह्मी-पुत्रः—-—ब्राह्मी का पुत्र
- ब्राह्म्य—वि॰—-—ब्रह्मन् + ष्यञ्—ब्रह्मा अर्थात् विधाता से संबंध रखने वाला
- ब्राह्म्य—वि॰—-—ब्रह्मन् + ष्यञ्—परमात्मा से संबद्ध
- ब्राह्म्य—वि॰—-—ब्रह्मन् + ष्यञ्—ब्राह्मणों से संबद्ध
- ब्राह्म्यम्—नपुं॰—-—-—आश्चर्य, अचम्भा विस्मय
- ब्राह्म्यमुहूर्त—वि॰—ब्राह्म्य-मुहूर्त—-—अतिथिसत्कार
- ब्राह्म्यहुतम्—नपुं॰—ब्राह्म्य-हुतम्—-—अतिथिसत्कार
- ब्रुव—वि॰—-—ब्रू + क—बनने वाला, बहाना करने वाला, अपने आपको उस नाम से पुकारने वाला जो उसका वास्तविक नाम न हो
- ब्रू—अदा॰ उभ॰ <व्रवीति>, <व्रुते> —-—-—कहना बोलना, बात करना
- ब्रू—अदा॰ उभ॰ <व्रवीति>, <व्रुते> —-—-—कहना, बोलना, संकेत करना (किसी व्यक्ति या वस्तु की ओर)
- ब्रू—अदा॰ उभ॰ <व्रवीति>, <व्रुते> —-—-—घोषणा करना, प्रकथन करना, प्रकाशित करना, सिद्ध करना
- ब्रू—अदा॰ उभ॰ <व्रवीति>, <व्रुते> —-—-—नाम लेना, पुकारना, नाम रखना
- ब्रू—अदा॰ उभ॰ <व्रवीति>, <व्रुते> —-—-—उत्तर देना
- अनुब्रू—अदा॰ उभ॰—अनु-ब्रू—-—कहना, बोलना, घोषणा करना
- निःब्रू—अदा॰ उभ॰—निस्-ब्रू—-—व्याख्या करना, व्युत्पति बतलाना
- प्रब्रू—अदा॰ उभ॰—प्र-ब्रू—-—कहना बोलना, बात करना
- प्रतिब्रू—अदा॰ उभ॰—प्रति-ब्रू—-—उत्तर में बोलना, उत्तर या जवाब देना
- विब्रू—अदा॰ उभ॰—वि-ब्रू—-—कहना, बोलना
- विब्रू—अदा॰ उभ॰—वि-ब्रू—-—गलत कहना, मिथ्या बतलाना
- ब्लेष्कम्—नपुं॰—-—-—फंदा, जाल, पाश
- भः—पुं॰—-—भा+ङ—शुक्र ग्रह का नामान्तर
- भः—पुं॰—-—-—भ्रम, भ्रान्ति, आभास
- भम्—नपुं॰—-—-—तारा
- भम्—नपुं॰—-—-—नक्षत्र
- भम्—नपुं॰—-—-—ग्रह
- भम्—नपुं॰—-—-—राशि
- भम्—नपुं॰—-—-—सत्ताइस की संख्या
- भम्—नपुं॰—-—-—मधुमक्खी
- भेनः—पुं॰—भः+ईनः—-—सूर्य
- भेशः—पुं॰—भः+ईशः—-—सूर्य
- भगणः—पुं॰—भः+गणः—-—तारापुंज, नक्षत्रपुंज
- भगणः—पुं॰—भः+गणः—-—राशि चक्र
- भगणः—पुं॰—भः+गणः—-—ग्रहों का राशिचक्र में भ्रमण
- भवर्गः—पुं॰—भः+वर्गः—-—तारापुंज, नक्षत्रपुंज
- भवर्गः—पुं॰—भः+वर्गः—-—राशि चक्र
- भवर्गः—पुं॰—भः+वर्गः—-—ग्रहों का राशिचक्र में भ्रमण
- भगोलः—पुं॰—भः+गोलः—-—तारामंडल
- भचक्रम्—नपुं॰—भः+चक्रम्—-—राशिचक्र
- भमण्डलम्—नपुं॰—भः+मण्डलम्—-—राशिचक्र
- भपतिः—पुं॰—भः+पतिः—-—चन्द्रमा
- भसूचकः—पुं॰—भः+सूचकः—-—ज्योतिषी
- भक्किका—स्त्री॰—-—-—झींगुर
- भक्त—भू॰क॰कृ॰—-—भज्+क्त—विभक्त, नियतीकृत, निर्दिष्ट
- भक्त—भू॰क॰कृ॰—-—भज्+क्त—विभाजित
- भक्त—भू॰क॰कृ॰—-—भज्+क्त—सेवित, पूजित
- भक्त—भू॰क॰कृ॰—-—भज्+क्त—व्यस्त, दत्तचित्त
- भक्त—भू॰क॰कृ॰—-—भज्+क्त—अनुरक्त, संलग्न, श्रद्धालु, निष्ठावान्
- भक्त—भू॰क॰कृ॰—-—भज्+क्त—प्रसाधित, पक्व
- भक्तः—पुं॰—-—भज्+क्त—पूजक, आराधक, उपासक, पुजारी या दास, स्वामिभक्त नौकर
- भक्तम्—नपुं॰—-—भज्+क्त—हिस्सा, भाग
- भक्तम्—नपुं॰—-—भज्+क्त—भोजन
- भक्तम्—नपुं॰—-—भज्+क्त—उबाला हुआ चावल, भात
- भक्तम्—नपुं॰—-—भज्+क्त—पानी में डाल कर पकाया हुआ कोई भी अन्न
- भक्ताभिलाषः—पुं॰—भक्त+अभिलाषः—-—भोजन की इच्छा, भूख
- भक्तोपसाधकः—पुं॰—भक्त+उपसाधकः—-—रसोइया
- भक्तकंसः—पुं॰—भक्त+कंसः—-—भोजन की थाली
- भक्तकरः—पुं॰—भक्त+करः—-—नाना प्रकार के गन्ध द्रव्यों से तैयार की गई धूप
- भककारः—पुं॰—भक्त+कारः—-—रसोइया
- भक्तछन्दम्—नपुं॰—भक्त+छन्दम्—-—भूख
- भकदासः—पुं॰—भक्त+दासः—-—भोजन मात्रा पर दूसरों की सेवा करने वाला नौकर, जिसे सेवा के बदले केवल भोजन ही मिलता है
- भक्तद्वेषः—पुं॰—भक्त+द्वेषः—-—भोजन से अरुचि, मंदाग्नि
- भक्तमण्डः—पुं॰—भक्त+मण्डः—-—भात का मांड
- भक्तरोचन—वि॰—भक्त+रोचन—-—भूख को उत्तेजित करने वाला
- भक्तवत्सल—वि॰—भक्त+वत्सल—-—अपने पूजक और भक्तों के प्रति कृपालु
- भक्तशाला—स्त्री॰—भक्त+शाला—-—श्रोतृ-कक्ष
- भक्तशाला—स्त्री॰—भक्त+शाला—-—भोजन-गृह
- भक्तिः—स्त्री॰—-—भज्+क्तिन्—वियोजन, पृथक्करण, विभाजन,
- भक्तिः—स्त्री॰—-—भज्+क्तिन्—प्रभाग, अंश, हिस्सा
- भक्तिः—स्त्री॰—-—भज्+क्तिन्—उपासना, अनुरक्ति, सेवा, स्वामिभक्ति
- भक्तिः—स्त्री॰—-—भज्+क्तिन्—सम्मान, सेवा, पूजा, श्रद्धा
- भक्तिः—स्त्री॰—-—भज्+क्तिन्—विन्यास, व्यवस्था @ रघु॰५।७४
- भक्तिः—स्त्री॰—-—भज्+क्तिन्—सजावट, अलंकार,शृंगार
- भक्तिः—स्त्री॰—-—भज्+क्तिन्—विशेषण
- भक्तिनम्र—वि॰—भक्तिः+नम्र—-—विनम्र अभिवादन करने वाला
- भक्तिपूर्वम्—अव्य॰—भक्तिः+पूर्वम्—-—भक्तिपूर्वक, सम्मानपूर्वक
- भक्तिपूर्वकम्—अव्य॰—भक्तिः+पूर्वकम्—-—भक्तिपूर्वक, सम्मानपूर्वक
- भक्तिभाज्—वि॰—भक्तिः+भाज्—-—धर्मनिष्ठ, श्रद्धालु
- भक्तिभाज्—वि॰—भक्तिः+भाज्—-—दृढ़ अनुराग रखने वाला, निष्ठावान्, श्रद्धालु
- भक्तिमार्गः—पुं॰—भक्तिः+मार्गः—-—भक्ति की रीति अर्थात् परमात्मा की उपासना
- भक्तियोगः—पुं॰—भक्तिः+योगः—-—सानुराग निष्ठा, श्रद्धापूर्वक उपासना
- भक्तिवादः—पुं॰—भक्तिः+वादः—-—अनुराग का विश्वास
- भक्तिमत्—वि॰—-—भक्ति+मतुप्—उपासक, श्रद्धालु
- भक्तिमत्—वि॰—-—-—निष्ठावान्, स्वामिभक्त, अनुरागी
- भक्तिल—वि॰—-—भक्ति+ला+क—स्वामिभक्त, विश्वासपात्र
- भक्ष्—चुरा॰उभ॰<भक्षयति>, <भक्षयते>, <भक्षित>—-—-—खाना, निगलना
- भक्ष्—चुरा॰उभ॰<भक्षयति>, <भक्षयते>, <भक्षित>—-—-—उपयोग में लाना, उपभोग करना
- भक्ष्—चुरा॰उभ॰<भक्षयति>, <भक्षयते>, <भक्षित>—-—-—बर्बाद करना, नष्ट करना
- भक्ष्—चुरा॰उभ॰<भक्षयति>, <भक्षयते>, <भक्षित>—-—-—काटना
- भक्षः—पुं॰—-—भक्ष्+घञ्—खाना
- भक्षः—पुं॰—-—भक्ष्+घञ्—भोजन
- भक्षक—वि॰—-—भक्ष्+ण्वुल्—खाने वाला, निर्वाह करने वाला
- भक्षक—वि॰—-—भक्ष्+ण्वुल्—पेटू, भोजनभट्ट
- भक्षिका—स्त्री॰—-—भक्ष्+ण्वुल्+टाप्—खाने वाला, निर्वाह करने वाला
- भक्षिका—स्त्री॰—-—भक्ष्+ण्वुल्+टाप्—पेटू, भोजनभट्ट
- भक्षण—वि॰—-—भक्ष्+ल्युट्—खाने वाला, निगलने वाला
- भक्षणी—स्त्री॰—-—भक्ष्+ल्युट्+ङीप्—खाने वाला, निगलने वाला
- भक्षणम्—नपुं॰—-—भक्ष्+ल्युट्—खाना, खिलाना, जीविका चलाना
- भक्ष्य—वि॰—-—-—खाने के योग्य, भोजन के लायक
- भक्ष्यम्—नपुं॰—-—-—कोई भी भोज्य पदार्थ, खाद्य पदार्थ, आहार
- भक्ष्यकारः—पुं॰—भक्ष्य+कारः—-—पाचक, रसोइया
- भगः—पुं॰—-—भज्+घ—सूर्य के बारह रूपों में एक, सूर्य
- भगः—पुं॰—-—भज्+घ—चन्द्रमा
- भगः—पुं॰—-—भज्+घ—शिव का रूप
- भगः—पुं॰—-—भज्+घ—अच्छी किस्मत्, भाग्य, सुखद नियति, प्रसन्नता
- भगः—पुं॰—-—भज्+घ—सम्पन्नता, समृद्धि
- भगः—पुं॰—-—भज्+घ—मर्यादा, श्रेष्ठता
- भगः—पुं॰—-—भज्+घ—प्रसिद्धि, कीर्ति
- भगः—पुं॰—-—भज्+घ—लावण्य, सौन्दर्य
- भगः—पुं॰—-—भज्+घ—उत्कर्ष, श्रेष्ठता
- भगः—पुं॰—-—भज्+घ—प्रेम, स्नेह
- भगः—पुं॰—-—भज्+घ—प्रेममय रंगरेलियाँ, केलि, आमोद
- भगः—पुं॰—-—भज्+घ—स्त्री की योनि
- भगः—पुं॰—-—भज्+घ—सद्गुण, नैतिकता, धर्म की भावना
- भगः—पुं॰—-—भज्+घ—प्रयत्न, चेष्टा
- भगः—पुं॰—-—भज्+घ—इच्छा का अभाव, सांसारिक विषयों में विरक्त
- भगः—पुं॰—-—भज्+घ—मोक्ष
- भगः—पुं॰—-—भज्+घ—सामर्थ्य
- भगः—पुं॰—-—भज्+घ—सर्वशक्तिमत्ता
- भगम्—नपुं॰—-—भज्+घ—अच्छी किस्मत्, भाग्य, सुखद नियति, प्रसन्नता
- भगम्—नपुं॰—-—भज्+घ—सम्पन्नता, समृद्धि
- भगम्—नपुं॰—-—भज्+घ—मर्यादा, श्रेष्ठता
- भगम्—नपुं॰—-—भज्+घ—प्रसिद्धि, कीर्ति
- भगम्—नपुं॰—-—भज्+घ—लावण्य, सौन्दर्य
- भगम्—नपुं॰—-—भज्+घ—उत्कर्ष, श्रेष्ठता
- भगम्—नपुं॰—-—भज्+घ—प्रेम, स्नेह
- भगम्—नपुं॰—-—भज्+घ—प्रेममय रंगरेलियाँ, केलि, आमोद
- भगम्—नपुं॰—-—भज्+घ—स्त्री की योनि
- भगम्—नपुं॰—-—भज्+घ—सद्गुण, नैतिकता, धर्म की भावना
- भगम्—नपुं॰—-—भज्+घ—प्रयत्न, चेष्टा
- भगम्—नपुं॰—-—भज्+घ—इच्छा का अभाव, सांसारिक विषयों में विरक्त
- भगम्—नपुं॰—-—भज्+घ—मोक्ष
- भगम्—नपुं॰—-—भज्+घ—सामर्थ्य
- भगम्—नपुं॰—-—भज्+घ—सर्वशक्तिमत्ता
- भगम्—नपुं॰—-—भज्+घ—उत्तरफल्गुनी नक्षत्र
- भगाङ्कुरः—पुं॰—भगः+अङ्कुरः—-—चिंकु, योनिद्वार पर की गुटिका
- भगाधानम्—नपुं॰—भगः+आधानम्—-—दाम्पत्यसुख प्रदान करना
- भगघ्नः—पुं॰—भगः+घ्नः—-—शिव का विशेषण
- भगदेवः—पुं॰—भगः+देवः—-—पूर्ण स्वेच्छाचारी, लम्पट
- भगदेवता—स्त्री॰—भगः+देवता—-—विवाह की अधिष्ठात्री देवता
- भगदैवतम्—नपुं॰—भगः+दैवतम्—-—उत्तरफाल्गुनी नक्षत्र
- भगनन्दनः—पुं॰—भगः+नन्दनः—-—विष्णु का विशेषण
- भगभक्षकः—पुं॰—भगः+भक्षकः—-—विट, दलाल, भडुआ
- भगवेदनम्—नपुं॰—भगः+वेदनम्—-—वैवाहिक आनन्द की उद्घोषणा
- भगन्दरः—पुं॰—-—भग+दृ+णिच्+खच्, मुम्—एक रोग जो गुदावर्त में व्रण के रूप में होता है
- भगवत्—वि॰—-—भग+ मतुप्—यशस्वी, प्रसिद्ध
- भगवत्—वि॰—-—भग+ मतुप्—सम्मानित, श्रद्धेय, दिव्य, पवित्र
- भगवत्—पुं॰—-—भग+ मतुप्—देव, देवता
- भगवत्—पुं॰—-—भग+ मतुप्—विष्णु का विशेषण
- भगवत्—पुं॰—-—भग+ मतुप्—शिव का विशेषण
- भगवत्—पुं॰—-—भग+ मतुप्—जिन का विशेषण
- भगवत्—पुं॰—-—भग+ मतुप्—बुद्ध का विशेषण
- भगवदीयः—पुं॰—-—भगवत्+छ—विष्णु का पूजक
- भगालम्—नपुं॰—-—भज्+कालन्, कुत्वम्—खोपड़ी
- भगालिन्—पुं॰—-—भगाल+इनि—शिव का विशेषण
- भगिन्—वि॰—-—भग+इनि—फलता- फूलता, संपन्न, भाग्यशाली
- भगिन्—वि॰—-—भग+इनि—वैभवशाली, शानदार
- भगिनिका—स्त्री॰—-—भगिनी+कन्+टाप्, इत्वम्—बहन
- भगिनी—स्त्री॰—-—-—बहन
- भगिनी—स्त्री॰—-—-—सौभाग्यवती स्त्री
- भगिनी—स्त्री॰—-—-—स्त्री
- भगिनीपतिः—पुं॰—भगिनी+पतिः—-—बहन का पति, बहनोई
- भगिनीभर्तृ—पुं॰—भगिनी+भर्तृ—-—बहन का पति, बहनोई
- भगिनीयः—पुं॰—-—भगिनी+छ—बहन का पुत्र,भानजा
- भगीरथः—पुं॰—-—-—एक प्राचीन सूर्यवंशी राजा का नाम
- भगीरथपथः—पुं॰—भगीरथः+पथः—-—भगीरथ का प्रयास जो किसी अतिदुष्कर कार्य या भीम कर्म को आलंकारिक रूप से प्रकट करने केलिए प्रयुक्त किया जाता है
- भगीरथप्रयत्नः—पुं॰—भगीरथः+प्रयत्नः—-—भगीरथ का प्रयास जो किसी अतिदुष्कर कार्य या भीम कर्म को आलंकारिक रूप से प्रकट करने केलिए प्रयुक्त किया जाता है
- भगीरथसुता—स्त्री॰—भगीरथः+सुता—-—गंगा का विशेषण
- भग्न—भू॰क॰कृ॰—-—भञ्ज्+क्त—टूटा हुआ, हड्डी टूटी हुई, टूटा फूटा, फटा-पुराना
- भग्न—भू॰क॰कृ॰—-—भञ्ज्+क्त—हताश, ध्वस्त, निराश
- भग्न—भू॰क॰कृ॰—-—भञ्ज्+क्त—अवरुद्ध, गृहीत, निलंबित
- भग्न—भू॰क॰कृ॰—-—भञ्ज्+क्त—बिगाड़ा हुआ, तोड़ा-फोड़ा हुआ
- भग्न—भू॰क॰कृ॰—-—भञ्ज्+क्त—पराजित, पूर्णरूप से परास्त, छिन्न-भिन्न किया हुआ
- भग्न—भू॰क॰कृ॰—-—भञ्ज्+क्त—दहाया हुआ, विनष्ट
- भग्नम्—नपुं॰—-—भञ्ज्+क्त—पैर की हड्डी का टूटना
- भग्नात्मन्—पुं॰—भग्न+आत्मन्—-—चन्द्रमा का विशेषण
- भग्नापद्—वि॰—भग्न+आपद्—-—जिसने कठिनाइयों और आपत्तियों पर विजय प्राप्त कर ली है
- भग्नाश—वि॰—भग्न+आश—-—निराश, हताश
- भग्नोत्साह—वि॰—भग्न+उत्साह—-—जिसका उत्साह टूट गया हो, जिसकी शक्ति अवसन्न हो गई हो, जिसका उत्साह भंग हो गया हो
- भग्नोद्यम—वि॰—भग्न+ उद्यम—-—जिसके उद्योग निष्फल कर दिये गये हों, निराश, जिसका विकास अवरुद्ध हो गया हो
- भग्नक्रमः—पुं॰—भग्न+क्रमः—-—अभिव्यक्ति या निर्माण में सममिति का अतिक्रम
- भग्नप्रक्रमः—पुं॰—भग्न+ प्रक्रमः—-—अभिव्यक्ति या निर्माण में सममिति का अतिक्रम
- भग्नचेष्ट—वि॰—भग्न+चेष्ट—-—निराश, हताश
- भग्नदर्प—वि॰—भग्न+दर्प—-—विनीत, जिसका घमंड टूट गया हो
- भग्ननिद्र—वि॰—भग्न+निद्र—-—जिसकी नींद में बाधा डाल दी गई हो
- भग्नपार्श्व—वि॰—भग्न+पार्श्व—-—जिसके पार्श्व में पीड़ा होती हो
- भग्नपृष्ठ—वि॰—भग्न+पृष्ठ—-—जिसकी कमर टूट गई हो
- भग्नपृष्ठ—वि॰—भग्न+पृष्ठ—-—सामने आता हुआ
- भग्नप्रतिज्ञ—वि॰—भग्न+प्रतिज्ञ—-—जिसने अपनी प्रतिज्ञा तोड़ दी हो
- भग्नमनस्—वि॰—भग्न+मनस्—-—निरुत्साहित, हतोत्साहित
- भग्नव्रत—वि॰—भग्न+व्रत—-—जो अपने व्रतों में निष्ठावान् न हो
- भग्नसङ्कल्प—वि॰—भग्न+सङ्कल्प—-—जिसकी योजनाओं को उत्साहहीन कर दिया गया हो
- भग्नी—स्त्री॰—-—पृषो० साधुः—बहन
- भङ्कारी—स्त्री॰—-—भमिति शब्दं करोति, भम्+ कृ+ अण्+ङीप्—डांस, गोमक्षी
- भङ्गारी—स्त्री॰—-—-—डांस, गोमक्षी
- भङक्तिः—स्त्री॰—-—भञ्ज्+क्तिन्—टूटना, हड्डी का टूटना
- भङ्गः—पुं॰—-—भञ्ज्+घञ्—टूटना, टूट जाना, छिन्न-भिन्न होना, फाड़ डालना, टुकड़े टुकड़े करना, विभक्त करना
- भङ्गः—पुं॰—-—-—टूट, हड्डी का टूटना, विच्छेद
- भङ्गः—पुं॰—-—-—उखाड़ना, काटना
- भङ्गः—पुं॰—-—-—पार्थक्य, विश्लेषण
- भङ्गः—पुं॰—-—-—अंश, टुकड़ा, खण्ड, वियुक्त अंश
- भङ्गः—पुं॰—-—-—पतन, अधः पतन, ध्वंस, विनाश, बर्बादी
- भङ्गः—पुं॰—-—-—अलग अलग करना, तितर- वितर करना
- भङ्गः—पुं॰—-—-—हार, पछाड़, पराभव, पराजय
- भङ्गः—पुं॰—-—-—असफलता, निराशा, हताश, आशाभंग
- भङ्गः—पुं॰—-—-—अस्वीकृति, इंकारी
- भङ्गः—पुं॰—-—-—छिद्र, दरार
- भङ्गः—पुं॰—-—-—विघ्न, बाधा, रुकावट
- भङ्गः—पुं॰—-—-—अननुष्ठान, निलंबन, स्थगन
- भङ्गः—पुं॰—-—-—भगदड़
- भङ्गः—पुं॰—-—-—मोड़, तह, लहर
- भङ्गः—पुं॰—-—-—सिकुड़न, झुकाव, संकोच या सटाना
- भङ्गः—पुं॰—-—-—गति, चाल
- भङ्गः—पुं॰—-—-—लकवा, फालिज
- भङ्गः—पुं॰—-—-—जालसाजी, धोखेवाजी
- भङ्गः—पुं॰—-—-—नहर, जलमार्ग, नाली
- भङ्गः—पुं॰—-—-—गोलगोल या घूमघुमाकर कहने या करने का ढंग
- भङ्गः—पुं॰—-—-—पटसन
- भङ्गनयः—पुं॰—भङ्गः+नयः—-—बाधाओं को हटना
- भङ्गवासा—पुं॰—भङ्गः+वासा—-—हल्दी
- भङ्गसार्थ—वि॰—भङ्गः+सार्थ—-—बेईमान, जालसाज
- भङ्गा—स्त्री॰—-—भञ्ज्+अ+टाप्—पटसन
- भङ्गा—स्त्री॰—-—-—पटसन से तैयार किया एक मादक पेय
- भङ्गाकटम्—नपुं॰—भङ्गा+कटम्—-—पटसन का पराग
- भङ्गिः—स्त्री॰—-—भञ्ज्+इन, कुत्वम्—टूटना, हड्डी का टूटना, विच्छेद, प्रभाग
- भङ्गिः—स्त्री॰—-—भञ्ज्+इन, कुत्वम्—हिलोर
- भङ्गिः—स्त्री॰—-—भञ्ज्+इन, कुत्वम्—झुकाव, सिकुड़न
- भङ्गिः—स्त्री॰—-—भञ्ज्+इन, कुत्वम्—लहर
- भङ्गिः—स्त्री॰—-—भञ्ज्+इन, कुत्वम्—बाढ़, धारा
- भङ्गिः—स्त्री॰—-—भञ्ज्+इन, कुत्वम्—टेढ़ा मार्ग, घुमावदार या चक्करदार मार्ग
- भङ्गिः—स्त्री॰—-—भञ्ज्+इन, कुत्वम्—गोकमोल या घूमघुमाकर कहने या करने का ढ़ंग, वाग्जाल
- भङ्गिः—स्त्री॰—-—भञ्ज्+इन, कुत्वम्—बहाना, छद्मवेष, आभास
- भङ्गिः—स्त्री॰—-—भञ्ज्+इन, कुत्वम्—दावपेंच, जालसाजी, धोखा
- भङ्गिः—स्त्री॰—-—भञ्ज्+इन, कुत्वम्—व्यंग्योक्ति
- भङ्गिः—स्त्री॰—-—भञ्ज्+इन, कुत्वम्—व्यंग्योत्तर, आशूत्तर
- भङ्गिः—स्त्री॰—-—भञ्ज्+इन, कुत्वम्—पग
- भङ्गिः—स्त्री॰—-—भञ्ज्+इन, कुत्वम्—अन्तराल
- भङ्गिः—स्त्री॰—-—भञ्ज्+इन, कुत्वम्—ह्री, लज्जाशीलता
- भङ्गी—स्त्री॰—-—भङ्कि+ङीप्—टूटना, हड्डी का टूटना, विच्छेद, प्रभाग
- भङ्गी—स्त्री॰—-—भङ्कि+ङीप्—हिलोर
- भङ्गी—स्त्री॰—-—भङ्कि+ङीप्—झुकाव, सिकुड़न
- भङ्गी—स्त्री॰—-—भङ्कि+ङीप्—लहर
- भङ्गी—स्त्री॰—-—भङ्कि+ङीप्—बाढ़, धारा
- भङ्गी—स्त्री॰—-—भङ्कि+ङीप्—टेढ़ा मार्ग, घुमावदार या चक्करदार मार्ग
- भङ्गी—स्त्री॰—-—भङ्कि+ङीप्—गोकमोल या घूमघुमाकर कहने या करने का ढ़ंग, वाग्जाल
- भङ्गी—स्त्री॰—-—भङ्कि+ङीप्—बहाना, छद्मवेष, आभास
- भङ्गी—स्त्री॰—-—भङ्कि+ङीप्—दावपेंच, जालसाजी, धोखा
- भङ्गी—स्त्री॰—-—भङ्कि+ङीप्—व्यंग्योक्ति
- भङ्गी—स्त्री॰—-—भङ्कि+ङीप्—व्यंग्योत्तर, आशूत्तर
- भङ्गी—स्त्री॰—-—भङ्कि+ङीप्—पग
- भङ्गी—स्त्री॰—-—भङ्कि+ङीप्—अन्तराल
- भङ्गी—स्त्री॰—-—भङ्कि+ङीप्—ह्री, लज्जाशीलता
- भङ्गिभक्तिः—स्त्री॰—भङ्गिः+भक्तिः—-—तरंगवत् कदमों या तरंगों की शृंखला में विभाजन, लहरियेदार जीना
- भङ्गिन्—वि॰—-—भङ्ग+इनि—शीघ्र टूटने वाला, भंगुर, अस्थायी
- भङ्गिन्—वि॰—-—-—किसी अभियोग में पछाड़ा हुआ
- भङ्गिमत्—वि॰—-—भङ्गि+मतुप्—लहरियेदार, करारा
- भङ्गिमन्—पुं॰—-—भङ्ग+इमनिच्—हड्डी का टूटना, तोड़ना
- भङ्गिमन्—पुं॰—-—-—झिकोर, हिलोर
- भङ्गिमन्—पुं॰—-—-—घुंघरालापन
- भङ्गिमन्—पुं॰—-—-—छद्मवेश, धोखा
- भङ्गिमन्—पुं॰—-—-—आशूत्तर, व्यंग्योक्ति
- भङ्गिमन्—पुं॰—-—-—कुटिलता
- भङ्गिलम्—नपुं॰—-—भङ्ग+इलच्—ज्ञानेन्द्रियों में कोई दोष
- भङ्गुर—वि॰—-—भञ्ज्+घुरच्—टूटने के योग्य, भिदुर, कड़कव्वल
- भङ्गुर—वि॰—-—-—दुबला-पतला, अस्थिर, अनित्य, नश्वर
- भङ्गुर—वि॰—-—-—परिवर्तनशील, चर
- भङ्गुर—वि॰—-—-—कुटिल, टेढ़ा
- भङ्गुर—वि॰—-—-—वक्र, घूंघरदार
- भङ्गुर—वि॰—-—-—जालसाज, बेईमान, चालाक
- भङ्गुरः—पुं॰—-—-—किसी नदी का मोड़
- भज्—भ्वा॰उभ॰<भजति>, <भजते>—-—-—हिस्से करना, वितरित करना, बाँटना
- भज्—भ्वा॰उभ॰<भजति>, <भजते>—-—-—निर्दिष्ट करना, नियत करना, अनुभाजन करना
- भज्—भ्वा॰उभ॰<भजति>, <भजते>—-—-—किसी के लिए प्राप्त करना, हिस्सा लेना, भाग लेना
- भज्—भ्वा॰उभ॰<भजति>, <भजते>—-—-—स्वीकार करना, ग्रहण करना
- भज्—भ्वा॰उभ॰<भजति>, <भजते>—-—-—आश्रय लेना, अपने आप को समर्पण करना, पहुँच रखना
- भज्—भ्वा॰उभ॰<भजति>, <भजते>—-—-—अभ्यास करना, अनुगमन करना, पालन करना
- भज्—भ्वा॰उभ॰<भजति>, <भजते>—-—-—उपभोग करना, अधिकृत करना, रखना, भोगना, अनुभव करना, मनोरंजन करना
- भज्—भ्वा॰उभ॰<भजति>, <भजते>—-—-—सेवा में प्रस्तुत रहना, सेवा करना
- भज्—भ्वा॰उभ॰<भजति>, <भजते>—-—-—आराधना करना, सत्कार करना, देव मान कर पूजा करना
- भज्—भ्वा॰उभ॰<भजति>, <भजते>—-—-—छाँटना, चुनना, पसंद करना, स्वीकार करना
- भज्—भ्वा॰उभ॰<भजति>, <भजते>—-—-—शारीरिक सुखोपभोग करना
- भज्—भ्वा॰उभ॰<भजति>, <भजते>—-—-—अनुरक्त होना, भक्त बनना
- भज्—भ्वा॰उभ॰<भजति>, <भजते>—-—-—अधिकार में करना
- भज्—भ्वा॰उभ॰<भजति>, <भजते>—-—-—भाग्य में पड़ना
- निद्रां भज्—भ्वा॰उभ॰—-—-—सोना
- मूर्छां भज्—भ्वा॰उभ॰—-—-—बेहोश होना
- भावं भज्—भ्वा॰उभ॰—-—-—प्रेम प्रदर्शित करना
- विभज्—भ्वा॰उभ॰—वि+भज्—-—विभक्त करना, बाँटना
- विभज्—भ्वा॰उभ॰—वि+भज्—-—अलग २ करना, संपत्ति पैतृक जायदाद बांटना
- विभज्—भ्वा॰उभ॰—वि+भज्—-—भेद करना
- विभज्—भ्वा॰उभ॰—वि+भज्—-—सम्मान करना, पूजा करना
- संविभज्—भ्वा॰उभ॰—संवि+भज्—-—हिस्सा लेना, हिस्से में किसी को प्रविष्ट करना
- भज्—चुरा॰उभ॰<भाजयति>, <भाजयते>—-—-—पकाना
- भज्—चुरा॰उभ॰<भाजयति>, <भाजयते>—-—-—देना
- भजकः—पुं॰—-—भज्+ण्वुल्—बांटने वाला, वितरक
- भजकः—पुं॰—-—-—पूजक, भक्त, उपासक
- भजनम्—नपुं॰—-—भज्+ल्युट्—हिस्से बनाना, बाँटना
- भजनम्—नपुं॰—-—-—स्वत्व
- भजनम्—नपुं॰—-—-—सेवा, आराधना, पूजा
- भजमान—वि॰—-—भज्+शानच्—बांटने वाला
- भजमान—वि॰—-—-—उपभोक्ता
- भजमान—वि॰—-—-—योग्य, सही, उचित
- भञ्ज्—रुधा॰पर॰<भनक्ति>,<भग्न>, इच्छा॰<विभंक्षति>—-—-—तोड़ना, फाड़ डालना, छिन्नभिन्न करना, चूर चूर करना, टुकड़े टुकड़े करना,खण्डशः करना
- भञ्ज्—रुधा॰पर॰<भनक्ति>,<भग्न>, इच्छा॰<विभंक्षति>—-—-—उजाना, उखाड़ना
- भञ्ज्—रुधा॰पर॰<भनक्ति>,<भग्न>, इच्छा॰<विभंक्षति>—-—-—किले में दरार डालना
- भञ्ज्—रुधा॰पर॰<भनक्ति>,<भग्न>, इच्छा॰<विभंक्षति>—-—-—भग्नाश करना, प्रयत्न व्यर्थ करना, निराश करना, प्रगति रोकना
- भञ्ज्—रुधा॰पर॰<भनक्ति>,<भग्न>, इच्छा॰<विभंक्षति>—-—-—पकड़ना, रोकना, विघ्न डालना, निलंबित करना
- भञ्ज्—रुधा॰पर॰<भनक्ति>,<भग्न>, इच्छा॰<विभंक्षति>—-—-—हराना, परास्त करना
- अवभञ्ज्—रुधा॰पर॰—अव+भञ्ज्—-—तोड़ डालना, ध्वस्त करना
- प्रभञ्ज्—रुधा॰पर॰—प्र+भञ्ज्—-—तोड़ डालना, ध्वस्त करना, धज्जियाँ उड़ाना
- प्रभञ्ज्—रुधा॰पर॰—प्र+भञ्ज्—-—रोकना, गिरफ्तार करना, निलंबित करना
- प्रभञ्ज्—रुधा॰पर॰—प्र+भञ्ज्—-—भग्नाश करना, निराश करना
- भञ्ज्—चुरा॰उभ॰ <भञ्जयति>, <भञ्जयते>—-—-—उज्ज्वल करना, चमकाना
- भञ्जक—वि॰—-—भञ्ज्+ण्वुल्—तोड़ने वाला, बाँटने वाला
- भञ्जिका—स्त्री॰—-—-—तोड़ने वाला, बाँटने वाला
- भञ्जन—वि॰—-—भञ्ज्+ल्युट्—तोड़ने वाला, टुकड़े करने वाला
- भञ्जन—वि॰—-—-—गिरफ्तार करने वाला, रोकने वाला
- भञ्जन—वि॰—-—-—भग्नाश करने वाला
- भञ्जन—वि॰—-—-—प्रबल पीडा पहुँचाने वाला
- भञ्जनी—स्त्री॰—-—-—तोड़ने वाला, टुकड़े करने वाला
- भञ्जनी—स्त्री॰—-—-—गिरफ्तार करने वाला, रोकने वाला
- भञ्जनी—स्त्री॰—-—-—भग्नाश करने वाला
- भञ्जनी—स्त्री॰—-—-—प्रबल पीडा पहुँचाने वाला
- भञ्जनम्—नपुं॰—-—-—तोड़ डालना, ध्वस्त करना, विनष्ट करना
- भञ्जनम्—नपुं॰—-—-—हटाना, दूर करना, भगा देना
- भञ्जनम्—नपुं॰—-—-—पराजित करना, हराना
- भञ्जनम्—नपुं॰—-—-—भग्नाश करना
- भञ्जनम्—नपुं॰—-—-—रोकना, विघ्न डालना, बाधा पहुँचाना
- भञ्जनम्—नपुं॰—-—-—कष्ट देना, पीडित करना
- भञ्जनः—पुं॰—-—-—दांतों का गिरना
- भञ्जनकः—पुं॰—-—भञ्जन+कन्—मुख का एक रोग जिसमें दाँत गिर जाते हैं, होठ टेढे हो जाते हैं
- भञ्जरुः—पुं॰—-—भञ्ज्+अरुच्—मन्दिर के पास उगा हुआ वृक्ष
- भट्—भ्वा॰पर॰<भटति>, <भटित>—-—-—पोषण करना, पालना पोसना, स्थिर रखना
- भट्—भ्वा॰पर॰<भटति>, <भटित>—-—-—भाड़े पर लेना
- भट्—भ्वा॰पर॰<भटति>, <भटित>—-—-—मजदूरी लेना
- भट्—चुरा॰उभ॰<भटयति>, <भटयते>—-—-—बोलना, बातें करना
- भटः—पुं॰—-—भट्+अच्—योद्धा, सैनिक, लड़ने वाला
- भटः—पुं॰—-—-—भृतिभोगी, भाड़ैत सैनिक, भाड़े का टट्टू
- भटः—पुं॰—-—-—जातिबहिष्कृत, वर्णसंकर
- भटः—पुं॰—-—-—पिशाच
- भटित्र—वि॰—-—भट्+इत्र—शलाका पर रखकर पकाया गया मांस
- भट्टः—पुं॰—-—भट्+तन्—प्रभु, स्वामी
- भट्टः—पुं॰—-—-—विद्वान् ब्राह्मणों के नामों के साथ प्रयुक्त होने वाली उपाधि
- भट्टः—पुं॰—-—-—कोई भी विद्वान पुरुष या दार्शनिक
- भट्टः—पुं॰—-—-—एक प्रकर की मिश्र जाति जिसका व्यवसाय भाट या चारणों का व्यवसाय अर्थात् राजाओं का स्तुति गान है
- भट्टः—पुं॰—-—-—भाट, वन्दीजन
- भट्टाचार्यः—पुं॰—भट्टः+आचार्यः—-—प्रसिद्ध अध्यापक या विद्वान् पुरुष को दी गई उपाधि
- भट्टाचार्यः—पुं॰—भट्टः+आचार्यः—-—विज्ञ
- भट्टप्रयागः—पुं॰—भट्टः+प्रयागः—-—प्रयाग, इलाहाबाद
- भट्टार—वि॰—-—भट्टं स्वामित्वमिच्छति - ऋ- अण—श्रद्धास्पद, पूज्य
- भट्टार—वि॰—-—-—व्यक्तिवाचक संज्ञाओं के साथ प्रयुक्त होने वाली सम्मानसूचक उपाधि
- भट्टारक—वि॰—-—भट्टार+कन्—श्रद्धेय, पूज्य
- भट्टारिका—स्त्री॰—-—भट्टार+कन्—श्रद्धेय, पूज्य
- भट्टारकवासरः—पुं॰—भट्टारक+वासरः—-—रविवार
- भट्टिनी—स्त्री॰—-—भट्ट+इनि+ङीप्—अनभिषिक्त रानी, राजकुमारी, नाटकों में दासियों द्वारा रानी को संबोधन करने में बहुधा प्रयुक्त
- भट्टिनी—स्त्री॰—-—-—ऊँचे पद की महिला
- भट्टिनी—स्त्री॰—-—-—ब्राह्मण की पत्नी
- भडः—पुं॰—-—भण्ड्+अच्, नि० नलोपः—विशेष प्रकार की एक मिश्र जाति
- भडिलः—पुं॰—-—भण्ड्+इलच्, नि० नलोपः—नेता, योद्धा
- भडिलः—पुं॰—-—-—टहलुआ, नोकर
- भण्—भ्वा॰पर॰<भणति>—-—-—कहना, बोलना
- भण्—भ्वा॰पर॰<भणति>—-—-—वर्णन करना
- भण्—भ्वा॰पर॰<भणति>—-—-—नाम लेना, पुकारना
- भणनम्—नपुं॰—-—भण्+ल्युट्—कहना, बोलना, बातें करना, वचन, प्रवचन, वार्तालाप
- भणितम्—नपुं॰—-—भण्+क्त—कहना, बोलना, बातें करना, वचन, प्रवचन, वार्तालाप
- भणितिः—स्त्री॰—-—भण्+क्तिन्—कहना, बोलना, बातें करना, वचन, प्रवचन, वार्तालाप
- भण्ड्—भ्वा॰आ॰<भण्डते>—-—-—भर्त्सना करना, छिड़कना
- भण्ड्—भ्वा॰आ॰<भण्डते>—-—-—खिल्ली उड़ाना, व्यंग्य करना
- भण्ड्—भ्वा॰आ॰<भण्डते>—-—-—बोलना
- भण्ड्—भ्वा॰आ॰<भण्डते>—-—-—उपहास करना, मखौल करना
- भण्ड्—चुरा॰उभ॰<भण्डयति>,<भण्डयते>—-—-—सौभाग्यशाली बनाना
- भण्ड्—चुरा॰उभ॰<भण्डयति>,<भण्डयते>—-—-—चकमा देना
- भण्डः—पुं॰—-—भण्ड्+अच् —भांड, मसखरा, विदूषक
- भण्डः—पुं॰—-—भण्ड्+अच् —एक मिश्रजाति का नाम
- भण्डतपस्विन्—पुं॰—भण्डः+तपस्विन्—-—बनावटी संन्यासी, ढोंगी
- भण्डहासिनी—स्त्री॰—भण्डः+हासिनी—-—वेश्या, वारांगना
- भण्डकः—पुं॰—-—भण्ड्+कन् —एक प्रकार का खंजन पक्षी
- भण्डनम्—नपुं॰—-—भण्ड्+ल्युट् —कवच, बख्तर
- भण्डनम्—नपुं॰—-—भण्ड्+ल्युट् —संग्राम, युद्ध
- भण्डनम्—नपुं॰—-—भण्ड्+ल्युट् —उत्पात, दुष्टता
- भण्डिः—स्त्री॰—-—भण्ड्+इ —लहर, तरंग
- भण्डी—स्त्री॰—-—भण्डि+ङीप्—लहर, तरंग
- भण्डिल—वि॰—-—भण्ड्+इलच् —सुखद, शुभ, सम्पन्न, सौभाग्यशाली
- भण्डिलः—पुं॰—-—भण्ड्+इलच् —अच्छी किस्मत्, प्रसन्नता, कल्याण
- भण्डिलः—पुं॰—-—भण्ड्+इलच् —दूत
- भण्डिलः—पुं॰—-—भण्ड्+इलच् —कारीगर, दस्तकार
- भदन्तः—पुं॰—-—भन्द्+झच्, अन्तादेशः, नलोपश्च—बौद्ध धर्मानुयायी के लिए प्रयुक्त होने वाला आदर सूचक शब्द
- भदन्तः—पुं॰—-—भन्द्+झच्, अन्तादेशः, नलोपश्च—बौद्धभिक्षु
- भदाकः—पुं॰—-—भन्द्+आक्, नलोपः—सम्पन्नता, सौभाग्य
- भद्र—वि॰—-—भन्द्+रक्, नि० नलोपः—भला, सुखद, समृद्धिशाली
- भद्र—वि॰—-—भन्द्+रक्, नि० नलोपः—शुभ, भाग्यवान्
- भद्र—वि॰—-—भन्द्+रक्, नि० नलोपः—प्रमुख, सर्वोत्तम, मुख्य
- भद्र—वि॰—-—भन्द्+रक्, नि० नलोपः—अनुकूल, मंगलप्रद
- भद्र—वि॰—-—भन्द्+रक्, नि० नलोपः—कृपालु, सदय, श्रेष्ठ, सौहार्दपूर्ण, प्रिय
- भद्र—वि॰—-—भन्द्+रक्, नि० नलोपः—सुहावना, उपभोज्य, प्रिय, सुन्दर
- भद्र—वि॰—-—भन्द्+रक्, नि० नलोपः—स्तुत्य, श्लाघ्य, प्रशंसनीय
- भद्र—वि॰—-—भन्द्+रक्, नि० नलोपः—प्रियतम, प्यारा
- भद्र—वि॰—-—भन्द्+रक्, नि० नलोपः—चटकदार, बाह्यतः रमणीय, पाखण्डी
- भद्रम्—नपुं॰—-—भन्द्+रक्, नि० नलोपः—उल्लास, सौभाग्य, कल्याण, आनन्द, समृद्धि
- भद्रम्—नपुं॰—-—भन्द्+रक्, नि० नलोपः—सोना
- भद्रम्—नपुं॰—-—भन्द्+रक्, नि० नलोपः—लोहा, इस्पात
- भद्रः—पुं॰—-—भन्द्+रक्, नि० नलोपः—बैल
- भद्रः—पुं॰—-—भन्द्+रक्, नि० नलोपः—एक प्रकार का खंजन पक्षी
- भद्रः—पुं॰—-—भन्द्+रक्, नि० नलोपः—विशेष प्रकार का हाथी
- भद्रः—पुं॰—-—भन्द्+रक्, नि० नलोपः—छद्मवेषी, पाखंडी
- भद्रः—पुं॰—-—भन्द्+रक्, नि० नलोपः—शिव का नामान्तर
- भद्रः—पुं॰—-—भन्द्+रक्, नि० नलोपः—मेरुपर्वत का विशेषण
- भद्रः—पुं॰—-—भन्द्+रक्, नि० नलोपः—एक प्रकार का कदम्बवृक्ष
- भद्रा कृ——-—-—हजामत करना, बाल मूँडना
- भद्राकरणम्—नपुं॰—-—-—मुण्डन
- भद्राङ्गः—पुं॰—भद्र+अङ्गः—-—बलराम का विशेषण
- भद्राकारः—पुं॰—भद्र+आकारः—-—शुभलक्षणों से युक्त
- भद्राकृति—वि॰—भद्र+आकृति—-—शुभलक्षणों से युक्त
- भद्रात्मजः—पुं॰—भद्र+आत्मजः—-—तलवार
- भद्रासनम्—नपुं॰—भद्र+आसनम्—-—राजासन, राजगद्दी, सिंहासन
- भद्रासनम्—नपुं॰—भद्र+आसनम्—-—समाधि की विशेष अंगस्थिति, योग का आसन
- भद्रेशः—पुं॰—भद्र+ईशः—-—शिव का एक विशेषण
- भद्रैला—स्त्री॰—भद्र+एला—-—बड़ी इलायची
- भद्रकपिलः—पुं॰—भद्र+कपिलः—-—शिव का एक विशेषण
- भद्रकारक—वि॰—भद्र+कारक—-—मंगलप्रद
- भद्रकाली—स्त्री॰—भद्र+काली—-—दुर्गा का नामान्तर
- भद्रकुम्भः—पुं॰—भद्र+कुम्भः—-—किसी तीर्थ के जल से (विशेषकर गंगाजल से) भरा हुआ सुनहरी घड़ा
- भद्रगणितम्—नपुं॰—भद्र+गणितम्—-—जादू के रेखाचित्रों की वनावट
- भद्रघटः—पुं॰—भद्र+घटः—-—एक घड़ा जिसमें भाग्य की पर्चियाँ डाली जाय
- भद्रघटकः—पुं॰—भद्र+घटकः—-—एक घड़ा जिसमें भाग्य की पर्चियाँ डाली जाय
- भद्रदारु—पुं॰—भद्र+दारु—-—चीड़ का वृक्ष
- भद्रनामन्—पुं॰—भद्र+नामन्—-—खंजनपक्षी
- भद्रपीठम्—नपुं॰—भद्र+पीठम्—-—राजगद्दी, राज-कुर्सी, सिंहासन
- भद्रपीठम्—नपुं॰—भद्र+पीठम्—-—एक प्रकार का पंखदार कीड़ा
- भद्रबलनः—पुं॰—भद्र+बलनः—-—बलराम का विशेषण
- भद्रमुख—वि॰—भद्र+मुख—-—मांगलिक चेहरे वाला' विनम्र सम्बोधन के रूप में प्रयुक्त 'मान्यवर महोदय' 'पूज्य श्रीमन्'
- भद्रमृगः—पुं॰—भद्र+मृगः—-—एक विशेष प्रकार के हाथी का विशेषण
- भद्ररेणुः—पुं॰—भद्र+रेणुः—-—इन्द्र के हाथी का नाम
- भद्रवर्मन्—पुं॰—भद्र+वर्मन्—-—एक प्रकार की नवमल्लिका
- भद्रशाखः—पुं॰—भद्र+शाखः—-—कार्तिकेय का विशेषण
- भद्रश्रयम्—नपुं॰—भद्र+श्रयम्—-—चन्दन का काष्ठ
- भद्रश्रियम्—नपुं॰—भद्र+श्रियम्—-—चन्दन का काष्ठ
- भद्रश्रीः—स्त्री॰—भद्र+श्रीः—-—चन्दन का वृक्ष
- भद्रसोमा—स्त्री॰—भद्र+ सोमा—-—गंगा का विशेषण
- भद्रक—वि॰—-—भद्र+कन्—शुभ, मङ्गलमय
- भद्रक—वि॰—-—भद्र+कन्—मनोहर, सुन्दर
- भद्रिका—स्त्री॰—-—भद्र+कन्+टाप्—शुभ, मङ्गलमय
- भद्रिका—स्त्री॰—-—भद्र+कन्+टाप्—मनोहर, सुन्दर
- भद्रकः—पुं॰—-—भद्र+कन्—देवदारु का वृक्ष
- भद्रङ्कर—नपुं॰—-—भद्र+कृ+खच्, मुम्—सुख सम्पत्ति का दाता, समृद्धकारी
- भद्रवत्—वि॰—-—भद्र+मतुप्—मंगलमय
- भद्रवत्—नपुं॰—-—भद्र+मतुप्—देवदारु का वृक्ष
- भद्रा—स्त्री॰—-—भद्र+टाप्—गाय
- भद्रा—स्त्री॰—-—भद्र+टाप्—चान्द्रमास के पक्ष की दोयज, सप्तमी और द्वादशी
- भद्रा—स्त्री॰—-—भद्र+टाप्—स्वर्गंगा
- भद्रा—स्त्री॰—-—भद्र+टाप्—नाना प्रकार के पौधों के नाम
- भद्राश्रयम्—नपुं॰—भद्रा+श्रयम्—-—चन्दन की लकड़ी
- भद्रिका—स्त्री॰—-—भद्रा+कन्+टाप्, इत्वम्—ताबीज
- भद्रिका—स्त्री॰—-—-—दोयज, सप्तमी व द्वादशी नाम की तिथियाँ
- भद्रिलम्—नपुं॰—-—भद्र+इलच्—समृद्धि, सौभाग्य
- भद्रिलम्—नपुं॰—-—-—कंपनशील या थरथराहट वाली गति
- भम्भः—पुं॰—-—भम्+भा+क—मक्खी
- भम्भः—पुं॰—-—-—धुआँ
- भम्भरालिका—स्त्री॰—-—भम् इत्यव्यक्तशब्द भरं बाहुल्यम् आलाति, भम्भर+आ+ला+क+ङीष् =भम्भराली+कन् टाप्, ह्रस्वः—गोमक्षी
- भम्भरालिका—स्त्री॰—-—-—डांस
- भम्भराली—स्त्री॰—-—भम् इत्यव्यक्तशब्द भरं बाहुल्यम् आलाति, भम्भर+आ+ला+क+ङीष्, ह्रस्वः—गोमक्षी
- भम्भराली—स्त्री॰—-—-—डांस
- भम्भारवः—पुं॰—-—भम्भा+रु+अच्—गाय का रांभना
- भयम्—नपुं॰—-—विभेत्यस्मात्, भी - अपादाने अच्—डर, आतंक, विभीषा, आशंका
- भयम्—नपुं॰—-—-—डर, त्रास जगद्भयम्
- भयम्—नपुं॰—-—-—खतरा, जोखिम, संकट
- भयः—पुं॰—-—-—बीमारी, रोग
- भयान्वित—वि॰—भयम्+अन्वित—-—ज्वरग्रस्त
- भयाक्रान्त—वि॰—भयम्+आक्रान्त—-—ज्वरग्रस्त
- भयातुर—वि॰—भयम्+आतुर—-—डरा हुआ, आतङ्कित, भयभीत
- भयार्त—वि॰—भयम्+आर्त—-—डरा हुआ, आतङ्कित, भयभीत
- भयावह—वि॰—भयम्+आवह—-—भयोत्पादक
- भयावह—वि॰—भयम्+आवह—-—जोखिम वाला
- भयोत्तर—वि॰—भयम्+उत्तर—-—भय से युक्त
- भयकर—वि॰—भयम्+कर—-—डराने वाला, भयानक, भयपूर्ण
- भयकर—वि॰—भयम्+कर—-—खतरनाक, संकटपूर्ण
- भयडिण्डिमः—पुं॰—भयम्+डिण्डिमः—-—युद्ध में प्रयुक्त किया जाने वाला ढोल, मारू बाजा
- भयद्रुत—वि॰—भयम्+द्रुत—-—भय के कारण भागने वाला, पराजित, भगाया हुआ
- भयप्रतीकारः—पुं॰—भयम्+प्रतीकारः—-—भय को दूर करना, डर हटाना
- भयप्रद—वि॰—भयम्+प्रद—-—भयदायक, भयपूर्ण, भयानक
- भयप्रस्तावः—पुं॰—भयम्+प्रस्तावः—-—भय का अवसर
- भयब्राह्मणः—पुं॰—भयम्+ब्राह्मणः—-—डरपोक ब्राह्मण, वह ब्राह्मण जो अपनी जान बचाने के लिए(यह समझ कर कि ब्राह्मण अवध्य है) अपने ब्राह्मण होने की दुहाई देता है
- भयविप्लुत—वि॰—भयम्+विप्लुत—-—आतंक-पीडित
- भयव्यूहः—पुं॰—भयम्+व्यूहः—-—डर की अवस्था होने पर सेना की विशेष क्रम-व्यवस्था
- भयानक—वि॰—-—विभेत्यस्मात्, भी+ आनक—भयंकर, भीषण, भयजनक, डरावना
- भयानकः—पुं॰—-—-—व्याघ्र
- भयानकः—पुं॰—-—-—राहु का नामान्तर
- भयानकः—पुं॰—-—-—भयानक रस, काव्य के आठ या नौ रसों में एक
- भयानकम्—नपुं॰—-—-—त्रास, डर
- भर—वि॰—-—भृ+अच्—धारण करने वाला, देने वाला, भरणपोषण करने वाला
- भरः—पुं॰—-—-—बोझा, भार, वजन
- भरः—पुं॰—-—-—बड़ी संख्या, बड़ा परिमाण, संग्रह, समुच्चय
- भरः—पुं॰—-—-—प्रकाय, राशि
- भरः—पुं॰—-—-—आधिक्य
- भरः—पुं॰—-—-—तोल की एक विशेष माप
- भरटः—पुं॰—-—भृ+अटन्—कुम्हार
- भरटः—पुं॰—-—-—सेवक
- भरण—वि॰—-—भृ+ल्युट्—धारण करने वाला, निर्वाह करने वाला, सहारा देने वाला,पालन- पोषण करने वाला
- भरणी—स्त्री॰—-—-—धारण करने वाला, निर्वाह करने वाला, सहारा देने वाला,पालन- पोषण करने वाला
- भरणम्—नपुं॰—-—-—पालन- पोषण, निर्वाह करना, सहारा देना
- भरणम्—नपुं॰—-—-—वहन करने या ढोने की क्रिया
- भरणम्—नपुं॰—-—-—लाना, प्राप्त करना
- भरणम्—नपुं॰—-—-—पुष्टिकारक भोजन
- भरणम्—नपुं॰—-—-—भाड़ा, मजदूरी
- भरणः—पुं॰—-—-—भरणी नामक नक्षत्र
- भरणी—स्त्री॰—-—भरण+ङीष्—तीन तारों का पुंज जो दूसरा नक्षत्र है
- भरणीभूः—पुं॰—भरणी+भूः—-—राहु का विशेषण
- भरण्डः—पुं॰—-—भृ+कण्डन्—स्वामी, प्रभु
- भरण्डः—पुं॰—-—-—राजा, शासक
- भरण्डः—पुं॰—-—-—बैल, साँड़
- भरण्डः—पुं॰—-—-—कीड़ा
- भरण्यम्—नपुं॰—-—भरण+यत्—लालन-पालन करने वाला, सहारा देने वाला, पालन-पोषण करने वाला
- भरण्यम्—नपुं॰—-—-—मजदूरी, भाड़ा
- भरण्यम्—नपुं॰—-—-—भरणी नक्षत्र
- भरण्या—स्त्री॰—-—-—मजदूरी, भाड़ा
- भरण्यभुज्—पुं॰—भरण्यम्+भुज्—-—भृति- सेवक, भाड़े का नौकर
- भरण्युः—पुं॰—-—भरण्य्(कण्ड्वा॰)+उ—स्वामी
- भरण्युः—पुं॰—-—-—प्ररक्षक
- भरण्युः—पुं॰—-—-—मित्र
- भरण्युः—पुं॰—-—-—अग्नि
- भरण्युः—पुं॰—-—-—चन्द्रमा
- भरण्युः—पुं॰—-—-—सूर्य
- भरतः—पुं॰—-—भरं तनोति, तन्+ड—शकुन्तला और दुष्यन्त का पुत्र जो चक्रवर्ती राजा था। इसीके नाम पर इस देश का नाम भारतवर्ष है। यह कौरव और पांडवों का दूरवर्ती पूर्वपुरुष था
- भरतः—पुं॰—-—-—दशरथ की सबसे छोटी पत्नी कैकेयी का बेटा
- भरतः—पुं॰—-—-—एक प्राचीन मुनि का नाम जो नाट्यकला तथा संगीतविद्या के प्रवर्तक माने जाते हैं
- भरतः—पुं॰—-—-—अभिनेता रंगमंच पर अभिनय करने वाला पात्र
- भरतः—पुं॰—-—-—भाड़े का सैनिक, केवल धन के लिए काम करने वाला नौकर
- भरतः—पुं॰—-—-—जंगली, पहाड़ी
- भरतः—पुं॰—-—-—अग्नि का विशेषण
- भरताग्रजः—पुं॰—भरतः+अग्रजः—-—भरत का ज्येष्ठ भ्राता' राम का विशेषण
- भरतखण्डम्—नपुं॰—भरतः+खण्डम्—-—भारत्अ के एक भाग का नामान्तर
- भरतज्ञ—वि॰—भरतः+ज्ञ—-—भरतशास्त्र या नाट्यशास्त्र का ज्ञाता
- भरतपुत्रकः—पुं॰—भरतः+पुत्रकः—-—अभिनेता
- भरतवर्षः—पुं॰—भरतः+वर्षः—-—भरत का देश अर्थात् भारत
- भरतवाक्यम्—नपुं॰—भरतः+वाक्यम्—-—नाटक के अन्त में दिया गया श्लोक, एक प्रकार की नान्दी
- भरथः—भृ+अथ—-—-—प्रभुसत्ता प्राप्त राजा
- भरथः—पुं॰—-—-—अग्नि
- भरथः—पुं॰—-—-—संसार के किसी एक प्रदेश की अधिष्ठात्री देवी, लोकपाल
- भरद्वाजः—पुं॰—-—भ्रियते मरुद्भिः, भृ+अप= भर, द्वाभ्यां जायते द्वि+जन् ड=द्वाज, भरश्चासौ द्वाजश्च, कर्म॰ स॰—सात ऋषियों में से एक का नाम
- भरद्वाजः—पुं॰—-—-—चातक पक्षी
- भरित—वि॰—-—भर+इतच्—परवरिश किया गया, पाला पोषा गया
- भरित—वि॰—-—-—भरा हुआ, भरपूर
- भरुः—पुं॰—-—भृ+उन्—पति
- भरुः—पुं॰—-—-—प्रभु
- भरुः—पुं॰—-—-—शिव का नामान्तर
- भरुः—पुं॰—-—-—विष्णु का नाम
- भरुः—पुं॰—-—-—सोना
- भरुः—पुं॰—-—-—समुद्र
- भरुजः—पुं॰—-—भ इति शब्देन रुजति, भ+रुज्+क—गीदड़
- भरुजा—स्त्री॰—-—-—गीदड़
- भरुजी—स्त्री॰—-—-—गीदड़
- भष्टकम्—नपुं॰—-—भृ+उट+कन्—तला हुआ मांस
- भर्गः—पुं॰—-—भृज्+घञ्—शिव का नाम
- भर्गः—पुं॰—-—-—ब्रह्मा का नाम
- भर्ग्यः—पुं॰—-—भृज्+ण्यत्—शिव का विशेषण
- भर्जन—वि॰—-—भृज्+ल्युट्—भूनने वाला तलने वाला, पकाने वाला
- भर्जन—वि॰—-—भृज्+ल्युट्—नष्ट करने वाला
- भर्जनम्—नपुं॰—-—भृज्+ल्युट्—भूनने या तलने की क्रिया
- भर्जनम्—नपुं॰—-—भृज्+ल्युट्—कड़ाही
- भर्तृ—पुं॰—-—भृ+तृच्—पति
- भर्तृ—पुं॰—-—भृ+तृच्—प्रभु, स्वामी, महत्तर
- भर्तृ—पुं॰—-—भृ+तृच्—नेता, सेनापति, मुख्य
- भर्तृ—पुं॰—-—भृ+तृच्—भरणपोषण, कर्त्ता, भारवहनकर्ता, प्ररक्षक
- भर्तृघ्नी—स्त्री॰—भर्तृ+घ्नी—-—अपने पति का वध करने वाली स्त्री
- भर्तृदारकः—पुं॰—भर्तृ+दारकः—-—युवराज, राजकुमार, उत्तराधिकारी, कुमार
- भर्तृदारिका—स्त्री॰—भर्तृ+दारिका—-—युवराज्ञी
- भर्तृव्रतम्—नपुं॰—भर्तृ+व्रतम्—-—पातिव्रत, पतिभक्ति
- भर्तृव्रता—स्त्री॰—भर्तृ+व्रता—-—साध्वी पतिव्रता पत्नी
- भर्तृशोकः—पुं॰—भर्तृ+शोकः—-—पति की मृत्यु पर शोक
- भर्तृहरिः—पुं॰—भर्तृ+हरिः—-—एक प्रसिद्ध राजा जो तीन शतक (शृंगार, नीति, वैराग्य), वाक्यपदीय तथा भट्टिकाव्य का रचयिता है
- भर्तृमती—स्त्री॰—-—भर्तृ+मतुप्+ङीप्—विवाहिता स्त्री जिसका पति जीवित हो
- भर्तृसात्—अव्य॰—-—भर्तृ+साति—पति के अधिकार में
- भर्तृसात्कृता—स्त्री॰—भर्तृसात्+कृता—-—विवाहित हुई
- भर्त्स्—चुरा॰आ॰<भर्त्सयते> कभी २ पर॰ भी—-—-—धमकाना, घुड़कना
- भर्त्स्—चुरा॰आ॰<भर्त्सयते> कभी २ पर॰ भी—-—-—झिड़कना, बुरा भला कहना, अपशब्द कहना
- भर्त्स्—चुरा॰आ॰<भर्त्सयते> कभी २ पर॰ भी—-—-—व्यंग्य करना
- निर्भर्त्स्—चुरा॰आ॰—निर्+भर्त्स्—-—झिड़कना, निन्दा करना, गाली देना
- निर्भर्त्स्—चुरा॰आ॰—-—-—आगे बढ़ जाना, ग्रहण लगना, लज्जित करना
- भर्त्सकः—पुं॰—-—भर्त्स्+ण्वुल्—धमकी देने वाला, घुड़कने वाला
- भर्त्सनम्—नपुं॰—-—भर्त्स्+ल्युट्—धमकाना, घुड़कना
- भर्त्सनम्—नपुं॰—-—-—धमकी झिड़की
- भर्त्सनम्—नपुं॰—-—-—बुरा भला कहना, गाली देना
- भर्त्सनम्—नपुं॰—-—-—अभिशाप
- भर्त्सना—स्त्री॰—-—भर्त्स्+ल्युट्, स्त्रियां टाप्—धमकाना, घुड़कना
- भर्त्सना—स्त्री॰—-—भर्त्स्+ल्युट्, स्त्रियां टाप्—धमकी झिड़की
- भर्त्सना—स्त्री॰—-—भर्त्स्+ल्युट्, स्त्रियां टाप्—बुरा भला कहना, गाली देना
- भर्त्सना—स्त्री॰—-—भर्त्स्+ल्युट्, स्त्रियां टाप्—अभिशाप
- भर्त्सितम्—नपुं॰—-—भर्त्स्+क्त—धमकाना, घुड़कना
- भर्त्सितम्—नपुं॰—-—भर्त्स्+क्त—धमकी झिड़की
- भर्त्सितम्—नपुं॰—-—भर्त्स्+क्त—बुरा भला कहना, गाली देना
- भर्त्सितम्—नपुं॰—-—भर्त्स्+क्त—अभिशाप
- भर्मम्—नपुं॰—-—भृ+मनिन्. नि० नलोपः—मजदूरी, भाड़ा
- भर्मम्—नपुं॰—-—भृ+मनिन्. नि० नलोपः—सोना
- भर्मम्—नपुं॰—-—भृ+मनिन्. नि० नलोपः—नाभि
- भर्मण्या—स्त्री॰—-—भर्मन्+यत्+टाप्—मजदूरी, भाड़ा
- भर्मन्—नपुं॰—-—भृ+मनिन्—सहारा, संधारण, पालन-पोषण
- भर्मन्—नपुं॰—-—भृ+मनिन्—मजदूरी, भाड़ा
- भर्मन्—नपुं॰—-—भृ+मनिन्—सोना
- भर्मन्—नपुं॰—-—भृ+मनिन्—सोने का सिक्का
- भर्मन्—नपुं॰—-—भृ+मनिन्—नाभि
- भल्—चुरा॰ आ॰<भालयते>, <भालित>—-—-—देखना, अवलोकन करना
- निभल्—चुरा॰ आ॰—नि+भल्—-—देखना, अवलोकन करना, प्रत्यक्ष करना, निगाह डालना
- भल्—भ्वा॰आ॰ —-—-—वर्णन करना, बयान करना, कहना
- भल्—भ्वा॰आ॰ —-—-—घायल करना, चोट पहुँचाना, मार डालना
- भल्—भ्वा॰आ॰ —-—-—देना
- भल्ल्—भ्वा॰आ॰ <भल्लते>, <भल्लित>—-—-—वर्णन करना, बयान करना, कहना
- भल्ल्—भ्वा॰आ॰ <भल्लते>, <भल्लित>—-—-—घायल करना, चोट पहुँचाना, मार डालना
- भल्ल्—भ्वा॰आ॰ <भल्लते>, <भल्लित>—-—-—देना
- भल्लः—पुं॰—-—भल्ल्+अच्—एक प्रकार का अस्त्र या बाण
- भल्ली—स्त्री॰—-—भल्ल्+अच्, स्त्रियां ङीप्—एक प्रकार का अस्त्र या बाण
- भल्लम्—नपुं॰—-—भल्ल्+अच्—एक प्रकार का अस्त्र या बाण
- भल्लः—पुं॰—-—भल्ल्+अच्—रीछ
- भल्लः—पुं॰—-—भल्ल्+अच्—शिव का विशेषण
- भल्लः—पुं॰—-—भल्ल्+अच्—भिलावे का पौधा
- भल्लकः—पुं॰—-—भल्ल+कन्—रीछ
- भल्लातः—पुं॰—-—भल्ल्+अत्+अच्—भिलावे का पौधा
- भल्लातकः—पुं॰—-—भल्लात+कन्—भिलावे का पौधा
- भल्लुकः—पुं॰—-—भल्ल्+ऊक,पक्षे पृषो॰ ह्रस्वः—रीछ, भालू
- भल्लुकः—पुं॰—-—भल्ल्+ऊक,पक्षे पृषो॰ ह्रस्वः—कुत्ता
- भल्लूकः—पुं॰—-—भल्ल्+ऊक—रीछ, भालू
- भल्लूकः—पुं॰—-—भल्ल्+ऊक—कुत्ता
- भव—वि॰—-—भवत्यस्मात्, भू+अपादाने अप्—उदय होता हुआ या उत्पन्न, जन्म लेता हुआ
- भवः—पुं॰—-—भवत्यस्मात्, भू+अपादाने अप्—होना, होने की स्थिति, सत्ता
- भवः—पुं॰—-—भवत्यस्मात्, भू+अपादाने अप्—जन्म, उत्पत्ति
- भवः—पुं॰—-—भवत्यस्मात्, भू+अपादाने अप्—स्रोत, मूल
- भवः—पुं॰—-—भवत्यस्मात्, भू+अपादाने अप्—सांसारिक अस्तित्व, सांसारिक जीवन, जीवन
- भवः—पुं॰—-—भवत्यस्मात्, भू+अपादाने अप्—संसार
- भवः—पुं॰—-—भवत्यस्मात्, भू+अपादाने अप्—कुशल-क्षेम, स्वास्थ्य, समृद्धि
- भवः—पुं॰—-—भवत्यस्मात्, भू+अपादाने अप्—श्रेष्ठता, उत्तमता
- भवः—पुं॰—-—भवत्यस्मात्, भू+अपादाने अप्—शिव का नाम
- भवः—पुं॰—-—भवत्यस्मात्, भू+अपादाने अप्—देव, देवता
- भवः—पुं॰—-—भवत्यस्मात्, भू+अपादाने अप्—अभिग्रहण, प्राप्ति
- भवातिग—वि॰—भवः+अतिग—-—सांसारिक जीवन पर विजय पाने वाला, वीतराग
- भवान्तकृत्—वि॰—भवः+अन्तकृत्—-—ब्रह्मा का विशेषण
- भवान्तरम्—नपुं॰—भवः+अन्तरम्—-—दूसरा जीवन
- भवाब्धिः—पुं॰—भवः+अब्धिः—-—सांसारिक जीवन रूपी समुद्र
- भवार्णवः—पुं॰—भवः+अर्णवः—-—सांसारिक जीवन रूपी समुद्र
- भवसमुद्रः—पुं॰—भवः+समुद्रः—-—सांसारिक जीवन रूपी समुद्र
- भवसागरः—पुं॰—भवः+सागरः—-—सांसारिक जीवन रूपी समुद्र
- भवसिन्धुः—पुं॰—भवः+सिन्धुः—-—सांसारिक जीवन रूपी समुद्र
- भवायना—स्त्री॰—भवः+अयना—-—गंगा नदी
- भवायनी—स्त्री॰—भवः+अयनी—-—गंगा नदी
- भवारण्यम्—नपुं॰—भवः+अरण्यम्—-—सांसारिक जीवन रूपी जंगल' 'सुनसान संसार
- भवात्मजः—पुं॰—भवः+आत्मजः—-—गणेश या कार्तिकेय का विशेषण
- भवोच्छदः—पुं॰—भवः+उच्छदः—-—सांसारिक जीवन का विनाश
- भवक्षितिः—स्त्री॰—भवः+क्षितिः—-—जन्मस्थान
- भवघस्मरः—पुं॰—भवः+घस्मरः—-—दावानल, जंगल की आग
- भवछिद्—वि॰—भवः+छिद्—-—सांसारिक जीवन के बंधनों को काटने वाला, जन्म की पुनरावृत्ति को रोकने वाला
- भवछेदः—पुं॰—भवः+छेदः—-—पूनर्जन्म का रोकना
- भवदारु—नपुं॰—भवः+दारु—-—देवदारु का वृक्ष
- भवभूतिः—पुं॰—भवः+भूतिः—-—एक प्रसिद्ध कवि का नाम
- भवरुद्—पुं॰—भवः+रुद्—-—अन्त्येष्टि संस्कार के अवसर पर बजने वाला ढोल
- भववीतिः—स्त्री॰—भवः+वीतिः—-—सांसारिक जीवन से छुटकाता
- भवत्—वि॰—-—भू+शतृ—होने वाला, घटित होने वाला, घटने वाला
- भवत्—वि॰—-—भू+शतृ—वर्तमान
- भवन्ती—स्त्री॰—-—-—होने वाला, घटित होने वाला, घटने वाला
- भवन्ती—स्त्री॰—-—-—वर्तमान
- भवती—सर्व॰स्त्री॰—-—-—आदरसूचक, सम्मानसूचक सर्वनाम
- भवदीय—वि॰—-—भवत्+ छ—मान्यवर महोदय का, आपका, तुम्हारा
- भवनम्—नपुं॰—-—भू+ल्यूट्—होना, अस्तित्व
- भवनम्—नपुं॰—-—भू+ल्यूट्—उत्पत्ति, जन्म
- भवनम्—नपुं॰—-—भू+ल्यूट्—आवास, निवास, घर, भवन
- भवनम्—नपुं॰—-—भू+ल्यूट्—स्थान, आवास, आधार
- भवनम्—नपुं॰—-—भू+ल्यूट्—इमारत
- भवनम्—नपुं॰—-—भू+ल्यूट्—प्रकृति
- भवनोदरम्—नपुं॰—भवनम्+उदरम्—-—घर का मध्यवर्ती भाग
- भवनपतिः—पुं॰—भवनम्+पतिः—-—घर का स्वामी, कुल का पिता
- भवनस्वामिन्—पुं॰—भवनम्+स्वामिन्—-—घर का स्वामी, कुल का पिता
- भवन्तः—पुं॰—-—भू+झच्, अन्तादेश—इस समय, वर्तमान काल में
- भवन्तिः—पुं॰—-—भू+झिच्, अन्तादेश—इस समय, वर्तमान काल में
- भवन्ती—स्त्री॰—-—भू+शतृ+ङीप्—गुणवती स्त्री
- भवानी—स्त्री॰—-—भव+ङीष्, आनुक्—शिव की पत्नी या पार्वती का नाम
- भवानीगुरुः—पुं॰—भवानी+गुरुः—-—हिमालय पर्वत का विशेषण
- भवानीपतिः—पुं॰—भवानी+पतिः—-—शिव का विशेषण
- भवादृक्ष—वि॰—-—-—आपकी भांति, तुम्हारी भांति
- भवादृक्षी—स्त्री॰—-—-—आपकी भांति, तुम्हारी भांति
- भवादृश्—वि॰—-—-—आपकी भांति, तुम्हारी भांति
- भवादृश—वि॰—-—-—आपकी भांति, तुम्हारी भांति
- भवादृशी—वि॰—-—-—आपकी भांति, तुम्हारी भांति
- भविक—वि॰—-—-—दाता, उपयुक्त, उपयोगी
- भविक—वि॰—-—-—सुखद, फलता-फूलता हुआ
- भविकी—स्त्री॰—-—-—दाता, उपयुक्त, उपयोगी
- भविकी—स्त्री॰—-—-—सुखद, फलता-फूलता हुआ
- भविकम्—नपुं॰—-—-—संपन्नता, कल्याण
- भवितव्य—वि॰—-—भू+तव्यत्—होने वाला, घटित होने वाला, होनहार
- भवितव्यम्—नपुं॰—-—-—अवश्यंभावी
- भवितव्यता—स्त्री॰—-—भवितव्य+तल्+टाप्—अनिवार्यता, होनी, प्रारब्ध, भाग्य
- भवितृ—वि॰—-—भू+तृच्—होने वाला, भावी
- भवित्री—स्त्री॰—-—-—होने वाला, भावी
- भविनः—पुं॰—-—भवाय इनः सूर्यः पृषो॰ साधुः—कवि
- भविनन्—पुं॰—-—-—कवि
- भविलः—पुं॰—-—भू+इलच्—प्रेमी, उपपति
- भविलः—पुं॰—-—-—लम्पट, कामी
- भविष्णु—वि॰—-—भू+इष्णुच्—होने वाला
- भविष्य—वि॰—-—भू+लृट्- स्य+ शतृ,पृषो॰ तु लोपः—आगे आने वाला
- भविष्य—वि॰—-—-—भावी, आसन्न, निकटवर्ती
- भविष्यम्—नपुं॰—-—-—भावी काल, उत्तर काल
- भविष्यकालः—पुं॰—भविष्य+कालः—-—भविष्यत् काल
- भविष्यज्ञानम्—नपुं॰—भविष्य+ज्ञानम्—-—आगे होने वाली बातों की जानकारी
- भविष्यपुराणम्—नपुं॰—भविष्य+पुराणम्—-—अठारह पुराणों में से एक का नाम
- भविष्यत्—वि॰—-—भू+लृट्- स्य+ शतृ—होने वाला, आगामी समय में होने वाला
- भविष्यती—स्त्री॰—-—-—होने वाला, आगामी समय में होने वाला
- भविष्यन्ती—स्त्री॰—-—-—होने वाला, आगामी समय में होने वाला
- भविष्यकालः—पुं॰—भविष्यत्+कालः—-—उत्तर काल
- भविष्यवक्तृ—वि॰—भविष्यत्+वक्तृ—-—आगे होने वाली घटनाओं को बताने वाला, भविष्यवाणी करने वाला
- भविष्यवादिन्—वि॰—भविष्यत्+वादिन्—-—आगे होने वाली घटनाओं को बताने वाला, भविष्यवाणी करने वाला
- भव्य—वि॰—-—भू+यत्—विद्यमान होने वाला, प्रस्तुत रहने वाला
- भव्य—वि॰—-—-—आगे होने वाला, आने वाले समय में घटित होने वाला
- भव्य—वि॰—-—-—होनहार
- भव्य—वि॰—-—-—उपयुक्त, उचित, लायक, योग्य
- भव्य—वि॰—-—-—अच्छा, बढ़िया, उत्तम
- भव्य—वि॰—-—-—शुभ, भाग्यवान्, आनन्दप्रद
- भव्य—वि॰—-—-—मनोहर, प्रिय, सुन्दर
- भव्य—वि॰—-—-—सौम्य, शान्त, मृदु
- भव्य—वि॰—-—-—सत्य
- भव्या—स्त्री॰—-—-—पार्वती
- भव्यम्—नपुं॰—-—-—सत्ता
- भव्यम्—नपुं॰—-—-—भावी काल
- भव्यम्—नपुं॰—-—-—परिणाम, फल
- भव्यम्—नपुं॰—-—-—अच्छा फल, समृद्धि
- भव्यम्—नपुं॰—-—-—हड्डी
- भष् —भ्वा॰पर॰<भषति>—-—-—भौंकना, गुर्राना, भूंकना
- भष् —भ्वा॰पर॰<भषति>—-—-—गाली देना, झिड़कना, डाटना-फटकारना, धमकाना
- भषः—पुं॰—-—भष्+अच्—कुत्ता
- भषकः—पुं॰—-—भष्+क्वुन्—कुत्ता
- भषणः—पुं॰—-—भष्+ल्युट्—कुत्ता
- भषणम्—नपुं॰—-—भष्+ल्युट्—कुत्ते का भौंकना, गुर्राना
- भसद्—पुं॰—-—भस्+अदि—सूर्य
- भसद्—पुं॰—-—भस्+अदि—माँस
- भसद्—पुं॰—-—भस्+अदि—एक प्रकार की बत्तख
- भसद्—पुं॰—-—भस्+अदि—समय
- भसद्—पुं॰—-—भस्+अदि—डोंगी
- भसद्—पुं॰—-—भस्+अदि—पिछला भाग
- भसद्—पुं॰—-—भस्+अदि—योनि
- भसनः—पुं॰—-—भस्+ल्युट्—मधुमक्खी
- भसन्तः—पुं॰—-—भस्+झच्, अन्तादेशः—काल, समय
- भसित—वि॰—-—भस्+क्त—जलकर भस्म बना हुआ
- भसितम्—नपुं॰—-—भस्+क्त—भस्म
- भस्त्रका—स्त्री॰—-—भस्+ष्ट्रन्+कन्+टाप्—धौंकनी
- भस्त्रका—स्त्री॰—-—भस्+ष्ट्रन्+कन्+टाप्—जल भरने के लिए चमड़े का पात्र, मशक
- भस्त्रका—स्त्री॰—-—भस्+ष्ट्रन्+कन्+टाप्—चमड़े का थैला या झोली
- भस्त्रा—स्त्री॰—-—भस्त्र+टाप्—धौंकनी
- भस्त्रा—स्त्री॰—-—भस्त्र+टाप्—जल भरने के लिए चमड़े का पात्र, मशक
- भस्त्रा—स्त्री॰—-—भस्त्र+टाप्—चमड़े का थैला या झोली
- भस्त्रिः—स्त्री॰—-—भस्त्र+इञ्—धौंकनी
- भस्त्रिः—स्त्री॰—-—भस्त्र+इञ्—जल भरने के लिए चमड़े का पात्र, मशक
- भस्त्रिः—स्त्री॰—-—भस्त्र+इञ्—चमड़े का थैला या झोली
- भस्मकम्—नपुं॰—-—भस्मन्+कन्—सोना या चाँदी
- भस्मकम्—नपुं॰—-—भस्मन्+कन्—एक रोग जिसमें कुछ खाया जाय तो तुरंत पचा हुआ ज्ञात होता हैं (परन्तु वस्तुतः पचता नहीं) और तीव्र भूख लगे रहना
- भस्मकम्—नपुं॰—-—भस्मन्+कन्—आँखों का एक रोग
- भस्मन्—नपुं॰—-—भस्+मनिन्—राख
- भस्मन्—नपुं॰—-—भस्+मनिन्—विभूति या पवित्र राख
- भस्माकृ——-—-—जलाकर राख करना
- भस्माकृ——-—-—जलाकर राख करना
- भस्मीभू——-—-—जल कर राख हो जाना
- भस्माग्निः—पुं॰—भस्मन्+अग्निः—-—भोजन के जल्दी पच जाने से तीव्र भूख का लगे रहना
- भस्मावशेष—वि॰—भस्मन्+अवशेष—-—जो केवल राख के रुप में रह जाय
- भस्माह्वयः—पुं॰—भस्मन्+आह्वयः—-—कपूर
- भस्मोद्धूलनम्—नपुं॰—भस्मन्+उद्धूलनम्—-—शरीर पर राख मलना
- भस्मगुण्ठनम्—नपुं॰—भस्मन्+गुण्ठनम्—-—शरीर पर राख मलना
- भस्मकारः—पुं॰—भस्मन्+कारः—-—धोबी
- भस्मकूटः—पुं॰—भस्मन्+कूटः—-—राख का ढेर
- भस्मगन्धाः—पुं॰—भस्मन्+गन्धाः—-—एक प्रकार का गन्धद्रव्य
- भस्मगन्धिका—स्त्री॰—भस्मन्+गन्धिका—-—एक प्रकार का गन्धद्रव्य
- भस्मगन्धिनी—स्त्री॰—भस्मन्+गन्धिनी—-—एक प्रकार का गन्धद्रव्य
- भस्मतूलम्—नपुं॰—भस्मन्+तूलम्—-—कुहरा, हिम
- भस्मतूलम्—नपुं॰—भस्मन्+तूलम्—-—धूल की बौछार
- भस्मतूलम्—नपुं॰—भस्मन्+तूलम्—-—गाँवों का समूह
- भस्मप्रियः—पुं॰—भस्मन्+प्रियः—-—शिव का विशेषण
- भस्मरोग —वि॰—भस्मन्+रोग —-—एक प्रकार की बीमारी
- भस्मलेपनम्—नपुं॰—भस्मन्+लेपनम्—-—शरीर पर राख मलना
- भस्मविधिः—पुं॰—भस्मन्+विधिः—-—राख से किया जाने वाला अनुष्ठान
- भस्मवेधकः—पुं॰—भस्मन्+वेधकः—-—कपूर
- भस्मस्नानम्—नपुं॰—भस्मन्+स्नानम्—-—राख मलकर निर्मल करना
- भस्मता—स्त्री॰—-—भस्मन्+तल्+टाप्—राख का होना
- भस्मसात्—अव्य॰—-—भस्मन्+साति—राख की स्थिति में
- भस्मसात्कृ——भस्मसात्+कृ—-—जलाकर राख कर देना
- भा —अदा॰ पर॰<भाति>, <भात>—-—-—चमकना, उज्ज्वल होना, चमकदार या चमकीला होना
- भा —अदा॰ पर॰<भाति>, <भात>—-—-—दिखाई देना, प्रतीत होना
- भा —अदा॰ पर॰<भाति>, <भात>—-—-—होना, विद्यमान होना
- भा —अदा॰ पर॰<भाति>, <भात>—-—-—इतराना
- भा —अदा॰ पर॰प्रेर॰<भापयति>,<भापयते>—-—-—चमकना, उज्ज्वल होना, चमकदार या चमकीला होना
- भा —अदा॰ पर॰प्रेर॰<भापयति>,<भापयते>—-—-—दिखाई देना, प्रतीत होना
- भा —अदा॰ पर॰प्रेर॰<भापयति>,<भापयते>—-—-—होना, विद्यमान होना
- भा —अदा॰ पर॰प्रेर॰<भापयति>,<भापयते>—-—-—इतराना
- भा —अदा॰ पर॰, इच्छा॰<विभासति>—-—-—चमकना, उज्ज्वल होना, चमकदार या चमकीला होना
- भा —अदा॰ पर॰, इच्छा॰<विभासति>—-—-—दिखाई देना, प्रतीत होना
- भा —अदा॰ पर॰, इच्छा॰<विभासति>—-—-—होना, विद्यमान होना
- भा —अदा॰ पर॰, इच्छा॰<विभासति>—-—-—इतराना
- अभिभा—अदा॰ पर॰—अभि+भा—-—चमकना
- आभा—अदा॰ पर॰—आ+भा—-—चमकना, जगमगाना, शानदार प्रतीत होना
- आभा—अदा॰ पर॰—आ+भा—-—दिखाई देना, प्रकट होना
- निर्भा—अदा॰ पर॰—निस्+भा—-—चमक उठना, जगमगाना
- निर्भा—अदा॰ पर॰—निस्+भा—-—प्रगति करना, उन्नति करना, विचारों में आगे बढना
- प्रभा—अदा॰ पर॰—प्र+भा—-—प्रकट होना
- प्रभा—अदा॰ पर॰—प्र+भा—-—चमकना, प्रकाशित होने लगना, प्रभातकाल होना
- प्रतिभा—अदा॰ पर॰—प्रति+भा—-—चमकना, चमकदार या चमकीला प्रकट होना
- प्रतिभा—अदा॰ पर॰—प्रति+भा—-—इतराना, बनना
- प्रतिभा—अदा॰ पर॰—प्रति+भा—-—दिखाई देना, प्रकट होना
- प्रतिभा—अदा॰ पर॰—प्रति+भा—-—सूझना, मन में आना
- विभा—अदा॰ पर॰—वि+भा—-—चमकना
- विभा—अदा॰ पर॰—वि+भा—-—दिखाई देना, प्रकट होना
- व्यतिभा—अदा॰ आ॰—व्यति+भा—-—बहुत चमकना, जगमगाना
- भा —स्त्री॰—-— भा+अङ्+टाप्—प्रकाश, आभा, कान्ति, सौन्दर्य
- भा —स्त्री॰—-— भा+अङ्+टाप्—छाया, प्रतिबिंब
- भाकोशः —पुं॰—भा+कोशः —-—सूर्य
- भाषः —पुं॰—भा+षः —-—सूर्य
- भागणः —पुं॰—भा+गणः —-—तारापुंज, तारकावली
- भानिकरः—पुं॰—भा+निकरः—-—प्रकाशपुंज, किरणों का समूह
- भानेमिः—पुं॰—भा+नेमिः—-—सूर्य
- भामण्डलम्—नपुं॰—भा+मण्डलम्—-—प्रभामंडल तेजोमंडल
- भाकर—पुं॰—भास्+करः—-—सूर्य
- भाकर—पुं॰—भास्+करः—-—नायक
- भाकर—पुं॰—भास्+करः—-—अग्नि
- भाकर—पुं॰—भास्+करः—-—शिव का विशेषण
- भाकर—पुं॰—भास्+करः—-—एक प्रसिद्ध ज्योतिषी जो ११ वीं शताब्दी में हुए हैं
- भाकर—पुं॰—भास्+करम्—-—सोना
- भाक्त—वि॰—-—भक्त-अण्—जो नियमित रुप से दूसरे से भोजन पाता हो, प्राश्रित, सेवा के लिए प्रतिघृत अर्थात् अनुजीवी
- भाक्त—वि॰—-—भक्त-अण्—भोजन के योग्य
- भाक्त—वि॰—-—भक्त-अण्—घटिया, गौण
- भाक्त—वि॰—-—भक्त-अण्—गौण अर्थ में प्रयुक्त
- भाक्तिकः—पुं॰—-—भक्त+ठक्—अनुजीवी, पराश्रयी
- भाक्ष—वि॰—-—भक्षा+अण्—पेट, भोजनभट्ट
- भागः—पुं॰—-—भज्+घञ्—खण्ड, अंश, हिस्सा, प्रभाग, वितरण, विभाजन
- भागः—पुं॰—-—भज्+घञ्—भाग्य, किस्मत
- भागः—पुं॰—-—भज्+घञ्—किसी पूर्ण का एक खण्ड, भिन्न
- भागः—पुं॰—-—भज्+घञ्—किसी भिन्न का अंश
- भागः—पुं॰—-—भज्+घञ्—चौथाई, चतुर्थ भाग
- भागः—पुं॰—-—भज्+घञ्—किसी वृत्त की परिधी का ३६० वां घात या अंश
- भागः—पुं॰—-—भज्+घञ्—राशिचक्र का तीसवाँ अंश
- भागः—पुं॰—-—भज्+घञ्—लब्धि
- भागः—पुं॰—-—भज्+घञ्—कक्ष, अन्तराल, जगह, क्षेत्र, स्थान
- भागार्ह—वि॰—भाग+अर्ह—-—दाय या पैतृक सम्पत्ति में हिस्सा पाने का अधिकारी
- भागकल्पना—स्त्री॰—भाग+कल्पना—-—हिस्सों का विभाजन
- भागजातिः—स्त्री॰—भाग+जातिः—-—भिन्न राशियों को घटाकर हर समान करना
- भागघेयम्—नपुं॰—भाग+घेयम्—-—हिस्सा, खंड, अंश
- भागघेयम्—नपुं॰—भाग+घेयम्—-—किस्मत, भाग्य, पराब्ध
- भागघेयम्—नपुं॰—भाग+घेयम्—-—अच्छी किस्मत, सौभाग्य
- भागघेयम्—नपुं॰—भाग+घेयम्—-—सम्पत्ति
- भागघेयम्—नपुं॰—भाग+घेयम्—-—आनन्द
- भागभाज्—वि॰—भाग+भाज्—-—स्वार्थपर, हिस्सेदार, साझीदार
- भागभुज्—पुं॰—भाग+भुज्—-—राजा, प्रभु
- भागलक्षणा—स्त्री॰—भाग+लक्षणा—-—लक्षणा शब्दशक्ति का एक भेद या शब्द का गौण प्रयोग जिससे शब्द अपने को अंशतः रखता हैं तथ अंशतः खो देता हैं, ‘जहदजहल्लक्षणा’ भी इसे ही कहते हैं
- भागहरः—पुं॰—भाग+हरः—-—सह उत्तराधिकारी
- भागहरः—पुं॰—भाग+हरः—-—भाह या तकसीम
- भागहारः—पुं॰—भाग+हारः—-—भाग
- भागवत—वि॰—-—भगवतः भगवत्या वा इदं सोऽस्य देवता वा अण्—विष्णु से सम्बन्ध रखने वाला या विष्णु का पूजा करने वाला
- भागवत—वि॰—-—-—देवता संबंधी
- भागवत—वि॰—-—-—पवित्र, दिव्य, पुण्यशील
- भागवतः—पुं॰—-—-—विष्णु या कृष्ण का अनुचर या भक्त
- भागवतम्—नपुं॰—-—-—अठारह पुराणों में से एक
- भागशस्—अव्य॰—-—भाग+शस्—खण्डों में या अंशो में, खण्ड खण्ड करके
- भागशस्—अव्य॰—-—भाग+शस्—हिस्से के अनुसार
- भागिक—वि॰—-—भाग+ठन्—खण्ड सम्बंधी
- भागिक—वि॰—-—-—खण्ड बनाने वाला
- भागिक—वि॰—-—-—भिन्न सम्बन्धी
- भागिक—वि॰—-—-—ब्याज वहन करने वाला (भागिकं शतम्) ‘सौ में से एक भाग अर्थात् एक प्रतिशत’ इसप्रकार भागिक् विंशतिः आदि
- भागिन्—वि॰—-—भज्+घिनुण्—हिस्से या भागों से युक्त
- भागिन्—वि॰—-—-—हिस्सा रखने वाला, हिस्सेदार
- भागिन्—वि॰—-—-—हिस्सा लेने वाला, भाग लेने वाला, साथी यथा दुःख
- भागिन्—वि॰—-—-—सम्बन्धित, ग्रस्त
- भागिन्—वि॰—-—-—अधिकृतधारी, स्वामी
- भागिन्—वि॰—-—-—हिस्से का अधिकारी
- भागिन्—वि॰—-—-—भाग्ययान्, किस्मत वाला
- भागिन्—वि॰—-—-—घटिया, गौण
- भागिनेयः—पुं॰—-—भगिनी+ढक्—बहन का पुत्र, भानजा
- भागिनेयी—स्त्री॰—-—-—भानजी
- भागीरथी—स्त्री॰—-—भगीरथ+अण्+ङीप्—गंगा नदी का नामान्तर
- भागीरथी—स्त्री॰—-—-—गंगा की तीन मुख्य शाखाओं में एक
- भाग्यम्—नपुं॰—-—भज्+ण्यत्—किस्मत, प्रारब्ध, तकदीर, सौभाग्य या दैव
- भाग्यम्—नपुं॰—-—-—अच्छा भाग्य या किस्मत
- भाग्यम्—नपुं॰—-—-—समृद्धि, सम्पन्नता
- भाग्यम्—नपुं॰—-—-—आनन्द, कल्याण
- भाग्यायत्त—वि॰—भाग्यम्+आयत्त—-—भाग्य पर आश्रित
- भाग्योदयः—पुं॰—भाग्यम्+उदयः—-—सौभाग्य का प्रभात, भाग्यशाली घटना
- भाग्यक्रमः—पुं॰—भाग्यम्+क्रमः—-—भाग्य की चाल, किस्मत का फेर
- भाग्ययोगः—पुं॰—भाग्यम्+योगः—-—भाग्य की बेला, किस्मत का मेल
- भाग्यविप्लवः—पुं॰—भाग्यम्+विप्लवः—-—बुरी किस्मत, दुर्भाग्य
- भाग्यवशात्—अव्य॰—भाग्यम्+वशात्—-—विधि की इच्छा से, भाग्य से, किस्मत से, भाग्यवश
- भाग्यवत्—वि॰—-—भाग्य+मतुप्—भाग्यशाली, सौभाग्यसम्पन्न, आनन्दित
- भाग्यवत्—वि॰—-—-—समृद्धिशाली
- भाङ्ग—वि॰—-—भङ्गा+अण्—पटसन से निर्मित, सन का बना हुआ
- भाङ्गकः—पुं॰—-—भाङ्ग+कन्—फटा पुराना कपड़ा, जीर्ण शीर्ण, चिथड़ा
- भाङ्गीनम्—नपुं॰—-—भङ्गाया भवनं क्षेत्रम्-खञ्—सन या पटसन का खत
- भाज्—चुरा॰ उभ॰—-—-—बाँटना, वितरित करना
- भाज्—वि॰—-—भाज+क्विप्—हिस्सेदार, साथी, भागी
- भाज्—वि॰—-—-—रखनेवाला, उपभोग करनेवाला, अधिकार करनेवाला, प्राप्त करने वाला
- भाज्—वि॰—-—-—अधिकारी
- भाज्—वि॰—-—-—भावुक, अनुभव करनेवाला, सचेतन
- भाज्—वि॰—-—-—अनुरक्त
- भाज्—वि॰—-—-—रहनेवाला, आवासी, निवास करनेवाला यथा ‘कुहरभाज’
- भाज्—वि॰—-—-—जानेवाला, सहारा लेनेवाला, खोजनेवाला
- भाज्—वि॰—-—-—पूजा करनेवाला
- भाज्—वि॰—-—-—भाग्य में बदा हुआ
- भाज्—वि॰—-—-—अवश्यंकरणीय, कर्तव्य
- भाजकः—पुं॰—-—भाज्+ण्वुल्—बांटनेवाला
- भाजकः—पुं॰—-—-—वह अंक जिससे भाग किया जाय
- भाजनम्—नपुं॰—-—भाज्यतेऽनेन् भाज्+ल्युट्—हिस्से बनाना, बांटना
- भाजनम्—नपुं॰—-—-—भाग
- भाजनम्—नपुं॰—-—-—पात्र, बर्तन, प्याला, थाली
- भाजनम्—नपुं॰—-—-—आधार, ग्रहण करनेवाला, आशय
- भाजनम्—नपुं॰—-—-—योग्य या पात्र, योग्य पदार्थ या व्यक्ति
- भाजनम्—नपुं॰—-—-—प्रतिनिधान
- भाजनम्—नपुं॰—-—-—६४ पलों की माप
- भाजितम्—नपुं॰—-—भाज्+क्त—हिस्सा, अंश
- भाजी—स्त्री॰—-—भाज्+घञ्+ङीष्—चावल, भात का मांड, दलिया
- भाज्यम्—नपुं॰—-—भाज्+ण्यत्—अंश, हिस्सा, दाय
- भाज्यम्—नपुं॰—-—-—लाभांश
- भाटम्—नपुं॰—-—भट्+घञ्—मजदूरी, भाड़ा, किराया
- भाटम्—नपुं॰—-—भट्+घञ्, ण्वुल् वा—मजदूरी, भाड़ा, किराया
- भाटिः—स्त्री॰—-—भट्+णिच्+इञ्—मजदूरी, भाड़ा
- भाटिः—स्त्री॰—-—-—वेश्या की कमाई
- भाट्टः—पुं॰—-—भट्ट+अण्—भट्ट की अनुयायी, कुमारिल भट्ट के द्वारा स्थापित मीमांसादर्शन् के सिद्धांतों का अनुयायी
- भाणः—पुं॰—-—भण्+घञ्—नाट्यकाव्य का एक भेद; इसमें केवल रंगमंच पर एक ही पात्र होता हैं, जो अन्तर्वादियों के स्थान को आकाशभाषित का यथेष्ट प्रयोग करके पूरा कर देता हैं
- भाणकः—पुं॰—-—भण्+ण्वुल्—उद्धोषक, घोषणा करने वाला
- भाण्डम्—नपुं॰—-—भाण्ड्+अच्+, भण्+ड स्वार्थे अण् वा-तारा॰—पात्र, बर्तन, बासन
- नीलभाण्डम्—नपुं॰—-—-—नील रखने का मटका
- क्षीरभाण्डम्—नपुं॰—-—-—दूध की हांडी
- भाण्डम्—नपुं॰—-—-—संदूक, ट्रंक, पेटी, संदूकची
- भाण्डम्—नपुं॰—-—-—औजार या उपकरण, यंत्र
- भाण्डम्—नपुं॰—-—-—संगीतउपकरण
- भाण्डम्—नपुं॰—-—-—सामान, बर्तन, माल, पण्यसामग्री, दुकानदार की वाणिज्यवस्तु
- भाण्डम्—नपुं॰—-—-—माल की गाँठ
- भाण्डम्—नपुं॰—-—-—कोई भी मूल्यवान सम्पत्ति, निधि
- भाण्डम्—नपुं॰—-—-—नदी का तल
- भाण्डम्—नपुं॰—-—-—घोड़े की जीन या साज
- भाण्डम्—नपुं॰—-—-—भंडैती, मसखरापन
- भण्डाः—पुं॰—-—-—बर्तन, पण्यसामग्री
- भाण्डागार—वि॰—भाण्डम्+अगार—-—भंडारघर, सामान का कोठा
- भाण्डागार—वि॰—भाण्डम्+अगार—-—कोष, ज्ञान
- भाण्डागार—वि॰—भाण्डम्+अगार—-—संग्रह, गोदाम, भंडार
- भाण्डागार—वि॰—भाण्डम्+आगार—-—भंडारघर, सामान का कोठा
- भाण्डागार—वि॰—भाण्डम्+आगार—-—कोष, ज्ञान
- भाण्डागार—वि॰—भाण्डम्+आगार—-—संग्रह, गोदाम, भंडार
- भाण्डागारम्—नपुं॰—भाण्डम्+अगारम्—-—भंडारघर, सामान का कोठा
- भाण्डागारम्—नपुं॰—भाण्डम्+अगारम्—-—कोष, ज्ञान
- भाण्डागारम्—नपुं॰—भाण्डम्+अगारम्—-—संग्रह, गोदाम, भंडार
- भाण्डागारम्—नपुं॰—भाण्डम्+आगारम्—-—भंडारघर, सामान का कोठा
- भाण्डागारम्—नपुं॰—भाण्डम्+आगारम्—-—कोष, ज्ञान
- भाण्डागारम्—नपुं॰—भाण्डम्+आगारम्—-—संग्रह, गोदाम, भंडार
- भाण्डपतिः—पुं॰—भाण्डम्+पतिः—-—सौदागर
- भाण्डपुटः—पुं॰—भाण्डम्+पुटः—-—नाई
- भाण्डप्रतिभाण्डकम्—नपुं॰—भाण्डम्+प्रतिभाण्डकम्—-—विनिमय, सामान की अदला बदली की संगणना
- भाण्डभरकः—पुं॰—भाण्डम्+भरकः—-—बर्तन की अन्तर्वस्तु
- भाण्डमूल्यम्—नपुं॰—भाण्डम्+मूल्यम्—-—बर्तनों के रुप में पूंजी
- भाण्डशाला—स्त्री॰—भाण्डम्+शाला—-—गोदाम, भण्डार
- भाण्डकः—पुं॰—-—भाण्ड+कन्—छोटा बर्तन, कटोरा
- भाण्डकम्—नपुं॰—-—भाण्ड+कन्—छोटा बर्तन, कटोरा
- भाण्डकम्—नपुं॰—-—-—माल, पण्यसामग्री, बर्तन
- भाण्डारम्—नपुं॰—-—भाण्ड्+ऋ+अण्—गोदाम, भण्डार
- भाण्डारिन्—पुं॰—-—भाण्डार+इनि—गोदाम या भण्डार क रखवाला
- भाण्डिः—स्त्री॰—-—भण्ड+इन् पृषो॰ साधुः—उस्तरे का घर, पेटी
- भाण्डिवाहः—पुं॰—भाण्डि+वाहः—-—नाई
- भाण्डिशाला—स्त्री॰—भाण्डि+शाला—-—नाई की दुकान
- भाण्डिकः—पुं॰—-—भाण्ड+ठन्—नाई
- भाण्डिलः—पुं॰—-—भांडि+लच्—नाई
- भाण्डिका—स्त्री॰—-—भाण्डि+कन्+टाप्—उपकरण, औजार, यन्त्र
- भाण्डिनी—स्त्री॰—-—भाण्ड+इनि+ङीप्—पेटी, टोकरी
- भाण्डीरः—पुं॰—-—भण्ड्+ईरच्, पृषो) साधुः—बड़ का या गूलर का वृक्ष
- भात—भू॰क॰कृ॰—-—भा+क्त—चमकता हुआ, जगमगाता हुआ, चमकीला
- भातः—पुं॰—-—-—उषःकाल, प्रभात, प्रातःकाल
- भातिः—स्त्री॰—-—भा+क्तिन्—प्रकाश, चमक, कान्ति, आभा
- भातिः—स्त्री॰—-—-—प्रत्यक्षज्ञान, ज्ञान या प्रतीति
- भातुः—पुं॰—-—भा+तुन्—सूर्य
- भाद्रः—पुं॰—-—भाद्रपदी वा पौर्णमासी अस्मिन् मासे भाद्री+अण्—चान्द्रवर्ष के एक मास का नाम
- भाद्रपदः—पुं॰—-—भाद्रपदी वा पौर्णमासी अस्मिन् मासे भाद्रपदी+अण्—चान्द्रवर्ष के एक मास का नाम
- भाद्रपदाः—स्त्री॰-ब॰ व॰—-—-—पच्चीसवाँ और छब्बीसवाँ नक्षत्र
- भाद्रपदी—स्त्री॰—-—भाद्रपद+ङीष्—भाद्रपद मास की पूर्णिमा
- भाद्री—स्त्री॰—-—भद्रा+अण्+ङीष्—भाद्रपद मास की पूर्णिमा
- भाद्रमातुरः—पुं॰—-—भद्रमातुरपत्यम्-भद्रमातृ+अण्, उकारः देशः—सती सध्वी माता का पुत्र
- भानम्—नपुं॰—-—मा भावे ल्युट्—प्रकट होना, दृश्यमान
- भानम्—नपुं॰—-—मा भावे ल्युट्—प्रकाश, कान्ति
- भानम्—नपुं॰—-—मा भावे ल्युट्—प्रत्यक्षज्ञान, ज्ञान
- भानुः—पुं॰—-—भा+नु—प्रकाश, कान्ति चमक
- भानुः—पुं॰—-—भा+नु—प्रकाश किरण
- भानुः—पुं॰—-—भा+नु—सूर्य
- भानुः—पुं॰—-—भा+नु—सौन्दर्य
- भानुः—पुं॰—-—भा+नु—दिन
- भानुः—पुं॰—-—भा+नु—राजा, राजकुमार, प्रभु
- भानुः—पुं॰—-—भा+नु—शिव का विशेषण
- भानुः—स्त्री॰—-—भा+नु—सुन्दर स्त्री
- भानुकेशरः—पुं॰—भानु+केशरः—-—सूर्य
- भानुकेसरः—पुं॰—भानु+केसरः—-—सूर्य
- भानुजः—पुं॰—भानु+जः—-—शनिग्रह
- भानुदिनम्—नपुं॰—भानु+दिनम्—-—रविवार, इतवार
- भानुवारः—पुं॰—भानु+वारः—-—रविवार, इतवार
- भानुमत्—वि॰—-—भानु+मतुप्—ज्योतिर्मान्, चमकीला, जगमग करता हुआ
- भानुमत्—वि॰—-—भानु+मतुप्—सुन्दर, मनोहर
- भानुमत्—पुं॰—-—भानु+मतुप्—सूर्य
- भानुमती—स्त्री॰—-—भानु+मतुप्+ङीप्—दुर्योधन की पत्नी का नाम
- भामिनी—स्त्री॰—-—भाम्+णिनि+ङीप्—सुन्दर तरुणी, कामिनी
- भामिनी—स्त्री॰—-—-—कामुकी स्त्री
- भारः—पुं॰—-—भ्र+घञ्—बोझ, वजन, तोल
- भारः—पुं॰—-—-—धक्का, अत्यन्त घिचपिच भाग
- भारः—पुं॰—-—-—अतिरेक, मार या उड़ान
- भारः—पुं॰—-—-—श्रम, मेहनत आयास
- भारः—पुं॰—-—-—राशि, बड़ी मात्रा
- भारः—पुं॰—-—-—२००० पल सोने के भार के बराबर
- भारः—पुं॰—-—-—बोझा, धोने के लिए जुआ
- भाराक्रान्त—वि॰—भार+आक्रान्त—-—बोझ से अत्यन्त दबा हुआ, अधिक बोझा लिए हुए
- भारोद्वहः—पुं॰—भार+उद्वहः—-—कुली बोझा ढोने वाला
- भारोपजीव—वि॰—भार+उपजीव—-—बोझा ढोकर जीवन-यापन करना, कुली का जीवन
- भारोपजीवनम्—नपुं॰—भार+उपजीवनम्—-—बोझा ढोकर जीवन-यापन करना, कुली का जीवन
- भारयष्टिः—पुं॰—भार+यष्टिः—-—बोझ उड़ाने की लकड़ी
- भारवाह—वि॰—भार+वाह—-—बोझा ढोनेवाला
- भारवाहः—पुं॰—भार+वाहः—-—बोझा ले जानेवाला, कुली
- भारवाहनः—पुं॰—भार+वाहनः—-—बोझा ढोनेवाला जानवर
- भारवाहनम्—नपुं॰—भार+वाहनम्—-—गाड़ी, मालगाड़ी का डब्बा
- भारवाहिकः—पुं॰—भार+वाहिकः—-—कुली
- भारसह—वि॰—भार+सह—-—जो अधिक बोझा उठा सके, (अतः) बहुत मजबूत, बलवान्
- भारहरः—पुं॰—भार+हरः—-—बोझा ढोने वाला कुली
- भारहारः—पुं॰—भार+हारः—-—बोझा ढोने वाला कुली
- भारहारिन्—पुं॰—भार+हारिन्—-—कृष्ण का विशेषण
- भारण्डः—पुं॰—-—?—एक प्रकार का काल्पनिक पक्षी जिसका वर्णन केवल कहानियों में पाया जाता हैं
- भारत—वि॰—-—भरत+अण्—भरत से संबन्ध रखने वाला या भरत की सन्तान
- भारतः—पुं॰—-—भरत+अण्—भारतवर्ष या हिन्दुस्तान की निवासी
- भारतः—पुं॰—-—भरत+अण्—अभिनेता
- भारतम्—नपुं॰—-—भरत+अण्—भरत का देश, भारत
- भारतम्—नपुं॰—-—भरत+अण्—संस्कृत में लिखा हुआ एक अत्यन्त प्रसिद्ध महाकाव्यजिसमें अन्नत उपाख्यानों के साथ भरतवंशी राजाओं का इतिहास पाया जाता हैं
- भारती—स्त्री॰—-—भरत+अण्+ङीप्—वाणी, वाच्य, वचन, वाणी-प्रवाह
- भारती—स्त्री॰—-—भरत+अण्+ङीप्—वाणी की देवी, सरस्वती
- भारती—स्त्री॰—-—भरत+अण्+ङीप्—विशेषप्रकार की शैली
- भारती—स्त्री॰—-—भरत+अण्+ङीप्—लवा, बटेर
- भारद्वाजः—पुं॰—-—भरद्वाजस्यापत्यम्-अण्—कौरव पांडवों की सैनिक शिक्षा के आचार्य गुरु द्रोण
- भारद्वाजः—पुं॰—-—भरद्वाजस्यापत्यम्-अण्—अगस्त्य का नामान्तर
- भारद्वाजः—पुं॰—-—-—मङ्गलग्रह
- भारद्वाजः—पुं॰—-—-—चातकपक्षी
- भारद्वाजम्—नपुं॰—-—-—हड्डी
- भारवः—पुं॰—-—भारं वाति-वा+क—धनुष की डोरी
- भारविः—पुं॰—-—-—किरातार्जुनीयम नामक संस्कृतकाव्य के रचयिता
- भारिः—पुं॰—-—इभस्य अरिः पृषो॰ साधुः—सिंह
- भारिक—वि॰—-—भार+ठाक्, इनि वा—भारी
- भारिक—पुं॰—-—-—बोझा ढोनेवाला, कुली
- भारिन्—वि॰—-—भार+ठाक्, इनि वा—भारी
- भारिन्—पुं॰—-—-—बोझा ढोनेवाला, कुली
- भार्गः—पुं॰—-—भर्ग+अण्—भर्ग देश का राजा
- भार्गवः—पुं॰—-—भृगोरपत्यम्—शुक्राचार्य, शुक्रग्रह का शास्ता और असुरों का आचार्य
- भार्गवः—पुं॰—-—-—परशुराम
- भार्गवः—पुं॰—-—-—शिव का विशेषण
- भार्गवः—पुं॰—-—-—धनुर्धर
- भार्गवः—पुं॰—-—-—हाथी
- भार्गवप्रियः—पुं॰—भार्गवः+प्रियः—-—हीरा
- भार्गवी—स्त्री॰—-—भार्गव+ङीप्—दूब
- भार्गवी—स्त्री॰—-—-—लक्ष्मी का विशेषण
- भार्यः—पुं॰—-—भृ+ण्यत्—सेवक, पराश्रयी
- भार्या—स्त्री॰—-—भर्तुं योग्या+भार्य+टाप्—धर्मपत्नी
- भार्या—स्त्री॰—-—-—मादा जानवर
- भार्याट—वि॰—भार्या+आट—-—अपनी पत्नी के वेश्यापन से जीवन निर्वाह करनेवाला
- भार्योढ—वि॰—भार्या+उढ—-—विवाहित
- भार्याजितः—पुं॰—भार्या+जितः—-—पत्नी से प्रभावित पति, जोरु का गुलाम
- भार्यारूः—पुं॰—-—भार्या+ऋ+उण्—एक प्रकार का मृग
- भार्यारूः—पुं॰—-—-—उस बालक का पिता जो अन्य पुरुष की पत्नी से उत्पन्न हो
- भालम्—नपुं॰—-—भा+लच्—मस्तक, ललाट
- भालम्—नपुं॰—-—भा+लच्—प्रकाश, अन्धकार
- भालाङ्कः—पुं॰—भालम्+अङ्कः—-—भाग्यवान पुरुष जिसके मस्तक पर भाग्यरेखा विराजमान हो
- भालाङ्कः—पुं॰—भालम्+अङ्कः—-—शिव का विशेषण
- भालाङ्कः—पुं॰—भालम्+अङ्कः—-—आरा
- भालाङ्कः—पुं॰—भालम्+अङ्कः—-—कछुवा
- भालचन्द्रः—पुं॰—भालम्+चन्द्रः—-—शिव का विशेषण
- भालचन्द्रः—पुं॰—भालम्+चन्द्रः—-—गणेश का विशेषण
- भालदर्शनम्—नपुं॰—भालम्+दर्शनम्—-—सिंदूर
- भालदर्शिन्—वि॰—भालम्+दर्शिन्—-—‘मस्तक या ललाट को देखनेवाला’ अर्थात् वह नौकर जो अपने स्वामी की इच्छाओं के प्रति सावधान रहता हैं
- भालदृश्—पुं॰—भालम्+दृश्—-—शिव का विशेषण
- भाललोचनः—पुं॰—भालम्+लोचनः—-—शिव का विशेषण
- भालपट्टः—पुं॰—भालम्+पट्टः—-—मस्तक, ललाट
- भालपट्टम्—नपुं॰—भालम्+पट्टम्—-—मस्तक, ललाट
- भालुः—पुं॰—-—भृ+उण्, वृद्धिः, रस्य लः—सूर्य
- भालुक—वि॰—-—भलते हिनस्ति प्राणिनः-भल्+उक+अण्—रीछ, भालू
- भालूक—वि॰—-—भलते हिनस्ति प्राणिनः-भल्+ऊक+अण्—रीछ, भालू
- भाल्लुक—वि॰—-—भलते हिनस्ति प्राणिनः-भल्लु (ल्लु)+क+अण्—रीछ, भालू
- भाल्लूक—वि॰—-—भलते हिनस्ति प्राणिनः-भल्लु (ल्लू)+क+अण्—रीछ, भालू
- भावः—पुं॰—-—भू भावे घञ्—होना, सत्ता, अस्तित्व
- भावः—पुं॰—-—-—होना, घटित होना, घटना
- भावः—पुं॰—-—-—स्थिति, अवस्था, होने की अवस्था
- भावः—पुं॰—-—-—रीति, ढंग
- भावः—पुं॰—-—-—दर्जा, स्थिति, पद, हैसियत
- भावः—पुं॰—-—-—(क)यथार्थ दशा या स्थिति, यथार्थता, वास्तविकता (ख) निष्कपटता, भक्ति
- भावः—पुं॰—-—-—सहजगुण, चित्तवृत्ति, प्रकृति, स्वभाव
- भावः—पुं॰—-—-—झुकाव या मनोवृत्ति, भावना, विचार, मत, कल्पना
- भावः—पुं॰—-—-—भावना, संवेग, रस या मनोवृत्ति, भावना, विचार, मत, कल्पना
- भावः—पुं॰—-—-—प्रेम स्नेह, अनुराग
- भावः—पुं॰—-—-—अर्थ, आशय, तात्पर्य, व्यञ्जना
- भावः—पुं॰—-—-—प्रस्ताव, संकल्प
- भावः—पुं॰—-—-—हृदय, आत्मा, मन
- भावः—पुं॰—-—-—विद्यमान, पदार्थ, वस्तु, चीज, तत्त्वार्थ
- भावः—पुं॰—-—-—प्राणी जीवधारीजन्तु
- भावः—पुं॰—-—-—भावमय, चिन्तन
- भावः—पुं॰—-—-—आचरण, गतिविधि, हावभाव
- भावः—पुं॰—-—-—प्रीतिद्योतक हावभाव या रस की अभिव्यक्ति, प्रेमसंकेत
- भावः—पुं॰—-—-—जन्म
- भावः—पुं॰—-—-— संसार, विश्व
- भावः—पुं॰—-—-—गर्भाशय
- भावः—पुं॰—-—-—इच्छाशक्ति
- भावः—पुं॰—-—-—अतिमानवशक्ति
- भावः—पुं॰—-—-—उपदेश, अनुदेश
- भावः—पुं॰—-—-—विद्वान और सम्माननीय व्यक्ति, योग्य पुरुष
- भावः—पुं॰—-—-—भाववाचकसंज्ञा का आशय, भावात्मक विचार
- भावः—पुं॰—-—-—भाववाच्य
- भावः—पुं॰—-—-—जन्मकुण्डली का स्थान
- भावः—पुं॰—-—-—नक्षत्र
- भावानुग—वि॰—भाव+अनुग—-—स्वाभाविक
- भावानुगा—स्त्री॰—भाव+अनुगा—-—छाया
- भावान्तरम्—नपुं॰—भाव+अन्तरम्—-—भिन्न स्थिति
- भावार्थः—पुं॰—भाव+अर्थः—-—स्पष्ट अर्थ या ध्वनि
- भावार्थः—पुं॰—भाव+अर्थः—-—विषयसामग्री
- भावाकूतम्—नपुं॰—भाव+आकूतम्—-—मन के विचार
- भावात्मक—वि॰—भाव+आत्मक—-—वास्तविक, यथार्थ
- भावाभासः—पुं॰—भाव+आभासः—-—भावना का अनुकरण, बनावटी या मिथ्या संवेग
- भावालीन—वि॰—भाव+आलीन—-—छाया
- भावेकरस—वि॰—भाव+एकरस—-—केवल, प्रेम के रस से प्रभावित
- भावगम्भीरम्—अव्य॰—भाव+गम्भीरम्—-—हृदय से, हृदयतल से
- भावगम्भीरम्—नपुं॰—भाव+गम्भीरम्—-—गंभीरता के साथ, संजीदगी से
- भावगम्य—वि॰—भाव+गम्य—-—मन से जाना हुआ
- भावग्राहिन्—वि॰—भाव+ग्राहिन्—-—आशय को समझनेवाला
- भावग्राहिन्—वि॰—भाव+ग्राहिन्—-—मनोभाव की कदर करने वाला
- भावजः—पुं॰—भाव+जः—-—कामदेव
- भावज्ञः—वि॰—भाव+ज्ञः—-—हृदय को जानने वाला
- भावविद्—वि॰—भाव+विद्—-—हृदय को जानने वाला
- भावदर्शिन्—वि॰—भाव+दर्शिन्—-—‘मस्तक या ललाट को देखनेवाला’ अर्थात् वह नौकर जो अपने स्वामी की इच्छाओं के प्रति सावधान रहता हैं
- भावबन्धन—वि॰—भाव+बन्धन—-—हृदय को मुग्ध करनेवाला, या बांधनेवाला, हृदय की कड़ी को जोड़नेवाला
- भावबोधक—वि॰—भाव+बोधक—-—किसी भी भावना को प्रकट करनेवाला
- भावमिश्रः—पुं॰—भाव+मिश्रः—-—योग्य व्यक्ति, सज्जन पुरुष
- भावरूप—वि॰—भाव+रूप—-—वास्तविक, यथार्थ
- भाववचनम्—नपुं॰—भाव+वचनम्—-—भावात्मक विचार को प्रकट करने वाला, क्रिया की भावाशयता को वहन करनेवाला
- भाववाचकम्—नपुं॰—भाव+वाचकम्—-—भाववाचकसंज्ञा
- भावशबलत्वम्—नपुं॰—भाव+शबलत्वम्—-—नानाप्रकार के संवेगो और भावों का मिश्रण
- भावशून्य—वि॰—भाव+शून्य—-—यथार्थ प्रेम से रहित
- भावसन्धिः—पुं॰—भाव+सन्धिः—-—दो संवेगों का मेल या सह-अस्तित्व
- भावसमाहित—वि॰—भाव+समाहित—-—भावमनस्क, भक्त
- भावसर्गः—पुं॰—भाव+सर्गः—-—मानसिकसृष्टि अर्थात् मानव की मानश्शक्तियों की सृष्टि और उनका प्रभाव
- भावस्थ—वि॰—भाव+स्थ—-—आसक्त, अनुरक्त
- भावस्थिर—वि॰—भाव+स्थिर—-—मन में दृढ़पूर्वक जमा हुआ
- भावस्निग्ध—वि॰—भाव+स्निग्ध—-—स्नेहसिक्त, सत्यनिष्ठा पूर्वक आसक्त
- भावक—वि॰—-—भू+णिच्+ण्वुल्—उत्पादक, प्रकाशक
- भावक—वि॰—-—भू+णिच्+ण्वुल्—कल्याणकारक
- भावक—वि॰—-—भू+णिच्+ण्वुल्—उत्प्रेक्षक, कल्पना करने वाला
- भावक—वि॰—-—भू+णिच्+ण्वुल्—उदात्त और सुन्दर भावनाओं के प्रति रूचि रखनेवाला, काव्यपरकरूचि रखने वाला
- भावकः—पुं॰—-—भू+णिच्+ण्वुल्—भावना, मनोभाव
- भावकः—पुं॰—-—भू+णिच्+ण्वुल्—मनोभावों को प्रकट करना
- भावन—वि॰—-—भू+णिच्+ल्युट्— उत्पादक
- भावनः—पुं॰—-—भू+णिच्+ल्युट्—निमित्तकारण
- भावनः—पुं॰—-—भू+णिच्+ल्युट्—सृष्टिकर्ता
- भावनः—पुं॰—-—भू+णिच्+ल्युट्—शिव का विशेषण
- भावनम्—नपुं॰—-—भू+णिच्+ल्युट्—पैदा करना, प्रकट करना
- भावनम्—नपुं॰—-—भू+णिच्+ल्युट्—किसी के हितों को अनुप्राणित करना
- भावनम्—नपुं॰—-—भू+णिच्+ल्युट्—संप्रत्यय, कल्पना, उत्प्रेक्षा, विचार, धारणा
- भावनम्—नपुं॰—-—भू+णिच्+ल्युट्—भक्ति, भावना, निष्ठा
- भावनम्—नपुं॰—-—भू+णिच्+ल्युट्—मनन, अनुध्यान, भावात्मक चिंतन
- भावनम्—नपुं॰—-—भू+णिच्+ल्युट्—कल्पना, प्राक्-कल्पना
- भावनम्—नपुं॰—-—भू+णिच्+ल्युट्—निरीक्षण, गवेषणा
- भावनम्—नपुं॰—-—भू+णिच्+ल्युट्—निश्चय, निर्धारण
- भावनम्—नपुं॰—-—भू+णिच्+ल्युट्—याद करना, प्रत्यास्मरण
- भावनम्—नपुं॰—-—भू+णिच्+ल्युट्—प्रत्यक्षज्ञान, संज्ञान
- भावनम्—नपुं॰—-—भू+णिच्+ल्युट्—प्रत्यक्षज्ञान से उत्पन स्मृति का कारण
- भावनम्—नपुं॰—-—भू+णिच्+ल्युट्—प्रमाण प्रदर्शन, युक्ति
- भावनम्—नपुं॰—-—भू+णिच्+ल्युट्—सिक्त करना, सराबोर करना, किसी सूखे चूर्ण को रस से भिगोना
- भावनम्—नपुं॰—-—भू+णिच्+ल्युट्—सुवासित करना, फूलों और सुगन्धित द्रव्यों से सजाना
- भावना—स्त्री॰—-—भू+णिच्+ल्युट्+टाप्—पैदा करना, प्रकट करना
- भावना—स्त्री॰—-—भू+णिच्+ल्युट्+टाप्—किसी के हितों को अनुप्राणित करना
- भावना—स्त्री॰—-—भू+णिच्+ल्युट्+टाप्—संप्रत्यय, कल्पना, उत्प्रेक्षा, विचार, धारणा
- भावना—स्त्री॰—-—भू+णिच्+ल्युट्+टाप्—भक्ति, भावना, निष्ठा
- भावना—स्त्री॰—-—भू+णिच्+ल्युट्+टाप्—मनन, अनुध्यान, भावात्मक चिंतन
- भावना—स्त्री॰—-—भू+णिच्+ल्युट्+टाप्—कल्पना, प्राक्-कल्पना
- भावना—स्त्री॰—-—भू+णिच्+ल्युट्+टाप्—निरीक्षण, गवेषणा
- भावना—स्त्री॰—-—भू+णिच्+ल्युट्+टाप्—निश्चय, निर्धारण
- भावना—स्त्री॰—-—भू+णिच्+ल्युट्+टाप्—याद करना, प्रत्यास्मरण
- भावना—स्त्री॰—-—भू+णिच्+ल्युट्+टाप्—प्रत्यक्षज्ञान, संज्ञान
- भावना—स्त्री॰—-—भू+णिच्+ल्युट्+टाप्—प्रत्यक्षज्ञान से उत्पन स्मृति का कारण
- भावना—स्त्री॰—-—भू+णिच्+ल्युट्+टाप्—प्रमाण प्रदर्शन, युक्ति
- भावना—स्त्री॰—-—भू+णिच्+ल्युट्+टाप्—सिक्त करना, सराबोर करना, किसी सूखे चूर्ण को रस से भिगोना
- भावना—स्त्री॰—-—भू+णिच्+ल्युट्+टाप्—सुवासित करना, फूलों और सुगन्धित द्रव्यों से सजाना
- भावाटः—पुं॰—-—भावं भावेन वा अटति-अट्+अण्, अच् वा—संवेग, आवेश, मनोभाव
- भावाटः—पुं॰—-—भावं भावेन वा अटति-अट्+अण्, अच् वा—प्रेम की भावना का बाह्य संकेत
- भावाटः—पुं॰—-—भावं भावेन वा अटति-अट्+अण्, अच् वा—पुण्यात्मा या पुण्यशील व्यक्ति
- भावाटः—पुं॰—-—भावं भावेन वा अटति-अट्+अण्, अच् वा—रसिक व्यक्ति
- भावाटः—पुं॰—-—भावं भावेन वा अटति-अट्+अण्, अच् वा—अभिनेता
- भावाटः—पुं॰—-—भावं भावेन वा अटति-अट्+अण्, अच् वा—सजावट, वेशभूषा
- भाविक—वि॰—-—-—प्राकृतिक, वास्तविक, , अन्तर्हित, अन्तर्जात
- भाविक—वि॰—-—-—भावुकतापूर्ण, भावुकता या भावना से व्याप्त
- भाविक—वि॰—-—-—भावी समय
- भाविकम्—नपुं॰—-—-—उत्कट प्रेम से पूर्णभाषा
- भाविकम्—नपुं॰—-—-—एक अलंकार का नाम जिसमें भूत और भविष्यत् का इस विशदता से वर्णन किया गया हो कि वस्तुतः वर्तमान प्रतीत हो। मम्मट् की दी हुई परिभाषा-
- भावित—भू॰क॰कृ॰—-—भू+णिच्+क्त—पैदा किया गया, उत्पादित
- भावित—भू॰क॰कृ॰—-—भू+णिच्+क्त—प्रकटीकृत, प्रदर्शित, निदर्शित
- भावित—भू॰क॰कृ॰—-—भू+णिच्+क्त—लालन-पालन किया गया, पाला-पोसा गया
- भावित—भू॰क॰कृ॰—-—भू+णिच्+क्त—संव्यक्त किया गया, कल्पना किया गया, कल्पित, कल्पना में उपन्यस्त
- भावित—भू॰क॰कृ॰—-—भू+णिच्+क्त—चिन्तित, मनन किया गया
- भावित—भू॰क॰कृ॰—-—भू+णिच्+क्त—बनाया गया, रूपान्तरित किया गया
- भावित—भू॰क॰कृ॰—-—भू+णिच्+क्त—मनन द्वारा पावन किया गया
- भावित—भू॰क॰कृ॰—-—भू+णिच्+क्त—सिद्ध, स्थापित
- भावित—भू॰क॰कृ॰—-—भू+णिच्+क्त—व्याप्त, भरा हुआ, संतृप्त, प्रेरित
- भावित—भू॰क॰कृ॰—-—भू+णिच्+क्त—डुबाया गया, सराबोर, मग्न
- भावित—भू॰क॰कृ॰—-—भू+णिच्+क्त—सुवासित, सुगन्धित
- भावित—भू॰क॰कृ॰—-—भू+णिच्+क्त—मिश्रित
- भावितम्—नपुं॰—-—भू+णिच्+क्त—गुणनप्रक्रिया द्वारा प्राप्त गुणनफल
- भावितात्मन्—वि॰—भावित+आत्मन्—-—जिसका आत्मा परमात्म-चिन्तन से पवित्र हो गया हो, जिसने परमात्मा को प्रत्यक्ष कर लिया हैं
- भावितात्मन्—वि॰—भावित+आत्मन्—-—विशुद्धभक्त, पुण्यशील
- भावितात्मन्—वि॰—भावित+आत्मन्—-—चिन्तनशील, मनस्वी
- भावितात्मन्—वि॰—भावित+आत्मन्—-—व्यस्त, व्यापृत
- भावितबुद्धि—वि॰—भावित+बुद्धि—-—जिसका आत्मा परमात्म-चिन्तन से पवित्र हो गया हो, जिसने परमात्मा को प्रत्यक्ष कर लिया हैं
- भावितबुद्धि—वि॰—भावित+बुद्धि—-—विशुद्धभक्त, पुण्यशील
- भावितबुद्धि—वि॰—भावित+बुद्धि—-—चिन्तनशील, मनस्वी
- भावितबुद्धि—वि॰—भावित+बुद्धि—-—व्यस्त, व्यापृत
- भावितकम्—नपुं॰—-—भावित+कन्—गुणनप्रक्रिया द्वारा प्राप्त गुणनफल, तथ्यविवरण
- भावित्रम्—नपुं॰—-—भू+इनि+त्रन्—तीन लोक
- भाविन्—वि॰—-—भू+इनि, णिच्—होनहार होनेवाला
- भाविन्—वि॰—-—भू+इनि, णिच्—होनेवाला, भविष्य में घटनेवाला, आगे आने वाला
- भाविन्—वि॰—-—भू+इनि, णिच्—भविष्य
- भाविन्—वि॰—-—भू+इनि, णिच्—होने के योग्य
- भाविन्—वि॰—-—भू+इनि, णिच्—अवश्यंभावी, भवितव्य, प्राङ्नियत या पूर्वनिर्दिष्ट-यद-भावि न तद्भावि भाविचेन्न तदन्यथा @ हि॰१
- भाविन्—वि॰—-—भू+इनि, णिच्—उत्कृष्ट, सुन्दर, भव्य
- भाविनी—स्त्री॰—-—भू+इनि, णिच्+ङीप्—सुन्दर स्त्री
- भाविनी—स्त्री॰—-—भू+इनि, णिच्+ङीप्—उत्तम या साध्वी महिला
- भाविनी—स्त्री॰—-—भू+इनि, णिच्+ङीप्—स्वेच्छाचारिणी स्त्री
- भावुक—वि॰—-—भू+उकञ्—होनेवाला, घटनेवाला
- भावुक—वि॰—-—भू+उकञ्—होनहार
- भावुक—वि॰—-—भू+उकञ्—समृद्ध, प्रसन्न
- भावुक—वि॰—-—भू+उकञ्—शुभमंगलमय
- भावुक—वि॰—-—भू+उकञ्—काव्य में रुचि रखनेवाला, गुणग्राही
- भावुकः—पुं॰—-—भू+उकञ्—बहनोई
- भावुकम्—नपुं॰—-—भू+उकञ्—प्रसन्नता, कल्याण, समृद्धि
- भावुकम्—नपुं॰—-—भू+उकञ्—प्रेम और प्रणयोन्माद से पूर्ण भाषा
- भाव्य—वि॰—-—भू+ण्यत्—होनेवाला, घटित होनेवाला
- भाव्य—वि॰—-—भू+ण्यत्—भविष्य
- भाव्य—वि॰—-—भू+ण्यत्—अनुष्ठेय या जो पूरा किया जाय
- भाव्य—वि॰—-—भू+ण्यत्—सोचे जाने या कल्पना किये जाने के योग्य
- भाव्य—वि॰—-—भू+ण्यत्—सिद्ध या प्रदर्शित किये जाने योग्य
- भाव्य—वि॰—-—भू+ण्यत्—निर्धारण या गवेषणा किये जाने योग्य
- भाव्यम्—नपुं॰—-—भू+ण्यत्—प्रारब्ध, अवश्यंभावी
- भाव्यम्—नपुं॰—-—भू+ण्यत्—भवितव्यता
- भाष्—भ्वा॰ आ॰ <भाषते>, <भाषित>—-—-—कहना, बोलना, उच्चारण करना
- भाष्—भ्वा॰ आ॰ <भाषते>, <भाषित>—-—-—बोलना, संबोधित करना
- भाष्—भ्वा॰ आ॰ <भाषते>, <भाषित>—-—-—बोलना, घोषणा करना, प्रकथन करना
- भाष्—भ्वा॰ आ॰ <भाषते>, <भाषित>—-—-—बोलना, बातें करना,
- भाष्—भ्वा॰ आ॰ <भाषते>, <भाषित>—-—-—नाम लेना, पुकारना, वर्णन करना
- अनुभाष्—भ्वा॰ आ॰—अनु+भाष्—-—बोलना, कहना
- अनुभाष्—भ्वा॰ आ॰—अनु+भाष्—-—समाचार देना, घोषणा करना
- अपभाष्—भ्वा॰ आ॰—अप+भाष्—-—झिड़कना, बुरा-भला कहना, बदनाम करना, निन्दा करना, बुराई करना
- अभिभाष्—भ्वा॰ आ॰—अभि+भाष्—-—बोलना,भाषण देना
- अभिभाष्—भ्वा॰ आ॰—अभि+भाष्—-—बोलना, कहना
- अभिभाष्—भ्वा॰ आ॰—अभि+भाष्—-—प्रकथन करना, घोषणा करना, कहना, समाचार देना
- अभिभाष्—भ्वा॰ आ॰—अभि+भाष्—-—वर्णन करना
- आभाष्—भ्वा॰ आ॰—आ+भाष्—-—बोलना, भाषण देना
- आभाष्—भ्वा॰ आ॰—आ+भाष्—-—कहना, बोलना
- परिभाष्—भ्वा॰ आ॰—परि+भाष्—-—परिपाटी स्थापित करना, औपचारिक रूप से बोलना
- प्रभाष्—भ्वा॰ आ॰—प्र+भाष्—-—कहना, बोलना
- प्रतिभाष्—भ्वा॰ आ॰—प्रति+भाष्—-—बदले में कहना, उत्तर देना
- प्रतिभाष्—भ्वा॰ आ॰—प्रति+भाष्—-—कहना, वर्णन करना
- प्रतिभाष्—भ्वा॰ आ॰—प्रति+भाष्—-—एक के बाद बोलना, सुनकर बोलना
- प्रतिभाष्—भ्वा॰ आ॰—प्रति+भाष्—-—नाम लेना, पुकारना
- विभाष्—भ्वा॰ आ॰—वि+भाष्—-—ऐच्छिक नियम के रूप में निर्धारित करना
- सम्भाष्—भ्वा॰ आ॰—सम्+भाष्—-—मिलकर बोलना, बातचीत करना
- भाषणम्—नपुं॰—-—भाष्+ल्युट्—बोलना, बातें करना, कहना
- भाषणम्—नपुं॰—-—भाष्+ल्युट्—वक्तृता,शब्द, बात
- भाषणम्—नपुं॰—-—भाष्+ल्युट्—कृपापूर्ण शब्द
- भाषा—स्त्री॰—-—भाष्+ अङ्+टाप्—वक्तृता, बात
- भाषा—स्त्री॰—-—भाष्+ अङ्+टाप्—बोली, जबान
- भाषा—स्त्री॰—-—भाष्+ अङ्+टाप्—सामान्य या देहाती बोली
- भाषा—स्त्री॰—-—भाष्+ अङ्+टाप्—(क)बोली जानेवाली संस्कृत भाषा
- भाषा—स्त्री॰—-—भाष्+ अङ्+टाप्—(ख)कोई प्राकृत बोली
- भाषा—स्त्री॰—-—भाष्+ अङ्+टाप्—परिभाषा, वर्णन
- भाषा—स्त्री॰—-—भाष्+ अङ्+टाप्—सरस्वती का विशेषण, वाणी की देवी
- भाषा—स्त्री॰—-—भाष्+ अङ्+टाप्—अभियोग की चार अवस्थाओं में से पहली, शिकायत, आरोप, दोषारोपण
- भाषान्तरम्—नपुं॰—भाषा+अन्तरम्—-—अन्य वाणी या बोली
- भाषान्तरम्—नपुं॰—भाषा+अन्तरम्—-—अनुवाद
- भाषापादः—पुं॰—भाषा+पादः—-—आरोप, शिकायत
- भाषासमः—पुं॰—भाषा+समः—-—एक अलंकार का नाम जिसमें शब्द क्रम का न्यास इस प्रकार किया जाता है कि चाहे आप उसे संस्कृत समझे और चाहे प्राकृत
- भाषिका—स्त्री॰—-— भाषा+कन्+टाप्, ह्रस्वः, इत्वम्—वक्तृता, भाषा, बोली
- भाषित— भू॰क॰कृ॰—-—भाष्+क्त—बोला हुआ, कहा हुआ, उच्चारण किया हुआ
- भाषितम्—नपुं॰—-—-—भाषण, उच्चारण, शब्द, बोली
- भाषितपुंस्क—वि॰—भाषित+पुंस्क—-—ऐसा शब्द जो पुं॰ भी हो, और जिसका पुं॰ से भिन्न अर्थ लिङ्ग की भावना से ही प्रकट होता है
- भाष्यम्—नपुं॰—-—भाष्+ण्यत्—बोलना, बातें करना
- भाष्यम्—नपुं॰—-—-—सामान्य या देहाती भाषा की कोई रचना
- भाष्यम्—नपुं॰—-—-—व्याख्या वृत्ति, टीका
- भाष्यम्—नपुं॰—-—-—विशेषकर सूत्रों की वृत्ति जिसमें शब्दशः व्याख्या और टिप्पण होते हैं
- भाष्यम्—नपुं॰—-—-—पाणिनि के सूत्रों पर पतंजलि का महाभाष्य
- भाष्यकरः—पुं॰—भाष्यम्+करः—-—भाष्यकार, टीकाकार
- भाष्यकरः—पुं॰—भाष्यम्+करः—-—पतंजलि
- भाष्यकारः—पुं॰—भाष्यम्+कारः—-—भाष्यकार, टीकाकार
- भाष्यकारः—पुं॰—भाष्यम्+कारः—-—पतंजलि
- भाष्यकृत्—पुं॰—भाष्यम्+कृत्—-—भाष्यकार, टीकाकार
- भाष्यकृत्—पुं॰—भाष्यम्+कृत्—-—पतंजलि
- भास्—भ्वा॰ आ॰ <भासते>, <भासित>—-—-—चमकना, जगमगाना, जगमग करना
- भास्—भ्वा॰ आ॰ <भासते>, <भासित>—-—-—स्पष्ट होना, विशद होना, मन में होना
- भास्—भ्वा॰ आ॰ <भासते>, <भासित>—-—-—प्रकट होना
- भास्—भ्वा॰ आ॰, पुं॰—-—-—चमकाना, देदीप्यमान करना, प्रकाशित करना
- भास्—भ्वा॰ आ॰, पुं॰—-—-—जाहिर करना, स्पष्ट करना, प्रकट करना
- अवभास्—भ्वा॰ आ॰—अव+भास्—-—चमकना
- अवभास्—भ्वा॰ आ॰—अव+भास्—-—प्रकट होना, प्रकाशित होना, स्पष्ट होना
- आभास्—भ्वा॰ आ॰—आ+भास्—-—प्रकट होना, .......के समान चमकना, ...की तरह दिखलाई देना
- उद्भास्—भ्वा॰ आ॰—उद्+भास्—-—चमकना, के समान दिखाई देना
- निस्भास्—भ्वा॰ आ॰—निस्+भास्—-—चमकना
- प्रतिभास्—भ्वा॰ आ॰—प्रति+भास्—-—चमकना
- प्रतिभास्—भ्वा॰ आ॰—प्रति+भास्—-—दिखलाई देना
- प्रतिभास्—भ्वा॰ आ॰—प्रति+भास्—-—स्पष्ट होना, प्रकट होना
- विभास्—भ्वा॰ आ॰—वि+भास्—-—चमकना
- भास्—स्त्री॰—-—भास्+क्विप्—प्रकाश, कान्ति, चमक
- भास्—स्त्री॰—-—भास्+क्विप्—प्रकाश की किरण
- भास्—स्त्री॰—-—भास्+क्विप्—प्रतिबिंब, प्रतिमा
- भास्—स्त्री॰—-—भास्+क्विप्—महिमा, कीर्ति, विभूति
- भास्—स्त्री॰—-—भास्+क्विप्—लालसा, इच्छा
- भास्करः—पुं॰—भास्+करः—-—सूर्य
- भास्करः—पुं॰—भास्+करः—-—नायक
- भास्करः—पुं॰—भास्+करः—-—अग्नि
- भास्करः—पुं॰—भास्+करः—-—शिव का विशेषण
- भास्करः—पुं॰—भास्+करः—-—एक प्रसिद्ध ज्योतिषी जो ११ वीं शताब्दी में हुए हैं
- भास्करम्—पुं॰—भास्+करम्—-—सोना
- भाप्रियः—पुं॰—भास्+प्रियः—-—लाल
- भासप्तमी—स्त्री॰—भास्+सप्तमी—-—माघशुक्ला सप्तमी
- भास्करिः—पुं॰—भास्+करिः—-—शनिग्रह
- भासः—पुं॰—-—भास् भावे घञ्—चमक, प्रकाश, कान्ति
- भासः—पुं॰—-—भास् भावे घञ्—उत्प्रेक्षा
- भासः—पुं॰—-—भास् भावे घञ्—मुर्गा
- भासः—पुं॰—-—भास् भावे घञ्—गिद्ध
- भासः—पुं॰—-—भास् भावे घञ्—गोष्ठ, गौशाला
- भासः—पुं॰—-—भास् भावे घञ्—एक कवि का नाम
- भासक—वि॰—-—भास्+ण्वुल्—प्रकाश करने वाला, चमकाने वाला, रोशनी करने वाला
- भासक—वि॰—-—भास्+ण्वुल्—दिखलाने वाला, विशद करने वाला
- भासक—वि॰—-—भास्+ण्वुल्—बोधगम्य बनाने वाला
- भासकः—पुं॰—-—भास्+ण्वुल्—एक कवि का नाम
- भासनम्—नपुं॰—-—भास्+ल्युट्—चमकना, जगमगाना
- भासनम्—नपुं॰—-—भास्+ल्युट्—ज्योतिर्मय, द्युतिमान्
- भासन्त—वि॰—-—भास्+झच्, अन्तादेशः—चमकदार
- भासन्त—वि॰—-—भास्+झच्, अन्तादेशः—सुन्दर, मनोहर
- भासन्तः—पुं॰—-—भास्+झच्, अन्तादेशः—सुर्य
- भासन्तः—पुं॰—-—भास्+झच्, अन्तादेशः—चन्द्रमा
- भासन्तः—पुं॰—-—भास्+झच्, अन्तादेशः—नक्षत्र, तारा
- भासन्ती—स्त्री॰—-—भास्+झच्, अन्तादेशः+ङीप्—नक्षत्र
- भासुः—पुं॰—-—भास्+उन्—सूर्य
- भासुर—वि॰—-—भास्+घुरच्—चमकीला, चमकदार, भव्य
- भासुर—वि॰—-—-—भयानक
- भासुरः—पुं॰—-—-—नायक
- भासुरः—पुं॰—-—-—स्फटिक
- भास्मन—वि॰—-—भस्मन्+अण्, मन्नन्तत्वात् न टिलोपः—राख से बना हुआ, राख वाला
- भास्वत्—वि॰—-—भास्+मतुप्, मस्य वः—चमकीला, चमकदार, द्युतिमान, देदीप्यमान
- भास्वत्— पुं॰—-—भास्+मतुप्, मस्य वः—सूर्य
- भास्वत्— पुं॰—-—भास्+मतुप्, मस्य वः—प्रकाश, कान्ति, आभा
- भास्वत्— पुं॰—-—भास्+मतुप्, मस्य वः—नायक
- भास्वती—स्त्री॰—-—भास्+मतुप्, मस्य वः+ङीप्—सूर्य की नगरी
- भास्वर—वि॰—-—भास्+वरच्—चमकीला, प्रकाशमान, चमकदार, उज्जवल
- भास्वरः— पुं॰—-—भास्+वरच्—सूर्य
- भास्वरः— पुं॰—-—भास्+वरच्—दिन