विक्षनरी:संस्कृत-हिन्दी शब्दकोश/स-सय
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- मूलशब्द—व्याकरण—संधिरहित मूलशब्द—व्युत्पत्ति—हिन्दी अर्थ
- स—अव्य॰—-—-—के साथ, मिला कर, के साथ-साथ, संयुक्त होकर, युक्त, सहित सपुत्र, संभार्य, सतृष्ण, सधन, सरोषम्, सकोपम्, सहरि आदि
- स—अव्य॰—-—-—समान, सदृश, सधर्मन् ‘समान प्रकृति का’,इसी प्रकार सजाति, सवर्ण
- स—अव्य॰—-—-—वही, सोदर, सपक्ष, सपिंड, सनाभि आदि
- स—पुं॰—-—-—साँप
- स—पुं॰—-—-—वायु, हवा
- स—पुं॰—-—-—पक्षी
- स—पुं॰—-—-—‘षड्ज’ नामक संगीत स्वर का संक्षिप्त
- स—पुं॰—-—-—शिव का नाम
- स—पुं॰—-—-—विष्णु का नाम
- संयः—पुं॰—-—सम् + यम् + ड—कंकाल, पंजर
- संयत्—स्त्री॰—-—सम् + यम् + क्विप्—युद्ध, संग्राम, लड़ाई
- संयद्वरः—पुं॰—संयत्-वरः—-—राजा, राजकुमार
- संयत—भू॰ क॰ कृ॰—-—सम् + यम् + क्त—रोका हुआ, दबाया हुआ, वश में किया हुआ
- संयत—भू॰ क॰ कृ॰—-—-—जकड़ा हुआ, एक स्थान पर बाँधा हुआ
- संयत—भू॰ क॰ कृ॰—-—-—बेड़ियों से जकड़ा हुआ
- संयत—भू॰ क॰ कृ॰—-—-—बन्दी, कैदी, कारावासी
- संयत—भू॰ क॰ कृ॰—-—-—उद्यत, तैयार
- संयत—भू॰ क॰ कृ॰—-—-—व्यवस्थित
- संयताञ्जलि—वि॰—संयत-अञ्जलि—-—जिसने विनम्र प्रार्थना के लिए हाथ जोड़े हुए हैं
- संयतात्मन्—वि॰—संयत-आत्मन्—-—जिसने मन को वश में कर लिया है, नियंत्रितमना, आत्मनिग्रही
- संयताहार—वि॰—संयत-आहार—-—मिताहारी
- संयतोपस्कर—वि॰—संयत-उपस्कर—-—जिसका घर सुव्यवस्थित हो, जिसके घर का सामान सब क्रमपूर्वक रक्खा हो
- संयतचेतस—वि॰—संयत-चेतस—-—मन को नियन्त्रण में रखने वाला
- संयतमनस्—वि॰—संयत-मनस्—-—मन को नियन्त्रण में रखने वाला
- संयतप्राण—वि॰—संयत-प्राण—-—जिसका श्वास नियंत्रित किया हुआ हैं, प्राणायाम का अभ्यास करने वाला
- संयतवाच्—वि॰—संयत-वाच्—-—मूक, मौन रहने वाला, मितभाषी
- संयत्त—वि॰—-—सम् + यत् +क्त—सन्नद्ध, तत्पर, तैयार
- संयत्त—वि॰—-—-—सावधान, सतर्क
- संयमः—पुं॰—-—सम् + यम् + अप्—प्रतिबंध, रोकथाम, नियंत्रण
- संयमः—पुं॰—-—-—मन की एकाग्रता, योग की अंतिम तीन अवस्थाओं को प्रकट करने वाला शब्द
- संयमः—पुं॰—-—-—धार्मिक व्रत
- संयमः—पुं॰—-—-—धार्मिक भक्ति, तपस्साधना
- संयमः—पुं॰—-—-—दयाभाव, करुणा की भावना
- संयमनम्—नपुं॰—-—सम् + यम् + ल्युट्—प्रतिबंध, रोकथाम
- संयमनम्—नपुं॰—-—-—अंतःकर्षण
- संयमनम्—नपुं॰—-—-—बाँधना
- संयमनम्—नपुं॰—-—-—कैद
- संयमनम्—नपुं॰—-—-—आत्मोत्सर्ग, नियन्त्रण
- संयमनम्—नपुं॰—-—-—धार्मिक व्रत या आभार
- संयमनम्—नपुं॰—-—-—चार घरों का वर्ग
- संयमनम्नः—पुं॰—-—-—नियामक, शासक
- संयमनम्नी—स्त्री॰—-—-—यम की नगरी का नाम
- संयमित—भू॰ क॰ कृ॰—-—संयम् + णिच् + क्त—नियंत्रित
- संयमित—भू॰ क॰ कृ॰—-—-—बद्ध, बेड़ी से जकड़ा हुआ
- संयमित—भू॰ क॰ कृ॰—-—-—निरुद्ध, रोका हुआ
- संयमिन्—वि॰—-—सम् + यम् + णिनि—दमन करने वाला, रोकने वाला, नियंत्रित करने वाला
- संयमिन्—पुं॰—-—-—जिसने अपने आवेगों को रोक लिया या नियंत्रण में कर लिया, ऋषि, सन्यासी
- संयानः—पुं॰—-—सम् + या + ल्युट्—साँचा
- संयानम्—नपुं॰—-—-—साथ-साथ जाना, मिलकर चलना
- संयानम्—नपुं॰—-—-—यात्रा करना, प्रगति करना
- संयानम्—नपुं॰—-—-—शव को उठाकर ले जाना
- संयामः—पुं॰—-—सम् + यम् + घञ्—प्रतिबंध, रोकथाम, नियंत्रण
- संयामः—पुं॰—-—सम् + यम् + घञ्—मन की एकाग्रता, योग की अंतिम तीन अवस्थाओं को प्रकट करने वाला शब्द
- संयामः—पुं॰—-—सम् + यम् + घञ्—धार्मिक व्रत
- संयामः—पुं॰—-—सम् + यम् + घञ्—धार्मिक भक्ति, तपस्साधना
- संयामः—पुं॰—-—सम् + यम् + घञ्—दयाभाव, करुणा की भावना
- संयावः—पुं॰—-—सम् + यु + घञ्—गेहूँ के आटे का मिष्टान्न, हलुवा
- संयुक्त—भू॰ क॰ कृ॰—-—सम् + युज् + क्त—मिला हुआ, जुड़ा हुआ, सम्मिलित
- संयुक्त—भू॰ क॰ कृ॰—-—-—सम्मिश्रित, मिला हुआ, संपृक्त
- संयुक्त—भू॰ क॰ कृ॰—-—-—सहित
- संयुक्त—भू॰ क॰ कृ॰—-—-—संपन्न, से युक्त
- संयुक्त—भू॰ क॰ कृ॰—-—-—अन्वित, बना हुआ
- संयुगः—पुं॰—-—सम् + युज् + क, जस्य गः—संयोजन, मिलाप, मिश्रण
- संयुगः—पुं॰—-—-—लड़ाई, संग्राम, युद्ध, संघर्ष
- संयुगगोष्पदम्—नपुं॰—संयुग-गोष्पदम्—-—भिड़न्त, नगण्य या तुच्छ झगड़ा मामूली बात पर कलह
- संयुज्—वि॰—-—सम् + युज् + क्विन्—संबद्ध, संबंध रखने वाला
- संयुत—भू॰ क॰ कृ॰—-—सम् + यु + क्त—मिला हुआ, एकत्र जोड़ा हुआ, संबंध
- संयुत—भू॰ क॰ कृ॰—-—-—संपन्न, सहित
- संयोगः—पुं॰—-—सम् + युज् + घञ्—संयोजन, मिलाप, मिश्रण, संगम, मिलना-जुलना, घनिष्ठता
- संयोगः—पुं॰—-—-—जोड़ना
- संयोगः—पुं॰—-—-—जोड़, मिलाना
- संयोगः—पुं॰—-—-—संचय
- संयोगः—पुं॰—-—-—दो राजाओं में किसी एक से समान उद्देश्य के लिए मित्रता
- संयोगः—पुं॰—-—-—संयुक्त व्यंजन
- संयोगः—पुं॰—-—-—दो तारिकाओं का मिलन
- संयोगः—पुं॰—-—-—शिव का विशेषण
- संयोगपृथक्त्वम्—नपुं॰—संयोग-पृथक्त्वम्—-—अनित्य संबंधों का पार्थक्य
- संयोगविरुद्धम्—नपुं॰—संयोग-विरुद्धम्—-—साथ-साथ मिलाकर खाने से रोग उत्पन्न करने वाला खाद्यपदार्थ
- संयोगिन्—वि॰—-—संयोग + इनि—मिलाया हुआ, सम्मिलित
- संयोगिन्—वि॰—-—-—मिलने वाला
- संयोजनम्—नपुं॰—-—सम् + युज + ल्युट्—मिलाप, एक साथ जोड़ना
- संयोजनम्—नपुं॰—-—-—मैथुन, संभोग
- संरक्त—भू॰ क॰ कृ॰—-—सम् + रब्ज् + क्त—रंगीन, लाल
- संरक्त—भू॰ क॰ कृ॰—-—-—आवेशपूर्ण, प्रणयाग्नि में दग्ध
- संरक्त—भू॰ क॰ कृ॰—-—-—क्रुद्ध, चिड़चिड़ा, क्रोधाग्नि से जलता हुआ
- संरक्त—भू॰ क॰ कृ॰—-—-—मोहित, मुग्ध
- संरक्त—भू॰ क॰ कृ॰—-—-—लावण्यमय, सुन्दर
- संरक्षः—पुं॰—-—सम् + रक्ष् + घञ्—प्ररक्षण, देख-भाल, संधारण
- संरक्षणम्—नपुं॰—-—सम् + रक्ष् + ल्युट्—प्ररक्षण, संधारण,
- संरक्षणम्—नपुं॰—-—-—उत्तरदायित्व, निगरानी
- संरब्ध—भू॰ क॰ कृ॰—-—सम् + रम्भ् + क्त—उत्तेजित विक्षुब्ध
- संरब्ध—भू॰ क॰ कृ॰—-—-—प्रज्वलित, संक्षुब्ध, क्रुद्ध भीषण
- संरब्ध—भू॰ क॰ कृ॰—-—-—वर्धित
- संरब्ध—भू॰ क॰ कृ॰—-—-—सुजा हुआ
- संरब्ध—भू॰ क॰ कृ॰—-—-—अभिभूत
- संरम्भः—पुं॰—-—सम् + रभ् + घञ्, मुम—आरंभ
- संरम्भः—पुं॰—-—-—हुल्लड़, खलबली, उग्रता, प्रचण्डता
- संरम्भः—पुं॰—-—-—विक्षोभ, उत्तेजना, हड़बड़ी
- संरम्भः—पुं॰—-—-—ऊर्जा, उत्साह, उत्कण्ठा
- संरम्भः—पुं॰—-—-—क्रोद्ध, रोष, कोप
- संरम्भः—पुं॰—-—-—घमंड, अहंकार
- संरम्भः—पुं॰—-—-—शोथ और जलन
- संरम्भपुरुष—वि॰—संरम्भ-पुरुष—-—जो गुस्से के कारण कठोर हो गया हो
- संरम्भरस—वि॰—संरम्भ-रस—-—अत्यन्त क्रुद्ध
- संरम्भवेगः—पुं॰—संरम्भ-वेगः—-—क्रोद्ध की उग्रता
- संरम्भिन्—वि॰—-—संरम्भ + इनि—उत्तेजित, विक्षुब्ध, हड़बड़ी से युक्त
- संरम्भिन्—वि॰—-—-—क्रुद्ध, प्रकुपित, रोषाविष्ट
- संरम्भिन्—वि॰—-—-—घमंडी, अहंकारी
- संरागः—पुं॰—-—सम् + रञ्ज् + घञ्—रंगत
- संरागः—पुं॰—-—-—प्रणयोन्माद, अनुरक्ति
- संरागः—पुं॰—-—-—रोष, क्रोद्ध
- संराधनम्—नपुं॰—-—सम् + राध् + ल्युट्—प्रसन्न करना, मेल करना
- संराधनम्—नपुं॰—-—-—प्रकृष्ट या गहन मनन
- संरावः—पुं॰—-—सम् + रु + घञ्—गुलगपाड़ा, हल्लागुल्ला, शोरगुल
- संरावः—पुं॰—-—-—कोलाहल
- संरुग्ण—भू॰ क॰ कृ॰—-—सम् + रुज् + क्त—जो टुकड़े-टुकड़े हो गया हो, चूर-चूर, छिन्नभिन्न
- संरुद्ध—भू॰ क॰ कृ॰—-—सम् + रुध् + क्त—रोका गया, बाधित, अवरुद्ध
- संरुद्ध—भू॰ क॰ कृ॰—-—-—रुका हुआ, भरा हुआ
- संरुद्ध—भू॰ क॰ कृ॰—-—-—घेरा डाला हुआ, वेष्टित, उपरुद्ध
- संरुद्ध—भू॰ क॰ कृ॰—-—-—ढका हुआ, छिपाया हुआ
- संरुद्ध—भू॰ क॰ कृ॰—-—-—अस्वीकृत, अटकाया हुआ
- संरुढ—भू॰ क॰ कृ॰—-—सम् + रुह् + क्त—साथ-साथ उगा हुआ
- संरुढ—भू॰ क॰ कृ॰—-—-—किणान्वित, घाव भरा हुआ
- संरुढ—भू॰ क॰ कृ॰—-—-—फूटा हुआ, अंकुर निकला हुआ, मुकुलित, उपजा हुआ
- संरुढ—भू॰ क॰ कृ॰—-—-—पक्का जमा हुआ, जिसकी जड़ दृढ़ हो गई हो
- संरुढ—भू॰ क॰ कृ॰—-—-—साहसी, भरोसे का
- संरोधः—पुं॰—-—सम् + रुध् + घञ्—पूरी रुकावट या विघ्न, अड़चन, रोक, रोक थाम
- संरोधः—पुं॰—-—-—घेराबंदी, घेरना
- संरोधः—पुं॰—-—-—बंधन, बेड़ी
- संरोधः—पुं॰—-—-—फेंकना, डालना
- संरोधनम्—नपुं॰—-—सम् + रुध् + ल्युट्—रुकावट, ठहराना, रोकना
- संलक्षणम्—नपुं॰—-—सम् + लक्ष + ल्युट्—निशान लगाना, पहचानना, चित्रण करना
- संलग्न—भू॰ क॰ कृ॰—-—सम् + लग् + क्त—घनिष्ठ, सटा हुआ, संहत, जुड़ा हुआ
- संलग्न—भू॰ क॰ कृ॰—-—-—गुत्थमगुत्था होना, भिड़ जाना
- संलयः—पुं॰—-—सम् + ली + अच्—लेटना, सोना
- संलयः—पुं॰—-—-—घुल जाना
- संलयः—पुं॰—-—-—प्रलय
- संलयनम्—नपुं॰—-—सम् + ली + ल्युट्—जुड़ जाना, चिपक जाना
- संलयनम्—नपुं॰—-—-—घुल जाना
- संललित—भू॰ क॰ कृ॰—-—सम् + लल् + क्त—लाड लगाया हुआ, प्यार किया हुआ
- संलापः—पुं॰—-—सम् + लप् + घञ्—समालाप, बातचीत, प्रवचन
- संलापः—पुं॰—-—-—गोपनीय या गुप्त बातें, अंतरंग वार्तालाप
- संलापः—पुं॰—-—-—एक प्रकार का संवाद, सम्भाषण
- संलापकः—पुं॰—-—संलाप + कन्—एक प्रकार का उपरुपक, संवादात्मक प्रकार का
- संलीढ—भू॰ क॰ कृ॰—-—सम् + लिह् + क्त—चाटा हुआ, उपभुक्त
- संलीन—भू॰ क॰ कृ॰—-—सम् + ली + क्त—चिपका हुआ, जुड़ा हुआ
- संलीन—भू॰ क॰ कृ॰—-—-—साथ-साथ मिलाया हुआ
- संलीन—भू॰ क॰ कृ॰—-—-—छिपाया हुआ, गुप्त रखा हुआ
- संलीन—भू॰ क॰ कृ॰—-—-—दहला हुआ
- संलीन—भू॰ क॰ कृ॰—-—-—सिकुड़ा हुआ, शिकन पड़ा हुआ
- संलीनकर्ण—वि॰—संलीन-कर्ण—-—जिसके कान नीचे लटके हों
- संलीनमानस—वि॰—संलीन-मानस—-—खिन्नमना, उदास
- संलोडनम्—नपुं॰—-—सम् + लोड् + ल्युट्—बाधा डालना, गड़बड़ करना
- संवत्—अव्य॰—-—सम् + वय् + क्विप्, यलोपः तुक् च—वर्ष
- संवत्—अव्य॰—-—-—विशेष कर विक्रमादित्य वर्ष
- संवत्सरः—पुं॰—-—संवसन्ति ऋतवोऽत्र-संवस् + सरन्—वर्ष
- संवत्सरः—पुं॰—-—-—विक्रमादित्याब्द
- संवत्सरः—पुं॰—-—-—शिव
- संवत्सरकरः—पुं॰—संवत्सर-करः—-—शिव का विशेषण
- संवत्सरभ्रमि—वि॰—संवत्सर-भ्रमि—-—एक वर्ष में पूरा चक्कर करने वाला
- संवत्सररथः—पुं॰—संवत्सर-रथः—-—एक वर्ष में पूरा होने वाला मार्ग
- संवदनम्—नपुं॰—-—सम् + वद् + ल्युट्—वार्तालाप करना, मिल कर बातें करना
- संवदनम्—नपुं॰—-—-—समाचार देना
- संवदनम्—नपुं॰—-—-—परीक्षण, ख्याल करना
- संवदनम्—नपुं॰—-—-—जादू मंत्र के द्वारा वश में करना
- संवदनम्—नपुं॰—-—-—मंत्र, ताबीज
- संवरः—पुं॰—-—सम् + वृ + अप् वा अच्—ढक्कन
- संवरः—पुं॰—-—-—समझ
- संवरः—पुं॰—-—-—संपीडन, संकोचन्
- संवरः—पुं॰—-—-—बाँध, सेतु, पुल
- संवरः—पुं॰—-—-—एक प्रकार का हरिण
- संवरः—पुं॰—-—-—एक राक्षस का नाम
- संवरम्—नपुं॰—-—-—छिपाव
- संवरम्—नपुं॰—-—-—सहनशीलता, आत्मनियंत्रण
- संवरम्—नपुं॰—-—-—जल
- संवरम्—नपुं॰—-—-—बौद्धों का एक विशेष धार्मिक अनुष्ठान
- संवरणम्—नपुं॰—-—सम् + वृ + ल्युट्—आवरण, आच्छादन
- संवरणम्—नपुं॰—-—-—छिपाव, दुराव
- संवरणम्—नपुं॰—-—-—बहाना, छद्मवेश
- संवर्जनम्—नपुं॰—-—सम् + वृज् + ल्युट्—आत्मसात्करण
- संवर्जनम्—नपुं॰—-—-—उपभोग करना, खा जाना
- संवर्तः—पुं॰—-—सम् + वृत् + घञ्—मुड़ना
- संवर्तः—पुं॰—-—-—घुलना, विनाश
- संवर्तः—पुं॰—-—-—संसार का नियतकालिक प्रलय
- संवर्तः—पुं॰—-—-—बादल
- संवर्तः—पुं॰—-—-—बादल
- संवर्तः—पुं॰—-—-—संसार में प्रलय होने पर उठने वाले सात बादलों में से एक
- संवर्तः—पुं॰—-—-—वर्ष
- संवर्तः—पुं॰—-—-—संग्रह, समुच्चय
- संवर्तकः—पुं॰—-—सम् + वृत् + णिच् + ण्वुल्—एक प्रकार का बादल
- संवर्तकः—पुं॰—-—-—प्रलयाग्नि, विश्वप्रलय के समय संसार को भस्म करने वाली आग
- संवर्तकः—पुं॰—-—-—वड़वानल
- संवर्तकः—पुं॰—-—-—बलराम का नाम
- संवर्तकिन्—पुं॰—-—संवर्तक + इनि—बलराम का नाम
- संवर्तिका—स्त्री॰—-—संवर्तक + टाप्, इत्वम्—कमल का नया पत्ता
- संवर्तिका—स्त्री॰—-—-—पराग केशर के पास की पंखड़ी
- संवर्तिका—स्त्री॰—-—-—दीपशिखा आदि
- संवर्धक—वि॰—-—सम् + वृध् + णिच् + ण्वुल्—पूर्ण विकसित करने वाला, बढ़ाने वाला
- संवर्धक—वि॰—-—-—सत्कार करने वाला, स्वागत करने वाला (अभ्यागतों का), आतिथ्यकारी
- संवर्धित—भू॰ क॰ कृ॰—-—सम् + वृध् + णिच् + क्त—पाला-पोसा हुआ, पालन पोषण किया हुआ
- संवर्धित—भू॰ क॰ कृ॰—-—-—बढ़ाया हुआ
- संवलित—भू॰ क॰ कृ॰—-—सम् + वल् + क्त—साथ मिला हुआ, मिलाया हुआ, मिश्रित
- संवलित—भू॰ क॰ कृ॰—-—-—तर किया हुआ
- संवलित—भू॰ क॰ कृ॰—-—-—संबद्ध, संयुक्त
- संवलित—भू॰ क॰ कृ॰—-—-—टूटा हुआ
- संवल्गित—वि॰—-—सम् + वल्ग् + क्त—पददलित किया हुआ
- संवल्गितम्—नपुं॰—-—-—ध्वनि
- संवसथः—पुं॰—-—सम् + वस् + अथच्—मिलकर रहने का स्थान, ग्राम, बस्ती
- संवहः—पुं॰—-—सम् + वह् + अच्—वायु के सात मार्गों में से तीसरा मार्ग
- संवादः—पुं॰—-—सम् + वद् + घञ्—मिलकर बोलना, बातचीत, वार्तालाप, कथोपकथन
- संवादः—पुं॰—-—-—चर्चा, वादविवाद
- संवादः—पुं॰—-—-—समाचार देना
- संवादः—पुं॰—-—-—सूचना, समाचार
- संवादः—पुं॰—-—-—स्वीकृति, सहमति
- संवादः—पुं॰—-—-—समनुरुपता, मेलजोल, समानता, सादृश्य
- संवादिन्—वि॰—-—संवाद + इनि—बोलने वाला, बातचीत करने वाला
- संवादिन्—वि॰—-—-—सदृश, समान, मिलता-जुलता अनुरुप
- संवारः—पुं॰—-—सम् + वृ + घञ्—आवरण, आच्छादन
- संवारः—पुं॰—-—-—वर्णोच्चारण के समय कण्ठादिकों का संकोचन, मन्द उच्चारण
- संवारः—पुं॰—-—-—न्यूनता
- संवारः—पुं॰—-—-—प्ररक्षण, संरक्षण
- संवारः—पुं॰—-—-—सुव्यवस्थापन
- संवासः—पुं॰—-—सम् + वस् + घञ्—मिलकर रहना,
- संवासः—पुं॰—-—-—समाज, मण्डली
- संवासः—पुं॰—-—-—घरेलु व्यवहार
- संवासः—पुं॰—-—-—घर, आवास स्थान
- संवासः—पुं॰—-—-—मनोरंजन के या सभा आदि के लिए खुला मैदान
- संवाहः—पुं॰—-—सम् + वह् + घञ्—ले जाना, ढोना
- संवाहः—पुं॰—-—-—मिलकर दबाना
- संवाहः—पुं॰—-—-—मालिश करना, मुट्ठी भरना
- संवाहः—पुं॰—-—-—वह नौकर जो मालिश करने या मुट्ठी भरने के लिए रक्खा गया हो
- संवाहकः—पुं॰—-—सम् + वह् + ण्वुल्—मालिश करने वाला
- संवाहनम् —नपुं॰—-—सम् + वह् + णिच् + ल्युट्—बोझा ढोना, उठाकर ले जाना
- संवाहनम् —नपुं॰—-—-—मालिश करना, मुट्ठी भरना
- संवाहना—स्त्री॰—-—सम् + वह् + णिच् + ल्युट्—बोझा ढोना, उठाकर ले जाना
- संवाहना—स्त्री॰—-—-—मालिश करना, मुट्ठी भरना
- संविक्तम्—नपुं॰—-—सम् + विज् + क्त—अलग किया हुआ, विशिष्ट
- संविग्न—वि॰—-—सम् + विज् + क्त—विक्षुब्ध, उत्तेजित, अशान्त, उद्विग्न, हड़बड़ाया हुआ
- संविग्न—वि॰—-—-—त्रस्त, भीत
- संविज्ञात—भू॰ क॰ कृ॰—-—सम् + वि + ज्ञा + क्त—विश्वविदित, सबके द्वारा माना हुआ, सर्वसम्मत
- संवित्तिः—स्त्री॰—-—सम् + विद् + क्तिन्—ज्ञान, प्रत्यक्षज्ञान चेतना, भावना
- संवित्तिः—स्त्री॰—-—-—समझ, बुद्धि
- संवित्तिः—स्त्री॰—-—-—पहचान, प्रत्यास्मरण
- संवित्तिः—स्त्री॰—-—-—सांमनस्य, मानसिक समझौता
- संविद्—स्त्री॰—-—सम् + विद् + क्विप्—ज्ञान, समझ, बुद्धि
- संविद्—स्त्री॰—-—-—चेतना, प्रत्यक्षज्ञान
- संविद्—स्त्री॰—-—-—इकरार, वचन, संविदा, अनुबन्ध, प्रतिज्ञा
- संविद्—स्त्री॰—-—-—स्वीकृति, सहमति
- संविद्—स्त्री॰—-—-—माना हुआ प्रचलन, विहित प्रथा
- संविद्—स्त्री॰—-—-—संग्राम, युद्ध लड़ाई
- संविद्—स्त्री॰—-—-—युद्ध की ललकार, प्रहरी संकेत
- संविद्—स्त्री॰—-—-—नाम, अभिधान
- संविद्—स्त्री॰—-—-—चिन्ह, संकेत
- संविद्—स्त्री॰—-—-—प्रसन्न करना, खुश करना, तुष्टीकरण
- संविद्—स्त्री॰—-—-—सहानुभूति, साथ देना
- संविद्—स्त्री॰—-—-—मनन
- संविद्—स्त्री॰—-—-—वार्तालाप, संलाप
- संविद्—स्त्री॰—-—-—भाँग
- संविद्व्यतिक्रमः —पुं॰—संविद्-व्यतिक्रमः —-—प्रतिज्ञा भंग करना, संविदा का उल्लंघन
- संविदा—स्त्री॰—-—संविद् + टाप्—करार, प्रतिज्ञा, ठेका
- संविदात—वि॰—-—-—जानने वाला, प्रतिभाशाली
- संविदात—वि॰—-—-—सांमनस्यपूर्ण
- संविदित—भू॰ क॰ कृ॰—-—सम् + विद + क्त—जाना हुआ, समझा हुआ
- संविदित—भू॰ क॰ कृ॰—-—-—पहचाना हुआ
- संविदित—भू॰ क॰ कृ॰—-—-—सुविदित, विश्रुत
- संविदित—भू॰ क॰ कृ॰—-—-—खोजा हुआ
- संविदित—भू॰ क॰ कृ॰—-—-—सम्मत
- संविदित—भू॰ क॰ कृ॰—-—-—उपदिष्ट, समझाया-बुझाया हुआ
- सविदितम्—नपुं॰—-—-—करार, प्रतिज्ञा
- संविधा—स्त्री॰—-—सम् + वि + धा + अङ् + टाप्—व्यवस्था, उपक्रमण, आयोजन
- संविधा—स्त्री॰—-—-—जीवन यापन का ढंग, जीवन चर्या के साधन
- संविधानम्—नपुं॰—-—सम् + वि + घा + ल्युट्—व्यवस्था, प्रबन्ध
- संविधानम्—नपुं॰—-—-—अनुष्ठान
- संविधानम्—नपुं॰—-—-—आयोजन, रीति
- संविधानम्—नपुं॰—-—-—कृत्य
- संविधानम्—नपुं॰—-—-—घटनाओं का क्रम
- संविधानकम्—नपुं॰—-—संविधान + कन्—घटनाओं का क्रम, किसी नाटक की कथावस्तु
- संविधानकम्—नपुं॰—-—-—अद्भूत कर्म, असाधारण घटना
- संविभागः—वि॰—-—सम् + वि + भज् + घञ्—विभाजन, बांटना
- संविभागः—वि॰—-—-—भाग, अंश, हिस्सा
- संविभागिन्—पुं॰—-—संविभाग + इनि—सहभागी, हिस्सेदार, साझीदार
- संविष्ट—भू॰ क॰ कृ॰—-—सम् + विश् + क्त—सोता हुआ, लेटा हुआ
- संविष्ट—भू॰ क॰ कृ॰—-—-—साथ-साथ घुसा हुआ
- संविष्ट—भू॰ क॰ कृ॰—-—-—मिलकर बैठा हुआ
- संविष्ट—भू॰ क॰ कृ॰—-—-—वस्त्र पहने हुए, कपड़े धारण किये हुए
- संवीक्षणम्—नपुं॰—-—सम् + वि + ईक्ष +ल्युट्—स्ब दिशाओं में देखना, खोज, खोई हुई वस्तु की तलाश
- संवीत—भू॰ क॰ कृ॰—-—सम् + व्ये + क्त—वस्त्रों से सज्जित, कपड़े पहने हुए
- संवीत—भू॰ क॰ कृ॰—-—-—ढका हुआ, लिपटा हुआ, अधिच्छादित
- संवीत—भू॰ क॰ कृ॰—-—-—अलंकृत
- संवीत—भू॰ क॰ कृ॰—-—-—लपेटा हुआ, घेरा हुआ, बन्द किया हुआ, परिवेष्टित
- संवीत—भू॰ क॰ कृ॰—-—-—अभिभूत
- संवृक्तं—भू॰ क॰ कृ॰—-—सम् + वृज् + क्त—खाया हुआ, उपभुक्त
- संवृक्तं—भू॰ क॰ कृ॰—-—-—नष्ट
- संवृत—भू॰ क॰ कृ॰—-—सम् + वृ + क्त—ढका हुआ, आच्छादित
- संवृत—भू॰ क॰ कृ॰—-—-—प्रच्छन्न, गुप्त
- संवृत—भू॰ क॰ कृ॰—-—-—रहस्य
- संवृत—भू॰ क॰ कृ॰—-—-—समाप्त, बन्द, सुरक्षित
- संवृत—भू॰ क॰ कृ॰—-—-—अवकाश प्राप्त, एकान्तसेवी
- संवृत—भू॰ क॰ कृ॰—-—-—संकुचित, भींचा हुआ
- संवृत—भू॰ क॰ कृ॰—-—-—बलपूर्वक छीना हुआ, जब्त किया हुआ
- संवृत—भू॰ क॰ कृ॰—-—-—भरा हुआ, पूर्ण
- संवृत—भू॰ क॰ कृ॰—-—-—सहित
- संवृतम्—नपुं॰—-—-—गुप्त स्थान, एकान्त स्थान, गोपनीयता
- संवृतम्—नपुं॰—-—-—उच्चारण का एक प्रकार
- संवृताकार—वि॰—संवृत-आकार—-—जो अपनी आन्तरिक भावनाओं को बाहर प्रकट नहीं होने देता हैं, जो अपने मन के विचारों का अता-पता नहीं देता
- संवृतमन्त्र—वि॰—संवृत-मन्त्र—-—जो अपनी भावनाओं को गुप्त रखता है
- संवृतिः—स्त्री॰—-—सम् + वृ + क्तिन्—आवरण, आच्छादन
- संवृतिः—स्त्री॰—-—-—छिपाव, दबाना, गुप्त रखना
- संवृतिः—स्त्री॰—-—-—गुप्त प्रयोजन, अभिसंधि
- संवृत्त—भू॰ क॰ कृ॰—-—सम् + वृत् + क्त—हुआ, घटा, घटित हुआ
- संवृत्त—भू॰ क॰ कृ॰—-—-—भरा गया, सम्पन्न
- संवृत्त—भू॰ क॰ कृ॰—-—-—संचित, एकस्थान पर राशीकृत
- संवृत्त—भू॰ क॰ कृ॰—-—-—बीता हुआ, गया हुआ
- संवृत्त—भू॰ क॰ कृ॰—-—-—ढका हुआ
- संवृत्त—भू॰ क॰ कृ॰—-—-—सुसज्जित
- संवृत्तः—पुं॰—-—-—वरुण का नाम
- संवृत्तिः—स्त्री॰—-—सम् + वृत् + क्तिन्—होना, घटना, घटित होना
- संवृत्तिः—स्त्री॰—-—-—निष्पन्नता
- संवृत्तिः—स्त्री॰—-—-—आवरण
- संवृद्धि—भू॰ क॰ कृ॰—-—सम् + वृध् + क्त—पूर्ण विकसित, बढ़ा हुआ, पूर्ण वृद्धि को प्राप्त
- संवृद्धि—भू॰ क॰ कृ॰—-—-—ऊँचा या लम्बा, बढ़ा हुआ, बड़ा विशाल
- संवृद्धि—भू॰ क॰ कृ॰—-—-—समृद्धिशाली, खिलता हुआ, फलता फूलता हुआ
- संवेगः—पुं॰—-—सम् + विज् + घञ्—विक्षोभ, हड़बड़ी, उत्तेजना
- संवेगः—पुं॰—-—-—प्रचंडगति, शीघ्रगामिता, प्रचंडता
- संवेगः—पुं॰—-—-—जल्दी, चाल
- संवेगः—पुं॰—-—-—तड़पाने वाली पीड़ा, वेदना, तीक्ष्णता
- संवेदः—पुं॰—-—सम् + विद् + घञ्—प्रत्यक्षज्ञान, जानकारी, चेतना, भावना
- संवेदनम् —नपुं॰—-—सम् + विद् + ल्युट्—प्रत्यक्षज्ञान, जानकारी
- संवेदनम् —नपुं॰—-—-—तीव्र अनुभूति, भावना, अनुभूति, भोगना
- संवेदनम् —नपुं॰—-—-—देना आत्मसमर्पण करना
- संवेदना—स्त्री॰—-—सम् + विद् + ल्युट्—प्रत्यक्षज्ञान, जानकारी
- संवेदना—स्त्री॰—-—-—तीव्र अनुभूति, भावना, अनुभूति, भोगना
- संवेदना—स्त्री॰—-—-—देना आत्मसमर्पण करना
- संवेशः—पुं॰—-—सम् + विश् + घञ्—निद्रा विश्राम
- संवेशः—पुं॰—-—-—स्वप्न
- संवेशः—पुं॰—-—-—आसन
- संवेशः—पुं॰—-—-—मैथुन, संभोग या रतिबंध विशेष
- संवेशनम्—नपुं॰—-—सम् + विश् + ल्युट्—मैथुन, संभोग
- संव्यानम्—नपुं॰—-—सम् + व्ये + ल्युट्—आवरण, परिवेष्टन
- संव्यानम्—नपुं॰—-—-—वस्त्र, कपड़ा, परिधान
- संव्यानम्—नपुं॰—-—-—उत्तरीय वस्त्र
- संशप्तकः—पुं॰—-—सम्यक् शप्तमङीकारो यस्य कप्—वह योद्धा जिसने युद्ध से न भागने की शपथ खायी हो और जो दूसरे योद्धाओं को भागने से रोकने के लिए रक्खा गया हो
- संशप्तकः—पुं॰—-—-—छटा हुआ योद्धा
- संशप्तकः—पुं॰—-—-—सहयोगि योद्धा
- संशप्तकः—पुं॰—-—-—वह षड्यन्त्रकारी जिसने किसी को मार डालने का बीड़ा उठाया हो
- संशयः—पुं॰—-—सम् + शी + अच्—संदेह, अनिश्चति, चपलता, संकोच
- संशयः—पुं॰—-—-—शंका, शक
- संशयः—पुं॰—-—-—संदेह, या अनिर्णय न्यायदर्शन में वर्णित सोलह भेदों में से एक
- संशयः—पुं॰—-—-—डर, खतरा, जोखिम
- संशयः—पुं॰—-—-—संभावना
- संशयात्मन्—वि॰—संशय-आत्मन्—-—संदेह करने वाला, शंकाशील
- संशयापन्न—वि॰—संशय-आपन्न—-—संदेहपूर्ण, अनिश्चित, अस्थिर
- संशयोपेत—वि॰—संशय-उपेत—-—संदेहपूर्ण, अनिश्चित, अस्थिर
- संशयस्थ—वि॰—संशय-स्थ—-—संदेहपूर्ण, अनिश्चित, अस्थिर
- संशयगत—वि॰—संशय-गत—-—खतरे में पड़ा हुआ
- संशयछेदः—पुं॰—संशय-छेदः—-—संदेह का निवारण, निर्णय
- संशयछेदिन्—वि॰—संशय-छेदिन्—-—सभी संदेहों को मिटाने वाला, निर्णयात्मक
- संशयान —वि॰—-—सम् + शी + शानच्—सन्देहपूर्ण, अस्थिर, अनिश्चित, चंचल
- संशयालु—वि॰—-—संशय + आलुच्—सन्देहपूर्ण, अस्थिर, अनिश्चित, चंचल
- संशरणम्—नपु॰—-—सम् + श्रृ + ल्युट्—युद्ध का आरम्भ, आक्रमण, चढ़ाई, धावा
- संशित—भू॰ क॰ कृ॰—-—सम् + शो + क्त—तेज किया हुआ, प्रोत्तेजित किया हुआ
- संशित—भू॰ क॰ कृ॰—-—-—तेज, तीक्ष्ण
- संशित—भू॰ क॰ कृ॰—-—-—सर्वथा पूरा किया हुआ, क्रियान्वित, निष्पन्न
- संशित—भू॰ क॰ कृ॰—-—-—निर्णीत, सुनिश्चित, निर्धारित, निश्चित
- संशितात्मन्—वि॰—संशित-आत्मन्—-—जिसका मन सर्वथा परिपक्व या अनुशिष्ट है
- संशितव्रत—वि॰—संशित-व्रत—-—जिसने अपनी प्रतिज्ञा पूरी कर ली हैं
- संशुद्ध—भू॰ क॰ कृ॰—-—सम् + शुध् + क्त—पूरी तरह शुद्ध किया हुआ, पवित्र
- संशुद्ध—भू॰ क॰ कृ॰—-—-—पालिश किया हुआ, संस्कृत
- संशुद्ध—भू॰ क॰ कृ॰—-—-—प्रायश्चित के द्वारा विशुद्ध किया हुआ
- संशुद्धिः—स्त्री॰—-—सम् + शुध् + क्तिन्—नितान्त पवित्रीकरण
- संशुद्धिः—स्त्री॰—-—-—स्वच्छ करना, विमल करना
- संशुद्धिः—स्त्री॰—-—-—संशोधन, समाधान, परिशोधन
- संशुद्धिः—स्त्री॰—-—-—स्वच्छता, सफाई
- संशुद्धिः—स्त्री॰—-—-—भुगतान
- संशोधनम्—नपुं॰—-—सम् + शुध् + ल्युट्—पवित्रीकरण, स्वच्छता आदि
- संश्चत्—नपुं॰—-—सम् + श्चु + डति—दाव-पेंच, जादूगरी, इन्द्रजाल, मरीचिका
- संश्चत्—पुं॰—-—-—जादूगर
- संश्यान—भू॰ क॰ कृ॰—-—सम् + श्यै + क्त—संकुचित, सिकुड़ा हुआ
- संश्यान—भू॰ क॰ कृ॰—-—-—जमा हुआ, ठिठुरा हुआ
- संश्यान—भू॰ क॰ कृ॰—-—-—लपेटा हुआ
- संश्यान—भू॰ क॰ कृ॰—-—-—अवसन्न
- संश्रयः—पुं॰—-—सम् + श्रि + अच्—विश्रामस्थल, आवास-स्थान, निवास-स्थान, वास-स्थान
- संश्रयः—पुं॰—-—-—प्ररक्षण या शरण की खोज, शरण के लिए दौड़ना, मित्रता करना, पारस्परिक प्ररक्षण के लिए संघटित होना, राजनीति में वर्णित छः उपायों में से एक
- संश्रयः—पुं॰—-—-—आश्रय, शरण, आश्रम, प्ररक्षण, पनाह
- संश्रवः—पुं॰—-—सम् + श्रु + अप्—ध्यानपूर्वक सुनना
- संश्रवः—पुं॰—-—-—प्रतिज्ञा, करार, वादा
- संश्रवणम्—नपुं॰—-—सम् + श्रु + ल्युट्—सुनना
- संश्रवणम्—नपुं॰—-—-—कान
- संश्रित—भू॰ क॰ कृ॰—-—सम् + श्रि + क्त—शरण में गया हुआ
- संश्रित—भू॰ क॰ कृ॰—-—-—सहारा दिया हुआ, आश्रय दिया हुआ
- संश्रुत—भू॰ क॰ कृ॰—-—सम् + श्रु + क्त—प्रतिज्ञात करार किया हुआ
- संश्रुत—भू॰ क॰ कृ॰—-—-—भलीभांति सुना हुआ
- संश्लिष्ट—भू॰ क॰ कृ॰—-—सम् + श्लिष् + क्त—बांधा हुआ, साथ साथ मिला हुआ, जुड़ा हुआ
- संश्लिष्ट—भू॰ क॰ कृ॰—-—-—सटा हुआ, संस्पर्शी, संसक्त
- संश्लिष्ट—भू॰ क॰ कृ॰—-—-—सुसज्जित, युक्त, सहित
- संश्लेषः—पुं॰—-—सम् + श्लिष् + घञ्—आलिंगन, परिरम्भण
- संश्लेषः—पुं॰—-—-—मिलाप, संबंध, संपर्क
- संश्लेषणम्—नपुं॰—-—सम् + श्लिष् + ल्युट्—मिलाकर भींचना
- संश्लेषणम्—नपुं॰—-—-—साथ साथ बांधने का साधन
- संश्लेषणा—स्त्री॰—-—सम् + श्लिष् + ल्युट्—मिलाकर भींचना
- संश्लेषणा—स्त्री॰—-—-—साथ साथ बांधने का साधन
- संसक्त—भू॰ क॰ कृ॰—-—सम् + सञ्ज् + क्त—साथ जुड़ा हुआ, चिपका हुआ
- संसक्त—भू॰ क॰ कृ॰—-—-—जमा हुआ, संल्गन, आसक्त, सटा हुआ
- संसक्त—भू॰ क॰ कृ॰—-—-—साथ मिलाया हुआ, शृंखलाबद्ध, पास पास मिला हुआ
- संसक्त—भू॰ क॰ कृ॰—-—-—निकट, आसन्न, सटा हुआ
- संसक्त—भू॰ क॰ कृ॰—-—-—अव्यवस्थित मिला हुआ, मिश्रित, गड्डमड्ड किया हुआ
- संसक्त—भू॰ क॰ कृ॰—-—-—डटा हुआ, तुला हुआ
- संसक्त—भू॰ क॰ कृ॰—-—-—संपन्न, सहित
- संसक्त—भू॰ क॰ कृ॰—-—-—जकड़ा हुआ, प्रतिबद्ध
- संसक्तमनस्—वि॰—संसक्त-मनस्—-—जिसका मन किसी विषय पर जमा हुआ हो
- संसक्तयुग—वि॰—संसक्त-युग—-—जूए में जुता हुआ, जीन कसा हुआ
- संसक्तिः—स्त्री॰—-—सम् + सञ्ज् + क्तिन्—सटे रहना, घनिष्ठ मिलन या संगम
- संसक्तिः—स्त्री॰—-—-—घनिष्ट संपर्क, सामीप्य
- संसक्तिः—स्त्री॰—-—-—आपसी मेलजोल, घनिष्ठता, घनिष्ट परिचय
- संसक्तिः—स्त्री॰—-—-—बांधना, मिला कर जकड़ना
- संसक्तिः—स्त्री॰—-—-—भक्ति, दुर्व्यस्तता
- संसद्—स्त्री॰—-—सम् + सद् + क्विप्—सभा, सम्मिलन, मंडल
- संसद्—स्त्री॰—-—-—न्यायालय
- संसरणम्—नपुं॰—-—सम् + सृ + ल्युट्—जाना, प्रगति करना, चक्कर काटना
- संसरणम्—नपुं॰—-—-—संसार, सांसारिक जीवन, लौकिक सत्ता
- संसरणम्—नपुं॰—-—-—जन्म और पुनर्जन्म
- संसरणम्—नपुं॰—-—-—सेना का निर्बाध कूच
- संसरणम्—नपुं॰—-—-—युद्ध का आरम्भ
- संसरणम्—नपुं॰—-—-—राजमार्ग
- संसरणम्—नपुं॰—-—-—नगर के दरवाजों के समीप की धर्मशाला
- संसर्गः—पुं॰—-—सम् + सृज् + घञ्—सम्मिश्रण, संगम, मिलाप
- संसर्गः—पुं॰—-—-—सम्पर्क, संगति, साहचर्य, समाज
- संसर्गः—पुं॰—-—-—सामीप्य, संस्पर्श
- संसर्गः—पुं॰—-—-—मेल-जोल, परिचय
- संसर्गः—पुं॰—-—-—मैथुन, संभोग
- संसर्गः—पुं॰—-—-—सह-अस्तित्व, घनिष्ठ संबंध
- संसर्गअभावः—पुं॰—संसर्गाभावः—-—अभाव के दो मुख्य भेदों मे से एक, सापेक्ष अभाव जो तीन प्रकार का है
- संसर्गदोषः—पुं॰—संसर्गदोषः—-—साहचर्य या संगति के विशेषकर कुसंगति के फलस्वरुप उत्पन्न होने वाली बुराई या दोष
- संसर्गिन्—वि॰—-—संसर्ग + इनि—संयुक्त, मिला हुआ
- संसर्गिन्—पुं॰—-—-—सहचर, साथी
- संसर्जनम्—नपुं॰—-—सम् + सृज् + ल्युट्—सम्मिश्रण
- संसर्जनम्—नपुं॰—-—-—छोड़ना, परित्याग करना
- संसर्जनम्—नपुं॰—-—-—खाली करना, शून्य करना
- संसर्पः—पुं॰—-—सम् + सृप् + ल्युट्—सरकना, रेंगना
- संसर्पः—पुं॰—-—-—मलमास, लौंद का महीना जो क्षयमास वाले वर्ष में होता है
- संसर्पणम्—नपुं॰—-—सम् + सृप् + ल्युट्—सरकना
- संसर्पणम्—नपुं॰—-—-—अचानक आक्रमण, सहसा धावा
- संसर्पिन्—वि॰—-—संसर्प + इनि—सरकने वाला, रेंगने वाला
- संसादः—पुं॰—-—सम् + सद् + घञ्—सभा
- संसारः—पुं॰—-—सम् + सृ + घञ्—मार्ग, रास्ता
- संसारः—पुं॰—-—-—सांसारिक जीवनचक्र, धर्मनिरपेक्ष जीवन, लौकिक जिंदगी, दुनिया
- संसारः—पुं॰—-—-—आवागमन, जन्मान्तर, जन्मपरंपरा
- संसारः—पुं॰—-—-—सांसारिक भ्रम
- संसारगमनम्—नपुं॰—संसार-गमनम्—-—आवागमन
- संसारगुरुः—पुं॰—संसार-गुरुः—-—कामदेव का विशेषण
- संसारमार्गः—पुं॰—संसार-मार्गः—-—लौकिक बातों का क्रम, सांसारिक जीवन
- संसारमार्गः—पुं॰—संसार-मार्गः—-—योनिमुख, भगद्वार
- संसारमोक्षः—पुं॰—संसार-मोक्षः—-—ऐहिक जीवन से मुक्ति
- संसारमोक्षणम्—नपुं॰—संसार-मोक्षणम्—-—ऐहिक जीवन से मुक्ति
- संसारिन्—वि॰—-—संसार + इनि—लौकिक, दुनियावी, देहान्तरगामी
- संसारिन्—पुं॰—-—-—सजीव प्राणी, जीवजन्तु
- संसारिन्—पुं॰—-—-—जीवधारी, जीवात्मा
- संसिद्ध—भू॰ क॰ कृ॰—-—सम् + सिध् + क्त—सर्वथा निष्पन्न, पूरा किया हुआ
- संसिद्ध—भू॰ क॰ कृ॰—-—-—जिसे मोक्ष की सिद्धि प्राप्त हो गई हो, मुक्त
- संसिद्धिः—स्त्री॰—-—सम् + सिध् + क्तिन्—पूर्णता, पूर्ण निष्पन्नता
- संसिद्धिः—स्त्री॰—-—-—कैवल्य, मोक्ष
- संसिद्धिः—स्त्री॰—-—-—प्रकृति, नैसर्गिक वृत्ति, अवस्था या गुण
- संसिद्धिः—स्त्री॰—-—-—प्रणयोन्मत्त या नशे में चूर स्त्री
- संसूचनम्—नपुं॰—-—सम् + सूच् + ल्युट्—प्रकट करना, सिद्ध करना
- संसूचनम्—नपुं॰—-—-—सूचित करना, कहना
- संसूचनम्—नपुं॰—-—-—संकेत करना, भेद खोलना
- संसूचनम्—नपुं॰—-—-—भर्त्सना, झिड़कना
- संसृतिः—स्त्री॰—-—सम् + सृ + क्तिन्—मार्ग, धारा, प्रवाह
- संसृतिः—स्त्री॰—-—-—लौकिक जीवन, संसारचक्र
- संसृतिः—स्त्री॰—-—-—देहान्तरगमन, आवागमन
- संसृष्ट—भू॰ क॰ कृ॰—-—सम् + सृज् + क्त—मिश्रित, मिला हुआ, साथ साथ मिलाया हुआ, सम्मिलित किया हुआ
- संसृष्ट—भू॰ क॰ कृ॰—-—-—साझीदारों की भाँति साथ साथ संबद्ध
- संसृष्ट—भू॰ क॰ कृ॰—-—-—प्रशांत
- संसृष्ट—भू॰ क॰ कृ॰—-—-—पुनर्युक्त
- संसृष्ट—भू॰ क॰ कृ॰—-—-—फँसा हुआ
- संसृष्ट—भू॰ क॰ कृ॰—-—-—निर्मित
- संसृष्ट—भू॰ क॰ कृ॰—-—-—स्वच्छ वस्त्रों से सुसज्जित
- संसृष्टता—स्त्री॰—-—सम् + सृज् + क्त + ता—समाज, संध
- संसृष्टता—स्त्री॰—-—-—(विधि में) आर्थिक हित की दृष्टि से बंधु बांधवों का ऐच्छिक पुनर्मिलन
- संसृष्टत्वम्—नपुं॰—-—सम् + सृज् + क्त + त्वम्—समाज, संध
- संसृष्टत्वम्—नपुं॰—-—-—(विधि में) आर्थिक हित की दृष्टि से बंधु बांधवों का ऐच्छिक पुनर्मिलन
- संसृष्टिः—स्त्री॰—-—सम् + सृज् + क्तिन्—संबंध, मिलाप
- संसृष्टिः—स्त्री॰—-—-—साहचर्य, मेल-जोल, सहभागिता, साझीदारी
- संसृष्टिः—स्त्री॰—-—-—एक ही परिवार में मिलकर रहना
- संसृष्टिः—स्त्री॰—-—-—संग्रह
- संसृष्टिः—स्त्री॰—-—-—संचय करना, जोड़ना
- संसृष्टिः—स्त्री॰—-—-—(सां में) एक ही संदर्भ में दो या दो से अधिक अलंकारों का स्वतंत्र रुप से सह-अस्तित्व
- संसेकः—पुं॰—-—सम् + सिच् + घञ्—छिड़कना, जल से तर करना
- संस्कर्तृ—पुं॰—-—सम् + कृ + तृच्—जो सुसज्जित करता है, खाना बनाता है, या किसी प्रकार की तैयारी करता है
- संस्कर्तृ—पुं॰—-—-—जो अभिमंत्रित करता है, पहल करता है
- संस्कारः—पुं॰—-—सम् + कृ + घञ्—पूर्ण करना, संस्कृत करना, पालिश करना
- संस्कारः—पुं॰—-—-—संस्क्रिया, पूर्णता, व्याकरण की दृष्टि से (शब्दों की) विशुद्धता
- संस्कारः—पुं॰—-—-—शिक्षा अनुशीलन प्रशिक्षण
- संस्कारः—पुं॰—-—-—तैयार करना, आसज्जा
- संस्कारः—पुं॰—-—-—खाना बनाना, भोज्य पदार्थ तैयार करना
- संस्कारः—पुं॰—-—-—श्रृंगार, सजावट, अलंकार
- संस्कारः—पुं॰—-—-—अभिमन्त्रण, अन्तःशुद्धि, पवित्रीकरण
- संस्कारः—पुं॰—-—-—छाप, रुप, साँचा, कार्यवाही, प्रभाव
- संस्कारः—पुं॰—-—-—विचार भाव, प्रत्यय
- संस्कारः—पुं॰—-—-—मनःशक्ति या धारिता
- संस्कारः—पुं॰—-—-—कार्य का प्रभाव, किसी कर्म का गुण
- संस्कारः—पुं॰—-—-—अपनी पूर्व जन्म की वासनाओं को पुनर्जीवित करने का गुण, छाप डालने की शक्ति, वैशेषिकों द्वारा माने हुए चौबीस गुणों मे से एक
- संस्कारः—पुं॰—-—-—प्रत्यास्मरणशक्ति, संस्मरण
- संस्कारः—पुं॰—-—-—शुद्धिसंस्कार, पुनीत कृत्य पुण्यसंस्कार
- संस्कारः—पुं॰—-—-—धार्मिक कृत्य या अनुष्ठान
- संस्कारः—पुं॰—-—-—उपनयन संस्कार
- संस्कारः—पुं॰—-—-—अन्त्येष्टि संस्कार
- संस्कारः—पुं॰—-—-—मांजकर चमकाने के काम आने वाला पत्थर, झावाँ
- संस्कारपूत—वि॰—संस्कार-पूत—-—पुण्यकृत्यों द्वारा शुद्ध किया हुआ
- संस्कारपूत—वि॰—संस्कार-पूत—-—शिक्षा या अन्य संस्कारों द्वारा पवित्र किया हुआ
- संस्काररहित—वि॰—संस्कार-रहित—-—वह द्विज जो संस्कार हीन हो, अथवा जिसका उपनयन संस्कार न हुआ हो, और इसलिए जो व्रात्य (पतित, जातिबहिष्कृत) हो गया हो
- संस्कारवर्जित—वि॰—संस्कार-वर्जित—-—वह द्विज जो संस्कार हीन हो, अथवा जिसका उपनयन संस्कार न हुआ हो, और इसलिए जो व्रात्य हो गया हो
- संस्कारहीन—वि॰—संस्कार-हीन—-—वह द्विज जो संस्कार हीन हो, अथवा जिसका उपनयन संस्कार न हुआ हो, और इसलिए जो व्रात्य (पतित, जातिबहिष्कृत) हो गया हो
- संस्कृत—भू॰ क॰ कृ॰—-—सम् + कृ + क्त—पूरा किया गया, परिष्कृत, मांज कर चमकाया हुआ, आवर्धित
- संस्कृत—भू॰ क॰ कृ॰—-—-—कृत्रिम रुप से बनाया गया, सुरचित, सुनिर्मित, सुसम्पादित
- संस्कृत—भू॰ क॰ कृ॰—-—-—तैयार किया गया, संवारा गया, सुसज्जित किया गया, पकाया गया
- संस्कृत—भू॰ क॰ कृ॰—-—-—अभिमन्त्रित, पुनीत किया गया
- संस्कृत—भू॰ क॰ कृ॰—-—-—सांसारिक जीवन में दीक्षित, विवाहित
- संस्कृत—भू॰ क॰ कृ॰—-—-—स्वच्छ किया गया, पवित्र किया गया
- संस्कृत—भू॰ क॰ कृ॰—-—-—अलंकृत किया गया, सजाया गया
- संस्कृत—भू॰ क॰ कृ॰—-—-—श्रेष्ठ, सर्वोत्तम
- संस्कृतः—पुं॰—-—-—व्याकरण के नियमों के अनुसार सिद्ध किया गया शब्द, नियमित व्युत्पन्न शब्द
- संस्कृतः—पुं॰—-—-—द्विजाति का वह व्यक्ति जिसका शुद्धिसंस्कार हो चुका हो
- संस्कृतः—पुं॰—-—-—विद्वान पुरुष
- संस्कृतम्—नपुं॰—-—-—परिष्कृत या अत्यन्त परिमार्जित भाषा, संस्कृत भाषा
- संस्कृतम्—नपुं॰—-—-—धार्मिक प्रचलन
- संस्कृतम्—नपुं॰—-—-—चढ़ावा, आहुति
- संस्क्रिया—स्त्री॰—-—सम् + कृ + श, इयङ्, टाप्—शुद्धिसंस्कार
- संस्क्रिया—स्त्री॰—-—-—अभिमन्त्रण
- संस्क्रिया—स्त्री॰—-—-—और्ध्वदैहिकक्रिया, अन्त्येष्टि संस्कार
- संस्तम्भः—पुं॰—-—सम् + स्तम्भ् + घञ्—सहारा, टेक
- संस्तम्भः—पुं॰—-—-—दृढ़ करना, सबल बनाना, जमाना
- संस्तम्भः—पुं॰—-—-—विराम, यति
- संस्तम्भः—पुं॰—-—-—जड़ता, लकवा
- संस्तरः—पुं॰—-—सम् + स्तृ + अप्—शय्या, पलंग, बिस्तर
- संस्तरः—पुं॰—-—-—यज्ञ
- संस्तवः—पुं॰—-—सम् + स्तु + अप्—प्रशंसा, स्तुति
- संस्तवः—पुं॰—-—-—जान-पहचान, घनिष्ठता, परिचय
- संस्तावः—पुं॰—-—सम् + स्तु + घञ्—प्रशंसा, ख्याति
- संस्तावः—पुं॰—-—-—सम्मिलित, स्तुतिपाठ
- संस्तावः—पुं॰—-—-—यज्ञ में स्तुति पाठक ब्राह्मणों के बैठने का स्थान
- संस्तुत—भू॰ क॰ कृ॰—-—सम् + स्तु + क्त—प्रशस्त, जिसकी स्तुति की गई हो
- संस्तुत—भू॰ क॰ कृ॰—-—-—मिलकर प्रशंसा किया गया
- संस्तुत—भू॰ क॰ कृ॰—-—-—सम्मत, संवादी
- संस्तुत—भू॰ क॰ कृ॰—-—-—घनिष्ठ, परिचित
- संस्तुतिः—स्त्री॰—-—सम् + स्तु + क्तिन्—प्रशंसा, स्तुति
- संस्त्यायः—पुं॰—-—सम् + स्त्यै + घञ्—संचय, राशि, संघात
- संस्त्यायः—पुं॰—-—-—सामीप्य
- संस्त्यायः—पुं॰—-—-—फैलाव, प्रसार, विस्तार
- संस्त्यायः—पुं॰—-—-—घर, निवासस्थान, आवास
- संस्त्यायः—पुं॰—-—-—परिचय, मित्रों या परिचितों की बातचीत
- संस्थ—वि॰—-—सम् + स्था + क—ठहरने वाला, डटा रहने वाला, टिकाऊ
- संस्थ—वि॰—-—-—रहने वाला, विद्यमान, मौजूद, स्थित
- संस्थ—वि॰—-—-—पालतू, घरेलू बनाया हुआ, सधाया हुआ
- संस्थ—वि॰—-—-—स्थिर अचल
- संस्थ—वि॰—-—-—समाप्त, नष्ट, मृत
- संस्था—स्त्री॰—-—-—निवासी, वास्तव्य
- संस्था—स्त्री॰—-—-—पड़ौसी, स्वदेशवासी
- संस्था—स्त्री॰—-—-—गुप्तचर
- संस्था—स्त्री॰—-—सम् + स्था + अङ् + टाप्—संघात, सभा
- संस्था—स्त्री॰—-—-—स्थिति, प्राणी की अवस्था या दशा
- संस्था—स्त्री॰—-—-—रुप, प्रकृति
- संस्था—स्त्री॰—-—-—धंधा, व्यवसाय, रहन-सहन का बंधा हुआ तरीका
- संस्था—स्त्री॰—-—-—शुद्ध और उचित आचरण
- संस्था—स्त्री॰—-—-—अन्त, पूर्ति
- संस्था—स्त्री॰—-—-—विराम, यति
- संस्था—स्त्री॰—-—-—हानि, विनाश
- संस्था—स्त्री॰—-—-—प्रलय
- संस्था—स्त्री॰—-—-—अनुरुपता
- संस्था—स्त्री॰—-—-—राजकीय आज्ञा
- संस्था—स्त्री॰—-—-—सोम यज्ञ का एक रुप
- संस्थानम्—नपुं॰—-—सम् + स्था + ल्युट्—संचय, राशि, मात्रा
- संस्थानम्—नपुं॰—-—-—प्राथमिक अणुओं की समष्टि
- संस्थानम्—नपुं॰—-—-—संरुपण, विन्यास
- संस्थानम्—नपुं॰—-—-—रुप, आकृति, दर्शन, सूरत शक्ल
- संस्थानम्—नपुं॰—-—-—संरचना, निर्माण
- संस्थानम्—नपुं॰—-—-—पड़ौस
- संस्थानम्—नपुं॰—-—-—आवास का सामान्य स्थल, सार्वजनिक स्थान
- संस्थानम्—नपुं॰—-—-—स्थिति अवस्था
- संस्थानम्—नपुं॰—-—-—कोई स्थान या जगह
- संस्थानम्—नपुं॰—-—-—चौराहा
- संस्थानम्—नपुं॰—-—-—निशान, चिन्ह, विशेषक चिन्ह
- संस्थानम्—नपुं॰—-—-—मृत्यु
- संस्थापनम्—नपुं॰—-—सम् + स्था + णिच् + ल्युट्—एक स्थान पर रखना, संचय करना
- संस्थापनम्—नपुं॰—-—-—जमाना, निर्धारण करना, विनियमित करना
- संस्थापनम्—नपुं॰—-—-—स्थापित करना, पुष्ट करना,
- संस्थापनम्—नपुं॰—-—-—नियंत्रित करना, दमन करना
- संस्थापना—स्त्री॰—-—-—नियन्त्रण, दमन
- संस्थापना—स्त्री॰—-—-—शान्त करने के उपाय
- संस्थित—भू॰ क॰ कृ॰—-—सम् + स्था + क्त—साथ-साथ खड़ा होने वाला
- संस्थित—भू॰ क॰ कृ॰—-—-—विद्यमान, ठहरने वाला
- संस्थित—भू॰ क॰ कृ॰—-—-—सटा हुआ, मिला हुआ
- संस्थित—भू॰ क॰ कृ॰—-—-—मिलता-जुलता, समान
- संस्थित—भू॰ क॰ कृ॰—-—-—संचित, राशीकृत
- संस्थित—भू॰ क॰ कृ॰—-—-—स्थिर, जमा हुआ, स्थापित
- संस्थित—भू॰ क॰ कृ॰—-—-—अन्दर या ऊपर रखा हुआ, अन्तर्वर्ती
- संस्थित—भू॰ क॰ कृ॰—-—-—अचल
- संस्थित—भू॰ क॰ कृ॰—-—-—रोका हुआ पूरा किया हुआ, अन्त तक निष्पन्न, समाप्त
- संस्थित—भू॰ क॰ कृ॰—-—-—मृत, उपरत
- संस्थितिः—स्त्री॰—-—सम् + स्था + क्तिन्—साथ-साथ होना, मिलकर रहना
- संस्थितिः—स्त्री॰—-—-—सटा होना, निकटता, सामीप्य
- संस्थितिः—स्त्री॰—-—-—निवासस्थान, आवासस्थल, विश्रामगृह
- संस्थितिः—स्त्री॰—-—-—संचय, ढेर
- संस्थितिः—स्त्री॰—-—-—अवधि, कालावधि
- संस्थितिः—स्त्री॰—-—-—अवस्थान, स्थिति, जीवन की दशा
- संस्थितिः—स्त्री॰—-—-—प्रतिबंध
- संस्थितिः—स्त्री॰—-—-—मृत्यु
- संस्पर्शः—पुं॰—-—सम् + स्पृश् + घञ्—संपर्क, छूना, सम्मिलन, मिश्रण
- संस्पर्शः—पुं॰—-—-—छूआ जाना, प्रभावित होना
- संस्पर्शः—पुं॰—-—-—प्रत्यक्षज्ञान, संवेदन
- संस्पर्शी—पुं॰—-—सम् + स्पृश् + अच् + ङीष—एकप्रकार का गंधयुक्त पौधा
- संस्फालः—पुं॰—-—सम्यक् स्फालः स्फुरणं यस्य प्रा॰ व॰—मेंढा
- संस्फालः—पुं॰—-—-—बादल
- संस्फेटः —पुं॰—-—सम् = स्फिट + घञ्—संग्राम, युद्ध
- संस्फोटः—पुं॰—-—सम् = स्फुट् + घञ्—संग्राम, युद्ध
- संस्मरणम्—नपुं॰—-—सम् + स्मृ + ल्युट्—याद करना, मन में लाना
- संस्मृतिः—स्त्री॰—-—सम् + स्मृ + क्तिन्—याद, प्रत्यास्मरण
- संस्रवः—पुं॰—-—सम् + स्रु + अप्—बहना, टपकना, रिसना
- संस्रवः—पुं॰—-—सम् + स्रु + अप्—सरिता
- संस्रवः—पुं॰—-—सम् + स्रु + अप्—तर्पण का अवशिष्टांश
- संस्रवः—पुं॰—-—सम् + स्रु + अप्—एक प्रकार का चढ़ावा या तर्पण
- संस्रावः—पुं॰—-—सम् + स्रु +घञ् —बहना, टपकना, रिसना
- संस्रावः—पुं॰—-—सम् + स्रु +घञ् —सरिता
- संस्रावः—पुं॰—-—सम् + स्रु +घञ् —तर्पण का अवशिष्टांश
- संस्रावः—पुं॰—-—सम् + स्रु +घञ् —एक प्रकार का चढ़ावा या तर्पण
- संहत—भू॰ क॰ कृ॰—-—सम् + हन् + कत—मिलकर आघात किया हुआ, घायल
- संहत—भू॰ क॰ कृ॰—-—सम् + हन् + कत—बन्द, अवरुद्ध
- संहत—भू॰ क॰ कृ॰—-—सम् + हन् + कत—सुग्रथित, दृढ़तापूर्वक जुड़ा हुआ
- संहत—भू॰ क॰ कृ॰—-—सम् + हन् + कत—मिलाकर जोड़ा हुआ, मित्रता में बंधा हुआ
- संहत—भू॰ क॰ कृ॰—-—सम् + हन् + कत—स्म्पृक्त, दृढ़, ठोस
- संहत—भू॰ क॰ कृ॰—-—सम् + हन् + कत—संबद्ध, युक्त, मिलाकर रक्का हुआ, शरीर का अंग बना हुआ, सटा हुआ
- संहत—भू॰ क॰ कृ॰—-—सम् + हन् + कत—एकमत
- संहत—भू॰ क॰ कृ॰—-—सम् + हन् + कत—संघात, संचित
- संहतजानु—वि॰—संहदजानु—-—जिसके घुटने आपस में टकराते हों, लग्नजानुक
- संहतभ्रू—वि॰—संहतभ्रू—-—सघन भौंहों से युक्त
- संहतस्तनी—स्त्री॰—संहतस्तनी—-—वह स्त्री जिसके स्तन सटे हुए हों
- संहतता—स्त्री॰—-—संहत + तल् + टाप्—घना संपर्क, संयोजन
- संहतता—स्त्री॰—-—संहत + तल् + टाप्—सम्पृक्तता
- संहतता—स्त्री॰—-—संहत + तल् + टाप्—सहमति, एकता
- संहतता—स्त्री॰—-—संहत + तल् + टाप्—सामनस्य, समेकता
- संहतत्वम्—नपुं॰—-—संहत + तल् —घना संपर्क, संयोजन
- संहतत्वम्—नपुं॰—-—संहत + तल् —सम्पृक्तता
- संहतत्वम्—नपुं॰—-—संहत + तल् —सहमति, एकता
- संहतत्वम्—नपुं॰—-—संहत + तल् —सामनस्य, समेकता
- संहतिः—स्त्री॰—-—सम् + हन् + क्तिन्—दृढ़ या घना संपर्क, घनिष्ट मेल
- संहतिः—स्त्री॰—-—सम् + हन् + क्तिन्—मेल, सम्मिलन
- संहतिः—स्त्री॰—-—सम् + हन् + क्तिन्—संपृक्तता, दृढ़ता, ठोसपन
- संहतिः—स्त्री॰—-—सम् + हन् + क्तिन्—पुंज, राशि
- संहतिः—स्त्री॰—-—सम् + हन् + क्तिन्—सहमति, सांमनस्य
- संहतिः—स्त्री॰—-—सम् + हन् + क्तिन्—संचय, ढेर, संघात, समुच्चय
- संहतिः—स्त्री॰—-—सम् + हन् + क्तिन्—सामर्थ्य
- संहतिः—स्त्री॰—-—सम् + हन् + क्तिन्—पिण्ड, समवाय
- संहननम्—नपुं॰—-—सम् + हन् + ल्युट्—सघनता, दृढ़ता
- संहननम्—नपुं॰—-—सम् + हन् + ल्युट्—देह, व्यक्ति
- संहननम्—नपुं॰—-—सम् + हन् + ल्युट्—सामर्थ्य
- संहरणम्—नपुं॰—-—सम् + हृ + ल्युट्—एकत्र करना, साथ-साथ मिलाना, संचय करना
- संहरणम्—नपुं॰—-—सम् + हृ + ल्युट्—लेना, ग्रहण करना
- संहरणम्—नपुं॰—-—सम् + हृ + ल्युट्—सिकोड़ना
- संहरणम्—नपुं॰—-—सम् + हृ + ल्युट्—नियंत्रित करना
- संहरणम्—नपुं॰—-—सम् + हृ + ल्युट्—नष्ट करना, बर्बाद करना
- संहर्तृ—पुं॰—-—सम् + हृ + तृच्—विनाशक नष्ट करने वाला
- संहर्षः—पुं॰—-—सम् + हृष् + घञ्—रोमांच होना, भय या हर्ष से पुलकित होना
- संहर्षः—पुं॰—-—सम् + हृष् + घञ्—आनन्द, हर्ष, खुशी
- संहर्षः—पुं॰—-—सम् + हृष् + घञ्—प्रतियोगिता, होड़, प्रतिद्वन्द्विता
- संहर्षः—पुं॰—-—सम् + हृष् + घञ्—वायु
- संहर्षः—पुं॰—-—सम् + हृष् + घञ्—साथ-साथ रगड़ना
- संहातः—पुं॰—-—सम् + हन् + घञ् वा॰ कुत्वाभावः, संघात का पाठान्तर—इक्कीस नरकों में से एक
- संहारः—पुं॰—-—सम् + हृ + घञ्—मिलाकर खींचना, या साथ-साथ लाना, संचय करना
- संहारः—पुं॰—-—सम् + हृ + घञ्—संकोचन, भींचना, संक्षेपण
- संहारः—पुं॰—-—सम् + हृ + घञ्—रोक देना, पीछे खींच लेना, वापिस लेना
- संहारः—पुं॰—-—सम् + हृ + घञ्—प्रतिबंध लगाना, रोक लेना
- संहारः—पुं॰—-—सम् + हृ + घञ्—विनाश, विशेषकर सृष्टि का, प्रलय, विश्वनाश
- संहारः—पुं॰—-—सम् + हृ + घञ्—समाप्ति, अन्त, उपसंहार
- संहारः—पुं॰—-—सम् + हृ + घञ्—संघात, समूह
- संहारः—पुं॰—-—सम् + हृ + घञ्—उच्चारण दोष
- संहारः—पुं॰—-—सम् + हृ + घञ्—जादू के शस्त्रास्त्रों को वापिस हटाने के लिए मंत्र या जादू
- संहारः—पुं॰—-—सम् + हृ + घञ्—व्यवसाय, कुशलता
- संहारः—पुं॰—-—सम् + हृ + घञ्—नरक का एक प्रभाग
- संहारभैरवः—पुं॰—संहार-भैरवः—-—भैरव का एक रुप
- संहारमुद्रा—स्त्री॰—संहार-मुद्रा—-—तन्त्र-पूजा में विशेष प्रकार की मुद्रा, इसकी परिभाषा
- संहित—भू॰ क॰ कृ॰—-—सम् + धा + क्त, हि आदेशः—साथ-साथ रक्खा हुआ, मिला हुआ, संयुक्त
- संहित—भू॰ क॰ कृ॰—-—सम् + धा + क्त, हि आदेशः—सहमत, समनुरुप, अनुकूल
- संहित—भू॰ क॰ कृ॰—-—सम् + धा + क्त, हि आदेशः—सम्बन्धी
- संहित—भू॰ क॰ कृ॰—-—सम् + धा + क्त, हि आदेशः—संचित
- संहित—भू॰ क॰ कृ॰—-—सम् + धा + क्त, हि आदेशः—अन्वित, सुसज्जित, सहित, युक्त
- संहित—भू॰ क॰ कृ॰—-—सम् + धा + क्त, हि आदेशः—उत्पन्न
- संहिता—स्त्री॰—-—संहित + टाप्—सम्मिश्रण, संघ, संयोजन
- संहिता—स्त्री॰—-—संहित + टाप्—संचय, संकलन, संग्रह
- संहिता—स्त्री॰—-—संहित + टाप्—कोई पद्य या गद्यसंग्रह जिसका क्रम सुव्यवस्थित हो
- संहिता—स्त्री॰—-—संहित + टाप्—विधि या कानूनों का संग्रह या संकलन, नियम, नियमावली, सारसंग्रह, मनुसंहिता
- संहिता—स्त्री॰—-—संहित + टाप्—वेद का क्रमबद्ध मंत्रपाठ, या विभिन्न शाखाओं के अनुसार उच्चारण सम्बन्धी परिवर्तनों से युक्त पदपाठ
- संहिता—स्त्री॰—-—संहित + टाप्—सन्धि के नियमों के अनुसार वर्णों का मेल
- संहिता—स्त्री॰—-—संहित + टाप्—विश्व को संघटित रखने वाली शक्ति, परमात्मा
- संहूति—स्त्री॰—-—सम् + ह्वे + क्तिन्—चीखना, चिल्लाना, भारी हंगामा, अत्यन्त शोरगुल
- संहृत—भू॰ क॰ कृ॰—-—सम् + हृ + क्त—मिलाकर खींचा हुआ
- संहृत—भू॰ क॰ कृ॰—-—सम् + हृ + क्त—सिकोड़ा हुआ, संक्षिप्त किया हुआ
- संहृत—भू॰ क॰ कृ॰—-—सम् + हृ + क्त—वापिस लिया हुआ, पीछे खींचा हुआ
- संहृत—भू॰ क॰ कृ॰—-—सम् + हृ + क्त—संचीत, संगृहीत
- संहृत—भू॰ क॰ कृ॰—-—सम् + हृ + क्त—पकड़ा हुआ, हाथ डाला हुआ
- संहृत—भू॰ क॰ कृ॰—-—सम् + हृ + क्त—दबाया हुआ, नियन्त्रण में रखा हुआ
- संहृत—भू॰ क॰ कृ॰—-—सम् + हृ + क्त—नष्ट किया हुआ
- संहृतिः—स्त्री॰—-—सम् + हृ + क्तिन्—सिकुड़न, भींचना
- संहृतिः—स्त्री॰—-—सम् + हृ + क्तिन्—विनाश, हानि
- संहृतिः—स्त्री॰—-—सम् + हृ + क्तिन्—लेना, पकड़ना
- संहृतिः—स्त्री॰—-—सम् + हृ + क्तिन्—प्रतिबन्ध
- संहृतिः—स्त्री॰—-—सम् + हृ + क्तिन्—संचय
- संहृष्ट—भू॰ क॰ कृ॰—-—सम् + हृष + क्त—पुलकित, या हर्ष से रोमांचित, प्रसन्न
- संहृष्ट—भू॰ क॰ कृ॰—-—सम् + हृष + क्त—जिसके रोंगटे खड़े हैं या जो काँप रहा हैं
- संहृष्ट—भू॰ क॰ कृ॰—-—सम् + हृष + क्त—स्पर्घा के भाव से उद्दीप्त
- संह्रादः—पुं॰—-—सम् + ह्रद् + घञ्—शोरगुल, चीत्कार, होहल्ला
- संह्रादः—पुं॰—-—सम् + ह्रद् + घञ्—कोलाहल
- संह्रीण—वि॰—-—सम् + ह्री + क्त—विनयशील, शर्मीला
- संह्रीण—वि॰—-—-—सर्वथा लज्जित
- सकट—वि॰—-—कटेन अशुचिना शवादिना सह वर्तमानः—बुरा, कुत्सित, दुष्ट
- सकण्टक—वि॰—-—कण्टेन सह कप्, ब॰ व॰—कांटेदार, चुभनेवाला
- सकण्टक—वि॰—-—कण्टेन सह कप्, ब॰ व॰—कष्टप्रद, भयानक
- सकण्टकः—पुं॰—-—-—जलीय पौधा
- सकम्प —वि॰—-—कम्पेन, कम्पनेन सह- वा, ब॰ स॰ —काँपता हुआ, थरथराता हुआ
- सकम्पन—वि॰—-—कम्पेन, कम्पनेन सह- वा, ब॰ स॰ —काँपता हुआ, थरथराता हुआ
- सकरुण—वि॰—-—करुणया सह - ब॰ स॰—कोमल, दयालु
- सकर्ण—वि॰—-—कर्णेन श्रवणेन सह - ब॰स॰—कान वाला जिसके कान हों
- सकर्ण—वि॰—-—कर्णेन श्रवणेन सह - ब॰स॰—सुनने वाला, श्रोता
- सकर्मक—वि॰—-—कर्मणा सह कप् ब॰ स॰—कर्मशील या कर्मकर्ता
- सकर्मक—वि॰—-—कर्मणा सह कप् ब॰ स॰—कर्म रखने वाला, कर्म से युक्त
- सकल—वि॰—-—कलया कलेन सह - वा -ब॰ स॰—भागों सहित
- सकल—वि॰—-—कलया कलेन सह - वा -ब॰ स॰—सब, समस्त, पूरा, पूर्ण
- सकल—वि॰—-—कलया कलेन सह - वा -ब॰ स॰—सब अंकों से युक्त, पूरा
- सकल—वि॰—-—कलया कलेन सह - वा -ब॰ स॰—मृदु या मन्द स्वर वाला
- सकलवर्ण—वि॰—सकल-वर्ण—-—क और ल वर्णों से युक्त अर्थात् झगड़ालू
- सकल्प—वि॰—-—कल्पेन सह - ब॰ स॰—यज्ञ संबन्धी कृत्यों से युक्त, वेद के कर्मकाण्ड का अनुष्ठाता
- सकल्पः—पुं॰—-—-—शिव
- सकाकोलः—पुं॰—-—काकोलेन सह - ब॰ स॰—इक्कीस नरकों में से एक नरक
- सकाम—वि॰—-—कामेन सह - ब॰ स॰—प्रेमपूरित, प्रणयोन्मत्त, प्रिय
- सकाम—वि॰—-—कामेन सह - ब॰ स॰—कामनायुक्त, कामी
- सकाम—वि॰—-—कामेन सह - ब॰ स॰—लब्धकाम, तुष्ट, तृप्त
- सकामम्—अव्य॰—-—-—प्रसन्नतापूर्वक
- सकामम्—अव्य॰—-—-—संतोष के साथ
- सकामम्—अव्य॰—-—-—विश्वासपूर्वक, निस्सन्देह
- सकाल—वि॰—-—कालेन सह - ब॰ स॰—ऋतु के अनुकूल, समयोचित
- सकालम्—अव्य॰—-—-—कालानुरुप, समय से पूर्व, ठीक समय पर, तड़के
- सकाश—वि॰—-—काशेन सह - ब॰ स॰—दर्शन देने वाला, दृश्य, प्रस्तुत, निकटवर्ती
- सकाशः—पुं॰—-—-—उपस्थिति, पड़ौस, सामीप्य
- सकाशम्— क्रि॰ वि॰ —-—-—निकट
- सकाशम्— क्रि॰ वि॰ —-—-—निकट से , पास से
- सकाशात्— क्रि॰ वि॰ —-—-—निकट
- सकाशात्— क्रि॰ वि॰ —-—-—निकट से , पास से
- सकुक्षि —वि॰— —सह समानः कुक्षिः यस्य - ब॰ स॰—एक ही कोख से उत्पन्न, एक माता से जन्म लेने वाला, सहोदर
- सकुल—वि॰—-—कुलेन सह - ब॰ स॰—उच्च्वंश से संबन्ध रखने वाला
- सकुल—वि॰—-—कुलेन सह - ब॰ स॰—एक ही कुल में उत्पन्न
- सकुल—वि॰—-—कुलेन सह - ब॰ स॰—एक ही परिवार का
- सकुल—वि॰—-—कुलेन सह - ब॰ स॰—सपरिवार
- सकुलः—पुं॰—-—कुलेन सह - ब॰ स॰—रिश्तेदार
- सकुलः—पुं॰—-—कुलेन सह - ब॰ स॰—एक प्रकार की मछली, सकुली
- सकुल्यः—पुं॰—-—समाने कुले भवः - सकुल + यत्—एक ही परिवार का
- सकुल्यः—पुं॰—-—समाने कुले भवः - सकुल + यत्—एक ही गोत्र का परन्तु दूर का रिश्तेदार, जैसे कि चौथी, पांचवीं, छठी या सातवीं, आठवीं अथवा नवीं पीढ़ी का
- सकुल्यः—पुं॰—-—समाने कुले भवः - सकुल + यत्—दूरवर्ती, रिश्तेदार
- सकृत्—अव्य॰—-—एक - सुच्, सकृत् आदेश, सुचो लोपः—एक बार
- सकृत्—अव्य॰—-—एक - सुच्, सकृत् आदेश, सुचो लोपः—एक समय, एक अवसर पर, पहले, एक दफ़ा
- सकृत्—अव्य॰—-—एक - सुच्, सकृत् आदेश, सुचो लोपः—तुरन्त
- सकृत्—अव्य॰—-—एक - सुच्, सकृत् आदेश, सुचो लोपः—साथ साथ
- सकृत्—पुं॰ , स्त्री॰—-—-— मल, विष्ठा
- सकृद्गर्भा—स्त्री॰—सकृत्-गर्भा—-—खच्चर
- सकृत्प्रजः—पुं॰—सकृत्प्रजः—-—एक ही बार गर्भवती होने वाली स्त्री
- सकृत्प्रसूता —स्त्री॰—सकृत्-प्रसूता—-—वह स्त्री जिसके केवल एक ही संतान हुई हो
- सकृत्प्रसूता —स्त्री॰—सकृत्-प्रसूता—-—वह गाय जो केवल एक ही बार ब्याई हो
- सकृत्प्रसूतिका—स्त्री॰—सकृत्-प्रसूतिका—-—वह स्त्री जिसके केवल एक ही संतान हुई हो
- सकृत्प्रसूतिका—स्त्री॰—सकृत्-प्रसूतिका—-—वह गाय जो केवल एक ही बार ब्याई हो
- सकृत्फला—स्त्री॰—सकृत्-फला—-—केले का वृक्ष
- सकैतव—वि॰—-—कैतवेन सह - ब॰ स॰—धोखा देने वाला, जालसाज
- सकैतवः—पुं॰—-—-—ठग, धूर्त
- सकोप—वि॰—-—कोपेन सह - ब॰ स॰—क्रुद्ध, कुपित
- सकोपम्—अव्यय—-—-—क्रोधपूर्वक, गुस्से से
- सक्त—भू॰ क॰ कृ॰—-—संज् + क्त—चिपका हुआ, लगा हुआ, संपृक्त
- सक्त—भू॰ क॰ कृ॰—-—-—व्यसनग्रस्त, भक्त, अनुरक्त, शौकीन
- सक्त—भू॰ क॰ कृ॰—-—-—जमाया हुआ, जड़ा हुआ
- सक्त—भू॰ क॰ कृ॰—-—-—सम्बन्ध रखने वाला
- सक्तवैर—वि॰—सक्त-वैर—-—शत्रुता में प्रवृत्त, लगातार विरोध करने वाला
- सक्तिः—स्त्री॰—-—सञ्ज् + क्तिन्—संपर्क, स्पर्श
- सक्तिः—स्त्री॰—-—-—मेल, सङ्गम
- सक्तिः—स्त्री॰—-—-—अनुराग, आसक्ति, भक्ति
- सक्तु—पुं॰ ब॰ व॰—-—सञ्ज् + तुन् - किच्च—सत्तू, जौ को भून कर फिर पीस कर बनाया हुआ आटा, जौ से तैयार किया गया भोजन
- सक्थि—नपुं॰—-—सञ्ज् + क्थिन्—जंघा
- सक्थि—नपुं॰—-—-—हड्डी
- सक्थि—नपुं॰—-—-—गाड़ी का लट्ठा
- सक्रिय—वि॰—-—क्रियया सह - ब॰ स॰—फुर्तीला, गतिशील
- सक्षण—वि॰—-—क्षणेन सह - ब॰ स॰—जिसके पास अवकाश हो
- सखि—पुं॰—-—सह समानं ख्यायते ख्या + डिन् नि॰—मित्र, साथी, सहचर
- सखी—स्त्री॰—-—सखि + ङीष्—सहेली, सहचरी, नायिका की सहेली
- सख्यम्—नपुं॰—-—सख्युर्भावः यत्—मित्रता, घनिष्ठता, मैत्री
- सख्यम्—नपुं॰—-—-—समानता
- सख्यः—पुं॰—-—-—मित्र
- सगण—वि॰—-—गणेन सह - ब॰ स॰—दल बल सहित उपस्थित
- सगणः—पुं॰—-—-—शिव का विशेषण
- सगर—वि॰—-—गरेण सह - ब॰ स॰—विषैला, जहरीला
- सगरः—पुं॰—-—-—एक सूर्यवंशी राजा ।
- सगर्भः—पुं॰—-—सह समानो गर्भो यस्य - ब॰ स॰—सहोदर भाई
- सगर्भ्यः—पुं॰—-—समाने गर्भे भवः यत् वा—सहोदर भाई
- सगुण—वि॰—-—गुणेन सह - ब॰ स॰—गुणवान गुणों से युक्त
- सगुण—वि॰—-—गुणेन सह - ब॰ स॰—अच्छे गुणों से युक्त, सद्गुणी
- सगुण—वि॰—-—गुणेन सह - ब॰ स॰—भौतिक
- सगुण—वि॰—-—गुणेन सह - ब॰ स॰—डोरी से सुसज्जित, ज्यायुक्त
- सगुण—वि॰—-—गुणेन सह - ब॰ स॰—साहित्यिक गुणों से युक्त
- सगोत्र—वि॰—-—सह समानं गोत्रमस्य - ब॰ स॰—एक ही कुल में उत्पन्न, बन्धु, रिश्तेदार
- सगोत्रः—पुं॰—-—-—एक ही पूर्वज की सन्तान
- सगोत्रः—पुं॰—-—-—एक ही कुल का, श्राद्ध, पिण्ड, तर्पण साथ करने वाला व्यक्ति
- सगोत्रः—पुं॰—-—-—दूर का रिश्तेदार
- सगोत्रः—पुं॰—-—-—परिवार, कुल, वंश
- सग्धिः—स्त्री॰—-—अद् + क्तिन् नि॰ ग्धि, सहस्य सः—साथ-खाना, मिलकर भोजन करना
- सङ्कट—वि॰—-—सम् + कटच्, सम् + कट् + अच् वा—संकरा, सिकुड़ा हुआ, भीड़ा, संकीर्ण
- सङ्कट—वि॰—-—सम् + कटच्, सम् + कट् + अच् वा—अभेद्य, अगम्य
- सङ्कट—वि॰—-—सम् + कटच्, सम् + कट् + अच् वा—पूर्ण, भरा हुआ, जड़ा हुआ, झालरदार
- सङ्कटम्—नपुं॰—-—सम् + कटच्, सम् + कट् + अच् वा—भीड़ा रास्ता, संकीर्ण घाटी, तंग दर्रा
- सङ्कटम्—नपुं॰—-—सम् + कटच्, सम् + कट् + अच् वा—कठिनाई, दुर्दशा, जोखिम, डर, खतरा
- सङ्कथा—स्त्री॰—-—सम् + कथ् + अ + टाप्—समालाप, बातचीत
- सङ्करः—पुं॰—-—सम् + कृ + अप् —सम्मिश्रण, मिलावट, अन्तर्मिश्रण
- सङ्करः—पुं॰—-—सम् + कृ + अप् —साथ मिलाना, मेल
- सङ्करः—पुं॰—-—सम् + कृ + अप् —मिश्रण या अव्यवस्था, अन्तर्जातीय अवैध विवाह जिसका परिणाम मिश्रजातियाँ हैं
- सङ्करः—पुं॰—-—सम् + कृ + अप् — दो या दो से अधिक आश्रित अलंकारों का एक ही सन्दर्भ में मिश्रण
- सङ्करः—पुं॰—-—सम् + कृ + अप् —धूल, बुहारन, कूड़ाकरकट
- सङ्करी—स्त्री॰—-—सम् + कृ + अप् —संकारी
- सङ्कर्षणम्—नपुं॰—-—सम् + कृष + ल्युट्—मिलकर खींचने की क्रिया, सिकुड़न
- सङ्कर्षणम्—नपुं॰—-—सम् + कृष + ल्युट्—आकर्षण
- सङ्कर्षणम्—नपुं॰—-—सम् + कृष + ल्युट्—हल चलाना, खूड निकालना
- सङ्कर्षणः—पुं॰—-—-—बलराम का नाम
- सङ्कलः—पुं॰—-—सम् + कल् + अच् (भावे)—संग्रह, संचय
- सङ्कलः—पुं॰—-—सम् + कल् + अच् (भावे)—जोड़
- सङ्कलनम् —नपुं॰—-—सम् + कल् + ल्युट्—ढेर लगाने की क्रिया
- सङ्कलनम् —नपुं॰—-—सम् + कल् + ल्युट्—संपर्क, संगम्
- सङ्कलनम् —नपुं॰—-—सम् + कल् + ल्युट्—टक्कर
- सङ्कलनम् —नपुं॰—-—सम् + कल् + ल्युट्—मरोड़ना, ऐंठना
- सङ्कलनम् —नपुं॰—-—सम् + कल् + ल्युट्—योग, जोड़
- सङ्कलना—स्त्री॰—-—सम् + कल् + ल्युट्—ढेर लगाने की क्रिया
- सङ्कलना—स्त्री॰—-—सम् + कल् + ल्युट्—संपर्क, संगम्
- सङ्कलना—स्त्री॰—-—सम् + कल् + ल्युट्—टक्कर
- सङ्कलना—स्त्री॰—-—सम् + कल् + ल्युट्—मरोड़ना, ऐंठना
- सङ्कलना—स्त्री॰—-—सम् + कल् + ल्युट्—योग, जोड़
- सङ्कलित—भू॰ क॰ कृ॰—-—सम् + कल् + क्त—ढेर लगाया गया, चट्टा लगाया गया, संचित किया गया
- सङ्कलित—भू॰ क॰ कृ॰—-—सम् + कल् + क्त—साथ-साथ मिलाया गया, अन्तर्मिश्रित
- सङ्कलित—भू॰ क॰ कृ॰—-—सम् + कल् + क्त—पकड़ा गया, हाथ में लिया गया
- सङ्कलित—भू॰ क॰ कृ॰—-—सम् + कल् + क्त—जोड़ा गया
- सङ्कल्पः—पुं॰—-—सम् + कृप् + घञ्, गुणः, रस्य लः—इच्छाशक्ति, कामनाशक्ति, मानसिक दृढ़ता
- सङ्कल्पः—पुं॰—-—सम् + कृप् + घञ्, गुणः, रस्य लः—प्रयोजन, उद्देश्य, इरादा, विचार
- सङ्कल्पः—पुं॰—-—सम् + कृप् + घञ्, गुणः, रस्य लः—कामना, इच्छा
- सङ्कल्पः—पुं॰—-—सम् + कृप् + घञ्, गुणः, रस्य लः—चिन्तन, विचार, विमर्श, उत्प्रेक्षा, कल्पना
- सङ्कल्पः—पुं॰—-—सम् + कृप् + घञ्, गुणः, रस्य लः—मन, हृदय
- सङ्कल्पः—पुं॰—-—सम् + कृप् + घञ्, गुणः, रस्य लः—कोई धार्मिक कृत्य करने की प्रतिज्ञा
- सङ्कल्पः—पुं॰—-—सम् + कृप् + घञ्, गुणः, रस्य लः—किसी ऐच्छिक पुण्यकार्य से फल की आशा
- सङ्कल्पजः—पुं॰—सङ्कल्प-जः—-—कामदेव के विशेषण
- सङ्कल्पजन्मन्—पुं॰—सङ्कल्प-जन्मन्—-—कामदेव के विशेषण
- सङ्कल्पयोनिः—पुं॰—सङ्कल्प-योनिः—-—कामदेव के विशेषण
- सङ्कल्परुप—वि॰—सङ्कल्प-रुप—-—ऐच्छिक
- सङ्कल्परुप—वि॰—सङ्कल्प-रुप—-—इच्छा के अनुरुप
- सङ्कसुक—वि॰—-—सम् + कस् + उकञ्—अस्थिर, चंचल, परिवर्तनशील, अनियमित
- सङ्कसुक—वि॰—-—सम् + कस् + उकञ्—अनिश्चित, संदिग्ध
- सङ्कसुक—वि॰—-—सम् + कस् + उकञ्—बुरा, दुष्ट
- सङ्कसुक—वि॰—-—सम् + कस् + उकञ्—निर्बल, बलहीन, कमजोर
- सङ्कारः—पुं॰—-—सम् + कृ + घञ्—धूल, बुहारन, कूड़ाकरकट
- सङ्कारः—पुं॰—-—सम् + कृ + घञ्—ज्वालाओं के चटखने का शब्द
- सङ्कारी—स्त्री॰—-—संकार + ङीष्—वह लड़की जिसका कौमार्य अभी अभी भंग हुआ हो, नई दुलहिन
- सङ्काश—वि॰—-—सम् + काश् + अच्—सदृश्, समान, मिलता-जुलता अग्नि, हिरण्य
- सङ्काश—वि॰—-—सम् + काश् + अच्—निकट, पास, नजदीक
- सङ्काशः—पुं॰—-—-—दर्शन, उपस्थिति
- सङ्काशः—पुं॰—-—-—पड़ोस
- सङ्किलः—पुं॰—-—सम् + किल् + क—जलती हुई लकड़ी, जलती हुई मशाल
- सङ्कीर्ण—भू॰ क॰ कृ॰—-—सम् + कृ + क्त—साथ साथ मिलाया हुआ, अन्तर्मिश्रित
- सङ्कीर्ण—भू॰ क॰ कृ॰—-—सम् + कृ + क्त—अव्यवस्थित, विभिन्न
- सङ्कीर्ण—भू॰ क॰ कृ॰—-—सम् + कृ + क्त—बिखरा हुआ, फैला हुआ, खचाखच भरा हुआ
- सङ्कीर्ण—भू॰ क॰ कृ॰—-—सम् + कृ + क्त—अस्पष्ट
- सङ्कीर्ण—भू॰ क॰ कृ॰—-—सम् + कृ + क्त—दान बहाता हुआ, नशे में चूर
- सङ्कीर्ण—भू॰ क॰ कृ॰—-—सम् + कृ + क्त—वर्णसंकर जाति का, अपवित्रकुल या संकरजाति में जन्मा हुआ
- सङ्कीर्ण—भू॰ क॰ कृ॰—-—सम् + कृ + क्त—हरामी, दोगला
- सङ्कीर्ण—भू॰ क॰ कृ॰—-—सम् + कृ + क्त—तंग, संकुचित
- सङ्कीर्णः—पुं॰—-—-—संकर जाति का व्यक्ति
- सङ्कीर्णः—पुं॰—-—-—मिश्रस्वर
- सङ्कीर्णः—पुं॰—-—-—वह हाथी जिसके मस्तक से मद बहता हो, मस्तहाथी
- सङ्कीर्णम्—नपुं॰—-—-—कठिनाई
- सङ्कीर्णजाति—वि॰—सङ्कीर्ण-जाति—-—वर्णसंकर, दोगली नस्ल का
- सङ्कीर्णयोनि—वि॰—सङ्कीर्ण-योनि—-—वर्णसंकर, दोगली नस्ल का
- सङ्कीर्णयुद्धम्—नपुं॰—सङ्कीर्ण-युद्धम्—-—अव्यवस्थित लड़ाई, रणसंकुल
- सङ्कीर्तनम्—नपुं॰—-—सम् + कृत् + णिच् + ल्युट्, ईत्वम्—प्रशंसा करना, सराहना, स्तुति करना
- सङ्कीर्तनम्—नपुं॰—-—सम् + कृत् + णिच् + ल्युट्, ईत्वम्—यशोगान करना
- सङ्कीर्तनम्—नपुं॰—-—सम् + कृत् + णिच् + ल्युट्, ईत्वम्—भजन के रुप में किसी देवता के नाम का जप करना
- सङ्कीर्तना—स्त्री॰—-—सम् + कृत् + णिच् + ल्युट्, ईत्वम्—प्रशंसा करना, सराहना, स्तुति करना
- सङ्कीर्तना—स्त्री॰—-—सम् + कृत् + णिच् + ल्युट्, ईत्वम्—यशोगान करना
- सङ्कीर्तना—स्त्री॰—-—सम् + कृत् + णिच् + ल्युट्, ईत्वम्—भजन के रुप में किसी देवता के नाम का जप करना
- सङ्कुचित—भू॰ क॰ कृ॰—-—सम् + कुच् + क्त—सिकोड़ा हुआ, संक्षिप्त किया हुआ
- सङ्कुचित—भू॰ क॰ कृ॰—-—सम् + कुच् + क्त—सिकुड़न वाला, झुर्रियाँ पड़ा हुआ
- सङ्कुचित—भू॰ क॰ कृ॰—-—सम् + कुच् + क्त—ढका हुआ, बंद किया हुआ
- सङ्कुचित—भू॰ क॰ कृ॰—-—सम् + कुच् + क्त—आवरण
- सङ्कुल—वि॰—-—सम् + कुल् + क—अव्यवस्थित
- सङ्कुल—वि॰—-—सम् + कुल् + क—आकीर्ण, खचाखचा भरा हुआ, पूर्ण
- सङ्कुल—वि॰—-—सम् + कुल् + क—विकृत
- सङ्कुल—वि॰—-—सम् + कुल् + क—असंगत
- सङ्कुलम्—नपुं॰—-—-—भीड़, जमघट, भीड़भाड़, संग्रह, छत्ता, झुंड
- सङ्कुलम्—नपुं॰—-—-—अव्यवस्थित लड़ाई, रणसंकुल
- सङ्कुलम्—नपुं॰—-—-—असंगत या परस्पर विरोधी भाषण
- सङ्केतः—पुं॰—-—सम् + कित् + घञ्—इशारा, इंगित
- सङ्केतः—पुं॰—-—सम् + कित् + घञ्—निशान, अंगचेष्टा, सुझाव
- सङ्केतः—पुं॰—-—सम् + कित् + घञ्—इंगितपरक, चिह्न, निशानी, प्रतीक
- सङ्केतः—पुं॰—-—सम् + कित् + घञ्—सहमति, सम्मिलन
- सङ्केतः—पुं॰—-—सम् + कित् + घञ्—प्रेमी प्रेमिका का पारस्परिक ठहराव, नियुक्ति, निर्दिष्ट स्थान
- सङ्केतः—पुं॰—-—सम् + कित् + घञ्—मिलन-स्थल, समागम-स्थान
- सङ्केतः—पुं॰—-—सम् + कित् + घञ्—प्रतिबंध, शर्त
- सङ्केतः—पुं॰—-—सम् + कित् + घञ्—संक्षिप्त विवृति, सूत्र
- सङ्केतगृहम्—नपुं॰—सङ्केत-गृहम्—-—निर्दिष्ट स्थान, प्रेमी और प्रेमिका का मिलन-स्थान
- सङ्केतनिकेतनम्—नपुं॰—सङ्केत-निकेतनम्—-—निर्दिष्ट स्थान, प्रेमी और प्रेमिका का मिलन-स्थान
- सङ्केतस्थानम्—नपुं॰—सङ्केत-स्थानम्—-—निर्दिष्ट स्थान, प्रेमी और प्रेमिका का मिलन-स्थान
- सङ्केतकः—पुं॰—-—सङ्केत + कन्—सहमति, सम्मिलन
- सङ्केतकः—पुं॰—-—सङ्केत + कन्—नियुक्ति, निर्देशन
- सङ्केतकः—पुं॰—-—सङ्केत + कन्—प्रेमी और प्रेमिका का मिलन-स्थान
- सङ्केतकः—पुं॰—-—सङ्केत + कन्—वह प्रेमी या प्रेमिका जो मिलने के लिए समय या स्थान का संकेत करे
- सङ्केतित—वि॰—-—सङ्केत + इतच्—ठहराया हुआ, मिलकर नियमानुसार निर्धारित
- सङ्केतित—वि॰—-—सङ्केत + इतच्—आमन्त्रित, बुलाया हुआ
- सङ्कोचः—पुं॰—-—सम् + कुच् + घञ्—सिकुड़ना, शिकन पड़ना
- सङ्कोचः—पुं॰—-—सम् + कुच् + घञ्—संक्षेपण, न्यूनीकरण, भींचना
- सङ्कोचः—पुं॰—-—सम् + कुच् + घञ्—त्रास, भय
- सङ्कोचः—पुं॰—-—सम् + कुच् + घञ्—बन्द करना, मूँदना
- सङ्कोचः—पुं॰—-—सम् + कुच् + घञ्—बाँधना
- सङ्कोचः—पुं॰—-—सम् + कुच् + घञ्—एक प्रकार की मछली
- सङ्कोचम्—नपुं॰—-—-—केसर, जाफ़रान
- सङ्क्रन्दनः—पुं॰—-—सम् + क्रन्द् + ल्युट्—श्रीकृष्ण का नाम
- सङ्क्रमः—पुं॰—-—सम् + क्रम् + घञ्—सहमति, संगमन, साथ जाना
- सङ्क्रमः—पुं॰—-—सम् + क्रम् + घञ्—संक्रान्ति, यात्रा, स्थानान्तरण, प्रगति
- सङ्क्रमः—पुं॰—-—सम् + क्रम् + घञ्—किसी ग्रह का एक राशिचक्र से दूसरी राशि में जाना
- सङ्क्रमः—पुं॰—-—सम् + क्रम् + घञ्—गमन करना, यात्रा करना
- सङ्क्रमम्—नपुं॰—-—-—कठिन या संकरा मार्ग
- सङ्क्रमम्—नपुं॰—-—-—सेतु, पुल
- सङ्क्रमम्—नपुं॰—-—-—किसी लक्ष्य की प्राप्ति का साधन
- सङ्क्रमणम्—नपुं॰—-—सम् + क्रम् + ल्युट्—संगमन, सहमति
- सङ्क्रमणम्—नपुं॰—-—सम् + क्रम् + ल्युट्—संक्रान्ति, प्रगति, एक बिन्दु से दूसरे बिन्दु पर जाना
- सङ्क्रमणम्—नपुं॰—-—सम् + क्रम् + ल्युट्—सूर्य का एक राशि से दूसरी राशि में जाना
- सङ्क्रमणम्—नपुं॰—-—सम् + क्रम् + ल्युट्—सूर्य के उत्तरायण में प्रवेश करने का दिन
- सङ्क्रमणम्—नपुं॰—-—सम् + क्रम् + ल्युट्—मार्ग
- सङ्क्रान्त—भू॰ क॰ कृ॰—-—सम् + क्रम् + क्त—….में से गया हुआ, प्रविष्ट हुआ
- सङ्क्रान्त—भू॰ क॰ कृ॰—-—सम् + क्रम् + क्त—स्थानान्तरित, न्यस्त, समर्पित
- सङ्क्रान्त—भू॰ क॰ कृ॰—-—सम् + क्रम् + क्त—पकड़ा, ग्रस्त
- सङ्क्रान्त—भू॰ क॰ कृ॰—-—सम् + क्रम् + क्त—प्रतिफलित, प्रतिबिंबित
- सङ्क्रान्त—भू॰ क॰ कृ॰—-—सम् + क्रम् + क्त—चित्रित
- सङ्क्रान्तिः—स्त्री॰—-—सम् + क्रम् + क्तिन्—संगमन, मेल
- सङ्क्रान्तिः—स्त्री॰—-—सम् + क्रम् + क्तिन्—एक बिन्दु से दूसरे बिन्दु तक का मार्ग, अवस्थांतर
- सङ्क्रान्तिः—स्त्री॰—-—सम् + क्रम् + क्तिन्—सूर्य या किसी और ग्रहपुंज का एक राशि से दूसरी राशि में जाने का मार्ग
- सङ्क्रान्तिः—स्त्री॰—-—सम् + क्रम् + क्तिन्—स्थानान्तरण, सौंपना
- सङ्क्रान्तिः—स्त्री॰—-—सम् + क्रम् + क्तिन्—हस्तान्तरित करना, विद्यादान की शक्ति
- सङ्क्रान्तिः—स्त्री॰—-—सम् + क्रम् + क्तिन्—प्रतिमा, प्रतिबिंब
- सङ्क्रान्तिः—स्त्री॰—-—सम् + क्रम् + क्तिन्—चित्रण
- सङ्क्रामः—पुं॰—-—-—सहमति, संगमन, साथ जाना
- सङ्क्रामः—पुं॰—-—-—संक्रान्ति, यात्रा, स्थानान्तरण, प्रगति
- सङ्क्रामः—पुं॰—-—-—किसी ग्रह का एक राशिचक्र से दूसरी राशि में जाना
- सङ्क्रामः—पुं॰—-—-—गमन करना, यात्रा करना
- सङ्क्रीडनम्—नपुं॰—-—सम् + क्रीड् + ल्युट्—मिल कर खेलना
- सङ्क्लेदः—पुं॰—-—सम् + क्लिद् + घञ्—तरी, नमी
- सङ्क्लेदः—पुं॰—-—सम् + क्लिद् + घञ्—गर्भाधान के पश्चात् प्रथम मास में स्रवित होने वाला रस जिससे भ्रूण के आरंभिक रुप का निर्माण होता हैं
- सङ्क्षयः—पुं॰—-—सम् + क्षिप् + अच्—विनाश
- सङ्क्षयः—पुं॰—-—सम् + क्षिप् + अच्—पूर्ण विनाश या उपभोग
- सङ्क्षयः—पुं॰—-—सम् + क्षिप् + अच्—हानि, बर्बादी
- सङ्क्षयः—पुं॰—-—सम् + क्षिप् + अच्—अन्त
- सङ्क्षयः—पुं॰—-—सम् + क्षिप् + अच्—प्रलय
- सङ्क्षिप्तिः—स्त्री॰—-—सम् + क्षिप् + क्तिन्—साथ-साथ फेंकना
- सङ्क्षिप्तिः—स्त्री॰—-—सम् + क्षिप् + क्तिन्—भींचना, संक्षेपण
- सङ्क्षिप्तिः—स्त्री॰—-—सम् + क्षिप् + क्तिन्—फेंकना, भेजना
- सङ्क्षिप्तिः—स्त्री॰—-—सम् + क्षिप् + क्तिन्—घात में रहना
- सङ्क्षेपः—पुं॰—-—सम् + क्षिप् + घञ्—साथ-साथ फेंकना
- सङ्क्षेपः—पुं॰—-—सम् + क्षिप् + घञ्—भींचना, छोटा करना
- सङ्क्षेपः—पुं॰—-—सम् + क्षिप् + घञ्—लाघव, संहृति
- सङ्क्षेपः—पुं॰—-—सम् + क्षिप् + घञ्—निचोड़, सारांश
- सङ्क्षेपः—पुं॰—-—सम् + क्षिप् + घञ्—फेकना, भेजना
- सङ्क्षेपः—पुं॰—-—सम् + क्षिप् + घञ्—अपहरण करना
- सङ्क्षेपः—पुं॰—-—सम् + क्षिप् + घञ्—किसी अन्य व्यक्ति के कार्य में सहायता देना
- संक्षेपेण—क्रि॰ वि॰—-—-—थोड़े अक्षरों में, संहरण करके, संक्षेप में
- संक्षेपतः—क्रि॰ वि॰—-—-—थोड़े अक्षरों में, संहरण करके, संक्षेप में
- संक्षेपणम्—नपुं॰—-—सम् + क्षिप् + ल्युट्—ढेर लगाना
- संक्षेपणम्—नपुं॰—-—सम् + क्षिप् + ल्युट्—छोटा करना, लघूकरण
- संक्षेपणम्—नपुं॰—-—सम् + क्षिप् + ल्युट्—भेजना
- सङ्क्षोभः—पुं॰—-—सम् + क्षुभ् + घञ्—आन्दोलन, कंपकपी
- सङ्क्षोभः—पुं॰—-—सम् + क्षुभ् + घञ्—बाधा, हलचल
- सङ्क्षोभः—पुं॰—-—सम् + क्षुभ् + घञ्—उथल पुथल, उलट पुलट
- सङ्क्षोभः—पुं॰—-—सम् + क्षुभ् + घञ्—घमंड, अहंकार
- सङ्ख्यम्—नपुं॰—-—सम् + ख्या + क—संग्राम, युद्ध, लड़ाई
- सङ्ख्या—स्त्री॰—-—सम् + ख्या + अङ् + टाप्—गणना, गिनती, हिसाब लगाना
- सङ्ख्या—स्त्री॰—-—सम् + ख्या + अङ् + टाप्—अंक
- सङ्ख्या—स्त्री॰—-—सम् + ख्या + अङ् + टाप्—अंकबोधक
- सङ्ख्या—स्त्री॰—-—सम् + ख्या + अङ् + टाप्—जोड़
- सङ्ख्या—स्त्री॰—-—सम् + ख्या + अङ् + टाप्—हेतु, समझ, प्रज्ञा
- सङ्ख्या—स्त्री॰—-—सम् + ख्या + अङ् + टाप्—विचार, विमर्श
- सङ्ख्या—स्त्री॰—-—सम् + ख्या + अङ् + टाप्—रीति
- सङ्ख्यातिग—वि॰—सङ्ख्या-अतिग—-—असंख्य, अनगिनत, गणनातीत
- सङ्ख्यातीत—वि॰—सङ्ख्या-अतीत—-—असंख्य, अनगिनत, गणनातीत
- सङ्ख्यावाचक—वि॰—सङ्ख्या-वाचक—-—संख्या बोधक
- सङ्ख्यावाचकः—पुं॰—सङ्ख्या-वाचकः—-—अंक
- सङ्ख्यात—भू॰ क॰ कृ॰—-—सम् + ख्या + क्त—गिना गया
- सङ्ख्यात—भू॰ क॰ कृ॰—-—सम् + ख्या + क्त—हिसाब लगाया गया, गिना हुआ
- सङ्ख्यातम्—नपुं॰—-—-—अंक
- सङ्ख्याता—स्त्री॰—-—-—एक प्रकार की पहेली
- सङ्ख्यावत्—वि॰—-—सङ्ख्या + मतुप्—संख्या वाला
- सङ्ख्यावत्—वि॰—-—सङ्ख्या + मतुप्—हेतु से युक्त
- सङ्ख्यावत्—पुं॰—-—सङ्ख्या + मतुप्—विद्वान् पुरुष
- सङ्गः—पुं॰—-—सञ्ज् भावे घञ्—साथ मिलना, सम्मिलन
- सङ्गः—पुं॰—-—सञ्ज् भावे घञ्—मिलना, मेल, संगम
- सङ्गः—पुं॰—-—सञ्ज् भावे घञ्—स्पर्श, सम्पर्क
- सङ्गः—पुं॰—-—सञ्ज् भावे घञ्—संगति, साहचर्य, मैत्री, अनुराग
- सङ्गः—पुं॰—-—सञ्ज् भावे घञ्—संगति में रहना, मंडली में रहना
- सङ्गः—पुं॰—-—सञ्ज् भावे घञ्—अनुरक्ति, प्रीति, अभिलाषा
- सङ्गः—पुं॰—-—सञ्ज् भावे घञ्—सांसारिक विषयों में आसक्ति, मनुष्यों के साथ साहचर्य
- सङ्गः—पुं॰—-—सञ्ज् भावे घञ्—मुठभेड़, लड़ाई
- सङ्गणिका—स्त्री॰—-—सम् + गण् + ण्वुल् + टाप्, इत्वम्—श्रेष्ठ, अनुपम प्रवचन
- सङ्गत—भू॰ क॰ कृ॰—-—सम् + गम् + क्त—मिला हुआ, जुड़ा हुआ, साथ-साथ आया हुआ, साहचर्य से युक्त
- सङ्गत—भू॰ क॰ कृ॰—-—सम् + गम् + क्त—एकत्रित, संचित, संयोजित, सम्मिलित
- सङ्गत—भू॰ क॰ कृ॰—-—सम् + गम् + क्त—प्रणयग्रन्थि में आबद्ध, विवाहित
- सङ्गत—भू॰ क॰ कृ॰—-—सम् + गम् + क्त—मैथुन द्वारा मिला हुआ
- सङ्गत—भू॰ क॰ कृ॰—-—सम् + गम् + क्त—साथ साथ भरा हुआ, समुचित, युक्तियुक्त, संवादी
- सङ्गत—भू॰ क॰ कृ॰—-—सम् + गम् + क्त—से, युक्त
- सङ्गत—भू॰ क॰ कृ॰—-—सम् + गम् + क्त—शिकनवाला, सिकुड़ा हुआ
- सङ्गतम्—नपुं॰—-—-—मिलाप, सम्मिलन, मैत्री
- सङ्गतम्—नपुं॰—-—-—समाज, मण्डली
- सङ्गतम्—नपुं॰—-—-—परिचय, मित्रता, घनिष्टता
- सङ्गतम्—नपुं॰—-—-—सामंजस्यपूर्ण या सुसंगत वाणी, युक्तियुक्त टिप्पण
- सङ्गतिः—स्त्री॰—-—सम् + गम् + क्तिन्—मेल, मिलना, संगम
- सङ्गतिः—स्त्री॰—-—सम् + गम् + क्तिन्—संसर्ग, सहयोगिता, साहचर्य, पारस्परिक मेलजोल
- सङ्गतिः—स्त्री॰—-—सम् + गम् + क्तिन्—मैथुन
- सङ्गतिः—स्त्री॰—-—सम् + गम् + क्तिन्—दर्शन करना, बार बार आना-जाना
- सङ्गतिः—स्त्री॰—-—सम् + गम् + क्तिन्—योग्यता, उपयुक्तता, प्रयोगात्मकता, संगत, सम्बन्ध
- सङ्गतिः—स्त्री॰—-—सम् + गम् + क्तिन्—दुर्घटना, दैवयोग, आकस्मिक घटना
- सङ्गतिः—स्त्री॰—-—सम् + गम् + क्तिन्—ज्ञान
- सङ्गतिः—स्त्री॰—-—सम् + गम् + क्तिन्—अधिक जानकारी के लिए पृच्छा
- सङ्गमः—पुं॰—-—सम् + गम् + अप्—मिलना, मेल
- सङ्गमः—पुं॰—-—सम् + गम् + अप्—साहचर्य, संगति, सहयोगिता, पारस्परिक मेलजोल
- सङ्गमः—पुं॰—-—सम् + गम् + अप्—सम्पर्क, स्पर्श
- सङ्गमः—पुं॰—-—सम् + गम् + अप्—मैथुन या रतिक्रिया
- सङ्गमः—पुं॰—-—सम् + गम् + अप्—मिलना, संगम स्थान
- सङ्गमः—पुं॰—-—सम् + गम् + अप्—योग्यता, अनुकूलन
- सङ्गमः—पुं॰—-—सम् + गम् + अप्—मुठभेड़, लड़ाई
- सङ्गमः—पुं॰—-—सम् + गम् + अप्—संयोग
- सङ्गमनम्—नपुं॰—-—सम् + गम् + ल्युट्—मिलना, मेल
- सङ्गरः—पुं॰—-—सम् + गृ + अप्—प्रतिज्ञा , करार
- सङ्गरः—पुं॰—-—सम् + गृ + अप्—स्वीकृति, हाथ में लेना
- सङ्गरः—पुं॰—-—सम् + गृ + अप्—सौदा
- सङ्गरः—पुं॰—-—सम् + गृ + अप्—संग्राम, युद्ध, लड़ाई
- सङ्गरः—पुं॰—-—सम् + गृ + अप्—ज्ञान
- सङ्गरः—पुं॰—-—सम् + गृ + अप्—निगल जाना
- सङ्गरः—पुं॰—-—सम् + गृ + अप्—दुर्भाग्य, संकट
- सङ्गरः—पुं॰—-—सम् + गृ + अप्—विष
- सङ्गवः—पुं॰—-—संगता गावो दोहनाय अत्र- नि॰—प्रातःस्नान के तीन मुहूर्त बाद का समय जो दिन के पाँच भागों में से दूसरा है, और जब गायें दूहने के बाद चरने के लिए ले जाई जाती हैं।
- सङ्गादः—पुं॰—-—सम् + गद् + घञ्—प्रवचन, समालाप, बातचीत
- सङ्गिन्—वि॰—-—सञ्ज + घिनुण्—संयुक्त, मिला हुआ
- सङ्गिन्—वि॰—-—सञ्ज + घिनुण्—अनुरक्त, भक्त, स्नेहशील
- सङ्गीत—भू॰ क॰ कृ॰—-—सम् + गै + क्त—मिलकर गाया हुआ, सहगान, सम्मिलित कण्ठों से गाया हुआ
- सङ्गीतम्—नपुं॰—-—-—सामूहिक गान, बहुत से कण्ठों से मिलकर गाया जाने वाला गान
- सङ्गीतम्—नपुं॰—-—-—गायन, मधुर गायन, विशेषतः वह गायन जो नृत्य तथा वाद्ययन्त्रों के साथ गाया जाय, त्रिताल युक्त गान
- सङ्गीतम्—नपुं॰—-—-—संगीत गोष्ठी, सहसंगीत
- सङ्गीतम्—नपुं॰—-—-—नृत्य वाद्य के साथ गाने की कला
- सङ्गीतार्थः—पुं॰—सङ्गीत-अर्थः—-—संगीत प्रदर्शन का विषय
- सङ्गीतार्थः—पुं॰—सङ्गीत-अर्थः—-—संगीतशाला के लिए आवश्यक सामग्री या उपकरण
- सङ्गीतशाला—स्त्री॰—सङ्गीत-शाला—-—गायनालय
- सङ्गीतशास्त्रम्—नपुं॰—सङ्गीत-शास्त्रम्—-—गानविद्या
- सङ्गीतकम्—नपुं॰—-—सङ्गीत + कन्—संगीतगोष्ठी, सुरताल से युक्त गान
- सङ्गीतकम्—नपुं॰—-—सङ्गीत + कन्—सार्वजनिक मनोरंजन जिसमें नाच-गाना हों
- सङ्गीर्णः—भू॰ क॰ कृ॰—-—सम् + गृ + क्त—सम्मत, स्वीकृत
- सङ्गीर्णः—भू॰ क॰ कृ॰—-—सम् + गृ + क्त—प्रतिज्ञात
- सङ्ग्रहः—पुं॰—-—सम् + ग्रह् + अप्—पकड़ना, ग्रहण करना,
- सङ्ग्रहः—पुं॰—-—सम् + ग्रह् + अप्—मुट्ठी बाँधना, चंगुल पकड़
- सङ्ग्रहः—पुं॰—-—सम् + ग्रह् + अप्—स्वागत, प्रवेश
- सङ्ग्रहः—पुं॰—-—सम् + ग्रह् + अप्—संरक्षण, प्ररक्षण
- सङ्ग्रहः—पुं॰—-—सम् + ग्रह् + अप्—भरना, संग्रह करना, एकत्र करना, संचय करना,
- सङ्ग्रहः—पुं॰—-—सम् + ग्रह् + अप्—शासन करना, प्रतिबन्ध लगाना, नियन्त्रण करना
- सङ्ग्रहः—पुं॰—-—सम् + ग्रह् + अप्—राशीकरण
- सङ्ग्रहः—पुं॰—-—सम् + ग्रह् + अप्—संयोजन
- सङ्ग्रहः—पुं॰—-—सम् + ग्रह् + अप्—संघट्टीकरण
- सङ्ग्रहः—पुं॰—-—सम् + ग्रह् + अप्—सम्मेलन करना, अवधारणा
- सङ्ग्रहः—पुं॰—-—सम् + ग्रह् + अप्—संकलन
- सङ्ग्रहः—पुं॰—-—सम् + ग्रह् + अप्—सारांश, सार, संक्षेपण, सारसंग्रह
- सङ्ग्रहः—पुं॰—-—सम् + ग्रह् + अप्—जोड़, राशि, समष्टि
- सङ्ग्रहः—पुं॰—-—सम् + ग्रह् + अप्—तालिका, सूची
- सङ्ग्रहः—पुं॰—-—सम् + ग्रह् + अप्—भंडारगृह
- सङ्ग्रहः—पुं॰—-—सम् + ग्रह् + अप्—प्रयत्न, चेष्टा
- सङ्ग्रहः—पुं॰—-—सम् + ग्रह् + अप्—उल्लेख, हवाला
- सङ्ग्रहः—पुं॰—-—सम् + ग्रह् + अप्—बड़प्पन, ऊँचापन
- सङ्ग्रहः—पुं॰—-—सम् + ग्रह् + अप्—वेग
- सङ्ग्रहः—पुं॰—-—सम् + ग्रह् + अप्—शिव का नाम
- सङ्ग्रहणम्—नपुं॰—-—सम् + ग्रह् + ल्युट्—पकड़ना, ले लेना
- सङ्ग्रहणम्—नपुं॰—-—सम् + ग्रह् + ल्युट्—सहारा देना, प्रोत्साहित करना
- सङ्ग्रहणम्—नपुं॰—-—सम् + ग्रह् + ल्युट्—संकलन करना, संचय करना
- सङ्ग्रहणम्—नपुं॰—-—सम् + ग्रह् + ल्युट्—गड्ड-मड्ड करना
- सङ्ग्रहणम्—नपुं॰—-—सम् + ग्रह् + ल्युट्—मंढना, जड़ना
- सङ्ग्रहणम्—नपुं॰—-—सम् + ग्रह् + ल्युट्—मैथुन, स्त्रीसंभोग
- सङ्ग्रहणम्—नपुं॰—-—सम् + ग्रह् + ल्युट्—व्यभिचार
- सङ्ग्रहणम्—नपुं॰—-—सम् + ग्रह् + ल्युट्—आशा करना
- सङ्ग्रहणम्—नपुं॰—-—सम् + ग्रह् + ल्युट्—स्वीकार करना, प्राप्त करना
- सङ्ग्रहणी—स्त्री॰—-—-—पेचिस
- सङ्ग्रहीतृ—पुं॰—-—सं + ग्रह् + तृच्—सारथि
- सङ्ग्रामः—पुं॰—-—सङ्ग्राम् + अच्—रण, युद्ध, लड़ाई
- सङ्ग्रामजित्—वि॰—सङ्ग्राम-जित्—-—युद्ध में जीतने वाला
- सङ्ग्रामपटहः—पुं॰—सङ्ग्राम-पटहः—-—युद्ध में बजाया जाने वाला एक बड़ा भारी ढोल
- सङ्ग्राहः—पुं॰—-—सम् + ग्रह् + धञ्—हाथ डालना, ले लेना
- सङ्ग्राहः—पुं॰—-—सम् + ग्रह् + धञ्—बलात् छीन लेना
- सङ्ग्राहः—पुं॰—-—सम् + ग्रह् + धञ्—मुट्ठी बाँधना
- सङ्ग्राहः—पुं॰—-—सम् + ग्रह् + धञ्—तलवार की मूठ
- सङ्घः—पुं॰—-—सम् + हन् + अप्, टिलोपः, घत्वम्—समूह, संग्रह, समुच्चय, झुण्ड
- सङ्घः—पुं॰—-—सम् + हन् + अप्, टिलोपः, घत्वम्—एक साथ रहने वाले लोगों का समूह
- सङ्घचारिन्—पुं॰—सङ्घ-चारिन्—-—मछली
- सङ्घजीविन्—पुं॰—सङ्घ-जीविन्—-—किराये का मजदूर, कुली
- सङ्घवृत्ति—स्त्री॰—सङ्घ-वृत्ति—-—संघटनवृत्ति
- सङ्घटना—स्त्री॰—-—सम् + घत् + णिच् + युच् + टाप्—साथ साथ मिलना, मेल, सम्मेल
- सङ्घट्टः—पुं॰—-—सम् + घट्ट् + अच्—संघर्षण, के एक साथ घिसना, रगड़ना
- सङ्घट्टः—पुं॰—-—सम् + घट्ट् + अच्—टक्कर, खटपट, मुठभेड़
- सङ्घट्टः—पुं॰—-—सम् + घट्ट् + अच्—भिड़न्त, संघर्ष
- सङ्घट्टः—पुं॰—-—सम् + घट्ट् + अच्—मिलना, सम्मिलन, टक्कर या स्पर्धा
- सङ्घट्टः—पुं॰—-—सम् + घट्ट् + अच्—आलिंगन
- सङ्घट्टा—स्त्री॰—-—-—एक बड़ी लता, वेल
- सङ्घट्टनम्—नपुं॰—-—सम् + घट्ट + ल्युट्—मिलाकर रगड़ना, संघर्षण
- सङ्घट्टनम्—नपुं॰—-—सम् + घट्ट + ल्युट्—टक्कर, खटपट
- सङ्घट्टनम्—नपुं॰—-—सम् + घट्ट + ल्युट्—घनिष्ठ, संपर्क, लगाव
- सङ्घट्टनम्—नपुं॰—-—सम् + घट्ट + ल्युट्—संपर्क, मेल, चिपकाव
- सङ्घट्टनम्—नपुं॰—-—सम् + घट्ट + ल्युट्—पहलवानों का पारस्परिक लिपटना
- सङ्घट्टनम्—नपुं॰—-—सम् + घट्ट + ल्युट्—मिलना, मुठभेड़
- सङ्घट्टना—स्त्री॰—-—सम् + घट्ट + ल्युट्—मिलाकर रगड़ना, संघर्षण
- सङ्घट्टना—स्त्री॰—-—सम् + घट्ट + ल्युट्—टक्कर, खटपट
- सङ्घट्टना—स्त्री॰—-—सम् + घट्ट + ल्युट्—घनिष्ठ, संपर्क, लगाव
- सङ्घट्टना—स्त्री॰—-—सम् + घट्ट + ल्युट्—संपर्क, मेल, चिपकाव
- सङ्घट्टना—स्त्री॰—-—सम् + घट्ट + ल्युट्—पहलवानों का पारस्परिक लिपटना
- सङ्घट्टना—स्त्री॰—-—सम् + घट्ट + ल्युट्—मिलना, मुठभेड़
- सङ्घशस्—अव्य॰—-—संघ + शस्—झुंडों में, दल बनाकर
- सङ्घर्ष—वि॰—-—सम् + घृष् + घञ्—दो चीजों की रगड़, घृष्टि
- सङ्घर्ष—वि॰—-—सम् + घृष् + घञ्—पीस डालना, चूरा करना
- सङ्घर्ष—वि॰—-—सम् + घृष् + घञ्—टक्कर, खटपट
- सङ्घर्ष—वि॰—-—सम् + घृष् + घञ्—प्रतिद्वन्द्विता, प्रतिस्पर्धा, श्रेष्टता के लिए होड़
- सङ्घर्ष—वि॰—-—सम् + घृष् + घञ्—ईर्ष्या, डाह
- सङ्घर्ष—वि॰—-—सम् + घृष् + घञ्—सरकना, मन्द मन्द बहना
- सङ्घाटिका—स्त्री॰—-—सम् + घट् + णिच् + ण्वुल् + टाप्, इत्वम्—जोड़ा, दम्पती
- सङ्घाटिका—स्त्री॰—-—सम् + घट् + णिच् + ण्वुल् + टाप्, इत्वम्—दूती, कुटनी
- सङ्घाटिका—स्त्री॰—-—सम् + घट् + णिच् + ण्वुल् + टाप्, इत्वम्—गंध
- सङ्घाणकः—पुं॰—-—शिघाण पृषो॰—नाक का मल, सिणक
- सङ्घाणकम्—नपुं॰—-—शिघाण पृषो॰—नाक का मल, सिणक
- सङ्घातः—पुं॰—-—सम् + हन् + घञ्—संघ, मिलाप, समाज
- सङ्घातः—पुं॰—-—सम् + हन् + घञ्—समुदाय, समवाय, समुच्चय
- सङ्घातः—पुं॰—-—सम् + हन् + घञ्—बध, हत्या
- सङ्घातः—पुं॰—-—सम् + हन् + घञ्—कफ
- सङ्घातः—पुं॰—-—सम् + हन् + घञ्—सम्मिश्रणों का निर्माण
- सङ्घातः—पुं॰—-—सम् + हन् + घञ्—नरक के एक प्रभाग का नाम
- सचकित—वि॰—-—-—विस्मित, भयभीत
- सचकितम्—अव्य॰—-—-—कांपते हुए, चौंक कर, चौकन्ना होकर, विस्मित होकर
- सचिः—पुं॰—-—सच् + इन्—मित्र
- सचिः—पुं॰—-—सच् + इन्—मैत्री, घनिष्ठता
- सचिः—स्त्री॰—-—-—इन्द्र की पत्नी
- सचिल्लक—वि॰—-—सह् किलन्नेन, सहस्य सः, कप्, नि॰—क्लिन्नाक्ष, चौंधाई आँखों वाला
- सचिवः—पुं॰—-—सचि + वा + क—मित्र, सहचर
- सचिवः—पुं॰—-—सचि + वा + क—मन्त्री परामर्श दाता
- सची—स्त्री॰—-—-—इन्द्र की पत्नी
- सचेतन—वि॰—-—सह चेतनया व॰ स॰, सहस्य सः—चेतनायुक्त, जीवधारी, विवेकपूर्ण
- सचेतस्—वि॰—-—सह चेतसा ब॰ स॰—प्रज्ञावान्
- सचेतस्—वि॰—-—सह चेतसा ब॰ स॰—भावुक
- सचेतस्—वि॰—-—सह चेतसा ब॰ स॰—एकमत
- सचेल—वि॰—-—सह चेलेन ब॰ स॰—वस्त्रों से सुसज्जित
- सचेष्टः—पुं॰—-—सम् + अच्, तथाभूतः सन् इष्टः—आम का वृक्ष
- सजन—वि॰—-—सह जनेन ब॰ स॰—मनुष्यों या जीवधारी प्राणियों से युक्त
- सजनः—पुं॰—-—-—एक ही परिवार का व्यक्ति, बन्धु, संबन्धी
- सजल—वि॰—-—सह जलेन ब॰ स॰—जलमय, जलयुक्त, आर्द्र, गीला, तर
- सजाति —वि॰—-—समान जातिः अस्य, ब॰ स॰, समानस्य सः, समानां जातिर्महति- समान + छ—एक ही जाति का, एक ही वर्ग का
- सजाति —वि॰—-—समान जातिः अस्य, ब॰ स॰, समानस्य सः, समानां जातिर्महति- समान + छ—समान एक सा
- सजाति —पुं॰—-—समान जातिः अस्य, ब॰ स॰, समानस्य सः, समानां जातिर्महति- समान + छ—एक ही जाति के स्त्री और पुरुष से उत्पन्न पुत्र
- सजातीय—वि॰—-—समान जातिः अस्य, ब॰ स॰, समानस्य सः, समानां जातिर्महति- समान + छ—एक ही जाति का, एक ही वर्ग का
- सजातीय—वि॰—-—समान जातिः अस्य, ब॰ स॰, समानस्य सः, समानां जातिर्महति- समान + छ—समान एक सा
- सजातीय—पुं॰—-—समान जातिः अस्य, ब॰ स॰, समानस्य सः, समानां जातिर्महति- समान + छ—एक ही जाति के स्त्री और पुरुष से उत्पन्न पुत्र
- सजुष्—वि॰—-—सह जुषते जुष् + क्विप्—प्रिय, अनुरक्त
- सजुष्—वि॰—-—सह जुषते जुष् + क्विप्—साथ लगा हुआ
- सजुष्—पुं॰—-—सह जुषते जुष् + क्विप्—मित्र, साथी
- सजुष्—अव्य॰—-—सह जुषते जुष् + क्विप्—सहित, युक्त
- सजुस्—वि॰—-—सह जुषते जुष् + क्विप्, सहस्य सः—प्रिय, अनुरक्त
- सजुस्—वि॰—-—सह जुषते जुष् + क्विप्, सहस्य सः—साथ लगा हुआ
- सजुस्—पुं॰—-—सह जुषते जुष् + क्विप्, सहस्य सः—मित्र, साथी
- सजुस्—अव्य॰—-—सह जुषते जुष् + क्विप्, सहस्य सः—सहित, युक्त
- सज्ज—वि॰—-—सस्ज् + अच्—तत्पर, तैयार किया हुआ, तैयार कराया हुआ
- सज्ज—वि॰—-—सस्ज् + अच्—वस्त्रों से सुसज्जित, कपड़े धारण किये हुए
- सज्ज—वि॰—-—सस्ज् + अच्—संबारा हुआ, सजधज या टीपटाप से तैयार किया हुआ
- सज्ज—वि॰—-—सस्ज् + अच्—पूर्णतः सुसज्जित, शस्त्र धारण किये हुए
- सज्ज—वि॰—-—सस्ज् + अच्—किलेबन्दी करके सुसज्जित
- सज्जनम्—नपुं॰—-—सस्ज् + णिच् + ल्युट्—जकड़ना, बाँधना
- सज्जनम्—नपुं॰—-—सस्ज् + णिच् + ल्युट्—वेशभूषा धारण करना
- सज्जनम्—नपुं॰—-—सस्ज् + णिच् + ल्युट्—तैयारी करना, शस्त्रास्त्र धारण करना, सुसज्जित करना
- सज्जनम्—नपुं॰—-—सस्ज् + णिच् + ल्युट्—चौकीदार, पहरेदार
- सज्जनम्—नपुं॰—-—सस्ज् + णिच् + ल्युट्—घाट
- सज्जनः—पुं॰—-—-—भद्रपुरुष
- सज्जना—स्त्री॰—-—-—सजाना, संवारना, सुसज्जित करना
- सज्जना—स्त्री॰—-—-—वस्त्र आभूषण धारण करके तैयार होना, सजावट
- सज्जा—स्त्री॰—-—सस्ज् + अ + टाप्—वेशभूषा, सजावट
- सज्जा—स्त्री॰—-—सस्ज् + अ + टाप्—सुसज्जा, परिच्छद
- सज्जा—स्त्री॰—-—सस्ज् + अ + टाप्—सैनिक साज समान, कवच, जिरहबख्तर
- सज्जित—वि॰—-—सज्जा + इतच्—वस्त्र धारण किये हुए
- सज्जित—वि॰—-—सज्जा + इतच्—सजाया हुआ
- सज्जित—वि॰—-—सज्जा + इतच्—तैयार किया हुआ, साज-समान से लैस
- सज्जित—वि॰—-—सज्जा + इतच्—संबारा हुआ, हथियारों से लैस
- सज्य—वि॰—-—सहज्यया ब॰ स॰, सहस्य सः—धनुष की डोरी से युक्त
- सज्य—वि॰—-—सहज्यया ब॰ स॰, सहस्य सः—डोरी से कसा हुआ
- सज्योत्स्ना—स्त्री॰—-—सह ज्योत्स्नया ब॰ स॰ —चाँदनी रात
- सञ्चः—पुं॰—-—संचीयते अत्र - सम् + चि + ड—ग्रंथ लेखन के काम आने वाले पत्रों का संग्रह
- सञ्चत्—पुं॰—-—सम् + चत् + क्विप्—ठग, धूर्त, बाजीगर
- सञ्चयः—पुं॰—-—सम् + चि + अच्—ढेर लगाना, एकत्र करना
- सञ्चयः—पुं॰—-—सम् + चि + अच्—ढेर, राशि, संग्रह, भंडार, वाणिज्यवस्तु
- सञ्चयः—पुं॰—-—सम् + चि + अच्—भारी परिमाण, संग्रह
- सञ्चयनम्—नपुं॰—-—सम् + चि + ल्युट्—एकत्र करना, संग्रह करना
- सञ्चयनम्—नपुं॰—-—सम् + चि + ल्युट्—फूल चुनना, शव भस्म हो जाने के बाद भस्मास्थिचय करना
- सञ्चरः—पुं॰—-—सम् + चर् + क—मार्ग, एक राशि से दूसरी राशि पर स्थानान्तरण
- सञ्चरः—पुं॰—-—सम् + चर् + क—रास्ता, पथ
- सञ्चरः—पुं॰—-—सम् + चर् + क—भीड़ी सड़क, संकरा मार्ग, संकीर्ण पथ
- सञ्चरः—पुं॰—-—सम् + चर् + क—प्रवेश द्वार
- सञ्चरः—पुं॰—-—सम् + चर् + क—शरीर
- सञ्चरः—पुं॰—-—सम् + चर् + क—हत्या
- सञ्चरः—पुं॰—-—सम् + चर् + क—विकास
- सञ्चरणम्—नपुं॰—-—सम् + चर् + ल्युट्—जाना, गमन करना, यात्रा करना
- सञ्चल—वि॰—-—सम् + चल् + अच्—कांपने वाला, ठिठुरने वाला
- सञ्चलनम्—नपुं॰—-—सम् + चल् + ल्युट्—विक्षोभ, कंपकंपी, हिलना, थरथरी
- सञ्चाय्यः—पुं॰—-—सम् + चि + ण्यत्, नि॰—विशेष प्रकार का एक यज्ञ
- सञ्चारः—पुं॰—-—सम् + चर् + घञ्—गमन, गति यात्रा, पर्यटन
- सञ्चारः—पुं॰—-—सम् + चर् + घञ्—पारण, मार्ग, संक्रम
- सञ्चारः—पुं॰—-—सम् + चर् + घञ्—पथ, रास्ता, सड़क, दर्रा
- सञ्चारः—पुं॰—-—सम् + चर् + घञ्—कठिन प्रगति या यात्रा
- सञ्चारः—पुं॰—-—सम् + चर् + घञ्—कठिनाई, दुःख
- सञ्चारः—पुं॰—-—सम् + चर् + घञ्—गतिमान करना
- सञ्चारः—पुं॰—-—सम् + चर् + घञ्—भड़काना
- सञ्चारः—पुं॰—-—सम् + चर् + घञ्—नेतृत्व करना, मार्ग प्रदर्शन करना
- सञ्चारः—पुं॰—-—सम् + चर् + घञ्—संक्रामण, स्पर्शसंचार
- सञ्चारः—पुं॰—-—सम् + चर् + घञ्—साँप के फण मे पाई जाने वाली मणि
- सञ्चारक—वि॰—-—सम् + चर् + ण्वुल्—संचार करने वाला, संक्रमण करने वाला
- सञ्चारकः—पुं॰—-—-—नेता, पथ प्रदर्शक
- सञ्चारकः—पुं॰—-—-—उकसाने वाला
- सञ्चारणम्—नपुं॰—-—सम् + चर् +णिच् + ल्युट्—गतिशील होना, प्रणोदित करना, संप्रेषण, नेतृत्व करना आदि
- सञ्चारिका—स्त्री॰—-—सम् + चर् + ण्वुल् + टाप्, इत्वम्—दूती, परस्पर संदेशवाहिका
- सञ्चारिका—स्त्री॰—-—सम् + चर् + ण्वुल् + टाप्, इत्वम्—दूती, कुटनी
- सञ्चारिका—स्त्री॰—-—सम् + चर् + ण्वुल् + टाप्, इत्वम्—जोड़ा, दम्पती
- सञ्चारिका—स्त्री॰—-—सम् + चर् + ण्वुल् + टाप्, इत्वम्—गंध
- सञ्चारिन्—वि॰—-—सम् + चर् + णिनि—गतिशील, गमनीय
- सञ्चारिन्—वि॰—-—सम् + चर् + णिनि—पर्यटन, भ्रमण
- सञ्चारिन्—वि॰—-—सम् + चर् + णिनि—परिवर्तनशील, अस्थिर, चंचल
- सञ्चारिन्—वि॰—-—सम् + चर् + णिनि—दुर्गम, अगम्य
- सञ्चारिन्—वि॰—-—सम् + चर् + णिनि—क्षणभंगुर
- सञ्चारिन्—वि॰—-—सम् + चर् + णिनि—प्रभावशाली
- सञ्चारिन्—वि॰—-—सम् + चर् + णिनि—आनुवंशिक, वंशपरम्पराप्राप्त
- सञ्चारिन्—वि॰—-—सम् + चर् + णिनि—छूत का रोग
- सञ्चारिन्—वि॰—-—सम् + चर् + णिनि—प्रणोदन
- सञ्चारिन्—पुं॰—-—-—वायु, हवा
- सञ्चारिन्—पुं॰—-—-—धूप
- सञ्चारिन्—पुं॰—-—-—वह क्षणभंगुर भाव जो स्थायी को शक्ति सम्पन्न करता हैं
- सञ्चाली—स्त्री॰—-—सम् + चल् + ण + ङीप्—गुंजा की झाड़ी
- सञ्चित—भू॰ क॰ कृ॰—-—सम् + चि + क्त—ढेर लगाया हुआ, संगृहीत, जोड़ा गया, इकट्ठा किया गया
- सञ्चित—भू॰ क॰ कृ॰—-—सम् + चि + क्त—रक्खा गया, जमा किया गया
- सञ्चित—भू॰ क॰ कृ॰—-—सम् + चि + क्त—गिना गया, गणना की गई
- सञ्चित—भू॰ क॰ कृ॰—-—सम् + चि + क्त—भरा हुआ , सुसम्पन्न, युक्त
- सञ्चित—भू॰ क॰ कृ॰—-—सम् + चि + क्त—बाधित, अवरुध
- सञ्चित—भू॰ क॰ कृ॰—-—सम् + चि + क्त—सघन, घिनका
- सञ्चितिः—स्त्री॰—-—सम् + चि + क्तिन्—संग्रह, सञ्चय
- सञ्चिन्तनम्—नपुं॰—-—सम् + चिन्त् + ल्युट्—विचार, विमर्श
- सञ्चूर्णम्—नपुं॰—-—सम् + चूर्ण् + ल्युट्—चूर चूर करना
- सञ्छन्न—भू॰ क॰ कृ॰—-—सम् + छद् + क्त—लिपटा हुआ, ढका हुआ, छिपा हुआ
- सञ्छन्न—भू॰ क॰ कृ॰—-—सम् + छद् + क्त—वस्त्र पहने हुए
- सञ्छादनम्—नपुं॰—-—सम् + छद् + णिच् + ल्युट्—ढकना, छिपाना
- सञ्ज्—भ्वा॰ पर॰ <सजति> <सक्त>—-—-—संलग्न होना, जुड़े रहना, चिपके रहना
- सञ्ज्—भ्वा॰, कर्मवा॰ <सञ्जयते>—-—-—जकड़ना, संलग्न होना, चिमटना, जुड़े रहना
- सञ्ज्—भ्वा॰उभ॰, प्रेर॰ <सञ्जयति> <सञ्जयते>—-—-—जकड़ना, संलग्न होना, चिमटना, जुड़े रहना
- सञ्ज्—भ्वा॰ पर॰, इच्छा॰ <सिसंक्षति>—-—-—जकड़ना, संलग्न होना, चिमटना, जुड़े रहना
- अनुसञ्ज्—भ्वा॰ पर॰—अनु-सञ्ज्—-—चिपकना, चिमटना
- अनुसञ्ज्—भ्वा॰ पर॰—अनु-सञ्ज्—-—जुड़ना, साथ होना
- अनुसञ्ज्—भ्वा॰, कर्मवा॰—अनु-सञ्ज्—-—चिमटना, जुड़ जाना
- अवसञ्ज्—भ्वा॰ पर॰—अव-सञ्ज्—-—निलम्बित करना, संल्गन करना, चिमटना, फेंकना, रखना
- अवसञ्ज्—भ्वा॰ पर॰—अव-सञ्ज्—-—सौंपना, सुपुर्द करना, निर्दिष्ट करना
- अवसञ्ज्—भ्वा॰, कर्मवा॰—अव-सञ्ज्—-—सम्पर्क में होना, मिलते रहना
- अवसञ्ज्—भ्वा॰ पर॰—अव-सञ्ज्—-—व्यस्त होना, तुल जाना, उत्सुक होना
- आसञ्ज्—भ्वा॰ पर॰—आ-सञ्ज्—-—जकड़ना, जमाना, जोड़ना, मिलाना, रखना
- आसञ्ज्—भ्वा॰ पर॰—आ-सञ्ज्—-—अभिदान करना, प्रेरित करना
- आसञ्ज्—भ्वा॰ पर॰—आ-सञ्ज्—-—सुपुर्द करना, निर्दिष्ट करना
- आसञ्ज्—भ्वा॰ पर॰—आ-सञ्ज्—-—चिमटना, लगे रहना
- निसञ्ज्—भ्वा॰ पर॰—नि-सञ्ज्—-—जमे रहना, चिमटना, डाल दिया जाए, रक्खा जाना
- निसञ्ज्—भ्वा॰ पर॰—नि-सञ्ज्—-—प्रतिबिम्बित होना
- निसञ्ज्—भ्वा॰ पर॰—नि-सञ्ज्—-—संलग्न होना
- प्रसञ्ज्—भ्वा॰ पर॰—प्र-सञ्ज्—-—चिमटना, जुड़ना
- प्रसञ्ज्—भ्वा॰ पर॰—प्र-सञ्ज्—-—प्रयुक्त होना, अनुकरण करना, प्रयुक्त किया जाना, सही उतरना, ठीक बैठना
- प्रसञ्ज्—भ्वा॰ पर॰—प्र-सञ्ज्—-—संल्गन होना
- व्यतिसञ्ज्—भ्वा॰ पर॰—व्यति-सञ्ज्—-—मिलाना, साथ साथ जोड़ना
- सञ्जः—पुं॰—-—सम् + जन् + ड—ब्रह्मा का नाम
- सञ्जः—पुं॰—-—सम् + जन् + ड—शिव का नाम
- सञ्जयः—पुं॰—-—सम् + जि + अच्—धृतराष्ट्र के सारथि का नाम
- सञ्जल्पः—पुं॰—-—सम् + जल्प् + घञ्—वार्तालाप, अव्यवस्थित, बातचीत, बकवाद करना, गड़बड़
- सञ्जल्पः—पुं॰—-—सम् + जल्प् + घञ्—शोरगुल, हंगामा
- सञ्जवनम्—नपुं॰—-—सम् + जु + ल्युट्—चतुःशाल, आमने सामने के चार घरों का समूह जिनके बीच में आगंन बन गया हो
- सञ्जा—स्त्री॰—-—सञ्ज + टाप्—बक
- सञ्जीवनम्—नपुं॰—-—सम् + जीव् + ल्युट्—साथ साथ रहना
- सञ्जीवनम्—नपुं॰—-—सम् + जीव् + ल्युट्—जीवित करना, जीवन देना, पुनर्जीवन, पुनः सजीवता
- सञ्जीवनम्—नपुं॰—-—सम् + जीव् + ल्युट्—इक्कीस नरकों मे से एक नरक
- सञ्जीवनम्—नपुं॰—-—सम् + जीव् + ल्युट्—चार घरों का समूह, चतुःशाल
- सञ्जीवनी—स्त्री॰—-—सम् + जीव् + ल्युट्—एक प्रकार का अमृत
- सञ्ज्ञ—वि॰—-—सम् + ज्ञा + क—जिसके घुटने चलते हुए आपस में टकराते हों
- सञ्ज्ञ—वि॰—-—सम् + ज्ञा + क—होश में आया हुआ
- सञ्ज्ञ—वि॰—-—सम् + ज्ञा + क—नामवाला, नामक
- सञ्ज्ञम्—नपुं॰—-—-—एक प्रकार का पीला सुगंधित काष्ठ
- सञ्ज्ञपनम्—नपुं॰—-—सम् + ज्ञा + णिच् + ल्युट्, पुकागमः, ह्रस्वः—हत्या, वध
- सञ्ज्ञा—स्त्री॰—-—सम् + ज्ञा + अङ् + टाप्—चेतना, होश
- सञ्ज्ञां लभ्——-—-—फिर चैतन्य प्राप्त करना
- सञ्ज्ञां आपद्——-—-—फिर चैतन्य प्राप्त करना
- सञ्ज्ञां प्रतिपद्——-—-—फिर चैतन्य प्राप्त करना
- सञ्ज्ञा—स्त्री॰—-—-—जानकारी, समझ
- सञ्ज्ञा—स्त्री॰—-—-—बुद्धि, मन
- सञ्ज्ञा—स्त्री॰—-—-—संकेत, इंगित, निशान, हाव-भाव
- सञ्ज्ञा—स्त्री॰—-—-—नाम, पद, अभिधान, इस अर्थ में प्रायः समास के अन्त में
- सञ्ज्ञा—स्त्री॰—-—-—विशेष अर्थ रखने वाला नाम या संज्ञा, व्यक्तिवाचक संज्ञा
- सञ्ज्ञा—स्त्री॰—-—-—‘प्रत्यय’ का पारिभाषिक नाम
- सञ्ज्ञा—स्त्री॰—-—-—गायत्री मन्त्र
- सञ्ज्ञा—स्त्री॰—-—-—विश्वकर्मा की पुत्री और सुर्य की पत्नी, यम, यमी और दोनों अश्विनी कुमारों की माता
- सञ्ज्ञाधिकारः—पुं॰—सञ्ज्ञा-अधिकारः—-—एक प्रधान नियम जिसके अनुसार तदन्तर्गत नियमों का विशेष नाम रक्खा जाता है, और वे सब नियम उससे प्रभावित होते हैं
- सञ्ज्ञाविषयः—पुं॰—सञ्ज्ञा-विषयः—-—विशेषण
- सञ्ज्ञासुतः—पुं॰—सञ्ज्ञा-सुतः—-—शनि का विशेषण
- सञ्ज्ञानाम्—नपुं॰—-—सम् + ज्ञा + ल्युट्—जानकारी, समझ
- सञ्ज्ञापनम्—नपुं॰—-—सम् + ज्ञा + णिच् + ल्युट्, पुक्—सूचित करना
- सञ्ज्ञापनम्—नपुं॰—-—सम् + ज्ञा + णिच् + ल्युट्, पुक्—अध्यापन
- सञ्ज्ञापनम्—नपुं॰—-—सम् + ज्ञा + णिच् + ल्युट्, पुक्—वध, हत्या
- सञ्ज्ञावत्—वि॰—-—सञ्ज्ञा + मतुप्—सचेतन, होश में आया हुआ, पुनर्जीवित
- सञ्ज्ञावत्—वि॰—-—सञ्ज्ञा + मतुप्—नाम वाला
- सञ्ज्ञित—वि॰—-—सञ्ज्ञा + इतच्—नाम वाला, नामक, नामधारी
- सञ्ज्ञिन्—वि॰—-—सञ्ज्ञा + इनि—नाम वाला
- सञ्ज्ञिन्—वि॰—-—सञ्ज्ञा + इनि—जिसका नाम रक्खा जाय
- सञ्ज्ञु—वि॰—-—संहते जानुनी यस्य-ब॰ स॰, जानुस्थाने ज्ञुः—जिसके घुटने चलते हुए आपस में टकराते हों
- सञ्ज्वरः—पुं॰—-—सम् + ज्वर् + अप्—अतिताप, बुखार
- सञ्ज्वरः—पुं॰—-—सम् + ज्वर् + अप्—गर्मी
- सञ्ज्वरः—पुं॰—-—सम् + ज्वर् + अप्—क्रोध
- सट्—भ्वा॰ पर <सटति>—-—-—बांटना, भाग बनाना
- सट्—चुरा॰ उभ॰ <साटयति> <साटयते>—-—-—प्रकट करना, प्रदर्शन करना, स्पष्ट करना
- सटम्—नपुं॰—-—सट् + अच्—संन्यासी की जटाएँ
- सटम्—नपुं॰—-—सट् + अच्—अयाल
- सटम्—नपुं॰—-—सट् + अच्—सूअर के खड़े बाल
- सटम्—नपुं॰—-—सट् + अच्—शिखा, चोटी
- सटा—स्त्री॰—-—सट् + टाप् —संन्यासी की जटाएँ
- सटा—स्त्री॰—-—सट् + टाप् —अयाल
- सटा—स्त्री॰—-—सट् + टाप् —सूअर के खड़े बाल
- सटा—स्त्री॰—-—सट् + टाप् —शिखा, चोटी
- सटाङ्कः—पुं॰—सटम्-अङ्कः—-—सिंह
- सट्ट्—चुरा॰ उभ॰ <सट्टयति> <सट्टयते>—-—-—क्षति पहुँचाना, मार डालना
- सट्ट्—चुरा॰ उभ॰ <सट्टयति> <सट्टयते>—-—-—बलवान होना
- सट्ट्—चुरा॰ उभ॰ <सट्टयति> <सट्टयते>—-—-—देना
- सट्ट्—चुरा॰ उभ॰ <सट्टयति> <सट्टयते>—-—-—लेना
- सट्ट्—चुरा॰ उभ॰ <सट्टयति> <सट्टयते>—-—-—रहना
- सट्टकम्—नपुं॰—-—सट्ट् + ण्वुल्—प्राकृत भाषा का एक उपरुपक
- सट्वा—स्त्री॰—-—सठ् + व, पृषो॰—एक पक्षिविशेष
- सट्वा—स्त्री॰—-—सठ् + व, पृषो॰—एक वाद्ययंत्र
- सठ्—चुरा॰ उभ॰ <साठयति> <साठयते>—-—-—समाप्त करना, पूरा करना
- सठ्—चुरा॰ उभ॰ <साठयति> <साठयते>—-—-—अधूरा छोड़ देना
- सठ्—चुरा॰ उभ॰ <साठयति> <साठयते>—-—-—जाना, हिलना-जुलना
- सठ्—चुरा॰ उभ॰ <साठयति> <साठयते>—-—-—अलंकृत करना, सजाना
- सणसूत्रम्—नपुं॰—-— = शणसूत्र, पृषो॰—सन की बनी डोरी या रस्सी
- सण्ड—पुं॰—-—-—नपुंसक, हिजड़ा
- सण्ड—पुं॰—-—-—नपुंसकलिंग
- सण्डिशः—पुं॰—-— = सन्दश, पृषो॰ —चिमटा या संडासी
- सण्डीनम्—नपुं॰—-—सम् + डी + क्त—पक्षियों की विभिन्न उड़ानों मे से एक
- सत्—वि॰ —-—अतीस् + शतृ, अकारलोपः—वर्तमान, विद्यमान, मौजूद
- सत्—वि॰ —-—अतीस् + शतृ, अकारलोपः—वास्तविक, असली, सत्य
- सत्—वि॰ —-—अतीस् + शतृ, अकारलोपः—अच्छा, सद्गुणसंपन्न, धर्मात्मा या सती
- सत्—वि॰ —-—अतीस् + शतृ, अकारलोपः—कुलीन, योग्य, उच्च
- सत्—वि॰ —-—अतीस् + शतृ, अकारलोपः—ठीक, उचित
- सत्—वि॰ —-—अतीस् + शतृ, अकारलोपः—सर्वोत्तम, श्रेष्ठ
- सत्—वि॰ —-—अतीस् + शतृ, अकारलोपः—सम्मानीय, आदरणीय
- सत्—वि॰ —-—अतीस् + शतृ, अकारलोपः—बुद्धिमान, विद्वान
- सत्—वि॰ —-—अतीस् + शतृ, अकारलोपः—मनोहर, सुन्दर
- सत्—वि॰ —-—अतीस् + शतृ, अकारलोपः—दृढ़, स्थिर
- सत्—पुं॰—-—-—भद्रपुरुष, सदगुणी व्यक्ति, ऋषि
- सत्—नपुं॰—-—-—जो वस्तुतः विद्यमान हो, सत्ता, अस्तित्व, सर्वनिरपेक्ष सत्ता
- सत्—नपुं॰—-—-—वस्तुतः विद्यमान, सचाई, वास्तविकता
- सत्—नपुं॰—-—-—भद्र
- सत्—नपुं॰—-—-—ब्रह्मा या परमात्मा
- सत्कृ ——-—-—आदर करना, सम्मान करना, सत्कार करना
- सदसत्—वि॰—सत्-असत् —-—विद्यमान और अविद्यमान, मौजूद, जो मौजूद न हो
- सदसत्—वि॰—सत्-असत् —-—असली और नकली
- सदसत्—वि॰—सत्-असत् —-—सत्य और मिथ्या
- सदसत्—वि॰—सत्-असत् —-—भला और बुरा, ठीक और गलत
- सदसत्—वि॰—सत्-असत् —-—पुण्यात्मा और दुष्ट
- सदसत्—नपुं॰ द्वि॰ व॰—सत्-असत् —-—अस्तित्व और अनस्तित्व
- सदसत्—नपुं॰ द्वि॰ व॰—सत्-असत् —-—भलाई और बुराई, ठीक और गलत
- सदसद्विवेकः—पुं॰—सत्-असत्-विवेकः —-—भलाई और बुराई में अथवा सच और झूठ में विवेक
- सदसद्व्यक्तिहेतुः—पुं॰—सत्-असत्- व्यक्तिहेतुः—-—भलाई और बुराई में विवेक का कारण
- सदाचारः—पुं॰—सत्-आचारः —-—सद्व्यवहार, शिष्ट आचरण
- सदाचारः—पुं॰—सत्-आचारः —-—मानी हुई रस्म, परंपराप्राप्त पर्व, स्मरणातीत प्रथा
- सदात्मन्—वि॰—सत्-आत्मन्—-—गुणी, भद्र
- सदुत्तरम्—नपुं॰—सत्-उत्तरम्—-—उचित या अच्छा जवाब
- सत्कर्मन्—नपुं॰—सत्-कर्मन्—-—गुणयुक्त या पुण्यकार्य
- सत्कर्मन्—वि॰—सत्-कर्मन्—-—सद्गुण, पावनता
- सत्कर्मन्—वि॰—सत्-कर्मन्—-—आतिथ्य
- सत्काण्डः—पुं॰—सत्-काण्डः—-—बाज, चील
- सत्कारः—पुं॰—सत्-कारः—-—कृपा तथा आतिथ्यपूर्ण व्यवहार, सत्कारयुक्त स्वागत
- सत्कारः—पुं॰—सत्-कारः—-—सम्मान, आदर
- सत्कारः—पुं॰—सत्-कारः—-—देखभाल, ध्यान
- सत्कारः—पुं॰—सत्-कारः—-—भोजन
- सत्कारः—पुं॰—सत्-कारः—-—पर्व, धार्मिक त्योहार
- सत्कुलम्—नपुं॰—सत्-कुलम्—-—सत्कुल, उत्तमकुल
- सत्कुलीन—वि॰—सत्-कुलीन—-—उत्तमकुल में उत्पन्न, उच्चकुलोद्भव
- सत्कृत—वि॰—सत्-कृत—-—भलीभांति या उचित ढंग से किया गया
- सत्कृत—वि॰—सत्-कृत—-—सत्कार पूर्वक स्वागत किया गया
- सत्कृत—वि॰—सत्-कृत—-—पूज्य, प्रतिष्ठित, सम्मानित
- सत्कृत—वि॰—सत्-कृत—-—पूजित, अलंकृत
- सत्कृत—वि॰—सत्-कृत—-—स्वागत किया गया
- सत्कृत—पुं॰—सत्-कृतः—-—शिव का विशेषण
- सत्कृतम्—नपुं॰—सत्-कृतम्—-—आतिथ्य
- सत्कृतम्—नपुं॰—सत्-कृतम्—-—सद्गुण, शुचिता
- सत्कृति—स्त्री॰—सत्-कृति—-—सादर व्यवहार, आतिथ्य, आतिथ्यपूर्ण स्वागत
- सत्कृति—स्त्री॰—सत्-कृति—-—सद्गुण, सदाचार
- सत्क्रिया—स्त्री॰—सत्-क्रिया—-—सद्गुण, भलाई
- सत्क्रिया—स्त्री॰—सत्-क्रिया—-—धर्मार्थता, सत्कर्म, पुण्यकार्य
- सत्क्रिया—स्त्री॰—सत्-क्रिया—-—आतिथ्य, आतिथ्यपूर्ण स्वागत
- सत्क्रिया—स्त्री॰—सत्-क्रिया—-—शिष्टाचार, अभिवादन
- सत्क्रिया—स्त्री॰—सत्-क्रिया—-—शुद्धिसंस्कार
- सत्क्रिया—स्त्री॰—सत्-क्रिया—-—अन्येष्टि संस्कार, और्ध्वदैहिक क्रिया
- सद्गतिः—स्त्री॰—सत्-गतिः—-—उत्तम स्थिति, आनन्द, स्वर्गसुख
- सद्गुण—वि॰—सत्-गुण—-—अच्छे गुणों से युक्त, पुण्यात्मा
- सद्गुण—पुं॰—सत्-गुणः—-—पुण्यकार्य, उत्तमता, भलाई, नेकी
- सच्चरित—वि॰—सत्-चरित—-—सदाचारी, ईमानदार, पुण्यात्मा, धर्मात्मा
- सच्चरित—नपुं॰—सत्-चरित—-—सदाचार, पुण्याचरण
- सच्चरित—वि॰—सत्-चरित—-—भद्रपुरुषों का इतिहास
- सच्चरित्र—वि॰—सत्- चरित्र—-—सदाचारी, ईमानदार, पुण्यात्मा, धर्मात्मा
- सच्चरित्र—नपुं॰—सत्- चरित्र—-—सदाचार, पुण्याचरण
- सच्चरित्र—वि॰—सत्- चरित्र—-—भद्रपुरुषों का इतिहास
- सच्चारा—स्त्री॰—सत्-चारा—-—हल्दी
- सच्चिद्—नपुं॰—सत्-चिद्—-—परमात्मा
- सच्चिदांशः—पुं॰—सत्-चिद्-अंशः—-—सत् और चित् का भाग
- सच्चिदात्मन्—पुं॰—सत्-चिद्-आत्मन्—-—सत् और चित् से युक्त आत्मा
- सच्चिदानन्दः—पुं॰—सत्-चिद्-आनन्दः—-—परमात्मा का विशेषण
- सज्जनः—पुं॰—सत्-जनः—-—भद्र पुरुष, पुण्यात्मा
- सत्पत्रम्—नपुं॰—सत्-पत्रम्—-—कमल का नया पत्ता
- सत्पथः—पुं॰—सत्-पथः—-—अच्छा मार्ग
- सत्पथः—पुं॰—सत्-पथः—-—कर्तव्य का सन्मार्ग, शुद्धाचरण, पुण्याचरण
- सत्पथः—पुं॰—सत्-पथः—-—शास्त्रविहित सिद्धांत
- सत्परिग्रहः—पुं॰—सत्-परिग्रहः—-—योग्य व्यक्ति से ग्रहण करना
- सत्पशुः—पुं॰—सत्-पशुः—-—यज्ञ में दी जाने वाली बलि के लिए उपयुक्त पशु, सुचारु यज्ञीय बलि
- सत्पात्रम्—नपुं॰—सत्-पात्रम्—-—योग्य व्यक्ति, पुण्यात्मा
- सत्पात्रंवर्षः—पुं॰—सत्-पात्रम्-वर्षः—-—योग्य आदाता के प्रति अनुग्रह की वर्षा, योग्य व्यक्ति के प्रति उदारता का बर्ताव
- सत्पात्रंवर्षिन्—वि॰—सत्-पात्रम्-वर्षिन्—-—पात्रता का विचार कर दान आदि देने वाला
- सत्पुत्रः—पुं॰—सत्-पुत्रः—-—भला पुत्र, योग्य पुत्र
- सत्पुत्रः—पुं॰—सत्-पुत्रः—-—वह पुत्र जो पितरों के सम्मान में सभी विहित कर्मो का अनुष्ठान करें
- सत्प्रतिपक्षः—पुं॰—सत्-प्रतिपक्षः—-—पांच प्रकार के हेत्वाभासों में से एक, प्रति संतुलित हेतु, वह हेतु जिसके विपक्ष में अन्य समक्ष हेतु भी हो
- सत्फलः—पुं॰—सत्-फलः—-—अनार का पेड़
- सद्भावः—पुं॰—सत्-भावः—-—सत्ता, विद्यमानता, अस्तित्व
- सद्भावः—पुं॰—सत्-भावः—-—वस्तुस्थिति, वास्तविकता
- सद्भावः—पुं॰—सत्-भावः—-—सद्वृत्ति, अच्छा स्वभाव, सौजन्य
- सद्भावः—पुं॰—सत्-भावः—-—भद्रता, साधुता
- सन्मातुरः—पुं॰—सत्-मातुरः—-—धर्मपरायण माता का पुत्र
- सन्मात्रः—पुं॰—सत्-मात्रः—-—जिसका केवल अस्तित्व माना जाय, जीव, आत्मा
- सन्मानः—पुं॰—सत्-मानः—-—भद्रपुरुषों का सम्मान
- सन्मित्रम्—नपुं॰—सत्-मित्रम्—-—विश्वासपात्र मित्र
- सद्युवतिः—स्त्री॰—सत्-युवतिः—-—सती साध्वी स्त्री
- सद्वंश—वि॰—सत्-वंश—-—अच्छे कुल का, कुलीन
- सद्वचस्—नपुं॰—सत्-वचस्—-—रुचिकर तथा सुखद भाषण
- सद्वस्तु—नपुं॰—सत्-वस्तु—-—अच्छी वस्तु
- सद्वस्तु—नपुं॰—सत्-वस्तु—-—अच्छी कथावस्तु
- सद्विद्य—वि॰—सत्-विद्य—-—सुशिक्षित, बहुश्रुत
- सद्वृत्त—वि॰—सत्-वृत्त—-—अच्छे व्यवहार का सदाचारी, पुण्याचरण करने वाला, खरा
- सद्वृत्त—वि॰—सत्-वृत्त—-—बिल्कुल गोल, वर्तुलाकार
- सद्वृत्तम्—नपुं॰—सत्-वृत्तम्—-—सदाचार, पुण्याचरण
- सद्वृत्तम्—नपुं॰—सत्-वृत्तम्—-—अच्छा स्वभाव, रोचक प्रकृति
- सत्संसर्गः—पुं॰—सत्-संसर्गः—-—भले मनुष्यों का समाज या मण्डली, भले मनुष्यों की संगति
- सत्सन्निधानम्—नपुं॰—सत्-सन्निधानम्—-—भले मनुष्यों का समाज या मण्डली, भले मनुष्यों की संगति
- सत्सङ्गः —पुं॰—सत्-सङ्गः —-—भले मनुष्यों का समाज या मण्डली, भले मनुष्यों की संगति
- सत्सङ्गतिः—स्त्री॰—सत्- सङ्गतिः—-—भले मनुष्यों का समाज या मण्डली, भले मनुष्यों की संगति
- सत्समागमः—पुं॰—सत्-समागमः—-—भले मनुष्यों का समाज या मण्डली, भले मनुष्यों की संगति
- सत्सम्प्रयोगः—पुं॰—सत्-सम्प्रयोगः—-—सही प्रयोग
- सत्सहाय—वि॰—सत्-सहाय—-—अच्छे मित्र जिसके सहायक हैं
- सत्सहायः—पुं॰—सत्-सहायः—-—अच्छा साथी
- सत्सार—वि॰—सत्-सार—-—अच्छे रस वाला
- सत्सारः—पुं॰—सत्-सारः—-—एक प्रकार का वृक्ष
- सत्सारः—पुं॰—सत्-सारः—-—कवि
- सत्सारः—पुं॰—सत्-सारः—-—चित्रकार
- सद्धेतुः—पुं॰—सत्-हेतुः—-—निर्दोष अथवा वैध कारण
- सतत—वि॰—-—सम् + तन् + क्त, समः अन्त्यलोपः—निरंतर नित्य, सदा रहने वाला, शाश्वत
- सततम्—अव्य॰—-—-—लगातार, अविच्छिन्न रुप से, नित्य, सदा, हमेशा
- सततगः—पुं॰—सतत-गः—-—वायुः
- सततगतिः—पुं॰—सतत-गतिः—-—वायुः
- सततयायिन्—वि॰—सतत-यायिन्—-—सदैव गतिशील
- सततयायिन्—वि॰—सतत-यायिन्—-—क्षयशील
- सतर्क—वि॰—-—तर्केण सह- ब॰ स॰—तर्क करने में निपुण
- सतर्क—वि॰—-—तर्केण सह- ब॰ स॰—सचेत, सावधान
- सतिः—स्त्री॰—-—सम् + क्तिन् मलोपः—उपहार, दान
- सतिः—स्त्री॰—-—सम् + क्तिन् मलोपः—अन्त, विनाश
- सती—स्त्री॰—-—सत् + ङीप्—साध्वी स्त्री
- सती—स्त्री॰—-—सत् + ङीप्—सन्यासिनी
- सती—स्त्री॰—-—सत् + ङीप्—दुर्गादेवी
- सतीत्वम्—नपुं॰—-—सती + त्व—सती होने का भाव, सतीपन
- सतीनः—पुं॰—-—सती + नी + ड—एक प्रकार की दाल, मटर
- सतीनः—पुं॰—-—सती + नी + ड—बाँस
- सतीर्थः —पुं॰—-—समानः तीर्थः गुरुर्यस्य- ब॰ स॰—सहाध्यायी, साथ अध्ययन करने वाले ब्रह्मचारी
- सतीर्थ्यः—पुं॰—-—तीर्थे गुरौ वसति इत्यर्थे यत् प्रत्ययः- समानस्य सः—सहाध्यायी, साथ अध्ययन करने वाले ब्रह्मचारी
- सतीलः—पुं॰—-—सती + लक्ष् + ड—बाँस
- सतीलः—पुं॰—-—सती + लक्ष् + ड—हवा, वायु
- सतीलः—पुं॰—-—सती + लक्ष् + ड—मटर, दाल
- सतेरः—पुं॰—-—सन् + एर, तान्तादेशः—भूसी, चोकर
- सत्ता—स्त्री॰—-—सत् + तल् + टाप्—अस्तित्व, विद्यमानता, होने का भाव
- सत्ता—स्त्री॰—-—सत् + तल् + टाप्—वस्तुस्थिति, वास्तविकता
- सत्ता—स्त्री॰—-—सत् + तल् + टाप्—उच्चतम जाति या सामान्यता
- सत्ता—स्त्री॰—-—सत् + तल् + टाप्—उत्तमता, श्रेष्ठता
- सत्त्रम्—नपुं॰—-—बहुधा सत्रम्- लिखा जाता है, सद् + ष्ट्र—यज्ञीय अवधी जो प्रायः १३ से १०० दिन तक होने वाले यज्ञों में पाई जाती हैं
- सत्त्रम्—नपुं॰—-—बहुधा सत्रम्- लिखा जाता है, सद् + ष्ट्र—यज्ञमात्र
- सत्त्रम्—नपुं॰—-—बहुधा सत्रम्- लिखा जाता है, सद् + ष्ट्र—आहुति, चढ़ावा, उपहार
- सत्त्रम्—नपुं॰—-—बहुधा सत्रम्- लिखा जाता है, सद् + ष्ट्र—उदारता, वदान्यता
- सत्त्रम्—नपुं॰—-—बहुधा सत्रम्- लिखा जाता है, सद् + ष्ट्र—सद्गुण
- सत्त्रम्—नपुं॰—-—बहुधा सत्रम्- लिखा जाता है, सद् + ष्ट्र—घर, निवास स्थान
- सत्त्रम्—नपुं॰—-—बहुधा सत्रम्- लिखा जाता है, सद् + ष्ट्र—आवरण
- सत्त्रम्—नपुं॰—-—बहुधा सत्रम्- लिखा जाता है, सद् + ष्ट्र—धनदौलत
- सत्त्रम्—नपुं॰—-—बहुधा सत्रम्- लिखा जाता है, सद् + ष्ट्र—जंगल, वन
- सत्त्रम्—नपुं॰—-—बहुधा सत्रम्- लिखा जाता है, सद् + ष्ट्र—तालाब, पोखर
- सत्त्रम्—नपुं॰—-—बहुधा सत्रम्- लिखा जाता है, सद् + ष्ट्र—जालसाजी, ठगना
- सत्त्रम्—नपुं॰—-—बहुधा सत्रम्- लिखा जाता है, सद् + ष्ट्र—शरणगृह, आश्रम, आश्रयस्थान
- सत्त्रायणम्—नपुं॰—सत्त्रम्-अयनम् —-—यज्ञों का चलने वाला दीर्घ कार्यकाल
- सत्त्रा—अव्य॰—-—सद् + त्रा—के साथ, मिलकर, सहित
- सत्त्राहन्—पुं॰—सत्त्रा-हन्—-—इन्द्र का विशेषण
- सत्त्रिः—पुं॰—-—सद् + त्रि—बादल
- सत्त्रिः—पुं॰—-—सद् + त्रि—हाथी
- सत्त्रिन्—पुं॰—-—सत्त्र + इनि—जो निरन्तर यज्ञानुष्ठान करता रहता है, उदार गृहस्थ
- सत्त्वम्—नपुं॰—-—सतो भावः सत् + त्व—होने का भाव, अस्तित्व, सत्ता
- सत्त्वम्—नपुं॰—-—सतो भावः सत् + त्व—प्रकृति, मूलतत्त्व
- सत्त्वम्—नपुं॰—-—सतो भावः सत् + त्व—स्वाभाविक चरित्र, सहज स्वाभाव
- सत्त्वम्—नपुं॰—-—सतो भावः सत् + त्व—जीवन, जीव, प्राण, जीवनी शक्ति, प्राणशक्ति का सिद्धान्त
- सत्त्वम्—नपुं॰—-—सतो भावः सत् + त्व—चेतना, मन, ज्ञान
- सत्त्वम्—नपुं॰—-—सतो भावः सत् + त्व—भ्रूण
- सत्त्वम्—नपुं॰—-—सतो भावः सत् + त्व—तत्त्वार्थ, वस्तु, सम्पत्ति
- सत्त्वम्—नपुं॰—-—सतो भावः सत् + त्व—मूलतत्त्व, जैसे कि पृथ्वी, वायु, अग्नि आदि
- सत्त्वम्—नपुं॰—-—सतो भावः सत् + त्व—प्राणधारी जीव, जानदार, जन्तु
- सत्त्वम्—नपुं॰—-—सतो भावः सत् + त्व—भूत, प्रेत, पिशाच
- सत्त्वम्—नपुं॰—-—सतो भावः सत् + त्व—भद्रता, सद्गुण, श्रेष्ठता
- सत्त्वम्—नपुं॰—-—सतो भावः सत् + त्व—सचाई, वास्तविकता, निश्चय
- सत्त्वम्—नपुं॰—-—सतो भावः सत् + त्व—सामर्थ्य, ऊर्जा, साहस, बल, शक्ति, अन्तर्हित शक्ति, वह तत्त्व जिससे पुरुष बनता है, पुरुषार्थ
- सत्त्वम्—नपुं॰—-—सतो भावः सत् + त्व—बुद्धिमत्ता, अच्छी समझ
- सत्त्वम्—नपुं॰—-—सतो भावः सत् + त्व—भद्रता और शुचिता का सर्वोत्तम गुण, सात्त्विक
- सत्त्वम्—नपुं॰—-—सतो भावः सत् + त्व—स्वाभाविक गुण या लक्षण
- सत्त्वम्—नपुं॰—-—सतो भावः सत् + त्व—संज्ञा, नाम
- सत्त्वानुरूप—वि॰—सत्त्वम्-अनुरूप—-—मनुष्य के सहज स्वभाव या अन्तर्हित चरित्र के अनुसार
- सत्वानुरूप—वि॰—सत्त्वम्-अनुरूप—-—अपने साधन या संपत्ति के अनुसार
- सत्त्वोद्रेकः—पुं॰—सत्त्वम्-उद्रेकः—-—भद्रता के गुण का आधिक्य
- सत्त्वोद्रेकः—पुं॰—सत्त्वम्-उद्रेकः—-—साहस या सामर्थ्य में प्रमुखता
- सत्त्वलक्षणम्—नपुं॰—सत्त्वम्-लक्षणम्—-—गर्भ के लक्षण
- सत्त्वविप्लवः—पुं॰—सत्त्वम्-विप्लवः—-—चेतना की हानि
- सत्त्वविहित—वि॰—सत्त्वम्-विहित—-—प्राकृतिक
- सत्त्वविहित—वि॰—सत्त्वम्-विहित—-—सद्गुणी, पुण्यात्मा, खरा
- सत्त्वसंशुद्धिः—स्त्री॰—सत्त्वम्-संशुद्धिः—-—प्रकृति की पवित्रता या खरापन
- सत्त्वसम्पन्न—वि॰—सत्त्वम्-सम्पन्न—-—सद्गुणों से युक्त पुण्यात्मा
- सत्त्वसम्प्लवः—पुं॰—सत्त्वम्-सम्प्लवः—-—बल या सामर्थ्य की हानि
- सत्त्वसम्प्लवः—पुं॰—सत्त्वम्-सम्प्लवः—-—विश्वविनाश, प्रलय
- सत्त्वसारः—पुं॰—सत्त्वम्-सारः—-—सामर्थ्य का सार, असाधारण साहस
- सत्त्वसारः—पुं॰—सत्त्वम्-सारः—-—अत्यन्त शक्तिशाली पुरुष
- सत्त्वस्थ—वि॰—सत्त्वम्-स्थ—-—अपनी प्रकृति में अन्तर्हित
- सत्त्वस्थ—वि॰—सत्त्वम्-स्थ—-—सजीव
- सत्त्वस्थ—वि॰—सत्त्वम्-स्थ—-—सत्वगुण विशिष्ट, उत्तम, श्रेष्ठ
- सत्त्वमेजय—वि॰—-—सत्त्व + एज् + णिच् + खश्, मुम्—पशुओं या जीवधारी प्राणियों को डराने वाला
- सत्य—वि॰—-—सते हितम् - सत् + यत्—सच्चा, वास्तविक, असली, जैसा कि सत्यब्रत, सत्यसन्घ में
- सत्य—वि॰—-—सते हितम् - सत् + यत्—ईमानदार, निष्कपट, सच्चा, निष्ठावान
- सत्य—वि॰—-—सते हितम् - सत् + यत्—सद्गुणसम्पन्न, खरा
- सत्यः—पुं॰—-—सते हितम् - सत् + यत्—ब्रह्मलोक, सत्यलोक, भूमि के ऊपर सात लोकों में सबसे ऊपर का लोक
- सत्यः—पुं॰—-—सते हितम् - सत् + यत्—पीपल का पेड़
- सत्यः—पुं॰—-—सते हितम् - सत् + यत्—राम का नाम
- सत्यः—पुं॰—-—सते हितम् - सत् + यत्—विष्णु का नाम
- सत्यः—पुं॰—-—सते हितम् - सत् + यत्—नांदीमुख श्राद्ध को अधिष्ठात्री देवता
- सत्यम्—नपुं॰—-—सते हितम् - सत् + यत्—सचाई
- सत्यं ब्रू——-—-—सच बोलना
- सत्यं ब्रू——-—-—निष्कपटता
- सत्यं ब्रू——-—-—भद्रता, सद्गुण, शुचिता
- सत्यं ब्रू——-—-—शपथ, प्रतिज्ञा, गंभीर दृढोक्ति
- सत्यं ब्रू——-—-—सचाई, प्रदर्शित सत्यता या रुढ़ि
- सत्यं ब्रू——-—-—चारों युगों में पहला युग, स्वर्णयुग, सत्ययुग
- सत्यं ब्रू——-—-—पानी
- सत्यम्—अव्य॰—-—-—सचमुच, वस्तुतः, निस्संदेह, निश्चय ही, वस्तुतस्तु
- सत्यानृत—वि॰—सत्य-अनृत—-—सच और मिथ्या
- सत्यानृत—वि॰—सत्य-अनृत—-—सच प्रतीत होने वाला परन्तु मिथ्या
- सत्यानृतम्—नपुं॰—सत्य-अनृतम्—-—सचाई और झूठ
- सत्यानृतम्—नपुं॰—सत्य-अनृतम्—-—झूठ और सच का अभ्यास अर्थात व्यापार, वाणिज्य
- सत्यानृते—नपुं॰द्वि॰व॰—सत्य-अनृते—-—सचाई और झूठ
- सत्यानृते—नपुं॰द्वि॰व॰—सत्य-अनृते—-—झूठ और सच का अभ्यास अर्थात व्यापार, वाणिज्य
- सत्याभिसन्धि—वि॰—सत्य-अभिसन्धि—-—अपनी प्रतिज्ञा पूरी करने वाला, निष्कपट
- सत्योत्कर्षः—पुं॰—सत्य-उत्कर्षः—-—सचाई में प्रमुखता
- सत्योत्कर्षः—पुं॰—सत्य-उत्कर्षः—-—सच्ची श्रेष्ठता
- सत्योद्य—वि॰—सत्य-उद्य—-—सत्यभाषी
- सत्योपयाचन—वि॰—सत्य-उपयाचन—-—प्रार्थना पूरी करने वाला
- सत्यकामः—पुं॰—सत्य-कामः—-—सत्य का प्रेमी
- सत्यतपस्—पुं॰—सत्य-तपस्—-—एक ऋषि का नाम
- सत्यदर्शिन्—अव्य॰—सत्य-दर्शिन्—-—सचाई को देखने वाला, सत्यता को भांपने वाला
- सत्यधन—वि॰—सत्य-धन—-—सत्य के गुण से समृद्ध, अत्यंत सच्चा
- सत्यधृति—वि॰—सत्य-धृति—-—परम सत्यवादी
- सत्यपुरम्—नपुं॰—सत्य-पुरम्—-—विष्णुलोक
- सत्यपूत—वि॰—सत्य-पूत—-—सत्यता से पवित्र किया हुआ
- सत्यप्रतिज्ञ—वि॰—सत्य-प्रतिज्ञ—-—वादे का पक्का, अपने वचन का पालन करने वाला
- सत्यभामा—स्त्री॰—सत्य-भामा—-—सत्राजित् की पुत्री तथा कृष्ण की प्रिय पत्नी का नाम
- सत्ययुगम्—नपुं॰—सत्य-युगम्—-—स्वर्णयुग
- सत्यवचस्—वि॰—सत्य-वचस्—-—सत्यवादी, सत्यनिष्ठ
- सत्यवचस्—पुं॰—सत्य-वचस्—-—सन्त, ऋषि
- सत्यवचस्—पुं॰—सत्य-वचस्—-—महात्मा
- सत्यवचस्—नपुं॰—सत्य-वचस्—-—सचाई, ईमानदारी
- सत्यवद्य—वि॰—सत्य-वद्य—-—सत्यभाषी
- सत्यवद्यम्—नपुं॰—सत्य-वद्यम्—-—सचाई, ईमानदारी
- सत्यवाच्—वि॰—सत्य-वाच्—-—सत्यवादी, सत्यनिष्ठ, खरा
- सत्यवाच्—पुं॰—सत्य-वाच्—-—सन्त, महात्मा, ऋषि, कीवा
- सत्यवाच्यम्—नपुं॰—सत्य-वाच्यम्—-—सत्यभाषण, खरापन
- सत्यवादिन्—वि॰—सत्य-वादिन्—-—सत्यभाषी
- सत्यवादिन्—वि॰—सत्य-वादिन्—-—निष्कपट, स्पष्टभाषी, खरा
- सत्यव्रत—वि॰—सत्य-व्रत—-—वादे का पक्का, अपने प्रतिज्ञा का पालन करने वाला, सत्यनिष्ठ, ईमानदार, निष्कपट
- सत्यसङ्गर—वि॰—सत्य-सङ्गर—-—वादे का पक्का, अपने प्रतिज्ञा का पालन करने वाला, सत्यनिष्ठ, ईमानदार, निष्कपट
- सत्यसङ्घ—वि॰—सत्य-सङ्घ—-—वादे का पक्का, अपने प्रतिज्ञा का पालन करने वाला, सत्यनिष्ठ, ईमानदार, निष्कपट
- सत्यश्रावणम्—नपुं॰—सत्य-श्रावणम्—-—शपथग्रहण
- सत्यसङ्काश—वि॰—सत्य-सङ्काश—-—प्रशस्त, गुंजाइश वाला, देखने में ठीक जंचता हुआ, सत्याभ
- सत्यङ्कारः—पुं॰—-—सत्य + कृ + घञ्, मुम्—सत्य करना, वादा पूरा करना, सौदे या संविदा की शर्ते पूरी करना
- सत्यङ्कारः—पुं॰—-—सत्य + कृ + घञ्, मुम्—वयाने की रक़म, अगाऊ दिया गया धन, ठेके का काम पूरा करने के लिए जमानत के रुप में दी गई अग्रिम राशि
- सत्यवत्—वि॰—-—सत्य + मतुप्—सत्यभाषी, सत्यनिष्ठ
- सत्यवत्—पुं॰—-—सत्य + मतुप्—एक राजा का नाम, सावित्री का पति
- सत्यवती—स्त्री॰—-—-—एक मछुए की लड़की जो पराशर मुनि के सहवास से व्यास की माता बनी
- सत्यवतीसुतः—पुं॰—सत्यवती-सुतः—-—व्यास
- सत्या—स्त्री॰—-—सत्यमस्ति अस्याः - सत्य + अच् + टाप्—सचाई, ईमानदारी
- सत्या—स्त्री॰—-—सत्यमस्ति अस्याः - सत्य + अच् + टाप्—सत्या का नाम
- सत्या—स्त्री॰—-—सत्यमस्ति अस्याः - सत्य + अच् + टाप्—द्रौपदी का नाम
- सत्या—स्त्री॰—-—सत्यमस्ति अस्याः - सत्य + अच् + टाप्—व्यास की माता सत्यवती का नाम
- सत्या—स्त्री॰—-—सत्यमस्ति अस्याः - सत्य + अच् + टाप्—दुर्गा का नाम
- सत्या—स्त्री॰—-—सत्यमस्ति अस्याः - सत्य + अच् + टाप्—कृष्ण की पत्नी सत्यभामा का नाम
- सत्यापनम्—नपुं॰—-—सत्य + णिच् + ल्युट्, पुकागमः—सत्यभाषण करना, सत्य का पालन करना
- सत्यापनम्—नपुं॰—-—सत्य + णिच् + ल्युट्, पुकागमः—शर्ते पूरी करना
- सत्रम्—नपुं॰—-—सद् + ष्ट्र—यज्ञीय अवधी जो प्रायः १३ से १०० दिन तक होने वाले यज्ञों में पाई जाती हैं
- सत्रम्—नपुं॰—-—सद् + ष्ट्र—यज्ञमात्र
- सत्रम्—नपुं॰—-—सद् + ष्ट्र—आहुति, चढ़ावा, उपहार
- सत्रम्—नपुं॰—-—सद् + ष्ट्र—उदारता, वदान्यता
- सत्रम्—नपुं॰—-—सद् + ष्ट्र—सद्गुण
- सत्रम्—नपुं॰—-—सद् + ष्ट्र—घर, निवास स्थान
- सत्रम्—नपुं॰—-—सद् + ष्ट्र—आवरण
- सत्रम्—नपुं॰—-—सद् + ष्ट्र—धनदौलत
- सत्रम्—नपुं॰—-—सद् + ष्ट्र—जंगल, वन
- सत्रम्—नपुं॰—-—सद् + ष्ट्र—तालाब, पोखर
- सत्रम्—नपुं॰—-—सद् + ष्ट्र—जालसाजी, ठगना
- सत्रम्—नपुं॰—-—सद् + ष्ट्र—शरणगृह, आश्रम, आश्रयस्थान
- सत्रप—वि॰—-—सह त्रपया - ब॰ स॰—लज्जाशील, विनयी
- सत्राजित्—पुं॰— —-—निघ्न का पुत्र तथा सत्यभामा का पिता
- सत्वर—वि॰—-—सह त्वरया - ब॰ स॰—फुर्तीला, द्रूतगामी, चुस्त
- सत्वरम्—अव्य॰—-—-—शीघ्र, जल्दी से
- सथूत्कार—वि॰—-—सह थूत्कारेण—वह मनुष्य जिसके मुँह से बोलते समय थूक निकले
- सथूत्कारः—पुं॰—-—-—बात के साथ मुँह से थूक निकलना
- सद्—भ्वा॰ पर॰ <सीदति>—-—-—बैठना, बैठ जाना, आराम करना, लेटना, लेट जाना, विश्राम करना, बस जाना
- सद्—भ्वा॰ पर॰ <सीदति>—-—-—डूबना, गोते लगाना,
- सद्—भ्वा॰ पर॰ <सीदति>—-—-—जीना, रहना, बसना, वास करना
- सद्—भ्वा॰ पर॰ <सीदति>—-—-—खिन्न होना, हतोत्साह होना, निराश होना, हताश होना, भग्नाशा में डूब जाना
- सद्—भ्वा॰ पर॰ <सीदति>—-—-—म्लान होना, नष्ट होना, बर्बाद होना, छीजना, नष्ट होना
- सद्—भ्वा॰ पर॰ <सीदति>—-—-—दुःखी होना, पीडित होना, कष्टग्रस्त होना, असहाय होना
- सद्—भ्वा॰ पर॰ <सीदति>—-—-—बाधित होना, विघ्नयुक्त होना
- सद्—भ्वा॰ पर॰ <सीदति>—-—-—म्लान होना, क्लान्त होना, थका हुआ होना, निढाल होना, अवसन्न होना
- सद्—भ्वा॰ पर॰ <सीदति>—-—-—जाना
- सद्—भ्वा॰ उभ॰, प्रेर॰ <सादयति> <सादयते>—-—-—बिठाना, आराम करना
- सद्—भ्वा॰ पर॰, इच्छा॰ <सिषत्सति>—-—-—बैठने की इच्छा करना
- अवसद्—भ्वा॰ पर॰ —अव-सद्—-—निढाल होना, मूर्छित होना, विफल होना, रास्ते से हट जाना
- अवसद्—भ्वा॰ पर॰ —अव-सद्—-—भुगतना, उपेक्षित होना
- अवसद्—भ्वा॰ पर॰ —अव-सद्—-—हतोत्साह होना, श्रान्त होना
- अवसद्—भ्वा॰ पर॰ —अव-सद्—-—नष्ट होना, क्षीण होना, समाप्त होना
- अवसद्—भ्वा॰ उभ॰, प्रेर॰—अव-सद्—-—अवसन्न करना, हतोत्साह करना, बर्बाद करना
- अवसद्—भ्वा॰ पर॰ —अव-सद्—-—दूर करना, हटाना
- अवसद्—भ्वा॰ पर॰ —अव-सद्—-—नष्ट करना, मार डालना
- आसद्—भ्वा॰ पर॰ —आ-सद्—-—नीचे बैठना, निकट बैठना
- आसद्—भ्वा॰ पर॰ —आ-सद्—-—घात रहना
- आसद्—भ्वा॰ पर॰ —आ-सद्—-—पहुँचना, उपगमन करना, पास जाना
- आसद्—भ्वा॰ पर॰ —आ-सद्—-—अकस्मात् मिलना, प्राप्त करना, निर्माण करना
- आसद्—भ्वा॰ पर॰ —आ-सद्—-—भुगतना
- आसद्—भ्वा॰ पर॰ —आ-सद्—-—मुठभेड़ होना, आक्रमण करना
- आसद्—भ्वा॰ पर॰ —आ-सद्—-—रखना
- आसद्—भ्वा॰ उभ॰, प्रेर॰—आ-सद्—-—दुर्घटना होना, पाना, हासिल करना, प्राप्त करना
- आसद्—भ्वा॰ पर॰ —आ-सद्—-—उपगमन करना, पास जाना, पहुँचना, अधिकार में करना
- आसद्—भ्वा॰ पर॰ —आ-सद्—-—पक्ड़ लेना
- आसद्—भ्वा॰ पर॰ —आ-सद्—-—मुठभेड़ होना, आक्रमण करना
- उत्सद्—भ्वा॰ पर॰ —उद्-सद्—-—डूबना, बर्बाद होना, क्षीण होना
- उत्सद्—भ्वा॰ पर॰ —उद्-सद्—-—छोड़ देना, त्याग देना
- उत्सद्—भ्वा॰ पर॰ —उद्-सद्—-—विद्रोह के लिए उठना
- उत्सद्—भ्वा॰ उभ॰, प्रेर॰—उद्-सद्—-—नष्ट करना, उन्मूलन करना
- उत्सद्—भ्वा॰ पर॰ —उद्-सद्—-—उलटना
- उत्सद्—भ्वा॰ पर॰ —उद्-सद्—-—मलना, मालिश करना
- उपसद्—भ्वा॰ पर॰ —उप-सद्—-—निकट बैठना, पहुँचना, पास जाना
- उपसद्—भ्वा॰ पर॰ —उप-सद्—-—सेवा में प्रस्तुत रहना, सेवा करना
- उपसद्—भ्वा॰ पर॰ —उप-सद्—-—चढ़ाई करना
- निसद्—भ्वा॰ पर॰ —नि-सद्—-—नीचे बैठ जाना, लेटना, विश्राम करना
- निसद्—भ्वा॰ पर॰ —नि-सद्—-—डूबना, विफल होना, निराश होना
- प्रसद्—भ्वा॰ पर॰ —प्र-सद्—-—प्रसन्न होना, कृपालु होना, मंगलप्रद होना
- प्रसद्—भ्वा॰ पर॰ —प्र-सद्—-—आश्वस्त होना, परितुष्ट होना, सन्तुष्ट होना,
- प्रसद्—भ्वा॰ पर॰ —प्र-सद्—-—निर्मल होना, स्वच्छ होना, स्पष्ट होना, चमकना
- प्रसद्—भ्वा॰ पर॰ —प्र-सद्—-—फल आना, सफल होना, कामयाब होना
- प्रसद्—भ्वा॰ उभ॰, प्रेर॰—प्र-सद्—-—राजी करना, अनुग्रह प्राप्त करना, प्रार्थना करना, निवेदन करना
- प्रसद्—भ्वा॰ पर॰ —प्र-सद्—-—स्पष्ट करना
- विसद्—भ्वा॰ पर॰ —वि-सद्—-—डूबना, थक जाना
- विसद्—भ्वा॰ पर॰ —वि-सद्—-—हताश होना, निढाल होना, कष्टग्रस्त होना, खिन्न होना, निराश होना, नाउम्मीद होना
- विसद्—भ्वा॰ उभ॰, प्रेर॰—वि-सद्—-—निराश करना, हताश करना
- विसद्—भ्वा॰ पर॰ —वि-सद्—-—कष्टग्रस्त करना, पीडित करना
- सदः—पुं॰—-—सद् + अच्—वृक्ष का फल
- सदंशकः—पुं॰—-—दंशेन सह कप्, ब॰ स॰—केकड़ा
- सदंशवदनः—पुं॰—-—सदंशं वदनं यस्य - ब॰ स॰—बगुले का एक भेद, कंक पक्षी
- सदनम्—नपुं॰—-—सद् + ल्युट्—घर, महल, भवन
- सदनम्—नपुं॰—-—सद् + ल्युट्—म्लान होना, क्षीण होना, नष्ट होना
- सदनम्—नपुं॰—-—सद् + ल्युट्—अवसाद, श्रान्ति, क्लान्ति
- सदनम्—नपुं॰—-—सद् + ल्युट्—हानि
- सदनम्—नपुं॰—-—सद् + ल्युट्—यज्ञ-भवन
- सदनम्—नपुं॰—-—सद् + ल्युट्—यम का आवास स्थान
- सदय—वि॰—-—सह दयया-ब॰ स॰—कृपालु, सुकुमार, दयापूर्ण
- सदयम्—अव्य॰—-—-—कृपा करके, दया करके
- सदस्—नपुं॰—-—सीदत्यस्याम - सद् + असि—आसन, आवास, घर, निवासस्थान
- सदस्—नपुं॰—-—सीदत्यस्याम - सद् + असि—सभा
- सदस्गत—वि॰—सदस्-गत—-—सभा में बैठा हुआ
- सदस्गृहम्—नपुं॰—सदस्-गृहम्—-—सभा-भवन, परिषत्-कक्षा
- सदस्यः—पुं॰—-—सदसि साधु वसति वा यत्—सभा का सभासद् या सभा में उपस्थित व्यक्ति, सभा का मेम्बर
- सदस्यः—पुं॰—-—सदसि साधु वसति वा यत्—याजक, यज्ञ में ब्रह्मा या सहायक ऋत्विज्
- सदा—अव्य॰—-—सर्वस्मिन् काले - सर्व + दाच्, सादेशः—हमेशा, सर्वदा, नित्य, सदैव
- सदानन्द—वि॰—सदा-आनन्द—-—सदा प्रसन्न रहने वाला
- सदानन्दः—पुं॰—सदा-आनन्दः—-—शिव का विशेषण
- सदागतिः—पुं॰—सदा-गतिः—-—वायु
- सदागतिः—पुं॰—सदा-गतिः—-—सूर्य
- सदागतिः—पुं॰—सदा-गतिः—-—शाश्वत आनन्द, मोक्ष
- सदातोया—स्त्री॰—सदा-तोया—-—करतोया नदी का नाम
- सदानीरा—स्त्री॰—सदा-नीरा—-—करतोया नदी का नाम
- सदादान—वि॰—सदा-दान—-—सदैव उपहार देने वाला, जिसके सदैव मद बहता हो
- सदादानः—पुं॰—सदा-दानः—-—मद बहाने वाला हाथी
- सदादानः—पुं॰—सदा-दानः—-—गन्धद्विप
- सदादानः—पुं॰—सदा-दानः—-—इन्द्र के हाथी का नाम
- सदादानः—पुं॰—सदा-दानः—-—गणेश
- सदानर्तः—पुं॰—सदा-नर्तः—-—एक पक्षी, खंजन
- सदाफल—वि॰—सदा-फल—-—हमेशा फलने वाला
- सदाफलः—पुं॰—सदा-फलः—-—बेल का पेड़
- सदाफलः—पुं॰—सदा-फलः—-—कटहल का पेड़
- सदाफलः—पुं॰—सदा-फलः—-—गूलर का पेड़
- सदाफलः—पुं॰—सदा-फलः—-—नारियल का पेड़
- सदायोगिन्—पुं॰—सदा-योगिन्—-—कृष्ण का विशेषण
- सदाशिवः—पुं॰—सदा-शिवः—-—शिव का नाम
- सदृक्ष—वि॰—-—समानं दर्शनमस्य - दृश् + क्स, क्विन्, कञ् वा, समानस्य सादेशः—समान, मिलता-जुलता, तुल्य, अनुरुप
- सदृक्ष—वि॰—-—समानं दर्शनमस्य - दृश् + क्स, क्विन्, कञ् वा, समानस्य सादेशः—योग्य, समुचित, उपयुक्त, समानरुप जैसा कि
- सदृक्ष—वि॰—-—समानं दर्शनमस्य - दृश् + क्स, क्विन्, कञ् वा, समानस्य सादेशः—योग्य, ठीक, शोभाप्रद
- सदृश् —वि॰—-—समानं दर्शनमस्य - दृश् + क्स, क्विन्, कञ् वा, समानस्य सादेशः—समान, मिलता-जुलता, तुल्य, अनुरुप
- सदृश् —वि॰—-—समानं दर्शनमस्य - दृश् + क्स, क्विन्, कञ् वा, समानस्य सादेशः—योग्य, समुचित, उपयुक्त, समानरुप जैसा कि
- सदृश् —वि॰—-—समानं दर्शनमस्य - दृश् + क्स, क्विन्, कञ् वा, समानस्य सादेशः—योग्य, ठीक, शोभाप्रद
- सदृश—वि॰—-—समानं दर्शनमस्य - दृश् + क्स, क्विन्, कञ् वा, समानस्य सादेशः—समान, मिलता-जुलता, तुल्य, अनुरुप
- सदृश—वि॰—-—समानं दर्शनमस्य - दृश् + क्स, क्विन्, कञ् वा, समानस्य सादेशः—योग्य, समुचित, उपयुक्त, समानरुप जैसा कि
- सदृश—वि॰—-—समानं दर्शनमस्य - दृश् + क्स, क्विन्, कञ् वा, समानस्य सादेशः—योग्य, ठीक, शोभाप्रद
- सदेश—वि॰—-—सह देशेन ब॰ स॰—किसी देश का स्वामी
- सदेश—वि॰—-—सह देशेन ब॰ स॰—एक ही स्थान से सम्बन्ध रखने वाला
- सदेश—वि॰—-—सह देशेन ब॰ स॰—आसन्नवर्ती, पड़ोसी
- सद्मन्—नपुं॰—-—सीदत्यस्मिन् - सद् + मनिन्—घर, मकान, आवासस्थान
- सद्मन्—नपुं॰—-—सीदत्यस्मिन् - सद् + मनिन्—स्थान, जगह
- सद्मन्—नपुं॰—-—सीदत्यस्मिन् - सद् + मनिन्—मन्दिर
- सद्मन्—नपुं॰—-—सीदत्यस्मिन् - सद् + मनिन्—वेदी
- सद्मन्—नपुं॰—-—सीदत्यस्मिन् - सद् + मनिन्—जल
- सद्यस्—अव्य॰—-—समेऽह्नि - नि॰—आज, उसी दिन
- सद्यस्—अव्य॰—-—समेऽह्नि - नि॰—तुरन्त, तत्काल, फौरन, अकस्मात
- सद्यस्—अव्य॰—-—समेऽह्नि - नि॰—हाल ही में, कुछ ही समय पीछे, जैसा कि
- सद्यःकालः—पुं॰—सद्यस्-कालः—-—वर्तमान काल
- सद्यःकालीन—वि॰—सद्यस्-कालीन—-—हाल ही का
- सद्योजात—वि॰—सद्यस्-जात—-—अभी पैदा हुआ
- सद्योजातः—पुं॰—सद्यस्-जातः—-—बछड़ा
- सद्योजातः—पुं॰—सद्यस्-जातः—-—शिव का विशेषण
- सद्यःपातिन्—वि॰—सद्यस्-पातिन्—-—शीघ्र नष्ट होने वाला, नश्वर
- सद्यःशुद्धिः—स्त्री॰—सद्यस्-शुद्धिः—-—तत्काल की हुई शुद्धि
- सद्यःशौचम्—नपुं॰—सद्यस्-शौचम्—-—तत्काल की हुई शुद्धि
- सद्यस्क—वि॰—-—सद्यस् + कन्—नूतन, अभिनव
- सद्यस्क—वि॰—-—सद्यस् + कन्—तात्कालिक
- सद्रु—वि॰—-—सद् + रु—विश्राम करने वाला, ठहरने वाला
- सद्रु—वि॰—-—सद् + रु—जाने वाला
- सद्वन्द्व—वि॰—-—सह द्वन्द्वेन - ब॰ स॰—झगड़ालू, कलहप्रिय, विवादपूर्ण
- सद्वसथः—पुं॰—-—सद् + वस् + अथच्—गाँव
- सधर्मन्—वि॰—-—समानो धर्मोऽस्य सधर्म + अनिच्, ब॰ स॰—समान गुणों से युक्त
- सधर्मन्—वि॰—-—समानो धर्मोऽस्य सधर्म + अनिच्, ब॰ स॰—एक जैसा कर्तव्यों वाला
- सधर्मन्—वि॰—-—समानो धर्मोऽस्य सधर्म + अनिच्, ब॰ स॰—उसी जाति या सम्प्रदाय का
- सधर्मन्—वि॰—-—समानो धर्मोऽस्य सधर्म + अनिच्, ब॰ स॰—समान, मिलता-जुलता
- सधर्मचारिणी—स्त्री॰—सधर्मन्-चारिणी—-—वैध स्त्री, शास्त्रीयरीति से विवाहसूत्र में बद्ध स्त्री
- सधर्मिणी—स्त्री॰—-—-—वैध स्त्री, शास्त्रीयरीति से विवाहसूत्र में बद्ध स्त्री
- सधर्मिन्—वि॰—-—सहधर्मोऽस्ति अस्य - सधर्म + इनि, ब॰ स॰—समान गुणों से युक्त
- सधर्मिन्—वि॰—-—सहधर्मोऽस्ति अस्य - सधर्म + इनि, ब॰ स॰—एक जैसा कर्तव्यों वाला
- सधर्मिन्—वि॰—-—सहधर्मोऽस्ति अस्य - सधर्म + इनि, ब॰ स॰—उसी जाति या सम्प्रदाय का
- सधर्मिन्—वि॰—-—सहधर्मोऽस्ति अस्य - सधर्म + इनि, ब॰ स॰—समान, मिलता-जुलता
- सधिस्—पुं॰—-—सह + इसिन्, हस्य धः—बैल, साँड
- सध्रीची—स्त्री॰—-—सध्र्यच् + ङीष्, अलोपः, दीर्घः—सखी, सहेली, अन्तरंग सहेली
- सध्रीचीन—वि॰—-—सध्र्यच् + ख, अलोपः, दीर्घः—साथ रहने वाला सहचर
- सध्र्यञ्च्—वि॰—-—सहाञ्वति सह + अञ्च् + क्विन्, सध्रि आदेशः—साथ चलने वाला, सहचर, साथी
- सध्र्यञ्च्—पुं॰—-—-—सहचर
- सन्—भ्वा॰ पर॰ <सनति> <सात> <सन्यते> <सिसनिषति>—-—-—प्रेम करना, पसन्द करना
- सन्—भ्वा॰ पर॰ <सनति> <सात> <सन्यते> <सिसनिषति>—-—-—पू्जा करना, सम्मान करना
- सन्—भ्वा॰ पर॰ <सनति> <सात> <सन्यते> <सिसनिषति>—-—-—प्राप्त करना, अधिगत करना
- सन्—भ्वा॰ पर॰ <सनति> <सात> <सन्यते> <सिसनिषति>—-—-—अनुग्रह के साथ प्राप्त करना
- सन्—भ्वा॰ पर॰ <सनति> <सात> <सन्यते> <सिसनिषति>—-—-—उपहारों से सम्मान करना, देना, प्रदान करना, वितरण करना
- सन्—तना॰ उभ॰॰ <सनोति> <सनुते> <सायते> <सिषासति>—-—-—प्रेम करना, पसन्द करना
- सन्—तना॰ उभ॰॰ <सनोति> <सनुते> <सायते> <सिषासति>—-—-—पू्जा करना, सम्मान करना
- सन्—तना॰ उभ॰॰ <सनोति> <सनुते> <सायते> <सिषासति>—-—-—प्राप्त करना, अधिगत करना
- सन्—तना॰ उभ॰॰ <सनोति> <सनुते> <सायते> <सिषासति>—-—-—अनुग्रह के साथ प्राप्त करना
- सन्—तना॰ उभ॰॰ <सनोति> <सनुते> <सायते> <सिषासति>—-—-—उपहारों से सम्मान करना, देना, प्रदान करना, वितरण करना
- सनः—पुं॰—-—सन् + अच्—हाथी के कानों की फड़फड़ाहट
- सनत्—पुं॰—-—सन् + अति—ब्रह्मा का विशेषण
- सनत्—अव्य॰—-—-—सदा, नित्य
- सनत्कुमारः—पुं॰—सनत्-कुमारः—-—ब्रह्मा के चार पुत्रों में से एक
- सनसूत्र—नपुं॰—-—-—सन की बनी डोरी या रस्सी
- सना—अव्य॰—-— = सदा, नि॰ दस्य नः—हमेशा, नित्य
- सनात्—अव्य॰—-—सना + अत् + क्विप्—सदा, हमेशा
- सनातन—वि॰—-—सदा + ट्युल, तुट्, नि॰ दस्य नः—नित्य, निरन्तर, शाश्वत, स्थायी
- सनातन—वि॰—-—सदा + ट्युल, तुट्, नि॰ दस्य नः—दृढ़, स्थिर, निश्चित
- सनातन—वि॰—-—सदा + ट्युल, तुट्, नि॰ दस्य नः—पूर्वकालीन, प्राचीन
- सनातनः—पुं॰—-—-—पुरातन पुरुष, विष्णु
- सनातनः—पुं॰—-—-—शिव का नाम
- सनातनः—पुं॰—-—-—ब्रह्मा का नाम
- सनातनी—स्त्री॰—-—-—लक्ष्मी का नाम
- सनातनी—स्त्री॰—-—-—दुर्गा या पार्वती का नाम
- सनातनी—स्त्री॰—-—-—सरस्वती का नाम
- सनाथ—वि॰—-—सह नाथेन - ब॰ स॰—स्वामी वाला, प्रभु या पति वाला
- सनाथ—वि॰—-—सह नाथेन - ब॰ स॰—जिसका कोई अभिभावक या प्ररक्षक हो
- सनाथ—वि॰—-—सह नाथेन - ब॰ स॰—कब्जा किया हुआ, अधिकार किया हुआ
- सनाथ—वि॰—-—सह नाथेन - ब॰ स॰—सम्पन्न, सहित, युक्त, समेत, पूर्ण, प्रायः समास में
- सनाभि—वि॰—-—समाना नाभिर्यस्य ब॰स॰—एक ही पेट का, सहोदर
- सनाभि—वि॰—-—समाना नाभिर्यस्य ब॰स॰—रिश्तेदार, बंधु
- सनाभि—वि॰—-—समाना नाभिर्यस्य ब॰स॰—समान, मिलता-जुलता
- सनाभि—वि॰—-—समाना नाभिर्यस्य ब॰स॰—स्नेहशील
- सनाभिः—पुं॰—-—-—सगा भाई, नजदीकी रिश्तेदार
- सनाभिः—पुं॰—-—-—रिश्तेदार, बंधु
- सनाभिः—पुं॰—-—-—रिश्तेदार जो सात पीढ़ी के अन्तर्गत हो
- सनाभ्यः—पुं॰—-—सनाभि + यत्—सात पीढियों के भीतर एक ही वंश का रिश्तेदार
- सनिः—पुं॰—-—सन् + इन्—पू्जा, सेवा
- सनिः—पुं॰—-—सन् + इन्—उपहार, दान
- सनिः—पुं॰—-—सन् + इन्—अनुरोध, सादर निवेदन
- सनिः—स्त्री॰—-—सन् + इन्—पू्जा, सेवा
- सनिः—स्त्री॰—-—सन् + इन्—उपहार, दान
- सनिः—स्त्री॰—-—सन् + इन्—अनुरोध, सादर निवेदन
- सनिष्ठीवम्—नपुं॰—-—सह निष्ठी वेन ब॰ स॰—वह भाषण जिसमें से थूक निकले, ऐसे बोली जिसमें थूक उछले
- सनिष्ठेवम्—नपुं॰—-—सह निष्ठे वेन ब॰ स॰—वह भाषण जिसमें से थूक निकले, ऐसे बोली जिसमें थूक उछले
- सनी—स्त्री॰—-—सनि + ङीष्—सादर अनुरोध
- सनी—स्त्री॰—-—सनि + ङीष्—दिशा
- सनी—स्त्री॰—-—सनि + ङीष्—हाथी के कानों की फड़फड़ाहट
- सनीड —वि॰—-—समानं नीडमस्त्यस्य - ब॰ स॰—एक ही घोंसले में रहने वाला, साथ साथ रहने वाला
- सनीड —वि॰—-—समानं नीडमस्त्यस्य - ब॰ स॰—निकटस्थ, समीपवर्ती
- सनील—वि॰—-—-—एक ही घोंसले में रहने वाला, साथ साथ रहने वाला
- सनील—वि॰—-—-—निकटस्थ, समीपवर्ती
- सन्तः—पुं॰—-—सन् + त -—दोनों हाथ जुड़े हुए, अंजलि, संहततल
- सन्तक्षणम्—नपुं॰—-—सम् + तक्ष् + ल्युट्—ताना, व्यंग्य, लगने की बात
- सन्तत—भू॰ क॰ कृ॰—-—सम् + तन् + क्त—फैलाया हुआ, विस्तारित
- सन्तत—भू॰ क॰ कृ॰—-—सम् + तन् + क्त—विघ्नरहित, अनवरत, अनवच्छिन्न, नियमित
- सन्तत—भू॰ क॰ कृ॰—-—सम् + तन् + क्त—टिकाऊ, नित्य
- सन्तत—भू॰ क॰ कृ॰—-—सम् + तन् + क्त—बहुत, अनेक
- सन्ततम्—अव्य॰—-—-—सदैव, लगातार, नित्य, निरंतर, शाश्वत
- सन्ततिः—स्त्री॰—-—सम् + तन् + क्तिन्—बिछाना, फैलाना
- सन्ततिः—स्त्री॰—-—सम् + तन् + क्तिन्—फासला, प्रसार, विस्तार
- सन्ततिः—स्त्री॰—-—सम् + तन् + क्तिन्—अनवच्छिन्न पंक्ति, अविराम प्रवाह, श्रेणी, परास, परम्परा, निरन्तरता
- सन्ततिः—स्त्री॰—-—सम् + तन् + क्तिन्—नित्यता, अविच्छिन्न निरन्तरता
- सन्ततिः—स्त्री॰—-—सम् + तन् + क्तिन्—कुल, वंश, परिवार
- सन्ततिः—स्त्री॰—-—सम् + तन् + क्तिन्—सन्तान, प्रजा
- सन्ततिः—स्त्री॰—-—सम् + तन् + क्तिन्—ढ़ेर, राशि
- सन्तपनम्—नपुं॰—-—सम् + तप् + ल्युट्—गरम करना, प्रज्वलित करना
- सन्तपनम्—नपुं॰—-—सम् + तप् + ल्युट्—पीडित करना
- सन्तप्त—भू॰ क॰ कृ॰—-—सम् + तप् + क्त—गर्म किया हुआ, प्रज्वलित, लाल-गरम चमकता हुआ
- सन्तप्त—भू॰ क॰ कृ॰—-—सम् + तप् + क्त—दुःखी, कष्टग्रस्त, पीडित
- सन्तप्तायस्—नपुं॰—सन्तप्त-अयस्—-—लाल-गरम लोहा
- सन्तप्तवक्षस्—नपुं॰—सन्तप्त-वक्षस्—-—जिसे सांस लेने में कठिनाई हो
- सन्तमस्—नपुं॰—-—सन्ततं तमा प्रा॰ स॰, पक्षे अच्—सर्वव्यापी या विश्वव्यापी अंधकार, घोर अंधकार
- सन्तमसम्—नपुं॰—-—सन्ततं तमा प्रा॰ स॰, पक्षे अच्—सर्वव्यापी या विश्वव्यापी अंधकार, घोर अंधकार
- सन्तर्जनम्—नपुं॰—-—समु + तर्ज् + ल्युट्—धमकाना, डांटना-डपटना
- सन्तर्पणम्—नपुं॰—-—सम् + तृप् + ल्युट्—सन्तुष्ट करना, संतृप्त करना
- सन्तर्पणम्—नपुं॰—-—सम् + तृप् + ल्युट्—खुश करना, प्रसन्न करना
- सन्तर्पणम्—नपुं॰—-—सम् + तृप् + ल्युट्—जो खुशी का देने वाला हो
- सन्तर्पणम्—नपुं॰—-—सम् + तृप् + ल्युट्—एक प्रकार का मिष्ठान्न
- सन्तानः—पुं॰—-—समु + तनु + घञ्—बिछाना, विस्तृत करना, विस्तार, प्रसार, फैलाव
- सन्तानः—पुं॰—-—समु + तनु + घञ्—नैरन्तर्य, अनवच्छिन्न पंक्ति या प्रवाह, परम्परा, अनवच्छिन्नता
- सन्तानः—पुं॰—-—समु + तनु + घञ्—परिवार, वंश
- सन्तानः—पुं॰—-—समु + तनु + घञ्—प्रजा, औलाद, बाल-बच्चा
- सन्तानः—पुं॰—-—समु + तनु + घञ्—इन्द्र के स्वर्गस्थित पाँच वृक्षों में से एक
- सन्तानम्—नपुं॰—-—समु + तनु + घञ्—बिछाना, विस्तृत करना, विस्तार, प्रसार, फैलाव
- सन्तानम्—नपुं॰—-—समु + तनु + घञ्—नैरन्तर्य, अनवच्छिन्न पंक्ति या प्रवाह, परम्परा, अनवच्छिन्नता
- सन्तानम्—नपुं॰—-—समु + तनु + घञ्—परिवार, वंश
- सन्तानम्—नपुं॰—-—समु + तनु + घञ्—प्रजा, औलाद, बाल-बच्चा
- सन्तानम्—नपुं॰—-—समु + तनु + घञ्—इन्द्र के स्वर्गस्थित पाँच वृक्षों में से एक
- सन्तानकः—पुं॰—-—सन्तान + कन्—इन्द्र के स्वर्गीय पाँच वृक्षों में से एक वृक्ष या उसका फूल
- सन्तानिका—स्त्री॰—-—सम् + तन् + ण्वुल् + टाप्, इत्वम्—फेन, झाग
- सन्तानिका—स्त्री॰—-—सम् + तन् + ण्वुल् + टाप्, इत्वम्—मलाई
- सन्तानिका—स्त्री॰—-—सम् + तन् + ण्वुल् + टाप्, इत्वम्—मकड़ी का जाला
- सन्तानिका—स्त्री॰—-—सम् + तन् + ण्वुल् + टाप्, इत्वम्—चाकू या तलवार का फल
- सन्तापः—पुं॰—-—सम् + तप् + घञ्—गर्मी, प्रदाह, जलन
- सन्तापः—पुं॰—-—सम् + तप् + घञ्—दुःख, सताना, भुगतना, पीडा, वेदना, व्यथा
- सन्तापः—पुं॰—-—सम् + तप् + घञ्—आवेश, रोष
- सन्तापः—पुं॰—-—सम् + तप् + घञ्—पश्चात्ताप, पछतावा
- सन्तापः—पुं॰—-—सम् + तप् + घञ्—तपस्या, तप की थकान, शरीर की साधना
- सन्तापनम्—नपुं॰—-—सम् + तप् + णिच् + ल्युट्—जलन, दाह
- सन्तापनः—पुं॰—-—सम् + तप् + घञ्—कामदेव के पाँच बाणों में से एक
- सन्तापनम्—नपुं॰—-—-—जलाना, झुलसना
- सन्तापनम्—नपुं॰—-—-—पीडा देना, कष्ट देना
- सन्तापनम्—नपुं॰—-—-—आवेश उत्तेजित करना, जोश भरना
- सन्तापित—भू॰ क॰ कृ॰—-—सम् + तप् + णिच् + क्त्—गरम किया हुआ, कष्टग्रस्त, पीडित
- सन्तिः—स्त्री॰—-—सन् + क्तिन्—अन्त, विनाश
- सन्तिः—स्त्री॰—-—सन् + क्तिन्—उपहार
- सन्तुष्टिः—स्त्री॰—-—सम् + तुष् + क्तिन्—पूर्ण संतोष
- सन्तोषः—पुं॰—-—सम् + तुष् + घञ्—शान्ति, परितुष्टि, सबर
- सन्तोषः—पुं॰—-—सम् + तुष् + घञ्—प्रसन्नता, खुशी, हर्ष
- सन्तोषः—पुं॰—-—सम् + तुष् + घञ्—अंगूठा या तर्जनी अंगुली
- सन्तोषणम्—नपुं॰—-—सम् + तुष् + णिच् + ल्युट्—प्रसन्न करना, परितृप्त करना, आराम पहुँचाना
- सन्त्यजनम्—नपुं॰—-—सम् + त्यज् + ल्युट्—छोड़ना, त्याग देना
- सन्त्रासः—पुं॰—-—सम् + त्रस् + घञ्—डर, भय, आंतक
- सन्दंशः—पुं॰—-—सम् + दंश् + अच्—चिमटा या संडासी
- सन्दंशः—पुं॰—-—सम् + दंश् + अच्—स्वरों के उच्चारण में दांतों को भींचना
- सन्दंशः—पुं॰—-—सम् + दंश् + अच्—एक नरक का नाम
- सन्दर्शकः—पुं॰—-—संदृश + कन्—चिमटा, सिंडासी
- सन्दर्भः—पुं॰—-—सम् + दृभ् + घञ्—मिलाकर नत्थी करना, ग्रथन करना, क्रम में रखना
- सन्दर्भः—पुं॰—-—सम् + दृभ् + घञ्—संग्रह, मिलाप, मिश्रण
- सन्दर्भः—पुं॰—-—सम् + दृभ् + घञ्—संगति, निरन्तरता, नियमित संबंध, संलग्नता
- सन्दर्भः—पुं॰—-—सम् + दृभ् + घञ्—संरचना
- सन्दर्भः—पुं॰—-—सम् + दृभ् + घञ्—निबंध, साहित्यिक कृति
- सन्दर्शनम्—नपुं॰—-—सम् + दृश् + ल्युट्—देखना, अवलोकन, नजर डालना
- सन्दर्शनम्—नपुं॰—-—सम् + दृश् + ल्युट्—ताकना, टकटकी लगाकर देखना
- सन्दर्शनम्—नपुं॰—-—सम् + दृश् + ल्युट्—मिलना, एक दूसरे को देखना
- सन्दर्शनम्—नपुं॰—-—सम् + दृश् + ल्युट्—दृष्टि, दर्शन, निगाह, खयाल, ध्यान
- सन्दानम्—नपुं॰—-—सम् + दो + ल्युट्—रस्सी, डोरी
- सन्दानम्—नपुं॰—-—सम् + दो + ल्युट्—श्रंखला, बेड़ी
- सन्दानः—पुं॰—-—-—हाथी का गंडस्थल जहां से मद बहता है
- सन्दानित—वि॰—-—सन्दान + इतच्—बद्ध, कसा हुआ
- सन्दानित—वि॰—-—सन्दान + इतच्—बेड़ी में जकड़ा हुआ, श्रृंखलित
- सन्दानिनी—स्त्री॰—-—सन्दानं बन्धनं गवाम् अत्र - सन्दान + इनि + ङीप्—गोष्ठ, गोशाला
- सन्दावः—पुं॰—-—सम् + दु + घञ्—भगदड़, प्रत्यावर्तन
- सन्दाहः—पुं॰—-—सम् + दह् + घञ्—जलन, उपभोग
- सन्दिग्ध—भू॰ क॰ कृ॰—-—सम् + दिह् + क्त—सना हुआ, ढका हुआ
- सन्दिग्ध—भू॰ क॰ कृ॰—-—सम् + दिह् + क्त—भ्रामक, सन्देहात्मक, अनिश्चित
- सन्दिग्ध—भू॰ क॰ कृ॰—-—सम् + दिह् + क्त—भ्रान्त, विह्वल
- सन्दिग्ध—भू॰ क॰ कृ॰—-—सम् + दिह् + क्त—सशंक, प्रश्नास्पद
- सन्दिग्ध—भू॰ क॰ कृ॰—-—सम् + दिह् + क्त—अव्यवस्थित, अस्पष्ट, दुरुह
- सन्दिग्ध—भू॰ क॰ कृ॰—-—सम् + दिह् + क्त—खतरनाक, जोखिम से भरा हुआ, असुरक्षित
- सन्दिग्ध—भू॰ क॰ कृ॰—-—सम् + दिह् + क्त—विषाक्त
- सन्दिष्ट—भू॰ क॰ कृ॰—-—सम् + दिश् + क्त—संकेतित, इंगित किया हुआ
- सन्दिष्ट—भू॰ क॰ कृ॰—-—सम् + दिश् + क्त—निर्दिष्ट
- सन्दिष्ट—भू॰ क॰ कृ॰—-—सम् + दिश् + क्त—उक्त, वर्णित, सूचित
- सन्दिष्ट—भू॰ क॰ कृ॰—-—सम् + दिश् + क्त—वादा किया हुआ, प्रतिज्ञात
- सन्दिष्टः—पुं॰—-—-—जिसे संदेश पहुँचाने का कार्य सौपा गया हो, संदेशवाहक, दूत, हल्कारा, संदिष्टार्थ
- सन्दिष्टम्—नपुं॰—-—-—सूचना, समाचार, खबर
- सन्दित—वि॰—-—सम् + दो + क्त—बद्ध, श्रृंखलित, बेड़ी से जकड़ा हुआ
- सन्दी—स्त्री॰—-—सम् + दो + ड + ङीष्—खटोला, छोटी खाट, शय्याकुश
- सन्दीपन—वि॰—-—सम् + दीप् + णिच् + ल्युट्—सुलगाने वाला, प्रज्वलित करने वाला, भड़काने वाला
- सन्दीपन—वि॰—-—सम् + दीप् + णिच् + ल्युट्—उद्दीपक
- सन्दीपनः—पुं॰—-—-—कामदेव के पाँच बाणों में से एक
- सन्दीपनम्—नपुं॰—-—-—सुलगाना, प्रज्वलित करना
- सन्दीपनम्—नपुं॰—-—-—भड़काना, उद्दीप्त करना
- सन्दीप्त—भू॰ क॰ कृ॰—-—सम् + दीप् + क्त्—सुलगाया हुआ, प्रज्वलित किया हुआ
- सन्दीप्त—भू॰ क॰ कृ॰—-—सम् + दीप् + क्त्—उत्तेजित, उद्दीपित
- सन्दीप्त—भू॰ क॰ कृ॰—-—सम् + दीप् + क्त्—भड़काया हुआ, उकसाया हुआ, प्रणोदित
- सन्दुष्ट—भू॰ क॰ कृ॰—-—सम् + दुष् + क्त्—कलुषित किया हुआ, मलिन किया हुआ
- सन्दुष्ट—भू॰ क॰ कृ॰—-—सम् + दुष् + क्त्—दुष्ट, कमीना
- सन्दूषणम्—नपुं॰—-—सम् + दूष् + णिच् + ल्युट्—मलिन करना, भ्रष्ट करना, विषाक्त करना, खराब करना
- सन्देशः—पुं॰—-—सम् + दिश् + घञ्—सूचना, समाचार, खबर
- सन्देशः—पुं॰—-—सम् + दिश् + घञ्—संदेश, संवाद
- सन्देशः—पुं॰—-—सम् + दिश् + घञ्—आज्ञा, आदेश
- सन्देशार्थः—पुं॰—सन्देश-अर्थः—-—संदेश का विषय
- सन्देशवाच्—स्त्री॰—सन्देश-वाच्—-—संदेश
- सन्देशहरः—पुं॰—सन्देश-हरः—-—संदेशवाहक, दूत
- सन्देशहरः—पुं॰—सन्देश-हरः—-—दूत, राजदूत
- सन्देहः—पुं॰—-—सम् + दिह् + घञ्—संशय, अनिश्चितता, शंका
- सन्देहः—पुं॰—-—सम् + दिह् + घञ्—जोखिम, खतरा, डर
- सन्देहः—पुं॰—-—सम् + दिह् + घञ्—इस नाम का एक अलंकार जिसमें दो पदार्थों की घनिष्ठ समानता के कारण भ्रान्ति से एक वस्तु को अन्य वस्तु समझ लिया जाय
- सन्देहदोला—स्त्री॰—सन्देह-दोला—-—अनिश्चिति का झूला, शंका की स्थिति, दुविधा, असमंजस
- सन्दोहः—पुं॰—-—सम् + दुह् + घञ्—दूध दूहना
- सन्दोहः—पुं॰—-—सम् + दुह् + घञ्—किसी वस्तु की समष्टि, समुच्चय, ढेर, राशि, संघात
- सन्द्रावः—पुं॰—-—सम् + द्रु + घञ्—भगदड़, प्रत्यावर्तन
- सन्धा—स्त्री॰—-—सम् + धा + अङ् + टाप्—मिलाप, साहचर्य
- सन्धा—स्त्री॰—-—सम् + धा + अङ् + टाप्—घनिष्ठ मेल, प्रगाढ़ संबंध
- सन्धा—स्त्री॰—-—सम् + धा + अङ् + टाप्—स्थिति, दशा
- सन्धा—स्त्री॰—-—सम् + धा + अङ् + टाप्—वादा, प्रतिज्ञा, अनुबन्ध
- सन्धा—स्त्री॰—-—सम् + धा + अङ् + टाप्—सीमा, हद
- सन्धा—स्त्री॰—-—सम् + धा + अङ् + टाप्—स्थिरता, स्थैर्य
- सन्धा—स्त्री॰—-—सम् + धा + अङ् + टाप्—संध्या
- सन्धा—स्त्री॰—-—सम् + धा + अङ् + टाप्—मद्यसंधान
- सन्धानम्—नपुं॰—-—सम् + धा + ल्युट्—मिलाना, जोड़ना
- सन्धानम्—नपुं॰—-—सम् + धा + ल्युट्—मेल, संगम, सम्बन्ध
- सन्धानम्—नपुं॰—-—सम् + धा + ल्युट्—मिश्रण, सम्मिश्रण
- सन्धानम्—नपुं॰—-—सम् + धा + ल्युट्—पुनरुद्धार, जीर्णोद्धार
- सन्धानम्—नपुं॰—-—सम् + धा + ल्युट्—ठीक बैठाना, जमाना
- सन्धानम्—नपुं॰—-—सम् + धा + ल्युट्—मैत्री, मेल, दोस्ती, मेल-मिलाप
- सन्धानम्—नपुं॰—-—सम् + धा + ल्युट्—जोड़, ग्रन्थि
- सन्धानम्—नपुं॰—-—सम् + धा + ल्युट्—अवधान
- सन्धानम्—नपुं॰—-—सम् + धा + ल्युट्—निदेशन
- सन्धानम्—नपुं॰—-—सम् + धा + ल्युट्—संभालना
- सन्धानम्—नपुं॰—-—सम् + धा + ल्युट्—आसवन
- सन्धानम्—नपुं॰—-—सम् + धा + ल्युट्—मदिरा या उसका भेद
- सन्धानम्—नपुं॰—-—सम् + धा + ल्युट्—पीने की इच्छा उत्तेजित करनेवाली चटपटी चीजें
- सन्धानम्—नपुं॰—-—सम् + धा + ल्युट्—अचार आदि बनाना
- सन्धानम्—नपुं॰—-—सम् + धा + ल्युट्—रक्तस्रावरोधक औषघियों के द्वारा त्वचा की सिकुड़न
- सन्धानम्—नपुं॰—-—सम् + धा + ल्युट्—काँजी
- सन्धानित—वि॰—-—सन्धान + इतच्—मिलाया हुआ, साथ साथ नत्थी किया हुआ
- सन्धानित—वि॰—-—सन्धान + इतच्—बांधा हुआ, कसा हुआ
- सन्धिः—पुं॰—-—सम् + धा + कि—मेल, संगम, सम्मिश्रण, सम्बन्ध
- सन्धिः—पुं॰—-—सम् + धा + कि—संविदा, करार
- सन्धिः—पुं॰—-—सम् + धा + कि—मित्रता, संघट्टन, मैत्री, मेल-मिलाप, सन्धिपत्र सुलहनामा
- सन्धिः—पुं॰—-—सम् + धा + कि—जोड़, सन्धान
- सन्धिः—पुं॰—-—सम् + धा + कि—तह
- सन्धिः—पुं॰—-—सम् + धा + कि—छेद, विवर, दरार
- सन्धिः—पुं॰—-—सम् + धा + कि—विशेषतया सुरंग, या सेंध जो चोर किसी मकान में घुसने के लिए बनाते हैं
- सन्धिः—पुं॰—-—सम् + धा + कि—पार्थक्य, प्रभाग
- सन्धिः—पुं॰—-—सम् + धा + कि—संहिता, उच्चारण की सुगमता के लिए ध्वनिपरिवर्तन की प्रवृत्ति, वर्णविकार
- सन्धिः—पुं॰—-—सम् + धा + कि—अन्तराल, विश्राम
- सन्धिः—पुं॰—-—सम् + धा + कि—संकटकाल
- सन्धिः—पुं॰—-—सम् + धा + कि—उपयुक्त अवसर
- सन्धिः—पुं॰—-—सम् + धा + कि—युगांत-काल
- सन्धिः—पुं॰—-—सम् + धा + कि—प्रभाग या जोड़
- सन्धिः—पुं॰—-—सम् + धा + कि—भग, स्त्री की जननेन्द्रिय
- सन्ध्यक्षरम्—नपुं॰—सन्धि-अक्षरम्—-—संयुक्त स्वर संधिस्वर
- सन्धिचोरः—पुं॰—सन्धि-चोरः—-—घर में सेंध लगाने वाला, वह चोर जो घर में पाड़ लगाता हैं
- सन्धिछेदः—पुं॰—सन्धि-छेदः—-—छिद्र या सुराख करना
- सन्धिजम्—नपुं॰—सन्धि-जम्—-—मादक, मदिरा
- सन्धिजीवकः—पुं॰—सन्धि-जीवकः—-—जो अधर्म की कमाई से जीवन-निर्वाह करता है अर्थात् स्त्रियों को पुरुषों से मिलाकर जीविका अर्जन करने वाला
- सन्धिदूषणम्—नपुं॰—सन्धि-दूषणम्—-—सन्धि या सलह का भंग कर देना
- सन्धिबन्धः—पुं॰—सन्धि-बन्धः—-—जोड़ों का ऊतक
- सन्धिबन्धनम्—नपुं॰—सन्धि-बन्धनम्—-—स्नायु, कण्डरा, शिरा
- सन्धिभङ्गः—पुं॰—सन्धि-भङ्गः—-—किसी जोड़ का संबंध टूट जाना
- सन्धिमुक्तिः—स्त्री॰—सन्धि-मुक्तिः—-—किसी जोड़ का संबंध टूट जाना
- सन्धिविग्रह—पुं॰, द्वि॰ व॰—सन्धि-विग्रह—-—शान्ति और युद्ध
- सन्धिविग्रहाधिकार—वि॰—सन्धि-विग्रह-अधिकार—-—विदेश विभाग का मन्त्रालय
- सन्धिविचक्षणः—पुं॰ —सन्धि-विचक्षणः—-—सन्धि की बातचीत करने में निपुण
- सन्धिविद्—पुं॰ —सन्धि-विद्—-—सन्धि की बातचीत करने वाला
- सन्धिवेला—स्त्री॰—सन्धि-वेला—-—संध्या-काल
- सन्धिवेला—स्त्री॰—सन्धि-वेला—-—कोई भी सन्धिकाल
- सन्धिहारकः—पुं॰ —सन्धि-हारकः—-—घर में सेंध लगाने वाला
- सन्धिकः—पुं॰ —-—सन्धि + कन्—एक प्रकार का ज्वर
- सन्धिका—स्त्री॰—-—सन्धिक + टाप्—आसवन
- सन्धित—वि॰—-—सन्धा + इतच्—मिलाया हुआ, जोड़ा हुआ
- सन्धित—वि॰—-—सन्धा + इतच्—बद्ध, कसा हुआ
- सन्धित—वि॰—-—सन्धा + इतच्—समाहित, पुनर्मिलित, मित्रता में आबद्ध
- सन्धित—वि॰—-—सन्धा + इतच्—स्थिर किया हुआ, ठीक बैठाया हुआ
- सन्धित—वि॰—-—सन्धा + इतच्—आपस में मिलाया हुआ
- सन्धित—वि॰—-—सन्धा + इतच्—अचार डाला हुआ, प्ररक्षित
- सन्धितम्—नपुं॰—-—-—अचार, मदिरा
- सन्धिनी—स्त्री॰—-—सन्धा + इनि + ङीप्—गर्माई हुई गाय
- सन्धिनी—स्त्री॰—-—सन्धा + इनि + ङीप्—असमय दुही जाने वाली गाय
- सन्धिला—स्त्री॰—-—सन्धि + ला + क + टाप्—भीत में किया हुआ छिद्र, गड्ढा, विवर
- सन्धिला—स्त्री॰—-—सन्धि + ला + क + टाप्—नदी
- सन्धिला—स्त्री॰—-—सन्धि + ला + क + टाप्—मदिरा
- सन्धुक्षणम्—नपुं॰—-—सम् + धुक्ष् + ल्युट्—सुलगना, प्रज्वलित होना
- सन्धुक्षणम्—नपुं॰—-—सम् + धुक्ष् + ल्युट्—उत्तेजित करना, उद्दीपन
- सन्धुक्षित—भू॰ क॰ कृ॰—-—सम् + धुक्ष् + क्त—सुलगा हुआ, प्रज्वलित, भभकाया हुआ
- सन्धेय—वि॰—-—सम् + धा + यत् —मिलाये जाने या जोड़े जाने के योग्य
- सन्धेय—वि॰—-—सम् + धा + यत् —पुनर्मिलित होने के योग्य
- सन्धेय—वि॰—-—सम् + धा + यत् —जिसके साथ सन्धि की जा सके
- सन्धेय—वि॰—-—सम् + धा + यत् —जिसपर निशाना लगाया जा सके
- सन्ध्या—स्त्री॰—-—सन्धि + यत् + टाप्, सम् + ध्यै + अङ् + टाप् वा—मिलाप
- सन्ध्या—स्त्री॰—-—सन्धि + यत् + टाप्, सम् + ध्यै + अङ् + टाप् वा—जोड़, प्रभाग
- सन्ध्या—स्त्री॰—-—सन्धि + यत् + टाप्, सम् + ध्यै + अङ् + टाप् वा—प्रातः या सायंकाल का संधिवेला, झुटपुटा
- सन्ध्या—स्त्री॰—-—सन्धि + यत् + टाप्, सम् + ध्यै + अङ् + टाप् वा—प्रभात काल
- सन्ध्या—स्त्री॰—-—सन्धि + यत् + टाप्, सम् + ध्यै + अङ् + टाप् वा—सायंकाल, सांझ का समय
- सन्ध्या—स्त्री॰—-—सन्धि + यत् + टाप्, सम् + ध्यै + अङ् + टाप् वा—युग का पूर्ववर्ती समय, दो युगों का मध्यवर्ती काल
- सन्ध्या—स्त्री॰—-—सन्धि + यत् + टाप्, सम् + ध्यै + अङ् + टाप् वा—प्रातः काल, मध्याह्न काल तथा सायंकाल की ब्राह्मण द्वारा प्रार्थना
- सन्ध्या—स्त्री॰—-—सन्धि + यत् + टाप्, सम् + ध्यै + अङ् + टाप् वा—प्रतिज्ञा, वादा
- सन्ध्या—स्त्री॰—-—सन्धि + यत् + टाप्, सम् + ध्यै + अङ् + टाप् वा—हद, सीमा
- सन्ध्या—स्त्री॰—-—सन्धि + यत् + टाप्, सम् + ध्यै + अङ् + टाप् वा—चिन्तन, मनन
- सन्ध्या—स्त्री॰—-—सन्धि + यत् + टाप्, सम् + ध्यै + अङ् + टाप् वा—एक प्रकार का फूल
- सन्ध्या—स्त्री॰—-—सन्धि + यत् + टाप्, सम् + ध्यै + अङ् + टाप् वा—एक नदी का नाम
- सन्ध्याभ्रम्—नपुं॰—सन्ध्या-अभ्रम्—-—सायंकालीन बादल
- सन्ध्याभ्रम्—नपुं॰—सन्ध्या-अभ्रम्—-—एक प्रकार की लाल खड़िया, गेरु
- सन्ध्याकालः—पुं॰—सन्ध्या-कालः—-—संध्या का समय
- सन्ध्याकालः—पुं॰—सन्ध्या-कालः—-—सांझ
- सन्ध्यानाटिन्—पुं॰—सन्ध्या-नाटिन्—-—शिव का विशेषण
- सन्ध्यापुष्पी—स्त्री॰—सन्ध्या-पुष्पी—-—एक प्रकार की चमेली
- सन्ध्यापुष्पी—स्त्री॰—सन्ध्या-पुष्पी—-—जायफल
- सन्ध्याबलः—पुं॰—सन्ध्या-बलः—-—राक्षस
- सन्ध्यारागः—पुं॰—सन्ध्या-रागः—-—सिंदूर
- सन्ध्यारामः—पुं॰—सन्ध्या-रामः—-—ब्रह्मा का विशेषण
- सन्ध्यावन्दनम्—नपुं॰—सन्ध्या-वन्दनम्—-—प्रातःकाल और संध्या काल की प्रार्थना
- सन्न—भू॰ क॰ कृ॰—-—सद् + क्त—बैठा हुआ, आसीन, लेटा हुआ
- सन्न—भू॰ क॰ कृ॰—-—सद् + क्त—खिन्न, दुःखी, उदास
- सन्न—भू॰ क॰ कृ॰—-—सद् + क्त—म्लान, विश्रान्त
- सन्न—भू॰ क॰ कृ॰—-—सद् + क्त—दुर्बल, निश्शक्त, कमजोर
- सन्न—भू॰ क॰ कृ॰—-—सद् + क्त—क्षीण, छीजा हुआ
- सन्न—भू॰ क॰ कृ॰—-—सद् + क्त—नष्ट, लुप्त
- सन्न—भू॰ क॰ कृ॰—-—सद् + क्त—स्थिर, गतिहीन
- सन्न—भू॰ क॰ कृ॰—-—सद् + क्त—सिकुड़ा हुआ
- सन्न—भू॰ क॰ कृ॰—-—सद् + क्त—सटा हुआ, निकटस्थ
- सन्नः—पुं॰—-—-—प्रियाल नामक वृक्ष, चिरौंजी का पेड़
- सन्नम्—नपुं॰—-—-—थोड़ा सा, अल्पमात्र
- सन्नक—वि॰—-—सन्न + कन्—नाटा, छोटे कद का
- सन्नकद्रुः—पुं॰—सन्नक-द्रुः—-—पियालवृक्ष
- सन्नत—भू॰ क॰ कृ॰—-—सम् + नम् + क्त—झुका हुआ, नतांग या प्रवण
- सन्नत—भू॰ क॰ कृ॰—-—सम् + नम् + क्त—उदास
- सन्नत—भू॰ क॰ कृ॰—-—सम् + नम् + क्त—सिकुड़ा हुआ
- सन्नतर—वि॰—-—सन्न + तरप्—अपेक्षाकृत धीमा, विषण्ण
- सन्नतिः—स्त्री॰—-—सम् + नम् + क्तिन्—अभिवादन, सादर प्रणाम, सम्मान
- सन्नतिः—स्त्री॰—-—सम् + नम् + क्तिन्—विनम्रता
- सन्नतिः—स्त्री॰—-—सम् + नम् + क्तिन्—एक प्रकार का यज्ञ
- सन्नतिः—स्त्री॰—-—सम् + नम् + क्तिन्—ध्वनि, कोलाहल
- सन्नद्ध—भू॰ क॰ कृ॰—-—सम् + नह् + क्त—एक साथ मिलाकर कटिबद्ध
- सन्नद्ध—भू॰ क॰ कृ॰—-—सम् + नह् + क्त—कवचित, सुसज्जित, वख्तरवन्द
- सन्नद्ध—भू॰ क॰ कृ॰—-—सम् + नह् + क्त—व्यवस्थित, तैयार, युद्ध के लिए उद्यत, शस्त्रास्त्र से पूर्णता सुसज्जित
- सन्नद्ध—भू॰ क॰ कृ॰—-—सम् + नह् + क्त—तत्पर, उद्यत, निर्मित, सुव्यवस्थित
- सन्नद्ध—भू॰ क॰ कृ॰—-—सम् + नह् + क्त—किसी भी वस्तु से युक्त
- सन्नद्ध—भू॰ क॰ कृ॰—-—सम् + नह् + क्त—घातक
- सन्नद्ध—भू॰ क॰ कृ॰—-—सम् + नह् + क्त—नितान्त संलग्न, सीमावर्ती, निकटस्थ
- सन्नयः—पुं॰—-—सम् + नी + अच्—संचय, समुच्चय, परिमाण, संख्या
- सन्नयः—पुं॰—-—सम् + नी + अच्—पृष्ठभाग
- सन्नहनम्—नपुं॰—-—सम् + नह् + ल्युट्—तैयार होना, सन्नद्ध होना, शस्त्रास्त्र से सुसज्जित होना
- सन्नहनम्—नपुं॰—-—सम् + नह् + ल्युट्—तैयारी
- सन्नहनम्—नपुं॰—-—सम् + नह् + ल्युट्—कस कर बांधना
- सन्नहनम्—नपुं॰—-—सम् + नह् + ल्युट्—उद्योग, प्रयत्न
- सन्नाहः—पुं॰—-—सम् + नह् + घञ्—अपने आप को शस्त्रास्त्र से सुसज्जित करना, युद्ध के लिए तैयार होना, कवच पहनना
- सन्नाहः—पुं॰—-—सम् + नह् + घञ्—युद्ध जैसी तैयारी, सुसज्जा
- सन्नाहः—पुं॰—-—सम् + नह् + घञ्—कवच, बख्तर
- सन्नाह्यः—पुं॰—-—सम् + नह् + ण्यत्—युद्ध का हाथी
- सन्निकर्षः—पुं॰—-—सम् + नि + कृष् + घञ्—निकट खींचना, समीप लाना
- सन्निकर्षः—पुं॰—-—सम् + नि + कृष् + घञ्—पड़ोस, सामीप्य, उपस्थित
- सन्निकर्षः—पुं॰—-—सम् + नि + कृष् + घञ्—संबंध, रिश्तेदारी
- सन्निकर्षः—पुं॰—-—सम् + नि + कृष् + घञ्—इंद्रिय का विषय से संबंध
- सन्निकर्षणम्—नपुं॰—-—सम् + नि + कृष् + ल्युट्—निकट लाना
- सन्निकर्षणम्—नपुं॰—-—सम् + नि + कृष् + ल्युट्—पहुँचना, समीप जाना
- सन्निकर्षणम्—नपुं॰—-—सम् + नि + कृष् + ल्युट्—सामीप्य, पड़ोस
- सन्निकृष्ट—भू॰ क॰ कृ॰—-—सम् + नि + कृष् + क्त—समीप आया हुआ
- सन्निकृष्ट—भू॰ क॰ कृ॰—-—सम् + नि + कृष् + क्त—समीपवर्ती, सटा हुआ, विकटस्थ
- सन्निकृष्टम्—नपुं॰—-—-—सामीप्य, पडौस
- सन्निचयः—पुं॰—-—सम् + नि + चि + अच्—संग्रह, संचय
- सन्निधातृ—पुं॰—-—सम् + नि + धा + तृच्—निकट लाने वाला
- सन्निधातृ—पुं॰—-—सम् + नि + धा + तृच्—जमा करने वाला
- सन्निधातृ—पुं॰—-—सम् + नि + धा + तृच्—चोरी का माल लेने वाला
- सन्निधातृ—पुं॰—-—सम् + नि + धा + तृच्—न्यायलय में लोगों का परिचय कराने वाला अधिकारी
- सन्निधानम्—नपुं॰—-—सम् + नि + धा + ल्युट्—मिलाकर रखना , साथ साथ रखना
- सन्निधानम्—नपुं॰—-—सम् + नि + धा + ल्युट्—सामीप्य, पड़ौस, उपस्थिति
- सन्निधानम्—नपुं॰—-—सम् + नि + धा + ल्युट्—दृष्टिगोचरता दर्शन
- सन्निधानम्—नपुं॰—-—सम् + नि + धा + ल्युट्—आधार
- सन्निधानम्—नपुं॰—-—सम् + नि + धा + ल्युट्—ग्रहण करना, कार्य भार लेना
- सन्निधानम्—नपुं॰—-—सम् + नि + धा + ल्युट्—सम्मिश्रण, समष्टि
- सन्निधिः—पुं॰—-—सम् + नि + धा + कि—मिलाकर रखना , साथ साथ रखना
- सन्निधिः—पुं॰—-—सम् + नि + धा + कि—सामीप्य, पडौस, उपस्थिति
- सन्निधिः—पुं॰—-—सम् + नि + धा + कि—दृष्टिगोचरता दर्शन
- सन्निधिः—पुं॰—-—सम् + नि + धा + कि—आधार
- सन्निधिः—पुं॰—-—सम् + नि + धा + कि—ग्रहण करना, कार्य भार लेना
- सन्निधिः—पुं॰—-—सम् + नि + धा + कि—सम्मिश्रण, समष्टि
- सन्निपातः—पुं॰—-—सम् + मि+ पत् + घञ्—नीचे गिरना, उतरना, नीचे आना
- सन्निपातः—पुं॰—-—सम् + मि+ पत् + घञ्—एक साथ गिरना, मिलना
- सन्निपातः—पुं॰—-—सम् + मि+ पत् + घञ्—टक्कर, संपर्क
- सन्निपातः—पुं॰—-—सम् + मि+ पत् + घञ्—मेल, संगम, सम्मिश्रण, मिश्रण, विविध संचय
- सन्निपातः—पुं॰—-—सम् + मि+ पत् + घञ्—संघात, संग्रह, समुच्चय, संख्या
- सन्निपातः—पुं॰—-—सम् + मि+ पत् + घञ्—आना, पहुँचना
- सन्निपातः—पुं॰—-—सम् + मि+ पत् + घञ्—तीनों दोषों का एक साथ बिगड़ना जिससे कि विषम ज्वर हो जाता हैं
- सन्निपातः—पुं॰—-—सम् + मि+ पत् + घञ्—संगीत में एक प्रकार का समय, ताल
- सन्निपातज्वरः —पुं॰—सन्निपात-ज्वरः —-—तीनों दोषों के बिगड़ जाने पर उत्पन्न होने वाला भीषण ज्वर
- सन्निबन्धः—पुं॰—-—सम् + नि + बन्ध् + घञ्—कसकर बांधना
- सन्निबन्धः—पुं॰—-—सम् + नि + बन्ध् + घञ्—संबंध, आसक्ति
- सन्निबन्धः—पुं॰—-—सम् + नि + बन्ध् + घञ्—प्रभावकारिता
- सन्निभ—वि॰—-—सम् + नि + भा + क—समान, सदृश
- सन्नियोगः—पुं॰—-—सम् + नि + युज् + घञ्—मेल, अनुराग
- सन्नियोगः—पुं॰—-—सम् + नि + युज् + घञ्—नियुक्ति
- सन्निरोधः—पुं॰—-—सम् + नि + रुध् + घञ्—अड़चन, रुकावट
- सन्निवृत्तिः—स्त्री॰—-—सम् + नि + वृत् + क्तिन्—वापसी
- सन्निवृत्तिः—स्त्री॰—-—सम् + नि + वृत् + क्तिन्—हटना, रुकना
- सन्निवृत्तिः—स्त्री॰—-—सम् + नि + वृत् + क्तिन्—निग्रह, सहिष्णुता
- सन्निवेशः—पुं॰—-—सम् + नि + विश् + घञ्—गहरी पैठ, उत्कट भक्ति या अनुराग, संलग्नता
- सन्निवेशः—पुं॰—-—सम् + नि + विश् + घञ्—संचय, समुच्चय, संघात
- सन्निवेशः—पुं॰—-—सम् + नि + विश् + घञ्—मेल, मिलाप, व्यवस्था, रमणीय
- सन्निवेशः—पुं॰—-—सम् + नि + विश् + घञ्—स्थान, जगह, स्थिति, अवस्था
- सन्निवेशः—पुं॰—-—सम् + नि + विश् + घञ्—पडौस, समीप्य
- सन्निवेशः—पुं॰—-—सम् + नि + विश् + घञ्—रुप, आकृति
- सन्निवेशः—पुं॰—-—सम् + नि + विश् + घञ्—झोपड़ी, रहने की जगह
- सन्निवेशः—पुं॰—-—सम् + नि + विश् + घञ्—उपयुक्त स्थानों पर आसन देना, बिठाना
- सन्निवेशः—पुं॰—-—सम् + नि + विश् + घञ्—बीच में रखना
- सन्निवेशः—पुं॰—-—सम् + नि + विश् + घञ्—नगर के निकट खुला मैदान जहाँ लोग मनोरंजन, व्यायाम आदि के लिए एकत्र होते हैं
- सन्निहित—भू॰ क॰ कृ॰—-—सम् + नि + धा + क्त—निकट रखा गया, पास पड़ा हुआ, निकटस्थ, सटा हुआ, पडौस का
- सन्निहित—भू॰ क॰ कृ॰—-—सम् + नि + धा + क्त—निकट, समीप, नजदीक
- सन्निहित—भू॰ क॰ कृ॰—-—सम् + नि + धा + क्त—उपस्थिति,
- सन्निहित—भू॰ क॰ कृ॰—-—सम् + नि + धा + क्त—जमाया हुआ, रक्खा हुआ, जमा किया हुआ
- सन्निहित—भू॰ क॰ कृ॰—-—सम् + नि + धा + क्त—उद्यत, तत्पर
- सन्निहित—भू॰ क॰ कृ॰—-—सम् + नि + धा + क्त—ठहरा हुआ, अन्तर्वर्ती
- सन्निहितापाय—वि॰—सन्निहित-अपाय—-—जिसका विनाश निकट ही हो, क्षणभंगुर, नश्वर, अस्थायी
- सन्न्यसनम्—नपुं॰—-—सम् + नि + अप् + ल्युट्—त्याग, डाल देना
- सन्न्यसनम्—नपुं॰—-—सम् + नि + अप् + ल्युट्— पूर्णवैराग्य, विरक्ति
- सन्न्यसनम्—नपुं॰—-—सम् + नि + अप् + ल्युट्—सौंपना, सुपुर्द करना
- सन्न्यस्त—भू॰ क॰ कृ॰—-—सम् + नि + अस् + क्त—डाला हुआ, नीचे रक्खा हुआ
- सन्न्यस्त—भू॰ क॰ कृ॰—-—सम् + नि + अस् + क्त—जमा किया हुआ
- सन्न्यस्त—भू॰ क॰ कृ॰—-—सम् + नि + अस् + क्त—सौंपा हुआ, सुपुर्द किया हुआ
- सन्न्यस्त—भू॰ क॰ कृ॰—-—सम् + नि + अस् + क्त—एक ओर डाला, छोड़ा हुआ, त्यागा हुआ
- सन्न्यासः—पुं॰—-—सम् + नि + अस् + घञ्—छोड़ना, त्याग करना
- सन्न्यासः—पुं॰—-—सम् + नि + अस् + घञ्—सांसारिक विषयों तथा अनुरागों से पूर्ण वैराग्य, सांसारिक वासनाओं का परित्याग
- सन्न्यासः—पुं॰—-—सम् + नि + अस् + घञ्—धरोहर, निक्षेप
- सन्न्यासः—पुं॰—-—सम् + नि + अस् + घञ्—खेल में शर्त लगाना
- सन्न्यासः—पुं॰—-—सम् + नि + अस् + घञ्—शरीर त्यागना, मृत्यु
- सन्न्यासः—पुं॰—-—सम् + नि + अस् + घञ्—जटामांसी, बालछड़
- सन्न्यासिन्—पुं॰—-—सम् + नि + अस् + णिनि—जो त्याग देता और जमा कर देता हैं
- सन्न्यासिन्—पुं॰—-—सम् + नि + अस् + णिनि—जो संसार और इसकी का आसक्तियों का पूर्णतः त्याग कर देता हैं, वैरागी, चौथे आश्रम में स्थित ब्राह्मण
- सन्न्यासिन्—पुं॰—-—सम् + नि + अस् + णिनि—भोजन का त्याग करने वाला, तक्ताहार
- सप्—भ्वा॰ पर॰ <सपति>—-—-—सम्मान करना, पूजा करना
- सप्—भ्वा॰ पर॰ <सपति>—-—-—संबंध जोड़ना
- सपक्ष—वि॰—-—सह पक्षेण - व॰ स॰—पंखों वाला, डैनों वाला
- सपक्ष—वि॰—-—सह पक्षेण - व॰ स॰—पक्षवाला, दलवाला
- सपक्ष—वि॰—-—सह पक्षेण - व॰ स॰—एक ही पक्ष या दल का
- सपक्ष—वि॰—-—सह पक्षेण - व॰ स॰—बन्धु, समान, सदृश
- सपक्ष—वि॰—-—सह पक्षेण - व॰ स॰—जिसमें अनुमान का पक्ष या साध्य विषय विद्यमान हो
- सपक्षः—पुं॰—-—-—समर्थक, अनुगामी, पक्षपाती, हिमायती
- सपक्षः—पुं॰—-—-—सजातीय रिश्तेदार
- सपक्षः—पुं॰—-—-—साध्यपक्ष का दृष्टांत, समान उदाहरण
- सपत्नः—पुं॰—-—सह एकार्थे पतति पत् + न, सहस्य सः—शत्रु, विरोधी, प्रतिद्वन्द्वी
- सपत्नी—स्त्री॰—-—समानः पतिः यस्याः ब॰ स॰ ङीप्, न आदेशः—प्रतिद्वन्द्वी या सहपत्नी, प्रतिद्वन्द्वी गृहणी, सौत
- सपत्नीक—वि॰—-—सपत्नी + कप्—पत्नी सहित
- सपत्राकरणम्—नपुं॰—-—सह पत्रेण सपत्र + डाच् + कृ + ल्युट्—इसप्रकार बाण मारना जिससे कि बाण का पुंखदार भाग शरीर में घुस जाय
- सपत्राकरणम्—नपुं॰—-—सह पत्रेण सपत्र + डाच् + कृ + ल्युट्—अत्यंत पीड़ाकारक
- सपत्राकृतिः—स्त्री॰—-—सपत्र + डाच् + कृ + क्तिन्—वेदना, पीडा, अत्यंत कष्ट या सन्ताप
- सपदि—अव्य॰—-—सह + पद् + इन्, सहस्य सः— तुरन्त, क्षण भर में, फौरन, तत्काल
- सपर्या—स्त्री॰—-—सपर् + यक् + अ + टाप्—पूजा, अर्चना, सम्मान
- सपर्या—स्त्री॰—-—सपर् + यक् + अ + टाप्—सेवा, परिचर्या
- सपाद—वि॰—-—सहपादेन - ब॰स॰—पैरों वाला, एक चौथाई बढ़ा हुआ
- सपिण्डः—पुं॰—-—समानः पिंडो मूलपुरुषों निवापो वा यस्य ब॰ स॰—समान पित्रों को पिंडदान देने वाला, एक समान पित्रों को पिण्डदान देने के कारण संबंधी, बन्धु
- सपिण्डीकरणम्—नपुं॰—-—सपिण्ड + च्वि + कृ + ल्युट्—समान पित्रों के सम्मान में किया जाने वाला विशेष श्राद्ध का अनुष्ठान
- सपीतिः—स्त्री॰—-—सह एकत्र पीतिः पानम् - पा + क्तिन्—साथ साथ पीना, मिलाकर पीना, सहपान
- सप्तक—वि॰—-—सप्तानां समूहः सप्तन् + कन्—जिसमें सात सम्मिलित हों
- सप्तक—वि॰—-—सप्तानां समूहः सप्तन् + कन्—सात
- सप्तक—वि॰—-—सप्तानां समूहः सप्तन् + कन्—सातवां
- सप्तकम्—नपुं॰—-—-— सात वस्तुओं का संग्रह
- सप्तकी—स्त्री॰—-—सप्तभिः स्वरैः इव कायति शब्दायते - सप्तन् + कै + क + ङीष्—स्त्री की करधनी या तगड़ी
- सप्ततिः—स्त्री॰—-—सप्तगुणिता दशतिः - नि॰—सत्तर
- सप्ततम्—वि॰—-—-—सत्तरवाँ
- सप्तधा—अव्य॰—-—सप्तन् + धाच्—सात गुण, सात प्रकार से
- सप्तन्—सं वि॰—-—सदैव बहुवचनान्त - कर्तृ॰ व कर्म॰ सप्त सप् + तनिन्—सात
- सप्ताङ्ग—वि॰—सप्तन्-अङ्ग—-—राज्य के साथ संघटक अंग
- सप्तार्चिस्—वि॰—सप्तन्-अर्चिस्—-—सात जिह्वा या लौ वाला
- सप्तार्चिस्—वि॰—सप्तन्-अर्चिस्—-—बुरी आँख वाला, अशुभ दृष्टि वाला
- सप्तार्चिस्—पुं॰—सप्तन्-अर्चिस्—-—अग्नि
- सप्तार्चिस्—पुं॰—सप्तन्-अर्चिस्—-—शनि
- सप्ताशीतिः—स्त्री॰—सप्तन्-अशीतिः—-—सतासी
- सप्ताश्रमः—पुं॰—सप्तन्-अश्रमः—-—सतकोन्
- सप्ताश्वः—पुं॰—सप्तन्-अश्वः—-—सूर्य
- सप्ताश्ववाहनः—पुं॰—सप्तन्-अश्वः-वाहनः—-—सूर्य
- सप्ताहः—पुं॰—सप्तन्-अहः—-—सात दिन अर्थात् एक हफ्ता
- सप्तात्मन्—पुं॰—सप्तन्-आत्मन्—-—ब्रह्मा का विशेषण
- सप्तर्षि—पुं॰ ब॰ व॰—सप्तन्-ऋषि—-—सात ऋषि, अर्थात् मरीचि, अत्रि, अंगिरा, पुलस्त्य, पुलह, क्रतु और वशिष्ठ
- सप्तर्षि—पुं॰ ब॰ व॰—सप्तन्-ऋषि—-—सप्तर्षि नामक नक्षत्रपुंज
- सप्तचत्वारिंशत्—स्त्री॰—सप्तन्-चत्वारिशत्—-—सैंतालिस
- सप्तजिह्वः—पुं॰—सप्तन्-जिह्वः—-—आग
- सप्तज्वालः—पुं॰—सप्तन्-ज्वालः—-—आग
- सप्ततन्तुः—पुं॰—सप्तन्-तन्तुः—-—यज्ञ
- सप्तत्रिंशत्—स्त्री॰—सप्तन्-त्रिंशत्—-—सैंतीस
- सप्तदशन्—वि॰—सप्तन्-दशन्—-—सत्रह
- सप्तदीधितिः—पुं॰—सप्तन्-दीधितिः—-—अग्नि
- सप्तद्वीपा—स्त्री॰—सप्तन्-द्वीपा—-—पृथ्वी का विशेषण
- सप्तधातु—पुं॰ ब॰ व॰—सप्तन्-धातु—-—शरीर के संघटक सात मूलतत्त्व अर्थात् अन्नरस, रुधिर, मांस, चर्बी, हड्डी, मज्जा, वीर्य
- सप्तनवतिः—स्त्री॰—सप्तन्-नवतिः—-—सत्तानवे
- सप्तनाडीचक्रम्—नपुं॰—सप्तन्-नाडीचक्रम्—-—ज्योतिष का एक रेखाचित्र जिसके द्वारा वर्षाविषयक भविष्यकथन किया जाता है
- सप्तपर्णः—पुं॰—सप्तन्-पर्णः—-—एक वृक्ष का नाम
- सप्तपदी—स्त्री॰—सप्तन्-पदी—-—विवाह में सात पग चलना
- सप्तप्रकृतिः—स्त्री॰ ब॰ व॰—सप्तन्-प्रकृतिः—-—राज्य के साथ संघटक अंग
- सप्तभद्रः—पुं॰—सप्तन्-भद्रः—-—सिरस का पेड़
- सप्तभूमिक—वि॰—सप्तन्-भूमिक—-—सातमंजिल ऊँचा
- सप्तभौम—वि॰—सप्तन्-भौम—-—सातमंजिल ऊँचा
- सप्तरात्रम्—नपुं॰—सप्तन्-रात्रम्—-—रात का समय
- सप्तविंशतिः—स्त्री॰—सप्तन्-विंशतिः—-—सत्ताइस
- सप्तविध—वि॰—सप्तन्-विध—-—सातगुणा, सात प्रकार का
- सप्तशतम्—नपुं॰—सप्तन्-शतम्—-—सात सौ
- सप्तशतम्—नपुं॰—सप्तन्-शतम्—-—एक सौ सात
- सप्तशती—स्त्री॰—सप्तन्-शती—-—सात सौ श्लोकों का संग्रह
- सप्तसप्तिः—पुं॰—सप्तन्-सप्तिः—-—सूर्य का विशेषण
- सप्तम—वि॰—-—सप्तानां पूरणः सप्तन् + डट्, मट्—सातवां
- सप्तमी—स्त्री॰—-—-—सातवीं विभक्ति, अधिकरण कारक
- सप्तमी—स्त्री॰—-—-—चान्द्रवर्ष के किसी पक्ष का सातवाँ दिन
- सप्तला—स्त्री॰—-—-—एक प्रकार की चमेली
- सप्तिः—स्त्री॰—-—सप् + ति—जूआ
- सप्तिः—स्त्री॰—-—सप् + ति—घोड़ा
- सप्रणय—वि॰—-—सह प्रणयेन - ब॰ स॰—स्नेही, मित्रतापूर्ण
- सप्रत्यय—वि॰—-—प्रत्येय सह् - ब॰ स॰—विश्वास रखने वाला
- सप्रत्यय—वि॰—-—प्रत्येय सह् - ब॰ स॰—निश्चित, विश्वस्त
- सफरः—पुं॰—-—सप् + अरन्, पृषो॰ पस्य फ—छोटी चमकीली मछ्ली
- सफल—वि॰—-—सह फलेन ब॰ स॰—फूलों से पूर्ण, फल देने वाला, उपजाऊ
- सफल—वि॰—-—सह फलेन ब॰ स॰—सम्पन्न, पूरा किया गया, कामयाब
- सबन्धु—वि॰—-—सह बन्धुना - ब॰ स॰—जिसके साथ निकट सम्बन्ध हो
- सबन्धु—वि॰—-—सह बन्धुना - ब॰ स॰—मित्रयुक्त, मित्रता के सूत्र में बंधा हुआ
- सबन्धुः—पुं॰—-—-—रिश्तेदार, बंधु-बांधव
- सबलिः—पुं॰—-—सहबलिना ब॰ स॰—सांध्यकालीन, झुटपुटा, गोधूलिवेला
- सबाध—वि॰—-—सह बाधया ब॰ स॰—आघातपूर्ण
- सबाध—वि॰—-—सह बाधया ब॰ स॰—पीडादायक
- सब्रह्मचर्यम्—नपुं॰—-—समानं ब्रह्मचर्यम् सहस्य सः—सहपाठिता
- सब्रह्मचारिन्—पुं॰—-—समानं ब्रह्म वेदग्रहणकालीनं व्रतं चरति चर् + णिनि, समानस्य सः—सहपाठी
- सब्रह्मचारिन्—पुं॰—-—समानं ब्रह्म वेदग्रहणकालीनं व्रतं चरति चर् + णिनि, समानस्य सः—सहभोगी, सहानुभूति रखने वाला व्यक्ति
- सभा—स्त्री॰—-—सह भान्ति अभीष्टनिश्चयार्थमेकत्र यत्र गृहे—जलसा, परिषद, गुप्तसभा
- सभा—स्त्री॰—-—सह भान्ति अभीष्टनिश्चयार्थमेकत्र यत्र गृहे—समिति, समाज, सम्मिलन, बड़ी संख्या
- सभा—स्त्री॰—-—सह भान्ति अभीष्टनिश्चयार्थमेकत्र यत्र गृहे—परिषद्-कक्षा, या सभा भवन
- सभा—स्त्री॰—-—सह भान्ति अभीष्टनिश्चयार्थमेकत्र यत्र गृहे—न्यायालय
- सभा—स्त्री॰—-—सह भान्ति अभीष्टनिश्चयार्थमेकत्र यत्र गृहे—सार्वजनिक जलसा
- सभा—स्त्री॰—-—सह भान्ति अभीष्टनिश्चयार्थमेकत्र यत्र गृहे—जूआ खाना
- सभा—स्त्री॰—-—सह भान्ति अभीष्टनिश्चयार्थमेकत्र यत्र गृहे—कोई भी स्थान जहाँ लोग प्रायः आते जाते हों
- सभास्तारः—पुं॰—सभा-आस्तारः—-—सभा में सहायक
- सभास्तारः—पुं॰—सभा-आस्तारः—-—सभासद्
- सभापतिः—पुं॰—सभा-पतिः—-—सभा का अध्यक्ष, सभापति
- सभापतिः—पुं॰—सभा-पतिः—-—जुए का अड्डा चलाने वाला
- सभापूजा—पुं॰—सभा-पूजा—-—दर्शकों के प्रति सम्मान प्रदर्शन
- सभासद्—पुं॰—सभा-सद्—-—किसी सभा या जलसे में सहायक
- सभासद्—पुं॰—सभा-सद्—-—सभासद्, मेम्बर
- सभासद्—पुं॰—सभा-सद्—-—अदालत की पंचायत का सदस्य, जूरी का सदस्य
- सभाज्—चुरा॰ उभ॰ <सभाजयति> <सभाजयते>—-—-—अभिवादन करना, प्रणाम करना, नमस्कार करना, श्रद्धांजलि अर्पित करना, बधाई देना
- सभाज्—चुरा॰ उभ॰ <सभाजयति> <सभाजयते>—-—-—सम्मान करना, पूजा करना, आदर करना
- सभाज्—चुरा॰ उभ॰ <सभाजयति> <सभाजयते>—-—-—प्रसन्न करना, तृप्त करना
- सभाज्—चुरा॰ उभ॰ <सभाजयति> <सभाजयते>—-—-—सुन्दर बनाना, अलंकृत करना, सजाना
- सभाज्—नपुं॰—-—-—प्रदर्शन करना
- सभाजनम्—नपुं॰—-—सभाज् + ल्युट्—(क) प्रणाम करना, अभिवादन करना, सम्मानित करना, पूजा करना
- सभाजनम्—नपुं॰—-—सभाज् + ल्युट्—(ख) स्वागत करना, बधाई देना
- सभाजनम्—नपुं॰—-—सभाज् + ल्युट्—शिष्टता, शिष्टाचार, विनम्रता
- सभाजनम्—नपुं॰—-—सभाज् + ल्युट्—सेवा
- सभावनः—पुं॰—-—सह भावनेन - ब॰ स॰—शिव का नाम
- सभिकः —पुं॰—-—सभा द्यूतं प्रयोजनमस्य - ईक—जुए का अड्डा चलाने वाला, जुआ खेलाने वाला
- सभीकः —पुं॰—-—सभा द्यूतं प्रयोजनमस्य - ईक—जुए का अड्डा चलाने वाला, जुआ खेलाने वाला
- सभ्य—वि॰—-—सभायां साधुः - यत्—सभा से संबंध रखने वाला
- सभ्य—वि॰—-—सभायां साधुः - यत्—समाज के योग्य
- सभ्य—वि॰—-—सभायां साधुः - यत्—संस्कृत, परिष्कृत, विनीत
- सभ्य—वि॰—-—सभायां साधुः - यत्—सुशील, विनम्र, शिष्ट
- सभ्य—वि॰—-—सभायां साधुः - यत्—विश्वस्त, विश्वसनीय, ईमानदार
- सभ्यः—पुं॰—-—सभायां साधुः - यत्—मूल्यनिदर्शक
- सभ्यः—पुं॰—-—सभायां साधुः - यत्—सभासद्
- सभ्यः—पुं॰—-—सभायां साधुः - यत्—सम्मानित कुल में उत्पन्न
- सभ्यः—पुं॰—-—सभायां साधुः - यत्— जुआ-खाने का संचालक
- सभ्यः—पुं॰—-—सभायां साधुः - यत्—द्यूतगृह के संचालक का सेवक
- सभ्यता—स्त्री॰—-—सभ्य + तल् + टाप्, त्व वा—विनम्रता, सुशीलता, कुलीनता
- सभ्यत्वम्—नपुं॰—-—सभ्य + तल् + टाप्, त्व वा—विनम्रता, सुशीलता, कुलीनता
- सम्—भ्वा॰ पर॰ <समति>—-—-—विक्षुब्ध या अव्यवस्थित होना
- सम्—भ्वा॰ पर॰ <समति>—-—-—विक्षुब्ध या अव्यवस्थित न होना
- सम्—चुरा॰ उभ॰ <समयति> <समयते>—-—-—विक्षुब्ध होना
- सम्—अव्य॰—-—सो + डमु—धातु या कृदन्त (क) के साथ मिलकर , साथ साथ- यथा संगम, संभाषण, संधा, संयुज् आदि में शब्दों से पूर्व उपसर्ग के रुप में लगकर इसका निम्नांकित अर्थ हैं (ख) कभी कभी यह धातु के अर्थ को प्रकट कर देता हैं, और इसका अर्थ होता हैं
- सम्—अव्य॰—-—सो + डमु—बहुत, बिल्कुल, खूब, पूर्णतः, अत्यन्त
- सम्—अव्य॰—-—सो + डमु—समास में संज्ञा शब्दों के पूर्व प्रयुक्त होकर इसका अर्थ हैं - की भाँति, समान, एक जैसा यथा ‘समर्थ’ में
- सम्—अव्य॰—-—सो + डमु—कभी कभी इसका अर्थ होता हैं - निकट, पूर्व, जैसा कि ‘समक्ष’ में
- सम—वि॰—-—सम् + अच्—वही, समरुप
- सम—वि॰—-—सम् + अच्—समान, जैसा कि ‘समलोष्टकांचनः’ में
- सम—वि॰—-—सम् + अच्— के समान, वैसा ही, मिलता-जुलता, करण॰ या संबंध॰ के साथ अथवा समास में
- सम—वि॰—-—सम् + अच्—समान, समतल, चौरस
- सम—वि॰—-—सम् + अच्—समसंख्या
- सम—वि॰—-—सम् + अच्— निष्पक्ष, न्याययुक्त
- सम—वि॰—-—सम् + अच्—न्यायोचित, ईमानदार, खरा
- सम—वि॰—-—सम् + अच्—भला, सद्गुण संपन्न
- सम—वि॰—-—सम् + अच्—सामान्य, मामूली
- सम—वि॰—-—सम् + अच्—मध्यवर्ती, बीच का
- सम—वि॰—-—सम् + अच्—सीधा
- सम—वि॰—-—सम् + अच्—उपयुक्त, सुविधाजनक
- सम—वि॰—-—सम् + अच्—तटस्थ, अचल, निरावेश
- सम—वि॰—-—सम् + अच्—सब, प्रत्येक
- सम—वि॰—-—-—सारा, पूर्ण, समस्त, पूरा
- समम्—अव्य॰—-—-—समतल मैदान, चौरस देश
- समम्—अव्य॰—-—-— से, के साथ, मिलकर, सहित
- समम्—अव्य॰—-—-—एक समान
- समम्—अव्य॰—-—-—के समान, इसीप्रकार, इसी रीति से
- समम्—अव्य॰—-—-—पूर्णतः
- समम्—अव्य॰—-—-—युगपत्, एक ही साथ, सब मिलकर, उसी समय, साथ साथ
- समांशः—पुं॰—सम-अंशः—-—समान भाग
- समांशहारिन्—पुं॰—सम-अंशः-हारिन्—-—सहदायभागी
- समान्तर—वि॰—सम-अन्तर—-—समानान्तर
- समाचार—वि॰—सम-आचार—-—समान या एक जैसा आचरण
- समाचार—वि॰—सम-आचार—-—उचित व्यवहार
- समोदकम्—नपुं॰—सम-उदकम्—-—आधा दही और आधा पानी मिलाकर बनाई गई छाछ, मट्ठा
- समोपमा—स्त्री॰—सम-उपमा—-—उपमा अलंकार का एक भेद
- समकन्या—स्त्री॰—सम-कन्या—-—योग्य या उपयुक्त कन्या
- समकर्णः—पुं॰—सम-कर्णः—-—ऐसा चतुष्कोण जिसके कर्ण एक समान हों
- समकालः—पुं॰—सम-कालः—-—वही समय या क्षण
- समकालम्—अव्य॰—सम-कालम्—-—उसी समय, युगपत्
- समकालीन—वि॰—सम-कालीन—-—समवयस्क, समसामयिक
- समकोलः—पुं॰—सम-कोलः—-—सर्प, साँप
- समक्षेत्रम्—नपुं॰—सम-क्षेत्रम्—-—नक्षत्रों के एक विशेषक्रम का विशेषण
- समखातः—पुं॰—सम-खातः—-—समान खुदाई, समानान्तर चतुर्भुजों से बनी हुई आकृति
- समगन्धकः—पुं॰—सम-गन्धकः—-—एक जैसे पदार्थों से बना धूप
- समचतुरस्न—वि॰—सम-चतुरस्न—-—वर्ग
- समचतुरस्नम्—नपुं॰—सम-चतुरस्नम्—-—समभुज चतुष्कोण
- समचतुर्भुजः—पुं॰—सम-चतुर्भुजः—-—विषमकोण समचतुर्भुज
- समचतुर्भुजम्—नपुं॰—सम-चतुर्भुजम्—-—विषमकोण समचतुर्भुज
- समचित्त—वि॰—सम-चित्त—-—सममनस्क, एक समान, प्रशान्तचित्त
- समचित्त—वि॰—सम-चित्त—-—उदासीन
- समछेद—वि॰—सम-छेद—-—वह भिन्न जिनके हर समान हो
- समछेदन—वि॰—सम-छेदन—-—वह भिन्न जिनके हर समान हो
- समजाति—वि॰—सम-जाति—-—समान जाति या वर्ग का
- समज्ञा—स्त्री॰—सम-ज्ञा—-—ख्याति
- समत्रिभुजः—पुं॰—सम-त्रिभुजः—-—समभुज त्रिकोण
- समत्रिभुजम्—नपुं॰—सम-त्रिभुजम्—-—समभुज त्रिकोण
- समदर्शन—वि॰—सम-दर्शन—-—समान रुप से देखने वाला, निष्पक्ष
- समदर्शिन्—वि॰—सम-दर्शिन्—-—समान रुप से देखने वाला, निष्पक्ष
- समदुःख—वि॰—सम-दुःख—-—दूसरों के दुःख को अपने जैसा दुःख समझने वाला, सहानुभूति रखने वाला, दुःख में साथी
- समदुःखसुख—वि॰—सम-दुःख-सुख—-—सुख और दुःख का साथी
- समदृष्टि—वि॰—सम-दृश् —-—पक्षपातरहित
- समबुद्धि—वि॰—सम-बुद्धि—-— निष्पक्ष
- समबुद्धि—वि॰—सम-बुद्धि—-—तटस्थ, निःसंग
- समभाव—वि॰—सम-भाव—-—एक- सी प्रकृति या गुण रखने वाला
- समभावः—पुं॰—सम-भावः—-—समानता, तुल्यता
- सममण्डलम्—नपुं॰—सम-मण्डलम्—-—मुख्य खड़ी रेखा
- सममय—वि॰—सम-मय—-—एक समान मूल वाले
- समरञ्जित—वि॰—सम-रञ्जित—-—हलके रंग वाला
- समरम्भः—पुं॰—सम-रम्भः—-—एक प्रकार का रतिबंध
- समरेख—वि॰—सम-रेख—-—सीधा
- समलम्बः—पुं॰—सम-लम्बः—-—विषम चतुर्भुज
- समलम्बम्—नपुं॰—सम-लम्बम्—-—विषम चतुर्भुज
- समवर्णः—पुं॰—सम-वर्णः—-—एक ही जाति का
- समवर्तिन्—वि॰—सम-वर्तिन्—-—सममनस्क, पक्षपातरहित
- समवर्तिन्—पुं॰—सम-वर्तिन्—-—मृत्यु का देवता, यमराज
- समवृत्तम्—नपुं॰—सम-वृत्तम्—-—वह छन्द जिसके चारों चरण समान हों
- समवृत्तम्—नपुं॰—सम-वृत्तम्—-—मुख्य खड़ी रेखा
- सम वृत्ति—वि॰—सम -वृत्ति—-—धीर, गंभीर
- समवेधः—पुं॰—सम-वेधः—-—बीच के दर्जे की गहराई
- समशोधनम्—नपुं॰—सम-शोधनम्—-—समीकरण के प्रश्नों में एक सी राशि का दोनों ओर घटाना, समव्यवकलन
- समसन्धिः—पुं॰—सम-सन्धिः—-—एक समान शर्तों पर शान्तिस्थापन
- समसुप्तिः—स्त्री॰—सम-सुप्तिः—-—विश्वनिद्रा
- समस्थ—वि॰—सम-स्थ—-—बराबर, एक रुप का
- समस्थ—वि॰—सम-स्थ—-—समतल, हमवार
- समस्थ—वि॰—सम-स्थ—-—समान
- समस्थलम्—नपुं॰—सम-स्थलम्—-—समतल भूमि
- समक्ष—वि॰—-—अक्ष्णोः समीपम् समक्ष + अच्—आँखों के सामने मौजूद, दर्शनीय, वर्तमान
- समक्षम्—अव्य॰—-—-—की उपस्थिति में, देखते देखते, आँखों के सामने
- समग्र—वि॰—-—समं सकलं यथा स्यात्तथागृह्यते - सम् + ग्रह + ड—सब, पूर्ण, समस्त, पूरा
- समङ्गा—स्त्री॰—-—सम् + अञ्ज् + घ + टाप्—मंजिष्ठा, मजीठ
- समजः—पुं॰—-—सम् + अज् + अप्—पशुओं का झुण्ड, पक्षियों का गोल, लहंडा, रेबड़
- समजः—पुं॰—-—सम् + अज् + अप्—मूर्खों की संख्या
- समजम्—नपुं॰—-—-—जंगल, अरण्य
- समज्या—स्त्री॰—-—सम् + अज् + क्यप् + टाप्—सम्मिलन, सभा
- समज्या—स्त्री॰—-—सम् + अज् + क्यप् + टाप्—ख्याति, यश, कीर्ति
- समञ्जस—वि॰—-—सम्यक् अञ्जः औचित्यं यत्र ब॰ स॰—उचित, तर्कसंगत, ठीक, योग्य
- समञ्जस—वि॰—-—सम्यक् अञ्जः औचित्यं यत्र ब॰ स॰—सही, सच, यथार्थ
- समञ्जस—वि॰—-—सम्यक् अञ्जः औचित्यं यत्र ब॰ स॰—स्पष्ट, बोधगम्य जैसा कि ‘असमञ्जस’
- समञ्जस—वि॰—-—सम्यक् अञ्जः औचित्यं यत्र ब॰ स॰—सद्गुणसंपन्न, भला, न्यायोचित
- समञ्जस—वि॰—-—सम्यक् अञ्जः औचित्यं यत्र ब॰ स॰—अभ्यस्त, अनुभूत
- समञ्जस—वि॰—-—सम्यक् अञ्जः औचित्यं यत्र ब॰ स॰—स्वस्थ
- समञ्जसम्—नपुं॰—-—-—औचित्य, योग्यता
- समञ्जसम्—नपुं॰—-—-—यथार्थता
- समञ्जसम्—नपुं॰—-—-—सच्ची गवाही
- समता—स्त्री॰—-—सम + तल् + टाप्—एकसापन, एकरुपता
- समता—स्त्री॰—-—सम + तल् + टाप्—समानता, एक जैसापन
- समता—स्त्री॰—-—सम + तल् + टाप्—बराबरी
- समता—स्त्री॰—-—सम + तल् + टाप्—निष्पक्षता, न्याय्यता,समान व्यवहार करना
- समता—स्त्री॰—-—सम + तल् + टाप्—सन्तुलन
- समता—स्त्री॰—-—सम + तल् + टाप्—पूर्णता
- समता—स्त्री॰—-—सम + तल् + टाप्—सामान्यता
- समता—स्त्री॰—-—सम + तल् + टाप्—समानता
- समत्वम्—नपुं॰—-—सम + तल् + त्व—एकसापन, एकरुपता
- समत्वम्—नपुं॰—-—सम + तल् + त्व—समानता, एक जैसापन
- समत्वम्—नपुं॰—-—सम + तल् + त्व—बराबरी
- समत्वम्—नपुं॰—-—सम + तल् + त्व—निष्पक्षता, न्याय्यता
- समतां नी ——-—-—समान व्यवहार करना
- समत्वम्—नपुं॰—-—-—सन्तुलन
- समत्वम्—नपुं॰—-—-—पूर्णता
- समत्वम्—नपुं॰—-—-—सामान्यता
- समत्वम्—नपुं॰—-—-—समानता
- समतिक्रमः—पुं॰—-—सम् + अति + क्रम् + घञ्—उल्लंघन, भूल
- समतीत—वि॰—-—सम् + अति + इ + क्त—बीता हुआ, गया हुआ
- समद—वि॰—-—सह मदेन - ब॰ स॰—नशे में चूर, भीषण
- समद—वि॰—-—सह मदेन - ब॰ स॰—मद के कारण मस्त
- समद—वि॰—-—सह मदेन - ब॰ स॰—प्रणयोन्मत्त
- समधिक—वि॰—-—सम्यक् अधिक - प्रा॰ स॰—अतिशय
- समधिक—वि॰—-—सम्यक् अधिक - प्रा॰ स॰—अत्यन्त अधिक पुष्कल, बहुत अधिक
- समधिकम्—अव्य॰—-—-—अत्यंत, अधिकता के साथ
- समधिगमनम्—नपुं॰—-—सम् + अधि + गम् + ल्युट्—आगे बढ़ जाना, पार कर लेना, जीत लेना
- समध्व—वि॰—-—समानः अध्वा यस्य - ब॰ स॰—साथ यात्रा करने वाला
- समनुज्ञानम्—नपुं॰—-—सम् + अनु + ज्ञा + ल्युट्—हामी भरना, स्वीकृति देना
- समनुज्ञानम्—नपुं॰—-—सम् + अनु + ज्ञा + ल्युट्—पूर्ण अनुमति, पूरी सहमति
- समन्त—वि॰—-—सम्यक् अन्तो यत्र ब॰ स॰—हर दिशा में मौजूद, विश्वव्यापी
- समन्त—वि॰—-—सम्यक् अन्तो यत्र ब॰ स॰—पूर्ण समस्त
- समन्तः—पुं॰—-—-—सीमा, हद, मर्यादा
- समन्तदुग्धा—स्त्री॰—समन्त-दुग्धा—-—थूहर, स्नुहीं
- समन्तपञ्चकम्—नपुं॰—समन्त-पञ्चकम्—-—कुरुक्षेत्र या उसके निकट का प्रदेश
- समन्तभद्रः—पुं॰—समन्त-भद्रः—-—बुद्ध भगवान
- समन्तभुज्—पुं॰—समन्त-भुज्—-—आग
- समन्यु—वि॰—-—सह मन्युना - ब॰ स॰—शोकाकुल
- समन्यु—वि॰—-—सह मन्युना - ब॰ स॰—रोषपूर्ण, रुष्ट
- समन्वयः—पुं॰—-—सम् + अनु + इ + अच्—नियमित परंपरा या क्रम
- समन्वयः—पुं॰—-—सम् + अनु + इ + अच्—संबद्ध अनुक्रम, पारस्परिक सम्बन्ध, तात्पर्य
- समन्वयः—पुं॰—-—सम् + अनु + इ + अच्—संयोग
- समन्वित—भू॰ क॰ कृ॰—-—सम् + अभि + प्लु + क्त—संबद्ध, प्राकृतिक क्रम में आबद्ध
- समन्वित—भू॰ क॰ कृ॰—-—सम् + अभि + प्लु + क्त—अनुगत
- समन्वित—भू॰ क॰ कृ॰—-—सम् + अभि + प्लु + क्त—सहित, युक्त, भरा हुआ
- समन्वित—भू॰ क॰ कृ॰—-—सम् + अभि + प्लु + क्त—ग्रस्त
- समभिप्लुत—वि॰—-—सम् + अभि + प्लु + क्त—बाढ़ग्रस्त
- समभिप्लुत—वि॰—-—सम् + अभि + प्लु + क्त—ग्रहण ग्रस्त
- समभिव्याहारः—पुं॰—-—सम् + अभि + वि + आ + हृ + घञ्—मिलाकर उल्लेख करना
- समभिव्याहारः—पुं॰—-—सम् + अभि + वि + आ + हृ + घञ्—साहचर्य, साथ
- समभिव्याहारः—पुं॰—-—सम् + अभि + वि + आ + हृ + घञ्—शब्द का साहचर्य या समीप, जब कि उस (शब्द) का अर्थ स्पष्ट रुप से निश्चित कर लिया गया हो
- समभिसरणम्—नपुं॰—-—सम् + अभि + सृ + ल्युट्—पहुँचना
- समभिसरणम्—नपुं॰—-—सम् + अभि + सृ + ल्युट्—खोज करना, कामना करना
- समभिहारः—पुं॰—-—सम् + अभि + हृ + घञ्—साथ-साथ ले जाना
- समभिहारः—पुं॰—-—सम् + अभि + हृ + घञ्—आवृत्ति
- समभिहारः—पुं॰—-—सम् + अभि + हृ + घञ्—अतिरिक्त, फालतू
- समभ्यर्चनम्—नपुं॰—-—सम् + अभि + अर्च् + ल्युट्—पूजा करना, अर्चना करना
- समभ्याहारः—पुं॰—-—सम् + अभि + आ हृ + घञ्—साथ रहना, साहचर्य
- समयः—पुं॰—-—सम् + इ + अच्—काल
- समयः—पुं॰—-—सम् + इ + अच्—अवसर, मौका
- समयः—पुं॰—-—सम् + इ + अच्—योग्य काल, उपयुक्त काल, या ऋतु, ठीक वक्त
- समयः—पुं॰—-—सम् + इ + अच्—करार, समझौता, संविदा, पहले से किया गया ठहराव
- समयः—पुं॰—-—सम् + इ + अच्—रुढि, प्रथा
- समयः—पुं॰—-—सम् + इ + अच्—चालचलन का संस्थापित नियम, संस्कार, लोकप्रचलन
- समयः—पुं॰—-—सम् + इ + अच्—कवियों का अभिसमय
- समयः—पुं॰—-—सम् + इ + अच्—नियुक्ति, स्थिरीकरण
- समयः—पुं॰—-—सम् + इ + अच्—अनुबंध, शर्त
- समयः—पुं॰—-—सम् + इ + अच्—कानून, नियम, विनियम
- समयः—पुं॰—-—सम् + इ + अच्—निदेश, आदेश, निर्देश, विधि
- समयः—पुं॰—-—सम् + इ + अच्—आपत्काल, संकटकाल
- समयः—पुं॰—-—सम् + इ + अच्—शपथ
- समयः—पुं॰—-—सम् + इ + अच्—संकेत, इंगित, इशारा
- समयः—पुं॰—-—सम् + इ + अच्—सीमा, हद
- समयः—पुं॰—-—सम् + इ + अच्—प्रदर्शित उपसंहार, सिद्धांत, मतवाद
- समयः—पुं॰—-—सम् + इ + अच्—अन्त, उपसंहार, समाप्ति
- समयः—पुं॰—-—सम् + इ + अच्—सफलता, समृद्धि
- समयः—पुं॰—-—सम् + इ + अच्—कष्ट का अन्त
- समयाध्युषितम्—नपुं॰—समय-अध्युषितम्—-—ऐसा समय जब कि न सूर्य दिखाई देता है न तारे
- समयानुवर्तिन्—वि॰—समय-अनुवर्तिन्—-—मानी हुई प्रथा का पालन करने वाला
- समयानुसारेण—अव्य॰—समय-अनुसारेण—-—अवसर के अनुकूल जैसा मौका हो
- समयोचितम्—अव्य॰—समय-उचितम्—-—अवसर के अनुकूल जैसा मौका हो
- समयाचारः—पुं॰—समय-आचारः—-—लोकप्रचलित चलन, मानी हुई प्रथा
- समयक्रिया—स्त्री॰—समय-क्रिया—-—करार करना
- समयपरिरक्षणम्—नपुं॰—समय-परिरक्षणम्—-—किसी समझौते का पालन करना, सन्धि या करार
- समयव्यभिचारः—पुं॰—समय-व्यभिचारः—-—प्रतिज्ञा तोड़ना, ठेके का उल्लघंन या भंग
- समयव्यभिचारिन्—वि॰—समय-व्यभिचारिन्—-—प्रतिज्ञा या वचन भंग करने वाला
- समया—अव्य॰—-—सम् + इ + आ—ठीक, ऋतु के अनुकूल, ठीक समय पर
- समया—अव्य॰—-—सम् + इ + आ—निश्चित समय पर
- समया—अव्य॰—-—सम् + इ + आ—बीच में, के अन्दर (दो के) बीच में
- समया—अव्य॰—-—सम् + इ + आ—निकट
- समरः—पुं॰—-—सम् + ऋ + अप्—संग्राम, युद्ध, लड़ाई
- समरम्—नपुं॰—-—सम् + ऋ + अप्—संग्राम, युद्ध, लड़ाई
- समरोद्देशः—पुं॰—समर-उद्देशः—-—रणक्षेत्र
- समरभूमिः—पुं॰—समर-भूमिः—-—रणक्षेत्र
- समरमूर्धन्—पुं॰—समर-मूर्धन्—-—युद्ध का अग्रभाग
- समरशिरस्—नपुं॰—समर-शिरस्—-—युद्ध का अग्रभाग
- समर्चनम्—नपुं॰—-—सम् + अर्च् + ल्युट्—पूजा, अर्चना, आराधना
- समर्ण—वि॰—-—सम् + अर्द् + क्त—कष्टग्रस्त, पीड़ित, घायल
- समर्ण—वि॰—-—सम् + अर्द् + क्त—पृष्ट, निवेदित
- समर्थ—वि॰—-—सम् + अर्थ् + अच्—मजबूत, शक्तिशाली
- समर्थ—वि॰—-—सम् + अर्थ् + अच्—सक्षम, अभ्यनुज्ञात, पात्र, योग्यताप्राप्त
- समर्थ—वि॰—-—सम् + अर्थ् + अच्—योग्य, उपयुक्त, उचित
- समर्थ—वि॰—-—सम् + अर्थ् + अच्—योग्य या समुचित बनाया हुआ, तैयार किया हुआ
- समर्थ—वि॰—-—सम् + अर्थ् + अच्—समानार्थी
- समर्थ—वि॰—-—सम् + अर्थ् + अच्—सार्थक
- समर्थ—वि॰—-—सम् + अर्थ् + अच्—समुचित उद्देश्य या बल रखने वाला, अतिबलशाली
- समर्थ—वि॰—-—सम् + अर्थ् + अच्—पास-पास विद्यमान
- समर्थ—वि॰—-—सम् + अर्थ् + अच्—अर्थतः संबद्ध
- समर्थः—पुं॰—-—-—सार्थक शब्द
- समर्थः—पुं॰—-—-—सार्थक वाक्य में मिलाकर रक्ख हुए शब्दों की संसक्ति
- समर्थकम्—नपुं॰—-—सम् + अर्थ् + ण्वुल्—अगर की लकड़ी
- समर्थनम्—नपुं॰—-—सम् + अर्थ् + ल्युट्—संस्थापन, पुष्टि करना, ताईद करना
- समर्थनम्—नपुं॰—-—सम् + अर्थ् + ल्युट्—रक्षा करना, सहारा देना, न्यायसंगत सिद्ध करना
- समर्थनम्—नपुं॰—-—सम् + अर्थ् + ल्युट्—वकालत करना, हिमायत करना, चिन्तन करना
- समर्थनम्—नपुं॰—-—सम् + अर्थ् + ल्युट्—विचारविमर्श, निर्धारण, किसी वस्तु के औचित्यनौचित्य का निर्णय करना
- समर्थनम्—नपुं॰—-—सम् + अर्थ् + ल्युट्—पर्याप्तता, अचूकता, बल, धारिता
- समर्थनम्—नपुं॰—-—सम् + अर्थ् + ल्युट्—ऊर्जा, धैर्य
- समर्थनम्—नपुं॰—-—सम् + अर्थ् + ल्युट्—भेदभाव दूर कर फिर समझौता करना, कलह दूर करना
- समर्थनम्—नपुं॰—-—सम् + अर्थ् + ल्युट्—आक्षेप
- समर्धक—वि॰—-—सम् + ऋध् + ण्वुल्—वरदाता
- समर्धक—वि॰—-—सम् + ऋध् + ण्वुल्—समृद्ध करने वाला
- समर्पणम्—नपुं॰—-—सम् + अर्प् + ल्युट्—देना, हस्तांतरण करना, सौंपना, हवाले करना
- समर्याद—वि॰—-—सह सर्यादया - ब॰ स॰—सीमित, बंधा हुआ
- समर्याद—वि॰—-—सह सर्यादया - ब॰ स॰—निकटवर्ती, समीपवर्ती
- समर्याद—वि॰—-—सह सर्यादया - ब॰ स॰—शुद्धाचारी, औचित्य की सीमा के अन्दर रहने वाला
- समर्याद—वि॰—-—सह सर्यादया - ब॰ स॰—सम्मानपूर्ण, शिष्ट
- समल—वि॰—-—मलेन सह - ब॰ स॰—मैला, गन्दा, मलिन, अपवित्र
- समल—वि॰—-—मलेन सह - ब॰ स॰—पापपूर्ण
- समलम्—नपुं॰—-—-—पुरीष, मल, विष्ठा
- समवकारः—पुं॰—-—सम् + अव् + कृ + घञ्—नाटक का एक भेद
- समवतारः—पुं॰—-—सम् + अव् + तृ + घञ्—उतार
- समवतारः—पुं॰—-—सम् + अव् + तृ + घञ्—घाट जहाँ से किसी नदी या पुण्यस्नानतीर्थ में उतरा जाय
- समवस्था—स्त्री॰—-—समा तुल्या अवस्था वा सम् + अव + स्था + अङ् + टाप्—निश्चित अवस्था
- समवस्था—स्त्री॰—-—समा तुल्या अवस्था वा सम् + अव + स्था + अङ् + टाप्—समान दशा या स्थिति
- समवस्था—स्त्री॰—-—समा तुल्या अवस्था वा सम् + अव + स्था + अङ् + टाप्—अवस्था या दशा
- समवस्थित—भू॰ क॰ कृ॰—-—सम् + वा + स्था + क्त—स्थिर रहता हुआ
- समवस्थित—भू॰ क॰ कृ॰—-—सम् + वा + स्था + क्त—स्थिर
- समवाप्तिः—स्त्री॰—-—सम् + अव + आप् + क्तिन्—प्राप्ति, अभिग्रहण
- समवायः—पुं॰—-—सम् + अव + इ + अच्—सम्मिश्रण, मिलाप, संयोग, समष्टि, संग्रह
- समवायः—पुं॰—-—सम् + अव + इ + अच्—संख्या, समुच्च्य, राशि
- समवायः—पुं॰—-—सम् + अव + इ + अच्—घनिष्ठ संबंध, संसक्ति
- समवायः—पुं॰—-—सम् + अव + इ + अच्—प्रगाढ़ मिलाप, अविच्छिन्न तथा अविच्छेद्य संयोग, अभेद्य संलग्नता या एक वस्तु का दूसरी में अस्तित्व वैशेषिकों के सात पदार्थों में से एक
- समवायिन्—वि॰—-—समवाय + इनि—घनिष्ठ रुप से संबंध
- समवायिन्—वि॰—-—समवाय + इनि—समुच्चयवाचक, बहुसंख्यक
- समवायिकारणम्—नपुं॰—समवायिन्-कारणम्—-—अभेद्य कारण, उपादान कारण
- समवेत—भू॰ क॰ कृ॰—-—सम् + अव + इ + क्त—एकत्र आये हुए, मिले हुए, जुड़े हुए, सम्मिलित
- समवेत—भू॰ क॰ कृ॰—-—सम् + अव + इ + क्त—घनिष्ठता के साथ संबंध, अन्तर्भूत, अभेद्य रुप से संयुक्त
- समवेत—भू॰ क॰ कृ॰—-—सम् + अव + इ + क्त—बड़ी संख्या में समाविष्ट या सम्मिलित
- समष्टिः—स्त्री॰—-—सम् + अश् + क्तिन्—समुच्च्यात्मक व्याप्ति, एक जैसे अंगों का समूह, अवयवी जो समतत्त्वता से युक्त अवयवों का पुंज है
- समसनम्—नपुं॰—-—सम् + अस् + ल्युट्—एक साथ मिलाना, सम्मिश्रण
- समसनम्—नपुं॰—-—सम् + अस् + ल्युट्—संयुक्त करना, समस्त शब्दों का निर्माण
- समसनम्—नपुं॰—-—सम् + अस् + ल्युट्—संकुचित करना
- समस्त—भू॰ क॰ कृ॰—-—सम् + अस् + क्त—एक जगह डाला हुआ, सम्मिश्रित
- समस्त—भू॰ क॰ कृ॰—-—सम् + अस् + क्त—संयुक्त
- समस्त—भू॰ क॰ कृ॰—-—सम् + अस् + क्त—किसी पदार्थ में पूर्णतः व्याप्त
- समस्त—भू॰ क॰ कृ॰—-—सम् + अस् + क्त—संक्षिप्त, संकुचित, संक्षेपित
- समस्त—भू॰ क॰ कृ॰—-—सम् + अस् + क्त—सारा, पूर्ण, पूरा
- समस्या—स्त्री॰—-—सम् + अस् + क्यप् + टाप्—पूर्ण करने के लिए दिया जाने वाला छंद का चरण, कविता का वह भाग जो पूर्ति के लिए प्रस्तुत किया जाय
- समस्या—स्त्री॰—-—सम् + अस् + क्यप् + टाप्—(अतः) अधूरे को पूरा करना
- समा—स्त्री॰—-—सम् + अच् + टाप्—वर्ष
- समा—अव्य॰—-—-—से, साथ मिला कर
- समांसमीना—स्त्री॰—-—समां समां विजायते प्रसूते - ख प्रत्ययेन नि॰—वह गाय जो प्रतिवर्ष व्याती है और बछड़ा देती हैं
- समाकर्षिन्—वि॰—-—सम् + आ + कृष् + णिनि—आकर्षक
- समाकर्षिन्—वि॰—-—सम् + आ + कृष् + णिनि—दूर तक गंध फैलाने वाला, या प्रसार करने वाला
- समाकर्षिन्—पुं॰—-—सम् + आ + कृष् + णिनि—प्रसृत गंध, दूर तक फैली गंध
- समाकुल—वि॰—-—सम्यक् आकुलः - प्रा॰ स॰—भरा हुआ, आकीर्ण, भीड़-भाड़ से युक्त
- समाकुल—वि॰—-—सम्यक् आकुलः - प्रा॰ स॰—संक्षुब्ध, घबराया हुआ, उद्विग्न, हड़बड़ाया हुआ
- समाख्या—स्त्री॰—-—सम् + आ + ख्या + अङ् + टाप्—यश, कीर्ति, ख्याति
- समाख्या—स्त्री॰—-—सम् + आ + ख्या + अङ् + टाप्—नाम, अभिधान
- समाख्यात—भू॰ क॰ कृ॰—-—सम् + आ + ख्या + क्त—हिसाब लगाया हुआ, गिना हुआ, जोड़ा हुआ
- समाख्यात—भू॰ क॰ कृ॰—-—सम् + आ + ख्या + क्त—पूर्णतः वर्णित, उद्धोषित, प्रकथित
- समाख्यात—भू॰ क॰ कृ॰—-—सम् + आ + ख्या + क्त—विख्यात, प्रसिद्ध
- समागत—भू॰ क॰ कृ॰—-—सम् + आ + गम् + क्त—साथ साथ आया हुआ, मिला हुआ, सम्मिलित, संयुक्त
- समागत—भू॰ क॰ कृ॰—-—सम् + आ + गम् + क्त—पहुँचा हुआ
- समागत—भू॰ क॰ कृ॰—-—सम् + आ + गम् + क्त—जो संयुक्त अवस्था में हो
- समागतिः—स्त्री॰—-—सम् + आ + गम् + क्तिन्—साथ साथ आना, मेल मिलाप
- समागतिः—स्त्री॰—-—सम् + आ + गम् + क्तिन्—पहुँचना, उपगमन
- समागतिः—स्त्री॰—-—सम् + आ + गम् + क्तिन्—समान दशा या प्रगति
- समागमः—पुं॰—-—सम् + आ + गम् + घञ्—मेल, मिलन, मुठभेड़, सम्मिश्रण
- समागमः—पुं॰—-—सम् + आ + गम् + घञ्—सहवास, साहचर्य, संगति
- समागमः—पुं॰—-—सम् + आ + गम् + घञ्—उपगमन, पहुँच
- समागमः—पुं॰—-—सम् + आ + गम् + घञ्—संयोग
- समाघातः—पुं॰—-—सम् + आ + हन् + घञ्—वध, हत्या
- समाघातः—पुं॰—-—सम् + आ + हन् + घञ्—संग्राम, युद्ध
- समाचयनम्—नपुं॰—-—सम् + आ + चि + ल्युट्—सञ्चयन, बीनना
- समाचरणम्—नपुं॰—-—सम् + आ + चर् + ल्युट्—अभ्यास करना, पालन करना, व्यवहार करना
- समाचार—वि॰—-—सम् + आ + चर् + घञ्—प्रगमन, गति
- समाचार—वि॰—-—सम् + आ + चर् + घञ्—अभ्यास, आचरण, व्यवहार
- समाचार—वि॰—-—सम् + आ + चर् + घञ्—सदाचार या अच्छा चालचलन
- समाचार—वि॰—-—सम् + आ + चर् + घञ्—खबर, सूचना, विवरण, वार्ता
- समाजः—पुं॰—-—सम् + अज् + घञ्—सभा, मिलन, मजलिस
- समाजः—पुं॰—-—सम् + अज् + घञ्—मण्डल, गोष्ठी, समिति या परिषद्
- समाजः—पुं॰—-—सम् + अज् + घञ्—संख्या, समुच्च्य, संग्रह
- समाजः—पुं॰—-—सम् + अज् + घञ्—दल, आमोद-प्रमोद,, विषयक मिलन
- समाजः—पुं॰—-—सम् + अज् + घञ्—हाथी
- समाजिकः—पुं॰—-—समाज + ठक्—सभासद्
- समाज्ञा—स्त्री॰—-—सम् + आ + ज्ञा + अङ् + टाप्—यश, कीर्ति
- समादानम्—नपुं॰—-—सम् + आ + दा + ल्युट्—पूर्णतः लेना
- समादानम्—नपुं॰—-—सम् + आ + दा + ल्युट्—उपयुक्त उपहार लेना
- समादानम्—नपुं॰—-—सम् + आ + दा + ल्युट्—जैन सम्प्रदाय का नित्य-कृत्यश्
- समादेशः—पुं॰—-—सम् + आ + दिश् + घञ्—आज्ञा, हुक्म, निदेश, निर्देश
- समाधा—स्त्री॰—-—सम् + आ + धा + अङ् + टाप्—साथ साथ रहना, मिलाना
- समाधा—स्त्री॰—-—सम् + आ + धा + अङ् + टाप्—ब्रह्म के गुणों का मन से चिन्तन करना
- समाधा—स्त्री॰—-—सम् + आ + धा + अङ् + टाप्—भावचिन्तन, गहन मनन
- समाधा—स्त्री॰—-—सम् + आ + धा + अङ् + टाप्—एकनिष्ठता
- समाधा—स्त्री॰—-—सम् + आ + धा + अङ् + टाप्—स्थैर्य, स्वस्थता (मन की) शान्ति, सन्तोष
- समाधा—स्त्री॰—-—सम् + आ + धा + अङ् + टाप्—संदेहृनिवारण करना, पूर्वपक्ष का उत्तर देना, आक्षेप का उत्तर देना
- समाधा—स्त्री॰—-—सम् + आ + धा + अङ् + टाप्—सहमत होना, प्रतिज्ञा करना
- समाधा—स्त्री॰—-—सम् + आ + धा + अङ् + टाप्—मुख्य घटना जिस पर नाटक की पूर्ण वस्तुकथा अवलंबित है
- समाधानम्—नपुं॰—-—सम् + आ + धा + ल्युट्—साथ साथ रहना, मिलाना
- समाधानम्—नपुं॰—-—सम् + आ + धा + ल्युट्—ब्रह्म के गुणों का मन से चिन्तन करना
- समाधानम्—नपुं॰—-—सम् + आ + धा + ल्युट्—भावचिन्तन, गहन मनन
- समाधानम्—नपुं॰—-—सम् + आ + धा + ल्युट्—एकनिष्ठता
- समाधानम्—नपुं॰—-—सम् + आ + धा + ल्युट्—स्थैर्य, स्वस्थता (मन की) शान्ति, सन्तोष
- समाधानम्—नपुं॰—-—सम् + आ + धा + ल्युट्—संदेहृनिवारण करना, पूर्वपक्ष का उत्तर देना, आक्षेप का उत्तर देना
- समाधानम्—नपुं॰—-—सम् + आ + धा + ल्युट्—सहमत होना, प्रतिज्ञा करना
- समाधानम्—नपुं॰—-—सम् + आ + धा + ल्युट्—मुख्य घटना जिस पर नाटक की पूर्ण वस्तुकथा अवलंबित है
- समाधिः—पुं॰—-—सम् + आ + धा + कि—संग्रह करना, स्वस्थ करना, एकाग्र करना
- समाधिः—पुं॰—-—सम् + आ + धा + कि—भावचिन्तन, किसी एक विषय पर मन को केन्द्रित करना, ब्रह्मचिन्तन में पूर्णलीनता अर्थात् योग की आठवीं और अन्तिम अवस्था
- समाधिः—पुं॰—-—सम् + आ + धा + कि—एक निष्ठता, संकेन्द्रण, मनोयोग
- समाधिः—पुं॰—-—सम् + आ + धा + कि—तपस्या, घर्मकृत्य, साधना
- समाधिः—पुं॰—-—सम् + आ + धा + कि—साथ मिलाना, संकेन्द्रण, सम्मिश्रण, संग्रह
- समाधिः—पुं॰—-—सम् + आ + धा + कि—पुनर्मिलन, मतभेद दूर करना
- समाधिः—पुं॰—-—सम् + आ + धा + कि—निस्तब्धता
- समाधिः—पुं॰—-—सम् + आ + धा + कि—अंगीकार, स्वीकृति, प्रतिज्ञा
- समाधिः—पुं॰—-—सम् + आ + धा + कि—प्रतिदान
- समाधिः—पुं॰—-—सम् + आ + धा + कि—पूर्ति, सम्पन्नता
- समाधिः—पुं॰—-—सम् + आ + धा + कि—अत्यन्त कठिनाईयों में धैर्य धारण करना
- समाधिः—पुं॰—-—सम् + आ + धा + कि—असम्भव बात के लिए प्रयत्न करना
- समाधिः—पुं॰—-—सम् + आ + धा + कि—अनाज बचा कर रखना, अन्न संचय करना
- समाधिः—पुं॰—-—सम् + आ + धा + कि—मकबरा, शव प्रकोष्ठ
- समाधिः—पुं॰—-—सम् + आ + धा + कि—गरदन का जोड़, गरदन की विशेष अवस्था
- समाधिः—पुं॰—-—सम् + आ + धा + कि—(अलं से) एक अलंकार जिसकी मम्मट ने निम्नाङ्कित परिभाषा की है
- समाधिः—पुं॰—-—सम् + आ + धा + कि—शैली के दस गुणों में से एक
- समाध्मात—भू॰ क॰ कृ॰—-—सम् + आ + ध्मा + क्त—फूंक मारा हुआ
- समाध्मात—भू॰ क॰ कृ॰—-—सम् + आ + ध्मा + क्त—फुलाया हुआ, प्रफुल्लित, स्फीत, हवा भरा हुआ
- समान—वि॰—-—सम् + अन् + अण्—वही, तुल्य, सदृश, एक जैसा
- समान—वि॰—-—सम् + अन् + अण्—एक, एकरुप
- समान—वि॰—-—सम् + अन् + अण्—भला, सद्गुण संपन्न, न्याय्य
- समान—वि॰—-—सम् + अन् + अण्—सामान्य, साधारण
- समान—वि॰—-—सम् + अन् + अण्—सम्मानित
- समानः—पुं॰—-—-—मित्र, तुल्य
- समानः—पुं॰—-—-—पाँच प्राणों में से एक
- समानम्—अव्य॰—-—-—समान रुप से, सदृश
- समानाधिकरण—वि॰—समान-अधिकरण—-—समान आधार वाला
- समानाधिकरण—वि॰—समान-अधिकरण—-—उसी वर्ग या पदार्थ में विद्यमान
- समानाधिकरण—वि॰—समान-अधिकरण—-—एक ही कारक की विभक्ति से युक्त होना
- समानाधिकरणम्—नपुं॰—समान-अधिकरणम्—-—वही स्थान या परिस्थिति
- समानाधिकरणम्—नपुं॰—समान-अधिकरणम्—-—कारक में समान होना, कारक सम्बन्ध
- समानाधिकरणम्—नपुं॰—समान-अधिकरणम्—-—वर्ग, प्रजातीय गुण
- समानार्थः—पुं॰—समान-अर्थः—-—उसी अर्थ वाला, पर्यायवाची
- समानोदकः—पुं॰—समान-उदकः—-—ऐसा सम्बन्धी जो समान पितरों को जल तर्पण के कारण संबद्ध है
- समानोदर्यः—पुं॰—समान-उदर्यः—-—एक पेट से उत्पन्न, सहोदर भाई
- समानोपमा—स्त्री॰—समान-उपमा—-—एक प्रकार की उपमा
- समानकाल—वि॰—समान-काल—-—एक कालिक, समकालीन
- समानकालीन—वि॰—समान-कालीन—-—एक कालिक, समकालीन
- समानगोत्रः—पुं॰—समान-गोत्रः—-—सगोत्र, एक ही गोत्र का
- समानदुःख—वि॰—समान-दुःख—-—सहानुभूति रखने वाला
- समानधर्मन्—वि॰—समान-धर्मन्—-—एक ही प्रकार के गुणों से युक्त, सहानुभूतिदर्शक, गुणों को सराहने वाला
- समानयमः—पुं॰—समान-यमः—-—स्वर का वही उच्चग्राम
- समानरुचि—वि॰—समान-रुचि—-—एक सी रुचि वाला
- समानयनम्—नपुं॰—-—सम् + आ + नी + ल्युट्—साथ लाना, संग्रह करना, संचालन
- समापः—पुं॰—-—समा आपो यस्मिन् ब॰ स॰—देवताओं के प्रति यज्ञ करना या आहुति देना
- समापत्तिः—स्त्री॰—-—सम् + आ + पद् + क्तिन्—मिलना, मुठभेड़
- समापत्तिः—स्त्री॰—-—सम् + आ + पद् + क्तिन्—दुर्घटना, आकस्मिक घटना, अकस्मात् मुठभेड़
- समापक—वि॰—-—सम् + आप् + ण्वुल्—समाप्त करने वाला, सम्पन्न करने वाला, पूरा करने वाला
- समापनम्—नपुं॰—-—सम् + आप् + ल्युट्—पूर्ति, उपसंहार, समाप्ति करना
- समापनम्—नपुं॰—-—सम् + आप् + ल्युट्—अभिग्रहण
- समापनम्—नपुं॰—-—सम् + आप् + ल्युट्—मार डलना, नष्ट करना
- समापनम्—नपुं॰—-—सम् + आप् + ल्युट्—अनुभाग, अध्याय
- समापनम्—नपुं॰—-—सम् + आप् + ल्युट्—गहन मनन
- समापन्न—भू॰ क॰ कृ॰—-—सम् + आ + पद् + क्त—प्राप्त, अवाप्त
- समापन्न—भू॰ क॰ कृ॰—-—सम् + आ + पद् + क्त—घटित हुआ
- समापन्न—भू॰ क॰ कृ॰—-—सम् + आ + पद् + क्त—आगत, पहुँचा हुआ
- समापन्न—भू॰ क॰ कृ॰—-—सम् + आ + पद् + क्त—समाप्त, पूर्ण, सम्पन्न
- समापन्न—भू॰ क॰ कृ॰—-—सम् + आ + पद् + क्त—प्रवीण
- समापन्न—भू॰ क॰ कृ॰—-—सम् + आ + पद् + क्त—सम्पन्न
- समापन्न—भू॰ क॰ कृ॰—-—सम् + आ + पद् + क्त—दुःखी, कष्टग्रस्त
- समापन्न—भू॰ क॰ कृ॰—-—सम् + आ + पद् + क्त—वध किया हुआ
- समापादनम्—नपुं॰—-—सम् + आ + पद् + णिच् + ल्युट्—सम्पन्न करना, मूल रुप देना
- समाप्त—भू॰ क॰ कृ॰—-—सम् + आप् + क्त—पूर्ण किया हुआ, उपसंहृत, पूरा किया हुआ
- समाप्त—भू॰ क॰ कृ॰—-—सम् + आप् + क्त—चतुर
- समाप्तालः—पुं॰—-—समाप्ताय अलति पर्याप्नोति - समाप्त + अल् + अच्—प्रभु, पति
- समाप्तिः—स्त्री॰—-—सम् + आप् + क्तिन्—अन्त, उपसंहार, पूर्ति, समाप्त करना
- समाप्तिः—स्त्री॰—-—सम् + आप् + क्तिन्—निप्पन्नता, पूरा करना, पूर्णता
- समाप्तिः—स्त्री॰—-—सम् + आप् + क्तिन्—पुनर्मिलन, मतभेद दूर करना, विवाद को समाप्त करना
- समाप्तिक—वि॰—-—समाप्ति + ठन्—अन्तिम, समापक
- समाप्तिक—वि॰—-—समाप्ति + ठन्—समापिका
- समाप्तिक—वि॰—-—समाप्ति + ठन्—जिसने कोई काम पूरा किया हैं
- समाप्तिकः—पुं॰—-—-—समापक
- समाप्तिकः—पुं॰—-—-—जिसने वेदाध्ययन का पूर्ण पाठ्यक्रम समाप्त कर लिया है
- समाप्लुत—भू॰ क॰ कृ॰—-—सम् + आ + प्लु + क्त—बाढ़ग्रस्त, बाढ़ में डूबा हुआ
- समाप्लुत—भू॰ क॰ कृ॰—-—सम् + आ + प्लु + क्त—भरा हुआ
- समाभाषणम्—नपुं॰—-—सम् + आ + भाष् + ल्युट्—समालाप, वार्तालाप
- समाम्नानम्—नपुं॰—-—सम् + आ + म्ना + ल्युट्—आवृत्ति, उल्लेख
- समाम्नानम्—नपुं॰—-—सम् + आ + म्ना + ल्युट्—गणना
- समाम्नानम्—नपुं॰—-—सम् + आ + म्ना + ल्युट्—परम्परा प्राप्त पाठ
- समाम्नायः—पुं॰—-—सम् + आ + म्ना + य—परम्परागत पाठ, अनुश्रुति
- समाम्नायः—पुं॰—-—सम् + आ + म्ना + य—परम्परागत (शब्द) संग्रह
- समाम्नायः—पुं॰—-—सम् + आ + म्ना + य—साहित्य परम्परा अनुश्रुति
- समाम्नायः—पुं॰—-—सम् + आ + म्ना + य—पाठ, सस्वर पाठ, निर्देशन, जोड़, समष्टि, संग्रह
- समायः—पुं॰—-—सम् + आ + इ + अच्—पहुँचना, आना
- समायः—पुं॰—-—सम् + आ + इ + अच्—दर्शन करना
- समायत—भू॰ क॰ कृ॰—-—सम् + आ + यम् + क्त—खींचा हुआ, बढ़ाया हुआ, लंबा किया हुआ
- समायुक्त—भू॰ क॰ कृ॰—-—सम् + आ + युज् + क्त—साथ जोड़ा हुआ, संबंध, संयुक्त
- समायुक्त—भू॰ क॰ कृ॰—-—सम् + आ + युज् + क्त—कृतसंकल्प, संलग्न
- समायुक्त—भू॰ क॰ कृ॰—-—सम् + आ + युज् + क्त—तैयार किया गया, उद्यत
- समायुक्त—भू॰ क॰ कृ॰—-—सम् + आ + युज् + क्त—युक्त, सज्जित, भरा हुआ, सहित, अन्वित
- समायुक्त—भू॰ क॰ कृ॰—-—सम् + आ + युज् + क्त—जिसको कोई कार्य भार सौंप दिया गया है, नियुक्त किया हुआ
- समायुत—भू॰ क॰ कृ॰—-—सम् + आ + यु + क्त—संयुक्त, सम्बद्ध, साथ मिलाया हुआ
- समायुत—भू॰ क॰ कृ॰—-—सम् + आ + यु + क्त—संगृहीत, एकत्र किया हुआ
- समायुत—भू॰ क॰ कृ॰—-—सम् + आ + यु + क्त—सहित, युक्त, सज्जित, अन्वित
- समायोगः—पुं॰—-—सम् + आ + युज् + घञ्—मेल, सम्बन्ध, संयोग
- समायोगः—पुं॰—-—सम् + आ + युज् + घञ्—तैयारी
- समायोगः—पुं॰—-—सम् + आ + युज् + घञ्—धनुष पर (बाण) साधना
- समायोगः—पुं॰—-—सम् + आ + युज् + घञ्—संग्रह, ढेर, समुच्चय
- समायोगः—पुं॰—-—सम् + आ + युज् + घञ्—कारण, प्रयोजन, उद्देश्य
- समारम्भः—पुं॰—-—सम् + आ + रभ् + घञ्, मुम्—आरम्भ, शुरु
- समारम्भः—पुं॰—-—सम् + आ + रभ् + घञ्, मुम्—साहसिक कार्य, उत्तरदायित्वपूर्ण कार्य, काम, कर्म
- समारम्भः—पुं॰—-—सम् + आ + रभ् + घञ्, मुम्—अंगराग
- समाराधनम्—नपुं॰—-—सम् + आ + राध् + ल्युट्—सन्तुष्ट करने का साधन, प्रसन्न करना, खुशी
- समाराधनम्—नपुं॰—-—सम् + आ + राध् + ल्युट्—सेवा, टहल
- समारोपणम्—नपुं॰—-—सम् + आ + रुह् + णिच् + ल्युट्, पुक्—अवस्थित करना, रखना
- समारोपणम्—नपुं॰—-—सम् + आ + रुह् + णिच् + ल्युट्, पुक्—सौंप देना, हवाले करना
- समारोपित—भू॰ क॰ कृ॰—-—सम् + आ + रुह् + णिच् + क्त, पुक्—चढ़ाया हुआ, सवार किया हुआ
- समारोपित—भू॰ क॰ कृ॰—-—सम् + आ + रुह् + णिच् + क्त, पुक्—ताना हुआ
- समारोपित—भू॰ क॰ कृ॰—-—सम् + आ + रुह् + णिच् + क्त, पुक्—रक्खा गया, पौध लगाई गई, ठहराया गया
- समारोपित—भू॰ क॰ कृ॰—-—सम् + आ + रुह् + णिच् + क्त, पुक्—सौंपा गया, हवाले किया गया
- समारोहः—पुं॰—-—सम् + आ + रुह् + घञ्—चढ़ना, ऊपर जाना
- समारोहः—पुं॰—-—सम् + आ + रुह् + घञ्—सवारी करना
- समारोहः—पुं॰—-—सम् + आ + रुह् + घञ्—सहमत होना
- समालम्बनम्—नपुं॰—-—सम् + आ + लम्ब् + ल्युट्—टेक लगाना, सहारा लेना, चिपटे रहना
- समालम्बिन्—अव्य॰—-—सम् + आ + लम्ब् + णिनि—लटकने वाला, सहारा लेने वाला
- समालम्बिनी—स्त्री॰—-—-—एक प्रकार का घास
- समालम्भः—पुं॰—-—सम् + आ + लभ् + घञ्, मुम्—पकड़ना, छीनना
- समालम्भः—पुं॰—-—सम् + आ + लभ् + घञ्, मुम्—यज्ञ में बलि-पशु का अपहरण करना
- समालम्भः—पुं॰—-—सम् + आ + लभ् + घञ्, मुम्—शरीर पर अंगराग व उबटन आदि का लेप करना
- समालम्भनम्—नपुं॰—-—सम् + आ + लभ् +ल्युट् , मुम्—पकड़ना, छीनना
- समालम्भनम्—नपुं॰—-—सम् + आ + लभ् +ल्युट् , मुम्—यज्ञ में बलि-पशु का अपहरण करना
- समालम्भनम्—नपुं॰—-—सम् + आ + लभ् +ल्युट् , मुम्—शरीर पर अंगराग व उबटन आदि का लेप करना
- समावर्तनम्—नपुं॰—-—सम् + आ + वृत् + ल्युट्—वापसी
- समावर्तनम्—नपुं॰—-—सम् + आ + वृत् + ल्युट्—विशेष कर वेदाध्ययन समाप्त करके ब्रह्मचारी का घर वापिस आना
- समावायः—पुं॰—-—सम् + आ + अव + इ + अच्—साहचर्य, संबंध
- समावायः—पुं॰—-—सम् + आ + अव + इ + अच्—अविच्छेद्य संबंध
- समावायः—पुं॰—-—सम् + आ + अव + इ + अच्—समष्टि
- समावायः—पुं॰—-—सम् + आ + अव + इ + अच्—समुच्चय, संख्या, ढेर
- समावासः—पुं॰—-—सम् + आ + वस् + घञ्—निवास स्थान, घर रहने का स्थान
- समाविष्ट—भू॰ क॰ कृ॰—-—सम् + आ + विश् + क्त—पूर्णतः प्रविष्ट, पूर्णतः अधिकृत, व्याप्त
- समाविष्ट—भू॰ क॰ कृ॰—-—सम् + आ + विश् + क्त—छीना हुआ, पराभूत, एकाधिकृत
- समाविष्ट—भू॰ क॰ कृ॰—-—सम् + आ + विश् + क्त—प्रेताविष्ट
- समाविष्ट—भू॰ क॰ कृ॰—-—सम् + आ + विश् + क्त—सहित
- समाविष्ट—भू॰ क॰ कृ॰—-—सम् + आ + विश् + क्त—निश्चित, स्थिर किया हुआ, बिठाया हुआ
- समाविष्ट—भू॰ क॰ कृ॰—-—सम् + आ + विश् + क्त—सुनिर्दिष्ट
- समावृत—भू॰ क॰ कृ॰—-—सम् + आ + वृ + क्त—परिबलयित, घेरा डाला हुआ, घिरा हुआ, लपेटा हुआ
- समावृत—भू॰ क॰ कृ॰—-—सम् + आ + वृ + क्त—पर्दा पड़ा हुआ, घूंघट से आच्छादित
- समावृत—भू॰ क॰ कृ॰—-—सम् + आ + वृ + क्त—गुप्त, छिपाया हुआ
- समावृत—भू॰ क॰ कृ॰—-—सम् + आ + वृ + क्त—प्ररक्षित
- समावृत—भू॰ क॰ कृ॰—-—सम् + आ + वृ + क्त—बंद किया हुआ
- समावृत—भू॰ क॰ कृ॰—-—सम् + आ + वृ + क्त—रोका हुआ
- समावृत्तः—पुं॰—-—सम् + आ + वृत + क्त—वह ब्रह्मचारी जो अपना वेदाध्ययन समाप्त करके घर लौट आया है
- समावृत्तकः—पुं॰—-—सम् + आ + वृत + क्त, कन् च—वह ब्रह्मचारी जो अपना वेदाध्ययन समाप्त करके घर लौट आया है
- समावेशः—पुं॰—-—सम् + आ + विश् + घञ्—प्रविष्ट होना, साथ रहना
- समावेशः—पुं॰—-—सम् + आ + विश् + घञ्—मिलना, साहचर्य
- समावेशः—पुं॰—-—सम् + आ + विश् + घञ्—सम्मिलित करना, समझ
- समावेशः—पुं॰—-—सम् + आ + विश् + घञ्—घुसना
- समावेशः—पुं॰—-—सम् + आ + विश् + घञ्—प्रेतोवेश
- समावेशः—पुं॰—-—सम् + आ + विश् + घञ्—प्रणयोन्माद, भावोद्रेक
- समाश्रयः—पुं॰—-—सम् + आ = श्रि + अच्—प्ररक्षण या पनाह ढूंढना
- समाश्रयः—पुं॰—-—सम् + आ = श्रि + अच्—शरण, पनाह, प्ररक्षण
- समाश्रयः—पुं॰—-—सम् + आ = श्रि + अच्—शरणगृह, आश्रयस्थान, घर
- समाश्रयः—पुं॰—-—सम् + आ = श्रि + अच्—आवासस्थान, निवास
- समाश्लेषः—पुं॰—-—सम् + आ + श्लिष् + घञ्—प्रगाढ़ आलिंगन
- समाश्वासः—पुं॰—-—सम् + आ + श्वस् + घञ्—जी में जी आना, आराम की सांस लेना
- समाश्वासः—पुं॰—-—सम् + आ + श्वस् + घञ्—राहत, प्रोत्साहन, तसल्ली
- समाश्वासः—पुं॰—-—सम् + आ + श्वस् + घञ्—आस्था, विश्वास, भरोसा
- समाश्वासनम्—नपुं॰—-—सम् + आ + श्वस् + णिच् + ल्युट्—पुनर्जीवित करना, प्रोत्साहन, आराम देना
- समाश्वासनम्—नपुं॰—-—सम् + आ + श्वस् + णिच् + ल्युट्—ढाढस बंधाना
- समासः—पुं॰—-—सम् + अस् + घञ्—समष्टि, मिलाप, सम्मिश्रण
- समासः—पुं॰—-—सम् + अस् + घञ्—शब्दरचना, समाहार, मिलाना
- समासः—पुं॰—-—सम् + अस् + घञ्—पुनर्मिलन, मतभेद दूर करना
- समासः—पुं॰—-—सम् + अस् + घञ्—संग्रह, संघात
- समासः—पुं॰—-—सम् + अस् + घञ्—पूर्णता, समष्टि
- समासः—पुं॰—-—सम् + अस् + घञ्—सिकुड़न, संहृति, संक्षिप्तता
- समासोक्तिः—स्त्री॰—समास-उक्तिः—-—एक अलंकार जिसकी परिभाषा मम्मट ने निम्नांकित दी है
- समासक्तिः—स्त्री॰—-—सम् + आ + सञ्ज् + क्तिन्, घञ् वा—मिलाप, साथ साथ रहना, अनुरक्ति, आसक्ति
- समासञ्जनम्—नपुं॰—-—सम् + आ + सञ्ज् + ल्युट्—मिलाना, संयुक्त करना
- समासञ्जनम्—नपुं॰—-—सम् + आ + सञ्ज् + ल्युट्—जमाना, रखना
- समासञ्जनम्—नपुं॰—-—सम् + आ + सञ्ज् + ल्युट्—संपर्क, सम्मिश्रण, संबंध
- समासर्जनम्—नपुं॰—-—सम् + आ + सृज् + ल्युट्—पूर्णता त्याग देना
- समासर्जनम्—नपुं॰—-—सम् + आ + सृज् + ल्युट्—सुपुर्द करना
- समासादनम्—नपुं॰—-—सम् + आ + सद् + णिच् + ल्युट्—पहुँचना
- समासादनम्—नपुं॰—-—सम् + आ + सद् + णिच् + ल्युट्—प्राप्त करना, मिलना, अवाप्त करना
- समासादनम्—नपुं॰—-—सम् + आ + सद् + णिच् + ल्युट्—निष्पन्न करना, कार्यान्वित करना
- समाहरणम्—नपुं॰—-—सम् + आ + हृ + ल्युट्—संयुक्त करना, संग्रह करना, सम्मिश्रण, संचय करना
- समाहर्तृ—पुं॰—-—सम् + आ + हृ + तृच्—जो संग्रह करने में अभ्यस्त हो
- समाहर्तृ—पुं॰—-—सम् + आ + हृ + तृच्—संग्राहक, जमा करने वाला
- समाहारः—पुं॰—-—सम् + आ + हृ + घञ्—संग्रह, समष्टि, संघात
- समाहारः—पुं॰—-—सम् + आ + हृ + घञ्—शब्दरचना
- समाहारः—पुं॰—-—सम् + आ + हृ + घञ्—शब्दों या वाक्यों का संयोजन
- समाहारः—पुं॰—-—सम् + आ + हृ + घञ्—द्विगु और द्वन्द्व समास का समष्टिविधायक एक उपभेद
- समाहारः—पुं॰—-—सम् + आ + हृ + घञ्—संक्षेपण, संकोचन, संहृति
- समाहित—भू॰ क॰ कृ॰—-—सम् + आ + धा + क्त—मिलाया गया, साथ जोड़ा गया
- समाहित—भू॰ क॰ कृ॰—-—सम् + आ + धा + क्त—समंजित, तय किया गया
- समाहित—भू॰ क॰ कृ॰—-—सम् + आ + धा + क्त—इकट्ठा किया गया, संगृहीत, प्रशांत
- समाहित—भू॰ क॰ कृ॰—-—सम् + आ + धा + क्त—एकनिष्ठ, लीन, संकेन्द्रित
- समाहित—भू॰ क॰ कृ॰—-—सम् + आ + धा + क्त—समाप्त
- समाहित—भू॰ क॰ कृ॰—-—सम् + आ + धा + क्त—सहमत
- समाहृत—भू॰ क॰ कृ॰—-—सम् + आ + हृ + क्त—मिलाया गया, संगृहीत, संचित
- समाहृत—भू॰ क॰ कृ॰—-—सम् + आ + हृ + क्त—पुष्कल, अत्यधिक, बहुत
- समाहृत—भू॰ क॰ कृ॰—-—सम् + आ + हृ + क्त—ग्रहण किया गया, स्वीकृत, लिया गया, संक्षेप किया गया, कम किया गया
- समाहृतिः—स्त्री॰—-—सम् + आ + हृ + क्तिन्—संकलन, संक्षेपण
- समाह्वः—पुं॰—-—सम् + आ + ह्वे + घ—चुनौती, ललकार
- समाह्वयः—पुं॰—-—सम् + आ + ह्वे + अच्—पुकारना, ललकारना
- समाह्वयः—पुं॰—-—सम् + आ + ह्वे + अच्—संग्राम, युद्ध
- समाह्वयः—पुं॰—-—सम् + आ + ह्वे + अच्—मल्लयुद्ध, दो व्यक्तियों में होने वाला युद्ध
- समाह्वयः—पुं॰—-—सम् + आ + ह्वे + अच्—मनोरंजन के लिए जानवरों को लड़ाना, जानवरों की लड़ाई पर शर्त लगाना
- समाह्वयः—पुं॰—-—सम् + आ + ह्वे + अच्—नाम, अभिधान
- समाह्वा—स्त्री॰—-—समा + आह्वा यस्याः ब॰स॰—नाम, अभिधान
- समाह्वानम्—नपुं॰—-—सम् + आ + ह्वे + ल्युट्—मिलकर बुलाना, संबोधन
- समाह्वानम्—नपुं॰—-—सम् + आ + ह्वे + ल्युट्—ललकार, चुनौती
- समिकम्—नपुं॰—-—समि (सम् + इ + डि) + कन्—भाला, बल्लम
- समित्—स्त्री॰—-—सम् + इ + क्विप्—संग्राम, युद्ध
- समिता—स्त्री॰—-—सम् + इ + क्त + टाप्—गेहूँ का आटा
- समितिः—स्त्री॰—-—सम् + इ + क्तिन्—मिलना, मिलाप, साहचर्य
- समितिः—स्त्री॰—-—सम् + इ + क्तिन्—सभा
- समितिः—स्त्री॰—-—सम् + इ + क्तिन्—रेवड़, लहंडा
- समितिः—स्त्री॰—-—सम् + इ + क्तिन्—संग्राम, युद्ध
- समितिः—स्त्री॰—-—सम् + इ + क्तिन्—सादृश्य, समता
- समितिः—स्त्री॰—-—सम् + इ + क्तिन्—मर्यादन
- समितिञ्जय—वि॰—-—समिति + जि + खच्, मुम्—युद्ध में विजयी
- समिथः—पुं॰—-—सम् + इ + थक्—संग्राम, युद्ध
- समिथः—पुं॰—-—सम् + इ + थक्—आग
- समिद्ध—भू॰ क॰ कृ॰—-—सम् + इन्ध् + क्त —सुलगाया हुआ, जलाया हुआ
- समिद्ध—भू॰ क॰ कृ॰—-—सम् + इन्ध् + क्त —आग लगाइ हुई
- समिद्ध—भू॰ क॰ कृ॰—-—सम् + इन्ध् + क्त —प्रज्वलित, उत्तेजित
- समिध्—स्त्री॰—-—सम् + इन्ध् + क्विप्—लकड़ी, इंधन, विशेष कर यज्ञाग्नि के लिए समिधाएँ
- समिधः—पुं॰—-—सम् + इन्ध् + क—आग
- समिन्धनम्—नपुं॰—-—सम् + इन्ध् + ल्युट्—आग सुलगाना
- समिन्धनम्—नपुं॰—-—सम् + इन्ध् + ल्युट्—इंधन
- समिरः—पुं॰—-— = समीर, पृषो॰ — वायु, हवा
- समीकम्—नपुं॰—-—सम् + ईकक्—संग्राम, युद्ध
- समीकरणम्—नपुं॰—-—असमः समः क्रियतेऽनेन - सम + च्वि + कृ + ल्युट्—पूरी छानबीन
- समीकरणम्—नपुं॰—-—असमः समः क्रियतेऽनेन - सम + च्वि + कृ + ल्युट्—दर्शनशास्त्र की सांख्य पद्धति
- समीक्षा—स्त्री॰—-—सम् + ईक्ष + अङ् + टाप्—अनुसंधान, खोज
- समीक्षा—स्त्री॰—-—सम् + ईक्ष + अङ् + टाप्—विचार
- समीक्षा—स्त्री॰—-—सम् + ईक्ष + अङ् + टाप्—भलीभांति निरीक्षण, समालोचना
- समीक्षा—स्त्री॰—-—सम् + ईक्ष + अङ् + टाप्—समझ, बुद्धि
- समीक्षा—स्त्री॰—-—सम् + ईक्ष + अङ् + टाप्—नैसर्गिक सत्य
- समीक्षा—स्त्री॰—-—सम् + ईक्ष + अङ् + टाप्—अनिवार्य सिद्धान्त
- समीक्षा—स्त्री॰—-—सम् + ईक्ष + अङ् + टाप्—दर्शनशास्त्र की मीमांसा पद्धति
- समीचः—पुं॰—-—सम + इ + चट्, कित्, दीर्घः—समुद्र
- समीचकः—पुं॰—-—समीच + कन्—रतिक्रिया, मैथुन
- समीची—स्त्री॰—-—समीच + ङीप्—हरिणी
- समीची—स्त्री॰—-—समीच + ङीप्—प्रशंसा
- समीचीन—वि॰—-—सम् + अञ्च् + क्विन् + ख—ठीक, सही
- समीचीन—वि॰—-—सम् + अञ्च् + क्विन् + ख—सत्य, शुद्ध
- समीचीन—वि॰—-—सम् + अञ्च् + क्विन् + ख—योग्य, समुचित
- समीचीन—वि॰—-—सम् + अञ्च् + क्विन् + ख—सुसंगत
- समीचीनम्—नपुं॰—-—-—सचाई, औचित्य
- समीदः—पुं॰—-—-—गेहूँ का बारीक मैदा
- समीन—वि॰—-—समाम् अधीष्टो मृतो भूतो भावी वा - समा + ख—वार्षिक, सलाना
- समीन—वि॰—-—समाम् अधीष्टो मृतो भूतो भावी वा - समा + ख—एक वर्ष के लिए भाड़े पर लिया हुआ
- समीन—वि॰—-—समाम् अधीष्टो मृतो भूतो भावी वा - समा + ख—एक वर्ष का
- समीनिका—स्त्री॰—-—समां प्राप्य प्रसूते समा + ख + कन् + टाप्, इत्वम्—प्रतिवर्ष ब्याने वाली गाय
- समीप—वि॰—-—संगता आपो यत्र - अच्, आत ईत्वम्—निकट, पास ही, सटा हुआ, नजदीक
- समीपम्—नपुं॰—-—-—सामीप्य, पड़ोस
- समीपम् —क्रि॰ वि॰—-—-—निकट, सामने, की उपस्थिति में
- समीपतः—क्रि॰ वि॰—-—-—निकट, सामने, की उपस्थिति में
- समीपे—क्रि॰ वि॰—-—-—निकट, सामने, की उपस्थिति में
- समीरः—पुं॰—-—सम् + ईर् + अच्—हवा, वायु
- समीरः—पुं॰—-—सम् + ईर् + अच्—शमीवृक्ष, जैंड़ी का पेड़
- समीरणः—पुं॰—-—सम् + ईह् + ल्युट्—हवा, वायु
- समीरणः—पुं॰—-—सम् + ईह् + ल्युट्—साँस
- समीरणः—पुं॰—-—सम् + ईह् + ल्युट्—यात्री
- समीरणः—पुं॰—-—सम् + ईह् + ल्युट्—एक पौधे का नाम, मरुबक
- समीरणम्—नपुं॰—-—सम् + ईह् + ल्युट्—फेंकना, भेजना
- समीहा—स्त्री॰—-—सम् + ईह् + अ + टाप्—प्रबल इच्छा, चाह, प्रबल उद्योग
- समीहित—भू॰ क॰ कृ॰—-—सम् + ईह् + क्त—अभिलषित, इच्छित, अभीष्ट
- समीहित—भू॰ क॰ कृ॰—-—सम् + ईह् + क्त—आरब्ध
- समीहितम्—नपुं॰—-—-—कामना, अभिलाषा, इच्छा
- समुक्षणम्—नपुं॰—-—सम् + उक्ष् + ल्युट्—ढालना, वहाव, प्रसार
- समुच्चय—वि॰—-—सम् + उत् + चि + अच्—संग्रह, संघात, समष्टि, राशि, पुंज
- समुच्चय—वि॰—-—सम् + उत् + चि + अच्—शब्दों या वाक्यों का संयोग
- समुच्चय—वि॰—-—सम् + उत् + चि + अच्—एक अलंकार का नाम
- समुच्चरः—पुं॰—-—सम् + उत् + चर् + अच्—चढ़ना
- समुच्चरः—पुं॰—-—सम् + उत् + चर् + अच्—चलना, यात्रा करना
- समुच्छेदः—पुं॰—-—सम् + उद् + छिद् + घञ्—पूर्ण विनाश, समूलोन्मूलन, उखाड़ देना
- समुच्छ्र्यः—पुं॰—-—सम् + उद् + श्रि + अच्—उत्तुंगता, ऊंचाई
- समुच्छ्र्यः—पुं॰—-—सम् + उद् + श्रि + अच्—विरोध, शत्रुता
- समुच्छ्रायः—पुं॰—-—सम् + उद् + श्रि + घञ्—उत्तुंगता, ऊंचाई
- समुच्छ्वासितम्—नपुं॰—-—सम् + उद् + श्वस् +क्त, घञ् वा—गहरी सांस लेना, दीर्घ सांस लेना
- समुच्छ्वासः—पुं॰—-—सम् + उद् + श्वस् +क्त, घञ् वा—गहरी सांस लेना, दीर्घ सांस लेना
- समुज्झित—वि॰—-—सम् + उज्झ् + क्त—त्याग हुआ, छोड़ा हुआ
- समुज्झित—वि॰—-—सम् + उज्झ् + क्त—जाने दिया गया
- समुज्झित—वि॰—-—सम् + उज्झ् + क्त—मुक्त
- समुत्कर्षः—पुं॰—-—सम् + उत् + कृष् + घञ्—उन्नति
- समुत्कर्षः—पुं॰—-—सम् + उत् + कृष् + घञ्—अपने अपको ऊपर उठाना, अपनी जाति की अपेक्षा किसी अन्य ऊंची जाति से सम्बन्ध रखना
- समुत्क्रमः—पुं॰—-—सम् + उत् + क्रम् + घञ्—ऊपर उठना, चढ़ाई
- समुत्क्रमः—पुं॰—-—सम् + उत् + क्रम् + घञ्—औचित्य की सीमा का उल्लंघन करना
- समुत्क्रोशः—पुं॰—-—सम् + उद् + क्रुश् + घञ्—जोर से चिल्लाना
- समुत्क्रोशः—पुं॰—-—सम् + उद् + क्रुश् + घञ्—भारी कोलाह्ल
- समुत्क्रोशः—पुं॰—-—सम् + उद् + क्रुश् + घञ्—कुररी
- समुत्थ—वि॰—-—सम् + उद् + स्था + क—उठता हुआ, जागता हुआ
- समुत्थ—वि॰—-—सम् + उद् + स्था + क—उगा हुआ, उत्पन्न, जन्मा
- समुत्थ—वि॰—-—सम् + उद् + स्था + क—घटित होने वाला, उत्पन्न
- समुत्थानम्—नपुं॰—-—सम् + उद् + स्था + ल्युट्—उठना, जागना
- समुत्थानम्—नपुं॰—-—सम् + उद् + स्था + ल्युट्—पुनरुज्जीवन
- समुत्थानम्—नपुं॰—-—सम् + उद् + स्था + ल्युट्—पूरी चिकित्सा, पूरा आराम
- समुत्थानम्—नपुं॰—-—सम् + उद् + स्था + ल्युट्—भरना, स्वस्थ होना
- समुत्थानम्—नपुं॰—-—सम् + उद् + स्था + ल्युट्—रोग का चिह्न
- समुत्थानम्—नपुं॰—-—सम् + उद् + स्था + ल्युट्—उद्योग में लगना, परिश्रमयुक्त धन्धा
- समुत्पतनम्—नपुं॰—-—सम् + उद् + पत् + ल्युट्—उड़ना, ऊपर चढ़ना
- समुत्पतनम्—नपुं॰—-—सम् + उद् + पत् + ल्युट्—प्रयत्न, चेष्टा
- समुत्पत्तिः—स्त्री॰—-—सम् + उद् + पद् + क्तिन्—पैदावार, जन्म, मूल
- समुत्पत्तिः—स्त्री॰—-—सम् + उद् + पद् + क्तिन्—घटना
- समुत्पिञ्ज —वि॰—-—सम् + उद् + पिञ्ज् + अच्—अत्यन्त उद्विग्न या घबराया हुआ, अव्यवस्थित
- समुत्पिञ्जल—वि॰—-—सम् + उद् + पिञ्ज् + कलच् —अत्यन्त उद्विग्न या घबराया हुआ, अव्यवस्थित
- समुत्पिञ्जः—पुं॰—-—सम् + उद् + पिञ्ज् + अच्—अव्यवस्थित सेना
- समुत्पिञ्जः—पुं॰—-—सम् + उद् + पिञ्ज् + अच्—भारी अव्यवस्था
- समुत्पिञ्जलः—पुं॰—-—सम् + उद् + पिञ्ज् + कलच् —अव्यवस्थित सेना
- समुत्पिञ्जलः—पुं॰—-—सम् + उद् + पिञ्ज् + कलच् —भारी अव्यवस्था
- समुत्सवः—पुं॰—-—सम् + उद् + सू + अप्—महान पर्व
- समुत्सर्गः—पुं॰—-—सम् + उद् + सृज् + घञ्—परित्याग, छोड़ना
- समुत्सर्गः—पुं॰—-—सम् + उद् + सृज् + घञ्—ढारना, डालना, प्रदान करना
- समुत्सर्गः—पुं॰—-—सम् + उद् + सृज् + घञ्—मलत्याग करना, विष्ठा करना
- समुत्सारणम्—नपुं॰—-—सम् + उद् + सृ + णिच् + ल्युट्—हांक देना
- समुत्सारणम्—नपुं॰—-—सम् + उद् + सृ + णिच् + ल्युट्—पीछा करना, शिकार करना
- समुत्सुक—वि॰—-—सम्यक् उत्सुकः - प्रा॰ स॰—अत्यन्त बेचैन, आतुर, अधीर
- समुत्सुक—वि॰—-—सम्यक् उत्सुकः - प्रा॰ स॰—उत्कंठित, उत्सुक, शौकीन
- समुत्सुक—वि॰—-—सम्यक् उत्सुकः - प्रा॰ स॰—शोकपूर्ण, खेदजनक
- समुत्सेधः—पुं॰—-—सम् + उद् + सिध् + घञ्—ऊँचाई, उन्नति
- समुत्सेधः—पुं॰—-—सम् + उद् + सिध् + घञ्—मोटापन, गाढ़ापन
- समुदक्त—भू॰ क॰ कृ॰—-—सम् + उद् + अञ्ज् + क्त—उठाया हुआ, ऊपर खींचा हुआ
- समुदयः—पुं॰—-—सम् + उद् + इ + अच्—चढ़ाई, (सूर्य का) उदय होना
- समुदयः—पुं॰—-—सम् + उद् + इ + अच्—उगना
- समुदयः—पुं॰—-—सम् + उद् + इ + अच्—संग्रह, समुच्चय, संख्या, ढेर
- समुदयः—पुं॰—-—सम् + उद् + इ + अच्—सम्मिश्रण
- समुदयः—पुं॰—-—सम् + उद् + इ + अच्—संपूर्ण
- समुदयः—पुं॰—-—सम् + उद् + इ + अच्—राजस्व
- समुदयः—पुं॰—-—सम् + उद् + इ + अच्—प्रयत्न, चेष्टा
- समुदयः—पुं॰—-—सम् + उद् + इ + अच्—संग्राम युद्ध
- समुदयः—पुं॰—-—सम् + उद् + इ + अच्—दिन
- समुदयः—पुं॰—-—सम् + उद् + इ + अच्—सेना का पिछला भाग
- समुदागमः—पुं॰—-—सम् + उद् + आ + गम् + घञ्—पूर्ण ज्ञान
- समुदाचारः—पुं॰—-—सम् + उद् + आ + चर् + घञ्—उचित व्यवहार या प्रचलन
- समुदाचारः—पुं॰—-—सम् + उद् + आ + चर् + घञ्—संबोधित करने की उपयुक्त रीति
- समुदाचारः—पुं॰—-—सम् + उद् + आ + चर् + घञ्—प्रयोजन, इरादा, रुपरेखा
- समुदायः—पुं॰—-—सम् + उद् + अय् + घञ्—संग्रह, समुच्चय आदि
- समुदाहरणम्—नपुं॰—-—सम् + उद् + आ + हृ + ल्युट्—उद्धोषणा, उच्चारण करना
- समुदाहरणम्—नपुं॰—-—सम् + उद् + आ + हृ + ल्युट्—निदर्शन
- समुदित—भू॰ क॰ कृ॰—-—सम् + उद् + इ + क्त—ऊपर गया हुआ, उठा हुआ, चढ़ा हुआ
- समुदित—भू॰ क॰ कृ॰—-—सम् + उद् + इ + क्त—ऊँचाई, उन्नत
- समुदित—भू॰ क॰ कृ॰—-—सम् + उद् + इ + क्त—पैदा किया हुआ, उगा हुआ, उत्पन्न
- समुदित—भू॰ क॰ कृ॰—-—सम् + उद् + इ + क्त—संहत किया हुआ, संचित, संयुक्त
- समुदित—भू॰ क॰ कृ॰—-—सम् + उद् + इ + क्त—सहित, सज्जित
- समुदीरणम्—नपुं॰—-—सम् + उद् + ईर् + ल्युट्—कह डालना, बोलना, उच्चारण करना
- समुदीरणम्—नपुं॰—-—सम् + उद् + ईर् + ल्युट्—दुहराना
- समुद्ग—वि॰—-—सम् + उद् + गम् + ड—उगने वाला, चढ़ने वाला
- समुद्ग—वि॰—-—सम् + उद् + गम् + ड—पूर्णतः व्यापक
- समुद्ग—वि॰—-—सम् + उद् + गम् + ड—आवरण या ढक्कन से युक्त
- समुद्ग—वि॰—-—सम् + उद् + गम् + ड—फलियों से युक्त
- समुद्गः—पुं॰—-—-—ढका हुआ संदूक
- समुद्गः—पुं॰—-—-—एक प्रकार का कृत्रिम श्लोक
- समुद्गकः—पुं॰—-—समुद्ग + कन्—एक ढका हुआ संदूक या पेटी
- समुद्गकः—पुं॰—-—समुद्ग + कन्—एक प्रकार का श्लोक जिसके दो चरणों की ध्वनि समान हों परन्तु अर्थ पृथक् - पृथक् हों
- समुद्गमः—पुं॰—-—सम् + उद् + गम् + घञ्—उठान, चढ़ाई
- समुद्गमः—पुं॰—-—सम् + उद् + गम् + घञ्—उगना, निकलना
- समुद्गमः—पुं॰—-—सम् + उद् + गम् + घञ्—जन्म, पैदायश
- समुद्गिरणम्—नपुं॰—-—सम् + उद् + गृ + ल्युट्—वमन करना, उगलना
- समुद्गिरणम्—नपुं॰—-—सम् + उद् + गृ + ल्युट्—जो उगल दिया जाय, उल्टी
- समुद्गिरणम्—नपुं॰—-—सम् + उद् + गृ + ल्युट्—उठाना, ऊपर करना
- समुद्गीतम्—नपुं॰—-—सम् + उद् + गे + क्त—ऊँचे स्वर से बोला जाने वाला गीत
- समुद्देशः—पुं॰—-—सम् + उद् + दिश् + घञ्—पूर्णतः निर्देश करना
- समुद्देशः—पुं॰—-—सम् + उद् + दिश् + घञ्—पूर्णविवरण, विशिष्टीकरण, निर्देश करना
- समुद्धत—भू॰ क॰ कृ॰—-—सम् + उद् + हन् + क्त—ऊपर उठाया हुआ, ऊँचा किया हुआ, उन्नीत
- समुद्धत—भू॰ क॰ कृ॰—-—सम् + उद् + हन् + क्त—उत्तेजित, ह्डबड़ाया हुआ
- समुद्धत—भू॰ क॰ कृ॰—-—सम् + उद् + हन् + क्त—घमंड से फूला हुआ, घमंडी, अभिमानी
- समुद्धत—भू॰ क॰ कृ॰—-—सम् + उद् + हन् + क्त—अशिष्ट, असभ्य
- समुद्धत—भू॰ क॰ कृ॰—-—सम् + उद् + हन् + क्त—धृष्ट, ढीठ
- समुद्धरणम्—नपुं॰—-—सम् + उद् + हृ + ल्युट्—ऊपर उठाना, ऊँचा करना
- समुद्धरणम्—नपुं॰—-—सम् + उद् + हृ + ल्युट्—उठाना
- समुद्धरणम्—नपुं॰—-—सम् + उद् + हृ + ल्युट्—बाहर खींच लेना
- समुद्धरणम्—नपुं॰—-—सम् + उद् + हृ + ल्युट्—उद्धार, मुक्ति
- समुद्धरणम्—नपुं॰—-—सम् + उद् + हृ + ल्युट्—निवारण, समूलोच्छेदन
- समुद्धरणम्—नपुं॰—-—सम् + उद् + हृ + ल्युट्—(किनारे) से बाहर निकलना
- समुद्धरणम्—नपुं॰—-—सम् + उद् + हृ + ल्युट्—डाला हुआ या उगला हुआ भोजन
- समुद्धर्तृ—पुं॰—-—सम् + उद् + हृ + तृच्—मोचक, मुक्तिदाता
- समुद्भवः—पुं॰—-—सम् + उद् + भू + अप्—जन्म, उत्पत्ति
- समुद्यमः—पुं॰—-—सम् + उद् + यम् + घञ्—ऊपर उठाना
- समुद्यमः—पुं॰—-—सम् + उद् + यम् + घञ्—बड़ा प्रयत्न, चेष्टा
- समुद्यमः—पुं॰—-—सम् + उद् + यम् + घञ्—उपक्रम, समारंभ
- समुद्यमः—पुं॰—-—सम् + उद् + यम् + घञ्—धावा, चढ़ाई
- समुद्योगः—पुं॰—-—सम् + उद् + युज् + घञ्—सक्रिय चेष्टा, ऊर्जा
- समुद्र—वि॰—-—सह मुद्रया - ब॰ स॰—मुहर बंद, मुहर लगा हुआ, मुद्रांकित
- समुद्रः—पुं॰—-—सम् + उद् + रा + क—सागर, महासागर
- समुद्रः—पुं॰—-—सम् + उद् + रा + क—शिव का विशेषण
- समुद्रः—पुं॰—-—सम् + उद् + रा + क—‘चार’ की संख्या
- समुद्रान्तम्—नपुं॰—समुद्र-अन्तम्—-—समुद्रतट
- समुद्रान्तम्—नपुं॰—समुद्र-अन्तम्—-—जायफल
- समुद्रान्ता—स्त्री॰—समुद्र-अन्ता—-—कपास क पौधा
- समुद्राम्बरा—स्त्री॰—समुद्र-अम्बरा—-—पृथ्वी
- समुद्रारुः—पुं॰—समुद्र-अरुः—-—मगरमच्छ
- समुद्रारुः—पुं॰—समुद्र-अरुः—-—एक बड़ी विशाल मछली
- समुद्रारुः—पुं॰—समुद्र-अरुः—-—राम का पुल
- समुद्रारुः—पुं॰—समुद्र-आरुः—-—मगरमच्छ
- समुद्रारुः—पुं॰—समुद्र-आरुः—-—एक बड़ी विशाल मछली
- समुद्रारुः—पुं॰—समुद्र-आरुः—-—राम का पुल
- समुद्रकफः—पुं॰—समुद्र-कफः—-— समुद्रझाग
- समुद्रफेनः—पुं॰—समुद्र-फेनः—-— समुद्रझाग
- समुद्रग—वि॰—समुद्र-ग—-—समुद्र पर घूमने वाला
- समुद्रगः—पुं॰—समुद्र-गः—-—समुद्री व्यापार करने वाला
- समुद्रगः—पुं॰—समुद्र-गः—-—समुद्री कार्य करने वाला, समुद्र में घूमने वाला
- समुद्रगा—स्त्री॰—समुद्र-गा—-—नदी
- समुद्रगृहम्—नपुं॰—समुद्र-गृहम्—-—गरमी के दिनों के लिए जल में बना हुआ भवन
- समुद्रचुलुकः—पुं॰—समुद्र-चुलुकः—-—अगस्त्य मुनि का विशेषण
- समुद्रनवनीतम्—नपुं॰—समुद्र-नवनीतम्—-—चन्द्रमा
- समुद्रनवनीतम्—नपुं॰—समुद्र-नवनीतम्—-—अमृत, सुधा
- समुद्रमेखला—स्त्री॰—समुद्र-मेखला—-—पृथ्वी
- समुद्ररसना—स्त्री॰—समुद्र-रसना—-—पृथ्वी
- समुद्रवसना—स्त्री॰—समुद्र-वसना—-—पृथ्वी
- समुद्रयानम्—नपुं॰—समुद्र-यानम्—-—समुद्री यात्रा
- समुद्रयानम्—नपुं॰—समुद्र-यानम्—-—पोत, जहाज, किश्ती
- समुद्रयात्रा—स्त्री॰—समुद्र-यात्रा—-—समुद्र के रास्ते यात्रा
- समुद्रयायिन्—वि॰—समुद्र-यायिन्—-—समुद्र पर घूमने वाला
- समुद्रयोषित्—स्त्री॰—समुद्र-योषित्—-—नदी
- समुद्रवह्निः—पुं॰—समुद्र-वह्निः—-—वडवानल
- समुद्रसुभगा—स्त्री॰—समुद्र-सुभगा—-—गंगा नदी
- समुद्वहः—पुं॰—-—सम् + उद् + वह् + अच्—ढोना
- समुद्वहः—पुं॰—-—सम् + उद् + वह् + अच्—उठाने वाला
- समुद्वाहः—पुं॰—-—सम् + उद् + वह् + घञ्—ढोना
- समुद्वाहः—पुं॰—-—सम् + उद् + वह् + घञ्—विवाह
- समुद्वेगः—पुं॰—-—सम् + उद् + विज् + घञ्—बड़ा डर, आतंक त्रास
- समुन्दनम्—नपुं॰—-—सम् + उन्द् + ल्युट्—आर्द्रता
- समुन्दनम्—नपुं॰—-—सम् + उन्द् + ल्युट्—गीलापन, सील, तरी
- समुन्न—वि॰—-—सम् + उन्द् + क्त—गीला, आर्द्र
- समुन्नत—भू॰ क॰ कृ॰—-—शम् + उद् + नम् + क्त—ऊपर उठाया हुआ, ऊँचा किया हुआ
- समुन्नत—भू॰ क॰ कृ॰—-—शम् + उद् + नम् + क्त—ऊँचाई, उत्तुंगता, ऊँचा उठना
- समुन्नत—भू॰ क॰ कृ॰—-—शम् + उद् + नम् + क्त—प्रमुखता, ऊँचा पद या मर्यादा, उल्लास
- समुन्नत—भू॰ क॰ कृ॰—-—शम् + उद् + नम् + क्त—उन्नति, समृद्धि, वृद्धि, सफलता
- समुन्नत—भू॰ क॰ कृ॰—-—शम् + उद् + नम् + क्त—घमंड, अभिमान
- समुन्नद्ध—भू॰ क॰ कृ॰—-—सम् + उद् + नह् + क्त—उन्नत, उच्छ्रित
- समुन्नद्ध—भू॰ क॰ कृ॰—-—सम् + उद् + नह् + क्त—सूजा हुआ
- समुन्नद्ध—भू॰ क॰ कृ॰—-—सम् + उद् + नह् + क्त—पूरा
- समुन्नद्ध—भू॰ क॰ कृ॰—-—सम् + उद् + नह् + क्त—घमंडी, अभिमानी, असहनशील
- समुन्नद्ध—भू॰ क॰ कृ॰—-—सम् + उद् + नह् + क्त—आत्माभिमानी, पण्डितंमन्य
- समुन्नद्ध—भू॰ क॰ कृ॰—-—सम् + उद् + नह् + क्त—बंधनमुक्त
- समुन्नयः—पुं॰—-—सम् + उद् + नी + अच्—हासिल करना, प्राप्त करना
- समुन्नयः—पुं॰—-—सम् + उद् + नी + अच्—घटना, बात
- समुन्मूलनम्—नपुं॰—-—सम् + उद् + मूल् + ल्युट्—जड़ से उखाड़ना, समूलोच्छेदन, पूर्ण विनाश
- समुपगमः—पुं॰—-—सम् + उप + गम् + अप्—पहुँच, संपर्क
- समुपजोषम्—अव्य॰—-—सम् + उप + जुष् + अम्—बिल्कुल इच्छा के अनुसार
- समुपजोषम्—अव्य॰—-—सम् + उप + जुष् + अम्—प्रसन्नतापूर्वक
- समुपभोगः—पुं॰—-—सम् + उप + भुज् + घञ्—मैथुन, संभोग
- समुपवेशनम्—नपुं॰—-—सम् + उप + विश् + ल्युट्—भवन, आवास, निवास
- समुपवेशनम्—नपुं॰—-—सम् + उप + विश् + ल्युट्—बिठाना
- समुपस्था—स्त्री॰—-—सम् + उप + स्था + अङ्—पहुँच, समीप जाना
- समुपस्था—स्त्री॰—-—सम् + उप + स्था + अङ्—सामीप्य, निकटता
- समुपस्था—स्त्री॰—-—सम् + उप + स्था + अङ्—होना, आ पड़ना, घटना
- समुपस्थानम्—नपुं॰—-—सम् + उप + स्था + ल्युट् —पहुँच, समीप जाना
- समुपस्थानम्—नपुं॰—-—सम् + उप + स्था + ल्युट् —सामीप्य, निकटता
- समुपस्थानम्—नपुं॰—-—सम् + उप + स्था + ल्युट् —होना, आ पड़ना, घटना
- समुपस्थितिः—स्त्री॰—-—सम् + उप + स्था + ल्युट् —पहुँच, समीप जाना
- समुपस्थितिः—स्त्री॰—-—सम् + उप + स्था + ल्युट् —सामीप्य, निकटता
- समुपस्थितिः—स्त्री॰—-—सम् + उप + स्था + ल्युट् —होना, आ पड़ना, घटना
- समुपार्जनम्—स्त्री॰—-—सम् + उप + अर्ज् + ल्युट्—एक साथ प्राप्त करना, एक समय में ही अभिग्रहण
- समुपेत—भू॰ क॰ कृ॰—-—सम् + उप + इ + क्त—मिलकर आये हुए, एकत्रित, इकट्ठे हुए
- समुपेत—भू॰ क॰ कृ॰—-—सम् + उप + इ + क्त—पहुँचा
- समुपेत—भू॰ क॰ कृ॰—-—सम् + उप + इ + क्त—सज्जित,…. सहित, … युक्त
- समुपोढ—भू॰ क॰ कृ॰—-—सम् + उप + वह् + क्त—ऊपर गया हुआ, उठा हुआ
- समुपोढ—भू॰ क॰ कृ॰—-—सम् + उप + वह् + क्त—वृद्धि को प्राप्त
- समुपोढ—भू॰ क॰ कृ॰—-—सम् + उप + वह् + क्त—निकट लाया गया
- समुपोढ—भू॰ क॰ कृ॰—-—सम् + उप + वह् + क्त—नियंत्रित
- समुल्लासः—पुं॰—-—सम् + उत् + लस् + घञ्—अत्यंत चमक
- समुल्लासः—पुं॰—-—सम् + उत् + लस् + घञ्—अति हर्ष, आनन्द
- समूढ—भू॰ क॰ कृ॰—-—सम् + ऊह् (वह्) + क्त—निकट लाया गया, एकत्रित
- समूढ—भू॰ क॰ कृ॰—-—सम् + ऊह् (वह्) + क्त—संचित, संगृहीत
- समूढ—भू॰ क॰ कृ॰—-—सम् + ऊह् (वह्) + क्त—लपेटा हुआ
- समूढ—भू॰ क॰ कृ॰—-—सम् + ऊह् (वह्) + क्त—सहित
- समूढ—भू॰ क॰ कृ॰—-—सम् + ऊह् (वह्) + क्त—सद्योजात, जो तुरन्त पैदा हुआ हो
- समूढ—भू॰ क॰ कृ॰—-—सम् + ऊह् (वह्) + क्त—शांत, वशीकृत, शान्त किया हुआ
- समूढ—भू॰ क॰ कृ॰—-—सम् + ऊह् (वह्) + क्त—वक्र, झुका हुआ
- समूढ—भू॰ क॰ कृ॰—-—सम् + ऊह् (वह्) + क्त—निर्मल, स्वच्छ
- समूढ—भू॰ क॰ कृ॰—-—सम् + ऊह् (वह्) + क्त—साथ ही वहन किया गया
- समूढ—भू॰ क॰ कृ॰—-—सम् + ऊह् (वह्) + क्त—नेतृत्व किया गया, संचालित किया गया
- समूढ—भू॰ क॰ कृ॰—-—सम् + ऊह् (वह्) + क्त—विवाहित
- समूरः—पुं॰—-—संगतौ ऊरु यस्य - प्रा॰ ब॰—एक प्रकार का हरिण
- समूरुः—पुं॰—-—संगतौ ऊरु यस्य - प्रा॰ ब॰—एक प्रकार का हरिण
- समूरकः—पुं॰—-—संगतौ ऊरु यस्य - प्रा॰ ब॰—एक प्रकार का हरिण
- समूल—वि॰ —-—सह मूलेन - ब॰ स॰— पूर्णरुप से उखाड़ कर, जड़ समेत शाखाओं को उखाड़ देना
- समहः—पुं॰—-—सम् + ऊह् + घञ्—समुच्चय, संग्रह, संघात, समष्टि, संख्या
- समहः—पुं॰—-—सम् + ऊह् + घञ्—रेवड़, टोली
- समूहनम्—नपुं॰—-—समूह् + ल्युट्—साथ मिलाना
- समूहनम्—नपुं॰—-—समूह् + ल्युट्—संग्रह, राशि
- समूहनी—स्त्री॰—-—सम् + ऊह् + ल्युट् + ङीप्—बुहारी, झाड़ू
- समूह्यः—पुं॰—-—सम् + ऊह् + ण्यत्—एक प्रकार की यज्ञाग्नि
- समृद्ध—भू॰ क॰ कृ॰—-—सम् + ऋध् + क्त—समृद्धिशाली, फलता-फूलता हुआ, हरा-भरा
- समृद्ध—भू॰ क॰ कृ॰—-—सम् + ऋध् + क्त—प्रसन्न, भाग्यशाली
- समृद्ध—भू॰ क॰ कृ॰—-—सम् + ऋध् + क्त—सम्पन्न, दौलतमंद
- समृद्ध—भू॰ क॰ कृ॰—-—सम् + ऋध् + क्त—भरा पूरा, विशेषरुप से युक्त या सम्पन्न, खूब बढ़ा चढ़ा
- समृद्ध—भू॰ क॰ कृ॰—-—सम् + ऋध् + क्त—फलवान्
- समृद्धिः—स्त्री॰—-—सम् + ऋध् + क्तिन्—भारी वृद्धि, बढ़ती, फलना-फूलना
- समृद्धिः—स्त्री॰—-—सम् + ऋध् + क्तिन्—सम्पन्नता, सम्पत्ति, ऐश्वर्य
- समृद्धिः—स्त्री॰—-—सम् + ऋध् + क्तिन्—धन, दौलत
- समृद्धिः—स्त्री॰—-—सम् + ऋध् + क्तिन्—बाहुल्य, पुष्कलता, प्राचुर्य
- समृद्धिः—स्त्री॰—-—सम् + ऋध् + क्तिन्—शक्ति, सर्वोपरिता
- समेत—भू॰ क॰ कृ॰—-—सम् + आ + इ + क्त—साथ आया हुआ या मिला हुआ, एकत्रित
- समेत—भू॰ क॰ कृ॰—-—सम् + आ + इ + क्त—संयुक्त, सम्मिश्रित
- समेत—भू॰ क॰ कृ॰—-—सम् + आ + इ + क्त—निकट आया हुआ, पहुँचा हुआ
- समेत—भू॰ क॰ कृ॰—-—सम् + आ + इ + क्त—से युक्त
- समेत—भू॰ क॰ कृ॰—-—सम् + आ + इ + क्त—सहित, सज्जित, युक्त, के साथ
- समेत—भू॰ क॰ कृ॰—-—सम् + आ + इ + क्त—टक्कर खाया हुआ, भिड़ा हुआ
- समेत—भू॰ क॰ कृ॰—-—सम् + आ + इ + क्त—सहमत
- सम्पत्तिः—स्त्री॰—-—सम् + पद् + क्तिन्—समृद्धि, धन की बढ़ती
- सम्पत्तिः—स्त्री॰—-—सम् + पद् + क्तिन्—सफलता, पूर्ति, निष्पन्नता
- सम्पत्तिः—स्त्री॰—-—सम् + पद् + क्तिन्—पूर्णता, श्रेष्ठता
- सम्पत्तिः—स्त्री॰—-—सम् + पद् + क्तिन्—प्राचुर्य, पुष्कलता, बाहुल्य
- सम्पद्—स्त्री॰—-—सम् + पद् + क्विप्—धन, दौलत
- सम्पद्—स्त्री॰—-—सम् + पद् + क्विप्—समृद्धि, ऐश्वर्य, फलना-फूलना
- सम्पद्—स्त्री॰—-—सम् + पद् + क्विप्—सौभाग्य, आनन्द, किस्मत
- सम्पद्—स्त्री॰—-—सम् + पद् + क्विप्—सफलता, पूर्ति, अभीष्ट उद्देश्य की पूर्ति
- सम्पद्—स्त्री॰—-—सम् + पद् + क्विप्—पूर्णता, श्रेष्ठता
- सम्पद्—स्त्री॰—-—सम् + पद् + क्विप्—धनाढयता, पुष्कलता, बाहुल्य, प्राचुर्य, आधिक्य
- सम्पद्—स्त्री॰—-—सम् + पद् + क्विप्—कोश
- सम्पद्—स्त्री॰—-—सम् + पद् + क्विप्—लाभ, हित, वरदान
- सम्पद्—स्त्री॰—-—सम् + पद् + क्विप्—सद्गुणों की वृद्धि
- सम्पद्—स्त्री॰—-—सम् + पद् + क्विप्—सजावट
- सम्पद्—स्त्री॰—-—सम् + पद् + क्विप्—सही ढंग
- सम्पद्—स्त्री॰—-—सम् + पद् + क्विप्—मोतियों का हार
- सम्पद्वर—पुं॰—सम्पद्-वर—-—राजा
- सम्पद्विनिमयः—पुं॰—सम्पद्-विनिमयः—-—हितों या सेवाओं का आदान-प्रदान
- सम्पन्न—भू॰ क॰ कृ॰—-—सम् + पद् + क्त—समृद्धिशाली, फलता-फूलता, धनाढय
- सम्पन्न—भू॰ क॰ कृ॰—-—सम् + पद् + क्त—भाग्यशाली, सफल, प्रसन्न
- सम्पन्न—भू॰ क॰ कृ॰—-—सम् + पद् + क्त—कार्यान्वित, साघित, निष्पन्न
- सम्पन्न—भू॰ क॰ कृ॰—-—सम् + पद् + क्त—पूरा किया गया, पूर्ण कर दिया गया
- सम्पन्न—भू॰ क॰ कृ॰—-—सम् + पद् + क्त—पूर्ण
- सम्पन्न—भू॰ क॰ कृ॰—-—सम् + पद् + क्त—पूर्णविकसित, परिपक्व
- सम्पन्न—भू॰ क॰ कृ॰—-—सम् + पद् + क्त—प्राप्त किया गया, हासिल किया गया
- सम्पन्न—भू॰ क॰ कृ॰—-—सम् + पद् + क्त—शुद्ध, सही
- सम्पन्न—भू॰ क॰ कृ॰—-—सम् + पद् + क्त—सहित, युक्त
- सम्पन्न—भू॰ क॰ कृ॰—-—सम् + पद् + क्त—हुआ, घटित
- सम्पन्नः—पुं॰—-—-—शिव का विशेषण
- सम्पन्नम्—नपुं॰—-—-—धन, दौलत
- सम्पन्नम्—नपुं॰—-—-—स्वादिष्ट भोजन, मधुर और मजेदार भोजन
- सम्परायः—पुं॰—-—सम् + परा + इ + अच्—संघर्ष, मुठभेड़, संग्राम, युद्ध
- सम्परायः—पुं॰—-—सम् + परा + इ + अच्—संकट, दुर्भाग्य
- सम्परायः—पुं॰—-—सम् + परा + इ + अच्—भावी स्थिति, भविष्य
- सम्परायः—पुं॰—-—सम् + परा + इ + अच्—पुत्र
- सम्परायकम्—नपुं॰—-—सम्पराय + कन्—मुठभेड़, संग्राम, युद्ध
- सम्परायिकम्—नपुं॰—-—सम्पराय + ठन् —मुठभेड़, संग्राम, युद्ध
- सम्पर्कः—पुं॰—-—सम् + पृच् + घञ्—मिश्रण
- सम्पर्कः—पुं॰—-—सम् + पृच् + घञ्—मिलाप, मेलजोल, स्पर्श
- सम्पर्कः—पुं॰—-—सम् + पृच् + घञ्—मण्डली, समाज, साथ
- सम्पर्कः—पुं॰—-—सम् + पृच् + घञ्—मैथुन, संभोग
- सम्पा—स्त्री॰—-—सम्यक् अतर्कित पतति - सम् + पत् + ड टाप्—बिजली
- सम्पाक—वि॰—-—सम्यक् पाको यस्य यस्मात् वा - प्रा॰ ब॰—सुतार्किक, खूब बहस करने वाला
- सम्पाक—वि॰—-—सम्यक् पाको यस्य यस्मात् वा - प्रा॰ ब॰—चालाक, चलता पुरजा
- सम्पाक—वि॰—-—सम्यक् पाको यस्य यस्मात् वा - प्रा॰ ब॰—लम्पट, बिलासी
- सम्पाक—वि॰—-—सम्यक् पाको यस्य यस्मात् वा - प्रा॰ ब॰—थोड़ा, अल्प
- सम्पाकः—पुं॰—-—-—परिपक्व होना
- सम्पाकः—पुं॰—-—-—आरग्वध वृक्ष
- सम्पाटः—पुं॰—-—सम् + पट् +णिच् + घञ्—त्रिभुज की बढ़ी हुई भुजा से किसी रेखा का मिलना
- सम्पाटः—पुं॰—-—सम् + पट् +णिच् + घञ्—तकुआ
- सम्पातः—पुं॰—-—सम् + पत् + घञ्—मिलकर गिरना, सहगमन
- सम्पातः—पुं॰—-—सम् + पत् + घञ्—आपस में मिलना, मुठभेड़ होना
- सम्पातः—पुं॰—-—सम् + पत् + घञ्—टक्कर, भिड़न्त
- सम्पातः—पुं॰—-—सम् + पत् + घञ्—अधःपतन, उतरना
- सम्पातः—पुं॰—-—सम् + पत् + घञ्—उतरना
- सम्पातः—पुं॰—-—सम् + पत् + घञ्—उड़ान
- सम्पातः—पुं॰—-—सम् + पत् + घञ्—जाना, हिलना-जुलना
- सम्पातः—पुं॰—-—सम् + पत् + घञ्—हटाया जाना, हटाना
- सम्पातः—पुं॰—-—सम् + पत् + घञ्—पक्षियों की उड़ान
- सम्पातः—पुं॰—-—सम् + पत् + घञ्—अवशिष्ट अंश, उच्छिष्ट
- सम्पातिः—पुं॰—-—सम् + पत् + णिच + इन्—एक पौराणिक पक्षी, गरुड़ का पुत्र, जटायु का बड़ा भाई
- सम्पादः—पुं॰—-—सम् + पत् + णिच + घञ्—पूर्ति, निष्पन्नता
- सम्पादः—पुं॰—-—सम् + पत् + णिच + घञ्—अभिग्रहण
- सम्पादनम्—नपुं॰—-—सम् + पद् + णिच + ल्युट्—निष्पादन, कार्यान्वयन, पूरा करना
- सम्पादनम्—नपुं॰—-—सम् + पद् + णिच + ल्युट्—उपार्जन करना, प्राप्त करना, अवाप्त करना
- सम्पादनम्—नपुं॰—-—सम् + पद् + णिच + ल्युट्—स्वच्छ करना, साफ करना, (भूमि आदि) तैयार करना
- सम्पिण्डित—भू॰ क॰ कृ॰—-—सम् + पिण्ड् + क्त—राशीकृत
- सम्पिण्डित—भू॰ क॰ कृ॰—-—सम् + पिण्ड् + क्त—सिकुड़ा हुआ
- सम्पीडः—पुं॰—-—सम् + पीड् + घञ्—निचोड़ना, भींचना
- सम्पीडः—पुं॰—-—सम् + पीड् + घञ्—पीडा, यातना
- सम्पीडः—पुं॰—-—सम् + पीड् + घञ्—विक्षोभ, बाधा
- सम्पीडः—पुं॰—-—सम् + पीड् + घञ्—भेजना, निदेशन, आगे-आगे हांकना, प्रणोदन
- सम्पीडनम्—नपुं॰—-—सम् + पीड् + ल्युट्—निचोड़ना, मिलाकर दाबना
- सम्पीडनम्—नपुं॰—-—सम् + पीड् + ल्युट्—प्रेषण
- सम्पीडनम्—नपुं॰—-—सम् + पीड् + ल्युट्—दण्ड, कशाघात
- सम्पीडनम्—नपुं॰—-—सम् + पीड् + ल्युट्—झकोलना, क्षुब्ध होना
- सम्पीतिः—स्त्री॰—-—सम् + पा + क्तिन्—मिलकर पीना, सहपान
- सम्पुटः—पुं॰—-—सम् + पुट् + क—गह्वर
- सम्पुटः—पुं॰—-—सम् + पुट् + क—रत्नपेटी, डिब्बा
- सम्पुटः—पुं॰—-—सम् + पुट् + क—कुरवक फूल
- सम्पुटकः—पुं॰—-—सम्पुट + कन्, इत्वम्—संदूक, रत्नपेटी
- सम्पुटिका—स्त्री॰—-—सम्पुटक + टाप्, इत्वम्—संदूक, रत्नपेटी
- सम्पूर्ण—वि॰—-—सम् + पूर् + क्त—भरा हुआ
- सम्पूर्ण—वि॰—-—सम् + पूर् + क्त—सारे, सारा
- सम्पूर्णम्—नपुं॰—-—सम् + पूर् + क्त—अन्तरिक्ष
- सम्पृक्त—भू॰ क॰ कृ॰—-—सम् + पृच् + क्त—एकीकृत, मिश्रित
- सम्पृक्त—भू॰ क॰ कृ॰—-—सम् + पृच् + क्त—संयुक्त, संबद्ध, घनिष्ठ, संबंध से युक्त
- सम्पृक्त—भू॰ क॰ कृ॰—-—सम् + पृच् + क्त—स्पर्श करना
- सम्प्रक्षालनम्—नपुं॰—-—सम् + प्र + क्षल् + णिच् + ल्युट्—पूर्णमार्जन
- सम्प्रक्षालनम्—नपुं॰—-—सम् + प्र + क्षल् + णिच् + ल्युट्—स्नान, नहलाई-धुलाई
- सम्प्रक्षालनम्—नपुं॰—-—सम् + प्र + क्षल् + णिच् + ल्युट्—जल-प्रलय
- सम्प्रणेतृ—पुं॰—-—सम् + प्र + णी + तृच्—शासक, न्यायधीश
- सम्प्रति—अव्य॰—-—सम् + प्रति - द्व॰ स॰—अब, हाल में, इस समय
- सम्प्रतिपत्तिः—स्त्री॰—-—सम् + प्रति + पद् + क्तिन्—उपगमन, पहुँच
- सम्प्रतिपत्तिः—स्त्री॰—-—सम् + प्रति + पद् + क्तिन्—उपस्थिति
- सम्प्रतिपत्तिः—स्त्री॰—-—सम् + प्रति + पद् + क्तिन्—लाभ, प्राप्ति, उपलब्धि
- सम्प्रतिपत्तिः—स्त्री॰—-—सम् + प्रति + पद् + क्तिन्—करार
- सम्प्रतिपत्तिः—स्त्री॰—-—सम् + प्रति + पद् + क्तिन्—मानना, स्वीकार कर लेना
- सम्प्रतिपत्तिः—स्त्री॰—-—सम् + प्रति + पद् + क्तिन्—किसी तथ्य को मानना, कानून में विशेष प्रकार का उत्तर
- सम्प्रतिपत्तिः—स्त्री॰—-—सम् + प्रति + पद् + क्तिन्—धावा, आक्रमण
- सम्प्रतिपत्तिः—स्त्री॰—-—सम् + प्रति + पद् + क्तिन्—घटना
- सम्प्रतिपत्तिः—स्त्री॰—-—सम् + प्रति + पद् + क्तिन्—सहयोग
- सम्प्रतिपत्तिः—स्त्री॰—-—सम् + प्रति + पद् + क्तिन्—करना, अनुष्ठान
- सम्प्रतिरोधकः—पुं॰—-—सम् + प्रति + रुध् + घञ् + कन्—पूरा अवरोध
- सम्प्रतिरोधकः—पुं॰—-—सम् + प्रति + रुध् + घञ् + कन्—कैद, जेल
- सम्प्रतिरोधकम्—नपुं॰—-—सम् + प्रति + रुध् + घञ् + कन्—पूरा अवरोध
- सम्प्रतिरोधकम्—नपुं॰—-—सम् + प्रति + रुध् + घञ् + कन्—कैद, जेल
- सम्प्रतीक्षा—स्त्री॰—-—सम् + प्रति + ईक्ष् + अङ् + टाप्—आशा लगाना या बाँधना
- सम्प्रतीत—भू॰ क॰ कृ॰—-—सम् + प्रति + इ + क्त—वापिस आया हुआ
- सम्प्रतीत—भू॰ क॰ कृ॰—-—सम् + प्रति + इ + क्त—पूर्णतः विश्वास दिलाया हुआ
- सम्प्रतीत—भू॰ क॰ कृ॰—-—सम् + प्रति + इ + क्त—प्रमाणित, माना हुआ
- सम्प्रतीत—भू॰ क॰ कृ॰—-—सम् + प्रति + इ + क्त—विश्रुत
- सम्प्रतीत—भू॰ क॰ कृ॰—-—सम् + प्रति + इ + क्त—सम्मान पूर्ण
- सम्प्रतीतिः—स्त्री॰—-—सम् + प्रति + इ + क्तिन्—पूरा निश्चय
- सम्प्रतीतिः—स्त्री॰—-—सम् + प्रति + इ + क्तिन्—कार्यपालन, प्रसिद्धि, ख्याति, कुख्याति
- सम्प्रत्ययः—पुं॰—-—सम् + प्रति + इ + अच्—दृढ़ विश्वास
- सम्प्रत्ययः—पुं॰—-—सम् + प्रति + इ + अच्—करार
- सम्प्रदानम्—नपुं॰—-—सम् + प्रा + दा + ल्युट्—पूरी तरह से दे देना, हवाले कर देना
- सम्प्रदानम्—नपुं॰—-—सम् + प्रा + दा + ल्युट्—उपहार भेंट, दान
- सम्प्रदानम्—नपुं॰—-—सम् + प्रा + दा + ल्युट्—विवाह कर देना
- सम्प्रदानम्—नपुं॰—-—सम् + प्रा + दा + ल्युट्—चतुर्थी विभक्ति के द्वारा अभिव्यक्त अर्थ
- सम्प्रदानीयम्—नपुं॰—-—सम् + प्र = दा + अनीयर्—भेंट, दान
- सम्प्रदायः—पुं॰—-—सम् + प्र + दा + घञ्—परंपरा, परंपरा प्राप्त सिद्धान्त या ज्ञान, परम्परा प्राप्त शिक्षा
- सम्प्रदायः—पुं॰—-—सम् + प्र + दा + घञ्—धर्म - शिक्षा की विशेष पद्धति, धार्मिक सिद्धान्त जिसके द्वारा किसी देवता विशेष की पूजा बतलाई जाय
- सम्प्रदायः—पुं॰—-—सम् + प्र + दा + घञ्—प्रचलित प्रथा, प्रचलन
- सम्प्रधानम्—नपुं॰—-—सम् + प्र + धा + ल्युट्—निश्चय करना
- सम्प्रधारणम्—नपुं॰—-—सम् + प्र + णिच् + ल्युट्—विचार
- सम्प्रधारणम्—नपुं॰—-—सम् + प्र + णिच् + ल्युट्—किसी वस्तु का औचित्य या अनौचित्य निर्धारित करना
- सम्प्रधारणा—स्त्री॰—-—सम् + प्र + णिच् + ल्युट्—विचार
- सम्प्रधारणा—स्त्री॰—-—सम् + प्र + णिच् + ल्युट्—किसी वस्तु का औचित्य या अनौचित्य निर्धारित करना
- सम्प्रपदः—पुं॰—-—सम् + प्र + पद् + क—पर्यटन, भ्रमण
- सम्प्रभिन्न—भू॰ क॰ कृ॰—-—सम् + प्र + भिद् + क्त—फटा हुआ, चिरा हुआ
- सम्प्रभिन्न—भू॰ क॰ कृ॰—-—सम् + प्र + भिद् + क्त—मद में मत्त
- सप्रमोदः—पुं॰—-—सम् + प्र + मुद् + घञ्—हर्षातिरेक, उल्लास
- सम्प्रमोषः—पुं॰—-—सम् + प्र + मुष् + घञ्—हानि, विनाश, पृथक्करण, अलगाव
- सम्प्रयाणम्—नपुं॰—-—सम् + प्र + या + ल्युट्—बिदाई
- सम्प्रयोगः—पुं॰—-—सम् + प्र + युज् + घञ्—संयोग, मिलाप, सम्मिलन, संयोजन, सम्पर्क
- सम्प्रयोगः—पुं॰—-—सम् + प्र + युज् + घञ्—संयोजक कड़ी, बंधन या जकड़न
- सम्प्रयोगः—पुं॰—-—सम् + प्र + युज् + घञ्—संबंध, निर्भरता
- सम्प्रयोगः—पुं॰—-—सम् + प्र + युज् + घञ्—पारस्परिक संबन्ध या अनुपात
- सम्प्रयोगः—पुं॰—-—सम् + प्र + युज् + घञ्—संयुक्त श्रेणी या क्रम
- सम्प्रयोगः—पुं॰—-—सम् + प्र + युज् + घञ्—मैथुन, संभोग
- सम्प्रयोगः—पुं॰—-—सम् + प्र + युज् + घञ्—प्रयोग
- सम्प्रयोगः—पुं॰—-—सम् + प्र + युज् + घञ्—जादू
- सम्प्रयोगिन्—वि॰—-—सम् + प्र + युज् + घिनुण्—साथ साथ मिलने वाला
- सम्प्रयोगिन्—पुं॰—-—सम् + प्र + युज् + घिनुण्—मेलापक, संयोजक
- सम्प्रयोगिन्—पुं॰—-—सम् + प्र + युज् + घिनुण्—बाजीगर
- सम्प्रयोगिन्—पुं॰—-—सम् + प्र + युज् + घिनुण्—लम्पट
- सम्प्रयोगिन्—पुं॰—-—सम् + प्र + युज् + घिनुण्—चुल्ली, गांडू
- सम्प्रवृष्टम्—नपुं॰—-—सम् + प्र + वृष् + क्त—अच्छी वर्षा
- सम्प्रश्नः—पुं॰—-—सम्यक् प्रश्नः - प्रा॰ स॰—पूरी या शिष्टतापूर्ण पूछ-ताछ
- सम्प्रश्नः—पुं॰—-—सम्यक् प्रश्नः - प्रा॰ स॰—पृच्छा, पूछ-ताछ
- सम्प्रसादः—पुं॰—-—सम् + प्र + सद् + घञ्—प्रसादन, तुष्टीकरण
- सम्प्रसादः—पुं॰—-—सम् + प्र + सद् + घञ्— अनुग्रह, कृपा
- सम्प्रसादः—पुं॰—-—सम् + प्र + सद् + घञ्—शान्ति, सौम्यता
- सम्प्रसादः—पुं॰—-—सम् + प्र + सद् + घञ्—विश्वास, भरोसा
- सम्प्रसादः—पुं॰—-—सम् + प्र + सद् + घञ्—आत्मा
- सम्प्रसारणम्—नपुं॰—-—सम् + प्र + सृ + णिच् + ल्युट्—य, व, र, ल के स्थान पर क्रमशः इ, उ, ऋ या लृ को रखना
- सम्प्रहारः—पुं॰—-—सम् + प्र + हृ + घञ्—पारस्परिक प्रहार
- सम्प्रहारः—पुं॰—-—सम् + प्र + हृ + घञ्—मुठभेड़, संग्राम, युद्ध, संघर्ष
- सम्प्राप्तिः—स्त्री॰—-—सम् + प्र + आप् + क्तिन्— निष्पत्ति, अभिग्रहण
- सम्प्रीतिः—स्त्री॰—-—सम् + प्री + क्तिन्— अनुराग, स्नेह
- सम्प्रीतिः—स्त्री॰—-—सम् + प्री + क्तिन्—सद्भावना, मैत्रीपूर्ण स्वीकृति
- सम्प्रीतिः—स्त्री॰—-—सम् + प्री + क्तिन्—हर्ष, उल्लास
- सप्रेक्षणम्—नपुं॰—-—सम् + प्र + ईक्ष् + ल्युट्—अवेक्षण, अवलोकन
- सप्रेक्षणम्—नपुं॰—-—सम् + प्र + ईक्ष् + ल्युट्—विचार करना, गवेषणा करना
- सम्प्रैषः—पुं॰—-—सम् + प्र + इष् + घञ्—भेजना, बर्खास्तगी
- सम्प्रैषः—नपुं॰—-—सम् + प्र + इष् + घञ्—निदेश, समादेश, आज्ञा
- सम्प्रोक्षणम्—पुं॰—-—सम् + प्र + उक्ष् + ल्युट्—मार्जन, जल के छींटे देना, अभिमंत्रित जल छिड़कना
- सम्लवः—पुं॰—-—सम् + प्लु + अप्—प्लावन, जलप्रलय
- सम्लवः—पुं॰—-—सम् + प्लु + अप्—लहर
- सम्लवः—पुं॰—-—सम् + प्लु + अप्—बाढ़
- सम्लवः—पुं॰—-—सम् + प्लु + अप्—बर्बाद हो जाना
- सम्लवः—पुं॰—-—सम् + प्लु + अप्—विध्वंस, तहसनहस
- सम्फालः—पुं॰—-—सम्यक् फालो गमनं यस्य - प्रा॰ ब॰—मेढ़ा, भेड़
- सम्फेटः—पुं॰—-—सम्यक् फालो गमनं यस्य - प्रा॰ ब॰—क्रोधपूर्ण संघर्ष, दो क्रुद्ध व्यक्तियों की पारस्परिक मुठभेड़ को अभिव्यक्त करने वाली घटना
- सम्ब्—भ्वा॰ पर॰ <सम्बति>—-—-—जाना, हिलना-जुलना
- सम्ब्—चुरा॰ उभ॰ <सम्बयति> <सम्बयते>—-—-—संग्रह करना, संचय करना
- सम्बम्—नपुं॰—-—सम्ब् + अच्—खेत को दूसरी बार जोतना
- सम्बाकृ——-—-—दो बार हल चलाना
- सम्बद्ध—भू॰ क॰ कृ॰—-—सम् + बंध् + क्त—संग्रथित, मिलाकर बांधा हुआ
- सम्बद्ध—भू॰ क॰ कृ॰—-—सम् + बंध् + क्त—अनुरक्त
- सम्बद्ध—भू॰ क॰ कृ॰—-—सम् + बंध् + क्त—संयुक्त, जुड़ा हुआ, संबंध रखने वाला
- सम्बद्ध—भू॰ क॰ कृ॰—-—सम् + बंध् + क्त—सहित
- सम्बन्धः—पुं॰—-—सम् + बन्ध् + घञ्—संयोग, मिलाप, साहचर्य
- सम्बन्धः—पुं॰—-—सम् + बन्ध् + घञ्—रिश्ता, रिश्तेदारी
- सम्बन्धः—पुं॰—-—सम् + बन्ध् + घञ्—छठी विभक्ति या संबंध कारक के अर्थस्वरुप संबंध
- सम्बन्धः—पुं॰—-—सम् + बन्ध् + घञ्—वैवाहिक संपर्क
- सम्बन्धः—पुं॰—-—सम् + बन्ध् + घञ्—मित्रता का संबंध, मैत्री
- सम्बन्धः—पुं॰—-—सम् + बन्ध् + घञ्—योग्यता, औचित्य
- सम्बन्धः—पुं॰—-—सम् + बन्ध् + घञ्—समृद्धि, सफलता
- सम्बन्धक—वि॰—-—सम् + बन्ध् + ण्वुल्—रिश्ता रखने वाला, संबंध रखने वाला
- सम्बन्धक—वि॰—-—सम् + बन्ध् + ण्वुल्—योग्य, उपयुक्त
- सम्बन्धकः—पुं॰—-—सम् + बन्ध् + ण्वुल्—मित्र, जन्म या विवाह के कारण बना संबंध, एक प्रकार की शान्ति
- सम्बन्धिन्—वि॰—-—सम्बन्ध + णिनि—संबंध रखने वाला
- सम्बन्धिन्—वि॰—-—सम्बन्ध + णिनि—संयुक्त, जुड़ा हुआ, अन्तर्हित
- सम्बन्धिन्—वि॰—-—सम्बन्ध + णिनि—अच्छे गुणों से युक्त
- सम्बन्धिन्—पुं॰—-—सम्बन्ध + णिनि—विवाह के फलस्वरुप बनी बन्धुता
- सम्बन्धिन्—पुं॰—-—सम्बन्ध + णिनि—रिश्तेदार, बन्धु
- सम्बरः—पुं॰—-—सम्ब् + अरन्—बाँध, पुल
- सम्बरः—पुं॰—-—सम्ब् + अरन्—एक हरिण विशेष
- सम्बरः—पुं॰—-—सम्ब् + अरन्—प्रद्युम्न के द्वारा मारा गया राक्षस
- सम्बरः—पुं॰—-—सम्ब् + अरन्—पहाड़ का नाम
- सम्बरम्—नपुं॰—-—सम्ब् + अरन्—प्रतिबंध
- सम्बरम्—नपुं॰—-—सम्ब् + अरन्—जल
- सम्बरारिः—पुं॰—सम्बर-अरिः—-— कामदेव
- सम्बररिपुः—पुं॰—सम्बर-रिपुः—-— कामदेव
- सम्बलः —पुं॰—-—सम्ब् + कलच्—पाथेय, यात्रा के लिए सामग्री, मार्गव्यय
- सम्बलम्—नपुं॰—-—सम्ब् + कलच्—पाथेय, यात्रा के लिए सामग्री, मार्गव्यय
- सम्बलम्—नपुं॰—-—सम्ब् + कलच्—पानी
- सम्बाध—वि॰—-—सम्यक् बाधा यत्र - प्रा॰ ब॰—संकुल, भीड़ से युक्त, अवरुध, संकीर्ण
- सम्बाधः—पुं॰—-—सम्यक् बाधा यत्र - प्रा॰ ब॰—भीड़ का होना
- सम्बाधः—पुं॰—-—सम्यक् बाधा यत्र - प्रा॰ ब॰—दबाव, घिसर, चोट
- सम्बाधः—पुं॰—-—सम्यक् बाधा यत्र - प्रा॰ ब॰—रुकावट, कठिनाई, भय, विघ्न
- सम्बाधः—पुं॰—-—सम्यक् बाधा यत्र - प्रा॰ ब॰—नरक का मार्ग
- सम्बाधः—पुं॰—-—सम्यक् बाधा यत्र - प्रा॰ ब॰—डर, भय
- सम्बाधः—पुं॰—-—सम्यक् बाधा यत्र - प्रा॰ ब॰—भग, योनि
- सम्बाधनम्—नपुं॰—-—सं + बाध् + ल्युट्—रोकना, अवरोध
- सम्बाधनम्—नपुं॰—-—सं + बाध् + ल्युट्—भींचना
- सम्बाधनम्—नपुं॰—-—सं + बाध् + ल्युट्—शुल्कद्वार, फाटक
- सम्बाधनम्—नपुं॰—-—सं + बाध् + ल्युट्—योनि, भग
- सम्बाधनम्—नपुं॰—-—सं + बाध् + ल्युट्—सूली, या सूली की नोक
- सम्बाधनम्—नपुं॰—-—सं + बाध् + ल्युट्—द्वारपाल
- सम्बुद्धिः—स्त्री॰—-—सम् + बुध् + क्तिन्—पूर्ण ज्ञान या प्रत्यक्षज्ञान
- सम्बुद्धिः—स्त्री॰—-—सम् + बुध् + क्तिन्—पूर्ण चेतना
- सम्बुद्धिः—स्त्री॰—-—सम् + बुध् + क्तिन्—पुकारना, बुलाना
- सम्बुद्धिः—स्त्री॰—-—सम् + बुध् + क्तिन्—संबोधन कारक
- सम्बोधः—पुं॰—-—सम् + बुध् + घञ्—व्याख्या करना, निर्देश देना, सूचित करना
- सम्बोधः—पुं॰—-—सम् + बुध् + घञ्—पूर्ण या सही प्रत्यक्षज्ञान
- सम्बोधः—पुं॰—-—सम् + बुध् + घञ्—भेजना, फेंक देना
- सम्बोधः—पुं॰—-—सम् + बुध् + घञ्—हानि, विनाश
- सम्बोधनम्—नपुं॰—-—स + बुध् + णिच् + ल्युट्—व्याख्या करना
- सम्बोधनम्—नपुं॰—-—स + बुध् + णिच् + ल्युट्—संबोधित करना
- सम्बोधनम्—नपुं॰—-—स + बुध् + णिच् + ल्युट्—संबोधन कारक
- सम्बोधनम्—नपुं॰—-—स + बुध् + णिच् + ल्युट्—विशेषण
- सम्भक्तिः—स्त्री॰—-—सम् + भज् + क्तिन्—हिस्सा लेना, अधिकार करना
- सम्भक्तिः—स्त्री॰—-—सम् + भज् + क्तिन्—वितरण करना
- सम्भग्न—भू॰ क॰ कृ॰—-—सम् + भज् + क्त—छिन्न-भिन्न, तितर-बितर
- सम्भग्नः—पुं॰—-—-—शिव का विशेषण
- सम्भली—स्त्री॰—-—सम् + भल् + अच् + ङीष्—दूती, कुटनी
- सम्भवः—पुं॰—-—सम् + भू + अप्—जन्म, उत्पत्ति, फूटना, उगना, अस्तित्व
- सम्भवः—पुं॰—-—सम् + भू + अप्—उत्पादन, पालन-पोषण
- सम्भवः—पुं॰—-—सम् + भू + अप्— कारण, मूल, प्रयोजन
- सम्भवः—पुं॰—-—सम् + भू + अप्—मिलाना, मिलाप, सम्मिश्रण
- सम्भवः—पुं॰—-—सम् + भू + अप्—संभावना
- सम्भवः—पुं॰—-—सम् + भू + अप्—समनुकूलता, संगति
- सम्भवः—पुं॰—-—सम् + भू + अप्—अनुकूलन, उपयुक्तता
- सम्भवः—पुं॰—-—सम् + भू + अप्—करार, पुष्टि
- सम्भवः—पुं॰—-—सम् + भू + अप्—धारिता
- सम्भवः—पुं॰—-—सम् + भू + अप्—समानता
- सम्भवः—पुं॰—-—सम् + भू + अप्—परिचय
- सम्भवः—पुं॰—-—सम् + भू + अप्—हानि, विनाश
- सम्भारः—पुं॰—-—सम् + भृ + घञ्—एकत्र मिलाना, संग्रह करना
- सम्भारः—पुं॰—-—सम् + भृ + घञ्—तैयारी, सामग्री, आवश्यक वस्तुएँ, अपेक्षित वस्तुएं, उपकरण, किसी कार्य के लिए आवश्यक वस्तुएँ
- सम्भारः—पुं॰—-—सम् + भृ + घञ्—अवयव, संघटक, उपादान
- सम्भारः—पुं॰—-—सम् + भृ + घञ्—समुच्चय, ढेर, राशि, संघात, जैसा कि ‘शस्त्रास्त्रसम्भार’ में
- सम्भारः—पुं॰—-—सम् + भृ + घञ्—पूर्णता
- सम्भारः—पुं॰—-—सम् + भृ + घञ्—दौलत, धनाढ्यता
- सम्भारः—पुं॰—-—सम् + भृ + घञ्—संधारण, पालन-पोषण
- सम्भावनम्—नपुं॰—-—सम् + भू + णिच् + ल्युट्—विचारना, विचार-विमर्श करना
- सम्भावनम्—नपुं॰—-—सम् + भू + णिच् + ल्युट्—उद्भावना, उत्प्रेक्षा
- सम्भावनम्—नपुं॰—-—सम् + भू + णिच् + ल्युट्—विचार, कल्पना, चिन्तन
- सम्भावनम्—नपुं॰—-—सम् + भू + णिच् + ल्युट्—आदर, सम्मान, मान, प्रतिष्ठा
- सम्भावनम्—नपुं॰—-—सम् + भू + णिच् + ल्युट्—शक्यता
- सम्भावनम्—नपुं॰—-—सम् + भू + णिच् + ल्युट्—योग्यता, पर्याप्तता
- सम्भावनम्—नपुं॰—-—सम् + भू + णिच् + ल्युट्—सक्षमता, योग्यता
- सम्भावनम्—नपुं॰—-—सम् + भू + णिच् + ल्युट्—संदेह
- सम्भावनम्—नपुं॰—-—सम् + भू + णिच् + ल्युट्—स्नेह, प्रेम
- सम्भावनम्—नपुं॰—-—सम् + भू + णिच् + ल्युट्—ख्याति
- सम्भावना—स्त्री॰—-—सम् + भू + णिच् + ल्युट्+ टाप्—विचारना, विचार-विमर्श करना
- सम्भावना—स्त्री॰—-—सम् + भू + णिच् + ल्युट्+ टाप्—उद्भावना, उत्प्रेक्षा
- सम्भावना—स्त्री॰—-—सम् + भू + णिच् + ल्युट्+ टाप्—विचार, कल्पना, चिन्तन
- सम्भावना—स्त्री॰—-—सम् + भू + णिच् + ल्युट्+ टाप्—आदर, सम्मान, मान, प्रतिष्ठा
- सम्भावना—स्त्री॰—-—सम् + भू + णिच् + ल्युट्+ टाप्—शक्यता
- सम्भावना—स्त्री॰—-—सम् + भू + णिच् + ल्युट्+ टाप्—योग्यता, पर्याप्तता
- सम्भावना—स्त्री॰—-—सम् + भू + णिच् + ल्युट्+ टाप्—सक्षमता, योग्यता
- सम्भावना—स्त्री॰—-—सम् + भू + णिच् + ल्युट्+ टाप्—संदेह
- सम्भावना—स्त्री॰—-—सम् + भू + णिच् + ल्युट्+ टाप्—स्नेह, प्रेम
- सम्भावना—स्त्री॰—-—सम् + भू + णिच् + ल्युट्+ टाप्—ख्याति
- सम्भावित—भू॰ क॰ कृ॰—-—सम् + भू + णिच् + क्त—चिन्तित, कल्पित, विचारित
- सम्भावित—भू॰ क॰ कृ॰—-—सम् + भू + णिच् + क्त—प्रतिष्ठित, सम्मानित, आदरित
- सम्भाषः—पुं॰—-—सम् + भाष् + घञ्—समालाप
- सम्भाषा—स्त्री॰—-—संभाष + टाप्—प्रवचन, समालाप
- सम्भाषा—स्त्री॰—-—संभाष + टाप्— अभिवादन
- सम्भाषा—स्त्री॰—-—संभाष + टाप्—आपराधिक संबंध
- सम्भाषा—स्त्री॰—-—संभाष + टाप्—करार, संविदा
- सम्भाषा—स्त्री॰—-—संभाष + टाप्—संकेत-शब्द, युद्धघोष
- सम्भूतिः—स्त्री॰—-—सम् + भू + क्तिन्—जन्म, उद्भव, उत्पत्ति
- सम्भूतिः—स्त्री॰—-—सम् + भू + क्तिन्—सम्मिश्रण, मिलाप
- सम्भूतिः—स्त्री॰—-—सम् + भू + क्तिन्—योग्यता, उपयुक्तता
- सम्भूतिः—स्त्री॰—-—सम् + भू + क्तिन्—शक्ति
- सम्भृत—भू॰ क॰ कृ॰—-—सम् + भृ + क्त—एकत्रित, संगृहीत, संकेन्द्रित
- सम्भृत—भू॰ क॰ कृ॰—-—सम् + भृ + क्त—उद्यत, तैयार, अन्वित, सज्जित
- सम्भृत—भू॰ क॰ कृ॰—-—सम् + भृ + क्त— सुसज्जित, संपन्न, युक्त, सहित
- सम्भृत—भू॰ क॰ कृ॰—-—सम् + भृ + क्त—रक्खा हुआ, जमा किया हुआ
- सम्भृत—भू॰ क॰ कृ॰—-—सम् + भृ + क्त—पूर्ण, पूरा, समस्त
- सम्भृत—भू॰ क॰ कृ॰—-—सम् + भृ + क्त—लब्ध, अवाप्त
- सम्भृत—भू॰ क॰ कृ॰—-—सम् + भृ + क्त—ले जाया गया, वहन किया गया
- सम्भृत—भू॰ क॰ कृ॰—-—सम् + भृ + क्त—पोषित
- सम्भृत—भू॰ क॰ कृ॰—-—सम् + भृ + क्त—उत्पादित, पैदा किया गया
- सम्भृतिः—स्त्री॰—-—सम् + भृ + क्तिन्—संग्रह
- सम्भृतिः—स्त्री॰—-—सम् + भृ + क्तिन्—तैयारी, साज-समान, सामग्री
- सम्भृतिः—स्त्री॰—-—सम् + भृ + क्तिन्—पूर्णता
- सम्भृतिः—स्त्री॰—-—सम् + भृ + क्तिन्—सहारा, संधारण, पोषण
- सम्भेदः—पुं॰—-—सम् + भिद् + घञ्—टूटना, टुकड़े-टुकड़े करना
- सम्भेदः—पुं॰—-—सम् + भिद् + घञ्—मिलाप, मिश्रण, सम्मिश्रण
- सम्भेदः—पुं॰—-—सम् + भिद् + घञ्—मिलना
- सम्भेदः—पुं॰—-—सम् + भिद् + घञ्—संगम, मिलन
- सम्भोगः—पुं॰—-—सम् + भुज् + घञ्—आनन्द लेना, मजे लेना
- सम्भोगः—पुं॰—-—सम् + भुज् + घञ्—कब्जा, उपयोग, अधिकृति
- सम्भोगः—पुं॰—-—सम् + भुज् + घञ्— रति रस, मैथुन, सहवास
- सम्भोगः—पुं॰—-—सम् + भुज् + घञ्—लम्पट, गांडू
- सम्भोगः—पुं॰—-—सम् + भुज् + घञ्—शृंगाररस का एक उपभेद
- सम्भ्रमः—पुं॰—-—सम् + भ्रम् + घञ्—मुड़ना, आवर्तन, चक्कर काटना
- सम्भ्रमः—पुं॰—-—सम् + भ्रम् + घञ्—जल्दबाजी, उतावली
- सम्भ्रमः—पुं॰—-—सम् + भ्रम् + घञ्—अव्यवस्था, विक्षोभ, हड़बड़ी
- सम्भ्रमः—पुं॰—-—सम् + भ्रम् + घञ्—डर, आतंक, भय
- सम्भ्रमः—पुं॰—-—सम् + भ्रम् + घञ्—त्रुटि, भूल, अज्ञान
- सम्भ्रमः—पुं॰—-—सम् + भ्रम् + घञ्—उत्साह, क्रिया-शीलता
- सम्भ्रमः—पुं॰—-—सम् + भ्रम् + घञ्—आदर, श्रद्धा
- सम्भ्रमज्वलित—वि॰—सम्भ्रम-ज्वलित—-—विक्षोभ से उत्तेजित
- सम्भ्रमभृत्—वि॰—सम्भ्रम-भृत्—-—घबड़ाया हुआ, हड़बड़ाया हुआ
- सम्भ्रान्त—भू॰ क॰ कृ॰—-—सम् + भ्रम् + क्त—आवर्तित
- सम्भ्रान्त—भू॰ क॰ कृ॰—-—सम् + भ्रम् + क्त—हड़बड़ाया हुआ, विक्षुब्ध, विस्मित, व्याकुल
- सम्मत—भू॰ क॰ कृ॰—-—सम् + मन् + क्त—सहमत, स्वीकृत, माना हुआ
- सम्मत—भू॰ क॰ कृ॰—-—सम् + मन् + क्त—पसन्द किया हुआ, प्रिय, प्रियतम
- सम्मत—भू॰ क॰ कृ॰—-—सम् + मन् + क्त—समान, मिलता-जुलता
- सम्मत—भू॰ क॰ कृ॰—-—सम् + मन् + क्त—खयाल किया गया, सोचा गया, विचारा गया
- सम्मत—भू॰ क॰ कृ॰—-—सम् + मन् + क्त—अत्यन्त आदृत, सम्मानित, प्रतिष्ठित
- सम्मतम्—नपुं॰—-—-—सहमति
- सम्मतिः—स्त्री॰—-—-—सहमति
- सम्मतिः—स्त्री॰—-—-—समनुकूलता, मान्यता, अनुमोदन, समर्थन
- सम्मतिः—स्त्री॰—-—-—अभिलाषा, इच्छा
- सम्मतिः—स्त्री॰—-—-—आत्मज्ञान, आत्मा की जानकारी, सत्यज्ञान
- सम्मतिः—स्त्री॰—-—-—खयाल, आदर, प्रतिष्ठा
- सम्मतिः—स्त्री॰—-—-—प्रेम, स्नेह
- सम्मदः—पुं॰—-—सम् + मद् + अप्— अतिहर्ष, खुशी, प्रसन्नता
- सम्मर्दः—पुं॰—-—सम् + मृद् + घञ्—आपस में घिसना, घर्षण
- सम्मर्दः—पुं॰—-—सम् + मृद् + घञ्—जमघट, भीड़, जमाव
- सम्मर्दः—पुं॰—-—सम् + मृद् + घञ्—कुचलना, पैरों से रौंदना
- सम्मर्दः—पुं॰—-—सम् + मृद् + घञ्—संग्राम, युद्ध
- सम्मातुर—पुं॰—-—-—धर्मपरायण माता का पुत्र
- संमातुर—पुं॰—-—-—धर्मपरायण माता का पुत्र
- सम्मादः—पुं॰—-—सम्मद् + घञ्—मद, नशा, पागलपन
- सम्मानः—पुं॰—-—सम् + मन् + घञ्—आदर, प्रतिष्ठा
- सम्मानम्—नपुं॰—-—-—माप
- सम्मानम्—नपुं॰—-—-—तुलना
- सम्मार्जकः—पुं॰—-—सम् + मृज् + ण्वुल्—झाड़ने वाला, बुहारी देने वाला, भंगी
- सम्मार्जनम्—नपुं॰—-—सम् + मृज् + ल्युट्—बुहारना, मांजना
- सम्मार्जनम्—नपुं॰—-—सम् + मृज् + ल्युट्—निर्मल करना, साफ करना, झाड़ना
- सम्मार्जनी—स्त्री॰—-—सम्मार्जन + ङीप्—झाड़ू, बुहारी
- सम्मित—भू॰ क॰ कृ॰—-—सम् + मान् + क्त—मापा हुआ, नापा हुआ
- सम्मित—भू॰ क॰ कृ॰—-—सम् + मान् + क्त—समान माप, विस्तार या मूल्य का, सम, वैसा ही, बराबर मिलता-जुलता
- सम्मित—भू॰ क॰ कृ॰—-—सम् + मान् + क्त—इतना बड़ा जितना कि, पहुँचता हुआ
- सम्मित—भू॰ क॰ कृ॰—-—सम् + मान् + क्त—समरुप, समनुकुल, समानुपातिक
- सम्मित—भू॰ क॰ कृ॰—-—सम् + मान् + क्त—से युक्त, सुसज्जित
- सम्मिश्र <o> सम्मिश्रित—वि॰—-—सेम् + मिश्र् + अच्, क्त वा—परस्पर मिलाया हुआ, अन्तर्मिश्रित
- सम्मिश्लः—पुं॰—-— = सम्मिश्र, पृषो॰ रस्य लः—इन्द्र का विशेषण
- सम्मीलनम्—नपुं॰—-—सम् + मील + ल्युट्—बन्द होना, ढकना, लपेटना
- सम्मुख—वि॰—-—संगतं मुखं येन - प्रा॰ ब॰, सर्वस्य मुखस्य दर्शनः -सममुख + ख, सम शब्दस्य अन्त्यलोपः नि॰—सामने का, सम्मुख स्थित, आमने सामने, अभिमुखी, सामना करने वाला
- सम्मुख—वि॰—-—संगतं मुखं येन - प्रा॰ ब॰, सर्वस्य मुखस्य दर्शनः -सममुख + ख, सम शब्दस्य अन्त्यलोपः नि॰—मुठभेड़ करने वाला, मुकाबला करने वाला
- सम्मुख—वि॰—-—संगतं मुखं येन - प्रा॰ ब॰, सर्वस्य मुखस्य दर्शनः -सममुख + ख, सम शब्दस्य अन्त्यलोपः नि॰—स्वस्थ
- सम्मुखीन—वि॰—-—संगतं मुखं येन - प्रा॰ ब॰, सर्वस्य मुखस्य दर्शनः -सममुख + ख, सम शब्दस्य अन्त्यलोपः नि॰—सामने का, सम्मुख स्थित, आमने सामने, अभिमुखी, सामना करने वाला
- सम्मुखीन—वि॰—-—संगतं मुखं येन - प्रा॰ ब॰, सर्वस्य मुखस्य दर्शनः -सममुख + ख, सम शब्दस्य अन्त्यलोपः नि॰—मुठभेड़ करने वाला, मुकाबला करने वाला
- सम्मुखीन—वि॰—-—संगतं मुखं येन - प्रा॰ ब॰, सर्वस्य मुखस्य दर्शनः -सममुख + ख, सम शब्दस्य अन्त्यलोपः नि॰—स्वस्थ
- सम्मुखिन्—पुं॰—-—सम्मुखस्य अस्ति सम्मुक + इनि—दर्पण, शीशा, आईना
- सम्मूर्छनम्—नपुं॰—-—सम् + मूर्छ् = ल्युट्—मूर्छा, बेहोशी
- सम्मूर्छनम्—नपुं॰—-—सम् + मूर्छ् = ल्युट्—जमता, गाढ़ा होना
- सम्मूर्छनम्—नपुं॰—-—सम् + मूर्छ् = ल्युट्—गाढ़ा करना, बढ़ाना
- सम्मूर्छनम्—नपुं॰—-—सम् + मूर्छ् = ल्युट्—ऊँचाई
- सम्मूर्छनम्—नपुं॰—-—सम् + मूर्छ् = ल्युट्—विश्वव्याप्ति, सह-विस्तार, पूर्ण व्याप्ति
- सम्मृष्ट—भू॰ क॰ कृ॰—-—सम् + मृज् + क्त—भली भांति बुहारा गया, मांजा-धोया गया
- सम्मृष्ट—भू॰ क॰ कृ॰—-—सम् + मृज् + क्त—छना हुआ, छाना हुआ
- सम्मेलनम्—नपुं॰—-—सम् + मिल् + ल्युट्—परस्पर मिलना, मिलाप
- सम्मेलनम्—नपुं॰—-—सम् + मिल् + ल्युट्—मिश्रण
- सम्मेलनम्—नपुं॰—-—सम् + मिल् + ल्युट्—एकत्र करना, संग्रह करना
- सम्मोहः—पुं॰—-—सम् + मुह + घञ्—घबराहट, अव्यवस्था, प्रेमोन्माद
- सम्मोहः—पुं॰—-—सम् + मुह + घञ्—मूर्छा, बेहोशी
- सम्मोहः—पुं॰—-—सम् + मुह + घञ्—अज्ञान, मूर्खता
- सम्मोहः—पुं॰—-—सम् + मुह + घञ्—आकर्षण
- सम्मोहनम्—नपुं॰—-—सम् + मुह + णिच् + ल्युट्—मंत्रमुग्ध करना, वशीकरण
- सम्मोहनः—पुं॰—-—सम् + मुह + णिच् + ल्युट्—कामदेव के पाँच बाणों में से एक
- सम्यच्—वि॰—-—सम् + अञ्च् + क्विन्, समि आदेश पक्षे नलोपः—साथ जाने वाला, साथ रहने वाला
- सम्यच्—वि॰—-—सम् + अञ्च् + क्विन्, समि आदेश पक्षे नलोपः—सही, युक्त, उचित, यथोचित
- सम्यच्—वि॰—-—सम् + अञ्च् + क्विन्, समि आदेश पक्षे नलोपः—शुद्ध, सत्य, यथार्थ
- सम्यच्—वि॰—-—सम् + अञ्च् + क्विन्, समि आदेश पक्षे नलोपः—सुहावना, रुचिकर
- सम्यच्—वि॰—-—सम् + अञ्च् + क्विन्, समि आदेश पक्षे नलोपः—वही, एकरुप
- सम्यच्—वि॰—-—सम् + अञ्च् + क्विन्, समि आदेश पक्षे नलोपः—सब, पूर्ण, समस्त
- सम्यञ्च्—वि॰—-—सम् + अञ्च् + क्विन्, समि आदेश—साथ जाने वाला, साथ रहने वाला
- सम्यञ्च्—वि॰—-—सम् + अञ्च् + क्विन्, समि आदेश—सही, युक्त, उचित, यथोचित
- सम्यञ्च्—वि॰—-—सम् + अञ्च् + क्विन्, समि आदेश—शुद्ध, सत्य, यथार्थ
- सम्यञ्च्—वि॰—-—सम् + अञ्च् + क्विन्, समि आदेश—सुहावना, रुचिकर
- सम्यञ्च्—वि॰—-—सम् + अञ्च् + क्विन्, समि आदेश—वही, एकरुप
- सम्यञ्च्—वि॰—-—सम् + अञ्च् + क्विन्, समि आदेश—सब, पूर्ण, समस्त
- सम्यक्—अव्य॰—-—-—के साथ, साथ-साथ
- सम्यक्—अव्य॰—-—-—अच्छा, उचित रुप से, सही ढंग से, शुद्धतापूर्वक, सचमुच
- सम्यक्—अव्य॰—-—-—यथावत, यथोचित ढंग से,ठीक-ठीक, सचमुच
- सम्यक्—अव्य॰—-—-—सम्मानपूर्वक
- सम्यक्—अव्य॰—-—-—पूरी तरह से, पूर्णतः
- सम्यक्—अव्य॰—-—-—स्पष्ट रुप से
- सम्राज—पुं॰—-—सम्यक् राजते-सम् + राज् + क्विप्—सर्वोपरि प्रभु, विश्वराट्, विशेषतः वह जो अन्य राजाओं पर शासन करता हो तथा जिसने राजसूय यज्ञ का अनुष्ठान कर लिया है
- सय्—भ्वा॰ आ॰ सयते—-—-—जाना, हिलना-जुलना
- सयूथ्यः—पुं॰—-—सयूथ + यत्—एक ही वर्ग या जाति का
- सयोनि—वि॰—-—समान योनिर्यस्य ब॰ स॰, समानस्य सादेशः—एक ही कोख का, एक ही गर्भ से उत्पन्न, सहोदर
- सयोनिः—पुं॰—-—-—सगा या सहोदर भाई
- सयोनिः—पुं॰—-—-—सरोता
- सयोनिः—पुं॰—-—-—इन्द्र का नाम