विक्षनरी:संस्कृत-हिन्दी शब्दकोश/स्व-ह
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- मूलशब्द—व्याकरण—संधिरहित मूलशब्द—व्युत्पत्ति—हिन्दी अर्थ
- स्व—सार्व॰ वि॰—-—स्वन् + ड—अपना, निजी
- स्व—सार्व॰ वि॰—-—स्वन् + ड—अन्तर्जात, प्राकृतिक, अन्तर्हित, विशेष, अन्तर्जन्मा
- स्व—सार्व॰ वि॰—-—स्वन् + ड—अपनी जाति से संबंध रखने वाला, अपनी जाति का
- स्वः—पुं॰—-—-—रिश्तेदार, बांधव
- स्वः—पुं॰—-—-—आत्मा
- स्वम्—नपुं॰—-—-—दौलत, सम्पत्ति
- स्वाक्षपादः—पुं॰—स्व-अक्षपादः—-—न्यायदर्शन पद्धति का अनुयायी
- स्वाक्षरम्—नपुं॰—स्व-अक्षरम्—-—अपना निजी हस्तलेख
- स्वाधिकारः—पुं॰—स्व-अधिकारः—-—अपना निजी कर्तव्य या राज्य
- स्वाधिष्ठानम्—नपुं॰—स्व-अधिष्ठानम्—-—हठयोग में माने हुए छ चक्रों में से एक
- स्वाधीन—वि॰—स्व-अधीन—-—अपने पर आश्रित, आत्मनिर्भर
- स्वाधीन—वि॰—स्व-अधीन—-—स्वतंत्र
- स्वाधीन—वि॰—स्व-अधीन—-—अपने वश में
- स्वाधीन—वि॰—स्व-अधीन—-—अपनी निजी शक्ति में
- स्वाधीनकुशल—वि॰—स्व-अधीन-कुशल—-—अपनी निजी शक्ति के आधार पर समृद्धिशाली
- स्वाधीनपतिका—स्त्री॰—स्व-अधीन-पतिका—-—वह पत्नी जिसका अपने पति पर पूरा नियन्त्रण हो, वह स्त्री जिसका पति पत्नी के वश में हो
- स्वाध्यायः—पुं॰—स्व-अध्यायः—-—मन में पाठ करना, मन मन में इसके जाप करना
- स्वाध्यायः—पुं॰—स्व-अध्यायः—-—वेदों का पढ़ना, वैदिक पाठ
- स्वानुभूतिः—पुं॰—स्व-अनुभूतिः—-—आत्म अनुभव
- स्वानुभूतिः—पुं॰—स्व-अनुभूतिः—-—आत्मज्ञान
- स्वान्तम्—नपुं॰—स्व-अन्तम्—-—मन
- स्वान्तम्—नपुं॰—स्व-अन्तम्—-—कन्दरा
- स्वार्थः—पुं॰—स्व-अर्थः—-—अपना निजी हित, स्वार्थ
- स्वार्थः—पुं॰—स्व-अर्थः—-—अपना अर्थ
- स्वार्थानुमानम्—नपुं॰—स्व-अर्थ-अनुमानम्—-— निजी अटकल, आगमनात्मक तर्क, अनुमान के दो मुख्य भेदों में से एक
- स्वार्थपण्डित—वि॰—स्व-अर्थ-पण्डित—-—अपने निजी कार्यों में चतुर
- स्वार्थपण्डित—वि॰—स्व-अर्थ-अनुमानम्—-—अपना हितसाधन करने में विशेषज्ञ
- स्वार्थपर—वि॰—स्व-अर्थ-पर—-—अपनी स्वार्थ सिद्धि करने पर तुला हुआ, स्वार्थी
- स्वार्थपरायण—वि॰—स्व-अर्थ-परायण—-—अपनी स्वार्थ सिद्धि करने पर तुला हुआ, स्वार्थी
- स्वार्थविघातः—पुं॰—स्व-अर्थ-विघातः—-—अपने उद्देश्य की भग्नाशा
- स्वार्थसिद्धिः—स्त्री॰—स्व-अर्थ-सिद्धिः—-—अपना निजी लक्ष्य पूरा करना
- स्वायत्त—वि॰—स्व-आयत्त—-—अपने अधीन, अपने पर आश्रित
- स्वेच्छा—स्त्री॰—स्व-इच्छा—-—अपनी अभिलाषा, अपनी रुचि
- स्वेच्छामृत्युः—पुं॰—स्व-इच्छा-मृत्युः—-—भीष्म का विशेषण
- स्वोदयः—पुं॰—स्व-उदयः—-—किसी विशेष स्थान पर किसी स्वर्गीय पिंड या दिव्य चिह्न का उदय होना
- स्वोपधिः—पुं॰—स्व-उपधिः—-—अचल ग्रह
- स्वकम्पनः—पुं॰—स्व-कम्पनः—-—वायु, हवा
- स्वकर्मिन्—वि॰—स्व-कर्मिन्—-—स्वार्थी
- स्वकार्यम्—नपुं॰—स्व-कार्यम्—-—अपना निजी कार्य या स्वार्थ
- स्वगतम्—अव्य॰—स्व-गतम्—-—मन में अपने आप को, एक ओर
- स्वच्छन्द—वि॰—स्व-छन्द—-—अपनी इच्छा रखने वाला, अनियंत्रित, स्वेच्छाचारी
- स्वच्छन्द—वि॰—स्व-छन्द—-—जंगली
- स्वच्छन्दः—पुं॰—स्व-छन्दः—-—अपनी निजी इच्छा, छांट कल्पना या मर्जी, स्वतंत्रता
- स्वच्छन्दम्—अव्य॰—स्व-छन्दम्—-—अपनी इच्छा या मर्जी के अनुसार, स्वेच्छाचरिता के साथ, स्वेच्छा से
- स्वज—वि॰—स्व-ज—-—आत्मजात
- स्वजः—पुं॰—स्व-जः—-—पुत्र, बाल
- स्वजः—पुं॰—स्व-जः—-—स्वेद, पसीना
- स्वजम्—नपुं॰—स्व-जम्—-—रुधिर
- स्वजनः—पुं॰—स्व-जनः—-—बंधु, रिश्तेदार
- स्वजनः—पुं॰—स्व-जनः—-—अपने निजी पुरुष, बंधुबांधव, अपनी गृहस्थी
- स्वतन्त्र—वि॰—स्व-तन्त्र—-—आत्माश्रित, अनियंत्रित, आत्मनिर्भर, स्वेच्छायुक्त
- स्वतन्त्रः—पुं॰—स्व-तन्त्रः—-—अन्धा पुरुष
- स्वदेशः—पुं॰—स्व-देशः—-—अपना देश, जन्मभूमि
- स्वदेशजः—पुं॰—स्वदेश-जः—-—अपने देश का आदमी
- स्वदेशबन्धु—वि॰—स्वदेश-बन्धु—-—अपने देश का आदमी
- स्वधर्मः—पुं॰—स्व-धर्मः—-—अपना धर्म
- स्वधर्मः—पुं॰—स्व-धर्मः—-—अपना निजी कर्तव्य
- स्वधर्मः—पुं॰—स्व-धर्मः—-—विशेषता, अपना निजी संपत्ति
- स्वपक्षः—पुं॰—स्व-पक्षः—-—अपना निजी दल
- स्वपरमण्डलम्—नपुं॰—स्व-परमण्डलम्—-—अपना और शत्रु का देश
- स्वप्रकाश—वि॰—स्व-प्रकाश—-—स्वतः स्पष्ट
- स्वप्रकाश—वि॰—स्व-प्रकाश—-—स्वतः चमकदार
- स्वप्रयोगात्—अव्य॰—स्व-प्रयोगात्—-—अपने प्रयत्नों के द्वारा
- स्वभट्टः—पुं॰—स्व-भट्टः—-—अपना निजी योद्धा
- स्वभट्टः—पुं॰—स्व-भट्टः—-—शरीर रक्षक
- स्वभावः—पुं॰—स्व-भावः—-—अपनी स्थिति
- स्वभावः—पुं॰—स्व-भावः—-—अन्तर्हित या मूलगुण, प्राकृतिक संविधान, अन्तर्जात या विशिष्ट स्वभाव, प्रकृति या स्वभाव
- स्वोक्तिः—स्त्री॰—स्व-उक्तिः—-—स्वतः स्फूर्त प्रकटन
- स्वोक्तिः—स्त्री॰—स्व-उक्तिः—-—एक अलंकार
- स्वोक्तिः—स्त्री॰—स्व-उक्तिः—-—एक सिद्धान्त
- स्वोक्तिसिद्धः—वि॰—स्वोक्ति-सिद्धः—-—प्राकृतिक, स्वतःस्फूर्तः, अन्तर्जात
- स्वभूः—पुं॰—स्व-भूः—-—ब्रह्मा का विशेषण
- स्वभूः—पुं॰—स्व-भूः—-—शिव का विशेषण
- स्वभूः—पुं॰—स्व-भूः—-—विष्णु का विशेषण
- स्वयोनि—वि॰—स्व-योनि—-—मातृपक्ष का संबंधी
- स्वयोनि—पुं॰ स्त्री॰—स्व-योनि—-—उत्पत्ति स्थान
- स्वयोनि—स्त्री॰—स्व-योनि—-—कोई बहन या निकटसंबंध वाली कोई स्त्री
- स्वरसः—पुं॰—स्व-रसः—-—प्राकृतिक स्वाद
- स्वरसः—पुं॰—स्व-रसः—-—किसी का अपना रस या काव्यगत रस, आत्मानंद
- स्वराज्—पुं॰—स्व-राज्—-—परमात्मा
- स्वरूप—वि॰—स्व-रूप—-—समान, समरुप
- स्वरूप—वि॰—स्व-रूप—-—सुन्दर, सुहावना, प्रिय
- स्वरूप—वि॰—स्व-रूप—-—विद्वान, समझदार
- स्वरूपम्—नपुं॰—स्व-रूपम्—-—अपनी शक्ल या सूरत, प्राकृतिक या दशा
- स्वरूपम्—नपुं॰—स्व-रूपम्—-—स्वाभाविक चरित्र या रुप, यथार्थ विधान
- स्वरूपम्—नपुं॰—स्व-रूपम्—-—प्रकृति
- स्वरूपम्—नपुं॰—स्व-रूपम्—-—विशिष्ट उद्देश्य
- स्वरूपम्—नपुं॰—स्व-रूपम्—-—प्रकार, किस्म, जाति
- स्वरूपासिद्धिः—स्त्री॰—स्व-रूपम्-सिद्धिः—-—तीन प्रकार के हेत्वाभासों में से एक
- स्ववश—वि॰—स्व-वश—-—स्वनियंत्रित
- स्ववश—वि॰—स्व-वश—-—स्वतन्त्र
- स्ववासिनी—स्त्री॰—स्व-वासिनी—-—विवाहित या अविवाहित स्त्री जो वयस्क होने पर भी अपने पिता के ही घर रहती रहे
- स्ववृत्ति—वि॰—स्व-वृत्ति—-—स्वावलम्बी, अपने प्रयत्नों से ही जीवनयापन करने वाला
- स्वसंवृत्त—वि॰—स्व-संवृत्त—-—आत्मरक्षित, स्वरक्षित
- स्वसंस्था—स्त्री॰—स्व-संस्था—-—अपने विचारों पर डटे रहना
- स्वसंस्था—स्त्री॰—स्व-संस्था—-—आत्मस्थिरता
- स्वसंस्था—स्त्री॰—स्व-संस्था—-—आत्मलीनता
- स्वस्थ—वि॰—स्व-स्थ—-—अपने पर डटे रहना
- स्वस्थ—वि॰—स्व-स्थ—-—स्वाश्रित, स्वावलम्बी, विश्वस्त, दृढ़, पक्का
- स्वस्थ—वि॰—स्व-स्थ—-—स्वतंत्र
- स्वस्थ—वि॰—स्व-स्थ—-—अच्छा करने वाला, स्वस्थ, नीरोग, आराम देना, सुखद
- स्वस्थ—वि॰—स्व-स्थ—-—सन्तुष्ट, प्रसन्न
- स्वस्थम्—अव्य॰—स्व-स्थम्—-—आराम से, सूखपूर्वक, शान्ति से
- स्वस्थानम्—नपुं॰—स्व-स्थानम्—-—अपनी जन्मभूमि, अपना निजी आवास स्थल
- स्वहस्त—वि॰—स्व-हस्त—-—अपना निजी हाथ या लिखाई, आत्मलेख
- स्वहस्तिका—स्त्री॰—स्व-हस्तिका—-—कुल्हाड़ी
- स्वहित—वि॰—स्व-हित—-—अपने लिए हितकर
- स्वहितम्—नपुं॰—स्व-हितम्—-—पना निजी लाभ, अपना कल्याण
- स्वक—वि॰—-—स्व + अकच्—अपना निजी, अपना
- स्वकीय—वि॰—-—स्वस्य इदम् - स्व + छ, कुक् आगमः—अपना निजी, अपना
- स्वकीय—वि॰—-—स्वस्य इदम् - स्व + छ, कुक् आगमः—अपने परिवार का
- स्वङ्ग—भ्वा॰ पर॰ <स्वङ्गति>—-—-—जाना, हिलना-जुलना
- स्वङ्गः—पुं॰—-—स्वङ्ग् + घञ्—आलिंगन
- स्वच्छ—वि॰—-—सुष्ठु अच्छः - प्रा॰ स॰—अत्यन्त साफ, पारदर्शी, विशुद्ध, उज्ज्वल, अल्पपारभासी
- स्वच्छ—वि॰—-—सुष्ठु अच्छः - प्रा॰ स॰—सफेद
- स्वच्छ—वि॰—-—सुष्ठु अच्छः - प्रा॰ स॰—सुन्दर
- स्वच्छ—वि॰—-—सुष्ठु अच्छः - प्रा॰ स॰—स्वस्थ
- स्वच्छः—पुं॰—-—-—स्फटिक
- स्वच्छम्—नपुं॰—-—-—मोती
- स्वच्छपत्रम्—नपुं॰—स्वच्छ-पत्रम्—-—तालक, सेलखडी
- स्वच्छबालुकम्—नपुं॰—स्वच्छ-बालुकम्—-—विशुद्ध खड़िया
- स्वच्छमणिः—पुं॰—स्वच्छ-मणिः—-—स्फटिक
- स्वञ्ज्—भ्वा॰ आ॰ <वञ्जते>—-—-—आलिंगन करना, कौली भरना
- स्वञ्ज्—भ्वा॰ आ॰ <वञ्जते>—-—-—घेरना, मरोड़ना
- परिष्वञ्ज्—भ्वा॰ आ॰ —परि-स्वञ्ज्—-—आलिंगन करना
- स्वठ्—चुरा॰ उभ॰ <स्वष्यति>, <स्वष्यते>, <स्वाष्यति>, <स्वाष्यते>—-—-—जाना
- स्वठ्—चुरा॰ उभ॰ <स्वष्यति>, <स्वष्यते>, <स्वाष्यति>, <स्वाष्यते>—-—-—समाप्त करना
- स्वतस्—अव्य॰—-—स्व + तसिल्—अपने आप, स्वयम्
- स्वत्वम्—नपुं॰—-—स्व + त्व—अपनी विद्यमानता
- स्वत्वम्—नपुं॰—-—स्व + त्व—स्वामित्व, स्वामित्व के अधिकार
- स्वद्—भ्वा॰ आ॰ <स्वदते>, <स्वदित>—-—-—पसन्द किया जाना, मधुर होना, स्वाद में रुचिकर होना
- स्वद्—भ्वा॰ आ॰ <स्वदते>, <स्वदित>—-—-—स्वाद लेना, रस लेना, खाना
- स्वद्—भ्वा॰ आ॰ <स्वदते>, <स्वदित>—-—-—प्रसन्न करना
- स्वद्—भ्वा॰ आ॰ <स्वदते>, <स्वदित>—-—-—मधुर करना
- स्वद्—चुरा॰ उभ॰ या प्रेर॰ <स्वादयति>, <स्वादयते>—-—-—चखाना, खाना
- स्वद्—चुरा॰ उभ॰ या प्रेर॰ <स्वादयति>, <स्वादयते>—-—-—रस लेना, मधुर करना
- आस्वद्—चुरा॰ उभ॰—आ-स्वद्—-—चखना, खाना
- आस्वद्—चुरा॰ उभ॰—आ-स्वद्—-—उपभोग करना
- स्वदनम्—नपुं॰—-—स्वद् + ल्युट्—चखना, खाना
- स्वदित—भू॰ क॰ कृ॰—-—स्वद् + क्त—चखा गया, खाया गया
- स्वदितम्—नपुं॰—-—-—उद्गार
- स्वधा—स्त्री॰—-—स्वद् + आ, पृषो॰ दस्य धः—अपना निजी स्वभाव या निश्चय, स्वतः स्फूर्तता
- स्वधा—स्त्री॰—-—स्वद् + आ, पृषो॰ दस्य धः—मृत पूर्वपुरुषों - पितरों - को प्रस्तुत की गई हवि की आहुति
- स्वधा—स्त्री॰—-—स्वद् + आ, पृषो॰ दस्य धः—मूर्त पितरों को प्रस्तुत किया भोजन
- स्वधा—स्त्री॰—-—स्वद् + आ, पृषो॰ दस्य धः—अन्न या आहुति
- स्वधा—स्त्री॰—-—स्वद् + आ, पृषो॰ दस्य धः—माया या सांसारिक भ्रम
- स्वधा—अव्य॰—-—-—पितरों के सम्मुख आहुति प्रस्तुत करते समय उच्चरित उद्गार
- स्वधाकर—वि॰—स्वधा-कर—-—पितरों के निमित्त आहुति देने वाला
- स्वधाकारः—पुं॰—स्वधा-कारः—-—‘स्वधा’ नाम का शब्द
- स्वधाप्रियः—पुं॰—स्वधा-प्रियः—-—अग्नि, आग
- स्वधाभुज्—पुं॰—स्वधा-भुज्—-—मृत या देवत्व को प्राप्त पूर्वपुरुष
- स्वधाभुज्—पुं॰—स्वधा-भुज्—-—देवता, देव
- स्वधितिः—पुं॰—-—-—कुल्हाड़ी
- स्वधिती—स्त्री॰—-—स्वधा + क्तिच्, स्त्रियां ङीष् च—
- स्वन्—भ्वा॰ पर॰ <स्वनति>—-—-—शब्द करना, कोलाहल करना
- स्वन्—भ्वा॰ पर॰ <स्वनति>—-—-—गाना
- स्वन्—भ्वा॰ उभ॰, प्रेर॰ <स्वनयति>, <स्वनयते>—-—-—गुंजाना
- स्वन्—भ्वा॰ उभ॰, प्रेर॰ <स्वनयति>, <स्वनयते>—-—-—शब्द करना
- स्वन्—भ्वा॰ उभ॰, प्रेर॰ <स्वनयति>, <स्वनयते>—-—-—अलंकृत करना
- स्वनः—पुं॰—-—स्वन् + अप्—शब्द, कोलाहल
- स्वनोत्साहः—पुं॰—स्वनः-उत्साहः—-—गेंडा
- स्वनिः—पुं॰—-—स्वन् + इन्—ध्वनि, कोलाहल
- स्वनिक—वि॰—-—स्वन + ठक्—ध्वनि करने वाला
- स्वनित—भू॰ क॰ कृ॰—-—स्वन् + क्त—ध्वनित, शब्दायमान, कोलाहल करने वाला
- स्वनितम्—नपुं॰—-—-—बिजली का शोर, बिजली की गड़गड़ाहट
- स्वप्—अदा॰ पर॰ <स्वपिति>,<सुप्त>—-—-—सोना, नींद आ जाना, सोने जाना
- स्वप्—अदा॰ पर॰ <स्वपिति>,<सुप्त>—-—-—तकिये का सहारा लेना, विश्राम करना, लेटना आराम करना
- स्वप्—अदा॰ पर॰ <स्वपिति>,<सुप्त>—-—-—तल्लीन होना
- स्वप्—अदा॰ भाववा॰ <सुप्यते>—-—-—सोना, नींद आ जाना, सोने जाना
- स्वप्—भाववा॰ <सुप्यते>—-—-—तकिये का सहारा लेना, विश्राम करना, लेटना आराम करना
- स्वप्—भाववा॰ <सुप्यते>—-—-—तल्लीन होना
- स्वप्—अदा॰ पर॰, इच्छा॰ <सुषुर्प्सति>—-—-—सोना, नींद आ जाना, सोने जाना
- स्वप्—अदा॰ पर॰, इच्छा॰ <सुषुर्प्सति>—-—-—तकिये का सहारा लेना, विश्राम करना, लेटना आराम करना
- स्वप्—अदा॰ पर॰, इच्छा॰ <सुषुर्प्सति>—-—-—तल्लीन होना
- स्वप्—अदा॰ उभ॰, प्रेर॰ <स्वापयति>,<स्वापयते>—-—-—सुलाना, सोने के लिए थपथपाना
- अवस्वप्—अदा॰ पर॰—अव-स्वप्—-—सोना, लेटना
- निस्वप्—अदा॰ पर॰—नि-स्वप्—-—सोना, लेटना
- प्रस्वप्—अदा॰ पर॰—प्र-स्वप्—-—सोना, लेटना
- संस्वप्—अदा॰ पर॰—सम्-स्वप्—-—सोना, लेटना
- स्वप्नः—पुं॰—-—स्वप् + नक्—सोना, नींद
- स्वप्नः—पुं॰—-—स्वप् + नक्—स्वप्न, ख्वाब, सपना आना
- स्वप्नः—पुं॰—-—स्वप् + नक्—शिथिलता, आलस्य, तन्द्रा
- स्वप्नावस्था—स्त्री॰—स्वप्न-अवस्था—-—सपने की दशा
- स्वप्नोपम्—वि॰—स्वप्न-उपम्—-—सपने से मिलता जुलता
- स्वप्नोपम्—वि॰—स्वप्न-उपम्—-—अवास्तविक या
- स्वप्नकर—वि॰—स्वप्न-कर—-—निद्रा लाने वाला, निद्राजनक, आस्वापक
- स्वप्नकृत्—वि॰—स्वप्न-कृत्—-—निद्रा लाने वाला, निद्राजनक, आस्वापक
- स्वप्नगृहम्—नपुं॰—स्वप्न-गृहम्—-—सोने का कमरा, शयनकक्ष
- स्वप्ननिकेतनम्—नपुं॰—स्वप्न-निकेतनम्—-—सोने का कमरा, शयनकक्ष
- स्वप्नदोषः—पुं॰—स्वप्न-दोषः—-—स्वप्नावस्था में होने वाला शुक्रपात
- स्वप्नधीगम्य—वि॰—स्वप्न-धीगम्य—-—निद्रा जैसी अवस्था में केवल बुद्धि द्वारा अनुभूत होने वाला
- स्वप्नप्रपञ्चः—पुं॰—स्वप्न-प्रपञ्चः—-—निद्रावस्था में भ्रम, स्वप्न में प्रकट होने वाला संसार
- स्वप्नविचारः—पुं॰—स्वप्न-विचारः—-—स्वप्नों की व्याख्या
- स्वप्नशील—वि॰—स्वप्न-शील—-—जिसे नींद आ रही हो, निद्रालु, ऊंघने वाला
- स्वप्नसृष्टिः—स्त्री॰—स्वप्न-सृष्टिः—-—स्वप्नों की रचना, निद्रावस्था में भ्रम
- स्वप्नज्—वि॰—-—स्वप् + नजिङ्—निद्रालु, सोने वाला, ऊंघने वाला
- स्वयम्—अव्य॰—-—सु + अय् + अम्—आप, अपने आप
- स्वयम्—अव्य॰—-—सु + अय् + अम्—आत्मस्फूर्त, अपनेआप, अनायास, बिना किसी कष्ट या चेष्टा के
- स्वयमर्जित—वि॰—स्वयम्-अर्जित—-—आत्मार्जित
- स्वयमुक्तिः—स्त्री॰—स्वयम्-उक्तिः—-—ऐच्छिक प्रकथन
- स्वयमुक्तिः—स्त्री॰—स्वयम्-उक्तिः—-—सूचना, अभिसाक्ष्य
- स्वयंग्रहः—पुं॰—स्वयम्-ग्रहः—-—बलात् ग्रहण कर लेना
- स्वयंग्राह—वि॰—स्वयम्-ग्राह—-—ऐच्छिक, स्वयं चुन लेने वाला
- स्वयंग्राहः—पुं॰—स्वयम्-ग्राहः—-—स्वयं चुन लेना, आत्मचुनाव
- स्वयंजात—वि॰—स्वयम्-जात—-—जो आप से आप उत्पन्न हुआ हो
- स्वयंदत्त—वि॰—स्वयम्-दत्त—-—अपने आप दिया हुआ
- स्वयंदत्तः—पुं॰—स्वयम्-दत्तः—-—वह लड़का जिसने अपने आप को दत्तक पुत्र बनने के लिए दत्तकग्राही माता पिता को दे दिया,
- स्वयम्भुः—पुं॰—स्वयम्-भुः—-—ब्रह्मा का नाम
- स्वयम्भुवः—पुं॰—स्वयम्-भुवः—-—प्रथम मनु
- स्वयम्भुवः—पुं॰—स्वयम्-भुवः—-—ब्रह्मा का नाम
- स्वयम्भुवः—पुं॰—स्वयम्-भुवः—-—शिव का नाम
- स्वयम्भू—वि॰—स्वयम्-भू—-—आप ही आप उत्पन्न होने वाला
- स्वयम्भूः—पुं॰—स्वयम्-भूः—-—ब्रह्मा का नाम
- स्वयम्भूः—पुं॰—स्वयम्-भूः—-—विष्णु का नाम
- स्वयम्भूः—पुं॰—स्वयम्-भूः—-—शिव का नाम
- स्वयम्भूः—पुं॰—स्वयम्-भूः—-—मूर्त ‘काल’ का नाम
- स्वयम्भूः—पुं॰—स्वयम्-भूः—-—कामदेव का नाम
- स्वयंवरः—पुं॰—स्वयम्-वरः—-—अपनी छांट, अपने आप चुनाव, इच्छानुरुप विवाह
- स्वयंवरा—स्त्री॰—स्वयम्-वरा—-—वह कन्या जो अपने पति का अपने आप चुनाव करती है ।
- स्वर्—चुरा॰ उभ॰ <स्वरयति>, <स्वरयते>—-—-—दोष निकालना, कलंक लगाना, बुरा भला कहना, निंदा करना
- स्वर्—अव्य॰—-—स्वृ + विच्—स्वर्ग, वैकुण्ठ
- स्वर्—अव्य॰—-—स्वृ + विच्—इन्द्र का स्वर्ग और मृत्यु के पश्चात पुण्यातमाओं का अस्थायी आवास
- स्वर्—अव्य॰—-—स्वृ + विच्—आकाश, अन्तरिक्ष
- स्वर्—अव्य॰—-—स्वृ + विच्—सूर्य और ध्रुवतारे के बीच का रिक्त स्थान
- स्वर्—अव्य॰—-—स्वृ + विच्—तीनों व्याहृतियों में तीसरी जिसका उच्चाराण प्रत्येक ब्राह्मण अपनी दैनिक प्रार्थना में करता है,
- स्वरापगा—स्त्री॰—स्वर्-आपगा—-—गंगा की स्वर्ग में बहने वाली धारा, मंदाकिनी
- स्वरापगा—स्त्री॰—स्वर्-आपगा—-—आकाशगंगा, छायापथ
- स्वर्गंगा—स्त्री॰—स्वर्-गंगा—-—गंगा की स्वर्ग में बहने वाली धारा, मंदाकिनी
- स्वर्गंगा—स्त्री॰—स्वर्-गंगा—-—आकाशगंगा, छायापथ
- स्वर्गति—स्त्री॰—स्वर्-गति—-—स्वर्ग में जाना, भावी आनन्द
- स्वर्गति—स्त्री॰—स्वर्-गति—-—मृत्युः
- स्वर्गमनम्—नपुं॰—स्वर्-गमनम्—-—स्वर्ग में जाना, भावी आनन्द
- स्वर्गमनम्—नपुं॰—स्वर्-गमनम्—-—मृत्युः
- स्वस्तरुः—पुं॰—स्वर्-तरुः—-—स्वर्ग का एक वृक्ष
- स्वर्दृश्—पुं॰—स्वर्-दृश्—-—इन्द्र का विशेषण
- स्वर्दृश्—पुं॰—स्वर्-दृश्—-—अग्नि का विशेषण
- स्वर्दृश्—पुं॰—स्वर्-दृश्—-—सोम का विशेषण
- स्वर्णदी—स्त्री॰—स्वर्-नदी—-—आकाशगंगा
- स्वर्मानवः—पुं॰—स्वर्-मानवः—-—एक प्रकार का मूल्यवान पत्थर
- स्वर्भानुः—पुं॰—स्वर्-भानुः—-—राहु का नाम
- स्वस्सूदनः—पुं॰—स्वर्-सूदनः—-—सूर्य
- स्वर्मध्यम्—नपुं॰—स्वर्-मध्यम्—-—आकाश का मध्यबिन्दु, ऊर्ध्वविंदु
- स्वर्लोकः—पुं॰—स्वर्-लोकः—-—दिव्य जगत, स्वर्गलोक
- स्वर्वधूः—स्त्री॰—स्वर्-वधूः—-—दिव्य कन्या, अप्सरा
- स्वर्वापी—स्त्री॰—स्वर्-वापी—-—गंगा
- स्वर्वेश्या—स्त्री॰—स्वर्-वेश्या—-—स्वर्ग की गणिका, दिव्य परी, अप्सरा
- स्वर्वैद्य—पुं॰, द्वि॰ व॰—स्वर्-वैध—-—दो अश्विनीकुमारों का विशेषण
- स्वर्षा—स्त्री॰—स्वर्-षा—-—सोम का विशेषण
- स्वर्षा—स्त्री॰—स्वर्-षा—-—इन्द्र के वज्र का विशेषण
- स्वर्सिन्धु—स्त्री॰—स्वर्-सिन्धु—-—स्वर्गंगा
- स्वरः—पुं॰—-—स्वर + अच्, स्वृ + अप् वा—शब्द, कोलाहल
- स्वरः—पुं॰—-—स्वर + अच्, स्वृ + अप् वा—आवाज
- स्वरः—पुं॰—-—स्वर + अच्, स्वृ + अप् वा—संगीत के सुर, ध्वनि, लय
- स्वरः—पुं॰—-—स्वर + अच्, स्वृ + अप् वा—सात की संख्या
- स्वरः—पुं॰—-—स्वर + अच्, स्वृ + अप् वा—स्वर अक्षर
- स्वरः—पुं॰—-—स्वर + अच्, स्वृ + अप् वा—स्वराघात
- स्वरः—पुं॰—-—स्वर + अच्, स्वृ + अप् वा—श्वासवायु
- स्वरः—पुं॰—-—स्वर + अच्, स्वृ + अप् वा—खुर्राटे भरना
- स्वरांशः—पुं॰—स्वर-अंशः—-—आधा या चौथाई स्वर
- स्वरान्तरम्—नपुं॰—स्वर-अन्तरम्—-—दो स्वरों के उच्चारण के बीच का अवकाश, क्रमभंग
- स्वरोदय—वि॰—स्वर-उदय—-—जिसके बाद स्वर हो
- स्वरोपध—वि॰—स्वर-उपध—-—जिसके पूर्व स्वर हो
- स्वरग्रामः—पुं॰—स्वर-ग्रामः—-—सरगम, स्वरसप्तक, स्वरों का समूह
- स्वरबद्ध—वि॰—स्वर-बद्ध—-—ताल स्वर में बंधा हुआ गाना
- स्वरभक्तिः—स्त्री॰—स्वर-भक्तिः—-—र् और ल् के उच्चारण में अन्तर्निविष्ट स्वर की ध्वनि जब इन अक्षरों के पश्चात कोई ऊष्मवर्ण या कोई अकेला व्यंजन हो
- स्वरभङ्गः—पुं॰—स्वर-भङ्गः—-—उच्चारण की अस्पष्टता, टूटा हुआ उच्चारण, आवाज का बैठ जाना
- स्वरमण्डलिका—स्त्री॰—स्वर-मण्डलिका—-—एक प्रकार की वीणा
- स्वरलासिका—स्त्री॰—स्वर-लासिका—-—बांसुरी, मुरली
- स्वरशून्य—वि॰—स्वर-शून्य—-—संगीतसुरों से रहित, बेसुरा, संगीत के ताल सुरों से हीन
- स्वरसंयोग—वि॰—स्वर-संयोग—-—स्वरों का मिल जाना
- स्वरसंयोग—वि॰—स्वर-संयोग—-—ध्वनि या स्वरों का मेल
- स्वरसङ्क्रमः—पुं॰—स्वर-सङ्क्रमः—-—सुरों के उतार-चढाव का क्रम
- स्वरसङ्क्रमः—पुं॰—स्वर-सङ्क्रमः—-—सरगम
- स्वरसन्धिः—पुं॰—स्वर-सन्धिः—-—स्वरों का मेल
- स्वरसामन्—पुं॰ ब॰ व॰—स्वर-सामन्—-—यज्ञीय सत्र में विशेष दिन के विशेषण
- स्वरवत्—वि॰—-—स्वर + मतुप्—ध्वनियुक्त, निनादी
- स्वरवत्—वि॰—-—स्वर + मतुप्—सुरीला
- स्वरवत्—वि॰—-—स्वर + मतुप्—स्वरविषयक
- स्वरवत्—वि॰—-—स्वर + मतुप्—स्वराघात से युक्त, सस्वर
- स्वरित—वि॰—-—स्वरो जातोऽस्य इतच्—ध्वनियुक्त
- स्वरित—वि॰—-—स्वरो जातोऽस्य इतच्—ध्वनित, स्वर के रुप में बोला गया
- स्वरित—वि॰—-—स्वरो जातोऽस्य इतच्—उच्चरित
- स्वरित—वि॰—-—स्वरो जातोऽस्य इतच्—स्वरित उच्चारणचिह्न से युक्त
- स्वरितः—पुं॰—-—स्वरो जातोऽस्य इतच्—उदात्त (ऊँचे) और अनुदात्त (नीचे) के बीच का स्वर
- स्वरुः—पुं॰—-—स्वृ + उ—धूप
- स्वरुः—पुं॰—-—स्वृ + उ—यज्ञीयस्तम्भ का एक अंश
- स्वरुः—पुं॰—-—स्वृ + उ—यज्ञ
- स्वरुः—पुं॰—-—स्वृ + उ—वज्र
- स्वरुः—पुं॰—-—स्वृ + उ—बाण
- स्वरुस्—पुं॰—-—स्वृ + उस्—वज्र
- स्वर्गः—पुं॰—-—स्वरितं गीयते - गै + क, सु + ऋज् + घञ्—वैकुंठ, इन्द्र का स्वर्ग, बहिश्त
- स्वर्गापगा—स्त्री॰—स्वर्ग-आपगा—-—स्वर्गीय गंगा
- स्वर्गौकस्—पुं॰—स्वर्ग-ओकस्—-—सुर, देव
- स्वर्गगिरिः—पुं॰—स्वर्ग-गिरिः—-—स्वर्गीय पहाड़, सुमेरु
- स्वर्गद—वि॰—स्वर्ग-द—-—स्वर्ग में प्रवेश दिलाने वाला
- स्वर्गप्रद—वि॰—स्वर्ग-प्रद—-—स्वर्ग में प्रवेश दिलाने वाला
- स्वर्गद्वारम्—नपुं॰—स्वर्ग-द्वारम्—-—स्वर्ग का दरवाजा, वैकुंठ का दरवाजा, स्वर्ग में प्रवेश
- स्वर्गपतिः—पुं॰—स्वर्ग-पतिः—-—इन्द्र
- स्वर्गभर्तृ—पुं॰—स्वर्ग-भर्तृ—-—इन्द्र
- स्वर्गलोकः—पुं॰—स्वर्ग-लोकः—-—दिव्य प्रवेश
- स्वर्गलोकः—पुं॰—स्वर्ग-लोकः—-—वैकुंठ
- स्वर्गवधूः—स्त्री॰—स्वर्ग-वधूः—-—दिव्य बाला, स्वर्ग की परी, अप्सरा
- स्वर्गस्त्री—स्त्री॰—स्वर्ग-स्त्री—-—दिव्य बाला, स्वर्ग की परी, अप्सरा
- स्वर्गसाधनम्—नपुं॰—स्वर्ग-साधनम्—-—स्वर्ग प्राप्त करने का उपाय
- स्वर्गिन्—पुं॰—-—स्वर्गोऽस्त्यस्य भोग्यत्वेन इनि—सुर, देव, अमर
- स्वर्गिन्—पुं॰—-—स्वर्गोऽस्त्यस्य भोग्यत्वेन इनि—मृतक, मरा हुआ पुरुष
- स्वर्गीय —वि॰—-—स्वर्ग + छ—स्वर्ग का, दिव्य, दैवी
- स्वर्गीय —वि॰—-—स्वर्ग + छ—स्वर्ग को ले जाने वाला, स्वर्ग में प्रवेश दिलाने वाला
- स्वर्ग्य—वि॰—-—स्वर्ग + यत्—स्वर्ग का, दिव्य, दैवी
- स्वर्ग्य—वि॰—-—स्वर्ग + यत्—स्वर्ग को ले जाने वाला, स्वर्ग में प्रवेश दिलाने वाला
- स्वर्णम्—नपुं॰—-—सुष्ठु अर्णो वर्णो यस्य—सोना
- स्वर्णम्—नपुं॰—-—सुष्ठु अर्णो वर्णो यस्य—सोने का सिक्का
- स्वर्णारिः—पुं॰—स्वर्णम्-अरिः—-—गंधक
- स्वर्णकणिका—स्त्री॰—स्वर्णम्-कणिका—-—सोने के दाने
- स्वर्णकाय—वि॰—स्वर्णम्-काय—-—सुनहरी शरीर वाला
- स्वर्णकायः—पुं॰—स्वर्णम्-कायः—-—‘गरुड़’ का नाम
- स्वर्णकारः—पुं॰—स्वर्णम्-कारः—-—सुनार
- स्वर्णगैरिकम्—नपुं॰—स्वर्णम्-गैरिकम्—-—गेरु, लाल खड़िया
- स्वर्णचूडः—पुं॰—स्वर्णम्-चूडः—-—नीलकंठ
- स्वर्णचूडः—पुं॰—स्वर्णम्-चूडः—-—मुर्गा
- स्वर्णजम्—नपुं॰—स्वर्णम्-जम्—-—रांगा
- स्वर्णदीधितिः—पुं॰—स्वर्णम्-दीधितिः—-—अग्नि
- स्वर्णपक्षः—पुं॰—स्वर्णम्-पक्षः—-—गरुड़
- स्वर्णपाठकः—पुं॰—स्वर्णम्-पाठकः—-—सुहागा
- स्वर्णपुष्पः—पुं॰—स्वर्णम्-पुष्पः—-—चम्पक वृक्ष
- स्वर्णबंधः—पुं॰—स्वर्णम्-बंधः—-—सोना गिरवी रखना
- स्वर्णभृङ्गारः—पुं॰—स्वर्णम्-भृङ्गारः—-—स्वर्णपात्र
- स्वर्णमाक्षिकम्—नपुं॰—स्वर्णम्-माक्षिकम्—-—सोनामक्खी नाम का एक खनिज पदार्थ
- स्वर्णरेखा—स्त्री॰—स्वर्णम्-रेखा—-—सोने की लकीर
- स्वर्णलेखा—स्त्री॰—स्वर्णम्-लेखा—-—सोने की लकीर
- स्वर्णवणिज्—पुं॰—स्वर्णम्-वणिज्—-—सोने का व्यापारी
- स्वर्णवणिज्—पुं॰—स्वर्णम्-वणिज्—-—सरार्फ़
- स्वर्णवर्णा—स्त्री॰—स्वर्णम्-वर्णा—-—हल्दी
- स्वर्द्—भ्वा॰ आ॰ <स्वर्दते>—-—-—चखना, स्वाद लेना
- स्वल्—भ्वा॰ पर॰ <स्वलति>—-—-—जाना, हिलना-जुलना
- स्वल्प—वि॰—-—सुष्ठु अल्पं -प्रा॰ स॰, म॰ अ॰ <स्वल्पीयस्> तथा उ॰ अ॰ <स्वल्पिष्ठ>—बहुत छोटा या थोड़ा, सूक्ष्म, निरर्थक
- स्वल्प—वि॰—-—सुष्ठु अल्पं -प्रा॰ स॰, म॰ अ॰ <स्वल्पीयस्> तथा उ॰ अ॰ <स्वल्पिष्ठ>—बहुत कम
- स्वल्पाहारः—वि॰—स्वल्प-आहारः—-—बहुत कम खाने वाला, संयमी, मिताहारी
- स्वल्पकङ्क—वि॰—स्वल्प-कङ्क—-—चील का एक भेद
- स्वल्पबल—वि॰—स्वल्प-बल—-—अत्यन्त दुर्बल या कमजोर
- स्वल्पविषयः—पुं॰—स्वल्प-विषयः—-—नगण्य बात
- स्वल्पविषयः—पुं॰—स्वल्प-विषयः—-—छोटा भाग
- स्वल्पव्ययः—पुं॰—स्वल्प-व्ययः—-—अत्यन्त कम खर्च, दरिद्रता
- स्वल्पव्रीड—वि॰—स्वल्प-व्रीड—-—बहुत कम लज्जा वाला, बेशर्म, निर्लज्ज
- स्वल्पशरीर—वि॰—स्वल्प-शरीर—-—बहुत छोटे कद का, ठिंगना
- स्वल्पक्—वि॰—-—स्वल्प + कन्—बहुत थोड़ा, बहुत छोटा, बहुत कम
- स्वल्पीयस्—वि॰—-—स्वल्प + ईयसुन् ‘स्वल्प’ की उ॰ अ॰ —अत्यन्त कम, सबसे छोटा, अत्यन्त सूक्ष्म
- स्वशुरः—पुं॰—-—-—अपने पति, श्वशुर या पत्नी का पिता
- स्वसृ—स्त्री॰—-—सृ + अस् + ऋन्—बहन, भगिनी
- स्वसृत्—वि॰—-—स्व + सु + क्विप्—अपनी इच्छानुसार जाने या चलने -फिरने वाला
- स्वस्क्—भ्वा॰ आ॰ <स्वस्कते>—-—-—जाना, हिलना-जुलना
- स्वस्ति—अव्य॰—-—सु + अस् + क्तिच्, वा अस्तीति विभक्तिरुपकम् अव्ययम्, प्रा॰ स॰—अव्यय, इसका अर्थ है ‘क्षेम, कल्याण हो’ आशीर्वाद, जय जयकार, जाते समय की नमस्ते
- स्वस्त्ययनम्—नपुं॰—स्वस्ति-अयनम्—-—समृद्धि के लिए दिलाने वाला उपाय
- स्वस्त्ययनम्—नपुं॰—स्वस्ति-अयनम्—-—मन्त्र पाठ या प्रायश्चित्त द्वारा पाप को हटाना
- स्वस्त्ययनम्—नपुं॰—स्वस्ति-अयनम्—-—दान स्वीकार करने के बाद ब्राह्मण का धन्यवाद करना
- स्वस्तिदः—पुं॰—स्वस्ति-दः—-—शिव का विशेषण
- स्वस्तिभावः—पुं॰—स्वस्ति-भावः—-—शिव का विशेषण
- स्वस्तिमुखः—पुं॰—स्वस्ति-मुखः—-—पत्र
- स्वस्तिमुखः—पुं॰—स्वस्ति-मुखः—-—ब्राह्मण
- स्वस्तिमुखः—पुं॰—स्वस्ति-मुखः—-—बन्दी, स्तुति पाठक
- स्वस्तिवाचनम्—नपुं॰—स्वस्ति-वाचनम्—-—यज्ञ या कोई मांगलिक कार्य आरम्भ करते समय किया जाने वाला एक धार्मिक कृत्य
- स्वस्तिवाचनम्—नपुं॰—स्वस्ति-वाचनम्—-—फूलों द्वारा आशीर्वाद या बधाई देने का विशेष कर्म
- स्वस्तिवाचनकम्—नपुं॰—स्वस्ति-वाचनकम्—-—यज्ञ या कोई मांगलिक कार्य आरम्भ करते समय किया जाने वाला एक धार्मिक कृत्य
- स्वस्तिवाचनकम्—नपुं॰—स्वस्ति-वाचनकम्—-—फूलों द्वारा आशीर्वाद या बधाई देने का विशेष कर्म
- स्वस्तिवाचनिकम्—नपुं॰—स्वस्ति-वाचनिकम्—-—यज्ञ या कोई मांगलिक कार्य आरम्भ करते समय किया जाने वाला एक धार्मिक कृत्य
- स्वस्तिवाचनिकम्—नपुं॰—स्वस्ति-वाचनिकम्—-—फूलों द्वारा आशीर्वाद या बधाई देने का विशेष कर्म
- स्वस्तिवाच्यम्—नपुं॰—स्वस्ति-वाच्यम्—-—बधाई, आशीर्वाद
- स्वस्तिक—वि॰—-—स्वस्ति शुभाय हितं क—एक मंगल चिह्न जो किसी शरीर या पदार्थ पर बनाया जाता है
- स्वस्तिक—वि॰—-—स्वस्ति शुभाय हितं क—कोई मंगलद्रव्य
- स्वस्तिक—वि॰—-—स्वस्ति शुभाय हितं क—चार मार्गों का मिलना
- स्वस्तिक—वि॰—-—स्वस्ति शुभाय हितं क—भुजाओं को व्यत्यस्त रुप से छाती पर रखना जिससे कि एक व्यत्यस्त चिह्न बने
- स्वस्तिक—वि॰—-—स्वस्ति शुभाय हितं क—एक विशेष शक्ल का महल
- स्वस्तिक—वि॰—-—स्वस्ति शुभाय हितं क—चौराहे से बना हुआ एक त्रिभुजाकार चिह्न
- स्वस्तिक—वि॰—-—स्वस्ति शुभाय हितं क—एक तरह का पिष्टक
- स्वस्तिक—वि॰—-—स्वस्ति शुभाय हितं क—विषयी, व्याभिचारी
- स्वस्तिक—वि॰—-—स्वस्ति शुभाय हितं क—लहसुन
- स्वस्तिकः—पुं॰—-—स्वस्ति शुभाय हितं क—एक विशेष रुप का मन्दिर या भवन जिसके सामने चबूतरा बना हो
- स्वस्तिकः—पुं॰—-—स्वस्ति शुभाय हितं क—एक योगासन
- स्वस्तिकम्—नपुं॰—-—स्वस्ति शुभाय हितं क—एक विशेष रुप का मन्दिर या भवन जिसके सामने चबूतरा बना हो
- स्वस्तिकम्—नपुं॰—-—स्वस्ति शुभाय हितं क—एक योगासन
- स्वस्रीयः—पुं॰—-—स्वसृ + छ—भानजा, बहन का पुत्र
- स्वस्रेयः—पुं॰—-—स्वसृ + छ, ढक् वा—भानजा, बहन का पुत्र
- स्वस्रीया—स्त्री॰—-—स्वस्रीय + टाप्—भानजी, बहन की पुत्री
- स्वस्रेयी—स्त्री॰—-—स्वस्रेय + ङीप्—भानजी, बहन की पुत्री
- स्वागतम्—नपुं॰—-—सु + आ + गम् + क्त—शुभागमन, सुखद आगवानी
- स्वाङिकः—पुं॰—-—स्वाङ्क + ठक्—ढोल बजाने वाला
- स्वाच्छन्द्यम्—नपुं॰—-—स्वच्छन्दस्य भावः ष्यञ्—अपनी इच्छा के अनुसार कार्य करने की शक्ति, स्वच्छन्दता, स्वतन्त्रता
- स्वाच्छन्द्येन—नपुं॰—-—स्वच्छन्दस्य भावः ष्यञ्—जानबूझ कर, स्वेच्छा से
- स्वाच्छन्द्यतः—नपुं॰—-—स्वच्छन्दस्य भावः ष्यञ्—जानबूझ कर, स्वेच्छा से
- स्वातन्त्र्यम्—नपुं॰—-—स्वतन्त्र + ष्यञ्—इच्छाशक्ति की स्वतन्त्रता, स्वाधीनता
- स्वातिः—स्त्री॰—-—स्व + अत् + इन्—सूर्य की एक पत्नी
- स्वातिः—स्त्री॰—-—स्व + अत् + इन्—तलवार
- स्वातिः—स्त्री॰—-—स्व + अत् + इन्—शुभ, नक्षत्रपुंज
- स्वातिः—स्त्री॰—-—स्व + अत् + इन्—पन्द्रहवां नक्षत्र जो शुभ माना गया है
- स्वाती—स्त्री॰—-—स्व + अत् + ङीप्—सूर्य की एक पत्नी
- स्वाती—स्त्री॰—-—स्व + अत् + ङीप्—तलवार
- स्वाती—स्त्री॰—-—स्व + अत् + ङीप्—शुभ, नक्षत्रपुंज
- स्वाती—स्त्री॰—-—स्व + अत् + ङीप्—पन्द्रहवां नक्षत्र जो शुभ माना गया है
- स्वातियोगः—पुं॰—स्वातिः-योगः—-—स्वाती का योग
- स्वातीयोगः—पुं॰—स्वाती-योगः—-—स्वाती का योग
- स्वाद्——-—-—पसन्द किया जाना, मधुर होना, स्वाद में रुचिकर होना
- स्वाद्——-—-—स्वाद लेना, रस लेना, खाना
- स्वाद्——-—-—प्रसन्न करना
- स्वाद्——-—-—मधुर करना
- स्वाद्——-—-—चखाना, खाना
- स्वाद्——-—-—रस लेना, मधुर करना
- स्वादः—पुं॰—-—स्वद् (स्वाद्) + घञ्—मजा, रस
- स्वादनम्—नपुं॰—-—स्वद् (स्वाद्) + ल्युट्—मजा, रस
- स्वादः—पुं॰—-—स्वद् (स्वाद्) + घञ्—चखना, खाना, पीना
- स्वादनम्—नपुं॰—-—स्वद् (स्वाद्) + ल्युट्—चखना, खाना, पीना
- स्वादः—पुं॰—-—स्वद् (स्वाद्) + घञ्—पसन्द करना, मजे लेना, उपभोग करना
- स्वादनम्—नपुं॰—-—स्वद् (स्वाद्) + ल्युट्—पसन्द करना, मजे लेना, उपभोग करना
- स्वादः—पुं॰—-—स्वद् (स्वाद्) + घञ्—मधुर करना
- स्वादनम्—नपुं॰—-—स्वद् (स्वाद्) + ल्युट्—मधुर करना
- स्वादिमन्—पुं॰—-—स्वाद + इमनिच्—सुस्वादुता, माधुर्य
- स्वादिष्ठ—वि॰—-—स्वादु + इष्ठन्, ‘स्वादु’ की उ॰ अ॰—अत्यन्त मधुर, सबसे मीठा
- स्वादीयस्—वि॰—-—स्वादु + ईयसुन्, ‘स्वादु’ की म॰ अ॰—अपेक्षाकृत अधिक मीठा, बहुत मधुर
- स्वादु—वि॰—-—स्वद् + उण्, म॰ अ॰ स्वादीयस्, उ॰ अ॰ स्वादिष्ठ—मधुर, सुहावना, चखने में अच्छा, जायकेदार, मजेदार, रुचिकर, मीठा
- स्वादु—वि॰—-—स्वद् + उण्, म॰ अ॰ स्वादीयस्, उ॰ अ॰ स्वादिष्ठ—सुखद, रुचिकर, सुन्दर, प्रिय, मनोहर
- स्वादु—पुं॰—-—-—मधुररस, स्वाद की मिठास, मजा
- स्वादु—पुं॰—-—-—शीरा, राब
- स्वादु—नपुं॰—-—-—माधुर्य, मजा, रस
- स्वादॄ—स्त्री॰—-—-—अंगूर
- स्वाद्वन्नम्—नपुं॰—स्वादु-अन्नम्—-—मीठा या चुना हुआ भोजन, स्वादिष्ट खाद्य, पक्वान्न
- स्वाद्वम्लः—पुं॰—स्वादु-अम्लः—-—अनार का पेड़
- स्वादुखण्डः—पुं॰—स्वादु-खण्डः—-—किसी मीठी चीज का टुकड़ा
- स्वादुखण्डः—पुं॰—स्वादु-खण्डः—-—गुड़, राब
- स्वादुफलम्—नपुं॰—स्वादु-फलम्—-—बेर, बदर
- स्वादुमूलम्—नपुं॰—स्वादु-मूलम्—-—गाजर
- स्वादुरसा—स्त्री॰—स्वादु-रसा—-—द्राक्षा
- स्वादुरसा—स्त्री॰—स्वादु-रसा—-—शताबरी पौधा
- स्वादुरसा—स्त्री॰—स्वादु-रसा—-—काकोली मूल
- स्वादुरसा—स्त्री॰—स्वादु-रसा—-—मदिरा
- स्वादुरसा—स्त्री॰—स्वादु-रसा—-—अंगूर
- स्वादुशुद्धम्—नपुं॰—स्वादु-शुद्धम्—-—सेंधा नमक
- स्वादुशुद्धम्—नपुं॰—स्वादु-शुद्धम्—-—समुद्री नमक
- स्वाद्वी—स्त्री॰—-—स्वादु + ङीप्—द्राक्षा, अंगूर
- स्वानः—पुं॰—-—स्वन् + घञ्—ध्वनि, कोलाहल
- स्वापः—पुं॰—-—स्वप् + घञ्—निद्रा, सोना
- स्वापः—पुं॰—-—स्वप् + घञ्—सपना आना, स्वप्न
- स्वापः—पुं॰—-—स्वप् + घञ्—निद्रालुता, ऊंघना, आलस्य
- स्वापः—पुं॰—-—स्वप् + घञ्—लकवा, कम्पवायु, सुन्न हो जाना
- स्वापः—पुं॰—-—स्वप् + घञ्—किसी एक नाड़ी पर दबाव से अस्थायी या आंशिक असंवेद्यता, जडता
- स्वापतेयम्—नपुं॰—-—स्वपतेरागतं ढञ्—धन, दौलत, सम्पत्ति
- स्वापद—वि॰—-—-—वर्बर, हिंस्र
- स्वापदः—पुं॰—-—-—शिकारी जानवर, जंगली जानवर
- स्वापदः—पुं॰—-—-—बाघ
- स्वाभाविक—वि॰—-—स्वभावादागतः - ठञ्—अपनी निजी प्रकृति से संबद्ध, अन्तर्जात, अन्तर्हित, विशेष, प्राकृतिक
- स्वाभाविकः—पुं॰ ब॰ व॰—-—-—बौद्धों का एक सम्प्रदाय जो सभी वस्तुओं को प्रकृति के नियमानुसार बनी मानते हैं
- स्वामिता—स्त्री॰—-—स्वामि + तल् + टाप्—मालिकपना, प्रभुत्व, मिल्कियत के अधिकार
- स्वामिता—स्त्री॰—-—स्वामि + तल् + टाप्—एकायत्तता, प्रभुता
- स्वामित्वम्—नपुं॰—-—स्वामि + तल् + त्व —मालिकपना, प्रभुत्व, मिल्कियत के अधिकार
- स्वामित्वम्—नपुं॰—-—स्वामि + तल् + त्व —एकायत्तता, प्रभुता
- स्वामिन्—वि॰—-—स्व - अस्त्यर्थे- मिनि, दीर्घः—एकायत्त अधिकारों से युक्त
- स्वामिन्—पुं॰—-—स्व - अस्त्यर्थे- मिनि, दीर्घः—स्वामी
- स्वामिन्—पुं॰—-—स्व - अस्त्यर्थे- मिनि, दीर्घः—स्वामी, मालिक
- स्वामिन्—पुं॰—-—स्व - अस्त्यर्थे- मिनि, दीर्घः—प्रभु, स्वत्वाधिकारी
- स्वामिन्—पुं॰—-—स्व - अस्त्यर्थे- मिनि, दीर्घः—प्रभु, राजा, नरेश
- स्वामिन्—पुं॰—-—स्व - अस्त्यर्थे- मिनि, दीर्घः—पति
- स्वामिन्—पुं॰—-—स्व - अस्त्यर्थे- मिनि, दीर्घः—गुरु
- स्वामिन्—पुं॰—-—स्व - अस्त्यर्थे- मिनि, दीर्घः—विद्वान, ब्राह्मण, अत्यन्त ऊंचे दर्जे का धार्मिक पुरुष या संन्यासी
- स्वामिन्—पुं॰—-—स्व - अस्त्यर्थे- मिनि, दीर्घः—कार्तिकेय का विशेषण
- स्वामिन्—पुं॰—-—स्व - अस्त्यर्थे- मिनि, दीर्घः—विष्णु का विशेषण
- स्वामिन्—पुं॰—-—स्व - अस्त्यर्थे- मिनि, दीर्घः—शिव का विशेषण
- स्वामिन्—पुं॰—-—स्व - अस्त्यर्थे- मिनि, दीर्घः—वात्स्यायन मुनि का विशेषण
- स्वामिन्—पुं॰—-—स्व - अस्त्यर्थे- मिनि, दीर्घः—गरूड का विशेषण
- स्वाम्युपकारकः—पुं॰—स्वामिन्-उपकारकः—-—घोड़ा
- स्वामिकार्यम्—नपुं॰—स्वामिन्-कार्यम्—-—किसी राजा या प्रभु का कार्य
- स्वामिपाल—पुं॰, द्वि॰ व॰—स्वामिन्-पाल—-—मालिक और रखवाला
- स्वामिभावः—पुं॰—स्वामिन्-भावः—-—मालिक या प्रभु की अवस्था, मालिकपना
- स्वामिवात्सल्यम्—नपुं॰—स्वामिन्-वात्सल्यम्—-—पति या स्वामी के लिए स्नेह
- स्वामिसद्भावः—पुं॰—स्वामिन्-सद्भावः—-—मालिक या प्रभु की सत्ता
- स्वामिसद्भावः—पुं॰—स्वामिन्-सद्भावः—-—मालिक या प्रभु की अच्छाई
- स्वामिसेवा—स्त्री॰—स्वामिन्-सेवा—-—स्वामी या मालिक की सेवा, टहल
- स्वामिसेवा—स्त्री॰—स्वामिन्-सेवा—-—पति का आदर, सम्मान
- स्वाम्यम्—नपुं॰—-—स्वामिन् + ष्यञ्—स्वामित्व, प्रभुता, मालिकपना
- स्वाम्यम्—नपुं॰—-—स्वामिन् + ष्यञ्—संपत्ति का अधिकार या हक
- स्वाम्यम्—नपुं॰—-—स्वामिन् + ष्यञ्—राज्य, सर्वोपरिता, शासन
- स्वायम्भुव—वि॰—-—स्वयंभू + अण्—ब्रह्मा से सम्बन्ध रखने वाला
- स्वायम्भुव—वि॰—-—स्वयंभू + अण्—ब्रह्मा से उत्पन्न
- स्वायम्भुवः—पुं॰—-—स्वयंभू + अण्—प्रथम मनु का विशेषण
- स्वारसिक—वि॰—-—स्वरस + ठक्—अन्तर्वर्ती रस या माधुर्य से ओतप्रोत
- स्वारस्यम्—नपुं॰—-—स्वरस + ष्यञ्—स्वाभाविक रस या श्रेष्ठता का रखने वाला
- स्वारस्यम्—नपुं॰—-—स्वरस + ष्यञ्—लालित्य, योग्यता
- स्वाराज्—पुं॰—-—स्व + राज + क्विप्—इन्द्र का विशेषण
- स्वाराज्यम्—नपुं॰—-—स्वराज + ष्यञ्—स्वर्ग का राज्य, इन्द्र का स्वर्ग
- स्वाराज्यम्—नपुं॰—-—स्वराज + ष्यञ्—स्वप्रकाशमान ब्रह्मा से तादात्म्य
- स्वारोचिषः—पुं॰—-—स्वरोचिषः अपत्यम् + अण्—द्वितीय मनु का नाम
- स्वारोचिस्—पुं॰—-—स्वरोचिषः अपत्यम् + अण्—द्वितीय मनु का नाम
- स्वालक्षण्यम्—नपुं॰—-—स्वलक्षण + ष्यञ्—विशेष लक्षण, स्वाभाविक अवस्था, खासियत
- स्वाल्प—वि॰—-—स्वल्प + अण्—थोड़ा, छोटा
- स्वाल्प—वि॰—-—स्वल्प + अण्—कुछ कम
- स्वाल्पम्—नपुं॰—-—स्वल्प + अण्—थोड़ापन, छुटपन
- स्वाल्पम्—नपुं॰—-—स्वल्प + अण्—संख्या का छोटापन
- स्वास्थ्यम्—नपुं॰—-—स्वस्थ + ष्यञ्—आत्मनिर्भरता, स्वाश्रयता
- स्वास्थ्यम्—नपुं॰—-—स्वस्थ + ष्यञ्—साहस, कृतसंकल्पता, दिलेरी, दृढ़ता
- स्वास्थ्यम्—नपुं॰—-—स्वस्थ + ष्यञ्—तन्दुरूस्ती, नीरोगता
- स्वास्थ्यम्—नपुं॰—-—स्वस्थ + ष्यञ्—समृद्धि, कुशलक्षेम, सुखचैन
- स्वास्थ्यम्—नपुं॰—-—स्वस्थ + ष्यञ्—आराम, संतोष, हिम्मत
- स्वाहा—स्त्री॰—-—सु + आ + ह्वे + डा—सभी देवताओं को बिना किसी विचार के ही दी जाने वाली आहुति
- स्वाहा—स्त्री॰—-—सु + आ + ह्वे + डा—अग्नि की पत्नी का नाम
- स्वाहा—अव्य॰—-—-—देवताओं के उद्देश्य से आहुति देते समय उच्चारण किया जाने वाला शब्द
- स्वाहाकारः—पुं॰—स्वाहा-कारः—-—स्वाहा शब्द का उच्चारण करना
- स्वाहापतिः—पुं॰—स्वाहा-पतिः—-—आग
- स्वाहाप्रियः—पुं॰—स्वाहा-प्रियः—-—आग
- स्वाहाभुज्—पुं॰—स्वाहा-भुज्—-—सुर, देव
- स्विद्—अव्य॰—-—स्विद् + क्विप्—प्रश्नवाचक या पृच्छापरक निपात
- स्विड्—दिवा॰ पर॰ <स्विद्यति>, <स्विदित>, या <स्विन्न>—-—-—स्वेद आना, पसीना आना
- स्विड्—भ्वा॰ आ॰ <स्वेदते>, <स्विन्न>, या <स्वेदित>—-—-—मालिश किया जाना
- स्विड्—भ्वा॰ आ॰ <स्वेदते>, <स्विन्न>, या <स्वेदित>—-—-—चिकनाया जाना
- स्विड्—भ्वा॰ आ॰ <स्वेदते>, <स्विन्न>, या <स्वेदित>—-—-—विक्षुब्ध होना
- स्विड्—भ्वा॰ उभ॰, प्रेर॰ <स्वेदयति>, <स्वेदयते>—-—-—पसीना लाना
- स्विड्—भ्वा॰ उभ॰, प्रेर॰ <स्वेदयति>, <स्वेदयते>—-—-—गरम करना
- स्वीकरणम्—नपुं॰—-—स्वा + च्वि + कृ + ल्युट्—लेना, ग्रहण करना
- स्वीकरणम्—नपुं॰—-—स्वा + च्वि + कृ + ल्युट्—हामी भरना, सहमत होना, प्रतिज्ञा करना, हामी, प्रतिज्ञा
- स्वीकरणम्—नपुं॰—-—स्वा + च्वि + कृ + ल्युट्—वाग्दान, पाणिग्रहण, विवाह
- स्वीकारः—पुं॰—-—स्वा + च्वि + कृ + घञ्—लेना, ग्रहण करना
- स्वीकारः—पुं॰—-—स्वा + च्वि + कृ + घञ्—हामी भरना, सहमत होना, प्रतिज्ञा करना, हामी, प्रतिज्ञा
- स्वीकारः—पुं॰—-—स्वा + च्वि + कृ + घञ्—वाग्दान, पाणिग्रहण, विवाह
- स्वीकृतिः—स्त्री॰—-—स्वा + च्वि + कृ + क्तिन्—लेना, ग्रहण करना
- स्वीकृतिः—स्त्री॰—-—स्वा + च्वि + कृ + क्तिन्—हामी भरना, सहमत होना, प्रतिज्ञा करना, हामी, प्रतिज्ञा
- स्वीकृतिः—स्त्री॰—-—स्वा + च्वि + कृ + क्तिन्—वाग्दान, पाणिग्रहण, विवाह
- स्वीय—वि॰—-—स्व + छ—अपना, अपना निजी
- स्वृ—भ्वा॰ पर॰ <स्वरति>, इच्छा॰ <सिष्वरति>, <सुस्वूर्षति>—-—-—शब्द करना, सस्वर पाठ करना
- स्वृ—भ्वा॰ पर॰ <स्वरति>, इच्छा॰ <सिष्वरति>, <सुस्वूर्षति>—-—-—प्रशंसा करना
- स्वृ—भ्वा॰ पर॰ <स्वरति>, इच्छा॰ <सिष्वरति>, <सुस्वूर्षति>—-—-—पीडा देना या पीडित होना
- स्वृ—भ्वा॰ पर॰ <स्वरति>, इच्छा॰ <सिष्वरति>, <सुस्वूर्षति>—-—-—जाना
- अभिस्वृ—भ्वा॰ पर॰ —अभि-स्वृ—-—शब्द करना
- प्रस्वृ—भ्वा॰ पर॰ —प्र-स्वृ—-—शब्द करना
- संस्वृ—भ्वा॰ पर॰ —सम्-स्वृ—-—पीडा देना या पीडित होना
- स्वृ—क्रया॰ प॰ <स्वृणाति>—-—-—चोट पहुँचाना, मार डालना
- स्वेक्—भ्वा॰ आ॰ <स्वेकते>—-—-—जाना
- स्वेदः—पुं॰—-—स्विद् भावे घञ्—पसीना, पसेउ, श्रमबिंदु
- स्वेदोदम्—नपुं॰—स्वेद-उदम्—-—पसीना, श्रमकण
- स्वेदोदकम्—नपुं॰—स्वेद-उदकम्—-—पसीना, श्रमकण
- स्वेदजलम्—नपुं॰—स्वेद-जलम्—-—पसीना, श्रमकण
- स्वेदचूषकः—पुं॰—स्वेद-चूषकः—-—शीतल मंद पवन, ठंडी हवा
- स्वेदज—वि॰—स्वेद-ज—-—ताप या भाप से उत्पन्न होने वाला, पसीने से उत्पन्न होने वाला
- स्वैर—वि॰—-—स्वस्य ईरम् ईर् + अच् वृद्धिः—मनमाना आचरण करने वाला, स्वच्छंद, स्वेच्छाचारी, अनियंत्रित, निरंकुश
- स्वैर—वि॰—-—स्वस्य ईरम् ईर् + अच् वृद्धिः—स्वतंत्र, असंकोच, विश्वस्त
- स्वैर—वि॰—-—स्वस्य ईरम् ईर् + अच् वृद्धिः—मन्थर, मृदु, नम्र
- स्वैर—वि॰—-—स्वस्य ईरम् ईर् + अच् वृद्धिः—सुस्त, मंद
- स्वैर—वि॰—-—स्वस्य ईरम् ईर् + अच् वृद्धिः—अपनी मर्जी चलाने वाला, ऐच्छिक यथाकाम
- स्वैरम्—नपुं॰—-—स्वस्य ईरम् ईर् + अच् वृद्धिः—स्वच्छंदता, स्वेच्छाचारिता
- स्वैरम्—अव्य॰—-—स्वस्य ईरम् ईर् + अच् वृद्धिः—इच्छा के अनुसार, मनपसन्द, आराम से
- स्वैरम्—अव्य॰—-—स्वस्य ईरम् ईर् + अच् वृद्धिः—अपने आप, स्वतः
- स्वैरम्—अव्य॰—-—स्वस्य ईरम् ईर् + अच् वृद्धिः—शनैः शनैः, नम्रता पूर्वक, मृदुता के साथ
- स्वैरम्—अव्य॰—-—स्वस्य ईरम् ईर् + अच् वृद्धिः—आहिस्ता से, धीमी आवाज में, अस्पष्ट
- स्वैरता—स्त्री॰—-—स्वैर + तल् + टाप्, त्व वा—स्वेच्छाचारिता, स्वच्छन्दता, स्वतन्त्रता
- स्वैरत्वम्—नपुं॰—-—स्वैर + तल् + टाप्, त्व वा—स्वेच्छाचारिता, स्वच्छन्दता, स्वतन्त्रता
- स्वैरिणी—स्त्री॰—-—स्वैरिन् + ङीप्—असती, कुलटा, व्याभिचारिणी
- स्वैरिन्—वि॰—-—स्वेन ईरितुं शीलमस्य - स्व + ईर् + णिनि—मनमानी करने वाला, स्वेच्छाचारी, अनियन्त्रित, निरंकुश
- स्वोरसः—पुं॰—-—-—तैलीय पदार्थ सिल पर पीसने के बाद उसमें लगा हुआ अंश या तलछुट
- स्वोवशीयम्—नपुं॰—-—-—आनन्द, समृद्धि
- ह—अव्य॰—-—हा + ड—बलबोधक निपात जो पूर्ववर्ती शब्द पर बल देता है, इसका अर्थ है ‘सचमुच’ यथार्थ में निश्चय ही आदि, परन्तु कभी कभी इसका उपयोग बिना किसी विशेष अर्थ को प्रकट किये केवल पादपूर्ति के निमित्त भी किया जाता है, विशेष कर वैदिक साहित्य में
- ह—अव्य॰—-—हा + ड—यह कभी कभी संबोधन के लिए भी प्रयुक्त होता है,
- ह—अव्य॰—-—हा + ड—तिरस्कार या उपहास के लिए विरल प्रयोग
- ह—पुं॰—-—हा + ड—शिव का एक रूप
- ह—पुं॰—-—हा + ड—जल
- ह—पुं॰—-—हा + ड—आकाश
- ह—पुं॰—-—हा + ड—रुधिर
- हंसः—पुं॰—-—हस् + अच्, पृषो॰ वर्णागमः,भवेद्बर्णागमात् हंसः -सिद्धा॰—राजहंस, मराल, मुर्गाबी, कारंडव
- हंसः—पुं॰—-—-—परमात्मा,ब्रह्म
- हंसः—पुं॰—-—-—आत्मा, जीवात्मा
- हंसः—पुं॰—-—-—प्राण वायुओं में से एक
- हंसः—पुं॰—-—-—सूर्य
- हंसः—पुं॰—-—-—शिव
- हंसः—पुं॰—-—-—विष्णु
- हंसः—पुं॰—-—-—कामदेव
- हंसः—पुं॰—-—-—राजा जो महत्त्वाकांक्षी न हो
- हंसः—पुं॰—-—-—विशेष संप्रदाय का सन्यासी
- हंसः—पुं॰—-—-—दिक्षागुरू
- हंसः—पुं॰—-—-—ईर्ष्या, द्वेष से हीन व्यक्ति
- हंसः—पुं॰—-—-—पर्वत
- हंसाङ्घ्रिः—पुं॰—हंस-अङ्घ्रिः —-—सिंदूर्
- हंसाधिरूढा—स्त्री॰—हंस-अधिरूढा—-—सरस्वती का विशेषण
- हंसाभिख्यम—नपुं॰—हंस-अभिख्यम—-—चाँदी
- हंसकांता—स्त्री॰—हंस-कांता— —हंसिनी
- हंसकीलकः—पुं॰—हंस-कीलकः—-—एक प्रकार का रतिबंध
- हंसगति—वि॰—हंस-गति—-—हंस जैसी चाल चलने वाला, राजसी ढंग से इतरा कर चलने वाला
- हंसगद्गदा—स्त्री॰—हंस- गद्गदा—-—मधुरभाषिनी स्त्री
- हंसगामिनी—स्त्री॰—हंस- गामिनी—-—हंस की सी सुन्दर गति वाली स्त्री
- हंसगामिनी—स्त्री॰—हंस- गामिनी—-—ब्रह्माणी
- हंसपूलः—पुं॰—हंस-पूलः—-—हंस का मुलायम पर
- हंसलम्—नपुं॰—हंस-लम्—-—हंस का मुलायम पर
- हंसदाहनम्—नपुं॰—हंस-दाहनम्—-—अगर की लकड़ी
- हंसनादः—पुं॰—हंस-नादः—-—हंस का कलरव
- हंसनादिनी—स्त्री॰—हंस-नादिनी—-—मधुरभाषिनी स्त्रीयों का भेद(पतली कमर, बड़े नितंब, गज की चाल और कोयल के स्वर वाली)
- हंसनादिनी—स्त्री॰—हंस-नादिनी—-—सुंदर स्त्री
- हंसमाला —स्त्री॰—हंस-माला —-—हंसों की पंक्ति
- हंसयुवन्—पुं॰—हंस-युवन्—-—जवान हंस
- हंसरथः—पुं॰—हंस-रथः—-—ब्रह्मा के विशेषण
- हंसवाहनः—पुं॰—हंस-वाहनः—-—ब्रह्मा के विशेषण
- हंसराजः—पुं॰—हंस-राजः—-—हंसों का राजा, बड़ा हंस
- हंसलोमशकम्—नपुं॰—हंस-लोमशकम्—-—कासीस
- हंसलोहकम्—नपुं॰—हंस-लोहकम्—-—पीतल
- हंसश्रेणी—स्त्री॰—हंस-श्रेणी—-—हंसों की पंक्ति
- हंसकः—पुं॰—-—हंस + कन्, हंस + कै + क वा—कारंडव, मराल
- हंसकः—पुं॰—-—-—पैरों का आभूषण, नूपुर, पायजेब
- हंसिका—स्त्री॰—-—हंस + कन् + टाप्, इत्वम्, हंस + ङीप्—हंसनी, मादा हंस
- हंसी—स्त्री॰—-—हंस + कन् + टाप्, इत्वम्, हंस + ङीप्—हंसनी, मादा हंस
- हंहो—अव्य॰—-—हम् इत्यव्यक्तं जहाति- हम् + हा + डो—संबोधनात्मक अव्यय जो आवाज देने में प्रयुक्त होता है जैसे अंग्रेजी का ‘हल्लो’ (HAVllo) शब्द
- हंहो—अव्य॰—-—-—तिरस्कार एवं अभिमानसूचक अव्यय
- हंहो—अव्य॰—-—-—प्रश्न वाचक अव्यय
- हक्कः—पुं॰—-—हम् इति अव्यक्तं कायति -हक् + कै + क —हाथियों को बुलाना
- हंजा—स्त्री॰—-—हम् इति अव्यक्तं जप्यते॓ऽत्त- हम् + जप् + डा —संबोधनात्मक अव्यय जो किसी दासी या नौकरानी को बुलाने में प्रयुक्त होता है
- हंजे——-—हम् इति अव्यक्तं जप्यते॓ऽत्त- हम् + जप् + डे—संबोधनात्मक अव्यय जो किसी दासी या नौकरानी को बुलाने में प्रयुक्त होता है
- हट्—भ्व॰ पर॰< हटति>,< हटित>—-—-—चमकना, उज्जल होना
- हट्ट्ः—पुं॰—-—हट् + ट, टस्य नेत्वम्—बाजार, हाट, मेला।
- हट्टचौरकः—पुं॰—हट्टः-चौरकः—-—वह चोर जो बाजार से चीजे चुराये, गंठकठा
- हट्टविलासिनी—स्त्री॰—हट्ट-विलासिनी—-—वारांगना, वेश्या, रंडी
- हट्टविलासिनी—स्त्री॰—हट्ट-विलासिनी—-—एक प्रकार का गंधद्रव्य
- हठः—पुं॰—-—हठ्+ अच्—प्रचण्डता, बल
- हठः—पुं॰—-—-—अत्याचार, लूटखसोट
- हठेन—क्रि॰ वि॰—-—-—बलपूर्वक, प्रचंडता से, अचानक, दुराग्रहपूर्वक
- हठात्—क्रि॰ वि॰—-—-—बलपूर्वक, प्रचंडता से, अचानक, दुराग्रहपूर्वक
- हठयोगः—पुं॰—हठः-योगः—-—योग की एक विशेष रीति या भावचिन्तन व मनन का अभ्यास
- हठविद्या—स्त्री॰—हठः- विद्या—-—बलपूर्वक मनन करने का विज्ञान
- हडिः—पुं॰—-—हठ् + इन्, पृषो॰—काठ की बेड़ी
- हडिकः—पुं॰—-—हठ् + इकक् —अत्यंत नीच जाति का पुरूष, भंगी आदि
- हड्डिकः—पुं॰—-—हठ् + इन्, पृषो॰, कन् —अत्यंत नीच जाति का पुरूष, भंगी आदि
- हड्डिः—पुं॰—-—हठ् + इन्, पृषो॰—अत्यंत नीच जाति का पुरूष, भंगी आदि
- हड्डम्—नपुं॰—-—हठ् + ड पृषो॰—हड्डी
- हण्डा—अव्य॰—-—हन् + डा—संबोधनात्मक अव्यय जो निम्न श्रेणी की स्त्रीयों को बुलाने में, या निम्नतम जाति (भंगी आदि) के व्यक्तियों द्वारा आपस में एक दूसरे को संबोधित करने में प्रयुक्त होता है
- हण्डा—स्त्री॰—-—-—एक बड़ा मिट्टी का बर्तन
- हंडे—अव्य॰—-—हन् + डे—संबोधनात्मक अव्यय जो निम्न श्रेणी की स्त्रीयों को बुलाने में, या निम्नतम जाति (भंगी आदि) के व्यक्तियों द्वारा आपस में एक दूसरे को संबोधित करने में प्रयुक्त होता है
- हत—भु॰ क॰ कृ॰—-—हन् + क्त—मारा गया, वध किया गया
- हत—भु॰ क॰ कृ॰—-—हन् + क्त—चोट पहुँचाई गई, प्रहार किया गया, क्षतिग्रस्त
- हत—भु॰ क॰ कृ॰—-—हन् + क्त—नष्ट, बरबाद
- हत—भु॰ क॰ कृ॰—-—हन् + क्त—वञ्चित, हीन, रहित
- हत—भु॰ क॰ कृ॰—-—हन् + क्त—निराश भग्नाश
- हत—भु॰ क॰ कृ॰—-—हन् + क्त—गुणित
- हत—भु॰ क॰ कृ॰—-—हन् + क्त—‘निकम्मा’ ‘अभिशप्त’ ‘दयनीय’ ‘अधम’ अर्थों को प्रकट करने के लिए यह समस्त शव्द के प्रथम पद के रूप में प्रयुक्त होता है
- हताश—वि॰—हत-आश—-—आशा से रहित, निराश, ध्वस्ताश
- हताश—वि॰—हत-आश—-—दुर्बल, अशक्त
- हताश—वि॰—हत-आश—-—क्रूर, निर्दय,
- हताश—वि॰—हत-आश—-—बांझ
- हताश—वि॰—हत-आश—-—नीच, दुष्ट, पाजी, अभिशप्त, दुर्वृत्त
- हतकण्टक—वि॰—हत-कण्टक—-—कांटों से मुक्त, शत्रुओं से रहित
- हतचित्त—वि॰—हत-चित्त—-—व्याकुल, घबड़ाया हुआ
- हतत्विष्—वि॰—हत-त्विष—-—धुंधला
- हतदैव—वि॰—हत-दैव—-—हतभाग्य, भाग्यहीन, दुर्भाग्यग्रस्त
- हतप्रभाव—वि॰—हत-प्रभाव—-—शक्तिहीन, निर्वीर्य, बलहीन
- हतवीर्य—वि॰—हत-वीर्य—-—शक्तिहीन, निर्वीर्य, बलहीन
- हतबुद्धि—वि॰—हत-बुद्धि—-—ज्ञान से वञ्चित, बेहोश
- हतभाग—वि॰—हत-भाग—-—भाग्यहीन, बदकिस्मत
- हतभाग्य—वि॰—हत-भाग्य—-—भाग्यहीन, बदकिस्मत
- हतमूर्खः—वि॰—हत-मूर्खः—-—बड़ा मूर्ख, बुद्धू
- हतलक्षण—वि॰—हत-लक्षण—-—शुभलक्षणों से विरहित, अभागा
- हतशेष—वि॰—हत-शेष—-—जीवित बचा हुआ
- हतश्री—वि॰—हत-श्री—-—जिसका वैभव नष्ट हो गया हो, धन के न रहने पर जो दरिद्र हो गया हो,
- हतसंपद्—वि॰—हत-संपद्—-—जिसका वैभव नष्ट हो गया हो, धन के न रहने पर जो दरिद्र हो गया हो,
- हतसाध्वस—वि॰—हत-साध्वस—-—जिसका भय नष्ट हो गया हो, भयमुक्त, निर्भय
- हतक—वि॰—-—हत + कन्—दु्ःखी, दुःशील, दुर्वृत्त नीच, दुष्ट(प्राय, समास के अन्त में प्रयुक्त)
- हतकः—पुं॰—-—हत + कन्—नीच पुरूष, कायर
- हतिः—स्त्री॰—-—हन् + क्तिन्—हत्या, विनाश
- हतिः—स्त्री॰—-—हन् + क्तिन्—प्रहार करना, घायल करना
- हतिः—स्त्री॰—-—हन् + क्तिन्—आघात, प्रहार
- हतिः—स्त्री॰—-—हन् + क्तिन्—नाश, असफलता
- हतिः—स्त्री॰—-—हन् + क्तिन्—त्रुटि, दोष
- हतिः—स्त्री॰—-—हन् + क्तिन्—गुणा
- हत्नुः—पुं॰—-—हन् + क्त्नुः—शस्त्र
- हत्नुः—पुं॰—-—-—रोग या बीमारी
- हत्या—स्त्री॰—-—हन् भावे क्यप्—वध करना, मार डालना, संहार,कतल, जघन्य वध जैसे भ्रूणहत्या, गोहत्या, आदि
- हद्—भ्वा॰ आ॰< हदते>,< हन्न>—-—-—पुरीषोत्सर्जन, मलत्याग करना
- हदनम्—भ्वा॰ आ॰—-—हद् + ल्युट्—पुरीषोत्सर्ग, मलत्याग
- हन्—अदा॰ पर॰ <हन्ति>,< हत>, कर्मवा॰ <हन्यते>, प्रेर॰ <घातयति> <घातयते> इच्छा॰ <जिघांसति>—-—-—मार डालना, वध करना, नाश करना, प्रहार कर देना
- हन्—अदा॰ पर॰ <हन्ति>,< हत>, कर्मवा॰ <हन्यते>, प्रेर॰ <घातयति> <घातयते> इच्छा॰ <जिघांसति>—-—-—आघात करना, पीटना
- हन्—अदा॰ पर॰ <हन्ति>,< हत>, कर्मवा॰ <हन्यते>, प्रेर॰ <घातयति> <घातयते> इच्छा॰ <जिघांसति>—-—-—चोट पहुँचाना, क्षति पहुँचाना, कष्ट देना,संताप देना जैसा कि ‘कामहत’ में
- हन्—अदा॰ पर॰ <हन्ति>,< हत>, कर्मवा॰ <हन्यते>, प्रेर॰ <घातयति> <घातयते> इच्छा॰ <जिघांसति>—-—-—डाल देना, छोड़ देना,
- हन्—अदा॰ पर॰ <हन्ति>,< हत>, कर्मवा॰ <हन्यते>, प्रेर॰ <घातयति> <घातयते> इच्छा॰ <जिघांसति>—-—-—हटाना, दूर करना, नष्ट करना
- हन्—अदा॰ पर॰ <हन्ति>,< हत>, कर्मवा॰ <हन्यते>, प्रेर॰ <घातयति> <घातयते> इच्छा॰ <जिघांसति>—-—-—जीतना, पछाड़ देना, पराजित करना, परास्त करना
- हन्—अदा॰ पर॰ <हन्ति>,< हत>, कर्मवा॰ <हन्यते>, प्रेर॰ <घातयति> <घातयते> इच्छा॰ <जिघांसति>—-—-—विघ्न डालना, बाधा डालना
- हन्—अदा॰ पर॰ <हन्ति>,< हत>, कर्मवा॰ <हन्यते>, प्रेर॰ <घातयति> <घातयते> इच्छा॰ <जिघांसति>—-—-—नष्ट करना, बिगाड़ना
- हन्—अदा॰ पर॰ <हन्ति>,< हत>, कर्मवा॰ <हन्यते>, प्रेर॰ <घातयति> <घातयते> इच्छा॰ <जिघांसति>—-—-—उठाना
- हन्—अदा॰ पर॰ <हन्ति>,< हत>, कर्मवा॰ <हन्यते>, प्रेर॰ <घातयति> <घातयते> इच्छा॰ <जिघांसति>—-—-—गुणा करना (गणित में)
- हन्—अदा॰ पर॰ <हन्ति>,< हत>, कर्मवा॰ <हन्यते>, प्रेर॰ <घातयति> <घातयते> इच्छा॰ <जिघांसति>—-—-—जाना (काव्य में इसका इस अर्थ में प्रयोग विरल है, और जब कभी प्रयुक्त होता है तो वह काव्य का एक दोष माना जाता है)
- अतिहन्—अदा॰ पर॰—अति-हन्—-—अत्यन्त क्षतिग्रस्त करना
- अन्तर्हन्—अदा॰ पर॰—अन्तर-हन्—-—बीच में प्रहार करना
- अपहन्—अदा॰ पर॰—अप-हन्—-—हटाना, पीछे धकेलना, नष्ट करना,वध करना
- अपहन्—अदा॰ पर॰—अप-हन्—-—दूर करना, हटाना
- अपहन्—अदा॰ पर॰—अप-हन्—-—आक्रमण करना, बलात् ग्रहण करना
- अभिहन्—अदा॰ पर॰—अभि-हन्—-—प्रहार करना, आघात करना(आलं॰ से भी), पीटना
- अभिहन्—अदा॰ पर॰—अभि-हन्—-—चोट पहुँचाना, क्षतिग्रस्त करना, हत्या करना, नष्ट करना
- अभिहन्—अदा॰ पर॰—अभि-हन्—-—प्रहार करना, पीटना(ढोल आदि)
- अभिहन्—अदा॰ पर॰—अभि-हन्—-—आक्रान्त करना, ग्रस्त कर लेना, परास्त करना
- अवहन्—अदा॰ पर॰—अव-हन्—-—प्रहार करना, मारना, वध करना
- अवहन्—अदा॰ पर॰—अव-हन्—-—नष्ट करना, हटाना
- अवहन्—अदा॰ पर॰—अव-हन्—-—(अनाज की भांति) कूटना
- आहन्—अदा॰ पर॰—आ-हन्—-—आघात पहुँचाना, प्रहार करना,पीटना
- आहन्—अदा॰ पर॰—आ-हन्—-—प्रहार करना, (घंटी आदि) बजाना, (ढोल आदि) पीटना
- उद्धन्—अदा॰ पर॰—उद्-हन्—-—उठाना, उन्नत करना, ऊँचा करना
- उद्धन्—अदा॰ पर॰—उद्-हन्—-—फूलना, घमंडी होना
- उपहन्—अदा॰ पर॰—उप-हन्—-—प्रहार करना, आघात करना
- उपहन्—अदा॰ पर॰—उप-हन्—-—बरबाद करना, क्षतिग्रस्त करना, नष्ट करना,वध करना
- उपहन्—अदा॰ पर॰—उप-हन्—-—पीड़ित करना, ग्रस्त करना, परास्त करना, टपकना
- निहन्—अदा॰ पर॰—नि-हन्—-—मार डालना,नष्ट करना
- निहन्—अदा॰ पर॰—नि-हन्—-—प्रहार करना, आघात करना
- निहन्—अदा॰ पर॰—नि-हन्—-—जीतना, हराना
- निहन्—अदा॰ पर॰—नि-हन्—-—पीटना, (ढोल आदि) बजाना
- निहन्—अदा॰ पर॰—नि-हन्—-—प्रतीकार करना, निष्फल करना,भग्नाश करना
- निहन्—अदा॰ पर॰—नि-हन्—-—(रोग आदि की) चिकित्सा करना
- निहन्—अदा॰ पर॰—नि-हन्—-—अवहेलना करना
- निहन्—अदा॰ पर॰—नि-हन्—-—हटाना, दूर करना
- पराहन्—अदा॰ पर॰—परा-हन्—-—जवाबी वार करना, प्रत्याघात करना,पछाड़ देना, पीछे धकेलना, निवारण करना, परास्त कर देना, खदेड़ देना
- पराहन्—अदा॰ पर॰—परा-हन्—-—आक्रमण करना, धावा बोलना
- पराहन्—अदा॰ पर॰—परा-हन्—-—टक्कर मारना, प्रहार करना,
- प्रहन्—अदा॰ पर॰—प्र-हन्—-—वध करना,कतल करना
- प्रहन्—अदा॰ पर॰—प्र-हन्—-—प्रहार करना, पीटना, आघात करना
- प्रहन्—अदा॰ पर॰—प्र-हन्—-—प्रहार करना, पीटना, (ढोल आदि)
- प्रणिहन्—अदा॰ पर॰—प्रणि-हन्—-—वध करना
- प्रतिहन्—अदा॰ पर॰—प्रति-हन्—-—जवाबी वार करना, बदले में प्रहार करना
- प्रतिहन्—अदा॰ पर॰—प्रति-हन्—-—हटाना, परे करना, रोकना, विरोध करना, मुकाबला करना
- प्रतिहन्—अदा॰ पर॰—प्रति-हन्—-—हटाना, खदेड़ना, ढकेलना
- प्रतिहन्—अदा॰ पर॰—प्रति-हन्—-—दूर करना, नष्ट करना
- प्रतिहन्—अदा॰ पर॰—प्रति-हन्—-—प्रतिकार करना, उपचार करना
- विहन्—अदा॰ पर॰—वि-हन्—-—वध करना,कतल करना, नष्ट करना, विध्वस्त करना, संहार करना,
- विहन्—अदा॰ पर॰—वि-हन्—-—प्रहार करना, जोर से आघात करना
- विहन्—अदा॰ पर॰—वि-हन्—-—अवरोध करना,रूकावट डालना, विरोध करना, मुकाबला करना
- विहन्—अदा॰ पर॰—वि-हन्—-—अस्वीकार करना, इंकार करना, क्षय होना
- विहन्—अदा॰ पर॰—वि-हन्—-—निराशा करना, हताश करना
- संहन्—अदा॰ पर॰—सम्-हन्—-—सटा कर मिलाना, आपस में जोड़ना
- संहन्—अदा॰ पर॰—सम्-हन्—-—ढेर लगाना, संग्रह करना, संचय करना
- संहन्—अदा॰ पर॰—सम्-हन्—-—संकुचित करना, सिकोड़ना
- संहन्—अदा॰ पर॰—सम्-हन्—-—संघर्ष होना
- संहन्—अदा॰ पर॰—सम्-हन्—-—प्रहार करना, मार डालना, नष्ट करना
- समाहन्—अदा॰ पर॰—समा-हन्—-—प्रहार करना, आघात करना, क्षतिग्रस्त करना
- हन्—वि॰—-—हन् + क्विप्—व् वध करने वाला, हत्या करने वाला, नष्ट करने वाला
- हनः—पुं॰—-—हन् + अच्—वध, हत्या
- हननम्—नपुं॰—-—हन् + ल्युट्—वध करना, हत्या करना, आघात करना
- हननम्—नपुं॰—-—-—चोट पहुँचाना, क्षतिग्रस्त करना
- हननम्—नपुं॰—-—-—गुणा
- हनुः—पुं॰—-—हन् + उन्—ठोडी
- हनू—पुं॰—-—हन् + उन्—ठोडी
- हनु—स्त्री॰—-—हन् + उन्—ठोडी
- हनू—स्त्री॰—-—हन् + उन् / ऊञ्—ठोडी
- हनु—स्त्री॰—-—हन् + उन्—जीवन पर आघात करने वाली चीज
- हनु—स्त्री॰—-—हन् + उन्—शस्त्र
- हनु—स्त्री॰—-—हन् + उन्—रोग, बीमारी
- हनु—स्त्री॰—-—हन् + उन्—मृत्यु
- हनु—स्त्री॰—-—हन् + उन्—एक प्रकार की औषधि
- हनु—स्त्री॰—-—हन् + उन्—स्वेच्छाचारिणी स्त्री, वेश्या
- हनुमूलम्—नपुं॰—हनुमूलम्—-—जबड़े की जड़
- हनु्मत्—पुं॰—-—हनु + मतुप्—एक अत्यंत शक्तिशाली वानर का नाम
- हनूमत्—पुं॰—-—हनू + मतुप्—एक अत्यंत शक्तिशाली वानर का नाम
- हन्त—अव्य॰—-—हन् + त—प्रसन्नता, हर्ष, और आकस्मिक हलचल को प्रकट करने वाला अव्यय
- हन्त—अव्य॰—-—हन् + त—करुणा, दया
- हन्त—अव्य॰—-—हन् + त—शोक, अफसोस
- हन्त—अव्य॰—-—हन् + त—सौभाग्य, आशीर्वाद
- हन्त—अव्य॰—-—हन् + त—यह बहुधा आरम्भसूचक अव्यय के रूप में भी प्रयुक्त है
- हन्तोक्तिः—स्त्री॰—हन्त-उक्तिः—-—करुणा, मुदुता, आदि द्योतक शोक, खेद आदि शब्दों का कथन
- हन्तकारः—पुं॰—हन्त-कारः—-—‘हन्त’ विस्मयादिबोधक अव्यय
- हन्तकारः—पुं॰—हन्त-कारः—-—किसी अतिथि को दी जाने वाली भेंट
- हन्तृ—वि॰—-—हन् + तृच्—प्रहारकर्ता, वधकर्ता
- हन्तृ—वि॰—-—हन् + तृच्—जो हटाता है, नष्ट करता है,प्रतिकार करता है
- हन्तृ—पुं॰—-—हन् + तृच्—हत्यारा, क़ातिल
- हन्तृ—पुं॰—-—हन् + तृच्—चोर,लुटेरा
- हम्—अव्य॰—-—हा + डमु—क्रोध
- हम्—अव्य॰—-—हा + डमु—शिष्टाचार या आदर को प्रकट करने वाला उद्गार
- हम्बा—स्त्री॰—-—हम् + भा + अङ् + टाप्, पक्षे पृषो॰—गाय, बैल आदि पशुओं के बोलने का शब्द, रांभना
- हम्भा—स्त्री॰—-—हम् + भा + अङ् + टाप्, पक्षे पृषो॰—गाय, बैल आदि पशुओं के बोलने का शब्द, रांभना
- हय्—भ्वा॰ पर॰< हयति>, <हयित>—-—-—जाना
- हय्—भ्वा॰ पर॰< हयति>, <हयित>—-—-—पूजा करना
- हय्—भ्वा॰ पर॰< हयति>, <हयित>—-—-—शब्द करना
- हय्—भ्वा॰ पर॰< हयति>, <हयित>—-—-—थक जाना
- हयः—पुं॰—-—हय् (हि) + अच्—घोड़ा
- हयः—पुं॰—-—-—एक विशेष श्रेणी का मनुष्य
- हयः—पुं॰—-—-—‘सात’ की संख्या
- हयः—पुं॰—-—-—इन्द्र का नाम
- हयाध्यक्षः—पुं॰—हयः-अध्यक्षः—-—घोड़ों का अधीक्षक
- हयायुर्वेदः—पुं॰—हयः-आयुर्वेदः—-—अश्वचिकित्साविज्ञान, शालिहोत्रविद्या
- हयारूढः—पुं॰—हयः-आरूढः—-—अश्वारोही, घुड़सवार
- हयारोह—वि॰—हयः-आरोह—-—घुड़सवार
- हयारोह—वि॰—हयः-आरोह—-—घुड़सवारी
- हयेष्टः—पुं॰—हयः- इष्टः—-—जौ
- हयोत्तमः—पुं॰—हयः-उत्तमः—-—बढ़िया घोड़ा
- हयकोविदः—पुं॰—हयः-कोविदः—-—घोड़ों के प्रबन्ध, प्रशिक्षण तथा चिकित्साविज्ञान से परिचित
- हयज्ञः—पुं॰—हयः- ज्ञः—-—घोड़ों के व्यापारी, साइस, पेशेवर घुड़सवार
- हयद्विषत्—पुं॰—हयः-द्विषत्—-—भैसां
- हयप्रियः—पुं॰—हयः-प्रियः—-—जौ
- हयप्रिया—स्त्री॰—हयः-प्रिया—-—खजूर का वृक्ष
- हयमारः—पुं॰—हयः-मारः—-—गंधयुक्त करवीर, कनेर
- हयमारकः—पुं॰—हयः-मारकः—-—गंधयुक्त करवीर, कनेर
- हयमारणः—पुं॰—हयः-मारणः—-—पावन कनेर
- हयमेधः—पुं॰—हयः-मेधः—-—अश्वमेधः यज्ञ
- हयवाहनः—पुं॰—हयः-वाहनः—-—कुबेर का विशेषण
- हयशाला—स्त्री॰—हयः-शाला—-—अस्तबल
- हयशास्त्रम्—नपुं॰—हयः-शास्त्रम्—-—घोड़ों को सधान या उनका प्रबन्ध करने की कला
- हयसंग्रहणम्—नपुं॰—हयः-संग्रहणम्—-—घोड़ों का लगाम खींच कर रोकना
- हयङ्कषः—पुं॰—-—हय + कष् + खच् + मुम्—चालक, रथवान्
- हयी—स्त्री॰—-—हय + ङीष्—घोड़ी
- हर—वि॰—-—हृ + अच्—ले जाने वाला, हटाने वाला, वञ्चित करने वाला, खेदहर, शोकहर
- हर—वि॰—-—-—लाने वाला, ले जाने वाला, ग्रहण करने वाला
- हर—वि॰—-—-—पकड़ने वाला, ग्रहण करने वाला
- हर—वि॰—-—-—आकर्षक, मनोहर
- हर—वि॰—-—-—अध्यर्थी, दावेदार, अधिकारी
- हर—वि॰—-—-—अधिकार करने वाला
- हर—वि॰—-—-—बाँटने वाला
- हरः—पुं॰—-—-—शिव
- हरः—पुं॰—-—-—अग्नि
- हरः—पुं॰—-—-—गधा
- हरः—पुं॰—-—-—भाजक
- हरः—पुं॰—-—-—भिन्न की नीचे की संख्या
- हरगौरी—स्त्री॰—हर-गौरी—-—शिव और पार्वती का एक संयुक्त रूप(अर्धनारीश्वर)
- हरचुडामणिः—पुं॰—हर-चुडामणिः—-—शिव की शिखामणि, चन्द्रमा
- हरतेजस्—नपुं॰—हर-तेजस्—-—पारा
- हरनेत्रम्—नपुं॰—हर-नेत्रम्—-—शिव की आँख
- हरनेत्रम्—नपुं॰—हर-नेत्रम्—-—तीन की संख्या
- हरबीजम्—नपुं॰—हर-बीजम्—-—शिव का बीज, पारा
- हरशेखरा—स्त्री॰—हर-शेखरा—-—शिव की शिखा, गंगा
- हरसूनुः—पुं॰—हर-सूनुः—-—स्कन्द
- हरकः—पुं॰—-—हर + कन्—चोरी करने वाला, चोर
- हरकः—पुं॰—-—-—दुष्ट,
- हरकः—पुं॰—-—-—भाजक
- हरणम्—नपुं॰—-—हृ् + ल्युट्—पकड़ना, ग्रहण करना
- हरणम्—नपुं॰—-—-—ले जाने वाला, दूर करना, हटाना, चुराना
- हरणम्—नपुं॰—-—-—वञ्चित करना, नष्ट करना
- हरणम्—नपुं॰—-—-—भाग देना
- हरणम्—नपुं॰—-—-—विद्यार्थी को उपहार
- हरणम्—नपुं॰—-—-—भुजा
- हरणम्—नपुं॰—-—-—वीर्य, शुक्र
- हरणम्—नपुं॰—-—-—सोना
- हरि—वि॰—-—हृ + इन—हरा, हरा-पीला
- हरि—वि॰—-—-—खाकी, लाख के रंग का, लालीयुक्त भूरा, कपिल
- हरि—वि॰—-—-—पीला
- हरिः—पुं॰—-—-—विष्णु का नाम
- हरिः—पुं॰—-—-—इन्द्र का नाम
- हरिः—पुं॰—-—-—शिव का नाम
- हरिः—पुं॰—-—-—ब्रह्मा का नाम
- हरिः—पुं॰—-—-—यम का नाम
- हरिः—पुं॰—-—-—सूर्य
- हरिः—पुं॰—-—-—चन्द्रमा
- हरिः—पुं॰—-—-—मनुष्य
- हरिः—पुं॰—-—-—प्रकाश की किरण
- हरिः—पुं॰—-—-—अग्नि
- हरिः—पुं॰—-—-—पवन
- हरिः—पुं॰—-—-—सिंह
- हरिः—पुं॰—-—-—घोड़ा
- हरिः—पुं॰—-—-—इन्द्र का घोड़ा
- हरिः—पुं॰—-—-—लंगूर, बन्दर
- हरिः—पुं॰—-—-—कोयल
- हरिः—पुं॰—-—-—मेंढक
- हरिः—पुं॰—-—-—तोता
- हरिः—पुं॰—-—-—साँप
- हरिः—पुं॰—-—-—खाकी या पीला रंग
- हरिः—पुं॰—-—-—मोर
- हरिः—पुं॰—-—-—भर्तृहरि कवि का नाम
- हर्यक्षः—पुं॰—हरि-अक्षः—-—सिंह
- हर्यक्षः—पुं॰—हरि-अक्षः—-—कुबेर का नाम
- हर्यक्षः—पुं॰—हरि-अक्षः—-—शिव का नाम
- हर्यश्वः—पुं॰—हरि-अश्वः—-—इन्द्र
- हर्यश्वः—पुं॰—हरि-अश्वः—-—शिव
- हरिकान्त—वि॰—हरि-कान्त—-—इन्द्र को प्रिय
- हरिकान्त—वि॰—हरि-कान्त—-—सिंह के समान सुन्दर
- हरिकेलीयः—पुं॰—हरि-केलीयः—-—वंग देश
- हरिगन्धः—पुं॰—हरि-गन्धः—-—एक प्रकार का चन्दनः
- हरिचन्दनः—पुं॰—हरि-चन्दनः—-—एक प्रकार का पीला चन्दन(लकड़ी या वृक्ष)
- हरिचन्दनः—पुं॰—हरि-चन्दनः—-—सर्ग के पाँच वृक्षों में से एक वृक्ष
- हरिचन्दनम्—नपुं॰—हरि-चन्दनम्—-—ज्योत्सना
- हरिचन्दनम्—नपुं॰—हरि-चन्दनम्—-—केसर,ज़ाफ़रान
- हरिचन्दनम्—नपुं॰—हरि-चन्दनम्—-—कमल का पराग
- हरितालः—पुं॰—हरि-तालः—-—(कुछ विद्वान् इसे ‘हरित’ से व्पुत्पन्न मानते हैं) पीले रंग का कबूतर
- हरितालम्—नपुं॰—हरि-तालम्—-—हरताल
- हरिताली—स्त्री॰—हरि-ताली—-—दूर्वा घास
- हरितालीका—स्त्री॰—हरि-तालीका—-—भाद्रशुक्ला चतुर्थी
- हरितालीका—स्त्री॰—हरि-तालीका—-—दूर्वा घास
- हरितुरङ्गमः—पुं॰—हरि-तुरङ्गमः—-—इन्द्र का नाम
- हरिदासः—पुं॰—हरि-दासः—-—विष्णु का उपासक
- हरिदिनम्—नपुं॰—हरि-दिनम्—-—विष्णु पूजा का विशेष दिन
- हरिदेवः—पुं॰—हरि-देवः—-—श्रवण नक्षत्र
- हरिद्रवः—पुं॰—हरि-द्रवः—-—हरा रस
- हरिद्वारम्—नपुं॰—हरि-द्वारम्—-—एक पुण्यतीर्थस्थान
- हरिनेत्रम्—नपुं॰—हरि-नेत्रम्—-—विष्णु की आँख
- हरिनेत्रम्—नपुं॰—हरि-नेत्रम्—-—सफ़ेद कमल
- हरिनेत्र—वि॰—हरि-नेत्र—-—उल्लू
- हरिपदम्—नपुं॰—हरि-पदम्—-—वसन्त विषुव
- हरिप्रियः—पुं॰—हरि-प्रियः—-—कद्ंब का वृक्ष
- हरिप्रियः—पुं॰—हरि-प्रियः—-—शंख
- हरिप्रियः—पुं॰—हरि-प्रियः—-—मूर्ख
- हरिप्रियः—पुं॰—हरि-प्रियः—-—पागल मनुष्य
- हरिप्रियः—पुं॰—हरि-प्रियः—-—शिव
- हरिप्रिया—स्त्री॰—हरि-प्रिया—-—लक्ष्मी
- हरिप्रिया—स्त्री॰—हरि-प्रिया—-—तुलसी का पौधा
- हरिप्रिया—स्त्री॰—हरि-प्रिया—-—पृथ्वी
- हरिप्रिया—स्त्री॰—हरि-प्रिया—-—द्वादशी
- हरिभुज्—पुं॰—हरि-भुज्—-—साँप
- हरिमन्थः—पुं॰—हरि-मन्थः—-—मटर, चना
- हरिमन्थकः—पुं॰—हरि-मन्थकः—-—मटर, चना
- हरिलोचनः—पुं॰—हरि-लोचनः—-—केकड़ा
- हरिलोचनः—पुं॰—हरि-लोचनः—-—उल्लू
- हरिवल्लभा—स्त्री॰—हरि-वल्लभा—-—लक्ष्मी
- हरिवल्लभा—स्त्री॰—हरि-वल्लभा—-—तुलसी
- हरिवासरः—पुं॰—हरि-वासरः—-—विष्णु दिवस, एकादशी
- हरिवाहनः—पुं॰—हरि-वाहनः—-—गरूड
- हरिवाहनः—पुं॰—हरि-वाहनः—-—इन्द्र
- हरिदिश्—स्त्री॰—हरि-दिश्—-—पूर्वदिशा
- हरिशरः—पुं॰—हरि-शरः—-—शिव का विशेषण
- हरिसखः—पुं॰—हरि-सखः—-—एक गधर्व
- हरिसंकीर्तनम्—नपुं॰—हरि-संकीर्तनम्—-—विष्णु के नाम का कीर्तन करना
- हरिसुतः—पुं॰—हरि-सुतः—-—अर्जुन का नाम
- हरिसूनुः—पुं॰—हरि-सूनुः—-—अर्जुन का नाम
- हरिहयः—पुं॰—हरि-हयः—-—इन्द्र
- हरिहयः—पुं॰—हरि-हयः—-—सूर्य
- हरिहरः—पुं॰—हरि-हरः—-—विष्णु और शिव की एक संयुक्त देवमूर्ति
- हरिहेतिः—स्त्री॰—हरि-हेतिः—-—इन्द्रधनुष
- हरिहेतिः—स्त्री॰—हरि-हेतिः—-—विष्णु का चक्र
- हरिहूतिः—स्त्री॰—हरि-हूतिः—-—चक्रवाक
- हरिकः—पुं॰—-—हरि संज्ञायां कन्—खाकी या भूरे रंग का घोड़ा
- हरिकः—पुं॰—-—-—चोर
- हरिकः—पुं॰—-—-—जुआरी
- हरिण —वि॰—-—हृ + इनन्—फीका, पीला सा
- हरिण —वि॰—-—-—लाल या पीला सफेद
- हरिणः—पुं॰—-—-—मृ्ग, बारहसिंगा
- हरिणः—पुं॰—-—-—सफ़ेद रंग
- हरिणः—पुं॰—-—-—हंस
- हरिणः—पुं॰—-—-—सूर्य
- हरिणः—पुं॰—-—-—विष्णु
- हरिणः—पुं॰—-—-—शिव
- हरिणाक्ष—वि॰—हरिणः-अक्ष—-—मृगनयन, हरिण जैसी आँखों वाला
- हरिणाक्षी—स्त्री॰—-—-—मृगनयन, सुन्दर आँखों वाली स्त्री
- हरिणाङक—वि॰—हरिणः-अङक—-—चन्द्रमा
- हरिणाङक—वि॰—हरिणः-अङक—-—कपूर
- हरिणकलङ्कः—पुं॰—हरिणः-कलङ्कः—-—चन्द्रमा
- हरिणधामन्—पुं॰—हरिणः-धामन्—-—चन्द्रमा
- हरिणनयन—वि॰—हरिणः-नयन—-—हरिणाक्ष, मृग जैसी आँखों वाला
- हरिणनेत्र—वि॰—हरिणः-नेत्र—-—हरिणाक्ष, मृग जैसी आँखों वाला
- हरिणलोचन—वि॰—हरिणः-लोचन—-—हरिणाक्ष, मृग जैसी आँखों वाला
- हरिणहृदय—वि॰—हरिणः-हृदय—-—हरिण जैसे दिल वाला, भीरू
- हरिणकः—पुं॰—-—हरिण + कन्—छोटा हरिण
- हरिणी —स्त्री॰—-—हरिण + ङीष्—मृगी, मादा हरिण
- हरिणी —स्त्री॰—-—-—स्त्रियों के चार भेदों में से एक
- हरिणी —स्त्री॰—-—-—पीले फूल की चमेली
- हरिणी —स्त्री॰—-—-—सुन्दर स्वर्णमूर्ति
- हरिणी —स्त्री॰—-—-—एक छन्द का नाम
- हरिणीदृश्—वि॰—हरिणी-दृश्—-—हरिण जैसी आँखों वाला
- हरिणीदृश्—स्त्री॰—हरिणी-दृश्—-—मृगनयनी
- हरित्—वि॰—-—हृ + इति—हरा, हरियाला
- हरित्—वि॰—-—-—पीला, पीला सा
- हरित्—वि॰—-—-—हरियाली लिये पीला
- हरित्—पुं॰—-—-—हरा या पीला रंग
- हरित्—पुं॰—-—-—सूर्य का घोड़ा, लाख के रंग का घोड़ा
- हरित्—पुं॰—-—-—तेज घोड़ा
- हरित्—पुं॰—-—-—सिंह
- हरित्—पुं॰—-—-—सूर्य
- हरित्—पुं॰—-—-—विष्णु
- हरित्—पुं॰, नपुं॰—-—-—घास
- हरित्—पुं॰, नपुं॰—-—-—दिशा
- हरिदन्तः—पुं॰—हरित्-अन्तः—-—दिशाओं का अन्त, दिगन्त
- हरिदन्तरम्—नपुं॰—हरित्-अन्तरम्—-—भिन्न प्रदेश, विविध दिशाएँ
- हरिदश्वः—पुं॰—हरित्-अश्वः—-—सूर्य
- हरिदश्वः—पुं॰—हरित्-अश्वः—-—मदार का पौधा, अर्क
- हरिद्गर्भ—वि॰—हरित्-गर्भ—-—चौड़े पत्तों की हरी हरी कुशा
- हरिन्मणिः—पुं॰—हरित्-मणिः—-—मरकत मणि,पन्ना
- हरिद्वर्ण—वि॰—हरित्-वर्ण—-—हरियाली,हरे रंग का
- हरित—वि॰—-—हृ + इतच्—हरा, हरे रंग का, हरा-भरा
- हरित—वि॰—-—-—खाकी
- हरितः—पुं॰—-—-—हरा रंग
- हरितः—पुं॰—-—-—सिंह
- हरितः—पुं॰—-—-—एक प्रकार का घास
- हरिताश्वन्—पुं॰—हरित-अश्वन्—-—मरकत मणि,पन्ना
- हरिताश्वन्—पुं॰—हरित-अश्वन्—-—तूतिया, नीला थोथा
- हरितच्छद—वि॰—हरित-छद—-—हरे हरे पत्तों का
- हरितकम्—नपुं॰—-—हरित + कै + क—साग-भाजी
- हरितकम्—नपुं॰—-—-—हरा घास
- हरिता—स्त्री॰—-—हरित + टाप्—दूर्वा घास
- हरिता—स्त्री॰—-—-—हरिद्रा
- हरिता—स्त्री॰—-—-—भु्रे रंग का अंगूर
- हरिद्रा—स्त्री॰—-—हरि + द्रु + ड + टाप्—हल्दी
- हरिद्रा—स्त्री॰—-—-—पिसी हुई हल्दी
- हरिद्राभ—वि॰—हरिद्रा- आभ—-—पीले रंग का
- हरिद्रागणपतिः—पुं॰—हरिद्रा-गणपतिः—-—गणेश देव का विशेष रूप
- हरिद्रागणेशः—पुं॰—हरिद्रा-गणेशः—-—गणेश देव का विशेष रूप
- हरिद्राराग—वि॰—हरिद्रा-राग—-—हल्दी के रंग का
- हरिद्राराग—वि॰—हरिद्रा-राग—-—अनुराग में अस्थिर
- हरिद्रारागक—वि॰—हरिद्रा-रागक—-—हल्दी के रंग का
- हरिद्रारागक—वि॰—हरिद्रा-रागक—-—अनुराग में अस्थिर
- हरियः—पुं॰—-—हरि + या + क—पीले रंग का घोड़ा
- हरिश्चन्द्रः—पुं॰—-—हरिः चन्द्र इव, सुडागमः ॠषावेव—सूर्यवंश का एक राजा
- हरीतकी—स्त्री॰—-—हरिं पीतवर्ण फलाद्वारा इता प्राप्ता-हरि + इ + क्त + कन् + ङीष्—हर्र का पेड़
- हर्तृ—वि॰—-—हृ + तृच्—उठा कर ले जाने वाला, छीनने वाला, लूटने वाला, ग्रहन करने वाला आदि
- हर्तृ—पुं॰—-—-—चोर, लुटेरा
- हर्तृ—पुं॰—-—-—सूर्य
- हर्मन्—नपुं॰—-—हृ + मनिन्—मुँह फाड़ना, जंभाई लेना
- हर्मित—भु॰ क॰ कृ॰—-—हर्मन् + इतच्—जिसने मुँह फाड़ा है, जिसने जम्हाई ली है
- हर्मित—भु॰ क॰ कृ॰—-—-—डाल दिया गया, फेंका गया
- हर्मित—भु॰ क॰ कृ॰—-—-—जलाया गया
- हर्म्यम्—नपुं॰—-—हृ + यत्, मुट् च—प्रासाद, महल, कोई भी विशाल भवन या बड़ी इमारत
- हर्म्यम्—नपुं॰—-—-—तंदूर, अंगीठी, चूल्हा
- हर्म्यम्—नपुं॰—-—-—आग का कुंड, यत्रणास्थान, नरक
- हर्म्याङ्गनम्—नपुं॰—हर्म्यम्-अङ्गनम्—-—महल का आंगन
- हर्म्याङ्गणम्—नपुं॰—हर्म्यम्-अङ्गणम्—-—महल का आंगन
- हर्म्याङ्गस्थलम्—नपुं॰—हर्म्यम्-अङ्गस्थलम्—-—महल का कमरा
- हर्ष—वि॰—-—हृष् + घञ्—आनन्द, खुशी, प्रसन्नता, संतोष, एक सुखात्मक भाव, आनन्दातिरेक, उल्लास, आह्लाद,प्रमोद
- हर्ष—वि॰—-—-—पुलक, रोमांच, रोंगटे खड़े होना- ‘रोमहर्ष’ में
- हर्ष—वि॰—-—-—‘हर्ष’, ३३ या ३४ संचारिभावों में से एक
- हर्षान्वित—वि॰—हर्ष-अन्वित—-—आनन्दयुक्त, प्रसन्न
- हर्षाविष्ट—वि॰—हर्ष-अविष्ट—-—आनन्दयुक्त, प्रसन्न
- हर्षोत्कर्षः—पुं॰—हर्ष-उत्कर्षः—-—प्रसन्नता का आधिक्य, आनंदातिरेक
- हर्षोदयः—पुं॰—हर्ष-उदयः—-—आनन्द का होना
- हर्षकर—वि॰—हर्ष-कर—-—तृप्त करने वाला, प्रसन्न करने वाला
- हर्षजड—वि॰—हर्ष-जड—-—मन्द, मारे खुशी के जडवत् हो जाने वाला
- हर्षविवर्धन—वि॰—हर्ष-विवर्धन—-—आनन्द बढ़ाने वाला
- हर्षस्वनः—पुं॰—हर्ष-स्वनः—-—आनन्द की ध्वनि
- हर्षक—वि॰—-—हृष् + णिच् + ण्वुल्—खुश करने वाला, प्रसन्न करने वाला, सुखकर
- हर्षण—वि॰—-—हृष् + णिच् + ल्युट्—खुशी पैदा करने वाला, प्रसन्न करने वाला, आनन्द से भरा हुआ, सुखद
- हर्षणः—पुं॰—-—-—कामदेव के पाँच बाणों में से एक
- हर्षणः—पुं॰—-—-—आंख का एक रोग
- हर्षणः—पुं॰—-—-—श्राद्ध की एक अधिष्ठात्री देवता
- हर्षणम्—नपुं॰—-—-—प्रर्हष, खुशी, प्रसन्नता, आनन्द, उल्लास
- हर्षयित्नु—वि॰—-—हृष् + णिच् + इत्नु—आनन्ददायक, सुखकर, खुश करने वाला, प्रसन्नता देने वाला
- हर्षलः—पुं॰—-—हृष् + उलच्—हरिण
- हर्षलः—पुं॰—-—-—प्रेमी
- हल्—भ्वा॰ पर॰<हलति>, <हलित>—-—-—हल चलाना
- हलम्—नपुं॰—-—हल् घञर्थे करणे क—लांगल, खेत जोतने का एक प्रधान उपकरण
- हलायुधः—पुं॰—हलम्-आयुधः—-—बलराम का विशेषण
- हलधर—वि॰—हलम्-धर—-—हाली, हलचलाने वाला
- हलधर—पुं॰—हलम्-धर—-—बलराम का नाम
- हलभृत्—पुं॰—हलम्-भृत्—-—हाली, हलचलाने वाला
- हलभृत्—पुं॰—हलम्-भृत्—-—बलराम का नाम
- हलभूतिः—पुं॰—हलम्-भूतिः—-—हल चलाना, कृषिकर्म, किसानी
- हलभृतिः—पुं॰—हलम्-भृतिः—-—हल चलाना, कृषिकर्म, किसानी
- हलहतिः—स्त्री॰—हलम्-हतिः—-—हल के द्वार प्रहार करना या खूड निकालना
- हलहतिः—स्त्री॰—हलम्-हतिः—-—जुताई या हल चलाना
- हलहला—अव्य॰—-—-—अहो, वाह रे आदि आश्चर्यसूचक अव्यय
- हला—स्त्री॰—-—ह इति लीयते ह + ला + क + टाप्—सखी, सहेली
- हला—स्त्री॰—-—-—पृथ्वी
- हला—स्त्री॰—-—-—जल
- हला—स्त्री॰—-—-—मदिरा
- हलाहलः—पुं॰—-—हलाहल, पृषो॰—एक प्रकार का घातक विष जो समुद्रमंथन के परिणाम स्वरूप मिला था
- हलाहलः—पुं॰—-—हलाहल, पृषो॰—घातक विष, या जहर
- हलाहलम्—नपुं॰—-—हलाहल, पृषो॰—एक प्रकार का घातक विष जो समुद्रमंथन के परिणाम स्वरूप मिला था
- हलाहलम्—नपुं॰—-—हलाहल, पृषो॰—घातक विष, या जहर
- हलिः—पुं॰—-—हल् + इन्—बड़ा हल
- हलिः—पुं॰—-—-—खूड
- हलिः—पुं॰—-—-—कृषि
- हलिन्—पुं॰—-—हल् + इनि—हाली, हलवाहा, किसान
- हलिन्—पुं॰—-—-—बलराम
- हलिप्रियः—पुं॰—हलिन्-प्रियः—-—कदंब का वृक्ष
- हलिप्रिया—स्त्री॰—हलिन्-प्रिया—-—मदिरा
- हलिनी—स्त्री॰—-—हलिन् + ङीप्—हलों का समूह
- हलीनः—पुं॰—-—हलाय हितः हल + ख—सागौन का पेड़
- हलीषा—स्त्री॰—-—हलस्य ईर्षा - ष॰ त॰, शक॰ पररूपम्—हल का दण्ड, हलस
- हल्य—वि॰—-—हल + यत्—जोतने योग्य, हल चलाये जाने योग्य
- हल्य—वि॰—-—-—कुरूप, विकृताकृति
- हल्या—स्त्री॰—-—हल्य + टाप्—हलों का समूह
- हल्लकम्—नपुं॰—-—हल्ल् + ण्वुल्—लाल कमल
- हल्लनम्—नपुं॰—-—हल्ल् + ल्युट्—लोटना, इधर-उधर करवट बदलना (सोते समय)
- हल्लीशम्—नपुं॰—-—हल् + क्विप लष् (स्) + अच्, पृषों॰ ईत्वम्, कर्म॰ स॰—अठारह उपरूपकों में से एक
- हल्लीशम्—नपुं॰—-—हल् + क्विप लष् (स्) + अच्, पृषों॰ ईत्वम्, कर्म॰ स॰—एक प्रकार का वर्तुलाकार नृत्य
- हल्लीषम्—नपुं॰—-—हल् + क्विप लष् (स्) + अच्, पृषों॰ ईत्वम्, कर्म॰ स॰—अठारह उपरूपकों में से एक
- हल्लीषम्—नपुं॰—-—हल् + क्विप लष् (स्) + अच्, पृषों॰ ईत्वम्, कर्म॰ स॰—एक प्रकार का वर्तुलाकार नृत्य
- हल्लीशकः—पुं॰—-—हल्लीश + कन्—घेरा बनाकर नाचना
- हवः—पुं॰—-—हु + अ, ह्वे + अप्, संप्र॰, पृषो॰ वा—आहुति, यज्ञ
- हवः—पुं॰—-—-—आह्वान, प्रार्थना
- हवः—पुं॰—-—-—आह्वान, आमन्त्रण
- हवः—पुं॰—-—-—आदेश,समादेश
- हवः—पुं॰—-—-—बुलावा, बुला भेजना
- हवः—पुं॰—-—-—चुनौती, ललकार
- हवनम्—नपुं॰—-—हु + भावे ल्युट्—अग्नि में सामग्री की आहुति देना, यज्ञ
- हवनम्—नपुं॰—-—-—यज्ञ, आहुति
- हवनम्—नपुं॰—-—-—आवाहन
- हवनम्—नपुं॰—-—-—बुलावा, आमन्त्रण
- हवनम्—नपुं॰—-—-—युद्ध के लिए ललकार
- हवनायुस्—पुं॰—हवनम्-आयुस्—-—अग्नि
- हवनीयम्—नपुं॰—-—हु + अनीयर्—कोई भी वस्तु जो आहुति देने के योग्य हो
- हवनीयम्—नपुं॰—-—-—गरम किया हुआ मक्खन् या घी
- हवित्री—स्त्री॰—-—हु + इत्रन् + ङीप्—हवनकुण्ड जो भूमि में खोद कर वनाया गया हो (इसमें आहुतियाँ दी जाती हैं)
- हविष्मत्—वि॰—-—हविस् + मतुप्—आहुतिवाला
- हविष्यम्—नपुं॰—-—हविषे हितम् कर्मणि यत् —कोई भी वस्तु जो आहुति देने के उपयुक्त हो @ मनु॰ ३/२५६, ११/७७, १०६, याज्ञ॰ २/२३९
- हविष्यम्—नपुं॰—-—-—गर्म किया हुआ मक्खन
- हविष्यान्नम्—नपुं॰—हविष्यम्-अन्नम्—-—व्रत के तथा अन्य पर्वो के अवसर पर खाने योग्य भोज्य पदार्थ
- हविष्याशिन्—पुं॰—हविष्यम्-आशिन्—-—अग्नि
- हविष्यभुज्—पुं॰—हविष्यम्-भुज्—-—अग्नि
- हविस्—नपुं॰—-—हूयते हु कर्मणि असुन्—आहुति या हवनीय द्रव्य
- हविस्—नपुं॰—-—-—गर्म किया हुआ मक्खन
- हविस्—नपुं॰—-—-—जल
- हविरशनम्—नपुं॰—हविस्-अशनम्—-—घेी या हवनीय द्रव्यों का खाया जाना,
- हविरशनः—पुं॰—हविस्-नः—-—अग्नि
- हविर्गन्धा—स्त्री॰—हविस्-गन्धा—-—शमीवृक्ष, जैंड का पेड़
- हविर्गेहम्—नपुं॰—हविस्-गेहम्—-—यज्ञगृह जहाँ अग्नि में आहुति दी जाय,
- हविर्भुज्—पुं॰—हविस्-भुज्—-—अग्नि
- हविर्यज्ञः—पुं॰—हविस्-यज्ञः—-—एक प्रकार का यज्ञ,
- हविर्याजिन्—पुं॰—हविस्-याजिन्—-—पु्रोहित
- हव्य—वि॰—-—हु कर्मणि + यत्—आहुति के रूप में दिया जाने वाला पदार्थ
- हव्यम्—नपुं॰—-—-—घी
- हव्यम्—नपुं॰—-—-—देवों को दी जाने वाली आहुति
- हव्यम्—नपुं॰—-—-—आहुति
- हव्याशः—पुं॰—हव्य-आशः—-—अग्नि
- हव्यकव्यम्—नपुं॰—हव्य-कव्यम्—-—देवों तथा पितरों को आहुतियाँ
- हव्यवाह्—पुं॰—हव्य-वाह्—-—आहुतियों को ले जाने वाला, अग्नि
- हव्यवाह—पुं॰—हव्य-वाह—-—आहुतियों को ले जाने वाला, अग्नि
- हव्यवाहन—पुं॰—हव्य-वाहन—-—आहुतियों को ले जाने वाला, अग्नि
- हस्—भ्वा॰ पर॰<हसति>, <हसित>—-—-—मुसकराना, मन्द हंसी हंसना,
- हस्—भ्वा॰ पर॰<हसति>, <हसित>—-—-—हंसी उड़ाना, मखौल करना, उपहास करना (कर्म॰ के साथ)
- हस्—भ्वा॰ पर॰<हसति>, <हसित>—-—-—(अतः) आगे बढ़ जाना, श्रेष्ठ होना, दूसरे को पीछे छोड़ देना
- हस्—भ्वा॰ पर॰<हसति>, <हसित>—-—-—मिलना-जुलना
- हस्—भ्वा॰ पर॰<हसति>, <हसित>—-—-—मखौल उड़ाना, दिल्लगी करना
- हस्—भ्वा॰ पर॰<हसति>, <हसित>—-—-—खुलना, खिलना, फूलना
- हस्—भ्वा॰ पर॰<हसति>, <हसित>—-—-—चमकाना, मांजकर साफ़ करना
- हस्—भ्वा॰ पर॰<हसति>, <हसित>—-—-—मंद हंसी हंसना
- अपहस्—भ्वा॰ पर॰—अप-हस्—-—हंसी उड़ाना,तिरस्कार करना, उपहास करना
- अवहस्—भ्वा॰ पर॰—अव-हस्—-—तिरस्कार करना, बेइज्ज़ती करना
- अवहस्—भ्वा॰ पर॰—अव-हस्—-—आगे बढ़ जाना, श्रेष्ठ होना
- उपहस्—भ्वा॰ पर॰—उप-हस्—-—उपहास करना, तिरस्कार करना, बुरा भला कहना
- परिहस्—भ्वा॰ पर॰—परि-हस्—-—मखौल करना, हंसी उड़ाना
- परिहस्—भ्वा॰ पर॰—परि-हस्—-—उपहास करना, बुरा भला कहना, (अतः) आगे बढ़ जाना, श्रेष्ठ होना
- प्रहस्—भ्वा॰ पर॰—प्र-हस्—-—उपहास करना, मुस्कराना
- प्रहस्—भ्वा॰ पर॰—प्र-हस्—-—तिरस्कार करना, बुरा भला कहना, मखौल उड़ाना
- प्रहस्—भ्वा॰ पर॰—प्र-हस्—-—चमकाना, शानदार दिखाई देना
- विहस्—भ्वा॰ पर॰—वि-हस्—-—मुस्कराना, मन्द मन्द हंसना,
- विहस्—भ्वा॰ पर॰—वि-हस्—-—उपहास करना, बुरा भला कहना, अपमान करना
- हस—वि॰—-—हस् + अप्—हंसी, ठहाका
- हस—वि॰—-—-—उपहास
- हस—वि॰—-—-—आमोद, प्रमोद, खुशी, प्रसन्नता
- हसनम्—नपुं॰—-—हस् + ल्युट्—हंसी, ठहाका, अट्टहास
- हसनी—स्त्री॰—-—हसन + ङीप्—उठाऊ चूल्हा, कांगड़ी
- हसन्ती—स्त्री॰—-—हस् + शतृ + ङीप्—उठाऊ अंगीठी
- हसन्ती—स्त्री॰—-—-—एक प्रकार की मल्लिका
- हसिका—स्त्री॰—-—हस् + ण्वुल् + टाप्, —अट्टहास, उपहास
- हसित—भू॰ क॰ कृ॰—-—हस् + क्त—जिसकी हंसी की गई हो, हंसना
- हसित—भू॰ क॰ कृ॰—-—-—विकसित, फूला हुआ
- हसितम्—नपुं॰—-—-—अट्टहास
- हसितम्—नपुं॰—-—-—मखौल, मज़ाक
- हसितम्—नपुं॰—-—-—कामदेव के धनुष
- हस्तः—पुं॰—-—हस् + तन्, न इट्—हाथ
- हस्तं गतः—स्त्री॰—-—-—हाथ में पड़ा हुआ या अधिकार में आया हुआ
- हस्ते कृ——-—-—हाथ से पकड़ना, ले लेना, हाथ से ले लेना, हाथ में पकड़ लेना, अधिकार कर लेना
- हस्तः—पुं॰—-—-—हाथी की सूँड़
- हस्तः—पुं॰—-—-—तेरहवां नक्षत्र जिसमें पाँच तारे सम्मिलित हैं
- हस्तः—पुं॰—-—-—हाथ भर, एक हस्तपरिमाण
- हस्तः—पुं॰—-—-—हाथ की लिखाई, हस्ताक्षर
- हस्तः—पुं॰—-—-—प्रमाण, संकेत
- हस्तः—पुं॰—-—-—सहायता, मदद, सहारा
- हस्तः—पुं॰—-—-—राशि, परिमाण (बालों का) गुच्छा, रचना में `केश' `कच' के साथ
- हस्तम्—नपुं॰—-—-—धौंकनी
- हस्ताक्षरम्—नपुं॰—हस्तः-अक्षरम्—-—अपने निजी अक्षर, दस्तखत
- हस्ताग्रम्—नपुं॰—हस्तः-अग्रम्—-—अंगुली (क्यों हाथ का सिरा यही होती हैं)
- हस्तांगुलिः—स्त्री॰—हस्तः-अंगुलिः—-—हाथ की कोई सी अंगुलि
- हस्ताभ्यस्तः—पुं॰—हस्तः-अभ्यस्तः—-—हाथ से काम करने का अभ्यास
- हस्तावलम्बः—पुं॰—हस्तः-अवलम्बः—-—हाथ का सहारा
- हस्तावलम्बनम्—नपुं॰—हस्तः-अवलम्बनम्—-—हाथ का सहारा
- हस्तामलकम्—नपुं॰—हस्तः-आमलकम्—-—`हाथ में रक्खा आंवले का फल' यह एक वाग्धारा है, और उस समय प्रयुक्त होती है जब कभी ऐसी बात का निर्देश करना हो तो बिल्कुल स्पष्ट और अनायास हो बोधगम्य हो
- हस्तावापः—पुं॰—हस्तः-आवापः—-—दस्ताना, हस्तत्राण (ज्याघातवारण)
- हस्तकमलम्—नपुं॰—हस्तः-कमलम्—-—हाथ में लिया हुआ कमल
- हस्तकमलम्—नपुं॰—हस्तः-कमलम्—-—कमल जैसा हाथ
- हस्तकौशलम्—नपुं॰—हस्तः-कौशलम्—-—हाथ की दक्षता
- हस्तक्रिया—स्त्री॰—हस्तः-क्रिया—-—हाथ का काम, दस्तकारी
- हस्तगत—वि॰—हस्तः-गत—-—हाथ में आया हुआ, अधिकार में आया हुआ, प्राप्त, गृहीत
- हस्तगामिन्—वि॰—हस्तः-गामिन्—-—हाथ में आया हुआ, अधिकार में आया हुआ, प्राप्त, गृहीत
- हस्तग्राहः—नपुं॰—हस्तः-ग्राहः—-—हाथ से पकड़ना
- हस्तचापल्यम्—नपुं॰—हस्तः-चापल्यम्—-—हस्तकौशल
- हस्ततलम्—नपुं॰—हस्तः-तलम्—-—हाथ की हथेली
- हस्ततलम्—नपुं॰—हस्तः-तलम्—-—हाथी के सूँड़ की नोक
- हस्ततालः—पुं॰—हस्तः-तालः—-—हथेली बजाना, तालियाँ बजाना
- हस्तदोषः—पुं॰—हस्तः-दोषः—-—हाथ से होने वाली त्रुटि, भूल
- हस्तधारणम्—नपुं॰—हस्तः-धारणम्—-—(हाथ से) आघात का निवारण करना
- हस्तवारणम्—नपुं॰—हस्तः-वारणम्—-—(हाथ से) आघात का निवारण करना
- हस्तपादम्—नपुं॰—हस्तः-पादम्—-—हाथ और पैर
- हस्तपुच्छम्—नपुं॰—हस्तः-पुच्छम्—-—कलाई से नीचे का भाग
- हस्तपृष्ठम्—नपुं॰—हस्तः-पृष्ठम्—-—हथेली का पृष्ठभाग
- हस्तप्राप्त—वि॰—हस्तः-प्राप्त—-—हस्तगत
- हस्तप्राप्त—वि॰—हस्तः-प्राप्त—-—उपलब्ध, सुरक्षित
- हस्तप्राप्य—वि॰—हस्तः-प्राप्य—-—जहाँ आसानी से हाथ पहुँच सके, जो हाथ की पहुँच में हो
- हस्तबिम्बम्—नपुं॰—हस्तः-बिम्बम्—-—शरीर में उवटन आदि गंध द्रव्यों का लेप
- हस्तमणिः—पुं॰—हस्तः-मणिः—-—कलई पर पहना जाने वाला रत्नाभूषण
- हस्तलाघवम्—नपुं॰—हस्तः-लाघवम्—-—हाथ की तत्परता या कुशलता
- हस्तलाघवम्—नपुं॰—हस्तः-लाघवम्—-—हाथ की सफाई, बाजीगरी
- हस्तसंवाहनम्—नपुं॰—हस्तः-संवाहनम्—-—हाथ से मलना या मालिश करना
- हस्तसिद्धिः—स्त्री॰—हस्तः-सिद्धिः—-—हाथ का श्रम, हाथ से किया जाने वाला काम
- हस्तसिद्धिः—स्त्री॰—हस्तः-सिद्धिः—-—भाड़ा, पारिश्रमिक, मजदूरी
- हस्तसूत्रम्—नपुं॰—हस्तः-सूत्रम्—-—कलाई में धारण किया हुआ मंगलसूत्र या वलय, कड़ा
- हस्तकः—पुं॰—-—हस्त + कन्—हाथ की अवस्थिति
- हस्तवत्—पुं॰—-—-—हाथ की अवस्थिति
- हस्ताहस्ति—वि॰—-—हस्त + मतुप्—द्क्ष, कुशल, चतुर
- हस्तिकम्—अव्य॰—-—हस्तैश्च हस्तैश्च इदं युद्धं प्रवॄत्तम् व॰ स॰, दीर्घ; इत्वम्, अव्ययत्वं च —हाथा पाई,
- हस्तिकम्—अव्य॰—-—हस्तिनां समूहः - कन्—हाथियों का समूह
- हस्तिन्—वि॰—-—हस्तः शुंडांदण्डोऽस्त्यस्य इनि—करयुक्त
- हस्तिन्—वि॰—-—-—सूँडवाला
- हस्तिन्—पुं॰—-—-—हाथी
- हस्त्यध्यक्ष—पुं॰—हस्तिन्-अध्यक्षः—-—हाथियों का अधीक्षक
- हस्त्यायुर्वेदः—पुं॰—हस्तिन्-आयुर्वेदः—-—हाथियों के रोगों की चिकित्सा से संबद्ध कृति, रचना
- हस्त्यारोहः—पुं॰—हस्तिन्-आरोहः—-—महावत, या हाथी की सवारी करने वाला
- हस्तिकक्ष्यः—पुं॰—हस्तिन्-कक्ष्यः—-—सिंह
- हस्तिकक्ष्यः—पुं॰—हस्तिन्-कक्ष्यः—-—बाघ
- हस्तिकर्णः—पुं॰—हस्तिन्-कर्णः—-—एरंड का पौधा
- हस्तिघ्नः—पुं॰—हस्तिन्-घ्नः—-—हाथी को मारने वाला
- हस्तिचारिन्—पुं॰—हस्तिन्-चारिन्—-—पीलवान
- हस्तिदन्तः—पुं॰—हस्तिन्-दन्तः—-—हाथी का दांत
- हस्तिदन्तः—पुं॰—हस्तिन्-दन्तः—-—दीवार में गड़ी हुई खूटी
- हस्तिदन्तम्—नपुं॰—हस्तिन्-दन्तम्—-—हाथीदांत
- हस्तिदन्तम्—नपुं॰—हस्तिन्-दन्तम्—-—मूली
- हस्तिदन्तकम्—नपुं॰—हस्तिन्-दन्तकम्—-—मूली
- हस्तिनखम्—नपुं॰—हस्तिन्-नखम्—-—पुरद्वार पर बना हुआ मिट्टी का ढूहा
- हस्तिपः—पुं॰—हस्तिन्-पः—-—पीलवान, हाथी की सवारी करने वाला
- हस्तिपकः—पुं॰—हस्तिन्-पकः—-—पीलवान, हाथी की सवारी करने वाला
- हस्तिमदः—पुं॰—हस्तिन्-मदः—-—मस्त हाथी के मस्तक से चूने वाला मदरसः
- हस्तिमल्लः—पुं॰—हस्तिन्-मल्लः—-—ऐरांवत
- हस्तिमल्लः—पुं॰—हस्तिन्-मल्लः—-—गणेश
- हस्तिमल्लः—पुं॰—हस्तिन्-मल्लः—-—राख का ढेर
- हस्तिमल्लः—पुं॰—हस्तिन्-मल्लः—-—धूल की बौछार
- हस्तिमल्लः—पुं॰—हस्तिन्-मल्लः—-—कुहरा
- हस्तियूथ—वि॰—हस्तिन्-यूथ—-—हाथियों का समूह
- हस्तियूथम्—नपुं॰—हस्तिन्-थम्—-—हाथियों का समूह
- हस्तिवर्चसम्—नपुं॰—हस्तिन्-वर्चसम्—-—हाथी की शान, कान्तिः
- हस्तिवाहः—पुं॰—हस्तिन्-वाहः—-—पीलवान
- हस्तिवाहः—पुं॰—हस्तिन्-वाहः—-—हाथियों को हांकने का अंकुश
- हस्तिषड्गवम्—नपुं॰—हस्तिन्-षड्गवम्—-—छः हाथियों का समूह
- हस्तिस्नानम्—नपुं॰—हस्तिन्-स्नानम्—-—गजस्नान, हाथी का स्नान
- हस्तिहस्तः—पुं॰—हस्तिन्-हस्तः—-—हाथी केी सूंड
- हस्तिनपुरम्—नपुं॰—-—अलुक् समास हस्तिना तदाख्यनृपें चिह्नितं तत्कृतत्वात्—राजा हस्तिन् द्वारा बसाया गया नगर
- हस्तिनापुरम्—नपुं॰—-—अलुक् समास हस्तिना तदाख्यनृपें चिह्नितं तत्कृतत्वात्—राजा हस्तिन् द्वारा बसाया गया नगर
- हस्तिनी—स्त्री॰—-—हस्तिन् + ङीप्—हथिनी
- हस्तिनी—स्त्री॰—-—-—एक प्रकार की औषध और गन्धद्रव्य
- हस्तिनी—स्त्री॰—-—-—कामशास्त्र में वर्णित चार प्रकार की स्त्रियों में से एक
- हस्त्य—वि॰—-—हस्त + यत्—हाथ से संबंध रखने वाला
- हस्त्य—वि॰—-—-—हाथ से किया गया
- हस्त्य—वि॰—-—-—हाथ से दिया हुआ
- हहलम्—नपुं॰—-—ह + हल् + अच्—एक प्रकार का घातक विष
- हहा—पुं॰—-—ह + हल् + क्विप्—एक गन्धर्वविशेष
- हा—अव्य॰—-—हा + का—शोक, उदासी, खिन्नता को प्रकट करने वाला अव्यय, आह, हाय, अरे
- हा—अव्य॰—-—-—आश्चर्य
- हा—अव्य॰—-—-—क्रोध या झिड़की
- हा—जुहो॰ आ॰ <जिहीते>, हान, कर्मवा॰ <हायते>, इच्छा॰ <जिहासते>—-—-—जाना, हिलना-जुलना
- हा—जुहो॰ आ॰ <जिहीते>, हान, कर्मवा॰ <हायते>, इच्छा॰ <जिहासते>—-—-—प्राप्त करना, हासिल करना
- उद्धा—जुहो॰ आ॰—उद्-हा—-—ऊपर की ओर जाना (सभी अर्थो में),उठना
- उद्धा—जुहो॰ आ॰—उद्-हा—-—जुदा होना, चले जाना
- उद्धा—जुहो॰ आ॰—उद्-हा—-—उठाना
- उद्धा—जुहो॰ आ॰—उद्-हा—-—चढ़ाना, (भौंहें) उठाना, सिकोड़ना
- उपहा—जुहो॰ आ॰—उप-हा—-—नीचे आना, उतरना
- संहा—जुहो॰ आ॰—सम्-हा—-—जाना, पहुँचना, उपभोग करना-जनता
- हा—अदा॰ पर॰<जहाति>, <हीन>—-—-—छोड़ना, त्यागना, परिहार करना, छोड़ देना, तजना, तिलांजलि देना, पदत्याग करना
- हा—अदा॰ पर॰<जहाति>, <हीन>—-—-—पदत्याग करना, जाने देना
- हा—अदा॰ पर॰<जहाति>, <हीन>—-—-—गिरने देना
- हा—अदा॰ पर॰<जहाति>, <हीन>—-—-—भूल जाना, उपेक्षा करना, अवहेलना करना
- हा—अदा॰ पर॰<जहाति>, <हीन>—-—-—बचना, बिदकना
- हीयते—अदा॰ कर्म॰—-—-—छोड़ दिया जाना
- हीयते—अदा॰ कर्म॰—-—-—निकाल दिया जाना, वञ्चित किया जाना, लुप्त होना (करण्॰ या अपा॰ के साथ)
- हीयते—अदा॰ कर्म॰—-—-—कम होना, थोड़ा हो जाना, प्रायः `परि' के साथ
- हीयते—अदा॰ कर्म॰—-—-—घटना, कम होना, मुर्झाना, क्षीण होना, (आलं॰ से भी), क्षय को प्राप्त होना
- हीयते—अदा॰ कर्म॰—-—-—(जैसे मुक़दमे में) हार जाना
- हीयते—अदा॰ कर्म॰—-—-—छूट जाना, भूल जाना
- हीयते—अदा॰ कर्म॰—-—-—कमज़ोर होना
- हापयति—अदा॰ पर॰—-—-—छुड़वाना, परित्यक्त कराना
- हापयति—अदा॰ पर॰—-—-—अवहेलना करना, भूलना, अनुष्ठान में देर करना
- हापयते—अदा॰ कर्म॰—-—-—छुड़वाना, परित्यक्त कराना
- हापयते—अदा॰ कर्म॰—-—-—अवहेलना करना, भूलना, अनुष्ठान में देर करना
- अपहा—अदा॰ पर॰—अप-हा—-—छोड़ना, त्यागना, तज देना
- अपाहा—अदा॰ पर॰—अपा-हा—-—छोड़ना, त्यागना
- अवहा—अदा॰ पर॰—अव-हा—-—छोड़ना, वञ्चित होना
- परिहा—अदा॰ पर॰—परि-हा—-—छोड़ना, त्यागना, छोड़ कर चल देना
- परिहा—अदा॰ पर॰—परि-हा—-—भूल जाना, अवहेलना करना
- हा—अदा॰ कर्म॰—-—-—अल्प होना, कम होना
- हा—अदा॰ कर्म॰—-—-—घटित होना
- प्रहा—अदा॰ पर॰—प्र-हा—-—छोड़ना, त्यागना, परित्यक्त करना, तिलांजलि देना
- प्रहा—अदा॰ पर॰—प्र-हा—-—जाने देना, फेंकना, डाल देना
- विहा—अदा॰ पर॰—वि-हा—-—छोड़ना, परित्यक्त करना, तजना, छोड़ देना
- हाङ्गर—वि॰—-—हा विषादाय पीड़ायै वा अंगं राति - हा + अङ्ग + रा + क—एक बड़ी मछली
- हाटक—वि॰—-—हाटक + अण्—सु्नहरी
- हाटकम्—नपु—-—-—सोना
- हाटकगिरिः—पुं॰—हाटक- गिरिः—-—सुमेरु पर्वत
- हात्रम्—नपुं॰—-—हा करणे त्रल्—पारिश्रमिक, मज़दूरी, भाड़ा
- हानम्—नपुं॰—-—हा + क्त—छोड़ना, त्यागना, हानि, असफलता
- हानम्—नपुं॰—-—-—बच निकलना
- हानम्—नपुं॰—-—-—पराक्रम, बल
- हानि—स्त्री॰—-—हा + क्तिन्, तस्य निः—परित्याग, तिलांजलि
- हानि—स्त्री॰—-—-—हानि, असफलता, अनुपस्थिति, अनस्तित्व
- हानि—स्त्री॰—-—-—हानि, नुक़सान, क्षति
- हानि—स्त्री॰—-—-—न्युनता, कमी
- हानि—स्त्री॰—-—-—अवहेलना, भूलना, भंग
- हानि—स्त्री॰—-—-—नष्ट होना, बर्वाद होना, हानि
- हाफिका—स्त्री॰—-—-—जमुहाई, जृंभा
- हयनः—पुं॰—-—-—एक प्रकार का चावल
- हयनः—पुं॰—-—-—शिखा, ज्वाला
- हयनम्—नपुं॰—-—हा + ल्यु—वर्ष
- हारः—पुं॰—-—हृ + घञ्—ले जाना, हटाना, पकड़ना
- हारः—पुं॰—-—-—पहुँचाना
- हारः—पुं॰—-—-—अपकर्षण, अलगाव
- हारः—पुं॰—-—-—वाहक, हरकारा
- हारः—पुं॰—-—-—मोतियों की माला, हार
- हारः—पुं॰—-—-—संग्राम, युद्ध
- हारः—पुं॰—-—-—(गणि॰ में) किसी भिन्न का नीचे का अंश
- हारः—पुं॰—-—-—भाजक
- हारावलिः—स्त्री॰—हारः-आवलिः—-—मोतियों की लड़ी
- हारावली—स्त्री॰—हारः-आवली—-—मोतियों की लड़ी
- हारगुटिका—स्त्री॰—हारः-गुटिका—-—माला का दाना या हार का मोती
- हारगुटिलि—स्त्री॰—हारः-गुटिलि—-—माला का दाना या हार का मोती
- हारयष्टिः—स्त्री॰—हारः-यष्टिः—-—हार, मोतियों की लड़ी
- हारहारा—स्त्री॰—हारः-हारा—-—एक प्रकार का लालभूरे रंग का अंगूर
- हारकः—पुं॰—-—हृ + ण्वुल्—चोर, लुटेरा
- हारकः—पुं॰—-—-—ठग, धूर्त
- हारकः—पुं॰—-—-—मोतियों की लड़ी
- हारकः—पुं॰—-—-—(गणि॰ में) भाजक
- हारकः—पुं॰—-—-—एक प्रकार की गद्य रचना
- हारि—वि॰—-—हृ + णिच् + इन्—आकर्षक, मोहक, सुखकर, मनोहर
- हारिः—स्त्री॰—-—-—पराजय
- हारिः—स्त्री॰—-—-—खेल में हार
- हारिः—स्त्री॰—-—-—यात्रियों का समूह, सार्थवाह
- हारिकण्ठः—पुं॰—हारिः-कण्ठः—-—कोयल
- हारिणिकः—पुं॰—-—हरिण + ठक्—हरिणों को पकड़ने वाला, शिकारी
- हारित—भू॰ क॰ कृ॰—-—हृ + णिच् + क्त—हरण कराया हुआ, पकड़ाया हुआ
- हारित—भू॰ क॰ कृ॰—-—-—उपहार स्वरूप दिया गया, प्रस्तुत किया गया
- हारित—भू॰ क॰ कृ॰—-—-—आकृष्ट
- हारितः—पुं॰—-—-—हरा रंग
- हारितः—पुं॰—-—-—एक प्रकार का कबुतर
- हारिन्—वि॰—-—हारो अस्त्यस्य इनि, हृ + णिनि वा—ले जाना वाला, पहुँचाने वाला, ढोने वाला
- हारिन्—वि॰—-—-—लूटने वाला, हरण कराने वाला
- हारिन्—वि॰—-—-—पकड़ लेने वाला, बाधा पहुँचाने वाला
- हारिन्—वि॰—-—-—प्राप्त करने वाला, उपलब्ध करने वाला
- हारिन्—वि॰—-—-—आर्कषक, मोहक, सुखकर, आह्लादकर, आनन्दप्रद
- हारिन्—वि॰—-—-—आगे बढ़ने वाला, अग्रगण्य होने वाला
- हारिन्—वि॰—-—-—हार धारण करने वाला
- हारिद्रः—पुं॰—-—हारिद्रा + अण्—पीला रंग
- हारिद्रः—पुं॰—-—-—कदंब का वृक्ष
- हारीतः—पुं॰—-—हृ + णिच् + ईतच्—एक प्रकार का कबुतर
- हारीतः—पुं॰—-—-—धूर्त, ठग
- हारीतः—पुं॰—-—-—एक स्मृतिकार का नाम
- हार्दम्—नपुं॰—-—हृदयस्य कर्म युवा॰ अण् हृदादेशः—स्नेह, प्रेम
- हार्दम्—नपुं॰—-—-—कृपा, सुकुमारता
- हार्दम्—नपुं॰—-—-—इच्छाशक्ति
- हार्दम्—नपुं॰—-—-—अभिप्राय, अर्थ
- हार्य—वि॰—-—हृ + ण्यत्—हरण किये जाने योग्य, ढोये जाने योग्य
- हार्य—वि॰—-—-—सहन किये जाने योग्य, ले जाये जाने योग्य
- हार्य—वि॰—-—-—अपहरण किये जाने योग्य, छीने जाने योग्य
- हार्य—वि॰—-—-—विस्थापित होने योग्य, (हवा आदि के द्वारा) ले जाये जाने योग्य
- हार्य—वि॰—-—-—(अपने संकल्प से) चलायमान होने योग्य
- हार्य—वि॰—-—-—उपलब्ध किये जाने योग्य, जीते जाने योग्य, आकृष्ट किये जाने योग्य विजित या प्रभावित किये जाने योग्य
- हार्य—वि॰—-—-—पकड़ जाने योग्य, लूटे जाने योग्य
- हार्यः—पुं॰—-—-—साँप
- हार्यः—पुं॰—-—-—बिभीतक या बंहेड़े का वृक्ष
- हार्यः—पुं॰—-—-—(गणि॰ में) भाज्य
- हालः—पुं॰—-—हलो अस्त्यस्य अण्, हल एव वा अण्—हल
- हालः—पुं॰—-—-—बलराम का नाम
- हालः—पुं॰—-—-—शालिवाहन का नाम
- हालभृत्—पुं॰—हालः-भृत्—-—बलराम का विशेषण
- हालकः—पुं॰—-—हाल + कन्—पीले भूरे रंग का घोड़ा
- हालहलम्—नपुं॰—-—हलाहल, पृषो॰—एक प्रकार का घातक विष जो समुद्रमंथन के परिणाम स्वरूप मिला था
- हालहलम्—नपुं॰—-—हलाहल, पृषो॰—घातक विष, या जहर
- हालाहलम्—नपुं॰—-—हलाहल, पृषो॰—एक प्रकार का घातक विष जो समुद्रमंथन के परिणाम स्वरूप मिला था
- हालाहलम्—नपुं॰—-—हलाहल, पृषो॰—घातक विष, या जहर
- हालहली—स्त्री॰—-—हालाहल + ङीप्—शराब
- हाला—स्त्री॰—-—हल् + घञ् + टाप्—मदिरा
- हालिकः—पुं॰—-—हलेन खनति हलः प्रहरणमस्य तस्येदं वा ठक् ठञ् वा—हलवाला, किसान
- हालिकः—पुं॰—-—-—जो हल चलाये (जैसे कि हल में जुता बैल
- हालिकः—पुं॰—-—-—जो हल के द्वारा युद्ध करता है
- हालिनी—स्त्री॰—-—हल् + णिनि + ङीष्—एक प्रकार की बड़ी छिपकली
- हाली—स्त्री॰—-—हल् + इण् + ङीष्—छोटी साली
- हालुः—पुं॰—-—हल् + उण्—दाँत
- हावः—पुं॰—-—ह्वे भावे घञ् नि॰ संप्र॰, हुकरणे घञ् वा —बुलावा, आमन्त्रण
- हावः—पुं॰—-—-—स्त्रियों की नखरेबाज़ी जो पुरुषों की रत्यात्मक भावनाओं को उत्तेजित करती है, (प्रेम की) रंगरेली, मधुरभाषण
- हासः—पुं॰—-—हस् + घञ्—ठहाका, हंसी, मुस्कराहट
- हासः—पुं॰—-—-—हर्ष, खुशी, आमोद
- हासः—पुं॰—-—-—हास्यध्वनि, हास्यरस
- हासः—पुं॰—-—-—व्यंग्यपूर्ण हंसी
- हासः—पुं॰—-—-—खुलना, विकसित होना, फूलना (कमल आदि का)
- हासिका—स्त्री॰—-—हस् + ण्वुल् + टाप्, —अट्टहास
- हासिका—स्त्री॰—-—-—खुशी, आमोद
- हास्य—वि॰—-—हस् + ण्यत्—हंसने के योग्य, हास्यास्पद
- हास्यम्—नपुं॰—-—-—हंसी
- हास्यम्—नपुं॰—-—-—खुशी, मनोरंजन, क्रीड़ा
- हास्यम्—नपुं॰—-—-—मज़ाक, मखौल
- हास्यम्—नपुं॰—-—-—व्यंग्य, दिल्लगी, ठट्ठा
- हास्यः—पुं॰—-—-—काव्य में वर्णित हास्यरस, परिभाषा
- हास्यास्पदम्—नपुं॰—हास्यः-आस्पदम्—-—हंसी की चीज़, हंसी उड़ाने की वस्तु
- हास्यपदवी—स्त्री॰—हास्यः-पदवी—-—खिल्ली, दिल्लगी
- हास्यमार्गः—पुं॰—हास्यः-मार्गः—-—खिल्ली, दिल्लगी
- हास्यरसः—पुं॰—हास्यः-रसः—-—हंसी या आमोदात्मक रस - दे॰ ऊपर ‘हास्य’
- हास्तिकः—पुं॰—-—हस्तिन् ठक्—महावत, या गजारोही
- हास्तिकम्—नपुं॰—-—-—हाथियों का समूह
- हास्तिनम्—नपुं॰—-—हस्तिना नृपेण निर्वृत्तम् नगरम्- हस्तिन् + अण् —हस्तिनापुर नगर का नाम
- हाहा—पुं॰—-—हा इति शब्दं जहाति- हा + हा + क्विप् —एक गन्धर्व का नाम
- हाहा—अव्य॰—-—-—पीड़ा, शोक या आश्चर्य का प्रकट करने वाला उद्गार
- हाहाकारः—पुं॰—हाहा-कारः—-—शोक, विलाप, रोना-धोना
- हाहाकारः—पुं॰—हाहा-कारः—-—युद्ध का शोर
- हाहारवः—पुं॰—हाहा-रवः—-—‘हा हा’ की ध्वनि
- हि—अव्य॰—-—-—(इसका प्रयोग वाक्य के आरम्भ में कभी नहीं होता) इसके अर्थ निम्नांकित हैः- इसलिए कि, क्योंकि (तर्कसंगत युक्ति का निर्देश करना)
- हि—अव्य॰—-—-—निस्सन्देह, निश्चय ही
- हि—अव्य॰—-—-—उदाहरणस्वरूप, जैसा की सुविदित है,
- हि—अव्य॰—-—-—केवल, अकेला (किसी विचार पर बल देने के लिए)
- हि—अव्य॰—-—-—कभी कभी यह केवल पूरक की भांति ही प्रयुक्त होता है
- हि—अव्य॰—-—-—भेजना, उकसाना
- हि—अव्य॰—-—-—डाल देना, फेंकना, (तीर) चलाना (बन्दुक) दागना
- हि—अव्य॰—-—-—उत्तेजित करना, भड़काना, उकसाना
- हि—अव्य॰—-—-—उन्नत करना, आगे बढ़ाना
- हि—अव्य॰—-—-—तृप्त करना, प्रसन्न करना, उल्लसित करना
- हि—अव्य॰—-—-—जाना, प्रगति करना
- प्रहि—अव्य॰—प्र-हि—-—भेज देना, ढकेलना
- प्रहि—अव्य॰—प्र-हि—-—फेंकना, (तीर) चलाना (बन्दुक) दागना
- प्रहि—अव्य॰—प्र-हि—-—भेजना, प्रेषित करना @ मा॰ १, रघु॰ ८/७९, ११/४९, १२/८६, भट्टि॰ १५/१०४
- हिंस्—भ्वा॰ रुधा॰ पर॰, चुरा॰ उभ॰ < हिंसति>, <हिनस्ति>, <हिंसयति> - ते,<हिंसित>—-—-—प्रहार करना, आघात करना
- हिंस्—भ्वा॰ रुधा॰ पर॰, चुरा॰ उभ॰ < हिंसति>, <हिनस्ति>, <हिंसयति> - ते,<हिंसित>—-—-—चोट पहुँचाना, क्षति पहुँचाना, नुक़सान पहुँचाना
- हिंस्—भ्वा॰ रुधा॰ पर॰, चुरा॰ उभ॰ < हिंसति>, <हिनस्ति>, <हिंसयति> - ते,<हिंसित>—-—-—कष्ट देना, संताप देना @ मा॰ २/१
- हिंस्—भ्वा॰ रुधा॰ पर॰, चुरा॰ उभ॰ < हिंसति>, <हिनस्ति>, <हिंसयति> - ते,<हिंसित>—-—-—मार डालना, हत्या करना, विल्कुल नष्ट कर देना
- हिंसक—वि॰—-—हिंस् + ण्वुल्—हानिकर, अनिष्टकर, क्षतिकर
- हिंसकः—पुं॰—-—-—खुंखार जानवर, शिकारी जानवर
- हिंसकः—पुं॰—-—-—शत्रु
- हिंसकः—पुं॰—-—-—अथर्ववेद में निपुण ब्राह्मण
- हिंसनम्—नपुं॰—-—हिंस + ल्युट्—प्रहार करना, चोट मारना, वध करना
- हिंसना—स्त्री॰—-—हिंस + ल्युट्—प्रहार करना, चोट मारना, वध करना
- हिंसा—स्त्री॰—-—हिंस् + अ + टाप्—क्षति, उत्पात, बुराई, नुकसान, चोट(यह तीन प्रकार की मानी जाती है - कायिक, वाचिक और मानसिक)
- हिंसा—स्त्री॰—-—-—वध करना, हत्या करना, विध्वंस
- हिंसा—स्त्री॰—-—-—लुटना, डाका डालना
- हिंसात्मक—वि॰—हिंसा-आत्मक—-—हानिकर, विनाशकारी
- हिंसाकर्मन्—नपुं॰—हिंसा-कर्मन्—-—कोई भी हानिकर या क्षति पहुँचाने वाला कृत्य
- हिंसाकर्मन्—नपुं॰—हिंसा-कर्मन्—-—शत्रु का नाश करने में प्रयुक्त जादू, अभिचार
- हिंसप्राणिन्—वि॰—हिंसा-प्राणिन्—-—अनिष्टकर जंतु
- हिंसारत—वि॰—हिंसा-रत—-—उत्पात में संलग्न
- हिंसारुचि—वि॰—हिंसा-रुचि—-—उत्पात करने पर तुला हुआ
- हिंसासमुद्भव—वि॰—हिंसा-समुद्भव—-—क्षति से उत्पन्न
- हिंसारुः—पुं॰—-—हिंसा + आरु—बाघ, चीता
- हिंसारुः—पुं॰—-—-—कोई भी अनिष्टकर जन्तु
- हिंसालु—वि॰—-— —हानिकर, उत्पाती, चोट पहुँचाने वाला
- हिंसालु—वि॰—-—-—घातक
- हिंसालु—वि॰—-—-—उत्पाती या जंगली कुत्ता
- हिंसालुक—वि॰—-—हिंसालु + कन्—उपद्रवी या जंगली कुत्ता
- हिंसीरः—पुं॰—-—हिंस् + ईरन्—बाघ
- हिंसीरः—पुं॰—-—-—पक्षी
- हिंसीरः—पुं॰—-—-—उपद्रवी व्यक्ति
- हिंस्य—वि॰—-—हिंस + ण्यत्—जो क्षतिग्रस्त किया जा सके या मारा जा सके
- हिंस्र—वि॰—-—हिंस् + र्—हानिकर, अनिष्टकर, उपद्रवी, पीड़ाकर, घातक
- हिंस्र—वि॰—-—-—भयंकर
- हिंस्र—वि॰—-—-—क्रूर, भीषण, बर्बर
- हिंस्रः—पुं॰—-—-—भीषण जन्तु, शिकारी जानवर
- हिंस्रः—पुं॰—-—-—विनाशक
- हिंस्रः—पुं॰—-—-—शिव
- हिंस्रः—पुं॰—-—-—भीम
- हिंस्रपशुः—पुं॰—हिंस्र-पशुः—-—शिकारी जानवर
- हिंस्रयन्त्रम्—नपुं॰—हिंस्र-यन्त्रम्—-—पिंजरा
- हिंस्रयन्त्रम्—नपुं॰—हिंस्र-यन्त्रम्—-—दुर्भावनापूर्ण अभिप्रायों के लिए प्रयुक्त होने वाला अभिचारमंत्र
- हिक्क्—भ्वा॰ उभ॰ <हिक्कति> -ते,<हिक्कित>—-—-—अस्पष्ट उच्चारण करना
- हिक्क्—भ्वा॰ उभ॰ <हिक्कति> -ते,<हिक्कित>—-—-—हिचकी लेना
- हिक्क्—चुरा॰ आ॰ <हिल्लयते>—-—-—चोट पहुँचाना, क्षतिग्रस्त करना, वध करना
- हिक्का—स्त्री॰—-—हिक्क् + अ + टाप्—अस्पष्ट ध्वनि
- हिक्का—स्त्री॰—-—-—हिचकी
- हिङ्कारः—पुं॰—-—‘हिम्’ इत्यस्य कारः—‘हिम्’ की मन्द ध्वनि करना, हुंकार भरना
- हिङ्कारः—पुं॰—-—-—बाघ
- हिङ्गु—पुं॰, नपुं॰—-—हिमं गच्छति-गम् + डु, नि॰—हींग का पौधा
- हिङ्गु—पुं॰, नपुं॰—-—-—इस् पौधे से तैयार किया गया पदार्थ जो घर में खाद्यपदार्थों में छौंक के लिए प्रयुक्त होता है
- हिङ्गुनिर्यासः—पुं॰—हिङ्गु-निर्यासः—-—हींग के वृक्ष का गोंद के रूप में रस
- हिङ्गुनिर्यासः—पुं॰—हिङ्गु-निर्यासः—-—नीम का पेड़
- हिङ्गुपत्रः—पुं॰—हिङ्गु-पत्रः—-—इंगुदी का वृक्ष
- हिङ्गुलः—पुं॰—-—हिङ्गु + ला + क—ईगुर, सिंदूर
- हिङ्गुलिः—पुं॰—-—हिङ्गु + ला + कि—ईगुर, सिंदूर
- हिङ्गुलुः—पुं॰, नपुं॰—-—हिङ्गु + ला + डु—ईगुर, सिंदूर
- हिञ्जीरः—पुं॰ —-—-—हाथी के पैरों को बाँधने की बेड़ी या रस्सी
- हिडिम्बः—पुं॰ —-—-—वह राक्षस जिसे भीम ने मारा था
- हिडिम्बाः—स्त्री॰—-—-—हिडिंब की बहन जिसने भीम से विवाह कर लिया था
- हिडिम्बजित्—वि॰—हिडिम्बः-जित्—-—भीम के विशेषण
- हिडिम्बनिषूदन—वि॰—हिडिम्बः-निषूदन्—-—भीम के विशेषण
- हिडिम्बभिद्—वि॰—हिडिम्बः-भिद्—-—भीम के विशेषण
- हिडिम्बरिपु—पुं॰—हिडिम्बः-रिपु—-—भीम के विशेषण
- हिण्ड्—भ्वा॰ आ॰<हिण्डते>,< हिण्डित>—-—-—जाना, घूमना, इधर उधर फिरना
- हिण्डा—स्त्री॰—-—-—घूमना, या इधर उधर फिरना
- हिण्डनम्—नपुं॰—-—-—घूमना, इधर उधर फिरना
- हिण्डनम्—नपुं॰—-—-—संभोग
- हिण्डनम्—नपुं॰—-—-—लेखन
- हिण्डिकः—पुं॰—-—हिण्ड् + इन्= हिण्डि + कन्—ज्योतिषी
- हिण्डिरः—पुं॰—-—हिण्ड् + इरन्—समुद्रझाग
- हिण्डिरः—पुं॰—-—-—पुरुष, मर्द
- हिण्डिरः—पुं॰—-—-—बैंगन
- हिण्डिडी—स्त्री॰—-—हिण्ड् + ईरन्—समुद्रझाग
- हिण्डिडी—स्त्री॰—-—-—पुरुष, मर्द
- हिण्डिडी—स्त्री॰—-—-—बैंगन
- हिण्डी—स्त्री॰—-—हिड् + इन् + ङीप्—दुर्गा
- हित—वि॰—-—धा (हि) क्त—रखा हुआ, डाला हुआ
- हित—वि॰—-—-—थामा हुआ, लिया हुआ
- हित—वि॰—-—-—उपयुक्त, योग्य, समुचित, अच्छा (सप्र॰ के साथ)
- हित—वि॰—-—-—उपयोगी, लाभदायक
- हित—वि॰—-—-—हितकारी, लाभप्रद, संपूर्ण, स्वास्थ्यवर्धक (शब्द या भोजन आदि)
- हित—वि॰—-—-—मित्रवत्, कृपालु, स्नेही, सद्वृत्त (प्रायः अर्धि॰ के साथ)
- हितः—वि॰—-—-—मित्र, परोपकारी, मित्र जैसा परामर्शदाता
- हितम्—नपुं॰—-—-—उपकार, लाभ, फ़ायदा
- हितम्—नपुं॰—-—-—कोई भी उपयुक्त या समुचित <बात>
- हितम्—नपुं॰—-—-—कल्याण, कुशल, क्षेम
- हितानुबन्धिन्—वि॰—हित-अनुबन्धिन्—-—कल्याणप्रद
- हितान्वेषिन्—वि॰—हित-अन्वेषिन्—-—कुशलाभिलाषी
- हितार्थिन्—वि॰—हित-अर्थिन्—-—कुशलाभिलाषी
- हितेच्छा—स्त्री—हित-इच्छा—-—सदिच्छा, मंगलकामना
- हितोक्तिः—स्त्री—हित-उक्तिः—-—आरोग्यवर्धक <निदेश>, <सत्परामर्श>, नेक <सलाह>
- हितोपदेश—पुं॰—हित-उपदेश—-—हितकर उपदेश, सत्परामर्श, नेक सलाह
- हितैषिन्—वि॰—हित-एषिन्—-—हितेच्छु, भला चाहने वाला, परोपकारी
- हितकर—वि॰—हित-कर—-—सेवा या कृपापूर्ण कार्य करने वाला, मित्रसा व्यवहार करने वाला, अनुकूल
- हितकाम—वि॰—हित-काम—-—हितेच्छु, मगंलाकांक्षी
- हितकाम्या—स्त्री॰—हित-काम्या—-—दूसरे की मंगलकामना, सदिच्छा
- हितकारिन्—पुं॰—हित-कारिन्—-—परोपकारी
- हितकृत—पुं॰—हित-कृत—-—परोपकारी
- हितप्रणी—पुं॰—हित-प्रणी—-—गुप्तचर
- हितबुद्धि—वि॰—हित-बुद्धि—-—मित्र से मन वाला, सद्भावनापूर्ण
- हितवाक्यम्—पुं॰—हित-वाक्यम्—-—मैत्रीपूर्ण परामर्श
- हितवादिन्—पुं॰—हित-वादिन्—-—सत्परामर्श देने वाला
- हितकः—पुं॰—-—हित + क—बच्चा
- हितकः—पुं॰—-—-—किसी पशु का शावक
- हिन्तालः—पुं॰—-—हीनस्तालो यस्मात्-पृषो॰—एक प्रकार का खजूर
- हिन्दोलः—पुं॰—-—हिल्लोल् + घञ् पृषो॰—हिंडोल, झुला
- हिन्दोलः—पुं॰—-—-—श्रावण के शुक्ल पक्ष में दोलोत्सव के अवसर पर कृष्ण भगवान् की मूर्तियों को ले जाने वाला हिंडोल, या दोलोत्सव
- हिन्दोलकः—पुं॰—-—हिन्दोल + कन्—झूला, हिंडोला
- हिन्दोला—स्त्री॰—-—हिन्दोल + टाप् वा—झूला, हिंडोला
- हिम—वि॰—-—हि + मक्—ठंडा, शीतल, सर्द, तुषारयुक्त, ओसीला
- हिमः—पुं॰—-—-—जाड़े की मौसम, सर्द ऋतु
- हिमः—पुं॰—-—-—चंद्रमा
- हिमः—पुं॰—-—-—हिमालय पर्वत
- हिमः—पुं॰—-—-—चन्दन का पेड़
- हिमः—पुं॰—-—-—कपूर
- हिमम्—नपुं॰—-—-—कुहरा, पाला
- हिमम्—नपुं॰—-—-—बर्फ़, पाला
- हिमम्—नपुं॰—-—-—सर्दी,ठंडक
- हिमम्—नपुं॰—-—-—कमल
- हिमम्—नपुं॰—-—-—ताजा मक्खन
- हिमम्—नपुं॰—-—-—मोती
- हिमम्—नपुं॰—-—-—रात
- हिमम्—नपुं॰—-—-—चन्दन की लकड़ी
- हिमांशु—पुं॰—हिम-अंशु—-—चन्द्रमा
- हिमांशु—पुं॰—हिम-अंशु—-—कपूर
- हिमाभिख्यम्—नपुं॰—हिम-अभिख्यम्—-—चाँदी
- हिमाचलः—पुं॰—हिम-अचलः—-—हिमालय पहाड़
- हिमाद्रिः—पुं॰—हिम-अद्रिः—-—हिमालय पहाड़
- हिमजा—स्त्री॰—हिम-जा—-—पार्वती
- हिमजा—स्त्री॰—हिम-जा—-—गंगा
- हिमतनया—स्त्री॰—हिम-तनया—-—पार्वती
- हिमतनया—स्त्री॰—हिम-तनया—-—गंगा
- हिमाम्बु—नपुं॰—हिम-अम्बु—-—शीतल जल
- हिमाम्बु—नपुं॰—हिम-अम्बु—-—ओस
- हिमाम्भस्—नपुं॰—हिम-अम्भस्—-—शीतल जल
- हिमाम्भस्—नपुं॰—हिम-अम्भस्—-—ओस
- हिमानिलः—पुं॰—हिम-अनिलः—-—शीतल वायु
- हिमाब्जम्—नपुं॰—हिम-अब्जम्—-—कमल
- हिमारातिः—पुं॰—हिम-अरातिः—-—आग
- हिमारातिः—पुं॰—हिम-अरातिः—-—सूर्य
- हिमागमः—पुं॰—हिम-आगमः—-—जाड़े का मौसम या सर्द ऋतु
- हिमार्तः—वि॰—हिम-आर्तः—-—पाले से ठिठुरा हुआ, ठंड से जमा हुआ
- हिमालयः—पुं॰—हिम-आलयः—-—हिमालय पहाड़
- हिमसुता—स्त्री॰—हिम-सुता—-—पार्वती का विशेषण
- हिमाह्वः—पुं॰—हिम- आह्वः—-—कर्पूर
- हिमाह्वयः—पुं॰—हिम- आह्वयः—-—कर्पूर
- हिमोस्रः—पुं॰—हिम-उस्रः—-—चन्द्रमा
- हिमकरः—पुं॰—हिम-करः—-—चाँद
- हिमकरः—पुं॰—हिम-करः—-—कर्पूर
- हिमकूटः—पुं॰—हिम-कूटः—-—जाड़े की ऋतु
- हिमकूटः—पुं॰—हिम-कूटः—-—हिमालय पहाड़
- हिमगिरिः—पुं॰—हिम-गिरिः—-—हिमालय पहाड़
- हिमगुः—पुं॰—हिम-गुः—-—चाँद
- हिमजः—पुं॰—हिम-जः—-—मैनाक पर्वत
- हिमजा—स्त्री॰—हिम-जा—-—खिरनी का पेड़
- हिमजा—स्त्री॰—हिम-जा—-—पार्वती
- हिमतैलम्—नपुं॰—हिम-तैलम्—-—एक प्रकार की कपूर की मल्हम
- हिमदीधितिः—पुं॰—हिम-दीधितिः—-—चन्द्रमा
- हिमदुर्दिनम्—नपुं॰—हिम-दुर्दिनम्—-—अति ठंड से कष्टदायक दिन, ठंड और बुरा मौसम
- हिमद्युतिः—पुं॰—हिम-द्युतिः—-—चन्द्रमा
- हिमद्रुह—पुं॰—हिम-द्रुह—-—सूर्य
- हिमध्वस्त—वि॰—हिम-ध्वस्त—-—पाले से मारा हुआ, कुतरा हुआ या नष्ट हुआ
- हिमप्रस्थः—पुं॰—हिम-प्रस्थः—-—हिमालय पहाड़
- हिमरश्मि—पुं॰—हिम-रश्मि—-—चाँद
- हिमबालुका—स्त्री॰—हिम-बालुका—-—कपू्यर
- हिमशीतल—वि॰—हिम-शीतल—-—बर्फ की भांति ठंडा
- हिमशैलः—पुं॰—हिम-शैलः—-—हिमालय पहाड़
- हिमसंहतिः—स्त्री॰—हिम-संहतिः—-—बर्फ़ का ढेर
- हिमसरस्—वि॰—हिम-सरस्—-—बर्फ़ की झील, ठंडा पानी
- हिमहासकः—पुं॰—हिम-हासकः—-—दलदल में होने वाला खजूर का पेड़
- हिमवत्—वि॰—-—हिम + मतुप्—हिममय, वर्फीला, कुहरा से युक्त
- हिमवत्—पुं॰—-—-—हिमालय पहाड़
- हिमवत्कुक्षीः—स्त्री॰—हिमवत्-कुक्षीः—-—हिमालय पर्वत की घाटी
- हिमवत्पुरम्—नपुं॰—हिमवत्-पुरम्—-—हिमालय की राजधानी ओषधिप्रस्थ का नाम
- हिमवत्सुतः—पुं॰—हिमवत्-सुतः—-—मैनाक पर्वत
- हिमवत्सुता—स्त्री॰—हिमवत्-सुता—-—पार्वती
- हिमवत्सुता—स्त्री॰—हिमवत्-सुता—-—गंगा
- हिमानी—स्त्री॰—-—महद् हिमम्, हिम + ङीप् आनुक्—बर्फ़ का ढेर, हिम का समूह, हिमसंहति
- हिरणम्—नपुं॰—-—हृ + ल्युट्, नि॰—सोना
- हिरणम्—नपुं॰—-—-—वीर्य
- हिरणम्—नपुं॰—-—-—कौड़ी
- हिरण्मय—वि॰—-—हिरण + मयट् नि॰—सोने का बना हुआ, सुनहरी
- हिरण्मयः—पुं॰—-—-—ब्रह्मा देवता
- हिरण्यम्—नपुं॰—-—हिरणमेव स्वार्थे यत्—सोना
- हिरण्यम्—नपुं॰—-—-—सोने का पात्र
- हिरण्यम्—नपुं॰—-—-—चाँदी
- हिरण्यम्—नपुं॰—-—-—कोई भी मूल्यवान् धातु
- हिरण्यम्—नपुं॰—-—-—दौलत, संपत्ति
- हिरण्यम्—नपुं॰—-—-—वीर्य, शुक्र
- हिरण्यम्—नपुं॰—-—-—कौड़ी
- हिरण्यम्—नपुं॰—-—-—एक विशेष माप
- हिरण्यम्—नपुं॰—-—-—सारांश
- हिरण्यम्—नपुं॰—-—-—धतूरा
- हिरण्यकक्ष—वि॰—हिरण्यम्-कक्ष—-—सुनहरी करधनी पहनने वाला
- हिरण्यकशिपुः—पुं॰—हिरण्यम्-कशिपुः—-—राक्षसों के एक प्रसिद्ध राजा का नाम
- हिरण्यकोशः—पुं॰—हिरण्यम्-कोशः—-—सोना और चाँदी(चाहे आभूषण बने हों या बिना गढ़ा सोना चाँदी)
- हिरण्यगर्भः—पुं॰—हिरण्यम्-गर्भः—-—ब्रह्मा (क्योंकि वह सोने के अंड़े से पैदा हुआ)
- हिरण्यगर्भः—पुं॰—हिरण्यम्-गर्भः—-—विष्णु का नाम
- हिरण्यगर्भः—पुं॰—हिरण्यम्-गर्भः—-—सूक्ष्मशरीर धारण करने वाली आत्मा
- हिरण्यद—वि॰—-—-—सुवर्ण देने वाला
- हिरण्यदः—पुं॰—-—-—समुद्र
- हिरण्यदा—स्त्री॰—-—-—पृथ्वी
- हिरण्यनाभः—पुं॰—हिरण्यम्-नाभः—-—मैनाक पहाड़
- हिरण्यबाहुः—पुं॰—हिरण्यम्-बाहुः—-—शिव का विशेषण
- हिरण्यबाहुः—पुं॰—हिरण्यम्-बाहुः—-—सोन नदी
- हिरण्यरेतस्—पुं॰—हिरण्यम्-रेतस्—-—आग
- हिरण्यरेतस्—पुं॰—हिरण्यम्-रेतस्—-—सूर्य
- हिरण्यरेतस्—पुं॰—हिरण्यम्-रेतस्—-—शिव
- हिरण्यरेतस्—पुं॰—हिरण्यम्-रेतस्—-—चित्रक या मदार का पौधा
- हिरण्यवर्णा—स्त्री॰—हिरण्यम्-वर्णा—-—नदी
- हिरण्यवाहः—पुं॰—हिरण्यम्-वाहः—-—सोन दरिया
- हरिण्यय—वि॰—-—हिरण्य + मयट्, नि॰ मलोपः—सुनहरी
- हिरुक्—अव्य॰—-—हि॰ + उकिक्, रुट्—के बिना, के सिवाय
- हिरुक्—अव्य॰—-—-—में, बीच में
- हिरुक्—अव्य॰—-—-—निकट
- हिरुक्—अव्य॰—-—-—नीचे
- हिल्—तुदा॰ पर॰ <हिलति>—-—-—केलिक्रीड़ा करना, स्वेच्छा से रमण करना, प्रेमालिंगन करना, कामेच्छा प्रकट करना
- हिल्लः—पुं॰—-—हिल् + लक्—एक प्रकार का पक्षी
- हिल्लोलः—पुं॰—-—हिल्लोल् + अच्—लहर, झाल
- हिल्लोलः—पुं॰—-—-—हिंडोल राग
- हिल्लोलः—पुं॰—-—-—धुन, सनक
- हिल्लोलः—पुं॰—-—-—एक रतिबंध
- हिल्वलाः—स्त्री॰, ब॰, व॰—-—इल्वला, पृषो॰—मृगशिरा नक्षत्र के शिर के पास के पाँच छोटे तारे
- ही—अव्य॰—-—हि + डी—आश्चर्य प्रकट करने वाला अव्यय
- ही—अव्य॰—-—-—थकावट, उदासी, खिन्नता तर्क
- हीन—भू॰ क॰ कृ॰—-—हा +क्त, तस्य नः ईत्वम्—छोड़ा हुआ, परित्यक्त, त्यागा हुआ
- हीन—भू॰ क॰ कृ॰—-—-—रहित, वञ्चित,वियुक्त, के विना (करण॰ या समास में)
- हीन—भू॰ क॰ कृ॰—-—-—मुर्झाया हुआ, बर्बाद
- हीन—भू॰ क॰ कृ॰—-—-—त्रुटिपूर्ण, सदोष
- हीन—भू॰ क॰ कृ॰—-—-—घटाया हुआ
- हीन—भू॰ क॰ कृ॰—-—-—कम, निम्नतर
- हीन—भू॰ क॰ कृ॰—-—-—नीच, अधम, कमीना, दुष्ट
- हीनः—पुं॰—-—-—सदोष गवाह
- हीनः—पुं॰—-—-—अपराधी प्रतिवादी
- हीनाङ्ग—वि॰—हीन-अङ्ग—-—अंग हीन, विकलांग, अपाहज, सदोष
- हीनकुल—वि॰—हीन-कुल—-—ओछे कुल में उत्पन्न, नीच परिवार का
- हीनजा—वि॰—हीन-जा—-—ओछे कुल में उत्पन्न, नीच परिवार का
- हीनर्तु—वि॰—हीन-ऋतु—-—जो अपने यज्ञानुष्ठान में अवहेलना करता है
- हीनजाति—वि॰—हीन-जाति—-—नीच जाति का
- हीनजाति—वि॰—हीन-जाति—-—जाति से वहिष्कृत, बिरादरी से खारिज, पतित
- हीनयोनि—स्त्री॰—हीन-योनि—-—नीची कोटि का जन्मस्थान
- हीनवर्ण—वि॰—हीन-वर्ण—-—नीच जाति का
- हीनवर्ण—वि॰—हीन-वर्ण—-—घटिया दर्जे का
- हीनवादिन्—वि॰—हीन-वादिन्—-—सदोष बयान देने वाला
- हीनवादिन्—वि॰—हीन-वादिन्—-—अपलापी
- हीनवादिन्—वि॰—हीन-वादिन्—-—मूक
- हीनसख्यम्—नपुं॰—हीन-सख्यम्—-—नीच व्यक्तियों से मेलजोल
- हीनसेवा—स्त्री॰—हीन-सेवा—-—नीच व्यक्तियों की टहल करना
- हीन्तालः—पुं॰—-—हीनस्तालो यस्मात्-पृषो॰—दलदल में होने वाला खजूर का वृक्ष
- हीरः—पुं॰—-—हृ + क, नि॰—साँप
- हीरः—पुं॰—-—-—हार
- हीरः—पुं॰—-—-—सिंह
- हीरः—पुं॰—-—-—`नैषध चरितं' काव्य के रचयिता श्री हर्ष के पिता का नाम
- हीरः—पुं॰—-—-—इन्द्र का बज्र
- हीरः—पुं॰—-—-—हीरा, (नैषधचरित के प्रत्येक सर्ग के अन्तिम श्लोक में आने वाला)
- हीरम्—नपुं॰—-—-—इन्द्र का बज्र
- हीरम्—नपुं॰—-—-—हीरा, (नैषधचरित के प्रत्येक सर्ग के अन्तिम श्लोक में आने वाला)
- हीराङ्गः—पुं॰—हीरः-अङ्गः—-—इन्द्र का बज्र
- हीरकः—पुं॰—-—हीर + कन्—हीरा
- हीरा—स्त्री॰—-—हीर + टाप्—लक्ष्मी का विशेषण
- हीरा—स्त्री॰—-—-—चिऊँटी
- हीलम्—नपुं॰—-—ही विस्मयं लाति ला + क—पौरुषेय वीर्य
- हीही—अव्य॰—-—ही + ही—आश्चर्य और प्रमोद को प्रकट करने वाला अव्यय
- हु—जुहो॰ पर॰ <जुहोति> हुत- कर्मवा॰ <हूयते>, प्रेर॰ <हावयति>- ते, इच्छा॰ <जूहूषति>—-—-—(हवनकुंड में आहुति के रूप में) प्रस्तुत करना, किसी देवता के सम्मान में भेंट देना (कर्म॰ के साथ), यज्ञ करना
- हु—जुहो॰ पर॰ <जुहोति> हुत- कर्मवा॰ <हूयते>, प्रेर॰ <हावयति>- ते, इच्छा॰ <जूहूषति>—-—-—यज्ञ का अनुष्ठान करना
- हु—जुहो॰ पर॰ <जुहोति> हुत- कर्मवा॰ <हूयते>, प्रेर॰ <हावयति>- ते, इच्छा॰ <जूहूषति>—-—-—खाना
- हुड्—भ्वा॰ पर॰ <होडति>—-—-—जाना
- हुड्—तुदा॰ पर॰ <हुडति>—-—-—संचय करना
- हुडः—पुं॰—-—हुड् + क—मेढ़ा
- हुडः—पुं॰—-—-—चोरों को दूर रखने के लिए लोहे का कांटा
- हुडः—पुं॰—-—-—एक प्रकार की बाड़
- हुडः—पुं॰—-—-—लोहे का मुद्गर
- हुडुः—पुं॰—-—हुड् + कु॰—मेढ़ा
- हुडुक्कः—पुं॰—-—हुड् + उक्क—बालू की घड़ी के आकार का बना एक छोटा ढोल
- हुडुक्कः—पुं॰—-—-—एक प्रकार का पक्षी, दात्यूह
- हुडुक्कः—पुं॰—-—-—दरवाज़े की कुंडी
- हुडुक्कः—पुं॰—-—-—नशे में चूर पुरुष
- हुडुत्—नपुं॰—-—हुड् + उति—साँड का रांभना
- हुडुत्—नपुं॰—-—-—धमकी का शब्द
- हुण्डः—पुं॰—-—हुण्ड् + क—व्याघ्र
- हुण्डः—पुं॰—-—-—मेढ़ा
- हुण्डः—पुं॰—-—-—बुद्धू
- हुण्डः—पुं॰—-—-—ग्रामशूकर
- हुण्डः—पुं॰—-—-—राक्षसों के एक प्रसिद्ध राजा का नाम
- हुत—भू॰ क॰ कृ॰—-—हु + क्त—आहुति के रूप में आग में डाला हुआ, यज्ञीय भेंट के रूप में होम किया हुआ
- हुत—भू॰ क॰ कृ॰—-—-—जिसे आहुति दी जाय
- हुतः—पुं॰—-—-—शिव का नाम
- हुतम्—नपुं॰—-—-—आहुति, चढ़ावा
- हुताग्नि—वि॰—हुत-अग्नि—-—जिसने अग्नि में आहुति डाली है
- हुताशनः—पुं॰—हुत-अशनः—-—अग्नि
- हुताशनः—पुं॰—हुत-अशनः—-—शिव का नाम
- हुतसहायः—पुं॰—हुत-सहायः—-—शिव का विशेषण
- हुताशनी—स्त्री॰—हुत-अशनी—-—फाल्गुन मास की पूर्णिमा, होलिका
- हुताशः—पुं॰—हुत-आशः—-—आग
- हुतजातवेदस्—वि॰—हुत-जातवेदस्—-—जिसने अग्नि में आहुति दी है
- हुतभुज्—पुं॰—हुत-भुज्—-—आग
- हुतप्रिया—स्त्री॰—हुत-प्रिया—-—अग्नि की पत्नी स्वाहा
- हुतवह्ः—पुं॰—हुत-वहः—-—आग
- हुतहोमः—पुं॰—हुत-होमः—-—वह ब्राह्मण जिसने आग में आहुति दी है
- हुतमम्—नपुं॰—हुत-मम्—-—जला हुआ शाकल्य
- हुम्—अव्य॰—-—हु + डुमि—याद, प्रत्यास्मरण
- हुम्—अव्य॰—-—-—सन्देह
- हुम्—अव्य॰—-—-—स्वीकृति
- हुम्—अव्य॰—-—-—रोष
- हुम्—अव्य॰—-—-—अरुचि
- हुम्—अव्य॰—-—-—भर्त्सना
- हुम्—अव्य॰—-—-—प्रश्नवाचकता
- हुङ्कृ——-—-—‘हुम्’ की ध्वनि करना, दहाड़ना, चिघाड़ना, रांभना
- अनुहुङ्कृ——अनु-हुङ्कृ—-—बदले में हुम् की ध्वनि करना
- हुङ्कारः—स्त्री॰—हुम्-कारः—-—‘हुम्’ की ध्वनि करना
- हुङ्कारः—पुं॰—हुम्-कारः—-—गर्जना, ललकार
- हुङ्कारः—पुं॰—हुम्-कारः—-—दहाड़ना, रांभना
- हुङ्कारः—पुं॰—हुम्-कारः—-—सूअर का घुर्घुराना
- हुङ्कारः—पुं॰—हुम्-कारः—-—धनुष की टंकार
- हुङ्कृतिः—स्त्री॰—हुम्-कृतिः—-—‘हुम्’ की ध्वनि करना
- हुङ्कृतिः—स्त्री॰—हुम्-कृतिः—-—गर्जना, ललकार
- हुङ्कृतिः—स्त्री॰—हुम्-कृतिः—-—दहाड़ना, रांभना
- हुङ्कृतिः—स्त्री॰—हुम्-कृतिः—-—सूअर का घुर्घुराना
- हुङ्कृतिः—स्त्री॰—हुम्-कृतिः—-—धनुष की टंकार
- हुर्छ्—भ्वा॰ पर॰ <हूर्छति>—-—-—टेढ़ा होना
- हुल्—भ्वा॰ पर॰ <होलसि>—-—-—जाना
- हुल्—भ्वा॰ पर॰ <होलसि>—-—-—ढांपना, छिपाना
- हुलहुली—स्त्री॰—-—हुल् + क, द्वित्वम्, ङीष् च—हर्ष के अवसरों पर महिलाओं द्वारा उच्चारण की जाने वाली एक अस्पष्ट हर्षध्वनि
- हुहुम्—पुं॰—-—ह्वे + डु, नि॰—एक गन्धर्व विशेष
- हुहूम्—पुं॰—-—ह्वे + डु, नि॰—एक गन्धर्व विशेष
- हुडू—भ्वा॰ आ॰ <हूडते>—-—-—जाना
- हुणः—पुं॰—-—ह्वे + नक्, सम्प्र॰, पृषो॰ णत्वम्—असभ्य, जंगली, विदेशी
- हुणः—पुं॰—-—-—एक सोने का सिक्का
- हुनः—पुं॰—-—ह्वे + नक्, सम्प्र॰—असभ्य, जंगली, विदेशी
- हुनः—पुं॰—-—-—एक सोने का सिक्का
- हूणाः—पुं॰, ब॰ व॰—-—-—एक देश या उसके अधिवासियों का नाम
- हूत—भू॰ क॰ कृ॰—-—ह्वे + क्त संप्रसारणम्—आमन्त्रित, बुलाया गया, निमन्त्रित
- हूतिः—स्त्री॰—-—ह्वे + क्तिन्, संप्र॰—बुलावा,निमंत्रण
- हूतिः—स्त्री॰—-—-—चुनौती
- हूतिः—स्त्री॰—-—-—नाम
- हूरवः—पुं॰—-—हू इति रवो यस्य- ब॰ स॰—गीदड़
- हूहू—पुं॰—-—हुहू पृषो॰—गन्धर्व विशेष
- हृ—भ्व॰ उभ॰ <हरति> ते<हृत>, कर्मवा॰ <ह्रियते>—-—-—लेना, ढोना, पहुँचाना, आगे आगे चलना(इस अर्थ में बहुधा द्विकर्मक प्रयोग)
- हृ—भ्व॰ उभ॰ <हरति> ते<हृत>, कर्मवा॰ <ह्रियते>—-—-—उठाकर ले जाना, अपहरण करना, दूरी पर ले जाना
- हृ—भ्व॰ उभ॰ <हरति> ते<हृत>, कर्मवा॰ <ह्रियते>—-—-—अपहरण करना, लूटना, डाका डालना, चुराना
- हृ—भ्व॰ उभ॰ <हरति> ते<हृत>, कर्मवा॰ <ह्रियते>—-—-—विवस्त्र करना, वञ्चित करना, छीन लेना, अपहरण करना
- हृ—भ्व॰ उभ॰ <हरति> ते<हृत>, कर्मवा॰ <ह्रियते>—-—-—ले जाना, प्रतिकार करना, नष्ट करना
- हृ—भ्व॰ उभ॰ <हरति> ते<हृत>, कर्मवा॰ <ह्रियते>—-—-—आकृष्ट करना, मुग्ध करना, जीत लेना, प्रभाव डालना, अधीन करना, वशीभूत करना
- हृ—भ्व॰ उभ॰ <हरति> ते<हृत>, कर्मवा॰ <ह्रियते>—-—-—उपलब्ध करना, ग्रहण करना, लेना, प्राप्त करना
- हृ—भ्व॰ उभ॰ <हरति> ते<हृत>, कर्मवा॰ <ह्रियते>—-—-—रखना, अधिकार में करना
- हृ—भ्व॰ उभ॰ <हरति> ते<हृत>, कर्मवा॰ <ह्रियते>—-—-—पराभूत करना, ग्रस्त करना
- हृ—भ्व॰ उभ॰ <हरति> ते<हृत>, कर्मवा॰ <ह्रियते>—-—-—विवाह करना
- हृ—भ्व॰ उभ॰, प्रेर॰ —-—-—बांटना
- हृ—भ्व॰ पर॰, प्रेर॰<हारयति>—-—-—उड़वा देना, ढुवाना, पहुँचाना, (कोई चीज़) किसी के हाथ भिजवाना (करण॰ के कर्म॰ के साथ)
- हृ—भ्व॰ पर॰, प्रेर॰<हारयति>—-—-—अपहृत करवाना, नष्ट करवाना, वञ्चित होना
- हृ—भ्व॰ पर॰, प्रेर॰<हारयति>—-—-—पुरस्कार देना
- हृ—भ्व॰ पर॰, प्रेर॰<हारयति>—-—-—उड़वा देना, ढुवाना, पहुँचाना, (कोई चीज़) किसी के हाथ भिजवाना (करण॰ के कर्म॰ के साथ)
- हृ—भ्व॰ पर॰, प्रेर॰<हारयति>—-—-—अपहृत करवाना, नष्ट करवाना, वञ्चित होना
- हृ—भ्व॰ पर॰, प्रेर॰<हारयति>—-—-—पुरस्कार देना
- हृ—भ्व॰ पर॰, इच्छा॰ <जिहीर्षति>—-—-—लेने की इच्छा करना
- हृ—भ्व॰ पर॰, इच्छा॰ <जिहीर्षति>—-—-—लेने की इच्छा करना
- अध्याहृ—भ्व॰ उभ॰—अध्या-हृ—-—न्यूनपद की पूर्ति करना
- अनुहृ—भ्व॰ उभ॰—अनु-हृ—-—नक़ल करना, मिलना-जुलना
- अनुहृ—भ्व॰ उभ॰—अनु-हृ—-—(अपने माता पिता से) मिलना-जुलना
- अपहृ—भ्व॰ उभ॰—अप-हृ—-—छीन लेना, उड़ा लेना
- अपहृ—भ्व॰ उभ॰—अप-हृ—-—पराङमुख होना, मुड़ना
- अपहृ—भ्व॰ उभ॰—अप-हृ—-—लूटना,डाका डालना, चुराना
- अपहृ—भ्व॰ उभ॰—अप-हृ—-—(किसी को) वञ्चित करना, दूर करना, नष्ट करना
- अपहृ—भ्व॰ उभ॰—अप-हृ—-—आकृष्ट करना, प्रभावित करना, जोर डालना, जीत लेना, वशीभूत करना
- अपहृ—भ्व॰ पर॰, प्रेर॰—अप-हृ—-—(दूसरों से) अपहरण करवाना
- अभिहृ—भ्व॰ उभ॰—अभि-हृ—-—उठाकर ले जाना, हटाना,
- अभ्यवहृ—भ्व॰ पर॰, प्रेर॰—अभ्यव-हृ—-—खाना खिलाना, भोजन करना
- आहृ—भ्व॰ उभ॰—आ-हृ—-—लाना, ले आना
- आहृ—भ्व॰ उभ॰—आ-हृ—-—ढोना, पहुँचाना
- आहृ—भ्व॰ उभ॰—आ-हृ—-—निकट लाना, देना
- आहृ—भ्व॰ उभ॰—आ-हृ—-—प्राप्त करना, लेना, हासिल करना
- आहृ—भ्व॰ उभ॰—आ-हृ—-—रखना, धारण करना
- आहृ—भ्व॰ उभ॰—आ-हृ—-—(यज्ञ का) अनुष्ठान करना
- आहृ—भ्व॰ उभ॰—आ-हृ—-—वसूल करना, वापिस लेना
- आहृ—भ्व॰ उभ॰—आ-हृ—-—कारण बनना, पैदा करना, जन्म देना
- आहृ—भ्व॰ उभ॰—आ-हृ—-—पहनना, धारण करना
- आहृ—भ्व॰ उभ॰—आ-हृ—-—आकृष्ट करना
- आहृ—भ्व॰ उभ॰—आ-हृ—-—हटाना, दूर करना
- आहृ—भ्व॰ पर॰, प्रेर॰—आ-हृ—-—मंगवाना
- आहृ—भ्व॰ उभ॰—आ-हृ—-—दिलवाना
- आहृ—भ्व॰ उभ॰—आ-हृ—-—एकत्र करना, परस्पर मिलना
- उद्धृ—भ्व॰ उभ॰—उद्-हृ—-—बचाना, मुक्त करना, उद्धार करना, छुड़ाना
- उद्धृ—भ्व॰ उभ॰—उद्-हृ—-—खींचना, बाहर निकालना
- उद्धृ—भ्व॰ उभ॰—उद्-हृ—-—उन्मूलन करना, जड़ से उखाड़ना, उद्धार करना
- उद्धृ—भ्व॰ उभ॰—उद्-हृ—-—उठाना, ऊपर को करना, उन्नत करना, (हाथ आदि) फैलाना
- उद्धृ—भ्व॰ उभ॰—उद्-हृ—-—(फूल आदि) तोड़ना
- उद्धृ—भ्व॰ उभ॰—उद्-हृ—-—अवशोषण करना
- उद्धृ—भ्व॰ उभ॰—उद्-हृ—-—घटाना, व्यवकलन करना
- उद्धृ—भ्व॰ उभ॰—उद्-हृ—-—छांटना, चुनना, उद्धृत करना
- उद्धृ—भ्व॰ पर॰, प्रेर॰—उद्-हृ—-—बाहर निकलवाना
- उदाहृ—भ्व॰ उभ॰—उदा-हृ—-—वर्णन करना, वयान करना, प्रकथन करना, कहना बोलना, उच्चारण करना
- उदाहृ—भ्व॰ उभ॰—उदा-हृ—-—पुकारना, नाम लेना
- उदाहृ—भ्व॰ उभ॰—उदा-हृ—-—सचित्र बनाना, सोदाहरण निरूपण करना, उदाहरण या चित्र उद्धृत करना
- उपहृ—भ्व॰ उभ॰—उप-हृ—-—ले आना, निकट लानो
- उपहृ—भ्व॰ उभ॰—उप-हृ—-—प्रस्तुत करना, प्रदान करना, उपहार देना
- उपहृ—भ्व॰ उभ॰—उप-हृ—-—(बलि के रूप में) प्रस्तुत करना
- उपाहृ—भ्व॰ उभ॰—उपा-हृ—-—लाना, ले आना
- निर्हृ—भ्व॰ उभ॰—निस्-हृ—-—बाहर निकालना, खींचना, उद्धृत करना
- निर्हृ—भ्व॰ उभ॰—निस्-हृ—-— शव को बाहर निकालना
- निर्हृ—भ्व॰ उभ॰—निस्-हृ—-—(दोष की भांति) दूर करना
- परिहृ—भ्व॰ उभ॰—परि-हृ—-—बचना, दूर रहना
- परिहृ—भ्व॰ उभ॰—परि-हृ—-—त्यागना, परित्यक्त करना, छोड़ना, तिलांजलि देना
- परिहृ—भ्व॰ उभ॰—परि-हृ—-—हटा]ना, नष्ट करना, उत्तर देना, प्रत्याख्यान करना(आक्षेप व आरोप आदि का)
- प्रहृ—भ्व॰ उभ॰—प्र-हृ—-—प्रहार करना, आघात करना, पीटना
- प्रहृ—भ्व॰ उभ॰—प्र-हृ—-—चोट पहुँचाना, क्षतिग्रस्त करना, घायल करना (अधि॰ के साथ)
- प्रहृ—भ्व॰ उभ॰—प्र-हृ—-—आक्रमण करना, हमला करना
- प्रहृ—भ्व॰ उभ॰—प्र-हृ—-—फ़ेकना, डालना, प्रक्षेप करना (अधि॰ या संप्र॰ के साथ)
- प्रहृ—भ्व॰ उभ॰—प्र-हृ—-—छापा मारना
- विहृ—भ्व॰ उभ॰—वि-हृ—-—ले जाना, पकड़ कर दूर करना
- विहृ—भ्व॰ उभ॰—वि-हृ—-—हटाना, नष्ट करना
- विहृ—भ्व॰ उभ॰—वि-हृ—-—गिरने देना (आँसु आदि) ढालना
- विहृ—भ्व॰ उभ॰—वि-हृ—-—(समय) बिताना
- विहृ—भ्व॰ उभ॰—वि-हृ—-—मनोरंजन करना, आमोद-प्रमोद में व्यस्त होना, खेलना
- व्यवह्र—भ्व॰ उभ॰—व्यव-हृ—-—व्यवहार करना, व्यवसाय करना
- व्यवह्र—भ्व॰ उभ॰—व्यव-हृ—-—करना, आचरण करना, व्यापार करना
- व्यवह्र—भ्व॰ उभ॰—व्यव-हृ—-—क़ानुन की शरण जाना, कचहरी में नालिश करना
- व्याहृ—भ्व॰ उभ॰—व्या-हृ—-—बोलना, कहना, बतलाना, वर्णन करना, प्रकथन करना @ कु॰ २/६२, ६/२, रघु॰ ११/८३
- संहृ—भ्व॰ उभ॰—सम्-हृ—-—लाना, मिला कर ख़ीचना
- संहृ—भ्व॰ उभ॰—सम्-हृ—-—सिकोड़ना, संक्षिप्त करना,भींचना
- संहृ—भ्व॰ उभ॰—सम्-हृ—-—गिरा देना
- संहृ—भ्व॰ उभ॰—सम्-हृ—-—साथ साथ लाना, एकत्र करना, संचय करना
- संहृ—भ्व॰ उभ॰—सम्-हृ—-—नष्ट करना, संहार करना(विप॰ `सृज्)
- संहृ—भ्व॰ उभ॰—सम्-हृ—-—वापिस लेना, रोकना, पीछे ख़ीचना
- संहृ—भ्व॰ उभ॰—सम्-हृ—-—दमन करना, नियन्त्रण करना, दबाना
- संहृ—भ्व॰ उभ॰—सम्-हृ—-—बन्द करना, समाप्त करना
- समाहृ—भ्व॰ उभ॰—समा-हृ—-—लाना, पहुँचाना, ढोना
- समाहृ—भ्व॰ उभ॰—समा-हृ—-—संग्रह करना, साथ मिलाना, जोड़ना
- समाहृ—भ्व॰ उभ॰—समा-हृ—-—ख़ींचना, आकृष्ट करना
- समाहृ—भ्व॰ उभ॰—समा-हृ—-—नष्ट करना, संहार करना
- समाहृ—भ्व॰ उभ॰—समा-हृ—-—पूरा करना (यज्ञ आदि)
- समाहृ—भ्व॰ उभ॰—समा-हृ—-—वापिस आना, अपने उचित स्थान को फिर से प्राप्त करना
- समाहृ—भ्व॰ उभ॰—समा-हृ—-—दमन करना, नियन्त्रण करना
- हृणीयते—ना॰ घा॰ आ॰—-—-—क्रुद्ध होना
- हृणीयते—ना॰ घा॰ आ॰—-—-—लज्जित होना (करण॰ या संबं॰ के साथ)
- ह्रिणीयते—ना॰ घा॰ आ॰—-—-—क्रुद्ध होना
- ह्रिणीयते—ना॰ घा॰ आ॰—-—-—लज्जित होना (करण॰ या संबं॰ के साथ)
- हृणीया—स्त्री॰—-—हृणी + यक् +अ + टाप्—निन्दा, भर्त्सना
- हृणीया—स्त्री॰—-—हृणी + यक् +अ + टाप्—लज्जा
- हृणीया—स्त्री॰—-—हृणी + यक् +अ + टाप्—करुणा
- हृणिया—स्त्री॰—-—हृणी + यक् +अ + टाप्—निन्दा, भर्त्सना
- हृणिया—स्त्री॰—-—हृणी + यक् +अ + टाप्—लज्जा
- हृणिया—स्त्री॰—-—हृणी + यक् +अ + टाप्—करुणा
- हृत्—वि॰—-—हृ + क्विप्, तुक्—ले जाने वाला, अपहरण करने वाला, हटाने वाला, उठाकर ले वाला, आकर्षक
- हृत—भू॰ क॰ कृ॰—-—हृ + क्त—ले जाया गया
- हृत—भू॰ क॰ कृ॰—-—-—अपहरण किया गया
- हृत—भू॰ क॰ कृ॰—-—-—मुग्ध किया गया
- हृत—भू॰ क॰ कृ॰—-—-—स्वीकृत
- हृत—भू॰ क॰ कृ॰—-—-—विभक्त
- हृताधिकार—वि॰—हृत-अधिकार—-—जिसका अधिकार छीन लिया गया है, बाहर निकाला हुआ
- हृताधिकार—वि॰—हृत-अधिकार—-—अपने उचित अधिकारों से वंचित किया गया
- हृतोत्तरीय—वि॰—हृत-उत्तरीय—-—जिसका उत्तरीय वस्त्र (चादर दुपट्टा आदि) छीन लिया गया हो
- हृतद्रव्य—वि॰—हृत-द्रव्य—-—धन दौलत से वंचित
- हृतधन—वि॰—हृत-धन—-—धन दौलत से वंचित
- हृतसर्वस्व—वि॰—हृत-सर्वस्व—-—जिसका सब कुछ छीन लिया गया हो, बिल्कुल बबार्द हो गया हो
- हृतिः—स्त्री॰—-—हृ + क्तिन्—छीन लेना
- हृतिः—स्त्री॰—-—-—लूटना, खसोटना
- हृतिः—स्त्री॰—-—-—विनाश
- हृद्—नपुं॰—-—हृत्, पृषो॰ तस्य दः, हृदयस्य हृदादेशो वा —मन, दिल
- हृद्—नपुं॰—-—-—छाती दिल, सीना
- हृदावर्तः—पुं॰—हृद्-आवर्तः—-—घोड़े की छाती के बाल
- हृत्कम्पः—पुं॰—हृद्-कम्पः—-—दिल की कंपन, धड़कन
- हृद्गत—वि॰—हृद्-गत—-—मन में आसीन,सोचा हुआ, अभिकल्पित
- हृद्गत—वि॰—हृद्-गत—-—पाला-पोसा गया
- हृतम्—नपुं॰—-—-—अभिकल्पना, अर्थ, आशय
- हृददेशः—पुं॰—हृद्-देशः—-—हृदयतल
- हृतपिंडः—पुं॰—हृद्-पिंडः—-—दिल
- ह्र्ड्डम्—नपुं॰—हृद्-डम्—-—दिल
- हृदरोगः—पुं॰—हृद्-रोगः—-—दिल का रोग, दिल की जलन
- हृदरोगः—पुं॰—हृद्-रोगः—-—शोक, गम, वेदना
- हृदरोगः—पुं॰—हृद्-रोगः—-—प्रेम
- हृदरोगः—पुं॰—हृद्-रोगः—-—कुंभराशि
- हृल्लासः—पुं॰—हृद्-लासः—-—हिचकी
- हृल्लासः—पुं॰—हृद्-लासः—-—अशान्ति, शोक
- हृल्लेखः—पुं॰—हृद्-लेखः—-—ज्ञान, तर्कना
- हृल्लेखः—पुं॰—हृद्-लेखः—-—दिल की पीडा
- हृल्लेखा—स्त्री॰—हृद्-लेखा—-—शोक, चिन्ता
- हृद्वण्टक—वि॰—हृद्-वण्टक—-—पेट
- हृद्शोकः—पुं॰—हृद्-शोकः—-—हृदय की जलन, वेदना
- हृदयम्—नपुं॰—-—हृ + कयन्, दुक् आगमः—दिल, आत्मा, मन
- हृदयम्—नपुं॰—-—-—वक्षःस्थल, सीना, छाती
- हृदयम्—नपुं॰—-—-—प्रेम, अनुराग
- हृदयम्—नपुं॰—-—-—किसी चीज़ का रस या आन्तरिक भाग
- हृदयम्—नपुं॰—-—-—रहस्य विज्ञान, अश्व, अक्ष
- हृदयात्मन्—वि॰—हृदयम्-आत्मन्—-—सारस
- हृदयाविध्—वि॰—हृदयम्-आविध्—-—हृदयविदारक, दिल को बींधने वाला
- हृदयेशः—पुं॰—हृदयम्-ईशः—-—पति
- हृदयेश्वरः—पुं॰—हृदयम्-ईश्वरः—-—पति
- हृदयेशा—स्त्री॰—हृदयम्-ईशा—-—पत्नी
- हृदयेशा—स्त्री॰—हृदयम्-ईशा—-—गृहिणी
- हृदयेश्वरी—स्त्री॰—हृदयम्-ईश्वरी—-—पत्नी
- हृदयेश्वरी—स्त्री॰—हृदयम्-ईश्वरी—-—गृहिणी
- ह्र्दयकम्पः—पुं॰—हृदयम्-कम्पः—-—दिल का कांपना, धड़कन
- हृदयग्राहिन्—वि॰—हृदयम्-ग्राहिन्—-—मनमोहक
- हृदचौरः—पुं॰—हृदयम्-चौरः—-—जो दिल को या प्रेम को चुराता है
- हृदच्छिद्—वि॰—हृदयम्-छिद्—-—हृदय-विदारक, हृदय को बींधने वाला
- हृदयविध्—वि॰—हृदयम्-विध्—-—हृदय को बींधने वाला
- हृदयवेधिन्—वि॰—हृदयम्-वेधिन्—-—हृदय को बींधने वाला
- हृदवृत्ति—स्त्री॰—हृदयम्-वृत्ति—-—मन का स्वभाव
- हृदयस्थ—वि॰—हृदयम्-स्थ—-—हृदय स्थित, मन में विराजमान
- हृदयस्थानम्—नपुं॰—हृदयम्-स्थानम्—-—छाती, वक्षःस्थल
- हृदयङ्गम—वि॰—-—हृदय + गम् + खच्, मुम्—हृदय को दहलाने वाला, मर्मस्पर्शी, रोमांचकारी
- हृदयङ्गम—वि॰—-—-—प्रिय, सुन्दर
- हृदयङ्गम—वि॰—-—-—मधुर, आकर्षक, सुखद, रुचिकर
- हृदयङ्गम—वि॰—-—-—योग्य, समुचित
- हृदयङ्गम—वि॰—-—-—प्यारा, वल्लभ, आंख का तारा माना हुआ
- हृदयालु—वि॰—-—हृदय + आलुच्—कोमलहृदय वाला, अच्छे दिल वाला, स्नेही
- हृदयिक—वि॰—-—हृदय + ठन्—कोमलहृदय वाला, अच्छे दिल वाला, स्नेही
- हृदयिन्—वि॰—-—हृदय + इनि—कोमलहृदय वाला, अच्छे दिल वाला, स्नेही
- हृदिकः—पु॰—-—हृदि + स्पृश् + क्विन्, अलुक् स॰—एक यादव राजकुमार
- हृदीकः—पु॰—-—हृदि + स्पृश् + क्विन्, अलुक् स॰—एक यादव राजकुमार
- हृदिस्पृश्—वि॰—-—-—हृदय को छूने वाला
- हृदिस्पृश्—वि॰—-—-—प्रिय, प्यारा
- हृदिस्पृश्—वि॰—-—-—रुचिकर, मनोहर, सुन्दर
- हृद्य—वि॰—-—हृदि स्पृशते मनोज्ञत्वात्-हृद् + यत्—हार्दिक, दिली, भीतरी
- हृद्य—वि॰—-—-—जो हृदय को प्रिय लगे, स्निग्ध, प्रिय, अभीष्ट, वल्लभ
- हृद्य—वि॰—-—-—रुचिकर, सुखकर, मनोहर
- हृद्यगन्धः—पु॰—हृद्य-गन्धः—-—बेल का पेड़
- हृद्यगन्धा—स्त्री॰—हृद्य-गन्धा—-—फ़ूलो से खूब लदा हुआ मोतिया
- हृष्—भ्वा॰ दिवा॰ पर॰ <हर्षति>, <हृष्यति>, <हृष्ट्> या <हृषित>—-—-—खुश होना, आनन्दित होना, प्रसन्न होना, हर्षित होना, बाग बाग होना, हर्षोन्मित्त होना
- हृष्—भ्वा॰ दिवा॰ पर॰ <हर्षति>, <हृष्यति>, <हृष्ट्> या <हृषित>—-—-—रोमांचित होना, रोंगटे खड़े होना
- हृष्—भ्वा॰ दिवा॰ पर॰ <हर्षति>, <हृष्यति>, <हृष्ट्> या <हृषित>—-—-—खड़ा होना(कोई अन्य वस्तु- उदा॰ लिङ्ग का)
- हर्षयति—भ्वा॰ दिवा॰ पर॰, प्रेर॰—-—-—प्रसन्न करना, खुश करना, प्रसन्नता से भर जाना
- हर्षयते—भ्वा॰ दिवा॰ पर॰, प्रेर॰—-—-—प्रसन्न करना, खुश करना, प्रसन्नता से भर जाना
- प्रहृष्—भ्वा॰ दिवा॰ पर॰—प्र-हृष्—-—प्रसन्न होना, हर्षोन्मत्त होना
- प्रहृष्—भ्वा॰ दिवा॰ पर॰—प्र-हृष्—-—रोंगटे खड़े होना, (शरीर के बाल) खड़े होना
- विहृष्—भ्वा॰ दिवा॰ पर॰—वि-हृष्—-—हर्षोन्मत्त करना, प्रसन्न होना, खुश होना
- हृषित—भू॰ क॰ कृ॰—-—हृष् + क्त—प्रसन्न, खुश, आनन्दित, उल्लसित, आह्लादित, हर्षोन्मत्त
- हृषित—भू॰ क॰ कृ॰—-—-—पुलकित, रोमांचित
- हृषित—भू॰ क॰ कृ॰—-—-—आश्चर्यान्वित
- हृषित—भू॰ क॰ कृ॰—-—-—झुका हुआ, विनत
- हृषित—भू॰ क॰ कृ॰—-—-—निराश
- हृषित—भू॰ क॰ कृ॰—-— —ताजा
- हृषीकम्—नपुं॰—-—हृष् + ईकक्—ज्ञानेन्द्रिय
- हृषीकेशः—पुं॰—हृषीकम्-ईशः—-—विष्णु या कृष्ण का विशेषण
- हृष्ट—भू॰ क॰ कृ॰—-—हृष् + क्त—प्रसन्न, हर्षयुक्त(= हृषित)
- हृष्टचित्त—वि॰—हृष्ट-चित्त—-—मन में प्रसन्न, हृदय में खुश, आनन्दित
- हृष्टमानस—वि॰—हृष्ट-मानस—-—मन में प्रसन्न, हृदय में खुश, आनन्दित
- हृष्टरोमन्—वि॰—हृष्ट-रोमन्—-—(हर्ष के कारण) रोमांचित, पुलकित
- हृष्टवदन—वि॰—हृष्ट-वदन—-—प्रसन्नमुख
- हृष्टसंकल्प—वि॰—हृष्ट-संकल्प—-—संतुष्ट,सुखी
- हृष्टहृदय—वि॰—हृष्ट-हृदय—-—प्रसन्नमना, प्रफुल्ल, उल्लसित
- हृष्टिः—स्त्री॰—-—हृष् + क्तिन्—आनन्द, उल्लास, हर्ष, खुशी
- हृष्टिः—स्त्री॰—-—-—घमंड
- हे—अव्य॰—-—हा + डे—संबोधनपरक अव्यय (ओ, अरे) -हे कृष्ण, हे यादव, हे सखेति
- हे—अव्य॰—-—-—ईर्ष्या, द्वेष, डाह प्रकट करने वाला अव्यय
- हेक्का—स्त्री॰—-—हिक्का, पृषो॰—हिचकी
- हेठः—पुं॰—-—हेठ् + घञ्—प्रकोपन
- हेठः—पुं॰—-—-—बाधा, अवरोध, विरोध, रुकावट
- हेठः—पुं॰—-—-—क्षति, चोट
- हेड्—भ्वा॰ आ॰ <हेडते>—-—-—अवज्ञा करना, अपमान करना, तिरस्कार करना
- हेड्—भ्वा॰ आ॰ <हेडति>—-—-—धेरना
- हेड्—भ्वा॰ आ॰ <हेडति>—-—-—वस्त्र पहनना
- हेडः—पुं॰—-—हेड् + घञ्—अवज्ञा, तिरस्कार
- हेडजः—पुं॰—हेडः-जः—-—क्रोध, अप्रसन्नता
- हेडाबुक्कः—पुं॰—-—-—घोड़ों का व्यापारी
- हेतिः—पुं॰, स्त्री॰—-—हन् करणे क्तिन्, नि२—शस्त्र, अस्त्र
- हेतिः—पुं॰, स्त्री॰—-—-—आघात, क्षति
- हेतिः—पुं॰, स्त्री॰—-—-—सूर्य की किरण
- हेतिः—पुं॰, स्त्री॰—-—-—प्रकाश, आभा
- हेतिः—पुं॰, स्त्री॰—-—-—ज्वाला
- हेतुः—पुं॰—-—हि + तुन्—निमित्त, कारण, उद्देश्य, प्रयोजन
- हेतुः—पुं॰—-—-—स्रोत, मूल
- हेतुः—पुं॰—-—-—साधन, उपकरण
- हेतुः—पुं॰—-—-—तर्कयुक्त कारण, अनुमान का कारण,तर्क (पांच अंगों से युक्त अनुमानप्रक्रिया में द्वितीय अंग)
- हेतुः—पुं॰—-—-—तर्क, तर्कशास्त्र
- हेतुः—पुं॰—-—-—कोई भी तर्कयुक्त प्रमाण, या युक्ति
- हेतुः—पुं॰—-—-—साहित्यिक कारण (कुछ विद्वान इसी को एक अलंकार भी मानते हैं)
- हेत्वपदेशः—पुं॰—हेतुः-अपदेशः—-—हेतु का उल्लेख (पंचांगी अनुमान के रूप में)
- हेत्वाभासः—पुं॰—हेतुः-आभासः—-—वह हेतु जो किसी कार्य का कारण तो न हो, परन्तु हेतु सा आभासिक हो, कुतर्क,
- हेतूपक्षेपः—पुं॰—हेतुः-उपक्षेपः—-—कारण देना, तर्क उपस्थित करना
- हेतूपन्यासः—पुं॰—हेतुः-उपन्यासः—-—कारण देना, तर्क उपस्थित करना
- हेतुवादः—नपुं॰—हेतुः-वादः—-—तर्कवितर्क, शास्त्रार्थ
- हेतुशास्त्रम्—नपुं॰—हेतुः-शास्त्रम्—-—तर्कशास्त्र, तर्कयुक्त रचना, स्मृति या श्रुति की प्रामाणिकता पर प्रश्नोत्तर रूप में कृति
- हेतुमत्—वि॰—-—-—कारण और कार्य
- हेतुभावः—पुं॰—-—-—कार्य और कारण में विद्यमान संबंध
- हेतुक—वि॰—-—हेतु + कन्—समास के अन्त में प्रयुक्त
- हेतुकः—पुं॰—-—-—कारण, तर्क
- हेतुकः—पुं॰—-—-—उपकरण
- हेतुकः—पुं॰—-—-—तार्किक
- हेतुता—स्त्री॰—-—हेतु + तल् + टाप्—कारणता, कारण की विद्यमानता
- हेतुत्वम्—नपुं॰—-—हेतु + तल् + त्व —कारणता, कारण की विद्यमानता
- हेतुमत्—वि॰—-—हेत + मतुप् —सकारण
- हेतुमत्—वि॰—-—-—कारणयुक्त, तर्कयुक्त
- हेतुमत्—पुं॰—-—-—कार्य
- हेमम्—नपुं॰—-—हि + मन्—सोना
- हेममः—पुं॰—-—-—काले या भूरे रंग का घोड़ा
- हेममः—पुं॰—-—-—सोने का विशेष तोल
- हेममः—पुं॰—-—-—बुध ग्रह
- हेमन्—नपुं॰—-—हि + मनिन्—सोना
- हेमन्—नपुं॰—-—-—जल
- हेमन्—नपुं॰—-—-—बर्फ़
- हेमन्—नपुं॰—-—-—धतूरा
- हेमन्—नपुं॰—-—-—केसर का फूल
- हेमाङ्गः—वि॰—हेमन्-अङ्गः—-—सुनहरी
- हेमगः—पुं॰—हेमन्-गः—-—गरूड
- हेमगः—पुं॰—हेमन्-गः—-—सिंह
- हेमगः—पुं॰—हेमन्-गः—-—सुमेरु पर्वत
- हेमगः—पुं॰—हेमन्-गः—-—बह्मा का नाम
- हेमगः—पुं॰—हेमन्-गः—-—विष्णु का नाम
- हेमगः—पुं॰—हेमन्-गः—-—चम्पक वृक्ष
- हेमाङ्गदम्—नपुं॰—हेमन्-अङ्गदम्—-—सोने का बाजूबन्द
- हेमाद्रिः—पुं॰—हेमन्-अद्रिः—-—सुमेरु पर्वत
- हेमाम्भोजम्—नपुं॰—हेमन्-अम्भोजम्—-—सुनहरी कमल
- हेमाम्भोरुहम्—नपुं॰—हेमन्-अम्भोरुहम्—-—सुनहरी कमल
- हेमाह्वः—पुं॰—हेमन्-आह्वः—-—जंगली चम्पक का पोधा
- हेमाह्वः—पुं॰—हेमन्-आह्वः—-—धतुरे का पौधा
- हेमकंन्दल.—पुं॰—हेमन्-कंन्दल.—-—प्रवाल, मूंगा
- हेमकरः—पुं॰—हेमन्-करः—-—सुनार
- हेमकर्तृ—पुं॰—हेमन्-कर्तृ—-—सुनार
- हेमकारः—पुं॰—हेमन्-कारः—-—सुनार
- हेमकारकः—पुं॰—हेमन्-कारकः—-—सुनार
- हेमकिञ्जल्कम्—नपुं॰—हेमन्-किञ्जल्कम्—-—नागकेसर का फूल
- हेमकुम्भः—पुं॰—हेमन्-कुम्भः—-—सुनहरी घड़ा
- हेमकूटः—पुं॰—हेमन्-कूटः—-—एक पहाड़ का नाम
- हेमकेतकी—स्त्री॰—हेमन्-केतकी—-—केवड़े का पौधा जिसके पीले फूल आते हों, स्वर्ण-केतकी
- हेमगन्धिनी—स्त्री॰—हेमन्-गन्धिनी—-—रेणुका नामक गन्धद्रव्य
- हेमगिरिः—पुं॰—हेमन्-गिरिः—-—सुमेरु पर्वत
- हेमगौरः—पुं॰—हेमन्-गौरः—-—अशोकवृक्ष
- हेमछन्नः—वि॰—हेमन्-छन्नः—-—सोने से मंढा हुआ
- हेमछन्नम्—नपुं॰—हेमन्-छन्नम्—-—सोने का ढक्कन
- हेमज्वालः—पुं॰—हेमन्-ज्वालः—-—अग्नि
- हेमतारम्—नपुं॰—हेमन्-तारम्—-—तूतिया
- हेमदुग्धः—पुं॰—हेमन्-दुग्धः—-—गूलर
- हेमदुग्धकः—पुं॰—हेमन्-दुग्धकः—-—गूलर
- हेमपर्वतः—पुं॰—हेमन्-पर्वतः—-—सुमेरु पर्वत
- हेमपुष्पः—पुं॰—हेमन्-पुष्पः—-—अशोकवृक्ष
- हेमपुष्पः—पुं॰—हेमन्-पुष्पः—-—लोध्रवृक्ष
- हेमपुष्पः—पुं॰—हेमन्-पुष्पः—-—चम्पक वृक्ष
- हेमपुष्पः—नपुं॰—हेमन्-पुष्पः—-—अशोक का फूल
- हेमपुष्पः—पुं॰—हेमन्-पुष्पः—-—चीनी गुलाब का फूल
- हेमपुष्पकः—पुं॰—हेमन्-पुष्पकः—-—अशोकवृक्ष
- हेमपुष्पकः—पुं॰—हेमन्-पुष्पकः—-—लोध्रवृक्ष
- हेमपुष्पकः—पुं॰—हेमन्-पुष्पकः—-—चम्पक वृक्ष
- हेमपुष्पकः—नपुं॰—हेमन्-पुष्पकः—-—अशोक का फूल
- हेमपुष्पकः—पुं॰—हेमन्-पुष्पकः—-—चीनी गुलाब का फूल
- हेमबलम्—नपुं॰—हेमन्-बलम्—-—मोती
- हेमवलम्—नपुं॰—हेमन्-वलम्—-—मोती
- हेममालिन्—पुं॰—हेमन्-मालिन्—-—सूर्य
- हेमयूथिका—स्त्री॰—हेमन्-यूथिका—-—सोनजुही, स्वर्णयूथिका
- हेमरागिणी—स्त्री॰—हेमन्-रागिणी—-—हल्दी
- हेमशंखः—पुं॰—हेमन्-शंखः—-—विष्णु का नाम
- हेमशृङ्गम्—नपुं॰—हेमन्-शृङ्गम्—-—एक सुनहरी सींग
- हेमशृङ्गम्—नपुं॰—हेमन्-शृङ्गम्—-—सुनहरी चोटी
- हेमसारम्—नपुं॰—हेमन्-सारम्—-—तूतिया
- हेमसूत्रम्—नपुं॰—हेमन्-सूत्रम्—-—सूत्रकम् एक प्रकार का हार
- हेमन्तः—पुं॰—-—हि + झ, मुट् आगमः—छः ऋतुओं में से एक, जाड़े का मौसम (जो मार्गशीर्ष और पौसमास में आता है)
- हेमतम्—नपुं॰—-—हि + झ, मुट् आगमः—छः ऋतुओं में से एक, जाड़े का मौसम (जो मार्गशीर्ष और पौसमास में आता है)
- हेमलः—पुं॰—-—हेम + ला + क—सुनार
- हेमलः—पुं॰—-—-—कसौटी
- हेमलः—पुं॰—-—-—गिरगिट
- हेय—वि॰—-—हा + यत्—त्याग करने योग्य
- हेरम्—नपुं॰—-—हि + रन्—एक प्रकार का मुकुट या ताज
- हेरम्—नपुं॰—-—-—हल्दी
- हेरम्बः—पुं॰—-—हे शिवे रम्बति रम्ब् + अच्, अलुक् स॰—गणेश
- हेरम्बः—पुं॰—-—-—भैंसा
- हेरम्बः—पुं॰—-—-—धीरोद्धत नायक
- हेरम्बजननी—स्त्री॰—हेरम्बः-जननी—-—पार्वती(गणेश की माताजी)
- हेरिकः—पुं॰—-—हि + रक्, रुट् आगमः—भेदिया, गुप्तचर
- हेलनम्—नपुं॰—-—हिल् + ल्युट्—अवज्ञा करना, निरादर करना, तिरस्कार करना, अपमान करना
- हेलना—स्त्री॰—-—हिल् + ल्युट्—अवज्ञा करना, निरादर करना, तिरस्कार करना, अपमान करना
- हेला—स्त्री॰—-—हेड् भावे डस्य लः—तिरस्कार, अनादर, अपमान
- हेला—स्त्री॰—-—-—केलि, क्रीडा, प्रेमालिंगन
- हेला—स्त्री॰—-—-—सुरत की बलवती इच्छा
- हेला—स्त्री॰—-—-—आराम, सुविधा, आसानी से, बिना किसी कष्ट या असुविधा के
- हेला—स्त्री॰—-—-—चंद्रिका
- हेलावुक्कः—पुं॰—-—-—घोड़ों का व्यापारी
- हेलिः—पुं॰—-—हिल् + इन्—सूर्य
- हेलिः—स्त्री॰—-—-—केलिक्रीड़ा, सुरतक्रीड़ा, प्रेमालिंगन
- हेवाकः—पुं॰—-—-—उत्कट इच्छा, तीव्र स्पृहा, उत्कण्ठा
- हेवाकस—वि॰—-—-—अत्यंत, तीव्र, उत्कट, प्रचंड
- हेवाकिन्—वि॰—-—हेवाक + इनि—अत्यंत इच्छुक, उत्कंठित (समास में प्रयोग)
- हेष्—भ्वा॰ आ॰ <हेषते>,<हेषित>—-—-—घोड़े के भांति हिनहिनाना, रेंकना, दहाड़ना
- हेषः—पुं॰—-—हेष् + घञ् —हिनहिनाहट, रेंक
- हेषा—स्त्री॰—-—हेष् + अ + टाप्—हिनहिनाहट, रेंक
- हेषितम्—नपुं॰—-—हेष् + क्त—हिनहिनाहट, रेंक
- हेषिन्—पुं॰—-—हेष् + णिनि—घोड़ा
- हेहे—अव्य॰—-—हे च हे च-द्व॰ स॰—संबोधनपरक अव्यय जिसका उपयोग ज़ोर् से आवाज़ देने या बुलाने में किया जाता है
- है—अव्य॰—-—हा + कै—संबोधनात्मक अव्यय
- हैतुक—वि॰—-—हेतु + ठण्—कारण परक, कारण मूलक
- हैतुक—वि॰—-—-—तर्क संबंधी, विवेक परक
- हैतुकः—पुं॰—-—-—तर्कयुक्त हेतुवादी, तार्किक
- हैतुकः—पुं॰—-—-—मीमांसक
- हैतुकः—पुं॰—-—-—तर्कवादी,अनीश्वरवादी, नास्तिक
- हैम—वि॰—-—हिभ (हेमन्) + अण्—शीतल, जाड़े का, जाड़े में होने वाला, ठंडा
- हैम—वि॰—-—-—हिम से उत्पन्न
- हैम—वि॰—-—-—सुनहरी, सोने का बना हुआ
- हैमम्—नपुं॰—-—-—पाला, ओस
- हैमः—पुं॰—-—-—शिव का विशेषण
- हैममुद्रा—स्त्री॰—हैम-मुद्रा—-—सुनहरी सिक्का
- हैममुद्रिका—स्त्री॰—हैम-मुद्रिका—-—सुनहरी सिक्का
- हैमन—वि॰—-—हेमन्त एव हेमन्ते भवो वा, प्रण्, तलोपः—जाड़े में होने वाला, ठंडा
- हैमन—वि॰—-—-—जाड़े से संबंध रखने वाला अर्थात् लम्बा (जैसे जाड़े की रातें)
- हैमन—वि॰—-—-—सर्दी में उगने वाला या जाड़े के उपयुक्त
- हैमन—वि॰—-—-—सुनहर, सोने का बना हुआ
- हैमनः—पुं॰—-—-—मागशीर्ष का महीना
- हैमनः—पुं॰—-—-—जाड़े की ऋतु (= हैमन्त)
- हैमन्तिक—वि॰—-—हेमन्ते काले भवः ठञ्—जाड़े का, ठंडा
- हैमन्तिक—वि॰—-—-—सर्दी में उत्पन्न होने वाला
- हैमन्तिकम्—नपुं॰—-—-—एक प्रकार का चावल
- हैमल—वि॰—-—-—छः ऋतुओं में से एक, जाड़े का मौसम (जो मार्गशीर्ष और पौसमास में आता है)
- हैमवत—वि॰—-—हिमवतो अदूरभवो देशःतस्येदं वा अण्—बर्फ़ीला
- हैमवत—वि॰—-—-—हिमालय पर्वत से निकल कर बहने वाला
- हैमवत—वि॰—-—-—हिमालय पर्वत पर उत्पन्न, पला-पोसा, स्थित विद्यमान या संबंध रखने वाला
- हैमवतम्—नपुं॰—-—-—भारतवर्ष, हिन्दुस्तान
- हैमवती—स्त्री॰—-—हैमवत + ङीप्—पार्वती का नाम
- हैमवती—स्त्री॰—-—-—गंगा का नाम
- हैमवती—स्त्री॰—-—-—एक प्रकार की हरड़, हरितकी
- हैमवती—स्त्री॰—-—-—एक प्रकार की औषधि
- हैमवती—स्त्री॰—-—-—सन का पौधा, अलसी
- हैमवती—स्त्री॰—-—-—भूरे रंग की किशमिश
- हैयङ्गवीनम्—नपुं॰—-—ह्य्ओ गोदोहात् भवं ह्यस्गो + ख, नि॰—पिछले दिन के दूध से बनाया गया घी, ताजा घी
- हैयङ्गवीनम्—नपुं॰—-—-—पिछले दिन का मक्खन, ताजा मक्खन
- हैरिकः—पुं॰—-—हिर + ठक्—चोर
- हैहय—पुं॰ ब॰ व॰—-—-—एक देश और उसके अधिवासियों का नाम
- हैहयः—पुं॰—-—-—यदु के प्रपौत्र का नाम
- हैहयः—पुं॰—-—-—अर्जुन कार्तवीर्य (जिसके एक हज़ार भुजाएँ थी, ओर जिसे परशुराम ने मार गिराया था)
- हो—अव्य॰—-—ह् वे + डो, नि—किसी व्यक्ति को बुलाने के लिए प्रयुक्त होने वाला संबोधनात्मक अव्यय, (हे, अरे)
- होड्—भ्वा॰ आ॰ <होडते>—-—-—उपेक्षा करना, अनादर करना
- होड्—भ्वा॰ पर॰ <होडति>—-—-—जाना
- होडः—पुं॰—-—होड् + अच्—बेड़ा, नाव
- होतृ—वि॰—-—हु + तृच्—यजमान, हवन करने वाला
- होतृ—पुं॰—-—-—ऋत्विज्, विशेषकर वह जो यज्ञ में ऋग्वेद के मन्त्रों का पाठ करता हैं
- होतृ—पुं॰—-—-—यज्ञकर्ता
- होत्रम्—नपुं॰—-—हु + ष्ट्रन्—( घी आदि) कोई भी वस्तु जिसकी हवन में आहुति दी जावे
- होत्रम्—नपुं॰—-—-—हवन में जली हुई सामग्री
- होत्रम्—नपुं॰—-—-—यज्ञ
- होत्रा—स्त्री॰—-—होत्र + टाप्—यज्ञ
- होत्रा—स्त्री॰—-—-—स्तुति
- होत्रीयः—पुं॰—-—होत्रीय हितं होतुरिदं वा छ—देवों को उद्देश्य करके आहुति देने वाला ऋत्विक्
- होत्रीयम्—नपुं॰—-—-—यज्ञमंडप
- होमः—पुं॰—-—हु + मन्—यज्ञाग्नि में घी की आहुति देना
- होमः—पुं॰—-—-—हवन, यज्ञ
- होमाग्निः—पुं॰—होमः-अग्निः—-—होम की आग
- होमकुण्डम्—नपुं॰—होमः-कुण्डम्—-—हवनकुंड
- होमतुरङ्गः—पुं॰—होमः-तुरङ्गः—-—यज्ञ का घोड़ा
- होमधान्यम्—नपुं॰—होमः-धान्यम्—-—तिल
- होमधूमः—पुं॰—होमः-धूमः—-—होम की अग्नि का धुआँ
- होमभस्मन्—नपुं॰—होमः-भस्मन्—-—हवन की राख
- होमवेला—स्त्री॰—होमः-वेला—-—हवन करने का समय
- होमशाला—स्त्री॰—होमः-शाला—-—यज्ञ शाला, यज्ञगृह
- होमक—वि॰—-—-—यजमान, हवन करने वाला
- होमकः—पुं॰—-—-—ऋत्विज्, विशेषकर वह जो यज्ञ में ऋग्वेद के मन्त्रों का पाठ करता हैं
- होमकः—पुं॰—-—-—यज्ञकर्ता
- होमिः—पुं॰—-—हु + इन्, मुट् च—ताया हुआ मक्खन, घी
- होमिः—पुं॰—-—-—जल
- होमिः—पुं॰—-—-—अग्नि
- होमिन्—पुं॰—-—होमोऽस्त्यस्य इनि—होम करने वाला, यजमान, यज्ञकर्ता
- होमीय—वि॰—-—होम + छ—होम से संबद्ध, आहुति दिए जाने के योग्य, हवन संबन्धी
- होम्य—वि॰—-—होम + यत् —होम से संबद्ध, आहुति दिए जाने के योग्य, हवन संबन्धी
- होम्यम्—नपुं॰—-—-—घी
- होरा—स्त्री॰—-—हु + रन् + टाप्—राशि का उदय
- होरा—स्त्री॰—-—-—राशि की अवधि का अंश
- होरा—स्त्री॰—-—-—एक घंटा
- होरा—स्त्री॰—-—-—चिह्न, रेखा
- होलाका—स्त्री॰—-—हु + विच्, तं लाति - ला + क + कन् + टाप्—वसन्त ऋतु के आने पर मनाया गया वसन्तोत्सव, फाल्गुन मास की पूर्णिमा से पूर्व के दस दिन,विशेषतः तीन या चार दिन (इसी पर्व को हम `होली' कहते हैं)
- होलाका—स्त्री॰—-—-—फाल्गुन मास की पूर्णिमा
- होलिका—स्त्री॰—-—-—होली का त्योहार, दे॰ `होलिका'
- होली—स्त्री॰—-—-—होली का त्योहार, दे॰ `होलिका'
- हो—अव्य॰—-—ह् वे + डो, नि—संबोधनात्मक अव्यय, हो, अरे, भो
- होहो—अव्य॰—-—ह् वे + डो, नि—संबोधनात्मक अव्यय, हो, अरे, भो
- हौत्रम्—नपुं॰—-—होतुरिदम्, अण्—होता नामक ऋत्विक् का पद
- हौम्यम्—नपुं॰—-—होम + ष्यञ्—ताया हुआ मक्खन, घी
- ह्नु—अदा॰ आ॰ <ह् नुते>, <ह् नुत>—-—-—ले जाना, लूटना, छिपा देना, वञ्चित करना
- ह्नु—अदा॰ आ॰ <ह् नुते>, <ह् नुत>—-—-—छिपाना, ढकना, रोकना
- ह्नु—अदा॰ आ॰ <ह् नुते>, <ह् नुत>—-—-—किसी से छिपाव करना (सम्प्र॰ के साथ)
- अपह्नु—अदा॰ आ॰—अप-ह्नु—-—छिपाना, दुराना
- अपह्नु—अदा॰ आ॰—अप-ह्नु—-—मुकरना, स्वामित्व को इंकार करना, किसी से कोई चीज़ छिपाना
- निह्नु—अदा॰ आ॰—नि-ह्नु—-—छिपाना, गुप्त कर देना
- निह्नु—अदा॰ आ॰—नि-ह्नु—-—किसई से छिपाना, किसी के सामने मुकर जाना (सम्प्र॰ के साथ)
- ह्यस्—अव्य॰—-—गते अहनि नि॰—बिता हुआ कल
- ह्योभव—वि॰—ह्यस्-भव—-—जो कल हुआ था
- ह्यस्तन—वि॰—-—ह्यस् + ट्युल्, तुट्—बीते कल से संबंध रखने वाला
- ह्यस्तनदिनम्—नपुं॰—ह्यस्तन-दिनम्—-—बीता कल, पिछला दिन
- ह्यस्त्य—वि॰—-—ह्यस् + त्यप्—कल से संबद्ध, (बीते हुए) कल का
- ह्र्दः—पुं॰—-—ह्लाद् + रच्, नि॰—गहरासरोवर, जल का विस्तृत और गहरा तालाब
- ह्र्दः—पुं॰—-—-—गहरा छिद्र या विवर
- ह्र्दः—पुं॰—-—-—प्रकाश की किरण
- ह्र्दग्रहः—पुं॰—ह्र्दः-ग्रहः—-—मगरमच्छ
- ह्र्दिनी—स्त्री॰—-—ह्र्द + इनि + ङीप्—नदी
- ह्र्दिनी—स्त्री॰—-—-—बिजली
- ह्र्द्रोगः—पुं॰—-—ग्रीकशब्द से व्युत्पन्न—कुम्भराशि
- ह्रस्—भ्वा॰ पर॰ <ह्रसति>,<ह्रसित>—-—-—शब्द करना
- ह्रस्—भ्वा॰ पर॰ <ह्रसति>,<ह्रसित>—-—-—छोटा होना
- ह्रसिमन्—पुं॰—-—ह्र्स्व + इमनिच्, ह्र्सादेशः—हलकापन, छोटापन, लघुता
- ह्रस्व —वि॰—-—ह्र्स् + वन्, म॰ अ॰ ह्रसीयस्, उ॰ अ॰ ह्रसिष्ठ—लघु, अल्प, थोड़ा
- ह्रस्व —वि॰—-—-—ठिंगना, क़द में छोटा
- ह्रस्व —वि॰—-—-—लघु (विप॰ दीर्घ- छन्दःशास्त्र में)
- ह्रस्वः—पुं॰—-—-—बौना
- ह्रस्वाङ्ग—वि॰—ह्रस्व-अङ्ग—-—ठिंगना, गिट्टा
- ह्रस्वगः—पुं॰—ह्रस्व-गः—-—बौना
- ह्रस्वगर्भः—पुं॰—ह्रस्व-गर्भः—-—कुश नामक घास
- ह्रस्वबाहुक—वि॰—ह्रस्व-बाहुक—-—छोटा भुजाओं वाला
- ह्रस्वमूर्ति—वि॰—ह्रस्व-मूर्ति—-—क़द में छोटा, ठिंगना, बौना
- ह्राद्—भ्वा॰ आ॰< ह्रादते>—-—-—शब्द करना
- ह्राद्—भ्वा॰ आ॰< ह्रादते>—-—-—दहाड़ना
- ह्रादः—पुं॰—-—ह्राद् + घञ्—शोर, आवाज
- ह्रादिन्—वि॰—-—ह्राद् + णिनि—शब्दायमान, दहाड़ने वाला
- ह्रादिनी—स्त्री॰—-—ह्रादिन् + ङीप्—इन्द्र का बज्र
- ह्रादिनी—स्त्री॰—-—-—बिजली
- ह्रादिनी—स्त्री॰—-—-—नदी
- ह्रादिनी—स्त्री॰—-—-—शल्ल्की नामक वृक्ष
- ह्रासः—पुं॰—-—ह्र्स् + घञ्—शब्द, कोलाहल
- ह्रासः—पुं॰—-—-—घटी, कमी, क्षय, अवनति, पतन
- ह्रासः—पुं॰—-—-—छोटी संख्या
- ह्रिणीयते——-—-—दे॰ `हृणीयते'
- ह्रिणीया—स्त्री॰—-—ह्रिणी + यक् +अ + टाप्—भर्त्सना, निन्दा
- ह्रिणीया—स्त्री॰—-—-—शर्म, लज्जा
- ह्रिणीया—स्त्री॰—-—-—दया
- ह्री—जुहो॰ पर॰ <जिह्रेति>, <ह्रीण>, <ह्रीत>—-—-—शर्माना, विनीत होना
- ह्री—जुहो॰ पर॰ <जिह्रेति>, <ह्रीण>, <ह्रीत>—-—-—लज्जित होना (स्वतंत्र प्रयोग अथवा अपादान सं॰ के साथ)
- ह्री—जुहो॰ उभ॰, प्रेर॰ <ह्रेपयति>, <ह्रेपयते>—-—-—शर्मिंदा करना, (आलं॰ से भी)
- ह्री—स्त्री॰ —-—ह्री + क्विप्—लज्जा
- ह्री—स्त्री॰ —-—-—शर्मीलापन, विनय
- ह्रीजित—वि॰—ह्री-जित—-—लज्जा से अभिभूत या व्याकुल
- ह्रीम्ढ्—वि॰—ह्री-म्ढ्—-—लज्जा से अभिभूत या व्याकुल
- ह्रीयन्त्रणा—स्त्री॰—ह्री-यन्त्रणा—-—लज्जा का बंधन
- ह्रीका—स्त्री॰—-—ह्री + कक् + टाप्—शर्मीलापन, लज्जाशीलता, संकोच
- ह्रीका—स्त्री॰—-—-—भीरुता, डर
- ह्रीकु—वि॰—-—ह्री + उन्, कुक् च—शर्मीला, विनीत, संकोचशील
- ह्रीकु—वि॰—-—-—भीरु
- ह्रीकुः—पुं॰—-—-—रांगा
- ह्रीकुः—पुं॰—-—-—लाख
- ह्रीण—भू॰ क॰ कृ॰—-—ह्री + क्त, पक्षे तस्य नः—लज्जित
- ह्रीण—भू॰ क॰ कृ॰—-—ह्री + क्त, पक्षे तस्य नः—शर्मीला, विनीत
- ह्रीत—भू॰ क॰ कृ॰—-—ह्री + क्त—लज्जित
- ह्रीत—भू॰ क॰ कृ॰—-—ह्री + क्त—शर्मीला, विनीत
- ह्रीवेरम्—नपुं॰—-—ह्रियै लज्जायै वेरम् अङ्गम् अस्य क्षुद्रत्वात्, पृषो॰ वा रस्य लः—एक प्रकार का गन्ध द्रव्य
- ह्रीवेलम्—नपुं॰—-—ह्रियै लज्जायै वेरम् अङ्गम् अस्य क्षुद्रत्वात्, पृषो॰ वा रस्य लः—एक प्रकार का गन्ध द्रव्य
- ह्रेष्—भ्वा॰आ॰ <ह्रेषते>—-—-—घोड़ की भांति हिनहिनाना, रेंकना
- ह्रेष्—भ्वा॰आ॰ <ह्रेषते>—-—-—जाना, सरकाना
- ह्रेषा—स्त्री॰—-—ह्रेष् + अ + टाप्—हिनहिनाहट
- ह्लग्—भ्वा॰ पर॰ <ह्लगति>—-—-—ढांपना
- ह्लत्तिः—भ्वा॰ पर॰ <ह्लगति>—-—ह्ला + क्तिन्, ह्रस्वता—हर्ष, प्रसन्नता
- ह्लस्—भ्वा॰पर॰ <ह्लसति>—-—-—शब्द करना
- ह्लाद्—भ्वा॰ आ॰ <ह्लादते>,< ह्लन्न>,<ह्लादित>—-—-—प्रसन्न होना, खुश होना, हर्षित होना
- ह्लाद्—भ्वा॰ आ॰ <ह्लादते>,< ह्लन्न>,<ह्लादित>—-—-—शब्द करना
- आह्लाद—भ्वा॰ आ॰ —आ-ह्लाद—-—हर्षित होना, प्रसन्न होना, खुश होना
- प्रह्लाद—भ्वा॰ आ॰ —प्र-ह्लाद—-—हर्षित होना, प्रसन्न होना, खुश होना
- ह्लादः— पुं॰—-—ह्लाद् + घञ्—प्रसन्नता, हर्ष, उल्लास
- ह्लादकः— पुं॰—-—ह्लाद् + ण्वुल् —प्रसन्नता, हर्ष, उल्लास
- ह्लादनम्—नपुं॰—-—ह्लाद् + ल्युट्—हर्षित होने की क्रिया, हर्ष, खुशी, प्रसन्नता
- ह्लादिन्—वि॰—-—ह्लाद् + णिनि —प्रसन्न होने वाला, खुश होने वाला
- ह्लादिनी—स्त्री॰—-—-—इन्द्र का वज्र,बिजली,नदी,शल्ल्की नामक वृक्ष
- ह्वल्—भ्वा॰ पर॰ <ह्वलति>—-—-—जाना, हिलना-जुलना
- ह्वल्—भ्वा॰ पर॰ <ह्वलति>—-—-—थरथराना, कांपना
- ह्वल्—भ्वा॰ पर॰, प्रेर॰—-—-—हिलाना, कंपकंपी पैदा करना ( विशेषतः `वि' पूर्वक)
- ह्वानम्—नपुं॰—-—ह्वे + ल्युट्—आमन्त्रण
- ह्वानम्—नपुं॰—-—-—क्रन्दन, शब्द करना
- ह् वृ—भ्वा॰ पर॰ <ह्वरति>—-—-—कुटिल होना
- ह् वृ—भ्वा॰ पर॰ <ह्वरति>—-—-—आचरण में टेढ़ा होना, ठगना, धोखा खाना
- ह् वृ—भ्वा॰ पर॰ <ह्वरति>—-—-—कष्टग्रस्त, क्षतिग्रस्त
- ह्वे—भ्वा॰ उभ॰ <ह्वयति>,<ह्वयते>,<हूतः>, कर्मवा॰ <हूयते>, प्रेर॰ <ह्वापयति>, <ह्वापयते>,इच्छा॰ <जुहूषति>, <जुहूषते>—-—-—बुलाना
- ह्वे—भ्वा॰ उभ॰ <ह्वयति>,<ह्वयते>,<हूतः>, कर्मवा॰ <हूयते>, प्रेर॰ <ह्वापयति>, <ह्वापयते>,इच्छा॰ <जुहूषति>, <जुहूषते>—-—-—नाम लेकर पुकारना, आवाहन करना, आवाज देना
- ह्वे—भ्वा॰ उभ॰ <ह्वयति>,<ह्वयते>,<हूतः>, कर्मवा॰ <हूयते>, प्रेर॰ <ह्वापयति>, <ह्वापयते>,इच्छा॰ <जुहूषति>, <जुहूषते>—-—-—नाम लेना, बुलाना
- ह्वे—भ्वा॰ उभ॰ <ह्वयति>,<ह्वयते>,<हूतः>, कर्मवा॰ <हूयते>, प्रेर॰ <ह्वापयति>, <ह्वापयते>,इच्छा॰ <जुहूषति>, <जुहूषते>—-—-—ललकारना
- ह्वे—भ्वा॰ उभ॰ <ह्वयति>,<ह्वयते>,<हूतः>, कर्मवा॰ <हूयते>, प्रेर॰ <ह्वापयति>, <ह्वापयते>,इच्छा॰ <जुहूषति>, <जुहूषते>—-—-—प्रतिस्पर्धा करना, होड़ाहोड़ी करना
- ह्वे—भ्वा॰ उभ॰ <ह्वयति>,<ह्वयते>,<हूतः>, कर्मवा॰ <हूयते>, प्रेर॰ <ह्वापयति>, <ह्वापयते>,इच्छा॰ <जुहूषति>, <जुहूषते>—-—-—प्रार्थना करना, याचना करना
- आह्वे—भ्वा॰ उभ॰ —आ-ह्वे—-—बुलाना, निमंत्रित करना
- आह्वे—भ्वा॰ उभ॰ —आ-ह्वे—-—ललकारना
- उपह्वे—भ्वा॰ उभ॰ —उप-ह्वे—-—बुलाना
- उपाह्वे—भ्वा॰ उभ॰ —उपा-ह्वे—-—बुलाना
- संह्वे—भ्वा॰ उभ॰ —सम्-ह्वे—-—मिलकर बुलाना
- समाह्वे—भ्वा॰ उभ॰ —समा-ह्वे—-—मिलकर बुलाना