विक्षनरी:हिन्दी पत्रकारिता की शब्द सम्पदा भाग-१

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अंक में लेना या ले लेना मुहा. -- बाँहों में भर लेना, गले लगाना, ठकुराइन ने युवती को अपने अंक में ले लिया। (वीणा, जन. 1934, पृ. 556)

अकछना क्रि. (अ.) -- उकताना, ऊब जाना, पाँच साल तक निपूते रहने पर उनकी बुआ अकछ गईं। (काद : जन. 1994, पृ. 58)

अकड़ना क्रि. (अ.) -- ऐंठ जाना, कितने ही लोग ठंड से अकड़ गए और कितने ही मर भी गए। (सर., अग. 1912, पृ. 443)

अकड़फूँ सं. (स्त्री.) -- अकड़, गर्व, झूठी शान, अभी कुछ दिन पूर्व अच्युत पटवर्धन ने बहुत अकड़फूँ के साथ कहा कि एक ही प्रकार से हम काग्रेस-साम्यवादी दल के लोग कांग्रेस के साथ सहयोग कर सकते हैं। (न. ग. र., खं. 4, पृ. 174)

अकड़बंगी दिखाना मुहा. -- रोब झाड़ना, अकड़ दिखाना ... एक नहीं हजार-हजार, लाख-लाख, करोड़-करोड़ मोहम्मद अली झीणा (जिन्ना) भाई आ जाएँ और अपनी अकड़बंगी दिखलाएँ, पर पाकिस्तान का यह जाहिलाना सपना कभी साकार न हो सकेगा। (न. ग. र., खं. 3, पृ. 81)

अकरास वि. (अवि.) -- कष्टपूर्ण, कष्टकर, तकलीफदेह, लौ लगी तो एक क्षण भी व्यर्थ बीतते उसे बड़ा अकरास गुजरता है। (भट्ट निबं., पृ. 71)

अकर्म सं. (पु.) -- गर्हित कर्म, अकर्म का तात्पर्य कर्माभाव नहीं किंतु निंदित कर्म है। (सर., जन. 1909, पृ. 12)

अकल का अजीर्ण मुहा. -- अपने को बहुत बड़ा अक्लमंद समझने का भ्रम, बुद्धिहीनता, अकल के अजीर्ण रोग से व्यथित नौकरशाही स्वयं बेकाम समझती है। (मा. च. रच., खं. 9. पृ. 259)

अकारथ क्रि. वि. -- व्यर्थ, निरर्थक, निष्प्रयोजन, उनकी मेहनत अकारथ नहीं जाएगी। (दिन., 13 अग., 67, पृ. 12)

अंकुर फूटना मुहा. -- कल्ले फूटना, विकास होना, आदमी इतना बंजर हो गया है कि उसमें संवेदना के अंकुर फूटना बंद हो गया है। (सं.का.वि. : प्र.श्री., पृ. 21)

अकुलाना क्रि. (अ.) -- व्याकुल होना, व्यथित होना, सड़कों पर प्रदर्शनों का जो ताँता बँधा, उससे निक्सन बहुत अकुलाए। (दिन., 26 अक्तू., 1969, पृ. 30)

अकूत वि. (अवि.) -- जिसका अंदाजा न हो, जिसे कूता न जा सके, अपरिमित, उसके पास अकूत धन-दौलत है। (काद., अग. 1994, पृ. 5)

अँकोरना क्रि. (सक.) -- अंक में भरना, आलिंगन करना, बड़े हो जाने पर पूर्ण भावबोध से मृत्यु को अँकोरने का आनंद और ही है। (काद. : मार्च 1978, पृ. 94)

अक्खड़ वि. (अवि.) -- रोबीला, कर्कश या कठोर, रूखा, माधुर्यहीन, (क) पद्य की भाषा गद्य की तरह से सदा अक्खड़ नहीं हो सकती, उसमें एक प्रकार की लोच या मुड़ने की ताकत होनी चाहिए। (गु. रच., खं. 1, पृ. 241), (ख) उनकी कविताओं में रस लेते थे और उनके अक्खड़ प्रयोगों को कंठाग्र करते थें। (नि. वा. : श्री ना. च., पृ. 831)

अक्खड़पन सं. (पु.) -- अक्खड़ होने की अवस्था या भाव, दबंगपन, किसी को अपने अक्खड़पन के अभिमान में अकेले ताल ठोककर आगे बढ़ने की भूल न करनी चाहिए (हि.प. के गौरव बाँ. बि. भट., सं.-ब. (सा. हि.) 25 नव., 1956, पृ. 141)

अक्ल का अजीरन होना मुहा. -- अकल का अपच होना, चाहे वह अक्ल अजीरन रोग की कमी अपने साथ रखता हो तथा अधिक चालाकी का आधार न रखता हो, तो भी देश की आवाज है। (मा. च. रच., खं. 9, पृ. 47)

अक्ल का पुतला मुहा. -- चतुर तथा बुद्धिमान, उन्होंने अक्ल के पुतले स्टालिन तक को जर्मनी से तोड़कर इंग्लैंड का दोस्त बना डाला था। (तेवर, पृ. 23)

अखंडनीय वि. (अवि.) -- जिसका खंडन न किया जा सके, उसमें शक काल संबंधी बहुत सी अखंडनीय दलीलैं हैं। (सर. फर. 1920, पृ 115)

अँखफोर होना मुहा. -- आँखों खुली होना, पढ़ने में समर्थ होना, इस देश की अधिकांश जनता अशिक्षित है, बहुत लोग गुमराह हैं, कितनी ही बातों में जनता अभी अँखफोर भी नहीं हुई है। (शि.पू.र., खं. 3, पृ. 451)

अखरना क्रि. (अ.) -- अप्रिय या बुरा लगना, कष्ट की अनुभूति होना, (क) खालीपन कुछ अखरने-सा लगा था। (दिन., 9 मई, 1971, पृ. 44), (ख) यह टैक्स गरीब आदमियों को अधिक अखरेगा। (ग. शं. वि. रच., खं. 2, पृ. 137) (ग) अभिनेताओं के पद-चालन, अंग-सचालन और मुद्राओं की लापरवाही कई जगह अखरी। (दिन. सं., 5 मई, 1968, पृ. 44)

अखाड़िया1 सं. (पु.) -- अपने क्षेत्र में स्थापित, जुझारू व्यक्ति, धुरंधर नया नेतृत्व पुराने अखाड़ियों के कारण उभर नहीं पाता। (दिन, 30 सितं., 66, पृ. 26)

अखाड़िया2 वि. (अवि.) -- अखाड़ेबाज, धुरंधर, (क) किंतु वे भी पूरे अखाड़िया थे- जिद कर गए, देखें कैसी होती है वहाँ की लड़की। (बे. ग्रं. प्रथम खं., पृ. 38), (ख) महाराष्ट्र के अखाड़ियों ने एक सदस्यीय आयोग की नियुक्ति के निर्णय को बरकरार रखने का विरोध किया है। (दिन., 15 जुलाई, 1966, पृ. 14), (ग) साहित्य के संघर्ष या उसकी क्रांति से हमारे कुछ अखाड़िया साहित्यिक बेतरह घबड़ाए हुए हैं। (कु. ख, : दे. द. शु., पृ. 39)

अखाड़ेबाजी करना मुहा. -- धड़ेबंदी करना, वे आचार्यों से पढ़ने आते हैं, अखाड़ेबाजी करनेवालों या गोठ बैठानेवालों से नहीं। (दिन. : सं., 27 मई, 1966, पृ. 20)

अँखुआ सं. (पु.) -- अँकुर, आम के नए कल्ले और अँखुए, ये सभी कामदेव के बाण बन जाते हैं। (दिन, 7 अप्रैल, 67, पृ. 39)

अखूट वि. (अवि.) -- न खुटनेवाला, कम या समाप्त न होनेवाला, इंदिराजी की अखूट सत्ताकांक्षा निजी थी। (हि. ध. प्र. जो., पृ. 170)

अँखौटा सं. (पु.) -- आधार, सहारा, पश्चिमी किसानों के फैलाए हुए प्रचारों को अँखौंटे बनाकर हम मौजूदा दुविधा के पार नहीं जा सकते। (ज. स., 5 मार्च, 1984, पृ. 4)

अंगज सं. (पु.) -- पुत्र, बेटा, उसके अंगज ने प्रतियोगी परीक्षा में प्रथम स्थान पाकर परिवार को निहाल कर दिया। (काद, : जून 1982, पृ. 9)

अंगड़-खंगड़ वि. (अवि.) -- बेकाम, फालतू, अनुपयोगी, आँगन में अंगड़-खंगड़ ईटें बिखरी हैं, (दिन, 2 से 5 अक्तू. 1977, पृ. 10)

अगड़धत्त वि. (अवि.) -- धुरंधर, नामी-गिरामी, धाकड़, (क) हम लोग अच्छी-अच्छी उपादेय पुस्तकों एवं बड़े-बड़े अगड़धत्त विद्वानों से विद्या अर्जन करते हैं। (शि. पू. र., खं. 3, पृ. 201), (ख) उसके अगड़धत्त संपादक का एक अलौकिक लेख जरूर पढ़िए। (सर., जन. 1933, सं. 1, पृ. 713) (ग) अगड़धत्त नाटककार पेट की चिंता में चूर रहते हैं। (म.का मत : क. शि., 13 अक्तू., 1923, पृ. 47)

अगड़म-बगड़म वि. (अवि.) -- ऊटपटाँग अंटशंट, लेकिन यह सब तथाकथित वैज्ञानिकता दरअसल अगड़म-बगड़म ही है। (हि. ध., प्र. जो., पृ. 390)

अगता वि. (विका.) -- पहले अर्थात् ऋतु के आरंभ में आनेवाला, वैसे ढेंसर तो दूसरे भी होने लगते हैं, पर अगता तो एकदम भदरा जाते हैं। (दिन., 7 अप्रैल, 67, पृ. 39)

अगाऊ वि. (अवि.) -- अग्रिम, ज्यादा लिवाली से दलहनों में तेजी, चावल लुढ़का, चना टूटा, गेहूँ चढ़ा और चने के अगाऊ सौदे हुए। (लो. स., 16 जन., 1989, पृ. 9), (ख) जान पड़ता है कि सट्टेबाजों के अगाऊ अनुमानों में ज्योतिष की गणना से अधिक बल है। (दिन., 29 जुलाई, 1966, पृ. 46)

अगाड़ी क्रि. वि. -- आगे, (क) सूक्त इतना सुंदर है कि हम उसका अनुवाद किए बिना अगाड़ी नहीं बढ़ सकते। (गु. रच., खं. 1, पृ. 323), (ख) इसीलिए ताल के दूसरी ओर निकलकर यह उतनी जल्दी केंद्राकृष्ट नहीं होती, किंतु अंशुनाभि से हटकर अगाड़ी मिलती है। गुं. रच., खं. 2, पृ. 265)

अंगार (अंगारों) पर लोटना मुहा. -- ईर्ष्या से जलना, वे दूसरों की उन्नति देखकर अंगार पर लोटने के आदी हैं। (म.का मत, 17 नव., 1923, पृ. 83)

अंगारों पर पेट्रोल छिड़कना मुहा. -- आग, विवाद आदि को और भड़काना, इसलिए सामूहिक जातीय स्मृतियों के ठंडे अंगारों पर पेट्रोल छिड़कना आसान भी हो रहा है। (हि. ध., प्र. जो., पृ. 199)

अगुआ सं. (पु.), वि. (अवि.) -- अगवाई करनेवाला, नेतृत्व करनेवाला, (क) यही हालत आगे के अगुआ लोगों की है। (दिन., 6 सित., 1970, पृ. 21) (ख) जो प्रजा के अगुआ नायकों को कम पसंद है। (म.प्र.द्वि.र., खं. 5, पृ. 237), (ग) पार्टी के संगठन पक्ष में अगुआ हिंदीतर लोगों को अब तक परोक्ष और अब प्रत्यक्ष धारणा के प्रतिकूल भी हैं। (दिन., 21 फर., 1965, पृ. 12)

अगुआगिरी सं. (स्त्री.) -- नेतागिरी, चौधराहट, नेतृत्व, संयुक्त समाजवादी दल ने इस ऊब की अगुआगिरी की है। (दिन., 9 दिस., 66, पृ. 23)

अंगुलि-निर्देश सं. (पु.) -- उँगली का इशारा, संकेत, ये नष्टप्राय दीवारें अंगुलि-निर्देश हैं। (कुटज : ह. प्र. द्वि., पृ. 78)

अंगुश्तनुमाई सं. (स्त्री.) -- उँगली उठाना, विरोध करना, जिसकी नीयत शुद्ध है, उस पर न समाज अंगुश्तनुमाई कर सकता हैं, न अदालत सख्ती करेगी। (भ.नि., पृ. 45)

अँगूठा दिखाना या दिखलाना मुहा. -- किसी का अनुरोध या प्रार्थना निस्सकोंच ठुकरा देना, (क) श्री मिश्र द्वारा अँगूठा दिखाए जाने की प्रतिक्रिया में राजा नरेशचंद्र सिंह ने कांग्रेस त्याग कर दिया। (दिन., 6 अक्तू., 1968, पृ. 18), (ख) ये मगरमच्छ सरकार और जनता दोनों को अँगूठा दिखाकर स्वच्छंद भाव से विचरण कर रहे हैं। (कर्म., 11 नवं., 1950, पृ. 8), (ग) बलवान राष्ट्र समय पड़ने पर राष्ट्रसंघ को अँगूठा दिखा देते हैं। (वि. भा., जन. 1928, सं. 1, पृ. 64)

अँगूठा बताना मुहा. -- अँगूठा दिखाना, सादात शायद इस बात से मन-ही-मन कुढ़े हुए थे कि जब बँगलादेश का युद्ध छिड़ा तब भारत की पूरी मदद मास्को ने की, और इतनी ज्यादा की कि पाकिस्तान के दो टुकड़े हो गए, लेकिन इजराइल के सिलसिले में वह अँगूठा ही बताता जा रहा है। (रा. मा. संच, 1, पृ. 228)

अँगूठा-छाप वि. (अवि.) -- निरक्षर, अशिक्षित मंत्रियों के लिए संसद् में प्रश्नों का उत्तर देना भी जरूरी नहीं था, क्योंकि अधिकांश सदस्य अंगूठा-छाप थे। (रा. मा. संच. 1, पृ. 214)

अगोरना1 क्रि. (सक.) -- अकोरना, गले लगाए रखना, जिंदगी गाँवों को अगोरकर सिमटी-सिकुड़ी पड़ी हुई है। (दिन., 23 दिस., 66, पृ. 27)

अगोरना2 क्रि. (सक.) -- रखवाली करना, चौकसी करना, अब कौन खेती करते हो कि तुम्हारी फसल को अगोरे बैठे रहें। (सर., मई 1918, पृ. 246)

अघटन वि. (अवि.) -- न घटित होनेवाला, (क) यह अघटन घटना कैसे घटी ? (क. ला. मि. त. प. या., पृ. 160), (ख) और अघटन घटना यह है कि जिम्मेवार समाचार-पत्रों के प्रतिनिधि भी तलाशी देने के लिए बाध्य किए जाते हैं। (मा. च. रच.,, खं. 10, पृ. 320)

अघाना क्रि. (अ.) -- पूर्ण रूप से तृप्त होना, (क) आलस्यपूर्ण निर्लज्ज जीवन बिताते नहीं अघाते। (म. का. मतः क. शि., 12 नव., 1927, पृ. 236), (ख) अपनी विचारशीलता की तारीफ करते नहीं अघाते। (ग. शं. वि. रच., खं. 3, पृ. 392)

अघाया वि. (विका.) -- तृप्त, जिसका पेट भरा हो, (क) खाते-पीते अघाए लोग हैं, जिन्हें एक हिंदू पहचान की बेहद जरूरत है। (हि. ध., प्र. जो., पृ. 520), (ख) उसकी अघाई भैंस झूमती, बच्चे के लिए चुकरती घर की ओर भागी आ रही। (लाल-तारा, पृ. 3)

अघोर वि. (अवि.) -- क्रूरतापूर्ण, घोर, भयानक, जेपलिन के द्वारा जर्मनी ने बड़े ही अघोर कृत्य कर दिखाए हैं। (सर., जून 1916, पृ. 299)

अघोरी सं. (पु.) -- एक पंथ विशेष का अनुयायी, अघोरपंथी, (क) ये घोरतम अघोरी लोग हकबका गए हैं। (स. ब. दे. : रा. मा., पृ. 234), (ख) आस्था और प्रेत की साधना पर अघोरियों का अटल विश्वास होता है। (रवि., 12 नव., 1981, पृ. 16)

अचकचाना क्रि. (अक.) -- भौचक्का हो जाना, विस्मित होना, इधर इंदिराजी की सभाओं में भीड़ बढ़ने लगी है, जिससे ये नेता थोड़े अचकचाए हैं। (रवि., 12 नव., 1977, पृ. 18)

अचार डलना मुहा. -- उपयोगी बनना, वामपंथ कांगो में इतना मजबूत था, तो आजकल उसका कहाँ अचार डल रहा है। (रा. मा. संच. 1, पृ. 108)

अजड़-बजड़ वि. (अवि.) -- अस्त-व्यस्त, बिखरा हुआ, आज मजदूर आँदोलन, मजदूर संगठन एक विचित्र अजड़-बजड़ अवस्था में है। (न. ग. र., खं. 4, पृ. 222)

अंजर-पंजर ढीला करना या कर देना मुहा. -- छिन्न-भिन्न करना, झकझोर देना, (क) फूट-हिंसा एक साथ मिलकर पूरे भारतीय समाज तंत्र का अंजर-पंजर ढीला करने में शक्ति-संपन्न हैं। (दिन., 28 फर., 1971, पृ. 15) (ख) ... जब राजनारायण ने इस रग को पकड़ा तो उन्होने जनता पार्टी के अंजर-पंजर ढीले कर दिए। (रा. मा. संच. 1, पृ. 420), (ग) उसका अंजर-पंजर ढीला कर दिया। (म.प्र.द्वि., खं. 1, पृ. 120)

अंजर-पंजर सं. (पु.) -- अंग-प्रत्यंग, अवयव और जोड़, पंजाब में राज्य के अंजर-पंजर बिखर गए। (स.ब.दे. : रा. मा. (भाग-दो), पृ. 21)

अजस सं. (पु.) -- अपयश, अपकीर्ति, यह अजस मत करो। बरकत अपनी कमाई से होती है। (सर., जुलाई 1917, पृ. 34)

अजहद वि. (अवि.) -- अत्यधिक, असीम, हमारी ब्रिटिश नौकरशाही अजहद चालाक है। (म. का मत : क. शि., 22 अग. 1925, पृ. 91)

अँजा (हुआ) वि. (विका.) -- अंजन लगा हुआ, अंजन से युक्त, आज भी उनकी वे चिंता एवं चिंतन के अंजन से अँजी हुई आँखें अग्नि-स्फुलिंग बिखेर रही हैं। (न. ग. र., खं. 3, पृ. 70)

अजागलस्तन सं. (पु.) -- वह जो भार-स्वरूप फलतः निरर्थक हो, किसी को भी ऐसा करने का अधिकार नहीं, चाहे वह हिंदी कोविद रत्न हो या हिंदी अजागलस्तन। (सर., अप्रैल 1918, पृ. 181)

अजाब सं. (पु.) -- पाप, बदनामी, वे सरकार को कोसेंगे। सरकार यह सब अजाब अपने सिर नहीं लेना चाहती। (सर, अक्तू. 1920, पृ. 211)

अजीर्ण होना / हो जाना मुहा. -- अपच हो जाना, विशाल या महत्त्वपूर्ण होने का भ्रम होना, हिंदीवालों को अपने साहित्य का अजीर्ण हो गया है। (गु. र., खं. 1, पृ. 414)

अँजोरिया वि. (अवि., स्त्री.) -- चाँदनी से युक्त, हमको तो लिखते भी लाज लगती है- अँजोरिया रात में बारी में बैठकर हम लोग क्या-क्या बतियाते थे। (काद., अक्तू. 1961, पृ. 122)

अज्ञ वि. (अवि.) -- अज्ञानी, जिसे ज्ञान न हो, वहाँ के लोग जानकार हैं, हमारे यहाँ की तरह अज्ञ और मूर्ख नहीं हैं। (सर., जन.-जून 1919, भाग-20, खं. 1, सं. 4, पृ. 191)

अटक सं. (स्त्री.) -- रोक, अड़चन, बाधा, (क) इसी से यह अंदाजा लग जाएगा कि अटक कहाँ है। (दिन., 8 जुलाई 1966, पृ. 45), (ख) कहानी के फैलाने की अटक ही क्यों पड़ेगी। (फा. दि. चा. : उग्र, वृ. ला. व., पृ. 669), (ग) अरबी-फारसी का द्वार बार-बार खटखटाने की अटक नहीं रहनी चाहिए। (मधुकर : अप्रैल-अग. 1944, पृ. 156)

अटकना क्रि. (अक.) -- रुकना, फँसना, तो भी दो बातें मन में अटकती हैं, एक राज्य-तंत्र, दूसरी परिवार-व्यवस्था। (दिन., 13 अग., 67, पृ. 29)

अटकल-पच्ची सं. (स्त्री.) -- अटकल लगाने की क्रिया या भाव, हमारी अटकल-पच्ची का उद्देश्य प्रदेश पुनर्गठन आयोग के सामने जो समस्याएँ हैं, उनसे पाठकों को अवगत कराना ही है। (ते., पृ. 122)

अटकल-पच्चू वि. (अवि.) -- मन से गढ़ा हुआ, अनुमानजन्य, मनगढंत, (क) सरस्वती और सभा का संबंध ऐसा है कि उसमें सभा के विषय में अटकल-पच्चू कुछ लिखना सर्वथा अनुचित था। (म. प्र. द्वि. रच., खं. 2, पृ. 469), (ख) इस प्रकार की अटकल-पच्चू बातें लिखकर आप और भी लिखते हैं। (म. प्र. द्वि., खं. 1, (बा. मु. गु.), पृ. 353)

अटकल सं. (स्त्री.) -- अनुमान, अंदाजा, (क) इस संबंध में नाना प्रकार के अटकल लगाए जाते हैं। (मानक प्रयोग अटकलें लगाई जाती हैं।), (हित., 1955, पृ. 13), (ख) अटकल से समझ लिया कि इसकी माँ मर गई है। (माधुरी, 31 मार्च, 1925, सं. 3, पृ. 446)

अटकलबाजी सं. (स्त्री.) -- अंदाजा लगाने की क्रिया या भाव, इस, विषय की मीमांसा में कुछ लोगों को तो केवल अटकलबाजी से संतोष हो जाता है। (गु. र., खं. 1, पृ. 428)

अटका सं. (पु.) -- जगन्नाथ जी को चढ़ाया जानेवाला आटा, धान आदि, हिंदुओं से निवेदन करते हैं कि जगदीश में अटका चढ़ाने का दिन आज है। (मा. च. रच., खं. 9, पृ. 180)

अटकाव सं. (पु.) -- अड़चन, व्यवधान, बाधा, सैकड़ों अटकाव और आफतें उन पर आईं। (म. प्र. द्वि., खं. 5, पृ. 276)

अटखट वि. (अवि.) -- निकम्मा, अटपटा, (क) फिर ये तो चार प्रदेश थे, जिन्हें राज्य पुनर्गठन आयोग ने हथौड़ा और छेनी लेकर अटखट ढंग से जोड़ दिया था। (रा. मा. संच. 1, पृ. 172), (ख) गंगा की दिशा पलटने का काम लोकदल जैसी अटखट और सिड़िबल्ली पार्टी निभा सकती है, इस पर कौन यकीन कर सकता है। (रा. मा. संच. 1, पृ. 416)

अटना क्रि. (अक.) -- समाना, उनकी बुद्धि इतनी व्यापिनी थी कि साधारण शिक्षा-पद्धति की सीमित सीमा में वह अट न सकी। (सं. परा. : ल. शं. व्या., पृ. 102)

अटपटा वि. (विका.) -- जिसकी संगति न बैठे, ऊल-जलूल, असंगत या अनुचित, (क) अमेरिका और ब्रिटेन की एतद् विषयक नीति बड़ी धूमिल, नितांत अस्पष्ट और अटपटी है। (न. ग. र., खं. 2, पृ. 270), (ख) किसी देश के क्रांतिकारी माओ के बजाय किम को अपना हीरो मानें, यह बड़ी अटपटी बात है। (रा. मा. संच. 2, पृ. 40)

अंटशंट, अंटसंट सं. (पु.) -- बेसिर-पैर की या अनुचित बात, (क) वे उनके खिलाफ अंटशंट बोल आए थे। (हि. ध., प्र. जो., पृ. 552) (ख) आप कुछ अंटसंट संपादकीय लिख डालते हैं। (नि. वा. : श्रीना. च., पृ. 785) (ग) खाली प्रमाद और विप्रलिप्सावश अंटशंट बका करते हैं। (म.प्र.द्वि., खं 1, (बा. मु. गु.) पृ. 372)

अटा सं. (स्त्री.) -- अटारी, किले के ऊँचे (ऊँची) अटा पर चढ़कर पश्चिम की ओर उत्सुकुतापूर्ण नेत्रों से देख रही थी। (सर., जुलाई 1930, पृ. 92)

अटाटी-खटाटी सं. (स्त्री.) -- बिना बिस्तर की खटिया, नंगी खाट, धमकी देकर रूठ गईं और अटाटी-खटाटी लेकर सो गईं। (हि. ध., प्र. जो., पृ. 237)

अँटाना क्रि. (सक.) -- समोना, समाहित करना, भरना, (क) मैं हृदय के भावों को शब्दों में अँटानेवाला कुशल शिल्पी नहीं हूँ। (शि. पू. र., खं. 4, पृ. 94), (ख) उतना ठस मसाला अँटाने की कोशिश कोई यंत्र नहीं करता। (शि. पू. र., खं. 4, पृ. 471)

अटाला1 वि. (विका.) -- फालतू, व्यर्थ का, अटाला सामान को उन्होंने कला रूप देकर उनमें प्राण प्रतिष्ठा की। (ज. स. : 9 फर. 1984, पृ. 5)

अटाला2 सं. (पु.) -- ऊँचा मकान, छत पर बना कमरा, कबाड़खाना, (क) सबके अटाले अलग-अलग थे। (फा. दि. चा. : उग्र, वृ. ला. व. (मृगनयनी), पृ. 752), (ख) वे ब्रिटिश साम्राज्य की विरासत हैं, जिन्हें अटाले पर फेंक दिया जाना चाहिए। (स. ब. दे. : रा. मा., पृ. 118), (ग) दूसरे लोगों के इंजिन तो लोहे के भाव अटाले में बेचने योग्य हो चुके हैं। (रा. मा. संच. 1, पृ. 459)

अंटी कटवाना मुहा. -- जेब खाली कराना या करना, जितनी बार उपभोक्ता बाजार जाता है, अपनी अंटी कटवाकर आता है। (ज. स. : 23 फर., 1984, पृ. 4)

अंटी ढीली करना मुहा. -- खर्च करना, खर्च के लिए जेब से पैसे निकालना, मान जाओ, अंटी ढीली करो। (चं. श. गु. र., खं. 2, पृ. 387)

अंटी सं. (स्त्री.) -- पैसों की थैली, जेब, कमर में धोती की वह लपेट, जिसमें पैसा रखा जाता है, अंटी किसकी है, यह भी केसरी ने बता दिया। (किल. सं. : श्री म. श्री., पृ. 80)

अटीक वि. (अविका.) -- जो सटीक न हो, गलत या अनुचित, परंतु वे सटीक हैं या अटीक, इसका उल्लेख उन्होंने नहीं किया। (म. प्र. द्वि. रच., खं. 2, पृ. 273)

अठकॉलमा वि. (अवि.) -- जो आठ कॉलमों में फैला हुआ या व्याप्त हो; महत्त्वपूर्ण और सनसनीखेज निर्णय की खबर दी, जो अगले दिन अठकॉलमा सुर्खियों में छपी। (दिन., 17 जून, 1966, पृ. 23)

अड़खंजा सं. (पु.) -- अवरोध, बाधा, सरकारी काम को जैसे-तैसे लोकतंत्र के अड़खंजों के पार निकाल दिया जाए। (स. ब. दे. : रा. मा. (भाग दो), पृ. 115)

अड़ंग-बड़ंग वि. (अवि.) -- अंट-संट, बेसिर-पैर का, उसकी रसोई अड़ंग बड़ंग बनाकर भ्रष्ट की थी। (हि. ध., प्र. जो., पृ. 121)

अड़ंगेबाजी सं. (स्त्री.) -- अड़ंगे लगाने की क्रिया या भाव, अड़चनें डालना, अड़ंगेबाजी के लिए उनका नाम पेश कर दिया था। (रा. मा. सं. 2, पृ. 328)

अड़चन सं. (स्त्री.) -- बाधा, रुकावट, परेशानी, लेकिन पाकिस्तान ने इसमें अड़चन का अनुभव किया। (दिन., 16 जुलाई, 1965, पृ. 13)

अड़बंगा वि. (विका.) -- टेढ़ा-मेढ़ा, बेढंगा, बेढब, बिना छड़ी के उनकी चाल कुछ अड़बंगी-सी मालूम होती थी। (सर., फर. 1922, पृ. 134)

अंडबंड1 वि. (अवि.) -- कुछ का कुछ या कुछ न कुछ, बेसिर-पैर का, निरर्थक या अनुचित, (क) समालोचक की अंडबंड बातों पर ध्यान ही नहीं देना चाहिए। (गु. रच., खं. 1, पृ. 431) (ख) जिस बात का पता न हो उसे यों ही अंडबंड लिख देना उचित नहीं। (माधुरी, वर्ष-7, खं. 2, फर. से जुलाई 1929, पृ. 444)

अंडबंड2 सं. (पु.) -- ऊलजलूल बात या काम, हिंदी में लोग अंडबंड लिखकर उपन्यास के नाम से छपाते हैं। (सर., 1 फर. 1908, पृ. 96)

अड़ार सं. (पु.) -- किनारा, मोड़ों पर नदी बहुत काट भरती है और अड़ार ढहाती चलती है। (दिन., 07 मई, 1967, पृ. 39)

अड़ियल टट्टू सं. (पु.) -- टस-से-मस न होनेवाला, (क) सेंसरशिप अपने आप में हठीली, कुंद दिमाग और अड़ियल टट्टू जैसी होती है। (काद., मई 1977, पृ. 31), (ख) दास-दल अड़ियल टट्टू की तरह भड़क जाएगा और इस पर अच्छे-अच्छे कार्यकर्ता निश्चय ही गाल फुलावेंगे। (म. का मत : क. शि., 22 दिस., 1923, पृ. 134), (ग) यह कोई पहुँचा हुआ जीवात्मा या अड़ियल टट्टू है। (स. का वि. : डॉ. प्र. श्रो., पृ. 82)

अड़ियलपना सं. (पु.) -- जिद्दीपन, हठवादिता, भारत के विरुद्ध अड़ियलपना (अड़ियलपने) का आरोप लगा सके। (दिन., 03 दिस. 1965, पृ. 12)

अड्डा जमना मुहा. -- किसी अड्डे पर संगी-साथियों का जमा होना, परंतु धीरे-धीरे उसका अड्डा जम गया। (सर., फर. 1921, पृ. 113)

अड्ड़ा सं. (पु.) -- लोगों के मिल-बैठने का स्थान, किसी के बैठने या मिलने का स्थायी स्थान, मदकचियों के अड्डे उखड़ जाएँगे। (माधुरी, जन. 1925, सं. 1, पृ. 4)

अड्डे बाज सं. (पु.) -- मित्रों के साथ बैठकी करनेवाला, शरतचंद्र प्रथम श्रेणी के अड्डेबाज थे। (काद., मार्च 1987, पृ. 12)

अढ़ाई चावल की खिचड़ी अलग पकाना कहा. -- अपना ही राग अलापना, अपना छोटा मोटा संगठन अलग बनाना, अपनी-अपनी अढ़ाई चावल की खिचड़ी अलग-अलग पकाने में यत्नवान हैं। (गु. र., खं. 1, पृ. 385)

अंत क्रि. वि. -- अन्यत्र, दूसरी जगह, कहीं और, सब जंगल तो छान डाले हैं, कहीं अंत चला जाए। (मधुकर, वर्ष-1, अंक-3, 1 नवं., 1940, पृ. 21)

अंतराय सं. (पु.) -- बाधा, अड़चन, देशी भाषाओं के द्वारा शिक्षा देने में अंतराय की आशंका किया करते हैं। (सर., जून 1920. पृ. 317)

अंतरे-कोने में क्रि. वि. (पदबंध) -- छोटी-मोटी जगह पर, बेहया (बेशरम) का पौधा जहाँ कहीं अंतरे-कोने में जगह पाता है, वहीं अपनी अडिगता स्थापित कर देता है। (ज.स., 09 दिस., 06, पृ. 6)

अंतर्भुक्त वि. (अवि.) -- समाविष्ट, सम्मिलित, संग्रह में इनके मूल संस्मरणों को अंतर्भुक्त करते समय भारी संपादन की आवश्यकता होगी। (दिन., 14 मई, 67, पृ. 40)

अंतस सं. (पु.) -- अंतःकरण, हृदय, उसकी व्यथा अंतस को झकझोरनेवाली है। (काद : अक्तू, 1982, पृ. 7)

अतायी नानखतायी कहा. -- ऐसी वस्तु जो यों ही प्राप्त हो जाए, अन्य पुरुषों ने उड़ाकर उन पर अपना सिक्का जमा दिया है और उस्ताद कामिल बनकर जिनकी पैतृक संपत्ति है, उन्हें अतायी नानखतायी बताने लगे हैं। (सर., अग. 1913, पृ. 457)

अतिप्रकृत वि. (अवि.) -- अस्वाभाविक, अप्रकृत, विदेशी समालोचक कहा करते हैं कि रामायण में जिन चरित्रों का वर्णन है, वे अतिप्रकृत हैं। (सर., अप्रैल 1912, पृ. 228)

अंतेवासी सं. (पु.) -- गुरु के आश्रय में रहनेवाला शिष्य, उस स्थान में उनके अनेक अंतेवासी भी थे। (सर., जन 1922, पृ. 92)

अदना वि. (अवि.) -- छोटा, मैं तो हिंदी का अदना सेवक हूँ। (दिन., 16 जुलाई, 1967, पृ. 26)

अदबदाकर क्रि. वि. -- आक्रोश तथा व्यग्रतापूर्वक, (क) वे आक्रमणकारियों की ओर अदबदाकर देखते हुए आगे बढ़े। (शि. पू. र., खं. 3, पृ. 289), (ख) इसलिए इतिहास से बाहर जाने की चेष्टा उन्हें अदबदाकर आदिमपन पर ला छोड़ती है। (दिन., 2 जून, 1968, पृ. 42)

अदबदाना क्रि. (अक.) -- बौखलाना, तत्पर होना, रघुरमैया पिछली सरकार के खिलाफ बोलने के लिए अदबदाए बैठे हैं। (रवि., 12 नव., 1977, पृ. 7)

अदल-बदलकर क्रि. वि. -- बारी-बारी से, बदल-बदल कर, चार-पाँच विग होती हैं, जिन्हें वे अदल-बदल कर पहनती हैं। (दिन., 21 मई, 1967, पृ. 46)

अदहन सं. (पु.) -- चावल या दाल पकाने के लिए उबलता हुआ पानी, दाल पकाने से पहले पानी गरम करते हैं, जिसे वे अदहन कहती हैं। (काद., जन. 1980, पृ. 154)

अदावत सं. (स्त्री.) -- दुश्मनी, शत्रुता (क) पुरानी अदावत से मुझे मार डालने की चेष्टा की। (क्रा. प्रे. स्रो. : र. ला. जो., पृ. 29), (ख) जब सोना, चाँदी और जमीन बाँटने का समय आया तब इन दोनों में अदावत हो गई। (सर., सित. 1909, पृ. 390)

अदीखा वि. (विका.) -- जो दिखाई न पड़ा हो या देखा न गया हो, ओझल भारतीयता की भूल-भूलैया में इस तरह खो गए कि यदि वे दिखाई भी दिए तो विषय अदीखा हो गया। (दिन., 25 नव., 06, पृ. 38)

अद्यावधिक वि. (अवि.) -- वर्तमान काल का, आधुनिक, जो समाज अद्यावधिक विचार नहीं रखता, वह पिछड़ जाता है। (काद., फर. 1995, पृ. 5)

अधकचरा वि. (विका.) -- जिसका ज्ञान कच्चा या अधूरा हो, सब लड़के अधकचरे रह गए। (म. प्र. द्वि., खं. 5, पृ. 422)

अंधकूप सं. (पु.) -- अंधा कुआँ, अंधा गड्ढा, अज्ञानता, जीवन मनुष्य जाति को एक बड़े भारी अंधकूप में ले जा रहा है। (गु. रच., खं. 1, पृ. 152)

अधःपात सं. (पु.) -- अधोगमन, पतन, उन्हें अपने अधःपात का परिचय हो गया। (सं. परा. : ल. शं. व्या., पृ. 83)

अधपेट क्रि. वि. -- बिना पूरा पेट भरे, वे यह न देख सकेंगे कि देश के आदमी थोड़ी आय के होने, अधपेट खाकर रह जाने और बेरोजगारी की चक्की में पिसते रहने के कारण 60-60 लाख की तादाद में दो-दो सप्ताह के भीतर मृत्यु के मुख में पड़ जाएँ। (ग. शं. वि. र., खं. 3, पृ. 47)

अधपेटा वि. (विका.) -- आधा भूखा, जिसका आधा पेट खाली हो, सरकारी सख्ती और चरोखर के अभाव में अधिकांश किसानों ने अपने गायों-बैलों को अपनी तरह अधपेटा रखा। (मा. च. र., खं. 3, पृ. 132)

अधबीच क्रि. वि. -- मध्य में ही, बीच में ही, सारे देश की जाजिम पर अनुकूल गोटे (गोटियाँ) बैठाने का जो क्रम शुरू हुआ था, वह अधबीच थम गया। (रा. मा. संच. 1, पृ. 460)

अधरतिया सं. (स्त्री.) -- आधी रात, भादों की वह अँधेरी अधरतिया थी। (बे. ग्रं., प्रथम खं., पृ. 59)

अंधा (अंधे) आगे रोना अपना दीदा खोना कहा. -- अविवेकी से याचना करना निरर्थक जाता है, अब यह प्रार्थना किससे ? अब अंधा (अंधे) आगे रोना अपना दीदा खोने का दुस्साहस किसलिए ? (म. का मत :, 24 नव. 1923, पृ. 125)

अंधा क्या माँगे दो आँखें कहा. -- याचक या इच्छुक की वास्तविक आकांक्षा, मेरी तो यही छोटी सी याचना है, अंधा क्या माँगे दो आँखें। (शत. खि., ह. कृ. प्रे., पृ. 54)

अंधी खोपड़ी मुहा. -- विचारशून्य व्यक्ति, अंधी खोपड़ी के लोग कहते हैं कि सरकार उठने ही नहीं देती। (म.का मत, 3 नव., 1923. पृ. 121)

अंधी गली सं. (स्त्री.) -- बंद गली, स्पष्ट मार्ग न मिलना, (क) विवाद भूल-भुलैया में घूम-फिरकर फिर अंधी गली में आ गया है। (हि. ध., प्र. जो., पृ. 204), (ख) प्राचीन नाटक को पुरातात्त्विक दृष्टि से प्रस्तुत करना एक अंधी गली में भटक जाना है। (दिन., 11 नवं., 66, पृ. 29)

अधीत वि. (अवि.) -- जिसका अध्ययन किया गया हो, पढ़ा हुआ, जीवन की किताब से लिए गए ये उद्धरण अधीत भर नहीं, अनुभूत भी हैं। (दिन., 25 नव., 06, पृ. 43)

अंधेर नगरी सं. (स्त्री.) -- वह स्थान जहाँ अव्यवस्था का बोलबाला हो, इस अंधेर नगरी में न्याय की गुहार लगाना व्यर्थ है। (काद. : अप्रैल 1986, पृ. 7)

अंधेर सं. (पु.) -- अन्याय, अव्यवस्था, गड़बड़ी, (क) वहाँ के एक कॉलेज में बड़ा अंधेर मचा हुआ है। (सा. हि., 21 सित., 1958, पृ. 4), (ख) अपने वर्ग स्वार्थों के कारण उपनिवेशवादी और जातिवादी एक होकर अंधेर फैला रहे हैं। (दिन., 11 अक्तू., 1970, पृ. 25), (ग) डाकखाने के महकमे में कुछ दिन बड़ा अंधेर था। (सर., मार्च 1911, पृ. 104)

अधेला सं. (पु.) -- आधे पैसे का पुरना सिक्का, नगण्य राशि, अपने अधेले से भी कुछ कम में एक अंक मिलता है। (सर., जुलाई 1912, पृ. 348)

अध्यापकता सं. (स्त्री.) -- अध्यापन, पढ़ाने का कार्य, शिरोमणि महाशय 76 वर्ष की उम्र तक अध्यापकता करते रहे। (सर., जुलाई 1909, पृ. 27)

अनकहना वि. (विका.) -- जो न कहा जाए, न कहने योग्य, उस तरह की बात कुछ अटपटी या अनकहनी लगती थी। (रचना : अज्ञेय, पृ. 41)

अनगढ़ वि. (अवि.) -- जो तराशा न गया हो, बेडौल, भद्दा, (क) अपने अनगढ़ और अटपटे व्यवहार के कारण बदनाम होता है। (हि. ध., प्र. जो., पृ. 314), (ख) इस अनगढ़ रचना को पाठक पसंद नहीं करेंगे। (काद., अप्रैल 1981, पृ. 7)

अनगढ़पन सं. (पु.) -- अनगढ़ होने की अवस्था या भाव, भगत इतने कुशल शिल्पी हैं कि ऐसा अनगढ़पन कठिनाइयों के कारण हो सकता है। (दिन., 14 अक्तू., 66, पृ. 41)

अनगिन वि. (अवि.) -- अनगिनत, असंख्य, बहुत ज्यादा, उनके अनगिन प्रशंसक हैं। (स. भा. सा., मृ. पां., सितं.-अक्तू. 98 पृ. 6)

अनचाहत सं. (स्त्री.) -- चाहत या प्यार, चाह का अभाव, लेकिन अनचाहत का यह निर्णय नेहरू-नीति से हटने का लक्षण नहीं है। (दिन., 29 अप्रैल, 1966, पृ. 11)

अनथाहा वि. (विका.) -- जिसकी थाह न मिले, गहरा, गंभीर, यह और कुछ नहीं अनथाही स्थितियों का सामना करना है। (शि. से. : श्या. सुं. घो., पृ. 17)

अनपचा वि. (विका.) -- जो पचा न हो, अनसुलझा, हिंदू-मुसलिम संबंधों को इतिहास की ऐसी अनपची समस्या मानते हैं, जिसका हल राष्ट्र-निर्माण के लिए आवश्यक है। (दिन., 21 फर., 1971, पृ. 49)

अनबोला सं. (पु.) -- वह जो आपस में बात न करते हो, प्रायः मध्यस्थों की जरूरत पड़ती है और अनबोलों के बीच बोलचाल शुरू कर देते हैं। (रा. मा. संच. 1, पृ. 50)

अनमना वि. (विका.) -- अन्यमनस्क, बेमनवाला, कामिक्स फिल्में सिर्फ बच्चों और उनके अनमने अभिभावकों द्वारा ही देखी जाएँगी। (दिन., 25 नव., 1966, पृ. 43)

अनर्गल वि. (अवि.) -- बेसिर-पैर का, निराधार, तीस साल पहले की घटनाओं को आज की घटनाएँ मानकर अनर्गल और मनमानी राजनैतिक व्याख्याएँ करते हैं। (दिन., 21 फर., 1965, पृ. 37)

अनवधान वि. (अवि.) -- असावधान, लापरवाह, अनवधान रहने से कार्य सिद्ध नहीं होता। (काद., जन. 1988, पृ. 8)

अनहुआ वि. (विका.) -- जो न घटित हुआ हो, निरर्थक, लेकिन यह आशा तो उन्हें हो ही नहीं सकती कि पिछले चार साल का इतिहास नगण्य और अनहुआ सा हो जाएगा। (रा. मा. संच. 1, पृ. 87)

अनाड़ी वि. (अवि.) -- अनजान, जिसमें होशियारी न हो, जिसे दुनियादारी न आती हो, इधर-उधर अनाड़ी बनकर अप्रतिष्ठा कराते ने फिरते। (गु. र., खं. 1, पृ. 336)

अनाप-शनाप क्रि. वि. -- जिसका नाप-जोख न हो, अपरिमित या अत्यधिक, (क) राज्य सरकारें भी अनाप-शनाप रुपया खर्च करती रहती थीं। (दिन., 21 मई, 67, पृ. 27), (ख) पता चला कि तेल कंपनियों ने अपने टैक्स घटवाने के लिए राजनैतिक पार्टियों को अनाप-शनाप चंदा दिया है। (रा. मा. संच. 1, पृ. 241)

अनाविल वि. (अवि.) -- कीचड़ रहित, निर्मल, स्वच्छ, पर देर तक वे शुद्ध अनाविल रूप में नहीं रह सके हैं। (कुटज : ह. प्र. द्वि., पृ. 39)

अनित्य वि. (अवि.) -- सदा न बना रहनेवाला, नाशवान, शरीर अनित्य है आत्मा नहीं। (काद., अप्रैल 1980, पृ. 11)

अनिर्वार वि. (अवि.) -- जिसका निवारण न किया जा सके, जिसे टाला न जा सके, अनिवार्य, गणेशपुरी जाने की पुकार अनिर्वार हो उठी। (काद., नव. 1967, पृ. 29)

अनीर्षु वि. (अवि.) -- जो ईर्ष्या न करता हो, निस्स्वार्थी, जो स्वार्थी है वह अनीर्षु कैसे हो सकता है। (काद., जन. 1988, पृ. 8)

अनुदिन क्रि. वि. -- दिन पर दिन, दिन प्रतिदिन (क) सुरक्षा के लिए उत्पन्न संकट अनुदिन गहराता जा रहा है। (दिन., 27 जून, 1971, पृ. 16), (ख) उपदेशों को अनुदिन फलते-फूलते एवं सफलीभूतक होते हुए देखें। (वि. भा., जन. 1928, सं. 1, पृ. 139)

अनुदिश क्रि. वि. -- चारों दिशाओं में, चारों तरफ, भारत की वाणी अनुदिश गूँजे, यही हमारी कामना है। (काद., सितं. 1988, पृ. 10)

अनुभवों का इत्र निकालना मुहा. -- अनुभवों का सार या निचोड़ निकालना, (व्यंग्यात्मक), वाह लालाजी ! आपने तो जीवन भर के अनुभवों का इत्र निकाल डाला है। (शि. पू. र., खं. 3, पृ. 504)

अनुमान भिड़ाना मुहा. -- बिना किसी आधार के अटकल लगाना, समकालीन कवि के बारे में ऐसा अनुमान भिड़ाना जोखिम का काम है। (दिन., 21 मई, 67 पृ. 40)

अनोखा वि. (विका.) -- सामान्य से उत्कृष्ट, विशिष्ट, मॉरीशस की स्थिति अन्य देशों की स्थिति से कुछ भिन्न और अनोखी है। (दिन., 21 दिस., 1969, पृ. 16)

अन्नप्राशन सं. (पु.) -- नवजात शिशु को पहली बार अन्न खिलाने का संस्कार, उनके एकमात्र सुपुत्र मेवालाल के पुत्ररत्न राधेश्याम का अन्नप्राशन संस्कार था। (स. न. रा. गो. : भ. च. व., पृ. 9)

अन्यतम वि. (अवि.) -- जिसकी बराबरी का कोई और न हो, सबसे बढ़कर होनेवाला, सर्वश्रेष्ठ, कक्षा के मेधावी छात्रों में वह अन्यतम है। (काद., सित. 1988, पृ. 10)

अन्हवटा वि. (विका.) -- जुता हुआ, अन्हवटे हुए तेली के बैल की तरह चक्कर काटकर वह फिर उसी स्थान पर आ जाएगा। (म. का मत : क. शि., 20 सित., 1924, पृ. 165)

अपंग वि. (अवि.) -- पंगु, लँगड़ा, व्यर्थ, यह जुगत भी निपट अपंग सिद्ध हुई। (दिन., नवं. 1965, पृ. 45)

अपना उल्लू सीथा करना मुहा. -- अपना ही स्वार्थ सिद्ध करने में लगे रहना, (क) वह चाहता है कि रूस को प्रत्येक अवसर पर बदनाम करके अपना उल्लू सीधा किया जाए। (न. ग. र., खं. 2, पृ. 255), (ख) सरकार ने दोनों हाथों में लड्डू रखकर अपना उल्लू सीधा कर लिया। (लो. स., 15 जन., 1989, पृ. 9), (ग) आगामी चुनाव में अपना उल्लू सीधा करने की कुचेष्टा ही इसमें छिपी हुई है। (म. का मत : क. शि., 13 मार्च, 1926, पृ. 206)

अपना सा-मुँह लिए रह जाना मुहा. -- चेहरे से निराशा / असफलता झलकना, अंग्रेजों ने राजा हुसैन को खलीफा बनाने की भी कोशिश की पर इसमें उन्हें मुँह की खानी पड़ी। अपना सा मुँह लिए रह गए। (न. ग. र., खं. 2, पृ. 165)

अपनी अलग खिचड़ी पकाना मुहा. -- अलग होकर कार्य करना, अलग-थलग रहना, (क) राजनैतिक और आर्थिक सत्ता का पक्का बँटवारा कर लेते हैं तो स्पेन अपनी अलग खिचड़ी पकाता रह जाएगा। (दिन., 2 दिस., 66, पृ. 36), (ख) मौलाना मोहम्मद अली अपनी अलग खिचड़ी पका रहे थे, उन्होंने दो नावों पर एकसाथ सवारी कर रखी थी। (सर., भाग 30, खं. 1, जन.-जून. 1929, पृ. 117)

अपनी ढपली / ढफरी अपना राग अलापना / गाना, मुहा. -- मनमाना आचरण करना, मनमानी करना या अपनी बात पर अड़े रहना, (क) राष्ट्रीय संग्राम में जहाँ सुदृढ़ एवं सूक्ष्म संगठन के बिना सफलता मिलना स्पष्टतः असंभव है, वहाँ जहाँ देखो अपनी ढपली अपना राग अलाप रहे हैं। (ग. शं. वि. र., खं. 1, पृ. 60), (ख) सब अपनी ढपली अपना राग अलापें तो स्वराज्य हेतुक सत्याग्रह के लिए राष्ट्रीय शक्तियाँ क्योंकर केंद्रीभूत हो सकेंगी। (समय से साक्षा., पृ. 101), (ग) जब देश में एकीकरण का प्रयत्न हो रहा हो, तब अपनी ढपली अपना राग गाकर हम देश को हानि ही पहुँचाएँगे। (मधुकर, जन. 1944, पृ. 463)

अपनी नाक काटना या काट लेना मुहा. -- दूसरों को हानि पहुँचाने की चाह में स्वयं को अपशकुनी बना लेना, क्या यह दूसरे का सगुन बिगाड़ने के लिए अपनी नाक काटना नहीं है ? (ग. शं. वि. र., खं. 1, पृ. 299)

अपनी पर उतर आना मुहा. -- अपना वास्तविक रूप दिखाने लगना, काम जैसे ही निकला, पाकिस्तानी अधिकारी अपनी पर उतर आए। (कर्म., 29 मई, 1948, पृ. 4)

अपनी-अपनी तान में मस्त होना मुहा. -- अपनी-अपनी धुन में रहना, यहां सुनता कौन है, सब अपनी-अपनी तान में मस्त हैं। (मा. च. र., खं. 2, पृ. 38)

अपने को झुठलाना मुहा. -- अपनी वस्तुस्थिति छिपाना, क्यों अपने को झुठला रहे हो ? (काद., जन. 1975, पृ. 70)

अपने पैर / पैरों पर कुल्हाड़ी मारना मुहा. -- अपना अहित स्वयं करना, (क) उद्योग से मुँह चुराना अपने पैरों पर कुल्हाड़ी मारना है। (ग. शं. वि. र., सं. 1, पृ. 128)

अपने मुँह मियाँ मिट्ठू बनना मुहा. -- आत्मप्रशंसा करना, अपने मुँह मियाँ मिट्ठू बनने के लिए इससे भी अधिक भला और क्या कहा जा सकता है। (समय से साक्षा. पृ. 141)

अपरंपार वि. (अवि.) -- असीम, बेहद, अनंत, पुरस्कार की महिमा अपरंपार है। (दिन., 25 नव., 06, पृ. 39)

अपलाप सं. (पु.) -- व्यर्थ चर्चा, प्रलाप, जान-बूझकर सत्य का अपलाप न करना चाहिए। (म. प्र. द्वि. र., खं. 1, पृ. 81)

अपाकरण सं. (पु.) -- चुकाने या निपटाने की क्रिया या भाव, तीनों ऋणों का अपाकरण और समस्त नित्य नैमित्तिक विहित कर्मों का सेवन किया हो। (सर., जन. 1909, पृ. 10)

अफरकर क्रि. वि. -- अत्यधिक मात्रा में, जरूरत से ज्यादा, अफरकर खा लेने पर लड्डू भी नहीं पचता। (शि. पू. र., खं. 3, पृ. 109)

अफरा-तफरा वि. (अवि.) -- चिंतित और विचलित, अस्त-व्यस्त, उसे शायद किसी ने इतनी लापरवाही से अफरा-तफरा नहीं किया होगा, जितना कि कांग्रेस नेताओं ने हमारे देश में किया हैं। (रा. मा. संच. 1, पृ. 216)

अफलातून सं. (पु.) -- बहुत बड़ा विद्वान, महापंडित, अब ये लौंडे अपने को अफलातून समझते हैं। (दिन., 5 सित., 1971, पृ. 10)

अब के क्रि. वि. -- इस समय, इस बार, हिंदी के एक सर्वज्ञ मासिक-पत्र ने तो अब के खास एप्रिल एडीशन निकाल दिया है। (गु. र., खं. 1, पृ. 190)

अबोला सं. (पु.) -- आपस में बातचीत का न होना, (क) कई दिन गुजर गए दोनों का अबोला बना रहा। (सा. हि., 26 जून, 1960, पृ. 7)

अब्बर के हम जब्बर, जब्बर के हम दास कहा. -- कमजोर पर रोब गाँठना और जब्बर से दबना, हम अपने युवकों को ओछे, टुच्चे और अब्बर के हम जब्बर जब्बर के हम दास बनाना नहीं चाहते। (न. ग. र., खं. 4, पृ. 392)

अभिज्ञ वि. (अवि.) -- जिसे जानकारी न हो, अनजान, प्रेस के कार्य से अभिज्ञ सज्जन जानते हैं कि इसके कारण हमें एक अक्षर के लिए तीन-तीन अक्षर बनाने पड़ते हैं। (सं. परा. : ल. शं. व्या., पृ. 10)

अमनिया वि. (अवि.) -- स्वच्छ, शुद्ध, साफ, स्वयं चावल अमनिया करते, साग-भाजी सुधारते और मगही पान को बड़े प्रेम से पोसते। (शइ. प. र., खं. 4, पृ. 130)

अमरपट्टा सं. (पु.) -- स्थायी प्रमाणपत्र, सनद, कांग्रेस कोई अमरपट्टा लिखवाकर नहीं आई है। (रा. मा. संच. 1, पृ. 73)

अमरबेल सं. (स्त्री.) -- वह बेल जिसकी जड़ नहीं होती और जो पेड़ों से ही रस ग्रहण करती है, परजीवी, देश में अमरबेलों का एक वर्ग बन गया है, जो पेड़ों का खून चूसकर पेड़ों पर ही ठहरा होकर अपने को पेड़ों से अलग और ऊपर मानता है। (धर्म., 6 फर. 1966, पृ. 10)

अमर्त्य वि. (अवि.) -- न मरनेवाला, अविनाशी, अनश्वर, शरीर नष्ट होनेवाला है किंतु आत्मा अमर्त्य है। (काद., जुलाई 1982, पृ. 5)

अमर्ष सं. (पु.) -- क्रोध, गुस्सा, ऐसी तुच्छ बात पर इतना अमर्ष करना ठीक नहीं है। (काद., फर. 1978, पृ. 20)

अमल सं. (पु.) -- शासन, तंत्र, प्रभाव, दो बजे के पश्चात् धुंध ने फिर अपना अमल जमाया। (सर., जन. 1920, पृ. 41)

अमलदस्तूर सं. (पु.) -- रीति-रिवाज, चलन, प्रथा, अमलदस्तूर में पूजा-अर्चना का जो विधि-विधान है, उसे मैं अपरिहार्य समझता हूँ। (नि. वा. : श्री न. च, पृ. 34)

अमलोल सं. (पु.) -- खजाना, धन, संपत्ति, और न ही किसी प्रस्ताव से घबराकर साइमन स्वराज का अमलोल भारतवासियों को थमा देंगे। (म. का मत : क. शि., 10 दस. 1927, पृ. 241)

अमियारी सं. (स्त्री.) -- आमों की वाटिका, पुराने पीले पत्ते तुड़-तुड़कर अमियारी में सड़ने लगे। (दिन., 7 अप्रैल, 67, पृ. 39)

अमुक वि. (अवि.) -- निर्दिष्ट, चिह्नित, इनके कारण हम अमुक कॉलेज में दाखिल नहीं होने पाए। (ग. शं. वि. र., खं. 2, पृ. 240)

अमूलक वि. (अवि.) -- बिना आधार का आधारहीन, कुछ अमूलक और विरुद्ध बातें लिखकर उन प्रयत्नों का भी वर्णन किया है, जिनमें उर्दू भाषा शीघ्र उन्नति कर सकती है। (सर., 1 अप्रैल 1909, पृ. 141)

अरजी सं. (पु.) -- प्रार्थना-पत्र, आवेदन-पत्र, उस पर मोटे-मोटे अक्षरों में अरजी लिखी। (काद., सित. 1986, पृ. 53)

अरण्यरोदन सं. (पु.) -- ऐसा विलाप या ऐसे स्थान पर होनेवाला विलाप जिसे कोई सुननेवाला न हो, उनकी पुकार आज अरण्यरोदन सी बनकर रह गई है। (कर्म., 13 फर., 1932, पृ. 7)

अरसा सं. (पु.) -- मुद्दत, युग, लंबा समय, एक अरसे से ऐसी अफवाहें फैल रही थीं ... (दिन., 5 मई, 1968, पृ. 20)

अरांटा सं. (पु.) -- घोर शब्द, कीच के बीच से हटकर मचलती हुई निकलती छोटी-छोटी पथ-गलियाँ, बीहड़ प्रदेश को भी कुंज गलियाँ बनाती बढ़ीं कि वह जोर का अर्राटा और वह गरज, वह बरसा (मा. च. र., खं. 3, पृ. 130)

अरिष्ट वि. (अवि.) -- बुरा, अशुभ, अनिष्टकारी, अरिष्ट कल्पना के वशीभूत होकर किसी अच्छे काम को रोकना ठीक नहीं है। (काद., मई 1989, पृ. 9)

अर्दब सं. (पु.) -- आड़, प्रभाव, कांग्रेस अध्यक्ष पंत के प्रस्ताव के सहारे गांधीजी के अर्दब में आ गया। (रवि., 12 नव., 1977, पृ. 9)

अर्बुद सं. (पु.) -- ट्यूमर नामक गाँठ, संख्या में एक अरब, सोवियत संघ के चिकित्सा शास्त्रियों ने शरीर में उपजनेवाले अर्बुदों की पहचान के लिए एक नया तरीका ढूँढ़ निकाला है। (दिन., 18 फर. 1966, पृ. 42), 2. संख्या में एक अरब, प्रायः सोलह अर्बुद मनुष्य पृथ्वी पर हैं। (सर., जुलाई 1912, पृ. 356)

अर्राना, अरराना क्रि. (अक.) -- घोर शब्द करना, (क) राष्ट्रीय सेना वेगवती नदी की तरह अर्राती हुई आगे बढ़ गई। (न. ग. र., खं. 2, पृ. 246), (ख) देखते-देखते निमिष मात्र में दीवारों अरराकर धमाधम गिर पड़ी। (शि. पू. र., खं. 4, पृ. 102), (ग) कभी-कभी बिजली गिरने से पेड़ चिटक जाता है या अरराकर फट जाता है। (दिन., 7 अप्रैल, 67, पृ. 39)

अलख जगाना मुहा. -- आह्वान करना, पुकार लगाना, (क) इनमें वह आग ही नहीं है जो देश के लिए अलख जगाने को प्रेरित करती थी। (हि. ध., प्र. जो., पृ. 328) , (ख) अलख को जगाना प्रत्येक राष्ट्र के प्रत्येक व्यक्ति की जरूरत है। (न. ग. र., खं. 2, पृ. 26), (ग) इसीलिए टैगोर सर्वत्र विश्व-प्रेम का अलख जगाते फिरे हैं। (सर, जन.-जून 1961, सं. 6, पृ. 781)

अलग-थलगपन सं. (पु.) -- अलग-थलंग होने की स्थिति या भाव, अलहदगी, इस अलग-धलगपन के कारण ही 1956 में भोपाल राजधानी बन गया। (रा. मा. सचं. 2, पृ. 105)

अलगाना1 सं. (पु.) -- अलग करने की क्रिया या भाव, अलगाने में खींचा-खींची से दुपट्टे में खोंच लग गए। (म. प्र. द्वि. र., खं. 2, पृ. 159)

अलगाना2 क्रि. (सक.) -- अलग-अलग करना, अलग-अलग वर्ग या श्रेणियाँ बनाना (क) दमदार रचनाओं को अकविता शैली में कुंठाजीर्ण रचनाओं से अलगाया जाना था। (दिन., 07 मई, 67, पृ. 40), (ख) सच को दंगों की दहशत से कैसे अलगाया जा सकता है। (वाग. : कम., अग. 1997, पृ. 29)

अलफ होना / हो जाना मुहा. -- अभिमान या क्रोध से अकड़ जाना, यह स्तंभकार समझ गया कि शर्माजी अलफ क्यों हैं ? (दिन., 30 अक्तू., 1977, पृ. 39)

अलबत्ता क्रि. वि. -- निस्संदेह, बेशक, (क) सस्ता साहित्य मंडल का जीवन साहित्य अलबत्ता शांति देने चला आता है। (शि. पू. र., खं. 4, पृ. 515), (ख) यह बात अलबत्ता ठीक है कि कल मालगुजारी प्रथा नष्ट करने का आंदोलन चले तो कुछ मालगुजार अपना एक गुट बना लेंगे। (कर्म., 10 मई, 1947, पृ. 7), (ग) भूख अलबत्ते (अलबत्ता) बहुत देर के लिए गायब हो गई। (सर., अप्रैल 1912, पृ. 235)

अलंबरदार सं. (पु.) -- झंडा को उठानेवाला, ध्वजवाहक, नेतृत्व करनेवाला, वह कम्पुनिस्ट जगत् के दो अलंबरदारों को आपस में एक-दूसरे से निपटने का तमाशा अर्से तक देखता रह सकता है। (दिन., 04 नव., 1966, पृ. 36)

अलबेला1 वि. (विका.) -- अनोखा, अनूठा, (क) कुछ दिनों से अलबेले दलाल कह रहे हैं कि सोने की कीमत बढ़ा दी जाए। (दिन., 24 मार्च, 68, पृ. 31), (ख) उ. प्र. के अलबेले नेता चौ. चरण सिंह छापा प्रधानमंत्री बनकर रायबरेली में प्रधानमंत्री के प्रतिद्वंदी बनना चाहते हैं। (दिन., 10 जन., 1971, पृ. 15), (ग) हम भाव-जगत् के अलबेले मस्त साधकों की दुनिया में विचरण करने लगते हैं। (वि. प्र. : ह. प्र. द्वि., पृ. 56)

अलबेला2 सं. (पु.) -- छैला, बाँका, वह सोचती-दिन आ रहा, उसके और इस अलबेले के बीच एक कठोर अंतराल खड़ा हो जाएगा। (लाल-तारा, पृ. 3)

अलम वि. (अवि.) -- पर्याप्त, यथेष्ट, यही कहनाइस अवसर पर अलम होगा। (सं. परा. : ल. शं. व्या., पृ. 95)

अलमदारी सं. (स्त्री.) -- राज्य, शासन, राजपूताने में अँगरेजी अलमदारी होने के बाद वहाँ के रजवाड़ों का एक ही बड़ा इतिहास लिखा गया। (सर., अग. 1916, पृ. 83)

अलमस्त वि. (अवि.) -- मतवाला, मौजी, निश्चिंत, हमारा यही उद्देश्य है कि कोई संपादक अलमस्त योगी बनकर स्वर्गीय गान का आलाप न करे। (कु. ख. : दे. द. शु., पृ. 5)

अलमस्ती सं. (स्त्री.) -- पूरी तरह मस्ती में रहना, मतवालापन, मौज-मस्ती, (क) उनकी अलमस्ती देखते ही बनती है। (रा. लाल. प्र. र., पृ. 29) (ख) जब कामकाज ठप्प मिलता है तब पता चलता है कि अलमस्ती का दौरा पड़ गया है। (त्या. भू., 3 दिस. 1992, पृ. 8)

अलल बछेड़ा सं. (पु.) -- मनमौजी व्यक्ति, कैसा अलल बछेड़ा है, अपने ख्यालों में ही खोया रहता है। (शि. से. : श्या. सु. घो., पृ. 16)

अललटप्पू वि. (अवि.) -- बेठिकाने का, बेढंगा, अंडबंड, (क) अललटप्पू ढंग पर चाहे जो व्यक्ति पत्र-संचालन का कार्य प्रारंभ कर देता है। (बं. च. के चु. पत्र, सं. ना. द., पृ. 363), (ख) यह सबकुछ करने में परिश्रम करना पड़ेगा अललटप्पू लिख देने से यहाँ थोड़े ही काम चलेगा। (सर., जन. 1932, सं 1, पृ. 197)

अलस वि. (अवि.) -- अलसाया हुआ, अलस भोर के स्वर और थके हुए अंधकार की शांति के बीच हमारा अस्तित्व केंद्रित है। (काद., फर. 1989, पृ. 17)

अलसेट सं. (स्त्री.) -- टाल-मटोल ; अड़ंगेबाजी, (क) पहले मेरे सौ रुपए गिन दीजिए, पीछे से आप अलसेट करने लगेंगे। (प्रेम. की कहा., पृ. 56), (ख) रंगदार अलसेट देता है। (दिन., 25 फर., 1966, पृ. 23)

अलसेटा सं. (पु.) -- लपेट, लपेटा, घेरा, इन कारिकाओं की टीका में जो शब्द हैं, उनके ही अलसेटे में श्रीमान रसालजी आ गए। (वीणा, जन. 1934, पृ. 178)

अलसेटी, अलसेठी वि. (अवि.) -- आलसी, शासन की तुलना उस अलसेठी व्यक्ति से की जा सकती है, जो अपने कानों पर जूँ नहीं रेंगने देता। (हि. पत्र. के गौरव बाँ. बि. भट., सं. ब., पृ. 196)

अलहदा वि. (अवि.) -- अलग, पृथक्, भिन्न, (क) विद्यार्थियों के लिए नौकरी ढूँढ़ने का एक महकमा ही अलहदा रहता है। (सर., सित. 1913, पृ. 529), (ख) यह बात अलहदा है। (काद., अप्रैल 1992, पृ. 50)

अलानिया क्रि. वि. -- खुलेआम, सबके सामने, डंके की चोट पर, खुफिया पुलिस यात्रियों के और विशेषकर के खद्दर धारियों के नाम-धाम अलानिया पूछती फिरती थी। (सर., जून 1924, पृ. 673)

अलापना क्रि. (सक.) -- कहना, छेड़ना, कितने सौमनस्य से चर्चा हो रही थी, तुमने हस्तक्षेप कर विसंवादी स्वर अलाप दिया। (काद., मई 1975, पृ. 14)

अलाल वि. (अवि.) -- आलसी, सल्लू एक तो थे अलाल और दूसरे शौकीन। (माधुरी, सित. 1927, पृ. 307)

अलाली सं. (स्त्री.) -- आलस्य, कुछ अलाली भी यहाँ व्याप्त हैं। (दिन., 25 फर., 1966, पृ. 24)

अलील वि. (अवि.) -- बीमार, अस्वस्थ, उनकी तबीयत कुछ अलील है, वे आज नहीं आ पाएँगे। (काद, सित, 1976, पृ. 15)

अलोना, अलौना वि. (विका.) -- बिना नमक का, (क) भगवान् कृष्ण ने विदुर के घर बासी अलोना साग बड़ी रुचि से खाया था। (शि. पू. र., खं. 3, पृ. 39), (ख) बिना चित्र के पाठकों को यह अलौना सा जान पड़ेगा, इसिलए मैं यहाँ अपनी लेखनी को रोकता हूँ। (सर., नवं. 1909, पृ. 511)

अल्लमगल्लम सं. (पु.) -- ऊटपटाँग बात या विषय, कोई अल्लमगल्लम पढ़कर चौंकता है तो कोई उद्दीन के पुछल्ले से घबराया है। (काद., अप्रैल 1989, पृ. 31)

अल्लाह की गाय मुहा. -- सीधा-सच्चा व्यक्ति, लेकिन जनता अल्लाह की गाय है, वह कभी गलती नहीं करती। (रा. मा. संच. 1, पृ. 36)

अल्हड़ वि. (अवि.) -- नासमझ, नादान, चौबे मदनमोहन परले सिरे के अल्लड़ और लापरवाह डींग हाँकनेवाले भी। (ग. शं. वि. र., खं. 7, पृ. 39)

अल्हड़पंथी वि. (अवि.) -- अलमस्त, मनमौजी, जो सचमुच प्रतिभा संपन्न लेखक होते हैं, वे अकसर अल्हड़पंथी होते हैं। (स., जुलाई 1920, पृ. 15)

अवरेबी वि. (अवि.) -- टेढ़ा, तिरछा, पेंचदार, दकियानूसी अधिनायकवाद टेढ़े रास्तों के अवरेबी काट से जनतंत्रीय विस्तार को रोकने में क्रियाशील होता है। (दिन., 27 अप्रैल 69, पृ. 14)

अवश वि. (अ.) -- विवश, लाचार, लेकिन कुरसी की बूढ़ी भूख के अवश होकर चरणसिंह ने सवा दो साल में ही पार्टी को तोड़ दिया। (रा. मा. संच, 1, पृ. 413)

अवसरबाज वि. (अवि.) -- अवसर का लाभ उठानेवाला, अवसरबाज स्वार्थियों को अपने साथ लेकर अपने पुण्य बेचने का कार्य भाता जाता है। (कर्म., 1 जन., 1949, पृ. 3)

अवाप्त वि. (अवि.) -- जिस पर अधिकार किया गया हो, अधिगृहीत, जवाहर सार्किल के लिए अवाप्त की गई भूमि के प्रभावित लोगों ने समझौते की पेशकश की है। (त्या. भू. : संवत् 1983 (3 दिस. 1992) पृ. 5)

अविकल वि. (अवि.) -- जैसे का तैसा, जस का तस, हूबहू, देवनागरी अक्षरों में उसका जो अनुवाद गवर्नमेंट ने प्रकाशित किया है, वही हम नीचे अविकल उद्धृत करते हैं। (सर., जन. 1912, पृ. 9)

अव्वल क्रि. वि. -- पहले तो, जमींदार लोग कम्युनिस्टों से अव्वल तो कोई समझौता करेंगे ही नहीं ... , (दिन., 2 फर., 69, पृ. 7)

अश्रुतपूर्व वि. (अवि.) -- जो पहले सुनने में न आया हो, (क) सबने आपकी विशाल विद्वत्ता और अश्रुतपूर्व विज्ञान की एक स्वर से प्रशंसा की। (सर., 1 फर. 1908, पृ. 52), (ख) प्रेसों ने छापेखाने के व्यवसाय में अश्रुतपूर्व हलचल पैदा कर दी। (म. प्र. द्वि. र., खं. 2, पृ. 425)

असगुनिया वि. (अवि.) -- अपशकुनी, तभी मेरी दृष्टि उस असगुनिया बिजूके पर पड़ जाती है जिसको मैं 20 साल तक अपने भीतर झेलता रहा। (काद., नव. 1978, पृ. 69)

असबाब सं. (पु.) -- सामान, असबाब रखकर मैं नवीन के यहाँ मिलने गया। (काद., नव, 1960, पृ. 21)

असम वि. (अवि.) -- असाधारण, इस मुकदमे में आपने असम साहस दिखाया। (सर., 1 फर. 1908, पृ. 58)

असामी1 सं. (पु.) -- छोटा काश्तकार, किसान, (क) ईश्वर ने असामियों को उनकी सेवा के लिए ही पैदा किया है। (प्रे. स. क., पृ. 73), (ख) आपकी मृत्यु के पश्चात् एक लाख से ऊपर की रकम असामियों को छूट में दे दी गई है। (सर., मार्च 1909, पृ. 106)

असामी2 सं. (पु.) -- ग्राहक, देख लिया जाएगा, असामी मोटा है। (का. कार, : निराला, पृ. 11)

असार वि. (अवि.) -- सार से रहित, सारहीन, हमारा मतलब यह नहीं कि पुस्तक असार है। (म. प्र. द्वि. र., खं. 2, पृ. 242)

असावधानता सं. (स्त्री.) -- असावधानी, अब भी असावधानता हो जाती है। (सं. परा. : ल. शं. व्या., पृ. 50)

असिधारा व्रत सं. (पु.) -- तलवार की धार पर चलने जैसा कठोर और जोखिम भरा व्रत, अंतकाल तक पत्रकार वृत्ति के असिधारा व्रत का पालन करते रहे। (सं. परा. : ल. शं. व्या., पृ. 140)

असीसना क्रि. (सक.) -- आशीर्वाद देना, उसी की अंतरात्मा रोम-रोम से सेवक को असीसती है। (शि. पू. र. खं. 3, पृ. 37)

अहमक सं. (पु.) -- मूर्ख व्यक्ति, न जाने किस गोठिल अकिलवाले अहमक ने इस कहावत को प्रचलित कर रखा है। (भ. नि., पृ. 30)

अहमहमिका सं. (स्त्री.) -- अहमक, मूर्ख, कोई उसे बुंदेलखंडी अहमहमिका कहता है। (मधुकर, जन., 1944, पृ. 460)

अहंमानी वि. (अवि.) -- अहंकारी, अहंकारपूर्ण, मिथ्याभिमानी, ये आदमी तब होश में आते हैं जब अपने अहंमानी स्वभाव के कारण अपना सर्वनाश कर लेते हैं। (गु. र., खं. 1, पृ. 426)

अहलकारी वि. (अवि.) -- अहलकारों से संबद्ध, कार्यकर्ताओं के द्वारा किया हुआ, ऐसी सभी योजनाओं की उपज उस अहलकारी दृष्टिकोण से होती है। (दिन., 2 जून, 68, पृ. 16)

अहोरात्र क्रि. वि. -- दिन-रात, अहोरात्र चिंता के मारे बेचारे को शांति न मिलने पाई। (सर., अग. 1912, पृ. 446)

आ धमकना मुहा. -- एकाएक या सहसा (कहीं) पहुँच जाना, कहीं 30 साल में आप फेरा करते हैं। तो कहीं 20 साल में ही आप आ धमकते हैं। (ग. शं. वि. र., खं. 2, पृ. 73)

आ बैल मुझे मार कहा. -- स्वयं परेशानी मोल लेना, खजाना लूटकर आपने आ बैल मुझे मार वाली बात की है। (शत. खि., ह. कृ. प्रे., पृ. 57)

आईन सं. (पु.) -- नियम, विधान, बंगाल गवर्नमेंट ने पानी का जुआ बंद करने के लिए एक आईन बना दिया। (बा. गु. : गु. नि. सं. झा. म. श., खं. 5, पृ. 417)

आँकना क्रि. (सक.) -- आकलन करना, मापना, कौन आँक पाया है माँ की तपस्या को, भगिनी के प्यार को और भार्या की निष्ठा को। (हि. प. के गौरव, बाँ. बि. भ., सं. ब. (सा. हि.), 12 मई, 1957, पृ. 24)

आकबत सं. (स्त्री.) -- अंत, अंतकाल, जीवन सफल हो गया, आकबत बन गई। (म. का मत : क. शि., 26 जुलाई, 1924, पृ. 161)

आकर सं. (पु.) -- खान, भंडार, (क) मनुष्य का हृदय अनेक विकारों का आकर है। (म. प्र. द्वि. र., खं. 2, पृ. 434), (ख) डॉ. वासुदेव शरण अग्रवाल के अनुसार पद्मावत भारतीय लोक संस्कृति का आकर ग्रंथ है। (काद., जन. 1988, पृ. 91)

आँका-बाँका वि. (विका.) -- आड़ा-तिरछा, (क) वह स्वर लहरी मेरी आस्था की आँकी-बाँकी लकीरों पर घहराने लगी। (स्मृ. वा. : जा. व. शा., पृ. 14), (ख) जनता आपके नाम वफादारी का पट्टा हमेशा की तरह पेटी में डालती है, लेकिन किसी साल वह पाती है कि वोट के बावजूद नतीजे न जाने कैसे आँके बाँके हो गए। (रा. मा. संच. 1, पृ. 378)

आकाश में कोट बाँधना मुहा. -- हवाई महल बनाना, यहाँ पहुँचकर उनके हृदय पर वज्रपात हुआ। जिस मूर्ति को हृदय में रखकर वे आकाश में कोट बाँधते थे, वह स्वयं पन्ना थी। (सर., सित. 1909, पृ. 394)

आकाश-कुसुम लोढ़ना मुहा. -- मुहा., आकाश के कुसुम तोड़ना, असंभव प्रयास करना, पाकिस्तान में हिंदुस्तानि चलगी यह कल्पना करना भी आकाश कुसुम लोढ़ना है। (शि. पू. र., खं. 4 पृ. 523)

आकाश-कुसुम सं. (पु.) -- अनहोनी वस्तु, दूर देशों में जो यह जनरव है कि मैथिल ब्राह्मण कन्या बेचते हैं, वह आकाश कुसुमवत् झूठ है। (सर., अक्तू. 1909, पृ. 436)

आकाश-पाताल एक करना मुहा. -- घोर परिश्रम करना,, पूरी शक्ति लगा देना, (क) समाज मुझ पर प्राण देता है, वह मेरे लिए आकाश-पाताल एक कर डालता है। (मा. च. र., खं. 2, पृ. 23), (ख) ब्रह्मचर्य के लिए अवश्य ही आकाश-पाताल एक किया जाता है। (माधुरी, नव. 1928, सं. 3, पृ. 630)

आकाशवृत्ति सं. (स्त्री.) -- जीविका का अनिश्चित साधन, लेखन उनके लिए आकाशवृत्ति है। (काद., अग. 1987. पृ. 8)

आँख ओझल करना मुहा. -- अनदेखी करना, उपेक्षा करना, यदि इस बात को आँख ओझल किया तो आगामी बीस वर्षों के भीतर ही एक भयानक विस्फोट होगा। (न. ग. र., खं. 2, पृ. 251)

आँख की किरकिरी होना या बना होना मुहा. -- खटकने या पीड़ा देनेवाली बात होना, (क) अजीब आँख की किरकिरी है ये गरीबी। (दिन., 2 जुलाई, 1972, पृ. 11), (ख) सबसे जोरदार टक्कर मंदसौर जिले में हुई, जो पिछले आम चुनाव में कांग्रेस की आँख की किरकिरी बना हुआ था। (दिन., 21 जून, 1970, पृ. 20)

आँख की शरम सं. (स्त्री., पदबंध) -- लाज, लोकलज्जा, उसने लोकतांत्रिक आँख की शरम भी छोड़ दी है। (हि. ध., प्र. जो., पृ. 292)

आँख गड़ाना मुहा. -- हड़पने के लिए ललचाना, उतावला होना या नजरें टिकाना ; विशेष रूप से ध्यान देना, (क) पाकिस्तान हमारे हिमालयी इलाके पर आँख गड़ाए है। (दिन., 1 अक्तू. 1965, पृ. 19), (ख) एकता और प्रेम का जन्म तब तक नहीं हो सकता जब तक लोग एक-दूसरे के अवगुणों पर आँख गड़ाया करते हैं। (सर., भाग 25, खं. 1, मई 1924, सं. 5, पृ. 507)

आँख पर पट्टी बाँधना मुहा. -- वास्तविकता को न देखना या स्वीकार न करना, आँख पर पट्टी बाँधकर दौड़नेवालों से डरकर तो छोटे सुधारों को बड़ा मानते हैं। (गु. र., खं. 1, पृ. 430)

आँख पसारना मुहा. -- असहाय होकर देखना, इंदौर की भोली-भाली प्रजा भी आँख पसारे यह अनिष्ट कांड देखती रह गई। (म. का मत : क. शि., 6 मार्च, 1926, पृ. 113)

आँख मुँदना / मुँद जाना मुहा. -- मृत्यु हो जाना, मरना, अपनी जिंदगी पर एक निगाह डालने से मालूम होता है कि मेरी आँख मुँदेगी, मुझे एक परितोष होगा कि जो काम मैंने विद्यापीठ में किया है वह स्थायी है। (दिन., 7 जून. 1966, पृ. 43)

आँख मूँदकर चलना मुहा. -- अंधानुकरण करना, मान्यताओं और परंपराओं का निर्वाह अन्य कहानीकार आँख मूँदकर करते चले आ रहे हैं। (काद., जुलाई 1976, पृ. 18)

आँख मूँदकर क्रि. वि. -- बिना विचारे, बिना सोचे-समझे, (क) मानो उनने आँख मूँदकर वायसराय को प्रसन्न करने को ही बंग-विच्छेद की सम्मति दे दी हो। (गु. र., खं. 1, पृ. 332), (ख) वास्तव में अबकी कांग्रेस में आँख मूँदकर कूदनेवालों की कमी नहीं थी। (मत., वर्ष 5, सं. 7, पृ. 3)

आँख-मिचौनी होना मुहा. -- बारी-बारी से प्रकट और विलुप्त होना, मनुष्य जीवन में सुख-दुःख की आँख-मिचौनी होती रहती है। (शि. पू. र., खं. 3, पृ. 488)

आँख-मिचौनी सं. (स्त्री.) -- लुका-छिपी का खेल, आँख मिचौनी, (क) यही असहयोग आज भारतीयों के दिल में छिपकर आँख मिचौनी खेल रहा है। (न. ग. र., खं. 2, पृ. 122), (ख) पुलिस एवं छात्रों के बीच आँख मिचौनी चल रही है। (ज. स., 23 दिस., 1983, पृ. 4)

आखिरश क्रि. वि. -- आखिरकार, अंततः, आखिरश आपकी न्याय-निष्ठा के सामने सबका रोना-चिल्लाना फुर्र हो गया। (म. का मतः क. शि., 24 जन. 1925, पृ. 180)

आँखें खुलना मुहा. -- सत्य का दर्शन होना, वास्तविकता का पता चलना, नौकरशाही के वास्तविक स्वरूप को प्रत्यक्ष देखकर ही देशवासियों की आँखें खुली हैं। (स. सा., पृ. 166)

आँखें गुरेरना मुहा. -- आँखें दिखाना, बोलशेविज्म का भूत अलग आँखें गुरेर रहा है। (म. का मत : क. शि., 22 सित. 1928, पृ. 227)

आँखें चढ़ना मुहा. -- क्रोध से भवें तानना, अभी हाल में इसकी भी आँखें चढ़ गई हैं। (स. सा., पृ. 285)

आँखें चार करना मुहा. -- नजरों से नजरें मिलाना, सामना करना, वह हिंदुस्तान की असलियत से आँखें चार नहीं कर सकता। (दिन., 1 फर. 1970, पृ. 11)

आँखें चौंधियाना / चौंधिया जाना मुहा. -- आश्चर्यचकित होना, कुछ दिखाई न पड़ना, कुछ समझ में न आना, पश्चिमी सभ्यता की चमक से हमारी आँखें चौंधिया गई हैं। (सा. हि., 21 मई, 1961, पृ. 197)

आँखें ठंडी होना मुहा. -- परम संतुष्टि या शांति मिलना, उसकी मलैती देखकर आँखें ठंडी हो रही हैं। (काद., सित. 1988, पृ. 120)

आँखें दिखाना मुहा. -- डराना, धमकाना, क्रोध प्रकट करना दुनिया के राष्ट्र भी हमें आँखें दिखाने में अपनी शान समझते हैं। (न. ग. र., खं. 2, पृ. 178)

आँखें पथराना मुहा. -- आँखें सुन्न हो जाना, असहाय या शक्तिहीन हो जाना, क्योंकि यह सब देखते-सुनते तो हमारी आँखें पथरा गई हैं और कान पक गए हैं। (स. सा., पृ. 291)

आँखें मल-मलकर देखना मुहा. -- आश्वस्त होने के लिए बार-बार देखना, संसार भर उसे आँखें मल-मल कर देख रहा है। (ग. शं. वि. र., खं. 3, पृ. 38)

आँखें मीचना, मीच रखना मुहा. -- अनदेखी करना, उपेक्षा करना, (क) अन्य प्राचीन विधाओं के साथ आयुर्वेद की ओर से सदा आँखें मीची हैं। (मा. च. र., खं. 9, पृ. 98), (ख) शस्त्र व्यवसायियों ने आँखें मीच रखी हैं। (माधुरी, नव. 1928, सं. 3, पृ. 899)

आँखें मीजना मुहा. -- आँखें मलना, सोती हुई आत्मा आँखें मीजती उठ पड़ी है। (ग. शं. वि. र., खं. 1, पृ. 79)

आँखों ओट होना मुहा. -- आँखों से ओझल होना, राष्ट्रीय एकता के और उसके लिए एक भारतीय भाषा के लक्ष्य को कभी आँखों ओट नहीं होने दिया। (दिन., 30 जुलाई, 1965, पृ. 11)

आँखों का उमड़ना मुहा. -- आँसू निकल आना, द्रवित और दुःखी होना, देश की दशा पर आँखों को उमड़ने दीजिए। (शि. पू. र., खं. 3, पृ. 308)

आँखों की ओट करना मुहा. -- ध्यान से ओझल करना या हटाना, हम इस बात को न भूलना चाहते हैं , न आँखों की ओट ही कर देना चाहते हैं। (मा. च. र., खं. 9, पृ. 129)

आँखों में उँगली कोंचना / डालना मुहा. -- विशेष रूप से चेताना, (क) नौकरशाही की आँखों में उँगली कोंचकर बता देंगे कि ऐसे स्वेच्छाचारी शासक को मानने के लिए वे तैयार नहीं है। (म. का मत : क. शि., 5 अप्रैल, 1924, पृ. 144), (ख) उसने आँखों में उँगली डालकर बहन को उसकी गलती दिखाई। (दिन., 10 दिस. 1972, पृ. 38)

आँखों में खटकना मुहा. -- बुरा लगना, अप्रीतिकर लगना, तब नक्सलवादी होना सरकार की आँखों में खटकनेवाली बात थी। (सं. मे., 29 जुलाई, 1990, पृ. 9)

आँखों में धूल डालना / झोंकना मुहा. -- धोखा देना, (क) किसी-न-किसी उपाय से वहाँ की जनता की आँखों में धूल डाल दे। (मा. च. र., खं. 9, पृ. 179), (ख) लोकहित की दुहाई देकर आँखों में धूल डालने में यूरोप के राष्ट्र बड़े सिद्धहस्त होते हैं। (स. सा., पृ. 132), (ग) छल-प्रपंच करनेवाला व्यक्ति समझता है कि उसने दूसरे की आँखों में धूल झोंक दी। (त्या. भू., संवत् 1986, (1927), पृ. 142)

आँखों से ओझल करना मुहा. -- अनदेखी करना, मुझे देखकर भी क्यों आँखों से ओझल करना चाहते हो। (काद., जन. 1975, पृ. 70)

आग उगलना मुहा. -- कड़वी-कठोर बातें कहना, आग उगलना जैसे उसका स्वभाव-सिद्ध धर्म हो गया है। (न. ग. र., ख. 2, पृ. 275)

आग के साथ खिलवाड़ करना मुहा. -- जोखिम उठाना, जोखिम भरा काम करना, भारतीयों की अयोग्यता सिद्ध करने के लिए समझौते का प्रयत्न करना आग के साथ खिलवाड़ करना है। (तैवर, पृ. 53)

आग को हवा देना मुहा. -- भड़काना, उग्र कर देना, बहुसंख्यक सांप्रदायिकता की आग को हवा देनेवाले ये लोग अल्पसंख्यक सांप्रदायिकता को रक्षक मानते हैं। (हि. ध., प्र जो., पृ. 202)

आग खाएगा तो अंगार हगेगा कहा. -- जैसा कर्म करेगा वैसा फल मिलेगा, टाँय-टाँय न कर छोटू, साला आग खाएगा तो अंगार हगेगा। (रा. द. : श्रीला. शु., पृ. 88)

आग धधकना मुहा. -- घोर असंतोष या विरोध फैल जाना, इस समय भारत के जनसाधारण में असंतोष की आग धधक रही है। (स. सा., पृ. 174)

आग बबूला होना / हो जाना मुहा. -- अत्यधिक क्रोध से जलने लगना, माडरेट पहले तो आग बबूला हो जाते हैं पर पीछे धूल फाँकने लगते हैं। (स. सा., पृ. 295)

आग भभूका होना मुहा. -- आग बबूला होना, मैंने मजदूरी के साथ-साथ रात को पढ़ना भी प्रारंभ कर दिया। इससे मेरे माता-पिता आग भभूका हो गए। (सर., जुलाई 1924, पृ. 761)

आग मूतना मुहा. -- उपद्रव या हिंसा फैलाना, अनुचित आचरण करना, जमायत चाहे आग मूतती हो पर मुसलमान भाइयों की समझ में उनकी हितू वही है। (म. का मत : क. शि., 17 नव. 1923, पृ. 81)

आग-लगाऊ वि. (अवि.) -- झगड़ा लगाने या उत्तेजना फैलानेवाला, भड़काऊ संत लगातार आग-लगाऊ भाषण देते रहे हैं। (ज. स., 4 फर. 1984, पृ. 4)

आगता वि. (स्त्री.) -- आई हुई, एक धर्मपरायण कल्पवासार्थ आगता विधवाओं का दल है। (गु. र., खं. 1, पृ. 107)

आगल ठोंकना मुहा. -- अर्गला लगाना या अवरोध खड़ा करना, झट उनको नियत करके मान्यवर के पीछे आगल ठोंक दी, जिससे लार्ड कर्जन अपना मत न बदल दे। (गु. र., खं. 1, पृ. 333)

आगल सं. (स्त्री.) -- अर्गला, जंजीर, बस झटपट इंद्र ने किवाड़ बंद कर दिए, आगल डाल दी। (गु. र., खं. 1, पृ. 102)

आगा-पीछा करना मुहा. -- असमंजस में पड़ना, हिचकना, (क) वे पत्रकारों का महत्त्व स्वीकार करने में कभी आगा-पीछा नहीं करेंगे। (सर., जन. 1933, सं. 1, पृ. 198), (ख) श्रीमती ने अपनी पुस्तक की रूपरेखा प्रकाशकों को बताई तब प्रकाशक पुस्तक छापने में आगा-पीछा करने लगे। (मा. च. र., खं. 10, पृ. 312), (ग) तब स्पष्ट शब्दों में अपना मत प्रगट करने में आगा-पीछा भी नहीं करते। (ग. शं. वि. र., खं. 1, पृ. 285)

आगार सं. (पु.) -- निधि, भंडार, खजाना, (क) किसी अज्ञात नियम ने मनुष्य हृदय को विविध भावों का आगार बनाया है। (न. ग. र., खं. 2, पृ. 148), (ख) उन्होंने दूसरी बात यह कही है कि हिंदू धर्म अस्पृश्यों के लिए भयंकर वेदनाओं का आगार है। (न. ग. र., खं. 3, पृ. 60)

आगाही सं. (स्त्री.) -- पहले से ही होनेवाला आभास, पूर्वाभास, नाटककार को शायद कुछ आगाही हो गई थी कि ले-दे के हश्र होना था। (दिन., 19 मार्च, 1965, पृ. 45)

आँच सं. (स्त्री.) -- आक्षेप या दोषारोपण, जापानी लोग राजनैतिक जीवन में नैतिकता को बड़ी मर्यादा देते हैं और जरा भी इस संबंध में अपने ऊपर आँच नहीं बर्दाश्त कर सकते। (काद., अप्रैल 1989, पृ. 85)

आँजना क्रि. (सक.) -- चिकनाहट डालना, पत्नी ने उसके पहियों की चूल को घी से आँज दिया। (गु. र., खं. 1, पृ. 99)

आटा गीला करना मुहा. -- (अपनी) हानि सहना, इस देश में हिंदी की रक्षा और उसका विकास अपने घर के आटे को गीला करके किया गया है। (काद., जुलाई 1976, पृ. 24)

आटे-दाल का भाव मालूम होना मुहा. -- कार्य की कठिनता समझ में आना, इसमें तनिक भी संदेह नहीं कि कुछ ही दिनों में उसे आटा (आटे) दाल का भाव मालूम हो जाएगा। (स. सा., पृ. 254)

आठ-आठ आँसू बहाना मुहा. -- अत्यधिक विलाप करना, यह सब बातें उसी को सूझ पड़ेंगी जो एकांत में बैठकर देश की वर्तमान दुरवस्था पर आठ-आठ आँसू बहाएगा। (शि. पू. र., खं. 3, पृ. 303)

आड़ लेना मुहा. -- छिपना, एक तालाब के पास आड़ लेकर जा डटे। (म. प्र. द्वि. र., खं. 9, पृ. 148)

आड़ से चोट करना मुहा. -- छिपकर वार करना, पीठ पीछे बुराई करना, सबसे भयंकर आलोचक वह होता है जो आड़ से चोट करता है। (सर., जन.-जून 1931, सं. 1, पृ. 194)

आड़ा वक्त सं. (पु., पदबंध) -- कठिन समय, मुश्किल वक्त, ऐसे आड़े वक्त में रूस ही ऐसा था जिसने चीन की सहायता की। न. ग. र., खं. 2, पृ. 261)

आड़ा-टेढ़ा वि. (विका.) -- उलटा-सीधा, धूर्ततापर्ण, अपने धन और बुद्धि के आड़े-टेढ़े दावों से संसार में अपनी शान बनाए रखने के लिए मशहूर रही है। (मा. च. र., खं. 9, पृ. 93)

आड़ा-तिरछा वि. (विका.) -- उलटा-सीधा, अधिकतर सदस्यों ने बजट पर आड़ी-तिरछी फबतियाँ कसीं। (दिन., 4 जून, 67, पृ. 14)

आड़े आना मुहा. -- बाधक होना, अवरोध उत्पन्न करना, (क) हमें झंडे से कोई झगड़ा नहीं है, जब तक वह कानून के आड़े न आवे। (मा. च. र., खं. 2, पृ. 109), (ख) इन सिद्धांतों को भारत में लागू करने के प्रयास में आँकड़ों का अभाव आड़े आया। (दिन., 30 अप्रैल, 67, पृ. 44)

आड़े हाथों लेना मुहा. -- खरी-खोटी सुनाना, भला-बुरा कहना, (क) कास्त्रों ने अमेरिका और सोवियत संघ दोनों को आड़े हाथों लिया। (दिन., 03 सित., 67, पृ. 38), (ख) नागार्जुन ने एक मिलन-गोष्ठी में साहित्य अकादमी को आड़े हाथों लिया। (दिन., 13 अप्रैल 69, पृ. 39), (ग) इस बयान को आड़े हाथों लिया गया। (ज. स., 8 दिस. 1983, पृ. 4)

आढ़तिया सं. (पु.) -- आढ़त का काम करनेवाला, थोक व्यापार करनेवाला, बाहर दिसावर में भेजनेवाले आढ़तिया लोग आकर खरीद करते हैं। (सर., भाग 28, सं. 4, मार्च 1927, पृ. 447)

आतिथेय सं. (पु.) -- मेजबान, जिसके यहाँ अतिथि ठहरा हो, मेरे आतिथेय ने मेरी इच्छा-सुविधा का ध्यान रखा था। (काद., फर. 1989, पृ. 39)

आत्मगोपन सं. (पु.) -- अपनी बात मन में ही रखना, प्रकट न करना, उनका यह प्रयत्न आत्मगोपन की चेष्टा है। (बे. ग्रं., भाग 1, पृ. 20)

आत्मविस्मृत वि. (अवि.) -- जो अपने को भूल जाए, आत्मीय भावों को अति श्रुतिमधुर स्वरों के माध्यम से वादक कलाकार ने इस सौंदर्यात्मक ढंग से व्यक्त किया कि श्रोता आत्मविस्मृत हो गए। (दिन., 7 दिस., 1969, पृ. 44)

आत्मा बिकना / बिक जाना मुहा. -- अपनी समझदारी से काम न करना या न कर पाना, दूसरे के आदेश पर चलना, नौकर की आत्मा स्वामी के हाथों बिक जाती है। (शत. खि., ह. कृ. प्रे., पृ. 34)

आदृत्य वि. (अवि.) -- आदृत, आदर के योग्य, आदरणीय, देश पर मर-मिटनेवाले हमार लिए सदैव आदृत्य रहेंगे। (काद., मार्च 1977, पृ. 13)

आधी-साधी सं. (स्त्री.) -- रूखी-सूखी रोटी, एकाध लोग कहते हैं कि कुछ रुपए जोड़ ले तो आधी-साधी का जोगाड़ बैठा देंगे। (रवि., 4 जन. 1981, पृ. 37)

आन की आन में क्रि. वि. (पदबंध) -- झटपट, तुरंत, तत्क्षण, ... जल्दी ही एक दौड़-सी मच गई और कुछ कच्चे- पक्के तथ्य उछाल दिए गए, जो आन की आन में सारी दुनिया में फैल गए। (धर्म., 15 जन. 1967, पृ. 18)

आन पर मन मिटना मुहा. -- इज्जत / प्रतिष्ठा की रक्षा के लिए प्राण दे देना, अपने स्वामी की आन पर मर मिटने की साध उसमें होती है। (काद., दिस. 1966, पृ. 39)

आन-बान सं. (स्त्री.) -- सज-धज, ठाट-बाट, तड़क-भड़क, पवित्र गंगाजल आन-बान में भरा हुआ मस्तानी चाल से मंडराता हुआ बहा जा रहा था। (सर., मार्च 1926, पृ. 303)

आनंद का झरना झरना मुहा. -- आनंद की वर्षा होना, इन गीतों के गान से आनंद का झरना झरने लगेगा। (शि. पू. र., खं. 3, पृ. 364)

आनन-फानन क्रि. वि. -- तत्काल, चटपट, (क) उनका मोह अंधकार आनन-फानन दूर हो गया। (शि. पू. र., खं. 3, पृ. 41), (ख) जहाँ भी वामपंथी पार्टियों में मठमठांतर हो जाता है वहाँ कोई भी दक्षिण पंथी आनन फानन सत्तारूढ़ हो जाता है। (दिन., 25 नव., 06, पृ. 34), (ग) बात आनन-फानन वहीं की वहीं समाप्त हो गई। (मि. ते. : सु. चौ., पृ. 68)

आनाकानी करना मुहा. -- टाल-मटोल करना, (क) सरकार रोडेशिया के खिलाफ कोई कड़ी कार्रवाई करने से हमेशा आनाकानी करती रही है। (दिन., 27 अक्तू. 1968, पृ. 32), (ख) ... थाने में मौजूद अधिकारियों ने शिकायत दर्ज करने में आनाकानी की। (लो. स., 21 जुलाई, 1989, पृ. 1)

आनी-जानी सं. (स्त्री.) -- नश्वर, नाशवान, इस फिक्र की सलवटें पड़ने लगें कि सारी खूबसूरती आनी-जानी है तो इस संसार का क्या होगा। (स. ब. दे. : रा. मा., पृ. 47)

आप से आप क्रि. वि. -- अपने आप, स्वतः, हिंदी माध्यम से क्षेत्रीय भाषाओं के साहित्य का रसास्वादन किया जाने लगेगा, उस दिन विरोध आप से आप मिट जाएगा। (शि. पू. र., खं. 4, पृ. 577)

आपसदारी सं. (स्त्री.) -- आपसी व्यवहार, पारस्परिकता, (क) वहाँ हँसी-मजाक और आपसदारी का वातावरण था। (सं. मे., कम., 27 मई, 1990, पृ. 22-23), (ख) साधारण सी बात थी, आपसदारी की। (काद., फर. 1995, पृ. 143)

आपा खोना मुहा. -- गुस्से में आना, बौखला उठना, उन्माद ही आपा खोना है। (हि. ध., प्र. जो., पृ. 77)

आपा सं. (पु.) -- 1. निजता, निजत्व, सर्वस्व, शमसेर जी जो देना चाहते हैं वह सिर्फ बात या बात का मर्म नहीं स्वयं आपा है अपना सरबस। (दिन., 3 जन., 1971, पृ. 14), 2. अस्मिता, स्वाभिमान, पाश्चात्य सरकारों के अधीन होकर हमने इस देश के आपे की आहुति दे दी है। (कर्म., 4 अक्तू., 1952, पृ. 6)

आपे से बाहर होना मुहा. -- क्रोधाभिभूत होना, गुस्से में पागल होना, ऐसा न हो तो देश के गोरे पत्र इस वर्ष की कांग्रेस पर आपे से बाहर होकर चिड़िचड़ाते और बुड़बुड़ाते न दीख पड़ते। (ग. शं. वि. र., खं. 2, पृ. 347)

आप्तवचन सं. (पु.) -- आधिकारिक या प्राणाणिक वचन, यह स्वतंत्रता आप्तवचन और तर्क इन दो महाशक्तियों के साथ बहुत दिन तक संघर्ष के बाद मिली है। (सर., जून 1915, पृ. 339)

आफत का पहाड़ टूटना या टूट पड़ना मुहा. -- सहसा बहुत बड़ी विपत्ति का आना, घोर कष्ट आना, लालाजी से एकांत में मिलकर उनके दुख-दर्द की बातें पूछ लेते के एकांत में मिलकर उनके दुख-दर्द की बातें पूछ लेते तो नौकरशाही पर कौन-सा आफत का पहाड़ टूट पड़ता। (स. सा., पृ. 167)

आबद्ध वि. (अवि.) -- जो बँधा हो, बँधा हुआ, जब तक सारी मानव जाति एक सूत्र में आबद्ध नहीं हो जाती, बलप्रयोग की आवश्यकता से इंकार नहीं किया जा सकेगा। (सं. परा. : ल. शं. व्या., पृ. 90)

आबपाशी सं. (स्त्री.) -- सिंचाई, आबपाशी के लिए काफी कुएँ, तालाब और नदो नहीं। (सर., जन-फर. 1916, पृ. 135)

आबरू पर बट्टा लगाना मुहा. -- अप्रतिष्टित करना, कलंकित करना, मेरे बाबूजी भी नौकरी करते थे पर उन्होंने कभी अपनी आबरू पर बट्टा नहीं लगाया। (सर., जन. 1930, पृ. 72)

आबोहवा सं. (स्त्री.) -- वातावरण, जलवायु, मेरे पिताजी भारतीय आबोहवा से मुझे बचाने के प्रयास में लगे थे। (क्रां. प्रे. स्रो. : र. ला. जो., पृ. 18)

आमदरफ्त सं. (स्त्री.) -- आवाजाही, चाँदी और सोने की अनियंत्रित आमदरफ्त से दर फिर अपने पूर्व परिमाण पर आ जाती है। (सं. परा. : ल. शं. व्या., पृ. 321)

आमफहम वि. (अवि.) -- सरल, सुगम, सर्वप्रचलित, (क) तुलसी या कबीर के बारे में अपनी निजी एवं ईमानदार राय आमफहम (संस्कृतनिष्ठ नहीं) भाषा में छात्र को लिखना चाहिए। (रा. मा. संच. 2, पृ. 393), (ख) यानी, आडंबरहीन, एकदम बोलचाल की आम-फहम सहज प्रभावी भाषा। (रा. मा. संच, 1, पृ. 62)

आमादा वि. (अवि.) -- उतारू, सन्नद्ध, तैयार, यदि केंद्र सरकार वहाँ राष्ट्रपति शासन लागू करने पर आमादा ही हो तो दूसरी बात है। (दिन., 13 दिस., 1970, पृ. 19)

आमाल सं. (पु. बहु.) -- क्रियाकलाप, आचरण, इन इजारदारों के आमाल कुत्सित कर्मों से भरे हैं। (म. का. मत : क. शि., 7 जून, 1924, पृ. 106)

आमूलचूड़, आमूलचूल क्रि. वि. -- पूरे ढाँचे में, पूर्णतः कई बार हिंदी छात्रों को पढ़ाने का अवसर हमें भी मिला और तब इन ग्रंथों का आमूलचूड़ निरीक्षण हुआ। (वीणा, जन. 1934, पृ. 168)

आमोखता सं. (पु.) -- पुनरावृत्ति, कुछ लोग अपने अधिकारों का आमोखता पढ़ रहे हैं। (म. का मत : क. शि., 13 अक्तू. 1928, पृ. 255)

आँय-बाँय-शाँय वि. (अवि.) -- ऊलजलूल, ऊटपटाँग, इधर-उधर का, जब नौकरशाही के कान ऊपर से ऐंठे जाते हैं तो वे आँय-बाँय-शाँय मकानों आदि का कर निर्धारण कर देते हैं। (दिन., 15 जुलाई, 1966, पृ. 19)

आँय-बाँय वि. (अवि.) -- ऊलजलूल, निरर्थक, (क) कचहरी में आते हुए उसके पैर लड़खड़ाने लगे और मुँह से आँय-बाँय शब्द निकलने लगे। (मधुकर, अग.-सित. 1946, पृ. 573), (ख) किसी का बेढंगा स्वरूप चित्रित करने में आँय-बाँय बक जाना ही हास्य रस नहीं है। (वीणा, मार्च 1935, पृ. 362)

आयत करना मुहा. -- विस्तार करना, विशद रूप देना, (क) राहुल जी की लेखन-शैली की इस विशेषता को डॉ. रामविलास शर्मा ही आयत कर सके। (शि. से. : श्या. सुं. घो., पृ. 9), (ख) नागरी के विशेष चिन्हों को अल्पाभास में ही आयत कर सकेगा। (सं. परा. : ल. शं. व्या., पृ. 10)

आयंदा क्रि. वि. -- आइंदा, भविष्य में, पुनः, आयंदा ऐसा होने की संभावना भी दिखाई नहीं देती है। (त्या. भू., संवत् 1986, (1927) पृ. 214)

आर सं. (स्त्री.) -- मेंड, खेत की आर पर बैठे भर-दिन हलवाहे को टुकारी देते रहिए। (रा. बे., बे. ग्रं., प्रथम खं., पृ. 31)

आरी आना मुहा. -- परेशान होना, दुःखी होना, कारण यह कि इस देश में लोग एजेंटों से आरी आ गए हैं। (सर., मार्च 1913, पृ. 139)

आलबाल सं. (पु.) -- थाला, थलहा, विश्वास के वृक्ष का अंकुर सरल और विमल चित्त के आलबाल में जमता है। (भ. नि., पृ. 33)

आलोड़न-बिलोड़न सं. (पु.) -- मंथन, दुःख एक आत्मपरिमार्जन है, चित्त का आलोड़न-विलोड़न है। (स. दा. : अ. नं. मिश्र, पृ. 96)

आव देखा न ताव मुहा. -- आगा-पीछा देखे बिना, आव देखा न ताव झट बैल हाँकने के चाबुक से ऐसा प्रहार किया कि गरगैया (गौरेया) वहीं कंडा हो गई। (माधुरी, अक्तू. 1927, पृ. 598)

आवाँ का आवाँ बिगड़ा होना मुहा. -- पूरे का पूरा परिवार या समूह का बिगड़ा होना, उनके चेले चापड़ भी लूट में शामिल थे, यों कहिए आवाँ का आवाँ ही बिगड़ा हुआ था। (माधुरी, 30 मई, 1925, पृ. 847)

आशा की लकड़ी मुहा. -- एकमात्र सहारा, आसरा, यदि यह टूटी कमर ही महामंडल की आशा की लकड़ी है तो कुछ नहीं होगा। (गु. र., खं. 1, पृ. 385)

आसन डोलना मुहा. -- कुरसी हिल उठना या डगमगा जाना, जुलूस शांत और संयत था किंतु अधिकारियों के आसन डोल गए। (माधुरी, नव. 1928, सं. 3, पृ. 805)

आसन सं. (पु.) -- स्थान, विक्रमोर्वशी नाटक का जगत् के नाटक साहित्य में अद्वितीय आसन है। (गु. र., खं. 1, पृ. 192)

आँसना क्रि. (अक.) -- अखरना, अप्रिय लगना, राम को कहबो श्याम को आँस गया। (मधुकर, 16 नवं. 1940, पृ. 20)

आसन्न वि. (अवि.) -- समय के विचार से निकटतम, आसन्न संकट से बेखबर मत रहो। (काद., मार्च 1981, पृ. 6)

आसरा सं. (पु.) -- सहारा, अवलंब, पुराने जमाने में मुसलमानों को तलवार का आसरा था। (ग. शं. वि. र., खं. 2, पृ. 38)

आँसू बहाना मुहा. -- अफसोस करना, दुःख प्रकट करना, जब संविद सरकार गिरेगी, तो उसके लिए सर्व-साधारण में से कोई (दो बूँद) आँसू बहानेवाला भी न मिलेगा। (दिन., 6 अक्तू. 1968, पृ. 18)

आँसूढार वि. (अवि.) -- रूला देनेवाला, सबको एक आँसूढार, पत्थर-फोड़ भविष्ट से जूझने की प्रेरणा देतीं तो वह क्रांति के आभास को सच्ची क्रांति में बदल सकती थीं (रा. मा. संच. 2, पृ. 163)

आसूदा वि. (अवि.) -- संतुष्ट, आश्वस्त लेकिन चालाक क्लाइव इतना ही करके आसूदा नहीं हुआ। (सर., दिस. 1919, पृ. 305)

आसेतु हिमाचल क्रि. वि. -- हिमालय से सेतु तक, इस प्रकार एक भारतीय संस्कृति है जो आसेतु हिमाचल रहनेवाले सारे जनसमूह में पाई जाती है। (सं. परा. : ल. शं. व्या., पृ. 71)

आस्तीन चढ़ाना मुहा. -- लड़ने के लिए उद्यत होना, सन्नद्ध होना, (क) आस्तीनें चढ़ाना सीखना चाहिए क्योंकि कार्लाइल के मत में राजदंड हथोड़े का रूपांतर है। (गु. र., खं. 1, पृ. 330), (ख) उस नवयुवक के नथुने फूल आए थे और उसने आस्तीन चढ़ा ली थी। (स. से. त. : क. ला. मिश्र, पृ. 45)

आस्थान सं. (पु.) -- दरबार, अबध्य होने के कारण वह शत्रु के आस्थान में मनमानी बातें कर सकता है। सर., मई 1918, पृ. 240)

आस्पद सं. (पु.) -- गोत्र, उनका आस्पद मिश्र था। (म. प्र. द्वि., खं 5, पृ. 422)

इकंदर वि. (अवि.) -- एक, एकमात्र, मध्य प्रदेश की कोई इकंदर तसवीर खींचना संभव नहीं है। (रा. मा. संच. 2, पृ. 105)

इकबाल सं. (पु.) -- तेज, प्रताप, सरकारों सिर्फ संख्या बल से नहीं इकबाल से चला करती हैं। (हि. ध., प्र. जो., पृ. 311)

इकरंगा वि. (विका.) -- इकतरफा, एकपक्षीय, प्रेम इकरंगा है और यदि आप उसमें न हों तो उबानेवाला है। (रा. मा. संच. 1, पृ. 106)

इकलखोरा वि. (विका.) -- अकेला खानेवाला, अलमस्त, निस्संग, यह काम तुझे भी मेरे जैसा इकलखोरा बना सकता है। (स. भा. सा., मृ. पां., सित.-आक्तू. 98, पृ. 9)

इंका बजाना मुहा. -- सार्वजनिक घोषणा करना, महात्त्व स्थापित करना, गुप्तजी की निर्लेप नीति ने उनकी एवं भारत-मित्र की प्रसिद्धि का डंका बजा दिया था। (काद. छ अक्तू. 1981, पृ. 81)

इठलाना क्रि. (अक.) -- इतराना या ठसक दिखाना, जाने कब चित्र सेंसर बोर्ड के सिर पर पैर रखकर इठलाता निकल जाता है। (कर्म., 20 जन., 1951, पृ. 7)

इतर वि. (अवि.) -- अन्य, भिन्न, इतर जाति का मानकर किसी की उपेक्षा करना उचित नहीं है। (काद., अक्तू. 1982, पृ. 7)

इतराना क्रि. (अक.) -- ऐंठ दिखाना, अभइमानपूर्ण आचरण करना, (क) भारतीय परंपरा का थोड़ा भी स्पर्श मिला हो तो इस तरह इतराना नहीं चाहिए। (हि. ध., प्र. जो., पृ. 195), (ख) उन पर कोई इतराता और मूँछ मरोड़कर खम नहीं ठोकता है। (हि. ध।., प्र. जो., पृ. 316), (ग) हमें पुस्तकों और पत्रिकाओं की संख्या वृद्धि पर न इतराना चाहिए। (शि. पू. र., खं. 3, पृ. 260)

इत्तफाकन क्रि. वि. -- संयोग से, आकस्मिक रूप से, (क) सन् 1857 में जो कुछ हुआ वह जंग थी, जो एकाएक इत्तफाकन शुरू हो गई। (स. दा. अ. नं. मिश्र, पृ. 190), (ख) हम इत्तफाकन अँगरेजी जमाने में पैदा हुए थे। (काद. : मार्च 1979, पृ. 122)

इने-गिने वि. (बहु.) -- थोड़े से, कुछ व्यक्त करने के लिए इने-गिने शब्द-संकेत ही पर्याप्त हैं। (म. सा. : ओं. श., भाग 1, पृ. 67)

इंप्लाटी वि. (अवि.) -- मोटा-मोटा, कच्चा, हमारा तो एक इंप्लाटी हिसाब है कि इधर से आग खाओगे तो उधर से अंगार निकालोगे। (रा. द. श्रीला. शु., पृ. 140)

इफरात वि. (अवि.) -- अत्यधिक, बहुत ही सस्ता इत्र इफरात मात्रा में लगाकर आए। (दिन., 26 अक्तू. 1969, पृ. 10)

इम्ला सं. (स्त्री.) -- बोलकर लिखाया गया लेख, श्रुतलेख, इबारत, उन्होंने एक मिनट में सौ शब्दों से भी अधिक शब्दों के हिसाब से इम्ला लिखा। (सर., दिसंबर 1909, पृ. 519)

इयत्ता सं. (स्त्री.) -- सीमा, हद, (क) जिसे अपनी इयत्ता का भान नहीं वह धोखा खाता है। (काद्., जन. 1987, पृ. 7), (ख)समाचार-पत्रों और प्रकाशित होनेवाली पुस्तकों की संख्या से प्रत्येक देश की शिक्षा और सभ्यता की इयत्ता जानी जा सकती है। (म. प्र. द्वि. र., खं. 1, पृ. 112)

इर्द-गिर्द क्रि. वि. -- आसपास, चारों ओर, इस नगर के इर्द-गिर्द दो-दो, चार-चार मील की दूरी पर बौद्धों के चार प्रसिद्ध विहार थे। (सर, फर, 1911, पृ. 76)

इलाका सं. (पु.) -- क्षेत्र, जागीर, इस उपलक्ष्य में उनको बहुत सा इलाका भी मिला। (म. प्र. द्वि. र., खं 5, पृ. 165)

इल्लत सं. (स्त्री.) -- कठिनाई, परेशानी, झंझट, (क) कंप्यूटर इल्लत से बचाने के लिए बनाया गया था। (दिन. 22 जुलाई, 1966, पृ. 46), (ख) सभी इस इल्लत में फँस रहे है। (सर., मई 1928, पृ. 552)

इशारे पर नाचना मुहा. -- किसी के संकेत पर काम करना, भाषा और भाव उनके इशारे पर नाचते हैं। (न. ग. र., खं. 2, पृ. 240)

इस्तमरारी वि. (अवि.) -- स्थायी, उन्हें भरोसा है कि बाल-विवाह एवं वृद्ध विवाह का इस्तमरारी पट्टा नौकरशाही से लिखवा लेंगे। (म. का मत, 10 दिस. 1927, पृ. 240)

इहवाद सं. (पु.) -- धर्म-निरपेक्षता, लौकिकता, भारत में जनवाद को बनाए रखने और राष्ट्रीयता का विकास करने के लिए इहवाद का स्वीकार और आचार जरूरी माना गया है। (दिन., 18 फर. 1966, पृ. 8)

ईंट-ईंट गिरना मुहा. -- एक-एक कर ढहना या नष्ट होना, प्रथम महायद्ध के कारण रूस की ईंट-ईंट गिर रही थीं।(रा. मा. संच. 1, पृ. 24)

ईंडुरी सं. (स्त्री.) -- वह गोलाकार गद्दी जिसे घड़ा उठाते समय सिर पर रखते हैं, चौमड़ी, कुड़री, उसने घड़ा और ईंडुरी सम्हाली, पर घड़ा उठवाता कौन। (नव., फर. 1952, पृ. 57)

ईमान पुराना और योजना नई कहा. -- बेमेल गठबंधन, यदि हम गांधीजी को ग्रहण करना चाहते हैं तो समूचा ही ग्रहण करें। ईमान पुराना और योजना नयी, उस जोड़ से तो काम नहीं चलेगा। (मा.च. र., खं. 4, पृ. 55)

उकठ-कुकाठ सं. (पु.) -- विचारशून्य व्यक्ति, जीवन को आदर्श उन्मुख बनाने की आवश्यकता से इंकार करनेवाले उकठ-कुकाठों के बौड़मत्व एवं उपमानत्व से भी वे खूब परिचित थे। (न. ग. र., खं. 3, पृ. 265)

उकठना क्रि. (अक.) -- सूख जाना, आम के कुछ पुराने पेड़ नमी की कमी से उकठ गए। (दिन., 7 अप्रैल, 67, पृ. 39)

उकताया वि. (विका.) -- उदास, ऊबा हुआ, गाना कुछ इस अंदाज में पेश किया कि नाटक नहीं, उकताई शाम भी पुरलुफ्त बन गई। (दिन., 30 जुलाई, 1965, पृ. 39)

उकसना क्रि. (अक.) -- क्रुद्ध हो उठना, गुस्सा होना एक अँगरेज, जर्मन, इटालियन या के अपमानित होने पर वहाँ के देश उकस उठते हैं। (मा. च. र., खं. 4, पृ. 206)

उकेलना क्रि. (सक.) -- उधेड़ना, उन्हें उकेलकर वह फिर बुनने लगती है। (कुं. क. : रा. ना. उ., पृ. 45)

उखाड़-पछाड़ सं. (स्त्री.) -- उठापटक, (क) पशुता कहीं उतने भयंकर रूप में नहीं देखी जा सकती जितनी किसी दबे हुए देश की स्वाधीनता की उखाड़-पछाड़ के समय। (ग. शं. वि. र., खं. 1, पृ. 409), (ख) भारत के साहित्य में भारतीयता कहाँ है ? साहित्यकारों की आपसी उखाड़-पछाड़ों में। (रा. मा. संच. 2, पृ. 111), (ग) इसे एक मामूली सी राजनैतिक उखाड़-पछाड़ की घटना के रूप में देखा जा रहा है। (दिन., 2 जुलाई, 67, पृ. 9)

उखेरना क्रि. (सक.) -- उखाड़ना, अलग-थलग करना, नष्ट करना, एक विवादास्पद उपलब्धि है, जिसे एक प्रतिष्ठित विदेशी प्रकाशन ने फिर से उखेर दिया है। (दिन., 27 अप्रैल से 3 मई 1980, पृ. 37)

उगाहना क्रि. (सक.) -- वसूलना, आप को यह बात सूझी थी कि भारतवासी आपस में 30 करोड़ रुपए का ऋण उगाहें। (ग. शं. वि. र., खं. 2, पृ. 246), वसूलना, उतारना, वसूल करना, क्या चंदा उगाहने का आशासकीय काम मंत्रियों के राजनैतिक पुत्रों को सौंपा जाना चाहिए ? (रा. मा. संच. 1, पृ. 337)

उघारना क्रि. (सक.) -- अनावृत करना, सामने लाना (क) डिकिन्स ने बुर्जुआ वर्ग के जीवन के खोखलेपन को उघारा है। (रा. ला. प्र. र., पृ. 11), (ख) इसलिए बंबई की सरकार ने अपना दंड उन पर ताना है, और इसलिए मद्रास सरकार ने उन पर अपना तीसरा नेत्र उघारा है। (ग. शं. वि. र., खं. 2, पृ. 320)

उघारा वि. (विका.) -- अनावृत, खुला हुआ, (क) अपनी 23 वर्षों की उधारी लाज को एक पश्चिमी चीथड़े से ढँकने का हास्यास्पद प्रयत्न लगता है। (दिन., 4 अक्तू., 1970, पृ. 11), (ख) ... कुर्ते दो-दो, तीन-तीन दिन पहले से ले लिए जाते हैं और बेचारे कैदी उघारे बदन रहते हैं। (ग. शं. वि. र., खं. 3, पृ. 217)

उचंग चढ़ना मुहा. -- शह पाना, पता नहीं कब चीन के नेताओं को उचंग चढ़े और वे रूस की लंबी सीमा में कहीं घुस जाएँ। (दिन., 06 जन., 67, पृ. 35)

उचाट खा जाना मुहा. -- मन का उखड़ या उचट जाना, किंतु मन उचाट खा गया था, उसे कैसे समझाऊँ। (मा. च. र., खं. 2, पृ. 320)

उचाट रह जाना मुहा. -- उदास और दुःखी रहना, उससे न मिल पाने के कारण मेरा मन उचाट रहने लगा है। (काद., अक्तू. 1981, पृ. 175)

उछाह सं. (पु.) -- उत्साह, पहली तारीख क्षणिक उछाह का दिन होता है। (दिन., 24 जून 1966, पृ. 12)

उछेरना क्रि. (सक.) -- रोपना, हमने जिस पंथ-निरपेक्ष संसदी लोकतंत्र के वृक्ष को उछेरा है, उसकी जड़ें हमारी इसी धरती में हैं। (हि. ध., प्र जो., पृ. 61)

उजड्ड वि. (अवि.) -- 1. मूर्ख, अशिष्ट, उद्दंड, क्या सारा भारत अशिक्षित, उजड्ड और राष्ट्रीय-भावना से हीन है। (नि. वा. : श्रीना. चा., पृ. 779), 2 मूर्खतापूर्ण, अशिष्टापूर्ण, योगेंद्र बाबू के चले जाने पर सुशील अपने उजड्ड व्यवहार पर कुछ पछताने लगे। (सर., अग. 1915, पृ. 105)

उजबक सं. (वि.) -- मूर्ख, मैं उस समय स्वयं को उजबक महसूस करने लगा। (काद., सित. 1978, पृ. 25)

उजरदारी सं. (स्त्री.) -- उज्र या आपत्ति करने की क्रिया या भाव, आपत्ति, एतराज, (क) उजरदारी करने पर तहसीलदार साहब ने कानून की पाबंदी की। (सर., सित. 1913, पृ. 527), (ख) मेरी तमाम उजरदारियाँ बेकार साबित हुईं। (काद., जन. 1979, पृ. 97)

उजाड़-सा वि. (अवि.) -- उजड़े स्थान के जैसा, वीरान, जनशून्य, शीताधिक्य के कारण कहिए या रूस की उदासीनता के कारण कहिए यह भूभाग अभी तक उजाड़ सा ही पड़ा रहता है। (सर., जुलाई 1937, पृ. 101)

उजास सं. (पु.) -- उजाला, प्रकाश, (क) विजय सोनी के चित्रों के रूपाकार रंग उजास में डूबे हुए हैं। (दिन., 15 फर. 1970, पृ. 43) , (ख) धुँधलके में पगडंडी का उजास भी नहीं। (रा. मा. संच. 1, पृ. 406)

उटेरना क्रि. (अक.) -- सुनने के लिए कान खड़े करना, गौवें तृण चरना छोड़ एकाग्र हो कान को उधर ही उटेर लेती थीं। (सर., मार्च 1913, पृ. 173)

उठंग हो जाना मुहा. -- टेक लगाकर सुस्ताना, बेंच पर अपनी अटैची टिकाई और उठंग हो गया। (काद., फर. 1991, पृ. 76)

उठंगू वि. (अवि.) -- उड़कू, पैरों के भार बैठा हआ, वह वहीं पर उठंगू होकर बैठ गया। (काद., अक्तू, 1981, पृ. 55)

उठल्लू वि. (अवि.) -- निठल्ला, जिसका एक ठिकाना न हो, उस उठल्लू का क्या भरोसा कल कहाँ मिले। (काद., मार्च 1978, पृ. 11)

उठल्लूपन सं. (पु.) -- निठल्लापन, ठलुआपन, लेकिन उन्हें इतनी खराबी, उटल्लूपन, मान-अपमान का कोई विचार नहीं। (रवि., 12 अप्रैल, 1981, पृ. 41)

उठा-बैठक करवाना मुहा. -- बार-बार उठने-बैठने का दंड देना, उससे उठा-बैठक भी करवाई जिसका काफी विरोध हुआ। (दिन., 03 मार्च, 68, पृ. 28)

उठाईगीर सं. (पु.) -- उचक्का, चाईयाँ, (क) इसलिए हमारे शासक खुद अपनी निगाहों में उठाईगीर और लुटेरे बने हुए हैं। (रा. मा. संच. 2, पृ. 166), (ख) स्टेशन पर जो भी आए वे उठाईगीर और उड़ान-टप्पू माने जाने लगे। (प्रभा, बा. कृ. न., झंडा अंक, पृ. 44)

उठाईगीरी सं. (स्त्री.) -- उचक्कापन, आँख बचाकर चीजों को लेकर भागने की क्रिया, छोटी-मोटी उठाईगीरी कर मेरे नाम को बट्टा मत लगा। (हरि., 10 जून, 2007, अंश 154, पृ. 22-23)

उठान सं. (स्त्री.) -- 1. ऊँचाई, (क) सातवें दशक में यह आंदोलन जैसे अपनी पूरी उठान में था। (दिन., 20 जून, 1971, पृ. 8), 2. ऊपर उठने अर्थात् उन्नत होने का भाव, उन्नति, उत्थान, (क) अपने साप्ताहिक विकास को प्रकाशित करने की रंगीन धुन उठान ले रही थी। (क. ला. मि. : त. प. या., पृ. 183), (ख) वे खड़ी बोली के उठान से नहीं चिढ़े और न विवाद में पड़े। (नि. वा., श्रीना. च., पृ. 748)

उड़न छू हो जाना मुहा. -- एकाएक खिसक जाना, यह खबर पाते ही बहुत से लोग एकदम से उड़न छू हो गए। (रा. द., श्रीला. शु., पृ. 398)

उड़ाऊ वि. (अवि.) -- अपव्ययी, खर्च करनेवाला, मध्य प्रदेश और बरार रूपी संयुक्त परिवार में बरार कमाऊ पूत है और उड़ाऊ पूत है मध्य प्रदेश। (तेवर, पृ. 10)

उड़ाऊपन सं. (पु.) -- अपव्यय की प्रवृत्ति, फिजूलखर्ची की आदत, यह प्रकृति का उड़ाऊपन बड़ा भारी कलंक है। (गु. र., खं. 1, पृ. 155)

उड़ाका सं. (पु.) -- उड़ान भरनेवाला, उड़नेवाला, हवाबाज, गार्डन कपूर दो बार अंतरिक्ष-यात्रा करनेवाले एकमात्र उड़ाका बने। (दिन., 10 सित. 1965, पृ. 24)

उड़ान-टप्पू सं. (पु.) -- उड़ा देनेवाला, उठाकर चलता बननेवाला, स्टेशन पर जो भई आए वे उठाईगीर और उड़ान-टप्पू माने जाने लगे। (प्रभा, बा. कृ. न., झंडा अंक, पृ. 44)

उड़ाना क्रि. (सक.) -- भकोसना खाने की चीजों को वे खूब उबालते हैं और गरमागरम ही उड़ा जाते हैं। (सर., दिस. 1926, पृ. 617)

उड़ी लगाना मुहा. -- एक स्थान से उड़कर दूसरे स्थान की ओर जाना, पक्ष बदलना, इस संस्था से उस संस्था में उड़ी लगाने का खेल खेलनेवाला चतुर राजनीतिज्ञ कहा जा सकता है। (कर्म., 6 अक्तू., 1951, पृ. 3)

उड्डीन वि. (अवि.) -- ऊँचा, उन्नत, आर्य समाज के संस्थापक स्वामी दयानंद सरस्वती पर एक महाकाव्य रचकर उनकी कीर्ति ध्वजा को खूब ही उड्डीन किया है। (सर., मार्च 1917, पृ. 163)

उढ़ाना क्रि. (सक.) -- आवृत्त करना, ढँकना, थोपना या लादना, सरकारों भाषा को जो शब्दावली भारतीय दृष्टि से उढ़ा रही हैं, वह अंततोगत्वा ओढ़न ही है। (दिन., 15 दिस. 1968, पृ. 16)

उतराना क्रि. (अक.) -- ऊपरी सतह पर आना, सड़कों पर वहाँ की राजनीति की तरह कूड़ा उतराने और इतराने लगता था। (दिन., 1 अग. 1971, पृ. 41)

उत्कोच सं. (पु.) -- रिश्वत, हमारे सामाजिक जीवन में उत्कोच का बोलबाला है। (काद., जुलाई 1973, पृ. 8)

उत्तरीय सं. (पु.) -- दुपट्टा, भाँवरों के बाद पति के उत्तरीय के छोर से बँधी मैं झुक-झुककर ससुराल पक्ष के... , (काद., अक्तू, 1993, पृ. 90)

उत्तेजना सं. (स्त्री.) -- बढ़ावा, प्रश्रय, उसने विलायती चिकित्सा को ही उत्तेजना दी। (सर., मार्च 1922, पृ. 225

उत्स सं. (पु.) -- स्त्रोत, आरंभिक स्थान, अपने तरल विग्रह के उत्स को विसूरकर यमुना जैसे अपना वर्तमान दर्द भूल गई। (काद., फर. 1978, पृ. 32)

उथल-पुथल होना मुहा. -- ऐसा बड़ा परिवर्तन होना, जो अत्यंत कष्टप्रद और दुखद हो, उलट-पलट होना, संसार के एक भाग में उथल-पुथल होती रहे और शेष संसार को धक्का न लगे, यह कैसे हो सकता है। (स. सा., पृ. 287)

उदरंभर वि. (अवि.) -- भरे पेटवाला, पेटू, भारत के अन्न से परिपुष्ट इन उदरंभरों की जितनी निंदा की जाए, उतनी थोड़ी ही है। (सं. परा. : ल. शं. व्या., पृ. 96)

उद्दाम वि. (अवि.) -- तीव्र, प्रचंड, दमनकारी, एक आवेग था जो शायद अनियंत्रित और उद्दाम सा हो चला था। (दिन., 23 अप्रैल, 67, पृ. 13)

उद्योग सं. (पु.) -- प्रयत्न, चेष्टा, (क) न सुधार सकें तो सुधारने का उद्योग तो करें। (म. प्र. द्वि. र., खं. 9, पृ. 88), (ख) उर्दू की संक्षिप्त लेखन-प्रणाली निकालने का उद्योग कर रहे हैं। (सर., जून 1909, पृ. 240)

उद्वेल वि. (अवि.) -- उद्वेलित, व्यग्र, लोहा-लूकड़ प्रसार मूर्तियाँ हमें उद्वेल करती हैं। (कुटुज, ह्. प्र. द्वि., पृ. 78)

उधार खाए बैठना या बैठे होना मुहा. -- कुछ करने के लिए छटपटाना, उतावला होना, उतारू होना, इतिहास लिखने के लिए उधार खाए बैठे रहते हैं , उन्हें इतिहास लेखक के गुणों को पढ़ लेना चाहिए। (मा. च. र., खं. 2, पृ. 57)

उधियाना क्रि. (अक.) -- औंधा होना, उलट-पलट जाना, सवारियों से भरे डिब्बे टूट-बिखरकर उधिया गए। (दिन., 24 जून, 1966, पृ. 19)

उधेड़ना क्रि. (सक.) -- खोलना, असलियत सामने लाना, व्यवस्था को उधेड़ते दो नाटक। (ज. स., 7 मार्च, 1984, पृ. 5)

उधेड़बुन सं. (स्त्री.) -- अनिर्णय की स्थिति, सोच-विचार, ऊहापोह, (क) इस देश के शासक अपनी अलग उधेड़बुन में हैं। (वि. भा., जन. 1928, सं. 1, पृ. 166), (ख) परंतु यह उधेड़बुन उस मार्ग की कुंजी नहीं, जिधर कांग्रेस को जाना चाहिए। (ग. शं. वि. र., खं. 2, पृ. 153)

उनमनी सं. (स्त्री.) -- बेचैनी, घबराहट, अन्यमनस्कता, आज मौसम अजीब है, देखो न कैसे उनमनी हैं। (काद., जून 1977, पृ. 12)

उपज सं. (स्त्री.) -- कृति, रचना, अपनी भाषा की उपज न छोड़ों। (प. प. : ज. प्र. च., पृ. 112)

उपजाना क्रि. (सक.) -- उत्पन्न करना, पैदा करना, वह तोला भर उत्साह भी नहीं उपजा पाती। (रा. मा. संच. 1, पृ. 263)

उपटना क्रि. (अक.) -- निशान पड़ना, अंकित होना, चट्टान भर में गौ का खुर उपटा हुआ है जो कृत्रिम किसी तरह नहीं मालूम होता। (भ. नि. मा. (दूसरा भाग), सं. ध. भ., पृ. 170)

उपटा सं. (पु.) -- आघात या चोट के कारण पड़नेवाला निशान, किसी चीज की ठोकर लग जाए तो उसे उपटा कहते हैं। (म. सा., भाग 1, पृ. 20)

उपमर्दन सं. (पु.) -- छीछालेदर, रगड़ाई, हिंदी का उपमर्दन नित्या हो रहा है और उसे देखकर भी हम उदासीन हैं। (सं. परा. : ल. शं. व्या., पृ. 33)

उपरला वि. (विका.) -- ऊपरी, ऊँचा, ऊँचे रहन-सहनवाला, उपरले स्तर के लोगों की दृष्टि मोहग्रस्त और कुटिल है। (कुटज, ह. प्र. द्वि., पृ. 13)

उपराचढ़ी सं. (स्त्री.) -- चढ़ा-उपरी, होड़, लाग-डाँट, कारिंदा क्या करे ? गाँववाले भी तो उपराचढ़ी लगाए हुए हैं। (वि. भा., जन. 1928, सं. 1, पृ. 307)

उपहृत वि. (अवि.) -- चोट खाया हुआ, घायल, दारिद्रय से उपहृत व्यक्ति को सान्त्वना देना कठिन है। (काद., अग. 1991, पृ. 6)

उपायन सं. (पु.) -- उपहार, भेंट, सबने अद्भुत उपायन राजा भीम को भेजे। (सर., अप्रैल 1912, पृ. 194)

उपोद्घात सं. (पु.) -- प्रस्तावना, भूमिका, पुस्तक के आरंभ में उपोद्घात अँगरेजी में है। (सर., अग. 1912, पृ. 403)

उफनते दूध में पानी डालना मुहा. -- आक्रोश, उपद्रव, हिंसा आदि को दबाना, भावनाओं और टकराव के उफनते दूध में पानी डालने की खिसियाहट नेताओं ने भाषाणों से निकाली। (हि. ध., प्र. जो., पृ. 220)

उबकाई सं. (स्त्री.) -- वमन की प्रवृत्ति, अजीर्ण, डॉ. श्याम परमार की रचनाएँ अच्छी लगीं क्योंकि वे उबकाई से मुक्त थीं। (दिन., 07 मई, 67, पृ. 40)

उबहनी सं. (स्त्री.) -- कुँए से पानी का घड़ा आदि खींचने की रस्सी, वे पानी भर चुकी थीं, उबहनी फँदिया रही थीं। निरू, नि., पृ. 67)

उबार सं. (पु.) -- उद्धार, श्री दुर्गा और काली ने भी कई बार देवताओं का उबार किया है। (माधुरी, अग.-सित. 1928, पृ. 23)

उबाहना वि. (विका.) -- नंगा, ग्रामीण और गरीब उबाहने पैर भी काँटों में रहने के आदी हैं, वे तो मेरे पास तक ग्रहण करने के लिए आ ही पहुँचेंगे। (मा. च. र., खं. 4, पृ. 178)

उभक-चुभक सं. (स्त्री.) -- गोता लगाने और गोता देने की जलक्रीडाएँ, सब पोखर में पहुँचे। वहाँ खूब उभक-चुभक हुई। (बे. ग्रं., प्रथम खं., पृ. 76)

उभाड़ना क्रि. (सक.) -- भड़काना, उकसाना, उत्तेजित करना, (क) फ्रांस जर्मनी में गृह-कलह को उभाड़कर अब तमाशा देख रहा है। (स. स., पृ. 285), (ख) विश्व के करोड़ों मुसलमानों की भावनाओं को उभाड़ा है। (दिन., 1 अक्तू, 1965, पृ. 10)

उमथाना क्रि. वि. -- उबकाई आना, उलटी महसूस होना, जी उमथा उठा। (रवि. सा., 23-29 मई, 1982, पृ. 38)

उमदा वि. (अवि.) -- बढ़िया, अच्छा, (क) अभी इस अखबार की लिखावट इतनी उमदे (उमदा) नहीं है लेकिन उम्मीद है कि थोड़े दिनों के बाद लिखावट अच्छी हो जाएगी। (बा. गु. : गु. नि. संपादक-झा. श., खं. 5, पृ. 400), (ख) वह उमदा साड़ी पहने उमंग में इधर-उधर घूम रही थी। (सर., जुलाई 1915, पृ. 44), (ग) बढ़िया, श्रेष्ठ शिल्प की दृष्टि से भी ये दोनों ही चित्र उम्दा हैं। (दिन., 2 जुलाई, 1965, पृ. 43)

उरस सं. (पु.) -- हृदय, चित्त, संपूर्ण भारतीय साहित्य अपने मूल उरस से समर्पित होने का दावा करता है। (कुटुज, ह. प्र. द्वि., पृ. 106)

उरेहना क्रि. (सक.) -- अंकित करना, गढ़ना, जवाहर भाई की सहृदयता और आत्मीयता उरेही गई है। (दिन., 16 दिस., 66, पृ. 42)

उरैता, उरैतो वि. (अवि.) -- एक ओर झुका हुआ, दूसरी ओर की वस्तु का पलड़ा झुका हो तो उसे उरैतो कहते हैं। (मधुकर, 16 नवं, 1940, पृ. 26)

उलटना क्रि. (सक.) -- बदल देना, पलट देना, सब जज का फैसला उलट दिया गया। (म. प्र. द्वि. र., खं 5, पृ. 155)

उलटफेर सं. (पु.) -- भारी बदलाव, बहुत बड़ा परिवर्तन, लोग अचानक पाँसे के उलटफेर से या बेईमानी से संपन्न बन जाते हैं। (हि. पत्र. के गौरव बाँ. बि. भट., पृ. 257)

उलटबाँसी सं. (स्त्री.) -- ऐसी उक्ति जिसका अर्थ उलटा निकलता हो, कवियों के बीच सर्वाधिक पूजनीय अल्लमप्रभु वही थे जो रहस्यवादी उलटबांसियाँ लिखते थे। (रा. मा. संच. 2, पृ. 340)

उलटाना क्रि. (सक.) -- उलटा करना, गिराना, इस बार भोला पासवान की सरकार को उलटाने का श्रेय कांग्रेस को नहीं मिला। (दिन., 6 जुलाई, 1969, पृ. 11)

उलटी खोपड़ी मुहा. -- उलटा सोचनेवाला, मैं अपनी उलटी खोपड़ी का क्या करूँ। (काद., मई 1975, पृ. 66)

उलटी हाँकना मुहा. -- उलटी बात कहना, ज्योतिषियों की मूर्खता देखो, वे उलटी ही हाँकते हैं। (सर., अक्तू. 1922, भाग 23, खं. 2, सं. 4, पृ. 265)

उलटे छुरे / उस्तरे से मूँड़ना मुहा. -- घोर कष्ट देना, सताना, (क) अगर प्रकाशकों ने लेखकों को चूसा है और ठगा है, तो कितने ही लेखकों ने प्रकाशकों को चूना लगाया है और उलटे छुरे से मूँड़ा है। (शि. पू. र., खं. 4, पृ. 571-72), (ख) वह तो अपने विलायती पुरखों को भी उलटे छुरे से मूँड़कर नए गुल खिला रही है। (नि. वा. : श्रीना. च., पृ. 751), (ग) यह गणना है येन केन प्रकारेन धर्म सभाओं को उलटे छुरे से मूँड़ने की। (चं. श. गु. र., खं. 2, पृ. 347)

उलटे बाँस बरेली को भेजना मुहा. -- उलटा क्रम अपनाना, उलटी गंगा बहाना, उलटा क्रम चलना, हमारे सार्वजनिक जीवन से संवाद गायब हो रहा है और उलटे बाँस बरेली को भेजे जा रहे हैं। (हि. ध., प्र. जो., पृ. 356)

उलर-उलरकर क्रि. वि. -- उचक-उचककर, उत्साहित होकर, चीन का एक अफसर इस घोषणा का स्वागत उलर-उलरकर करता है। (न. ग. र., खं. 2, पृ. 290)

उलाँघना क्रि. (सक.) -- लाँघना, फाँदना, राजनैतिक क्रोध और व्यावसायिक स्वदेशी आंदोलन का संकट बहिष्कार योग अपने कोलाहल के रूप को उलाँघ चुका है। (चं. श. गु. र., खं. 2, पृ. 348)

उलायत, उलात सं. (स्त्री.) -- जल्दी, शीघ्रता, मुझको तो कोई उलायत नहीं। (कच. : वृ. ला. व., पृ. 93)

उलार कर देना मुहा. -- असंतुलित कर देना, एक ओर झुका हुआ, विपक्ष की घोड़ागाड़ी अपनी चतुराई से उलार कर दे। (किल. सं. म. श्री., पृ. 234)

उलार सं. (पु.) -- असंतुलित या अधिक बोझ के कारण एक ओर होनेवाला झुकाव, गाड़ी पीछे उलार है, पीछे का कुछ सामान आगे कर लो। (काद., फर. 1977, पृ. 8)

उलाहना सं. (पु.) -- शिकायत, उपालंभ, (क) हम हिंदी भाषी पंडितजी को इसके लिए उलाहना दिए बिना नहीं रह सकते। (मा. च. र., खं. 5, पृ. 217), (ख) अधिकांश लोग उलाहनों के तूफान में खुद अपनी अकर्मण्यता छिपाते हैं। (त्या. भू., सं. 1986, (1927) पृ. 116), (ग) मगर रेडियो-टेलीविजन ने प्रधानमंत्री के इस मधुर उलाहने पर अभी तक ध्यान नहीं दिया। (दिन., 14 सित. 1975, पृ. 6)

उलीचना क्रि. (सक.) -- अर्पित करना, लक्ष्मी का लाड़ भी उन्होंने पाया था और साथ ही पाया था दरिया का वह दिल, जो अपना जीवन जरूरतमंदों के खेतों-खलिहानों, बगीचों और चौपालों को सजीव रखने के लिए उलीचते रहने में थोड़ा सुख नहीं पाता। (मा. च. र., खं. 4, पृ. 216)

उलीचनेवाला वि. (विका.) -- बाहर निकालनेवाला, यहाँ संस्कृति और इतिहास की तलछट उलीचनेवाली किस मानव समस्या का समाधान खोज रहे हैं। (काद., मई 1975, पृ. 60)

उल्टी-पल्टी खा जाना मुहा. -- अपनी बात से पलट जाना, उनके उल्टी-पल्टी खा जाने से सभी अचरज में हैं। (हि. ध., प्र. जो., पृ. 538)

उल्टे-पल्टे क्रि. वि. -- ऊपर नीचे, बिना क्रम के, भिवानी ने जाकर दर्शनशास्त्र की ऐसी रद्दी प्रति भेजी, जिसके पन्ने जिल्द बँधाई में उल्टे-पल्टे सिले हैं। (चं. श. गु. र., खं. र, पृ. 415)

उल्था सं. (पु.) -- रूपांतरण, अनुवाद, उस दिशा में न जाकर किताबी ज्ञान-विज्ञान का अँगरेजी से हिंदी में उल्था करने की दिशा में गए। (दिन., 27 जून, 1971, पृ. 15)

उल्लू का पट्ठा मुहा. -- बहुत बड़ा मूर्ख, मैं (अमृतलाल नागर) उल्लू का पट्ठा था इस सभा में आ गया। (दिन., 28 अक्तू., 66, पृ. 43)

उल्लू बोलना मुहा. -- (स्थान का) निर्जन हो जाना, सुनसान हो जाना, हीरा-मोती के सिनेमा हॉल में उल्लू बोलते हैं। (सा. हि., 6 दिसंबर, 1959, पृ. 5)

उल्लू सीधा करना मुहा. -- अपना काम निकालना, स्वार्थ सिद्ध करना, (क) राजनैतिक सट्टेबाज इस तरह के आंदोलनों द्वारा अपना उल्लू सीधा करना चाहते हैं। (दिन., 24 मार्च, 68, पृ, 33), (ख) इस गृह-कलह में अपना उल्लू सीधा करने के लिए इंग्लैंड ने अमीर हसन की पीठ ठोंकी। (मधुकर, दिस. 1928, वर्ष-7, खं. 1, सं. 4, पृ. 879)

उसारा सं. (पु.) -- बरामदा, छपरी, ओसारा, पण्डित मदनमोहनजी अपनी कोठी के आगे एक उसारे में बैठकर लिखते थे। (बा. मु. गु., गुप्त निबं., खं. 5, पृ. 350)

उसाँस सं. (स्त्री.) -- उच्छवास, लंबी साँस, उसके लिए उसाँसें ली जाती हैं। (बे. ग्रं., भाग 1, पृ. 74)

उसूल सं. (पु.) -- नियम, कायदा, पोशाक में अधिकतर उसूल यह रखा गया है कि ऊपर का कपड़ा जल्द मैला न हो। सर., अप्रैल 1911, पृ. 177)

उहापोह, ऊहापोह सं. (पु.) -- मन में चलनेवाला, सोच-विचार, उहापोह को समाप्त किए बिना आगे बढ़ना असंभव है। (काद., जन. 1991, पृ. 4)

ऊखल सं. (स्त्री.) -- अनाज कूटने का गहरा पात्र, बड़ी-बड़ी चट्टानों को उखाड़कर पहले उन्हें गोल और बाद में उन्हें अंदर से खोदकर ऊखल और छोटी-छोटी कुंडियों का स्वरूप दे रहा था। (गँ. गाँ. या. : रा. ना. उ., पृ. 85)

ऊँघ सं. (स्त्री.) -- हलकी नींद, आधी रात के बाद उनकी देह ऊँघ के झूले में झूलने लगती होगी। (सर., जून 1915, पृ. 325)

ऊँघता-जागता वि. (विका.) -- असतर्कतापूर्ण, बेमेल, पंचायती सर्वेक्षणों के ऊँघते-जागते निकाले गए निष्कर्ष परोस दिए गए हैं। (दिन., 25 फर., 68, पृ. 42)

ऊँट की चोटी निहुरे-निहुरे कहा. -- बड़ा अपराध छिपाए छिपता नहीं, ऊँट की चोरी निहुरे-निहुरे (शीर्षक), (कर्म., 8 अक्तू., 1949, पृ. 3)

ऊँट के मुँह में जीरा मुहा. -- आवश्यकता की तुलना में अत्यल्प, भाषा और यूनीवार्त्ता इन दोनों की स्थितियाँ ऊँट के मुँह में जीरे के समान हैं। (ग. मं. : पत्र. चु., पृ. 26)

ऊटकमंड वि. (अवि.) -- ऊटपटाँग, मारो स्साले को, यह शर्मा है, त्रिपाठी है, उद्दीन है, जसवंत है, ऊटकमंड है यानी जो भी है पाजी है। (काद., अप्रैल 1989, पृ. 32)

ऊटपटाँग हाँकना / झोंकना मुहा. -- बेसिर पैर की बातें कहना, ढींग मारना, देशकाल आदि के वर्णन में स्वभावसिद्ध वर्णन करें, अस्वाभाविक बहुत ऊटपटाँग न हाँके। (गु. र., खं. 1, पृ. 402)

ऊटपटाँग वि. (अवि.) -- बिना सिर पैर का, (क) ऊटपटाँग बातें बच्चों के दिमाग में जबरदस्ती भरी जाती हैं। (म. प्र. द्वि. र., खं. 2, पृ. 53), (ख) अनेक ऊटपटाँग वस्तुओं से भरी भानुमती की इस पिटारी की भाँति यह देश भी अनेक प्रकार के मनुष्यों एवं विचारों से भरा हुआ है। (ग. शं. वि. र., खं. 1, पृ. 124), (ग) अखबारों की ऊटपटाँग भाषा पर, भाषा के दूषित प्रयोगों पर साहित्य परिषदों में कभी विचार नहीं होता। (शि. पू. र. खं. 3, पृ. 231)

ऊदा वि. (विका.) -- लाली लिए हुए काले रंग का, ललाई लिए हुए हलका ऊदा पानी पिया था। (स्मृ. वा. : जा. व. शा., पृ. 9)

ऊधव का बोझा माधव के सिर कहा. -- एक का भार दूसरे के सिर पर, ऐसा तो होता ही रहता है साहब, प्रायः ऊधव का बोझा माधव के सिर पर पड़ता ही है। (सर., अग. 1930, पृ. 134)

ऊना वि. (विका.) -- छोटा, निम्न, कमतर, जिन गुणों और शक्तियों की अपेक्षा आपसे की जाएगी, आप उनमें ऊनी न पाई जाएँगी। (दिन., 7 फिर., 1971, पृ. 42)

ऊनापन सं. (पु.) -- तुच्छता का भाव, कमी का भाव, ऊनापन इस काल में सबसे अधिक खटकता है। (दिन., 12 अग. 1966, पृ. 11)

ऊनामासी क्रि. वि. -- पूर्णतः, पढ़ना-लिखना मेरे लिए ऊनामासी हराम है। (रा. द., श्रीला. शु., पृ. 272)

ऊपराचढ़ी सं. (स्त्री.) -- प्रतिस्पर्द्धा, होड़, (क) मनुष्यों की आपसी ऊपराचढ़ी ने भी जंगलों का सत्यानाश किया। (सर., मई 1909, पृ. 233), (ख) मुझे दो-तीन घंटों के लिए किराया तय करना था पर इतने ही के लिए चारों में खासी ऊपराचढ़ी देखने का मौका मिला। (सर., अग. 1916, पृ. 321)

ऊभचूभ सं. (स्त्री.) -- ऊँचाई, उठान, अब हमारे विश्लेषण की सीमाएँ बिलकुल पड़ोस में, आजकल के सृजनात्मक विश्लेषण की ऊभचूभ के पास आ पहुँची हैं। (दिन., 17 अक्तू. 1971, पृ. 47)

ऊल-चूल हो जाना मुहा. -- अत्यंत प्रभावित होना, आपका लिखा पढ़कर कोई ऊल-चूल न हो जाए तो लिखने की जरूरत क्या है ? (हि. ध., प्र. जो., पृ. 88)

ऊल-जलूल वि. (अवि.) -- बेसिर-पैर का, बेढंगा, उलटा-सीधा, (क) लेकिन इससे घोड़ा ऊल-जलूल रास्ते पर दौड़ने से डरता है। (वाग., कम., अग. 1997, पृ. 2), (ख) गवर्नमेंट बेचारी इन ऊल-जलूल आक्षेपों का उत्तर बड़े सब्र, बड़ी बुर्दकारी से देती चली आ रही हैं। (म. प्र. द्वि. र., खं 9, पृ. 153), (ग) हाउस ऑफ लार्डस (ग्रेट ब्रिटेन के सरदारों की महफिल) में उन्होंने ऊल-जलूल भाषण दिया है। (ग. शं. वि. र., खं. 3, पृ. 357)

ऊलाढाला वि. (विका.) -- असमंजसग्रस्त, विचलित परेशान, इन टिप्पणियों से उन्नीस दिसंबर तक देश ऊलाढाला होता रहा। (हि. ध., प्र. जो., पृ. 546)

ऊसर वि. (अवि.) -- अनुपजाऊ, (क) एशिया एक बहुत बड़ा ऊसर मैदान है। (दिन., 21 मई, 1972, पृ. 15), (ख) हर तरफ से देश को ऊसर बनानेवाले विचार दिल्ली से ही उपजते हैं। (ज. स., 13 दिस. 1983, पृ. 4)

ऊहापोह सं. (पु.) -- तर्क-वितर्क, नेहरू प्रायः ऊहापोह के माध्यम से निर्णय तक पहुँचते थे। (रा. मा. संच. 1, पृ. 219)

ऋणकारी वि. (अवि.) -- उपकार करनेवाला, मददगार, सहायक, सुयोग्य शासक दुर्बलों के लिए ऋणकारी सिद्ध होता है। (काद., मार्च 1994, पृ. 6)

एक अरसे से क्रि. वि. (पदबंध) -- लंबे अरसे से, दीर्घकाल से, एक अरसे से ऐसी अफवाहें फैल रही थीं... , (दिन., 5 मई, 1968, पृ. 20)

एक चुप सौ सुख कहा. -- मौन रहने में ही समझी जानेवाली भलाई, कुछ देशों ने जिनमें भारत भी शामिल है, एक चुप सौ सुख के सिद्धांत का सहारा लिया। (दिन., 28 मई, 67, पृ. 8)

एक छेड़ की तीन सौ सठ गालियाँ कहा. -- किसी का नाम धरने पर उसका कोपभाजन बनना पड़ता है, एक गँवारी कहावत है कि एक छेड़ की तीन सौ साठ गालियाँ होती हैं। (म. प्र. द्वि. र., खं 1, (बा. मु. गु.), पृ. 372)

एक ढेले में दो चिड़ियाँ हाथ न आना कहा. -- एक साधन से दो साध्य प्राप्त न होना, एक कुरूप इमारत से भी छुटकारा मिलेगा और ऋण से भी। एक ढेले में दो चिड़ियाँ हाथ नहीं आएँगी, उड़ जाएँगी। (दिन., 30 जुलाई, 1965, पृ. 10)

एक पंथ दो काज कहा. -- एक साधन से दो लाभ, यदि राष्ट्रीय दल के उम्मीदवार इस ओर दृष्टि डालेंगे तो एक पंथ दो काज अनायास ही सिद्ध हो सकते हैं। (स. सा., पृ. 122)

एक साँचे में ढालना मुहा. -- एक सा बनाना, एक रूप देना, सबको तुरंत एक साँचे में ढालने का प्रयत्न न तो संभव है और न सराहनीय। (रा. मा. संच. 2, पृ. 80)

एक हाथ से थप्पड़ मारना दूसरे से लड्डू दिखाना कहा. -- एक साथ डाँटना और पुचकारना, जॉन मार्ले की नीति एक हाथ से थप्पड़ मारने और दूसरे हाथ से लड्डू दिखाने की थई। (स. सा., पृ. 262)

एक ही काँटे में तोलना मुहा. -- सबको बराबर समझना, अंतर न करना, कमेटी के विचारकर्ता सभासदों के नाम न बतलाकर गोया हमसे न्यायी और अन्यायी सभासदों के काम को एक ही काँटें में तुलाना चाहा है। (म. प्र. द्वि. र., खं. 2, पृ. 199)

एक ही थैली के चट्टे / चट्टे-बट्टे कहा. -- एक ही स्वभाव, प्रवृत्ति या मनःस्थितिवाले लोग, (क) डेपुटेशन में आए हुए दो सदस्य लार्ड डेलामेयर और आर्चर भी थे, सब एक ही थैली के चट्टे थे। (स. सा., पृ. 115), (ख) एक ही थैली के चट्टे-बट्टे लेकर नई और खरी तौल आखिर हो भी कैसे सकती है। (दिन., 18 नव., 66, पृ. 11), (ग) अनीश्वरवाद, बुद्धिवाद, सोशलिज्म और यथार्थवाद सब एक ही थैली के चट्टे-बट्टे हैं। (नि. वा. : श्रीना. च., पृ. 502)

एक ही नदी के बट्टे कहा. -- एक ही थैली के चट्टे-बट्टे, एक जैसे, जो भी हो मंडली के सभी मंडन एक ही नदी के बट्टे जान पड़ते हैं। (गु. र., खं. 1, पृ. 419)

एकजान होना मुहा. -- घुल-मिल जाना, यही कि हम यहाँ के लोगों के साथ एकजान हो जाएँ। (शत. खि., ह. कृ. प्र., पृ. 88)

एकपना सं. (पु.) -- एकता, ऐक्य, जनता का एक बड़ा अंश कृषक वर्ग होने के बावजूद कोई ऐसा कार्यक्रम नहीं है जो उन्हें एक उमंग में बाँध सके, एकपने में जोड़ सके। (दिन., 15 जुलाई, 1966, पृ. 21)

एकमएक करना मुहा. -- गड्ड-मड्ड करना, निबंध में नई कविता को छायावाद से एकमएक करके उसकी कमियों पर प्रकाश डाला गया। (दिन., 07 मई, 67, पृ. 41)

एड़ लगाना मुहा. -- अग्रसर करना, गति देना, बढ़ावा देना, बँगलादेश कांड ने एक ऐसे ध्रुवीकरण को एड़ लगाई है जो अभी तक दक्षिण-पूर्व एशिया तक ही सीमित था। (दिन., 2 मई, 1971, पृ. 15)

एड़ सं. (स्त्री.) -- एड़ी से किया गया हलका आघात, आपकी लगाम और आपकी एड़ से घोड़ा चलेगा नहीं। (स. ब. दे. : रा. मा. (भाग दो), पृ. 188)

एड़ी घिसना मुहा. -- अपना काम निकालने के लिए बार-बार आवाजाही करना, दिन में चार बार हमारे घर का चक्कर लगाता था। इतनी एड़ी घिसी कि दरवाजे पर धूल नहीं बची। (रा. द., श्रीला. शु., पृ. 158)

एड़ी-चोटी का जोर लगाना मुहा. -- कोई कसर न छोड़ना, पूरा प्रयत्न करना, हिंदी के धनी-धोरी इसे गंगोत्री की ओर हाँक ले जाने के लिए एड़ी-चोटी का जोर लगा रहे हैं। (दिन., 18 जून, 67, पृ. 42)

एड़ी-चोटी का पसीना एक करना मुहा. -- घोर परिश्रम करना, पूरा जोर लगाना, (क) खूब एड़ी-चोटी का पसीना एक कर देते हैं , किंतु देश की किसी आवश्यकता की पूर्ति के लिए नहीं, अपने को प्रतिष्ठित और शक्तिशाली बनाने के लिए ही। (ग. शं. वि. र., खं. 1, पृ. 53), (ख) बेचारे श्रमजीवी एड़ी-चोटी का पसीना एक करके भरपेट अन्न और शरीर ढाँकने को वस्त्र नहीं पाते। (मा. च. र., खं. 5, पृ. 214), (ग) भारत की भलाई के लिए इन्होंने एड़ी-चोटी का पसीना एक कर दिया। (म. का मत : क. शि., 24 दिस. 1927, पृ. 245)

एलची सं. (पु.) -- राजदूत, मेगस्थनीज नाम का अपना एक एलची चंद्रगुप्त के दरबार में रख दिया। (सर., जून 1917, पृ. 301)

एवजी वि. (अवि.) -- स्थानापन्न, दरअसल एवजी जमीन का यह विचार ही गड़बड़ है। (स. ब. दे. : रा. मा. (भाग दो), पृ. 47)

ऐंच-पेंच सं. (पु.) -- घुमाव-फिराव, दाँव-पेंच, ऐंच-पेंच की बात कहने के पश्चात् तारीफ करते हुए जनरल डायर को इस्तीफा दे देने के लिए मजबूर कर दिया गया। (ग. शं. वि. र., खं. 3, पृ. 131)

ऐंचातानापन सं. (पु.) -- बेडौलपन, खराबी, विसंगति, जो ऐंचातानापन अर्थतंत्र में पहले रहा है, वह कुछ और विराट् हो जाएगा। (रा. मा. संच. 1, पृ. 419)

ऐंठ सं. (स्त्री.) -- अकड़, ठसक, (क) जिस भाषा में जिस ऐंठ के साथ वाइसराय ने इस नियुक्ति का उल्लेख किया। (मा. च. र., खं. 9, पृ. 69), (ख) यह भी ऐंठ रखता है कि मौका आने पर इससे भी अधिक क्रूर हो सकता हूँ। (मा. च. र., खं. 9, पृ. 215)

ऐंठन सं. (स्त्री.) -- बल, मरोड़, तनाव, पारिवारिक रोष की ऐंठन फिर भी शेष रह गई। (काद., जन. 1975, पृ. 76)

ऐंठना क्रि. (सक., अक.) -- 1. तिकड़म से ले लेना, (क) गोलमेज परिषद् के समय अंग्रेजों से अपनी चौदह माँगों में से तेरह ऐंठ सके। (ते. द्वा. प्र. मि., पृ. 41), (ख) ऐसी जमीनों के लिए जिन पर उनका कोई अधिकार नहीं था, पैसे ऐंठे। (दिन., 20 मई 1966, पृ. 30)। 2. अकड़ना, अकड़ दिखाना, अपनों से ऐंठना, अपनों की उपेक्षा करना... आज के बहुत से कलाकारों का स्वभाव है। (ए. सा. डा. : ग. मा. मु., पृ. 32)। 3. सिकुड़ना, परछाइयाँ भीतर-ही-भीतर ऐंठ कर विरूप हो गई हैं। (दिन., 6 जून, 67, पृ. 41)

ऐंठूपन सं. (पु.) -- ऐंठ दिखाने की प्रवृत्ति, अकड़पन, किसी ने दूरदर्शन का यह ऐंठूपन तोड़ने की कोशिश की थी। (दिन., 30 अप्रैल, 1972, पृ. 43)

ऐंड-बेंड़ा वि. (विका.) -- उलटा-सीधा अनुचित, एडीटरी की झोंक में कमी की ऐंड़ी-बेंड़ी कोई बात लिख मारी जो सरकारी कानून के खिलाफ पड़ी। (भ. नि., पृ. 140-41)

ऐंड-बैंड सं. (स्त्री.) -- उलटी-सीधी बात, शकुंतला ने भी उसे खूब ऐंड-बैंड सुनाई है। (चं. श. गु. र., खं. 2, पृ. 306)

ऐन वि. (अवि.) -- निश्चित, ठीक, (क) और ऐन होली के दिन ? (बे. ग्रं., प्रथम खं., पृ. 75), (ख) लेकिन भारत की जनता ने ऐन मौके पर अपने वीटो का उपयोग किया और सारा प्रयोग रद्द कर दिया। (रा. मा. संच. 1, पृ. 81)

ऐब सं. (पु.) -- दोष, अवगुण, (क) जो मेरा ठीक-ठीक ऐब बतलाए, वही मेरा मित्र है। (शि. पू. र., खं. 3, पृ. 307), (ख) कब संबंध सुधर जाएँ और उसके बड़े से बड़े ऐब अच्छे लगने लगें। (ग. मं. : पत्र. चु., पृ. 23)

ऐबजोई सं. (स्त्री.) -- अवगुण निकालना, व्यर्थ ही कोई ऐबजोई करना चाहे तो उसे रोक ही कौन सकता है ? (म. प्र. द्वि. र., खं. 9)

ऐयारी सं. (स्त्री.) -- छल, धूर्तता, चालाकी, मौका पड़ने पर मैं खुद ऐयारी कर सकता हूँ। (दिन., 16 सित., 66, पृ. 12)

ऐरा-गैरा 1 वि. (अवि.) -- ऐसा-वैसा, महत्त्वहीन, फालतू, (क) मौलाना मोहम्मद अली ने देश भर की ऐरी-गैरी पंचकल्याणी संस्थाओं को निमंत्रित कर दिया। (न. ग. र., खं. 2, पृ. 108), (ख) रवींद्रनाथ ने कविता में जो काम कर दिखाया है वह क्या सभी ऐरे-गैरे दिखा सकते हैं। (सर., भाग 28, खं. 5, पृ. 533), (ग) पहले तो नौकर ने ऐरा-गैरा समझकर स्थान देने से इंकार किया। (माधुरी, अक्तू, 1927, पृ. 560)

ऐरा-गैरा 2 सं. (पु.) -- महत्त्वहीन व्यक्ति, इससे ऐरे-गैरों की बन आई। (ज. क. सं. : अज्ञेय, पृ. 81)

ऐरा-गैरा नत्थू खैरा वि. (अवि. पदबंध) -- पदबंध, इधर-उधर का, जिससे कोई संबंध न हो, असंबद्ध, (क) इन्हें हर ऐरे-गैरे नत्थू खैरे के साथ सत्ता में भागीदारी करना ठीक नहीं लगता है। (हि. ध., प्र. जो., पृ. 327), (ख) यह बात किसी ऐरे-गैरे नत्थू खैरे में होती तो चौकन्ना होने की बात नहीं थी। (स. सा., पृ. 215), (ग) कवि बंधुओं को ऐरे-गैरे नत्थू खैरे हर कवि सम्मेलनों में जाने की दुर्बलता का शमन करना चाहिए। हि. पत्र. के गौरव : बाँ. बि. भट., 2 दिस. 1956, पृ. 142)

ऐहिक वि. (अवि.) -- लौकिक, सांसारिक, जीवन का ध्येय ऐहिक सुख भोग नहीं है। (काद., अग. 1982, पृ. 10)

ओछा वि. (विका.) -- हलका, कमतर, घटिया, (क) जिसकी तारीफ के लिए हर शब्द ओछा पड़ता है। (दिन., 16 सित., 66, पृ. 42), (ख) राजपूताने का त्याग कोई ओछे दर्जे का नहीं है। (कर्म., 4 अप्रैल 1931, खं 1, पृ. 4), (ग) ओछी पूँजी मूल को ही खा बैठती है। (त्या. भू. : संवत् 1986, (1927) पृ. 320)

ओज सं. (पु.) -- झेलना, तेज, उतने बेथक वाग्बाणों को ओज सकना आसान न था। (स्मृ. वा. : जा. व. शा., पृ. 150)

ओंजना क्रि. (सक.) -- झेलना, सहना, उतने बेथक वाग्बाणों कोक ओंज सकना आसान न था। (स्मृ. वा. : जा. व. शा., पृ. 150)

ओट सं. (स्त्री.) -- आड़, (क) अफसरों की तनख्वाहें सुधार एक्ट की बेहूदा ओट में बेहिसाब बढ़ा दी गईं। (मा. च. र., खं. 9, पृ. 154), (ख) पाकिस्तान को अव्वल तो ऐसी ओट की जरूरत है, जिसके पीछे वह अपनी खिसियाहट को छिपा सके। (दिन., 3 दिस. 1965, पृ. 12), (ग) वह भी अब शायद हिंदी प्रेमियों की दृष्टि की ओट हो चुकी है। (शि. पू. र., खं. 3, पृ. 249)

ओटना क्रि. (सक.) -- किसी क्रिया को बार-बार करना, ब्यौपार में जो हम नियत के चर्खे को बार-बार ओटते हैं उससे जैसी जल्दी नीयत फलती है वैसी दूसरे काम में नहीं। (भ. नि., पृ. 46)

ओटला सं. (पु.) -- चौंतरा, चबूतरा, (क) लोग ओटला सा बनाते हैं और सीता की रसोई कहकर बैठ जाते हैं। (हि. ध., प्र. जो., पृ. 122), (ख) भाजपा ने कहा कि वे तत्काल लोकसभा से त्यागपत्र दें और ऊँचे नैतिक ओटले पर काबिज हो जाएँ। (ज. स., 09 दिस. 06, पृ. 6)

ओढ़ लेना मुहा. -- ऊपर लेना, दायित्व लेना, रचनाकारों ने अपनी रचना की व्याख्या का गंभीर दायित्व बड़ी गंभीरता से स्वयं ओढ़ लिया। (दिन., 4 जून, 67, पृ. 41)

ओढ़का वि. (विका.) -- अधलेटा, दीवान साहब कुरसी के बल टाँग फैलाए ओढ़के हुए थे। (सर., जन. 1927, भाग 28, खं. 1, सं 1, पृ. 23)

ओढ़न सं. (स्त्री.) -- आवरण, ओढ़नी, सरकारें भाषा को जो शब्दावली भारतीय दृष्टि से उढ़ा रही हैं, वह अंततोगत्वा ओढ़न ही है। (दिन., 15 दिस. 1968, पृ. 16)

ओदन सं. (पु.) -- भात, चावल, संवत्सर भर चार के खाने लायक ओदन बना। (गु. र., खं. 1, पृ. 205)

ओर-छोर सं. (पु.) -- आदि-अंत, केनेडी हत्याकांड के सबूतों को तोड़ने-मरोड़ने की घटनाओं का कहीं ओर-छोर नहीं है। (धर्म., 1 जन. 1967, पृ. 29)

ओलती सं. (स्त्री.) -- बरामदा, ओसारा, मकान की ओलती में अबाबील विचरण करते है। (सर., दिस. 1921, पृ. 348)

ओलिया सं. (पु.) -- कागज का टुकड़ा, पोता गुरुजी के यहाँ से लौटकर आते वक्त हवेली से एक ओलिया माँगकर ले आएगा। (नव., फर. 1952, पृ. 87)

ओस चाटकर प्यास बुझाना मुहा. -- क्षुद्र प्रयास करना, (क) रूस और चीन के मतभेदों से रूस की तटस्थता प्रमाणित करना ओस चाटकर प्यास बुझाने के समान है। (दिन., 4 जून, 67, पृ. 3), (ख) यहां तो ओस चाटकर प्यास बुझानेवाले स्वराज्य दल से पहले भी कोई आशा न थी। (म. का मत : क. शि., 16 मई 1925, पृ. 184)

ओस वि. (अवि.) -- निर्जन, वीरान, वह अपने भाइयों के साथ पूनी नदी के पास स्थित ओस स्थान पर आकर बस गया। (काद., अप्रैल 1975, पृ. 157)

ओसाना क्रि. (सक.) -- हवा में उड़ना, भाषा के विचार से मतिराम के दोहे को बिहारी के दोहे से बढ़कर कहना आँख मूँदकर ओसाना है। (सर., नव. 1930, पृ. 562)

ओसारा सं. (पु.) -- दालान, बरामदा, (क) छोटे से खुले ओसारे में ऑफिस था। (शि. पू. र., खं. 4, पृ. 210), (ख) चार आदमी बाहर के ओसारे में मेरे पास आए। (रवि., 18 जन. 1981, पृ. 32)

ओसारी सं. (स्त्री.) -- छोटा ओसारा, वह घर के सामनेवाली ओसारी में पालथी मारकर बैठ गया। (रा. न. दु. : सित. 1995, पृ. 40)

औकना क्रि. (सक.) -- पहचानना, वे सौंदर्य की हर सूक्ष्म रेखा को औक सके। (म. सा. : ओं. श., भाग 1, पृ. 68)

औघड़ वि. (अवि.) -- बेपरवाह, बेफिक्र, ऐसे कुशल और औघड़ व्यापारी भी कहीं देखे हैं। (ग. शं. वि. र., खं. 1, पृ. 285)

औघड़ता सं. (स्त्री.) -- बेढंगी रचना, जबरदस्ती दीवारें खड़ी करके सीमेंट की चादरों से पाटकर कमरे के नाम पर औघड़ता खड़ी की गई थी। (रवि., 25 मार्च, 1981, पृ. 43)

औचक क्रि. वि. -- आकस्मिक रूप से, (क) औचक ही उसकी भावनाओं का बाँध टूट गया। (शि. से. : श्या. सुं. घो., पृ. 98), (ख) इन परिस्थितियों में औचक चुनाव करना क्या कांग्रेस के लिए एक जोखिम नहीं होगा। (दिन., 5 जन. 1975, पृ. 18)

औटाना क्रि. (सक.), सं. (पु.) -- उबालकर गाढ़ा करना, वह दूध कड़ाही में औटाने के लिए उड़ेल दिया जाता है। (दिन., 7 जन. 1968, पृ. 41)

औढरदानी1 वि. (अवि.) -- दिल खोलकर दान देनेवाला, शिव को औढरदानी देवता माना जाता है। क्योंकि वे अपने किसी भक्त को कभी निराश नहीं करते। (काद., जून 1982, पृ. 9)

औढरदानी2 सं. (पु.) -- महादानी व्यक्ति, क्या तेरा डेरा औढरदानी की सनक में है। (शि. पू. र., खं. 3, पृ. 131)

औंधना क्रि. (अक.), सं. (पु.) -- मुँह के बल पलट जाना, सिंहासन औंध जाने से किसी प्रकार न रुक सकेगा। (ग. शं. वि. र., खं. 2, पृ. 541)

औंधा कर देना मुहा. -- चित कर देना, पस्त कर देना, नेहरू में एक प्रतिभा थी जो मेनन को औंधा कर देती थी। (दिन., 20 जन., 67, पृ. 14)

औंधा पाठ सं. (पु.) -- गलत शिक्षा, उलटा काम, उसने छल किया इसलिए हम भी छल करें, यह कहना औंधा पाठ है। (वीणा, जन. 1934, पृ. 468)

औंधा-सीधा वि. (विका.) -- उलटा-सीधा, उलटा -पुलटा, (क) नए ढंग से लोग कितनी ही औंधी-सीधी बातें करें, श्री वेंकटेश्वर समाचार के संपादक ऐसे चिकने घड़े हैं कि अंग्रेजीवालों की युक्ति की बरसात उन्हें सूखा छोड़ जाती है। (गु. र., खं. 1, पृ. 113), (ख) वागीशजी को बहुत औंधी-सीधी सुनाई है। (माधुरी, फर. 1928, खं. 2, पृ. 449)

औंधा वि. (विका.) -- जिसका सिर या ऊपरी भाग नीचे हो, उलटा, दो मुसलमान मेंबरों ने यह औंधा प्रस्ताव किया कि जितने हिंदू चुने जाएँ उतने ही मुसलमान। (गु. र., खं. 1, पृ. 327)

औंधियाना क्रि. (अक.) -- झपकी लेना, ऊँघना, नैपोलियन कुल चार घंटे सोता था, किंतु दिन में प्रायः औंधिया लिया करता था। (सर., जुलाई 1937, पृ. 70)

औंधी अकल सं. (स्त्री., पदबंध) -- उलटी बुद्धि, भारत में औंधी अकल के लीडर कहलानेवालों का अभाव नहीं है। (मा. च. र., खं. 2, पृ. 54)

औंधी खोपड़ी1 सं. (पु., पदबंध) -- उलटा दिमाग, (क) लुकमान और अरस्तू की खोपड़ी चचोर डालों, इस औंधी खोपड़ी की दवा न मिलेगी। (म. का मत : क. शि., 13 अक्तू, 1928, पृ. 254) (ख) पर वाह रे हया की औंधी खोपड़ी पर चपत जमानेवाले।(म. का मत : क. शि., 13 अक्तू.1928,पृ. 254)

औंधी खोपड़ी2 वि. (अवि.) -- मूर्खतापूर्ण, जनतंत्र की इसी औंधी खोपड़ी व्याख्या का एक दुष्परिणाम यह है कि... , (धर्म., 2 जुलाई, 1967, पृ. 9)

औंधे मुँह गिरना मुहा. -- पूर्णतः असफल होना, बुरी तरह विफल होना, भारतीय नाटक में आधुनिक मन का चित्रण करेगा तो वह उतना ही औंधे मुँह गिरेगा। (दिन., 3 सित. 1972, पृ. 43)

औरस वि. (अवि.) -- वैध, औरस संतान के अभाव में ब्रिटिश हुकूमत ने अनेक राजाओं का राज्य हड़प लिया था। (काद., जून 1982, पृ. 8)

कंकरी सं. (स्त्री.) -- पत्थर का बहुत छोटा टुकड़ा, कंकड़ी, जेल में भी वे देख रहे हैं कि उन पर एक-दो कंकरियाँ पड़ने पर ही शांति का वह देवदूत उस समय 48 घंटों का उपवास करता है। (मा. च. र., खं. 9 पृ. 332)

ककरेजा वि. (विका.) -- टेढ़ा-मेढ़ा या ऊबड़-खाबड़, ककरेजे कगारों पर बेशुमार झड़बेर तोड़-तोड़कर खाए। (स्मृ. वा. : जा. व. शा., पृ. 9)

ककहरा सं. (पु.) -- आरंभिक ज्ञान, क ख ग, (क) राजनीति का ककहरा जाननेवाला बच्चा भी यह जानता है कि दलबंदियों के साथ समझौता कर बैठना देश की भावी सेवा के प्रति विश्वासघात करना है। (न. ग. र., खं. 2, पृ. 109), (ख) हर बार ऐसा क्यों है कि वामपंथी संस्कृति को ककहरे से शुरुआत करनी पड़ती है। (ज. स., 9 मार्च, 1984, पृ. 4)

कंगला1 वि. (विका.) -- निर्धन व्यक्ति, गरीब, कंगला मनुष्य हमेशा ही सस्ते माल की खोज में रहता है। (सर., अग. 1915, पृ. 66)

कंगला2 सं. (पु.) -- निर्धन व्यक्ति, गरीब, 1866 के अकाल में रोज ढाई सौ कंगलों को आपने भोजन दिया। (सर., 1 फर. 1908, पृ. 55)

कगार सं. (पु.) -- किनारा, आसपास के कगारों की ऊँचाई, निचाई, भयंकरता और सौम्यता का पता दे। (मा. च. र., खं. 5, पृ. 212)

कंगाल वि. (अवि.) -- अत्यधिक निर्धन, चीजों की प्रचुरता से आदमी धनी और इन्हीं की कमी से कंगाल होता है। (म. प्र. द्वि. र., खं. 6, पृ. 35)

कचरकूट सं. (पु.) -- कूड़ा-कचरा, रद्दी सामान, बीड़ी में क्या सचमुच तंबाकू ही है या कुछ और कचरकूट भरा हुआ है ? (दिन., 17 फर., 67, पृ. 12)

कचरम कूट करना मुहा. -- उदरस्थ करना, पेट भरना, इनका शगल होता है कि चलो महीना दो महीना सरकारी खाना खाकर कचरम कूट किया जाए। (काद., जन. 1981, पृ. 147)

कचरा-निचोड़ा वि. (विका.) -- निरर्थक, बेदम, सारहीन, सैकड़ों बार का कचड़ा निचोड़ा प्रश्न सामने आ गया। (कुटजः ह. प्र. द्वि, पृ. 2)

कचरापट्टी सं. (स्त्री.) -- कूड़ा करकट की पट्टी या स्थान (पटरी)। (गुजराती में नगरपालिका का नाम कचरापट्टी है।) (दिन., 6 से 12 अप्रैल 1980, पृ. 8)

कचारा निचोड़ा वि. (विका.) -- दे. कचरा-निचोड़ा, भारतीय पंडितों का सैकड़ों बार का कचारा-निचोड़ा प्रश्न सामने आ गया। (काद., नव. 1960, पृ. 51)

कचूमर निकलना मुहा. -- दुर्दशा भोगना, यार तुम बड़े भाग्यशाली हो, यहाँ तो कचूमर निकल जाता है। (स. न. रा. गो. : भ. च. व., पृ. 157)

कचूमर निकालना मुहा. -- दुर्दशा करना, ज्ञानी जैल सिंह को संविधान का कचूमर निकालने की इजाजत नहीं दी जाएगी। (स. ब. दे. : रा. मा. (भाग दो), पृ. 76)

कचोटना क्रि. (अक.) -- टीसना, कसक पैदा करना, कनिष्ठ वैज्ञानिकों को यह बात हमेशा कचोटती रहेगी कि उपलब्धियों का श्रेय सदैव वरिष्ठों को मिलता है। (दिन., 14 अप्रैल, 68, पृ. 30)

कचौंटन सं. (स्त्री.) -- कचोट, टीस, इस संशोधन की बात कहते समय हृदय में एक कचौटन-सी होती है। (न. ग. र., खं. 4, पृ. 184)

कच्चा चिट्ठा खोलना मुहा. -- भंडाफोड़ करना, दोष दरशाना, वह बंगाल की कांग्रेस का कच्चा चिट्ठा खोल सकता है। (दिन., 2 जून, 68, पृ. 18)

कच्चा चिट्ठा सं. (पु.) -- वास्तविक और पूरा विवरण, पूछने लगा कहाँ से और कैसे आए हो। मैंने कच्चा चिट्ठा कह सुनाया। सर., दिस. 1913, पृ. 680)

कच्चा निकलना मुहा. -- पारंगत न होना, ज्ञान अधूरा होना, प्रशासन के घोड़े की सवारी करने में आप कच्चे निकले। (म. प्र. द्वि. र., खं 5, पृ. 425)

कच्ची उम्र सं. (स्त्री., पदबंध) -- पदबंध, छोटी अवस्था, किशोरावस्था, डॉ. कॉफ्लर ने लिखने का पेशा कच्ची उम्र में ही अपना लिया था। (दिन., 22 अप्रैल, 1966, पृ. 39)

कच्ची गोटियाँ नहीं खोलना मुहा. -- अनाड़ी न होना, राजेश्वर राव कच्ची गोटियाँ नहीं खेले थे। (ज. स., 8 दिस. 1983, पृ. 4)

कच्ची-पक्की सं. (स्त्री.) -- कच्चा भोजन (रोटी-भात) या पक्का भोजन (पूड़ी-कचौड़ी), उन लोगों के लिए जो खानपान में छुआछूत और कच्ची-पक्की के कायल हैं, मामूली ही ताँगा कम खर्च बालानशीं है। (सर., दिस. 1917, पृ. 304)

कच्छपत्व सं. (पु.) -- कछुआ बने रहने की अवस्था या भाव, धीमी गति का अनुसरण, सरकार चुनाव सुधार के मामले में कछुए की चाल से चल रही है क्योंकि कच्छपत्व में उसके निहित स्वार्थ हैं। (रा. मा. संच. 1, पृ. 277)

कछार सं. (पु.) -- उपजाऊ नीची भूमि, अट्टहास से शांत पहाड़ी का कछार गूँज उठा। (सर., अप्रैल 1943, पृ. 212)

कछुए की चाल मुहा. -- धीमी गति, सरकार चुनाव सुधार के मामले में कछुए की चाल से चल रही है। (रा. मा. संच. 1, पृ. 277)

कजरोटा सं. (पु.) -- काजल रखने का पात्र, सरजू भैया ने बमभोले की तरह कजरोटे में अँगूठा बोरकर कागज पर चिपका दिया। (बे. ग्रं., प्रथम खं., पृ. 27)

कजोड़ा सं. (पु.) -- कजिया, झमेला, झंझट, जो महारानी का अंतिम वायसराय हो, वह उसके साम्यवाद के घोषणापत्र को कजोड़ा समझे। (गु. र., खं. 1, पृ. 334)

कटकुट सं. (स्त्री.) -- लिखने में होनेवाली काँट-छाँट, लेखनी का वेग ऐसा कि संयोगवश ही कहीं कटकुट मिले। (शि. पू. र., खं. 4, पृ. 209)

कटखनापन सं. (पु.) -- काट खाने की प्रवृत्ति, कटु स्वभाव, जिसे इस बात का गरूर था कि देश की चौकीदारी वही कर सकता है और उसके कटखनेपन को सहने के अलावा देश के पास कोई चारा नहीं है। (रा. मा. संच. 1, पृ. 301)

कटनी सं. (स्त्री.) -- फसल की कटाई, जिस तरह आजकल तुम वर्षा न होने पर, बोनी हो जाने पर, कटनी के पश्चात् या अधिक बरसात होने पर चुपचाप हाथ पर हाथ धरे बैठे रहते हो, यह हालत डेढ़ सौ वर्ष पहले तुम्हारी न थी। (मा. च. र., खं. 3, पृ. 17)

कटरा सं. (पु.) -- बाजार, बस्ती या मुहल्ला, पुराने शहर में सैकड़ों ऐसे कटरे हैं। (दिन., 3 जून, 1966, पृ. 41)

कटहा वि. (विका.) -- काट खानेवाला, अपनी बुद्धि लड़ाकर बहुत सी कटहा बातें तैयार कर ली हैं। (प. परि. रेणु. पृ. 34)

कटा-छँटा वि. (विका.) -- अलग-थलग, विलग प्रांतों की राजधानियाँ और विधानसभाएँ वैचारिक बहसों से इतनी कटी-छँटी क्यों रहती हैं ? (रा. मा. संच. 1, पृ. 210)

कटा-छिनी सं. (स्त्री.) -- मार-काट और छीना-झपटी, अफगानों की आपसी कटा-छिनी से देश में हलचल मची और पठानों का राज्य मिटने लगा। (काद., अग. 1973, पृ. 74)

कँटाइन वि. (अवि.) -- काट खानेवाला, लड़ाकू, झगड़ालू, भगवान् के लिए इन कँटाइन बहुओं के चर्चे बंद करो। (स. भा. सा., मृ. पां., सित.-अक्तू. 98, पृ. 8)

कटाक्षपात सं. (पु.) -- कटाक्ष करना, ताना मारना, राम के वनवास संबंध में अयोध्या के राजभवन में जो वाग्वितंडा हुई (हुआ), उसमें भी इस निर्दोष राजकुमार के प्रति दो-एक बार अन्याययुक्त कटाक्षपात हुए। (सर., फर. 1912, पृ. 89)

कँटीला वि. (विका.) -- काँटों-भरा, चुभनेवाला, कष्टकारी, फिर क्या कारण है कि नरम दलवालों पर सरकार की यह कँटीली कृपा हुई है ? (मा. च. र., खं. 9, पृ. 259)

कटुकता सं. (स्त्री.) -- कटुता, कठोरता, कटुकता छोड़ने और विनम्रता सीखने का पाठ पढ़ाया जाना चाहिए। (काद., दिस. 1986 , पृ. 6)

कट्टमजूझ सं. (स्त्री.) -- मारपीट, मारकाट, लोगों का भाषा के आधार पर बहुसंख्यक और अल्पसंख्यक वर्गों में विभाजन होने लगा और उनमें आपस में कट्टमजूझ होने लगी। (काद., फर. 1961, पृ. 10)

कंठ हो जाना मुहा. -- याद हो जाना, स्मरण हो जाना, एक ही जो बार पढ़ने से उनको उनके पाठ कंठ हो जाते थे। (म. प्र. द्वि. र., खं 2, पृ. 30)

कठकरेज वि. (अवि.) -- कठोर हृदयवाला, आप इतने कठकरेज कैसे हो जाते हैं , समझ में नहीं आता। (काद., अक्तू. 1961, पृ. 123)

कठकरेजी वि. (अवि.) -- निष्ठुर, कठोर-हृदय, आज के राजनेता बड़े कठरकरेजी हैं , जनता की करुण दशा उन्हें नहीं पिघलाती। (काद., फर. 1977, पृ. 8)

कठबाप सं. (पु.) -- अपनी माता का दूसरा पति, (क) आखिर वह है तो कठबाप (काद., नव. 1976, पृ. 34), (ख) पिता के सदृश्य प्रेम और ममता के भाव कठबाप में हो ही नहीं सकते। (काद., नव. 1976, पृ. 34)

कठबैद सं. (पु.) -- अनाड़ी वैद्य, नीम हकीम, अरे, तुम्हें क्या हो गया है जो इतनी गंभीर बीमारी में उस कठवैद की दवा ले रहे हो ? (काद., मई 1977, पृ. 9)

कठमुल्ला1 सं. (पु.) -- कट्टरपंथी, दुराग्राही, साहित्य के इन कठमुल्ले नेताओं ने लेनिन को साहित्य का देवता मान लिया है। (दिन., 1 अप्रैल 1966, पृ. 27)

कठमुल्ला2 वि. (अवि.) -- कट्टर धर्मगुरु या दुराग्रही विद्वान्, कठमुल्लों की तालीम और रोजा नमाज के साधनों से वह पद प्राप्त नहीं हो सकता। (कच. : वृ. ला. वा., पृ. 253)

कठहुज्जत सं. (स्त्री.) -- व्यर्थ की हुज्जत, हम भले ही पक्षपातावश हिंदी की ओर से कठहुज्जत करें किंतु हमारी लचर दलीलें... कायम रह सकतीं। (शि. पू. र., खं. 4, पृ. 565)

कठहुज्जती वि. (अवि.) -- बेमतलब हुज्जत करनेवाला, (क) व्यर्थ ही तर्क करनेवाले कठहुज्जती लोगों को अवसर न दिया जाए। (शि. पू. र., खं. 3, पृ. 229 (, (ख) उस जैसा कठहुज्जती तो मैंने देखा ही नहीं। (काद., अक्तू. 1976, पृ. 19)

कठौता सं. (पु.) -- लकड़ी का बड़ा पात्र, जनता के आगे भर कठौता समझौता परस दिया। (म. का मत : क. शि., 8 दिस. 1923, पृ. 128)

कठौती सं. (स्त्री.) -- काठ की परात, तीस साल तक प्रतिपक्ष के घर में टूटे तवे और फूटी कठौती के अलावा क्या था ? (रा. मा. संच. 1, पृ. 384)

कड़क वि. (अवि.) -- तेज, तीव्र, तीखा, प्रचंड, मेरी विचार दृष्टि कड़क राजनैतिक थी। (क. ला. मिश्र, त. प. या., पृ. 41)

कड़खा सं. (पु.) -- लड़ाई के समय गाया जानेवाला गीत, जब-तब आल्हा के कुछ कड़खे भी सुनाई पड़ते। (बे. ग्रं., प्रथम खं., पृ. 18)

कंडम वि. (अवि.) -- अनुपयोगी, जर्जर, बेकार, कंडम बसों में यात्रा करने को मजबूर हैं यात्री। (लो. स., 14 अग. 1989, पृ. 7)

कड़वा वि. (अवि.) -- कटु, कटुतापूर्ण, नेपाल की शैली पिछले साल भर से उग्र और कड़वी होती जा रही है। (रा. मा. संच. 2, पृ. 22)

कड़वी जबान सं. (स्त्री.) -- कठोर बोली, उग्र भाषा, श्री ठाकुर भाई देसाई अपनी कड़वी जबान के लिए काफी बदनाम हैं। (दिन., 06., 67,पृ. 25)

कड़वे फल चखना मुहा. -- कष्ट या दुष्परिणाम भोगना, धर्मवाद के कारण कड़वे फल उनको चखने पड़े। (गु. र., खं. 1, पृ. 143)

कंडा हो जाना मुहा. -- ढेर हो जाना, ... चाबुक से ऐसा प्रहार किया कि वह गरगैया (गौरैया) वहीं कंडा हो गई। (माधुरी, अक्तू. 1927, पृ. 598)

कड़ाई सं. (स्त्री.) -- कठोरता, सख्ती, जो अपने आप पर इतनी कड़ाई कर सकता हो वह दूसरों के लिए क्या सिद्धांत स्थिर करता है ? (न. ग. र., खं. 3, पृ. 160)

कढ़ना क्रि. (अक.) -- निकलना, बाहर आना, चतुर्वेदीजी ने ये सभी वाक्य कुम्हारिन के मुँह से ही कढ़े हुए लिखे हैं। (मधुकर, जन-मई 1943, पृ. 268)

कढ़ाव सं. (पु.) -- बड़ी कढ़ाही, कड़ाहा, सब माने बैठे थे कि भारत की राजनीति अगले दस-पंद्रह वर्षों तक एक गर्म कढ़ाव में होगी। (रा. मा. संच. 1, पृ. 81)

कतई नहीं क्रि. वि. -- बिलकुल नहीं, वे कुछ फिल्मों को कतई नहीं देख सकते। (वीणा, जून 1935, पृ. 632)

कतरन सं. (स्त्री.) -- पत्र-पत्रिका में से काटकर निकाला हुआ किसी समाचार या सूचना का टुकड़ा, साहित्य सेवा का क्या यही पुरस्कार मिलेगा कि उनके मानस के संस्करण की मिट्टी पलीद करने का दुस्साहस कलकत्ते का यह कतरन बटोर संपादक करे। (कु. ख. : दे. द. शु., पृ. 70)

कतरनी-वरदान सं. (पु.) -- कैंची की तरह जीभ चलाने का वरदान, यह कतरनी-वरदान सारे संसार की स्त्रियों को मिला है, जिन्हें हम कहते हैं फर्राटा बैनी। (दिन., 7 फर. 1966, पृ. 10)

कतरनी सं. (स्त्री.) -- कैंची, कैंची की तरह चलनेवाली जबान, चोली-दामन का साथ जो मुंशीजी की चतुर कतरनी ने स्थापित कर दिया था, बराबर बना रहा। (सर., जन. 1930, पृ. 69)

कतरब्योंत सं. (स्त्री.) -- काट-छाँट, उलट-फेर, (क) ऐसी कतरब्योंत नवीन लेखकों के लेखों में बहुत हुआ करती है। (गु. र., खं. 1, पृ. 435), (ख) कतरब्योंत के अलावा उस बेचारी के पास और रह ही क्या गया था। (रवि., 25 जन. 1981, पृ. 40), (ग) प्रजा पर उनकी प्रभुता न हो जाए, इसलिए उनके अधिकारों में सदा कतरब्योंत करता रहता था। (सर., जुलाई 1926, पृ. 35)

कदर सं. (स्त्री.) -- इज्जत, मान-सम्मान, (क) प्रेमचंद के जीवनकाल में हम उनका महत्त्व न समझ सके और कदर न कर सके। (सं. परा. :ल. शं. व्या., पृ. 55), (ख) ब्रिटिश गवर्नमेंट ने भी आपके इस असाधारण परिश्रम-साध्य काम की कदर की। (सर., अग. 1909, पृ. 334)

कदराना क्रि. (अक.) -- पस्त हो जाना, हिम्मत हार जाना, मन कदरा गया। (शि. पू. र., खं. 4, पृ. 95)

कंधे बिचकाना मुहा. -- उपेक्षा या संदेह व्यक्त करना, मैंने कंधे बिचका दिए, पीठ नहीं मोड़ी। (काद., जन. 1975, पृ. 70)

कंधों पर सिर भारी होना मुहा. -- जीवन प्रिय न होना, जीवन से मोह न होना, चंगेज खाँ से कौन अपने अधिकार माँग सकता है, जिसे अपने कंधे पर सिर भारी न हो। (गु. र., खं. 1, पृ. 324)

कनकी सं. (स्त्री.) -- चावल के दाने का टूटा हुआ छोटा टुकड़ा या टुकड़े, बिदुर की कनकी की धूल से भी उन्हें घृणा नहीं। (सर., जुलाई 1924, पृ. 798)

कनकौआ सं. (पु.) -- पतंग, मैदान में निश्चित समय पर तीन लोग उपस्थित थे, दो अखबारवाले जो खबरों का कनकौआ उड़ाते हैं और एक प्रतियोगी। (दिन., 23 फर. 1975, पृ. 10)

कनकौवेबाजी सं. (स्त्री.) -- पतंगें उड़ाने का काम, सार्थक काम न करना, किसी दिन आप कनकौवेबाजी करते थे। (सर., जन. 1918, पृ. 50)

कनखियों से देखना मुहा. -- दूसरों की आँख बचाकर देखना, यह अमहत्त्वपूर्ण नहीं है कि जो जे. पी. के साथ हैं, वे प्रायः कनखियों से इंदिराजी की ओर देख लेते हैं... (रा. मा. संच. 1, पृ. 261)

कनफटा, कनफड़ा वि. (विका.) -- जिसका कान फटा हो, नहीं तो कनफड़ा जोगियों की जमात में शामिल हो जाए। (साक्षा., मार्च-मई 77, मृ. पां. पृ. 27)

कनफुसकी सं. (स्त्री.) -- कानाफूसी, उस समय केवल एक-आध बार कनफुसकी तथा दबी हुई हँसी भर हुई। (सर., अग. 1922, पृ. 94)

कनरसिया वि. (अवि.) -- गाने बजाने का आनंद लेनेवाला, संगीत का रसिक, देशी शास्त्रीय कनरसिया लोगों की यह दोहरी उपेक्षा सुनने के बाद सुना रविशंकर को सितार से निचोड़कर सुर निकालते हुए। (दिन., 30 अप्रैल 1972, पृ. 43)

कनात सं. (स्त्री.) -- संतोष, संतुष्टि, कोई पास ही के भोजनालय का आश्रय लेता है और कोई अपने घर से लाई हुई रोटी ही पर कनात करता है। (सर., फर. 1912, पृ. 110)

कनिया सं. (स्त्री.) -- गोद, छोटे बच्चे को कनिया लिए हुए बहन जा रही थी। (दिन., 5 मई, 1968, पृ. 24)

कन्नी काटना मुहा. -- किनारा करना, सामना करने से बचना, बचकर निकल जाना, (क) आनेवाले लोग उस सख्त मेहनत और रियाज से शायद कन्नी काटेंगे। (रा. मा. संच. 2, पृ. 306), (ख) इसके लिए उन्हें समय देना पड़ेगा यूँ कन्नी काटने से काम नहीं चलेगा। (सर., भाग 30, खं 1, जन-जून 1929, पृ. 105), (ग) इसीलिए कन्नी काटकर निकल जाता था। (मधुः अग. 1965, पृ. 10)

कपट-कौशल सं. (पु.) -- छलपूर्ण व्यवहार, दमयंती कदापि उनके कंठ में वरमाला न पहनाएगी। अतएव कपट-कौशल की ठहरी। (सर., अप्रैल 1912, पृ. 193)

कपट-खटाई सं. (स्त्री.) -- कपट की खटास, दूध और पानी मिलकर एक संग एक भाव हो जाते हैं और कपट-खटाई पड़ते ही दोनों विलग हो जाते हैं। (शि. पू. स. र., खं. 3, पृ. 63)

कंपा सं. (पु.) -- चिड़ियाँ फँसाने की सींक या लकड़ी, ऐसा लासा लगाकर कंपा भिड़ाते कि लाख पंख फड़फड़ाने पर भी बच निकलना कठिन हो जाता। (शि. पू. र., खं. 4, पृ. 130)

कपाट सं. (पु.) -- पल्ला, द्वार, (क) हमारे देश में वेश्यावृत्ति कोठों के बंद कपाटों से निकलकर छविगृहों के सार्वजनिक रजत पटों पर आ बिराजी है। (सा. हि., 8 फर. 1959, पृ. 4), (ख) यदि ऐसा नहीं करना था तो साधारण बात यह है कि न्यायालय के कपाट उन सबके लिए खुले रहने की कृपा की जाती। (ग. शं. वि. र., खं. 2, पृ. 448)

कपाल सं. (पु.) -- खोपड़ी, सिर, बाहर की तरफ कपाल की हड्डी से लगे हुए स्नायु हैं। उनमें से चार तो खड़े हैं और डेले को ऊपर-नीचे घुमाने का काम देते हैं। (चं. श. गु. र., खं. 2, पृ. 262)

कपोल-कल्पना सं. (स्त्री.) -- निराधार बात, गप, पहले हमने इस संवाद को एक कपोल-कल्पना समझकर विशेष महत्त्व नहीं दिया था। (स. सा., पृ. 23)

कफन में कील ठोंकना मुहा. -- ताबूत में कील ठोंकना, पूरी तरह समाप्त / नष्ट कर देना, ब्रिटिश सरकार तिब्बत पर अधिकार जमाकर एशिया की परतंत्रता के कफन में नई कील ठोंकना चाहती है। (न. ग. र., खं. 2, पृ. 83)

कफन-खसोट / कफन-चोर सं. (पु.) -- कफन तक उतार या लूट लेनेवाला, निकृष्ट कार्य करनेवाला, यह जमाना कफन-खसोंटो का है। (साक्षा., मार्च-मई 77, मृ. पां. पृ. 26)

कंबख्त वि. (अवि.) -- अभागा, कंबख्त इतना आकर्षक और प्यारा है कि एक पल के लिए तो मेरा भी जी चाहा था। (काद., जून 1995, पृ. 41)

कबड्डी का खेल रचना मुहा. -- ऊधम मचाना, उठापटक करना, राजनीतिक दलवादियों ने राष्ट्रीय क्षेत्र में खासा कबड्डी का खेल रच दिया। (स. सा., पृ. 269)

कबाड़ सं. (पु.) -- कूड़ा-कचरा, रद्दी सामान, यह वोट कबाड़ नारा नहीं है। (हि. ध., प्र. जो., पृ. 374)

कबाड़ना क्रि. (सक.) -- एकमुश्त, एकत्र करना, जुटाना, उन्होंने कहा भारतीय उद्गम के लोगों के वोट कबाड़ने के लिए सेनानायके 1964 के भारत-लंका समझौते पर फुर्ती से अमल नहीं कर रहे हैं। (रा. मा. संच. 1, पृ. 35)

कबाहट सं. (स्त्री.) -- झंझट, झमेला, बड़ी आफत है, बड़ी कबाहट है। (म. का मत, 22 सित. 1928, पृ. 228)

कभी-कभार क्रि. वि. -- यदाकदा, गंभीर साहित्यिक समीक्षा अमेरिका में कभी कभार देखने में आती है। (काद., मई 1982, पृ. 52)

कम खर्च बालानर्शी कहा. -- कम खर्च में चलना ही भला, सैनिक सरकार के लिए किसी भी समस्या का हल बंदूक की गोली है, इसी को कहते हैं कम खर्च बालानशीं। (दिन., 28 मई, 67, पृ. 9)

कमची सं. (स्त्री.) -- पतली छड़ी, पतली टहनी, भंडारकर को लपूटा के टापू में रहनेवाले उस पंडित से तुलना दी, जो प्रजा रोष की कमचियाँ खाकर भी नहीं चेतता। (चं. श. गु. र., खं. 2, पृ. 366)

कमठ सं. (पु.) -- बाँस, लाठी, बिना तीर-कमठों के ही आया करो। (वृ. ला. व. समग्र, पृ. 617)

कमठान सं. (पु.) -- भंडार, स्टोर, भंडारगृह, महल के कमठाने का बहुत सा सामान बेचा गया। (कच. : वृ. ला. व., पृ. 259)

कमती-बढ़ती क्रि. वि. -- मूल्य कुछ घटा-बढ़ाकर, आप कहें तो मैं हो आऊँ और कमती-बढ़ती सौदा तय कर लूँ। सर., नव. 1921, पृ. 279)

कमती वि. (अवि.) -- कम, न्यून आजकल आने-जाने और पत्र-व्यवहार का सुभीता कमती है। (न. ग. र., खं. 2, पृ. 187)

कमती वि. (अवि.) -- युक्तिशील, आजकल हिकमती लोगों का बोलबाला है। (काद., फर. 1968, पृ. 10

कमंद सं. (स्त्री.) -- फंदेदार रस्सी, जिसके सहारे दीवार पर चढ़ते या उतरते हैं, अपने दस वीरों के साथ अँधेरी रात में कमंद लटकाकर दीवार से उतर गए। (सर., जून 1925, पृ. 614)

कमर कसना या कस लेना मुहा. -- मुस्तैद होना, सन्नद्ध होना, (क) कहाँ हैं वे वीर जो इन कुप्रथाओं को रोकने केलिए कमर कसकर खड़े हों। (मा. च. र., खं. 2, पृ. 38), (ख) हम रूस और चीन के निष्काम भक्त नहीं है कि एकतरफा दोस्ती निभाने के लिए कमर कस लें। (ते. द्वा. प्र. मि., पृ. 50)

कमरतोड़ वि. (अवि.) -- कमर तोड़ देनेवाला, पस्त कर देनेवाला, (क) अवमूल्यन के बाद 35 प्रतिशत और वृद्धि का समाचार-पत्रों पर कमरतोड़ भार डाल दिया गया है। (दिन., 16 सि., 66 पृ. 8), (ख) कमरतोड़ महँगाईसे लोग परेशान हैं। (काद., जून 1992, पृ. 5)

कमी-बेशी सं. (स्त्री.) -- घटती-बढ़ती, घट-बढ़, आयोजन का आकार या उसकी अवधि में कमी-बेशी की जाए, जिससे कि उसे ऋण देने में संकोच न हो। (दिन., 13 अग. 1965, पृ. 11)

कमोबेश वि. (अवि.) -- कुछ कम या कुछ अधिक, लगभग उसकी कीमत कमोबेश एक सौ रुपए होगी। (काद., जून 1992, पृ. 5)

कयासबाजी सं. (स्त्री.) -- अनुमान लगाना, अटकलबाजी, इस प्रकार की कयासबाजियों में पड़े रहनेवालों से जर्मनी कहीं काँइयाँ निकला। (ग. शं. वि. र., खं. 2, पृ. 492)

कर गुजरना मुहा. -- अपने मन की करना, बड़ा काम करना, सच्ची राजनीति जनता के लिए कुछ कर गुजरने की होती है। (वाग. : जा. व. शा., पृ. 61)

करकना क्रि. (अक.) -- अखरना, चुभना, किरकिराना, (क) वह रिश्तेदारों की आँखों में करकने लगा है। (रा. निर., समी., फर, 2007, पृ. 16), (ख) क्या नील देवी नाटक की घटना भारतेंदु के मन में धार्मिक अनुभूति की तरह करकती है। (दिन., 10 अक्तू. 1971, पृ. 39)

करणीय वि. (अवि.) -- (अवश्य) करने योग्य महात्मा जी ने जो कार्यक्रम तैयार किया है, वह ग्राह्य एवं करणीय है। (न. ग. र., खं. 2, पृ. 70)

करतूत सं. (स्त्री.) -- अनुचित कार्य, नौकरशाही की डायरी करतूतों ने हमारी गति में जोर पहुँचाया है। (मा. च. र., खं. 9, पृ. 227)

करधनी सं. (स्त्री.) -- मेखला, कमरपट्टी, जब नर्मदा और ताप्ती को अभिमत की करधनी बनता हुआ पाता हूँ तब उसका (अभिव्यक्ति का) अर्थ मेरे निकट समर्पण हो जाया करता है। (मा. च. र., खं. 2, पृ. 368)

करम ठोकना मुहा. -- भाग्य को दोष देना, (क) अब तो सोहनलाल करम ठोककर बैठ गए। (सर., नव. 1915 , पृ. 277), (ख) टैगोर ला लेक्चर की संपत्ति निराले बंगालियों के लिए ही होती, तो हमें करम ठोकने के सिवाय क्या बस रहता। (चं. श. गु. र., खं. 2, पृ. 333)

करवट बदलना मुहा. -- रुख बदल लेना, मुँह फेर लेना, जहाँ तनिक भी आँच लगी बस, करवट बदल डालते हैं। (ग. शं. वि. र., खं. 1, पृ. 88)

कराई सं. (स्त्री.) -- खाई, मकानों के पिछवाड़े कटाव की वजह से गहरी कराइयाँ बन गई हैं। (त्या. भू. : संवत् 1983 (12 दिस. 1992), पृ. 7)

करार वि. (विका.) -- कठोर, जोरदार, (क) संपादकीय लेख बड़ा करारा लिखता है। (शि. पू. स. र., खं. 4, पृ. 517), (ख) गुरखा सिपाही करारे लड़ाकू हैं। (मा. च. र., खं. 10, पृ. 200), (ग) ऐसे प्रसंग अवश्य आए जब श्री गोलवरलकर जी को करारे प्रलोभनों का सामना करना पड़ा। (मा. च. र., खं. 4, पृ. 217)

कराल वि. (अवि.) -- भयानक, विकराल, आगामी कल अपनी कराल कुदाली का बेंट ठीक कर रहा है। (ग. शं. वि. र., खं. 1, पृ. 282)

करीना सं. (पु.) -- ढंग, जवाहरलाल जी पहले से ही बहुत कायदे-करीने के आदमी हैं। (हि. ध., प्र.जो., पृ. 377)

कर्दम सं. (पु.) -- कीचड़, पाप, इस संगम में जैसे यह कहीं का कर्दम आ पड़ा हो। (मधु. आग. 1965, पृ. 220)

कर्मनाशा सं. (स्त्री.) -- बिहार की एक नदी, नदी, बुद्धावतार के कुछ पूर्व धर्म और ईश्वर के नाम पर हिंसा की कर्मनाशा बहाई गई। (सर., जुलाई 1937, पृ. 19)

कर्मपटु वि. (अवि.) -- काम करने में निपुण, कार्यकुशल, दोनों (बापू एवं लालाजी) ही स्वार्थ त्यागी, कर्मपटु और देश के हित चिंतक हैं। (सं. परा. : ल. शं. व्या., पृ. 172)

कल-कल सं. (स्त्री.) -- 1. झरने के जल के गिरने की ध्वनि। 2. शोर, कोलाहल, क्यों दिव्य की प्राचीन प्रथा को छोड़कर नवीन वकीलों की कल-कल मचावें। (चं. श. गु. र., खं. 2, पृ. 368)

कल सं. (स्त्री.) -- चैन, संतोष, तसल्ली, इन्हें रोज पायनियर पढ़े बिना कल नहीं पड़ती। (म. प्र. द्वि. र, खं. 15, पृ. 273)

कलई खुल जाना मुहा. -- असलियत सामने आना, रहस्य प्रकट होना, पिछले दिनों ठाकुर श्रीनाथ सिंह ने सरस्वती में उनका जो भंडाफोड़ किया है, उससे उनकी सारी कलई खुल गई है। (कु. ख. : दे. द. शु., पृ. 97)

कलई खोलना मुहा. -- भेद खोलना, भंडा फोड़ना, चौधरी ब्रह्मप्रकाश की कलई खोलने का निश्चय मैंने कर लिया है। (दिन., 06 जन., 67, पृ. 23)

कलई चढ़ाना मुहा. -- परत चढ़ाना, आवृत करना, मूल रूप छिपा देना, उसके भ्रमात्मक विश्वासों पर तर्क और विज्ञान की कलई चढ़ाने लगते हैं। (गु. र., खं. 1, पृ. 147)

कलंक-गाथा सं. (स्त्री.) -- अपयश की कहानी, इटली में इस साल जब एक कलंक-गाथा का भंडाफोड़ हुआ, तो पता चला कि तेल कंपनियों ने अपने टैक्स घटवाने के लिए राजनैतिक पार्टियों को अनाप-शनाप चंदा दिया है। (रा. मा. संच. 1, पृ. 241)

कलछहाँ वि. (विका.) -- कालेपन की झलक लिए हुए, वे एक कलछहीं छाया लिए हुए थीं। (सर., अग. 1941, पृ. 105)

कलदार सं. (पु.) -- रुपए का सिक्का, उनकी रकम लोगों को कल्याणकारी कलदार के रूप में बराबर मिलती ही गई। (सर., फर. 1920, पृ. 111)

कलधौत सं. (पु.) -- सोने या चाँदी का बना हुआ, सोना चाँदी पाठक अभिमान के कलधौत शिखर पर चढ़ जाता है। (नि. वा. : श्रीना. च., पृ. 296)

कलपना क्रि. (अक.) -- दुःखी होना, तड़पना, अंत में एक बात जोड़े बिना प्राणी की आत्मा परलोक में कलपती रहेगी। (स. का वि. : डॉ. प्र. श्रो., पृ. 85), (ख) पानी की एक-एक बूँद के लिए धरती कलप रही है। (दिन., 04 नव., 66, पृ. 26)

कलपाना क्रि. (सक.) -- दुःखी करना, संत्रस्त करना, (क) अनेक दुर्व्यवहारों से अपनी विवाहित को कलपाते हैं। (शि. पू. स. र., खं. 3, पृ. 496)

कलब सं. (पु.) -- बुद्धि और हृदय, तुम्हारी जबान गरम है परंतु कलब ठंडे पड़ गए हैं। (म. का मत : क. शि., 12 अप्रैल, 1924, पृ. 146)

कलम घिसना मुहा. -- लिखने का काम करना, बड़ी रात तक, दीन-दुनिया भूले कलम घिसघिस करता रहा। (गे. गु., पृ. 50)

कलम घिसाई सं. (स्त्री.) -- मुंशी का काम, लिखने का काम... वह भी उस वर्ग का है जिसका पुश्तैनी पेशा कलम-घिसाई है... , (दिन., 24 सित. 1965, पृ. 11)

कलमी वि. (अवि.) -- जो कलम लगाने से उत्पन्न हो, कृत्रिम संस्कृत अजर-अमर तो हो गई किंतु उसका वंश नहीं चला, वह कलमी पेड़ था। (चं. श. गु. र., खं. 2, पृ. 19)

कलसा सं. (पु.) -- धातु का घड़ा, मैं कुएँ से कलसे खींच-खींचकर मस्त होकर नहाने लगा। (काद., अग. 1961, पृ. 19)

कलाबत्तू सं. (पु.) -- रेशम के धागे पर बँटा हुआ सोने या चाँदी का तार, सर हेनरी कॉटन को कलाबत्तू की एक माला भेजी थी। (म. प्र. द्वि. र., खं. 5, पृ. 292)

कलिमल सं. (पु.) -- पाप, लोग भजन-कीर्तन से कलिमल धोने का प्रयास करते हैं। (काद., सित. 1981, पृ. 15)

कलीली सं. (स्त्री.) -- मदिरा बिकने का स्थान, हम तो एक मित्र के साथ कलाली तक गए थे। (दिन., 14 जून, 1970, पृ. 29)

कलेजा कँपा देना मुहा. -- दिल दहला देना, पशुबल पर विश्वास रखनेवाले कायरों का कलेजा कँपा देगी। (म. का मत : क. शि., 29 मार्च, 1924, पृ. 143)

कलेजा काँप उठना मुहा. -- दहल जाना, रूस ने ईरान में ऐसे-ऐसे ऊधम जोते कि इन्हें पढ़-सुनकर कलेजा काँप उठता है। (ग. शं. वि. र., खं. 3, पृ. 39)

कलेजा जलना मुहा. -- दुःखी होना, जलन होना, विधवा बालिकाओं की प्रकाशित संख्या को देखकर सच्चे भारतीय भाइयों का कलेजा जल रहा होगा। (मा. च. र., खं. 2, पृ. 37)

कलेजा ठंडा करना मुहा. -- शांति का अनुभव करना, हिंदुओं को लूटकर उन्होंने अपना कलेजा ठंडा कर लिया। (स. स., पृ. 233)

कलेजा पत्थर का होना मुहा. -- अत्यधिक कठोर हृदय होना, निर्दय होना किसका कलेजा पत्थर का है जिसे इस हालत पर तरस न आवे। (मा. च. र., खं. 2, पृ. 53)

कलेजा मुँह को आना मुहा. -- अत्यधिक विकल होना, राउंड टेबल कॉन्फ्रेंस शब्द से जो गूढ़ार्थ सामने आ रहा है, उसका विचार करने से कलेजा मुँह को आता है। (म. का मत : क. शि., 29 मार्च, 1924, पृ. 141)

कलेजे का जगह छोड़ना मुहा. -- अत्यधिक भयभीत हो जाना, भाव परिवर्तन होना, राष्ट्रीय झंड़े के प्रति लोगों की बढ़ती हुई भक्ति देखकर नौकरशाही और उसके पिट्ठुओं के कलेजे ने जगह छोड़ दी है। स. सा., पृ. 163)

कलेवा सं. (पु.) -- (सुबह का) नाश्ता, यह संसार ही काल का कलेवा है। (शि. पू. स. र. खं. 4, पृ. 574)

कलौंस सं. (स्त्री.) -- कालिख, कालिमा, उस के मनभावने रंग तो उड़ गए हैं , लेकिन उसकी कलौंस अभी तक नहीं गई है। (सा. हि. 12 मार्च, 1960, पृ. 4)

कल्मश सं. (पु.) -- पाप, बुराई, अपने जीवन में किसी कल्मश के भागी मत बनो। काद., जन. 1980, पृ. 9.)

कल्लाना क्रि. (अक.) -- कष्ट अनुभूत करना, तड़पना, (क) सच्ची बात ठाँस दूँगा तो कलेजे में कल्लाएगी। (रा. द. : श्रीला. शु., पृ. 88), (ख) भूख से कल्लाती अँतड़ियों का खयाल कर खुद ही खाना परोसकर खाने बैठ गया। (रवि. साप्ताहिक, 23-29 मई, 1982, पृ. 36)

कवायद सं. (स्त्री.) -- परिश्रम, आयोग जो करेगा वह फिजूल की कवायद होगी। (हिं. ध., प्र, जो., पृ. 490)

कवि-कल्पना सं. (स्त्री.) -- कोरी कल्पना, पर पीछे से उसे वह कल्पना कवि-कल्पना ही जान पड़ी। (सर., नवं. 1909, पृ. 499)

कशाघात सं. (पु.) -- कोड़े की मार, बड़े लेखकों पर कशाघात और फिर भी रचनाकर्म के प्रति उनकी अविचल निरंतरता भावी लेखकों की विरासत होती है। (स. का. वि. : डॉ. प्र. श्रो., पृ. 37)

कश्मल सं. (पु.) -- निराशा, जब नियम आया है तब कश्मल कैसा। (मधुकर, अप्रैल-अग. 1944, पृ. 67)

कषा सं. (स्त्री.) -- कसौटी, परख, वह सत्य की कषा पर खरा उतरा है। (काद., अग. 1988, पृ. 7)

कसकर क्रि. वि. -- दृढ़तापूर्वक, कसकर विचार करने पर हमारे सामने ये बातें आती हैं। (मा. च.र., खं. 9, पृ. 48)

कसके क्रि. वि. -- कसकर, जोर से, खूब जमकर, संगठन के चुनावों की तैयारी कसके चल रही है। (रवि, 4-10 दिस. 1977, पृ. 16)

कसन सं. (स्त्री.) -- कसावट, राजनै.क बंधनों की कसन सबको चुभती है। (दिन., 14 अक्तू., 66, पृ. 41)

कसबाती सं. (पु.) -- कस्बे का रहनेवाला व्यक्ति, जब तक क्या कसबाती, क्या देहाती, सभी लोग स्त्री-पुरुष युवा-वृद्ध देश की परिस्थिति से पूर्ण परिचित न होंगे, तब तक देश की राजनीति के सुधरने की संभावना नहीं है। (मा. च. रच., खं. 10, पृ. 225)

कसमसाना क्रि. (अक.) -- बेचैन होना, विकल होना, (क) बहादुरी की कहानियाँ सुनकर बूढ़ों की हड्डियाँ कसमसाने लगती थीं। (दिन., 13 जन., 67, पृ. 27) (ख) मेरा प्रेमपत्र अब रंग ला रहा है और वह कसमसा रही है। (रा. द., श्रीला. शु., पृ. 217)

कसर पड़ना मुहा. -- दरार पड़ना, फर्क पड़ना, भेद उत्पन्न होना, इस व्यवहार से उसके मन में कसर पड़ गई। (सर., मार्च 1921, पृ. 178)

कसर बाकी रहना मुहा. -- कमी रहना, नाक तो उसी दिन कट गई, जब तुमने भरी पंचायत में हम पर हाथ उठा दिया, अब कौन कसर बाकी रह गई। (रवि., 1 अग. 1982, पृ. 44)

कसर बैठना मुहा. -- हानि या क्षति होना, पंडित शिवनाथ को मुकदमे में भारी कसर बैठी। (सर., नव. 1921, पृ. 279)

कसरत सं. (स्त्री.) -- प्रयास, परिश्रम, जावा में साँप बड़ी कसरत से पाए जाते हैं। (सर., 1 अप्रैल, 1909, पृ. 145)

कसा-कड़वा वि. (विका.) -- कसैला, कठिन कसा-कड़वा समय आदमी को चालाक बना देता है। (क. ला. मिश्र : त. प. या., पृ. 151)

कसाट सं. (स्त्री.) -- दुख, वेदना, किसी की अकेली कसाट का स्वर अलग से सुना जा सकता था। (कुं. क. : रा, ना. उ., पृ. 13)

कसाला सं. (पु.) -- कष्ट, दुख, तकलीफ, हम एक मुद्दत से कसाले झेल रहे हैं। (का. कार., पृ. 20)

कसाले में कटना मुहा. -- कष्ट में बीतना, कई ऊँचे लेखकों के दिन बड़े कसाले में काटे। (शि. पू. स. र., खं. 4, पृ. 430)

कसीदा काढ़ना मुहा. -- गुणगान करना, छंद बाँधने से तो कसीदा काढ़ना कम दुष्कर मालूम होता है। (ज. क. सं. : अज्ञेय, पृ. 24)

कसौटी पर कसना मुहा. -- परखना, परीक्षण करना, इतिहास जब भूदान आंदोलने के नतीजों की पक्की कसौटी पर कसेगा तो उसमें कुछ खोट पा सकता है। (दिन., 30 जुलाई, 67, पृ. 10)

कहन सं. (स्त्री.) -- कहने की क्रिया, भाव या ढंग, कथन, (क) शब्दों की ताकत के साथ भाषा का अभ्यास करते समय कहन में रस झरने लगता है। (मा. च. र., खं. 2, पृ. 362), (ख) प्रसाद की भी वाणी की कहन और उनके कथा-सूत्रों की दूरी के मूलधन को लोग स्वीकार करने के लिए तैयार नहीं हैं। (मा. च. र., खं. 4, पृ. 194)

कहर बरपाना मुहा. -- आफत ढाहना, घोर उत्पीड़न या अत्याचार करना, एक इशारा कितना कहर बरपा सकता है ? आप शायद ही जानते हों। (काद., नव. 1980, पृ. 55)

कहा-सुना वि. (विका.) -- कहा और सुना हुआ, कई तरह की कही-सुनी बातें इधर-उधर पहुँची होंगी। (रा. मा., सं. 1, पृ. 28)

कहा-सुनी सं. (स्त्री.) -- वाद-विवाद, चर्चा, उन्होंने गरम और नरम दल के अंतर पर कुछ बातें ऐसी कहीं, जिन पर इस समय देश भर में कहा-सुनी हो रही है। (ग. शं. वि. र., खं. 3, पृ. 112)

कहावती वि. (अवि.) -- प्रतिष्ठित, प्रसिद्ध बातों की दो टूक इरादोंवाली खरी और कहावती हस्ती थी। (दिन., 14 अक्तू., 66, पृ. 41)

कहासुनी सं. (स्त्री.) -- तकरार, विवाद, कांग्रेस को इतिहास या विचारधारा ने नहीं बाँटा, बल्कि कानाफूसी और कहासुनी ने बाँट दिया। (रा. मा. संच, 1, पृ. 28)

काइयाँ वि. (अवि.) -- घाघ, धूर्त, (क) पर ब्रिटिश सरकार तो बड़ी काइयाँ है। (न. ग. र., खं. 2, पृ. 217), (ख) उपभोक्ता लाख काइयाँ हो उसे काम की चीज वाजिब दाम पर हमेशा नहीं मिलती। (दिन., 22 मार्च, 1970, पृ. 29), (ग) राजनीति में वे इंदिरा गांधी और चंद्रशेखर की तरह उस्ताद न हों लेकिन चतुर सुजान और काइयाँ तो हैं ही . (हि. ध., प्र. जो., पृ. 57)

काइयाँपन सं. (पु.) -- चतुरता, धर्तता, (क) अफगान बादशाह की आँखों में काइयाँपन था। (कच. : वृ. ला. व., पृ. 303), (ख) काइयाँपन शब्द देश के आधुनिक शासकों के लिए उपयुक्त ठहरता है। (म. का मत : क. शि., 6 मार्च, 1926, पृ. 113)

काई आ जाना मुहा. -- ऊपर परत जम जाना, आवरण पड़ जाना, इसलिए कि ब्रह्मतेज पर कोई आ गई है। (स. सा., पृ. 226)

काई का तरह जमना मुहा. -- पूरी तरह छा या फैल जाना, अंतरराष्ट्रीय महत्ता की सनक कुछ लोगों के दिमाग में काई की तरह जमी हुई है। (सा. हि., 22 जुलाई, 1962, पृ. 28)

काक-स्नान सं. (पु.) -- नाममात्र का नहाना, सर्दियों में अधिकांश लोग काक-स्नान ही करते हैं। (काद., मार्च 1977, पृ. 11)

काकभगोड़ा सं. (पु.) -- बिजूका, जगजीवन के इस्तीफे ने लोगों के सामने उजागर कर दिया कि वे महज तानाशाही के कागभगौड़े से डरकर अपने पाजामों में काँप रहे थे। (रा. मा. संच. 1, पृ. 301)

काकु सं. (पु.) -- ताना, वक्रोक्ति राजपूत की आँखें कभी उस लेख के तर्कवाद और काकु को देखकर झेंपे बिना नहीं रह सकतीं। (गु. र., खं. 1, पृ. 415)

काग खोलना मुहा. -- शीशी खोलना, बोतल खोलना, उसका काग हमने ही खोला था और... कुल मिलाकर हम खुश हैं। (रा. मा. संच. 2, पृ. 398)

कागजी घोड़े दौड़ाना मुहा. -- प्रस्ताव प्रेषित करना, केवल पत्राचार करना अथवा पत्र पर पत्र लिखते रहना, (क) हिंदुस्तानी लोग सभा में केवल विरोध प्रकट करने या कागजी घोड़े दौड़ाने तक सीमित रहे। (स. सा., पृ. 185), (ख) घर में भूँजी भाग नहीं, बाहर कागज का घोड़ा दौड़ाते लाखों का कारबार फैलाए हुए बड़े मातबर और प्रामाणिक सेठ जी... , (भ. नि., पृ. 89), (ग) अमरिका की कोई भी संस्था, जिसका कुछ मान है, यों बैठे-बिठाए केवल कागजी घोड़े दौड़ाने से डिग्री प्रदान नहीं कर देती। (सर., जुलाई 1922, पृ. 48)

काट भरना मुहा. -- किनारे काटना, आड़े-तिरछे मोड़ों पर नदी बहुत काट भरती है और अड़ार ढहाती चलती है। (दिन., 07 मई, 67, पृ. 39)

काट-कपच सं. (स्त्री.) -- काट-छाँट, लेकिन, इसमें कोई काट-कपच ही नहीं हो सकती थी। (बे. ग्रं., प्रथम खं., पृ. 32)

काट-कसर सं. (स्त्री.) -- कटौती और कमी, हमारे यहाँ के सरकारी खर्च में काट-कसर होनी चाहिए। (कर्म., 26 जन., 1952, पृ. 10)

काट सं. (स्त्री.) -- तोड़, युक्ति, चलन, (क) लेकिन चीन की इस आक्रामक प्रवृत्ति की काट के लिए हमें भी भारतीय नागरिक मात्र को राजनैतिक दृष्टि से प्रशिक्षित और राष्ट्र की सुरक्षा के प्रति सतर्क बनाना चाहिए। (दिन., 28 फर. 1965, पृ. 11), (ख) इसमें कोई संदेह नहीं कि हमारे ठेकेदारों के पास हर नियम की काट होती है। (रवि., 4 जुलाई, 1981, पृ. 21), (ग) सफेद दाढ़ी, श्वेत केशवाले सिर पर पंडिताई काट की सफेद टोपी। (म. प्र. द्वि. र., खं. 5, पृ. 322)

काँटे की तरह खटकना मुहा. -- चुभना, अत्यंत अप्रिय लगना, नागवार लगना, हम उन आँखों की चर्बी उतार सकते हैं जिनमें हम काँटे की तरह खटकते हैं। (शि. पू. स. र., खं. 3, पृ. 428)

काँटे बोना मुहा. -- रोड़े अटकाना, समस्याएँ खड़ी करना, सिक्किम का यह राजनैतिक विवाद भारत-नेपाल संबंधों में नए काँटे बो रहा है। (ज. स., 23 दिस. 1983, पृ. 4)

काँटों में घसीटना मुहा. -- परेशानी में डालना, आप क्यों मुझे काँटों में घसीटते हैं। (शत. खि., ह. कृ. प्रे., पृ. 44)

काठ का उल्लू मुहा. -- परम मूर्ख, (क) एशियावाले तो निरे काठ के उल्लू हैं। (म. प्र. द्वि. र., खं. 15, पृ. 462), (ख) योरप के अधिकांश लोग यही समझते हैं कि... आविष्कार करना केवल हमी लोग जानते हैं एशियावाले तो निरे काठ के उल्लू हैं। (सर., मार्च 1909, पृ. 97)

काठ की हाँड़ी मुहा. -- अविश्वसनीय साधन, स्वराज पार्टी ने काठ की हाँड़ी दी है तो महात्मा जी ने अपने खून के आँसुओं का जल। (म. का मत : क. शि., 29 नव. 1924, पृ. 174)

काठ मार जाना मुहा. -- अवाक् रह जाना, हतबुद्धि हो जाना, (क) इस भीषण माँग को सुनकर महाराजा को काठ मार गया। (म. का मत : क. शि., 4 फर. 1928, पृ. 252), (ख) बातचीत करने से उनके नजरिए को पता नहीं क्या काठ मार गया कि वे विभाजन की हामी भरने लगे। (दिन., 18 मार्च, 1966, पृ. 19), (ग) ऐसी कड़वी और जली-कटी बातें सुनकर उसे काठ मार गया। (काद., जुलाई 1989, पृ. 104)

काठ में पाँव देना मुहा. -- जानबूझकर विपत्ति मोल लेना, विवाह एक लाटरी है। गाय बजायकर, आँख मूँदकर काठ में पाँव दिया जाता है। (चं. श. गु. र., खं. 2, पृ. 290)

काँठा सं. (पु.) -- सीमा, हद, (क) आर्यों की पहुँच पूर्व में भागलपुर और दक्षिण में गोदावरी के काँठे तक हुई थी। (माधुरी, वर्ष-7, खं. 2 फर. से जुलाई 1929, पृ. 413), (ख) महाराष्ट्र और गोदावरी के काँठे तक को अपने अधीन कर चुके थे। (सर., भाग 28, सं 3, मार्च 1927, पृ. 292)

काठी सं. (स्त्री.) -- शरीर की बनावट, (क) बालक ने पिता से अच्छी काठी पाई थी। (निराला : डॉ. रा. वि. श., पृ. 10), (ख) ... इस नौजवान को कभी संयोग से सही दृष्टि मिल जाती, तो वह ऐसे काम कर गुजरता, जो औसत काठी और औसत दमगुर्दे के हम लोगों के लिए कल्पनातीत हैं। (रा. मा. संच. 1, पृ. 457)

काढ़ना क्रि. (स.) -- निकालना, (क) ठरें की पाँच बोतलें बीस वोट काढ़ सकती हैं। (दिन., 6 से 12 जन. 1985, पृ. 50), (ख) अँगरेजी का कोढ़ नहीं काढ़ा जाता। (कुटज : ह. प्र. द्वि., पृ. 56), (ग) उन्हें अंधकार से प्रकाश काढ़ लाने में अधिक आनंद आता था। (स्मृ. वा. : जा. व. शा., पृ. 46)

काँधे से काँधा मिलाकर क्रि. वि. (पदबंध) -- कंधे से कंधा मिलाकर, साथ मिलकर, जहाँ जीवन और साहित्य केँ से काँधा मिलार बैठने का यत्न करेंगे। (मा. च. र., खं. 2, पृ. 374)

कान अकुलाना मुहा. -- ब्याकुल होना, चिकनी-चुपड़ी बात सुनते कान अकुला गए हैं। (म. का मत : क. शि., 24 दिस. 1927, पृ. 245)

कान उमेठना / ऐंठना मुहा. -- डाँटना, लताड़ना, जब नौकरशाही के कान ऊपर से ऐंठे जाते हैं तो वे आँय-बाँय-शाँय मकानों आदि का कर-निर्धारण कर देते हैं। (दिन., 15 जुलाई, 1966, पृ. 19)

कान कतरना मुहा. -- कान काटना, पिता की कमाई पर ब्रज की रासलीला के कान कतरा करते थे। (वीणा, जन. 1934, पृ. 212)

कान काटना मुहा. -- बढ़-चढ़कर होना, मात करने में सफल होना, इस संसार में लाखों मनुष्य ऐसे हैं जो दुर्गुणों में शैतान के भी कान काटते हैं। (ग. शं. वि. र., खं. 1, पृ. 44)

कान खड़े करना मुहा. -- सतर्क करना, सावधान करना, इस घटना ने असंतुष्ट गुट के कान खड़े कर दिए हैं। (दिन., 2 सित., 66, पृ. 22)

कान खिंचवाना मुहा. -- प्रताड़ना सहना, ... जब हम जॉनसन से खुशी-खुशी (!) कान खिंचवा लेते हैं तो रूस भी अपनी अहमियत जताने के लिए गरम-नरम रुख अपनाना चाह सकता है। (दिन., 8 जुलाई, 1966, पृ. 13)

कान पकना या पक जाना मुहा. -- परेशान हो जाना, दुःखी हो जाना, क्योंकि यह सब देखते-सुनते तो हमारी आँखें पथरा हैं और कान पक गए हैं। (स. सा., पृ. 291)

कान पर जूँ न रेंगना मुहा. -- कुछ भी असर न होना, अप्रभावित रहना, (क) ब्रिटेन तथा अमेरिका के कान पर जूँ तक नहीं रेंगी। (न. ग. र., खं. 2, पृ. 261), (ख) राष्ट्र के अंदर लाखों लोग मारे जाएँ तो किसी के कान पर जूँ तक नहीं रेंगती। (रा. मा. संच. 2, पृ. 49)

कान पर जूँ रेंगना या रेंगने लगना मुहा. -- ध्यान जाना, जमनालालजी के आगमन का समाचार सुनकर पुलिस के कानों में जूँ रेंगने लगी है। (त्या. भू., 1927, पृ. 48)

कान में तेल डालकर सोना मुहा. -- ध्यान ही न देना, बिहारी लेखकों की पुस्तकों की समालोचना संपादक द्विवेदी को ही करनी पड़ी। बिहारी क्या कान में तेल डालकर सो रहे हैं। (गु. र., खं. 1, पृ. 416)

कान में तेल डाले होना मुहा. -- बेखबर होना, हिंदी बोलनेवाले कान में तेल डाले पड़े हैं। (म. प्र. द्वि. र., खं. 15, पृ. 310)

काना-खुतरा वि. (विका.) -- बदसूरत, टूटा-फूटा, क्षतिग्रस्त, सड़कें जगह-जगह कानी-खुतरी हैं। (दिन., 27 फर. 1972, पृ. 29)

कानाफूसी सं. (स्त्री.) -- दबी जबान से की जानेवाली बात, (क) व्यवस्थापिका सभा के सदस्य घबड़ाकर शिमले में कानाफूसी में लगे हुए हैं। (स. सा., पृ. 193), (ख) कांग्रेस को इतिहास ने या विचारधारा ने नहीं बाँटा, बल्कि कानाफूसी और कहासुनी ने बाँट दिया। (रा. मा. संच. 1, पृ. 28), (ग) साहित्य प्रेमी भी इसके प्रति आपस में कानाफूसी करने लगे हैं। (नि. वा. : श्रीना. च., पृ. 323)

कानी उँगली सं. (स्त्री.) -- हाथ की सबसे छोटी उँगली, छिंगली, कनिष्‍ठिका, उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री ना. द. तिवारी ने एक आमसभा में कहा कि सारा देश इंदिरा गांधी की कानी उँगली पर गोवर्धन पर्वत की तरह खड़ा हुआ है। (रा. मा. संच. 1, पृ. 291)

कानी का काजल कहा. -- दुर्बल का गुण या विशेषता, यदि भारतवासी सोना जोड़ने में दक्ष हैं तो इंग्लैंडवाले तिगुने दक्ष और अमेरिकावाले दस गुने दक्ष हैं-कानी का काजल भी खटकता है, नहीं तो जोड़ने में ये सभ्य देश भी इस गँवार किसानों की भूमि के पीछे नहीं हैं। (च. श. गु. र., खं. 2, पृ. 293)

कानी कौड़ी सं. (स्त्री.) -- अत्यल्प धन, कुछ भी मेरे सम्मान में कानी कौड़ी भी खर्च करना भयंकर अपराध होगा। (ब. दा. च. चु. प., खं. 2, सं. ना. द., पृ. 26)

कानों पर जूँ नहीं रेंगना मुहा. -- कान पर जूँ न रेंगना, कुछ भी असर न होना, (क) लेकिन विदेश मंत्रालय के कानों पर जूँ नहीं रेंगी। (दिन., 2 जून, 68, पृ. 13), (ख) शासन की तुलना उस अलसेठी व्यक्‍ति से की जा सकती है जो अपने कानों पर जूँ नहीं रेंगने देता। (सा. हि., 13 अक्‍तू. 1959, पृ. 196)

कानों में छाले पड़ना मुहा. -- कोई बात बार-बार सुनते-सुनते दुःखी हो जाना, संतप्‍त हो जाना, हिंदी में व्याकरण का अभाव है, इस प्रकार का कथन बंगाल भाइयों के मुख से सुनते-सुनते कानों में छाले पड़ गए हैं। (सर., फर. 1921, पृ. 125)

काँपा लगाना मुहा. -- फँसाने का जुगाड़ करना, जमींदारों से इस तरह की शिकायतें सुनते रहे, मगर अब तक काँपा न लगा था। (का. कार. : निराला, पृ. 91)

काँपा सं. (पु.) -- कंपा, वह लकड़ी या तीली जिस पर लासा लगा होता है, कंपा ऐसी चिड़िया कभी मेरे काँपे में नहीं आई। (भ. नि., पृ. 179)

कामदुघ वि. (अवि.) -- कामना पूरी करनेवाला, सार्थक परमा के साथ का एक घंटा बड़ा कामदुघ सिद्ध हुआ। (मधुकर, अप्रैल-अग. 1944, पृ. 66)

कायदन क्रि. वि. -- कायदे के अनुसार, नियमतः , कायदन तो उन्हें एक दिन के लिए भी सत्तारूढ़ नहीं रहना चाहिए था। (दिन., 9 अग., 1970, पृ. 25)

कायमी वि. (अवि.) -- स्थायी रूप से होनेवाला, मैं कायमी बेकार हूँ। (वाग., जा. व. शा., पृ. 64)

कायल वि. (अवि.) -- हिमायती, तत्पर, वह खुद अपनी नीति तैयार करने की कायल है। (दिन., 18 जून, 67, पृ. 11)। प्रशंसक, उनकी लगन का कायल अवश्य हूँ। (ब. दा. च. चु. प., खं. 1, सं. ना. द., पृ. 385)

कारचोबी सं. (स्त्री.) -- कसीदाकारी, कढ़ाई, कालिदास ने क्या कारचोबी की, यह दिखलाने का यत्‍न किया जाएगा। (गु. र., खं. 1, पृ. 194)

कारन से कारज कठिन कहा. -- कारण बताना उतना कठिन नहीं जितना कार्य करना, कारण से कारज कठिन के न्याय से हम कारज महायुद्ध के सामने उसके कारण को भूल से गए हैं। (न. ग. र., खं. 2, पृ. 147)

कारपरदाजी सं. (स्त्री.) -- प्रबंध, व्यवस्था, (क) कार्यकर्ताओं की कारपरदाजी में जरा भी बट्‍टा न लगे। (म. प्र. द्वि. र., खं. 2, पृ. 498), (ख) यह तो पिछले बोर्ड के अंतिम वर्ष की कारपरदाजी का हाल है। (म. प्र. द्वि. र., खं. 9, पृ. 75)

कारस्तानी सं. (स्त्री.) -- 1. करतूत, गलत काम, भंडारनायके सरकार को इतनी व्यापक कारस्तानी का सुराग नहीं लग पाया। (रा. मा. संच. 2, पृ. 43), 2. करतब, ठीक से लड़ना नहीं आता था, फिर भी बहुत सी कारस्तानियाँ दिखाईं। (काद., मई 1979, पृ. 140)

कारूँ का खजाना मुहा. -- बहुत बड़ी निधि, वहाँ के देशी और विदेशी ब्यूरोक्रेसी के आदमी कारूँ के खजाने की कुंजी हाथ लगी पाकर देश के हित की एक तो बात ही उठने नहीं देते..., (मा. च. र., खं. 9, पृ. 314)

कारे दारद सं. (पु.) -- कठिन काम, सेवा-भाव को मन में स्थान देना जरा कारे दारद की बात है। (माधुरी, 31 मार्च, 1925, सं. 3, पृ. 420)

कार्यपटु वि. (अवि.) -- कार्यकुशल, मुंशी नानक चंद सी. आई. ई. यदि धुरंधर राजनीतिज्ञ, धुरंधर राजप्रबंधकर्ता और धुरंधर कार्यपटु न होते तो शायद ही उनको महाराणा होलकर के दीवान होने का सौभाग्य प्राप्‍त होता। (म. प्र. द्वि. र., खं. 5, पृ. 145)

कालकूट सं. (पु.) -- हलाहल, घोर विष, इंदिरा गांधी हर सिख की आँखों की कालकूट बन गईं। (स. ब. दे. : रा. मा., पृ. 162)

कालक्षेप सं. (पु.) -- समय बीतना या बिताना, वक्‍त गुजरना या गुजारना, वे सुख से कालक्षेप करने लगे। (म. प्र. द्वि. र., खं 2, पृ. 29)

काला अक्षर भैंस बराबर कहा. -- ज्ञान का पूर्ण अभाव, यह प्रशंसा भी ऐसे लोग किया करते हैं, जिनको आयुर्वेद शास्‍त्र काला अक्षर भैंस बराबर ही है। (कु. ख. : दे. द. शु., पृ. 74)

काला-कलूटा वि. (विका.) -- गहरा काला, काला-कंलूटा फिर भी खूबसूरत ? (बे. ग्रं., प्रथम खं., पृ. 33

काला सं. (पु.) -- काली चमड़ीवाला व्यक्‍ति, धीरे-धीरे गडमड स्थिति पैदा होते जानकर कालों को महत्त्वपूर्ण नौकरियों से वंचित रखा है। (दिन. 14 जून, 1970, पृ. 25)

कालिख पोतना / पोत देना मुहा. -- कलंकित या कलुषित करना, बदनाम करना, (क) देश के माथे पर कालिख पोत दी है। (हि. ध., प्र. जो., पृ. 539), (ख) मांटेगु ने कंपनी की चाँदी की मूठवाला ब्रुश उठाकर ब्रिटिश न्याय पर कालिख पोत दी। (मा. च. र., खं. 9, पृ. 169), (ग) इस सम्मेलन के महत्त्व को कम आँकना दुर्भाग्य से कालिख पोतने से कम न होगा। (दिन., 30 अप्रैल, 67, पृ. 44)

काँव-काँव करना मुहा. -- शोर मचाना, जब सोलह लोग पकड़े गए तब दुनिया भर के लोग काँव-काँव करने लगे। (न. ग. र., खं. 2, पृ. 257)

काँव-काँव सं. (स्त्री.) -- शोर, विरोधी स्वर, सारे देश में आज जो काँव-काँव गूँज रही है वह गलत नहीं है। (रा. मा. संच. 1, पृ. 357)

कावा काटना मुहा. -- किनारे हो जाना, बच निकलना, (क) हजारों आदमियों को तो जेल भेज दिया, जब अपनी बारी आई तो कावा काट गए। (ग. शं. वि. र., खं. 7, पृ. 23), (ख) मैं तो कावा काटकर भाग आई, किंतु मियाँजी न भाग सके। (सर., सित. 1930, पृ. 248)

काहिली सं. (स्त्री.) -- आलस्य, कांग्रेसी नेता अपनी काहिली से जिसे प्रोत्साहन दे रहे हैं, उसने प्रदेश के जनजीवन में अपना विषैला दाँत गड़ाना चाहा है। (दिन., 2 सित., 66, पृ. 22)

किचकिच सं. (स्त्री.) -- झिकझिक, व्यर्थ का विवाद, झगड़ा, सुबह-शाम की इस किचकिच से मेरा जी ऊब गया है। (काद., फर. 1991, पृ. 103)

किचकिचाना क्रि. (अक.) -- गुस्से में आना, दाँत पीसना, पाकिस्तान इतना किचकिचा उठा हैं कि..., (दिन., 30 मई, 1971, पृ. 12)

किचमिच सं. (स्त्री.) -- कीचड़, पैरों में सील के कारण किचमिच गुदगुदी करती है। (दिन., 20 अग. 67, पृ. 27)

किटकिटाकर क्रि. वि. -- क्रोध में आकर, आज ब्रिटेन भी किटकिटाकर इजिप्ट (मिस्र) के पीछे पड़ गया है। (न. ग. र., खं. 2, पृ. 116)

किता सं. (पु.) -- अदद, संख्या उनके कई किता मकान चापड़ हो गए। (शि. पू. स. र., खं. 4, पृ. 111)

किनारा काटना मुहा. -- दूरी बनाए रखना, कन्‍नी काटना वे ही जब किनारा काटते हैं तब साधारण जनता से आशा कौन करेगा। (नि. वा. : श्रीना. च., पृ. 77)

किनारेदारी सं. (स्त्री.) -- दूरी बनाए रखने की क्रिया या भाव, किनारकशी लेकिन यह किनारेदारी एक महीने भी नहीं चली। (हि. ध., प्र. जो., पृ. 207)

किमाकर वि. (अवि.) -- विकराल, एक भयानक परिस्थिति किमाकार बनकर सामने खड़ी हो गई है। (नि. वा. : श्रीना. च., पृ. 559)

किमाच सं. (पु.) -- रेशमी वस्‍त्र, काम जो आवे कामरी, का करूँ लेकर किमाच। (स्मृ. वा. : जा. व. शा., पृ. 58)

किरकिराता वि. (विका.) -- किरकिरी करनेवाला, आनंद में विघ्‍न डालनेवाला, कष्‍टकारी, हर जगह वही किरकिराता अभाव वही छूँछी इज्‍जत, ढक-तोपकर रखनेवाली व्यग्रता भर देखी है। (साक्षा., मार्च-मई 77, मृ. पां., पृ. 27)

किरकिरी सं. (स्त्री.) -- बदनामी, (क) जीत सारी किरकिरी बन गई। (काद., मार्च 1963, पृ. 16), (ख) उस खयाल से कि शान किरकिरी न होने पावे ऊपर से बढ़-चढ़कर बातें मारी जावें। (ग. शं. वि. र., खं. 3, पृ. 35)

किराए का टट्‍टू मुहा. -- किराए या मजदूरी पर काम करनेवाला व्यक्‍ति, वे पाकिस्तान सरकार के किराए के टट्‍टू हैं। (दिन., 1 अक्‍तू. 1965, पृ. 36)

किलबिल सं. (स्त्री.) -- शोर, बच्‍चे झुनझुने लेकर गलियों में किलबिल मचाएँगे। (काद., फर. 1991, पृ. 35)

किला बाँधना मुहा. -- लंबी-चौड़ी योजना बनाना, यही तो खराबी है, तुम पहले किला बाँधते हो। (शत. खि., ह. कृ. प्रे., पृ. 9)

किलेबंदी सं. (स्त्री.) -- घेराबंदी, सोवियत संघ ने जो किलेबंदी की है, वह सचमुच जॉन फॉस्टर डलेस के संधि उन्माद को भी मात करती है। (रा. मा. संच. 1, पृ. 342)

किल्लत सं. (स्त्री.) -- कमी, अभाव, (क) छोटे किसान पानी की किल्लत भोग रहे हैं। (ज. स., 23 दिस. 1983, पृ. 4), (ख) भारत में अनाज की किल्लत शुरू से ही रही है। (दिन., 2 दिस., 66, पृ. 8)

किंवदंती सं. (स्त्री.) -- जनश्रुति, इतिहास में किंवदंतियों के लिए कोई स्थान नहीं है। (काद., जुलाई 1993, पृ. 5)

किसकिसाहट सं. (स्त्री.) -- खिसियाहट, रोष, उपदेशक का नकलीपन आ जाता है या फिर पाखंड की किसकिसाहट महसूस होने लगती है। (रा. मा. संच. 2, पृ. 163)

किसानी सं. (स्त्री.) -- खेती-बारी, कृषिकार्य, खेती-किसानी का धंधा अँगरेजी गाँवों में बढ़ाया जाएगा। (ग. शं. वि. र., खं. 2, पृ. 543)

किस्सा-कोताह सं. (पु.) -- सारांश, सार-संक्षेप, किस्सा-कोताह यह कि मदनलाल को ठोक-पीटकर सावरकर ने समझ लिया कि यह उस उपादान से बने हैं जिससे शहीद बने होते हैं। (दिन., 26 दिसंबर 76 से 1 जन. 1977, पृ. 7)

किस्सा-पट्‍टी सं. (स्त्री.) -- किंवदंतियों पर आधारित कथा, बारबरेला फिल्म कलाकार ज्याँ-क्लाद फोरे की किस्सा-पट्‍टी पर आधारित है। (दिन., 25 नव., 66, पृ. 43)

किस्सागोई सं. (स्त्री.) -- तरह-तरह की चर्चा, बहरहाल 1980 के लोकसभा चुनावों के पहले जो किस्सागोई चोटी के नेता एक-दूसरे के बारे में कर रहे हैं ... (रा. मा. संच. 1, पृ. 417)

कीच से कीच को धोना मुहा. -- गंदगी से गंदगी दूर करना, अब सीधी राह पर आइए, कीच से कीच को न धोइए। (म. का. मत : क. शि., 28 मार्च, 1925, पृ. 183)

कीचड़ उछालना मुहा. -- बदनामी करना, मतभेद प्रकट करना एक बात है, किसी साहित्यकार पर कीचड़ उछालना एक बिलकुल दूसरी बात है। (हि. पत्र. के गौरव : बां. बि. भ., सं. ब., (सा. हि.), 24 अक्‍तू. 1965, पृ. 188)

कीचड़ में लथेड़ना मुहा. -- विरूपित करना, कुस्तित बनाना न्यायपालिका की गरिमा को कीचड़ में लथेड़ा जाता। (हि. ध. : प्र. जो., पृ. 202)

कीचड़-काँदा सं. (पु.) -- कीचड़, विश्‍वविजयी गांधी अपनी लकुटिया लिए कीचड़-काँदे को गूँधता हुआ चला आ रहा है। (न. ग. र., खं. 3, पृ. 200)

कीमियागिरी सं. (स्त्री.) -- कारीगरी, विनाश को विकास में बदलने से बड़ी कीमियागिरी आज दुनिया में दूसरी नहीं। (स. का. वि. : डॉ. प्र. श्रो., पृ. 30)

कीर्ति-कौमुदी सं. (स्त्री.) -- यश का प्रकाश, अनेक ब्राह्मण तार्किकों को हराकर अपनी कीर्ति-कौमुदी से लोक समाज को आप्लावित किया। (सर., अग. 1915, पृ. 77)

कील देना मुहा. -- दबा देना, उस मेल में बाधा डालनेवालों को हृदय की सात्त्विक प्रेरणा से कुछ कील दिया। (मा. च. र., खं. 9, पृ. 144)

कीलित वि. (अवि.) -- नियंत्रित, अनुशासित, बिहार विद्यापीठ का राष्‍ट्रीय शिक्षा-क्रम इस समय शासन-तंत्र द्वारा कीलित है। (शि. पू. स. र., खं. 3, पृ. 273)

कुएँ में भाँग पड़ी होना मुहा. -- सबकी अक्ल मारी होना, स्वयं आदर्श के लेख में सुदर्शन कहता है कि कुएँ में भाँग पड़ी है। (गु. र., खं. 1, पृ. 413)

कुकरहाव सं. (पु.) -- कुत्तों की लड़ाई, कुत्तों जैसी लड़ाई, आपस में कुकरहाव करना ठीक नहीं है। (रा. द. : श्रीला. शु., पृ. 140)

कुकुर निंदिया सं. (स्त्री.) -- कच्‍ची नींद, रात भर पं. राम राखन को नींद नहीं आई, कुकुर निंदिया की तरह दो-एक झपकियाँ लीं। (का. कार., पृ. 50)

कुकुरगत सं. (स्त्री.) -- कुत्ते जैसी गति, निरादर, फजीहत, धीरे-धीरे ऐसे ही कुकुरगत होती जा रही है हम लोगों की। (स. भा. सा., मृ. पां., सित.-अक्‍तू. 98, पृ. 6)

कुकुरमुत्ता सं. (पु.) -- बड़ी मात्रा में उत्पन्‍न होनेवाला पौधा, कुकुरमुत्ते की तरह शहर खड़े होते जा रहे हैं और फफुँदियाई हुई गंदी बस्तियाँ फैलती जा रही हैं। (दिन., 22 अप्रैल, 1966, पृ. 25)

कुचला सं. (पु.) -- एक अत्यंत कड़वी जड़ी, हमारे दुर्भाग्य से हमारी नौकरशाही की नीति का कुचला डालकर इतना जहरीला बना दिया गया कि ..., (मा. च. र., खं. 9, पृ. 234)

कुचाली वि. (अवि.) -- बुरे चालचलनवाला, दुष्‍ट, पुलिस के अड्‍डों पर अब कुचाली और उपद्रवी लोगों की भीड़ नहीं होती। (सर., मई 1917, पृ. 237)

कुटमैती सं. (स्त्री.) -- समान वंशवाले के साथ होनेवाला विवाह-संबंध, अपने मूल के समानवंशवाले के साथ जो संबंध किया जाता है वह कुटमैती के नाम से प्रसिद्ध है। (सर., अक्‍तू. 1909, पृ. 436)

कुटम्मस सं. (स्त्री.) -- पिटाई, (क) आपने अपनी अम्माजी की कुटम्मस करने का काम कब से छोड़ दिया। (न. ग. र., खं. 4, पृ. 282), (ख) खूब कुट्‍टमस भई इनकी। (रवि., 31 मई, 1981, पृ. 5)

कुटाई सं. (स्त्री.) -- कुटम्मस, पिटाई ग्रहमैत्री होने पर भी गृह में दोष हो जाता है, भकूट के रहते भी कुटाई होती है। (चं. श. गु. र., खं. 2, पृ. 291)

कुटान-पिसान सं. (स्त्री.) -- कूटने-पीसने का काम, किसी का बच्‍चा खिला दिया, किसी का कुटान-पिसान कर लिया, किसी का गोबर पाथ दिया। (बे. ग्रं., प्रथम खं., पृ. 35)

कुटुर-कुटुर सं. (स्त्री.) -- कुट-कुट करने की ध्वनि, कुतरने का शब्द, घरेलू चूहे ऐसे बिन बुलाए मेहमान हैं, जो हमारी नजर बची नहीं कि खाद्यान्‍न की बोरियाँ की बोरियाँ कुटुर-कुटुर चट कर जाते हैं। (काद., नव. 1972, पृ. 69)

कुटेव सं. (स्त्री.) -- बुरी आदत, कुटेवों को ग्रहण करने का कारण खोजने के लिए परिवार में बच्‍चे की स्थिति का परीक्षण किया जाना चाहिए। (दिन., 12 जुलाई, 1970, पृ. 39)

कुठार सं. (पु.) -- कुल्हाड़ी फरसा, (क) वे अपने कलम कुठार से करोड़ों सहृदय एवं सच्‍चे विद्वान् भाइयों को दुःखी करना पाप नहीं समझते। (मा. च. र., खं. 2, पृ. 36), (ख) किंतु क्षत्रियों का कुठार अपने साहित्य पर ही चलता है। (गु. र., खं. 1, पृ. 409)

कुठाँव सं. (पु.) -- गलत जगह, आर्य समाज ने हमें कुठाँव मारा है। (गु. र., खं. 1, पृ. 103)

कुंठित कंठ होना मुहा. -- गला अवरुद्ध होना, वह मित्र वियोग से कुंठित कंठ हो रहा था। (सर., जून 1912, पृ. 318)

कुँडई सं. (स्त्री.) -- गेंडुरी, चौमड़ी, गुड़री मूँज की बनी कुँडई सिर पर रखकर पत्‍नियों ने तसला पानी अपनी ओर खींचा। (मधु., अग. 1965, पृ. 256)

कुड़कुड़ाना क्रि. (अक.) -- मुरगी की तरह कुड़-कुड़ शब्द करना, जाड़े में भीगते-कुड़कुड़ाते ये पालतू दरवान चले। (सर., अप्रैल 1943, पृ. 211)

कुड़बुड़ाना क्रि. (अक.) -- बड़बड़ करना, ऐसा न हो तो देश के गोरे पत्र इस वर्ष की कांग्रेस पर आपे से बाहर होकर चिड़िचड़ाते और कुड़बुड़ाते न दीख पड़ते। (ग. शं. वि. र., खं. 2, पृ. 347)

कुंडा हो जाना मुहा. -- भट्‍ठा बैठ जाना, गहरा आघात लगना, मार्क्सवादी कम्युनिस्ट पार्टी का कुंडा हो गया, उसे दक्षिणपंथियों को गले लगाना पड़ा। (दिन., 4 जून, 67, पृ. 22)

कुंडी सं. (स्त्री.) -- पत्थर की कटोरी, बड़ी-बड़ी चट्‍टानों को उखाड़कर पहले उन्हें गोल और बाद में उन्हें अंदर से खोदकर ऊखल और छोटी-छोटी कुंडियों का स्वरूप दे रहा था। (गँ. गाँ. या. : रा. ना. उ., पृ. 85)

कुढ़न सं. (स्त्री.) -- जलन, ईर्ष्या, डाह, स्‍त्रियों के हाथ में बड़े-बड़े बटुए देखकर उन्हें कुढ़न होती है। (दिन., 17 सित., 67, पृ. 44)

कुढ़ना क्रि. (अक.) -- मन-ही-मन दुःखी होना, खीझना, (क) सुल्तान कुढ़ा हुआ है। (फा. दि. चा. : वृ. व. ला. व. समग्र, पृ. 705), (ख) ब्रिटेन ने जो रुख रखा है, उससे फ्रांस मन-ही-मन ब्रिटेन से कुढ़ने लगा है। (स. सा., पृ. 110)

कुढ़मुढ़ाना क्रि. (अक.) -- कुढ़ना, खीझना, इसलिए कुढ़मुढ़ाते और गाली बकते हुए भी उन्होंने कानून नहीं तोड़ा। (हि. ध., प्र. जो., पृ. 588)

कुढ़ाना क्रि. (सक.) -- दुःखी करना, शायद ही किसी और तरह दुःखी हृदय इससे अधिक कुढ़ाए जा सकते। (ग. शं. वि. र., खं. 2, पृ. 33)

कुत्सा सं. (स्त्री.) -- निंदा, कुत्सा मानव के लिए एक बड़ा अभिशाप है। (काद., सित. 1979, पृ. 13)

कुदक्‍कड़ा सं. (पु.) -- कूद-फाँद, उछल-कूद, तू अपनी ददिया सास की कुठरिया की तरफ कुदक्‍कड़े मारना भूल जाएगी। (काद., दिस. 1989, पृ. 75)

कुंदी करना मुहा. -- ठोक-पीट करना, पिटाई करना, इस प्रश्‍न में यह मान्यता है कि आप अपनी माताराम की कुंदी करते रहे हैं। (न. ग. र., खं. 4, पृ. 282)

कुनकुना वि. (विका.) -- कुछ-कुछ गरम, सुखद, क्या श्रीमती गांधी ने इस देश के दरिद्रतम आदमी तक आशा की एक कुनकुनी किरण नहीं पहुँछाई ? (रा. मा. संच. 1, पृ. 487)

कुनबा सं. (पु.) -- वंश, कुटुंब ; साथ-साथ रहनेवाले लोगों का समूह, (क) क्योंकि सारी नाराजी पिता के कुनबे से है। (धर्म., 9 जुलाई, 1967,पृ. 53), (ख) समूह, लेकिन प्रतिपक्ष का कुनबा जब राजमहलों मेंजा बिराजा..., (रा. मा. संच. , पृ. 384)

कुनमुनाना क्रि. (अक.) -- मन-ही-मन कुढ़ना, भुनभुनाना, (क) भीतर-ही-भीतर वह कुनमुना उठता। (मधु, अग. 1965, पृ. 9), (ख) एक के बाद एक झोंपड़े के प्राणी कुनमुनाकर निकलते हैं। (दिन., 30 दिस., 66, पृ. 24), (ग) फ्रांस और इटली भी मन-ही-मन कुनमुना कर रह गए। (सर., जन. 1933, सं 1, पृ. 19)

कुप्पी सं. (स्त्री.) -- कुप्पी या शीशी जिसका उपयोग दीपक के रूप में हो, ढिबरी घर के एक कोने में मिट्‍टी के तेल की कुप्पी जल रही है। (सर., जून 1924, पृ. 645)

कुंभकर्णी वि. (अवि.) -- दीर्घकालिक, इतनी कुंभकर्णी छूट इतिहास ने पृथ्वी की किस सम्भ्यता को दी है। (स. ब. दे. : रा. मा., पृ. 53)

कुमक सं. (स्त्री.) -- सेना, (क) महमूद ने कुमक पहुँचाई। (प्रे. स. क., पृ. 20), (ख) इन दिनों बराबर कुमक पाते हुए हिंदुओं ने मजबूती के साथ तीन ओर से महमूद को घेर लिया। (सर., जून 1925, पृ. 617)

कुरकुर करना मुहा. -- दबी जबान से असंतोष या विरोध प्रकट करना, (क) लेखक कुरकुर करे या न करे, यदि उसने अपने बड़े मोल और बड़े महत्त्व की पुस्तक का यत्किंचित पुरस्कार ले लिया तो उसने लोगों की दृष्‍टि में अपने को और पुस्तक को गिरा अवश्य दिया। (सर., अग. 1916, पृ. 43), (ख) चिंतामणि वैद्य को सौ रुपया पुरस्कार देकर उनकी योग्यता का मूल्य उतना ही निर्धारित कर दिया। इस पर भी वैद्य महाशय ने कुरकुर न किया। (म. प्र. द्वि. र., खं. 2, पृ. 510)

कुरेद-कुरेदकर क्रि. वि. -- खोद-खोदकर, बार-बार और हठात्, यूरोपीय साझा बाजार इस ढंग से राष्‍ट्रीय सार्वभौमता को कुरेद-कुरेदकर कम कर रहा है। (रा. मा. संच. 2, पृ. 79)

कुरेदन सं. (स्त्री.) -- कुरेदा हुआ अंश, छीला हुआ अंश, छीलन, जब इन पर रंग चढ़ जाता है तो कुरेदन उतर जाती है। (मा. च. र., खं. 2, पृ. 355)

कुरेदना क्रि. (सक.) -- छीलना, हम पाते हैं कि चीन ने सारी जमी हुई पपड़ियाँ कुरेद दी हैं और घाव यथावत हरा हो गया है। (रा. मा. संच. 1, पृ. 347)

कुलक वि. (अवि.) -- समूह में होनेवाला, कांग्रेस की जड़ें कुलक जड़ें हैं। (रा. मा. संच. 1, पृ. 69)

कुलकना क्रि. (अक.) -- किलकना, प्रसन्‍न रहना, वे मानो कुलकते हुए ताना मारते हैं कि यही लोग स्वराज्य लेंगे ? (ग. शं. वि. र., खं. 2, पृ. 420)

कुलपाँसन वि. (अवि.) -- कुल का नाम डुबोनेवाला, लोगों की धारणा सी हो गई है कि जितने कवि होते हैं वे सभी चरित्रहीन होते हैं। दस-पाँच ऐसे कवि-कुलपाँसन हैं भी। (सर., मार्च 1915, पृ. 135)

कुलबुलाना क्रि. (अक.) -- कुलबुल करना, हरकत करना, रेंगना, सक्रिय रहना, (क) सत्ता हथियाने के लिए कुलबुला रही हैं। (हि. ध., प्र. जो., पृ. 368), (ख) इसके नतीजे भविष्य की अँतड़ियों में लंबे समय तक कुलबुलाते रहेंगे। (रा. मा. संच. 2, पृ. 43), (ग) जनता पार्टी ढाई साल में इसलिए नहीं टूटी कि उसके पाँचों घटक नए प्रयोगों के लिए कुलबुला रहे थे ..., (रा. मा. संच. 1, पृ. 370)

कुलभुलाना क्रि. (अक.) -- कुलबुल करना, रेंगना, चलना, हमारे मन में चिंता का कीड़ा कुलभुलाने लगा। (क. ला. मिश्र : त. प. या., पृ. 46)

कुलाँचे मारना मुहा. -- चौकड़ियाँ भरना, छलाँगें लगाना, बेशरमी से चलने ही नहीं कुलाँचें भरने लगी हैं। (हि. ध., प्र. जो., पृ. 338)

कुलाँट खाना मुहा. -- पलटी खाना, अपने विचारों की कुलाँट खाने में कदाचित वे अपना सानी नहीं रखते। (कर्म., 10 सित. 1955, पृ. 11)

कुलाँट सं. (स्त्री.) -- उलटबाजी, पलटी, (क) कला की कुलाँटें रस का स्रोत नहीं बहा सकतीं। (मा. च. र., खं. 2, पृ. 362), (ख) अब तालीम की कुलाँटें भी समाप्‍त हो गईं, क्योंकि बुनियादी तालीम आरंभ हो गई। (मा. च. र., खं. 3, पृ. 110)

कुलाबे मिलाना / भिड़ाना मुहा. -- असंभव कार्य करने का प्रयत्‍न करना, इस तरह जमीन-आसमान के कुलाबे मिलाने की कोशिश की जाती है। (नि. वा. : श्रीना. च., पृ. 455)

कुली-कबाड़ी सं. (पु.) -- महत्त्वहीन लोग, क्षुद्र लोग, (क) रहे हिंदुस्तानी, ये कुली-कबाड़ी हैं, इन्हें पूछता कौन है ? (स. सा., पृ. 129), (ख) मानो भारतवर्ष भारतवर्ष नहीं गुलामों का बाड़ा है जहाँ कुली कबाड़ी रहते हैं। (स. सा., पृ. 207)

कुशल-आसल सं. (स्त्री.) -- कुशलक्षेम, राजी-खुशी, हर रोज उनसे फोन पर बात करती हैं उनकी कुशल-आसल लेने को। (स. भा. सा., मृ. पां., सित.-अक्‍तू. 98, पृ. 10)

कुशादा वि. (अवि.) -- लंबा-चौड़ा, विशाल और विस्तृत, मद्रास के मंदिर खूब कुशादा होते हैं। (वि. भा., जन. 1928, सं. 1, पृ. 2)

कुश्तम-पछाड़ सं. (स्त्री.) -- उठापटक, प्रत्येक सहयोगी वादक का प्रदर्शन ऐसी विशेषता थी जो यदि न होती तो स्टेज पर कुश्तम-पछाड़ जैसा आभास देती। (दिन., 9 दिस., 66,. पृ. 44)

कुहेलिका सं. (स्त्री.) -- कोहरा, फूट का आरोप मिथ्या और कुहेलिका मात्र सिद्ध हो चुका है। (कुटज : ह. प्र. द्वि., पृ. 13)

कूच करना मुहा. -- प्रस्थान करना, चल देना, इस बीच स्थिति यह बन रही है कि मुकदमा चलानेवाला पक्ष ही झोली-झंडा लेकर कूच करता लग रहा है। (रा. मा. संच. 1, पृ. 334)

कूचा सं. (पु.) -- गली, शौक चर्राते ही इस कुचे में पाँव रख देने से फिसल पड़ना स्वाभाविक है। (शि. पू. स. र., खं. 4, पृ. 519)

कूजा सं. (पु.) -- पुरवा, सकोरा, कुल्हड़, पुराने अंकों से विजया साहित्य रस निचोड़कर विजयांक के कूजे में भर दिया जाए। (शि. पू. स. र., खं. 3, पृ. 474)

कूट-कूटकर भरना मुहा. -- ठसाठस भरना, शिक्षक लोग विद्यार्थियों में सांप्रदायिक कलह कूट-कूटकर भर देंगे। (ग. शं. वि. र., खं. 2, पृ. 484)

कूट-कूटकर भरा होना मुहा. -- ठसाठस भरा होना, नेताओं में देशभक्‍ति ऐसी कूट-कूटकर नहीं भरी हुई है। (हि. ध., प्र. जो., पृ. 318)

कूट-कौशल मुहा. -- कूटनीतिक दक्षता, उनकी दूरदर्शिता और कूट-कौशल का फायदा कांग्रेस ने उठाया। (दिन., 3 जून, 1966, पृ. 12)

कूड़ा-कर्कट1 वि. (अवि.) -- रद्‍दी, महत्त्वहीन, कूड़ा-कर्कट लेखों से समाचार-पत्रों का कलेवर भरा जाता है। (गु. र., खं. 1, पृ.. 347)

कूड़ा-कर्कट2 सं. (पु.) -- रद्‍दी, सार्वजनिक स्थानों पर कूड़ा-कर्कट फेंकने की उन्हें आदत पड़ गई है। (सा. हि., 19 अप्रैल, 1959, पृ. 5)

कूड़ीदूती सं. (स्त्री.) -- मूर्ख स्‍त्री, पिता इसकी नहीं उस कूड़ीदूती की बात पर भरोसा करता था। (काद., जुलाई 1989, पृ. 76)

कूढ़मगज वि. (अवि.) -- मूढ़, मूर्ख, यह हीरालाल ऐसा कूढ़मगज और गदहा निकला कि मील डुबाए दे रहा है। (स. न. रा. गो. : भ. च. व., पृ. 35)

कूतना क्रि. (सक.) -- आँकना, हिसाब लगाना, (क) अभी तक ठीक-ठीक मृत्यु संख्या नहीं कूती गई है। (न. ग. र., खं. 2, पृ. 21), (ख) किसी भी आंदोलन की चाल को दो पद्धतियों से कूता जा सकता है। (क्रा. प्रे. स्रो. : र. ला. जो., पृ. 64), (ग) किसानों को हुई हानि को ठीक-ठाक कूता करें। (त्या. भू. : संवत् 1986, (1927), पृ. 192)

कूद-फाँद मचाना मुहा. -- उछल-कूद करना, उससे पहले ही हम कूद-फाँद मचाने लग गए हैं। (त्या. भू. : संवत् 1986, (1927) पृ. 240)

कूपमंडूकता सं. (स्त्री.) -- अज्ञानता, बहुत थोड़ी जानकारी, योरप के ज्ञान-विज्ञान की शिक्षा दीजिए। ...उसी से इनकी कूपमंडूकता छूटेगी। (म. प्र. द्वि. र., खं. 15, पृ. 462)

कृतकार्य वि. (अवि.) -- सफल, सफल-मनोरथ, (क) हम नहीं कह सकते कि इसमें हम कहाँ तक कृतकार्य हुए हैं। (सर., मार्च 1908, पृ. 118), (ख) सब कवि सभी रसों के वर्णन में यथेष्‍ट कृतकार्य नहीं होते। (सर., दिस. 1912, पृ. 635)

कृतनिश्‍चय वि. (अवि.) -- संकल्पवान, मनुष्य को कृतनिश्‍चय होकर अपने ध्येय की ओर अग्रसर होना चाहिए। (काद., मार्च 1991, पृ. 4)

कृतविध वि. (अवि.) -- विद्वान्, पंडित, जानकार, परिश्रमपूर्वक अध्ययन-मनन करने से ही वह कृतविध हुआ है। (काद., जन. 1988, पृ. 8)

कृपा-कोर सं. (स्त्री.) -- कृपा का सहारा, आर्थिक दृष्‍टि से वह विश्‍व के अनेक देशों की कृपा-कोर पर आश्रित है। (सा. हि., 24, अग. 1960, पृ. 3)

कृपाभिक्षुक वि. (अवि.) -- कृपा की याचना करनेवाला, कृपाकांक्षी, नौकरशाही के कृपाभिक्षुक मॉडरेटों को न मालूम कितनी बार तिरस्कार सहना पड़ता है। (स. सा., पृ. 174)

के मारे क्रि. वि. (पदबंध) -- के कारण, की वजह से, नतीजा निकालने में दिक्‍कत कुछ इस सवाल के मारे आ रही है। (दिन., 21 अक्‍तू., 66, पृ. 18)

केंचुल छोड़ना मुहा. -- ओढ़ा हुआ आवरण त्यागना, असली रूप में आना, (क) अपनी उदार एवं निष्पक्ष राजनेता की छवि की केंचुल छोड़कर हिंदुत्ववादी पटरी पर उतर आए हैं। (हि. ध., प्र. जो., पृ. 540), (ख) ऐसा कौन हिंदी पत्र पाठक है जिसने प्रताप के जोशीले लेखों को पढ़कर कायरता की केंचुल न छोड़ दी हो। (शि. पू. स. र., खं. 4, पृ. 390)

केंचुल सं. (स्त्री.) -- केंचुली, यह भ्रम पैदा हुआ कि पुरानी, सड़ी-गली कांग्रेस को केंचुल की तरह त्याग कर अब एक नई कांग्रेस का पुनर्जन्म हुआ है। (रा. मा. संच. 1, पृ. 375)

कै वि. (अवि., बहु.) -- कितने, उनके अज्ञान की कीमत पर, ब्रिटिश शासन की गुजर कै दिन होगी। (मा. च. र., खं. 10, पृ. 309)

कैंडे का वि. (पदबंध) -- सही ढंग या प्रकार का ; (क) हसरत के कैंड़े का दूसरा वीर मिलना मुश्किल है। (न. ग. र., खं. 2, पृ. 87), (ख) अगर कुछ कैंड़े का हुआ तो दैहिक बल से जय-पराजय का निश्‍चय होता। (कुटुजः ह. प्र. द्वि., पृ. 87)

कैंड़ेदार वि. (अवि.) -- सही ढंग से काम करनेवाला, दुकानदार दुबला-पतला पर कैंड़ेदार आदमी था। (रा. द., श्रीला. शु., पृ. 283)

कोख ठंडी करना मुहा. -- आत्मसंतुष्‍ट होना, तुम्हारी जैसी कायर संतान से भारतमाता अपनी कोख न ठंडी कर सकेगी। (म. का मत : क. शि., 8 मार्च 1924, पृ. 139)

कोंचना क्रि. (सक.) -- बार-बार किसी को कोई दुखती बात कहकर सताना, (क) उसे जर्मनी से लड़ने के लिए कदापि न कोंचा जाता। (ग. शं. वि. र., खं. 1, पृ. 365), (ख) मजदूर आरती देवी को हालात मानो कोंच-कोंचकर याद दिलाते हैं, (दिन., 1 जून, 1975, पृ. 46), (ग) यह तो श्रीमती गांधी को कोंच-कोंचकर बताने की कोशिश है कि आप बहुत अकेली हो गई हैं ..., (दिन., 21 से 27 सित. 1980, पृ. 21)

कोट कंगूरे सं. (पु. बहु.) -- बड़े-बड़े किले, जिन कोट-कंगूरे बनाने में आततायियों ने प्रजा के खून और पसीने को एक कर दिया था, वे आज विध्वस्त हो चुके हैं। (ग. शं. वि. र., खं. 1, पृ. 282)

कोटर सं. (पु.) -- पेड़ के तने का खोखला भाग, मोखा, सभी का इस विशाल बरगद में एक लंबे अरसे तक अपना-अपना कोटर था। (दिन., 19 जन. 1975, पृ. 12)

कोटि सं. (स्त्री.) -- श्रेणी, वर्ग, यह स्वांतः सुखाय वाली कोटि का विशुद्ध साहित्य नहीं लिख सकता। (दिन., 25 अक्‍तू., 1970,पृ. 48)

कोठा सं. (पु.) -- कमरा, कक्ष, स्वर्ग में कोठे के कोठे पकवानों से भरे पड़े हैं। (सर., अप्रैल 1920, पृ. 204)

कोठार सं. (पु.) -- बखार, भंडार, अन्‍न रखने का कोठार घर से पृथक् होता है। (नव., जन. 1952, पृ. 37)

कोंड़ना क्रि. (सक.), सं. (पु.) -- बंद करना, समय की मुर्गियाँ कोड़ने का दड़बा-सा तो हमीं बना लिया करते हैं। (मा. च. र., खं. 2, पृ. 347)

कोड़ी सं. (स्त्री.) -- बीस का समूह, बीसी, मनु ने बी राजा के गुणकर्म के कोड़ियों श्‍लोक गढ़ डाले। (भ. नि. मा. (दूसरा भाग), सं. ध. भ. ना. प्र. सभा काशी, पृ. 09)

कोढ़ में खाज होना मुहा. -- विपत्ति पर दूसरी विपत्ति आना, (क) कोढ़ में खाज भी पैदा हो जाए यह विनोबा क्यों चाहते हैं। (रा. मा. संच. 2, पृ. 364), (ख) इसलिए नहीं है कि हमारे राजनैतिक शरीर में कोढ़ है और उस कोढ़ में खाज हो गई है। (न. ग. र., खं. 3, पृ. 73), (ग) दूसरी ओर कोढ़ में काज यह कि कोई भी राजनैतिक संस्था अपने स्वार्थ को ताक में नहीं रखना चाहती। (सुधा, फर. 1935, पृ. 141)

कोताही सं. (स्त्री.) -- भूल, गफलत, कमी, (क) किताब दीख जाने पर उसे खरीदने में कोताही न करते हों। (दिन. 2 जुलाई 1965, पृ. 46), (ख) कपड़ा-लत्ता, रुपया-पैसा में कभी कोताही नहीं की। (काद., फर. 1988, पृ. 72)

कोने में फँसाना मुहा. -- असहाय कर देना, उन्हें कोने में फँसाकर इस्तीफा दिलवाकर माने। (गु. र., खं. 1, पृ. 333)

कोपभाजन सं. (पु.) -- गुस्से का शिकार, क्रोध का पात्र, सोवियत सरकार का कोपभाजन बनना ही पड़ता है। (दिन., 4 मार्च, 1966, पृ. 35)

कोंपर सं. (स्त्री.) -- 1. छोटा अधपका आम। 2. अपरिपक्‍व व्यक्‍ति, बौना और अनुभवहीन देश के सारे लीडर घोंचू और कैसे कोंपर सिद्ध हुए हैं कि देखकर हँसी नहीं रुकती। (म. का मत : क. शि., 3 सित. 1927, पृ. 98)

कोफ्त सं. (स्त्री.) -- बेचैनी, व्यथा, उन्हें इस बात से कोफ्त हो रही है कि दक्षिण वियतनाम के जिस शासन को उन्होंने मान्यता दी है, वह लोकतंत्र के रास्ते में रोड़े अटका रहा है। (दिन., 13 जन., 67, पृ. 38)

कोरना क्रि. (सक.) -- गढ़कर रूप देना, तराशना, हिंदुस्तान में जो मूर्तियाँ या जो प्रतिमाएँ मिली हैं, वे प्रायः पत्थर पर कोरकर ही बनाई हुई मिली हैं। (चं. श. गु. र., खं. 2, पृ. 231)

कोरमकोर वि. (अवि.) -- बिलकुल कोरा, अछूता, (क) कला की परख से हम सब तरह कोरमकोर हैं। (मधुकर, अप्रैल-अग. 1944, पृ. 66), (ख) कोरमकोर जीवन महत्त्वहीन होता है। (काद., फर. 1977, पृ. 119)

कोरा रह जाना मुहा. -- अछूता या अनभिज्ञ रह जाना, अपनी मातृभाषा से बिलकुल ही कोरे रह जाते हैं, उसमें एक पत्र भी शुद्ध-शुद्ध नहीं लिख सकते। (वीणा, जन. 1934, पृ. 458)

कोरा वि. (विका.) -- 1. अनभ्यस्त, नया, अछूता, (क) लेनदारी या देनदारी के नाम पर यह कंपनी बिलकुल कोरी थी। (दिन., 23 अप्रैल , 67, पृ. 41), (ख) मैं कोरी आशा पर जीवित रहने का आदी नहीं हूँ। (दिन., 9 नव., 1969, पृ. 32), (ग) इस दिन घर-घर में मिट्‍टी के कोरे घड़े में जल भरकर पूजा की जाती है। (काद., जुलाई 1987, पृ. 44), 2. मात्र, सिर्फ हम नहीं जानते कि इस निमंत्रण पत्र के प्रकाशन की पृष्‍ठभूमि में कोरे विनोद की भावना है अथवा उसका उद्‍देश्य लेखिका बहन को अपकीर्ति का भाजन बनाना है। (सा. हि., 27 मार्च 1960, पृ. 3)

कोरी गप सं. (स्त्री., पदबंध) -- मिथ्या बात, कुलपति डिग्री दिलाने के प्रस्ताव से सहमत हो गए थे, यह कोरी गप है। (रवि., 16-22 मार्च, 1980, पृ. 4)

कोरी बातें बनाना मुहा. -- मात्र बातों तक ही सीमित रह जाना, वर्तमान में लोग कोरी बातें बनाते हैं, सच्‍ची संवेदना नहीं रखते। (माधुरी, वर्ष 7, खं. 2 फर. से जुलाई 1929, पृ. 465)

कोलाहल सं. (पु.) -- हड़कंप, शोरगुल, (क) इस कथन के परिणाम में मॉडरेट दल में खासा कोलाहल मच गया। (स. सा., पृ. 138), (ख) कोलाहल के विरुद्ध राजकीय प्रतिबंधों का होना बहुत पुरानी बात है। (वीणा, दिसंबर 1936, पृ. 139)

कोल्हू का बैल मुहा. -- दिन-रात परिश्रम करनेवाला व्यक्‍ति, जो कलाकार आकाशवाणी के मेरूदंड हैं, उनकी हालत कोल्हू के बैल जैसी है। (दिन., 14 सित., 1969, पृ. 26)

कोल्हू में पेरना या पेर डालना मुहा. -- जान निकाल लेना, निष्प्राण कर देना, इन तर्कशास्‍त्रियों का राज्य होगा तो वे और भी युक्‍तियों के कोल्हू में पेर डालेंगे। (म. का मत : क. शि., 22 सित. 1923, पृ. 121)

कोसना क्रि. (स.) -- बुरा-भला कहना, उन दिनों दोनों जातियों में बैर पैदा करनेवालों को क्या उसी तरह कोसा या रोका जाता था जिस तरह आज कोसा या रोका जाता है। (मा. च. र., खं. 10, पृ. 259)

कोहनी ठसकाना क्रि. (सक.) -- संकेत करना, साथियों ने मुझे कोहनी ठसकानी शुरू कर दी कि चुप रहो। (नव. : अग., 1958, पृ. 16)

कौआ कान ले गया कहा. -- बहरा होना, मध्य प्रदेश और बरार जैसी बुद्धिमान सरकारों का भी बिहार सरकार की देखादेखी कौआ कान ले गया था। (मा. च. र., खं. 10, पृ. 140)

कौटिल्यकर्कश वि. (अवि.) -- अत्यधिक कुटिल और कठोर, सरकारी पक्ष के कौटिल्यकर्कश गवाहों के हृदय की अंतस्तम तह से सच्‍ची बातें निकल ही पड़ीं। (सर., जन. 1920, पृ. 51)

कौड़ी काम का मुहा. -- पूर्णतः अनुपयोगी, निरर्थक, बेकार, पाश्‍चात्य विद्या तथा वाङ्‍मय के सम्मुख अन्य ग्रंथ कौड़ी काम के हैं। (सर., फर. 1917, पृ. 70)

कौड़ी मुहर का भेद मुहा. -- बहुत बड़ा अंतर, फ्रांस की चित्रकारी के सामने अँगरेजी चित्रकारी कुछ भी न थी। कौड़ी-मुहर का भेद था। (सर., मार्च 1909, पृ. 111)

कौंधना क्रि. (अक.) -- चमकना, श्री डांगे के होंठों पर हल्की मुसकान कौंध गई। (दिन., 20 अग., 67, पृ. 17)

कौल करना मुहा. -- वचन देना, वादा करना, मालिक सब ऐसे ही होते हैं, पहले कौल करते हैं फिर बदल जाते हैं। (निरु. : निराला, पृ. 54)

कौल-करार सं. (पु.) -- दो या अधिक पक्षों के बीच होनेवाला निश्‍चय, ठहराव, वचनबद्धता, (क) उनमें न तो लेन-देन विषयक कौल करार होता है और न जमानत करने कराने ही की प्रथा है। (सर., जून 1917, पृ. 303), (ख) मित्र राष्‍ट्रों ने टर्की से जो कौल-करार किए हैं वे अंतिम हैं। (मा. च. र., खं. 9, पृ. 171)

क्रंदमान वि. (अवि.) -- क्रंदन करनेवाला, हाय-तौबा करनेवाला, हम चाहते हैं कि ये सातों भाग शीघ्र छपें और एक क्रंदमान अभाव की पूर्ति करें। (गु. र., खं. 1, पृ. 395)

क्रीत वि. (अवि.) -- खरीदा हुआ, अब कोई किसी का क्रीत दास नहीं है। (काद., जन. 1986, पृ. 4)

क्रीतदास सं. (पु.) -- खरीदा हुआ सेवक, गुलाम, नैतिक दृष्‍टि से तो वह पश्‍चिम का क्रीतदास बन गया है। (सा. हि., 24 अग. 1960, पृ. 3)

क्लीव सं. (पु.) -- नपुंसक, कायर व्यक्‍ति, उस जैसा क्लीव मैंने नहीं देखा। (काद., मार्च 1977, पृ. 13)

क्लीवता सं. (स्त्री.) -- नपुंसकता, कायरता, इस हीनता और क्लीवता से भगवान् रक्षा करे। (म. का मत : क. शि., 21 जन. 1928, पृ. 249)

क्षार क्षार होना मुहा. -- नष्‍ट होना, राख होना, निराशा से वे क्षार-क्षार नहीं हुए हैं। (रा. मा. संच. 1, पृ. 49)

क्षुल्लक वि. (अवि.) -- छोटा, महत्त्वहीन, यदि आत्मा ही सब कर रहा है तो पिर मनुष्य के लिए कर्तव्य अकर्तव्य क्या रहा ? वास्तव में यह शंका क्षुल्लक है। (सर., अग. 1919, पृ. 82)

खखोलना क्रि. (सक.) -- ढूँढ़ना, खोज करना, वह अमेरिकी आदमी के भीतर छिपी विराट तत्त्व की राष्‍ट्रीय आकांक्षा के सबसे विकृत स्तरों को खखोल रहे हैं। (दिन., 29 अक्‍तू. 1972, पृ. 16)

खंग सं. (पु.) -- खड्‍ग, तलवार, इसलिए उन्होंने अँगरेजों के विपक्ष में खंग उठाया। (म. प्र. द्वि. र., खं. 5, पृ. 150)

खंगहस्त वि. (अवि.) -- खड्‍गहस्त, जो हाथ में तलवार लिए हो, क्षत्रियों की निंदा करनेवाले उपन्यासों पर भी राजपूत महासभा और कुछ पत्र खंगहस्त हैं। (गु. र., खं. 1, पृ. 409)

खँगालना क्रि. (सक.) -- धोना, साफ करना, (क) खारी हो गई मिट्‍टी को भी नहर के पानी से खँगालना पड़ा, ताकि नमक बहकर चला जाए। (रा. मा. संच. 2, पृ. 321), (ख) भारतीय प्रेस ने भी पामेला जैसी त्रासदी को अत्यंत बाजारू नजरिए से खँगाला। (लो. स., 1 अप्रैल, 1989, पृ. 10), (ग) उसने अपना खेतिहर पारिवारिक अतीत खँगाला। (साक्षा., मार्च-मई 77, मृ. पां. पृ. 32)

खचखच क्रि. वि. -- खच-खच की ध्वनि करते हुए, जल्दी-जल्दी, समाचार-पत्रों के सिर पर सदैव लटकती रहनेवाली तलवार खचखच उनकी गरदन काट रही है। (ग. शं. वि. र., खं. 2, पृ. 599)

खजमज वि. (अवि.) -- गड़बड़, नासाज, चलते-चलते हाथ जोड़ उसने कहा, मेले के दिन कुछ अधिक काम हो गया तो तबीयत कुछ खजमज हो गई है। (रवि., 18 जुलाई, 1982, पृ. 5)

खजियाना क्रि. (अक.) -- खुजली होने पर सहलाना, खुजलाना, मेरे भीतर संघर्ष की खुरखुरी अब भी खजिया रही थी। (क. ला. मिश्र : त. प. या., पृ. 52)

खज्‍ज-अखज्‍ज वि. (अवि.) -- खाद्य-अखाद्य, जैसे हो तैसे रुपया कमाना, दान-कुदान खज्‍ज-अखज्‍ज का खयाल निरा गँवारपन है। (भ. नि., पृ. 152)

खट से क्रि. वि. -- एकदम, चटपट, तेजी से, अंतरात्मा की सीपी खट से बंद हो जाती है। (ज.क.सं.: अज्ञेय, पृ. 143)

खटक सं. (स्त्री.) -- अखरनेवाली बात, किसी दिन यह खटक जाती रहेगी। (म. प्र. द्वि. र., खं. 1, पृ. 82)

खटकना क्रि. (अक.) -- 1. अनबन हो जाना, चोली-दामन के साथी फ्रांस से बिना खटके न रहेगी जिसके लिए ब्रिटेन तैयार नहीं था 2. अप्रिय लगना, अखरना, यहूदियों को यह बात हमेशा खटका करती थी कि उनका कोई घर नहीं है। (सर., फर. 1931, सं. 2, पृ. 262)

खटकरम सं. (पु.) -- बखेड़ा, झमेला, परिश्रम साध्य कार्य, लेकिन यहाँ विद्वत्ता का अर्थ मौलिकता, जिज्ञासा अथवा नया खटकरम नहीं रह गया है। (रा. मा. संच. 2, पृ. 396)

खटका सं. (पु.) -- आशंका, अंदेशा, संशय, (क) मृत्यु होने पर बाल-बच्‍चों के भूखा मरने का खटका हो। (म. प्र. द्वि. र., खं. 2, पृ. 226), (ख) उसके हृदय में खटका पैदा हो गया। (सर., जुलाई 1922, पृ. 44), (ग) एक बार ठीक से उत्तर दे देने ही से खटका मिट जाएगा। (बाल. स्मा. ग्रं. : शर्मा, चतुर्वेदी, पृ. 108)

खटना क्रि. (अक.) -- घोर परिश्रम करना, (क) दिन भर खटने से बेचारा किरानी देह के दर्द से सुस्त हो जाता है। (शि. पू. स. र. खं. 4, पृ. 364), (ख) बेचारी गरीब थी, दिन-रात खटखट कर अपनी जान दिया करती थी तो भी उसको और उसके लड़के को पेट भर खाने को नहीं जुटता था। (सर., जून 1924, पृ. 646), (ग) दो हाथ-पैर से खटनेवाले मनुष्य के प्रति उनके मन में कितनी ममता है..., (दिन., 7 जन. 1966, पृ. 33)

खटपट सं. (स्त्री.) -- विवाद, झगड़ा, (क) इस खटपट का यह नतीजा हुआ कि सूर और नियोगी महोदय के उद्योग से ग्रेट नेशनल थियेटर का जन्म हुआ। (शि.पू.स.र., खं. 3, पृ. 184), (ख) खटपट के कारणों को समझ पाने में लाचार हैं। (दिन., 6 जून, 67, पृ. 41), (ग) उनके उत्तराधिकारी के मनोनयन के सवाल पर खटपट हो गई। (रवि., 29 नव. 1981, पृ. 18)

खटर-पटर सं. (स्त्री.) -- खट-खट की ध्वनि, (क) ...जब जनता पार्टी का राज था, तब चौके में घमासान खटर-पटर हो रही थी। (रा. मा.संच. 1, पृ. 374), (ख) बरामदे में कैप्टेन दयाल कुछ खटर-पटर कर रहे थे। (ज.क.सं.: अज्ञेय, पृ. 65)

खटराग मचाना मुहा. -- बखेड़ा खड़ा करना, क्या खटराग मचाए हुए हो। (काद., फर. 1967, पृ. 6)

खटराग सं. (पु.) -- झंझट, झंझट भरा काम, बखेड़ा, हमको यह सब खटराग मालूम होता है। भट्ट निबंधावली, पृ. 68)

खटवाना क्रि. (सक.) -- परिश्रम करवाना, चक्की पिसवाना, मैं उसे बिना जेल खटवाए छोड़नेवाला नहीं हूँ। (बे.ग्रं., भाग 1, पृ. 29)

खटाई में पड़ना मुहा. -- लटक जाना, टल जाना, अवरूद्ध हो जाना, (क) हमें लगता है कि वह अपने प्रदेश के सवाल को इतनी खटाई में पड़ने से बचा लेती। (तेवर, पं. द्वा.प्र.मि., पृ. 138-39), (ख) सिचाई की पूरी योजना चार वर्णें तक खटाई में पड़ी रही। (दिन., 9 जून, 68, पृ.25), (ग) तभी अपने राम को लगा कि देश के करोड़ों नवयुवकों का पूर्ण स्वाधीनता का प्रस्ताव कुछ दिनों के लिए खटाई में पड़ गया। (मत., महा.प्र. सेठ, वर्ष 5, सं. 7, पृ. 3)

खटाक से क्रि. वि. -- खट से, तुरंत, तत्काल, वह खटाक से मेरे सिर में लगा। (श्र.सं.: मैं.श.गु., पृ. 27)

खटाखट सं. (स्त्री.) -- निरंतर होनेवाली खटखट ध्वनि, वहाँ लाठियाँ की खटाखट जारी है। यह खटाखट खेल की नहीं ह , कई सिरों से खून के फव्वारे छूट रहे हैं। (बे.ग्रं., प्रथम खं., पृ. 14)

खटाना 1 क्रि. (सक.) -- घोर परिश्रम कराना, (क) सार्वजनिक नेता जब संपादक बनते हैं, तब अधिकतर अपने रंगरूटों को खटाते हैं। (शि.पू.स.र., खं. 4, पृ. 534), (ख) जहाँ मनुष्य को दिन रात खटाया जाता है, भरपेट भोजन भी नहीं दिया जाता। (बे.ग्रं., भाग 1, पृ. 10)

खटाना 2 क्रि. (सक.) -- कमाई कराना, तब हम लोगों की दलाली कोन खटाएगा। (त्या. भू. : संवत् 1986,) (1927) पृ. 321)

खटास आना मुहा. -- भेद पड़ जाना, मनोमालिन्य होना, मौलवी के मन मे कुछ खटास आ ग ई थी। (सर., जुलाई-दिस. 1931, सं 3, पृ. 262)

खटिया खड़ी करना/ कर देना मुहा. -- लाचार या बेदम कर देना, (क) प्रशासन में व्याप्त भ्रष्टचार ने विकास योजनाओं की खटिया खड़ी कर दी है। (कर्म., 27 अप्रैल, 1957, पृ. 6), (ख) ...तो इसमें कोई संदेह प्रतीत नहीं होता कि वे प्रतिपक्ष की फिर से खटिया खड़ी कर देतीं। (रा.मा.संच. 1, पृ. 425)

खड़-खड़ वि. (अवि.) -- जर्जर, खड़खड़ काया, निर्मल नेह की झलक, (न.ग.र., खं. 3, पृ. 133)

खड़गी सं. (स्त्री.) -- नाराजगी, रोष, अप्रसन्नता, उसके बाप-दादे बादशाह की खड़गी के कारण लड़ाइयों में मारे गए थे। (सर., अग. 1917, पृ. 97)

खड़ताल वि. (अवि.) -- दुबला-पतला, इटावा जेल के श्री मुकुंदीलाल खड़ताल काया के योद्धा हैं । (मा.च.रच., खं. 4, पृ. 188)

खड़बड़ क्रि. वि. -- इधर-उधर, तितर-बितर, सभा में अतिथि की लंबी प्रतीक्षा के चलते लड़के खड़बड़ होने लगे। (काद., अग. 1980, पृ. 38)

खड़ूस वि. -- मूर्ख, निकम्मा, खड़ूस शिश्रा विभाग, जिसके नजरिए में मैकाले साहब के बादे से कोई परिवर्तन नहीं हुआ है। (रवि. 1 मऊ, 1982, पृ. 8)

खड्ड सं. (पु.) -- खाई, गहरा गड्ढा, (क) एक दरार जो धीरे-धीरे खड्ड का रूप ले रही थी। (मा. अ.: अप्रैल 1995, पृ. 97), (ख) एक है कैलाश का शिखर, दूसरा है धऱती का खड्ड। (स.से.त. : क.ला.मि., पु. 4)

खड्डूस सं. (पु.) -- उल्लू का पट्ठा, गँजहे की तरफ हिकारत के साथ कहा-खड्डूस कहीं के। (रा.द., श्रीला.शु., पृ. 213)

खतरे का खाँड़ा मुहा. -- जानलेवा वस्तु, स्थिति आदि, सरकार का लिफाफा खतरे का खाँड़ा बनकर भी आ सकता है। (क.ला.मिश्र : त.प.या., पृ. 227)

खत्ती सं. (स्त्री.) -- गड्डी, काले धन की खत्तियाँ खड़ी कर ली हैं। (स.ब.दे. : रा.मा., पृ 210)

खदकना क्रि. (अक.) -- उबलना, उछलना, बाहर बैठा साहब खुशी से खदक उठा। (हित., दिस. 1948, पृ. 38)

खदकाना क्रि. (स.) -- उबालना, पकाना, तरकारी का रसा (शोरबा) खदकाया जाता है। (दिन., 7 जिन. 1968, पृ. 42)

खदबद सं. (स्त्री.) -- जोश-खरोश, उम्मीद थी कि गैर-कांग्रेसवाद के एक लंबे युग में देश प्रवेश करेगा, जिसमें काफी राजनैतिक खदबद होगी। (रा.मा.संच. 1, पृ. 129)

खदबदाना क्रि. (सक.) -- खैलना, हताशा से लेकर आतंकवादी हो जाने तक की भावनाएँ उनमें खदबदा रही हैं। (हि.ध., प्र.जो., पृ. 73)

खदबदाहट सं. (स्त्री.) -- उबलने की अवस्था या भाव, बेचैनी, इस सारी खदबदाहट के मूल में सिर्फ एक आंतरिक असंतोष है । (रा.मा.संच. 2, पृ. 363)

खदेड़ना क्रि. (सक.) -- दूर हटाना, परे करना, भगाना, (क) वह खदेड़े गए योद्धा की तरह हेलिकॉप्टर लेकर प्रदेश को दिग्विजय करने निकल पड़े। (दिन., 19 मार्च 1972, पृ. 22), (ख) सैनिक बल पर उसे हमेशा खदेड़ा गया है। (दिन., 28 जन. 1968, पृ. 39), (ग) सबको समझ में आ जाना चाहिए कि उसे बेबात इधर-उधर नहीं खदेड़ा जा सकता। (काद. : अग.1975, पृ. 61)

खन्ना सं. (पु.) -- दो विभिन्न प्रजातियों का संकरण, हमारे देश की गाएँ दूध में अच्छी होती हैं, पर वैज्ञानिक प्रणाली न जानने से लोग उनके खन्ने नहीं कराते। (सर., सित. 1913, पृ. 526)

खपना क्रि. (अक.) -- व्यय होना, खर्च होना, जिस खजाने का धन 300 वर्ष तक इस बेदर्दी के साथ खपा और लुटा उसका कोई क्या लेखा कर सकता है। (सर., जुलाई 1912, पृ. 386)

खपाना क्रि. (सक.) -- व्यय या समाप्त कर देना, डुबो देना, विसर्जित करना, पूजा होती है फिर वे पानी में खपा दी जाती है। (हि.ध., प्र.जो., पृ. 280)। श्रम करना, अपने को खपाने से अभी हम घबराते हैं। (देश के लिए), (वि.भा., जन. 1928, सं. 1, पृ. 377)। निकालना, औन-पे बेचना, उपज को किसी भी कीमत पर खपाने को उतारू हो गए। (सर., जुलाई-दिस. 1931, भाग 32, सं 1, पृ. 26)

खफकान सं. (पु.) -- पागलपन, लोग कहेंगे इसे कुछ खफकान हो गया है या इसी उन्नीसवीं सदी के फैशन के अनुसार नास्तिक बनने का हौसला चर्राया है। (भ.नि., पृ. 17)

खबक्कड़ वि. (विका.) -- खाऊ, उसकी सुरसा मशीन तो बड़ी खबक्कड़ है, वह संपादक की कीर्ति को लील जाती है। (शि.पू.स.र., खं. 4, पृ. 466)

खबड़ी वि. (विका.) -- ऊबड़-खाबड़, छोटा सा उजड़ा गाँव, खबड़ी फुट्ठल सड़कें। (काद., अक्तू. 1981, पृ. 48)

खबर लेना मुहा. -- डाँटना-फटकारना या मारना-पीटना, प्रताड़ित करना, पिटाई करना, (क) अप्यय दीक्षित की इतनी खबर लेकर भी जगन्नाथ राय को संतोष न हुआ। (म.प्र.द्वि.र., खां. 15, पृ. 344), (ख) उसने एक डंडा उठाया और उससे चोर की बेतरह खबर ली। (सर., मार्च 1911, पृ. 144)

खबर-बफर सं. (स्त्री.) -- अफवाह, हालाँकि यह खबर-बफर उड़ाई जा रही है कि कुछ ऐसी बातें लार्ड रीडिंग साहब ने महात्मा गांधी से की हैं ..., (मा.च.र., खं. 9, पृ. 336)

खबरखोर सं. (पु.) -- खबरची, पत्रकार, (क) खबरखोर अफवाह उड़ानेवालों की बन आई है। (दिन., 27 जन., 67, पृ. 34), (ख) बंद खत का मजमूँ भाँप लेनेवाले राजधानी के जो खबरखोर गोपनीय रहस्यों को रहस्य नहीं ब ना रहने देते। (दिन., 17 जून 1966, पृ. 23)

खबरगीरी सं. (स्त्री.) -- देखभाल, यह जरूरी था कि घर की खबरगीरी के लिए कोई-न-कोई ठहरे। (नव., मई 1952, पृ. 83)

खबरदारी सं. (स्त्री.) -- ध्यान देने की क्रिया या भाव, व्यायाम का अर्थ शरीर की सब तरह की खबरदारी है। (सर, भाग 25, खं. 1, अक्तू. 1924, सं. 4, पृ. 1132)

खबीस वि. (अवि.) सं. (पु.) -- धूर्त व्यक्ति, दो-चार पुराने जमाने के खबीस इकट्ठे हो तमाखू पिच्च-पिच्च थूकते जाते हैं। (भ.नि., पृ. 22)

खब्तुलहवासी सं. (स्त्री.) -- पागलपन, बेवकूफी, अब अपनी खब्तुलहवासी का भी एक किस्सा सुना दूँ। (सा. हि., 18 अप्रैल, 1957, पृ. 9)

खब्बर वि. (अवि.) -- दोमट, रामउर्द (सोयाबीन) खरीफ की फसल है और खब्बर जमीन में हो सकता है। (मधुकर, 1 अक्तू. 1940, पृ. 25)

खम ठोंना / ठपकारना मुहा. -- मुकाबले क लिए पूरी तरह से तैयार होना, चुनौती देना, ललकारना, (क) ऐसे लोग पटा-बनेटी नहीं घुमाते, न खम ठोंकते फिरते हैं ...उके आक्रमक प्रदर्शन की कोई जरूरत नहीं। (हि. ध., प्र.जो., पृ. 198), (ख) उसने इलाहाबाद हाईकोर्ट और सुप्रीम कोर्ट के आदेशों का खम ठोंककर उल्लंघन किया । (हि.ध., प्र.जो., पृ. 203)

खमठोंकू वि. (अवि.) -- उत्तेजना फैलाने या लड़ाई भड़कानेवाला, देश में फालतू का खमठोंकू वातावरण न बनने दें तो ठीक हरेगा। (हि.ध., प्र.जो., पृ. 314)

खयाली पुलाव पकाना मुहा. -- कपोल कल्पना करना, ऊँची-ऊँची कल्पनाएं करना, (क) विज्ञ वाचक मेरी कल्पना पर बेतरह हँसेंगे तथा अनायास कह उठेंगे कि खूब खयाली पुलाव पकाया। (शि.पू.र., खं. 3, पृ. 235), (ख) बड़े-बड़े राजनीतिज्ञ न जानिए क्या-क्या तूमार बाँध खयाली पुलाव पकाया करते हैं। 9भ.नि., पृ. 75)

खयाली पुलाव सं. (पु.) -- मनगढ़ंत या बनावटी बात, कपोलकल्पना, क्योंकि जब बाबाजी मंच पर पालथी मारकर अपनी बात आरंभ करेंगे तो बहुतों को स्वतंत्रता के खयाली पुलाव का स्वाद भूल जाएगा और औपनिवेशिक स्वराज के लिए जबान से लार टपक पड़ेगी। (मत., म.प्र.से.वर्ष 5, सं. 7, पृ. 3)

खर करवाल सं. (पु.) -- तेज तलवार, हथियार हमारे देश के हाथ में आज खर करवाल नहीं है, हम आज परमुखापेक्षी सेवक हैं। (न.ग.र., खं. 2, पृ. 246)

खरका करना मुहा. -- भोजन के उपरांत तिनके से दाँत खोदना, यद्यापि दाँत इतने सघन हैं कि खरका करने की जरूरत ही नहीं। (शि. पू.स.र., खं. 4, पृ. 154)

खरखरापन सं. (पु.) -- खुरदुरापन, हम खरखरापन, मुलायमी, गरमी-सर्दी आदि त्वक के गुणों को किसी पदार्थ पर मड़ते हैं। (चं.श.गु.र., खं. 2, पृ. 278)

खरगोश के सिर पर सींग ढूँढ़ना मुहा. -- ऐसा काम करना, जिसका परिणाम कुछ न निकले, सरकारी प्रचारकों में कर्मनिष्ठा की तलाश करना तो खरगोश के सिर पर सिंग ढूँढ़ने के समान निरर्थक व्यापार है। (कर्म., 25 मई, 1957, पृ. 1)

खरगोशीकरण क रना मुहा. -- दब्बू बना देना, कमजोर कर देना, सारी दुनिया का उन्होंने खरगोशीकरण कर दिया। (रा.मा.संच. 1, पृ. 40)

खरंजा सं. (पु.) -- ईंटों की खड़ी जोड़ाई, पुष्प वृक्षों के पीछे लोहे का खरंजा है। (सर., नव. 1917, पृ. 253)

खरहा सं. (पु.) -- खरगोश, कछुवें और खरहा की कथा बड़ी प्रसिद्ध है । (सर., नव. 1925, पृ. 493)

खरही सं. (स्त्री.) -- सूखी घास की ढेरी, उन्हें भिखआरी का वेष धारण करना और कई दफे घास की खरही में छिपना पड़ा। 9सर., जून 1909, पृ. 245)

खरा खेल फर्रूखाबादी कहा. -- स्पष्ट व्यावहार, बिना दुराव-छिपाववाला व्यवहार, यहाँ तो खरा खेल फर्रूखाबादी पसंद आता है। (भ.नि., पृ. 68)

खरा-खोटा वि. (विका.) -- भला-बुरा, (क) सपनों को जमीन पर लाने के लिए कई खरे-खोटे करम करने पड़ते हैं। (रा.मा.संच. 2, पृ. 171), (ख) किसी एक कसौटी पर रखकर खरा-खोटा कह सकें। (म.सा. : ओंश., भाग 1, पृ. 176), (ग) तभी खऱे-खोटे की सही पहचान होगी। (दिन., 13 जन., 67, पृ. 9)

खरा वि. (विका.) -- शुद्ध, प्रखर, स्पष्ट और सच्चा, (क) उसका कोई खरा लक्षण दिखाई नहीं दे रहा है। (कुटज : ह.प्र.द्वि., पृ. 48), (ख) इसलिए खरी बातों को सहन करने का अभ्यास न रखनेवाले अधिकारियों की दृष्टि में खटक गए। (ग.शं.वि.र., खं. 2, पृ. 320)

खराद पर चढ़ाना मुहा. -- सुडौल बनाना, तराशना, (क) साहित्य रत्नों को खान को गर्भ से बाहर निकालकर खराद पर चढञाने की जरूरत है।(शि.पू.स.र., खं. 3, पृ. 360), (ख) पढाई हुई बातचीत को पूरी तरह खराद पर चढञा देने की कला में वे पंडित हो गईं। (क.ला.मिश्र : त.प.या., पृ. 122)

खराना क्रि. (अक.) -- प्रखर होना तेज होना, कलियुग काफी खरा हो चुका है और प्रतिदिन खराता जाता है। (नि.वा. : श्रीना.च., पृ. 272)

खरापन सं. (पु.) -- स्पष्ट कथन या व्यवहार, अमृत बाजार प्रत्रिका अपने खरेपन और स्पष्ट दृष्टि के लिए बहुत प्रसिद्ध है। (ग.शं.वि.र., खं. 1, पृ. 82)

खरामा-खरामा क्रि. वि. -- धीरे-धीरे, (क) बातचीत खरामा-खरामा आगे बढ़ती रह सकती है। (दिन., 28 अप्रैल-खरामा आगे बढ़ती रह सकत है। (दिन., 28 अप्रैल, 68, पृ. 38), (ख) उन्होंने कहा और खरामा-खरामा चल दिए। (वाग. : कम., अग 1997, पृ. 10)

खरियाना क्रि. (सक.) -- पुष्टि करना, कुछ इसी प्रकार की बात उसने कही थी . खरियाने के लिए पूछा गया। (कच. : वृ.ला.व., पृ. 53)

खरी और टंच होना. मुहा. -- पूर्णतः शुद्ध होना, अगर वह खरी और टंच है, युद्ध के बाद वह तपे हुए सोने की तरह निखरेगी . (रा.मा.संच 1, पृ. 476)

खरी बात कहना मुहा. -- यथार्थ का बोध कराना, आखिर इस देश में ऐसी कोई संस्था हो, जो सारे विश्व को उपदेश देनेवाले हम अखबारवालों को भी दो-चार खरी बातें जाँच-पड़ताल के बात कह सके। (रा.मा.संच. 2, पृ. 376)

खरी बात सं. (स्त्री.) -- असली या यथार्थ बात, साफ बात, हम उससे (चीन से) हिमालयी सीमा की खरी बात नहीं कर पाए। (रा.मा.संच. 2, पृ. 23)

खरी-खरी सुनाना मुहा. -- सच्ची किंतु चुभनेवाली बात कहना, खूब फटकारना, एक बार फिर मध्य प्रदेश सरकार के सांस्कृतिक कार्यकलापों को लेकर खरी-खरी सुनाई है। (ज.स., 1 मार्च 1984, पृ 4)

खरी-खोटी सुनना मुहा. -- भला-बुरा कहना, खरी-खोटी सुनानी पड़ती है तो इसमें अपना बिगड़ता क्या है ? (ग.शं.वि.र., खं 1, पृ. 104)

खरी-खोटी सुनना मुहा. -- भला-बुरा सुनना, अन्य अरब देशों से खरी-खोटी सुननी पड़ी। (दिन., 30 दिस., 66, पृ. 34)

खरीता सं. (पु.) -- सरकारी बड़ा लिफाफा, जिसमें आज्ञाएँ भेजी जाती हैं। (क) मि. मांटेग्यू और भारत सरकार के खरीते को कपाल में चिपकाकर निकलती। (मा.च.र., खं. 9, पृ. 169), (ख) फिर ऐसी कौन सी बात थी, जिसने मि. मांटेग्यू को उनके खरीते में औ डायर का गुणगान करने के लिए प्रेरित किया। (ग.शं.वि.र., खां. 3, पृ. 145), (ग) लंडन के सुफैद देवों को कृपा का खरीता भेजा था। (म.का मत : क.शि., 15 जन. 1927, पृ. 211)

खरौना वि. (विका.) -- खुजली पैदा करनेवाला, आज का खरौना पोखर कदाचित इसी पुष्करिणी का अवशेष है। (क टज : ह.प्र.द्वि., पृ. 72)

खर्रा सं. (पु.) -- वह लंबा कागज जिस पर लेखा या विवरण लिखा हो, उन्होंने भारत के लिए वास्तव में हितकर मानकर अपना खर्रा तैयार किया है। (नि.वा. : श्रीना.च., पृ. 525)

खर्राच वि. (अवि.) -- खुर्राट, अनुभवी, वे (ईश्वरी प्रसाद शर्मा) बड़े खर्राच और स्पष्टवादी थे। (शि.पू.स.र., खं. 4, पृ. 228)

खर्व करना मुहा. -- विकृत करना, बिगाड़ना, यह सारा परिवर्तन इसलिए किया गया है कि जर्मनी के गर्व को खर्व किया जाय। सर., जून 1940, भाग 41, सं. 6, पृ. 592)

खर्व वि. (अवि.) -- विकृत, अन्यायरत मुसलमानों की शक्ति को उसने की बात नष्ट नहीं तो खर्व जरूर कर दिया . (सर., जून 1924, पृ. 622)

खलना क्रि. (अक.) -- बुरा लगना, अखरना (क) पराधीनता में भारत का क्या छिना और उसका मोल क्या था ? पराधीनता उसे खली कब से ? (दिन., 25 फर., 68, पृ. 41), (ख) इस विशेषता का अभाव डॉक्टरों को बहुत काल से खलता चला आ रहा है। (म.प्र.द्वि.र., खं. 15, पृ. 450), (ग) उसे देखते हुए समाज कल्याण मंत्रालय का अभाव इतना खलता नहीं। (सा.हि., 5 फर. 1956, पृ. 7)

खलबलाना क्रि. (अक.) -- आवेश में आना, खलबली मचना, सारा देश खलबला उठा है। (म.का मत : क.शि., 14 जून, 1924, पृ. 86)

खलल सं. (पु.) -- बाधा, रुकावट, एक स्कूटर-सवार की हत्या कर दी, क्योंकि वह सवार उसके स्वतंत्र गमन में खलल पैदा कर रहा था। (दिन., 18 फर. 1966, पृ. 46)

खलास /खल्लास वि. (अवि.) -- जिसकी पूँजी या शक्ति समाप्त हो चुकी हो, समाप्त, यदि सचिन तेंदुलकर खल्लास हैं तो फिर भविष्य किसका है। (ज.स. : 1 जुलाई, 2007, पृ. 6)

खलिहानी सं. (स्त्री.) -- फसल को खलिहान में रखने की क्रिया या भाव, विप्र महाराज साल में दो बार खलिहानी किया करते थे। (प्रे.स.क. : सर. प्रेस, पृ. 112)

खल्वाट वि. (अवि.) -- गंजा, जिसेक सिर पर बाल न हों, (क) भरी जवानी में वह खल्वाट हो गया है। (काद., सित. 1978, पृ. 17), (ख) लोगों की धारणा है कि खल्वाट होना संपन्नता का लक्षण है। (काद., दिस. 1986, पृ. 7)

खसड़ा सं. (पु.) -- एक प्रकार की घास, घास-भूसा, जड़, हम उस निर्जीव आख्यान को कंकड़ या खसड़ा कूतें न तो क्या करें। (गु.र., खं. 1, पृ. 194)

खसंती सं. (स्त्री.) -- उतार, हम नहीं जानते कि हमारे समान आपकी अवस्था खसंती पर है। (क.ला.मिश्र : त.प.या., पृ. 22)

खसूसियत सं. (स्त्री.) -- विशेषता, उनकी खसूसियत क्या थी, यह बहुत कम लोगों को समझ में आया। (दिन., 30 अप्रैल, 67, पृ. 13)

खस्ता वि. (अवि.) -- कमजोर खराब, एयर इंडिया की हालत तो वैसे ही खस्ता है। (काद., फर. 1994, पृ. 20)

खाई पाटना मुहा. -- दूरी समाप्त करना, मतभेद दूर करना, अमेरिका और चीन के बीच की खाई पाटने की कोशिश कर रहे थे। (दि., 19 मई, 68, पृ.7)

खाई में ढकेलना मुहा. -- घोर संकट में डालना, क्या यह परमाणु बम मानव को सर्वनाश की खाई में नहीं ढकेल देगा। (न.ग.र., खं. 2, पृ. 276)

खाऊ-उड़ाऊ वि. (अवि.) -- विलासी, विलासितापूर्ण, अपनी पैतृक खेती बेचकर एक खाऊ-उड़ाऊ जीवन चुन लेता है। (दिन., 16 जुलाई, 67, पृ. 44)

खाक न समझना मुहा. -- कुछ पल्ले न पड़ना, कुछ भी समझ में न आना, कविता का अर्थ खाक न समझें, पर झूमने लगते हैं। (शि.पू.र., खं. 3, पृ. 184)

खाका खींचना मुहा. -- चित्र बनाना, (क) श्रीवास्तव जी ने लंबी डाढ़ी में एक मास्टर का खाका खींचा है। (वीणा, मार्च 1935, पृ. 362), (ख) अतिवाद को छोड़कर व्यावहारिक रीति का खाका खींचने की कोशिश करनी चाहिए। (नि.वा. : श्रीना.च., पृ.534)

खाँखरा सं. (पु.) -- गले मे बँधी घंटी, वह तब तक बैठे मजे में जुगाली करता रहेगा जब तक कि उसके गले में बँधे खाँखरे की आवाज से आकर्षित होकर आए बाघ की उसे गंध न मिले। (काद., सित. 1961, पृ. 54)

खागीर सं. (पु.) -- भूसा, मिट्टी आदि, एड़ी से चुटिया तक खाली खागीर भरा हुआ है। (म.का मत : क.शि., 14 फर. 1925, पृ. 69)

खाज मिटाना मुहा. -- सहलाना, संतुष्टि प्राप्त करना, साहित्यानुराग की खाज मिटाने चलते हैं और भाषा में खोट पैदा कर देते हैं। (शि. पू. र., खं. 4, पृ. 516)

खाँटी वि. (अवि.) -- ठेठ, विशुद्ध, (क) हालाँकि वे हमारे यहाँ के खाँटी राजनेताओं से ज्यादा पढ़े-लिखे और सुसंस्कृत हैं। (हि.ध., प्र.जो., पृ. 57), (ख) अपने खाँटी ढंग से श्री वाजपेयी ने हर एक को खुश कर दिया था। (हि.ध., प्र.जो., पृ. 518), (ग) हिंदुस्तानी के मुकाबले तुम्हे मेरी खाँटी हिंदी न भाई। (शि.से. : श्या.सुंघो., पृ. 90)

खांडा सं. (पु.) -- छोटी तलवार, उन्होंने अपने आसपास के आदमियों को खांडे की धार पर चलने को कहा …? 9 ग.शं.वि.र., खं. 3, पृ. 401)

खातमा सं. (पु.) -- समाप्ति, अंत, देश के खून का खातमा हो चुकने के पश्चात् अब किसानों के सूखे मांस पर कैसे सुख-स्वप्न देखे जा रहे हैं। जरा सुनिए। (मा.च.र., खं. 10, पृ. 158)

खाँद सं. (पु.) -- जानवर के पैरों का निशान, पदचिह्न, (क) इसने हाथी के खाँद भी बतलाए। (मधुकर, 1 अक्तू. 1940, पृ. 21), (ख) जानवरों के खांद तो मिलते हैं, पर दिखलाई उनकी पूँछ तक नहीं पड़ती। (फा.दि.चा. : वृ.ला.व. समग्र, पृ. 632)

ख़ानगी वि. (अवि.) -- निजी, पारिवारिक, तुम नहीं जानते कि यह हमारा खानगी बाग है। (सर., अप्रैल 1921 पृ. 250)

खाना और गुर्राना मुहा. -- जिसका खाना उसी को आँख दिखाना, यह खाओ और गुर्राओ की नीति मुझे बिलकुल पसंद नहीं। (स.न.रा.गो.: भ.च.व., पृ.166)

खाना खराब करना मुहा. -- जीवन चौपट करना, कहीं का न रहने देना, मेमसाहब ने मेरे मना करने पर भी लेडवीटर साहब के पास ही मेरे लड़कों को रखकर उनका खाना खराब कर दिया। (सर., जन. 1913, पृ 56)

खामखाँ क्रि. वि. -- व्यर्थ ही, बेकार में, बिना मतलब, उसने खामखाँ उसकी दुखती रगों को छेड़ दिया। (काद., फर. 1992, पृ. 143)

खामी सं. (स्त्री.) -- कमी, त्रुटि, वितरण व्यवस्था में कहीं न कहीं खामी है। (धर्म., 1 जन. 1967, पृ. 11)

खार खाना मुहा. -- ईर्ष्या करना, मन में वैर रखना, नहीं मालूम क्यों पंडितराज जगन्नाथ दीक्षितजी से खार सा खाए रहते थे। (म.प्र.द्वि., खं. 15, पृ.243)

खारा वि. (विका.) -- नमकयुक्त, नमकीन, खारी हो गई मिट्टी को भी नहर के पानी से खँगालना पड़ा, ताकि नमक बहकर चला जाए। (रा.मा.संच. 2, पृ.321)

खालिस वि. (अवि.) -- शुद्ध, जत्रा खालिस गँवई स्वरूप है। (दिन., 14 जून, 1970, पृ 44)

खाली-पीली बोम मारना मुहा. -- निरर्थक चिल्लाना, इस तरह खाली-पीली बोम मारने से काम नहीं चलनेवाला। (रवि. 16-22 मार्च 1980, पृ.42)

खाली-पीली क्रि. वि. -- व्यर्थ में, बेमतलब, मुंबईवालों को यह ठीक नहीं लगता कि खाली-पीली टाइम बरबाद हो। (हि.ध., प्र.जो., पृ. 103)

खाँव-खाँव करना मुहा. -- खाने को आतुर होना, खाने की माँग करना, (क) जब होता है तभी खाँव-खाँव किया करती हो। (काद., अप्रैल 1992, पृ. 42), (ख) यही नहीं, जब उसके पेट में भूख खाँव-खाँव कर रही थी, तब भी उसकी आँखें गुलाब पर टँगी थी, टँकी थी। (गे.गु., पृ. 2)

खासा वि. (विक.) -- पर्याप्त, बहुत ज्यादा, क) इसी गणबाँकुरे ने तमककर न सिर्फ प्रतिवाद किया प्रत्युत खासी फटकार भी बताई। (सर., भाग 28, सं. 4, मार्च 1927, पृ. 438), (ख) उनका व्यक्तित्व किसी भी राजनीतिज्ञ की सहज चाल-ढाल से खासा दूर रहा है। (काद., दिस. 1967, पृ.25)

खासुलखास वि. (अवि.) -- अतिविशिष्ट, पश्चिम में भी उन्माद अब आम जनता से उठकर खासुलखास साहित्य के दावेदारों को तंग करने लगा है। (दि., 25 जून, 67, पृ.42)

खाहमखाह क्रि. वि. -- व्यर्थ में, बिना मतलब, फिर खाहमखाह नया नाम गढ़ने की जरूरत क्या है। (शि.पू.र., खं. 4, पृ.522)

खिचड़ी पकना मुहा. -- षड्यंत्र का रचा जाना, कुचक्र रचा जाना, (क) सिंहानुक को पता था कि उनके खिलाफ कोई खिचड़ी पक रही है। (रा. मा. संच. 2, पृ.25), (ख) इजराइल में पश्चिमी साम्राज्यवाद तथा यहूदी सनातनवाद की एक अद्भुत खिचड़ी पक रही थी। (रा.मा.संच. 1, पृ. 229)

खिचड़ी पकाना मुहा. -- गुप्त मंत्रणा करना, षड्यंत्र रचना, नेताओ की खिचड़ी पक रही है।(म. का मत ;क. शि., 8 अग. 1925 पृ. 17)

खिचना क्रि. (अक.) -- खीजना, झुँझलाना, चिढ़ना, प्रतिदिन खिजता रहेगा तो तू कठोर और गर्वीला बन जाएगा। (मधुकर, अप्रैल 1945, पृ.10)

खिंचाई करना मुहा. -- डाँट-फटकार लगाना, प्रताड़ित करना, केंद्रीय ऊर्जा मंत्री बसंत साठे ने इंडियन एयरलांइस की खिंचाई करते हुए कहा कि, (लो.स., 3 अक्तू. 1989, पृ.1)

खिजलाना क्रि. (सक.) -- चिढ़ाना, आपको खिजलाया जाय तब भी गुस्से में न आवें। (ब.दा.च.चु.प., संपा. ना.द., पृ.112)

खिजलाहट सं. (स्त्री.) -- खीझ, कलकत्ता प्रस्ताव की शब्दावली ने जिस खिजलाहट को जन्म दिया था वा खो गई है। (म.का मत : क.शि., 31 दि. 1927, पृ. 246)

खिझाना क्रि. (सक.) -- परेशान करना, बुरी स्थिति का दोष है जिसने दादाभाई जैसे शांत पुरुष तक को उग्र बनने के लिए खिजा डाला। (ग.शं.वि.र., खं. 1, पृ. 402)

खित्ता सं. (पु.) -- भूभागा, प्रदेश, क्षेत्र, हिंदी भाषी पूरे खित्ते के लिए बड़े मनोयोग से एक सर्वमान्य भाषायी माध्यम निर्मित कर दिया। (दिन., 10 अक्तू. 1971, पृ. 41)

खिन्नमना क्रि. वि. -- खिन्न मन से, युद्ध सचिव के ऑफिस से खिन्नमना लौटना पड़ा। (प्रभा, बा.कृ.न., झंडा अंक, पृ.15)

खिलंडरी सं. (पु.) -- खिलाड़ी, यह खिलंडरी अपने साथी दलों को हद से आगे न बढ़ने को मजबूर करता है। (हि.ध., प्र. जो., पृ. 310)

खिलंडरीपन सं. (पु.) -- खेल-भावना, गठबंधन सरकार चलाने के लिए लचीलापन और सबको समोने की शक्ति ही नहीं, एक तरह का सर्वव्यापी खिलंडरीपन चाहिए। (हि.ध., प्र.जो., पृ.310)

खिलत सं. (स्त्री.) -- भेंट, नजराना, बादशाह को ऊपरी मन से हुसैन की प्रशंसा करनी पड़ी और उसे खिलत भी भेजनी पड़ी। (सर., 1 फर. 1908, पृ.83)

खिल्ली उड़ाना मुहा. -- परिहास करना, मजाक उड़ाना, (क) समालोचना में आपने इनकी कितनी खिल्ली उड़ाई है। (माधुरी, वर्ष-7, खं. 2 फर. से जुलाई 1929, पृ.444), (ख) अवश्य ही इन टकासेरों ने अलंकारों की खिल्ली हिंदी के बाजारों में उड़वाई है। (वीणा, जन. 1934, पृ.182), (ग) वे लोग विदेशी पर्यटकों की न तो खिल्ली ही उड़ाते हैं और न उन्हें मूर्ख समझ कर ..., (दिन., 5 मई, 1968, पृ.10)

खिवैया सं. (पु.) -- खेनेवाला, उनका खयाल है कि कांग्रेस की नैया का खिवैया उन्हें ही बनाया जाना चाहिए। (दिन., 16 अप्रैल, 67, पृ.20)

खिसकना क्रि. (अक.) -- सरकना, चल देना, आगे बढ़ना, (क) मैं डॉक्टर साहब के यहाँ से चुपके से खिसका। (माधुरी, सित. 1927, पृ.291), (ख) मनोरंजन का प्रचार बढ़ता ही गया और उसे वे धीरे-धीरे उन्नति की ओर खिसकाते ही चले गए। (म.प्र.द्वि.र., खं. 5, पृ. 437)

खिसलना क्रि. (अक.) -- फिसलना, कामवन में एक शिला है। उसका नाम है खिसलनी शिला। श्रीकृष्ण उस पर से खिसला करते थे। (सर., सित. 1918, पृ. 143)

खिसियाना क्रि. (अक.) -- नाराज होना, अप्रसन्न होना, चिढ़ना, खिसियाकर लार्ड कर्जन ने इस्तीफे की धमकी दी थी। (गु.र., खं. 1, पृ. 333)

खिसियाहट सं. (स्त्री.) -- खिसियाने की क्रिया या भाव, चिढ़, मौके-बेमौके सरदार पटेल की खिसियाहट इस बात को जाहिर भी कर देती है। (विप्लव (आजाद अंक), सं.यश., पृ.6)

खींच-खाँच सं. (स्त्री.) -- खींचतान, इस खींच-खाँच का जो बड़ा कटु फल देश को मिल रहा है, वह यह कि झूठी बातों का प्रचार हो रहा है। (न.ग.र., खं. 4, पृ.32)

खीझना क्रि. (अक.) -- झुँझलाना, इतिहास-ग्रंथों के पढ़ने का अभ्यासी विद्यार्थी खीझे बिना नहीं रह सकता। (सर., भाग 28, सं. 3, मार्च 1927, पृ. 294)

खील-खील हो जाना मुहा. -- बिखर जाना, छिन्न-भिन्न हो जाना, कितनी कमजोर थी यह खुशी कि एक छोटे से झटके से खील-खील हो गई। (क.ला.मिश्र : त.प.या., पृ. 165)

खीस या खीसें निपोरना/ काढ़ना मुहा. -- निर्लज्जतापूर्वक हँसना, दाँत निपोरना, (क) जयचंदी समुदाय अभी भी कमीशन के सामने खीसें निपोरने के लिए तैयार है। (म.का मत : क.शि., 17 दिस. 1927, पृ. 242), (ख) खीसें निपोरकर कहती है कि इसे हम लेना ही कब चाहते थे। (स.ब.दे.: रा.मा. (भाग-दो), पृ. 115), (ग) उसने खीसें निपोर दी थीं। (मधु., अग. 1965, पृ. 9)

खीस सं. (स्त्री.) -- गाय या भैंस के बच्चा देने पर नए दूध को पकाकर बननेवाला पदार्थ, मैं ने दो भैंसे भी खरीद लीं। दो-चार दिन तो खीस खाई। जिस दिन दूध फटना बंद हो गया तो बहू ने खीर पका ली। (नव., मार्च 1958, पृ.27)

खीसा फटने के दिन मुहा. -- कंगाली का समय, अब खीसा फटने के दिन गए। (चं.श.गु.र., खं.2, पृ. 387)

खीसा सं. (पु.) -- जेब, थैली, भारतीय मतदाता आज तक खीसे से निकालकर वोट बाँट रहा है। (किल., सं. श्री म.श्री., पृ. 128)

खुक्क होना या हो जाना मुहा. -- सबकुछ हाथ से निकल जाना, खर्च होना, समाप्त होना, पाटलिपुत्र में जो खुदाई हुई है, उसमें इस देश का कोई 75 हजार रुपया खुक्क हो गया। (सर., नव. 1917, पृ. 270)

खुक्ख वि. (अवि.) -- जिसके पास कुछ न बचा हो, विश्वजित यज्ञ में सर्वस्व दान करके खुक्ख हुए रघु के पास कौत्स ऋषि गुरुदक्षिणा के लिए आए। (स., जून 1917, पृ. 326)

खुचड़ निकालना मुहा. -- मीन-मेष निकालना, त्रुटि निकालना, वह मेरी हर बात में खुचड़ निकालने लगा। (रा.द., श्रीला.शु., पृ. 234)

खुचर-पुचर सं. (स्त्री.) -- हरकत चेष्टा, क्रिया मेरे भीतर खतरे का कानखजूरा खुचर-पुचर करता रहा। (क.ला. मिश्र : त.प.या., पृ. 96)

खुजली मिटाना मुहा. -- आदत से मजबूर होकर कोई काम करना, पर सत्संग के अभाव में केवल मिलनसारी की खुजली मिटाने के लिए कुसंग में फँसना अच्छा नहीं। (शि.पू.र., खं. 3, पृ. 42)

खुटक सं. (स्त्री.) -- खटका, संदेह क्या आपके मन में यह खुटक अभी बाकी है। (क.ला.मिश्र : त.प.या., पृ. 142)

खुटका सं. (पु.) -- आशंका, खटका, अभिसारिका की चाल ही क्या, जो कुछ खुटका हो जाए। (गु.र.,खं. 1)

खुटना क्रि. (अक.) -- समाप्त हो जाना,... मगर नया तो नहीं आया और पहले का भी खुट गया। (धर्म., 23 जुलाई, 1967, पृ. 15)

खुट्टी सं. (स्त्री.) -- खूँट, धान चारा बनने से पहले कट चुका है और खेतों में केवल खुट्टी भर रह गई है। (दिन., 9 दिस., 66, पृ.27)

खुत्थी सं. (स्त्री.) -- खूँट, हड़बड़ी में एक खुत्थी और चुभ गई। (रवि., 1 अग. 1982, पृ. 45)

खुंदक सं. (स्त्री.) -- वैमनस्य, (क) बिना बात खुंदक पालना ठीक नहीं है। (काद., सित. 1979, पृ. 13),(ख) ये खुंदकों, व्यक्तिगत अहं और साहित्यिक शालीनता के मिले-जुले दिन थे। (सं.मे., कम., 27 मई, 1990, पृ. 22-23)

खुदा की मार मुहा. -- ईश्वरीय प्रकोप, पानी घर-घर पहुँच गया। पर बीमारी कम न हुई। वह बढ़ती ही जा रही है। खुदा की मार इसी को कहते हैं। (सर., जुलाई 1924; पृ.739)

खुदा न ख्वास्ता क्रि. वि. -- खुदा न करे कि, खुदा न ख्वास्ता आज कोई शाहजादा या नवाबजादा अगर ऐसी बेअदबी करता तो उसे मैं जहन्नुम रसीद कर देती। (सर., जून 1909, पृ. 258)

खुदी-पसंद वि. (अवि.) -- स्वच्छंद, आज का खुदी-पसंद राजनीतिज्ञ सहृदय समचिंतक कलाकार को तिड़ी देता दिखाई देता है। (मा.ला.च., 4 सित., 1948, पृ. 3)

खुद्दक वि. (अवि.) -- बेशर्म, ऐसे खुद्दक निकायवाले व्यक्ति के अहं का एकदम कहीं कोई प्रश्न ही नहीं है। (मधुकर, अप्रैल-अग. 1944, पृ. 68)

खुन्नस सं. (स्त्री.) -- क्रोध, वैर, विरोध, पार्टियों की आपसी खुन्नस व फूट और बढ़ गई। (हि.ध., प्र.जो., पृ.363)

खुन्नसबाजी सं. (स्त्री.) -- क्रोध की अभिव्यक्ति, वे कहते हैं कि विश्वास मत के मौके पर इस सरकार को गिराएँगे लेकिन यह महज खुन्नसबाजी भी हो सकती है। (हि.ध., प्र.जो., पृ.304)

खुरखुरी सं. (स्त्री.) -- कड़ाही में जमी ही मलाई के खुरचकर निकाले हुए टुकड़े, छोटे-छोटे टुकड़े, बचा-खुचा, (क) राज्य पुनर्गठन के बाद जो इलाके भारत के बीचोबीच खुरचन की तरह बच गए, उसका और करते भी क्या? (रा.मा.संच. 2, पृ.105), (ख) तुम्हारे बाबूजी तो खुरचन फैशन में रहा करते थे। (सर., जन. 1930, पृ. 72)

खुरचनी सं. (स्त्री.) -- कड़ाही में जमी मलाई की परत, उसके बाद तलछल में खुरचनी या खंखोड़ी बच जाती है, जो सेंककर खाई जाती है, बड़ी सोंधी होती है। (दिन., 7 जन. 1968, पृ. 41)

खुरपेंच सं. (पु.) -- अड़चन, झंझट, पच्चर, कोई न कोई खुरपेंच लगा दिया जाता है। (ग.शं.वि.र., खं. 3, पृ. 433)

खुरसना क्रि. (सक.) -- खोंसना, सो बच छप्पर में खुरस दिया था। (किल., सं.म. श्री., पु. 226)

खुराफात की गठरी मुहा. -- शरारत का पुलिंदा, शरात की खान, सारी खुराफात की गठरी यह हिंदू महासभा है। (मत., वर्ष 5, सितं. 1927, मुखपृष्ठ)

खुराफात सं. (स्त्री.) -- शरारत, झगड़, बखेड़ा, रूस भी खुराफात पर उतारू था। (रा.मा.संच. 1, पृ.59)

खुर्द-बुर्द होना मुहा. -- अपव्यय होना, नष्ट होना, वह भी सारा का सारा खुर्द-बुर्द हो रहा है। (दिन., 23 मई, 1971, पृ.22)

खुर्राट1 वि. (अवि.) -- धूर्त, तेज-तर्राट, (क) व्हाइट हाउस के कई चतुर और खुर्राट अधिकारी सरकार छोड़कर इधर आ गए। (रा.मा.संच. 2, पृ. 116), (ख) तुम यहाँ से छूट पाओगी तो किसी खुर्राट के गले उसे मढ़ दोगी। (सर., फ. 1928, पृ.155), (ग) यानी दफ्तरों में एक से एक खुर्राट क्लर्क चपरासी मिला करेंगे। (दिन., 30 जुलाई, 1965, पृ. 10)। बूढ़ा, अनुभवी, मैं आधुनिकतावादियों में भी पुराना हो रहा हूँ और अब जल्दी ही खुर्राट हो जाऊँगा। (ए.सा.डा. : ग.मा.मु., पृ.34)

खुर्राट2 सं. (पु.) -- धूर्त व्यक्ति, कानून के खुर्राटों को कानून में फँसाकर गिरा देना चाहते हैं। (म.का मत : क.शि., 26 जुलाई, 1924, पृ. 1621)। निर्भीक होकर अग्रसर होना, इसमें आपकी प्रतिभा खूब खूल और खिलकर खेली है। (कर्म., 26 अप्रैल, 1947, पृ.7)। मनमानी करना, निजी उद्योगों को खुलकर खेलने का मौका दिया जा रहा है। (ज.स.: 23 फर. 1984, पृ. 4)

खुलना क्रि. (अक.) -- रहस्य प्रकट करना, मन में रखी हुई बात कहना, निक्सन शायद इसलिए नहीं खुलते कि ऐसा करने से कहीं वह गच्चा न खा जाएँ। (दिन., 26 अप्रैल, 1970, पृ.32)

खुला खेल मुहा. -- प्रकट या स्पष्ट व्यवहार, ऐसी हालत में खुला खेल फर्रुखाबादी दोनों (भाजपा एवं संघ) के बीच तनाव को बढ़ाएगा। (हि.ध., प्र.जो., पृ. 299)

खुली आँखों से देखना मुहा. -- स्पष्ट रूप से देखना, सबके सब खुली आँखों भाषा की दुर्दशा का तमाशा देख रहे हैं। (शि.पू.र., खं. 3, पृ. 338)

खुल्लमखुल्ला क्रि. वि. -- सबके सामने, डंके की चोट पर, खुलेआम, (क) पर बिलकुल खुल्लमखुल्ला यह कहना जरूरी हो गया है। कि दक्षिण अफ्रीका में भारी रंगभेद है। (मा.च.र., खं. 2, पृ. 24), (ख) यदि महाराजा होल्कर की कृपा हिंदी पर न होती तो वे महाशय हिंदी का विरोध खुल्लम-खुल्ला करते। (सर., अग. 1916, पृ.42)

खुशामदी वि. (अवि.) -- खुशामद करनेवाला, चापलूस, खुशामदी मेंबरों को भाँति सब बातों में गवर्नमेंट की हाँ में हाँ नहीं मिलाते रहे। (सर. मार्च 1921, पृ. 186)

खुशी के मारे फूट पड़ना मुहा. -- अत्यधिक प्रसन्न होना, हिंदू-मुसलमान लड़ें, न लड़ें, तुम खुशी के मारे क्यों फूट पड़ते हो। (न.ग.र., खं. 2, पृ24)

खुसपुस सं. (स्त्री.) -- कानाफूसी, खुसन-फुसर, यह सब बाहरी अनुमान भीतरी खुसपुस थी। (हि.ध., प्र.जो., पृ. 392)

खुसपुसाना क्रि. (अक.) -- खुसर-पुसर करना, अफसर खुसपुसा रहे थे कि इतने अनाज की तो जरूरत ही नहीं। (रा.मा. संच. 2, पृ. 317)

खुसुर-खुसुर सं. (स्त्री.) -- कानाफूसी, खुसुर-खुसुर को निचले दर्जे का अभियान करार देनेवाली सोनिया गांधी को इस बात से चोट पहुँची है। (हि.ध., प्र. जो., पृ. 368)

खुस्सट सं. (स्त्री.) -- नाखुशी, नाराजी, थोड़ी खुस्सट तो उसे लग ही गई। (ब.दा.च.चु.प., खं. 1, सं. ना.द., पृ. 383)

खूँट सं. (पु.) -- धोती के पल्लू के किनारे लगाई जानेवाली गाँठ, धोती का खूँट कंधे पर बाकायदा पड़ा था। (काद., अक्तू. 1981, पृ. 50)

खूँटा उखाड़ना मुहा. -- अधिकार का त्याग करना, आज ही भारत की छाती पर गड़ा हुआ उसके साम्राज्य का मजबूत खूँटा उखड़ जाए। (म.का मत : क.शि., 9 जन. 1926, पृ.202)

खूँटा ठोंकना मुहा. -- अधिकार या आधिप्तय स्थापित करना, जिस समय जर्मन ने खूँटा ठोंका था उस समय इस तलवार की तेज धार कहाँ थी। (म. का मत: क.शि., 18 जुलाई, 1925, पृ. 188)

खूँटा पकड़कर बैठना मुहा. -- निष्क्रिय होकर एक स्थान पर बैठे रहना, सब मीटिंग में बैठकर राँड़ों की तरह फाँय-फाँय करते हैं, काम-धाम के वक्त खूँटों पकड़कर बैठ जाते हैं। (रा.द., श्रीला.शु., पृ.87)

खूँटा-तोड़ कोशिश करना मुहा. -- घोर प्रयत्न करना, प्रत्येक आलोचक को बेईमान साबित करने की खूँटा-तोड़ कोशिश की गई। (रवि., 27 नव. से 31 दिस., 1977, पृ. 14)

खूँटी सं. (स्त्री.) -- केंद्रबिंदु, दिल्ली चक्रवाती खूँटी है जिस पर हम टँगना चाहते हैं। (रा.मा.संच. 2, पृ. 52)

खूँटे के बल बछड़ा नाचना कहा. -- किसी शक्तिशाली के बल पर उछल-कूद करना, मसल है कि खूँटे के बल बछड़ा नाचे। (चं.श.गु.र., खं. 2, पृ.372)

खून का घूँट पीकर रहना / रह जाना मुहा. -- क्रोध का पूरी तरह से दबा लेना, (क) चीन इन राष्ट्रों की लिप्सा पर क्रोध प्रगट न कर खून का घूँट पीकर रह गया। (न.ग.र., खं. 2, पृ. 221), (ख) छन्नूलाल खून का घूँट पीकर रह जाते हैं। (काद., मार्च 1994, पृ. 102)

खून खौलना मुहा. -- आग बबूला होना, शांतिप्रिय और सहनशील मि. वाटसन का खून खौल पड़ा। (मा.च.र., खं. 9, पृ.185)

खून लगाकर शहीद बनना मुहा. -- तिकड़म से यश प्राप्त करना, छल-कपट से यश प्राप्त करना, विरोधियों से इतनी सहायता मिलने पर भी बाबू साहब खून लगाकर शहीद बनने को तैयार थे। (गु.र. खं. 1, पृ 241)

खून से हाथ रँगना मुहा. -- हत्या करना, मारकाट करना अपनी बात बढ़ाए रखने के लिए खून में हाथ रँगने से उसे तनिक भी दरेग नहीं। (ग.शं.वि.र., खं. 3, पृ. 100)

खून-खच्चर सं. (पु.) -- रक्तपात, खून-खराबा, मारकाट, (क) विवाद हिंदुओं के संप्रदायों के बीच भी हैं, जिनमें कोर्ट-कचहरी के अलावा खून-खच्चर भी होता है। (हि.ध., प्र.जो., पृ. 541), (ख) अत्याचारियों के विनाश, न्याय की विजय और दबे हुए के उद्धार के लिए तो इतना खून-खच्चर हुआ था। (ग.शं.वि.र., खं. 3, पृ. 122)(ग) आज खून - खच्चर और चित्कार के उपरांत सारी की सारी मनुष्यता प्यासी उन्मादिनी की भांति इधर- उधर दौड़ रही है।(न. ग. र.खं 3 पृ. 167)

खून-पसीना एक करना / कर देना मुहा. -- घोर परिश्रम करना या करवाना, कोट-कंगूरे बनाने में आततायियों ने प्रजा के खून और पसीने को एक कर दिया था। (ग.शं.वि.र., खं. 1, पृ. 282)

खूब छनना मुहा. -- दोस्ती निभना, गाढ़ी दोस्ती होना, भगवत दयाल शर्मा और जाट नेता देवीलाल में आजकल खूब छन रही है। (दिन., 07 अप्रैल, 68, पृ.22)

खूसट वि. (अवि.) -- रूखा, शुष्क-हृदय, मूर्ख या मूर्खतापूर्ण, (क) हिंदी पत्रों के पुराने खूसट संपादक तो ग्रेजुएटों की इसलिए उपेक्षा करते हैं कि इन्हें हिंदी लिखना नहीं आती। (गु.र., खं. 1, पृ. 434), (ख) कितने खूसट हैं आप कहूँगा मैं। (लाल-तारा, पृ. 40), (ग) अपनी खूसट विशेषज्ञता से मैं मटमैला क्यों करूँ। (स.ब.दे.: रा. मा., पृ. 155)

खेंच-खाँचकर क्रि. वि. -- खींचतान कर, जबरदस्ती, जबरन, कहाँ दूसरों की कल्पना खेंच-खाँचकर खड़े शब्दों की जोड़-तोड़? (गु.र., खं. 1, पृ.241)

खेंचाखेंच सं. (स्त्री.) -- खींचतान, आप लोग इसी बात का प्रयत्न करें कि परस्पर की खेंचाखेंच से वह समय कभी न आवे जब आपके साथ कहलाना प्रतिष्ठा न मानी जाए। चं.श.गु.र., खं. 2, पृ. 367)

खेत रहना मुहा. -- युद्ध में मारे जाना, तिरसठ जर्मन या तो खेत रहे या कराह रहे थे। (सर., जून 1915, पृ. 346-47)

खेती-पट्टी सं. (स्त्री.) -- खेती-बाड़ी, नगा इलाके में खेती-पट्टी ऐसी नहीं होती। (ज.क.सं. : अज्ञेय, पृ.112)

खेना क्रि. (सक.) -- नाव चलाना, जहाज में आग सुलगाई जाती औऱ खे दिया जाता। (गु.र., खं. 1, पृ. 189)

खेप सं. (स्त्री.) -- उतनी वस्तु, जितनी एक बार में ढोकर ले जाई जाए, पारी, पानी की खेप पर खेप डालकर भूमि की तपन बुझाती है। (काद., जुलाई 1987, पृ.44)

खेंपना क्रि. (सक.) -- खपाना, व्यतीत करना, बिताना, अब ब्रह्म दादा हाथ पर हाथ धरे मौज से बुढ़ापा खेपें। (शि.पू.र., खं. 3, पृ.510)

खेमा गाड़ना मुहा. -- धड़ा बनाना, गुटबंदी करना, पटनायक और उनके अनुयायी अपने खेमे गाड़ने में व्यस्त थे। (दिन., 2 दिस.66, पृ. 11)

खेमा डालना सं. (पु.) -- तंबू लगाना, डेरा, नदी किनारे जहाँ अच्छी जमीन पाई वहीं खेमे डाल दिए। (सर., अक्तू. 1919, पृ. 172)

खेल खेलना मुहा. -- प्रवृत्त होना, भविष्य में युद्ध का खेल खेलन की प्रेरणा उठे ही न। (न.ग.र., खं. 2, पृ. 284)

खेली सं. (स्त्री.) -- छोटा जलकुंड, पशुओं के पानी पीने की खेलियाँ भी सूखी पड़ी हैं। (त्या. भू. : संवत् 1983 (2 दिस.), पृ. 7)

खेवा सं. (पु.) -- नाव की खेप, उतराई, छोटी कोसी नदी में डेढ़ रुपए खेवा देकर इक्का साहित पार हुए। (शि.पू.र., खं. 4, पृ. 108)

खैंचातानी सं. (स्त्री.) -- खींचतान, लगा-डाँट, हिंदू-मुसलमान आपस में खैंचातानी करते हैं, उससे बड़ी हानि हो रही है। (मं.प्र.द्वि.र., खं. 9, पृ. 122)

खैर सं. (स्त्री.) -- कुशल, कुशलता, खैर हुई,जो आप की राय से और कोई सभ्य सहमत न हुआ। (सर., नव. 1915, पृ.317)

खैरअंदाज सं. (पु.) -- कुशल-भाव, बहुत आराम से और खैरअंदाज से प्रश्नकर्ता को यूँ जवाब दे रहा था मानो किसी उपन्यास के पात्रों का विश्लेषण कर रहा हो। (दिन., 2 अग., 1970, पृ. 10)

खैरबाद सं. (पु.) -- अलविदा, विदा, दोनों कांग्रेस में साथ-साथ रहे और साथ ही कांग्रेस को खैरबाद भी कहा। (दिन., 4 जून, 67, पृ.23)

खैरात बाँटना मुहा. -- भिक्षा देना, मुफ्त में देना, वे समझते हैं कि आचार्य द्विवेदी प्रशंसापत्रों की खैरात बाँट रहे हैं। (शि.पू.र., खं. 3, पृ. 502)

खैरात में क्रि. वि. -- दान में, मुफ्त में, क्या राजनीति से भारतीय नेताओं का मन खींचने के लिए मिस मेयो की मदर इंडिया आदि पुस्तकें विश्व के (की) राजनीतिज्ञों में खैरात में बाँटी गई थीं? (मा.च.र., खं. 10, पृ. 307)

खैराती वि. (अवि.) -- निःशुल्क, खैराती संस्थाएँ गरीबों के लिए हैं। (त्या.भू., सं.1986, (1927) पृ. 237

खैवा सं. (पु.) -- बहाव, प्रवाह आधुनिकता के खैवे में वैद्य लोगों ने शास्त्रज्ञान एवं गुरु-परंपरा की अपनी कसौटियों को छोड़ दिया। (दिन., 12 अक्तू. 1969, पृ 29)

खो देना मुहा. -- गँवा देना, शाम दुपहर को खो देकर रात में लीन हो जाती है। (ए.सा.डाय.: ग.मा.मु., पृ.92)

खोखल सं. (पु.) -- खोल, आवरण, घेरा, हरिराम आचार्य ने देशभक्ति के खोखल में सड़ते हुए जीवन की नपुंसकता को सामने रखा। (दिन., 26 अक्तू. 1969, पृ. 38) गड्ढा, खोह के भीतर पैर के आकार का खोखल देखा। (ज.क.सं.: अज्ञेय, पृ.31)

खोखला सं. (पु.) -- कोटर,जड़ के पास एक खोखले में किसी ने कई उपलखंड रख दिए। (सर., जुलाई 1915 .पृ. 60)

खोखा सं. (पु.) -- गुमटी, ग्राहकों की जिज्ञासा और औरत का आकर्षण उन्हें दूर-दूर से खींचकर उस खोखे पर ले जाता। (रवि., 22 नव. 1981, पृ. 41)

खोंचा लगाना मुहा. -- तोहमत लगाना, यह टेढ़ा सवाल पूछकर कांग्रेस सरकार को खोंचा लगाकर मुसकरा देनेवाले लोगों से हम कहना चाहते हैं कि..., (विल्पव (आजाद अंक), सं.यश., पृ. 4)

खोज-खाज सं. (स्त्री.) -- अनुसंधान, शोध, आजकल खोज-खाज का बाजार बहुत गर्म है। (चं.श.गु.र., खं. 2, पृ. 307)

खोट निकालना मुहा. -- दोष निकालना, कमी निकालना, एक-दूसरे की खोट निकालना ही यदि साहित्य की उन्नति का नाम है तो उसे दूर से प्रणाम। (सर., जन-जून 1931, सं. 1, पृ. 195)

खोट सं. (स्त्री.) -- बुराई, दोष, त्रुटि, खोट यही है कि वह नीति ऐसा जताती है कि जैसे वह महान जनवादी निति है। (दिन., 2 जुलाई 1972, पृ. 17)

खोटा सिक्का मुहा. -- विश्वासघात करनेवाले व्यक्ति, गलत आदमी, दुष्ट व्यक्ति, मर्यादाओं के अवमूल्यन के बाद खोटे सिक्के राजनीति में तब से चलने लगे है। (रा.मा.संच. 1, पृ.276)

खोटा-खरा वि. (विका.) -- बुरा-भला, भला-बुरा, मैं खोटा-खरा जैसा हूँ, आप का हूँ। (सर. अक्तू. 1926, पृ. 418)

खोटा वि. (अवि.) -- नकली, दोषपूर्ण, बुरा, (क) खोटा समाजवाद सच्चे समाजवाद को पछाड़ देगा या नहीं। (रा.मा.संच. 2, पृ. 17), (ख) उन्होंने मेरे चाल चलन को खोटा समझा, (सर., अक्तू. 1924, पृ. 1145), (ग)... बचपन से ही खोटे काम करने की आदत डाली गई है। (मधुकर, अक्तू. 1946, पृ. 620)

खोंडर सं. (पु.) -- कोटर, गड्ढा, उसे अपनी दाढ़ के खोंडर की आतुर भराई करानी हो तब उसे पता चले। (दि., 23 दिस., 66, पृ.10)

खोडर सं. (पु.) -- कोटर, वृक्ष के ऊपर तने में खोडर है। कहा जाता है कि देवी का असी निवास इसी खोडर में है। (सर., सित. 1937, पृ.279)

खोड़हा वि. (विका.) -- टूटे दाँतवाला, अस्सी बरस की खोंड़ही जप्पल बुढ़ियाएँ उपदेश देती हैं-बेट अब तुम सयाने भये घर-दुआर की फिकिर रखा करो। (भ.नि., पृ. 27)

खोद-निखोद सं. (स्त्री.) -- खोजबीन, हम सिर्फ उसकी कुदरत का जिक्र करते हैं जो खोद-निखोद न होने पर खामोशी और होने पर टालमटोल है। (दिन., 16 सित., 66, पृ.44)

खोदना क्रि. (सक.) -- कुरेदना, याद दिलाना, वह नोट लगभग भुला दिया गया, अतः उसे खोदना आवश्यक है। (रा. मा. संच. 2, पृ. 13)

खोनचा सं. (पु.) -- फेरीवाली का थाल, (क) मैंने मिठाई का खोनचा लगा लिया। (सर., मार्च 1925, पृ. 290) (ख) हाथ से खोनचा छूटकर गिर पड़ा और बची-बचाई कचौरियाँ और जलेबियाँ धूलि में बिखर गईं। (सर., सित. 1937, पृ. 266)

खोपड़ी खखोरन खाँ मुहा. -- दिमाग चाटनेवाला, पहले-पहल की रचना देखने से मालूम हो जाता है कि वह वस्तुतः प्रकृति कवि है या खाली खोपड़ी-खखोरन खाँ है। (शि.पू.र., खं. 3, पृ. 367)

खोभर सं. (पु.) -- सुअरों के रहने का स्थान, बाड़ा, नंग धड़ंग बहुत से बच्चे गलीज में सुखपूर्वक विश्राम करनेवाले सुअरों को खदेड़-खदेड़कर खोभर में बंद करना चाहते थे। (सर., जुलाई 1937, पृ.36)

खोल सं. (स्त्री.) -- आवरण, (क) शक्कर की खोल ओढ़े हुए चने से मैंने देहात का कोरा गुड़ पसंद किया। (मधुकर.1अक्तू.1940 पृ. 3)(ख) अब पुर्तगाल 15वी सदी की खोल से निकलकर सीधे 20विं सदी में प्रवेश कर रहा है, यह एक एतिहासिक घटना है। (रा. मा.संच.1 पृ 245)

खोंसना क्रि. (सक.) -- अटका देना, फँसा देना, लगा देना, गुब्बारों के मुँह बंद किए और सरकंडे में खोंस दिए। (काद., अक्तू. 1981, पृ. 48)

खौंखियाना क्रि. (अक.) -- चिल्लाकर बोलना, खौंखियाकर बोले तो क्या बुढ़ापे में करोगे। (काद., मार्च 1994, पृ. 103)

खौंखियाना क्रि. (अक.) -- चिल्लाकर बोलना, खौंखियाकर बोले तो क्या बुढ़ापे में करोगे।(काद. मार्च 1994, पृ. 103)

गउनहरी सं. (स्त्री.) -- लोकगीत गानेवाली स्त्री, गौनहारिन, मेरे गाँव की दुलारा फूफू अन्य गउनहरी स्त्रियों के साथ ढोल-मँजीरा पर गीत खूब हुलस-हुलसकर गाया करती थीं। (काद., अक्तू. 1993, पृ. 120)

गऊ सं. (स्त्री.) -- सीधा-सादा व्यक्ति, रूसी चाहते थे कि उनके मानसपुत्र दक्षिणपंथी कम्युनिस्ट गऊ न बन जाएँ कि..., (दिन., 8 जून 1969, पृ. 17)

गगनचुंबी वि. (अवि.) -- अत्यधिक ऊँचा, आकाश को छूनेवाला, नए गगनचुंबी भवन कला के नहीं, इंजीनियरिंग की प्रतिभा के नमूने हैं। (दिन., 10 सित. 1965, पृ. 43)

गगरीदाना सूद उताना कहा. -- तुच्छ व्यक्ति का थोड़ी सी संपत्ति पाकर अत्यधिक उछलना-कूदना, साहित्यिक विभूति के नाम से उनके पास जब चुटकी भर राख तक नहीं दिखाई देती तब उनकी ऐसी बातों पर लाचार होकर यही कहना पड़ता है कि और कुछ नहीं, वे गगरीदाना सूद उताना की ही मसल चरितार्थ कर रहे हैं। (कु. ख. : दे. द. शु., पृ. 33)

गंगा उठाना मुहा. -- गंगाजली उठाना, शपथ लेना, कसम खाना, वे नित्य अपनी भलमनसी की गंगा उठाते हैं। (मा.च.र., खं. 9, पृ. 93)

गंगा नहाना मुहा. -- मुक्ति पाना, छुटकारा पाना, यदि इनके द्वारा एक भी सप्ताह का काम मिल जाए तो हम समझ लें कि गंगा नहाए। (सर., सित. 1909, पृ. 387)

गंगा-मदार का जोड़ा कहा. -- विरोधी तत्त्वों का एक साथ होना, इनकी शैली में बहुधा गंगा-मदार का जोड़ा रहता है, जो भाषा रचना के तत्त्वों के विरुद्ध है। (सर., अक्तू. 1918, पृ. 192)

गचका खाना मुहा. -- गच्चा खाना, धोखा खाना, निक्सन शायद इसलिए नहीं खुलते कि ऐसा करने से कहीं, वह गचका न खा जाएँ। (दिन., 26 अप्रैल 1970, पृ. 32)

गज स्नान कराना मुहा. -- रद्दी की टोकरी में फेंकना, खैर, उस पत्र को भी द्विवेदीजी ने गज स्नान करा दिया है। (म. प्र. द्वि., खं 1, (बा. मु. गु.), पृ. 352)

गजनिमीलन सं. (पु.) -- एक ही ओर देखना अर्थात् एकांगी दृष्टि रखना, ... पर यदि उसे पता चल जाए और फिर भी वह गजनिमीलन करे तो समझना चाहिए कि उसने भी सदाचार की सीमा का उल्लंघन किया। (म. प्र. द्वि., खं. 15, पृ. 363)

गजब ढाना मुहा. -- घोर संकट खड़ा करना, अत्याचार करना, (क) उस अवस्था में वह परिषद् क्या गजब ढाएगी, इसकी कल्पना कर लेना ही पर्याप्त है। (न. ग. र., खं. 2, पृ. 74), (ख) लगान की वृद्धि किसानों पर गजब ढा रही है। (त्या. भू. : संवत् 1983, पृ. 357)

गजरदम क्रि. वि. -- तड़के, प्रभात वेला में, वह रोज गजरदम उठता तथा नहा-धोकर काम में जुट जाता है। (काद., जू 1977, पृ. 10)

गंजहा वि. (विका.) -- जिसके सिर पर बाल न हों, गंजा, शिवपाल गंज के सबसे प्रमुख गंजहा का नाम ठाकुर दुरबीन सिंह था। (रा. द. : श्रीला. शु., पृ. 63)

गजी-गाढ़ा सं. (पु.) -- अभाव, गरीबी, घर भर गजी-गाढ़े से रहते हैं। (निराला का. कार., पृ. 6)

गंजी सं. (स्त्री.) -- 1. ढेरी, गड्डी, कृपणता की मूर्ति हमारे सेठजी का दिल बहलाने रुपए की गंजियाँ हैं। (भ. नि., पृ. 23)

गंजी सं. (स्त्री.) -- 2. बनियान, क्या जेबवाली कोई गंजी या कुरता खरीद लूँ और उसी में इसे रख दूँ। (नव., फर. 1958, प-. 90)

गंजे को कंघी बेचना मुहा. -- असंभव काम करना, गुरुबख्श में यह क्षमता है कि (वे) एक गंजे को कंघी बेच सकते हैं। (रवि., 26 दिस. 1982, पृ. 26)

गजों फूल उठना मुहा. -- अत्यधिक प्रसन्न होना, हमें एक बात से बहुत समाधान और संतोष होता है। उसे याद कर हम गजों फूल उठती हैं। (सर., मार्च 1917, पृ. 129)

गट्टा सं. (पु.) -- कलाई, चाहे हम कितने ही क्रांतिवादी, प्रगति-उपासक तथा दून के हाँकनेवाले क्यों न हों, पर यदि हम असंगठित हैं और हमारे सामूहिक गट्टे में बल नहीं है तो हम इस आक्रमण से भारतीय क्रांति की रक्षा करने में समर्थ न हो सकेंगे। (न. ग. र., खं. 4, पृ. 63)

गट्ठर सं. (पु.) -- बड़ी गठरी, बोझ, (क) फिजूल किसी बेकसूर के माथे पर झूठे इलजामों का गट्ठर क्यों लादना चाहता है। (मत., म. प्र. से. वर्ष 5, सितं. 1927, मुखपृष्ठ), (ख) उन लोगों को पटना अधिवेशन से बेहद निराशा हुई जो आशाओं के गट्ठर लादकर ले गए थे। (दिन., 25 अक्तू., 1970, पृ. 17), (ग) जानकारी का गट्ठर संग्रह करने की पद्धति घातक है। (कुटज: ह. प्र. द्वि., पृ. 14)

गठकता सं. (पु.) -- लालची, लोभी, राज के और धन के गठकते यहाँ बहुत आए पर शब्दों की चोरी किसी ने न की। (गु. र., खं. 1, पृ. 103)

गठरी बाँधना मुहा. -- समेटना, पिछले कई वर्षों से विनोबा अपनी जिम्मेदारी की गठरी बाँध रहे हैं। (रा. मा. संच. 2, पृ. 358)

गठा वि. (विका.) -- गठीले बदनवाला, हृष्ट-पुष्ट, एक काला-कलूटा गठी देह का जवान निकलकर मेरे सामने आया। (रा. द. : श्रीला. शु., पृ. 65)

गठान दर गठान क्रि. वि. -- गाँठ दर गाँठ, एक-एक गाँठ करके, शिकंजे में फँसे आदमी की नैतिक रीढ़ को गठान-दर-गठान तोड़ना ही एकमात्र लक्ष्य रह जाता है। (रा. मा. संच. 2, पृ. 149)

गठान सं. (स्त्री.) -- गाँठ, जोड़, अगर आप एक गठान पर झटका देंगे, तो सारा जाल एक खास ढंग से खिंच जाएगा। (रा. मा. संच. 1, पृ. 472)

गड़गड़ा सं. (पु.) -- हुक्का, रामप्रसाद ने गड़गड़े पर चिलम रखकर हरप्रसाद के मुख की ओर देखकर कहा। (सर., अक्तू. 1926, पृ.410)

गंडगोल करना मुहा. -- गड़बड़ या सत्यानाश कर देना, माँ ये तेरे जीन्स जो मुझे मिले हैं, सब गंडगोल कर देते हैं। (स. भ. सा. मृ. पां., सित.-अक्तू. 98, पृ. 9)

गड़बड़-घुटाला / गड़बड़-घोटाला सं. (पु.) -- गड़बड़ी, घपला (क)... परंतु बुंदेलखंड भर कह देने से आज गड़बड़-घुटाला होसकता है। (मधुकर, अक्तू. 1944, पृ. 251), (ख) यह एक प्रमाण है कि कहीं गड़बड़-घोटाला अवश्य है। (दिन., 24 जन., 1971, पृ. 47), (ग) यही उनके निर्णय में सारे गड़बड़-घोटाले की जड़ है। (हि. ध., प्र. जो., पृ. 246)

गड़बड़-झाला सं. (पु.) -- झमेला, (क) क्या इस सुखद गड़बड़-झाले के लिए पहाड़ पर यानी हिल स्टेशन जाना जरूरी है। (रा. मा. संच. 2, पृ. 324), (ख) इस गड़बड़-झाले को दूर करने के लिए बिहार प्रांत संयुक्त प्रदेश में मिला दिया जाए। (सर. सित. 1920, पृ. 125), (ग) विचारों का अतिरेक अंततः अनुशासनहीनता है, अराजकता है, गड़बड़-झाला है। (रा. मा. संच. 1. पृ. 372)

गडमड वि. (अवि.) -- उलझाव-भरा, धीरे-धीरे यह गडमड़ स्थिति पैदा होते जानकर कालों को महत्त्वपूर्ण नौकरियों से वंचित रखा है। (दिन., 14 जून. 1970, पृ. 25)

गंडमूर्ख सं. (पु.) -- वज्र मूर्ख व्यक्ति, गंडमूर्ख को सुलेखक, सुपंडित लिखना इनके बाएँ हाथ का खेल है। (नि.र. : श्या. दा., मा. मि., पृ. 8) (मधुकर, 1 अक्तू. 1940, पृ. 3), (ख) अब पुर्तगाल 15 वीं सदी की खोल से निकलकर सीधे 20वीं सदी में प्रवेश कर रहा है, यह एक ऐतिहासिक घटना है। (रा. मा. संच. 1, पृ. 245)

गड़वा सं. (पु.) -- छोटा कलसा, सिर पर आम के पत्तों से भरा गड़वा लेकर घुँघरू बँधे पैरों से थिरकता। (काद., जन. 1979, पृ. 74)

गड़हा-गड़ही सं. (स्त्री., बहु.) -- छोटे-मोटे ताल, गड्ढे, दो-तीन लोग एक मशीन लेकर कुआँ, तालाब, गड़हा-गड़ही सभी पर किर्र-किर्र करते हुए घूमे। (रा. द., श्रीला. शु., पृ. 315)

गड़ही सं. (स्त्री.) -- छोटा तालाब, पोखर (क) मलिकवा को मिरगी आती थी. रात को गड़ही में डूब गया। (निरु. : निराला, पृ. 64), (ख) यदि हम अपनी माँगें पूरी कराना चाहते हैं तो हमें पहले गंदी गड्डी में मुँह धो आना चाहिए। (म. का मत : क. शि., 24 नव. 1923, पृ. 126)

गंडा-ताबीज बँधवाना मुहा. -- शिष्यत्व स्वीकार करना, ... उसके गंडा-ताबीज बँधवानेवाले भाईबंद (और वे करोड़ों हैं) भारत के लोकतंत्र को चला रहे हैं। (रा. मा. संच. 1, पृ. 512)

गड़े मुरदे उखाड़ना मुहा. -- पुरानी / दबी बातों को उठाना, पुरानी बातें कहकर गड़े मुरदे उखाड़ना हमारा अभीष्ट नहीं है। (स. सा., पृ. 286)

गड्ड-मड्ड करना / होना मुहा. -- घालमेल करना / होना, (क) लेकिन पहाड़ों पर सब गड्डमड्ड हो जाता है। (रा. मा. संच. 2, पृ. 323), (ख) उन्हें धार्मिंक स्वतंत्रताओं से गड्ड-मड्ड नहीं करना चाहिए। (हि. ध., प्र. जो., पृ. 252), (ग) वियतनाम का राष्ट्रीय युद्ध शीघ्र ही दूसरी घटनाओं के साथ गड्ड-मड्ड हो गया। (रा. मा. संव. 1, पृ. 269)

गड्डमगड्ड होना मुहा. -- एक मैं मिल जाना, सभी चीजें एक साथ गड्डमगड्ड होकर काव्य-विंब बन गया है। (दिन., 16 जुलाई , 67, पृ. 42)

गड्डमगोल सं. (पु.) -- बेमेल मिश्रण. ऐसे लोगों ने काम और प्रेम का गड्डमगोल सा कर दिया है। (सर., भाग 28, खं. 1, सं 6. जून 1927. पृ. 687)

गढ़ना क्रि. (सक.) -- तराशना, सँवारा, बताना, (क) बाण बनानेवाला बाण को अनुरूप गढ़ता है। (म. ओं. श., भाग-1, पृ. 113), (ख) मेरे आंतरिक जीवन को गढ़ने में कवि के साथ टॉल्सटाय और रस्किन का भी हाथ रहा। (सर., जुलाई 1930, पृ. 82), (ग) कहानी आप जरूर गढ़ डालते हैं, पर चटपट नहीं। (चं. श. गु. र., खं. 2, पृ. 426)

गढू वि. (अवि.) -- क्लिष्ट, दुर्बोध, गढ़ी हुई खैर छोड़िए इन गूढ़ और गढू बातों को। (कर्म., 30 मई 1953, पृ. 8)

गणकराज सं. (पु.) -- गणना करने में दक्ष व्यक्ति, किसी समय में यहाँ ऐसे भी गणकराज थे, जिन्होंने ज्योतिष विद्या से दुनिया भर को चकित कर दिया। (सर., 1 जून 1908, पृ. 241)

गतप्राय वि. (अवि.) -- बीता हुआ सा, दुख के दिनों को अब गतप्राय समझो। (काद., अप्रैल 1989, पृ. 9)

गतानुगतिक वि. (अवि.) -- पुराणपंथी, जो गतानुगतिक हैं, वे जीवन में स्वयं कोई साहसपूर्ण कदम उठाने में प्रायः असमर्थ होते हैं। (काद., अक्तू, 1990, पृ. 7)

गति सं. (स्त्री.) -- प्रवेश, पहुँच, पकड़, (क) अँगरेजी में भी उनकी कुछ गति है। (म. प्र. द्वि., खं. 5, पृ. 195), (ख) कानून में उनकी विशेष गति थी। (म. प्र. द्वि., खं. 5 पृ. 466)

गतिमति वि. (अवि.) -- गतिमान, भाषा उनकी मँजी हुई और गतिमति होती थी। (बाल. स्मा. ग्रं. : शर्मा, चतुर्वेदी, पृ. 343)

गत्वर वि. (अवि.) -- गतिमान, जीवन गत्वर है। (काद., फर. 1987, पृ. 5)

गदका-बनैटी सं. (स्त्री.) -- गदा और लाठी, बड़े साहब भयभीत होकर स्वराज की गठरी न सौंपेंगे तो... गदका-बनैटी लेकर पैंतरा बदलना शुरू करेगा। (म. का मत : क. शि., 6 सित. 1924, पृ. 164)

गदराना क्रि. (अक.) -- उछान पर होना, परिपक्वता की ओर धुन गदरा उठती है। (दिन., 10 सित. 1965, पृ. 28)

गंदुमी वि. (अवि.) -- गेहुँआ, मझला कद, गंदुमी गोल चेहरा, चश्मे के पीछे दो चमकती गहरी काली आँखें, सुडौल शरीर। (रवि., 15 नव. 1981, पृ 42)

गद्गद वि. (अवि.) -- प्रसन्न, हर्षित, पुत्र जिस श्रद्धा और स्नेह से खिलखिलाकर माँ की नाराजी को शांत करने में व्यस्त था, उसे देखकर मेरा हृदय गदगद हो गया। (मा. च. र., ख. 4 पृ. 248)

गद्दारी सं. (स्त्री.) -- विश्वासघात, हाँ सामंतीय षड्यंत्र ढेरों हुए हैं, गद्दारी हुई है, गृहयुद्ध की तैयारियाँ हुई हैं। (स, मा. संच. 1, पृ. 40)

गद्दी-पलट वि. (अवि.) -- सत्ता परिवर्तन करनेवाला, लोकतंत्र की रक्षा के लिए गद्दी-पलट अभियान में लगी हुई नई कांग्रेस... , (दिन., 12 अप्रैल 1970, पृ. 11)

गंधाता वि. (विका.) -- बदबूदार, औरतें, जो गंधाती कपड़े पहने हुए थीं, आपस में कुछ बुदबुदाकर हँस रही थीं। (काद., अग. 1982, पृ. 44)

गधापचीसी, गदहापचीसी सं. (स्त्री.) -- किशोरावस्था, (क) वे अभी गधापचीसी की उम्र तक नहीं लाँघ पाए हैं। (काद. : मार्च 1979, पृ. 123), (ख) गदहपचीसी को नाँघ अधेड़ की गिनती में आ गए। (भ. नि. : पं. बा. भ. पृ. 13), (ग) मगर अभी लोग गदहापचीसी में दिन काट रहे हैं। (म. का मत : क. शि., 2 जन, 1926, पृ , 199)

गधे के सिर से सींग भागना कहा. -- कोई चिह्न शेप न रहना, अब्दाली हिंदुस्तान से ऐसा भाग जैसे गधे के सिर से सींग (माधुरी, जन. 1925, सं. 1 पृ. 61)

गनाह बेलज्जत कहा. -- ऐसा अपराधपूर्ण काम जिससे लाभ न हो, (क)मालिक की इच्छानुसार भुँकते हैं और सब तरह गुनाह बेलज्जत करते हैं । (नि.वा. : श्रीना.च., पृ. 547), (ख)इतने बड़े कांड के बाद बिजली से कुछ खाने को कहना गुनाह बेलज्जत होता। (सर., फर. 1937, पृ. 131), (ग)उन दिनों समाजवादी होना गुनाह बेलज्जत था। (दिन., 28 नव. 1971, पृ. 18)

गनीम पर जाना मुहा. -- प्रतिद्वंद्वी पर आक्रमण करने के लिए जाना, लड़ाई-झगड़ा, एक ठाकुर के पास उसके महाराजा का यह हुक्म आया कि एक गनीम पर जाना है, तुम अच्छे घोड़े और राजपुत्र लेर आओ। (सर., अग. 1918, पृ , 79)

गनीमत सं. (स्त्री.) -- संतोष की बात, उर्दू का दीवान आपने बहुत सी गजलें निकालकर बहुत छोटा कर दिया है, परंतु जो कुछ है गनीमत है। सर., अप्रैल 1915, पृ. 204)

गपकना क्रि. (सक.) -- गप से खा जाना, भकोसना, वे तो रोज ही छप्पन प्रकार के भोग गपकती हैं। (म. का मत : क. शि., पृ. 14)

गपड़-घेसला सं. (पु.) -- पचड़ा, झमेला, खेद हैं कि विश्वविद्यालयों में उच्च शिक्षा पाए हुए, पदवीधारी सज्जन भी अनुवाद के गपड़-घेसले में कूदकर हाथापाई कर रहे है। (सर., अप्रैल 1918, पृ. 180)

गपड़चौथ सं. (स्त्री.) -- गड़बड़झाला, इस गपड़चौथ के अतिरिक्त क्या आपने और भी बहुत कुछ किया है। (वीणा, जन. 1934, पृ. 177)

गपोड़बाजी सं. (स्त्री.) -- गप्पबाजी, वे खुशी से इसे कपोल-कल्पना, गपोड़बाजी या पाँराणिक प्रलाप कहा करें। (सर., फर. 1915,पृ. 113)

गपोड़शंख सं. (पु.) -- गपें हाँकनेवाला, पुराणों का सर्वांग उनकी दृष्टि में गपोड़शंखों की कल्पना की करतूत नहीं। (म. प्र. द्वि. र., खं. 2. पृ. 263)

गपोड़ा वि. (विका.) -- गप्प हाँकनेवाला, गप्पों से भरा हुआ, पुराणों को कुछ लोगों ने बदनाम कर रखा है। वे उन्हें गपोड़े समझते हैं। (म. प्र. द्वि., खं. 1)

गप्पाष्टक सं. (पु.) -- ऊँची हाँकने की क्रिया या भाव, अपनी गप्पाटक के समय आगे पीछे का कुछ खयाल नहीं रहता। (भ. नि., पृ. 52)

गप्पें झाड़ना मुहा. -- गप्पें हाँकना, गप्पें मारना, हिंदी मासिक पत्रिकाएँ आपके समान निकम्मी गप्पें झाड़कर गंभीर विषयों के मार्ग में लोगों के मगज खराब और बुद्धि मोटी कर देनेवाली नहीं हैं। (मा. च. र., खं. 2. पृ. 71)

गबड़ना क्रि. (सक.) -- मिला देना, मिलाना, सो इसी मारे सेर भर बकरी का दूध गबड़ दिय। (वि. भ., जन. 1928, सं. 1. पृ. 175)

गबरू वि. (अवि.) -- उभरती जवानी का, पट्ठा, मौलाना तकीउद्दीन नृह से . जो गबरू मिलनसार जवान थे, बड़ा प्रेम था। (काद., मार्च 1980, पृ. 93)

गब्बर वि. (अवि.) -- घमंडी, वह आती है, गब्बर ऐसी भीड़ में घुसकर मेरे निकट पहुँचती है। बे. ग्रं., प्रथम खं. पृ. 9)

गम खाना मुहा. -- बरदाश्त करना, सहना, मैं बहुत गम खाता रहता हूँ, नहीं तो रोज लड़ाई-झगड़ा हुआ करे। (सर., फर. 1920 पृ. 98)

गमक सं. (स्त्री.) -- गंध, गूँज, क्य आप जानते हैं कि इस विवाद की गमक कहाँ से उठी। (मधुकर : अप्रैल-अग. 1944, पृ. 82)

गमडैल वि. (अवि.) -- घूमनेवाला, जिन गाँवों के पाससे मोटर गुजरती, संध्या के समय सड़क पर गमडैल नर-नरियों की भीड़ मिलती। (मा.च.र., खं. 3, पृ. 63)

गम्मत सं. (स्त्री.) -- गाना-बजाना, गाने- बजाने का कार्यक्रम, वहाँ 15/20 दिन गम्मत रहेगी। (चं.श.गु.र., खं. 2, पृ. 417)

गया-गुजरा वि. (अवि.) -- बदतर, दीन-हीन, (क)देश की इस गई-गुजरी हालत से फायदा उठाने की इच्छा से प्रेरित होकर ऐसा कर रहे हैं। (न.ग.र., खं. 2, पृ. 109), (ख)युद्ध पूर्व के गरीब पूँजीवादी को उन्होंने गया-गुजरा बना दिया। (रा.मा.संच. 2, पृ. 59), (ग)अगर कृति साहित्य घटिया है तो आलोचना उससे गई-गुरजी है। (दिन., 4 जून, 67, पृ. 41)

गया-बीता वि. (विका.) -- गया-गुजरा, बीता हुआ, तत्वहीन, (क)हिंदी का मासिक साहित्य बेढंगे और गए-बीते जमाने की चाल चल रहा है। (मा.च.र., खं. 2, पृ. 55), (ख)पिस्सू से गए-बीते अपने व्यक्तित्व को इतना बड़ा मान रहे हैं। (मा.च.र., खं. 5, पृ. 276)

गया-बीतापन सं. (पु.) -- गया बीता होने की अवस्था या भाव, घूम-फिरकर बात भारत के लोगों के गए-बीतेपन पर आ गई। (रा.मा.संच. 2, पृ. 44)

गरज सं. (स्त्री.) -- आवश्यकता, आशय, प्रयोजन, (क)फिर भी गरज बावली होती है। (सर., जुलाई 1918, पृ. 9), (ख)दो किस्तों में हुई बातचीत का सारांश जानने की गरज सो जब उत्सुक संवादाताओं ने..., (दिन., 12 मई 1968, पृ. 14)

गरदनिया देना मुहा. -- गरदन पकड़कर धक्का देना, (क)सैकड़ों बार धक्के खाए, गरदनिया देकर निकाले गए , परंतु हाथ फैलाए रहे। (म.का मतः क.शि., 10 मई 1924, पृ. 152), (ख)अनुशासन के नाम पर बाएँ पक्ष के कार्यकर्ताओं को गरदनिया दे-देकर बाहर निकाल दिया गया। (विप्लव (आजाद अंक), संच. यश., पृ. 6)

गरबीला वि. (विका.) -- गर्व करने योग्य, समाचार-पत्रों का, पत्रकार का यह गरबीला अधिकार है कि वह जनता के मस्तिष्क पर नियंत्रण करे, उसे शिक्षित करे। (कर्म., 5 अप्रैल, 1947, पृ. 2)

गरमागरमी सं. (स्त्री.) -- कटु आलोचना, समाचार-पत्रों की गरमागरमी को जड़ से उखाड़ फेंकने के लिए सरकार के पास प्रेस ऐक्ट के जन्म से पहले भी अस्त्र थे । (ग.शं.वि.र., खं. 2, पृ. 40)

गराँ वि. (अवि.) -- महँगा, विदेशी व्यवसायों के मुकाबले में उनका माल रगाँ पड़ता है। (सर., जन. 1937, पृ. 12)

गरानी सं. (स्त्री.) -- महँगाई, गरानी क कारण यदि किसी को दस-पाँच रूपए अधिक मिल भी गए तो क्या उससे साल पार हो सकता है। (सर., सित. 1915, पृ. 178)

गराँव सं. (पु.) -- पगहा, दोनों की गरदनों में आधा-आधा गराँव लटक रहा है . (प्रे.स.क. : सर. प्रेस, पृ. 40)

गरियाना-लतियाना क्रि. (सक.) -- भला-बुरा कहना, भर्त्सना करना, आज समाज की उस कलुषित मान्यता ने उनके त्यागमय आत्मसम्मान को सरेआम गरियाया-लतियाया है। (काद . जुलाई 1989 , पृ. 103)

गरियाना क्रि. (सक.) -- गालियाँ देना, बुरा-भला कहना, (क)धर्म को छोड़कर और हिंदुओं को गरियाकर हम हिंदुत्व से नहीं निपट सकते। (हि. ध., प्र.जो., पृ. अपप), (ख)सिद्धआंतहीन राजनीति के लिए गरियाना ठीक नहीं होगा। (हि.ध., प्र.जो., पृ. 217), (ग)राजाओं ने भारतीय क्रिकेट के लिए बहुत कुछ किया, उन्हें गरियाना वाहियात है। (ज.स. : 3 जुलाई 2007, पृ. 6)

गरुड़-सर्प सं. (पु., पदबंध) -- घोर शत्रुता, अमेरिका और कम्युनिस्टों में गरुड़-सर्प बैर है। (दिन., 18 मार्च, 1966)

गरूर सं. (पु.) -- घमंड, जिसे इस बात का गरूर था कि देश की चौकीदारी वही कर सकता है। (रा.मा.संच. 1, पृ. 301)

गर्जन-जर्जन सं. (पु.) -- भभकी, धमकी, भारतवासियों को पाकिस्तान के गर्जन -जर्जन भयभीत होने की रंचमात्र भी आवश्यकता नहीं है। (ते., द्वा.प्र.मि., पृ. 153)

गर्द छँटना मुहा. -- शोर थमना, आम चुनाव की गर्द छँट जाने के बाद अब शेख अब्दुल्ला की रिहाई का समय आ गया है। (दिन., 30 अप्रैल, 67, पृ. 18)

गर्दन नापना मुहा. -- गला दबोचना, विवश कर देना, स्वार्थ के लिए यहाँ न्याय की गर्दन नाप ली जाती है। (म.का मतः क.शि., 21 जून, 1924, पृ. 157)

गर्म झोंका आना मुहा. -- नई विपत्ति आना, जैसे ही सरकार कुछ राहत महसूस करने लगती एक नया गर्म झोंका आ जाता। (दिन., 16 सित., 66, पृ. 14)

गलबहियाँ सं. (स्त्री.) -- गले में हाथ डालना, आलिंगन, मेलजोल, (क)ठहाके लग रहे थे, गलबहियाँ ह रही थीं। (हि.ध., प्र.जो., पृ. 602), (ख)अब चाहे बीवियों क गलबहियाँ डालकर मौज से बिहरें। (म.का मतः क.शि., 28 मार्च, 1925, पृ. 182)

गलबैंया सं. (स्त्री.) -- गलबहियाँ, मेल-जोल, जिस कांग्रेस से उसने गठबंधन तोड़ा है, उससे भी अब गलबैंया नहीं करेगी। (किल. : म.श्री., पृ. 96)

गला घोंटना मुहा. -- घोर कष्ट देना, हानि पहुँचाना, जान लेना, (क)इस सभ्यता के लिए गरीबों का गला घोंटा जाता है और नित नए छलछिद्रों का जन्म होता है। (गु.र., खं. 1, पृ. 150), (ख)इन दिनों महँगाई गरीबों का गला घोंटा रही है। (मा.च.रच., खं. 9 पृ. 250), (ग)परस्पर विद्वेष फैलाना आंदोलन का गला घोंटना है। (वि.भा., जन. 1928, सं. 1, पृ. 378)

गला टीपना मुहा. -- गला घोंटना, लगा नापना, (क)छोटे-छोटे सौदे में ईमान का गला टीपते हैं। (शि.पू.र., खं. 3, पृ. 438), (ख)भारत जननी की करुण-कातर दृष्टि हमें अपने भावों क गला टीपने के लिए विवश कर देती है। (शि.पू.र., खं. 4, पृ. 388)

गला नापना मुहा. -- हानि पहुँचनाना, ...सबका एक रुख है, स्वाराज्यवादी और असहयोगी एक-दूसरे का गला न नापें। (मा.च.रच., खं. 10, पृ. 170)

गला पकड़ना मुहा. -- किसी को किसी कार्य के लिए उत्तरदायी ठहराना, आज नरम दलवालों का गला पकड़ना ठीक है। (मा.च.रच., खं. 9, पृ. 259)

गला रेतना मुहा. -- हानि पहुँचाना, क्षति करना, (क)लालच के फेर में पड़कर भोले-भाले भाइयों का गला रेतते हैं। (शि.पू.र., खं. 4, पृ. 346), (ख)आज हिंदुस्तानी के नाम पर हिंदी का गला रेता जा रहा है। (सं.परा. :ल.शं.व्या., पृ. 10)

गलाजत सं. (स्त्री.) -- गंदगी, पगडंडी भी इस गलाजत से मुक्त नहीं है। (सा.हि., 20 जुलाई, 1958, पृ. 13)

गली-गली की खाक छानना मुहा. -- मारे-मारे फिरना, भटकना, लोक सेवा क भूत सवार है और इसीलिए गली-गली की खाक छान रहे हैं। (ग.शं.वि.रच., खं. 1, पृ. 53)

गलीच वि. (अवि.) -- गलीज, ओछा, गंदा, वह गलीच धंधा किया है जिसे स्वतंत्र लेखन कहते हैं। (दिन., 25 अक्तू., 1970, पृ. 48)

गलीज1 वि. (अवि.) -- गंदा, छोटा, ओछा, नेहरू के जमाने में गलीज फिरकापरस्त ताकतों को मजबूत किया गया। (रवि. 31 दिस. 1977, पृ. 14)

गलीज2 सं. (पु.) -- गंदगी, नंग-धड़ंग बहुत से बच्चे गलीज में सुखपूर्वक विश्राम करनेवाले सुआरों को खदेड़-खदेड़कर खोबर में बंद करना चाहते थे। (सर., जुलाई 1937, पृ. 36)

गले का काँटा मुहा. -- अत्यंत कष्टदायक काम या बात, भारी मुसीबत गले में संबैधानिक काँटा फँसाने का फैसला इन सब घटनाओं के पहले ही कर लिया था। (स.ब.दे. : रा.मा. (भाग-दो), पृ. 76)

गले की फाँस मुहा. -- गले का फंदा, भारी मुसीबत परमाणु अस्त्रों पर रोक लगाने की बात विकासशील देशों के लिए गले की फाँस ही प्रतीत होती है . (दिन., 2 जुलाई, 67, पृ. 37)

गले न उतरना मुहा. -- स्वीकार न होना, उन्हें यह बात गले नहीं उतरती। (हि.ध., प्र.जो., पृ. 217)

गले पर छुरी चलाना /फेरना मुहा. -- बहुत बड़ा अहित करना, नेता अपनी टेक रखने के लिए देश के गले पर छुरी चलाने में बी नहीं हिचकते। (माधुरी, 31 मार्च, 1925, सं. 3, पृ. 270)

गले में चक्की के पाट होना मुहा. -- जानलेवा बोझ से दबे होना, असह्य ह ना, ब्रि. पार्लि. इंपीरियल कॉन्फ्रेंस ली. आ. नेशंस-यह सब गले में चक्की के पाट हो रहे हैं। (न.ग.र., खं. 2, पृ. 74)

गले में साँकल पड़ना मुहा. -- फंदा पड़ना, बँध या जकड़ जाना, अंग्रेज तिब्बत पर अधिकार जमा ले तो समझिए हिंदुस्ता के गले में एक और साँकल पड़ गई। (न.ग.र., खं. 2, पृ. 187)

गलेबाजी सं. (पु.) -- सस्वर पाठ, गद्य में आम तौर पर साहित्य के नाम पर या तो पिलपिली चीजें प्रकाशित की जाती हैं या भड़ैती होती है और पद्य में आम तौर पर गलेबाजी होती है। (दिन., 8 जुलाई, 1966, पृ. 45)

गँवरपन सं. (पु.) -- गँवारपन, फूहड़पन, अपने सांस्कृतिक गँवरपन के दंभ में अमान्य कर दिया। (दिन., 30 जुलाई 67, पृ. 42)

गवारा करना मुहा. -- सहन करना, सहना, उठाना, बातों की सतही झाँइयों को समझने तक की तकलीफ गवारा नहीं करते। (दिन., 12 सित., 1971, पृ. 21)

गँवारी वि. (अवि.) -- ग्रामीण, एक गँवारी कहावत है कि एक छेड़ की तीन सौ साठ गतियाँ होती हैं। (म. प्र. द्वि., खं. 1, (बा. मु. गु.), पृ. 372)

गवेषित वि. (अवि.) -- खोजा हुआ, महापुरुषों द्वारा गवेषित सत्य का मार्ग अनुसरणीय है। (काद., अग. 1989, पृ. 7)

गँसना क्रि. (सक.) -- घेरना, कसना या पकड़ना, ये बुराइयाँ सभी राजनैतिक दलों के मजदूर संगठनों को बुरी तरह गँसे हुए हैं। (ज. स., 22 दिस. 1983, पृ. 4)

गहगड्ड वि. (अवि.) -- गड्ढों से भरा, लेकिन मेरा मन लिखने का गहगड्ड मैदान खोजता था । (सर., जन-जून 1939, सं. 5, पृ. 457)

गहगहाना क्रि. (अक.) -- लद जाना, भर जाना, इस साल आम के बौर फिर गहगहा गए। (दिन., 7 अप्रैल, 67, पृ. 39)

गहरा पेंच मुहा. -- फसावड़ा, उलझाव, धनपात्रों के इस व्यापार में गहरा पेंच है। (ग.शं.वि.रच., खं. 1, पृ. 149)

गहरी छानना मुहा. -- नशे में चूर होना, पश्चिमी अफ्रीका में पुर्तगाल अधिकृत गिनी काफी दिनों से आजादी के लिए तड़फता रहा है, लेकिन पुर्तगाल के सालाजार गहरी छाने हुए हैं। (दिन., 28 जन., 1968, पृ. 39)

गहरी पैठना मुहा. -- घर करना, उनमें व्यापारिक वृत्ति कुछ इस कदर इतनी गहरी पैठ गई है कि कला के प्रति सारी ईमानदारी बलाय ताक रख दी गई है . (दिन., 16 जुलाई, 1965, पृ. 28)

गहरे पानी न पैठना मुहा. -- गहराई में न जाना, गंभीरता से रहित होना, (क)कई निबंध निकले हैं पर वे गहरे पानी में नहीं पैठते । (नि.वा. : श्रीना. च., पृ. 567)

गहरे पानी पैठना मुहा. -- गहरी छानबीन करना, गहराई में जाना, उनके वाक्यों में गहरे पानी पैठने वाले की सनक थी। (रा.मा., सं. 2, पृ. 305)

गहवारा सं. (पु.) -- झूला, हंडोला, आज तो आल इंडिया रेडियो नौकरशाही का गहवारा है। (दिन., 15 फर., 1970, पृ. 41)

गह्वर सं. (पु.) -- खाई, गड्ढा, गर्त, जो समाज जागरूक नहीं रहता वह पतन के गह्वर में चला जाता है। (काद. : जून 1987, पृ. 9)

गाउदीपन सं. (पु.) -- भोलापन, सीधापन, इनमें जैसा गाउदीपन है, उनसे यही बोध होता है कि स्वभावतः इनकी सात्विक प्रकृति है। (भ.नि.मा. (दूसरा भआग), सं.ध.भ., पृ. 63)

गाटे का गाटा सं. (पु., पदबंध) -- भूमि का पूरा टुकड़ा, पूरा भूखंड इस क्यारी का सब गाटे का गाटा कंटकावृत्त होने से निकम्मा हो रहा है। (भ.नि., पृ. 119)

गाँठ की खोना मुहा. -- संचित निधि खो देना, पल्ले की रकम गँवाना, गाँठ की खोकर हिंदी पाठकों के निंदक बन जाते हैं। (अपनी असफलता पर हिंदी के नए अखबार), (सं. परा. : ल.शं.व्या., पृ. 58)

गाँठ के पैसे खर्च क रना मुहा. -- अपने पास से खर्च करना, जो पढ़ते हैं वे गाँठ के पैसे खर्च करके नहीं पढ़ना चाहते । (म.प्र.द्वि.र., खं. 15, पृ. 309)

गाँठ खुलना मुहा. -- कमजोरी सामने आना, यदि मुख्यमंत्री की पिटाई हुई है तो एक संवैधानिक मर्यादा की गाँठ खुल गई है। (किल.: म. श्री., पृ. 227)

गाँठ गरम होना मुहा. -- पल्ले विपुल मात्रा में धन होना, आज के जमाने में जिसकी गाँठ गरम होती है, वही फिल्म बनाने की ठान लेता है। (दिन., 06 जन., 67, पृ. 44)

गाँठ जमना मुहा. -- धारणा पक्की बनना, मन में गाँठ जम गई कि अवसर पाते ही इसका निराकरण करना होगा। (दिन., 24 जन., 1971, पृ. 39)

गाँठ पड़ना मुहा. -- द्वेष या वैमनस्य होना, (क)महाकवि के अंतर में जो गाँठ पड़ गई है उसे कठोर बनाने की नहीं बल्कि घुलाने की आवश्यकता है। (हि.पत्र.के गौरव बां.बि.भट., पृ. 163), (ख)भाजपा और शिवसेना गठबंधन में गाँठ पड़ने के आसार नजर आने लगे हैं। (रवि., 31 मार्च, 1989, मु.पृ.)

गाँठ बाँधना या बाँध लेना मुहा. -- सदा स्मरण रखना, (क)पाकिस्तान इस बात को गाँठ में बाँध ले कि उसकी धमकियों से उसे ही हानि होगी। (ते., द्वा.प्र. मि., पृ. 153), (ख)हर आदर्श को उन्होंने गाँठ बाँध कर रखा है। (रवि., 16-25 अग., 1979, पृ. 27)

गांठ सं. (स्त्री.) -- जेब, थैली, वह अपनी गरीब गाँठ से जितना बन सकता है, देने को तैयार है। (मा.च.रच., खं. 9, पृ. 307)

गाँठना क्रि. (सक.) -- हथियाना, प्राप्त करना, (क)वाल्मीकि के नाद ने वह पद्य उत्पन्न किया था जो च्यवन महर्षि न गाँठ सके थे। (गु.र., खं. 1, पृ. 180), (ख)इधर तो परामर्श गाँठे जा रहे थे और उधर बलदेव सिंह के यहाँ न्योते में जाने के संबंद में बातचीत हो रही थी। (सर., अग. 1917, पृ. 63), (ग)गत वर्ष भारत से परदेशों को 6 करोड़ पौंड का सोना-चाँदी गया है, इससे प्रकट होता है कि यह ग्राहक कितना गाँठने योग्य है। (मा.चर.रच., खं. 10, पृ. 158)

गाढ़ा समय / वक्त सं. (पु., पदबंध) -- आपत्काल, कठिन समय, (क)एक गैर-कानूनी कानून गाढ़े समय में बनाया गया और एक गाढ़े समय (युद्ध)ही के लिए। (ग.शं.वि.र., खं. 2, पृ. 585), (ख)इसमें तनिक भी संदेह नहीं कि यदि अमेरिका गाढ़े समय पर युद्ध में न आ जाता तो फ्रांस और बेल्जियम दोनों तबाह हो जाते। (ग.शं.वि.रच., खं. 1, पृ. 405), (ग)उन कृतघ्नों को रेवड़ियाँ नहीं बाँटना चाहतीं, जो गाढ़े समय में छोड़कर चले गए थे। (रा.मा., सं. 1, पृ. 465)

गाढ़ा वि. (विका.) -- घनिष्ठ अंतरंग, वास्तविक जीवन के साथ हम गाढ़ा परिचय प्राप्त कर सकेंगे। (मधुकर : अप्रैल-अग. 1944, पृ. 53)

गाढ़ी छनना मुहा. -- अत्यंत घनिष्ठता होना, गाढ़ी छन रही है पुलिस व असामाजिक तत्त्वों में। (लो.स., 18 मई, 1989, पृ. 8)

गाढ़े का साथी सं. (पु., पदबंध) -- मुसीबत में साथ देनेवाला, धन्य हो कुटज तुम गाढ़े के साथी हो। (कुटज : ह.प्र.द्वि., पृ. 3)

गाढ़े दिन सं. (पु., पदबंध) -- परेशानी के दिन, बुरे दिन, तुर्की अच्छा तरह समझता है कि गाढ़े दिनों में सेना ही काम में आएगी। (सर., जन. 1933, सं. 1, पृ. 20)

गाफिल वि. (अवि.) -- बेसुध, यह लहर अगर पैदा नहीं होती, तो सत्ता के नशे में गाफिल नेता कभी हाथ जोड़कर माफी माँगते नजर नहीं आते . (रा.मा., सं. 1, पृ. 287)

गाय मारकर जूते का दान करना कहा. -- अपराध बड़ा पर प्रायश्चित छोटा होना, इतने लोगों का रोवा-कलपाकर जलसा करने में कौन बड़ाई है, गाय मारकर जूते का दान करना इसी को क हते हैं। (सर., जून 1928, पृ. 635)

गार सं. (स्त्री.) -- गड्ढा, (क)कहीं-कहीं तो इन पहाड़ियों में समुद्र की लहरों के बार-बार आक्रमण से छोटी-छोटी गा रें बन गई हैं। (सर., जन. 1920, पृ. 24), (ख)जानवरों की तरह वे भी जंगलों में, कंदराओं में और गारों में रहते थे। (सर., जुलाई 1924, पृ. 828)

गारद करना मुहा. -- नष्ट करना, सब गारद कर दिया नए कानून ने। (रा.द. श्रीला.शु., पृ. 155)

गारना क्रि. (सक.) -- निचोड़ना, (क)किसी का लो न लहू तुम गार। (सर., फर. 1930, पृ. 207), (ख)सबसे बड़ी बात यह थी कि उन्होंने हिंदी की नींव अपना खून गारकर रखी थी। (कु.ख. : दे.द.शु., पृ. 79)

गाल फुलाना मुहा. -- रूठ जाना, इस पर अच्छे-अच्छे कार्यकर्ता निश्चय ही गाल फुलावेंगे। (म. का मत : क.शि., 22 दिस. 1923, पृ. 134)

गाल बजाना. मुहा. -- बढ़-बढ़कर बातें करना, शेखी हाँकना, कोई बहुत गाल बजाता है तो भी कहते हं, बड़ा कहीं का हून आया। (गु.र., खं. 2, पृ. 213)

गालिब आना या आ जाना मुहा. -- छा जाना, पुत्र प्रेम एक क्षण के लिए अर्थ सिद्धांत पर गालिब आ गया। (सर., जून 1920, पृ. 326)

गाली-गुफ्तार सं. (पु.) -- गाली-गलोज, छुटभैये कभी भी आकर गाली-गुफ्तार करते हैं। (रवि. 22 मार्च, 1980, पृ. 10)

गाँवटी वि. (अवि.) -- गाँव का, ग्रामीण, जिनके लिए गाँवटी पंचायत बड़ी और कोई इकाई नहीं, और जाति-वर्ग, उप वर्ग से बढ़कर कोई संख्या नहीं, वे स्वराज्य को क्या जानें । (कच. :: व.ला.व., पृ. 548)

गावड़ी वि. (अवि.) -- छोटा गावड़ी पौधों की बदौलत वसंत में बदलाव नहीं ला सका। (काद. : फर. 1991, पृ. 32)

गावद वि. (अवि.) -- मूर्ख, दिल्ली की एक परिचित पत्रिका के गावद संपादक इंदौर आए। (स.ब.दे : रा.मा., पृ. 26)

गावदी 1 वि. (अवि.) -- मूर्ख, (क)वे आज भी हिंदीवालों को भकुआ और गावदी समझ रहे हैं। (कु.ख. : दे.द.शु., पृ. 72), (ख)अपने भीतर बैठे बहिष्कृत और निरीह गावदी को मैं जीवंत और प्रेमिल बनाना चाहता था । (रवि., 8 फर. 1981, पृ. 42)

गावदी 2 सं. (पु.) -- मूर्ख व्यक्ति, जड़मति, (क)किसी गावदी को आचार्यासन पर बैठाकर उसकी बहकी बातों का रस लेना यहाँ के लोगों की पुरानी आदत है। (कुटज : ह.प्र.द्वि., पृ. 41), (ख)कुछ लोगों को प्रेमचंद की रचनाएँ गावदी लगती थीं। (स.का वि. : डॉ.प्र.श्रो., पृ. 35)

गाँसना क्रि. (सक.) -- गूँथना, घेरना, तीन-तीन वस्तुओं को एक ढाँचे में गाँसने की बातचीत हो रही है। (ग.शं.वि.रच., खं. 1, पृ. 285)

गाहे-बगाहे क्रि. वि. -- कभी-कभी, यदा-कदा, (क)कॉमिक्स गाहे-बगाहे बालियों द्वारा भी पढ़ लिए जाते हैं। (दिन., 25 नव., 66, पृ. 44), (ख)अमेरिका गाहे-बगाहे ऐसा ही उपदेश देता रहता है। (स. का वि. : डॉ. प्र. श्रो., पृ. 106)

गिचपिच वि. (अवि.) -- बेतरतीब, (क)कहाँ हमारे यहाँ गिचपिच चौके में कपड़े उतारकर भोजन, कहाँ यह स्वर्ग सुख। (सर., जन.-जून 1919, भाग-20, खं. 1, सं. 4, पृ. 191)

गिजगिजाहट सं. (स्त्री.) -- लिजलिजापन, आजकल की आत्मकथाएँ पढ़कर छिपकली के स्पर्श की सी गिजगिजाहट होती है। (काद. : मार्च 1978, पृ. 94)

गिटपिट सं. (स्त्री.) -- टकार प्रधान भाषा, (क)हमारे देश की नाईं नहीं कि ए.बी.सी. पढ़ने के साथ ही गिटपिट शुरू हुई। (म.प्र.द्वि.रच., खं. 2, पृ. 265), (ख)रात-दिन गिटपिट बोलते रहना ही अपने गौरव का चिह्न समझते हैं। (सर., जून 926, पृ. 782)

गिद्ध-दृष्टि सं. (स्त्री.) -- पैनी दृष्टि, गिद्ध-दृष्टी से इसी की खोज रहती है कि कब चंगुल में आवे और कब धर दबाएँ। (सं.परा.: ल.शं.व्या., पृ. 132)

गिरगिटिया वि. (अवि.) -- गिरगिट की तरह रंग बदलनेवाला, यह गिरगिटिया जमाना है, रंग बदलते देर नहीं लगती। (प.परि.रेणु, पृ. 147)

गिरफ्त सं. (स्त्री.) -- पकड़, प्रेम रोग में गिरफ्त आदम की जो हालत हुई, वह अजीब थी। (काद., अग. 1989, पृ. 103)

गिरस्ती का छकड़ा सं. (पु., पदबंध) -- गृहस्थी की गाड़ी, बड़ी मुश्किल से रो-धोकर गिरस्ती का छकड़ा चलता था। (करम्., 15 अग., 1950, पृ. 27)

गिरस्ती सं. (स्त्री.) -- गृहस्थी, उनकी उमर मुझे ब्याह-शादी करने और गिरस्ती बसाने की लगती थी। (हि.ध., प्र.जो., पृ. 571)

गिरों होना मुहा. -- बंधक होना, गिरवी होना, कैलाश या मुक्तिपद त्रिपुंड की आड़ी रेखा में गिरों हो गया है तब तो बात ही निराली है। (भ.नि.मा. (दूसरा भाग), सं. ध.भ., पृ. 106)

गिरोंगाँठ करना मुहा. -- बंधक रखना, गिरवी, बंधक, मकान और जेवर की गिरोंगाँठ करते हैं। (स.न.रा.गो. : भ.च.व., पृ. 21)

गिर्द क्रि. वि. -- आसपास, (क)मेरी विद्या की किश्ती ढलान पर आकर टेढ़ी हो गी, तर्कों के झाँईदार झाग के गिर्द रुक गई। (स्मृ.वा. : जा.व.शा., पृ. 14), (ख)बंगाल में बाढ़ आ जाने से करीब 2500 मील गिर्द के लोग बेघर-बार हो गए। (सर., जन. 1932, सं 1, पृ. 198)

गिलौड़ी / गिलौरी सं. (स्त्री.) -- लगा हुआ पान, बीड़ा, मैं सोने के वरक में लिपटी हुई गिलौडी हूँ। (सर., अप्रैल 1912 , पृ. 215)

गिल्टी सं. (स्त्री.) -- गाँठ, गूमड़, (क) शरीर में खून के इकट्ठा होकर गिल्टी बनने के समान है। (निबंधः रामलाल सावल, पृ. 55), (ख)प्रारब्धवादी मदन ने राजाराम की गिल्टियों से निकलनेवाले मवाद को बार-बार साफ किया। (सर., मई 1916 , पृ. 315)

गींजना क्रि. (सक.) -- विकृत करना, मलिन करना, गोसाईं जी की कविता जनता को बहुत प्यारी लगती है कोई उसे दुलराता-हलराता है, कोई उसे गींजता-गुदगुदाता है। (शि.पू.र., खं. 4, पृ. 136)

गीदड़-भभकी सं. (स्त्री.) -- बंदर घुड़की, कोरी धमकी, (क)अन्नादुरै की गीदड़-भभकी पर सरकार काँप जाती है। (दिन., 03 मार्च, 68, पृ. 42), (ख)आप बरसों गीदड़ भभकियाँ देते रहें तो भी कुछ होना-जाने का नहीं। (म.का मत क. शि., 18 जुलाई, 1925, पृ. 188), (ग)ये गीदड़-भभकियाँ उन्हें जाकर दिखाओ जो तुम्हारी असलियत नहीं जानते। (सर., सं 5, पृ. 525)

गीला कंबल छोड़ना मुहा. -- तुषारापात कर देना, कष्ट बढ़ा देना, भारतवासियों की राजनैतिक आशाओं पर यों गीला कंबल छोड़ा गया है। (गु.र., खं. 1, पृ. 336)

गीशमाली सं. (स्त्री.) -- फजीहत, छीछालेदर, संभव नहीं कि इस विषय में श्रीमान लार्ड कर्जन की गीशमाली न की गी हो। (गु.र., खं. 1, पृ. 332)

गुइयाँ सं. (स्त्री.) -- सखी, सहसा अस्सी वर्षों की उन विगलित झुर्रियाँ से चुहल करती गुइयाँ का परिहास झलक उठा। (रवि. 29 मई, 1982, पृ. 7)

गुच्ची सं. (स्त्री.) -- गुल्ली रखने का छोटा सा गड्ढा, खेल शुरू हो गया। (मैंने गुच्ची में गुल्ली रखकर उछाली। (प्रे.स.क. : सर. प्रेस, पृ. 125)

गुटका संस्करण सं. (पु.) -- छोटी रूप, जब ये नुस्खेबाज नीम-हमीम, रेडियो से टेलीविजन में चले आए तो अपने साथ वे तमाम तामझाम लेते चले आए, जो आकाशवाणी को बंबइया फिल्मी दुनिया का गुटका-संस्करण बना चुका है। (दिन., 16 जुलाई, 1965, पृ. 41)

गुट्ठल वि. (अवि.) -- गाँठदार, बोझिल भाषा गुट्ठल न हो जाए, क्योंकि भाषा भावों को समझने के लिए होती है। (गु.र., खं. 1, पृ. 435)

गुठली सं. (स्त्री.) -- गुत्थी, गाँठ, एक गुठली बचती जो सभी संबंधित पक्षों को गलत रास्ते पर ले जाती है और वह गुठली है कश्मीर की। (रा.मा., सं. 2, पृ. 75)

गुड़ का चींटा मुहा. -- किसी वस्तु या व्यक्ति से चिपका रहनेवाला, चिपकू, कहाँ तो पहले गुड़ के चींटे की तरह दरवाजा ही नहीं छोड़ते थे, कहाँ अब दूसरों से घर पर मिलने के लिए भी समय निश्चित कर दिया है। (सर., जून 1926, पृ. 687)

गुड़ देना मुहा. -- प्रशंसा करना, मिठास बाँटना, मीठी-मीठी बातें करना, आचार्य जी सोचते हैं कि थोड़ा गुड़ देकर टरकाओ इन विश्राम बाधकों को। (शि.पू.र., खं. 3, पृ. 502)

गुड़-गोबर होना या हो जाना मुहा. -- पूरी तरह से चौपट या नष्टप्राय होना, (क)बड़प्पन की भावना आ गई तो सारा गुड़-गोबर हो जाएगा। (ब.दा.च.चु.प.सं. ना.द., पृ. 363), (ख)प्रोफेसर गांधी के पढ़ाने से हम अच्छे डिवीजन के सपने देख रहे थे, पर यह तो सब गुड़-गोबर हो गया। (स.से.त. : क.ला.मि., पृ. 92)

गुड़-गोबर वि. (अवि.) -- व्यर्थ, बोकार, (क)नीयत अच्छी होगी तो हमारी बरकत होगी अगर नीयत दुरुस्त नहीं तो सब गुड़-गोबर। (शि.पू.र., खं. 3, पृ. 431), (ख)गांधी जिन्नावाले मामले में उन्होंने जिस प्रकार जल्दी में आकर गुड़-गोबर कर दिया वह सबको विदित है। (न.ग.र., खं. 4, पृ. 79), (ग)तुमने इतना गुड़ गोबर कर दिया है कि लतीफ अगर जीत गया तो मेरी भाभी मुझे घर में घुसने न देगी । (रवि., 3 अग. 1981, पृ. 38)

गुड़-भरा हँसिया मुहा. -- मीठी छुरी, वर्षों से सत्ताधारी दल का गुड़-भरा हँसिया निगलते-निगतले अब विश्वविद्यालय का अपना गला नहीं रह गया है। (दिन., 8 दिस. 1968, पृ. 16)

गुंडई सं. (स्त्री.) -- गुंडागर्दी, जबरदस्ती, गुंडई करनेवाले के लिए दंड विधान है। (माधुरी : सित. 1927, पृ. 345)

गुड़म-गुड़म सं. (पु.) -- उल्लू, कबूतर आदि पक्षियों की आवाज, अनाप-शनाप बातें, अब एक पहाड़ी खखोदर के पुराने उल्लू की गुड़म-गुड़म सुनिए। (म.प्र.द्वि., खं. 1, (बा.मु.गु.), पृ. 356)

गुड़मुड़ा डालना मुहा. -- मरोड़ डालना, उसने अपनी किताब के सारे पन्ने गुड़मुड़ा डाले। (काद : आग. 1975, पृ. 16)

गुड़मुड़ाना क्रि. (अक.) -- सिकुड़ना, पयाल बिछाकर गुदड़ियों में गुड़मुड़ाकर रात काटनेवाला था। (सर., अग. 1913, पृ. 466)

गुड़मुड़ियाना क्रि. (अक.) -- सिकुड़ना, उसने गुडमुड़ियाकर लंबी तानी। (मधुकर, 1 अक्तू. 1940, पृ. 11)

गुड़री सं. (स्त्री.) -- गेंद, वे वृक्ष विशेष के रेशों की बनी हुई गुड़रियाँ छड़ियों से उछालती हुई दौड़ती हैं। (सर., अप्रैल 1921, पृ.. 244)

गुड़ारीदार सं. (पु.) -- एक रुपए का ढलवाँ सिक्का, अब गुड़ारिदार की जगह कागजी नोट ने ले ली है। (दिन., 10 जून, 1966, पृ. 14)

गुंडी सं. (स्त्री.) -- छोटा कलसा, टिर्राता हुआ दो बड़ी पीतल की गुंडियाँ लेकर चल दिया। (सुधा, फर. 1935, पृ. 45)

गुड़ुप्प हो जाना मुहा. -- डूब जाना, नष्ट हो जाना, पिछले सब वायदे गुडुप्प हो जाते हैं । (दिन., 09 मार्च, 69, पृ. 10)

गुड़ेड़ना क्रि. (सक.) -- गुरेरना, आँखें तरेरना, अँगरेजी पेपर भी आँखें गुड़ेड़कर कह रहे हैं कि मेल जल्द ही कर लो। (म.का मतः क.शि., 31 जुलाई, 1926, पृ. 95)

गुढ़मुटार वि. (अवि.) -- हट्टा-कट्टा, बड़ी उम्रवाले तैयार गुढ़मुटार जवान ने कहा-जी नहीं। (सर., नव. 1941, पृ. 447)

गुत्थमगुत्था सं. (स्त्री.) -- ऐसी लड़ाई जिसमें एक-दूसरे को पटकनी भी दें और दबोचकर भी रखें, (क)वे बंबई और अन्य प्रांतों में इस बारे में गुत्थमगुत्था होती बतलाते हैं। (गु.र., खं. 1, पृ. 338), (ख)छींटाकशी ने गुत्थमगुत्थे (गुत्थमगुत्था)का रूप ले लिया और फिर पुलिस ने अपने डंडे चलाए। (दिन., 25 जून, 67, पृ. 29), (ग)जरा सी बात पर ही उनकी गुत्थमगुत्था हो गई। (काद., जन. 1979, पृ. 13)

गुत्थल सं. (स्त्री.) -- गुत्थी, गाँठ, सब-कुछ भूलकर पहले इसी गुत्थल को सुलझाने का उद्योग करना चाहिए। (म. का मतः क.शि., 27 अग., 1927, पृ. 221)

गुत्थी सं. (स्त्री.) -- थैली, बटुआ, साधारण सी कहावत है कि यदि किसी आदमी को कहीं से कुछ पैसा मिलने की उम्मीद हो तो वह उसे रखने के लिए पहले ही से गुत्थी सिलवा लेता है। (दिन., 6 अकतू. 1968, पृ. 10)

गुँथाना क्रि. (सक.) -- गूँथा जाना, हमारा इतिहास तीन सौ वर्षों से परस्पर गुँथा रहा है, जिसके साथ आज भी हम कुल संबंध में बंधे हैं। (दिन., 1 अक्तू., 1965, पृ. 14)

गुथीलापन सं. (पु.) -- उलझाव, पेचीदापन, जटिलता, अपने गुथीलेपन के कारण यह व्यवस्था उचित आदर प्राप्त नहीं कर सकी। (माधुरी, नव. 1928, खं. 2, सं. 1, पृ. 55)

गुदड़ी का लाल मुहा. -- गरीबी में पला-बड़ा होनहार व्यक्ति, वह सचमुच गुदड़ी का लाल था। (हंस, अक्तू. 99, रवी, का., पृ. 27)

गुदड़ी बाजार सं. (पु.) -- वह बाजार जिसमें पुरानी या टूटी-फूटी चीजें बिकती हों, कबाड़खाना, पश्चिम के गुदड़ी बाजार से हमारे कुछ लेखक अपनी वर्दियाँ खरीद लाए हैं। (वाग. : कम., अग.1997 पृ . 22)

गुदड़ी सं. (स्त्री.) -- फटे-पुराने कपड़े की ओढ़नी या बिछावन, (क)कमंडलु एवं गुदड़ी का कोई ग्राहक नहीं होता । (म.प्र.द्वि.रच., खं. 2, पृ. 151), (ख)दरिद्र की गुदड़ी में आपको कितने रुपए मिल सकेंगे ? (ग.शं.वि. रच., ख. 2, पृ. 248)

गुद्दी सं. (स्त्री.) -- सिर का पिचला भाग, उसने गुद्धी दबाने की हिदायत की। (स.से.त. : क.ला. मिश्र, पृ. 43)

गुनताड़ा सं. (पु.) -- तिकड़ाम, फेर, जुगाड़, (क)फखरूद्दीन जाने किस गुनताड़े में हैं। (दिन., 19 मई, 68, पृ. 39), (ख)इने-गिने राजा-महाराजा और श्रीमानों के ठाट से हमारी धनाढ्यता के गुनताड़े मिलाना हमारी दरिद्रता की हँसी उड़ाना है। (ग.शं.वि. रच., खं. 2, पृ. 247)

गुनना क्रि. (सक.) -- मनन करना, अनेक लोग पुस्तकों के केवल पन्ने पलटते हैं, उन्हें गुनते नहीं। (त्या.भू. : संवत् 1983 (6 दिस, 1992), पृ. 9)

गुप्पा-चुप्पा सं. (पु.) -- लुक-छिपकर काम करनेवाला, किसी गुप्पे-चुप्पे ने लिखकर रख दिया कि सुल्तान नरवर को जीत नहीं सका और थककर लौट आया . (फा.दि.चा.वृ.व.ला.व. समग्र, पृ. 712)

गुंफित वि. (अवि.) -- गुँथा हुआ, गूढ़ और गुंफित कथानक या विस्तृत आकार कहानी की विशेषताएँ नहीं है। (सर., जुलाई-दिस. 1931, सं 2, 258)

गुब्बारे की हवा निकलना या निकल जाना मुहा. -- प्रयास विफल हो जाना, बेशर्मी और सीनाजोरी की नई रणनीति पर काफी नगाड़ा बजाने के बावजूद गुजरात गुब्बारे की हवा निकल गई। (हि.ध., प्र.जो., पृ. 300)

गुमटिहा सं. (पु.) -- गुमटी में रहने या कार्य करनेवाला, सिवियन इवानक एक गुमटिहा था। (माधुरी : अक्तू. 1927, पृ. 666)

गुमान टूटना मुहा. -- घमंड चूर होना, चुनाव आयोग का यह गुमान बार-बार टूटा है कि राजनैतिक दलों को लोकहित के लिए बाध्य किया जा सकता है। (स.दा. : अ.नं. मिश्र, पृ. 43)

गुमान सं. (पु.) -- घमंड, अहंकार, आप हैं किस गुमान में, अभी तो यह सिर्फ घलुआ ही है। (म. क मतः क.शि., 28 मार्च 1925, पृ. 182)

गुर सं. (पु.) -- ढंग, तरीका, अँगरेज लोग व्यापारिक उन्नति के गुर से भलीभाँति परिचित हैं। (सर., जुलाई-दिस. 1931, सं 3, पृ. 452)

गुरज सं. (स्त्री.) -- गर्जना, घर-घर उत्सव की बांसुरी वहाँ मेघ गुरज के ताल पर बज उठी। (मधुः अग. 1965, पृ. 230)

गुरडम सं. (पु.) -- गुरूडम, गुरु बनकर अपनी पूजा कराने की पद्धति या प्रवृत्ति, इस गुरडम की सच्चाई केवल इतनी है कि वे नई दुनिया आया करते थे और जब-तब उनका लिखा छप जाया करता था . (हि.ध., प्र.जो., पृ. 279)

गुरबत सं. (स्त्री.) -- गरीबी, उन्होंने काले और गरीब अमेरिकियों की गुरबत दूर नहीं की। (दिन., 26 अक्तू. 1969, पृ. 31)

गुराँवट सं. (स्त्री.) -- अदला-बदली की शादी, दूसरा रास्ता था गुराँवट यानी भाई-बहन की शादी एक साथ दूसरे भाई-बहन के साथ हो जाए। (रवि., 18 जन. 1981, पृ. 18)

गुरिया सं. (स्त्री.) -- मनका, कुछ मोती गूँथ रही थीं और कुछ सोने के गुरिए भी पिरो रही थीं। (मा.च.रच., खं. 3, पृ. 110)

गुरुघंटाल सं. (पु.) -- महागुरु, गुरुओं का गुरु, बहुत बड़ा धूर्त व्यक्ति, (क)बैचारी सरस्वती के तो आठ वर्ष प्रयत्न करने पर भी इन गुरुघंटालों का आसन नहीं डिगा। (म.प्र.द्वि.रच., खं. 2, पृ. 259), (ख)विलायतवोलों के गुरुघंटाल मैक्समूलर साहब तो आर्य शब्द का असली अर्थ किसान ही बतलाते हैं। (गु.र., खं. 1, पृ. 429), (ग)इन्हीं में से कोई घाऊघप्प गुरु घंटाल किसी क्लब या समाज के सेक्रेटरी या खजांची बन बैठे (भ.नि., पृ. 22)

गुरुमार वि. (अवि.) -- गुरुद्रोही, हिंदू कृतघ्न एवं गुरुमार नहीं थे (गु.र., खं. 1, पृ. 103)

गुर्गा सं. (पु.) -- चमचा, पिछलग्गू, (क)गुर्गों के आग्रह से बचने के लिए स्वयं एक टैक्सी को बुलाया। (दिन., 7 फ़र, 1971, पृ. 9), (ख)हम अपने देशवासियों को वे सब घटनाएँ बतलाएँ, जिन्हें विदेशी शासक मंडली के गुर्गों ने हमारे देश में घटित किया है। (न.ग.र., खं. 4, पृ. 313)

गुर्बपरवरी सं. (स्त्री.) -- गरीबों का पालन-पोषण, क्या कहना है, उदारता हो तो ऐसी, गुर्बापरवरी हो तो ऐसी। सर., जून 1920, पृ. 336)

गुल खिलाना मुहा. -- बखेड़ा खड़ा करना, विस्मयकारी परिणाम दर्शाना, (क)यहाँ केंद्रीय कांग्रेसी राजनीति ने अपना गुल खिलाया। (दिन., 2 जून, 68, पृ. 20), (ख)देखऩा है कि अफगानिस्तान के साथ रूस की मैत्री संधि क्या गुल खिलाती है ? (रा.मा., सं. 1, पृ. 340)

गुल सं. (पु.) -- शोर, पाठकगण,आप कहेंगे कि पं. शाम शास्त्री जी ने ऐसी कौन सी नई बात सिद्ध की है, जिसके लिए इतना गुल। (सर., मार्च 1909, पृ. 116)

गुलगपाड़ा सं. (पु.) -- शोर, (क)सूर्यस्त होते ही उसे गुलगपाड़ा सुनाई दिया। (मधुकर, 16 नवं. 1940, पृ. 18), (ख)यह गुलगपाड़ा और अनुचित अभिलाषा देखकर धर्मपुरुष स्वयं दंड हाथ में लेकर आगे बढ़े। (सर., अक्तू. 1917, पृ. 187-88), (ग)चीन में एक अँगरेज तीन सिक्खों के साथ कहीं गुलगपाड़ा करता हुआ पकड़ा गाया। (सर., अग. 1922, पृ. 12)

गुलगुल वि. (अवि.) -- कोमल, मुलायम, रजाई मोरि गुलगुल भरयो दुनिया भैया। (काद., अक्तू. 1993, पृ. 120)

गुलगुलाना क्रि. (अक.) -- आस्वाद लेना, माँ अपने विश्वासों को अपने भीतर वैसे ही बैठो-बैठे गुलगुलाती रहती है। (स.भा.सा., मृ.पां., सित.-अक्तू. 98, पृ. 6)

गुलछर्रे उड़ाना मुहा. -- मजे लेना, (क)अपने राजप्रासाद में मौज के गुलछर्रे उड़ा रहा है। (मा.च.रच., खं. 4, पृ. 204), (ख)रईस और राजा जब तक उनका शोषण करने पर तुले हैं, उन्हीं की कमाई पर गुलछर्रे उड़ाते हैं। (सं. परा. : ल.शं. व्या., पृ. 256)

गुलामों का बाड़ा सं. (पु., पदबंध) -- दासों की बस्ती, मानो भारतवर्ष भारतवर्ष नहीं गुलामों का बाड़ा है, जहाँ कुली कबाड़ी रहते हैं। (सं. सा., पृ. 207)

गुलियाना क्रि. (सक.) -- चोंगे में भरकर (पशुओं को दवा)पुलाना, गाय को दवा गुलिया दी। (काद. : फर. 1967, पृ. 6)

गुल्ला सं. (पु.) -- मिट्टी का जमाया हुआ छोटा गोला, नहीं तो वह और भी अधिक क्रुद्ध होता हुआ अपने मंत्रित गुल्लों को फेंक-फेंककर मारता है। (सर., अक्तू. 1918, पृ. 211)

गुस्सावर वि. (अवि.) -- गुस्सैल, क्रोधी, फीरोज जहाँ एक ओर गुस्सावर थे, वहीं वे पुरमजाक भी थे। (काद. :सित. 1978, पृ. 26)

गुहार मचाना मुहा. -- पुकार लगाना, आह्वान करना, (क)महीनों से जयप्रकाश नारायण पागलों की तरह चुनावों को साफ-सुथरा बनाने की गुहार मचा रहे हैं। (रा.मा., सं. 1, पृ. 277), (ख)अखबारों ने गुहार मचा रखी है कि गोश्त के बिना दिल्लीवाले बोहला हैं। (काद., मई 1994, पृ. 21)

गुहार सं. (स्त्री.) -- पुकार, आक्रोशपूर्ण स्थिति में भिड़ पड़ने के पूर्ण गुहार की नौबत आती है। (दिन., 19 मई, 68, पृ. 42)

गूँगा ज्ञान सं. (पु., पदबंध) -- निष्प्रयोज्य ज्ञान, आधुनिक शिक्षा की इस भारी त्रुटि से हम अंत तक गूँगे ज्ञान का भारी बोझ लादे रहने के लिए अभिशप्त हैं। (सर., अक्तू. 1922, भाग-23, खं. 2, 4, पृ. 345)

गूँगे का गुड़ा मुहा. -- वह आनंद जिसे व्यक्त न किया जा सके, (क)अंग्रेजी न जाननेवाले गूँगे के गुड़ की तरह उन प्राचीन कवियों के प्रति कृतज्ञता का स्वाद नहीं ले सकते। (गु.र., खं. 1, पृ. 193), (ख)उस आनंद की व्याख्या गूँगे के गुड़ की मिठास की तरह अनिर्वचनीय हो जाती है। (काद. : जन. 1975, पृ. 59)

गूँथ सं. (स्त्री.) -- गूँथने का-सा चिह्न, गूँथान, टीके के स्थान पर कुछ गूँथ सी रह जाती है। (सर., जन. 1909, पृ. 16)

गूँथना क्रि. (सक.) -- एकजुट करना, एक साथ लाना, लीबिया, सिरिया और मिस्र के नेताओं ने अपने देशों को एक नए अरब संघ में गूथने की घोषणा की थी . (दिन., 5 सित., 1971, पृ. 5)

गूला सं. (पु.) -- लाठी के सिरे पर जड़ा लोहा, जमींदार का सिपाही लट्ठ का बंधा गूला जमीन पर दे मारकर बोला। (का. कार. : निराला, पृ. 33)

गेंड़री सं. (स्त्री.) -- वजन को संतुलित करने के लिए सिर पर कपड़ा या अन्य किसी चीज का बना हुआ आधार, चौमड़ी, गोरी नौकरशाही अपनी किस्मत की गेंरी पर पाप का घड़ा रखकर अपने घर वापस लौट जाएगी। (म. का मतः क.शि., 8 र्च, 1924, पृ. 137)

गेरना क्रि. (सक.) -- डालना, इस बहू की झोली में तो एक बच्चा गेरने की नौबत भी नहीं आई . (काद. : दिस. 1989, पृ. 75)

गेरू सं. (पु.) -- पशु जानवर, ढोर, मुसलमानों के गोरू अब हिंदुओं के खेतों को नहीं उजाड़ते। (सर., मई 1928, पृ. 549)

गैबी वि. (अवि.) -- आफत ढहानेवाला, आफती, भयंकर, इस गैबी गोले से बचे तो कोई लड़े। (सर., जून 1915, पृ. 342)

गैरिक वि. (अवि.) -- गेरुआ, गैरिक वेश में यह है। (काद., नव. 1980, पृ. 13)

गैरियत सं. (स्त्री.) -- बेगानापन, गैर होने की अवस्था या भाव, अब इस गैरियत को मिटाने के लिए पूरा प्रयत्न हो रहा है। (मा.च.रच., ख. 9, पृ. 213)

गैल सं. (स्त्री.) -- रास्ता, मार्ग, जीवन की गति एक पथरीली गैल बन गया। (काद. : दिस. 1994, पृ. 76)

गो योजक -- यद्यपि, गो उन्हें मतदान की आजादी प्राप्त है किंतु यह उन्हें वास्तविक शक्ति प्रदान नहीं करती। (कर्म ., 12 जून, 1948, पृ. 1)

गोईं सं. (स्त्री.) -- बैलों की जोड़ी, संयोग की बात, झूरी ने एक बार गोईं को ससुराल भेज दिया। (प्रे.स.क., पृ. 39)

गोंचना क्रि. (सक.) -- कोंचना, मुझे गोंचकर जगा दिया करें। (क्रा.प्रे.स्रो. : र.ला.जो., पृ. 158)

गोचर वि. (अवि.) -- प्रकट, वह साधन जिसके द्वारा यह आधार गोचर होता है। (निबंध : रामलाल सावल, श्या. सुं. दास, पृ. 5)

गोजाह सं. (पु.) -- नई डाल, जंगल गया और दातौन के लिए नीम का एक गोजाह लेकर लौटा . (का. कार. : निराला, हिंदी प्रचारक पुस्तकालय, वाराणसी, पृ. 17)

गोट बिठाना मुहा. -- गोटी बैठाना, तिकड़म रचना, वे आचार्यों से पढ़ने आते हैं, अखाड़ेबाजी करनेवालों या गोठ बैठानेवालों से नहीं। (दिन., 27 मई 1966, पृ. 20)

गोट बोठना मुहा. -- मेल या योग होना, बहुत आसानी से माकपा की गोट उनसे बैठ गई है। (ज.स. : 8 दिस., 1983, पृ. 4)

गोट सं. (स्त्री.) -- पार्टी, दावत, सभी लोगों की हमारी ओर से गोट थी (मधुकर, वर्ष-1, अंक-3, 1 नवं., 1940, पृ. 23)

गोटा सं. (पु.) -- वह पतला चमकीला फीता जो कपड़ों पर लगाया जाता है, सिर में एक पुरानी-धुरानी टोपी, जिसका गोटा काला पड़ गया है। (प्रे. स. क. : सर. प्रेस, पृ. 10)

गोटियाँ फिट करना या गोटियाँ बिठाना / बैठाना मुहा. -- तिकड़ाम भिड़ाना, गहरी चाल चलना, (क)अपनी गोटियाँ फिट करने और पार्टी में अपने समर्थकों को पक्का करने का टाइम मिल गया। (हि.ध., प्र.जो., पृ. 270), (ख)कृपलानी अब भी राजनीति में गोटियाँ बिठाने में लगे हैं। (रवि. 18 नव., 1978, पृ. 7) (ग)भारी प्रतियोगिता है ,आदमी को तरह - तरह की गोटियाँ बिठानी पड़ती है । (दिन .,19 सित . 1971 ,पृ . 40)

गोठिल वि. (अवि.) -- भोथरा, कुंद, मंद, (क)न जाने किस गोठिल अकिलवाले अहमक ने इस कहावत को प्रचलित कर रखा है। (भ.नि., पृ. 30)

गोड़ सं. (पु.) -- पैर, यहाँ से दो-तीन कोस पर उसने अपने हाथ-गोड़ धोये। (सर., फर. 1915, पृ. 88)

गोड़इत सं. (पु.) -- हरकारा, कोटवार, गोड़इत लोगों को तंबाकू खिलाता और हुक्का पिलाता रहा। (का. कार. : राला, पृ. 70)

गोड़ाई सं. (स्त्री.) -- गोड़ने की क्रिया या भाव, खुदाई, नई जमीन की गोड़ाई का ऊबड़खाबड़ नतीजा दिखाई देना चाहिए। (दिन., 2 जून, 68, पृ. 43)

गोड़े छतियों को ही नँवते हं कहा. -- अपने अपनों से ही प्यार करते हैं, बँटवारे के समय अपनों का हित सधता देखकर कहना ही पड़ता है कि गोड़े छतियों को ही नँवते हैं। (चं.श.गु.र., खं. 2, पृ. 386)

गोत बढ़ाना मुहा. -- विस्तार करना, वंश बढ़ाना, हिंदी पराए पूतों से अपना गोत बढ़ाने का अपना सनातन धर्म वह अपनी बोलियों मे ही नहीं, अपने नागर अवतार में भी निभाए चल पाती। (दिन., 18 जून, 67, पृ. 42)

गोते लगाना मुहा. -- डुबकी लगाना, मगन रहना, बिस्तर पर पड़े-पड़े मैं बिचारों में गोते लगाया करता हूँ। (कर्म., 29 मई, 1948, पृ. 8)

गोद-गाद लेना क्रि. (अक.) -- कलम चला लेना, थाड़ा -बहुत लिख लेना, हाँ दस-पाँच ऐसे अवश्य हैं जो थोड़ा-बहुत गोद-गाद लेते हैं। (सर., जन.-फर. 1916, पृ. 28

गोद-भरी वि. (स्त्री.) -- पुत्रवती, विस्तारवाली, फैलाववाली, अभिव्यक्ति तो मानो कला की ससुराल है, जहाँ यदि कला न जाए तो वह गोद-भरी या मोद-भरी नहीं हो सकती। (मा.च.रच, खं. 2, पृ. 362)

गोन सं. (स्त्री.) -- दुहरा बोरा, (जो बैल की पीठ पर लादा जाता है)कप्तान ने उस पर लदी हई गोनों में एक को खोलकर देखा, उसमें बड़े-बड़े थैले मिले। (सर., मई 1926, पृ. 592)

गोपन सं. (पु.) -- छिपाने की क्रिया या भाव, छिपाव, इसलिए अमेरिकन लोगों का इस गोपन के प्रति असंतुष्ट होना हम अनुचित समझते हैं। (न.ग.र., खं. 2, पृ. 269)

गोपनीयता की दीवार ढाहना मुहा. -- गोपीयता नष्ट कर देना, संचार साधनों ने समाज और जीवन को पारदर्शी बना दिया है, गोपनीयता की दीवारें ढाहा दी हैं। (ग.मं. : पत्र. चु., पृ. 55)

गोया¹ वि. (विका.) -- गोपनीय, छिपा हुआ, गुप्त, सत्संगति की महिमा कम से कम इस देश में गोई नहीं रह गई है। कुटजः ह.प्र.द्वि., पृ. 94)

गोया² यो. -- मानो, जैसे यही गोया उनकी पूँजी हुई। (म.प्र.द्वि.रच., खं. 2, पृ. 134)

गोरा गट्ट वि. (विका.) -- अत्यधिक गोरा, माँ बताती थीं-अरे अजीबिया तेरी बीनणी तो गोरी गट्ट थी . हाथ लगाने पर दाग पड़ जाता था। (काद., मार्च 1976, पृ. 151)

गोल बाँधना मुहा. -- घेरा बनाना, वे ठिठक गए और गोल बाँधकर खड़े हो गए। (सर., अग. 1922, पृ. 94)

गोल-मटोल वि. (अवि.) -- अस्पष्ट, गोल मोल, बेडौल, (क)उनका वक्त्य गोल-मटोल रहा, न हिंदी के पक्ष में न विपक्ष में। (दिन., 19 नव, 66, पृ. 41), (ख)इस गोल-मटोल वक्तव्य का यथार्थ में कुछ भी प्रभाव नहीं है। (कर्म., 19 अप्रैल, 1947, पृ. 1)

गोल सं. (पु.) -- समूह, झुंड, दल, (क)यदि और किसी ऐसे ही गोल से सामना हुआ तो उससे लड़े-भिड़े। (सर., अक्तू. 1919, पृ. 172), (ख)बिना बुलाए जानेवालों के गोल में भी बहुत कम दिखाई पड़े। (नव., जून 1953 , पृ. 20)

गोलंदाज सं. (पु.) -- गोला दागनेवाला, तोपची, एक दो पहाड़ी तोपखाने भी ऐसे हैं जिनके गोलंदाज भी सब हिंदुस्तानी हैं (सर., दिस. 1915, पृ. 345)

गोलबंद करना मुहा. -- एकजुट करना, उन्हें गोलबंदकरने के लिए पार्टी एकमत हो गई है । (हि.ध., प्र.जो., पृ. 356)

गोलाघोंटू वि. (अवि.) -- गाल घोटनेवाला, यातना देनेवाला, (क)एक गलाघोंटू कानून की रचना और होनेवाली है। (ग.शं.वि.र., खं. 2, पृ. 512), (ख)देश में तरह-तरह के गलाघोंटू कानून पास हो जाते हैं, जिससे प्रजा की स्वाधीनता दिन-ब-दिन कम होती जाती है। (ग.शं.वि.रच., खं. 1, पृ. 47)

गोह की तरह चिपकना मुहा. -- मजबूती से पकड़ना, जो देश गोवा को आज भी अपने साम्राज्. का अंग मानता था, जो अफ्रीका के उपनिवेशों से गोह की तरह चिपका हुआ था, (रा.मा., सं. 1, पृ. 243)

गौं सं. (स्त्री.) -- गरज, मनोरथ, अँगरेज शासक बस गौं की तलाश करते हैं। (म.का मत : क.शि., 6 मार्च, 1926, पृ. 117)

ग्रसना क्रि. (सक.) -- निगलना, ग्रस्त कर लेना, दबोच लेना, ...इसका लाज तुरंत करा आवश्यक है, नहीं तो वह पूरे संगठन को ही ग्रस लेगी। (दि., 18 जुलाई, 1971, पृ. 17)

ग्रह लेना मुहा. -- दबोच लेना ,ग्रस लेना , धीरे -धीरे मधु लिमये कि छाया ने समूचे (समूची) संसद को ग्रह लिया । (दिन . 16 सित . ,66 पृ . 18)

घघरकारी वि. (अवि.) -- घहर-घहर आवाज करनेवाला, युद्ध का घघरकारी रथ तैयार हुआ है। (कुटज : ह, प्र. द्वि., पृ. 25

घटा-घिरा वि. (विका.) -- घटा से आच्छादित, दुखों से आवृत्त, विपदा-भरा, आज एक वर्ष पहले के घटा-घिरे दिन याद करते हुए यह अपने आप से पूछें। (दिन., 2 सित., 66, पृ. 11)

घटाटोप वि. (अवि.) -- घटा की तरह आच्छादित करनेवाला, घना, (क)घटाटोप अंधकार छाया हुआ है। (काद., जून 1978, पृ. 9), (ख)अंग्रेजी की घटाटोप छत्रच्छाया को अक्षुण्ण रखकर भारतीय भाषाओं को पीछे धकेलना चाहते हैं। (हि. पत्र. के गौरव बां. बि. भट, पृ. 317)

घटाटोप सं. (पु.) -- घटा का आच्छादन, आच्छादन, आवरण, (क)आदर्श उपासना की कद्र वे लोग नहीं करते जिनकी आखें वर्तमान घटनाओं के घटाटोप से आवृत्त रहती हैं। (ग.शं.वि.रच., खं. 1, पृ. 324), (ख)प्रारंभ से ही एक-पर-एक विकट घटनाओं का घटाटोप है। (हंस, फर. 1938, पृ. 410), (ग)मेरे चारों ओर प्रकाश की चकाचौंध है, अधंकार का घटाटोप नहीं। (दिन., 28 अक्तू., 66, पृ. 42)

घटी सं. (स्त्री.) -- घाटा, हानि, वे अपनी संस्ता की पत्रिका की घटी की पूर्ति करें यह उनका दायित्व है (त्या.भू.: सं. 1986, (1927), पृ. 210)

घड़न सं. (स्त्री.) -- गढ़न, ब नावट, स्वरूप, आपको अपनी नाक या अपने कान पसंद न हों तो शल्य-चिकित्सा से उनकी घड़न बदलवाई जा सकती है । (दिन., 13 अग., 1965, पृ. 10)

घड़िया सं. (स्त्री.) -- छोटी घड़ा, घड़िया में पानी भरकर मुँड़ेर पर रखा . (रवि., 25 जन., 1981, पृ. 34)

घड़ियाली आँसू बहाना मुहा. -- दिखावटी दुख प्रकट करना, वह सामाजिक न्याय के घड़ियाली आँसू बहाकर न्यायपीठ को अपना पिट्ठू क्यों बनाना चाहती है ?(ज. स . 7 मार्च 1984 , पृ . 4)

घड़ी की सुइयों को पीछे घुमाना मुहा. -- प्रतिगामी कदम उठाना, जर्मनी को बाँटकर शासन-कार्य चलाना एक प्रकार से घड़ियों की सुइयों को पीछे घुमाने के सदृश्य मूर्खतापूर्ण होगा . (न.ग.र., खं. 2, पृ. 271)

घणी सं. (पु.) -- घरवाला, पति उसके घणी ने दूजा ब्याह कर लिया। (काद., मार्च 1976, पृ. 151)

घनगरज सं. (स्त्री.) -- धौंस, धमकी, किसी जीवित भ षा को आदेशों की घनगरज से नहीं दबाया जा सकता। (दिन., 09 मार्च, 69, पृ. 40)

घनघनाना क्रि. (अक.) -- गर्जना, गर्जन करना, सांप्रदायिक हिंसा में हिंदू समाज कोई कम नहीं झुलसा है और उन्माद में वह भी घनघनाया है। (हि.ध., प्र.जो., . 61)

घनघोर वि. (अवि.) -- अत्यंत घोर, विकट, प्रचंड, (क)विपत्ति की घनघोर घटा से अब निर्दयतापूर्ण बूँदें भी गिरना आरंभ हो गई है। (ग.शं.वि.र., खं. 2, पृ. 15) (ख)इस समय इस विषय पर घनघोर चर्चाएँ हो रही थीं कि कविता ब्रजभाषा में लिखी जाए अथवा खड़ी बोली में। (मा.च.रच., खं. 4, पृ. 195)

घनचक्कर सं. (पु.) -- मूर्ख आवारा, पागल, (क)अगला कदम दृढ़तापूर्वक बढ़ावे और नहीं तो उसकी बागडोर सदा के लिए सांप्रदायिक घनचक्करों के हाथ में चली जाएगी। (मधुकर, सित. 1944, पृ. 162), (ख)भारत-बिंब का निर्माण...बड़े-ब ड़े उलझाव और घनचक्कर पैदा करता है। (दिन., 17 अक्तू., 1971, पृ. 45)

घना वि. (अवि.) -- 1. घनिष्ठ, गहरा, मजबूत (क)भारत में जो क्षेत्र पड़ोस में पड़ते हैं उनके साथ रिश्ता घना होगा (दिन., 1 अग., 1971, पृ. 9), (ख)फिर पेट्रोल प्रचुर देशों से भी हमारे रिश्ते घने हुए। (रा.मा., सं. 1, पृ. 366), 2. बहुत अधिक, (क)अब थोड़े से घने पढ़े-लिखे कुलीन माने जाने लगे हैं। (बा.भ. : भ.नि., भाग-2, पृ.13)

घपलाघोट सं. (पु.) -- घपलेबाजी, विश्ववविद्यालय में व्याप्त प्रांतीयता और पदलिप्सा तथा भाषा के इस घपलाघोट में विद्यार्थी आवाज नहीं उठा पा रहे हैं। (दिन., 2 फर., 69, पृ. 182)

घमाघसी सं. (स्त्री.) -- घिस -घिस , खींचातान, लंबी ,घसीघसी के बाद नीलामों की लामबंदी मंद हो गई थी । (क . ला . मिश्र , त . प . या . , पृ . 182)

घर के धान पयाल में जाना या मिलना मुहा. -- गाँठ से पूँजी जाना या घर की पूँजी गँवाना, (क)यह ठीक नहीं, इससे बड़ी हानि होगी। (घर के भी धान पयाल में जाएँगे। (सर., अप्रैल 1920, पृ. 202), (ख)पं दुर्गाप्रसाद मिश्र ने समाचार-पत्र प्रकाशन से कुछ कमाई नहीं की, उल्टे घर के धान पायल में मिलाए। (रवि., 11 जन. 1981, प. 44)

घर के रहना न घाट के कहा. -- कहीं ठिकाना न लगना, ...कलाकारों की दुनिया में घर के रहे न घाट के उर्फ नर के रहे न नारायण के रहे मार्का अफसोस प्रकट किए जाने लगे। (दि., 9 जुलाई, 1965, प. 24)

घर में दाना नहीं अम्मा पीसने चलीं कहा. -- निरर्थक प्रयास के लिए उद्यत होना, आज कैलीपोर्निया की ओर अधिक काम मिलने की खबर लगी। पर घर में दाना नहीं अम्मा पीसने चलींवाली मसल हुई। सर., मार्च 1913, पृ. 140)

घर में भूँजी भाँग न होना मुहा. -- कुछ भी पल्ले न होना, निर्धन होना, घर में भूँजी भाँग नहीं, बाहर कागज का घोड़ा दौड़ते लाखों का कारबार फैलाए हुए बड़े मातबर और प्रामाणिक सेठजी..., (भ.नि., पृ. 89)

घर-गिरस्ती सं. (स्त्री.) -- घर-गृहस्थी, घर की वस्तुएँ और कामकाज, (क)तब घर-गिरस्ती के झमेले और ठूठ से काम-धंधों से थोड़ी देर उन्हें राहत मिलती है। (ते., द्वा.प्र.मि., पृ. 130), (ख)अपनी घर-गिरस्ती लेकर बैलगाड़ी पर ही बारह मास घूमते रहते हैं। (श्र.सं. : मैथि.गु., पृ. 24)

घर-घमंडी सं. (पु.) -- आत्माभिमानी, परम अहंकारी, एक बार एक घर-घमंडी यह डींग मार रहा था कि जो बात मैं नहीं जानता उसका जानना ही व्यर्थ है। (सर., मई 1922, पृ. 323)

घर-घालना सं. (पु.) -- घर को बरबाद कर देनेवाला, इस घर-घालने के कार्य को अग्रसर करने के लिए दानी भी निकल आए। (माधुरी, 31 मार्च, 1925, सं. 3, पृ. 424)

घर-घूमन वि. (अवि.) -- घर-घर घूमनेवाला, घर-घूमना, बस भैया घर-घूमन रहने भी दो, होली तो ह , पर आजकल हिंदी के पत्र में हँसी-मसखरी को असभ्यता समझते हैं। (गु.र., खं. 1, पृ. 113)

घरघाट क्रि. वि. -- करीब, लगभग, उसमें स्कूलों और कॉलेजों के छात्रों की सम्मिलित संख्या दो हजार के घरघाट पहुँच गई। (सर., जून 1926, पृ. 769)

घरघुसरा सं. (पु.) -- घरघुस्सू, घर से बाहर न निकलनेवाला, घरघुसरा बने रहने से दुनिया में काम नहीं चलता। (काद. : सित. 1978, पृ. 17)

घरघुस्सू वि. (अवि.) -- घर मे ही घुसा रहनेवाला, प्रेम ने कुछ-कुछ घरघुस्सू बना दिया था। (रा.द., श्रीला.शु., पृ. 264)

घरफूँक तमाशा देखना मुहा. -- क्षणिक आनंद के लिए अपना सर्वस्व लुटाना, घरफूँक तमाशा देखनेवाले सुकर्ण का शासन मनमाने निर्णयों का शासन था। (दिन., 16 सित., 66, पृ. 38)

घरफूँक वि. (अवि.) -- घर फोड़नेवाला, घर को नष्ट करनेवाला, इंदिरा गाँधी की घरफूँक कुचालों के कारण वह नहीं हो पाया। (स.ब.दे.: रा.मा. (भाग-दो), पृ. 15)

घरफोड़ वि. (अवि.) -- घर तोड़नेवाला, हमने शुरुआत के काल में घरफोड़ नीति के बल पर शासन किया । (काद., जन. 1980, पृ. 146)

घराट सं. (पु.) -- रहट, तुम्हारी औरत घऱाट चला रही है। पीसने का अनाज भी पीठ पर लादे हुए मैंने देखा है। तुम कुछ मदद नहीं करते। (नव., जन. 1952, पृ. 34)

घरारी सं. (स्त्री.) -- घर की जमीन, हम अपना घरारी बेचेंगे। किसी के बाप की घरारी नहीं बेचते हैं। (रव., 12 अप्रैल, 1981, पृ. 39)

घरिया सं. (स्त्री.) -- वह मिट्टी का पात्र, जिसमें सुनार सोना-चाँदी गलाते हैं, समय रूपी कारीगर ने संसार के पुराने विचारों, संस्थाओं और सत्ताओं को सनातन काल से काम करती रहनेवाली अपनी सुघर घरिया में डाल दाय है। (ग.शं.वि. रच., खं. 2, पृ. 546)

घरू वि. (अवि.) -- निजी, अपनी घरू मिल के लिए शेयर होल्डर की रकमों की बलि चढ़ाती है। (मा.च.रच., खं. 10, पृ. 58)

घरोंदा सं. (पु.) -- छोटा घर, घरौंदा, गुट, किंतु अंततः हिंदू समाज के विशाल आँगन में ऊबड़-खाबड़ घरोंदे बनाकर छोड़ गए। (दिन., 12 अक्तू., 1969, पृ. 11)

घरोपा सं. (पु.) -- आपसदारी, घर के जैसा संबंद, अंग्रेजों के लिहाज से वे बिलकुल माकूल थे क्योंकि ब्रिटिश शासक वर्ग से उनका घरोपा था। (रा.मा., सं. 2, पृ. 220)

घरोबा सं. (पु.) -- घरोपा, घर जैसा संबंध, घरेलू संबंध, उस परिवार से हमारा बड़ा घरोबा है। (काद. : जन. 1968, पृ. 14)

घरौंदा सं. (पु.) -- घर, गुट, धड़ा, आज को साहित्यकार अपना-अपना घरौंदा लिए बैठे हैं (रवि., 11 अक्तू., 1981, पृ. 22)

घलवाना क्रि. (सक.) -- चलवाना, दो-चार सिलपी (बिना गोली के खाली बारूद भरकर किया जानेवाला)फायर घलवा दिए। (माधुरी, वर्ष-7, खं., 2 फर. से जुलाई 1929, पृ. 415)

घलुआ सं. (पु.) -- खाने की वह थोड़ी सी वस्तु, जो दुकानदार ग्राहक को प्रसन्न करने के लिए अतिरिक्त रूप से देता है, नमूना, आप हैं किस गुमान में, अभी तो यह सिर्फ घलुआ ही है। (म. का मतः क.शि., 28 मार्च, 1925, पृ. 182)

घल्लूघारा सं. (पु.) -- उलटा काम, घपला, गड़बड़ी, जो कर्मचारी अपने अफसरों की दलाली और दरबारी करेंगे वे समय आने पर घल्लूघारा भी करेंगे। (किल., सं. म. श्री., पृ. 228)

घसारा सं. (पु.) -- टूट-फूट, घिसाई, कागज की कीमत, अखबार का दफ्तरी खर्च, मशीनों की खरीदी और घसारा, मालिकों का मुनाफा, सबका सब विज्ञापन राशि से वसूला जा सकता है। (रा.मा. संच. 2, पृ. 385)

घसीट सं. (स्त्री.) -- लीक, राह, मैने हरीशचंद्र का अनुकरण करेक यह घसीट नहीं पकड़ी। (चं.श.गु.र., खं. 2, पृ. 383)

घस्सड़ वि. (अवि.) -- हर काम में विलंब करनेवाला, हमारे बराबर घस्सड़ कौम दूसरी कोई नहीं है। (भ.नि., पृ. 167)

घस्सा सं. (पु.) -- चकमा, बेटे ने घस्सा दिया-पिताजी, मैं रात में उठ-उठकर पढ़ता था। (स.से.त. : क.ला.मिश्र, पृ. 93)

घहर-घहर क्रि. वि. -- घहर-घहर (ध्वनि)करते हे, नदी का वेग किनारों को काटता हुआ घहर-घहर बहता है। (ग.शं.वि.रच., खं. 1, पृ. 329)

घाऊ-घप्प वि. (अवि.) -- सब-कुछ खाया हजम कर जानेवाला व्यक्ति, इन्हीं में से कोई घाऊ-घप्प गुरुघंटाल किसी क्लब या साज के सेक्रेटरी या खजांची बन बैठे। (भ.नि. पृ. 22)

घाघ वि. (अवि.) -- चालाक, धूर्त, (क)आपकी विलक्षण तर्कशक्ति के चक्कर में तो बड़-बड़े घाघ वकील तक हो-हवास खो बैठे हैं। (मा.च.रच., खं. 4, पृ. 187), (ख)ओझा गए, तांत्रिक गए, कहते हुए-उफ, यह बड़ी घाघ है। (बे. ग्रं., प्रथम खं., पृ. 40)

घाँघरा बिगाड़ना मुहा. -- बेइज्जत करना, असहयोग के जमाने में गुंडाशाही ने नौकरशाही का घाँघरा बिगाड़ दिया था। (म. का मतछ क.शि., 27 जून, 1925, पृ. 89)

घाट लगाना मुहा. -- किनारे लगना, स्पर्श होना, हालाँकि घाट लगने यानी के प्रत्यक्ष स्पर्श का प्रयत्न नहीं किया गया। (दिन., 7 जन., 1966, पृ. 23)

घाट-बाट का बखेड़ा मुहा. -- रास्ते का झमेला या परेशानी, यदि शरीर से लाचार होकर समय पर न पहुँच सके तो हम लोगों का क्या अपराध ? राह में घाट-बाट का बखेड़ा अलग। (सर., जून 1928, पृ. 633)

घाता सं. (पु.) -- घलुआ, सात वर्ष व्यतीत होने पर सवा छह की सैकड़ा वार्षिक लगान में वृद्धि की जा सकती है और नजराना घाते में मिलता है। (सर., जुलाई 1918, पृ. 8)

घाम. सं. (पु.) -- धूप, माघ-पूस का घाम जितना गरीबों को अच्छा लगता है उतना अमीरों को नहीं। शि.पू.र., खं. 3, पृ. 37)

घामड़ वि. (अवि.) -- मूर्ख, मुझे तो वह घामड़ लगती हैं। (काद. : दिस. 1966, पृ. 83)

घामड़पन सं. (पु.) -- मूर्खता, माकपा ने यह सब ऐसे घालमेल और घामड़पन से किया कि बात बिगड़ती ही चली गई। (हि.ध., प्र.जो., पृ. 263)

घालना सं. (पु.), क्रि. (सक.) -- नष्ट करना, बरबाद कर देना, (क)अनंत घर घालने के बाद भी तुझे तृप्ति नहीं। (म.प्र.द्विर.रच., खं. 2, पृ. 251), (ख)उसने अब तक कितने घर घाले हैं। (म.का मत : क.शि., 3 नव., 1923, पृ. 121)

घाव हरा हो जाना मुहा. -- भूला हुआ कष्ट, दुख याद हो आना, जिन्हें पुराना दाह याद आ जाता है या जो पुराने घावों के हरे हो जाने से ईर्ष्या के चक्र में पिसने लगते हैं, उन्हें ईश्वर ही सुमति दे। (गु.र., खं. 1, पृ. 388)

घासलेटी वि. (अवि.) -- निकृष्ट, स्तरहीन, आजकल घासलेटी साहित्य खूब छप रहा है। (काद. : जन. 1975 , पृ. 11)

घिग्घी बँधना या बंध जाना मुहा. -- भय से आतंकित होने के कारण गला रूँध जाना, उसने जब बंदूक चलाई तो सबकी घिग्घी बँध गई। (रा.निर., समी., फर. 2007, पृ. 17)

घिघियाना क्रि. (अक.) -- दीनभाव से निवेदन करना, गिड़गिड़ाना, (क)लड़की घिघिया रही है मुझे जाना ही चाहिए। (बुधु.बे.: बे.श.उ., पृ. 13), (ख)अपने को दोषी मान रहे थे और घिघिया-घिघियाकर माफी माँग रहे थे । (ग.शं.वि. रच., खं. 2, पृ. 315)

घिघियाहट सं. (स्त्री.) -- घिघियाने की क्रिया या भाव, मिन्नत, चिरौरी, ...और न वह इस बात को सह सकता है कि एक चक्रवर्ती व्यक्तित्व सारे देश के स्वरों को कायर और आज्ञाकारी घिघियाहट में बदल दे। (रा.मा. संच. 1, पृ. 390)

घिचपिच वि. (अवि.) -- गिचपिच, अस्पष्ट, अव्यवस्थित, (क)क्या यह भारत का कर्तव्य नहीं कि घिचपिच प. बंगाल को आबादी के विस्फोट से बचाने के लिए वह जगह माँगे। (रा.मा. संच. 2, पृ. 50), (ख)ये सारे मुद्दे बहुत घिचपिच हो गए हैं। (रा.मा.संच. 2, पृ. 108)

घिनाना क्रि. (अक.) -- घृणा करना, वाल्ही के रीति-रिवाज से कुरुक्षेत्र और आर्यावर्त के निवासी बहुत घइनाते थे। (गु.र., खं. 1, पृ. 315)

घिस-घिसाकर क्रि. वि. -- घिर-पिटकर, शब्द गढ़े नहीं जा सकते, बल्कि प्रयोग से घिस-घिसाकर अर्थ ग्रहण कर लेते हैं। (दिन., 9 नव., 1969, पृ. 28)

घिसघिस सं. (स्त्री.) -- रगड़ाई, सतत प्रयास, (क)बहुत हो गई एक ही तरह की घिसघिस अब इसे बदला जाना चाहिए। (स.का वि. : डा. प्र. श्रो., पृ. 83), (ख)बरसों की घिसघिस के बाद आज उसमें (राज. समाचार)लधन और पुराण दो लेख अच्छे लिखे हैं। (गु.र., खं. 1, पृ. 409)

घिसाई सं. (स्त्री.) -- खटोर परिश्रम, छह-आठ साल की स्कूली घिसाई के बाद जब विद्यार्थी निकलता है तो वह साहित्य समझने के लिए सबसे अधिक नाकाबिल होता है। (काद. : जन. 1975, पृ. 47)

घी के दीये जलाना मुहा. -- खुशियाँ मनाना, सर माइकेल ओडायर ने भी घी के दीये जलाए हैं। (न. ग.र., खं. 2, पृ. 23)

घी चुपड़ी देखना मुहा. -- समृद्धि देखना, एक-दूसरे की घी चुपड़ी दखकर निजलिंगप्पा और हनुमंतैया की झाँय-झाँय से दोनों का जो चित्र सामने आया है वह अभी तक के जाने चौखटे में फिट बैठ नहीं रहा है। (दिन., 6 क्तू. 1968, पृ. 17)

घी भी न लगे और पक्की हो कहा. -- मुफ्त में पा जाने की इच्छा होना, हम चाहते हैं कि घी भी न लगे और पक्की हो (म. का मत : क.शि., 24 नव., 1923, पृ. 126)

घुटने के बल रेंगना मुहा. -- दीनभाव दरशाना, पेट भरने के लिए प्रभुता के सम्मुख घुटनों के बल रेंगने का रोजगार किया करते हैं। (मा.च.रच., खं. 2, पृ. 295)

घुटने टेकना / टेक देना मुहा. -- हार मान लेना, समर्पण कर देना, (क)जापान ने घुटने टेक दिए हैं। (न.ग.र., खं. 2, पृ. 282), (ख)आक्रांता को लगता है कि ह म उसकी गीदड़ भभकियों से घुटने टेक देंगे। (गुटज : ह.प्र.द्वि., पृ. 10), (ग)ढाका में पाक सेनाध्यक्ष नियाजी ने घुटने टेक दिए। (भारत, 18-12-1971)

घुटा हुआ वि. (विका.) -- चालाक, धूर्त, जो लोग धरे-पकड़े गे उन पर कोई मुकदमा नहीं चला, तो क्या हुआ, थे तो वे बड़े पुराने पापी और पूरे घुटे हुए। (ग.शं.वि. रच., खं. 3, पृ. 317)

घुटा-घुटाया वि. (विका.) -- रटा-रटाया, संगीत में केवल घुटी-घुटाई तानों से काम नहीं चलता . (दिन., 9 दिस., 66, पृ. 44)

घुट्टी सं. (स्त्री.) -- 1 जन्म के समय नवाजात शिशु को पिलाई जानेवाली दवा, तनातनी भारत, पाकिस्तान संबंध की घुट्टी मे पड़ी है। (दिन., 3 अक्तू. 1971, पृ. 15), 2. जन्मकाल, मानवता के संस्कार घुट्टी में मिले हैं। (स.दा. : अ.नं. मिश्र, पृ. 24)

घुट्ठी के साथ मिलना मुहा. -- जन्म काल से प्राप्त होना, यह वह तालीम है जो घुट्ठी के साथ मिली है, फिर भला इसे कैसे भुला सकते हैं। (गु.र., खं. 1, पृ. 448)

घुट्ठी चटाना मुहा. -- घुट्टी पिलाना, पेशबंदी करना, जल्दी-जल्दी मुद्रा अवमूल्यन की घुट्टी चटानी पड़ेगी। (दिन, 17 जून, 1966, पृ. 24)

घुड़कता वि. (विका.) -- गुस्से से भरा, उसकी घुड़कती आँखें एक झोंपड़े से झाँकती हैं। (दिन., 30 दिस., 66, पृ. 24)

घुड़कना क्रि. (सक.) -- घुड़की देना, (क)हेड़कांस्टेबल ने उसे घुड़क दिया। (रा.द., श्रीला.शु., पृ. 206), (ख)अध्यापक जरा-जरा भूलों पर उसे घुड़क देते थे। (सर., अक्तू. 1922, भाग-23, खं. 2, सं. 4, पृ. 234)

घुड़की सं. (स्त्री.) -- डराने-धमकाने के लिए कही गई बात, फटकार, डाँट, (क)राष्ट्रीय झंडे के जुलूस को घुड़की और बंदूक के कुंदों के भय से वापस ले जाना ठीक नहीं। (मा.च.रच., खं. 2, पृ. 108), (ख)कागज कारे करते रहे और माँ-बाप मास्टरों की झिड़िकयाँ और घुड़कियाँ खाते रहे। (हि.ध., प्र.जो., पृ. 88), (ग)शत्रु अपनी घुड़कियों के बावजूद एक अविस्मरणीय शिक्षा ग्रहण कर चुका है। (दिन., 1 अक्तू. 1965, पृ. 13)

घुणाक्षर न्याय सं. (पु., पदबंध) -- घुन के चलने से पड़नेवाले टेढ़े-मेढ़े निशान का दृष्टांत, आड़ा-तिरछा निर्णय, (क)क्या हुआ यदि घुणाक्षर न्याय से किसी का कोई वाक्य सुंदर हो गया। (सा.मी. : कि.दा.वा., पृ. 10), (ख)इसी निरंकुशता के कारण फ्रांस के राजा ने घुणाक्षर न्याय से अपनी प्रजा की रक्षा रईसों से की थी। (सर., जुलाई 1926, पृ. 35)

घुन लगना मुहा. -- कीड़ा लगना, क्षय होना, कमजोर होना, विक्टोरिया के घोषणापत्र में घुन लग गया। (म.का मत: क.शि., 23 जन. 1926, पृ. 202)

घुनघुना सं. (पु.) -- (बच्चों के बहलाने का)झुनझुना हम मुसलमान वोटर को कौन सा घुनघुना दिखलाएँ कि वह हमारी तरफ आए ? (न.ग.र., खं. 4, पृ. 297)

घुन्ना वि. (विका.) -- चुप्पा, चुप्पी साधे रहनेवाला, (क)गोडसे एक घुन्ना, अविवाहित उग्रवादी था जो मराठी में धाराप्रवाह भाषण दे लेता था . (रा.मा.संच. 2, पृ. 343), (ख)मोहन तो बड़ा ही घुन्ना है। 9काद., सित. 1977, पृ. 10), (ग)क्या जनता में इस कदम के प्रति वैसी घुन्नी नाराजी मौजूद है, जैसी कि आपातकाल क दमन के खिलाफ देश में पैदा हुई थी ? (रा.मा. संच. 1, पृ. 305)

घुमड़न सं. (स्त्री.) -- घुमड़ने की क्रिया या भाव, भूरा रंग मन पर अपनी परत नहीं जमाता, रह-रहकर एक घुमड़न की कौंध के रूप में प्रकट होता है। (दिन., 25 अप्रैल, 1971, पृ. 43)

घुमंतू वि. (अवि.) -- घूमते रहनेवाला, एक जगह स्थायी रूप से न रहनेवाला ये घुमंतू कलाकार स्थानीय बाजार से ही अपना अधिकांश कच्चा माल खरीदते हैं। (काद., मई 1987, पृ. 151)

घुमा-फिराकर कहना मुहा. -- लाग-लपेट से कहना, उन्होंने दो-टूक उत्तर न देकर कुछ घुमा-फिराकर ऐसी बात कहीं..., (दिन., 15 दिस. 1968, पृ. 21)

घुमाव-फिराव सं. (पु.) -- चक्कर, चक्करबाजी, घपला, बहुत सोच-विचार और घुमाव-फिराव के पश्चात् यह निर्णय हो पाया। (ग.शं.वि. रच., खं., 2, पृ. 166)

घुमेर सं. (पु.) -- चक्कर, आदत ऐसी कि न खाए-पिए तो घुमेर आने लगे, मन उड़ा-उड़ा लगे . (क.ला.मिश्रः त.प.या., पृ. 149)

घुरकना क्रि. (सक.) -- घुड़कना, डाँटना, धमकाना, महाराज ने दरोगा को खूब घुरका। (नव.छ जुलाई, 1958, पृ. 17)

घुलावटी वि. (अवि.) -- घुला देनेवाला, लेकिन हिंदी कविता घुलावटी तेजाब की तलाश में गत्विक धार्मिक अनुभूमि पर ही टिककर नहीं बैठ गई। (दिन., 10 अक्तू. 1971, पृ. 41)

घुसड़पंच सं. (पु.) -- जबरदस्ती पंच या निर्णायक बननेवाला, उपक्रम और उपसंहार की अनुरूपता के विषय में घुसड़पंच बनकर टाँग अड़ाना दखलकर मकूलात का दर्जा रखता है। (मा.च.रच., खं. 9, पृ. 445)

घुसेड़ना क्रि. (सक.) -- जबरदस्ती डालना, लगाना, ठूँसना, (क)लिवार्नर साहब की यह पुस्तक बलात्कार से सभी युनिवर्सिटी कहीं मिडिल, कहीं एंट्रेंस और कहीं एफ.ए. में घुसेड़ी गई । (चं.श.गु.र., खं. 2, पृ. 326), (ख)जबरदस्ती फारसी और अरबी के शब्द घुसेड़ दिए जाते हैं। (सं.परा. : ल.शं.व्या., पृ. 38)

घुस्सू सं. (पु.) -- घुसनेवाला सदस्य, महात्मा ने कौंसिल घुस्सुओं की इज्जत बाल-ब ल बचा ली। (म.का मतछ क.शि., 21 जून, 1924, पृ. 157)

घूम-घुमैया वि. (अवि.) -- चक्करदार, सर्पाकार, उसे चाहिए कि वह अपने भूत जीवन की घूम-घुमैया चढ़ाई की ओर एक बार सचेत होकर दृष्टिपात करे। (ग.शं.वि.रच., खं. 1, पृ. 64)

घूमंतू आँख सं. (स्त्री., पदबंध) -- निरंतर घूमनेवाले की दृष्टि, ऐसे बीसियों स्थल होंगे जो किसी घूमंतू आँख की सराहना का इंतजार कर रहे हैं। (रा.मा.संच. 2, पृ. 324)

घूरा सं. (पु.) -- कूड़े का ढेर, घूरे-घूरे से उन्हें एक-एक बीन लेना आज सदा से जरूरी हो उठा है। (दिन., 16 जुलाई, 67, पृ. 40)

घोखना क्रि. (सक.) -- याद करना, रटना, (क)कोई भले ही वेदांत घोख डाले, पर बिना यथार्थ अनुभव के ... तमाम शब्द बेदाँत पोपले। (माधुरी: अग.-सित. 1928, पृ. 77), (ख)उसके कुछ चुने हुए शब्द और फिकरे घोखकर हमारे नौजवान कम्युनिस्ट बन जाते हं। (सर., भाग 30, खं 1, जन-जून 1929, पृ. 16), (ग)जान पड़ता था क भोजन विषयक कोई अमरकोश घोख गए हैं। (सि.पू.र., खं. 4, पृ. 130)

घोंघआ-बसंत वि. (अवि.) -- परममूर्ख, (क)लक्ष्मी के कृपात्र प्रायः घोंघा-बसंत होते हैं। (नि.रच.: श्या, दा., मा.मि., पृ. 6), (ख)परंतु हमारे घोंघा बसंत व्यवसाय करते हैं आँगरेजों के लिए। (म.का मत: क.शि ., 20 सित. 1924, पृ. 166), (ग)क्या इन लोगों ने हिंदुस्तानियों को घोंघा-बसंत बनाने के लिए ही उनके देश का शासन-सूत्र अपने हाथ में लिया है। (म.प्र.द्वि., खं. 15, पृ. 461)

घोंघा सं. (पु.) -- खोल, आवरण, झमेले से दूर रहने के लिए तटस्थल की ढाल ओढ़कर हम तमाशबीन की तरह अपने घोंघे में सत्यमेव जयते के भरोसे बैठे रहे। (दिन., 7 जन. 1966, पृ. 11)

घोंघापंथी सं. (स्त्री.) -- मूर्खता, दकियानूसी, उनकी तथाकथित घोंघापंथी से उसे खींचकर बाहर निकालें। (दिन., 10 जन., 1971, पृ. 9)

घोंघाबसंती वि. (विका.) -- घोंघा-बसंत, परममूर्ख, बुद्धिहीन, बल्कि उस समय के भारतीय तात्त्विक अध्यात्मवाद के आगे भी घोंघाबसंती लगने लगा था। (दिन., 17 अक्तू. 1971, पृ. 47)

घोंघी सं. (स्त्री.) -- सिर पर ओढ़ने का वस्त्र, उसने एक मैली धोती कंधे पर रखी, कंबल की गोंघी बनाई, दाएँ हाथ में लाठी थामी, बाएँ में लोटा। (सर., जून 1928, पृ. 633)

घोंचू वि. (अवि.) -- मूर्ख, बुद्ध, देश के सारे लीडर घोंचू और कैसे कोंपर सिद्ध हुए हैं कि देखकर हँसी नहीं रुकती। (म. का मत: क.शि., 3 सित., 1927, पृ. 98)

घोट जाना मुहा. -- घूँट जाना, हजम कर लेना, पचा जाना, ग्राहकों की सं. 200 से अधिक कभी नहीं हुई। इनमें से भी बहुत से ऐसे नादिहंद निकेल कि साल भर में एक रुपया चंदा भी घोट गए। (ब्रा.स्मृ.: शि.स.मि., पृ. 14)

घोंटना क्रि. (सक.) -- रटना, सब विषयों को अंग्रेजी में ही घोंटना चाहिए। (मा.च.रच, खं. 2, पृ. 54)

घोड़ा मंडी सं. (स्त्री.) -- (घोड़ों की)खरीद-फरोख्त की जगह, इससे विधायकों की घोड़ा-मंडी खुल जाएगी। (हि.ध., प्र.जो., पृ. 236)

घोमची सं. (स्त्री.) -- भीगने से बचने का ओढ़ना, टाट की घोमची ओढ़कर बरसते पानी में अपने कामों में संलग्न रहेत हैं। (कुं.क.: रा.ना.उ., पृ. 30)

घोरा सं. (पु.) -- टीला, देखते-देखते रेत के घोरे की तरह बिखर गया। (हि.ध., प्र.जो., पृ. 163)

घोलम-घोल सं. (स्त्री.) -- गड्ड-मड्ड होने का भाव, मनसूबों की घोलम-घोल तो मन में बहुत हुई किंतु रहे वही ढाक के तीन पात। (क.ला.मिश्र: त.प.या., पृ. 214)

चकपकाना क्रि. (अक.) -- चौंकना, ...मानो जंगल में घूमते शेर को घोड़े ने सूँघ लिया हो, और वह चकपकाकर भाग गया हो। (रा.मा.संच. 1, पृ. 81)

चकमा देना मुहा. -- धोखा देना, कुछ समय पहले द्वार का प्रसाद मिश्र ने भी उन्हें चकमा दिया था। (दिन., 13 अक्तू. 1968, पृ. 19)

चकमा सं. (पु.) -- धोखा, भुलावा (क)मुख्यमंत्री के मंत्रिमंडल में तत्कालीन हेर-फेर न करने के निर्णय को अंतुष्ट वर्ग एक चके के रूप में ले रहा है। (दिन., 10 अप्रैल, 1970, पृ. 20) (ख)आनंदमूर्ति ने सबको एक साथ सरेआम चकमा देने का एक नया तरीका ईजाद कर लिया।9दिन., 14 से 20 मार्च, 1976, पृ. 24), (ग)वे लोग आपके चकमे में आ गए . (सर., सित. 1921, पृ. 155)

चकरदंड सं. (पु.) -- व्यर्थ प्रयास, ... जिनके बौद्धिक चकरदंड उन्हें अंड-बंड रसांदोलन करते रहने के अतिरिक्त और कुछ नहीं सिखाते ? (न.ग.र., खं. 3, पृ. 273)

चकरबा सं. (पु.) -- बखेड़ा, तुम क्यों इस चकरबे में पड़ते हो। (काद., अग. 1982, पृ. 10)

चकराना क्रि. (अक.) -- भ्रमित या हतप्रभ हो जाना, (क)जिसके सामने अमेरिका की भारी-भरकम सैनिक शक्ति चकरा रही है (दिन., 03 सित., 67, पृ. 36), (ख)पहले ही झुँझलाई और चकराई हुई सभ्यता का सिर आध्यात्मिक ही नहीं ..., (दिन., 21 फर. 1965, पृ. 45), (ग)चकराते हुए कह रहे हैं---सरल हिंदी, उर्दू मिश्रित हिंदी। (चं.श.गु.र., खं., 2, पृ. 363)

चकरानेवाला वि. (विका.) -- आश्चर्यचकित करनेवाला, उन्हीं का पोता पाणिनि था जो दुनिया को चकराने वाला सर्वांग सुंदर व्याकरण हमारे यहाँ बना गया। (गु.र., खं. 1, पृ. 103)

चकला सं. (पु.) -- छोटी जागीर, चंद्रगुप्त पहले पाटलिपुत्र के ईर्द-गिर्द कुछ ही चकलों प राज्य करता था। (सर., नव. 1918, पृ. 256)

चकाचक क्रि. वि. -- अत्यधिक मात्रा में, खूब, होली के दिन दरिद्र भारत के घर-घर में चकाचक पुए की कड़ाहियाँ गरगराएँगी। (म.का मतछ क.शि., 15 मार्च, 1924, पृ. 25)

चक्कर में आना मुहा. -- भ्रमित होना, फेर में पड़ना, यह नितांत संभव है कि अनजान मनुष्य उसे देखकर चक्कर में आ जाए। (सर., जुलाई 1922, पृ. 48)

चक्कर में पड़ना. मुहा. -- फेर में पड़ना, झाँसे में आ जाना, अब वे पुरानी शक्ति संतुलनवाली राजनीति के चक्कर में पड़े हुए हैं। (न.ग.र., खं. 2, पृ. 272)

चक्का सं. (पु.) -- चक्र, पहिया, लेकिन इतिहास का चक्का बहुत धीरे घूमता है। (रा.मा.संच. 1, पृ. 94)

चक्की में कंकर डालना मुहा. -- अनर्थ करना, जो अमेरिका के धनियों को बर्मा में खान के सुभीते दे चुका है, वह टाटा के विश्वविद्यालय की चक्की में कंकर डाले। (गु.र., खं. 1, पृ. 334)

चक्रम वि. (अवि.) -- सिरफिरा, वह प्रोफेसर तो आधा चक्रम है। (नव., मार्च 1952, पृ. 98)

चखचख चलना मुहा. -- विवाद चलना, कितने ही अखबारों से जब तब चखचख चली। (बा.गु. : गु.नि.सं. झा.श., खं. 5, पृ. 335)

चखचख मचाना मुहा. -- शोर-शाराबा करना, वाद-प्रतिवाद करना, पेपेन की नई आर्थिक योजना को लेकर जर्मी में काफी चखचख मची हुई है . (नि.वा. :श्रीना. च., पृ. 848)

चखचख सं. (स्त्री.) -- झिकझिक, तूतू-मैंमैं, (क)सारी चखचख इस बात को लेकर है कि मृत्यु भूख से हुई है या नहीं। (दिन., 16 दिस., 66, पृ. 25), (ख)सिर्फ गाँव के लोगों ने थोड़ी बहुत चखचख की, मगर बाद में वे भी ठंडे पड़ गए। (दिन., 5 जुलाई, 1970, पृ. 42), (ग)हिंदुस्तानी मेंबरों और हठीले सरकारी गवाहों से परस्पर चखचख भी हो गई । (सर., जन. 1920, पृ. 51)

चखर-चखर चलना मुहा. -- बड़बड़ करना, तुम्हारी जबान चरखे सी चखर-चखर चल रही है। (रवि., 19 जुलाई, 1981, पृ. 43)

चंग पर चढ़ाना मुहा. -- अनावश्यक बढ़ाव देना, मनोहर को उन्होंने चंग पर चढ़ाया। (निराला-का. कार., पृ. 7)

चगड़-बगड़ सं. (पु.) -- झिकझिक, ताँगेवाले को लौटाने को कहा। उसने बड़ा चगड़-बगड़ किया। (सर., नव. 1941, पृ. 446)

चंगा वि. (विका.) -- स्वस्थ , नीरोग, घर पर कुछ दिनों में वे चंगी हो गई । (सर., अप्रैल 1916, पृ. 243)

चंगुल सं. (पु.) -- पंजा, मुट्ठी, पाकिस्तान चीन के चंगुल में नहीं है . (दिन., 8 अप्रैल, 1966, पृ. 15)

चंगेरी सं. (स्त्री.) -- डोलची, फूल रखने की छोटी चंगेर, चंगेरी में रखते ही जब वह उड़ जाती तब पता चलता कि वह तितली है। (सर., अक्तू.-नव. 1943, पृ. 527)

चंचु-प्रवेश सं. (पु.) -- प्राप्त किया हुआ अल्पज्ञान, (क)दर्शन के अध्ययन में अभी उसका चंचु-प्रवेश ही हुआ है। (काद., अप्रैल 1989, पृ. 9), (ख)उनका चंचु-प्रवेश तो कई विषयों में है किंतु गहरी जानकारी किसी विषय की नहीं है। (काद.: जुलाई 1977, पृ. 12)

चचोरना क्रि. (सक.) -- चूसना, खँगालना, निचोड़ना, (क)लुकमान और अरस्तू की खोपड़ी चचोर डालो, इस औंधी खोपड़ी की दवा न मिलेगी। (म.का मत : क.शि., 19 अप्रैल, 1924, पृ. 64), (ख)ग्रंथकर्ता को चचोर डाला। (म.प्र.द्वि., खं. 1, पृ. 120)

चट मँगनी पट बियाह कहा. -- अतिशीघ्रता से निर्णय लेना और काम निबटाना, इस प्रकार की चट मँगनी पट बियाहवाली नीति के कारण ही चीन को 1958 से 61 तक भयानक आर्थिक संकट का सामना करना पड़ा। (दिन., 18 मार्च, 1966, पृ. 29)

चंट वि. (अवि.) -- चालाक, चतुर, (क)वैसा ही जैसी व्यवहार एक चंट मलिक का एक लालची मगर भोंदू नौकर के प्रति होता है। (दिन., 14 जून, 1970, पृ. 25), (ख)साधु भी बड़ा चंट था। (मधुकर, अप्रैल 1947, पृ. 7), (ग)पर वह गरीब इतना चंट न था। (माधुरी, 1 मार्च 1925 , सं. 2 पृ. 151)

चट1 क्रि. वि. -- तुरंत, झट से, तत्काल, (क)दक्षिण अफ्रीका के गोरे अधिकारियों ने चट आँख बदल दी । (ग.शं.वि.रच., खं. 2, पृ. 16), (ख)यह विशेषण चट उनकी बही में जुड़ गया। (चं.श.गु.र., खं. 2, पृ. 364)

चट2 सं. (स्त्री.) -- टाट की पट्टी, वहाँ जूट की चटें बनाना प्रधान कला है। (सर., जून 1930, पृ. 744)

चटक सं. (स्त्री.) -- शौक, चस्का, हृदय में कवितानुराग प्रगट हुआ और संगीत की चटक भी उनको लगी . (स.सा., पृ. 59)

चटकना क्रि. (अक.) -- 1 चमकना, उन्नत होना, जितना अधिक रोजगार चटकेगा उतना ही अधिक मजदूरी करनेवालों की जरूरत होगी। (म.प्र.द्र.रच., खं. 2, पृ. 135), 2. प्रसन्न होना, (क)कतिपय आत्माभिमानी हिंदी लेखक इस लेख से बहुत चटके ह । (गु.र., खं. 1, पृ. 138), (ख)यदि राजपूत न चटकै तो हम भी उनके विषय में कहना छोड़ दें। (गु.र., खं. 1, पृ. 433)

चटकीलापन सं. (पु.) -- चमक, हमारी आलोचना शैली में विदेशी रंग क चटकीलापन बढ़ता जा रहा है। (शि.पू.र., खं. 3, पृ. 260)

चटखनी सं. (स्त्री.) -- चटकनी, नौकर से बहुत सी बातें पूछी और चटखनी लगाकर सो गया। (स.से.त. : क.ला.मिश्र, पृ. 12)

चटखारा सं. (पु.) -- स्वादिष्ट वस्तु को मजे से खाने पर होनेवाला मुँह से चटचट शब्द, और कहीं चाहे जो कष्ट हो, दिल्ली का चटखारा बरकरार रहेगा। (दिन., 2 दिस., 66, पृ. 10)

चटखारे लेना मुहा. -- स्वाद लेना, मजे लेना, (क)छोटे सभा-सम्मेलनों खूब चटखारा लेकर सुनाते हैं। (हि.ध., प्र.जो., पृ. 268), (ख)एक चटखआरे लेता आत्मसंतोष जो दरअसल एक किस्म की आत्महत्या है। (रा.मा. संच. 1, पृ. 63)

चटचटाना क्रि. (अक.) -- 1. खुश्क होना, फटना, काम करने के बाद देह सदा चटचटाया करती है। (माधुरी : अक्तू. 1927, पृ. 563), 2. चटपट बोलना, खूब बोलना, टी.वी. का पर्दा सड़कों और बाजारों में घट रही हिंसक वारदातों से चटचटा रहा है। (स.भा.सा., मृ. पां., सित.-अक्तू. 98, पृ. 6)

चंटता सं. (स्त्री.) -- चालाकी, इसीलिए कौआ चंटता और धूर्तता गुणों या दुर्गुणों में पक्षियों मे सर्वक्षेष्ठ है। (काद., मार्च 1980, पृ. 107)

चटनी चाटना मुहा. -- दाँव देखना, बानगी देखना, बानगी देखना, पहले तो कुछ अकड़ा पर बाद में पहलवान की चटनी चाटकर ढीला पड़ गया। (क.ला.मिश्र: त.प.या., पृ. 128)

चटनी सं. (स्त्री.) -- लुग्दी, बड़े-बड़े बादरचाट पेड़ों को काट-काटकर फलों की मदद से उनकी चटनी बनाई जाती है। (म.प्र.द्वि., खं. 15, पृ. 290)

चटपट क्रि. वि. -- तुरत-फुरत, जल्दी, (क)पहले बात तो यह हो कि षड्यंत्र के मुकदमे चटपट तय कर दिए जाया करें। (ग.शं.वि. रच., खं. 2, पृ. 511), (ख)कहानी प जरूर गढ़ डालते हैं पर चटपट नहीं। (चं.श.गु.र., खं. 2, पृ. 426)

चटपटी सं. (स्त्री.) -- जल्दी, शीघ्रता, त्वरा, (क)आखिर अट्ठाईस-उनतीस वर्षों का संग-साथ यों निमिष मात्र में छोड़कर चल देने की यह चटपटी क्यों ? (न.ग.र., खं. 3, पृ. 261), (ख)उधर साहब को यहाँ तक चटपटी पड़ी कि मैं कपड़े पहने ही रहा था कि खुद वे मेरे घर के सामने सलाम-सलाम करते हुए पहुँच गए। (सर., अप्रैल 1911, पृ. 156)

चटाई का लहँगा मुहा. -- बेमेल आवरण, सबसे पहले कांग्रेस को स्वराज पार्टी का दिया हुआ वह पुराना चटाई का लहँगा उतार फेंकना होगा। (म. का मत : क.शि., 10 दिस. 1927, पृ. 241)

चटाना क्रि. (सक.) -- खिलाना, पिलाना, रिश्वत देना, जनता के प्रतिनिधियों को रुपया चटाकर अपने मतलब के कानून पास करा लेना उनके बाएँ हाथ का खेल हो रहा है। (न.ग.र., खं. 2, पृ. 69)

चट्टी सं. (स्त्री.) -- खड़ाऊँ, चप्पल , (क)मैकू चट्टियों और स्लीपरों की माला गरदन में लटकाए खड़ा था। (प्रे.स.क.: सर. प्रेस, पृ. 25), (ख)घर में वे भी मोजा और जूता नहीं पहनतीं। बहुत हुआ तो चट्टी पहन लेती हैं। (सर., जन. 1912, पृ. 14)

चट्टे-बट्टे सं. (पु. बहु.) -- एक ही पेशे या प्रवृत्ति के लोग, क्योंकि आखिर वे सत्तारूढ़ यथास्थिति के अंग हैं और चट्टे-बट्टे हैं। (रा.मा.संच. 1, पृ. 524)

चड़ाका सं. (पु.) -- चड़चड़ करने की आवाज, खेत के बीच में एक बड़ा सुअर चड़ाकों के साथ अन्न का संहार कर रहा है। (फा.दि.चा., वृ.व.ला.व. समग्र, पृ. 564)

चंडूखाना सं. (पु.) -- नशेड़ियों का अड्डा, परीक्षा विभाग की हालत किसी चंडूखाने से भी बदतर है। (रवि. 17 जून 1982, पृ. 37)

चड्ढी गाँठना मुहा. -- रोब गालिब करना, रोब झाड़ना या दिखआना, जमींदार को बहुत बुरा लगा कि पूछता ही जा रहा है, चड्ढी ही गाँठे हुए हैं। (का.कार. निराला, पृ. 36)

चढ़ना क्रि. (अक.) -- ऊँचा होना, बढ़ना, मूल्य में वृद्धि होना, भाव बढ़ना, ज्यादा लिवाली से दलहनों मे तेजी, चावल लुढ़का, चना टूटा, गेहूँ चढ़ा और चने के आगऊ सौदे हुए। (लो.स., 16 जन. 1989, पृ. 9)

चढ़ा-ऊपरी सं. (स्त्री.) -- लाग-डाँट, स्पर्धा, शक्तिवान राष्ट्रो की चढ़ा-ऊपरी ने छोटे-छोटे राष्ट्रों की स्वाधीनता को सदा के लिए खतरे में डाल दिया है। (ग.शं.वि. रच., खं. 3, पृ. 42)

चढ़ा-बढ़ा वि. (विका.) -- उन्नत, हिंदुस्तान में जहाज बनाने और जहाज चलाने की विधा बहुत चढ़ी-बढ़ी थी। (स.सा., पृ. 52)

चढ़ौत्रा सं. (पु.) -- चढ़त, भेंट, दहेज, अपने बड़े लड़के के ब्याह में चढ़ौत्रा की बाबत कुछ भी बातचीत नहीं की। (सर., नव. 1917, पृ. 246)

चतुर सुजान वि. (अवि.) -- सयाना और समझदार, राजनीति में इंदिरा गांधी और चंद्रशेखर की तरह उस्ताद न हों लेकिन चतुर-सुजान और काँइयाँ तो हैं ही। (हि.ध., प्र.जो., पृ. 57)

चँदोवा सं. (पु.) -- मंडप, वितान, (क)मानो समय का चँदोवा उसी के बूते पर टिका हो। (रा.मा.संच. 1, पृ. 20), (ख)ऊपर सोने का चँदोवा तना हुआ था। (सर., नव. 1920, पृ. 231)

चना-फुटाना सं. (पु.) -- भुने चने, देशभक्त अपनी कुरबानियों को चने-फुटाने की तरह भुनानेवाले लोग नहीं थे। (हि.ध., प्र.जो., पृ. 378)

चपकनिया सं. (पु.) -- चिपकनेवाला पिट्ठू, कलकत्ते के कुछ सनातनी चपकनिए लाट-दर्शन का पुण्य लूटने दिल्ली पहुँचे हैं। (म.का मत: क.शि., 10 दिन. 1927, पृ. 240)

चपक्का सं. (पु.) -- चपचप ध्वनि, उन्होंने अपने-अपने होंठों पर जीभ फेरी और चपक्के लिए। (क.ला.मिश्र: त.प.या., पृ. 95)

चपचपाना क्रि. (अक.) -- चिप-चिप करना, उसके बालों में चमेली का तेल चपचप करता है। (बे.ग्रं., प्रथम खं., पृ. 108)

चपड़कनाती सं. (पु.) -- मूर्ख, संकट ऐसा ब्राह्मी रसायन है जो चपड़कनातियों को तुरत-बुद्धि का बीरबल बना दे। (क.ला.मिश्र: त.प.या., पृ. 199)

चपत जमाना मुहा. -- नुकसान पहुँचाना, अहित करना, साहब बहादुर ने ऐसों के करारी चपत जमाई है। (म.प्र.द्वि., खं. 9, पृ. 153)

चंपत होना या हो जाना मुहा. -- गायब हो जाना, विलीन हो जाना, (क)चेतना चंपत हो गई। (शि.पू.र., खं. 4, पृ. 95), (ख)चोर चोरी कर उसी घर में से साइकिल लेकर चंपत हो गे। (लो.स., 5 जुलाई, 1989, पृ. 7)

चपरगट्ट वि. (अवि.) -- विपत्ति का मारा, चपरगट्टू, अजी, यह तो, जो वह चपरगट्ट न होता मेम साहिबा के साथ...तो यहीं धरना देकर बैठ जाती। (काद., नव. 1961, पृ. 59)

चपरगेंगा वि. (विका.) -- बड़बोला, उनके लिए वह खूँसट, वह झिंझोटा, वह झबरैला, वह चपरगेंगा सब समान है। (कुटुज: ह.प्र.द्वि., पृ. 90)

चपरास सं. (स्त्री.) -- अर्दली या चपरासी की पेटी, (क)बिल्ले-चपरासवाले हमउम्र से नजीर मियाँ बातें किए बगैर भला क्यों रह सकते थे। (काद., वन. 1960, पृ. 66), (ख)जिलाधीश, पुलिस कप्तान, सब चपरास बाँधे खड़े थे। (रा.द., श्रीला.शु. पृ. 395)

चपाचप वि. (अवि.) -- ढेर-सा, आसपास के गाँवों के हौंसिए (जिंदादिल)गले में रंगीन रूमाल बाँधकर, बालों में चपाचप तेल डाले, रस्सी तुड़ाकर भागे बछड़ों की तरह इधर-उधर डोलते फिरते थे । (दिन., 18 मई, 1975, पृ. 8)

चपेड़ सं. (स्त्री.) -- चपत, थप्पड़, वह मुक्केबाजी के बहाने अपने प्रतिद्वंद्वी को चपेड़ भी जड़ देता है। (दिन., 18 जूलाई, 1971, पृ. 30)

चबच्चा सं. (पु.) -- पानी की टंकी, पानी का भरा गड्ढा, (क)उन्हें आशंका है कि मैं रसरंग के रूसी चबच्चे में डूब जाऊँगा। (ब.दा.च.चु.प., खं. 1, सं.ना.द., पृ. 410), (ख)उस साक्षात्कार का मुझ पर सा प्रभाव पड़ा कि जैसे मैं स्वयं इस समय चबच्चे में जा गिरा। (स.से.त.: क.ला.मिश्र, पृ. 13), (ग)मुझे लगा कि हम खतरे के चबच्चे में कूद रहे हैं। (क.ला.मिश्र: त.प.या., पृ. 96)

चबड़-चबड़ सं. (स्त्री.) -- फूहड़ ढंग से बोलने की क्रिया, (क)बेकार चबड़-चबड़ करना उचित नहीं है। (शि.से. :या. सुं.घो., पृ. 70), (ख)चबड़-चबड़ चलेगी, कहाँ तक सहूँगी। (फा.दि.चा. : वृ.व.ला.व. समग्र, पृ. 715)

चमक-दमक सं. (स्त्री.) -- प्रभा, प्रभाव, वह सारी चमक-दमक अब खतम हो गी है। (दिन., 03 सित., 67, पृ. 9)

चमगुदड़ा वि. (विका.) -- महत्त्वहीन, बेजान, उसकी एक कला भी क्या इन प्यारी चमगुदड़ी कविताओं में मिल सकती है। (गु.र., खं. 1, पृ. 241)

चमचा सं. (पु.) -- पिट्ठू, खुशामदी व्यक्ति, डाइरेक्टरों ने हीरालाल को सबक सिखाने के इरादे से मंत्रीजी तक एक दूसेर चमचे की मार्फत खबर पहुँचाई। (रवि., 9 अग. 1981, पृ. 42)

चमाओन सं. (पु.) -- बलैया (लेना), महिलाएँ लड़के का चमाओन करती हैं और दही का टीका लगाती हैं। (काद. : अक्तू. 1982, पृ. 33)

चमाचम वि. (अवि.) -- चमचमाता हुआ, चमकीला, झूठ को सच का ऐसा चमाचम जामा पहनाया गया है। (मत., म.प्र.से. वर्ष 5, सितं. 1927, मुखपृष्ठ)

चमू सं. (स्त्री.) -- सेना, दल, मदिरा के पान और प्रचार के विरोधोयं की चमू में कितने ही बड़े-बड़े धनी और प्रभुताशाली लोग हैं। (सर., मई 1917, पृ. 237)

चमौटी सं. (स्त्री.) -- घोड़े की जीन को बाँधने की चमड़े की पेटी, पत्नी ने उसकी कमर कसनेवाली चौड़ी बेल्ट की तुलना आत्मादीन चौधरी की मरियल घोड़ी की पीठ से सटी रहनेवाली चमौटी से कर डाली थी। (रवि., 30 अग. 1981, पृ. 38)

चरका सं. (पु.) -- भुलावा, झाँसा, धोखा, (क)नहले पर दहला मारा, किस-किस को चरका दे चुके हो . (रवि., 29 मार्च 1981, पृ. 42) (ख)रुप्पन, मैने सुना है, खन्ना के चरके में आ गए हैं। (रा.दि., श्रीला. शु., पृ. 237), (ग)गैर-कानूनी मुद्रा-विनिमय के चक्कर में अच्छा चरका खाया . (दिन., 21 सित. 1969, पृ. 25)

चरचराना क्रि. (अक.) -- चरचर ध्वनि करना, दरवाजा भी जाम पकड़ गया था, चरचराया . (माधुरी : सित. 1927, पृ. 222),

चरनी सं. (स्त्री.) -- वह पात्र जिसमें ढोर सानी खाते हैं, चरही, झूरी प्रात: काल कर उठा तो देखा कि दोनों बैल चरनी पर खड़े हैं। (प्रे.स.क. :सर. प्रेस, पृ. 40)

चरित्तर सं. (पु.) -- छलछंद, छलपूर्ण आचरण, ऐ सतवंती, अब उठो बहुत चरित्तर दिखा लिए। (काद., जुलाई 1961, पृ. 45)

चरिदा सं. (पु.) -- चरनेवाला पशु, प्रायः हम यह भूल जाते हैं कि हमारी मिट्टी, हवा, पानी, फल-फूल और चरिदों परिंदों को भी बनाई हुई एक तवारीख है। (कर्म., 30 मई, 1953, पृ. 7)

चरोखर सं. (पु.) -- चरने का स्थान, चरागाह, चरोखर के अभाव में अधिकांश किसानों ने अपने गाय-बैलों की अपनी तरह अधपेटा रखा। (मा.च.रच., खं. 3, पृ. 132)

चर्राना क्रि. (अक.) -- शौक, लगना, इसे उन्नीसवीं सदी के फैशन के अनुसार नास्तिक बनने का हौसला चर्राया ह । (भ.नि., पृ. 17)

चर्वित-चर्वण सं. (पु.) -- पिष्ट-पेषणा, दुहराव, संपादकीय टिप्पणी काव्य और अलंकार में पाठकों के काम की कोई खास बात नहीं है। बस वही चर्वित-चर्वण। (शि.पू.र., खं. 4, पृ. 476)

चल बसना मुहा. -- मरना, न रह जाना, वह मासिक पत्र छह माह तक चाकचिक्य दिखला कर चल बसा। (शि.पू.र., खं. 4, पृ. 370)

चलतऊ वि. (अवि.) -- चलताऊ, चालू किस्म का, अत्यंत साधारण, (क)बीस जन. की योजना सात अनपढ़ और अधकचरे आदमियों ने बहुत ही चलतऊ ढंग से बनाई थी . (रा.मा.संच. 2, पृ. 341), (ख)दरअसल यह एक तरह का चलताऊ फतवा है। (दिन., 1 जून, 1969, पृ. 7)

चलता कर देना मुहा. -- टाल देना, टरका देना ...शब्दों के व्यभिचार की ईमानदार दुकानदारी को चलती कर देने के लिए सबकुछ करने लगते हैं। (मा.च.रच., खं. 3, पृ. 222)

चलता पुर्जा चलता पुरजा वि. (अवि. पदबंध) -- चतुर/चालाक व्यक्ति, (क)बाजार सरगर्म हो और दुकानदार चलता-पुर्जा हो जाय। (शि.पू.र., खं. 3, पृ. 365), (ख)वे काफी चलते पुर्जे लोग हैं। (रा.मा.संच. 1, पृ. 359), (ग)उसके पास रिचर्ड निक्सन नामक एक धंधेबाज, चलता पुर्जा, हाथ की सफाई जाननेवाला नौकर भी था। (रा.मा.संच. 1, पृ. 252)

चलतू वि. (अवि.) -- चलताऊ, चालू किस्म का, वोटों के चलतू दरातल पर सारी लड़ाई को उतारकर इंदिरा गांधी ने अंतत:अपना ही हित सबसे ज्यादा किया है। (रा.मा.संच. 1, पृ. 263)

चलाचली सं. (स्त्री.) -- प्रस्थान, विदाई, उसका तो अब चला-चली का डेरा है। (न.गर.र., खं. 2, पृ. 281)

चसका / चस्का सं. (पु.) -- लत, शौक, ऐसी आदत, जिससे पिंड न छूटे, (क)इन्हें ज्ञान संपादन का चस्का होता है। (म.प्र.द्वि.रच., खं. 2, पृ. 458), (ख)लोगों में सत्ता का चस्का लग गया है। (हि.ध., प्र.जो., पृ. 311), (ग)दुर्घटना होती है तो उमें चस्का लेने के लिए हम आँक़े सँजोते हैं। (रा.मा.संच. 2, पृ. 319)

चसचस सं. (स्त्री.) -- टीस, पीड़ा सिर में तेज चसचस होती तो मैं दो गोली खा लेता। (क.ला.मिश्रः त.प.या., पृ. 208)

चहचहा सं. (पु.) -- चहकने की क्रिया, ढंग या भाव, चहचहाट उनके कहकहे और चहचहे देहली की जिंदादिली का पूरा नमूना ह । (क.ग., इति., पृ. 587)

चहबच्चा सं. (पु.) -- पानी का कुंड, पानी इकट्ठा करने का तहखाना, (क)शराबी जब तक पीते-पीते बेहोस हो चहबच्चे में न गिरे उसका दिल न बहलेगा। (भ.नि., पृ. 25), (ख)बंदर-कूद की बात इस देश के लिए कोई नई नहीं होनी चाहिए, लेकिन कीचड़ के चहबच्चों को पार कूदने की प्रतियोगिता का विचार कुछ नया जरूर मालूम होता है। (दिन., 4 मार्च, 1966, पृ. 10), (ग)...इससे भारत का वोटर क्या प्रभावित होगा, जिसने चुनाव के समय सारे देश को गंदे चहबच्चों और बदबूदार पनालों में बदलते देखा है। (रा.मा.संच, 1, पृ. 277)

चहबोचना क्रि. (सक.) -- लथपथ करना, डुबोना या नहलाना, हमने उन्हें खूब मिट्टी-पानी से चहबोच दिया। (बे.ग्रं., प्रथम खं., पृ. 67)

चहरना क्रि. (अक.) -- आगे-आगे बढ़े चले आना, चढ़ना, सवार होना, तुम लोग जरा हवा-उवा आने दो। काहे के ले माथे पर चहर रहे हो। (रवि., 31 मई, 1981, पृ. 12)

चहल-पहल सं. (स्त्री.) -- रौनक, किया-कलाप, कार्य-व्यापार, फ्री प्रेस के संवाददाता ने श्रीमती जी की चहल-पहल के समाचार भेजै हैं। (मा.च.रच., खं. 10, पृ. 231)

चहली सं. (स्त्री.) -- मचाना, मैं यथाशीघ्र चहली से नीचे उतर आया . (सर., नव. 1925, पृ. 535)

चाक करना क्रि. (सक.) -- दो-फाड़ करना, चीरना, जिगर चाक कर जब उनका जलवा लेने की कोशिश करता हूँ तो सब धुँधला नजर आता है। (काद., नव. 1980, पृ. 54)

चाक सं. (पु.) -- कुम्हार का चक्र, साम्राज्य एक जबरदस्त चाक था, जो इंग्लैंड के मिट्टी के लौंदों को गढ़कर शासक बनाता था । (रा.मा. संच. 1, पृ. 41)

चाकचिक्य सं. (पु.) -- चमक-दमक, शान, यह मासिक पत्र कुछ ही दिनों में खूब उन्नत हुआ और 6 माह तक चाकचिक्य दिखाकर चल बसा। (शि.पू.र., खं. 4, पृ. 370), (ख)चाकचिक्य से जीवन की वास्तविक उपलब्धि नहीं आँकी जा सकती। (काद., जन. 1978, पृ. 7), (ग)जनता को बुद्धू बनाकर तोड़े ऐंठना और विदेशी वस्तुओं के चाकचिक्य से चाकचौंध पैदा करना उनका लक्ष्य है। (म. का मतः क.शि., 13 अक्तू. 1923, पृ. 47)

चाकर सं. (पु.) -- सेवक, नौकर, धारा सभा के सदस्यों तथा कांग्रेस कमेटी का भी चाकर है। (कर्म., 29 मई, 1948, पृ. 7)

चाचाजी की बखरी कहा. -- निजी घर या जागीर, सरकारी मदद और शासन को चाचाजी की बखरी समझने के कारण गोरे पात्रों का साहस इतना बढ़ जाता ह कि वे भारतवासियों पर अपराध लगाते समय जरा भी आगे-पीछे नहीं सोचते। (मा.च.रच., खं. 10, पृ. 182)

चाट पड़ना या लगना मुहा. -- आदत पड़ना, चस्का लगना, (क)यहाँ बच्चों को दर्शन और ज्ञान की चाट पड़ जाती है। (माधुरी, जन. 1925, सं. 1, पृ. 14), (ख)मनुष्यों को मांस भक्षण की ऐसी चाट पड़ गई है कि यदि दर्द न होता तो वे अपने ही शरीर पर टूट पड़ते। (सर., जुलाई 1924, पृ. 733), (ग)यही नहीं , उन्हें हिंदी नाटक और उपन्यास पढ़ने की चाट लग गई। (सर., सित. 1913, पृ. 535)

चाँट-चूट सं. (स्त्री.) -- हड़पा-हड़पी, यह चाँट-चूट का सिलसिला कई पीढ़ीयों तक जारी रहा । (सर., फर. 1920, पृ. 77)

चाटना क्रि. (सक.) -- रटना, याद करना, परीक्षार्थी 24 घंटे में सफलता छाप प्रश्नोत्तरियों को चाटा करते हैं। (दिन., 18 जून, 67, पृ. 43)

चाँड़ सं. (स्त्री.) -- दीवार सम्हालनेवाला खंभा, टेक, यह दीवार चाँड़ पर टिकी है। (काद.: दिस. 1966, पृ. 11)

चांडाल-चौकड़ी सं. (स्त्री.) -- दुष्टों या आवारों का समूह, ...लेकिन चांडाल-चौकड़ी के पतन के बावजूद चीन की विदेशी नीति में कोई खास फर्क आया नहीं लगता। (रा.मा.संच. 1, पृ. 347)

चाँदी का चोरा सं. (पु., पदबंध) -- टुकड़ों पर पलनेवाला, टुकड़खोर, कोई पूँजीपति अगर कोई पत्र निकालता है...तो वह पत्रकार को चाँदी का चेरा समझता है। (शि.पू.र., खं. 4, पृ. 561)

चाँदी काटना मुहा. -- खूब कमाई करना, (क)बिहार में आई भीषण बाढ़ की विकराल आपदा में निजी नाविक चाँदी काटने में लगे हुए हैं। (रा.प., 30-08-2008, पृ. 1), (ख)बरार के एक जिले के उच्च पदस्थ अधिकारियों ने खूब चाँदी काटी। (सर., भाग 28, सं. 3, मार्च 1927, पृ. 378)

चाँपकर क्रि. वि. -- दबाकर, अपने भुजदंड़ों के बीच चाँपकर हृदय से लगा लिया। (शि.पू.र., खं. 3, पृ. 473)

चापड़ वि. (अवि.) -- चौपट, नष्ट, उनके कई कात मकान चापड़ हो गए। (शि.पू.र., खं. 4, पृ. 111)

चाँपना क्रि. (सक.) -- दबा देना, रोकना, (क)अम्मा कुछ कहनेवाली ही थीं कि उसने चाँप दिया। (साक्षा., मार्च-मई 77, म.पां., पृ. 27), (ख)तेरे ओठों के दाँतों से चाँपते ही तूफान बरपा हो जाएगा। (शि.पू.र., खं. 3, पृ. 411)

चापल सं. (पु.) -- चपलता, होशियारी, इस पर मंडल अधिक चापल करके उन्हें उपाधि दान की धृष्टता न दिखावे। (चंश.गु.र., खं. 2, पृ. 348)

चाभवा क्रि. (सक.) -- खाना, भकोसना, यों पर पुरुषों का माल चाभती डोलती हो। (वीणा, जन. 1934, पृ. 482)

चार दिन का मेहमान ह ना मुहा. -- अल्पजीवी, क्षणिक, तब प्रत्येक राजनीतिक यह खयाल करता था कि मजदूर सरकार चार दिन की मेहमान है। (न.ग.र., खं. 2, पृ. 197)

चारा डालना मुहा. -- प्रलोभव देना, इसलिए अमेरिका बराबर पाकिस्तान को चारा डालने को मजबूर है। (दिन., 30 अप्रैल, 67, पृ. 10)

चारा सं. (पु.) -- उपाय, युक्ति...अविश्वास का ऐसा वातावरण बन गया हो कि जाँच के अलावा कोई चारा ही न हो। (रा.मा.संच. 1, पृ. 339)

चारों खाने चित्त गिरना या ह ना मुहा. -- पूर्ण रूप से पराजित होना, (क)दूसरी ओर श्रीमती गांधी के समर्थक कामराज के चारों खाने चित्त गिरने से हर्षोन्मत्त हैं। (दि., 16 अप्रैल, 67, पृ. 12), (ख)अब जो लोग, खास कर वो रूखी बात करने वाले राजनैतिक नेतागण, जो ह मेशा एक-सात दो घोड़ों की सवारी करने की कोशिश करते रहते हैं, और इसलिए बहुधा गुलाँ खा कर चारों खाने चित्त गिर भी पड़ते हैं . (दिन., 11 मार्च 1966, पृ. 10), (ग)जम्हूरियत किसी भी दिन चारों खाने चित्त हो सकती है। (दिन., 8 दिस. 1968, प. 10)

चाल निकलना मुहा. -- फैशन चलना, हिंदी में आजकल बिना सिर के अक्षर लिखने की चाल निकली है, मैं भी इस लत से बचा नहीं हूँ। (चं..गु.र., खं. 2, पृ. 188)

चाल-पेंच सं. (पु.) -- दाँव-पेंच, खुरपेंच परंतु परिस्थिति के पलटते ही चाल-पेंच और कतर-ब्यौंत का राज्य आरंभ हो जाएगा। (ग.शं.वि.रच., खं. 3, पृ. 279)

चाल सं. (स्त्री.) -- चलन, तरीका, ढंग, (क)उस समय भी पगड़ी लेटने की दो चालें थीं। (गु.र., खं. 1, पृ. 170), (ख)पुरानी चाल के पंडितों के हाथ से लिखी जाती है। (म.प्र.द्वि., खं. 1, पृ. 83), (ग)यहाँ पर पान खाने की भी बड़ी चाल है। (माधुरी :अक्तू. 1927, पृ. 373)

चालबाजी सं. (स्त्री.) -- तिकड़म, अब तू अपने भावों को न छिपा, तेरी चालबाजियाँ कारगर न होंगी। (माधुरी: अग.-सित. 1928, पृ. 76)

चाली सं. (स्त्री.) -- झुग्गी, झोंपड़ी, छोटी गलियों में बना मकान, दंगा चालियों में दावानल की तरह धधक उठा। (दिन., 2 नवं. 1969, पृ. 26)

चालू वि. (अवि.) -- चालाक, होशियार, गाँव के लोगों की भाषा में लोग पहले की अपेक्षा चालू हो गए हैं। (दिन., 20 अक्तू. 1968, पृ. 27)

चाँव-चाँव करना या मचाना मुहा. -- शोर मचाना, (क)प्रांत विधान-परिषद् में चाँव-चाँव करने के बाद भी अंत में अलग हो रहे। (न.ग.र., खं. 3, पृ. 76), (ख)इसके अतिरिक्त और क्या हो सकता ह कि व्यर्थ की चाँव-चाँव मचे और सम्मेलन में बाधा पड़े। (न.ग.र., खं. 2, पृ. 270)

चाव सं. (स्त्री.) -- चाहत, रुचि, (क)बेटे के मन में पढ़ाई का चाव उत्पन्न हो गया था। (काद., जून 1979, पृ. 11), (ख)कांग्रेस के नियमों और उपनियमों के प्रति, देश की जनता में अब अधिक चाव नहीं रह गया। (मा.च.रच., खं. 10, पृ. 329)

चावना सं. (पु.) -- चाह, इच्छा, दोनों नेता उन बढ़ती हुई दरारों को पाटने की चावना रखते हैं। (दिन., 2 मार्च, 69, पृ. 37)

चास सं. (स्त्री.) -- चाह, उनके पैरों में लंबी दौड़ की मचमचाहट, दिल्ली में लूट की प्यास और दिमागों में खून की चास थी। (स.से.त. : क.ला.मिश्र, पृ. 6)

चासनी में पगा करेला कहा. -- पागी हुई कड़वी वस्तु, ऊपर से मीठा अंदर से कडुआ कोई लाग-लपेट नहीं, कोई कूटनीतिक अर्द्धसत्य नहीं, कोई चासी में पगा हुआ करेला नहीं। (स.ब.दे. : रा.मा. (भाग-दो), पु. 173)

चिकचिक सं. (स्त्री.) -- तूतू मैंमैं, झिक-झिक, वहाँ पंचायत चुनाव को लेकर भाजपा से उसकी चिकचिक चल ही रही है। (हि.ध., प्र.जो., पृ. 307)

चिकना घड़ा सं. (पु.) -- निर्लज्ज व्यक्ति, श्री वेंकटेश्वर समाचार के संपादक ऐसे चिकने घड़े है कि अंग्रेजीवालों की युक्ति की बरसात उन्हें सूखा छोड़ जाती है। (गु.र., खं. 1, पृ. 113)

चिकना-चुपड़ा वि. (अवि.) -- खुशामद-भरा, (क)सोने की खानों में तो उसने कंपनी के चालक सिद्ध-साधकों क चिकनी-चुपड़ी बातों में आकर रुपया दे दिया। (म.प्र.द्वि.रच., खं. 2, पृ. 178), (ख)कुमार जी के शब्द चिकने-चुपड़े और सुप्रवाही नहीं थे। (रा.मा.संच. 2, पृ. 305 (4)), (ग)भारतमंत्री की चिकनी-चुपड़ी बातें अब भारत को धोखा नहीं दे सकतीं। (म.का मत: क.शि., 24 अप्रैल 1924, पृ. 146)

चिकनी-चुपड़ी सं. (स्त्री.) -- खुशामद भरी बातें, देशवासियों को चिकनी-चुपड़ी कहते हुए महात्मा गांधी के विरूद्ध भड़काना, चाहा है। (मा.च.रच., खं. 9, पृ. 246)

चिकमिक. वि. (अवि.) -- चमचमाता हुआ, झिलमिलाता हुआ , उस घूर का चूर आज भी चिकमिक करता है। (प.परि.रेणु, पृ. 5)

चिकलना क्रि. (सक.) -- तोड़ना, मैं जब मूँगफली को दाढ़ से चिकलता तो अनुभव करता कि प्रेस को नीलाम करने को बेचैन लोगों को ही चिकले जा रहा हूँ। (क.ला.मिश्र : त.प.या., पृ. 133)

चिकोटी काटना मुहा. -- चुभती बात कहना, छेड़ना, (क)चिकोटी काटकर चिड़ानेवाले...अखाड़ेबाज लोग भी हैं। (दिन., 07 मई, 67, पृ. 23), (ख)जनसंघ समय-समय पर गोविंदनारायण सिंह को चिकोटी काटता रहता है। (दिन., 8 दिस. 1968, पृ. 21)

चिचुका वि. (विका.) -- सूखा और झुर्रीदार, ऐसे चिचुके आम बच्चों को पके आम की ही प्रतीति देते हैं। (दिन., 7 अप्रैल, 67, पृ. 39)

चिचोड़ना क्रि. (सक.) -- चूसना, वे मूर्ख कुत्ते की तरह अधिकार ग्रहण करने की चिचोड़ी हुई हड्डियों पर, जीभ निकालते हुए और लार बहाते हुए झपट पड़ने को उद्यत हैं। (न.ग.र., खं. 4, पृ. 81)

चिचौरी सं. (स्त्री.) -- चिरौरी, विनती जी-हुजूर पंथियों ने रो रोकर चिचौरी की। (म.का मत:.शि., 24 जन. 1925, पृ. 180)

चिट्ठा सं. (पु.) -- ब्योरा, विवरण, रूस ने अपनी शक्तियों का चिट्ठा मित्र राष्ट्रों के सामने रखा। (न.ग.र., खं. 2, पृ. 224)

चिड़ाइन सं. (स्त्री.) -- बाल या मांस जलने की दुर्गंध, मसान जैसी चिड़ाइन गंध, छप्पर पर सूखती चिरकुट कथरी। (दिन., 30 दिस., 66, पृ. 24)

चित भी मेरी पट भी मेरी कहा. -- दोनों स्थितियों में लाभान्विता होने की युक्ति, मुनाफाखोर उद्दोगपति चित भी मेरी पट भी मेरी सिद्धांत के कायल हैं। (दिन., 30 अप्रैल, 67, पृ. 15)

चिताना1 क्रि. (अक.) -- प्रज्वलित करना, चूल्हा जलाते या बालते नहीं उसे चिताते हैं। (गु.र., खं. 1, पृ. 115)

चिताना2 क्रि. (सक.) -- सचेत करना, सावधान करना, आगाह करना, उसके सहन और परंपरागत संस्कारों को चिताना है। (गु.र., खं. 1, पृ. 161)

चितौन सं. (स्त्री.) -- चितवन, दर्शकरण तिरछी चितौनों में चूर हो जाते हैं। (म. का मत : क. शि., 26 जुलाई, 1924, पृ. 163)

चित्त लगाना मुहा. -- मन लगाना, ध्यान करना, अध्ययन में चित्त लगाया। (म.प्र.द्वि., खं 5, पृ. 186)

चिंदा सं. (पु.) -- मनोकामना, सनातन धर्म सभा के साथ संधि होने से व्याख्यान लोलुप पब्लिक भी आ गई थी। आज वर्षों के चिंदे पूरे हुआ। (चं.श.गु.र., खं. 2, पृ. 342)

चिंदी की बिंदी निकालना मुहा. -- छिद्रान्वेषण करना, उसके एक-एक शब्द की चिंदी की बिंदी निकाली जाती है और घोर शास्त्रार्थ होता है। (सर., मार्च 1908, पृ. 122)

चिंदी-चिंदी करना मुहा. -- तार-तार करना, क्षत-विक्षत करना, ऐसा सत्य जो ईमानदारी के बुरके की चिंदी-चिंदी करके तुम्हारे बेईमान मुँह की कालिख संसार को दिखलाता है, कड़वा होता है । (न.ग.र., खं. 2, पृ. 222)

चिपटा 2 वि. (विका.) -- चिपका (हुआ), नक्शे में देखो तो लगता है कि क्यूबा संयुक्त राज्य के बगल में चिपटी हुई छोटी सी जूँ है। (रा.मा. संच. 1, पृ. 39)

चिपटा1 वि. (विका.) -- जिसकी सतह दबी हुई हो, यदि दोनों चित्र समान हों तो नया चित्र बिलकुल चिपटा होगा। (चं.श.गु.र., खं. 2, पृ. 283)

चिप्पड़ सं. (पु.) -- चिपकाया हुआ टुकड़ा या अवयव, तिवारी और इंद्रकुमार के त्यागपत्रों ने यह सिदध कर दिया कि एकता के चिप्पड़ में लस बहुत कम थी . (दिन., 15 फर. 1970, पृ. 20)

चिबोला सं. (पु.) -- चीं बोलने का शब्द, देखते ही चिबोला करता है। (काद. : जुलाई 1973, पृ. 57)

चिमगोई सं. (स्त्री.) -- चर्चा, (क)सप्रू हाउस के बंद हाल में अधिवेशन क्यों बुलाया गया, इस बारे में भी सदस्यों और समर्थकों में तरह-तरह की चिमहगोइयाँ चल पड़ीं। (दिन., 23 से 29 अक्तू. 1977, पृ. 16) (ख)अब लोगों में चिमागोइयाँ होने लगी हैं कि प्रशासनिक के साथ राजनैतिक परिवर्तन क्या होगा। (रवि. 6 दिस., 1981, पृ. 25)

चिमटा गाड़ना या ग ड़ देना मुहा. -- अधिकार जमा लेना, चीनी तुर्किस्तान में ब्रिटिश ला ने अपना चिमटा पहले से ही गाड़ दिया है। (न.ग.र., खं. 2, पृ. 83)

चिमटावादी वि. (अवि.) -- पाखंड़ी, ढोंगी, वह आजकल के चिमटावादी नेताओं को जेल में रखेगा या अंडमान भेजेगा। (रा.मा. संच. 2, पृ. 21)

चिमड़ा वि. (विका.) -- चीमड, खींचने पर जल्दी न टूटनेवाला, ये माला की तरह मेरु-रज्जू की पुट्टी होती है। एक बड़े लसदार और चिमड़े पदार्थ से आपस में बड़ी दृढ़ता के साथ जुड़ी होती है। (सर., जून 1909, पृ. 275)

चिमरखी वि. (अवि.) -- दुबला-सूखा, एक निहायत चिमरखी-सा दिखनेवाला नवुवक कवि चीखकर बोल उठा। (स.न.रा.गो. : भ.च.व., पृ. 165)

चिरकुट वि. (अवि.) -- फटा-पुराना, मशान जैसी चिड़ाइन गंध, छप्पर पर सूखती चिरकुट कथरी। (दिन., 30 दिस., 66, पृ. 24)

चिरादिम वि. (अवि.) -- अति प्राचीन, एक साथ ही आधुनिक और चिरादिम होने की भावना जोर पकड़ने लगी ही। (दिन., 24 जून, 1966, पृ. 8)

चिरार सं. (पु.) -- हलकी दरार, दीवाल पर ठुकी कील के ईर्द-गिर्द पड़े चिरारों की तरह सुदीप के दिल में भी फिर दरारों को स्थान मिल गया। (मधु : अग. 1965, पृ. 58)

चिरौरी करना मुहा. -- प्रार्थना या दीनतापूर्वक विनय करना, अनुनय-विनय करना, (क)पिता उनकी चिरौरी कर रहे थे। (मि.ते.सु.चौ., पृ. 36), (ख)उनके आगे चिरौरी करने की इच्छा ही नहीं हुई। (काद : अक्तू. 1979, पृ. 36), (ग)कुलीन वर्ग के प्रतिनिधि अँगरेजी शान से चिरौरी करके कुछ रियायतें प्राप्त कर लेने को ही बड़ा काम मानते हैं। (रवि. 6-12 नव. 1977, पृ. 11)

चिलका सं. (पु.) -- चमक, चकाचौंध, बच्चा हाथ में शीशा लिए हर दिशा में सूरज का चिलका कर रहा है। (काद. : जन. 1968, पृ. 14)

चिलकौआ सं. (पु.) -- लोभी व्यक्ति, हाँ उनमें से कोई न कोई उस समय का चिलकौआ नगद-नारायण लेकर बदले में सोमलता बेचने को राजी हो जाते थे। (गु.र., खं. 1, पृ. 100)

चिल्लपों मचाना मुहा. -- शोर करना, होहल्ला मचाना, बिना नसबंदी घर और डगह में बच्चो चिल्लपों मचाएँगे। (दिन., 30 जुलाई, 67, पृ. 9)

चिल्लपों सं. (स्त्री.) -- प्रलाप, शोर, अधिकांश कविताओं में भावुक आवेग और चिल्लपों थी। (दिन., 2 जुलाई, 1965, पृ. 45)

चिल्लर वि. (अवि.) -- छोटे-छोटे, नामदेव बाघाड़े की हत्या के बाद उसकी जगह पाने के लिए इलाके के चिल्लर अपराधियों में होड़ मचेगी ऐसी संभावनाएँ हैं। (लो.स., 4 अप्रैल 1989, पृ. 12)

चिल्लाहट सं. (स्त्री.) -- शोर, चिल्लपों, (क)यदि कोई चिल्लाहट मचावेगा तो हम उसकी बात नहीं मानेंगे। (नि.वा. :श्रीना.च., पृ. 41), (ख)फौजी खर्च घटाने की चिल्लाहट मची हुई है। (स.सा., पृ. 68)

चिहुँकना क्रि. (अक.) -- चौंकना, ठिठकना, बेटे के ठीक विदा होते समय विधवा काकी को सामने देखकर माँ चिहुँक गई। (काद. : जुलाई 1989, पृ. 104)

चिह्नवाना क्रि. (सक.) -- पहचान करवाना, यह जनपद अपने को चिह्नवाने में विलंब नहीं करेगा। (मधुकर : जन., 1944, पृ. 449)

चिह्नानी सं. (स्त्री.) -- निशानी, विजितों के मुँह से निकली विजयीजनों की भाषा उनकी दासता की सबसे बड़ी चिह्नानी है। (ग.शं.वि.रच., खं. 1, पृ. 210)

चीं बुलवाना मुहा. -- तोबा कराना, अगर उतना हौसला नहीं है तो उनसे चीं बुलवाना आवश्यक न समझना चाहिए। (दिन., 15 अक्तू. 1965, पृ. 12)

चीं-चपड़ चीं-चिपड़ सं. (स्त्री.) -- आपत्ति या विरोध, (क)बुलावे के साथ उनके होश हिरन हो गे, मगर चीं-चिपड़ न कीं। (का. कार. : नि., पृ. 45), (ख)अंग्रेजी अफसर ने भले ही चीं-चपड़ न की हो, खानसामा खूब गुर्राया। (हि.पत्र. के गौरव, बां. बि. भट., सं.ब., पृ. 308), (ग)चीं-चपड़ करने पर भूमि से निकाल दिया। (ग.शं.वि.र., खं. 2, पृ. 74)

चीकट वि. (अवि.) -- तेलहा, गंदा, मैल से कपड़ा काला पड़ जाए तो चीकट। (दिन. 16 अप्रैल, 67, पृ. 39)

चीखना-चिल्लाना क्रि. (अक.) -- हाय-तौबा मचाना, शोर मचाना, पाकिस्तान चाहे जितना चीखे-चिल्लाए, उसे हमला करने के पहले अच्छी तरह सोच लेना चाहिए कि वह हस्ती कायम रखना चाहता है या मिटाना। (ते.द्वा.प्र.मि., पृ. 152)

चीथना क्रि. (सक.) -- चीर-फाड़ कर टुकड़े-टुकड़े कर डालना, लोगों ने बड़ी बेरहमी से उसे चीथ डाला। (काद. : जन. 1977, पृ. 45)

चीन्हना क्रि. (सक.) -- पहचानना, आपको आकर आपके आराध्य देव राम, कृष्ण देखें तो क्या वे आपको चीन्ह पाएँगे ? (न.ग.र., खं. 4, पृ. 344)

चींपों सं. (पु.) -- हो-हल्ला, शोरगुल, शिक्षित माता- पिता अपने एकांतगृह को चींपों से पूर्ण नहीं करना चाहते। (गु.र., खं. 1, पृ. 152)

चीमड़ वि. (अवि.) -- पिंड न छोड़नेवाला, पीछे पड़ जानेवाल, एक बंगाली ने...धोखा दिया तो बंगाली मात्र को चीमड़ कहने का कौन मौका है। (गु.र., खं. 1, पृ. 411)

चुआ पड़ना क्रि. (अक.) -- टपकना, झलकना, (क)जहाँ कहीं अवधी की मौलिकता अक्षुण्ण ह , वहाँ सरसता सचमुच चुई पड़ती है। (शि.पू.र., खं. 4, पृ. 509), (ख)इतने सद्वयवहारी कि आदिमियत मानो चुई पड़ती। (चि.फू., पृ. 28)

चुआना क्रि. (स.) -- टपकाना, मुख के अबारों से पान चुआती सवारियाँ भी जोश में एक-दूसरे पक्ष को ललकारने लगती थीं। (काद., जून 1978, पृ. 112)

चुकती सं. (स्त्री.) -- भरपाई, चुकाव, अमेरिकन माल की चुकती हमें अपने माल से करनी पड़ती है। (सं. परा. : ल.शं. व्या., पृ. 356)

चुकरना क्रि. (अक.) -- व्याकुल होकर अधीर होना, रँभाना, उसकी अघाई भैंस झूमती, बच्चे के लिए चुकरती घर की ओर भागी आ रही । (लाल-तारा, पृ. 3)

चुक्क वि. (अवि.) -- अत्यधिक खट्टा, कुछ आम इतने खट्ठे-चुक्क होते हैं कि मुरदे के मुँह पर रख दिया जाए तो वह जी उठे। (दिन., 7 अप्रैल, 67, पृ. 39)

चुगद वि. (अवि.) -- मूर्ख, अज्ञानी, मैंने उस चुगद की रंगकर्मी के बतौर चर्चा कहीं नहीं पढ़ी थी। (काद. : जून 1993, पृ. 44)

चुगली खाना मुहा. -- पीठ पीछे निंदा करना, उन्होंने चुगली खानेवालों की खूब खबर ली है। (शि.पू.र., खं. 3, पृ. 69)

चुगली सं. (स्त्री.) -- पीठ पीछे की गई किसी की बुराई, वे भारतभक्त एंड्रून के कार्य पर निगाह रखते थे और समय-समय पर सरकार के पास उसकी चुगली करते थे। (मा.च.रच., खं. 10, पृ. 123)

चुगाना क्रि. (सक.) -- एकत्र करना, ऐसे अनेक प्रयोजनीय विषय हैं , जिनका ब्योरा चुगाकर रखने से देश की आर्थिक जाँच-पड़ताल में मदद मिल सकती है। (शि.पू.र., खं. 4, पृ. 570)

चुग्गड़ सं. (पु.) -- कुल्हड़, पुरवा, मौज से पिये जाओ। तुम्हारी हवा तो पहले चुग्गड़ में ही निकल जा रही है। (रा.द., श्रीला. शु., पृ. 283)

चुटकी बजाते क्रि. वि. -- तत्क्षण, चटपट, (क)ऐसा वातावरण बनेगा कि संविधान की बाधाएँ चुटकी बजाते दूर हो जाएँगी। (रा.मा.संच. 2, पृ. 15), (ख)हमारे डोंडी पीटने के बावजूद क्या यह संभव है कि सारा समुद्र चुटकी बजाते ही खाली हो जाए। (रा.मा. संच. 2, पृ. 15), (ख)हमारे डोंडी पीटने के बावजूद क्या यह भव है कि सारा समुद्र चुटकी बजाते ही खाली हो जाए। (रा.मा. संच. 2, पृ. 318), ग)वैसे आधी शताब्दी पुराना मर्ज चुटकी बजाते जाएगा नहीं। (रा.मा. संच. 1, पृ. 51)

चुटकी लेना मुहा. -- उपहास करना, व्यंग्य करना, (क)उसे पढ़कर मेरे साहित्यिक मित्रों ने बड़ी चुटकी ली थी। (शि.पू.र., खं. 3, पृ. 172), (ख)जो लोग दिखौआ ठाट रखते उन पर आप अपने पत्र में चुटकी लिया करते थे। (बाल. स्मा.ग्रं. : शर्मा, चतुर्वेदी, पृ. 293), (ग)एक-एक वाक्य मानो हमारे जीवन के किसी-न-किसी पहलू पर चुटकी लेती सी एक बेधक टीका है। (दिन., 25 नव., 06, पृ. 42)

चुटकी-चुटकी क्रि. वि. -- थोड़ी-थोड़ी मात्रा में, चुटकी-चुटकी इकट्ठा करके औरों को भी किफायतदारी सिखाएँगी। (सर., जून 1926, पृ. 733)

चुटर-पुटर होना मुहा. -- इधर-उधर हो जाना, भिन्न-भिन्न कामों में खर्च हो जाना, इतने रुपए हाथ में आए पर किसी काम में न लगे, यों ही चुटर-पुटर हो गए। (क.ला.मिश्र : त.प.या., पृ. 188)

चुँधियाया वि. (विका.) -- जिसे स्पष्ट दिखाई न देता हो, शहरी बाबू के दिमाग के एक कोने में चुँधियाया दुनियादार बैठा रहता है। (साक्षा., मार्च-मई 77, मृ. पां. पृ. 2)

चुनाई सं. (स्त्री.) -- चुनाव, (क)जिनके हृदय में कौंसिल की चुनाइयाँ निकट आते ही मातृभूमि के लिए वेदना उत्पन्न हो गई है। (मा.च.रच., खं. 3, पृ. 46), (ख)राष्ट्रीयतावादी सभापति की चुनाई पर अपना तेजहीन समाधान व्यक्त करते हैं। (मा.च.रच., खं. 10, पृ. 49)

चुनांचे क्रि. वि. -- इसलिए, अतएव, (क)चुनांचे काफी पेचीदगियों के बाद संबंधित अमेरिकी कंपनी बीबीसी को फिल्मांकन अधिकार देने के लिए राजी हुई। (दिन., 6 अक्तू. 1968, पृ. 42), (ख)चुनांचे बंदा कुनमुनाता पड़ा रहा। (न.ग.र., खं. 3, पृ. 65), (ग)चुनांचे उनका भी कामकाज, कार्यभार से दबी हुई अंगरेजी गवर्नमेंट को सँभालना पड़ता है . (म.प्र.द्वि., खं 9, पृ. 115)

चुनावटदार वि. (अवि.) -- चुन्नटदार, बाँए कंधे पर से उसका पल्ला नीचे एड़ी तक चुनावटदार लंबाई में लटक रहा है। (चं.श.गु.र., खं. 2, पृ. 233)

चुन्नन सं. (स्त्री.) -- चुन्नट, कमर में धोती, जिसे कच्चे की तरह, अजीब ढंग से पहनते। (वह घुटनों से थोड़ा ही नीचे जाती, घुटनों के नजदीक उसमें चुन्नन होती । (बे.ग्रं., प्रथम खं., पृ. 13)

चुरमुर वि. (अवि.) -- शिथिल, बेदम, सब रस-रूप समय ने लूटा चुरमुर सारा अंक हुआ। (सर., मार्च 1915, पृ. 167)

चुर्रेट वि. -- सुरक्षित, बाहर कौन गाज गिर रही है ? हम यहीं चुर्रेट हैं। (रा.द., श्रीला, शु., पृ. 123)

चुलुकित करना या कर जाना मुहा. -- आचमन करना, काशी बौद्ध और जैन नीति को चुलुकित कर गई। (गु.र., खं. 1, पृ. 107)

चुलुकित वि. (अवि.) -- आचमन किया हुआ, जो सात समुद्र पार की भाषा को चुलुकित कर चुके हैं उनसे न केवल संस्कृत का उद्धार होगा, किंतु कूपमंडूकता का जो कलंक संस्कृत जाननेवालों पर है, वह भी हट जाएगा। (चं.श.गु.र., खं. 2, पृ. 330)

चुल्लू भर पानी में डूब मरना मुहा. -- बहुत ही लज्जाजनक स्थिति में आना, अत्यंत लज्जित होना, (क)यदि वे हिंदुत्व की लाज न रख सकें तो उन्हें चुल्लू भर पानी में डूब मरना चाहिए। (म.का मत: क.शि., 17 नव. 1923, पृ. 82,) (ख)शर्मदार आदमी को डूब मरने के लिए चुल्लू भर पानी काफी है। (स.ब.दे. :.मा., पृ. 18)

चुहचुहाना क्रि. (अक.) -- रिसना, हड़बड़ी में एक खुत्थी और चुभ गई। खून चुहचुहा आया। (रवि., 1 अग. 1982, पृ. 45)

चुहान सं. (पु.) -- बिना दाढ़ी-मूँछ का युवा, उसकी मलैती देखकर आँखें ठंडी हो रही हैं या चुहान की चिंता में दिल धुँआता चला जाता है। (काद., सित. 1988, पृ. 120)

चुहुल सं. (स्त्री.) -- अठखेली, शरारत, वे सब चुहुल, जिन्हें अपनानेवालों को हम चश्मा चढ़ाए, चश्मे के कुछ बाहर और कुछ भीतर से झाँकते शोहदापन कहते थे। (मा.च.रच., खं. 3, पृ. 130)

चुहुलबाज वि. (अवि.) -- सं. (पु.), छेड़-छाड़ करनेवाला, आलोचक के रूप में जहाँ एक ओर मार्मिक विद्वान थे, वहाँ वे कर्कश और शहराती चुहुलबाज थे। (कु. ख. : दे.द.शु., पृ. 18)

चुहुलबाजी सं. (स्त्री.) -- छेड़छाड़, दिल्लगी, संयुक्त विधायक दल ने जिस तरह की राजनैतिक चुहुलबाजी से कांग्रेस को पराजित किया, उससे कांग्रेसियों का रहा-सहा उत्साह फीका पड़ गया। (दिन., 2 जुलाई, 67, पृ. 18)

चूँ करना मुहा. -- आपत्ति करना, कुछ कहना, उसकी इच्छा के विरुद्ध चूँ करने की हिम्मत किसी देश में नहीं है। (वि.भा., जन. 1928, सं. 1, पृ. 64)

चूँ तक न करना मुहा. -- बिलकुल आपत्ति या विरोध न करना, पर ये लोग चूँ तक नहीं करते। (म.प्र.द्वि., खं. 15, पृ. 343)

चूँ न करना मुहा. -- आपत्ति या विरोध न करना, हम कभी चूँ नहीं करते मानो स्वयं को राजनीतिज्ञों के यहाँ रहन रख दिया हो। (कि., सं. म. श्री., पृ. 29)

चूँ व चरा सं. (पु., पदबंध) -- आपत्ति या विवाद, इसमें चूँ व चरा के लिए, हमारी राय में तो जगह नहीं। (म.प्र.द्वि., खं. 9, पृ. 122)

चूं-चकार सं. (स्त्री.) -- आपत्ति, एतराज, उनकी व्यय-व्यवस्था में उनको चूँ-चकार करने का हक नहीं होगा। (सर., जन. 1937, पृ. 37)

चूँ-चपड़ सं. (स्त्री.) -- आपत्ति, एतराज, फिर चूँ-चपड़ करने की और पर फड़फड़ाने की शक्ति इन विचारों में नहीं रहती। (म.प्र.द्वि., खं. 1, पृ. 419)

चूँ-चरा करना मुहा. -- आपत्ति या विरोध करना, मीनमेख निकालना, किंतु उनकी रोक के विषय में कोई चूँ-चरा नहीं कर सकता। (वीणा, जून 1935, पृ. 632)

चूँ-चर्र करना मुहा. -- आपत्ति या विरोध करना, मद्रास का स्वराज्यवादी कुछ भी चूँ-चर्र न करे। (ग.शं.वि. रच., खं. 2, पृ. 403)

चूँ-चूँ का मुरब्बा मुहा. -- बेमेल संग्रह, (क)दर्शकों के सामने जो चूँ-चूँ का मुरब्बा पेश किया गया वह समीक्षक की दृष्टि में तमाशे से ज्यादा नहीं ठहरता। (दिन., 9 सित., 66, पृ. 41), (ख)निम्न स्वार्थों का यह चूँ-चूँ का मुरब्बा विश्व शांति के लिए युद्ध के सस्ते अमेरिकन प्रलोभन में फँस गया है। (कर्म., 6 जन., 1951, पृ. 3), (ग)अब तक पाकिस्तान के लोग पश्चिमी इतिहासकारों की तरह इस बात पर यकीन करते रहे ह कि भारत कोई राष्ट्र नहीं, बल्कि चूँ-चूँ का मुरब्बा है। (रा.मा.संच. 1, पृ. 187)

चू-चूकरबहना मुहा. -- रिसना, टपकना, गोपनीयता की नसों से तथ्य चू-चूकर बह रहे हैं। (रा.मा.संच. 2, पृ. 119)

चूँचूँ का मुरब्बा मुहा. -- भानुमति का पिटारा, हमारा नवीन कथन जब कहीं सधता तो वह चोचों का मुरब्बा जैसा अचंभा बनकर रह जाता है। (मा.च.रच., खं. 2, पृ. 348)

चूजा दिल वि. (अवि.) -- छोटे दिलवाला, डरपोक, भारत में कई चूजा-दिल लोगों का हृदय पसीजने लगा है (स.ब.दे. : रा.मा., पृ. 225)

चूड़ी-पैठाऊ वि. (अवि.) -- प्रथागत, पारंपरिक, शर्माजी और उनके साथियों को उस चूड़ी-पैठाऊ नाटकीयता का भी सहारा लेना पड़ा जिस के बिना इस देश में बात नहीं बनती। (दिन., 28 फर. 1965, पृ. 25)

चून सं. (पु.) -- आटा, आखिर मेरे विरोधी भी चून के बने न थे। (क.ला.मिश्र: त.प.या., पृ. 144)

चूना लगाना मुहा. -- हानि पहुँचाना, अगर प्रकाशकों ने लेखकों को चूसा है और ठगा है, तो कतने ही लेखकों ने प्रकाशकों को चूना लगाया है और उलटे छुरे से मूँड़ा है। (शि.पू.र., खं. 4, 571-72)

चूर वि. (अवि.) -- चकनाचूर, टूटा-फूटा, मुसाफिर चूर हुई गाड़ियों के पास आए और घायलों को रोते-कराहते बाहर निकालने लगे । (सर., अप्रैल 1912, पृ. 234)

चूरन-चटनी सं. (स्त्री.) -- चटपटी या मजेदार वस्तु, कठिन विषय पढ़ने में जब उनका मन न लगे तब चूरन-चटनी का काम आख्यायिकाएँ दे दे। (सर., सित. 1921, प. 155)

चूरा सं. (पु.) -- चूर्ण, आज सारे पहाड़ों का चूरा हो चुका है। (रा.मा. संच. 1, 368)

चूल पर चूल बैठना मुहा. -- एकदम फिट बैठना, जब सब तरफ से यग्यता ही योग्यता ठेल दी, तब कहीं जाकर चूल पर चूल बैठी। (रा.द., श्रीला. शु., पृ. 182)

चूलें ढीली करना मुहा. -- अंग-अगं शिथिल कर देना, कमजोर कर देना, क्या यह गलत काम है जिसे करके हम हिंदुस्तान की चूलें ढीली कर रहे हैं ? (स.ब.दे. : रा.मा., पृ. 105)

चूलें ढीली पड़ना/ होना मुहा. -- पूर्णतः शिथिलल या बेबस हो जाना, हिंदी की (का)हुलिया तंग हो जाएगी (जाएगा)और उकी चूलें ढीली पड़ने लगेंगी। (मधुकर : अप्रैल-अग. 1944, पृ. 144)

चूलें हिलना / हिल जाना मुहा. -- अंजर-पंजर ढीला हो जाना, स्थिति दयनीय हो जाना, लखनऊ की विमला रस्तोगी की वाराणसी में मौत एक ऐसा झटका है जिससे कमलापति त्रिपाठी के साठ साला राजनीतिक जीवन की चूलें हिल गईं। (रवि., 22 नव. 1981, पृ. 18)

चूल्हे-भाड़ में जाना मुहा. -- नष्ट हो जाना, दुर्दशा भोगना, (क)उनके आदर्श चरित्र का महत्त्व गया चूल्हे भाड़ में . (शि.पू.र., खं. 3, पृ. 497), (ख)चूल्हे-भाड़ में जाए किसी की सेवा और किसी का त्याग। (म.का मत: क.शि., 9 मई 1925, पृ. 73), (ग)अभी अखंड का जोर बहुत अधिक है, जनता जाए जूल्हे-भाड़ में। (मधुकर: अप्रैल-अग. 1944, पृ. 45)

चूसना क्रि. (सक.) -- निचोड़ना, प्रजा भी चरम सीमा तक चूसी जा चुकी है। (सर., जुलाई-दिस. 1931, सं. 3, पृ. 268)

चूहे-बिल्ली का खेल कहा. -- लुका-छिपी का खेल, पुलिसवालों और टिकैट के बीच चूहे-बिल्ली का खेल शुरू हुआ। (ज.स., 21-08-2008 , पृ. 7)

चेंचें सं. (स्त्री.) -- कोलाहल, शोर, दिन-रात चेंचें किए रहता। (बे.ग्रं., प्रथम खं., पृ. 41)

चेतना क्रि. (अक.) -- सावधान होना, जागना, जब कम से कम इतना होगा, तब हम समझेंगे कि सरकार अब कुछ चेती। (ग.शं.वि.रच., खं. 2, पृ. 17)

चेमगोई सं. (स्त्री.) -- चर्चा, बातचीत, थोड़ी देर बगलें झाँकी, चेमगोइयों में शरीक हुए तो पता चला कि कोई महिला वर्ष आया है। (काद., मार्च 1976,पृ. 120)

चेरी सं. (स्त्री.) -- नौकरानी, दासी, यह कहना कि कांग्रेस किसी धन्नासेठ की चेरी है, केवल अपने अविचार को प्रकट करना है। (न.ग.र., खं. 4, पृ. 191)

चेले-चपाटे सं. (पु. बहु.) -- शिष्यगण, अनुयायी, कभी-कभी दिन-दहाड़े ये ढलती उम्र के गिद्ध अपने चेले-चपाटों को लेकर निकल पड़ते हैं और अन्य प्रदेशों के नागरिकों पर अचानक टूट पड़ते हैं। (दिन., 23 फर., 69, पृ. 27)

चेले-चाटी सं. (पु. बहु.) -- अनुयायी, पिट्ठू, श्रीलंका फ्रीडम पार्टी के अपने तेरह चेले-चाटियों के साथ अपना डेरा-डंडा प्रतिपक्ष में उठा ले गए। (दिन., 21 फर. 1965, पृ. 21)

चेले-चाँटे सं. (पु. बहु.) -- शिष्यगण, अनुयायी, (क)हिट फिल्म बनाने का गुर अगर किसी को आता है तो मुखर्जी और उनके चेले-चाँटों को। (दिन., 16 जुलाई, 67, पृ. 45), (ख)सरकार भी तो जी खोलकर कर्ज लेती हैं और अब तक अरबों रुपए ले भी चुकी हैं, म्युनिसिपैलिटियाँ भी तो उसी की चेली-चाँटियाँ हैं। (म.प्र.द्वि., खं. 15, पृ. 468)

चेले-चापड़ सं. (पु. बहु.) -- शिष्य, शागिर्द, उनके चेले-चापड़ भी लूट में शामिल थे। (माधुरी, 30 मई, 1925, पृ. 847)

चेहरा सुर्ख होना मुहा. -- क्रोध से चेहरा लाल होना, जब शर्तें पास हो चुकीं तो जनरल लुंडेन्डार्फ का चेहरा सुर्ख हो गया। (न.ग.र., खं. 2, पृ. 201)

चेहरे पर शिकन न आना मुहा. -- पूर्णतः अप्रभावित दिखाई पड़ना, हिंदू समाज भड़के लेकिन उसके चेहरे पर शिकन तक नहीं आई। (हि.ध., प्र.जो., पृ. 279)

चैला सं. (पु.) -- फटी या फाड़ी हुई लकड़ी का टुकड़ा जो जलाने के काम आता है, चूल्हे से जलता हुआ एक चैला, निकालकर महाराज ने भूमि पर पटक दिया। (सर., मार्च 1941, पृ. 272)

चोखा वि. (विका.) -- 1. खरा, विशुद्ध, (क)साफ मालूम होगा कि वे धार्मिक विवाद में बड़े चोखे हैं। (शु.पू.र., खं. 3, पृ. 299), (ख)समय-समय पर आप भारत वर्ष के संबंध में बहुत ही चोखी सम्मति दिया करते थे। (सर., जून 1912, पृ. 334), 2. तेज, तीक्ष्ण, (क)मुंशी गायत्री प्रसाद भाग्य के बड़े चोखे दाँतों की लेकनी द्रा अमिट कीर्ति अंकित की थी . (म.का मत: क.शि., 29 सित. 1925, पृ. 34), (ग)रंग चोखा चटक हो सकता है। (दिन., 16 अप्रैल, 67, पृ. 39)

चोखी चाट सं. (स्त्री.) -- उत्कट लालसा, खड़ी बोली के प्रेमियों की चोखी चाट बिहार ने पूरी की। (शि.पू.र., खं. 3, पृ. 366)

चोगा-चपकन सं. (पु.) -- साजो-समान, उसे बिलकुल नए चोगा-चपकन से लैस होकर मैदान में उतरना होगा। (म.का मत : क.शि., 10 दिस. 1927, पृ. 241)

चोगा सं. (पु.) -- लबादा, जब पुराने सरकारी सभापति सर अलफ्रेड अपना विदेशी चोगा पटेल साहब को पहनाने लगे तब उन्होंने उसे पहनने से इंकार कर दिया। (मा.च.रच., खं. 10, पृ. 45)

चोंचला सं. (पु.) -- 1. नखरा, माधुरी अफसरों को रिझाने के लिए तरह-तरह के चोंचले तजबीज रही होगी। (शि.पू.र., खं. 3, पृ. 503), 2. तमाशा, (क)इधर यह चोंचला खड़ा हो गया। (रा.द., श्रीला.शु., पृ. 57), (ख)गाँव-पंचायत भी क्या है, सरकारी चोंचला। (रा.द., श्रीला. शु., पृ. 227)

चोंचलेबाजी सं. (स्त्री.) -- चापलूसी, चाटुकारिता, प्रो. वर्मा उसकी इस चोंचलेबाजी को ऐसा उजागर करते हैं कि बेचारा बिदककर रह जाता है। (दिन., 13 अप्रैल 69, पृ. 36)

चोंचों मचाना मुहा. -- शोरगुल करना, उनके चोंचों मचाए रहने से वास्तविक साहित्य की बात साधारण पाठकों की दृष्टि से ओझल हो जाती है। (कु.ख. : दे.द.शु., पृ. 81)

चोंचों सं. (स्त्री.) -- कहा-सुनी, रफी साहब और गुप्तजी दोनों में चोंचों न होगी, यही आशा हम कर सकते हैं। (सं.परा.: ल.शं. व्या., पृ. 275)

चोट उड़ाना मुहा. -- प्रहार करना , उस पर टीकाकार ने खुब चोट उड़ाई है । (च . श . गु . , खं . २. पृ . 305)

चोट पहुँचाना मुहा. -- आघात लगना, धक्का लगना, खुसर-पुसर को निचले दर्जे का अभियान देनेवाली सोनिया गांधी को इस बात से चोट पहुँची है। 8.ध., प्र.जो., पृ. 368)

चोट-चपेट सं. (स्त्री.) -- चोट, घाव, जख्म, जिन लोगों को चोट-चपेट आई , उन्हें सरकार की ओर से आर्थिक सहायता भी मिल गई थी। (काद., फर. 1995, पृ. 142)

चोटी पकड़ना मुहा. -- अधिकार में कर लेना, हमारी ऐसी चोटी पकड़ी कि सिर नीचा कर दिया औरों ने तो गाँठ का कुछ न दिया, इन्होंने अच्छे-अच्छे शब्द छीन लिए। (गु.र., खं. 1, पृ. 104)

चोटी बाँधना मुहा. -- प्रतिज्ञा करना, ऐसे बीसियों प्रसंग मिलते हैं जबकि अमुक ने अमुक वंश नाश करने के लिए चोटी बाँद ली हो . (रा.मा.संच. 1, पृ. 456)

चोटीबाज वि. (अवि.) -- चोटी रखनेवाला, एक चोटीबाज पंडित ने कहा-जो जिसके अनुकूल होता है विधाता को उसे उससे मिलाना ही चाहिए। (सर., मई 1930, पृ. 624)

चोट्टा सं. (पु.) -- चोर, चाइयाँ जेल का छोटा सा छोटा कर्मचारी अपने को वायसराय से कम और कैदी को चोट्टा से अधिक नहीं समझता। (ग.शं.वि.रच., खं. 3, पु. 217)

चोर का भाई गिरहकाट कहा. -- एक ही खराब पेशे के लोग, इनसे क्या कहते हो, ये तो तुम्हारे भी गुरू हैं . चोर के भाई गि रहकाट। (सर., मार्च 1919, पृ. 130)

चोर-चोर मौसेरे भाई कहा. -- एक ही पेशे या प्रवृत्ति के लोग, डेपुटेशन में आए हे दो सदस्य वार्ड डेलामेयर और आर्चर भी थे, सब एक ही थैली के चट्टे थे यानी कि चोर-चोर मौसेरे भाई इकट्ठे हुए थे। (स.सा., पृ. 115)

चोर-छिपार सं. (पु.) -- चोर-उचक्का, किसी चोर-छिपार की बुरी नजर न लगी हो। (बे.ग्रं., भाग 1, पृ. 1)

चोर-दरवाजा सं. (पु.) -- गुप्त मार्ग, इसराइल ने अरब देशों की भभकीवाले खेल का चोर-दरवाजा ढूँढ़ निकाला है। (दिन., 25 जून, 67, पृ. 35)

चोरी-छिनाली सं. (स्त्री.) -- चोरी और व्यभिजार, गुट-निरपेक्ष देशों की सरकारें कलही कुल्टा स्त्रियों की तरह एक-दूसरे पर चोरी-छिनाली की तोहमत लगा रही हैं। (दिन., 28 जून, 1970, पृ. 26)

चोला ओढ़ना मुहा. -- बाना पहनना, 1962 में चीन के हमले के समय रूस ने तटस्थता का चोला ओढ़ लिया था। (स.दा. : अ.नं. मिश्र, पृ. 191)

चोला सं. (पु.) -- 1. आवरण, पहनावा, (क)इस हालत में शुद्ध आत्मरक्षा के लिए यह जरूरी हो गया कि कांग्रेस कोई नया चोला पहने (रा.मा.संच. 1, पृ. 27), (ख)कुछ जंतु ऐसे हैं जिन्हें अपनी जीवनयात्रा में अनेक चोले बदलने पड़ते हैं। (सर., फर. 1911, पृ. 71), 2. शरीर एक बार चोला छूट गया तो दुबारा उसमें घुसने को नहीं मिलेगा (काद., मार्च 1994, पृ. 105)

चोली दामन का साथ मुहा. -- घनिष्ठ संबंध, अत्यधिक निकटता, चोली दामन का साथ जो मुंशीजी की चतुर कतरनी ने स्थापित कर दाय था, बराबर बना रहा। (सर., जन. 1930, पृ. 69)

चौकड़ी भरना मुहा. -- उछलना-कूदना, आनंद लेना, यहाँ हिंदू-मुसलमान सब एक हो काव्य भूमि में बेहिचक चौकड़ियाँ भर सकते थे . (दिन., 10 अक्तू. 1971, पृ. 41)

चौकड़ी भूल जना मुहा. -- उछल-कूद बंद हो जाना, फिर एक ऐसा झटका लगता है कि सब चौकड़ी भूल जाते हैं। (वि.भा., जन. 1928, सं. 1, पृ. 442)

चौकड़ी सं. (स्त्री.) -- मिल-बैठनेवाले कुछ लोगों क समूह, पुरानी चौकड़ी खत्म हो चुकी है। (ब.दा.च.चु.प., खं. 1, सं. ना.द., पृ. 409)

चौंकना क्रि. (अक.) -- विस्मित होना, सरकार उनकी बातों को उस पागल की बड़-बड़ से अधिक नहीं समझती जो समय-समय पर चौंक और कुछ बक जाया करता है। (ग.शं.वि.रच., खं. 2, पृ. 56)

चौका सं. (पु.) -- खाना बनाने और खाने का स्थान, लैंडलेडी झट मुझे चौके पर ले गई। (सर., अग. 1913)

चौंकी वि. (अवि.) -- चौंकानेवाली, इस आंदोलन के विरुद्ध बड़ी चौंकी दलीलें दी जाती हैं। (ग.शं.वि. रच., खं. 2, पृ. 225)

चौखटा सं. (पु.) -- चौखटा, ढाँचा, फ्रेम, (क)आप वर्णाश्रम-धर्म के चौखटे में हैं। (रा.मा.संच. 2, पृ. 165), (ख)भूकंप इतना व्यापक इसलिए भी हुआ कि श्रीमती गांधी ने दमन और गिरफ्तारी के चैखटे में आम चुनाव करवाने चाहे। (रा.मा.संच. 1, पृ. 301), (ग)परंपरागत आलोचना के चैखटे में जड़ने की कोशिश शुरू होती है। (दिन., 16 जुलाई, 67, पृ. 42)

चौखटे के अंदर जकड़ा होना मुहा. -- सीमाओं में बँधा होना, ब्रिटेन और अमेरिका अपने फौलादी चौखटे के अंदर जकड़े हुए हैं। (न.ग.र., खं. 2, पृ. 266)

चौखटे में फिट न बैठना मुहा. -- मान्यता के अनुरूप न होना, एक-दूसरे की घी चुपड़ी देखकर निजलिंगप्पा और हनुमंतैया की झाँ-झाँय से दोनों का जो चित्र सामने आया है वह अभी तक के जाने चौखटे में फिट बैठ नहीं रहा है। (दिन., 6 अक्तू. 1968, पृ. 17)

चौखूँट-बँधा वि. (विका.) -- चारों ओर से बँधा हुआ, गाँठ में रखा हुआ, वे गढ़ा-गढ़ाया, चौखूँट-बँधा किस्सा सुना देंगी जिसे तुम झट पचा लोगे। (सुधा, फर.-जुलाई 1935, पृ. 506)

चौगड़ा सं. (पु.) -- खरगोश, उसके नीचे से एक चौगड़ा कूदता हुआ दूसरी झाड़ी की तरफ चला गया (का.कार., पृ. 102)

चौगान सं. (पु.) -- घोड़ों पर सवार होकर डंडों से खेला जानेवाला खेल, इस खेल का पुराना नाम चौगान है और नया नाम पोलो . (दि., 11 मार्च 1966, पृ. 28)

चौड़ा-चकला वि. (विका.) -- अच्छा-खासा चौड़ा, वे सब भी मिल-मिलकर एक चौड़ी-चकली सड़क की सूरत इख्तियार कर लेती है। (स्मृ. वा. : जा.व.शा., पृ. 56)

चौड़े आना मुहा. -- सामने आना, गुप्तजी ने आत्माराम के आवरण में स्वयं को गुप्त रखना चाहा, तथापि उन्हें चौड़े आ जाना पड़ा। (बाल. स्मा. ग्रं. : शर्मा, चतुर्वेदी, पृ. 132)

चौता-चौताल सं. (पु.) -- चैत में गाए जानेवाले (चैता)और होली पर गाए जानेवाले गीत, चौता-चोताल में अगर न उलझें तो इस वेला में किसी से लड़-झगड़ बैठेंगे या अकेले बैठकर टप-टप कुछ आँसू बहा लेंगे। (रवि., 1 अग. 1982, पृ. 42)

चौथ सं. (स्त्री.) -- चौथ, नजराना, भेंट, (क)जैसे वह पूजा और दान से ईश्वर और मानसून को खुश रखती थी, उसी तरह चौथ या सरदेसमुखी देकर राजा से पिंड छुड़ाती ती। (रा.मा.संच. 1, पृ. 372), (ख)जो लाहर में सोनी की उदय सिंह दस्यु सरदार ने पकड़ की, उसमें लाहर एस.डि.ओ. ने चौथ ली थी। (रवि., 25 मार्च 1981, पृ. 12)

चौंधियाना क्रि. (अक.) -- हतप्रभ होना, अभ्युदय के संपादक सच्ची आलोचना से चौंधिया उठे हैं। (क.ला.मिश्र:त.प.या., पृ. 68)

चौन की वंशी बजाना मुहा. -- मजे में रहना, एक मुँहफट ने कहा-तू सठाय गई है। रुपए ले और चौन की वंशी बजा। (सर., जुलाई 1926, पृ. 7)

चौनखारी सं. (स्त्री.) -- आलाप, शब्द स्वर की साकारता और चौनखारी से मुनव्वर अली खाँ ने वातावरण को रंगीला बना दिया। 9दिन., 28 फर., 1971, पृ. 47)

चौपट होना मुहा. -- नष्ट होना, सारा बना-बनाया काम चौपट हो रहा है। (ब.दा.च.चु.प., खं. 1, सं. ना. द., पृ. 383)

चौपट-नंदन सं. (पु.) -- विनष्ट करनेवाला, मिटा देनेवाला, पहले भारत में जितने भी शासक हुए हैं, सब चौपट-नंदन थे। (म.का मत : क.शि., 6 मार्च 1926, पृ. 113)

चौपट वि. (अवि.) -- नष्ट, तबाह, बरबाद, उस युद्ध में नगर-ग्राम चौपट हो गए। (सर., अग. 1926, पृ. 177)

चौपड़ सं. (पु.) -- बिसात पर गोष्ठियों की सहायता से खेला जानेवाला चौसर नामक खेल, प्रेजिडेंट अय्यूब चौपड़ की कौन-कौन और किस-किस रंग की गोटियाँ कब-कब रखेंगे। (दिन., 7 जन. 1966, पृ. 13)

चौफेर क्रि. वि. -- चारों और, भारतीय सीमा को चौफेर देखनेवाला भारतीय कश्मीर और नेपाल के विषय में चिंतित अनुभव करता है (कर्म., 16 दिस., 1950, पृ. 4)

चौबारा सं. (पु.) -- चौबारा, बरामदा, तुम चौबारे के अपना कमरा बना लो। (नव., मई 1959, पृ. 115)

चौमुखा वि. (विका.) -- चैतरफा, इस व्यापक दावानल की चौमुखी लपक से किसी का बचाव नीहं। (ग.शं.वि.रच., खं. 1, पृ. 80)

चौमुहाना सं. (पु.) -- बड़ी चौहमुहानी, (क)भारत की नई पीढ़ी एक चौमुहाने पर अपने संशय और सवालों के साथ खड़ी हुई है . (दिन., 07 मई, 67, पृ. 12), (ख)दिल्ली के एक चौमुहाने पर खड़ी यह प्रतिमा (दिन., 20 मई 1966, पृ. 40)

चौमोहरी सं. (स्त्री.) -- चौसर, चौपड़, (क)चौमोहरी की सी स्थिती है, जिसमें दोनों पक्ष अपनी-अपनी सफलता का उल्लेख कर खुश हो सकते हैं। (दिन., 12 नव. 1965, पृ. 17), (ख)इन तमाम तथ्यों की चालें ही ठहराई जाएँगी। (दिन., 21 फर. 1965, पृ. 16)

चौरंग सं. (पु.) -- तलवार का एक प्रकार क वार, मेरे अबोध कैशोर ने इसे अपना चौरंग उड़ाना समझा। (स्मृ.वा. : जा.व.शा., पृ. 45)

चौहद्दी सं. (स्त्री.) -- चारों तरफ की सीमा, (क)हमारे इंद्रादि अनेक देवता आज की जाना-मानी भारतीय चौहद्दी के बाहर से भी आ सकते हैं। (दिन., 29 मार्च, 1970, पृ. 9) (ख)दूसरी परंपरा देशकाल की दृष्टि से ज्यादा सीमित है उसकी चौहद्दी अच्छी तरह खिंची हुई है। (दिन., 3 अक्तू. 1971, पृ. 9)

छकड़ा सं. (पु.) -- ठेला , गाड़ी, आयोजन के घोड़ों को मजबूती के साथ जनहित के छकड़े में जुते रखने का दायित्व गुरुतर हो जाता है। (दिन., 16 जुलाई 1965, पृ. 11)

छकड़े को ठेलना मुहा. -- दुरूह कार्य को आगे बढ़ाना, सभापतिजी किसी पक्ष को तिरस्कृत करके सुधार के छकड़े को ठेलना नहीं चाहते थे। (शु.पू.र., खं. 4, पृ. 67)

छकाना क्रि. (सक.) -- परेशान करना, (क)पर इतिहास साक्षी है कि रूस ने इन पुष्ट बौरियों को किस तरह छकाया। (न.ग.र., खं. 2, पृ. 82), (ख)जापान में वह शक्ति जरूर है जो अमेरिका को छका सके। (न.ग.र., खं. 2, पृ. 181), (ग)एक दिन अभियुक्त ने उसे छकाने के ले एक चाल चली। (नव., जन. 1953, पृ. 9)

छक्का-पंजा सं. (पु.) -- छल-कपट और धोखेबाजी, यदि कोई ऐसा व्यक्ति... जो दुनियादारी के छक्के-पंजे नहीं जाना जानता, सबसे निराला है। (भ.नि., पृ. 147)

छक्के छुड़ाना या छुड़ा देना मुहा. -- पूरी तरह परास्त करना, पस्त कर देना, (क)मोरक्को ने स्पेनवालों के छक्के छुड़ा दिए हैं। (न.ग.र., खं. 2, पृ. 234), (ख)श्री मुंशी ने जिरह के दौरान सरकारी वकील के छक्के छुड़ा दिए। (काद., अक्तू. 1989, पृ. 151), (ग)चीन की विशाल पैदल सेना बड़े से बड़े विपक्षी के छक्के छुड़ाने के लिए काफी है । (दिन., 04 नव., 66, पृ. 35)

छछोरापन सं. (पु.) -- छिछोरापन, ओछापन, बंग महिला के लेख में छछोरापन अधिक है। (गु.र., खं. 1, पृ. 140), (ख)ये ऊटपटाँग छिछोरेपन की बाते हैं। (गु.र., खं. 1, पृ. 432), (ग)अमेरिका के सामाजिक जीवन में एक प्रकार का छिछोरापन पाते हैं जो भारतीयों के अनुकूल नहीं है । (ते.द्वा.प्र.मि., पृ. 20)

छजना क्रि. (सक.) -- शोभा देना, सजना, गुस्सा करना तो सिर्फ हाकिमों को ही छजता है। (राद., श्रीला. शु., पृ. 118)

छँटनी सं. (स्त्री.) -- नौकरी से कर्मचारियों को निकालने की क्रिया, छँठनी से हजारों मजदूरों की बेकारी को रोकने के लिए केंद्रीय सरकार और कड़े कदम उठाए। (दिन., 7 जन. 1966, पृ. 33)

छटपटाना क्रि. (अक.) -- विकल होना, तड़पना, अमेरिक युद्ध में पड़ चुका है और वह जापानियों को मात देने के ले छटपटा रहा है। (ते.द्वा.प्र.मि., पृ. 21)

छठबाँसा वि. (विका.) -- छहमाहा, कभी-कभी नाटा और इतना नाटा कि उसके छठबाँसा होने का संदेह होता है। (सर., जून 1941, पृ. 470)

छठी का दूध याद आ जाना / पड़ जना / हो जाना मुहा. -- घोर कष्ट की अनुभूति होना, (क)कभी इतनी कठिन तपस्या कराते हैं कि साधक को छठी का दूध याद आ जाता है। (म.का मत: क.शि., 29 मई 1926, पृ. 208), (ख)मारता इतना कि उसको उसकी छठी का दूध भी याद पड़ जाता। (बुधु. बे. : बे.श.उ., पृ. 10), (ग)हमारे रणबाँकुरों ने ऐसी मार मारी कि शत्रु को छठी का दूध याद आ गया। (हि.पत्र, के गौरव बां.बि.भट., सं., पृ. 234)

छठी की खीर याद आना मुहा. -- अत्यधिक व्यथित हो जाना, फ्रांसवाले इंग्लैंड को ऐसी-ऐसी सुनावें कि इंग्लैंड को छठी की खीर याद आ जाए। (न.ग.र., खं. 2, पृ. 227)

छठे-छमासे क्रि. वि. -- याद-कदा, कभी-कभार, (क)यदि आप छठे-छमासे भी कभी अपनी मातृभाषा में नहीं लिखेंगे तो आपका अपने समाज से संबंध ही क्या रह जाएगा। (ग.मं. : पत्र.चु., पृ. 81), (ख)चिट्ठी-पत्री तो वही छठे-छमासे चलती थी। (रा.ला.प्र.र., पृ. 157)

छतनार वि. (विका.) -- जिसकी शाखाएँ छाते के जैसी फैली हुई हों, छतनार पेड़ की झीनी-झीनी छाँव में लेटा। (स्मृ.वा. : जा.व.शा., पृ. 9)

छत्तीस का नाता या संबंध मुहा. -- विपरीत संबंध, वैर, (क)अतीत के वैभव से अभिभूत और परिवर्तन से छत्तीस का नाता रखनेवाला एक प्रतिनिधि चरित्र। (दिन., 24 दिस. 1972, पृ. 30), (ख)किसी भी दल का मंत्रिमंडल हो भारत और इंग्लैंड के व्यापार में छत्तीस का संबंध है। (स.स., पृ. 299)

छत्तीस वि. (अवि.) -- परस्पर-विरोधी, पूर्णतः विपरीत रुचियों के मामले में पति-पत्नी छत्तीस हैं। (दिन., 30 जुलाई 1965, पृ. 39)

छंद-फंद सं. (पु.) -- छल-कपट, छंद-फंद करेक इतनी अच्छी नौकरी दिला दी है। (स.न.रा.गो : भ.च.व., पृ. 237)

छदाम सं. (पु.) -- पाई से भी कम मूल्य का पुराना सिक्का, कौड़ी ना काम करनेवाले की कीमत एक छदाम . (काद., अक्तू. 1989, पृ. 82)

छनछन क्रि. वि. -- क्षण-प्रतिक्षण, हर घड़ी, ऐसा तेज पानी का हथियार सरकार के हाथ लग गया, इस बात पर कांग्रेस के नेता छन छन दुःखी थे। (मा.च.रच., खं. 4, पृ. 218)

छपाका सं. (पु.) -- पानी में किसी चीज के गिरने की ध्वनि, उसने सूँड़ से उखाड़कर कई बड़े-बड़े पेड़ पानी में फेंके, जिनसे गजब का छपाका हुआ। (रा.मा.संच. 1, पृ. 266)

छप्पर पर चढ़कर सुनाना मुहा. -- जोर-शोर से घोषणा करना, लाख दबाइए, हृदय छप्पर पर चढ़कर चिल्लाता है कि सत्य यहाँ पर है। (शु.पू.र., खं. 3, पृ. 360)

छप्पर-फाड़ वि. (अवि.) -- बहुत बड़ा, अकल्पनीय, अप्रत्यशित, 1977 में छप्पर-फाड़ जीत जनता पार्टी की हुई। (रा.मा.संच. 1, पृ. 384)

छबीला वि. (विका.) -- सुंदर छविवाला, वह जितना छबीला नौजवान है उतना साहसी भी है। (काद. : सित. 1978, पृ. 17)

छल-प्रपंच सं. (पु.) -- कपटपूर्ण व्यवहार, छल-प्रपंच करनेवाला व्यक्ति समझता है कि उसने दूसरे की आँखों में धूल झोंक दी . (त्या.भू. : संवत् 1986, (1927)पृ. 142)

छलछलाना क्रि. (अक.) -- खौलना, इस प्रथा को स्वाकार करना जलती भट्ठी से छलछलाती कड़ाही में गिरना है। (ग.शं.वि.रच., खं. 2, पृ. 353)

छलछिद्र सं. (पु.) -- कपट, छल, (क)इस सभ्यता के लिए गरीबों का गला घोंटा जाता है और नित नए छल-छिद्रों का जन्म होता है। (गु.र., खं. 1, पृ. 150), (ख)मैं स्वर्णकार के छलछिद्र का पता बता दूँगा। (सर., अक्तू. 1917, पृ. 178)

छलना सं. (स्त्री.) -- छलावा, भ्रांति, कोई क्रांति ज्वार नहीं है, कोई स्वर्गिक छलना नहीं है। (रा.मा.संच. 1, पृ. 21)

छहरना क्रि. (अक.) -- फैलना, हँसी से जैसे जहर छहर रहा था। (वाग. : ज.व.श., पृ. 6)

छहेल वि. (अवि.) -- घना और छायादार, छतनार छहेल पेड़ किनारों से झुककर छा जाते हैं। (अंतरा : अज्ञेय, पृ. 79)

छाग सं. (पु.) -- बकरा, दूर से आता हुआ छाग, छाग ही है। (सर., अक्तू. 1921, पृ. 203)

छाछ फूँककर पीना मुहा. -- अत्यधिक सावधानी बरतना, बहुत से ऐसे लेखक भी हैं, जो प्रकाशकों को छाछ फूँककर पीने को बाध्य कर चुके हैं। (शु.पू.र. खं. 4, पृ. 571)

छाछ सं. (स्त्री.) -- मठा, फजल की बीवी नूरी छाछ बिलो रही थी। (नव., फर. 1958, पृ. 85)

छाजन सं. (स्त्री.) -- छप्पर, छत, घर पानी आँगन के एक के में टीन के छाजनवाली कोठरी बाकी में लंबा-चैड़ा गोदाम। (रवि., 4 अप्रैल, 1981, पृ. 43)

छाँटना क्रि. (सक.) -- 1. उतारना, निकालना, किंतु भारतमित्र ने इस विषय पर अपना पुराना उफान सुदर्शन पर छाँटा है। (गु.र., खं. 1, पृ .418)। 2. धोना, अपने हाथों अपनी धोती छाँटते शर्म आ रही थी। (प्रे.स.क. : सर. प्रेस, पृ. 77)

छाती कूटना मुहा. -- छाती पीटना, सयापा करना, पतन और पाप के संवेदन पर धर्म की दुहाई दे-देकर छाती कूटते हैं। (मा.च.रच., खं. 3, पृ. 140)

छाती ठंडी करना मुहा. -- शांति प्राप्त करना, (क)जो सबल है वह दुर्बल का दमन करके छाती ठंडी करता है। (शि.पू.र., खं. 3, पृ. 122), (ख)अपनी जबरदस्त मर्दानगी का जौहर दिखलाकर उसकी छाती ठंडी कर आए थे . (म. का मत: क.शि., 3 नव. 1923 , पृ. 121)

छाती ठोंकना मुहा. -- साहस का प्रदर्शन करना, दम भरना, छाती ठोंककर लाठी उठा ली। (रा.निर., समी., फर. 2007, पृ. 17)

छाती पर कोदों या मूँग दलना मुहा. -- अत्यधिक कष्ट देना, (क)अँगरेज समझते हैं कि भारत इसी तरह बेवकूफ बना रहेगा और वे इसकी छाती पर कोदों दलते रहेंगे। (म. का मत : क.शि., 26 अप्रैल 1924, पृ. 149), (ख)दूसरों का हमारी छाती पर कोदों दलना घोर अत्याचार है। (ग.शं.वि.रच., खं. 1, पृ. 87), (ग)मोरक्को की छाती पर फ्रांस और स्पेन मूँग दल रहे हैं। (न.ग.र., खं. 2, पृ. 190)

छाती पर चढ़ बैठना मुहा. -- अधीन कर लेना, ब्रिटेन उत्तर और पश्चिम दिशआ से रूस की छाती पर चढ़ बैठने को उद्यत हो गया। (न.ग.र., खं. 2, पृ. 82)

छाती पर दाल दलना मुहा. -- कष्ट देना, परेशान करना, जर्मन के जहाज, इंग्लैंड की छाती पर दाल दला करेंगे। (ग.शं.वि.रच., खं. 2, पृ. 97)

छाती पर पत्थर रखना या रख लेना मुहा. -- चुपचाप सहन करना, हमारी मातृभाषा को होनेवाली हानि को भी छाती पर पत्थर रखकर सहन कर लेते . (सं.परा. : ल.शं.व्या., पृ. 39)

छाती पर पाँव रखना मुहा. -- घोर कष्ट देना, आज महत्वाकांक्षा के शव की छाती पर पाँव रखकर सर्वनाश अट्टहास कर रहा है। (न.ग.र., खं. 2, पृ. 247)

छाती पर साँप लोटना मुहा. -- ईर्ष्या के कारण व्यथित होना, उसका ब्याह क्या हुआ लोगों की छाती पर साँप लोट गया। (रा.निर., समी., फर. 2007, पृ. 16)

छाती पर होला भूनना मुहा. -- असह्य कष्ट देना, हमारे साथ घर में रहते हो, खाते-पीते हो यह हमारी छाती पर होला भूनना नहीं तो और क्या है । (काद. : सित., 1978, पृ. 123)

छाती पीटना मुहा. -- व्यथा व्यक्त करना, सयापा करना, आजादी का जश्न भी मना रहे हैं और साथ ही छाती भी पीट रहे हैं कि हमारी आजादी, लोकतंत्र खतरे में पड़ा हुआ है। (कि., सं. म. श्री., पृ. 355)

छान-पगहा तुड़ाना मुहा. -- दूर भागना, बहिष्कार करना, कौंसिलों की अड़ंगा नीति से भले ही झुंझलाकर छान-पगहे तुड़ाए स्वराज्य भयंकर बलिदान से ही होगा। (म. का मत: क.शि., 9 जन. 1926, पृ. 200)

छाप सं. (स्त्री.) -- मोहर, प्रभाव, हमारे समस्त कार्यों और बातों में धर्म की छाप लगी हुई है। (गु.र., खं. 1, पृ. 143)

छाया छुआ वि. (विका.) -- (छत्त या छप्पर के रूप में)छाया हुआ, जो केवल ताड़ या नारियल के पत्तों से छाए-छुए थे। (सर., भाग 28, ख. 1, सं. 6, जून 1927, पृ. 692)

छायानुगामी वि. (अवि.) -- अनुसरण करनेवाला, अनुयायी, उनके छायानुगामी आचार्य कृपालानी ने वर्तमान जटिल परिस्थित के अनुकूल पते की बात कही। (दिन., 1 अक्तू. 1965, पृ. 15)

छिउला सं. (पु.) -- पलाश, टेसू, छिउला जंगल में आग दहका देता है। (दिन., 7 अप्रैल, 67, पृ. 39)

छिकना क्रि. (अक.) -- छेंक लिया जाना, घिरना, लाइन भी मालवैगनों से पट गी और मुगलसराय तक की पटरी छिकने लगी . (दिन., 9 दिस., 66, पृ. 26)

छिगुनी सं. (स्त्री.) -- हाथ या पैर की सबसे छोटी उँगली, छिंगुली उपाय यह कि सबकी छिगुनी कटवा दी जाए लाठी भी न टूटे साँप भी मरे नहीं। (ज.क.सं. : अज्ञेय, पृ. 161)

छिछला वि. (विका.) -- उथला, सारहीन, हलका, (क)जो मंच पर जमता है वह अकसर छिछला और घटिया हो जाता है। (रा.मा.संच. 2, पृ. 392), (ख)यह छिछली राजनैतिक नारेबीज है . (हि. ध., प्र.जो., पृ. 255), (ग)यह तर्क और भी छिछला है कि श्री मेनन को किसी और जगह से टिकट दिया जाए। (दिन., 2 दि., 66, पृ. 14)

छिछलाना क्रि. (सक.) -- छितराना, विनाश के प्रहार उसे (वाणी को)गुणित होते जाने का बल प्रदान करते हैं, वे उसे फैलाते और छिछलाते हैं। (ग.शं.वि.रच., खं. 1, पृ. 78)

छिछलापन सं. (पु.) -- उथलापन, गहराई की कमी, इस शैली की खानों में बी छिछलेपन के कारण कहीं-कहीं पर बालकों को मसौल दिखाई देता है (वीणा, मार्च 1935, पृ. 363)

छिछोरपन सं. (पु.) -- छिछोरापन, ओछापन, कोई कारण नहीं है कि हम किसी प्रकार के छिछोरपन से उत्तेजित होकर जवाब में वैसा ही छिछोरपन करें। (सा.हि., 3 फर. 1957, पृ. 4)

छिछोरा सं. (पु.) -- ओछा व्यक्ति, किसी समाज के छिछोरों के दल के कारण सारा समाज निंद्य नहीं हो सकता। (सर., भाग 28, खं. 1, सं. 1, जन. 1927, पृ. 156)

छिछोरापन सं. (पु.) -- ओछापन, (क)सारे धर्म-कर्म ब्राह्मणत्व के छिछोरेपन से दरिद्रता को प्राप्त हो रहे हैं। (कुं.क. : रा.ना. उ., पृ. 107), (ख)और एक ऐसा छिछोरापन प्रकट करना है, जिसके कारण हम पर वह भी विश्वास नहीं कर सकता। (ग.शं.वि.रच., खं. 2, पृ. 316), (ग)इसका मूल कारण कांग्रेस सरकार क छिछोरापन है। (रा.मा.संच. 1, पृ, 79)

छिटपुट ढंग से क्रि. वि. (पदबंध) -- थोड़ा-थोड़ा करके, पर यह काम इस तरह छिटपुट ढंग से पूरा होने योग्य नहीं। (शु.पू.र., खं. 2, पृ. 249)

छिड़ी सं. (स्त्री.) -- सीढ़ी, छिड़ियों पर श्रीमती ह म से मुठभेड़ हो गई। (मधुकर, वर्ष-1, अंक-3, 1 नवं. 1940, पृ. 15)

छितरना क्रि. (अक.) -- छितरा जाना, फऐलना, बिखरना, विकास संस्था पर अस्थिरता का जो कोहरा था वह छितर गया। (क.ला. मिश्र: त.प.या., पृ. 141)

छितराना क्रि. (अक.) -- बिखर जाना, तितर-बितर हो जाना, कुर्बानी का फल प्रशासकीय नालायकी से दफ्तरों की मेजों पर कहीं छितरा तो नहीं जाएग। (दिन., 13 अग., 67, पृ. 12)

छिनाना क्रि. (सक.) -- छीनना, छीन लेना, इसे छिना लेने का प्रयत्न व्यर्थ है। (सर., फर. 1911, पृ. 67)

छीछड़ा सं. (पु.) -- मांस का रद्दी और त्याज्य अंश, वे अपनी दुमें टाँगों के बीच दबाए नालियों को सूँघते दबे-दबे आते और कसाई की दुकान पर छीछड़ों पर झपटते। (सर., मार्च 1937, पृ. 251)

छीछालेदर सं. (स्त्री.) -- दुर्गति, (क)छायावाद शब्द की जितनी छीछालेदर हिंदी मे हुई है , उतनी कदाचित और किसी शब्द की नहीं हुई। (माधुरी : अग.-सित. 1928, पृ. 175), (ख)जगन्नाथ राय ने अपने प्रतिपक्षी अप्पय दीक्षित की बड़ी छीछालेदर की है। (सर., मार्च 1923, भाग-24, खं. 1, सं. 3, पृ. 6)

छीजना क्रि. (अक.) -- क्षीण होना, कम होना, (क)अखबार की कुरसी पर आसन जमाते ही पास-बुक दिन-दिन छीजने लगी . (शु.पू.र., खं. 4, पृ. 262), (ख)इस एक साल में टीकम की देह ऐसी छीज गई कि ठठरी हो गई। (सर., फर. 1937, पृ. 131), (ग)देह का दम पुश्तैनी तौर से ही छीज गया था। (साक्षा., मार्च-मई 77, मृ.पां., पृ. 27)

छींटना क्रि. (सक.) -- छींटे डालना, पानी पीकर लौटते हुए घोड़ों को इस मंत्र से छींटता है। (गु.र., खं. 1, पृ. 254)

छींटा पड़ना मुहा. -- थोड़ा-सा प्रभाव होना, ऐसा उल्लेख नहीं पाया जाता कि मानस पर किसी बिहारी भाषा का भी छींटा पड़ा है। (शि.पू.र., खं. 3, पृ. 353)

छींटा सं. (पु.) -- हाथ से छिड़की हुई, जल की बूँदे, समस्त समुद्र जो पदार्थ एक छींटा जल भी वही पदार्थ है (गु.र., खं. 1, प . 135)

छींटाकशी करना मुहा. -- व्यंग्य करना, ताना कसना...अब प्रधानमंत्री की यात्राएँ मुख्यमंत्री के हितों का पोषण नहीं करतीं, इसलिए छींटाकर्शी की जा रही है। (दिन., 11 जून. 1970, पृ. 15)

छींटी भर क्रि. वि. -- क्षण भर, जरा-सा, वह छींटी भर उसके निकट रहा और फिर चल दिया। (चि.फू., पृ. 1)

छींटे फेंकना मुहा. -- दोषारोपण करना, दोष मढ़ना, कौंसिली भारत के इस रुख ने लाट साहब की विजय की धौरी चादर पर मजे के छींटे फेंक दिए। (मा.च.रच., खं. 10, पृ. 141)

छीना-झपटी सं. (स्त्री.) -- नोच-खसोट, चीन में आजकल जो कुछ हो रहा है उसमें चीनी-शैली में सत्ता की छीना-झपटी ही दिखाई देती है . (दिन., 10 सित., 67, पृ. 36)

छील-तराश सं. (स्त्री.) -- छीलने या तराशने की क्रिया या भाव, गढ़न इसके निर्माण समय तक इस कला में अधिक बारीकी और छील-तराश न घुस पाई थी . (सर., अप्रैल 1922, पृ. 275)

छुटभैया छुटभैया सं. (पु.) -- छोटा आदमी, मेहनत-मजदूरी करनेवाला व्यक्ति, (क)छुटभैयों को पूछता कौन है ? (ब.दा.च.चु.प., संपा. ना.द., पृ. 215), (ख)ब्रिटिश न्याय के जाल में देश की सबसे बड़ी मछली फाँस ली गई थी और सारे छुटभैये अंगरेज बड़े खुश थै। (रामा.संच. 1, पृ. 52)

छुट्टा घूमना मुहा. -- अनियंत्रित व्यवहार करना, त्रिशूलधारी कार्यकर्ता इस तरह छुट्टा नहीं घूम रहे होते। (इं.टु., 29 अक्तू. 2008, पृ. 20)

छुट्टा वि. (विका.) -- अकेला, स्वतंत्र और भारत की राजनीतिक रूह को छुट्टा छोड़ दिया जाए, (रामा.संच. 1, पृ. 383)

छुतहा वि. (विका.) -- संक्रामक, गरीब बच्चे कुपोषण और छुतहे रोग से ग्रस्त होते हैं। (काद. : सित. 1978, पृ. 23)

छुपव्वल सं. (स्त्री.) -- छिपाव, कीसिंगर की पीकिंग यात्रा की खबर हर मुल्क को हो गई थी, छुपव्वल की कोई बात नहीं रह गई थी। (दिन., 17 अक्तू. 1971, पृ. 32)

छुपा रुस्तम सं. (पु.) -- ऐसा व्यक्तित जिसकी योग्यता या कौशल का अनुमान लोगों को न हो , यह संभव है कि इसी प्रकार का कोई छुपा रुस्तम ही राष्ट्रपति बन जाए। (दिन., 19 नव., 66, पृ. 29)

छुप्पवल सं. (स्त्री.) -- छिपाव, बिना किसी छुप्पवल के मोदी ने बताया कि वह मुझसे सहमत नहीं। (दिन., 16 जुलाई 1972, पृ. 14)

छूकर गुजरना मुहा. -- प्रभावित न कर पाना, कुछ बिगाड़ न पाना, अधिक हानि या अहित न कर पाना, जितने संघर्ष हिंद-चीन में ह वे सब कंबोडिया को सचमुच छूकर गुजर गए हैं। (रा.मा.संच. 2, पृ. 28)

छूँछा वि. (विका.) -- खाली, निस्सार, सारहीन, (क)पुलिस ने पहले छूँछी गोलियाँ छोड़ी और फिर प्राणांतक वार करने लगी। (न.ग.र., खं. 2, पृ. 173), (ख)सहानुभूति के छूँछे शब्दों से हिंदी की छाती का घाव भरनेवाला नहीं है। (शि.पू.र., खं. 3, पृ. 258), (ग)अपने आस-पास एक झूठे और छूछे शबद् की दुनिया बनाने की कोशिश करते हैं (दिन., 30 मई 1971, पृ. 36), (घ)हर जगह वही किरकिराता अभाव, वही छूँछी इज्जत, ढक-तोपकर रखनेवाली व्यग्रता भर देखी है। (साक्षा, मार्च-मई 77, मृ. पां., पृ. 27)

छूँछापन सं. (पु.) -- खालीपन, जाल डालने के प्रयास का भोग और उसके छूँछेपन का दर्द सालता है। (अंतरा : अज्ञेय, पृ. 73)

छूत न लगना मुहा. -- संसर्ग या संपर्क न ह ना, भला हो यदि ओलंपिक खेलो को भारतीयों की छूत न लगे । (मा.च.रच., खं. 9, पृ. 134)

छूमंतर होना मुहा. -- रफूचक्कर होना, अंतर्धान या दूर होना, (क)बस सारा संकट छूमंतर हो जाएगा। (दिन., 21 अप्रैल, 68, पृ. 18), (ख)देखते-देखते यह धाँधली छूमंतर हो जाएगी। (सा.हि., 28 जून 1959, पृ. 5), (ग)इसके बावजूद संप्रेषण की कठिनाइयाँ छूमंतर नहीं हो गईं । (दिन., 21 सित. 1969, पृ. 24)

छेंकना छेकना क्रि. (सक.) -- रोकना, (क)घर लौटने के समय श्रीरामचंद्र को परशुराम ने रास्ते में छेक लिया और उनकी परीक्षा के लिए एक दूसार हर-धनु निकाला। (वीणा, जन. 1934, पृ. 572), (ख)वह छेंकने की रस्म अदा की जाती है। (दिन., 11 जून , 67, पृ. 39), (ग)हिंदी बेचारी को कहीं पनाह नहीं मिलता। हर जगह निगोड़ी हंदुस्तीनी ही उसकी जगह छेंक लेती है। (शि.पू.र., खं. 4, पृ. 533)

छेड़ना क्रि. (सक.) -- छेंकना, रोकना, कई जगह बातचीत हुई थी और कहीं-कहीं तो लड़का छेड़ा ही जानेवाला था ; किंतु अंत में टाँय-टाँय फिस्स। (सर., फर. 1921, पृ. 120)

छेव सं. (पु.) -- अंतराल, बीच में छेव नहीं पड़ता। (मधु: अग. 1965, पृ. 208)

छैल-चिकनिया वि. (अवि.) -- बन-ठनकर रहनेवाला, बाँका-छैला, समाज जिन्हों छैल-चिकनिया कहता है वह असमान्यता स्पृहणीय नहीं होती है। (नि.वा. : श्रीना. च., पृ. 627)

छैल वि. (अवि.) -- 1. आडंबरपूर्ण, दिखावटी, अब हमारा जीवन खर्चीला, छैल और आराम-पसंद होता जाता है। (मा.च.रच., खं. 10, पृ. 62), 2. बाँका-छैला, बना-ठना, वे दोनों पूरे छैल हैं और सब प्रकार एक-दूसरे के योग्य हैं . (सर., जून 1922, पृ. 408)

छोटभैया सं. (पु.) -- छुटभैया, छोटी हैसियत का व्यक्ति, आज कुछ छोटभैयों ने उन्हीं का रंग दिखलाना शुरू किया और साहित्य के कुछ महंतों की पोलें खोल-खोलकर दिखलाना, प्रारंभ किया। (कु.ख. : दे.द.शु., पृ. 39)

छोटे मुँह बड़ी बात कहा. -- अपनी योग्यता से कहीं बढ़-चढ़कर कही हुई बात, अनधिकार चेष्टा उसका रूस को चुनौती देना छोटे मुँह बड़ी बात है। (सर., अप्रैल 1959, पृ. 227)

छोत सं. (पु.) -- जानवर द्वारा किए गए गोबर की ढेरी, (क)धूल-धक्कड़ में उनका पाँव गोबर के छोत पर पड़ गया। (रा.द., श्रीला. शु., पृ. 387), (ख)बहुत दूर पर एक छोत गोबर दिखाई दिया। (सर., जुलाई, सित. 1943, पृ. 443)

छोर सं. (पु.) -- किनारा, सिरा, पिथौरागढ़ के एक छोर पर पहाड़ की तलहटी में बसा तवाघाट। (काद., नव. 1995, पृ. 56)

छौंक सं. (स्त्री.) -- बघार, तड़का, पुट, उनकी रचनाओं में कहीं भी संस्कृत की छौंक नहीं है । (प्रा. के ब. : श्या. सु.घो., पृ. 2)

छौना सं. (पु.) -- पशुंशावक, बच्चा, मन्मथ बाबू अपने दुहरे और जरा भारी बदन को सँभाल कर जब हाथी के छौने की तरह झूलकर चलते थे तब देखनेवाले को बरबस हँसी आ जाती थी। (मा.च.रच., खं. 4, पृ. 189)

जक सं. (पु.) -- पराजय, हानि, इस समय जर्मनी और इसके मित्र रणक्षेत्रों में कदम-कदम पर जक उठा रहे है । (ग.शं.वि. रच., खं. 2, पृ. 533)

जकड़बंदी सं. (स्त्री.) -- जकड़े होने का भाव या अवस्था, (क)पूरी जकड़बंदी के साथ अच्युत रहकर अपने अलगाव और क्रमशः क्षीणतर (?)होने का जोखिम उठाएगा। (दिन., 1 अग. 1971, पृ. 42), (ख)आदि से अंत तक एक विशेष छंदोबद्ध गति की जबरदस्त जकड़बंदी हो। (सर., जन. 1919, पृ. 50)

जकंद सं. (स्त्री.) -- छलाँग, जर्मनी की तरह लंबी जकंद भरना ठीक नहीं। (चं.श.गु.र., खं. 2, पृ. 400)

जखेड़ा सं. (पु.) -- जखीरा, समूह, आजकल निंदकों का जखेड़ा बढ़ा हुआ है। (बा.भ. : भ.नि., भाग-2, पृ. 80)

जख्म पर नमक छिड़कना मुहा. -- दुःखी को और दुख देना, यदि अमेरिका का दोस्ती का दावा हास्यस्पद है, तो इंग्लैंड के मजदूर दल का दावा जख्मों पर नमक छिड़कता है । (ते.द्वा.प्र.मि., पृ. 51)

जग-हँसाई सं. (स्त्री.) -- लोगों क बीच होनेवाला उपहास, जनभावना के सामने विपक्ष ने अपनी जग-हँसाई भी करवाई . (किल., सं. म. श्री., पृ. 56)

जंगखोर वि. (अवि.) -- युद्धलिप्सु, आर्थिक दृष्टि से भी पुर्तगाल के लिए यह जरूरी हो गया था कि जंगखोर तानाशाही को बदला जाए। (रा.मा.संच. 1, पृ. 245)

जगजाना वि. (विका.) -- जिसे सब जानते हो, सर्वज्ञात रोमियो जूलियट की कहानी जगजानी है। (दिन., 22 जून 1969, पृ. 42)

जंगम वि. (अवि.) -- चल, उसकी जंगल संपत्ति रुपए एक लाख आँकी गई। (काद. : सित. 1978, पृ. 17)

जंगमशील वि. (अवि.) -- एक स्थान से दूसरे स्थान पर जाता रहनेवाला, चलायमान, इस पर मैंने अपने साथी, उन दोनों हिंदुस्तानियों से पूछा कि यह जंगमशील ज्वाला क्या चीज है ? (सर., जुलाई 1909, पृ. 299)

जगहग सं. (स्त्री.) -- जागंरण, जागा, आज रात भर जगहग रहेगी। (निरु : निराला, पृ. 93)

जगार सं. (स्त्री.) -- जगे होने की अवस्था या भाव, जगाहट, जागरण, अभी तक चैके (चौके)में जगार थी (रवि., 8 फर. 1981, पृ. 44)

जंजाल सं. (पु.) -- झमेला, बखेड़ा, झंझट, (क)इस दशा में जीवन जंजाल का झगड़ा दूना बढ़ जाएगा। (म.प्र.द्वि.रच., खं. 2, पृ. 164), (ख)उसमें काँटे हैं, गड्ढे हैं, जंगल जंजाल हैं और भूलने भटकने के खतरे हैं। (स.से.त. : क.ला.मिश्र, पृ. 8), (ग)विद्वान् लोग संसार के जटिल जंजालों को एकदम भूल जाते हैं। (सर., अक्तू. 1915, पृ. 200)

जड़ खोदना मुहा. -- ऐसा काम करना जिससे किसी का पूर्ण विनाश हो, आधार नष्ट करना रूसी अधिकारियों से मिलकर उनकी जड़ खोदने की चेष्टा करते हैं। (सा.हि., 7 जून 1959, पृ. 5)

जड़ भरत वि. (अवि.) -- अज्ञानी, बुद्ध, अँगरेज अफसरों ने कहा कि लाओ यहाँवालों को कुछ पढ़ावे भी (ऐसा न हो जो वो लोग बिलकुल ही मूर्ख या जड़भरत हो जाएँ। (सर., अप्रैल 1922, पृ. 285)

जड़ से उखाड़ फेंकना मुहा. -- समूल नष्ट करना, उन्मूलन क रना, जनरल रिवोरा की निरंकुशता को जड़ से उखाड़ फैंकने के लिए एक षड्यंत्र रचा था। (न.ग.र., खं. 2, पृ. 223)

जड़ावर सं. (पु.) -- जाड़े (में पहनने)के कपड़े, गरम कपड़ें तुम लोगों को जड़ावर भेजेंगे। (निराला : डॉ. रा.वि.श., पृ. 15)

जड़ें हिलना मुहा. -- आधार खिसकना, निराधार हो जाना, राजाओं के समर्थकों की जड़ें हिल जाएँगी। (दिन., 30 जुलाई, 67, पृ. 12)

जड़ों में मट्ठा या मठा जालना मुहा. -- समूल नष्ट करने का प्रयत्न करना, समूल नष्ट करना, (क)उन्होंने कमीशन-बहिष्कार की जड़ों में मट्ठा डालने का प्रयत्न शुरू कर दिया है। (म.का मत: क.शि., 10 दिस.1927, पृ. 240) (ख)जिसे आजकल की छद्म, शिष्ट भाषा में राजनय कहा जाता है, पर जो है आज भी वही जो कुशा की जड़ों में मट्ठा डालनेवाले चाणक्य के जमाने में थी यानी कूटनीति..., (दिन., 18 फर. 1966, पृ. 10), (ग)आपातकाल के बाद तो कांग्रेस की जड़ें ही खुद गई थीं और उसमें मठा डल गया था। (किल., सं. म. श्री., पृ. 176)

जड्ड वि. (अवि.) -- भोथरा, कुश जितनी अपनी, जड़ों में जड्ड है उतनी ही अपने लंबे पत्रकों के शीर्ष में नुकीली। (ज.स., 09 दिस. 06, पृ. 6)

जतन सं. (पु.) -- यत्न, पयत्न, उपाय, (क)जिन्हें दूर रखने के लिए सौ जतन किए जाते थे, उन्ही से सहायता माँगी गई। (मधुकर, 1 अक्तू. 1940, पृ. 203), (ख)जो बफर-क्षेत्र बड़े जतन से मॉस्को ने खड़ा किया है, वह कहीं नष्ट न हो जाए। (रा.मा.संच. 1, पृ, 341), (ग)इस लाटरी में कुछ समझ लगाने का जतन सभी करते हैं । (चं.श.गु.र., खं. 2, पृ. 291)

जतर-कतर क्रि. वि. -- यत्र-तत्र, इधर-उधर कोठी के मुनीमों ने हजारों रुपया जतर-कतर कर दिया। (सर., भाग 28, ख. 5, पृ. 537)

जनकत्व सं. (पु.) -- जनक होने का भाव या अवस्था, पितृत्व, पिता बनने का अधिकार अयोग्यों का जनकत्व घटता नहीं, किंतु बढ़ता ही है। (गु.र., खं. 1, पृ. 153)

जनजल्प सं. (पु.) -- लोकोक्ति, कहावत, जनजल्प के पीछे वास्तविक अनुभूति होती है। (काद. : जन. 1989, पृ. 7)

जनमानित वि. (अवि.) -- जनता द्वारा स्वीकृत, जनमान्य, कविता को नई दिशा देने का ही नहीं उसे जनमानित कराने का भार भी उन्हें (केशवसुत मराठी कवि)लेना पड़ा। (दिन., 14 अक्तू. 66, पृ. 41)

जनमेदिनी सं. (स्त्री.) -- विशाल जनसमूह, भीड़-भाड़, जहाँ ट्रेन ठहरी और वहाँ भी जहाँ नहीं ठहरी, दर्शनातुर जनमेदिनी एकत्र थी। (नव., जन. 1952, पृ. 11)

जनरव सं. (पु.) -- आम चर्चा, जनरव है कि महाराज हरी सिंह देव ने किसी समय मिथिला के मैथिल ब्राह्मणों को आमंत्रित किया (सर., अक्तू 1909)

जना सं. (पु.) -- जन, व्यक्ति, हम चार जने बीना से धमनी पर बैठकर गुलौवा, मेवली होते हुए कोंरजा जा पहुँचे। (मधुकर, अप्रैल-मई 1946, पृ. 433)

जनाना क्रि. (सक.) -- उत्पन्न करना, पैदा करना, जन्म देना, भारत ने अपनी स्वायत्त हस्ती में कांग्रेस को नहीं जना। (रा.मा. संच 1, पृ. 47)

जन्मघुट्टी सं. (स्त्री.) -- जन्म के समय बच्चे को पिलाई जानेवाली ओषधि, प्रथम पाठ, हमें उसे भारतेंदुकालीन जन्म घुट्टी एक बार फिर पिलानी होगी। (रवि., 13 दिसंबर, 1982, पृ. 5)

जप्पल वि. (अवि.) -- जप करनेवाला, अस्सी बरस की खोड़ही जप्पल बुढ़ियाएँ उपदेश देती हैं-बेटा अब तुम सयाने भये घर दुआर की फिकिर रखा करो। (भ.नि., पृ. 27)

जफड़ी सं. (स्त्री.) -- जमावड़ा,जुआरियों की जफड़ी जमी देखकर रुप्पन बाबू चहलकदमी करते हुए उधर ही मुड़ गए। (रा.द., श्रीला. शु., पृ. 318)

जबर वि. (अवि.) -- बलवान, शक्तिशाली, यह प्राणी एक जबर बुद्धिजीवी है। (स. का वि. : डॉ.प्र. श्रो., पृ. 81)

जबरदस्त का ठेंगा सिर पर लेना मुहा. -- अनचाहा भार लेना, हेकड़ी सहना,म गर जवाब कितना ही युक्तियुक्त क्यों न हो, जबरदस्त का ठेंगा सिर पर लेना ही पड़ता है। (सर., भाग 28, खं 2, सं 1, जुलाई 1927, पृ. 769)

जबरदस्त का ठेंगा सिर पर कहा. -- जबरे की बात मान्य होती है, वह प्रयोग एक महाकवि ने किया है, इसलिए पंडितों ने उसे मान लिया। (क्यों न हो जबरदस्त का ठेंगा सिर पर। (सर., फर. 1911, पृ...)

जबरा मारे रोने न दे कहा. -- बलवान निर्बल को सताता भी है और रोने या शिकायत का अवसर भी नहीं देता, आज के सत्ताधीशों ने आम आदमी की कमर तोड़कर रख दी, न बोल सकता है, न विरोध कर सकता है , जबरा मारे रोने न दे। (काद. : जू 1994, पृ. 22)

जबरी वि. (अवि.) -- हथियाया हुआ, अतिक्रमित, भुरके ने बताया कि निरंतर बढ़ते अतिक्रमण और जबरी खेती से पहले ही चरागाह की जगह नहीं बची है। (लो.स., 7 मई 1989, पृ. 8)

जबानी जमा-खर्च करना मुहा. -- कोरी बातें करना, क्या जबानी जमा-खर्च से बेड़ा पार लगेगा। (शि.पू.र., खं. 3, पृ. 306)

जमघट सं. (पु.) -- समूह, एक भाषाभाषी लोगों का जमघट लगने लगता है। (दिन., 21 फर. 1965, पृ. 18)

जमना क्रि. (अक.) -- स्थापित होना, बस जाना, यूरोपियनों का रजवाड़ों मे जमना बुरा समझा। (गु.र., खं. 1, पृ. 334)

जमफाँस सं. (पु.) -- यमराज का फंदा, त्रासदायक स्थिति, हिंदुस्तान के स्वतंत्र होने के पूर्व इस जमफाँस से पहले मुक्ति आवश्यक है। (सर., जन.-जून 1961, सं. 5, पृ. 565)

जमा-जथा सं. (स्त्री.) -- जमा की गई राशि, जमा-पूँजी, अपनी जमा-जता उनके हाथ सहेजी। (स.न.रा.गो. : भ.च.व., पृ. 12)

जमात सं. (स्त्री.) -- मंडली, दल, यहाँ गुस्साइयों की एक जमात आई है। (कच. : वृ.ला.व., पृ. 51)

जमाव सं. (पु.) -- जमावड़ा, प्रयाग में इस समय बड़ा जमाव है। (सर., जन. 1911)

जमीन गोड़ना मुहा. -- आधार या वातावरण बनाने के लिए घोर परिश्रम करना, स्वयं मुख्यमंत्री बनने के लिए दिल्ली, भोपाल में जमीन गोड़ते रहे। (रवि. 5-11 फर. 1978, पृ. 14)

जमीन पर उतारना मुहा. -- साकार करना, मूर्त रूप देना, लेकिन क्या भारतीय लोकदल और उसके साथियों में इतने दमगुर्दे हैं कि अपने चिंतन को जमीन पर उतार सकें। (रा. मा. संच. 1, पृ. 415)

जय कन्हैयालाल करना मुहा. -- जय-जयकार करना, ...ऐसे अर्जेंतीना ने बोरर्वेस को अपने कंधे पर बैठाकर जय कन्हैयालाल की की तो इससे बोरर्वेस और बोनोसायरस दोनों की ही व्याख्या हो जाती है । (दिन., 12 नव. 1972, पृ. 40)

जरखरीद वि. (अवि.) -- पूरी तरह से खरीदा हुआ, लक्ष्मीधर तो मानो उमा का जरखरीद दास हो गया (रवि., 3 अग. 1981, पृ. 37)

जरठ वि. (अवि.) -- पुराना, जीर्ण, मेरे पास जो है वह जरठ भी है खूँसठ भी। (कुटुज : ह.प्र.द्वि., पृ. 90)

जरायमपेशा वि. (अवि.) -- अपराध करनेवाला, अपराधशील, वह जरायमपेशावालों की बस्ती थी। (वीणा, जन. 1934, पृ. 217)

जरासीम सं. (पु.) -- कीटाणु, निश्चय ही कुछ ऐसे जरासीम यहाँ की राजनैतिक हवा में हैं, जो शेष भारत में नहीं हैं। (रा.मा.संच. 1, पृ. 171)

जरिया सं. (पु.) -- माध्यम, उसे दमन और स्वेच्छाचारिता का जरिया बना रहने देंगे। (मा.च.रच., खं. 9, पृ. 214)

जर्जर-झर्झर वि. (अवि.) -- अत्यधिक कमजोर, यही कारण है, मंगर जर्जर-झर्झर हो गया। (बे.ग्रं., प्रथम खं., पृ. 34)

जर्रा-जर्रा सं. (पु., पद.) -- कण-कण, चप्पा-चप्पा, बंबई का जर्रा-जर्रा मेरा पहचाना है। (काद., अग. 1994, पृ. 17)

जर्रा-भर वि. (अवि.) -- तनिक भी, थोड़ा सा भी, कुछ भी, भारत, श्रीलंका और बँगलादेश की सरकारें ऐसे नारे लगा चुकी हैं जिनकी सफलता में उन्हें भी जर्रा-भर विश्वास नहीं। (रा.मा.संच. 1, पृ. 235)

जर्रार सं. (पु.), वि. (अवि.) -- चीर-फाड़ करनेवाला, कटु आलोचना करनेवाला, जहाँ हिंदी के बड़े -बड़े जर्रार लेखक रहते हैं, वहाँ भी हिंदी के नाटक हमने देखे हैं। (शि.पू.र., खं. 3, पृ. 400)

जलकर कोयला होना मुहा. -- ईर्ष्या से व्यथित हो जाना, कोई और होता तो जलकर कोयला हो जाता। (सर., सित. 1922, भाग-23, खं. 2, सं. 3, पृ. 165)

जला-कुढ़ा वि. (विका.) -- संतप्त और ईर्ष्याग्रस्त, हाशिए पर जला-कुढ़ा बैठा तबका...आंतरिक समरसता और शांति को भंग कर देगा। (हि.ध., प्र.जो., पृ. 107)

जला-भुना वि. (विका.) -- अत्यधिक क्रुद्ध, पंजाब का हत्याप्रिय शासक आंदोलनकारियों से जला-भुना और तुला बैठा था कि उसे मौका मिले। (मा.च.रच., खं. 9, पृ. 313)

जलालत सं. (स्त्री.) -- बेइज्जती, अपमान, इस जलालत से भी बचा लिया कि हरियाणा के देवीलाल से चंद्रशेखर एक झगड़ा मोल लें। (स.ब.दे. : र .मा. (भाग-दो), पृ. 279)

जलावन सं. (पु.) -- जलाने की वस्तु, ईंधन, गोबर का जलावन (गोहरी, ऊपरी, चिपटी, कंडी, गोंइठा)बहुत ज्यादा धुआँ करता ह। (दिन., 25 अप्रैल से 01 मई 1976, पृ. 9)

जली-कटी सुनना मुहा. -- कटोर और कड़वी बातें सुनना, बलराम जी की जली-कटी सुनकर भी मौन मुसकान से उत्तर दिया। (शि.पू.र., खं. 3, पृ. 289)

जली-कटी सुननी पड़ना मुहा. -- कड़ी और कड़वी बातें सुनना, वित्तमंत्री चौधुरी को आत्मनिर्भरता के सहगान के बावजूद जली-कटी सुननी पड़ी। (दिन., 17 जून, 1966, पृ. 12)

जली-कटी सुनाना मुहा. -- कठोर और कड़वी बातें सुनाना, दस तोले सूत कातकर देने का नाम सुनते ही कौंसिल कुमारों की धोती ढीली हो गईं और वे जली-कटी सुनाकर कमेटी से बाहर चले गए। (म.का मत: क.शि., 5 जुलाई, 1924, पृ. 158)

जले पर नमक का काम करना मुहा. -- विरोध को और अधिक बढ़ाना, गोली कांड के बाद मुख्यमंत्रीजी ने जो बयान दिया वह जले पर नमक का काम कर रहा था। (दिन., 10 फर., 67, पृ. 20)

जले पर नमक छिड़कना मुहा. -- जो दुःखी हो उसे और अधिक दुख देना, (क)आर्य समाज पुकार-पुकारकर जले पर नमक छिड़कता है कि हिंदू माने काला चोर, काफिर। (गु.र., खं. 1, पृ. 104), (ख)भारत सचिव ने देशबंधु के मरते ही जले पर नमक छिड़क दिया। (म. का मत: क.शि., 25 जुलाई 1925, पृ. 189)

जल्पना सं. (स्त्री.) -- बकवास, अभी तो इस पर की गई जल्पना को उपेक्षा की दृष्टि से देखकर ही त्यागता हूं। (सुधा, फर. 1935, पृ. 115)

जल्लादपन सं. (पु.) -- निर्दयता, ...उसने क्रूरता और जल्लादपन के साम्यवादी रिकार्डें को भी तोड़ दिया था। (रा.मा.संच. 1, पृ. 341)

जव-भर वि. (अवि.) -- थोड़ा, कुछ ही, अपने से जव-भर बड़े व्यक्ति के सामने भी वे झुक जाते थे। (रवि. साप्ताहिक : 16-25 अग. 1979, पृ. 36)

जवार सं. (पु.) -- क्षेत्र, इलाका, (क)लाठी चलाने में इस जवार में वे सरगना समझे जाते थे। (बे.ग्रं., भाग 1, पृ. 15), (ख)बात यह थी कि उस जवार का मशहूर डाकू कोम और उसेक जत्थे ने उसी गाँव में पनाह ले रखी थी। (काद., अग. 1961, पृ. 33), (ग)यहाँ तक कि उस जवार का नाम तक मैं भूल गया हूँ। (सरस्वती, नव. 1925, पृ. 531)

जहन्नुम रसीद करना मुहा. -- मार डालना, ...कोई ऐसी बेअदबी करता तो उसे जहन्नुम रसीद कर देती। (सर., जून 1909, पृ. 258)

जहन्नुम सं. (पु.) -- नरक, व्यक्तित्व जहन्नुम के पुरपेंच अँधेरों में भटकता है। (स्मृ. वा. : जा.व.शा., पृ. 37)

जहर उगलना मुहा. -- कड़वी, कटोर और चुभनेवाली बातें कहना, विष वपन करना, (क)लंदन स्तित पोलिश सरकार किस तरह रूस के विरुद्ध जहर उगलती रही। (न.ग.र., खं. 2, पृ. 257), (ख)कम्युनिस्ट देशों के खिलाफ भी उन्होंने काफी जहर उगला। (दिन., 03 सित., 67, पृ. 38)

जहर का घूँट मुहा. -- अपमानकारक या विनाशकारी बात, नेता इस फैसले को जहर का घूँट बतलाते है और इसे न मानने की सलाह देते है । (नि.वा. : श्रीना.च., पृ. 825)

जहर-बुझा वि. (विका.) -- द्वेष-भरा, चीन को रूस के प्रति अपना जहर-बुझा बर्ताव बदलना होगा। (रा.मा.च. 1, पृ. 349)

जहीन वि. (अवि.) -- बुद्धिमान, कुशाग्रबुद्धि, फिराक बेहद जहीन और मौलिक चिंतनवाले व्यक्ति थे। (काद. : मार्च 1987)

जह्नुपाणि वि. (विका.) -- नतमस्तक, पर मुदर्रिसों की तहर मैं उनका मुलाजिम तो था नहीं, दो जह्नुपाणि हो जाता। (म.प्र.द्वि., खं 5, पृ. 478)

जाँगर सं. (पु.) -- शारीरिक बल, बूता, आपको हमरे देह-जाँगर का किरिआ है जो आप इस चिट्ठी को तार समझ के जवाब नहीं दीजिए। (काद., अक्तू. 1961, पृ. 123)

जाजम / जाजिम बिछाना मुहा. -- अत्यंत आदरपूर्वक स्वागत करना, विदेशी व्यापार को बुलाने के लिए जाजम की तरह बिछकर आप वेलेंटाइन डे के प्रेम बाजार से समाज को कैसे बचा लेंगे। (हि.ध., प्र. जो., पृ. 499)

जाजिम सं. (स्त्री.) -- कपड़े की बिछात, चादर, सारे देश की जाजिम पर अनुकूल गोटे बैठाने का जो क्रम शुरू हुआ था, वह अधबीच थम गया। (रा.मा.संच. 1, पृ. 460)

जात सं. (स्त्री.) -- व्यक्तत्व, उसमें सदुत्साह की मात्रा अधिक थी और पिता को उसकी जात से बड़ी-बड़ी आशाएँ थीं। (सर., जून 1920, पृ. 323)

जाँता सं. (पु.) -- अनाज पीसने की हाथ से चलानेवाली बड़ी चक्की, मेरी माँ इसी जाँता (जाँते)पर अनाज पीसते हुए खटती थीं। (ज. स. : 16 जुलाई 2007, पृ. 6)

जादू जो सिर चढ़कर बोले कहा. -- अत्यधिक प्रभावित करनेवाली बात या वस्तु, इसको कहते हैं जादू जो सिर चढ़कर बोले, फिर धमक की दुहाई कैसी । (मत., म.प्र.से. वर्ष 5, सितं. 1927, मुखपृष्ठ)

जान झोंकना मुहा. -- प्राणों की बाजी लगाना, इंदिरा गांधी के लिए जब जान झोंकना बेहद फायदेमंद था..., (रा.मा.संच. 1, पृ. 419)

जान डालना या डाल देना मुहा. -- जीवन देना, डूबते तेल उद्योग को सरकार ने तिनके का सहारा देकर उसमें जान डाल दी। (लो.स., 15 जन. 1989, पृ. 9)

जानना-बूझना क्रि. (सक.) -- अच्छी तरह पहचानना और समझना, बिना जाने-बूझे आखिर इतना बड़ा सामंजस्य कैसे संभव है। (सर., भाग 28, सं 3, मार्च 1927, पृ. 297)

जाना-परखा वि. (विका.) -- ज्ञात और परीक्षित, देखा-परखा, एक जानी-परखी परंपरा किसी अज्ञानी अँधेरी नवीनता से कहीं अच्छी है। (हि.पत्र. के गौरव बां.बि.भट,स सं. ब., पृ. 120)

जाब्ता सं. (पु.) -- नियम, विधान, जाब्ते का परिचय क्षणजीवी ह ता है। (काद. : जन., 1977, पृ. 96)

जामा-तलाशी सं. (स्त्री.) -- पहने हुए कपड़ों की तलाशी लेना, मुझे आपके पति की जामा-तलाशी लेते समय एक कागज मिला है। (सर, दिस. 1925, पृ. 583)

जामे से बाहर होना या हो जाना मुहा. -- आपे से बाहर होना, आपा खो बैठना, बौखला उठना, (क)डायर के मामले का फैसला देखकर भारत के बुद्धिमान बौखला उठे और जामे से बाहर होकर मेकार्डी पर टूट पड़े और पानी पी-पीकर उन्हें कोस रहे हैं। (म. का मत: क.शि., 21 जून 1924, पृ. 156), (ख)पंडित अंबिकाप्रसाद वाजपेयी ने उसकी खरी समालोचना विशाल भारत में छपवा दी। बस, फिर क्या था, त्रिपाठी जी जामे से बाहर हो गए। (कु.ख. : दे.द.शु., पृ. 69)

जाया वि. (अवि.) -- बरबाद, नष्ट, पौधे कैसे ही बढ़नेवाले और मजबूत क्यों न हों, यदि कुछ दिन उनसे कोई न बोले तो वे धीरे-धीरे जाया हो जाएँगे। (सर., 1 अप्रैल 1909, पृ. 164)

जार-जार रोना मुहा. -- अत्यधिक रोना, फूट-फूटकर रोना, शायद जीवन-वैभव का वह अभागा दिन होनी की गोद में मुँह ढाँककर जार-जार रोया होगा। (मा.च.रच., खं. 4, पृ. 201)

जाहिरी वि. (अवि.) -- ऊपरी, प्रकट, उन्होंने उससे जाहिरी नाराजी प्रकट करा ठीक नहीं समझा। (सर., अक्तू. 1909, पृ. 427)

जिकी लाठी उसकी भैंस कहा. -- शक्तिशाली का ही स्वामित्व, बहुत समय तक दूसरे प्रतिनिधि चुनने नहीं दिया, जिससे देश में जिसकी लाठी उसकी भैंस का राज्य छा गया। (ग.शं.वि.रच., खं. 1, पृ. 141)

जितनी डफली उतने तान कहा. -- जितने लोग उतने सोच, क्योंकि कितने आदमी ऐसे हैं जिन्हें यह देखकर लज्जा आती ह कि टाटा महाशय अपनी सारी संपत्ति भारतवर्ष को देते हैं और उधर गली-गली में जातीयता फूट रही है। जितनी डफली उतनी तान। (चं.श.गु.र., खं. 2, पृ. 334)

जिद्दमजिद्दा सं. (पु.) -- आपसी खींचतान, द्विपक्षीय हठ, ऐसा न हो कि जिद्दमजिद्दा में बहुत-सी अरब भूमि से अरब देश वंचित हो जाए। (दिन., 20 अग., 67, पृ. 36)

जिद्दापन सं. (पु.) -- जिद्दीपन, जिद्दी स्वभाव, हठवादिता, अपना जिद्दापन ही उसे प्रसारवादी होने के लिए प्रेरित करता है। (रा.मा.संच. 1, पृ. 232)

जी की उठान मुहा. -- मन की आकांक्षा, कभी समाचार-पत्रों में चिट्ठियाँ छपाकर अपने जी की उठान शांत कर लेते हैं। (मा.च.रच., खं. 9, पृ. 316)

जी खट्टा होना मुहा. -- मन में विरक्ति होना, (क)ऐसा न हो कि उसाक जी खट्टा हो जाए। (दिन., 7 फर., 1971, पृ. 9), (ख)ऐसी बात लिखने से बचना चाहिए जिससे भिन्न धर्मावलंबियों का जी खट्टा होता हो। (बाल. स्मा.ग्रं. : शर्मा, चतुर्वेदी, पृ. 168), (ग)स्वागत का पहला भाग ही इतना निराशाजनक। इससे पन्नालाल का जी खट्टा हो गया। (सरस्वती, जन. 1927, भाग 28, खं. 1, सं. 1, पृ. 21)

जी चुराना मुहा. -- बचने की चेष्टा करना, कुछ करने से भागना, अदालत की कार्रवाइयों से भले ही आप जी चुराते हों, झक मारकर आपको उन्हें संग्रह करना होगा। (सं.परा. : ल.शं.व्या., पृ. 130)

जी जुड़ाना मुहा. -- कलेजा ठंडा होना, अति प्रसन्नता होना, इसमें सहृदय साहित्यानुरागियों का जी जुड़ाने योग्य काफी शीतलता है। (शि.पू.र., खं. 2, पृ. 368)

जी दुखाना मुहा. -- दिल पर चोट करना, कुर्बानी की गायों का जुलूस निकालकर हिंदुओं का जी दुखाना अच्छा नहीं। (मत., म.प्र.से.वर्ष 5, सं. 7, पृ. 4)

जी मसोसना मुहा. -- मन का दुःखी होना, ऊपर का मरणशील देवता नीचे की जिंदगी को कोस रहा है और नीचे का बैलगाड़ी वाला नरेश ऊपर का देवता बनने के लिए जी मसोस रहा है। (मा.च.रच., खं. 3, पृ. 28)

जी लगाना मुहा. -- मन को किसी काम में व्यस्त रखना, मन लगाना, ध्यान लगाना, सब ग्रंथों की बात जाने दीजिए, आप केवल रामचरितमानस का एक बार जी लगाकर पाठ कर जाइए। (सर., दि. 1912, पृ. 636)

जी-तोड़ वि. (अवि.) -- पूरी शक्ति से किया जानेवाला, इसके लिए देश में जी-तोड़ प्रयत्न होते रहे हैं। (दिन., 29 नव., 1970, पृ. 17)

जीट सं. (स्त्री.) -- डींग, अधिकांश लोग समझते कि मैं जीट हाँक रहा हूँ। (नि.वा. : श्रीना. च., पृ. लेखकीय निवेदन-1)

जीना सं. (पु.) -- सोपान, जो शहराती अपने पड़ोसियों को, जीने पर चढ़ते या जीने से उतरते हुए पदध्वनि सुनने के लिए स्मृति का अवकाश नहीं पाते... (मा.च.रच., खं. 3, पृ. 118)

जीभ की मिठास मुहा. -- अत्यधिक प्रिय वस्तु या विषय, आज गोपालदास जी गुजरात की प्रजा की जीभ की मिठास हो रहे हैं। (मा.च.रच., खं. 2, पृ. 103)

जीभ मुँह के भीतर रखना मुहा. -- अनावश्यक टीका-टीप्पणी न करना, मौन रहना, अब तक जो समालोचक नहीं बोला तो उसे अब भी अपनी जीभ मुँह के भीतर रखनी चाहिए। (गु.र., खं. 1, पृ. 431)

जीभचलाना मुहा. -- ज्यादा बात करना, हद से ज्यादा बोलना, राजनैतिक समस्याओं पर जीभ जलाने का लोगों में कितना प्रचंड मोह होता है । (कच. वृ.ला.व., पृ. 547)

जीमना क्रि. (सक.) -- खा लेना, चट कर जाना, विज्ञापन बजट की कमोबेश सारी मलाई अंग्रेज पत्र-पत्रिकाएँ जीम लेती हैं। (ग.म. : पत्र. चु., पृ. 27)

जीवट सं. (पु.) -- साहस, हिम्मत, रायबहादुर जीवट के आदमी थे। (स.न.रा.गो. : भ.च.व., पृ. 90)

जुआ उतार फेंकना मुहा. -- बोझ या बंधन हटा देना, संयुक्त राज्य के आर्थिक साम्राज्यवाद का जुआ वह क्यूबा उतार फेंके। (रा.मा.संच. 1, पृ. 38)

जुआ लदना मुहा. -- बोझ से दबा ह ना, इन बुलेटिनों पर अँगरेजी का जुआ लदा रहता है । (दिन., 21 जुलाई, 68, पृ. 6)

जुग सं. (पु.) -- हिस्सा, खंड, टुकड़ा, मार्क्सवाद मेरे तईं मेरे उस आदर्शवाद का ही एक जुग था, कोई सिद्धांतवादिता नहीं। (दिन., 3 जन., 1971, पृ. 14)

जुगत सं. (स्त्री.) -- युक्ति, (क)लेकिन यह जुगत भी निपट अपंग सिद्ध हुई। (दुन., 19 नव. 1965, पृ. 45), (ख)यदि किसी जुगत से सारी जनता पार्टी ही मंत्रिमंजल बन जाए तो मानो कोई समस्या ही न रहे। (रवि. 24 फर 1979, पृ. 32), (ग)नए विधा प्रयोगों को ब्लैक का माल बाजार में लाने की जुगत बताया। (दिन., 14 मई, 67, पृ. 40)

जुगनूकरण सं. (पु.) -- आभाहिन बना देना, उनका (कांग्रेस अध्यक्ष का)जुगनूकरण तो जवाहरलाल नेहरू के जमाने में ही हो गया था। (रा.मा.संच. 1, पृ. 255)

जुगलखोर सं. (पु.) -- चुगली करनेवाला, स्मिथ सरकार ने चौगुनी तनख्वाहें देकर चुगलखोरों का जाल बिछा रखा है। (दिन., 06 जन., 67, पृ. 38)

जुगाली करना मुहा. -- बार-बार उल्लेख या चर्चा करना, (क)प्रथम युद्ध की जुगाली करने के लिए मानवता ने दूसरा महायुद्ध लड़ा और तब पाचन की प्रक्रिया का आरंभ हुआ। (रा.मा.संच. 1, पृ. 20), (ख)वैसे जीत की जुगाली करनेवाले गामा, मिल्खा, कृष्णन, मिहिर सेन, तेनजिंग और ध्यानचंद के नाम गिना सकते हैं। (दिन., 28 जन. 1968, पृ. 34), (ग)5 अप्रैल के अनुभव की जुगाली लंका कई वर्षों तक करेगा। (रा.मा.संच. 2, पृ. 43)

जुगाली सं. (स्त्री.) -- किसी क्रिया की बार-बार होनेवाली चर्चा या आवृत्ति, ये दो घटनाएँ ऐसी हैं, जो निगल ली गई है । (लेकिन सदी के अंत तक उनकी जुगाली होती रहेगी। (रा.मा.संच. 1, पृ. 136)

जुगोना क्रि. (सक.) -- सम्हालकर रखना, एकमात्र धरोहर को मौसी आँखों में जुगोकर रखती। (बे.ग्रं., भाग 1, पृ. 2)

जुझाऊ बाजा सं. (पु.) -- युद्ध-वाद्य, रणभेरी, नक्कारा, लड़ाके वीरों का संगठन, जो उत्सुकता से जुझाऊ बाजों के बजने की बाट जोह रहा है। (म. का मत: क.शि., 9 जन. 1926, पृ. 201)

जुझाना क्रि. (सक.) -- लड़ाना, प्रांतों को टुकड़ों में बाँटकर आपस में जुझा मारा। (म.का मत : क.शि., 22 अग. 1925, पृ. 92)

जुटाव सं. (पु.) -- जुटने की क्रिया या भाव, जमावज़ा, यह लोगों का सार्वजनिक जुटाव भरपूर होता है। (कुटजः ह.प्र.द्वि., पृ. 73)

जुन्हाई सं. (स्त्री.) -- चाँदनी, चाँद का प्रकाश, खँडहर की अधूरी मेहराब पर उसकी जुन्हाई पड़ गई। (ज.क.सं. : अज्ञेय, पृ. 12)

जुमला सं. (पु.) -- वाक्य, मानों छोटे लड़कों को हिंदी से अँगरेजी में अनुवाद करने के लिए कुछ जुमले दे दिए गएँ हों। (सर., अप्रैल 1917, पृ. 189)

जुम्मा-जुम्मा आठ दिन कहा. -- मात्र एक सप्ताह का समय, अल्प समय, लेखक के नाते तो उनकी जुम्मा-जुम्मा आठ दिनों की पैदाइश ही है। (काद. : जन. 1975, पृ. 71)

जुम्ला मारना मुहा. -- कटाक्ष करना, तीखी बात कहना, एक जुम्ला मारकर चपरासी के साथ ट्रक की ओर चल दिया। (रा.द. : श्रीला. शु., पृ. 13)

जूठन समेटना मुहा. -- कुछ यहाँ से और कुछ वहाँ से इकट्ठा करना, इधर-उधर से बटोरना, अँगरेजी अखबारों की जूठन समेटने में तो वे बड़ी मुस्तैदी दिखाते है । (त्या.भू. : 1927, पृ. 304)

जूड़ी-ताप सं. (पु.) -- ठंड देकर आनेवाला बुखार, शक्तिहीन कर देनेवाला तत्त्व प्रथम महायुद्ध ! बीसवीं सदी का पहला जूड़ी-ताप बुखार। (रा.मा.संच. 1, पृ. 20)

जूतम-पैजार सं. (स्त्री.) -- मारपीट, लड़ाई-झगड़ा, (क)अमेरिका अनुभव करता है कि यूरोपीय राष्ट्रों की जूतम-पैजार के बीच फँसने से कोई लाभ नहीं है। (स.सा., पृ. 315), (ख)पार्टी की एक बैठक में भी खूब जूतम-पैजार हुई। (ज.स. : 14 फर. 1984, पृ. 4), (ग)घर में जूतम-पैजार से तो यह काम नहीं बनेगा, बल्कि और थू-थू होगी। (सर., जन.-जून 1961, सं. 6, पृ. 691)

जूती-पैजार सं. (स्त्री.) -- जूतम-पैजार, मार-पीट, जिन दिनों सारा यूरोप मुसलमान कौम को कुचलने पर तुला हुआ है, उसी समय भारतीय मुसलमान बाजा बजाने और गाय काटने की जिद कर आपस में जूती-पैजार कर रहे हैं और विदेशी पंजे को मजबूत बनाने में सहायक हो रहे हैं। (मा.च.रच., खं. 10, पृ. 67)

जूनून सं. (पु.) -- उन्माद, पागलपन, लोग यही समझेंगे कि इसे जुनून हो गया है। (सर., अक्तू. 1909, पृ. 453)

जेठा वि. (विका.) -- बड़ा, बोलचाल की कविता में उर्दू क्यों ह दुस्तानी हिंदी से जेठी है। (म.प्र.द्वि., खं. 1, पृ. 60)

जेब गर्म होना मुहा. -- अधिक मात्रा में धन की प्राप्ति होना, इससे उन्हीं की जेब गर्म होगी जिनके पास इस समय काफी पैसे है। (स.सा., पृ. 61)

जेबी वि. (अवि.) -- जेब में समानेवाला, स्मृति को जागती हुई समझकर जेबी बटुआ बनाया जात है। (गु.र., खं. 1, पृ. 165)

जेरबार वि. (अवि.) -- ऋणी, ऋणग्रस्त, इस बखेड़े में पड़कर तुम जेरबार हो जाओगे। (सर., अप्रैल 1921, पृ. 220)

जेरबारी सं. (स्त्री.) -- कर्ज का बोझ, ऋणभार, आपको जेरबारी अवश्य हुई। (सर., जून 1920, पृ. 324)

जैली सं. (स्त्री.) -- लकड़ी का छोटा टुकड़ा, छोटा चैला, चलनी पर सुगंधित चंदन की लकड़ी का बुरादा और छोटी-छोटी चैलियों में आग लगाई जाती है। (सर., अक्तू. 1918, पृ. 179)

जैसा देश वैसा वेश कहा. -- स्थानीय रहन-सहन अपनाने का निर्देश या सुझान, अभी आप दिल्ली में बैठे हैं अतः जरूरी है जैसा देश वैसा वेश। (शत. खि., ह.कृ.प्रे., पृ. 10)

जैसे सेर वैसे सवा सेर कहा. -- थोड़ी सी अधिकता या बढ़ती से अधिक अंतर नहीं आता, जैसे और पचास उलझने सुलझेंगी वैसे ही यह एक सुलझ लेगी-यानी जैसे सेर वैसे सवा सेर। (दिन., 30 जुलाई, 1965, पृ. 11)

जो गुड़ दीन्हें छू मरे माहुर दीजे काहिं कहा. -- जो कार्य सरल उपाय से हो सके उसके लिए कठोर उपाय की क्या आवश्यकता, जहाँ फीकी हँसी से काम चल सकता है, वहाँ किसी बड़े हथियार क आवश्यकता क्या, जो गुड़ दीन्हे छू मरे, माहुर दीजे काहिं। (मधुः अग. 1965, पृ. 150)

जो-हुकुम वि. (अवि. पद.) -- हुकुम बजानेवाला, उस समय के कई जो हुकुम खुशामदियों ने कांग्रेस का विरोध किया। (गु.र., खं. 1, पृ. 327)

जोंक सं. (स्त्री.) -- एक जलीय कीड़ा, जो प्राणियों से चिपककर उनका खून पीने लगता है, वह व्यक्ति जिससे पिंड न छूटे, किंतु पुस्तक है कि जोंक, हटती ही नहीं। (चं.श.गु.र., खं. 2, पृ. 326)

जोगड़ा सं. (पु.) -- नया योगी (उपेक्षासूचक), पच्चीस साल पहले गुरुजी की हालत जोगड़े जैसी थी। (ज.स. : 8 फर. 1984, पृ. 5)

जोगाड़ सं. (पु.) -- जुगाड़, उपाय, व्यवस्था, एकाध लोग कहते हैं कि कुछ रुपए जोड़ ले तो आधी-साधी का जोगाड़ बैठा देंगे। (रवि., 4 जन. 1981, पृ. 37)

जोड़ का वि. (विका.) -- काँटे या बराबरी का, हिंदी में उनके जोड़ का कोई आदमी नहीं दिखता। (ब.दा.च.चु.प., खं. 1, सं.ना.द., पृ. 385)

जोड़ मिलाना मुहा. -- समानता ढूँढ़ना, मैं जब भारतेंदु युग से आज तक के हिंदी काव्य के मोड़ों के जोड़ मिलाने बैठता हूँ तब भारतेंदु-हरिश्चंद्र के पश्चात् मुझे ऊँचाई पर मैथलीशरण जी खड़े दिखाई देते हैं । (मा.च.रच., खं. 4, पृ. 168)

जोड़-गाँठ भिड़ाना मुहा. -- जोड़-तोड़ क रना, तिकड़म भिड़ाना, पुरस्कार के लिए जोड़-गाँठ भिड़ाना गलत है। (दिन., 15 नव., 1970, पृ. 40)

जोड़ना-बटोरना क्रि. (सक.) -- इकट्ठा करना, उपाय यही है कि जोड़-बटोरकर दे देंगे . (व.भा., जन. 1928, सं. 1, पृ. 177)

जोड़ा-जत्था सं. (पु.) -- जमा- पूँजी, उसने अपना जोड़ा-जत्था सँभाला। (स., मई 1937, पृ. 425)

जोतना क्रि. (सक.) -- जबरदस्ती अंजाम देना, अमल में लाना, (क)रूस ने ईरान में ऐसे-ऐसे ऊधम जोते कि इन्हें पढ़-सुनकर कलेजा काँप उठता है। (ग.शं.वि. रच., खं. 3, पृ. 39), (ख)स्वयंसेवकों को कोई तालीम नहीं दी जाती था, वे एकदम काम पर जोत दिए जाते थे। (माच.रच., खं. 10, पृ. 124)

जोन्हरी सं. (स्त्री.) -- ज्वार, स्वाद भाड़ में ताजी भुनी जोन्हरी से जिसमें कुछ लावे और कुछ ठुर्रियाँ दोनों हों, में मिलता है। (दिन., 03 मार्च, 68, पृ. 44)

जोम सं. (पु.) -- 1 उत्साह, जोश, वेदांतियों ने अपनी विद्वत्ता की (के)जोम में आकर बेतरह जटिल कर डाला है। (म.प्र.द्वि.रच., खं. 2, पृ. 271), 2. झोंक, सनक, इसी जोम में उन्होने कई ऐसे श्लोक रच डाले हैं जिनसे अभियान और गर्व टपक रहा है। (सर., अक्तू. 1915, पृ. 237), 3. उठान, गरमी जब अपने पूरे जोम पर होती है, तब ही बारिश आती है। (दिन., 8 जुलाई 1966, पृ. 24)

जोर आजमाना मुहा. -- शक्ति परीक्षण करना, दूसरी ओर जीन रूस से जोर आजमाने के वाते तैयार दीखता है। (दिन., 21 सित. 1969, पृ. 38)

जोहड़ सं. (पु.) -- पानी का गड्डा, जबरा, (क)वन्य पशुओं के पोखर-जोहड़ भी सूख चुके हैं। (दिन., 16 दिस., 66, पृ. 28), (ख)लोगों ने अपने घरों के सामने छोटे-छोटे जोहड़ बना रखे हैं। (ज.स. : 13 जून 1984, पृ. 4), (ग)ये कुएँ-जोहड़ ग्रामीण स्त्रियों के हृदय स्थल थे। (काद.:न. 1989, पृ. 73)

जोहना क्रि. (सक.) -- प्रतीक्षा करना, उसके जन्म की बाट सारे संसार के हितू देवता और महात्मागण बड़े विलंब से जोह रहे हैं। (सर., दिस. 1918, पृ. 324)

जौहर दिखलाना मुहा. -- कौशल या उपलब्धियों का प्रदर्शन करना, जर्मनी ने विज्ञान की उन्नति में अपने जौहर दिखलाकर संसार को चमत्कृत कर दिया था। (न.ग.र., खं. 2, पृ. 274)

जौहर सं. (पु.) -- कौशल, हुनर, गुण, यद्यपि जौहर छिपाने से नहीं छिपता, तथापि उसे छिपाना अनुचित है। (शि. पू.र., खं. 3, पृ. 375)

ज्यौनार सं. (स्त्री.) -- दावत, भोज, अब दो सौ अतिथि तक की ज्यौनार एक साथ की जा सकेगी। (दिन., 2 दिस., 66, पृ. 10)

ज्वार सं. (पु.) -- 1, समुद्र के जल का उछाल, 2. उछाला, क्रांति ज्वार नहीं है, कोई स्वार्णिक छलना नहीं हैं। (रा.मा.संच. 1, पृ. 21)

ज्वारी सं. (स्त्री.) -- जुआ, हाथों में कागजों का पुलिंदा है जो कि यह सूचित करता है कि हाथ जैसे कोई बैल हो और वह कागजात रूपी ज्वारी में जुता हो। (हित., 1952, पृ. 17)

ज्वाला भड़कना मुहा. -- माहौल उग्र या उत्तेजित हो जाना, राज्य सभा में आरोपों की एक और ज्वाला भड़क उठी। (दिन., 16 सित., 66, पृ. 14)

झक करना मुहा. -- झींखना, बहस करना, ब्राह्मण संतान होकर शराब पीते हो और मुझसे झक करते हो . (सर., जून 1918, पृ. 320)

झक मारना मुहा. -- विवश होकर (अनचाहा)काम करना, मजबूर होना, (क)जब ब्रिटेन और अमेरिका ने देखा कि यह दानव वास्तव में जर्मनों से लड़ रहा है तो झक मारकर उन्हें टीटो को मारना पड़ा। (न.ग.र., खं. 2, पृ. 256), (ख)जिसकी क्रम से वंश परंपरागत अनुवृत्ति के आगे महामुनि पाणिनि के सूत्रों की नुवृत्ति झक मारती है। (भ.नि. : पं. बा. कृ. भ., पृ. 2), (ग)अदालत की कार्रवाइयों से भले ही आप जी चुराते हों, झक मारकर आपको उन्हें संग्रह करना होगा। (सं. परा. : ल.शं. व्या., पृ. 130)

झक सं. (स्त्री.) -- सनक, खब्त, (क)ये कारण निक्सन को सिर्फ झक्की साबित करते हैं, लेकिन इस किस्से में झक के अलावा कई तुक भी जरूर होनी चाहिए, (रा.मा.संच. 1, पृ. 150), (ख)क्योंकि दुर्बल आदर्श एक अफीमची की झक या पिनक से ज्यादा क्या महत्त्व रखता है। (रा.मा.संच. 1, पृ. 514)

झकझोरना क्रि. (सक.) -- जोर से हिलाना, विकास के अग्रलेकों में टंकार थी ही और वह झकझोरती भी थी। (क. ला. मिश्र : त.प.या., पृ. 58)

झकोर सं. (पु.) -- झोंका, लहर, हमारी समझ में इन नए पत्र-पत्रिकाओं के झकोर से यदि देव न करे, प्रदीप बुझ भी जाए तो उसे खुस ही होना चाहिए। (म.प्र.द्वि.रच., खं. 2, पृ. 76)

झकोरा सं. (पु.) -- झोंका, एक झकोरे ने कमरे में धूल भर दी। विपदा के झकोरे ने उसे तोड़कर रख दिया। (काद. : जून 1980, पृ. 7)

झक्कड़ सं. (पु.) -- बवंडर, तेज आँधी, (क)यह धूल का झक्कड़ है। (ज.क.सं. : अज्ञेय, पृ. 49), (ख)आज इस झक्कड़ में कहार टोले में एक भी मर्द नहीं कि र मू के लिए दौड़धूप करके दवादारू का प्रबंध करे। (सर., जून 1928, पृ. 634)

झक्की वि. (अवि.) -- सनकी, खब्ती, ये कारण निक्सन को सिर्फ झक्की साबित करते हैं। (रा.मा.संच. 1, पृ. 150)

झंख वि. (अवि.) -- जर्जर, अस्थिपंजर, पिताजी से ज्ञान चर्चा सुनने मंगरू कुम्हार आता था। एकदम झंख बुड्ढा। (काद., नव. 1978)

झखमारी सं. (स्त्री.) -- झख मारने की क्रिया या भाव, सभाओं में झखमारी करके भी ललकारने योग्य दम कलेजे में नहीं है। (म.का मत: क.शि, 13 मार्च, 1926, पृ. 208)

झंखा सं. (पु.) -- झींखने की क्रिया या भाव, गुस्सा, आक्रोश, इसका मतलब यह नहीं कि वह किरानीगिरी पर झंखा करता हो। (सा.हि., 4 नवं. 1951, पृ. 5)

झंखाड़ सं. (पु.) -- ऐसा पेड़ जिसकी शाखाएँ जमीन तक चारों ओर फैली हों और अस्त-व्यस्त हों, आम का पेड़ झंखाड़ हो तो चढ़ने में आसानी होती है। (दिन., 7 अप्रैल, 67, पृ. 39)

झगड़ा-बखेड़ा सं. (पु.) -- झमेला, झंझट, भेदभाव के कारण झगड़े-बखेड़े अवश्य ही होते हैं। (म.प्र.द्वि. खं. 9, पृ. 100)

झगड़े की आग बुझना मुहा. -- विवाद खत्म होना, उन्हें अब झगड़े की आग बुझ जाने पर यों पढ़ने में एक अपूर्व भाव का उदय होता है। (गु.र., खं. 1, पृ. 389)

झझक सं. (स्त्री.) -- झिझक, हिचक, संकोच, उसकी अम्मा को कुछ झझक हुई, मगर वह भी जगने तक मुँह दबाए रही। (का. कार. : निराला, पृ 16)

झंझी कोड़ी सं. (स्त्री.) -- फूटी कौड़ी, (क)तो कर के नाम पर झंझी-कोड़ी भी न दी जाती । (सर., मार्च 1927, पृ. 439), (ख)जिन भाषाओं में केवल रद्दी पुस्तकों के ढेर ही ढेर लगे हैं उनकी झंझी कौड़ी भर भी परवा न करनी चाहिए। (सर, अप्रैल 1916, पृ. 243)

झंझी सं. (स्त्री.) -- छेदवाली कौड़ी, लौ लगी तो एक फूटी झंझी भी खरच करेत या किसी को देते बहुत अखरता है। (भ.नि., पृ. 71)

झँझोड़ना क्रि. (सक.) -- जोर से हिलाना, झकझोरना, (क)नए श्रम कानून ने केन्या की रोजमर्रा जिंदगी को झँझोड़कर रख दिया है। (दिन., 19 मई, 68, पृ. 39), (ख)1952 से आज तक भारत का राजनीतिक चरित्र यह रहा है कि गंगा की तरह एक मुख्यधारावाली पार्टी यहाँ बहे, जो कई उपधाराओं को लीलती झँझोड़ती आगे बढ़े। (र.मा.संच. 1, पृ. 384)

झटका 1 सं. (पु.) -- दौर, बार, पहले ही झटके में भारत के पश्चिमी घाटों पर जोर की वर्षा हो जाती है। (दिन., 17 से 23 जुलाई, 1977, पृ. 24)

झटका 2 सं. (पु.) -- छोटी गाड़ी, असबाब झटके पर लदवाकर भेजा और हम लोग पैदल ही होटल जा पहुँचे। (माधुरी : अग.-सित. 1928, पृ. 306)

झटका खाना मुहा. -- आघात लगना, चीन की ओर से यह झटका खाकर हमारी आँखें खुलीं। (दिन., 13 अग., 67, पृ. 10)

झटके आना मुहा. -- आवेशित होना, दौरा पड़ना, श्रीमती जी को समय-समय पर राजनीतिक आंदोलन के झटके आते रहते हैं। (मा.च.रच., खं. 10, पृ. 29)

झंडा उठाना मुहा. -- नेतृत्व करना, अगुआई करना, आज का कहानीकार झंडे उठाने या झंडों के नीचे खड़े होने की होड़ में न पड़े। (काद., जुलाई 1976, पृ. 21)

झंडा गाड़ना मुहा. -- अधिकार जमाना, कब्जा करना, बिहार की योद्धा जातियों ने इन प्रांतों पर अँगरेजी झंडा गाड़ा था। (ग.शं.वि.रच., खं. 2, पृ. 244)

झंडाबरदार सं. (पु.) -- ध्वजधारक, ध्वजवाहक (क)पंथनिरपेक्षता के इन झंडाबरदारों की चिंता उनके झंडे के डंडे के टूटने पर नहीं थी। (हि.ध., प्र.जो., पृ. 66), (ख)भारतीय समाचार-पत्रों को उतना शर्मिंदा होने की जरूरत नहीं जितना कि यहाँ के राजनैतिक झंडाबरदारों को । (दिन., 2 दिस., 66, पृ. 42)

झड़ी लगना या लग जाना मुहा. -- ताँता बंधना, भारतीय टीम की प्रशसित में उत्तमता-सूचक विशेषणों की झड़ी लग गई। (दिन., 5 सित. 1971, पृ. 5)

झनक सं. (स्त्री.) -- झंकार, तरावट, उनके व्यवहार में एक तरह के बर्फीले ठंडेपन की झनक आती है। (दिन., 2 जुलाई, 1972, पृ. 37)

झनझनाहट सं. (स्त्री.) -- झनझन ध्वनि, झंकार, हलचल, विनोबा के कारण देश में जो नैतिक झनझनाहट होती है वह सिद्ध करती है कि भारत में गांधी अब भी एक संभावना है। (रा.मा.संच. 2, पृ. 301)

झन्नाना क्रि. (अक.) -- रोमांचित होना, हिल उठना, उत्तजित होना, कहानियों में शामिल किए गए विवरण लोमहर्षक हिंसा और झन्ना देनेवाले सैक्स प्रसंगों से पटे होते हैं। 9 दिन., 18 से 24 दिसंबर 1977, पृ. 39)

झपटना क्रि. (सक.) -- जबरदस्ती प्राप्त करने की चेष्टा करना, लपक लेना, संभव है कि सेवा का यह अवसर झपटने की कोशिश में कांग्रेस ही बँट जाए। (रवि. 6-12 व. 1977, पृ. 18)

झपट्टा मारना मुहा. -- छीनने के लिए झपट पड़ना, नोच लेना, (क)पूरब को सभ्य बनाने की रामामी ओढ़कर चीन फारस और तुर्की के अंगों पर झपट्टा मारने के लिए उतावला नजर आता है। (रवि., 19 दिस. 1982, पृ . 22) (ख)इसी कारण कदाचित् उन्होंने मनुष्यों की अंधभक्ति पर झपट्टा मारा था। (सर., जन. 1922, पृ. 37)

झपाटे से क्रि. वि. -- तेजी से, (क)कदाचित् पाठक न जानते होंगे कि बनारसीदास जी को एक महारोग है--प्रातः साढे तीन-चार बजे उठकर झपाटे से टहलने का। (न.ग.र., खं. 3, पृ. 258), (ख)पुस्तक प्रकाशन कार्य बड़े झपाटे से चल रहा है। (सर., फर. 1917, पृ. 100), (ग)अर्जुन सफल मनोरथ होकर बाहर निकले तो झपाटे से उनको गलबहियों में समेटकर आगे बढ़े। (शि.पू.र., खं. 3, पृ. 289)

झपेटा सं. (पु.) -- सहसा किया जानेवाला आक्षेप, प्रहार, मंडन मिश्र ने जो कि उनका नेता था, शंकराचार्य पर बड़ा झपेटा मारा और कहा कि स्मृतियों के अनुसार जिने गृहस्थ आश्रम का पालन न किया हो, वह सच्चा संन्यासी हो ही नहीं सकता। (सर., जुलाई 1919, पृ. 15)

झबरा सं. (पु.) -- रंग-बिरंगे फूलों का गुच्छा, पेड़ों को तो वसंत में फूलों से लदा-फदा देखा है और इन झबरों को कई टुकुर-टुकुर ताकते रह जाते हैं। (काद. : फर. 1991, पृ. 32)

झबराना क्रि. (अक.) -- फूलों या फलों से लद जाना, मनोहर कुसुमों से झबराया कुटज। (कुटज : ह.प्र.द्वि., पृ. 3)

झब्बा सं. (पु.) -- झागा, झगला, अपना झब्बा ओढ़ाकर, उसे घोड़े पर बिठाकर दुर्ग में ले आए। (मधुकर, 16 नवं. 1940, पृ. 19)

झमझोल वि. (अवि.) -- ढीला-ढाला, झूलता हुआ, कवियों में झमझोल कुरतों, लंबे बालों और अधखुली आँखों का चलन था। (काद., मार्च 1961, पृ. 70)

झमेल सं. (पु.) -- झमेला, झंझट, इससे हिंदू-मुसलमान के मेल में कुछ झमेल पड़े तो यह अच्छी बात नहीं है। (बाल.स्मा.ग्रं.: शर्मा, चतुर्वेदी, पृ 93)

झमेला सं. (पु.) -- बखेड़ा, झंझट, विवाद, (क)काका-चाचा का झमेला बंद करो। (शत.खि., ह.कृ.प्रे., पृ. 10), (ख)इस प्रकार आपके पीछे बड़ा झमेला उठ खड़ा हुआ था। (सर., सित. 1930, पृ. 243), (ग)चाय बागान का एक अँगरेज मैनेजर किसी झमेले में पड़ जाने के कारण लंका को भाग आया। (सर., अग. 1922, पृ. 83)

झमेलेदार वि. (अवि.) -- झंझट-भरा, तीसरा तरीका भी बहुत झमेलेदार नहीं है। (रवि., 4 जन. 1981, पृ. 29)

झरझराहट सं. (स्त्री.) -- झरझर गिरने की ध्वनि, भीतर धारागृहों में फव्वारों की सदैव झरझराहट होती रहती है। (सर., अप्रैल 1920, पृ. 220)

झरना क्रि. (अक.) -- टपकना, बरसना, निकलना, शब्दों की ताकत के साथ भाषा का अब्यास करते समय कान में रस झरने लगता है। (मा.च.रच., खं. 2, पृ. 362)

झरोखेबाज सं. (पु.) -- तमाशबीन, वे बड़े झरोखेबाज हैं। (काद. : दिस. 1967, पृ. 10)

झलकना क्रि. (अक.) -- आभास मिलना, दिखाई देना, झलक मिलना, यह जरूर साफ झलक गया कि वाणिज्य मंत्रालय की 1965-66 की रिपोर्ट अवमूल्यन के संदर्भ में, (दिन., 17 जून 1966, पृ. 12)

झलमला सं. (पु.) -- दासी द्वारा पुरस्कार प्राप्त करने के उद्देश्य से दिखाया जानेवाला दीपक, मैंने पूछा-क्यों री, यह क्या है? वह बोली झलमला। (सर., अग. 1916)

झवका सं. (पु.) -- झब्बा, तार या सूत से बना गुच्छा जो कपड़ों में शोभा के लिए लगाया जाता है, मस्तक पर पगड़ी भी कई तरह के कीमती झवकों से सुशोभित थी। (सर., नव. 1920, पृ. 231)

झाईं सं. (स्त्री.) -- झाँई, झलक, आभा, (क)कंस वध में नरेंद्र शर्मा की झाईं दिखाई पड़ी। (दिन., 9 सित., 66, पृ. 41), (ख)कुएँ में चिल्लाओ तो उसकी झाईं सुनाई देगी। (काद. : मई 1975, पृ. 14)

झाँईदार वि. (अवि.) -- चमकीला, मेरी विद्या की किश्ती ढलान पर आकर टेढ़ी हो गी, तर्कों के झाँईदार झाग के गिर्द रुक गई। (स्मृ.वा. : जा.व.शा., पृ. 14)

झाँऊ-झाँऊ सं. (स्त्री.) -- तकरार-हुज्जत, झाँऊ-झाँऊ तो बहुत होती है, पर पित्तमार काम नहीं हो पाता। (न.ग.र., खं. 4, पृ. 63)

झाँक-झाँक उठना मुहा. -- झलकना, अजान भले ही झाँक-झाँक उठे किंतु रस की ओतप्रोतता में कहीं अंतर नहीं आता। (मा.च.रच., खं. 2, पृ. 367)

झाड़ पड़ना मुहा. -- डाँट पड़ना, समीपवर्ती गाँव के सुपात्र व्यक्तियों पर झाड़ पड़ेगी। (दिन., 30 अप्रैल 1972, पृ. 25)

झाड़-झंखाड़ झाड़-झंकार सं. (पु.) -- खरपतवार, निकम्मी और टूटी-फूटी वस्तुएँ, (क)वह अधिकतर सत्य के झाड़-झंखाड़ में ही खोकर रह जाता है। (हि.पत्र. के गौरव, बां.बि.भट., सं. ब., पृ. 120), (ख)अरुण नेहरू भी जमीनी राजनीति के धूल-धक्कड़ और झाड़-झंकार को नहीं जानते थे। (हि.ध., प्र.जो., पृ. 388), (ग)और जरूरी है कि फिर ऐसे झाड़-झंखाड़ मिले जो पहली बारछूट गए थे। (दिन., 29 अक्तू. 1965, पृ. 43)

झाड़-फटकार सं. (स्त्री.) -- डाँट-डपट, पंडितराज की यह झाड़-फटकार सुनकर उनके टीकाकार नागेश भट्ट ने निर्मत्सर होकर पढ़नेवालों से यह प्रार्थना की.. (सर., जन. 1922, पृ. 83)

झाड़ सं. (स्त्री.) -- डाँट-डपट, इनकार करने की वजह से उन्हों झाड़ सुननी पड़ी। (रवि. 13-19 अप्रैल, 1980, पृ. 10)

झापड़ सं. (पु.) -- तमाचा, चपत, पैर पड़ा नहीं कि झाड़ू किसी जादुई हाथ की तरह प्रगट होती है और नुकीला झापड़ सा मारती है। (काद. : मार्च 1968, पृ. 39)

झाँय-झाँय सं. (स्त्री.) -- तू-तू मैं-मैं, कहा-सुनी, तकरार, (क)एक-दूसरे की घी-चुपड़ी देखकर निजलिंगप्पा और हनुमंतैया की झाँय-झाँय से दोनों का जो चित्र सामने आया है वह अभी तक के जाने चौखटे में फिट बैठ नहीं रहा है। (दिन., 6 अक्तू. 1968, पृ. 17), (ख)झाँय-झाँय हमका पसंद नहीं। (काद., अक्तू. 1993, पृ. 119), (ग)जब अठन्नी के लिए झाँय-झाँय कर रहे थे तो..., (रा.द., श्रीला. शु., पृ. 151)

झाँसा देना मुहा. -- धोखा देना, इंग्लैंड के राजनीतिक...और कूटीतिज्ञ झूठ बोलते हैं---दुनिया को झाँसा देते हैं और अपना मतलब गाँठते हैं। (न.ग.र., खं. 2, पृ. 194)

झाँसा-पट्टा सं. (पु.) -- झाँसा-पट्टी, बहकावा, वे कृष्ण के झाँसे-पट्टे में नहीं आते थे। (प्रा.के. ब. : श्या. सु.घो., पृ. 4)

झाँसा-पट्टी सं. (स्त्री.) -- धोखा , फरेब, (क)अभी तक देश को सिर्फ झाँसा-पट्टी दी गई है . (म.का मत: क.शि., 14 नव. 1925, पृ. 193), (ख)अब वे किसी झाँसा-पट्टी में आनेवाले नहीं हैं। (म.का मत: क.शि., 21 जन. 1928, पृ. 249), (ग)न तो लार्ड वेवेल ही वह गुड़ हैं जिसे चींटे खा जाएँ और न देश के अन्य राष्ट्रीय दल ही ऐसे हैं कि वे जिन्ना साहब की झाँसा-पट्टी में आ जाएं। (न.ग.र., खं. 4, पृ. 143)

झिकाना क्रि. (सक.) -- तंग करना, परेशान करना, खोजा की पत्नी भी खोजा को झिकाने में चूकती नहीं थी। (काद., मार्च 1976, पृ. 166)

झिझकना क्रि. (अक.) -- हिचकना, संकुचित होना, संकोच करना, पत्र-संकलन तैयार करने को कहा, तब मैं बहुत झिझका थआ। (ब.दा.च.चु.प., संपा. ना.द., पृ. 23)

झिंझरी सं. (स्त्री.) -- झरोखा, उसकी दृष्टि ऊपर झिंझरी की ओर गई। (वृ.ला.व. मग्र, पृ. 726)

झिंझोटा वि. (विका.) -- चिल्लानेवाला, शोर करनेवाला, उनके लिए वह खूँसट, वह झिंझोटा, वह झबरैला, वह चपरगेंगा सब समान है । (कुटुज :ह.प्र.द्वि., पृ. 90)

झिंझोड़ना क्रि. (सक.) -- झकझोरना, हिला देना, (क)गांधी के नमक सत्याग्रह ने समूचे प्रायदीप को झिंझोड़ दिया था। (रा.मा.संच. 2, पृ. 380), (ख)राजनीति हर स्तर पर देश को झिंझोड़ रही है। (स.ब.दे. : रा.मा., पृ. 105)

झिझोड़ना क्रि. (सक.) -- झिंझोड़ना, हिला देना, अभिव्यक्ति विचारोत्तेजक है जो प्रत्येक पाठक को अंक हाथ में लेते ही झिझोड़कर जगा देती है। (कर्म., 6 नव., 1948, पृ. 2)

झिड़कना क्रि. (सक.) -- डाँटना, झिड़की देना, शल्य ने उसे झिड़कना शुरू कर दिया। (गु.र., खं. 1, पृ. 315)

झिपना क्रि. (अक.) -- मुँदना, बंद होना, मेरी आँखें झिप गईं और चेतना सुप्त-सी हो गई। (काद. : फर. 1993, पृ. 90)

झिंपाना क्रि. (सक.) -- झेंपने में प्रवृत्त करना, कोई लाख झिंपावे, हरगिज न झेंपिए। (म.का मत: क.शि., 18 जुलाई 1925, पृ. 187)

झिरझिरा वि. (विका.) -- जिसमें झिर्रियाँ हो, पतला, झीना, झीणा वही शब्द है जो हिंदी झीना, यानी पतला झिर-झिरा है। (न.ग.र., खं. 3, पृ. 78)

झिर्री सं. (स्त्री.) -- दरार या छिद्र कुछ देर बाद धीरे-धीरे झिर्रियों से जाते प्रकाश ने दोनों को आकार दे दिया। (रवि., 29 मार्च, 1981, पृ. 39)

झिलना क्रि. (अक.) -- सहना, झोलना, चोट तो झिल गई। (दिन., 7 जन., 1966, पृ. 11)

झिल्ली सं. (स्त्री.) -- पतली और पारदर्शी परत, आँख के अंदर का सब भाग रेटिना नामक मुलायम श्वेत और विमल झिल्ली से मढ़ा हुआ है। (चं.श.गु.र., खं. 2, पृ. 262)

झींकना क्रि. (अक.) -- खीझना, कुड़ना, दुःखी होना, (क)अफसोस ! झींकते हुए कहना पड़ता है कि हिंदीवालों में तो जीवन की वह ज्योति नहीं जगी है। (शि.पू.र., खं. 3, पृ. 168), (ख)विशेषआंक समूह के लिए बहुत पछताना और झींकना पड़ेगा । (शि.पू.र., खं. 3, पृ. 318)

झीमा सं. (पु.) -- ऊँघते समय सिर के झुकने की क्रिया या भाव, लाखी झीमे लेने लगी थी। (बड़ी रानी सो गई थी। (वृ.ला.व. समग्र, पृ. 723)

झुकाना क्रि. (सक.) -- प्रवृत्त करना, खींचना, मोड़ना, क्या कभी कोई ऐसा प्रयत्न भी किया गया ह, जिससे हम संस्कृतवालों को हिंदी की तरफ झुका सकें। (कु.ख. : दे.द.शु., पृ.2)

झुटपुटा सं. (पु.) -- वह समय जब अँधेरा हो पर कुछ-कुछ रोशनी होने लगी हो, थाने पर सुबह झुरपुटे में धावा बोलकर आतंक की स्थिति पैदा कर दी है। (दिन., 8 दिस. 1968, पृ. 21)

झुठाई सं. (स्त्री.) -- झूठी बात, झूठ झुठाई का कहीं भी पक्ष न लिया जाए। (त्या.भू. : संवत् 1986, (1927)पृ. 93)

झुड़पुड़ सं. (पु.) -- झाड़ियों का समूह, झुरमुट, उसने छलाँग लगाई, शिकार पकड़ा और झुड़पुड़ में गायब हो गया। (काद., जन. 1982, पृ. 53)

झुराना क्रि. (अक.) -- सूख जाना, क्षीण होना, बार-बार जाने से देह एकदम झुरा गई थी। (काद. : दिस. 1989, पृ. 78)

झूठमूठ क्रि. वि. -- बिना मतलब, व्यर्थ में, (क)सत्ताधारी दल के नेता यह कहकर जनता को झूठमूठ बहलाते रहे हैं कि केरल में राष्ट्रपति शासन का कोई विकल्प नहीं था। (दिन., 16 जुलाई, 1965, पृ. 12), (ख)यह वाक्य झूठ-मूठ बाबू रामकृष्ण को प्रसन्न करने को तो नहीं लिखा गया है (गु.र., खं. 1, पृ. 431)

झूल सं. (पु.) -- शोभा केले हाथी, घोड़े आदि की पीठ पर डाला जानेवाला कपड़ा, आवरण, सबसे बड़ी सेवा यही है कि शर्म की झूल उतार फेंको। (नव., फर. 1958, पृ. 65)

झेंपना क्रि. (अक.) -- शरमाना, पौराणिक तथा ऐतिहासिक रानियों के स्वतंत्र घूमने पर झेंपा करते हैं। (चं.श.गु.र., खं. 2, पृ. 315)

झोंक सं. (स्त्री.) -- मनोभाव की तेजी, आवेश, आवेग, (क)चढ़ा-ऊपरी की झोंक में वे अधिक पूँजी लगाकर चीज तैयार करते हैं और थोड़ी कीमत पर बेचते हैं। (म.प्र.द्वि.रच., खं. 2, पृ. 141), (ख)आक्षेप करनेवालों की सारी झोंक काव्य, नाटक और उपन्यासों पर रहती है (सर., दिस. 1912, पृ. 669), (ग)अपराध करते समय में वे बिलकुल झोंक में होते हैं। (चाँद अंक, आ.च.से.शा., पृ.4)

झोंकना क्रि. (सक.) -- जबरदस्ती कुछ कहते, करते या आगे बढ़ाते चलना, (क)वह अपनी बड़ाई झोंके जा रहा था। (माधुरी, नव. 1928, सं. 3, पृ. 691), (ख)पाकिस्तान ने बँगलादेश पर पुनः अपना प्रभुत्व बनाए रखने के लिए सेना को झोंक दिया है। (दिन., 18 अप्रैल, 1971, पृ. 13)

झोंका सं. (पु.) -- झोंक आवेश, वह अपने कलम के एक झोंके में बात की बात में जर्मनी का फौजी तानाशाह बन सकता है। (सर., भाग-25, खं. 1, जन. 1924, सं. 2, पृ. 252)

झोंटा सं. (पु.) -- सिर के लंबे बालों का समूह, सरकार का आदमी उसकी तरफ लपकता है और झोंटा पकड़कर उसे घसीटता हुआ अलग ले जाता है। (दिन., 22 दिस. 1968, पृ. 8)

झोंटी-झोंटा सं. (पु.) -- एक दूसरे का झोंटा पकड़कर खींचने की लड़ाई, जब तक दाँत न किर्र लें और आपस में झोंटी-झोंटा न कर लें तब तक कभी न अघाएँ। (भ.नि., पृ. 22)

झोना क्रि. (सक.) -- जबरदस्ती पैदा या खड़ा करना, जो ब्रह्म और जीव का झगड़ा आपने झोया वह तो लोहे के चने थे। (बाल.स्मा.ग्रं. : शर्मा, चतुर्वेदी, पृ. 374)

झोंप सं. (पु.) -- गुच्छा, पलाश के झोंप सनसना उठे। (ज.क.सं. : अज्ञेय, पृ. 20)

झोली-झंडा सं. (पु.) -- (अपना)सामान, इस बीच स्थिति यह बन र ही ह कि मुकदमा चलानेवाल पक्ष ही झोली-झंडा लेकर कूच करता लग रहा ह। (रा.मा.संच. 1, पृ. 334)

झौआ-भर वि. (अवि.) -- ढेरों, अत्यधिक, (क)देशवासी इन झौआ-भर नेताओं के निजी गुणों को शहद लगाकर क्यों चाटें। (रवि. 28 मई-3 जून 1978, पृ. 35), (ख)उनसे तो एक दो नहीं, झौआ भर प्रेमपत्र मिल सकते हैं। (काद., जन. 1961, पृ. 100)

झौंसना क्रि. (सक.) -- अधजला करना, झुलसाना, इस दृष्टि से कितने ही पत्रों को भस्म नहीं कर डाला तो झौंस जरूर डाला था। (सर., मई 1926, पृ. 667)

टक बाँधना या बाँधे रहना मुहा. -- टकटकी लगाना, बंगाल की दृष्ट आज भी दिल्ली के बजाय ढाका की ओर अधिक टक बाँधे रहती है। (दिन., 14 मई, 67, पृ. 40)

टकटकी लगाना मुहा. -- आशापूर्वक देखना, (क)तब देश की आँखें राष्ट्रीय सभा की ओर टकटकी लगा रही थीं। (मा.च.रच., खं. 9, पृ. 225), (ख)तमाशाई बनकर टकटकी लगाने में ही अपने कर्तव्य की इतिश्री समझ बैठे हैं। (स.सा., पृ. 118)

टँकना क्रि. (अक.) -- अटकना, जमना, लगना, यही नहीं, जब उसके पेट में भूख खाँव-खाँव कर रही थी, तब भी उसकी आँखें गुलाब पर टँगी थी, टँकी ती। (गेगु., पृ. 2)

टकहा वि. (विका.) -- दो पैसे का, कम मूल्य का, सस्ता, उसकी माँ में टकही टिकुली, चमचम करती है । (बे.ग्रं., प्रथम खं., पृ. 108)

टकहिया वि. (अवि.) -- टके या दो पैसे का, सस्ता और चलताऊ, रूसी पाठक अब इतने प्रबुद्ध हैं कि उन्हें कोई टकहिया किताब साम्यवाद से विरत नहीं कर सकती। (दि., 25 अक्तू., 1970, पृ. 49)

टका-सा जवाब देना मुहा. -- कोरा जवाब देना, अँगूठा दिखा देना, (क) माँग पेश करते हैं तो गवर्नर के निज सचिव टका-सा जवाब देते हैं। (ग.शं.वि.रच., खं. 1, पृ. 321), (ख)आज 10-12 वर्ष से इंग्लैंड के कॉलेजों ने भारतीय विद्यार्थियों को टका-सा जवाब देना आरंभ कर दिया है। (ग.शं.वि. रच., खं. 2, पृ. 309), (ग)रिफार्म की अलगी किश्त के संबंध में टका-सा जवाब दे दिया है। (स.सा., पृ. 115)

टका-सा जवाब मिलना मुहा. -- कोरा जवाब मिलना, चीन से शिकायत करने पर टका-सा जवाब मिलता है। (दिन., 21 जन. 1966, पृ. 36)

टका सं. (पु.) -- 1. दो पैसे का पुराना सिक्का, 2. एक रुपए का सिक्का, पूँजी, आजकल यह जमाना है जिसमें टका ही पूजा जाता है उसी की सर्वत्र पूछ होती है। (सर., अक्तू. 1920, पृ. 210)

टकासेर सं. (पु.) -- अल्पज्ञानी, अल्पशिक्षित व्यक्ति, अवश्य ही इन टकासेरों ने अलंकारों की खिल्ली हिंदी के बाजारों में उड़वाई है। (वीमा, जन. 1934, पृ. 182)

टके सेर क्रि. वि. -- कोड़ियों के मोल, (क)ईश्वर न करे पुराना काल लौट आए तो ये सब टके सेर को भी न पूछे जाएँ। (गु.र., खं. 1, पृ. 324), (ख)अगर दर्शन के गूढ़ तत्त्व बिना कठोर आत्मपरीक्षा के ही बाजार के जामुन की तरह टके सेर बिकते होते तो ऐरे गैरे नत्थू खैरे तथा आजकल के जोशीबंधु तथा गंगाप्रसाद उपाध्याय के यहाँ एक-एक शंकराचार्य पैदा हो गए होते। (माधुरी : अग.-सित. 1928, पृ. 77)

टक्कर का वि. (विका., पदबंध) -- बराबरी का, उसी जैसा, रेलवे संबंधी माल अब भारत में ब्रिटिश माल की टक्कर का बनने लगा है । (स.सा., पृ. 315)

टक्कर मारना मुहा. -- भटकना, ठोकर खाना, मैं यहाँ की नौकरी छोड़कर काशी लौट आया और कई महीनों तक इधर-उधर टक्कर मारता फिरा। (सर., अप्रैल 1941, पृ. 360)

टक्करदार वि. (अवि.) -- जोड़ का, बराबरी का, विज्ञान...शिल्प, कृषि इत्यादि विषयों में संसार की किसी भी जिंदा ...कैम के टक्करदार नहीं। (मा.च.रच., खं. 2, पृ. 84)

टँगड़ी करना मुहा. -- टाँग अड़ाना, विघ्न डालना, खलीकुज्जमां ने बाजी जीत ली और जवाहरलाल ने टँगड़ी की। (ग.शं.वि.रच., खं. 7, पृ . 15)

टँगड़ी सं. (स्त्री.) -- टाँग (उपेक्षा सूचक), उनके बिना वाक्य की टँगड़ी टूट जाती है। (म.प्र.द्वि., खं. 1, (बा.मु.गु.), पृ. 346)

टंच वि. (अवि.) -- पूर्ण स्वस्थ, चंगा, नीरोग, सोचा था कि ब्रज में हमारी मिट्टी मिल जाएगी किंतु हम तो अब टंच हो गए हैं। (ज.स., 10 दिस. 2006, पृ. 6)

टटका वि. (विका.) -- 1. नया, ताजा, (क)इतना दम नहीं कि हम अपनी भाषा का अनादर करनेवालों को टटका-टटका सबक सिखा सकें। (शि.पू.र., खं. 4, पृ. 498), (ख)फूल जितना ही टटका रहेगा अर्क उतना अच्छा होगा। (सर., नव. 1918, पृ. 273), (ग)समाचार-पत्रों का मुख्य काम टटके समाचारों का संग्रह करना है। (सर., अप्रैल 1920, पृ. 209), 2. नौसिखिया...काम के मामले में टटका नहीं है। (दिन., 11 मई 1969, पृ. 36)

टटके-से-टटका वि. (विका., पदबंध) -- बिलकुल नया, नए से नया, चूड़िहारिन के पेशे के लिए सिर्फ यह नहीं चाहिए कि उसके पास रंग-बिरंग की चूड़ियाँ हों-सस्ती, टिकाऊ, टटके-से-टटके फैशन की। (बे. ग्रं., प्रथम खं., पृ. 4)

टटपुँजिया सं. (पु.) -- टुटपुँजिया, जिसके पास पूँजी की कमी हो, थोड़ी पूँजीवाला, तो कोई अजब नहीं कि यह तर्क कई टटपुँजियों के मुख से सुना जाए। (दिन., 20 अक्तू. 1968, पृ. 16)

टंटा मिटना मुहा. -- झंझट खत्म होना, हम भी समालोचक को रद्दी के भाव बेचकर बैठ जाएँ टंटा मिटै। हिंदी सपूतों ने तेरी चरम सेवा पूजा कर दी है। (गु.र., खं. 1, पृ. 414)

टटा-टटाकर क्रि. वि. -- तरस-तरसकर, खाने के लिए उसे कोई अन्न का दाना न दे, खुद टटा-टटाकर मर जाएगी। (रवि. 6-12 नव. 1977, पृ. 31)

टंटा सं. (पु.) -- झंझट, झमेला, (क)तो सदा एक-न-एक टंटा उनसे छेड़ ही रखा करें। (गु.र., खं. 1, पृ. 415), (ख)न्याय क्या है, यह बड़े टंटे का विषय है। (रा.मा.संच. 1, पृ 137), (ग)घड़ी देखा तो सिखा दो, उसमें तो जन्म और कर्म की पख न लगाओ, फिर दूसरे से पूछने का टंटा क्यों ? (चं.श.गु.र., खं. 2, पृ. 310)

टटिया सं. (स्त्री.) -- छोटा टट्टर, टहनियाँ या घासफूस की आड़, टटिया के बाहर से पुकार लगाई-अरी चलो री सवारी आ गई। (वृ.ला.व. समग्र, पृ. 647)

टटुआ सं. (पु.) -- टट्टू बेचारा एक टटुआ लेकर चला आया। (सा.मी. : कि.दा.वा., पृ. 9-10)

टटोल सं. (स्त्री.) -- हलकी जानकारी, अस्तु, वेद क्या है इस बात की टटोल हमारे पढ़नेवालों को कुछ-न-कुछ अवश्य हो गई होगी। (भ.नि.मा. (दूसरा भाग), सं. ध.भ., पृ. 117)

टटोलना क्रि. (सक.) -- समझने का प्रयत्न करना, थाह लेना, (क)भला कभी स्वयं आपने अकेले मैं बैठकर स्वामीजी के सिद्धांतों को टटोला है। (शि.पू.र., खं. 3, पृ. 306), (ख)फिर भी नव. में अपनी दिल्ली यात्रा के दौरान वे कांग्रेस का विकल्प खोजने की संभावना टटोलते रहे। (रा.मा., सं. 1, पृ. 262)

टट्टर सं. (पु.) -- बाँस आदि का बना दरवाजा, दरवाजे पर जाकर देखा टट्टर बंद था। (माधुरी : अक्तू. 1927, पृ. 599)

टनक वि. (अवि.) -- टनटनाता हुआ, प्रभावी, इस गद्य में मिठबोली के जो घुँघरू हैं वे मधुर और टनक शब्द पैदा करते हैं। (हंस, जन. 1936, पृ. 49)

टनटनाट वि. (अवि.) -- टनाटन, पूर्ण स्वस्थ, पाठ पूरा होते-होते वे ऐसी टनटनाट हो गईं कि उठकर घर का सारा काम-काज निपटा दिया। (ज.स., 10 दिस. 2006, पृ. 6)

टनटनाना क्रि. (सक.) -- ठोक-बजाकर देखना, टनटना के देखा-भला हुआ पहले हाथ का माल है। (वाग. : कम., अग. 1997, पृ. 25)

टनमना वि. (विका.) -- चंगा, निरोग, लेकिन जरा टनमने होते ही फिर उन्होंने कच्चा अन्न खाना शुरू कर दिया है। (कर्म., 20 सित. 1958, पृ. 1)

टन्न से बजना मुहा. -- (अपनी)श्रेष्ठता सिद्ध करना, यह उपन्यास छूटते ही अभारतीय पाठक की खोपड़ी पर टन्न से बजेगा। (र.शा., साक्षा., पृ. 125)

टपना क्रि. (सक.) -- लाँघना या फाँदना, हम सब लोग, छोटा-छोटा बच्चा भी, ईंट-पत्थर फेंककर ऊ लोग को नजदीक जपने नहीं देते थे। (रवि., 31 मई 1981, पृ. 12)

टपरिया सं. (स्त्री.) -- घास-फूस की बनी झोंपड़ी,दीये या ढिबरी की अंधी रोशनी में तिनकों की टपरिया व खपरैल की छत के नीचे घोर गरीबी में जीवन बिताते थए। (काद., जन. 1989, पृ. 70)

टप्पा खाना मुहा. -- उछलना, (क)गुरुत्त्वाकर्षण के टप्पा खाकर वह फिर पृथ्वी की ओर मुड़ गया। (रा.मा.संच. 2, पृ. 34), (ख)भारत के वर्तमान धरातल पर एक रुपया उतना टप्पा नहीं खाती जितना कि अन्य धरातलों पर खाता है। (रा.मा.संच. 2, पृ. 155), (ग)उछाल, दल-दल में फेंकी गई गेंद कोई टप्पा नहीं खाती। (रा.मा.सं. 1, पृ. 317)

टमकना क्रि. (अक.) -- तमकना, क्रुद्ध होना, अज्ञेय टमककर फिर दरवाजे की ओर जाने लगे . (दिन., 16 दिस., 66, पृ. 24)

टरकाऊ वि. (अवि.) -- टालनेवाला, टरकाऊ जवाब तो उन्होंने शायद ही किसी पत्र को दिया हो। (ब.दा.च.चु.प., संपा. ना.द., पृ. 19)

टरकाना क्रि. (सक.) -- टाल-मटोल करना, टालना, (क)वह तो टरका देने जैसी बात होगी। (ब.दा.च.चु.प., खं. 2, सं. ना. द., पृ. 61), (ख)महत्त्वपूर्ण मसले को टरकाकर अलग हो गया। (दिन., 21 सित. 1969, पृ. 27), (ग)वे समझते हैं कि आचार्य द्विवेदी प्रशंसापत्रों की खैरात बाँट रहे हैं और आचार्यजी सोचते हैं कि थोड़ा गुड़ देकर टरकाओ इन विश्राम बाधकों को। (शि.पू.र., खं. 3, पृ. 502)

टर्र-टर्र सं. (स्त्री.) -- कर्णकटु शब्द, हमारे बरसाती कलाकारों की अत्यंत मौलिक टर्र-टर्र का विरोध क्यों किया जाता है। (मा. च. रच, खं. 3, पृ. 140)

टर्र सं. (स्त्री.) -- जिद, हठ, (क)हमारी तरह टर्र में गोबरिया गणेश नहीं बनते। (ग .र., खं. 1, पृ. 114), (ख)वे अपनी टर्र में संकीर्ण भी हो सकते हैं। (गु.र., खं. 1, पृ. 419)

टर्रा वि. (विका.) -- उद्दंड, उद्धत, अविनीत, (क)डेढ़ टके के लिबास में मैं बड़ों-बड़ों के बीच धँसा पड़ता था, थान का टर्रा होना मुझे भाता न था। (स्मृ.वा. : जा.व.शा., पृ. 44), (ख)निहायत टर्रे और मुँहफट आदमी। (स.न.रा.गो. : भ.च.व., पृ. 181)

टर्राना क्रि. (अक.) -- टरटर करना, चिल्लाना, चिल्लपों माचाना, जनता की परवा कौन करता है, यूँ ही टर्राते रहो। (म.का मत: क.शि., 8 दिस. 1923, पृ. 128)

टलमल वि. (अवि.) -- झिलमिल, पानी की सतह पर बाँस की खपच्चियों पर तैराई दीप पंक्तियाँ टलमल रोशनी की रंगीन तसवीर हैं। (दि., 23 अप्रैल, 67, पृ. 43)

टस-से-मस न होना मुहा. -- जिद या हठ न छोड़ना, अपनी बात पर अड़े रहना, अडिग रहना, लेकिन वायसराय लार्ड लिनलिथगो टस-से-मस नहीं हुए। (रा.मा.संच. 2, पृ. 209)

टस-से-मस होना मुहा. -- हठ त्यागना, टेक छोड़ना, (क)मगर क्या मजाल है कि रावण टस-से-मस हुआ हो। (म. का मत: क.शि., 18 जुलाई 1925, पृ. 187), (ख)परंतु वे भला टस-से-मस क्यों ह ने लगे ? (न.ग.र., खं. 4, पृ. 305)

टसकाना क्रि. (सक.) -- खिसकाना, हटाना-बढ़ाना, वह अंबिका को एक तिनका भी नहीं टसकाने देती, पूरा काम स्वयं क रती है। (सर., सित. 1926, भाग 27, स. 3, पृ. 283)

टहटहा वि. (विका.) -- खिला हुआ, बाहर टहटही चाँटनी और भीतर अँधेरा था। (वाग. : जा.व.शा., पृ. 6)

टहल-चाकरी सं. (स्त्री.) -- सेवा-शुश्रूषा, उनकी टहल-चाकरी और खाना बनाने के लिए जवानों की कमी नहीं थी। (रा.मा.संच. 2, पृ. 203)

टहल सं. (स्त्री.) -- सेवा, स्त्रियों के लिए घर की टहल करने के सिवा कुछ नहीं है। (माधुरी, नव. 1928, सं. 3, पृ. 901)

टहलनी सं. (स्त्री.) -- सेवा करनेवाली स्त्री, चाकरानी, हमारी विधवाएँ प्रायः घर की टहलनी या चाकरानी हुआ करती हैं। (सर., अक्तू. 1910, पृ. 438)

टहलुआ सं. (पु.) -- सेवक, मददगार, पिछले साल इसे पुरस्कार नहीं मिला था , इसका टहलुआ ठीक नहीं था। (दिन., 19 जन. 1975, पृ. 11)

टहूका सं. (पु.) -- एक प्रकार का लोकगीत, सैकड़ों टहूके और सैकड़ों दीवारी जिसे कंठस्थ थीं। (काद., नव. 1978, पृ. 70)

टहोका सं. (पु.) -- धक्का, झटका, (क)छिछले पानी मैं नाव जमीन पकड़ लेती है उसे टहोका दना पड़ता है। (दिन., 07 मई, 67, पृ. 39), (ख)प्रतिकूलता का टहोका चुनौती देकर हमारे सर्वोत्तम को जाग्रत करता है। (काद. : जुलाई 1962, पृ. 8)

टाँक सं. (स्त्री.) -- अंदाज, अनुमान, टाँक भिड़ाइए और झटका देने की कला में माहिर हो जाइए। (मा. अ. : मार्च 1995, पृ. 115)

टाँकना क्रि. (सक.) -- लिखना, नोट करना, लिपिबद्ध करना, (क)कभी-कभी कुछ टाँककर सभा में ले जाता और उनसे अर्थ पूछता है। (शि.पू.र., खं. 4, पृ. 135), (ख)आपके बारे में मैंने कुछ बातें टाँक रक्खी हैं। (ब.दा.च.चु.प., संपा. ना.द., पृ. 241)

टाँके-टूट वि. (अवि.) -- बहुत कम, बहुत थोड़ा, आमदनी टाँके-टूट है तो खर्च भी बढ़ा हुआ न हो। (भ.निबं., पृ. 43)

टाँग अड़ना मुहा. -- बाधा या, अड़चन बनी होना, पुर्तगाल की टाँग अभी अड़ी हुई थी। (दिन., 30 अप्रैल, 67, पृ. 34)

टाँग अड़ाना मुहा. -- बाधा खड़ी करना, (क)उपकम और उपसंहार की अनुरूपता के विषय में घुसड़पंच बनकर टाँग अड़ाना दखलदर मकूलात का दर्जा रखता है। (गु.र., खं. 1. पृ. 445) (ख)जब होता है तभी दाल-भात में मसूरचंद की तरह इस पार्टी के लोग भारतीय मामले में टाँग अड़ा दिया करते हं। (म.का मत: क.शि., 24 दिस. 1927, पृ. 244), (ग)मि. चर्चिल हर बात में अपनी टाँग अड़ाते ही रहते हैं। (नि.वा. : श्रीना. च., पृ. 550)

टाँग फँसना मुहा. -- उलझा होना, ग्रस्त होना, जानसन की टाँग वियतनाम युद्ध में बुरी तरह फँसी हुई है। (दिन., 24 मार्च, 68, पृ. 30)

टाट उलटना या उलट जाना मुहा. -- पराभव होना, अपदस्थ होना, दिवालिया होना, उसकी धूर्तता से परिचित लोग जानते हैं कि उसका अंत में टाट उलटना है। (शि.पू.र., खं. 3, पृ. 62)

टाँट सं. (स्त्री.) -- सिरा, शिखर, टीला तो उसे कहें जो खुला हो जिसकी टाँट देखी जा सके। (ज.क.सं. : अज्ञेय, पृ. 25)

टाँठा वि. (विका.) -- हृष्ट-पुष्ट, तगड़ा, अभी इतने टाँठे हैं कि मोटिया टाँगन की तरह खड़ाऊँ पहने खटाखट सीढ़ियाँ चढ़ जाते हैं। (शि.पू.र., खं. 4, पृ. 153)

टाँड़ा सं. (पु.) -- विक्रयार्थ पशुओं का झुंड, जत्था, (क)बनजारों के टाँड़े बी इन जंगली स्थानों में दिखाई देते हैं। (सर., दिस. 1912, पृ. 666), (ख)साहित्यिकों के बनजारों का यह टाँड़ा चला है कि अपनी इसी सनक को राष्ट्र भर में फैलावे । (मा.च.रच., खं. 2, पृ. 289)

टान सं. (स्त्री.) -- खींच, माँग, आजकल रुपए-पैसे की कैसी टान है , इस तरह के ब्योंत से प्रेस का खर्च नहीं पोसाएगा। (शि.पू.र., खं. 4, पृ. 256)

टापता रह जाना मुहा. -- वंचित रहजाना, तरसते रह जाना, (क)ये मुँह माँगी चीजें नहीं मिलीं, तो वह लूँगी कि दुलहन टापती रह जाएँगी । (बे.ग्रं., प्रथम खं., पृ. 5), (ख)जो सिंचाई कड़ाना...बाँधों से हो सकती है वह नर्मदा नहर से होगी और नर्मदा तट के खेत टापते ही रहेंगे। (रा.मा., सं. 2, पृ. 201), (ग)तुम्हें असली होली कहाँ मिलेगी यूँ ही टापते रहो। (म.का मत: क.शि., 15 मार्च 1924, पृ. 24)

टाँय-टाँय करना मुहा. -- चिल्लापों करना, हम लोग बाल्य विवाह के हटाने को कितना ही टाँय-टाँय किया करते हैं। (भ.नि. : पं.बा.कृ.भ., पृ. 3)

टाँय-टाँय फिस / फिस्स कर जाना मुहा. -- पूर्णतः विफल होना, (क)सारा कार्यक्रम टाँय-टाँय फिस्स कर जाए अगर सांगठनिक आधार उसे न मिले। (हि. ध., प्र.जो., पृ. 217), (ख)सादात ने ऐलान कर रखा था कि 1971 की 31 वीं दिस. के पहले ही मैं युद्ध छेड़ दूँगा लेकिन निर्णय का वह वर्ष टाँय-टाँय फिस्स के साथ समाप्त हो गया और मिस्र की बड़ी भद हुई। (रा.मा.संच 1, पृ. 228)

टाँय-टाँय फिस्स होना मुहा. -- शोर बहुत पर परिणाम कुछ न होना, समाप्त होना, (क)पालीवाल अभिनंदन ग्रंथवाला मामला भी टाँय-टाँय फिस्स हो गया (ब.दा.च.चु.प., संपा. ना.द., पृ. 306), (ख)हत्या बतलाकर आंदोलन चलाने की कोशिश की मगर वह टाँय-टाँय फिस्स हो गई। (ज.स. : 2007, पृ. 6)

टाल मटूल सं. (स्त्री.) -- टाल-मटोल ,(क) मध्य प्रदेश ने नर्मदा नदी का बोर्ड का सुझाव मान लिया , लेकिन गुजरात टालमटूलकरता रहा ।(रा . मा .संच , 2 . पृ . 90),(ख) शासन तंत्र में बेईमानी और टालमटूल का बाजार खूब गरम है । (सर., भाग-25, खं. 1, जन. 1924, सं. 2, पृ. 250), (ग)पंजित धनराज ने टालमटूल ही से काम निकाला। (म.प्र.द्वि., खं. 5, पृ. 387)

टाल-मटोल सं. (स्त्री.) -- केवल टालने के लिए किया हुआ बहाना, बहानेबाजी, (क)पंजाब ने भी और प्रांतों के टालमटोल करते रहने पर योग्य प्रतिनिधि (लाजपतराय)भेजकर अच्छा किया। (गु.र., खं. 1, पृ. 338), (ख)अभी तक वह इसलिए टाल-मटोल कर रहा था कि वह युद्ध का ...विरोध करता है। (दिन., 9 सित., 66, पृ. 10), (ग)टालमटोल करने से एक साहित्यिक में दीर्घसूत्र एक व्यसन का रूप धारण कर लेती है . (मधुकर : जन., 1944, पृ. 500)

टालटूल करना मुहा. -- टाल-मटोल या हीला-हवाली करना, टालटूल करने में इलाहाबाद, इटावा और झाँसी का नंबर खूब गरम है। (म.प्र.द्वि., खं. 9 , पृ. 119)

टालू मिक्चर सं. (पु.) -- टरकाऊ दलील, टाल-मटोल अभी अधिक-से-अधिक मात्रा में टालू मिक्चर का इस्तेमाल ही सही नुस्खा है। (दिन., 16 दिस., 66, पृ. 29)

टालू वि. (अवि.) -- टरकाऊ, चलताऊ, इस प्रकार का टालू उत्तर देने के बजाय प्रश्नकर्ता को आश्वासन देना चाहिए था . (सा.हि., 2 अप्रैल 1960, पृ. 3)

टिकटिकाना क्रि. (सक.) -- टिकटिक करना, खटखटाना, मैंने उसके दरवाजे की कुंडी जा टिकटिकाई। (क.ला. मिश्र : त.प.या., पृ. 127)

टिकटिकाव सं. (पु.) -- सुस्थिरता, जब-जब दंगे भड़के हैं, इस पर इसी ढंग से विचार होता आया है, लेकिन जब जरा टिकटिकाव होता है तो फिर भुला दिया जाता है। (दिन., 4 से 10 फर. 1979, पृ. 11)

टिकटी सं. (स्त्री.) -- वह ढाँचा जिसमें फाँसी का रस्सा बँधा रहता है, (क)पुल के मुहाने पर एक फाँसी की टिकटी लगाई गई। (काद. : अक्तू. 1982, पृ. 92), (ख)वे इसके पंजर तक को फाँसी की टिकटी पर चढ़ाने में तरस नहीं खाना चाहते। (ग.शं.वि.रच., खं. 2, पृ. 219)

टिकड़ी सं. (स्त्री.) -- टेकरी, पहाड़ी, लंदन से करीब 100 मील दूर, साल्सवरी मैदान की एक छोटी टिकड़ी पर स्थित..., (दिन., 24 जून 1966, पृ. 26)

टिकना क्रि. (अक.) -- स्थित रहना, बना रहना, रुकना, (क)दूसरे दिन प्रातः क ल दूसरे स्थान पर टिकना चाहिए। (माधुरी : अक्तू. 1927, पृ. 374 0, (ख)अंत को मदनमोहन बाबू के मकान में टिकना ही मैंने उचित समझा। (सर., जन. 1928, पृ. 57), (ग)गाड़ी रात को देर से आई थी, इसलिए हम सबेरे तक वहीं टिक गए। (काद. : दिस. 1966, पृ. 11)

टिकस सं. (पु.) -- पर, टैक्स, (क)आमदनी पर टिकस वसूल करने के लिए इस प्रांत की गवर्नमेंट ने एक कमिश्नर नियुक्त कर दिया है। (सर., नव. 1920, पृ. 273), (ख)ब्रोनिंग से पूछा गया कि तुम्हारे काव्यों की बिक्री से तुम्हें कितना रुपया मिलता है और तुम अपनी आमदनी पर टिकस क्यों नहीं देते। (सर., अक्तू. 1913, पृ. 592)

टिकाऊ वि. (अवि.) -- जो टिका रहे, स्थायी , लेकिन इससे महान् और टिकाऊ साहित्य नहीं बनता। (रचना : अज्ञेय, पृ. 20)

टिकाना क्रि. (सक.) -- आवास उपलब्ध कराना, ठहरना, एक दिन घर के एक बहुत ही विश्वासपात्र आदमी ने आकर कहा-भैया ! एक आदमी को टिकाना है । (विप्लव (आजाद अंक), सं. यश., पृ. 59)

टिकाव सं. (पु.) -- ठिकाना, जापान उसे अपनी फौज का टिकाव बनाना चाहता है। (नि.वा. : श्रीना.च., पृ. 594)

टिकुली सं. (स्त्री.) -- माथे की बिंदी, प्यारी, बाबू ने पूछा, बिंदिया किसको कहते हैं ? टिकुली को। (सर., मार्च 1930, पृ. 352)

टिकोरा सं. (पु.) -- छोटा कच्चा आम, कैरी, टिकोरों की कच्ची गंध कच्ची उम्र के बच्चों को बहुत भाती है। (दिन., 7 अप्रैल, 67, पृ. 39)

टिच्चन्न वि. (अवि.) -- टंच, पूर्ण स्वस्थ, ठीक, आपका स्वास्थ्य अब बिलकुल टिच्चन्न जान पड़ता है। (रा.द., श्रीला. शु.पृ. 405)

टिटकार सं. (स्त्री.) -- टिटकारी, प्रोत्साहित करने के लिए की जानेवाली मुख की ध्वनि, उसकी टिटकार पर दोनों उड़ने लगते ते। (प्रे.स.क. :सर. प्रेस, पृ. 40)

टिटकारी सं. (स्त्री.) -- बैलों को हाँकते समय मुँह से की जानेवाली ध्वनि, बढ़ावा, प्रोत्साहन, (क)बैल को टिटकारी दी कि चल निकली दोड़म-दौड़। (क.ला.मिश्र : त.प.या., पृ. 162 , (ख)आलोचना में उनके साथ दिल्लगी की है उनको टिटकारियाँ दी हैं। (बाल. स्मा. ग्रं. : शर्मा, चतुर्वेदी, पृ. 131)

टिड्डीकरण सं. (पु.) -- व्याप्त करने का भाव, फैलाव, विस्तार, जिस समाजवाद को हम भारत में लागू कर रहे हैं वह पूँजी का टिड्डीकरण है । (रा.मा.संच. 1, पृ. 112)

टिन-टप्परी वि. (अवि.) -- 1. टीनों से आच्छादित, 2. अरक्षित, असुरक्षित, कमजोर, इस जमाने में बने पत्रकारिता के टीन-टप्परी ढाँचे मे उन्हें (तिलक को)नहीं बैठाना चाहिए। (हि.ध., प्र.जो., पृ. 98)

टिन्न-फिन्न सं. (पु.) -- चीं-चिपड़, शोर-गुल, सात-आठ लड़के हैं, जो बेमतलब टिन्न-फिन्न कर रहे है । (रवि. 10 सित., 1981, पृ. 7)

टिपना सं. (पु.) -- जन्मपत्री, जन्मकुंजली, टीपना, अंग्रेजीदाँ लोग टिपना देखकर विवाह निश्चय करने के धार्मिक घटाटोप की बड़ी-कड़ समालोचनाएँ करते हैं। (म.प्र.द्वि.रच., खं. 2, पृ. 250)

टिप्पस सं. (पु.) -- तरकीब, युक्ति, (क)सरकारी नौकरी पाने के लिए उसने बड़ी टिप्पस भिड़ाई। (काद. : अप्रैल 1986, पृ. 7) (ख)मैंने न दरख्वास्त दी थी न किसी मंत्री से टिप्पस भिड़ाई थी। (रवि., 12 अप्रैल 1981, पृ. 36), (ग)क्यों नहीं सप्लाई ऑफिस में टिप्पस भिड़ाते हैं ? (धर्म., 10 दिस. 1967, पृ. 12)

टिमटिमाना क्रि. (अक.) -- हलका प्रकाश देना, (क)हमारे हृदय-मंदिर का दीपक इसी आशा पर टिमटिमाता है कि इस फुलवाड़ी में एक दिन फिर से बरसात का आगमन होगा। (ग.शं.वि.रच., खं. 1, पृ. 114), (ख)बहाव जोरदार है, भँवर बड़े हैं और दो टिमटिमाती लालटेनों के सिवाय साथ में कुछ नहीं है। (मा.च.रच., खं. 9, पृ. 17)

टिर्र-टिर्र करना मुहा. -- बढ़-चढ़कर बोलना, बहस करना, ज्यादा टिर्र-टिर्र करोगे तो निकाल दिए जाओगे मिनिस्टरी से । (स.न.रा.गो. : भ.चव., पृ. 182)

टिर्र सं. (स्त्री.) -- अकड़, जिद, हठ, यदि यो शासक अपनी खैर चाहते हैं तो अपनी टिर्र छोड़ें और होश सँभालें। (ग.शं.वि.रच., खं. 2, पृ. 376)

टिर्राना क्रि. (अक.) -- टरटर करना, टर्राना, टिर्राता हुआ दो बड़ी पीतल की गुंडियाँ लेकर चल दिया। (सुधा, फर. 1935, पृ. 45)

टिलटिलाना मुहा. -- चिलपों मचाना, जब दो ठेला गेहूँ लदवाकर रफ्फूचक्कर हो गया तो दो दिन से टिलटिला रहे हैं। (रा.द., श्रीला.शु, पृ. 89)

टीका सं. (स्त्री.) -- आलोचना, (क)दो संघों को सरकारी विभाग से जोड़ने के कदम की कापी लोगों ने टीका की है। (दिन., 18 जुलाई 1971, पृ. 45)

टीमटाम सं. (स्त्री.) -- चमक-दमक, (क)शहर में ही यह होड़ाहोड़ी अधिक मात्रा में हो सकती है जहाँ सामान्यतः नकलबाजी की बुनियाद पर उत्सवों की टीमटाम आधारित है। (तेवर, पं. द्वा.प्र.मि., पृ. 128), (ख)टीमटाम, कपड़े लत्ते, वेषभूषा की तरफ आपका जरा भी ध्यान नहीं। (सर., जन. 1913, पृ. 53), (ग)हो सकता है कि यह सारी वैचारिकता तब भी एक टीमटाम रही है । (रा.मा.संच. 1, पृ. 369)

टीला सं. (पु.) -- ढूह, टेकरी, लगता है इस पार्टी का अंत ऐसे ही होगा, जैसे पानी के कटाव से ऊँचे-ऊँचे टीलों का अंत होता है। (रा.मा.संच. 1, पृ. 26)

टीले-टिब्बे सं. (पु. बहु.) -- टीले-टेकरियाँ, उस लेख में जगह-जगह खाई-खड्डे और टीले-टिब्बे थे। (क.ला.मिश्र : त.प.या., पृ. 24)

टीसना क्रि. (अक.) -- टीस मारना, रह रहकर दर्द उठना, चमक उठना, यह जख्म बहु टीस रहा है। (काद. : जुलाई 1988, पृ. 7)

टुक-टुक क्रि. वि. (पदबंध) -- ठुक-ठुक, धीरे-धीरे, परंतु कई बार ऐसा भी होता है जब खिलाड़ी अपने टुक-टुक के खेल का सहारा लेकर अपना शतक पूरा करता है। (दिन., 9 जुलाई 1965, पृ. 32)

टुक वि. (अवि.) -- कुछ, जरा सा, थोड़ा, उनका उल्लेख करके टुक सोई व्यथा को जगाना नहीं रूचता। (शि.पू.र., खं. 4, पृ. 205)

टुकड़खोर सं. (पु.) -- दूसरों के टुकड़ों पर पलनेवाला, साहित्यिक टुकड़खोर हर जगह बहुतायत से पाए जाते हैं। (धर्म., 6 फर. 1966, पृ. 24)

टुकड़ा फेंकना मुहा. -- लालच देना, प्रलोबन देना,लार्ड बर्कनहेड ने एक टुकड़ा क्या फेंका देशबंधु उतने में ही बुलबुल हो उठे। (म. का मत: क.शि., 16 मई 1925, पृ. 185)

टुकारी सं. (स्त्री.) -- बीच-बीच में टोकने की क्रिया या भाव, खेत की आर पर बैठे भर-दिन हलवाहे को टुकारी देते रहिए। (बे.ग्रं., प्रथम खं., पृ. 31)

टुकुर-टुकुर ताकना या ताकते रह जाना मुहा. -- असहाय या हताश होकर देखना, (क)शुद्ध प्रेम के प्रताप से हिंदी सबको जीत लेगी, दुनिया टुकुर-टुकुर ताकती रह जाएगी। (शि.पू.र., खं. 3, पृ. 247), (ख)पेड़ों को तो वसंत में फूलों से लदाफदा देखा है और कई टुकुर टुकुर ताकते रह जाते हैं। (काद. : फर. 1991, पृ. 32)

टुकुर-टुकुर देखना या देखते रह जाना मुहा. -- 1. ललचाई दृष्टि से देखना, अमेरिका और ब्रिटेन न केवल टुकुर-टुकुर देखते रहे। (न.गर., खं. 2, पृ. 285), 2. असहाय या हताश होकर देखना, (क)हिंदोस्तान बैठा-बैठा टुकुर-टुकुर देखता रहे। (ग.शं.वि.रच., खं. 3, पृ. 381), (ख)केंद्र सरकार टुकुर-टुकुर देखती रहती है। (दिन., 19 मई, 68, पृ. 10)

टुकुरना क्रि. (अक.) -- टुकुर-टुकुर देखना, अहमियतवाले होते तो विधानसभा चुनाव के टिकट के लिए टुकुरते न रह जाते। (ज.स. : 4 जून 1984, पृ 4)

टुँगा-टुँगाकर क्रि. वि. -- थोड़ा-तोड़ा करके, टुकड़ों-टुकड़ों में, रावजी की आदत ही तरसा-तरसा कर टुँगा-टुँगा कर देने की है। (किल., सं. म. श्री., पृ. 172)

टुच्चा-खुच्चा वि. (विका.) -- ओछेपन से भरा, हेय, छोटी-छोटी सुबह-शाम की ठंडी धूप की सिंकी टुच्ची-खुच्ची अनुभूतियाँ। (स्मृ. वा. : जा.व.शा., पृ. 9)

टुच्चा वि. (विका.) -- छोटा, ओछा, नीचा, (क)सचमुच में ये लोग बड़े स्वार्थी, अदूरदर्शी और टुच्चे दिल के हैं। (न.ग.र., खं. 2, पृ. 23), (ख)राजनीतिकों ने टुच्ची राजनीति करके ...देश को अभूतपूर्व संकट में डाल दिया है। (हि.ध., प्र.जो., पृ. 53), (ग)गोरे पत्र उन्हें गालियाँ दे रहे हैं और उन्हें टुच्चा सिद्ध कर रहे हैं। (ग. शं.वि.रच., खं. 3, पृ. 49)

टुच्चापन सं. (पु.) -- ओछापन, कमीनापन, घटियापन, (क)स्त्रियों के प्रति ऐसे उद्गार निकालना, अपनी तबीयत के टुच्चेपन का परिचय देना है। (न.ग.र., खं. 2, पृ. 85), (ख)ऐसे काम न किए जाएँ जिनसे विजेता राष्ट्रों का टुच्चापन प्रगट हो। (न.ग.र., खं. 2, पृ. 284)

टुटहा वि. (विका.) -- टूटा हुआ, खंडित, देख तो रहे ह वह टुटहा छप्पर। (रा. द., श्रीला.शु., पृ. 129)

टुटुपुँजिया वि. (अवि.) -- निर्धन, छुद्र, बेदम, (क)हिंदी के टुटपुंजिए कवि और लेखक सम्मान और आदर ही नहीं पाते थे, किंतु साथ ही साथ प्रोत्साहन और आश्वासन भी। (कु.ख. : दे.द.शु., पृ. 18), (ख)संघ शक्ति के अभाव में टुटपुँजिया लोगों से अब काम नहीं सरेगा। (शि.पू.र., खं. 4, पृ. 607), (ग)कवि कुंजरों को ही निरंकुशता शोभा देती है, टुटपुँजिए तुकबंदों को नहीं । (सर., अप्रैल 1911, पृ. 196)

टुटुपुँजियापन सं. (पु.) -- पूँजी का अभाव, निर्धनता, अप्रभावशीलता, अंततः आकाशवाणी हर क्षेत्र में टुटपुँजियापन का नमूना होकर रह गई है (दिन., 14 सित., 1969, पृ. 26)

टुटुरूटूँ वि. (अवि.) -- नाम मात्र का, छोटा-सा, साल में टुटुरूटूँ एक भी रिपोर्ट तो उसे लिखनी पड़ती नहीं। (म.प्र.द्वि., खं 9, पृ. 118)

टुंडा वि. (विका.) -- अपंग, लुंज, पाकिस्तान अब एक टुंडा देश है। (रा.मा.संच. 1, पृ. 148)

टुनकना क्रि. (अक.) -- बच्चों की तरह रोना, यह (कांग्रेस)टुनक रही ह कि संविधान के मारे हम कुछ कर नहीं सकते। (रा.मा.संच. 2, पृ. 13)

टुप्प-टुप्प क्रि. वि. -- बूँद-बूँद करके, धीर-धीरे, परंतु लगातार भारत में एक दो दिन की छुट्टियाँ सीपी आमों की तरह टुप्प-टुप्प टपका करती हैं। (सर., फर. 1917, पृ. 89)

टुमुकना क्रि. (अक.) -- ठुमुकना, कितना बड़ा सुख है कि वह अपने बच्चे को अपनी आँखों से खेलता, टुमुकता, मचलता देखे। (सर., जून 1941, पृ. 509)

टुल्ला उड़ाना मुहा. -- गुल्ली, गेंद आदि को आघात से हवा में उड़ाना, वह टुल्ला उड़ाया कि सारे दर्शक उछल पड़े। (रा.ला.प्र.र., पृ. 135)

टुल्लेबाजी सं. (स्त्री.) -- बल्लेबाजी, पटौदी और दुर्रानी की टुल्लेबाजी ने कुछ लाज रख ली। (दिन., 30 दिस., 66, पृ. 30)

टूक-टूक करना मुहा. -- टुकड़े-टुकड़े करना, जीवन के अनेक क्षेत्रों में पदार्पण के लिए वर्तमान बंधनों को टूक-टूक कर दो। (ग .शं.वि.रच., खं. 1, पृ. 405)

टूक-टूक क्रि. वि. -- टुकड़े-टुकड़े, जिस दिन यह भ्रमजाल टूटकर टूक-टूक हो जाएगा। (ग.शं.वि.रच., खं. 2, पृ. 78)

टूँगना क्रि. (सक.) -- दाना-दाना करके चुगना, धीरे-धीरे खाना, चलते-चलते हथेली झुका चने निकालकर फिर टूँगने लगा था। (दिन., 4 अक्तू., 1970, पृ. 10)

टें बोलना मुहा. -- बेदम हो जाना, निर्जीव हो जाना, (क)कसकर चाँटा मारने पर वह चट टें बोल जाती है। (माधुरी, नव. 1928, सं. 3, पृ. 914), (ख)थाने में बुलाकर उसकी जो कुटम्मस हुई वह टें बोल गया। (काद. : जन. 1994, पृ. 78), (ग)पूजन कार्यक्रम टें बोल गया। (हि.ध., प्र.जो., पृ. 217)

टेक निबाहना मुहा. -- प्रतिज्ञा या संकल्प की निर्वाह करना, विश्वास करो हम तुम्हारी लाज रखेंगे, तुम्हारी टेक निबाहेंगे। (म.का मत: क.शि., 8 मार्च 1924, पृ. 138)

टेक पर डटे रहना मुहा. -- अपनी प्रतिज्ञा या संकल्प पर जमें रहना, कुछ ऐसे गांधीवादी अवश्य होंगे जो कच्चे साबित नहीं होंगे और अपनी टेक पर डटे रहेंगे। (कर्म., 26 जन., 1952, पृ. 6)

टेक रखना मुहा. -- वचन निभाना, नेता अपनी टेक रखने के लिए देश के गले पर छुरी चलाने में भी नहीं हिचकते। (माधुरी, 31 मार्च 1925, सं. 3, पृ. 270)

टेक रहना मुहा. -- हठ पूरा होना, इसमें किसकी टेक रहेगी यह तो समय ही बताएगा। (स.स., पृ. 279)

टेक सं. (स्त्री.) -- जिद, प्रतिज्ञा, संकल्प, (क)प्रचलित धर्म और समाज के शोक संगीत की टेक यही है कि वह पहले का समय अब नहीं है। (गु.र., खं. 1, पृ. 178), (ख)रामधुन को स्वतंत्रता की लड़ाई की टेक बना दिया था। (हि.ध., प्र.जो., पृ. 124), (ग)जो साहित्यिक इस सत्य को देख सकता है उसे किसी बाहरी प्रेरणा की टेक नहीं चाहिए। (मधुकर : अप्रैल-अग. 1944, पृ. 63)

टेकड़ी सं. (स्त्री.) -- टीला, ढूह, टेकरी, बजाज का एक लाल बँगला टेकड़ी पर बना हुआ था। (रा.मा.संच. 2, पृ. 301)

टेंट से जाना मुहा. -- पास या जेब से जाना, सोचा मैं भी गाँठ लगा दूँ, कुछ टेंट से थोड़े ही जाता है। (रा. द., श्रीला. शु., पृ. 222)

टेढ़ सं. (स्त्री.) -- कठिनाई, मुसीबत, टेढ़ तब समझ में आती है जब खुद पर बीतती हैं। (मा.च.रच., खं. 2, पृ. 62)

टेढ़ी खीर मुहा. -- कठिन काम या बात, (क)बिना गिरीश बाबू के नाटक व्यवसाय में सफलता पाना टेढ़ी खीर है। (शि.पू.र., खं. 3, पृ. 186), (ख)इस बात का सहज ही सबकी समझ में भलीभाँति जाना बड़ी टेढ़ी खीर है। (शु.पू.र., खं. 2, पृ. 303), (ग)आक्रोश भरी कविताएँ लिखनेवालों के लिए भी ऐसा कर पाना टेढ़ी खीर है। (दिन., 31 मार्च, 68, पृ. 41)

टेर सं. (स्त्री.) -- पुकार, (क)वर्तमान युग प्रकृति की इस टेर की परवाह नहीं करता। (ग.शं.वि.रच., खं. 1, पृ. 240), (ख)जबान से टेर लगाई जाती है उन शुद्ध सात्त्विक, दिव्य और विशाल बातों की, जिनके कहने सुनने से देवता तक शांति पा सकें और मनुष्य देवता बन जाए। (ग.शं.वि. रच., खं. 3, पृ. 260), (ग)लोगों की टेर को कहीं स्थान नहीं। (ग.शं.वि. रच., खं. 2, पृ. 301)

टेरना क्रि. (सक.) -- पुकारना, जनसेवा की अद्भुत प्रतिभा की गंगोत्री को नए महाभारत के अभिमन्यु तुले ने कई बार टेरा। (जम.स., 17 मार्च 1984, पृ. 5)

टेर्रा सं. (पु.) -- हरे कोमल पत्तों की सींक, सुबह-सुबह पेड़ों से टेर्रा तोड़ लाते और वे दिनभर खाया करतीं। (काद., अक्तू. 1993, पृ. 120)

टेव सं. (स्त्री.) -- आदत, स्वभाव, (क)हँसी-ठट्ठा करने की टेव वक्ता और श्रोता दोनों के लिए हानिकर है। (हित., दिस. 1948, पृ. 4), (ख)यह प्रथा दादा, काका, माँ आदि गुरुजनों को आगे साहब लगा देने की टेव हमारे मालवे की है। (न.ग.र., खं. 3, पृ. 132), (ग)स्वेच्छाचार जिसके लिए भारतवर्ष की गवर्नमेंट आजकल काफी से ज्यादा प्रसिद्ध है, की तो यह टेव ही है। (ग.शं.वि.रच., खं. 3, पृ. 30)

टैना सं. (पु.) -- समूह, झुंड, किले पर पहुँचा मवेशियों का टैना। (न.दु., ग्वा., 13-08-2008, पृ. 3)

टैबू सं. (पु.) -- निषिद्ध कार्य .,अपने व्यक्तित्व के बूते पर भारत को एक कुफ्र से, एक टैबू से बचाया। (रामा.संच. 2, पृ. 313)

टोकना सं. (पु.) -- टोकरा, डलिया, डला, तना नहीं कर सकते कि दो टोकना आपके यहाँ भी भिजवा दें। (काद., जून 1977, पृ. 56)

टोटका सं. (पु.) -- अंधविश्वास का सूचक कोई उपाय, (क)हम इन उपायों को टोटकों से वज्रपात रोकने की चेष्टा समझते हैं। (ते.द्वा.प्र.मि., पृ. 78), (ख)वस्तुतः दाढ़ी बुढ़ापे की बरकत और जवानी का टोटका है। (काद.:र्च 1979, पृ. 127), (ग)पिछले दो सालों में बैंक राष्ट्रीयकरण और प्रिवीपर्स प्रश्न का उपयोग इंदिरा गांधी ने एक जबरदस्त टोटके की तरह किया है। (रा.मा.संच. 1. पृ. 82)

टोटा पड़ना मुहा. -- कमी पड़ना, अभाव होना, (क)खजाने में टोटा पड़ने का बहाना ढूँढ़ निकालना नौकरशाही के स्वभावानुकूल है। (स.सा., पृ. 61), (ख)मुझे कभी-कभी ऐसा लगता है किसान जैसी विस्तृत मल्लाह की गहरी और हवाई सी ऊँची दृष्टि का मानो हमारे घर टोटा पड़ गया है। (मा.च.रच., खं. 3, पृ. 38)

टोटा सं. (पु.) -- कमी, अल्पता, (क)हिंदी जगत् में काम करनेवालों का टोटा है। (मा.च.रच., खं. 2, पृ. 66) (ख)किसी वस्तु का टोटा होने पर उसे प्राप्त करने की इच्छा होती है। (गु.र., खं. 1, पृ. 101), (ग)स्पर्धाशील बने रहने के लिए उनका टोटा भरकर सहायता दोती है। (रामा.संच. 2, पृ. 356)

टोड़ी बच्चा सं. (पु.) -- खुशामद करनेवाला, खुशामदी व्यक्ति, कांग्रेसवाले तो हमें टोड़ी बच्चा कहकर खुलेआम हाय -हाय करते हैं। (क.ला.मिश्र : त.प.या., पृ. 116)

टोना-टुटका सं. (पु.) -- टोना-टोटका, उपाय, युक्ति, उसके पुराने टोने-टुटके बेकार हो जाएँगे। (ग.शं.वि. रच., खं. 3, पृ. 172)

टोना सं. (पु.) -- जादू, अपनी विहगवाणी से अपने आसपास के वातावरण पर टोना सा कर देते थे। (मा.च.रच., खं. 2, पृ. 363)

टोपी उछालना मुहा. -- बेइज्जत करना, हैट उछालने के माने अँगरेजों की टोपी उछालना था। (नव., फर. 1958, पृ. 66)

टोपी बदलना मुहा. -- आस्था बदलना, दल बदलना, पक्ष बदलना, पुरस्कृत होने की संभावनाके कारण अनेक नेताओं ने टोपी बदली। (दिन 14 सित. 69 पृ. 9)

टोली सं. (स्त्री.) -- मंडली, टुकड़ी, जत्था, (क)हम चाहते हैं कि युवकों की टोलियाँ हिंदी की पताका थामकर कार्यक्षेत्र में उतर पड़ें। (हि.पत्र. के गौरव वा. बि. भट., सं. ब., पृ. 326), (ख)असुरक्षा बोध के कारण साहसी, समर्पित और रीढ़ की हड्डीवाले लोगों को वे अपनी टोली में शामिल नहीं कर पातीं और हाँ में हाँ मिलानेवाले जल्दी शामिल हो जाते हैं। (रा. मा. संच. 1, पृ. 461)

टोह सं. (स्त्री.) -- खोज-खबर, आप भी टोह लगाइए। (चं. श. गु. र., खं. 2, पृ. 405)

टौरिया सं. (स्त्री.) -- छोटी पहाड़ी, टेकरी, वे टौरिया की दिशा में चलीं। (वृ. ला. व. समग्र, पृ. 634)

ठकुरसुहाती ठकुरसोहाती2 सं. (स्त्री.) -- खुशामद, चापलूसी, (क) बिना ठकुरसुहाती के कहीं निर्वाह नहीं। (शि. पू. र., खं. 3, पृ. 343), (ख) कांग्रेस ने इधर बहुत दिनों से ठकुरसोहाती कहना बंद कर दिया है। (न. ग. र., खं. 4, पृ. 191), (ग) सारथी यदि सच्ची बात नहीं कह सकता तो वह ठकुरसुहाती हर्गिज नहीं कहेगा। (ते. द्वा. प्र. मि., पृ. 64).

ठकुरसुहाती1 वि. (अवि.) -- खुशामद-भरा, हम वह ब्राह्मण नहीं कि केवल दक्षिणा के लिए निरी ठकुरसुहाती बातें करें। (ब्रा. स्मृ शि. स. मि., पृ. 14)

ठकुराई सं. (स्त्री.) -- नेतृत्व, नेतागिरी, उत्तर बंबई की ठकुराई करनेवाले नेता श्री शाह की निगाह में मेनन कम्युनिस्ट है। (दिन., 2 दिस., 66, पृ. 13)

ठकुरायसी वि. (अवि.) -- ठाकुरों से संबद्ध, ठाकुरों का, मौजा, नुनहरा जिला भिंड का एक ठकुरायसी गाँव है। (सर., सित. 1917, पृ. 121).

ठगा-सा रह जाना मुहा. -- हतप्रभ हो जाना, वह इंदिरा गांधी के बेतरतीब वज्रपातों से ठगा-सा रह जाता है। (रा. मा. संच. 1, पृ. 63).

ठटरी सं. (स्त्री.) -- ठठरी, हड्डियों का ढाँचा, अस्थिपंजर, बीमारी के कारण वह ठटरी मात्र रह गया है। (काद. : जून 1982, पृ. 9)

ठटाठट्ट क्रि. वि. -- खचाखच, ठसाठस, हजारों आदमी (आदमियों) की भीड़ ठटाठट्ट जमा है। (भ. नि., पृ. 96)

ठट्ट के ठट्ट सं. (पु. बहु.) -- ठठ के ठठ, जत्थे के जत्थे, जैराहे पर ठट्ट के ठट्ट आदमी जमा हो गए। (प्रभाः बां.कृ.न., झंडा अंक, पृ. 15)

ठट्ट सं. (पु.) -- ठठ, समूह, जमावड़ा, जत्था, जहाँ उनका ठट्ट है, वहाँ नानी मारती है। (म. का मतः क. शि., 27 जून 1925, पृ. 90).

ठट्ठ सं. (पु.) -- ठठ, जत्था, समूह, (क) मनोहर झाँकी देखने के लिए जनता का ठट्ठ लगा रहता है। (सर., सित. 1940, सं. 3, पृ. 271), (ख) यह अजीब है हमारी बस्ती। चारों ओर राजपूतों और अहीरों का ठट्ठ। (बें. ग्रं., प्रथम खं., पृ. 16)

ठट्ठा करना सं. (पु.) -- हँसी-मजाक करना, (क) राय बैजनाथ के ग्रंथ में कौशुमी शाखा को कौतुभी छपा देखकर ठट्ठा करता। (गु., र., खं., 1, पृ. 424-25), (ख) ठट्ठा करना उचित नहीं है। (ज. क. सं. : अज्ञेय, पृ. 15)

ठट्ठा भरना या मारना मुहा. -- 1. जोर से हँसना, 2. हाँसी उड़ाना, (क) महारी अयोग्यता पर ठट्ठा मारा गया। (ग. शं. वि., रच. खं. 2, पृ. 301)(ख) यूरोप और अमेरिका को अपनी सभ्यता पर गर्व है , वे दुसरों की संक्रीर्णता पर ठट्ठा भरतें है । (ग. शं. वि., रच. खं. 2, पृ. 327)

ठठ के ठठ क्रि. वि. -- समूह के रूप से, जत्थों के रूप में, समूहों में, कौन नहीं जानता कि तबादले ठठ के ठठ इसलिए होते हैं कि हजारों दलालों, क्लर्कों, सचिवों, मंत्रियों और छुटभैये कार्यकर्ताओं के हाथों इसी बहाने लाखों रुपए आते हैं य़ (रा. मा. संच. 1, पृ. 465)

ठठ के ठठ सं. (पु. बहु.) -- जत्थे के जत्थे, कुतुब और निजामुद्दीन के बागातों में आदमियों के ठठ के ठठ दिखाई देते हैं। (क. ग. इति, पृ . 588)

ठठरी सं. (स्त्री.) -- हड्डियों का ढाँचा, कंकाल, अस्थिपंजर, (क) पृथ्वी के पेट से उनकी हड्डियों को खोदकर उन्होंने उनकी ठठरी अजायबघरों में रख दी है। (म. प्र. द्वि. रच., खं. 2, पृ. 125), (ख) मूँगा है क्या चीज ? वह एक प्रकार के समुद्री कीड़ों की ठठरी है। (वि. वि. ले., पृ. 245)

ठठाकर क्रि. वि. -- ठा-ठा की ध्वनि करते हुए, ठहाका लगाकर, (क) फुक्कन ठठाकर हँसने लगा। (काद. : अक्तू. 1981, पृ. 51), (ख) देखते ही ठठाकर हँसे। (शि. पू. र., खं. 4, पृ. 131)

ठठाना क्रि. (अक.) -- जोर से हँसना, (क) उसकी माँ ठठा रही थी। (बे. ग्रं., भाग 1, पृ. 3), (ख) अब रजिया की माँ ठठा रही थी। (बे. ग्रं. प्रथम खं., पृ. 3)

ठठोल सं. (पु.) -- ठठोली करनेवाला, कोई बड़ा ही ठठोल दिल्लगीबाज मसखरा है। (भ. नि., पृ. 17)

ठंडा पड़ जाना, मुहा. -- शांत हो जाना, सिर्फ गाँव के लोगों ने थोड़ी बहुत चखचख की मगर बाद में वे भी ठंडे पड़ गए। (दिन., 5 जुलाई, 1970, पृ. 42)

ठंडे पानी के छींटे पड़ना, मुहा. -- शमन होना, शांत होना, इस बड़ती हुई विवादाग्नि पर ठंडे पानी के छींटे पड़ गए। (मां. च. रच., खं. 2, पृ. 93).

ठंडे-ठंडे, क्रि. वि. -- शांतिपूर्वक, देश उनके ठंडे-ठंडे जाने से प्रसन्न होता। (गु. र., खं. 1, पृ. 333)

ठनठनगोपाल सं. (पु.) -- जिसके पास कुछ भी न हो, नंगा-बूचा, कंगाल, (क) एक बार बेदखली हुई तो फिर हमेशा ठनठनगोपाल ही समझो। (रा. ला. प्र. र., पृ. 181), (ख) वह ठहरा ठनठनगोपाल उससे कोई आशा करना व्यर्थ है। (काद. : सित. 1980, पृ. 11)

ठनाना क्रि. (सक.) -- ठाना जाना, अभी तो हमसे जबरदस्ती लड़ाई ठनाई गई है। (नि. वा. : श्रीना. च., पृ. 576)

ठपका सं. (पु.) -- ठप्पा, मुहर, मेरी फर्म में मेरे सिवा बाकी के तीन शराकतदारों का ठपका भी मिला। (कर्म., 14 अग. 1948, पृ. 23)

ठपकारना क्रि. (सक.) -- लाठी से ठपकारने की ध्वनि करना, सपा से सत्ता से यादवों की लाठी ठपकारने का विश्वास मिलता है। (तेवर, द्वा. प्र., मिश्र, पृ. 297)

ठप्पा लगाना मुहा. -- पुष्टि करना, प्रमाणित करना, जैसे ठप्पा लगाना उनकी महानता पर बट्टा लगाना है। (दिन., 9 सित. 1978, पृ. 10)

ठर्री सं. (स्त्री.) -- अनाज का वह दाना जो भूनने के बाद फूटा न हो, ठुर्री, अगर मक्का फूट गया तो लावा, नहीं तो ठर्री रह जाती (जाता) है। (दिन., 7 जन. 1968, पृ. 42)

ठलुआ कल्ब सं. (पु.) -- ठलुओं की संस्था, पाँच प्रधानमंत्रियों का एक ठलुआ क्लब देश में मौजूद है। (स. दा. : अ. नं. मिश्र, पृ. 44)

ठलुआ सं. (पु.) -- निठल्ला व्यक्ति, (क) जो भी अपनी चौपाल पर ठलुओं को इकट्ठा करेगा उसका वंश नष्ट हो जाएगा। (निराला: डॉ. रा. वि. श., पृ. 9), (ख) ठलुये वकीलों को भी अच्छी आमदनी होने लगी है। (प. परि. रेणु, पृ. 28)

ठस वि. (अवि.) -- घना, ठोस, गहरा रंग प्रयोग जमा हुआ ओर ठस नहीं है। (दिन., 23 जन, 1972, पृ. 45)

ठसक सं. (स्त्री.) -- नखरा या ठाट-बाट, (क) उन दिनों युद्ध में नौकरशाही की ठसक गिर चली थी। (मा. च. रच., खं. 9, पृ. 216), (ख) खानदानी रईसों की ठसक को सुरक्षित रखनेवाले इने-गिने कुटुंबों तक सीमित हैं। (ते. द्वा. प्र. मि., पृ. 128)

ठँसना, क्रि. (अक.) -- ठूँसा जाना, समाना, रहना, दोछत्तिया बनाती तो है फालतू सामान रखने के लिए, लेकिन उसमें ठँसता है इनसान और उसका परिवार। (दिन., 20 अग., 67, पृ. 27).

ठसाठस क्रि. वि. -- खचाखच, लबालब, कपास धन से धन-लोलुपों की तिजोरियाँ स्वर्ण मुद्राओं से ठसाठस भर जाएँगी। (न. ग. र., खं., 2, पृ. 232)

ठस्स वि. (अवि.) -- बोझिल, समझ में न आनेवाला, मिश्र की पहाड़ी ठुमरी भी खासी ठस्स रही। (दिन., 1 अप्रेल, 1966, पृ. 24)

ठस्सा सं. (पु.) -- ठसक, नखरा, (क) वे बड़े ठस्से से बोलते थे। (शि. से. : श्या. सुं. घो., पृ. 89), (ख) वह कार्यालय में आए और ठस्से के साथ सामनेवाली कुरसी पर बैठ गए। (क. ला. मिश्रः त. प. या., पृ. 228)

ठहराना क्रि. (सक.) -- सुनिश्चित करना, हमें (संपादकों को) स्वंय ही मिलकर अपना आदर्श ठहराना चाहिए। (सं. परा. : ल. शं. व्या., पृ. 112)

ठहरौनी सं. (स्त्री.) -- कोई बात निश्चित करने या होने का भाव, पक्की बात, (क) ठहरौनी हो जाने पर वरपक्ष की ओर से गोद-भराई की रस्म अदा की जाती है। (दिन., 11 जून, 67 पृ. 39), (ख) तुमने हमारी पुस्तक सामाजिक समस्या समाधान नहीं पढ़ी ? उसमें ठहरौनी पर एक स्वतंत्र अध्याय है। (सर., सित. 1921, पृ. 182)

ठाट जमना मुहा. -- प्रभुत्व स्थापित होना, शानदार आयोजन होना, त्योहार पर अमराई में बाग रसोई का ठाट जमता था। (कुं. क.: रा. ना. उ., पृ. 12)

ठाट बाँधना मुहा. -- ठाठ बाँधना, शान से आयोजन करना, इसके जवाब में यह व्याख्यान का ठाट बाँधा गया है। (चाबुक: निराला, पृ. 37)

ठाट-बाट सं. (पु.) -- शान-शौकत, इस समय अमृत बाजार प्रेस का ऊँचा ठाट-बाट है। (बा.मु.गु. : गु.नि. सं. झा. श., खं. 5, पृ. 422)

ठाठ से क्रि. वि. -- ठाट-बाट से, शान-शौकत से, महाराज अपने सामर्थ्य के अनुसार ठाट से सब काम करते हैं। (गु. र., खं. 1, पृ. 349)

ठाठ-बाट सं. (पु.) -- शान-शौकत, धनी वर्ग जिसकी विशेषता उसका ठाठबाट, उसका आडंबरपूर्ण व्यय है। (दिन., 23 फर., 69, पृ. 31)

ठाठ-बाठ सं. (पु.) -- ठाठ-बाट, शान-शौकत, संपन्न हैं और साहबी ठाठ-बाठ की जिंदगी पसंद करते हैं। (दिन., 6 दिस., 1970, पृ. 43)

ठाठ सं. (पु.) -- शैला, ढंग, बर्गमान की फिल्मों की इस तरह चर्चा करने पर बर्गमान ठेठ आधुनिक ठाठ के कलाकार मालूम होते हैं। (दिन., 9 जुलाई 1965, पृ. 25)

ठाठदार वि. (अवि.) -- शानदार, भव्य, दस लाख की ठाठदार बिक्री लेकिन फिर भी लघु पत्रिका। (रा. मा. संच. 2, पृ. 388 ल. पति. जर्नल फ्रेंच पत्रिका)

ठाप सं. (स्त्री.) -- छाप, ढंग, ढब, आजकल के तथाकथित नेता इसी ठाप के हैं। (दिन., 18 अक्तू. 1978 पृ. 14)

ठाला1 वि. (विका.) -- निठल्ला हिंदी के संपादक ही ठाले एवं निकम्मे थे, जिन्हें बैठे-बैठे एक शगूफा हाथ आ गया। (गु. र., खं. 1, पृ. 409)

ठाला2 सं. (स्त्री.) -- काम बंद कर देना, कामबंदी, वह इस बात की जोरदार कोशिश करेंगे कि कारखानों में ठालाबंदी (ले ऑफ) या तालाबंदी (क्लोजर) से हजारों मजदूरों की बेकारी को रोकने के लिए केंद्रीय सरकार और कड़े कदम उठाए। (दिन., 7 जन. 1966, पृ. 33)

ठाले बैठना मुहा. -- बिना किसी काम के रहना या बैठना, बाकी ठाले, बैठो पेट पकड़कर। (दिन., 19 सित. 1971, पृ. 38)

ठाँव सं. (पु.) -- स्थान, कंबोडिया के निरापद ठाँव का कम्युनिष्ट इस्तेमाल बुरा हा। (दिन., 28 जून, 1970, पृ. 29)

ठाँसना क्रि. (सक.) -- ठूँसना, सच्ची बात ठाँस दूँगा तो कलेजे में कल्लाएगी। (रा. द., श्रीला. शु., पृ. 88)

ठिकाना सं. (पु.) -- राजदरबार, कार्यक्रम यह तय हुआ कि ठिकाने की आज्ञाएँ न मानी जाएँ। (मधुकर, 1 अक्तू. 1940, पृ. 201)

ठिकाने लाना मुहा. -- रास्ते पर लाना, मातृभाषा के इन द्रोहियों की बुद्धि भगवान् ठिकाने लावे। (म. प्र. द्वि., खं. 15, पृ. 273)

ठिकाने से क्रि. वि. -- भली प्रकार अच्छे ढंग से, विषयानुक्रमणिका बहुत ठिकाने से दी गई है। (शि.पू.र., खं. 3, पृ. 364)

ठिंगना वि. (विका.) -- छोटे कद का, नाटा, इधर की स्त्रियाँ ठिंगनी, साँवली और सूती कपड़े पहननेवाली होती हैं। (गु. र., खं. 1, पृ. 316)

ठिठकना क्रि. (अक.) -- रुकना, ठहरना, आगे न बढ़ पाना, (क) लगता है कि विज्ञान कांग्रेस एक चौराहे पर पहुँच कर ठिठक गई है। (दिन., 18 फर., 68, पृ. 28), (ख) राजभाषा के रूप में शासन के द्वार पर ठिठकी रहने के लिए हिंदी आज भी अभिशप्त है। (ज. स.: 22 जुलाई, 2007, (रवि) पृ. 2), (ग) कुँवरनारायण का चौकन्नापन ठिठककर सब-कुछ जाँचने की माँग करता है। (ज. स., 16 सित. 2007, पृ. 7)

ठिठकाना क्रि. (सक.) -- रोकना, लाख जरूरी काम से कोई जाता हो एकाध घंटा ठिठका ही लेते। (शि. पू. र., खं. 4, पृ. 129)

ठिठोली सं. (स्त्री.) -- हँसी-मजाक, (क) ठिठोली का संबंध सिर्फ भारतीय होली से ही नहीं है। (दिन., 16 मार्च 69, पृ. 42), (ख) ड्राइवर की ठिठोली सुनता हुआ गिरजाघर के पास उतर गया। (काद., नव. 1960, पृ. 34)

ठिया सं. (पु.) -- ठीहा, टिकने या काम करने का स्थान, माँ अंधड़ की तरह हमसे गुजरकर अपने ठिए को लौट जाती है। (सं. भा. सा., मृ. पां. सित.-अक्तू. 98, पृ. 10)

ठिये पर जमना मुहा. -- अपने स्थान पर आ जाना, अपना स्थान सँभालना, गुटबंदी और राजनौतिक जोड़-तोड़ का चर्खा लेकर लोग फिर अपने-अपने ठिये पर जम गए। (दिन., 2 सित., 66, पृ. 11)

ठिलना क्रि. (अक.) -- ठेला जाना, आगे बढ़ना, पकड़ने को कुछ मिले तो गाड़ी आगे ठिले। (ज. क. स. : अज्ञेय, पृ. 156)

ठीक-ठिकाना सं. (पु.) -- सही स्थान, आधार, जंगली लोग ऐसी बातें बताते हैं जिनका कुछ ठीक-ठिकाना नहीं। (सर., अग. 1909, पृ. 257)

ठीक-बेठीक वि. (अवि. पदबंध) -- अच्छा और बुरा, प्रयोग की अवस्था में मीठी कड़वी, ठीक-बेठीक सभी तरह की ऊल-जलूल बातें सामने आती हैं। (हि. पत्र. के गौरव बां. बि. भट., सं. ब., पृ. 125)

ठीकरा (किसी के) साथे या सिर पर फोड़ना मुहा. -- (किसी को) दोषी या अपराधी ठहराना, (क) सरकारों की विफलता का ठीकरा संसद् और संविधान के माथे फोड़ने की कोशिश हर सत्तारूढ़ दल ने की है। (स. दा. : अ. नं. मिश्र, पृ. 44), (ख) चतुर्भाषा सूत्र का ठीकरा उनके सिर पर फोड़कर अपने हाथ ऊँचे कर लिए हैं। (ज. स., 10 अग. 2008, पृ. 7)

ठीकरा फूटना मुहा. -- बोझ पड़ना, चुनाव होता है और खर्च का ठीकरा जनता के सिर फूटता है। (किल., सं. म. श्री., पृ. 29)

ठीकरा समझना मुहा. -- मुहा., अत्यंत उपेक्षित या नगण्य समझना, पैसे को वे ठीकरे से भी गया--बीता समझने लगेंगे। (शि. पू. र., खं. 3, पृ. 509)

ठीकरा सं. (पु.) -- मिट्टी के बरतन का टुकड़ा, पुराना बरतन, तब जेल का ठीकरा मलने के लिए जो राख दी गई थी उसमें मुझे एक कोयला मिल गया। (मा. च. रच., खं. 2, पृ. 322)

ठीकरी सं. (स्त्री.) -- मिट्टी के बरतन का छोटा टुकड़ा, ठीकरी, मूल्यहीन पदार्थ, उस जमाने के दो सौ रुपए रकम होती थी, आज की तरह ठिकरी नहीं। (रवि., 1 अग. 1982, पृ. 42)

ठीका सं. (पु.) -- ठेका या जिम्मा, अँगरेजी की पुस्तकों का ठीका मैकमिलन लाँगमैन आदि अँगरेजी प्रकाशनों ने ले रखा है। (ग. शं. वि. रच., खं. 2, पृ. 240)

ठीया सं. (पु.) -- ठौर, अड्डा, ठिकाना, चक्कर काटने और फिर भी सत्ता का ठीया न पाने का एक नैतिक सबक है। (हि. ध., प्र. जो., पृ. 302)

ठीहा सं. (पु.) -- रहने या काम करने का स्थान, (क) बढ़ई जिस ठीहे पर काम करते हैं उसे ठिया कहते हैं। (दिन., 18 फर., 68, पृ. 41),(ख) एक मकान में ठीहा जमाया । (क्रा . प्रे . : र . ला . जो . पृ . 229) (ग) डलमऊ में अवधूत टीला उनका ठीहा है। (निरालाः डॉ. रा. वि. श., पृ. 42)

ठुक-पिटकर क्रि. वि. -- आघात सहकर, कठोर निर्माण-प्रक्रिया से गुजरकर, अंतरराष्ट्रीय हितों के टकराव से ठुक-पिटकर जो चीज सामने आए, उसे ही स्वीकारना पड़ता है। (दिन., 16 जुलाई, 67, पृ. 37)

ठुर्री सं. (स्त्री.) -- अन्न का वह दाना जो भूने जाने के बाद भी फूले या खिले नहीं, जो स्वाद भाड़ में ताजी भुनी जोन्हरी से जिसमें कुछ लावे और कुछ ठुर्रियाँ दोनों हों, में मिलता है। (दिन., 03 मार्च, 68, पृ. 44)

ठुसकारी सं. (स्त्री.) -- हँसानेवाली कोई बात, खुलकर व्यंग्य कर सकते थे और धीरे से ठुसकारी छोड़कर अट्टहास करवा सकते थे। (हि. ध., प्र. जो., पृ. 421)

ठुस्सा सं. (पु.) -- गले का एक प्रकार का आभूषण, जिसमें गोदों जैसे मनके होते हैं, मौलश्री में झुमके पीपल में ठुस्से, नीम पतहरने लगता है। (दिन., 7 अप्रैल, 67, पृ. 39)

ठूँठ वि. (अवि.) -- निस्सार, शून्य, (क) किंतु नतीजे फिर ठूँठ ही रहे। (नव.: जुलाई, 1958, पृ. 10), (ख) मेरे जैसे ठूँठों से नवीन पल्लवों की आशा रखना भूल है। (ब. दा.च.चु.प., खं. 2, सं. ना. द., पृ 48)

ठूँठपन सं. (पु.) -- शुष्कता, सूखापन, यह वह हिंदी भी नहीं है, जिसके ठेठपन में वह ठूँठपन नजर आती (आता) है जो राष्ट्रीयकृत हिंदी का एकमात्र लक्षण हा। (दिन., 9 जुलाई 1972, पृ. 9)

ठूँस-ठूँसवाला वि. (विका.) -- भर्ती किया हुआ, जबरदस्ती भरा हुआ, हर दो रील के बाद नाच-गानों की ठूस-ठूँसवाली फिल्में धड़ाधड़ क्यों पिटती हैं। (दिन., 16 जून, 68, पृ. 43)

ठूँसमठाँस सं. (स्त्री.) -- जबरिया भर्ती, (क) आकाशवाणी में प्रतिष्ठित साहित्यकारों की जिस धड़ल्ले के साथ ठूँसमठाँस की जा रही है वह राष्ट्र के लिए अहितकर सिद्ध होगा। (सा. हि., 20 मई 1956, पृ. 4), (ख) निष्प्रयोजन शब्दों की ठूँसमठाँस भी नहीं की गई है। (शि. पू. र., खं. 3, पृ. 368)

ठेकुआ सं. (पु.) -- ज्वार का डंठल या तना, छठ में पके ठेकुए लेकर उसे कुतर-कुतर कर खाता हुआ ढेंकी पर झूला झूलने का मजा ले रहा था। (बे.ग्रं., भाग 1, पृ. 1)

ठेंगा दिखाना मुहा. -- अँगूठा दिखाना, नकार देना, कोरा जवाब देना, लखनऊ में पेरियार का मेला कांशीराम ने भाजपा को ठेंगा दिखाने के लिए ही करवाया था। (हि.ध., प्र.जो., पृ. 227)

ठेंगा बताना मुहा. -- ठेंगा दिखाना, इंदिरा गांधी उन्हें मजबूर सिद्ध करने के लिए बिहार में कर्पूरी ठाकुर को ठेंगा बता देती है। (रा.मा. संच. 1, पृ. 418)

ठेंगा समझना मुहा. -- कुछ भी महत्त्व न देना, उपेक्ष्य समझना, ऐसे बैठे-ठाले नेताओं को अगर जानता ठेंगे न समझे तो बुरा क्या है। (म. का मतः क. शि., 8 दिस. 1923, पृ. 130)

ठेठ वि. (अवि.) -- विशुद्ध, खाँटी, (क) संगीत को ठेठ भारतीयता के संदर्भ में जोड़ती है। (दिन., 19 सित. 1971, पृ. 42), (ख) ठेठ हिंदी शब्द काम में लाते हैं। (म. प्र. द्वि. खं. 1, पृ. 121), (ग) बर्गमान की फिल्मों की इस तरह चर्चा करने पर बर्गमान ठेठ आधुनिक ठाठ के कलाकार मालूम होते हैं। (दिन., 9 जुलाई 1965, पृ. 25)

ठेठपन सं. (पु.) -- खाँटीपन, विशुद्धता, यह वह हिंदी भी नहीं है, जिसके ठेठपन में वह ठूँठपन नजर आता है जो राष्ट्रीयकृत हिंदी का एकमात्र लक्षण है। (दिन., 9 जुलाई, 1972, पृ. 9)

ठेंठर सं. (पु.) -- 1. आँख की फूली । 2. छोटा-मोटा दोष, लोग दूसरे की आँखों की ठेंठर देखने में बड़े चतुर होते हैं, उन्हें अपनी आँखों की (का) शहतीर नजर नहीं आती। (ग. शं. वि. रच., खं. 2, पृ. 327

ठेलना ठेल देना क्रि. (सक.) -- जबरदस्ती आगे बढ़ाना, धकेलना, निकालना, (क) उपज को किसी भी कीमत पर खपाने को उतारू हो गए और गेहूँ को बाजार में ठेल दिया तो वह किस भाव बिकेगा और कौन खरीदेगा। (सर., जुलाई-दिस. 1931, भाग 32,सं 1, पृ. 26), (ख) समय की धारा अविराम गति से बहती हुई हमें जितनी दूर ठेलती है उतनी दूर हमें जाना पड़ता है। (ते. द्वा. प्र. मि., पृ. 136), (ग) तभी किसी ने दरवाजा ठेलकर कहा--आदाब मास्टर साहब। (अं. अ. : प. पु. ब. पृ. 4)

ठेलमठेल सं. (स्त्री.) -- आगे बढ़ने के लिए एक-दूसरे को ठेलने की क्रिया, धक्का-मुक्की, धकापेल, (क) यह ठेलमठेल अच्छी नहीं थी। (मत., म. प्र. से. वर्ष 5, सं. 7, पृ. 6), (ख) ... हमें जाँचना चाहिए कि कहीं उनकी राजनीति भी जनसंकुल से हटकर शिखर ठेलमठेल की पोषक तो नहीं हो गई है। (दिन., 27 जुलाई, 1969, पृ. 16), (ग) काशी का महाश्मशान यानी नरक में ठेलम-ठेल। (ज.स., 6 मार्च 1984, पृ. 5)

ठोंक बजाकर क्रि. वि. -- अत्यधिक प्रयत्न के बाद तथा परखकर, (क) यह प्रति सैकड़ा ठोंक-पीटकर छह का हिसाब बैठता है। (मा. च. रच., खं. 2, पृ. 85), (ख) ठोंक-बजाकर ऐसे ही सदस्यों को बुलाया जा रहा है जो प्रश्न न पूछें, असहमति न जताएँ । (किल., सं. म. श्री. पृ. 26)

ठोंक-पीटकर क्रि. वि. -- ठोंक बजाकर, (क) एक समाज भी उन्होंने ठोक-पीटकर तैयार किया। (रचनाः अज्ञेय, पृ. 116), (ख) जैसे भी हो चौथी योजना को ठोंक-पीटकर अंतिम रूप दिया जाए। (दिन., 06 जन., 67, पृ. 28)

ठोंकना-पीटना मुहा. -- ठोंकना-बजाना, अच्छी तरह परखना, किस्सा कोताह यह कि मदनलाल को ठोंक पीटकर सावरकर ने समझ लिया कि यह उस उपादान से बने हैं जिससे शहीद बने होते हैं। (दिन., 1 जन. 1977, पृ. 7)

ठोंकना क्रि. (सक.) -- लगाना, आरोपित करना, कई झूठे मुकदमें ठोंक दिए हैं। (त्या. भू. : सं. 1983 (3 दिस. 1992), पृ. 9)

ठोकर खाना मुहा. -- दुर्दशा भोगना, आघात सहना, (क) बार-बार ठोकर खाने पर भी चेते नहीं हैं। (दिन., 2 दिस., 66, पृ. 12), (ख) दुनिया ने महायुद्ध की ठोकर खाकर भी अपनी पुरानी चाल नहीं छोड़ी। (न. ग. र., खं. 2, पृ. 158)

ठोंकापीटी सं. (स्त्री.) -- ठोंकने-पीटने की क्रिया या भाव, गढ़ने या तराशने की क्रिया या भाव, वे अपने समाज की ठोंका-पीटी से अपना स्वरूप पाते हैं। (स. ब. दे. : रा. मा., पृ. 31)

ठोंड़ी सहलाना मुहा. -- अनुनय-विनय करना, मनाना, इस हिंदू-मुसलिम समस्या का समाधान भारतीय सांस्कृतिक आधार पर बिना किसी की ठोंड़ी सहलाए कर सकते हैं ? (न. ग. र., खं. 4, प., 192)

ठोस1 वि. (अवि.) -- दृढ़, मजबूत, लेखों के बल पर नहीं, बल्कि आत्म-यज्ञ और ठोस सेवा के बल देश सेवक जी सकता है। (वि. भा., जन. 1928, सं. 1, पृ. 137)

ठोस2 सं. (पु.) -- ठेस, ठोकर, धक्का, ट्रक की ठोस लगने से शिक्षक की दर्दनाक मौत हो गई। (रवि. 29 मार्च 1989, पृ. 2)

ठौर-ठौर क्रि. वि. -- जगह-जगह, पुस्तक पढ़ना होतो धीरे-धीरे ध्यानपूर्वक पढ़ो, ठौर-ठौर ठहर-ठहरकर गंभीरतापूर्वक विचार करते जाओ। (शि. पू. र., खं. 3, पृ. 221)

डंक मारना मुहा. -- चोट करना, प्रहार करना, इन्हीं पर साहित्य दर्पणकार ने डंक मारा। (माधुरी, वर्ष-7, खं. 2 फर. से जुलाई 1929, पृ. 444)

डंक-सा लगना मुहा. -- आघात-सा लगना, जोन ऑफ आर्क की बहादुर लड़ाइयों से इंग्लैंड को जबरदस्त डंक सा लगा। (रा. मा. संच. 2, पृ. 59)

डकराना क्रि. (अक.) -- दहाड़ना, चिल्लाना, बादशाह डकराने लगा, सारा चेहरा लहूलुहान हो गया। (काद., जन. 1982, पृ. 111)

डंका पीटना मुहा. -- सार्वजनिक घोषणा करना, प्रचार करना, गुणगान करना, (क) नक्सलबाड़ी बिद्रोह का डंका पीटना शुरू कर दिया। (दिन., 2 जून, 68, पृ. 19), (ख) हिंदुस्तान का डंका पीटनेवाले एक और कवि अमीर खुसरो थे। (दिन., 3 अक्तू. 1971, पृ. 9)

डकार जाना मुहा. -- खा-पचा जाना, हड़प लेना, ... असहाय गरीब आदिवासियों के 4-5 हजार रूपए डकार गए। (लो. स., 1 जुलाई, 1989, पृ. 3)

डकारना क्रि. (सक.), सं. (पु.) -- हड़पना, हड़प लेना, संचार मंत्री रहते हुए उन पर (सुखराम पर) टेलीकाम घोटाले में करोड़ों डकारने के आरोप लगे। (हि. ध., प्र. जो., पृ. 306)

डंके की चोट कहना या घोषित करना मुहा. -- खुले आम कहना, (क) वे मानो डंके की चोट घोषित कर देना चाहते हैं कि वह वैवाहिक विधान कृत्रिम है। (कुटजः ह. प्र.द्वि., पृ. 112), (ख) हिंदीवालों का इतना तो कर्तव्य है ही कि वे भी डंके की चोट पर यह घोषित कर दें कि चौबेजी महाराज जो कुछ करते हैं, वह सब अपने लिए करते हैं। (कु. ख. :दे. द. शु., पृ. 99), (ग) वे डंके की चोट कहते हैं कि वे हिटलर के प्रशंसक हैं। (हि. ध., प्र. जो., पृ. 324)

डग-डग रोटी पग-पग नीर कहा. -- अन्न-जल की प्रचुरता, पता नहीं डग-डग रोटी, पग-पग नीर कितनी पुरानी कहावत है ? अब तो यह रोआँ उतरी, दीमक लगी खाल भर रह गई है, जिसे कोई मरगल्ला कुत्ता क्या, प्यासा कौआ भी ओढ़ना नहीं चाहेगा। (दिन., 13 मई 1966, पृ. 24)

डगमग वि. (अवि.) -- अस्थिर, अस्थायी, एक हफ्ते पहले लोग भविष्यवाणी कर रहे थे कि दिल्ली में डगमग सरकारें बनेंगी। (रा. मा. संच. 1, पृ. 85)

डगर-बाट क्रि. वि. -- गली-मुहल्लों में, डगर-बाट सर्वत्र तुम सुखपूर्वक निर्द्वंद्व भाव से घूमते हो। (नव., मई 1953, पृ. 64)

डटकर क्रि. वि. -- बढ़ा-चढ़ाकर, कीमत इनकी खूब डटकर रखी गई है ; क्योंकि खर्च भी इन पर खूब हुआ है। (सर., आग. 1920, पृ. 100)

डटाडट क्रि. वि. -- ठसाठस, खचाखच, रेल के दोनों ओर की सड़कें डटाडट भरी हैं। (सर., अप्रैल 1913, पृ. 233)

डटाना क्रि. (सक.) -- खड़ा करना, स्थापित करना, कवियों ने ईरान को इस समूचे इतिहास के साथ डटा दिया। (दिन., 3 अक्तू. 1971, पृ. 8)

डठुआ सं. (पु.) -- डंठल, अनाज के डठुये सड़ जाते हैं। (सर., जन-जून 1961, सं. 5, पृ. 637)

डपटना क्रि. (सक.) -- डाँटना-फटकारना, नेहरू की तरह डपटकर इन अपशकुनों की बोलती बंद कर देनेवाला नेता वही है। (दिन., 8 जून 1969, पृ. 27)

डपोरशंखी वि. (अवि.) -- मूर्खतापूर्ण, वह मानवीय रिश्तों को आजकल की तरह डपोरशंखी ढंग से चलाना नहीं जानतीं। (रवि., 29 मार्च, 1981, पृ. 42)

डफली बजना मुहा. -- (अपना) राग अलापना, (अपनी) बात कहना, डफली अलग बज रही है तो सिर्फ इसलिए कि सत्ता की छीन-झपटी में कुछ हाथ लग सके। (दिन., 30 दिस., 66, पृ. 21)

डबका सं. (पु.) -- अंदेशा, डर, भय, लोगों को हमेशा चोरी का डबका लगा रहता है। (काद. : सित. 1978, पृ. 14)

डबरा सं. (पु.) -- पोखरा, जलकुंड, (क) आसमान का चित्रण सधे न सधे, सामने के मैले डबरे में सूरज के बिंब का चित्रण करना चाहिए। (ए. सा. डाय. : ग. मा. मु., पृ. 49), (ख) डबरे में बैठकर बहिष्कार की बाँग लगाने से कमीशन का बहिष्कार नहीं होगा। (म. का मत: क. शि., 10 दिस. 1927, पृ. 241), (ग) अब तोवह बमुश्किल 18 लाख गैलन पानी देनेवाला क्षारजल का डबरा भर रह गई है। (दिन., 13 मई, 1966, पृ. 24)

डरपोकपना सं. (पु.) -- डरपोकपन, कायरता, परंतु यह किसका डरपोकपना समझा जाए कि जब वे गांधी प्रदर्शनी में न जा सके तो उनका संदेश ही ले जाकर पढ़ने की हिम्मत आयोजकों की न हुई। (दिन., 12 अक्तू. 1969, पृ. 10)

डला सं. (पु.) -- बड़ा टुकड़ा, ढेला, बर्फ के दो बराबर डले लेकर एक को ऊनी वस्त्र से और दूसरे को उतने ही सूती वस्त्र से लपेटकर रखो। सूती वस्त्रवाला डला शीघ्र पिघल जाएगा। (सर., अप्रैल 1916, पृ. 264)

डहडहा वि. (विका.) -- हरा-भरा, प्रसन्नचित, पूरे अंक के संयोजन में श्री विजयदत्त श्रीधर का व्यक्तित्व डहडहे रूप में झलक रहा है। (डा. रा. शं. द्वि., पत्र)

डाक बोलना मुहा. -- बोली लगाना, जिसको खरीदना हो, फलाँ जगह हाजिर होकर डाक बोले। (नव., जून 1953, पृ. 33)

डाक सं. (पु.) -- नग, सामान, अदद, कुली कहता आपके कुल सात डाक हैं , सात आने लूँगा। (सर., जून 1924, पृ. 674)

डाकना क्रि. (सक.) -- लाँघना, गदह-पचीसी को नाँघ चेहलसाली को भी डांक अधेड़ की गिनती में आ गए। (भ. नि. : पं. बा. कृ. भ., पृ. 13)

डाका डालना मुहा. -- लूट लेना, छीन लेना, शिक्षित भारतीयों को कोसा था और वंदनीय मालवीय जी के सम्मान पर डाका डाला था। (मा. च. रच., खं. 9, पृ, 175)

डाँग-डूँगर सं. (पु.) -- जंगल, डाँग-डूँगर में ये जो ततलियाँ उड़ रही हैं, क्या वैसी बनावट बनावें। (वृ. ला. व. समग्र, पृ. 646)

डाँगर सं. (पु.) -- डंगर, पशु, चौपाया, आपस में फूली-फूली लाला आँखों से डाँगर की तरह ताककर बतियाते थे। (रवि., 4 जन. 1981, पृ. 37)

डाँट पिलाना मुहा. -- फटकारना, डाँटना-डपटना, बिहार के कांग्रेसी शिष्ट मंडल को कामराज ने डाँट पिलाई। (दिन., 10 सित., 67, पृ. 12)

डाट सं. (स्त्री.) -- काग, कार्क, अब मेरे यहाँ देशी शराब की डाटें खुलने के बजाय बिलायती मद्य की बोतलों के काग खुलते थे। (सर., अक्तू. 1917, पृ. 173)

डाटना क्रि. (सक.) -- पहनना, (क) एक पुलिस कांस्टेबिल एक छोटे गाँव में पूरी वर्दी डाटकर पहुँचा। (ग. शं. वि. रच., खं. 2, पृ. 315), (ख) शीत ऋतु में हम लोग बनियान, कमीज, स्वेटर, वास्कट और कोट डाटकर भी डरते रहते हैं। (सर., सित. 1915, पृ. 177)

डाँड़ सं. (पु.) -- 1. सीमा, हद, गाँव के डाँड तक हमारा राज, उधर उनका। (का. कार. : निराला, पृ. 14), 2. दंड, जुर्माना, खेत में नहीं पैदा हुआ तो घर से दिया है, किसी पर दूब की छड़ी नहीं उठाई, कभी डाँड़ नहीं लिया। (निरु. : निराला, पृ. 63)

डाँड़ामेड़ी सं. (स्त्री.) -- मेल-मिलाप, आपसदारी, (क) दोनों गाँववालों के बीच लंबे समय से डाँड़ामेड़ी है। (काद. : सित. 1976, पृ. 16), (ख) पूर्वी हिन्दी और बिहारी की डाँड़ामेड़ी है। (म. प्र. द्वि., खं. 1, पृ. 53)

डाँड़ी मारना मुहा. -- कम तौलना, आदत के अनुसार उसने डाँड़ी मारी। (स. न. रा. गो. : भ. च. व., पृ. 10)

डाँड़े न जाना मुहा. -- नजदीक न जाना, पास न फटकना, हमें ऐसा दिल-बहलाव मिलता तो सिवाय दिल-बहलाने के कोई काम करने के डाँड़े न जाते। (भ. न., पृ. 23)

डाढ़ों में पिसना मुहा. -- घोर कष्ट की अनुभूति होना, पश्चिम की शिक्षा-पिशाची की डाढ़ों में पिसते रहते हैं भारतीय विद्यार्थी। (मा. च. रच., खं. 9, पृ. 62)

डाबरा सं. (पु.) -- पानी से भरा छोटा पोखर, डबरा, गड्ढा, पानी के छोटे-बड़े डाबरे मलकर समुद्र हो गए हों या समुद्र छोटे-बड़े डाबरों में बँट गया हो। (हि. ध., प्र. जो., पृ. 399)

डाँय-डाँय क्रि. वि. -- दर-दर, जगह-जगह, दिन भर डाँय-डाँय घूमते हैं तब किसी तरह पेट पलता है। (भ. नि., पृ. 151)

डाली सं. (स्त्री.) -- उपहार के रूप में दी जानेवाली फल, फूल, मेवे, मिठाई आदि की डलिया, (क) जिसे डाली न दो वही मुँह फुलाता है। (सर., मई 1918, पृ. 244), (ख) ठेकेदारों की मुर्गी और डाली तो उसने पहले ही लौटा दी थी। (सर., सि. 1920, पृ. 138)

डाँवाँडोल वि. (अवि.) -- अस्थिर, डगमग, डाँवाँडोल सरकारों के तत्त्वावधान में सारा देश भी डाँवाँडोल होता रहेगा। (रा. मा. संच. 1, पृ. 86)

डाह सं. (स्त्री.) -- ईर्ष्या, जलन, (क) जब मुझे (जनरल कौल को) सेना प्रमुख बनाना गया तो कुछ सैनिक अधिकारियों के मन में डाह पैदा हुई। (दिन., 20 जन., 67, पृ. 14), (ख) नासिर को भाग्यवान नेता माननेवाले लोग डाह से कहते हैं कि इतने वर्षों तक उनका सत्ता में बना रहना संयोग मात्र था। (दिन., 15 नव., 1970, पृ. 37), (ग) वे लोग डाह से झुलस उठे। (ग. मं. : पत्र. चु., पृ. 72)

डिगना क्रि. (अक.) -- हटना, टलना, (क) अभागे देशद्रोही अपने स्वार्थ से तिल भर भी नहीं डिगेंगे। (म.का मतः क. शि., 20 सित. 1924, पृ. 165), (ख) सरकार अपनी उद्दंड नीति से डिगना नहीं चहती। (म. का मतः क.शि., 11 फर. 1928, पृ. 222), (ग) बहुत से सूत एक में एक मिलकर हाथी को भी तिल भर डिगने नहीं देते। (शि. पू. र., खं. 3, पृ. 200)

डिठौना सं. (पु.) -- काला टीका जो बुरी नजर से बचाने के लिए लगाया जाता है, जी चाहता है कि इस प्यार के गालों पर अनंत की जननी डिठौना लगा दे। (मा. च. रच., खं. 5, पृ. 290)

डिंडिम घोष सं. (पु.) -- ढोल, नगाड़ा की ध्वनि , युद्द का डिंडिम घोष आनासक्त चिंतन को सबसे पहले निष्क्रिय बनाना है। (कुटजः ह. प्र. द्वि. पृ. 12)

डिंडिम सं. (पु.) -- ढोल, नगाड़ा, आत्मप्रशंसा का डिंडिम बजाना उचित नहीं होता। (काद. : जून 1980, पृ. 7)

डिंमडिम घोष करना मुहा. -- डुग्गी बजाना, घोषणा करना, सभापति श्री मिश्र ने सम्मेलन के सहायकों की सूची बनाने का डिंमडिम घोष किया था। (क. ला. मिश्रः त. प. या., पृ. 63)

डींग मारना या हाँकना मुहा. -- शेखी बघारना, बड़ी-बड़ी बातें करना, (क) एक बार एक घर-घमंडी यह डींग मार रहा था कि जो बात मैं नहीं जानता उसका जानना ही व्यर्थ है। (सर., मई 1922, पृ. 323), (ख) मामूली संस्कृत भी नहीं जानते हैं और डींग मारते हैं। (वीणा, जन. 1934, पृ. 171), (ग) जो बड़ी-बड़ी डींग मारते हैं वे कायर होते हैं . (ग.शं. रच., खं. : 1, पृ. 292)

डींग सं. (स्त्री.) -- शेखी, पाक सरकार को मूर्ख मानना अपनी बुद्धिमानी की कोरी डींग मात्र होगी। (कर्म. : सं. मा. चं., 28 सित. 1947, पृ.3)

डीठ न लगाना मुहा. -- बुरी दृष्टि से न देखना, नजर न लगाना, हम किसी के अभ्युदय पर डीठ नहीं लगाते और न किसी के वैभव पर कभी दाँत ही गड़ाते हैं। (शि.पू.र., खं. 3, पृ. 428)

डुकरा सं. (पु.) -- बूढ़ा व्यक्ति, बुड्ढा, इतने में वही डुकरा सो भी खाली हाथ, आधी धोती पहने, आधी कंधा में डाले आ गया। (रवि., 29 मार्च, 1981, पृ. 14)

डुगडुगी पीटना या बजाना मुहा. -- मुनादी करना, प्रचार करना, लेखक अपनी ईमानदारी को बेचकर सत्ता के साथ डुगडुगी पीटने लगता है। (काद., जून 1977, पृ. 21), गांधी जी ने नमक सत्याग्रह की डुगडुगी बजाई। (क.ला. मिश्र: त. प.या., पृ. 31)

डुग्गी पीटना मुहा. -- मुनादी करना, प्रचार करना, (क) न जाने क्यों भारत सरकार को इस विषय में डुग्गी पीटने की इतनी आवश्यकता हुई। (न.ग.र., खं. 2, पृ. 82), (ख) भारत शांतिप्रिय देश है इसकी डुग्गी पीटने की कोई जरूरत नहीं। (दिन., 20 मई, 1966, पृ. 13)

डूबते को तिनके का सहारा कहा. -- विपत्ति में फँसे विपदाग्रस्त को प्राप्त होनेवाली थोड़ी बहुत सहायता, डूबते तेल उद्योग को सरकार ने तिनके का सहारा देकर उसमें जान डाल दी। (लो. स., 15 जन. 1989, पृ. 9)

डूह सं. (पु.) -- टीला, यह अनर्थक मिट्टी का डूह है। (ज. क. सं.: अज्ञेय, पृ. 64)

डेढ़ चावल की खिचड़ी पकाना मुहा. -- अलग-अलग पकाना, बहुमत से अलग होकर अपनी तुच्छ राय पर चलना (क) इन फेरफारों के संबंध में कमिटी के कई मेंबर एकमत न हो सके। उन लोगों ने अपनी-अपनी डेढ़ चावल की खिचड़ी अलग ही पकाई। (सर., मार्च 1925, पृ. 369), (ख) सभी डेढ़ चावल की खिचड़ी अलग-अलग पका रहे हैं। (ब. दा.च.चु.प., संपा. ना.द., पृ. 139), (ग) जिसके जी में जो आता है बक रहा है, डेढ़ चावल की खिचड़ी पका रहा है . (म. का मतः क.शि., 8 दिस. 1923, पृ. 129)

डेढ़ी सं. (स्त्री.) -- मान या परिमाण में डेढ़ गुणा होने की अवस्था या भाव, डेढ़ी का अनाज तुम ही से ले लें, नजर नियाज ऊपर से। (निरु. : नि., पृ. 63)

डेरा-डंडा सं. (पु.) -- बोरिया-बिस्तर, गृहस्थी का साजो सामान, (क) लोग भयभीत हो उठे हैं और इसलिए अपना डेरा-डंडा उठाकर भाग रहे हैं। (कर्म. : संपादक मा. च., 4 अक्तू. 1947, पृ. 7), (ख) सोचता हूँ कल यहाँ से अपना डेरा-डंडा उठा लेना चाहिए। (वि. भा., जन. 1928, सं. 1, पृ. 36)

डेरा सं. (पु.) -- आवास, निवास, मैं चाहता था कि तुम्हें अपने डेरे पर ले चलूँ। (शत. खि., ह.कृप्रे., पृ. 68), (ख) डेरे पर जाकर रातो-रात मारूति शतक नामक एक शतक तैयार कर डाला। (सर., अग. 1941, पृ. 101), (ग) तब से दोनों ने इनसान की इस मायावी दुनिया को ही अपना अचल डेरा बना रखा है। (नव., मई 1953, पृ., 69)

डेरा सं. (पु.) -- तंबू, ये लोग भैंसे ही की खाल पहनते हैं उसी से डेर भी बनाते हैं। (सर., अक्तू. 1915, पृ. 232)

डेला सं. (पु.) -- आँख का वह सफेद भाग जिसमें पुतली रहती है, कोया, बाहर की तरफ कपाल की हड्डी से लगे हुए स्नायु हैं। उनमें से चार तो खड़े हैं और डेले को ऊपर-नीचे घुमाने का काम देते हैं। (गु.र., ख. 2, पृ. 262)

डैना सं. (पु.) -- पंख, पक्ष, उपनगरों में अपने डैने फैलाकर बढ़ती हुई नई दिल्ली की आत्मा में बिलायत बसता है। (दिन., 10 सित. 1965, पृ. 42)

डोकरी सं. (स्त्री.) -- बूढ़ी औरत, बुढ़िया, मैं आठ-दस दिन डोकरी के पास रहना चाहती हूँ। (ज. स., 10 दिस. 2006, पृ. 6)

डोंडी पीटना मुहा. -- डुग्गी पीटना, प्रचार करना, हल्ला मचाना, (क) नेपाल अपनी सार्वभौमिकता की डोंडी पीटकर उसके सोर लाभ लेना चाहता है . (रा.म.संच. 2, पृ. 23), (ख) हमारे डोंडी पीटने के बावजूद क्या यह संभव है कि सारा समुद्र चुटकी बजाते खाली हो जाए। (रा.मा.संच. 2, पृ. 318)

डोरा सं. (पु.) -- सूत्र , स्नेह-सूत्र, जब औरों के मुँह से डोरा नहीं फूटता तब शायद केवल इसलिए कि कहीं गुण-ग्राहकता की कमी से दुनिया के नेक कामों का लोप न हो जाए, अपने ही मुख से वर्णन भी कर डालते हैं। (ग.शं.वि. रच., खं. 3, पृ. 25)

डोरे डालना मुहा. -- अपनी ओर खींचना, प्रलोभन देना, ललचाना, कांग्रेस पार्टी विरोधी सदस्यों पर डोरे डालती रही है। (दिन., 30 जुलाई, 67, पृ. 11)

डोलना क्रि. (अक.) -- अस्थिर होना, मँडराना, चक्कर लगाना, (क) प्रचलित तंत्र जब डगमगाता है, तो अपने आप में हमारा विश्वास डोल जाता है। (रा.मा. संच. 1, पृ. 67), (ख) जैसे श्री कामराज और उनके आसपास डोलनेवालों को इसका पता चला, उन्होंने डॉ. जाकिर हुसैन का विरोध शुरू कर दिया। (दिन., 16 अप्रैल, 67, पृ. 11)

डौल भिड़ाना मुहा. -- जुगाड़ करना, व्यवस्था करना, तबीयत के फक्कड़ और ऐयाश थे, खाने-पीने नाच-गाने का शौक रखते थे। इनकी साधना में पैसों का डौल भिड़ाने में भी हिचकिचाते नहीं थे। (सा.हि., 15 जन. 1956, पृ. 30)

डौल सं. (पु.) -- योजना, कार्यक्रम, जुगाड़, (क) पूछे बिना ही यहाँ मंदिर बनाने का डौल डाल दिया। (सर., जन. 1915, पृ. 13), (ख) यदि रुपए होते तो दे ही देते। परंतु यहाँ तो डौल ही नहीं। (सर., अक्तू. 1918, पृ. 204)

डौलदार वि. (अवि.) -- रोबदार, प्रभावपूर्ण, बैरस्टरी के डौलदार वेश में मैं रहूँगा। (क्रा.प्रे. स्रो.: र. ला. जो., पृ. 55)

ड्योढ़ी सं. (स्त्री.) -- द्वारा, डेहरी, (क) भयंकर कालचक्र उन्हीं जातियों को संसार में टिकने देता है, जो संसार की उन्नति को पवित्र ड्योड़ी पर अपना पुजापा चढ़ाने में नहीं चूकती। (ग.शं.वि.रच., खं. 2, पृ. 29), (ख) वह आपकी ड्यढ़ी ... तो गया ही नहीं। (म.प्र.द्वि. रच., खं. 2, पृ. 93)

ढकना-तोपना क्रि. (सक. पदबंध) -- छिपाना, हर जगह वही किरकिराता अभाव, वही छूँछी इज्जत, ढक-तोप कर रखनेवाली व्यग्रता भर देखी है। (साक्षा., मार्च-मई 77, मृ. पां., पृ. 27)

ढँकनी सं. (स्त्री.) -- छोटा ढक्कन, इसके ऊपर गेहूँ के आटे की एक ढँकनी रखी जाती है। (गु.र., खं. 1, पृ. 257)

ढकनी सं. (स्त्री.) -- छोटा ढक्कन, इसी में पतली ढकनी से ढका हुआ छिद्र काँच की खिड़की का काम देता है। (चं.श.गु.र., खं. 2, पृ. 262)

ढकेल-ढकालकर क्रि. वि. -- जबरदस्ती, धकेलकर समाज में उच्चकोटि के व्यक्ति अपराधी की श्रेणी में जबरदस्ती ढकेल-ढकालकर रख दिए गए। (ग.शं.वि.रच., खं. 1, पृ. 84)

ढकोसला सं. (पु.) -- ढोंग, पाखंड, आडंबर, (क) अपने वाक्यों को यदि अनुभव-बल पर पुष्ट नहीं कर सकते तो हम उन कार्यों को ढकोसला कहेंगे। (ग.शं.वि. रच., खं. 1, पृ. 317), (ख) जब तक कौंसिल की कार्रवाई उस प्रांत की भाषा में न होगी तब तक प्रजातंत्रीय शासन ढकोसला होगा। (ते.द्वा.प्र. मि.), (ग) भारत वर्ष में न्याय एक ढकोसला मात्र रह गया है। (स.सा., पृ. 31)

ढकोसलेबाजी सं. (स्त्री.) -- पाखंड रचने की प्रवृत्ति, आडंबर, पाखंड, (क) ढकोसलेबाजी और अदूरदर्शिता आज हमारे आड़े न आवेगी। (मा.च.रच., खं. 10, पृ. 67), (ख) ढकोसलेबाजी की जादू की तलवार को ही धर्मशास्त्र समझते हैं। (मा.च.रच., खं. 2, पृ. 45)

ढचर सं. (पु.) -- लचर ढाँचा या ढर्रा, (क) पाणिनि के व्याकरण के लोक-उपयोगी अंश को अपने ढचर में बदलकर ही वह संतुष्ट न रहा। (चं.श.गु.र., खं. 2, पृ. 102), (ख) जापान की अर्थनीति को सहसा कृषि-फर्म के ढचरे में परिणत नहीं किया जा सकता। (न.ग.र., खं. 2, पृ. 285)

ढचरा वि. (अवि.) -- जिसका ढाँचा जर्जर हो, खटारा, नोबेल पुरस्कार पाने योग्य वैज्ञानिक ढचरा गाड़ी में भला क्यों बैठते। (स.का वि.: डॉ. प्र. श्रो., पृ. 31)

ढँपा-तोपा वि. (विका.) -- ढका-पुता, छिपा या छिपाया हुआ, उन्हें इस तरह ढँपा-तोपा रखने से तो अनर्थ परंपरा फलती-फूलती है। (दिन., 16 जुलाई, 67, पृ. 26)

ढपोरशंख सं. (पु.) -- मूर्ख, यदि वह ऐसा नहीं करता तो पीकिंग सोवियत नेताओं को ढपोरशंख कहकर मजाक उड़ाएगा ..., (दिन., 28 फर. 1965, पृ. 9)

ढपोरशंखी वि. (अवि.) -- मूर्ख या मूर्खतापूर्ण, लोगों को यह प्रस्ताव ढपोरशंखी भरा जान पड़ सकता है। (दिन., 16 दस., 66, पृ. 11)

ढब-ढाँचा सं. (पु., पदबंध) -- तौर-तरीका, रीति-नीति, रहन-सहन, (क) उन लोगों का अपने देशों पर कब्जा है जो यूरोपियन ढब-ढाँचे को अपने लिए अपना चुके हैं। (मा.च.रच., खं. 3, पृ. 116), (ख) राजकाज के ढब-ढाँचों के विवरण ऐतिहासिक समीक्षा के मुहताज रह गए। (दिन., 25 फर., 68, पृ. 42)

ढब सं. (पु.) -- ढंग, तरीका, एक नई ढब का वंशानुगत लोकतंत्र उन्होंने कायम करना चाहा। (रा. मा. संच. 1, पृ. 412)

ढरकना क्रि. (अक.) -- लुढ़कना, गिरना, चूना, (क) घी ढरक गया, हमें रूखी ही भाती है। (भ. नि., पृ. 107), (ख) पार्वती माता की छाती से दूध ढरक पड़ा था। (कुटुज : ह.प्र.द्वि., पृ. 90)

ढरकाना क्रि. (सक.) -- बहाना, तेरी (हिंदी की) दशा पर एक भी दुःखाश्रु ढरकानाला नहीं मिलता। (छ.मि., वर्ष 2, अंक 11)

ढर्रा सं. (पु.) -- 1. तौर-तरीका, रीति-नीति, इस कारण अँगरेजी गवर्नमेंट ने वही पुराना ढर्रा जारी रखा। (सर., भाग 28, सं 3, मार्च 1927, पृ. 286),2. ढाँचा, उसी तरह जनता पार्टी ने कांग्रेस राज का ढर्रा नहीं बदला। (रा.मा.संच. 1, पृ. 413), (ग) कारण वही पुराना ढर्रा है। (सर., जन. 1911, पृ. 25)

ढलकाना क्रि. (अक.) -- लगाना, झुकाना, जो कहा जाए वही कान ढलकाकर सुन ले। (चं. श.गु. र., खं. 2, पृ. 310)

ढलमलाना क्रि. (अक.) -- झलकना, बड़े-बूढ़ों की आँखों में प्रसन्न-आँसू ढलमलाते हैं। (दिन., 11 जुलाई, 1971, पृ. 39)

ढलुई वि. (अवि.) -- ढलानदार, यह जगह बहुत ढलुई है। (त्या. भू. : सं. 1986, (1927), पृ. 251)

ढहोढाह होना मुहा. -- गड़बड़ होना, विवाद होना, अपनी कहानी के नायक का नाम अपना कहकर आपने जो घोटाला कर दिया उससे बड़ा ढहोढाह हो रहा था। (सर., नव. 1941, पृ. 449)

ढाई चावल की खिचड़ी पकाना मुहा. -- बहुमत से भिन्न विचार रखना या योजना बनाना, अपनी ही चलाना, मिश्र जी चलते-चलते अपनी ढाई चावल की खिचड़ी पकाते रहे। (का.कार.: नि., पृ. 60)

ढाक के तीन पात कहा. -- जस का तस रहना, कुछ भी अंतर या बदलाव न आना, (क) परंतु किसानों के लिए लार्ड कर्जन ने किया ही क्या ? वही ढाक के तीन पात। (ग.शं. वि. रच., खं. 1, पृ. 264), (ख) मनसूबों की घोलम-घोल तो मन में बहुत हुई किंतु रहे वही ढाक के तीन पात। (क.ला.मिश्र: त.प.या., पृ. 214)

ढाठा सं. (पु.) -- पट्टी, अपने मुँह पर ढाठा बाँधा। (स.न.रा.गो. : भ.च.व., पृ. 60)

ढाणा सं. (पु.) -- कुएँ के ऊपर का वह ढाँचा, जिसमें घिरनी लगी रहती है, आप के कुएँ का ढाणा टूट गया है। (मधुः अग. 1965, पृ. 12)

ढाना क्रि. (सक.) -- ढाहना, गिराना, ध्वस्त करना, थल के कीड़ों में से बहुत से ऐसे हैं जो हमारे घरों और हमारी इमारतों को ढाने में लगे रहते हैं। (सर., जुलाई 1918, पृ. 23)

ढाँपना क्रि. (सक.) -- ढाँकना, छिपाना, (क) धोखा देनेवाले आश्वासनों से ढाँपे रखना कुछ अप्रत्याशित न था। (दिन., 2 दिस., 66, पृ. 12), (ख) सैनिक आवश्यकता उनकी क्रूरता को ढाँपती है। (ग.शं.वि. रच., खं. 3, पृ. 78)

ढाँय-तोप कर रखना मुहा. -- (अपने को) भारी तोप समझना, पंतजी ने अपने को जबरन ढाँय-तोप कर रखा है। (शि.से. : श्या.सुं. घो., पृ. 15)

ढाल सं. (स्त्री.) -- ढलान, दिल्ली दे की ढाल है, गरीब यहाँ बह आता है। (दिन., 26 जन. 1975, पृ. 13)

ढालुआँ वि. (विका.) -- ढलान-भरा, ढालवाला, उस पार का तट ढालुएँ कगार से अवरुद्ध जिसका स्वरूप कभी नहीं बदलता। (दिन., 16 दिस., 66, पृ. 42)

ढाँसना क्रि. (अक.) -- खाँसना, उसे सर्दी लग गई थी, वह रह-रहकर ढाँसता था। (गे.गु., पृ. 69)

ढाहना क्रि. (सक.) -- गिराना, ध्वस्त करना, किले को कई जगह से ढाह दिया गया है। (रवि., 19 दिस. 1982, पृ. 32)

ढिंग क्रि. वि. -- निकट, पास, समधिन आई समधी के ढिंग लेकर हाथ चढ़ावा। (काद., मार्च 1980, पृ. 117)

ढिठाई सं. (स्त्री.) -- ढीठपन, धृष्टता, हठवादिता, (क) कांग्रेस की इस इच्छा को कि महामना गोरखपुर से खड़े हों, तिकड़म और ढिठाई कहा गया है। (क. ला. मिश्रः त.प.या., पृ. 65), (ख) हमें उनकी ढिठाई पर अचंभा होगा। (म.प्र.द्वि.रच., खं. 2, पृ. 48), (ग) एक ढिठाई भी की। हमें जो करना था हमने किया। (हि. ध., प्र. जो., पृ. 445)

ढिंढोरची सं. (पु.) -- ढिंढोरा पीटनेवाला, प्रवक्ता, प्रचारक, (क) इतिहास क्योंकि सफलता के ढिंढोरचियों की कहानी है। (रा.मा.संच. 1, पृ. 272), (ख) उन्होंने (डी.पी. मिश्र ने) कहा कि मधु लिमये संसोपा के ढिंढोरची हैं। (दिन., 30 दिस., 66, पृ. 17)

ढिंढोरा पिटवाना मुहा. -- मुनादी कराना, प्रचार कराना, हर पुलिस चौकी में यह ढिंढोरा पिटवा दें कि साँप काटते ही राजा धीरजसिंह की शपथ खाओ। (गु.र., खं. 1, पृ. 312)

ढिंढोरा पीटना मुहा. -- प्रचार करना, मुनादी करना, (क) जब सरकार इस सिद्धांत का ढिंढोरा पीटती है तब उसका धर्म है कि पुलिस रिपोर्ट से इसे सिद्ध करे। (न.ग.र., खं. 2, पृ. 32), (ख) स्वाधीनता का ढिंढोरा पीटनेवाले ब्रिटेन ने कुली प्रथा का आविष्कार किया। (मा. च. रच., खं. 9, पृ. 140), (ग) पाकिस्तान दुनिया भर में यह ढिंढोरा पीटेगा कि नेहरूजी पंचशील और शांति की बातें करते हैं किंतु कश्मीरी जनता को आत्मनिर्णय का अधिकार देने में बँगले झाँकते हैं। (ते.द्वा.प्र.मि., पृ., 149)

ढिबरी सं. (स्त्री.) -- मिट्टी के तेल का दीया, (क) उनके झोंपड़े में अगर ढिबरी है, तो कल उन्हें एक लालटेन की आशा करने का अधिकार है। (रा.मा.संच. 2, पृ. 196), (ख) उसे अपनी ढिबरी जलाने को तेल साप्तहिक बाजार से खरीदना पड़ता है। (रवि. 13 दिस., 1981, पृ. 15)

ढिल्लड़ वि. (अवि.) -- ढीला-ढाला, कमजोर, अहिंसा को वह एक ढिल्लड़ किस्म का औजार मानते थे। (दिन., 4 से 10 सित. 1977, पृ. 40)

ढिल्लड़पन सं. (पु.) -- ढाले होने का भाव, उनकी फिल्मों में सफाई और ढिल्लड़पन है जो हमें आराम देता है। (दिन., 6 जुलाई, 1975, पृ. 42)

ढिशुंग-ढिशुंग वि. (अवि.) -- मारधाड़ से भरा, अंग्रेजी माध्यम स्कूलों में प्रवेश पाना उतना ही मुश्किल हो गया है जितना ढिशुंग-ढिशुंग फिल्मों में टिकट पाना। (रा. मा. संच. 2, पृ. 398)

ढीठ वि. (अवि.) -- हठी, जिद्दी, (क) एक ढीठ उद्दाम छोटा लड़का और सफल सौम्य बड़ा लड़का किस घर में नहीं होता। (रा. मा. संच. 2, पृ. 399), (ख) कोई ऐसा ढीठ भी कभी मुख्यमंत्री बनेगा जो सारी तोहमतों को तमगे की तरह लगाकर कुरसी पर बैठा रहेगा। (किल., सं. म. श्री., पृ. 81), (ग) मारपीट करने से बच्चे ढीठ हो जाते हैं। (काद. : सित. 1978, पृ. 17)

ढील-ढाल सं. (स्त्री.) -- ढिलाई, (क) स्वराज्य सभा के विषय में इस ढील-ढाल के कई कारण हैं। (ग. शं. वि. रच., खं. 2, पृ. 233), (ख) लेकिन योजनाओं के कार्यन्वित किए जाने में ढील-ढाल (जो ऊपर के आँकड़ों से) स्पष्ट है। (दिन., 21 फर. 1965, पृ. 23)

ढीला-ढाली सं. (स्त्री.) -- ढीलापन, सुस्ती, देश के प्रत्येक नगर निगम को अति व्यस्तता, ढीला-ढाली और लालफीताशाही शायद विरासत में मिली है। (दिन., 15 जुलाई, 1966, पृ. 19)

ढीला-पोला वि. (विका.) -- कमजोर , किसका राज्य बेमतलब सख्त होगा , किसका ढीला - पोला होगा और कौन सख्ती के साथ - साथ उदारता का वाजिब समन्यवय करेगा । (रा . मा . संच . 1 , पृ . 397)

ढीह सं. (पु.) -- टीला, ढूह, कुछ देशी राज्यों में भी पुरातत्त्व का विभाग खोला गया है और उसमें भी पुरातन ढीहों आदि की खुदाई शुरू की गई है। (सर., जून 1941, पृ. 595)

ढुर-ढुर वि. (अवि.) -- साफ-सुथरा, ये छोटे-छोटे साफ सुथरे घर, यह लिपा-पुता चिक्कन ढुर-ढुर आँगन। (बे. ग्रं., प्रथम खं., पृ. 9)

ढुलकना क्रि. (अक.) -- मरना, इनकी इच्छा यह है कि किसी तरह बुड्ढा ढुलके तो यह कोर्टशिप करके विवाह करें। (सर., मार्च 1919, पृ. 20)

ढुलमुल वि. (अवि.) -- निश्चयविहीन, दुविधाग्रस्त, यह लड़ाई उग्र प्रतिक्रिया की नरम और ढुलमुल मध्य मार्ग के सा थ लड़ाई थी। (रा. मा. संच. 1, पृ. 27)

ढूहा सं. (पु.) -- टीला, टेकरी, (क) आज भी किसी प्राचीन ढूहे के बारे में पूछिये तो लोग बताएँगे कि अमुक राक्षस का गढ़ था। (दिन., 26 जन., 69, पृ. 32), (ख) किंतु यह सब आज विध्वस्त बर्लिन के ढूहों के नीचे दबा पड़ा हुआ है। (न. ग. र., खं. 2, पृ. 282)

ढेंकी सं. (स्त्री.) -- पानी निकालने का यंत्र, रहट, छठ में पके ठेकुए लेकर उसे कुबर-कुबर कर खाता हुआ ढेंकी पर झूला झूलने का मजा ले रहा था। (बे. ग्र., भाग 1, पृ. 1)

ढेंगा सं. (पु.) -- गधा, मूर्ख व्यक्ति, उस ढेंगे को उसे लाचार होकर सिर पर रखना पड़ा। (म. प्र. द्वि., खं. 9, पृ. 128)

ढेला सं. (पु.) -- ईंट, पत्थर आदि का छोटा टुकड़ा, ध्यान न था कि राह में क्या है, काँटा, कंकड़, ढोंका, ढेला। (सर., अक्तू. 1918, पृ. 176)

ढेलेबाजी सं. (स्त्री.) -- ढेले किसी पर फेंकने की क्रिया या भाव, छात्रों ने घाटकोपर में जुलूस निकाला और ढेलेबाजी की। (दिन., 14 अक्तू., 66, पृ. 19)

ढेंसर वि. (अवि.) -- अधपका (आम), वैसे ढेंसर तो ढूसरे भी होने लगते हैं, पर अगता तो एकदम भदरा जाते हैं। (दिन., 7 अप्रैल, 67, पृ. 39)

ढैया सं. (स्त्री.) -- देहरी, स्थान, मोहंजोदाड़ो और हड़प्पा केवल हमारे गौरव-बोध को छूनवाली ढैया ही नहीं है बल्कि तत्कालीन सभ्य जगत् के वैचारिक एवं सांस्कृतिक आदान-प्रदान के केंद्र भी हैं। (दिन., 29 मार्चा, 1970, पृ. 9)

ढोका सं. (पु.) -- बड़ा टुकड़ा, ढोंका, सड़कों पर पहाड़ियों के ढोके टूट-टूटकर आ गिरे। (ग. शं. वि. रच., खं. 1, पृ. 253)

ढोंका सं. (पु.) -- मिट्टी या पत्थर का बड़ा टुकड़ा, ध्यान न था कि राह में क्या है, काँटा, कंकड़, ढोंका, ढेला। (सर., अक्तू. 1918, पृ. 176)

ढोंग-धतूरा सं. (पु.) -- ढोंग भरी बात या पाखंडपूर्ण काम, (क) मेरी जब-जब उनसे भेंट हुई, किसी-न-किसी ढोंग-धतूरे, दंभिकता और झूठे मुखौटा के दर्शन हुए। (दिन., 27 जून 1971, पृ. 9), (ख) रोमन कैथलिका लोग एक प्रकार के मूर्तिपूजक हैं और ढोंग-धतूरों में अधिक विश्वास विश्वास करते हैं। (सर., अप्रैल 1911, पृ. 168)

ढोंग सं. (पु.) -- पाखंड, हम नहीं चाहते कि ढोंग का बोलबाला हो। (ग. शं. वि. रच., खं. 2, पृ. 210)

ढोट सं. (पु.) -- मुँह ढकने की पट्टी, ढाटा, अँधेरी रात तो हई है। कोई पहचान भी न सकेगा। दूसरे, वे लोग ढोट बाँध लेंगे। (सर., अग. 1917, पृ. 63

ढोड सं. (पु.) -- ढोटा, अलमस्त, राजा को बताया किय ये ढोड हैं, इन्हें, दीन-दुनिया से कोई मतलब नहीं, बस अफीम खाकर पड़े रहते हैं। (दिन., 6 मई 1966, पृ. 10)

ढोना क्रि. (सक.) -- लाद या उठाकर ले जाना, यहाँ का धन बाहर ढोया चला जा रहा है। (ग. शं. वि. रच., खं. 2, पृ. 225)

ढोर-डाँगर सं. (पु.) -- अनेक प्रकार के जानवर, ढोर, (क) स्वयं ढोर-डाँगरों को लेकर निकल जाता, सारा-सारा दिन गाएँ चराता। (सर., जन. 1937, पृ. 91), (ख) ढोर-डाँगरों की चारे की समस्या कुछ कम कठिन नहीं। (दिन., 16 दिस., 66, पृ. 28)

ढोर सं. (पु.) -- जानवर, कुछ ऐसे लोग हैं जो जंगली ढोरों को पकड़ने में बहुत कुशल हैं। (काद., सित. 1981, पृ. 37)

ढोल की पोल खोलना मुहा. -- कच्चा चिट्ठा बतलाना, कमियों को उजागर करना, (क) उनके विरोधी उनकी नीति के ढोल की (के) पोल खोल रहे हैं। (दिन., 14 मई, 67, पृ. 37), (ख) चीन ने संधि की ढोल की पोल खोलने में कृपणता नहीं बरती। (दिन., 14 जुलाई, 68, पृ. 34)

ढोल के भीतर पोल कहा. -- आडंबर के पीछे तत्त्व नहीं होता, उन्हें पता लगा कि ढोल के भीतर पोल है और यदि कुछ और दिन हालत ऐसी ही रही, तो ढोल की भी खैर नहीं। (ग. शं. वि. रच., खं. 2, पृ. 125)

ढोल बजाना / पीटना मुहा. -- प्रचार करना, (क) प्रजा को अधिकार प्रदान करने का ढोल बजाना भी आजकल फैशन का एक अंश है। (मा. च. रच., खं. 9, पृ. 59), (ख) पाकिस्तानी अखबारों और लीडरों को जनमत संग्रह का ढोल पीटते पाते हैं। (ते. द्वा. प्र. मि., पृ. 111)

ढोल में पोल कहा. -- आडंबर में तत्त्व या सार का अभाव, (क) वी. पी. सिंह ढोल में पोल की बात तो कर रहे हैं पर पोल है कहाँ, जानते हुए भी नहीं बतला रहे। (किल., सं. म. श्री., पृ. 356), (ख) हर ढोल में पोल है और जितना ही ढोल पीटा जाता है उतनी ही पोल बजती है। (दिन., 30 जुलाई, 1965, पृ. 11)

ढोल-ढमाका सं. (पु.) -- ढोल आदि अनेक बाजों का समूह, गाजा-बाजा, 22 मई को श्रीलंका ने अपने गणराज्य की पहली सालगिरह मनाई, लेकिन उस दिन ढोल-ढमाके नहीं बजे। (रा. मा. संच. 1, पृ. 198)

तईं के तईं -- संबंधबोधक, के प्रति, (क) इसका कारण शायद यह है कि लिखने का मतलब आपके तईं विश्लेषण करना, तर्क रखना, पक्ष-विपक्ष बताना और निर्णय के लिए हरेक को स्वतंत्र छोड़ देना नहीं होता। (रा. मा. संच. 1, पृ. 391), (ख) नेहरू ने संसदीय प्रजातंत्र का सारा टीमटाम कायम रखा, लेकिन अपने तईं ये नेता एक हद तक क्रांतिकारी थे। (रा. मा. संच. 1, पृ. 63)

तकाजा सं. (पु.) -- अपेक्षा, जरूरत, माँग, ये चित्र पत्रकारिता के तकाजे के साथ-साथ कलात्मक रुचि की माँग भी पूरी करते हैं। (दिन., 30 दिस., 66, पृ. 38)

तक्षणकला सं. (स्त्री.) -- खरादने या तराशने की कला, बढ़ईगीरी या संगतराशी बंबई के शल्पकार श्रीयुत म्हातरे ने तक्षणकला और मूर्तिनिर्माण में बड़ा नाम पैदा किया। (सर., मार्च 1915, पृ. 188)

तखड़ी सं. (स्त्री.) -- तकड़ी, तराजू, संकल्प और भावना जीवन की तखड़ी के दो पलड़े हैं। (वृ. ला. व. समग्र, पृ. 806)

तंग सं. (स्त्री.) -- 1. परेशान, दुःखी, आपकी सहधर्मिणी का स्वभाव कुछ उग्र था, जिसके कारण आप कभी-कभी बहुत तंग रहा करते थे। (सर., अप्रैल 1915, पृ. 201), 2. सँकरा, संकीर्ण, करामातों के विषय में यह सुना गया है कि उन्हें तंग हदों में रखा जाना चाहिए। (गु. र., खं. 1, पृ. 312)

तगकरा सं. (पु.) -- चर्चा, जिक्र, स्त्री की प्रशंसा और अपनी भाग्यहीनता के तगकरों का सिलसिला छेड़ दिया। (सर., सित. 1920, पृ. 139)

तंगखयाली सं. (स्त्री.) -- संकीर्ण सोच, संकीर्ण वैचारिकता, समाचारों के आदान-प्रदान के मार्ग में सबसे बड़ी बाधा हमारी तंगखयाली है। (दिन., 2 दिस., 66, पृ. 43)

तगड़ा पड़ना या बैठना मुहा. -- भारी पड़ना, अधिक शक्तिशाली सिद्ध होना, (क) इटली की साम्यवादी सरकार मुसोलिनी को फाँसी पर लटका देती परंतु मुसोलिनी तगड़े पड़े। (न. ग. र., खं. 2, पृ. 167), (ख) इसलिए युद्ध में स्पेनिश लोगों की अपेक्षा रिफियन लोग तगड़े बैठते हैं। (न. ग. र., खं. 2, पृ. 223)

तगड़ा वि. (विका.) -- भारी, जोरदार, राष्ट्रपति पर संसद का दबाव काफी तगड़ा है। (दिन., 30 दिस., 66, पृ. 36)

तंगदिल सं. (पु.) -- संकीर्ण दिलवाला, अनुदार, (क) जो तुर्क पहले दुनिया भर में तंगदिल और मजहबी गिने जाते थे। वही मुसलमानों में सबसे ज्यादा आजाद खयाल हो रहे हैं। (सर. मार्च 1925, पृ. 368)

तगादा करना मुहा. -- पुनः माँग करना, अब तो पैसे के लिए तगादा करते हैं। (दिन., 14 फर., 1971, पृ. 40)

तंगी सं. (स्त्री.) -- कमी, अभाव, उसकी गद्दी तब तक काँटों की रहेगी ... जब तक अन्न की तंगी दूर नहीं हो जाता। (दिन., 16 जुलाई, 1965, पृ. 14)

तजना क्रि. (सक.) -- छोड़ना, त्यागना, यद्यपि अधिकारों का तजना सबको खलता है। (ग. शं. वि. रच., खं. 2, पृ. 381)

तजबीज सं. (स्त्री.) -- प्रस्ताव, पानी पर छिड़कने के लिए मिट्टी का तेल आदि मुफ्त देने की तजवीज करें। (सर., फर. 1911, पृ. 72)

तड़ से क्रि. वि. -- तत्काल, झटपट, तड़ से दे देते हैं। (काद., जन. 1982, पृ. 61)

तड़क-भड़क सं. (स्त्री.) -- चमक-दमक, दिखावे की तड़क-भड़क की जाती है। (रा. मा. संच. 2, पृ. 13)

तड़क सं. (स्त्री.) -- टूट, इस तड़क से दो पार्टियाँ बन जाएँगी। (रा. मा. संच. 1, पृ. 396)

तड़कना क्रि. (अक.) -- टूटना, पाकिस्तानी बल्लेबाज बड़े टोटल के दबाव से तड़कनेवाले नहीं थे। (ज. स., 16 सित. 2007, पृ. 6)

तड़पड़ाना क्रि. (अक.) -- छटपटाना, विकल होना, तड़पना, (क) वह स्वयं मुल्क का मालिक बनने के लिए तड़पड़ा रहा है। (किल., सं. म. श्री., पृ. 55), (ख) लगातार तारों की ताबड़तोड़ ने तबीयत को तड़फड़ा दिया। (शि. पू. र., खं. 4, पृ. 343), (ग) गुलामी की जंजीर तोड़ डालने के लिए तड़फड़ा उठा है। (म. का मतः क. शि., 13 अक्तू. 1928, पृ. 255)

तड़ातड़ क्रि. वि. -- झटपट, तुरत-फुरत, (क) आलोचना की नहीं कि उसने तड़ातड़ कार्यक्रम देकर समीक्षकों की जबान बंद कर दी। (दिन., 14 सित., 1969, पृ. 28), (ख) संशोधक लोग तड़ातड़ अपना काम समाप्त कर संशोधित प्रूफ को फौरन लौटा देते हैं। (सर., मार्च 1909, पृ. 112)

तड़ातड़ी सं. (स्त्री.) -- जल्दी-जल्दी गोलियों के चलने का शब्द.1. जब वे मोरचे के निकट पहुँचे तब अफगानों की गोलियों की तड़ातड़ी मची और अकालियों की भारी हानि हुई। (सर., अक्तू. 1909, पृ. 429),2. जल्दी, इसी समय महाजनों ने तड़ातड़ी मचाना और नालिश-पर-नालिश करना शुरू किया। (म. प्र. द्वि., खं 5, पृ. 289)

तड़ीपार सं. (पु.) -- जिलाबदर, जिलाबदल, राजेंद्र व्यास पर एक वर्ष का तड़ीपार आदेश रद्द कर दिया गया है। (रवि. 19 मार्च, 1989, पृ. 4)

तड़ेबंदी सं. (स्त्री.) -- खेमेबाजी, धड़ेबंदी, किंतु यह तंड़ेबंदी वहाँ तक आ पहुँची है ..., (चं. श. गु. र., खं. 2, पृ. 332)

तंत सं. (पु.) -- सार, तत्त्व, उसकी बात में कोई तंत हो या न हो, मुझे वह आदमी पसंद है। (ए. सा. डाय. : ग. मा. मु., पृ. 92)

तत्ता थम्मा करना मुहा. -- शांत करना, मान-मनौवल करना, मुझे बिगड़ा देखकर उन्हीं में से एक बुढ़िया तत्ता-थम्मा करने लगी। (सर., सं. 5, पृ. 526)

तदबीर सं. (स्त्री.) -- युक्ति, उपाय, प्रस्ताव पास कराने के लिए सब प्रकार की तदबीरों से काम लिया गया था। (म. का मतः क. शि., 3 अप्रैल, 1924, पृ. 145)

तंदेही सं. (स्त्री.) -- मेहनत, परिश्रम, साहब बहादुर ने बड़ी तंदेही मुस्तैदी से बहुत...बेहतर और माकूल बनवाया है। (प. प. : ज. प्र. च., पृ. 116)

तंद्रा सं. (स्त्री.) -- हलकी नींद, ऊँघ, तंद्रा को तोड़कर जीवन को गतिशील बनाना आवश्यक है। (काद. : सित. 1978, पृ. 17)

तनती सं. (स्त्री.) -- तनातनी, तनाव उत्पन्न होने की अवस्था या भाव, तनाव, त्रिपाठी और गुप्त में फिर तनती नजर आ रही है। (दिन., 21 मई, 67, पृ. 19)

तनहा वि. (अवि.) -- अकेला, इनमें से कोई एक उपादान तनहा कुछ नहीं कर सकता। (म. का. मतः क. शि., 29 मई 1926, पृ. 209)

तना हुआ वि. (विका.) -- कसावट-भरा, कसा हुआ, यह शुरू से आखीर तक चक्षुष और घटनात्मक स्तर पर भी एक तनी हुई फिल्म है। (दिन., 19 जन. 1975, पृ. 28)

तनाजा सं. (पु.) -- संघर्ष, वैर-विरोध, (क) हिंदू-मुसलिम तनाजे पर लिखते हुए महात्माजी ने इस मनमुटाव के मूल कारणों का दिग्दर्शन कराया है। (न. ग. र., खं. 2, पृ. 40), (ख) जब हर चप्पे पर तनाजा पड़ने लगा तो वह पागल हो गया। (प. परि. रेणु, पृ. 26)

तनातनी सं. (स्त्री.) -- अनबन, वैमनस्य, वैर-विरोध, (क) दोनों देशों के लोगों में तनातनी बड़ाते रहने का अधिकार नहीं मिल जाता। (दिन., 30 अप्रैल 1972, पृ. 15), (ख) उन दिनों हिंदू-मुसलमानों की तनातनी नहीं थी। (बे. ग्रं., प्रथम खं., पृ. 13)

तनुज्जली सं. (स्त्री.) -- पदावनति, अवनति, न उन्हें सड़क पर घसीटा गया और न तनुज्जली करके उन्हें क्लर्क ही बनाया गया। (दिन., 10 सित., 67, पृ. 34)

तने पाँव क्रि. वि. -- अकड़कर, अकड़ दिखाते हुए, मजबूती से अपने हरियाले कदमों से कौंसिल की भूमि हरी-हरी करने के लिए तने पाँव दौड़ लगाने की तैयारी न करें। (मा. च. रच., खं. 9, पृ. 121)

तन्मनस्क वि. (अवि.) -- तन्मय, एकाग्र, एकचित्त, उनके पढ़ने का ढंग ऐसा अच्छा है कि लोग तन्मनस्क हो जाते हैं। (सर., मार्च 1912, पृ. 126)

तपा हुआ वि. (विका.) -- निखरा हुआ, साधनारत, दिल्ली नगर निगम की मेयर अरुणा आसफ अली एक तपी हुई क्रांतिकारिणी हैं। (सा. हि., 14 सित. 1958, पृ. 4)

तपा-तपाया वि. (विका.) -- सेवा और साधना से पुष्ट, निखरा हुआ, ये दोनों नवयुवक मित्र तपे-तपाए हुए देशभक्त हैं। (न. ग. र., खं. 3, पृ. 254)

तबा सं. (स्त्री.) -- तबीयत, प्रकृति, मन, उन्होंने बार-बार यही कहा कि जिसकी तबा चाहे कृष्ण से कर ले। (सर., भाग 28, सं 4, मार्च 1927, पृ. 439)

तबीयत फड़कना या फड़क उठना मुहा. -- मन अत्यधिक प्रसन्न होना, उन्हें पढ़कर तबीयत फड़क उठती है। (नि. वा. : श्रीना. च., पृ. 775)

तबीयत बहकना मुहा. -- मन बिदक जाना, सरकार की ओर से उनकी तबीयत बहक जाती है। (सर., अप्रैल 1959, पृ. 267)

तंबू ताना मुहा. -- आधिपत्य जमाना, कब्जे में करना, दिल्ली प्रदेश कांग्रेस कमेटी के जागीरदार श्री ब्रह्मप्रकाश ने जल्दी-जल्दी कदम उठाते हुए नाप-जोख शुरू कर दी कि कितनी जमीन पर अपना तंबू ताना जा सकता है। (दिन., 1 अप्रैल, 1966, पृ. 15)

तमककर क्रि. वि. -- क्रुद्ध होकर, तैश में आकर, आवेशित होकर, इसी रणबाँकुरे ने तमककर न सिर्फ प्रतिवाद किया प्रत्युत खासी फटकार भी बताई। (सर., भाग 28, सं 4, मार्च 1927, पृ. 438)

तमकना क्रि. (अक.) -- क्रुद्ध होना, (क) छोटी-छोटी बातों पर तमकना शोभा नहीं देता। (काद., दिस. 1987, पृ. 9), (ख) बात सुनते ही वह तमकने लगा। (काद. : अग. 1975, पृ. 16)

तमगा सं. (पु.) -- प्रशस्ति चिह्न, पदक, मेडल, कानून में तो यह भी नहीं लिखा कि सुप्रीम कोर्ट द्वारा भ्रष्ट आचरण का तमगा मिलने के बाद किसी प्रधानमंत्री को इस्तीफा देना जरूरी होगा। (रा. मा. संच. 1, पृ. 277)

तमाचा सं. (पु.) -- प्रहार, आघात, राजभाषा विधेयक का बहुमत से स्वीकृत किया जाना प्रजातंत्र के गाल पर करारा तमाचा है। (हि. पत्र. के गौरव बां. वि. भट., सं. ब., पृ. 296)

तमाशगीर सं. (पु.) -- तमाशा देखनेवाला, तमाशबिन , देश उसकी ओर एक तमाशगीर की भांति देख रहा है ।(स .सा . पृ . 107)

तयतोड़ सं. (पु.) -- भाव-ताव, मोल-तोल, लोकतंत्र की रक्षा के लिए गद्दी-पलट अभियान में लगी हुई नई कांग्रेस जिस दिन अपनी सबसे बड़ी लूट-उत्तर प्रदेश--के तयतोड़ पर दिल्ली में मंत्रणा करने बैठी थी, ... (दिन., 12 अप्रैल, 1970, पृ. 11)

तर-तम भाव सं. (पु.) -- तुलनात्मक भाव, तर-तम भाव से मालूम होगा कि हमारा मध्य प्रांत इस विषय में और भी अधिक गिरी हुई हालत में है। (मा. च. रच., खं. 10, पृ. 30)

तरमाल सं. (पु.) -- पौष्टिक और गरिष्ठ पदार्थ, पेट काटकर देवताओं को तरमाल जिमाओ। (साक्षा., मार्च-मई 77, मृ. पां., 28)

तरलाई सं. (स्त्री.) -- तरलता, तरलाई का स्वाभाविक गुण नीचे, फिर नीचे फिर नीचे की ओर जाना होता है। (मा. च. रच., खं. 4, पृ. 173)

तरह देना मुहा. -- अनदेखी कर जाना, उपेक्षा कर देना, (क) वह समझकर भी तरह दे गया। (का. कार. : निराला, पृ. 8), (ख) युवकों की रचनाएँ कला की दृष्टि से सदोष हो सकती हैं, तो भी वे तरह देने योग्य हैं। (सर., भाग 30, खं. 1, जन.-जून 1929, पृ. 103)

तराई सं. (स्त्री.) -- निचली भूमि, तलहटी, क्योंकि भैंसे सारी तराई में चक्कर लगाया करते हैं जब जिस गाँव के निकट पहुँचते हैं तभी वहाँ इनका शिकार होता है। (सर., अक्तू. 1915, पृ. 232)

तरियाझार वि. (अवि.) -- खाली, देखा तो गाड़ी तरियाझार हो रही है। (सर., नव. 1941, पृ. 445)

तरी सं. (स्त्री.) -- ठंडक, शीतलता, नमी, संयति (क) सावन का महीना आँख पर तरी बरसा रहा था। (का. कार. : निराला, पृ. 5), (ख) जंगल के कटने से जमीन की तरी जाती रही। (सर., मई 1909, पृ...), (ग) सभी लोगों से कहा गया कि ऋण उसी को मिलेगा जिसके पास कुछ तरी है। (रवि. 13 दिस., 1981, पृ. 15)

तरेड़ सं. (स्त्री.) -- (टेढ़ी-मेढ़ी) दरार, गहरी झुर्रियाँ जैसे दीवार पर तरेड़ें पड़ गई हों। (काद., मार्च 1976, पृ. 148)

तरेरना क्रि. (अक.) -- कठोर दृष्टि से देखना, क्रोधपूर्वक देखना, इतना ही दोष है कि उन्होंने आँखें खुली रखीं और बुराइयों की ओर तरेरकर देखा। (दिन., 30 नव., 1969, पृ. 23)

तर्क सं. (पु.) -- उत्सर्ग, त्याग, परित्याग, इसके लिए वे अपने मजहब को भी तर्क करने के लिए तैयार हैं। (सर., मार्च 1925, पृ. 366)

तर्कना सं. (स्त्री.) -- विवेचन, व्याख्या, तर्क-वितर्क, वैसे लोग हमारे देश में कब उत्पन्न होंगे, इसकी ठीक-ठीक तर्कना भी नहीं हो सकती। (गु. र., खं. 1, पृ. 347)

तर्ज सं. (स्त्री.) -- ढंग, बनावट, दो-दो, तीन-तीन मकानों के बाद छोटी-छोटी गलियाँ भी मिलती हैं। इन सब मकानों का तर्ज एक सा है। (सर., नव. 1918, पृ. 233)

तर्राट वि. (अवि.) -- तर्रार, तेज, चुस्त, साफ और तर्राट शब्दों में उन्होंने अपना दृष्टिकोण उपस्थित किया। (कर्म. : 12 अप्रैल 1947, पृ. 17)

तलछट सं. (स्त्री.) -- तल पर जमी मैल, मलिन अंश, (क) यहाँ संस्कृति और इतिहास की तलछट उलीचनेवाले किस मानव समस्या का समाधान खोज रहे हैं। (का. : मई 1975, पृ. 60), (ख) जमाने की तलछट से ही किसी तरह की सांत्वना पाने की कोशिश करते हैं। (कुं. क. : रा. ना. उ., पृ. 92)

तलछटी वि. (अवि.) -- सतही, नाम मात्र का, तब की कांग्रेस से इनका कोई तलछटी वास्ता भी रह गया है या नहीं। (हि. ध., प्र. जो., पृ. 419)

तलबी सं. (पु.) -- तलब करने की क्रिया या भाव, बुलाहट, आखिर पार्वती की तलबी का आदेश दिया गया, लेकिन वह हाजिर नहीं हुई। (काद., जन. 1978, पृ. 51)

तलमलाना क्रि. (अक.) -- तिलमिलाना, बातों की चोट उसके ह्रदय पर ऐसी लगती कि वह तलमला उठता था। (वि. भा., जन. 1928, सं. 1, पृ. 202)

तलवार की धार पर खेलना मुहा. -- जोखम-भरा काम करना, सामाजिक सुधार के सिद्धांतों का प्रचार करना और तलवार की धार पर खेलना एक समान है। (मा. च. रच., खं. 2, पृ. 27)

तलवार पर मखमल का गिलाफ चढ़ना मुहा. -- असलियत छिपी होना, बुढ़िया से मिलते तो बहुत सत्कार का भाव दिखाते। तलवार पर मखमल का गिलाफ चढ़ा हुआ था। (सर., जुलाई 1926, पृ. 7)

तलवार लटकना मुहा. -- (जान पर) आ बनना, सभी किसानों के सिर पर बंदोबस्त के हेर-फेर की तलवार लटकती रहती है। (ग. शं. वि, रच., खं. 2, पृ. 73)

तलवारें भाँजना मुहा. -- युद्ध के लिए तैयार रहना, पड़ोसी देश पाकिस्तान के दरवाजे पर बड़ी शक्तियाँ तलवारें भाँज रही हैं। (दिन., 6 से 12 जन. 1980, पृ. 15)

तलवे घिसना या घिस जाना मुहा. -- प्रयास करते-करते पस्त होना, दौड़-धूप करते-करते पस्त हो जाना, विदेश मंत्रालय के चक्कर लगाते-लगाते उनके तलवे घिस गए। (दिन., 2 जून, 68, पृ. 14)

तलवे चाटना या सहलाना मुहा. -- खुशामद करना, (क) आज लोग अँगरेजी के तलवे सहलाना चाहते हैं। (सा. हि., 17 मई, 1959, पृ. 5), (ख) हमने लाख बार मालिकों के तले सहलाए, कुछ भी नहीं होता, हमारी सरकार भी बेगानी लगती है। (दिन., 11 जुलाई, 1971, पृ. 39)

तलामली सं. (स्त्री.) -- घबराहट, बेचैनी, कभी बाहर कभी भीतर कलेजे में तलामली सी मची थी। (क. ला. मिश्रः त. प. या., पृ. 127)

तलुए चाटना मुहा. -- तलवे चाटना, खुशामद करना, चिरौरी करना, (क) अँगरेज सरकार हमारे तलुए चाटने के लिए बाध्य होगी। (म. का मतः क. शि., 8 नव. 1924, पृ. 171), (ख) आप भी प्रधानमंत्री के तलवे चाटने लगे हो। (हि. ध., प्र. जो., पृ. 87)

तल्ला सं. (पु.) -- खंड, मंजिल, प्रखंड, अपने पिछले प्रवास में रहने के लिए एक तल्ला भाड़े पर लिया। (त्या. भू. : संवत् 1986, (1927), पृ. 318)

तसबीरदार वि. (अवि.) -- चित्रों से युक्त, चित्रयुक्त, इधर-उधर कुछ काली कुरूप स्त्रियाँ तसबीरदार पोस्टकार्ड बेचती फिरती थीं। (सर., मार्च 1909, पृ. 109)

तस्कीन सं. (स्त्री.) -- शांति, तसल्ली, संतोष, लोगों के सुलगते हुए सीनों को तस्कीन देते हुए अपनी अमृत वाणी का उन्हें पान कराते। (दिन., 28 दिस., 1969, पृ. 10)

तह सं. (स्त्री.) -- परत, राज्य और हिंदू संस्कृति ऐसे रहे मानो तेल और पानी की तहें हों। (रा. मा. संच. 1, पृ. 57)

तहबंद सं. (पु.) -- तहमत, लुंगी, पुरुषों के सादे-वस्त्र एक कुर्ता और एक तहबंद लेकिन साफ। (सर., सित. 1937, पृ. 229)

तहरीरी वि. (अवि.) -- लिखा हुआ, लिखित, पंचायत के सरपंच के सामने हाजरि होकर तहरीरी या जबानी दरख्वास्त देनी पड़ती है। (सर., जन. 1928, पृ. 26)

ताक पर (में) रखना या देना मुहा. -- उपेक्षा या अवहेलना करना, दूर हटाना, (क) बाकी बातें अपने ह्रदय के प्रतिकूल ताक पर रख दें। (मा. च. रच., खं. 9, पृ. 72), (ख) प्रजा-पक्ष के सदस्यों की राय ताक पर रख दी गई। (सर., भाग-25, खं. 1, अप्रैल 1924, सं. 4, पृ. 398), (ग) दूसरी ओर कोढ़ में खाज यह कि कोई भी राजनैतिक संस्था अपने स्वार्थ को ताक में नहीं रखना चाहती। (सुधा, फर. 1935, पृ. 141)

ताक-झाँक करना मुहा. -- चोरी-छिपे देखना, लुक-छिपकर देखना, प्रेस कौंसिल को हमारे व्यावसायिक मामलों में ताक-ढाँक करने का कोई अधिकार नहीं है। (रा. मा. संच. 2, पृ. 376)

ताक सं. (पु.) -- आला, ताखा, (क) ताक में ताश, शतरंज, चौसर सब रखे रहते थे। (गँ. माँ. या. : रा. ना. उ., पृ. 35), (ख) उस ताक में काले पत्थर की कावेरी देवी की एक सुंदर मूर्ति स्थापित है। (सर., अग. 1937, पृ. 109)

ताकना क्रि. (सक.) -- देखना, जिस पदार्थ को हम ताक रहे हैं, उसके अतिरिक्त सब पदार्थ वास्तव में दो-दो दिखाई देते हैं। (चं. श. गु. र., खं. 2, पृ. 282)

ताख सं. (पु.) -- ताकत आला, अपनी नियत जगह सघन कबीले में सब लोग एक-दूसरे से जुड़े और हर आदमी अपने निर्धारित सामाजिक ताख में बैठा हुआ है। (रा. मा. संच., 2, पृ. 150)

ताजा-टटका वि. (विका.) -- बिलकुल ताजा, आधुनिकीकरण का मतलब सिर्फ ताजा-टटका या समसामयिक होना नहीं है। (धर्म., 10 जुलाई, 1966, पृ. 10)

ताड़-चढ़ा वि. (विका.) -- आसमान-छूता, गगनचुंबी, बहुत ऊँचा, ताड़-चढ़ी दार्शनिकता इत्मीनान से यह साधारणीकरण कर पाती है। (दिन., 6 जून, 67, पृ. 41)

ताड़ना1 क्रि. (सक.) -- भाँपना, (क) ताड़ गए यहाँ दाल नहीं गलने की। (माधुरीः अक्तू. 1927, पृ. 372), (ख) इस स्पष्ट संकेत को वे नहीं ताड़ सके कि कश्मीर समस्या को बद से बदतर बनाने में ब्रिटिश राजनीतिज्ञों का हाथ है। (कर्म., 28 सित. 1948, पृ. 3), (ग) फिलिप के आदमी इस तरह ताड़ लिए गए। (प्रभा : बा. कृ. न., झंडा अंक, पृ. 21)

ताड़ना2 सं. (स्त्री.) -- डाँट-फटकार, (क) अध्यापक की यह ताड़ना बहुत अपमानजनक प्रतीत हुई। (वीणा, दिसंबर 1936, पृ. 104), (ख) माँ को परिवार में जो ताड़ना मिलती थी, उसे सिर्फ मैंने देखा है। (मा. च. रच., खं. 3, पृ. 77)

ताड़ित वि. (अवि.) -- प्रताड़ित, ... जो ताकत उन्हें ताड़ित, अपमानित और बेदम करने के लिए काफी से अधिक थी। (मा. च. रच., खं. 10, पृ. 39)

ताड़ी सं. (स्त्री.) -- तीली, ... आतंकवाद की छतरी का उस देश में क्या होगा ? बस उसकी ताड़ियाँ ही कबाड़े में नजर आएँगी ? (रा. मा. संच. 1, पृ. 500)

ताता थैया करना मुहा. -- नाचना, उछलकूद मचाना या ताल ठोंकना, आप प्रतिक्रिया में ताता थैया करते फिरें तो आपका क्या बनेगा, क्या बचेगा। (हि. ध., प्र. जो., पृ. 87)

ताता थैया करवाना मुहा. -- नचाना, दौड़-धूप में प्रवृत्त करना, तब से वे उससे लगातार ताता थैया करवा रही हैं। (हि. ध., प्र. जो., पृ. 307)

ताँता बँधना या लगना मुहा. -- अटूट क्रम चलना, सिलसिला चलना, (क) नौचंदी मेले में लोगों का ताँता रात दस बजे तक बँधा रहता है। (दिन., 24 मार्च, 68, पृ. 41), (ख) भाषणों और वाद-विवाद का ताँता सा बँध गया है। (त्या. भू. : संवत् 1983, पृ. 365), (ग) जीवन में उन्नति और सुख शांति का ताँता बँधा रहेगा। (शि. पू. र., खं. 3, पृ. 488)

ताँता लगाना मुहा. -- ताँता बाँधना, सिलसिला शुरू करना, सरकार ने अध्यादेशों का ताँता लगा दिया। (नि. वा. : श्रीना. च., पृ. 763)

तादृश वि. (अवि.) -- उसके समान, वैसा ही, यह आवश्यक है कि उसका तादृश सामना किया जाय। (सर., जून 1940, भाग-41, सं 6, पृ. 592)

तान तोड़ना मुहा. -- गुस्सा उतारना, मिजस्ट्रेट लोग स्वराज्य आंदोलन में भाग लेनेवालों पर अप्रसन्नता की तान तोड़ते पाए गए हैं। (ग. शं. वि. रच., खं. 2, पृ. 441)

तानना क्रि. (सक.) -- फैलाना, लगाना, थोपना, इसलिए बंबई की सरकार ने अपना दंड उन पर ताना है, और इसलिए मद्रास सरकार ने उन पर अपना तीसरा नेत्र उघारा है। (ग. शं. वि. रच., खं. 2, पृ. 320)

तानसेन की इमली सं. (स्त्री.) -- श्रद्धा-पात्र, महात्मा पीटर की मूर्ति के एक पैर को लोगों ने चूम-चूमकर और छूकर तानसेन की इमली की तरह बिलकुल घिसकर पतला का डाला है। (सर., अप्रैल 1911, पृ. 167)

ताना कसना या मारना मुहा. -- व्यंग्य करना, (क) जो बड़ों पर ताना कसने में अपना बड़प्पन मानते हैं ..., (हि. पत्र. के गौरव, बां. बि. भट., सं. ब., पृ. 188), (ख) वे मानो कुलकते हुए ताना मारते हैं कि यही लोग स्वराज्य लेंगे। (ग. शं. वि. र., पृ. 420)

ताना-तिशना सं. (पु.) -- आक्षेप, व्यंग्य, मनसारामजी की लेखमाला में ताने-तिशने की मात्रा अधिक है। (चं. श. गु. र., खं. 2, पृ. 304)

ताना-बाना बुनना मुहा. -- रचना करना, जोड़-तोड़ भिड़ाना, (क) नौकरशाही किस प्रकार विपरीत ताना-बाना बुनती है यह इस निदेशालय के क्रियाकलापों में देखा जा सकता है। (दिन., 14 मई, 67, पृ. 41), (ख) आधुनिक सभ्यता का पूरा ताना-बाना ही एक चीज अनुशासन से बुना गया है। (सा. हि., 27 मई 1961, पृ. 3), (ग) अंतर्मन कुछ दूसरा ही ताना-बाना बुन रहा था। (बे. ग्रं., प्रथम खं., पृ. 8)

ताना-बाना रचना मुहा. -- ताना-बाना बुनना, रूपरेखा तैयार करना, जिनके बल पर श्रद्धेय पांडुरंग शास्त्री ने स्वाध्याय का पूरा ताना-बाना रचा था। (स. दा. : अ. नं. मिश्र, पृ. 68)

ताना-बाना सं. (पु.) -- बनावट, रूपरेखा, (क) पार्टी के प्रति नई वफादारियों का ताना-बाना कायम होना शेष है। (रा. मा. संच. 1, पृ. 312), (ख) सत्य पर जीवन का ताना-बाना बुनने के लिए कला-सृष्टि ने सभी विषयों को अपना उपकरण बनाया। (मा. सा. सं. ओ. श., भाग-1, पृ. 168), (ग) जीवन के सारे ताने-बाने में यथार्थ और मिथक का अपूर्व मिश्रण रहता है। (रचनाः अज्ञेय, पृ. 15)

तानेजनी सं. (स्त्री.) -- एक-दूसरे को ताने देने की क्रिया या भाव, तानाकशी, तानेजनी हुई पर साहित्य के सर्वश्रेष्ठ आचार्यत्व की डींग किसी ने नहीं मारी। (नि. वा. : श्रीना. च., पृ. 563)

तानेदार सं. (पु.) -- ताने देनेवाला, व्यंग्य करनेवाला अछूतोद्धार के प्रेमी हों, खिलाफत के तानेदार न हों। (मा. का मतः क. शि., 29 मई 1926, पृ. 209)

ताब सं. (पु.) -- 1. ताव, गुस्सा, वे जरा-जरा सी बात पर ताब खा जाते हैं। (कादः फर. 1978, पृ. 20),2. हिम्मत, शक्ति, ताब है उसकी जो घर से पैर निकाले। (सर., फर. 1937, पृ. 131)

ताबड़तोड़ क्रि. वि. -- तेजी से, एकदम से, (क) अपने राज्य में समाजवादी कार्यक्रम ताबड़तोड़ लागू करने के लिए लुंगी कसकर आमादा हों। (रा. मा. संच. 2, पृ. 51), (ख) हत्यारों ने रास्ते में ही उसे पकड़ लिया और ताबड़तोड़ हमला शुरू कर दिया। (लो. स., 4 मई 1989, पृ. 1), (ग) वह अपने कंधे पर हल रख ताबड़तोड़ निकल पड़ता है . (काद., जुलाई 1987, पृ. 44)

तामझाम सं. (पु.) -- सजावट, साज-सज्जा, आडंबर, (क) संक्षेप में रूस को एक देश मानकर हुकुमत का तामझाम जमाया जाए (रा. मा. संच. 1, पृ. 132), (ख) इतना तामझाम ही रखना है तो भिक्षु काहे को बने। (काद., मार्च 1981, पृ. 21)

तामीर सं. (स्त्री.) -- निर्माण, स्कूलों की नई इमारतों की तामीर का प्रबंधन होगा। (सर., मार्च 1920, पृ. 175)

तारी वि. (अवि.) -- छाया हुआ, आच्छादित, यह गुमान याह्मा खाँ पर सनक की हद तक तारी था कि वे पाकिस्तान के रक्षक हैं। (दिन., 19 दिस. 1971, पृ. 10)

तालपत्री सं. (स्त्री.) -- तारपोलीन, वर्षा से हिफाजत के लिए जिन्हें तालपत्रियों से ढँक दिया गया है। (दिन., 21 फर. 1965, पृ. 44)

तालू न सूखना मुहा. -- कोई बात बार-बार कहते न थकना, ऋषियों का यह कहते-कहते तालू नहीं सूखता था कि सौ बरस सूरज को हम उगता देखें। (गु. र., खं. 1, पृ. 102)

तावान सं. (पु.) -- दंड, जुर्माना, यह है भारी तावान जो हमें अपनी हीन अवस्था के कारण देना पड़ता है . (ग. शं. वि. रच., खं. 2, पृ. 157)

तिकड़म सं. (पु.) -- गहरी चाल, युक्ति या उपाय, (क) उसे मिश्र जी ने ही तिकड़म लगाकर स्वीकार न होने दिया। (दिन., 6 अक्तू. 1968, पृ. 18), (ख) इसके सिवा दूसरों पर तिकड़म होते देख उन्हें जेल विषयक जुर्म करने का साहस कम होता जाता है। (म. प्र. द्वि., खं. 9, पृ. 110), (ग) रात को राजबहादुर ने इस तिकड़म के करने की सोची। (ग. शं. वि. रच., खं. 7 पृ. 39)

तिक्त वि. (अवि.) -- तीखा, तीक्ष्ण, कड़वा, यह अतिशय तिक्त रुचि के लेकर की कृति है। (नि. वा. : श्रीना. च., पृ. 507)

तिक्तता सं. (स्त्री.) -- तीखापन, तीक्ष्णता, इस व्यंग्य में तिक्तता नहीं है। (काद. : जन. 1989, पृ. 107)

तिगड्डम सं. (पु.) -- तीन का गुट, जर्मनी, आस्ट्रिया और इटली का तिगड्डम था। (ग. शं. वि. रच., खं. 2, पृ. 180)

तिगनी का नाच नचाना मुहा. -- अत्यधिक परेशान करना, यह मानना पड़ेगा कि अपहरणकर्तओं ने जनरल जिया को तिगनी का नाच नचा दिया। (रवि., 4 अप्रैल 1981, पृ. 19)

तिगलिया सं. (पु.) -- तिराहा, उस घर की ओट में तिगलिए पर बैठे हैं। (वु. ला. व. स., पृ. 696)

तिगुना वि. (विका.) -- तीन गुना, यदि भारतवासी सोना जोड़ने में दक्ष हैं तो इंग्लैंडवाले तिगुने दक्ष और अमेरिकावाले दस गुने दक्ष हैं। (चं. श. गु. र., खं. 2, पृ. 293)

तिजारत सं. (स्त्री.) -- व्यापार, आदमियों की तिजारत करना मूर्खों का काम है। (सर., सित. 1912, पृ. 472)

तिड़बिड़ाना क्रि. (अक.) -- तिलमिलाना, उनकी तल्ख सीख से मैं तिड़बिड़ा गया। (ब. दा. च. चु. पु., संपा. ना. द., पृ. 78)

तिड़ी देना मुहा. -- धोखा देना, चकमा देना, आज का खुदी-पसंद राजनीतिज्ञ सह्रदय समचिंतक कलाकार को तिड़ी देता दिखाई देता है। (कर्म., 4 सित. 1948, पृ. 3)

तितर-बितर होना मुहा. -- छिन्न-भिन्न हो जाना, बिखर जाना, ब्रिटिश साम्राज्य तितर-बितर हो रहा है। (न. ग. र., खं. 2, पृ. 218)

तितिम्मा सं. (पु.) -- बखेड़ा, झमेला, इस विष की मीमांसा में कुछ लोगों द्वारा वर्तमान हिंदी प्रचारक सभाओं से पृथक् तितिम्मा खड़ा करना ठीक न होगा। (गु. र., खं. 1, पृ. 428)

तिनक उठना मुहा. -- तुनकना, क्रोधित हो जाना, गुस्से में आ जाना, दीदी तिनक उठी थीं, आप क्यों सोचते हैं हमारे समाज में ऐसा कभी संभव हो सकता है। (रवि., 30 अग. 1981, पृ. 40)

तिनकना क्रि. (अक.) -- गुस्सा होना, क्रुद्ध होना, जरा-जरा सी बात में तिनकना ठीक नहीं. (काद., नव. 1980, पृ. 13)

तिनगना क्रि. (अक.) -- तिनकना, गुस्साना, तो फिर दयाल बाबू से आपने सारी बातें क्यों न कह दीं। सावदी तिनगकर बोले। (सर., मई 1943, पृ. 271)

तिया पाँचा करना मुहा. -- निपटारा करना, झगड़े की जड़ समाप्त कर देना, सोचा न रहेगा बाँस न बजेगी बाँसुरी, सो दुकान का तिया पाँचा कर दिया। (काद. : नव. 1967, पृ. 181)

तिरना क्रि. (अक.) -- तैरना, उतराना, सामने आना, (क) इस प्रवाह में कुछ देर बहना-तिरना तीर्थ का ही संस्तरण था। (स. दा. : अ. नं. मिश्र, पृ. 68) (ख) ... उन मुहावरों को पकड़िए जो वहाँ के लोगों के होंठों पर बात-बात में खेलते या तिरते होते हैं। (दिन., 14 जन. 1968, पृ. 39)

तिल का ताड़ बनाना मुहा. -- छोटी सी बात को बढ़ा-चढ़ाकर कहना, बात का बतंगड़ बनाना, इस सारी घटना को तिल का ताड़ बनाकर लिखा है। (कर्म., 15 नव., 1952, पृ. 9), (ख) इसके सिवा वे तिल का ताड़ बनाते समय अपनी आँखों से कहें कि एक सावरकर और गिरधारी लाल की जगह सैकड़ों उन असहयोगी हिंदू-मुसलमानों की गिरफ्तारी देखें। (मा. च. रच., खं. 9, पृ. 316), (ग) इन नेताओं ने तिल को ताड़ बनाकर देश में फूट की आग सुलगा दी है। (म. का मतः क. शि., 17 सित. 1927, पृ. 100)

तिल-तिल कर क्रि. वि. -- शनैः-शनैः, धीरे-धीरे, बिहार में अकाल पिछले बीस साल में तिल-तिल कर पैदा हुआ है। (दिन., 30 अप्रैल, 67, पृ. 11)

तिल-भर भी क्रि. वि. (पद.) -- थोड़ा सा भी, बहिष्कार संबंधी अपने निश्चय से तिल-भर भी इधर-उधर नहीं होना चाहती। (स. सा., पृ. 123)

तिलकित करना मुहा. -- तिलक लगाना, विजय करना, एवरेस्ट को दो-दो बार तिलकित करनेवाले एक मात्र व्यक्ति नवांग गोंबू को पद्यभूषण की उपाधि से विभूषित किया जाएगा। (दिन., 2 जुलाई 1965, पृ. 15)

तिलंगी सं. (स्त्री.) -- पतंग, गुड्डी, क्रांतिकारी पर्चों का लाट साहब ने तिलंगियों की तरह उड़ा दिया। (म. का मतः क. शि., 24 जन. 1925, पृ. 182)

तिलमिलाना क्रि. (अक.) -- छटपटाना, तड़पने लगना, जब आवाज ऊँची होती है तो बगावत का नाम लेकर तिलमिलाते हैं। (मा. च. रच., खं. 9, पृ. 218)

तिलमिलाहट सं. (स्त्री.) -- छटपटाहट, तड़प, लिंग्दोह की इस प्रतिक्रिया में अभिव्यक्त पीड़ा और तिलमिलाहट को महसूस किया जा सकता है। (स. दा. : अ. नं. मिश्र, पृ. 143)

तीक सं. (पु.) -- प्रतीक, हमारे पतन का तीक हमारा हिंदू नाम है जो कभी आर्य था। (सर., अप्रैल 1942, सं 4, पृ. 361)

तीख-चोखा वि. (विका.) -- पैना, धारदार, हिंदी के पास तर्क-युक्ति के तीखे-चोखे तीर भी हैं। (शि.पू.र., खं. 4, पृ. 535)

तीख सं. (पु.) -- उत्तम कार्य, बढ़िया, अपने से श्रेष्ठ कुल के साथ जो संबंध किया जाता है, उसे तीख या उत्तम कार्य कहते हैं। (सर., अक्तू. 1909, पृ. 436)

तीगा करना मुहा. -- कनखियों से देखना, डॉ. साहब के 5 रुपए खर्च तो हुए लेकिन गुजराती जी का तीगा करना बंद हो गया। (दिन., 22 मार्च 1970, पृ. 33)

तीतर-बटेर का साथ मुहा. -- बेमेल संबंध या जोड़ी होना, शर्करालय को देखिए और उसके सखा इंडिया डेवलपमेंट लिमिटेड को भी देख लीजिए। तीतर-बटेर का साथ कैसा सुहावना मालूम होता है। (सर., जुलाई 1920, पृ. 15)

तीता वि. (विका.) -- तीक्ष्ण, तीखा, मम्मी का मुँह कड़वे स्वाद से तीता हो गया। (धर्म., 6 फर. 1966, पृ. 10)

तीन कौड़ी सं. (स्त्री., पदबंध) -- साठ की संख्या, हिंदी भाषी अध्यापकों की संख्या तीन कौड़ी से कम न होगी, परंतु इनमें से कदाचित् एक ने भी अब तक हिंदी में लिखना उचित नहीं समझा। (कु. ख. : दे. द. शु., पृ. 23)

तीन तिगाड़ा काम बिगाड़ा कहा. -- जिस कार्य में तीन लोगों का योगदान होता है वह कार्य बिगड़ जाता है, कहते हैं तीन तिगाड़ा काम बिगाड़ा होते हैं। (काद., जन. 1992, पृ. 124)

तीन तेरह की बात बनाना मुहा. -- बढ़ा-चढ़ाकर कोई बात कहना, तीन तेरह की बातें बनाकर वे अपना मतलब सिद्ध करते रहे। (मधुकर, 16 नवं. 1940, पृ. 9)

तीन तेरह होना मुहा. -- बिखर जाना, नष्ट होना, परस्पर एक-दूसरे पर विश्वास करने से ही व्यवसाय में सफलता होती है अन्यथा थोड़े ही समय में सब तीन तेरह हो जाते हैं। (म. प्र. द्वि. रच., खं. 2, पृ. 172)

तीर सं. (पु.) -- किनारा, उसकी पत्नी ने भी कह दिया कि आज पहलवान को तीर पर भेज देना। (काद., जून 1977, पृ. 49)

तीसमारखाँ सं. (पु.) -- अत्यंत कार्यक्षम व्यक्ति, चतुर सुजान, (क) अच्छा होता यदि ब्रिटेन अपने इस तीसमारखाँ को आयरलैंड और मिस्त्र भेजकर हौसला निकालने का मौका देता। (स. सा., पृ. 116), (ख) निंदक हिंदी के क्षेत्र में ऐसा निंद्य कार्य करते हुए भी तीसमार खाँ के रूप में मान-दान पाते रहते हैं। (कु. ख. : दे. द. शु., पृ. 33)

तुक-तान सं. (स्त्री.) -- क्रम, व्यवस्था, एकरूपता, मुझे यह फिल्म इसलिए अच्छी लगी कि इसमें शुरू से लेकर आखिर तक कोई तुक-तान नहीं है। (दिन., 14 जन. 1966, पृ. 40)

तुक सं. (स्त्री.) -- एकता, मेल, उपयुक्तता, (क) ऐसी दलीलों में कोई तुक नहीं है। (ज. स., प्र. जो., 5 नव. 2006, पृ. 150),(ख) ये कारण निक्सन को सिर्फ झक्की साबित करते है , लेकिन इस किस्से में झक के अलावा कोई तुक भी जरुरी होनी चाहिए (रा. मा . संच . 1 पृ . 150) (ग) चरवारों और बिखरे बेतुकेपन में तुक खोजना ही तो विचार है . (रा. मा. संच. 1, पृ. 370)

तुकबंदी सं. (स्त्री.) -- तुक बैठाने का काम, अत्मानुप्रास, वे अपनी तुकबंदी को वैसा रखें जैसा कि उसकी प्रारब्ध में बदा है, परंतु काव्य की ओर इशारा करने का इरादा न करें। (सा. मी. : कि. दा. वा., पृ. 12)

तुक्कड़ वि. -- तुकबंदी करनेवाला, (क) इस कविता का रचयिता कोई कवि नहीं, एक तुक्कड़ आदमी है। (काद. : अप्रैल 1982, पृ. 20), (ख) इन तुक्कड़ों की या इनके सराहनेवाले हुल्लड़बाजों की भी यह अवस्था होनी चाहिए। (सा. मी. : कि. दा. वा., पृ. 12)

तुक्कड़मार सं. (पु.) -- तुक्कड़, क्यों इतिहास दरबारी सरकारी तुक्कड़मारों तक के गुण गाता। (स्मृ. वा. : जा. व. शा., पृ. 30)

तुख्मी वि. (अवि.) -- बीज से उत्पन्न, बीजू, तुख्मी आम के वृक्ष में ऐसा नहीं होता। कुछ फल छोटे होते हैं, कुछ बड़े होते हैं। (सर., अप्रैल 1921, पृ. 247)

तुतला वि. (विका.) -- अस्पष्ट और विकृत, यह किसी प्रकार सिद्ध नहीं होता कि वह जीवन का तुतला उपक्रम है। (म. सा. सं. ओं. श., भाग-1, पृ. 93)

तुनकना क्रि. (अक.) -- रुष्ट होना या बिगड़ उठना, औरतों में कहासुनी हुई तो तुनक गए। (क. ला. मिश्रः त. प. या., पृ. 151)

तुनतुनी बजाना मुहा. -- राग अलापना, वाहवाही करना, सरकार की तुनतुनी बजाकर दादाभाई ने बड़प्पन प्राप्त किया है। (मा. च. रच., खं. 10, पृ. 73)

तुफैल सं. (पु.) -- कारण, वजह, (क) अंतरिक्ष यात्रा के लिए यह फिजूलखर्ची किस तुफैल में ? (दिन., 03 फर., 67, पृ. 12), (ख) अपना-अपना रंग जमाने के तुफैल में आपस में भिड़ गए। (काद. : मार्च 1987, पृ. 124)

तुफैलिया सं. (पु.) -- अनाहूत व्यक्ति, समारोह कितना ही प्रतिष्ठाजनक क्यों न हो, वे उसमें तुफैलिए या पिछलग्गू की हैसियत से जाना पसंद नहीं करते थे। (काद., जुलाई 1980 पृ. 29)

तुम डार-डार हम पात-पात कहा. -- किसी की चाल का मुँहतोड़ दिया जानेवाला जवाब, एक-दूसरे से बड़कर होना, वियतनाम की तुम डार-डार हम पात-पात मार्का व्यूह-रचना और उसका हौसला कायम है। (दिन., 03 सित., 67, पृ. 36)

तुमुल वि. (अवि.) -- जोरदार, घोर, प्रचंड, उनके भाषण के अंत में तुमुल हर्षध्वनि हुई। (काद., फर. 1981, पृ. 7)

तुँराड़ा वि. (विका.) -- तुंदिल, बड़े पेटवाला, धनवान, न उन दिनों तंदुरुस्ती ही इतनी खराब थी कि अमृतधारा और सुधा सिंधु बेचनेवाले तुँराड़े हो जाएँ। (सर., भाग 28, सं. 4, मार्च 1927, पृ. 437)

तुरुप का पत्ता सं. (पु., पदबंध) -- रंग का पत्ता, काट या जीत का साधन, तुरुप के सारे पत्ते भारत के हाथों में थे। (काद., जन. 1989, पृ. 35)

तुरुप छोड़ना मुहा. -- विजय के लिए गहरी चाल चलना, प्रेजिडेंट जानसन सम्मेलन में एक तुरुप छोड़नेवाले थे। (दिन., 23 अप्रैल, 67, पृ. 34)

तुर्की-बतुर्की तुर्की-ब-तुर्की क्रि. वि. -- तेज लहजे में, (क) गंगादेवी ने भी तुर्की-बतुर्की जवाब दिया होगा। (स. न. रा. गो. : भ. च. व., पृ. 222), (ख) वह तरुण तुर्की-बतुर्की कह रहा है आप ही यहाँ से क्यों नहीं चले जाते। (कर्म., 12 अप्रैल 1947, पृ. 2), (ग) उन्हेंने तुर्की-ब-तुर्की जवाब दिया मैं राजनीति में भजन गाने नहीं आया हूँ। (रवि. 27 नव. से 31 दिस. 1977, पृ. 8)

तुर्फा वि. (अवि.) -- (अवि.), विचित्र, तुर्फो परेशानी यह कि इस क्रूर कर्म को आशीर्वाद संत विनोबा से। (रवि. 1-7 जन. 1978, पृ. 14)

तुर्रा सं. (पु.) -- विशेषता / विलक्षणता, अनोखी बात, (क) सरकार ने अकालियों की हत्या की और ऊपर से तुर्रा यह कि हमने कुछ नहीं किया। (न. ग. र., खं. 2, पृ. 37), (ख) ऊपर से तुर्रा यह कि संगठन प्रतिनिधि की सहमति दंभ भरने लगते हैं। (दिन., 09 मार्च, 69, पृ. 9), (ग) तुर्रा यह है कि कोई भी राह चलता व्यक्ति पत्रकारों को स्वतंत्रता के उपदेश देने को आतुर रहता है। (ग. मं. : पत्र. चु., पृ. 60)

तुर्शी सं. (स्त्री.) -- आक्रोश, कड़वाहट, चर्चिल ने उसी तुर्शी के साथ उत्तर दिया-क्यों ? मैं क्यों पढ़ूँ। (नव., मई 1953, पृ. 59)

तुला बैठना मुहा. -- कटिबद्ध होना, उतारू होना, (क) सरकार अपने निश्चय के अनुसार लगान लेने को तुली बैठी है। (सर., भाग 28, खं 2, सं 1, जुलाई 1927, पृ. 867), (ख) पंजाब का हत्याप्रिय शासक आंदोलनकारियों से जला-भुना और तुला बैठा था कि उसे मौका मिले। (मा. च. रच., खं. 9, पृ. 313)

तुला होना मुहा. -- उतारू होना, कटिबद्ध होना, जिन दिनों सारा यूरोप मुसलमान कौम को कुचलने पर तुला हुआ है, उसी समय भारतीय मुसलमान बाजा बजाने और गाय काटने की जिद कर आपस में जूती-पैजार कर रहे हैं और विदेशी पंजे को मजबूत बनाने में सहायक हो रहे हैं। (मा. च. रच., खं. 10, पृ. 67)

तू-तड़ाक सं. (स्त्री.) -- तूतू-मैंमैं, (क) कंडक्टर बात-बात में विद्यार्थियों से तू-तड़ाक और यात्रियों से व्यंग्य कर रहा था। (दिन., 5 सित. 1971, पृ. 10), (ख) सुना, तहसीलदार से तू-तड़ाकवाली बात हो गई है। (रा. द., श्रीला. शु., पृ. 141), (ग) तू-तड़ाक की बोली, घृणा भरी निगाहें और विद्रूपमय मुसकान किसी भी हालत में सामान्यजन को सरकारी योजनाओं के प्रति आस्थावान नहीं बना सकती। (दिन., 13 अग. 1965, पृ. 26)

तूती बजना मुहा. -- तूती बोलना, खूब चलना, कई सूबों में प्रांतीय सेनापतियों की तूती बजती थी। (रा. मा. संच. 1, पृ. 467)

तूती बोलना मुहा. -- अत्यधिक प्रभाव जमना, आधिपत्य होना, खूब चलना, (क) इस समय दक्षिण अफ्रीका में जनरल हाईजाग के दल की तूती बोल रही थी। (न. ग. र., खं. 2, पृ. 79), (ख) सार्वजनिक कार्यों में बहुमत की तूती ही बोला करती थी। (स. सा., पृ. 63), (ग) हिटलर के नाजी दल की इस समय जर्मनी में तूती बोल रही है। (वीणा, जन. 1935, पृ. 319)

तूतू-मैंमैं सं. (स्त्री.) -- कहा-सुनी, वाद-विवाद, वे अपनी शक्तियाँ तूतू-मैंमैं में नष्ट कर रहे हैं। (ग. शं. वि. रच., खं. 1, पृ. 90)

तूदा सं. (पु.) -- टीला, आस-पास के प्रायः सभी जानवर इसमें बहकर इस स्थान पर आ लगे थे ; क्योंकि यहाँ पर बालू का एक बड़ा भारी तूदा था। (सर., मई 1909, पृ. 191)

तूफान बरपा होना मुहा. -- आफत खड़ी होना, तेरे ओठों के दाँतों से चाँपते ही तूफान बरपा हो जाएगा। (शि. पू. र. खं. 3, पृ. 411)

तूफाने-बदतमीजी सं. (पु., पद.) -- बदतमीजी का तूफान, सांप्रदायिक निर्णय के प्रश्न को उठाते ही देश में वह तूफाने-बदतमीजी बरपा होगी जो अपनी शक्ति को ही नष्ट कर देगी। (सं. परा. : ल. शं. व्या., पृ. 223)

तूमार खड़ा करना मुहा. -- बात का बतंगड़ बनाना, व्यर्थ का विस्तार करना, (क) इन मिश्र बंधुओं ने एक तूमार खड़ा करके अपनी खामखयाली का परिचय ही दिया है। (सर., भाग 30, खं. 1, जन.-जून 1929, पृ. 232), (ख) भ्रष्टाचार का तूमार खड़ा हो गया है। (बे. ग्रं., भाग 1, पृ. 83)

तूमार बाँधना मुहा. -- तिल का ताड़ करना, बड़े-बड़े राजनीतिज्ञ न जानिए क्या क्या तूमार बाँध खयाली पुलाव पकाया करते हैं। (भ. नि., पृ. 75), (ख) इस बात को लेकर खूब तूमार बँधा। (बाल. स्मा. ग्रं. : शर्मा, चतुर्वेदी, पृ. 332)

तूर्यनिनाद सं. (पु.) -- 1. तुरही की आवाज, 2. कोलाहल, सरकारी कर्मचारियों को देखते ही तूर्यनिनाद करने लगते हैं। (म. का मतः क. शि., 11 फर. 1928, पृ. 222)

तूल-कलाम सं. (पु.) -- खीचतान, द्विवेदीजी इस बात पर बहुत तूल-कलाम करते हैं। (म. प्र. द्वि. खं. 1, (बा. मु. गु.), पृ. 346)

तूल-तबील वि. (अवि.) -- बढ़ा-चढ़ाकर कहा हुआ, लंबा-चौड़ा, विशद, (क) इसमें सहस्त्ररजनी चरित्र का जैसा तूल-तबील किस्सा है। (सर., सित. 1913, पृ. 535), (ख) सहस्त्ररजनी चरित्र के समान तूल तबील किस्सों में अलौकिक और अतिरंजित बातों का जमघट रहता है। (सर., मार्च 1922, पृ. 227)

तेजोहत वि. (अवि.) -- तेजहीन, श्रीहत, नैतिकता से च्युत होने पर प्रभावशाली मनुष्य भी तेजोहत हो जाता है। (काद., जन. 1992, पृ. 4)

तेढ़ सं. (स्त्री.) -- तरेड़, दरार, खटास, मन में जहाँ तनिक भी तेढ़ आ जाती है वहाँ कुछ भी नहीं जुड़ता। (कुं. क. : रा. ना. उ., पृ. 70)

तेरना क्रि. (सक.) -- गुजारना, बिताना, दक्षिण अफ्रीका के गोरों ने बड़ी ही दया और कृपा से उन्हें अपने यहाँ जिंदगी तेर कर लेने की आज्ञा दी। (ग. शं. वि. रच., खं. 2, पृ. 16)

तेरी थैली तेरे पास धन गया तो क्या कहा. -- साधन या स्त्रोत का बचा रहना, यह डाकुओं द्वारा लुटे हुए मनुष्य को तेरी थैली तेरे पास धन गया तो क्या हुआ करने के समान है। (मा. च. रच., खं. 9, पृ. 137)

तेहा वि. (विका.) -- अहंकारी, घमंडी, अमेरिका और ब्रिटेन के राजनीतिज्ञ भी बड़े तेहे में थे। (न. ग. र., खं. 2, पृ. 257)

तैश सं. (पु.) -- आवेश, क्रोध, क्रांतिशूर तैश में आकर तर्राटी मारने लगे। (काद. : मई 1975, पृ. 48)

तोड़ा सं. (पु.) -- रकम, जेवर, रुपए रखने की थैली, (क) जनता को बुद्ध बनाकर तोड़े ऐंठना और विदेशी वस्तुओं के चाकचिक्य से चकाचौंध पैदा करना उनका लक्ष्य है। (म. का मतः क. शि., 13 अक्तू. 1923), पृ. 47), (ख) लालखाँ के इशारे से दो पठान खच्चर पर से रुपयों के तोड़े उतारकर एक ओर उठा ले गए। (सर., मई 1926, पृ. 591) (ग) अँगरेज जाति ने चंदा करके उसे तोड़ा प्रदान किया। (म. का मतः क. शि., 21 जू, 1924, पृ. 156)

तोता-रटंत वि. (अवि.) -- रटा-रटाया, (क) लेनिन के देशवाले जो कहें हम लोग उसी की तोता-रटंत आवृत्ति न करें। (दिन., 27 जून 1971, पृ. 9), (ख) ताने असरदार और साफ, मगर दुर्भाग्यवश तोता-रटंत भी। (दिन., 1 अप्रैल 1966, पृ. 24), (ग) यह तोता-रटंत गोरों तक ही नहीं रहती। (मा. च. रच., खं. 10, पृ. 36)

तोताचश्म वि. (अवि.) -- बेवफा, कृतघ्न, एहसान फरामोश, (क) कवि लोग तोताचश्म होते हैं। (ज. क. सं. : अज्ञेय, पृ. 95), (ख) उनकी आँख भी तोताचश्म हो गई और हमारे हाथों के तोते भी उड़ गए। (काद., नव. 1980, पृ. 54)

तोताचश्मी सं. (स्त्री.) -- कृतघ्नता, बेमुरौवती, हद कर दी तुमने कपटता और तोताचश्मी की। (म. का मतः क. शि., 28 जन. 1928, पृ. 251)

तोतेचश्मी सं. (स्त्री.) -- बेमुरौवती, नगरों में आने-जाने और नागरिकों के संसर्ग विशेष से उन्में नाजुक दिमागी, तुनुकमिजाती और तोतेच्शमी जैसे दुर्गुणों का आविर्भाव हो गया है। (सर., अक्तू. 1981, पृ. 174)

तोंद ढीली करना मुहा. -- गाँठ ढीली करना, पैसा खर्च करना, विशेष अभियान से सरकार का उद्देश्य जमाखोरों की तोंदें ढीली करना है। (दिन., 9 जुलाई, 67, पृ. 23)

तोपना-तापना क्रि. (सक.) -- अच्छी तरह ढकना, अँधेरी रात में जहाज को पेड़ों की हरी-हरी डालों से तोपतापकर हम लोग किलेवालों की नजर छिपा निकल गए। (सर., 1 अप्रैल 1909, पृ. 168)

तोपना क्रि. (अक.) -- ढकना, फूलों से आपकी अर्थी तोप दी गई। (सर., 1 फर. 1908, पृ. 58)

तोबड़ा सं. (पु.) -- मुखौटा, (क) दरअसल प्रतिक्रिया और सांप्रदायिकता की आँखों पर तोबड़ा चढ़ा होता है। (हि. ध., प्र. जो., पृ. 282), (ख) अकालियों के नेता और कार्यकर्ताओं में कई लोग ऐसे हैं जो सांप्रदायिकता का तोबड़ा पहने हुए हैं। (ज. स. : 25 फर. 1984, पृ. 4)

तोबा-तिल्ला सं. (पु.) -- रक्षा के लिए दी जानेवाली दुहाई, हाय-तोबा, कहीं तोबा-तिल्ला मचा, तो घर का बना बनाया इतिहास बिगड़ जाएगा। (म. का मतः क. शि., 18 जुलाई, 1925, पृ. 188)

तोरई छोंकना मुहा. -- मनगढ़ंत बात कहना, बीच में बोलना, वैसे ही तोरई छोंकता है, मुझको बात कर लेने दो। (वृ. ला. व. समग्र, पृ. 638)

तोला-भर वि. (अवि.) -- लेशमात्र, थोड़ा सा, वह तोलाभर उत्साह भी नहीं उपजा पाती। (रा. मा. संच. 1, पृ. 263)

तोष सं. (पु.) -- तुष्टि, हमारे विधायक हिंदी के बारे में संख्यागत तोष माँगते हैं। (दिन., 29 अप्रैल, 1966, पृ. 23)

तोहमत लगाना मुहा. -- दोष मढ़ना, (क) यह सरकार हम पर अनुशासनहीनता की तोहमत लगाती है। (दिन., 13 जन., 67, पृ. 40), (ख) गुट निरपेक्ष देशों की सरकारें कलही कुल्टा स्त्रियों की तरह एक-दूसरे पर चोरी-छिनाली की तोहमत लगा रही हैं। (दिन., 28 जून, 1970, पृ. 26)

तोहमत सं. (स्त्री.) -- लांछन, कलंक, तब हिंदी पत्रकारिता पर लगी दरिद्रता की तोहमत कैसे मिटेगी। (ग. मं. : पत्र. चु., पृ. 27)

तौक सं. (पु.) -- कंठा, उसी का देश है जो गुलामी का तौक पहने हुए है। (चि. फू., पृ. 3)

तौंसा सं. (पु.) -- कड़ी गरमी, पानी न बरसा तो इस तौंसे में सारी फसल सूख जाएगी। (काद. : जुलाई 1977, पृ. 12)

तौहीन सं. (स्त्री.) -- अपमान, मानहानि, उन पर अदालत की तौहीन का मामला क्यों न चलाया जाए। (काद., अग. 1987, पृ. 149)

त्रास सं. (पु.) -- भय, कुछ दिन पहले सैगॉन में अचानक त्रास छा गया। (दिन., 20 मई 1966, पृ. 35)

त्राहि-त्राहि करना मुहा. -- रक्षा के लिए प्रार्थना करना, पनाह माँगना, पोथियों की धूल फाँकने से अविद्या त्राहि-त्राहि कर भाग खड़ी होती है। (रवि. साप्ताहिक, 16-25 अग. 1979, पृ. 38)

त्रिकाल सं. (पु.) -- तीनों काल, (भूत, भविष्य और वर्तमान) (क) यह त्रिकाल में भी नहीं होने का। (शि. पू. र., खं. 3, पृ. 258), (ख) यह त्रिकाल में भी संभव नहीं कि मद्रास, बंबई और बंगाल के रहनेवाले फारसी ऐसी दूषित लिपि में लिखि जानेवाली उर्दू भाषा को स्वीकार करें। (सर., 1 फर. 1908, पृ. 50)

थड़िया सं. (स्त्री.) -- छोटा थड़ा, छोटा चौतरा, आसपास बनी थड़ियों को भी हटा दिया। (त्या. भू. : संवत् 1983, पृ. 3)

थपेड़ा सं. (पु.) -- आघात, धक्का, (क) आधुनिकता का पहला थपेड़ा हिंदी में भारतेंदु को विचलित करता है। (दिन., 10 अक्तू. 1971, पृ. 39), (ख) अर्जुनसिंह ने पहली बार दिग्विज्य सिंह को भीषण थपेड़े दिए। (किल. सं. म. श्री., पृ. 159)

थप्पा सं. (पु.) -- बड़ी गड्डी, पुलिंदा, पहले लोग किताबें लिए पेड़ों की छाया तले बैठे रहते थे और अब ताश, उपन्यास या कॉपियों और ढेर कागजों का थप्पा लिए वहाँ पड़े दिखाई देते हैं। (दिन., 29 अप्रैल, 1966, पृ. 40)

थरथर काँपना मुहा. -- अत्यधिक भयभीत होना, संतापित भारतीय जनता से थरथर काँपना था। (मा. च. रच., खं. 9 पृ. 169)

थरथराना क्रि. (सक.) -- कंपायमान करना, भय से विचलित करना, वैभव और शक्ति के जोर पर सारे यूरोप को थरथरा देनेवाला सुल्तान ... मुसलमानी सत्ता का छाया मात्र रह गया है। (मा. च. रच., खं. 9, पृ. 135)

थरथरी बँधना मुहा. -- कँपकँपी होना, उसको जैसे थरथरी बँध गई। (बे. ग्रं., भाग 1, पृ. 15)

थलहा सं. (पु.) -- थाला, आबाल, उसे यह क्या पता कि आदमी की कलमें नहीं लगती, उसका थलहा नहीं बदला जा सकता। (नव., मार्च 1953, पृ. 74)

थहाना क्रि. (सक.) -- थाह लगाना, थहाया है कभी कभी और हर बार काँप गया हूँ। (काद. : मई 1975, पृ. 62)

थाती सं. (स्त्री.) -- धरोहर, विरासत, भारतीय संस्कृति की जो थाती अब तक बची है, उसका निवास हमारे जनपदों में है। (मधुकर : अप्रैल-अग. 1944, पृ. 52)

थातीदार सं. (पु.) -- जिसे धरोहर मिली हो, वारिस, संसार में थातीदार होने का डंका भी पीटेगी। (म. का मत: क. शि., 27 जून, 1925, पृ. 89)

थाली फेरना मुहा. -- किसी एक बात को बार-बार कहना, थाली फेरनेवाले उपदेशकों को विश्व-मंडन कहनेवाले उसके शिष्य स्वामी के बारे में एक शब्द भी न कह सके। (गु. र., खं. 1, पृ. 427)

थाह सं. (स्त्री.) -- गहराई, ज्ञान की सीमा, इस विलक्षण मनुष्य की थाह मुझे न मिली। (म. प्र. द्वि., खं. 5, पृ. 384)

थिगला सं. (पु.) -- बड़ी थिगली, पैबंद, राजसी वस्त्रों पर थिगला लगा दिया। (किल, सं. म. श्री., पृ. 80)

थिगली सं. (स्त्री.) -- पैबंद, अंतर्कथा मूल कथानक में गुँथ नहीं पाई है, उस पर थिगली-सी सिली बल्कि थुपड़ी-सी थोपी गई जान पड़ती है। (दिन., 19 नव. 1965, पृ. 45)

थिर वि. (अवि.) -- स्थिर, ठहरा हुआ, (क) नदी का पानी थिर नहीं रहता। (दिन., 07 मई, 67, पृ. 39), (ख) शरीर मन से ज्यादा थिर है। (रवि., 13 दिसंबर, 1982, पृ. 20)

थिराव सं. (पु.) -- स्थिरता, ठहराव, टिकाव, क्रोध को वे थिरने नहीं देते, किसी भी कला के लिए यह थिराव आवश्यक है। (दिन., 9 मई 1971, पृ. 43)

थुक्का-फजीती सं. (स्त्री.) -- 1. अत्यंत निम्न कोटि का लड़ाई-झगड़ा, (क) यह भी आशा है कि युक्का फजीती और लत्तंजुत्तं में कोई कमर न रहेगी। (म. का मतः क. शि., 26 दिस. 1925, पृ. 196), (ख) अगर ऐसा न हुआ तो यह भी आशा है कि थुक्का-फजीती में कोई कसर न रहेगी। (मत., म. प्र. से. वर्ष 5, 1923, सं. 20), 2. बदनामी, अपनी दुकानदारी चलाने के लिए किसी भी संस्था की थुक्का फजीहत करने से बाज नहीं आते। (हि. ध., प्र. जो., पृ. 201)

थुड़ी-थुड़ी होना मुहा. -- बेइज्जती होना, निरादर होना, गाँव भर में उनकी थुड़ी-थुड़ी हो रही है। (रा. द., श्रीला. शु., पृ. 307)

थुपड़ा सं. (पु.) -- कंडा, गोहरा, गोबर के थुपड़े आँगन में टिके थे। (ज. स. : 9 फर. 1984, पृ. 4)

थुपड़ी सं. (स्त्री.) -- गोहरी, कंडा, अंतर्कथा मूल कथानक में गुँथ नहीं पाई है, उस पर थिगली-सी सिली बल्कि थुपड़ी-सी थोपी गई जान पड़ती है। (दिन., 19 नव. 1965, पृ. 45)

थुलथुल वि. (अवि.) -- जिसका शरीर फूला हुआ हो, मोटा, भारी-भरकम, (क) विषय सामग्री के मामले में पुस्तक बहुत थुलथुल है। (रवि. 12 नव. 1978, पृ. 39), (ख) हमारे सामाजिक ढाँचे के लगाव कुछ थुलथुल हैं। (दिन., 21मई, 1972, पृ. 40)

थू-थू होना मुहा. -- बुराई होना, बदनामी होना, (क) चारों तरफ थू-थू हुई सो दुबककर बचाव करने के बजाय आक्रामक रुख अपनाया। (हि. ध., प्र. जो., पृ. 293), (ख) घर में जूतम-पैजार से तो यह काम नहीं बनेगा, बल्कि और थू-थू होगी। (सर., जन.-जून 1961, सं 6, पृ. 691)

थूककर चाटना मुहा. -- भविष्य में कोई काम दुबारा न करने की प्रतिज्ञा करने पर भी वही काम करना, दिए हुए वचन से मुकरना लेकिन उन्हें तो थूककर चाटने पर मजबूर नहीं किया गया। (हि. ध., प्र. जो., पृ. 307)

थेगली सं. (स्त्री.) -- थिगली, पैबंद, चकत्ती, विरोधियों के मुँह तोड़ते समय फटे आसमान में थेगली लगाई जाती है। (गु. र., खं. 1, पृ. 119)

थैली के चट्टे-बट्टे मुहा. -- एक-सी प्रकृति तथा प्रवृत्तिवाले, आखिर कांग्रेस और जनता दोनों उसी भारतीय थैली के चट्टे-बट्टे जो हैं। (रा. मा. संच. 1, पृ. 309)

थैलीशाह सं. (पु.) -- धनी व्यक्ति, पूँजीपति, पराजित फौज को समझाया जाता था कि उसने अपना खून किन थैलीशाहों के लिए बहाया है। (रा. मा. संच. 1, पृ. 77)

थोकबंद वि. (अवि.) -- थोक के थोक, ढेरों, ढेर सारे, यह सही है कि श्रीमती गांधी को हरिजनों और मुसलमानों के थोकबंद वोट मिले हैं..., (रा. मा. संच. 1, पृ. 450)

थोथा वि. (विका.) -- सारहीन, असार, खोखला, (क) उसने समाजवाद खतरे में है के थोथे नारे की आड़ में चेकोस्लोवाकिया पर आक्रमाण कर दिया। (दिन., 11 मई 1969, पृ. 29), (ख) कबीर के मानिंद उन्होंने आडंबर और थोते संस्कारों पर चोट कर स्वयं को उदाहरण बनाकर प्रमाण दिया। (काद., जून 1979, पृ. 23), (ग) पाठ्य-पुस्तकों एवं तकनीकी शब्दावली का अभाव बताना शासन का थोथा बहाना है। (कर्म., 4 जन. 1958, पृ. 3)

थोबड़ा सं. (पु.) -- चेहरा, मुखौटा, (क) पुलिस ने ऐसी धुनाई की कि उसका थोबड़ा ही बिगड़ गया। (रा. न. दु. : जून 1995, पृ. 137), (ख) भारतीय कलाकार विदेशी दूरदर्शन पर अपना थोबड़ा दिखाने के लिए किस कदर पेश आते हैं , उसके किस्से मैंने सुन रखे थे। (रवि., 14 जून 1981, पृ. 36)

दकियानूसी वि. (अवि.) -- पुराणपंथी, घोर परंपरावादी, (क) उनके जीवन को भले ही सभ्य आँखों से देखने पर वहशी और दकियानूसी कहा जाय..., (दिन., 16 जुलाई 1965, पृ. 39), (ख) हमारे बहुत से दकियानूसी विचार प्रगति के मार्ग में बाधक हैं। (काद., जून 1978, पृ. 9)

दगड़-झगड़ सं. (स्त्री.) -- उठापटक, जिन विचार-बालिकों का गोपन-संगोपन न हो, वे समय की बेदर्द दगड़-झगड़ में कैसे ठहरे। (मा. च. रच., खं. 3, पृ. 121)

दगा-फरेब सं. (पु.) -- धोखाधड़ी, छल-प्रपंच, दगा फरेब के तो वे कभी पास न फटकते थे। (सर., अग. 1930, पृ. 156)

दंड कमंडल लेना मुहा. -- अपना सामान उठाना, अश्वघोष की फड़कती उपमा के अनुसार धर्म भागा और दंड-कमंडल लेकर ऋषि भी भागे। (गु. र., खं. 1, पृ. 100)

दड़ा सं. (पु.) -- गड्ढा, पहाड़ पर रहनेवालों को मार मारकर दड़ा बनाकर जमीदोज किया जा चुका है। (किल., सं. म. श्री., पृ. 191)

दंडादंडी सं. (स्त्री.) -- लाठियों से होनेवाली मारपीट, लाठियाँ चलना, जरा सी बात पर दंडादंडी हो गई। (काद., जुलाई 1982, पृ. 6)

दंतौसरा सं. (पु.) -- हाथी के खाने के दाँतों की पंक्ति, महावत के हाथी को आगे बढ़ाते ही जंजीर टूट गई और हाथी सूँड़ के बल गिर पड़ा, जिससे उसके दंतौसरे टूट गए। (मधुकर, दिसंबर-जन. 1945, पृ. 273)

दंद-फंद सं. (पु.) -- हथकंडा, चालबाजी, पुलिस के आपसी दंद-फंद के कारण भी अपराध बढ़ते हैं। (दिन., 3 से 9 फर. 1980, पृ. 9)

दनदनाना क्रि. (सक.) -- चलाना, बंदूक दनदनानेवाले लोग बहुमत की परवाह क्यों करने लगे। (स. ब. दे. : रा. मा. (भाग-दो), पृ. 25)

दन्न से क्रि. वि. -- एकदम से, एकाएक, उसका मन भी करता है कि दन्न से परचून के झोले छतों के परे फेंक दे। (साक्षा., मार्च-मई 77, मृ. पां. पृ. 26)

दपटना क्रि. (अक.) -- डाँटना, मैंने दपटकर कहा--चुप रहो। (सर., जुलाई 1909, पृ. 298)

दपसट सं. (स्त्री.) -- दबसट, दबाव, लोगों ने देखा है कि इस समय मोहम्मद अली जिन्ना साहब जिस दपसट में आ गए हैं, उसके कारण वे शिमला सम्मेलन को भरभंड कर देना चाहते हैं। (न. ग. र., खं. 4, पृ. 200)

दफा1 क्रि. वि. -- बार, (क) एक दफा राजा मांधाता ने संसार भर के चक्रवर्ती राजा होने के लिए अश्वमेध यज्ञ किया। (सर., अग. 1919, पृ. 85), (ख) श्रीमान दूसरी दफा भारतवर्ष में आए। (गु. र., खं. 1, पृ. 334)

दफा2 सं. (स्त्री.) -- कक्षा, मदरसों की चौथी और पाँचवीं दफा के लिए बना है। (सर., मार्च 1911, पृ. 147)

दफीना सं. (पु.) -- गड़ा हुआ धन, गुप्त धन, खजाना, कुछ दफीना भी जाहिर किया कि जो बरामद हुआ। (सर., सित. 1919, पृ. 165)

दबंगपन सं. (पु.) -- निडरपन, यूनान की सरकार बीटनिकों पर जो प्रतिबंध लगा रही है वह सैनिक दबंगपन नहीं, मजबूरी है . (दिन., 28 मई, 67, पृ. 9)

दबनी सं. (स्त्री.) -- डंठलों से दानों को अलग करने की क्रिया, दवनी, दँवरी, धान की दबनी हो रही है। (दिन., 13 जन., 67, पृ. 28)

दबसट सं. (स्त्री.) -- दबाव, आस्ट्रिया इस दबसट में पड़कर कुछ राजी हो गया था, उसने इटली को कुछ देना स्वीकार कर लिया था। (ग. शं. वि. रच., खं. 2, पृ. 181)

दबा-ढका वि. (विका.) -- खुलकर न बोलनेवाला, मितभाषी, शांत और संयत लॉर्ड मोरान दबे-ढके आदमी समझे जाते हैं। (दिन., 27 मई, 1966, पृ. 8)

दब्बू वि. (अवि.) -- डरपोक, (क) हम दब्बू न बनें तो क्या करें। (गु. र., खं. 1, पृ. 430), (ख) भारत जीवन सदा एक दब्बू अखबार रहा है। (बा. गु. : गु. नि. सं. झा. श., खं. 5, पृ. 391)

दंभ सं. (पु.) -- अभिमान, अहंकार, ये सभ्य जाति होने का दंभ भरते हैं किंतु भलाई की चर्चा मात्र से इनकी नानी पर जाती है। (म. का मतः क. शि., 26 अप्रैल 1924, पृ. 149)

दम के दम में क्रि. वि. (पदबंध) -- उसी समय, तत्क्षण, पलक झपकते ही, दम के दम में हजारों मनुष्य उसके राष्ट्रीय झंडे के नीचे आ गए। (सर., जुलाई 1922, पृ. 45)

दम फुलाना मुहा. -- साँस तेजी से चलने लगना, हाँफना, वह दम फुलाकर बैठ गया है। (दिन., 18 मार्च 1966, पृ. 37)

दम साधना मुहा. -- श्वासों को नियंत्रण में लाना, हमें मालूम है कि एक टीम के नाते दम साध कर, साल दर साल बढ़िया खेलते रहना हमारे बूते की बात नहीं। (रा. मा. संच. 1, पृ. 428)

दम-दिलासा सं. (पु.) -- आश्वासन, सांत्वना, (क) वे खूब जानते हैं कि होगा तो कुछ है नहीं, फिर कुछ दम दिलासे की बाते कह देने में हर्ज ही क्या है। (ग. शं. वि. रच., खं. 3, पृ. 363), (ख) भोली-भाली दुनिया को दम दिलासा देकर घपले में रखना नया (नए) नेतृत्व का विशेष लक्षण है। (म. का मतः क. शि., 14 नव. 1925, पृ. 193)

दम-बखुद वि. (अवि.) -- मौन, खामोश, सारा संसार एक अभूतपूर्व दृश्य देखने की लालसा में दम-बखुद हो रहा था। (म. का मतः क. शि., 27 मार्च, 1926, पृ. 206)

दम सं. (पु.) -- साँस, पंडितजी यह दृश्य हँसते हुए देखते रहे और फिर दो दम में पुल पार किया और साथ हो लिए। (नव., अप्रैल 1952, पृ. 7)

दमखम सं. (पु.) -- बल-बूता, साहस, सामर्थ्य, (क) शोम्बे (कांगों) बड़े महत्त्वाकांक्षी व्यक्ति थे और देश का सर्वेसर्वा होने का दमखम रखते थे। (दिन., 16 जुलाई, 67, पृ. 33), (ख) वह दमखमवाला व्यक्ति है, उसे झुकाना मुमकिन नहीं। (का. : जुलाई 1989, पृ. 7)

दमगुर्दा सं. (पु.) -- दमखम, साहस, (क) लेकिन क्या भारतीय लोकदल और उसके साथियों में इतने दमगुर्दे हैं कि अपने चिंतन को जमीन पर उतार सकें। (रा. मा. संच. 1, पृ. 415), (ख)...इस नौजवान को कभी संयोग से सही दृष्टि मिल जाती, तो वह ऐसे काम कर गुजरता, जो औसर काठी और औसत दमगुर्दे के हम लोगों के लिए कल्पनातीत है। (रा. मा. संच. 1, पृ. 457)

दमड़ी की बुलबुल टका उसकाई कहा. -- थोड़े से लाभ के लिए अधिक व्यय करना, कुल मिलाकर कोई 35 मिनट में घर पहुँचे। मामूली तौर से 15 मिनट से ज्यादा न लगते। दमड़ी की बुलबुल टका उसकाईवाली मसल हो गई। (सर., जन. 1919, पृ. 15)

दमड़ी-भर वि. (अवि.) -- थोड़ा सा, कुछ, (क) स्पेंसर को अपने ईसाई धर्म की दमड़ी-भर भी परवा न थी। (म. प्र. द्वि., खं. 15 पृ. 297), (ख) कोई किसी का दमड़ी-भर भी खयाल करने के लिए तैयार नहीं है। (ग. शं. वि. रच., खं. 3, पृ. 27)

दमदमाना क्रि. (अक.) -- दमकने लगना, चमकना, (क) एकाएक उनका सितारा 1662 में कुछ दमदमा उठा। (सर., जुलाई 1919, पृ. 32), (ख) दस वर्षों तक जनरल अयूब की अधिनायकता खूब दमदमाई। (स. से. त. : क. ला. मिश्र, पृ. 53)

दमपट्टी सं. (स्त्री.) -- धौंस, झाँसा, ऐसी लफ्फाजी की दमपट्टी में मैं नहीं आनेवाला हूँ। (चं. श. गु. र., खं. 2, पृ. 387)

दमामा बजना मुहा. -- नगाड़ा बजना, बोलबाला होना, जनता की न्यूनता और जड़ता की वृद्धि होने से ही दासता का दमामा बजेगा। (म. का मतः क. शि., 22 सि. 1923, पृ. 121)

दयानतदार वि. (अवि.) -- निष्ठावान, ईमानदार, उस पर शक मत करो, उस जैसा दयानतदार मुश्किल से मिलेगा..., (काद., जुलाई 1976, पृ. 12)

दर-दर का भिखारी बनाना मुहा. -- अकिंचन तथा असहाय बना देना, दर-दर का भिखारी बना देनेवाली शक्ति की ओर मुहब्बत का हृदय नहीं जा सकता। (मा. च. रच., खं. 9, पृ. 229)

दरकना क्रि. (अक.) -- फटना, चिर जाना, जिसमें हाथ की चमड़ी लाल होकर दरक जाती है। (नव., फर. 1959, पृ. 80)

दरकार वि. (अवि.) -- अपेक्षित, आवश्यक, जरूरी, इस स्कूली परीक्षा में ऊँचे दरजे के विज्ञान का ज्ञान दरकार होता है। (सर., 1 फर. 1908, पृ. 55)

दरगुजर करना मुहा. -- अनदेखी करना, चश्मपोशी करना, अत्याचारों का विरोध करने के बजाय उन्हें दरगुजर कर रहे हैं। (त्या. भू. : संवत् 1983 (10 दिस. 1992), पृ. 9)

दरगोर करना मुहा. -- कब्र में भेजना, दफन करना, क्या आप उन्हें जिंदा दरगोर किए बिना नहीं छोड़ेंगे। (बे. ग्रं., भाग 1, पृ. 84)

दरदरा वि. (विका.) -- दानेदार, खुरदरा, इसकी दरदरी मोटी बालू ऊपर से मरुभूमि मालूम होती है। (भ. नि. मा. (दूसरा भाग), सं. ध. भ., पृ. 164)

दरपेश वि. (अवि.) -- उपस्थित, प्रस्तुत, (क) कहीं ऐसे हालात दरपेश न हो जाएँ कि बड़े बेआबरू होकर तेरे कूचे से सुकर्ण निकले। (दिन., 27 जन., 67, पृ. 35), (ख)...चिकित्सकों को सामने एक विचित्र मामला दरपेश हुआ। (दिन., 23 से 29 अक्तू. 1977, पृ. 39)

दरबारदारी सं. (स्त्री.) -- दरबार में हजिरी भरने की क्रिया या भाव, फिर हाकिमों से मिलने-जुलने या उनकी दरबारदारी करने काम न लिया। (बा. मु. गु. : गु. नि. सं. झा. श., खं. 5, पृ. 317)

दरस-परस सं. (पु.) -- सं. (पु.), दर्शन और स्पर्श, जिसके धूलि-धूसरित स्वभाव सुंदर सुहाने कोमल अंग-प्रत्यंग के दरस-परस को भाग्यहीन जन तरसते हैं। (भ. नि. : पं. बा. कृ. भ., पृ. 13)

दरिया में खस-खस बराबर मुहा. -- तुलनात्मक दृष्टि से नगण्य, ऊँट के मुँह में जीरा, हजारों की भीड़ को रोकने के लिए चार-छह सिपाही भेजे जो दरिया में खस-खस के बराबर थे। (मा. च. रच., खं. 9, पृ. 269)

दरियादिली सं. (स्त्री.) -- उदारता, (क) यही वजह है कि अमेरिका बड़ी दरियादिली से भारत को अनाज भेज रहा है। (दिन., 27 जन., 67, पृ. 16), (ख) पूर्वी पाकिस्तान के नेताओं की तलाड़ सुनकर याह्या खाँ को वहाँ आकर अपनी दरियादिली का सबूत देना पड़ा। (दिन., 13 दिस., 1970, पृ. 34)

दरी सं. (स्त्री.) -- खोह, तलहटी, ऊपर से जल की धारा आकर एक अगम्य दरी में सैकड़ों फीट नीचे गिरती है। (सर., नव. 1917, पृ. 226)

दरे-दौलत सं. (पु.) -- निवास, टोली खलीफा के दरे दौलत पर पहुँच गई। (वीणा, जन. 1934, पृ. 585)

दरेग1 सं. (स्त्री.) -- कंजूसी, इस प्रलोभन में पड़कर विपरीत व्यवस्था देने में दरेग न करेंगे। (गु. र., खं. 1, पृ. 447)

दरेग2 सं. (पु.) -- दुख, पश्चात्ताप, (क) अब कुछ भी अंटसंट बोलने में उसे कोई दरेग न था। (काद. : दिस. 1989, पृ. 78), (ख) अपनी बात बढ़ाए रखने के लिए खून में हाथ रँगने से उसे तनिक भी दरेग नहीं। (ग. शं. वि. रच., खं. 3, पृ. 100)

दलचट्टा सं. (पु.) -- दल का दास, समर्थक, प्रशंसक, आमदनी की बात करने की वजह से मैं पूँजीवाद का दलचट्टा नहीं हो गया। (रवि. 1-7 जन. 1978, पृ. 25)

दलद वि. (अवि.) -- कीचड़-भरा, दलदला, इस वर्ष की प्रदर्शनी मिट्टी के कट जाने की प्रदर्शनी नहीं है, वह मिट्टी के बिलकुल ही धसक जाने या कि दलद बन जाने की प्रदर्शनी है। (दिन., 8 फर. 1970, पृ. 41)

दलदल में फँसना मुहा. -- कठिनाइयों / मुसीबतों से बुरी तरह घिरना, तटस्थ और सही राय भी देता तो वह पक्षपात के दलदल में फँसता और न्यायपालिका की गरिमा को कीचड़ में लथेड़ जाता। (हि. ध., प्र. जो., पृ. 202)

दलदलिया वि. (अवि.) -- दलदल से भरा, दलदला, (क) भारत प्रजातंत्र का पत्थर बाँधकर एक दलदलिया तालाब का पैंदा छू लेने के लिए आमादा है। (रा. मा. संच. 2, पृ. 66), (ख) नेहरू के विचार-बन जब भारत के दलदलिया यथार्थ पर गिरते थे, तब वे फुस्स हो जाते थे। (रा. मा. संच. 1, पृ. 369)

दला जाना मुहा. -- कुचला जाना, वह जेल में गया, स्वराज्य की महत्त्वाकांक्षाएँ दली गईं। (माय च. रच., खं. 9, पृ. 234)

दलादली सं. (स्त्री.) -- दलबंदी, दलों की आपसी टकराहट या उठा-पटक, (क) नगर में ऐसा हाहाकार मचा कि घर-घर में दलादली प्रारंभ हो गाई। (काद. : नव. 1967, पृ. 55), (ख) उपर्युक्त दलादली को देखकर ही प्रजातंत्र के जन्मदाता प्रसिद्ध देशभक्त डॉक्टर सनयात सेना को अपना अलग प्रजातंत्र स्थापित करना पड़ा था। (सर., दिस. 1925, पृ. 642)

दलाली सं. (स्त्री.) -- दलाल का काम, जो कर्मचारी अपने अफसरों की दलाली और दरबारी करेंगे, वे समय आने पर घल्लूधारा भी करेंगे। (किल., सं. म. श्री., पृ. 228)

दलिद्दर1 वि. (अवि.) -- दरिद्र, गरीब, उधरवाले बड़े दलिद्दर होते हैं। (रा. द. : श्रीला. शु., पृ. 49)

दलिद्दर2 सं. (पु.) -- दारिद्रय, निर्धनता, गरीबी, मुझे सलाह दी गई है कि मैं उपन्यास लिखूँ और अपना दलिद्दर मिटाऊँ। (ए. सा. डाय. : ग. मा. मु., पृ. 31)

दलेल सं. (स्त्री.) -- कवायद, दंडस्वरूप किया जानेवाला श्रम, भारत के भावी राष्ट्रपति को उन दिनों मैंने इस तरह दलेल में जोता। (न. ग. र., खं. 3, पृ. 38)

दवा-दारू सं. (पु.) -- इलाज की व्यवस्थी, चिकित्सा, आज इस झक्कड़ में कहार टोले में एक भी मर्द नहीं कि रामू के के लिए दौड़धूप करके दवा-दारू का प्रबंध करे। (सर., जून 1928, पृ. 634)

दंश सं. (पु.) -- डंक, कष्ट, चुभन, कुछ समय से गाँव की नई पीढ़ी इस दंश का अनुभव करने लगी है। (तेवर, पं. द्वा. प्र. मि., पृ. 129)

दस्तंदाजी सं. (स्त्री.) -- हस्तक्षेप, (क) एक मित्र राष्ट्र के मामले में दस्तंदाजी करना बहुत बेढंगी बात है। (ते., द्वा., मि., पृ. 142), (ख) दूसरे प्रकार के मामले वर्तमान भाषा शैली में दस्तंदाजी पुलिस कहलाते हैं। (मधुकर, 1 अक्तू. 1940, पृ. 4), (ग) आसफुद्दौला से इस बात का इकरारनामा लिखवा लिया कि अब मैं अपनी माँ की संपत्ति और जायदाद में किसी तरह की दस्तंदाजी न करूँगा। (सर., सित. 1919, पृ. 117)

दस्तबरदार वि. (अवि.) -- अपने स्वत्व को छोड़ देनेवाला, अपने अधिकार का त्याग करनेवाला, आप अपने किले गिरा दें, हथियारों से दस्तबरदार हो जाएँ, लूटमार रोकें। (सर., फर. 1922, पृ. 111)

दस्तरखान सं. (पु.) -- खाने के समय बिछाया जानेवाला कपड़ा, वह कपड़ा जिसके ऊपर खाना रखकर खाया जाता है, बेचारी गिलहरियों का शुमार तो इस मेहरबानी का (के) दस्तरखान के टुकड़े तोड़ने में हुआ। (नव., जून 1953, पृ. 20)

दस्ती वि. (अवि.) -- हाथ का, हाथ से चलाने का, यह देखकर उस नवयुवक ने अपना दस्ती पंखा लेकर उस नवयुवती के मुख पर हवा करनी शुरू की। (वीणा, जन. 1934, पृ. 478)

दहकना क्रि. (अक.) -- लपटें छोड़ते हुए जलना, धधकना, एक कोने में आग दहक रही थी। (वृला. व. समग्र, पृ. 747)

दहलीज लाँघना मुहा. -- सीमा पार करना, वह मृत्यु की दहलीज लाँघने से पहले ही संसार में अपनी सार्थकता रच लेता है। (ज. स., 16 सित. 2007, पृ. 7)

दहाड़ सं. (स्त्री.) -- गर्जन, गर्जना अपने जंगल में सार्वभौम दहाड़ का अभ्यस्त यह देश अब महज सहकारी समिति का सदस्य बन गया है। (रा. मा. संच. 2, पृ. 58)

दाई से पेट छिपाना कहा. -- जानकार से वस्तुस्थिति छिपाना, आप ऐसे उदार स्वामी को पाकर आप से क्या माँगू ? आप सर्वज्ञ हैं दाई से पेट छिपा नहीं रहता। (सर., अक्तू. 1926, पृ. 418)

दाँत कटी रोटी होना मुहा. -- पूर्ण घनिष्ठता होना, (क) दोनों की दाँत कटी रोटी थी, किंतु आखिर दिल टूट गए। (बे. ग्रं. भाग 1, पृ. 16), (ख) ब्रिटेन अमरीका की दाँत कटी रोटी है। (सा. हि., 22 अक्तू. 50, पृ. 40)

दाँत काटी रोटी खाना मुहा. -- अत्यंत घनिष्ठता होना, गहरी छनना, सुशील कुमार धाड़ा और अजय मुखर्जी दाँत काटी रोटी खाते हैं। (दिन., 4 जून, 67, पृ. 23)

दाँत किटकिटाना मुहा. -- क्रोधित होना, भारत की फौजें जब पैटन टैंकों, सैबर जेटों के खपच्चे उड़ा रही थीं तब मार्शल अयूब के साथ पेंटागन में बैठे जनरल दाँत किटकिटा रहे थे। (दिन., 30 अप्रैल, 67, पृ. 10)

दाँत किर्रना मुहा. -- दाँत किटकिटाना, जब तक दाँत न किर्र लें और आपस में झोंटी-झोंटा न कर लें तब तक कभी न अघाएँ। (भ. नि., पृ. 22)

दाँत खट्टे करना मुहा. -- बुरी तरह पराजित कर देना, (क) जापानियों ने उसके दाँत ऐसे खट्टे कर दिए हैं कि उसकी कसक अमेरिका तक पहुँची है। (न. ग. र., खं. 2, पृ. 265), (ख) जर्मनी ने अपूर्व जौहर दिखाकर संसार के दाँत खट्टे कर दिए थे। (न. वा. श्रीना. च., पृ. 855), (ग) नाक रगड़ने से कुछ न होगा, दाँत खट्टे करने और नाक में दम करने से ही मनोरथ सफल होगा। (म. का मतः क. शि., 24 नव. 1923, पृ. 126)

दाँत गड़ाना मुहा. -- लालच भरी दृष्टि से देखना, (क) हम किसी के अभ्युदय पर डीठ नहीं लगाते और न किसी के वैभव पर कभी दाँत ही गड़ाते हैं। (शि. पू. र., खं. 3, पृ. 428), (ख) यूरोपरीय राष्ट्र मध्य एशिया पर दाँत गड़ा रहे हैं। (न. ग. र. खं. 2, पृ. 83)

दाँत निपोरना मुहा. -- 1.निर्लज्जतापूर्वक हँसना, पुलिस ने पकड़कर मजिस्ट्रेट के सामने पेश किया तो हजरत दाँत निपोरकर खड़े हो गए। (मत., म. प्र. से. वर्ष 5, सितं. 1927, पृ. 5),2. गिड़गिड़ाना, स्वार्थलोलुप लोग कमीशन के आगे दाँत निपोरने के लिए तैयार हैं। (म. का मतः क. शि., 13 अक्तू. 1928, पृ. 255)

दाँत पीसना मुहा. -- खीझना, खिझलाना, आक्रोशित होना, (क) समाज को छिन्न-भिन्न करने के लिए जो शक्तियाँ आगे बड़ रही हैं, उन पर दाँत पीसने से काम न चलेगा। (ग. शं. वि. रच., खं. 1, पृ. 365), (ख) उन दिनों इंग्लैंड दाँत पीस-पीस कर आयरलेंड के ऊपर अत्याचार कर रहा था। (न. ग. र., खं. 2, पृ. 149), (ग) जनका मत औरों के काम में दोष मात्र देखने या दाँत पीसने का ही मतवालापन है उन्हें इससे क्या शिक्षा मिल सकती है। (गु. र., खं. 1, पृ. 388)

दाँता-किटकिट चलना / होना मुहा. -- लड़ाई-झगड़ा, वाद-विवाद, सांप्रदायिक एवं प्रगतिशील पार्टियों के बीच दाँता-किटकिट चल रही है। (दिन., 13 अग., 67, पृ. 27)

दाँता-किलकिल करना मुहा. -- दाँता-किटकिट, लड़ाई-झगड़ा, वाद-विवाद, (क) इस दाँता-किलकिल से वे भारतवर्ष का बहुत अहित समझते हैं। (ग. शं. वि. रच., खं. 3, पृ. 156), (ख) उसने अपना तमाम जीवन बनाव-श्रृंगार, दावतों, तमाशों और अपने बेवकूफ पति के साथ दाँता किल-किला करने में बिताया है। (मधुकर, अक्तू. 1946, पृ. 616)

दातार सं. (पु.) -- दाता, राजनेताओं द्वारा दातार की मुद्रा अपनाना उचित नहीं है वे जनसेवक हैं। (काद. : फर. 1993, पृ. 5)

दाँतों तले उँगली दबाना मुहा. -- आश्चर्यचकित होना, हतप्रभ हो जाना, हक्का-बक्का रह जाना, (क) जिनकी सृजनशक्ति और समाज विन्यास कौशल देखकर आज भी संसार दाँतों तले उँगली दबा लेता है। (म. का. मतः क. शि., 14 जन. 1928, पृ. 75), (ख) कांग्रेस की मर्यादा की रक्षा ही नहीं हुई है वरन् राष्ट्रीय हित के विरोधियों को दाँतों तले उँगली दबानी पड़ी है। (स. सा., पृ. 122)

दाँतों पसीना आना मुहा. -- घोर परिश्रम से व्यथित हो जाना, मालगुजारी वसूल करने में पहले दाँतों पसीना आता था। (बा. भा. : भ. नि., भाग 2, पृ. 10)

दादाशाही वि. (अवि.) -- अभिमानपूर्ण, अकड़-भरा, इरविन साहब ने बड़ी दादाशाही शान में जवाब दिया था कि पहले हिंदू मुसलमानों को मिला लीजिए पश्चात् अन्य प्रश्नों की चर्चा कीजिए। (मा. च. रच., खं. 10, पृ. 326)

दाना-पानी सं. (पु.) -- अन्न-जल, खान-पान की चीजें राज्य के आधे से अधिक हिस्से के लोग दाना-पानी के बिना मर रहे हैं। (दिन., 23 अप्रैल, 67, पृ. 18)

दानोदक सं. (पु.) -- अन्न-जल, भिक्षा, राज्य के कुछेक साहित्यिकों के हाथों पर थोड़ा सा दानोदक छोड़कर उन्हें राजी रखना, क्या सरकार का यही काम है य़ (दिन., 23 फर., 69, पृ. 6)

दाबना क्रि. (सक.) -- दबा रखना, छिपा रखना, मगर बड़े-बड़े किसान 97 प्रतिशत ज्वार दाबे बैठे हैं। (दिन., 9 जुलाई, 1965, पृ. 27)

दामन झाड़ना मुहा. -- अलग हो जाना, पिंड छुड़ाना, बस बयान देकर अकाली नेताओं ने दामन झाड़ लिया। (ज. स. : 4 फर. 1984, पृ. 4)

दामन पर धब्बा लगाना मुहा. -- कलंकित करना, निस्संदेह इस सत्ता-संघर्ष ने सभी के दामन पर धब्बा लगाया है। (दिन., 21 फर., 1971, पृ. 51)

दामी वि. (अवि.) -- मूल्यवान, कीमती, यह बात बेधड़क कह दी कि इस बेग में इतने दामी जेवरात हैं। (वीणा, जन. 1934, पृ. 479)

दाय सं. (पु.) -- 1. दायित्व, आज वह धर्म-निरपेक्षता नामक दाय को लेकर बड़ी उलझन में फँसा हुआ है। (दिन., 26 मई, 68, पृ. 26), 2. विरासत, उत्तराधिकार, यह दाय तो झगड़े की जड़ बन गई। (काद., मार्च 1980, पृ. 9)

दायमी वि. (अवि.) -- स्थायी, पक्का, उस समय राजनीति पर अत्यंत क्रोधित ब्रिटिश-युग के दायमी अपराधी के नाते छिपकर जीवन बिताना ही चोरों और बटमारों के सिवाय क्रांतिकारियों का पेशा हो रहा है। (माय च. रच., खं. 4, पृ. 168)

दार-परिग्रह सं. (पु.) -- विवाह, पाणिग्रहण, वे सब विरक्त हैं घर-द्वार छोड़े हुए हैं, दार-परिग्रह के बिकट बैरी हैं। (सर., अक्तू. 1912, पृ. 561)

दारुमय वि. (अवि.) -- लकड़ी से निरमित, श्री शेष जी श्री बलदेव जी के दारुमय मूर्ति के रूप में यहाँ पर विराजमान हुए। (माधुरी : अग.-सित. 1928, पृ. 271

दाल गलाना मुहा. -- योजना को साकार करना, अपना उद्देश्य सिद्ध करना, ध्येय की पूर्ति करना, धक्षिणपंथी कम्युनिस्ट कलकत्ते में अपनी दाल गलाने के लिए इकट्ठे हैं। (दिन., 4 जून, 67, पृ. 22)

दाल जूतियों में बँटना मुहा. -- आपस में खूब लड़ाई-झगड़ा होना, चाहे उनकी ईमानदारी कहिए या कमजोरी राम किशन के शासनकाल में भी दाल जूतियों में ही बँटी। (दिन., 8 जुलाई, 1966, पृ. 19)

दाल में काला होना मुहा. -- कोई दोष (छिपा) होना, गड़बड़ होना, इतनी बार उड़ी अफवाह एकदम निराधार है यह मानने को जी नहीं चाहता। कुछ दाल में काला अवश्य है। (स. सा., पृ. 150)

दाल-भात का कौर मुहा. -- सरलता से प्राप्त होनेवाली वस्तु, स्वराज्य कोई दाल-भात का कौर नहीं है। (म. का. मतः क. शि., 3 जन. 1925, पृ. 178)

दाल-भात में मूसलचंद कहा. -- अनावश्यक रूप से हस्तक्षेप करनेवाला, (क) जिस बात से अपने को सरोकार नहीं उसमें दाल-भात में मूसलचंद न बनता हो। (भ. नि. पृ. 143), (ख) भला मैं कौन होती हूँ जो बीच में दाल-भात में मूसलचंद बन बैठी। (बे. ग्रं. : दूसरा खं., पटना, पृ. 7), (ग) पूँजीवाद में दो सिर्फ मालिक और मजदूर होते हैं। लेकिन दाल-भात में मूसलचंद की तरह यह सरकारी नौकर कहाँ से खड़ा हो गया। (रा. मा. संच. 2, पृ. 141)

दाँव-घात सं. (पु.) -- दाँव-पेंच, छल-कपट, (क) दाँव-घातों के आचार्य मि. मांटुगे जानते थे कि इंग्लैड की जनता उतनी विश्वासघातिनी नहीं हो सकती। (मा. च. रच., खं. 9, पृ. 158), (ख) हिंदू और मुसलमानों के सिर कूटने के पश्चात् भी ये दाँव-घात जारी हैं। (मा. च. रच., खं. 10, पृ. 231)

दाँवखाँ सं. (पु.) -- दाँव जाननेवाला, बंबई जाता है तो बड़े पहलवान से जोर करता है। वहाँ कई दाँवखाँ हैं। (का. कार. : निराला, पृ. 9)

दावानल सं. (पु.) -- जंगल की आग, तेजी से फैलनेवाली आग, सांप्रदायिक दंगों के दावानल से सारा शहर झुलस गया। (काद. : अप्रैल 1980, पृ. 10)

दास्ताँ सं. (स्त्री.) -- कहानी, एक-एक करके सभी अपनी दर्द भरी दास्ताँ कहने लगे। (दिन., 2 नवं. 1969, पृ. 28)

दिखनौटा वि. (विका.) -- दिखावा करनेवाला, प्रदर्शनप्रिय, (क) अमेरिका सबसे बड़बोला, दिखनौटा और छिछला देश है। (हि. ध., प्र. जो., पृ. 315), (ख) देश इस दिखनौटी, आदर्शवादिता और पहलहीन आश्वासनों पर भरोसा नहीं कर सकता। (रवि. 3 जून, 1978, पृ. 35)

दिखाऊ बनाना मुहा. -- ओछा प्रदर्शन करना, महाराज की दया को दिखाऊ बनाने का प्रयत्न यदि न किया जाता, तो अच्छा था। (मा. च. रच., खं. 9, पृ. 58)

दिखाऊ वि. (अवि.) -- दिखावटी दिखौआ, नेता ऐसा हो जिसे जनता की वाहवाही लूटने के लिए दिखाऊ कदम न उठाना पड़े। (रा. मा. संच. 1, पृ. 68)

दिखौआ वि. (अवि.) -- दिखावटी, जो लोग दिखौआ ठाट रखते उन पर आप अपने पत्र में चुटकी लिया करते थे। (बाल. स्मा. ग्रं : शर्मा, चतुर्वेदी, पृ. 293)

दिंगा क्रि. वि. -- पास, नजदीक, कक्का ने पीपर के दिंगा उसे मार डाला। (सर., सित. 1917, पृ. 124)

दिठौना सं. (पु.) -- कुदृष्टि से बचने के लिए चेहरे पर लगाई जानेवाली बिंदी, नजर लगने के डर से शायद स्वयं ब्रह्मा ने वह दिठौना लगा दिया था। (न. : अप्रैल, 1958, पृ. 83)

दिन दूनी रात चौगुनी बढ़ना-वृद्धि होना मुहा. -- तीव्र गति से औ निरंतर बढ़ते चलना, (क) पाठकों की संख्या में दिन दूनी रात चौगुनी वृद्धि हुई है। (मधुमती नव. 965, पृ. 31), (ख) दुनिया के मूल्क एथलेटिक के क्षेत्र में दिन दूनी रात चौगुनी की रफ्तार से आगे बढ़ रहे हैं। (दिन., 28 जन. 1968, पृ. 34), (ग) उन देशों की जहाजी शक्तियाँ दिन दूनी रात चौगुनी बढ़ती जाती है। (सा. सा., पृ. 53)

दिन देखना बदा होना मुहा. -- दुर्दिन देखना भाग्य में लिखा होना, हमारी सम्मति में तो जर्मनी को यह दिन देखना बदा था। (न. ग. र., खं. 2, पृ. 273)

दिन फिरना मुहा. -- पुनः अच्छे दिन आना, देहाती मसल है कि सौ वर्ष बाद उस जगह के भी दिन फिरते हैं जहाँ लोग कूड़ा-करकट फेंक देते हैं। (सर., दिस. 1925, पृ. 644)

दिन बहुरना मुहा. -- दिन फिरना, पुनः अच्छे दिन आना, अब सफाई मजदूरों के दिन बहुरेंगे। (रा. स., 21-08-2008, पृ. 6)

दिन में सपने देखना मुहा. -- कपोल कल्पनाएँ करना, यह राज करने का तरीका नहीं बल्कि दिन में सपने देखने का तरीका है। (रा. मा. संच. 2, पृ. 15)

दिन लदना मुहा. -- (अच्छा) समय बीत जाना, (क) कुलीनता के दिन लद गए। (ग. शं. वि. रच., खं. 1, पृ. 154), (ख) यह स्पष्ट हो गया कि हिंद-चीन में फ्रांस के दिन लद चुके हैं। (रा. मा. संच. 1, पृ. 270)

दिन-दहाड़े क्रि. वि. -- दिन ही दिन में, सूर्य के प्रकाश में, नेता इस बात का विरोध करते हैं और मि. बोमनजी ने इसे दिन-दहाड़े लूट तक कह डाला है। (मा. च. रच., खं. 9, पृ. 87)

दिनपाली सं. (स्त्री.) -- दिन-भर की समयावधि, ... हर कांग्रेस अध्यक्ष को यह तय करना होगा कि वह अपनी पार्टी की रातपाली का अध्यक्ष है या दिनपाली का ? (रा. मा. संच. 1, पृ. 254)

दिमाकपच्ची सं. (स्त्री.) -- सिर खपाने का काम, माथापच्ची, बहुत से यशलुब्ध कवियों की तुकबंदी केवल बेमतलब की दिमाकपच्ची ही रही। (शि. पू. र., खं. 3, पृ. 366)

दिमाग फिरना मुहा. -- दिमाग विकृत हो जाना, पागल हो जाना, सैन्यवादी घमंड से भारत का दिमाग फिरने लगा है। (रा. मा. संच. 1, पृ. 148)

दिमाग में कीड़ा प्रवेश कर जाना मुहा. -- दिमाग में फितूर आ जाना, लेकिन सत्ताधारी के दिमाग में न जाने कैसे यह कीड़ा प्रवेश कर जाता है कि जैसे-तैसे हर हथकंडे से विरोधी को पटखनी देना और अपनी कुरसी पुख्ता करना जरूरी है। (रा. मा. संच. 1, पृ. 264)

दिमाग में ठूँसना मुहा. -- दिमाग में बलात् बैठाना, हमने जिस खयाल को समाजवाद नाम देकर दिमाग में ठूँस रखा है उसे मार्क्स...टीटो कोई समाजवाद नहीं कह सकते। (रा. मा. संच. 2, पृ. 44)

दियाबत्ती लगना मुहा. -- सायंकाल होना, दियाबत्ती लग जाने पर बैकुंठ दुकान बढ़ाकर बही-खाता बगल में दबाए घर आए। (सर., दिस. 1925 पृ. 596)

दियाबत्ती सं. (स्त्री.) -- दीपक जलाने का काम, साँझ घिरते दिया-बत्ती के बाद स्त्रियाँ सोहर-गीत गाती हैं। (काद. : अक्तू. 1982, पृ. 34)

दिल की कली खिल उठना मुहा. -- अत्यंत प्रसन्न होना, आपने प्रकृति के इस मूर्तिमान सौंदर्य का मधुर और सरस शब्दों में ऐसा मनोहर चित्र खींचा कि उसे पढ़कर दिल की कली खिल उठी। (म. प्र. द्वि. रच., खं. 2, पृ. 317)

दिल खट्टा करना मुहा. -- दुःखी करना, अधिक शिक्षित होने के कारण जातीयता उत्पन्न करने का बोझा उन्हीं पर है और संकीर्णता से अन्य प्रांतवालों का दिल खट्टा करना बुरा ही है। (गु. र., खं. 1, पृ. 408)

दिल खोलकर क्रि. वि. -- मुक्त भाव से, खुले मन से, उदारतापूर्वक, दोनों ने दिल खोलकर अपने उद्गार प्रकट किए। (वीणा, जन. 1935, पृ. 234)

दिल जीतना मुहा. -- अच्छे व्यवहार आदि के द्वारा किसी को अपना बना लेना, विद्रोही केवल दमन से नहीं मिटाए जा सकते, बल्कि उनका दिल जीतना भी जरूरी है। (रा. मा. संच. 1, पृ. 243)

दिल डोलना या डोल जाना मुहा. -- मन का विचलित हो जाना, घबरा जाना, हंफी का दिल भी डोल गया था और वह भी अपनी नैया डूबती-सी महसूस कर रहे थे। (दिन., 3 नव. 1968, पृ. 24)

दिल बल्लियों उछलना मुहा. -- अत्यधिक प्रसन्न होना, उन दिनों दिल बल्लियों उछलता और बाँसों तड़पता था। (न. ग. र., खं. 3, पृ. 396)

दिल बैठना या बैठ जाना मुहा. -- निराश, हतोत्साह या दुःखी हो जाना, मुकदमे के नतीजे को राकफेलर तक पहुँचाने में वकील सकपका रहे थे कि कहीं बेचारे राकफेलर का दिल न बैठ जाए। (नव., जन. 1952, पृ. 81)

दिल में गड़ना या गड़ जाना मुहा. -- दिल में चुभना, मि. चर्चिल की बातें हमारे दिलों में गड़ी हुई हैं। (नि. वा. : श्रीना. च., पृ. 500)

दिलख्वाह वि. (अवि.) -- मन के अनुकूल, मनोनुकूल, वांछनीय, मेरा कोई दिलख्वाह दावा नहीं कि उसके सबूत में कुछ पेशेवर गवाह पेश करूँ। (स्मृ. वा. : जा. व. शा., पृ. 6)

दिलगिरी सं. (स्त्री.) -- दुःख, मुझे इरादा बदलने की दिलगिरी थी। (मा. च. रच., खं. 4, पृ. 60)

दिलजमई सं. (स्त्री.) -- आश्वस्त होने की स्थिति, तसल्ली, जब सब तरह दिलजमई हो जाए तब रुपया देना चाहिए। (म. प्र. द्वि. रच., खं. 2, पृ. 178)

दिलजोई सं. (स्त्री.) -- तसल्ली, इत्मीनान, मेरी दिलजोई के लिए तुम झूठ बोल रहे हो। (वाग. : कम., अग. 1997, पृ. 10)

दिलफेंक वि. (अवि.) -- दिल को प्रसन्न कर देनेवाला, दिलफेंक मुसकान का मुखौटा ओढ़िए, लेकिन उसको पहनिए नहीं। (काद., जन. 1992, पृ. 43)

दिलभरा वि. (विका.) -- दिल को प्रसन्न रखनेवाला, मैं अपनी प्रेयसी की ऐसी प्रेमभरी, रसभरी, दिलभरी सेवा का बदला क्या कभी दे सकता हूँ। (सर., सित. 1912, पृ. 471)

दिल्लगी उड़ाना मुहा. -- मजाक बनाना, हँसी उड़ाना, उन पर ईर्ष्या द्वेष का आरोप करते हैं, उनकी दिल्लगी उड़ाते हैं। (सर., दिस. 1917, पृ. 327)

दिल्लगी सं. (स्त्री.) -- हँसी-खेल, मजाक, हिंदुस्तानियों के साथ दुव्यर्वहार करना दिल्लगी नहीं है। (स. सा., पृ. 153)

दिल्ली के लड्डू मुहा. -- सत्ता की मलाई, सत्ता का सुख, राजसमूह की दुहाई देनेवालों को दिल्ली के लड्डू खानेवाला कहा था। (सं. पर. : ल. शं. व्या., पृ. 174)

दिवाला पिटना या निकलना मुहा. -- पूर्ण ह्रास हो जाना, समाप्त हो जाना, उनकी चिंतन-शक्ति का दिवाला पिट गया है। (दिन., 8 दिस. 1968, पृ. 10)

दिशा-फराकत सं. -- (पु., पदबंध), शौच करना, गाबड़े में रह रहे देश के अस्सी फीसदी लोग अभी भी खुले में दिशा-फराकत के आदी हैं। (रवि., 4 जुलाई, 1981, पृ. 23)

दिशाहारा वि. (विका.) -- दिग्भ्रमित, (क) भविष्य की खोज में निकला बड़ा भाई दिशाहारा है। (काद. : जन. 1968, पृ. 14), (ख) जो स्वयं दिशाहारा हो, वह दूसरों को क्या रास्ता दिखाएगा। (काद. : जन. 1980, पृ. 9)

दिसावर सं. (पु.) -- परदेस, विदेश, दिसावर में भेजनेवाले आढ़तिया लोग आकर खरीद करते हैं। (सर., भाग 28, सं 4, मार्च 1927, पृ. 447)

दिसावरी वि. (अवि.) -- परदेसी, विदेशी, बाहरी, दिसावरी मंडियों की माँग से सरसों पक्की घानी तेल में तेजी चल रही है। (त्या. भू. : संवत् 1983 (2 दिस.), पृ. 15)

दीगर वि. (अवि.) -- अन्य, और, दूसरा, जिससे दबा हुआ गल्ला और दीगर माल बाहर आ गया। (सा. हि., 11 जन. 1959, पृ. 4)

दीदा सं. (पु.) -- नेत्र, आँख, तुझे दोनों दीदे फाड़कर कैसी प्यार...चाहत भरी निगाहों से देखा करता था। (काद., जुलाई 1994, पृ. 140)

दीबाचा सं. (पु.) -- भूमिका, प्रस्तावना, इस बात को आगे दीवान के दीबाचे में फिर समझाया। (माधुरीः अग.-सित. 1928, पृ. 158)

दीवार की तरह अड़ना मुहा. -- अडिग रहना, डटे रहना, अमृत डांगे प्रारंभ में दीवार की तरह अड़े रहे। (ज. स. : 8 दिस. 1983, पृ. 4)

दीवार में सिर पटकना मुहा. -- निरर्थक प्रयास करना, सभी प्रतिपक्षी पार्टियाँ दीवरा में सिर पटकती रह गईं। (दिन., 19 जन. 1975, पृ. 25)

दीवारी सं. (स्त्री.) -- दीपावली में गाया जानेवाला गीत, सैकड़ों टहूके और सैकड़ों दीवारी जिसे कंठस्थ थीं। (काद., नव. 1978, पृ. 70)

दुखड़ा रोना मुहा. -- दुख-भरी दास्तान सुनाना, व्यथा, चलो कुछ घंटे कोई अपना दुखड़ा रोने को मिलेगा। (चं. श. गु. र., खं. 2, पृ. 421)

दुखती रग को छूना मुहा. -- मर्म पर आघात करना, यह माँग तानाशाहों की दुखती रग को छूती थी। (रा. मा. संच. 2, पृ. 143)

दुखती रग को छेड़ना मुहा. -- दुखती रग को छूना, मर्म पर आघात करना, उसने ख्वाहमख्वाह उसकी दुखती रगों को छेड़ दिया। (काद. : फर. 1992, पृ. 143)

दुःखनी वि. (अवि.) -- दुखदायक, पीड़ा देनेवाली, वह दुःखनी दोपहर और घर में हम तीनों माँ-बेटी एकदम अकेली। (स. भा. सा., मृ. पां., सित.-अक्तू. 98, पृ. 12)

दुखिया वि. (अवि.) -- दुःखी, दुखिया कांग्रेस दुर्बल दशा में धराशायी होकर सिसक रही है। (स. सा., पृ. 127)

दुगदुगी सं. (स्त्री.) -- पेट और छाती के बीच का गड्ढा जहाँ धड़कन होती है, उन बेचारों का दुगदुगी में दम था। (वाग. : जा. व. शा., पृ. 17)

दुचित्ता वि. (विका.) -- असमंजस में पड़ा हुआ, अन्यमनस्क, फारसी के चलते हिंदी भाषी क्षेत्र दुचित्ता हो गया। (दिन., 17 अक्तू. 1971, पृ. 43)

दुचित्तापन सं. (पु.) -- दुविधा की स्थिति, अन्यमनस्कता, राजनीति में इस दुचित्तेपन ने देश का भारी अहित किया है। (हिंदु. : 9 अग. 1992, पृ. 6)

दुच्च सं. (स्त्री.) -- घूँसा, मुक्का, आज्ञा हो तो ऐसी दुच्च दूँ कि कुछ तमीज का ज्ञान हो जाए। (रा. ला. प्र. र. म. प्र. सा. परिषद्, पृ. 139)

दुधमुँहा वि. (विका.) -- दूध-पीता, अबोध, (क) चहे वे बड़े बुद्धिमान क्यों न हों, मतवाला की दृष्टि में एक दुधमुँहे बबुआ से बढ़कर वकअत नहीं रखते। (म. का मतः क. शि., 31 जुलाई 1926, पृ. 97), (ख) जनता ईश्वर की तरह पूजनीय है, लेकिन वह दुधमुँहे बच्चे की तरह निरीह है। (रा. मा. संच. 1, पृ. 37)

दुधहँड सं. (पु.) -- दूध खौलने की हाँड़ी, दूध जल जाएगा, दुधहँड उतारकर रख देना है। (निरु. : निराला, पृ. 86)

दुनियादार वि. (अवि.) -- दिनियावी, लौकिक, अपने बच्चों की दुनियादार तिकड़मों से हम खुश थे, और उन्हें प्रोत्साहित कर रहे थे। (रा. मा. संच. 2, पृ. 399)

दुफसली वि. (अवि.) -- दो रंगी, द्वि-अर्थी, अगर यह चीजें आप ही की हैं तो आप जोर देकर कहिए। दुफसली बातें न कीजिए। (का. कार. : नि., पृ. 97)

दुबकना क्रि. (अक.) -- छिपना, एकाएक छिप जाना, (क) पनडुब्बियों के बारे में सूचित किया, जो नजर आते ही दुबककर लौट गईं। (रा. मा. संच. 2, पृ. 41), (ख) जो यथार्थ के कोलाहल में दुबक गए। (दिन., 11 अक्तू., 1970, पृ. 26)

दुम दबाकर चल देना मुहा. -- सहसा चुपचाप चलते बनना, दो ही उपाय हैं या तो कान ढँककर बैठ जाओ या दुम दबाकर चल दो। (गु. र., खं. 1, पृ. 99)

दुम दबाकर भागना या भागने लगना मुहा. -- भयभीत होकर सहसा स्थान छोड़ देना, इस फैसले से आप क्यों दुम दबाकर भागने लगे। (गु. र., खं. 1, पृ. 447)

दुम फटकारना मुहा. -- जी-हुजूरी करना, प्रसन्नता व्यक्त करना, कौंसिली गुलाम दल दुम फटकारने को तैयार हैं। (म. का मतः क. शि., 13 अक्तू. 1928, पृ. 255)

दुम में तेल लगाना मुहा. -- चमचागिरी करना, अगर कोई छोटा-मोटा लाभ हो भी सकता है तो वहाँ जाकर सरकार की दुम में तेल लगाते रहने से। (म. का मतः क. शि., 27 अग. 1927, पृ. 221)

दुमछल्ला सं. (पु.) -- पिछलग्गू, पूँजीवाद के दुमछल्ले की हैसियत ही उनकी हो सकती है। (स. ब. दे. : रा. मा., पृ. 206)

दुमझड़ा वि. (विका.) -- जिसकी दुम झड़ गई हो, असुंदर दिल्ली उस वक्त दुमझड़ी मोरनी की तरह उदास थी। (काद., सित. 1981, पृ. 46)

दुमड़ना क्रि. (सक.) -- उमेठना, मरोड़ना, मेज-कुरसियाँ तोड़ना, खिड़कयाँ-शीशे फोड़ना, पंखे दुमड़ना तथा ऐसे अनेकों विषय उसमें शामिल हो सकते हैं। (दिन., 3 जून 1966, पृ. 10)

दुमदार वि. (अवि.) -- पूँछवाला, प्रतिष्ठावाला, यह अगर राजनीतिक यथार्थवाद है तो ऐसे दुमदारों से हम लँडूरे ही अच्छे। (दिन., 21 फर. 1965, सं. 1, भाग 1, पृ. 12)

दुमुँहा वि. (विका.) -- दुमुँहाँ , दो तरह की बात करने वाला , दोरंगा , साम्राराज्यवादियों की इस दुमुँहीं बातों में से कौन सी बात मानी जाए। (न. ग. र., खं. 2, पृ. 195)

दुमेला सं. (पु.) -- दो परस्पर-विरोधी पक्षों का मिलन, मिलाप, जो आता है ठट जाता है, जैसे बराल का दुमेला हो रहा है। (रवि. 1 नव., 1981, पृ. 37)

दुम्मट वि. (अवि.) -- (दुरमुस की तरह) वजनी और प्रहारक, पंजाबी की गाली और भी दुम्मट होती है। (अंतराः अज्ञेय, पृ. 42)

दुरंगा वि. (विका.) -- दो तरह का, दुरुखा, दुमुँहा, रियासतों की दुरंगी चालें कुछ समझ नहीं आतीं। (कर्म., 26 अप्रैल 1947, पृ. 2)

दुरंत वि. (अवि.) -- बुरे अंतवाला (गाली), बदकिस्मत, अभागा, पंडितजी से उलझने की हिमाकत की इस दुरंत मुड़कट्टे ने। (कुटुजः ह. प्र. द्वि., पृ. 88)

दुरदुराना क्रि. (सक.) -- घृणापूर्वक परे हटाना, दुत्कारना, (क) विदेशियों और विद्यार्थियों को दुरदुराने की यह संकुचित वृत्ति भाष्यकार में तो नहीं थी। (नि. वा. : श्रीना. च., पृ. 28), (ख) देश से आए शरणार्थियों को दुरदुराने में स्थानीय नेता लगे हुए हैं। (ज. स. : 9 दिस. 1983, पृ. 4)

दुरभिसंधि सं. (स्त्री.) -- कुचक्र, षड्यंत्र, जिंदगी एक दुरभिसंधि है। (काद., फर. 1981, पृ. 12)

दुरमुआ वि. (विका.) -- बुरे मुँहवाला (गाली), जहाँ घर की पुरानी बुढ़िया ने एक बार डाँट के दुरमुये कह दिया तहाँ सब जोश उतर गया। (भ. नि. : बा. कृ. भ., पृ. 34)

दुरमुस सं. (पु.) -- गिट्टी आदि कूटने का उपकरण, उन्होंने दुरमुस उठाया और कूट-पीटकर मुझे मटियामसान कर दिया। (स्मृ. वा. : जा. व. शा., पृ. 91)

दुर्घट वि. (अवि.) -- जल्दी न घटनेवाला, जिसका होना कठिन हो, असंभव, (क) अच्छी पुस्तकों का प्रकाशित होना असंभाव या दुर्घट है, क्योंकि अच्छी पुस्तकों के चाहनेवाले कम है। (गु. र., खं. 1, पृ. 347), (ख) अब गरीबों के बालकों को उत्तम शिक्षा तो एक ओर रही, साधारण शिक्षा भी दुर्घट हो गई। (भ. नि. मा. (दुसरा भाग), सं. ध. भ., पृ. 123), (ग) इसका पता लगाना दुर्घट है कि इन ग्रंथों में कितना ज्ञान भंडार पड़ा है। (म. प्र. द्वि., खं. 2, पृ. 76)

दुर्दैव सं. (पु.) -- दुर्भाग्य, दुर्दैव से पार्टी नेताजी के इरादों से बाहर जा रही है। (कर्म., 29 मई 1948, पृ. 8)

दुर्रा सं. (पु.) -- कोड़ा, चाबुक, मारे क्रोध के उन्होंने मरे हुए बैल पर और दुर्रे लगाए। (सर., जून 1916, पृ. 290)

दुर्वह वि. (अवि.) -- जिसे वहन न किया जा सके, असह्म, भारत की जनता करों के दुर्वह बोझ से बिलकुल दब गई है। (स. सा., पृ. 64)

दुलकी चाल सं. (स्त्री.) -- घोड़े की मध्य गति की चाल, बाबू रतिराम अपनी दुलकी चाल में पीछे लग लिए। (काद. : जन. 1968, पृ. 163)

दुलत्ती मारना मुहा. -- पशु का पिछली दोनों टाँगों से एक साथ प्रहार करना, दोहरी मार मारना, उच्च पदों पर बैठे सिफारिशी टट्टू प्रजा को जहाँ-तहाँ दुलत्ती मारते रहते हैं। (कर्म., 17 अक्तू 1931, पृ. 12)

दुलराना क्रि. (सक.) -- दुलार करना, प्रेम करना, कविता जीवन ही की तरह जितनी दुलराए जाने की वस्तु है, उतनी युगों के लिए क्रियात्मक साधना की वस्तु है। (मा. च. रच., खं. 2, पृ. 286)

दुलाई सं. (स्त्री.) -- हलकी रजाई, पिछले दिनों अमेरिकन सेंटर ने अमेरिकी कलाकार लिंडा शैपेर की पैबंदी दुलाइयों की एकल प्रदर्शनी आयोजित की। (दिन., 10 से 16 फर. 1980, पृ. 36)

दुशाला सं. (पु.) -- ऊनी चादर, बिदाई के लिए गले मिलने के बहाने वह उनका दुशाला ले भागा। (वीणा, जन. 1934, पृ. 662)

दुष्काल सं. (पु.) -- बुरा समय, अकाल और दुष्कालों से होनेवाले टोटे को पूरा करना है। (कर्म., 11 दिस., 1948, पृ. 3)

दुस्तर वि. (अवि.) -- कठिन, मुश्किल, यह कार्य अत्यंत दुस्तर है। (काद. : अप्रैल 1982, पृ. 7)

दुहत्था वि. (विका.) -- दो हाथों या दो शासकों द्वारा होनेवाला, दोहरा, दुहत्थी शासन प्रणाली के प्रति तीव्र असंतोष प्रकट करने और आंदोलन करने पर ही भारत को कुछ मिल सकता है। (न. ग. र., खं. 4, पृ. 34)

दुहना क्रि. (सक.) -- लाभ उठाना, स्वार्थ साधना, उन्होंने देखा कि रेडियो से बाहर रहकर रेडियो को ज्यादा दुहा जा सकता है। (दिन., 8 जुलाई, 1966, पृ. 45)

दुहाई देना मुहा. -- बचाव के लिए पुकारना, इसी से लोक में भी वेद वाक्य की दुहाई देने की चाल पड़ गई है। (सर., सित. 1922, पृ. 167)

दुहाई फिरना मुहा. -- (विजय की) घोषणा होना, दाढ़ी चुटिया का गठबंधन कसे बिना स्वराज की दुहाई नहीं फिर सकती। (मत., म. प्र. से. वर्ष 5, 1923, सं. 20, पृ. 427)

दुहाई मचाना मुहा. -- जोर-जोर से घोषणा करना, सर सैयद अहमद ने कांग्रेस विरोध की दुहाई मचाई और भाई-भाई को लड़ाया। (गु. र., खं. 1, पृ. 327)

दुहेरा वि. (विका.) -- दुहरा, कहते हैं कोई मूँछवाला ही कमान को दुहेरी कर सकता है। (किल., सं. म. श्री., पृ. 69)

दूध का धुला या धोया मुहा. -- निष्कलुष, निष्कलंक, (क) लार्डो ने डायर को दूध का धोया सिद्ध किया। (मा. च. रच., खं. 9 पृ. 217), (ख) सबसे पहली बात तो यह कि दूध धुला कोई नहीं होता। (हि. पत्र. के गौरव बां. वि. भट, सं. ब., पृ. 109), (ग) वे अपनी स्वाधीनता का दुरुपयोग बहुत कम करते हैं तथापि वे सर्वथा दूध के धोये नहीं होते। (सर., भाग 28, खं. 1, सं. 1, जन. 1927, पृ. 156)

दूध बूरा हो जाना मुहा. -- दूध और शक्कर की तरह घुल-मिल जाना, एक जान हो जाना, जानसिंह और उसकी स्त्री का चित्त दूध-बूरे की तरह एक हो रहा था। (वि. वि. ले., पृ. 229)

दूध से नहलाना या नहला देना मुहा. -- पूर्ण सम्मान देना, महात्मा गांधी या अरविंद जैसे तपस्वी भी लोकमत को कुचलें तो उन्हें अवतारी पुरुष समझकर दूध से न नहला दिया जाय। (म. का मतः क. शि., 16 मई, 1925, पृ. 184)

दूध-धोया वि. (विका.) -- दूध का धुला, दोष-रहित, निष्कलुष, यह सबकुछ है किंतु क्या हमारी जाति बिलकुल दूध-धोई है। (ग. शं. वि. रच., खं. 1, पृ. 296)

दून की हाँकना मुहा. -- डींग मारना, (क) जब मैं कोई दून की हाँकने लगूँ तब आप लोग जरा खाँस दिया करें। (मा. च. रच., खं. 2, पृ. 294), (ख) अब उनकी समझ में आ रहा था कि प्राचीन भारत केवल धर्म और परलोक की दून की नहीं हाँकता था। (माधुरी, नव. 1928, सं. 3, पृ. 705)

दूनर वि. (अवि.) -- दुहरा, सड़क को दूनर करके जैसे किसी ने उसकी तह कर दी। (मधु: अग. 1965, पृ. 218)

दूर की कौड़ी लाना मुहा. -- दूर की किसी बात से संबंध जोड़ना, तकरीर में बड़े वजन की बातें कहने और बहुत ढूँढ़कर दूर की कौड़ी लाने और मारने का कोई मतलब नहीं है। (हि. ध., प्र. जो., पृ. 356)

दूर की हाँकना मुहा. -- बेसिर-पैर की बात कहना, डींग हाँकना, (क) वे ऐसी दूर की हाँकते हैं कि भ्रम होता है कि उनके दिमाग के संतुलन में तो फर्क नहीं पड़ गया। (कर्म., 15 मई, 1954, पृ. 4), (ख) चाहे हम कितने ही क्रांतिवादी, प्रगति-उपासक तथा दून के (की) हाँकनेवाले क्यों न हों, पर यदि हम असंगठित हैं और हमारे सामूहिक गट्ठे में बल नहीं है तो हम इस आक्रमण से भारतीय क्रांति की रक्षा करने में समर्थ न हो सकेंगे। (न. ग. र., खं. 4, पृ. 63)

दूर के ढोल सुहाने लगना मुहा. -- जो दूर और अज्ञात होता है वह सुहाना लगता है, अपने प्रश्न का उत्तर वे माओत्से तुंग और शे ग्वेवरा से माँगते हैं, क्योंकि पश्चिम के लिए वे सुदूरतम ईश्वर हैं और दूर के ढोल की तरह दूर के देवता भी सुहाने लगते हैं। (रा. मा. संच. 1, पृ. 21)

दूर-पराहत वि. (अवि. पदबंध) -- असंभव, बहुत कठिन, हिंदी बंगवासी बिगड़ गया था, तो अब उसका सुधरना दूर-पराहत है। (गु. र., खं. 1, पृ. 427)

दूषण सं. (पु.) -- दोष, विकार, जनतंत्र के गुण गिनाए जाते हैं तो दूसरी ओर उसके दूषण दिखाए जाते हैं। (माधुरी, 31 मार्च, 1925, सं. 3, पृ. 421)

दूसना क्रि. (सक.) -- दोष देना, दोष लगाना, अपने ही मन की सब-कुछ चाहने और बहू रात-दिन काम करती रहे तो भी उसे दूसते रहना क्या ठीक है। (सर., भाग 30, खं. 1, जन-जून 1929, पृ. 226)

दूसरों का मुँह जोहना मुहा. -- दूसरों का आसरा देखना, समिति फैसलों के ले दूसरों का मुँह जोहती है। (दिन., 10 सित., 67, पृ. 11)

दृढ़मन्यु वि. (अवि.) -- प्रचंड क्रोधी, हठी, वह दृढ़मन्यु है, उसे शांत करना बहुत कठिन है। (काद. : जन. 1988, पृ. 16)

देखत-भूली सं. (स्त्री., पदबंध) -- साफ दिखाई देनेवाली भूल, जान-बूझकर की गई गलती, सभापति ने सहकारिता की उस देखत-भूली की चर्चा भी नहीं की। (मा. च. रच., खं. 9, पृ. 154)

देखादेखी करे जोग घटे काया बढ़े रोग कहा. -- अंधानुकरण हानिप्रद होता है, देखादेखी करै जोग, घटे काया बढ़े रोगवाली मसल हुई। टीकम दिन-दिन दुबला होने लगा और देह में रोगों ने घर कर लिया। (सर., फर. 1937, पृ. 131)

देखादेखी की देखादेखी क्रि. वि. -- के अनुकरण पर, (क) मुसलमानों की देखादेखी अपनी नाक कटाकर नक्कू बन जाने ही में यदि हिंदुत्व की श्रीवृद्धि होती हो तो दूसरी बात। (ग. शं. वि. रच., खं. 3, पृ. 396), (ख) मध्य प्रदेश और बरार जैसे (जैसी) बुद्धिमान सरकारों का भी, बिहार सरकार की देखादेखी कौआ कान ले गया था। (मा. च. रच., खं. 10, पृ. 140)

देखें ऊँट किस करवट बैठता है कहा. -- यह देखना कि परिस्थिति क्या मोड़ लेती है, निर्णय या निष्कर्ष की प्रतीक्षा में होना देखें अरबी ऊँट किस करवट बैठता है। (न. ग. र. खं. 2, पृ. 216)

देन और लेन सं. (पु., पदबंध) -- देना और लेना, ले-देकर मैनेजर का विश्वास था कि देन और लेन से प्रत्येक व्यक्ति को वशीभूत किया जा सकता है। (काद. : जन. 1989, पृ. 80)

देनगी सं. (स्त्री.) -- देन, संपदा, पाश्चात्य देशों के लोग नैसर्गिक देनगी की कमी के कारण कल-कारखानों की चीजों का निर्माण कर जीवन निर्वाह करते हैं। (कर्म., 5 अप्रैल, 1947, पृ. 1)

देर-अवेर क्रि. वि. -- देर-सबेर, (क) विभिन्न विचारधारा के इन संगठनों में देर-अवेर दरार पड़ेगी। (दिन., 18 फर., 68, पृ. 8), (ख) देर अवेर कम्युनिस्ट गुट के अन्य सदस्य उसका अनुसरण करेंगे। (दिन., 24 मार्च, 68, पृ. 31)

देर-सबेर क्रि. वि. -- निश्चित समय से कुछ पहले या कुछ बाद में, आगे-पीछे, (क) धंधे की दृष्टि से इन जमीनों में पैसा फँसाते हैं और देर सबेर इनसे ऊँचा मुनाफा कमाते हैं। (सा. हि., 28 जून, 1959, पृ. 5), (ख) देर सबेर इनका पालित ब्यूरो से निष्कासन लगभग तय है। (दिन., 3 अक्तू. 1971, पृ. 33), (ग) आज कौन इस मुगालते में है कि देर सबेर हिंदी सहित अन्य भारतीय भाषाएँ ऊँची नौकरियों अथवा उद्योग-व्यापार में कामकाज की भाषाएँ बन जाएँगी। (ग. मं. : पत्र. चु., पृ. 81)

देवता कूच कर जाना मुहा. -- होश उड़ जाना, अक्ल गायब हो जाना, इन पुस्तकों को देखकर हमारे देवता कूच कर गए। (गु. र., खं. 1, पृ. 142)

देवाल सं. (पु.) -- देनेवाला, दाता, वही संबंध होगा हो एक बैंक और उसके लेवाल-देवाल का होता है। (न. ग. र. खं. 2, पृ. 160)

देह धरे का धरम मुहा. -- मानवीय कर्तव्य, देह धरे का धरम किसी को भी कहीं भी पकड़ सकता है। (हि. ध., प्र. जो., पृ. 325)

दो कौड़ी का होना मुहा. -- किसी काम का न होना, मेरे नाटक दो कौड़ी के हैं, ऐसा कहनेवाले भी कम नहीं। (शत. खि., ह. कृ. प्रे., पृ. 6)

दो घोड़ों की सवारी करना मुहा. -- असंभव कार्य करना, निष्फल प्रयत्न करना, दो माध्यमों का एक साथ प्रयोग करना, जो लोग एक-साथ दो घोड़ों की सवारी करने की कोशिश करते रहते हैं बहुधा गुलाँट खाकर चारों खाने चित्त गिर भी पड़ते हैं। (दिन., 11 मार्च, 1966, पृ. 10)

दो जानू होकर क्रि. वि. -- घुटनों के बल, झुककर, सलामवालेकुम किया और दो जानू होकर अदब से बैठ गया। (काद., अक्तू. 1989, पृ. 54)

दो नावों पर एक साथ सवारी करना मुहा. -- दो माध्यमों का एक साथ प्रयोग करना, मौलाना मोहम्मद अली अपनी अलग खिचड़ी पका रहे थे, उन्होंने दो नावों पर एकसाथ सवारी कर रखी थी। (सर., भाग 30, खं. 1, जन.-जून 1929, पृ. 117)

दो सिर का वि. (विका., पद.) -- सिरफिरा, घमंडी, वह कौन दो सिर का पैदा हुआ है जिसने मेरे विरुद्ध सर उठाया है। (शत. खि., ह. कृ. प्रे., पृ. 25)

दो-छत्तिया सं. (स्त्री.) -- परछत्ती, दो-छत्तिया बनाती तो है फालतू सामान रखने के लिए, पर उसमें ठँसता है इनसान और उसका परिवार। (दिन. : 20 अग. 67, पृ. 27)

दो-टूक बातें चौ-टूक व्यवहार कहा. -- कथनी और व्यवहार में खरापन, मंगर का स्वभाव रूखा और बेलोस रहा है, किसी से लल्लो-चप्पो नहीं, लाई-लपटाई नहीं। दो-टूक बातें चौ-टूक व्यवहार। (बे. ग्रें., प्रथम खं., पृ. 32)

दो-टूक वि. (अवि.) -- खरा, स्पष्ट, राजनैतिक शिष्टाचार की अपेक्षा ठोस और दो-टूक बातें हुई होंगी। (दिन., 21 सित. 1969, पृ. 34)

दोघड़ सं. (पु.) -- दो घड़े, पानी के दोघड़ लाती हुई ग्राम बालाएँ भली प्रतीत होती थीं। (काद. : जन. 1989, पृ. 73)

दोनों जून क्रि. वि. -- दोनों समय, हम नहीं जानते लोगों को रोटी खाना कैसे पसंद आता है, हमको तो दोनों जून ताजी-ताजी लुचई और बेढ़नी मिलती जाय तो कभी कच्ची रसोई का नाम न लें। (भ. नि., पृ. 66-67)

दोनों हाथ लड्डू होना मुहा. -- लाभ ही लाभ होना, इस समय अमरीका के दोनों हाथ लड्डू हैं। (सा. हि., 22 अक्तू. 50, पृ. 4)

दोनों हाथों में लड्डू रखना मुहा. -- अत्यधिक प्रलोभन देना, सरकार ने दोनों हाथों में लड्डू रखकर अपना उल्लू सीधा कर लिया। (लो. स., 15 जन. 1989, पृ. 9)

दोमुँहा वि. (वि.) -- दोमुँहाँ, दो तरह की बात करनेवाला, कांग्रेसी नेताओं का कहना है कि श्री मल्होत्रा दोमुँही नीति अपना रहे हैं। (दिन., 2 जून, 68, पृ. 22)

दोमुँहापन सं. (पु.) -- दो मुँहाँपन, दो तरह की बात कहने की आदत, सबकी पोल खुल गई और सभी को अब दोमुँहेपन से काम निकालना पड़ रहा है। (हि. ध., प्र. जो., पृ. 236)

दोरुखी वि. (विका.) -- दो-तरफा, दोमुँहाँ, खासकर दोरुखी बात करनेवाले राजनैतिक नेतागण बहुधा गुलाँट खाकर चारों खाने चित्त गिर भी पड़ते हैं। (दिन., 11 मार्च, 1966, पृ. 10)

दोरूपिया वि. (अवि.) -- दो रूपोंवाला, ऐसे दोरूपिए मि. आचार्य ने इधर हाल में तीसरा रूप दिखाया है। (नि. वा. : श्रीना. च., पृ. 27)

दोस्ती पालना मुहा. -- मेल-जोल बढ़ाना, मित्रता स्थापित करना, सरकार के कुछ सदस्यों ने नगद नारायण की साक्षी देकर कुछ व्यापारियों एवं ठेकेदारों से दोस्ती पाली थी। (न. ग. र., खं. 2, पृ. 140)

दोहद लक्षण सं. (पु.) -- 1. गर्भवती होने का लक्षण, 2. विस्तार का लक्षण, इधर आपकी संस्कृत यूनिवर्सिटी दोहद लक्षणों को धारण करेगी। (चं श. गु. र., खं. 2, पृ. 363)

दोहर सं. (स्त्री.) -- दोहरे कपड़े से बनी ओढ़ने की चादर, दुलाई दोहर के सहारे वे सारा शीतकाल व्यतीत करते हैं। (सर., अक्तू. 1918, पृ. 174)

दोहरी दीठ सं. (स्त्री., पदबंध) -- द्वैतभाव, भेदभाव, उसकी आँखों में मेरी तरह दोहरी दीठ नहीं थी। (ज. क. सं. : अज्ञेय, पृ. 25)

दौरदौरा सं. (पु.) -- प्रधानता, प्रभुत्व आधिपत्य, (क) देश में इस समय जिस शासन प्रणाली का दौर-दौरा है, निस्संदेह उसमें शासक दल के अधिकार बहुत बढ़े-चढ़े हैं। (ग. शं. वि. रच., खं. 2, पृ. 218), (ख) दुर्दिन का दौरदौरा कुंभकर्ण के दिन के समान छह महीने से भी अधिक चलेगा। (नि. वा. : श्रीना. च., पृ. 754), (ग) अद्वैत सिद्धि में खंडन-मंडन और शंका समाधान का सर्वत्र दौरदौरा है। (म. प्र. द्वि रच., खं. 2, पृ. 272)

दौरा सं. (पु.) -- बाँस का बना हुआ टोकरा, एक बड़ा दौरा नाना प्रकार की वस्तुओं से भरा रखा गया। (सर., दिस. 1919, पृ. 326)

द्राविड़ प्राणायाम वि. (अवि.) -- घुमाव-फिरावदार, अपनी सारी द्राविड़ प्राणायाम नीति द्वारा सरकार ने अनिर्णय की पराकाष्ठा प्रदर्शित की। (दिन., 03 दिस. 1965, पृ. 12)

द्वार झाँकना मुहा. -- (दूसरे के) यहाँ जाना, लोग प्रदर्शिनी में जाकर अपने योग्य कोई व्यापार करना निश्चित कर लेंगे तो उनको किसी और का द्वार झाँकना और किसी और का मुँह ताकना न पड़ेगा। (सर., जन. 1911, पृ. 26)

द्वारा सं. (पु.) -- द्वारा, दरवाजा, साधन करते क्या ? बात करे का और कोई द्वारा ही न था। (सर., 1 अप्रैल 1909, पृ. ...)

धकमपेल सं. (स्त्री.) -- धकापेल, मारा-मारी, सही अर्थों में आम आदमी रोजमर्रा जिंदगी को जुटाने की धकमपेल में ही जुटा रहता है। (रवि. 20 सित. 1989, पृ. 5)

धकाधक क्रि. वि. -- बड़ी तेजी से, इस दौरान चिलम धकाधक सुलगती रही। (रा. द., श्रीला. शु., पृ. 255)

धकापेल सं. (स्त्री.) -- धक्कमधक्का, धींगामुश्ती, ठेलमठेल, (क) ऐसी अराजकता कायम हो जाएगी, जिसमें धकापेल ही मूल्य होगा। (रा. मा. संच. 2, पृ. 165), (ख) धकापेल में यदि उसे ज्यादा हक मिल जाए तो क्या हर्ज है। (स. ब. दे. : रा. मा. (भाग-दो), पृ. 115), (ग) दरअसल भारत में जो भी लोकतंत्र अथवा घकापेल 33 वर्षों से चल रही है, (रा. मा. संच. 1, पृ. 383)

धकियाना क्रि. (सक.) -- धक्का देकर निकाल देना, बलात् निकालना, 90 दिन पूरे होने पर कुलपति धकिया दिए जाएँ। (दिन., 23 दिस., 66, पृ. 29)

धक्का लगना मुहा. -- आघात लगना, अहित होना, इस मूर्खता के कारण उनकी बदनामी होती है और इससे हड़ताल के प्रबल अस्त्र पर धक्का लगता है। (ग. शं. वि. रच., खं. 1, पृ. 60)

धक्का-मुक्की सं. (स्त्री.) -- एक-दूसरे को धकेलना और मुक्के मारना, (क) तिकड़म और धक्का-मुक्की के इस वातावरण में कोई भी आर्थिक मशीन कैसे चल सकती है। (रा. मा. संच. 2, पृ. 138), (ख) शहर के बाजार की धक्का-मुक्की तथा शोर करनेवाली व्यस्तता से जी चुराना होता है। (मधुः अग. 1965, पृ. 30)

धक्काड़ वि. (अवि.) -- धाकड़, बहुत बड़ा, भारी, किशोरीलाल गोस्वामी बड़े धक्काड़ लिक्खाड़ थे। (शि. पू. र., खं. 4, पृ. 128)

धक्कामार ढंग से क्रि. वि. -- जबरदस्ती, बलात्, याज्ञवल्क्य ने जो बात धक्कामार ढंग से कही वह अंतिम नहीं है। (कुटजः ह. प्र. द्वि., पृ. 8)

धज सं. (स्त्री.) -- शोभा, सजावट, उनकी मूर्ति से भयंकरता टपकती है और न्यायाधीश की धज भी प्रकट होती है। (सर., फर. 1921, पृ. 87)

धज्जियाँ उड़ाना मुहा. -- तार-तार कर देना, नष्ट-भ्रष्ट कर देना, (क) मेकडानेल्ड ने संधि के इस मसौदे के सिद्धांत की धज्जियाँ उड़ा दी थीं। (न. ग. र. खं. 2, पृ. 205), (ख) वे नई कहानी की धज्जियाँ उड़ा देंगे। (सं. मे., कम., 20 जुलाई, 1990, पृ. 6-7), (ग) अगर आज यूनान की सरकार ने फौजी षड्यंत्र द्वारा मकारिओस का तख्त उलटा है, तो उसने ज्यूरिख समझौते की धज्जियाँ उड़ा दी हैं। (रा. मा. संच. 1, पृ. 248)

धड़धड़ा पड़ना मुहा. -- सहसा उपस्थित होना, बिना कुछ कहे ही धड़धड़ा पड़े। (कच. : वृ. ला. व., पृ. 2)

धड़ल्ले के साथ क्रि. वि. -- तेजी से, इधर बाल विवाह धड़ल्ले के साथ हुए हैं। (त्या. भू. : संवत् 1983, पृ. 357)

धड़ल्ले से क्रि. वि. -- तेजी से, (क) योग का व्यापार देश में धड़ल्ले से चल रहा है। (काद. : जन. 1975, पृ. 12), (ख) प्रकाशक भी किसी टेक्स्ट बुक कमिटी की सिफारिश की आशा से इन संग्रहों को धड़ल्ले से प्रकाशित कर रहे हैं। (सर., दिस. 1920, पृ. 326)

धड़ाका सं. (पु.) -- धमाका, विस्फोट, (क) संसद् में और उसके बाहर जो धड़ाका हुआ है उसके विस्फोटक तत्त्व नए नहीं हैं। (दिन., 11 जून, 67, पृ. 13), (ख) एक धड़ाके के साथ आकाश में प्रकाश फैल गया। (मधुः अग. 1965, पृ. 166)

धड़ाके से क्रि. वि. -- धड़ल्ले से, बेरोक-टोक, (क) त्याग करके जो पुण्य कमाया था, उसे आज धड़ाके से बेच रहे हैं। (कर्म., 26 फर., 1948, मु. पृ.), (ख) विद्यालय की रसायनशाला में शायद यह काम धड़ाके से चले। (सर., जून 1926, पृ. 770), (ग) उसका सिक्का यूरोप में ही नहीं भारत में भी धड़ाके से चल रहा है। (नि. वा. : श्रीना. च., पृ. 616)

धड़ाधड़ क्रि. वि. -- बड़ी तेजी से, भारत में धड़ाधड़ नए दलों की सृष्टि होती जा रही है। (स. सा., पृ. 62)

धण सं. (स्त्री.) -- युवती, स्त्री, इस धण का यार तो जोगी है--तंबूरेवाला जोगी। (काद., मार्च 1976, पृ. 151)

धतकरम सं. (पु.) -- अनुचित या धूर्ततापूर्ण कृत्य, दुष्कृत्य, (क) इनके धतकरम से फैले दावानल में 400 से ज्यादा लोग मारे गए। (हि. ध., प्र. जो., पृ. 54), (ख) यह सब धतकरम हैं, उसे (इसे) छोड़ो और हमारे साथ आओ। (ज. स. : 19 जुलाई, 2007, पृ. 1)

धता बताना मुहा. -- उपेक्षापूर्वक दूर हटाना, (क) उसकी इच्छा है कि स्वराज्य दल को धता बताकर फिर असहयोग की वंशी टेरी जाए। (म. का मतः क. शि., 8 दिस. 1923, पृ. 130), (ख) चालबाज नौकरशाही स्वराज दल को एक क्षण में धता बता सकती है। (म. का मतः क. शि., 5 जुलाई 1924, पृ. 160), (ग) इसी नकारात्मक विचार के खातिर पाकिस्तान ने प्रजातंत्र को धता बता दी। (रा. मा. संच. 1, पृ. 93)

धंधेबाज वि. (अवि.) -- धूर्त, चंट, उसके पास रिचर्ड निक्सन नामक एक धंधेबाज, चलता पुर्जा, हाथ की सफाई जाननेवाला नौकर भी था। (रा. मा. संच. 1, पृ. 252)

धनी-धूरी सं. (पु.) -- धनी-धोरी, मालिक, (क) लामा का पद प्राप्त धनी-धूरियों का एक श्रेष्ठतम उद्देश्य है। (सर., जन. 1920, पृ. 20), (ख) थोड़े समय बाद ही सही, हिंदी के धनी-धोरी आपके प्रति न्याय करेंगे। (ब. दा. च. चु. प. संपा. ना. द., पृ. 207)

धनी-धोरी सं. (पु.) -- मालिक, स्वामी, (क) हिंदी के धनी-धोरी इसे ... गंगोत्री की ओर हाँक ले जाने के लिए एड़ी-चोटी का जोर लगा रहे हैं। (दिन., 18 जून, 67, पृ. 42), (ख) मानो हिंदी का कोई धनी-धोरी या हमदर्द है ही नहीं। (शि. पू. र., खं. 4, पृ. 561)

धनीजोग वि. (अवि.) -- (चेक) जिसे उसका धारक बैंक से भुना सके, अरे भाई, धनीजोग चेक देना, नहीं तो मुझे पैसा नहीं मिलेगा। (काद., जून 1977, पृ. 12)

धन्नी सं. (स्त्री.) -- धरन, कड़ी, उभरा हुआ छज्जा कहीं पर धन्नी धँस रही। (सर., अग. 1916, पृ. 94)

धप्प मारना मुहा. -- धौल लगाना, कढ़ी खाए, मुसकी क्या मारे है, सरदार को धप्प मारकर आई हूँ वह हाथ दूँगी कि सारे दाँत झड़ जाएँगे। (काद., नव. 1961, पृ. 76)

धबीला वि. (विका.) -- धूमिल, सरकार जो अन्याय के धब्बों से काफी अधिक धबीली हो चुकी है। (मा. च. रच., खं. 9, पृ. 232)

धमक आना मुहा. -- अचानक आ जाना, आज आप बहुत व्यस्त हैं। मैं तो ऐसे ही बिना किसी काम-धाम के धमक आया था। (रवि., 4 जन. 1981, पृ. 31)

धमक सं. (स्त्री.) -- 1. कंपन, स्पंदन, फड़क, उनमें राष्ट्रीय धुरी के संचालन की धमक है। (मा. च. रच., खं. 10, पृ. 329), 2. हलकी चोट, तलवार के बल गिरने से जाँघ में धमक आ गई थी। (सर., मई 1937, पृ. 485)

धमकधुक्की सं. (स्त्री.) -- ठेलमठेल, ऐसा लगता है कि रेल विभाग में बदइंतजामी और धमकधुक्की अभी भी अपनी चरम सीमा पर है। (लो. स., 11 जून, 1989, पृ. 10)

धमकी-घुड़की सं. (स्त्री.) -- डाँट-डपट, ये उन लोगों में से नहीं है जो केवल धमकी-घुड़की देकर ही चुप हो जाते हैं। (न. ग. र., खं. 3, पृ. 255)

धमधमाहट सं. (स्त्री.) -- धम-धम की आवाज, धमक इसके बाद हल्की धमधमाहट सुनाई पड़ने लगी। (नव., मई 1952, पृ. 78)

धमधूसर वि. (अवि.) -- मोटा-ताजा, मेढकी बीवी घोड़ों की हिनहिनाहट सुनती तो सोचती कि ये मुए इतने धमधूसर तो हैं पर कठिनता से एक दो मिनट ही हिं-हिं-हिं-हिं की कष्ट ध्वनि कर पाते हैं। (न. ग. र., खं. 4, पृ. 332)

धमनी सं. (स्त्री.) -- सजी हुई छोटी बैलगाड़ी, हम चार जने बीना से धमनी पर बैठकर गुलौवा, मेवली होते हुए कोंरजा जा पहुँचे। (मधुकर, अप्रैल-मई 1946, पृ. 433)

धमाचौकड़ी सं. (स्त्री.) -- उछलकूद, हुड़दंग, हो-हल्ला, (क) हफ्तों की धमाचौकड़ी के बाद कलकत्ता की कांग्रेस ने बहुमत से नेहरू कमेटी का औपनिवेशिक स्वराज विधान स्वीकार कर लिया। (मत., म. प्र. से. वर्ष 5, सं. 7, पृ. 3), (ख) हमारे प्रतिनिधि संसद् में, हफ्तों धमाचौकड़ी में गुजार देते हैं। (किल., सं. म. श्री., पृ. 21), (ग) इस नए फंदे का नाम सुनते ही कालों ने धमाचौकड़ी आरंभ कर दी। (म. का मतः क. शि., 22 सित. 1928, पृ. 228)

धमार सं. (पु.) -- धमाल, उछल-कूद, जैसे नागमति के विरह को चरम पर ले जाने के लिए फागुन-चैत में धमार मचाई हो। (काद. : फर. 1991, पृ. 34)

धर दबोचना मुहा. -- इस प्रकार किसी को दबा देना कि वह असहाय हो जाए, जब चाहता पेरिस के किसी भी आदमी को धर दबोचता ..., (काद., अक्तू. 1975, पृ. 109)

धरऊ-मुरऊ वि. (अवि.) -- साधारण, मामूली, छोटी-मोटी, किंतु इस बात का क्या प्रमाण है कि कल की कोई धरऊ-मुरऊ सभा जिसे-तिसे यह उपाधि देकर इस उपाधि की अप्रतिष्ठा न कर दें। (चं. शं. गु. र., खं. 2, पृ. 329)

धरतीपरस्त वि. (अवि.) -- धरती की पूजा करनेवाला, धरती को सम्मान की दृष्टि से देखनेवाला, धरती-सेवी, धरती-परस्त नेता लोगों को अनधिकारी दावेदार मानता है। (हि. धु., प्र. जो., पृ. 389)

धरन सं. (स्त्री.) -- शहतीर, कड़ी, इस प्रकार सोने के कि छत की धरन छाती के ऊपर ठीक आड़ी पड़े, स्वप्न में भूत-प्रेत की भयानक करतूतें नजर आती हैं। (सर., जून 1921, पृ. 385)

धरना क्रि. (सक.) -- रखना, होना, (क) इंग्लैंड और स्कॉटलैंड में अब धरा ही क्या है। (ग. शं. वि. रच., खं. 2, पृ. 244), (ख) सोचने-समझने में कुछ धरा नहीं है। (दिन., 14 जन. 1966, पृ. 41)

धरा का धरा रह जाना मुहा. -- वैसे का वैसा रह जाना, कुछ भी सुधार या परिवर्तन न होना, ये दावे कि वे अपने-अपने सदस्यों की संख्या बढ़ाएँगे, धरे के धरे रह गए। (दिन., 24 अग. 1969, पृ. 21)

धरा रह जाना मुहा. -- विवश हो जाना, असहाय हो जाना, सक्रियता न दिखा पाना, प्रश्न यह है कि पानी लगातार ऊपर चढ़ रहा है और जब वह नाक के ऊपर चला जाएगा, तब आपके सारे नेता और उनकी पार्टियाँ धरी रह जाएँगी। (रा. मा. संच. 1, पृ. 449)

धराऊ वि. (अवि.) -- पुराना, (क) धराऊ शब्दों का मखौल उड़ाते हैं लेकिन बहुधा यह भाषा विषय से परिचालित होती है। (दिन., 18 अप्रैल, 1971, पृ. 42), (ख) ये प्रश्न किसी दूसरे समय के लिए धराउ रखना होगा। (नि. वा. : श्रीना. च., पृ. 823)

धरे रहना मुहा. -- बने रहना, बनाए रखना, और 20 साल के नौजवान की स्थिति में अपने आप को (40-50 की उम्र में भी) धरे रहे। (रा. मा. संच. 2, पृ. 400)

धर्म-ढोंगी वि. (अवि.) -- धर्म का ढोंग करनेवाला, पाखंडी, पहले भी समाज में धर्म-ढोंगी रहे हैं। (ग. शं. वि. रच., खं. 1, पृ. 315)

धसकना क्रि. (अक.) -- खिसकना, गिरना, (क) इस वर्ष की प्रदर्शनी मिट्टी के कट जाने की प्रदर्शनी नहीं है, वह मिट्टी के बिलकुल ही धसक जाने या कि दलद बन जाने की प्रदर्शनी है। (दिन., 8 फर. 1970, पृ. 41), (ख) मकान किसी भी समय धसक जाएगा। (स. न. रा. गो. : भ. च. व., पृ. 20)

धँसना क्रि. (अक.) -- घुसना, प्रविष्ट होना, इस रहस्य समुद्र में वे पतवार रहित नौका पर सवार होकर धँसते हैं। (सर., अक्तू. 1922, भाग-23, खं. 2, सं. 4, पृ. 299)

धाक सं. (स्त्री.) -- प्रभाव, रुआब, जिनकी धाक से सच्चाई तथा देशभक्ति मुँह छिपाती है। (मा. च. रच., खं. 9, पृ. 260)

धाकड़ वि. (अवि.) -- बढ़ा-चढ़ा, प्रभावशाली, (क) लेकिन लगे हाथ उन्होंने अपने धाकड़ प्रतिद्वंद्वियों का सफाया भी कर दिया। (रा. मा. संच. 1, पृ. 403), (ख) वकीलों की जिरह में तो धाकड़ झूठे भी नहीं ठहरते। (काद., फर. 1988, पृ. 72)

धाँधना क्रि. (सक.) -- बंद करना, ठूस देना, (क) सैकड़ों बंगाली देश-भक्तों को जेल में धाँध दिया। (मा. च. रच., खं. 4, पृ. 117), (ख) जब मौका मिले इसे धाँध दो। (स. न. रा. गो. : भ. च. व., पृ. 221)

धाँय-धाँय कर जलना मुहा. -- धूँ-धूँ कर जलना, तेजी से जलना, युद्ध की आग इस यूरोप में धाँय-धाँय कर जल रही है। (स. सा., पृ. 287)

धार चढ़ना मुहा. -- सान चढ़ना, अस्त्र इतना भोथरा हो गया है कि उस पर अब धार नहीं चढ़ सकती। (हि. ध., प्र. जो., पृ. 545)

धार तेज करना मुहा. -- प्रखर बनाना, तीक्ष्ण करना, मधु लिमिये ने आलोचना की धार तेज करते हुए कहा कि गोहाटी में जो कुछ हुआ, उसके लिए सरकार की ढुलमुल नीति जिम्मेदार है। (दिन., 25 फर., 68, पृ. 14)

धार पर चढ़ाना मुहा. -- सान पर चढ़ाना, उत्तेजित करना, सांप्रदायिकता की काट के लिए धार पर चढ़ाई गई जातिवादिता ने समाज को बाँट दिया। (हि. ध., प्र. जो., पृ. 278)

धारना क्रि. (सक.) -- ग्रहण करना, धारण करना, कुछ ऐसे सेवक भी हैं जो अपने हृदय में जगद्वंद्य भावना को धारे रहते हैं। (न. ग. र., खं. 2, पृ. 23)

धारा सं. (स्त्री.) -- प्रवाह, बहाव, मुख्य धारा, अपने जीवन के अंतिम दिनों तक तिलक धार से कटे रहे, क्योंकि धारा की असली शुरुआत उनकी मौत के बाद हुई। (रा. मा., सं. 1, पृ. 53)

धाराधार क्रि. वि. -- लगातार धारा बहाते हुए, भक्त कवियों के पद गाते-गाते धाराधार रोनेवाली माँ से मुझे गांधी की करुणा का स्पर्श मिला था। (हि. ध., प्र. जो., पृ. 187)

धारे पैनी करना मुहा. -- धार तेज करना, सान लगाना, मेनन ने आलोचना की धार पैनी करते हुए कहा कि भारत सरकार ने अनाज सहायता लेने की गलत शर्तें स्वीकार की हैं। (दिन., 03 फर., 67, पृ. 15)

धावा बोलना या बोल देना मुहा. -- चढ़ाई करना, आक्रमण करना, ...जो ज्यादा ताकतवर था, उसने जयचंदों को आगे करके धावा बोल दिया। (रा. मा. संच. 1, पृ. 341)

धाँस-धप्पा सं. (पु.) -- डपट और चपत, आप धाँस-धप्पा और फूँ-फाँ करना जानते हैं। (न. ग. र., खं. 3, पृ. 80)

धाँसकर क्रि. वि. -- अत्यधिक, खूब, तभी होगी सहकारी खेती और धाँसकर पैदा होगा अन्न। (रा. द., श्रीला. शु. पृ. 184)

धाँसू वि. (अवि.) -- जोरदार, प्रभावकारी, मैं अबी तक तुम्हारी बुद्धि पर तरस खा रहा था कि तुम कोई धाँसू सुझाव पेश क्यों नहीं कर रहे ? (रवि., 3 अग. 1981, पृ. 37)

धिक्कारना क्रि. (सक.) -- कोसना, बुरा-भला कहना, शेख साहब को इस दुर्भाग्यपूर्ण भाषण के लिए अनेकों ने धिक्कारा। (कर्म., 19 अप्रैल, 1952, पृ. 3)

धिक्धिक् सं. (स्त्री.) -- धिक्कार, कांग्रेस में जब मिसेज बीसेंट या अन्य कोई विपक्षी आता था, तो वहाँ धिक् धिक् की आवाजों से मंडप भर जाता था। (मा. च. रच., खं. 9, पृ. 227)

धिंगाना सं. (पु.) -- धिंगाई, धींगाधींगी, यदि भारत का विशाल शोषक वर्ग धिंगाने करता रहा, तो अंततः ऐसा आँगन भी उसे मिलेगा। (रा. मा. संच. 1, पृ. 116)

धींग-धग्गड़ सं. (पु.) -- जार, उपपति या दलाल, यह उक्ति मंडीवाली मनोरमा के धींग-धग्गड़ों पर पूरी तरह चरितार्थ हो रही है। (गु. र., खं. 1, पृ. 442)

धींगा-धाँगड़ सं. (पु.) -- धूम-धक्कड़, शोर-गुल, अण्णा ने भी धींगा-धांगड़ करनेवाले गानों में भी मेलॉडी का पुट रखा। (रवि. 31 जन. 1982, पृ. 39)

धींगाधींगी सं. (स्त्री.) -- जोर-जबरदस्ती, (क) कुलियों की भर्ती का कानून, जो इंपीरियल सरकार की धींगाधींगी का फल है, रद्द कर दिया जाए। (ग. शं. वि. रच., खं. 2, पृ. 22), (ख) मिश्र बंधु लिंग संबंधी धींगाधींगी का विरोध करते हैं। (सर., दिस. 1915, पृ.336), (ग) जहाँ विवाह के समय धींगाधींगी करके दूसरे दल की लड़की को भगा लाना और उससे विवाह कर लेना बुरा नहीं समझते। (ग. शं. वि. रच., खं. 1, पृ. 57)

धींगामस्ती सं. (स्त्री.) -- धींगामुश्ती, जोर जबरदस्ती, (क) राजनीति की बिसात पर रईसों की धींगामस्ती उचित नहीं होती। (रा. ला. प्र. र., पृ. 132)

धींगामुश्ती सं. (स्त्री.) -- जबरदस्ती, दबाव, (क) धींगामुश्ती, गालीगलौच वहाँ नाम को नहीं देखने को मिलेंगी। (सर., अप्रैल 1911, पृ. 168), (ख) काफी धींगामुश्ती के बाद लातीनी अमेरिका के देशों का एक प्रस्ताव रह गया। (दिन., 9 जुलाई, 67, प. 35)

धीर-गंभीर वि. (अवि.) -- धैर्यवान, विचारवान, रूस के धीर-गंभीर नेता जानते हैं कि कितना आगे बढ़ना चाहिए कितना नहीं। (दिन., 28 अप्रैल, 68, पृ. 33)

धीरचेता वि. (अवि.) -- स्थिरचित्त, दृढ़, गंभीर, लक्ष्य प्राप्ति के लिए आवश्यक है कि मनुष्य धीरचेता हो। (काद. : फर. 1993, पृ. 4)

धीरता सं. (स्त्री.) -- धैर्य, क्षिति बाबू के चित्रों में धीरता और भावों की लयबद्धता चरमोत्कर्ष पर है। (दिन., 25 नव., 66, पृ. 45)

धुँआना क्रि. (अक.) -- सुलगना, दुःखी होना, उसकी मलैती देखर आँखे ठंडी हो रही हैं, पर चुहान की चिंता में दिल धुँआता चला जाता है। (काद., सित. 1988, पृ. 120)

धुँए के पीछे आग होना कहा. -- कार्य के पीछे कोई कारण होना, पता नहीं इन अफवाहों के धुँए के पीछे कितनी आग है। (हि. ध., प्र. जो., पृ. 223)

धुकड़-पुकड़ सं. (स्त्री.) -- घबराहट, चिंता, असमंजस, मन में भारी धुकड़-पुकड़ रही कि कहीं संपादक इसे लौटा न दें। (क. ला. मिश्रः त. प. या., पृ. 30)

धुकधुकाना क्रि. (अक.) -- भयभीत होना, डरना, मैं धुकधुकाते ह्रदय से लखनऊ गया। (नि. व. : श्रीना. च., पृ. 16)

धुकधुकी सं. (स्त्री.) -- भय से होनेवाली धड़कन, घबराहट, (क) अमेरिका तथा ब्रिटेन के धनाढ्य लोगों के मन में जो धुकधकी है, उसका कारण रूस की सैनिक-नैतिक शक्ति है। (न. ग. र. खं. 2, पृ. 252), (ख) लेकिन नेता लोगों के दिलों में धुकधुकी पैदा हो गई है। (ग. शं. वि. रच., खं. 3, पृ. 488), (ग) राज्यमंत्री मुँह बाए देख रहा था। अपुन के मन में एक अव्यक्त सी धुकधुकी बजने लगी। (रवि., 4 जन. 1981, पृ. 32)

धुक्कड़ वि. (अवि.) -- धाकड़ , धुरंधर(क) आपने हिन्दी के धुक्कड़ लेखकों से निवेदन किया है । (सर . जून 1931 सं 1 , पृ . 194 । (ख) नए बोर्डों में जो सहयोगी - असहयोगी मेंबर पहुँचे है वे बड़े धुक्कड़ स्वराज संचालक हैं । म . प्र . द्वि ,खं 9 , पृ . 76),(ग)पढ़ा कर उन्हें धुक्कड़ पंडित और महामहोपाध्याय बना डालें । (सर , अप्रैल

धुंध छँटना मुहा. -- कोहरा छँटना, अनिश्चितता दूर होना, बातचीत के परिणाम से अनिश्चितता की धुंध छँट जाएगी। (दिन., 03 मार्च, 68, पृ. 35)

धुँधलका सं. (पु.) -- साँझ, केदारनाथ के बस स्टैंड पर पहुँचते-पहुँचते धुँधलका घिर आया था। (काद., फर. 1987, पृ. 72)

धुँधलाना क्रि. (सक.) -- धूमिल करना, कमजोर करना, वह वास्तविक संदर्भों को धुँधलाने की छूट ले लेता है। (वाग. : कम., अग. 1997, पृ. 26)

धुँधाना क्रि. (अक.) -- सुलगना, तुस की आग की तरह बिना चमके धुँधआता मत रहा। (गु. र., खं. 1, पृ. 189)

धुधुआना क्रि. (अक.) -- धुँधुआना, जलना, उधर दंगे की आग धुधुआ रही है और इधर नेताओं की वक्तव्यबाजी जारी है। (दिन., 17 सित., 67, पृ. 23)

धुन का पक्का वि. (विका., पदबंध) -- मजबूत इरादेवाला, (क) लेकिन कपिल भी अपनी धुन के पक्के निकले और छक्का मारकर अपने जीवन का पहला शतक पूरा किया। (दिन., 4 से 10 फर. 1979, पृ. 36), (ख) वे ऐसी-वैसी मिट्टी के बने हुए नहीं हैं, अपनी धुन के पक्के हैं। (रवि. 16-22 मार्च, 1980, पृ. 7)

धुन में लगना मुहा. -- मनोयोगपूर्वक काम करना, ग्रंथावली निकालने की धुन में लगे हुए हैं। (शि. पू. र., खं. 3, पृ. 249)

धुन सं. (स्त्री.) -- लगन, सबको खयाल आया कि खेल की धुन में उन लोगों ने खाना भी नहीं खाया। (काद., जन. 1978, पृ. 83)

धुनना क्रि. (सक.) -- 1. धुन में आकर कुछ कहते चलना, फिर भी अपनी ही धुने जाते हो। (काद., जन. 1980, पृ. 108), 2. पिटाई करना, (क) घरवालों को दो दिन के अंदर हाजिर करें, नहीं तो औरतों को ही धुन दिया जाएगा। (दिन., 11 जुलाई, 1971, पृ. 41), (ख) दर्शकों को तो केवल वही बल्लेबाज अच्छा लगता है जो गेंद को धुनकर जल्दी यानी चौके और छक्के मारकर अपना शत्क बनाता है। (दिन., 9 जुलाई, 1965, पृ. 32)

धुनिया सं. (पु.) -- धुननेवाला, धुनकनेवाला, जैसे कोई विराट् धुनिया, नभ में हिमराशि रुई धुनके। (काद., अक्तू. 1993, पृ. 120)

धुप्पल सं. (स्त्री.) -- धौंस, रोब, प्रेस तो खुल गया धुप्पल में पर कागज का कोटा कहाँ है ? (क. ला. मिश्रः त. प. या., पृ. 222)

धुर सं. (पु.) -- धुरा, अक्ष, ध्रुव, आज की राजनीति के दो धुर हैं। (दिन., 3 से 9 सित. 1978, पृ. 15)

धुरंधर वि. (अवि.) -- बहुत बड़ा, विशिष्ट, (क) इंदिरा गांधी को अब तक सभी धुरंधरों से अधिक चतुर सिद्ध किया है। (दिन., 21 फर., 1971, पृ. 51), (ख) मुँशी नानकचंद सी. आई. ई. यदि धुरंधर राजनीतिज्ञ धुरंधर राजप्रबंधकर्ता और धुरंधर कार्यपटु न होते तो शायद ही उनको ... महाराणा होलकर के दीवान होने का सौभाग्य प्राप्त होता। (म. प्र. द्वि., खं. 5, पृ. 145)

धुरीण सं. (पु.) -- धुरंधर व्यक्ति, धुरंधर, उद्भट, यह पुस्तक शामशास्त्री के परिश्रम से छपी है और भारतीय इतिहास की खोज में लगे हुए धुरीणों के बड़े काम की है। (सर., अप्रैल 1915, पृ. 212)

धुर्रे उड़ाना मुहा. -- तार-तार कर देना, दुर्दशा करना, इसमें बड़ी होशियारी से काम लिया गया, नहीं तो वह सबके धुर्रे उड़ा देता। (सर., भाग 28, सं 4, मार्च 1927, पृ. 437)

धुर्रे बिखेरना मुहा. -- छिन्न-भिन्न करना, खंड-खंड करना, उनकी घोषणाओं और प्रक्षेपित आत्मछवि के धुर्रे बिखेरता है। (हि. ध., प्र. जो., पृ, 111)

धुला-धुलाया वि. (विका.) -- साफ-सुथरा, स्पष्ट, बेलौस, इस सीधी-सादी धुली-धुलाई बातों के लिए किसी विशेष दल की जरूरत न थी। (मा. च. रच., खं. 9, पृ. 125)

धुलेड़ी सं. (स्त्री.) -- अंधड़, धूल-धक्कड़, ऐसी धुलेंड़ी मची कि लोग आँख मलते रहे और दिग्विजय सिंह अपना अध्यक्ष लेकर चलते बने। (किल., सं. म. श्री., पृ. 80)

धुस्स सं. (पु.) -- टीला, ढूह, किले की दीवारें गिरकर, पहाड़ी के चारों तरफ ऊँचे धुस्स हो गए हैं। (सर., 1 अप्रैल 1909, पृ. 180)

धू-धू करके जलन मुहा. -- धूँ-धूँकर जलना, तेजी से जलना, यूरोप में धू-धू करके सर्वनाश की जो होली जली उसमें सब स्वाहा हो गया। (न. ग. र., खं. 2, पृ. 247)

धूँ-धूँकर जलना मुहा. -- 1. तेजी से जलना, 2. अत्यधिक (ईर्ष्या से) जलना, देखते हैं और धूँ-धूँकर जलते हैं। (काद. : फर. 1991, पृ. 33)

धूनी रमाना मुहा. -- ठिकाना बनाना, डेरा जमाना, (क) बस गाँव की ओर देखो, वहीं जाकर धूनी रमाओ। (म. का मतः क. शि., 19 दिस. 1925, पृ. 195), (ख) पूना से आकर दिल्ली में ही धूनी रमाए हुए है। (दिन., 12 अक्तू. 1969, पृ. 39)

धूपकाड़ी सं. (स्त्री.) -- अगरबत्ती, तरल चंदन जब धूपकाड़ी का रूप लेता है तभी उसकी सुगंध फैलती है। (काद. : अग. 1975, पृ. 23)

धूम मचना मुहा. -- चारों ओर या जगह-जगह चर्चा होना, (क) वर्ष का प्रारंभ होते ही धूम मचती है, कांग्रेस सदस्य बनाओ दो-तीन महीने यह रगड़ा चलता है। (न. ग. र., खं. 4, पृ. 139), (ख) न इसके अपव्यय की इतनी धूम मचती। (गु. र., खं. 1, पृ. 328)

धूम-धड़क्का सं. (पु.) -- धूम-धाम, शोर-गुल, (क) खुशी की बात है, वह धूम-धड़क्का अब एक तरह से बंद हो गया है। (सर., दिस. 1926, पृ. 692), (ख) चार दिन से गाँव में धूम-धड़क्का मचा हुआ था। (चि. फू., पृ. 21)

धूम-धड़ल्ले से क्रि. वि. -- धूमधाम से, सभी सभाएँ धूम-धड़ल्ले से संपन्न हुईं। (म. का मतः क. शि., 3 जन. 1925, पृ. 178)

धूम-धड़ाका सं. (पु.) -- धूम-धड़क्का, शोरगुल, (क) उस धूम-धड़ाके का परिणाम न सोचें। (ग. र., खं. 1, पृ. 399), (ख) सैनिकों के लिए प्रकाशित समरशास्त्र ग्रंथ धूम-धड़ाके से पढ़कर सुनाया गया। (दिन., 25 मार्च, 1966, पृ. 41)

धूमावृत वि. (अवि.) -- धुएँ से आवृत्त, धुएँ से ढका हुआ, ढका-तुपा, ग्रेट ब्रिटेन की रीति-नीति अभी भी धूमावृत है। (न. ग. र., खं. 2, पृ. 270)

धूल उड़ाना मुहा. -- निंदा या बुराई करना, अपने पत्रों में आपने क्रिश्चियनों की बेतरह धूल उड़ाई है। (म. प्र. द्वि., खं. 15, पृ. 298)

धूल चटाना मुहा. -- पराजित करना, परास्त करना, उन्होंने कई कांग्रेसी उम्मीदवारों को धूल चटाने में मदद की। (दिन., 4 अप्रैल, 1971, प. 24)

धूल फाँकते फिरना मुहा. -- मारे-मारे फिरना, पत-पानी चला गया मगर हम धूल फाँकने में मस्त हैं। (निबंधः रामलाल सावल, पृ. 98)

धूल फाँकना मुहा. -- दीनहीन अवस्था में इधर-उधर घूमना, माडरेट पहले तो आग बबूला हो जाते हैं पर पीछे धूल फाँकने लगते हैं। (स. सा., पृ. 295)

धूल में मिला देना मुहा. -- मटियामेट कर देना, नष्ट कर देना, वही अपने प्रतिपक्षी को धूल में मिला देगा। (न. ग. र., खं. 2, पृ. 284)

धूल में लट्ठ मारना मुहा. -- व्यर्थ का काम करना, निरर्थक प्रयास करना, सरकार अनावश्यक प्रार्थना करके धूल में लट्ठ न मारे बल्कि संपत्तिवाद की बुराइयों को दूर करने के उपाय सोचे। (गय शं. वि. रच., खं. 1, पृ. 201)

धूल में लट्ठ लगाना मुहा. -- अनुमान भिड़ाना, धूल में लट्ठ लगाया था, वह ठीक जगह बैठ गया। (न. ग. र., खं. 3, पृ. 36)

धूल में लोटना मुहा. -- अस्तित्वहीन हो जाना, पस्त हो जाना, विरोधी पार्टियाँ हालाँकि धूल में लोट रही हैं। (रा. मा. संच. 1 पृ. 85)

धूल-धक्कड़ सं. (पु.) -- 1. आँधी, अंधड़, 2. बवाल, तूफान, अरुण नेहरू भी जमीनी राजनीति के धूल-धक्कड़ और झाड़-झंकार को नहीं जानते थे। (हि. धु., प्र. जो., पृ. 388)

धूसना क्रि. (सक.) -- मारना, पीटना, खूब कुट्टमस भई इनकी, दूनौ भइय्या खूब धूसिन अउर ऊ हरीफा को झोंटा पकड़ बाहर पटक दहिन। (रवि., 31 मई, 1981, पृ. 5)

धेला सं. (पु.) -- आधे पैसे का पुराना सिक्का, (क) एक धेला या पैसा, आँख के सामने रखकर दो गज की दूरी पर पड़ी हुई मोहरों की थैली नहीं देखते। (सर., अप्रैल 1913, पृ. 232), (ख) मैंने श्रमजीवी पत्रकार संघ का ऑफिस वहाँ रखा था-बिना धेला लिए। (ब. दा. च. चु. प., खं. 2, सं. ना. द., पृ. 5)

धो-पोंछ देना मुहा. -- साफ कर देना, खत्म कर देना, उन्होंने क्षमायाचना करके संसद्-सदस्यों के ऐतराजों को गोया धो-पोंछ दिया। (दिन., 23 नव., 1969, पृ. 14)

धोकनी सं. (स्त्री.) -- पाइप या उपकरण, जिसे फूँककर या हवा भरकर आग जलाते हैं, हँफनी से सीना धोंकनी बन जाता है। (साक्षा., मार्च-मई 77, मृ. पां., पृ. 27)

धोखे की टट्टी निकलना मुहा. -- ऐसी बात या रचना जिससे किसी को धोखा हो, कांग्रेस और वाइसराय में जो समझौता हुआ वह धोखे की टट्टी निकला। (काद. : जन. 1975, पृ. 169)

धोती ढीली होना मुहा. -- साहस छूट जाना, हिम्मत हार बैठना, दस तोले सूत कातकर देने का नाम सुनते ही कौंसिल कुमारों की धोती ढीली हो गईं और वे जली-कटी सुनाकर कमेटी से बाहर चले गए। (म. का मतः क. शि., 5 जुलाई, 1924, पृ. 158)

धोना-पोंछना क्रि. (सक.) -- साफ-सुथरा बनाना, साफ करना, इतिहास को धो-पोंछकर फेंका नहीं जा सकता। (कुटुजः ह. प्र. द्वि. पृ. 96)

धोबिया पछाड़ सं. (पु.) -- पटकनी देनेवाला, ...औ जनसाधारण को यह जवाब-तलब करने का हक है कि यह बैंक राष्ट्रीयकरण कितना धोबिया पछाड़ है और कितना समाजवाद। (दिन., 27 जुलाई, 1969, प. 16)

धोवन सं. (पु.) -- वह जल जिसमें कोई चीज धोई गई हो, उसका दिया हुआ दूध चावल का धोवन सिद्ध हो चुका है। (ग. शं. वि. रच., खं. 3, पृ. 322)

धौरा वि. (विका.) -- धवल, सफेद, कौंसिली भारत के इस रुख ने लाट साहब की विजय की धौरी चादर पर मजे के छींटे फेंक दिए। (माय च. रच., खं. 10, पृ. 141)

धौल जमाना या जमा देना मुहा. -- हथेली से आघात करना, चपत लगाना, (क) मैंने पीठ पर धौल जमाते हुए कहा कि कैसी बहकी-बहकी बात कर रहा है। (काद. : जन. 1989, पृ. 105), (ख) भारत की खोपड़ी पर करारी धौल जमा दी, जो उसे आजन्म याद रहेगी।

धौल-धप्पा सं. (पु.) -- चपतबाजी, हलकी मार-पीट, उपद्रव दोस्तों में घनिष्टता होते ही धौल-धप्पा होने लगता है। (प्रे. स. स. : सर. प्रेस, पृ. 39)

धौल-धप्पे में क्रि. वि. -- धींगामुश्ती से, जबरदस्ती, धौल-धप्पे में खुल ही गया था और काम करने लगा था। (क. ला. मिश्र : त. प. या., पृ. 227)

धौंस-डपट सं. (स्त्री.) -- धमकी और डाँट-फटकार, (क) वे सौदेबाजी के लिए धौंस-डपट एवं बातचीत दोनों का सहारा लेते रहे हैं। (ज. स. : 4 फर. 1984, पृ. 4), (ख) ... तब एक भी चुनाव ईमानदार चुनाव नहीं होगा, बल्कि वह धौंस-डपट और जाली वोटों का परिणाम होगा। (रा. मा. संच. 1, पृ. 96)

धौंस सं. (स्त्री.) -- घुड़की, धमकी, (क) प्रशासन के स्तर पर धौंस जमाना एक बड़ी समस्या पर बहस से पलायन है। (दिन., 12 अक्तू. 1969, पृ. 11), (ख) जब भीड़-भाड़ की धौंस से राष्ट्रपति को डराने की चेष्टा की जाएगी। (रा. मा. संच. 1, पृ. 355)

धौंसबाजी सं. (स्त्री.) -- धमकी, अकाल तख्त की कारसेवा का काम जोर-जबरदस्ती और धौंसबाजी के कारण दमदमी टकसाल को सौंपा ही जा चुका है। (स. ब. दे. : रा. मा. (भाग-दो), पृ. 35)

धौंसा बजना मुहा. -- डंका बजना, नगाड़ा बजना, प्रसिद्ध होना, उन दिनों स्वामी दयानंद सरस्वती का धौंसा बजता था। (गु. र., खं. 1, पृ. 495)

धौंसा सं. (पु.) -- नगाड़ा, अभी तो युद्ध का धौंसा ही नहीं बजा। (शत. खि., ह. कृ. प्रे., पृ. 114)

धौंसिया वि. (अवि.) -- धौंस जमानेवाला, यह तो महात्मा गांधी ने कहा था कि मुसलमान धौंसिया और हिंदू कायर होता है। (हि. ध., प्र. जो., पृ. 476)

न रहा बाँस न बजी बंसी कहा. -- झगड़े की जड़ खत्म होना, भूल का परिहार होना, बस हुकुम हो गया कि एक हजार कलदार जमा कर दो। अंत में न रहा बाँस न बजी बंसी। (मा. च. रच., खं. 9, पृ. 74)

न रहेगा बाँस न बजेगी बंसी कहा. -- झगड़े की जड़ नष्ट कर होना, हृदय से युद्ध की भावना निकाल डालिए, न रहेगा बाँस न बजेगी बंसी, (म. का मतः क. शि., 16 मई, 1925, पृ. 185)

नकचढ़ा वि. (विका.) -- हर बात पर नाक-भों सिकोड़नेवाला, तुनक-मिजाज, (क) उसकी स्थिरता पहले दिन से पारे की तरह किसी नकचढ़ी नेत्री की हथेली पर घूमती थी। (हि. ध., प्र. जो., पृ. 307), (ख) हम भी अब तक काफी नकचढ़े हो गए थे। (सं. मे., कम., 20 जुलाई 1990, पृ. 6-7), (ग) समूची भारतीय कविता के बारे में इस तरह का नकचढ़ा रवैया दिखाने की हिम्मत देता है। (दिन., 3 अक्तू. 1971, पृ. 9)

नकद-नारायण सं. (पु.) -- धन, लक्ष्मी, रुपया-पैसा, वृत्ति अस्थिर होने पर भी शास्त्रीजी उदार थे। इसी से आप पर नकद-नारायण की कभी कृपा न हुई। (सर., मई 1915, पृ. 297)

नकदुल्ला सं. (पु.) -- नगदी, नकद राशि, चारण महाशय के आते ही नकदुल्ला उसके पास से निकलवा लीजिए। (चं. श. गु. र., खं. 2, पृ. 389)

नकलची वि. (अवि.) -- नकल करनेवाला, अगर भारत एक शुद्ध नकलची देस होता, तो शायद कई सशक्त और सुपरिभाषित विरोधी पार्टियाँ यहाँ बन भी जातीं। (रा. मा. संच. 1, पृ. 87)

नकाब ओढ़ना मुहा. -- असलियत छिपाना, नौकरी पाने के लिए उन्हें नागरिकता की नकाब ओढ़नी पड़ेगी। (दिन., 12 अक्तू. 1969, पृ. 38)

नकेल सं. (स्त्री.) -- अंकुश, नियंत्रण, व्यंत्रण, व्यवसाय की नकेल सरकार के हाथों में है। (सर., जन.-जून 1931, सं. 1, पृ. 228)

नक्कारखाने में तूती की आवाज कहा. -- ऐसी आवाज जो बहुतों (बहुमत) के आगे दब जाए, उनकी आवाज कांग्रेस के सर्वमत के सामने नक्कारखाने में तूती के समान निर्बल थी। (सं. परा. : ल. शं. व्या., पृ. 270)

नक्कारखाने में तूती के समान होना मुहा. -- निष्प्रभावी होना, कुछ स्वतंत्र समाचार-पत्र...पर उनकी आवाज कांग्रेस के सर्वमत के सामने नक्कारखाने में तूती के समान निर्बल थी। (सं. परा. : ल. शं. व्या., पृ. 270)

नक्कारा बजना मुहा. -- बोल बाला होना, कांग्रेस के लखनऊ अधिवेशन में वामपंथियों का नक्कारा खूब बजा। (काद. : जन. 1975, पृ. 169)

नक्कू बनना मुहा. -- अगुआ बनना, (क) मुसलमानों की देख-देखी अपनी नाक कटाकर नक्कू बन जाने ही में यदि हिंदुत्व की श्रीवृद्धि होती हो तो दूसरी बात। (ग. शं. वि. रच., खं. 3, पृ. 396), (ख) किसी को लेकर मर गए तो परलोक भी बिगड़ा और इस लोक में भी नक्कू बनें। (सर., अक्तू. 1918, पृ. 202)

नक्कू सं. (पु.) -- बड़ी नाकवाला, अभिमानी व्यक्ति, समाज में नक्कू न कहलाएँ इस भय से वे अपना सहयोग प्रदान करने के लिए बाध्य होते हैं। (दिन., 9 नव., 1969, पृ. 31)

नक्शा सं. (पु.) -- खाका, प्रारूप, मनुष्य गणना संबंधी जो नक्शे आजकल तैयार किए जाते हैं, उनकी रचना पूरी सही नहीं करने से प्रत्येक सूबे, नगर और कस्बे की ही मनुष्य गणना नहीं ज्ञात हो जाती। (म. प्र. द्वि., खं. 9, पृ. 67)

नक्शेबाजी सं. (स्त्री.) -- चोचले दिखाने की क्रिया या भाव, इस रामस्वरूप सुपरवाइजर की नक्शेबाजी मैं पहले से देख रहा था। (रा. द., श्रीला. शु., पृ. 88)

नखरा-तिल्ला सं. (पु.) -- आकर्षक हाव-भाव, चोचला, (क) सिनेमा नखरा-तिल्ला देखने के लिए बारंबार तालियाँ पीटना सिखाता है। (म. का मतः क. शि., 13 अक्तू. 1923, पृ. 47), (ख) नौकरशाही शासन के नखरों-तिल्लों की कैसी धवल विरदावली है। (म. का मतः क. शि., 3 सित. 1927, पृ. 99)

नखरा सं. (पु.) -- चोचला, रिझाने की चेष्टा, काम के वक्त नखरा अच्छा नहीं। (काद., मई 1987, पृ.39)

नंगई पर उतरना या उतर जाना मुहा. -- अत्यंत दुष्टतापूर्ण व्यवहार करना, मैं चाहता तो पलस्तर उखाड़ देता, पर नंगई पर नहीं उतरा। (दिन. : 2 मार्च 69, पृ. 64)

नंगई सं. (स्त्री.) -- नंगापन, लुच्चापन, बसपा अपनी शुद्धता या नंगई को बड़ी बातों में लपेटकर छुपाती नहीं। (हि. ध., प्र. जो., पृ. 293)

नगड़दादा सं. (पु.) -- बढ़ा-चढ़ा रूप, आज हम देखते हैं कि न केवल 1818 ईस्वी का तीसरा कानून, वरन् उसका भी नगड़दादा यह नया कानून, जिसमें 24 धाराएँ और अनेक उपधाराएँ हैं। (ग. शं. वि. रच., खं. 3, पृ. 272)

नगद-नारायण सं. (पु.) -- रुपया-पैसा, सौ पीछे नब्बे युवक नगद-नारायण की आराधना में लगे हुए धन के सामने स्त्री के शेष गुणों को गौण समझते हैं। (सर., अप्रैल 1928, पृ. 398)

नंगमनंग चवाल सौ कहा. -- दोनों एक समान निर्धन, कहो मरभुखे राम। मैंने हँसकर कहा--जी हाँ, आप अपनी कहिए। मैं भी वैसा ही हूँ। अच्छा तो खूब मिले। नंगमनंग चवाल सो। (सर., अप्रैल 1911, पृ. 178)

नगला सं. (पु.) -- मुहल्ला, सत्रहवीं सदी के पहले बरसाना ऊँच गाँव का एक नगला माना जाता था। (सर., अक्तू. 1918, पृ 186)

नंगा नाच नाचना मुहा. -- निर्लज्जतापूर्ण कार्य करना, बेहयाई करना, (क) आपकी इस नीति से किटकिटाकर मदांध शक्ति अपना नंगा नचा नाचने को विवश होगी। (म. का मतः क. शि., 4 फर. 1928, पृ. 253), (ख) आजकल हमारे और हमारे बच्चों के सिर पर अँगरेजी जो नंगा नाच नाच रही है उससे हमें कठोर विरोध है। (सं. परा. : ल. शं. व्या., पृ. 68)

नंगाझोरी सं. (स्त्री.) -- तलाशी, जेब खाली कराने की क्रिया, सभा विसर्जन के पहले लोगों की नंगाझोरी भी श्री जयप्रकाश नारायण ने कर ली। (दिन., 10 फर., 67, पृ. 20)

नगाड़ा बजाना मुहा. -- ढोल पीटना, प्रचार करना, बेशर्मी और सीनाजोरी की नई रणनीति पर काफी नगाड़ा बजाने के बावजूद गुजरात गुब्बारे की हवा निकल गई। (हि. ध., प्र. जो., पृ. 300)

नगीच क्रि. वि. -- नजदीक, समीप, हमारा घर नगीच आ गया। (प्रे. स. क. : सर. प्रेस, पृ. 50)

नजर बचना मुहा. -- देखने में चूक होना, घरेलू चूहे ऐसे बिन-बुलाए मेहमान हैं, जो हमारी नजर बची नहीं कि खाद्यान्न की बोरियाँ की बोरियाँ कुटुर-कुटुर चट कर जाते हैं। (काद., नव. 1972, पृ. 69)

नजर लगना या लग जाना मुहा. -- बुरी नजर का प्रभाव पड़ना, एख दिन एलादी को ऐसा भाशा कि उनके सुंदर चौपायों पर अन्य मनुष्यों की नजर पड़ती है और नजर लग जाती है। (मधुकर, दिसंबर-जन. 1945, पृ. 273)

नजर सं. (स्त्री.) -- भेंट, उपहार, बहुत नम्रतापूर्वक उन नजरों को आपने लेने से इनकार कर दिया। (सर., 1 फर. 1908, पृ. 75)

नजरों में गिरना या गिर जाना मुहा. -- बेइज्जत होना, यदि हमने वचन या जमानत दी होती तो पाठकों की नजरों में गिर जाते। (सं. परा. : ल. शं. व्या., पृ. 133)

नजला गिरना मुहा. -- आफत आना, परेशानी पैदा होना, आपसी तनातनी का नजला एक बार फिर मेरठ जोन के आई. जी. पर गिरा। (ज. स., 21-08-2008, पृ. 7)

नजीर सं. (स्त्री.) -- दृष्टांत, मिसाल, उस मुकदमें में बंबई उच्च न्यायालय के निर्णय की नजीर पेश की गई। (काद. : जुलाई 1978, पृ. 11)

नटना क्रि. (अक.) -- मुकरना, मना करना, इनकार करना, (क) जाने क्या हुआ कि उनका इरादा बदल गया और वे शादी से नट गए। (लो. स., 5 अप्रैल, 1989, पृ. 12), (ख) इनका मुख्य बल कहकर नटना ही प्रसिद्ध है। (म. प्र. द्वि., खं. 1, पृ. 419)

नतीजतन क्रि. वि. -- परिणामस्वरूप, परिणामतः, फलतः, नतीजतन, सेना का एक बहुत बड़ा हिस्सा विद्रोहियों को सीमित रखने में फँसा हुआ है। (दिन., 13 अग., 67, पृ. 9)

नत्थी होना मुहा. -- संलग्न होना, जुड़ा होना, आधुनिकीकरण इतिहास के किसी एक खास देश-काल से, खास तौर पर पश्चिम के पिछले दो-तीन वर्षों से नत्थी नहीं है। (धर्म., 10 जुलाई 1966, पृ. 10)

नथुने फूलना या फूल आना मुहा. -- क्रोध से लाल पीला होना, उस नवयुवक के नथुने फूल आए थे और उसने आस्तीन चढ़ा ली थी। (स. से. त. : क. ला. मिश्र, पृ. 45)

ननसाल सं. (स्त्री.) -- माता के पिता का घर, ननिहाल, मेरी ननसाल में वैद्यक होती थी। (ब. दा. च. चु. प., खं. 2, सं. ना. द., पृ. 25)

ननुनच सं. (स्त्री.) -- आपत्ति, आना-कानी, सोच-विचार, (क) उनके तर्क में कोई ननुनच की जगह नहीं है। (चं. श. गु. र., खं. 2, पृ. 311), (ख) इस प्रश्न के उत्तर में किसी प्रकार ननुनच करके अपने को धोखा नहीं देना चाहिए। (चं. श. गु. र., खं. 2, पृ. 336), (ग) सभासदों ने नेता का वक्तव्य ननुनच के बिना स्वीकार कर लिया। (काद., नव. 1973, पृ. 30)

नफीस वि. (अवि.) -- उम्दा, उत्तम, बढ़िया, मानसिक उपनिवेशवाद की कूटनीति ने शिक्षा और समाज को, नफीस ढंग से अपने जाल में फँसाना जारी रखा। (स. का वि. : डॉ. प्र. श्रो., पृ. 4)

नया गुल खिलना मुहा. -- नई समस्या खड़ी होना, नया झंझट पैदा होना, इतने दिनों बाद अब यह नया गुल खिला है। (स. सा., पृ. 229)

नया-नकोर वि. (विका.) -- बिलकुल नया, नया-नवेला, आज जो मालिक-प्रबंधक-संपादक हैं वे नई-नकोर सिएलो गाड़ी में घूमते हैं। (स. भा. सा., मृ. पां., सित.-अक्तू. 98, पृ. 7)

नया-नवेला वि. (विका.) -- बिलकुल नवीन, यह हिमाचल में उनके नए-नवेले मैनेजरों पर निर्भर करता है। (ज. स. : जुलाई, 2007, पृ. 1)

नरव्याघ्र सं. (पु.) -- नरकेसरी, श्रेष्ठ पुरुष, क्रांतिकारी वीरों के सदृश्य नरव्याघ्र हमेशा पैदा नहीं होते। (काद. : अक्तू. 1980, पृ. 11)

नर्राना क्रि. (अक.) -- चिल्लाना, विक्षिप्त की तरह नर्राने से ऋषियों का आदर भी नहीं होता। (म. प्र. द्वि. रच., खं. 2, पृ. 309)

नवदौलती वि. (अवि.) -- नया रईस, नव-धनाढ्य, भारत सरकार नवदौलतियों की तरह व्यवहार कर रही है। (हि. ध., प्र. जो., पृ. 314)

नवाना क्रि. (सक.) -- झुकाना, उनके मस्तक को नवाना होगा। (ग. शं. वि. रच., खं. 2, पृ. 517)

नवाबी उतारना मुहा. -- अकड़ दूर करना, महात्मा गांधी ने एक ही झटके में सबकी नवाबी उतार दी। (रवि. 21 अग., 1982, पृ. 17)

नवोढ़ा वि. (अवि.) -- नवविवाहिता, युवा अपनी नवोढ़ा पत्नी के साथ ..., (लाल-तारा, पृ. 3)

नशेड़ी सं. (पु.) -- नशाखोर, गद्दी का निर्लज्ज और दयनीय नशेड़ी बना दिया। (हि. ध., प्र. जो., पृ. 233)

नसापानी सं. (पु.) -- नशे का सामान, मैं जेल की बात नहीं करता। बाहर जो नसापानी करना पड़ता है। (बे. ग्रं., प्रथम खं., पृ. 85)

नसूहत का कौआ मुहा. -- नसूह (कुरान की आयत) का उपदेश देनेवाला, आपकी तकल्लुफपूर्ण बातों का उचित उत्तर यह वैदिक ग्रामीण ब्राह्मण दे नहीं सकता, उसके लिए क्षमा की जाए। नसूहत का कौआ यह मुहाविरा ही चला है, गत मास की मर्यादा देखिए। (चं. श. गु. र., खं. 2, पृ. 399)

नसें दुहना मुहा. -- शोषण करना, विदेशीपन के रंग में रँगकर स्वदेश की नसें दुह रहे हैं। (म. का मतः क. शि., 24 नव. 1923, पृ. 125)

नसैनी सं. (स्त्री.) -- सीढ़ी, सोपान, माध्यम, (क) हम हर उस नसैनी का इस्तेमाल करना चाहते हैं जो हमें सत्ता में पहुँचा सके। (हि. ध., प्र. जो., पृ. 292), (ख) जो देश को चर रहे हैं हम उनकी नसैनी बने हुए हैं। (किल., सं. म. श्री., पृ. 41)

नसों में खून दौड़ना मुहा. -- उत्साह, स्फूर्ति का संचार होना, अपने खोये हुए मार्ग का पुनः अनुसरण करने के लिए उसकी नसों में खून दौड़ने लगा है। (म. का मतः क. शि., 29 मार्च, 1924, पृ. 143)

नसों में बिजली दौड़ाना या दौड़ा देना मुहा. -- स्फूर्ति लाना, यूरोप के महायुद्ध ने कई हिंदी साप्ताहिकों की नसों में बिजली दौड़ा दी। (शि. पू. र., खं. 3, पृ. 319)

नहकोट सं. (पु.) -- नाखून की खरोंच, ऐसी भीतर की मार मारूँगा कि नहकोट तक न लगने पाएगा। (सर., मार्च 1930, पृ. 353)

नहले पर दहला मारना मुहा. -- बढ़कर निकलना, पराजित करना, नहले पर दहला मारा-किस-किस को चरका दे चुके हो। (रवि., 29 मार्च, 1981, पृ. 42)

ना-निकुच सं. (स्त्री.) -- ननुनच, ना-नुकर, आनाकानी, बिना ना-निकुच किए उतनी ही बड़ी यात्रा पर निकल पड़े। (प्रा. के ब. : डॉ. श्यामसुंदर घोष, पृ. 100)

ना-नू सं. (स्त्री.) -- आपत्ति, विरोध, सौदा आकर किसी तरह दो माह पर पटा, जिसे महाराष्ट्र के प्रतिनिधियों ने बहुत ना-नू के बाद मान ही लिया। (दिन., 15 जुलाई 1966, पृ. 14)

नाईं की नाईं क्रि. वि. -- तरह, (क) वे जन्माष्टमी दीपावली भारत की नाईं मनाते हैं। (दिन. 14 सित. 69, पृ. 15), (ख) उस दिन लार्ड सिन्हा आए, सो वे भी कह गए कि यहाँ भी अन्य स्थानों की नाईं दरिद्री ही प्लेग से मरते होंगे। (मा. च. रच. खं. 3, पृ. 14)

नाक कटना या कट जाना मुहा. -- अप्रतिष्ठित होना, नाक तो उसी दिन कट गई, जब तुमने भरी पंचायत में हम पर हाथ उठा दिया, अब कौन कसर बाकी रह गई। (रवि., 1 अग. 1982, पृ. 44)

नाक का बाल बना होना मुहा. -- अत्यधिक प्रिय होना, एक पत्रकार-संपादक हैं जो आजकल मुख्यमंत्री के नाक के बाल बने हुए हैं। (दिन., 10 सित., 67, पृ. 19)

नाक घुसाना मुहा. -- दखल देना, दखलंदाजी करना, वहाँ भी अपनी नाक घुसा आए जहाँ फरिश्ते भी जान में हिचकते हैं। (दिन., 4 जून, 67, पृ. 9)

नाक नीची करना मुहा. -- नीचा दिखाना, इसका एक कारण यह था कि कम्मा भूस्वामी रेड्डियों की नाक नीची करने के लिए कामरेडों को समर्थन दे रहे थे। (रा. मा. संच. 1, पृ. 326)

नाक में दम करना या कर देना मुहा. -- अत्यधिक परेशान करना, संविद सरकार काम करने में जुटी थी, प्रदेश का कांग्रेस दल उसकी नाक में दम किए हुए था। (दिन., 26 मई, 68, पृ. 18)

नाक रगड़ना मुहा. -- गिड़िगड़ाकर विनती करना, नाक रगड़ने से कुछ न होगा। (म. का मतः क. शि., 24 नव. 1923, पृ. 126)

नाक रगड़वाना मुहा. -- गिड़िगड़ाने के लिए विवश करना, तौबा करवाना, झुकाना, वे सरकार बनने पहले नेतृत्व से नाक रगड़वा रही हैं। (हि. ध., प्र. जो., पृ. 305)

नाक-भौं सिकोड़ना मुहा. -- अप्रसन्नता, असहमति या अरुचि व्यक्त करना, विरोध करना, (क) जर्मनी के इस कृत्य से रूसी राजदूत नाखुश हुआ और रूसी सरकार ने नाक-भौं सिकोड़ी। (न. ग. र., खं. 2, पृ. 171), (ख) पुरस्कारों पर उस तरह नाक-भौं नहीं सिकोड़नी चाहिए जैसी भारत-अमेरिकी शिक्षा संस्थान की प्रस्तावना में देखने में आई थी। (दिन., 25 नव., 06, पृ. 39), (ग) होली के हुड़दंग पर वह अपनी नाक-भौं कभी नहीं सिकोड़ते थे। (दिन., 2 मार्च, 69, पृ. 44)

नाकाचारी लीक सं. (स्त्री.) -- स्थानीय परंपरा, रीति-रिवाज या लोकाचार, गाड़ी नाकाचारी की लीक में उचकती-धचकती चलती रही। (ज. क. सं. : अज्ञेय, पृ. 142)

नाकिस वि. (अवि.) -- दोषपूर्ण, खराब, दूषित वायुमंडल में पले नाकिस दिमागों पर वह जादू नहीं चलता। (म. का मतः क. शि., 22 दिस. 1923, पृ. 131)

नाकों चने चबवाना मुहा. -- अत्यधिक परेशान करना, घोर कष्ट देना, इंडोनेशिया में सुकर्णों और हट्टा के नेतृत्व में एक हथियार बंद राष्ट्रवादी आंदोलन पनपा, जिसने हॉलैंड को नाको चने चबवा दिए। (रा. मा. संच. 1, पृ..)

नाकों दम करना / होना मुहा. -- नाक में दम करना / होना, अत्यधिक परेशान करना / होना, (क) इस विद्वान् को विभूषित कराने के लिए कुलपतियों का नाकों दम करते रहे। (रवि. 16-22 मार्च 1980, पृ. 4), (ख) ग्राहकों की शिकायतों से पत्र-व्यवस्थापकों का नाकों दम है। (शि. पू. र., खं. 4, पृ. 506)

नागफाँस सं. (स्त्री.) -- अकाट्य फंदा, जाल, घोर जकड़न अमेरिकी शासकों को आशा बँधी कि वे भारत को अपनी नागफाँस में फँसा सकते हैं। (दिन., 9 जन. 1972, पृ. 29)

नाज सं. (पु.) -- अनाज, (क) बैलों की जोड़ी खलिहान में नाज के पूले माँड़नेवाले बैलों की तरह सीमित दायरे में घूमती है। (दिन., 13 अग. 1965, पृ. 12), (ख) गरीब और कंगाल आदमियों को नाज देना अपना कर्तव्य समझते हैं। (सर., 1 जून 1908, पृ 259)

नाजुकमिजाजी सं. (स्त्री.) -- स्वभावगत कोमलता, उनकी नाजुकमिजाजी लोकतंत्री सहिष्णुता के सर्वथा विपरीत थी। (रवि. 6-12 नव. 1977, पृ. 11)

नाटना क्रि. (अक.) -- नटना, मुकरना, लेकिन जब खेत को पानी देने का मौका आया, तो पड़ोसी नाट गया। (रा. मा. संच. 2, पृ. 126)

नाड़ी ठंडी पड़ना मुहा. -- दम निकलना, हिम्मत छूटना, नेहरू के सामने उनकी नाड़ी ठंडी पड़ जाती थी। (दिन., 20 जन., 67, पृ. 14)

नातजुर्बेकार वि. (अवि.) -- अनुभवहीन, अभी नातजुर्बेकार हो। (बुधु. बे. : बे. उ., पृ. 77)

नाता करना मुहा. -- स्त्री और पर-पुरुष का पति-पत्नी के रूप में रहना, ब्याह जैसा संबंध बनाना, लुगाई तो दस बरस की उम्र में ही मर गई और नाता करनेवाली उसे छोड़कर भाग गई। (काद., मार्च 1976, पृ. 148)

नाथना क्रि. (सक.) -- नकेल डालना, वश में लाना, वशीभूत करना, (क) जेपी जनता सरकारों और संघर्ष समितियों के जरिए जनता पार्टी की सरकार को नाथना चाहते थे। (हि. ध., प्र. जो., पृ. 527), (ख) उन्हें पकड़ पकड़कर नाथना ही सफल पत्रकार का लक्षण है। (शि. पू. र., खं. 3, पृ. 501), (ग) पता नहीं कांग्रेस ने सोनिया को नाथा या सोनिया ने कांग्रेस को। (किल., सं. म. श्री., पृ. 24)

नाँद सं. (स्त्री.) -- बैलों के चारा खाने का कूँड़ा, (क) अब पहर रात रहे कौन बैलों को नाँद में लगाएगा। (सर., मई 1918, पृ. 246), (ख) नाँद में खली-भूसा पड़ जाने के बाद दोनों साथ उठते। (प्रे. स. क. : सर. प्रेस, पृ. 39)

नादिहंद वि. (अवि.) -- ऋण या देन न चुकानेवाला, बकाएदार ग्राहकों की संख्या 200 से अधिक कभी नहीं हुई। इनमें से भी बहुत से ऐसे नादिहंद निकले कि सालभर में एक रुपया चंदा भी घोट गए। (ब्रा. स्मृ. : शि. स. मि., पृ. 14)

नादेहन वि. (अवि.) -- नादिहंद, बकाएदार अपने नादेहन ग्राहकों से निवेदन करते हैं, अब भी हमारा मूल्य इस मास के भीतर चुका दें। (सर., अप्रैल 1959, पृ. 267)

नाना वि. (अवि.) -- अनेक, कई, इधर अँगरेजी में इस समस्या के नाना पहलुओं पर किताबों की बाढ़ आई है। (दिन., 8 जून 1969, पृ. 8)

नानी मरना या मर जाना मुहा. -- अत्यधिक शिथिल या खिन्न होना, भीतर दिल में मेरी नानी मर गई। (ए. सा. डाय. : ग. मा. मु., पृ. 9)

नानुकर / ना-नुकर सं. (स्त्री.) -- आनाकानी, (क) दुकानदार नानुकर तो करता था मगर आखिर में उधार दे देता था। (किल., सं. म. श्री., पृ. 209), (ख) संवैधानिक मुखिया होने के नाते सम्राट नानुकर नहीं कर सकता था। (दिन., 30 जून, 68, पृ. 38), (ग) उन्होंने बहुत ना-नुकर की किंतु लोग नहीं माने। (सुधा, फर.-जुलाई 1935, पृ. 480)

नाप-जोख सं. (स्त्री.) -- लंबाई-चौड़ाई का आकलन, परिगणना, (क) क्या हानि थी अगर हममें से कुछ विश्व की नाप-जोख में, अपने साहित्य को कुछ देने के लिए मर-खप गए होते। (रा. मा. संच. 2, पृ. 357), (ख) दिल्ली प्रदेश कांग्रेस कमेटी के जागीरदार श्री ब्रह्मप्रकाश ने जल्दी-जल्दी कदम उठाते हुए नाप-जोख शुरू कर दी कि कितनी जमीन पर अपना तंबू ताना जा सकता है। (दिन., 1 अप्रैल, 1966, पृ. 15)

नापना-जोखना क्रि. (सक.) -- लंबाई, चौड़ाई और गहराई का पता लगाना, नापना, नाप-जोख करना, यह समाजशास्त्रीयों का काम है कि वे इसके सामाजिक परिणामों को नापें-जोखें। (ग. मं. : पत्र. चु., पृ. 28)

नाबदान सं. (पु.) -- घर का गंदा पानी निकलने की नाली, पनाला, नाबदान में रेंगते हुए कीड़ों की तरह गंदी अभिव्यक्ति में रस लेते हैं। (हि. पत्र. के गौरव बां. बि. भट., सं. ब., पृ. 189)

नाम धरना मुहा. -- नामकरण करना, नाम धरने की कला कश्मीर में अपने विकासक्रम में चरम सीमा को छू रही है। (काद., दिसंबर 1987, पृ. 85)

नामचार को क्रि. वि. -- नाम भर को, व्यक्ति अपनी जाति पाँति पर ध्यान देता है सो भी नामचार को। (हित., दिस. 1948, पृ. 15)

नामधराई सं. (स्त्री.) -- नामकरण, खुद ही अपने लिए पशु की पवित्र उपाधि तजबीज कर इस नामधराई का इल्जाम हम पर धरते हैं। (गु. र., खं. 1, पृ. 442)

नामपट्ट सं. (पु.) -- साइनबोर्ड, चिनगारी निकली अमृतसर में हिंदी नामपट्टों पर कालिक पुताई से। (दिन., 18 मार्च, 1966, पृ. 12)

नामवरी सं. (स्त्री.) -- नाम, प्रसिद्धि, प्रतिष्ठा, अबू तालिब ने उनकी मातहती में उस सूबे का बहुत ही अच्छा बंदोबस्त किया। इससे उसकी बड़ी नामवरी हुई। (सर., सित. 1919, पृ. 114)

नामा सं. (पु.) -- धन, रकम, रुपया-पैसा, यहाँ गरीब आदमी दूकान नहीं लगा सकता। क्यों ? इतना नामा कहाँ है किसी के पास। (दिन., 31 दिस. 1972, पृ. 9)

नामाकूल वि. (अवि.) -- बेहूदा, अनुचित, अयोग्य , वे ब्रिटिश साम्राज्य की नामाकूल विरासत हैं, जिन्हें अटाले में फेंक दिया जाना चाहिए। (रा. मा. संच. 2, पृ. 314)

नामिका सं. (स्त्री.) -- नामों की सूची, नामावली, इंटरव्यू के बाद जो नामिका बनी है, उसमें तुम्हारा नाम दूसरे स्थान पर है। (काद., फर. 1977, पृ...)

नामी-गिरामी वि. (अवि.) -- प्रसिद्ध और प्रतिष्ठित, विख्यात इसलिए कि नामी-गिरामी दिग्दर्शक लंबे चौड़े बजट पर इस तरह की फिल्म बना रहे हैं। (दिन., 25 नव., 66, पृ. 43)

नासपिटा वि. (विका.) -- एक प्रकार की गाली, नाश को प्राप्त होनेवाला, यह नासपिटी मेरे बच्चों की पढ़ाई का हालचाल पूछकर मुझे क्यों जब तब आहत करती रहती है। (हरिगंधा, 10 जून, 2007, अंश 154, पृ. 22)

नाहक क्रि. वि. -- बिना कारण, बिला वजह, पाकपरस्त आतंकवादी हिंदुओं को नाहक भड़का रहे हैं। (हि. ध., प्र. जो., पृ. 200)

निखट्टू वि. (अवि.) -- जो कमाता न हो, जो कमाऊ न हो, (क) दुनिया की नजर में वह एख किस्म का निखट्टू था। (निबंधः रामलाल सावल, पूर्व सिंह, पृ. 23), (ख) निखट्टू बेटे को घर से निकाल दिया। (काद., जन. 1991, पृ. 4)

निखालिस वि. (अवि.) -- शुद्ध, खरा, फर्नांडिस कह सकते हैं कि निखालिस समाजवादी शासन होता तो हम देश का कायाकल्प कर देते। (रा मा. संच. 1, पृ. 408)

निगड़ सं. (पु.) -- मोटा साकल, मोटी जंजीर, बेड़ी, उस पर यह नया निगड़ डाला जाएगा क्या ? (गु. र., खं. 1, पृ. 386)

निगति सं. (स्त्री.) -- अधोगति, दुर्गति, उस हद तक कहानी-उपन्यास की भी निगति होती है। (रचनाः अज्ञेय, पृ. 20)

निगुरा वि. (विका.) -- जिसने गुरु धारण न किया हो, गुरु-विहीन, (क) वह निगुरा भी ज्ञानी बन गया। (काद. : जन. 1980, पृ. 9), (ख) इस निगुरी बीसवीं सदी से पल्ला छुड़ाकर हम लौटना भी चाहते हैं। (रा. मा. संच. 1, पृ. 372)

निगूढ़ वि. (अवि.) -- गुप्त, छिपा हुआ, अमुक पंक्ति में मानव-हृदय की निगूढ़ वेदना बड़ी सहृदयता के साथ अभिव्यक्त हुई है। (शि. पू. र., खं. 3, पृ. 228)

निगूहन सं. (पु.) -- छिपने की क्रिया, भाव या कला, यदि चोरी ही करनी थी तो निगूहन जरूर सीखना था। (मधुकर, दिस. 1928, वर्ष-7, खं. 1, सं. 4, पृ. 735)

निगोड़ा वि. (विका.) -- अभागा, कंबख्त, (क) हिंदी के लिए गरदन तक कटा सकता हूँ, मूँछ निगोड़ी क्या चीज है। (शि. पू. र., खं. पृ. 123), (ख) निगोड़े स्वरजियों ने तो भ्रूण ही भस्म कर डालने की चेष्टा की थी। (म. का मतः क. शि., 3 जन. 1925, पृ. 179), (ग) वह निगोड़ा बड़ा ही जघन्य है, जो एक आचारहीन स्त्री को अपनी धर्मपत्नी बनाता है। (सर., अप्रैल 1928, पृ. 398)

निघंटु सं. (पु.) -- कोश, आचरण की सभ्य भाषा सदा मौन रहती है। इस भाषा का निघंटु श्वेत पत्रोंवाला है। (सर., फर. 1912, पृ. 101)

निघरा वि. (अवि.) -- बेघर, वह तो निघरा है, उसे कहीं पहुँचने की जल्दी नहीं है। (अंतराः अज्ञेय, पृ. 31)

निचाट वि. (अवि.) -- निरा, निपट, (क) और साथ था प्रवासी जीवन का निचाट एकाकीपन। (स. भा. सा., मृ. पां., सित.-अक्तू. 98, पृ. 12), (ख) नगर का यह मध्य भाग मेरे लेखे निचाट गाँव है। (रवि., 18 जुलाई, 1982, पृ. 5)

निचुड़कर रह जाना मुहा. -- सत्त्वहीन हो जाना, साहूकार का शिकंजा कसता है तो किसान निचुड़कर रह जाता है। (दिन., 03 सित., 67, पृ. 27)

निचुड़ना क्रि. (अक.) -- खाली होना, रस निकल जाना, सत्त्वविहीन होना, क्या करें इस निचुड़े दिमाक का ? (दिन., 18 फर., 68, पृ. 42)

निचोड़ सं. (पु.) -- सार, सत, घटनाओं का यही निचोड़ कार्यसमिति ने निकाला है ..., (दिन., 17 सित. 1972, पृ. 16)

निचोड़ना क्रि. (सक.) -- रस निकालना, शोषण करना, श्री जिन्ना जानते हैं कि कांग्रेस निचोड़ी जा सकती है। (कर्म., 31 मई 1947, पृ. 7)

निछावर करना मुहा. -- उत्सर्ग करना, बलिदान करना, हिंदी पर अपना सबकुछ निछावर कर दिया। (त्या. भू. : संवत् 1983 (12 दिस. 1992), पृ. 1)

निजू वि. (अवि.) -- निजी, निजू जायदाद की रक्षा करना सरकार का एक प्रमुख कर्तव्य है। (सर., दिस. 1919, पृ. 283)

निठल्ला वि. (विका.) -- 1. बेकार, ठलुआ, (क) वे यह कहकर निठल्ले नहीं बैठे रह सकते कि सामाजिक न्याय की आदर्श प्रणाली नहीं आती तब तक हम क्यों काम करें। (रा. मा. संच. 2, पृ. 131), (ख) सोम बेनिगल जैसे कुशल निर्देशक कई-कई वर्षों तक मंच के लिए निठल्लों की तरह कैसे छिप जाते हैं। (दिन., 23 फर., 69, पृ. 52), (ग) व्यावहारिक संसार में जगह घेरनेवाले निठल्ले दिग्गजों की आवश्यकता नहीं। (ग. शं. वि. रच., खं. 2, पृ. 130), 2. निष्क्रिय, खाली, (क) कमाल पाशा जैसे महाप्रयासी को निठल्ले बैठने से चिढ़ है। (नि. वा. : श्रीना. च., पृ. 886), (ख) ...क्योंकि उन्हें वामपंथ से भावुक लगाव है और वह उनकी निठल्ली आत्माओं का मरहम है। (रा. मा. संच. 1, पृ. 334) (ग) अब वृद्धों को निठल्ला जीवन बिताने की भी अनुमति नहीं है। (दिन., 11 मार्च, 1966, पृ. 27)

निठल्लापन सं. (पु.) -- निष्क्रियता, ठलुआपन, (क) बहुतों को उनका यह निठल्लापन खटकने लगा। (दिन., 26 अक्तू. 1969, पृ. 8), (ख) जो कमजोरियाँ हिंदुस्तान में नहीं है, उन्हें हम अपने निठल्लेपन से पैदा कर रहे हैं ? (रा. मा. संच. 1, पृ. 467)

निढाल वि. (अवि.) -- शिथिल, पस्त, निर्जीव, किसानों को निढ़ाल कर देनेवाले मलेरिया का नाम अब सुनाई नहीं पड़ता। (दिन., 2 जुलाई, 67, पृ. 26)

नितरां क्रि. वि. -- नितांत, बिलकुल, दुःख पहुँचाने का अभिमान तो नितरां गलत है। (कुटजः ह. प्र. द्वि., पृ. 9)

निथरना क्रि. (अक.) -- छनना, शरद की धूप में पानी निथरता है। (दिन., 07 मई, 67, पृ. 39)

निदा वि. (विका.) -- व्याप्त, पुरइन (कमल) के नाल, दल, पात, पराग, नस-नस में पानी निदा है। (काद., सित. 1961, पृ. 57)

निदाघ सं. (पु.) -- धूप, गरमी, ग्रीष्म ऋष्म ऋतु में निदाघ का उत्ताप लोगों को पीड़ित करता है। (सर., दिस. 1919, पृ. 308)

निदान क्रि. वि. -- आखिरकार, इस कारण संबंध तोड़ने के सिवा और कोई इलाज न था। निदान निराश होकर मैं सियेंटल लौट आया। (सर., मई 1911, पृ. 217)

निधड़क क्रि. -- बेधड़क, निस्संकोच, बेखौफ, (क) वह उस मनुष्य के पास निधड़क चला जाता है। (म. प्र. द्वि. रच., खं. 2, पृ. 134), (ख) कादिर निधड़क बीड़ी पी रहा था। (नव., फर. 1958, पृ. 81)

निपजना क्रि. (सक.) -- उपजना, उत्पन्न होना, वह नेतागिरी हमारे विश्वविद्यालयों से पास किए हुए विद्यार्थियों में से निपजनी चाहिए। (कर्म., 15 अक्तू., 1949, मु. पृ.)

निपट वि. (अवि.) -- नितांत, बिलकुल, कौशल रहित, (क) जिया झूठ बोल रहे थे, निपट झूठ। (काद. : जन. 1989, पृ. 39), (ख) आपातकाल के निपट सन्नाटे में कुरसी पर बैठे लोग ही बेहद कर्कश स्वर में चीखते-चिल्लाते रहे। (रा. मा. संच. 1, पृ. 301), (ग) देश का चित्र काला और निपट है और इसके लिए जनता नहीं राजनैतिक नेतृत्व दोषी है। (दिन., 2 फर., 69, पृ. 9)

निपटना क्रि. (अक.) -- निपटारा होना, निर्णय या अंतिम परिणाम तक पहुँचना, प्रसिद्ध वरिष्ठ पोषक सर उमर हयात खान ने स्टेट कौंसिल में कहा था कि भारत सरकार को दक्षिण अफ्रीका के मामले के साथ निपट लेने दिया जाय। (मा. च. रच., खं. 10 पृ. 75)

निपटान सं. (पु.) -- निटपने की क्रिया, निपटारा, निकास, ...142 शहरों में पीने के पानी के वितरण और गंदे पानी के निपटान की खस्ता हालत पर सरकार..., (दिन., 6 से 12 अप्रैल 1980, पृ. 8)

निबड़ना क्रि. (अक.) -- समाप्त होना, खत्म होना, सेना चारों ओर से घिर गई थी और रसद निबड़ गई थी। (बाल. स्मा. ग्रं. : शर्मा, चतुर्वेदी, पृ. 140)

निबद्ध वि. (अवि.) -- बँधा हुआ, ग्रथित, एकत्रित, इसमें नायक के पराक्रम की कथा निबद्ध है। (काद. : अग. 1975, पृ. 16)

निबल वि. (अवि.) -- निर्बल, कमजोर, हर मेला और दल भुजबलियों का भरपूर उपयोग कर रहा है और अंततः देश निबल हो रहा है। (किल., सं. म. श्री., पृ. 12)

निबाह सं. (पु.) -- निर्वाह, गुजारा, बड़ा मुश्किल है ऐसे बढ़े-चढ़े लोगों के साथ निबाह करना, (काद. : मई 1975, पृ. 64)

निबुआ नोन चटा देना मुहा. -- ठेंगा दिखाना, उसमें से तीन चैथाई ऐसे निकलेंगे जो पीछे से निबुआ नोन चटा देंगे। (हिंदी प्रदीपः अप्रैल, 1896)

निभृत वि. (अवि.) -- निर्जन, किस निभृत स्थान में तुमने शरण ली। (काद., सित. 1981, पृ. 14)

निमत्था वि. (विका.) -- शीर्ष रेखा विहीन, एक माननीय साहित्य-सेवी मित्र को पत्र लिखा था, उसमें वही निमत्थी लिखावट थी। (चं. श. गु., र., खं. 2, पृ. 188)

नियामत सं. (स्त्री.) -- वरदान, इन नियामतों का पाठ मदरसे के लड़कों को पढ़ाने की जरूरत है। (सर., मई 1916, पृ. ...)

निरखना-परखना क्रि. (सक.) -- अच्छी तरह समझना-बूझना, साज को कितनी गहराई से निरखा-परखा है, उन्होंने अपने वादन में इसका स्पष्ट प्रमाण दिया। (दिन., 24 मार्च, 68, पृ. 38)

निरखना क्रि. (सक.) -- देखना, (क) मैंने उनका लेखन और अध्यापक भी चुपके-चुपके से निरखा है। (काद. : नव. 1967, पृ. 81), (ख) वे संसार की गति को भली-भाँति निरख रहे हैं। (ग. शं. वि. रच., खं. 2, पृ. 543), (ग) हिंदी हिंदीवालों की भाषा हुई और भारत संतान हिंदी में पुस्तकें पढ़ने भी लगी और मुख निरखने का काम अब हिंदी में मेहतारी के सिपुर्द हो गया। (दिन., 7 जन. 1966, पृ. 44)

निरलस वि. (अवि.) -- आलस्य-रहित, अथक, चुनावों में उम्मीदवारों ने जीतने के लिए निरलस यत्न किए। (काद. : अप्रैल 1980, पृ. 11)

निरा वि. (विका.) -- विशुद्ध, निपट, (क) तुम तो निरे बौड़म, खर्च की चिंता क्यों करते हो। (कर्म., 29 जून 1957, पृ. 7), (ख) इसे भूल कहना निरा बेमजापन है। (म. प्र. द्वि., खं. 1, (बा. मु. गु.), पृ. 349), (ग) हमारे व्यापारी हैं कि निरा बुद्ध बने हुए हैं। (ग. शं. वि., रच., खं. 2, पृ. 132)

निरापद वि. (अवि.) -- आपदा-विहीन, सुरक्षित, शेख की टोह यात्रा बिलकुल निरापद ही हो। (दिन., 11 फर. 1968, पृ. 13)

निरुपद्रवी वि. (अवि.) -- उपद्रव न करनेवाला, निरुपद्रवी, दर्शकों को पीटने का काम पटने में दो सफेद अफसरों ने किया था। (सं. परा. : ल. शं. व्या., पृ. 212)

निरुपाधि वि. (अवि.) -- निरापद, हानि रहित, यह औषधि निरुपाधि है। (काद. : मई 1975, पृ. 14)

निरूठा वि. (विका.) -- रूखा, रूक्ष, कभी भी उन्हें निरूठा भोजन करते नहीं देता। (बे. ग्रं., भाग 1, पृ. 3)

निर्ख सं. (पु.) -- भाव, दर, वेतन के ये निर्ख उन्ही के लिए हैं, जो भारतवासी हैं। (म. प्र. द्वि., खं. 1, पृ. 203)

निर्खनामा सं. (पु.) -- मूल्य-सूची, निर्खनामे के अनुसार ही दुकानदार उन्हें बेचता है। (सर., जन.-फर. 1916, पृ. 66)

निर्लेप वि. (अवि.) -- लाग-लपेट से रहित, गुप्तजी की निर्लेप नीति ने उनकी एवं भरत-मित्र की प्रसिद्धि का डंका बजा दिया था। (काद. : अक्तू. 1981, पृ. 81)

निलज वि. (अवि.) -- बेशर्म या बेशर्मी-भरा, आल्यपूर्ण निलज जीवन बिताते नहीं अघाते। (म. का मतः क. शि., 12 नव. 1927, पृ. 236)

निलहा वि. (विका.) -- नील की खेती करनेवाला, निलहे गोरों के अत्याचार, खयाली बलवों को दबाने के सरकारी नृशंस उपाय वहाँ की प्रजा के लिए प्लेग और हैजे के समान साधरण बातें हो रही थीं। (मा. च. रच., खं. 9, पृ. 289)

निविड़ वि. (अवि.) -- घोर, गहन, बौद्ध मंदिरों के विद्वान् पुजारी इस निविड़ अंधकार के समय मानो विद्या के प्रज्वलित द्वीप थे। (सर., अक्तू. 1912, पृ. 550)

निशाने की चोट मुहा. -- लक्ष्यवेधन, सटीक प्रहार, अमोघ प्रहार, सरल भाषा में राजनैतिक परिहास के साथ निशाने की चोट विरल ही होती है। (गु. र., खं. 1, पृ. 388)

निशाश्ता सं. (पु.) -- किसी अन्न विशेषतः गेहूँ का सारभाग, ये औषधियाँ इतनी साधारण हैं कि इनके योग से आलू के निशाश्ते से ही ये प्लेट बन जाते हैं। (सर., अप्रैल 1916, पृ. 233)

निशि-वासर क्रि. वि. -- रात-दिन, दिन-रात, वह निशि वासर चिंता में डूबा रहता है। (काद., सित. 1988, पृ. 11)

निष्कंप वि. (अवि.) -- कंपन-रहित, स्थिर, मन में आशा की निष्कंप लौ जलाए रखो, सफलता निश्चित है। (काद. : जन. 1986, पृ. 5)

निसा-खातिर वि. (अवि.) -- निश्चिंत, तुम निसा-खातिर रहो। (स. न. रा. गो. : भ. च. व., पृ. 13)

निःसृत वि. (अवि.) -- निकला हुआ, प्रस्फुटित, उनकी वाणी से ज्ञानोपदेश निःसृत होता है। (काद., सित. 1981, पृ. 14)

निस्तार सं. (पु.) -- छुटकारा, उद्धार, (क) कलक्टर साहब की जरा नाराजगी में निस्तार नहीं। (बा. भा. : भ. नि. भाग-2, पृ. 10), (ख) जातीय भेदभाव मिटाए बिना निस्तार नहीं है। (दिन., 16 अग., 1970, पृ. 11), (ग) प्रश्न यह है कि इनका निस्तार कैसे हो। (वि. भा., जन. 1928, सं. 1, पृ. 331)

निस्बत सं. (स्त्री.) -- संबंध, इस बात की चीन के आंतरिक संघर्ष से कोई निस्बत नहीं है। (दिन., 10 फर., 67, पृ. 9)

निस्संग वि. (अवि.) -- अकेला, विरक्त, (क) इस समय मैं घोर अपमानित और निस्संग अनुभव कर रहा था। (रवि., 25 मार्च 1981, पृ. 43), (ख) लोगों ने बड़ी निस्संग स्वाभाविकता से स्वीकार कर लिया था। (कम. देवी की माँ)

निहार मुँह क्रि. वि. -- बासी मुँह, खाली पेट, हर रोज सबेरे निहार मुँह सोने की थाली में छिलकों समेत दो तोले चने पेश किए जाते है। (काद., जन. 1979, पृ. 50)

निहाल वि. (अवि.) -- धन्य, सौभाग्यशाली, पहले का समय आ जाए तो हम निहाल हो जाएँ। (गु. र., खं. 1, पृ. 178)

निहुरे-निहुरे ऊँट चुराना कहा. -- छोटे-मोटे प्रयत्न से बड़ी सफलता नहीं मिलती, गाल के जोर से दीवाल नहीं ढहती, निहुरे-निहुरे ऊँट नहीं चुराया जाता। (कुटजः ह. प्र. द्वि., पृ. 38)

निहुरे क्रि. वि. -- झुककर, ऊँट की चोरी निहुरे-निहुरे (शीर्षक), (कर्म., 8 अक्तू., 1949, पृ. 3)

निहोरा सं. (पु.) -- याचना, चिरौरी, (क) अपना बयान बदलने के लिए सोलंकी को भी निहोरे करना पड़ा। (ज. स. : 22 दिस. 1983, पृ. 4), (ख) हम न तो कौंसिलों के मेंबरों ही से निहोरा करते हैं। (मा. च. रच., खं. 9, पृ. 273)

निहोरा सं. (पु.) -- विनती, प्रार्थना, समुद्र से बादल भेजने का निहोरा नहीं करते। (म. सा. सं. ओं. श., भाग-1, पृ. 156)

नींघस वि. (अवि.) -- निर्लज्ज, बेहया, उनमें इतनी अधिक अहमन्यता हो गई है या यह कहें कि वे इतना नींघस हो गए हैं कि उनका मुलम्मा प्रकट हो जाने पर भी वे अपने को बराबर खरा सोना ही बताए चले जा रहे हैं। (कु. ख. : दे द. शु., पृ. 97)

नीची नजर से देखना मुहा. -- हेय दृष्टि से देखना, हेय समझन, किसी की आब न होगी कि वह हमको या हमारे देश को ची नजर से देख सके। (स. सा., पृ. 165)

नीचे की जमीन खिसकना मुहा. -- आधार रहित होना, निराधार हो जाना, इस निराशा के कारण सच्चे क्रांतिकारियों के नीचे की जमीन भी खिसक रही है। (रा. मा. संच. 2, पृ. 17)

नीचे गिराना मुहा. -- मान या महत्त्व कम करना, जरा-जरा सी बात पर बिगड़ खड़े होना या सरफुड़ौवल करने लगना, हर हालत में इसलाम को नीचे गिराना ही ध्येय नहीं होना चाहिए। (न. ग. र., खं. 4, पृ. 303)

नींद हराम होना मुहा. -- चिंता के मारे नींद न आना, अत्यधिक चिंतित हो उठना, बेचैन रहना, इससे नौकरशाही की नींद हराम हो गई। (म. का मतः क. शि., 5 जुलाई, 1924, पृ. 161)

नीम की पत्तियाँ चबाना मुहा. -- कड़वा स्वाद चखना, कटु अनुभव होना, मुख्यंत्री के लिए तमाम सुविधाओं के बावजूद अविश्वास प्रस्ताव नीम की पत्तियाँ चबाना जैसा था। (ज. स. : 22 दिस. 1983, पृ. 4)

नीम नुस्खा सं. (पु.) -- अधूरी युक्त, 1947 से अब तक देश की तरक्की के लिए कई नारे और नीम नुस्खे देश ने अपना लिए। (रा. मा. संच. 1, पृ. 131)

नीम हकीम सं. (पु.) -- अधकचरे ज्ञानवाला, जब ये नुस्खेबाज नीम हकीम ... यानी रेडियो से टेलीविजन में चले आए तो अपने साथ चमचागिरी और फूँक-मराई का वह तमाम तामझाम लेते चले आए। (दिन., 16 जुलाई, 1965, पृ. 41)

नीम हकीमी सं. (पु.) -- अल्पज्ञता, यह नीम हकीमी बड़ी खतरनाक है और इसने भारत का काफी अनिष्ट साधन किया है। (नि. वा. : श्रीना. च., पृ. 532)

नीयत खोटी होना मुहा. -- मन में दुर्भाव होना, गलत धारणा बनाना, शत्रु की कल्पना वह करता है जिसकी नीयत खोटी होती है। (शि. पू. र., खं. 3, पृ. 428)

नीयत-टूट वि. (अवि.) -- इरादे का खोटा, लालची, वह बड़ा नीयत टूट है, मिठाई देखते ही उस पर टूट पड़ा। (काद., मई 1977, पृ. 9)

नींव बालू पर रखना मुहा. -- कमजोर आधार चुनना / बनाना, कुछ महानुभाव अपने साहित्य-मंदिर की नींव बालू पर रख रहे हैं। (ब. दा. च. चु. प., संपा. ना. द., पृ. 208)

नुकताचीन वि. (अवि.) -- छिद्रान्वेषी शेर अपने भोजन के संबंध में बड़े नुकताचीन होते हैं। (नव., मार्च 1953, पृ. 46)

नुकताचीनी सं. (स्त्री.) -- आलोचना, छिद्रान्वेषण, (क) नुकताचीनी करनेवाले कहते हैं कि गवर्नमेंट ने यह जो किया है, बहुत ही कम है। (म. प्र. द्वि., खं. 15, पृ. 462), (ख) बहस की ओर टकटकी लगाए हुए कौंसिल के सदस्य व्याख्यान की बातों की नुक्ताचीनी कर रहे थे। (स. सा., पृ. 141), (ग) अपने शासन की जायज नुक्ताचीनी भी नहीं सह सकते। (कर्म., 12 अप्रैल 1947, पृ. 5)

नुक्कड़ सं. (पु.) -- गली का कोना या मोड़, हर जगह, माओवादियों में हर नुक्कड़ पर संघर्ष चल रहा है। (दिन., 03 सित., 67, पृ. 32)

नुक्स सं. (पु.) -- दोष, इसका सबसे बड़ा नुक्स यह है कि ये बहुधा हमारे शरीर के बेशकीमती अंग ग्रास कर लेती हैं। (काद., जन. 1989, पृ. 70)

नुमाँया वि. (अवि.) -- प्रकट, व्यक्त, स्पष्ट, आप खुदा का काम कर रहे हैं और नुमाँया है कि उनका साया आपके सर पर है। (क. ला. मिश्रः त. प. या., पृ. 138)

नेउतना क्रि. (सक.) -- न्योतना, निमंत्रित करना ... न नामकरण संस्कार को वह नेउती ही गई थी। (मधुकर, 1 अक्तू. 1940, पृ. 9)

नेकी नेकरा बदी बदरा कहा. -- भलाई का फल भला और बुराई का फल बुरा, खैर नेकी नेकरा बदी बदरा। (सर., अक्तू. 1981, पृ. 200)

नेग सं. (पु.) -- किसी शुभ अवसर पर आश्रितों, संबंधियों आदि को दी जानेवाली वस्तु या धन, भेंट, दीवाली का नेग जुआ (जुए) में ही चुकता है। (का., वन. 1978, पृ. 71)

नेगचार सं. (पु.) -- नेग देने की क्रिया या भाव, भेंट, आठवीं तारीख को महाराज ने बिना किसी नेगचार के एक कन्या को अपनी चौथी पत्नी बनाया। (सर., नव. 1920, पृ. 232)

नेजाबाजी सं. (स्त्री.) -- भाला चलाने की क्रिया या कौशल, अरबों में यह नियम था कि कोई मनुष्य तक वीर की पदवी न पाता था जब तक उसमें नेकी, बहादुरी, सद्व्यवहार, कविताई, बल, नेजाबाजी आदि दस बातें न पाई जाती हों। (सर., जुलाई 1922, पृ. 3-4)

नेत्र मूँदना मुहा. -- अनदेखी करना, उपेक्षा करना, उससे नेत्र मूँदना भी हमारा काम नहीं। (ग. शं. वि. रच., खं. 2, पृ. 235)

नेफा सं. (पु.) -- पाजामे, पेटीकोट आदि में नाड़ा पिरोने का स्थान, अपने पायजामे के नेफे में कुछ कंचे डाल दें। (काद., मार्च 1991, पृ. 115)

नेमी सं. (पु.) -- नियम का पालक, नियमी शीघ्रता और स्थिरता के इन्हीं नेमियों से जीवन का रथचक्र निरंतर घूमता रहता है। (मधुकरः जन., 1944, पृ. 500)

नेस्तनाबूद करना मुहा. -- मटियामेट करना, जड़ से नष्ट करना, खत्म करना, दिखाऊ संधिपत्र पर सही कराकर उसे नेस्तनाबूद करने का फतवा दे दिया। (मा. च. रच., खं. 9, पृ. 217)

नेह सं. (स्त्री.) -- नींव, जो मूर्तियाँ पत्थर मंदिर की मरम्मत करते समय इसकी नेह में निकले सब वहीं गोल अठपहल चौखुटे चबूतरों पर चुन दिए गए हैं। (भ. नि. मा. (दूसरा भाग), सं. ध. भ., पृ. 167)

नैया डूबना या डूब जाना मुहा. -- सबकुछ नष्ट हो जाना, सब का सब नष्ट हो जाना... संपादक फिल्मों की (का) समर्थन करने लगेंगे तो समाज की नैया डूब जाएगी। (सा. हि., 28 अग. 1960, पृ. 3)

नोक सं. (स्त्री.) -- नुकीला सिरा, तुर्रा भी नीचे लटक आया है, उसकी नोक मिट गई है। (चं. श. गु. र., खं. 2, पृ. 236)

नोच-खरोच सं. (स्त्री.) -- नोचने और खरोचने की क्रिया या भाव, क्या सामान्य स्थितियों में बिखराव और नोच खरोच ही हमारी नियति है ? (रा. मा. संच. 1, पृ. 81)

नोच-खसोट सं. (स्त्री.) -- 1. छीनाझपटी, (क) नोच-खसोट के समय नीयत ठीक नहीं रहती, आपस में ही हाथापाई होने लगती है। (ग. शं. वि. रच., खं. 3, पृ. 106), (ख) सुखी तब होगा जब व्यक्ति दूसरों की नोच-खसोट से दूर रहेगा। (त्या. भू. : संवत् 1986, (1927) पृ. 139), 2. तोड़-मरोड़, इसमें शब्दों को नोच-खसोटकर किसी रीति से भाँति-भाँति के अनेक बंधों में बंद कर देते हैं। (म. प्र. द्वि. रच., खं. 2, पृ. 511)

नोचना-खसोटना क्रि. (सक.) -- छीना-झपटी करना, छीनना, झपटना, (क) ज्यों-ज्यों भिन्न स्थानों के शासकों के हृदय में स्वार्थपरता एवं नोच-खसोट के भाव बढ़ते गए त्यों-त्यों खिलाफत के ऊपर कठिनता आती गई। (न. ग. र., खं. 2, पृ. 59), (ख) नोच खसोट कर नया ग्रंथ लिखकर मौलिक लेखक के नाम से प्रसिद्ध होना ठीक नहीं। (माधुरी, फर. 1928, खं. 2, पृ. 447)

नोन सत्तू बाँधकर पीछे पड़ना या पड़ जाना मुहा. -- पूरी तरह से पीछे पड़ जाना, मैकार्डी ने ऐसी कौन सी नई हरकत की है कि लोग नोन सत्तू बाँधकर उनके पीछे पड़ गए हैं। (म. का. मतः क. शि., 26 जून, 1924, पृ. 156)

नोन-तेल-लकड़ी मुहा. -- घर-गृहस्थी का आवश्यक सामान, सुकर्ण रहें या न रहें, शासकों को देशवासियों के लिए नोन-तेल-लकड़ी की व्यवस्था करनी होगी। (दिन., 16 सित., 66, पृ. 38)

नोनी सं. (स्त्री.) -- नोना क्षार, (क) चने के खेतों से नोनी की सोंधी गंध आई। (कच. : वृ. ला. व., पृ. 175), (ख) मिट्टी की दीवाल की जड़ नोनी लगने से खोखली हो चुकी है। (ब्रे. ग्रे., भाग 1, पृ. 5)

नौ दिन चले अढ़ाई कोस कहा. -- मंथर गति से चलना, बहुत धीरे-धीरे काम करना, इस इक्के का घोड़ा निगोड़ा इतना मरियल था कि नौ दिन चले अढ़ाई कोस। (वीणा, जन. 1934, पृ. 478)

नौ दो ग्यारह हो जाना मुहा. -- भाग खड़े होना, परे हट जाना, औपनिवेशिक स्वराज साहब पूर्ण स्वतंत्रता के लिए स्थान खाली कर नौ दो ग्यारह हो जाएँगे। (मत., म. प्र. से. वर्ष 5, सं. 7, पृ. 3)

नौका डूबना या डूब जाना मुहा. -- पूर्णतः नष्ट होना, अस्तित्व खोना, उसे रोक देने से असहयोग की नौका डूब गई मानी जाय। (स. सा., पृ. 160)

नौटंकिया वि. (अवि.) -- नाटकीय, भ्रामक लोगों को भरमाने का घटिया और नौटंकिया प्रयास था। (हि. ध., प्र. जो., पृ. 376)

नौदौलतिया सं. (पु.) -- नया रईस, नव-धनाढ्य... जिस की नकल कस्बों में अँगरेजी बोलने की नकल करनेवाले नौदौलतिए भी कर रहे हैं। (दिन., 27 जुलाई, 1975, पृ. 45)

नौनिहाल सं. (पु.) -- बच्चा, और नौकरशाही के निशाने पर अपने अनेकों नौनिहालों की मैक्स्विनी जैसी शांतता से बलि होते देख सके..., (मा. च. रच., खं. 9, पृ. 260)

नौबत आना मुहा. -- परिणामजन्य स्थिति उपस्थित होना, संयुक्त मोर्चे के टूटने की नौबत आ सकती है। (दिन., 21 सित. 1969, पृ. 20)

नौसिखुआ वि. (अवि.) -- जो कोई नया काम सीखा हो या सीख रहा हो, प्रशिक्षु, (क) तब तक उसे दूसरे विभाग में नौसिखुआ बनने के लिए भेज दिया जाता है। (दिन., 09 मार्च, 69, पृ. 12), (ख) अब दिल्ली हम नौसिखुओं को प्रजातंत्र की कवायद परेड करा रही है। (रा. मा. संच. 1, पृ. 97)

न्यस्त वि. (अवि.) -- सौंपा या डाला हुआ, मढ़ा हुआ, भोजन बनाने का भार पंडितजी पर ही न्यस्त था। (सर., अग. 1916 पृ. 326)

न्यामत सं. (स्त्री.) -- वरदान, सौगात, उनकी क्रांति की योजना भारत को ऐसी ही न्यामतें देने का वादा करती है। (सर., फर. 1931, सं. 2, पृ. 314)

न्याय-नारायण वि. (अवि.) -- न्यायशील, भारत में कैसे-कैसे बुद्धिमान, न्याय-नारायण और प्रजारंजक शासक हुए। (सर., 15 जन., पृ. 12)

न्यारा-न्यारा वि. (विका.) -- तरह-तरह का, अलग-अलग प्रकार का, (क) सब स्थूल पदार्थ स्थूल इंद्रोयों द्वारा इतने न्यारे-न्यारे अनुभूत होते हैं। (ग. र., खं. 1, पृ. 132), (ख) दोनों मूर्तियों में इसकी बूटेकारी न्यारी-न्यारी है। (चं. शं. गु. र., खं. 2, पृ. 233)

न्योछावर होना मुहा. -- निछावर होना, बलिहरी होना देश भर की जनता वाह-वाह करके न्योछावर हो गई है। (हि. ध., प्र. जो., पृ. 317)