विक्षनरी:हिन्दी लघु परिभाषा कोश/अ

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विक्षनरी:हिन्दी लघु परिभाषा कोश पर लौटें

- - 1 देवनागरी वर्णमाला के पहले स्वर स्वनिम (वर्ण) का लिखित/मुद्रित स्वरूप। 2. ‘नहीं’ का अर्थसूचक उपसर्ग; जैसे : असहमत (अ+सहमत) अर्थात् सहमत न होना। टि. 1. वर्णमाला के ‘क’, ‘ख’, ‘ग’ आदि सभी व्यंजनों में ‘अ’ अंतर्निहित स्वर होता है। जैसे : क्+अ=’क’, ठ्+अ=’ठ’, भ्+अ=’भ’ आदि 2. अन्य स्वरों की तुलना में ‘अ’ स्वर का अलग से कोई मात्रा चिह्न नहीं होता।

अंक - (तत्.) - 1. गोद (साहित्यिक प्रयोग) जैसे : माता ने अपने शिशु को अंक में ले लिया। 2. संख्या number; figure जैसे : एक हजार को अंकों में लिखें (शब्दों की तुलना में) 3. गणि. संख्यांकन पद्धति में स्थानीय मान सूचक आँकड़ा (इकाई दहाई के रूप में 1, 2, 3,…0 के संकेत digit 4. शिक्षा बहु. परीक्षा में प्राप्‍त अंक marks । दे. प्राप्‍तांक, पूर्णांक। 5. पत्र. मास, वर्ष आदि में प्रकाशन की क्रमिक संख्या, जैसे : इस पत्रिका के प्रति मास दो अंक प्रकाशित होते हैं, तु. संस्करण 6. साहि. नाटक का हिस्सा, जैसे : एकाकी (एक अंक वाला नाटक); चंद्रगुप्‍त नाटक का दूसरा अंक। 7. खेल-प्रतियोगिता में सम्मिलित खिलाड़ी या दल को प्रतिपक्षी की तुलना में प्राप्‍त अंक। points, score appraisal

अंकगणित [अंक+गणित] - (पुं.) (तत्.) - अंकों का गणित, अंकों की गणना (जोड़ना, घटाना, गुणा, भाग, वर्ग, वर्गमूल, घन, घनमूल ये आठ संक्रियाएँ) पर्या. हिसाब, पाटीगणित तु. बीजगणित, रेखागणित, ग्रहगणित। arithmetic

अंकतालिका - (स्त्री.) (तत्.) - अंकों की तालिका दे. अंकसूची

अंकन - (पुं.) (तत्.) - 1. चिह्नित करना, अंकों से चिह्नित करना marking 2. रेखा से चिह्नित करना, रेखांकन 3. आँकना, निर्धारण करना, मूल्य, शुल्क आदि के निर्धारण का अनुमान 4. वर्ग के अनुसार क्रम निर्धारण वर्गांकन। notation

अंक प्रविष्‍टि - (स्त्री.) (तत्.) - रजिस्टर आदि में प्राप्‍त अंकों को चढ़ाने की क्रिया।

अंक सूची - (स्त्री.) (तत्.) - परीक्षा में प्राप्‍त अंकों की (विषयवार सूची या तालिका) अंक तालिका। marks sheet

अंकित [अंक+इत] - (वि.) (तत्.) - चिह्नित किया हुआ, जिस पर निशान लगा हो। उदा. वाक्यों में रेखांकित शब्दों के अर्थ बताइए। रेखांकित (रेखा+से अंकित) जिसके नीचे रेखा पड़ी/खींची गई हो। दे. अंकित

अंकित मूल्य - (पुं.) (तत्.) - वाणि. किसी वस्तु के आवरण पर अथवा शेयर आदि के दस्तावेज़ पर ग्राहक की जानकारी के लिए छपा/उस पर दर्ज दाम अथवा कीमत। face value, nominal value

अंकीय [अंक+ईय (प्रत्यय) - (वि.) (तत्.] - 1. अंक/आँकड़ा/संख्या संबंधी। जैसे : अंकीय पद्धति 2. जीव. पृष्‍ठभाग/पीठ के विपरीत अर्थात् सामने वाले भाग-गोद (अंक) की ओर या वहाँ स्थित; जंतुओं के उदर की ओर तथा पादपों में अक्ष की ओर के भाग से संबंधित, पत्‍तियों की ऊपरी सतह ventral

अंकुर - (पुं.) (तत्.) - बीज बोने के बाद उससे फूटकर निकला हुआ पहला कोमल भाग, अँखुवा, कब्जा। ला.अर्थ प्रारंभिक लक्षण। उदा. शहीद भगत सिंह में राष्‍ट्रभक्‍ति के अंकुर उनके बचपन में ही दिखाई पड़ने लगे थे।

अंकुरण - (पुं.) (तत्.) - अनुकूल परिस्थितियों में बीज की वृद्धि का आरंभ जिसमें सबसे पहले एक अंकुआ (अंकुर) निकलता है।

अंकुरित [अंकुर+इत] - (वि.) (तत्.) - अंकुर के रूप में निकला या फूटा हुआ। दे. अंकुर

अंकुश - (पुं.) (तत्.) - 1. हाथी को हाँकने या वश में करने के लिए प्रयुक्‍त एक नुकीला हथियार। 2. नियंत्रण, रोक।

अंकुश कृमि - (पुं.) (तत्.) - जीव. अंकुश जैसे आकार वाला (यानी मुड़ा हुआ) कीट जो प्राय: बच्चों के आमाशय में पैदा होकर गुदा द्वार तक पहुँचता है और बच्चों के पेट में दर्द का एक कारण बनता है। hook warm दे. कृमि।

अंकेक्षण [अंक+ईक्षण] - (पुं.) (तत्.) - व्यापारिक या राजकीय लेन-देन से संबंधित लेखा कार्य का अधिकारी व्यक्‍ति द्वारा परीक्षण किया जाना। audit

अंग - (पुं.) (तत्.) - 1. शरीर, बदन, देह, body 2. शरीर का कोई भी भाग जैसे : आँख, हाथ, पैर आदि। 3. सैन्य. भाग या हिस्सा जैसे : सेना के तीन अंग-थल सेना, नौ सेना और वायु सेना। 4. जीव. का बहुकोशीय अवयव जो संरचनात्मक और कार्यात्मक इकाई के रूप में कार्य करता है। 5. संगी. कर्णाटक संगीत में तीनों के विभाग, जैसे : अणु-द्रुत, द्रुत, लघु, गुरु, प्लुत और काकपद।

अंगक [अंग+क] - (पुं.) (तत्.) - जीव कोशिका का सुस्पष्‍ट अवयव। जैसे : केंद्रक, लवक आदि। Organelle

अंगघात - (पुं.) (तत्.) - व्यु अर्थ. किसी अंग विशेष पर रोग के प्रभाववश आई ऐसी चोट जिसके फलस्वरूप वह अंग मृतवत यानी निश्‍चेष्‍ट हो जाता है।

अंगज [अंग+ज] - (वि/पुं.) (तत्.) - देह से उत्पन्न, संतान (बेटा)।

अंगजा [अंग+ज्+आ] - (वि./स्त्री.) (तत्.) - देह से उत्पन्न संतान (बेटी)। तु. (विलो.) अंगज।

अंगद - (पुं.) (तत्.) - 1. बाजू (बाँह) पर बाँधने का एक आभूषण पर्या. बाजूबंद 2. रामायण कथा के अंतर्गत वानरराज बालि के पुत्र एवं राम के सेनापतियों में प्रमुख।

अंगदान - (पुं.) (तत्.) - किसी व्यक्‍ति के द्वारा अपनी जीवितावस्था में ही शरीर के किसी अंग विशेष जैसे : आँखें, गुर्दा आदि का मृत्‍यु के पश्‍चात् दान करने की घोषणा जो किसी जरूरतमंद व्यक्‍ति के शरीर में प्रत्यारोपित की जा सके।

अंगद्वार - (पुं.) (तत्.) - शा.अर्थ अंग (शरीर) का/के द्वार। जीव. शरीर के छिद्र जो नौ माने जाते हैं-दो कान, दो आँखें, नाक के दो छिद्र, मुख, गुदा और लिंग।

अंग प्रत्यंग [अंग+प्रति+अंग] - (पुं.) (तत्.) - शरीर का प्रत्येक अंग; पूरा शरीर ही।

अंगभंग [अंग+अंग] - (पु.) (तत्.) - शा.अर्थ शरीर के किसी अंग पर चोट; दुर्घटनावश किसी अंग विशेष का टुट जाना।

अंगरक्षक - (पुं.) (तत्.) - शा.अर्थ अंग की रक्षा करने वाला/वाले (व्यक्‍ति); किसी गणमान्य व्यक्‍ति की सुरक्षा के लिए नियुक्‍त सशस्त्र कर्मचारी।

अंगरखा - (पुं.) [तद्.> अंगरक्षक (वस्त्र)] - एक लंबा मर्दाना पहनावा।

अंगराग - (पुं.) (तत्.) - शरीर पर मलने योग्य/लगाने सुगन्धित लेप, सौंदर्य प्रसाधन, उबटन।

अंगवस्त्र - (पुं.) (तत्.) - पंडितों के एक कंधे पर डाला जाने वाला आगे-पीछे लटकता और दो परतों में लिपटा बिना सिला वस्त्र। तु. दुपट्टा।

अंगार - (पुं.) (तत्.) - दहकता हुआ कोयला, अंगारा। (क्रोध में अंगारे की तरह) लाल।

अंगी - (वि.) (तत्.) - अंगवाला, प्रधान, मुख्य पुं. प्रधान पात्र, नायक।

अंगीकार करना - (क्रि.) (तत्.) - अपने अंग की तरह मान लेना; स्वीकार करना, अपना लेना, ग्रहण करना।

अंगीकृत - (वि.) (तत्.) - स्वीकृत, गृहीत, मान्य, अंगीकार किया हुआ।

अंगुल - (पुं.) (तत्.) - 1 दे. उँगली 2 अंगुली की चौड़ाई के बराबर नाप (सामान्यत: 3/4 इंच के बराबर) उदा. दो अंगुल चौड़ी पट्टी।

अंगुलि/अंगुली - (स्त्री.) (तत्.) - दे. उंगली।

अंगुष्‍ठ - (पुं.) (तत्.) - हथेली की छोटी पर अपेक्षाकृत मोटे आकार वाली पहली अँगुली जो शेष चार अंगुलियों से हटकर कुछ निचले भाग पर होती है। दे. (अँगूठा)

अंगूर - (पुं.) (फा.) - लता के गुच्छे के रूप में लगने वाला बड़े मोती से दानों जैसा हरे या गहरे जामुनी रंग का खाने योग्य वह रसयुक्‍त फल जो पकने पर मीठा होता है। पर्या. द्राक्षा, दाख।

अंगूर शर्करा - (स्त्री) (तत्.) - दे. ग्लूकोस। glucose

अंचल - (पुं.) (तत्.) - 1. आँचल, साड़ी या ओढ़नी का वह छोर जो सीधे पल्ले की साड़ी पहनने वाली महिलाओं के सीने और पेट पर तथा उल्टे पल्ले वाली साड़ी पहनने वालियों की पीठ पर लटका रहता है। पर्या. आँचल। 2. किसी भौगोलिक क्षेत्र का भाग-विशेष। जैसे : पूर्वांचल, उत्‍तरांचल, वनांचल।

अंजन - (पुं.) (तत्.) - आँखों में लगाने का काला औषधि द्रव्य पर्या. काजल, कज्जल, सुरमा।

अंजलि - (स्त्री.) (तत्.) - दोनों हथेलियों को मिलाने से बना हुआ किश्तीनुमा गड्डा जिसमें भर कर कुछ देय तत्व (जलदान, अन्नदान, पुष्पार्पण आदि) दिया जाता है।

अंजलिबद्ध - (वि.) (तत्.) - अंजलि बाँध ली है जिसने, ऐसी (स्थिति) जिसमें अंजलि बँधी हो, दोनों हाथ जोड़े हुए।

अंजाम - (.फा.) (फ़ा.) - परिभाषा, फल, नतीजा, अंत, समाप्‍ति। उदा. बुरे काम का अंजाम बुरा ही होता है।

अंट-शंट/संट - (वि.) - दे. अंड-बंड।

अंटार्कटिक प्रदेश - (पुं.) - दक्षिण ध्रुव के आस-पास का विशाल बर्फीला महाद्वीप जैसा स्थल क्षेत्र जहाँ पैंगुइन जैसा पक्षी बहुतायत में पाया जाता है।

अंड - (पुं.) (तत्.) - सा.अर्थ गोलाकार आकृति, अंडा। जैसे : ब्रह्मांडजीव। मादा जनन कोशिका जिसमें अगणित संख्या में गुण सूत्र होते हैं तथा पीतक झिल्ली से घिरा कम-ज्यादा मात्रा में पीतक ovum होता है।

अंडज/अंडप्रजक - (वि./पुं.) (तत्.) - अंडे से उत्पन्न होने वाले जैसे : पक्षी, सरीसृप (सर्प, छिपकली), मछली, मगरमच्‍छ आदि। oviparous तु. उद्भिज, जरायुज (पिंडज), स्वेदज।

अंडजोत्पत्‍ति [अंडज+उत्पत्‍ति] - (स्त्री.) (तत्.) - शा. अर्थ अंडे से उत्पन्न होना, अंडज प्राणी का जन्म लेना, प्रकट होना। जीव. बाह्य निषेचन वाले जंतुओं में (जैसे मेंढक) अंडावरण में भ्रूण का विकास पूर्ण होने पर बाहर निकलना (जैसे : टेडपोल का)

अंडप्रजक (= अंडज) - (वि./पुं.) (तत्.) - शा.अर्थ 1. अंडा जनने वाला, अंडा देने वाला 2. अंडे से उत्पन्न उन प्राणियों के लिए प्रयुक्‍त जो बच्चे न देकर अंडे देते हैं। टि. स्तनधारी प्राणियों mammals को छोड़कर लगभग सभी प्राणी इसी श्रेणी में आते है। तु. जरायुज।

अंड-बंड - (वि.) (तत्<अंड+अनु.बंड) - बेसिर-पैर का; भद्दा और अनुचित; ऊटपटांग; श्रृंखलाहीन।

अंडवाहिनी - (स्त्री.) (तत्.) - जीव. मानव में मादा जननांग (अंडाशय) से विकसित अंडाणु को गर्भाशय तक ले जाने वाला अंग; डिंबवाहिनी।

अंडा - (पुं.) (तद्.<अंड) - वह गोलाकार या लंब-गोलाकार कवच जिसमें पक्षी, सरीसृप, कीट, मछली आदि प्राणियों के भ्रूण विकसित होते हैं तथा परिपक्व होने के बाद कवच टूटने पर बाहर निकलते हैं। टि. इसीलिए ऐसे प्राणियों को द्विज अर्थात् ‘दो बार जन्म लेने वाला’ कहा जाता है।

अंडाकार - (वि.) (तत्.) - अंडे जैसे आकार वाला। पुं. अंडे के समान बना आकार।

अंडाणु (डिंब) - (पुं.) (तत्.) - मादा प्राणियों में अंडाशय द्वारा उत्पन्न परिपक्व जनन कोशिका।

अंडाशय - (पुं.) (तत्.) - शा. अर्थ अंड के रहने की जगह; अंड का विश्राम स्थल, प्राणि. प्राणियों में प्रमुख मादा जनन-अंग जिससे अंडाणु उत्पन्न होता है। टि. कशेरूकी प्राणियों में इससे मादा लैंगिक हार्मोन भी निकलता है। वन. जायांग का निचला स्थूल अंश जिसमें बीजांड स्थित होता है।

अंडोत्सर्ग - (पुं.) (तत्.) - जीव. स्त्री जननांग अंडाशय से विकसित अंडाणु (डिंब) का निर्मोचन।

अंत:करण - (पुं.) (तत्.) - शा.अर्थ आंतरिक कार्य करने का साधन। मनो. 1. मनुष्य की संकल्प-विकल्पात्मक और विवेकसम्मत भेद करने वाली चित्‍तवृत्‍ति। 2. पुं. सामान्य प्रयोग मन, हृदय, बुद्धि आदि।

अंत:कोण - (पुं.) (तत्.) - शा.अर्थ भीतरी कोना गणि. त्रिभुज या बहुभुज के अंदर का कोण।

अंत:पाशन - (पुं.) - शा.अर्थ भीतरी जोड़ या बाँधने की क्रिया। इंजी. परस्पर संपर्क में आने वाले दो पुर्जों, दोलित्रों के बीच की अनियमिताएँ जो एक-दूसरे में धँस जाती हैं, जिनसे घर्षण बढ़ जाता है। इसे स्नेहक grease से कम किया जा सकता है। (पर्या. अंतर्बंधन) interlinking

अंत:पुर - (पुं.) (तत्.) - भीतरी निवास; राजमहल का भीतरी भाग जहाँ रानियों और उनकी परिचारिकाओं के निवास की व्यवस्था रहती थी; जनानखाना।

अंत:प्रेरणा - (स्त्री.) (तत्.) - किसी कार्य को करने के लिए मन के भीतर से उठने वाला सहज विचार; सहज बुद्धि।

अंत:श्‍वसन - (पुं.) (तत्.) - शा.अर्थ साँस अंदर लेना या खींचना। जीव. श्‍वसन क्रिया में वायुमंडल की ऑक्सीजन के शरीर के अंदर फेफड़ों तक पहुँचने/पहुँचाए जाने की क्रिया। inspiration विलो. बहिर्श्‍वसन, दे. श्‍वसन।

अंत:संबंध - (पुं.) (तत्.) - दो या दो से अधिक वस्तुओं के बीच पाया जाने वाला परस्पर संबंध।

अंत:स्थ - (वि.) (तत्.) - 1. भीतर या बीच का 2. अंत में स्थित भाषा (पुं.) संस्कृत व्याकरण परंपरा में य र ल व ये चार वर्ण (जिनका स्थान स्वरों और व्यंजनों के बीच माना जाता है।)

अंत:स्रवण - (अ.क्रि.) (तत्.) - शा.अर्थ भीतर की ओर बहना; अंदर ही अंदर (बाहर नहीं) बहना। (पुं.) आयु. पीयूष आदि अंत:स्रावी ग्रंथियों द्वारा हार्मोनों का प्रवाह जो सीधे रुधिर प्रवाह में मिल जाता है।

अंत:स्राव विज्ञान - (पुं.) (तत्.) - जीव विज्ञान की वह शाखा जिसमें हार्मोनों के स्रवण, प्रकृति, प्रभाव आदि का अध्ययन किया जाता है। endocrinology

अंत:स्रावी ग्रंथि - (स्त्री.) (तत्.) - प्राणि. मनुष्य एवं जंतुओं की जैव (शारीरिक) क्रियाओं के नियमन के लिए रुधिर प्रवाह में हार्मोनों का स्रवण करने वाली ग्रंथि। उदा. अग्न्याशय में लैंगर हैन्स द्वीप नामक ग्रंथि जो इन्सुलिन का स्राव करती है। endocrine gland

अंत:स्रावी - (पुं.) (तत्.) - शा.अर्थ अंदर की ओर अर्थात्, भीतर बहने वाली प्राणि. (ग्रंथि के संबंध में) सीधे रुधिर प्रवाह में स्रवण करने वाली।

अंत1 - (अव्य.) (तत्.) - अंदर की ओर का, मध्य भाग में टि. हिंदी में सामान्यतया उपसर्ग के रूप में प्रयोग होता है। जैसे : अंत:करण, अंतर्मन, अंत:पुर, अंतस्तल।

अंत2 - (पुं.) (तत्.) - 1. वह स्थान जहाँ कोई वस्तु समाप्‍त होती है। पर्या. छोर, सिरा, सीमा 2. समाप्‍त होने का भाव पर्या. समाप्‍ति 3. नष्‍ट होने का भाव पर्या. नाश, मृत्यु end 4. फल, परिणाम result

अंतत: - (क्रि.वि.) (तत्.) - 1. अंत में 2. सारे उपाय कर चुकने पर 3. आखिर में। पर्या. अंततोगत्वा।

अंततोगत्वा - (अव्य.) (तत्.) - शा.अर्थ अंत में जाकर; आखिरकार, अंतत:।

अंतरंग - (अव्य.) (तत्.) - शा.अर्थ भीतर के अंग (यानी हृदय) जैसा। वि. 1. निकट का, घनिष्‍ठ, आत्मीय। जैसे : अंतरंग मित्र। 2. भीतरी। जैसे : अंतरंग विभाग।

अंतर - (पुं.) (तत्.) - 1. दो या दो से अधिक वस्तुओं, व्यक्‍तियों, विचारों, स्थानों आदि के बीच का अंतर। difference जैसे : तुम्हारे और मेरे/हमारे विचारों में भारी अंतर है। 2. परिवर्तन change जैसे : ज्यों-ज्यों उसके विचार परिपक्व होते गए, त्यों-त्यों उसके व्यवहार में अंतर आता गया। 3. उपसर्ग- दो या दो से अधिक के बीच। जैसे : अंतरराष्‍ट्रीय संबंध (कई राष्‍ट्रों के बीच स्थापित संबंध), अंतरविश्‍वविद्यालयी प्रतियोगिता (कई विश्‍वविद्यालयों के बीच हुई प्रतियोगिता)।

अंतरण - (पुं.) (तत्.) - बदलना, बदलाव, एक स्थिति से दूसरी स्थिति में परिवर्तन का भाव, एक हाथ से दूसरे हाथ में जाना या एक स्थान से दूसरे स्थान में हुआ परिवर्तन। जैसे : (पुस्तक का) हस्तांतरण, (अधिकारी का) स्थानांतरण आदि।

अंतरतम - (वि.) (तत्.) - अत्यंत निकट का; आत्मीय, अत्यंत विश्‍वस्त, जिस पर पूरा भरोसा किया जा सके। उदा. मनोहर मेरा अंतरतम मित्र है।

अंतरा - (अव्य.) (तत्.) - निकट; मध्य। पुं. (संगीत) किसी गीत के स्थायी (टेक) को छोडक़र शेष चरण जिन्हें स्थायी की अपेक्षा ऊँचे/तीव्र स्वर में गया जाता है।

अंतरात्मा - (स्त्री.) (तत्.) - पंच भौतिक शरीर के अंदर स्थित आत्मा या जीवात्मा। चेतनशक्‍ति। पर्या. 1. आत्मा, 2. अंत:करण, 3. जीवात्मा।

अंतराल - (पुं.) (तत्.) - समय के स्तर पर दो बिंदुओं के बीच की दूरी। उदा. लंबे अंतराल के बाद हम लोगों की भेंट हुई (समय का अंतराल)। तु. दूरी (स्थान का अंतराल)

अंतरिक्ष - (पुं.) (तत्.) - भू. पृथ्वी के वायुमंडल के बाहर का निर्वात स्थान। space

अंतरिक्ष यान - (पुं.) (तत्.) - अंतरिक्ष में यात्रा के लिए प्रयुक्‍त वाहन। space ship/craft

अंतरित - (वि.) (तत्.) - एक स्थिति से दूसरी में परिवर्तित, बदला हुआ। जैसे : स्थानांतरित, हस्तांतरित।

अंतरिम - (वि.) - दो कालखंडों के बीच का, मध्यवर्ती, अस्थायी/अनंतिम (व्यवस्था)। उदा. 1. पत्र का अंतरिम उत्‍तर भेजा जा चुका है। 2. आम चुनाव से पहले सरकार अपना अंतरिम बजट लोकसभा में प्रस्तुत करेगी।

अंतरीप - (पुं.) (तत्.) - भू. समुद्र के भीतर घुसा मुख्य भूमि का सँकरा भूभाग, जैसे : कुमारी अंतरीपा cape

अंतर् - (उप. ) (तत्.) - अंदर का’ या ‘भीतरी’ भाव का वाचक (उपसर्ग) जैसे : अंतर्दशा, अंतर्देशीय, अंत:वस्त्र, अंतरविश्‍वविद्यालयी प्रतियोगिता (एक ही विश्‍वविद्यालय के भीतर (आंतरिक विभागों के बीच) हुई प्रतियोगिता।

अंतर्कथा - (स्त्री.) (तत्.) - किसी मुख्य प्रसंग में संकेतित उसके भीतर की दूसरी कथा या घटना। उदा. महाभारत में कई अंतर्कथाएँ समाहित हैं।

अंतर्गत - (वि.) (तत्.) - 1. किसी के अंदर भीतर गया हुआ, छिपा हुआ या समाया हुआ। 2. किसी का अंग बनकर उसमें स्थित।

अंतर्गामी - (वि.) (तत्.) - भीतर की ओर जाने वाला।

अंतर्ग्रहण - (पुं.) (तत्.) - शा.अर्थ भीतर की ओर प्राप्‍त करना। आयु. मुख मार्ग से शरीर के अंदर भोजन ले जाने की क्रिया।

अंतर्जनन - (पुं.) (तत्.) - मादा शरीर के अंदर होने वाला भ्रूणीय परिवर्धन। एंडोटोकी विलो. बहिर्जनन। endotoky

अंतर्दृष्‍टि - (स्त्री.) (तत्.) - शा. अर्थ भीतरी दृष्‍टि, ज्ञान चक्षु। वह मानसिक शांति जिसके बल पर दूसरे व्यक्‍ति के मन की बात या भविष्‍य को जाना जा सके।

अंतर्द्वंद्व - (पुं.) (तत्.) - मन के अंदर चलने वाले दो परस्पर विराधी विचारों का संघर्ष। पर्या. तर्क-वितर्क, ऊहापोह।

अंतर्धान - (पुं.) (तत्.) - [अंत:+धान] अदृश्य या लुप्‍त हो जाने की स्थिति दिखाई पड़ना। अंतर्धान होना (दिखाई न पड़ना); आँखों के सामने से ओझल होना। टि. ‘अंतर्धान’ को ‘अंतर्ध्यान’ लिखना या बोलना अशुद्ध है। पर्या. गायब, लुप्‍त।

अंतर्धारा - (स्त्री.) (तत्.) - 1. नदी, समुद्र आदि में गहराई में बहने वाला प्रवाह जो ऊपर से नहीं दिखाई देता। 2. किसी समाज, वर्ग इत्यादि में अंदर-अंदर चलने वाले विचारों का प्रवाह जो धारणा या पूर्वाग्रह के रूप में कभी-कभी प्रकट हो जाते हैं। under current

अंतर्निहित - (वि.) (तत्.) - किसी के अंदर स्थायी रूप से अथवा उसकी विशेषता के रूप में स्थित। जैसे : हिंदी वर्णमाला के प्रत्येक व्यंजन में ‘अ’ स्वर अंतर्निहित रहता है। inherent

अंतर्मुखी - (वि.) (तत्.) - शा.अर्थ जिसका मुख अपने अंदर की ओर ही खुले। पुं. (ऐसा व्यक्‍ति) जो मुख्य रूप से अपने ही विचारों और भावनाओं में खोया रहे। वि. बहिर्मुखी। introvert

अंतर्यामी - (वि.) (तत्.) - शा.अर्थ जिसने अपने और (अन्य सभी के भी) मन पर नियंत्रण कर रखा हो। अर्थात् सभी के मन की बात जानने वाला। पुं. ईश्‍वर।

अंतर्वस्तु - (स्त्री.) (तत्.) - शा.अर्थ भीतर रखी/स्थित वस्तु। किसी पुस्तक में वर्णित मुख्य विषय। पर्या. विषय-वस्तु।

अंतर्वस्त्र - (पु.) (तत्.) - भीतर पहनने का कपड़ा/कपड़े under garments

अंतर्विरोध - (पुं.) (तत्.) - शा.अर्थ भीतरी विरोध। विक. अर्थ दो कथनों के बीच परस्पर विचारात्मक विरोध।

अंतर्विवाह - (पुं.) (तत्.) - समा. अपने गोत्र को छोड़कर। एक ही वर्ग, समाज या जाति में पूर्व निर्धारित तत्कालीन स्थानीय नियमों के अनुसार किया गया विवाह। तु. बहिर्विवाह।

अंतर्विष्‍ट - (वि.) (तत्.) - एक के दूसरे में सम्मिलित होने या किए जाने की स्थिति; मिलाया हुआ, समाया हुआ। उदा. आपने अब जो कहा, वह तो आपकी पहले वाली बात में अंतर्विष्‍ट है ही।

अंतर्वृत्‍त - (पुं.) (तत्.) - वह वृत्‍त जो त्रिभुज की तीनों भुजाओं को स्पर्श करता है और पूर्ण रूप से त्रिभुज के अंदर होता है। 2. वृत्‍त के अंदर बना दूसरा वृत्‍त। incircle

अंतर्वेद - (पुं.) (तत्.) - वह क्षेत्र जो दो नदियों के बीच स्थित है। दोआबा। जैसे : उत्‍तर प्रदेश का फतेहपुर जिला अंतर्वेद में है, क्योंकि यह गंगा और यमुना नदियों के बीच में है।

अंतर्वेदना - (स्त्री.) (तत्.) - अंत:करण/मन में महसूस किया जा रहा कष्‍ट, मन की व्यथा।

अंतर्व्यथा - (स्त्री.) (तत्.) - मन में अनुभव की जाने वाली कोई पीड़ा या हृदय की पीड़ा जिसे व्यक्‍त करना कठिन हो। पर्या. अंतर्वेदना उदा : तुम किस अंतर्व्यथा का ताप झेलते निसदिन।

अंत-व्यापी - (वि.) (तत्.) - सभी में व्याप्‍त, सभी में समाया हुआ।

अंतसंबंध - (पुं.) (तत्.) - दो या दो से अधिक इकाइयों के बीच विकसित परस्पर संबंध।

अंतस्तल - (पुं.) (तत्.) - हृदय या मन की गहराई।

अंतस्थ - (वि.) - दे. अंत:स्थ

अंतहीन - (वि.) (तत्.) - अंत से रहित, जिसका अंत न हो, असीम।

अंतिम - (वि.) (तत्.) - क्रमानुसार सबसे पीछे या बाद का पर्या. आखिरी।

अंतिम क्रिया - (स्त्री.) (तत्.) - शरीर छूटने के बाद की संस्कार विधि।

अंतेवासी - (पुं.) (तत्.) - (गुरुकुल परंपरा में) गुरु के पास रहकर शिक्षा प्राप्‍त करने वाला, शिष्य inmate 2. किसी के साथ रहकर काम सीखने वाला, प्रशिक्षु। apprenticen

अंत्यज - (वि./पुं.) (तत्.) - (वर्णव्यवस्था के सोपान क्रम के) अंतिम स्तर में जन्मा (व्यक्‍ति)। जाति प्रथा के अंतर्गत ‘शूद्र’ कहा जाने वाला चौथा वर्ण, अछूत; (आधुनिक शब्दावली में) दलित (वर्ग)।

अंत्याक्षरी - (वि.) (तत्.) - अंतिम अक्षर स्त्री. अंतिम अक्षर से शुरू होने वाली मनोरंजक बौद्धिक प्रतियोगिता जिसमें एक दल द्वारा सुनाए गए पद्य के अंतिम अक्षर को आधार बनाकर दूसरा दल नवीन पद्य सुनाता है और पुनरुक्‍ति रहित। यही क्रम तब तक चलता रहता है जब तक कोई दल असफल न हो जाए।

अंत्येष्‍टि - (स्त्री.) (तत्.) - व्यक्‍ति की मृत्यु के पश्‍चात् किए जाने वाले धार्मिक कर्मकांड, पर्या. अंतिम संस्कार, अंत्यकर्म।

अंदर - (अव्य.) (फा.) - भीतर, में पुं. (फा.) भीतरी भाग उदा. संदूक के अंदर से कपड़े निकाले।

अंदरूनी - (वि.) (फा.) - भीतर का, अंदर का, भीतरी।

अंदाज़ - (पुं.) (फा.) - 1. अनुमान, अटकल, 2. ढंग, तरीका 3. हाव-भाव, 4. कूत या नाप-जोख। उदा. 1. …..’गालिब का है अंदाज़े बयाँ और’ 2. शर्माजी के बोलने का अंदाज़ सबसे निराला है।

अंदाज़न - (क्रि.वि.) (फा.) - अंदाज से, अनुमान से, अनुमानत:। उदा. उसने दाल में अंदाज़ से नमक डाल दिया।

अंदाज़ा - (पुं.) (देश.) - अंदाज़ उदा. चुनाव के परिणाम के बारे में उसका अंदाज़ा सही निकला।

अंदेशा - (पुं.) (फा.) - संभावित दुष्परिणाम का भय, आशंका, संशय, भय, शुबहा, चिंता। उदा. काजी जी दुबले क्यों? – शहर के अंदेशे से।

अंध बिंदु - (पुं.) (तत्.) - प्राणि. कशेरू की प्राणियों की आँख में प्रकाश के प्रति असंवेदी भाग जहाँ पर दृक् तंत्रिका दृष्‍टि का पटल (रेटिना) प्रवेश करती है। blind spot

अंध - (वि.) - अंधकार/अँधेरे से संबंधित; अंधों (नेत्रहीनों) का जैसे : अंध-विद्यालय ला.अर्थ अज्ञानी, मूर्ख, बिना सोचे-समझे किसी के कथनानुसार किया जाने वाला जैसे : अंधानुकरण, अंधविश्‍वास, अंधश्रद्धा।

अंध विश्‍वास - (पुं.) (तत्.) - शा.अर्थ अंधों की तरह विश्‍वास रखना। सा.अर्थ तर्क की दृष्‍टि से आधारहीन बातों को मानते रहना। जैसे : ‘उसने छींक दिया है। थोड़ी देर रुक जाओ।’ यह अंध-विश्‍वास नहीं तो क्या है? तु. अंध श्रद्धा

अंधकार - (पु.) (तत्.) - देखने में असमर्थ कर देने वाला। सा.अर्थ अंधा कर देने जैसा, अँधेरा, प्रकाश का न होना। ला.अर्थ ज्ञान (रूपी प्रकाश) का अभाव, अज्ञान।

अंधड़ - (पुं.) - धूल भरी आँधी (जिसमें कुछ भी साफ़-साफ़ न दिखाई दे)। शा.अर्थ अंधा कर देने जैसा (वातावरण)।

अंधमहासागर - (पुं.) (तत्.) - अटलांटिक ओशन (अतलांत महासागर) के लिए प्रयुक्‍त एक पर्याय जो मोटे तौर पर यूरोप और अफ्रीका के पश्‍चिमी तट से लेकर उत्‍तरी अमेरिका के पूर्वी तट तक फैला है। पर्या. अतलांत महासागर atlantic ocean

अंधश्रद्धा - (स्त्री.) (तत्.) - शा.अर्थ अंधों की तरह श्रद्धा रखना। सा.अर्थ स्वविवेक रहित यानी बिना सोच-विचार किए अपने इष्‍ट के प्रति पूज्य भाव रखते हुए उसका पूर्ण विश्‍वास करना।

अंधा - (वि.) (तत्.) - देखने की शक्‍ति से रहित, देखने में असमर्थ, दृष्‍टिहीन, नेत्रहीन।

अंधा-धुंध - (वि./क्रि.वि.) - शा.अर्थ धुंध में अंधों की तरह बिना कुछ भी सोचे-समझे हुए, बहुत तेज़ी से, विवेकहीन रीति से।

अंधानुकरण - (पुं.) (तत्.) - बिना सोचे-समझे किसी की नकल मात्र करना या उसके कहे अनुसार आचरण करना, भेड़चाल।

अंधेर - (पुं.) (तद्.< अंधकार) - 1. शासन/प्रशासन की वह स्थिति जहाँ सोच-विचार या न्याय-अन्याय को स्थान न हो। 2. बहुत अधिक अव्यवस्था या कुप्रबंधन।

अंबर - (पुं.) (तत्.) - 1. आकाश, असमान। 2. वस्त्र, परिधान, पहनने का कपड़ा।

अंबा - (स्त्री.) (तत्.) - 1. माँ, माता। 2. गौरी, पार्वती।

अंबार - (पुं.) (फा.) - ढेर, समूह, राशि। जैसे : फलों या वस्त्रों का अंबार।

अंबु - (पुं.) (तत्.) - जल, पानी वारि, नीर।

अंबुज - (पुं.) (तत्.) - मूल अर्थ जल में जन्म लेने वाला सा.अर्थ -कमल दे.

अंबुधि - (पुं.) (तत्.) - शा.अर्थ जल का भंडार या आगार, जल को धारण करने वाला। पर्या. सागर, समुद्र।

अंव्य - (वि.) (तत्.) - सा.अर्थ किसी भी वस्तु, वर्ण आदि के उसकी सीमा में होने की स्थिति। जैसे : ‘स्वागत’ शब्द में अंत्य अक्षर ‘त’ है।

अंश - (पुं.) (तत्.) - सा.अर्थ भाग, हिस्सा। 1. गणि. भिन्न संख्या में पंक्‍ति के ऊपर का अंक, भाज्य संख्या, वह संख्या जिसका भाग करना है। 2. लेख का उद्भूत किया जाने वाला अंश passage 3. वाणि. कंपनी की संपूर्ण पूँजी का व्यक्‍तिश: भाग share 4. भू. वृत्‍त की परिधि का 360 वाँ भाग degree 5. खगों. चंद्रमा की एक कला, सोलहवाँ भाग 6 आयु. कंधा।

अंशकालिक - (वि.) (तत्.) - थोड़े समय के लिए होने वाला, कुछ काम के लिए किया जाने वाला part time जैसे : अंशकालिक कर्मचारी विलो. पूर्णकालिक

अंशु - (स्त्री.) (तत्.) - सूर्य की किरणें।

अंशुमाली - (पुं.) (तत्.) - शा.अर्थ किरणों की माला तैयार करने वाला, किरणों का संग्रह। पर्या. सूर्य।

अँखिया - (स्त्री.) (बहु. [<आँख < तद्. सं. अक्षि]) - आँखे बहु. वह इंद्रिय जिससे प्राणियों को रूप, रंग तथा आकार का ज्ञान होता है। पर्या. नेत्र, नयन, दृष्‍टि। उदा. अँखिया हरिदरसन को प्यासी (मीरा)। दे. आँख।

अँखुआ - (पुं.) (तद्. < अंकुर) - बीज के अंकुरित होने की प्रक्रिया में प्राथमिक लक्षण।

अँगड़ाई - (स्त्री.) (तद्. > अंगगेटिका) - शरीर की स्वाभाविक संरचना में कृत्रिम रूप से माँसपेशियों में खिंचाव पैदा करने की क्षणिक क्रिया जो कदाचित् आलस्य अथवा थकान से शरीर को चैतन्यावस्था में लाने हेतु बाँहों और/या टाँगों को फैलाकर प्रकट होती है।

अँगिया - (स्त्री.) (तद्. > अंगिका) - शरीर के कटि भाग से ऊपरी हिस्से में पहना जाने वाला महिलाओं का एक परिधान; चोली, कंचुकी।

अँगीठी - (स्त्री.) (तद्. > अग्निष्‍ठिका) - (मुख्यत: खाना पकाने और गौणत: शीत ऋतु में शरीर को गर्मी पहुँचाने के लिए) आग जलाने का मिट्टी या लोहे से बना पात्र।

अँगूठा छाप - (वि.) (तद्.) - (व्‍यक्‍ति) जो हस्ताक्षर के स्थान पर अँगूठे की छाप लगाता हो, अनपढ़।

अँगूठा - (पुं.) (तद्. > अंगुष्‍ठ) - मनुष्य के हाथ और पैर की उॅगलियों में से किनारे वाला वह अपेक्षाकृत कम लंबा पर अधिक मोटा अंग जो शेष चारों अंगुलियों की तुलना में अधिक सक्रिय रहता है। पर्या. अंगुष्‍ठ तु. अंगुलि, उँगली मुहा. अँगूठा चूसना – अबोध शिशु जैसी (बचकानी) हरकतें करना उदा. बेटे! अब तुम बड़े हो गए हो। अपनी अँगूठा चूसने वाली हरकतें छोड़ो।

अँगूठी - (स्त्री.) (तद्.) - अंगुली में पहना जाने वाला गोलाकार आभूषण, मुंदरी।

अँगोछा - (पुं.) (तद्.) - पानी से गीले या पसीने से तर शरीर को पोंछने के काम आने वाला वस्त्र; गमछा, तौलिया।

अँटना - (देश.) - 1. समाना उदा. इस बरतन में कितना पानी अँट सकता है? कितना पानी समा सकता है? भरा जा सकता है? 2. सन जाना, भर जाना उदा. सारा जंगल धूल से अँट गया।

अँतड़ी - (स्त्री.) (तद्.<आंत्र) - आँत, प्राणियों के आमाशय के निचले भाग से जुड़ा लंबा नलिका-तंत्र जिसमें पाचन और अवशोषण क्रिया के बाद मलावशेष गुदा द्वार से होकर बाहर निकल जाता है। टि. आँत में जुड़ा- ड़ी प्रत्यय अवमाननासूचक और क्षुद्रताबोधक अर्थ का वाचक है।

अँधेरा/अँधियारा - (तद्.<अंधकार ) - पुं. अंधकार, प्रकाश का सर्वथा अभाव विलो. प्रकाश रोशनी।

अकड़ - (स्त्री.) (देश.) - 1. ऐंठने की क्रिया अथवा भाव, ऐंठ, तनाव, हेकड़ी 2. घमंड, अभिमान, शेखी के प्रदर्शन का भाव।

अकथ - (वि.) - दे. अकथनीय।

अकथनीय - (वि.) (तत्.) - 1. जिसका कथन न किया जा सके, जिसका वर्णन करना कठिन हो। 2. जो कहने के योग्य न हो। विलो. कथनीय।

अकथ्य - (वि.) - कहने के योग्य न होना। विलो. कथ्य।

अक बक वव - (पुं.) (देश.) - 1. आवेशवश या स्वभावश की जाने वाली संबद्ध बातें। निरर्थक बात। 2. अनर्गल प्रलाप। जैसे : बहुत हो गया अब बक-बक बंद करो। वि. चकित, भौंचक्का जैसे : वह सहसा तुम्हें देखकर अक-बक रह गया।

अकबकाना - (अ.क्रि.) (देश. – अकबक ) - 1. आश्‍चर्यचकित होना, भौंचक्का रह जाना। 2. निरर्थक बातें करना। 3. घबराना। उदा. 1. वह तुम्हारा वैभव/उन्नति देखकर अकबका गया। 2. वह मार्ग में सहसा तीव्र गति से आते वाहन को देखकर अकबका गया। 3. अधिक अकबकाना ठीक नहीं।

अकर्मक - (वि.) (तत्.) - व्याकरण (क्रिया का वह प्रकार) जिसमें कर्म नहीं होता। जैसे : सोना, जागना, हँसना इत्यादि intransitive

अकर्मण्य - (वि.) (तत्.) - कार्य के योग्य, कर्मठ। (व्यक्‍ति) जो स्वभाव से ही काम में रूचि न लेता हो। जैसे : अकर्मण्य व्यक्‍ति। पर्या. निकम्मा, आलसी। जो काम न करता हो। पर्या. निठल्ला।

अकसर/अक्सर - (क्रि.वि.) (अर.) - प्राय:, बहुधा, अधिकतर। अमूमन (उमूमन) उदा. मैं उन्हें अच्छी तरह से जानता हूँ क्योंकि वे अक्सर हमारे घर आते रहते हैं।

अकस्मात् - (क्रि.वि.) (तत्.) - 1. यकायक, एकाएक, आकस्मिक रूप में, एकदम से, अचानक, सहसा। 2. बिना किसी कारण के, अकारण, संयोगवश ही। उदा. उसके अकस्मात् घर आ जाने पर मैं भौचक्का रह गया।

अकाट्य - (वि.) - (दे. काटना) 1. जिसका काट या खंडन न किया जा सके। जैसे : अकाट्य तर्क। टि. हिंदी की ‘काट’ धातु से संस्कृत पद्धति पर बना। ‘काट्य’ यानी ‘जिसे काटा जा सके’ और फिर उसमें नकारात्मक ‘अ’ उपसर्ग जोड़कर बना शब्द।

अकादमिक - (वि.) (अं.) - 1. अकादमी (संस्था) से संबंधित 2. उच्चतर शिक्षा में साहित्य, विज्ञान, गणित, भाषा आदि विषयों के ज्ञान से संबंधित।

अकादमी/अकादेम - (स्त्री.) (अं.) - ऐकडमी का अनूकूलित रूप संस्था जिसका उद्देश्य साहित्य, विज्ञान, कला आदि का प्रचार-प्रसार और विकास करना हो। जैसे : साहित्य अकादमी, संगीत नाटक अकादमी।

अकाम - (वि.) - जिसके लिए कोई लालसा या इच्छा नही हो; कामनारहित, इच्छारहित उदासीन, निष्काम। क्रि. वि. बिना काम के, निष्प्रयोजन, व्यर्थ, योंही।

अकारण - (अव्य.) (तत्.) - बिना किसी कारण के; व्‍यर्थ, यों ही; संयोगवश बिना किसी मतलब के; बेमतलब। उदा. अकारण ही मेरे पीछे पड़ा हुआ है। वि. हेतु या कारणरहित, आपसे आप होने वाला। निराधार। जैसे : अकारण हड़ताल।

अकारांत- - (वि.) - 1. जिसका अंतिम वर्ण ‘अ’ हो। 2. जिसके अंतिम वर्ण में ‘अ’ स्वर उच्चरित हो, यथा-‘राम’, ‘कमल’, ‘बालक’ आदि। टि. उपर्युक्‍त शब्दों के संस्कृत लेखन और उच्चरण में-अर्थात दोनों ही रूपों में ‘अ’ है; जबकि हिंदी में ये शब्द केवल लेखन के स्तर पर ही अकारांत (स्वरांत) हैं। उच्चारण के स्तर पर ये सभी व्यंजनांत् ही हैं।

अकारादि क्रम - (पु.) - शा.अर्थ ‘अकार’ जिसके आदि में हो वह क्रम अर्थात देवनागरी वर्णमाला के अनुसार ‘अ’ से प्रारंभ होकर ‘ह’ तक के वर्णों का क्रम, शब्द-क्रम। यही क्रम शब्दकोशों में मिलता है। alphabetical order

अकार्बनिक - (वि.) (तत्) - कार्बन के जटिल यौगिकों को छोडक़र अन्य सभी तत्वों के यौगिकों से संबंधित, कार्बनिक से भिन्न, जैसे : अकार्बनिक रसायन।

अकाल - (पुं.) (तत्.) - 1. ऐसा समय जो सामान्य समय जैसा न हो; वह वर्ष या समय जब अन्न न मिलता या पैदा न हुआ हो। दुर्भिक्ष- जैसे : आजकल अकाल की स्थिति है। 2. कालातीत, काल के परे, जो कभी मिटता या नष्‍ट न होता हो। जैसे : अकाल पुरुष। 3. असामयिक, जैसे : अकाल मृत्यु।

अकाल मृत्यु - (स्त्री.) (तत्.) - नियत समय से पहले या कम आयु में मृत्यु। पर्या. असामयिक मृत्यु। तु. आकस्मिक मृत्यु।

अकालवृष्‍टि - (स्त्री.) (तत्.) - यथासमय से पहले या बाद में होने वाली वर्षा, जो हानिकारक होती है, या जिसका कोई लाभ नहीं होता है।

अकिंचन - (वि.) (तत्.) - शा.अर्थ जिसे जीवन निर्वाह के लिए अनिवार्य आवश्यकताएँ (जैसे : रोटी, कपड़ा, मकान) भी पर्याप्‍त मात्रा में उपलब्ध न हो। जिसके पास कुछ भी न हो अर्थात बहुत ही गरीब, अत्यंत दीन; निर्धन, दरिद्र, बहुत ही मामूली या बहुत साधारण।

अकुलाना - (अ.क्रि. ) (तद्<आकुलन) - किसी अभाव की पूर्ति न हो पाने के कारण मन मे होने वाली बेचैनी।

अकुलाहट - (स्त्री.) (तद्+आहट हि. प्रत्यय) - पर्या. आकुलता, व्याकुलता, बेचैनी। दे. अकुलाना।

अकुलीन - (वि.) (तत्.) - जो किसी कुलीन अर्थात उच्च कुल या वंश में पैदा न हुआ हो; नीच कुल में उत्पन्न।

अकुशल - (वि.) (तत्.) - 1. जो कुशल न हो, जो सौंपे गए कार्य को अपेक्षित दक्षता से न करे। 2. जिसे अपने व्यवसाय का तकनीक प्रशिक्षण न मिला हो। जैसे : यह संस्था अकुशल व्यक्‍तियों को नहीं रखती है। पर्या. अनाड़ी जैसे : अकुशल कारीगर या मज़दूर।

अकुशलता - (स्त्री.) (तत्.) - कुशल या दक्ष न होने का भाव; अनाड़ीपन। दे. अकुशल।

अकृत्रिम - (वि.) (तत्.) - जो बनावटी न हो; असली, स्वाभाविक। जैसे : कृत्रिम जीवन-यापन।

अकेला - (वि.) (तद्.) - 1. जो बिना किसी संगी-साथी के हो जिसके साथ कोई न हो, एकाकी। 2. जो अपनी तरह का एक ही हो, जिसके जैसा कोई और न हो, बेजोड़, अद्वितीय। अद्वितीय, बेजोड़।

अकेले - (क्रि.वि.) (तद्.<एकल) - बिना किसी का साथ लिए। टि. अधिक बल देने के लिए ‘अकेले-अकेले’ प्रयोग किया जाता है।

अकेले-दुकेले - (क्रि.वि.) - (दे. अकेले) अकेले या किसी अन्य को साथ लेकर।

अक्खड़ - (वि.) (हि.) तद्.-आस्कंदक - 1. जो दूसरे की बात न मानते हुए अपनी ही बात पर अड़ा रहे। 2. बिना धीरज रखे लड़ पड़ने वाला उजड्ड, उद्धृत, झगड़ालू,। 3. मूर्ख, जड़, बिना विचारे दो टूक कह देने वाला। अशिष्‍ट, उग्र, निडर आदि।

अक्खड़पन - (पु.) (तद्.) - स्वभाव से अक्खड़ होने का भाव। दे. अक्खड़।

अक्लमंद - (वि.) (अ.+फा.) - चतुर, होशियार, बुद्धिमान, समझदार।

अक्ल - (स्त्री.) (अर.) - बुद्धि‍, समझ, सूझ-बूझ मुहा. अक्ल का अंधा-सामान्य ज्ञान या समझदारी से रहित (व्यक्‍ति), मूर्ख। अक्ल का दुश्मन-बहुत बड़ा मूर्ख, बेवकूफ। अक्ल का मारा-जिसमें समझदारी का पूरी तरह से अभाव हो। अक्ल के पीछे लट्ठ लिए फिरना हर समय बेवकूफी का काम करना। अक्ल का घास चरने जाना-समझदारी की बहुत अधिक कमी। अक्ल पर पत्थर/परदा पड़ना-सामान्य समझदारी होने पर भी आवश्यकता पड़ने पर उसका उपयोग न करना। अक्ल के घोड़े दौड़ाना-अनेक प्रकार की बौद्धिक कल्पनाएँ करते रहना। अक्ल ठिकाने लगा देना होश में ला देना (मारपीट या अन्य तरीके से) अक्ल दौड़ना’/भिड़ना/लड़ाना-सोच-विचार करना, गौर करना। अक्ल पर पर्दा पड़ना- कुछ भी समझ न पाना, अक्ल मारी जाना। अक्ल चकराना-हैरान अथवा चकित होना। अक्ल गुम होना-कुछ समझ में न आना। अक्ल लड़ाना-कुछ उपाय सोचना। अक्ल के तोते उड़ जाना-होश ठिकाने न रहना। अक्ल से बाहर होना दूर होना-कुछ समझ न सकना।

अक्लांत - (वि.) (तत्.) - जो थका न हो, जो परेशानी/थकावट/क्लांति महसूस न करे, क्लांति-रहित।

अक्ष - (पुं.) (तत्.) - 1. जुआ चौसर आदि खेलने का पासा। 2. इंजी. पहिये का धुरा (लौहदंड) जिसके सहारे पहिया घूमता है exil 3. भूगो. वे कल्पित रेखाएँ जो भूगोलक पर भूमध्य रेखा से समान अंतर पर पड़ी हुई दिखाई जाती है और स्थानगत दूरी मापने के लिए उपयोग में आता है। globe

अक्षत - (वि.) (तत्) - शा.अर्थ जो क्षत या क्षतिग्रस्त न हुआ हो; जिसके टुकड़े न हुए हों, जिसे खोट न लगी हो; समूचा पूर्ण, अखंडित, जिसे चोट न लगी हो; जो घायल न हुआ हो। पुं. बिना टूटा या कुटा हुआ चावल, जौ, धान्य। विलो.- क्षत।

अक्षम - (वि.) (तत्.) - 1. कार्य करने की क्षमता न रखने वाला। 2. जो सौंपा गया कार्य करने के योग्य न माना जाए। जिसमें क्षमता अर्थात शक्‍ति की कमी हो, शक्‍तिहीन, क्षमताहीन, असमर्थ, अयोग्य। विलो. क्षम (सक्षम नहीं) disabled, iucompetent

अक्षमता - (स्त्री.) (तत्.) - अक्षम होने की अवस्था, असमर्थता। दे. अक्षम।

अक्षम्य - (वि.) (तत्.) - जिसे क्षमा न किया जा सके। जैसे : अक्षम्य अपराध। विलो. क्षम्य। क्षम्य- वि. (तत्.) जिसे क्षमा किया जा सके। जैसे-तुम्हारे अब तक के अपराध क्षमा है।

अक्षम्य - (वि.) (तत्.) - क्षमा न करने योग्य, जिसे क्षमा न किया जा सके। जैसे : अक्षम्य अपराध।

अक्षय - (वि.) (तत्.) - शा.अर्थ जिसका क्षय न हुआ हो; सदा एक समान बना रहने वाला; अविनाशी।

अक्षय पात्र - (पुं.) (तत्.) - ऐसा पात्र जिसमें पकाई गई भोजन सामग्री कभी समाप्‍त नहीं होती। टि. वनवास के समय द्रौपदी को सूर्यदेव से अक्षयपात्र मिला था। जब तक द्रौपदी भोजन नहीं कर लेती थीं, तब तक उसमें से भोजन समाप्‍त नहीं होता था।

अक्षर - (पुं.) (तत्.) - शा.अर्थ जिसका क्षरण यानी नाश न हो। भाषा. 1. वह ध्वनि या ध्वनि समूह जिसका उच्चारण एक साँस में होता है, अक्षरी जैसे : मैं, हाँ, आप। 2. वर्णमाला का कोई स्वर या व्यंजन वर्ण letter, phabet 3. अविनाशी परमात्मा, आत्मा, ब्रह् म, नित्य, स्थिर।

अक्षर क्रम - (पुं.) (तत्.) - वर्णमालाओं के अक्षरों (वर्णों) का परंपरागत पूर्व-निर्धारित क्रम। जैसे : देवनागरी वर्णमाला में अ से ह तक। रोमन में a से z तक। अरबी में अलिफ से हे तक। aliphabatical order शब्दकोश को देखने के लिए अक्षर-क्रम जानना जरूरी है।

अक्षरमाला - (स्त्री.) (तत्.) - अक्षरों की माला; सभी वर्णों की क्रमबद्ध सूची। वर्णमाला

अक्षरश: - (क्रि.वि.) (तत्.) - शस् (वीप्सा वाले अर्थ में) एक-एक अक्षर करके; ज्यों का त्यों, पूर्णत:। उदा. आपका कथन अक्षरश: सत्य है।

अक्षरारंभ - (पुं.) (तत्.) - विद्यारंभ की वह पहली अवस्था जब शिशु का हाथ पकडक़र उसे पट्टी पर अक्षरज्ञान कराया जाता है। (पढ़ाना शुरू करना)

अक्षरी - (स्त्री.) (तत्.) - वर्तनी, अक्षरों का क्रमबद्ध रूप में उच्चारण करना या लिखना। उदा. बच्चों को अक्षरी ज्ञान देना जरूरी है।

अक्षरेखा - (स्त्री.) (तत्.) - वह सीधी रेखा जो किसी गोल पदार्थ के केंद्र से दोनों पृष्‍ठों पर सीधी गिरती है, धुरी की रेखा।

अक्षांश [अक्ष+अंश] - (तत्) (पुं.) - भू. भूमंडल (ग्लोब) के मानचित्र (नक्शे) पर भूमध्य रेखा (विषुवत् वृत्‍त) को 0o का अंश मानते हुए, उसके उत्‍तर और दक्षिण में समान कोणीय दूरी पर खिंची हुई दिखने वाली (पर वस्तुत: काल्पनिक) रेखाएँ। latitutes

अक्षुण्ण [अ+क्षुण्ण] - (वि.) (तत्) - जो पिसा/कुचला/कुटा हुआ न हो, जो कूटा-पीटा न गया हो, न टूटा हुआ, अखंड, पूरा समूचा। जैसे : अक्षुण्ण कीर्ति महापुरुष।

अक्षौहिणी - (स्त्री.) (तत्.) - प्राचीन भारतीय सैन्यविज्ञान के अनुसार वह चतुरंगिणी सेना जिसमें हाथी, घोड़े, रथ और पैदल सैनिक होते थे। टि. 1. महाभारत के अनुसार ऐसी सेना जिसमें 109350 पैदल, 65610 घोड़े, 21870 रथ और 21870 हाथी होते थे। 2. पांडवों के पक्ष में सात और कौरवों के पक्ष में 11 अक्षौहिणी सेना थी।

अक्सर - - दे. अकसर

अखंड - (वि.) (तत्.) - 1. जिसके खंड या टुकड़े न हुए हों, अटूट, पूरा। unbroken – undevided जैसे : अखंड धारा, अखंड भारत। जैसे : आशीर्वाद-‘अखंड सौभाग्यवती भव’। 2. जिसके (पाठ के) बीच में विश्राम न लिया जाए। जैसे अखंड पाठ non stop।

अखंडता - (स्त्री.) (तत्.) - अखंड होने की स्‍थिति, स्‍वरूप अवस्था या भाव, संपूर्णता। उदा. देश की अखंडता के लिए गांधीजी निरंतर प्रयत्‍नशील रहे।

अखंडनीय - (वि.) (तत्.) - 1. (वस्तु) जिसके एकाधिक खंड न किए जा सकें, अविभाज्य। unbreakable 2. (बात या तर्क) जिसका खंडन न किया जा सके, जिसकी काट न हो। irrefutable जैसे : अखंडनीय तर्क।

अखंडित - (वि.) (तत्.) - 1. जो खंडित या टूटा-फूटा न हो। unbreakalee 2. जिसका विभाजन न हुआ हो। unidervided

अख़बार - (पुं.) (अर. < अख़्बार) - ख़बर’ का बहुवचन। आमतौर पर दैनिक (और साप्‍ताहिक भी) प्रकाशन जिसमें स्थानीय और सार्वदेशिक समाचार हों, समाचार पत्र। news paper

अखबारनवीस - (पुं.) (अर.+फा.) - समाचार-पत्र में संपादन कार्य से संबंधित कोई भी विशेषज्ञ। पर्या. पत्रकार। journalist

अखबारनवीसी - (स्त्री.) (अर.+फा.) - पत्र-पत्रिका का संपादन कार्य। पर्या. पत्रकारिता। journalism

अखरना - (अ.क्रि. ) (तद् आ+स्खल ) - अन्य व्यक्‍ति के प्रतिकूल आचरण का मन को बुरा लगना/अच्छा न लगना। उदा. हड़ताल की वजह से घर तक पैदल चलना मुझे अखर गया।

अखरोट - (पुं.) (तद्. < अक्षोट) - एक फलदार ऊँचा पेड़ और उसका फल जो कठोर झुर्रीदार छिलके वाला होता है तथा जिसकी गिरी तेलीय और कोमल होती है और खाई जाती है। टि. सूखे मेवा dryfruit के रूप में इसकी गिनती होती है। walnut

अखरौटी - (स्त्री.) (तद्.<अक्षर) - 1. वर्णमाला, 2. लिखावट अथवा लिखने का तरीका, 3. वर्णमाला के अक्षरों के क्रम से प्रयुक्‍त वर्णों से प्रारंभ होने वाले पदों की कविता।

अखाड़ा - (पुं.) (तद्. < अक्षवाट ) - 1. कुश्ती लड़ने की जगह। 2. कसरत या व्यायाम करने का स्थान। 3. संन्यासियों, साधुओं की जमात, मंडली; उनके रहने का स्थान। नृत्यशाला, रंगशाला।

अखाड़िया - (वि.) - दे. अखाड़ेबाज़

अखाड़ेबाज - (वि.) (तद्.+फा.) - 1. कुश्ती लड़ने का शौकीन। master wrestler 2. ला.अर्थ (i) अपने-अपने गुट की संघर्षशील गुटबाजी के माहिर, शातिर; (ii) किसी भी प्रकार के दाँव-पेचों का व्यावहारिक ज्ञान रखने वाला।

अखाद्य - (वि.) (तत्.) - जो खाने लायक न हो; जिसे खाना उचित न हो। उदा. शाकाहारियों के लिए माँस अखाद्य भोजन है।

अख्तियार - (पुं.) (अ. < इख़्तियार ) - 1. अपने पद, मर्यादा अथवा योग्यता आदि के कारण प्राप्‍त शक्‍ति। Authority 2. उदा. लंबी छुट्टी मंजूर करना मेरे अख़्तियार से बाहर है। हक, प्रभुत्व, 3. अधिकार, मालिकीयत, 4. कर्म विशेष की पात्रता।

अगड़ा वर्ग - (पुं.) (अग्रवर्ती + तत्) - समा. सामाजिक सतर पर (न कि आर्थिक स्तर पर) विभाजित (हिंदू) जातियों का वह वर्ग जो शताब्दियों से ऊँचे पायदान पर आसीन रहा था। पर्या. अगड़ी जातियाँ farward classes/castes टि. ‘पिछड़ा वर्ग’ की अनुकृति पर निर्मित नवीन पदबंध। विलो. पिछड़ा वर्ग।

अगणनीय [अ+गणनीय] - (वि.) (तत्.) - जिसे गिना न जा सके। पर्या. असंख्य। uncountable उदा. ‘रेत’ शब्द अगणनीय संज्ञा का उदाहरण है।

अगणित - (वि.) (तत्.) - जिसकी गिनती न हुई हो अनगिनत, बहुत अधिक। countless उदा. पुस्तक मेले में रविवार को अगणित संख्या में दर्शक आए।

अगण्य - (वि.) (तत्.) - 1. जिसकी गिनती करना संभव न हो। पर्या. अगणित, असंख्य। 2. जो किसी गिनती में न हो। पर्या. तुच्छ।

अगबग होना - - दे. अकबकाना।

अगम - (वि.) (तत्.) - 1. जो गमन न करे अथवा जो चलने वाला न हो। 2. जहाँ तक पहुँचा न जा सके। 3. जो बुद्धि की पहुँच के बाहर हो, जो समझ के परे हो। 4. जिसकी थाह न लग सके, अथाह। 5. कठिन, 6. विकट।

अगम्य [अ+गम्य] - (वि.) (तत्.) - 1. जिसके पास पहुँचा न जा सके, दुर्गम। 2. जहाँ तक पहुँचना या जाना बहुत कठिन हो। 3. जिसे प्राप्‍त न किया जा सके, अप्राप्य।

अगर - (अव्य.) (फा.) - यदि, जो।

अगरबत्‍ती - (स्त्री.) (तद्. < अगरुवर्त्‍तिका) - सुगंधित द्रव्य पदार्थ से सनी और प्राय: पूजा के लिए जलाने की बत्‍ती।

अगर-मगर - (स्त्री.) (फा.) - 1. आनाकानी, टालमटोल 2. तर्क-वितर्क 3. दुविधा, असमंजस। उदा. उस ऊधमी बालक के विद्यालय में प्रवेश के संबंध में वहाँ के प्राचार्य अभी तो अगर-मगर कर रहे थे।

अगल-बगल - (क्रि.वि.) (बगल-फा.,अगल – अनुरणन) - आसपास, इधर-उधर, दाएँ-बाएँ। टि. इस शब्द का सामान्यत: संज्ञा की तरह प्रयोग होता है-अगल-बगल से, अगल-बगल में इत्यादि। यहाँ ‘अगल-बगल’ को स्थानवाचक मान लिया गया है।

अगला - (वि.) (तद्.<अग्र) - 1. आगे का/सामने का, जैसे-गाड़ी का अगला हिस्सा (फ्रंट) 2. बाद या पीछे का, परवर्ती, दूसरा। जैसे : अगले साल next year विलो. पिछला।

अगवा - (वि.) (अर.<इग़वा) - (गैर-कानूनी तरीके से, धन उगाहने की नीयत से कोई व्यक्‍ति) जो बहला-फुसलाकर या उठाकर ले जाया गया हो। पर्या. अपहृत।

अगवानी - (स्त्री.) (तद्. < अग्रवर्णिका) - आगे बढक़र किसी का (जैसे-अतिथि का, बरात का आदि) स्वागत-सत्कार करना।

अगस्वे - (अव्य.) (फा.) - यद्यपि, यदि ऐसा है (तो)……

अगहुन - (पुं.) (तद्. < अग्रहायण) - देसी महीनों में कार्तिक के बाद और पूस (पौष) के पहले का महीना। पर्या. मगसिर (मार्गशीर्ष)।

अगाड़ी - (क्रि.वि.) (देश.) - 1. आने वाले समय में 2. आगे 3. पहले। स्त्री. (देशज) किसी वस्तु का आगे का भाग।

अगाड़ी-पिछाड़ी - (स्त्री.) (देश.) - किसी वस्तु का आगे और पीछे का भाग पर्या. आगा-पीछा। मुहा. अगाड़ी-पिछाड़ी न सोचना-भूत-भविष्य की चिंता न करना।

अगाध - (वि.) (तत्.) - शा.अर्थ जो उथला या छिछला नहीं है, अर्थात जिसकी गहराई का पता अथवा थाह न मिले; अत्यधिक गहरा। पर्या. अथाह। जैसे : अगाध सागर; अगाध पांडित्य।

अगाह - (वि.) (तद्. < अगाध) - दे. अगाध

अगियारी - (स्त्री.) (देश.) - 1. अग्नि में घृत-गुड़ आदि हव्य सामग्री डालने की विधि। 2. गोबर का कंडा जिस पर हवन से संबंधित सुगंधित सामग्री डाली जाती है। 3. वह पात्र जिसमें अगुरू, लोबान आदि (हवन सामग्री) सुगंधित द्रव्यों को डालकर जलाया जाता है। उदा. पूर्वी उत्‍तर प्रदेश में महिलाएँ अपने किसी भी व्रत या पूजा में धूप-अगियारी करती हैं।

अगुआ/अगुवा - (पु.) (तद्.<अग्रग) - 1. वह व्यक्‍ति जो आगे चले (और अन्य लोग उसके पीछे चलें), अग्रणी, पथप्रदर्शक, प्रधान। पर्या. नेता, नायक। 2. किसी समुदाय का मुखिया। पथ-प्रदर्शक, मार्गदर्शक। पर्या. प्रधान, मुखिया। टि. ‘अगुवा’ और ‘अगवा’ में अंतर होता है। (दे. अगवा)

अगुणित - (वि.) (तत्.) - 1. जो गुणित न हो, यानी जिसमें एकाधिक संख्याएँ न हों। 2. जीव. जिसमें गुणसूत्रों की संख्या कायिक कोशिकाओं somatic cells के गुणसूत्रों की संख्या आधी हो। जैसे : जनन कोशिकाएँ haptoid

अगुवाई - (स्त्री.) (तद्.) - आगे होने या चलने की क्रिया या भाव। पर्या. नेतृत्व (आगे बढ़कर मार्ग दिखाने का भाव) दे. अगुवा।

अगोचर - (वि.) (तत्.) - जिसका ज्ञान इंद्रियों से न हो; जो देखा या जाना न जा सके। पर्या. इंद्रियातीत। जैसे : आत्मा, ईश्‍वर। विलो. गोचर। आँखों से ओझल, अप्रकट।

अग्नि - (स्त्री.) (तत्.) - 1. आग; जला देने अथवा भस्म कर देने वाला तेज तत्व। जलती हुई लकड़ी, कोयला, उपला आदि। पर्या. अनल, पावक, अग्नि। प्रयो. 1. ‘दावाग्नि’-काठ आदि में मौजूद या उनसे उत्पन्न होने वाला तत्व। 2. जठराग्नि, भोजन पचाने वाली पेट की शक्‍ति। 3. बड़वाग्नि-जल में व्याप्‍त ताप। (दिव्याग्नि), बिजली, उल्का आदि 4. पूर्व और दक्षिण का कोना, जैसे : अग्निकोण/आग्नेय कोण।

अग्निकांड - (पुं.) (तत्.) - शा.अर्थ आग लगाने की घटना, आगजनी। सा.अर्थ वह आग जिसमें धन-जन की बहुत अधिक हानि हो। पर्या. आगजनी। जैसे : अग्निकांड में मेरा सब-कुछ स्वाहा हो गया (जल गया)।

अग्निकुंड - - अग्नि (आग) का कुंड (गहराई वाला स्थान) 1. हवन के काम आने वाला धातु का बना पात्र। पर्या. हवनकुंड 2. वह गहराई युक्‍त क्षेत्र जहाँ भयंकर आग जलाकर पद्मिनी और अन्य क्षत्राणियों ने जौहर किया था।

अग्निकोण - (पुं.) (तत्.) - दस दिशाओं में से एक पूर्व और दक्षिण के बीच का दिशासूचक कोना।

अग्निदाह - (पुं.) (तत्.) - शा.अर्थ आग में जलाना। सा.अर्थ मृतदेह (शव) को अग्नि-समर्पित करना। पर्या. शवदाह, अग्निसंस्कार। cremation

अग्निपरीक्षा - (स्त्री.) (तत्.) - 1. प्राचीनकाल की एक परीक्षा पद्धति जिसमें आग में बैठकर व्यक्‍ति (विशेषकर स्त्री) अपनी निर्दोषिता सिद्ध करता था (करती थी) उदा. सीता की अग्निपरीक्षा। 2. ला.अर्थ बहुत कठिन परीक्षा।

अग्निबाण - (पुं.) (तत्.) - प्राचीनकाल में प्रयुक्‍त एक बाण जिसके चलाने पर आग बरसती मानी जाती थी। आधुनिक युग के अग्न्यास्त्र missile का लगभग समानधर्मी (अस्त्र)।

अग्निशमन - (पुं.) (तत्.) - उदा. अग्निशमन सेवा। fire brigade शा.अर्थ आग बुझाना। सा.अर्थ अचानक लगी आग को दमकल केंद्र के प्रशिक्षित कर्मचारियों द्वारा बुझाने की विशेष तकनीक।

अग्निशामक - (वि./पुं.) (तत्.) - शा.अर्थ आग बुझाने वाला उपकरण, वह उपकरण जिससे गैस, पाउडर, जल या फोम (फेन/झाग) निकलता है और जिनसे आग को बुझाने में सहायता मिलती है। fire extinguisher

अग्निशामक दल - (पुं.) (तत्.) - अचानक लगी आग को बुझाने के कार्य में नियोजित प्रशिक्षित कर्मियों का समूह। fire brigade

अग्निशाला - (स्त्री.) (तत्.) - वह स्थान जहाँ यज्ञ के लिए आग रखी जाए।

अग्निसह - (वि.) (तत्.) - जो आग से प्रभावित न हो, यानी जिस पर आग का असर न होता हो; जो आग का ताप और उसकी दाहकशक्‍ति सहकर बर्दाश्त करके भी ज्यों-का-त्यों रहे। fireproof

अग्न्याशय [अग्नि+आशय] - (पुं.) (तत्.) - शा.अर्थ (पाचक) अग्नि को धारण करने वाला स्थल। प्राणि. ग्रंथि जो पाचन में सहायक एन्जाइमों का स्रवण करती है तथा इसकी बीटा कोशिकाओं से स्रवित इंसुलिन नामक हार्मोन शर्करा के चयापचय में महत्वपूर्ण भूमिका अदा करता है। pancreas

अग्न्यास्त्र - (पुं.) (तत्.) - मिसाइल का पर्यायवाची।

अग्र - (वि.) (तत्.) - अगला, प्रथम, प्रमुख। क्रि.वि. आगे, सामने। पुं. आगे का भाग, नोक।

अग्रगण्य - (वि.) (तत्.) - गणना करते समय पहले गिना जाने वाला। सा.अर्थ सबसे श्रेष्‍ठ, सबसे उत्‍तम।

अग्रगामी - (पुं.) (तत्.) - आगे गमन करने वाला/चलने वाला; जो सबके आगे रहता हो। पर्या. अगुआ, नेता pionear

अग्रचर्वणक - (वि./पुं.) (तत्.) - शा.अर्थ चबाने वाले अगले (दाँत)। प्राणि. स्तनधारी प्राणियों (मैमल्स) के जबड़ों में पीसने वाले दाँत जो रदनक (कैनाइन) और चर्वणक नामक दाँतों के बीच में होते हैं। टि. मानव के प्रत्येक जबड़े में दोनों ओर दो-दो अग्रचर्वणक दाँत होते है। premolar दे. दंतसूत्र dental Formula

अग्रज - (वि.) (तत्.) - शा.अर्थ पहले जन्मा हुआ अथवा पहले पैदा हुआ। पुं. बड़ा भाई। तुल. अनुज।

अग्रजा - (वि.) (तत्.) - शा.अर्थ पहले जन्मी हुई या पैदा हुई। स्त्री. बड़ी बहिन/बहन।

अग्रता - (स्त्री.) (तत्.) - 1. अन्य कार्यों से पहले किए जाने की स्थिति precedance 2. किसी विचाराधीन मुद्दे को सबसे पहले निपटाने का विचार या निर्णय। priority

अग्रदूत - (पुं.) (तत्.) - 1. वह व्यक्‍ति जो किसी महत्वपूर्ण व्यक्‍ति के पहुँचने से पहले ही उपस्थित होकर उसके आने की सूचना दे। 2. वह व्यक्‍ति जो किसी महत्वपूर्ण घटना अथवा क्रांतिकारी समय का प्रेरणा-स्रोत बने। उदा. राजा राममोहन राय आधुनिक भारत के अग्रदूत माने जाते हैं। 3. नई परंपरा या आंदोलन का आरंभकर्ता। herald

अग्रलेख - (पुं.) (तत्.) - समाचार-पत्र का मुख्य लेख; संपादकीय।

अग्राह्य - (वि.) (तत्.) - जो ग्रहण-योग्य न हो; ग्रहण के अयोग्य।

अग्रिम - (वि.) (तत्.) - 1. प्रशा. देय होने से पूर्व दी गई राशि जिसका देय होने पर समायोजन कर लिया जाता है। पर्या. पेशगी advance 2. परि. नियत समय से पूर्व किया गया। उदा. अग्रिम आरक्षण 3. सैन्‍य. मुख्‍य स्‍थल से आगे का/की उदा. अग्रिम चौकी।

अघ - (वि.) (तत्.) - पाप, बुरा काम, दुष्‍कर्म, अशौच।

अघट1 - (वि.) (तद्. > अघटन) - 1. जो न घटित हुआ हो और न होने वाला हो। 2. जो घटित न हो सके, असंभव। जैसे : खरगोश का सींग एक अघट घटना है। 3. अनुचित, बेमेल

अघट2 - (वि.) (तद्. > अघृष्‍टन) - 1. न घटने वाला, कम न होने वाला। 2. सदा एक जैसा रहने वाला। स्थिर। जैसे : उनका अन्‍न भंडार अघट है।

अघटित - (वि.) (तत्.) - जैसा पहले कभी घटित न हुआ हो। पर्या. अभूतपूर्व, विचित्र, अनहोनी।

अघाना - (तद्. < आघ्राण) - भरपेट खाना कि उससे ही संतुष्‍टि हो जाए और अधिक खाने की इच्छा न रहे। पर्या. तृप्‍त होना।

अघुलनशील - (वि.) (तत्.) - जिसकी प्रकृति द्रव में घुलने की न हो। जैसे : रेत। विलो. घुलनशील।

अचंभा - (पुं.) (तद्.< असंभवम्) - किसी असामान्य या अप्रत्याशित घटना या परिस्थिति को देख-सुनकर श्रोता के मन में अचानक उठने वाला संवेग। पर्या. आश्‍चर्य, विस्मय, ताज्जुब, अचरज।

अचकचाना - (अ.क्रि.) (देश.) - भौंचक्का होना, घबरा जाना, चौंक उठना।

अचकचाहट - (स्त्री.) (देश.) - घबराहट, भौंचक्कापन।

अचकन - (स्त्री.) (तद्.) - (कंचुक प्रा. अंचुक) अंगरखे की तरह का एक लंबा पहनावा, शेरवानी। प्राचीन अर्थ लंबा कालीदार अंगरखा।

अचरज - (पुं.) (तद्. < आश्‍चर्य) - दे. आश्‍चर्य।

अचर्क - (पुं.) (तत्.) - व्यक्‍ति जो अर्चना या पूजा करता हो। पर्या. पूजक, पुजारी।

अचल [अ+चल] - (वि.) (तत्.) - 1. जो चल न सकता हो, गतिहीन। 2. जो अपने स्थान पर टिका रहे, जो अपने स्थान से हटे नहीं, अटल, दृढ़। पुं.- पर्वत, जैसे : विंध्याचल (विंध्‍य+अचल)-विंध्य नामक पर्वत श्रृंखला।

अचल-परिसंपत्‍ति - (स्त्री.) (तत्) - लंबे समय तक या स्थायी रूप में उत्पादन प्रक्रिया में काम आने वाली पूँजी। जैसे : इमारतें, मशीनरी, फर्नीचर, परिवहन व्यवस्था आदि। पर्या. स्थायी परिसंपत्‍ति। fixed assets, fixed capital

अचल-संपत्‍ति - (स्त्री.) (तत्.) - अपने स्थान से हटाई न जा सकने वाली संपत्‍ति, जैसे : घर, भवन, खेत आदि। पर्या. स्थायी संपत्‍ति immovable propenty तु. चल-संपत्‍ति

अचानक - (क्रि.वि.) (देश.) - बिना किसी प्रकार की पूर्व सूचना के, सहसा, यकायक। उदा. वह मेरे यहाँ अचानक आ धमका।

अचार - (पुं.) (फा.) - वह गौण खाद्य-सामग्री मसाले के साथ मिलाकर फल या सब्जी, जो कुछ दिन तक तेल या सिरके में रखा जाता है। गृह. तेल या सिरके के माध्यम से एक निश्‍चित अवधि तक संरक्षित मसालेदार फल और सब्जी के टुकड़े जो भोजन में सहायक खाद्य-सामग्री की तरह उपयोग में आते हैं। pickles जैसे : आम का अचार, करौंदे का अचार आदि। मुहा. अचार डालना- ला. प्रयोग उपयोगी वस्तु को आवश्यक होने पर भी लंबे समय तक काम में न लेना। उदा. तुम कपड़े धोने की मशीन तो ले आए पर उसका उपयोग नहीं कर रहे हो, क्या उसका अचार डाल रखा है?

अचिंतनीय [अ+चिंतन+ईय] - (वि.) (तत्.) - 1. जिसका चिंतन या कल्पना न की जा सके। 2. जो बुद्धि या विचार की सीमा से परे हो।

अचिंत्य - (वि.) (तत्) - दे. अचिंतनीय

अचिर - (वि.) (तत्.) - 1. जो पुराना न हो। ताजा, नया 2. जिसे लंबे समय तक बचाए रखा जा सके, नश्‍वर, नाशवाना जैसे : अचिर शरीर।

अचूक - (वि.) (तद्. < अच्युत) - शा.अर्थ न चूकने वाला। जैसे : अचूक निशाना।

अचेत - (वि.) (तद्.) - 1. (व्यक्‍ति) जिसमें चेतना न हो, बेसुध। 2. जड़ (पदार्थ)।

अचेतन - (वि.) (तद्.) - 1. जिसमें चेतना शक्‍ति का अभाव हो। 2. जड़ (पदार्थ), निर्जीव।

अचेतन [अ+चेतन] - (वि.) (तत्.) - जिसमें चेतना न हो, चेतनारहित, निर्जीव, जीवन या प्राण रहित। पर्या. जड़ जैसे : अचेतन पदार्थ (मेज़, कुर्सी, कमरा आदि।

अचेष्‍ट - (वि.) (तत्.) - जिसमें कोई चेष्‍टा अर्थात गति या प्रयत्‍न न हो, गतिहीन:, बेहोश।

अच्छाई - (स्त्री.) (तद्.<अच्छ) - स्वभाव, रूप, गुण आदि में अच्छा होने का भाव। उदा. उसकी अच्छाई यह है कि वह हमेशा समय पर स्कूल पहुँचता है। पर्या. अच्छापन। विलो. बुराई, दोष।

अच्छा - (वि.) (तद्.<अच्छ) - 1. तुलना में दूसरे से बढ़कर और प्रशंसा योग्य। जैसे : अच्छे दिन। 2. दोषरहित, शुभ। जैसे : मुहूर्त। 3. स्वस्थ, नीरोग। जैसे: कैसे हो? अच्छा हूँ। 4. लाभदायक। जैसे: धंधा कैसा चल रहा है? अच्छा चल रहा है। क्रि.वि. भारत इस बार अच्छा खेला। विस्‍म. अच्छा! ऐसा कैसे हुआ? विलो. बुरा। मुहा. अच्छा कर देना-ठीक, स्वस्थ कर देना। अच्छा खासा- बहुत अधिक। जैसे : अच्छा-खासा, लाभ।

अच्युत - (वि.) (तत्.) - जिसका क्षरण या पतन न हो; अविनाशी, अनश्‍वर, सनातन, नित्य। (ईश्‍वर का विशेषण)

अछूत - (वि.) (तत्.+हि.) - (सामाजिक व्यवस्था के अनुसार) जिसे अपवित्र मानकर न छुआ जाए। पर्या. अस्पृश्य। तु. अछूत। जैसे : गांधीजी ने अछूतोद्धार के लिए काफी काम किया।

अछूता - (वि.) (तद्.) - 1. जिसे अब तक न छुआ गया हो। जैसे: अछूता खाना। 2. जिसे अब तक काम में न लाया गया हो; नया; कोरा। जैसे : अछूता कपड़ा। 3. जिस पर अब तक विचार न किया गया हो। जैसे- अछूता विषय। तु. अछूत।

अछूतोद्धार [अछूत+उद्धार] - (पुं.) (तद्.) - शा.अर्थ अछूतों का उद्धार, अस्पृश्य जातियों का उद्धार। टि. भारत के संदर्भ में स्वतंत्रता आंदोलन के दौरान मध्यकाल में संतों, महापुरुषों और महात्मा गांधी द्वारा चलाया गया वह आंदोलन जिसमें छूआछूत की प्रथा का अंत और दलित वर्ग की सामाजिक-आर्थिक उन्नति को लक्ष्य बनाया गया था।

अजगर - (पुं.) (तत्.) - 1. बहुत बड़ा और मोटा साँप जो बकरी और हिरन को भी निगल जाता है और अपने शिकार को दाँतों से चबाकर नहीं अपितु आँत में पीसकर पचाता है। pithon 2. अजदहा।

अजनबी अर. - (वि.) (अर. < अजनबी) - 1. (व्यक्‍ति) जो किसी परिवेश या संगी-साथियों के बीच पहले से जाना-पहचाना न हो। पर्या. अपरिचित। 2. व्यक्‍ति जो किसी परिवेश विशेष या स्थान विशेष के लोगों को पहले से न जानता हो। पर्या. अनजान। विलो. जाना-पहचाना, सुपरिचित।

अजनबीपन - (पु.) (फा.) - अजनबी होने का भाव या स्थिति। दे. अजनबी।

अजब - (वि.) (अर.) - दे. अजीब

अज़मत/अज़्मत - (स्त्री.) (अर.) - 1. प्रतिष्‍ठा, सम्मान, इज्ज़त उदा. मेरे दादाजी की समाज में बड़ी अज़मत है। 2. बुजुर्गी, उदा. जरा उनकी अज़मत का ख्याल करो। 3. अहमियत, महत्‍व, बड़ाई।

अजस्र - (वि.) (तत्.) - निरंतर/लगातार/अनवरत रहने वाला; जिसका क्रम खंडित न हो। जैसे : अजस्र प्रवाह।

अजात - (वि.) (तत्.) - जिसका (अभी) जन्म न हुआ हो। जैसे : अजात शिशु (यानी वह शिशु जो अभी माँ के गर्भ में ही हो)।

अजात - (वि.) (तत्.) - 1. जिसका कोई शत्रु पैदा न हुआ हो।

अजायबघर - (पुं.) (अर. अजायब + तद्. घर) - वह भवन जिसमें ऐतिहासिक महत्व की प्राचीन एवं दुर्लभ वस्तुओं का संग्रह हो एवं सार्वजनिक प्रदर्शन के लिए खुला रहे। पर्या. कौतुकालय, संग्रहालय museum

अजित - (वि.) (तत्.) - जिसे जीता न जा सका हो। पर्या.- अपराजित, अपराजेय, अजेय। विलो. विजित, पराजित।

अजीब - (वि.) (अर.) - सामान्य स्वरूप और व्यवहार से भिन्न; विचित्र, विलक्षण, अनोखा। उदा. अजीब आदमी है। किसी की बात मानता ही नहीं।

अजीबो-ग़रीब - (वि.) (अर.) - शा.अर्थ अजीब और गरीब (द्विरूक्‍ति) सा.अर्थ जिसमें बहुत सी विचित्रताएँ हों; परम विलक्षण, अति अद्भुत। पर्या. अतिविचित्र।

अजीर्ण [अ+जीर्ण] 1. पचा हुआ, 2. घिसा हुआ, पुराना - (पुं.) (तत्.) - अपच, बदहज़मी (रोग विशेष) वि. 1. जो पचा न हो। 2. जो घिसा या पुराना न हुआ हो।

अजीर्ण - (पुं.) (तत्.) - 1. जो जीर्ण न हुआ हो, पुराना न हुआ हो; नया। जैसे : अजीर्ण वस्त्र। 2. जो पचा न हो (भोजन)। पुं. वह रोग जिसमें भोजन ठीक से नहीं पचता। अपच, बदहजमी।

अजूबा - (पुं.) (अर.<अजूब:) - कोई आश्‍चर्यजनक बात या घटना।

अजेय - (वि.) (तत्.) - जिसे कोई जीत न सके; जिसे कोई पराजित न कर सके; अपराजेय। पर्या. अपराजेय।

अजैव - (वि.) (तत्.) - 1. जो जीव या जीवन से संबंधित न हो। अजैव संसाधन। जैसे : मृदा, चट्टानें और खनिज आदि।

अजैविक रसा. - (वि.) (तत्.) - जो जीवों से पैदा न हुआ हो। जैसे : यूरिया, खाद। तुल. जैविक।

अज्ञ [अ+ज्ञ] - (वि.) (तत्.) - 1. जिसे ज्ञान न हो, न जानने वाला। पर्या. मूर्ख, नासमझ। 2. किसी विशिष्‍ट विषय को पूरी तरह से न जाननेवाला।

अज्ञात [अ+ज्ञात] - (वि.) (तत्.) - न जाना हुआ, बिना जाना हुआ; छिपा हुआ, गुप्‍त। जैसे : पांडवों का अज्ञातवास, अज्ञात बातें।

अज्ञातवास - (पु.) (तत्.) - ऐसे स्थान पर रहना जिसे जाना न जा सके। टि. महाभारत कथा में पांडवों को एक वर्ष तक अज्ञातवास करना पड़ा था।

अज्ञान [अ+ज्ञान] - (पुं.) (तत्.) - ज्ञान का अभाव, मूर्खता। ignorance

अज्ञानता - (स्त्री.) (तत्.) - ज्ञान न होने की अवस्था; अज्ञानपन; मूर्खता, नादानी।

अज्ञानी - (वि.) (तत्.) - जिसे ज्ञान न हो। पर्या. मूर्ख, नासमझ। विलो. ज्ञानी।

अज्ञानी - (वि./पुं.) (तत्) - (व्यक्‍ति) जिसे ज्ञान न हो; मूर्ख।

अज्ञेय - (वि.) (तत्) - जिसे/जिसके बारे में जानकारी प्राप्‍त करना संभव न हो, जिसे न जाना जा सके। विलो. ज्ञेय।

अटकना - (अ.क्रि.) (देश.) - किसी बाधा के कारण गति में रुकावट पैदा होना। पढ़ते समय बीच-बीच में रूकना। गले से नीचे न उतरना। उदा. 1. पतंग पेड़ की डाल में अटक गई। 2. अटक-अटक कर पढ़ना।

अटकल - (स्त्री.) (तद्.< अट्टन+कलन) - अनुमान, अंदाजा। मुहा. अटकल भिड़ाना/लगाना-अनुमान लगाना। भाव. अटकलबाज़ी।

अटकाना - (स.क्रि. ) (देश.) - गति में बाधा या रुकावट डालना, जिससे उस क्रिया के संपन्न होने में अनावश्यक विलंब हो जाता है। उदा. उसने मुझे अपनी बातों में अटका लिया, इसलिए पुस्तकालय पहुँचने में देर हो गई।

अटकाना - (पु.) (देश.) - अटकने/अटकाने का भाव; बाधा; रुकावट। दे. अटकाना।

अटना - (अ.क्रि.) (देश.) - 1. पूरा पड़ना, काफी होना। 2. आड़ करना, ओट करना। 3. अटन, भ्रमण करना, घूमना-फिरना।

अटपटा - (वि.) (देश.) - 1. जो सामान्य न हो या न सामान्य दिखे। ऊटपटांग, विचित्र, टेढ़ा-मेढ़ा सा। 2. जिसमें अर्थसंगति का अभाव हो। जैसे-शिशु की अटपटी भाषा/बातें आदि।

अटल - (वि.) (देश.) - 1. जो अपने स्थान से टले नहीं। पर्या. अडिग, स्थिर। 2. दृढ़, पक्का। उदा. मेरा अटल विश्वास है कि….. 3. अवश्य होने वाला, जो टाला न जा सके। पर्या. अवश्‍यंभावी। उदा. जो जन्मा है उसकी मृत्यु अटल है।

अटारी - (स्त्री.) (तद्. < अट्टालिका) - मकान की छत पर बना कमरा या खुला भाग, कोठा।

अटूट [अ+टूट] - (वि.) (देश.) - 1. न टूटने योग्य। पर्या. दृढ़, मज़बूत 2. बहुत अधिक। उदा. सेठजी के पास अटूट धन-संपत्‍ति है।

अट्ठाईसवाँ - (वि.) (तद्.) - गिनती करते समय जिसकी क्रम संख्या 28वें स्थान पर हो।

अट्टालिका - (स्त्री.) (तत्.) - 1. बड़ा और ऊँचा भव्य मकान। 2. भवन का ऊपरी भाग। पर्या. अटारी, कोठा, कोठी।

अट्टहास - (पुं.) (तत्.) - जोर की हँसी, ठहाका।

अट्ठाईस - (वि.) (तद्. < अष्‍टाविंशति) - (गिनती में) बीस और आठ पुं. 28 की संख्या।

अट्ठानवाँ/ अठानवाँ - (वि.) (तद्.) - गिनती करते समय जिसकी क्रमसूचक संख्या 58वें स्थान पर हो।

अट्ठानवे/ अठानवे - (वि.) (तद्. > अष्‍टानवति) - गिनती में नब्बे और आठ पुं. 98 की संख्या।

अट्ठावन/ अठावन - (वि.) (तद्. अष्‍टपंचाशत्) - गिनती में पचास और आठ पुं. 58 की संख्या।

अट्ठासिवाँ - (वि.) (तद्.) - गिनती करते समय जिसका 28वें स्थान पर हो।

अट्ठासी/अठासी - (वि.) (तद्. < अष्‍टाशिति) - (अष्‍ट + अशीति) गिनती में अस्सी और आठ पुं. 88 की संख्या।

अठखेली - (स्त्री.) (तद्. < अष्‍टकेलि) - बहुवचन में ही प्रयोग-अठखेलियाँ, किसी के साथ किया जाने वाला मनोविनोद या हँसी-मजाक। विनोद।

अठत्‍तर/अठहत्‍तरगिनती में सत्‍तर और आठ - (वि.) (तद्. < अष्‍टसप्‍तति:) - पुं. -78 की संख्या।

अठन्नी - (स्त्री.) (तद्. आठ+आना
तद्. < अष्‍टाणकी) - आठ आने का पुराना सिक्का, पचास पैसे का सिक्का।

अठहत्‍तरवाँ - (वि.) (तद्.) - गिनती करते समय जिसकी क्रमसंख्या 78वें स्थान पर हो।

अठारह - (वि.) (तद्. < अष्‍टादश) - गिनती में दस और आठ पुं. 18 की संख्या।

अड़ंगा - (पुं.) (देश.-अड़ाना /अड़ना] ) - मूल अर्थ चलते व्यक्‍ति की टांग में अपनी टांग अड़ाकर उसे रोकने/गिराने के लिए की गई कोशिश। सा.अर्थ (ला.प्रयोग) बाधा, रुकावट।

अड़चन - ([हि.-अड़ना-चलना]) (तद्. < अड्डित - चणिका) - शा.अर्थ जिसने गति रोक दी हो। बाधा, रुकावट inderance पर्या. अंड़गा उदा. उसने मेरे काम में अड़चन/अडंगा डालने की कोशिश की, किंतु वह सफल नहीं हुआ।

अड़तालीस - (वि.) (तद्. < अष्‍टचत्वारिंशत्) - गिनती में चालीस और आठ पुं.- 48 की संख्या।

अड़तालीसवाँ - (वि.) (तद्.) - गिनती करते समय जिसकी संख्या 48वें स्थान पर हो।

अड़तीस - (वि.) (तद्.< त्रिशत्+अष्‍ट+त्रिशंत्) - गिनती में तीस और आठ पुं. 38 की संख्या।

अड़तीस - (वि.) - गिनती करते समय जिसकी संख्या 38वें स्थान पर हो।

अड़ना - (अ.क्रि. ) (देश.<अड़) - 1. चलते-चलते बीच में रुक जाना, रुकना, अटकना। 2. दूसरे को अपनी बात मनवाने के लिए हठ करना या अड़े रहना। उदा. जब वह अपनी बात पर अड़ा रहा तो हमें उसकी बात माननी ही पड़ी।

अड़सठ - (वि.[षष्‍टि+अष्‍ट]) (तद्.) - गिनती में साठ और आठ पुं. 68 की संख्या।

अड़सठवाँ - (वि.) (तद्.) - गिनती करते समय जिसकी संख्या 68वें स्थान पर हो।

अड़ाना - (स.क्रि.) (तद्. < आटयति) - 1. गतिशील वस्तु में कोई बाधक चीज़ फँसा देना ताकि वह रुक जाए। बाधा या विघ्न उपस्थित करना। 2. किसी के गिर पड़ने की संभावना वाली वस्तु में टेक लगा देना ताकि वह न गिरे।

अडिग - (वि.) (देश) - जो डिगे नहीं। दे. अटल।

अड़ियल - (वि.) (देश.) - अड़ना 1. अड़ जाना जिसके स्वभाव में हो। पर्या. हठी, जिद्दी 2. आगे बढ़ते समय अकारण रूक-रूक कर चलने वाला। जैसे-अडि़यल टट्टू।

अड़ोस-पड़ोस - (पुं.) - (अनुकरणात्मक प्रथम पद वाली द्विरूक्‍ति) आस-पास के घर, मकान।

अड़ोसी-पड़ोसी - (पुं.) - बहु. आस-पास के घरों में (पड़ोस में) रहने वाले लोग-बाग।

अड्डा - (पुं.) (तद्. [सं. अट्टा-ऊँची जगह] ) - (अल्पकाल के लिए) रुकने, ठहरने, मिलने का नियत स्थान। 1. चोरों, जुआरियों आदि के मिलने का स्थान। 2. कारीगरों के बैठकर काम करने की जगह। जैसे : बस अड्डा, चोरों या जुआरियों का अड्डा आदि। मुहा. अड्डा जमाना-समान कार्य करने वाले लोगों द्वारा किसी स्थान विशेष को अपनी (प्राय: अनुचित) गतिविधियों का केंद्र बना लेना।

अढ़ाई - (वि.) (तद्.[द्वयर्ध+आई]) - गिनती में दो और आधा। पर्या. ढाई। स्त्री. 2(1/2) की संख्या लोकोक्‍ति 1. अढ़ाई/ढाई चावल की खिचड़ी अलग पकाना- किसी से मेल खाती बात न कहना, सबसे अलग विचार प्रकट करना। 2. नौ दिन चले अढ़ाई कोस- मंद गति होना।

अणु जीव - (पुं.) (तत्.) - जीव जगत् (प्राणि जगत और वनस्पति जगत) का वह अतिसूक्ष्म जीव, जिसे नंगी आँखों से तो देखा नहीं जा सकता, पर जो सूक्ष्मदर्शी यंत्र के माध्यम से अवश्य दिखाई पड़ता है। microorganism

अणु - (पु.) (तत्.) - सा.अर्थ 1. पदार्थ का बहुत ही छोटा हिस्सा। 2. रजकण। विशेष अर्थ: भौ., रसा. रासायनिक आबंधन से जुड़े एकाधिक (दो या हजारों) परमाणुओं से बनी इकाई। मोलेक्यूल टि. एक यौगिक के सभी अणु एक समान होते हैं। जैसे, जल के सभी अणुओं में ऑक्सीजन का एक परमाणु होता है, जो दो हाइड्रोजन परमाणुओं से रासायनिक तौर पर आबंधित रहता है। तु. परमाणु atom

अणु बम - (पुं.) (तत्.) - 1. ‘परमाणु बम’ के लिए प्रयुक्‍त आम बोलचाल का शब्द। दे. परमाणु बम। 2. आतिशबाजी में छोड़ा जाने वाला एक सिगारनुमा पटाखा जो कानफोड़ू आवाज़ करता है।

अणुजीव विज्ञान/अणु जैविकी - (पु.) (तत्.) - जीव विज्ञान की वह शाखा जिसमें जीव की आण्विक प्रकृति तथा उसकी जैव रासायनिक अभिक्रियाओं का अध्ययन किया जाता है। molecular biology

अणुवीक्षण - (पुं.) (तत्.) - 1. सूक्ष्मदर्शी यंत्र (खुर्दबीन) द्वारा अत्यंत सूक्ष्म कणों को देखने की प्रक्रिया 2. किसी भी विवेच्य विषय का बहुत बारीकी से सांगोपांग विवेचन-विश्‍लेषण करना।

अत- - (अव्य.) (तत्.) - इस कारण (से), इसलिए।

अतएव- - (अव्य.) (तत्.) - इसी से, इस कारण से ही, इसलिए, इसीलिए।

अतर - (पुं.) देश. (<इत्र) - इत्र, पुष्पसार।

अतर - (पुं.) (देश+फा.) - तरह-तरह के इत्र रखने का पात्र।

अतल - (वि.) (तत्.) - 1. जिसका तल न हो, तलहीन, बेपैंदा। 2. जिसके तल का पता न चले। पर्या. अथाव। पुं. पृथ्वी के नीचे माने हुए सात लोकों में से पहला।

अतलांत महासागर - (पुं.) (तत्.) - अटलांटिक ओशन (अंध महासागर) के लिए प्रयुक्‍त एक पर्याय दे. अंधमहासागर। atlantie oecan

अता-पता - (पुं.) (देश.) - ऐसा कोई लक्षण या चिह्न जिससे कोई बात जानी जा सके अथवा किसी तक पहुँचा जा सके। जैसे : कई दिनों से उसका अता-पता नहीं है। whereabouts

अति - (वि.) (तत्.) - बहुत ज्यादा, अधिक, चरम सीमा तक पहुँचा हुआ। विशेष : उपसर्ग के रूप में प्रयुक्‍त होकर अनेक अर्थ देता है – (क) नियम, सीमा आदि से आगे बढ़ा हुआ, जैसे : अतिक्रमण। (ख) मात्रा, मान आदि के विचार से बहुत अधिक जैसे : अति सूक्ष्म। (ग) सामान्य रूप से अधिक बढक़र, जैसे : अतिकाय।

अतिकाय - (वि.) (तत्.) - लंबे-चौड़े शरीर वाला। पर्या. विशालकाय।

अतिक्रमण - (पुं.) (तत्.) - अपने अधिकार क्षेत्र को पारकर दूसरे के अधिकार क्षेत्र में अवैध प्रवेश। मर्यादा के विरुद्ध। देश की सीमा का दूसरे देश द्वारा उल्लंघन। incroachment जैसे : सन् 1962 में चीन ने हमारी सीमा का अतिक्रमण किया था।

अतिक्रमी - (वि./पुं.) (तत्.) - किसी दूसरे की सीमा का अवैध रूप से उल्लंघन करने वाला (व्यक्‍ति)। किसी दूसरे के अधिकारों में हस्तक्षेप करने वाला (व्यक्‍ति)।

अतिक्रांत - (वि.) (तत्.) - 1. सीमा से परे गया हुआ। 2. बीता हुआ। 3. क्रम-भंग का दोषी।

अतिचार - (पुं.) - 1. अन्य की संपत्‍ति को अवैध रूप से हानि पहुँचाने का कृत्य। 2. विधि का उल्लंघन trespass तु. अतिक्रमण

अतिचारी - (वि./पु.) - (i) अतिचार का अपराधी; (ii) व्यक्‍ति जो अन्य की भूमि में अनधिकार प्रवेश करे। trespasser

अतिथि - (पुं.) (तत्.) - 1. (रक्‍त संबंधियों को छोडक़र) अन्य परिवार या संस्था आदि का वह व्यक्‍ति जो पूर्वनिर्धारित या अनिर्धारित कुछ दिनों के लिए किसी व्यक्‍ति या संस्था के आवास में आकर ठहरता है और जिसकी समुचित आवभगत की जाती है। पर्या. मेहमान, पाहुना। 2. किसी कार्य-संपादन के लिए आमंत्रित बाह्य व्यक्‍ति। जैसे : अतिथि वक्‍ता, अतिथि कलाकार, अतिथि संपादक आदि। guest टि. इस तत्सम शब्द का मूल व्युत्पत्‍तिपरक अर्थ ग्रहण न कर कुछ शब्द-विश्‍लेषक इस शब्द के केवल दृश्यमान अ+तिथि रूप को देखकर ही इसे ”ऐसा व्यक्‍ति जो बिना तिथि बताए किसी के यहाँ आ जाए” अर्थ देते भी देखे गए हैं।

अतिथि गृह - (पुं.) (तत्.) - अतिथियों (मेहमानों) के ठहरने के लिए बना भवन। guest-house पर्या : अतिथि भवन, मेहमानखाना, अभ्यागत निवास।

अतिथिशाला - (स्त्री.) (तत्.) - वह भवन या स्थान जो केवल अतिथियों के ठहरने के लिए बनाया गया हो। पर्या. अतिथि गृह। guest house

अतिथि सत्कार - (पुं.) (तत्.) - अतिथि का सत्कार यानी घर आए मेहमान की आवभगत।

अतिमानव - (वि./पुं.) (तत्.) - मानव की स्वाभाविक शक्‍ति के बाहर का व्यक्‍ति। अलौकिक मानव। super human

अतिरंजन - (पुं.) (तत्.) - शा.अर्थ आवश्यकता से अधिक रंग चढ़ाना/रंगना। ला.अर्थ किसी बात को बढ़ा-चढ़ा कर कहना।

अतिरंजना - (स्त्री.) (तत्.) - किसी घटना या तथ्य को बहुत अधिक बढ़ा-चढ़ा कर कहना। exaggeration

अतिरंजित - (वि.) (तत्.) - किसी घटना या तथ्य को उसके वास्तविक महत्व से अधिक बढ़ा-चढ़ा कर कहा गया रूप। exaggeration

अतिरिक्‍त (अतिरेक+कत - (वि.) (तत्.) - 1. नियत से अधिक। उदा. उसकी अतिरिक्‍त आमदनी की हमें जानकारी नहीं है। extra 2. बचा हुआ, शेष, उदा. अतिरिक्‍त दूध हो तो मुझे दे दो। 3. (से) अलग/भिन्न। उदा. इसके अतिरिक्‍त उसके पास कोई चारा नहीं था। residual additional, spare

अतिरेक - (पुं.) (तत्.) - आवश्यकता से अधिक का सूचक भाव, बहुतायत, अधिकता।

अतिरेक - (पुं.) (तत्.) - राजनीतिक अथवा धार्मिक मामलों में (अथवा किसी भी बारे में) चरम सीमा पार करने वाला विचार। extremism

अतिवादी - (वि./पुं.) (तत्.) - राजनीतिक अथवा धार्मिक मामलों में मर्यादा से परे अर्थात चरम सीमा पार करने वाले विचार/मत रखने वाला। extremist

अतिवृष्‍टि - (स्त्री.) (तत्.) - 1. इतनी अधिक वर्षा होना जिससे खेती की सारी फसलें नष्‍ट हो जाने से मनुष्यों और पशुओं के लिए अकाल की स्थिति आ जाए। 2. बहुत अधिक वर्षा/बारिश। विलो. अनावृष्‍टि (बिल्कुल वर्षा न होना अर्थात सूखा पड़ना)।

अतिशय - (वि.) (तत्.) - बहुत, अधिक, ज्यादा, अत्यधिक।

अतिशयोक्‍ति - (स्त्री.) (तत्.) - 1. बहुत बढ़ा-चढ़ाकर कही या वर्णित की हुई बात। 2. एक अलंकार जिसके अनुसार बहुत बढ़ा-चढ़ाकर वर्णन किया जाता है। उदा. हनुमान की पूँछ में लगन न पाई आगि, लंका सारी जरि गई, गए निशाचर भागि।। तु. अत्युक्‍ति।

अतिसार - (पुं.) (तत्.) - रोग विशेष जिसमें अधपचा खाना मरोड़ के साथ पतले दस्‍तों के रूप में बाहर निकलता है। diarrhoea, dysentary

अतींद्रिय [अति+इंद्रिय] - (वि.) (तत्.) - जो इंद्रियों की पहुँच से परे हो।

अतीत - (वि.) (तत्.) - जो व्यतीत हो चुका है, बीता हुआ। पुं. पुरातन, प्राचीन समय, पुराकाल, इतिहास। उदा. यह अतीत की बात है। क्रि.वि. दूर, परे।

अतीव - (वि.) (तत्.) - बहुत अधिक, अत्यंत। उदा. उनकी असामयिक मृत्यु की खबर सुनकर पड़ोसियों को अतीव दु:ख हुआ।

अतुकांत - (वि.) - शा.अर्थ अंत में तुक मिलने की स्थिति से रहित। ऐसी कविता जिसके अंतिम चरण में तुक न मिलती हो। जैसे : महाप्राण निराला की कृति ‘जूही की कली’ अतुकांत कविता का उदाहरण है।

अतुल/अतुलनीय - (वि.) (तत्.) - जिसकी माप या तौल न हो सके; बहुत अधिक, असीम। उदा. वे अतुल संपत्‍ति के मालिक हैं।

अतुलनीय - (वि.) (तत्.) - जिसकी तुलना न की जा सके। पर्या. अतुल्य, अतुल, बेजोड़।

अतुलित - (वि.) (तत्) - दे. अतुल, अतुल्‍य।

अतृप्‍त - (वि.) (तत्.) - जो तृप्‍त न हुआ हो, जिसकी भूख या इच्छा अभी तक शांत न हुई हो, असंतुष्‍ट।

अतृप्‍ति - (स्त्री.) (तत्.) - संतुष्‍ट न हो पाने की स्थिति, भाव या अवस्था; संतोष में कमी।

अत्यंत - (वि. और क्रि.वि.) (तत्.) - व्यु.अर्थ जिसने सीमा का अतिक्रमण कर लिया हो। सा.अर्थ बहुत अधिक, हद से ज्यादा।

अत्यधिक - (वि.) (तत्.) - बहुत अधिक, बहुत ज्यादा। पर्या. अतिशय टि. ‘अत्याधिक’ प्रयोग अव्याकरणिक है।

अत्यल्प - (वि.) (तत्.) - जो बहुत कम हो, बहुत थोड़ा, तनिक, बहुत कम।

अत्याचार - (पुं.) (तत्.) - शा.अर्थ लोकमान्य प्रथा या लोक-व्‍यवहार के विरूद्ध कार्य। सा.अर्थ शारीरिक और मानसिक पीड़ा पहुँचाने वाला व्‍यवहार, अनुचित व्यवहार। उदा. स्वतंत्रता संग्राम के दौरान अंग्रेज़ शासकों ने क्रांतिकारियों पर भीषण अत्याचार किए थे।

अत्याचारी - (वि.) (तत्.) - 1. अत्याचार करने वाला। 2. अपनी शक्‍ति का दुरूपयोग कर दूसरों को कष्‍ट देने वाला। 3. जाल़िम। दे. अत्‍याचार।

अत्याधुनिक - (वि.) (तत्.) - 1. अधुनातन तकनीक का उपयोग करते हुए विकसित। 2. बिल्कुल नए रूप में। जैसे : अत्याधुनिक कंप्‍यूटर।

अत्यावश्यक - (वि.) (तत्.) - 1. जरूरी 2. जिसके बिना किसी कार्य की पूर्णता न हो। जिसे करना बहुत ही जरूरी हो।

अत्युक्‍ति - (स्त्री.) (तत्.) - 1. बहुत बढ़ा-चढ़ाकर कही गई बात (उक्‍ति) 2.एक अर्थालंकार जिसमें किसी के गुणों का मिथ्या और चमत्कारपूर्ण वर्णन किया गया हो। तु. अतिशयोक्‍ति।

अत्युत्‍तम - (वि.) (तत्.) - बहुत उत्‍तम, श्रेष्‍ठ(तम) टि. ‘उत्‍तम’ शब्द व्युत्पत्‍ति की दृष्‍टि से अतिशय कोटि superlative degree का सूचक होने पर भी प्राय: इसी अर्थ में ‘अत्युत्‍तम’ शब्द भी उसी तरह प्रचलित है जैसे ‘सर्वश्रेष्‍ठ’। इस दृष्‍टि से ‘उत्‍तम’ और ‘श्रेष्‍ठ’ शब्द अर्थोपकर्ष के उदाहरण माने जा सकते हैं।

अथ- - (अव्य.) (तत्.) - आरंभ करने के लिए प्रयुक्‍त (मांगलिक) शब्द। पुं. प्रारंभ आदि। वाणि. अथशेष (लेखे की आरंभिक प्रविष्‍टि जो प्राय: पिछले पृष्‍ठ की अंतिम जोड़/बाकी वाली संख्या होती है।) विलो. इति

अथक - (वि.) (तद्.) - न थकने वाला; बिना थके (लगातार किया जाने वाला) उदा. अथक परिश्रम के फलस्वरूप उसने परीक्षा में प्रथम स्थान प्राप्‍त किया।

अथर्ववेद - (पुं.) (तत्.) - चार वैदिक संहिताओं में से अंतिम संहिता। चार वेद हैं-ऋग्वेद, यजुर्वेद, सामवेद और अथर्ववेद।

अथवा - (अव्य.) (तत्.) - एक योजक शब्द जो दो या दो से अधिक कथनों (शब्दों, उपवाक्यों, वाक्यों) में पार्थक्य सूचित करता है। जैसे : कोई कविता अथवा गीत सुनाओ। पर्या. या

अथाह - (वि.) (तत्.) - जिसकी थाह न ली जा सके यानी गहराई न नापी जा सके, बहुत अधिक गहरा। जैसे : अथाह सागर, अथाह ज्ञान।

अदद - (पुं.) (अर.) - अंक, संख्या, गिनती, तादाद, मात्रा। जैसे : एक अदद = गिनती में एक।

अदना - (वि.) (अर.) - बहुत ही साधारण, तुच्छ। उदा. आपके सामने मेरी क्या औकात? मैं तो अदना-सा आदमी हूँ। विलो. आला।

अदब - (पुं.) (अर.) - 1. शिष्‍ट या सभ्य होने का भाव। पर्या. शिष्‍टता, सभ्यता, तमीज़ 2. बड़ों के प्रति आदर का भाव पर्या. आदर, सम्मान। तु. आदाब- व्यु. बहुत सम्मान, सा.अर्थ सादर नमस्ते।

अदमनीय - - दे. अदम्य

अदम्य - (वि.) (तत्.) - जिसका दमन न किया जा सके। जिसको दबाया न जा सके, जिसे वश में न किया जा सके। पर्या. प्रबल, अदमनीय।

अदरक/अदरख - (पु.) (तद्.) - आर्द्रक, एक पौधा जिसकी जड़ का रस तीखे और चरपरे स्वाद वाला होता है, तथा जिसका उपयोग दवा के रूप में भी होता है। इस जड़ का प्रसंस्कृत शुष्क रूप सौंठ कहलाता है। ginger

अदूरदर्शिता - (स्त्री.) (तत्.) - दूर की न सोच सकने का सूचक भाव, नासमझी।

अदल-बदल - (पुं.) (देश.) - पूर्वपद अनु. एक के स्थान पर दूसरा रखना, परस्पर परिवर्तन।

अदला-बदली - (स्त्री.) (देश.) - एक-दूसरे के साथ वस्तुओं का बदला जाना।

अदहन - (पुं.) (तद्. < आदहन) - वह पानी जो चावल, दाल आदि को पकाने के लिए पहले गरम किया जाता है।

अदा करना - (स.क्रि.) (अर.) - 1. चुकता करना, भुगतान करना, कर्ज की अदायगी (चुकाना); 2. कर्त्तव्य निभाना, पूरा करना। जैसे : फर्ज़ अदा करना; नमाज़ अदा करना।

अदा - (स्त्री.) (अर.) - हावभाव, (स्त्रियों के) नखरे, भावभंगिमा।

अदाइगी - (स्त्री.) - दे. अदायगी

अदाकार - (वि./पुं.) (फा.) - (कलाकारी) प्रस्तुत करने वाला, अभिनेता actor

अदाकारी - (स्त्री. ) (फा.) - मंच पर या फिल्मों में किसी पात्र विशेष के चरित्र को निभाने की कला, अभिनय acting अदा (प्रस्तुत) करने की कला।

अदायगी - (स्त्री.) (अर.) - चुकाने/भुगतान करने का सूचक भाव। जैसे : तुम अपने कर्ज़/फर्ज़ की अदायगी कब कर रहे हो?

अदालत - (स्त्री.) (अर.) - कानूनी मामलों की सुनवाई करने वाले व्यक्‍ति और उनके बैठने का स्थान। पर्या. न्यायालय, कचहरी court

अदावत - (स्त्री.) (अर.) - दुश्मनी, शत्रुता, वैर।

अदीन - (वि./पु.) (अर.) - साहित्‍यकार, कलाकार।

अदूरदर्शितापूर्ण - (वि.) (तत्.) - (ऐसा कार्य या व्यवहार) जिसमें दूरदर्शिता का उपयोग न किया गया हो; नासमझी भरा।

अदूरदर्शी - (वि.) (तत्.) - व्‍यक्‍ति जो दूर की बात न सोच सके, भावी परिणाम के बारे में समय पर विवेकपूर्ण दृष्‍टि न रखने वाला, नासमझ। विलो. दूरदर्शी।

अदृश्य - (वि.) (तत्.) - 1. जो दिखाई न पड़े। 2. जो गायब हो गया हो, लुप्‍त।

अदृश्यता - (स्त्री.) (तत्.) - दिखाई न देने/पड़ने का सूचक भाव।

अदृष्‍ट - (वि.) (तत्.) - जिसे देखा न हो अथवा जिसे देखा न जा सके, दृष्‍टि से परे। पुं.- भाग्य, प्रारब्ध, पूर्व जन्मों के संचित पाप-पुण्य जिनसे व्यक्‍ति वर्तमान जीवन में दु:ख-सुख भोगता है। destiny, fate, henck

अदेखा - (वि.) (तद्.<अदृष्‍ट) - 1. जिसे अभी तक देखा न गया हो। जैसे : वह व्यक्‍ति तो मुझे अदेखा सा लगा। 2. गुप्‍त, अप्रत्यक्ष, न देखे जाने योग्य। 3. जिसने देखा न हो या जो अन्यमनस्कता के कारण देखकर भी न देखने जैसा व्यवहार करता हो। जैसे : वे सब तो मुझे देखकर भी अदेखे बने रहे।

अद्धा - (वि.) (तद्.) - अर्द्ध, किसी चीज़ का आधा भाग। पु. (लोकप्रचलन में) आधे लिटर वाली शराब की बोतल, तु. पव्वा।

अद्भुत - (वि.) (तत्.) - ऐसी बात जिसे देखकर या सुनकर मन में आश्‍चर्य हो जाए कि यह क्या है या कैसे है। पर्या. आश्‍चर्यजनक, विलक्षण, अनोखा, विचित्र। पुं. नवरसों में से एक रस जो आश्‍चर्य का भाव व्यंजित करता है।

अद्य - (पुं.) (तत्.) - 1. पाप, बुरा काम, दुष्कर्म, अशौच। 2. कंस का एक सेनापति।

अद्यतन - (वि.) - 1. आज तक की। 2. नवीनतम धारणाओं व विचारों के अनुरूप। पर्या. अधुनातन, अद्यावधिक विलो. पुरातन uptodate तु. नवीनतम latest उदा. आपके काम की अद्यतन स्थिति बताइए। 2. आप अपने विचारों को अद्यतन कर लें तो अच्छा होगा।

अद्रि - (पुं.) (तत्.) - पर्वत, पहाड़।

अद्वितीय - (वि.) (तत्.) - जिसके बराबर का कोई दूसरा न हो, बेजोड़।

अद्वै - (पुं.) (वि.) - जीव-ब्रह्म या जड़-चेतन की एकता का भाव। दर्श. द्वितीय-रहित, एकाकी।

अद्वैतवाद - (पुं.) (तत्.) - शा.अर्थ द्वैत रहित। दर्श. जीव और ब्रह्म में अभेद बताने वाला आद्य शंकराचार्य द्वारा प्रतिपादित दर्शन। (मॉनिज़्म)

अद्वैतवादी - (वि/.पु.) (तत्.) - अद्वैतवाद के सिद्धांतों में आस्था रखने वाला; अद्वैतवाद का अनुयायी।

अधकचरा - (वि.) (तद्. < अर्ध+कच्चर) - शा.अर्थ आधा कच्चा-आधा पका, अधूरा। सा.अर्थ योग्यता आदि में अपूर्ण, अधूरी जानकारी रखने वाला। जैसे : अधकचरा ज्ञान।

अधखिला - (वि.) तद् (अर्ध+खिला <खिलना) - जो आधा खिला हुआ हो, यानी जो पूरा न खिला हो, जो पूरी तरह से विकसित न हुआ हो। जैसे : अधखिला फूल।

अधगला - (वि.) (देश) - आधा गला हुआ यानी कम पका हुआ; आधा पका हुआ; जो न तो पूरी तरह कच्चा हो और न ही पूरी तरह पका। जैसे : बिटिया के द्वारा पकाया गया साग तो अधगला ही रह गया है 2. आधा सड़ा हुआ जैसे : यह साग तो अधगला है, खाने योग्‍य नहीं है।

अधनंगा - (वि.) (तद्. - शा.अर्थ आधा नंगा यानी (व्यक्‍ति) जिसने शरीर पर बहुत ही कम यानी नग्नता छिपाने भर के लिए कपड़े पहन रखे हों। 2. ऐसा शरीर जो कम कपड़ों में ढका हो।

अधन्ना - (पु.) (तद्. अधा) - आधे आने का सिक्का। टि. पहले एक रूपए में सोलह आने होते थे और एक आने में चार पैसे। इसलिए ‘अधन्‍ना का मतलब पुराने दो पैसे होता है।

अधन्नी - (स्त्री.) (तद्) - आधे आने का पुराना सिक्का। दे. अधन्‍न।

अध:पतना - (पु.) - 1. नीचे की ओर गिरना, या पतित होना। 2. स्त्री. दुर्दशा, दुर्गति। 3. अवनति।

अधम - (वि.) (तत्.) - 1. नीच, पापी, हीन या दुष्‍ट 2. निम्नकोटि का।

अधमरा - (वि.) (तद्. < अर्धमृत) - टि. संस्कृत में यह शब्द प्रयुक्‍त नहीं है। 1. आधा मरा हुआ, यानी मरे हुए जैसा, मृतप्राय; जिसे देखकर मरे हुए होने का भ्रम हो। 2. इतना निर्जीव-सा कि लगभग मरा हुआ लगे। जैसे : चोर को पीट-पीट कर लोगों ने ‘अधमरा’ कर दिया था।

अधयक्षता - (स्त्री.) (तत्.) - 1. किसी सभा, सदन और कार्यालय आदि के कार्य-संचालन और नियमन का कर्त्तव्य-निर्वाह। 2. अध्यक्ष का पद।

अधर - (पुं.) (तत्.) - 1. निचला होंठ (अधरोष्‍ठ) 2. नधरा=अधरा (जो धरा=पृथ्वी नहीं है यानी पृथ्वी और स्वर्ग के बीच का रिक्‍त स्थान, आकाश, आसमान) मुहा. अधर में झूलना-अनिश्‍चय की दशा में रहना।

अधर्म - (पु.) (तत्.) - धर्म और शास्‍त्र-विरोधी कार्य या आचरण। दुष्कर्म, अन्याय, दुराचार, बुरा काम।

अधातु- - (वि.) (तत्.) - रसा. (तत्व) जो धातुओं के गुणधर्म प्रदर्शित नहीं करता। उदा. ऑक्सीजन, नाइट्रोजन, कार्बन, गंधक, फास्फोरस आदि। non-metal तु. धातु।

अधात्विक - (वि.) (तत्.) - दे. अधातु।

अधार्मिक - (वि.) (तत्.) - जो धार्मिक न हो, धर्म के बंधन को न मानने वाला; अधर्मी; पापी।

अधिक - (वि.) (तत्.) - 1. ज़्यादा, उदा. वहाँ सौ से अधिक लोग इकट्ठे थे। विलो. कम। 2.अतिरिक्‍त, बढ़ा हुआ। जैसे : अधिक आयु, अधिक कोण।

अधिकतम [अधिक+तम] - (वि.) (तत्.) - नियत संख्या में तुलना में सबसे ज्यादा; अधिक से अधिक। (-तम-अतिशय कोटि)

अधिकतर - (वि.) (तत्.) - नियत संख्या की तुलना में कुछ ज्यादा; अपेक्षा से अधिक। (तर तुलनकोटि) जैसे : यहाँ अधिकतर लोग पैसे वाले हैं। टि. तुलना के लिए ‘अधिकांश’ शब्द देखें। (अधिक+तम)

अधिकता - (स्त्री.) - नियत संख्या से कुछ या बहुत ज्यादा होने की स्थिति। बहुतायत। पर्या. आधिक्य।

अधिकरण कारक - (पुं.) (तत्.) - व्या. ‘मैं’ -क्रिया के आधार का बोधक संज्ञा रूप। जैसे : लडक़ा घर में है, किताब मेज़ पर है, क्रमश: घर, मेज़। हिंदी में ‘में’ ‘पर’ ‘को’ अधिकरण कारक के चिह्न हैं।

अधिकरण - (पु.) (तत्.) - 1. आधार, आश्रय, सहारा। विधि- सामान्य न्यायालयों से भिन्न अर्धन्यायिक कार्यालय जो किसी विषय के पक्ष-विपक्ष पर न्यायिक रीति से विचार कर अपने निर्णय को सिफारिश के रूप में सूचित करे। tribunal

अधिकांश - (वि./पुं.) (तत्.) - नियत मात्रा का एक बड़ा हिस्सा या भाग। टि. ‘अधिकांश’ शब्द मात्रात्मक कोटि होने पर भी अगणनीय संख्यावाचक हैं; जबकि ‘अधिकतर’ गणनीय कोटि के संज्ञा शब्दों के लिए प्रयुक्‍त होता है।

अधिकार - (पुं.) (तत्.) - 1. विधि के अधीन नागरिक को प्राप्‍त हक, शक्‍ति आदि जिसकी रक्षा के लिए न्यायपालिका की व्यवस्था होती है right जैसे : मानवाधिकार। वैधानिक तरीके से प्राप्‍त शक्‍ति, प्रभुत्व। टि. इसके लिए तकनीकी शब्द ‘प्राधिकार’ प्रयुक्‍त होता है। authority 2. किसी वस्तु पर प्रकट स्वामित्व। जैसे : कश्मीर का एक बड़ा भाग पाकिस्तान के अधिकार में है। possession 3. ऐसा ज्ञान जिसको प्रामाणिक माना जाता हो, विषम का संपूर्ण ज्ञान। जैसे : भाषा पर अधिकार, वे गणित के अधिकारी व्यक्‍ति हैं। command

अधिकारिता - (स्त्री.) (तत्.) - किसी विचारणीय विषय, भू-क्षेत्र अथवा कार्यक्षेत्र पर आधिकारिक निर्णय कर सकने हेतु प्राप्‍त शक्‍ति। juridiction

अधिकारी - (पुं.) (तत्.) - शा.अर्थ प्राप्‍त व्यक्‍ति।, हकदार (स्त्री. -अधिकारिणी) 2. स्वामी, मासिक, 3. वह कर्मचारी जो किसी पद के दायित्वों का निर्वाह करता हो, अफ़सर officer वि. -अधिकार रखने वाला, अधिकार प्राप्‍त।

अधिकृत - (वि.) (तत्.) - 1. जो किसी काम को करने के लिए अधिकार प्राप्‍त हो। 2. जिस पर अधिकार कर लिया गया हो।

अधिकेंद्र - (पुं.) (तत्.) - भूतल का वह (केंद्रीय) स्थान जहाँ भूकंप का प्रभाव सबसे अधिक महसूस किया जाता है और फिर तरंगों के रूप में चारों ओर फैलता चला जाता है epicentrum

अधिक्रम - (पुं.) (तत्.) - किसी ज्ञात क्रम में तत् संबंधी घटकों का पूर्व-निर्धारित सुनिश्‍चित क्रम।

अधिक्रमण - (पुं.) (तत्.) - 1. पूर्व निर्धारित क्रम में उल्लंघन। supersession 2. किसी वस्तु या स्थान पर अनधिकृत या अवैध रूप से कब्जा करना/अधिकार जमाना।

अधिगत - (वि.) (तत्.) - 1. प्राप्‍त, 2. ज्ञात।

अधिगम - (पुं.) (तत्.) - शिक्षा. अनुभवजन्य और अभ्यास। साघ्य ज्ञान प्राप्‍त करने या कौशल अर्जित करने की प्रक्रिया जिसके आधार पर व्यक्‍ति/विद्यार्थी के व्यवहार में सापेक्षिक रूप से स्थायी परिवर्तन या सुधार आता है। पर्या. सीखना learning

अधिग्रहण - (पुं.) (तत्.) - सत्‍ता द्वारा सार्वजनिक हित में किसी भी संपत्‍ति को नियत अवधि के लिए कब्ज़े में लेना। requisition तु. अर्जन।

अधित्यका - (स्त्री.) (तत्.) - पहाड़ के ऊपर की समतल भूमि, गिरिप्रस्थ, ऊँचा पहाड़ी मैदान। पर्या. पठार। तु. उपत्यका।

अधिदेश - (पु.) (तत्.) - किसी उच्च अधिकारी या न्यायाधीश द्वारा अपने अधीनस्थ अधिकारी या कर्मचारी को कार्य करने के ढंग या किसी व्यवस्था के सबंध में दिया गया आदेश। mandate

अधिनायक - (पु.) (तत्.) - जनतांत्रिक पद्धति से प्राप्‍त सत्‍ता की तुलना में सैन्य शक्‍ति के बल पर बन बैठा किसी देश का संपूर्ण प्रभुता संपन्न शासक। dictatorship

अधिनायकता/ अधिनायकत्त्व - (स्त्री.) (तत्.) - अधिनायक का शासन। dictatorship दे. अधिनायक

अधिनायकवाद - (पुं.) (तत्.) - राज. अधिनायक की सत्‍ता का समर्थक राजनीतिक सिद्धांत। dictatorship, dictatorism

अधिनियम - (पुं.) (तत्.) - नियम संसद अथवा विधानमंडल द्वारा पारित वह विधि (कानून) जिसके अनुसार नियम बनाना कार्यपालिका का, जिसका पालन करना नागरिकों का कर्त्‍तव्य है और जिसका पालन सुनिश्‍चित करवाना न्यायालय का अधिकार और कर्त्तव्य है। act तु. नियम rule

अधिपति - (पुं.) (तत्.) - 1. स्वामी, मालिक 2. शासक; राजा, नरेश। तु. अधिनायक।

अधिभार - (पु.) (तत्.) - 1. प्रशा. किसी विशेष कार्य के लिए लगाया गया अतिरिक्‍त शुल्क। surcharge 2. भौ. यंत्र या उपकरण के अनुमत निर्गम भार से अधिक भार। overload उदा. लिफ्ट में अधिभार हो तो उसका चालन प्रभावित हो जाता है।

अधिभाष - (स्त्री.) (तत्.) - 1. वह भाषा जिसके माध्यम से अन्य भाषाओं के प्रतीकों के गुणधर्मों का वर्णन किया जाता है। 2. तकनीकी शब्दों से युक्‍त वह भाषा जिसका प्रयोग किसी भाषा के विवेचन एवं विश्‍लेषण के उद्देश्य से किया जाता है। (जैसे : व्याकरण की भाषा) matalanguage

अधिमास - (पुं.) (तत्.) - शा.अर्थ अधिक महीना, चांद्रमास की गणना वाले पंचांग में जोड़ा गया अधिक महीना। मलमास-लौंद का महीना। टि. जिस चांद्रमास में सूर्य संक्रांति नहीं होती, वह मास अधिक मास के रूप में माना जाता है। इस प्रकार उस एक वर्ष में तेरह चांद्रमास हो जाते हैं। तु. क्षयमास।

अधिमुद्रण - (पुं.) (तत्.) - किसी पुस्तक या पत्र-पत्रिका का नियत संख्या से अधिक संख्या में छापा जाना।

अधिया - (पुं.) (तद्.<आधा) - आधा भाग। खेती का एक तरीका, जिसमें खेती की उपज का आधा भाग खेत के मालिक को और आधा भाग खेतिहर मजदूर को मिलता है। उदा. उसने अपना खेत अधिये/अधिए पर दे रखा है।

अधिवकत्‍ता - (पुं.) (तत्.) - उच्च और उच्चतर न्यायालय में वादी या प्रतिवादी का पक्ष प्रस्तुत करने वाला कानूनविद्/वकील। advocate

अधिवर्ष - (पुं.) (तत्.) - वह वर्ष जिसमें फरवरी का महीना 28 के स्थान पर 29 दिनों का होता है leapyear

अधिवृक्क - (स्त्री.) (तत्.) - वृक्क (गुर्दा) से लगी हुई अंत:स्रावी ग्रंथि जिससे एड्रिनैलिन नामक महत्वपूर्ण हार्मोन स्रवित होता है। adrenal gland

अधिवेशन - (पुं.) (तत्.) - किसी संस्था या संगठन के अधिकतम सदस्यों का नियतकालिक समारोह। जलसा, सभा, सम्मेलन। session

अधिशासी अभियंता - (पु.) (तत्.) - वह अभियंता/ इंजीनियर जिसकी देख-रेख में अनेक निर्माण-कार्य होते हैं। executive engineer

अधिशासी - (पुं.) (तत्.) - प्रधान कार्यकारी अधिकारी। जैसे : अधिशासी अभियंता।

अधिष्‍ठाता - (पु.) (तत्. < अधिष्‍ठात्) - (स्त्री.-अधिष्‍ठात्री)1. व्यक्‍ति जिसके हाथ में अधिकार अथवा कार्य का भार हो, प्रमुख नियामक, अध्यक्ष 2. आधुनिक प्रयोग डीन 3. प्रधान, मुखिया। 4. ईश्‍वर, परमात्मा।

अधिष्‍ठान - (पुं.) (तत्.) - 1. रहने या ठहरने का स्थान। 2. वासस्थान, 3. पड़ाव 4. संस्थान या संस्था। 5. अधिकार, सत्‍ता।

अधिसूचना [अधि+सूचना] - (स्त्री.) (तत्.) - विशेषत: राजपथ में प्रकाशित होने वाली अधिकारिक सूचना। notification

अधिसूचित - (वि.) - जो आधिकारिक रूप से जारी या प्रकाशित की गई हो। notified दे. अधिसूचना।

अधिसूचित - (पुं.) (तत्.) - किसी कार्यालय के लिपिकवर्गीय कर्मचारियों अथवा कनिष्‍ठ तकनीकी कार्यकर्ताओं के काम पर निगरानी रखने वाले अधिकारी का पदनाम। superintendent

अधीन - (वि.) (तत्.) - (व्यक्‍ति या संस्था) जो किसी अन्य के नियंत्रण में हो। पर्या. अधीनस्थ।

अधीनता - (स्त्री.) (तत्.) - किसी के अधीन या नियंत्रण में होने की स्थिति का सूचक भाव। परतंत्रता, परवशता।

अधीनस्थ - (वि.) (तत्.) - किसी शक्‍ति प्राप्‍त व्यक्‍ति या कार्यालय के नीचे कार्य करने वाला। जैसे : अधीनस्थ अधिकारी, अधीनस्थ कार्यालय, अधीनस्थ न्यायालय। subordinate

अधीर - (वि.) (तत्.) - 1. जिसमें धैर्य रखने की क्षमता न हो, धैर्यरहित, घबराया हुआ, व्याकुल, बैचेन, उतावला। (भाव.) अधीरता

अधीर - (क्रि.वि.) (तत्.) - 1. वर्तमान में, 2. आजकल, 3. इन दिनों, 4. संप्रति

अधूरा - (वि.) तद्.<अर्धपूर (अर्धपूर्ण) - जो पूरा न हो, अपूर्ण, अधकचरा। जैसे : अधूरा ज्ञान। स्त्री. अधूरी! भाव. अधूरापन।

अधेड़ - (वि. / पुं. ) (तद्.< अर्धवयस् / अर्धवृद्ध) - जवानी और बुढ़ापे के बीच की उम्र वाला (व्यक्‍ति), ढलती उम्र का यानी पचास वर्ष से ऊपर की उम्र का (व्यक्‍ति)।

अधेला - (पुं.) (तद्.< अर्धपण) - पुराने जमाने का आधा पैसा।

अधेली - (स्त्री.) - एक रुपए के आधे मूल्य का सिक्का, अठन्नी।

अधोगति - (स्त्री.) (तत्.) - शा. अर्थ नीचे की ओर जाना। सा. अर्थ 1. पतन, गिरावट 2. दुर्दशा।

अधोमुख - (वि.) (तत्.) - 1. नीचे की ओर मुँह किए हुए। 2. मुँह के बल।

अधोरेखा - (स्त्री.) (तत्.) - शब्द, वाक्य आदि के नीचे खींची गई रेखा जो उस शब्द या वाक्य को अन्य शब्दों या वाक्यों की तुलना में प्रमुखता प्रदान करती है। underline

अधोलोक - (पु.) (तत्.) - शा. अर्थ नीचे का लोक सा. अर्थ पाताल (लोक)।

अधोवस्त्र - (पुं.) (तत्.) - 1. कमर के नीचे पहने जाने वाले वस्त्र। जैसे : धोती, लुंगी, जाँघिया। 2. ऊपर पहने जाने वाले वस्त्र के नीचे पहने जाने वाला वस्त्र, जैसे : बनियाइन। undergarments

अधोवायु - (स्त्री.) (तत्.) - गुदा से निकलने वाली वायु, अपानवायु (पाद)।

अधोहस्ताक्षरी - (वि./पुं.) (तत्.) - किसी सरकारी पत्र के नीचे हस्ताक्षर करने वाला (अधिकारी) undersigned

अध्यक्ष - (पु.) (तत्.) - किसी सभा, सदन और आयोग के कार्यालय के कार्य-संचालन और नियमन के कर्त्तव्य का निर्वाह करने वाला व्यक्‍ति या अधिकारी। Chairperson, Speaker (लोकसभा)

अध्यक्षता - (स्त्री.) (तत्.) - 1. किसी सभा, सदन और कार्यालय आदि के कार्य-संचालन और नियमन का कर्तव्‍य-निर्वाह 2. अध्‍यक्ष का पद।

अध्ययन - (पु.) (तत्.) - ज्ञान प्राप्‍ति के लिए किसी विषय को अच्छी तरह से पढ़ना और समझने का प्रयत्‍न करना। पर्या. पढ़ाई, पठन-पाठन study

अध्ययनशील - (वि.) - पढ़ने में अपेक्षित रुचि रखनेवाला।

अध्ययनावकाश - (पुं.) (तत्.) - किसी कर्मचारी/अधिकारी को विशेष अधययन या पढ़ाई के लिए मिलने वाला अवकाश या छुट्टी। study leave

अध्यवयाय - (पुं.) (तत्.) - लगनपूर्वक काम में लगे रहना; निरंतर परिश्रम करते रहना।

अध्यवसायी - (वि.) (तत्.) - अध्यवसाय करने वाला, लगातार परिश्रम या उद्योग करने वाला। diligent

अध्यात्म - (पु.) (तत्.) - मनुष्य के शरीर में स्थित आत्मा एवं ब्रह्म की सत्‍ता से संबंधित चिंतन।

अध्यादेश - (पुं.) (तत्.) - (संसद अथवा विधानमंडल के विश्रांतिकाल में) कार्यपालिका द्वारा राष्ट्रपति/राज्यपाल के नाम पर प्रख्यापित आदेश। (जो अंतरिम व्यवस्था के रूप में पारित विधि के समान माना जाता है) ordinance

अध्यापक - (पुं.) (तत्.) - वह जो दूसरों को, विशेषत: विद्यार्थियों को पढ़ाता हो। शिक्षण कार्य करने वाला। पर्या. शिक्षक, उस्ताद।

अध्यापकी - (स्त्री.) (तत्.) - पढ़ाने का व्यवसाय, शिक्षण-कार्य। tearchership

अध्यापन - (पुं.) (तत्.) - 1. मुख्यत: विद्यार्थियों को पढ़ाने का कार्य। 2. अध्‍यापक का व्यवसाय (पेशा) teaching

अध्यापिका - (स्त्री.) (तत्.) - वह महिला जो पढ़ाने का कार्य करती है। पर्या. शिक्षिका lady teacher, female teacher

अध्याय - (पुं.) (तत्.) - किसी पुस्तक या ग्रंथ का वह संख्यांकित भाग जिसमें किसी विषय विशेष का सम्यक् विवेचन होता है।

अध्येता - (पुं.) (तत्.) - अध्ययन करने वाला; पढ़ने वाला। learner

अनंत [अन्+अंत] - (वि.) (तत्.) - 1. जिसका अंत न हो, अंतहीन, शाश्‍वत। जैसे : अनंत आकाश infinite गणि. एक अपरिमित राशि। इसे शून्‍य (00) चिह्न से व्‍यक्‍त किया जाता है।

अनंतर [अन्+अंतर] - (वि.) (तत्.) - 1. बिना अंतर के, अंतररहित, लगातार, निरंतर। 2. समीप वाला। अव्य. 1. तुरंत बाद में, 2. पीछे, पश्‍चात्।

अनंतिम [अन्+अंतिम] - (वि.) (तत्.) - जो अंतिम रूप में गृहीत न हो, यानी भविष्य में (आगे चलकर) जिसमें परिवर्तन किया जाना संभव हो। तु. अंतिम। provisional

अन - (क्रि.वि.) (तत्.) - हिंदी उपसर्ग-तद्भव शब्दों के पहले लगकर अर्थ परिवर्तित कर देता है। जैसे : अनपढ़, अनकहा, अनजान। (तु. अ/अन्)

अनकहा - (स्त्री. वि.) (देश.) - (अनकही) बिना कहा हुआ, अकथित।

अनगढ़ (अन+गढ़=गढ़ा हुआ) - (वि.) (देश.) - बिना गढ़ा हुआ, जो अपने प्रकृत या मूल रूप में हो, बैडोल।

अनगिनत - (वि.) (देश.) - जिसे गिना न जा सके, अगणित, बहुत ज़्यादा।

अनचाहा [अन+चाहा=चाहना] - (वि.) (देश.) - जिसे चाहा न गया हो, जिसकी इच्छा न की गई हो। पर्या. अनिच्छित।

अनजान/अनजाना - (वि.) (देश.) - जिसे कोई जानता या पहचानता न हो। पर्या. अनजान उदा. कल मेरे घर में एक अनजाना व्यक्‍ति घुस आया।

अनजाने - (क्रि.वि.) - (अनजान) बिना जाने, अनजान में। उदा.-अनजाने में मुझसे यह गलती हो गई। इसके लिए माफी माँगता हूँ। (टि. यह ‘अनजाने’ का प्रयोग संज्ञावत् हुआ है।)

अनत - (वि.) (तद्.) - दे. अन्यत्र

अनतिक्रमणीय - (वि.) (तत्.) - जिसका अतिक्रमण अर्थात उल्लंघन न किया जा सके।

अनथक - (अव्य.) (देश.) - बिना थके हुए।

अनदेखा - (वि.) (देश.) - स्त्री. अनदेखी) बिना देखा हुआ, न देखा हुआ; अपरिचित। जैसे : अनदेखे चेहरे। तु. अनसुना। स.क्रि. अनदेखा करना = ध्यान न देना, अवहेलना करना। उदा. तुमने मेरी बात को देखा-अनदेखा कर दिया, यह ठीक नहीं है।

अनधिकार - (वि.) (तत्.) - बिना अधिकार/प्राधिकार के। जैसे : अनधिकार चेष्‍टा। अनधिकार प्रवेश। पु. प्राधिकार का अभाव।

अनधिकारिक - (वि.) (तत्.) - गैर सरकारी। जैसे : अनधिकारिक टेस्ट शृंखला।

अनधिकृत बस्ती - (स्त्री.) (तत्.+तद्.) - नगर-योजन town planning के मान्य नियमों का अनुपालन न करते हुए यानी अवैध तरीके से बसा दिए गए आवासीय समूह।

अनधिकृत - (वि.) (तत्.) - आधिकारिक अनुमति या अनुमोदन प्राप्‍त किए बिना। जैसे : अनधिकृत कालोनी। विलो. अनुमोदित।

अनन्नास - (पुं.) (पुर्त. अनानास) - अनानास कोमोसुस’ नामक उष्णकटिबंधीय पादप (वृक्ष) पर लगने वाला मोटी गाँठ जैसा, सरस फल जिसका कठोर छिलका मोटी आँखों जैसी रचना वाला होता है तथा बीजयुक्‍त गूदा पीले रंग का होता है और पकने पर उसे काटकर खाया जाता है। pineapple

अनन्य [अन्+अन्य] - (वि.) (तत्.) - 1. जिसका संबंध किसी अन्य से (दूसरे से) न हो, अद्वितीय। जैसे : अनन्य शक्‍ति(याँ) 2. गहरा संबंध रखने वाला, एकनिष्‍ठ, अभिन्न, एक में ही लीन। जैसे : अनन्य मित्र, अनन्य भक्‍ति।

अनपचा [अन्+पचा < पचना] - (वि.) (देश.) - (भोज्य पदार्थ) जो पूरी तरह से न पचा हो।

अनपढ़ [अन+पढ़ < पढ़ना] - (वि.) (देश.) - जो पढ़ना (लिखना भी) न जानता हो, जो पढ़ा-लिखा न हो। illiterate पर्या. निरक्षर, अपढ़। तु. अशिक्षित।

अनबन - (स्त्री.) (देश.) - (संबंधों में) बिगाड़, विरोध; खटपट। उदा.-कौरवों और पांडवों के बीच की अनबन ने अंत में युद्ध का रूप ग्रहण कर लिया।

अनबूझ [अनबूझा+बूझना=समझना] - (वि.) (देश.) - जिसे बूझना यानी समझना असंभव भले ही न हो, पर कठिन अवश्य हो। जो समझदार न हो जैसे : अनबूझ पहेली। पर्या. नासमझ, नादान।

अनबोला/अबोला - (पुं.) - परस्पर बातचीत न होने की स्थिति।

अनब्याहा [अन्+ब्याहा < ब्याहना=विवाह होना] - (वि.) (देश.) - जिसका विवाह न हुआ हो, विवाह के बिना। अविवाहित उदा. कई व्यक्‍ति अनब्याहे ही अपना जीवन बिता लेते हैं।

अनभिज्ञ [अन्+अभि+ज्ञ] - (वि.) (तत्.) - 1. जिसे (विषय का) ज्ञान न हो, अनजान। 2. अपरिचित, नावाकिफ़। टि. कुछ लोग ‘अन’ को नकारात्मक उपसर्ग (जैसे : अनजान में) मानते हुए इस शब्द का विलोम ‘भिज्ञ’ बताते देखे गए हैं, पर वस्तुत: यहाँ ‘अन्’ उपसर्ग है जो, सकारात्मक ‘अभिज्ञ’ में जुड़ा है। इस बारे में उपयुक्‍त व्युत्पत्‍तिपरक सावधानी अपेक्षित है।

अनभिज्ञता (अन्+अभिज्ञता) - (स्त्री.) (तत्.) - जानकारी या परिचय का अभाव। कानून की अनभिज्ञता (जानकारी न होना) उससे बचने का रास्ता नहीं है।

अनमना - (वि.) (तद्.) - (स्त्री. अनमनी) जिसका मन ठीक तरह से किसी काम में न लग रहा हो। तु. अन्यमनस्क। अन्यमनस्क, जिसका मन या ध्यान किसी और तरफ़ हो।

अनमना - (वि.) (तद्. < अन्यमनस्क) - जिसका मन कहीं न लग रहा हो या उस कार्य में न लगे जो वह कर रहा है। तु. – अन्यमनस्क।

अनमेल/अमेल - (वि.) (तद्.) - जिसका मेल न बैठता हो, बेमेल। जैसे : अनमेल विवाह (बूढ़े पुरूष और कम उम्र की कन्या का विवाह, पढ़े-लिखे से अनपढ़ का विवाह आदि)

अनमोल [अन+मोल] - (वि.) (तद्.) - (वह वस्तु) जिसका मूल्य इतना अधिक हो कि सर्वसाधारण के खरीद की कल्पना से परे हो; बहुमूल्य। यानी जिसका मूल्य आँका न जा सके।

अनर्गल [अन्+अर्गल] - (वि.) (तत्.) - मूल अर्थ बिना अर्गला (रुकावट) के, निर्बाध, अबाध। विकसित अर्थ (अनादरसूचक) बिना रोक-टोक के, अनियंत्रित, विचारहीन जैसे : अनर्गल प्रलाप।

अनर्त - (पुं.) (तत्.) - दे. आनर्त।

अनर्थ [अन्+अर्थ] - (पुं.) (तत्.) - शा.अर्थ उल्टा अर्थ। सा.अर्थ अनुचित अथवा बहुत बुरी घटना। उदा. इस परिवार में एक ही कमाने वाला था जिसकी मृत्यु हो गई। इससे बड़ा अनर्थ और क्या हो सकता है।

अनर्थकारी - (वि.) (तत्.) - अनर्थ करने वाला/वाली, बहुत अधिक हानि पहुँचाने वाला/वाली। जैसे : अनर्थकारी बाढ़।

अनल - (पुं.) (तत्.) - अग्नि, आग।

अनवरत [अन्+अव+रत] - (क्रि.वि.) (तत्.) - लगातार होने वाला। जैसे : अनवरत प्रयत्‍न, अनवरत अध्ययन। लगातार, सतत् निरंतर। उदा. वह अनवरत पढ़ता रहा इसलिए सफल हो गया; वह अनवरत चलता रहा इसलिए समय पर पहुँच गया।

अनवलंबित - (वि.) (तत्.) - जिसे सहारे की आवश्यकता न हो, जिसे किसी का सहारा सुलभ न हो, बेसहारा, निराधार, अनाश्रित। जैसे : पैतृक संपत्‍ति से युक्‍त वह पूरी तरह अनवलंबित है। 2. आश्रयहीन, निराश्रित। जैसे : वह अनवलंबित होते हुए ही अपना विकास कर रहा है।

अनशन [अन्+अशन=भोजन] - (पुं.) (तत्.) - किसी विशेष उद्देश्य से (प्राय: विरोध प्रदर्शन के लिए) बिना खाए रहना; भोजन का त्याग करना, निराहार रहना, अन्नग्रहण न करना।

अनसुना [अन+सुना] - (वि.) (देश.<अश्रुत) - बिना सुना हुआ, जिसे पहले सुना न गया हो। उदा. यह गीत अनसुना है। मुहा. सुना-अनसुना कर देना= किसी की कही बात को सुनने के बाद भी इस तरह व्यवहार करना जैसे उसने वह बात सुनी ही न हो। उपेक्षा करना, ध्यान न देना। (स्त्री. अनसुनी)

अनहोनी [अन+होनी] - (स्त्री.) (देश.) - ऐसी बात या घटना जो सामान्यत: नहीं होती; प्राकृतिक नियमों के विपरीत बात। विलो. होनी।

अनागत [अन्+आगत] - (वि.) (तत्.) - 1. जो न आया हो, न आया हुआ, अनुपस्थित। जैसे : अनागत छात्र। 2. भावी। उदा. अनागत भविष्य को कौन जान सकता है?

अनाज - (पुं.) (तद्.) - अन्न, गेहूँ, चावल, दाल, चना आदि के दाने, गल्ला। जैसे : हमारे देश में अनाज की कमी नहीं है, बस कमी है तो उसके रख-रखाव की। मुहा. अनाज का दुश्मन = बहुत अधिक खाने वाला, भुक्खड़।

अनाड़ी - (वि./पुं.) (तद्.<अनार्य) - (वह व्यक्‍ति) जो सामान्य व्यवहार में नासमझ या किसी विषय में बिलकुल ज्ञान न रखता हो। पर्या. अज्ञानी, नासमझ; भोंदू।

अनाथालय [अनाथ+आलय] - (पुं.) (तत्.) - शा.अर्थ अनाथों का/के लिए आश्रय-स्थल (घर)। अनाथ लोगों की देखभाल और पालन-पोषण इत्यादि के लिए स्थापित सार्वजनिक आवास-गृह।

अनादर [अन्+आदर] - (पुं.) (तत्.) - पात्रता के अनुसार आदर में कमी। पर्या. अपमान, बेइज्जती, अप्रतिष्‍ठा। उदा. आप भले ही अपने बड़े भाई का आदर न करें, पर आपसे इतनी तो अपेक्षा है ही कि कम-से-कम उनका अनादर तो न करें। तु. निरादर।

अनादि [अन्+आदि] - (वि.) (तत्.) - जिसका आदि न हो, जिसका प्रारंभ किसी को पता न हो; जो सदा से चला आ रहा हो। (परमात्मा का एक विशेषण)। जैसे : अनादि ब्रह्म।

अनाप-शनाप - (वि.) (तद्.< अनाप्‍त-अनु.) - अनाप : 1. अन्+आप्‍त = अविश्‍वस्त या अप्रामाणिक व्यक्‍ति जैसा 2. अ+नाप = नापतौल के बिना। शनाप 1. अनाप की अनुकरणमूलक द्विरूक्‍ति 2. स+नाप = नापतौल सहित (‘स’ का ‘श’ में परिवर्तन) सा.अर्थ 1. अविश्‍वस्त या अप्रामाणिक व्यक्‍ति की तरह यानी बेमतलब, बेतुका, बेसिरपैर का। 2. कुछ नापतौलकर तो अधिकतर नापतौल के बिना, यानी बेमतलब, बेतुका, बेसिरपैर का। उदा. वह शराब के नशे में अनाप-शनाप बकता रहा।

अनामिका - (स्त्री.) (तत्.) - शा.अर्थ बिना नाम वाली; जिसका कोई नाम न रखा गया हो। आयु. सबसे छोटी (कनिष्‍ठिका) और सबसे लंबी (मध्यमा) उंगली के बीच वाली उंगली जिसमें अंगूठी पहनी जाती है। ringfinger टि. अंगूठे (अंगुष्‍ठ) की ओर से क्रमश: चारों उंगलियों के नाम हैं-तर्जनी, मध्यमा, अनामिका और कनिष्‍ठा या कनिष्‍ठिका।

अनायास [अन्+आयास] - (क्रि.वि.) (तत्.) - 1. बिना प्रयास या प्रयत्‍न करे; आसानी से। उदा. मेरी पुस्‍तक खो गई थी, पर ढूँढने पर वह अनायास ही मिल गई। विलो. सायास। 2. अकस्‍मात्, अचानक। उदा. अनायास वर्षा से रास्‍ते में मैं तरबरत हो गया।

अनार - (पुं.) (फा.) - 1. उष्ण कटिबंधीय पादप और उसका फल जो गोलाकार जैसा होता है और जिसके कठोर रक्‍तिम गुलाबी छिलके के भीतर दंतपंक्‍ति जैसे बीज सहित दाने होते हैं। (दाड़िम) 2. मिट्टी के छोटे गोल कुल्हड़नुमा आवरण में दबे बारूद वाली एक आतिशबाजी जिसमें माचिस की जली हुई तीली लगाने पर फव्वारे की तरह शोर वाली ज्वाला निकलती है।

अनारदाना - (पु.) (फा.) - अनार के सुखाए दाने, जो खट्टे-मीठे होते हैं और दवाई एवं चटनी के काम में आते हैं।

अनार्य - (वि.) (तत्) - जो आर्य न हो; आर्येतर।

अनावरण [अन्+आवरण] - (पुं.) (तत्.) - पर्दा (आवरण) हटाना।

अनावरण समारोह - (पुं.) (तत्.) - समारोह जिसमें किसी महापुरुष की नवस्थापित मूर्ति/चित्र अथवा पुस्तक, भवन आदि ढके पर्दे या फीते को हटाकर/खोलकर/काटकर उसे लोकार्पित किया जाता है। वि. अनावृत = खुला; नंगा आदि। जैसे : अनावृत शरीर।

अनावश्यक [अन्+आवश्यक] - (वि.) (तत्.) - जो आवश्यक न हो, गैर-जरूरी, अनुपयोगी, व्यर्थ। जैसे : अनावश्यक खर्च।

अनावृष्‍टि [अन्=नहीं+ आ=पर्याप्‍त+ वृष्‍टि=वर्षा] - (स्त्री.) (तत्.) - पर्याप्‍त वर्षा का अभाव अर्थात बिलकुल वर्षा न होना। पर्या. सूखा। drought

अनावेशित (अनाविष्‍ट) [अन्+आवेशित] - (वि.) (तत्.) - battery जिसे चार्ज न किया गया हो। विलो. आवेशित (आविष्‍ट)। uncharged

अनिच्‍छा [अन्+इच्‍छा] - (स्त्री.) (तत्.) - इच्‍छा का अभाव, इच्‍छा न होने का भाव; जी न करना। उदा. उसने अनिच्‍छा से ही सही, तुम्‍हारा काम तो कर दिया।

अनित्य - (वि.) (तत्.) - जो सदा न रहे; मिटने वाला, नश्‍वर। उदा. मानव शरीर अनित्य है। विलो. नित्य।

अनियंत्रित - (वि.) (तत्.) - 1. जिस पर किसी प्रकार का नियंत्रण न हो; 2. नियंत्रण/प्रतिबंध रहित; स्वच्छंद; निरंकुश; मनमाना; बेकाबू। उदा. मेले में लोगों की भीड़ अनियंत्रित हो गई। विलो. नियंत्रित।

अनियमित [अ+नियम+इत] - (वि.) (तत्.) - 1. जो नियमित न हो; जो नियत समयानुसार घटित न हो। पर्या. नियमरहित, बेकायदा। उदा. उसका सोना-जागना सदा अनियमित रहा। 2. जिसमें नियमों का उल्लंघन किया जा रहा हो। पर्या. -अवैध। उदा. अनियमित निर्माण। 3. रुक-रुक कर होने वाला। उदा. -अनियमित वर्षा। (ईरेगुलर)

अनियमितता (अनियमित+ता) - (स्त्री.) (तत्.) - नियमित न होने का भाव। दे. अनियमित।

अनिल - - दे. वायु।

अनिल - (पुं.) (तत्.) - हवा, वायु, पवन।

अनिवार्य (अ+निवार्य) - (वि.) (तत्.) - 1. जिससे निवारण न हो सके, जिससे बचा न जा सके। essential 2. जिसे निवारित न किया जा सके, जिसे छोड़ा न जा सके। inavitable 3. जिसे करना या मानना आवश्यक हो। comulsory। तु. आवश्यक।

अनिवार्यता (अनिवार्य+ता) - (स्त्री.) (तत्.) - अनिवार्य होने का भाव, दे. अनिवार्य (कंपल्शन, नेसिसिरी)

अनिश्‍चय (अ+निश्‍चय) - (पुं.) (तत्.) - निश्‍चय का अभाव; संदेह। जैसे : अनिश्‍चय की स्थिति।

अनिषेकजनन - (पुं.) (तत्.) - लैंगिक/अलैंगिक से भिन्‍न जनन का वह प्रकार जिसमें निषेचन fertilization की क्रिया के बिना ही केवल मादा युग्‍मक से नए जीव उत्‍पन्‍न होते हैं। जैसे : मधुमक्षिका, बर्र, रोटीफर, एफिड आदि कुछ प्राणियों में नर सैक्‍स का बनना। दे. जनन। parthenogenesis

अनिष्‍ट [अन्+इष्‍ट] - (वि./पुं.) (तत्.) - शा.अर्थ नुकसान, विपत्‍ति। पुं. न चाहा गया परिणाम। जैसे: जापान में भूकंप आया और अनिष्‍ट हो गया।

अनीति [अ+नीत] - (स्त्री.) (तत्.) - जिसमें न्याय एवं औचित्य आदि का अभाव हो। पर्या. अन्याय।

अनु - (उप.) (तत्.) - एक उपसर्ग जो शब्द के पहले लगकर अर्थ परिवर्तित कर देता है। जैसे : (क) पीछे; बाद में। जैसे : अनुचर; अनुवाद। (ख) समान-अनुरूप। जैसे : अनुपान। (ग) बारंबार-अनुशीलन, (घ) नियमित। जैसे : अनुक्रम।

अनुकंपा - (स्त्री.) (तत्.) - सा.अर्थ दया, कृपा, अनुग्रह। तकनीकी अर्थ दूसरों के कष्‍ट को देखकर पिघलने (द्रवित होने) का भाव। compassion उदा. उसे अनुकंपा के आधार पर नौकरी मिली है। तु. अनुग्रह।

अनुकरण [अनु+करण] - (पुं.) (तत्.) - 1. किसी क्रिया को देखकर उसी की नकल करना। imitation, copying 2. किसी आदर्श व्यक्‍ति के गुणों, कार्यों को अपने जीवन में उतारने का प्रयत्‍न करना; उसके पद चिह्नों पर चलना। following

अनुकरणीय [अनुकरण+ईय] - (वि.) (तत्.) - अनुकरण के योग्य। उदा. गांधीजी का जीवन अनुकरणीय है। दे. अनुकरण।

अनुकर्ता - (पुं.) (तत्.) - व्यक्‍ति जो किसी का अनुकरण करे।

अनुकूल - (वि.) (तत्.) - 1. किसी वस्तु, कार्य, प्रकृति आदि के उपयुक्‍त, मुआफिक। fawourable विलो. प्रतिकूल। जैसे : अनुकूल परिस्थितियाँ। 2. किसी के विचारों के अनुसार कार्य करने वाला। agreeable

अनुकूलता - (स्त्री.) (तत्.) - अनुकूल होने का भाव। दे. अनुकूल।

अनुकूलन - (पुं.) (तत्.) - 1. परिवेश के अनुसार ढल जाने का सूचक भाव। जैसे : दक्षिण अफ्रीका पहुँचकर टैस्ट मैच शुरू होने से पहले हमारी क्रिकेट टीम ने एक सप्‍ताह तक जमकर वहाँ अनुकूलन अभ्यास किया। 2. किसी साहित्यिक कृति की नाटक, फिल्म आदि की आवश्यकताओं के अनुरूप पटकथा के रूप में प्रस्तुति। adaptation

अनुकृति - (स्त्री.) (तत्.) - दे. अनुकरण। amitation

अनुक्रम [अनु+क्रम] - (पुं.) - लगातार, एक के बाद एक का क्रम, सिलसिला। sequence

अनुक्रमण [अनु+क्रम+न] - (पुं.) (तत्.) - एक ही क्रम में यानी पंक्‍तिबद्ध होकर एक-के-पीछे-एक का आगे बढ़ना; एक-दूसरे का अनुगमन करना।

अनुक्रमणिका - (स्त्री.) (तत्.) - पुस्त. पुस्तक के अंत में दी गई शब्दों, नामों आदि की वर्णक्रमानुसार सप्रसंग पृष्‍ठ संख्या सहित सूची। उदा. पुस्तक की अनुक्रमणिका। index

अनुखन - (पुं.) (तत्.) - किसी ध्वनि या आवाज़ के आधार पर शब्द बनने/बनाने, चीज का बोलना या बजना, ध्वनियों की प्रक्रिया। जैसे : ‘खटखट’, ‘टपटप’, पत्‍ता (‘पत्’ ध्वनि पर आधारित)।

अनुगमन - (पुं.) (तत्.) - शा.अर्थ 1. पीछे चलना। सा.अर्थ 1. किसी के बताए मार्ग पर चलना। विलो. प्रतिगमन।

अनुगामी - (वि.) (तत्.) - (स्त्री.-अनुगामिनी) किसी के पीछे-पीछे चलने वाला; आज्ञाकारी।

अनुगृहीत [अनुग्रह+इत] - (वि.) (तत्.) - 1. जिस व्यक्‍ति पर अनुग्रह हुआ हो, कृतज्ञ, एहसानमंद, कृपा-प्राप्‍त, आभारी, उपकृत। 2. उपकार मानने वाला। उदा. मेरा दो दिन का आकस्मिक अवकाश स्वीकृत/स्वीकार करें। मैं आपका अनुगृहीत रहूँगा।

अनुग्रह - (पुं.) (तत्.) - सा.अर्थ दया, कृपा, अनुकंपा। तकनीकी अर्थ किसी के अनुकूल काम जो प्राय: उसे लाभ पहुँचाने के उद्देश्य से किया जाता है। favour जैसे : अनुग्रह, अनुदान।

अनुग्रह-अनुदान - (पुं.) (तत्.) - हकदारी न होने पर भी, असाधारण परिस्थितियों में, विपत्‍तिग्रस्त लोगों को दी जाने वाली आर्थिक सहायता। ex-gratia grant

अनुचर - (पुं.) (तत्.) - (स्त्री. अनुचरी) शा.अर्थ पीछे चलने वाला। सामान्य अर्थ नौकर, सेवक, दास।

अनुचित [अन्+उचित] - (वि.) (तत्.) - शा.अर्थ जो उचित न हो। 1. जो अवसर, कर्त्तव्य, सभ्यता, संस्कृति, न्याय आदि के अनुरूप न हो। improper 2. जो तर्कसंगत न हो। unreasonable 3. जो सही या उचित मार्ग से च्युत हो। peraverse

अनुच्छेद - (पुं.) (तत्.) - 1. लिखित सामग्री, लेख या पाठ का वह भाग जिसमें किसी एक विषय या उसके अंश का विवेचन होता हो। उदा. विद्यार्थियों को ‘हमारा विद्यालय’ विषय पर एक अनुच्छेद लिखने को कहा गया। 2. किसी विधिक कृति (जैसे : संविधान, संधिपत्र, संविदापत्र आदि) के वे खंड जो संख्यांकित होते हैं और स्वत:पूर्ण विवरण प्रस्तुत करते हैं। जैसे : संविधान के अनुच्छेद 343 से 351 तक राजभाषा खंड के अंग हैं। article

अनुज [अनु+ज=जन्म लेना] - (वि.) (तत्.) - जिसने बाद में जन्म लिया हो। पुं. (तत्) छोटा भाई। विलो. अग्रज (स्त्री. अनुजा=छोटी बहिन)

अनुत्‍तर [अन्+उत्‍तर] - (वि.) (तत्.) - बिना उत्‍तर का, निरूत्‍तर।

अनुत्‍तरित - (वि.) (तत्.) - जिसका उत्‍तर न दिया गया हो या प्राप्‍त न हुआ हो। उदा. मेरा पत्र आपकी ओर से अनुत्‍तरित ही रह गया।

अनुत्‍तीर्ण [अन्+उत्‍तीर्ण] - (वि.) (तत्.) - जो उत्‍तीर्ण न हो सका/हुआ हो, नापास। failed

अनुदान - (पुं.) (तत्.) - 1. शासन द्वारा किसी संस्था को सहायता के रूप में दी जाने वाली धनराशि। 2. किसी संस्था को सरकार द्वारा सहायता के रूप में मिलने वाली धनराशि। जैसे : हमारे विद्यालय को दिल्ली सरकार से अनुदान मिलता है। grant

अनुनय - (पुं.) (तत्.) - 1. विनय, प्रार्थना, विनती। 2. रूठे हुए व्यक्‍ति को मनाना। जैसे : अनुनय-विनय करना।

अनुनासिक - (पुं.) (तत्.) - (वह स्वर) जिसके उच्चारण में हवा मुखविवर के साथ-साथ नासा-विवर से भी निकलती है। देवनागरी में इसे चंद्रबिंदु से अंकित किया जाता है। जैसे : आँ (आँख), ऊँ (ऊँट) आदि। तु. निरनुनासिक स्वर, अनुस्वार।

अनुपचारित - (वि.) (तत्.) - जिसे उपचारित न किया गया हो अर्थात प्राकृतिक स्थिति या अवस्था में ही, प्रकृत रूप में। जैसे : अचार डालने से पहले कच्चा आम। 2. विधान करने से पूर्व की स्थिति में। विलो. उपचारित।

अनुपम [अन्+उपमा] - (वि.) (तत्.) - जिसकी उपमा न दी जा सके, जिसकी बराबरी का और कोई न हो। बेजोड़, सर्वोत्‍तम, अद्वितीय।

अनुपयुक्‍त [अन्+उपयुक्‍त] - (वि.) (तत्.) - 1. जो उपयोगी न हो। पर्या. अनुपयोगी, बेकार। 2. जो उचित न हो। पर्या. अनुचित।, 3. जिसका उपयोग न हुआ हो। पर्या. कोरा, नया।

अनुपयोग (अन्+उपयोग) - (पुं.) (तत्.) - उपयोग का अभाव। वस्तु के अनुपयोग से उसके जल्दी खराब होने की संभावना है।

अनुपयोगी (अन्+उपयोगी) - (वि.) (तत्.) - जिसका उपयोग अब लाभकारी न हो; जो अब किसी काम का न हो। पर्या. बेकार, व्यर्थ।

अनुपलब्ध (अन्+उपलब्ध) - (वि.) (तत्.) - जो उपलब्ध/प्राप्‍त न हो, अप्राप्‍त। विलो. उपलब्ध।

अनुपस्थित (अन्+उपस्थित) - (वि.) (तत्.) - जो उपस्थित न हो यानी सामने या पास में न हो, गैरहाजिर।

अनुपस्थिति (अन्+उपस्थिति) - (स्त्री.) (तत्.) - उपस्थित या मौजूद न होने का भाव; सामने न होना; गैरमौजूदगी। दे. अनुपस्थित।

अनुपात - (पुं.) (तत्.) - गणि. (i) दो राशियों या संख्याओं का आपेक्षिक भागफल या संबंध (ii) दो राशियों या संख्याओं का आपेक्षिक मान। अर्थात तुलनात्मक स्थिति ratio

अनुपान - (पुं.) (तत्.) - आयु. वह तरल पदार्थ/पेय जिसे औषधि के साथ या बाद में लेना अनूकूल प्रभाव के लिए अनिवार्य बताया गया हो।

अनुपालन - (पुं.) (तत्.) - किसी आदेश, आज्ञा, नियम, व्यवस्था आदि का यथावत् पालन करने की स्थिति। compliance

अनुप्रास - (पुं.) (तत्.) - एक शब्दालंकार, जिसमें किसी कविता में एक ही वर्ण बार-बार (कई बार) आता है। उदा. चारू चंद्र की चंचल किरणें, खेल रही थी जल-थल में।

अनुभव - (पुं.) (तत्.) - देख-सुनकर या प्रयोग-परीक्षा द्वारा प्राप्‍त ज्ञान। experience तु. अनुभूति।

अनुभवहीन - (वि.) (तत्.) - (i) जिसे पर्याप्‍त अनुभव न मिला हो; (ii) जिसे किसी काम विशेष का अनुभव बिल्कुल न हो।

अनुभवातीत - (वि.) (तत्.) - 1. जो हमारी इंद्रियों (पंच ज्ञानेंद्रियों) व बुद्धि के अनुभव से परे हैं। 2. जिसका अनुभव न किया जा सके। जैसे: ब्रह्म या मृत्यु का अनुभव अनुभवातीत ही है।

अनुभवी - (वि.) (तत्.) - देख-सुनकर या प्रयोग-परीक्षा द्वारा ज्ञान प्राप्‍त करने वाला।

अनुभूति - (स्त्री.) (तत्.) - किसी कार्य या ज्ञान के होने के बाद मन में उपजने वाला वह भाव जो प्राय: बाहर से तो नहीं देखा जा सकता पर जिसका अनुभव अवश्‍य होता है। सुख, दु:ख आदि भावों का अनुभव। feeling, emotional experience टि. अनुभव का संबंध ज्ञान से है, जबकि अनुभूति का संबंध चित्‍त-वृत्‍तियों से है।

अनुमति - (स्त्री.) (तत्.) - स्वीकृति, किसी कार्य को करने से पहले उसके बारे में अधिकृत व्यक्‍ति से ली जाने वाली इजाजत या उसकी रजामंदी।

अनुमान - (पुं.) (तत्.) - 1. परिस्थितियों, तथ्यों, कथनों आदि के संबंध में तर्कसम्मत अंदाजा। पर्या. अटकल, अंदाजा। inference 2. भावी आय-व्यय का तथ्याधारित अंदाजा। पर्या. प्राक्कलन estimate

अनुमानित - (वि.) (तत्.) - अनुमान से सोचा-समझा। guessed

अनुमोदन - (पुं.) (तत्.) - किसी प्रस्ताव, आवेदन, मसौदे (प्रारूप) आदि पर सक्षम व्यक्‍ति/अधिकारी द्वारा की जाने वाली ‘हाँ’, यानी उसकी सहमति। approval

अनुमोदित - (वि.) (तत्.) - किसी प्रस्‍ताव, आवेदन, मसौदे (प्रारूप) आदि पर सक्षम व्‍यक्‍ति/अधिकार द्वारा प्रकट की गई ‘हाँ’ यानी उसकी सहमित।

अनुयायी - (वि.) (तत्.) - (स्त्री. अनुयायिनी) 1. किसी के पीछे चलने वाला 2. किसी मत या संप्रदाय का अनुसरण करने वाला। follower

अनुरणन - (पुं.) (तत्.) - किसी ध्‍वनि या आवाज़ के आधार पर शब्‍द बनने/बनाने की प्रक्रिया। जैसे- ‘खटपट’, ‘टपटप’, पत्‍ता ‘पत्’ ध्‍वनि पर आधारित।

अनुराग [अनु+राग=लगाव] - (पुं.) (तत्.) - किसी के रूप, कार्यों या गुणों के कारण उसके प्रति होने वाला लगाव या प्रेम, स्नेह इत्यादि भाव। पर्या. प्रेम, प्रीति, स्नेह। affection

अनुरूप - (वि.) (तत्.) - आकृति, स्वरूप, स्वभाव, परिस्थिति, व्यवस्था आदि से मेल खाने वाला।

अनुरोध - (पुं.) (तत्.) - विनम्रतापूर्वक किया गया आग्रह। उदा. आपने मेरा अनुरोध स्वीकार कर मेरे साथ भोजन किया यह आपकी बड़ी कृपा है।

अनुवाद [अनु+वाद=कथन] - (पुं.) (तत्.) - शा.अर्थ (किसी पूर्व कथित बात के) बाद में कही हुई बात या कथन। तक.अर्थ एक भाषा में कही या लिखी हुई बात का किसी अन्य भाषा में रूपांतरण। पर्या. भाषांतर, तरजुमा। translation

अनुवादक - (पुं.) (तत्.) - अनुवाद करने वाला विशेषज्ञ व्यक्‍ति; अनुवादकर्ता। translator

अनुशंसा - (पुं.) (तत्.) - किसी व्यक्‍ति के पक्ष में उसका हित चाहने वाले व्यक्‍ति द्वारा मौखिक या लिखित रूप में ऐसा कथन जिसका परिणाम व्यक्‍ति के अनुरोध के अनुकूल संभावित हो। पर्या. सिफारिश, संस्तुति। recommedation

अनुशासन - (पुं.) (तत्.) - 1. आत्म नियंत्रण करने की व्यवस्था में बने रहने की प्रवृत्‍ति। 2. ज्ञान-विज्ञान की कोई शाखा, विद्याशाखा। 3. प्रशा. अपने विभाग की आचरण संहिता या नियम कायदों के अनुसार कर्मचारी का आचरण। discipline

अनुशासन-प्रिय - (वि.) (तत्.) - नियमप्रिय; नियमों के अनुसार कार्य करने वाला।

अनुशासनबद्धता - (स्त्री.) (तत्.) - अनुशासन में बँधे रहने की स्थिति। दे. अनुशासन।

अनुशासनहीन - (वि.) (तत्.) - अनअनुशसित, स्‍वेच्‍छाचारी; जो नियम-व्‍यवस्‍था के विरुद्ध हो।

अनुशासनहीन - (स्त्री.) (तत्.) - कुप्रबंध, नियम-कायदों की अनदेखी।

अनुशीलन - (पुं.) (तत्.) - 1. अध्ययन, मनन, चिंतन। 2. बार-बार अध्ययन करके आत्मसात् करने की क्रिया। उदा. 1. हमें अपने प्राचीन साहित्य का अनुशीलन करना चाहिए। 2. शास्त्रों के अनुशीलन से व्यावहारिक ज्ञान में वृद्धि होती है।

अनुश्रुति - (स्त्री.) (तत्.) - श्रुति-परंपरा से/एक-दूसरे से सुनते-सुनते चलती आई हुई कोई कथा, कहावत इत्यादि। legend

अनुष्‍ठान - (पु.) (तत्.) - 1. समयबद्ध धार्मिक संस्कार या कृत्य। 2. नियमपूर्वक कोई कार्य आगे बढ़ाना।

अनुसंधान [अनु+संधान] - (पुं.) (तत्.) - किसी विषय से संबंधित सभी पक्षों की गहराई से खोज और जाँच करना। research पर्या. शोध।

अनुसंधानकर्ता - (पुं.) (तत्.) - किसी विषय के सभी पक्षों की गहराई से शोध और जाँच करने वाला। पर्या. शोधकर्ता। researcher

अनुसंधित्सु - (पुं.) (तत्.) - अनुसंधान करने वाला।

अनुसरण - (पुं.) (तत्.) - 1. किसी के पीछे चलना, 2. किसी के आदेश, आज्ञा आदि के अनुसार कार्य करना।

अनुसार - (क्रि.वि.) (तत्.) - जो किसी के (i) कथन, आचरण या व्यवहार के समान हो; (ii) के अनुसरण में किया जाए। उदा. हमें अपना जीवन नियमानुसार (नियमों के अनुसार) जीना चाहिए।

अनुसूचित जनजाति(याँ) - (स्त्री.) (तत्.) - भारत के संविधान के अनुच्छेद 342 के अधीन लोक अधिसूचना द्वारा विनिर्दिष्‍ट (सामाजिक और आर्थिक दृष्‍टि से पिछड़ी) जनजातियों का समूह या उनमें से कोई एक जनजाति। दे. जनजाति। scheduled tribe/tribes

अनुसूचित जाति(याँ) - (स्त्री.) (तत्.) - भारत के संविधान के अनुच्छेद 341 के अधीन लोक अधिसूचना द्वारा विनिर्दिष्‍ट (सामाजिक एवं आर्थिक दृष्‍टि से पिछड़ी) जातियों का समूह या उनमें से कोई एक जनजाति। scheduled castes

अनुसूची - (स्त्री.) (तत्.) - शा.अर्थ बाद वाली सूची; परिशिष्‍ट के रूप में जोड़ी गई सूची। प्रशा. किसी लेख की व्याख्या के रूप में अथवा परिशिष्‍ट के रूप में जोड़ा गया अंश जो वर्गीकृत होता है। विधि. विधानमंडल द्वारा पारित किसी अधिनियम का वह परिशिष्‍ट जिसमें उस अधिनियम संबंधी विस्तृत ब्यौरा दिया गया हो या फिर संगत मामलों की विस्तृत सूची बनाई गई हो। schedule

अनुस्वार - (पुं.) (तत्.) - व्यु.अर्थ वि. स्वर के बाद आने वाला; स्वर के बाद उच्वरित होने वाला (व्यंजन)। सा.अर्थ व्याकरण-1. अयोगवाह वर्णों में से एक (ं) [अन्य वर्ण है-विसर्ग और नासिक्य (चंद्रबिंदु)] 2. वर्गों के पंचमवर्णों के स्थान पर पूर्ववर्ण के ऊपर लगाया जाने वाला वैकल्पिक शिरोबिंदु। उदा. कंगन, डंडा, दंत, संबंध। 3. अंत:स्थ और ऊष्म वर्णों के पूर्व ‘म्’ की ध्वनि के स्थान पर पूर्ववर्ण के ऊपर लगा बिंदु। उदा. संहार।

अनूठा - (वि.) (तद्.<अनुत्थ) - 1. जो विलक्षण या आश्‍चर्यजनक हो, अनोखा। जैसे: उसका काव्य अनूठा है। 2. उत्‍तम जैसे : अनूठा उत्सव। 3. असाधारण जैसे : वीरता का अनूठा उदाहरण। (स्त्री.) अनूठी

अनूदित - (वि.) (तत्.) - अनुवाद किया हुआ, भाषांतरित; एक भाषा में उपलब्‍ध सामग्री का अन्‍य भाषा में किया गया रूपांतरण।

अनूदित - (वि.) (तत्.) - अनुवाद किया हुआ, भाषांतरित, एक भाषा में उपलब्ध सामग्री का अन्य भाषा में किया गया रूपातंरण।

अनेक [अन+एक] - (वि.) (तत्.) - जो एक या अकेला नहीं हो यानी एक से अधिक, कई, बहुत, अनेक लोग। जैसे : आप को पहले अनेक बार समझाया गया है।

अनैतिक [अ+नैतिक=नीति+इक] - (वि.) (तत्.) - जो नीति सम्मत न हो। जो नीति (लोक-व्यवहार या लोकाचार) के अनुसार न हो, नीति के विरूद्ध, नीति के विपरीत आचरण। जैसे : अनैतिक, अनैतिक जीवन।

अनोखा - (वि.) (देश.) - जो सामान्‍य स्‍थिति से अलग तरह का अथवा हटकर हो। पर्या. अनूठा, विचित्र, निराला।

अनोखापन - (पुं.) (तत्.) - अनोखा होने का भाव या स्‍थिति। पर्या. अनूठापन, विचित्रता, निरालापन। दे. अनोखा

अन्तर्देशीय - (वि.) (तत्.) - जिसका संबंध या प्रचलन अपने देश में ही हो। जैसे : अंतर्देशीय पत्र। तु. अंतरदेशीय।

अन्न - (पुं.) (तत्.) - 1. पकी फसल से प्राप्‍त वे दाने जो भोज्य पदार्थ तैयार करने के काम आते हैं। जैसे : गेहूँ, चावल, जौ, बाजरा आदि। 2. इन दानों से तैयार या पकाया गया भोजन। उदा. उसने दो दिन से अन्न-जल ग्रहण नहीं किया है। पर्या. भोजन, खाद्य पदार्थ। food

अन्न-जल - (पुं.) (तत्.) - अन्न और जल यानी भोजन और पानी जो जीवित रहने के लिए अनिवार्य साधन हैं; खाने-पीने का सामान, दाना-पानी। मुहा. (i) 1. अन्न-जल उठना-जीविकोपार्जन के लिए एक स्थान से दूसरे स्थान पर जाना, स्थान परिवर्तन। (ii) जीवन की समाप्‍ति 2. अन्न-जल त्यागना/छोड़ना, अनशन करना, भूख हड़ताल करना।

अन्नदाता [अन्न+दाता] - (वि./पु.) (तत्.) - अन्न (भोजन) देने वाला यानी जिसकी कृपा से भोजन मिलता हो। पर्या. स्वामी, मालिक, प्रतिपालक।

अन्य - (तत्.) (वि.) - 1. कोई दूसरा, भिन्न, अलग। जैसे : वह भारतीय नहीं, किसी अन्य देश का व्यक्‍ति लगता है या अन्य पुरूष third person 2. बाहरी या भिन्न व्यक्‍ति। उदा. केवल सैनिकों के लिए, अन्य का प्रवेश निषिद्ध है।

अन्यतम [अन्य+तम=अतिशयवाची - (वि.) (तत्.) - बहुतों में से एक; सबसे बढक़र, सर्वोत्‍तम। उदा. रवींद्रनाथ अन्यतम साहित्यकार थे इसलिए उन्हें ‘नोबेल पुरस्कार’ से सम्मानित किया गया।

अन्यतम [अन्य+तम=अतिशयवाची - (वि.) (तत्.) - दो में से कोई एक; अलग तरह का।

अन्यत्र - (अव्य.) (तत्.) - किसी दूसरे स्थान पर। टि. संस्कृत का ‘त्र’ पद स्थानवाचक है। जैसे : एकत्र=एक स्थान पर। सर्वत्र=सभी स्थानों पर। इत्यादि।

अन्यथा - (क्रि.वि.) (तत्.) - 1. भिन्न अर्थ में, और तरह से। उदा. मेरी बात को अन्यथा न लें। 2. नहीं तो, वरना। सावधानी से चला करो अन्यथा ठोकर लग जाएगी। otherwise

अन्यमनस्क - (वि.) (तत्.) - जिसका मन (या ध्यान) किसी और में लगा हो, जिसका मन (या ध्‍यान) किसी और तरफ हो। तु. अनमना।

अन्याय [अ+न्याय] - (पुं.) (तत्.) - 1. ऐसा कार्य जो न्याय सम्मत न हो यानी न्याय के विरूद्ध हो। 2. किसी के भी साथ किया जाने वाला अनुचित व्यवहार। विलो. न्याय।

अन्यायी - (वि.) (तत्.) - 1. जो अन्याय करता हो 2. अन्यायपूर्ण। दे. अन्याय।

अन्योन्याक्रिया [अन्य+अन्य+क्रिया] - (पुं.) (तत्.) - एक दूसरे के साथ यानी परस्पर संपन्न व्यवहार। interaction

अन्वय - (पुं.) (तत्.) - 1. कार्य-कारण के बीच तार्किक संबंध। 2. भाषा- वाक्य रचना में शब्दों की पारस्परिक व्याकरणिक समरूपता। जैसे : कर्ता और क्रिया के बीच लिंग और वचन का अन्वय। हिंदी में-लडक़ा पढ़ता है; लडक़ी पढ़ती है। लडक़ा पढ़ता है : लडक़े पढ़ते हैं।

अन्वेषक - (वि./पु.) (तत्.) - 1. अन्वेषण का कार्य करने वाला (व्यक्‍ति) 2. वास्तविकता का पता लगाने वाला (व्यक्‍ति) 3. अनुसंधानकर्ता। दे. अन्वेषण।

अन्वेषण - (पुं.) (तत्.) - 1. जिसका अस्तित्व हो पर जिसकी जानकारी अब तक उपलब्ध न हो उसका पता लगाकर समाज के सामने रखना। पर्या. खोज। discovery 2. वास्तविकता का पता लगाने के लिए किया गया खोजपूर्ण कार्य। investigation 3. ‘अनुसंधान’ कार्य का एक वैकल्पिक पर्याय। research

अपंग - (वि.) (तत्.) - स्थायी प्रकृति की किसी शारीरिक (और मानसिक भी) असमर्थता से ग्रस्त (व्यक्‍ति)। पर्या. विकलांग।

अपंगता - (स्त्री.) (तत्.) - स्थायी प्रकृति की कोई शारीरिक (और मानसिक भी) असमर्थता जिसकी वजह से व्यक्‍ति अपनी पूरी क्षमता से काम न कर सकता हो। disability

अपकार [अप=बुरा+कार=कार्य] - (पुं.) (तत्.) - नुकसान, हानि, अहित, अनुचित कार्य। (उपकार का उल्टा)। विलो. उपकार।

अपक्षय (ण) - (पुं.) (तत्.) - सा.अर्थ खुली पड़ी वस्तुओं का मौसमी प्रभाववश बिड़गना/नष्‍ट होना। 1. रसा. जैव पदार्थ के क्रमिक रासायनिक विघटन का प्रक्रम। पर्या. सड़ना decay 2. भूवि. वायुमंडलीय कारकों द्वारा भूपृष्‍ठ या शैलों में हुए भौतिक विघटन का प्रक्रम। weathering उदा. चट्टानों में और भूपृष्‍ठ पर पाए जाने वाले खनिजों और जैव पदार्थों के निरंतर अपक्षय से मृदा का निर्माण होता है।

अपघटक - (वि./पुं.) (तत्.) - अपघटन के प्रक्रम का कारक। दे. अपघटन।

अपघटन - (पुं.) (तत्.) - सा.अर्थ बुरे रूप में हो जाने यानी सड़ जाने या नष्‍ट हो जाने का भाव। रसा. ऐसा रासायनिक परिवर्तन जिसमें कोई अणु ऐसे दो या अधिक अणुओं में परिणत हो जाएँ, जिनके संघटन से वह बना है। decomposition

अपघात - (पुं.) (तत्.) - कोई भी ऐसी दुर्घटना जिसमें किसी के प्राणों पर संकट हो। 1. हत्‍या, हिंसा 2. अनुचित आघात 3. धोखा 4. विश्‍वासघात।

अपच - (पुं.) (तत्.) - 1. भोजन के पूरी तरह न पचने की क्रिया की स्थिति। 2. भोजन न पचने का रोग। पर्या. अजीर्ण। indigestion

अपठित - (वि.) (तत्.) - 1. न पढ़ा हुआ। 2. वह (गद्यांश या पद्यांश) जो पाठ्यपुस्तक में न हो, उससे बाहर का हो 3. जो अभी पढ़ा न गया हो।

अपतृण - (पुं.) (तत्.) - फसल के लिए हानिकारक अनचाहे और अनावश्यक रूप से उगने वाला पौधा। पर्या. खरपतवार।

अपतृणनाशी [अप+तृण+नाशी] - (वि.) (तत्.) - वन. कृषि फसल के लिए हानिकारक, अनचाहे और अनावश्यक रूप से उगने वाले पौधों को नष्‍ट करने वाला। Weedicide

अपन - (सर्व. ) देश. (तद्.<आत्म) - 1. हम, जैसे : अपन तो चलते हैं। 2. अपना (देशी बोलियों में प्रयुक्‍त)

अपना - (सार्वनामिक वि.) (तद्. [प्रा. अप्पण < आत्मन:]) - 1. स्वयं का, प्रत्येक की दृष्‍टि से उसका व्यक्‍तिगत, निज का। जैसे : मैंने अपना काम कर लिया। तुमने अपना काम कर लिया। उसने अपना काम कर लिया। सबने अपना-अपना काम कर लिया। पुं. आत्‍मीय व्‍यक्‍ति। किसी को पराया मत समझो यहाँ सभी अपने हैं। (पुं. बहुवचन)

अपनाना - (स.क्रि. नामधातु ) (देश.) - 1. अपना बनाना, स्वीकार करना। 2. अपने अधिकार में लेना। 3. अपने संरक्षण में लेना।

अपनापन - (पुं.) (तद्.) - ‘अपना’ होने का प्रदर्शित भाव या स्थिति, आत्मीयता।

अपने आप - (अव्य.) (देश.) - स्वत:, स्वयं। automatically उदा. गाड़ी अपने आप चल पड़ी।

अपमान (अप+मान) - (पुं.) (तत्.) - बेइज्जती, अनादर। किसी व्यक्‍ति के साथ किया गया ऐसा व्यवहार या उसके बारे में कही गई ऐसी बात जिससे उसकी प्रतिष्‍ठा को आँच आए। insult विलो. मान।

अपमानित - (वि.) (तत्.) - (व्यक्‍ति) जिसका अपमान हुआ हो। निरादृत, तिरस्‍कृत

अपमार्जक - (वि./पुं.) (तत्.) - शा.अर्थ गदंगी को हटाने वाला (पदार्थ)। रसा. पाउडर या द्रव रूप में उपलब्ध संश्‍लिष्‍ट पदार्थ जो वस्त्र या बरतन धोने के काम आता है। detergent

अपमिश्रण - (पुं.) (तत्.) - अनुचित लाभ कमाने के उद्देश्य से किसी घटिया वस्तु की अच्छी वस्तु में मिलावट। जैसे : देशी घी में वनस्पति तेल की मिलावट। adultration

अपमृत्यु - (स्त्री.) (तत्.) - 1. ऐसी मृत्यु जो स्वाभाविक न हो। जैसे : दुर्घटना, बीमारी या मार-पीट आदि के कारण होने वाली मृत्यु। 2. कम आयु में होने वाली मृत्यु।

अपयश - (पुं.) (तत्.) - अपकीर्ति, बदनामी। विलो. यश।

अपरदन - (पुं.) (तत्.) - प्रवाही जल, लहर, गतिमान बर्फ अथवा वायु द्वारा भूपृष्‍ठ के क्षरण का प्रक्रम जिससे अपरदित पदार्थ दूर ले जाया जाकर एक स्थान पर निक्षिप्‍त (निपेक्षित) हो जाता है। erosion

अपराजित [अ+पराजय+इत] - (वि.) (तत्.) - 1. जो जीता न गया हो, जिस पर विजय प्राप्‍त न की जा सकी हो। तु. अपराजेय।

अपराजेय - (वि.) (तत्.) - 1. जो पराजित न किया जा सके। तु. अपराजित।

अपराध - (पुं.) (तत्.) - 1. ऐसा काम जो किसी देश के कानून के अनुसार मना हो, और जिसे करने वाले को कानून के अनुसार दंडित किया जाए। crime offence 2. नैतिक दृष्‍टि से ऐसा अनुचित कार्य जिससे किसी को हानि पहुँचती हो। guilt

अपराधी - (वि.) (तत्.) - अपराध करने वाला। पर्या. मुलजिम। दे. अपराध

अपराह्न/अपराह्न [अपर = बाद का+अह्न=दिन] - (पुं.) (तत्.) - 1. दिन का तीसरा पहर। 2. मध्याह्न और संध्याकाल के बीच का समय। after noon तु. पूर्वाह्न/ पूर्वाह्न

अपरिचित [अ+परिचित] - (वि.) (तत्.) - जो परिचित यानी जाना-पहचाना न हो। पर्या. अनजाना। विलो. परिचित।

अपरिमेय संख्या - (स्त्री.) (तत्.) - गणि. वह वास्तविक संख्या जो परिमेय न हो, यानी जिसे किसी पूर्णांक या पूर्णांकों के भागफल के रूप में व्यक्‍त न किया जा सके। जैसे : √3 international number तु. परिमेय संख्या।

अपलक [अ+पलक] - (वि.) (तत्.) - बिना पलक झपकाए। उदा. वह अपलक दृष्‍टि से प्राकृतिक सौंदर्य को निहारता रहा। क्रि.वि. एक टक, निर्निमेष।

अपवर्तक - (वि.) (तत्.) - गणि. जिन संख्याओं से कोई संख्या विभाज्य हो (कट जाए) वे संख्याएँ उस संख्या की अपवर्तक संख्याएँ कहलाती हैं। उदा. 12 की अपवर्तक संख्याएँ हैं-1, 2, 3, 4, और 6। factor तु. अपवर्त्य।

अपवर्त्य - (वि.) (तत्.) - गणि. में जो संख्या अन्य संख्याओं से विभाज्य होती है (कट जाती है) वह संख्या उन संख्याओं का अपवर्त्य कहलाती है। जैसे : 12 की संख्या 2, 3, 4, और 6 का अपवर्त्य है। multiple तु. अपवर्तक।

अपवाद - (पुं.) (तत्.) - ऐसी बात या उदाहरण आदि जिस पर संबंधित सामान्य नियम लागू न हो। exception

अपवाह क्षेत्र - (पुं.) (तत्.) - वह क्षेत्र विशेष जहाँ से वर्षा का जल बहकर किसी नदी, तालाब आदि में जा मिलता है। catchment area

अपवाह - (पुं.) (तत्.) - 1. नीचे की ओर बहना या बहाकर ले जाना।, 2. जल का निकास। drainage

अपवित्र [अ+पवित्र] - (वि.) (तत्.) - जो पवित्र अर्थात शुद्ध न हो। पर्या. गंदा, मलिन। विलो. पवित्र।

अपवित्रता [अपवित्र+ता] - (स्त्री.) (तत्.) - अपवित्र होने का भाव। दे. अपवित्र।

अपव्यय [अप+व्यय] - (पुं.) (तत्.) - व्यर्थ और अधिक खर्च। पर्या. फिजूलखर्ची।

अपव्ययी [अपव्यय+ई] - (वि.) (तत्.) - अपव्यय करने वाला। पर्या. फिजूलखर्च।

अपशकुन - (पुं.) (तत्.) - सा.अर्थ ऐसा कोई प्रतीकात्मक लक्षण या व्यवहार जिसे शुभ न माना जाता हो। शा.अर्थ बुरा शकुन। विलो. शुभ शकुन।

अपशब्द [अप+शब्द] - (पुं.) (तत्.) - बुरा शब्द। पर्या. गाली। उदा. बातचीत में अपशब्दों का प्रयोग अनुचित माना जाता है।

अपशिष्‍ट - (वि./पुं. ) (तत्.) - निरर्थक बचा हुआ। जैसे : जैविक अपशिष्‍ट (मृत पौधे, जंतुओं के अवशेष), गोबर, फलों के छिलके आदि।

अपहरण - (पुं.) (तत्.) - शा.अर्थ उठाकर या भगाकर दूर ले जाना। किसी व्यक्‍ति को गैरकानूनी तरीके से बलपूर्वक उठा/भगा कर ले जाने का कार्य। kidnapping, abduction

अपहर्ता - (पुं.) (तत्.) - किसी व्यक्‍ति को गैरकानूनी तरीके से बलपूर्व उठा/भगा कर ले जाने वाला व्यक्‍ति। kidnapper, abductor

अपार - (वि.) (तत्.) - 1. जिसका पार न हो; जिसकी सीमा न दिखाई पड़े, असीम, असंख्य, अनंत। उदा. वह अपार धन संपत्‍ति का मालिक है। 2. जिसे पार करना कठिन हो। पर्या. दुस्तर।

अपारदर्शिता - (स्त्री.) (तत्.) - सा.अर्थ आर-पार न देने जा सकने की स्थिति। भौ. पदार्थ का गुणधर्म जो प्रकाश के पारागमन में अवरोध उत्पन्न करता है। दे. अपारदर्शी। विलो. पारदर्शिता।

अपारदर्शी [अ+पार+दर्शी] - (वि.) (तत्.) - शा.अर्थ जो पारदर्शी न हो, यानी जिसके दूसरी ओर की वस्तु दिखाई न पड़े। भौ. (वस्तु) जिससे होकर प्रकाश गुजर नहीं सकता। जैसे : दीवार, हड्डी आदि। opaque विलो. पारदर्शी।

अपाहज/अपाहिज - (वि.) (देश). - 1. जिसका कोई अंग न हो या वह विकृत हो। जैसे : खंज, लंगड़ा, लूला इत्यादि। पर्या. विकलांग। 2. जो काम करने के योग्य न हो। पर्या. असमर्थ। 3. जो किसी कारणवश कार्य न कर सके। पर्या. असहाय। उदा. मेरी साइकिल टूट गई है, उसके बिना मैं अपाहज हो गया हूँ। handicapped

अपितु - (अव्य.) (तत्.) - 1. बल्कि, 2. तो भी, तथापि, 3. परंतु, लेकिन। उदा. वह बुद्धिमान ही नहीं अपितु नीतिज्ञ भी है।

अपील - (स्त्री.) (अं.) - सा.अर्थ निवेदन, प्रार्थना। विधि. अधीनस्थ न्यायालय के निर्णय से असंतुष्‍ट पक्ष द्वारा उच्चतर न्यायालय से उस पर पुर्नविचार करने का आवेदन। appeal

अपूर्ण [अ+पूर्ण] - (वि.) (तत्.) - 1. जो पूरा न हो। जैसे : अपूर्ण वाक्य। 2. जो आधा भरा हआ हो, या आधा खाली हो। जैसे : अपूर्ण घड़ा। 3. जो काम कुछ किया हुआ हो और कुछ शेष हो। पर्या. अधूरा, असमाप्‍त। जैसे : अपूर्णकार्य। विलो. पूर्ण।

अपूर्व [अ+पूर्व] - (वि.) (तत्.) - 1. जो पहले न हुआ हो; जिस पर पहली बार काम हो रहा हो, नवीन। उदा. उसने पुस्तक लिखने के लिए अपूर्व विषय चुना। 2. विचित्र, अद्भूत, अनोखा, विलक्षण। उदा. प्रकृति में भी कैसी-कैसी अपूर्व घटनाएँ घटित होती हैं। 3. अत्यंत सुंदर, रमणीय। जैसे : अपूर्व सुंदरी, उत्‍तम कोटि का। जैसे : अपूर्व ज्ञान।

अपेक्षा - (स्त्री.) (तत्.) - 1. किसी व्यक्‍ति द्वारा अन्य व्यक्‍ति या वस्तु से चाहा गया मनोनुकूल परिणाम। expectation, requirement 2. की अपेक्षा=की तुलना में। उदा. हवाई यात्रा की अपेक्षा रेलयात्रा कम खर्च वाली होती है।

अपेक्षाकृत - (क्रि.वि.) (तत्.) - तुलना में, मुकाबले में। comparatively

अपेक्षित - (वि.) (तत्.) - चाहा गया, चाह/इच्छा के अनुसार, इच्छित। जैसे : अपेक्षित जानकारी। expected required

अप्रकाशित [अ+प्रकाशित] - (वि.) (तत्.) - शा.अर्थ जो प्रकाश में न आया/आई हो। विक.अर्थ जो सामग्री अब तक छपी न हो या छपकर न आई हो। उदा. प्रेमचंद की कई कहानियाँ अब तक अप्रकाशित ही हैं।

अप्रचलन - (पुं.) (तत्.) - प्रचलित न होने की स्थिति या भाव; चलन में न होना; प्रयोग की कमी। दे. अप्रचलित।

अप्रचलित [अ+प्रचलित] - (वि.) (तत्.) - जो प्रचलित न हो, जिसका प्रचलन अब न हो रहा हो, जो व्यवहार में न हो, जिसका चलन न हो। उदा. अब चवन्नी का सिक्का अप्रचलित घोषित कर दिया गया है।

अप्रतिम [अ+प्रतिम] - (वि.) (तत्.) - जिसकी तुलना न हो सके, अद्वितीय, अनुपम, बेजोड़। जैसे : अप्रतिम सौंदर्य।

अप्रत्यक्ष [अ+प्रत्यक्ष] - (वि.) (तत्.) - 1. जो दिखाई न दे, जो सामने न हो। पर्या. परोक्ष। 2. जो सीधे तरीके को न अपनाए। जैसे : अप्रत्यक्षकर, अप्रत्यक्ष निर्वाचन।

अप्रत्याशित - (वि.) (तत्.) - जिसकी प्रत्याशा (आशा) न रही हो यानी अकस्मात् घटित होने वाला। पर्या. अचानक। जैसे : अप्रत्याशित घटना। उदा. वह मेरे यहाँ अप्रत्याशित रूप से आ धमका। विलो. प्रत्याशित।

अप्रमाणिक [अ+प्रमाणिक] - (वि.) (तत्.) - प्रमाणरहित, जो मानने लायक न हो, अविश्‍वसनीय। विलो. प्रमाणिक। भाव.- अप्रामाणिकता।

अप्रवासी - (वि.) (तत्.) - जो अब निवासी नहीं है; जो अब अपने पहले वाले स्थान पर नहीं रहता। non resident उदा. अप्रवासी भारतीय।

अप्रसन्न [अ+प्रसन्न] - (वि.) (तत्.) - जो प्रसन्न न हो, जो नाराज हो, नाखुश, नाराज़। विलो. प्रसन्न।

अप्रसन्नता - (स्त्री.) (तत्.) - प्रसन्नता या खुशी के अभाव की स्थिति। नाखुशी, नाराज़गी।

अप्राप्‍त [अ+प्राप्‍त] - (वि.) (तत्.) - जो प्राप्‍त न हुआ/हुई हो, दुर्लभ। विलो. प्राप्‍त।

अप्रामाणिक [अ+प्रामाणिक] - (वि.) (तत्.) - प्रमाण-रहित, जो मानने लायक न हो, अविश्‍वसनीय। विलो. प्रामाणिक भाव. अप्रामाणिकता।

अप्रासंगिक [अ+प्रासंगिक] - (वि.) (तत्.) - प्रसंग के विरूद्ध या बाहर का, जिसका प्रस्तुत विषय या कार्य से कोई सीधा संबंध न हो। जैसे : अप्रासंगिक चर्चा। irrelevant विलो. प्रासंगिक।

अप्रिय [अ+प्रिय] - (वि.) (तत्.) - जो प्रिय न हो, अरूचिकर, नापसंद। विलो. प्रिय भाव. अप्रियता

अप्सरा - (स्त्री.) (तत्.) - व्यु.अर्थ पानी से निकलने वाली स्त्रियाँ। स्वर्गलोक की नर्तकी एवं गायिका।

अफरना - (अ.क्रि.) (तद्.<स्फार) - अधिक खा लेने के बाद पेट का फूल जाना।

अफरा - (पुं.) (तद्.>स्फार) - 1. अधिक भोजन कर लेने पर वात (गैस) से पेट फूल जाने की स्थिति। 2. अजीर्ण हो जाने का भाव।

अफ़रा-तफ़री - (स्त्री.) (फा.) - किसी काम को करने में आवश्यकता से अधिक उतावली या बेचैनी। पर्या. बदहवासी।

अफ़वाह - (स्त्री.) (फा.) - लोगों में फैली ऐसी बात जिसका कोई पुष्‍ट प्रमाण उपलब्ध न हो। पर्या. जनश्रुति। rumour

अफ़सर - (पुं.) (अंग्रे.) - सेना और सामान्य प्रशासन में वह पदाधिकारी जिसे निश्‍चित दायित्व सौंपा गया हो और जिसके पूरा न होने की स्थिति में उसे जवाबदेह ठहराया जाए। officer

अफ़सोस - (पुं.) (फा.) - किसी कार्य के संपन्न हो जाने पर उसके प्रति खेद व्यक्‍त करने की भावना। पर्या. रंज शोक, पछतावा, खेद।

अफ़ीम - (स्त्री.) (अर.) - पोस्‍त के डोडे का चिपचिपा गुलाबी सा स्राव जो संग्रह करने के बाद सूख जाने पर कड़वा, मादक और विषाक्‍त हो जाता है।

अब - (वि.) (देश.) - 1. इस समय, इस क्षण। उदा. अब घंटी बजी है। 2. इसके बाद। उदा. अब क्या करना है? 3. भविष्य में। उदा. तुम्हें अब पता चलेगा।

अबढर/औढर - (वि.) - 1. किसी पर अकारण प्रसन्न होने वाला 2. अत्यंत उदार 3. थोड़ी ही साधना या स्तुति से अतिकृपा करने वाला। जैसे: अबढरदानी शिव।

अबला - (वि.) (स्त्री.) - तत्. व्यु.अर्थ जिसमें बल न हो ऐसी। सा.अर्थ-स्त्री, औरत।

अबाध - (वि.) (तत्.) - बाधा रहित, जिसमें कोई बाधा न हो। पर्या. निर्विघ्न। उदा. अबाध गति।

अबाधित [अ+बाधित] - (वि.) (तत्.) - जिसके करने में कोई बाधा खड़ी न हुई हो, विलो. बाधित।

अबीर - (पुं.) (अर.) - 1. अबरक मिला हुआ रंगीन चूर्ण। (अधिकतर गुलाबी या लाल) जिसका होली पर उपयोग किया जाता है। 2. धार्मिक अवसरों पर सिर पर तिलक लगाने के लिए प्रयुक्‍त चूर्ण या पाउडर। पर्या. गुलाल।

अबूझ/अनबूझ - (वि.) (देश.) - 1. जिसे बूझा अर्थात् समझा न जा सके। जैसे: अबूझ/अनबूझ पहेली।

अबे - (अव्य.) (तद्.) - विस्मयबोधक) <अयि] तिरस्कारपूर्ण संबोधन। पर्या. अरे, हे। (बहुत छोटे या हीन व्यक्‍ति के लिए संबोधन)।

अबोध - (वि.) (तत्.) - जिसे बोध यानी जानकारी अथवा ज्ञान न हो। पर्या. अनजान, नादान, मूर्ख।

अब्द - (पुं.) (तत्.) - 1. वर्ष, साल। उदा. शताब्दी, दशाब्दी। 2. बादल, मेघ (अप्+द=जल देने वाला) 3. आकाश, नभ।

अब्धि [अप्+धि] - (पुं.) (तत्.) - व्यु.अर्थ अप् (जल) का समूह। सा.अर्थ 1. समुद्र, सागर, जलाशय। 2. सात की संख्या।

अब्बा - (पुं.) (अर.) - पिता के लिए प्रयुक्‍त संबोधनसूचक शब्द।

अभद्र - (वि.) (तत्.) - जो भद्र (शालीन) व्यक्‍तियों के व्यवहार से बाहर हो, शालीनता रहित। जैसे: अभद्र भाषा का प्रयोग, अभद्र व्यवहार आदि।

अभय - (पुं.) (तत्.) - भय का अभाव; निर्भयता का भाव। वि. तत्. जिसे भय न हो। पर्या. निडर, निर्भय।

अभयदान - (पुं.) (तत्.) - शा.अर्थ भयरहित होने का वचन देना, सुरक्षा का आश्‍वासन देना। पर्या. सर्वक्षमा। amnesty

अभयारण्‍य (अभय+अरण्‍य) - (पुं.) (तत्.) - प्राकृतिक वातावरण वाला वह आरक्षित वनक्षेत्र जहाँ जंगली पशु-पक्षी आदि निर्भय होकर विचरण करते हैं। इस क्षेत्र में शिकार खेलने की मनाही रहती है तथा आरक्षण का मुख्‍य उद् देश्‍य संरक्षित पशु-पक्षियों के अस्‍तित्‍व को समाप्‍त होने से बचाना होता है।

अभागा - (वि.) (तद्.) - < अभाग्य] 1. जिसका भाग्य अच्छा न हो, भाग्यहीन। पर्या. दुर्भाग्यशाली, बदकिस्मत। जैसे : उस जैसा अभागा तो मैंने देखा ही नहीं। 2. पुं. वह व्यक्‍ति जो दुर्भाग्य से बहुत मुसीबत में पड़ा हुआ हो। विलो. भाग्यशाली, भाग्यवान।

अभाव [अ+भाव] - (पुं.) (तत्.) - अस्तित्व में न होने अवस्था, 1. विद् यमान न होना। उदा. प्रकाश का अभाव ही अंधकार है। 2. कमी । उदा. रेगिस्तान में पानी के अभाव के कारण वहाँ का जीवन अत्यंत कष्‍टप्रद होता है।

अभावग्रस्त [अभाव+ग्रस्त] - (वि.) (तत्.) - 1. अभाव से ग्रस्त, अभाववाला, गरीब (व्यक्‍ति) 2. जहाँ सामान्य जीवन-यापन के उपयुक्‍त साधनों का अभाव हो। जैसे: अभावग्रस्त परिवार। 3. जहाँ उचित संसाधनों के अभाव में विकास संभव न हुआ हो या न हो पा रहा हो। जैसे: अभावग्रस्त क्षेत्र।

अभिकथन [अभि+कथन] - (वि.) (तत्.) - 1. किसी व्यक्‍ति के द्वारा किसी बात को बिना किसी प्रमाण के निश्‍चय व दृढ़तापूर्वक कहा जाना। 2. दावा; आरोप। allegation

अभिकरण - (पुं.) (तत्.) - 1. (अर्थ) संविदा कानून के अनुसार बनाया गया एक विशिष्‍ट संबंध, जिसमें एक पक्ष किसी के साथ व्यापार करने के लिए किसी दूसरे पक्ष को प्राधिकृत कर देता है। दूसरा पक्ष पहले का प्रतिनिधि कहा जाता है। 2. किसी व्यापारिक प्रतिष्‍ठान और उसके उत्पादों के खरीदने वालों के बीच में कमीशन के आधार पर संबंध जोड़ने वाला व्यक्‍ति या संस्था। 3. वह स्थान या कार्यालय जहां इस प्रकार का कार्य होता है। agency

अभिकर्ता - (पुं.) (तत्.) - किसी व्यक्‍ति या संस्था की ओर से प्रतिनिधि के रूप में तत् संबंधी विशेष कार्य करने के लिए नियुक्‍त व्यक्‍ति। agent अभिकर्षण (धक्का) अभिप्रेत वस्तु को बाह् य बल का उपयोगकर अपनी ओर खींचने की क्रिया। Pull, pulling

अभिकलन [अभि+कलन] - (पुं.) (तत्.) - 1. किसी तथ्य या संभाव्य घटना के संबंध में की जाने वाली गणितीय सं.क्रिया, सुनिश्‍चित गणना। 2. गणितीय संक्रियाओं या विशिष्‍ट अध्ययन के आधार पर होने वाली घटना का पूर्वानुमान। जैसे: भूकंपों या तूफानों का अभिकलन। computation

अभिकलित्र [अभि-कलित्र] - (वि.) (तत्.) - एक स्वचालित इलेक्‍ट्रॉनिक मशीन जो अभिकलन में सहायक होती है उसे संकलित करती है तथा आवश्यकतानुसार स्मृति से उसे पुन: प्रस्तुत कर सकती है। अं. computer

अभिक्रिया - (स्त्री.) (तत्.) - रसा. दो या दो से अधिक तत् वों के परस्पर संपर्क के फलस्वरूप उनमें घटित रासायनिक परिवर्तन। जैसे: पोटैशियम नाइट्रेट और गंधक अम्ल के मिलने पर नाइट्रेट अम्ल का बनना। reaction

अभिक्रियाशील - (वि.) (तत्.) - रसा. अभिक्रिया के घटित होने की योग्यता रखने वाला (कोई भी तत्व) reactive

अभिजात - (वि.) (तत्.) - 1. उच्च कुल में उत्पन्न। पर्या.-कुलीन। 2.मान्य, सभ्य, 4. आचरणशील, व्यवहारकुशल। aristocrat

अभिज्ञान-पत्र - (पुं.) (तत्.) - दे. पहचान-पत्र।

अभिनंदन-पत्र - (पुं.) (तत्.) - किसी प्रतिष्‍ठित व्यक्‍ति को सम्मानित करने के लिए उसके उल्लेखनीय व्यक्‍तित्व और कृतित्व पर लिखा गया सम्मान-पत्र जो समारोहपूर्वक सुनाकर उसे आदर-सहित भेंट किया जाता है। उदा. प्रधानाचार्य के सेवानिवृत्‍त होने के अवसर पर छात्रों ने उन्हें अभिनंदन-पत्र भेंट किया।

अभिनय - - 1. नाटक, फिल्म आदि के मंच पर किसी काल्पनिक या वास्तविक व्यक्‍ति विशेष के चरित्र को जीना यानी सजीव रूप में प्रस्तुत करना। 2. किसी व्यक्‍ति के हावभावों की नकल करना। acting

अभिनव - (वि.) (तत्.) - (औरों की तुलना में) नया; ताज़ा।

अभिनेता - (पुं.) (तत्.) - अभिनय करने वाला पुरूष कलाकार। दे. अभिनय।

अभिनेत्री - (स्त्री.) (तत्.) - अभिनय करने वाली स्त्री कलाकार। दे. अभिनय।

अभिन्न - - [अ=नहीं+भिन्न=अलग] 1. जो अलग नहीं है। 2. जिसे अलग नहीं किया जा सकता। उदा. कश्मीर भारत का अभिन्न अंग है।

अभिन्नता [अ+भिन्न+ता] - (स्त्री.) (तत्.) - 1. भिन्नता का न होना, 2. दो होते हुए भी एक रहने या दिखाई पड़ने की स्थिति। दे. ‘अभिन्न’। तु. अभेद।

अभिप्राय - (पुं.) (तत्.) - 1. किसी काम को शुरू करने/पूरा करने का विचार या उद् देश्य। पर्या. purpose 2. जो बात कही गई है उसे अधिक स्पष्‍ट करने के लिए साररूप में बताया गया उसका मतलब। पर्या. आशय।

अभिप्रेत - (वि.) (तत्.) - 1. संदर्भानुकूल (अर्थ)। उदा. जैसे कनकपादप में कनक का अर्थ धतूरा ही अभिप्रेत है, सोना नहीं। 2. इष्‍ट, इच्छित, अभिलषित। जैसे: अभिप्रेत भोजन। 3. अभीष्‍ट, आशा के अनुरूप। जैसे: अभिप्रेत मित्र।

अभिभावक - (पुं.) (तत्.) - 1. किसी व्यक्‍ति (विशेष रूप से अवयस्क, असमर्थ) का विधिमान्य संरक्षक। 2. माता-पिता की अनुपस्थिति में बालक की देखरेख करने वाला अधिकृत या पूर्वसूचित व्यक्‍ति। 3. सामान्य स्थिति में माता-पिता। quardian

अभिभाषण - (पुं.) (तत्.) - किसी सभा, अधिवेशन आदि में पढ़ा जाने वाला अतिविशिष्‍ट व्यक्‍ति का औपचारिक भाषण। address

अभिभूत - (वि.) (तत्.) - भावना की अतिशयता के प्रभाव में overwhelmed

अभिमत [अभि+मत] - (वि.) (तत्.) - 1. मनोवांछित, मनचाहा। जैसे : तुम्हें अपना अभिमत प्राप्‍त हो गया न? 2. किसी विषय पर विचारपूर्वक निश्‍चित किया हुआ मत, राय। जैसे : ‘चुनावप्रक्रिया’ पर अपना अभिमत स्पष्‍ट कीजिए।

अभिमान - (पुं.) (तत्.) - किसी की (चाहे अपनी या दूसरे की) योग्यता और सामर्थ्य के बारे में मन में उपजा आदर या घमंड का भाव। टि. समाज के बीच (i) आदर का भाव और (ii) घमंड का भाव अवगुण का सूचक माना जाता है। पर्या. (i) गर्व; (ii) घमंड, अहंकार। स्त्री. अभिमानी)

अभिमानी - (वि.) (तत्.) - अपने को बहुत बड़ा समझने वाला; घमंड करने वाला। पर्या. घमंडी।

अभियंता - (पुं.) (तत्.) - अभियांत्रिकी (इंजीनियरिंग) में निष्णात व्यक्‍ति। engineer दे. अभियांत्रिकी।

अभियांत्रिकी - (स्त्री.) (तत्.) - वह विद् याशाखा जिसमें विज्ञान के मूलभूत सिद् धांतों का अनुप्रयोग भवन और सडक़ निर्माण जैसे : सिविल कार्यों; मशीनों के उपयोग और निर्माण तथा वैद्युत एवं इलैक्ट्रोनिक कार्यों के लिए सिखाया जाता है। पर्या. इंजीनियरी। enginerring

अभियुक्‍त - (तत्.) - वह व्यक्‍ति जिस पर कोई अभियोग लगाया गया हो। पर्या. मुलजिम। accused

अभियोग - (पुं.) (तत्.) - किसी व्यक्‍ति के विरूद्ध लगाया गया वह आरोप कि उसने अमुक अपराध किया है। (और दोनों पक्षों को सुनने के बाद जिस पर न्यायालय अपना निर्णय सुनाता है।) accusation

अभियोजक - (पुं.) (तत्.) - व्यक्‍ति जो दंड न्यायालय में अभियुक्‍त के विरूद्ध सरकारी पक्ष प्रस्तुत करे। prosecutor

अभियोजन - (पुं.) (तत्.) - विधि. किसी व्यक्‍ति के विरूद् उसके अपराधी होने के विषय में न्यायालय में की गई वह सारी कार्यवाही जो उसे अपराधी सिद्ध करने की दृष्‍टि से आवश्यक हो। prosecution

अभिराम - (वि.) (तत्.) - जिसमें मन रमता हो, जो अच्छा लगता हो। पर्या. सुंदर, सुखकारी, मनमोहक।

अभिरूचि - (स्त्री.) (तत्.) - किसी व्यक्‍ति या वस्तु के प्रति लगाव बढ़ाने वाली भावना। विशेष रूचि, शौक, चाह, पसंद। interest

अभिलक्षण - (पुं.) (तत्.) - किसी वस्तु की पहचान कराने वाले वे विशेष लक्षण जो दूसरी वस्तु से उसके भेदक स्वरूप को स्पष्‍ट करते हों। features

अभिलाषा - (स्त्री.) (तत्.) - किसी वस्तु को प्राप्‍त करने या प्रयोग करने की इच्छा। पर्या. आकांक्षा, कामना, चाह।

अभिलाषा - (वि.) (तत्.) - अभिलाषा करने वाला, इच्छुक। दे. अभिलाषा।

अभिलिखित - (वि.) (तत्.) - अभिलेख के रूप में लाया गया। दे. ‘अभिलेखन’।

अभिलेख - (पुं.) (तत्.) - 1. भविष्य में जानकारी प्राप्‍त करने के लिए उपयोगी मानकर सुरक्षित रखी गई कोई भी लिखित सामग्री। 2. प्राचीन ऐतिहासिक दस्तावेज। (जिनमें कागज़-पत्र, शिलालेख, ताम्रपत्र, मोहरें आदि सभी सम्मिलित हैं।) record

अभिलेखन - (पुं.) (तत्.) - ध्वनि, लिपि आदि किसी भी रूप में सूचना का संग्रहण। उदा. ग्रामोफ़ोन, टेप आदि में संगीत का अभिलेखन करना। recording

अभिलेखागार [अभिलेख+आगार] - (पुं.) (तत्.) - अभिलेखों का घर या संग्रहालय। ऐतिहासिक महत्व के दस्तावेजों आदि का सुरक्षित रखने का आधिकारिक स्थान। archives

अभिवादन - (पुं.) (तत्.) - किसी आदरणीय व्यक्‍ति के प्रति प्रकट किया जाने वाला शारीरिक या शाब्दिक आदर का भाव। पर्या. प्रणाम, वंदना, स्तुति।

अभिवृद् धि [अभि+वृद्धि] - (स्त्री.) - बहुत अधिक वृद्धि या बढ़ोतरी; चारों ओर हुई वृद्धि।

अभिव्यक्‍ति - (स्त्री.) (तत्.) - भाषा की वे उक्‍तियाँ जिनमें वक्ता का कोई निश्च‍ित भाव प्रकट होता है। प्रकटीकरण, कथन।

अभिशाप - (पुं.) (तत्.) - 1. शाप, 2. मिथ्या दोषारोपण, 3. किसी बुरे कार्य का प्राकृतिक रूप से प्राप्‍त प्रतिफल। उदा. गरीबी अभिशाप है।

अभिषिक्‍त - (वि.) (तत्.) - 1. जिसका अभिषेक हुआ हो, 2. जो राजगद् दी पर पहली बार बैठा हो। दे. ‘अभिषेक’।

अभिषेक - (पुं.) (तत्.) - 1. ऊपर से जल डालकर देवमूर्ति को कराया गया स्नान। 2. राज्यारोहण के अवसर पर बाधा-शांति या भावी मंगलमय जीवन के निमित्‍त मंत्रोच्चारण सहित राजा पर जल छिड़कने की क्रिया। राज्याभिषेक

अभिषेकजनन - (पुं.) (तत्.) - लैंगिक/अलैंगिक से भिन्न जनन का वह प्रकार जिसमें निषेचन fertilisation की क्रिया के बिना ही केवल मादा युग्मक से नए जीव उत्पन्न होते हैं। जैसे: मधुमक्षिका, बर्र, रोटीफर, एफिड आदि कुछ प्राणियों में नर सेक्स का बनना। parthenogenesis दे. जनन।

अभिसार - (पुं.) (तत्.) - नायक-नायिका या प्रेमी-प्रेमिका का मिलने के लिए संकेतित या पूर्वनिश्‍चित स्थान पर जाने की क्रिया।

अभिसारिका - (स्त्री.) (तत्.) - शा.अर्थ अभिसरण करने वाली स्त्री. । सा.अर्थ 1. प्रिय से एकांत में मिलने के लिए जानेवाली स्त्री। 2. काव्यशास्त्र में नायिका का एक भेद जो अभिसार के लिए नायक को संकेत स्थल पर बुलाने का संकेत करती है।

अभी [अब+ही] क्रि. - (वि.) (देश.) - 1 इसी क्षण, इसी समय। 2. अब तक। उदा. अभी गाड़ी नहीं आई है।

अभी-अभी क्रि. - (वि.) (देश.) - थोड़े ही समय पहले, हाल ही में।

अभीष्‍ट [अभि+इष्‍ट] - (वि.) (तत्.) - विशेष रूप से चाहा गया।

अभूतपूर्व [अ+भूतपूर्व] - (वि.) (तत्.) - 1. जो या जिसके समान इसके पूर्वकाल में कभी न हुआ हो। 2. अद्वितीय, बेजोड़, अनुपम। 3. अद्भुत, आश्‍चर्यजनक। जैसे: अभूतपूर्व घटना। अभूतपूर्व सूर्यग्रहण।

अभेद [अ+भेद] - (पुं.) (तत्.) - भेद का न बने रहना; द्वैत भाव की सर्वथा समाप्‍ति। तु. अभिन्नता।

अभेद्य - (वि.) (तत्.) - जिसका भेदन न किया जा सके; जिसमें घुसना संभव न हो या घुसना बहुत कठिन हो। जैसे: अभेद्य दुर्ग।

अभ्यर्थी [अभि+अर्थी] - (पुं.) (तत्.) - किसी पद को पाने का उम्मीदवार। पर्या. प्रार्थी, प्रत्याशी। candidate

अभ्यस्त - (वि.) (तत्.) - 1. जिसने पर्याप्‍त अभ्यास किया हो। पर्या. कुशल, प्रवीण, निपुण। 2. जिसे किसी काम को बार-बार करने के कारण आदत पड़ गई हो।

अभ्यागत [अभि+आगत] - (वि./पुं.) (तत्.) - व्यु.अर्थ सामने आया हुआ। सा.अर्थ 1. अतिथि, मेहमान। 2. साधु, सन्यासी।

अभ्यारण्य [अभय+अरण्य] - (पुं.) (तत्.) - प्राकृतिक वातावरण वाला वह आरक्षित वनक्षेत्र जहाँ जंगली पशु-पक्षी आदि निर्भर होकर विचरण करते हैं। इस क्षेत्र में शिकार खेलने की मनाही रहती है तथा आरक्षण का मुख्य उद् देश्य संरक्षित पशु-पक्षियों के अस्तित्व को समाप्‍त होने से बचाना होता है।

अभ्यास - (पुं.) (तत्.) - दक्षता प्राप्‍त करने के लिए एक ही काम को बार-बार करना। जैसे: अभ्यासपुस्तिका; सैन्य अभ्यास; योगाभ्यास आदि।

अभ्युदय [अभि+उदय] - (पुं.) (तत्.) - 1. उत्पत्‍ति या उदय होने का भाव।, 2. उन्नति, वृद्धि।

अमंगल - (वि.) (तत्.) - शा.अर्थ मंगलरहित। सा.अर्थ अशुभ या बुरा। उदा. हनुमानजी की कृपा से तुम्हारा अमंगल दूर हो जाएगा।

अमचूर - (तद्.) (पुं.) - < आम्र+चूर्ण) सुखाए हुए कच्चे आम का चूर्ण, जो स्वाद में खट्टा होता है।

अमन - (पुं.) (अर.) - दे. शांति।

अमनचैन - (अर.+हीं.) (पुं.) - एकार्थी शब्द द्विरूक्‍ति, शांति और सुख।

अमर [अ+मर] - (वि.) (तत्.) - शा.अर्थ जो मरा न हो; जो मरे नहीं; सदा जीवित रहने वाला। पर्या. चिरजीवी। 2. जिसका कभी अंत न हो।

अमरत्व [अमर+त्व] - (पुं.) (तत्.) - अमर होने का भाव। दे. अमर।

अमराई - (तद्.) (स्त्री.) - < आम्ररानि) ऐसा बगीचा जहाँ अधिकतर आम के वृक्ष हों, आम का बाग/बगिया।

अमरूद - (पुं.) (देश.) - उष्णकटिबंधीय वृक्ष पर लगने वाला खाद् य फल जो कठोर बीजों वाला तथा अपक्व अवस्था में हरे रंग का और पकने पर हल्के पीले रंग का और पीले या गुलाबी रंगवाला गूदेदार हो जाता है।

अमल [अ+मल] - (वि.) (तत्.) - स्त्री. -अमला) मलरहित, निर्मल; स्वच्छ। स्त्री. ‘अफीम’ का बोलीगत पर्याय।, 3. पुं. (अर.) व्यवहार, आचरण। उदा. जिस बात का उपेदश दें, पहले खुद उस पर अमल करें।

अमानत - (स्त्री.) (अर.) - 1. कोई वस्तु जो कुछ समय के लिए किसी दूसरे के पास सुरक्षा के लिए रख दी गई हो। पर्या. धरोहर, थाती। 2. उक्‍त प्रक्रिया।

अमानवीय [अ+मानव+ईय] - (वि.) (तत्.) - शा.अर्थ-जो मानवोचित न हो, इंसानियत से रहित। सा.अर्थ ऐसा व्यवहार, आचरण या काम जो मानव के सामान्य गुणों से मेल न खाता हो। पर्या. पाश्‍विक, पशुवत्।)

अमान्य - (वि.) (तत्.) - जो मानने या स्वीकार करने योग्य न हो। विलो. मान्य।

अमावस - (स्त्री.) (तत्.) - दे. ‘अमावस्या’।

अमावस्या - (स्त्री.) (तत्.) - भारतीय पंचागानुसार प्रत्येक मास की कृष्ण पक्ष की अंतिम तिथि (जिसमें रात को चंद्रमा बिल्कुल दिखाई नहीं देता) पर्या. अमावस ।

अमिट [अ+मिट] - (वि.) (देश.) - 1. जो मिट न सके।, 2. जिसे मिटाया या नष्‍ट न किया जा सके। 3. जिसका होना निश्‍चित हो।

अमित - (वि.) (तत्.) - 1. जिसे नापा या मापा न जा सके। पर्या. अपरिमित। 2. बहुत अधिक, बेहद।

अमिया - (तद्.) (स्त्री.) -  <आम्र) अपक्वावस्था वाला छोटा आकार का आम्रफल। पर्या. केरी।

अमीबा - (पुं.) - (अं.) जीव-जल या मृदा में पाया जाने वाला केवल एक कोशिकीय जीवित प्राणी।

अमीर - (वि./पुं.) - (अं.) जिसके पास धन और अधिकार हों। पर्या. धनी, सरदार, नेता, शासक आदि। तु. उपराव।

अमीरी भाव. - (स्त्री.) - संपन्‍नता, दौलतमंदी।

अमुक - (वि.) (तत्.) - अज्ञात या कल्पित। टि. सामान्यत: किसी अज्ञात, कल्पित या जिसका नाम न लेना हो उसके लिए इस शब्द का प्रयोग होता है। उदा. अमुक व्यक्‍ति, अमुक स्थान, अमुक वस्तु, इत्यादि। पर्या. फलाँ।

अमूमन - (अव्य.) (क्रि.वि.) - (अ.<उमूमन) क्रि. 1. साधारणत:, आमतौर पर, अक्‍सर, प्राय:, बहुधा।

अमूर्त - (वि.) (तत्.) - शा.अर्थ मूर्तिरहित। सा.अर्थ जिसे प्रत्यक्षत: देखा न जा सके। abestract

अमूल्य - (वि.) (तत्.) - 1. जिसका मूल्य न लगाया जा सके। पर्या.-अनमोल। 2. बहुमूल्य।

अमृत - (पुं.) (तत्.) - वह कथित पेय जिसके बारे में कहा जाता है कि उसे पीने के बाद आदमी मरता नहीं, अमर हो जाता है। पर्या. सुधा, पीयूष। ला. कोई अत्यंत स्वादिष्‍ट या आनंददायक पेय या खाद्य पदार्थ।

अमोघ [अ+मोघ=व्यर्थ] - (वि.) (तत्.) - जो निष्फल न हो, जो व्यर्थ न जाए। पर्या. सफल, अचूक। उदा. अमोघ वरदान (सफल)। अमोघ अस्त्र (अचूक)। अमोघ प्रयत्‍न (अव्यर्थ)।

अम्पायर - (पुं.) - (अं.) 1. वह अधिकारी जो कुछ विशेष खेल प्रतियोगिताओं में यह सुनिश्‍चित करता है कि निष्पक्षता बनी रहे तथा कोई खिलाड़ी खेल संबंधी नियम को न तोड़े। 2. किसी क्रिकेट मैच का निर्णायक, मध्यस्थ। umpire

अम्मा/अम्माँ - (स्त्री.) (तद् ) - <अम्बा माता, माँ, जननी। (सामान्यतया संबोधन में प्रयुक्‍त)

अम्ल - (पुं.) (तत्.) - रसा. वे यौगिक जिसमें हाइड्रोजन हो और जो जल में घुलकर हाइड्रोजन आयरन का मोचन करते हैं तथा सामान्यत: खट्टा एवं संक्षारक corrosive होते हैं। ये लिटमस को लाल करते हैं तथा इनका pH मान 7 से कम होता है। acid

अम्लता - (स्त्री.) (तत्.) - अम्लयुक्‍त (खट्टे) होने का भाव।

अम्लता - (स्त्री.) (तत्.) - शा.अर्थ खट् टापन। आयु. अम्ल पित्‍त की मात्रा बढ़ जाने से उत्पन्न पेट का रोग जिसमें खट् टी डकारें आना और पेट में जलन होना। acidity

अम्लवर्षा - (स्त्री.) (तत्.) - अम्ल सहित वर्षा। अम्लवर्षा का मुख्य कारण वायुमंडल में सल्फर डाइऑक्साइड और नाइट्रोजन के ऑक्साइडों का मुक्‍त होना है। अम्ल वर्षा उद्योगों से उत्पन्न अपशिष्‍ट गैसों के रूप में होती है।

अम्लीय - (पुं.) (तत्.) - अम्ल से संबंधित। दे. अम्ल। वि. तत्. अम्ल (ख टा) गुणों से युक्‍त।

अयन - (पुं.) (तत्.) - सा.अर्थ जाना, गति, चाल। भू. 1. सूर्यकिरणों के पृथ्वी पर आने से बनने वाले प्रभाव में होने वाला परिवर्तन या गति। उत्‍तरायण-दिसंबर से जून तक सूर्य की किरणें क्रमश: उत्‍तर की ओर जाती हुई दिखती हैं अत: इसे उत्‍तरायण कहते हैं। दक्षिणायन-इसके विपरीत जून से दिसंबर के काल को दक्षिणायन कहते हैं। 2. पृथ्वी का लंबगोलाकार मार्ग भी क्रमश: पश्‍चिम की ओर घूमता है। लगभग 72 वर्ष में एक अंश घूमता है। इसी कारण सबसे बड़ा/छोटा दिन एक-एक दिन पीछे खिसक जाता है। इस आधार पर अयनांश की गणना होती है। उदा. आजकल सबसे बड़ा दिन 21 जून माना जाता है। कुछ वर्षों पूर्व यह 22 जून होता था।

अयनांत [अयन+अंत] - (पुं.) (तत्.) - शा.अर्थ (सूर्य के) अयन अर्थात जाने का अंत यानी अंतिम छोर। भू. वह समय जब सूर्य की वार्षिक गति की दिशा उलटती हुई प्रतीत होती है। टि. (i) समय वर्ष में दो बार आता है। (ii) दो छोर हैं- कर्क रेखा (उत्‍तरी 23½o) और मकर रेखा (दक्षिणी 23½o)

अयस्क - (पुं.) (तत्.) - वह खनिज पदार्थ जिसमें धातु के कण पाए जाते हों। भिन्न-भिन्न धातुओं के कण भिन्न-भिन्न अयस्कों से प्राप्‍त होते हैं। शोधन के पश्‍चात् यह धातु प्रयोग में आती है। जैसे: एल्यूमीनियम का अयस्क बॉक्साइट। ore

अयाल - (पुं.) (फा.) - घोड़े या सिंह की गरदन पर स्थित बालों का समूह। पर्या. केसर। टि. इसी कारण सिंह को ‘केसरी’ कहा जाता है।

अयोग्य [अ+योग्य] - (वि.) (तत्.) - 1. जो उपयुक्‍त या उचित न हो। पर्या. अनुचित। 2. जिसमें योग्यता न हो। पर्या. नालायक, नाकाबिल।

अयोग्यता - (स्त्री.) (तत्.) - अयोग्य होने का भाव। दे. अयोग्य।

अरण्य - (पुं.) (तत्.) - जंगल, वन।

अरण्‍यरोदन - (पुं.) (तत्.) - शा.अर्थ जंगल में रोना। ऐसी पुकार जिसे कोई सुनने वाला न हो; ऐसी बात जिस पर कोई ध्यान न दे। व्यर्थ का प्रलाप।

अरदास - (स्त्री.) (फा.) - [अर्ज़-अर.+दाश्त- 1. प्रार्थना, निवेदन। 2. किसी देवता के नाम पर दिया जाने वाला धन।

अरब - (तद्) (वि.) - < अर्बुद) 1.सौ करोड़ की संख्या वाला, सौ करोड़ (1,00,00,00,000) पुं. अर. 1. पश्‍चिमी एशिया का रेगिस्तानी प्रदेश जिसके अंतर्गत मिस्त्र, ईराक आदि कई देश हैं। 2. अरब देश का निवासी। बहु.व. अरबों= कई अरब, बहुत बड़ी संख्या वाले।

अरब सागर - (पुं.) - अरेबियन सी के लिए प्रयुक्‍त हिंदी पर्याय जो अरब प्रायद्वीय से लेकर भारत के दक्षिणी तट तक फैला हुआ है। arabian sea

अरमान - (पुं.) (फा.) - मन में दबी हुई चाह या लालसा।

अरसा - (पुं.) (अर.) - लंबी अवधि, लंबा समय। उदा. आपसे मिले तो अरसा हो गया।

अरि - (पुं.) (तत्.) - शत्रु, वैरी।

अरुचि - (स्त्री.) (तत्.) - शा.अर्थ किसी कार्य, वस्तु आदि को करने या पाने में पसंद न आने की स्थिति।, रुचि का अभाव। पर्या. नफरत, घृणा। विलो.-रूचि।

अरुचिकर - (वि.) (तत्.) - 1. पसंद न आने वाला। 2. जो मन के अनुकूल न हो। दे. अरुचि।

अरुण - (वि.) (तत्.) - लाल (रंग) पुं. तत्. सूर्य के सारथी का नाम। टि. सूर्योदय के पूर्व आकाश का लाल रंग का हो जाना ही प्रतीक रूप में सूर्य का सारथी होना है।

अरुणोदय [अरुण+उदय] - (पुं.) (तत्.) - शा.अर्थ 1. सूर्य का उदय, 2. सूर्य के प्रकाश की ललाई का उदय। सा.अर्थ सूर्योदय से पूर्व का काल, उषाकाल। पर्या. तडक़ा, भोर, ब्रह् म-मुहूर्त।

अरू - (अव्य.) (देश.) - बोलीगत प्रयोग-और।

अरे - (अव्य.) (तत्.) - 1. संबोधन सूचक शब्द। उदा. अरे बालक। इधर आ। स्त्री. अरी। 2. आश्‍चर्यसूचक शब्द। उदा. अरे! यह क्या है?

अर्क - (पुं.) (तत्.) - 1. किसी औषधि द्रव्य का निचोड़। essance 2. सूर्य का एक पर्याय। 3. आक या मदार का पौधा।

अर्चन - (पुं.) (तत्.) - पूजा, पूजन।

अर्चना/अर्चा - (स्त्री.) (तत्.) - दे. अर्चन।

अर्ज़ - (स्त्री.) (अर.) - 1. प्रार्थना, निवेदन, विनती। उदा.-आप से अर्ज है कि मेरा यह काम कर दें। 2. पुं. (लंबाई की तुलना में) चौड़ाई। जैसे-इस कपड़े का अर्ज कितना है? (केवल कपड़े की चौड़ाई।) 3. पुं. अर. कपड़े की बाने वाली (ताने वाला लंबाई की तुलना में) चौड़ाई। 4. पुं. (फ़ा) लिखित और मौखिक प्रार्थना, निवेदन।

अर्जन - (पुं.) (तत्.) - सा.अर्थ कमाना, प्राप्‍त करना। earning 1. विधि. संपत्‍ति आदि को प्राप्‍त करके अपना बना लेना। 2. भाषा को स्वाभाविक परिस्थितियों में बाल्यकाल से ही (सहज रूप में) ग्रहण करते जाना। acquisition तु. सीखना। learning

अर्जित - (वि.) (तत्.) - अर्जित किया हुआ, कमाया हुआ। दे. अर्जन। acqruired

अर्जी/अरज - (अर.) (स्त्री.) - <अर्ज़) प्रार्थना-पत्र, लिखित निवेदन, याचिका।

अर्तीद्रिय - (वि.) - जो इन्‍द्रियों की पहुँच से परे हो।

अर्थ - (पुं.) (तत्.) - 1. शब्द का अभिप्राय, आशय, मतलब। जैसे: ‘वात्सल्य’ शब्द का अर्थ बताएं। 2. धन, दौलत, संपत्‍ति। जैसे: अर्थशास्त्र economics 2. निमित्‍त, हेतु, उद् देश्य। जैसे: उसने सारा जीवन निरर्थक ही बिता दिया।

अर्थ - (वि.) (तत्.) - 1. किसी वस्तु के दो बराबर भागों में से एक। पर्या. आधा half semi 2. जिस कार्य में दो इकाईयों का समान (या आंशिक) भाग हो। उदा. अर्धसरकारी संस्था।, 3. जिसमें कमी हो, जो पूरा न हो। उदा. अर्धशिक्षित, अर्धपशु। पर्या. अधूरा।

अर्थच्छटा - (स्त्री.) (तत्.) - अर्थ से प्रकट होने वाला भाव।

अर्थपिशाच - (पुं.) (तत्.) - 1. उचित-अनुचित का विचार किये बिना जिस किसी भी तरीके से धन प्राप्‍ति के लिए तत् पर रहने वाला व्यक्‍ति। 2. वह अत्यंत लोभी व्यक्‍ति जो धन प्राप्‍त करने के लिए पिशाचों के समान क्रूर व अमानवीय कार्य करता हो। जैसे: आजकल घर में, बाजार में, वाहन में (यात्रा करते हुए) सभी जगह अर्थपिशाचों का आतंक है।

अर्थव्यवस्था [अर्थ+व्यवस्था] - (स्त्री.) (तत्.) - आय-व्यय, उत्पादन-वितरण आदि के लिए अपनाई हुई व्यवस्था। किसी भी समुदाय अथवा देश आदि के आर्थिक संसाधनों के नियंत्रण और प्रबंधन की वास्तविक स्थिति। economy

अर्थशास्त्र - (पुं.) (तत्.) - वह शास्त्र या विद् या जिसमें अर्थ या धन-संपत्‍ति के उत्पादन, साधन, उपयोग, विनिमय और वितरण आदि के सैद् धांतिक और व्यावहारिक पक्षों का विवेचन होता है। economics

अर्थशास्त्री - (पुं.) (तत्.) - अर्थशास्त्र का विद्वान या ज्ञाता। दे. अर्थशास्त्र।

अर्थशास्त्रीय [अर्थशास्त्र+ईय] - (वि.) (तत्.) - अर्थशास्त्र से संबंधित, अर्थशास्त्र का।

अर्थहीन (अर्थ+हीन) - (वि.) (तत्.) - 1. जिसका कोई अर्थ न हो। पर्या. निरर्थक, व्यर्थ। 2. जिसमें से सार भी न निकले। पर्या.निस्सार।

अर्थालंकार [अर्थ+अलंकार] - (पुं.) (तत्.) - काव्यशास्त्र में अलंकार का वह भेद जो (शब्द के रूप में नहीं किंतु) अर्थ पर आश्रित हो। जैसे: उपमा, रूपक, उत्प्रेक्षा आदि कई भेद। तु. शब्दालंकार।

अर्ध - (वि.) (तत्.) - 1. किसी वस्‍तु के दो बराबर भागों में से एक। पर्या. आधा 2. जिस कार्य में दो इकाइयोंका समान (या आंशिक) half, semi उदा. अर्ध सरकारी संस्‍था 3. जिसमे कमी हो, जो पूरा न हो। उदा. अर्ध शिक्षित, अर्धपशु। पर्या. अधूरा।

अर्धवृत्‍त - (पुं.) (तत्.) - आधा गोला (वृत्‍त) वृत्‍त की परिधि का आधा भाग अर्थात व्यास द्वारा काटे गए वृत्‍त के दो भागों में कोई एक भाग। semicircle

अर्पण - (पुं.) (तत्.) - 1. श्रद्धासहित देने की क्रिया। पर्या. समर्पण। 2. इस प्रकार दी जाने वाली वस्तु।

अर्बुद - (वि.) (तत्.) - प्राची. अर्थ. दस करोड़। सा.अर्थ सौ करोड़ की संख्या, एक अरब। सा.अर्थ बहुत बड़ी संख्या।

अर्वाचीन - (वि.) (तत्.) - 1. आज के काल का अर्थात जो पुराना न हो 2. जिसमें नवीन विचारों का समावेश हो। पर्या. आधुनिक। विलो. प्राचीन। 2. नया, नवीन। modern

अर्हता - (स्त्री.) (तत्.) - किसी कार्य को करने अथवा पद को धारण करने की उचित पात्रता अर्थात् शैक्षिक योग्यता एवं अनुभव आदि का पूरा विवरण। qualification

अलंकरण - (पुं.) (तत्.) - अपने-अपने क्षेत्र में विशिष्‍ट सेवाकार्य के लिए प्रदर्शित वह सम्मान जिसमें सम्मानित व्यक्‍ति को कोई तमगा लगाया जाता है या धनराशि अर्पित की जाती है और प्रशस्ति पढ़ी जाती है।

अलंकार - (पुं.) (तत्.) - 1. शरीर को सजाने और उसकी सुंदरता बढ़ाने के लिए पहनी गई मूल्यवान वस्तुएँ आदि। पर्या. गहना, आभूषण। 2. साहित्यिक चमत्कार उत्पन्न करने के लिए (कथन या वर्णन की रीति)। अलंकार ‘उपमा’, ‘रूपक’, ‘अनुप्रास’, ‘यमक’, ‘श्‍लेष’ आदि।

अलंकृत - (वि.) - अलंकार युक्‍त, सजा हुआ, विभूषित उदा. सारा मंडप तरह-तरह की रोशनियों से अलंकृत था।

अलग - (वि.) (देश.) - जो सबसे पृथक हो, जो किसी के साथ लगा या जुड़ा न हो।

अलग-थलग - (वि.) (तद्) - < अलग्न] जो सबसे अलग या अकेला पड़ गया हो।

अलगाव - (पुं.) (देश.) - < अलग, तद्. < अलग्न) अलग होने का भाव; दूरी। पर्या. पार्थक्य, पृथक्करण।

अलबत्‍ता - (अव्य.) (अर.) - 1. निस्संदेह, बेशक। 2. लेकिन, परंतु।

अलबेला - (वि.) (तद्) - < अलभ्य] 1. जो दिखने में अलग और नया हो। पर्या. अनोखा, अनूठा। 2. सुंदर, बना-ठना।

अलबेलापन - (पुं.) (दे.) - अलबेला होने का भाव। दे. अलबेला।

अलमस्त - (वि.) (फा.) - 1. जो नशे में पूरी तरह धुत्‍त हो। 2. लापरवाह, 3. मनमौजी, अपनी ही धुन में रहने वाला।

अलमस्ती - (स्त्री.) (फा.) - 1. किसी नशीले पदार्थ के सेवन से मस्त होने का भाव या स्थिति। मदमत्‍तता, नशे की मस्ती। जैसे: समारोह में उसकी अलमस्ती तो देखते ही बनती थी। 2. लापरवाही, बेफिक्री, निश्‍चिंतता। 3. मन की मौज।

अलमारी - (स्त्री.) - (पुर्त.) कपड़े, पुस्तकें या अन्य सामग्री के भंडारण के लिए दैनिक उपयोग में आने वाली खाने-बनी और कपाटयुक्‍त लकड़ी या लोहे की खड़े आकारवाली निधानी। almirah

अलल्ले-तलल्ले - (अर.+अनु.) (वि.) - (ऐसा खर्च) जिसका कोई हिसाब ही न हो, बेहिसाब। जैसे: वह मौजमस्ती में अलल्ले-तलल्ले पैसे उड़ा रहा है।

अलविदा - (अर.) (पुं.) - निश्‍चायक उपपद ‘अल+विदा = विदाई) अर. विदा होते समय औपचारिक निर्वाह के लिए प्रयुक्‍त शब्द जिसका भाव है-”अच्छा, अब चलते हैं।”

अलसाई - (स्त्री.) (वि.) - आलस्ययुक्‍त स्त्री. वि. ‘अलसाया’-आलस से शिथिलता अनुभव करता हुआ।

अलसाना - ([तद्.< अलसन]) - अ.क्रि. शरीर का शिथिल होना, आलस्य करना।

अलसाया - ([तद्< अलसित]) (पुं.) - वि. आलस्य युक्‍त (पुरूष) पर्या. अलसित।

अलसुबह - (स्त्री.) (अर.) - प्रात:काल, सवेरा। टि. ‘अल’ अरबी का निश्‍चयवाचक उपपद है, जो अंग्रेजी के the के समकक्ष है।

अलहदा - (वि.) (अर.) - दे. अलग।

अलापना - ([तद्< आलापन] ) (अ.क्रि.) - सा.अर्थ 1. गाने से पहले तान मिलाना (शास्त्रीय संगीत में)। आलाप।, 2. गाना गाना। 3. बोलना, बात करना। मुहा. राग अलापना (ला.अर्थ) अपने ही स्वार्थ या हित की बात पर लगातार ज़ोर देते रहना; अन्यों से भिन्न अपना मत व्यक्‍त करना।

अलाव - ([तद्< अलात्]) (पुं.) - तापने के लिए या जंगली पशुओं को दूर रखने के लिए जलाई गई आग।

अलावा - ([अर.< इलावा]) (अव्य.) - (के) अतिरिक्‍त, (को) छोडक़र (के) सिवा, सिवाय।

अलिंगी/अलैंगिक जनन - (पुं.) (तत्.) - जीव-जनन का एक प्रकार जिसमें सेक्स कोशिकाओं या युग्मकों का संलयन नहीं होता है। asexual इस प्रकार के जनन को अलिंगी जनन भी कहा जाता है। तु. लैंगिक जनन।

अलिंद - (पुं.) (तत्.) - 1. जीव-हृदय का वह कक्ष जिसमें रुधिर शरीर के भिन्न-भिन्न अंगों से लौटकर आता है और वहाँ से फिर निलय वेंट्रिकल में चला जाता है। auricle तु. निलय। 2. कान-जैसी उभरी हुई संरचना।

अलि - (पुं.) (तत्.) - काले रंग का उड़ने वाला एक कीट जो फूलों से रस ग्रहण कर छत्ते में इकट्ठा करता है और कालांतर में शहद का रूप धारण कर लेता है। पर्या. भ्रमर, भौंरा।

अलैंगिकजनन - (पुं.) (तत्.) - जनन का वह प्रकार जिसमें जनन-कोशिकाएँ (युग्मक) न बनकर जनन क्रिया प्राणी की कायिक कोशिकाओं से होती है। जैसे: अमीबा में द्वि. स्पंज में जेम्यूल द्वारा जनन और हाइड्रा में मुकुलन। a sexual reproduction दे. जनन; तु. लैंगिक जनन।

अलौकिक - (वि.) (तत्.) - सा.अर्थ अद् भुत, विचित्र। व्यु.अर्थ जो इस लोक (समाज) से संबंधित न हो। पर्या. दिव्य, लोकोत्‍तर।

अल्प - (वि.) (तत्.) - थोड़ा, कम।

अल्पकालिक - (वि.) (तत्.) - 1. थोड़े समय के लिए (अधिक समय के लिए नहीं)। उदा. कीट-पंतगों का जीवन अल्पकालिक होता है। जैसे: 2. जो थोड़े दिनों के लिए ही हो। अल्पकालिक अवकाश।

अल्पजीवी - (वि.) (तत्.) - 1. थोड़े समय तक जीने वाला। 2. जिसकी आयु कम हो। पर्या. अल्पायु। उदा. कीट-पतंग अल्पजीवी होते हैं। विलो. दीर्घजीवी।

अल्पज्ञ - (वि.) (तत्.) - 1. जो कम जानकारी रखता हो। 2. नासमझ, नादान।

अल्पप्राण - (वि.) (तत्.) - शा.अर्थ जिसमें प्राण की मात्रा कम हो। व्या. पु. बहु. बाह् य प्रयत्‍न के आधार पर व्यंजनों के वर्गीकरण के प्रसंग में वे स्पर्श व्यंजन जिनके उच्चारण में ‘प्राण’ (अर्थात) प्रश्‍वास तुलनात्मक दृष्‍टि से अल्पमात्रा युक्‍त होता है। जैसे: देवनागरी वर्णमाला में पाँचों वर्गों के पहले, तीसरे और पाँचवें (वर्ण) जैसे-क, ग, ड., च, ज इत्यादि।

अल्पबुद्धि - (वि.) (तत्.) - कम बुद्धि रखने वाला। पर्या. अल्पमति, मंदमति। विलो. तीक्ष्‍णबुद् धि, तीब्रबुद्ध‍ि

अल्पमत - (पुं.) (तत्.) - 1. थोड़े लोगों का मत या राय। 2. समान मत रखने वालों का छोटा समूह। पर्या. अल्पसंख्यक। वि./पुं. minority विलो. बहुमत।

अल्पवयस्क - (वि.) (तत्.) - कम आयु वाला (पुरूष, स्त्री या कोई भी अन्य प्राणी) विधि. जो कानून की दृष्‍टि में वयस्क न माना जाए। minor पर्या. नाबालिग। दे. वयस्क।

अल्पविराम - (पुं.) (तत्.) - शा.अर्थ बहुत थोड़े समय के लिए रुकना। व्या. एक लेखन में अंकित विराम-चिह् न जिसके अनुसार वाचन करते समय बहुत थोड़े समय के लिए रुकने का संकेत होता है। इसका चिह् न (,) है। coma तु. अर्धविराम, पूर्ण विराम।

अल्पसंख्यक - (वि.) (पुं.) - तत्. शा.अर्थ कम संख्या वाला। (वह वर्ग) जिसके सदस्यों की संख्या तुलनात्मक दृष्‍टि से उसी क्षेत्र के अन्य समाज समाजों में कम हो। minority विलो. बहुसंख्यक।

अल्पायु [अल्प+आयु] - (वि.) (तत्.) - कम आयु वाला, कम उम्र पाप्‍त (व्यक्‍ति) यानी जो अभी घरबार, व्यापार-धंधा आदि का काम संभालने के लायक न हुआ माना गया हो। पर्या. अल्पवय (व्यक्‍ति) minor; young तु. वयस्क।

अल्पाहार - (पुं.) (तत्.) - शा.अर्थ कम मात्रा में किया गया भोजन। पर्या. मितहार। सा.अर्थ दोपहर या सांध्य भोजन (मुख्य भोजन) को छोडक़र प्रात:काल या अपराह् न में ली गई खाद्य सामग्री। पर्या. नाश्ता, जलपान, कलेवा।

अल्पाहारी - (वि.) (तत्.) - 1. अल्प या थोड़ा भोजन करने वाला। 2. जलपान/नाश्ता/कलेवा (अल्पाहार) करने वाला।

अल्पाहारी - (वि.) (तत्.) - अल्पाहारिन। जिसका आहार कम मात्रा में यानी बहुत ही नियंत्रित हो। पर्या. मिताहारी।

अल्लाह/अल्ला - (पुं.) (अर.) - सर्वशक्‍तिमान परमात्मा, ईश्‍वर। पर्या. खुदा।

अल्हड़ - (वि.) (तद् अप. < अल्लड़ < प्रा. अल्ल < तत् आर्द्र) - व्यु.अर्थ सुकुमार, अप्रौढ़। सा.अर्थ 1. बालोचित सरलता के साथ मस्त और लापरवाह। 2. जो व्यावहारिक बुद्धि के उपयोग में दक्ष न हो। प्राणि.अ.।

अल्हड़पन - (पुं.) (दे.) - अल्हड़ स्वभाव, भोलापन और लापरवाही। दे. अल्हड़।

अवकाश - (पु.) (तत्.) - 1. खाली स्थान जैसे: आकाश, अंतरिक्ष। 2. खाली समय, जिस समय में काम न हो। 3. सेवा-कार्य से निवृत्‍त। उदा. मैं आज अवकाश पर हूँ। पर्या. छुट्टी। उदा. मेरे पिताजी तीस वर्ष के सरकारी सेवा-कार्य के बाद आज अवकाश प्राप्‍त कर रहे हैं।

अवकाशग्रहण - (पुं.) (तत्.) - किसी कार्य या पद से अलग हो जाना, सेवामुक्‍त हो जाना। retirement

अवकाशप्राप्‍त - (वि.) (तत्.) - प्रशा. जिसने अवकाश प्राप्‍त कर लिया हो; जो अपने सेवाकार्य से निवृत्‍त हो चुका हो। retired

अवगत - (वि.) (तत्.) - ज्ञात, जाना हुआ, मालूम। उदा. आप इस बात से अवगत है कि…..।

अवगुण [अव=बुरा+गु] - (पुं.) (तत्.) - किसी व्यक्‍ति की नकारात्मक विशेषता (जिसे सामाजिक मापदंड पर ठीक नहीं माना जा सकता) पर्या. बुराई, दुर्गुण, दोष, ऐब। विलो. गुण।

अवचूषण [अव+चूषण] - (पुं.) (तत्.) - किसी वस्तु या तरल पदार्थ को अपने में चूस/सोख लेना। पर्या. अवशोषण। absorption

अवचेतन - (तत्.) - मनो. चेतन मन और अचेतन मन के बीच की स्थिति। जैसे: स्वप्नावस्था। उदा. मेरा अवचेतन मन कुछ नहीं अनुभव कर सका। sub-conscious

अवचेतना - (स्त्री.) - चेतना की वह सुप्‍त अवस्था जिसमें किसी वस्तु का स्पष्‍ट ज्ञान नहीं होता। अर्धचेतना। जैसे: वह अवचेतना में किसी को सही पहचान नहीं सका।

अवज्ञा - (स्त्री.) (तत्.) - जो आज्ञा मानी जानी चाहिए उसकी की गई अवहेलना; आज्ञा का अपालन; बात न मानने का भाव। disobedience

अवतरण - (पुं.) (तत्.) - 1. आकाश से जमीन पर उतरना। जैसे: वायुयान का अवतरण। landing 2. अवतार लेना। incarnation

अवतरित - (वि.) (तत्.) - जिसने अवतार लिया हो, जो ऊपर से नीचे आया हो। discendant

अवतल - (वि.) (तत्.) - शा.अर्थ किसी भी गोलाकार या खोखली संरचना की अंदर की ओर धंसी हुई सतह; बीच में दबा हुआ वक्रपृष्‍ठ। जैसे: अवतल लैंस। तु.-उत्‍तल। concave

अवतार - (पुं.) (तत्.) - हिंदू पुराणों के अनुसार भगवान का मनुष्य रूप में लिया हुआ जन्म।

अवदात - (वि.) (तत्.) - ) 1. जो अत्यंत साफ-सुथरा व उज्‍ज्‍वल हो, स्वच्छ। 2. शुभ्र, सफेद। जैसे: मोती अवदात सदृश दशन तुम्हारे। 3. पवित्र, शुद् ध।

अवदान - (पुं.) (तत्.) - ‘योगदान’ के अर्थ में आजकल बहुधा प्रयुक्‍त शब्द जिसका प्राचीन अर्थ ‘कीर्तिकर’ या ‘शौर्यसंपन्न’ था। contribution

अवदाब - (तद्) ([पुं.<अवदमन]) - पृथ्वी पर पड़ने वाले वायुदाब का प्राकृतिक कारणों से कम हो जाना। टि. वायुदाब की कमी के कारण कई बार चक्रवात या भारी वर्षा आदि की संभावना हो जाती है। depression

अवध - (पुं.) ([तद् < अयोध्या] ) - मुगल शासन के समय आज के उत्‍तर प्रदेश के लखनऊ-फैजाबाद के आसपास का क्षेत्र।

अवधान - (पुं.) (तत्.) - किसी विषय में मन की एकाग्रता; एकाग्र या सावधान होने की अवस्था या भाव।

अवधान - (पुं.) (तत्.) - 1. किसी वाद या मामले का विधिक दृष्‍टि से निस्तारण। 2. कर आदि की मात्रा का निश्‍चय। determination 2. (शब्द विशेष) पर डाला गया ज़ोर या दिया गया बल। पर्या. बलाघात स्ट्रेस

अवधारणा - (स्त्री.) (तत्.) - किसी भी विषय पर अच्छी तरह से विचार करने के उपरांत उसके बारे में प्रस्तुत सुनिश्‍चित कथन। पर्या. संकल्पना। concept

अवधि - (स्त्री.) (तत्.) - 1. एक तिथि से दूसरी नियत तिथि तक का समय। period 2. काम पूरा करने के लिए तय किया हुआ समय। पर्या. मियाद् limitation, limit 3. सीमा, हद।) उदा. राम को चौदह वर्ष की अवधि के लिए वनवास दिया गया था। वि. [देशज. <अवध< अयोध्या] 1. अवध से संबंधित। 2. अवध प्रदेश का। 3. अवध की बोली। (उदा. तुलसीदास ने रामचरित मानस की रचना अवधी में की।)

अवन - (अर.) - 1. ईंट, पत्थर, लोहा आदि का बना तंदूर जो रोटी सेंकने या भोजन बनाने का विशेष उपकरण या साधन है। 2. चूल्हा, अंगीठी। जैसे: अवन में सिकी रोटी स्वादिष्‍ट होती है। 3. बिजली की शक्‍ति से गर्मी देने वाला कृत्रिम चूल्हा। oven तुल. आवाँ।

अवनति [अव+नीति] - (स्त्री.) (तत्.) - शा.अर्थ नीचे की ओर झुकाव। 1. आगे बढ़ने के क्रम में ऊपर की ओर न जाकर नीचे की ओर चले आना, 2. गुणवत्‍ता की दृष्‍टि से बढ़ोतरी की जगह घटियापन आ जाना। उदा. नैतिकता की दृष्‍टि से हमारा समाज अवनति की दिशा में अग्रसर है। पर्या. अध:पतन। विलो. उन्नति।

अवमूल्यन - (तत्.) - (तुलनात्मक दृष्‍टि से) मूल्य में गिरावट या कमी आना, मूल्य का घटना। पर्या.-गिरावट। devaluation

अवमूल्यित - (वि.) (तत्.) - जिसका अवमूल्यन हो गया हो; जिसके मूल्य में गिरावट आई हो। दे. अवमूल्यन।

अवयव - (पुं.) (तत्.) - किसी आकृति का कोई अंग; किसी समुच्‍चय का कोई सदस्य; शरीर का कोई भाग।

अवयस्क [अ+वयस्क] - (पुं.) (तत्.) - शा.अर्थ-व्यक्‍ति (पुरुष या स्त्री) जो वयस्क न हुआ हो; जिसने वयस्क होने के लिए निर्धारित आयु प्राप्‍त न की हो। तु. वयस्क।

अवरोध - (पुं.) (तत्.) - जाने-आने, करने आदि पर लगा/लगाया हुआ नियंत्रण। obstruction; restraint 2. कार्य-साधन में आने वाली बाधा। intererruption, hindrance पर्या. रुकावट।

अवरोधक/अवरोधी - (वि.) (तत्.) - अवरोध या रुकावट उत्पन्न करने वाला।

अवरोधन - (पुं.) (तत्.) - रोकने या बाधा डालने की क्रिया या भाव।

अवरोह - (पुं.) (तत्.) - ऊपर से नीचे आना, उतार की ओर चलना विलो. आरोह।

अवलंब - (पुं.) (तत्.) - आश्रय, सहारा।

अवलंबन - (पुं.) (तत्.) - आश्रय/सहारा लेने का सूचक भाव।

अवलंबित - (वि.) (तत्.) - 1. किसी सहारे से लटका हुआ (या टिका हुआ)। पर्या. आश्रित। 2. जो किसी अन्य आश्रित पर आधारित हो। dependent टि. अवलंबित में ‘आश्रय’ ऊपर होता है जिसके सहारे आश्रित वस्तु लटकी होती है, जबकि ‘आधार’ नीचे होता है और उस पर ‘आधारित वस्तु’ ऊपर की ओर स्थित होती है।

अवलंबित - (वि.) (तत्.) - जो किसी का सहारा/आश्रय लिए हो; जो किसी के सहारे (ऊपर की ओर या नीचे की ओर) टिका हो।

अवलरवादिता - (स्त्री.) - (सं.) [भाव.] उपयुक्‍त अवसर का भरपूर लाभ लेना।

अवलि/अवली - (तद्<आवलि)) (स्त्री.) - पंक्ति,श्रेणी,कतार। उदा .दीपावली (दीप+अवली), पाठावली [पाठ+अवली]

अवलोकन - (पुं.) (तत्.) - 1. देखना, 2. अच्छी तरह जांचपूर्वक देखना। perusal उदा. 1. कृपया अपने पूर्व-पत्र का अवलोकन करें। 2. मसौदा/प्रारूप/अवलोकनार्थ।

अवशिष्‍ट - (वि.) (तत्.) - जो बच गया या छूट गया हो, बाकी बना हुआ। (व्यर्थ-पदार्थ या अंश)

अवशेष - (पुं.) (तत्.) - बची हुई वस्तु, सामग्री आदि। इति., पुरा. प्राचीन सभ्यता के बचे रह गए अंश (जो तत् कालीन ऐतिहासिक महत्व को प्रकट करें) जैसे: सिंधु सभ्यता के ध्वंसावशेष।

अवशोषण - (पुं.) (तत्.) - रसा.,भौ. किसी वस्तु द्वारा अन्य वस्तु को (जैसे-द्रव्य को, ऊर्जा को) इस प्रकार सोख लेना कि वह सोखी हुई (अवशोषित) वस्तु सोखनेवाली (अवशोषक) वस्तु में ही समाविष्‍ट हो जाए। 2. वाणि. खर्च की किसी मद या वस्तु की कीमत में संभावित वृद् धि को ध्यान में रखते हुए उस वस्तु की कीमत न बढ़ाकर लाभ की मात्रा में उतनी ही कमी कर लेना। absorption तु. शोषण।

अवशोषित - (तत्.) (दे.) - जिसका अवशोषण किया गया हो। अवशोषण। तु. शोषित।

अवश्यंभावी - (वि.) (तत्.) - जो अवश्‍य ही घटित होने वाला हो; जिसके होने में कोई संदेह न हो; जिसे रोकना किसी के बस में न हो। पर्या. अपरिहा., भवितव्य, अनिवार्य।

अवश्य - (वि.) (तत्.) - निश्‍चित रूप से, जरूर, निस्संदेह। वि. तत्. व्यु.अर्थ जो वश में न हो सके। सा.अर्थ जरूरी, निश्‍चित।

अवसंरचना - (स्त्री.) (तत्.) - किसी समाज अथवा किसी भी प्रकार की संरचना के लिए आधारभूत आवश्यकताएँ। उदा. नगर-निर्माण के लिए सडक़ें, पुल, जलव्यवस्था, जलनिकासी, बाज़ार इत्यादि। पर्या. आधारभूत संरचना/ढाँचा।

अवसर - (पुं.) (तत्.) - मौका, सुयोग, समय, काल। 1. किसी काम या घटना के घटित होने का उल्लेखनीय समय। occasion 2. किसी काम या घटना के घटित होने का अनुकूल समय। opportunity उदा. स्वर्ण जयंती के अवसर पर आपने मुझे बोलने का जो अवसर दिया उसके लिए धन्यवाद। 1. अवसर occasion 2. अवसर opportunity पर्या. मौका, समय।

अवसरवाद/अवसरवादी - (पुं.) - (सं.) सुअवसर से लाभ।

अवसरवादी - (वि.) - (सं.) किसी दृढ़ सिद् धांत या नीति पर स्‍थिर न रहकर अवसर के अनुसार अवसर का उपयोग करना।

अवसाद - (पुं.) (तत्.) - 1. शिथिलता, उदासी, थकान। 2. नाश, क्षय, अंत। 3. द्रवयुक्‍त मिश्रण का वह भाग जो नीचे तली में बैठ जाए। पर्या. तलछँट। sendiment

अवसादी शैल भू.वि. - (वि.) - वर्षा, तूफान, नदी का प्रवाह आदि प्राकृतिक कारणों से चट् टानों आदि में हुई क्षति, टूट-फूट या घिसावट से होने वाले अवसादों के किसी दूसरे स्थान पर इकट्ठा होने और उन्हीं से लाखों-करोड़ों वर्षों के बाद बनने वाली चट्टानें। senedimentry rocks

अवसान - (पुं.) (तत्.) - समाप्‍ति, अंत end, termination जैसे: दिवस का अवसान समीप था।……….प्रिय प्रवास (हरिऔध)

अवस्था - (स्त्री.) (तत्.) - 1. किसी विषय, बात या घटना की कोई विशेष स्थिति, हालत, दशा। उदा. दारिद्रयावस्था में भी उसने कभी हाथ नहीं पसारे। 2. समय, काल। उदा. मरणावस्था में भी वह बराबर सचेत रहा। 3. आयु, उम्र। उदा. वृद् वावस्‍था तक पहुँचते-पहुँचते उसकी सारी जमा-पूँजी समाप्‍त हो चुकी थी।

अवस्थान - (पुं.) (तत्.) - वह स्थान जहाँ कोई भवन, स्मारक, वस्तु आदि स्थित हो। location, site

अवस्थित - (वि.) (तत्.) - 1. उपस्थित, मौजूद। 2. स्थित, ठहरा हुआ।

अवस्थिति - (स्त्री.) (तत्.) - अवस्थित होने का भाव। दे. अवस्थित।

अवहेलना - (स्त्री.) (तत्.) - 1. जान-बूझकर किया गया किसी का तिरस्कार, अवज्ञा; किसी काम पर उचित या आवश्यक ध्यान न दिया जाना।

अवांछनीय - (वि.) (तत्.) - जिसकी इच्छा किया जाना आवश्यक न हो।

अवांछनीयता - (स्त्री.) (तत्.) - किसी बात की इच्छा न किए जाने का भाव।

अवांछित - (वि.) (तत्.) - 1. जिसकी इच्छा न की कई हो, अनचाहा।, 2. अनुचित, बुरा।

अवाक् - (वि.) (तत्.) - व्यु.अर्थ बिना वाणी के। सा.अर्थ ऐसी स्थिति वाला (व्यक्‍ति) जब मुँह से शब्द न निकले।

अवायवीय श्‍वसन - (पुं.) (तत्.) - श्‍वसन का वह प्रकार जिसमें जीव उन अभिक्रियाओं से ऊर्जा प्राप्‍त करता है, जिनमें मुक्‍त ऑक्सीजन का संयोग नहीं होता, जैसे: आंतों में पाए जाने वाले फीता कृमियों की श्‍वसन क्रिया। anarobic respiration पर्या. अवायु श्‍वसन, अनॉक्सीय श्‍वसन, आयोग-अवायु-श्‍वसन, अनॉक्सीय श्‍वसन।

अवायु श्‍वसन - (पुं.) (तत्.) - दे. अवायवीय श्‍वसन।

अविकल - (वि.) (तत्.) - 1. बिना परिवर्तन किए, ज्यों का त्यों। 2. ऐसा (अनुवाद) जिससे शब्दों या भावों में कोई अंतर न आए। 3. (उदा. के रूप में) ज्यों-का-त्यों (अवतरित कथन आदि।), शब्दश: verbatim

अविकारी - (वि.) (तत्.) - प्रयोग के समय जिसमें किसी प्रकार का विकार या परिवर्तन न होता हो। पर्या. व्या. अव्य. पुं. । विलो. विकारी। उदा. यथा, बहुधा, अत: आदि।

अविचलित - (वि.) (तत्.) - शा.अर्थ जो अपने स्थान से डिगे नहीं, अडिग; स्थिर, अचल। प्रतिकूल परिस्थितियाँ उत्पन्न होने पर भी जो अपने कथन या सिद्धांत या प्रतिज्ञा आदि पर दृढ़ता से टिका रहे। विलो. विचलित।

अविनाशी - (वि.) (तत्.) - जिसका विनाश न हो। पर्या. अक्षय, नित्य। विलो. विनाशवान।

अविभाज्य - (वि.) (तत्.) - जिसका विभाजन संभव न हो, जो बांटा न जा सके। विलो. विभाजनीय।

अविरल [अ+विरल] - (वि.) (तत्.) - 1. लगातार, बिना रुके। 2. सघन। विलो. विरल।

अविलंब क्रि.वि. - (वि.) (तत्.) - बिना देर किए, बिना समय गंवाए। पर्या. तत् काल, तुरंत, फौरन।

अविवाहित - (वि.) (तत्.) - जिसका विवाह न हुआ हो। पर्या. कुआंरा/री, क्वांरा/री, कुमार/कुमारी। विलो. विवाहित।

अविवेक - (पुं.) (तत्.) - सही-गलत, भला-बुरा आदि में भेद करने की शक्‍ति का अभाव।

अविवेकी - (वि.) (दे.) - जो विवेकपूर्वक काम/व्यवहार न करता हो। दे. अविवेक। विलो. विवेक।

अविश्‍वसनीय - (वि.) (तत्.) - 1. विश्‍वास न करने योग्य (कोई बात या व्यवहार) परि.अर्थ 2. व्यक्‍ति जो विश्‍वास करने की पात्रता न रखता हो। विलो. विश्‍वसनीय।

अविश्‍वास [अ+विश्‍वास] - (पुं.) (तत्.) - विश्‍वास की कमी, विश्‍वास का अभाव।

अविश्‍वास-प्रस्ताव - (पुं.) (तत्.) - विधि- वर्तमान सरकार के प्रति अविश्‍वास व्यक्‍त करने के लिए लोकसभा, विधानसभा इत्यादि विधानसदनों में किसी सदस्य के द्वारा प्रस्तुत प्रस्ताव जिसके बहुमत से पारित हो जाने पर सरकार को त्यागपत्र दे देना पड़ता है। no-confidence motion

अविस्मरणीय [अ+विस्मरणीय] - (वि.) (तत्.) - जो भुला देने के योग्य न हो; जिसे भुलाया न जा सके।

अवेस्ता - (स्त्री.) - (पार.) महात्मा जरथुस्त्र की वाणियों का वह संग्रह जो पारसियों के धर्मग्रंथ के नाम से प्रसिद्ध है। पूरा नाम-‘जिंद अवेस्ता’।

अवैज्ञानिक [अ+विज्ञान+इक] - (वि.) (तत्.) - जो विज्ञान के नियमों के अनुसार न हो; जिसे युक्‍तिपूर्वक सिद्ध न किया जा सके।

अवैध - (वि.) (तत्.) - (i) विधि (कानून, नियम आदि) के विरूद्ध; (ii) विधि द्वारा निषिद्ध या अननुमत। जैसे : अवैध व्यापार, अवैध संतान। illegal, illicit विलो. वैध।

अवैधानिक - (वि.) (तत्.) - जो विधान या विधि सम्मत न हो। पर्या. अवैध

अव्यक्‍त - (वि.) (तत्.) - 1. जो प्रकट या प्रत्यक्ष न हो। अप्रत्यक्ष। 2. जिसे माना न जा सके, अज्ञात। 3. गणि. बीजगणित में वह राशि जिसका मान ज्ञात न हो। 4. दर्शन, परब्रह्म परमात्मा।

अव्यय - (पुं.) (तत्.) - शा.अर्थ वि. जिसका व्यय न हो यानी जिसमें परिवर्तन न हो; अपरिवर्तनीय, अपरिवर्तनशील, जो विकारशून्य रहे, अविनाशी। पुं. व्या. वे शब्द जो सदा एक रूप रहें अर्थात जिनमें रूपात्मक परिवर्तन हो। जैसे: हाँ, नहीं, तथा, और, या, अरे!, ही, भी आदि।

अव्यवस्था - (स्त्री.) (तत्.) - 1. शांति और सुप्रंबध का अभाव। lawlessness 2. क्रम या पूर्वापरता का अभाव। disorder

अव्यवस्थित - (वि.) (तत्.) - 1. जो व्यवस्था के अनुसार न हो। 2. जो उचित क्रमानुसार न हो। 3. जिसमें कुछ गड़बड़ी हो या नियमों का उल्लंघन किया गया हो। विलो. व्यवस्थित।

अव्यावहारिक - (वि.) (तत्.) - व्यवहार के अयोग्य, जो व्यवहार में आने के लायक न हो; जो प्रयोग (व्यवहार) की दृष्‍टि से वर्तमान में उपयुक्‍त न हो। विलो. व्यावहारिक।

अव्वल - (वि.) (अर.) - प्रथम, सर्वश्रेष्‍ठ। उदा. मेरा दोस्त इम्तिहान में अव्वल रहा।

अशक्‍त - (वि.) (तत्.) - जो शक्‍ति से रहित हो, शक्‍तिहीन। पर्या. निर्बल।

अशक्‍त - (वि.) (तत्.) - शा.अर्थ 1. शांतिरहित, 2. उदास, 3. बेचैन, 4. उद्विग्न। विलो शांत।

अशिष्‍ट - (वि.) (तत्.) - शिष्‍टतारहित, शिष्‍ट व्यवहारहीन। विलो. शिष्‍ट।

अशुद्ध - (वि.) (तत्.) - शुद्धता से रहित, जो शुद्ध न हो, गलत। विलो. शुद्ध, सही।

अशुभ - (पुं.) (तत्.) - सा.अर्थ जो शुभ न हो। विलो. शुभ।

अशोभनीय [अ+शोभन+ईय] - (वि.) (तत्.) - जो शोभा देने योग्य न हो। पर्या. अनुचित, भद्दा। उदा. अपशब्दों का प्रयोग करना आपके अशोभनीय व्यवहार का सूचक है।

अश्रु - (पुं.) (तत्.) - (अश्रुस्रावी) ग्रंथियों से बहने वाली (स्रवित) साफ़ और नमकीन स्वाद वाली तरल की बूँदे/धारा जो शोकाकुल या अतिप्रसन्नता की स्थिति में भी) व्यक्‍ति की आँखों को नम कर देती है। पर्या. आँसू।

अश्रु ग्रंथियाँ - (स्त्री.) (तत्.) - आँख के कोने पर स्थित ग्रंथियाँ जिनसे आँसू निकलते हैं। यह स्राव आँखों को नम तथा साफ़ रखता है। lachrymal glands

अश्रुत [अ+श्रुत=सुना हुआ/हुई] - (वि.) (तत्.) - (कथन या वचन) जो सुना न गया हो; (बात) जो सुनी न गई हो।

अश्रुतपूर्व - (वि.) (तत्.) - (कथन या बात) जो पहले कभी सुना न गया हो/सुनी न गई हो।

अश्रुधार/धारा - (स्त्री.) (तत्.) - आँसुओं की लगातार बहने वाली धारा।

अश्रुपात - (पुं.) (तत्.) - शा.अर्थ आँसूओं का गिरना, आँसूओं का टपकना/बहना। सा.अर्थ रोना।

अश्‍लील - (वि.) (तत्.) - 1. नैतिक मर्यादा का उल्लंघन करने वाला (व्यवहार, शब्द, चित्र आदि) जैसे: अश्‍लील चित्र, अश्‍लील शब्द, भद् दा, लज्जाजनक।, 2. ऐसा दृश्य या वाच्य सामग्री जिसे (स्थानीय) समाज अच्छा न माने। अश्‍लील होने का भाव।

अश्‍लीलता - (स्त्री.) (तत्.) - 1. अश्‍लील होने की अवस्था या गुण या भाव। अश्‍लीलपन। 2. नैतिक आदर्शों व सभ्यता के विपरीत आचरण। 3. भौंडापन, फूहड़पन, ग्राम्यता, गाली का प्रयोग। काव्य 1. अश्‍लील शब्दों का प्रयोग। 2. अश्‍लील वर्णन, चित्रण या अभिनय। उदा. हमें व्यावहारिक व साहित्यिक अश्‍लीलता से बचना चाहिए।

अश्‍व - (पुं.) (तत्.) - सा.अर्थ सवारी योग्य वह पशु जो अपनी तीव्र गति के कारण कभी युद्ध आदि में प्रयोग किया जाता था। पर्या. घोड़ा, तुरंग, हय। प्राणि. बिना फटे खुर वाला, लहरदार अयाल और पूंछ वाला, स्तनपायी तथा शाकाहारी, चौपाया (चार पैरों वाला पशु)।

अश्‍वत्थ - (पुं.) (तत्.) - पीपल का वृक्ष, पीपल।

अश्‍वशक्‍ति - (स्त्री.) (तत्.) - शा.अर्थ घोड़े की ताकत। भौ. शक्‍ति का मात्रक; प्रतीक। यह शक्‍ति 745.7 वाट के बराबर होती है। इस मात्रक का प्रयोग बिजली के मीटर या इंजन की शक्‍ति को व्यक्‍त करने के लिए होता (था) है। horse power टि. आजकल इसके स्थान पर ‘वॉट, मात्रक का प्रयोग होता है।

अष्‍टम - (वि.) (तत्.) - आठवाँ (क्रमवाचक संख्या) टि. ‘अष्‍टम’ नहीं।

अष्‍टांग [अष्‍ट+अंग] - (वि.) (तत्.) - आठ अंगों वाला। जैसे: अष्‍टांग योग।

असंख्य [अ+संख्य] - (वि.) - जिसकी संख्या न बताई जा सके; जिसकी गणना न की जा सके, अगणतीय। पर्या. 1. अगणित, 2. बेशुमार, 3. बहुत अधिक।

असंगत - (वि.) (तत्.) - 1. जो मूल या आदर्श से मेल न खाता हो। inconsistant 2. जो प्रसंग के अनुरूप न हो। irrelevant उदा. इस विषय में तुम्हारी असंगत बातें मेरी समझ में तो नहीं आई।

असंतत [अ+संतत - (वि.) (तत्.) - तत्. जो लगातार न हो यानी क्रम की दृष्‍टि से अलग-अलग दिखाई पड़े।

असंतुलन [अ+संतुलन] - (पुं.) (तत्.) - संतुलन का अभाव अर्थात ऐसी स्थिति जिसमें भार, बल, रूप, गुण आदि बराबर न हो। विलो. संतुलन।

असंतुष्‍ट - (वि.) (तत्.) - शा.अर्थ संतोष से रहित। सा.अर्थ 1. जिसे संतोष न हुआ हो, 2. जो किसी अन्य के कार्य से नाराज़ हो, अप्रसन्न। विलो. संतुष्‍ट।

असंतोष [अ+संतोष] - (पुं.) (तत्.) - चाहे कितना ही मिल जाए पर उससे संतुष्‍ट/प्रसन्न या तृप्‍त न होने का भाव या स्थिति। विलो. संतोष।

असंदिग्ध - (वि.) (तत्.) - जो संदिग्ध न हो यानी जिसमें संदेह या शंका की कोई जगह/गुंजाइश न हो। संदेह रहित; निश्‍चित।

असंबद्ध - (वि.) (तत्.) - 1. जो विषय या प्रसंग से मेल न खाता हो। 2. जो किसी से संबंध या मेल न रखे। 3. दो या अधिक बातें जो परस्पर संबंधित न हो। विलो. संबद्ध/संबंधित।

असंभव [अ+संभव] - (वि.) (तत्.) - जो संभव न हो यानी जो हो न सके। पर्या.-नामुमकिन। impossible विलो. संभव।

असंसदीय [अ+संसद+ईय] - (वि.) (तत्.) - जो संसद की मर्यादा के अनुसार न हो। ला.अर्थ अभद्र। जैसे: असंसदीय भाषा। उदा. आप यहाँ असंसदीय (अभद्र) भाषा का प्रयोग नहीं कर सकते। unparliament

असंस्कृत - (वि.) (तत्.) - शा.अर्थ संस्कारहीन। परि.अर्थ 1. जिसका संस्कार न किया गया हो; संस्कारहीन; अपरिमार्जित, 2. अपरिमार्जित।

असफल - (वि.) (तत्.) - 1. विफल (वह व्यक्‍ति) जिसने कुछ प्राप्‍त करने का प्रयत्‍न तो किया हो पर उसे उसमें सफलता न मिली हो। fail विलो. सफल।

असभ्य - (वि.) (तत्.) - 1. जो सभ्य न हो, जिसका आचरण समाज के नैतिक नियमों के प्रतिकूल हो, अनुकूल न हो। विलो. सभ्य।

असमंजन [अ+समंजन] - (पुं.) (तत्.) - समंजन यानी तालमेल की कमी/का अभाव। lack of co-ordination

असमंजस [अ+समंजस] - (स्त्री.) (तत्.) - ऐसी स्थिति जब निर्णय लेना कठिन हो जाए। suspense पर्या. दुविधा, आगा-पीछा। उदा. मैं बड़ी असमंजस की स्थिति में हूँ।

असमय [अ+समय] 1. - (पुं.) (तत्.) - बुरा समय, विपत्‍ति का समय। 2. क्रि. वि. तत् अनुपयुक्‍त समय पर; बिना पूर्वसूचना के, अचानक। विलो. यथासमय।

असमर्थ [अ+समर्थ] - (वि.) (तत्.) - जिसमें सामर्थ्य न हो। पर्या.-दुर्बल, अशक्‍त, अयोग्य। विलो. समर्थ।

असमान - (वि.) (तत्.) - दो या दो से अधिक वस्तुओं या बातों की तुलना करने पर उनमें जो-जो गुण, आकार आदि परस्पर समान न दिखाई पड़ें।, जो समान न हो। पर्या. विषम।

असर - (पुं.) (अर.) - किसी घटना, कार्य, औषधि इत्यादि के कारण दिखलाई पड़ने वाला या अनुभव किया जाने वाला परिणाम। पर्या. प्रभाव।

असरदार - (वि.) (अर.) - जिसका असर हो या दिखाई पड़े। पर्या. प्रभावशाली।

असलियत [असल+इयत] - (स्त्री.) (अर.) - असल होने का भाव। पर्या. वास्तविकता। दे. असल।

असहज - (वि.) (तत्.) - जो सहज या स्वाभाविक न हो। पर्या. अस्वाभाविक।

असहजता - (स्त्री.) (तत्.) - असहज होने का भाव, कठिनाई। पर्या. अस्वाभाविकता। दे. असहज।

असहनीय - (वि.) (तत्.) - 1. जो सहन करने योग्य न हो, जिसे (तात्कालिक परिस्थितियों में) सहन न किया जा सके। पर्या. असह्य आजकल असहनीय/ असह् य गर्मी पड़ रही है।

असहमत - (वि.) (तत्.) - (व्यक्‍ति) जो किसी काम, कथन अथवा निर्णय से सहमत न हो यानी उसके बारे में बोलकर या लिखकर विरोध। उदा. मैं आपके कथन से सहमत नहीं हूँ।

असहमति - (स्त्री.) (तत्.) - किसी कृत्य अथवा सिफारिश का मौखिक या लिखित विरोध। उदा. बैठक में हुए निर्णय के बारे में एक सदस्य ने अपनी असहमति प्रकट की। पर्या. विमति discent विलो. सहमति।

असहय [अ+सहय] - (वि.) (तत्.) - जिसे सहन न किया जा सके, न सहने लायक; जिसे बर्दाश्त न किया जा सके। जैसे: असह्य वेदना/कष्‍ट।

असहयोग [अ+सहयोग] - (पुं.) (तत्.) - सहयोग न करने का भाव; साथ न देना। विलो. सहयोग, दे. सहयोग।

असहयोग आंदोलन - (पुं.) (तत्.) - सन् 1919-20 ई. में महात्मा गांधी ने प्रारंभ किया था। महात्मा गांधी द्वारा 1919-20 ई. में आरंभ किया गया आंदोलन जिसमें भारतीय राष्‍ट्रीय कांग्रेस ने भारत को ‘डोमिनियन स्टेटस’ देने की मांग की थी।

असहाय [अ+सहाय] - (वि.) (तत्.) - जिसका कोई सहायक या मदद करने वाला न हो; जिसका संगी-साथी न हो।

असहिष्णु - (वि.) (तत्.) - जो किसी भी प्रकार की प्रतिकूल बात या परिस्थिति को सहन न करे। पर्या. असहनशील। विलो. सहिष्णु।

असह्य [अ+सह्य] - (वि.) (तत्.) - जिसे सहन न किया जा सके, न सहने लायक; जिसे बर्दाश्‍त न किया जा सके। जैसे: असह् य वेदना/कष्‍ट।

असाढ़ - (पुं.) ([तद्.< आषाढ़]) - जेठ के बाद का महीना, आषाढ।

असाधारण [अ+साधारण] - (वि.) (तत्.) - 1. जो सामान्यत: नहीं होता। पर्या. विलक्षण। उदा. तीन आँख वाला बच्चा होना एक असाधारण घटना है। 2. सामान्य मानवशक्‍ति से परे। पर्या. विलक्षण, अतिमानवीय। उदा. आइंस्टाइन असाधारण प्रतिभा के धनी थे। तुल. असामान्य।

असाध्य - (वि.) (तत्.) - 1. जो साधा न जा सके; अति कठिन, लाइलाज (रोग) जैसे: असाध्य रोग। विलो. साध्य।

असामर्थ्य - (स्त्री.) (तत्.) - असमर्थता, सामर्थ्य से बाहर, सामर्थ्यहीनता, अक्षमता, निर्बलता। विलो. सामर्थ्य।

असामाजिक तत्त्व(पदबंध) - (पुं.) (तत्.) - त्व (पदबंध) तत्. समाज विरोधी, अनैतिक कार्यों जैसे: निर्दोषों को सताना, नारी-उत्पीड़न, बलात्कार, लूटपाट, हिंसा, अपहरण, साम्प्रदायिक विद्वेष की भावना आदि में लिप्‍त रहने वाले लोग। जैसे: सरकार को असामाजिक तत्त्वों के विरुद्ध सख्त कार्यवाही करनी चाहिए।

असामान्य [अ+सामान्य] - (वि.) (तत्.) - जो सामान्य से कुछ कम या अधिक हो। abnormal तुल. असाधारण।

असामी - (अर. आसामी) (पुं.) - आसामी) 1. संपन्न व्यक्‍ति, जैसे: मोटा आसामी। 2. वह जिससे किसी प्रकार का लेन-देन हो। 3. वह जिसने लगान पर जोतने के लिए जमींदार से खेत लिया हो। छोटा काश्तकार।

असार - (वि.) (तत्.) - जिस वस्तु, बात में कोई तत्त्व न हो। 1. सार रहित, 2. तुच्छ। उदा. इस असार संसार में कौन किसका है?

असावधान - (वि.) (तत्.) - 1. जो सावधान न हो, जो सावधानी न बरते, 2. बेखबर, 3. जो सजग चौकन्ना न हो। विलो. सावधान।

असीम [अ+सीमा] - (वि.) (तत्.) - 1. सीमारहित, जिसकी सीमा सुनिश्‍चित या ज्ञात न हो; बहुत अधिक। पर्या. अपार, अनंत। limit less 2. संपूर्ण, परम। absolute

असीमित - (वि.) (तत्.) - दे. असीम।

असुंदर - (वि.) (तत्.) - जो देखने, सुनने, व्यवहार में अच्छा न लगे। 1. जो सुंदर न हो, 2. भद्दा, 3. कुरूप। विलो. सुंदर।

असुर - (पुं.) (तत्.) - शा.अर्थ जो सुर (देवता) न हो। सा. अर्थ दैत्य, निशाचर। demon विलो. सुर।

असुरक्षा/असुरक्षित [अ+सुरक्षित] - (वि.) (तत्.) - जो सुरक्षित न हो, जिसकी रक्षा भली-भांति न की गई हो या न की जा सके।

असुविधा - (स्त्री.) (तत्.) - 1. कठिनाई, अड़चन, सुभीता न हो, दिक्कत, तकलीफ। उदा. यदि आपको असुविधा न हो तो मेरा वह काम कर दें। विलो. सुविधा।

अस्त - (वि.) (तत्.) - समाप्‍त; अदृश्य। जैसे: सूर्यास्त, शुक्रास्त।

अस्तबल - (पुं.) (अर.) - घोड़े बाँधने का स्थान, घोड़ों के रखने की जगह। stable

अस्त-व्यस्त - (वि.) (तत्.) - 1. जो व्यवस्थित रूप से रखी हुई चीज बिखर गई हो। 2. जिन वस्तुओं के रखने का उचित क्रम न हो। 3. इधर-उधर बिखरा हुआ। बेतरतीब। जैसे: चोरों ने घर का सारा सामान अस्त-व्यस्त कर दिया था। पर्या. तितर-बितर, गड्ड-मड्ड, उल्टा-पुल्टा।

अस्त होना - - (स.क्रि.) किसी दिखाई पड़ने वाली (अस्तित्‍ववान) वस्तु का दिखाई न पड़ना या समाप्‍त होना। जैसे: सूर्य का अस्त होना। उदा. भारत में मुगलों/अंग्रेजों का शासन अस्त हो गया।

अस्तित्व - (पुं.) (तत्.) - अस्त्र और शस्त्र armaments अस्त्र फेंक कर चलाए जाने वाले हथियार। जैसे: तीर, तथा बंदूक की गोली, बम, प्रक्षेपास्त्र आदि। (वेपन) शस्त्र=हाथ में रखकर ही युद् ध किए जाने वाले हथियार। जैसे: तलवार, भाला आदि। arms

अस्त्र-शस्त्र [अस्त्र+शस्त्र] - (पुं.) (तत्.) - अस्त्र और शस्त्र armaments अस्त्र फेंक कर चलाए जाने वाले हथियार। जैसे: तीर, तथा बंदूक की गोली, बम, प्रक्षेपास्त्र आदि। (वेपन) शस्त्र=हाथ में रखकर ही युद्ध किए जाने वाले हथियार। जैसे: तलवार, भाला आदि। arms

अस्थायी - (वि.) (तत्.) - जो सदा रहने वाला न हो, जो स्थायी न हो या जिसे काम चलाने के सीमित अवधि पर रखा गया हो। जैसे: अस्थायी। temporary विलो. स्थायी।

अस्थि - (स्त्री.) (तत्.) - प्राणि. दृढ़ संयोजी ऊतक जिससे कंकाल बनता है। यह कौलेजन रेशों का जाल होता है, जिसमें कैल्शियम फॉस्फेट आदि लवण होते हैं। पर्या. हड्डी।

अस्थि-पंजर - (पुं.) (तत्.) - हडि्डयों का ढाँचा।

अस्थिर - (वि.) (तत्.) - 1. जो स्थिर न हो। पर्या. चंचल, चलायमान, अस्थायी। जैसे: वह अस्थिर चित्‍त वाला व्यक्‍ति। विलो. स्थिर।

अस्थिरता - (स्त्री.) (तत्.) - अस्थिर होने का भाव। दे. अस्थिर।

अस्थि-विसर्जन/अस्थि प्रवाह - (पुं.) (तत्.) - धर्म-मृतदेह (शव) का दाह-संस्कार करने के उपरांत अस्थि-खंडों (फूलों) (हडि्डयों के बने अंशों) का संचय कर उन्हें पवित्र नदी के जल में विसर्जित करने/बहाने की प्रथा।

अस्पताल (हास्पिटल-अं.) - (पुं.) - (हास्पिटल-अं.) वह स्थान जहाँ रोग का निदान एवं चिकित्सा होती हो। पर्या. चिकित्सालय, औषधालय, दवाखाना।

अस्पष्‍ट - (वि.) (तत्.) - 1. जो स्पष्‍ट दिखाई न दे या समझने में न आए। 2. धुंधला, 3. संदिग्ध। विलो. स्पष्‍ट।

अस्पृश्यता - (वि.) (तत्.) - शा.अर्थ अछूतपना, स्पर्श न करने की स्थिति या भाव। सा.अर्थ. हिंदू समाज में पंरपरा से चली आ रही वह प्रथा जिसके कारण कुछ जातियाँ अस्पृश्य यानी अछूत समझी जाती थीं। (पर अब इस प्रथा का भारत के संविधान के अनुच्छेद 17 द्वारा अंत कर दिया गया है। पर्या. छुआछूत untouchability

अस्मिता [अस्मि=मैं हूँ+ता] - (स्त्री.) (तत्.) - प्राचीन अर्थ-स्वयं के गौरव की भावना, ‘मैं हूँ’ का भाव। अहंभाव। ईगोटिज़्म आधु.अर्थ व्यक्‍ति की विशिष्‍ट पहचान की सूचक लक्षणों, गुणधर्मों आदि की विशेषताएँ। identity

अस्वस्थ - (वि.) (तत्.) - 1. जो स्वस्थ न हो। पर्या. रूग्ण, रोगी, बीमार। 2. जिसका चित्‍त स्थिर न हो। पर्या. अनमना, बेचैन।

अस्वाभाविक - (वि.) (तत्.) - जो स्वाभाविक न हो, स्वभाव के विरूद्ध बनावटी। विलो. स्वाभाविक।

अस्वीकार - (पुं.) (तत्.) - प्रार्थना, निवेदन, दान आदि को स्वीकार न किए जाने की स्थिति या भाव हो। विलो. स्वीकार।

अस्वीकृत - (वि.) (तत्.) - दे. अस्वीकार। उदा. तुम्हारा छुट्टी का आवेदन अस्वीकृत कर दिया गया है।

अस्वीकृति - (स्त्री.) (तत्.) - स्वीकार न कि जाने का भाव या स्थिति।

अस्सी - (वि.) ([तद्< अशीति]) - गिनती में सत्‍तर और दस। पुं. 80 की संख्या।

अस्सीवाँ - (वि.) - गिनती करते समय क्रमसंख्या में 80वें स्थान वाला।

अहं/अहम् - (तत्.) - मैं 1. मैं या मैं के होने का भाव। अपने को ही महत्वपूर्ण मानने वाली व्यक्‍ति की पूर्व निशचित धारणा। ego पुं अभिमान, अहंकार, घमंड।

अहंकार - (पुं.) (तत्.) - मैं’ पन।) दूसरों की तुलना में अपने गुणों को लेकर मन में पैदा हुई श्रेष्‍ठता की भावना और उसका बखान या प्रकटीकरण। पर्या. मिथ्याभिमान, मिथ्यागर्व। (टि. इसे अवगुण माना जाता है।) तु. दर्प; गर्व, अभिमान।

अहमियत [अहम+इयत] - (स्त्री.) (अर.) - अहम होने या माने जाने का सूचक भाव। पर्या. खासियत, श्रेष्‍ठता, प्रमुखता, महत्व।

अहम् - (वि.) (अर.) - खास, मुख्य, महत्वपूर्ण। उदा. यह शब्द अरबी/फारसी/उर्दू मूल का है और संस्कृत के ‘अहम्’ से पूर्णतया भिन्न है। अत: ‘अहम’ और ‘अहम्’ में अर्थ-भेद बनाए रखना आवश्यक है।

अहर्निश [अहर्=दिन+निशा=रात] - (क्रि.वि.) (तत्.) - शा.अर्थ दिन-रात। सा.अर्थ-1. बिना रूके, 2. सदा।

अहस्तांतरणीय - (वि.) (तत्.) - 1. ऐसी वस्तु जो दूसरे को अधिकार रूप से न दी जा सके। जैसे: रेलवे का आरक्षित टिकट अहस्तांतरणीय है।, 2. जो दूसरे से छीना या लिया न जा सके। Inalianable, non-transferable

अहाता - (पुं.) (अर.) - 1. किसी स्थान को सीमा में बाँधने के लिए बनाई गई चहारदीवारी। पर्या. हरबंदी। 2. ऐसी चहारदीवारी से घिरा हुआ क्षेत्र। पर्या. घेरा, बाड़ा।

अहिंसा - (स्त्री.) (तद्.) - शा.अर्थ हिंसा कार्य में प्रवृत्‍त न होने की स्थिति। दर्श, मन, वचन और कर्म से किसी का अहित चिंतन न करना। विलो. हिंसा।

अहित - (पुं.) (तत्.) - हित का अभाव, किसी व्यक्‍ति या वस्तु को हानि पहुँचाने की स्थिति। पर्या. अपकार। विलो. हित।

अहितकर - (वि.) (तत्.) - जिससे किसी व्यक्‍ति या वस्तु को हानि पहुँचे, जिससे किसी का हित न हो।

अहो - (अव्य.) (तत्.) - विस्मय, प्रशंसा, दु:ख आदि मनोभावों को प्रकट करने के लिए उच्चरित शब्द; संबोधन में भी प्रयुक्‍त।

अहोरात्र [अहन्+रात्र] - (पुं.) (तत्.) - दिन-रात। दे. ‘अहर्निश’।