विक्षनरी:हिन्दी पत्रकारिता की शब्द सम्पदा भाग-२

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पकड़ सं. (स्त्री.) -- अपहृत व्यक्ति, हर विलास काछी 80 हजार की तीन पकड़ें छोड़कर आए। (दिन., 30 अप्रैल, 1972, पृ. 25)

पका-पकाया वि. (विका.) -- पहले से ही तैयार किया हुआ, (क) यह आग्रह बिलकुल हास्यास्पद है कि जाँच कमीशन बैठाने के पहले ही सारा पका-पकाया दावा मोरारजी के सामने पेश कर दिया जाए। (रा. मा. संच. 1, पृ. 338-39), (ख) रोजगारी संवादों का पका पकाया माँड हम अपने पाठकों को परोसते हैं। (रा. मा. संच. 2, पृ. 357)

पकी-पकाई सं. (स्त्री.) -- तैयार भोजन, तैयार माल, आप पकी-पकाई हड़पना चाहते हैं। (न. ग. र., खं. 3, पृ. 81)

पंक्तिपावन वि. (अवि.) -- आदरणीय, पंक्तिपावन मानव सौभाग्य से ही मिलते हैं। (काद., अक्तू. 1990, पृ. 7)

पंख काटना या काट देना मुहा. -- शक्तिहीन करना, असहाय कर देना, अपनी पसंद का राष्ट्रपति चुनकर सिंडिकेट के नेता उनके पंख काट देंगे। (रा. मा. संच. 1, पृ. 29)

पख सं. (स्त्री.) -- शर्त, अड़ंगा, (क) यहाँ धाराप्रवाह की पख नहीं लगाई गई। (सर., जून 1920, पृ. 336), (ख) घड़ी देखना तो सिखा दो, उसमें तो जन्म और क्रम की पख न लगाओ, फिर दूसरे से पूछने का टंटा क्यों ? (चं. श. गु. र., खं. 2. पृ. 310)

पखवारा सं. (पु.) -- पंद्रह दिन की कालावधि, पक्ष, जुलाई की भारी बारिश में जलमग्न हो रही पहाड़ियों में मैं दिन गिन-गिनकर पखवारे भर मेहनत में जुटा रहा। (काद., मई 1977, पृ. 32)

पखारना क्रि. (सक.) -- धोना, धोती पखारकर सुखा दो। (काद., अक्तू. 1975, पृ. 18)

पगडंडी सं. (स्त्री.) -- 1. पैदल चलने का सँकरा रास्ता, 2. उपाय, पाश्चात्य साहित्य के प्रकाश ने उन पगडंडियों पर चलने का अवसर दिया, जो हमें संसार के प्रशस्त मार्ग पर पहुँचाती हैं। (ग. शं. वि. रच., खं. 1, पृ. 133)

पंगत सं. (स्त्री.) -- पंक्ति, जमात, संप्रदाय, (क) हम साहित्यिक मित्रों की पंगत में वे बहुत पहले से ही शुद्ध माने जा चुके थे। (शि. पू. र., खं. 4, पृ. 90), (ख) डॉ. हेमचंद्र जोशी तो अपनी ही पंगत के हैं। (नि. व. : श्रीना. च., पृ. 875), (ग) अमीरों की हुकूमत अगर चाहे कि समाजवाद के नाम का लंगर खोलकर सारे गरीबों को पंगत में बैठा दे और उनका पेट भर दे, तो यह संभव नही है . (रा. मा. संच. 1, पृ. 208)

पगना क्रि. (अक.) -- रचा-बसा होना, रससिक्त होना, मूर्खता में यदि निर्ममता पगी हुई मिले तो वह निरीह मूर्खता नहीं रह जाती। (दिन., 18 जून, 1972, पृ. 27)

पगरखी सं. (स्त्री.) -- जूती, तुम अब पगरखी नहीं बनाओगे। (सर., जुलाई-सित. 1943, पृ. 442)

पगराना क्रि. (अक.) -- पागुर करना, जुगाली करना, प्रधानमंत्री अभी बीन बजा रहे हैं और लालू आँख मूँदे पगरा रहे हैं। (किल., सं. म. श्री., पृ. 81)

पगलाई सं. (स्त्री.) -- पागलापन, पंजाब उनके (संत भिंडरावाले) सिरफिरेपन की पगलाई से बाहर निकल आया है। (हि. ध., प्र. जो., पृ. 197)

पगहा तुड़ाना मुहा. -- बंधन छुड़ाना, मुक्त होना, जब गाँव में सोता पड़ गया तो दोनों ने जोर मारकर पगहे तुड़ा डाले। (प्रे. स. क. : सर. प्रेस, पृ. 40)

पगहा सं. (पु.) -- जानवर को बाँधने की रस्सी, जब गाय ही चली गई तो पगहे का क्या अफसोस। (रा. द., श्रीला. शु., पृ. 300)

पंगा लेना मुहा. -- झगड़ा मोल लेना, विपक्षी नेताओं से पंगा लेने का वे कोई मौका नहीं चूकती। (ज. स. : 30 जन. 1984, पृ. 4)

पगा वि. (विका.) -- 1. पागा हुआ, 2. परिपक्व, भारत में कौन सा वर्ग सबसे अधिक मुखर और राजनीति में पगा हुआ है ? उत्तर या मध्य वर्ग। (रा. मा. संच. 2, पृ. 44)

पगार सं. (स्त्री.) -- वेतन, दोनों में पगार को लेकर झगड़ा हुआ। (लो. स., 10 अप्रैल, 1989, पृ. 8)

पगीया उछालना मुहा. -- पगड़ी उछालना, बेइज्जत करना, साहित्यिक चर्चा की आड़ में धर्म भावों पर चोट पहुँचाई जा रही है और हिंदी के बड़े बूढ़ों की पगिया उछाली जा रही है। (कु. ख. : दे. द. शु., पृ. 124)

पंचकल्याणी वि. (अवि.) -- 1. पंचायती, मौलाना मोहम्मद अली ने देश भर की ऐरी-गैरी पंचकल्याणी संस्थाओं को निमंत्रित कर दिया। (न. ग. र., खं. 2, पृ. 108), 2. जो किसी के प्रति वफादार न हो, आचरण भ्रष्ट, उस पंचकल्याणी से वास्ता रखना व्यर्थ है। (काद., जुलाई 1992, पृ. 9)

पँचकौड़ी वि. (अवि.) -- अतिसाधारण, तुच्छ, डॉ. रामविलास शर्मा हिंदी साहित्य के इस युग में कैसे ईमानदार हैं कि इस पँचकौड़ी लेखक की पुस्तक के बारे में सब साफ-साफ कह दिया। (काद., मार्च 1980, पृ. 124)

पचड़ा सं. (पु.) -- झमेला, बखेड़ा, झंझट, (क) आप इन पचड़ों को जाने दीजिए। (म. प्र. द्वि. रच., खं. 2, पृ. 123), (ख) उस समय आहवास सम्मति के पचड़े ने शत्रुओं को आशा दिलाई थी दो पार्टी होकर कांग्रेस टूट जाएगी। (गु. र., खं. 1, पृ. 327), (ग) हमारे हरेक काम में धर्म का पचड़ा लगा हुआ है। (गु. र., खं. 1, पृ. 144)

पंचधा वि. (अवि.) -- पाँचों अंगों से किया हुआ, साष्टांग, ऐसे श्रेष्ठ वसिष्ठ आचार्य के लिए पंचधा प्रणाम हो। (मधुकरः अप्रैल-अग. 1944, पृ. 69)

पँचमेल खिचड़ी मुहा. -- भानुमती का कुनबा, मिली-जुली रा. लो. गठबंधन एवं संयुक्त मोर्चे की पँचमेल खिचड़ी बनी हुई थी। (ज. स. : 23 दिस. 1983 पृ. 4)

पँचमेल वि. (अवि.) -- विविध प्रकार का, तरह-तरह का, बहुआयामी, (क) हमारा पँचमेल समूह है। (ब. दा. च. चु. प., संपा. ना. द., पृ. 113), (ख) सब पत्रिकाएँ पँचमेल हो गई हैं, सबमें सबकुछ छपने लगा है। (दिन., 28 जून, 1970, पृ. 45)

पंचाट सं. (पु.) -- पंचों का निर्णय, जब जस्टिस वेंकटरमैया को पंचाट का जिम्मा मिला, तब एक फैसला हो चुका था। (स. ब. दे. : रा. मा. (भाग-दो), पृ. 46)

पच्ची सं. (स्त्री.) -- पच्चर, 32 लाख की आबादीवाला तटवर्ती गैंबिया प्रदेश, जो सेनेगल के पेट में पच्ची की तरह घुसा हुआ है। (दिन., 21 फर. 1965, पृ. 21)

पछाड़ खाना मुहा. -- निरंतर विलाप करना, पुरुषोत्तम दास टंडन केवल उसी हिंदी के चरणों में पछाड़ें खा रहा है और खाता रहेगा। (मा. च. रच., खं. 4, पृ. 272)

पछाँही1 वि. (अवि.) -- पश्चिमी, पाश्चात्य, (क) पछाँही ढाँचे का संविधान अपनानेवाले देशों के अनुभवों,...राष्ट्रीय चरित्र के कायाकल्पों आदि का शोध का विषय बनाने का सुझाव दिया। (दिन., 30 अप्रैल, 67, पृ. 44), (ख) हिंदुस्तानी और कुछ नहीं पछाँही हिंदी की एक बोली मात्र है। (म. प्र. द्वि., खं. 1, पृ. 167)

पछाँही2 सं. (पु.) -- पश्चिम का रहनेवाला, यूरोपीय व्यक्ति, इस उदंत मार्तंड के नाम पड़ने के पहिले पछाँहियों के चित्त का इस कागज पर होने से हमारे मनोरथ सफल होने का बड़ा उत्तमा था। (प. प. : ज. प्र. च., (उदंत मार्तंड से), पृ. 114)

पंछी सं. (पु.) -- पक्षी, बहुत दिनों से वैसे पंछी देखने में नहीं आते थे। (म. प्र. द्वि., खं. 1, (गो. ना. मि.), पृ. 396)

पछीटना क्रि. (सक.) -- पटकना, (क) जो भी सिंहासन पर बैठा दिखा उसे ही हमने टाँग पकड़कर पछीट दिया। (किल. सं. म. श्री., पृ. 138), (ख) अपनी आजादी को हमने धोबी के कपड़ों की तरह पछीट है। (किल., सं. म. श्री., पृ. 372)

पंजा जमना मुहा. -- अधिकार स्थापित होना, प्रभाव जमना, ऊँचे ओहदों पर इनका पंजा जम गया। (कर्म., 28 दिस. 1957, पृ. 1)

पंजे में फँसना मुहा. -- चंगुल में फँसना, जकड़ में आ जाना, (क) भारत को भी अपने विजेता इंग्लैंड के पंजे में फँसना पड़ा। (सर., भाग 30, खं. 1, जन-जून 1929, पृ. 7), (ख) दुभाषियों के पंजों में फँसना पड़ता है जो उनको डग-डग पर मूँड़ते हैं। (सर., अप्रैल 1913, पृ. 235)

पट सं. (पु.) -- कपाट, किवाड़, पल्ला, (क) सूर्योदय के पहले मंदिर के पट खुलते हैं। (माधुरी : अग.-सित. 1928, पृ. 272), (ख) लड़ाई के कारण उस घर के पट बंद हो गए हैं। (ग. शं. वि. रच., खं. 2, पृ. 222), (ग) तब कौन जानता था कि ये पट कभी नहीं खुलते। (रा. मा. संच. 1, पृ. 19)

पटकनी सं. (स्त्री.) -- पटक देने की क्रिया या भाव, पटकान, सरकार को पटेल ने ऐसी पटकनी दी कि वह शीघ्र न भूलेगी। (माधुरी, वर्ष-7, खं. 1, सं. 3, फर. से जुलाई 1929, पृ. 517)

पटकी सं. (स्त्री.) -- पटकान , पटकनी शब्द तो कुछ न कुछ कहे , पर तेवर युद्द में उसे 2-3 पटकियाँ दे दीं । (नव . , फर . 1958 , पृ . 66)

पटखनी देना मुहा. -- परास्त करना, लेकिन सत्ताधारी के दिमाग में न जाने कैसे यह कीड़ा प्रवेश कर जाता है कि जैसे-तैसे हर हथकंडे से विरोधी को पटखनी देना और अपनी कुरसी पुख्ता करना जरूरी है। (रा. मा. संच. 1, पृ. 264)

पटखनी सं. (स्त्री.) -- पटकान, पराजय, मायावती भाजपा के समर्थन से सरकार बना लें तो यह दूसरी पटखनी होगी। (किल., सं. म. श्री., पृ. 107)

पटपर वि. (अवि.) -- सपाट, समतल, जो बिलकुल पटपर मैदान था, वह घने जंगल में बदल गया। (भ. नि., पृ. 15)

पटरा करना या कर देना मुहा. -- धराशायी करना, भूमिसात् करना, मटियामेट करना, (क) व्यंग्य में आधुनिकता और समसामयिकता के एक ही दाँव से वह (नामवर सिंह) आपको पटरा कर दे सकते हैं। (दिन., 2 मार्च, 69, पृ. 43), (ख) 25000 आदमी बेगम के साथ नेपाल गए पर बीमारी ने सबका पटरा कर दिया। (मा. अ. : 5 दिस. 1860)

पटरा सं. (पु.) -- लकड़ी का चौड़ा तथा समतल टुकड़ा, तख्ता, पटिया, लकड़ी के पटरे डालकर दो-दो, तीन तीन कमरे बना लिए थे। (काद., दिस. 1960, पृ. 85)

पटरी से उतारना मुहा. -- मार्गच्युत करना, अपदस्थ करना, जर्मनी ने विज्ञान की उन्नति में अपने जौहर दिखलाकर संसार को चमत्कृत कर दिया था, वही आज औद्योगिक पटरी से उतारा जाकर कृषि-फर्म की गड़बड़ में डाला जा रहा है। (न. ग. र., खं. 2, पृ. 274)

पटा-बनेटी सं. (स्त्री.) -- लाठी चलाने के करतब, लट्ठबाजी, ऐसे लोग पटा-बनेटी नहीं घुमाते न खम ठोंकते फिरते हैं... उसके आक्रामक प्रदर्शन की कोई जरूरत नहीं। (हि. ध., प्र. जो., पृ. 198)

पटाना क्रि. (सक.) -- अपने अनुकूल करना या बनाना, तैरते वोटों को उन्हें पटाना पड़ता है। (रा. मा. संच. 1, पृ. 35)

पटापट क्रि. वि. -- लगातार पटपट ध्वनि करते हुए, इतना कहने की देर थी कि पटापट तीन-चार पत्थर के रोड़े आकर गिरे। (सर., अग. 1937 प. 120)

पटु वि. (अवि.) -- कुशल, निपुण, (क) अपने पाठकों की भावनाओं से खेलने में पटु होते हैं। (ग. मं. : पत्र. चु., पृ. 74), (ख) ... कहा गया कि मौसम की पूर्व जानकारी में भारतीय विभाग पटु है। (दिन., 8 जुलाई, 1966, पृ. 26)

पट्ट शिष्य सं. (पु.) -- प्रमुख तथा योग्य शिष्य, पक्का शिष्य, अपने अकसर बिगड़ पड़नेवाले पट्ट शिष्य से लाड़ करना गांधी को आता था। (स. ब. दे. : रा. मा., पृ. 120)

पट्टा मिलना मुहा. -- सनद या विशेषाधिकार मिलना, माता-पिता की बदौलत मुझे एक लंबी आयु का अच्छा पट्टा मिल गया है। (काद., मार्च 1963, पृ. 15)

पट्टा सं. (पु.) -- तख्ता, अथाह और एकदम स्याह अँधेरे पानी की सतह पर चाँदनी का एक चमकदार पट्टा फैला हुआ है। (ए. सा. डा. : ग. मा. मु., पृ. 4)

पट्टी पढ़ाना मुहा. -- सिखाना-पढ़ाना, जैसी उन्होंने उसे पट्टी पढ़ाई, उसने वहीं पढ़ी। (ग. शं. वि. रच., खं. 2, पृ. 500)

पट्टू डालना मुहा. -- डोरा डालना, प्रभवित करना, ललचाना, अनेक प्रकार से उन पर पट्टू डालने की कोशिश की। (काद. : जन. 1989, पृ. 79)

पट्ठा सं. (पु.) -- शागिर्द, चेला, शिष्य, (क) रूस ने चीन के मुकाबले भारत को अपना पट्ठा बनाने की गर्ज से आर्थिक सहायता देना शुरू किया। (दिन., 28 जून, 1970, पृ. 27), (ख) पट्ठों को आवश्यकता से अधिक बढ़ाना बेकार समझा जाएगा। (कुं. क. : रा. ना. उ., पृ. 91), (ग) लखनऊ के बाँकों और बनारस के पट्ठों का रंग अब निर्यात होकर जैसे इंग्लैंड पहुँच गया हो। (दिन., 6 मई, 1966, पृ. 10)

पठिया सं. (स्त्री.) -- भैंस की बच्ची, पड़िया, एक छोटी सी पठिया फुदकती हुई आकर चमेली की ताजा नरम नरम पत्तियों को ताबड़तोड़ नोचने और चबाने लगी। (बे. ग्रं., प्र. खं., पृ. 105)

पंड वि. (अवि.) -- निष्फल, विफल, एक महान् आत्मा को धोखा देने का पंड परिश्रम कर रहे हैं। (म. का. मतः क. शि., 27 सित. 1924, पृ. 87)

पड़ापड़ क्रि. वि. -- एक के बाद एक, पड़पड़ शब्द करते हुए, मालूम हुआ कि रेल पृथ्वी के गर्भ में घुस सी रही थी। जाली में रक्खी चीजें नीचे पड़ापड़ गिरीं। (सर., अप्रैल 1912, पृ. 233)

पंडिता सं. (स्त्री.) -- विदुषी, महाराष्ट्र जन-समाज में एक और पंडिता का प्रादुर्भाव हुआ है। (म. प्र. द्वि., खं. 5, पृ. 369)

पंडिताऊ वि. (अवि.) -- पंडितों-जैसा, संस्कृतनिष्ठ, पंडिताऊ ढंगवाले अनुवादों की भाषा संशोधन योग्य है। (म. प्र. द्वि., खं. 1, पृ. 118)

पढ़ाकू वि. (अवि.) -- बहुत अधिक पढ़नेवाला, अध्ययनशील, अंग्रेजी की दीवार अधिकांशतः हट गई लेकिन इसके बावजूद न तो छात्र संतुष्ट हुए, न वे पढ़ाकू बने। (रा. मा. संच. 2, पृ. 32)

पढ़ें फारसी बेचें तेल कहा. -- पढ़-लिखकर भी बेपढ़ों का-सा काम करना, चाकरी की समस्या पढ़ें फारसी बचें तेलवाली कहावत का रूप धरकर सामने मुँह बाए खड़ी है। (हित., दिस. 1948, पृ. 16)

पत-पानी सं. (पु.) -- प्रतिष्ठा, इज्जत, पत-पानी चला गया मगर हम धूल फाँकने में मस्त हैं। (दिन. 6 मई, 1966, पृ. 16)

पतंग के पेंच लड़ाना मुहा. -- एक-दूसरे को नीचा दिखाने का प्रयास करना, जापान और अमेरिका में पतंग के पेंच चल रहे हैं। (स. सा., पृ. 159)

पतनाला सं. (पु.) -- पनाला, पंचों की राय सिर माथे रही पर पतनाला वहीं का वहीं पड़ता रहा। (क. ला. मिश्रः त. प. या., पृ. 67)

पतली दाल खाए न बैठना मुहा. -- कमजोर या बेदम न होना, ताजा दम या हृष्ट-पुष्ट होना, पुर्तगाली भी पतली दाल खाए नहीं बैठे थे, लिहाजा गुजरात के सूबेदार की फौज पिटकर लौट आई। (काद. : जन. 1986, पृ. 63)

पतलून ढीली होना मुहा. -- हिम्मत छूट जाना, पस्त हो जाना, अब एक बार पुनः मिस्टर जानबुल की पतलून ढीली हो रही है। (म. का मतः क. शि., 11 फर. 1928, पृ. 222)

पतहरना क्रि. (अक.) -- कोंपले आना, मौलश्री में झुमके पीपल में ठुस्से, नीम पतहरने लगता है। (दिन., 7 अप्रैल, 67, पृ. 39)

पता सूँघना मुहा. -- जानकारी प्राप्त करना, संपादक नया है यह रहस्य तो नहीं छिप सकता तथापि उसका पता सूँघने में आपने भूल की है। (गु. र., खं. 1, पृ. 412)

पतियाना क्रि. (सक.) -- प्रतीति कराना, विश्वास कराना, उसके बाप ने जैसे जल में आटा घोलकर दूध कहकर पतिया लिया था। (गु. र., खं. 1, पृ. 100)

पतिसात करना मुहा. -- पति के हवाले करना, ब्याह देना, जहाँ दूध के दाँत टूटने के पहले ही कन्या पतिसात कर दी जाती है। (गु. र., खं. 1, पृ. 427)

पतुरिया सं. (स्त्री.) -- बेड़नी, नर्तकी, यह पतुरिया नहीं संगीत विद्यालय की सुप्रसिद्ध छाथ्रा रश्मिदेवी हैं। (स. न. रा. गो. : भ. च. व., पृ. 127)

पत्ता काटना / काट देना मुहा. -- अलग-थलग कर देना, असहाय कर देना, पुनर्गठन यानी बाहरवाले कुछ लोगों से हाथ मिलाना और अंदरवालों का पत्ता काटना। (रा. मा. संच. 1 पृ. 419)

पत्ता खड़कना मुहा. -- आहट होना, खटका होना, पत्ता खड़का नहीं कि इन्हें पुराने प्रासाद के गिरने का भय हो जाता है। (कुटजः ह. प्र. द्वि., पृ. 113)

पत्ता न खड़कना मुहा. -- किसी प्रकार का विरोध न होना, विरोध का स्वर न उठना, परंतु भारतवर्ष में एक पत्ता भी नहीं खड़का। (सर., जन. 1933, सं. 1, पृ. 6)

पत्थर का कलेजा मुहा. -- कठोर हृदय, यदि प्रांतीय सरकार पक्षपात की पातनिक साबित होगी तो कहना पड़ेगा कि नरसिंहपुर के कष्ट भी पत्थर के नौकरशाही कलेजे पर पसीना न ला सके। (मा. च. रच., खं. 10, पृ. 117)

पत्थर चटकाना मुहा. -- पत्थर तोड़ना, संविद के जीर्ण दुर्ग के पत्थर चटकाने का भरम पूरा होता है या नहीं, यह तो समय बताएगा। (दिन., 2 फर., 69, पृ. 18)

पथ में काँटें बिछना मुहा. -- मार्ग में बाधाएँ खड़ी होना, कोई भी ऐसे कार्य नहीं करना चाहिए, जिससे (जिनसे) हमारी इस पवित्र राष्ट्रीय पंचायत के पथ में काँटे बिछ जाएँ। (मा. च. रच., खं. 9, पृ. 173)

पथक सं. (पु.) -- यात्रा दल, हमारा यह चीन जानेवाला पथक इस दिशा का दूसरा राष्ट्रीय दल होगा। (मा. च. रच., खं. 10, पृ. 249)

पथराना क्रि. (अक.) -- पत्थर की तरह कठोर हो जाना, जड़ या निष्क्रिय हो जाना, उसकी संवेदनाशक्ति पथरा जाती है। (मा. च. रच., खं. 10, पृ. 38)

पथ्थर पर दूब जमना मुहा. -- अनहोनी बात होना, डॉक्टर साहब के विचारवान मुख से ऐसी बातें सुनकर हमें ऐसा आश्चर्य हुआ मानो पत्थर पर दूब जम गई हो, सूरज पश्चिम से उगा हो, समुंदर मीठा हो गया हो। (मत., म. प्र. से. वर्ष 5, सितं. 1927, मुखपृष्ठ)

पददलित करना मुहा. -- पैरों से कुचलना / रौंदना, हमारी मातृभूमि को पददलित करता हुआ चला जाएगा। (सर., जून 1932, सं. 6, पृ. 683)

पदवीधर सं. (पु.) -- उपाधिधारी व्यक्ति, अमेरिका के विश्वविद्यालयों के पदवीधर इस काम में सहायता दे रहे हैं। (सर., अग. 1916, पृ. 313)

पदाना क्रि. (सक.) -- दौड़ाना-छकाना, एक दिन हम और गया दोनों ही खेल रहे थे। वह पदा रहा था। (प्रे. स. क. : सर. प्रेस, पृ. 120)

पदार्थालय सं. (पु.) -- संग्रहालय, कैरो नामक नगर में एक प्राचीन पदार्थालय है। उसमें हजारों प्राचीन वस्तुओं का संग्रह है। (सर., मार्च 1915, पृ. 183)

पधराना क्रि. (सक.) -- स्थापित करना, बैठाना, राजाओं की प्रतिमाएँ वहाँ यथासमय विद्यामान थीं, दशरथ की ही नई पधराई गई थी। (गु. र., खं. 1, पृ. 122)

पधरौनी सं. (स्त्री.) -- (यजमान के यहाँ) पधारने की क्रिया या भाव, यजमानी, सच पूछो तो इन गोसांइयों की और क्या जीविका है, वही भीख : एक-एक पधरौनी में जिन्हें लाखों भेंट में आता है। (भ. नि. मा., दूसरा भाग, सं. ध. भ., पृ. 158)

पनपना क्रि. (अक.) -- बढ़ना, समृद्ध होना, विकसित होना, (क) उसका पनपना दुष्कर हो जाता है। (वि. भा., जन. 1928, सं. 1, पृ. 316), (ख) वही पनपकर पेड़ हो जाते हैं और दूसरे वर्ष फूलने लगते हैं। (सर., नव. 1918, पृ. 271)

पनशाला सं. (पु.) -- कुएँ के पास पानी भरने का वह स्थान जहाँ पशु पानी पीते हैं, खेतों के बाद जगदीशपुर की बनी बारी थी, जहाँ पनशाला भी थी और उसके बाद हरसहदेवनगर का उजाड़ मैदान था। (सर., सित. 1937, पृ. 265)

पनही सं. (स्त्री.) -- जूती, वह जिस जाति का सिर हो, उसके लिए उसी मेल की पनही ढूँढ़ती है। (मा. च. रच., खं. 3, पृ. 152-53)

पनाला सं. (पु.) -- गंदे पानी की नाली..., इससे भारत का वोटर क्या प्रभावित होगा, जिसने चुनाव के समय सारे देश को गंदे चहबच्चों और बदबूदार पनालों में बदलते देखा है। (रा. मा. संच. 1, पृ. 227)

पनियल वि. (अवि.) -- 1. पानी-मिला, 2. कमजोर, अपने पनियल राष्ट्रीय आह्वानों को उदघाटन भाषणों में दोहराते रहना ही यथेष्ठ समझती है। (दिन., 12 अक्तू. 1969, पृ. 11)

पनीला वि. (विका.) -- 1. पानी मिला हुआ , 2. अश्रुपूर्ण, लगता है निर्देशक हो रह-रहकर पनीली भावुकता का दौरा पड़ता रहता है। (दिन., 8 जून 1975, पृ. 46)

पपड़ी सं. (स्त्री.) -- घाव पर जमनेवाली पतली मांसल परत, हम पाते हैं कि चीन ने सारी जमी हुई पपड़ियाँ कुरेद दी हैं और घाव यथावत रहा हो गया है। (रा. मा. संच. 1, पृ. 347)

पयादे पाँव दौड़ना मुहा. -- छलाँगें भरना, पैदल, भारत की दीन वाणी सुनते और पयादे पाँव दौड़ते। (नि. वा. : श्रीना. च., पृ. 769)

पयार सं. (पु.) -- पुआल, बेचारों को घर के धान भी पयार में मिलाना पड़ता है। (म. प्र. द्वि., खं. 15, पृ. 309)

पयाल सं. (पु.) -- धान के सूखे डंठल, पुआल, कुछ प्राप्ति न हो तो सही, घर के धान तो पयाल में न जाएँ। (म. प्र. द्वि. रच., खं. 2, पृ. 165)

पर फड़फड़ाना मुहा. -- उड़ने का प्रयास करना, फिर चूँ-चपड़ करने की और पर फड़फड़ाने की शक्ति इन विचारों में नहीं रहती। (म. प्र. द्वि., खं. 1, पृ. 419)

परकोटा सं. (पु.) -- चाहारदीवारी, रक्षा के लिए उसने अपने आसपास कितने परकोटे बना लिए हैं। (हि. ध., प्र. जो., पृ. 93)

परखचे उड़ना मुहा. -- क्षत-विक्षत होना, धुर्रे उड़ना, नेतृत्व की योग्यता के परखचे पाँच महीने में उड़ गए हैं। (हि. ध., प्र. जो., पृ. 326)

परखचे उड़ाना मुहा. -- तार-तार करना, छिन्न-भिन्न करना, छीछालेदर करना, लोगों ने धर्मनिरपेक्ष नजरूल इसलाम के भी परखचे उड़ाए। (दिन., 3 अक्तू. 1971, पृ. 9)

परचना क्रि. (अक.) -- हिलमिल जाना, (क) मुन्नी कहीं मेरे बिना रात को हुड़के न, जरूर हुड़केगी बहुत परच गई थी। (रवि., 31 मई 1981, पृ. 44), (ख) उनसे मैं इतना परच गया कि सभा-भवन में प्रायः उनसे कथा-वार्त्ता सुना करता था। (शि. पू. र., खं. 4, पृ. 136)

परचाना क्रि. (सक.) -- लुभाना, (क) अल्पसंख्यक वर्ग के परचाने के लिए यह (शिक्षा) विभाग उसे दे दिया जाया करे। (दिन., 18 नव., 66, पृ. 12), (ख) इस प्रकार रोजाना एक गधा बाँधकर परहले शेर को परचाया जाता है। (काद., मार्च 1963, पृ. 149)

परजौट सं. (पु.) -- नेग पानेवाली प्रजा, त्योहारों में उन्हें परजौट की पूड़ियाँ भी मिलती थीं। (काद., अक्तू. 1993, पृ. 120)

परता सं. (पु.) -- 1. वह स्थिति जिसमें बेची जानेवाली वस्तु का दाम निकल आए, पड़ता, ज्ञानमंडल प्रेस इसे लागत के परते ही बेच रहा है। (म. प्र. द्वि. रच., खं. 2, पृ. 259), 2. अनुपात, (क) यदि आबादी के परते से हिंदू लोग पुलिस में रक्खे जाते तो उनकी संख्या अब से कई गुनी अधिक होती। (म. प्र. द्वि., खं. 9, पृ. 145), (ख)... समाज में करोड़ों तो गरीब हैं और ज्ञान का अज्ञान के साथ आटे-नमक का भी परता नहीं पड़ता। (मा. च. रच., खं. 3, पृ. 21)

परदुख कातर वि. (अवि. पदबंध) -- दूसरों के दुख से दुःखी होनेवाला, ऐसे पर दुख-कातर टंडन जी आज चिंतित हैं कि देश का क्या होगा। (कर्म., 16 अग. 1958, पृ. 8)

परले दर्जे का वि. (विका., पदबंध) -- बहुत बड़ा, अत्यधिक, निहायत, (क) उन्हें नजरअंदाज करना परले दर्जे की बेवकूफी होगी। (दिन., 30 दिस., 66, पृ. 31), (ख)... यह है ताकतवर निक्सन का सिद्धांतवादी मैक्गवर्न के विरुद्ध परले दर्जे की घटिया चतुराई से भरा हुआ जवाब। (दिन., 29 अक्तू. 1972, पृ. 16), (ग) परले दर्जे का झूठ उनका आधार रहा है। (सं. मे., 29 जुलाई 1990, म. सिं., पृ. 9)

परले सिरा का वि. (विका., पदबंध) -- परले दर्जे का, अव्वल नबंर का, वे मिलनसार भी परले सिरे के थे। (सर., जन. 1913, पृ. 9)

परवशता सं. (स्त्री.) -- अधीनता, दूसरे पर निर्भरता, यह दुर्भाग्य का विषय है कि स्वतंत्रता-प्राप्ति के बाद हिंदी पत्रों की परवशता घटी नहीं है। (दिन., 27 जून 1971, पृ. 26)

परस्वापहरण सं. (पु.) -- दूसरे की नींद हर लेने की क्रिया या भाव, अभी तक तो प्रत्यक्ष आक्रमण करके परस्वापहरण करने का काम इटली करता रहा है। (सं. परा. : ल. शं. व्या., पृ. 291)

परहेजगारी सं. (स्त्री.) -- परहेज करने की क्रिया या भाव, मरने के पीछे जब कुछ हुई नहीं तब क्यों भाँति-भाँति की परहेजगारी और संयम में हलकान ही जिंदगी का मजा न लूटें ? (भ. नि., पृ. 35)

पराया वि. (विका.) -- बेगाना, दूसरे का, अन्य, (क) कुछ अपनी गिरी दशा पर परायी हँसी होती है वही बातें इस तुकबंदी में हैं। (गु. र., खं. 1, पृ. 389), (ख) केवल घोषणाएँ सो परायी क्या, आपकी भी अर्थरहित ही रहेंगी। (क्रम., 26 फर. 1955, पृ. 4)

परिच्छद सं. (पु.) -- पहनने के कपड़े, वेष-भूषा, अपने नाटक के प्रत्येक अभिनेता के परिच्छद की ओर मैं विशेष लक्ष्य रखता हूँ। (सर., जून 1922, पृ. 405)

परिताप सं. (पु.) -- दुख, संताप, (क) यह बड़े ही परिताप की बात है। (म. प्र. द्वि., खं. 1, पृ. 122), (ख) यह कितने परिताप की बात है कि हिंदी के जो संपादक अभी कल तक महात्माजी के संबंध की साधारण से साधारण बात को छापकर अपने को गौरवान्वित समझा करते थे, वही आज उन्हीं महात्माजी के विरुद्ध अनावश्यक और विचारशून्य लेख छापने में नहीं हिचकिचा रहे। (कु. ख. : दे. द. शु., पृ. 30)

परितोष सं. (पु.) -- संतुष्टि, संतोष, अपनी जिंदगी पर एक निगाह डालने से मालूम होता है कि मेरी आँख मुँदेगी, मुझे एक परितोष होगा कि जो काम मैंने विद्यापीठ में किया है वह स्थायी है। (दिन., 7 जन. 1966, पृ. 43)

परिदग्ध वि. (अवि.) -- 1. जला हुआ, 2.दुःखी, कुछ कुघटनाओं से उसकी आत्मा परिदग्ध है। (काद., अक्तू. 1993, पृ. 5)

परिदर्शन सं. (पु.) -- निरीक्षण, मेक्सिकन दल के सदस्यों ने आज अपराह्न में लो. स. कार्यलय का परिदर्शन किया। (लो. स., 20 जन. 1989, पृ. 4)

परिपाक सं. (पु.) -- पूर्णता, पराकाष्ठा, (क) चरम परिपाक के बिना ही वह बहस यहीं शांत हो गई। (मधुः अग. 1965, पृ. 2), (ख) उनकी कविता में विशेष करके हास्यरस का बहुत ही अच्छा परिपाक होता था। (म. प्र. द्वि., खं. 5, पृ. ...)

परिमित वि. (अवि.) -- सीमित, समाचार-पत्रों में स्थान परिमित होता है। (सं. परा. : ल. शं. व्या., पृ. 131)

परिश्रांत वि. (अवि.) -- थका हुआ, परिश्रांत होने के कारण वह अधिक कार्य नहीं कर सकता। (काद., अग. 1991, पृ. 7)

परिहथ सं. (पु.) -- 1. हल का हत्था, 2. सहारा, गाँव में रहते उसने दूसरे का परिहथ नहीं पकड़ा। (बे. ग्रं., भाग 1, पृ. 32)

परे के परे क्रि. वि. -- दूर, (क) उसका मन भी करता है कि दन्न से परचून के झोले छतों के परे फेंक दे। (साक्षा., मार्च-मई 77, मृ. पां., पृ. 26), (ख) जो उनके गांधी नाम के प्रभामंडल से आलोकित होना चाहते हैं, उन्हें परे सरका दिया। (दिन., 12 अक्तू. 1969, पृ. 10), (ग) सामाजिक रिश्तों का इंद्रधनुष उनके परे है और केवल कबाइली प्रतिक्रिया की उन्हें आदत है। (रा. मा. संच. 2, पृ. 152)

परेवा सं. (पु.) -- पेंडुकी, मुझे गुंबद पर परेवे की तरह पंख फड़फड़ाते देख भट्ट जी ताली नहीं बजाते। (स्मृ. वा. : जा. व. शा., पृ. 108)

परोदय सं. (पु.) -- दूसरे का उदय या उत्थान, उनकी बुद्धि पक्षपात... परोदय में डाह आदि दुर्गुणों का शिकार हो जाती है। (मा. च. रच., खं. 2, पृ. 36)

परोहा सं. (पु.) -- क्यारी, परोहा खींचकर खेत की मिट्टी गीली कर रहा है। (मधुः अग. 1965, पृ. 59)

पर्वत दूर से ही सुहावने होना कहा. -- दूर के ढोल सुहावने लगते हैं, बर्फ के बहुत बड़े-बड़े टुकड़े जिनको आइसबर्ग कहते हैं, देखने में तो बड़े मनोहर दिखाई देते हैं परंतु उनकी दशा पर्वत दूर से ही सुहावने होते हैं, इस कहावत की सी होती है। (सर., 1 जून 1908, पृ. 291)

पलक झपकते क्रि. वि. -- (पदबंध), तत्क्षण, सहसा, उनकी सच्चाई की परिभाषा पलक झपकते ही बदल जाती है। (दिन., 7 जन. 1966, पृ. 18)

पलक पाँवड़े बिछाना मुहा. -- सम्मानपूर्वक स्वागत करना, (क) हमारे जो लेखक नगर की माया-मरीचिका में नहीं फँसे हैं उनके लिए देश के असंख्य गाँव पलक पाँवड़े बिछाए हुए हैं। (शि. पू. र., खं. 3, पृ. 259), (ख) जब कभी आप जनता के पास गए तब उसने आपकी राह में क्या पलक पाँवड़े नहीं बिछाए। (म. का मतः क. शि., 8 दिस. 1923, पृ. 129), (ग) वह तो पलक पाँवड़े बिछाए और आरती लिए खड़ी है। (हि. ध., प्र. जो., पृ. 305)

पलक भाँजते क्रि. वि. -- (पदबंध), पलक झपकते, धूल के बादलों की ओट में बेचारा बूढ़ा सूरज छिप गया। पलक भाँजते देर हुई, मगर गहरा अंधकार फैलते नहीं। (दिन., 7 जन. 1968, पृ. 25)

पलकें बिछाना मुहा. -- पूर्ण आदरभाव प्रदर्शित करना, नए उपरिवेशवाद के प्रति हम गाफिल ही नहीं हैं, उसका पलकें बिछाकर स्वागत कर रहे हैं। (ग. मं. : पत्र. चु., पृ. 49)

पलटन सं. (स्त्री.) -- बड़ी सेना, फौज, श्री सुखाड़िया को मंत्रियों की पलटन खड़ी करनी पड़ेगी। (दिन., 17 सित., 67, पृ. 20)

पलटनी वि. (अवि.) -- पलटन-संबंधी, सेना के काम का, पश्चिम पाकिस्तान के पास इतनी पलटन और पलटनी सामान नहीं है। (दिन., 1 अग. 1971, पृ. 9)

पलस्तर उखाड़ना मुहा. -- अप्रतिष्ठित करना, हुलिया बिगाड़ देना, चाहता तो पलस्तर उखाड़ देता पर नंगई पर नहीं उतरा। (दिन., 2 मार्च, 69, पृ. 43)

पलस्तर ढीला होना मुहा. -- शिथिल पड़ जाना, उकड़ जाती रहना, दस पेशियों में पलस्तर ढीला हो जाएगा। (रा. द., श्रीला. शु., पृ. 284)

पला-पनपा वि. (विका.) -- पालित-पोषित, हिंदू जीवन पद्धति में पले-पनपे लोग धर्म को अपनी आत्मा और परमात्मा के संबंध से जोड़ते हैं। (हि. ध., प्र. जो., पृ. 197)

पलित वि. (अवि.) -- पका हुआ, सफेद, यह पहला ही मौका था जब मैंने बुढ़ापे के पहले ही पलित हुए बाल देखे। (सर., मार्च 1912, पृ. 122)

पलीता लगाना मुहा. -- जला डालना, नष्ट करना, हानि करना, (क) काले कानून की दुम में पलीता लगा दिया। (म. का मत) क. शि., 28 मार्च 1925, पृ. 183), (ख) राजनेताओं ने अपने-अपने तरीकों से लोकतांत्रिक पद्धति को पलीता लगाया है। (काद. : जन. 1988, पृ. 25)

पलीता सं. (पु.) -- पटाखे का डोरा, नाइक की साफगोई से मानो पलीते में आग लग गई। (दिन., 9 जुलाई, 1965, पृ. 27)

पलीद वि. (अवि.) -- अपवित्र, गंदा, इस दल का कहना तो यही है कि तुर्कों को यूरोप में रहने ही मत दो, वे बड़े पलीद और अनाचारी हैं। (ग. शं. वि. रच., खं. 3, पृ. 106)

पलेथन निकालना मुहा. -- खूब पिटाई करना, कचूमर निकालना, बिचारी क्रांति का जो बढ़िया पलेथन निकाला गया, वह दर्शनीय था। (न. ग. र., खं. 3, पृ. 55)

पल्टन सं. (स्त्री.) -- पलटन, फौज की टुकड़ी, 15 नं. पल्टन हिंदुस्तानी सेना में उत्तम पल्टन समझी जाती है। (सर., नव. 1915, पृ. 287)

पल्थी मारे बैठना मुहा. -- जमकर बैठना, उत्तर प्रदेश के पूर्वी जिले में गरीबी ही नहीं, बेकारी, बीमारी और दैवी आपदाएँ सदियों से पल्थी मारे बैठी हैं। (दिन., 5 सित. 1971, पृ. 13)

पल्ला छुड़ाना मुहा. -- पिंड छुड़ाना, पीछा छुड़ाना, (क) हमेशा जनता के सिर दोष मढ़कर पल्ला छुड़ा लिया जाता है। (म. का मतः क. शि., 8 दिस. 1923, पृ. 127), (ख) जिन बुरी रूढ़ियों से हमें मोह है, उनसे पल्ला छुड़ाना होगा। (वि. भा., जन. 1928, सं. 1, पृ. 612), (ग) भारतीय कम्यु. पा. के कांग्रेस से पल्ला छुड़ाने के फैसले ने सभी को चौंका दिया। (ज. स. : 8 दिस. 1983, पृ. 4)

पल्ला छोड़ना मुहा. -- साथ छोड़ना, अलग हो जाना, इसकी पहली शर्त यह है कि रूस का पल्ला छोड़कर भारत उस गुट के नजदीक आए, जिसके सदस्य चीन, अमेरिका, जापान आदि हैं। (रा. मा. संच. 1, पृ. 348)

पल्ला झाड़ना मुहा. -- पिंड छुड़ाना, (अपने को) अलग कर लेना, किसी भी प्रकार के संबंध से इनकार करना, सरकार तो अपना पल्ला झाड़कर अलग हो जाती है। (ग. शं. वि. रच., खं. 2, पृ. 85)

पल्ला पकड़ना मुहा. -- दामन थामना, सहारा लेना, उन्होंने भी श्री बंसीलाल का पल्ला पकड़ा तो पुरस्कार के रूप में मंत्रियों की सूची में उनका नाम आ गया। (दिन., 19 अप्रैल 1970, पृ. 22)

पल्ले पड़ना मुहा. -- प्राप्त होना, मिलना, समझ में आना, (क) ऐन वक्त की रटाई से पास हो जाने पर भी जो पल्ले पड़ना चाहिए, वह पल्ले नहीं पड़ता। (सा. हि., 15 अप्रैल 1951, पृ. 3), (ख) हाँ, पुण्य अवश्य जेल के कर्मचारियों के पल्ले पड़ता है। (म. प्र. द्वि., खं. 9, पृ. 110), (ग) वह निगूढ़ तत्त्वों को भी इतनी सरलता से कहती है कि रस का बहुत बड़ा अंश पाठक के पल्ले पड़ जाता है। (मा. च. रच., खं. 4, पृ. 194)

पल्ले बँधना मुहा. -- प्राप्त होना, साथ लगना, जुड़ना, इससे बदनामी जरूर पल्ले बँधती है। (त्या. भू. : संवत् 1986, (1927), पृ. 213)

पल्ले से बाँधना या बाँध रखना मुहा. -- याद रखना, स्मरण रखना, इतनी बात अपने पल्ले से बाँध रखिए कि ऐसी भेद-भरी बातें किसी अनजाने आदमी से कभी न कहा करिएगा। (वीणा, जन. 1934, पृ. 479)

पल्ले क्रि. वि. -- पास, हिस्से में, हाथ में, नेकनीयती केवल उन्हीं के पल्ले रहती है और बेईमानी का कलंक दूसरों के माथे पर। (ग. शं. वि. रच., खं. 1, पृ. 53)

पँवरिया सं. (पु.) -- पौरिया, द्वारपाल, मीर जाफर दल या पँवरिए भी हमारे लिए घृणा के पात्र हैं। (म. का मतः क. शि., 17 दिस. 1927, पृ. 243)

पँवारा सं. (पु.) -- लंबी चर्चा या गाथा, अपने हाथों का बना पान खिलाते, फिर साहित्यिक पँवारा शुरू हो जाता। (शि. पू. र., खं. 4, पृ. 129)

पव्वा सं. (पु.) -- पौआ, रुतबा, पद, (क) उन्हें जो राजनैतिक ताकत और सामाजिक पव्वा मिला हुआ था, वह रामाराव के करिश्मे के कारण ही मिला था। (हि. ध., प्र. जो., पृ.224), (ख) राष्ट्रीय जनतंत्रिक गठबंधन में उनका पव्वा ऊँचा हो जाए। (हि. ध., प्र. जो., पृ. 384), (ग) वह अपनी बहिन के राजनैतिक पव्वे में संरक्षण पा रहा है। (ज. स. : 1 जुलाई 2007, पृ. 6)

पशुबल का पंडा मुहा. -- नृशंस व्यक्ति, अत्याचारी व्यक्ति, उसी समय पंजाब के पशुबल के पंडे के गोले फट पड़े और अनेक पुत्रों को चड़ाकर भारत वसुंधरा को रक्त स्नान कराया गया। (मा. च. रच., खं. 9, पृ. 216)

पसर चराना मुहा. -- रात के समय पशुओं को खेत में चरने के लिए ले जाना, तुरत की ब्याई उस गुजराती भैंस को खोलकर पसर चराने को निकल पड़ता। (लाल तारा, पृ. 2)

पसारना क्रि. (सक.) -- फैलाना, मनुष्यता की देवी उसकी मनुष्यता और आत्मशक्ति के कारण उसे हाथ पसारकर अपनी गोद में लेगी। (ग. शं. वि. रच., खं. 2, पृ. 29)

पंसारी सं. (पु.) -- मिर्च, मसाले आदि बेचनेवाला दुकानदार, इन सब सज्जनों के रहते भी जयपुर गजट इतना रद्दी निकलता है कि जिसे कोई पढ़ा-लिखा आदमी छूता तक नहीं। वह खाली पंसारियों की पुड़ियों के काम आता है। (बा. गु. : गु. नि., सं. झा श., खं. 5, पृ. 387)

पसीजना क्रि. (अक.) -- पिघलना, दयार्द्र होना, यह कैसे आशा की जाए कि आगे कभी सरकार सत्याग्रह से पसीज जाएगी। (नि. वा. : श्रीना. च., पृ. 871)

पस्त-हिम्मत वि. (अवि.) -- जिसकी हिम्मत पस्त हो चुकी हो, बेदम, सरकार के जो नेता आंदोलनकारी कर्मचारियों को पस्त-हिम्मत करने पर तुले हुए थे, उन्हीं में से कुछ अब कर्मचारियों की पीठ थपथपा रहे हैं। (दिन., 25 जून, 67, पृ. 19)

पहरुआ सं. (पु.) -- पहरेदार, बुद्धिजीवी जो अपने आपको सामाजिक नैतिकता का पहरुआ मानते हैं। (स. दा. : अ. नं. मिश्र, पृ. 34)

पहले आपसदारी फिर फर्जबरदारी कहा. -- अपनों का भला पहले कर्तव्य का विचार बाद में, हिंदुस्तानी सभ्यता का तकाजा है कि पहले आपसदारी फिर फर्जबरदारी। (त. प. या. : क. ला. मिश्र, पृ. 55)

पहुड़ना क्रि. (अक.) -- लेटना, उस हालत में वे पहुड़ रहते और सो जाते। (दिन., 3 मई, 1970, पृ. 29)

पहुनई सं. (स्त्री.) -- मेजबानी, मेहमानी, स्वागत-सत्कार, आवभगत, एक रीति और एक हँसती आँख से, दुर्भिक्ष से भूखे पेट और प्लेग से प्रणित गले को छिपाकर युवराज की पहुनई करनी होगी। (चं. श. गु. र., खं. 2, पृ. 349)

पाए का वि. (विका., पदबंध) -- समतुल्य, बराबर का, जोड़ का, आज तक हिंदी जगत् में द्विवेदी जी के पाए का कोई दूसरा संपादक नहीं हुआ। (शि. पू. र., खं. 4, पृ. 171)

पाँक सं. (पु.) -- पंक, कीचड़, नदी पेट में समा जाती है, किनारे पाँक छोड़ देती है या उसकी धार बड़ी कड़खा होती है। (दिन., 07 मई, 67, पृ. 39)

पाँचवाँ सवार मुहा. -- बड़ों में अपनी गिनती करनेवाला छोटा व्यक्ति, हाँ, पाँचवें सवार बनने का शैक पूरा न हो तो दूसरी बात है। (गु. र., खं. 1, पृ. 429)

पाँचों घी में सिर कढ़ाही में होना मुहा. -- लाभी ही लाभ होना, पाँचों घी में जहाँ होती हैं वहाँ सिर कढ़ाही में हो जाता है। (चं. श. गु. र., खं. 2, पृ. 386)

पाँचों सवारों में नाम लिखाना मुहा. -- अपने को भी बड़े लोगों में गिनाना, कोई मजबूर तो नहीं करता था कि आप सतसई पर जरूर ही टीका लिखकर पाँचों सवारों में नाम लिखाएँ। (सर., अक्तू. 1910, पृ. 466)

पाँजर सं. (पु.) -- पसली के, पंजर की कोई हड्डी, इसी (पंजर) शब्द से पाँजर शब्द बना है। (सर., नव. 1912, पृ. 599)

पाट सं. (पु.) -- 1. अपने नाम पर अचरोल गाँव बसाया, जो उस समय से अब तक बलभद्रोत सरदारों का पाट स्थान है। (सर., नव. 1913, पृ. 621), 2. राज सिंहासन, गद्दी, नदी की धारा की स्थान विशेष की चौड़ाई, गंगाजी के पाट में इस साल जहाँ खूब पानी है, वहीं दूसरे साल बालू का टापू बन जाता है। (सर., फर. 1917, पृ. 70), (ग) नदी का पाट बहुत कम था। (काद., मार्च 1991, पृ. 49)

पाटना क्रि. (सक.) -- भर देना, लाद देना, मि. मोंटेग्यू डायर को बेकार कर दें, परंतु अँगरेज जाति उसे सम्मानों से पाट देगी। (ग. शं. वि. रच., खं. 3, पृ. 151)

पाटव सं. (पु.) -- निपुणता, कौशल, कवि जब अपनी प्रतिभा-पाटव दिखाने लगते हैं तब उन्हें इस बात का जरा भी खयाल नहीं रहता..., (सर., सित. 1915, पृ. 147)

पाटी सं. (स्त्री.) -- चारपाई की लंबी लकड़ी, पाटी के पास आकर बैठो। (कच. : वृ. ला. व., पृ. 102)

पाठ सिखाना मुहा. -- शिक्षा देना, कांग्रेस के बूढ़े लोग कल की लड़की को पाठ सिखाना चाहते हैं। (रा. मा. संच. 1, पृ. 28)

पात-पात पर डोलना मुहा. -- किसी भी बात पर मन का स्थिर न रह पाना, सरकार का मन पात-पात पर डोलता रहा। (दिन., 06 जन., 67, पृ. 27)

पाँत सं. (स्त्री.) -- पंक्ति, समूह, वह भी सट्टेबाजों की पाँत में जा खड़ा हुआ। (दिन., 20 मई 1966, पृ. 30)

पातनिक वि. (अवि.) -- दोषी, अपराधी, यदि प्रांतीय सरकार पक्षपात की पातनिक साबित होगी तो कहना पड़ेगा कि नरसिंहपुर के कष्ट भी पत्थर के नौकरशाही कलेजे पर पसीना न ला सके। (मा. च. रच., खं. 10, पृ. 117)

पाथना क्रि. (सक.) -- गोबर के कंडे बनाना, (क) कंडा पाथकर आते-जाते दुपहर हो जाती है। (का. कार. : नि., पृ. 6), (ख) किसी का बच्चा खिला दिया, किसी का कुटान-पिसान कर लिया, किसी का गोबर पाथ दिया। (बे. ग्रं., प्र. खं., पृ. 35)

पादटीका सं. (स्त्री.) -- व्याख्या करने के लिए पुस्तक के पन्ने में नीचे लिखी टिप्पणी, फुटनोट, पादटीका में सूचना दी गई है कि देशी भाषा में पुस्तकें तैयार हो रही हैं। (सर., जुलाई 1915, पृ. 55)

पानी नाक के ऊपर चढ़ जाना या चला जाना मुहा. -- संकट में पूरी तरह से ग्रस्त हो जाना, पानी लगातार ऊपर चढ़ रहा है और जब वह नाक के ऊपर चला जाएगा, तब आपके सारे नेता और उनकी पार्टियाँ धरी रह जाएँगी। (रा. मा. संच. 1, पृ. 449)

पानी पिटवाना मुहा. -- निरर्थक काम करवाना, बेगार टलवाना, प्रश्न यह है कि इन भले आदमियों से जनता कौंसिलों में और अधिक पानी पिटवाने को तैयार है या नहीं। (म. का मतः क. शि., 27 मार्च 1926, पृ. 207)

पानी पी-पीकर कोसना मुहा. -- निरंतर खरी-खोटी सुनाते चलना, उनकी समय-बेसमय की बातें याद की जाएँ और उन्हें पानी पी-पीकर कोसा जाए। (मा. च. रच., खं. 9, पृ. 130)

पानी फिरना / फिर जाना मुहा. -- नष्ट हो जाना, विफल हो जाना ... लेकिन उस उम्मीद पर अब पानी फिर गया है। (दिन., 12 अप्रैल 1970, पृ. 16)

पानी फेरना मुहा. -- नष्ट करना, (क) व्यर्थ ही रुपए 3 लाख पर पानी फेरकर रस्सी का साँप बनाया जा रहा है। (स. सा., पृ. 139), (ख) क्रोध, दर्प एवं स्वेच्छाचार

पानी बिलोना मुहा. -- निरर्थक कार्य करना, उससे मिलना एक तरह से पानी बिलोना होता था। (काद : जन. 1975, पृ. 70)

पानी में रहकर मगर से बैर न करना कहा. -- जिस स्थान में ठौर बनाएँ वहाँ के महाबली से विरोध नहीं करना चाहिए, ...पानी में रहकर मगर से बैर नहीं किया जा सकता। (रवि. 4 जुलाई 1981, पृ. 43)

पानी-पानी होना / हो जाना मुहा. -- लज्जित होना, (क) विजेता की उदारता से अरब देश पानी-पानी हो जाएँगे। (रा. मा. संच. 1, पृ. 50), (ख) उस गुंडे की हालत भी तुम्हारी तरह पानी-पानी हो गई थी। (रवि., 20 दिस. 1981, पृ. 43), (ग) यदि वे इन मामलों में जो. पी. का सहयोग ले लेती तो जयप्रकाश पानी-पानी हो जाते ..., (रा. मा. संच., 1, पृ. 361)

पानीदार वि. (अवि.) -- इज्जतदार, प्रतिष्ठित, मान-सम्मानवाला, तू क्या कम पानीदार है। (शत. खि., ह. कृ. प्रे., पृ. 22)

पापड़ बेलना मुहा. -- तरह-तरह के कठिन काम करना, कड़ी मेहनत करना, (क) इसके लिए बड़े पापड़ बेलने पड़ते हैं। (हि. पत्र. के गौरव बां. बि. भट., सं.ब.(सा. हि.), 13 जून 1965, पृ. 187), (ख) सरकार बनाने मेँ कांग्रेस को बहुत पापड़ बेलना पड़ेगा। (किल., सं. म. श्री., पृ. 34)

पांबद वि. (अवि.) -- प्रतिबद्ध, वचनबद्ध, अध्यापकोँ की स्थानांतरण नीति की पालना के लिए सरकार पाबंद है। (त्या. भू. : संवत् 1983, पृ. 6)

पायगा सं. (स्त्री.) -- दालान, ओसारी, बैल सदा मेरे सामने की पायगा में बँधे रहते हैं। (कुं. क. : रा. ना. उ., पृ. 13)

पायताने दबाना या दबा देना मुहा. -- उपेक्ष्य ठहराना, सरकारिया आयोग की सिफारिशें पायताने दबा दी गईं। (किल., सं. म. श्री., पृ. 103)

पायदारी सं. (स्त्री.) -- दृढ़ता, मजबूती, सत्यवादी का ढंग अच्छा है, यदि वह पायदारी करे और चटकै नहीँ। (चं. श. गु. र., खं. 2, पृ. 320)

पाया सं. (पु.) -- खंभा, इमारत का भूमिपूजन हुए एक साल बीतने को है, लेकिन इसारत का पाया खुदने के संकेत भी नहीँ दिख रहे हैँ। (लो. स., 5 अग. 1989, पृ. 7)

पार साल, क्रि. वि. -- पिछले वर्ष, (क) पार साल किए बिटिया के ब्याह से उनका फेर बिगड़ गया। (वि. भा., जन. 1928, सं. 1, पृ. 176), (ख) पार साल सरकार को आशा थी कि 2 करोड़ की बचत होगी। (मा. च. रच., खं. 9, पृ. 296), (ग)यही लेख मैंने पारसाल भी आपको भेजा था। (काद. : नव. 1988, पृ. 161)

पारावार सं. (पु.) -- 1. सीमा, अंत, (क) धर्मों के परस्पर झगड़ोँ का पारावार नहीं था। (सर, जुलाई-दिस. 1931, सं. 3, पृ. 441). (ख) इनकी उत्पत्ति का पारावार नहीं। (सर., फर. 1911, पृ. 70), 2 सागर, इसीलिए लोकजीवन के कठोर पारावार में जब बहते-बहते बड़ा दिन आता है तब महात्मा ईसा की याद आए बिना नहीं रहती। (मा. च. रच., खं. 4, पृ. 274)

पार्थिव वि. (अवि.) -- लौकिक, सांसारिक, पार्थिव जीवन की पीड़ाओं का अंत नहीँ हो सकता। (काद : अक्‍तू. 1980, पृ. 11)

पालना सं. (पु.) -- पालन करना या कराना, अध्यापकों की स्थानांतरण नीति की पालना के लिए सरकार पाबंद है। (त्या. भू. : संवत् 1983, पृ. 6)

पाला सार जाना मुहा. -- नष्‍टप्राय होना, उर्दू कविता में कुछ ढाँचे हैं ...यदि वे इन्हीँ में पड़े रहेंगे तो धीरे-धीरे पाला मार जाएगा। (म. प्र. द्वि. रच., खं. 2, पृ. 514)

पाली सं. (स्त्री.) -- एक दिन में, उतने घंटे की अवधि जिसमें काम करनेवालों के किसी समूह को काम करना होता है, समयावधि, निश्‍चित समय, ...हर कांग्रेस अध्यक्ष को यह तय करना होगा कि वह अपनी पार्टी की रातपाली का अध्यक्ष है या दिनपाली का ? (रा. मा. संच. 1, पृ. 254)

पाँव भारी होना मुहा. -- (स्त्री का) गर्भवती होना, कुछ महीने बाद जब अचानक उसका पाँव भारी हो गया तब उसकी टूटी आस को एकबारगी जैसे दूसरा जन्म मिल गया था। (काद., अप्रैल 1975, पृ. 151)

पावना चुका लेना मुहा. -- बदला लेना, फ्रांस ने चाहा था कि रूस को हस्तगत करके शीघ्र ही अपना पावना चुका लेंगे। (स. सा., पृ. 58)

पावना सं. (पु.) -- प्राप्य धन, लेनदारी, ब्रिटेन के ऊपर हमारा जो यह पावना चढ़ गया है उसे चुकाने की नीयत वहाँ के अर्थशास्‍त्रियों की नहीं जान पड़ती। (सं. परा. : ल. शं. व्या. पृ. 347)

पावनेदार सं. (पु.) -- महाजन, लेनदार, उस डाक में शहर के पावनेदारों के तकाजे के पत्र होते। (सर., जुलाई, सित. 1943, पृ. 451)

पाशव वि. (अवि.) -- पाशविक, पशुवत् आज भी मनुष्य में पाशव वृत्तियाँ मौजूद हैं। (काद : अक्‍तू. 1982, पृ. 6)

पाँस सं. (स्त्री.) -- घूरे में बनी खाद, पाँचों बीघा जमीन कुएँ के निकट, खाद-पाँस से लदी हुई, मेंड़-बाँध से ठीक थी। (सर., मई 1918, पृ. 243)

पासंग सं. (पु.) -- 1. पसंघा, 2. पासंग के समान किसी वस्तु की थोड़ी सी मात्रा, लवलेश, जरा सा भी, (क) मालदार मारवाड़ियों के पासंग में भी विद्वान् मारवाड़ी नहीं हैं। (शि. पू. र., खं. 4, पृ. 322), (ख) मेरी समझ में मृत्यु का कष्‍ट पासंग भी न होगा। (सर., जुलाई 1930, पृ. 35), (ग)सारा श्रेय आपको, दूसरों को पासंग बराबर भी नहीं। (शि. पू. र., खं. 3, पृ. 503)

पाँसा उलटा पड़ना मुहा. -- चाल उलटी पड़ना, अपील बड़े लगन से तैयार की थी किंतु पाँसे उलटे पड़ गए, अपील खारिज हो गई। (काद. : सित. 1976, पृ. 144)

पाँसा पड़े सो दाँव राजा करे सो न्याव कहा. -- परिणाम या निर्णय पर वश न होना, पाँसा पड़े सो दाँव, राजा करे सो न्याव बस फिर क्या था, बिल्ली के भाग से छींका टूट पड़ा। (म. का मतः क. शि., 22 सित. 1923, पृ. 119)

पासा पलटना मुहा. -- तख्ता पलटना, सत्ता परिवर्तन होना, (क) लेकिन तब तक पासा पलट चुका था और नरोत्तम सिंहानुक अपने देश के प्रमुख नहीं थे। (रा. मा. संच. 2, पृ. 25), (ख) ये लोग पासा पलटने पर अपना रंग भी बदलने में देर नहीं करेंगे। (रवि. 22 मार्च 1980, पृ.. 16)

पाँसा बदलना मुहा. -- रुख बदलना, जमादार ने पाँसा बदलकर पूछा, तो फिर यह फाँसी क्यों पा रहे हो ? (सर., जुलाई 1924, पृ. 761)

पाहुनचार सं. (पु.) -- अतिथि-सत्कार, मेहमाननवाजी, देहातियों के सीधे-सादे, पर सच्‍चे-प्रेम और उत्साह से किए गए पाहुनचार से संपादक वर्ग बहुत प्रसन्‍न हुआ। (म. प्र. द्वि. रच., खं. 2, पृ. 221)

पिचलग्गू सं. (पु.) -- खुशामदी, अनुयायी, (क) अंग्रेजी शासकों तथा उनके देशद्रोही भारतीय पिछलग्गुओं ने भयंकर भूल की। (ते.द्वा.प्र.मि., पृ. 63), (ख) खानसामों को पहचानने में देर न लगी कि मालिक कौन है और पिछलग्गू कौन। (प्रे.स.क. : सर. प्रेस, पृ. 74)

पिछलगुआ सं. (पु.) -- पिछलग्गू, चमचा, खुशामदी, (क) तब शायद कोई आपको पंडितराज का पिछलगुआ बतला देता। (मधुकर, दिस. 1928, वर्ष-7, खं. 1, सं. 4, पृ. 735), (ख) साहित्य को राजनीति का पिछलगुआ नहीं वरन् उसका प्रेरक समझता हूँ। (मधुकरः जन., 1944, पृ. 459), (ग) सत्याग्रह की शरण लेकर लीडरों को अपना पिछलगुआ बनाने के लिए बाध्य करना चाहिए। (म.का मतः क. शि., 26 जन. 1924, पृ. 136)

पिछलाव सं. (पु.) -- पिछड़ापन, परिस्थिति को पिछलाव की स्थिति से बाहर आने देना चाहिए। (रवि. 12 अप्रैल 1980, पृ. 4)

पिछवाड़े क्रि. वि. -- पीछे, पिछले भाग में, इसके पीछे का सब भाग, आँख के पिछवाड़े, अंडे के रस के सदृश्य चिपचिपे पारदर्शक पदार्थ से भरा हुआ होता है। (चं. श. गु. र., खं. 2, पृ. 261-62)

पिछाड़ देना मुहा. -- पीछे छोड़ देना, परास्त कर देना, जिंदगी को कहीं न कहीं पिछाड़ देती है। (ज. स., 1 मार्च 1984, पृ. 4)

पिछाड़ सं. (पु.) -- चूतड़ के ऊपर का भाग, पुट्‍ठा, कौंसिल में बँटी अधिकारों की रेबड़ी घर जाकर चखिएगा, पिछाड़ क्यों खुजलाते हो। (म. का सतः क.शि., 28 मार्च 1925, पृ 182)

पिछाड़ी सं. (स्त्री.) -- पुट्‍ठा, सदस्यों के चेहरे भी शर्म के मारे वैसे ही लाल हो गए जैसे कि एक दिन पहले उनकी पिछाडियाँ हो गई थीं। (दिन., 16 जुलाई 1965, पृ. 10)

पिछौरी सं. (स्त्री.) -- ओढ़ने की चद्‍दर, पिछौरा, प्रत्येक को रेशमी धोती और रेशमी ही पीत पिछौरी भेंट की। (सर., अक्‍तू. 1918, पृ. 187)

पिटा-पिटाया वि. (विका.) -- घिसा-पिटा, सहत्वहीन, गया-गुजरा, (रक) मसानी ने हमेशा की तरह पिटी-पिटाई बातें कहीं। (दिन., 11 नव., 66, प. 16), (ख) दूसरी भाषा का ऐसा नाटक लिया जिसका हास्य बीस साल पुराना और पिटा-पिटाया था। (दिन., 20 अग., 67, पृ. 43). (ग)अब तक के पिटे-पिटाए कार्यक्रमों और योजनाओं में सुधार लाना है। (काद., जुलाई 1976, पृ. 28)

पिटारा सं. (पु.) -- ढक्‍कनदार टोकरा, अपने पीछे समस्याओं का एक पिटारा छोड़ गए। (दिन., 03 फर., 67, पृ. 8)

पिटारी सं. (स्त्री.) -- छोटा पिटारा, टोकरी, इलाहाबाद के असरूद, लखनऊ के खरबूजे इत्यादि फलों की पिटारियाँ खाली हो जाती हैं। (सर., सित. 1921, पृ. 188)

पिट्‍ठू सं. (पु.) -- अनुयायी, समर्थक, (क) उस तैयारी को धक्‍का लगा है जो जनमत संग्रह के नाम पर अपने कश्मीरी पिट्‍ठुओं के भरोसे कर रहा था। (ते. द्वा. प्र. मि., पृ. 112), (ख) सरकार के पिट्‍ठू टाइम्स ऑफ इंडिया ने भी स्पष्‍ट शब्दों में लिखा कि विशेष अधिकार का प्रयोग अनुचित है। (स. स ., पृ . 78), हम विध्र्यार्थी हैं , मंत्रियों के पिट्ठू नहीं । (दिन., 27 अग., 67, प. 12)

पिंड छुड़ाना मुहा. -- पीछा छुड़ाना, (क) सभा ब्रज भाषा से हिंदी साहित्य का पिंड छुड़ाने को तैयार न थी (गु. र., खं. 1, पृ. 237), (ख) पत्रकारों और फोटोग्राफरों से पिंड छुड़ाना बड़ा दुष्कर होता है। (नव., मार्च 1953, पृ. 51), (ग)कासिम के लिए उनसे अपना पिंड छुड़ाना कठिन हो गया है। (सर., अप्रैल 1959, पृ. 227)

पिंड छूटना मुहा. -- छुटकारा मिलना, (क) जल्दी पूछो क्या पूछना चाहते हो, ताकि तुमसे जल्दी पिंड छूटे। (काद : जन. 1975, पृ. 70), (ख) आज इनसे पिंड छूटा। (म. प्र.द्वि., खं. 5 पृ. 188)

पिंडरी सं. (स्त्री.) -- पिंडुली, पैरों की पिंडरी में दो हड्डियाँ होती हैं-एक बड़ी एक छोटी। (वि. वि. ले., पृ. 242)

पिंडा-पानी, सं. (पु.) -- पिंडदान, मृतक का क्रिया-कर्म, उन्होंने अपनी जिंदगी में चार को खिलाकर खाया। क्या मरने के पीछे उन्हें पिंडे-पानी को तरसाता। (सर., मई 1918, पृ. 246)

पित्तमार वि. (अवि.) -- घोर परिश्रम-साध्य, झाँऊ-झाँऊ तो बहुत होती है, पर पित्तमार काम नहीं हो पाता। (न.ग.र., खं. 4, पृ. 63)

पिद्‍दी का शोरबा मुहा. -- नगण्य वस्तु, प्रतिवेदन में भविष्य का वह भयावह चित्र प्रस्तुत किया, जिसमें अमेरिका पिद्‍दी के शोरबे जितने दक्षिण वियतनाम की खातिर चीन से लगभग अकेला लड़ता नजर आ रहा था। (दिन., 18 मार्च 1966, पृ. 37)

पिद्‍दी वि. (अवि.) -- छोटा, नगण्य, क्षुद्र, पाकिस्तान तो काफी पिद्‍दी सल्तनत है। (रा. मा. संच. 2, पृ. 48)

पिनक जाना मुहा. -- तिलमिला उठना, छटपटाना, इस पढ़कर लोग पिनक जाएँगे। (दिन., 30 अप्रैल, 67, पृ. 9)

पिनक सं. (स्त्री.) -- 1. नशे की झोंक, सनक, (क) पुराण-पीनाक पिनक में लिखा गया है। (दिन., 30 अप्रैल, 67, पृ. 9), (ख) इन धूर्त अफीमचियों की अहम्मन्यता की पिनक को चूर-चूर कर देगी। (सा.हि., 15 मई 1960, पृ.3), 2. धुन, यह कार्यक्रस तो सुदर्शन चौहान की निजी पिनक था और वे संगत के कोई नेता नहीं हैं। (हि. ध., प्र. जो., पृ. 549)

पिनपिनाना क्रि. (अक.) -- पिन-पिन करना, दबी जबान में आपत्ति या आक्रोश व्यक्‍त करना, इस लतीफेबाजी से संस्कृति के लालफीताशाह बहुत पिनपिनाए। (दिन., 13 जन., 67, प. 36)

पिनपिनाहट सं. (स्त्री.) -- दबी जवान में की जानेवाली आपत्ति या व्यक्‍त किया जानेवाला आक्रोश, पुराने चरखे की पिनपिनाहट आज पुनः आरंभ हो गई है। (म. का. मतः क.शि., 8 नव. 1924, पृ. 168)

पिन्हाना क्रि. (सक.) -- पहनाना, खरीदारिनों के हाथों में चूड़ियाँ पिन्हाने की कला वह जान गई थी। (बे. ग्रं., प्र. खं., पृ. 3)

पियराना क्रि. (अक.) -- पीला पड़ना, उगे पौधे के पियराते पत्तों को देखता है। (अंतराः अज्ञेय, पृ. 43)

पिराना क्रि. (अक.) -- दर्द होना, पीठ भी पिरा रही है। (काद., जन. 1979, पृ. 45)

पिरोना क्रि. (सक.) -- धागे आदि मैं गूँथना, सूत्रबद्ध करना, देशी-विदेशी साधनों को दो वर्ष की आयोजना में पिरोकर पेश किया जा रहा है। (दिन., 17 सित., 67 पृ. 17)

पिलंग वि. (अवि.) -- पिल पड़नेवाला, जबरदस्ती करनेवाला, माँ पिलंगिनी, बाप पिलंग, तिनके लड़के रंगबिरंग। (भ. नि. मा. (दूसरा भाग), सं. ध. भ., पृ. 14)

पिलपिला वि. (विका.) -- ढीला-ढाला, कमजोर, (क) उसे विश्‍वास हो गया है कि चौबे जी का दिमाग पिलपिला हो गया है। (ब.दा.च.चु.प., खं. 1, सं. ना.द., पृ. 423). (ख) अपनी ही घोषणाओं की रोशनी में ये झूठे एवं पिलपिले दिखाई दे रहे हैं। (स.दा. : अ. नं. मिश्र, पृ. 111), (ग)उनका ज्ञानमय दयालु हृदय पिलपिला हो उठा है। (म. का मतः क.शि., 2 जुलाई 1927, पृ. 215)

पिलयाया वि. (विका.) -- जो पीला पड़ गया हो, बेआसरा, बेठौर ठिकाने के पिलयाई आँखों के ये बच्‍चे धँसी हुई आँखों से हर आनेवाले व्यक्‍ति से सवाल करता। (दिन., 6 अक्‍तू. 1968, पृ. 36)

पिसनाई सं. (स्त्री.) -- रगड़ाई, श्रसजीवी पत्रकारों की जो पिसनाई हो रही थी, उसके वे प्रत्यक्षदर्शी थे। (ब. दा. च. चु. प., संपा. ना. द., पृ. 18)

पिसान सं. (पु.) -- आटा, चूर्ण, (क) बाकी स्थानों में जवा का पिसान का पिंड केवल तीर्थ श्राद्ध मानते हैं। (भ.नि.मा. (दूसरा भाग), सं. ध. भ., पृ. 76), (ख) यहाँ की मिठाइयाँ प्रायः शक्‍कर की होती हैं और कुछ चॉकलेट की, जो एक प्रकार के फल का पिसान है। (सर., जुलाई 1919, पृ. 49)

पिसौनी सं. (स्त्री.) -- 1. पीसने की क्रिया या भाव, (क) कभी-कभी पिसौनी या और किसी तरह की मजदूरी करके भी वह और थोड़ी बहुत आमदनी कर लेती थी। (सर., अग. 1930, पृ. 130), 2. घोर परिश्रम, विश्‍वनाथ जी की यही इन्छा है कि मैं जीवन भर पिसौनी करता रहूँ। (हंस, जन. 1936, पृ. 55)

पीछा होना मुहा. -- मुहा., पीचे लगे होना, पीछा किया जाना, पंडितजी कुछ और भी सुना। आपके मित्र पंडित कालीचरण का पीछा हो गया। (सर., अक्‍तू. 1918, पृ. 203)

पीठ ओढ़ना मुहा. -- दृढ़तापूर्वक सामना करना, अखबारी दुनिया में आनेवाली अश्‍लीलता की आँधी को रोकने के लिए पीठ ओढ़ने का इरादा कर रहा होगा। (शि. पू. र., खं. 3, पृ. 503)

पीठ ठोंकना मुहा. -- शाबासी देना, उत्साहवर्धन करना, बढ़ावा देना, (क) मेकडानेल्ड से यह आशा न थी कि वे भी पारमूर की तरह हिंसा और साम्राज्यवाद की पीठ ठोंकेंगे। (न.ग.र., खं. 2, पृ. 195), (ख) विद्रोह दमन करनेवाली नौकरशाही और उसकी पीठ ठोंकनेवाली भारत सरकार ...। (मा. च. रच., खं. 9, प. 189), (ग)हत्यारों की पीठ ठोंकनेवाले तथा टर्की की सल्तनत के हड़पने पर चुप्पी साधनेवाले ... (मा. च. रच., खं. 9, पृ. 228)

पीठ डालना या डाल देना मुहा. -- पीठ दिखाना, पीछे हट जाना, विमुख होना, वाजिब मार्ग यह था कि जब रूस ने पीठ डाल दी थी ... (ग.शं.वि. रच., खं. 1, पृ. 365)

पीठ थपथपाना मुहा. -- पीठ ठोंकना, उत्साहवर्धन करना, (क) सरकार के जो नेता आंदोलनकारी कर्मचारियों की पीठ थपथपा रहे हैं। (दिन., 25 जून, 67, पृ. 19), (ख) चीन ने याह्या की पीठ थपथपाई है। (दिन., 25 अप्रैल 1971, पृ. 32)

पीठ दिखलाना मुहा. -- भाग खड़ा होना, हार मानना, पीठ दिखला देनेवालों का दर्जा मुड़ चिरे फकीरों से अधिक नहीं हो सकता। (म. का मतः क.शि. 29 मार्च, 1924, पृ. 141)

पीठ में छुरा भोंकना मुहा. -- बहुत बड़ा अहित करना, धोखा देना, इस विधेयक ने पंजाबी सूबे की माँग करनेवालों की पीठ में छुरा भोंकने की बात की है। (दिन., 16 सित., 66, पृ. 19)

पीपनी सं. (स्त्री.) -- पीं-पीं करनेवाला छोटा बाजा, तेरी पीपनी की आवाज कौन सुनेगा। (क. ला. मिश्र: . त. प. या., पृ. 97)

पीर बावर्ची भिस्ती सं. (पु., पदबंध) -- सभी प्रकार के दायित्वों का निर्वाह करनेवाला व्यक्‍ति, एक छोटे से अखबार में था, पीर बावर्ची भिस्ती की तरह। यों तो लोग समझते कि मैं संपादक ही हूँ। (बे. ग्रं., प्रथम खं., पृ. 6)

पीर सं. (स्त्री.) -- 1. पीड़ा, 2. सहानुभूति, उन्हें हमारी बड़ी पीर जो है। कभी खबर भी ली कि यहाँ परदेश में मेरा क्या हाल है। मरा या बचा। (सर., अप्रैल 1921 पृ. 225)

पीरचो वि. (अवि.) -- पीड़ा देनेवाला, यह जंगल की खामोशी भी बड़ी पीरचो होती है। (काद., जून 1961, पृ. 103)

पुख्ता वि. (विका.) -- मजबूत, दृढ़, तिब्बत में हान अफसरों का एक पुख्ता तंत्र खड़ा करने में चीन सफल हो गया है। (ज.स., 10 मार्च 1984, पृ. 4)

पुंगी सं. (पु.) -- पीं-पीं की धुन निकालनेवाला बाजा, पीपनी, बच्‍चे पुंगियाँ बजा रहे थे। (रवि., 27 दिस. 1981, पृ. 42)

पुचकारना क्रि. (सक.) -- चूमना तथा दुलार करना, चुमकारना, मारने के बाद पुचकारना इंग्लैंड की पुरानी नीति है। (ग.शं.वि. रच., खं. 3, प. 75)

पुच्छा सं. (स्त्री.) -- पूछताछ, मैंने पृच्छा की तो उसने बतलाया कि गाड़ी छूटनेवाली है। (काद. : अग. 1975, पृ. 16)

पुछल्ला सं. (पु.) -- पिछलग्गू, अनुयायी, (क) जाने-माने गैर-साम्यवादी पत्रकार को कम्युनिस्टों का पुछल्ला ठहराना मुश्किल था। (दिन., 13 जन., 67, पृ. 38), (ख) सो बिलायत की परीक्षा तो वैसी ही रही, उसके एक पुछल्ले की रचना यहाँ भी कर दी गई। (सर., भाग 30, खं. 1, जन.-जून 1929, पृ. 9)

पुजापा सं. (पु.) -- पूजा की सामग्री, भेंट, भयंकर कालचक्र उन्हीं जातियों को संसार में टिकने देता है, जो संसार की उन्‍नति को पवित्र ड्योढ़ी पर अपना पुजापा चढ़ाने में नहीं चूकतीं। (ग.शं.वि. रच., खं. 2, पृ. 29)

पुट देना -- कुछ मिलाकर कुछ भिन्‍न या नया रूप देना, उस पर निशान लगाकर उसे धार्मिक पुट दे दिया गया। (दिन., 12 अप्रैल 1970, पृ. 19)

पुरइन सं. (स्त्री.) -- कमलिनी, पुरइन (कमल) के नाल, दल, पात, पराग, नस-नस में पानी निदा है। (काद., सित. 1961, पृ. 57)

पुरना क्रि. (अक.) -- 1. भर जाना, कमांडर ने आदेश दिया कि जब तक घाव पुर न जाए कवायद बंद। (दिन., 13 जून 1971, पृ. 25), 2. पूर्ण होना, खत्म होना, एक एक चना निकालता और फाँकता जाता, राह पुर जाती। (काद. : अक्‍तू. 1981, पृ. 48)

पुरपेंच वि. (अवि.) -- जटिल, पेंचदार, व्यक्‍तित्व जहन्‍नुम के पुरपेंच अँधेरों में भटकता है। (स्मृ.वा. : जा. व. शा., पृ. 37)

पुरमजाक वि. (अवि.) -- मजकिया, विनोदी, (क) भगवतीचरण सदैव हँसमुख और पुरमजाक रहते थे। (क्रा. प्रे. स्‍त्रो. : र. ला. जो., पृ. 64), (ख) फीरोज जहाँ एक ओर गुस्सावर थे, वहीं वे पुरमजाक भी थे। (काद. : सित. 1978, पृ. 26)

पुरलुफ्त वि. (अवि.) -- आनंददायक, मजेदार गाना कुछ इस अंदाज में पेश किया कि नाटक नहीं उकताई शाम भी पुरलुफ्त बन गई। (दिन., 30 जुलाई 1965, पृ. 39)

पुरवैया सं. (स्त्री.) -- पूर्व से पश्‍चिम की ओर बहनेवाली वायु, ...स्वतंत्रता जिस स्‍निग्ध, नमी भरी पुरवैया का नाम होना चाहिए था। (दिन., 12 अग. 1966, पृ. 11)

पुरसाहाल सं. (पु.) -- हाल-चाल पूछनेवाला, दुःख-दर्द पूछनेवाला, लगता है गरीब जनता का कोई भी पुरसाहाल नहीं है। (दिन., 20 अक्‍तू. 1968, पृ. 21)

पुरातन-पंथी वि. (अवि.) -- पुराने विचारोंवाला, रूढ़िवादी, पंडित सुंदरलाल उतने ही पुरातनपंथी। (काद., अग. 1987, पृ. 147)

पुराना पापी मुहा. -- अनुभवी व्यक्‍ति, मँजा हुआ खिलाड़ी, सरकारी भाषा में सान्याल बाबू पुराने पापी हैं। (मा. च. रच., खं. 4, पृ. 187)

पुलई सं. (स्त्री.) -- चोटी, सिरा, बचे तो सरसई के गुच्छों से पुलई तक टहनी-टहनी लद जाएगी और डालें भार से लचने लगेंगी। (दिन., 7 अप्रैल, 67, पृ. 39)

पुलक सं. (स्त्री.) -- उमंग, रोमांच, वे पढ़कर पुलक से उछल पड़े। (स. ब. दे. रा. मा., पृ. 26)

पुलस्सर वि. (अवि.) -- 1. पूरा, पूर्ण, उत्तराखंड में लोकसेवा कार्य को पुरस्पर कर वे हृषीकेश में अपना जीवन उपर्युक्‍त सत्कार्यों के संचालन में सदा लगाए रहते थे। (सर., दिस. 1926, पृ. 668), 2. अगुआ, पिछली पाँच सदियों में यूरोप सभ्यता प्राप्‍त करने में असाधारण शीघ्रता से पुरस्सर हुआ है। (सर., अक्‍तू. 1922, भाग-23, खं. 2, सं. 4, पृ. 245)

पुलिसिया वि. (अवि.) -- पुलिसवालों का-सा, सिपाहियों का-सा, अत्याचारपूर्ण, प्रस्तुत प्रसंग भी नागपुर पुलिस की दरिंदगी और पुलिसिया दर्प की उसी चरित्र कथा का है। (लो. स., 1 अक्‍तू. 1989, पृ. 1)

पुश्त दर पुश्त क्रि. वि. (पदबंध) -- पीढ़ी, पुश्त-दर-पुश्त अपने घर की देवी की अर्चना इन दिनों करते हैं। (दिन., 12 अक्‍तू. 1969, पृ. 8-9)

पुष्कल वि. (अवि.) -- अत्यधिक, प्रचुर, इसे दृढ़ भित्ति पर स्थापित करने के लिए आपने इसके लिए पुष्कल धन भी प्रदान किया। (सर., दिस. 1926, पृ. 714)

पूँछ पटकना मुहा. -- तिलमिलाना, छटपटाना, जवाब न दे सकने की स्थिति में नपुंसक क्रोध से पूँछ पटकने को बाध्य कर दिया। (दिन., 27 जन., 67, पृ. 35)

पूँछ मरोड़ना मुहा. -- परेशान करना, भारतीय क्रिकेट की पूँछ मरोड़कर वह इस कामधेनु का दूध दूह नहीं सकेगी। (ज. स.. प्र. जो., 5 नव. 2006, पृ. 6)

पूरना क्रि. (अक.) -- 1. भरना, भर जाना, हृदय पार करनेवाली घटनाएँ घाव बन चुकी हैं। कोई नहीं कहता है कि वह पुरेगा ही नहीं, परंतू वह पूरते-पूरते ही पुरेगा। (ग.शं.वि.रच., खं. 3, पृ. 151), 2. गुँथना और फिर उनमें मनुष्य की हित भरी बुद्धि का मजबूत और बारीक डोरा पुर गया। (सर., दिस. 1919, पृ. 301)

पूरा पाड़ना मुहा. -- पूर्ण बनाना, पूरा करना, पाँच सौ रुपए तो तब पूरा पाड़ सकते हैं जब बड़ी कंजूसी से काम किया जाए। (सर., अक्‍तू. 1918, पृ. 200)

पूला सं. (पु.) -- गट्‍ठर, वोटोंवाली बैलों की जोड़ी खलिहानों में नाज के पूले माँड़नेवाले बैलों की तरह सीमित दायरे में घूमती है। (दिन., 13 अग. 1965, पृ. 12

पृष्‍ठपोषक वि. (अवि.) -- सहायक या समर्थक, प्रसिद्ध पृष्‍ठ-पोषक सर उमर हयात खान ने स्टेट कौंसिल में कहा था कि भारत सरकार को दक्षिण अफ्रीका के मामले के साथ निपट लेने दिया जाय। (मा. च. रच., खं. 10, पृ. 75)

पेंग भरना मुहा. -- झूला झूलना, सपनों की पेंगें भरने का आनंद ही अलग है। (किल., सं, म. श्री., पृ. 80)

पेंग सं. (स्त्री.) -- झूले की उछाल, ऊँचान, उठान, (क) संकट जितने बढ़ते जाते है उतनी सौन्दर्य की पेंग ऊंची होती जाती है । (रा . मा । संच . 2 , पृ 35),(ख) उतने जोर से पेंग कौन दे सकता है । (बे. ग्रं . भाग 1 पृ . 49)

पेंच पड़ना मुहा. -- उलझन खड़ी होना, कुछ ऐसा ही पेंच पड़ गया है। (का. कार. : नि., पृ. 17)

पेंच मारना मुहा. -- अड़ंगा लगाना, अड़ंगी मारना, रामसरन चौंके कि पता नहीं जाते समय यह कौन-सा पेंच मारेगा। (काद : जन. 1968, पृ. 14)

पेंच में आना मुहा. -- परेशानी में फँसना, जिसे चाहे मनमाना तंग करें और खुद कभी पेंच में न आवें। (म.प्र.द्वि., खं. 9, पृ. 141)

पेंच-पाँच सं. (पु.) -- उलझानेवाली बात, नियम-कानून, घुमाव-फिराव, हिंदुस्तानियों को इस विभाग में घुसने देने के संबंध में इतने पेंच-पाँच और इतनी रोक-टोक रखी गई है। (म. प्र. द्वि., खं. 9, पृ. 128)

पेंच सं. (पु.) -- उलझन, झमेला, फेर, (क) सभी भारतीय भाषाएँ एक दोहरे पेंच में फँस गई हैं। (धर्म., 8 अक्‍तू. 1967, पृ. 9), (ख) एक अजीब पेंच है भाई। (काद.,मार्च 1994, पृ . 72), (ग)यदि पेंच में पड़कर अपनी बोली बोलते भी हैं तो बीच-बीच में अँगरेजी के शब्द अवश्य ही मुँह से निकलते हैं। (सर., नव. 1913, पृ. 651)

पेचीला सं. (पु.) -- पेचीदा, उलझाव-भरा, जटिल, इन पेचीली बातों को लेकर अंग्रेजी में एक साहित्य का साहित्य उत्पन्‍न हो गया है। (गु. र., खं. 1, प. 193)

पेचोखम सं. (पु.) -- उलझन, बखेड़ा, जब नए भारत को स्वदेशी-विदेशी के उत्कट विवेक की जरूरत पड़ी तो तरह-तरह के पेचोखस पैदा होने लगे। (दिन., 17 अक्‍तू. 1971, पृ. 44)

पेट भरना मुहा. -- तुप्‍त होना, तृप्‍ति होना, कूटनीति की कटुता से दुनिया का पेट अभी नहीं भरा। (न.ग.र., खं. 2, पृ. 158)

पेट में चूहे लोटना मुहा. -- भूख से बेहाल होना, पेट में जब चूहे लोटते हैं तब दिमाग काम नहीं कर सकता। (वि. भा., जन. 1928, सं. 1, प. 280)

पेट-पानी सं. (स्त्री., पदबंध) -- रोजी-रोटी, आजीविका, सरकार भी अपने इन नॉन ऑफिशियल शासकों के पेट-पानी का पूरा खयाल रखती है। (मा. च. रच., खं. 10, पृ. 181)

पेट-पोंछना वि. (विका.) -- अंतिम, वह तो पेट-पोंछनी लड़की है, इसलिए उसके माँ-बाप उसे बहुत प्यार करते हैं। (काद., मार्च 1977, पृ. 13)

पेटपंथी सं. (पु.) -- अपना पेट भरनेवाला, उदरपूर्ति करनेवाला, धर्म की बागडोर आज शास्‍त्र-ज्ञानहीन वितंडावादी पेटपंथियों के हाथ में है। (म. का मतः क.शि., 14 जन. 1928, पृ. 75)

पेंठिया सं. (पु.) -- पैंठ, बाजार, मुझे मेले-पेठिए में अधिक नहीं जाने दिया जाता। (बें.ग्रं., भाग 1, पृ. 2)

पेंदी में दम होना वि. (विका.) -- दमदार होना, शक्‍ति संपन्‍न होना, किसी भारतीय की पेंदी में दम नहीं सब के सब गीदड़ हैं। (म. का मत: क.शि., 28 नव. 1925 पृ. 111)

पेर-पेरकर क्रि. वि. -- अत्यधिक परिश्रम के द्वारा, विधाता की बेइख्तयार उगी हुई बखेर अथवा किसान की पेर-पेरकर कमाई हुई जमीन कलाकारों की सूझों के कदाचित अधिक निकट पड़ती होगी। (मा. च. रच., खं. 3, पृ. 84)

पेशकश सं. (स्त्री.) -- प्रस्ताव, कहा जाता है कि सरकार ने बतौर फीस उन्हें तीस हजार रुपाए के देने की पेशकश की थी। (काद., फर. 1987, पृ..)

पेशगी सं. (स्त्री.) -- अग्रिम धन, विज्ञापन की छपाई हर हालत में पेशगी ली जाएगी। (मत., म. प्र. से. वर्ष 5, सं. 7, मुखपृष्‍ठ)

पेशानी पर बल बढ़ाना मुहा. -- चिंता का गहराना, भाड़ा विदेशी मुद्रा में चुकाने की मजबूरी उनकी पेशानी पर बल बढ़ा रही है। (दिन., 16 जुलाई 1965, पृ. 14)

पेशाब से चिराग जलाना मुहा. -- अत्यधिक प्रभावशाली होना, प्रभुत्व दिखलाना, अब जितना जमीन के ऊपर हैं, उतना ही नीचे घुसे हुए हैं, पेशाब से चिराग जला रहा है। (रा. द., श्रीला. शु. पृ. 221)

पेश्‍तर, के पेशतर क्रि. वि. -- पहले, इसके पेश्तर कि अम्माजी कुछ गुनतीं वह परे हट गया। (साक्षा., मार्च-मई 77, मृ. पां. पृ. 27)

पैंग मारना मुहा. -- पेंग मारना, आनंद लेना, मजे उड़ाना, कुछ दिन प्रेम के हिंडोले में पैंगे मारने के बाद विवाह सूत्र में बँधे। (काद., जून 1979, पृ. 40)

पैज भरना मुहा. -- यात्रा करना, यहाँ तक पैज भरते हो। (का. कार. : नि., पृ. 8)

पैठ सं. (स्त्री.) -- गहराई में जाने की क्षमता, पहुँच, अच्छे खानदान में जन्म लेने से काजीमाफ की (के) पैठ सेंट पीटर्सबर्ग की सभ्य समाज में थी। (सर., जून 1921, पृ. 377)

पैंठ सं. (स्त्री.) -- पैंठने की शक्‍ति, गहराई में जाने की क्षमता, समझ, समालोचक का पहला गुण है पैंठ, जो बहुत अंश में दैवी देन होती है। (सुधा, फर.-जुलाई 1935, पृ. 469)

पैठना क्रि. (अक.) -- गहराई में जाना, समाना, (क) जगह बनती जाती हो और वह उसमें पैठता जाता हो। (ज.क.सं. : अज्ञेय, पृ. 27), (ख) उनकी राजनीति जनता में नहीं पैठी थी। (रा.मा. संच. 1, पृ. 35)

पैंठना सं. (पु.), क्रि. (अक.) -- पैठना, गहराई में जाना, डुबकी लगाना, (क) दोनों की जड़ें यूरोपीय यहूदी साहित्य परंपरा में गहरी पैठी हुई है । (दिन , 25 नव , 06 पृ 39),(ख) कर्मचारी आंदोलन की गहराइयों में पैठना बहुत आसान था । (दिन,। 6 जून , 67 , पृ ,43)(ग) यह सुंदर साहित्य - सर जिसमें पैठने के लिए बड़ी साधना और पुण्य की आवश्यकता है । ग . शं . वि . रच , खं . 1 , पृ . 209)

पैंड़ना क्रि. (सक.) -- बाड़े में बंद कर देना, गाएँ, भैंसें, बछेला-पड़ेता, लाउरे-बाखरे यानी सब रखत पल्लौ (गाय-भैंसों का समुदाय) उसी बगर में पैंड़ा गया। (मधुकर, दिसंबर-जन. 1945, पृ. 273)

पैंतरा बदलना मुहा. -- नया रुख अपनाना, नया दाँव चलना, नया कौशल दिखाना, (क)...इस बात की प्रतीक्षा है कि प्रतिद्वंद्वी कुछ पैंतरा बदले। (काद, जन. 1989, पृ. 26), (ख) बड़े साहब भयभीत होकर स्वराज की गठरी न सौंपेंगे तो गदका बनैटी लेकर पैंतरा बदलना शुरू करेगा। (म.का मतः क.शि., 6 सित. 1924, पृ 164), (ग)कांग्रेस रूपी गदा उन्हीं के हाथों में है जो सिर्फ पैंतरे बदलने में माहिर हैं। (म.का मतः क.शि., 19 दिस. 1925, पृ. 194), (घ) मैंने पैंतरा बदला और कहा-आप जाइए वहाँ, मैं तो अब यहीं रहूँगा। (रवि., 4 जन. 1981, पृ. 25)

पैंतरा सं. (पु.) -- रुख, मुद्रा, (क) राजनीतिक खिलाड़ियों की हैसियत से त्रिपाठी और गुप्‍ता दोनों के पैंतरे मशहूर हैं। (दिन., 2 सित., 66, पृ. 23) (ख) सरकार का यह पैंतरा नया है। (मा. च. रच., खं. 9 पृ. 291)

पैंतरेबाजी सं. (स्त्री.) -- बार-बार रुख बदलना, नई पर नई चाल चलना, पैंतरे दिखाना, जिस देश का प्रतिपक्ष राष्‍ट्रीय प्रश्‍नों को भी राजनैतिक पैंतरेबाजी और पार्टी हित-अहित के रूप में देखता हों ... (दिन., 16 जुलाई 1965, पृ. 13)

पैंदा सं. (पु.) -- निचला भाग, तल, जलाशय के सारे जीवों को विश्‍वास है कि इस तालाब के पैंदे में कोई राजा है। (रा. मा. संच. 1, पृ. 55)

पैना वि. (विका.) -- तीक्ष्ण, धारदार, अनेक पाठकों ने यह समझने-समझाने में भी अपनी पैनी समझ का परिचय दिया है। (दिन., 24 सित. 1977, पृ. 14)

पैनाना क्रि. (सक.) -- पैना बनाना, धार लगाना, धार तेज करना, पं. जगन्‍नाथ प्रसाद चतुर्वेदी अभी से अपनी लेखनी पैनाते होंगे। (शि. पू. र., खं. 3, पृ. 503)

पैर उखड़ना या उखड़ जाना मुहा. -- विरोध के आगे न ठहर पाना, पस्त-हिम्मत और विचलित होना, डगमगाने लगना, (क) जोखिम लेकर अराजक तत्त्वों का प्रतिरोध किया जाए तो उनके पैर उखड़ते देर नहीं लगेगी। (दिन., 13 दिस., 1970, पृ. 23), (ख) जिंदगी के उतार-चढ़ाव से पैर उखड़ने लगे तो आदमी को संतुलन बनाए रखने में अपनी सारी ताकत लगा देनी चाहिए। (रवि., 4 जुलाई 1981, पृ. 44), (ग)... उत्तर और दक्षिण दोनों ही जगह लोकतंत्र के पैर उखड़ने लगे। (दिन., 28 जन. 1968, पृ. 8)

पैर की जूती मुहा. -- चेरी, दासी, उन्हें पैर की जूती उपनाम दिया जाता है। (वि. भा., जन. 1928, सं. 1, पृ. 66)

पैर पखारना मुहा. -- आदर देना, अधिकारियों के पैर पखारना काम न देगा। (ग. शं. वि. रच., खं. 3, पृ. 464)

पैर पसारना मुहा. -- अधिकार-क्षेत्र या कार्य-क्षेत्र का विस्तार करना, उत्तर प्रदेश अब और पैर पसारने की कोशिश कर रहा है। (ते. द्वा. प्र. मि., पृ. 148)

पैर पोंछना मुहा. -- तलवे चाटना, ठोकर खाकर नौकरशाही को पैर पोंछने की आदत पड़ गई है। (स. सा., पृ. 36)

पैर फैलाना मुहा. -- अधिकार-क्षेत्र बढ़ाना, कार्य-क्षेत्र का विस्तार करना, (क) भारतीयों ने यहाँ आकर व्यापार में पैर फैलाए हैं। (त्या. भू. : संवत् 1986, (1927), पृ. 326), (ख) धर्म की कोई ऐसी सीमा निर्धारित कर दें, जिससे आगे यह पैर न फैला सके। (गु. र., खं. 1, पृ. 144)

पैर समेटना या समेट लेना मुहा. -- फैलाव कम करना, कार्य-व्यापार कम या खत्म करना फैली हुई राज्यश्री कोने में अपने पैर समेटते जाने के लिए विवश हो रही है। (ग.शं. वि. रच., खं. 1, पृ. 80)

पैराया सं. (पु.) -- ढंग, शान, तैयारियाँ बड़े पैराए पर होने लगीं। (माधुरी, अग.-सित. 1928, पृ. 7)

पैरों तले कुचलना या रौंदना मुहा. -- कुचल देना, नष्‍ट करना, (क) हमने भाई-भतीजावाद और स्वजातीय लोगों को अनुचित सुविधा प्रदान करने के हेतु ऋषियों की व्यवस्था को पैरों तले कुचला है। (सर., सं. 5, पृ. 600), (ख) यूरोप ने मनुष्य प्रेम की सचाई को जिसमें स्वर्ग की झलक मिलती है, पैरों तले कुचल डाला है। (सर., जन-जून 1961, सं. 6, पृ. 781), (ग)कैबिनेट तब पैरों तले रौंदे गए गरीबों की ओर से हाथ खींच चुकी थी। (मा. च.रच., खं. 9, पृ. 225)

पैरों में बेड़ियाँ पहनाना मुहा. -- आगे न बढ़ने देना, प्रगति रोक देना, समाचार-पत्र ही देश की आवाज हैं। इस आवाज की उपेक्षा करना देश के मुँह पर पत्थर रखना है और उन्‍नति के पैरों में बेड़ियाँ पहनाना है। (मा.च.रच., खं. 2, पृ. 65)

पैरों से ठुकराना मुहा. -- आक्रोश या घृणापूर्वक परे हटाना, उनका भाषण पैरों से ठुकरा देने काबिल है। (म.का मतः क.शि., 16 मई 1925, पृ. 184)

पैवस्त वि. (अवि.) -- घुला-मिला, रचा-बसा, तुलसीदास तो हमारी रग-रग में पैवस्त हो गए हैं। (सर., जन.-जून 1939, सं. 5, पृ. 489)

पैसा पीटना मुहा. -- खूब कमाई करना, कपोला ने जब अपनी फिल्में बनाईं, तो वे पैसा नहीं पीट पाईं। (दिन., 19 जन. 1975, पृ. 28)

पैसेवारी सं. (स्त्री.) -- कृषि उपज का आकलन, महाराष्‍ट्र सरकार ने पैसेवारी के लिए नया नियम लागू करने का फैसला किया है। (रवि. 14 मार्च 1989, पृ. 1)

पोखरी सं. (स्त्री.) -- छोटा पोखरा या तालाब, पोखरी के पास के खेत पर पहुँचे तो लगा कि चूहों ने इस बार खेत को पूछा ही नहीं। (रवि., 1 अग. 1982, पृ. 44)

पोंगरा सं. (पु.) -- खोखा, पर हतभाग कुछ ही दिनों में पोंगरे में रखी हुई वह रचना वापस लौट आती है। (कर्म., 8 जुलाई, 1950, पृ. 7)

पोंगली सं. (स्त्री.) -- रस्सी बटने की चरखी, सीधी पोंगली से घुमा-घुमाकर रस्सी निकालने जैसा है। (किल., सं. म. श्री., पृ. 172)

पोंगा वि. (विका.) -- मूर्ख, अज्ञानी, (क) भारत यदि दुनिया से कट जाए तो शायद वह एक बेहद निकम्मा पोंगा और लिजलिजा देश बन जाएगा। (रा.मा.संच. 2, प. 31), (ख) वह निहायत पोंगा आदमी है। (स.न.रा.गो. : भ.च.व., पृ. 207), (ग)हमें निरा पोंगा ही समझ लिया . (सर., जून 1916, प. 291)

पोंगापंथी वि. (अवि.) -- नासमझ, मूर्ख, रूढ़िवादी, (क) कितने वामपंथियों ने अपने को पुनरुत्थानवादी पोंगापंथी और जाने क्या-क्या कहा है ? (हि. ध., प्र.जो., पृ. 193), (ख) शुद्ध आलोचक ने पोंगापंथी बनकर कृति-साहित्य के मैदान से अपने को बहिष्कृत कर दिया। (दिन., 4 जून, 67, पृ. 41)

पोंगापन सं. (पु.) -- मूर्खता, यह उनके पोंगापन का नग्‍न प्रदर्शन है। (त्या. भू. : संवत् 1986, (1927) पृ. 327)

पोच वि. (अवि.) -- तुच्छ, सारहीन, बेकार, (क) लेकिन उसकी सफलता का किस्सा दो दशक में ही पोच दिखने लगा था। (ज.स., 5 मार्च 1984, पृ. 4), (ख) प्राचीन विश्‍वास चाहे कितना भी पोच हो, पर वे लकीर के फकीर बने रहेंगे। (भ. नि., पृ. 41)

पोचा वि. (विका.) -- क्षीण, तुच्छ, थोथा, (क) उसमें संगीत तत्त्व इतना पोचा था कि वह साधारण श्रोताओं के लिए थकी हुई आवाज बनकर रह गया। (दिन., 14 सित., 1969, पृ. 28), (ख) लेकिन मैं इन पोची बातों पर विश्‍वास नहीं करता। (मा. च. रच., खं. 3, पृ. 138)

पोट सं. (स्त्री.) -- पुलिंदा, पोटली (क) उपस्थिति एवं अनुपस्थिति से बननेवाले जमाने की बड़ी सी पोट बाँधकर अपने सिर पर रखनी होगी। (मा. च. रच., खं. 2, पृ. 377), (ख) समाचार-पत्रों के पोट के पोट तुम मेरे पास लाया करते थे। (सर., जन. 1930, पृ. 77-78)

पोढ़ा वि. (विका.) -- मजबूत, दृढ़, सशक्‍त, (क) क्या हम उन्हे इनका स्वाभिमान और संकल्प लौटाने में इस भाँति कुछ योग दे रहे हैं या नहीं कि इसका मन पोढ़ा रहे। (दिन., 1 अग. 1971, पृ. 16), (ख) तुम पोढ़े आदमी हो। इस समय कुछ सहायता करो। (सर., दिस. 1917, पृ. 316), (ग)हम समझते हैं कि हमारा मकान पक्‍का पोढ़ा खड़ा है। (सर., जुलाई 1918, पृ. 24)

पोढ़ापन सं. (पु.) -- दृढ़ता, मजबूती, अब दृढ़ता, निष्‍ठुरता, मन के पोढ़ेपन के भिन्‍न भाव उनके चित्रों में झलकने लगते हैं। (दिन., 7 मई 1972, पृ. 7)

पोथा सं. (पु.) -- मोटी पुस्तक, विशाल ग्रंथ, (क) भारत सचिव ने स्थल-स्थल पर जिस तरह की मूखर्तापूर्ण बातें कही हैं, उनका खंडन यदि किया जाए तो एक पोथा बन सकता है। (ग.शं.वि.रच., खं. 3, पृ. 358), (ख) भारतीय राजनीतिज्ञता की दृष्‍टी से उसका मूल्य रद्‍दी के पोथे से अधिक नहीं। (सर., जून 1925, पृ. 708)

पोथियों की धूल फाँकना मुहा. -- (पुरानी) पोथियों का अध्ययन करना, पोथियों की धूल फाँकने से अविद्या त्राहि-त्राहि कर भाग खड़ी होती है। (रवि., 16-25 अग. 1979, पृ. 38)

पोथी सं. (स्त्री.) -- पुस्तक, जिनका गुणगान पाठ्य पुस्तकों में ही होता है, जन-जीवन की पोथी में नहीं। (दिन., 20 मई, 1966, पृ. 11)

पोथे के पोथे सं. (पु., पदबंध) -- ढेरों पुस्तकें, अच्छे-अच्छे विचारों से भरे तो पोथे के पोथे पड़े हैं। (मधुकर, नवं. 1944, पृ. 306)

पोपला वि. (विका.) -- अंदर से खाली, पोला, खोखला, कांग्रेस का पोपला संगठन और बाद में शासन भी इस विषय पर उदासीन ही रहा। (क.ला.मिश्रः त. प. या., पृ. 41)

पोल खुलना मुहा. -- भेद खुलना, भंडा फूटना, फिर क्या था पोल खुल गई और निकाले गए। (मधुकर, 1 अक्‍तू. 1940, पृ. 5)

पोल छिपाना मुहा. -- कमजोरी या दोष छिपाना, टीम-टाम के आवरण में हम अपनी आर्थिक स्थिति की पोल छिपाने में इतने माहिर हो गए हैं ... (दिन., 8 दिस. 1968, पृ. 10)

पोलखाता सं. (पु.) -- पोल-पट्‍टी, कमजोरियों की सूची, कहीं इस रचनात्मक कार्यक्रम की सेवा के द्वारा मुसलमान नारी-नर उनकी लीग के पोलखाते को और गांधी बाबा की वास्तविक सेवा-परायणता को समझ न जाएँ। (न. ग. र., खं. 3, पृ.81)

पोला वि. (विका.) -- खोखला, कमजोर, (क) परंतु निरंकुशता का महल जितना ऊपर उठता है, उतनी ही उसकी नींवें पोली होती जाती हैं। (ग.शं.वि.रच., खं. 3, पृ. 135), (ख) चीनी प्रेरणा से ही वे भारत की सुरक्षा की जड़ें पोली करने का और सीमांत की प्रतिरक्षा में बाधाएँ डालने का प्रयत्‍न करते रहे हैं। (दिन., 28 फर. 1965, पृ: 11)

पोले पाँव क्रि. वि. -- दबे पाँव, धीरे-धीरे, वह ग्रामकोट के सहारे-सहारे पोले पाँव मंदिर पहुँची। (मधुकर, 1 अक्‍तू. 1940, पृ. 10)

पोसना क्रि. (सक.) -- पुसाना, सुरक्षित रखना, पालना, इस हार को वे अपने हृदय में पोसे हुए हैं। (बें.ग्रं., भाग 1,. पृ. 28)

पोसाना क्रि. (अक.) -- रास आना, अनुकूल पड़ना, किंतु प्रेस और हाथी का पेट दोनों बराबर (प्रेस का काम) पोसाता न था। (शि.पू.र., खं. 4, पृ. 215)

पौ बारह होना मुहा. -- सब तरफ से लाभ ही लाभ होना, जीत ही जीत होना, सफलता प्राप्‍त होना, (क) वे धर्म के दलाल कहाँ हैं जो अपने पौ-बारह करते समय, समाज का सर्वनाश कर डालते हैं। (मा. च. रच., खं. 2, प. 22). (ख) गवर्नमेंट की भी पौ बारह हुई। (ग.शं.वि.रच., खं. 3, प. 420), (ग)...भारत कोई राष्‍ट्र नहीं, बल्कि चूँ-चूँ का मुरब्बा है जब वह बिखरकर अराजकता में खो जाएगा, तब पाकिस्तान की पौ बारह होगी। (रा.मा. संच. 1, प. 187)

पौगंड सं. (पु.) -- किशोरावस्था से पहले की अवधि, बाल्यावस्था, बालपन, उसका सब रंग-ढंग जवानी के आते ही अथवा यों कहिए पौगंड बीत जाने पर किशोर-अवस्था के पहुँचते ही कुछ और का और हो गया। (भ.नि. : पं. बा. कृ. भ., पृ. 13)

पौड़ी सं. (स्त्री.) -- सीढ़ी, इरोस की प्रतिमा की वेदिका की पौड़ियों पर युवाओं के तीन दल अनशन पर बैठे हैं। (दिन., 13 जन., 67, पृ. 10)

पौढ़ाना क्रि. (सक.) -- लेटाना, सुलाना, (क) वे राम विराजते हैं जिन्हें पौढ़ाने के लिए मेरी माँ हर रात रोते हुए लोरी गाती है। (हि. ध., प्र.जो., पृ. 572), (ख) अपनी गोदी के पालने में पौढ़ा देती है। (भ.नि., पृ. 100)

पौर वि. (अवि.) -- पुर-संबंधी, नगरीय, शहरी, पौर जीवन समय-समय पर जनपद जीवन के संपर्क में आने के लिए उमगता है। (मधुकर : अप्रैल-अग. 1944, पृ. 59)

प्याले में तूफान आना मुहा. -- बात का बतंगड़ खड़ा होना, हड़कंप मचना, (क) अखबारों के प्याले में छोटा-मोटा तूफान आकर ठंडा पड़ गया। (हि. ध., प्र. जो., पृ. 279), (ख) विल्सन सरकार ने एम. बी. ई. की उपाधि के लिए नामजद किया तो कंजर्वेटिव क्लबों से लेकर विश्‍वविद्यालयों की नदी किनारे की गोष्‍ठियों तक के प्यालों में तूफान आ गया। (दिन., 13 अग. 1965, पृ. 42)

प्योंदा सं. (पु.) -- पैबंद, थिगली, थीगड़ा, कुछ लोगों का मत है कि लोगों ने हजरत उमर को प्योंदे लगे हुए वस्‍त्र पहने देखा है। (सर., फर. 1922, पृ. 119)

प्रकांड वि. (अवि.) -- बड़ा, विशाल, हर बारहवें वर्ष यह मेला सैकड़ों गुना अधिक प्रकांड रूप धारण करता है। (सर., जन. 1911, पृ. 16)

प्रकृत पक्ष में क्रि. वि. (पदबंध) -- प्राकट्य में, प्रत्यक्षतः, वस्तुतः, प्रकृत पक्ष में चौदह वर्ष हो गए। (सं. परा. : ल.शं. व्या., पृ. 315)

प्रजापीड़न सं. (पु.) -- प्रजा को दुख देने की क्रिया या भाव, लेकिन वर्दी पहनते ही वे ...प्रजापीड़न का शासकीय धर्म अंगीकार कर लेते हैं। (रा. मा. संच. 2, पृ. 149)

प्रजारंजक वि. (अवि.) -- प्रजा को प्रसन्‍न रखनेवाला, भारत में कैसे-कैसे बुद्धिमान, न्याय-नारायण और प्रजारंजक शासक हुए। (सर., जन. 1915, पृ. 12)

प्रणिधान सं. (पु.) -- ध्यान, तब मुझे मालूम हुआ कि भारतीय किसान भी कितना प्रणिधान योग्य विषय है। (सर., दिस. 1919, पृ. 297)

प्रतिघात सं. (पु.) -- घात करनेवाले पर किया जानेवाला प्रहार, आघात तो वह कर बैठा, किंतु प्रतिघात न सह सका। (काद., नव. 1980, पृ. 13)

प्रतिनायक सं. (पु.) -- नायक का प्रतिद्वंद्वी, प्रतिनायक सब दोषों की खान बताया जाता है। (चं. श. गु. र., खं. 2, पृ. 367)

प्रतिसाद सं. (पु.) -- समर्थन, अनुक्रिया, मोगा हत्याकांड के निषेधार्थ महाराष्‍ट्र बंद की अपील को पुलगाँव में अच्छा प्रतिसाद मिला। (लो.स., 11 जून 1989, पृ. 10)

प्रत्यूष सं. (पु.) -- भोर, प्रभात, प्रत्यूष वेला में घूमने से अच्छा स्वास्थ्य लाभ होता है। (काद. : जुलाई 1977, पृ. 12)

प्रदर्शन-पटुता सं. (स्त्री.) -- दिखावा, प्रदर्शनकारिता, धीरे-धीरे यह प्रदर्शन पटुता शहर के पास के गाँवों में पहुँच रही है। (ते. द्वा. प्र. मि., पृ. 128)

प्रपंच सं. (पु.) -- जंजाल, मायाजाल, (क) न मालूम उस जगन्‍नाटक सूत्रधार को क्यों मेरे को इस प्रपंच में डालकर मार्गच्युत करना था ? (चं.श.गु.र., खं. 2, पृ. 383), (ख) विचित्र प्रपंच व ढोंग कर अपना पेट पालते हैं। (दिन., 6 मई 1966, पृ. 21), (ग)और भी कितने ही प्रपंच रचे जा रहे हैं। (ग.शं.वि.रच., खं. 2, पृ. 348)

प्रमाण पुरुष सं. (पु.) -- ऐसा व्यक्‍ति जिसे उदाहरण माना जाए तथा जिसके आचरण का अनुकरण उचित समझा जाए, नवीन जी फक्‍कड़ संप्रदाय के प्रमाण-पुरुष रहे। (दिन., 6 जून 1967, पृ. 40)

प्रवाद सं. (पु.) -- अफवाह, इस प्रवाद के फैलते ही कंदरावासी अपने निवास स्थान छोड़-छोड़ इधर-उधर दुर्गम-स्थानों को बागने लगे। (सर., अप्रैल 1921, पृ. 242)

प्रसाद सं. (पु.) -- सं. (पु.), अनुग्रह, कृपा, पाठकों का प्रसाद उतना प्रधान न होता तो यही ग्रंथ उपहार में एक भाग न दिया जाकर समग्र दिया जाता। (गु. र., खं. 1 पृ. 388)

प्रहसन खेलना वि. (अवि.) -- नौटंकी करना, मजाक उड़ाना, किसी बड़ी जगह में कुछ बातूनी जमा होकर राष्‍ट्रीय सभा के नाम का प्रहसन खेल जाया करते हैं। (मा. च. रच., खं. 9, पृ. 233)

प्रहसन सं. (पु.) -- हास्य नाटक, यह कठोर प्रहसन है, यह जातीय अपमान है, (मा.च.रच., खं. 9, पृ. 312)

प्रांजल वि. (अवि.) -- स्वच्छ, निश्‍छल, खरा, उसका मत नितांत प्रांजल है। (काद. : मार्च 1987, पृ. 7)

प्राणपण से क्रि. वि. -- प्राणों की बाजी लगाकर, पूरी ताकत से, इसी से उनकी रक्षा प्राणपण से की जा रही है। (सर., जन. 1915, पृ. 7)

प्रांतिक क्रि. वि. -- प्रांतीय, क्षेत्रीय, प्रांतिक बोलियाँ शहर और साहित्य की भाषा का अपभ्रंश नहीं हैं (म.प्र.द्वि., खं. 1, पृ. 297)

प्राप्‍तव्य वि. (अवि.) -- पाने योग्य, प्राप्‍त करने योग्य, ज्ञान एवं विद्या श्रेष्‍ठ प्राप्‍तव्य हैं। (काद. : अप्रैल 1980, पृ. 11)

प्रेतनृत्य सं. (पु.) -- भयावह उछल-कूद, विधानसभा के सदस्य उस वृक्ष के आसपास प्रेतनृत्य कर रहे हैं। (रा. मा. संच. 2, पृ. 19)

प्रेम में पगा वि. (विका., पद.) -- प्रेममय, हिंदू-मुसलिम प्रेम के पगे हुए हम सब अपने आत्मोद्धार के मार्ग पर अग्रसर हो रहे हैं, इसमें कोई संदेह नहीं। (न. ग. र., खं. 2, पृ. 31)

प्लेग आना मुहा. -- बहुत बड़ी आफत या मुसीबत आना, फिर आया औरंगजेब का समय। मंदिरों और मूर्तियों के लिए तो मानो प्लेग आ गया। (सर., सित. 1912, पृ. 384)

फक्‍कड़ सं. (पु.) -- मस्तमौला व्यक्‍ति, (क) यहाँ कबीर जैसे फक्‍कड़ों की भी पूजा हुई है, जिसने हिंदू और मुसलमान दोनों पर तीखा प्रहार किया। (किल., सं. म. श्री., पृ. 192), (ख) रेणु के समान फक्‍कड़ पति की सेवा करना आसान न था। काद. : जुलाई 1977, पृ. 136), (ग)कमला का पति मनोहर वास्तव में एक फक्‍कड़ आदमी है। (नव., फर. 1958, पृ. 49)

फक्‍कड़1 वि. (विका.) -- निश्‍चिंत, मस्तमौला, (क) उनकी फक्‍कड़ फकीरी तथा पुण्य-स्मृति को प्रणाम। (स.दा. : अ.नं. मिश्र, पृ. 37), (ख) नवीन जी हिंदी में फक्‍कड़ संप्रदाय के प्रमाण पुरुष रहे। (दिन., 6 जून, 67, पृ. 40)

फक्‍कड़पन सं. (पु.) -- फक्‍कड़ होने की अवस्था या भाव, मस्तमौलापन, बाहरी संसार उनके इस फक्‍कड़पन पर आश्‍चर्य कर सकता है। (ग.शं.वि.रच., खं. 1, पृ. 226)

फक्‍कड़ाना वि. (अवि.) -- फक्‍कड़ों-जैसा, निश्‍चिंततापूर्ण, रहीम की फक्‍कड़ाना मस्ती कही गई नहीं। (कुटजः ह.प्र.द्वि., पृ.4)

फगुनहटा सं. (पु.) -- फागुन में बहनेवाली तेज हवा, (क) फागुन के महीने में शिशिर का मंत्र पाकर जब तेज फगुनहटा बहता है तब चारों ओर पतझड़ दिखाई देता है। (मधुकर, सित. 1944, पृ. 166), (ख) कल्पना के फगुनहटे में मानव को जाग्रत् करने की अपार शक्‍ति छिपी रहती है। (मधुकरः जन., 1944, पृ. 499)

फचाफच क्रि. वि. -- अनवतरत, लगातार, बिना रुके, विद्या उनके मुँह से फचाफच निकला करती थी। (कुटुजः ह. प्र. द्वि., पृ. 87)

फच्‍चर सं. (स्त्री.) -- अड़ंगा, पच्‍चर, परिषद् इसमें फच्‍चर फँसाना चाहती। (ज. स., प्र. जो., 5 नव. 2006, पृ. 6)

फजीहत सं. (स्त्री.) -- दुर्दशा, हमारे पढ़नेवाले सचेत रहे और उन कारणों की ओर कभी भूलकर न फटकें नहीं तो फजीहत में पड़ेंगे। (भ.नि., दूसरा भाग, पृ. 177)

फजूलियात सं. (स्त्री., बहु.) -- फिजूल बातें या काम, काम से काम रखना चाहिए। फजूलियात से बाज आना चाहिए। (सर., अक्‍तू. 1917, पृ. 208)

फटकना क्रि. (अक.) -- 1. (किसी के) निकट जाना या पहुँचना, पास जाना, (क) हमारे पढ़नेवाले सचेत रहें और उन कारणों की ओर कभी भूलकर बी न फटकें, नहीं तो फजीहत में पड़ेंगे। (भ.नि.मा. (दूसरा भाग), सं. ध.भ.ना. प्र. सभा काशी, पृ. 177), (ख) वे कांग्रस के पास फटकने नहीं पाते। (ग.शं.वि.रच., खं. 2, पृ. 35), 2 चक्‍कर लगाना, चार डालर देकर हम फँस गए थे। अब फटकने से क्या हो सकता था। (सर., सित. 1909, पृ. 387)

फटका रहना मुहा. -- दूर रहना, जब उसे यह मालूम हुआ कि कामताप्रसाद उससे केवल इसलिए फटके रहते हैं कि वह सुंदर नहीं। तब उसे बड़ा दुख हुआ। (सर., मार्च 1919, पृ. 132-33)

फटकार लेना मुहा. -- आसानी से कमा लेना, कोई पत्र बेचनेवाला लड़का कभी-कभी तीन-तीन डॉलर तक फटकार लेता है। (सर., अप्रैल 1913, पृ. 232)

फटकारना क्रि. (सक.) -- आसानी से प्राप्‍त कर लेना, (क) हजारों हिंदुओं ने वही लिपि और भाषा सीखकर बड़े-बड़े ओहदे फटकारे। (सर., भाग 28, सं. 3, मार्च 1927, प. 285), (ख) उन्होंने इसी बहादुरी के कारण शाही तमगा फटकारा है। (म. प्र. द्वि., खं. 9, पृ. 149)

फटफट सं. (स्त्री.) -- मोटर सायकिल, फटफटी, आगे से पिता वर देखने जब जाएँगे, बालक से पूछेंगे फटफट दहेज में लोगे। (काद., मार्च 1991, पृ. 122)

फटफटाना क्रि. (अक.) -- व्याकुल होना, परेशान होना, (क) कविराज महोदय विचार-परंपरा के जाल में परकटी कल्पना को लेकर फटफटाने लगे। (माधुरीः अग.-सित. 1928, पृ. 163), (ख) उन दिनों जब मैं जवाहर को इस तरह इधर से उधर फटफटाते देखता तो मेरे मन में एक सवाल आता। (न. ग. र., खं. 3, पृ. 36)

फटे में पैर डालना मुहा. -- (दूसरे की) समस्या को बढ़ाना, रूस को अपने अलग विचार रखने का अधिकार है और दूसरों के फटे में कोई भी सहर्ष पैर क्यों डालना चाहेगा ? (रा. मा. संच. 1, पृ. 123)

फट्‍ट करना था कर देना मुहा. -- फोड़ देना, फाड़ देना, नीलामी के गुब्बारे को फट्‍ट कर देंगे। (क. ला. मिश्रः त. प. या., प. 137)

फड़क उठना मुहा. -- सहसा प्रसन्‍न हो उठना, उमंग में आना, मौलाबख्श का गाना सुनकर वह फड़क उठा। (सर., जन.-फर. 1916, पृ. 51)

फड़काना क्रि. (सक.) -- फड़फड़ाना, पर फड़फड़ करना, चिड़ियों के पर भीगे हुए हैं, फड़काकर पानी झाड़ लेती हैं। (का. कार. : नि., पृ. 5)

फड़फड़ाना क्रि. (अक.) -- छटपटाना, व्याकुल होना, हमारे नेता राजनैतिक स्वतंत्रता के लिए तो फड़फड़ा रहे हैं। (गु. र., खं. 1, प. 149)

फतहपेंची सं. (स्त्री.) -- जीतने का झाँसा, प्रत्येक प्रस्थान और प्रवेश में वह फतहपेंची लटक-मटक दिखाती है। (शि. पू. र., खं. 3, पृ. 178)

फतहयाबी सं. (स्त्री.) -- सफलता, विजय, विजयश्री, तुम्हारी ही होशियारी, बहादुरी और कारगुजारी पर इस लड़ाई की फतहयाबी मुनहसिर है। (सर., अक्‍तू. 1924, पृ. 1137)

फंद-कमंद सं. (स्त्री.) -- सम्मोहन-शक्‍ति, आपकी जबान में एक अजीब फंद-कमंद है। (म.का मतः क.शि., 18 जुलाई 1925, पृ. 186)

फंद सं. (पु.) -- छल, धोखा, जाल, यहाँ तुम्हारी फंद नहीं चलेगी। (काद., जुलाई 1961, पृ. 45)

फँदाना क्रि. (अक.) -- फाँदा जाना, यह बात आनंद की सीमा फँदाने से बाज नहीं आती। (शि. पू. र., खं. 3, पृ. 365)

फंदाफितुरी सं. (स्त्री.) -- शरारत-भरी चाल, दगाबाजी, नागपुर के महाराष्‍ट्र ने श्री तांबे के फार्म को फंदाफितुरी कहा है। (मा. च. रच., खं. 10, पृ. 79)

फँदियाना क्रि. (सक.) -- लपेटना, वे पानी भर चुकी थीं, उबहनी फँदिया रही थीं। (निरु. : निराला, पृ. 67)

फन फैलाना मुहा. -- झपट्‍टा मारने के लिए तैयार होना, विश्‍वासघात के साँप फन फैलाने लगे हैं। (शत. खि., ह. कृ. प्रे., पृ. 72)

फन सं. (पु.) -- कला, हुनर, इस फन में तो आप माहिर हैं ही। (दिन., 30 जुलाई, 1965, पृ. 10)

फनफनाकर क्रि. वि. -- आवेशपूर्वक, जोर-शोर से, आत्मविश्‍वास उनके भीतर एक बार फिर से फनफनाकर उठ खड़ा हुआ। (रा. द., श्रीला. शु., पृ. 349)

फनफनाना क्रि. (अक.) -- साँप की तरह आवेश में आना, गुस्सा होना, दिन-रात घर में फनफनाते घूमते थे। (काद., मार्च 1994, पृ. 104)

फफकना क्रि. (अक.) -- जोर-जोर से रोना, उसके माता-पिता बेहद फफके। (काद., जुलाई 1961, पृ. 20)

फफोला सं. (पु.) -- छाला, वे समय-समय पर विद्वेष के फफोले फोड़ने में ही अपने कर्तव्य की इति मानते हैं। (मा. च. रच., खं. 2 पृ. 36)

फबती सं. (स्त्री.) -- व्यंग्य रूप में कही ऐसी बात जो सही उतरती हो, सटीक व्यंग्य, भिन्‍न मत प्रकट करनेवालों को अरब देशों के लोगों से यह फबती सुननी पड़ती है। (दिन., 4 जून, 67, पृ. 11)

फबन सं. (स्त्री.) -- छवि, शोभा, कोई और फबन उसके चेहरे पर झलकने लगी। (काद. : जून 1982, प. 41)

फबना क्रि. (अक.) -- शोभा देना, शोभना, (क) जान पड़ता है कि अवधी के साथ भोजपुरी का नाम फबता नहीं है। (शि. पू. र., खं. 3, पृ. 352), (ख) कुछ रंग शरीर पर फबते हैं। (दिन., 16 अप्रैल, 67, पृ. 39), (ग)इस पर उन्होंने फबती हुई कल्पना की है कि जो यूनानी भक्‍तिमार्ग के विष्णु भागवत संप्रदाय का अनुयायी हो और जिसने विष्णुमंदिर में गरुड़ध्वज बनाया हो। (चं. श. गु. र., खं. 2 प. 172)

फरफराना क्रि. (अक.) -- तड़पना, चुल्लू भर पानी में ही शफरी फरफरा रही है। (म. का मत: क. शि., 14 नव. 1925, पृ. 193)

फरारी सं. (स्त्री.) -- फरार होने की क्रिया या भाव, फरारी का पहला सबक आजाद से ही मुझे मिला था। (विप्लव (आजाद अंक) सं. यश., पृ. 34)

फरीक सं. (पु.) -- विवादी पक्षों में से कोई एक, दूसरा फरीक श्री तेजबहादुर सप्रू को अपना वकील बनाता था। (काद., अग. 1987, प. 149)

फरुहा वि. (विका.) -- अधपका, फरुही इमली और टिकोरों से न जाने इतनी प्रीत इस किशोरावस्था में होती है। (दिन., 7 अप्रैल, 67, पृ. 39)

फर्जबरदारी सं. (स्त्री.) -- कर्तव्य-निर्वाह, हिंदुस्तानी सभ्यता का तकाजा है कि पहले आपसदारी तब फर्जबरदारी। (क. ला. मिश्रः त. प. या., पृ. 55)

फर्राटा-बैनी सं. (स्त्री.) -- फर्राटे से बोलनेवाली स्‍त्री, यह कतरनी-वरदान सारे संसार की स्‍त्रियों को मिला है, जिन्हें हम कहते हैं फर्राटा-बैनी। (दिन., 7 जन. 1966, प. 10)

फलाँ वि. (अवि.) -- अमुक, उससे भारतीय संस्कृति के फलाँ सनातन मूल्य की स्थापना हुई। (हि. ध., प्र. जो., पृ. 209)

फलाँगना क्रि. (सक.) -- लाँघना, (क) सफलताओं की सीढ़ियाँ फलाँगती आज वे अनुकरणीय बन गई हैं। (स. दा. : अ. नं. मिश्र, पृ. 79), (ख) तहजीब की देहरी किसी न नहीं फलाँगी। (काद.,. सित. 1981, पृ. 46)

फसकना क्रि. (अक.) -- खिंचाव से फटना, धसकना, खिसकना, डब्बे में बहुत सा सामान ठूँस दिया जाय और वह जगह-जगह से फसक पड़े। (दिन., 25 फर. 1966, पृ. 25)

फसली बटेर मुहा. -- अवसरवादी, फसली बटेरों से बचकर रहना चाहिए। (रावि., 4 जुलाई 1981, पृ. 44)

फसादी वि. (विका.) -- झगड़ालू, लड़ाई-झगड़ा करनेवाला, सभाओं में वे लोग न लिए जाएँ जो बुरे और फसादी हैं। (सर., जून 1926, पृ. 731)

फसाना सं. (पु.) -- अफसाना, मनगढ़ंत किस्सा, जब कुछ न बने तो बनता है फसाना। (काद., जन. 1992, पृ. 124)

फसील सं. (स्त्री.) -- चार-दीवारी, परकोटा, वह दुर्गम दीवार की फसील पर चढ़कर अपने चारों ओर निगाह डालता है। (सर., अप्रैल 1922, पृ. 269)

फाँक सं. (स्त्री.) -- टुकड़ा, (क) रिबब्लिक पार्टी आज कितनी फाँकों में बँटी हुई है। (लो. स., 14 जन. 1989, पृ. 39), (ख) उन्हीं फाँकों में से होकर दूल भीतर घुसती है और दूसरी फाँक से बाहर निकल जाती है। (सर., फर. 1943, पृ. 96)

फाका सं. (पु.) -- भोजन न मिलने पर होनेवाला उपवास, लंघन, (क) लाखों लोगों को फाका करना पड़ता है। (दिन., 11 अक्‍तू., 1970स पृ. 9), (ख) खाने को कुछ मिलता नहीं बस फाका हो रहा है। (कर्म., 20 सित. 1958, पृ. 1)

फाकामस्ती सं. (स्त्री.) -- 1.भूखे रहने पर भी प्रसन्‍न रहने का भाव, 2. भुखमरी, (क) हम भूल गए कि इससे वास्तविक फाकामस्ती की नौबत आ जाएगी। (दिन., 2 दिस., 66, प. 12), (ख) त्यागपत्र देकर पुनः अपनी फाकामस्ती में लौट आए। (मि. ते. सु. चौ., पृ. 26), (ग)कई रातें फाकामस्ती में गुजारना पड़ीं। (मधुकर, 1 अक्‍तू. 1940, पृ. 201)

फाकेकशी सं. (स्त्री.) -- भूखा रह जाना, भूखे रहने की अवस्था, यदि अन्य देशों से खाद्य सामग्री वहाँ न पहुँचे तो फाकेकशी की नौबत आ जाय। (सर., मई 1925, पृ. 595)

फाँकों में बँटना मुहा. -- टुकड़े-टुकड़े होना, गुटों में बँटना, रिपब्लिक पार्टी आज कितनी फाँकों में बँटी हुई है। (लो. स., 14 जन. 1989, पृ. 39)

फाखता उड़ाना मुहा. -- खेल-कूद में मस्त रहना, मौज मस्ती करना, फाखता उड़ानेवाले दिन अब नहीं रह गए। (म. का मतः क. शि., 13 अक्‍तू. 1928, पृ. 255)

फाँट सं. (पु.) -- काढ़ा, रस, दिमाग की (के) इस फाँट को छिपाने के लिए तरह-तरह के तर्क इस्तेमाल किए जाते हैं। (दिन., 19 जुलाई, 1970, पृ. 7)

फाटका सं. (पु.) -- सट्‍टा, सट्‍टेबाजी, वहाँ फाटका और दलाली के लिए भी बहुत बड़ी गुंजाइश हो गई। (नि. वा. : श्रीना. च., पृ. 84)

फारिग होना मुहा. -- छुट्‍टी पाना, मुक्‍त होना, (क) नौकरी से फारिग होने के बावजूद चार बजे का अलार्म लगाना नहीं भूलते। (साक्षा., मार्च-मई 77, मृ. पां. पृ. 28), (ख) इसके बाद वे नित्य क्रियाओं से फारिग होते थे। (काद., मार्च 1991, पृ. 105), (ग)अपन टी. वी. देखने की मजबूरी से फारिंग हो गए। (हि. ध., प्र. जो., प. 354)

फालिन होना मुहा. -- बिफर पड़ना, कोई और न मिला तो बाप पर ही फालिन हो गए। (रा. द., श्रीला. शु. पृ. 394)

फालिया सं. (पु.) -- गाँव की पट्‍टी, पूरे ग्राम या फालिए पर डाका डाला जाता है। (काद., जन. 1979, प. 72)

फाँस सं. (स्त्री.) -- शरीर में चुभा हुआ लकड़ी का पतला टुकड़ा, चुभनेवाली बात आपके साहित्य की मिसरी में इस बाँस की फाँस को घुसेड़ने का उत्तरदायित्व आपका है। (चं. श. गु. र., खं. 2 2, पृ. 405)

फाँसना क्रि. (सक.) -- फँसाना, पकड़ में लाना, (क) बेबुनियाद आरोप लगाकर तरह-तरह के मुकदमों में फाँसना ही उद्‍देश्य है। (दिन., 18 फर., 68, पृ. 21), (ख) एक मिलनेवाले के नाम से उन्हें कुछ कम सूद पर रुपया दे दिया और इस तरह उनके मकान को फाँस लिया था। (सर., नव. 1921, पृ. 279)

फिकरा कसना मुहा. -- व्यंग्य करना, कटाक्ष करना, दीवाली बंद करो, होली मत मनाओ आदि-आदि के फिकरे कसने लगते हैं। (नि. वा. : श्रीना. च., पृ. 509)

फिकरा सं. (पु.) -- वाक्य, क्या घिसे-पिटे फिकरे उठा लाए ? (स. न. रा. गो. : भ. च. व., पृ. 160)

फिक्‍क से क्रि. वि. -- धीरे से, फुक्‍कन बनिए की बात पर फिक्‍क से हँस दिया। (काद . : अक्‍तू. 1981, पृ. 50)

फिंचना क्रि. (अक.) -- बार-बार पटका जाना, संघर्ष की चट्‍टानों पर मेरी भावनाएँ फिंचती रही हैं। (स्मृ. वा. : जा. व. शा., पृ. 109)

फितूर सं. (पु.) -- खुराफात, शरारत, (क) उसके दिमाग में फितूर उठा। (काद., फर. 1968, पृ. 91), (ख) दस वर्ष पूर्व यह चेतावनी विशेषज्ञों के दिमाग का फितूर समझी जाती थी। (दिन., 25 अप्रैल 1971, पृ. 24), (ग)विद्यार्थियों के दिमाग में तरह-तरह के फितूर भरे हैं। (दिन., 16 सित., 66, प. 44)

फिरकापरस्ती सं. (स्त्री.) -- संप्रदायवाद, सांप्रदायिकता, उस राज्य के कामकाज में जितनी फिरकापरस्ती है, वह बिहार को भी मात करती है। (स. ब. दे. : रा. मा. (भाग-दो), पृ. 29)

फिरकावाराना वि. (अवि.) -- सांप्रदायिक, रुपया देकर अपने आदमी भेजकर फिरकावाराना झगड़ा खड़ा कर दिया जाए। (विप्लव (आजाद अंक) सं. यश., पृ. 4)

फिरंट वि. (अवि.) -- विरोधी, वैरी, (क) काबुल आजकल इंग्लैंड और अँगरेजों से जितना फिरंट है उसका परिचय देने की आवश्यकता नहीं। (ग. शं. वि. रच., खं. 3, पृ. 87), (ख) देशबंधु और नेहरू आदि शुरू से ही फिरंट थे। (म. का. मतः क. शि., 22 सित. 1923, पृ. 120)

फिरना क्रि. (अक.) -- राय बदलना, मत परिवर्तित करना, गाँवों के फिरने के मानी हैं पुलिस और फौज का बागी होना। (वि. भा., जन. 1928, सं. 1, पृ. 76)

फिराक सं. (स्त्री.) -- खयाल, धुन, सभी लोग इस बात की फिराक में हैं कि संकट से उबरने का कोई रास्ता ढूँढ़ा जाए। (दिन., 21 फर., 1971, पृ. 37)

फिराना क्रि. (सक.) -- घुमाना, प्रांत-प्रांत के नेताओं के पास प्रस्ताव फिराया जाकर 1885 में पूना में कांग्रेस करना विचारा गया। (गु. र., खं. 1, पृ. 325)

फिसड्‍डी वि. (अवि.) -- सबसे पीछे या नीचे रहनेवाला, निम्‍नस्तर का, पिछड़ा हुआ, (क) ऐसे ही फिसड्‍डी दानवीरों की ओर इशारा करके कवि कहता है। (शि. पू. र., खं. 3, पृ. 68), (ख) सूचना क्रांति की इस दौड़ में हम फिसड्‍डी न रहे यह प्रयत्‍न जरूरी है। (रवि. 13 सित. 989, पृ. 5), (ग)जिन-जिन देशों में कच्‍चा लोहा निकलता है, उनमें हिंदुस्तान फिसड्‍डी है। (माधुरी, 31 मार्च 1925, सं. 3, पृ. 573)

फिसड्‍डीपन सं. (पु.) -- फिसड्‍डी होने की अवस्था या भाव, पिछड़ापन, सरकार के फिसड्‍डीपन से बिचौलियों की बन आई। (ज. स. : 9 फर. 1984, पृ. 5)

फिसफिसा वि. (विका.) -- फुसफुसा, खोखला, बेकार, ऐसी फिसफिसी बातें तुम्हारे भेजे में कैसे घर कर गईं। (शि. से. : श्या. सुं.घो., पृ. 89)

फिसाद सं. (पु.) -- फसाद, झगड़ा, बखेड़ा, उनकी तरह से किसी तरह का फिसाद नहीं खड़ा होगा। (स. न. रा. गो. : भ. च. व., पृ. 195)

फिस्स कर देना मुहा. -- हवा निकाल देना, बेदम कर देना, योजना और रणनीति को फिस्स कर दिया है। (हि. ध., प्र. जो., पृ. 272)

फुक्‍कस वि. (अवि.) -- व्यर्थ, निरर्थक, कांशी-मुलायम की यह कोशिश कि बिहार में गरीबों का राज नहीं बने, फुक्‍कस हो जाएगी। (किल., सं. म. श्री., पृ. 173)

फुटकर वि. (अवि., बहु.) -- छोटे-मोटे या तरह-तरह के, धार्मिक एवं साहित्यिक ग्रंथों से आप केवल घटनाओं के फुटकर निर्देश इकट्‍ठे कर सकते हैं। (सर., भाग 28, सं. 3, मार्च 1927, पृ. 293)

फुट्‍ट-फैयल वि. (अवि.) -- फूट डालनेवाला, क्या वास्तव में फुट्‍ट-फैयल नीति से चलना ही हमारा अभ्यास हो गया है। (न. ग. र., खं. 4, पृ. 335)

फुट्‍टफेरी सं. (स्त्री.) -- फूट डालने की युक्‍ति, फुट्‍टफेरी नहीं समझे। यह ससुरा बड़ा लासेबाज था। (रा. द., श्रीला. शु., पृ. 88)

फुट्‍टल वि. (अवि.) -- फूटा हुआ, टूटा-फूटा छोटा सा उजड़ा गाँव, खबड़ी फुट्‍टल सड़कें। (काद. : अक्‍तू. 1981, पृ. 48)

फुदकना क्रि. (अक.) -- उछलना, शब्द तो इतने मधुर हैं कि इन्हें पढ़कर किसानों के मनोदेवता फुदक उठें। (मा. च. रच., खं. 10, पृ. 157)

फुनगी सं. (स्त्री.) -- डाल का सिरा, सामने के पेड़ की फुनगी पर बैठकर बुलबुल की तरह कोई तराना छेड़ देंगे। (रा. द., श्रीला. शु., पृ. 238)

फुफ्फुस वि. (अवि.) -- फुसफुसा, भंगुर, कमजोर, विकास की कोई स्पष्‍ट नीति नहीं है, उसका आधार ही फुफ्फुस है। (रवि. 19 अप्रैल 1980, पृ. 32)

फुर से उड़ना या उड़ जाना मुहा. -- सहसा अदृश्य, विलीन या समाप्‍त हो जाना, उसकी सारी उत्सुकता फुर से उड़ गई। (म. का. मतः क. शि., 3 जन. 1925, पृ. 179)

फुरहरी सं. (स्त्री.) -- सिहरन, रोमांच फुरहरी कुछ वैसी ही है जैसी कि जून 1954 में चाऊ इन लाई की दिल्ली यात्रा के बाद पंचशील पर दस्तखत करते समय देश को हुई थी। (रा. मा. संच. 1, पृ. 121)

फुरेरा सं. (पु.) -- झंडी, पताका, हाथ में विजय का फुरेरा लहराते हुए एक दिन अकस्मात् उस कन्या के सामने आकर खड़ा हो जाता है। (सर., अक्‍तू. 1909, पृ. 443)

फुर्र होना या हो जाना मुहा. -- उड़ जाना, समाप्‍त हो जाना, आखिरश आपकी न्याय-निष्‍ठा के सामने सबका रोना-चिल्लाना फुर्र हो गया। (म. का मतः क. शि., 24 जन. 1925, पृ. 180)

फुलाना क्रि. (सक.) -- प्रसन्‍न करना, आपने जो मेरे को महत्त्वपूर्ण बातों से फुलाना चाहा है, उसका मैं कृतज्ञ ही नहीं प्रत्युत विस्मित होकर साक्षी हूँ। (चं. श. गु. र., खं. 2, प. 383)

फुल्ललोचन वि. (अवि.) -- अत्यधिक प्रसन्‍न, परीक्षा में उत्तीर्ण होने से वह फुल्ललोचन है। (काद., फर. 1987, पृ. 5)

फुसपुसा वि. (विका.) -- कमजोर, इसके बिना दोस्ती कुछ फुसफुसी, कुछ हल्की सी रहती है। (प्रे. स. क. : सर. प्रेस, पृ. 39)

फुसलाना क्रि. (सक.) -- बहकाना, बहलाना, वह रमेश सिप्पी को फुसलाने की कोशिश करने लगा। (रवि., 11 जन. 1981, पृ. 46)

फुसलाहट सं. (स्त्री.) -- फुसलाने की क्रिया या भाव, बहकावा, फुसलाहट में आकर टर्की के बल को जानते और अनुभव करते हुए भी अज्ञान बना रहा। (न. ग. र., खं. 2, पृ. 139)

फुस्स वि. (अवि.) -- व्यर्थ, निरर्थक, बेदम, नेहरू के विचार-बम जब भारत के दल-दलिया यथार्थ पर गिरते थे, तब वे फुस्स हो जाते थे। (रा. मा. संच. 1, पृ. 369)

फूँ-फाँ सं. (स्त्री.) -- शेखी, घमंड, आपकी लंबी-चौड़ी फूँ-फाँ और हू-हुल्लड़ देखकर तो यही प्रतीत होने लगता है कि न जाने कैसी भारी बात आप कहेंगे। (म. प्र. द्वि., खं. 1 पृ. 399)

फूँक डलाना मुहा. -- झाड़-फूँक कराना, यदि लड़के की तबीयत खराब है तो किसी जंतर-मंतरवाले आदमी से फूँक डला दो। (सर., जुलाई 1915, पृ. 31)

फूक निकलना या निकल जाना मुहा. -- अकड़ न रह जाना, घमंड चूर हो जाना, पंजाबी में कहते हैं फूक निकल गई। (अंतराः अज्ञेय, पृ. 42)

फूँक निकलना या निकल जाना मुहा. -- शक्‍ति क्षीण होना, मुद्रा स्फीति के कारण दो-तीन वर्ष में उसकी फूँक निकल जाती है। (ज. स. : 23 फर. 1984, पृ. 4)

फूँक-फूँककर कदम उठाना मुहा. -- अत्यंत सावधानी से कोई कार्य करना, हमारे प्रकाशक बाजार का रंग-ढंग देखकर फूँक-फूँककर कदम उठाते हैं। (शि. पू. र., खं. 3, पृ. 268)

फूँक-फूँककर पाँव धरना / रखना मुहा. -- अत्यंत सतर्कता बरतना, अपनी टोली के दोषों की बात पर फूँक-फूँककर पाँव धरते हैं। (गु. र., खं. 1, पृ. 430)

फूँक-मराई सं. (स्त्री.) -- झाड़-फूँक, जब ये नुस्खेबाज नीम-हकीम ... रेडियो से टेलीविजन में चले आए तो अपने साथ चमचागिरी और फूँक-मराई का वह तमाम तामझाम लेते चले आए जो आकाशवाणी को बंबइया फिल्मी दुनिया का गुटका-संस्करण बना चुका है। (दिन., 16 जुलाई 1965, पृ. 41)

फूँकना-तापना मुहा. -- बुरी तरह खर्च करना, अपव्यय करना, (क) सुबह कुबेर का खजाना अगर मिल जाए तो शाम तक फूँक-तापकर छुट्‍टी। (शि. पू. र., खं. 4, पृ. 228), (ख) उसी के नशे में पड़कर सैकड़ों मनुष्यों ने अपनी संपत्ति और अपना स्वास्थ्य फूँक-तापा है। (सर., नव. 1920, पृ. 262), (ग)जिसने धर्म की मर्यादा को फूँक-तापा वह इनसाफ की गरदन पर छुरी फेरते काहे को हिचकेगा। (भ. नि., पृ. 35)

फूटी आँख नहीं भाना मुहा. -- अत्यंत अप्रिय लगना, वृद्धों को वर्तमान पीढ़ी की दुनिया फूटी आँख नहीं भाती। (दिन., 11 मार्च 1966, पृ. 27)

फूटी आँख नहीं सुहाना मुहा. -- अत्यंत अप्रिय लगना, (क) अधिकार के बिंदु के रूप में सामने आए जयप्रकाश नारायण उन्हें सत्ता, कोई भी सत्ता, फूटी आँखों नहीं सुहाती थी। (रा. मा. संच. 1, पृ. 403), (ख) पास्तरनाक का कोई भी रचनात्मक कार्य सोवियत कम्युनिस्ट पार्टी को कभी फूटी आँखों नहीं सुहाया था। (दिन., 30 अप्रैल, 67, पृ. 41)

फूटी आँखों न देखना मुहा. -- अत्यंत अपेक्षा या घृणा करना, उस शक्‍ति ने अपना दमन-चक्र घुमाया है, जो स्वतंत्र भारत की विचारधारा को बढ़ते हुए फूटी आँखों देखना पसंद नहीं करती। (ग. शं. वि. रच., खं. 1 पृ. 100)

फूटी निगाह से न देखना मुहा. -- अत्यंत घृणा या उपेक्षा करना, प्रकाशक काफी पैसा बना लेते हैं, पर वे फिर कभी लेखक की ओर फूटी निगाह से भी नहीं देखते। (शि. पू. र., खं. 4, पृ. 572)

फूँदा सं. (पु.) -- झब्बा, फुँदना, इस गहने की डोर पीछे बँधी हुई है और उसके फूँदे लटक रहे हैं। (चं. श. गु. र., खं. 2, पृ. 233)

फूलकर कुप्पा होना या हो जाना मुहा. -- अतिप्रसन्‍न होना, (क) उक्‍त निष्‍पक्ष बातें अखबारों में पढ़ते ही मारे प्रसन्‍नता के हम तो फूलकर कुप्पा हो गए। (मत., म. प्र. से. वर्ष 5, सितं. 1927, मुखपृष्‍ठ), (ख) विषय-सूची ही भेजी हुई मान ली यह देखकर मैं फूलकर कुप्पा हो गया। (क. ला. मिश्रः त. प. या., पृ. 19), (ग)मेढ़की अपने को घोड़ों की नानी समझती और फूलकर कुप्पा हो जाती। (न. ग. र., खं. 4, पृ. 332)

फूला फिरना मुहा. -- जगह-जगह प्रसन्‍नता प्रकट करना, इस नारद मोह की सूरत पर हमारा देश फूला फिरता है। (मा. च. रच., खं. 2, पृ. 28)

फूले अंग न समाना मुहा. -- अत्यधिक प्रसन्‍न होना, देहली के लाला शंकरलाल की रिहाई पर अमृत बाजार पत्रिका फूले अंग न समाई। (ग. शं. वि. रच., खं. 1, पृ. 82)

फूले नहीं समाना मुहा. -- अत्यधिक प्रसन्‍न होना, वे फूले नहीं समाते हैं यह देखकर कि भारत के राजे-रजवाड़े और धनी लोग साम्राज्य के भक्‍त हैं। (न. ग. र. खं. 2, पृ. 111)

फूले सं. (पु. बहु.) -- भुने हुए ज्वार, बाजरा अथवा मक्‍के के दाने, गुड़ और ज्वार के थोड़े से फूले प्रसाद में बाँटे। (फा. दि. चा., वृ. व. ला. व. समग्र, पृ. 567)

फूहड़ वि. (अवि.) -- ओछा, अभद्र, यदि वह कुछ था तो हिंदुओं की धार्मिक भावनाएँ भड़काने का फूहड़ प्रयास था। (हि. ध., प्र. जो., पृ. 279)

फेंटना क्रि. (सक.) -- घाल-मेल करना, मिलाना, मैं यह नहीं कहता कि कृष्णचंद्र अपनी आत्मकथा में सच में झूठ नहीं फेंटते। (रवि. 12 नव. 1977, पृ. 24)

फेर बिगड़ जाना मुहा. -- क्रम गड़बड़ा जाना, व्यवस्थित क्रम बिगड़ जाना, पार साल किए बिटिया के ब्याह से उनका फेर बिगड़ गया। (वि. भा., जन. 1928, सं. 1, पृ. 176)

फेर में पड़ना मुहा. -- चक्‍कर में पड़ना, चक्‍कर में आना, किसी के बहकावे में आ जाना, (क) ओडायर को जाननेवाला कभी भूलकर भी इस कल्पना के फेर में नहीं पड़ सकता। (स. सा., प. 115), (ख) कामेडी के फेर में पड़कर ब्राडवे ने अपनी प्रतिष्‍ठा खो दी। (दिन., 25 जून, 67, पृ. 43)

फेर सं. (पु.) -- जुगाड़, व्यवस्था, क्रम, पार साल किए बिटिया के ब्याह से उनका फेर बिगड़ गया। (वि. भा., जन. 1928, सं. 1, पृ. 176)

फेरना, फेर देना क्रि. (सक.) -- 1. मोड़ना, घुमाना, (क) अब अपना रुख जरा मेल-मिलाप की बातों की ओर फेरिए। (मा. च. रच., खं. 9, पृ. 32), (ख) फिर वे अपने महल के चौक में घोड़े फेरती थीं। (म. प्र. द्वि., खं. 5, पृ. 133), 2. विमुख कर देना, इन्हीं खयालातों ने मनुष्य के मन को इस घृणित रीति से फेर भी दिया। (सर., मार्च 1911, पृ. 121)

फेरफार सं. (पु.) -- फेरबदल, बदलाव, परिवर्तन, (क) दूसरे ग्रंथों में भी यह हाल कुछ फेरफार से लिखा गया है। (सर., सित. 1922, भाग-23, खं. 2, सं. 3, पृ. 176), (ख) कवियों का जो समय विनोद में दिया गया है। उसमें फेरफार करना होगा। (माधुरी, 31 मार्च 1925, सं. 3, पृ. 414), (ग)इन फेरफारों के संबंध में कमिटी के कई मेंबर एकमत न हो सके। (सर., मार्च 1925, पृ. 369)

फेरा करना मुहा. -- चक्‍कर लगाना, कहीं 30 साल में आप फेरा करते हैं तो कहीं 20 साल में ही आप आ धमकते हैं। (ग. शं. वि. रच., खं. 2, पृ. 73)

फेल सं. (पु.) -- दुष्कर्म, यह तुम्हारे कर्मों का प्रतिफल है, तुम्हारे फेलों का नतीजा है। (म. का. मतः क. शि., 12 अप्रैल 1924, पृ. 146)

फैल-फूट से क्रि. वि. (पद.) -- बिखर और बँटकर, फैल-फूट से हम उन पर विजय नहीं पा सकते। (ग. शं. वि. रच., खं. 2, पृ. 399)

फैशनिया वि. (अवि.) -- फैशनपरस्त, जिन्हें कम-से-कम दिल्ली के उन फैशनिया नारी मुक्‍तिवालों को जरूर पढ़ना चाहिए, (दिन., 7 जून 1980, प. 16)

फोकट में क्रि. वि. -- मुफ्त में, (क) एक पौआ और देना भाई, चाहो तो इसे फोकट में डाल देना। (रा. द., श्रीला. शु., पृ. 285), (ख) यों यह बायस्कोप फोकट में देखने लायक भी न ता। (दिन., 27 मई, 1966, पृ. 25)

फोकट वि. (अवि.) -- निर्धन, दीनहीन, यह नंबरी फोकट दलाल है। (प. परि. रेणु, पृ. 39)

फोकटिया वि. (अवि.) -- मुफ्तखोर, (क) नुमाइश मैच में पवेलियन के आसपास की सीटों में फोकटिया दर्शकों की भीड़ रही। (दिन., 6 जन., 67, पृ. 15), (ख) साधन जुटाने की कोशिश में उसके पल्ले पड़ता है फोकटिया दर्शक। (दिन., 14 जून, 1970, पृ. 44), (ग)हमारे पातुर में आज चार लोगों के पास भी वह फोकटिया आया नहीं होगा। (रवि., 4 जुलाई 1981, पृ. 17)

फोकटी वि. (अवि.) -- मुफ्त का, यह फोकटी बहादुरी के लिए नहीं कह रहा हूँ। (हि. ध., प्र. जो., पृ. 70)

फौज-फाटा सं. (पु.) -- अमला, कर्मचारी-वर्ग, (क) यही समझकर सरकार फौज-फाटा से चुस्त दुरुस्त रहती है और उसे कम नहीं कर सकती। (सर., भाग-25, खं. 1, अप्रैल 1924, सं. 4, पृ. 399), (ख) फौज-फाटा के लिए सरकार को करोड़ों रुपए दरकार होते हैं। (माधुरी, जन. 1925, सं. 1, पृ. 3)

फौरी वि. (अवि.) -- किसी घटना के तुरंत बाद अर्थात् तत्क्षण किया जानेवाला, अगर वे क्रिकेट टीमों के प्रदर्शन पर फौरी टिप्पणी करेंगे तो बड़ी मुश्किल हो जाएगी। (ज. स., प्र. जो., 5 नव. 2006, पृ. 6)

फौलादी पंजा सं. (पु., पद.) -- कठोर नियंत्रण, कठोर शासन, (क) इस फौलादी पंजे से मुक्‍त होने के लिए जनता सबकुछ करने और सहने के लिए तैयार है। (म. का मतः क. शि., 4 फर. 1928स पृ. 253), (ख) बहुत समय तक एशिया यूरोप के फौलादी पंजे के नीचे दबा रहा। (वि. भा., जन. 1928, सं. 1 पृ. 113)

बकझक सं. (स्त्री.) -- निरर्थक बातचीत, बकवास, (क) शिक्षा के उद्‍देश्यों के संबंध में इन दस वर्षों में हुई बकझक के सारे दकियानूसी शब्द मंगलम ने ... , (दिन., 1 अक्‍तू. 1972, पृ. 8), (ख) कहाँ ईश्‍वरीय शक्‍ति का वेग और कहाँ जबानी जमाखर्च चुकानेवालों की बकझक। (म. का मतः क. शि., 9 मई 1925, पृ. 73), (ग)एक दिन मामी मेरी बकझक से व्याकुल होकर बोलीं। (बे. ग्रं., प्र. खं., पृ. 40)

बकटुट क्रि. वि. -- बगटुट, अत्यंत वेग से, मंच के नीचे कूदा और बकटुट घर की राह ली। (काद., मार्च 1976, पृ. 123)

बकत सं. (स्त्री.) -- महत्त्व, जिनकी बात की बकत है उनकी उपेक्षा भी तो नहीं की जा सकती। (सर., जन-जून 1931, सं. 1, प. 194)

बकना क्रि. (अक.) -- प्रलाप करना, बकबक करना, बकवास करना, (क) बकने के सिवाय प्रजा के प्रतिनिधियों को और क्या अधिकार दिया गया है। (मा. च. रच., खं. 9, पृ. 59), (ख) सरकार उनकी बातों को उस पागल की बड़-बड़ से अधिक नहीं समझती, जो समय-समय पर कुछ बक जाया करता है। (ग. शं. वि. रच., खं. 2, पृ. 56)

बकबक सं. (स्त्री.) -- व्यर्थ की बातचीत, (क) बस अपना काम करो और बकबक की ओर त्रिवेणी में कूदनेवालों को पीछे रहने दो। (चं. श. गु. र., खं. 2 पृ. 367), (ख) प्रतिनिधि सभाओं का काम बकबक करना है। (गु. र., खं. 1, पृ. 329)

बकबकी वि. (अवि.) -- बकबक करनेवाला, केवल बातें-ही-बातें करते रहनेवाला, उन्हें सलाह दी जाती है कि इस बकबकी मध्यम वर्ग को रिझाने से जयादा शक्‍ति खर्च करना फिजूल है। (स. ब. दे. : रा. मा. (भाग-दो), पृ. 187)

बकमौन वि. (अवि.) -- बगुले की तरह मौन, पूर्ण रूप से शांत, यह निंदनीय है कि समाज का अहित होता रहा और तुम बकमौन बने रहे। (काद. : मई 1981, पृ. 10)

बकरकूद सं. (पु.) -- उछल-कूद, बहुत तरह की बातें फाँक जाने से पेट में वे बकरकूद मचाने लगती हैं। (म. प्र. द्वि. खं. 1, पृ. 303)

बकरना क्रि. (सक.) -- काटना, छाँटना, आपको अपने स्थानापन्‍न कलेक्टर की मूँछें कैंची से बकरनी हैं। (क. ला. मिश्रः त. प. या., पृ. 215)

बकवाद सं. (स्त्री.) -- व्यर्थ की बात, बकवास केवल वृथा की बकवाद ही गले पड़ जाती हैं। (म. प्र. द्वि., खं 1, पृ. 399)

बकुराना क्रि. (सक.) -- कबूलवाना, उगलवाना, रही साँप को बकुराने की बात, इसे तो हम झूठ समझते हैं। (सर., जुलाई 1913, पृ. 410)

बकोटना क्रि. (सक.) -- नाखूनों से नोचना, कुरेदना, (क) मेरे सामने आ जाता तो मैं उसका मुँह बकोट लेता। (सर., जन.-जून 1961, सं. 5, प. 565), (ख) वह उँगलियों से ही जमीन बकोटने लगा। (चि. फू., पृ. 36)

बखरा-बाँट सं. (स्त्री.) -- बँटवारा, विभाजन, भाई से बखरा-बाँट करने में साफ गंगा पी जाने हैं। (शि. पू. र., खं. 3, पृ. 496)

बखरा वि. (विका.) -- जोता हुआ, अर्नेस्टो ग्वेवरा ने बिना जुती, बिना बखरी जमीन पर बीज डाल दिए, इसलिए वे बेकार गए। (रा. मा. संच. 1, पृ. 39)

बखरी सं. (स्त्री.) -- मकान घर, बताया जा रहा है कि मुसलमानी सल्तनत के जमाने में रिआया-बखरी का कितना ध्यान रखा जाता था। (मा. च. रच., खं. 9, पृ. 213)

बखान सं. (पु.) -- वर्णन, (क) ये पंक्‍तियाँ तो हम उपन्यास या कहानियों के साहित्य की प्रभुता बखान करने के लिए नहीं लिखना चाहते। (मा. च. रच., खं. 4, पृ. 177), (ख) वैज्ञानिक उनके गुणों का बखान कर यश लेते हैं। (चं. श. गु. र., खं. 2, पृ. 269)

बखार सं. (पु.) -- वह पात्र के जैसा घेरा जिसमें किसान अनाज रखते हैं, कुठला, (क) लोगों से कहता था कि बखार में से निकालो और खाओ। (दिन., 3 मई, 1970, पृ. 26), (ख) गंगिया भाई ने बखार से बीज भी निकालने नहीं दिया। (रवि., 12 दिस. 1982, पृ. 42)

बखिए ढीले करना मुहा. -- शिथिल या पस्त करना, चार वर्ष से अधिक की इस लड़ाई ने उसके बखिए भी ढीले कर दिए हैं। (ग. शं. वि. रच., खं. 2, पृ. 531)

बखिया उधड़वाना मुहा. -- छीछालेदर कराना, बेइज्‍जती कराना, उसने तो अयोध्या में अपने बखिए उधड़वा लिये। (हि. ध., प्र. जो., पृ. 52)

बखिया उधेड़ना मुहा. -- छीछालेदर या कठोर आलोचना करना, (क) तत्कालीन रक्षामंत्री श्री मेनन की रीति-नीति की उन्होंने बखिया उधेड़ी। (दिन., 24 जन., 1971, पृ. 17), (ख) उसने जून के आरंभिक छह दिनों में अरबों के बखिए उखेड़ दिए। (रा. मा. संच. 1, पृ. 231)

बखेड़ा सं. (पु.) -- झमेला, झगड़ा, (क) रूहेलों का बखेड़ा मिटे, पीछे मालवा में जयसिंह के अधिकार में किसी प्रकार का क्लेश न हुआ। (गु. र., खं. 1, पृ. 217), (ख) किंतु उसने कांग्रेस दल में बखेड़े, विवाद और फूट डाल दी। (गु. र., खं. 1 पृ. 326), (ग)शाक्‍तों और स्मार्तों में भी इस तरह के कई बखेड़े हैं। (शि. पू. र., खं. 3, प. 289)

बखेर सं. (स्त्री.) -- फसल, विधाता की बेइख्तयार उगी हुई बखेर अथवा किसान की पेर-पेरकर कमाई हुई जमीन कलाकारों की सूझों के कदाचित् अधिक निकट पड़ती होगी। (मा. च. रच., खं. 3, पृ. 84)

बख्शिश सं. (स्त्री.) -- इनाम, पुरस्कार, उनके इस अधिक को बख्शिश समझा जाए। (मधुः अग. 1965, पृ. 12)

बगटुक क्रि. वि. -- बगटुट, सरपट, बड़ी तेजी से, समय बगटुक भागा जा रहा है। (काद. : मई 1975, पृ. 64)

बगल बजाना मुहा. -- भौंडे ढंग से प्रसन्‍नता प्रकट करना, हम इन सुधारों पर खुशी से बगल बजानेवालों में से नहीं। (ग. शं. वि. रच., खं. 3, पृ. 66)

बगलें झाँकना मुहा. -- इधर-उधर बच निकलने का उपाय सोचना या ढूँढ़ना, कन्‍नी काटना, भाग निकलने की राह ढूँढ़ना, (क) इस माँग पर रूसी नेता बगलें झाँकने लगे। (रा. मा. संच. 2, पृ. 26), (ख) पाकिस्तान दुनिया भर में यह ढिंढोरा पीटेगा कि नेहरू पंचशील और शांति की बातें करते हैं किंतु कश्मीरी जनता को आत्मनिर्णय का अधिकार देने में बगलें झाँकते हैं। (ते. द्वा. प्र. मि., पृ. 149), (ग)देश समझता है कि लोग समय पर बगलें झाँकनेवाले लोग हैं। (स. सा., पृ. 99)

बगाबग वि. (अवि.) -- झकाझक, हमेशा साफ-सुफेद बगाबग कपड़ा पहने रहतीं। (बे. ग्रं., प्रथम खं., पृ. 38)

बगारना क्रि. (सक.) -- फैलाना, खोलना, मुँह बगार-बगार किसी भले मानुष के गुण में दोष उद्‍घाटन करते। (भ. नि., पृ. 22)

बगासी सं. (स्त्री.) -- विवाद, इसी को हँसी की बगासी कहते हैं। (रा. न. दु. : 23 जून 2007)

बगुला भगत सं. (पु.) -- कपटी भगत, धूर्त व्यक्‍ति, इनमें से कुछ बगुला भगत भी होंगे, अन्यथा किसकी मजाल जो उनकी राष्‍ट्रीयता बदल दे। (दिन., 10 मार्च, 68, पृ. 10)

बगूला सं. (पु.) -- बवंडर, चक्रवात, एक बगूला ठीक उसी तरह सीधे खिंचकर उनके ऊपर आकर गिर रहा है। (काद., मार्च 1980, पृ. 46)

बघारना क्रि. (सक.) -- योग्यता प्रदर्शनार्थ बड़ी-बड़ी बातें कहना, तुम इसी तरह मुसकराकर ज्ञान की बातें बघारा करते थे। (शि. पू. र., खं. 3, पृ. 290)

बघारा वि. (विका.) -- छौंक-लगा, बघारी दाल के सिवा रोटियाँ नहीं उतरतीं। (सर., जून 1916, पृ. 286)

बचकाना वि. (विका.) -- बच्‍चों-जैसा , नादानी-भरा, अकाली दल की उग्र और बचकानी हरकतों को वोटर ने पसंद नहीं किया है। (रा. मा. संच. 1, पृ. 386)

बचा-खुचा वि. (विका.) -- शेष, रहा-सहा, (क) उस समय की जो कुछ बची- खुची कविता अब तक मिलती है वह आदर की वस्तु है। (गु. र., खं. 1, पृ. 389), (ख) प्रथम श्रेणी के हमारे बचे-खुचे नेता थके हुए हैं। (ते. द्वा. प्र. मि., पृ. 65), (ग)बची-खुची कसर छापामारों का पीछा करते हुए बम पूरी किए दे रहे हैं। (दिन., 25 फर., 68, पृ. 33)

बचा-बचाया वि. (विका.) -- शेष, बचा हुआ, अनबिका, हाथ से खोमचा छूटकर गिर पड़ा और बची-बचाई कचौरियाँ और जलेबियाँ धूलि में बिखर गईं। (सर., सित. 1937, पृ. 266)

बच्छा सं. (पु.) -- बछड़ा, गौ का बच्छे से कैसा प्यार होता है। (चं. श. गु. र., खं. 2 प. 309)

बछिया का ताऊ मुहा. -- मूर्ख व्यक्‍ति, (क) तिवाड़ीजी एक ऐसा बछिया का ताऊ ब्राह्मण खोज रहे थे जो मिले तो सस्ते दामों, पर हो उच्‍च श्रेणी का। (सर., फर. 1921, पृ. 120), (ख) जिस अर्थ में हम गधा का प्रयोग करते हैं, कुछ उसी से मिलते-जुलते अर्थ में बछिया के ताऊ का प्रयोग भी करते हैं। (प्रे. स. क. : सर. प्रेस, पृ. 39)

बछेरा सं. (पु.) -- गाय का बच्‍चा, बच्‍चा, मैं कुदकता बछेरा था मंजर भाई भारी भरकम नंदी थे। (क. ला. मिश्रः त. प. या., पृ. 61)

बजबजाया वि. (विका.) -- सड़न-भरा, हकीकत यह है कि दो बड़ी लड़ाइयाँ देखने के बाद जब से दुनिया एक बजबजाई हुई-सी चीज हो चली है। (दिन., 14 जन. 1966, पृ. 40)

बंजर वि. (अवि.) -- 1. अनुपजाऊ, 2. असंवेदनशील, हृदयहीन, आदमी इतना बंजर हो गया है कि उसमें संवेदना के अंकुर फूटना बंद हो गया है। (स. का. वि. : डॉ. प्र. श्रो., पृ. 21)

बजरबट्‍टू सं. (पु.) -- एक पेड़ का बीज जो बच्‍चे को नजर लगने से बचाता है, प्रभाव मुक्‍त रहनेवाला, वे लोग इसे नहीं समझेंगे जो प्रतिक्रिया में बजरबट्‍टू हुए मानते हैं। (हि. ध., प्र. जो., पृ. 63)

बजाज सं. (पु.) -- कपड़े का व्यापारी, स्वयं बजाजों ने इस आंदोलन में जिस स्वार्थ त्याग का परिचय अब तक दिया है ..., (सं. परा. : ल. शं. व्या., पृ. 216)

बटनी सं. (स्त्री.) -- बाँटी जानेवाली वस्तु, विवाहादि कार्यों में बटनी बाँटी जाती है। (श्र. सं. : मै. श. गु., पृ. 2)

बटमार सं. (पु.) -- राहजन, लुटेरा, बटमार तो रोज दो-चार पहुँचते हैं। (चाबुकः निराला, पृ. 12)

बटमारी सं. (स्त्री.) -- राहजनी, बटमारी की घटनाएँ बढ़ी हैं। (काद., अप्रैल 1979, पृ. 11)

बँटाई सं. (स्त्री.) -- बाँट, वितरण, जमीन के पट्‍टों की बँटाई के बाद कहने को अधिकांश हरिजन पट्‍टेदार हो गए हैं। (रवि., 12 अप्रैल 1981, पृ. 20)

बटाईदारी सं. (स्त्री.) -- एक प्रथा, जिसमें खेत जोतनेवाला खेत के मालिक को उपज का कुछ निश्‍चित अंश देता है, फिर भूमि हदबंदी तथा बटाईदारी कानून लागू होने पर सार्वजनिक न्यासों के हिस्से की काफी जमीन उनसे हट गई। (रवि., 29 नव. 1981, पृ. 17)

बंटाढार होना / हो जाना मुहा. -- चौपट हो जाना, नष्‍ट हो जाना अपने कर्तव्य को भूलता है तभी उसके कार्य का बंटाढार हो जाता है। (सुदर्शन, फर. 1902)

बंटाधार सं. (पु.) -- विनाश, किए कराए काम का बंटाधार हो गया। (काद., मई 1994, पृ. 7)

बटिया सं. (स्त्री.) -- छोटा बट्‍टा, पिंडी, बगीचे के किनारे एक बटिया है। (सर., मई 1943, पृ. 253)

बटु सं. (पु.) -- बालक, यह कविता तुरफा नाम के कवि की है। यह बटु कवि 20 वर्ष की आयु में मार डाला गया था। (सर., अप्रैल 1919, पृ. 175)

बटुआ सं. (पु.) -- बड़ी बटलोई, उस बटुए पर चर्चिल का नाम तथा रेजीमेंट गिलट से खुदे हुए थे। (दिन., 25 फर. 1966, पृ. 46)

बटेरबाजी का खेल मुहा. -- छोटे-छोटे पक्षियों (राष्‍ट्रों) का शिकार, बड़े राष्‍ट्र बटेरबाजी का खेल खेल रहे हैं। (दिन., 06 अग., 67, पृ. 7)

बटैया सं. (स्त्री.) -- छोटा बटखरा, अँगरेजी प्रांतों के झोले के एक कोने में बुंदेलखंड की बटैया पड़ गई। (मधुकर : जन., 1944, पृ. 448)

बटोरना क्रि. (सक.) -- एकत्रित करना, समेटना, जमा करना, (क) हजार खुशामदी आसानी से बटोर सकते हैं। (ब. दा. च. चु. प., संपा. ना. द., पृ. 379), (ख) गुप्‍तजी ने बुंदेलखंडी कहावतों का अच्छा संग्रह बटोरा है। (मधुकरः अप्रैल-अग. 1944, पृ. 72), (ग)अँगरेजी की बदौलत हमने जितना ज्ञान अर्जित किया है, उससे ज्यादा अज्ञान और मोह हमने बटोरा है। (दिन., 28 जन. 1968, पृ. 44)

बटोही सं. (पु.) -- यात्री, (क) मार्ग से हटकर अलग विश्राम करनेवाले बटोही की तरह वे इस संघर्ष-लीला को देख रहे हैं। (ग. शं. वि. रच., खं. 1, पृ. 370), (ख) बेचारे बटोही की खैरियत न होती। (ग. शं. वि. रच., खं. 1, पृ. 253)

बट्‍टा लगना मुहा. -- कलंकित होना, कलुषित होना, (क) उनसे (ऐसे लेखों से) हिंदी अखबारनवीसी में (पर) बट्‍टा लगता है। (गु. र., खं. 1, पृ. 411), (ख) यह ध्यान रखना चाहिए कि उससे संस्था के महत्त्व को बट्‍टा न लगे। (स. सा., पृ. 227), (ग)इतनी छोटी भूमिका से ग्रंथ के महत्त्व को बट्‍टा लगता है। (शि. पू. र., खं. 3, पृ. 370)

बट्‍टा लगाना मुहा. -- कलंक लगाना, धब्बा लगाना, कलंकित करना, (क) कार्यकर्ताओं की कारपरदाजी में जरा भी बट्‍टा न लगे। (म. प्र. द्वि. रच., खं. 2, पृ. 498), (ख) हमारी इज्‍जत पर बट्‍टा लगाकर अपनी जेब भरी थी। (ते. द्वा. प्र. मि., पृ. 51), (ग)जैसे ठप्पा लगाना उनकी महानता पर बट्‍टा लगाना है। (दिन., 9 सित. 1978, पृ. 10)

बट्‍टा सं. (पु.) -- कमीशन, हुंडियाँ खरीदने के समय बैंक बट्‍टा काट लेता है। (म. प्र. द्वि. रच., खं. 2, पृ. 206)

बट्‍टी सं. (स्त्री.) -- टिकिया, अपनी दुकान से चुराकर मूँगफली और लाल साबुन की एक बट्‍टी भी दी। (काद., जन. 1979, पृ. 76)

बट्‍टे से क्रि. वि. -- कमीशन देकर, जिस शासन में उच्‍च विचार और सद्‍भाव बट्‍टे से चलते हैं। (चं. श. गु. र., खं. 2, पृ. 383)

बट्‍टे-खाते में जाना मुहा. -- महत्त्व खो बैठना, वे ही बट्‍टे-खाते में गए। (ग. शं. वि. रच., खं. 2, पृ. 28)

बड़-छोटपन सं. (पु.) -- बड़े और छोटे का विचार या अंतर, वह बड़-छोटपन के बंधनों में नहीं घिरा। (ज. क. सं. : अज्ञेय, पृ. 126)

बड़प्पन सं. (पु.) -- बड़े होने का भाव, महत्ता, बड़ाई, (क) व्यक्‍तियों के बड़प्पन पर विचार न करते हुए वह ऊँचे सिद्धांतों को मानता है। (मा. च. रच., खं. 9, पृ. 227), (ख) माओ ने सत्ता और बड़प्पन के प्रतीक परमाणु बम के क्षेत्र की ओर पाँव बढ़ाया। (दिन., 9 सित., 66, पृ. 34)

बड़बड़ सं. (स्त्री.) -- बकबक, (क) सरकार ने स्वार्थियों और स्वार्थ पोषकों की धृष्‍टतापूर्ण बड़बड़ की अच्छी तरह उपेक्षा की। (ग. शं. वि. रच., खं. 2, प. 391), (ख) सरकार ने स्वार्थियों और स्वार्थ पोसकों की धृष्टता बड़ - बड़ की अच्छी तरह उपेक्षा की । (ग. शं. वि. रच., खं. 2, पृ. 391), (ख) सरकार उनकी बातों को उस पागल की बड़-बड़ से अधिक नहीं समझती जो समय-समय पर कुछ बक जाया करता है . (ग. शं. वि. रच., खं. 2, पृ. 56)

बड़बूदी सं. (स्त्री.) -- बड़बोलापन, इन लोगों की बड़बूदी के लिए सरकार कितना कष्‍ट उठाने को तैयार रहती है। (म. प्र. द्वि., खं. 9, पृ. 137)

बड़बोलापन सं. (पु.) -- शेखी बघारने का काम, संगमा की नियुक्‍ति और उनके बड़बोलेपन ने आयोग के पीछे के खेल की पोल खोल दी। (हि. ध., प्र. जो., पृ. 490)

बड़भागी वि. (अवि.) -- भाग्यशाली, (क) संतान और धनधान्य से संपन्‍न व्यक्‍ति बड़भागी ही होते हैं। (काद., जुलाई 1995, पृ. 7), (ख) यदि गाँवों में ही रोजगार मिल जाएँ तो य अपने को बड़भागी मानेंगे। (काद. : जन. 1989, पृ. 72)

बंडलबाजी सं. (स्त्री.) -- झूठमूठ की बातें करने की क्रिया या भाव, हांगकांग स्थित अखबारनंवीसों की बंडलबाजी के फसाने हैं। (दिन., 3 अक्‍तू. 1971, पृ. 32)

बड़वरक सं. (पु.) -- बड़ा आदमी, श्रेष्‍ठ व्यक्‍ति, सरकार से जो कर्ज मिलता है वह भी बड़वरकों (बड़े लोगों) को पहले मिलता है। (दिन., 23 दिस., 66, पृ. 23)

बड़ा कहीं का हून आया कहा. -- न जाने कहाँ का बहुत बड़ा अत्याचारी आया है, कोई बहुत गाल बजाता है तो भी कहते हैं, बड़ा कहीं का हून आया। (चं. श. गु. र., खं. 2, पृ. 213)

बड़ा बोल बोलना मुहा. -- डींग हाँकना, इंदिरा गांधी ने बड़ा बोल भले ही न बोले हों लेकिन भारत की ओर भी कुछ चल जरूर रहा है। (रा. मा. सं. 1, पृ. 111)

बड़े लाट सं. (पु.) -- बड़े साहब, गवर्नर जनरल, इस बार बड़े लाट के भाषण का जो हिंदी अनुवाद हमें मिला है वह वस्तुतः हिंदी में है। (सं. परा. : ल. शं. व्या., पृ. 64)

बढ़ती सं. (स्त्री.) -- वृद्धि, बढ़ोतरी, यद्यपि छोटे-छोटे जाति विशेष संबंधी पत्रों की बढ़ती हानिकारक है फिर भी उचित संपादन से वे बहुत हित कर सकते हैं। (गु. र., खं. 1, पृ. 430)

बढ़ा-चढ़ा वि. (विका.) -- उन्‍नत, विस्तृत, व्यापक, देश में इस समय जिस शासन प्रणाली का दौरा-दौरा है, निस्संदेह उसमें शासक दल के अधिकार बहुत बढ़े-चढ़े हैं। (ग. शं. वि. रच., खं. 2, पृ. 218)

बढ़ौती सं. (स्त्री.) -- बढ़ोतरी, बढ़ती, उसको देखते हुए गेहूँ के उत्पादन में बढ़ौती से शुभ खबर ... (दिन., 06 अक्‍तू. 1968, पृ. 10)

बतकही सं. (स्त्री.) -- बातचीत, ... हालाँकि केंद्रीय कक्ष में बतकहियाँ कम जरूरी नहीं हैं, (दिन., 21 फर. 1965, पृ. 13)

बतक्‍कड़ सं. (पु.) -- बहुत बातें करनेवाला, बातूनी, लेडियाँ बहुधा बड़ी बतक्‍कड़ होती हैं। (सर., अप्रैल 1911, पृ. 165)

बतंगड़ सं. (पु.) -- तूल दी हुई बात, तिल का ताड़, (क) बड़ी बात नहीं, एक बतंगड़ है। (का. कार. : निराला, पृ. 17), (ख) लेकिन लोगों ने उसका ऐसा बतंगड़ बना डाला कि सूत न कपास कोरी से लठालठी कहावत चरितार्थ होती है। (मधुकर : जन.-मई 1943, पृ. 275)

बतिया सं. (स्त्री.) -- फल का आरंभिक छोटा रूप, कुछ मिर्चे होंगे और कुछ ककड़ी की बतियाँ। (का. कार. : निराला, पृ. 30)

बत्ती लगाना मुहा. -- आग लगाना, माचिस दिखाना, असंतोष की जो सुरंग बिछ गई है उसमें बत्ती लगाने भर की देर है। (स. सा., पृ. 112)

बंद खत का मजमूँ भाँपना मुहा. -- दूर से ही रहस्य को भाँप लेना, बंद खत का मजमूँ भाँप लेनेवाले राजधानी के जो खबरखोर गोपनीय रहस्यों को रहस्य नहीं बना रहने देते। (दिन., 17 जून 1966, पृ. 23)

बदकारी सं. (स्त्री.) -- दुष्कर्म, कुकर्म, पाकिस्तान की बदनीयती एवं बदकारी को उजागर किया। (दिन., 7 फर., 1971, पृ. 11)

बंदनवार सं. (स्त्री.) -- फूल-पत्तियों की झालर, विजयश्री आज चीन की द्वार देहली पर बंदनवार बाँध रही है। (न. ग. र., खं. 2, पृ. 247)

बदबद क्रि. वि. -- (किसी चीज के जमीन पर गिरने पर) बदबद शब्द करते हुए, लोग कहते भी हैं कि बदबद आम टपक रहे हैं। (सर., फर. 1913, पृ. 114)

बदमजगी सं. (स्त्री.) -- मजा किरकिरा होने का भाव, हसमें समय और भ्रम का व्यर्थ नाश होता है और कभी-कभी बदमजगी भी पैदा हो जाती है। (सर., अग. 1916, पृ. 344)

बंदर-कूद सं. (स्त्री.) -- लंबी छलाँग, बंदर-कूद की बात इस देश के लिए कोई नई नहीं होनी चाहिए, लेकिन कीचड़ के चहबच्‍चों को पार कूदने की प्रतियोगिता का विचार कुछ नया जरूर मालूम होता है। (दिन., 4 मार्च 1966, पृ. 10)

बंदर-घुड़की सं. (स्त्री.) -- भभकी, झूठी धमकी, (क) तब बात-बात में घर के बड़े बंदर-घुड़की और कठोर शासन की योजना नहीं किया करते थे। (मत., म. प्र. से. वर्ष 5, सितं. 1927, पृ. 27), (ख) इनकी बंदरघुड़की देखकर जनता ने समझा कि इनकी कमर ढीली नहीं है। (म. का मतः क. शि., 29 मार्च 1924, पृ. 144), (ग)जापानी अखबारों में बंदर-घुड़कियाँ जरूर दी जाती रही थीं। (सर., नव. 1941, पृ. 405)

बंदरबाँट सं. (स्त्री.) -- पक्षपातपूर्ण वितरण या बँटवारा, नोट-खसोट, (क) इरादा स्पष्‍ट है पद, पुस्तक आदि की बंटरबाँट हो। (ज. स., 10 अग. 2008, पृ. 7), (ख) राजनैतिक दलों द्वारा सत्ता की बंदरबाँट का भागीदार बनने के लिए अपने विवेक का समर्पण ... (दिन., 20 मई 1966, पृ. 33), (ग)अभी पंजाबी सूबा बन भी नहीं पाया है कि पंजाब के आसपास के इलाकों की बंदर बाँट शुरू हो गई। (दिन., 1 अप्रैल 1966, पृ. 15)

बदरीला वि. (विका.) -- बादलों से भरा हुआ, मेघाच्छन्‍न, उन्‍नीसवीं सदी के तीसरे चरण तक बदरीले वातावरण से ही ढका रहा और वह प्रायः पथ के प्रभाव से अभिभूत था। (शि. पू. र., खं. 3, पृ. 490)

बदला भँजाना मुहा. -- बदला चुकाना, बदला लेना, (क) अंतरराष्‍ट्रीय स्थितियाँ बरसों पुराने बदले भँजाने की इजाजत नहीं देतीं। (रा. मा. संच. 2, पृ. 298), (ख) हमारे प्रांतीय परमेश्‍वरों की पल्टन जो ऊँचे आसन पर बैठकर बदला भँजाने में बाजारू ग्रामसिंहों को मात करती थी। (मा. च. रच., खं. 3, पृ. 152)

बदली सं. (स्त्री.) -- स्थानांतरण, तबादला, वहाँ उन्होंने पंडित कुंदनलाल की भी बदली करा ली। (म. प्र. द्वि., खं. 5, पृ. 240)

बदा वि. (विका.) -- भाग्य में लिखा हुआ, अवश्यंभावी (क) 1972 के आम चुनाव में उसे (कांग्रेस को) और भी बुरे दिन देखने बदे हैं। (दिन., 27 अप्रैल 69, पृ. 9), (ख) दु:ख उनके भाग्य में बदा है। (सर., दिस. 1915, पृ. 361), (ग)हिंदू-मुसलमानों की फूट से एक तीसरी शक्‍ति को लाभ बदा है। (स. सा., पृ. 234)

बंदिश सं. (स्त्री.) -- बनावट, कैसी-कैसी कुटिल चाल नंदों के नाश के लिए चाणक्य ने चली है, वही सब इस नाटक की बंदिश है। (सर., 1918, पृ. 35)

बद्ध-परिकर वि. (अवि.) -- तैयार, सन्‍नद्ध, लंबी यात्रा के लिए वह बद्धपरिकर है। (काद., फर. 1987, पृ. 4)

बद्धमुष्‍टि सं. (पु.) -- कंजूस, उस बद्धमुष्‍टि से चंदे की आशा करना व्यर्थ है। (काद., जन. 1993, पृ. 6)

बद्धमूल वि. (अवि.) -- दृढ़, पक्‍का, (क) मेरी यह बद्धमूल धारणा है कि देश का भविष्य उज्‍ज्वल है। (काद. : मार्च 1987, पृ. 6), (ख) गांधीजी की यह बद्धमूल धारणा थी कि स्वराज्य के लिए स्वभाषा जरूरी है। (काद., अग. 1989, पृ. 7)

बँधना-बोरिया सं. (पु.) -- बोरिया-बिस्तर, गृहस्थी का सामान, (क) साम्राज्यवाद का बँधना-बोरिया देकर उसे सड़क नापने को यह आंदोलन विवश कर देगा। (क. ला. मिश्रः त. प. या., पृ. 191), (ख) जब सबके बँधने-बोरिए खेती ही पर हो गए, तब बताओ तुम्हारे पास बचत कहाँ से हो ? (मा. च. रच., खं. 3, पृ. 19)

बँधा-टँका वि. (विका.) -- कठोर, जड़, बँधे-टँके नियम लागू करने के बजाय उचित होगा कि लोगों को समस्याओं की पूरी जानकारी दी जाए। (दिन., 18 नव., 66, पृ. 10)

बधिया बैठना मुहा. -- 1. कोई काम पूर्णत : चौपट या खत्म हो जाना, इधर कुछ नवीनता आई थी जब विधान के काम की बधिया बैठ गई थी। (नि. वा. : श्रीना. च., पृ. 774), 2. हिम्मत छूट जाना, यही थे ठाकुर विश्‍वनाथ शाहदेव, जिनका नाम सुनते ही अंग्रेजों की बधिया बैठ जाती है। (दिन., 24 जन., 1971, पृ. 39)

बँधेज सं. (स्त्री.) -- बँधी प्रथा, बंधन, नहीं इसका कोई खास बँधेज मत मानिए। (नि. वा. : श्रीना. च., पृ. 184)

बन सकना मुहा. -- हो सकना, संभव होना, वह अपनी गरीब गाँठ से जितना बन सकता है, देने को तैयार है। (मा. च. रच., खं. 9, पृ. 307)

बन-टनिया वि. (अवि.) -- बना-ठना रहनेवाला, डॉ. रघुवंश बन-ठनिया किस्म के लेखक-कवि थे। (सं. मे., कम., 20 जुलाई 1990, पृ. 6-7)

बनक सं. (स्त्री.) -- बनावट, रचना-विधि, कविता की बनक पुरानी है किंतु कथ्य में बहुत ऊष्मा है। (मा. च. रच., खं. 5, पृ. 294)

बनज-बैपार सं. (पु.) -- व्यापार, तिजारत, सर टामस रो भारत के स्वतंत्र बादशाह से भारत में बनज-बैपार करने को पट्‍टे की भीख माँगने आए थे। (मा. च. रच., खं. 10, पृ. 309)

बनजारा सं. (पु.) -- घुमंतू जाति का व्यक्‍ति, मेरा मन बनजारा न था, अपने लिए कोई घोंसला भी नहीं बनाया। (स्मृ. वा. : जा. व. शा., पृ. 19)

बनिज सं. (पु.) -- वाणिज्य, व्यापार, बनिज करते-करते ही वे शासक बन जाते हैं। (सर., जून 1920, पृ. 337)

बनियाई वि. (अवि.) -- वणिक, व्यावसायिक, इंग्लैंड की बनियाई वृत्ति से यह बात छिपी नहीं है कि हिंदुस्थान की कृषि में अभी बहुत कुछ तरक्‍की करने की गुंजाइश है। (मा. च. रच., खं. 10, पृ. 146)

बनिहार सं. (पु.) -- मजदूर, (क) राबड़ी देवी के शासन में अति पिछड़े वर्ग के लोग बनिहार थे। (ज. स. : 16 जुलाई 2007, पृ. 9), (ख) आमंत्रित व्यक्‍तियों और जन-बनिहारों का स्वागत किया जाता है। (काद. : अक्‍तू. 1982, पृ. 33)

बनी-बारी सं. (स्त्री.) -- बगीचा, बाड़ी या खेतों के बाद जगदीशपुर की बनी-बारी थी जहाँ पनशाला भी थी। (सर, सित., 1937, पृ. 265)

बपौती सं. (स्त्री.) -- पैतृक संपत्ति, (क) अफ्रीका को वहाँ के गोरे लोग अपनी बपौती समझते हैं। (स. सा., प. 106), (ख) वह किसी की बपौती को ठगने से बाज नहीं आएगा। (दिन., 9 सित., 66, पृ. 26), (ग)तुलसीदास किसी एक धर्म की बपौती नहीं है। (दिन., 7 मई 1972, पृ. 39)

बप्‍तिस्मा सं. (पु.) -- दीक्षा, महात्मा जी ने असहयोग की (का) बप्‍तिस्मा देकर देश को उस आनेवाले के उपयुक्‍त बना दिया है। (म. का. मतः क.शि., 9 जुलाई 1927, पृ. 219)

बबूला सं. (पु.) -- बुलबुला, प्राणिमात्र का जीवन पानी के बबूले के सदृश क्षणिक है। (सर., अप्रैल 1913, पृ. 200)

बभूत सं. (स्त्री.) -- भभूत, राख, अनेक विभूतियाँ झोंपड़ियों में पैदा होती हैं पर विपरीत परिस्थितियों में पड़कर बभूत हो जाती हैं। (सं. परा. : ल. शं. व्या., पृ. 34)

बंभोला सं. (पु.) -- शिवलिंग, शिव की पिंडी, गायवाला खूँटा बंभोला बना बैठा है। (सर., फर. 192, पृ. 145)

बम की फेंक मुहा. -- बम के जैसा प्रहार, विनाशक प्रहार, सर फजली हुसैन जैसे वाइसराय की एक्जीक्यूटिव के सदस्य ने गत स्टेट कौंसिल में दक्षिण अफ्रीका की सरकार के एशियाटिक बिल को बम की फेंक बतलाया था। (मा. च. रच., ख. 10, पृ. 75)

बयानना क्रि. (सक.) -- बयान करना, वर्णन करना, पत्रकारों ने अपने सूत्रों और समझ से हालात को बयाना है। (दिन., 3 अक्‍तू. 1971, पृ. 32)

बयार बहना मुहा. -- चलन या फैशन होना, जैसी बयार बही, जनता में उसी प्रकार के भाव उदय हुए और उन्होंने वोट भी उसी प्रकार दिए। (न. ग. र., खं. 2, पृ. 235)

बरकत सं. (स्त्री.) -- 1. प्रचुरता, यथेष्‍टता, नीयत अच्छी होगी तो हमारी बरकत होगी, अगर नीयत दुरुस्त नहीं तो सब गुड़-गोबर। (शि. पू. र., खं. 3, पृ. 431), 2. वृद्धि, लाभ-हँसने का हौसला बहुत कुछ मूर्खों की बरकत से हुआ करना है। (सा. नि. : बद. ति., पृ. 68)

बरकना क्रि. (अक.) -- निकल जाना, टल जाना, हट जाना, उसने सोचा उत्पात बरक गया। (फा. दि. चा. वृ., व. ला. व. समग्र, पृ. 725)

बरकाना क्रि. (सक.) -- टालना, परे हटाना, दूर करना, (क) इन दो मुसलिम देशों की टक्‍कर को बरकाने का मार्ग ढूँढ़ सकते हैं। (ते. द्वा. प्र. मि., पृ. 145), (ख) लोग कटुभाषी के पास जाने से हिचकते हैं, वह सबों से बरकाया जाता है। (भ. नि., पृ. 50)

बरक्‍कत सं. (स्त्री.) -- बरकत, प्रचुरता, इस तरह के पैसों में कोई बरक्‍कत नहीं होती। (काद. : मार्च 1978, पृ. 11)

बरगलाना क्रि. (सक.) -- भ्रमित करना, बहकाना, फुसलाना, (क) पुलिस को बरगलाने का कोई प्रयत्‍न नहीं किया गया। (मा. च. रच., खं. 9, पृ. 146), (ख) फूँक-फूँककर कदम उठाएँ ताकि माओ विरोधियों को श्रमिकों को बरगलाने का मौका न मिले। (दिन., 27 जन., 67, पृ. 15), (ग)किस सीमा पर यह प्रभाव वैचारिक प्रभाव से आगे जाकर लोभ द्वारा बरगलाने का स्वरूप ले लेता है। (दिन., 16 अप्रैल, 67, पृ. 44)

बरजना सं. (पु.) -- वर्जन, वर्जित करना, यह दूसरी अति भी पहले की तरह ही बरजने-जैसी (वर्जन करने के समान) है। (दिन., 28 जून, 1970, पृ. 28)

बरजोरी1 क्रि. वि. -- जबरदस्ती, बलपूर्वक, (क) हमारे सामने से कुत्ता भी बरजोरी अपमान करके चला गया। (शि. पू. र., खं. 3, पृ. 343), (ख) एक तरफ से दबी हुई लता का अंकुर बरजोरी दूसरी तरफ से फूट जाता है। (सर., दिस. 1930, पृ. 692)

बरजोरी2 सं. (स्त्री.) -- जबरदस्ती, बलप्रयोग, यह बरजोरी ठीक नहीं है। (काद. : मार्च 1978, पृ. 11)

बरडाना क्रि. (सक.) -- बर्राना, चिल्लाना, भाट लोग दु:ख में भेड़ की तरह बरडाए। (गु. र., खं. 1, पृ. 201)

बरतना क्रि. (सक.) -- व्यवहार में लाना, उपयोग में लाना, (क) जर्मनी के साथ रूस जो नीति बरत रहा है वह बहुत स्पष्‍ट है। (न. ग. र., खं. 2, पृ. 270), (ख) हमें तो ऐसे पाठकों से बरतना पड़ता है जो देश के शासकों द्वारा पढ़े-लिखे नहीं होने दिए जाते। (रा. मा. संच. 2, पृ. 354), (ग)हिंदी हमारी राष्‍ट्रभाषा है, सबको इसे सीखना और बरतना चाहिए। (दिन., 03 सित., 67, पृ. 19)

बरतवाना क्रि. (सक.) -- पालन करवाना, संगठनों से संयम बरतवाए कि वे गठबंधन के सम्मान और उसकी एकता को चोट न पहुँचाएँ। (हि. ध., प्र. जो., पृ. 348

बरपना क्रि. (अक.) -- ऊपर आ पड़ना, मचना, व्याप्‍त होना, (क) विभाजन के दिनों भारत और पाकिस्तानियों के बीच रक्‍तिम भयावहता बरपी थी। (काद., जन. 1989, पृ. 36), (ख) जनता में भी खासा शोर बर्पा (बरपा) हो गया है। (दिन. 14 सित. 69, पृ. 40), (ग)काम बंद होने का मतलब अस्त-व्यस्तता का वातावरण बरपा हो जाता है। (दिन., 04 नव., 66, पृ. 29)

बरबस क्रि. वि. -- जबरदस्ती, बलात्, (क) यह खयाल बरबस आता है कि परंपरागत उत्सवों का खर्च उनके सामर्थ्य से परे होता है। (ते. द्वा. प्र. मि., पृ. 129), (ख) जब हाथी के छौने की तरह झूलकर चलते थे तब देखनेवालों को बरबस हँसी आ जाती थी। (मा. च. रच., खं. 4, पृ. 189), (ग)... आदि काल में निबद्ध तिललाना बरबस आकृष्‍ट करनेवाली रही। (दिन., 15 फर. 1970, पृ. 44)

बरसर सं. (पु.) -- खजांची, प्रसन्‍न होकर मैनेजर ने शमशेर सिंह को स्कूल का बरसर बना दिया। (काद. : जन. 1989, पृ. 73)

बरानकोट सं. (पु.) -- लंबा कोट, लहना सिंह के दो कंबल और एक बरानकोट ओढ़कर सो रहा। (सर., जून 1915, पृ. 344)

बराय नाम क्रि. वि. -- नाम को, नाम-भर को, (क) अधिकारियों के पास काम तो है बराय नाम किंतु उनके दौरे जारी हैं। (दिन., 27 अग., 67, पृ. 17), (ख) उक्‍त कंपनी को रतोना में 843 एकड़ भूमि बराए नाम लगान पर दी है। (मा. च. रच., खं. 9, पृ. 192)

बरिआई सं. (स्त्री.) -- जोर-जबरदस्ती, पानी के साथ बरिआई असंभव है। (धर्म., 8 अक्‍तू. 1967, पृ. 25)

बरी वि. (अवि.) -- मुक्‍त रिहा, अपने को इस झंझट से बरी समझते हैं। (म. प्र. द्वि., खं. 9, पृ. 140)

बर्तना क्रि. (सक.) -- बरतना, प्रयोग या व्यवहार में लाना, डिप्टी साहब ठाकुर साहब की दी हुई अनेक चीजें आज भी बड़े आदर से बर्त रहे हैं। (सर., जन. 1920, पृ. 56)

बर्ताव सं. (पु.) -- बरताव, प्रयोग, इस्तेमाल, जो लोग मसहरी का बर्ताव न कर सकतो हों उन्हें उचित है कि वे अपने शरीर पर तारपीन का तेल और कपूर वगैरह लगा लिया करें। (सर., फर. 1911, पृ. 72)

बर्पना क्रि. (अक.) -- बरपाना, छाना, फैल जाना, व्याप्‍त होना, न केवल फिल्म जगत् बल्कि जनता में भी खासा शोर बर्पा हो गया है। (दिन., 14 सित. 1969, पृ. 40)

बर्र के छत्ते को छेड़ना या छेड़ देना मुहा. -- ऐसा काम करना जिससे मुसीबत गले पड़ जाए, अधिकारी ने मंत्री की एक सिफारिश को सुनने से इनकार कर मानो बर्र का (के) छत्ते को छेड़ दिया। (रवि. 11 सित. 1979)

बर्र के छत्ते में हाथ डालना मुहा. -- जोखिम का काम करना, आफत मोल लेना, पूँजी को रियायतें देना स्वीकार कर के मानो बर्र के छत्ते में हाथ डाल दिया है। (दिन., 29 अप्रैल 1966, पृ. 11)

बर्राना क्रि. (अक.) -- बड़बड़ाना, चिल्लाना, वह जमीन पर लेट गई और क्रोध में आकर बर्राने लगी। (सर., सित. 1912, पृ. 492)

बर्रे का छत्ता मुहा. -- ऐसा काम या बात जिससे पार पाना कठिन हो, फिर उसने अपनी मसाल फ्रांस को पकड़ाई और नौ साल तक वह इस बर्रों के छत्ते से संघर्ष करता रहा। (रा. मा. संच. 1, पृ. 265)

बर्रे की छत्ते में हाथ डालना मुहा. -- जोखिम का काम करना, अगर इस बात की जरूरत आ पड़े कि बर्रे के छत्तों में हाथ डाला जाय तो हर कोई तैयार हो जावेगा। (न. ग. र. खं. 2, पृ. 177)

बल पकड़ना या पकड़ लेना मुहा. -- उग्र रूप धारण करना, जोर पकड़ना, आखिर खिलाफत का सवाल बल पकड़ ही गया। (मा. च. रच., खं. 9, पृ. 79)

बलकना क्रि. (अक.) -- बकबक करना, सब खाएँगे तो तू उपास न करेगा। पाव भर औरों से ज्यादा खायगा। बहुत बलक मत। (निरु. : निराला, पृ. 91)

बलना क्रि. (अक.) -- जलना, (क) रंगमंच पर दीपक की तरह बलने लगती है। (शि. पू. र., खं. 3, पृ. 177), (ख) उधर कलकत्ता के बड़तल्ला मुहल्ले में हजारों बिजली बत्तियाँ बल उठीं। (शि. पू. र., खं. 4, पृ. 286)

बलबलाना क्रि. (अक.) -- शोर मचाना, दिल्ली में हुए जमघट में डींगें हाँकी गईं, जो अधिक मनचले थे वे अँगरेज सरकार की कब्र खोदने के लिए बलबलाने लगे। (म. का. मत : क. शि., 29 मार्च 1924, पृ. 140)

बला टालना मुहा. -- बाधा दूर करना, हिंदी जगत् की जनता असावधान पत्रों से अपनी सुविधा तलब नहीं करेगी, तब तक बहुतेरे पत्र बस बला टालते रहेंगे। (शि. पू. र., खं. 4, पृ. 514)

बला सं. (स्त्री.) -- विपदा, बाधा, आफत, (क) देश में एक और नई बला का जन्म हुआ है। (ग. शं. वि. रच., खं. 2, पृ. 536), (ख) ...क्या वे बता सकते हैं कि नीचे के चित्र में कौन सी बला दीख रही है। (दिन., 10 सित. 1965, पृ. 24), (ग)इससे किसी तरह गला छूटेगा तो कोई दूसरी बला आ पेरैगी। (भ. नि. : पं. बा. कृ. भ., पृ. 9)

बलाय ताक रखना मुहा. -- टाल देना, परे हटाना, (क) बुद्धि, विवेक और तर्क को बलाय ताक में रखकर काम करने के लिए मुन्‍नू भैया को एक महत्त्वपूर्ण पत्र का प्रधान संपादक बना दिया गया। (काद., जून 1995, प. 154), (ख) जवाहरलाल के आश्‍वासन को बलाए ताक रखकर हाईकमान ने घुटने टेक दिए। (दिन., 27 जन., 67, पृ. 15), (ग)उनमें व्यापारिक वृत्ति कुछ इस कदर और इतनी गहरी पैठ गई है कि कला के प्रति सारी ईमानदारी बलाय ताक रख दी गई है। (दिन., 16 जुलाई 1965, पृ. 28)

बलि का बकरा मुहा. -- जिसे बलात् बलि चढ़ाया जाए, जबरदस्ती दोषी ठहराया जानेवाला, (क) गलत सलाह देने और रणनीति में भयंकर भूलें करने के लिए बलि के बकरे ढूँढ़ रहे हैं। (हि. ध., प्र. जो., पृ. 362), (ख) आज भी जो इने-गिने प्रोड्यूसर हैं, उन्हें खाली बलि का बकरा बनाकर रखा हुआ है। (दिन., 14 सित., 1969, पृ. 27)

बलि छाग सं. (पु.) -- बलि का बकरा, इन बातों से स्पष्‍ट है कि मि. बैनस्पर की यह उक्‍ति कि डायर को बलिछाग बना लिया गया है, सर्वथा अखंडनीय है। (ग. शं. वि. रच., खं. 3, पृ. 144)

बलि सं. (स्त्री.) -- कुर्बानी, त्याग, हमारे तरुणों की बलियाँ कह रही हैं कि जेल के नियम बदलेंगे। (मा. च. रच., खं. 10, पृ. 336)

बलिहारी होना मुहा. -- न्योछावर होना, कुर्बान होना, (क) बलिहारी है इस बुद्धि की। (सं. परा. : ल. शं. व्या., प. 148), (ख) हम ऐसे शेरदिल व्यक्‍तियों की हिम्मत के बलिहारी हैं जो किसी स्थान के स्थानीय कार्यकर्ताओं की अपेक्षा अपने आपको उस इलाके प्रतिनिधित्व के अधिक योग्य समझते हैं। (विप्लव (आजाद अंक) सं. यश., पृ. 5)

बलिहारी सं. (स्त्री.) -- न्योछावर, तुम्हारी समझ की बलिहारी। यह बुलाना नहीं तो क्या है ? (सर., जन. 1913, पृ. 30)

बलैया लेना मुहा. -- किसी की बला अपने ऊपर लेने की कामना करना, (क) माँ ने घबराकर अपनी गोद में उठा लिया और उनका मुँह चूमकर बलैया ले ली। (गं. गां. या. रा. ना. उ., पृ. 33), (ख) जो लोग इससे अधिक आशा रखते थे, वे अपनी समझ की बलैया लें। (म. का मत : क. शि., 16 मई 1925, पृ. 184)

बल्लभपन सं. (पु.) -- अपने को आचार्य या स्वामी समझने का भाव, बल्लभपन बड़ी बुरी बीमारी है, जो साहित्य क्षेत्र में घुसकर लहलहाते पौधों को नष्‍ट-भ्रष्‍ट कर देती है। (सर., जन. 1933, सं. 1, पृ. 693)

बवंडर उठना मुहा. -- हो-हल्ला मचना, बावेला होना, सरकार की कटौती पर विपक्ष की ओर से बवंडर उठने की पूरी आशंका थी। (दिन., 06 जन., 67, पृ. 36)

बवंडर में पड़ना मुहा. -- तूफान में फँसना, परेशानियों से घिरना, जर्मनी तो आर्थिक बबंडर में पड़ता दिखाई देता है। (स. सा., पृ. 176)

बवंडर सं. (पु.) -- 1. आँधी या तूफान, आज हिटलर एक बीता बवंडर बन गया है। (कर्म. : संपा. मा. च., 4 अक्‍तू. 1947, पृ. 3), 2. हो-हल्ला, बवाल, उनके कथन से सभा में बवंडर मच गया। (काद. : जन. 1975, पृ. 12)

बस1 क्रि. वि. -- और अधिक नहीं, मात्र इतना ही, (क) देवनागरी लिपि में हिंदी लिखने-पढ़ने के लिए तीन महीने बस हैं। (म. प्र. द्वि., खं. 1, पृ. 135), (ख) कमर के लिए एक लँगोटी और सिर के लिए एक टोपी बस है। (सर., मार्च 1912, पृ. 142)

बस2 वि. (अवि.) -- यथेष्‍ट, पर्याप्‍त, यद्यपि वे समूचे कौरव दल के लिए बस थे। (सर., मई 1925, पृ. 512)

बसर सं. (पु.) -- गुजारा, निर्वाह, सबके सब कहने लगे कि चित्रकारी पर बसर होना असंभव है। (सर., जन. 1918, पृ. 21)

बसहटा वि. (विका.) -- बाँस का बना हुआ, वे अपनी बसहटा (बसहटी) चारपाई बाहर घसीट लाए। (रवि., 1 अग. 1982, पृ. 44)

बसियाया वि. (विका.) -- जिससे बास आ रही हो, बासी, बासयुक्‍त, प्लास्टिक थैलियों में बंद बसियाए पाप-कार्न में क्या वह स्वाद आ सकता है। (दिन., 03 मार्च, 68, पृ. 44)

बसीकरण सं. (पु.) -- वशीकरण, वश में करने का मंत्र, असगर, ये बसीकरन तूने कहाँ साधा। (काद., नव. 1961, पृ. 59)

बहकावट सं. (स्त्री.) -- बहलावा, चीन का कदाचित् भरोसा नहीं कि वह कब बोल्शेविकों की बहकावट में आ जाए। (मा. च. रच., खं. 9, पृ. 55)

बहकी बातें करना मुहा. -- उखड़ी-उखड़ी बातें करना, उनका पत्र तो अनेक बार बहकी सी बातें करता है। (ब. दा. च. चु. प., खं. 1, सं. ना. द., पृ. 386)

बहती गंगा में हाथ धोना मुहा. -- दूसरों की देखादेखी अनायास लाभ उठाने में प्रवृत्त होना, बदकिस्मती से इस बहती गंगा में हाथ धोने में ऐसे भी बहुत से लोग आ गए। (दिन., 17 जून 1966, पृ. 44)

बहबूदी सं. (स्त्री.) -- बहादुरी, लीक का मेटना ही महापुण्य है, सपूती है, बहबूदी और जवाँमर्दी है। (भ. नि., पृ. 29)

बहिरागत सं. (पु.) -- बाहर से आया हुआ व्यक्‍ति, विदेशी, असम में बहिरागतों की व्यवस्था करने का आंदोलन खतरनाक है। (दिन., 1 से 7 जून 1980, पृ. 16)

बहिला वि. (अवि.) -- बाँझ, (क) यह गाय तो बहिला है, केवल देखने में सुंदर है। (काद., नव. 1976, पृ. 34), (ख) गाय स्वस्थ्य एवं सुंदर है किंतु है बहिला। (काद. : नव. 1976, पृ. 34)

बही सं. (स्त्री.) -- देसी रजिस्टर, तीर्थ गुरु और पंडों की बहियों की खोज करने से बहुत सी इतिहास के काम की बातें मिल सकती हैं। (चं. श. गु. र., खं. 2, पृ. 218)

बहुत करके क्रि. वि. (पदबंध) -- बहुधा, प्रायः, यह बात सरस्वती के वाचकों को बहुत करके मालूम होगी। (म. प्र. द्वि. रच., खं. 2, पृ. 64)

बहुतेरा वि. (विका.) -- बहुत अधिक, (क) आयकर की चोरी रोकने और वसूलने के बहुतेरे उपाय किए गए। (दिन., 6 नव. 1968, पृ. 9), (ख) भारत में बहुतेरे ऐसे धनी निकल आएँगे जो अपने जहाज समुद्र में चलाकर भारत के व्यापार में श्रीवृद्धि करेंगे। (स. सा., पृ. 53)

बहुधंधी वि. (अवि.) -- अनेक प्रकार के धंधे करनेवाला, ख्वाजा अहमद अब्बास बहुधंधी जीव है। (दिन., 25 मार्च 1966, पृ. 39)

बहुमान सं. (पु.) -- अत्यधिक सम्मान, गोत्रांगण की यूनिवर्सिटी में उन्हें डॉक्टर की पदवी बहुमान के साथ मिली थी। (चं. श. गु. र., खं. 2, पृ. 365)

बहुश्रुत वि. (अवि.) -- जिसने बहुत सुना हो, ज्ञानी, संत समागम में भाग लेने से वह बहुश्रुत हो गया। (काद., जून 1995, पृ. 9)

बहोरना क्रि. (सक.) -- वापस लाना, लौटाना, वे भी आकुल हैं जो बीती बहार को बहोरना चाहते हैं। (शि. पू. र. खं. 3, पृ. 130)

बाअसर वि. (अवि.) -- प्रभावकारी, एक ओझल होती हुई पीढ़ी के खुशमिजाज नुमाइंदे के रूप में बाअसर रहे। (दिन., 26 अक्‍तू. 1969, पृ. 38)

बाइस सं. (पु.) -- कारण, वजह, संपन्‍नता के बाइस के कुछ वर्षों तक खूब ऐशोआराम करते रहे। (काद. : जन. 1989, पृ. 140)

बाउड़ी सं. (स्त्री.) -- बावड़ी, एक प्रकार का कुआ, वे खुली बाउड़ियाँ थीं। (ज. क. सं. : अज्ञेय, पृ. 25)

बाएँ हाथ का खेल होना मुहा. -- सरल काम होना, अपने मतलब के कानून पास करा लेना उनके बाएँ हाथ का खेल हो रहा है। (न. ग. र., खं. 2, पृ. 69)

बाँकदार वि. (अवि.) -- टेढ़ा, बूमरेंग अस्‍त्र तलवार के समान बाँकदार होता है। (सर., दिस. 1925, पृ. 580)

बाँकपन सं. (पु.) -- छवि, सौंदर्य, (क) आपको डर है कि हिंदी की खिल्लत-मिल्लत से उर्दू का बाँकपन बिगड़ जाएगा। (शि. पू. र., खं. 4, पृ. 36), (ख) नए रचनाकार उसके भीतर झाँककर नया बाँकपन प्राप्‍त करते हैं। (ज. स. : 12 फर. 1984, पृ. 4), (ग)नए विरोधी नेता की ऐतिहासिकता का बाँकपन उस वक्‍त सामने आया जब वे सरकार के विरुद्ध वोद का बटन दबाने अपनी सीट पर आए। (दिन., 23 नव., 1969, पृ. 11)

बाकल सं. (पु.) -- वल्कल, छाल, गोलियाँ सामनेवाले पेड़ के तने के बाकल को उधेड़ रही थीं। (दिन., 5 सित. 1971, पृ. 7)

बाग सं. (स्त्री.) -- लगाम, रास, हिंदी रथ की बागें जिस समय द्विवेदीजी के सुदृढ़ हाथों में आई उस समय उनके आगे असम क्षेत्र था। (सर., जन.-जून 1939, सं 3, पृ. 266)

बाँगड़ सं. (पु.) -- उजड्‍ड व्यक्‍ति, उद्‍दंड व्यक्‍ति, (क) न जाने किस-किस देश के बाँगड़ शिवपालगंज में इकट्‍ठा हो रहे हैं। (रा. द., श्रीला. शु., पृ. 83), (ख) किस बाँगड़ को शहर कोतवाल बना दिया। (स. न. रा. गो. : भ. च. व., पृ. 174)

बाँगड़ू वि. (अवि.) -- उद्‍दंड, मूर्ख, देखने में चाहे जितना बाँगड़ू लगे पर प्रजातंत्र भला आदमी है। (रा. द., श्रीला. शु., पृ. 165)

बाचना क्रि. (सक.) -- पढ़ना, नहा-धोकर रामायण बाँचने की बान पड़ गई है। (शि. पू. र., खं. 4, पृ. 135)

बाँचना क्रि. (सक.) -- पाठ करना, पढ़ना, (क) पुन :-पुनः कई बार बाँचने की हमें फुरसत नहीं। (म. प्र. द्वि. रच., खं. 2, पृ. 302), (ख) सोता पड़े रात तक पिताजी आकाश का सास्तर मौन आँखों से बाँचते रहते हैं। (काद., जुलाई 1987, पृ. 45), (ग)वे कथा बाँचकर अपनी जीविका निर्वाह करने लगे। (म. प्र. द्वि., खं. 5, पृ. 269)

बाँछें खिलना मुहा. -- चेहरे पर प्रसन्‍नता दौड़ना, प्रसन्‍न हो जाना, (क) सच अपनी बाँछें खिल गईं। (हि. ध., प्र. जो., पृ. 305), (ख) जब हमने उसका नाम पूछा, तब तो उसकी बाँछें खिल गईं। (माधुरीः अक्‍तू. 1927, पृ. 372)

बाज आना मुहा. -- कुछ कहने या करने से परहेज करना, प्राचीन भारत दूसरों की स्वतंत्रता छीनने से बाज आने में स्वतंत्र नहीं है। (मा. च. रच., खं. 9, पृ. 222)

बाज दफा क्रि. वि. -- यदाकदा, कभी-कभी, (क) एक ही प्रबंध के अंतर्गत निकलनेवाले पत्रों के विचार बाज दफा एक-दूसरे से विपरीत होते हैं। (दिन., 14 सित. 1969, पृ. 6), (ख) उन्हें अपने धार्मिक स्थानों से बाज दफा हटना पड़ता है। (दिन., 12 अक्‍तू. 1969)

बाज-बाज वि. (अवि.) -- कोई-कोई, किसी-किसी, बाज-बाज जगह तो इन मूजियों ने जमीन सफाचट कर दी थी। (सर., 1 मई 1908, पृ. 221)

बाज-सा टूट पड़ना मुहा. -- झपट पड़ना, ज्यों ही किसी अन्य व्यक्‍ति को उस सीमा से बहुत आगे या बहुत पीछे देखता है कि उस पर बाज-सा टूट पड़ता है। (गु. र., खं. 1, पृ. 430)

बाज वि. (अवि.) -- कुछ, कतिपय, मुझे ऐसा लगता है कि बाज लेखक कुछ कहने के बदले इसी कोशिश में रहते हैं कि अपनी विद्वत्ता प्रदर्शित की जाय। (शि. पू. र., खं. 4, पृ. 436)

बाजी बदना मुहा. -- शर्त लगाना, जब इस तरह बाजी बदकर दौड़नेवाले हार-जीत के लिए दौड़ते हैं तब उनके आगे एक गेंद डाल दिया जाता है। (सर., अप्रैल 1921, पृ. 244)

बाँझ वि. (अवि.) -- निष्फल, पूर्व और पश्‍चिम जर्मनी के प्रधानमंत्रियों की बैठक एक बार फिर बाँझ साबित हो चुकी है। (दिन., 31 मई 1970, पृ. 43)

बाँट जोहना मुहा. -- प्रतीक्षा करना, रास्ता देखना, मेरा वादा भी उपयुक्‍त अवसर की बाँट जोह रहा था। (मधुकर : जन., 1944, पृ. 450)

बाट जोहना मुहा. -- राह देखना, प्रतीक्षा करना, (क) हिंदी पाठक उनकी अँगरेजी शैली की बाट जोह रहा है। (दिन., 19 अप्रैल 1970, पृ. 10), (ख) लड़ाके वीरों का संगठन जो उत्सुकता से जुझाऊ बाजों के बजने की बाट जोह रहा है। (म. का मतः क. शि., 9 जन. 1926, पृ. 201)

बाट पकड़ना मुहा. -- राह पकड़ना, सचाई की सीधी बाट पकड़ने पर किसी प्रतापी महाराज से भी भय नहीं। (शि. पू. र., खं. 3, पृ. 61)

बाँट में पड़ना मुहा. -- बाँटे पड़ना, हिस्से में आना, दिलेरी हमारी बाँट में पड़ी थी। (नि. अ. सिं., पृ. 97)

बाँट-चूँट सं. (स्त्री.) -- बंदरबाँट, इन पदवियों की बाँट-चूँट बड़ी उदारता से की गई है। (म. प्र. द्वि. रच., खं. 2, पृ. 159)

बाँट-बखरा सं. (पु.) -- बँटवारा, विभाजन, (क) वह इंस्पेक्टर और डाइरेक्टरों और मैं और तू के बाँट-बखरे में पड़ जाता है। (दिन., 20 अग. 1972, पृ. 40), (ख) घर-द्वार, खेत-खलिहान सबका बाँट-बखरा हो चुका था। (श्री. रा. बे., बे. ग्रं., भाग 1, पृ. 17)

बाँटे पड़ना मुहा. -- हिस्से में आना, घाटा तो बिहारी के बाँटे पड़ गया। (सर., जन.-जून 1931, सं. 1, पृ. 182)

बाढ़ आना मुहा. -- अत्यधिक मात्रा में उपस्थित होना, इधर अँगरेजी में इस समस्या के नाना पहलुओं पर किताबों की बाढ़ आई है। (दिन., 8 जून 1969, पृ. 8)

बाढ़ सं. (स्त्री.) -- बौछार, पास पहुँचते ही रूसियों ने उन पर बंदूक की बाढ़ें छोड़ीं। (सर., नव. 1912, पृ. 585)

बात आई-गई होना मुहा. -- प्रकरण समाप्‍त हो जाना, कहानी खत्म होना, यह सारा घपला दबा ही रहता और बात आई-गई हो जाती, लेकिन 8 अप्रैल को एक अप्रत्याशित घटना घट गई। (रवि., 4 जुलाई 1981, पृ. 21)

बात का बतंगड़ बनाना मुहा. -- तिल का ताड़ बनाना, छोटी सी बात को तूल देना, (क) इस लेख में बात का बतंगड़ बहुत बनाया गया है। (गु. र., खं. 1, पृ. 138), (ख) पश्‍चिमी देश इस बात का अतिशयोक्‍तिपूर्ण और अतिरंजनापूर्ण वर्णन कर के बात का बतंगड़ बनाने की फिराक में हैं। (दिन., 2 जुलाई 1972, पृ. 35), (ग)पुरुष बात का बतंगड़ बनाने में सिद्ध होते हैं। (सरस्वती, अक्‍तू. 1910, पृ...)

बात की बात में क्रि. वि. (पदबंध) -- तत्काल, तत्क्षण, हाथो-हाथ, (क) द शूटर एट दी सन की एक लाख प्रतियाँ बात-की-बात में बिक चुकी हैं। (सा. हि., 3 नवं. 1957, पृ. 7), (ख) वह अपने कलम के एक झोंके में बात की बात में जर्मनी का फौजी तानाशाह बन सकता है। (सर., भाग-25, खं. 1, जन. 1924, सं. 2, पृ. 252)

बात के बताशे फोड़ना मुहा. -- मीठी-मीठी बातें करना, बात के बताशे फोड़ने से क्या होगा ? (रा. द., श्रीला. शु., पृ. 141)

बात बिगड़ना या बिगड़ जाना मुहा. -- काम या संबंध खराब हो जाना, देश कल्याण की दृष्‍टि से काम किया जाए तो कभी बात बिगड़े ही नहीं। (ग. शं. वि. रच., खं. 1, पृ. 295)

बात मारना मुहा. -- डींग हाँकना, हिंदी संसार में जितने बड़ी-बड़ी बातें मारनेवाले हैं, उतने काम करनेवाले नहीं। (मा. च. रच., खं. 2, पृ. 66)

बात-बात पर दम फूलना मुहा. -- रह-रहकर साँस फूलना, शक्‍ति का ह्रास हो जाने के कारण बात-बात में उनका दम फूलने लगता है। (कुं. क. : रा. ना. उ., पृ. 39)

बातूनी वि. (अवि.) -- अत्यधिक बातें करनेवाला, बातूनी वीरों को यह बात भाई नहीं। (गु. र., खं. 1, पृ. 329)

बातें बघारना मुहा. -- बड़ी-बड़ी बातें करना, डींग हाँकना, बातें बघारने में हम भारतवासी निपुण हो रहे हैं। (वि. भा., जन. 1928, सं. 1, पृ. 377)

बातें मारना मुहा. -- बहुत अधिक और बढ़-चढ़कर बातें करना, अहिंसा का मखौल उड़ानेवाले बौड़म-बसंत बातें ऐसी मारते हैं ... (न. ग. र., खं. 3, पृ. 180)

बादबान सं. (पु.) -- जहाज के मस्तूल में टँगा पर्दा, छोटे जहाजों में प्रायः बादबान का उपयोग होता है। (दिन., 12 अक्‍तू. 1969, पृ. 32)

बादरचाट वि. (अवि.) -- बादलों को छूनेवाला, गगन-चुंबी, बड़े-बड़े बादरचाट पेड़ों को काट-काटकर फलों की मदद से उनकी चटनी बनाई जाती है। (म. प्र. द्वि., खं. 15, पृ. 290)

बाँध टूटना मुहा. -- रोक हट जाना, प्रवाह चल पड़ना, औचक ही उसकी भावनाओं का बाँध टूट गया। (शि. से. : श्या. सुं. घो., पृ. 98)

बान पड़ना मुहा. -- आदत पड़ना, नहा-धोकर रामायण बाँचने की बान पड़ गई है। (शि. पू. र., खं. 4, पृ. 135)

बानगी सं. (स्त्री.) -- नमूना, उदाहरण, (क) उन्होंने भी अपने सम्मिलित बल की थोड़ी सी बानगी दिखा दी। (मत., म. प्र. से. वर्ष 5, सं. 7, पृ. 6), (ख) काफी कविताएँ ऐसी थीं, जो आज लिखी जानेवाली कविता की बानगी प्रस्तुत करती थीं। (दिन., 28 फर., 1971, पृ. 14), (ग)इराक में जो कुछ हुआ वह केवल एक बानगी है। (स. दा. : अ. नं. मिश्र, पृ. 196)

बाना सं. (पु.) -- परिधान, पोशाक, वर्दी, (क) वैधानिकता का बाना पहनकर तानाशाही अधिकारों का चक्र चलाना शुरू कर दिया। (दिन., 25 फर., 68, पृ. 33), (ख) उन्होंने सफल वकालत को लात मारकर फकीरी का बाना पहना लिया हो ..., (सा. हि., 2 दिस. 1962, पृ. 3), (ग)वे बड़े राष्‍ट्रद्रोही हैं जो देश की आत्मा का नाश कर रहे हैं, क्योंकि देशभक्‍ति का बाना पहने हुए हैं। (किल., सं. म. श्री., पृ. 12)

बापड़ा वि. (विका.) -- बापुरा, बेचारा, कब तक बापड़ा बसंत लिहाज पालेगा। (काद. : फर. 1991, प. 32)

बाबर्चीखाना सं. (पु.) -- रसोईघर, वह बाबर्चीखाने के दरवाजे के पास खड़ा होकर बोला, सुनो सिवैयाँ हम पहुँचा देंगे। (रवि., 16 अग. 1981, पृ. 36)

बाबा वाक्यं प्रमाण कहा. -- बुजुर्गों का कथन ही प्रमाण होता है, ऐसे अनुमान के विरोधी या तो केवल प्रत्यक्ष ही पर रह जाते हैं या बाबा वाक्यं प्रमाण बकते रहते हैं। (सर., नव. 1912, पृ. 593)

बाँबी में हाथ डालना मुहा. -- जोखिम उठाना, खतरा मोल लेना, बाँबी में हाथ डालने के लिए ब्रिटेन को एक साथी चाहिए और वह फ्रांस ही है। (स. सा., प. 111)

बाबुआना वि. (अवि.) -- बाबुओं का-सा, लिपिकों-जैसा, इससे अधिक बाबुआना तरीका और कोई नहीं हो सकता। (दिन., 19 जन., 69, पृ. 12)

बायस सं. (पु.) -- बाइस, कारण, वजह, उसी सम्मान के चूर-चूर होने का बायस बनकर नासिर कब तक राष्‍ट्रपति रह पाएँगे। (दिन., 25 जून, 67, पृ. 10)

बायस्कोप सं. (पु.) -- सिनेमा, फिल्म, यों यह बायस्कोप फोकट में देखने लायक भी न था। (दिन., 27 मई 1966, पृ. 25)

बारह बजाना मुहा. -- स्तब्ध या भौंचक्‍का कर देना, नहीं, वह पनडुब्बियों से ऐसे प्रक्षेपास्‍त्र छोड़ेगा, जो दुश्मन की (का) बारह बजा देंगे। (रा. मा. संच. 1, पृ. 184)

बारहखड़ी सं. (स्त्री.) -- आरंभिक ज्ञान, ऐसा लगता था कि देश अब राजनीति की बारहखड़ी सीख रहा है। (रा. मा. संच. 2, पृ. 143)

बारी सं. (स्त्री.) -- 1. पारी, अवसर, मौका, जिन पेड़ों के फलने की बारी इस बार नहीं है। (दिन., 7 अप्रैल, 67, पृ. 39), 2. बगीचा, बगिया, हम को तो लिखते भी लाज आती है-अँजोरिया रात में बारी में बैठकर हम लोग क्या-क्या बतियाते थे। (काद., अक्‍तू. 1961, पृ. 122)

बारीक पीसना मुहा. -- चर्चा चलाते या आगे बढ़ाते रहना, साहित्य और सिनेमा में कोई भी संबंध नहीं है इस विशिष्‍टोक्‍ति को कुछ और बारीक पीसते रहना सिनेमा के जानकारों में फैशन में शामिल रहा है। (दिन., 14 जन. 1966, पृ. 40)

बाल की खाल उतारना मुहा. -- झूठ-मूठ का तर्क उपस्थित करना, (क) नोआखाली और पंजाब की वारदातों के इस समय में यह चर्चा बाल की खाल उतारने जैसी है। (कर्म., 12 अप्रैल 1947, प. 23), (ख) इस तरह के प्रश्‍नों से हम बाल की खाल उतारने की स्थिति में ही पहुँचते हैं। (रचनाः अज्ञेय, पृ. 36)

बाल की खाल निकालना मुहा. -- बाल की खाल उतारना, झूठ-मूठ का तर्क उपस्थित करना, मीन-मेष निकालना, (क) बाल की खाल निकालने का अवसर बहुधा जिरह में आता है। (मधुकर, 1 अक्‍तू. 1940, पृ. 5)(ख)बाल की खाल निकालकर उसे और गूढ़ बनाने की क्या जरुरत है । माधुरी नव . 1928 , सं . पृ .901) (ग) बहुत से लोगों की धारणा है कि अदालत में बाल की खाल निकाली जाती है । (मधुकर, 1 अक्तू . 1940 , पृ . 5)

बाल बाँका न कर सकना मुहा. -- जरा-सी भी हानि न कर पाना, (क) स्वयं यमराज भी उसका बाल बाँका नहीं कर सकते। (म. का मतः क. शि., 24 जन. 1925, पृ. 180), (ख) हम अजेय बन जाएँगे और तब चीन तो क्या बड़े-बड़े देश भी बाल-बाँका नहीं कर पाएँगे। (हि. पत्र. के गौ. बां. बि. भ., सं. ब., पृ. 219), (ग)बुद्धिजीवी ...सामाजिक सत्ता का बाल भी बाँका नहीं कर सकते। (धर्म., 8 अक्‍तू. 1967, पृ. 10)

बाल बाँका न होना मुहा. -- तनिक-सी भी हानि या नुकसान न होना, कुछ भी न बिगड़ना, आँख फोड़ने के लिए किसी भी पुलिसवाले का बाल तक बाँका नहीं हुआ। (रवि., 25 अक्‍तू. 1981, पृ. 13)

बाल-बाल क्रि. वि. -- पूरी तरह से, पैरों की हड्डियों का मिलान करने बैठें तो मालूम होगा कि बनावट में सबकी हड्डियाँ बाल-बाल मिलती हैं। (सर., जून 1912, पृ. 303)

बालना क्रि. (सक.) -- जलाना, चूल्हा जलाते या बालते नहीं चिताते हैं। (गु. र., खं. 1, पृ. 115)

बालबोध वि. (अवि.) -- बच्‍चों तक की समझ में आनेवाला फल यह हुआ कि मोढ़ी उठा दी गई। उसके बदले बालबोध (देवनागरी) लिपि कर दी गई। (सर., नव. 1917, पृ. 272)

बाली सं. (पु.) -- रखवाला, समाज के पुष्पोद्यान का माली और खेतों का बाली जा रहा है। (सर., सित. 1912, पृ. 469)

बालू की भीत सं. (स्त्री., पदबंध) -- रेत की दीवार, महाराजा रणजीत सिंह के मरते ही विशाल सिक्ख साम्राज्य बालू की भीत की तरह गिर पड़ा। (ग. शं. वि. रच., खं. 1, पृ. 339)

बालू से तेल निकालना मुहा. -- असंभव कार्य करने का निष्फल प्रयास करना, आकाशवाणी का सबसे बड़ा संकट यह भी है कि वह बालू से तेल निकालना चाहती है। (दिन., 14 सित., 1969, पृ. 27)

बाँवरा वि. (विका.) -- बावला, बाँका नायक बाँवरा नायक बन गया है। (दिन., 10 जून 1966, प. 29)

बावला हो उठना मुहा. -- पगला उठना, भारतीयों को यूरोपीय खिलाड़ियों में शामिल होता देख कलकत्ते का अंग्रेजी पत्र एंपायर बेतरह बावला हो उठा। (मा. च. रच., खं. 9, पृ. 133)

बावला वि. (विका.) -- पागल, उन्मत्त, दीवाना, (क) जब राजनीति बावली हो जाती है तो वह वाद को विवाद बनाने का कारखाना बन जाती है। (कर्म., 26 नव., 1949, पृ. 5), (ख) मेरे पहुँचने के पहले वह कैसी बावली हो रही थी। (नव. : अप्रैल, 1958, पृ. 86), (ग)आधुनिक हिंदी साहित्य-जगत् प्रखर बौद्धिकता में बावला होकर आस्थाहीन हो चला है। (मा. च. रच., खं. 4, पृ. 203)

बावलापन सं. (पु.) -- पागलपन, व्याकुलता, (क) वेलेंटाइन डे मनाने का बावलापन जबरदस्त था। (हि. ध., प्र. जो., पृ. 496), (ख) भुट्‍टो के बावलेपन के दो कारण हैं। (रा. मा. संच. 2, पृ 74)

बासन सं. (पु.) -- बरतन, (क) बासन अधिक घिसने से मुलम्मा छूट जाता है। (दिन., 14 मार्च, 1971, पृ. 9), (ख) वामा दरसी बासन माँज रही थी। (सर., 1 फर. 1908, पृ...)

बासनी सं. (स्त्री.) -- थैली, बासनी का मुँह खोलो और अकबरी मोहरें गिन दो। (चं. श. गु. र., खं. 2, पृ. 389)

बासीपन सं. (पु.) -- नवीनता या ताजगी का अभाव, बाहर विदेशी पराजय थी और अंदर बासी कुरसियों पर बासी लोग बैठे थे, जिनकी इज्‍जत लगातार घटती जा रही थी। इसी बासीपन से निपटने के लिए नेहरू ने 1963 में कामराज योजना लागू की। (रा. मा. संच. 1, पृ. 402)

बाँसों तड़पना मुहा. -- धड़कना, धकधक करना, उन दिनों दिल बल्लियों उछलता और बाँसों तड़पता था। (न. ग. र., खं. 3, पृ. 396)

बाहना क्रि. (सक.) -- (कंघी से बाल) सँवारना, बाल बाहने के काम के नहीं जूड़े में खोंसने के 6 कंघे लेते आवें। (चं. शं. गु. र., खं. 2, पृ. 410)

बाहर भैंस बनाइया, भीतर भरी भँगार कहा. -- बाहर से तो आकार-प्रकार बड़ा होना किंतु अंदर से खोखला होना, बाहर भैंस बनाइया, भीतर भरी भँगार-कबीर। (काद. : अग. 1982, पृ. 10)

बाहिया सं. (स्त्री.) -- बहार, रमणीयता, शमीन बानो भोपाली और प्रवीण सुल्ताना आदि गायिकाओं के गायन की प्रदेश में बहिया सी आ गई। (दिन., 16 मार्च, 69, पृ. 7)

बाहुपाश में जाना मुहा. -- किसी की गोद में चले जाना, आश्रयदाता बना लेना, पाकिस्तान कहीं रूठकर चीन के बाहुपाश में न चला जाए। (दिन., 30 अप्रैल, 67, पृ. 10)

बिकरी सं. (स्त्री.) -- असमान या दोषपूर्ण विवाह-संबंध, अपने कुल से न्यूनवाले के साथ जो संबंध किया जाता है उसे बिकरी कहते हैं। (सर., अक्‍तू. 1909, पृ. 436)

बिगड़ी सँवारना मुहा. -- अपनी वर्तमान बुरी हालत को सुधारना, अपना घर चेते, आँखें खोले, सजग होकर अपनी बिगड़ी सँवारने में लग जाय। (शि. पू. र., खं. 3, पृ. 360)

बिगड़ैल वि. (अवि.) -- बिगड़ा हुआ, (क) लड्‍डू न मिलने पर बिगड़ैल लड़का फाँसी की धमकी देता है। (गु. र., खं. 1, पृ. 333), (ख) सत्ता की बिगड़ैल संतानें बचकाना दलीलें देकर इस प्रचार को मनोरंजक बना रही हैं। (हि. ध., प्र. जो., पृ. 360), (ग)कांग्रेस का नाम सुनते ही बिगड़ैल भैंस की तरह गरदन झाड़ते हैं। (म. का. मतः क. शि., 17 दिस. 1927, पृ. 242)

बिगसना क्रि. (अक.) -- विकसना, विकसित होना, छितराना-बिखरना, स्‍त्री ने दूसरा लड्‍डू कुछ निकट जाकर फेंका। वह छाती पर जाकर बिगस गया और लिपट गया। (फा. दि. चा., वृ. व. ला. व. समग्र, पृ. 559)

बिचकना क्रि. (अक.) -- चौंकना, भड़कना, बिदकना, (क) हल चलाते-चलाते बैल बिचक जाते हैं। (रा. मा. संच. 2, पृ. 307), (ख) सुरक्षा और भय में ईसाई समुदाय दुबक और बिचक गया। (हि. ध., प्र. जो., पृ. 341), (ग)लापरवाही से ग्राहक ऐसे ही बिचक जाता है जैसे काले छाते से बैल। (सा. हि., 31 दिस. 1950, पृ. 11)

बिचला वि. (विका.) -- बीच का, मध्य का, नई और बिचली पीढ़ी के बीच एक झूठे तनाव और उलझाव को जन्म देने के उद्‍देश्य से, (दिन., 22 फर. 1970, पृ. 24)

बिच्छू का मंत्र न जानना पर साँप के बिल में हाथ डालना कहा. -- कुछ न जानते हुए भी ज्ञान बघारना, हँसी इसलिए आती है कि ऐसे लोग बिच्छू का मंत्र नहीं जानते पर साँप के बिल में हाथ डालने की कहावत को चरितार्थ करते हैं। (कु. ख. : दे. द. शु., पृ. 33)

बिछलना क्रि. (अक.) -- फिसलना, (क) ढालों पर बिछलना पड़ा है। (म. सा. : ओं. श., भाग-1, पृ. 34), (ख) इसके पश्‍चात् पंतजी ऐसे बिछले कि हमारी आशाओं पर पानी फिर गया। (ज. स. : 15 जुलाई 2007, (रवि), पृ. 2)

बिछलहा वि. (अवि.) -- फिसलन-भरा, फिसलौंआ, लोगों की निकली हुई पगडंडी, वह भी पानी बरस जाने से बिछलहा। (निराला-का. कार., पृ. 6)

बिछावन सं. (पु.) -- बिस्तर, उसे बिछावन का रोगी हुए वर्षों बीत गए हैं। (काद. : अक्‍तू. 1982, पृ. 36)

बिजली गिराना मुहा. -- वज्रपात करना, घोर प्रहार करना, नाश करना, इन्हीं सभाओं में देश कल्याण के भावों पर बेदर्दी के साथ बिजलियाँ गिराई जाती हैं। (ग. शं. वि. रच., खं. 1, पृ. 298)

बिजली मार जाना मुहा. -- विद्युत् का आघात लगाना, सहसा बेहोश हो जाना, ऐसा जान पड़ता है कि हँसती-खेलती वैशाली को बिजली मार गई है। (कुटजः ह. प्र. द्वि., पृ. 79)

बिजूका सं. (पु.) -- खेत की सुरक्षा के लिए मनुष्य का कृत्रिम पुतला, धोखा, सुअर को दूसरे जानवरों के लिए बिजूका बनने के लिए वहीं पड़ा रहने दिया। (फा. दि. चा., वृ. व. ला. व. समग्र, पृ. 565)

बिटुर-बिटुर क्रि. वि. -- लालायित दृष्‍टि से, आँखें फाड़-फाड़कर, ज्यों का त्यों पड़ा रह जाए बिटुर-बिटुर तकता। (ज. क. सं. : अज्ञेय, पृ. 27)

बिटोरा सं. (पु.) -- जमावड़ा, दोनों पक्षों से लोगों का बिटोरा होता। (बे. ग्रं., भाग 1, पृ. 16)

बिठान सं. (स्त्री.) -- मेल खाने की क्रिया या भाव, मैत्री, जुड़ाव, कल्पना और वास्तविकता की बिठान भी काफी अच्छी है। (दिन., 9 दिस., 66, पृ. 41)

बित्ते-भर का वि. (विका., पद.) -- बित्ते के आकार का, बहुत छोटा, मकड़ी के आगे तो बित्ते भर का दायरा है, जो उसका वर्तमान है। (रा. मा. संच. 2, पृ. 38)

बिदककर रह जाना मुहा. -- भड़क या चौंक उठना, (क) प्रो. वर्मा उसकी इस चोंचलेबाजी को ऐसा उजागर करते हैं कि बेचारा बिदककर रह जाता है। (दिन., 13 अप्रैल 69, पृ. 36)

बिदकना क्रि. (अक.) -- चौंकना, भड़कना, विचकना, (क) तर्क से आदमी बिदक जाता है। (ब. दा. च. चु. प., संपा. ना. द., पृ. 115), (ख) राज्यपाल अपने भाषणों में सरकार को जो सुझाव देते हैं, सरकार उन्हीं से बिदकती है। (ज. स. : 23 दिस. 1983, पृ. 4), (ग)कुछ विचार-स्वातंर्त्र्य के इतने कायल हैं कि वे राजनैतिक शब्दावली तक से बिदकते हैं। (दिन., 24 मार्च, 68, पृ. 23)

बिंदु-विसर्ग न जानना मुहा. -- कुछ भी न जानना, तनिक सी भी जानकारी न होना, इस कटूक्‍ति से मर्मबिद्ध होकर भरत ने कौशल्या के सामने अनेक शपथें कीं। वे इस व्यापार का बिंदु-विसर्ग भी नहीं जानतेथे। (सर., फर. 1912, पृ. 92)

बिंधा वि. (विका.) -- जिसमें छेद किया गया हो, छिदा, लिफाफे पर तीर से बिंधा दिल बना था। (काद., जन. 1961, पृ. 101)

बिन-बुलाया वि. (विका.) -- जिसे बुलाया न गया हो, अनाहूत, अनिमंत्रित, घरेलू चूहे ऐसे बिन-बुलाए मेहमान हैं कि ... (काद. : नव. 1972, पृ. 69)

बिना ओर-छोर का वि. (विका., पद.) -- बेसिर-पैर का, ऊलजलूल, जो हिंदी बिलकुल नहीं, जानता, उसके मुँह में भी लगाम नहीं। बड़े-बड़े दिमाकदार भी बिना ओर-छोर की बातें कह जाते हैं। (शि. पू. र., खं. 4, पृ. 632)

बिना टका टकटकायते कहा. -- बिना पैसे के शान-शौकत नहीं होती, ग्रंथ रचना जैसे महत्त्व के काम को छोड़कर क्यों ये लोग इधर झुक पड़ते हैं। जवाब साफ है और वह यही कि बिना टका टकटकायते। (सर., जुलाई 1920, पृ. 15)

बिना हर्र फिटकरी निपटना मुहा. -- सस्ते में काम हो जाना, बिना कुछ खर्च किए काम का सलट जाना, राम करें उनके टंटे जैसे बिना हर्र फिटकरी निपटे वैसे सबके निपटें। (दिन., 6 जून, 67, पृ. 42)

बिन्‍नूपन सं. (पु.) -- लड़िकयों जैसा स्वभाव, इन सबसे अधिक त्रासद है यहाँ के युवकों का बिन्‍नूपन। (मधुकरः जन-मई 1943, पृ. 343)

बिपता सं. (स्त्री.) -- आपदा, विपत्ति, लेखक अपनी बिपता लिखेगा, प्रकाशक झट मानहानि का बाण संधानेगा। (शि. पू. र., खं. 4, पृ. 571)

बिरछ सं. (पु.) -- वृक्ष, गोया कुटज अदना सा बिरछ हो। (कुटजः ह. प्र. द्वि., पृ. 4)

बिरता सं. (पु.) -- बूता, सामर्थ्य, (क) फिर किस बिरते पर इतरा रहे हो। (म. का मतः क. शि., 14 फर. 1925, पृ. 69), (ख) क्या इसी बिरते पर स्वराज्य की आकांक्षा रखते हो ? (ग. शं. वि. रच., खं. 2, पृ. 327), (ग)किस बिरते पर तुम्हारा मुकाबला करने का साहस कर सकती हूँ। (सर., सित. 1930, पृ, पृ. 247)

बिरवा सं. (पु.) -- पौधा, गलत सोच की जगह सही सोच का बिरवा रोपना कठिन कार्य है। (ग. मं. : पत्र. चु., पृ. 100)

बिराजना क्रि. (अक.) -- बैठना, आसीन होना, इस भारत भूमि के उद्धारक के लिए वे सब आकाश से उतरकर हिमालय के शिखर पर क्यों बिराजना चाहते हैं ? (रा. मा. संच. 1, पृ. 340)

बिलगाना क्रि. (सक.) -- अलग-अलग करना, अलगाना, मिले हुए हिंदू-मुसलिम हृदयों की कुटिल नीति से बिलगाने की कोशिश की जाती है। (मा. च. रच., खं. 9, पृ. 309)

बिलटना क्रि. (अक.) -- बरबाद होना, नष्‍ट होना, (क) मंदिर, शिवाला, घाट में लाखों बिलट जाय, स्कूल कायम करने में विद्यावृद्धि के लिए कुछ देना फजूल मानते हैं। (भ. नि. मा. (दूसरा भाग), सं. ध. भ., पृ. 1236), (ख) बड़े-बड़े साम्राज्य भी इसी तरह बिलट जाते हैं। (मधुः अग. 1965, पृ. 199), (ग)घर बिक जाय, जमींदारी विलट जाय पर मालगुजारी अदा करें। (बा. भ. : भ. नि., भाग-2, पृ. 11)

बिलबिलाना क्रि. (अक.) -- 1. कीड़ों की तरह रेंगना, (क) बिहार के अनेक होनहार लेखक-कवि अपने प्रांत में पत्रिका न होने के कारण चारों ओर बिलबिलाते फिरते हैं। (शि. पू. र., खं. 3, पृ. 351), (ख) वहाँ से बिलबिलाते हुए बंबई भागे। (शि. पू. र., खं. 4, पृ. 142), (ग)सहस्त्रों पादड़ी काले कपड़े पहने सड़कों पर बिलबिलाते फिरते हैं। (सर., अप्रैल 1911, पृ. 168), 2. विलाप करना, (क) कांग्रेस दर्द से बिलबिलाती सरकार की गरदन नीचे रेतना चाहती थी। (स. ब. दे. : रा. मा. (भाग-दो), पृ. 278), (ख) जब कभी सरकार अपने मखमली दस्ताने को उतार देती है और फौलादी पंजों से काम लेती है जैसा कि उसने पंजाब में किया था, तब लोग बिलबिला उठते हैं। (ग. शं. वि. रच., खं. 3, पृ. 197)

बिलमाना क्रि. (सक.) -- विलंबित करना, रोकना, भाषा और लिपि के मोह में पड़कर आजादी नहीं बिलमाई जा सकती। (शि. पू. र., खं. 4, पृ. 499)

बिललाना क्रि. (अक.) -- विलाप करना, लोग प्यास के मारे बिलला रहे हैं। (बे. ग्रं., भाग 1, पृ. 103)

बिलल्ला वि. (विका.) -- मूर्ख, मूर्खतापूर्ण, तिलिस्म की बिलल्ली घटना के निर्जीव श्रृंगारकों ने यह किया है। (गु. र., खं. 1, पृ. 405)

बिला वजह क्रि. वि. -- बिना किसी कारण के, अकारण, फिर बिला वजह इतने कठघरे, इतनी संकीर्णता, इतने परहेज क्यों ? (वाग. : कम., अग. 1997, सं. पृ. 4)

बिलाना क्रि. (अक.) -- विलीन हो जाना, खो जाना, (क) समाजवादी आंदोलनों की शक्‍ति सोखकर सत्ता के रेगिस्तान में बिला गया। (हि. ध., प्र. जो., पृ. 163), (ख) राजनैतिक होड़ के कारण सही और मूल मुद्‍दे का बिला जाना नुकसानों में से एक है। (हि. ध., प्र. जो., पृ. 319), (ग)पर साल तमामी में वे रकमें तो जैसे बिला जाती हैं और उलटे लेने के देने पड़ जाते हैं। (नि. वा. : श्रीना. च., पृ. 616)

बिलायत सं. (पु.) -- विलायत, विदेश (योरप), उपनगरों में अपने डैने फैलाकर बढ़ती हुई नई दिल्ली की आत्मा में बिलायत बसता है। (दिन., 10 सित. 1965, पृ. 42)

बिलोना क्रि. (सक.) -- मथना, (क) यह तो निश्‍चित है, हृदयों की मथनी से दही बिलोया जा रहा है। (ग. शं. वि. रच., खं. 1, पृ. 330), (ख) फजल की बीवी नूरी छाछ बिलो रही थी। (नव., फर. 1958, पृ. 85)

बिल्ला सं. (पु.) -- तमगा, छाप, उनकी चर्चा तभी हो सकती है जब उन पर कोई साहित्यिक बिल्ला लगा हो। (दिन., 16 अप्रैल, 67, पृ. 39)

बिल्ली के गले में घंटी बाँधना मुहा. -- असंभव या खतरनाक काम करना, प्रश्‍न यह है कि आखिर बिल्ली के गले में घंटी बाँधे कौन ? (हि. पत्र. के. गौ. बां. बि. भट., सं. ब., पृ. 196)

बिल्ली के भाग से छींका टूटना कहा. -- बिना प्रयास मनचाही वस्तु संयोग से मिलना, पाँसा पड़े सो दाँव, राजा करे सो न्याव बस फिर क्या था, बिल्ली के भाग से छींका टूट पड़ा। (म. का. मतः क. शि., 22 सित. 1923, पृ. 119)

बिल्ली जान छोड़े चूहा लँडूरा होकर रहे कहा. -- जान रहे भले ही अपंग होकर रहना पड़े, क्षमा कीजिए ऐसी शुभ चिंता से। मुझे अविवाहित ही रहने दीजिए, बिल्ली जान छोड़े, चूहा लँडूरा होकर रहेगा। (सर., मार्च 1919, पृ. 131)

बिल्लैया दंडवत् सं. (पु., पदबंध) -- दिखावटी विनम्रता, अपने मतलब के लिए लोकोपकार की माला फेरी जा रही है और बिल्लैया दंडवत् हो रही है। (ग. शं. वि. रच., खं. 2, पृ. 255)

बिषबाधा सं. (स्त्री.) -- विषाक्‍तता, जहरीलापन, खराब दूध से अनेक बच्‍चे बिषबाधा के शिकार हो गए। (लो. स., 20 जन. 1989, पृ. 4)

बिसरना क्रि. (सक.) -- भूल जाना, विस्मरण हो जाना उन्हें यह बिसर गया है कि आप उन्हें हथकड़ियाँ पहिनाया करते थे। (कर्म., 29 मई 1948, पृ. 7)

बिसात सं. (स्त्री.) -- सामर्थ्य, हैसियत, उसकी बिसात ही क्या जो हमें चुनौती दे। (काद. : मार्च 1968, पृ. 10)

बिसाना क्रि. (सक.) -- बसाना, पालना, हत्याकारियों को लोहे का सामना करना और आजन्म बैर बिसाना पड़ता है। (सर., मई 1918, पृ. 240

बिसारना क्रि. (सक.) -- भुलाना, भुला देना, (क) भारत की आत्मा नवीन क्षेत्रों में पदार्पण करती हुई अपने तपस्या के मार्ग को कभी न बिसारे। (ग. शं. वि. रच., खं. 1, पृ. 81), (ख) गुरनाम सिंह ने सभी सदस्यों से पुरानी घटनाओं को बिसार देने की अपील की। (दिन., 9 नव., 1969. पृ. 24)

बिसुरना क्रि. (अक.) -- बिसूरना, बिलखना, शीघ्र ही बिसुरकर वह मर गई। (नव., मार्च 1953, पृ. 44)

बिसूरना क्रि. (अक.) -- बिलखना, सिसकना अनाथ बच्‍चों को सड़कों पर बिसूरने के लिए छोड़ दिया जाता है। (दिन., 25 फर., 68, पृ. 32)

बिहरना क्रि. (अक.) -- विहार करना, घूमना, फटना, (क) अब चाहे बीबियों के गलबहियाँ डालकर मौज से बिहरें। (म. का. मतः क. शि., 28 मार्च 1925, पृ. 182), (ख) जिसे देखकर किसी भी सहृदय की छाती बिहर जाती। (सर., अप्रैल 1943, पृ. 216)

बीचवान सं. (पु.) -- बिचौलिया, मध्यस्थ या तो बीचवान मुनाफाखोर होगा या फिर वह निकम्मा सरकारी कर्मचारी होगा। (रा. मा. संच. 2, पृ. 142)

बीजवपन सं. (पु.) -- बीज बोने की क्रिया या भाव, (क) संभव है आपकी प्रेरणा से अब बीजवपन हो जाए। (मधुकरः अप्रैल-अग. 1944, पृ. 51), (ख) देश की भाषाओं के ज्ञान का बीज वपन हुआ। (माधुरी, अग.-सित. 1928, सं. 1, वर्ष 7, पृ. 847)

बीट सं. (पु.) -- मार्ग, क्षेत्र, विधानसभा चुनावों में उनकी शक्‍ति के अपने बीट बन गए थे। (लो. स., 14 जन. 1989, पृ. 39)

बीड़ा उठाना मुहा. -- कोई महत्त्वपूर्ण या जोखिम-भरा काम अपने ऊपर लेना, (क) कोई कौंसिल का तो कोई एकता का बीड़ा उठाएगा। (म. का. मतः क. शि., 19 दिस. 1925, पृ. 195), (ख) क्रांति का बीड़ा उठाया क्यूबा के नौजवान नेता अर्नेस्टो (शे) गवेरा ने। (रा. मा. संच. 1, पृ. 38), (ग)...वंश का विरोध भी भारत में पौराणिक परंपरा का अंग है, और ऐसे बीसियों प्रसंग मिलते हैं जबकि अमुक ने अमुक वंश नाश करने के लिए चोटी बाँध ली हो या बीड़ा उठा लिया हो। (रा. मा. संय. 1, पृ. 456)

बींधना क्रि. (सक.) -- छेदना, छेद-छेद कर देना, छलनी कर देना, 17 दिस. सन् 1928 को गोली चली और श्री जे. पी. सांडर्स गोली से बींध दिया गया। (मा. च. रच., खं. 4, पृ. 126)

बीनणी सं. (स्त्री.) -- पत्‍नी, माँ बताती-थीं-अरे अजीबिया तेरी बीनणी तो गोरी गट्‍ट थी। हाथ लगाने पर दाग पड़ जाता था। (काद., मार्च 1976, पृ. 151)

बीहड़ वि. (अवि.) -- कठिन, दुरूह, (क) पाठ्य-पुस्तक से पूछे गए प्रश्‍न छात्रों के लिए बड़े बीहड़ जँचते। (शि. पू. र., खं. 3, पृ. 311), (ख) एक बीहड़ नीरवता छाई। (मधुः जून 1965, पृ. 64), (ग)पुस्तकों के मनमाने दाम रखना एक बीहड़ समस्या है। (काद., मार्च 1980, पृ. 73)

बुकनी सं. (स्त्री.) -- चूर्ण, दो बार चेष्‍टा की गई कि इसकी बुकनी बनाकर खाद की तरह व्यवहृत हो। (सर., नव. 1917, पृ. 236)

बुक्‍का फाड़कर रोना मुहा. -- जोर से रोना, ऐसे अवसरों पर रोनेवाले के साथ बुक्‍का फाड़कर रोने लगना प्रशासकीय शिष्‍टाचार के अंतर्गत आता है। (काद., जुलाई 1994, पृ. 141)

बुझाना क्रि. (सक.) -- समझाना, कानूनविद् को ही कानून का सवाल समझ में नहीं आए तो कौन बुझाए । (किल , सं , श्री , पृ . 16)

बुझौअल सं. (स्त्री.) -- पहेली, (क) इस अशुद्धि के कारण नाटक का दूसरा अंक बुझौअल का खेल हो गया है। (सर., जुलाई-दिस. 1931, सं. 2, पृ. 189) (ख) लेखन में देहातों के बुझौवल (बुझौवलें) सामने आते (आती) हैं। (नि. वा. : श्रीना. च., पृ. 817)

बुढ़ऊ सं. (पु.) -- बूढ़ा व्यक्‍ति, तब कहीं जाकर हम लोगों को ज्ञात हुआ कि बुढ़ऊ को लेमू बहुत पसंद है। (न. ग. र., खं. 3, पृ. 66)

बुढ़भस सं. (स्त्री.) -- बुढ़ापे की बड़बड़ाहट, (क) बुढ़ापे में माया जोर पकड़ती है और सबसे बुरा काम बुढ़भस कराती है। (रा. ला. प्र. र., पृ. 38) (ख) वास्तव में रस-कलस उनके (उनकी) बुढ़भस का प्रसाद है। (सुधा, फर. 1935, पृ. 17)

बुढ़भसपन सं. (पु.) -- बड़बड़ाने की प्रवृत्ति या स्वभाव, समालोचक इसमें बुढ़भसपने की बू सूँघते हैं। (कर्म., 26 अप्रैल 1947, पृ. 7)

बुढ़ापे की लाठी मुहा. -- असहाय का सहारा, बस इस क्षेत्र में उन्हें बुढ़ापे की लाठी की जरूरत क्यों है ? (रा. मा. संच. 1, पृ. 340)

बुढ़िया पुराण सं. (पु., पद.) -- बुढ़ियों की किस्सा-कहानी, यदि गुलेरीजी बुढ़िया पुराण के किस्से सुनाकर अज्ञाने फैलाने का प्रयत्‍न करें तो हम लोगों का दुर्भाग्य ही समझना चाहिए। (सर., जुलाई 1913, पृ. 409)

बुढ़ौती सं. (स्त्री.) -- वृद्धावस्था, बुढ़ापा, ताकि बुढ़ौती में पछताना न पड़े। (म. का. मतः क. शि., 29 सित. 1928, पृ. 229)

बुतशिकन वि. (अवि.) -- मूर्तियों को तोड़नेवाला, मूर्ति भंजक, महमूद आदि को तो इस बात पर बड़ा गर्व था कि वे बुतपरस्त न होकर बुतशिकन थे। (सर., सित. 1912, पृ. 483)

बुत्ता देना मुहा. -- झाँसा देना, हर साल ऑडिटवाले ऐतराज करते हैं, हर साल वह बुत्ता दे जाता है। (रा. द., श्रीला. शु., पृ. 120)

बुंदकी सं. (स्त्री.) -- छोटी गोल बिंदी, पाउडर के ऊपर लाल, हरे, नीले रंग की बुंदकियाँ लगाई जातीं। (प्रे. स. क. : सर. प्रेस, पृ. 52)

बुद्धिपाटव सं. (पु.) -- बुद्धि का कौशल, अपना बुद्धिपाटव दिखाने के लिए आमूल खंडन करता है। (सर., अप्रैल 1959, पृ. 234)

बुनगट सं. (स्त्री.) -- बुनाई, इस मिरजई की कंठी पर बुनगट के काम का हाशिया है। (चं. शं. गु. र., खं. 2, पृ. 233)

बुरकना क्रि. (सक.) -- छिड़कना, फिर उसे बुरककर रेखा का रूप दिया गया। (स. से. त. : क. ला. मिश्र, पृ. 42)

बुरज सं. (पु.) -- गुबार, असंतोष, कई लोगों को महात्माजी से अपना दिली बुरज निकालने का मौका मिल गया है। (न. ग. र., खं. 2, पृ. 40)

बुरी बला सं. (स्त्री.) -- बड़ी आफत, वास्तविकता बड़ी बुरी बला है। (न. ग. र., खं. 2. 2, पृ. 256)

बुर्दबारी सं. (स्त्री.) -- सहनशीलता, गवर्नमेंट बेचारी इन ऊल-जलूल आक्षेपों का उत्तर बड़े सब्र, बड़ी बुर्दबारी से देती चली आ रही है। (म. प्र. द्वि., खं. 9, पृ. 153)

बुर्राकदार वि. (अवि.) -- चमकदार, स्वच्छ, वह बुर्राकदार साफा बाँधे था। (रा. द., श्रीला. शु., पृ. 169)

बुलबुल हो उठना मुहा. -- मीठा बोलने लगना, मधुर स्वर में बोलने लगना, लार्ड बर्कनहेड ने एक टुकड़ा क्या फेंका देशबंधु उतने में ही बुलबुल हो उठे। (म. का मतः क. शि., मई 1925, पृ. 185)

बुलव्वा सं. (पु.) -- बुलावा, निमंत्रण, त्रिपक्षीय वार्त्ता के लिए इंदिरा गांधी ने किसी को बुलव्वा नहीं भेजा। (ज. स. : 11 फर. 1984, पृ. 4)

बुलास सं. (स्त्री.) -- बोलने की इच्छा, कुछ सदस्यों को बुलास आई हो तो आज्ञाकारी छोकड़ों के ऊधम के लिए असेंबली के आँगन में सरकार की ओर से काफी वैध जगह छोड़ी जा सकेगी। (मा. च. रच., खं. 10, पृ. 49)

बुलाहट सं. (स्त्री.) -- बुलावा, आपकी बुलाहट वहाँ से होगी तो आ जाएँगे। (बाल. स्मा.ग्रं. : शर्मा, चतुर्वेदी, पृ. 291)

बुहारना क्रि. (सक.) -- झाड़ू देना, झाड़ना, परे हटाना, (क) जिनके भीतर ऐसा उद्यम नहीं जगता, उन्हें प्रकृति कूड़े के भाँति बुहारकर फेंक देती है . (कर्म., 27 दिस., 1952, मृ.पृ), (ख) जयप्रकाश नारायण ने चुनाव प्रणाली में सुधार का जो आग्रह किया है, वह आसानी से बुहार देने योग्य नहीं हैं।

बुहारी देना मुहा. -- झाड़ू लगाना, सफाई करना, हम लोग सवेरे सब जगह बुहारी देते हैं। (चं. श. गु. र., खं. 2, पृ. 353)

बुहारू सं. (पु.) -- झाड़ू, अच्छी तरह बुहारू करके मिट्‍टी का घोल पोतना से चौके में लीपती है। (दिन., 7 जन. 1968, पृ. 41)

बू भरी होना मुहा. -- रुआब या ऐंठ झलकना, अधिकांश राज्य कर्मचारियों के दिमागों में नवाबी-शासन की बू भरी हुई है। (कर्म., 22 अप्रैल, 1950, पृ. 8)

बूँकना क्रि. (सक.) -- फर्राट से बोलना, दस वर्ष का बच्‍चा वेदांत और भक्‍तियोग नहीं बूँकता। (सर., फर. 1915, पृ. 114)

बूका (हुआ), वि. (विका.) -- पिसा हुआ, बूके हुए सेंधे नमक के समान कई दिनों तक सड़कों पर पड़ी रहती है। (सर., दिस. 1919, पृ. 324)

बूझना क्रि. (सक.) -- समझना, बिना जाने-बूझे आखिर इतना बड़ा सामंजस्य कैसे संभव है। (सर., भाग 28, सं. 3, मार्च 1927, पृ. 297)

बूटा सं. (पु.) -- पौधा, मैं तो लड़ाई के बाद सरकार से दस घुमा जमीन यहाँ माँग लूँगा और फलों के बूटे लगाऊँगा। (सर., जून 1915, पृ. 243)

बूता सं. (पु.) -- सामर्थ्य, शक्‍ति, बल, (क) ऋषियों की भाषा में बोलने का साहस करें तो सिद्धि के बूते का रोग है। (मा. च. रच., खं. 2, पृ. 374), (ख) जो चीज हमारे बूते की है वह केवल चढ़ते जाने की अमर इच्छा ही है। (रा. मा. संच. 2, पृ. 39), (ग)यह दोस्ती सबके बस और बूते की बात नहीं। (दिन., 8 जून 1969, पृ. 19)

बूते का रोग न होना मुहा. -- सामर्थ्य के बाहर होना, वश की बात न होना, मुझे लगता है कि बालकृष्णजी को रोक सकना हम लोगों में से किसी के बूते का रोग नहीं था। (मा. च. रच., खं. 4, पृ. 261)

बेअँकुस वि. (अवि.) -- अंकुश-विहीन, अनियंत्रित, सब कहीं हाकिम लोग बेअँकुस के हाथी नहीं। (सर., दिस. 1913, पृ. 681)

बेकदरी सं. (स्त्री.) -- अप्रतिष्‍ठा, अवमानना, हिंदी अखबारों के तीसरे दौर में आकर उसकी बेकदरी हो गई। (बा. गु. : गु. नि. सं. झा. श., खं. 5, पृ. 332)

बेकली सं. (स्त्री.) -- बेचैनी, व्याकुलता, (क) ऐसी प्रदर्शनियाँ अभिव्यक्‍ति की बेकली की नहीं शिल्पि के प्रदर्शन की होती हैं। (दिन., 11 जून 67, पृ. 41), (ख) मन में बेकली पैदा कर देते हैं। (भ.नि., पृ. 95), (ग)नाटक छाते का कथ्य जीवन बिताने की बेकली का तल्ख अहसास कराता था। (दिन., 9 मई 1971, पृ. 44)

बेकस वि. (अवि.) -- दुःखी, पीड़ित, बेकस बेवा हूँ, कचहरी दरबार कर नहीं सकती। (सर., जून 1916, पृ. 387)

बेखटक क्रि. वि. -- बेखटके, निधड़क, सभी काम बेखटक हो रहे हैं, जेल का कपाट खुला। (दिन., 11 जुलाई 1971, पृ. 39)

बेखटके क्रि. वि. -- बेखौफ, निधड़क, निःशंक होकर, (क) यह बेखटके कहा जा सकता है कि वे अगले आम चुनाव में विजयी होंगे। (दिन., 14 अक्‍तू., 66, पृ. 20), (ख) मेरे लेख में आप बेखटके संशोधन कर सकते हैं। (ब. दा. च. चु. प., संपा. ना. द., पृ. 84), (ग)...और जनता पार्टी की आड़ में वह बेखटके शक्‍ति संचय कर सकता है। (रा. मा. संच. 1, पृ. 420)

बेखोट वि. (अवि.) -- जिसमें खोट न हो, खरा, सच्‍चा, (क) दलील बेखोट थी, किंतु अदालत ने एक न सुनी। (दिन., 16 दिस., 66, पृ. 10) (ख) पाठों की कहन और पात्रों का अभिनय बेखोट है। (दिन., 6 जून, 67, पृ. 42)

बेगाना वि. (विका.) -- पराया, हमने लाख बार मालिकों के तलवे सहलाए, कुछ भी नहीं होता, हमारी सरकार भी बेगानी लगती है। (दिन., 11 जुलाई 1971, पृ. 39)

बेगार भुगतना मुहा. -- बिना पारिश्रमिक के कार्य करना, ऐसा लग रहा था जैसे कोई बेगार भुगतने जा रहे हों . (सा. हि., 9 अप्रैल 1961, पृ. 4)

बेगार भुगतौवल सं. (स्त्री.) -- ऐसा काम जिसका कुछ भी पारिश्रमिक न मिले, इस तरह की बेगार-भुगतौवल के सबूत पिछले साल अधिक मिले थे। (म. प्र. द्वि., खं. 9, पृ. 119)

बेगार सं. (स्त्री.) -- मुफ्त में कराया जानेवाला काम, रसद और बेगार की पद्धति से प्रजा को अत्यंत कष्‍ट है। (मा. च. रच., खं. 9, पृ. 220)

बेचेत वि. (अवि.) -- अचेत, चेतना-शून्य, थकावट के मारे अधमरे हो चुके थे। कुछ खा-पीकर बेचेत से हो गए। खूब नींद आई। (सर., दि. 1912, पृ. 663)

बेजड़ वि. (अवि.) -- निर्मूल, आधारहीन, निराधार, यह बात नितांत अस्वाभाविक और बेजड़ है। (म. प्र. द्वि., खं. 1, पृ. 85)

बेजा वि. (अवि.) -- अनुचित, (क) स्थिति का बेजा फायदा सभी राजनीतिक दल उठाते रहे हैं। (लो. स., 16 अप्रैल 1989, पृ. 4) (ख)

बेजार वि. (अवि.) -- नाराज, अप्रसन्‍न, (क) पंडित राज को बेजार कर देने के लिए दीक्षित की यह इतनी छोटी रचना काफी से अधिक हो गई। (सर., जन. 1922, पृ. 83), (ख) जो निराशावाद के रंग में सराबोर है दुनिया से बेजार है, मौन की राह देखते जिसकी आँखें पथरा गई हैं ... (सर., सित. 1930स पृ. 308)

बेझा सं. (पु.) -- वेध, लक्ष्य निशाना, हिंदू और मुसलमान दोनों को ही कबीर ने अपनी आलोचनाओं का बेझा बनाया। (वीणाः मई 1936, पृ. 537)

बेटूट वि. (अवि.) -- निरंतर, होनेवाला, अविछिन्‍न, हलकी मगर बेटूट वर्षा किसानों के लिए अधिक उपयोगी होती है। (दिन., 16 दिस., 66, पृ. 27)

बेंठन सं. (स्त्री.) -- डाट, बंधन, गटापार्चा के तीन बेंठन लगाने पर भी डर रहता है कि उसके अत्यंत सूक्ष्म छेदों की राह से पानी कहीं भीतर न चला जाए। (सर., जून 1915, पृ. 364)

बेठन सं. (स्त्री.) -- बस्ता, गठरी, उन्होंने बेठन खोल-खोलकर सब पुस्तकों को एक जगह रक्खा। (म. प्र. द्वि., खं. 5, पृ. 167)

बेठिकाने क्रि. वि. -- गलत स्थान पर, नए भी अशुद्ध और बेठिकाने लिखते हैं। (बाल. स्मा. ग्रं. : शर्मा, चतुर्वेदी, पृ. 131)

बेड़ा गर्क करना मुहा. -- पूर्णरूप से विनष्‍ट करना, विकास महामंडल ने विदर्भ का बेड़ा गर्क कर दिया है। (लो. स., 15 जन. 1989, पृ. 1)

बेड़ा गर्क होना मुहा. -- पूरी तरह से नष्‍ट हो जाना, पूरी पुलिस लाइन का बेड़ा गर्क हो गया। (क. ला. मिश्रः त. प. या., पृ. 77)

बेढ़नी सं. (स्त्री.) -- बेढ़ई, कचौड़ी, हम नहीं जानते लोगों को रोटी खाना कैसे पसंद आता है, हमको तो दोनों जून ताजी-ताजी लुचई और बेढ़नी मिलती जाय तो कभी कच्‍ची रसोई का नाम न लें। (भ. नि., पृ. 66-67)

बेढब वि. (अवि.) -- बेढंगा, ऊलजलूल, विचित्र, (क) जो बात बेढब खटकती है वह है इस ग्रंथ की भूमिका, जो अत्यल्प है। (शि. पू. र., खं. 3, पृ. 370), (ख) अपने को कांग्रेस के सच्‍चे भक्‍त कहनेवाले लोग अभी तक होमरूल लीग को बड़ी बेढब नजर से देखते थे। (ग. शं. वि. रच., खं. 2, पृ. 348)

बेतरह क्रि. वि. -- बहुत अधिक, (क) भारतीयों को यूरोपीय खिलाड़ियों में शामिल होता देख कलकत्ते का अंग्रेजी पत्र एंपायर बेतरह बावला हो उठा। (मा. च. रच., खं. 9, पृ. 133) (ख) हिंदी में जैसे कवियों की संख्या बेतरह बढ़ रही है वैसे ही समालोचकों की भी खूब वृद्धि हो रही है। (सर., दिस. 1920, पृ. 326)

बेथक वि. (अवि.) -- न थकनेवाला, निरंतर सक्रिय रहनेवाला, उतने बेथक वाग्बाणों को ओट सकना आसान न था। (स्मृ. वा. : जा. व. शा., पृ. 150)

बेदरोदीवार वि. (अवि. पद.) -- जिसके दरवाजे तथा दीवार न हों, जर्मनी के एकीकरण का रुवाब अब बेदरोदीवार का मकान बनकर रह गया है। (दिन., 2 दिस., 66, पृ. 32)

बेधक वि. (अवि.) -- वेधक, वेधन करनेवाला, हृदय को छूनेवाला, एक-एक वाक्य मानो हमारे जीवन के किसी-न-किसी पहलू पर चुटकी लेती सी एक बेधक टीका है। (दिन., 25 नवं., 06, पृ. 42)

बेधड़क क्रि. वि. -- बेखौफ, बिना किसी भय के, खुल्लमखुल्ला, (क) जहाँ बेधड़क कुछ का कुछ कह दिया गया है। (शि. पू. र., खं. 3, पृ. 353), (ख) वह बेधड़क कह जाते हैं कि आज के लेखकों और कवियों को प्रेमचंद और प्रसाद से कुछ नहीं मिलता। (शि. पू. र., खं. 4, पृ. 456), (ग)इसका यह भी मतलब नहीं है कि पुरानों की बेधड़क बुराई की जाए। (सुधा, फक.-जुलाई 1935, पृ. 468)

बेनतीजा वि. (अवि.) -- बिना परिणाम का, परिणाम-रहित, अनिर्णीत, खेल तो बराबर का और बेनतीजा रहा। (दिन., 04 नव., 66, पृ. 10)

बेपनाह वि. (अवि.) -- बहुत अधिक, अत्यधिक, नई किस्म के हथियारों को बनाने की होड़ में बेपनाह खर्चा भी हुआ। (दिन., 10 मई, 1970, पृ. 35)

बेपर की उड़ाना वि. (विका., पद.) -- निराधार बातें फैलाना, इस तरह बेपर की उड़ाना भी कोई समालोचना है। (सुधा, फर. 1935, पृ. 144)

बेपर वि. (अवि.) -- परों से रहित, असमर्थ, हमारा आर्थिक नियोजन बेपर रहा है ... (दिन., 21 मई 1972, पृ. 40)

बेपेंदी का लोटा मुहा. -- `

बेपेंदी का मुहा. -- आधारविहीन, रायबरेली के सज्‍जन बेपेंदी के वोटर होंगे, जनसत्ता पेंदीवाला अखबार है। (हि. ध., प्र.जो., पृ. 149)

बेपेंदीवाला लोटा मुहा. -- बेपेंदी का लोटा, ... उसकी तुलना बेपेंदीवाले लोटे से बखूबी दी जा सकती है। (सा. हि., 26 जून 1960, पृ. 3)

बेफायदा, बेफायदे क्रि. वि. -- अकारण, बिला वजह, आप मुझसे बेफायदे खफा रहते हैं। (सर., अप्रैल 1916, पृ. 239)

बेबात क्रि. वि. -- बिना किसी बात या कारण के, सबको समझ में आ जाना चाहिए कि उसे बेबात इधर-उधर नहीं खदेड़ा जा सकता। (काद. : अग. 1975, पृ. 61)

बेभाव की पड़ना मुहा. -- बहुत अधिक मार पड़ना, अनगिनत प्रहार होना, (क) अगले चुनाव तक या उससे शीघ्र बाद बरुआ पर भी बेभाव की पड़ सकती है। (दिन., 28 अक्‍तू., 66, पृ. 18), (ख) मगर अब पड़ गई बेभाव की, तब सारी जबानदराजी घुस गई। (म. का. मत : क. शि., 28 मार्च 1925, पृ. 183)

बेमगजापन सं. (पु.) -- बुद्धिहीनता, अज्ञानता, इसे भूल कहना निरा बेमगजापन है। (म. प्र. द्वि., खं. 1 (बा. मु. गु.), पृ. 349)

बेर क्रि. वि. -- बार, दफा, एक बेर गौएँ यज्ञ करने बैठीं। (गु. र., खं. 1, पृ. 322)। 2. समय, (क) चलती बेर आपका दिल कितना कठोर हो गया। (बाल. स्मा. ग्रं. : शर्मा, चतुर्वेदी, पृ. 183), (ख) इस चित्र से जान पड़ेगा कि आलोक की किरणें तरल पदार्थ से अधिक घने पदार्थ में घुसती बेर मुड़ जाती हैं। (चं. श. गु. र., खं. 2, पृ. 263)

बेरुक, बरुक योज. -- बल्कि, कुछ लोग अँगरेजी का मोह छोड़कर मातृभाषा हिंदी में केवल लेख लिखकर ही निश्‍चित नहीं हो बैठे हैं बेरुक साहित्य सम्मेलन जैसी संस्था के प्रवर्तित परीक्षणों के भी परीक्षक... (सर., सित. 1918, पृ. 124)

बेलगाव वि. (अवि.) -- लगाव से रहित, उनकी बेलगाव सच्‍ची बातें सब को अच्छी मालूम होने लगीं। (सर., मार्च 1911, पृ. 102)

बेलबूटेदार वि. (अवि.) -- जिसमें बेलबूटे बने हों, बेलबूटों से युक्‍त कितने ही उत्तमोत्तम और दुर्लभ चित्र तथा बेलबूटेदार और सचित्र ग्रंथ भी इस पुस्तकालय में आए। (सर., दिसं. 1909, पृ. 527)

बेलाग वि. (अवि.) -- बिना लाग-लपेटवाला, स्पष्‍ट, खरा, (क) वह सभ्य देश है इसलिए खरी और बेलाग बात समझ लेगा। (दिन., 1 अक्‍तू. 1965, पृ. 14), (ख) ये सारे प्रश्‍न ऐसे हैं, जिनका कोई बेलाग जवाब वैज्ञानिक कम से कम अभी नहीं दे सकते। (दिन., 10 सित. 1965, पृ. 24)

बेशी वि. (अवि.) -- ज्यादा, अधिक हड़बड़ी के मारे एक टिकट बेशी खरीद लिया गया। (शि. पू. र., खं. 4, पृ. 109)

बेसमझ वि. (अवि.) -- मूर्ख, अज्ञानी, न द्विवेदीजी ही अदूरदर्शी हैं और न मनसारामजी ही जले हुए बेसमझ हैं। (चं. श. गु. र., खं. 2, पृ. 305)

बेसमझे-बूझे क्रि. वि. -- बिना विचारे, (क) लोगों ने बेसमझे-बूझे उनकी निंदा या विरोध किया होगा। (गु. र., खं. 1, पृ. 242), (ख) 42 की क्रांति में मैंने बेसमझे-बूझे थोड़ा सा हिस्सा लिया था। (रवि. 7 जन. 1978, पृ. 24)

बेसाख्ता क्रि. वि. -- सहसा, एकाएक स्वीडन के प्रधानमंत्री पाम ने यह बात बेसाख्ता कही कि जातिवाद एवं साम्राज्यवाद के खिलाफ आवाज उठानी चाहिए। (दिन., 1 नव., 1970, पृ. 37)

बेसिर-पैर का वि. (विका., पदबंध) -- निराधार, ऊल-जलूल, (क) प्रधानमंत्री जवाहरलाल नेहरू को यह बात बेसिर-पैर की लगी थी। (दिन., 11 नव., 66, पृ. 19),. (ख) पोलिश सरकार के विरुद्ध जिस प्रकार का बेसिर-पैर का प्रचार किया जा रहा है। (न. ग. र., खं. 2, पृ. 255), (ग)यदि ये लाट साहब ऐसी बेसिर-पैर की कह देते तो इन्हें दुनिया में जीना मुश्किल हो जाता। (मा. च. रच., खं. 9, पृ. 80)

बेहरकत वि. (अवि.) -- स्थिर, निश्‍चल, जिसमें हरकत न हो, एक चिंतक ने धरातल पर निर्मित बेहरकत भवनों को मूक या जमा हुआ संगीत कहा है। (कर्म., 16 दिस., 1950, पृ. 7)

बेहुरमती सं. (स्त्री.) -- बेइज्‍जती, अपमान, (क) इन नेताओं का कहना था कि लूट-पाट, आगजनी और बेहुरमती छोटे किसानों की हुई। (दिन., 06 अग., 67, पृ. 19), (ख) कड़े से कड़े लेख लिखकर उनकी बेहुरमती की गई। (कु. ख. : दे. द. शु., पृ. 39)

बैठा-ठाला सं. (पु.) -- काम-धंधा न करनेवाला, निठल्ला, एक बार एक बैठे-ठाले ने पता लगाया तो मालूम हुआ कि कुल 30 मुदर्रिसों में से 29 मुदर्रिस ठाकुर साहब के रिश्तेदार निकले। (म. प्र. द्वि., खं. 15, पृ. 467)

बैना सं. (पु.) -- उपहार में दी जानेवाली सौगात, बायन आजकल दो-चार स्थानों पर प्रशंसा और निंदा के बैने से बँटते हैं। (कु. ख. : दे. द. शु., पृ. 104)

बैलोस वि. (अवि.) -- सच्‍चा, खरा, पक्षपात-रहित, सवाल जितने चाहे स्पष्‍ट हों उनके जवाब उसी अनुपात में बैलोस नहीं हो पाते। (ज. स. : 9 दिस. 1983, पृ. 4)

बैसाखनंदन सं. (पु.) -- गधा, मूर्ख व्यक्‍ति, हम निरे बैसाखनंदन बन इस जले पेट के कारण चक्र के समान घूमते ही रहते हैं। (भ. नि., प. 151)

बैसाखी लेकर चलना मुहा. -- सहारा लेकर चलना, सहारे से चलना, ब्रिटेन के सिक्‍के को नकली साख के लिए अमेरिकी डालर की बैसाखी लेकर चलना पड़ा। (दिन., 14 अक्‍तू., 66, पृ. 11)

बोगदा सं. (पु.) -- सुरंग, खोह, एक लंबे उथल-पुथल भरे बोगदे में घुसने के लिए हमने कपड़े बदल लिए हैं, जिसका अंत हमें नजर नहीं आ रहा था। (रा. मा. संच. 1, पृ. 81)

बोटी-बोटी कटना मुहा. -- घोर शारीरिक यातना मिलना, सर्वस्व नष्‍ट हो जाना, युद्ध विराम के लिए वे तैयार नहीं हैं, भले ही उनकी बोटी-बोटी कट जाए। (दिन., 2 जून, 68, पृ. 37)

बोठा वि. (विका.) -- भोथरा, कुंद, इनकी धार अभी भी बोठी नहीं हुई है। (काद., जुलाई 1987, पृ. 49)

बोड़म1 वि. (अवि.) -- वाहियात, मूर्खतापूर्ण, (क) अखबारों में बोड़म निबंध छपते रहते हैं। (रा. मा. संच. 2, पृ. 151), (ख) श्रीमती गांधी को गिरफ्तार करने की एक बोड़म कोशिश की गई। (रा. मा. संच. 1, पृ. 330)

बोड़म2 सं. (पु.) -- मूर्ख व्यक्‍ति, इस बौड़म ने शामू को देश निकाला दे दिया। (काद. : अक्‍तू. 1980, पृ. 138)

बोतलबाजी वि. (अवि.) -- मदिरा-पान, शराबबाजी, शिक्षा विभाग के उच्‍च पदाधिकारियों के साथ बोतलबाजी मचाया करते थे। (वीणा, जन. 1934, पृ. 652)

बोदा बनाना मुहा. -- कमजोर करना, जब हरिणफाल हमारे दावे को बोदा बना देता है, तो हमने मास्टर प्लान में उसका प्रस्ताव ही क्यों रखा। (रा. मा. संच. 2, पृ. 333)

बोदा वि. (विका.) -- मूर्ख, बुद्ध, प्रयत्‍न किया जा रहा है कि कौंसिल बोदे लोगों और जी-हुजूरों से भर जाए। (मा. च. रच., खं. 9, पृ. 154), 2. भुरभुरा, फुसफुसा, कमजोर, (क) नैनीताल की पहाड़ियाँ कच्‍ची एवं बोदी हैं। (ग. शं. वि. रच., खं. 1, पृ. 252), (ख) 7 नवंबर के प्रदर्शन में दिखा दिया कि शांति रक्षा का शासकीय प्रबंध कितना बोदा है। (दिन., 18 नव., 66, पृ. 11)

बोदापन सं. (पु.) -- बुद्धपन, हमें अपने देश के अधिकांश लोगों के इस बोदेपन इस बुजदिली पर तनिक आश्‍चर्य नहीं। (ग. शं. वि. रच., खं. 2, पृ. 107)

बोरना क्रि. (सक.) -- डुबोना, डालना, सरजू भैया ने बमभोले की तरह कजरोटे में अँगूठा बोरकर कागज पर चिपका दिया। (बे. ग्रं., प्रथम खं., प. 27)

बोरसी सं. (स्त्री.) -- आग जलाने का का मिट्‍टी का पात्र, कोई बोरसी पर भुट्‍टे भून रहे हैं, कोई आग ताप रहे हैं। (सर., जुलाई 1912, पृ. 351)

बोरिया-बँधना बाँधना मुहा. -- अन्यत्र चले जाने की तैयारी करना, महात्मा गांधी जी राजनीतिक क्षेत्र से ऊब उठे हैं वे अपना बोरिया-बँधना बाँध रहे हैं। (ग. शं. वि. रच., खं. 3, पृ. 258)

बोरिया-बँधना सं. (पु.) -- बोरिया-बिस्तर, बोरिया-बँधना बिक जाय तो बिक जाय। (म. का. मतः क.शि., 18 जुलाई 1925, पृ. 186)

बोरिया-बिस्तर लपेटना मुहा. -- घर-गृहस्थी का सारा सामान लेकर चलने की तैयारी करना, अफ्रीका में बसे इन एशियाइयों से अपना बोरिया-बिस्तर लपेटकर जाने को कहा जा रहा है। (दिन., 26 जन., 69, पृ. 40)

बोलकार सं. (पु.) -- बोलनेवाला, वक्‍ता, प्रवक्‍ता, ताकत की बोली से दुनिया चलती है तो उस बोली के जोरदार बोलकार होना चाहते हैं। (हि. ध., प्र. जो., पृ. 324)

बोलती बंद करना या कर देना मुहा. -- निरुत्तर कर देना, नेहरू की तरह डपटकर इन अपशकुनों की बोलती बंद कर देनेवाला नेता वही है। (दिन., 8 जून 1969, पृ. 27)

बोलती बंद होना मुहा. -- जबान चलना बंद हो जाना, दरअसल जीभ पर लकवा कई दिनों से गिर रहा था और एक दिन पार्टी ने पाया कि उसकी बोलती बंद हो गई है। (रा. मा. संच., 1, पृ. 399)

बोलपट सं. (पु.) -- सिनेमा, इस समानता का लाभ उठाते हुए बोलपट ने अपनी किशोरावस्था में अनेक भावनाप्रधान और यथार्थवादी उपन्यासों को सफलतापूर्वक परदे पर उतारा ..., (दिन., 14 जन. 1966, पृ. 40)

बोलबाला होना मुहा. -- महत्त्वपूर्ण स्थान होना, दबदबा होना, तूती बोलना, (क) पद्य साहित्य में खड़ी बोली का खूब बोलबाला है। (शि. पू. र., खं. 3, पृ. 366), (ख) प्रशासन से लेकर पुलिस तक जनसंघ का बोलबाला है। (दिन., 11 फर. 1968, पृ. 21)

बोलबाला सं. (पु.) -- दबदबा, प्रभुत्व, उस समय समस्त योरप में पोप की सत्ता का बोलबाला था। (वीणा, जन. 1935, पृ. 173)

बोहनी सं. (स्त्री.) -- दिन की पहली बिक्री से होनेवाली आमदनी, (क) प्रथम अंक के लिए बोहनी कराइए। (चं. श. गु. र., खं. 2, पृ. 385), (ख) भाग हरामजादी... बोहनी भी नहीं हुई, माँगने आ गई। (सर., अप्रैल 1941, पृ. 351-52)

बौखलापन सं. (पु.) -- बौखलाने की प्रवृत्ति या स्वभाव, हिंदी उपन्यासों की समालोचना या जलाने-बहाने में जो बौखलापन हो रहा है, उस जोश को ठंडा करने के लिए सुदर्शन का लेख ठीक है। (गु. र., खं. 1, पृ. 418)

बौड़म बसंत सं. (पु.) -- मूर्ख व्यक्‍ति, बेढंगा व्यक्‍ति, अहिंसा का मखौल उड़ानेवाले बौड़म-बसंत बातें ऐसी मारते हैं, मानो अभी-अभी दो-चार को खत्म किए अपनी तलवार को रूमाल से पोंछते चले आ रहे हैं। (न. ग. र., खं. 3, पृ. 180)

बौरा वि. (विका.) -- बौराया हुआ, पागल, बुद्धि बेचारी बौरी हो गई है। (शि. पू. र., खं. 3, पृ. 130)

बौराया वि. (विका.) -- पगलाया, विक्षिप्‍त, विभिन्‍न अन्य सुदूर प्रदेशों से आनेवाले सहस्रों क्रिकेट प्रेमी (?) बौराए से टिकटों तथा पासों के लिए भागते रहे। (दिन., 25 फर. 1985, पृ. 37)

ब्याना क्रि. (अक.) -- बच्‍चा देना, तुरत की ब्याई उस गुजराती भैंस को खोलकर पसर चराने को निकल पड़ता। (लाल-तारा, पृ. 2)

भकसावन वि. (अवि.) -- भर्राया हुआ, कटा-फटा, मूर्खतापूर्ण, उसकी आवाज बहुत भकसावन लगती है। (धर्म., 8 अक्‍तू. 1967, पृ. 24)

भकसी सं. (स्त्री.) -- गुरसी, सिगड़ी, बोड़सी, स्वतंत्रता सदाचार के सिंहासन पर ही विराजेगी, भ्रष्‍टाचार की भकसी में वह तभी तक है जब तक उसे निकल भागने की राह नहीं सूझती। (शि. पू. र., खं. 3, पृ. 436)

भकुआ वि. (विका.) -- मूर्ख, (क) भकुए समालोचकों को अब पेट में सिल-सिलाकर सो जाना चाहिए। (मा. च. रच., खं. 2, पृ. 280), (ख) इन बातों से भकुआ से भकुआ आदमी तक कह सकता है कि हम दोनों में घनिष्‍ट संबंध हैं। (सर., सं. 5, पृ. 663) (ग)समझदार भकुए हैरान हैं कि दो टके का यह आश्‍वासन राजधानी में रहकर भी दिया जा सकता है। (रवि. 22 मार्च 1980, पृ. 42)

भकुआना क्रि. (अक.) -- भौंचक्‍का होना, चकपकाना, हम सब भी डरे हुए से, सहसे हुए से, भकुआए हुए से रोने के सिवा और कुछ नहीं कर पा रहे थे। (सा. हि., 15 मई 1960, पृ. 3)

भकौआ1 वि. (अवि.) -- भकुआ, मूर्ख, सेना व्यय के कारण रूस ने भकौओं को सदा के लिए शांत न कर देंगे। (गु. र., खं. 1, पृ. 335)

भकौआ2 सं. (पु.) -- ढकोसला, पाखंड, किंतु, धर्मशिक्षा भी एक भकौआ है। (चं. श. गु. र., खं. 2, पृ. 333)

भगताई वि. (अवि.) -- भगतों का-सा, विनयपूर्ण, मैंने तब भगताई स्वर में इंस्पेक्टर से बात की। (क. ला. मिश्रः त. प. या., पृ. 55)

भंगार सं. (पु.) -- कूड़ा-कचरा, बाहर भेस बनाइयाँ भीतर भरी भंगार। (काद., अग. 1982, पृ. 10)

भँगेड़ी सं. (पु.) -- जिसे भाँग खाने की लत पड़ी हो, नशाखोर, किसी भँगेड़ी की तरह हम सपनों की दुनिया में रहना पसंद करते हैं। (दिन., 30 जुलाई, 67 प. 10)

भग्‍न-प्रकोष्‍ठ सं. (पु.) -- टूटा-फूटा कमरा, एक भग्‍न-प्रकोष्‍ठ में मुरला पड़ी है। (सर., मार्च 1908, पृ. 109)

भचकना क्रि. (अक.) -- चलते समय टाँग का लप जाना, और मैं लँगड़ाता-भचकता उसके पीछे दौड़ रहा हूँ। (काद. : मई 1975, पृ. 64)

भचकी सं. (स्त्री.) -- भचकने की क्रिया या भाव, बस यही गरज, यही घुमड़, यही टप-टप, यही ठहर-ठहरकर भचकियाँ सा लेता अंधड़ और यह घर के वस्‍त्रों और वस्तुओं

भँजाना क्रि. (सक.) -- भुनाना, मरनेवाले रेलयात्रियों से अधिकारियों को बदला नहीं भँजाना था। (कर्म., सित. 1931, पृ. 9)

भटकन सं. (स्त्री.) -- भटकने की क्रिया या भाव, भटकाव, यही विवेक भटकन को पहचान कर उसे सही मार्ग का पथिक बना देगा। (काद. : सित. 1976, पृ. 47)

भटैती सं. (स्त्री.) -- भाट का काम, प्रशस्तिगान, भँड़ैती, (क) इन प्रांतों के राजाओं की चाटुकारिता करके अपनी भटैती से अच्छी तरह सफल बना सकते थे। (सर., जुलाई-दिस. 1931, सं. 1, पृ. 79), (ख) भटैती की छुरी कभी उन्होंने साहित्य की गरदन पर नहीं चलने दी। (मा. च. रच., खं. 4, पृ. 232), (ग)वे समझते हैं कि हिंदी के पत्र संपादकों की कोई नीति ही नहीं होती और वे भटैती करना अपना मुख्य कर्तव्य समझते हैं . (कु. ख. : दे. द. शु., पृ. 77)

भठियारखाना सं. (पु.) -- सराय, शहर के भठियारखाने में, सीलवाली कोठरी में बैठकर डबल रोटी बनाते हुए दिन गुजरता। (मधुकर, अप्रैल 1945, पृ. 9)

भंड1 सं. (पु.) -- भांड, एम. ए. पास करके भी साधुओं को भंड समझने की बुद्धि उसमें उत्पन्‍न न हुई थी। (सर., अग. 1916, पृ. 325)

भंड2 वि. (अवि.) -- किसी बात या रहस्य की जगह-जगह चर्चा करनेवाला, शोर मचानेवाला, ऐसा तो उसका कोई भंड उपासक ही करेगा। (सर., जन. 1932, सं. 2, पृ. 319)

भड़कती आग में घी डालना मुहा. -- विवाद को और उग्र बना देना, चीन ने दोनों देशों के बीच चली आ रही दुश्मनी का फायदा उठाकर भड़कती आग में घी डाला है। (दिन., 1 अक्‍तू. 1965, पृ. 10)

भड़कन सं. (स्त्री.) -- उत्तेजना, वक्‍ता इतने भड़क नहीं पाए कि वे अपनी भड़कन को प्रस्तुत करने के लिए आमादा हो जाएँ। (रा. मा. संच., 2, पृ. 108)

भड़कना क्रि. (अक.) -- उत्तेजित हो उठना, असंतोष का ज्वालामुखी कहीं भड़ककर फूट न जाय, इसकी आशंका उत्पन्‍न हो गई है। (सं. परा. : लं. शं. व्या., पृ. 240)

भड़भड़ाना क्रि. (अक.) -- भड़भड़ की आवाज होना, (क) उसी समय भड़भड़ाकर दरवाजा खुला और निरंजन दौड़कर रसोई में आ पहुँचा। (काद., अग. 1961, पृ. 91), (ख) उनके इस प्रकार भड़भड़ाने से तो केवल एक ही परिणाम निकलता है। (न. ग. र., खं. 3, पृ. 55), (ग)मुँह के बल भड़भड़ाकर गिर पड़ने से हम अपना हित साधन नहीं कर सकेंगे। (न. ग. र., खं. 4, पृ. 80)

भड़भड़ाहट सं. (स्त्री.) -- भड़ास, असंतोष, संवाददाता महोदय भड़भड़ा उठे और अपनी भड़भड़ाहट उन्होंने अपने पत्र में निकाली। (हि. पत्र. के गौरव बां. बि. भट., सं. बं., पृ. 189)

भड़भड़िया वि. (अवि.) -- बकबक करता रहनेवाला, इब्राहीम भड़भड़िया आदमी है परंतु हृदय का सीधा है। (ग. शं. वि. रच., खं. 7, पृ. 21), 2. व्यर्थ की बातों से भरा, दो हमलों के दौरान जिस भड़भड़िया काव्य की रचना की गई है, उसे श्रेष्‍ठ ठहराना गलत है। (दिन., 8 अक्‍तू., 1965, पृ. 41)

भड़भड़ियापन सं. (पु.) -- भड़भड़ करने की प्रवृत्ति, (क) वह है अति आधुनिक भड़भड़ियापन, नकली पांडित्य और उससे भी अधिक दिखावटी मानद हितैषिता। (हंस, फर. 1938, पृ. 434), (ख) बजाय इसके कि सरकार के कामों में आक्रामक उग्रता अथवा भड़भड़ियापन दीखे और दूसरी ओर जनता उदासीन हो। (दिन., 27 अग. 1965, पृ. 11)

भंडा फोड़ना मुहा. -- भेद प्रकट कर देना या खोल देना, सिक्ख जाति ने अँगरेजों की वीरता (?) का भंडा फोड़ दिया। (म. का. मतः क. शि., 3 नव. 1923, पृ. 122)

भंडा वि. (अवि.) -- बरतन, रहस्य, भंडा शासन के सिर फूटेगा। (रा. मा. संच. 1, पृ. 80)

भड़ाका सं. (पु.) -- धमाका, विस्फोट, इतने में ही नीचे भड़ाका हुआ। (सर., अक्‍तू. 1913, पृ. 556)

भंडाफोड़ करना मुहा. -- भेद खोलना, पिछले दिनों ठाकुर श्रीनाथ सिंह ने सरस्वती में उनका जो भंडाफोड़ किया है, उससे उनकी सारी कलई खुल गई है। (कु. ख. : दे. द. शु., पृ. 97)

भंडाफोड़ सं. (पु.) -- रहस्य का उद्‍घाटन, जैसे यह भंडाफोड़ उसकी कोई खास जिम्मेदारी हो। (स. से. त. : क. ला. मिश्र, प. 12)

भड़ास निकालना या निकाल लेना मुहा. -- मन में दबा हुआ गुबार निकालना, (क) दो-चार छोटी-मोटी गालियाँ देकर मन की भड़ास निकाल लेते हैं। (दिन., 18 फर., 68, पृ. 21), (ख) वे केवल अपनी भड़ास नहीं निकाल रहे थे, बल्कि सचमुच ही अपनी स्थिति को व्यक्‍त कर रहे थे। (दिन., 4 मई 1969, पृ. 11), (ग)दंगों से कोई समस्या हल नहीं होती, लेकिन वह भड़ास निकालने का कुपरिचित तरीका अब तक रहा है। (रा. मा. संच. 1, पृ. 132)

भड़ुआ सं. (पु.) -- दलाल, कुटना, राजपूत बाला के माता-पिता और चाचा उसके भड़ुए बनाए गए हैं। (गु. र., खं. 1, पृ. 409)

भँड़ेतरी सं. (स्त्री.) -- भाँड़ों जैसा आचरण या व्यवहार, नायक गाँववालों द्वारा साधु समझ लिए जाने पर भँड़ेतरी शुरू करता है तो उपन्यास से परिचित दर्शक का माथा ठनकता है। (दिन., 6 मई 1966, पृ. 42)

भड़ैती सं. (स्त्री.) -- भाँड़ों जैसी उछलकूद या खुशामद, (क) बेशर्मी से अंग उछाल-उछालकर बड़ों के सामने भड़ैती करना और ..., (धर्म., 6 फर. 1966, पृ. 10), (ख) गद्य में आमतौर पर साहित्य के नाम पर या तो पिलपिली चीजें प्रकाशित की जाती हैं या भड़ैती होती है और पद्य में आमतौर पर गलेबाजी होती है। (दिन., 8 जुलाई, 1966, पृ. 45)

भड़ोतिया सं. (पु.) -- भाड़े पर मकान, लेनेवाला, किराएदार, हम एक कमरे में भड़ोतिया हो गए। (सर., नव. 1941, पृ. 446)

भथभूथना क्रि. (सक.) -- पिटाई करना, गाँव भर को भथभूथकर वह सरेह में निकलता। (बे. ग्रं., भाग 1, पृ. 76)

भद होना मुहा. -- बदनामी होना, सादात ने ऐलान कर रखा था कि 1971 की 31 वीं दिस. के पहले ही मैं युद्ध छेड़ दूँगा, लेकिन निर्णय का वह वर्ष टाँय-टाँय फिस्स के साथ समाप्‍त हो गया और मिस्र की बड़ी भद हुई। (रा. मा. संच. पृ. 228)

भद सं. (स्त्री.) -- बेइज्‍जती, बदनामी, यदि मजदूर दल की भद बनी तो निश्‍चित रूप से मुसलिम लीग की रीति-नीति में भी अंतर पड़ने की संभावना है। (न. ग. र., खं. 4, पृ. 96)

भदभदाना क्रि. (अक.) -- पकना, पक जाना, डाल के आम वर्षा पाते ही भदभदा उठते हैं। (दिन., 7 अप्रैल, 67, पृ. 39)

भदराना क्रि. (अक.) -- पककर रस से भर जाना, अच्छी तरह पकना, वैसे ढेंसर तो दूसरे भी होने लगते हैं, पर अगता तो एकदम भदरा जाते हैं। (दिन., 7 अप्रैल, 67, पृ. 39)

भदेश वि. (अवि.) -- भद्‍दा, कुरूप, आम बोलचाल से बाहर के शब्द यदि कविता में आएँगे तो वह भदेश हो जाएगी। (काद. : जुलाई 1962, पृ. 37)

भदेस वि. (अवि.) -- गँवार, वह व्यक्‍ति तो बड़ा भदेस है, भला कला से उसका क्या वास्ता। (काद., जुलाई 1976, पृ. 12)

भद्‍द पिटवाना मुहा. -- बेइज्‍जती कराना, तुम मेरी भद्‍द पिटवाने पर उतारू हो। (काद., नव. 1960, पृ. 23)

भद्‍दा वि. (विका.) -- अशोभनीय, खराब, भौंड़ा, ऐसी भद्‍दी हिमायत की कोई जरूरत नहीं है और न इससे देवनागरी का पक्ष प्रबल होता है। (गु. र., खं. 11 पृ. 427)

भद्रलोक सं. (पु.) -- भला आदमी, वह एकदम भद्रलोक बन गया। (दिन., 28. जन. 1968, पृ. 44)

भन्‍नाना क्रि. (अक.) -- चकराना, इतनी बदबू से घिरे रहते हैं कि वहाँ खड़े रहने पर सिर भन्‍नाने लगता है। (दिन., 3 अग. 1975, पृ. 11)

भपका सं. (पु.) -- भभकी, प्रभाव, काफी खबारवाले उसके भपके में आ गए। (हि. ध., प्र. जो., पृ. 242)

भबका सं. (पु.) -- गंध का झोंका, (क) सारे देश में गूँजती हुई प्रबंधित एवं आयोजित तातियाँ एक नशीले भबके की तरह उनके दिमाग में घुसीं। (रा. मा. संच. 1, पृ. 44), (ख) अपन इस फालतू भबके में आने को तैयार नहीं थे। (हि. ध., प्र. जो., पृ. 277)

भभकना क्रि. (अक.) -- क्रुद्ध होना, भड़कना, (क) आप भाषण के बीच ही जनता पर भभक पड़े। (कर्म., 17 अक्‍तू 1931, पृ. 12), (ख) भैंस ऐसी भभकी सींग पर उछालकर पछाड़ मारा। (म. का. मतः क. शि., 18 जुलाई 1925, प. 188)

भभकाना क्रि. (अक.) -- (आग को) तेज करना, भड़काना, तेल डालकर भभकाई गई एक चिता के पास आई। (काद., दिस. 1961, पृ. 138)

भभकी सं. (स्त्री.) -- कोरी धमकी, इजराइल ने अरब देशों की भभकीवाले खेल का चोर दरवाजा ढूँढ़ निकाला है।

भभूका सं. (पु.) -- सुगंध का तेज झोंका, महँगे इत्र का भभूका उठ पड़ा। (काद. : जन. 1975, पृ. 76)

भँभोड़ना क्रि. (सक.) -- नोचना, कुत्ते के बच्‍चे को बुरी तरह भँभोड़ दिया। (काद. : जुलाई 1978, पृ. 11)

भभ्भड़ सं. (पु.) -- भारी भीड़, (क) जब भभ्भड़ बहुत हो तब टिकट बाबुओं और टिकटघरों या खिड़िकयों की संख्या बढ़ा देनी चाहिए। (सर., अक्‍तू. 1918, पृ. 221), (ख) उस खद्‍दरधारी भभ्भड़ में जो हिंदुस्तानी में व्याख्यान देने का मतालबा करती थी, वह अपने को बिलकुल बेमेल पाती थी। (सर., जून 1937, पृ. 527)

भर दिन क्रि. वि. -- दिन भर, सारा दिन, खेत की आर पर बैठे भर दिन हलवाहे को टुकारी देते रहिए। (बे. ग्रं., प्रथम खं., पृ. 31)

भरकुस सं. (पु.) -- चूरा, भरता या मलीदा, टूटना-फूटना, हमारे बच्‍चों और हमारे नवयुवकों की शिक्षा की इस रेलमपेल में भरकुस होना पड़ रहा है। (ग. शं. वि. रच., खं. 2, पृ. 307)

भरतार सं. (पु.) -- पति, स्वामी, प्रतिज्ञा की कि मेरा भरतार तो वही होगा, जो सच्‍चा बाँसुरीवाला होगा। (मा. च. रच., खं. 3, पृ. 47)

भरती सं. (पु.) -- वह पदार्थ जो किसी चीज को भरने के लिए प्रयुक्‍त हो, हम आशा करते हैं कि इसमें शुष्क विवाद और हिसाब की भरती ही न रहा करेगी। (गु. र., खं. 1, पृ. 411)

भरबाँह सं. (स्त्री.) -- पूरी बाँह, मेरे गाँव की लड़िकयाँ कानों में बालियाँ कहाँ डालतीं और भरबाँह की कमीज पहने भी उन्हें नहीं देखा। (बे. ग्रं., प्रथम खं., पृ. 2)

भरभंड वि. (अवि.) -- तहस-नहस, नष्‍ट-भ्रष्‍ट, (क) वह यह कि वे अब शिमला सम्मेलन को भरभंड करने के तरीके निकाल रहे हैं। (न. ग. र., खं. 3, पृ. 55), (ख) एक समय तो ऐसा लगा कि सम्मेलन में भरभंड हो जाएगा। (न. ग. र., खं. 2, पृ. 258)

भरमाना क्रि. (सक.) -- भ्रम में डालना, भ्रमित करना, (क) जनता के विवेक को भरमा देता है। (दिन., 26 नव. 1965, पृ. 11), (ख) उन्‍नति और प्रगति के आँकड़े भरमानेवाले हैं। (दिन., 11 नव., 66, पृ. 10), (ग)कांग्रेस आलाकमान की अंतुले को भरमाने की कोशिश किसी को समझ नहीं आएगी। (ज. स., 16 मार्च 1984, पृ. 4)

भरमार सं. (स्त्री.) -- अत्याधिक्य, प्रचुरता, (क) उपाधि वितरणोत्सव और उससे संबंध रखनेवाले भाषणों की भरमार रहती है। (वीणा, जन. 1935, पृ. 195)

भरसाँय सं. (स्त्री.) -- भरसाईं, भाड़, दिन भर हाथ पर हाथ डाले बैठा रहेगा, गप्प करेगा, आसनाई करेगा और खाने के वक्‍त भरसाँय जैसा पेट लेकर पीढ़ा पर चढ़ बैठेगा। (काद., नव. 1960, पृ. 57)

भर्ता सं. (पु.) -- पति, स्वर्गीय नाथूराम शंकरजी ने अपने एक पद में लिखा है कि मैं कविता कामिनी का भर्ता हूँ। (मा. च. रच., खं. 3, पृ. 140)

भर्रा सं. (पु.) -- झोंका, आवेग, लहर, (क) होता यह है कि चुनाव के भर्रे में जीतता हुआ दल और अधिक जीतता है। (कर्म., 19 जन., 1952, पृ. 3), (ख) सरकार भारत के मुट्‍ठी भर व्यापारियों के भर्रे में नहीं आ गई है। (ग. शं. वि. रच., खं. 2, पृ. 365)

भलमनसाहत सं. (स्त्री.) -- सज्‍जनता, सौजन्य, शराफत, (क) बेचारा अलवी मुफ्त में अपना भलमनसाहत के कारण मारा जा रहा है। (ग. शं. वि. रच., खं. 7, पृ. 14), (ख) जब आमने-सामने बातचीत करने बैठते हैं तो हमारे भीतर की भलमनसाहत निकल आती है . (हि. ध., प्र. जो., पृ. 58)

भलमनसी सं. (स्त्री.) -- शराफत, भलमनसाहत, (क) नित्य अपनी भलमनसी की गंगा उठाते हैं। (मा. च. रच., खं. 9, पृ. 93), (ख) भलमनसी न छोड़िये, आखिर कहाँ तक दुतकारेंगे। (म. का मतः क.शि., 18 जुलाई 1925, पृ. 187)

भलमंसी सं. (स्त्री.) -- भलमनसी, सज्‍जनता, मैं तुम्हारी योग्यता और भलमंसी पर लट्‍टू हूँ। (सर., अप्रैल 1925, पृ. 427)

भला-चंगा वि. (विका.) -- स्वस्थ, निरोग, साँप के काटे को भला-चंगा करके उसे वस्‍त्र देकर भी सत्कार करते हैं। (गु. र., खं. 1, प. 311)

भँवरजाल सं. (पु.) -- दुनियावी झमेला, इस भँवर जाल से कौन पार पा सका है। (काद. : मार्च 1978, पृ. 11)

भवितव्य सं. (पु.) -- भविष्य, भाग्य, भवितव्य की कल्पना करना कठिन है। (काद., अक्‍तू. 1993, पृ. 5)

भविष्य के गर्त में गोता लगाना मुहा. -- भविष्य की योजनाएँ बनाना, भविष्य के गर्त में गोता लगाने की ताकत प्रत्येक राष्‍ट्र में होती है। (न. ग. र., खं. 2, पृ. 26)

भवें तनना या तन जाना मुहा. -- क्रुद्ध होना, इस रपट से स्वानपोल की भवें तन गईं। (दिन., 4 अक्‍तू., 1970, पृ. 10)

भसकना क्रि. (अक.) -- छीजना, नष्‍ट होना, ढह जाना, बैद महाराज ऐंठ गए तो पूरी स्कीम भसक जाएगी। (रा. द., श्रीला. शु., पृ. 291)

भहराना क्रि. (अक.) -- सहसा ढह जाना, (क) पुल ऐन उद्‍घाटन के दिन भहरा जाते हैं। (काद. : मई 1975, पृ. 63), (ख) फाटक भहरा पड़ा और सुभाषी पल्टन मुँह बाकर रह गई। (मत., म. प्र. से. वर्ष 5, सं. 7, पृ. 6), (ग)लेकिन हम हशमत पढ़ने के बाद से ये सारे पूर्वग्रह भहरा गए। (दिन., 15 से 21 अक्‍तू. 1978, पृ. 42)

भाई-बंद सं. (पु.) -- भाई-बंधु, रिश्तेदार तथा जाति-बिरादरी के लोग दोनों पक्ष के लोगों का बिटोरा होता, भाई-बंद जुटते कुटुम-कबीले के लोग आते। (बे. ग्रं., प्रथम खं., पृ. 16)

भाँग के भाड़े में जाना मुहा. -- व्यर्थ या निरर्थक जाना, यों सचमुच इस तरह इनाम के लालच से पुस्तक भेजना केवल भाँग के भाड़े में जाना है। (सर., मार्च 1926, पृ. 419)

भागाभागी सं. (स्त्री.) -- दौड़-भाग, सुनते हैं, बादशाह के बिना हुक्म यह भागाभागी हुई। (सर., मार्च 1908, पृ. 124)

भागे भूत की लँगोटी ही सही कहा. -- जो मिल जाए वही बहुत, इस तरह जो वसूल हो गया वही सही, भागे भूत की लँगोटी ही सही। (मत., म. प्र. से. वर्ष 5, सितं. 1927, पृ. 10)

भागे-भागे फिरना मुहा. -- पकड़ में आने से बचने के लिए कभी कहीं जाना और कभी कहीं जाना, भागते फिरना, अब राजकुमार भागे-भागे फिरते हैं। (ग. शं. वि., रच., खं. 2, पृ. 82)

भाग्य से छींका टूटना मुहा. -- कोई चीज अनायास प्राप्‍त हो जाना, लालू खुश हो सकते हैं कि राबड़ी के भाग्य से छींका टूटा। (किल., सं. म. श्री., पृ. 39)

भाजन सं. (पु.) -- अधिकारी, पात्र, हम नहीं जानते कि इस निमंत्रण-पत्र के प्रकाशन की पृष्‍ठभूमि में कोरे विनोद की भावना है अथवा उसका उद्‍देश्य लेखिका बहन को अपकीर्ति का भाजन बनाना है। (सा. हि., 27 मार्च 1960, पृ. 3)

भाँजना क्रि. (सक.) -- चमकाना, घुमाना, चलाना, फिर हवा में हथियार भाँजने की घटना चरितार्थ होती है। (दिन., 18 जून, 67, पृ. 17)

भाँजी मारना मुहा. -- ऐसी बात कहना जिससे किसी का बनता काम बिगड़ जाए, (क) पति के मुमूर्ष होकर बचने की बात जतलाती है और स्वामिनी के विवाहांतर में भाँजी मारती है। (गु. र., खं. 1, पृ. 400), (ख) वह नक्सलवादियों के हाथ में दिन-प्रतिदिन संचित होती लोकप्रियता में भाँजी मारना चाहते थे। (दिन., 8 जून 1969, पृ. 16)

भाड़ झोंकना मुहा. -- व्यर्थ का काम करना, तुच्छ काम करना और हम जब चुनाव क्षेत्र में अवतरित हुए तब यदि सरकारी शासक मंडली की आलोचना सो भी सच्‍ची आलोचना, न करेंगे तो क्या भाड़ झोकेंगे ? (न. ग. र., खं. 4, पृ. 313)

भाड़ में जाना मुहा. -- नष्‍ट होना, (क) किसी को केवल अपने प्रांत की चिंता है, बाकी देश भाड़ में जाए। (कर्म., 14 अग. 1948, पृ. क), (ख) सभी कुछ भाड़ में जाए, लेकिन हम बने रहें की नीति की माला जपनेवाली कांग्रेस कार्यकारिणी समिति। (दिन., 15 जुलाई 1966, पृ. 14), (ग)कथा भाड़ में गई, चरित्रांकन की बात ही नहीं, भाषा भी नहीं। (गु. र., खं. 1, पृ. 401)

भाँड़ में झोंकना मुहा. -- भाड़ में झोंकना, व्यर्थ गँवा देना, नष्‍ट कर देना, उसने अपनी सारी जिंदगी भाँड़ में झोंक दी। (न. दु., ग्वा., 13-0-2008, पृ. 3)

भाड़ में भूजना या बूज डालना मुहा. -- नष्‍ट-भ्रष्‍ट कर देना, जला देना, जला डालना, पारस्परिक भ्रातृत्व को सूखे चने की तरह धार्मिक कलह के भाड़ में भूज डाला है। (शि. पू. र., खं. 4, पृ. 3)

भाड़ सं. (पु.) -- बड़ी भट्‍ठी, एक सारे गाँव की प्रजा भाड़ में कच्‍चे चने की तरह भून डाली गई। (म. का. मतः क. शि., 6 जून 1925, पृ. 109)

भाँड़ा फूटना मुहा. -- भेद खुलना, उन्हें समाज से काटकर रखा जाता है ताकि वे अपने नैतिक मूल्यों का प्रचार न कर सकें और राज्यसत्ता का भाँड़ा न फूट जाए। (दिन., 28 फर., 1971, पृ. 43)

भाँडा फोड़ना या फोड़ देना मुहा. -- भेद खोल देना, (क) पता लगने पर बिना भाँड़ा फोड़े न रहेगा। (सर., अक्‍तू. 1922, भाग-23, खं. 2, सं. 4, पृ. 226), (ख) उनकी सारी करतूतों का भाँड़ा फोड़ दिया। (सर., भाग 28, सं 4, मार्च 1927, पृ. 440)

भाड़े का टट्‍टू सं. (पु., पदबंध) -- किराए का आदमी, (क) भाड़े के टट्‍टू ही उनका राग अलाप रहे हैं। (त्या. भू. : सं. 1986, (1927) पृ. 204), (ख) राष्‍ट्रसंघ के ये भारतीय भाड़े के टट्‍टू, चाहे फिर वर्तमान राष्‍ट्र-संघ के डेलीगेशन के नेता सर मुहम्मद हबीबुल्लाह ही क्यों न हों, चलेंगे इंग्लैंड की (के) रुख पर। (मा. च. रच., खं. 10, पृ. 319)

भादों की अन्हेरिया और जेठ की दुपहरिया कहा. -- समय एक-सा ही रहता है, भादों की अन्हेरिया और जेठ की दुपहरिया, यह ठेठ जीवन का मुहावरा है। (रवि. 10 सित., 1981, पृ. 7)

भान सं. (पु.) -- आभास, ज्ञान, (क) इससे भान होता है कि उसके संपादन पर यथोचित ध्यान नहीं दिया जाता। (शि. पू. र., खं. 4, पृ. 515), (ख) मुझे उसका कोई भान नहीं था। (दिन., 18 जून 1972, पृ. 7), (ग)यही वह सीमा है जो असीम का भान कराती है। (सर., जन. 1932, सं. 1, पृ. 164)

भानुमती का कुनबा सं. (पु., पदबंध) -- तरह-तरह के और बेमेल व्यक्‍तियों का समूह या दल, खुद कांग्रेस का रूप भानुमती के कुनबेवाला रहा है। (दिन., 17 जून 1966, पृ. 16)

भानुमती का पिटारा सं. (पु., पद.) -- बेमेल वस्तुओं का संग्रह, अनेक ऊटपटाँग वस्तुओं से भरी भानुमती की इस पिटारी की भाँति यह देश भी अनेक प्रकार के मनुष्यों एवं विचारों से भरा हुआ है। (ग. शं. वि. रच., खं. 1, पृ. 124)

भाँपना क्रि. (सक.) -- जान लेना, ताड़ लेना (क) न्यायाधिकरण के लिए यह भाँपना कठिन नहीं रहा होगा कि वस्तुस्थिति क्या है ? (रा. मा. संच. 2, पृ. 328), (ख) पाठकों को यह भाँप लेने का अवसर दिया गया। (शि. पू. र., खं. 3, पृ. 352), (ग)उस पर राज करनेवाले भाँप रहे हैं ..., (दिन., 20 जन. 1972, पृ. 15)

भाँय-भाँय करना मुहा. -- सन्‍नाटा छाना, 1962 के बाद के वर्ष वीरान थे और भाँय-भाँय करते गुजरे। (रा. मा. संच. 1, पृ. 496)

भायप सं. (पु.) -- भ्रातृभाव, भाईचारा, वे हमेशा भायप निबाहने का खयाल रखते थे। (शि. पू. र., खं. 4, पृ. 248)

भार ढोना मुहा. -- परिश्रम करना, यह कुछ भी नहीं हुआ, इस वर्ष केवल भार ढोना ही हाथ रहा। (मा. च. रच., खं. 2, पृ. 29)

भारतभग्‍न वि. (अवि.) -- भारत को तोड़नेवाला, भारत विरोधी, अब देखना है कि पश्‍चिम की राजनीतिक प्रणाली की कितनी बची-खुची चीजें अगले कुछ वर्षों में भारतमय और भारतभग्‍न होती हैं। (रा. मा. संच. 1, पृ. 47)

भारभूत होना मुहा. -- बोझ बनना, कष्‍टदायक होना, समाज के लिए वह भारभूत हो जाता है। (म. प्र. द्वि., खं. 15, पृ. 460)

भारोत्तोलन सं. (पु.) -- भार या बोझ उठाने की क्रिया, सर्वप्रथम भारोत्तोलन प्रतियोगिता का आयोजन लंदन स्थित के 8 मोनिको में 1891 में किया गया। (दिन., 25 फर. 1966, पृ. 30)

भाँवरी लेना सं. (पु.) -- चक्‍कर लगाना, मँडराना, आकाश में गिद्धों की टोली डैने पसारकर भाँवरी ले रही है। (दिन., 06 जन., 67, पृ. 42)

भासना क्रि. (अक.) -- आभास होना, प्रतीत होना, लगना, (क) एक दिन एलादी को ऐसा भासा कि उनके सुंदर चौपायों पर अन्य मनुष्यों की नजर पड़ती है और नजर लग जाती है। (मधुकर, दिसं.-जन. 1945, पृ. 273), (ख) इस आंदोलन में किसी-किसी को राष्‍ट्रीय विश्रृंखलता भासती है। (मधुकर : जन., 1944, पृ. 460)

भासित वि. (अवि.) -- प्रकट, प्रतीत, जाहिर, ऐसा भासित होने लगा कि शास्‍त्रीजी पर राजद्रोह का आरोप लगाया जाएगा। (म. प्र. द्वि., खं 2, पृ. 33)

भिड़ों का छत्ता मुहा. -- आततायियों का समूह, आलोचक वृंद, किंतु इस काम में आपको दो बातों से बचना चाहिए-एक तो उस भिड़ों के छत्ते से, जो अपने हितकारियों को शत्रु कहा करता है। (चं. श. गु. र., खं. 2, पृ. 363)

भित्ति सं. (स्त्री.) -- दीवार, इसके उत्तराधिकारी होंगे यहाँ के कर्मचारी, जिनके अथक परिश्रम से यह उद्योग ठोस भित्ति पर खड़ा है। (रवि. 23 अक्‍तू., 1982, पृ. 35)

भिदना क्रि. (अक.) -- गड़ना, समाना, रचना-बसना, (क) पूरी कविता की बुनियादी संवेदना में यही पीड़ा भिदी हुई है। (ज. स., 10 दिस. 2006, पृ. 6), (ख) हम चाहते-अनचाहते उनकी छाप हमारी आत्मा पर एक अमिट गोदने की तरह भिद चुकी है। (स. भा. सा., मृ. पां., सित.-अक्‍तू. 98, पृ. 7)

भिनकता वि. (विका.) -- भिनभिन करता हुआ, जो भिनकती मक्खियोंवाला संसार लिखते हैं ... उन पर पेशेवर पालतुओं का उल्लेख मैं यहाँ नहीं करता। (मा. च. रच., खं. 2, पृ. 287)

भिन्‍नाना क्रि. (अक.) -- सिर चकराना, परेशान होना, (क) गोलियाँ चलानेवाला भिन्‍ना गया। (वाग. : कम., अग. 1997, पृ. 10), (ख) ये सब बातें एक साथ अँगरेज कलेक्टर के सामने आईं तो वह भिन्‍नाया। (क. ला. मिश्रः त. प. या., पृ. 85)

भींचना क्रि. (सक.) -- खींचना, कम करना, घाटे की वित्त-व्यवस्था के प्रभाव के प्रतिकार हेतु मुद्रा-वितरण को भींचना प्रारंभ कर दिया। (त्या. भू. : संवत् 1983 (2 दिस.) रवी. पृ. 7)

भीट सं. (पु.) -- भीटा, ऊँचा टीला, चलते हुए भीटों को बाएँ छोड़ा। (का. कार. निराला, पृ. 28)

भीड़-भड़ाका सं. (पु.) -- भीड़-भाड़, इतवार की छुट्‍टी थी इसलिए भीड़-भड़ाका और भी ज्यादा हुआ। (दिन., 06 जन., 67, पृ. 15)

भीत1 वि. (अवि.) -- डरा हुआ, भयभीत, आखिरकार भीत अफगान उस लड़की को लौटा गए। (त्या. भू. : संवत् 1986, (1927) पृ. 293)

भीत2 सं. (स्त्री.) -- भित्ति, दीवार, (क) बाँध की कच्‍ची भीत को सख्त नुकसान हुआ। (दिन., 6 अक्‍तू. 1968, पृ. 22), (ख) इसीलिए हमें बालू की इस भीत पर भरोसा नहीं करना चाहिए। (ग. शं. वि. रच., खं. 3, पृ. 354), (ग)कहीं-कहीं भीत में काठ की जाली जरूर होती है, जो प्रायः बंद ही रहती है। (सर., जून 1911, पृ. 254)

भीतचित्त वि. (अवि.) -- डरपोक, भयभीत, भीतचित्त होने पर मन अशांत रहता है। (काद. : जन. 1988, पृ. 11)

भीतरी वि. (अवि.) -- गुप्‍त, रहस्यपूर्ण, डॉ. चटर्जी इन जनभाषाओं का समर्थन किसी भीतरी उद्‍देश्य से करते हैं। (ब. दा. च. चु. प., संपा. ना. द., पृ. 56)

भीति सं. (स्त्री.) -- भय, डर, मृत्यु विषयक भीति नष्‍ट हो जाती है। (माधुरी, नव. 1928, सं. 3, पृ. 572)

भीनना क्रि. (अक.) -- बिंधा होना, समाहित होना, संस्कार हमारे रग-रग में भीन हुए हैं। (सं. परा. : ल. शं. व्या., पृ. 31)

भीम वि. (अवि.) -- बहुत बड़ा, भारी, फ्रांस की नष्‍ट-भ्रष्‍ट भूमि को पूर्व रूप में लाने के भीम प्रयत्‍न में सहायता दें। (न. ग. र. खं. 2, पृ. 149)

भुइँफोड़ वि. (अवि.) -- सहसा उत्पन्‍न होनेवाला, फसली, प्रायः सबी बुइँफोड़ नेता दिल्ली पहुँच गए हैं। (म. का. मतः क. शि., 27 सित. 1924, पृ. 86)

भुक्खड़ वि. (अवि.) -- जिसे हर समय कुछ खाने को चाहिए, लालायित, (क) जो लोग भोग लगाकर भगवान् को प्रसन्‍न करना चाहते हैं, वे भगवान् को भुक्खड़ समझते हैं। (शि. पू. र., खं. 3, पृ. 39), (ख) उनके दरबार में भुक्खड़ों के लिए कोई जगह नहीं। (कर्म., 5 जुलाई 1947, पृ. 9)

भुजबली सं. (पु.) -- बाहुबली, हर नेता और दल भुजबलियों का भरपूर उपयोग कर रहा है और अंततः देश निबल हो रहा है। (किल., सं. म. श्री., पृ. 12)

भुजाभुजी सं. (स्त्री.) -- हाथापाई, जरा सी बात पर दोनों में भुजाभुजी हो गई। (काद. : जन. 1988, पृ. 11)

भुट्‍टे की तरह भूनना मुहा. -- घोर कष्‍ट देना, इस देश के मनुष्य निदर्यतापूर्वक भुट्‍टे की तरह भून डाले जाते हैं। (म. का मतः क.शि., 12 अप्रैल 1924, पृ. 146)

भुनगा सं. (पु.) -- पतिंगा, कहीं उसने बारूद उगली और कहीं बन गया भुनगा। (रा. द., श्रीला. शु., पृ. 185)

भुनभुनाना क्रि. (अक.) -- 1. कुढ़ना, पात्र ने चेहरा थोड़ा झुका लिया तो इसका मतलब हुआ कि पात्र भुनभुना रहा है। (दिन., 11 नव., 66, पृ. 31), 2. बुदबुदाना, (क) वे पहले तो गरजे और बाद में भुनभुनाकर बैठ गए। (रा. द., श्रीला. शु. पृ. 201), (ख) ब्रिटेन ने सारे छोटे-छोटे द्वीपों पर कब्जा कर लिया, पुर्तगाली भुनभुनाकर रह गए। (रवि. 22 जन. 1989, पृ. 1)

भुनभुनाहट सं. (स्त्री.) -- बुदबुदाहट, छह रुपए उसने ले लिए, थैंक्स के बदले भुनभुनाहट दी। (दिन., 7 फर., 1971, पृ. 9)

भुनवाना क्रि. (सक.) -- फायदा उठाना, लाभ उठाना, विफलता और फूट को गठबंधन इस चुनाव में भुनवाना चाहता है। (हि. ध., प्र. जो., पृ. 362)

भुन्‍नाना क्रि. (अक.) -- बुदबुदाना, सायकिलवाला भुन्‍नाकर कुहनी छूता आगे चला गया। (साक्षा., मार्च-मई 77, मृ. पां. पृ. 27)

भुरकना क्रि. (सक.) -- छिड़कना, चाटेगा तो ठीक हो जाएगा, थोड़ा बोरिक भुरका दे। (मधुः जून 1965, पृ. 68)

भुरकुस वि. (विका.) -- जिसका कचूमर निकल गया हो, जो बुरी तरह से क्षतिग्रस्त, (क) मोटर साइकिल भुरकुस हो गई थी। (स. न. रा. गो. : भ. च. व., पृ. 161), (ख) कितने हाथ टूटे और कितनी ही अंगुलियाँ भुरकुस हुईं। (मत., म. प्र. से. वर्ष 5, सं. 7, पृ. 9)

भुरता पकाना मुहा. -- कचूमर या मलीदा बनाना, वह कला का भुरता पकाकर इनके पेट में उतार दे ताकि वे आराम से डकारें ले सकें। (मा. च. रच., खं. 2, पृ. 281)

भुलक्‍कड़ वि. (अवि.) -- जिसकी भूलने की प्रवृत्ति हो, भूल जानेवाला, भारतीय जनता बहुत क्षमाशील और भुलक्‍कड़ है। (दिन., 16 फर., 69, पृ. 11)

भुस का लड्‍डू साबित होना मुहा. -- अनुपयोगी या निरर्थक सिद्ध होना, यह जानते हुए कि ईजिप्‍ट की सफलता, भुस के लड्‍डू साबित हो रही है ...। (मा. च. रच., खं. 10, पृ. 27)

भुस पर लीपना मुहा. -- व्यर्थ कार्य करना, निरर्थक उपाय करना, तब तक हिंदुओं और मुसलमानों में एकता स्थापित करने का महत्त्व भुस पर लीपने की चेष्‍टा करने से अधिक न होगा। (स. सा., पृ. 249)

भुस सं. (पु.) -- भूसा, वह तो हिंदी की खाल में उर्दूका भुस भरकर बनाई गई है। (शि. पू. र., खं. 4, पृ. 523)

भूखे पेट क्रि. वि. -- बिना कुछ खाए-पिए, हमें यह बात उचित लगती है कि त्रिनायक सम्मेलन में समाचार बुभुक्षक को भूखे पेट कंबल उढ़ाकर लिटा दिया गया है। (न. ग. र. खं. 2, पृ. 270)

भूँज खाना मुहा. -- शोषण करना, कुछ थोड़े से स्वार्थी शिक्षित भारतवासी अन्य करोड़ों भारतवासियों को भूँज खाएँगे। (ग. शं. वि. रच., खं. 2, पृ. 467)

भूल-भुलैया सं. (स्त्री.) -- भ्रमजाल, भ्रम, (क) रक्‍तसनी घटनाओं की भूल-भुलैया में उलझाई जाकर एंजिला डेविस अंततः उसके बाहर निकल आई। (दिन., 18 जून 1972, पृ. 7), (ख) तब टोटल थियेटर की भूलभुलैया में वह ऐसा खोया कि लगा परिचय ही नहीं हुआ था। (दिन., 11 नव., 66, पृ. 43), (ग)विवाद भूल-भुलैया में घूम-फिरकर फिर अंधी गली में आ गया है। (हि. ध., प्र. जो., पृ. 204)

भूलुंठित वि. (अवि.) -- धराशायी, युद्ध में ही वीरों के सिर भूलुंठित होते हैं। (काद., अक्‍तू. 1990, पृ. 7)

भूले ब्राह्मन मरे जिजमान कहा. -- आधार को ही भुला देना, मृतक जजमान को ब्राह्मण भूल जाता है, वाह वाह भूले ब्राह्मन मरे जिजमान। (सर., नवं. 1909, पृ. 483)

भूसी का पहाड़ उड़ाना मुहा. -- निरर्थक तूल देना, गोलमेज सम्मेलन की बात को लेकर अब भूसी का पहाड़ उड़ाया जा रहा है। (स. सा., पृ. 149)

भूसी सं. (स्त्री.) -- गेहूँ का छिलका, चोकर, सैकड़ों मन भूसी फटककर गेहूँ का एक दाना निकाल लाया। (म. प्र. द्वि., खं. 1, पृ. 120)

भेंगा वि. (विका.) -- तिरछी या टेढ़ी नजर से देखनेवाला, शंका भेंगी होती है वह सीधी पीड़ा को भी तिरछा देखती है। (रवि. 21 अग., 1982, पृ. 16)

भेंट चढ़ना या चढ़ जाना मुहा. -- खर्च हो जाना, कुर्बान होना, कुल व्यय का पैंसठ प्रतिशत वेतन और भत्तों की भेंट चढ़ गया। (दिन., 03 सित., 67, पृ. 40)

भेंटघाट सं. (स्त्री.) -- मेल-मुलाकात, मिलना-जुलना, जिन्हें मुझसे भेंट-घाट करनी हो, वे खुद यहाँ आएँ। (स. भा. सा., मृ. पां., सित.-अक्‍तू. 98, पृ. 8)

भेड़िया आया मुहा. -- भारी संकट आ गया, इस दौरान वह (कांग्रेस) क्रांति का इतना शोर भेड़िया आया की अदा में मचा रही है। (रा. मा. संच. 2, प. 17)

भेड़ियाधसान सं. (स्त्री.) -- भेड़चाल, अंधानुकरण, भेड़ों जैसा आचरण, (क) हिंदी पत्रों की भेड़ियाधसान स्वयं ही चुप हो जाएगी, नहीं तो सभा में भी क्या होगा। (गु. र., खं. 1, पृ. 405), (ख) परीक्षार्थियों की भेड़ियाधसान देखकर परीक्षा प्रहसन-मात्र प्रतीत होती है। (शि. पू. र., खं. 4, पृ. 565), (ग)जो भेड़ियाधसान की तरह आँख मूँदकर चल रहे हैं उन्हें रास्ते पर लाना आसान काम नहीं। (नि. वा. : श्रीना. च., पृ. 494)

भेदिया सं. (पु.) -- जासूस, आरोप लगाया कि आपके भेदिए मेरा फोन खटखटाते हैं। (दिन., 16 सित., 66, पृ. 12)

भैंड़ा वि. (विका.) -- बुरा, दुष्‍ट, टेढ़ा, अवस्था बढ़ने पर उनने प्रसन्‍नतापूर्वक भैंड़ी पत्‍नियों के साथ जीवन बिताया है। (चं. श. गु. र., खं. 2, पृ. 375)

भैंस के आगे बीन बजाना मुहा. -- निरर्थक प्रयास करना, हमारा हृद.य व्यथित हो रहा है, नाहक आपने भैंस के आगे बीन बजाई। (म. का मतः क. शि., 18 जुलाई 1925, पृ. 188)

भोगींद्र वि. (अवि.) -- अत्यंत भोगी, ऐय्याश, रसगुल्ले छील कर खाते हैं। मतलब बड़े भोगींद्र हैं। (रवि., 12 अप्रैल 1981, पृ. 38)

भोंड़ा वि. (विका.) -- बदसूरत, भद्‍दा, (क) उसके होठों पर भोंड़ी मुसकान थिरक रही थी। (काद. : जन. 1975, पृ. 70), (ख) वर्ष में छह महीने इस पर पत्ते नहीं रहते, तब यह वृक्ष और भी भोंडा दीख पड़ता है। (काद., जन. 1977, पृ. 62), (ग)इस दुर्घटना के कारण ही प्रस्तुतीकरण भोंडा और फूहड़ लगने लगता है। (दिन., 10 मई, 1970, पृ. 44)

भोथरा वि. (विका.) -- जिसकी धार में तेजी न हो, कुंठित, कुंद, (क) अस्‍त्र इतना भोथरा हो गया है कि उस पर अब धार नहीं चढ़ सकती। (हि. ध., प्रृ. 545), (ख) वे अपनी भोथरी अकल की हथेली पर पंसेरी भर की भीख लेना चाहते हैं। (मा. च. रच., खं. 2, पृ. 281), (ग)राजनीतिक क्रियान्वयन के हथियार क्रमशः भोथरे होते जा रहे हैं। (रा. मा. सं. 1, पृ. 374)

भोंदू वि. (अवि.) -- मूर्ख, (क) ढीली पतलून पहनकर अपने बाप को भोंदू समझते हैं। (साक्षा., मार्च-मई 77, मृ. पां. पृ. 29), (ख) स्कूल में मैं सब से भोंदू विद्यार्थी समझा जाता था। (स्मृ. वा. : जा. व. शा., पृ. 139), (ग)वैसा ही जैसा व्यवहार एक चंट मालिक का एक लालची मगर भोंदू नौकर के प्रति होता है। (दिन., 14 जून, 1970, पृ. 25)

भोंपा सं. (पु.) -- भोंपू, लाउडस्पीकर, (क) जो अखबार में नहीं छपता कानाफूसी के धरातल पर चलता है, वह भोंपों, पोस्टरों और राजनीतिक रैलियों से कहीं ज्यादा रंग लाता है। (रा. मा. संच. 1, पृ. 433), (ख) प्रभाकरजी ने रिक्शेवाले से कहा-तुमने भोंपू क्यों बजाया ? (स. से. त. : क. ला. मिश्र, पृ.)

भोर का चिराग बनना या बन जाना मुहा. -- जल्दी समाप्‍त या नष्‍ट होना, मैं तो अब भोर का चिराग बन गई हूँ। (सर., अप्रैल 1943, पृ. 213)

भोला वि. (विका.) -- सीधा, मूर्खतापूर्ण देहातों में रहनेवाले किसानों का यह भोला खयाल है कि वे अपनी-अपनी जमीन के मालिक हैं। (मा. च. रच., खं. 10, पृ. 129)

भोले भाव मिलें रघुराई कहा. -- निश्‍चल प्रेम से राम मिलते हैं, गुरुनानक ने ठीक कहा है-भोले भाव मिलें रघुराई। (सर., सित. 192, पृ. 469)

भौं बचाकर सरकना या सरके जाना मुहा. -- आँख बचाकर निकलना, का हो ! ऐसे भौं बचा के सरके जाते हैं। (शि. पू. र., खं. 4, पृ. 129)

भौचक वि. (अवि.) -- भौंचक, अचंभित, हैरान, अचानक आ जानेवाले मारवाड़ी की तरह भौचक रह गया। (गु. र., खं. 1, पृ. 314)

भौंचक्‍का वि. (विका.) -- आश्‍चर्यचकित, हतप्रभ, (क) जब होश आया तब वह भौंचक्‍के से रह गए। (काद., नव. 1980, पृ. 95), (ख) मैं कुछ सेकंड तक तो भौंचक्‍का सा बैठा रहा। (माधुरीः अक्‍तू. 1927, पृ. 375)

भौंड़ा वि. (विका.) -- भद्‍दा, तुच्छा, आपकी इस भौंड़ी वकालत के बारे में पांडेयरी की भी यही राय होगी।

भौंता वि. (विका.) -- भोथरा, कुंद, ठिकाने के सभी दमन के हथियार भौंते सिद्ध हुए। (दु. प्र. चो., नव., अज., पृ. 201)

भौथरा वि. (अवि.) -- भोथरा, कुंद, द्रविड़ आंदोलन की धार भौथरी हो गई है। (ज. स. : 16 फर. 1984, पृ. 4)

भ्रमिकता सं. (स्त्री.) -- भ्रामकता, भ्रमपूर्ण स्थिति, यहाँ पर कवि ने कैसी विलक्षण उक्‍ति के द्वारा मनुष्य की सुख-दुख विषयक बुद्धि की भ्रमिकता दिखलाई है। (सर., 1 अप्रैल 1909, पृ. 159)

भ्रूभंग सं. (पु.) -- आँखें तरेरने की क्रिया या भाव, अधिकारी के भ्रूभंग से कर्मचारी काँप जाते हैं। (काद., नव. 1995, पृ. 7)

भ्रूविलास सं. (पु.) -- भौंहों का संचालन, भारतीय नृत्य में भ्रूविलास का अद्‍भूत सम्मोहन है। (काद., नव. 1995, पृ. 7)

मकड़जाला सं. (पु.) -- 1. मकड़ी का जाला, 2. ताना-बाना, फैलाव, खान अब्दुल गफ्फार खाँ ने इस आतंक का मकड़जाला अनजाने में तोड़ दिया। (दिन., 12 अक्‍तू. 1969, पृ. 10)

मक्‍कारी सं. (स्त्री.) -- धूर्तता, यहाँ आकर मैंने जो देखा उससे उनकी मक्‍कारी पर अधिक भरोसा हो गया। (दिन., 11 अक्‍तू., 1970. पृ. 9)

मखौल सं. (पु.) -- मजाक, उपहास, (क) फ्रांस की सरकार यह न सोचे कि वह उस समय श्रमिकों के साथ एक भद्‍दा मखौल कर सकती है। (दिन., 17 अग. 1969, पृ. 42), (ख) इस शैली की रवानी में भी छिछलेपन के कारण कहीं-कहीं पर बालकों को मखौल दिखाई देता है। (वीणा, मार्च 1935, पृ. 363)

मगज सं. (पु.) -- दिमाग, मस्तिष्क, (क) उड़द बेचने की लहर उठी थी अधिकारियों के मगज में, सो गई आई। (कर्म., 24 जुलाई 1948, पृ. 4), (ख) द्विवेदीजी को इस बात का तो मगज नहीं है कि बीस साल पहले जो हिंदी बोली जाती थी, अब उसमें कुछ अंतर हो गया है। (म. प्र. द्वि., खं. 1, पृ. 304)

मगजपच्‍ची सं. (स्त्री.) -- दिमाग खपाने की क्रिया, माथापच्‍ची, (क) कोई दूसरा संपादक इनके साथ इतनी मगजपच्‍ची नहीं कर सकता। (क. ला. मिश्रः त. प. या., पृ. 24) (ख) समाजवाद में कितने युगों-युगों की मगजपच्‍ची है। (रा. मा. संच. 2, पृ. 46), (ग)मैं उसके साथ कई बार मगजपच्‍ची कर चुका था। (काद. : जन. 1975, पृ. 70)

मगरभंड सं. (पु.) -- हेर-फेर, घालमेल, इतना तो विद्यालय में इधर-उधर किया होता तो काफी पैसा निकल आया होता। फंडों का मगरभंड। (काद., जन. 1978, पृ. 74)

मगरूरी सं. (स्त्री.) -- अहंकार, घमंड, लेकिन उनके दिल की मगरूरी उन्हें उस को जाहिर करने से मना करती है। (सर., जून 1937, पृ. 527)

मचमचाहट सं. (स्त्री.) -- खलबली, उतावली, उनके पैरों में लंबी दौड़ की मचमचाहट, दिल्ली में लूट की प्यास और दिमागों में खून की चास थी। (स. से. त. : क. ला. मिश्र, पृ. 6)

मचिया सं. (स्त्री.) -- छोटी चौकोर चौकी, मोढ़ा, बाहर आकर एक कहवे की दुकान में ले जाकर मैदान में आ पड़ी मचियों पर हमें बिठाकर बैठ गया। (सर., जुलाई 1912, पृ. 350-51)

मच्छर पर तोप भिड़ाना मुहा. -- छोटी-छोटी बातों का घोर प्रतिरोध करना, हिंदी की पग-पग पर फजीती हो रही है, पर वह कहाँ-कहाँ मच्छर पर तोप भिड़ाती फिरे। (शि. पू. र., खं. 3, पृ. 475)

मछली फाँसना या फाँस लेना मुहा. -- किसी को नियंत्रण में लाना, वश में करना, ब्रिटिश न्याय के जाल में देश की सबसे बड़ी मछली फाँस ली गई थी और सारे छुटभैये अँगरेज बने खुश थे। (रा. मा. संच. 1, पृ. 52)

मछुआ सं. (पु.) -- मछुआरा, ऐसे मकानों के नमूने बनाए हैं जो मछुओं की परंपरागत झोंपड़ियों में बहुत कम फेरबदल करते हैं। (रा. मा. संच. 2, पृ. 321)

मँजा (हुआ) वि. (विका.) -- प्रयोग-सक्षम, अँगरेजी इस काम के लिए मँजी भाषा है। (दिन., 8 से 14 फर. 1976, पृ. 11)

मजा मारना मुहा. -- खूब मौज करना, सुख भोगना, धर्म और राजनीति का सारा मजा मारते हैं थोड़े से खास लोग। (दिन., 4 जून 1972, पृ. 41)

मंजा सं. (पु.) -- खाट, खटिया, चौधरी के बड़ के नीचे मंजा बिछाकर हुक्‍का पीता रहता था। (सर., जून 1915, पृ. 346)

मजे का वि. (विका., पद.) -- यथेष्‍ट, अत्यधिक, ढेरों, कौंसिली भारत के इस रुख ने लाट साहब की विजय की धौरी चादर पर मजे के छींटे फेंक दिए। (मा. च. रच., खं. 10स पृ. 141)

मज्‍जा सं. (स्त्री.) -- हड्‍डी की नली के अंदर का गूदा, 1917-20 का अनुभव हमारी मज्‍जा में पहुँचकर हमारा अंग, और तब वह अनुपयोगी बन जाएगा। (रा. मा. संच. 1, पृ. 21)

मझला वि. (विका.) -- बीच का, मध्यवर्ती, लेकिन देवराज अर्स दस वर्ष पहले ही लिंगायत और वोक्‍कालिगा के हाथों से सत्ता छीनकर मझले किसानों को दे चुके हैं। (रा. मा. संच. 1, पृ. 414)

मटरगस्ती सं. (स्त्री.) -- मटरगश्ती, आवारागर्दी, (क) जाएगा या पढ़ना छोड़कर मटरगस्ती करने लगेगा यह सोच ठीक नहीं है। (शि. पू. र., खं. 3, पृ. 177), (ख) मैं स्कूल मास्टर हो गया और विक्रम मटरगस्ती करने लगा। (प्रे. स. क. : सर. प्रेस, पृ. 130-31), (ग)एक साथ में ठहरा और खाने-पीने के बाद मटरगस्ती को निकल पड़ा। (नव., फर. 1958, पृ. 95)

मटियामेट करना, कर देना मुहा. -- पूर्ण रूप से नष्‍ट या बरबाद कर देना, जो धूल में मिल गया हो, (क) वाजिद अली के राज्य को खूब मटियामेट किया। (म. प्र. द्वि., खं. 5, पृ. 450), (ख) लगता था कि सारे अतीत को मटियामेट करके वह नया स्वर्ण विश्‍व बसाएगी। (रा. मा. संच. 1, पृ. 19), (ग)मंदिरों को मटियामेट करके उनकी संपत्ति वह लूट ले गया। (सर., जुलाई 1915, पृ. 23)

मट्‍टी पलीद करना मुहा. -- मिट्‍टी पलीद करना, बेइज्‍जत करना, अपने सिद्धांत के लिए झगड़कर कांग्रेस की मट्‍टी पलीद करना महात्माजी के लिए असंभव था। (म. का मतः क. शि., 5 जुलाई 1924, पृ. 160)

मट्‍ठ वि. (अवि.) -- मूर्ख, मंदबुद्धि, वह तो बड़ा मट्‍ठ है, उसकी समझ में भला यह बात कहाँ आएगी। (काद., जून 1977, पृ. 12)

मट्‍ठर वि. (अवि.) -- सुस्त, धीमा, (क) यह बैल तो बड़ा मट्‍ठर है। (काद., सित. 1977, पृ. 10), (ख) इतने मट्‍ठर हैं कि खुशी से पटवारियों का काम नहीं सीखते। (म. प्र. द्वि., खं. 9, पृ. 142)

मट्‍ठा वि. (विका.) -- मट्‍ठर, मंद, दूसरों की ठोकरें खाते-खाते हम मट्‍ठे पड़ गए हैं। (माधुरी, 31 मार्च 1925, सं. 3 पृ. 319)

मठमठांतर हो जाना मुहा. -- धड़ा बदल जाना, जहाँ भी वामपंथी पार्टियों में मठमठांतर हो जाता है वहाँ कोई भी दक्षिण पंथी पार्टी आनन-फानन सत्तारूढ़ हो जाती है। (दिन., 25 नव., 06, पृ. 34)

मठर वि. (अवि.) -- सुस्त, वह मठर है, उससे दूर ही रहो। (काद., जन. 1987, पृ. 7)

मठिया सं. (स्त्री.) -- छोटा मठ, यहाँ कहीं कोई बड़ा मंदिर नहीं है। हाँ, एक आधा मठिया कहीं-कहीं बनी हुई है। (सर., अप्रैल 1912, पृ. 209)

मंडन सं. (पु.) -- पुष्‍टि, समर्थन, समाज से शाबासी पाने की इच्छा से या परोपकार करने के बहाने अपने लाभ के लिए उनके दोषों का मंडन भूलकर भी न करे। (सर., दिस. 1917, पृ. 313) (गु. र., खं. 1, पृ. 445)

मँडलाना क्रि. (अक.) -- मँडराना, चक्‍कर काटना, छा जाना, खेत-खलिहान, सड़कों तथा मकानों पर तो आप का राज्य मँडला रहा है। (म. का. मतः क. शि., 18 जुलाई 1925, पृ. 188)

मढ़ना क्रि. (सक.) -- जड़ना, (क) वहाँ कलात्मक फिल्में इस ऊब और उस गुदगुदी दोनों को दार्शनिक चौखटे में मढ़कर देखती-दिखाती हैं। (दिन., 14 जन. 1966, पृ. 40), (ख.) आँख के अंदर का सब भाग रेटिना नामक मुलायम श्‍वेत और विमल झिल्ली से मढ़ा हुआ है। (चं. श. गु. र., खं. 2, पृ. 262)

मणिकांचन संयोग (चरितार्थ) होना मुहा. -- उत्तम संयोग, जिस समय जगत् गाले और अनंतलाल मृदंग बजाते थे, उस समय वस्तुतः मणिकांचन संयोग चरितार्थ हो जाता था। (शि. पू. र., खं. 3, पृ. 198)

मतलब गठना मुहा. -- स्वार्थ सिद्ध होना, तुम जिस गरज से उसको अटकाए हुए हो वह मतलब अब न गठेगा। (म. का मतः क. शि., 8 मार्च 1924, पृ. 137)

मतलब गाँठना मुहा. -- स्वार्थ सिद्ध करना, (क) इंग्लैंड के राजनीतिक...और कूटनीतिज्ञ झूठ बोलते हैं ...दुनिया को झाँसा देते हैं और अपना मतलब गाँठते हैं। (न. ग. र., खं. 2, पृ. 194), (ख) अपना मतलब जल्दी गाँठने के लिए वह उसे निरंकुश युक्‍तियों का उपयोग करने की सलाह देता था। (मा. च. रच., खं. 9, पृ. 175), (ग)हमें आपकी खुशामद नहीं करनी, अपना कोई मतलब नहीं गाँठना। (मधुकर, अप्रैल-अग. 1944, पृ. 2)

मतलबबाज वि. (अवि.) -- स्वार्थी, पर मतलबबाज महाजन अपने बच्‍चों को स्वामीजी की पाठशाला में स्वयं पहुँचाने जाया करता। (सर., अग. 1916, पृ. 86)

मतालबा सं. (पु.) -- इरादा, इच्छा, उस खद्‍दरधारी भभ्भड़ में जो हिंदुस्तानी में व्याख्यान देने का मतालबा करती थी, वह अपने को बिलकुल बेमेल पाती थी। (सर., जून 1937, पृ. 527)

मति मारी जाना मुहा. -- बुद्धि भ्रष्‍ट होना, याहिया खाँ या भुट्‍टो दोनों की मति मारी गई है। (दिन., 30 मई 1971, पृ. 12)

मति सं. (स्त्री.) -- बुद्धि, हमारे नेताओं की मति किधर पलटा खाए। (ग. शं. वि. रच., खं. 2, पृ. 408)

मतुवाई सं. (स्त्री.) -- मस्ती, विजय की मतुवाई में हम इस राष्‍ट्रीय शर्म को भूल गए। (दिन., 21 मई 1972, पृ. 20)

मत्थे मढ़ना मुहा. -- आरोपित करना, उत्तरदायी ठहराना, (क) कुछ लोग तुरंत इसका सारा दोष जनसंघ के मत्थे मढ़ देते हैं। (दिन., 16 मई 1971, पृ. 28), (ख) ये दल सारा दोष तरुणों के मत्थे मढ़कर अलग हो जाते हैं। (काद., फर. 1968, पृ. 22)

मत्थे रखना मुहा. -- दायित्व सौंपना, भार डालना, पूरे सर्वाधिकार किसी वंश के अग्रज के मत्थे रख दिए जाते हैं। (चं. श. गु. र., खं. 2, पृ. 340)

मथना क्रि. (सक.) -- मंथन करना, अनुशीलन करना, आंदोलित करना, (क) इसके लिए ब्रजभाषा साहित्य को मथना पड़ेगा। (शि. पू. र., खं. 4, पृ. 412), (ख) विरोध पत्र व्हाइट हाउस के कर्मचारियों की आशंकाएँ अमरीकियों के मन को मथ रहा है। (दिन., 6 जून, 67, पृ. 37)

मंथर वि. (अवि.) -- धीमा, मंद, एक समय था जब विज्ञान के चरण मंथर गति से उठते थे। (दिन., 7 जन. 1966, पृ. 23)

मद सं. (स्त्री.) -- विषय , कानून की रौ से पंचायतों को दीवानी और फौजदारी दोनों मदों के कुछ अधिकार प्राप्‍त हैं। (म. प्र. द्वि., खं. 9, पृ. 102)

मदमत्त वि. (अवि.) -- मतवाला, शक्‍ति-संपन्‍न, मदमत्त जान आज सीधी-सच्‍ची बातें सुनने के लिए तैयार नहीं हैं। (ते. द्वा. प्र. मि., पृ. 63)

मधुराई सं. (स्त्री.) -- मिठास, माधुर्य, मधुरता, इस पत्र के संपादक कवि-शिल्पी अपनी लेखन की मधुराई के लिए प्रसिद्ध हैं। (मा. च. रच., खं. 5, पृ. 231)

मन का मैल धोना या धो देना मुहा. -- मन से द्वेषभाव खत्म करना, गुरु का काम साधारण और उदार शिक्षा से मन का मैल धो देना है। (गु. र., खं. 1, पृ. 165)

मनः पूत वि. (अवि.) -- मन से पवित्र, गांधी जैसे मनःपूत की स्मृति में सभी के सिर श्रद्धा से झुक गए। (काद. : मार्च 1978, पृ. 11)

मन फिर जाना मुहा. -- मन उचट जाना, कुटुंबियों का मन उनसे फिर गया। (म. प्र. द्वि., खं. 5, पृ. 150)

मन भरना या भर देना मुहा. -- इच्छा पूर्ण करना, प्रसन्‍न करना, मैं आपका मन फिर किसी समय भर दूँगा। (म. प्र. द्वि., खं. 5, पृ. 387)

मन भावे मूँड़ हिलावे कहा. -- चाहना पर ऊपर से न न कहना, बार-बार नहीं-नहीं कहकर मन भावे मूँड़ हिलावे की चाल पर भर्तृहरि के श्‍लोक के अनुसार प्रलाप ही करने लग गए। (गु. र., खं. 1, पृ. 190)

मन मसोसकर रह जाना मुहा. -- मन का दुःखी या असहाय हो जाना, (क) युद्ध के इच्छुक वीर गुग्गा के साथी मन मसोसकर रह गए। (सर., जून 1932, सं. 6, पृ. 683), (ख) प्रजा बेचारी मन मसोसकर रह जाती है। (स. सा., पृ. 148)

मन मसोसे बैठना या बैठा रहना मुहा. -- हताश होकर बैठना, अपने को असहाय समझना, वह अपने सासनकाल में मन मसोसे बैठा रहा। (मा. च. रच., खं. 9, पृ. 176)

मन में मैल होना मुहा. -- दुर्भावना होना, दुर्भाव रखना, किंतु कॉन्फ्रेंस सफल नहीं हुई, प्रतिनिधिगणों के मन में मैल था। (न. ग. र., खं. 2, पृ. 170)

मन-भुलावा सं. (पु.) -- मन को बहलानेवाली बात, केवल अपने को धोखा दे सकते हो, मन-भुलावा दे सकते हो, मुझसे भाग नहीं सकते। (काद. : जन. 1975, पृ. 70)

मन-ही-मन कुढ़ना मुहा. -- अंदर से दुःखी रहना, (क) हम लोग जो अपने आपको स्वराज्य दल का नहीं मानते, इस बात से मन-ही-मन कुढ़ा करते कि वह विधानात्मकता के दलदल में फँसता चला जा रहा है। (न. ग. र., खं. 2, पृ. 102), (ख) सादात शायद इस बात से मन-ही-मन कुढ़े हुए थे कि जब बँगलादेश का युद्ध छिड़ा तब भारत की पूरी मदद मास्को न की। (रा. मा. संच., 1, पृ. 228)

मनगढ़ंत वि. (अवि.) -- काल्पनिक, (क) बंबई सरकार ने निजारा की इस लीपापोती को गलत और मनगढ़ंत बताया है। (कर्म., 29 मी 1948 स, पृ. 5), (ख) मनगढ़ंत बताया है। (कर्म., 29 मई 1948, पृ. 5), (ख) मनगढ़ंत इसमें कुछ भी नहीं है। (माधुरी, जन. 1925, सं. 1 पृ. 64), (ग)यह मनगढ़ंत बात नहीं है, न अतिशयोक्‍ति है। (रा. ला. प्र. र., पृ. 152)

मनचहैता वि. (विका.) -- मन को अच्छा लगनेवाला, प्रिय आरंभ में आपकी मनचहैती उर्दू कॉन्फ्रेंस है। (ब. दा. च. चु. प., खं. 1, सं. ना. द., पृ. 421)

मनचाहता वि. (विका.) -- मनचाहा, मन मुआफिक, समालोचक में जादूगर की मनचाहती आलोचना हो जाय तो समालोचक का जन्म सफल हैं। (गु. र., खं. 1, पृ. 431)

मनचीता वि. (विका.) -- मनचाहा, (क) बंगाल सरकार ने उनकी मनचीती मुराद पूरी करके अपनी कमजोरी का परिचय दे दिया। (ग. शं. वि. रच., खं. 3, पृ. 445), (ख) वे दाने जो गिनती में उनके मनचीते निकल आवें तो कहते हैं कि शकुन अच्छा है। (सर., 1 जून 1908, पृ. 257)

मनमोदक सं. (पु.) -- मन को पसंद आनेवाली बात, मनोनुकूल बात या काम लार्ड रीडिंग मीठी-मीठी बातों के मनमोदक खिलाकर भारतीय जनता को प्रसन्‍न न कर सकेंगे। (मा. च. रच., खं. 9, पृ. 306)

मनसूबे मिट्‍टी में मिलाना मुहा. -- आशाओं पर तुषारपात करना, मूर्ख हुए भी जिसके मनसूबे कभी मिट्‍टी में नहीं मिलाए ... उस सरकार से युद्ध करना होगा। (मा. च. रच., खं. 9, पृ. 229)

मनियारी सं. (स्त्री.) -- काँच का सामान, ... वहाँ के निवासी काँच की मनियारी के बदले में खरा सौ टंच सोना देकर खुश हैं। (दिन., 16 जुलाई 1965, पृ. 11)

मनुहार सं. (स्त्री.) -- मनाने की क्रिया या भाव, मनावन, चिरौरी, खुशामद, (क) उस समय के आने की मनुहार किन्हीं अदृष्‍ट चरण द्वय में पहुँचा सकते हैं। (ग. शं. वि. रच., खं. 1, पृ. 329), (ख) कुछ लोग मनुहार से अपना काम बनाने की कोशिश करते हैं। (काद., नवं. 1989, पृ. 11), (ग)ट्रेन में बैठने की जगह प्राप्‍त करने के लिए सीटों पर बैठे कई यात्रियों की मनुहार करनी पड़ी। (मा. अ. : अप्रैल 1995, पृ. 5)

मनों वि. (अवि.) -- कई मन, अत्यधिक, जिनके कुटुंब के शरीरों की लपेटन में मनों कपड़ा लगता था। (मा. च. रच., खं. 9, पृ. 234)

मनोदेवता सं. (पु.) -- मन रूपी देवता, आत्मा शब्द तो इतने मधुर हैं कि उन्हें पढ़कर किसानों के मनोदेवता फुदक उठें। (मा. च. रच., खं. 10, पृ. 157)

मरकहापन सं. (पु.) -- मारने की आदत, मरकहापन हमें जरा भी नहीं सुहाता। (स. न. रा. गो. : भ. च. व., पृ. 41)

मरघिल्ला वि. (विका.) -- मरियल, वहाँ मरणासन्‍न, मरघिल्ली गायों को देखकर घोर लज्‍जा का अनुभव हुआ। (मधुकर, सित. 1944, पृ. 161)

मरतबा सं. (पु.) -- पद, रुतबा, इस कौम को जो शान-शौकत और मरतबा अवध की नवाबी में हासिल हुआ है, वह कहीं और न हो सका। (काद., अप्रैल 1975, पृ. 140)

मरता क्या न करता मुहा. -- घोर संकट में व्यक्‍ति कुछ भी कर बैठता है, इस दशा में बेचारा (यूनान) मरता क्या न करता की उक्‍ति को चरितार्थ करने के लिए भिड़ जाए तो इसमें आश्‍चर्य क्या। (स. सा., पृ. 236)

मरताऊ वि. (अवि.) -- मरणासन्‍न, मंटो मर गया, जो एक अर्से से मरताऊ था। (काद. : मार्च 1968, पृ. 115)

मरद सं. (पु.) -- पति, खसम, पुरुष, एक साल पहले उसने तीसरा मरद किया था। (काद., मई 1979, पृ. 60)

मरना-खपना क्रि. (अक.), मुहा. -- 1. जान दे देना, जान निछावर करना, (क) जो कौम अपने धर्म के लिए मर-खप सकती है, वही शायद अपने धर्म को बदल भी सकती है। (रा. मा. संच. 2, पृ. 166), (ख) किंतु हमारे नेता ग्रामीणों को जगाने, उनके लिए मरने-खपने, उनको संयुक्‍त करने उनकी दशा सुधारने के पथ में क्रांति को आमंत्रित करने के लिए तैयार होंगे। (मा. च. रच., खं. 10, पृ. 231), 2. घोर परिश्रम करना, इस देश में लगभग हर पड़ोसी परिवार ने अपना एक रिश्तेदार अफ्रीका में मरने-खपने के लिए भेज रखा है। (रा. मा. संच. 1, पृ. 243)

मरभुखा वि. (विका.) -- भुखमरा, भूख का मारा, (क) बीमार, मरभुखे और झोंपड़ियों में रहनेवाले लोग प्रसन्‍न नहीं रहते ... उनसे मेहनत कम होती है। (म. प्र. द्वि. रच., खं. 2, पृ. 51), (ख) दुर्भिक्ष लोगों को मरभुखा बना देता है। (काद., जुलाई 1993, पृ. 5)

मरभुखी सं. (स्त्री.) -- भूख के कारण मरने की स्थिति, भुखमरी बड़ी बलाय है, पर मरभुखी उससे बड़ी बला है। (कर्म., 30 मई 1953, पृ. 10)

मरमचोट सं. (स्त्री.) -- मर्म पर होनेवाला आघात, उसे गहरी मरमचोट लगी है। (प. परि. रेणु, पृ. 37)

मरिगल्ला वि. (विका.) -- मरियल, जिसे कोई मरिगल्ला कुत्ता क्या, प्यासा कौआ भी ओढ़ना नहीं चाहेगा। (दिन., 13 मई 1966, पृ. 24)

मरी हत्या होना मुहा. -- मरणासन्‍न होना, दुर्बल होना, वह पहले से अधिक कर्जदार है, उसके बैल पहले से अधिक मरी हत्या हो रहे हैं। (मा. च. रच., खं. 3, पृ. 17)

मरीचिका सं. (स्त्री.) -- मृगतृष्णा, छलावा, रातो-रात छनाढ्‍य होने की कामना मरीचिका सिद्ध होती है। (काद., मई 1995, पृ. 4)

मरोड़ सं. (स्त्री.) -- घुमाव, तरीका, प्रकार, भाषा की एक मरोड़ से कहा जा सकता है कि मौत ने कस्तूरबा को रिहाई दी। (मा. च. रच., खं. 4, पृ. 221)

मर्दे-मैदान सं. (पु.) -- युद्धवीर, रणवीर, योद्धा वैसे तो हाथ पर हाथ धरे बैठे रहते हैं किंतु वक्‍त पर मीनमेख निकालने के लिए मर्दे-मैदान बनकर आ जाते हैं। (ग. शं. वि. रच., खं. 1, पृ. 402)

मर्याद सं. (स्त्री.) -- मर्यादा, शिष्‍टाचार, नाई, बढ़ई, कुम्हार, पुरोहित, भाट, चौकीदार ये सब उसका मुँह ताकते थे। अब यह मर्याद कहाँ। (सर., मई 1918, पृ. 245)

मर्षण सं. (पु.) -- सहना, क्षमा करना, उस सीधे कवि की मुँहफट उक्‍ति को लेकर यदि आजकल कोई कवि वह बात कहे तो कब हम उसका मर्षण करेंगे। (चं. ध. श. गु., खं. 2, पृ. 306)

मर्सिया पढ़ना मुहा. -- शोक प्रकट करना, जनता की सारी आशाएँ आपकी उक्‍ति का मर्सिया पढ़ रही हैं। (म. का. मतः क. शि., 5 अप्रैल 1924, पृ. 145)

मलकट्‍टा सं. (पु.) -- कोयले की चट्‍टान काटनेवाला, मजदूर कोयलों की खानों में काम करनेवाले मलकट्‍टे जब कोयले की कोई चट्‍टान तोड़ते हैं तब गांधी भाई की जय पुकारते हैं। (नव., मई 1953, पृ. 85)

मलित वि. (अवि.) -- मलिन, राजनीति के कीचड़ में मलित करने पर भी इसकी गंभीरता नष्‍ट नहीं हो सकती। (दिन., 25 फर. 1966, पृ. 17)

मलूकदास बनना मुहा. -- ठलुआ होना, हम लोग तो आज तक मलूकदास ही बने बैठे हैं। (सर., अप्रैल 1913, पृ. 225)

मलैती सं. (स्त्री.) -- मल्ल का काम या पेशा, पहलवानी, उसकी मलैती देखकर आँखे ठंडी हो रही हैं। (काद., सित. 1988, पृ. 120)

मल्ल सं. (पु.) -- कुश्ती लड़नेवाला, पहलवान, कुछ राज्यों में अच्छे या संभाव्य विश्‍वविजेता मल्ल को इतनी सरकारी सहायता मिलती है कि शौकिया या पेशेवर का भेद प्रायः मिट जाता है। (दिन., 16 जुलाई 1965, पृ. 11)

मल्लीनाथी सं. (स्त्री.) -- जोर-जबरदस्ती, सरकारी मनसूबों की मल्लीनाथी है जो सरदार पटेल के भाषण में स्पष्‍ट कर दी गई है। (कर्म., 16 अक्‍तू., 1948, पृ. 3)

मसखरा सं. (पु.) -- परिहास करनेवाला, (क) कोई बड़ा ही ठठोल दिल्लगीबाज मसखरा है। (भ. नि., पृ. 17), (ख) ...आजकल हर कांग्रेस अध्यक्ष अपनी कुरसी पर बैठते ही दरबारी मसखरा क्यों हो जाता है। (रा. मा. संच. 1, पृ. 254)

मसखरी सं. (स्त्री.) -- परिहास, मैं झूठ नहीं कह रहा हूँ, मुझे मसखरी करने की आदत है। (काद., नव. 1980, पृ. 103)

मसनद का बोझ मुहा. -- गद्‍दीधारी, मसनद के बोझ साधुओं और महंतों के मचाए उत्पातों को क्यों भूल जाते हैं ? (शि. पू. र., खं. 3, पृ. 307)

मसल सं. (स्त्री.) -- कहावत, (क) मसल है कि खूँटे के बल बछड़ा नाचे। (चं. श. गु. र., खं. 2, पृ. 372), (ख) देहाती मसल है कि सौ वर्ष बाद उस जगह के भी दिन फिरते हैं जहाँ लोग कूड़ा-करकट फेंक देते हैं। (सर., दिस. 1925, पृ. 644)

मसला सं. (पु.) -- मुद्‍दा, विषय, पामेला पूरे विश्‍व के लिए जायकेदार खबर है, लेकिन हमारे लिए उसे एक मसला होना चाहिए था। (लो. स., 1 अप्रैल 1989, पृ. 10)

मसविदा सं. (पु.) -- मसौदा, प्रारूप, पंचायत के कानून का मसविदा आज न मालूम कितने दिनों से खटाई में पड़ा है। (सर., मार्च 1920, पृ. 174)

मसिजीवी सं. (पु.) -- लेखन से जीविका चलानेवाला, लेखक, कलमकार, जमाने ने मेरी कद्र की न दूसरे मसिजीवियों की। (काद., अप्रैल 1989, पृ. 150)

मसिमुख सं. (पु.) -- कलंकित व्यक्‍ति, उस मसिमुख का साथ भला कौन करेगा। (काद., मई 1977, पृ. 9)

मंसूख वि. (अवि.) -- रद्‍द, निरस्त, (क) कलकत्ते और बंबई के लोगों के मंसूख किए हुए सौदों की सूची इंग्लैंड के व्यापारिक पत्रों में सदा छपती रहती है। (सर., अप्रैल 1930, पृ. 449), (ख) उसके खिलाफ आरोप सिद्ध न होने से मामला मंसूख कर दिया गया। (काद., नव. 1978, पृ. 15)

मंसूबा बाँधना मुहा. -- इरादा करना, संकल्प करना, उसने बड़े-बड़े मंसूबे बाँध रखे हैं। (सर., जून 1932, सं. 6, पृ. 684)

मस्कन सं. (पु.) -- घर, मकान, निवास, देश दरिद्रता का स्थायी मस्कन बन रहा है। (म. का मतः क. शि., 20 सित. 1924, पृ. 166)

मस्तक डुलवाना मुहा. -- वाहवाही लूटना, मीठे गले की रिश्‍वत पर, लोगों के मस्तक डुलवाने का सस्ता व्यापार गुप्‍तजी के बूते का रोग नहीं। (मा. च. रच., खं. 4, पृ. 164)

मस्तमौला वि. (अवि.) -- निश्‍चिंत, बेहया हैं क्या ? या मस्तमौला हैं। (कुटजः ह. प्र. द्वि., पृ. 1)

मस्ताना क्रि. (अक.) -- मस्ती में आना, बेटा बहुत ही मस्ता गया था। (कर्म., 30 दिस., 1950, पृ. 8)

मँहगी सं. (स्त्री.) -- महँगी, महँगाई, इन दिनों मँहगी गरीबों का गला घोंट रही है। (मा. च. रच., खं. 9, पृ. 250)

महंतगिरी सं. (स्त्री.) -- नेतागिरी, कहानी की त्रिमूर्ति की महंतगिरी को इससे चुनौती मिली है। (सं. मे. 29 जुलाई 1990, म. सिं., पृ. 9)

महतारी सं. (स्त्री.) -- माँ, माता, हिंदी हिंदीवालों की भाषा हुई और भारत संतान हिंदी में पुस्तकें पढ़ने भी लगी और मुख निरखने का काम अब हिंदी में महतारी के सिपुर्द हो गया। (दिन., 7 जन. 1966, पृ. 44)

महती वि. (अवि.) -- महान्, महत्त्वपूर्ण, राहत के इस महती करिश्मे की कोई खास चर्चा प्रेस में नहीं हुई। (रा. मा. संच. 2, पृ. 318)

महसूल सं. (पु.) -- कर, टैक्स, चुंगी आदि, राज्य कर चुकाने के लिए आप घर से महसूल भेज दिया करते थे। (सर., अग. 1917, पृ. 58)

महारण सं. (पु.) -- महुयुद्ध, हल्दी घाटी में महारण मचानेवाले इस क्षत्रिय कुलावंत महात्मा की कीर्ति-कौमुदी से भारत का इतिहास समुच्‍च्वल हो रहा है। (सर., फर. 1913, पृ. 121)

महारनी सं. (स्त्री.) -- आवृत्ति, दुहराव, मदरसे के लड़के दो दूनी चार दो तिया छह की महारनी लेते हैं। (क. ला. मिश्रः त. प. या., पृ. 103)

माई का लाल मुहा. -- जीवटवाला व्यक्‍ति, हिम्मती व्यक्‍ति, (क) इस देश में ऐसा कोई माई का लाल नहीं जो वनस्पति घी का रंग बदल दे। (दिन., 07 अप्रैल, 68, पृ. 10), (ख) इस तरह की कायरतापूर्ण बुद्धिमत्ता की बात तो ऐरे-गेरे तक कहते हैं, पर ऐसे माई के लाल बिरले ही हैं जो प्रत्यक्ष असंभावनाओं का सिर तोड़ देने के लिए आगे बढ़ते हैं। (ग. शं. वि. रच., खं. 3, पृ. 369)

माचा सं. (पु.) -- चारपाई, नए समझते हैं कि बूढ़े खूसट न मरते हैं न माचा छोड़ते हैं। (ग. शं. वि. रच., खं. 1, पृ. 292)

माँजना क्रि. (सक.) -- सुधारना, चमकाना, फिर एक-एक वाक्य एक-एक शब्द को दोहराता हूँ, माँजता हूँ। (दिन., 29 अक्‍तू. 1965, पृ. 43)

माजरा सं. (पु.) -- मामला, वृत्तांत, अब आप ही कृपा करके बताइए कि यह क्या माजरा है ? (नि. वा. : श्रीना, च., पृ. 43)

माटीमोल क्रि. वि. -- बहुत ही कम दाम में, मिट्‍टी के मोल अपने घर की बहुमूल्य वस्तुएँ माटीमोल बेचकर अपना ऋण अदा कर देते हैं। (सर., जुलाई 1924, पृ. 753)

माँड़-भात सं. (पु.) -- भात और माँड़, अँगरेज अफसरों को माँड़-बात खिलाकर जिलाया। (म. का. मतः क. शि., 18 जुलाई 1925, पृ. 187)

माँड़ना1 क्रि. (सक.) -- गूँथना, आटा सानकर उसे हाथों से माँड़ती (गूँथती) है। (दिन., 7 जन. 1968, पृ. 42)

माँड़ना2 क्रि. (सक.) -- दँवई करना, वोटोंवाली बैलों की जोड़ी खलिहानों में नाज के पूले माँड़नेवाले बैलों की तरह सीमित दायरे में घूमती है। (दिन., 13 अग. 1965, पृ. 12)

मातबर वि. (अवि.) -- विश्‍वसनीय, मातबर खबर है कि विश्‍व बैंक के अध्यक्ष जार्ज बुश ने चौथे भारतीय आयोजन के लिए ..., (दिन., 17 जून 1966, पृ. 12)

माथा ठनकना मुहा. -- आशंका होना, खटका लगना, (क) दर्शक की अनोखी दिलचस्पी देख संग्रहालय के कर्मचारियों का माथा ठनका। (दिन., 25, 67, पृ. 46), (ख) जिनके कारण राष्‍ट्र के सच्‍चे शुभाकांक्षियों का माथा ठनकना स्वाभाविक है। (सा. हि., 6 अप्रैल 1958, पृ. 4), (ग)...हमारे गाँव के किसानों का माथा ठनका। (धर्म., 1 जन. 1967, पृ. 13)

माथा भन्‍नाना मुहा. -- सिर चकराना, बुद्धि काम न करना, माथा कभी भन्‍नाने भी लगता है। (हि. ध., प्र. जो., पृ. 575)

माथापच्‍ची सं. (स्त्री.) -- गहन चिंतन, गहरा सोच-विचार, सामाजिक समस्याओं पर माथापच्‍ची करना फिजूल है। (बे. ग्रं., भाग 1, पृ. 60)

माथे मढ़ना मुहा. -- जिम्मे लगाना, बलात् सौंपना, कांग्रेस जबलपुर के माथे मढ़ी जाने का आप उसे वरदान दे रहे हैं या श्राप। (मा. च. रच., खं. 9, पृ. 131)

माँद सं. (स्त्री.) -- जंगली पशुओं के रहने का स्थान, खोह, ज्यों ही उसे काफी खाद्य मिल जाता है त्यों ही वह अपनी माँद में पड़ा हुआ आराम करता या सोता रहता है। (सर., जून 1928, पृ. 611)

मादा नजर आना मुहा. -- स्‍त्रैण भाव होना, स्‍त्रियों की तरह कमजोर होना, जिस किसी की दुम उठाकर देखो मादा ही नजर आता है। (रा. द. श्रीला. शु., पृ. 88)

माँदा पड़ना या पड़ जाना मुहा. -- बीमार पड़ना, (क) कहीं तुम न माँदे पड़ जाना। (सर., जून 1915, पृ. 243), (ख) नव-जाग्रत् प्रगतिवादी फिर से इस माँदे खच्‍चर को मार-मारकर खड़ा कर देना चाहते हैं। (दिन., 30 मई 1971, पृ. 44)

माद्‍दा सं. (पु.) -- शक्‍ति, पौरुष, (क) देशवालों में तो आगे बढ़ने का माद्‍दा ही नहीं। (ग. शं. वि. रच., खं. 2, पृ. 166), (ख) अभी तो इतनी बात को समझने का माद्‍दा पैदा नहीं हुआ। (ग. शं. वि. रच., खं. 3, पृ. 396), (ग)वे नहीं जानते थे कि जिन लोगों को उन्होंने जिताया है, उनका माद्‍दा क्या है। (रा. मा. संच. 1, पृ. 363)

मान-दान सं. (पु.) -- सम्मान और पुरस्कार, निंदक हिंदी के क्षेत्र में ऐसा निंद्य कार्य करते हुए भी तीसमार खाँ के रूप में मान-दान पाते रहते हैं। (कु. ख., पं. द. द. शु., पृ. 33)

मान-मनव्वल सं. (स्त्री.) -- मान-मनौवल, मनुहार, खुशामद, फिर आज के दिन क्यों उसका मान-मनव्वल किया जाए। (किल. सं. म. श्री., पृ. 335)

मान-मनौव्वल सं. (स्त्री.) -- मान-मनौवल, मनुहार, खुशामद, बड़ी मान-मनौव्वल के बाद श्री सिंह ने यह मान लिया है कि वे अपने पद पर बने रहेंगे। (दिन., 21 जुलाई, 68, पृ. 20)

मान-मर्तबा सं. (पु.) -- प्रतिष्‍ठा तथा पद, निःसंदेह जागीर के जब्त हो जाने से पेशवा के परिवार के लोगों के मान-मर्तबे पर खासी ठेस पहुँची। (सर., मार्च 1921, पृ. 175)

मान-मर्दन करना मुहा. -- अहंकार नष्‍ट करना, पराजित करना, हम इस घमंडी विजेता से रण लेकर इसका मान मर्दन करें। (सर., जून 1932, सं 6, पृ. 684)

मान सं. (पु.) -- सम्मान, प्रतिष्‍ठा, वहाँ उनका बड़ा मान है। (म. प्र. द्वि., खं. 5, पृ. 145)

मानांध वि. (अवि.) -- घमंडी, धन, संपत्ति ने उसे मानांध बना दिया है। (काद. : नव. 1987, पृ. 9)

मानी सं. (पु.) -- अर्थ, आशय, मेरे लिए तो धर्म एक दूसरा ही मानी रखता है। (वि. भा., जन. 1928, सं. 1, पृ. 3)

मानीखेज वि. (अवि.) -- अर्थवान, महत्त्वपूर्ण, (क) तब भी वह उतना ही मानीखेज या बेमानी होता, जितना कि अब। (दिन., 11 नव., 66, पृ. 42) (ख) गुप्‍तजी की कविता पंक्‍तियों को जरूरत से ज्यादा मानीखेज बना दिया। (दिन., 07 मई, 67, पृ. 5)

माप-जोख सं. (स्त्री.) -- नाप-तौल, जाँच-पड़ताल, चीन भी सीधी कार्रवाई के परिणामों की माप-जोख करने में असमर्थ है। (दिन., 1 अक्‍तू. 1965, पृ. 10)

मांमाशी वि. (अवि.) -- मांसाहारी, (क) अंदमन के मूल निवासी अधिकांश मांमाशी हैं। (सर., दिस. 1926, पृ. 617), (ख) मांमाशी कौवों के द्वारा सीता को कष्‍ट पहुँचाना और रामचंद्र को उन कौओं पर बाण चलाना कोई अस्वाभाविक बात नहीं। (सर., जन. 1911, पृ. 11)

मायाजाल में फँसना मुहा. -- प्रपंच में पड़ना, फेर में पड़ना, स्वराज्य के लिए कौंसिलों के मायाजाल में फँसना भारी भूल होगी। (स. सा., पृ. 77)

मार-मारकर हकीम बनाना मुहा. -- निष्प्रयोजन प्रयास करना, मार-मारकर हकीम बनाने से क्या लाभ ? (सर., मई 1943, पृ. 273)

मारामार मचाना मुहा. -- मारकाट करना, वे कायर हैं जो विरोधी भावों के सामने आते ही तोपों और संगीनों से मारामार मचा दें। (मा. च. रच., खं. 9, पृ. 253)

मारूँ वि. (अवि.) -- मारक, मार करनेवाला, विध्वंसक, इस युग में जबकि विज्ञान ने बड़े-बड़े मारुँ अस्‍त्र पैदा कर दिए हैं। (ग. शं. वि. रच., खं. 3, पृ. 85)

मारे आनंद के क्रि. वि. (पदबंध) -- प्रसन्‍नता की अधिकता से, पहला लेख एक मासिक पत्रिका में छपा तब मारे आनंद के आप अपने कमरे में नाचने लगे। (म. प्र. द्वि. रच., खं. 2, पृ. 310)

मारे प्रसन्‍नता के क्रि. वि. (पदबंध) -- अत्यधिक प्रसन्‍नता से, मारे प्रसन्‍नता के हम तो फूलकर कुप्पा हो गए। (मत., म. प्र. से.)

मार्का सं. (पु.) -- चिह्र, ...कलाकारों की दुनिया में घर के रहे न घाट के उर्फ नर के रहे न नारायण के रहे मार्का अफसोस प्रकट किए जाने लगे। (दिन., 9 जुलाई 1965, पृ. 24)

मार्के का वि. (विका., पदबंध) -- महत्त्वपूर्ण, (क) कुछ समाचार-पत्र ऐसे भी हैं, जिनमें संयोग से ही कोई मार्के की भूल मिलती है। (शि. पू. र., खं. 4, पृ. 511), (ख) यह (ये) लेख बड़े मार्के के हैं। (म. प्र. द्वि., खं. 5, पृ. 320), (ग)लेखे में एक बात और भी मार्के की थी। (ग. शं. वि. रच., खं. 2, पृ. 474)

मार्ग में काँटे बोना या बो देना मुहा. -- रास्ते में बाधाएँ खड़ी कर देना, आप तो डूबेंगे ही, साथ ही अगले होनहार पत्रों के मार्ग में काँटे बो देंगे। (माधुरी, जन. 1925, सं. 1, पृ. 133)

मार्दव सं. (पु.) -- कोमलता, सहजता, बेल्जियम नेताओं की विनयशीलता, मार्दव ने उनकी आशंका को और भी दृढ़ कर दिया। (सर., अग. 1916, पृ. 308)

माल-मत्ता सं. (पु.) -- पूँजी, धन, दौलत, (क) नौ लाख रुपयों का माल-मत्ता बर्बाद किया गया। (मा. च. रच., खं. 9, पृ. 159), (ख) सब लोग समझते हैं कि अपना सारा माल-मत्ता इसी पेटी में है। (ज. स., 10 दिस. 2006, पृ. 6), (ग)जरा कुछ और माल-मत्ता हो जाने दो, फिर तो वह आँख उठाकर देखेगी भी नहीं। (माधुरीः अक्‍तू. 1927, पृ. 577)

माला ठकठकाना मुहा. -- माला फेरना (उपेक्षासूचक), माला ठकठकाकर इनका जप-अनुष्‍ठान कीजिए। (शि. पू. र., खं. 3, पृ. 308)

माला फेरना मुहा. -- जाब करना, प्रयास करना, अपने मतलब के लिए लोकोपकार की माला फेरी जा रही है और बिल्लैया-दंडवते हो रही हैं। (ग. शं. वि. रच., खं. 2, पृ. 255)

माले मुफ्त दिले बेरहम कहा. -- मुफ्‍त के माल का बेरहमी से खर्च, चंदे की रकम ने माले मुफ्त दिले बेरहम का सबक सिखाया। (म. का मतः क. शि., 22 सित. 1923, पृ. 119)

माहेंद्र सं. (पु.) -- शुभ योग, अपने सुघर और सुहावने नाम की पुरावृत्ति करने और लंदन में परीक्षा पास करने की घोषणा, दुबारा सुनाने का माहेंद्र योग जो हाथ से जाता रहता। (सर., जुलाई 1920, पृ. 19)

माहेर सं. (पु.) -- मायका, उनमें माहेर और ससुराल के अलग-अलग नाम रखने की चाल है। (म. प्र. द्वि., खं. 5, पृ. 130)

मिकदार सं. (स्त्री.) -- मात्रा, परिमाण, (क) जो चीज अधिक मिकदार में एकदम तैयार की जाती है वह हमेशा सस्ती होती है। (सर., अग. 1915, पृ. 67), (ख) की अनुभूत योग नहीं है कि पानी, बीज, खाद वगैरह को किसी खास मिकदार में इकट्‍ठा कर देने से अपने आप पैदावार बढ़ जाए। (दिन., 18 फर. 1966, पृ. 43)

मिचमिच सं. (स्त्री.) -- धीरे-धीरे चबाने की क्रिया या भाव, यदि वह खाने में मिचमिच करके दो घंटे नहीं लगा देती तो समझिए वह अवश्य उद्यमी है। (सर., अप्रैल 1928, पृ. 401)

मिचलाई सं. (स्त्री.) -- मितली, उबकाई, हमको तो मांसाहारी भोजन का नाम सुनते ही मिचलाई आने लगती है। (सा. नि. : बद. ति., बा. कृ. भ., पृ. 49)

मिजाज गरम हो उठना मुहा. -- क्रोध में आ जाना, ऐसे मौकों पर गुरुदेव महाशय का मिजाज गरम हो उठता था। (सर., 1 जून 1908, पृ. 262)

मिट्‍टी का ढेला मुहा. -- निष्प्रयोज्य वस्तु, सरकारी इनकार होते ही दौड़ती हुई रेलगाड़ियाँ मिट्‍टी के ढेलों की तरह पड़ी रह गईं। (मा. च. रच., खं. 10, पृ. 162)

मिट्‍टी का मम्मा मुहा. -- मिट्‍टी का माधव, मूर्ख व्यक्‍ति, मि. ब्राडरिक ने स्पष्‍ट कहा-तुम्हारे कहने से मैंने बंग-विच्छेद मान लिया और तुम्हारे चाहे कौंसिल के मेंबर दे दिए, अब क्या मैं मिट्‍टी का मम्मा हूँ। (गु. र., खं. 1, पृ. 333)

मिट्‍टी का लोंदा मुहा. -- सीधा-सादा या मूर्ख व्यक्‍ति, इसमें संदेह नहीं अँगरेजी राज्य की कृपा से हम अब वह निरे मिट्‍टी के लोंदा नहीं हैं जो पचास वर्ष पहले रहे। (भ. नि. मा. (दूसरा भाग), सं. ध. भ., पृ. 135)

मिट्‍टी के मोल न पूछना मुहा. -- कुछ भी मूल्य न आँकना, कुछ भी कद्र न होना, उपनिवेशों में भारतीयों को कोई मिट्‍टी (के) मोल नहीं पूछता। (स. सा., पृ. 81)

मिट्‍टी पलीत होना मुहा. -- मिट्‍टी पलीद होना, दुर्दशा होना, चीन में उसके व्यवसाय की मिट्‍टी पलीत हो रही है। (मा. च. रच., खं. 10, पृ. 258)

मिट्‍टी पलीद करना मुहा. -- दुर्दशा करना, (क) धर्मशाला की ऐसी मिट्‍टी पलीद की जाएगी कि वह तंग शाला बन जाएगी। (सा. हि., 12 मार्च 1960, पृ. 4) (ख) असलियत मालूम हो जाने पर भी उसकी इस कदर मिट्‍टी पलीद नहीं करनी चाहिए। (सर., जन.-जून 1961, सं. 5, पृ. 563), (ग)साहित्य सेवा का क्या यही पुरस्कार मिलेगा कि उनके मानस के संस्कारण की मिट्‍टी पलीद करने का दुस्साहस कलकत्ते का यह कतरन बटोर संपादक करे। (कु. ख. : दे. द. शु., पृ. 70)

मिट्‍टी पलीद कराना मुहा. -- दुर्दशा कराना, महात्माजी अपनी जिंदगी में ही सत्याग्रह की मिट्‍टी पलीद करा रहे हैं। (म. का मतः क. शि., 14 नव. 1925,पृ. 194)

मिट्‍टी पलीद होना मुहा. -- दुर्दशा होना, (क) कांग्रेस असंतुष्‍टों की कैसे मिट्‍टी पलीद हुई। (काद., फर. 1994, पृ. 21), (ख) सब विषयों को अंग्रेजी में ही रटना चाहिए, चाहे याद हों न हों, चाहे एक बरस के काम में पाँच बरस तक मिट्‍टी पलीद हो। (मा. च. रच., खं. 2, पृ. 54), (ग)उस प्रस्ताव के पास हो जाने पर उनके उस उद्‍देश्य की पूरी तरह मिट्‍टी पलीद होगी ? (ग. शं. वि. रच., खं. 2, पृ. 304)

मिट्‍टी मिल जाना मुहा. -- शरीर का मिट्‍टी में मिलना, दफन हो जाना, सोचा था कि ब्रज में हमारी मिट्‍टी मिल जाएगी किंतु हम तो अब टंच हो गए हैं। (ज. स., 10 सित. 2006, पृ. 6)

मिट्‍टी में मिल जाना मुहा. -- मिट्‍टी हो जाना, नष्‍ट हो जाना, सारी की-कराई मेहनत मिट्‍टी में मिल गई। (ग. शं. वि. रच., खं. 2, पृ. 74)

मिट्‍टी में मिलाना या मिला देना मुहा. -- नष्‍ट कर देना, वह आपस में कलह करके जनता के हित को मिट्‍टी में नहीं मिलाता। (मा. च. रच., खं. 10, पृ. 242)

मिट्‍टी मोल करना मुहा. -- कुछ बी मूल्य न आँकना, आजादी की कुर्बानियों का कल तक हमने मिट्‍टी मोल भी नहीं किया था। (किल., सं. म. श्री., पृ. 356)

मिट्‍टी हो जाना मुहा. -- शक्‍तिहीन हो जाना, ओजहीन हो जाना, उनका शरीर जवानी ही में मिट्‍टी हो गया था। (म. प्र. द्वि., खं. 5, पृ. 13)

मिठबोला वि. (विका.) -- मीठी बोली बोलनेवाला, मधुरभाषी, जाति-द्वेष जो गुजरात की मिठबोली देह में जाने कहाँ छुपा पड़ा था। (दिन., 21 सित. 1969, पृ. 12)

मिठाई के नारे देकर नमक की खदान खोदना मुहा. -- कहना कुछ और करना कुछ कथनी और करनी में अंतर करना, जयप्रकाश का मिशन मुश्किल और खतरनाक इसलिए है कि जिस जनता का नेतृत्व उन्हें (या किसी को भी) करना है, वह मिठाई के नारे देकर नमक की खदान खोदनेवाली जनता है। (रा. मा. संच. 1, पृ. 259)

मिडिलची वि. (अवि.) -- मिडिल पास, कम ज्ञानवाला, वे जानते ही हैं कि यह मिडिलची साहित्यिक कितने गहने पानी का है। (कु. ख. : दे. द. शु., पृ. 71)

मिताई सं. (स्त्री.) -- मित्रता, मिताई करने के लोभ में पड़कर उसने समझौता कर लिया है। (प. परि. रेणु, पृ. 84)

मित्रमार वि. (अवि.) -- मित्र-द्वेषी, मित्रघाती, ओह ! मैं कितना निर्दयी, कितना पापी, कैसा मित्रमार हूँ। (सर., अप्रैल 1925, पृ. 435)

मिन्‍नत-आरजू सं. (स्त्री., पदबंध) -- अनुनय-विनय, कुछ मिन्‍नत-आरजू करने तथा समझाने-बुझाने के बाद उसे इस काम अपने ऊपर लेने के लिए राजी किया। (माधुरीः अग.-सित. 1928, पृ. 7)

मिन्‍नत सं. (स्त्री.) -- विनय, चिरौरी, बड़ी मिन्‍नत करने पर बाबाजी ने हम लोगों को चित्र दिखलाए। (सर., सित. 1937, पृ. 278)

मिमियाकर रह जाना मुहा. -- विफल होना, फुस होना, यह विराट् आयोजन मिमियाकर रह गया। (दिन., 07 मई, 67, पृ. 41)

मियाँ की जूती मियाँ का सर कहा. -- अपना अहित स्वयं करना, इस प्रकार मियाँ की जूती मियाँ का सर होकर व्यर्थ ही क्या यह समझौता हिंदुओं और मुसलमानों के झगड़े का आधार नहीं बन जाएगा। (स. सा., पृ. 330)

मिरचें लगना मुहा. -- बुरा लगना, तड़प उठना, इससे टाइम्स को बड़ी मिरचें लगी हैं, उसने बड़ी गीदड़-भबकी दिखाई है। (बाल. स्मा. ग्रं. : शर्मा, चतुर्वेदी, पृ. 139)

मिर्जई सं. (स्त्री.) -- बंडी, फतूही, दर्जी मिर्जई सिलना भूल गया है। (रवि., 11 जन. 1981, पृ. 5)

मिला-भेंटी सं. (स्त्री.) -- भेंट, मुलाकात, हम लोग भी क्या की ईसाई हैं जो मिला-भेंटी करा के विवाह करें। (सर., मार्च 1919, पृ. 130)

मिलान सं. (स्त्री.) -- मिलाने की क्रिया या भाव, तुलना...असलियत से उसका मिलान करने पर उन्हें क्या दिखाई देता है। (दिन., 21 मई 1972, पृ. 20)

मिल्कियत सं. (स्त्री.) -- संपत्ति, जायजाद, जुम्मन ने लंबे-चौड़े वादे करके वह मिल्कियत अपने नाम करवा ली थी। (सर., जून 1916, पृ. 286)

मिस सं. (पु.) -- बहाना, मानो वह उस हास्य के मिस कहती थी आज मैं सुख से मर सकूँगी। (सर., मार्च 1908, पृ. 109)

मिसकौट सं. (पु.) -- मिसकोट, बातचीत, दिशा-जंगल के बहाने चार लोगों से मिसकौट हो पाए, महानगरों में यह भी संभव नहीं है। (साक्षा., मार्च-मई 77, मृ. पा. पृ. 29)

मिसमार वि. (अवि.) -- ध्वस्त, नष्‍ट, वह मिसमार कर दी गई तो फिर फसाद के नए दरख्त की जड़ में पानी देना बेमानी है। (काद. : फर. 1993, पृ. 24)

मिसरा सं. (पु.) -- कविता का पद या चरण, जब आप किसी के लेख, व्याख्यान अथवा पुस्तक की समालोचना करते हैं तब कभी-कभी फारसी के चुटीले मिसरों को प्रयोग करते हैं। (हि. श. स. : ज. प्र. च., आ. रा. शु., पृ. 7)

मिस्कोट सं. (पु.) -- 1. बातचीत, 2. षड्‍यंत्र, लगता है उसके विरुद्ध कोई मिस्कोट चल रहा है। (काद., जून 1976, पृ. 12)

मीजान सं. (पु.) -- जोड़, मुंशी जी ने अपना मीजान लगाना छोड़ यह खबर सुनी। (रा. नि., समी., फर. 2007, पृ. 33)

मीठी चुटकी मुहा. -- मधुर व्यंग्य या आक्षेप, इन नपे-तुले शिष्‍ट शब्दों में मीठी चुटकी भी निहित है, हम चाहेंगे कि आर्च विशप उसे समझें। (ते. द्वा. प्र. मि., पृ. 95)

मीठी तान छेड़ना मुहा. -- गुणगान करना, ब्रिटेन के प्रत्येक उपनिवेश ने भारतवासियों की तारीफ में मीठी तानें छेड़ीं। (मा. च. रच., खं. 9. पृ. 140)

मीन-मेख निकालना मुहा. -- दोष या कमियाँ निकालना, सदाशय व्यक्‍ति भी मीन-मेख निकालने पर मजबूर हो जाता है। (ज. स. : 23 दिस. 1983, पृ. 4)

मीन-मेख सं. (पु.) -- छोटा-मोटा दोष या कमी, (क) इस बात में कोई मीन मेख नहीं हो सकता कि गत वर्ष तक सभा की दृष्‍टि में सरस्वती निर्दोष थी। (म. प्र. द्वि. रच., खं. 2, पृ. 481), (ख) वैसे तो हाथ पर हाथ धरे बैठे रहते हैं किंतु वक्‍त पर मीन-मेख निकालने के लिए मर्दे-मैदान बनकर आ जाते हैं। (ग. शं. वि. रच., खं. 1, पृ. 402), (ग)यदि वे मीन-मेख लगाते और चंदा देनेवालों की बात न सुनते तो क्या होता, यह बताने की जरूरत नहीं। (सर., मई 1915, पृ. 308)

मीन-मेष करना मुहा. -- राशियों के प्रभाव का विचार करना, जब तक ब्राह्मण देवता बैठकर अपनी मीन-मेष न कर लें तब तक क्या मजाल जो मकान बन जाए। (सर., नवं. 1909, पृ. 482)

मीन-मेष सं. (पु.) -- मीन-मेख, दोष, त्रुटि, इसी एक कारण से कला के साधारण पारखी सज्‍जन शुद्ध भारतीय चित्रों में भाँति-भाँति के मीन-मेष निकाला करते हैं। (मधुकर, अक्‍तू. 1944, पृ. 231)

मुकदर भाँजना मुहा. -- मुगदर चलाना, व्यायाम करना, मसक्‍कत करना, बड़े उद्योगपतियों को पाठ पढ़ाने के लिए वित्तमंत्री अपने कक्ष में मुकदर भाँज रहे हैं। (रवि. 24 फर. 1979, सं. 10)

मुकरना क्रि. (अक.) -- अपनी बात से पीछे हटना, पलट जाना, (क) उसके अर्थ से मुकरने की यह फूहड़ कोशिश आप देख चुके हैं। (हि. ध., प्र. जो., पृ. 519), (ख) अमेरिका से प्रस्तावित बातचीत में भाग लेने से भी वह मुकर सकता है। (दिन., 7 जून, 1970, पृ. 5), (ग)किंतु वह (संपादक) अपने उत्तरदायित्व से मुकर नहीं सकता। (हि. पत्र. के गौरव बां. बि. भट., सं. ब.)

मुकर्रा वि. (अवि.) -- नियत, तयशुदा, मुकर्रा वक्‍त पर विनायक से मिलने का जोखिम उठाती रही है। (काद., नव. 1980, पृ. 56)

मुकुर-सा वि. (विका.) -- स्वच्छ, निर्मल, तब वह राष्‍ट्रीय सांस्कृतिक जीवन की मुकुर सी दिखेगी। (रचना : अज्ञेय, पृ. 24)

मुक्‍कियाँ लगाना मुहा. -- पैर दबाना, जरा पैर में मुक्‍कियाँ लगा दे बेटी। चूर हो गई हूँ। (सर., सित. 1937, पृ. 259)

मुक्‍तामाल सं. (स्त्री.) -- मोतियों की माला, राजा के सिर पर बढ़िया, रेशमी, रंगबिंरगी मुहासा था, जिस पर जड़ाऊ कलगी और लिपटी हुई मुक्‍तामाल। (फा. दि. चा., वृ. ला. व. समग्र, पृ. 647)

मुखौटा सं. (पु.) -- नकली चेहरा, कविता में पूर्णतया नकारात्मक दृष्‍टि अपनानेवाले नाटकीय लोग भीड़ की तुष्‍टि के लिए मुखौटे लगाते हैं। (दिन., 28 अक्‍तू., 66, पृ. 43)

मुख्तार सं. (पु.) -- कारिंदा, गुमाश्ता, मैं पहले ही प्रयत्‍न में मुख्तार हो गया। (सर., जून 1918, पृ. 320)

मुगालता सं. (पु.) -- भ्रम, धोखा, गलतफहमी, (क) नहीं तो मुझे मुगालता हो जाएगा कि मैंने तुझे खुलेआम गायन का प्रमाणपत्र दिया है। (रवि., 6 दिसं. 1982), (ख) आज कौन इस मुगालते में है कि देर-सबेर हिंदी सहित अन्य भारतीय भाषाएँ ऊँची नौकरियों अथवा उद्योग-व्यापार में कामकाज की भाषाएँ बन जाएँगी। (ग. मं. : पत्र. चु., पृ. 81), (ग)कभी मुगालता न देनेवाला सहयोग प्राप्‍त रहा। (कर्म., 6 सित. 1947, पृ. 7)

मुचेहटा सं. (पु.) -- मुठभेड़, आमना-सामना, तभी काम देगा जब जिन्‍न से मुचेहटा हो। (रा. द. : श्रीला. शु., पृ. 65)

मुछमुंडा वि. (विका.) -- मुँड़ी मूँछवाला, भारत बंद के समर्थन और विरोध के लिए निकली टोलियाँ वस्तुतः मुछमुंडों द्वारा मूँछ बचाने की कोशिश थी। (रवि. 7 फर. 1982, पृ. 50)

मुछाकड़ा वि. (विका.) -- बड़ी-बड़ी मूँछवाला, मुछक्‍कड़, कोई कॉलेज में पढ़ता हुआ मुछाकड़ा लड़का ही अपने को हिंदी भाषा का अकेला आलोचक समझ रहा है। (गु. र., खं. 1, पृ. 140)

मुजरा लेना मुहा. -- अभिवादन करना, सलाम करना, इसके पहले चुपचाप बैठकर मुजरा लेने की स्थिति थी। (दिन., 6 सित., 1970, पृ. 21)

मुजायका सं. (पु.) -- हानि, मतभेद की रेखाएँ स्पष्‍ट होतीं तो कोई मुजायका नहीं था। (दिन., 16 अप्रैल, 67, पृ. 37)

मुटमरदी सं. (स्त्री.) -- उद्‍दंडता, मैं इसे ... आदमियों की मुटमरदी और जाने क्या-क्या कहकर ईश्‍वर का उपहास किया करता। (प्रे. स. क. : सर. प्रेस, पृ. 77)

मुटियाना क्रि. (अक.) -- मुटाना, नव उदार पूँजीवाद में मुटियाते लोगों का अपने संसदीय लोकतंत्र को हिकारत से देखने का नजरिया बन गया है। (ज. स. : 29 जुलाई 2007, पृ. 6)

मुटुर-मुटुर क्रि. वि. -- आँखें फाड़कर, मैंने सिटपिटाकर मुटुर-मुटुर ताकते हुए कहा-जलपान। (स्मृ. वा. : जा. व. शा., पृ. 12)

मुट्‍ठी ढीली होना मुहा. -- पैसा खर्च होना, पंजाब भूकंप पर मारवाड़ियों की मुट्‍ठी ढीली न होने पर संपादक मंडली कहती है ... उदारता का पर्दा अभी तक किसलिए नहीं उठाया ? (गु. र., खं. 1, पृ. 429)

मुट्‍ठी में रखना मुहा. -- नियंत्रण में रखना, वश में रखना, सरकार अब गाँववालों को अपनी मुट्‍ठी में रखने की चाल सोच रही है। (वि. भा., जन. 1928, सं. 1, पृ. 76)

मुट्‍ठी-भर क्रि. वि. -- थोड़े-से, कम मात्रा में होनेवाले, निश्‍चय ही वे मुट्‍ठी-भर हैं और साल-भर पहले सिरिमाओ भारी बहुमत से चुनी गई थीं। (रा. मा. संच. 2, पृ. 40)

मुठभेड़ सं. (स्त्री.) -- भिड़त, टक्‍कर , ...पर मुठभेड़ हो ही गई और एंजिन के चकनाचूर हो जाने से बेचारा इंथ्रेम दब गया। (सर., सित. 1909, पृ. 404)

मुड़कट्‍टा वि. (विका.) -- जिसका सिर कटा न हो (गाली), पंडितजी से उलझने की हिमाकत की इस दुरंत मुड़कट्‍टे ने। (कुटजः ह. प्र. द्वि., पृ. 88)

मुँड़चिरा सं. (पु.) -- एक प्रकार के मुसलमान फकीर जो सिर पर उस्तरे से घाव करते हैं, पीठ दिखला देनेवालों का दर्जा मुँड़चिरे फकीरों से अधिक नहीं हो सकता। (म. का मतः क. शि., 29 मार्च 1924, पृ. 141)

मुड़चिरापन सं. (पु.) -- मुँडचिरा होने की अवस्था या भाव, वहाँ नंगे साधुओं की खासी जमात है जो उद्‍दंडता और मुड़चिरेपन के लिए प्रसिद्ध है। (वि. भा., जन. 1928, सं. 1, पृ. 136)

मुड़तोड़वा वि. (अवि.) -- सिर तोड़ देनेवाला, बाप रे बाप ! जौन मुड़तोड़वा सोंटा लिए है, अब प्रान न बची। (माधुरीः अग.-सित. 1928, पृ. 139)

मुत्तल वि. (अवि.) -- अवगत जानकार स्‍त्रियाँ भी इस तलाशी के पाश से मुत्तल नहीं। (मा. च. रच., खं. 10, पृ. 320)

मुत्सद्‍दी सं. (पु.) -- मुसद्‍दी, मुंशी, गुमाश्ता, और हमारा अनुभव कहता है वे मुत्सद्‍दी हैं। (मा. च. रच., खं. 9, पृ. 337)

मुँदरी सं. (स्त्री.) -- अँगूठी, यदि वे कोरे सस्ते पत्थर हैं तो मुँदरी में जड़े जाकर भी उपेक्षित रहेंगे। (हि. पत्र. के गौरव बां. बि. भट., सं. ब., पृ. 110)

मुदा वि. (विका.) -- गूढ़, इस प्रकार की मुदी बातें सीखने में बच्‍चों का मन नहीं लगता। (म. प्र. द्वि. रच., खं. 2, पृ. 54)

मुनहना वि. (विका.) -- दुबला-पतला, कमजोर, (क) रत्ती हमारे क्लास की मुनहने-से जिस्म की निहायत चुप्पी लड़की थी। (हंस, अग. 86, मृ. पां. पृ. 49), (ख) वह अपने को और मुनहना महसूस करने लगा। (काद. : अग. 1975, पृ. 66)

मुनहसिर वि. (अवि.) -- निर्भर, आश्रित, (क) इससे यह साबित है कि इन फलों की बढ़ती बिल्लियों पर मुनहसिर है। (सर., 1 अप्रैल 1909, पृ. 166), (ख) तुम्हारी ही होशियारी, बहादुरी और कारगुजारी पर इस लड़ाई की फतहयाबी मुनहसिर है। (सर., अक्‍तू. 1924, पृ. 1137)

मुनादी सं. (स्त्री.) -- ढिंढोरा, ढोल-मँजीरे के साथ गाँव में घूम-घूमकर मुनादी कर दे। (काद., मार्च 1994, पृ. 72)

मुनासिब वि. (अवि.) -- उचित, जहाँ-जहाँ आपको मुनासिब मालूम हुआ है वहाँ-वहाँ आपने उनके दोष भी दिखाए हैं। (सर., अप्रैल 1911, पृ. 160)

मुफ्त में पिटना मुहा. -- बिना कुछ किए ही हानि उठाना, मोहन मुफ्त में पिट गया। (मधुकर, 1 अक्‍तू. 1940, पृ. 5)

मुरछल सं. (पु.) -- मोरछल, मोर के पंखों का चँवर, रामबरन के हाथ में होती थी लंबी लाठी और उस पर बँधा हरी वनस्पतियों के साथ मुरछल। (काद., नव. 1978, पृ. 70)

मुरमुरा सं. (पु.) -- धान की लाई, दिल्लीवालों और किलेवालों को चना-मुरमुरा बहुत पसंद था। (काद., जन. 1979, पृ. 50)

मुराद सं. (स्त्री.) -- साध, अभिलाषा, जो अध्यापक शमशीर सिंह की जितनी सेवा करता, उसे उतनी ही मुराद मिल जाती। (काद., जन. 1989, पृ. 78)

मुरेठा सं. (पु.) -- पगड़ी या पगड़ी की तरह बाँधा हुआ अँगोछा, उसके सिर पर केसरिया रंग का मुरेठा है। (बे. ग्रं., भाग 1, पृ. 18)

मुरौवत सं. (स्त्री.) -- रिआयत, छूट, सरकार जितनी मुरौवत करती है, वे उतने ही अकड़ते जाते हैं। (सर., जून 1928, पृ. 633)

मुर्गाबाड़ी सं. (स्त्री.) -- दड़बा, स्वार्थ के अनेक घेरे मुर्गाबाड़ी की तरह बनते चले गए। (वाग. : कम., अग. 1997, सं. पृ. 3)

मुर्गे लड़ाना मुहा. -- जुझारों लोगों को आपस में लड़ाना, केंद्र सरकार सत्ता के दाने चुनने की गुंजाइश छोड़कर मुर्गे लड़ाने का खेल खेल रही है। (हि. ध., प्र. जो., पृ. 237)

मुर्दनी सं. (स्त्री.) -- गहरी उदासी, आरोप झूठा सिद्ध होने पर उनके चेहरे पर मुर्दनी छा गई। (दिन., 2 जुलाई, 67, पृ. 18)

मुलम्मा उखड़ना मुहा. -- चमक-दमक न रह जाना, आवरण हटना, आश्‍वासनों के मुलम्मे उखड़ गए हैं। (दिन., 11 जन. 1970, पृ. 5)

मुलम्मा सं. (पु.) -- कलई, ऊपरी परत, आवरण, (क) इन मुहावरों पर किसी तरह का मुलम्मा चढ़ाना असली घी पर विशुद्ध डालडा डालना जैसा होगा। (दिन., 14 जन. 1968 पृ. 40), (ख) स्वयं ऐसी ही निरुद्‍देश्यता को नैतिकता और सनातन मूल्यों का मुलम्मा चढ़ाकर प्रस्तुत करने में चूकते नहीं हैं। (दिन., 14 जन. 1966, पृ. 40), (ग)वे तथाकथित शाश्‍वतता के मुलम्मे से आक्रांत नहीं हुए। (दिन., 28 अक्‍तू., 66, पृ. 43)

मुलाहिजा सं. (पु.) -- शील-संकोच, बराबर के आदमी हैं, उम्र में, दर्जे में मुझसे दो अंगुल ऊँचे, मुलाहिजा करना ही पड़ता है। (प्रे. स. क. : सर. प्रेस, पृ. 151)

मुल्तवी वि. (अवि.) -- स्थगित, ऐसे हालात में वसंत को मुल्तवी न करें। (काद., अप्रैल 1989, पृ. 33)

मुंशियाना वि. (अवि.) -- मुंशियों का-सा, इसलिए सरकार को सख्त रवैया अख्तियार करना पड़ा अत्यंत मुंशियाना, प्रशासनिक तर्क है ...। (दिन., 6 अक्‍तू. 1968, पृ. 16)

मुसकी मारना मुहा. -- धीरे-धीरे मुसकराना, (क) अकेले में मुसकी मार लेता तो लोग कहते बिना पिये नशा चढ़ा है रामललवा को। (रवि., 4 जन. 1981, पृ. 37), (ख) कढ़ी खाए, मुसकी क्या मारे है, सरदार को धप्प मारकर आई हूँ, वह हाथ दूँगी कि सारे दाँत झड़ जाएँगे। (काद., नव. 1961, पृ. 76)

मुसद्‍दी सं. (पु.) -- मुंशी, कार्यालयों में काम करनेवाला लिपिक, ये मुसद्‍दी यहीं के विश्‍वासी व्यापारी होते हैं। (सर., भाग 28, सं. 4 मार्च 1927, पृ. 440)

मुसाहब सं. (पु.) -- बड़ा व्यक्‍ति, अधिकारी, प्यारी बाबू साथ में दो मुसाहब लेकर आए। (सर., मार्च 1930, पृ. 351)

मुसौदी सं. (स्त्री.) -- मसौदा, विषय, सोचा गया कि मलेरिया-उन्मूलन की मुसौदी से क्यों न एक नसबंदी भियान चलाया जाए। (रा. मा. संच. 1, पृ. 301)

मुस्कि मिजाज वि. (अवि.) -- स्वभाव से हुँसमुख, व्यक्‍तिगत रूप से अँगरेजों को मैंने बड़ा मुस्कि मिजाज, सहृदय और उदार पाया। (नि. वा. : श्रीना. च., पृ. 23)

मुस्टंडा सं. (पु.) -- हृष्‍ट-पुष्‍ट व्यक्‍ति, (क) मुस्टंडों के हाथ के डंडे हाथ में ही धरे रह गए। (किल., सं. म. श्री., पृ. 53), (ख) यही न कि वे मुस्टंडे होकर और अत्याचार करें। (न. ग. र., खं. 2, पृ. 19)

मुँह का कौर छीनना मुहा. -- आजीविका हड़पना, रोजी मारना, (क) नागपुर निवासियों को न समझा सकने पर यह उचित नहीं कि हम आंध्र के मुँह का कौर छीनें। (मा. च. रच., खं. 9, पृ. 173), (ख) अपने भाइयों के मुँह का कौर छीनकर खाना मुझे हर्गिज मंजूर नहीं है। (त्या. भू. : संवत् 1986, (1972) पृ. 211)

मुँह की कालिख मुहा. -- चरित्र पर लगा लांछन, कलंक, ऐसा सत्य जो ईमानदारी के बुरके की चिंदी-चिंदी करके तुम्हारे बेईमान मुँह की कालिख संसार को दिखलाता है, कड़वा होता है। (न. ग. र., खं. 2, पृ. 222)

मुँह की खाना मुहा. -- पराभूत होना, परास्त होना, विफल मनोरथ होना, इजराइल के बमबारों के सामने अरब देशों को मुँह की खानी पड़ी। (दिन., 2 जुलाईं, 67, पृ. 27)

मुँह की तरफ जोहना मुहा. -- मुँह जोहना, आशापूर्वक टकटकी लगाए रहना, मजदूर जो लाखों की संख्या में अपाहिजों की भाँति कारखानेदारों के मुँह की तरफ जोहनेवाले बन गए हैं। (ग. शं. वि. रच., खं. 1, पृ. 149)

मुँह की रोटी छीनना मुहा. -- जीविका छीनना, रोजी छीनना, लोगों के मुँह की रोटी छीनकर अपने लिए विलासिता का सामान इकट्‍ठा करना मानव इतिहास में नई घटना नहीं है। (स. सा., पृ. 65)

मुँह के बल गिरना मुहा. -- औंधे मुँह गिरना, मुँह के बल भड़-भड़ाकर गिर पड़ने से हम अपना हित साधन नहीं कर सकेंगे। (न. ग. र., खं. 4, पृ. 80)

मुँह चिढ़ाना मुहा. -- उपहास करना, खिल्ली उड़ाना भुट्‍टो के खिलाफ सर्वोच्‍च न्यायालय का निर्णय इनसाफ और कानून को मुँह चिढ़ाता रहेगा। (रवि. 24 फर 1979, पृ. 16)

मुँह चुराना मुहा. -- सामना न करना, कन्‍नी काटना, (क) उद्योग से मुँह चुराना अपने पैरों पर कुल्हाड़ी मारना है। (ग. शं. वि. रच., खं. 1, पृ. 128), (ख) जिन्हें भारत अपना दोस्त मानता आया था वे मुँह चुरा रहे हैं। (दिन., 1 अक्‍तू. 1965, पृ. 16), (ग)यह वास्तविकता से मुँह चुराना होगा। (दिन., 16 अप्रैल, 67, पृ. 38)

मुँह छिपाना मुहा. -- सामना करने से कतराना, (क) डरने और मुँह छिपानेवाली बात को आप समझकर भी न समझे। (गु. र., खं. 1, पृ. 412), (ख) सर्वसाधारण की जानकारी की उँगली के सामने करामात की लाजवंती मुँह छिपा लिया करती हैं। (गु. र., खं. 1, पृ. 312)

मुँह जोहना मुहा. -- आशापूर्वक किसी की ओर देखना, आशा भरी दृष्‍टि से देखना, (क) अब वे नाटकों के लिए गिरीश बाबू का मुँह जोहने को लाचार न थे। (शि. पू. र., खं. 3, पृ. 187), (ख) भाषा और लिपि की समस्याएँ इनका मुँह जोह रही हैं। (शि. पू. र., खं. 3, पृ. 257), (ग)लोकसभा में प्रतिपक्ष का सामना करने के लिए किसी अन्य पार्टी का मुँह जोहना पड़े। (दिन., 5 जन. 1975, पृ. 19)

मुँह तकना मुहा. -- मुँह ताकना, आशा लगाए बैठना, सहायता के लिए अन्य देशों का मुँह तकने लगे तो हमारी आवाज कहीं नहीं सुनी जाएगी। (दिन., 19 मई, 68, पृ. 6)

मुँह ताकना मुहा. -- मुँह जोहना, उसे समझने के लिए गिने-चुने लोगों का मुँह ताकना पड़ता है। (श्र. सं. : मै. श. गु., पृ. 9), (ख) नाई, बढ़ई, कुम्हार, पुरोहित, भाट, चौकीदार ये सब उसका मुँह ताकते थे। अब यह मर्यादा कहाँ। (सर., मई 1918, पृ. 245), (ग)लोग बैठे मुँह ताका करते या ऊबकर निराश हो दूसरे दिन जल्दी आने का निश्‍चय कर लौट जाते थे। (कु. ख. : दे. द. शु., पृ. 16)

मुँह पर कालिख पोतना मुहा. -- कलंकित करना, इटली को मनमानी करने देकर राष्‍ट्रसंघ ने स्वयं अपने मुँह पर कालिख पोत ली है। (सं. परा. : ल. शं. व्या., पृ. 290)

मुँह पर तमाचा जड़ना मुहा. -- नीचा दिखाना, टर्की पश्‍चिमी शक्‍तियों के मुँह पर एक तमाचा जड़ चुका है। (न. ग. र. खं. 2, पृ. 234)

मुँह पर पत्थर रखना मुहा. -- बोलने न देना, अभिव्यक्‍ति पर रोक लगाना, समाचार-पत्र ही देश की आवाज है। इस आवाज की उपेक्षा करना देश के मुँह पर पत्थर रखना है और उन्‍नति के पैरों में बेड़ियाँ पहनाना है। (मा. च. रच., खं. 2, पृ. 65)

मुँह पर मुहर लगना मुहा. -- मुँह बंद हो जाना, बोलती बंद हो जाना, उसके सामने प्रतिवादी तार्किकों के मुँह पर मुहर सी लग जाती थी। (सर., अग. 1922, पृ. 70)

मुँह फुलाना मुहा. -- नाराज होना, गुस्सा होना, (क) नतीजा यह था कि अधिकांश अफसर जनता राज में अनमने और मुँह फुलाए बैठे रहे। (रा. मा. संच. 1, पृ. 464), (ख) जिसे डाली न दो वही मुँह फुलाता है। (सर., मई 1918, पृ. 244)

मुँह फूलना मुहा. -- असंतोष के कारण रूठना, यह बात और है कि उनके समर्थन से केवल दो लोगों के मुँह फूले हैं। (ज. स. : 8 दिस. 1983,पृ. 4)

मुँह फैलाना या फैला देना मुहा. -- विस्तार से कहना, उसके पंचांगों का वर्णन कीजिए तो मुँह फैला दें या दो-चार उलटी-सीधी सुना दें। (सर., दिस. 1921, पृ. 378)

मुँह बाए क्रि. वि. -- मुँह खोले हुए, (क) क्यों नहीं ऐसे गड्‍ढों में जो आज तक मुँह बाए पसरे हुए हैं, उन्हें गिराया गया। (ग. शं. वि. रच., खं. 1, पृ. 255), (ख) लेकिन गरीबी अब भी मुँह बाए खड़ी है। (रा. मा. संच. 1, पृ. 131), (ग)देहाती इस शानदार जीव के सामने मुँह बाए रह गया। (ग. शं. वि. रच., खं. 2, पृ. 315)

मुँह बाकर रह जाना मुहा. -- हतप्रभ हो जाना, स्तब्ध रह जाना, फाटक भहरा पड़ा और सुभाषी पल्टन मुँह बाकर रह गई। (मत., म. प्र. से. वर्ष 5, सं. 7, पृ. 6)

मुँह बिचकाना मुहा. -- अरुचि या अप्रसन्‍नता प्रकट करना, (क) वर्षों बाद मित्र से मुलाकात हुई किंतु गर्मजोशी नदारद, वह बात-बात पर मुँह बिचका रहा था। (काद. : अक्‍तू. 1981, पृ. 59), (ख) शास्‍त्रीजी न्याय के बाग से जो फल लाए थे उन्हें चखकर देश मुँह बिचका चुका था। (म. का मतः क. शि., 24 नव. 1923, पृ. 123)

मुँह बिराना मुहा. -- मुँह चिढ़ाना, (क) विश्‍वयुद्ध के तुरंत बाद के सांस्कृतिक आंदोलनों में जरूर मजाक करनेवाला और मुँह बिरानेवाला भाव रहा है। (दिन., 20 अग., 67, पृ. 25), (ख) शरणार्थियों को जातीयवाद की नजर से देखने के कारण वे पश्‍चिमी बंगाल का मुँह बिरा रहे हैं। (ज. स. : 9 दिस. 1983, पृ. 4)

मुँह में दाँत न होना मुहा. -- सज्‍जन दिखना, सीधा-सादा लगना,-चेहरे-मोहरे से तो वह ऐसा भलमानस और भोलाभाला प्रतीत होता है, मानो मुँह में दाँत ही नहीं। (सर., अप्रैल 1925, पृ. 428)

मुँह में लगाम न होना मुहा. -- जबान पर नियंत्रण न होना, जो हिंदी बिलकुल नहीं जानता, उसके मुँह में भी लगाम नहीं। बड़े-बड़े दिमागदार भी बिना और-छोर की बातें कह जाते हैं। (शि. पू. र., खं. 4, पृ. 632)

मुँह मोड़ना या मोड़ लेना मुहा. -- विमुख हो जाना, (क) राजनीतियों ने कला और साहित्य से मुँह मोड़ लिया है। (हि. पत्र. के गौरव बां. बि. भट., संपा.-ब. (सा. हि.), 10 अप्रैल 1966, पृ. 156), (ख) जिसकी कठोरता से टकराने पर शत्रु की संगीनों ने भी मुँह मोड़ लिया था । (म. का. मतः क. शि., 3 नव. 1923, पृ. 122)

मुँह लगाना मुहा. -- छूट देना, बढ़ावा देना, सिर चढ़ना, वे न तो किसी से बात करती हैं, और न ही किसी को फालतू मुँह लगाती हैं। (काद., जुलाई 1989, पृ. 103)

मुँह सीकर बैठना मुहा. -- चुप्पी साधे रहना, चुपचाप रहना, मुँह सीकर बैठे रहना आत्मा का गला घोंटना प्रतीत होता है। (हि. पत्र. के गौरव बां. बि. भट., संपा.-ब. (सा. हि.), 21 अप्रैल 1957, पृ. 142)

मुँह-दूबर वि. (अवि.) -- अल्पभाषी, वह काफी मुँह-दूबर है और जरूरत पड़ने पर ही बोलता है। (काद. : जन. 1968, पृ. 14)

मुँह-देखी बात करना मुहा. -- सम्मुख व्यक्‍ति के अनुरूप बात करना, (क) अनेक पंडित-आचार्य मुँह-देखी बात करते हैं, शास्‍त्र और धर्म देखकर नहीं चलते। (गु. र., खं. 1, पृ. 396) (ख) आप लोग मुँह देखी बातें करते हैं। (मधुकर, 1 अक्‍तू. 1940, पृ. 215)

मुँहचढ़ा वि. (विका.) -- लाड़ला, दुलारा, कोशिश कर रहा हूँ मगर यह मुँहचढ़ी मानती ही नहीं। (म. का मतः क. शि., 3 सित. 1927, पृ. 98)

मुँहचोर वि. (अवि.) -- मुँह न दिखानेवाला, सामना न करनेवाला, यह संदेह मुँहचोर तरीके की वजह से और भी गाढ़ा हो जाता है। (दिन., 5 सित. 1971, पृ. 15)

मुँहजोर वि. (अवि.) -- बढ़-बढ़कर बातें करनेवाला, बाल-विधवा कनियाँ काकी हमारे गाँव की सबसे मुँहजोर महिला है। (काद., जुलाई 1989, पृ. 102)

मुँहझौंसा वि. (विका.) -- मुँहजला (गाली), (क) मैंने इस मुँहझौंसी को किससे माँगा था। (बुधु. बे. : बे. श. उ., पृ. 24), (ख) मगर वह मुँहझौंसा नहीं लौटा, तो नहीं लौटा। (काद., जुलाई 1994, पृ. 140)

मुहताज रहना या रह जाना मुहा. -- आश्रित होना, राजकाज के ढब-ढाँचों के विवरण ऐतिहासिक समीक्षा के मुहताज रह गए। (दिन., 25 फर., 68, पृ. 42)

मुँहदेखा वि. (विका.) -- दिखावे-भर का, औपचारिक, खुशामद भरा, मतलब यह कि दोनों पक्षों की मुँहदेखी बातें की जाएँ। (दिन., 24 जून 1966, पृ. 14)

मुँहदेखू वि. (अवि.) -- मुँह-देखी बात करनेवाला, हमारा नेतृवर्ग अवसरवादी, मुँहदेखू एवं सत्तालोलुप है। (दिन., 16 अग., 1970, पृ. 11)

मुँहफट वि. (अवि.) -- 1. कटु या अनुचित बात कहने में संकोच न करनेवाला, बेलगाम, (क) यद्यपि कोई-कोई उन्हें मुँहफट भी कह देते हैं। (दिन., 16 सित., 66, पृ. 39), (ख) लेखक व्यक्‍ति को मुँहफट बनाए बिना नहीं छोड़ता। (मा. च. रच., खं. 2, पृ. 345), (ग)वरना राजनारायण जैसा मुँहफट और ऊलजलूल आदमी क्या तुंरत यह बयान जारी नहीं कर देता कि संजीव रेड्‍डी ने कांग्रेस के साथ पक्षपात किया है। (रा. मा. संच. 1, पृ. 352), 2. स्पष्‍ट और खरा, (क) सीधे समय के उस सीधे कवि की मुँहफट उक्‍ति को लेकर यदि आजकल कोई कवि वही बात कहे तो कब हम उसका मर्षण करेंगे ? (चं. शं. गु. र., खं. 2, पृ. 306), (ख) अमेरिकी मित्र ने बड़े मुँहफट लहजे में मुझसे कहा था। (दिन., 30 अप्रैल, 67, पृ. 10)

मुँहमाँगी मुराद पूरी होना मुहा. -- इच्छा पूरी होना, बदली खुफिया विभाग में हो जाना तो एक मुँहमाँगी मुराद थी जो पूरी हुई। (मि. ते. सु. चौ.-सुधा चौहान, पृ. 25)

मुहर लगाना मुहा. -- प्रमाणित करना, समर्थन करना, पुष्‍टि करना, (क) असहयोग के भाव पर मजबूत मुहर लगा दी। (मा. च. रच., खं. 9, पृ. 217), (ख) ओष्‍ठों पर मौत की मुहर नहीं लगाई जाती तब तक उनकी निभृतता का क्या प्रमाण ? (गु. र., खं. 1, पृ. 424)

मुँहलगा वि. (विका.) -- दुलारा, चहेता, (क) तब उन बड़ो-बड़ों ने जो सरकार और सरदार दोनों के मुँहलगे थे, अपने दो वर्ष के अज्ञान को देखा। (कर्म., 22 अक्‍तू., 1949, पृ. 8), (ख) राजा के एक मुँहलगे सरदार ने वीर गूग्गा के प्रति कुछ अनुचित शब्द कह दिए। (सर., जून 1932, सं. 6, पृ. 683)

मुहाना सं. (पु.) -- उद्‍गम स्थल, इसके बाद भी काफी कंबोज आबादी मीकांग नदी के मुहाने पर बसी है। (रा. मा. संच. 1, पृ. 344)

मुँहामुँह क्रि. वि. -- लबालब, सिरे तक, कटोरा मुँहामुँह भर गया। (काद., अक्‍तू. 1975, पृ. 18)

मुहाल वि. (अवि.) -- असंभव, (क) अच्छे ढंग से जीना तो दूर यहाँ तो जीना ही मुहाल है। (काद. : मई 1975, पृ. 64), (ख) मुख्यमंत्री की पत्‍नी ने बाकी लोगों का जीना मुहाल कर रखा है। (ज. स. : 14 फर. 1984, पृ. 4)

मुहासा सं. (पु.) -- साफा, पग्गड़, राजा के सिर पर बढ़िया, रेशमी, रंगबिरंगी (रंगबिरंगा) मुहासा था, जिस पर जड़ाऊ कलगी और लिपटी हुई मुक्‍तामाल। (फा. दि. चा., वृ. व. ला. व. समग्र, पृ. 647)

मूँछ का बाल होना मुहा. -- अत्यधिक प्रिय होना, कोई कहता इससे जरा सोच-समझकर बात करना यह साहब की मूँच का बाल है। (सर., सित. 1922, भाग-23, खं. 2, सं. 3, पृ. 167)

मूँछों की लड़ाई मुहा. -- प्रतिष्‍ठा की लड़ाई, गंगानगर में मूँछों की लड़ाई चल रही है। (दिन., 15 फर, 1970, पृ. 13)

मूजी सं. (पु.) -- दृष्ट व्यक्ति या जीव, (क) बाज-बाज जगह तो इन मूजियों ने जमीन सफाचट कर दी थी। (सर., 1 मई 1908, पृ. 221), (ख) तुम्हारा कोई कसूर नहीं है, मूजी की आज्ञा का पालन करो। (नव., फर. 1958, पृ. 68)

मूठ मारना मुहा. -- जादू करना, विनाश का मंत्र पढ़ना, शब्द से दुश्मन को मूठ मारी जा सकती है। रा. मा. संच. 2, पृ. 190)

मूँड़ मारना मुहा. -- व्यर्थ का प्रयत्‍न करना, (क) हजार मूड़ मारने पर भी प्रबल सुधारधारा रोकी नहीं जा सकती। (म. का मतः क. शि., 14 जन. 1928, पृ. 75), (ख) मूड़ मारकर वहाँ से भी लौट आए। (सर., 1 जून 1908, पृ. 261)

मूड़-कुटौअल सं. (स्त्री.) -- मार-पीट, भरपेट मूड़ कुटौअल कर-करा लेने के बाद यारों को मेल-मिलाप की मूझी है। (म. का मतः क. शि., 3 जुलाई 1926, पृ. 95)

मूँड़ना क्रि. (सक.) -- ठगना, (क) इसलिए शॉ को सदा सतर्क रहना पड़ता था कि कहीं कोई उन्हें मूँड़ तो नहीं रहा है। (सा. हि., 29 जुलाई 1951, पृ. 4), (ख) कुछ विद्वान् भारतीय संस्कृति के नाम पर भारतीयों को मूँड़ना चाहते हैं। (सर., जन. 1932, सं. 3, पृ. 399) (ग)गाँववाले पलक-पाँवड़े बिछाए हुए हैं, जाकर उन्हीं को चेला मूँड़ो। (म. का मतः क.शि., 19 दिस. 1925, पृ. 195)

मूड़ना क्रि. (सक.), (पु.) -- मँड़ृना, कांग्रेस की प्रतिष्ठा को मूड़ने को वे लोग तुले हुए थे। (प. परि. रेणु, पृ. 95)

मूड़ी हिलाना मुहा. -- सिर हिलाना, सहमति या प्रसन्नता व्यक्त करना, मैनेजर साहब ने मूड़ी हिलाई। (रवि., 3 अग. 1981, पृ. 36)

मूरिस सं. (पु.) -- पूर्वज, पुरखा, वे ऐसे वारिस साबित हुए जिनकी वजह से मूरिसों का नाम चमक उठा।(काद., नव. 1960, पृ. 9)

मूर्तिमंत वि. (अवि.) -- मूर्तिमान, साकार, अपनी कल्पना को मूर्तिमंत होते देख महाकोशल के लोगों में प्रसन्नता की लहर दौड़ गई। (ते द्वा. प्र. मि., प-. 131)

मूल पर कुठारमारना मुहा. -- जड़ खोदना, जड़ से उखाड़ना, बंगालियों की बढ़ती जातीयता के मूल में कुठार मारनेवाला बंग-भंग का विचार कर्ताओं ने ठानकर प्रजा पर डाल ही दिया। (गु. र., खं. 1, पृ. 332)

मूसना क्रि. (सक.) -- ठगना, लूटना, दूसरों का घर मूसकर अपना घर भर रहे हैं। (निबंधः राम.सा., पृ. 98)

मृगछलना सं. (स्त्री.) -- मृगमरीचिका, 1977 में जगी आशाएँ मृग छलनाएँ साबित हो रही हैं। (रा. मा. संच. 1, पृ. 363)

मेटना क्रि. (सक.) -- मिटाना, समाप्त करना, (क) पर घर की लीक कौन मेटे। (रा.निर., समी., फर. 2007, पृ. 15), (ख) विधि का विधान मेटा नहीं जा सकता। (काद. : जुलाई 1973, पृ. 94), (ग) रानी साहिबा ने युद्ध का खर्च उससे लेकर विवाद मेट दिया। (म. प्र. द्वि., खं. 5, पृ. 136)

मेढकों को तोलना मुहा. -- ऐसा काम जो किया ही न जा सके, असंभव कार्य करना, संपादकों का संगठन बनाना और मेढकों को तोलना एक-सा है। (शि. पू. र., खं. 3, पृ. 264)

मेढुकी चली मदारन कहा. -- सामर्थ्य से बाहर का काम करने के लिए प्रवृत्त होना, मेरे पड़ोसी मेरा यह इरादा देखकर यही कहते मेढकी चली मदारन। (सर., दिस. 1913, पृ. 680)

मेमार सं. (पु.) -- राजगीर, कारीगर, मैं एक गिरजाघर का प्रधान मेमार था। (सर., नव. 1925, पृ. 531)

मेरे मुर्गे की डेढ़ टाँग कहा. -- बे सिर-पैर की बात, हठधर्मिता अगर कोई बोलियों को स्वतंत्र भाषा मानने का हठ करे तो यही कहा जा सकत है मेरे मुर्गे की डेढ़ टाँग। (ज. स., 1 अग. 2008, पृ. 7)

मेल का वि. (विका., पद.) -- अनुरूप, उपयुक्त, वह जिस जाति का सिर हो, उसके लिए उसी मेल की पनही ढूँढ़ती हैं। (मा.च.रच., खं. 3, पृ. 152-53)

मेलॉडी सं. (स्त्री.) -- स्वर लहरी, मधुर संगीत, अण्णा ने भी धींगा-धाँगड़ करनेवाले गानों में भी मेलॉडी का पुट रखा। (रवि. 31 जन, 1982, पृ. 39)

मेहर सं. (स्त्री.) -- कृपा दया, आपका मकान खाली है, मेहर हो जाए तो हम किराएदार बन जाएँ। (काद.: फर. 1967, पृ. 44)

मैं आगे तू पीछे कहा. -- नेता में और पिछलग्गू तू, कांग्रेस में मैं आगे तू पीछे की आपाधापी 1930 के बाद ही शुरू हो गई थी। (क. ला. मिश्रः त. प. या., पृ. 87)

मैदान छोड़ना मुहा. -- युद्ध क्षेत्र से हट जाना, पलायन करना, पीछे हट जाना, मुशर्रफ ने मैदान छोड़ दिया। (न. दु., ग्वा. 19-08-2008)

मैला वि. (विका.) -- गंदा, बुरा, चाँद जब बादलों के बाहर निकल आएगा तब उस पर न जाने कितनी मैली नजरें पड़ने लगेंगी। (शत. खि., ह. कृ. प्रे., पृ. 13)

मोखा सं. (पु.) -- झरोखा, छेद, तब भी आकाशवाणी इस समस्त प्रवाह की निकासी का मोखा बनी थी। (दिन., 7 दिस., 1969, पृ. 11)

मोच सं. (स्त्री.) -- कमी, आपके उदाहरणवाले तीन वाक्यों में थोड़ी-थोड़ी मोच है। (म. प्र. द्वि., खं. 1, (बा. मु. गु.) , पृ. 354)

मोटा-झोटा वि. (विका.) -- साधारण, सामान्य स्तर का, आखिर चीन की तारीफ हम इसीलिए तो करते हैं कि मोटा-झोटा सामान बनाकर भी उसने आबादी को खाना और कपड़ा मुहैया करा दिया है। (रा. मा. संच. 1, पृ. 395)

मोद-भरा वि. (विका.) -- प्रसन्नचित्त, अभिव्यक्ति तो मानो कला की समुराल है जहाँ यदि कला न जाए तो वह गोद-भरी या मोद-भरी नहीं हो सकती। (मा.च.रच., खं. 2, पृ. 362)

मोदी सं. (पु.) -- दुकानदार, परचूनिया, एक नमोली उनका (प्रेमचंद का) मोदी था। (शि. पू. र., खं. 4, पृ. 211)

मोरचा सं. (पु.) -- जंग, हिंदुस्तान के मोरचा लगे कबाड़खाने को वे अपनी उत्कृष्टता के तेजाब से गला देंगे। (रा. मा. संच. 1, पृ. 406)

मोल ठहराना मुहा. -- दाम तय करना, मूल्य तय करना, मोल ठहराने में बड़ी हुज्जत होती थी। (गु. र., खं. 1, पृ. 100)

मोल-तोल सं. (पु.) -- मान, महत्त्व, प्रेम सागर ने भागवत रूपी रत्न का मोल-तोल बतलाया। (शि. पू. र., खं. 3, पृ. 362)

मोल सं. (पु.) -- मूल्य, कीमत, पराधीनता में भारत का क्या छिना और उसका मोल क्या था ? पराधीनता उसे खली कब से? (दिन., 25 फर., 68, पृ. 41)

मोहनिद्रा भंग न होना मुहा. -- भ्रम दूर न होना, होश में न आना, दिन पर दिन बीतते जा रहे हैं और हमारी मोहनिद्रा भंग नहीं होती। (स. सा., पृ. 276)

मोहरा लेना मुहा. -- सामना करना, तुम ब्रिटिश सरकार से मोहरा लेना चाहते हो। (सर., जन. 1930, पृ. 26)

मोहरा सं. (पु.) -- मुँह का फाड़, इसका मोहरा बारह इंच चौड़ा है। (सर., दिसं. 1909, पृ. 521)

मोहलत सं. (स्त्री.) -- समय, वक्त, (क) उन्होंने न सिर्फ आयोग की इज्जत रख ली, बल्कि राजीव, बरनाला और भजनलाल को भी मोहलत दे दी। (स.ब.दे.: रा.म. (भाग-दो), पृ. 16) , (ख) मोहलत माँगने की प्रार्थना करता तो वे उसे दे देते। (काद., फर. 1987, पृ. 19)

मौके-बेमौके क्रि. वि. -- बिना सही अवसर का विचार किए, मौके-बेमौके सरदार पटेल की खिसियाहट इस बात को जाहिर भी कर देती है। (विप्लव (आजाद अंक) , सं. यश., पृ. 6)

मौरना क्रि. (अक.) -- मंजरी आना, आम ने मौरकर अपने भीतर की खटाई और कसैलेपन को भी मधुर कर दिया है। (मधु: अग, 1965, पृ. 49)

म्याऊँ का ठौर मुहा. -- समस्या का निदान, हिंदी प्रदेशों से केंद्र हिंदी में ही पत्र-व्यवहार करे और पत्रों का अंग्रेजी अनुवाद न माँगे, असली म्याऊँ का ठौर तो यही है। (हि. पत्र. के गौरव बां. बि. भट., संपा.-ब. (सा. हि.) , 30 मई 1965, पृ. 315)

म्रियमाण वि. (अवि.) -- मरणासन्न, चार बरस हुए मुझे ज्वर आने लगा। उससे मैं म्रियमाण हो गया था। (सर., दिस. 1912, पृ. 645)

यकसाँ वि. (अवि.) -- एक -समान , एक- सा, सभा में किसी व्यक्ति का साहित्य यकसाँ विराजमान है तो वह केवल प्रेमचंद और उसके साथियों का साहित्य है । (मा . च . रच . खं . 4 , पृ . 177)

यक्साँ वि. (अवि.) -- यकसाँ, एक समान डॉक्टरी नुस्खे, बीजगणित और कविता सब यक्साँ पाठ हैं। (स. का वि. डॉ. प्र. श्रो., पृ. 16)

यत्र-तत्र क्रि. वि. -- यहाँ-वहाँ, इधर-उधर, देश में यत्र तत्र बेसिर-पैर की बातों पर दंगे हो रहे हैं। (वि.: भा., जन. 1928, सं. 1, पृ. 136)

यथाशक्य क्रि. वि. -- यथाशक्ति, अधिकारियों को यथाशक्य उनकी माँगें पूरी करनी ही पड़ती हैं। (काद. : जन. 1981, पृ. 147)

यदा-कदा क्रि. वि. -- कभी-कभार, कभी-कभी, कुछ समय से वह यदा-कदा बड़े-बड़े वजीफे देकर दो-चार युवकों को विदेश भी भेजने लगी हैं। (म. प्र. द्वि., खं. 15, पृ. 462)

यमल वि. (अवि.) -- जुड़वाँ, एक माता-पिता से उत्पन्न हुए यमल भाई भी बिलकुल एक से नहीं होते। (सर., जून 1917, पृ. 303)

यशःशेष वि. (अवि.) -- जिसका यश शेष रह गया हो, दिवंगत, वे अपनी जवानी में यश: शेष हुए। (काद., मई 1979, पृ. 17)

याजक सं. (पु.) -- यज्ञ करानेवाला, विवाह का सारा कार्य वहाँ के पुरोहितों और धर्म याजकों द्वारा संपन्न होता है। (सर., जन.-फर. 1916, पृ. 27)

यातयाम वि. (अवि.) -- कालकवलित, (क) समय बीतने से अनालोच्य और यातयाम और लुप्त हो जाएँ तो यह मासिक पत्रों का दोष नहीं है। (गु.र., खं. 1, पृ. 425) , (ख) जिसके लेख दो-दो वर्ष होने पर भी यातयाम नहीं होते। (गु. र., खं. 1, पृ. 425)

यारबाश वि. (अवि.) -- मित्रों में घुला-मिला रहनेवाला, वह बड़ा यारबाश व्यक्ति है। (काद. : सित. 1976, पृ. 16)

युगपत वि. (अवि.) -- एक साथ घटित होनेवाले, इस प्रश्न का उत्तर देते हुए मेरे मन में दुःख और कष्ट युगपत उपस्थित होते हैं। (सर., जन. 1922, पृ. 37)

रक्त से सींचना मुहा. -- पूरी शक्ति लगाना, बलिदान देना, भारतीय वीरों ने विदेशों की भूमि को अपने रक्त से सींचकर उसके राजमुकुट की रक्षा की। (मा. च. रच., खं. 9, पृ. 216)

रक्त-स्नान सं. (पु.) -- रक्त-रंजित करने की क्रिया या भाव, अपने सगे ईसाई भाइयों की भूमि को बार-बार रक्त-स्नान कराया। (मा. च. रच., खं. 9, 133)

रंग उड़ा देना मुहा. -- श्रीहीन कर देना, वायसराय के इस कार्य ने सुधार योजना का रंग ही उड़ा दिया। (स. सा., पु. 84)

रंग चढ़ना मुहा. -- अत्यधिक प्रभाव में आ जाना, अँगरेजी पर अमेरिका का इतनी गाढ़ा रंग चढ़ गया है कि इंग्लैंडवालों का हो-हल्ला व्यर्थ था। (हंस, जन. 1936, पृ. 26)

रंग चढ़ाना मुहा. -- प्रभाव दरशाना, कवि अपनी भावना का रंग चढ़ाने में संकोच नहीं करता। (म. सा. : ओं. श., भाग-1, पृ. 104)

रग पकड़ना मुहा. -- मर्म को जान लना, जब राजनारायण ने इस रग को पकड़ा तो उन्होंने जनता पार्टी के अंजर-पंजर ढीले कर दिए। (रा. मा. संच. 1, पृ. 420)

रंग फेरना मुहा. -- प्रभाव से युक्त करना, रंग-चढ़ाना, सौंदर्य का ऐसा मर्मस्पर्शी रंग फेर दिया है। (म. सा. : ओं. श., भाग-1, पृ. 131

रंग बदलना मुहा. -- व्यवहार बदलना, ये लोग पासा पलटने पर अपना रंग भी बदलने में देर नहीं करेंगे। (रवि 22 मार्च 1980, पृ. 16)

रंग में भंग होना मुहा. -- आनंद में विघ्न पड़ना, परंतु थोड़ी ही देर में रंग में भंग शुरू हो गया, जलयात्रा के दुःख बड़े भीषण रूप में प्रकट होने लगे। (सर., जून 1912, पृ. 315)

रग-पट्ठा सं. (पु.) -- नम और मांसपेशी, नश्तर से चीड़फाड़ करने पर एक-एक रग-पट्ठा उनके सामने आता है। (सर., जून 1912, पृ. 302

रग-रग से क्रि. वि. -- क्रि.वि., पूरी तरह से, नस-नस, प्रत्येक नस, वह अखबारनवीसी के (की) रग-रग से वाकिफ था। (सर., फर. 1923, भाग-24, खं. 1, सं. 2, पृ. 181)

रगड़ सं. (स्त्री.) -- 1. रगड़ने का भाव या क्रिया, घर्षण, (क) राजाओं के अभिमान लड़ते हैं जिनकी रगड़ से आग उत्पन्न होती है। (शत. खि., ह. कृ. प्रे., पृ. 51), (ख) महात्माजी तो ठहरे भुक्तभोगी, दुनिया की रगड़ खाए हुए। (वि. भा., जन. 1928, सं. 1, पृ. 620) , 2. सतत प्रयास, (क) रगड़ बुरी होती है, जिस बात के पीछे पड़े रहो वह एक न एक दिन सिद्ध हो जाती है। (म. प्र. द्वि., खं. 5, पृ. 165), (ख) इस नाकामयाबी और नाउम्मीदी पर भी सर विलियम जोन्स ने रगड़ नहीं छोड़ी। (सर., 1. जून 1908, पृ. 261)

रगड़ा सं. (पु.) -- सं. (पु.) , बराबर चलनेवाला झगड़ा, न खत्म होनेवाला झगड़ा, भक्त और भगवान् का झगड़ा है। यह झगड़ा नहीं, रगड़ा है। (शि. पू. र., खं. 4, पृ. 534) , (ख) वर्ष का प्रारंभ होते ही धूम मचती है, कांग्रेस सदस्य बनाओ दो-तीन महीने यह रगड़ा चलता है। (न. ग. र., खं. 4, पृ. 139)

रगड़ाई सं. (स्त्री.) -- अत्यधिक परिश्रम करवाने की क्रिया या भाव, घिसाई, पिटाई, (क) रगड़ाई हद तक पहुँच चुकी थी और उसका रूप अमानवीय और घातक हो चुका था। (दि., 20., 20 जुलाई, 1975, पृ. 10), (ख) दारासिंह किंग-कांग की कुश्ती या मुक्केबाजी की किसी प्रतियोगिता में तो अकसर रेफरी की रगड़ाई हो जाती है। (दिन., 21 जन. 1966, पृ. 32)

रँगदार सं. (पु.) -- रोब-दाब दिखानेवाला, गुंडा, और जगह के दादा और गुरु के वजन पर यहाँ रँगदार ही होते हैं। (दिन, 25 फर. 1966)

रँगा सियार मुहा. -- छद्मवेशी, (क) हम यह नि : संकोच भाव से कह सकते हैं कि उनके दल में अधिकांश रँगे सियार ही हैं। (मत., म.प्र.से.वर्ष 5, सं. 7, पृ. 3), (ख) इन रँगे सियारों के मारे वास्तव में हिंदी साहित्य आगे नहीं बढ़ पाता। (कु. ख. : दे. द. शु., पृ. 122)

रंगामेजी सं. (स्त्री.) -- रंगों का मिश्रण, लीपापोती, (क) इन दो लेखक महाशयों ने इंग्लैंड की स्वार्थपरता पर रंगामेजी करने की कोशिश की है। (न.ग.र., खं. 2, पृ. 194) , (ख) जैसे कागज के कड़ों पर वाटर कलर से रंगामेजी की हो। (निराला : डॉ. रा.वि.श., पृ. 84)

रगेदना क्रि. (सक.) -- खदेड़ना, दौड़ाना, (क) मैं आगे से रगेदता हूँ, तुम पीछे से रगेदो, दोहरी मार पड़ेगी तो भाग खड़ा होगा। (प्रे.स.क. : सर. प्रेस, पृ. 45) , (ख) समझू सेठ ने नया बैल पाया तो लगे रगेदने। सर., जन 1916, पृ. 290), (ग) एक शिकारी संपादक ने स्वर्गीय रामरत्न व स्वर्गीय रामजी लाल शर्मा को बुरी तरह से रगेद डाला। (सर., मार्च 1941, पृ. 210)

रचना-पचना क्रि. (सक.) -- घुलमिल जाना, एक में मिल जाना, यदि चुनाव साल भर बाद होते, तो जनतापार्टी के घटक समय के आमाशय में गुँथकर अधिक एकाकार हो जाते और रचपच जाते। (रा. मा. संच. 1, पृ. 307)

रचना, क्रि. (सक.) -- बनाना, निर्माण करना, मार्च तक ये लोग कोई-न-कोई कानून रच ही डालेंगे। (ग. शं. वि. रच., खं. 2, पृ. 28)

रंजीदा वि. (अवि.) -- दुःखी, अप्रसन्न, वह अपनी प्रियतमा से इनकार करके उसे रंजीदा भी न करना चाहता था। (सर., जन. 1918, पृ. 23)

रट लगाना मुहा. -- बार-बार एक ही बात को कहते रहना, तटस्थता की रट लगाना मूर्खता है। (दिन., 14 अक्त., 66, पृ. 23)

रट्टू वि. (अवि.) -- रटनेवाला, रटाई करनेवाला, संस्कृत के रट्टू पंडित जिस ओर स्वप्न में भी नहीं झुकते उन्हीं सब्जबागों में अप्पाशास्त्री उन्हें खेंच ले जाते। (सर., मई 1915, पृ. 296)

रट्टूपन सं. (पु.) -- रटने की क्रिया, भाव या आदत, कोई छात्र आंदोलन ऐसा नहीं हुआ जिसमें कहा गया हो कि परीक्षा का रट्टूपन बंद किया जाए। (रा. मा. संच. 2, पृ. 31)

रँडापा सं. (पु.) -- विधवापन, वैधव्य, उनका जब से स्वर्गवास हुआ है, कविता बेचारी का लोग रँडापा बिगाड़े दे रहे हैं। (मा. च. रच., खं. 3, पृ. 140)

रण लेना मुहा. -- युद्ध करना, मुकाबला करना, हम इस घमंडी विजेता से रण लेकर इसका मान-मर्दन करें। (सर., जून 1932, सं. 6, पृ. 684)

रणचंडी का तांडव मुहा. -- घोर उत्पात, इतने वर्षों से निरंतर होता रहनेवाला रणचंडी का तांडव अब समाप्त हो गया है। (न. ग. र., खं. 2, पृ. 281)

रतौंध, रतौंधी सं. (स्त्री.) -- एक प्रकार का आँखों का रोग जिसमें रात में दिखाई नहीं देता, दिखाई न देने की अवस्था या भाव, धापन, इस तरह रतौंध से पीड़ित गुजरात और केंद्र की सरकारों ने विधानसभा भंग करके चुनाव करवाने की मजबूरी आयोग के समक्ष रखी थी। (हि. ध., प्र. जो., पृ. 639)

रत्ती-भर वि. (अवि.) -- जरा भी, थोड़ा सा, कुछ भी, (क) इस मुद्दे पर रत्ती भर भी असहमति नहीं है। (रा.मा.सं. 2, पृ. 325) , (ख) चारा कांड जैसे मामलों में लिपटे लालू प्रसाद यादव से जयललिता रत्ती भर भी शुद्ध नहीं है। (हि. ध., प्र. जो., पृ. 306), (ग) जात पाँत तथा छुआछूत का रत्ती भर विचार नहीं किया गया। (सर., भाग 28, खं. 1, सं. 1, जन. 1927, पृ. 158)

रद्दा चढ़ना मुहा. -- तह लगना, महँगाई की चट्टान पर रद्दे कब तक चढ़ते जाएँगे। (दिन., 6 अक्तू. 1968, पृ. 16)

रद्दा जमाना मुहा. -- परिपुष्ट करना, सुदृढ़ करना, स्वामीजी एकता का रद्दा जमा गए हैं और आप उस पर कुदाल चला रहे हैं। (शि.पू.र., खं. 3, पृ. 306)

रद्दी की टोकरी में डालना या फेंकना मुहा. -- मुहा., व्यर्थ समझकर फेंक देना, (क) ऐसे कलाकार जो कला के पिछले नियमों और मूल्यों को रद्दी की टोकरी में फेंक चुके हैं, उन्हें भी कला-वीथिकाएँ नसीब होती हैं। (दिन., 23 दिस., 66, पृ. 45) , (ख) भारत सरकार बोई के किसी भी परामर्श को रद्दी की टोकरी में डाल सकती है। (स. सा., पु. 151)

रद्दी के भाव बेचना मुहा. -- कुछ भी महत्त्व न देना या न समझना, हम भी समालोचक को रद्दी के भाव बेचकर बैठ जाएँ, टंटा मिटै। (गु. र., खं. 1, पृ. 414)

रद्दोबदल सं. (पु.) -- परिवर्तन, फेर-फार, वैसे हर छठे छमासे मंत्रिपरिषद् में रद्दोबदल की बात चलती है। (दिन., 5 मई 1968, पृ. 11)

रपट पड़े तो हर गंगा कहा. -- अयाचित प्राप्ति या लाभ होना, रपट पड़े तो हर गंगा से मुक्ति नहीं मिलती। (नि.वा. : श्रीना. च., पृ. 785)

रफा होना या हो जाना मुहा. -- मुहा, दूर हो जाना, (क) कर्मचारियों की तनख्वाह बढ़ाने की शिकायतें रफा हो गई हैं। (सं. परा. : ल.शं.व्या., पृ. 332), (ख) असली धन तो वह है जिसके इस्तेमाल से आदमी की जरूरत रफा हो। (कर्म., 5 जुलाई 1958, पृ. 1)

रफा-दफा करना मुहा. -- मुहा., खत्म करना, सलटाना, निपटाना, जापान से अपने पुराने झगड़े रफा-दफा करके उन्होंने अपने को प्रगतिशील सिद्ध किया। (दिन., 14 मई, 67, पृ. 37)

रफू चक्कर होना या हो जाना मुहा. -- एकाएक भाग खड़े होना, (क) कोई मोटर से कुचल जाए तो मोटरवाला रफू-चक्कर हो जाएगा। (रा.द., श्रीला.शु., पृ. 366) , (ख) उसी का फायदा उठाकर टोली के कुछ सदस्य कई जेबें साफ कर रफू-चक्कर हो जाते हैं। (दिन., 23 अप्रैल, 67, पृ. 46)

रफ्तनी सं. (स्त्री.) -- जावक, निर्यात (क) इससे जूट, चाय और तिलहन की रफ्तनी बढ़ जाएगी और संभव है, इससे भाव कुछ तेज हो जाय। (सं. परा. : ल.शं.व्या., पृ. 367) , (ख) सरकार धीरे-धीरे इसकी रफ्तनी बंद करने की नीति अख्तियार कर चुकी है। (सं. परा. : ल.शं.व्या., पृ. 332)

रफ्ता-रफ्ता क्रि. वि. -- धीरे-धीरे, शनै:-शनै:, यह फासला रफ्ता-रफ्ता खुद-ब-खूद खत्म हो जाएगा। (दिन., 03 फर., 67, पृ. 44)

रमक सं. (स्त्री.) -- सनक, झोंक, लहर, पता नहीं वह इन दिनों किस रमक में रहता है। (काद., सित. 1977, पृ. 10)

रमखुदैया सं. (स्त्री.) -- असमंजस की स्थिति, पश्चिमी मित्र राष्ट्र अभी तक रमखुदैया में पड़े हुए हैं। किं कर्म किं अकर्म इति। (न. ग. र., खं. 2, पृ. 271)

रवाँ वि. (अवि.) -- अभ्यस्त, मँजा हुआ, यह पैंरता आपको खूब रवाँ हे। (क. ला. मिश्र: त. प. या., पृ. 104)

रवादार वि. (अवि.) -- उदारचेता, शुभचिंतक, समझदार लोग उसके पास खड़े तक होने के खादार न होते थे। (ग. शं. वि. रच., खं. 2, पृ. 408)

रवायत सं. (स्त्री.) -- कहावत, कहानी, प्रथा, जब (संसद् में) क्षेत्रीय भाषाओं में बोलने की रवायत चल पड़ी तो इन भाषाओं के न समझनेवालों ने हल्ला किया। (दिन., 14 सित., 1969, पृ. 29)

रविश सं. (स्त्री.) -- पगडंडी, पतला रास्ता, पटरी, निकलते हुए जलबिंदु और जलधाराएँ आपस में झगड़ती, खेलती, भिड़ती टकराती हुई नहरों में आ गिरती हैं और पास की रविशों पर टहलते हुए दर्शकों को भिगो देती हैं। (सर., अग. 1937, पृ. 109)

रसगुल्ले छीलकर खाना मुहा. -- नाज-नखरा दिखाना, रसगुल्ले छीलकर खाते हैं। मतलब बड़े भोगींद्र हैं। (रवि., 12 अप्रैल 1981, पृ. 38)

रसना1 क्रि. (अक.) -- फलदायी होना, लेखक यदि धोखा देंगे तो साहित्य से कमाया पैसा कभी न रसेगा। (शि. पू. र., खं. 4, पृ. 572)

रसना2 सं. (स्त्री.) -- जीभ, स्वादपन जैसे अलग रसना पर अटका रहता है। (अंतरा : अज्ञेय, पृ. 71)

रसाई सं. (स्त्री.) -- पहुँच, इस मामले में मैं तुम्हारी कुछ भी मदद नहीं कर सकता, मेरी वहाँ तक रसाई नहीं है। (काद., अक्तू. 1976, पृ. 18)

रसीद करना या कर देना मुहा. -- भेज देना, पहुँचा देना, खुदा न ख्वास्ता आज कोई शाहजादा या नवाबजादा अगर ऐसी बेअदबी करता तो उसे मैं जहन्नुम रसीद कर देती। सर., जून 1909, पृ. 258)

रसूख सं. (पु.) -- पहुँच, मेलजोल, उसका रसूख बड़े-बड़े लोगों से है। (काद. : मार्च 1977, पृ. 13)

रस्सा तुड़ाकर भागना मुहा. -- बंधन से निकल भागना, बंधन विहीन हो जाना, नोटों के प्रसार के बाद अर्थनीति के सारे घोड़े रस्सा तुड़ाकर भाग रहे हैं। (रा. मा. संच. 2, पृ. 160)

रस्साकसी सं. (स्त्री.) -- खींचतान, तीनों के बीच एक ऐसी रस्साकसी चलती रही। काद., मई 1994, पृ. 21)

रस्सी का साँप बनाना मुहा. -- व्यर्थ का काम करना, निरर्थक काम करना, व्यर्थ ही रुपए 3 लाख पर पानी फेरकर रस्सी का साँप बनाया जा रहा है। (स. सा., पृ. 139)

रहन सं. (पु.) -- रेहन, गिरवी, हम कभी चूँ नहीं करते मानो स्वयं को राजनीतिज्ञों के यहाँ रहन रख दिया हो। (किल., सं. म. श्री., पृ. 29)

रहा-सहा वि. (विका.) -- बचृखुचा, शेष, उससे कांग्रेसियों का रहा-सहा उत्साह फीका पड़ गया। (दिन. 2 जुलाई 67, पृ. 18)

राई-रत्ती करना मुहा. -- अच्छी तरह निपटाना, किंतु उनके पास प्रत्येक काम को राई-रत्ती करने के लिए न मनुष्य हैं न धन है। (चं. श. गु. र., खं. 2, 338)

राई-रत्ती का मोल मुहा. -- छोटी-छोटी बातों तक का विचार, तनख्वाहें जिस ढंग से राई-रत्ती का मोल करके पिछले वर्षों में बढ़ी हैं..., (दिन., 20 अग. 1972, पृ. 40)

राई-रत्ती पड़ताल करना मुहा. -- सूक्ष्मातिसूक्ष्म पड़ताल करना, हत्याकांड के सबूतों की राई-रत्ती पड़ताल करनेवाले एक-दो व्यक्ति अवश्य मिलेंगे। (धर्म., 1 जन. 1967, पृ. 29)

राग अलापना मुहा. -- एक ही बात कहे जाना, (क) उन्हें भारत सरकार की ताल के साथ राग अलापने के लिए बाध्य होना पड़ रहा है। (स.सा., पृ. 280) , (ख) व्यवस्थापिका सभा में किसानों के हित का राग अलापा गया है। (स. सा., पृ.61)

राज सं. (पु.) -- मकान बनानेवाला कारीगर, राज कन्नी लेकर ईंटें छाँटता है और स्त्री चूना-गारा तसले में लाती है। (मधु: अग. 1965, पृ. 252)

राजनय सं. (पु.) -- राज्य के कार्यों का नीति-निर्धारण, राजनीति, जिसे आजकल की छद्म, शिष्ट भाषा में राजनय कहा जाता है, पर जो है आज भी वही, जो कुशा की जड़ों में मट्ठा डालनेवाले चाणक्य के जमाने में थी यानी कूटनीति..., (दिन., 18 फर. 1966, पृ. 10)

राजा करे सो न्याव, पाँसा पड़े सो दाँव, कहा. -- निर्णय अथवा परिणाम पर वश न होना, एक कहावत है कि राजा करे सो न्याव, पाँसा पड़े सो दाँव। (मधुकर, 1 अक्तू. 1940, पृ. 3)

राज्य-छलना, सं. (स्त्री.) -- राज्य हड़पने की वृत्ति, ईसाइयों की यह राज्य-छलना अन्य सम्राटों के राज्य में भी कायम रही। (वि. भा., जन. 1928, सं. 1, पृ. 151)

रात-बिरात क्रि. वि. -- देर रात, लोग शहर के बाहरी हिस्सों से चौक तक रात-बिरात बीबी-बच्चों के साथ नहीं जाते। (दिन., 8 जून 1975, पृ. 42)

रातपाली सं. (स्त्री.) -- मजदूरों के काम करने की रात भर की समयावधि,... हर कांग्रेस अध्यक्ष को यह तय करना होगा कि वह अपनी पार्टी की रातपाली का अध्यक्ष है या दिनपाली का? (रा. मा. संच. 1, पृ. 254)

राँधना क्रि. (सक.) -- पकाना, (क) बटोही किसी पेड़ तले खिचड़ी राँधने के बाद मिट्टी की हँड़िया फेंककर चला जाता है। (नव., मार्च 1953, पृ. 72) , (ख) शाम को एक समय स्वयं चावल राँधकर खा लेती। (काद., फर. 1988, पृ. 75)

रानी सं. (स्त्री.) -- परेशानी, शिशिर बाबू को इसमें बहुत हैरानी उठानी पड़ी। (म. प्र. द्वि., खं. 5, पृ. 308)

राम नाम सत्य मुहा. -- मृत्यु धीरे-धीरे रामनाम सत्य की ओर सरकते देख कुशल वैधों ने यह पता तो लगा लिया कि भारत क्षय रोग से व्यथित है। (सर., मार्च 1913, पृ. 138)

राम-कहानी सं. (स्त्री.) -- आप-बीती, उनकी राम-कहानी सुनते-सुनते जी ऊब गया। (म. प्र. द्वि. रच., खं. 2, पृ. 158)

राम-भरोसे क्रि. वि. -- भगवान् के आसरे, लगता है निर्देशिका ने उन्हें राम-भरोसे ही छोड़ दिया हो। (दिन., 25 नव., 06, पृ. 43)

रामदंगल सं. (पु.) -- उठापटक, प्रांतीय कैनवस पर केवल निजी उखाड़-पछाड़ और नेताओं के रामदंगल होते हैं? (रा. मा. संच. 1, पृ. 210)

रामनामी सं. (स्त्री.) -- राम-राम लिखी चादर, पूरब को सभ्य बनाने की रामनामी औढ़कर चीन, फारस और तुर्की के अंगों पर झपट्टा मारने के लिए उतावला नजर आता है। (रवि., 19 दिस. 1982, पृ. 22)

राममँड़ैया सं. (स्त्री.) -- कुटिया, जहाँ आज सरजू भैया की यह राममँड़ैया है। (बे.ग्रं., प्रथम खं., पृ. 24)

रायज वि. (अवि.) -- प्रचलित, (क) इनको देशी शब्दों के मुकाबिले में रायज करना चाहते हैं। (सर., जन.-जून 1939, सं. 5, पृ. 489) , (ख) आपकी राय में फारसी के जो शब्द रायज हो गए हैं उनको हिंदुस्तानी, हिंदी या उर्दू से निकालने की कोशिश करना अज्ञानता का सूचक है। (सर., मई 1918, पृ. 271)

रायजनी सं. (स्त्री.) -- जनमत, सरकार ने जो रायजनी की है वह आक्षेपकर्ताओं के सुनने लायक है। (सर., सं. 3, मार्च 1927, पृ. 377)

रायदेहंदा सं. (पु.) -- राय या सम्मति देनेवाला, मतदाना एजेंटों के द्वारा रायदेहंदों की खुशामद की जाती है। (सर., जन. 1926, पृ. 139)

रार ठानना मुहा. -- झगड़ा, खड़ा करना, इसका यह मतलब नहीं कि अब हम चीन से जान-बूझकर रार ठानें या सीमा पर झड़पें शुरू कर दें, (रा. मा. सं. 1, पृ. 349)

रार सं. (स्त्री.) -- झगड़ा, तकरार, (क) यदि प्रधानमंत्री रार मोल ले लेते तो उनका कदम असामयिक और जल्दबाज कहा जाता। (स.ब.दे.: रा.मा. (भाग-दो) , पृ. 157) , (ख) यदि हम इसी तरह आपस में रार करते रहे तो हम राष्ट्र की लुटिया डुबा देंगे। (कर्म., 10 जून, 1950, पृ. 3) , (ग) पालिर्यामेंट और राजा में यह रार ऐसी बढ़ी कि परस्पर युद्ध हुआ। (सर., 1 फर. 1908, पृ. 79)

रावला सं. (पु.) -- महल या महल का कक्ष, कुछ किसानों को मनमाने ढंग से रावले में बंद कर लिया। (मधुकर, 1 अक्तू. 1940, पृ. 201)

राहदारी सं. (स्त्री.) -- महसूल, चुंगी, टैक्स, लौटते समय उसने बादशाह से राहदारी का परवाना माँगा। (सर., अग. 1930, पृ. 154)

राहोरस्म सं. (पु.) -- मेल-जोल, पारस्परिक-व्यवहार, मोतीसिंह ने कुछ लोगों से राहोरस्म पैदा कर लिया। (म. प्र. द्वि., खं. 9, पृ. 148)

रिआया सं. (स्त्री.) -- प्रजा, जमींदार का कर्तव्य यह नहीं कि वह रिआया के कठिन परिश्रम से उपार्जित धन को नाच रंग अथवा ऐशोआराम में फेंके। (सर., सित. 1915, पृ. 178)

रिझाना-मनाना क्रि. (सक.) -- क्रि. (सक.) , प्रसन्न तथा संतुष्ट करना, वर्तमान परिस्थितियों में लोगों को रिझा-मनाकर साथ रखना उचित है। (ब. दा. च. चु. प., संपा. ना. द., पृ. 112)

रिरियाता वि. (विका.) -- वि. (विका.) , चिरौरी करता हुआ, आदर्शवादियों के साथ ढुलमुल रुआँसापन होता है और रिरियाती समझौतापरस्ती होती है। (स. ब. दे. : रा. मा. (भाग-दो) , पृ. 157)

रिरियाना क्रि. (अक.) -- सुबुकना, रीं-रीं करना, घिघियाना, (क) सीता की रसोई तोड़ दी गई तो इसमें रिरियाने की क्या जरूरत है। (हि. ध., प्र. जो., पृ. 122) , (ख) वह सभी की ओर देखकर रिरिया रहा था। (काद. : जन. 1989, पृ. 146)

रिश्ता खट्टा होना मुहा. -- संध में खटास आना, क्रांतिवाद के इस दौर में रूस और क्यूबा के रिश्ते बड़े खट्टे रहे। (रा. मा. संच. 1, पृ. 39)

रिसन सं. (स्त्री.) -- रिसने की क्रिया या भाव, इस कारण पानी रिसकर आसपास के खेतों में जमा हो जाता है, तकनीकी भाषा में इसे रिसन कहते हैं। (दिन., 4 से 10 दिसंबर 1977, पृ. 11)

रिसाना क्रि. (अक.) -- क्रुद्ध होना, (क) इसी समय किसी ने सोना बेटी के रिसाने का हाल बतलाया। (मधुकर, नवं. 1944, पृ. 280) , (ख) बीच-बीच में श्रीमती तिवाड़ीजी जरा रिसाकर कहा करती थी कुछ भी उद्योग नहीं होता। (सर. फर. 1921, पृ. 120)

रीझना क्रि. (अक.) -- मोहित होना, मुग्ध होना, लेकिन चतुर्वेदीजी तो लल्लो-चप्पो से रीझ जानेवाले ठहरे। (सर., जन. 1933, सं. 1, पृ. 693)

रीत-रसम सं. (स्त्री.) -- रीति-रिवाज, इनकी रीति-रसमें भी अनोखी-अनोखी हैं। (सर., 1 जून 1908, पृ. 257)

रीतना क्रि. (अक.) -- खाली होना, समाप्त होना, (क) पुरानी लाइन पर जोर देनेवाले लोग रीति नहीं गए हैं। (ज.स. : 8 दिस. 1983, पृ. 4), (ख) ... मंत्री और अधिक यात्रा करें और इस प्रकार और हमारी विदेशी मुद्रा की रीतती थैली में और छेद करें। (दिन., 16 जुलाई 1965, पृ. 12)

रीता वि. (विका.) -- खाली, रिक्त. (क) हिंदी नाटक का भंडार वैसे भी रीता सा है। (हंस, जन. 1938, पृ. 337) , (ख) राज रीता निःसत्त्व है, नीति-निर्बंध है। (दिन., 03 मार्च, 68, पृ. 41) , (ग) हमें रीते हाथों और सचाई के साथ ऐसी शक्ति से सामना करना है जो शास्त्रों से सज्जित है। (म. का मतः क. शि., 31 दिस. 1927, पृ. 247)

रीतापन सं. (पु.) -- खालीपन, भीतर एक रीतापन महसूस होने लगा। (मधु : अग. 1965, पृ. 10)

रींधना क्रि. (सक.) -- पकाना, इन देशों में मांस हमारे देश की भाँति काटकर नहीं रींधा जाता। (सर., दिस. 1919, पृ. 325-26)

रुक्का सं. (पु.) -- पुर्जा, करारनामा, ब्याज की रकम मूल में जोड़कर नया रुक्का उसे लिख देना चाहिए। (मधु : अग. 1965, पृ. 20)

रुंड-मुंड न जुड़ना मुहा. -- ताल-मेल न बैठना, अनेक ऐसे वाक्य भी हैं जिनके रुंड-मुंड जुड़ नहीं पाए हैं। (दिन., 18 जून, 67, पृ. 43)

रुंड-मुंड सं. (पु.) -- रुंड-मुंड, धड़ और सिर, इस देश के रुंड और मुंड के बीच यों ही 1100 मील का भीषण फासला था। (रा. मा. संच. 1, पृ. 149)

रुपए की माँ पहाड़ पर चढ़ती है कहा. -- धन के सहारे सब कार्य संभव हैं, कहावत है कि रुपए की माँ पहाड़ पर चढ़ती है। सर., अग. 1930, पृ. 144)

रुपट्टी सं. (स्त्री.) -- रुपल्ली, रुपया (उपेक्षासूचक) , परंतु 30 रुपट्टी पैदा करनेवाला भारतवासी अपना पेट कहाँ तक काट सकता है ? (ग. शं. वि. रच्., खं. 2, पृ. 247)

रुवक्कड़ वि. (अवि.) -- रोने में कुशल या सिद्धहस्त, वैसे ही रुवक्कड़ कुमारियाँ और कामनियाँ घड़ों आँसू बेचा करेंगी। (म.. प्र. द्वि., खं. 15, पृ. 457)

रू सं. (स्त्री.) -- कारण, वजह, (क) कानून की रू से पंचायतों को दीवानी और फौजदारी दोनों मदों के कुछ अधिकार प्राप्त हैं। (म. प्र. द्वि., खं. 9, पृ. 102), (ख) इसके बाद दुकान खोलते ही इस दस्तावेज की रू से मैं तुम्हारे पिता की लिखी पुस्तकें छापना शुरू कर दूँगा। (सर., अप्रैल 1921, पृ. 220)

रूखड़ वि. (अवि.) -- रूखा (उपेक्षासूचक), वह आदमी रूखड़ आवाज में बोला-आँसू बहा रहे हो। (काद., नव. 1980, पृ. 74)

रूखड़ा वि. (विका.) -- रूखा (उपेक्षासूचक) , (क) उम्र बढ़ने के साथ तुम्हारा शील रूखड़ा होता जाता है। (हंस, जन. 1936, पृ. 81) , (ख) बाहर की बहुत रूखड़ी दुनिया में लानेवाला यह उपन्यास हमें हमारी चेतना को झिंझोड़ता है। (रवि. 12 अप्रैल 1980, पृ. 38)

रूखड़ी सं. (स्त्री.) -- जड़ी-बूटी, वैद्य और हकीम तो जंगल की रूखड़ियों से काम चलानेवाले ठहरे। (ग. शं. वि. रच्., खं. 2, पृ. 220)

रूखा वि. (विका.) -- बिना चुपड़ा हुआ, घी ढरक गया, हमें रूखी ही भाती है। (भ. नि., पृ. 107)

रूखास सं. (स्त्री.) -- अतृप्त इच्छा, क्योंकि इधर-उधर से पत्र को भरकर पुरानी रूखास को पूरा करने का अच्छा मौका मिलेगा। (चं. श. गु. र., खं. 2, 320)

रूबरू क्रि. वि. -- सामने, सम्मुख, एक ताजा-ताजा भरा बंबइया फिल्मी शायर उनके रूबरू आया। (काद., अक्तू. 1989, पृ. 54)

रूहड़ सं. (स्त्री.) -- सूखी हड्डी, कुछ न सही तो रूहड़ ही नोचता। (कम, देवी की माँ)

रेख-उठान उम्र सं. (स्त्री., पदबंध) -- रेख फूटने की उम्र, बदन कैसा गठीला है और रेख उठान उम्र।(का, कार. निराला, पृ. 7-8)

रेतना क्रि. (सक.) -- जिबह करना, समाप्त करने का प्रयास करना, काटना, (क) समाचार-पत्रों का विकास विदेशीसरकार के कानून के अस्त्रों द्वारा बार-बार रेता गया है। (वि. भा., जन. 1928, सं. 1, पृ. 543) , (ख) ये लोग हितैषियों की आड़ ही में हमारी जड़ सदा रेतेंगे। (ग. शं. वि. रच., खं. 2, 179)

रेरें सं. (स्त्री.) -- रिरियाने की क्रिया, भाव या शब्द, तब तक आकाशवाणी बहुत अधकचरी, भाषाई घुटन और रेरें से ऊपर नहीं उठ सकता। (दिन., 14 सित., 1969, पृ. 26)

रेलना क्रि. (सक.) -- आगे बढ़ाना, धकेलना, ठेलना, एक स्त्री ने कीचड़ का लड्डू फस्स से उसकी छाती पर रेल दिया। (फा. दि. चा., वृ. ला. व. समग्र (मृगनयनी) , पृ. 559)

रेलपेल सं. (स्त्री.) -- 1. एक-दूसरे को ठेलते हुए आगे बढ़ने की क्रिया या भाव, भीड़-भाड़, (क) दूसरे युवक ने तुरंत अपना मोर्चा जमा लिया और नवांगतुकों के रेल-पेल का दमन करने लगा। (सर., अक्तू. 1910, पृ. 10),(ख) बस आते ही यात्रियों की जो रेलपेल होती है उसका कोई अंत नहीं (दिन . , 5 सित . 1971 , पृ . 10). (ग) एक-डेढ़ सप्ताह तक बेतरह रेलपेल रहेगी। (म. का मतः क. शि., 22 दिस. 1923, पृ. 131) , 2. भरमार, ठूँस-ठाँस, भीड़भाड़, (क) इतिहास लेखन में अलंकारों की रेलपेल मचा देने की जरूरत नहीं, सबको आसानी से समझ में आना चाहिए। (मा. च. रच., खं. 2, पृ. 57), (ख) हमारे बच्चों और हमारे नवयुवकों की शिक्षा की इस रेलमपेल में भरकुस होना पड़ रहा है। (ग. शं. वि. रच., खं. 2, पृ. 307)

रेला सं. (पु.) -- भीड़ का तेजी से होनेवाला बढ़ाव, आकाशवाणी पर राजनैतिक पक्षपात का एक जबरदस्त रेला लोकसभा में हरहराता हुआ घुसा और निकलकर अखबारों में छप गया। (दिन., 14 सित., 1969, पृ. 26)

रेवड़ सं. (पु.) -- पशुओं का झुंड, गोल, (क) भटकी भेड़ों को झटपट अपने रेवड़ में मिला लेनेवाले किसी गड़िरए ने कभी उनकी तरफ ताकने की भी हिमाकत कहीं की। (स्मृ.वा. : जा. व. शा., पृ. 36) , (ख) वे सदा अपनी पार्टी को रेवड़ों की तर हाँकती रह सकतीं हैं। (रविं. 14 मार्च, 1982, पृ. 11)

रेवड़ा सं. (पु.) -- रेवड़, झुंड, समूह, उसकी आमदनी का जरिया भेड़ों और बकरियों के वे रेवड़े थे, जिन्हें उसके नौकर आसपास की पहाड़ियों पर चराते फिरते थे। (नव., मई 1952, पृ. 83)

रेवड़ियाँ बाँटना मुहा. -- मुफ़्त में या उदारतापूर्वक देना, उन कृतघ्नों को रेवड़ियाँ नहीं बाँटना चाहतीं, जो गाढ़े समय में छोड़कर चले गए थे। (रा. मा. संच. 1, पृ. 465)

रेवड़ी बाँटना मुहा. -- पुरस्कृत करना, सबको लाभ पहुँचाना, सबको लाभन्वित करना, जो सरकार प्रजातंत्र के अंतर्गत चलती है, वह जनता को रेवड़ी बाँटे बिना टिक नहीं सकती। (रा. मा. संच. 2, पृ. 16)

रेशमी घोंसला मुहा. -- भव्य भवन, रेशमी घोंसले बनाने में दिलचस्पी रखती है। (रा. मा. संच. 1, पृ. 259)

रेशमी मोजे पहनकर लड़ना मुहा. -- लड़ने के बजाय रईसी दिखाना, रेशमी मोजे पहनकर लड़नेवाले और प्रांत उनका उपहास न करें, इसका उन्हें ध्यान रखना चाहिए। (गु. र., खं. 1, पृ. 336)

रेह सं. (स्त्री.) -- हल से बननेवाली लकीर, कूड़, उसका हल खेत के उस किनारे से इस किनारे की मेंड़ तक रेह फाड़ता हुआ इधर आ जाएगा। (दिन., 23 दिस., 66, पृ. 29)

रेहन सं. (पु.) -- गिरवी, (क) दो मकान हैं, बाबा (पिता) ने रेहन रखे थे। (निरु. : निराला, पृ. 22) , (ख) स्वर्गीय पटेल ही एक ऐसे व्यक्ति हुए जिन्होंने अध्यक्ष के पद को किसी के इशारों पर रेहन नहीं रखा। (मा. च. रच., खं. 4, पृ. 67), (ग) धनिक के घर रेहन रखी जाती हुई कलम ने कभी कोई ध्यान नहीं दिया। (मा. च. रच., खं. 2, पृ. 288)

रैन-बसेरा सं. (पु.) -- वह स्थान जहाँ यात्री रात को ठहरते हैं, निवास-स्थान, देहरादून आकर मेरे रैन-बसेरे में ठहरें। (नव., मार्च 1959, पृ. 24)

रैयत सं. (स्त्री.) -- प्रजा, (क) जमींदार से वह एक रैयत की हैसियत से नहीं पेश आ सकते। (का. कार. : निराला, पृ. 13), (ख) रैयतों पर जिनमें से अधिकांश पिछड़ी जाति के थे, गंभीर प्रभाव पड़ा था। (रवि., 11 जन. 1981, पृ. 30)

रो-झींककर क्रि. वि. -- हारकर, दुःखी होकर, इसके सिवा कोई उपाय नहीं रह गया है कि रो-झींककर विदेशी सहायता की ही टेक ली जाए। (दिन., 18 फर. 1966, पृ. 11)

रोअंटापन सं. (पु.) -- रोने-धोने की आदत , देश का क्या होगा, यह पूछना रोअंटापन माना जाने लगा है। (दिन., 23 जुलाई 1972, पृ. 17)

रोआँ कलपाना मुहा. -- रोम-रोम से दुःखी करना, बहुत अधिक सताना, इतने लोगों का रोवाँ कलपाकर लसा करने में कौन बड़ाई है। गाय मारकर जते का दान करना इसी को कहते हैं। (सर., जून 1928, पृ. 635)

रोआँ सं. (पु.) -- रोयाँ, रोम, पता नहीं डग-डग रोटी, पग-पग नीर कितनी पुरानी कहावत है? अब तो यह रोआँ उतरी, दीमक लगी खाल भर रह गई है, जिसे कोई मरिगल्ला कुत्ता क्या, प्यासा कौआ भी ओढ़ना नहीं चाहेगा। (दिन., 13 मई 1966, पृ. 24)

रोऊँ-रोऊँ होना मुहा. -- रुँआसा होना, कुछ देर उनकी जीभ न हिली, वे रोऊँ-रोऊँ हो रहे थे। (क. ला. मिश्र : त. प. या., पृ. 147)

रोकड़ा वि. (अवि.) -- नकद पैसा दिलानेवाला, मुख्य फसलें गेहूँ, चना,बाजरा, ज्वार ही हैं, जो रोकड़ा फसलों के मुकाबले काफी सस्ती हैं। (दिन., 18 अप्रैल 1971, पृ. 22)

रोकना-टोकना क्रि. (सक.) -- अवरोध उत्पन्न करना, खलल डालना, बाधक बनना, मनुष्य की अतृप्त जिज्ञासा भी कुछ काम नहीं रोकती-टोकती। (महा. सा. सं. ओं.श., भाग-1, पृ. 169)

रोगन सं. (पु.) -- घी, तेल आदि द्रव्य, चरबी, बड़े आदमियों को मास भर में बड़ी कीमत का रोगन लग जाता है...,(मा . न . रन . खं . 9 पृ 257)

रोगहा वि. (विका.) -- रुग्ण, रोगग्रस्त, वह रोगहा आदमी जोर-जोर से खाँसने लगा। (काद. : फर. 1991, पृ. 40)

रोचना सं. (पु.) -- तिलक, टीका, लड़की के लड़का हुआ, रोचना आया।... (भ. नि., पृ. 91)

रोज-बरोज क्रि. वि. -- दिन-प्रतिदिन, नित्य-प्रति, शायद यही चस्का उन्हें रोज-बरोज गाँवों और शहरों में ले आता है। (दिन., 27 मई 1966, पृ. 18

रोजंदारी वि. (विका.) -- दैनिक, महाराष्ट्र के सभी अंशकालीन एवं रोजंदारी वन-कामगार एक दिन की सांकेतिक हडताल करेंगे। (लो. स., 20 मई 1989, पृ. 3)

रोजी-धंधा सं. (पु.) -- आजीविका, रोजगार, तीसरी श्रेणी के यात्रियों में रोजी-धंधे की आशा में घर छोड़े हुए साधारण गृहस्थ और मजदूर तथा भूख से तड़पते हुए भिक्षुक थे। (सर., फर. 1928 ; पृ. 154)

रोटियारा सं. (पु.) -- रोटी भर के लिए काम करनेवाला, तुझको राजा का दास या रोटियारा कहें। (फा. दि. चा., वृला. व. समग्र, पृ. 667)

रोटी पड़ना मुहा. -- दंड-स्वरूप दावत देने को विवश होना, सिपाही ने उसकी बहन की अस्मत बिगाड़ी थी, रोटी पड़ने के डर से उसने किसी से कहा नहीं। (का. कार. : निराला, पृ. 25)

रोड़ा अटकाना मुहा. -- बाधा उत्पन्न करना, विघ्न डालना, (क) शासन कार्य संचालन में जितने रोड़े अटकाए जा सकें अटकाए जाएँ। (स. सा., पृ. 327) , (ख) इस मामले में रोड़े अटकाने की चेष्टा करना व्यर्थ है। (माधुरी, नव, 1928, खं. 2, सं. 1, पृ. 110) , (ग) वे भारतीय-व्यापारियों के भाग में रोड़े अटकाते रहते हैं। (त्या. भू. : संवत् 1986, (1927) पृ. 320)

रोड़ा सं. (पु.) -- ईँट या पत्थर का टुकड़ा, कंगूरे सजानेवाला कलाकार नींव के रोड़ों को व्यर्थ नहीं कह सकता। (शत.खि., ह.कृ प्रे., पृ. 6) , 2. बाधा, इस प्रथा को वह मानव मुक्ति-पथ का एक बड़ा भारी रोड़ा समझता है। (न. ग. र., खं. 2. पृ. 267)

रोड़ी सं. (स्त्री.) -- ईँट या पत्थर के छोटे-छोटे टुकड़ों का समूह, देखभाल करनेवाले डॉक्टर की कृपा से उसे रोड़ी पीसने के काम से छुट्टी मिली। (दिन., 9 फर., 69, पृ. 17)

रोंथना क्रि. (सक.) -- रौंदना, अब स्वच्छंद विचरना, चरना और रोंथना नहीं हो सकता। (गु. र., खं. 1,, पृ. 390)

रोना रोना मुहा. -- शिकायत करना, दुख व्यक्त करना, किस-किस के लिए रोना रोया जाय। (माधुरी, जन. 1925, सं. 1 पृ. 2)

रोब गालिब करना मुहा. -- रोब छाँटना, प्रभाव जताना, कुरसी मिलते ही राजनेताओं में रोब गालिब करने की लत पड़ जाती है। (काद. : फर. 1993, पृ. 77)

रोम-रोम से क्रि. वि. -- रोएँ-रोएँ से, शुद्ध हृदय से, स्वदेशानुराग और आत्मबलिदान उनके रोम-रोम से प्रकट होता है। (स. सा., पृ. 135

रोया जाना मुहा. -- विलाप करना, किस-किस के लिए रोया जाए। (म. प्र. द्वि., खं. 9, पृ. 94)

रोवा-राई सं. (स्त्री.) -- रोना-धोना, किसी के चेहरे पर रहती है हँसी की सुनहली छटा और किसी पर रहती है रोवा-राई की काली छाया। (सर., जन. 1922, पृ. 31)

रौ में बहाना मुहा. -- प्रवाह में ले जाना, लोग इतने समझदार हैं कि सभी को एक रौ में बहाना संभव-नहीं है। (ज. स. : 23 दिस. 1983 पृ. 4)

रौ सं. (स्त्री.) -- प्रवाह, धुन, (क) इसी की रौ में कुछेक पृष्ठ बड़े लगाव से पढ़े जा सकते हैं। (दिन., 21 जुलाई, 68, पृ. 43) , (ख) जब सदन में पुलिस मैन मार-धाड़ की रौ में थे तो एक तरफ खड़े आहत विधायक अपने आपको असहाय पा रहे थे। (दिन., 10 अग. 1969, पृ. 19) (ग) वह औरत अपनी रौ में तेजी से लॉबी की तरफ आई थी। (वाग. : कम., अग. 1997, पृ. 10)

रौंदना क्रि. (सक.) -- कुचलना, नष्ट करना, (क) श्री पाटिल की जिद को रौंदने का परिणाम बुरा हो सकता है। (दिन., 2. दिस., 66, पृ. 12), (ख) ज्ञान या विचार को रौंदने का क्षणिक अहंकार भर पाला जा विचार को रौंदने का क्षणिक अहंकार भर पाला जा सकता है। (किल., सं. म. श्री., पृ. 193), (ग) धर्म के नाम पर, सड़कों के नागरिक अधिकार को हमारे देश में इतनी बुरी तरह रौंदा जाता है जिसकी हद नहीं। (मा. च. रच., खं. 10, पृ. 159)

रौर मचाना मुहा. -- शोर करना, (क) उसका हृदय भुजबल त्रास भयउ मोहि भारी की रौर मचाता रहा। (मा. च. रच., खं. 9, पृ. 176) , (ख) जहाँ पहले से लेकर बैकुंडी तक यही मनहूस रौर मचा रहता है कि जो पीछे गाया सो अच्छा था। (गु. र., खं. 1, पृ. 178)

रौरव वि. (अवि.) -- घोर, भयंकर, (क) गंदी बस्ती देखकर रौरव नरक की कल्पना होती है। (काद., नव. 1995, पृ. 6) , (ख व्यावहारिक जीवन भर रंगों के अभिशाप रौरव बनकर नहीं उतने होंगे। (कर्म., 4 सित. 1948, पृ. 3)

रौरा सं. (पु.) -- होहल्ला, शोरगुल, (क) मुंबई की मालगुजारी के बारे में ओडोनल साहब ने 1880 में पार्लियामेंट में बड़ा रौरा मचाया था। (म. प्र. द्वि. रच., खं. 2, पृ. 130), (ख) भाषा-विषयक विचार उपस्थित हुआ तब पूर्वोक्त मुसलमान मेंबरों ने बड़ा रौरा मचाया। (म. प्र. द्वि., खं. 1, पृ. 170)

लकड़तोड़ वि. (अवि.) -- वि. (अवि.), नीरस, उसे मेरी तुच्छ मति में केवल शुष्क लक्कड़तोड़ प्रौढ़वाद कहना चाहिए। (चं. श. तगु. र., खं. 2, पृ. 307)

लकड़दादा सं. (पु.) -- पूर्वज, उनके लकड़दादों ने जाति की आवश्यकता और परिवर्तनशीलता को लक्ष्य करके समसामयिक धर्मशास्त्रों का निर्माण किया था। (म. का मत : क. शि., 14 जन. 1928, पृ. 75)

लकवा गिरना मुहा. -- लकवे का असर दिखना, पक्षाघात से ग्रस्त दरअसल जीभ पर लकवा कई दिनों से गिर रहा था और एक दिन पार्टी ने पाया कि उसकी बोलती बंद हो गई है। (रा. मा. संच. 1, पृ. 399)

लकीर का फकीर होना मुहा. -- परंपरावादी होना, रूढ़िवादी होना, (क) यहाँ काम करनेवाले लोग लकीर के फकीर हैं। (दिन., 16 दिस., 66, पृ. 46) , (ख) लकीर के फकीर दुनिया में सदा दुःखी ही रहते हैं। (माधुरी, नव. 1928, सं. 3, पृ. 1067)

लकीर के फकीर बना रहना मुहा. -- रूढ़ियों का पालन करते चला, (क) प्राचीन विश्वास चाहे कितना ही पोच हो पर वे लकीर के फकीर बने रहेंगे। (भ. नि., पृ. 41) , (ख) पुरानी प्रथा पर आँख मीचकर चलते हैं, लकीर के फकीर बन जाते हैं। (कर्म., 22 अप्रैल, 1950, पृ. 7)

लकीर पीटना मुहा. -- परंपरा का निर्वाह करना, यथास्थिति बनाए रखना, (क) पुरानी लकीर को पीटने में अपनी शक्ति का दुरुपयोग कर रहा है। (गु. र., खं. 1, पृ. 146) , (ख) लकीर पीटनेवालों से हम लड़ना नहीं चाहते। (न. ग. र. खं. 2, पृ. 295)

लकुटिया टेकना मुहा. -- सहारा लेना, किसी की लकुटिया टेककर चलना अर्थात् शब्दानुवाद करना उचित नहीं है। (बाल.स्मा.ग्रं. : शर्मा, चतुर्वेदी, पृ. 289)

लकुटिया सं. (स्त्री.) -- लाठी, सहारा, (क) माँ आज कोई ऐसा भी नहीं रहा जो तुझे लकुटिया थमा दे। (न.ग.र., खं. 2, पृ. 18) , (ख) पं. उमाशंकर अंध पिता की सजग लकुटिया थे। (न. ग. र., खं. 2, पृ. 114)

लक्ष्मण रेखा लाँघना मुहा. -- मर्यादा का उल्लंघन करना, सारी लक्षमण रेखाओं को लाँघकर पुनः इस राजनीतिमय संसार के हाट-बाजार में खड़े हैं। (रा. मा. संच. 2, पृ. 358)

लखना क्रि. (सक.) -- ताड़ना, भाँपना, देखना, (क) उस्ताद की सबसे बड़ी सिफ्त यही तो है कि कोई हाथ की सफाई लख न पाए। (म.का मतः क.शि., 6 मार्च 1926, पृ. 113), (ख) तुम्हारी सच्ची प्रीति होती तो तुम तुरंत लख जाते कि यह कलाई मेरी न थी। में तो तुम्हारे नखों तक को पहचानती हूँ। (सर., अग. 1915, पृ. 110)

लखलखा सं. (पु.) -- मूर्च्छा दूर करनेवाला पदार्थ, फिर एक दिन देश को लखलखा सुँघा दिया जाए और टोना करके बदन में आया भूत उतार दिया जाए। (रा.मा.संच. 1, पृ. 485)

लँगड़ी मारना मुहा. -- इस प्रकार किसी टाँगों में टाँग अड़ाना कि वह लड़खड़ाकर गिर पड़े, गहरी चाल चलना, दाँव खेलना, (क) श्री चरण सिंह ने उन्हें ऐसी लँगड़ी मारी कि उन्होंने उ.प्र. की सरकार अपने आप ही चरण सिंह के हवाले कर दी। (दिन., 30 अग., 1970, पृ. 18) , (ख) चह्राण ने ऐन मौके पर ऐसी लँगड़ी मारी कि प्रधानमंतरी को होश सँभालना मुश्किल हो गया। (दिन., 21 फर., 1971, पृ. 50)

लँगड़ीमार वि. (अवि.) -- गिरा या पटक देनेवाला, इस लँगड़ीमार व्यवस्था के चलते जाने कब कोई उन्हें धकेलकर बाहर कर दे। (दिन., 28 जून 1972, पृ. 10)

लगा-बँधा वि. (विका.) -- वि. विका.) , ठहराया हुआ, निश्चित, नियत, रूस में भारत के हिंदी कार्यकर्ताओं को कोई लगा-बँधा वेतन नहीं मिलता। (सा. हि., 7 जून 1959, पृ. 5)

लगालगी सं. (स्त्री.) -- संबंध, प्रेम-संबंध, सब लगालगी बहम ही होती है। (कुटज : ह. प्र. द्वि., पृ. 87)

लगालेसी सं. (स्त्री.) -- लगाव-बझाव, लाग-लपेट, अपने उत्तरदायित्व को मैं बिना किसी लगालेसी के मंजूर करती हूँ। (मधुकर, अग.-किसी लगालेसी के मंजूर करती हूँ। (मधुकर, अग.-सित. 1946, पृ. 567)

लगाव-लिपटाव सं. (पु.) -- निकट-संबंध, प्रेमभाव, लगाव-लिपटाव की वे आवश्यकता नहीं समझते। (न. ग. र., खं. 3, पृ. 98)

लगी-बुझी सं. (स्त्री.) -- वैर-विरोध, मनमुटाव, उनमें बड़ी लगी-बुझी चल रही है। (साक्षा., मार्च-मई 77, मृ. पां. पृ. 29)

लंगीबाज वि. (अवि.) -- टँगड़ी मारनेवाला, हुरपेची, उसकी लंगीबाज बुद्धि में एक बात आई। (प. परि. रेणु. पृ. 38)

लगे हाथ क्रि. वि. -- (किसी कार्य के) साथ-साथ, लेकिन लगे हाथ उन्होंने अपने धाकड़ प्रतिद्वंद्वियों का सफाया भी कर दिया। (रा. मा. संच. 1, पृ. 403)

लँगोटिया यार सं. (पु., पदबंध) -- बचपन का मित्र, (क) हाईस्कूल के चौथे या तीसरे वर्ग में ही मैंने एक नाटक लिखा था, लँगोटिया यारों को सुनाया था। (बे. ग्रं. : दूसरा खं., पृ. 1), (ख) लँगोटिये यार फत्तू के साथ जरूर दिल की बातें कर लिया करता था। (काद., अप्रैल 1975, पृ. 94)

लग्गा लगना मुहा. -- क्रम या सिलसिला चलना, (क) लाठीचार्ज का लग्गा लग गया। (नि.वा. : श्रीना. च., पृ. 550) , (ख) उसी समय फिर नए सिरे से घोंसला बनाने का उसने लग्गा लगाया। (नव. : अग., 1958, पृ. 47), (ग) यह आया कि वह आया का लग्गा लगा हुआ था। (क.ला.मिश्र : त. प. या., पृ. 191)

लग्गा लगाना मुहा. -- शुरुआत करना, सिलसिला चलाना, (क) मई बीतने पर उस पुस्तक के छपने का लग्गा लगाना है। (चं.श.गु.र., खं. 2, पृ. 410) , (ख) खेती पकी नहीं कि बाल-बच्चों ने खाने का लग्गा लगा दिया। (म. प्र. द्वि. रच., खं. 2, पृ. 346)

लग्गा सं. (पु.) -- क्रम, सिलसिला, भारत की उन्नति का अब लग्गा लग गया है। सर., अक्तू, 1915, पृ. 197)

लंघन सं. (पु.) -- उपवास, रोगी को लंघन कराया गया। (काद. : अग. 1975, पृ. 16)

लघिमा सं. (स्त्री.) -- लघुता, छुटाई, मैंने गंगोत्तरी-गोमुख और यमुनोत्तरी के समक्ष भी अपनी लघिमा को महसूस किया है। (काद. : फर. 1978, पृ. 32)

लचना क्रि. (अक.) -- 1. लचकना, झुकना, बचे तो सरसई के गुच्छों से पुलई तक टहनी-टहनी लद जाएगी और डालें भार से लचने लगेंगी। (दिन., 7 अप्रैल, 67, पृ. 39) , (ख) चाह की लचती बेल को तने का सहारा चाहिए। (स्मृ. वा. आ. जा. व. शा., पृ. 107) , 2. घटना, कम होना, जब धूप लच जाए तब चली जाना। (स. न. रा. गो. : भ. च. व., पृ. 211)

लचर वि. (अवि.) -- ढीला-ढाला, बेदम, सरकार इस दलील को लचर समझती है। (म. प्र. द्वि., खं. 15, पृ 460)

लचाना क्रि. (सक.) -- झुकाना, बिना आँच दिखाए लचाने से लकड़ी टूट जाती है। (माधुरी, नव. 1928, सं. 3, पृ. 627)

लच्छेदार वि. (अवि.) -- चिकनी-चुपड़ी और मजेदार, उदारता से भरी लच्छेदार बातों की कमी नहीं। (ग. शं. वि. रच., खं. 2, पृ. 8 3)

लज्जा ढकना मुहा. -- प्रतिष्ठा की रक्षा करता है, लाज बचाना, राज्य कृत्रिम है, लेकिन लज्जा ढकता है। (रा. मा. संच. 2, पृ. 36)

लटकन-छटकन सं. (पु. बहु.) -- संगी-साथी, सामने ड्राइवर के पास अपने लटकन-छटकन के साथ जा बैठा। (दिन., 23 दिस., 66, पृ. 27)

लटका-खटका सं. (पु.) -- लटका-झटका, नाज-नखरा, हाव-भाव, (क) बैंक राष्ट्रीयकरण जैसे लटके-खटकों से जनसंपर्क बनाने की कोशिश करनेवाली सत्ताधारी पार्टी करे क्या? (दिन., 9 अग., 1970, पृ. 15), (ख) संत ने अनशन के सिलसिले में वही लटके खटके अपनाए हैं जो कोई भी सांप्रदायिक नेता अपना सकता है। (दिन., 23 दिस., 66, पृ. 12) , (ग) इसकी शैली में सामाजिक यथार्थवाद के सारे लटके खटके मौजूद हैं। (दिन., 06 अग., 67, पृ. 43)

लटका सं. (पु.) -- तरीका, ढंग, हथकंडा, (क) भाषा का नारा केवल वोट प्राप्त करनेवालों के लटकों में एक है। (कुटज: ह. प्र. द्वि., पृ. 97), (ख) हमारे पास पुराने लटके ही लाभदायक सिद्ध हो सकते हैं। (दिन., 1 अक्तू. 1965, पृ. 25)

लटना सं. (पु.) -- लस्त-पस्त होना, बेदम होना, (क) वह बिहार जिसका नाम लटना है, लटना यानी खटते-खटते चूर हो जाना। (दिन., 9 दिस., 66, पृ. 26) , (ख) कांग्रेसियों में श्री एम. एम. मिश्र के लटे हुए आयोजन और समाजवादियों के हाथ पर हाथ रखे रहने का गहरा रंज था। (दिन., 4 जून, 67, पृ. 14)

लटपटाना क्रि. (अक.) -- लड़खड़ाना, डगमगाना, जवाहरलाल नेहरू बूढ़े भारत की लटपटाती हुई आशा लता हैं, जिसमें जोम भी है सुगंध भी। (सं. परा.: ल. शं. व्या., पृ. 186)

लटिया डूबना मुहा. -- सर्वस्व खो या नष्ट हो जाना, (क) प्रशंसा से बड़े-बड़े लेखकों की लुटिया डूब जाती है। (हंस, क्तू. 99, रवी. का., पृ. 25), (ख) कहाँ हैं क्षत्रिय महासभा ? क्या उसकी लुटिया डूब गई ? (म. का मतः क. शि., 28 नव. 1925, पृ. 111) , (ग) जागे हुए हरिजनों की लुटिया जगजीवन राम के बाद डूब नहीं जाएगी। (रा. मा. संच. 1, पृ. 458)

लटियाई वि. (स्त्री.) -- लट के रूप में होनेवाली, शिव की लटियाई जटा ही इतनी सूखी, नीरस और कठोर हो सकती है। (काद., नव. 1960, पृ. 50)

लट्टू बना देना मुहा. -- मोहित कर लेना, उसने सारे हिंदुस्तान की जनता को लट्टू बना दिया। (रा. मा. संच. 1, पृ. 82)

लट्टूदार वि. (अवि.) -- देखने में लट्टू सा, मस्तक पर दिल्लीवाली जरी की टोपी थी और पैरों में लट्टूदार जूता। (सर., मार्च 1930, पृ. 357)

लट्टूहोना मुहा. -- मोहित होना, फिदा होना, (क) उनकी सरस रचनाओं पर लोग लट्टू हैं। (शि. पू. र., खं. 3, पृ. 83) , (ख) यह भी कोई बात है कि असुर हमारी आराध्या पर लट्टू हो। (माधुरी, जन. 1925, सं. 1 पृ. 111), (ग) मैं तुम्हारी योग्यता और भलमनसी पर लट्टू हूँ। (सर., अप्रैल 1925, पृ. 427)

लट्ठ बाँधे खड़े होना मुहा. -- लड़ने को तैयार होना, मोहमयी प्रमाद मदिरा पीकर लट्ठ बाँधे किसी एक के पक्ष में नहीं खड़े हुए हैं। (गु. र., खं. 1, पृ. 432)

लट्ठ भाँजना मुहा. -- लाठी चमकाना या चलाना, आज हाथ बाँधते हैं, कल लट्ठ भाँजते हैं। (स. का वि. : डॉ. प्र. श्रे., पृ. 104)

लट्ठ लेकर अक्ल के पीछे पड़ना या पड़ जाना मुहा. -- मूर्खतापूर्ण कार्य करना, जैसे वे सिनेमा जा सकते हैं वैसे ही लट्ठ लेकर अक्ल के पीछे क्यों नहीं पड़ जाते। (रा. मा. संच. 2, पृ. 30)

लट्ठमार वि. (अवि.) -- अप्रिय और कठोर, कारण बताने के लिए सरकारी विज्ञप्ति निकली, वह लट्ठमार थी। (ग. शं. वि. रच., खं. 2, पृ. 486)

लट्ठमारपन सं. (पु.) -- प्रहारक-क्षमता, अक्खड़पन, कविता की चारुता नष्ट होने लगती है, भावों में लट्ठमारपन आने लगता है। (दिन., 17 अक्तू. 1971, पृ. 43)

लट्ठा सं. (पु.) -- लंबा बाँस, (क) मैदान में भैंसे की खोपड़ी एक ऊंचे लट्ठे से टांग दी जाती है । (सर . अक्तू . 1915 , पृ . 234),(ख) तेरे ही नेत्र में लट्ठा तुझे नहीं सूझता । (गु . र . खं . 1 , पृ . 191)

लठ लिए फिरना मुहा. -- पीछे पड़े रहना, पर इतनी हेचमदानी पर भी हमादानी लठ लिए फिरते हैं। (म. प्र. द्वि., खं. 1, (बा. मु. गु.), पृ. 350)

लड़कैधा वि. (विका.) -- लड़कपन का सूचक, लड़कपन भरा, पिछला माडल लड़कैधा था तो नया माडल बचकाना। (दिन., 25 नव., 06, पृ. 43)

लड़कों का खेल मुहा. -- सरल कार्य, संभ्रांत व्यक्तियों के चरित्र पर आक्रमण करना कोई लड़कों का खेल नहीं है। (मा. च. रच., खं. 9, पृ. 178)

लड़कोरी-फड़कोरी वि. (अवि.) -- बाल-बच्चेवाले, अब तो हम आपको याद भी नहीं आते होंगे, लड़कोरी फड़कोरी हुए ना? (काद., अक्तू. 1961, पृ. 124)

लड़ंत सं. (पु.) -- लड़नेवाला पहलवान, सभी एक ही अखाड़े के लड़ंत हैं। (सर., जन.-जून 1931, सं. 1, पृ. 195)

लड़ाई-टंटा सं. (पु.) -- रगड़ा-झगड़ा, व्यापार नहीं तो लेन-देन बंद और लड़ाई-टंटा समाप्त। (दिन., 19 मई, 68, पृ. 39)

लड़ाकूपन सं. (पु.) -- लड़ाकू होने की अवस्था या भाव, अपने लड़ाकूपन का जरूरत से ज्यादा इजहार करती हुई यह स्थिति एक मध्यमवर्गीय पलायन है। (रा. मा. संच. 2, पृ. 112)

लड़ाझगड़ी सं. (स्त्री.) -- लड़ाई-झगड़ा, सभापतियों के समर्थक और पक्षपाती सज्जनों ने लड़ाझगड़ी और लेदे तक पहुँचकर योग्य व्यक्तियों का अपमान किया। (मा. च. रच., खं. 9, पृ. 84)

लड़ी बँधना/बढ़ना मुहा. -- सिलसिला चलना, (क) जमानतों की माँग और जब्ती की लड़ी बँध गई। (ग. शं. वि. रच., खं. 2, पृ. 599) , (ख) बस्ती की अब गिरी तब गिरी झोंपड़ियों की बेतरतीब लड़ी दूर तक बढ़ती चली जाएगी। (दिन., 2 जुलाई 1965, पृ. 24)

लँडूरा वि. (विका.) -- कटी पूछवाला, सियासत दाँ लोगों को लँडूरे मुर्गे की तरह मंच पर तड़फड़ाते हुए दिखाते हैं। (काद., अप्रैल 1989, पृ. 30)

लड्डू दिखाकर चपत रसीद करना मुहा. -- पहले लुभाना फिर सताना, यह घटना लड्डू दिखाकर चपत रसीद करने की याद दिलाती है। (ग. शं. वि. रच., खं. 2, पृ. 512)

लढ़िया सं. (स्त्री.) -- बैलगाड़ी, इंदिरा गाँधी अपनी आँधी के लढ़िया-भर आम बटोर लाईं। (दिन., 4 अप्रैल, 1971, पृ. 23)

लँढूरा वि. (विका.) -- (विका.) , लँडूरा, दुमकटा, यह अगर राजनीतिक यथार्थवाद है तो ऐसे दुमदारों से हम लँढूरे ही अच्छे। (दिन., 21 फर. 1965, सं. 1, भाग 1, पृ. 12)

लत सं. (स्त्री.) -- आदत, व्यसन, (क) क्रांति की उनकी लत होती है, निर्माण कार्य वे कर नहीं सकते। (नि. वा. : श्रीना. च., पृ. 503) , (ख) उसका स्वभाव अच्छा नहीं है और उसने कई लतें पाल रखी हैं। (काद. : जन. 1981, पृ. 142)

लतखोरी लाल सं. (पु.) -- लतखोर व्यक्ति, वह भी अव्वल दर्जे का लतखोरी लाल था, पट्ठे ने हार नहीं मानी। (म. का मतः क. शि., 18 जुलाई 1925, पृ. 187)

लतंजुतं सं. (स्त्री.) -- वह मारपीट जिसमें लातें और जूते चलें, जूतम-पैजार, (क) भले मानुस का काम है कि लतंजुतं बरदाश्त करके भी अपना काम निकाल ले जाय। (म. का मतः क. शि., 18 जुलाई 1925, पृ. 187) , (ख) यह भी आशा है कि थुक्का-फजीती और लतुंतं में कोई कसर न रहेगी। (म. का मतः क. शि., 26 दिस. 1925, पृ. 196)

लंतरानी सं. (स्त्री.) -- मनगढ़ंत बात, गप, (क) ऐसे अनन्य भक्तों की लंतरानियाँ भी भगवान् सहन कर लेते हैं। (शि. पू. र., खं. 3, पृ. 110), (ख) पत्रों को केवल उनकी लंतरानियों का जवाब देने के लिए पढ़ा करते थे। (हिंदो. श. स्मा., पृ. 75)

लताड़ सं. (स्त्री.) -- डाँट-डपट, फटकार, (क) मैं लताड़ सुनकर आँसू बहाने लगा। (प्रे. स. क. : सर. प्रेस, पृ. 63) , (ख) पूर्वी पाकिस्तान के नेताओं की लताड़ सुनकर याहिया खाँ को वहाँ आकर अपनी दरियादिली का सबूत देना पड़ा। (दिन., 13 दिस., 1970, पृ. 34)

लतियाना क्रि. (सक.) -- लातों से मारना, प्रहार या आक्षेप करना, कोसना, आज समाज की उस कलुषित मान्यता ने उनके त्यागमय आत्मसम्मान को सरेआम गरियाया, लतियाया है। (काद., जुलाई 1989, पृ. 103)

लत्तर सं. (स्त्री.) -- लता, आप अकमेधी का (की) लत्तर पहचानते हैं ? (दिन., 5 सित. 1971, पृ. 7)

लत्ते लेना मुहा. -- बखिया उधेड़ना, प्रतिभा-संपादक और प्रतिभा-समालोचक ने मनोरमा के वह लत्ते लिए हैं कि उसके लिए कुछ कहना शाहमदार (मरे को मारे शाहमदार) बनाना होगा। (. श. गु. र., खं. 2, पृ. 307)

लथपथ वि. (अवि.) -- लिबड़ा, सना हुआ, वे ब्रह्म छोड़कर कर्म, चिंतन और माया से लथपथ जगत् में आ गए हैं। (रा. मा. संच. 2, पृ. 360)

लथाड़ सं. (स्त्री.) -- लताड़, फटकार, उन गुलाबों को कुकुरमुत्ता जबरदस्त लथाड़ देता है। (काद. : फर. 1991, पृ. 33)

लथाड़ना क्रि. (सक.) -- लताड़ना, फटकारना, कोसना, बुरा-भला कहना, उनसे शायद कहे भी गए कि ... बाल्मीकि ऐसे बृहत् काव्यात्मक लेखक को लथाड़ते रहना। (शि. पू. र., खं. 3, पृ. 303

लथेड़ना क्रि. (सक.) -- गंदा या मलिन करना, जो कोरिया में परम सत्य बोल चुका है वह एशिया के सत्य के आदर्शों को लथेड़े। (गु. र., खं. 1, पृ. 334)

लथोड़ना क्रि. (सक.) -- लथेड़ना, (क) सचाई को कीचड़ में लथोड़ने का इससे अच्छा मौका उन्हें और कहाँ मिल सकता है। (हि. ध., प्र. जो., पृ. 552), (ख) राष्ट्रपति चुनाव होने के पूर्व ही हमने उन्हें कीच में इतना लथोड़ दिया। (ज. स. : 22 जुलाई, 2007, (रवि) पृ. 2)

लदनिया वि. (अवि.) -- लद्दू. बोझा ढोनेवाला, लदनिया घोड़े पर सामान और अपने को लादे एक व्यक्ति जा रहा है। (कर्म., 2 नव. 1957, पृ. 1) ,

लदफद वि. (अवि.) -- 1. लथपथ, लोग तीर और छुरे तक उसके शरीर में चुभाते थे उसका शरीर लोहू से लदफद हो जाता। (सर., जन. 1913, पृ. 47), 2. प्रसन्न, बिना उसकी लात खाए तुम यों फूल से लदपद कैसे हो गए? (च. श. गु. र., खं. 2. पृ. 308)

लदफदाना क्रि. (अक.) -- प्रसन्नता से भर उठना, उनके रंग में सराबोर हो श्रोता लदफदा गए। (शि. पू. र., खं. 4, पृ. 117)

लदा-ठिला वि. (विका.) -- जो लादा हो और ठेला जा रहा हो, विश्वविद्यालयों में कुछ पुराना नहीं हो पाता, सबकुछ शिक्षाक्रम के छकड़े पर लदा-ठिलता चलता है, दूसरे नव-जाग्रत् प्रगतिवादी फिर से इस माँदे खच्चर को मार-मारकर खड़ा कर देना चाहते हैं। (दिन., 30 मई 1971, पृ. 44)

लदा-फदा वि. (विका.) -- अच्छी तरह लदा हुआ, (क) औरतें गहनों से लदी-फदी घूम लेती थीं। (दिन., 3 से 9 फर. 1980, पृ. 9), (ख) पेड़ों को तो वसंत में फूलों से लदाफदा देखा है और कई टुकुर-टुकुर ताकते रह जाते हैं। (काद. : फर. 1991, पृ. 32)

लदाव सं. (पु.) -- लादी जानेवाली सामग्री, भार, बोझ, यह बिना लदाव का बचा हुआ है। सर., नव. 1915, पृ. 269)

लदुआ वि. (अवि.) -- भार ढोनेवाला, वे घोड़ों और लदुए टट्टुओं की नसें खूब पहचानते थे। (म. का मतः क. शि., 16 मई 1925, पृ. 185)

लपकना क्रि. (अक.) -- पकड़ने के लिए आगे दौड़ बढ़ना, सुलाह समझौते की गुंजाइश नजर आते ही वे उसकी ओर लपके बिना नहीं रह सकते। (विल्पव (आजाद अंक) सं. यश., पृ. 6)

लंपट वि. (अवि.) -- व्यभिचारी, बदचलन, ग्रामीण इलाके के लंपट तत्त्व इनके प्रभाव में जल्दी आ जाते हैं। (लो.स., 16 जन. 1989, पृ. 3)

लपलपा वि. (विका.) -- लचीला, नरम, रुई धुनकने के बाद रसूल एक लपलपी पतली सी बाँस की छड़ी से फर्द पर रुई जमाते थे। (काद., अक्तू. 1993, पृ. 119)

लपलपाता वि. (विका.) -- 1. लालायित, (क) लपलपाती सत्तालोलुपता भी वे देख चुके थे। (हि. ध., प्र. जो., पृ. 232) , (ख) अकूत मुनाफा कमाने की लपलपाती बेसब्री चरम पर है। (स. दा. : अ. नं. मिश्र, पृ. 26), 2. तीव्र, उग्र, ऐसी लपलपाती गरमी और उसी से लगी बारिश के बीच चुनाव यों भी संभव नहीं होते। (हि. ध., प्र. जो., पृ. 364)

लपेट का घेरा सं. (पु., पदबंध) -- घिरा हुआ भाग, रमेशचंद्र शाह का अपने विषय के लपेट का घेरा काफी बड़ा है। (दिन., 19 अप्रैल 1970, पृ. 40)

लपेट सं. (स्त्री.) -- लपेटने की क्रिया या भाव, यही विशेषता है कि एक विराट् लपेट द्वारा अतीत से आधुनिक संदर्भों में बाँध देते हैं। (दिन., 18 अप्रैल 1971, पृ. 42)

लपेटन सं. (स्त्री.) -- लपेटने या ढकने की क्रिया या भाव, जिनके कुटुंब के शरीरों की लपेटन में मनों कपड़ा लगता था। (मा. च. रच., खं. 9, पृ. 234)

लपेटा मारना मुहा. -- चक्राकार घूमना, भँवर उत्पन्न करना, बाढ़ में नदी लपेटा मारने लगती है। (दिन., 07 मई, 67, पृ. 39)

लप्पड़ सं. (पु.) -- थप्पड़, चपत, तबीयत हुई थी कि एक लप्पड़ मारकर तुम्हारा सर पेट में खोंस दूँ। (रा. द., श्रीला. शु., पृ. 290)

लप्पेबाजी सं. (स्त्री.) -- धड़ाधड़ पिटाई, उसमें पहली गेंद से लप्पेबाजी शुरू हो जाती है। (ज. स., प्र. जो., 5 नव. 2006, पृ. 6)

लफंगा सं. (पु.) -- आवारा व्यक्ति, कुछ चतुर लोग लफंगों की फौज पर लगाम कसे तंत्र का रथ हाँक रहे हैं। (किल., सं. म. श्री., पृ. 41)

लफंगापन सं. (पु.) -- (क) आवारापन, गुंडागर्दी, मेरे माता-पिता मेरे लफंगेपन से बड़े दुःखी थे। (काद., मार्च 1994, पृ. 44), (ख) शासन के सब विभाग लफंगेपन का समर्थन करते थे। (मा. च. रच., खं. 4, पृ. 235)

लफड़ा सं. (पु.) -- बखेड़ा, झमेला, सब उमंग और उत्साह से मनाते हैं, कोई लफड़ा नहीं होता। (हि. ध., प्र. जो., पृ. 104)

लफ्फाजी सं. (स्त्री.) -- शब्दाडंबरपूर्ण भाषा, क) राष्ट्रपति अयूब पहले भी इस तरह की लफ्फाजी कर चुके हैं। (दिन., 30 अप्रैल, 67, पृ. 15), (ख) काम कम और लफ्फाजी ज्यादा है। (दिन., 16 अग., 1970, पृ. 11), (ग) जनता केवल लफ्फाजी के स्तर पर क्रांति का समर्थन करती है। (रा. मा. संच. 1, पृ. 259)

लबड़धोंधों सं. (स्त्री.) -- 1. अंधेर, कुव्यवस्था, (क) इस लेख में वह गड़बड़झाला, लबड़धोंधों या सिक्काशाही मची है कि कुछ न पूछिए। (चं. श. गु. र., खं. 2, पृ. 308) , (ख) सन् 1924 का साल इसी लबड़धोंधों में गुजर गया । (म . का मत : क . शि . 8 दिस . 1923), 2 . जटिल विषय , व्यर्थ में एक लंबा लबड़धोंधों खड़ा करके पाठकों का समय नष्ट किया गया है । (सर ,। जन . 1933. सं 6 पृ . 692)

लंबा-तड़ंगा वि. (विका.) -- लंबा और तगड़ा, ऊँचा पूरा, पहाड़ की ऊँचाई और लंबे-तड़ंगे पेड़ों की हरियाली और झरोखों-बंदनवारों को मिट्टी के घरौंदों में नहीं उतार पाया। (फा. दि. चा., वृ. ला. व. समग्र, पृ. 735)

लबाड़िया वि. (अवि.) -- गप्पी, बातूनी, खन्ना मास्टर लबाड़िया है, अगर उसके सामने कोई बात कह दी गई तो दूसरे दिन वह सारे गाँव में फैल जाएगी। (रा. द., श्रीला. शु., पृ. 178)

लबादा सं. (पु.) -- चोगा, (क) साधारण मनुष्य को एक प्रकार की आडंबर युक्त आत्म-प्रबंचना का लबादा ओढ़ना पड़ता है। (दिन., 29 नव., 1970, पृ. 19), (ख) राजनीति केवल लबादा है। (रा. मा. संच. 1, पृ. 125) , (ग) दक्षिण भारत की कुर्ग जाति पत्तियों का लबादा पहनती है। (काद., अप्रैल 1975, पृ. 160)

लबार वि. (अवि.) -- झूठा, गप्पी, बकबक करनेवाला, निठल्ले लोगों की सोहबत में मेरा लड़का लबार हो गया है। (काद. : मई 1993, पृ. 5)

लबालब क्रि. वि. -- किनारे या मुँह तक, (क) असंतोष का प्याला जो पहले से ही लबालब भरा हुआ था, छलक गया। (ते. द्वा. प्र. मि., पृ. 43), (ख) दोनों पद्यों में ऊँचे दर् का कवित्व है और रमणीय अर्थ लबालब भरा है। (सर., जुलाई-दिस. 1931, सं. 5, पृ. 538), (ग) उसके प्रत्येक अवयव तक के पूर्ण ज्ञान से हृदय लबालब भर जाता है। (सर., जन. 1912, पृ. 37)

लंबी तानना मुहा. -- सो जाना, अनुपस्थित रहना, (क) कमीशन के मनहूस कदम आने पर लंबी तान लें तो भी इनकी बड़ी मेहरबानी समझिए। (म.का मतः क. शि., 17 दिस. 1927, पृ. 243) , (ख) उसने गुड़मुडियाकर लंबी तानी। (मधुकर, 1 अक्तू. 1940, पृ. 11)

लंबोतरा वि. (विका.) -- अपेक्षाकृत अधिक लंबा, सीधी नासिका, लंबोतरा मुख, दृढ़ ठुड्डी। (काद., फर. 1989, पृ. 36)

लब्ध- प्रतिष्ठ वि. (अवि.) -- प्रसिद्ध और सम्मानित, वह समाज सेवा के द्वारा लब्ध-प्रतिष्ठ हुआ। (काद., अक्तू. 1989, पृ. 8)

लब्बोलुआब सं. (पु.) -- सार, सारांश, आपका समय बरबाद करने के बजाय मैंने लब्बोलुआब आपके सामने रखा। (हि. ध., प्र. जो., पृ. 553)

लर सं. (स्त्री.) -- लड़ी, श्रुंखला, मेखला, जिस लर को तुम्हारे परदादा भी आकर तोड़ा चाहें तो न टूटेंगी। (भ. नि., पृ. 28)

लरजिश सं. (स्त्री.) -- कंपन, थरथराहट, बीमारी के कारण उसके पैरों में लरजिश है। (काद. : जन. 1977)

ललचना क्रि. (अक.) -- लालायित होना, उस पर आपदाओं के बादल टूटने को न ललच पड़ते? (मा. च. रच., खं. 9, पृ. 293)

ललचैहाँ वि. (विका.) -- ललचौहुआँ, लालच भरा, यूरोप आदि को मजाल न होगी कि वे अमेरिका के किसी राज्य पर ललचैहीं दृष्टि डालें। (ग. शं. वि. रच., खं. 2, पृ. 62)

ललना सं. (स्त्री.) -- स्त्री, नारी, यह दोनों मजहब की ललनाओं के लिए हृदय में धारण करने की चीज है। (मा. च. रच., खं. 5, 215)

ललौंहाँ वि. (विका.) -- हलका लाल, ललौंही स्याही और मटमैली सफेदी में शाम ढल गई। (स्मृ. वा. : जा. व. शा., पृ. 29)

लल्लू-पंजू सं. (पु.) -- मूर्ख और अकुशल, हमारे आप जैसे लल्लुओं-पंजुओं को सुनाई ही नहीं पड़ता कि वक्त कब पुकार गया। (काद., जन. 1982, पृ. 61-62)

लल्लो-चप्पो सं. (स्त्री.) -- खुशामद, चापलूसी, (क) हमें ल्लो-चप्पो बात करने नहीं आता। (काद., जुलाई 1976, पृ. 165), (ख) लेकिन चतुर्वेदीजी तो लल्लो चप्पो से रीझ जानेवाले ठहरे। (सर., जन. 1933, सं. 1, पृ. 693), (ग) दादा भाई का काम का ढंग निर्भाकतापूर्ण था, उन्हें लल्लो-चप्पो नहीं आती थी। (ग. शं. वि. रच., खं. 1, पृ. 402)

लल्लोपत्तो सं. (स्त्री.) -- लल्लो-चप्पो, खुशामद, (क) महामंडल काशी में लल्लोपत्तो कर रहा है। (गु. र., खं. , पृ. 341) , (ख) अगर-मगर, लल्लोपत्तो तथा आगा-पीछा की छाया तक उस पर नहीं पड़ी थी। (सर., अग. 1941, पृ. 171)

लवलीन वि. (अवि.) -- मग्न, डूबा हुआ, यूरोपीय जनता जो सदा धन और सुख के भौतिकवाद में लवलीन रहती है। (मा. च. रच., खं. 9, पृ. 136)

लवलेश सं. (पु.) -- बहुत थोड़ा अंश, यदि किसी में सत्य का लवलेश भी अवशिष्ट है तो वह इन्हें बृहभाषा के उदाहरण ही कहेगा। (मधुकर : जन.-मई 1943, पृ. 268)

लष्टम-पष्टम क्रि. वि. -- लस्टम-पस्टम, जैसे-तैसे, दुःख यही है कि उसे इन 33 साल में कभी उन्नति का अवसर नहीं मिला, लष्टम-पष्टम किसी प्रकार से निकलता चला जाता है। (बा. गु. : गु. नि. सं. . श., खं. 5, पृ. 325)

लस सं. (स्त्री.) -- चिपचिपा या लसीला पदार्थ, तिवारी और इंद्रकुमार के त्यागपत्रों ने यह सिद्ध कर दिया कि एकता के चिप्पड़ में लस बहुत कम थी। (दिन., 15 फर. 1970, पृ. 20)

लसना क्रि. (अक.) -- शोभित होना, उसी को जमा करते रहो तो गहनों से नख से सिर तक हम लस जाएँ। (भ. नि., पृ. 27)

लसलसा वि. (विका.) -- लसदार, चिपचिपा, पपीते का फल तोड़ने पर उसमें से सफेद दूध का ऐसा लसलसा पदार्थ निकलता है। (माधुरी: अक्तू. 1927, पृ. 616-17)

लसियाना क्रि. (अक.) -- लस से भर जाना, पुरवा ने बौरों को झकझोरा तो लसियाकर गिर जाएँगे। (दिन., 7 अप्रैल, 67, पृ. 39)

लस्टम-पस्टम1 क्रि. वि. -- जैसे-जैसे, किसी-न-किसी तरह, क्योंकि लोकतंत्र-पद्धति जिस तरह लस्टम-पस्टम रूप में चलती रही है, चलती रहेगी। (दिन., 12 अक्तू. 1969, पृ. 26)

लस्टम-पस्टम2 वि. (अवि.) -- ऊलजलूल, (क) यदि इंग्लैंड में रहनेवाले जापानी लस्टम-पस्टम अँगरेजी बोले तो उस अँगरेजी को क्या कोई नाम देने को तैयार होंगे? (म. प्र. द्वि., खं. 1, पृ. 207) , (ख) यह तांडव बेमेल धमाचौकड़ी और लस्टम-पस्टम उछलकूद के सिवा कुछ न होता। (कुटज: ह. प्र. द्वि., पृ. 83)

लह बिठना मुहा. -- तिकड़म भिड़ाना, गोटी बैठाना, चकबंदी में लह बैठा लिया। (काद., जुलाई 1976, पृ. 163)

लहकाना क्रि. (सक.) -- दहकाना, प्रज्वलित करना, कांग्रेस विरोधी आग को उनचास-पवन से लहकाना शुरू करेंगे। (दिन., 07 मई, 67, पृ. 23)

लहँगे में नथना मुहा. -- चारों ओर से घेर और फँसा लेना, नौकरशाही के लँहगे में नथकर आरामतलब राजाओं को राज करने के कष्ट से बचा लिया। (म. का मत: क. शि., 2 जुलाई 1927, पृ. 215)

लहमे-लहमे क्रि. वि. -- धीरे-धीरे, लहमे-लहमे पके कहे भी जा रहे थे, लेकिन उसका कुछ भी रचनात्मक रूप सामने नहीं आ पा रहा था। दिन., 26 अप्रैल 1970, पृ. 32)

लहर दौड़ना मुहा. -- एकाएक तथा तेजी से किसी भाव का व्याप्त होना, अपनी कल्पना को मूर्तिमंत होते देख महाकौशल के लोगों में प्रसन्नता की लहर दौड़ गई। (ते. द्वा. प्र. मि., पृ. 131)

लहर-बहर होना मुहा. -- सुख और संपदा की प्रचुरता होना, जैनब सोचने लगी कि कारोबार बढ़ गया तो पैसे की लहर-बहर हो जाएगी। (रवि., 22 नव. 1981, पृ. 42)

लहालोट वि. (अवि.) -- लोटपोट, अत्यंत प्रसन्न, (क) ऐसे अंदाज में शेर पेश किया कि तमाम महफिल लहालोट हो गई। (रा. ला. प्र. र., म. प्र. सा. परिषद्, पृ. 125) , (ख) हास्य अभिनेता ने सभी को लहालोट कर दिया। काद.: मार्च 1968, पृ. 10, (ग) सरसों के खेत और पलास के वन लहालोट हो उठे। (म. का मतः क. शि., 29 जन. 1925, पृ. 30)

लहीम-शहीम वि. (अवि.) -- मोटा-ताजा, लंबा-चौड़ा, वह लहीम-शहीम 6 फुटे व्यक्ति थे। (दिन., 25 मई 1975, पृ. 42)

लहुरा सं. (पु.) -- छोटा बच्चा, वसंत आ गया ! हिंदी के तुकबंदों का मन नई भाभी के लहुरे की तरह हुलसता होगा। (शि. पू. र., खं. 3, 500)

लाई-लपटाई सं. (स्त्री.) -- लाग-लपेट, गहरा, मेल जोल, उनका स्वभाव रूखा और बेलोस रहा है, किसी से लल्लो-चप्पों नहीं लाई-लपटाई नहीं। (बे. ग्रं., प्रथम खं., पृ. 32)

लाख जाए पर साख न जाए कहा. -- कहा., धन से प्रतिष्ठा का महत्त्व अधिक होता है, धन की अपेक्षा प्रतिष्ठा की रक्षा महत्त्वपूर्ण है, मसल मशहूर है लाख जाए पर साख न जाए जिसकी साख है उन्हें यथेष्ट माल और रुपया मिल जाता है। (म. प्र. द्वि. रच., खं. 2, पृ. 198)

लाख टके का वि. (विका., पदबंध) -- अत्यंत महत्त्वपूर्ण, ऐसी स्थिति में लाख टके का सवाल यह है कि हम आर्थिक विकास की कीमत किस रूप में चुकाने को तैयार हैं? (दिन., 27 मई 1966, पृ. 16)

लाखैरा वि. (विका.) -- ताक-झाँक करनेवाला, वे समझ बैठे हैं कि नाटक खेलने और देखनेवाले दोनों ही बदमाश, आवारा, लाखैरे और विद्या-विमुख होते हैं। (शि. पू. र., खं. 3, पृ. 165)

लाग लगना मुहा. -- वैर-विरोध का आरंभ होना, अभी तो लाग लगा, अभी से घबराने से काम कैसे चलेगा। (नि. वा. : श्रीना. च., पृ. 249)

लाग-लपेट न करना मुहा. -- साफ-साफ कहना, उमरदानी सैनिक होने के नाते वे ज्यादा लाग-लपेट नहीं करेंगे। (दिन., 04 नव., 66, पृ. 37)

लाग-लपेट सं. (स्त्री.) -- लगाव-बँझाव, (क) उन्होंने बिना किसी लाग-लपेट के केन्या के एशियाइयों की जिम्मेदारी ब्रिटेन के कंधे पर रखी। (दिन., 03 मार्च, 68, पृ. 15) , (ख) आपकी लाग-लपेट रहित चिट्ठी के लिए मैं कृतज्ञ हूँ। (ब. दा. च. चु. प., खं. 1, सं. ना. द., पृ. 403), (ग बिना किसी लाग-लपेट के हम उसे संकीर्ण, समाज विरोधी और राष्ट्रीयता के विकास में बाधक मानते हैं। (दिन., 8 दिस. 1968, पृ. 17)

लाग-लिपटी सं. (स्त्री.) -- ऐसी बात जिसमें कोई और बात या अर्थ भी जुड़ा हो, पक्षपातपूर्ण बात, (क ऐसे संघ बनाने की आवश्यकता है जो किसी की लाग लिपटी न कहें सदा सत्य पर अटल रहें। (ग. शं. वि. रच., खं. 1, पृ. 318), (ख) ऐसे जिम्मेदार आदमियों की सख्त जरूरत है जो लगी-लिपटी न करते हों। (ग. शं. वि. रच., खं. 1, पृ. 419)

लाग-हाँट चलना मुहा. -- मुहा., मनमुटाव या झगड़ा बना रहना, उनके बीच काफी समय से लाग-डाँट चल रही है। (निराला-का, कार., पृ. 60)

लाग-हाँट सं. (स्त्री.) -- वैर-विरोध, शत्रुता, (क) इटली और फ्रांस में दिन-दिन लाग-डाँट बढ़ती जाती है। (शि. पू. र., खं. 3, पृ. 479) , (ख) चालिहा और बरुआ की लाग डाँट दिन पर दिन जोर पकड़ती जा रही है। (दिन., 21 अक्तू., 66, पृ. 41) , (ग) आजकल चीन और रूस की भारी लाग-डाँट है। काद., अग. 1968, पृ. 10)

लाग सं. (स्त्री.) -- एक प्रकार की दवा, वैकसीन, बहुत लोगों को यह जानने की इच्छा होगी कि प्लेग के टीके की लाग किस तरह तैयार की जाती है।... लाग तैयार करने का बड़ा कारखाना बंबई में है। (सर., जन. 1909, पृ. 14)

लागवियत सं. (स्त्री., बहु.) -- वाहियात बातें, इस तरफ तो वे मुसलमानों की माँग की लागवियत स्वीकार करते जाते हैं और दूसरी तरफ हिंदुओं को ठीक वही बात करने को कहते हैं, जो लोगों से पटुआ खाली के अधिकारियों ने कही। (ग. शं. वि. रच., खं. 3, पृ. 487)

लाँगूर सं. (स्त्री.) -- लांगूल, पूँछ, (क) जो जनता को अपनी लाँगूर में लपेटकर पछाड़ना चाहता है। (म. का मतः क. शि., 16 मई 1925, पृ. 185) , (ख) सरस्वती के सुकवि किंकर महाशय ने छायावाद के कवियों की लंगूरों में आग लगा दी। (माधुरी: अक्तू. 1927, पृ. 683)

लाँच सं. (स्त्री.) -- रिश्वतखोरी, बुंदेलखंड की भाषा में रिश्वत लेने को लाँच कहा जाता है। (मधुकर, वर्ष- 1, अंक-3, 1 नवं. 1940, पृ")

लांछन सं. (पु.) -- कलंक, दोष, (क) भारतीय राजनीति के एक विशेष शिविर पर लांछन लगाया। (दिन., 2. जुलाई, 67, पृ. 12), (ख) उन्होंने अपने पत्र में कॉन्फ्रेंस के ऊपर बहुत से लांछन लगाए । (ग . शं . वि . रच . खं . 2 , पृ . 381)(ग) अपनी विवशता का लांछन वे उन कार्यकर्ताओं पर लगाते हैं । (ग . शं . वि . रच . खं . 3 , पृ . 321)

लाँछना सं. (स्त्री.) -- धिक्कार, अपमान, उपनिवेशों में होनेवाली लाँछना देख-समझकर ऐसा कौन भारतवासी है जिसे क्रोध न होगा। (सं. परा. : ल. शं. व्या., पृ. 156)

लाज सं. (स्त्री.) -- शर्म, हया, संकोच, छुईमुई को तर्जनी मिली और वह लाज से भर गई। (रा. मा. संच. 1, पृ. 25)

लाजिमा सं. (पु.) -- किसी कार्य से संबद्ध आवश्यक वस्तुएँ, साज-सामान, उस बिहड़ देश में सारे लाजिमे के साथ यात्रियों का यात्रा करना कठिन प्रतीत होने लगा। (सर., अप्रैल 1921, पृ. 242)

लाठी ठपकारना मुहा. -- लाठी भाँजना, सपा के सत्ता में होने से यादवों को लाठी ठपकारने का विश्वास मिलता है। (हि. ध., प्र. जो., पृ. 297)

लाड़ सं. (पु.) -- प्यार, प्रेम, (क) जैसे-जैसे वह हारता, रुकमणी को उस पर और लाड़ आता। (काद. : जून 1982, पृ. 41) , (ख) सारे नेता उसे लाड़ से सहला रहे थे। (रा. मा. संच. 1, पृ. 24)

लाड़ला वि. (विका.) -- दुलारा, प्रिय, (क) देश के लोगों की लाड़ली सरकार रही हो और उसे गिराकर विपक्ष ने पाप किया है। (हि. ध., प्र. जो., पृ. 362), (ख) आपके लाड़ले उम्मीदवार चुनाव को मखौल बनाने पर तुले हुए हैं। (दिन., 03 सित., 67, पृ. 34)

लाड़ी सं. (स्त्री.) -- लाड़ली या प्रिय वस्तु, उनके किसी एकदम वफादार को मंत्री पद की लाड़ी नहीं मिली। (किल., सं. म. श्री., पृ. 42)

लाड़ेसट सं. (पु.) -- लाड़ला पुत्र, मेरे लाड़ेसट अपनी माँ के सामने दिल नहीं खोलेगा तो फिर किसके सामने खोलेगा। (काद., मार्च 1976, पृ. 148)

लातों से रौंदना सं. (स्त्री.) -- बोझ, लादा हुआ, सामान, दोनों देशों को जन-प्रतिनिधित्व और भाषा के मामले में एक नकली बँटवारे की लादी ढोनी पड़ी है। (दिन., 23 मार्च 69, पृ. 18)

लादी ढोना मुहा. -- भार उठाना, भारत सरकार यह लादी ढोने के बजाय पाक में मुजीबुर्रहमान के उदय का मार्ग प्रशस्त कर सकती थी । (दिन . 14 फर ।, 1971 , पृ 12)

लादी सं. (स्त्री.) -- बोझ , लादा हुआ , सामान , दोनों देशों को जन - प्रतिनिधित्व और भाषा के मामले में एक नकली बंटवारे को लादी ढोनी पड़ी है । (दिन . 23 मार्च 69 , पृ . 18)

लानत-मलामत सं. (स्त्री.) -- धिक्कार तथा फटकार, अनादर, अभी उसे लानत-मलामत के दौर से कई बार गुजरना पड़ेगा। (दिन., 30 अप्रैल, 67, पृ. 33)

लानत सं. (स्त्री.) -- धिक्कार, अगर हम आधुनिक लज्जाजनक का सुधार न करेंगे तो हमारे बाल-बच्चे हमें लानत देंगे। (सर., जुलाई 1912, पृ. 392)

लाफा सं. (पु.) -- थप्पड़, सब रो रही हैं। बोलती हैं, इधर क्यों लाया। तब दो-दो लाफे दिए सालियों को। (रवि., 30 अग. 1981, पृ. 21)

लामजहब वि. (अवि.) -- जिसका कोई मजहब न हो, नास्तिक, मंच पर बैठे लामजहब नौजवानों को देखा। (काद., फर. 1995, पृ. 77)

लामुहाला क्रि. वि. -- निस्संदेह, (क) अगर बाह्य जगत् में काम करना पड़ा तो लामुहाला मुझे भीड़ बन जाना पड़ेगा। (ए. सा डाय. : ग. मा. मु., पृ. 38), (ख) यहीं से मेरी कविता फूटेगी, लामुहाला। (दिन., 3 जन., 1971, पृ. 15)

लाय सं. (स्त्री.) -- आग, लौ, इन मरद मुस्टंडों को एक ही लाय लगी रहती है। (काद., मार्च 1976, पृ. 149)

लायकी सं. (स्त्री.) -- लियाकत, योग्यता, पुस्तकों की लायकी के परिमाण को ध्यान में रखकर इनाम नहीं दिया गया। (म. प्र. द्वि. रच., खं. 2, पृ. 510)

लार टपकना मुहा. -- अत्यंत लालायित होना, आतुर होना, औपनिवेशिक स्वराज के लिए जबान से लार टपक पड़ेगी। (मत., म. प्र. से. वर्ष 5, सं. 7, पृ. 3)

लार टपकाना मुहा. -- किसी चीज को पाने के लिए आतुरता दरशाना, हिजबुल से बात करने को हमारी लार टपक रही है। (किल., सं. म. श्री., पृ. 13)

लार बहाना मुहा. -- लार टपकाना, अत्यधिक लालायित होना, वे मूर्ख कुत्ते की तरह अधिकार ग्रहण करने की चिचोड़ी हुई हड्डियों पर जीभ निकालते हुए और लार बहाते हुए झपट पड़ने को उद्यत हैं। (न. ग. र., खं. 4, पृ. 81)

लाल अवलख वि. (अवि., पद.) -- जिसका चेहरा लाल फूल के समान सुर्ख हो, मेरी बहिन के पुत्र उत्पन्न हुआ जो कि लाल अवलख है। (मधुकर 1 अक्तू. 194, पृ. 9)

लाल-पीला होना मुहा. -- क्रुद्ध होना, (क) मुरारजी भाई की तल्ख टिप्पणी पर सुब्रहमण्यम देर तक लाल-पीले होते रहे। दिन., 10 सित., 67, पृ. 12) , (ख) भुट्टो के लाल-पीले हो उठने के लिए यह काफी था। (दिन., 11 मई 1969, पृ. 31)

लाल-बुझक्कड़ सं. (पु.) -- अटकलपच्चू बातें करनेवाला व्यक्ति, वे लाल-बुझक्कड़ की सुनकर चुप हैं। (काद, मार्च 1976, पृ. 144)

लाल-बुझक्कड़ी वि. (अवि.) -- अटकलपच्चू, नवीन बात को न समझने पर भी उनकी लाल-बुझक्कड़ी व्याख्या करने की आदत न गई। (ग. शं. वि. रच., खं. 1, पृ. 187)

लाल-भभूका वि. (विका.) -- अत्यधिक सुर्ख, चेहरा कैसा लाल भभूका बन रहा था। (बे. ग्रं., भाग 1, पृ. 18)

लाल-लाल आँखें दिखाना मुहा. -- आतंकित करना, कोई आयुर्वेदिक संस्थाओं की सहायता करने पर कटिबद्ध होता है, तो सरकार लाल-लाल आँखें दिखाकर उन्हें रोक देती है। (मा. च. रच., खं. 9, पृ. 98)

लालायित वि. (अवि.) -- अत्यंत उत्सुक, मराठी भाषी महाराष्ट्रीय जनता भी गोआ को खुद में शामिल करने के लिए उत्साहित और लालायित है। (दिन., 21 फर. 1965, पृ. 40)

लालोलाल वि. (अवि.) -- मालामाल, अतिसमृद्ध, राम सिंह गाड़ी ले जाते थे माल अधिक बिकता था। आजकल लालोलाल हैं। (का. कार. : नि., पृ. 32)

लासा लगाना मुहा. -- प्रलोभन देना, पढ़ने से उपेक्षा करनेवालों को लासा लगाकर खेंचने के लिए अपने कॉलेज काम देते हैं। (चं. श. गु. र., खं. 2, पृ. 333)

लासा सं. (पु.) -- चिपचिपा पदार्थ, ऐसा लासा लगाकर कंपा भिड़ाते कि लाख पंख फड़कने पर भी निकलना कठिन हो जाता। (शि. पू. र., खं. 4, पृ. 130)

लासानी वि. (अवि.) -- अद्वितीय अतुलनीय, अनुपम, (क) चुनावी दंगल में यह राजनेता लासानी है उसे क्या खाकर हराओगे। (काद. : जुलाई 1977, पृ. 12) , (ख) अक्षर और छपाई के हिसाब से उस समय के पत्रों में वह लासानी था। बा. गु. : गु. नि., संपा.-झा. श., खं. 5, पृ. 333)

लासेबाज वि. (अवि.) -- फँसा लेनेवाला, फुट्टफेरी नहीं समझे यह समुरा बड़ा लासेबाज था। (रा. द. श्रीला. शु., पृ. 88)

लिक्खाड़ सं. (पु.) -- लेखक, इसके लिए वे नामी-नामी लिक्खाड़ों से भिड़ गए। (बाल. स्मा. ग्रं. : शर्मा, चतुर्वेदी, पृ. 295)

लिखत सं. (स्त्री.) -- लिखावट, ब्रश को आगे-पीछे करते हुए वह जैसे एक लिखत मिटा देते हैं और नई लिखत लिख आते हैं। (दिन., 18 जन. 1970, पृ. 40)

लिखा-पढ़ी सं. (स्त्री.) -- कागजी कार्रवाई, लिखापढ़ी के दल-दल में फँसी हैं पानी की योजनाएँ। लो. स., 16 अप्रैल 1989, पृ. 8)

लिखास सं. (स्त्री.) -- लिखने की इच्छा, क्या करूँ लिखास इसी वक्त आ गई। (मा. च. रच., खं. 3, पृ. 46)

लिजलिजा वि. (विका.) -- नरम, गीला तथा चिपचिपा, कमजोर, भारत यदि दुनिया से कट जाए तो शायद वह एक बेहद निकम्मा पोंगा और लिजलिजा देश बन जाएगा। (रा. मा. संच. 2, पृ. 31)

लिजलिजापन सं. (पु.) -- लिजलिजा होने की अवस्था या भाव, शक्तिहीनता, बच्चन इस फिल्म में बुजुर्ग प्रेमी की भूमिका में हैं मगर यहाँ लिजलिजापन य कामुकता नहीं। (इं. टु., 13 जून 2007, पृ")

लिथड़ना क्रि. (अक.) -- मलिन होना, भीतर का मानव पतन की गंदी कीच में लिथड़ा पड़ा था। (हि. पत्र. के गौरव बां. बि. भट., संपा.-ब. (सा. हि.) र, 13 जन. 1957, पृ. 193)

लिपा-पुता वि. (विका.) -- लीप-पोतकर तैयार किया हुआ, ये छोटे-छोटे साफ-सुथरे घर, यह लिपा-पुता चिक्कन ढुर-ढुर आँगन। (बे. ग्रं., प्रथम खं., पृ. 9)

लिफाफेबाजी सं. (स्त्री.) -- शरारत भरी बातें करने की क्रिया, आदत या भाव, शोशेबाजी, यह बताना मुश्किल हो जाएगा कि राजनीतिक लिफाफेबाजी के अलावा भी वे कुछ कर रहे हैं। (रवि., 4 जन. 1981, पृ. 17)

लिवाली सं. (स्त्री.) -- खरीददारी, ज्यादा लिवाली से दलहनों में तेजी, चावल लुढ़का, चना टूटा, गेहूँ चढ़ा और चने के अगऊ सौदे हुए। (लो. स., 16 जन. 1989, पृ. 9)

लीक डालना मुहा. -- रेखा खींचना, चाहे इन्होंने समुद्र पर लीकें डालने का यत्न किया हो। (गु. र., खं. 1. पृ. 498)

लीक पीटना मुहा. -- पुरानी प्रथा का बिना सोचे-समझे अनुकरण करना, (क) मैं उसका समर्थक ही नहीं परंतु लीक पीटनेवाले ब्रज भाषा कवियों का निंदक भी हूँ। (गु. र., खं. 1, पृ. 242) , (ख) दान पाने का वही अधिकारी है जिसके बाप-दादा लीक पीटते आए हैं। (भ. नि., पृ. 32)

लीक सं. (स्त्री.) -- रेखा, 1. लकीर, (क) उनके चेहरे पर संतोष की लीकें स्पष्ट दिखाई देती थीं। (दिन., 13 जुलाई 196, पृ. 37), (ख) सबके चेहरों पर हिकारत की लीकें खिंच गईं। (दिन., 19 सित. 1971, पृ. 33), 2. ढर्रा, और न द्विवेदीजी मनसारामजी को कह सकते हैं कि आप मेरी लीक पर क्यों चले हैं। (चं. श. गु. र., खं. 2. पृ. 304)

लीचड़ वि. (अवि.) -- सुस्त, आलसी, निकम्मा, वह इतना लीचड़ है कि रोजगार के लिए हाथ तक हिलाने को तैयार नहीं। (काद., अग. 1978, पृ. 8)

लीचड़पन सं. (पु.) -- निकलम्मापन, सुस्ती, सिद्धांतों के प्रति मस्तिष्क का लीचड़पन राजनीतियों की कमजोरी है। (कर्म., 12 अप्रैल 1947, पृ. 3)

लीप-पोतकर बराबर करना मुहा. -- पूरी तरह से चौपट करना, नष्ट करना, योजनाओं की उपलब्धि को अन्न की कमी और चोर-बाजारी ने लीप-पोतकर बराबर कर दिया। (दिन., 06 अग., 67, पृ. 26)

लीपना-पोतना क्रि. (सक.) -- लीपापोती करना, विकृत करना, बिगाड़ना, गाँधी की याद तो स्कूली और सरकारी प्रकाशनों में इतनी लीप-पोत दी गई है कि अब वह धुँधला गई है। (दिन., 12 अक्तू. 1969, पृ. 10)

लीपापोती सं. (स्त्री.) -- दोष ढकने की कार्रवाई, नष्ट करना, बरबाद करना, (क) बंबई सरकार ने निजारा की इस लीपापोती को गलत और मनगढ़ंत बताया है। (कर्म., 2 मई 1948, पृ. 5) , (ख) नर्मदा कमिश्नरी के कमिश्नर मि. बोर्न के कार्यों की लीपापोती कर दी। (मा. च. रच., खं. 10, पृ. 117) , (ग) साफ-साफ बात करने में शान नहीं रहती। इसीलिए यह लीपा-पोती (इंग्लैंड द्वारा) की गई है। (न. ग. र., खं. 2, 194)

लीलना क्रि. (सक.) -- निगलना, इन्हीं दिनों चेकोस्लोवाकिया को बड़े बीभ्तस हथकंडों स साम्यवादी खेमे ने लील लिया था। (रा. मा. संच. 1, पृ. 269)

लुआब हो जाना मुहा. -- व्यर्थ हो जाना, यह दशा देखकर तो यही कहना पड़ता है कि सारी राशि ही लुआब हो गई। (सर., दिस. 1926, पृ. 716)

लुकना क्रि. (अक.) -- छिपना, लड़कपन में जब कृष्ण आँख-मिचौली खेलते थे तब इसी कंदरा के भीतर लुक रहा करते थे। (सर., सित. 1918, पृ. 143)

लुकमा छीनना मुहा. -- कौर छीनना, आजीविका छीनना, सरकार नियंत्रित जेसप कंपनी के मुँह से सोन जलाशय के निर्माण का लुकमा छीन लेने का आरोप लगाया। (दिन., 11 जून, 67, पृ. 13)

लुका-छिपी सं. (स्त्री.) -- लुकने-छिपने की क्रिया, खेल य भाव, अमेरिका के लिए टोह लेने का यह खेल लुका-छिपी का हो सकता है। (दिन., 6 जून, 67, पृ. 37)

लुके-छिपे क्रि. वि. -- लुक-छिपकर, वे कोनों और जंगलों में लुके-छिपे फिरे। (ग. शं. वि. रच., खं. 2, पृ. 217)

लुगाई सं. (स्त्री.) -- स्त्री, महिला, कोई भी लुगाई मेरे पास आने से पहले तुमसे मिलेगी। (रवि., 19 जुलाई 1981, पृ. 39)

लुंगी कसना मुहा. -- सन्नद्ध होना, अपने राज्य में समाजवादी कार्यक्रम ताबड़तोड़ लागू करने के लिए लुंगी कसकर आमादा हो गए। (रा. मा. संच. 2, पृ. 51)

लुचई सं. (स्त्री.) -- बड़ी पूड़ी, हम नहीं जानते लोगों को रोटी खाना कैसे पसंद आता है, हमको तो दोनो जून ताजी-ताजी लुचई और बेढ़नी मिलती जाय तो कभी कच्ची रसोई का नाम न लें। (भ. नि., पृ. 66-67)

लुचपुच वि. (अवि.) -- अस्थिर, लचर, उस लुचपुच स्थिति में भी सरस्वती हिंदी की सर्वोत्तम पत्रिका थी। (काद.: फर. 1978, पृ. 90)

लुचलुचा वि. (विका.) -- शिथिल, ढीला-ढाला, राय बहादुर नेताओं की लुचलुची राजनीति में पड़कर यदि इस सत्याग्रह का महत्त्व नष्ट कर दिया गया तो हिंदू समाज के लिए यह बहुत बुरा हगा। (ग. शं. वि. रच., खं. 3, पृ. 488)

लुच्चई सं. (स्त्री.) -- लुच्चापन, गुंडई, जमींदार का सिपाही, लत लुच्चई की पड़ी हुई। (का. कार. नि., पृ. 24)

लुंज-पुंज वि. (अवि.) -- पंगु, असहाय, अशक्त, (क) क्या ऐसी लुंज-पुंज और ढीली-ढाली केंद्रीय सरकार अच्छी है जिससे मुख्यमंत्री मुगल सूबेदारों की तरह सार्वभौम हो जाए। (रा. मा. संच. 2, 311), (ख) आपातकाल के पहलेवाला लुंज-पुंज संकल्पविहीन आंदोलन ग्रस्त राज लौट आए, यह शायद कोई नहीं चाहेगा। रा. मा. संच. 1, पृ. 294)

लुंज वि. (अवि.) -- पंगु, ... गालियाँ वाणी के लुंज हो जाने का प्रमाण है। (दिन., 11 से 17 सित. 1977, पृ. 14)

लुटिया डुबोना मुहा. -- बहु बड़ी हानि करना, संकट में डालना, अहित करना, (क) हम समझते हैं कि शांतिकाल में वे (चर्चिल) ब्रिटेन की लुटिया डुबो देंगे। (न. ग. र., खं. 2, पृ. 250) , (ख) कहीं जौ के साथ घुन पिस गया है, कहीं बुरे ने भले की राह बिगाड़ी है, कहीं दोनों ने लुटिया डुबोई है। (शि. पू. र., खं. 4, पृ. 572) , (ग) यदि हम इसी तरह आपस में रार करते रहे तो हम राष्ट्र की लुटिया डुबा देंगे। (कर्म., 10 जून, 1950, पृ. 3)

लुट्टा-छुट्टा वि. (विका.) -- लुटेरा और आवारा, अन्यथा उसके जैसे लुट्टे-छुट्टे लोग तो भैंस बेचकर खा जाएँगे। (रवि. 13 दिस., 1981, पृ. 15)

लुढ़कन सं. (स्त्री.) -- गिरावट, पतन, 1967-72 की जिस लुढ़कन का थमना असंभव लगता था, वह क्यों यमी ? (रा. मा. संच. 1, पृ. 281)

लुढ़कना क्रि. (अक.) -- मूल्य का ह्रास होना, गिरना, ज्यादा लिवाली से दलहनों में तेजी चावल लुढ़का, चना टूटा, गेहूँ चढ़ा और चने के अगऊ सौदे हुए। (लो. स., 16 जन. 1989, पृ. 9)

लुत्ती सं. (स्त्री.) -- जलती हुई लकड़ी, लूक, बारूद के ढेर में आग की लुत्ती पड़ गई। (प. परि. रेणु. पृ. 5)

लुनना क्रि. (सक.) -- काटना, (क) गाँवों में मजदूरों को खेती बोने और लुनने के सिवा काम नहीं मिलता। (मा. च. रच., खं. 10, पृ. 219) , (ख) इन तीनों ने व्याकरण-खेती को लुन लिया। (चं. श. गु. र., खं. 2, पृ. 99)

लुनाई सं. (स्त्री.) -- लावण्य, सुंदरता, (क) बदन पर लुनाई, आँखों में चमक और मन में फलने-फूलने की उमंग। (हि. ध., प्र. जो., पृ. 128) , (ख) मुख्यमंत्री के चेहरे पर आत्मविश्वास और सत्ता की लुनाई थी। (रवि. 11 मार्च 1978, पृ. 23)

लुंपन वि. (अवि.) -- लुप्तप्राय, हिंदू समाज के लुंपन तत्त्वों की अभिव्यक्ति के लिए बजरंग दल, दुर्गावाहिनी आदि का गठन किया। (हि. ध., प्र. जो., पृ. 297)

लुब्ध वि. (अवि.) -- मुग्ध, मोहित, आसक्त, (ख) बाह्य सौंदर्य पर इतने लुब्ध न हों कि गुण की उपेक्षा हो जाए। (काद. : अक्तू. 1980) , (ख) कलात्मक वस्तुओं पर कौन लुब्ध नहीं होता। (काद., मई 1995, पृ. 5)

लुर वि. (अवि.) -- अशिष्टतापूर्ण, मूर्खतापूर्ण, नहीं तो आपकी आपत्ति महज लुर है। (म. प्र. द्वि., खं. 1, (बा. मु. गु.) , पृ. 349)

लूक सं. (स्त्री.) -- आग की लपट,) क) किस्मत ने आज कलेजे में लूक सी लगा दी। (शि. पू. र., खं. 3, पृ. 343) , (ख) निर्जीव आग की लूक के स्पर्श से अपना अंग हटाया नहीं करता। (ग. शं. वि. रच., खं. 2, पृ. 480)

ले डूबना मुहा. -- कहीं का न रहने देना, नष्ट करना, राजनीति सबको ले डूब रही है। (दिन., 03 फर., 67, पृ. 5)

ले तेरे की, दे तेरे की मुहा. -- किसी से उसके मनमाफिक बात कहना, उनकी यही नीति रही है कि मजदूरों के बीच खूब ले तेरे की दे तेरे की कहते जाओ। (न. ग. र., खं. 4, पृ. 250)

ले-देकर क्रि. वि. -- अंततः लेकिन कहीं पर शायद ले - देके बात बराबर हो जाती है । (दिन . 21 जुलाई

लेखा जौ-जौ, बखसी सौ-सौ कहा. -- काम छोटा पर पुरस्कार बड़ा, लेखा जौ-जौ, बखसी सौ-सौ, तुमने जो कुछ दिया होगा, उसका कोई हिसाब नहीं। (प्रे. स. क. : सर. प्रेस, पृ. 113)

लेखा ड्योढ़ा बराबर होना मुहा. -- हिसाब-किताब बराबर होना, मन लुभाने की बातें कही गईं, ऐसी बातें भी जिनसे लेखा ड्योढ़ा बराबर हो जाए (ग. शं .वि . रच . खं . 3 , पृ. 202)

लेने के देने पड़ना क्रि. वि. -- अंततः, अंत में नाटककार को शायद कुछ आगाही हो गई थी कि ले-देके हश्र यही होना था। (दिन., 19 नवं. 1965, पृ. 45)

लेने के देने पड़ना मुहा. -- घाटे में रहना, लाभ की जगह नुकसान होना, (क) इस पुरानी जमी हुई दुकान का दिवाला निकल गया। लेने के देने पड़ गए। (गु. र., खं. 1, पृ. 104) , (ख) पर साल-तमामी में वे रकमें तो जैसे बिला जाती हैं और उलटे लेने के देने पड़ जाते हैं। (नि. वा. : श्रीना. च., पृ. 616) , (ग) रसूली की फौज ने स्पेनिश फौज की ऐसी खबर ली कि उसे लेने के देने पड़ गए। (न. ग. र., खं. 2, पृ. 190)

लेवाल सं. (पु.) -- लेनेवाला, खरीददार, वही संबंध होगा जो क बैंक और उसके लेवाल-देवाल का होता है। (न. ग. र., खं. 2, पृ. 160)

लेश सं. (पु.) -- बहुत थोड़ा अँश, किंचित् मात्र अंश, इन विद्यापीठों में ज्ञान का लेश भी देश को नहीं मिल रहा है। (सं. परा. : ल. शं. व्या., पृ. 45)

लेशमात्र वि. (अवि.) -- बहुत थोड़ा भी, जरा भी, हमें इसमें लेशमात्र भी संदेह नहीं है। (सा. हि., 20 मई 1956, पृ. 4)

लैया सं. (स्त्री.) -- लाई, मुरमुरे, खोमचेवाला पुकार रहा था लैया करारी। माधुरी: अग.-सित. 1928, पृ. 263)

लों निपा., तक -- आपने छत्तीसगढ मित्र को तीन वर्ष लों जीवित रखकर अपनी अनुपम उदारता का परिचय दिया है। (छ. मि., पृ. 584)

लोकना क्रि. (सक.) -- लपकना, (क) कोई भी उसकी प्रश्नो की सन्नाटेदार गेंद लोक ले। (साक्षा., मार्च-मई 77, मृ. पां. पृ. 29), (ख) एक हाथ से कैथे फेंककर दूसरे से लोकते हुए क्रिकेट का शौक पूरा किया। (निराला : डॉ. रा. वि. श., पृ. 11)

लोकांतर सं. (पु.) -- परलोक (क) पहले यहाँ कुछ अच्छा कार्य करो, फिर लोकांतर की बात सोचो। (काद. : जन. 1989, पृ. 7) , (ख) लोकांतर गमन जीव की दूसरी अवस्था ही है। (काद., मई 1995, पृ. 5)

लोच सं. (स्त्री.) -- लचीलापन, लचक, मालवी के लोक साहित्य में लोच है, संवेदना है। (दिन., 11 जुलाई 1971, पृ. 16)

लोट-पोट होना मुहा. -- अति प्रसन्न होना, (क) इन पत्रों को पढ़कर हमारा समाज लोट-पोट हो जाता है। (दिन., 6 जून, 67, पृ. 9) , (ख) रंग-बिरंगे दरवाजं, कड़ियों, छतों और खंभों की सजावट देखकर लोग लोट-पोट हो जाते थे। (सर., जन. 1909, पृ. 27) , (ग) यदि आप लेखिका हैं, तो आपके समीक्षक लोट-पोट हो जाएँगे। (रवि., 13 दिसंबर 1982, पृ. 5)

लोटन कबूतर मुहा. -- अत्यधिक प्रसन्न होनेवाला व्यक्ति, (ख) सम्मेलन के सभापति, निर्वाचन के प्रस्ताव में साहित्यिक चमत्कार से भरे विनोद का समावेश करके प्रतिनिधियों को हँसाते-हँसाते लोटन कबूतर बना देते हैं। (शि. पू. र., खं. 3, पृ. 82), (ख) तीनों विशेषण और तीनों तरह की तल्लीनता जिसके जानने में लोटन कबूतर हो रहे हैं। (च. श. गु. र., खं. 2, पृ. 350)

लोढ़ना क्रि. (सक.) -- तोड़ना, हम आकाश-कुसुम लोढ़कर सफलता देवी के चरणों में पुष्पांजलि चढ़ाना चाहते हैं। म. का मतः क. शि., 24 नव. 1923, पृ. 126)

लोथा सं. (पु.) -- लोथड़ा, जिन आँखों में भयंकर लड़ाइयों में लोथों पर लोथे और अधकटे रुंडमुंडों के रोमांचकारी हृदय देखकर भी दया की बेदी पर दो आँसू न चढ़ाए थे। (सर., जन. 1915, पृ. 2)

लोंदा सं. (पु.) -- गीली मिट्टी का छोटा ढेला, (क) उसको मिट्टी के लोंदों की ऊँचाई देकर फूस से ढक दिया। (फा. दि. चा., वृ. ला. व. समग्र, पृ. 556), (ख) सिर पर जो एक लाठी लगी थी, उससे खून निकलकर ललाट होते, भौं के ऊपर जमकर वह एक लोंदा सा बन गया था। (बे. ग्रं., प्रथम खं., पृ. 15)

लोना सं. (पु.) -- लोंदा, भाँग का गोला, सुंदर बड़ी सिल पर भाँग की पत्तियाँ लोने-के-लोने पीसता-पीसवाता। (बे. ग्रं., प्रथम खं., पृ. 75)

लोप हो जाना मुहा. -- लुप्त हो जाना, अस्तित्व खो बैठना, श्रीअरविंद के इस जगत् से उठ जाने से आध्यात्मिक जगत् की एक महान् विभूति लोप हो गई। (मा. च. रच., खं. 4, पृ. 233)

लोमहर्षक वि. (अवि.) -- रोएँ खड़े कर देनेवाला, भयानक, इस अत्याचार का दूसरे दिन जो भयानक बदला लिया गया उसका लोमहर्षक विवरण अब समाचार-पत्रों में प्रकाशित हुआ है। (सर., मई 1937, पृ. 517)

लोमहर्षण सं. (पु.) -- रोमांच, खिलाड़ी के उत्तम खेल से दर्शकों में लोमहर्षण होता है। (काद., नव. 1995, पृ. 6)

लोलक सं. (पु.) -- लटकन, पेंडुलम, इस छोर से उस छोर तक हमारे पसंदगी का लोलक घूमता रहता है। (रा. मा. संच. 2, पृ. 312)

लोहखर सं. (पु.) -- उस्तरा, अब हम अपना लोहखर उठा रहे हैं। कैसा लोहखर? हजामत बनानेवाला। (काद., जन. 1978, पृ. 75)

लोहा बजाना मुहा. -- हड़कंप करना, जमींदार ऐसे सरहंग थे कि बिना लोहा बजाए मालगुजारी नहीं देते थे। (बा. भ. : भ. नि., भाग-2, पृ. 10)

लोहा मानना मुहा. -- श्रेष्ठता या महत्त्व स्वीकार करना, हिंदी में गद्य शैली की ऐसी दृढ़ स्थापना कर दी, जिसका लोहा अब भी माना जाता है। (नि. वा. : श्रीना. च., पृ. 761)

लोहा लेना मुहा. -- वीरतापूर्वक, सामना करना, मुकाबला करना, (क) राजपूत आए दिन लोहा लेते फिरते हैं। (शत. खि., ह. कृ. प्रे., पृ. 15) , (ख) अभी जापान लोहा लेने के लिए तैयार नहीं होगा। (नि. वा. : श्रीना. च., पृ. 816)

लोहा-लंगर सं. (पु.) -- लोहा और लोहे का सामान, शताब्दियों तक लोहा-लंगर के बीच हाथ काला करने के बाद अमेरिका में यह सफेदपोशी आई है। (रा. मा. संच. 2, पृ. 136)

लोही लगना सं. (पु.) -- दीपक जलाने का समय होना, लोही लगने पर वह लौटता। (लाल-तारा, पृ. 2)

लोहे का चना होना मुहा. -- अत्यधिक कठोर होना, जो ब्रह्म और जीव का झगड़ा आपने बोया वह तो लोहे के चने थे। (बाल. स्मा. ग्रं. : शर्मा, चतुर्वेदी, पृ. 374)

लौ लगना मुहा. -- लगन लगना, (क) लौ लगी तो एक फूटी झंझी भी खरच करते या किसी को देते बहुत अखरता है। (भ. नि., पृ. 71) , (ख) हृदय में अपने गाँववाले भाइयों की सेवा की लौ लगी है। (वि. भा., जन. 1928, सं. 1, पृ. 374)

लौट-फेर सं. (पु.) -- आवाजाही, आना-जाना, उसकी यात्रा कभी खतम नहीं होती वह उस लौट-फेर में लगा रहता है। (सर., भग-25, खं. 1, जन. 1924, सं. 1, पृ. 6)

लौंडों की दोस्ती जी का जंजाल कहा. -- अज्ञानी का साथ सदैव संकट का कारण होता है, उनके लिए कहाँ तक वकालत की जाए। लौडों की दोस्ती जी का जंजाल। (रा. द., श्रीला. शु., पृ. 374)

वक्तन-बेवक्तन क्रि. वि. -- समय-असमय, समय कुसमय, बैंक वक्तन-बेवक्तन जर्मन सरकार को कर्जा दे सकेगा। (न. ग. र., खं. 2, पृ. 160)

वक्ती तौर पर क्रि. वि. (पदबंध) -- समयानुसार, पैंतरेबाजी करके वक्ती तौर पर सफलता प्राप्त कर लेना ही हमारे नेताओं का रोग रहा है। (रवि. 22 मार्च 1980, पृ. 30)

वक्ती वि. (अवि.) -- समयानुसार होनेवाला, सामयिक, जो भी वक्ती प्रतिमान बनेगा उसका दायरा सीमित ही होगा। (दिन., 2 दिस., 66, पृ. 40)

वक्तृता सं. (स्त्री.) -- व्याख्यान, भाषण, श्रीमान संपतराव गायकवाड़ ने एक वक्तृता देकर सम्मेलन का काम आरंभ किया। (सर., दिसंबर 1909, पृ. 531)

वचनावली सं. (स्त्री.) -- शब्द-समूह, वाक्य या वक्तव्य, वहाँ ऐसे भोले भक्तों का टोटा नहीं, जो लाट साहब की इस वचनावली को सुनकर धन्य हो उठें। (मा. च. रच., खं. 10, पृ. 157)

वचसा क्रि. वि. -- वचन से, वचन के अनुसार, उसने अपने संकल्प की वचसा पूर्ति की। (काद. : मई 1978, पृ. 11)

वदान्य वि. (अवि.) -- मधुर भाषी, वह लेखनी का धनी ही नहीं वदान्य भी है। (काद., सित. 1981, पृ. 14)

वन्या सं. (स्त्री.) -- वन की उपज, उपज, संस्कृति और सभ्यता की वन्या को झेलते जो अपनी भूमि के प्रति निष्ठित रहे हैं। दिन., 21 मई, 67, पृ. 40)

वपन सं. (पु.) -- बोने की क्रिया या भाव, बोआई, लेखक ने यह उपन्यास समाज के भीतर क्रांति का बीज वपन करने की इच्छा से लिखा है। (सर., अक्तू. 1922, भाग-23, खं. 2, सं. 4, पृ. 255)

वरक सं. (पु.) -- पन्ना, समय की उँगली इतिहास का वरक उलट देती है। (न. ग. र., खं. 2, पृ. 104)

वरंच -- (योजक) , वरना, वरंच वह समझते कि लेखक ने भूल से गई को गया लिख मारा है। (म. प्र. द्वि., खं. 1, (बा. मु. गु.) , पृ. 349)

वरेण्य वि. (अवि.) -- वरण करने योग्य, वरीय, श्रेष्ठ, (क यह सीमित जोखिम विश्वयुद्ध की संभावना के खतरे के मुकाबले वरेण्य है। (दिन., 6 जून, 67, पृ. 37) , (ख) संस्था के वरेण्य शिक्षकों के सम्मान में सभा आयोजित की गई। (काद., जन. 1993, पृ. 7)

वर्जना सं. (स्त्री.) -- मनाही, निषेध, बात-बात में वर्जना उचित नहीं है। (काद., मार्च 1978. पृ. 11)

वर्तन सं. (पु.) -- व्यवहार, सीताजी के प्रति रामचंद्रजी के वर्तन में निर्दयता नहीं थी। उसमें राजधर्म और पति प्रेम का द्वंद्व था। (वीणा, जन. 1934, पृ. 468)

वर्तनीय वि. (अवि.) -- बरतने योग्य, व्यवहार में लाने योग्य यहाँ के लिए संरक्षण नीति ही वर्तनीय है। (स. सा., पृ. 60)

वर्धमान वि. (अवि.) -- बढ़ता हुआ, उसका वर्धमान यश उसके सुकर्मों का फल है। (काद. : जन. 1986, पृ. 5)

वलय सं. (पु.) -- घेरा, अमरीका में वृक्षों के तनों की (के) वलयों से नई-नई जानकारी एकत्र की जा रही है। (काद., फर. 1987, पृ. 35)

वंशी टेरना या बजाना मुहा. -- पुकार मचाना, रट लगाना, उसकी इच्छा है कि स्वराज्य दल को धता बताकर फिर असहयोग की वंशी टेरी जाए। (म. का मत: क. शि., 8 दिस. 1923, पृ. 130)

वश्यता सं. (स्त्री.) -- अधीनता, (क) कितने नष्ट हुए और कितनों ने वश्यता स्वीकार कर ली। (सर., भाग 28, पृ. 598) , (ख) लोग अभी भी सामाजिक कुरीतियों की वश्यता में जकड़े हुए हैं। (काद. : अप्रैल 1982, पृ. 6) , (ग) मैं जीतेजी मुसलमानों की वश्यता स्वीकार न करूँगा। (सर., जून 1924, पृ. 622)

वसति सं. (स्त्री.) -- बस्ती, 85 कवि ऐसे हैं, जिनके वसति स्थान का पता नहीं चला। (म. प्र. द्वि. रच., खं. 2, पृ. 202)

वसन सं. (पु.) -- वस्त्र, कपड़े, संन्यासी के लिए मात्र गेरूआ वसन धारण करना ही काफी नहीं है। (काद. : अग. 1980, पृ. 10)

वसीका सं. (पु.) -- वृत्ति, पेंशन, ये सभी शाहजादे अवध के नवाब के खानदान के हैं और सरकार उन्हें वसीका देती है। (नव., मई 1952, पृ. 56)

वसीला सं. (पु.) -- जरिया, माध्यम, (क) हाय अब अंग्रेजी के हटने से नौकरी का वसीला बंद हुआ। (सर., भाग-25, खं. 1, जन. 1924, सं. 3, पृ. 385) , (ख) म्यिसिपैल्टी के पास आमदनी के दो वसीले होते हैं। (सर., नव. 1920, पृ. 237)

वह गुड़ नहीं जिसे चींटे खा जाएँ -- कहा., जो आसानी से अधिकार में न आए, (क) अमेरिका को याद रखना चाहिए कि जापानी या एशियावासी वह गुड़ नहीं जिसे चींटे खा जाएँ। (न. ग. र., खं. 2, पृ. 181) , (ख) न तो लाई वेवेल ही वह गुड़ हैं जिसे चींटे खा जाएँ और न देश के अन्य राष्ट्रीय दल ही ऐसे हैं कि वे जिन्ना साहब की झाँसापट्टी में आ जाएँ। (न. ग. र., खं. 4, पृ. 143)

वहम का मारा वि. (विका.) -- वहमी, शंकालु कुछ लोग वहम के मारे होते हैं। (नव., फर. 1958, पृ. 49)

वाग्मी सं. (पु.) -- कुशल वक्ता, आप भी बड़े वाग्मी, निःस्वार्थ और विद्वान् ब्राह्मण थे। (सर., जुलाई 1917, पृ. 21)

वाग्वितंडा सं. (पु.) -- बहस, वाद-विवाद, राम के वनवास के संबंध में अयोध्या के राजभवन में जो वाग्वितंडा हुई (हुआ) उसमें भी इस निर्दोष राजकुमार के प्रति दो एक बार अन्याययुक्त कटाक्षपात हुए। (सर., फर. 1912, पृ. 89)

वाचा फोड़ना मुहा. -- बोलने के लिए तैयार करना, जबान खुलवाना, हमारा नेतृत्व अपने ही बलवान साधनों के प्रति उदासीन है, हमारा काम जनता की वाचा फोड़ना है। (रा. मा. संच. 2, पृ. 356)

वातायन सं. (पु.) -- रोशनदान, भारत का यह फ्रांसीसी वातायन जितनी जल्दी भारत के आलोक को स्वीकार करेगा, अपना अस्तित्व सार्थक करेगा। (दिन., 25 नव., 06, पृ. 41)

वादानुवाद सं. (पु.) -- वार्त्तालाप, परिचर्चा, वादानुवाद केवल रूस और मित्र राष्ट्रों के बीच में ही नहीं था, बल्कि इसमें तीन दल थे। (सर., सित. 1922, पृ. 172)

वापरना क्रि. (सक.) -- व्यवहार में लाना, (क) सामयिक भावुकता न वापरते हुए कुछ असामयिक बौद्धकता वापरें। (काद. : मई 1975, पृ. 48) , (ख) लोगों से अपील है कि वे नोट सँभालकर वापरें। (ज. स. : 26 दिस. 1983, पृ. 4)

वामपंथिता सं. (स्त्री.) -- वामपंथी होने की अवस्था या भाव, वामपंथियों की विचारधारा वामपंथिता का देश में अवमूल्यन हो चुका है। (रा. मा. संच. 2, पृ. 109)

वायवीय वि. (अवि.) -- नाजुक, सुकुमार, इस वायवीय सौंदर्य से गुजरने के बाद भी मैं उससे पूरा आश्वस्त नहीं हो पाता। (काद., जून 1977, पृ. 127)

वार-विलासिनी सं. (स्त्री.) -- वारांगना, वेश्या, वह एक वार-विलासिनी थी-मणि-माणकों से भूषित नील पीतांबर से आच्छादित, यौवन मद में चूर। (माधुरी: सित. 1927, पृ. 332)

वारा-न्यारा सं. (पु.) -- ऐसी क्रिया का अंत, जिसमें अंतिम निर्णय तक पहुँचा जाए, निपटारा, (क) उनमें करोड़ों का वारा-न्यारा होता है। (काद., जुलाई 1995, पृ. 22) , (ख) लेकिन यदाकदा, चार-पाँच साल में एक बार वह जागती है, अपने हड़कंप से काफी वारा न्यारा कर दी और फिर सो जाती है। (रा. मा. संच. 1, पृ. 470) , (ग) बेचारी हिंदी का और उसके साथ भारतीय संस्कृति का वारा न्यारा करने पर उतारू है। (सं. परा. : ल. शं. व्या., पृ. 19)

वारापार सं. (पु.) -- आदि-अंत, ओर-छोर, वेद ईश्वरीय ज्ञान का अनंत और अखंड भंडार है। उसका कोई वारापार नहीं है। (धर्म., 6 फर. 1966, पृ. 19)

वारी सं. (स्त्री.) -- बारी, बगीचा, इसके बाद तो आम की वारियों की बड़ी रखवाली करनी पड़ती है। (दिन., 7 अप्रैल, 67, पृ. 39)

वाहियात वि. (अवि.) -- बेहूदा, निरर्थक, पूरा कांड एक बहुत ही वाहियात वाकये की परिणति है। (रवि. 18 मार्च 1978, पृ. 23)

वाही-तबाही बकना मुहा. -- ऊट-पटाँग बोलना, अनाप शनाप बकना, गोरी सभा बौखला उठती है, वाही तबाही बकने लगती है। (म. का मतः क. शि., 26 अप्रैल 1924, पृ. 146)

वाही-तबाही सं. (स्त्री.) -- अनाप-शानाप, अपशब्द, हर नेता से पुलिस डरती है, न जाने क्या वाही-तबाही बक दे। (काद., मार्च 1994, पृ. 43)

विकट खोपड़ी सं. (पु., पदबंध) -- ऐसा व्यक्ति जिसे कोई बात जल्दी समझ में न आती , यह तो निश्चित ही है कि तीनों विकट खोपड़ियाँ हैं। (न. ग. र., खं. 2, पृ. 270)

विकट वि. (अवि.) -- भयावह, भयानक, ... उस अवसर पर इस नए जोड़-तोड़ की राजनीति का एक विकट रूप सामने आएगा। (दिन., 22 फर. 1970, पृ. 22)

विकसन सं. (पु.) -- विकसित होने की क्रिया या भाव, विकास पुराना नष्ट होता रता है और नए का विकसन होता रहता है। विकसन भीतर की क्रियाओं का फल है। (सर., दिस. 1912, पृ. 665)

विकसना क्रि. (अक.) -- विकसित होना, उन ऊँचाइयों पर प्रतिकूल परिस्थितियों में जनमी-विकसी संस्कृतियाँ नहीं पहुँच सकीं। (दिन., 10 सित., 67, पृ. 40)

विक्षुब्ध वि. (अवि.) -- व्याकुल, विकल, बिहार के विक्षुब्ध कांग्रेस विधायकों ने राज्य में नेतृत्व परिवर्तन की माँग की है। लो. स., 20 जन. 1989, पृ. 12)

विघ्नसंतोषी वि. (अवि.) -- जिसे दूसरे के काम में बाधा डालने से सुख मिलता हो, विदर्भ के विकास में विघ्न संतोषी द्वारा बाधाएँ खड़ी करने का आरोप लगे। (दिन., 6 अप्रैल 1976)

विचारना क्रि. (सक.) -- विचार करना, 1885 में पूना में कांग्रेस करना विचारा गया। (गु. र., खं. 1, पृ. 365)

विटप सं. (पु.) -- वृक्ष, पादप, किशोर विटप उखड़ जाते हैं, डालियाँ टूट जाती हैं। (काद. : फर. 1991, पृ. 34)

वितंडा सं. (पु.) -- व्यर्थ का झगड़ा, बखेड़ा, तुमने यह वितंडा क्यों खड़ा कर दिया। (काद. : फर. 1991, पृ. 34)

वितंडावाद सं. (पु.) -- बखेड़ा, पूर्वकाल में खान-पान में ऐसा वितंडावाद नहीं था। (माधुरी : अक्तू. 1927, पृ. 373)

विदूरित वि. (अवि.) -- परे किया या दूर हटाया हुआ, जैसे भी हो वैसे जाति के कुरोग विदूरित किए जाएँ। (नि. : राम. सा., पृ. 45)

विद्या-व्यासंग सं. (पु.) -- विद्या का व्यसन, उनमें उसने इस बात की भी चर्चा की है कि विद्या व्यासंग के अतिरेक से कितनी हानि होती है। (सर., जुलाई 1915, पृ. 40)

विद्याधर सं. (पु.) -- विद्वान् व्यक्ति, ज्ञानी, आँकड़े पेश करते समय दादा पाटिल बड़े-बड़े विद्याधरों को हतप्रभ कर देते थे। (रवि. 19 मार्च 1989, पृ. 1)

विनाशमान वि. (अवि.) -- नष्ट होनेवाला, मरनेवाला, इंग्लैंड का शेर बूढ़ा और विनाशमान है। (रा. भा. संच. 1, पृ. 41)

विपत्ति-विधुरा सं. (स्त्री.) -- विपत्ति की मारी हुई विधवा, विपत्ति-विधुरा होने पर उसके साथ अल्पादल्पतरा संवेदना तक उसने न प्रकट की। (सर., 1 जून 1908, पृ. 313)

विपर्यास सं. (पु.) -- विपरीतता, पलटाव, बुद्धि विपर्यास के कारण उसकी दुर्दशा हुई। (काद., अक्तू. 1989, पृ. 9)

विपाद सं. (पु.) -- पतन, पराजय, विपाद की परवाह न कर निर्भय होकर अपने आदर्श की ओर अग्रसर होना होगा। (म. का मतः क. शि., 29 सित. 1928, पृ. 230)

विपुल वि. (अवि.) -- अत्यधिक, बहुत अधिक, अकूत, उसने थोड़े ही समय में विपुल धनराशि अर्जित की है। (काद., फर. 1981, पृ. 7)

विरद सं. (पु.) -- कीर्ति, यश, हिंदी के गुरूघंटाल ऐसा करना अपने विरद के विरुद्ध समझते हैं। (म. प्र. द्वि., खं. 15, पृ. 292)

विरमना क्रि. (अक.) -- विराम करना, रुकना, ठहरना, महाराजा बल्लालसेन एक नीच कुल की सुंदरी पर मुग्ध होकर राजधानी से दूरस्थ एक वन में विरम गए थे। (सर., नव. 1926, पृ. 548)

विर्त सं. (पु.) -- बूता, बल, वे किस विर्त पर किसी की भाषा को दुरुस्त करने का साहस करते हैं ? (सर., अप्रैल 1918, पृ. 181)

विश्वयारी सं. (स्त्री.) -- संसार-भर से दोस्ती, एक ओर वह झूठी अंतरराष्ट्रीयता है जिसे डॉ. लोहिया ने विश्वयारी की संज्ञा दी है। (दिन., 28 जन. 1966, पृ. 15)

विश्वास डिगना मुहा. -- भरोसा हट जाना, सन् 1921 में कौंसिलों पर से हमारा विश्वास डिगा और पूरे पाँच वर्ष बाद अब उतना भी नहीं रह गया है। (मा. च. रच., खं. 10, पृ. 166)

विष चढ़ना मुहा. -- क्रोध से तमतमा उठना, परंतु इस पाप में साधुराम का हाथ देखकर मुझे विष चढ़ गया। (सर., सित. 1922, पृ. 168)

विषहरा वि. (विका.) -- जहरीला, विषाक्त, कुशलता दिखाकर धर्म के झगड़ों का विषहरा प्रवाह बहाने में योग देते हैं। (मा. च. रच., खं. 2, पृ. 46)

विषैला दाँत गड़ाना मुहा. -- (वातावरण को विषाक्त करना, दूषित करना, कांग्रेसी नेता अपनी काहिली से जिसे प्रोत्साहन दे रहे हैं उसने प्रदेश के जनजीवन में अपना विषैला दाँत गड़ाना चाहा है। (दिन., 2 सित., 66, पृ. 22)

विसंवादी वि. (अवि.) -- विवाद या झगड़ा करनेवाला, विवादी, कितने सौमनस्य से चर्चा हो रही थी तुमने हस्तक्षेप कर विसंवादी स्वर अलाप दिया। (काद. : मई 1975, पृ. 14)

विहरना क्रि. (अक.) -- विहार करना, घूमना, विचरना, अपने को सम्राट् पुकारनेवाले 6 भलेमानस एक साथ ही पृथक्-पृथक् स्थलों में विहर रहे थे। (सर., जुलाई 1912, पृ. 347)

वीरप्रसू वि. (अवि.) -- वीरों को जन्म देनेवाली, भारतीय इतिहास में अनेक वीरप्रसू महिलाएँ हुई हैं। काद., जुलाई 1994, पृ. 4)

वीरबहूटी सं. (स्त्री.) -- एक प्रकार का बरसाती कीड़ा, वीर बहूटियों को देखकर यही ध्यान होता है कि ये अमूल्य रत्न राजकुमारों के खिलौने हैं। (गु. र., खं. 1, पृ. 194)

वुभुक्षा सं. (स्त्री.) -- बुभुक्षा, भूख, वुभुक्षा मनुष्य से क्या-क्या नहीं कराती। (काद., फर. 1995, पृ. 4)

वृथा क्रि. वि. -- व्यर्थ, बेकार, फिर कोई सीमा बाँधना वृथा है। (नि. : राम. सा., पृ. 71)

वेदवाक्य सं. (पु.) -- प्रामाणिक कथन, इसी से लोक में भी वेदवाक्य की दुहाई देने की चाल पड़ गई है। (सर., सित. 1922, पृ. 132)

वेशी सं. (स्त्री.) -- वृद्धि, सात वर्ष क उपरांत एक आना प्रति रुपए के हिसाब से नई अवधि के लिए वार्षिक लगान में वेशी की जा सकती है। (सर., जुलाई 1918, पृ. 8)

वेष्ठित वि. (अवि.) -- घिरा हुआ, कहते हैं कि उस समय वह ऋतु पर्वतों से वृताकार वेष्ठित था। (सर., दिस. 1925, पृ 572)

व्यसन सं. (पु.) -- शौक, लत, आदत, पढ़ने का उन्हें (शुक्लजी) व्यसन था। (शि. पू. र., खं. 3, पृ. 384)

व्याख्यान झाड़ना मुहा. -- लंबा-चौड़ा भाषण देना, लंबी-चौड़ी बातें करना, हाँकना, जिसको देखिए वही शहरों में व्याख्यान झाड़ रहा है। (शि. पू. र., खं. 3,

व्याघ्र-स्वभाव सं. (पु.) -- उग्र स्वभाव, हिसंक स्वभाव, नौकरशाही अपना व्याघ्र-स्वभाव प्रदर्शित कर रही है। (सं. परा. : ल. शं. व्या., पृ. 164)

व्यापना क्रि. (अक.) -- व्याप्त होना, फैलना, क्या कलियुग को भी भारत ही व्यापने को मिला। (बा. भ. : भ. नि., भाग-2, पृ. 178)

शऊर सं. (पु.) -- काम या बात करने का सही ढंग, (क) खुद भोगने का शऊर ही नहीं, लेकिन सार्वजनिक हित के काम में लगाने को कहा जाय तो जूड़ी बुखार आ जाएगा। (शि. पू. र., खं. 3, पृ. 437) , (ख) उन्हें यह शऊर नहीं था कि श्रुंगार का संस्कार करते। (नि. वा. : श्रीना. च., पृ. 761)

शकट सं. (पु.) -- छकड़ा, गाड़ी, हमारा जीवन शकट भी समतल पर लना चाहिए। (कर्म., 27 नव., 1948, पृ. 1

शकररंजी सं. (स्त्री.) -- मनमुटाव, अनबन, किसी प्रकार की आपस में शकररंजी नहीं होती। सर., 1948, पृ. 1)

शकोरा सं. (पु.) -- सकोरा, मिट्टी का कटोरा जैसा पात्र, इसी हालत में एक का शकोरा बेंच से नीचे गिर गया। (हि. श. स.)

शक्कर में लपेटना मुहा. -- मधुर बनाना, मनुष्य धर्मशास्त्र की कड़वी दवाई रजामंदी से नहीं पिएँगे, उन्हें आख्यायिका की शक्कर में लपेटकर तत्त्व दिए जाएँ। (गु. र., खं. 1, पृ. 405)

शक्की सं. (पु.) -- वहमी व्यक्ति, हर जगह हर समय कोई न कोई शक्की पूछ बैठता है-चल सकेगी यह सरकार। (दिन., 23 अप्रैल, 67, पृ. 18)

शक्ति सोख लेना मुहा. -- अशक्त बना देना, क्षीण कर देना, वह (चीन) 1962 का भूत है जो अपनी उपस्थिति मात्र से हमारी शक्ति सोख लेता है। (रा. मा. संच. 2, पृ. 67)

शक्य वि. (अवि.) -- संभव, यह न कहा जाए कि हमारी शक्य देखरेख के अभाव में कोई दुर्घटना घटी। (कर्म., 4 अप्रैल 1931, खं. 1, पृ. 3)

शख्सी वि. (अवि.) -- व्यक्तिगत, वैयक्तिक, हमें अपनी शख्सी हुकूमत और निरंकुशता को हर तरह कायम रखना है। (विप्लव (आजाद अंक) सं. यश., पृ. 3)

शगल सं. (पु.) -- शौक, व्यसन, (क) मौलाना हसरत मोहानी देश की उन वीरात्माओं में से हैं जिनका शगल है सेवा और कष्ट सहना। (ग. शं. वि. रच., खं. 7, पृ. 87) , (ख) साहित्यकारों से मिलना चतुर्वेदीजी का प्रिय शगल था। (ब. दा. च. चु. प., संपा. ना. द., पृ. 17)

शठता सं. (स्त्री.) -- दुष्टता, अंग्रेजों की शठता को समें राजनैतिक और सांस्कृतिक पराभव के भाव भी बैठने शुरू हो गए। (दिन., 30 अग., 1970, पृ 25)

शतरंजी सं. (स्त्री.) -- जाजम, बिछात, दरी, एक नरम नेता ने उस सभा के लिए शतरंजियाँ भी नहीं मिलने दीं। (मा. च. रच., खं. 4, पृ. 33)

शतावधानी वि. (अवि.) -- एक ही समय में सैकड़ों बातों को ध्यान में रखनेवाला, उनका परिचय उन्हें शतावधानी ककर मुझे दिया गया। (सर., जुलाई 1930, पृ. 82)

शपाशप क्रि. वि. -- बड़ी तेजी से, एक युवती कंधे पर दूध का डिब्बा लिए शपाशप बढ़ी चली आ रही थी। (सर., जन. 1937, पृ. 91)

शमशान का वैराग्य सं. (पु., पदबंध) -- अल्पकालिक या क्षणिक वैराग्य, सहयोगी दल का यह असंतोष भी सदा की भाँति कहीं शमशान का वैराग्य न हो। (स. सा., पृ. 193)

शराकतदार सं. (पु.) -- शिरकत करनेवाला, भागीदार, हिस्सेदार, मेरी फर्म में मेरे सिवा बाकि के तीन शराकतदारों का ठपका भी मिला। (कर्म. 14 अग. 948, पृ. 23)

शरीरपात सं. (पु.) -- निधन, मृत्यु, उनकी सहधर्मिणी का शरीरपात हो गया। (म. प्र. द्वि., खं. 5, पृ. 341)

शर्तिया क्रि. वि. -- निश्चित रूप से, चंपक रमण कायरों और देशद्रोहियों के शर्तिया दुश्मन थे। (कर्म. 6 सित. 1947, पृ. 7)

शवर सं. (पु.) -- एक जनजाति, सरिया लोग हिंदुस्तान के पुराने जंगली आदमियों में से हैं। इनका नाम संस्कृत में शवर है। (सर., 1 अप्रैल 1909, पृ. 180)

शशोपंज सं. (पु.) -- असमंजस, (क) मैं बड़े शशोपंज में हूँ कि यह मकान किराए पर लूँ या नहीं। (काद., नव. 1976, पृ. 34) , (ख) वे शशोपंज में थे कि विवाह में शामिल हों या नहीं। (काद. : नव. 1976, पृ. 34)

शाकी वि. (अवि.) -- आपत्तिकर्ता, शिकायत करनेवाला, आपने जो मेरे को महत्त्वपूर्ण बातों से फुलाना चाहा है, उसका मैं कृतज्ञ ही नहीं प्रत्युत विस्मित होकर शाकी हूँ। (चं. श. गु. र., खं. 2, पृ. 383)

शाक्वरी वि. (अवि.) -- साँड़ जैसा, आक्रामक, तूफानी, कल्पनाओं की वह शाक्वरी शक्ति फिर प्राप्त नहीं हो सकती। (मधुकर: जन., 1944, पृ. 499)

शान देना मुहा. -- सान चढ़ाना, धान लगाना, अपने शस्त्रों पर नए सिरे से शान दे ली। (म. का मतः क. शि., 15 नव. 1924, पृ. 173)

शान में बट्टा लगना मुहा. -- प्रतिष्ठा पर दाग लगना, जब मामला चला और लगा कि इससे शासन की शान में बट्टा लगेगा, यह मामला स्थगित कर दिया गया। (न. ग. र., खं. 2, पृ. 140)

शामियाना सं. (पु.) -- टेंट, तंबू, कांग्रेस के शामियाने के नीचे विविध हित स्वार्थों का जो सुगम और संपूर्ण समायोजन इन तीन दक्षिणी राज्यों में हुआ उतना शायद उत्तर भार के किसी राज्य में नहीं हुआ। (रा. मा. संच. 1, पृ. 320)

शामिलाती वि. (अवि.) -- सम्मिलित, शामिल किया हुआ, यदि ऐसे शमिलाती ग्रंथकारों में कोई कॉपीराइट नियमों का पालन न करे। (म. प्र. द्वि. रच., खं. 2, पृ. 396)

शासन-शकट सं. (पु.) -- शासन की गाड़ी, लोगों के कठोर विरोध में शासन-शकट को चला ले जाना मि. बोर्न जैसे कुशल व्यक्ति का ही काम था। (मा. च. रच., खं. 10, पृ. 117)

शास्य वि. (अवि.) -- जिस पर शासन किया जाए, सासित किए जाने योग्य, स्त्री को तुच्छ इसलिए शास्य समझता है। वि. भा., जन. 1928, सं. 1, पृ. 66)

शाहमदार सं. (पु.) -- मरे को मारनेवाला, प्रतिभा-संपादक और प्रतिभा-समालोचक ने मनोरमा के वह लत्ते लिए हैं कि उसके लिए कुछ कहना शाहमदार बनना होगा। (चं. श. गु. र., खं. 2, पृ. 307)

शिकमी वि. (अवि.) -- जिसने काश्तकार से किराए पर खेत जोतने के लिए लिए हो, खुद जोतते-बोते नहीं शिकमी उठाए हुए हैं। (वि. भा., न. 1928, सं. 1, पृ. 176)

शिरसा क्रि. वि. -- सिर झुकाकर, सरकार जो करे उसे शिरसा स्वीकार करना ही है। (श्र. सं. : मै. श. गु., पृ. 8)

शिलिर-बिलिर करना मुहा. -- ढिलाई करना, जब तुमने पहलवान पर मुकदमा चला दिया है बीच में शिलिर बिलिर करना ठीक नहीं। (रा. द., श्रीला. शु., पृ. 159)

शिलिर-बिलिर वि. (अवि.) -- ढीला-ढाला, कमजोर, कोई शिलिर-बिलिर टाइप का आदमी होता तो वह उस निगाह के आगे वहीं ढह जाता। (रा. द., श्रीला, शु., पृ. 306)

शिष्ट वि. (अवि.) -- सभ्य, संस्कारवान, पहले विषयों की शिक्षा देनेवाले शिष्ट कहाते थे। (सर., मार्च 1917, पृ. 161)

शिस्त सं. (स्त्री.) -- लक्ष्य, राजनीतिक एवं सामाजिक जीवन में निशाना, लक्ष्य, शिस्त लेने की बात ही नहीं थी। (ज. क. सं. : अज्ञेय, पृ. 119)

शीरगर्म वि. (अवि.) -- कुनकुना, गुनगुना, दवाखाने के लिए थोड़ा पानी लाओ, मगर ठंडा न हो, शीरगर्म हो। (काद., फर. 1977, पृ. 8)

शीराजा सं. (पु.) -- व्यवस्था या संघटन, सारा समाज टुकड़ों में बँट रहा था, उसके तार छिन्न-भिन्न हो रहे थे, शीराजा टूटा जा रहा था। (माधुरी: अग.-सित. 1928, पृ. 163)

शुकराना सं. (पु.) -- कृतज्ञता, आभार, क्या हम सौ जन्म लेकर भी गंगा की मेहरबानियों का शुकराना अदा कर सकेंगे। (काद. : अक्तू. 1980, पृ. 90)

शुबहा सं. (पु.) -- संदेह, शंका, वैदजी से अपना शुबहा बताते तो वह तभी इस सुपरवाइजर को यहाँ से हटवा देते। (रा. द., श्रीला. शु., पृ. 88)

शूल हूलना मुहा. -- घोर कष्ट देना, ऐसी हानि है, जो भुलाए नहीं भूलती और रह-रहकर हृदय में शूल हूलती है। मा. च. रच., खं. 9, पृ. 68)

शेखी बघारना मुहा. -- डींग हाँकना, यों ही कर्ण शेखी बघारता गया। (गु. र., खं. 1, पृ. 314)

शैतान की आँत की तरह बढ़ना मुहा. -- ऐसी बात (काम) जो कभी समाप्त होने को न हो। (क) लेन-देन का लेखा बनाइए, पर याद रखिए यह चिट्ठा शैतान की आँत की तरह बढ़ता और बदलता जाएगा। (ग. शं. वि. रच., खं. 1, पृ. 310) , (ख) शैतान की आँतों की तरह बड़े शहरों की आजकल वृद्धि होती है। (सर., अप्रैल 1928, पृ. 391)

शोबदाबाजी सं. (स्त्री.) -- जादूगरी, हाथ की सफाई, प्राचीनकाल में इंद्रजाल विद्या केवल शोबदाबाजी न थी। (सर., मार्च 1917, पृ. 160)

शोशा छूटना मुहा. -- अनोखी या विलक्षण बात कही जाना, आज फिर छूटने का शोशा छूटा है। (ग. शं. वि. रच., खं. 7, पृ. 20)

शोशा छोड़ना मुहा. -- अनोखी या शरारत से भरी बात कहना, (क) मेरे मित्र गंगाप्रसाद विमल ने एक अच्छा शोशा छोड़ दिया था। (काद., दिस. 1995, पृ. 21) , (ख) कुछ रानीतिज्ञ अकसर कोई शोशा छोड़ते रहते हैं। (काद., फर. 1968, पृ. 10)

शोशा सं. (पु.) -- अनोखी या शरारतपूर्ण बात, उनको एक शोशा मिल गया। चारों तरफ कानाफूसी होने लगी। (सर., मार्च 1937, पृ. 222)

शोशेबाज वि. (अवि.) -- शोशे छोड़नेवाला, अनोखी बातें कहनेवाला, व्यावसायिक कला संसार के शोशेबाज खिलाड़ी हैं। (हि. ध., प्र. जो., पृ. 283)

शौक चर्राना मुहा. -- चस्का लगना, रुचि उत्पन्न होना, (क) अफीम की तरह किताबों का शौक उन्हें क्यों नहीं चर्राता। (रा. मा. संच. 2, पृ. 30) , (ख) रासायनिक अनुसंधान का ऐसा शौक चर्राया कि 1912 में भारत मित्र से अलग हो गए। (शि. पू. र., खं. 4, पृ. 142) , (ग) ऐसा नाटक करने का शौक पुलिसवालों को क्यों चर्राया। (दिन., 10 सित., 67, पृ. 7)

श्रमसीकर सं. (पु.) -- (श्रम से उत्पन्न) पसीना, श्रमसीकर से अर्जित धन का ही वास्तविक महत्त्व है। (काद., अक्तू. 1989, पृ. 8)

श्रीहत वि. (अवि.) -- श्रीहीन, प्रभाशून्य, इनके सम में विष्णुपुर दरबार श्रीहत हो गया था। (शि. पू. र., खं. 3, पृ. 198)

श्वानवत् वि. (अवि.) -- कुत्ते के समान, कुत्ते के जैसा, क्या इस श्वानवत् मृत्यु से ही हमारी आत्मा शांति का अनुभव करेगी। (हित., 1957, पृ. 23)

सकपकाना क्रि. (अक.) -- शंकित होना, असमंजस में पड़ना, मुकदमे के नतीजे को राक फेलर तक पहुँचाने में वकील सकपका रहे थे कि कहीं बेचारे राक फेलर का दिल न बैठ जाए। (नव., जन. 1952, पृ. 81)

सकपकाहट सं. (स्त्री.) -- असमंजस, द्विविधाग्रस्तता, सुपरिंटेंडेंट आज्ञा दे चुका था, परंतु अब सकपकाहट प्रकट कर रहा है। (ग. शं. वि. रच., खं. 7, पृ. 14)

संकरा वि. (विका.) -- संकर, मिश्रित, दोगला, हम हिंदुस्तानी के कट्टर शत्रु हैं। हम उसे एक संकरी भाषा समझते हैं।

सकारना क्रि. (सक.), सं. (पु.) -- भुनाना, स्वीकार करना, कितने ही व्यापारी अपनी हुंडियाँ सकारने में असमर्थ हो गए और उनकी साख मारी गई। (म. प्र. द्वि. रच., खं. 2, पृ. 200)

सकोरा सं. (पु.) -- मिट्टी का चौड़े मुँह का कटोरे के जैसा छोटा पात्र, उसके परिवार के जितने मनुष्य थे, उनको वह एक-एक सकोरा सत्तू और एक सकोरा पानी रोज देने लगा। सर., जुलाई 1918, पृ. 34)

सखख क्रि. वि. -- हूबहू, पूरी तरह से, माई कहती हैं कि बुचिया का सकल कदम सखमख आपके जइसा है। (काद., अक्तू. 1961, पृ. 123)

सखा सं. (पु.) -- मित्र भगवान् को पूजक के इतना नजदीक ला दिया है कि वे सखा से लेकर सबकुछ हैं। (हि. ध., प्र. जो., पृ. 281)

संगत सं. (स्त्री.) -- संगति, साथ, संयुक्त राष्ट्र संघ में पाकिस्तान समर्थक केवल अमेरिका और ब्रिटेन ही नहीं रह गए हैं चीन भी उनकी संगत में आ बैठा है (दिन., 12 दिस. 1971, पृ. 29)

संगतराश सं. (पु.) -- मूर्तिकार, बुद्धमूर्ति की उत्पत्ति प्राचीन कांधार देश में वैक्ट्रिया के संगतराशों ने की। (सर., दिस. 1915, पृ. 345)

संगर सं. (पु.) -- संग्राम, लड़ाई, सेनापति और वायसराय का संगर दो लंगर बाँधे पहलवानों की कुश्ती या मुर्गों की लड़ाई थी। (गु. र., खं. 1, पृ. 333)

सगा वि. (विका.) -- सहोदर, तुलसीदास ने उनका वर्णन इस प्रकार किया कि उन्हीं दोषों के कारण रामचंद्रजी हमारे सगे हो गए। (सर., सित 1918, पृ. 122)

सगोती वि. (अवि.) -- सगोत्री, एक ही गोत्र या वंश के, वन्य पशु-पक्षी सभी उसके सगोती हैं, वे भी तो पृथ्वीपुत्र हैं। (मधुकर, अक्तू. 1940, पृ. 24)

सँघरा सं. (पु.) -- सग्गड़, ठेला, साझे की सुई सँघरे पर ढोई गई है। (दिन., 25 फर., 68, पृ. 42)

संघात सं. (पु.) -- समूह, सघटन, अमेरिका में अनेक प्रजा राज्यों का संघात है। (सर., जुलाई 1912, पृ. 358)

सच्चा-झूठा वि. (विका.) -- जो पूर्णतः तथ्यों पर आधारित न , अविश्वसनीय, नागरी प्रचारिणी सभा की रिपोर्ट पर लिखने को स्थान नहीं और मंडल के सच्चे-झूठे पचड़े पर चार-चार कॉलम। (गु. र., खं. 1, पृ. 409)

सच्चाई का पुतला मुहा. -- सच्चा आदमी, सत्य की प्रतिमूर्ति, वह यदि तिलक को तीन लोक का स्वामी समझेगा, तो सुरेंद्र को सच्चाई का पुतला। (मा. च. रच., खं. 9, पृ. 46)

सजराता सं. (स्त्री.) -- जरा, बुढ़ापा, कमजोरी, माँ की सजराता के बावजूद घर आनेवाले संबंधियों और उनके बच्चों को बाबूजी भरपूर समय देते। (रवि. 25 अग. 1979, पृ. 26)

सँजोना क्रि. (सक.), सं. (पु.) -- एकत्र करना, पिरोना, उसके उदात्त तत्त्वों को सँजोने की चेष्टा की है। (दिन., 25 नव., 66, पृ. 45)

सँझवाती सं. (स्त्री.) -- साँझ की बाती, सायंकाल दीपक जलना, सँझवाती के समय ग्रामवासी अपने गृहों को लौट आते हैं। (काद., अप्रैल 1992, पृ. 5)

सटक सीताराम होना या हो जाना मुहा. -- समाप्त या गायब होना, (क) मोटे सोंटे को देखकर मेरा क्रोध सटक सीताराम हो गया। (माधुरी, न. 1925, सं. 1 पृ. 79) , (ख) जिसे आँखें होंगी वह एकता का यह मंजर देखकर सटक सीताराम हो जाएगा। (म. का मतः क. शि., 17 नव. 1923, पृ. 82)

सटकना क्रि. (अक.) -- 1. खिसकना, (क) मूठ हाथ से सटक गई। (फा. दि. चा., वृ. ला. व. समग्र, पृ. 656) , 2. निगलना, उन्हें एक पीड़ानाशक गोली दी, जिसे सटककर वे पुनः खड़े हो गए। (काद. : सित. 1976, पृ. 192)

सटना क्रि. (अक.) -- साथ लगना, जुड़ना, चिपकना, (क) बाकी तीन बच्चे भी उससे सटे खड़े थे। (बे. ग्रें., प्रथम खं., पृ. 110) , (ख) उनकी जीभ किसी कारणवश तालू में सट जाती है, जिससे वे बोलने में असमर्थ रहते हैं। (सर., अप्रैल 1937, पृ. 405) , (ग) उन्होंने श्री मुखर्जी के रास्तों पर जाने के बजाय सत्ताधारी दिग्गजों से सटना बेहतर समझा। (रवि., 7 जून 1981, पृ. 34)

सटपट का डॉक्टर सं. (पदबंध.) -- साधारण या झोलाछाप डॉक्टर, गवर्नमेंट नहीं चाहती कि सटपट के डॉक्टर अपने नाम के पीछे बड़ी-बड़ी पदवियाँ जोड़कर चिकित्सा करें। (सर., जन.-फर. 1916, पृ. 65)

सटपट क्रि. वि. -- जल्दी-जल्दी, पहले तो आपको कुछ यो ही सटपट काम मिलता रहा पर वह दशा बहुत समय तक नहीं रही। (म. प्र. द्वि., खं. 5, पृ. 478)

सटाऊ वि. (अवि.) -- सटाया जानेवाला, सटाकर लिखा जानेवाला, विभक्तियों का सटाऊ प्रयोग (शीर्षक) लिखावट में राम का घर और रामका घर यह लिखावट में द्वैविध्य है, भाषा एक है। (सा. हि., 27 मार्च 1960, पृ. 5)

सटाना क्रि. (सक.) -- जोड़ना, हम भी अपने एकमत्य को इसके साथ सटाना चाहते हैं। (शि. पू. र., खं. 3, पृ. 501)

सठियाना, सठिया जाना मुहा. -- बुढ़ापे के कारण बुद्धि का ठीक से काम न करना, एक मुँहफट ने कहा-तू सठिया गई है। रुपए ले और चौन की वंशी बजा। (सर., जुलाई 1926, पृ. 7)

सठियाया वि. (विका.) -- जिसकी बुद्धि ठीक से काम न करती हो, (क) इसे पढ़े सठियाई मति के वे बे जिन्हें तुर्किस्तान में जापानी पढ़ाने का फतवा देते संकोच नहीं होता। (मा. च. रच., खं. 2, पृ. 53) , (ख) मास्टर गुट का दृष्टिकोण कितना अनुदार और सठियाया हुआ है। (दिन., 13 जन., 67, पृ. 23)

संड-भुसंड वि. (अवि.) -- मोटा-ताजा, (क) ये बटुक विलासी और गुंडे होते हैं और संड-भुसंड होते हैं। (म. का मतः क. शि., 7 जून 1924, पृ. 106) , (ख) हट्टा-कट्टा संड-भुसंड, सिर से पैर तक झलमल गैरिक वस्त्रों से ढँका। (दिन., 12 से 18 नव. 1978, पृ. 10)

सड़क नापना मुहा. -- चल देना, साम्राज्यवाद का बँधना बोरिया देकर उसे सड़क नापने को यह आंदोलन विवश कर देगा। (क. ला. मिश्र, त. प. या. पृ. 191)

सड़फड़ सं. (स्त्री.) -- बड़बड़, पंडित जी की तरफ इशार करके उसने कहा, उन्हीं की तरह सड़फड़ करते सब वापस चले गए। (रा. द., श्रीला, शु., पृ. 172)

संडा वि. (विका.) -- मोटा-तगड़ा, दो संडे लड़के बाहर से मिट्टी लगाए भीतर आए। (सुधा, फर. 1935, पृ. 46)

सड़ाप से क्रि. वि. -- जल्दी से, किताब पढ़ती माँ सड़ाप से पन्ना बदल देती है। (स. भा. सा., मृ. पां., सित.-अक्तू. 98, पृ. 8)

सड़ियल वि. (अवि.) -- सड़ा हुआ, अनुपयोगी, अमेरिकावाले अँगरेजी को सड़ियल बनाकर पतन की ओर ले जा रहे हैं। (हंस, जन. 1936, पृ. 26)

सतनजा सं. (पु.) -- सात अनाजों का मिश्रण, गेहूँ, चावल, उड़द आदि सात धान गड्ड-मड्ड कर देने से जैसे सतनजा बन जाता है। (म. प्र. द्वि. रच., खं. 2, पृ. 159)

सतर सं. (स्त्री.) -- पंक्ति, (क) स्वार्थ और व्यक्तिगत हानि-लाभ की प्रेरणा के वशीभूत होकर एक सतर भी न लिखें। (म. प्र. द्वि., खं. 1, पृ. 80) , (ख) उस पर अशोक के छह आदेश बराबर सतरों में चारों ओर खुदे हुए हैं। (सर., जन. 1911, प-. 17)

सत्कार सं. (पु.) -- स्वागत, आवभगत, (क) डॉ. खुलीलुल्लाह का सत्कार करेगा रब्वानी स्कूल। (लो. स., 1. अप्रैल 1989, पृ. 4) , (ख) स्कूल की ओर से साहसी बालक संजय का सत्कार किया गया। (रवि. 14 मार्च 1989, पृ. 4)

सत्तू बाँधकर जुट पड़ना मुहा. -- पूरी व्यवस्था के साथ किसी कार्य में लग जाना, राजनीतिक दलों के लिए वे सत्तू बाँधकर जुट पड़ीं। (ग. शं. वि. रच., खं. 2, पृ. 151)

सदर मुकाम सं. (पु., पद.) -- मुख्यालय, पहले यह जिला था; परंतु कुछ समय से अब यह जिले का सदर मुकाम नहीं। (सर., जुलाई 1917, पृ. 21)

सदा-बधा वि. (विका.) -- बँधा-बँधाया, फिल्म बहुत सदी-बधी (सदे-बधे) ढंग से आगे बढ़ती है। (दिन., 6 जून, 67, पृ. 43)

सधना क्रि. (अक.) -- पूरा होना, काम सधे तो किस प्रकार। (ग. शं. वि. रच., खं. 2, पृ. 501)

सधा-बढ़ा वि. (विका.) -- सधा-बधा, इलाहाबाद के परिमल ने बड़ी सधी-बढ़ी नीति के तहत नई कहानी पर एक परिसंवाद आयोजित किया। (सं. मे., कम., 20 जुलाई 1990, पृ. 6-7)

सधा-बधा वि. (विका.) -- बँधा-बँधाया, रटा-रटाया, सामान्य, असद अली का वादन सुरीता और सधा-बधा है। (दिन., 26 अग. 1966, पृ. 41)

सधा वि. (अवि.) -- बँधा-बँधाया, हम भी वही सधा उत्तर देने के लिए बाध्य हैं। (शि. पू. र., खं. 4, पृ. 507)

सधुआ वि. (अवि.) -- सीधा, सज्जन, बहुत से लोग इन्हें सुधुआ समझकर ठगने की चेष्टा करते हैं। (बे. ग्रं., प्रथम खं., पृ. 26)

सधुक्कड़ी वि. (अवि.) -- सीधा-सादा, एकता की य सधुक्कड़ी अपील कांग्रेस अधिवेशन में अनसुनी कर दी गई। दिन., 30 सित., 66, पृ. 13)

सनक सं. (स्त्री.) -- झक, पागलों की सी धुन, (क) किंतु सर्वसम्मत निर्वाचन की आम सनक का शिकार यह पत्रकार संगठन भी था। (दिन., 4 मई 1969, पृ. 27), (ख) इन ताँगेवाले शाहजादों के मुख से आप नवाबी सनकों व नखरों की कहानियाँ सुनेंगे। (नव., मई 1952, पृ. 56)

सनकना क्रि. (अक.) -- पगला जाना, बहक जाना, धीरे-धीरे ठंडी हवा सनककर कलेजे को हिला जाती। (बे. ग्रं., प्रथम खं., पृ. 11)

सनकी सं. (पु.) -- जिसे सनक सवार रहती हो, झक्की, बहिष्कार केवल सनकियों के लिए कहकर उनकी हँसी उड़ाई गई। (मा. च. रच., खं. 9, पृ. 234)

सनगुन सं. (स्त्री.) -- सुगबुगाहट, दबी चर्चा, (क) मुसलमानों में अब तक इस संबंध में कुछ सुनगुन जरुर शुरू हो गई ती। (काद. : जुलाई 1962, पृ. 16) , (ख) ... क्योंकि बँटवारे के मामले की सुनगुन सभी को थी। (ग. शं. वि. रच., खं. 2, पृ. 264)

सनन-सन्नाट क्रि. वि. -- तेजी से, यदि आप एक छह फुटे जवान को सनन-सन्नाट चक्कर काटते देखें और यह भी देखें कि सिर पर बँधा है एक मुंडासा तो आप क्या सोचेंगे ? (न. ग. र., खं. 3, 258)

सनना क्रि. (अक.) -- लिप्त होना, (क) इस महायुद्ध में जितने देश सने हुए हैं उनमें अमेरिका अपने ढंग का निराला है। (ग. शं. वि. रच., खं. 2, पृ. 526), (ख) कीचड़ में धँसे और सने नहीं। (सर., जन. 1909, पृ. 10), (ग) ... और अपार लोकप्रियता के बावजूद श्रीमती गांधी ने अपने आपको सर्वत्र काजल में सना पाया। (रा. मा. संच. 1, पृ. 423)

सनसना उठना मुहा. -- खिल उठना, पलाश के झोंप सनसना उठे। (ज. क. सं. : अज्ञेय, पृ. 20)

सनसनीवाद सं. (पु.) -- सनसनी या उत्तेजना फैलाने की क्रिया या भाव, हम सनसनीवाद के शिकार हो रहे हैं। (सा. हि., 3 नवं. 1957, पृ. 5)

सनहक सं. (स्त्री.) -- मिट्टी का बरतन, भीख माँगते आधी शताब्दी बीत गई, परंतु सनहक खाली ही पड़ी रही। (म. का मत : क. शि., 10 मई 1924, पृ. 152)

सना सं. (स्त्री.) -- लथपथ, लिप्त, लिबड़ा हुआ, चीन ने याहिया के खून सने शासन को जो समर्थन किया है, उसके पीछे यही रहस्य है। (रा. मा. संच. 1, पृ. 100)

सनाका खिंचना मुहा. -- सन्न रह जाना, स्तब्ध रह जाना, कल्पना की जा सकती है कि उस दिन देश में कैसा सनाका खिंच गया होगा। (रा. मा. संच. 2, पृ. 380)

सनाके में बैठना या बैठ जाना मुहा. -- चुप्पी साध लेना, पीछे कोठरी में आकर चुपचाप सनाके में बैठ गई। काद. : सित. 1978, पृ. 124)

सनीचर सवार होना मुहा. -- बुद्धि भ्रष्ट होना, दूसरे का अहित करने की प्रवृत्ति होना, उनका हेडक्लर्क यह देखकर सोचने लगा कि आज क्यों इनके सिर सनीचर सवार है। (सर., 1 मई 1908, पृ 212

सन्न से क्रि. वि. -- तेजी से, मे ऐसा लगा कि मेरी बगल से जैसे शरीर छूता हुआ कोई सन्न से निकल गया। (बे. ग्रं., प्रथम खं., पृ. 108

सन्निविष्ट वि. (अवि.) -- सम्मिलित, समाहित, इस प्रश्न के गर्भ में एक प्रश्न और सन्निविष्ट है। (न. ग. र., खं. 2, पृ. 62)

सपरना क्रि. (अक.) -- निपटना, सुलझना, बारहवाली गाड़ी आने तक मामला सपर जाए तो ही ठीक है। (रवि., 1 अग. 1982, पृ. 44)

सपाट वि. (अवि.) -- आरंभ से अंत तक एक जैसा, समतल, नाटक छाते का कथ्य एक-दूसरे को न समझने व न समझा सकने की दुरूहता की छटपटाहट और स्थिर सपाट निरर्थक वार्त्ता में जीवन बिताने की बेकली का तल्ख अहसास कराता था। (दिन., 9 मई 1971, पृ. 44)

संपादकता सं. (स्त्री.) -- संपादन-कार्य, संपादकीय क्रियाकलाप, यहाँ आप इसकी संपादकता का पूरा भार अपने ऊपर लेते तो मैं विश्वविद्यालय के काम से तुरंत बाहर निकल जाता। (चं. श. गु. र., खं. 2, पृ. 422)

संपुट सं. (पु.) -- दोना या पिटारी, टेक, इस वर्ष जो बजट पेश हुआ है उसमें भी इसी महामंत्र का संपुट लगा हुआ है। (स. सा., पृ. 67)

सफा सं. (पु.) -- पृष्ठ, इतिहास जब इस दशक को कुछ सफों में निपटाएगा तब वह किन-किन बातों का जिक्र खासतौर पर करेगा? (रा. मा. संच. 1, पृ. 279)

सफाचट वि. (अवि.) -- बिलकुल साफ, खाली, (क) जब हम पिछले साल अगस्त में यहाँ आए थे तो सहन बिलकुल सफाचट मैदान था। (नव., जून 1953, पृ. 21) , (ख) विदेशी हुकूमत देशी रायों को सफाचट करना चाहती है। (म. का मतः क. शि., 28 फर. 1925, पृ. 108)

सफाया करना मुहा. -- पूरी तरह से खत्म कर देना, मार डालना या नष्ट कर देना, लगे हाथ उन्होंने अपने धाकड़ प्रतिद्वंद्वियों का सफाया भी कर दिया। (रा. मा. संच. 1, पृ. 403)

सब धान एक पसेरी बिकना कहा. -- सब चीजों का एक समान दाम लगाना, बढ़िया-घटिया ... किंतु सब धान एक पसेरी नहीं बिक सकता, कहाँ साहित्यकार और कहाँ तबलची या सिनेमा स्टार ! (सा. हि., 3 मई 1959, पृ. 4)

सब धान बाईस पसेरी कहा. -- सभी तरह की चीजों का मूल्य एक समान लगाया जाना, छोटे-बड़े सभी को एक तराजू पर तौलना, अगर सब धान बाईस पसेरी है तो आलोचक की साधना और विशेषज्ञता का क्या अर्थ है। (स. का वि. : डॉ. प्र. श्रो., पृ. 17)

सबक सिखाना मुहा. -- पाठ पढ़ाना, सीख देना, यह समझना मुश्किल है कि जो सबक सिखाने का बीड़ा चीन ने उठाया है उससे अंततः चीन को क्या सुफल मिलनेवाला है। (रा. मा. संच. 1, पृ. 349)

सब्जबाग दिखाना मुहा. -- अपना काम निकालने अथवा किसी को जाल में फँसाने के लिए ब़ड़ी -बड़ी बातें करना या सपने दिखलाना, लार्ड इर्विन ने आंदलन रुकवाने के लिए गाँधीजी को सब्जबाग दिखाकर धोखा दे दिया। (काद. : जन. 1975, पृ. 169)

संभूत वि. (अवि.) -- पैदा किया हुआ, उत्पादित, (क) उसका तेज तप संभूत है। (काद. : जुलाई 1982, पृ. 5) , (ख) सद्विचार सत्प्रेरणा से संभूत होते हैं। (काद., अक्तू. 1993, पृ. 5)

समझ के परे क्रि. वि. (पदबंध) -- समझ के बाहर, तुम्हारी ऊटपटाँग बातें समझ के परे हैं। (माधुरी, जन. 1925, सं. 1, पृ. 8)

समरस वि. (अवि.) -- एकाकार, एकरूप, उन्हें अनुभव हुआ कि मिजोरम तथा मेघालय अब तक भारत के साथ समरस नहीं हो पाए हैं। (लो. स., 2 अप्रैल 1989, पृ. 3)

समवाय सं. (पु.) -- सहकार, सहकारिता, यहाँ एक समवाय भांडार भी है। (सर., जून 1920, पृ. 316)

समाई समावर्तन संस्कार सं. (पु., पदबंध) -- दीक्षांत समारोह, पिछले आश्विन में इस पीठ का समावर्तन संस्कार हुआ था। (सर., दिस. 1926, पृ. 714)

समाई सं. (स्त्री.) -- सामर्थ्य , औकात, (क) इतने बड़े जमींदार की समाई न हुई तो और किसे कहा जाए। (वि. भा., जन. 1928, सं. 1, पृ. 309) , (ख) यदि किसी के एक चाँटा जमाने का शौक रखते हो तो दस चाँटे खाने की समाई रखो। (म. प्र. द्वि., खं. 1, (बा. मु. गु.) , पृ. 372)

समुच्छेद सं. (पु.) -- समूल नाश, पूर्ण विनाश, मानव सभ्यता का समुच्छेद कभी नहीं होगा। (काद., अक्तू. 1989, पृ. 8-9)

समेकन सं. (पु.) -- संकलन, समीकरण, इस प्रक्रिया द्वारा एक नया समेकन रचने की चेष्टा करता है। (दिन., 23 नव., 1969, पृ. 9)

समेटना क्रि. (सक.) -- इकट्ठा करना, बटोरना, देशी भाषा के समाचार-पत्रों में जो घातक परंपरा देखने में आती है वह है अंग्रेजी पत्रों की जूठन समेटना। (रा. मा. संच. 2, 354)

समेत क्रि. वि. -- सहित, औरंगजेब ने उन सबको रानी समेत दिल्ली में ही रखना चाहा। (म. प्र. द्वि., खं. 5, पृ. 406)

समोना क्रि. (सक.) -- मिलाकर रखना, गठबंधन सरकार चलाने के लिए लचीलापन और सबको समोने की शक्ति ही नहीं, एक तरह का सर्वव्यापी खिलंदरीपन चाहिए। (हि. ध., प्र. जो., पृ. 310)

सयाना वि. (विका.) -- बड़ी उम्र का, 1. युवा, बालिग, (क) अस्सी बरस की खोड़ही जप्पल बुढ़ियाएँ उपदेश देती हैं-बेटा अब तुम सयाने भये घर दुआर की फिकिर रखा करो। (भ. नि., पृ. 27) , (ख) यह लड़का सयाना हो गया है। (काद. : जन. 1975, पृ. 11) , 2. समझदार, जानकार, ज्ञाता, (क) अब तो सयानी न हो गई हो। (सर., 1 फर. 1908, पृ. 60) , (ख) इस बारे में कुछ राजनीति सयानों का मत है कि मुख्यमंत्री बदला जा रहा है। (ज. स. : 11 फर. 1984, पृ. 4)

सयानापन सं. (पु.) -- समझदारी, सयानप, कहावतों में सयानेपन की बातें होती हैं जो सह समझ में आ जाती हैं। (दिन., 7 अक्तू., 66, पृ. 10)

सर करना मुहा. -- जीतना, (क) ब्रिटिश प्रदेशों को सर करने के लिए उसे अपनी सेनाएँ नहीं भेजना चाहिए। सर., सित. 1940, सं. 3, पृ. 245) , (ख) सन् 1184 में मुहम्मद गौरी ने लाहौर फिर घेर लिया, लेकिन छह महीने में भी उसे सर न कर सका। (सर., नव. 1925, पृ. 496)

सर फुड़ौवल सं. (स्त्री.) -- मारपीट, जरा-जरा सी बात पर बिगड़ खड़े होना या सरफुड़ौवल करने लगना, हर हालत में इसलाम को नीचे गिराना है। (न. ग. र., खं. 4, पृ. 303)

सर होना मुहा. -- विजयी होना, पराकाष्ठा पर पहुँचना, नेतृत्व में पुनः सर होने का माददा नहीं है उनकी नीति हीले-हवाले की नीति बन रही है। (न. ग. र., खं. 2, पृ. 192)

सर-धड़ की बाजी लगाना मुहा. -- सर्वस्व गँवाने को तैयार हो जाना, भावनाओं के वेग में लोग सर-धड़ की बाजी लगा देते हैं। (दिन., 13 अग., 67, पृ. 12)

सरकश वि. (अवि.) -- उद्दंड, अशिष्ट, मुँहफट, बड़ा सरकश आदमी था हुजूर। (प्रे. स. क. : सर. प्रेस, पृ. 36)

सरकस वि. (अवि.) -- सरकश, उद्दंड, अशिष्ट, दस आदमी हैं बड़े सरकस। (स. न. रा. गो. : भ. च. व., पृ. 178)

सरकाना क्रि. (सक.) -- खिसकाना, जब बाईसिकिल पानी पर दौड़ाई जाती है तब से बेलन नीचे सरकारकर पानी की सतह पर कर दिए जाते हैं। (सर., दिसंबर 1909, पृ. 521

सरजना क्रि. (सक.) -- सृजन करना, बनाना, स्टूडियो की घुटन में सरजे गए दृश्यों से उनका रिश्ता नहीं बँधता। (दिन., 9 नव., 1969, पृ. 50)

सरदेसमुखी सं. (स्त्री.) -- एक प्रकार का कर, जैसे वह पूजा और दान से ईश्वर और मानसून को खुश रखती थी, उसी तरह चौथ या सरदेसमुखी देकर राजा से पिंड छुड़ाती थी। (रा. मा. संच. 1, पृ. 372)

सरना क्रि. (अक.) -- ठीक से चलना, पूरा होना, बनना, (क) अखिल भारतीय साहित्य हिंदी का हो जाय, नई सभ्यता और नई रोशनी के मुताबिक इस जमाने के साँचे में ढल जाय, तब हिंदी का काम सरे। (शि. पू. र., खं. 3, पृ. 365) , (ख) डाँट-फटकार से तो कुछ काम न सरा, सरेगा भी नहीं। (म. का मतः क. शि., 25 जुलाई 1925, पृ. 189)

सरनाम वि. (अवि.) -- प्रसिद्ध , उनके काका दान देने में सारी बस्ती में सरनाम थे। (काद., अग. 1978, पृ. 8)

सरपत सं. (पु.) -- सरकंडा, स्त्रियों में किसी-किसी की आँखों से चीनी-जापानी आँखों की कोणता-जैसे सरपत से आँख के कोने फाड़ दिए गए हों। (सर., जन. 1912, पृ. 3)

सरबराई सं. (स्त्री.) -- सरबराही, प्रबंध, हमारे दौरों, भाषणों, उद्घाटन-सभारंभों, मेल-मुलाकातों और चपरासी-सेक्रेटरियों की सरबराई में हमें इतना भी सोच विचारने का मौका नहीं मिलता। (सा. हि., 20 मई 1956, पृ. 3)

सरसई सं. (स्त्री.) -- किसी फल का सरसों के दाने जैसा छोटा रूप, शीशम बचे तो सरसई के गुछों से पुलई तक टहनी-टहनी लद जाएगी और डालें भार से लचने लगेंगी। (दिन., 7 अप्रैल, 67, पृ. 39)

सरसक्क वि. (अवि.) -- तर, सराबोर, मैं तो पसीने से सरसक्क हो गई। (कच. : वृ. ला. व., पृ. 100)

सरसाना क्रि. (अक.) -- खिलना, प्रसन्न होना, माता-पिता के वात्सल्य की बाढ़ में बोरता बच्चा अपनी मोद भरी मुसकान से गुलदस्ते की भाँति सरसाता है। (शि. पू. र., खं. 3, पृ. 130)

सरसाम सं. (पु.) -- सन्निपात (रोग) , तेज बुखार, जब सरसाम की हालत में पहुँच जाता है तो रोगी को कोई होश नहीं रहता। (रवि., 4 अप्रैल 1981, पृ. 42)

सरहंग सं. (पु.) -- पहलवान, जमींदार ऐसे सरहंग थे कि बिना लोहा बजाए मालगुजारी नहीं देते थे। (बा. भ. : भ. नि., भाग-2, पृ. 10)

सरापना क्रि. (सक.) -- शाप देना, कोटि कंठ से प्रजा सरापती रहे, तत्काल कुछ होने जाने का नहीं। (म. का मतः क. शि., 25 जुलाई 1925, पृ. 189)

सरिया सं. (पु.) -- लोहे का छड़, उस समय स्वाधीनता एक घोषणा थी, गर्म सरिए से चिपकता हुआ निशान नहीं। (रा. मा. संच. 1, पृ. 118)

सरियाना-सहेजना क्रि. (सक., पद.) -- (सक., पद.), व्यवस्थित करना तथा सँभालना, ऑफिस की सभी चीजों को सरिया सहेजकर यथास्थान रख देते। (शि. पू. र., खं. 4, पृ. 256)

सरिस्ता सं. (पु.) -- महकमा, विभाग, जमींदारी के सरिस्ते में पिता एक साधारण नौकरी करते थे। (सर., सित. 1919, पृ. 143)

सरे आम क्रि. वि. -- सबके सामने, खुलेआम, आनंदमूर्ति ने सबको एक साथ सरे आम चकमा देने का एक नया तरीका ईजाद कर लिया। (दिन., 14 से 20 मार्च 1976, पृ. 24)

सरे बाजार क्रि. वि. -- बीच बाजार, सबके सामने, यही अंतर है कि पिछले महामंडल के कर्ता स्वतंत्र थे और सरे बाजार स्वतंत्र बने हुए थे। (गु. र., खं. 1, पृ. 411)

सरे साँझ क्रि. वि. -- सायंकाल होते ही, सरे साँझ ही वह खटिया पर पड़ जाता है। (मधु: अग. 1965, पृ. 10)

सरेई वि. (अवि.) -- वही, जो मन में भरा हो सरेई उसका मुँह बोलता है। (गु. र., खं. 1, पृ. 191)

सरेह सं. (पु.) -- चलता रास्ता, गाँव भर को भथभूथकर वह सरेह में निकलता। (बे. ग्रं., भाग 1, पृ. 76)

सर्फ करना मुहा. -- खर्च करना, व्यय करना, कीचड़ गोबर उछालने में अपनी ताकत सर्फ करते रहे। (कर्म., 28 दिस. 1957, पृ. 1)

सर्वतः क्रि. वि. -- सर्वत्र, चारों ओर, कवींद्र रवींद्रनाथ टैगोर ने सर्वतः ख्याति अर्जित की। (काद., फर. 1995, पृ. 4)

सर्वमत सं. (पु.) -- सब का मत, बहुमत, उनकी आवाज कांग्रेस के सर्वमत के सामने नक्कारखाने में तूती के समान निर्बल थी। (स. परा. : ल. शं. व्या., पृ. 270)

सलवात सं. (स्त्री.) -- कठोर वचन, दुर्वचन, गाली, बेचारे को इसी बात पर सैकड़ों सलवातें सुननी पड़ीं। (ग. शं. वि. रच., खं. 3, पृ. 350)

सलीक वि. (अवि.) -- सलीकेदार, शिष्ट, वे लोग मुहावरे, सलीक भाषा बहुत पसंद करते हैं। (नि. वा. : श्रीना. च., पृ. 569)

सलीका सं. (पु.) -- शऊर, शिष्टाचार, तौर-तरीका, (क) बच्चों को अच्छी जगह नहीं पढ़ाएँ तो वे सलीका कहाँ सीखेंगे। (दिन., 25 अक्तू., 1970, पृ. 9) , (ख) सिफारिश करने का भी सलीका होना चाहिए नहीं तो काम बिगड़ने की संभावना रहती है। (रवि. 14 अग. 1982, पृ. 6) , (ग) सोच-समझ सब सकें सलीका यह सिखलाया। (सरस्वती, अग. 1916, पृ. 78)

सलीता सं. (पु.) -- मोटा मारकीन, चीथड़ों की जगह सलीते के अँगरखे और काठ के कटोरों की जगह काँसे और पीतल के बरतन देख पड़ने लगे। (सर., जन. 1920, पृ. 56)

सलूक सं. (पु.) -- व्यावहार, बरताव, (क धर्ममद से उन्मत्त समाज ने विद्वानों, संशोधकों के साथ वह सलूक किया जो लुटेरे मालदारों से करते हैं। गु. र., खं. 1, पृ. 143), (ख) अपने साथ हुए दुर्व्यवहारों और सलूकों को भूल जाना व्यक्ति की शालीनता है। (दिन., 16 जुलाई, 67, पृ. 25)

सलोना वि. (विका.) -- सुंदर, लावण्ययुक्त, (क) कष्ट सहन के सलोने रस से शाश्वत वंचित। (मा. च. रच., खं. 2, पृ. 294), (ख) किशोर हमारे होनहार किशोरों का एकमात्र सलोना पत्र है। (शि. पू. र., खं. 4, पृ. 518)

संवादी सं. (पु.) -- संवाद या परिचर्चा में स्मिलित होनेवाला, इस प्रश्न पर काफी संवादियों के पत्र हमें प्राप्त हुए हैं। (दिन., 11 जन. 1970, पृ. 5)

ससुरी सं. (स्त्री.) -- उपेक्ष्य वस्तु या व्यक्ति, दुर्गति होने पर भी हटे रहे आन पर, इज्जत ससुरी रहे या जाए। म. का मतः क, शि., 18 लाई 1925, पृ. 188)

संसृति सं. (स्त्री.) -- सृष्टि, संसृति के नियम अटूट हैं। (काद., जुलाई 1994, पृ. 5)

ससोपंज सं. (पु.) -- निर्णय न ले पाने की स्थिति, असमंजस, अरे तुम पहाड़ पर जाने की सोचकर आए हो और ससोपंज में पड़ गए। (काद., फर. 1989, पृ. 42)

सस्त्रीक क्रि. वि. -- पत्नी के साथ, पत्नी सहित, आप सस्त्रीक उसी में निवास करते हैं। (म. प्र. द्वि., खं 5, पृ. 321)

सहकारी सं. (पु.) -- सहकर्मी, भ्रातृतुल्य सहकारियों के अनुरोध की रक्षा कभी न कर सका। (सं. परा. : ल. शं. व्या., पृ. 47)

सहन सं. (पु.) -- आँगन, सहन में जाकर खड़े होते। (नव., जून 1953, पृ. 19)

सहल वि. (अवि.) -- सरल, सुगम, सहज, लोग भारत आते हैं और यहाँ कुछ समय तक रहते हैं उनके लिए तो यह बात और भी सहल है। (सर., अग. 1912, पृ. 402)

सहालग सं. (पु.) -- शादी-ब्याह के मुहूर्त की अवधि, सहालग में फिर ब्याह निकले। (सर., फर. 1937, पृ. 134)

सही भूल जाना मुहा. -- सिट्टी-पिट्टी गुम होना, होश उड़ जना, जिस समय आप किसी दुकान की जाँच करते थे उस समय अच्छे-अच्छे मुनीब और गुमाश्तों की सही भूल जाती थी। (सर., मार्च 1909, पृ. 102)

साइत सं. (स्त्री.) -- मुहूर्त, (क) अच्छी साइत विचारकर घर से चले हैं। (माधुरी: अक्तू. 1927, पृ. 599) , (ख) साइत सोधी जाती है। (दिन., 11 जून, 67, पृ. 39)

साँकल सं. (स्त्री.) -- जंजीर, (क) कुरीतियों की साँकल में जकड़कर बाँध दिए गए हैं। (मा. च. रच., खं. 2, पृ. 25) , (ख) उन लोगों की नियुक्तियाँ नहीं होनी चाहिए जो केवल ऊपर की साँकल खटखटाकर घुस आना चाहते हैं। (ते. द्वा. प्र. मि., पृ. 119)

साका सं. (पु.) -- कीर्ति देनेवाला बड़ा काम, (क) समय हमारी परीक्षा लेना चाहता है, हम साका करने के लिए प्रस्तुत हैं। (सत. खि., ह. कृ. प्रे., पृ. 105) , (ख) महाराजा साका में विलंब न किया जाए। (सर., सित. 1909, पृ. 391)

साकेतवास सं. (पु.) -- स्वर्गवास, निधन, इस बात की कल्पना भी किसी ने नहीं की थी कि एकाएक आपका इस प्रकार साकेतवास हो जाएगा। (सं. परा. : ल. शं. व्या., पृ. 104)

साख उड़ना मुहा. -- साख नष्ट होना, जर्मनी की आर्थिक जीवन धारा सूखी जा रही है त्यों-त्यों मित्र-राष्ट्रों की साख उड़ती गई। (न. ग. र., खं. 2, पृ. 159)

साख मारी जाना मुहा. -- साख नष्ट हो जाना, कितने ही व्यापारी अपनी हुँडियाँ सकारने में असमर्थ हो गए और उनकी साख मारी गई। (म. प्र. द्वि. रच., खं. 2, पृ. 200)

साख मिट्टी में मिलना मुहा. -- इज्जत पर बट्टा लगना, प्रतिष्ठा नष्ट हो जाना, यदि किसी बड़े अधिकारी की जान गई तो सैगान सरकार की साख मिट्टी में मिल जाएगी। (दिन., 03 सित., 67, पृ. 37)

साख सं. (स्त्री.) -- इज्जत, प्रतिष्ठा, सोवियत संघ साख भी बहुत कुछ इसी पर निर्भर है। (दिन., 3 अक्तू. 1971, पृ. 15)

साखी भरना मुहा. -- साक्षी देना, गवाही देना, कई मनुष्यों ने इसके सत्य होने की साखी भरी है। (गु. र., खं. 1, पृ. 311)

साँग भरना मुहा. -- आडंबर रचना, तेरे अनुकरणीय उदाहरण में आर्य समा अपना साँग भरता रहा है। (गु. र., खं. 1, पृ. 106)

सांघातिक वि. (अवि.) -- अत्यंत घातक, कैंसर सांघातिक रोग है। (काद., जन. 1980, पृ. 9)

साँचे में उतारना मुहा. -- अनुकूल या अनुरूप बना लेना, साँचे में उतारने की यह उनकी पुरानी अदा है। (ज. स. : 22 जुलाई 2007, (रवि) पृ. 2)

साँचे में ढलना मुहा. -- सुडोल बनना / बनाया जाना, नई सभ्यता और नई रोशनी के मुताबिक इस जमाने के साँचे में ढल जाय, तब हिंदी का काम सरे। (शि. पू. र., खं. 3, पृ. 365)

साजना क्रि. (सक.) -- सजाना, नातिन का ब्याह आ लगा, ननिहाली साजना पड़ा। (भ. नि. पृ. 91)

साटना क्रि. (सक.) -- चिपकाना, हँसी-खुशी मेल नहीं करोगे तो कागज के पन्नों की तरह गोंद लगाकर साट दिए जाओगे। (म. का मतः क. शि., 31 जुलाई 1926, पृ. 95)

साँठ-गाँठ सं. (स्त्री.) -- मिलीभगत, षड्यंत्र, गुप्त संधि, क) अपने मन में जान लिया कि निश्चय ही कहीं साँठ-गाँठ लगाई है। (नव., फर. 1959, पृ. 105) , (ख) आपको बुरा क्यों लगा, कुछ साँठ-गाँठ तो नहीं है। (माधुरी, नव. 1928, सं. 3, पृ. 887) , (ग) सामरिक संधि में शामिल न होना एक बात है और शामिल होकर प्रतिपक्षी से साँठ-गाँठ करना बिलकुल दूसरी। (दिन., 1 अप्रैल 1966, पृ. 11)

साढ़े साती लगना मुहा. -- बुरा समय चलना, भारतीय खजाने पर साढ़े साती लगी हुई है। (मा. च. रच., खं. 9, पृ. 88)

सात खून माफ होना मुहा. -- सभी अपराध क्षम्य होना, जो नेता राजकीय कुरसी पर बैठा है, वह तो फिर भी डबल रोल निभा लेता है, क्योंकि सत्ता के कारण उसके सात खून और सत्तर मुखौटे माफ हो जाते हैं। (रा. मा. संच. 1, पृ. 254)

साथी-संगाती सं. (पु. बहु.) -- संग रहनेवाले लोग, बस दो चार साथी-संगाती लेकर वह चल पड़ता है। (वीणा: मई 1936, पृ. 564)

साध1 सं. (स्त्री.) -- इच्छा, कामना, (क) अपने स्वामी की आन पर मर मिटने की साध उसमें होती है। (काद.: दिस. 1966, पृ. 39), (ख) तीर्थाटन की मेरी साध पूरी नहीं हुई। (काद. : मई 1975, पृ. 14)

साध2 सं. (स्त्री.) -- साधना, श्रीयुत संतराम जी साध के बड़े सच्चे हैं। (माधुरी: अक्तू. 1927, पृ. 415)

साधना-साँटना क्रि. (सक.) -- अपने पक्ष में कर लेना, पटाना, कला को साधूँ-साँटू तो कैसा रहेगा। (फा. दि. चा. वृ. ला. व. समग्र, पृ. 715)

साधना क्रि. (सक.) -- सिद्ध करना, प्राप्त करना, असगर, ये बसीकरन तूने कहाँ साधा। (काद., नव. 1961, पृ. 59)

साधुओं की जमात सं. (स्त्री., पद.) -- भले आदमियों का वर्ग या समूह, केंद्रीय मंत्रालय के साधुओं की जमात अब योजना आयोग में नहीं रहेगी। (दिन., 17 सित., 67, पृ. 17)

साधुमना वि. (अवि.) -- अत्यंत भला, साधुमना बाबू राजेंद्र प्रसादजी के शब्दों में जमनालालजी ने महात्मा गाँधी के सिद्धांतों को केवल समझा ही नहीं..., (मा. च. रच., खं. 4, पृ. 215)

सानी-पानी सं. (पु.) -- भूसा दाना, खली और पानी से सना मिश्रण, जल्दी-जल्दी बैलों को सानी-पानी दे दें। (प्रे. स. क. : सर. प्रेस, पृ. 9)

सानी1 वि. (अवि.) -- जोड़ का, बराबरी का, (क) नृत्यकला में इनका कोई सानी नहीं। (काद., मार्च 1963, पृ. 153) , ख) ताकत और दाँव-पेंच में इस अखाड़े में खलीफा का सानी कोई भी नहीं है। (काद., जून 1977, पृ. 12), (ग) बैठकबाजी की कला में अपना सानी न रखनेवाले अतुल्य घोष के इशारे पर मैसूर और महाराष्ट्र के प्रतिनिधियों ने ... (दिन., 15 जुलाई 1966, पृ. 14), (घ) मौका ताड़ने और उसका इस्तेमाल करने में इंदिरा गाँधी का कोई सानी नहीं है। (ज. स. : 11 फर. 1984, पृ. 4)

सानी2 सं. (स्त्री.) -- गाय-भैंस का चारा, (क) कभी गोबर थापते, कभी गाय-भैंसों के लिए सानी तैयार करते। (काद., मई 1979, पृ. 135)

साँप की बामी में उँगली डालना मुहा. -- जान-बूझकर खतरा मोल लेना, तुम्हारा यह कृत्य साँप की बामी में उँगली डालने जैसा है। (माधुरी, 1 मार्च 1925, सं. 2 पृ. 153)

साँप छछूँदर की स्थिति में पहुँचाना मुहा. -- मुहा., घोर असमंजन की स्थिति में डालना, मधु लिमये ने कांग्रेस के सभी प्रमुख मंत्रियों को साँप-छछूँदर की स्थिति में पहुँचा दिया। (दिन., 16 सित., 66, पृ. 16)

साँप छछूँदर जैसी गति होना मुहा. -- घोर असमंजस की स्थिति में पड़ना, जर्मनी और फ्रांस की आपाधापी में ब्रिटेन की गति साँप-छछूँदर जैसी हो गई। (स सा., पृ. 262)

साँप पर पैर पड़ना मुहा. -- भयानक स्थिति का एकाएक उपन्न होना, अखबारवाले ऐसे चौंक पड़े मानो साँप पर पैर पड़ गया है। (म का मतः क. शि., 16 मई 1925, पृ. 185)

साँप सूँघा-सा वि. (विका., पद.) -- भयभीत, डरा हुआ, लगता हो जिसे साँप ने सूँघा हो, 1962 के युद्ध के बाद जिस तरह भारत हतप्रभ और साँप सूँघा-सा रह गया था। (रा. मा. संच. 1, पृ. 348)

सापेक्ष वि. (अवि.) -- जिसकी अपेक्षा हो, यह कार्य श्रमसाध्य एवं धन सापेक्ष है। (म. प्र. द्वि. रच., खं. 2, पृ. 202)

साफगोई सं. (स्त्री.) -- साफ बयानी, स्पष्टवादिता, (क) जैनेंद्र की साफगोई पाठक को मोहती है। (दिन., 2 फर., 69, पृ. 43) , (ख) अपनी साफगोई छोड़ी न पलटवार किया। स. दा. : अ. नं. मिश्र, पृ. 95) , (ग) नाइक की साफगोई से मान पलीते में आग लग गई। (दिन., 9 जुलाई 1965, पृ. 27)

साफबयानी सं. (स्त्री.) -- स्पष्ट कथन, स्पष्टीकरण, स्पष्टवादिता, अनेक सदस्यों ने तथाकथित टिप्पणी पर साफबयानी की माँग की। (दिन., 16 सित., 66, पृ. 14)

साबिक वि. (अवि.) -- पहले जैसा, परंतु खोपड़ी बदस्तूर साबिक औंधी पड़ी रही। (म. का मतः क. शि., 1 अप्रैल 1924, पृ. 64)

साबुत वि. (अवि.) -- पूर्ण, पूरा, अखंड, (क) जब सपने टूटते हैं तो अनुशासन कैसे साबुत रह सकता है। (दिन., 03 सित., 67, पृ. 10), (ख) एक आदमकद प्रस्तर प्रतिमा साबुत की साबुत पुरातत्त्व चोरों के गिरोह ने सकुशल अमेरिका पहुँचा दी... (दिन., 19 अप्रैल 1970, पृ. 12) , (ग) आप रेलयात्रा के बाद साबुत पुँच गए तो ऊपरवाले की मेहरबानी मानिए। (ज. स. :18 फर. 1984, पृ. 4)

सायत सं. (स्त्री.) -- साइत, मुहूर्त, लगन, बोले तो जरूर पर अच्छी सायत में नहीं। (म. का मत: क. शि., 18 जुलाई 1925, पृ. 186)

सालतमामी सं. (स्त्री.) -- वर्ष की समाप्ति, वर्ष का अंत, पर सालतमामी में वे रकमें तो जैसे बिला जाती हैं और उल्टे लेने के देने पड़ जाते हैं। (नि. वा. :श्रीना. च., पृ. 616)

सालन सं. (पु.) -- तरकारी, जुम्मन की पत्नी करीमन रोटियों के साथ कड़वी बातों के कुछ तीखे सालन भी देने लगी। (सर., जून 1916, पृ. 286)

सालना क्रि. (सक.) -- संतप्त करना, कष्ट देना, (क) रूस, चीन, अमेरिका, योरप, अफ्रो-एशिया सबका रूख हमारे प्रति दोमुहाँ था और एक विश्वासघात का बोध हमें सतत साल रहा था। (रा. मा. संच. 1, पृ. 142), (ख) ... जीवन के अंतिम ढाई वर्षों में यह अपराध बोध उन्हें सालता रहा। (रा. मा. संच. 1, पृ. 363)

साँस घुटना मुहा. -- घोर कष्ट सहना, ऐसा उच्चकोटि का पत्र क्या हिंदी में बहिना साँस घुटे निकल ही नहीं सकता। (गु. र., खं. 1, पृ. 408)

साँस घोटनी वि. (अवि.) -- दम घोट देनेवाला, तीन रात यहाँ सोना साँस-घोटनी रोग से कहीं बढ़कर है। (गु. र., खं. 1, पृ. 110)

साँसत सं. (स्त्री.) -- दुगर्ति, दुर्दशा, फजीहत, (क) भाषा की साँसत दोनों ओर से हो रही है। (शि. पू. र., खं. 3, पृ. 338) , (ख) लोकतंत्र, संस्था और मूल्य दृष्टि दोनों ही रूपों में साँसत में हैं। (जन. 10 दिस. 2006, पृ. 6)

साहुत सं. (स्त्री.) -- भलमनसाहत, सज्जनता, परिवार भर में साहुत और एका है। (भ. नि. तपृ. 137)

सिकहर सं. (पु.) -- छींका, नकल नहीं इन्हें मिलेगा सिकहर, उसी में एक टाँग लटकाकर झूला करेंगे। (रा. द. श्रीला. शु., पृ. 82)

सिकारना क्रि. (सक.) -- सकारना, जॉन फॉस्टर डलस के जमाने में जो हुंडिया लिखी गई थीं, उन्हें आज कोई सिकारनेवाला नहीं। (रा. मा. संच. 1, पृ. 341)

सिक्का जमना मुहा. -- प्रभाव या प्रभुत्व स्थापित होना, (क) वेस्टइंडीज तथा फिजी द्वीप समूह में व्यवसाय पर गुजरातियों का ही सिक्का जमा हुआ है। (दिन., 06 जन., 67, पृ. 7) , (ख) यहाँ पंजाबियों का अच्छा सिक्का जमा हुआ है। (सर., अग. 1916, पृ. 104)

सिक्काशाही सं. (स्त्री.) -- अपना सिक्का अर्थात् प्रभाव जमाने की क्रिया या भाव, इस लेख में वह गड़बड़झाला, लबड़-धोंधों य सिक्काशाही मची है कि कुछ न पूछिए। (चं. श. गु. र., खं. 2, पृ. 308)

सिटपिटाना क्रि. (अक.) -- असमंजस या दुविधा में पड़ना, परेशान होना, मैंने सिटपिटाकर मुटुर-मुटुर ताकते हुए कहा-जल पान। (स्मृ. वा. : . व. शा., पृ.12)

सिट्टी-पिट्टी गुम होना मुहा. -- होश-हवास उड़ जाना, सुध-बुध खो बैठना, (क) बड़े लड़कों की ऐसी फटकार पड़ती है कि उनकी सारी सिट्टी-पिट्टी गुम हो जाती है। (दिन., 26 जन., 69, पृ. 45) , (ख) इस आसक्ति के सामने सरदारी लाल की सिट्टी-पिट्टी गुम हो गई। (दिन., 06 अग., 67, पृ. 43) , (ग) दंगा भड़कने की सूचना मिलते ही उसकी सिट्टी-पिट्टी गुम हो गई। (वाग. : जा. व. शा., पृ. 26)

सिट्टी-पिट्टी भूलना या भूल जाना मुहा. -- सिट्टी-पिट्टी गुम हो जाना, (क) पाकिस्तानी सेना का मुक्ति-फौज ने ऐसा घिराव किया कि वह सिट्टी-पिट्टी भूल गई। (दिन., 11 अप्रैल 1971, पृ. 34) , (ख नेहरू के उपस्थित होते ही वह सिट्टी-पिट्टी भूल जाते थे। (दिन., 20 जन., 67, पृ. 14)

सिड़िबल्ला वि. (विका.) -- बेशऊर, बेसलीकेदार, बेढंगा, गंगा की दिशा पलटने का काम लोकदल जैसी अटखट और सिड़िबल्ली पार्टी निभा सकती है इस पर कौन यकीन कर सकता है। (रा. मा. संच. 1, पृ. 416)

सिड़ी वि. (अवि.) -- झक्की, पागल, (क) लोग हँसकर कहें सिड़ी है। (भ. नि. पृ. 143), (ख) वह चीख उठा, कैसे सिड़ी हो ? (हंस, जन. 1938, पृ. 361)

सिधाई सं. (स्त्री.) -- सीधापन, क्या मजदूरों की सिधाई का बेजा फायदा नहीं उठाया जाता। (ग. शं. वि. रच., खं. 3, पृ. 57)

सिधाना क्रि. (अक.), सं. (पु.) -- प्रस्थान करने की क्रिया या भाव, ज्योतिषी ने पंचांग देखकर कहा महाराज अब सिधाने का महूर्त आ गया। (सर., अग. 1918, पृ. 80)

सिपड़ी बँधना मुहा. -- युक्ति चलना, ऐसे भारी कवि हो गए हैं प्राचीनों में और नवीनों में भी कि उनके सामने हमारी सिपड़ी बँधना कठिन है। (मा. च. रच., खं. 2, पृ. 348)

सिप्पा सं. (पु.) -- युक्ति, जुगाड़, मुझे पता चल गया होता, तो ऐसा सिप्पा मैंने अवश्य ही भिड़ा लिया होता और हेड कांस्टेबल बनकर कहीं-न-कही चिपक गया होता। (कर्म., 29 मई 1948, पृ. 7)

सिफारिशी टट्टू मुहा. -- खुशामद से पद प्राप्त करनेवाला व्यक्ति, (क) उच्च पदों पर बैठे सिफारिशी टट्टू प्रजा को जहाँ-तहाँ दुलत्ती मारने रहते हैं। (कर्म., 17 अक्तू 1931, पृ. 12) , (ख) शिक्षा विभाग में सांप्रदायिक तत्त्वों और सिफारिशी टट्टुओं को बहुत बल मिला है। (दिन., 15 अग. 1971, पृ. 52)

सियापा सं. (पु.) -- स्यापा, रोना-पटना, (क) निराशा का उन्माद और जन्म भर का सियापा तो नहीं चढ़ा था कि हम गिरते ही जाएँगे। (गु. र., खं. 1, पृ. 179) , (ख) इस सिपाये को अब बंद कर छोड़ते हैं। (भ. नि., पृ. 69)

सिर खपाना मुहा. -- माथापच्ची करना, (क) इन उदारवादी नेताओं ने तरह-तरह से सिर खपाया। (नि. वा. : श्रीना. च., पृ. 763) , (ख) कहाँ तक कोई इनसे सिर खपावे। (म. प्र. द्वि., खं. 1, (गोविंद नारायण मिश्र) , पृ. 405)

सिर खुजलाना मुहा. -- उत्तर न बन पड़ने पर या छ करते न बन पड़ने पर परेशान होना, (क) यह सुनकर कुछ लोग आश्चर्य के मारे सिर खुजला रहे हैं। मत., म. प्र. सं. वर्ष 5, सितं. 1927, पृ. 5), (ख) जन जागृति की लहर देखकर रात-रात भर लायड जार्ज सिर क्यों खुजलाते रहते थे। (म. का मतः क. शि., 18 जुलाई 1925, पृ 188)

सिर चट्टान से टकराना मुहा. -- ऐसा प्रयास करना जिससे अपनी हानि हो, अपने सिर को चट्टान से टकराने से क्या फायदा ? (ग. शं. वि. रच., खं. 1, पृ. 104)

सिर टकराना मुहा. -- निरर्थक प्रयास करना, सिर खपाना, आम चुनाव से पहले कांग्रेस के जयपुर अधिवेशन में वह सिर टकराता रहा। (दिन., 2 जून, 68, पृ. 18)

सिर पटकना मुहा. -- व्यर्थ परिश्रम करना, राष्ट्रीय एकीकरण के खातिर कितना ही सिर पटक लें। (रा. मा. संच. 1, पृ. 503)

सिर पर लादना या लादे रहना मुहा. -- बोझ ठाए रहना, ढोते चलना, अंग्रेजों की गुलामी के प्रमाण-स्वरूप अंग्रेजी भाषा को सिर पर लादे रहना उचित नहीं है। (कर्म., 14 अग. 1948, पृ. ख)

सिर पर लेना मुहा. -- अपने ऊपर लेना, उत्तरदायित्व लेना, (क) हमारे प्रदेश को यह जानकर उसे सिर पर लेना और उसमें जान लड़ा देना चाहिए। (मा. च. रच., खं. 9, पृ. 231), (ख) गजब किया पूरे साढ़े 18 करोड़ का घाटा सिर पर ले लिया। (मा. च. रच., खं. 9, पृ. 296)

सिर पिरना या फिर जाना मुहा. -- बुद्धि ठिकाने न रहना, क्या राजनैतिक दलों के सभी सदस्यों के सिर फिर गए हैं। (दिन., 11 नव., 66, पृ. 13)

सिर से कफन बाँधना मुहा. -- जोखिम उठाने को प्रस्तुत होना, ... ठीक इसी पृष्ठभूमि पर अर्थहीन, सादनहीन लालसिंहजी एक दिन अपने सिर से कफन बाँध निकले। (मा. च. रच., खं 4, पृ. 235)

सिर-आँखों पर बैठाना या लेना मुहा. -- पूरा सम्मान देना,(क) जागलूल को यदि आज मिस्र देशवासी अपने सिर-आँखों पर बिठाते हों तो आश्चर्य ही क्या है ? (न. ग. र., खं. 2, 223) , (ख) स्वराज्य के लिए यह प्रस्ताव हमारे सिर-आँखों पर। (मा. च. र., खं. 9, पृ. 231)

सिर-फुटव्वल, सिर-फुटौवल सं. (स्त्री.) -- मारपीट, लड़ाई-झगड़ा, (क) उन्होंने कम्युनिस्ट गुटों की आपसी सिर-फुटव्वल को खतरनाक बताया है। (दिन., 21 मई, 67, पृ. 23) , (ख) संयुक्त मंत्रिमंडल बना तो और भी सिर फुटौवल हुई और केंद्रीय शासन कायम करना पड़ा। (रा. मा. संच. 2, पृ. 106), (ग) विवाह मंडप में असलियत खुली तो सिर-फुटौवल की नौबत आ गई। (काद., जून 1979, पृ. 40)

सिरकी सं. (स्त्री.) -- सरकंडे की छान, सिरकी भी सामने ही थी। (मधु: अग. 1965, पृ. 16)

सिरखपी सं. (स्त्री.) -- माथापच्ची, (क) पहले दस पंद्रह वर्ष यहाँ अँगरेजी पढ़ने में सिरखपी करें फिर ..., (म. प्र. द्वि., खं. 1, पृ. 202) , (ख) छह घंटे तो वे छोटे-छोटे बच्चों के साथ सिरखपी करते और रात को अँगरेजी जाननेवालों के यहाँ जा-जाकर अँगरेजी पढ़ते। (सर., सित. 1920, पृ. 134)

सिरजना क्रि. (सक.) -- सृजन करना, उत्पन्न करना, (क) गली करते रहने के लिए तो विधाता ने पत्रकारों को ही सिरजा है। (शि. पू. र., खं. 4, पृ. 507) , (ख) दक्षिण में सिमटी सत्ता को सिरजने में जी-न से लगा हुआ है। (दिन., 21 अप्रैल, 68, 68, पृ. 13) , (ग) उनके स्वार्थ उस गोरे संसार में परस्पर अटके हुए हैं, जिसे उन्होंने महायुद्ध के बाद सिरजा है। (दिन., 19 दिस. 1971, पृ. 15)

सिरतोड़ वि. (अवि.) -- अत्यधिक, घोर, हम लोग सिरतोड़ परिश्रम कर रहे हैं। (म. का मतः क. शि., 24 दिस. 1927, पृ. 244)

सिरतोड़ी सं. (स्त्री.) -- सिर तोड़ने का काम, पुलिस डंडा ऊँचा उठाकर सिर तोड़ी का भय दिखाने पर बाध्य हो रही थी। (दिन., 9 दिस., 66, पृ. 44)

सिरदर्द मोल लेना मुहा. -- मुसीबत गले लगाना, आफत मोल लेना, पुस्तक विक्रेता के भरोसे काफी लागतवाले ग्रंथ निकाल डालना, घर बैठे सिर-दर्द मोल लेना है। (शि. पू. र., खं. 4, पृ. 656)

सिरनामा सं. (पु.) -- पता, नाम-पता रपोटें पूरी करके सिरनामे लिखकर रात ही को पास के लेटर बॉक्स में छोड़ आए। (का. कार. : नि., पृ. 67)

सिरफिरा वि. (अवि.) -- पागल, जार की निगाह में बोल्शेविक पार्टी सिर्फ मुट्ठू भर सिरफिरे लोगों की जमात थी। (रा. मा. संच. 1, पृ. 22)

सिरलदा वि. (विका.) -- बोझ के समान, भार-स्वरूप, शासन, कानून और जन-जीवन के ज्ञाता की दृष्टि में यह योजना सर्वथा नवीन और सिरलदी है। (कर्म., 8 जुलाई, 1950, पृ. 3)

सिराना क्रि. (अक.) -- ठीक होना, पुजना, चोट सिरा रही है। (कच. : वृ. ला. व., पृ. 214)

सिरोपाव सं. (पु.) -- सरोपा, खिलअत, किसी भी वीर के लिए विधाता का दिया हुआ श्रेष्ठ सिरोपाव हो सकता है। (मधु : अग. 1965, पृ. 42)

सिलपी वि. (अवि.) -- बारूद भरा हुआ, दो-चार सिलपी (बीना गोली के खाली बारूद भरकर) फायर घलवा दिए। (माधुरी, वर्ष-7, खं. 2 फर. से जुलाई 1929, पृ. 415)

सिलबिल्ला वि. (विका.) -- बेशऊर, बे-सलीकेदारी, सिडबिल्ला, कृष्णा अभी तक वैसी ही सिलबिल्ली है। (ग. शं. वि. रच., खं. 7, पृ. 19)

सिल्लक सं. (स्त्री.) -- तिजोरी, खजाना, गैर-कांग्रेसवाद के बैंक में जब पहला ग्राहक पहला चेक लेकर गया, तो उसने पाया कि इस बैंक में सिल्लक शून्य है। (रा. मा. संच. 1, पृ. 371)

सिल्ली सं. (स्त्री.) -- चौकोर पटिया, पर ये सुविधाएँ मुझे बर्ष की सिल्ली की तरह लगती हैं। (काद., मार्च 1973, पृ. 22)

सिसकाऊ वि. (अवि.) -- रुलानेवाला, सनसनीखेज समाचारों के अभाव में सिसकाऊ सामग्री जुटाने में जुटे हुए पत्रकार। (दिन., 21 फर. 1965, पृ. 26)

सिसकारी सं. (स्त्री.) -- फुफकार, फटकार, वे सरकार की सिसकारी सुनते ही जिन्ना के सिंहासन के सामने अदब से आ बैठे। (क. ला. मिश्र : त. प. या., पृ. 95)

सिसियाना क्रि. (अक.) -- दुःखी होना, बेचैन होना, ये दिन कलम लेकर विश्लेषण करने के नहीं बल्कि सिसयाते हुए महसूस करने के हैं। (रा. मा. संच. 2, पृ. 66)

सिंह की माँद में ढेला फेंकना मुहा. -- शत्रु को उत्तेजित करना, आफत मोल लेना, हिंदुस्तानियों का अपमान करना सिंह की माँद में ढेले फेंकने के समान है। (स. सा., पृ. 153)

सिहाना क्रि. (अक.) -- 1. ईर्ष्या करना, जलना, (क) वह उसकी उन्नति देखकर सिहाता है। (काद., अक्त. 1975, पृ. 18) , 2. मुग्ध होना, वहाँ की युवतियाँ भारत के कपड़ों को पहनकर सिहाती थीं। (रा. शं. वि. रच., खं. 3, पृ. 404)

सींक की आड़ सं. (स्त्री., पदबंध) -- नाममात्र की ओट, शरमसार के लिए सींक की आड़ काफी होती है। (रा. ज. श्लीला. शु., पृ. 375)

सींकड़ सं. (पु.) -- मोटी जंजीर, साँकल, मेरे पुरखों ने हाथी पाला था, मैं सींकड़ लिए फिरता हूँ। (म. का मतः क. शि., 29 सित. 1925, पृ. 34)

सीका सं. (पु.) -- नीम की पत्तीदार सींक, उसका लड़का गिरधारी कभी नीम के सीके पिलाता, कभी गुर्च का सत, कभी गदापूरना की जड़। (सर., मई 1918, पृ. 243)

सींग कटाकर बछड़ा बनना मुहा. -- उम्र को छिपाकर, युवकों का आचरण करना, हिंदी फिल्मों के सदाबहार अभिनेता देवानंद की ख्याति दो कारणों से है। एक तो सींग कटाकर बछड़ा बनने के अद्भुत कौशल के कारण दूसरे अपनी फिल्मों के लिए नई-नई लड़िकयों की खोज के कारण। (रवि., 22 अग. 1982, पृ. 32)

सींग-पूँछ दबाना मुहा. -- चीं-चपड़ न करना, पूर्णतः चुप्पी साधे रहना, वह इसी तरह सींग-पूँछ दबाए सब सहती रहेगी पर पीछा नहीं छोड़ेगी। (म. का मतः क. शि., 25 जुलाई 1925, पृ. 192)

सीझा हुआ वि. (विका.) -- पका हुआ, सिक्त, पुष्ट, विदेशी तलघर में सीझा हुआ अनुभव हमारा नहीं है। (रा. मा. संच. 2, पृ. 51)

सीड़ सं. (स्त्री.) -- सीलन, नमी, जिस स्थान पर ये पेड़ लगे थे वाँ पानी बहता था। खूब सीड़ थी। (सर., दिस. 1912, पृ. 664)

सीनाजोरी सं. (स्त्री.) -- जोर-बरदस्ती, जबरई, (क) उसे कोसेंगी तो वह सीनाजोरी करेगा। (हि. ध., प्र. जो., पृ. 297) , (ख) अपनी किस्मत को कोसता है और फिर समय की सीनाजोरी के आगे नतमस्क हो जाता है। (दिन., 30 सित., 66, पृ. 30)

सीपी आम सं. (पु., पदबंध) -- एक प्रकार का कम रसवाला आम, पूरी तरह पकने के पूर्व कुछ-कुछ पका हुआ सिकुड़ा आम, भारत में एक-दो दिन की छुट्टियाँ सीपी आमों की तरह टुप्प-टुप्प करती हैं। (सर., फर. 1917, पृ. 89

सीर1 सं. (स्त्री.) -- मिल्कियत, जागीर, इस राज्य को आप अपनी ही सीर समझिए। (श्र. सं. : मै. श. गु., पृ. 6)

सीर2 सं. (स्त्री.) -- किसी के साझे में जमीन जोतने-बोने की रीति, सूद से नहीं अब सीर से उसका पेट पलता था। (सर., अग. 1916, पृ. 86)

सील सं. (स्त्री.) -- सीलन, पैरों में सील के कारण किचमिच गुदगुदी करती है। (दिन., 20 अग., 67, पृ. 27)

सीला सं. (पु.) -- खेत में गिरे दाने और बालें, इनके पीछे कुछ अहिंदू (बौद्ध और जैन) सीला बीननेवाले हुए। (चं. श. गु. र., खं. 2, पृ. 99)

सीवन उधेड़ना मुहा. -- बखिया उधेड़ना, किसी ने कहा कि बहस, बकझक बोली की चूक पकड़ने और कच्ची दलीलों की सीवन उधेड़ने में ही परम पुरुषार्थ है। यही शगल सही। (. र., खं. 1, पृ. 101)

सीवन सं. (स्त्री.) -- सिलाई, रात और दिन की धूप-छाँह के एक ही अखंड वस्र में कहीं गाँठ या जोड़ या सीवन आ पड़ने का प्रसंग तक नहीं उठा। (सधु : अग. 1965, पृ. 28)

सुई के छेद से निकलना मुहा. -- घोर असंभव कार्य होना, वहाँ से अनाज प्राप्त करना सुई के छेद से होकर निकलने के समान कठिन था। (रवि., 25 जन. 1981, पृ. 40)

सुकवा सं. (पु.) -- शुक्र ग्रह, भारत का जगनवा अहीर सुकवा के उदय से लेकर शाम को तारे निकलने के बाद तक सारे शरीर से कड़ी मेहनत करता है। (सर., अप्रैल 1913, पृ. 233)

सुखनसाजी सं. (स्त्री.) -- शायरी, कवित्व, बात पर बात आ गई, कह दी, यही मेरी सुखनसाजी का राज है। (स्मृ. वा. : जा. व. शा., पृ. 3)

सुखाला वि. (विका.) -- सुख देनेवाला, सुखद, मरण भी सका वैसा ही सुखाला हो जैसा कि जनन हुआ था। (भ. नि., पृ. 100)

सुगबुगी सं. (स्त्री.) -- हलचल, कंपन, पत्थरों में भी कहीं कोई सुगबुगी है। (काद. : दिस. 1967, पृ. 10)

सुघर वि. (अवि.) -- सुघढ़, सुडौल, सुंदर, समय रूपी कारीगर ने संसार के पुराने विचारों, संस्थाओं और सत्ताओं को सनातन काल से काम करती रहनेवाली अपनी सुघर घरिया में डाल दिया है। (ग. शं. वि. रच., खं. 2, पृ. 546)

सुघराई सं. (स्त्री.) -- सुघड़पन, कुशलता, (क) मकड़ी को चतुराई और सुघराई के साथ जाल फैलाते हजारों वर्ष हो गए। (सर., फर. 1920, पृ. 92), (ख) शौकीन नौजवान सिर पर लंबे घुँघराले बाल रखते, जिन्हें कंघी से दो हिस्सों में बड़ी सुघराई से बाँटे रहते। (बे. ग्रं., प्रथम खं., पृ. 64)

सुजान सं. (पु.) -- चतुर व्यक्ति, तीन सुजान एक मत होकर जो सिफारिशें कर गए उसका परिणाम हिंदी कितने वर्षों तक भुगतती रहेगी। यह अब देखना है। (दिन., 28 फर. 1965, पृ. 45)

सुड़कना क्रि. (सक.) -- धीरे-धीरे पीना, पान करना, कला के दलिए को कुछ पतला ही रहने दिया करें ताकि जरा आसानी से सुड़का जा सके। (मा. च. रच., खं. 2, पृ. 281)

सुड़पना क्रि. (सक.) -- सुड़कना, धीरे-धीरे पीना, इस बीच भी वह स्त्री गोभी का शोरबा सुड़पती रही। (काद., लाई 1961, पृ. 61)

सुत वि. (अवि.) -- सुडौल, बहुत अच्छा, उनका भरा हुआ चेहरा सुत आया है। (कर्म., 2 अग. 1958, पृ. 1)

सुँतना क्रि. (अक.) -- कम हो जाना, चिट्टियाँ यदि पूरी की पूरी उद्धृत न होतीं तो पुस्तक का आकार मजे में सुँ लेता। (तिन., 30 जुलाई, 67, पृ. 41)

सुतरां योज. -- इसलिए, सुतरां नता इन लीडरों का सहसा परित्याग न कर सकी। (म. का तः क. शि., 8 मार्च 1924, पृ. 140)

सुथरा वि. (विका.) -- स्वच्छ, साफ, किंत उसका काम सबसे अधिक और सबसे सुथरा था। (सर., सित. 1922, भाग-23, खं. 2, सं. 3)

सुदवाना क्रि. (सक.) -- मुहूर्त निकलवाना, देवकी का विवाह कल ही सुधवाया है। (ब. दा. च. चु. प., संपा. ना. द., पृ. 189)

सुध सं. (स्त्री.) -- सुधि, याद, स्मरण, अब इंमीरियल सरकार को अपने कर्तव्य और कल की सुध आनी चाहिए। (ग. शं. वि. रच., खं. 2, पृ. 21)

सुधरा वि. (विका.) -- सीधा, उनके जैसा सरल-सुधरा व्यक्ति कोई न था। बे. ग्रं., भाग 1, पृ. 81)

सुप्रसू वि. (अवि.) -- अच्छी संतान को जन्म देनेवाली, सरस्वती जब तक लक्ष्मी की उपेक्षा नहीं करती तब तक सुप्रसू नहीं होती। (सं. परा. : ल. शं. व्या., पृ. 51)

सुबास सं. (पु.) -- सुगंध, नेहरूजी के भाषण से मानव कल्याण की सुबास आती है। (कर्म., 10 अप्रैल 1954, पृ. 3)

सुबुकपन सं. (पु.) -- कमनीयता, सुकुमारता, कुछ लोग शोभा, सुंदरता और सुबुकपन पर मोहित होकर संपत्ति का बुरा उपयोग करते हैं ... वृथा कम करते हैं। (म. प्र. द्वि. रच., खं. 2, पृ. 158)

सुभीता सं. (पु.) -- सुविधा, सहूलियत, सुगमता, (क) उन्हें कविता लिखने में सुभीता होता। (म. प्र. द्वि. रच., खं. 2, पृ. 152) , (ख) तात्पर्य यह है कि कॉलेज के अंदर सब प्रकार का सुभीता है (सर., 1 अप्रैल 1909, पृ. 175), (ग) परित्यक्त बच्चों और अनाथ स्त्रियों के पालनार्थ और भी अधिक सुभीता करने का विचार इस आश्रम के संचालक कर रहे हैं। (सर., जून 1915, पृ. 331)

सुमंगली वि. (अवि.) -- सधवा, सौभाग्यवती, गाँवों में आज भी पति के जीवित रहनेवाली स्त्री सुमंगली मानी जाती है। (रवि., 25 जन. 1981, पृ. 13)

सुर से सुर मिलाना मुहा. -- हाँ में हाँ मिलाना, पूर्ण समर्थन करना, हैदराबाद के हूजूरेवाला लार्ड चेम्सफोर्ड के सुर से सुर मिला रहे हैं। (मा. च. रच., खं. 9, पृ. 171)

सुरसा के जबड़े की भाँति विस्तृत वि. (अवि. पदबंध) -- अत्यधिक विस्तृत, कमीशन के अधिकारों की सीमा सुरसा के जबड़ों की भाँति विस्तृत कर दी गई है। (कर्म., 29 मई 1948, पृ. 3)

सुरसाकार वि. (अवि.) -- विकराल, जब तक जयप्रकाश इस देश की सुरसाकार निराशा के नकारात्मक केंद्र बिंदु हैं, तब तक उनकी सफलता अनिवार्य है... (रा. मा. संच. 1, पृ. 257)

सुरसुराहट सं. (स्त्री.) -- खुसर-फुसर, फुसफुसाहट, सुगबुगाहट, वियतनाम का जिक्र आते ही हाल में कुछ सुरसुराहट हुई और चीनी प्रतिनिधि हाल छोड़ते नजर आए। (दिन., 18 नव., 66, पृ. 34)

सुरसुरी छोड़ना मुहा. -- शोशा छोड़ना, शरारत भरी बात कहना, दूसरी तरफ उन्होंने यह सुरसुरी भी छोड़ दी कि मिश्र गुट के लोग उनको नहीं चाहते। (दिन., 6 अक्त. 1968, पृ. 18)

सुरसुरी सं. (स्त्री.) -- सिरहन, (क) जब तक अनेक कलबलछल से शरीर का थोड़ा-थोड़ा रस खिंचता रहा तब तक जैसा किसी को सहराने में सुरसुरी का मजा मिले। (भ. नि. मा. (दूसरा भाग, सं. ध. भ., पृ. 53) , (ख) सुरसुरी की एक लहर भीड़ में यहाँ से वहाँ तक दौड़ गई। (दिन., 10 जून 1966, पृ. 35) , (ग) हवा की इस बाहर निकलनेवाली सुरसुरी से लहरें पैदा होती हैं और उनकी गति ढक्कन तथा आरे की गति पर निर्भर होती है। (नव., अप्रैल 1952, पृ. 85)

सुराख सं. (पु.) -- छेद, छिद्र, यह सब हिंदू-मुसलमानों की एकता के किले को तोड़ने के सुराख हैं। (स. सा., पृ. 71)

सुराग लगना मुहा. -- टोह या पता लगना, भंडारनायके सरकार को इतनी व्यापक कारस्तानी का सुराग नहीं लग पाया। (रा. मा. सं. 2, पृ. 43)

सुराग सं. (पु.) -- अता-पता, संकेत, भंडारनायक सरकार को इतनी व्यापक कारस्तानी का सुराग नहीं लग पाया। (रा. मा. संच. 2, पृ. 43)

सुरागरशी सं. (स्त्री.) -- टोह लेने का काम, गुप्तचरी, वह... समाजवादी पार्टी के दफ्तर में सुरागरशी करने गया हुआ था। काद., जुलाई 1994, पृ. 140)

सुर्खाब के पर लगाना मुहा. -- दुर्लभ विशेषताएँ होना, क्या प्रभातगिरि के कोई सुर्खाब का पर लगा हैं जो उन्हें मडंत की पदवी से विभूषित किया जाए। (न. ग. र., खं. 2, पृ. 96)

सुर्खी सं. (स्त्री.) -- लाली, लालिमा, जिस समय अपनी गुजरी हुई खानदानी शान की कहानी कहने लगते हैं, उनके चेहरे पर सुर्खी आ जाती है। (नव., मई 1952, पृ. 55)

सुर्रा सं. (पु.) -- गर्जना, उसके सुर में संघ का भी सुर्रा है। (हि. ध., प्र. जो., पृ. 576)

सुलझाहट सं. (स्त्री.) -- सुलझाने की क्रिया या भाव, सुलझाव, उसकी सुलझाहट के लिए जितना यत्न किया जा रहा है, उतना ही वह उलझता जा रहा है। (मा. च. रच., खं. 9, पृ. 93)

सुलटाना क्रि. (सक.) -- सलटाना, सुलझाना, निपटाना, राजनीति और विभिन्न सत्ता गुटों की होड़ को उसी तरह सुलटाना चाहती है। (हि. ध., प्र. जो., पृ. 442)

सुहवत सं. (स्त्री.) -- सोहबत, संगति, साथ, वे उनकी सुहबत में भी बैठते हैं। (सर., अक्तू. 1919, पृ. 183)

सूत न कपास कोरी लट्ठमलट्ठा या लठालठी कहा. -- बेबात झगड़ा करना, निष्प्रयोजन विवाद करना, (क) सूत न कपास कोरे लट्ठम लट्ठावाली जुलाहों की लड़ाई से इसमें किसी पक्षवालों को फायदा नहीं हो सकता। (सर., अग. 1919, पृ. 90) , (ख) लेकिन लोगों ने उसका ऐसा बतंगड़ बना डाला कि सूत न कपास कोरी से लठालठी कहावत चरितार्थ होती है। (मधुकर : जन-मई 1943, पृ. 275)

सूँतना क्रि. (सक.) -- साफकरना, इटली भी तलवार सूँतकर मैदान में आ गया। (ग. शं. वि. रच., खं. 2, पृ. 181)

सूती सं. (स्त्री.) -- चम्मच की तरह प्रयुक्त बड़ी सीपी, बच्चों के वास्ते आधी व जवानों के लिए पूरी सूती भर एक गिलास में उबाला जाय। सर., सित. 1937, पृ. 296)

सूथना सं. (पु.) -- पायजामा, परंतु कभी-कभी वे नीचे सूथना भी पहन लेती हैं। (सर., अग. 1916, पृ. 321)

सूधा मुहा. -- भोला-भाला, सादगी-भरा, उसका ड्राइवर एकदम सूधा लड़का है। (दिन., 23 दिस., 66, पृ. 26)

सूपड़ा साफ हो जाना सं. (पु.) -- सफाया हो जाना, मध्यावधि चुनाव में अकालियों का सूपड़ा साफ हो गया। (ज. स. : 4 फर. 1984, पृ. 4)

सूमड़ेदानी सं. (पु.) -- कंजूसी से दान करनेवाला व्यक्ति, ऐसे ही सूमड़ेदानी अपने पितरों का श्राद्ध करने में भी बहुत कंजूसी करते हैं। (शि. पू. र., खं. 3, पृ. 70)

सूरमा सं. (पु.) -- वीर, योद्धा, (क) क्या मोहनलाल सुखाड़िया और श्यामाचरण शुक्ल बड़े प्रगतिवादी सूरमा हैं ? (रा. मा. संच. 1, पृ. 69) , (ख) प्रश्न आज यह है कि इंदिरा गांधी या उनको हटानेवाला सूरमा जीतने के बाद भी आखिर करेगा क्या? (रा. मा. सं. 1, पृ. 262)

सेजगाड़ी सं. (स्त्री.) -- बच्चों को लिटाकर ले जानेवाली गाड़ी, एक बालक सेजगाड़ी में बैठकर अपने पिता के साथ कहीं जा रहा था। (मधु: अग. 1965, पृ. 92)

सेठिया सं. (पु.) -- सेठ, व्यापारी, अँगरेज सेठिया अपना कपड़ा दुस्तानी मारवाड़ी के हाथ बेचकर उसकी कीमत पौंड के रूप में चाहेगा। (सर., जन. 1937, पृ. 13)

सेंठें का सेंठा वि. (अवि. पदबंध) -- जस-का-तस, वैसे का वैसा, बीज से बोए जाने पर वैज्ञानिकों का सब परिश्रम निष्फल हो जाएगा और कुछ वर्षों के पश्चात् यह उलटकर फिर सेंठे का सेंठा रह जाएगी। (सर., अप्रैल 1921, पृ. 247)

सेंतमेंत क्रि. वि. -- बिना कुछ ले-दिए, मुफ्त में, (क) सेंतमेंत इतना श्रम किया जितना कोई मजदूर भी नहीं करेगा। (कच. : वृ. ला. व., पृ. 101), (ख) भोजन, वस्त्र, औषध, निवास स्थान आदि सबकुछ सेंतमेंत मिलता था। (सर., जन. 1909, पृ. 28) , (ग) अखबार माँग कर पढ़ना या सेंत-मेंत व्याख्यान सुन लेना वे अनुचित मानते हैं। (म. प्र. द्वि. रच., खं. 15, पृ. 300)

सेंध देना मुहा. -- सेंध लगाना, अनुचित रूप से कुछ प्राप्त करने का प्रयत्न करना शायद आचार्य प्रवर अनुसंधान के लिए कोई सेंध देना चाहते हैं। (काद. : फर. 1992, पृ. 36)

सेना क्रि. (सक.) -- पोसना, वह मुसलमानों की उस अंडे से उपमा देता है, जो गांधी द्वारा सेया जा रहा है। (ग. शं. वि. रच., खं. 3, 49)

सेर को सवा सेर मिलना मुहा. -- अपने से अधिक शक्तिशाली से सामना होना, लोग यही जानते थे कि सेर को सवा सेर मिल गया है, लड़ाई हो रही है। (गु. र., खं. 1, पृ. 333)

सेवा-टहल सं. (स्त्री.) -- सेवा-शुश्रूषा, (क) अस्पताल में रोगयों की दवा-दारू और सेवा-टहल का खूब बढ़िया इंतजाम है। (शि. पू. र., खं. 3, पृ. 468) , (ख) घटी न होकर आय-व्यय का हिसाब बराबर रहा, मैं और कुछ दिन आपकी सेवा-टहल करने के लिए यहाँ रहूँगा। (छ. मि., इति, पृ. 583)

सेहलाना सं. (स्त्री.) -- सहलाना, धीरे-धीरे हाथ फेरना, बेटा जूता गाँठे, अम्मा खाल सेहलावे। (निरु. : निराला, पृ. 53)

सोचावट सं. (स्त्री.) -- सोच-विचार, सोचावट होने लगी, इसी ढंग का एक पत्र हिंदी में निकाला जाय। (शि. पू. र., खं. 4, पृ. 112)

सोंज क्रि. (सक.) -- साँझा, भागीदारी, बिल्ली और चूहै की सोंज। (मधुकर, 1 अक्तू. 1940, पृ. 9)

सोंटा सं. (स्त्री.) -- मोटा डंडा, (क) स्वामीजी के मोटे सोंटे की चोट न पड़ती तो सब लोग आलस्य क्यों त्यागते? (शि. पू. र., खं. 3, पृ. 307) , (ख) उन्हें अपने सोंटे पर अधिक भरोसा था और उसी सोंटे के प्रताप से आज आस-पास के गाँव में जुम्मन की पूजा होती थी। (सरस्वती, जून 1916, पृ. 385)

सोंठ सं. (पु.) -- सूखा और सिकुड़ा, शांत, (क) कितना भी जोरदार लतीफा सुनाए वे सोंठ बने रहेंगे। (काद. : जुलाई 1980, पृ. 96) , (ख) इसीलिए तो मैं चुपचाप सोंठ हुआ बैठा हूँ। (सर., मार्च 1919, पृ. 130)

सोता पड़ना मुहा. -- सब के सब लोगों का गहरी नींद सो जाना, जब गाँव में सोता पड़ गया तो दोनों ने जोर मारकर पगहे तुड़ा डाले। (प्रे. स. क. : सर. प्रेस, पृ. 40)

सोता फूटना मुहा. -- सहसा और वेगपूर्वक प्रवाहित होना, जैसे कोई संवेदनशील भावनाओं का सोता फूट गया हो। (काद., मई 1994, पृ. 120)

सोता सं. (पु.) -- उद्गम, स्रोत, झरना, (क) पवित्र हिंदी के कुएँ का सोता सदा संस्कृत ही रहैगा। (चं. श. गु. र., खं. 2, पृ. 195), (ख) दंडकवन में जो पहिले सोते रहे वे नदियों के प्रवाह के कारण अब पुलिन बन गए। (भ. नि. : पं. बा. कृ. भ., पृ. 15)

सोती सं. (स्त्री.) -- नदी की उपधारा, सूकर क्षेत्र में घाघरा तथा सरजू का संगम जो सोती कराती है, उसका नाम घुरघुरी है। (सर., जून 1943, पृ. 289)

सोंधा वि. (अवि.) -- सुगंधित, उसके बाद तलछट में खुरचनी या खँखोड़ी बच जाती है। जो सेंककर खाई जाती है बड़ी सोंधी होती है। (दिन., 7 जन. 1968, पृ. 41)

सोने की छन्नी में अधेले की सुपारी कहा. -- किसी के मान-सम्मान के प्रति आदर का अभाव, हमारे यहाँ जैसे सोने की छन्नी में अधेले की सुपारी से अभ्यर्थना करने की चाल है, वैसे ही... एक इलायची से मेरा सत्कार किया। (सर., जन. 1919, पृ. 18)

सोने पर सोना चढ़ाना मुहा. -- महत्त्वशाली को ही महत्त्व देना, जब कई सज्जन उसके पात्र हैं तो सोने पर सोना चढ़ाने अर्थात् एक ही सज्जन को बार-बार सभापति करने का क्या लाभ है ? (गु. र., खं. 1, पृ. 330)

सोने में सुगंध होना मुहा. -- दोहरी विशेषता होना, यों आधे आकार से यह पत्र न निकले तो सोने में सुगंध। (गु. र., खं. 1, पृ. 409)

सोलह आने क्रि. वि. (पदबंध) -- पूरी तरह, पूर्णतया, कुछ निराशावादी पाठक इस स्वप्न को असंभव मान सके हैं पर हमारी दृष्टि में तो यह सोलह आने संभव है। (मधुकर, सित. 1944, पृ. 164)

सोहना क्रि. (अक.) -- शोभित होना, फबना, उसमें इतना अधिक हल्कापन नहीं सोहता। (शि. पू. र., खं. 4, पृ. 475)

सोहबत सं. (स्त्री.) -- संगति, तानाशाही ताकतों के विरोध का दंभ भरनेवाले जनता नेता भी इंदिरा गांधी की सोहबत के लिए बेताब । (रवि. 11 सित. 1979)

सौ बात की एक बात कहा. -- निष्कर्ष की सूचक बात, सभी ने सौ बात की एक बात कही कि लघु एवं मध्यम समाचार-पत्रों का सर्वाधिक महत्त्व है। (दिन., 16 सित., 66, पृ. 8)

सौं सं. (स्त्री.) -- सौगंध, तुम्हारी सौं खाकर कहती हूँ। (स. न. रा. गो. : भ. च. व., पृ. 61)

सौटंच क्रि. वि. -- शत-प्रतिशत, पूरी तरह से, (क) भारतीय संघ के कार्यों को सौटंच प्रमाणित करना चाहते हैं। (कर्म., 29 मई 1948, पृ. 3), (ख) पहले हमें इस कसौटी पर सौटंच साबित होना होगा। (वि. भा., जन. 1928, सं. 1, पृ. 377)

सौंड़ सं. (स्त्री.) -- ओढ़ने की चादर, मफलर गले लगाया, बताओ तो क्या अच्छा एक सौंड़ क्यों न बाँध ली... (सर., अप्रैल 1916, पृ. 237)

सौंतना क्रि. (सक.) -- सम्हालना, गंजिया पर गिंया रुपयों से भर तहखानों में सौंत के रखते जाएँ। (भ. नि., पृ. 116)

सौतिया डाह सं. (स्त्री., पद.) -- सौतों की ईर्ष्या, ईर्ष्याजन्य मतभेद, उनकी बहुमुखी प्रतिभा ने लक्षमी और सरस्वती का परंपरागत सौतिया डाह मिटा दिया था। (शि. पू. र., खं. 4, पृ. 272)

सौदा पटना मुहा. -- लेन-देन संबंधी बातचीत समझौते पर पहुँचना, सौदा आकर किसी तरह दो माह पर पटा, जिसे महाराष्ट्र के प्रतिनिधियों ने बहुत ना-नू के बाद मान ही लिया। (दिन., 15 जुलाई 1966, पृ. 14)

सौदा पटाना मुहा. -- लेन-देन की शर्तें अंतिम रूप से तै करना, वे किसी सिद्धांत को नहीं मानते, सिर्फ सौदा पटाते रहते हैं। (नि. वा. : श्रीना. च., पृ. 873)

सौहर सं. (पु.) -- बच्चे के जन्म के अवसर पर गाया जानेवाला गीत, खुशी का गीत, जब सारे नेता मार्च क्रांति के सौहर गा रहे थे। (रा. मा. संच. 1, पृ. 24)

स्थानक सं. (पु.) -- गाड़ी खड़ी होने का स्थान, स्टेशन, लगभग 6.7 वर्ष पूर्व जब कस्बे में नया बस स्थानक बना था तब ला था कि मुसाफिरों की समस्याओं का अंत हो गया। (रवि. 12 मार्च 1989, पृ. 1)

स्फुलिंग सं. (पु.) -- चिनगारी, आज भी नकी वे चिंता एवं चिंतन के अंजन से अँजी हुई आँखें अग्नि-स्कुलिंग बिखेर रही हैं। (न. ग. र., खं. 3, पृ. 70)

स्यात क्रि. वि. -- शायद, संभवतः, स्यात इसे पढ़कर लोगों के मन में शंका उत्पन्न होगी कि हम अतिशयोक्ति कर रहे हैं। (म. प्र. द्वि. रच., खं. 7, पृ. 26)

स्यापा सं. (पु.) -- शोक के समय का रोना-पीटना, दरअसल पंजाब की हत्याओं पर जरूरत से जयादा स्यापा करना भी आज एक माने में अपनी हार का ऐलान करना है। (स. ब. दे. : रा. मा. (भाग-दो) , पृ. 19)

स्याह-सफेद का मालिक मुहा. -- अनुचित को उचित और अनुचित को उचित करनेवाला व्यक्ति, स्याह सफेद के मालिक जहाँ जाते हैं, लोग हाथोहाथ लेते हैं। (भ. नि., पृ. 140)

स्याहा सं. (पु.) -- रजिस्टर, पटवारी देवता भी स्याहा खोले कुछ लिख-पढ़ रहे थे। (सर., अग. 1917, पृ. 61)

स्वगत वि. (अवि.) -- अपने को सुनाया जानेवाला, स्वगत संभाषण में अभिनेताओं की गतिविधियों के केवल मंचशीर्ष पर केंद्रित रहने के कारण मंच-मध्य और मंच पीठ का खालीपन कुछ अखरने-सा लगा था। (दिन., 9 मई 1971, पृ. 44)

स्वस्ति कामना सं. (स्त्री., पदबंध) -- कल्याणा की कामा, इस अवसर पर हम उनकी स्वस्ति कामना करते हैं। (काद., जन. 1980, पृ. 9)

स्वाँग सं. (पु.) -- तमाशा, नाटक, (क) ये मनमानी माँगें पेश कर संसार को देश की फूट का स्वाँग दिखावेंगे। (ते. द्वा. प्र. मि., पृ. 54) , (ख) उनका यह दावा महज स्वाँग है कि वे समाज की रक्षा करेंगे। (हि. पत्र. के गौरव बां. बि. भट., संपा.-ब. (सा. हि.) , 24 अक्तू. 1965, पृ. 189) , (ग) 1919 में कमालपाशा और उनके साथियों के खिलाफत के संबंध में वही विचार थे, जो इस समय थे, तो भी वे खिलाफत का स्वाँग करते रहे। (ग. शं. वि. रच., खं. 3, पृ. 213)

स्वैरकथा सं. (स्त्री.) -- मनमानी कथा, इस स्वैरकथा का कोई ओर-छोर ही नहीं है। (काद. : न. 1988, पृ. 8)

स्वैराचार सं. (पु.) -- मनमानी, मनमानाआचरण, आलोचक बुद्धि कितनी तरह से आत्मनिष्ठ स्वैराचार कर सकती है ? (स. का वि. : डॉ. प्र. श्रो., पृ. 17)

हई क्रि. (अक.) -- है ही, मरने के पीछे जब कुछ हई नहीं तब क्यों भाँति-भाँति की परहेजगारी और संयम में हलकान जिंदगी का मजा न लूटें? (भ. नि., पृ. 35)

हकबकाना क्रि. (अक.) -- हक्का-बक्का होना, (क) विदेशी आक्रमण के सामने हकबका जाने की अपनी आदत के खिलाफ हम क्या-क्या इंतजाम करें। (रा. मा. संच. 1, पृ. 309) , (ख) हजारों उखड़े हुए लोग न जाने किस तंबू, किस भोजन शिविर के पास हकबकाए जी रहे थे। (रा. मा. संच. 2, पृ. 318)

हकालना क्रि. (सक.) -- हाँकना, (क) वह समय को अपने हाथ की लकड़ी से हकालता चलता है। (कुं. क. : रा. ना. उ., पृ. 17) , (ख) यूरोप से यदि मद्य को हकालकर बाहर कर भी दिया गया तो उससे हिंदुस्तान का कल्याण नहीं होगा। (मा. च. रच., खं. 2, पृ. 63) , (ग) हम सर बनर्जी को इतना भोला नहीं मानते कि वे यह नहीं समझते कि आखिर राज्य की प्रजा पशुओं की तरह हकाली जाना पसंद नहीं करती। (मा. च. रच., खं. 10, पृ. 70)

हकालपट्टी सं. (स्त्री.) -- बरखास्तगी, पदच्युति, अभी- अभी अखबार से हकालपट्टी होने के बाद तो बरतन व पुस्तकें भी बेचनी पड़ी। (रवि. 21 अग., 1982, पृ. 24)

हकीकी वि. (अवि.) -- यथार्थ, हकीकी बात को समझकर आततायियों का प्रतिकार करना चाहिए। (कर्म. : संपा.-मा. च., 27 सित. 1947, पृ. 15)

हक्का-बक्का रह जाना मुहा. -- आश्चर्यचकित होना, विस्मित होना तब एक बार तो वे हक्के-बक्के रह गए। (दिन., 30 अप्रैल, 67, पृ. 20)

हक्का-बक्का वि. (विका.) -- आश्चर्यचकित, कमालपाशा की तलवार की चकाचौंध से इंग्लैंड को हक्का-बक्का हो बैठने का दिन न आता। (मा. च. रच., . 2, पृ. 99)

हंगामी वि. (अवि.) -- उपद्रवकारक, उत्पातकारक, 26 जन. को सरबत खालसा का आयोजन किया और उसमें हंगामी प्रस्ताव पास कर डाले। (स. ब. दे. : रा. मा. (भाग-दो), पृ. 17)

हजम कर लेना मुहा. -- पचा जाना, हड़प लेना, कांग्रेस ने प्रजा समाजवादी पार्टी के सबसे बड़े नेताओं को हजम कर लिया। (दिन., 30 जुलाई, 67, पृ. 11)

हजार नखरे सहना मुहा. -- ऊटपटाँग व्यवहार बरदाश्त करना, इस गठबंधन के लाल में उसने मायावती के हजार नखरे और काशीराम की सैकड़ों घुड़कियाँ सहीं। (हि. ध., प्र. जो., पृ. 293)

हठ चलाना मुहा. -- अपनी बात पर अड़े होना, माँग पर जरा भी विचार न करके सरकार अपना हठ चलाना चाहती है। (मा. च. रच., खं. 9, पृ. 218)

हठात क्रि. वि. -- अपने हठ के कारण ही, आज वह (परिवार) हठात निहित स्वार्थ का केंद्र है। (दिन., 13 अग., 67, पृ. 29)

हठीला वि. (विका.) -- अक्खड़, हठ करनेवाला, अकविता की शब्दावली वैसी ही हठीली है। (दिन., 07 मई, 67, पृ. 41)

हड़क सं. (स्त्री.) -- व्याकुलता, पितृ तर्पण के समय इसका उच्चारण करके हड़क मिटा लिया करो। (गु. र., खं. 1, पृ. 444)

हड़कना क्रि. (अक.) -- तरसना, व्याकुल होना, डाँटना डपटना, छोटी-छोटी बातों के लिए कितना हड़कना पड़ रहा है। (काद., जून 1979, पृ. 13)

हड़का वि. (विका.) -- पागल, पगलाया हुआ, एक हड़का हुआ कुत्ता आया था। (सर., जून 1915, पृ. 346)

हड़काना क्रि. (सक.) -- डराना-धमकाना, भयभीत करना, (क) सारे गाँव को हड़का दिया। (काद., जुलाई 1976, पृ. 163), (ख) छोटी-छोटी बातों पर बच्चों को हड़काना उचित नहीं है। (काद. : मार्च 1979, पृ. 11)

हड़पा-हड़पी सं. (स्त्री.) -- एक-दूसरे की संपत्ति को अनुचित रूप से प्राप्त करने की लोगों की चेष्टा, हमारे धरमशास्त्र में हड़पा-हड़पी की कहीं मुमानियत नहीं है। (म. प्र. द्वि. रच., खं. 2, पृ. 107)

हड़बड़ सं. (स्त्री.) -- जल्दबाजी, हड़बड़ी, क्योंकि वह हड़बड़ में गलत कदम उठाना नहीं चाहता। (रा. मा. संच. 1, पृ. 348)

हड़बड़ाना क्रि. (अक.) -- जल्दबाजी करना, हड़बड़ी मचाना, लंका ने जब हड़बड़ाकर दर्जन भर देशों से फौजी सहायता माँगी तब उसने चीन को जानबूझकर अलग रखा। (रा. मा. संच. 2, पृ. 40)

हड़बोंग सं. (पु.) -- हो-हल्ला, बवाल, झमेला, (क) हड़बोंग में तो एक-दो प्रतिशत छार नेता ही मशगूल रहते हैं। (रा. मा. संच. 2, पृ. 30) , (ख) एक लाख की बात पर हड़बोंग ही खड़ा हो गया। (क. ला. मि. त. प. या., पृ. 62), (ग) वह हड़बोंग मचा कि न पूछिए। (काद., नव. 1961, पृ. 57)

हड़हड़ाहट सं. (स्त्री.) -- हड़बड़ी, अपने पीचे लहरों की हड़हड़ाहट सुनकर उसने मुड़कर देखा तो लवण समुद्र भरा हुआ पाया। (गु. र., खं. 1, पृ. 226)

हतक सं. (स्त्री.) -- बेइज्जती, अपमान, हेठी, (क) हिंदी का लेख पढ़ने में अपनी हतक समझते हो तो लाचारी है। (भ. नि., पृ. 186), (ख) जनरल डायर कहता है कि गोली चलाए बिना लोग भगाए जा सकते थे, परंतु इससे मेरी हतक होती। (ग. शं. वि. रच., खं. 3, पृ. 77), (ग) प्रदर्शनकर्ताओं ने यहाँ के लोगों को यह बड़ा भारी धोखा दिया था और भारतवर्ष की हतक की थी। (सर., मार्च 1909, पृ. 108)

हततेज वि. (अवि.) -- तेजहीन, कांतिहीन, जो स्वयं हततेज है वह दसरों में प्राण नहीं फूँक सकता। (काद. : जन. 1981, पृ. 7)

हतबल वि. (अवि.) -- बलहीन, अशक्त ग्रामीण समाज की बहुसंख्य जातियाँ हतबल होकर उखड़ रही हैं। (दिन., 09 मार्च, 69, पृ. 6)

हतभम्भ वि. (अवि.) -- हतप्रभ, मेरी बातें सुनकर विशेष संवाददाता हतभम्भ हो गया। (दिन., 9 दिस., 66, पृ. 29)

हत्तेरे की विस्मयादि -- विस्मयादि, हिकारत का सूचक पद, हत् तेरे की अभिलाषा मन में लिए ही चली जाएगी हतेरे कंजूस की। (म. का मतः क. शि., 26 जुलाई 1924, पृ. 161)

हत्थे चढ़ना मुहा. -- पकड़ में आना, आंतकवादी अभी तक पुलिस के हत्थे नहीं चढ़े (दै.भा., 22-08-2008)

हथकंडा सं. (पु.) -- तिकड़म, तरीका, उपाय, (क) यहाँ पर यात्रियों को ठगने के लिए पंडों के बहुत से हथकंडे हैं। (माधुरी : अक्तू, 1927, पृ. 374), (ख) रिचर्ड निक्सन ने 1972 का राष्ट्रपति चुनाव जीतने के लिए जिन हथकंडों का उपयोग किया, उन्हीं के कारण वे अंततः मारे गए। (रा. मा. संच. 1, पृ. 250), (ग) मैंने सोचा कि आज अमरीका के फेरिवालों तथा दुकानदारों के हथकंडे देखते चलो (सर., नवं. 1909, पृ. 508)

हथपई सं. (स्त्री.) -- हाथ में बनाई गई मोटी रोटी, अगर हथपई बनानी हुई तो। (दिन., 7 जन. 1968. पृ. 42)

हथोड़े पड़ना मुहा. -- एक पर एक प्रहार होना, लोकतंत्र की बुनियाद पर आज कई ओर से हथोड़े पड़ रहे हैं। (दिन., 18 जून, 67, पृ. 10)

हद करना मुहा. -- अति करना, सीमा लाँघना, योरपवाले सभी बातों में हद करते हैं। (सर., मार्च 1915, पृ. 151)

हबड़-तबड़ सं. (स्त्री.) -- जल्दबाजी, प्रधानमंत्री हबड़-तबड़ में कोई निर्णय के पक्ष में नहीं थे। (काद., अप्रैल 1993, पृ. 29)

हबड़ा-तबड़ी सं. (स्त्री.) -- जल्दबाजी, अफरातफरी, कुछ मनोवैज्ञानिक और कुछ हबड़ा-तबड़ी के कारण ही वे गर्भाधान नहीं कर पाते। (दिन., 31 जन., 1971, पृ. 27)

हम चौड़े, बाजार सकड़ा कहा. -- अपने को औरों से अधिक लगाना, पर संपादक महोदय क्यों सुनने लगे हम चौड़े बाजार सकड़ा। (सर., अप्रैल 1918, पृ. 181)

हमजोली सं. (पु.) -- मित्र, समवयस्क इस शहर में यही तो मेरा हमजोली है। (काद., अप्रैल 1979, पृ. 11)

हमादानी सं. (पु.) -- सर्वज्ञ व्यक्ति, इतनी हेचमदानी पर भी हमादानी लठ लिए फिरते हैं। (म. प्र. द्वि.)

हया सं. (स्त्री.) -- शर्म, लेकिन उसकी भृख उसकी हया पर हावी हो जाती है। (दिन., 13 दिस, 1970, पृ. 35)

हरकाना क्रि. (सक.) -- भगाना निकालना, यह शहर से हरकाया हुआ व्यक्ति है। (प. परि. रेणु, पृ. 97)

हरकारा सं. (पु.) -- संदेशवाहक, (क) भारतीयों के लिए विश्व प्रेम का संदेश केवल प्रलय का हरकारा हो सकता है। (मधुकर, दिस, 1928, वर्ष -7, खं. 1, सं. 4, पृ. 711), (ख) बच्चन और भ. च. व. मस्ती के हरकारे रहे। (दिन. 6 जून, 67, पृ. 40) (ग) बाबर से अकबर तक डाक हरकारों द्वारा पहुँचाई जाती थी। (सर., मार्च 1915, पृ. 166)

हरखना क्रि. (अक.) -- हर्षित होना, प्रसन्न होना, बच्चों की क्रीडाएँ देखकर माँ-बाप हरखते हैं। (काद., अप्रैल 1988, पृ. 7)

हरचंद वि. (अवि.) -- हरसंभव, बहुतेरा, अत्यधिक, (क) बच्चन परिवार ने तो इस शादी से मिडिया को दूर रखने की हरचंद कोशिश की। (इं. दु., 13 जून 2007, पृ. 61). (ख) इजरायली सेना पूरी तरह सन्नद्ध है और हरचंद आसार यही नजर आते हैं कि इस बार भी कहीं विस्फोट न हो जाए। (दिन., 6 जून, 67, पृ. 34)

हरजा सं. (पु.) -- हानि, हरजाना क्षतिपृर्ति, उन्होंने सब लड़नेवाले देशों को संधि कर लेने और पराजित राष्ट्रों से हरजा न लेने और उनका देश वापस कर देने की सलाह दी। (सर., अप्रैल 1919, पृ. 189)

हरताल फेरना मुहा. -- रद्द करना, व्यर्थ बना देना, (क) इतिहास पर हठधर्मी की हरताल न फेरो। (म. का मतः क. शि., 14 फर. 1925, पृ. 70), (ख) वह आर्ष सिद्धांत पर हरताल फेरने की चिंता में हैं। (मा. च. रच., खं. 2, पृ. 28)

हरना क्रि. (सक.) -- हरण करना, दूर करना, श्रीमती सिन्हा ने बहस की कटुता हरने का अभियान चलाना चाहा। (दिन., 21 अप्रैल. 68, पृ. 17)

हरवाही सं. (स्त्री.) -- हल जोतने का काम, हरवाहे का काम पिता के साथ वह हरवाही के कामों में हाथ बँ टा चुका था । (सर . , मार्च 1928 पृ . 284)

हरहराना क्रि. (अक.) -- वेगपूर्वक, हरहर करती हुए आगे बढ़ना, कहानी की नदी ऐसी हरहराती है कि पढ़नेवाले आनंद के भँवर में डूबने उतराने लगते हैँ। (जासूस, इति-590)

हरावल दस्ता सं. (पु.) -- सेना का अग्रिम जत्था, भारत में राष्‍ट्रवाद का हरावल दस्ता यदि कोई है तो वह हिंदी बेल्ट है। (स. ब. दे. : रा. मा. (भाग-दो), पृ. 143)

हरासदाढ़ को उखाड़ना मुहा. -- निष्प्रयोज्य परंपरा को समाप्‍त करना, सदियों की जमी हुई हरामदाढ़ को उखाड़ने के लिए भी कुछ बलशाली झटकों की आवश्यकता होगी। (न. ग. र., खं. 4, पृ. 186)

हरियाना क्रि. (अक.) -- 1. हरा होना, बबूलों को क्या, ये तो बरसात के पानी से हरिया जाते हैँ। (शत. खि., ह. कृ. प्रे., पृ. 14), 2. प्रसन्‍न होना, तुम भारतीय विश्‍वासों पर हरिया रहे हो क्योंकि स्वतंत्रता मिलने के दिन, वे तुम्हारे प्रयत्‍नों का मूल्य चुकाना चाहते थे, किंतु तुम न थे, तुम पास न थे। (मा. च. रच., खं. 4, पृ. 69)

हरियाला सं. (पु.) -- हरापन, हरियाली, बंबई के लाट साहब की आँखेँ ब्रिटिश निरंकुशता की पूर्ण वर्षा के दिनों श्रावण-भादों मेँ फूटी हैं, इसलिए उन्हेँ यह हरियाला सूझ रहा है। (मा. च. रच., खं. 10, पृ. 309)

हरेला वि. (विका.) -- पराजित, सरकार ने जिस उदार किंतु हरैली नीति से कास लिया वह अब तक चली आ रही है। (नि. वा. : श्रीना. च., पृ. 1)

हल-बक्‍खर बेचना या बेच देना मुहा. -- जमीन-जायदाद बेचना, अनेक किसानों ने अपने हल-बक्खर बेच दिए हैं। (दिन., 10 जून 1966, पृ. 17)

हल-बक्खर रख देना मुहा. -- खेती का काम बंद कर देना, किसानों ने हल-बक्खर एक ओर रख दिए और ए. बी. सी. पढ़ने लगे। (सर., जुलाई 1915, पृ. 36)

हलकान वि. (अवि.) -- परेशान, बिना सोचे-समझे अंग्रेजी के समर्थन में अपनी जान हलकान कर रहे हैं। (हि. पत्र. के गौरव बां. बि. भट., संपा.-ब. (सा. हि.), 14 फर. 1965, पृ. 305)

हलराना क्रि. (सक.) -- हिलाना-डुलाना, झुलाना, (क) गोसाईं जी की कविता जनता को बहुत प्यारी लगती है कोई उसे दुलराता-हलराता है, कोई उसे गींजता-गुदगुदाता है। (शि. पू. र., खं. पृ. 136), (ख) भूखे बच्‍चे को हलराने से ही चुप कराना कठिन है। (काद., मार्च 1968, पृ. 10)

हलवा-माँड सं. (पु.) -- स्वादिष्‍ट भोजन, ईसाई पादड़ी प्रायः छोटे दिलों के होते हैँ। इनको विशेष करके अपने हलवे-माँड की ही फिक्र रहती है। (सर., जून 1911, पृ. 279)

हलाकान वि. (अवि.) -- परेशान, तब क्यों भाँति-भाँति की परहेजगारी और संयम में हलाकान हो जिंदगी का मजा न लूटै ? (भ. नि., पृ. 35)

हलाहल सं. (पु.) -- अत्यंत घातक विष, हिंदी की यही खूबी है कि वह किसी के गले के नीचे हलाहल बनकर नहीँ उतरना चाहती। (शि. पू. र., खं. 3, पृ. 247)

हलुआ-माँडा सं. (पु.) -- हलवा-माँड, स्वादिष्‍ट भोजन, अच्छा भोजन, धार्मिक जगत् के नेता अपने हलुवे-माँड़े की फिकर करने में मस्त हैं। (त्या. भू. : संवत् 1986, (1927) पृ. 73)

हल्ला बोलना मुहा. -- हमला करना, चढ़ाई करना, कश्मीर की सीमाओं पर पाकिस्तान हल्ला बोल सकता है। (दिन., 7 अक्‍तू., 66, पृ. 9)

हल्ला मचना मुहा. -- शोर या हल्ला होना, एक बार तो यह हल्ला मचा था कि संथालों के देवताओं के बीच आर्चर भी प्रतिष्‍ठित हो गए। (दिन., 25 फर. 1966, पृ. 39)

हल्ला मचाना मुहा. -- शोर करना, नौकरियों पर भारतीयों के नियुक्‍त किए जाने का हल्ला मचाया। (स. सा., पृ. 139)

हल्ला-गुल्ला सं. (पु.) -- शोरगुल, लेकिन मुझे इस हल्ले-गुल्ले की कोई परवाह नहीं। (दिन. 14 सित. 69, पृ. 13)

हवा उखड़ना मुहा. -- प्रभाव समाप्‍त होना, जिसकी हवा उखड़ गई, उसका सभी कुछ उखड़ गया। (क. ला. मिश्रः त. प. या., पृ. 130)

हवा निकल जाना मुहा. -- प्रभाव समाप्‍त हो जाना, ठंडा पड़ जाना, (क) समय का इस्तेमाल समस्याओं की हवा निकल जाने देने में करे वह लोकतांत्रिक व्यवस्था के लिए अच्छा नहीं है। (हि. ध., प्र. जो., पृ. 203), (ख) इसी के साथ अब तक चले आ रहे रोचक ड्रामे की हवा निकल जाती है। (इं. टु., 13 जून 2007, पृ. 62)

हवा निकालना मुहा. -- बेदम करना, यदि हम प्रधानमंत्री के भावी हत्यारों की हवा निकालना चाहते हैं... तो एक क्रूर संकल्प हमें करना होगा। (स. ब. दे. : रा. मा. (भाग-दो), पृ. 51)

हवा में उड़ाना या उड़ा देना मुहा. -- चलता करना, महत्त्व ही न देना, अनसुनी कर देना, पाठक विचार कर सकते हैं कि किस प्रकार अपनी बात को हवा में उड़ा दिया गया है। (स. सा., पृ. 61)

हवा में गाँठ लगाना मुहा. -- हवाई किला बनाना, काल्पनिक योजना बनाना, प्रेमियों की दशा बड़ी विचित्र होती है हवा में गाँठें लगाना भी वे खूब जानते हैं। (सा. नि. : बद. ति., म. प्र. द्वि., पृ. 59)

हवा-बतास सं. (स्त्री.) -- वातावरण का प्रभाव, उसे हवा-बतास से बचाते हुए उसका लालन-पालन एक करुण कहानी है। (सर., अप्रैल 1959, पृ. 265)

हवामहल सं. (पु.) -- हवाई किला, काल्पनिक विचार केंद्र पर विरोधियों की सरकार का हवामहल अकसर बन-बनकर टूट जाता है। (दिन., 18 जून, 67, पृ. 12)

हव्वा दिखलाना मुहा. -- भय दिखलाना, हौआ दिखलाना आर्थिक हीनता का हव्वा दिखलाकर भी डराया जाता है। (मधुकर,दिसं.-जन. 1945, पृ. 402)

हसरत की नजर से देखना मुहा. -- आशा-भरी दृष्‍टि से देखना, हिंदू और मुसलमान दोनों भाई साथ हैं, जमीन के मुल्क और आसमान की दौलत दोनों उन्हें हसरत की नजर से देख रहे हैँ। (मा. च. रच., खं. 9, पृ. 232)

हँसाई सं. (स्त्री.) -- उपहास, इससे हिंदी पत्रों की हँसाई हो रही है। (सं. परा. : ल. शं. व्या., पृ. 121)

हँसी उड़ाना मुहा. -- खिल्ली उड़ाना, उपहास करना, इने गिने राजा-महाराजा और श्रीमानों के ठाठ से हमारी धनाढ्यता के गुनताड़े मिलाना हमारी दरिद्रता की हँसी उड़ाना है। (ग. शं. वि. रच., खं. 2, पृ. 247)

हँसी-ठट्ठा सं. (पु.) -- परिहास, हँसी-मजाक, (क) हँसी ठट्ठा करने की टेव वक्ता और श्रोता दोनों के लिए हानिकर है। (हित., दिस. 1948, पृ. 4), (ख) यदि कोई स्त्री किसी पुरुष के साथ हँसी-ठट्ठा करती देख ली जाए तो वह पतित समझी जाती है। (वि. भा., जन. 1928, सं. 1, पृ. 676), (ग) पानीपत के मैदान में एक लाख सैनिकों का संचालन कोई हँसी-ठट्ठा नहीं था। (काद. : जन. 1981, पृ. 159)

हँसी-दिल्लगी सं. (स्त्री.) -- हास-परिहास, हँसी-मजाक, हँसी-दिल्लगी की मात्रा अधिक होने से कवि के स्वर्गीय मनोराज्य की छटा का दर्शन हो गया है। (गु. र., खं. 1, पृ. 389)

हस्तगत वि. (अवि.) -- हाथ में आया हुआ, प्राप्‍त, कुछ लिखने की स्वाधीनता मानो हमने पहले ही सभा को हस्तगत कर दी है। (म. प्र. द्वि. रच., खं. 2, पृ. 485)

हस्तलाघव सं. (पु.) -- हाथ की सफाई, हस्त-कौशल, उसके हस्तलाघव से सभी दर्शक चकित रह गए। (काद., सित. 1986, पृ. 7)

हस्तामलक सं. (पु.) -- ऐसी चीज या बात जो हथेली पर रखे हुए आँवले के समान स्पष्‍ट हो, कृष्ण परमपुरुष के रूप में सारी हिंदू जाति को हस्तामलक किए हुए हैं। (नि. वा. : श्रीना. च., पृ. 824)

हस्बमामूल वि. (अवि.) -- सामान्य, आमतौर पर नित्य होनेवाली देश की राजनीति-क्रांतिकारी ढंग से भी चल सकती है और हस्बमामूल ढंग से भी। (दिन., 14 सित., 1969, पृ. 12)

हहराना क्रि. (अक.) -- हहर-हहर करते हुए आगे बढ़ना, युद्ध की लपटें चारों तरफ हहराती हुई हमारे पास आ पहुँची हैं। (ते. द्वा. प्र. मि., पृ. 44)

हहास सं. (पु.) -- टिटकारी, अपनी आवाज के हहास से ही बैलों को भगाता। (बे. ग्रं., प्रथम खं., पृ. 29)

हाँ में हँ मिलाना मुहा. -- बिना सोचे-विचारे किसी की बात का समर्थन करना, (क) असुरक्षा बोध के कारण साहसी, समर्पित और रीढ़ की हड़डीवाले लोगों को वे अपनी टोल में शामिल नहीं कर पाती और हाँ में हाँ मिलानेवाले जल्दी शामिल हो जाते हैं। (रा. मा. संच. 1, पृ. 461), (ख) खुशमदी मेंबरों की भाँति सब बातों में गवर्नमेंट की हाँ में हाँ नहीं मिलाते रहे। (सर., मार्च 1921, पृ. 186)

हा हा खाना मुहा. -- व्यथा जतलाना, विलाप करना, गिडगिड़ाने और हा हा खाने पर भी, बिना टका लिए चार-पाँच पंक्ति लिखना मूर्खता समझते हैं। (निबंध रच. : श्या. दा., मा. मि., पृ. 9)

हाँ-हजूरी सं. (पु.) -- हाँ में हाँ मिलानेवाला व्यक्ति, स्वराजी और हाँ-हजूरी सभी स्वदेशी के कायल हैं। (म. का मतः क. शि., 20 सित. 1924, पृ. 165)

हाँक लगाना मुहा. -- आह्रान करना, (क) लोग सुपर पावर की हैसियत के लिए पहले दिन से हाँक लगा रहे हैं। (हि. ध., प्र. जो., पृ. 316), (ख) उसने हिम्मत बढ़ाते हुए हाँक लगाई। (रा. निर., समी., फर. 2007, पृ. 17)

हाँकना क्रि. (सक.) -- धकेल देना, भगा देना, आगे बढ़ाना, (क) आयरलैंड के मूल निवासी और भी अनुपजाऊ जमीनों की ओर हाँक दिए गए। (रा. मा. संच. 2, पृ. 82), (ख) अक्ल भी उधर जाएगी जिधर तुम हाँकोगे। (ग. शं. वि. रच., खं. 1, पृ. 51), (ग) हे प्रभु, आपके हाँके बिना हम मिलकर नहीं रह सकते। (कर्म., 12 अप्रैल 1947, पृ. 21)

हाँका सं. (पु.) -- शिकार के लिए जंगली पशुओं को हाँककर एकत्र करने की क्रिया या भाव, (क) बिना हाँका किए शिकार हाथ नहीं आता। (ब. दा. च. चु. प., संपा. ना. द., पृ. 190), (ख) वह एक तरह का हाँका है जो सोए हुए को उठाने के लिए किया जा रहा है। (रा. मा. संच. 2, पृ. 53)

हाजत सं. (स्त्री.) -- हवालात, अभी नए कैदी को हाजत में ही रखा गया था। (बे. ग्रं., भाग 1, पृ. 70)

हाट-बाजार सं. (पु.) -- विस्तृत क्षेत्र, कार्यक्षेत्र, सारी लक्ष्मण रेखाओं को लाँघकर पुनः इस राजनीतिमय संसार के हाट-बाजार में खड़े हैं। (रा. मा. संच. 2, पृ. 358)

हाड़ हराम होना मुहा. -- कामचोर हो जाना, मुफ्त का खाते-खाते हाड़ हराम हो गए हैं। (काद. : जुलाई 1989, पृ. 77)

हाड़ सं. (पु.) -- हड्डी, सभ्य देश खँडहरों की प्रदर्शिनी नहीं है, और न वहाँ के निवासी हाड़ों की चलती फिरती मूर्तियाँ ही। (ग. शं. वि. रच., खं. 2, पृ. 362)

हाड़तोड़ वि. (अवि.) -- जीतोड़, घोर, शरीर को तोड़ देनेवाला, ... अपने और उनके बीच का फासला यथासंभव घटाने का हाड़तोड़ परिश्रम करना पड़ रहा है। (दिन., 20 अग. 1965, पृ 40)

हाँडी अलग होना मुहा. -- चौका-बरतन अलग-अलग होना, रामलाल अपनी माँ से अलग रहने लगा था तब से एक ही घर में माँ-बेटे की हाँडी अलग थी। (अ. अ.: प. पु ब. पृ. 55)

हाता सं. (पु.) -- प्रांगण, परिसर, अपने हाते के भीतरी भाग के पूर्ण अधिकारी हैं। (सर., दिस. 1921, पृ. 347)

हाथ ऊँचे करना मुहा. -- अपने को अलग तथा निरपराध बताना, चतुर्भाषा सूत्र का ठीकरा उनके सिर पर फोड़कर अपने हाथ ऊँचे कर लिए हैं। (ज. स., 10 अग. 2008, पृ. 7)

हाथ का खिलौना बनाना मुहा. -- कठपुतली बनाना, तानाशाही गुट उसे अपने हाथ का खिलौना ही बनाए हुए हैं। (सर., जुलाई-दिस. 1931, सं 2, पृ. 237)

हाथ का खिलौना रह जाना या बनकर रह जाना मुहा. -- कठपुतली बन जाना, एक साथ मिलकर विचार करने का अधिकार छिन जाएगा और हम सरकार के हाथ के खिलौने रह जाएँगे। (स. सा., पृ. 281)

हाथ काले करना मुहा. -- घृणित कार्य द्वारा अपयश प्राप्त करना , उसके परिणाम के उज्ज्वल यश से अपने हाथ काले किए। (मा. च. रच., खं. 9, पृ. 129)

हाथ की कठपुतली मुहा. -- ईशारे पर चलनेवाला व्यक्ति, पर भारत सरकार तो भारत मंत्री के हाथ की कठपुतली है। (स. सा., पृ. 291)

हाथ की गुड़िया मुहा. -- हाथ की कठपुतली, ऐसे उपन्यासों के नायक और नायिका खाली बदमाशों के हाथ की गुड़िया हैं, न उनमें जान है न शक्ति। (गु. र., खं. 1,, पृ. 408)

हाथ की सफाई मुहा. -- हेर-फेर, उसके पास रिचर्ड निक्सन नामक एक धंधेबाज, चलता पुर्जा, हाथ की सफाई जाननेवाला नौकर भी था। (रा. मा. संच. 1, पृ. 252)

हाथ डालना मुहा. -- (कार्य) आरंभ करना, (किसी काम में) प्रवृत्त होना, अगर इस बात की जरूरत आ पड़े कि बर्रों के छत्तों में हाथ डाला जाय तो हर कोई तैयार हो जाएगा। (न. ग. र., खं. 2, पृ. 177)

हाथ न आना मुहा. -- पकड़ में न आना, उपलब्ध न होना, एक ढेले में दो चिड़ियाँ हाथ नहीं आएँगी, उड़ जाएँगी। (दिन., 30 जुलाई 1965, पृ. 10)

हाथ पर हाथ डाले बैठे रहना मुहा. -- दिन भर हाथ पर हाथ डाले बैठा रहेगा, गप्प करेगा आसनाई करेगा और खाने के वक्त भरसाँय जैसा पेट लेकर पीढ़ा पर च़ढ़ बैठेगा। (काद., नव. 1960, पृ. 57)

हाथ पर हाथ धरना मुहा. -- शांत भाव से बैठ ना, अब ब्रह्म दादा हाथ पर हाथ धरे मौज से बुढ़ापा खेपें। (शि. पू. र., खं. 3, पृ. 510)

हाथ पर हाथ धरे बैठना मुहा. -- मुहा., निष्क्रिय होकर बैठे रहना, चुपचाप बैठे रहना, (क) उस समय जबकि तिब्बत में खून की होली खेली जा रही थी, हम हाथ पर हाथ धरे बैठे रहे। (सा. हि., 2 दिसंबर 1962, पृ. 3), (ख) जिस तरह आजकल तुम वर्षा न होने पर, बोनी हो जाने पर, कटनी के पश्चात् या अधिक बरसात होने पर चुपचाप हाथ पर हाथ धरे बैठे रहने हो, यह हालत डेढ़ सौ वर्ष पहले तुम्हारी न थी। (मा. च. रच., खं. 3, पृ. 17)

हाथ पर हाथ रखे बैठना मुहा. -- निष्क्रिय या निष्चेष्ट होना, कांग्रेसियों में श्री एम. एम. मिश्र के लटे हुए आयोजन और समाजवादियों के हाथ पर हाथ रखे रहने का गहरा रंज था। (दिन., 4 जून, 67, पृ. 14)

हाथ फेरना मुहा. -- उड़ाना, उठाना, ग्रहण करना, हम लोगों ने भी उन प्रसाद की सामग्रियों पर खूब हाथ फेरा। (माधुरी : अक्तू. 1927, पृ. 373)

हाथ फैलाना मुहा. -- भीख माँगना, सैकड़ों बार धक्के खाकर, गरदनिया देकर निकाले गए, परंतु हाथ फैलाए रहे। (म. का मत, क. शि., 10 मई 1924, पृ. 152)

हाथ भर का कलेजा मुहा. -- अदम्य साहस या सामर्थ्य, ओडायर जानता है कि आयरलैंड और मिस्र हिंदुस्तान नहीं हैं, उधर ताकने के लिए हाथ भर का कलेजा चाहिए। (स. सा., पृ. 116)

हाथ में कर लेना मुहा. -- वश में कर लेना, वे अपनी वर्णन-कला से पाठक को बात की बात में हाथ में कर लेते थे। (कु. ख. : दे. द. शु., पृ. 17)

हाथ मोड़ना या मोड़ लेना मुहा. -- पीछे हटना, सरकार ने चाहा था कि पेट्रोल की दर इतनी अधिक चढ़ जाने के कारण की जाँच करें पर उसे डरकर इस मामले से हाथ मोड़ना पड़ा। (सं. परा. : ल. शं. व्या., पृ. 335)

हाथ रहना मुहा. -- प्राप्त होना, हाथ लगना, यह कुछ भी नहीं हुआ, इस वर्ष केवल भार ढोना ही हाथ रहा। (मा. च. रच., खं. 2, पृ. 29)

हाथ सानना मुहा. -- प्रवृत्त या संलग्न होना, लिप्त होना, जानसन खुश थे कि इधर बिना हाथ साने काम बन गया उधर वियतनाम का मामला पृष्ठभूमि में चला गया। (दिन., 2 जुलाई, 67, पृ. 37)

हाथ साफ करना मुहा. -- पिटाई करना, कटु आलोचना करना, लेख में प्रथम मान्यवर मालवीयजी पर हाथ साफ किया है फिर बंग महिला की खबर ली है। (गु. र., खं. 1, पृ. 141)

हाथ-तौबा सं. (स्त्री.) -- हाहाकार, हाय-हाय, उसके खिलाफ हाय-तौबा नकली है। (रा. मा. संच. 1, पृ. 257)

हाथ-पाँव समेटना मुहा. -- काम बंद कर देना या रोक देना, हुजूर को देखते ही जो हाथ-पाँव समेट लेते हैं। (मा. च. रच., खं. 9, पृ. 118)

हाथ-पैर पटकना मुहा. -- असमर्थता व्यक्त करना, तेहरान में फँसे पचास बंधकों के बार में अमेरिका हताश होकर हाथ-पैर पटक रहा है। (रा. मा. संच. 1, पृ. 365)

हाथावाही सं. (स्त्री.) -- कलम घसीटना, खेद है कि विश्वविद्यालयों में उच्च शिक्षा पाए हुए पदवीधारी सज्जन भी अनुवाद के गपड़घेसले में कूदकर हाथावाही कर रहे हैं। (सर., अप्रैल 1918, पृ. 180)

हाथों के तोते उड़ना या उड़ जाना मुहा. -- हतप्रभ होना, (ख) उनकी आँख भी तोताचश्म हो गई और हमारे हाथों के तोते भी उड़ गए। (काद., नव. 1980, पृ. 54), (ख) जब उन्हें पता चला तो उनके हाथों के तोते उड़ गए। (मि. ते. सु. चौ., पृ. 21)

हाथोंहाथ मिलना मुहा. -- तत्काल प्राप्त होना, स्वेच्छाचार का फल हाथोंहाथ मिलता भले ही न दीखे। (ग. शं. वि. रच., खं. 3, पृ. 135)

हाथोंहाथ लेना मुहा. -- आदरपूर्वक स्वागत करना, स्याह सफेद के मालिक जहाँ जाते हैं, लोग हाथोंहाथ लेते हैं। (भ. नि., पृ. 140)

हामी भरना मुहा. -- सहमति देश, स्वीकार करना, बातचीत करने से उनके नजरिए को पता नहीं क्या काठ मार गया कि वे विभाजन की हामी भरने लगे। (दिन., 18 मार्च 1966, पृ. 19)

हाय समाना मुहा. -- प्राप्त न कर सकने के कारण दुःखी होना, सबके भीतर जैसे हाय समा गई है। संयम और संतोष पनाह माँगते-फिरते हैं। (शि. पू. र., खं. 3, पृ. 435)

हाय-तौबा मचाना बा करना मुहा. -- हाहाकार करना, राष्ट्रभाषा और राजभाषा के प्रश्न को लेकर आज भी देश के कुछ महानुभाव हाय-तौबा मचाने की चेष्टा कर रहे हैं। (सा. हि., 17 मई 1959, पृ. 5)

हार सं. (पु.) -- खेत, क्षेत्र, हार में लोग आते हैं, दोपहर को लोग प्यासे भी होते हैं। (निरु. : निराला, पृ. 66)

हारे-खाँगे क्रि. वि. -- ले-देकर, उनके पास हारे-खाँगे विविध-भारती है। (दिन., 10 सित. 1972, पृ. 72)

हाल पर छोड़ना मुहा. -- यथास्थित रहने देना, इतनी शिष्टता उसमें नहीं कि वह मुझे मेरे हाल पर छोड़ दे। (काद. : न. 1975, पृ. 70)

हालत पतली होना मुहा. -- अवस्था दयनीय होना, उन दिनों नामवर की हालत पतली थी। (सं. मे., कम., 20 जुलाई 1990, पृ. 6-7)

हाली हो जाना मुहा. -- अस्तित्व में आ जाना, चलने लगगना, मिश्र के अनुयायियों का एक पृथक् गुट बन गया और उसकी स्वतंत्र हाली हो गई। (दिन., 1 अक्तू. 1972, पृ. 18)

हिकारत सं. (स्त्री.) -- नफरत, घृणा उनके दिल में फ्रांको के प्रति संशय और हिकारत की परत जरूर जम गई। (दिन., 10 जन., 1971, पृ. 37)

हिचकोला सं. (पु.) -- हचकोला, झटका, लेकिन फिर भी अगर शामियाना हिचकोले खा रहा है, तो इसका कारण यह है कि जनता पार्टी का अखिल भारतीय गुरुत्वाकर्षण राज्यों के क्षुद्र गुटों और गिरोहों को गड़बड़ा रहा है। (रा. मा. संच. 1, पृ. 320)

हिड़कना क्रि. (अक.) -- हिचकियाँ लेते हुए रोना, वह जनानी हिड़ककर ऐसी रोई-कुएँ में डोल भी ऐसा न गड़गड़ाता हो। (काद. : अक्तू. 1981, पृ. 52)

हिंडोला सं. (पु.) -- झूला, हमारा मन आशा मन आशा और निराशा के हिंडोले पर झूलने लगता है। (शि. पू. र., खं. 3, पृ. 242)

हिंडोलित वि. (अवि.) -- आंदोलित, ये भग्नावशेष हमारे रक्त को हिंडोलित करने की शक्ति रखते हैं। (कुटज : ह. प्र. द्वि., पृ. 73)

हित-विघातक सं. (पु.) -- नुकसान पहुँचानेवाला, पहले जनता के हित-विघातक कम थे। (मा. च. रच., खं. 9, पृ. 314)

हितू सं. (स्त्री.) -- हितैषी, (क) हम प्रजा के सच्चे हितू हैं। (मा. च. रच., खं. 9, पृ. 59) (ख) जमायत चाहे आग मूतती हो पर मुसलमान भाइयों की समझ में उनकी हितू वही है। (म. का मत : क. शि., 17 नव. 1923, पृ. 81)

हितैषिता सं. (पु.) -- होने की अवस्था या भाव, वह है अति आधुनिक भड़भड़ियापन, नकली पांडित्य और उससे भी अधिक दिखावटी मानद हितैषिया। (हंस, फर. 1938, पृ. 434)

हिबेनामा सं. (पु.) -- दानपत्र, उन्होंने एक हिबेनामा किया। (काद., अग. 1987, पृ. 150)

हिया सं. (पु.) -- हृदय, आखिर कहाँ से फौलाद जैसा हिया लाएँ, वह यह सब सहने के लिए। (स. हि., 15 मई 1960, पृ. 3)

हिये को फाड़ देना मुहा. -- कलेजा चीर देना, अत्यधिक दुःखी करना, वह कौन सा भूत है जो उनके सिर पर सवार हो जाता है और उनके हिये को फाड़ देता है। (न. ग. र., खं. 2, पृ. 19)

हिरसना क्रि. (अक.) -- तरसना, अफ्रो-एशिया में जो लोग क्रांति के लिए हिरस रहे हैं, उनकी क्रांति कामना इससे बिलकुल अलग और किताबी है। (रा. मा. संच. 1, पृ. 107)

हिर्स सं. (स्त्री.) -- लोभ, हवस, राजनीति की दशा तो ठीक नवविवाहित बूढ़े के हिर्स की-सी हो गई है। (म. का मतः क. शि., 8 अग. 1925, पृ. 17)

हिलकोर सं. (स्त्री.) -- हिलोर, लहर, तरंग, पार्थिव प्रेम की नई हिलकोरें भी हैं। (दिन., 14 मार्च, 1971, पृ. 8)

हिलकोरा सं. (पु.) -- ऊँची लहर, हिलोर, खड़खड़ के साथ जोर से छपाक-से शब्द हुआ और पानी का हिलकोरा उठा। (धर्म., 8 अक्तू. 1967, पृ. 24)

हिलगना क्रि. (अक.) -- 1. झूलना, टँगना, अटकना, सर सैयद से याहया खाँ तक यह आंदोलन प्रायः नकली खूँटियों से हवा में हिलगा रहा है। (रा. मा. संच. 2, पृ. 74), 2. साथ लगे रहने देना, चिपके रहना, (क) अब आप समझ गए होंगे कि मैं अपने इस अवांछनीय मित्र को अपने साथ क्यों हिलगने देता हूँ। (ए. सा. डाय. (ए. सा. डाय. : ग. मा. मु., पृ. 60), (ख) भड़भूजे के भाड़ का धुआँ ऊपर न उठकर सामने ही हिलग गया था। (रा. द., श्रीला. शु., पृ. 231), (ग) सिगार का पाइप सदा उनके ओठों से हिलगा रहता। (कर्म., 6 सित. 1947, पृ. 7)

हिलगाना क्रि. (सक.) -- जोड़े रखना, साथ मिलाए रखना, उन्हें अपने से हिलगाए रखने के लिए भाजपा ने श्री कलराज मिश्र को अध्यक्ष बनाया है। (हि. ध., प्र. जो., पृ. 522)

हिसाबदाँ सं. (पु.) -- हिसाब-किताब में माहिर, जनरल बूथ भी बड़े ही हिसाबदाँ निकले। (सर., अक्तू. 1912, पृ. 528)

हिस्सामार वि. (अवि.) -- हिस्सा हड़पनेवाला, ऐसी स्थिति में एक हिस्सामार किस्म की अर्थव्यवस्था विकसित हो जाती है। (रवि. 22 मार्च 1980, पृ. 29)

हिस्सारसी सं. (स्त्री.) -- बँटवारा, मैं अपनी दौलत की हिस्सारसी भी कर दूँ। (नव., फर. 1958, पृ. 93)

हीन-हयात क्रि. वि. -- जिंदगी भर के लिए, आजीवन, आजन्म, जुम्मन ने मुझे हीन-हयात रोटी कपड़ा देना कबूल किया था। (सर., जून 1916, पृ. 387)

हील-हुज्जत सं. (स्त्री.) -- वाद-विवाद, तर्क-विर्तक, रास्ते में कोई बटुआ माँगे तो चुपचाप दे देना बिना कोई सवाल किए, बिना हील-हुज्ज के। (काद., जन. 1993, पृ. 120)

हीला-हवाला सं. (पु.) -- बहानेबाजी, बहाना, (क) नेतृत्व में पुनः सर होने का माद्दा नहीं है उनकी नीति हीले-हवाले की नीति बन रही है। (न. ग. र., खं. 2, पृ. 192), (ख) एक बार भी कोई हीला-हवाला नहीं किया। (म. प्र. द्वि., खं. 5, पृ. 512)

हीला सं. (पु.) -- 1. ठौर-ठिकाना, (क) जिस आदमी का कोई मजबूत हीला होता ह वह शासन में पनपता है। (ते. द्वा. प्र. मि., पृ. 155), 2. बहाना, ये अन्याय से बचने के लिए तरह-तरह के हीले करते थे। (माधुरी, 31 मार्च 1925, सं. 3, पृ. 420)

हुआ-बंदगी सं. (स्त्री.) -- अभिवादन, मेल-मुलाकात, प्रधानमंत्री ब्रिटेन में केवल दुआ-बंदगी नहीं करेंगी। (दिन., 5 जन., 69, पृ. 15)

हुँकारा सं. (पु.) -- हुंकार, कहानी शुरू होने के पहिले एक हुँकारेवाले को चुन लिया जाता है। (कुं. क. : रा. ना. उ., पृ. 39)

हुक्का-पानी बंद करना मुहा. -- बहिष्कृत करना, बहिष्कार करना, (क) शास्त्रीय संगीत के संरक्षण के दौर में फिल्मी संगीत का हुक्का-पानी बंद कर दिया गया था। (दिन., 14 सित., 1969, पृ. 28), (ख) रोडेशिया के गोरों ने 1965 से अपने आपको आजाद कर रखा है और तभी से राट्र संघ ने उसका हुक्का पानी भी बंद कर रखा है। (रा. मा. संच. 1, पृ. 244)

हुचना क्रि. (अक.) -- चूकना, हुच जाने पर भी डंडा खेले जाता था। हालाँकि शास्त्र के अनुसार गया की बारी आनी चाहिए थी। (प्रे. स. क. : सर. प्रेस, पृ. 125)

हुज्जत सं. (स्त्री.) -- बस, विवाद, तकरार, (क) लड़ाई से थके हुए सेनापतियों को यह हुज्जत बुरी लगी। (गु. र., खं. 1, पृ. 175), (ख) यह गंभीर प्रश्न हुज्जत कर लेने से ही हल नहीं हो सकता। (माधुरी, 31 मार्च 1925, सं. 3, पृ. 561)

हुड़कना क्रि. (अक.) -- वियोग के कारण व्याकुल तथा दुःखी होना, मुन्नी कहीं मेरे बिना रात को हुड़के न। जरूर हुड़केगी बहुत परच गई थी। (रवि., 31 मई 1981, पृ. 44)

हुड़कबुल्लू सं. (पु.) -- जोकर, मैं इस कोट को पहनकर कितना हुड़कबुल्लू लग रहा होऊँगा। (रवि., 1 फर. 1981, पृ 45)

हुड़दंग सं. (पु.) -- शोर-शराबा, ऊधम, (क) यह हुड़दंग, कीचड़ और रंग देखकर लगता है कि कभी-कभी विनोद और विरोध की भाषा एक ही होती है। (दिन., 03 मार्च, 68, पृ. 9), (ख) जनता चाहती है कि ये अब कौंसिलों के हुड़दंगों से विरत हो जाएँ। (म. का मतः क. शि., 27 मार्च 17 मार्च 1926, पृ. 207)

हुड़दंगई सं. (स्त्री.) -- उपद्रव मचाने की क्रिया या भाव, संजय के किसी भी कार्य का अनुमोदन नहीँ किया, चाहे मारुति हो या बड़े-बड़े ताल्लुकेदारों को मिलाकर हुड़दंगई या अदालतों में शोर करना। (रवि., 15 नव. 1981, पृ. 23)

हुड़स सं. (स्त्री.) -- इच्छा, हिर्स, लालसा, तब चार लोगों के साथ बैठने-बतियाने की ऐसी ही हुड़स थी। (साक्षा., मार्च-मई 77, मृ. पां., पृ. 29)

हुदक्‍का सं. (पु.) -- प्यार से किया जानेवाला आघात या दिया जानेवाला धक्‍का, भौजी ने ही हमारे गालों में हुदक्‍का दे दिया। (बे. ग्रं., प्रथम खं., पृ. 67)

हुमकना क्रि. (अक.) -- उछलना, मानो किसी ने हुमककर हथौड़े की चोट मेरी आत्मा पर की हो। (काद., दिस. 1960, पृ. 47)

हुमचना क्रि. (सक.) -- दबा देना, जब लड़का गिर पड़ा तो पैर से उसकी गरदन हुमच दी ...(दिन., 8 जून 1975, पृ. 42)

हुमसना क्रि. (अक.) -- उछलना, गयादीन चारपाई पर धीरे से हुमसकर उसके पास खिसक आए। (रा. द., श्रीला. शु., पृ. 230)

हुरदंग सं. (पु.) -- हुड़दंग, ऊधम, फिर क्या था, एक अजीब सा हुरदंग मच रहा। (बे. ग्रं., प्रथम खं., पृ. 64)

हुरपेटना क्रि. (सक.) -- खदेड़ना, भगाना, बहुत से देशी चाटुकारों को वहिष्कारवादियों को हुरपेटने के लिए अग्रसर कर लिया है। (म. का मतः क. शि., 10 दिस. 1927, पृ. 240)

हुँरपेंटा सं. (पु.) -- प्रहार, ऊपर से डंडों के हुँरपेंटे लग रहे थे। (बे. ग्रं., भाग 1, पृ. 55)

हुर्दंगवादी सं. (पु.) -- उपद्रव करनेवाला, हुड़दंगी, इन हुर्दंगवादियोँ के कलुष व्यापार को बंद करने के लिए उन्हेँ आगे आना ही पड़ेगा। (कु. ख. : दे. द. शु., पृ. 28)

हुलना क्रि. (सक.) -- लाठी, भाले आदि का सिरा जोर से घुसाना, घोर कष्‍ट देना, अब बारी हुल्ल रैली की है, जिसमें वे उन्हेँ हुलनेवाले हैं, चिन्होंने सत्ता-परिवर्तन किया। (ज. स. : 16 जुलाई 2007, पृ. 6)

हुलसना क्रि. (अक.) -- प्रसन्‍न होना, (क) हिंदी की शब्द भारती 12 वर्षोँ से मानो गर्भ लिए हुलसी फिरती है। (काद. : अप्रैल 1991, पृ. 82), (ख0 वे पत्रकारिता से हुलसकर नई दुनिया में नहीं आए थे। (स. ब. दे. : रा. मा., पृ. 28), (ग) मेरे गाँव की दुलारी फूफू अन्य गउनहरी स्‍त्रियों के साथ ढोल मँजीरा पर गीत खूब हुलस-हुलसकर गाया करती थी। (काद., अक्‍तू. 1993, पृ. 120)

हुलसाना क्रि. (सक.) -- प्रसन्‍न करना, दूसरा भी अपनी गर्जना से भारत के हृदय को हुलसाता रहा है। (मा. च. रच., खं. 9, पृ. 46)

हुलिया टैट करना मुहा. -- किसी चीज को कस या जकड़ देना, कठोर नियंत्रण में लाना, मुख्यमंत्री जब दिल्ली में जुड़े तो उन्होंने संप्रदायवाद की (का) हुलिया टैट कर दी। (दिन., 26 मई, 68, पृ. 15)

हुलिया तंग करना मुहा. -- शक्ल बिगाड़ देना, हुलिया बिगाड़ना, हिंदी की हुलिया तंग हो जाएगी और उसकी चूलें ढीली पड़ने लगेंगी। (मधुकर : अप्रैल-अग. 1944, पृ. 144)

हुलिया तंग होना मुहा. -- परेशान होना, डॉ. अयंदे ने उन दिनों कहा कि उनके राज में इजारेदारों और विदेशी करोड़पतियों की हुलिया जरूर तंग होगी। (रा. मा. संच. 1, पृ. 179)

हुल्ल वि. (अवि.) -- हुल्लड़-भरा, अब बारी हुल्ल रैली की है, जिसमें वे उन्हें हुलनेवाले हैं, जिन्होंने सत्ता परिवर्तन किया। (ज. स. : 16 जुलाई 2007, पृ. 6)

हुल्लड़ सं. (पु.) -- शोरगुल, होहल्ला, शोर-शराबा, (क) तनिक-तनिक सी बातों पर हुल्लड़ होने लगता है। (ग. शं. वि. रच., खं. 1, पृ. 60), (ख) वे संसद्‍ के दोनों सदनों में हुल्लड़ कर रहे थे। (हि. ध., प्र. जो., पृ. 66), (ग) सोवियत शासन प्रणाली पूरा हुल्लड़ है। (न. ग. र., खं. 2)

हुल्लड़बाज सं. (पु.) -- हुल्लड़ करनेवाला, इन तुक्‍कड़ों की या इनके सराहनेवाले हुल्लड़बाजों की भी यह अवस्था होनी चाहिए। (सा. मी. : कि. दा. वा., पृ. 12)

हुल्लड़शाही सं. (स्त्री.) -- होहल्ले का बोलबाला, (क) कौंसिलों की हुल्लड़शाही की निरर्थकता का यह ताजा प्रमाण है। (म. का मतः क. शि., 29 मार्च 1924, पृ. 143), (ख) उसे तब हम समाज न कहकर हुल्लड़शाही कहते हैं। (सर., दिस. 1925, पृ. 638)

हू-हुल्लड़ सं. (पु.) -- शोरगुल, कोलाहल, आपकी लंबी चौड़ी फूँ-फाँ और हू-हूल्लड़ देखकर तो यही प्रतीत होने लगता है कि न जाने कैसी भारी बात आप कहेंगे। (म. प्र. द्वि., खं. 1, पृ. 399)

हूक सं. (स्त्री.) -- वेदना, पीड़ा, कांग्रेस को पराजित करने ही कांग्रेस के प्रति एक हूक लोगों के मन में उठने लगी। (रा. मा. संच. 1, पृ. 388)

हूँका देना मुहा. -- हामी भरना, हूँ-हूँ करना, हुँकारी भरना, एक कहानी कहता है दूसरा हूँका देता है, शेष सब सुनते हैं। (मधुकर, अक्‍तू. 1940, पृ. 15)

हूँका सं. (पु.) -- हुँकारी, स्वीकृति की सूचक हूँ, उसकी बात पर महिलाओं ने हूँका भरा। (काद. : फर. 1991, पृ. 38)

हूल सं. (पु.) -- लाठी का सिरा, कमर पर लाठियों के हूलों से मारा गया। (दिन., 5 जन., 69, पृ. 9)

हूश वि. (अवि.) -- उज्‍जड्‍ड, गँवार, इनसे ज्यादा समझदार तो भूसा-गाड़ियों के बैल होते हैं। बिलकुल हूश हैं। (रा. द. : श्रीला. शु., पृ. 49)

हृदय बैठ जाना मुहा. -- दिल टूट जाना, अपने दोस्तों के पीठ ठोंकने पर तैयार होनेवाले स्पेन का हृदय बैठ गया। (ग. शं. वि. रच., खं. 2, पृ. 62)

हृदय में घर करना मुहा. -- अत्यंत प्रिय लगने लगना, रूसी विचारधारा का न केवल विस्तार हुआ है, अपितु वह यूरोपवासियों के हृदयों में घर भी कर गई है। (न. ग. र., खं. 2, पृ. 264)

हृदयद्रावक वि. (अवि.) -- हृदय को पिघला देनेवाला, विदाई के उपलक्ष्य में जो समारोह आयोजित किया गया था वह बहुत हृदय द्रावक था। (दिन., 18 जुलाई 1971, पृ. 19)

हृद्‍गत वि. (अवि.) -- हृदय में उत्पन्‍न होनेवाला, हार्दिक, सरल भाषा में अपने हृदगत भाव प्रकट कर सकते हैं। (सं. परा. : ल. शं. व्या., पृ. 45)

हेकड़ी सं. (स्त्री.) -- अकड़, घमंड (क) कर्ज का बोझ गले में लाद देते हैं और हेकड़ी जमाते हैं अलग से। (दिन., 30 अप्रैल, 67, पृ. 32), (ख) कुछ बोलकर हेकड़ी को किरकिरा करना ठीक नहीं समझता। (शि. से. : श्या. सुं. घो., पृ. 17), (ग) यदि वे हेकड़ी करके आगे बढ़ें भी तो उनके चिथड़े-चिथड़े उड़ जाएँ। (सर., अक्‍तू. 1915, पृ. 209)

हेंच-पेंच सं. (पु.) -- उलटा-सीधा व्यवहार, वे ऐसे हेंच-पेंच और दबाव झेलती रहीं जो आधुनिक नारी को नहीं झेलना चाहिए। (दिन., 16 मार्च 1975, पृ. 44)

हेच-पोच वि. (अवि.) -- निकृष्‍ट और बुरा, वह बड़ा ही हेच-पोच है, उसके भरोसे यह काम मत छोड़ो। (काद., सित. 1977, पृ. 10)

हेच वि. (अवि.) -- हेय, बेकार, तुच्छ, (क) खुसरो ने सात कारण गिनाए हैं क्यों खुरासान हिंदुस्तान के आगे हेच है। (दिन., 3 अक्‍तू. 1971, पृ. 9), (ख) किंतु इस दृश्य के आगे सब हेच। (नव. : अग., 1958, पृ. 48)

हेचमदानी सं. (स्त्री.) -- मूर्खता, नादानी, पर इतनी हेचमदानी पर भी हमादानी लठ लिए फिरते हैं। (म. प्र. द्वि., खं. 1, (बा. मु. गु.) , पृ. 350)

हेठा वि. (विका.) -- छोटा, निम्‍न, घटिया, तुच्छ, (क) आरंभिक लोकसभा का यदि इस लोकसभा का मिलान किया जाए तो यह हेठी ही बैठेगी। (दिन., 16 अप्रैल, 67, पृ. 9), (ख) मालूम होता है जाति में हेठे हैं। (भ. नि., पृ. 31), (ग) मैं भी किस्मत का हेठा था। (काद. : फर. 1967, पृ. 112)

हेठी सं. (स्त्री.) -- अवमानना, अपमान, बेइज्‍जती, (क) अमेरिकी प्रेसिडेंट क्या हेठी बरदाश्त करने को तैयार होगा ? (दिन., 25 फर., 68, पृ. 34), (ख) न नाक कटी है न पुरुषार्थ की हेठी हुई है। (किल., सं. म. श्री., पृ. 19), (ग) वियतनाम चीन की हेठी कर रूस से प्रगाढ़ता बढ़ा रहा था। (रवि. 16 मार्च 1979, पृ. 17)

हेड़ सं. (पु.) -- मेला-तमाशा, सुनते हैं जयपुर में इतने हेड़े होते हैं कि उनके वर्ष भर के खर्च से एक कॉलेज चल सकता है। (गु. र., खं. 1, पृ. 114)

हेर-फेर सं. (पु.) -- फेर-फेर, परिवर्तन, सभी किसानों के सिर पर बंदोबस्त के हेर-फेर की तलवार लटकती रहती है। (ग. शं. वि. रच., खं. 2, पृ. 73)

हेलना क्रि. (सक.) -- ठेलना, परे हटाना, एक जवान लड़की है। दूसरा बूढ़ा बाप। पानी हेलतेचले आ रहे हैं। (धर्म., 8 अक्तू. 1967, पृ. 24)

हेलमेल सं. (पु.) -- मेलजोल, सरकार अपनी उग्रता के बदले हेलमेल का भाव ग्रहण करे। (नि. वा. : श्रीना. च., पृ. 619), (ख) अब तो हेल मेल के दिन हैं। (ग. शं. वि., रच., खं. 2, पृ. 132), (ग) धीरे-धीरे दों में खूब हेलमेल और प्रेम बढ़ गया। (मधुकर, अप्रैल-मई 1946, पृ. 440)

हेलाना क्रि. (सक.) -- जलधार में आगे बढ़ाना, मवेशियों को हेलाकर ले जाने में अमुक-अमुक बह गए। (धर्म., 8 अक्तू. 1967, पृ. 25)

होड़ सं. (स्त्री.) -- स्पर्धा, प्रतिद्वंद्विता, (क) होड़ लगी है कि कौन सी एयरलाइंस यात्रियों को कितनी सुविधा दे सकती है। (काद., फर. 1994, पृ. 20), (ख) ड्योढ़े दाम की कपास का कपड़ा किस विदेशी मंडी में होड़ ले सकेगा ? (दिन., 17 जून 1966, पृ. 25)

होड़बदना मुहा. -- स्पर्धा करना, विजयेंद्र स्नातक ने इस मामले में मानो जैनेंद्र से होड़ बद रखी है। (दिन., 30 जुलाई, 67, पृ. 42)

होड़ा-होड़ी सं. (स्त्री.) -- स्पर्धा, चढ़ा-ऊपरी, (क) अब सब रथ होड़ा-होड़ी से बहुत तेज लक्ष्य की ओर चलते हैं। (गु. र., खं. 1, 255), (ख) शहर में ही यह होड़ा-होड़ी अधिक मात्रा में हो सकती है, जहाँ सामान्यत नकलबाजी की बुनियाद पर उत्सवों की टीमटाम आधारित है। (ते. द्वा. प्र. मि., पृ. 128), (ग) मानव जब प्रकृति से होड़ा-होड़ी करता है, तब वह प्रकृति का अपमान नहीं करता। (मा. च. रच., खं. 3, पृ. 92)

होनी सं. (स्त्री.) -- होने वाली बात, भवितव्यता, शायद जीवन-वैभव का वह अभागा दिन होनी की गोद में मुँह ढाँककर जार-जार रोया होगा। (मा. च. रच., खं. 4, पृ. 201)

होम करदेना मुहा. -- बलि चढ़ा देना, शांति की कबूतरबाजी में देश के बुनियादी हितों और आदर्शों को होम कर दिया। (दिन., 28 जून, 1970, पृ. 28)

होश की दवा करना मुहा. -- जागरूक बनने का उपाय करना, सबसे पहले हमारे सेनानायकों को ही होश की दवा करना चाहिए। (म. का मत क. शि., 27 अग. 1927, पृ. 221)

होश फाख्ता होना मुहा. -- सुध-बुध खो बैठना, उसने मर्दाना आवाज में उसे ऐसी गालियाँ सुनाईँ कि हजरत के होश फाख्ता हो गए। (मधुकर, अग.-सित. 1946, पृ. 570)

होश सँभालना मुहा. -- समझदारी आना, यदि ये शासक अपनी खैर चाहते हैं तो अपनी टिर्र छोड़ें और होश सँभालें। (ग. शं. वि. रच., खं. 2, पृ. 376)

होश हिरन हो जाना मुहा. -- होश उड़ जाना, बुलावे के साथ उनके होश हिरन हो गए। (का. कार. : नि., पृ. 45)

होश-हवास खो बैठना मुहा. -- सुध-बुध खो बैठना, आपकी विलक्षण तर्क शक्ति के चक्कर में तो बड़े-बड़े घाघ वकील तक होश-हवाश खो बैठते हैं। (मा. च. रच., खं. 4, पृ. 187) (वि. भा., जन. 1928, सं. 1, पृ. 64)

होहल्ला सं. (पु.) -- शोरगुल, छुद्राशय लोगों ने इस पर होहल्ला मचाया। (कर्म., 29 मई 1948, पृ. 19)

हौआ खड़ा करना मुहा. -- भय दिखलाना, क्षुब्धावस्था का हौआ खड़ा करके प्रेस एक्ट बनाने का संकल्प किया। (मा. च. रच., खं. 9, पृ. 77)

हौआ सं. (पु.) -- डरावना जीव या वस्तु, हौवा, (क) हमारे विशाल हृदय और उदाराशय मुसलमान भाइयों के लिए हिंदी हौवा हो रही है। (सर., अप्रैल 1917, पृ. 220), (ख) समाजवादी लोकतांत्रित दल के नेता हेमवती नंदन बहुगुणा प्रधानमंत्री श्रीमती गांधी के लिए हौआ से बन गए हैं। (रवि., 5 सित. 1982, पृ. 11)

हौल-दौल वि. (अवि.) -- भयभीत, विचलित, व्यथित, याद रखिए, ये शासक वहीं हैं जो एक बार हमारी थोड़ी सी ताकत हौल-दौल हो गए थे। (ग. शं. वि. रच., खं. 3, पृ. 360)

हौल सं. (पु.) -- डर, भय, तुम संकोच करते हो, मेरे मन में हौल उठता है। (सर., मार्च 1937, पृ. 219)

हौलदिली सं. (स्त्री.) -- धड़कन, सीटी बजा-बजाकर यात्रियों में हौलदिली पैदा करती रहती है। (दिन., 23 दिस., 66, पृ. 10)

हौले-हौले क्रि. वि. -- धीरे-धीरे, तानाशाही की उस मंजिल तक भागती हुई पहुँची, जहाँ वे पाँच-छह साल से हौले-हौले जा रही थीं। (रा. मा. संच. 2, पृ. 359)

हौवा सं. (पु.) -- हौआ, डरावना जीव या वस्तु. (क) देशी राज्यों के निवासी पुलिस को हौवा नहीं समझते। (ग. शं. वि. रच., खं. 2, पृ. 203), (ख) युद्ध नहीं, युद्ध का हौवा ही मुजीब की मदद के लिए काफी था। (रा. मा. संच. 2, पृ. 49)

हौंसिया सं. (पु.) -- हौसलेवाला, साहसी, जिंदादिल व्यक्ति, आसपास के गाँवों के हौंसिए गले में रंगीन रूमाल बाँधकर, बालों में चपाचप तेल डाले, रस्सी तुड़ाकर भागे बछड़ों की तरह इधर-उधर डोलते फिरते थे। (दिन., 18 मई 1975, पृ. 8)