विक्षनरी:हिन्दी लघु परिभाषा कोश/क से झ तक

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कंकड़ - (पुं.) (तद्.< कर्कर) - स्त्री. कंकड़ी/री पत्थर का छोटा गोल-सा टुकड़ा। वि. कंकड़ीला।

कंकाल - (पुं.) (तत्.) - अस्थियों, उपास्थियों का बना शरीर का दृढ़ ढाँचा जो आंतरिक अंगों को सुरक्षा प्रदान करता है। पर्या. अस्थि। पिंजर, ठठरी।

कंक्रीट - (स्त्री.) - (अं.) सीमेंट, रेत, बजरी आदि का आनुपातिक मिश्रण जो पक्के घर, सड़क आदि बनाने के काम आता है। पर्या. (बोलचाल) मसाला।

कंगन - (पुं.) (तद्.<कंकण) - सोने, चाँदी आदि का बना गोलाकार गहना/आभूषण जो कलाई में पहना जाता है। 2. सिक्ख धर्म के अनुसार पंच ‘ककारों’ में मान्‍य इस्पात का बना गोल कड़ा जो हाथ में पहना जाता है। bangle मुहा. हाथ कंगन को आरसी क्या पढ़े लिखे को फारसी क्या।

कंगाल - (वि.) (तद्.< कंगु) - जिसके पास खाने-पीने,पहनने आदि का सामान लगभग न के बराबर हो, अति निर्धन। पर्या. मुफलिस।

कंगाली - (स्त्री.) (तद्.) - कंगाल होने की स्थिति। पर्या. मुफ़लिसी मुहा. कंगाली में आटा गीला = कष्‍टों की दोहरी मार, मुसीबत पर मुसीबत।

कंगुरा/कंगूरा - (पुं.) (फा.) - किले की चारदीवारी पर थोड़ी दूरी पर बनी हाथ के पंजेनुमा आकृतियों में से कोई एक आकृति। वे आकृतियाँ प्राय: शोभा के लिए होती थीं किंतु इनके नीचे बने छेदों में से सिपाही अपनी बंदूके तान कर किले पर आक्रमण करने वाली शत्रुसेना पर गोलीबारी किया करते थे।

कंचन - (पुं.) (तत्.) - 1. सोना, 2. ला.अर्थ धन-सम्‍पत्‍ति।

कंचुक - (पुं.) (तत्.) - स्त्री. कंचुकी) 1. पुराने जमाने का मर्दाना अंरखा; महिलाओं की चोली, अँगिया। 2. साँप की केंचुली।

कंजूस - (वि.) (तद्. < कणयूष) - पर्या. कृपण, सूम मक्खीचूस। (व्यक्‍ति) जो धन होने पर भी अनिवार्य आवश्यकताओं की पूर्ति न करे।

कंटक - (पुं.) - (सं.) 1. पेड़-पौधों की डालों का नुकीला, बारीक चुभने वाला भाग काँटा 2. ऐसी वस्तु जिसका सिरा नुकीला हो। 3. लोगों के रास्ते में बाधा पहुँचाने वाली वस्तु। 4. मछली फँसाने के लिए एक टेढ़ी अंकुसी या कील। 5. कष्‍ट या हानि पहुँचाने वाली चीज या बात। उदा. दुष्‍ट लोग सदैव भले लोगों के मार्ग में काँटे बोते हैं। मुहा. 1. कंटक निकलना, 2. राह में कंटक बनना।

कंट काकीर्ण - - (कंटक=काँटे+आकीर्ण= पूरी तरह भरा हुआ) शा.अर्थ (मार्ग) जिस पर काँटे बिछे हुए हों। ला.अर्थ अत्यंत कष्‍टप्रद।

कंटकित [कंटक+इत] - (वि.) (तत्.) - कँटीला, काँटेदार।

कंठ - (पुं.) (तत्.) - 1. गले का भीतरी भाग जिससे भोजन पेट में जाता है तथा स्वर यंत्र से होकर, उससे आवाज़ निकलती है। 2. गरदन, गला। 3. गले की आवाज़ या स्‍वर। उदा. इस व्यक्‍ति का कंठ बड़ा मधुर है।

कंठतालव्य - - [कंठ+तालु+य] जिसका उच्चारण कंठ और तालु दोनों के योग से हो जैसे : ए और ऐ स्वर वर्ण।

कंठ संगीत - (पुं.) (तत्.) - संगीत की वह विधा जिसमें प्रधानत: मुँह (कंठ से) से गाया जाता है (वाद् य यंत्रों का सहयोग नहीं लिया जाता और यदि लिया भी जाता है तो केवल गौण रूप से ही)। vocal music

कंठस्थ [कंठ+स्थ] - (वि.) (तत्.) - शा.अर्थ कंठ में स्थित, कंठगत सा.अर्थ जबानी याद। पर्या. कंठाग्र। उदा. कोई कंठस्थ कविता सुनाइए।

कंठा - (पुं.) (तद्.< कंठक)(स्त्री. कंठी) - गले में पहनने की माला जिसमें बड़े-बड़े मनके होते हैं।

कंठाग्र - (वि.) (तत्.) - शा.अर्थ जो कंठ के अगले हिस्से में हो। सा.अर्थ जबानी याद। पर्या. कंठस्थ उदा. कोई कविता कंटाग्र/कंठस्थ करके सभा में सुनाना।

कंठौष्ठ्य होंठ - (वि.) (तत्.) - जिसका उच्चारण कंठ और होंठ दोनों के योग से हो। जैसे: ‘ओ’ और ‘औ’ स्वर वर्ण।

कंठ्य - (वि.) (तत्.) - कंठ संबंधी, गले से उत्पन्न (वर्ण) (वह वर्ण)। जिनका वे उच्चारण कंठ से होता है। जैसे: अ, आ, क, ख, ग, घ, ह और विसर्ग।

कंडक्टर - - (अं.) बस का वह कर्मचारी जो यात्रियों से शुल्क लेकर उन्हें यात्रा-पत्र (टिकटें) देता है जिससे वे अपने गंतव्य को जाते हैं। conductor

कंद - (पुं.) (तत्.) - 1. भूमिगत फूला हुआ गूदेदार और बिना रेशे का तना या जड़ जो खाने के काम आता/आती है। जैसे: आलू, शकरकंद, जिमीकंद, अरबी आदि। 2. समस्त पद का पश्‍चपद जो जमाई हुई मिठाई का वाचक बनता है। जैसे: कलाकंद, गुलकंद आदि।

कंधा - (पुं.) (तद्.< स्कंध) - गले के दोनों तरफ फैला ऊपरी भुजा का धड़ से जोड़-स्थल, जो भार वहन कर सकता है। shoulder मुहा. (i) कंधा देना-अरथी ढोने में मदद करना। (ii) कंधे से कंधा मिला कर= दूसरे से पूरा सहयोग कर, मिलकर। (iii) दूसरे के कंधे पर रखकर बंदूक चलाना = दूसरे की आड़ लेकर गलत काम करना ताकि अपना नुकसान न हो (नुकसान हो तो दूसरे का)।

कंपन - (पुं.) (तत्.) - 1. द्रुत गति से हिलने की स्थिति। जैसे: सितार के तारों के छेड़े जाने पर होती है। vibration 2. शीत, क्रोध, भय आदि के कारण शरीर के अंगों का बारंबार हिलना-डुलना) काँपना, कँपकँपी। shivering 3. आंतरिक उथल-पुथल के कारण धरती का हिलना-डुलना। पर्या. (भू)कंप

कंपनी - (स्त्री.) - (अं.) 1. व्यापारियों या व्यवसायियों का वह दल जो एक साथ मिलकर व्यापार या व्यवसाय करते हैं। 2. सैन्य-दल 3. साथ जैसे: मुझे कंपनी देने के लिए ही आ जाओ। company

कंपायमान - (वि.) (तद्.<कंपमान) - 1. हिलता-डुलता हुआ, थरथराता हुआ। 2. जो काँप रहा है।

कंपित - (वि.) (तत्.) - काँपता हुआ।

कंपोस्ट - (पुं.) - (अं.) सड़ी-गली वनस्पतियों से तैयार किया मिश्रण जो मृदा की उर्वरक शक्‍ति को बढ़ाता है। पर्या. जैव उर्वरक, खाद। compost

कंप्यूटर - (पुं.) - (अं.) एक जटिल इलैक्ट्रॉनिक युक्‍ति (या यंत्र) जो भंडारित क्रमादेश के अनुसार द्रुत गति से आँकड़ों/सूचनाओं का भंडारण और संसाधन कर प्राप्‍त परिणामों का प्रदर्शन कर सकने में समर्थ है। पर्या. अभिकलित्र। तु. संगणक। computer

कंबल - (पुं.) (तत्.) - ऊन से निर्मित गाढ़ी और आयताकार चादर जो शरीर को गरम रखने के लिए सरदी में ओढ़ने और कभी-कभी बिछाने के काम आती है।

कँटिया - (स्त्री.) - (<हिं.काँटी) 1. छोटी कील 2. मछली पकड़ने का नोकदार काँटा। 3. अंकुशनुमा कई मुँह वाला लोहे का गुच्छा जिसे रस्सी के सहारे कुएँ में लटकाकर उसमें गिरे बर्तनों को निकाला जा सकता है। 4. स्त्रियों के सिर का गहना।

कँटीला - (वि.) - काँटेदार, जिसमें काँटें हों। उदा. सीमा पर कँटीले तारों की बाड़ खींच दी गई है ताकि विदेशी लोग हमारी सीमा में घुस न सकें।

कई - (वि.) (तद्.<कति) - एक से अधिक, अनेक जैसे: कई लोग; कई दिन हुए…

कक्ष - (पुं.) (तत्.) - कमरा, कोठरी आदि जैसे: शयन कक्ष (सोने का कमरा)

कक्षा - (स्त्री.) (तत्.) - 1. अंतरिक्ष में वह वर्तुलाकार पथ जिसमें कोई खगोलीय पिंड अथवा उपग्रह दूसरे बड़े खगोलीय पिंड की परिक्रमा करता है। orbit 2. औपचारिक शिक्षा में वर्षवार वह अनुक्रमात्मक व्यवस्था जिसमें विद्यार्थियों/छात्रों को ज्ञानार्जन की सुविधा प्रदान की जाती है। जैसे: पाँचवीं कक्षा, बारहवीं कक्षा आदि। class 3. ऐसे छात्रों/विद्यार्थियों के लिए बैठने का कमरा। class room

कगार - (पुं.) (देश.) - (नदी का) ऊँचा ढालू किनारा। जैसे: जबलपुर के समीप नर्मदा का कगार; सर्वनाश का कगार।

कचरा - (पुं.) (तद्.<कड़चर) - किसी वस्तु का रद् दी अंश, कूड़ा-करकट 2. अनाज आदि साफ करने पर उससे निकला हुआ बेकाम का छटा हुआ भाग। 3. फैक्‍ट्रियों का वाहित मलांश। जैसे: फैक्‍ट्रियों के कचरे को नदियों में बहा देने से प्रदूषण फैलता है। 3. कंप्यूटर-व्यर्थ के आँकड़े। garbage

कचहरी - (स्त्री.) (फा.) - वह स्थान जहाँ न्यायाधीश विपक्षी दलों के तर्क-वितर्क सुनकर अपना निर्णय सुनाता है। पर्या. न्यायालय, अदालत, कोर्ट।

कचूमर - (पुं.) (देश.) - कुचली हुई वस्तु का संग्रह। मुहा. कचूमर निकालना= बहुत पीटना; इतना पीटना कि व्यक्‍ति अधमरा हो जाए।

कचोटना अ.कि. - (देश.) - मन को पीड़ा पहुँचना या पहुँचाना।

कच्चा माल - (पुं.) (देश.) - 1. कारखानों में, प्रयोग में आने वाला वह खनिज और वानस्पतिक पदार्थ जो अपनी प्रारंभिक और प्राकृतिक अवस्था में होता है और उससे मशीनों द् वारा अनेक वस्तुएँ तैयार की जाती हैं। raw material

कच्चा - (वि.) (तद्.<कच्वर) - 1. जिसके पकने, पुष्‍ट होने या तैयार होने में कमी या कसर रह गई हो। पर्या. अपरिपक्व, अपुष्‍ट, कमजोर, (फल के अर्थ में हरा) विलो. पका। 2. जिसमें दृढ़ता का अभाव हो। जैसे: कच्‍चा धागा विलो. पक्का।

कच्चा-चिट्ठा - (पुं.) (देश.) - शा.अर्थ 1. कच्ची बही में लिखा गया आय-व्यय का वास्तविक लेखा। जिसे पक्की बही में उतारने से पहले नियमानुकूल कई प्रकार के परिवर्तनों से होकर गुज़रना पड़ता है। सा.अर्थ गुप्‍त भेद, गोपनीय बात, रहस्य। मुहा. कच्चा-चिट्ठा खोल देना = गुप्‍त बातें सार्वजनिक करना।

कच्छ - (पुं.) (तत्.) - समुद्र का तटवर्ती नमी वाला कीचड़ भरा भू-क्षेत्र जो ज्वार-भाटों के प्रभाव से लवणयुक्‍त हो जाता है। marsh land

कछार - (पुं.) (तद्.<कच्छवाट) - नदी अथवा समुद्र के किनारे की तर और उपजाऊ भूमि जिसकी सतह नीची तथा बालू से भरी हुई होती है। aluvial land

कछुआ/कछुवा - (पुं.) (तद्.< कच्छप) - मंदगति वाला सरीसृप और उभयचर जल-जीव, जिसकी पीठ पर कड़ी ढाल का आवरण होता है और जो खतरे के समय अपनी खोपड़ी को अंदर खींच लेता है।

कटहल - (पुं.) (तद्.<कंटकि फल) - आर्तोकार्पुस हेलेरोफिलस वर्ग का पूर्वी भारत में उगने वाला विशालकाय पेड़ और उस पर लगने वाला बड़ा फल, जिसका छिलका काँटेदार और कड़ा होता है, कच्‍चा होने पर इससे अचार और सब्जी बनती है तथा पकने पर इसके बीच खाए जाते हैं।

कटाई - (स्त्री.) (तद्.) - 1. काटने का काम [जैसे कपड़े की कटाई, फसल की कटाई] 2. काटने की मज़दूरी।

कटाक्ष [कट + अक्ष] - (पु.) (तत्.) - 1. प्रेमपूर्ण तिरछी निगाह, तिरछी चितवन। 2. किसी को लज्जित करने के लिए कही गई व्यंग्यपूर्ण बात।

कटार - (स्त्री.) (तद्.< कट्टार) - स्त्री. कटारी) नीचे से चौड़ा और ऊपर से तीखा एक दुधारा हथियार। पर्या. खंजर (डेगर)

कटाव - (पुं.) - (हि. काटना) 1. कटने के बाद उभरी आकृति; वर्षा, बाढ़ आदि के बाद जमीन के कट जाने से बनी आकृति। जैसे: नदी का कटाव।

कटि - (स्त्री.) (तत्.) - 1. पेट और नितंबों के बीच का भाग 2. कमर 3. किसी वस्तु का मध्य भाग।

कटिबंध - (पुं.) (तत्.) - 1. कमर में बाँधने की पट्टी; कमर में पहना जाने वाला गहना, कमर बंद। 2. भूगोंल-गरमी-सरदी के विचार से बाँटे गए पृथ्वी के पाँच भागों में से हर एक (ज़ोन)। जैसे: उष्ण कटिबंध, शीत कटिबंध।

कटिबद्ध (कटि = कमर + बद् धस = बँधी हुई) - (वि.) (तत्.) - शा.अर्थ जिसने कमर कस ली हो। सा. अर्थ जिसने कोई कार्य करने का दृढ़ निश्‍चय कर लिया हो।

कटिबद्धता स्त्रीं. - (तत्.) - कमर कस लेने का भाव; दृढ़ निश्‍चय कर लेने का भाव।

कटुक - (वि.) (तत्.) - 1. कडुआ 2. कटु 3. जिसे सुनकर मन को बुरा लगे। उदा. ‘अरी मधुर अधरान ते कटुक वचन जनि बोलि।’

कटोरा - (पुं.) (तद्.<करोट) - स्त्री. कटोरी) तरल पदार्थ या अन्य पदार्थ रखने का धातु से बना छोटे आकार वाला (हाथ में पकड़ा जा सकने वाला) गोलाकार पात्र जिसकी चौड़ाई अधिक व ऊँचाई कम होती है। मुहा. हाथ में कटोरा लेना = भीख माँगना।

कटौती - (स्त्री.) ([देश.< काटना + औती]) - 1. किसी को दिए गए ऋण आदि में से ब्याज का कुछ हिस्सा पहले ही काट लेने का तरीका।

कटौती प्रस्ताव - (पुं.) (देश.+ तत्.) - विधि संसद् या विधानमण्डल में विपक्ष द्वारा बजट प्रस्ताव का विरोध करने की एक विधि जिसमें बजट में सम्‍मलित किसी माँग में कमी करने का प्रस्ताव किया जाता है। इसे सरकार की निंदा के रूप में लिया जा सकता है। cut motion

कट्टर - (वि.) (तद्.<काष्‍ठ) - शा.अर्थ काष्‍ठ (लकड़ी की तरह कठोर) सा.अर्थ 1. अपने विचार और विश्‍वास पर डटा रहने वाला; अपनी बात के प्रतिकूल कही गई किसी बात को न मानने वाला। पर्या. दुराग्रही 2. उदार विचारों में विश्‍वास न करने वाला। पर्या. हठधर्मी।

कट्टरपंथी - (वि.) (तद्.) - 1. कट्टरता के मार्ग पर चलने वाला, अपने विश्‍वास और विचार पर अडिंग रहने वाला; 2. अंध-विश्‍वासी, 3. चरमपंथी, अतिवादी।

कठपुतली [कठ<काष्‍ठ+पुतली<पुत्‍तलिका] - (स्त्री.) (तद्.) - 1. काठ की बनी हुई पुतली या गुडि़या जिसे उँगलियों बँधे धागों द्वारा नचाया जाता है। जैसे: कठपुतली का तमाशा। ला.अर्थ दूसरे के इशारे पर नाचने वाला; दूसरे के कहे अनुसार काम करने वाला। उदा. मैं तुम्हारे हाथ की कठपुतली नहीं हूँ कि जैसा नचाओगे, नाचता रहूँगा।

कठफोड़वा - (पुं.) - हिं. (काठ+फोड़ना=फोड़ने वाला/छेद करने वाला) चिड़ि‍या जो अपनी लंबी और नुकीली चोंच से पेड़ों की छाल छेद कर उसके अंदर के कीड़ों को खाती है। wood pecker

कठमुल्ला काठ+मुल्ला - (वि.) (तद्.+ अर.) - 1 कट्टर मुल्ला या मौलवी। 2. वह व्यक्‍ति जो अपने विचारों में किसी प्रकार का परिवर्तन या नयापन स्वीकार न करे। 3. दुराग्रही व्यक्‍ति। 4. अतिमूर्ख।

कठमुल्लापन - (पुं.) - रुढि़वादिता।

कठिन - (वि.) (तत्.) - 1. जिसे समझना, सुलझाना या करना सरल न हो, अपितु कष्‍टसाध्य हो। 2. कठोर, सख्त, कड़ा। पर्या. मुश्किल, दुसाध्य। जैसे: कठिन समस्या, कठिन प्रश्‍नपत्र; कठिन परीक्षा की घड़ी।

कठिनाई - (स्त्री.) (तद्.) - 1. कठिन या दुस्साध्य होने की स्थिति। 2. सख्ती, कठोरता दे. कठिन।

कठोर - (तत्.) (वि.) - जो कड़ा या सख्त हो। जैसे: कठोर पदार्थ hard कठोर अनुशासन strict 2. निर्दयी जैसे: कठोर व्यक्‍ति cruel 3. कष्‍टप्रद जैसे: कठोर कारावास (टिगरस) विलो. कोमल, मृदुल।

कठोरता - (स्त्री.) (तत्.) - 1. भौतिक रूप से कड़ापन जैसे: कठोर पदार्थ 2. कड़ेपन का बर्ताव। जैसे: कठोर अनुशासन। 3. दया का अभाव। जैसे: कठोर हृदय।

कडक़ - (स्त्री.) - (हि.) कडक़ड़ आकाश में बिजली चमकने के बाद की कर्कश ध्वनि। जैसे: बिजली की कडक़।

कड़ा - (पुं.) (तद्.<कढक़) - स्त्री. कड़ी 1. हाथ और पैर में पहनने का धातु का बना गोलाकार गहना। 2. सिक्ख धर्म (पंथ) में बताए गए पाँच ककारों (केश, कंघी, कच्छा, कृपाण और कड़ा) में से एक। वि. 3. कठोर, सख्त, जो नरम न हो, न डरने वाला। वि. नरम।

कड़ाह - (पुं.) (तद्.<कटाह) - स्त्री. कड़ाही) लोहे पीतल का बना गोलार्थ जैसा बरतन जो नीचे से सँकरा और ऊपर से चौड़ा होता है।

कड़ाही [कड़ाह+ई] - (स्त्री.) (तद्.<कटाह) - लोहे, स्‍टेनलैस स्‍टील या पीतल का अर्ध्‍गोलाकार छोटे आकार वाला बर्तन जो पूरियाँ तलने, सब्‍जी आदि बनाने के काम में लाया जाता है।

कड़ी1 - (स्त्री.) (तद्.<कअक) - <कअक) 1. जंजीर की लड़ी का कोई एक छल्‍ला 2; जोड़ने वाली बात 3. गीत का पद।

कडी2 - (स्त्री.) (तद्.<कोड) - छत में लगाई जाने वाली लकड़ी की धरन।

कड़ी3 - (वि.) (तद्.<कठ) - कड़ा का स्त्री. कठोर मुहा. कड़ी परीक्षा लेना, विलो. मुलायम।

कण - (पुं.) - पदार्थ या द्रव्‍य का सूक्ष्‍मतम रूप partical गोलाकार दाना grain जैसे: अन्‍नगण, सिकताकण (रेत का दाना)

कतई क्रि. - (वि.) - (अर) बिल्‍कुल ही, निश्‍चित रूप से, कदापि नकारात्‍मक अर्थ सूचक, जैसे: यह कार्य कतई संभव नहीं है।

कतरन - (स्त्री.) (तद्.<कर्तरण) - काट-छाँट करने के बाद बने हुए कागज, कपड़े अथवा किसी धातु के टुकड़े। जैसे: कपड़े की कतरन, पान की कतरन अखबार की कतरन।

कतरना सं.क्रि. - (तद्.) - कैंची से कपड़े, गत्‍ते, कागज़ आदि के पतले-पतले टुकड़े काटना।

कतर-ब्योंत - (स्त्री.) - (हि. कतरन+ब्योंत=नापना) काट-छाँट।

कतल/कत्ल - (पुं.) (अर.) - किसी धार वाले हथियार से जान से मार डालना। पर्या. वध, हत्या।

कतार - (स्त्री.) (अर.) - पंक्‍ति, पाँत; line उदा. सब बच्चे कतार बना कर खड़े हो जाएँ।

कतिपय - (वि.) (तत्.) - कुछ, संख्या में कम। जैसे: कतिपय साहित्यकार अच्‍छे आलोचक भी है।

कत्थई - (वि.) - (हिं. कत्था) कत्थे जैसा, कत्थे के रंग का। जैसे: मुझे कत्थई रंग के कपड़े अच्छे लगते हैं।

कत्था - (पुं.) (तद्. क्वाथ) - खैर के पेड़ की छाल को उबालकर निकाले गए सत को जमाने से बना पदार्थ, जो पान के ऊपर चूने के साथ लगाया जाता है। खदिरसार। जैसे: मेरे पान पर कत्था कम लगाना।

कत्ल - (पुं.) - (अर्.) क़तल, वध, हत्या, जान से मार देना।

कत्लेआम - (पुं.) (अर.) - बड़ी संख्या में आम जनता की हत्या। पर्या. नरसंहार। उदा. नादिरशाह ने चाँदनी चौक में अपने सिपाहियों को कत्लेआम की छूट दे दी।

कथन - (पुं.) (तत्.) - कही हुई बात; विधि. किसी व्यक्‍ति द्वारा विषय विशेष के बारे में दिया गया निश्‍चायक और विवरण प्रधान बयान। पर्या. बयान, वक्‍तव्य statement

कथनी - - (कथन+ई) (मुख से) कही हुई बात, कथन। उदा. उस पर विश्‍वास न करो। उसकी कथनी और करनी में बहुत अंतर है।

कथा - (स्त्री.) (तत्.) - शा.अर्थ जिसका कथन किया गया हो यानी जिसे कहा गया हो। 1. साहित्यकार द्वारा रचित उपन्यास आदि। जैसे: 1. हिन्‍दी का कथा साहित्य 2. धर्माचार्य द्वारा श्रोताओं के सम्मुख सुनाया गया कोई धार्मिक या पौराणिक आख्यान। जैसे: रामकथा, भागवत की कथा।

कथानक - (पुं.) (तत्.) - कहानी, उपन्यास, नाटक आदि में वर्णित विषय का संक्षिप्‍त कथन, कथावस्तु।

कथावस्तु - (स्त्री.) (तत्.) - दे. कथानक।

कथावस्तु - (स्त्री.) (तत्.) - 1. किसी कहानी, नाटक उपन्यास, महाकाव्य आदि का संक्षिप्‍त विवरण। पर्या. कथानक। plot कथा।

कथा-वार्ता - (स्त्री.) (तत्.) - [कर्ता और वार्ता] किसी भी पौराणिक अथवा धार्मिक विषय पर विद् वतापूर्ण प्रवचन।

कथा-शिल्प - (पुं.) (तत्.) - [कथा-शिल्प] कथा साहित्य की रचना करते समय उसका कलात्मक पक्ष। जैसे: शब्द-रचना, वाक्यों का गठन, घटनाओं की प्रस्तुति आदि। उदा. कथावस्तु को उसका कथाशिल्प ही रोचक व मनोरंजक बनाता है।

कथित - (वि.) (तत्.) - 1. कहा हुआ, जिसका किसी ने कथन किया हो। stated said narrated 2. जैसा व्यक्‍ति ने कहा या जैसा बहुत लोग कहते हैं, पर जिसकी पुष्‍टि होना शेष है। (एलेज्ड़)

कथोपकथन [कथा < कथन+उपकथन] - (पुं.) (तत्.) - 1. दो या दो से अधिक व्यक्‍तियों के बीच होने वाली बातचीत, वार्तालाप, संवाद। 2. उपन्यास, कहानी, नाटक के पात्रों में होने वाली वार्ता/बातचीत। conversation dialogue

कदंब - (पुं.) (तत्.) - एक पेड़ जिस पर आषाढ़-श्रावण मास में गोल-गोल पीले फूल लगते हैं और वे बहुत अच्छे महकते हैं। फूल की पंखुड़ी हट जाने पर फूलों से चटनी या अचार भी बनाया जाता है। पर्या. नीप, सुरभि, कर्णपूरक। उदा. ‘जौ खग हों तौं बसेरौ करों, मिलि कालिंदी कूल कदंब की डारन।”

कदम - (पुं.) (अर.<क़दम) - 1. सहज रूप में चलते समय एक पाँव से दूसरे पाँव तक की दूरी। उदा. भोजन के बाद सौ कदम चलना स्वास्थ्य के लिए अच्छा माना जाता है। 2. पगतल, चरण। उदा. मेरा सौभाग्य है कि आपके कदम मेरे घर में पड़े। मुहा. 1. कदम चूमना-विशेष आदर देना। 2. कदम उठाना-तेज़ चलना।

कदली - (स्त्री.) (तत्.) - केले का पेड़ या उसका फल।

कदाचार [कद्+आचार] - (पुं.) (तत्.) - टि. समास में ‘कु’ के स्थान पर ‘कद्’ प्रयुक्‍त होता है जिसका अर्थ है अल्पता, न्यूनता, बुराई। प्रशा. (कर्मचारी का) ऐसा आचरण या व्यवहार जो नियम विरूद्ध, निदंनीय, अनैतिक या अशोभनीय हो और जिसके लिए उसके विरूद्ध कार्रवाई की जा सकती है। misconduct

कदाचित क्रि. - (वि.) (तत्.) - शायद, शायद कभी, कभी।

कदापि क्रि. - (वि.) (तत्.) - कभी, हर्गिज। टि. उसका प्रयोग नकारात्मक अर्थ में ही होता है। उदा. मैं यह कार्य कदापि नहीं करूँगा।

कद् दावर - (वि.) (फा.<क़दावर) - शा.अर्थ जिसका कद अपेक्षा से अधिक लंबा हो, ऊँचे कद वाला। ला.अर्थ पद-प्रतिष्‍ठा में अन्य लोगों से श्रेष्‍ठ। उदा. कुछ कद् दावर नेताओं ने बगावत नहीं की होती तो पार्टी को बहुमत मिल जाता।

कद्र - (स्त्री.) (अर.) - आदर, सम्मान, प्रतिष्‍ठा। विलो. बेकद्री।

कनक - (पुं.) (तत्.) - 1. सोना, सुवर्ण, स्वर्ण। पर्या. कंचन। 2. धतूरा उदा. कनक-कनक ते सौ गुनी मादकता अधिकाय (बिहारी) 3. ढाक, पलाश, 4. खजूर 5. (कणिक, कनिष्‍ठ) गेहूँ।

कनकटा - (वि.) (देश.) - (कान-कटना) जिसका एक कान कटा हो, या दोनों कान कटे हों। जैसे-कनकटा कुत्‍ता।

कनखजूरा - (पुं.) (तद्.<कर्णखर्जूरक) - एक कई टांगों वाला कीट (कीड़ा) जिसके शरीर का आकार लंबा और पतला होता है।

कनखी - (स्त्री.) (दे.) - 1. तिरछी निगाह से देखने की क्रिया। दे. कटाक्ष।

कनपटी - (स्त्री.) (तद्.<कर्णपट्टिका) - कान और आँख के बाहरी किनारे के बीच वाला सिर के दोनों ओर का चपटा-सा भाग। temple

कनस्तर - (पुं.) - (अं.) टीन का बना चौखूँटा पीपा, जिसमें घी, तेल आदि रखते हैं। canister टि. आजकल कनस्तर प्लास्टिक के भी बने होते हैं।

कनात - (स्त्री.) - (तु.) मोटे कपड़े (प्राय: मोमजामे) का वह परदा जिससे किसी कार्यक्रम के आयोजन के लिए कोई खुला स्थान घेरा जाता है। टि. आजकल नायलोन के भी कनात तैयार होते हैं।

कनिष्‍ठ - (वि.) (तत्.) - (यंगर) (व्यक्‍ति) जो किसी अन्य की तुलना में पद, हैसियत, आयु आदि की दृष्‍टि से कम हो। (जूनियर) जैसे: कनिष्‍ठ अधिकारी।

कनी - (स्त्री.) (तद्.<कण) - 1. किसी अन्न आदि का बहुत छोटा टुकड़ा। कण, कणिका। जैसे: दाल की कनी। 2. ओस, पानी, पसीने या रक्‍त आदि की छोटी बूँद। उदा. झलकी भरि भाल कनीं जल की। (कवितावली) 3. अग्नि का छोटा कण, चिनगारी। 4. हीरे का बहुत छोटा टुकड़ा।

कन्नी - (स्त्री.) (देश.) - 1. पतंग का किनारा, कोर। 2. संतुलन के लिए पतंग की कमानी में बाँधी जाने वाली कपड़े की चिंदी। 3. वह औजार जिससे राजगीर पलस्तर को समतल करता है। पर्या. पाटा। मुहा. कन्नी काटना=किसी से न मिलने की चाह लिए, उसके सामने न आना। (संदर्भ-पहला अर्थ)

कन्या - (स्त्री.) (तत्.) - 1. अविवाहित/कुँआरी लडक़ी। 2. पुत्री, बेटी। 3. बारह राशियों में से एक।

कन्यादान - (पुं.) (तत्.) - माता-पिता द्वारा वर के साथ कन्या का विवाह करना।

कपट - (पुं.) (तत्.) - अनुचित लाभ उठाने अथवा किसी के उचित अधिकार को क्षति पहुँचाने की मनोवृत्‍ति से कोई मिथ्या कथन करने या धोखे में डालने का आपराधिक कृत्य। fravd

कपड़ा - (पुं.) (तद्.<कपर्ट) - ऊन, रेशम, रूई, नायलोन आदि के धागों से निर्मित पट और उससे बनने वाले पहनने के वस्त्र।

कपाट - (पुं.) (तत्.) - 1. दरवाज़े का पल्ला आदि जिसे खोला और बंद किया जा सकता है। 2. कोई भी आवरण।

कपाल - (पुं.) (तत्.) - खोपड़ी का वह हिस्सा जो मस्तिष्क को घेरे रहता है। पर्या. खोपड़ी, करोटि, खप्पर।

कपालक्रिया - (स्त्री.) (तत्.) - हिंदुओं में प्रचलित एक प्रथा जिसके अनुसार शवदाह के समय मुर्दे की खोपड़ी को बाँस से फोड़ा जाता है।

कपास - (स्त्री.) (तद्.<कर्पास) - एक पादप और उसके कंद से निकलने वाला बिनौले से लिपटा श्‍वेत रेशेदार नरम पदार्थ जिसे रूई कहते है और जिससे कता धागा वस्त्र निर्माण तथा सिलाई के काम में आता है। cotton

कपूत - (पुं.) (तद्.< कुपुत्र) - बुरे आचरण वाला बेटा, नालायक पुत्र। विलो. सुपुत (सुपुत्र)

कपूर - (पुं.) (तद्.<कर्पूर) - सफ़ेद रग का एक तेज गंध वाला द्रव्य जो दालचीनी जाति के पेड़ों से निकाला जाता है। यह दवा, कीटनाशक और पूजा के समय आरती के काम आता है। खुले में रखने से हवा में उड़ जाता है। (कैम्फर)

कपोल-कल्पना - (स्त्री.) (तत्.) - केवल कल्पना पर आधारित, (न कि वास्तविक रूप में घटित बात) मनगढ़ंत या बनावटी बात।

कप्‍तान - (पुं.) - (अं.) कैप्टन का अनुकूलित रूप। 1. स्थल सेना में, ओहदे के क्रम में मेजर से एक क्रम कनिष्‍ठ अफसर। 2. नौ सेना में, ओहदे के क्रम में कमाण्‍डर से एक क्रम कनिष्‍ठ अफसर। 2. खेल प्रतियोगिताओं में दल का नेतृत्व करने के लिए नामित खिलाड़ी। captain

कप्‍तानी - (स्त्री.) (दे.) - दल का नेतृत्व करने की क्षमता; कप्‍तान का पद। दे. कप्‍तान।

कफ़ - (पुं.) - (अं.) कुर्ते की बांह की कलई से ढक़ने वाला दोहरा मुड़ा सिरा।

कफ - (पुं.) (तत्.) - आयुर्वेद के अनुसार शरीर को संतुलित बनाए रखने वाली तीन धातुओं (वात, पित्‍त और कफ में से तीसरी धातु; श्‍लेष्मा (बलगम) जो शीत प्रकृति का और फेफड़ों, गले और नासिका को प्रभावित करने वाला होता है।

कफ़न - (पुं.) (अर.) - श्मशान में दाहकर्म, कब्र में दफनाने के लिए ले जाते समय शव या मुर्दे के ऊपर लपेटा जाने वाला कपड़ा। मुहा. 1. कफ़न के लिए कौड़ी न होना=बहुत ही गरीब। 2. कफ़न सिर पर लपेटना/बांधना=वीरता की भावना से भरे हुए मृत्यु तक को गले लगाने से न डरना।

कबड्डी - (स्त्री.) (देश.) - खुले मैदान में खेला जाने वाला एक भारतीय खेल जिसमें प्रतिपक्षी खिलाड़ी दो अलग-अलग पालों में बंटे होते हैं। बारी-बारी से दोनों पक्षों का एक-एक खिलाड़़ी बीच की रेखा पार कर दूसरी तरफ ध्वनि करते हुए जाता है और विपक्षी के किसी खिलाड़ी को छुकर अपने पाले में लौट आने का प्रयत्‍न करता है। छू लिया गया खिलाड़ा ‘मरा’ माना जाता है और खेल से हट जाता है, किंतु हमलावर खिलाड़ी के पकड़ लिए जाने पर या विभाजक रेख को न छू पाने अथवा सांस टूट जाने पर उसे खेल से बाहर होना पड़ता है। इस तरह जिसके सभी खिलाड़ी खेल से बाहर हो जाते है। वह पक्ष हारा हुआ और दूसरा पक्ष जीता हुआ माना जाता है।

कबाड़ - (पुं.) (तद्<कर्पट) - किसी काम न आने वाला सामान; टूट-फूट गया सामाना, रद् दी वस्तुओं का ढेर junk

कबाड़खाना - (पुं.) - (कबाड़+फ़ा) वह स्थान या कमरा जहाँ टूटे-फूटे सामाना/रद् दी वस्तुओं को बेतरतीब से भर दिया जाता है। junk house

कबाड़ा - (पुं.) - काम बिगड़ जाने या अव्यवस्थित हो जाने का सूचक भाव। उदा. सब कबाड़ा हो गया अब क्या होगा।

कबाड़ी - (पुं.) - (कबाड़+ई) टूटी-फूटी और रद् दी वस्तुओं का व्यवसायी junk dealer

कबाब - (पुं.) (अर.) - वह कुटा हुआ मांस जो सींकों पर भूनकर पकाया जाता है। मुहा. 1. कबाब होना=क्रोध से जलभुन जाना। उदा. मेरी बात सुनते ही वे कबाब हो गए। 2. कबाब में हड्डी=सुखमय स्थिति में अचानक (i) बाधा पहुँचने की स्थिति पैदा हो जाना अथवा (ii) बाधा पहुँचाने वाला कारक (व्यक्‍ति)।

कबीरपंथ [कबीर+पंथ] - (पुं.) (देश.) - संत कबीर के उपदेशो और उनकी मान्यताओं के अनुसार उनके अनुयायियों द्वारा स्थापित संप्रदाय।

कबीरपंथी [कबीर+पंथी] - (वि.) (देश.) - कबीर संप्रदाय के अनुयायी।

कबीला - (पुं.) (अर.) - 1. (i) एक ही पूर्वज के सभी वंशजों का समूह, (ii) एक ही जनजाति के लोग। पर्या. खानदान, वंश। 2. एक समान कार्य करने वाले लोगों का दल या समूह। tribe

कबूतरख़ाना - (पुं.) (फा.) - 1. कबूतरों को पालने/रखने की जगह। 2. ला.अर्थ वह कमरा जहाँ कई बच्चे इकट्ठा होने पर बिना नियंत्रक के शोरगुल और धमाचौकड़ी मचाते रहते हैं।

कबूतरबाज़ - (वि./पुं.) (फा.) - 1. (वह व्यवसायी) जो कबूतरों को पालता और बेचता है। 2. (वह व्यक्‍ति) जो दाँव लगाकर कबूतरों को लड़ाने या उड़ाने की प्रतियोगिता में भाग लेता है। 2. वह व्यक्‍ति या समूह जो लोगों से अनुचित ढंग से धन वसूलकर उन्हें विदेश भेजने का गैरकानूनी धंधा करता है।

कबूतरबाज़ी - (स्त्री.) (फा.) - 1. कबूतर पालने, बेचने, उड़ाने तथा लड़ाने का व्यवसाय या खेल प्रतियोगिता। 2. लोगों से धन ऐंठकर उन्हें विदेश भेजने का गैरकानूनी धंधा।

कबूलना अ.क्रि. - (अर.) - पूछने पर कही बात को और किए (अनुचित) काम को अथवा दोष, अपराध को मान लेना/स्वीकार कर लेना। पर्या. स्वीकार करना। (accept, admit कन्फेस)

कब्ज़ा - (पुं.) (अर.) - 1. किसी औजार को पकड़ने का स्थान, मूठ, दस्ता। 2. दरवाजे इत्यादि को चौखट से जोड़ने के लिए लोहे या पीतल आदि के चौकोर टुकड़े जिसमें पेच कसे जाते हैं। (हिंज) 3. अधिकार, भूमि, भवन आदि पर वास्तविक नियंत्रण। possession

कब्र - (स्त्री.) (अर.) - 1. मुसलमानों, इसाइयों और यहूदियों में मुर्दे या शव को गाड़ने के लिए खोदा गया गड्ढ़ा। 2. वह स्मारक जो ऐसे स्थलों के ऊपर बनाया जाता है। मुहा. (i) कब्र खोदना=किसी की बरबादी के घटिया तरीके अपनाना। (ii) कब्र में पैर लटकना=मरने को होना, बहुत बूढ़ा होना।

कब्रगाह - (स्त्री.) (फा.) - शा.अर्थ कब्र की जगह। सा.अर्थ चहारदीवारी से घिरा वह सार्वजनिक स्थल या मैदान जहाँ मुर्दे को गाड़ते हैं। पर्या. कब्रिस्तान।

कब्रिस्तान [कब्र+इस्तान=स्थान] - (पुं.) (अर.+फा) - दे. कब्रगाह। जहाँ मुर्दे गाड़े जाते है ।

कम - (.फा.) (वि.) - जितना होना चाहिए उससे मात्रा, गुण आदि में थोड़ा या खराब। पर्या. अल्प। जैसे: इस साल बारिश कम हुई है। 1. अल्प, 2. थोड़ा, 3. बुरा, 4. खराब। विलो. अधिक, ज्यादा।

कमअक्ल - (वि.) (.फा.+अर.) - जिसमें अक्ल यानी बुद्धि सामान्य मात्रा से कम हो; अल्पबुद्धि या मूर्ख।

कम उम्र - (वि.) (.फा.+अर.) - जिसकी उम्र कम हो यानी जो वयस्क माने जाने की आयु तक न पहुँचा हो। juvenile

कमख़र्च पि. - (.फा.) - थोड़ा खर्च करने वाला, किफायत से चलने वाला। पर्या. मितव्ययी, अल्पव्ययी। तु. कंजूस।

कमज़ोर - (वि.) (.फा.) - 1. जिसमें शक्‍ति (ताकत) की कमी हो, निर्बल/दुर्बल, 2. सामान्य मानक से कम स्तर का। जैसे: कमज़ोर दिमाग का; पढ़ने में कमजोर।

कमज़ोरी - (स्त्री.) (.फा.) - निर्बलता, दुर्बलता।

कमतर - (वि.) (.फा.) - किसी से तुलना करने पर उससे कम।

कमबख़्त - (वि.) (.फा.) - दुर्भाग्य का मारा, अभागा, हतभाग, बदकिस्मत, तकदीर का मारा।

कमर - (स्त्री.) (.फा.) - 1. मानव शरीर के बीच का यानी पेट से नीचे और कूल्हे के ऊपर वाला भाग (जहाँ धोती, पजामा आदि बांधते हैं।) पर्या. कटि। मुहा. (i) कमर कसना (कटिबद् ध होना) = किसी कार्य को करने के लिए पूरी तरह से तैयार होना/तैयारी करना (ii) कमर टूटना=कड़े परिश्रम की वजह से कुछ करने योग्य न रहना; हतोत्‍साहित होना (iii) कमर झुकना=बूढ़ा हो जाना। 2. वस्त्र का वह भाग जो उपर्युक्‍त हिस्से (कमर) को ढाँकता है या वहाँ बांधा जाता है। जैसे-इस पेंट की कमर थोड़ी ढीली है।

कमरतोड़ - (वि.) (.फा.) - शा.अर्थ कमर को तोड़ देने वाला। सा.अर्थ (काम) जिसे पूरा करने में बहुत मेहनत करनी पड़ी। उदा. उसने कमरतोड़ मेहनत की इसलिए प्रथमश्रेणी प्राप्‍त कर पाया। 2. कमरतोड़ मंहगाई।

कमरबंद - (पुं.) (.फा.) - 1. कमर में बांधने का दुपट्टा या पेटी, 2. पजामें आदि की डोरी, नाड़ा।

कमरा - (पुं.) (.फा.) - (फ्रांसीसी-कामेरा) किसी घर या भवन का वह भाग जो चारों ओर से दीवारों से घिरा हो और जिसमें प्रवेश के लिए दरवाज़ा बना हो तथा नीचे फर्श और ऊपर छत हो। उदा. मेरे घर में चार कमरे हैं।

कमल - (पुं.) (तत्.) - तालाब में ठहरे पानी में पैदा होने वाला मुख्यत: लाल (गुलाबी) रंग का और गौणत: नीले या श्‍वेत रंग का एक भारतीय पौधा और उसका फूल (पुष्प) जो अपनी सुंगधि और सुंदरता के लिए प्रसिद्ध है। पर्या. नीरज, जलज, पंकज, अंबुज, सरसिज, पद्य, अरबिंद, राजीव lotus

कमल-ककड़ी [कमल+हिं.ककड़ी] - (स्त्री.) (तत्.) - कमल का डंठल जिसकी सब्ज़ी बनती है। पर्या. कमल नाल।

कमल-गट् टा - (पुं.) - कमल के बीज जिनसे सब्जी बनती है।

कमलनयन - (वि.) (तत्.) - स्त्री. कमलनयनी) जिसकी आँखें कमल की पंखुड़ी के आकार की या उसके समान सुंदर और बड़ी हों।

कमलनाल - (स्त्री.) (तत्.) - दे. कमलककड़ी।

कमसिन - (वि.) (फा.) - 1. छोटी उम्र का, कम उम्र; नाबालिग, कोमल अंगों वाला। adolesence

कमसूरती - (स्त्री.) (फा.) - बदसूरत होने का भाव, सुंदर न होने का भाव। विलो. खूबसुरती।

कमांड - - अं. सा.अर्थ आज्ञा, हुक्म, आदेश। सैन्य (i) एक निश्‍चित भौगोलिक क्षेत्र अथवा किसी विशिष्‍ट कार्य के लिए गठित प्रमुख कमांडिंग सर्वोच्च. अफ़सर के अधीन सेना का प्रमुख विभाग। जैसे: वायुसेना में दक्षिणी कमान, स्थल सेना में उत्‍तरी कमान, नौसेना में पश्‍चिमी नौसेना कमान आदि।, (ii) सैन्य अफसरों द्वारा दिया गया आदेश। (प्राय: परेड के समय) command

कमाई (कमाना+ई) - (स्त्री.) - 1. कमाया हुआ धन या माल। 2. कमाने का काम; धर्नोपार्जन।

कमाऊ - (वि.) (देश.) - 1. कृषि व्यवसाय, कला आदि से पर्याप्‍त लाभ अर्जित करने वाला। 2. यथेष्‍ट धन का उपार्जन करने वाला। धनोपार्जक। जैसे: उनका यह कमाऊ पूत है जो संगीतकला में प्रतिदिन पर्याप्‍त धनोपार्जन करता है।

कमान - (स्त्री.) (.फा.) - 1. धनुष, तीर चलाने का यंत्र, 2. मेहराब, मेहराबदार बनावट, 3. इंद्रधनुष, 4. तोप. बंदूक। उदा. गरगज बाँध कमानैं धरी’ (जायसी)। 2. सैन्‍य (क) एक निश्‍चित भौंगलिक क्षेत्र अथवा किसी विशिष्‍ट कार्य के लिए गठित प्रमुख कमांडिंग सर्वोच्‍च अफसर के अधीन सेना का प्रमुख विभाग। जैसे: वायुसेना में दक्षिणी कमान, स्‍थल सेना में उत्‍तरी कमान, नौसेना में पश्‍चिमी नौसेना कमान आदि। (ख) सैन्‍य अफसरों द्वारा दिया गया आदेश (प्राय: परेड के समय)

कमाना सं.क्रि. - (देश.) - 1. मेहनत से धन कमाना। 2. अनाज उपजाना/पैदा करना। 3. काम लायक खेत तैयार करना। 4. प्रतिष्‍ठा प्राप्‍त करना। जैसे: नाम कमाना। 5. कच्चे को पक्का करना। जैसे: चमड़ा कमाना। 6. (प्राचीन प्रयोग) पाखाना/शौचालय साफ करने तथा मैला ढोने का काम। (अब प्रतिबंधित)

कमानी - (स्त्री.) (.फा.) - 1. कमान की तरह मुड़ी या झुकी चीज़ सा पुर्ज़ा। 2. लोहे आदि की बनी लोचदार तीली।

कमानीदार तुला - ([कमानीदार) (.फा.)+ तुला(तत्.] - वस्तु पर लगने वाले बल को मापने वाला यंत्र या युक्ति।(इसमे एक कुंडलित कमानी होती है जिसमे बल लगाने पर प्रसार (फैलाव) हो जाता है। कमानी के प्रसार (फैलाव) की माप इसके अंशांकित पैमाने पर चलने वाले संकेतक द्वारा की जाती है।पैमाने के पाठ्यांक द्वारा बल का परिणाम प्राप्त होता है। spring balance

कमाल - (पुं.) (अर.) - अद्भुत कार्य। वि. अतिशय, सर्वोत्‍तम। मुहा.-कमाल करना=अद् भुत कुशलता दिखाना, विशिष्‍ट योग्यता का परिचय देना। उदा. सुरेश ने ऊँची कूद में कमाल कर दिखाया।

कमी - (स्त्री.) (दे.) - मात्रा, गुण आदि में आवश्यकता से कम होने की स्थिति। विलो. अधिकता। कम। दे. कम, गलती अथवा छोटा होने का भाव। जैसे: पानी की कमी, खून की कमी।

कमीज़ - (स्त्री.) (अर.) - लंबी बाहों वाला और सामने बटन टंगा कालरदार कुरता। उपरी वस्त्र जो बदन ढकने के लिए पहना जाता है shirt तु. कुरता/कुर्ता।

कमीशन - (पुं.) - (अं.) 1. कोई सामान बेचने, बिकवाने के बदलने बिचौलिए को मिलने वाला नियत आंशिक धन। पर्या. दलाली। 2. किसी निर्दिष्‍ट कार्य को सम्यक निष्पादन हेतु सरकार द्वारा नियुक्‍त सावधि या निरवधि विशेष स्तर का अभिकरण। पर्या. आयोग, जैसे: इन्क्वायरी कमीशन (जाँच आयोग), इलेक्शन कमीशन (निर्वाचन आयोग) आदि।

कम्पोस्ट - (पुं.) (वि.) - (अं.) कृषि वि. खेती में प्रयोग की जाने वाली वह खाद जिसमें प्रमुख रूप से कार्बन और खनिज पदार्थ रहते हैं तथा जो कार्बनिक पदार्थों के विघटन से तैयार की जाती है। टि. प्राय: सड़े-गले पौधों, पशुओं के मल इत्यादि को मिटटी में कुछ समय तक दबाकर यह खाद प्राप्‍त की जाती है। compost

कयामत - (स्त्री.) (अर.) - मुसलमानों, इसाइयों, यहूदियों के अनुसार सृष्‍टि का वह अंतिम दिन जब सब मुर्दे उठकर खड़े हो जाएंगे और ईश्‍वर के सामने उनके कर्मों का हिसाब प्रस्तुत किया जाएगा। पर्या. प्रलय। जैसे: कयामत का दिन; कयामत की घड़ी, कयामत बरपा करना, कयामत को अपने पैरों पर खड़ा करना, भारी आफ़त खड़ी करना।

कयास - (पुं.) (अर.) - शा.अर्थ नाप-तोल, गणना या तर्क इत्यादि के आधार पर निर्णय करने का प्रयत्‍न। सा.अर्थ अनुमान, अंदाजा, विचार। जैसे: मेरे मित्र ने जैसा कयास लगाया था हिंदी का प्रश्‍नपत्र वैसा ही आया।

कर - (पुं.) (तत्.) - 1. हाथ, 2. हाथी की सूँड, 3. किरण (सूर्य या चंद्रमा की) 4. राजस्व की वृद् धि के लिए सरकार द्वारा व्यक्‍ति, वस्तु, भूमि, उत्पाद आदि पर आरोपित अंशदान। tax 5. प्रत्यय-कर=करने वाला। जैसे: हानिकर, सुखकर।

करघा - (पुं.) (फा.करगह) - कपड़ा बुनने का यंत्र।

करण - (पुं.) (तत्.) - 1. कोई कार्य करने की क्रिया, जैसे: सरलीकरण, भारतीयकरण। 2. कोई कार्य करने का साधन। पर्या. उपकरण। 3. व्याकरण में एक कारक-जो क्रिया व्यापार के साधन का सूचक बनता है। जैसे: मैं हाथ से खाना खाता हूँ; वह डंडे से मारता है। यहाँ हाथ और डंडा करण कारक में हैं।

करतब - (पुं.) (तद्.< कर्त्‍तव्य) - 1. किया हुआ काम, 2. कोई कौशलपूर्ण, अनोखा कार्य। पर्या. बाजीगरी (फीट) जैसे: पहलवान के करतब। 3. दूषित या नियम विरूद्ध कार्य। पर्या. करतूत। misdeed जैसे: उसके करतब निंदा योग्य हैं।

करतबी - (वि./पुं.) - 1. करतब दिखाने वाला, 2. बाज़ीगर, ऐंद्रजालिक, 3. धोखेबाज़।

करतल ध्वनि [करतल=हथेली+ध्वनि+आवाज़] - (स्त्री.) (तत्.) - शा.अर्थ हथेलियों की आवाज़। सा.अर्थ प्रसन्नता की स्थिति में श्रोताओं या दर्शकों द्वारा हथेलियों को लगातार एक-दूसरे पर मारते रहने से उत्पन्न आवाज़। hand clapping applaud

करताल - (पुं.) (तत्.) - 1. झाँझ, मजीरा। 2. ताल देने का बाजा। 3. दोनों हथेलियों को एक-दूसरे पर पीटने से उत्पन्न होने वाली ध्वनि।

करतूत - (स्त्री.) (तद्.<कर्त्‍तव्य) - अनुचित और निंदय कार्य। दे. ‘करतब’ अर्थ) जैसे: उसकी करतूत देखकर मुझे शर्म आती है।

करनी - (स्त्री.) (तद्.) - (सं. करणीय) 1. किया जाने वाला कार्य। उदा. (i) उसकी कथनी और करनी में बहुत अंतर है (ii) जैसी करनी वैसी भरनी। 2. राजगीर द् वारा प्रयुक्‍त एक उपकरण जो चुनाई के कार्य में मसाला आदि उठाने के काम आता है। उच्चरित रूप-कन्नी। 3. निदंनीय, अनुचित कार्य। उदा. उसकी करनी का उसे तत् काल फल मिल गया 4. कंघी।

करबला/कर्बला - (स्त्री.) (अर.) - 1. सऊदी अरब में वह नगर जहाँ अली के छोटे बेटे इमाम हुसैन अपने साथियों सहित शहीद हुए थे। 2. वह स्थान जहाँ ताजिए दफ़न किए जाते हैं। तु. काबा।

करवट - (स्त्री.) (तद्.<करव्यावर्तन) - दाहिनी या बाईं बाजू लेटने की स्थिति; शरीर के दोनों पार्श्‍ववर्ती हिस्से जिन पर दोनों लटके हाथ टिकते हैं और जिनके सहारे बारी-बारी से लेटा जाता है। मुहा. (i) करवट बदलना=नींद न आना। ला.अर्थ बेचैनी की स्थिति में बार-बार दाहिनी या बाईं ओर पलटते रहना, सो न पाना। (ii) ऊँट किस करवट बैठता है=आगे क्या होता है।

कराधान [कर+आधान] - (पुं.) (तत्.) - सरकार द्वारा व्यक्‍तियों की आय, कंपनियों के व्यवसाय आदि पर कर निर्धारित करने और उसे वसूलने की प्रक्रिया। taxation

करामात - (स्त्री.) (अर.) - ऐसे कार्य जो अद् भुत व आश्‍चर्यजनक हों। चमत्कार miracle जैसे: चिकित्सकों की करामात से वह पुन: स्वस्थ हो गया। टि. ‘करामात’ फ़ारसी में (‘करामत’ का) बहुव. रूप है पर हिंदी में एकव. प्रयोग भी होता है।

करामाती - (वि.) - 1. करामात दिखाने वाला, चमत्कारी मनुष्य। 2. ऐसा कार्य जिसमें चमत्कार हो।

करार - (पुं.) (अर.) - वाणि. दो व्यक्‍तियेां या समूहों के बीच कुछ करने या न करने के बारे में हुआ मौखिक या लिखित समझौता। पर्या. अनुबंध, करारनामा।

करार देना - (पुं.) (अर.) - निश्‍चयपूर्वक कह देना। उदा. उसे अपराधी करार दिया गया।

करारा - (वि.) (तद्. देश.) - 1. कुरकुरा यानी खाते समय सुविधापूर्वक टूट जाने वाला और ‘कुरकुर’ आवाज़ वाला। जैसे : करारा पापड़। 2. कड़ा, तेज, कठोर, उग्र। जैसे : करारा जवाब, करारा तमाचा। जैसे : करारा आदमी (चुस्त या तेज व्यक्‍ति)। hard hittng

कराहना - (देश.) - मुख से पीड़ा या कष्‍ट सूचक ध्वनि निकालना, ‘आह-आह’ करना। bemoaning

करिश्मा - (पुं.) (फा.) - कोई अद्भुत या विलक्षण कार्य, चमत्कार, करामात। miracle

करूण - (वि.) (तत्.) - मन में दया की भावना पैदा कर देने वाला/वाली (दृश्य, घटना आदि)

करूणा - (स्त्री.) (तत्.) - अन्य लोगों द्वारा भोगी जा रही पीड़ा देखकर/सुनकर उनके प्रति मन में उत्पन्न दया या गहरी सहानुभूति का भाव। compassion जैसे: करूणानिधि ईश्‍वर।

करूणानिधि [करूणा= दया + निधि = ख़जाना] - (वि.) (तत्.) - शा.अर्थ दया या करूणा का खज़ाना। सा.अर्थ भगवान का विशेषण जिनकी दयादृष्‍टि सब पर रहती है।

करूना - (स्त्री.) (दे.) - करूणा।

करूनानिधि - (पुं.) (देश.) - करूणानिधि।

करोड़ - (वि.) (तद्.< कोटि) - शब्दों में एक लाख की संख्या से सौ का गुणनफल, अंकों में 1,00,00,000। पर्या. कोटि।

कर्क - (पुं.) (तत्.) - 1. केकड़ा, 2. बारह राशियों में से चौथी राशि।

कर्कश - (वि.) (तत्.) - स्त्री. -कर्कशा) कठोर, सख्त (शब्द या वाक्य) जो सुनने में कानों को मधुर न लगे। पर्या. कटु, अप्रिय ध्वनि। जैसे: कर्कश आवाज़।

कर्ज़ - (पुं.) (अर.) - उधार लिया हुआ धन। पर्या. ऋण, उधार, कर्जा। दे. कर्जा।

कर्जा/कर्ज़ - (पुं.) (अर.) - दूसरे से लिया हुआ धन जिसे (ब्याज सहित) लौटाने की शर्त हो। पर्या. ऋण, उधार। मुहा. कर्जा उतारना=कर्ज़ चुकाना, उऋण होना।

कर्ण - (पुं.) (तत्.) - 1. प्राणियों की वह इंद्रिय जिससे वे सुनते हैं; कान। 2. गणित-वह रेखा जो किसी चतुर्भुज के आमने-सामने के कोणों को मिलाती है। 3. पतवार।

कर्णकटु - (वि.) (तत्.) - कानों को कटु=कड़वा (अप्रिय) लगने वाला, जो सुनने में कर्कश हो।

कर्णगोचर [कर्ण+गोचर] - (वि.) (तत्.) - कानों को सुनाई देने वाला; कानों को सुनाई देने योग्य, जो सुना जा सके।

कर्णधार - (पुं.) (तत्.) - 1. पतवार पकड़ने वाला, नाविक, माँझी, केवट, मल्लाह। 2. नेता, किसी संस्था, समाज, देश को मुख्य रूप से आगे बढ़ाने वाला। उदा. जवाहर लाल नेहरू देश के महान कर्णधारों में से एक थे।

कर्णपटह - (पुं.) (तत्.) - शा.अर्थ कान का परदा। प्राणि. ध्वनितरंगों के आवेशों को ग्रहण कर मस्तिष्क तक पहुँचाने वाला कान का पट (परदा) Tympanum ear drun

कर्णपटह झिल्ली - (स्त्री.) ([तत्.+तत्.+तद्]) - तत्. + तत्. + तद्. बाह् य कर्ण को मध्यकर्ण से अलग करने वाला एक परदा या झिल्ली। ध्वनि के कंपन से कंपित होकर यह झिल्ली ध्वनि को भीतर कान में भेजती है। ear drum, lymfranic membrane

कर्णपल्लव - (पुं.) (तत्.) - शा.अर्थ कान का पत्‍ता यानी वह नरम भाग जिसे घुमाया या मोड़ा जा सके। प्राणि. कान का बाहर की ओर निकला हुआ उपस्थित भाग जिसे इच्छानुसार घुमाया जा सके। ear lobe

कर्णवेध - (पुं.) (तत्.) - कान छेदने का संस्कार (जो शैशवकाल में संपन्‍न होता है।)

कर्णावर्त [कर्ण+आवर्त] - (पुं.) (तत्.) - शा.अर्थ कान का घुमावदार यानी सर्पिल भाग। प्राणि. स्‍तनधारी प्राणियों में आंतरिक कर्ण का सर्पिल भाग जो ध्वनि कंपनों को ग्रहण कर श्रवण तंत्रिका के माध्यम से केंद्रीय तंत्रिका तंत्र को विद्युत आवेग प्रेषित करता है। cochlea

कर्ता - (तत्.) (वि.) - 1 करने वाला, बनाने वाला। 2. पुं. वह जो घर, संस्था आदि का मालिक हो और जिसके मार्गदर्शन में सारे कार्य होते हैं। 3. व्या. वाक्य में प्रयुक्‍त संज्ञा-सर्वनाम का वह रूप जिससे क्रिया के करने वाले का बोध होता है। उदाहरण-राम ने रावण को मारा, में ‘राम’ कर्ता है।

कर्त्‍तव्य - (पुं.) (तत्.) - 1. कार्य जिसे करने के लिए कोई व्यक्‍ति नैतिक और विधिक दृष्‍टि से बंधा हुआ हो। 2. कार्य जिसे हम कर सकते हैं तथा जिसे अवश्य करना चाहिए और जिसे करने से उद् देश्य की सिद् धि होती है। duty

कर्म - (पुं.) (तत्.) - शा.अर्थ जो किया जाए। व्या. वाक्य में जिस वस्तु पर क्रिया के व्यापार का फल पड़ता है, उसे सूचित करने वाला संज्ञा या सर्वनाम का रूप। उदा. ‘राम ने रावण को मारा’ में ‘रावण’। ‘उसने मुझे आम दिया, में ‘आम’।

कर्मकांड - (पुं.) (तत्.) - 1. पूजा, यज्ञ आदि से संबंधित सभी औपचारिक कार्य। 2. संस्कारों की विधि बताने वाला शास्त्र। 3. किसी धर्म के वे धार्मिक कार्य जो समय-समय पर होते हैं।

कर्मक्षेत्र - (पुं.) (तत्.) - कर्मभूमि, कार्य करने का स्थान अथवा विषय। जैसे: (i) पांडवों का कर्मक्षेत्र इंद्रप्रस्थ बना (ii) मेरा कर्मक्षेत्र साहित्य है। पर्या. कार्यक्षेत्र।

कर्मचारी - (पुं.) (तत्.) - शा.अर्थ काम में गतिशील। सा.अर्थ किसी संस्था या संगठन का पदानुसार वेतनभोगी कार्यकर्ता। employee, staff member

कर्मठ - (वि.) (तत्.) - तत्परता से काम करने वाला। पर्या. कर्मनिष्‍ठ।

कर्मनिष्‍ठ - (वि.) (तत्.) - अपने कार्य में पूरी निष्‍ठा यानी आस्था रखकर उसे पूरा करने वाला (व्यक्‍ति)। पर्या. कर्मठ व्यक्‍ति।

कर्मयोगी - (वि./पुं.) (तत्.) - 1. वह जो कर्मयोग के सिद्धांतों के अनुसार काम करे। 2. हानि-लाभ की चिंता न कर अपना कर्तव्य पूरे मनोयोग से पालन करने वाला (व्यक्‍ति) 3. स्वार्थ रहित सेवा का मार्ग अपनाने वाला

कर्मशाला - (स्त्री.) (तत्.) - 1. वह जगह जहाँ कारीगर, मज़दूर कार्य करते हों। पर्या. कारखाना। 2. वह जगह जहाँ मशीन आदि के मरम्मत का कार्य किया जाए।

कर्मशील - (वि.) (तत्.) - जो हानि-लाभ की चिंता छोडक़र पूरे मनोयोग से और परिश्रमपूर्वक काम करे।

कर्षण - (पुं.) (तत्.) - एक वस्तु द्वारा बल लगाकर दूसरी वस्तु को अपनी ओर खींचना। पर्या. आकर्षण।

कलंक - (पुं.) (तत्.) - 1. धब्बा, दाग, लांछन, कालिख। 2. कोई ऐसा कार्य जिससे अपयश मिलता हो। वि. कलंकित।

कल - (स्त्री.) (तत्.) - 1. मंद, मधुर, अस्पष्‍ट ध्वनि। जैसे: नदी की ‘कल-कल ध्वनि’, पक्षियों का ‘कल-रव’, गायिका का ‘कल-कंठ’। पुं. (कल्य) 1. आज के दिन से ठीक पहले निकला हुआ दिन जैसे: कल हम ताजमहल देखने गए थे। yesterday जैसे: कमल हम आगरा जायेंगे। tomorrow 2. चैन, आराम, शांति जैसे: मुझे रातभर कल नहीं पड़ी। विलो. बेकली। मुहा. कल का छोरा=उम्र में छोटा, नादान, अनुभवहीन।

कलई - (स्त्री.) (अर.) - 1. सफेद रंग का खनिज पदार्थ जो पीतल आदि के बरतनों को चमकीला बनाने के लिए प्रयुक्‍त होता है, राँग। 2. मकान की दीवारों आदि पर की जाने वाली चूने की पुताई। 3. तथ्यों को छिपाने के लिए बनावटी आवरण। मुहा. कलई खुलना=असलियत का पता लगना।

कलकल - (पुं.) (तत्.) - झरनों, नदियों आदि के पानी की आवाज़, कोलाहल, शोर। जैसे: नदी का कलकल का स्वर मंत्रमुग्‍ध कर रहा हैं।

कलख [कल+ख] - (पुं.) (तत्.) - कल-कल जैसी आवाज़ जो प्राय: पक्षियों की चहचाहट होती है; मधुर स्वर/ध्वनि।

कलगी - (स्त्री.) (फा.) - 1. मोर या मुर्गे के सिर की चोटी, 2. पगड़ी में लगाया जाने वाला तुर्रा या फुँदना। 3. ऊँची इमारत की चोटी या शिखर।

कलछी - (स्त्री.) ([तद्.< कर+रक्षा]) - लंबी डांडी वाला बड़ा चम्मच जिसको एक सिरा कटोरीनुमा होता है और जिससे सब्जी, दाल आदि बनाते या निकालते हैं।

कलपुर्ज़ा - ([कल+पुर्ज़ा]) (फा.) - 1. मशीन और उसका पुर्ज़ा, 2. मशीन का पुर्जा।

क़लम1 - (स्त्री.) (अर.) - 1. नया पौधा तैयार करने के लिए पेड़-पौधे की काटी हुई टहनी जिसे दूसरी टहनी से जोड़ दिया जाता है ताकि नया पौधा तैयार हो सके। 2. कनपटियों पर कुछ लंबाई में छोडक़र काटे हुए बाल।

कलम2 - (स्त्री.) (तत्.) - लिखने या चित्र बनाने का उपकरण। पर्या. क़लम, लेखनी।

कलमदान - (पुं.) (फा.) - कलम, दवात रखने का पात्र, जो लकड़ी या पीतल आदि का होता है।

कलश - (पुं.) (तत्.) - (स्त्री. -कलशी) 1. मिट्टी का बना या धातु का गढ़ा हुआ गोलपात्र जिसमें जल आदि भरा जाता है। पर्या. घड़ा, गागर। 2. मंदिर आदि के शिखर पर लगा हुआ कँगूरा जो उलटे कलश के आकार का होता है।

कलसा - (पुं.) ([तद्.<कलश] ) - स्त्री. कलसी) कलश।

कला स्त्री - (तत्.) - 1. ऐसी रचना जिसमें बौद् धिक ज्ञान की अपेक्षा भावों और सौंदर्यात्मक कौशल की प्रधानता हो। आर्ट 2. बुद् धि का विकास करने वाली (विज्ञान, वाणिज्य और विधि से इतर) उच्च शिक्षा का क्षेत्र। जैसे: कला संकाय faculty of arts 3. पृथ्वी से दिखाई पड़ने वाला चंद्रमा का दीप्‍त अंश जो अमावस्या की शून्य स्थिति से शुरू होकर प्रतिदिन बढ़ती हुई पूर्णिमा को पूर्ण रूप प्राप्‍त करता है। faze 4. जीव शरीर में सामान्यत: वसा-अणुओं की बनी अविच्छिन्न परत जो अंगों आदि का अस्तर बनाती है। पर्या. झिल्ली membrane

कलाई - (स्त्री.) ([तद्.<कलाची] ) - बाँह की हथेली से जुड़ने वाला भाग (जिसमें कंगन, चूडि़याँ, घड़ी आदि पहनी जाती है।) पर्या. मणिबंध, पहुँचा। 2. कमीज आदि का उतना भाग जो कलाई को ढकता हो।

कलाकार - (पुं.) (तत्.) - सा.अर्थ कलापूर्ण रचना करने वाला, कलाकुशल। जैसे: कवि, चित्रकार, संगीतज्ञ, अभिनेता, मूर्तिकार आदि artist ला.अर्थ बनावटी बातें करने वाला। धूर्त।

कला-कौशल - (पुं.) (तत्.) - 1. किसी कला की रचना में लगनेवाली कुशलता, कारीगरी। 2. कारीगरी के कार्य, शिल्प।

कलात्मक - (वि.) (तत्.) - 1. कला से युक्‍त, 2. जिसमें कला का प्रदर्शन किया गया हो। पर्या. कलापूर्ण।

[कला+फा.बाज़] - (फा.) (वि.) - ऐसी चतुराईपूर्ण कला दिखाने वाला जिससे लोगबाग आश्‍चर्यचकित हो जाए। भाव. कलाबाज़ी।

कलावा - (पुं.) ([तद्.<कलापक] ) - लाल-पीले रंग के धागों का सूह जिसे मांगलिक अवसरों पर कलाई, घड़े आदि पर बाँधा जाता है। पर्या. लच्छ।

कली - (स्त्री.) (तद्) - 1. फूल का प्रारंभिक अविकसित रूप जिसमें पंखुडि़याँ अलग से दिखाई न दें। 2. खुलापन देने के लिए कपड़े का काटा हुआ लंबा तिकानो टुकड़ा जैसे: कलीदार कुर्ता।

कलुष - (पुं.) (तत्.) - 1. मलिनता, गंदगी, कालिमा। 2. बुरे कार्य, पापकर्म। 3. काम, क्रोध आदि बुरे विचार।

कलुषित [कलुष+इत] - (वि.) (तत्.) - कलुष (कालिमा) से युक्‍त। पर्या. गंदा, अपवित्र।

कलेजा - (पुं.) ([तद्.<यकृत]) - (तद्. <कालेय) दे. यकृत, जिगर liver 2. हृदय। मुहा. कलेजा फटना=बहुत दुखी होना। कलेजे पर सांप लोटना=ईर्ष्या करना। कलेजा मुंह को आना=घबरा जाना। कलेजे पर पत्थर रखना=मन कठोर कर लेना।

कलेजी - (स्त्री.) - बकरे या भेड़ के कलेजे (जिगर) का खाया जाने वाला पका मांस।

कलेवा - (पुं.) ([तद्.<कल्पवर्त]) - प्रात:काल का नाश्ता, जलपान। पर्या. प्रातराश, नाश्ता, उपाहार। breakfast

कलोल - (पुं.) ([तद्.<कल्लोल] ) - 1. मन के प्रसन्न होने की भावना। 2. मनोविनोद, कौतुक-क्रीडा, आमोद-प्रमोद, मनोरंजन।

कल्टीवेटर - (पुं.) - (अं.) 1. हल, लोहे के सात या अधिक फालों वाला यंत्र जिसे ट्रेक्टर के साथ लगाकर खेत जोता जाता है। 2. किसान, कृषक जो कल्टीवेशन अर्थात खेती का धंधा करता हो।

कल्पना अ.क्रि. - ([तद्.<कल्पन]) (स्त्री.) - विलाप करना, रोना, बिलखना। तत्. 1. मन की वह शक्‍ति जो नई, अनदेखी, विचित्र भावनाओं को जन्म देती है। imagination 2. किसी बात को कुछ समय के लिए सत्य मान लेना। उदा. कल्पना कीजिए, आप वृक्ष पर बैठे हैं। supposition assumption

कल्पनातीत [कल्पना+अतीत=परे] - (वि.) (तत्.) - कल्पना से परे।

कल्पनाशक्‍ति - (स्त्री.) (तत्.) - कल्पना करने की मानसिक शक्‍ति।

कल्पनीय - (वि.) (तत्.) - कल्पना करने योग्य। विलो. अकल्पनीय।

कल्पित - (वि.) (तत्.) - 1. सोचा या कल्पना किया हुआ। 2. मनगढंत, फ़र्जी, बनावटी, नकली।

कल्याण - (पुं.) (तत्.) - व्यक्‍ति या समूह की इच्‍छा सुख-समृद्धि, सुरक्षा, शांति, प्रसन्नता आदि। उदा. ईश्‍वर आपका कल्याण करे।

कवक - (पुं.) (तत्.) - निम्नतर पादप वर्ग जिसमें मूल, तना, पत्‍तियों वाला विभेदन नहीं होता। इसकी कोशिकाओं में पर्णहरित भी नहीं होता, जिसकी वजह से यह प्रकाश संश्‍लेषण भी नहीं कर सकता। अत: यह भोजन के लिए दूसरे पौधों पर निर्भर रहता है। यह रोगकारी भी है। fungus

कवकनाशी - (वि./पुं.) (तत्.) - कवकों को नष्‍ट कर देने वाला रासायनिक पदार्थ fungicide उदा. शाक-सब्जियों पर कवकनाशी का छिडक़ाव किया जाता है।

कवच - (पुं.) (तत्.) - 1. आवरण, छिलका, छाल। 2. लोहे की कड़ियों तथा लडि़यों से बना हुआ एक देहावहरण जो युद्ध में योद्धाओं के शरीर को आघात से बचाता है। पर्या. जिरह-बख़्तर। armour 3. युद् धपोतों तथा गाड़ियों की बाहरी मोटी-चादर shield 4. आपत्‍ति में अपनी एवं अगों की रक्षा के लिए पहना गया तावीज या पढ़ा गया मंत्र। amulet

कवयित्री - (स्त्री.) (तत्.) - कविता रचने वाली स्त्री; महिला कवि। poetess

कवायद् - (स्त्री.) (अर.) - (कायदा का बहुवचन) 1. नियम, व्याकरण। 2. नियमानुसार, शारीरिक अभ्यास। drill, P.T.

कवि - (पुं.) - कविता करने वाला। पर्या. शायर poet

कविता - (स्त्री.) (तत्.) - 1. (कवि द्वारा रचित) पद्यात्मक रचना। पर्या. शायरी poetry

कवित्‍त - (पुं.) (तद्.<कवित्‍त) - 1. काव्य, कविता, कविकर्म। 2. हिंदी का एक प्राचीन छंद, जिसमें 31 वर्ण होते थे और 8-16-24-31 पर यति होती थी तथा अंतिम वर्ण गुरू होता था।

कवित्‍व - (पुं.) (तत्.) - 1. कवि की भावना। 2. काव्य रचना का गुण।

कव्वाल - (पुं.) (अर.) - कव्वाली गाने वाला।

कव्वाली - (स्त्री.) (अर.) - 1. वह इस्लामी गीत जो ईश्‍वरीय आराधना के लिए सूफ़ियों द्वारा गया जाता है। 2. इस धुन में गाई जाने वाली कोई भी गज़ल।

कशमकश - (स्त्री.) (फा.) - प्राय: विपरीत दिशाओं में चल रही खींचातानी। उदा. हमारे बीच काफी दिनों से कशमकश की स्थिति बनी हुई है। 2. सोच-विचार के बावजूद अनिश्‍चय की स्थिति। पर्या. असमंजस, दुविधा, पसोपेश, उधेड़बुन।

कशीदाकारी - (स्त्री.) (फा.) - कपड़ों पर रंग-बिरंगे धागों से बेल-बूटे काढ़ने बनाने की कला।

कशेरूक - (स्त्री.) ([तत्.<कशेरूका/कषेरूका=रीढ़] ) - रीढ़ या कशेरूकदंड (मेरूदंड) बनाने वाली अनेक छोटी-छोटी अस्थियों में से एक। vertabra

कशेरूका - (स्त्री.) (तत्.) - 1. रीढ़ की अनेक छोटी अस्थियों (हडि्डयों) में से एक। 2. रीढ़ की हड्डी। vertebra, back bone

कशेरूकी - (वि.) (जंतु) - जिनमें रीढ़ की हड्डी होती है। जैसे: मछली, पक्षी, स्तनपोषी आदि। vertebrate विलो. अकशेरूकी।

कषेरूका - (स्त्री.) (तत्.) - रीढ़ backbone

कष्‍ट - (पुं.) (तत्.) - 1. मन और शरीर को होने वाला दूख जिससे छुटकारा पाने के लिए प्रयत्‍न किया जाए। पर्या. पीड़ा, तकलीफ़। 2. संकट या मुसीबत की स्थिति।

कष्‍टकर [कष्‍ट+कर] - (वि.) (तत्.) - कष्‍ट देने वाला, कष्‍टकारक। दे. कष्‍ट।

कष्‍टदाता - (वि.) (तत्.) - कष्‍ट देने वाला/पहुँचाने वाला।

कष्‍टसाध्य - (वि.) (तत्.) - जिसे करने में बहुत मेहनत या परिश्रम करना पड़े; जो कार्य कठिनाई से पूर्ण हो। उदा. पर्वतीय क्षेत्र की यात्रा बहुत कष्‍टसाध्य होती है।

कसक - (स्त्री.) ([तद्.<कषक] ) - 1. रह-रह कर उठने वाला हल्का और मीठा दर्द, टीस। ला.अर्थ. उसके कटु वचनोंकी कसक आज भी मेरे दिल में है। 2. कार्य में सफल न होने पर या इच्छा पूरी न होने पर होने वाला मन का हल्का कष्‍ट। उदा. कोई कसर रह गई हो तो वह भी निकाल लो।

कसकना - - अ.क्रि. (कसक) 1. रह-रह कर हल्का और मीठा दर्द महसूस होना। उदा. फोड़ा अभी तक कसक रहा है।

कसना स.क्रि. - ([तद्.<कर्षण]) - 1. रस्सी आदि लपेटकर या बाँधकर इस तरह खींचना कि खुल न पाए और खुले भी तो बहुत कठिनाई से। 2. मशीन के पुरजे को तालमेल के साथ मजबूती से बैठाना। जैसे: पेंच कसना। 3. घोड़े, बैल आदि को गाड़ी में बाँधना। 4. कद्दू-कस करना। जैसे: रायते के लिए घिया कसना। 5. परखना। जैसे: सोने की कसौटी पर कसना।

कसबा - (पुं.) (अर.) - छोटा शहर। आकार या जनसंख्या की दृष्‍टि से गाँव और शहर के बीच की बस्ती।

क़सम स्त्री - (अर.) - शपथपूर्वक कही गई बात, सौगंध, शपथ। जैसे: कसम खाना, कसम खिलाना, कसम दिलाना, कसम तोड़ना।

कसर - (स्त्री.) (अर.) - 1. किसी प्रयत्‍न या क्रिया में रह जाने वाली कमी। समारोह की तैयारी पूरी होने में कुछ ही कसर बाकी है। 2. पूर्णता का अभाव, गेहूँ की फसल पकने में अभी कसर है। 3. दोष, विकार, त्रुटि। देश में हरित क्रान्‍ति आने में अभी कसर है। मुहा. कसर निकलना= (i) कमी पूरी होना (ii) कसर निकालना=कमी पूरी करना, किसी से अपनी हानि का बदला लेना, वैर का बदला लेना।

कसरत - (स्त्री.) (अर.) - स्वस्थ रहने के लिए या शरीर को अधिक मज़बूत बनाने के लिए किया गया शारीरिक अभ्यास या श्रम। पर्या. व्यायाम।

कसाई 1. पुं - ([अर.<कस्साब] ) (वि.) - जानवरों को काटने वाला, गोश्त का व्यापारी। 2. अर. निर्दय, कठोर। 3. स्त्री. (कसना) कसने की क्रिया; कसने का मेहनताना।

कसीदा - (पुं.) (फा.) - 1. कपड़े पर रंगीन धागों से बेल-बूटे काढ़ना। 2. काव्य रचना का एक प्रकार जिसमें प्रख्यात व्यक्‍ति का गुणगान किया जाता है। मुहा. कसीदा पढ़ना=गुणगान करना।

कसीदाकारी - (स्त्री.) (फा.) - 1. कपडे़ पर रंगीन धागों से बेलबूटे काढ़ने की कला। 2. गद्य रचना में काव्यात्मक चमत्कार लाने का प्रयत्‍न।

कसौटी [कसना+पट् टी] - (स्त्री.) (तत्.) - 1. सोने की उत्‍तमता की जांच के लिए प्रयुक्‍त एक काला पत्थर; कसौटी। toch stone 2. किसी वस्तु या व्यक्‍ति के खरेपन या गुणों की जाँच। परख के लिए प्रस्तुत ठोस आधार रूपी वस्तु या बात। criteria

कस्तूरी - (स्त्री.) (तत्.) - एक तीव्र गंधवाला पदार्थ जो एक विशिष्‍ट जाति के नरमृग की नाभि से प्राप्‍त किया जाता है और जिसका उपयोग सुगंधित द्रव्य निर्माण में होता है। टि. वस्तुत: यह नाभि का मैल होता है जो अत्यंत सुगंधित होता है।

कस्तूरी मृग - (पुं.) (तत्.) - हिमालय में पाया जाने वाला एक विशिष्‍ट प्रजाति का हिरन जिसकी नाभि से कस्तूरी निकाली जाती है।

कहना स.क्रि. - ([तद्.<कथन]) (पुं.) - 1. मुंह से कोई बात बोलना। 2. बतलाना। 1. सुझाव, परामर्श। उदा. 1. अध्यापक के कहने पर मैंने वाद-विवाद में भाग लिया। 2. कथन। उदा 1. वह अपने भाई का कहना बिल्कुल नहीं मानता। 2. कहने की बात यह है कि…..। 3. कहने को तो सभी कहते हैं पर करता कोई नहीं।

कहर - (पुं.) (अर.) - कष्‍ट, विप्‍त्‍ति, आफ़त। मुहा. कहर टूटना=आपत्‍ताग्रस्त होना। कहर ढोना-जुल्म करना, आपत्‍ति ग्रस्‍त।

कहवा - (पुं.) (अर.) - 1. कॉफेआ वंश का उष्णकटिबंधीय वृक्ष जिसके बीजों को भूनकर और चूर्ण बनाकर गरम पेय बनाया जाता है। 2. इस वृक्ष के बीज और उसका चूर्ण और तैयार पेय भी। coffee

कहानी [क=जल+हार=लाना] - (पुं.) (तद्.) - 1. जल भरकर लाने वाला सेवकवर्ग। 2. पालकी ढोने वाला वर्ग। टि. हिंदुओं में व्यवसाय आधारित यह एक जाति है।

कहानी - (स्त्री.) ([तद्.<कथानिका] ) - 1. वास्तविक या कल्पित घटना को आधार बनाकर रची गई गद्यात्मक कृति जिसे मनोरंजन के लिए सुना या पढ़ा जाता है। पर्या. कथा, किस्सा, आख्यायिका short story 2. ला.अर्थ झूठी या कपोलकल्पित बात। उदा. क्यों कहानियाँ सुना रहे हो कुछ काम भी कर लो।

कहानीकार - (पुं.) (दे.) - कहानी की रचना करने वाला; कहानी का लेखक। दे. कहानी।

कहावत - (स्त्री.) (देश.) - कोई लोकप्रसिद्ध वाक्य जो किसी सत्य घटना पर आधारित हो या अनुभवसिद्ध हो। ऐसा वाक्य लक्षणा-व्यंजना के द्वारा किसी वर्तमान घटना के साथ जोड़ दिया जाता है। जैसे: मेरे सामने पुस्‍तक पड़ी है और मैं इधर-उधर ढूँढे जा रहा हूँ। ठीक ही कहा-गोद में छोरा गाँव में ढिंढोरा। पर्या. लोकोक्‍ति। तुल. मुहावरा। proverb, saying

कहीं - (अव्य.) (देश.) - 1. किसी स्थान पर। जैसे: मुझे कहीं जाना है। 2. यदि, अगरचे। जैसे: कहीं यह मर गया तो?

काँख - (स्त्री.) ([तद्.[तक्ष]) - कंधे और बाँह के जोड़ स्थल के नीचे का कटोरीनुमा गड्ढ़ा। पर्या. बाहुमूल armpit कहावत- काँख में छोरा और नगर में ढिंढोरा।

काँच - (पुं.) (तद्.) - [काँच] 1. शीशा (बालू और रेत, खारी मिट् टी को आग में जलाने से बनता है और पारदर्शी होने के साथ ही इससे दर्पण, बोतल आदि वस्तुएँ बनती हैं।) उदा. आजकल मकानों के निर्माण में शीशे का प्रयोग बढ़ गया है 2. गुदा के भीतर का मार्ग; कमजोरी के कारण शौच के समय काँच बाहर निकल आती है। मुहा. काँच मारूँगा तो काँच निकल जाएगी।

काँजी हाउस/काँजी हद - (पुं.) - (काइन हाउस-अं.) सरकार की ओर से स्थापित बाड़ा जहाँ लावारिस/आवारा पशुओं को पकडक़र बंद रखा जाता है।

काँटा - (पुं.) ([तद्.[कंटक] ) - 1.किसी वृक्ष, लता, झाड़ी इत्यादि का वह प्रांकुर जो नुकीला और चुभनशील होता है। जैसे: गुलाब का काँटा, बबूल का काँटा। 2. मछली पकड़ने की कील। कुएँ से डूबे हुए बरतन निकालने का उपकरण। तराजू, तुला। 5. पशुओं के शरीर का काँटेनुमा भाग। जैसे: साही के काँटे। 6. पाश्‍चात्‍य पद्धति से भोजन करते समय काम जाने वाला चम्मच के साथ का पंजेनुमा उपकरण।

कांति - (स्त्री.) (तत्.) - चमक, दीप्‍ति, दयु। 2. आभा, शोभा, सौंदर्य, छवि।

कांतिमान - (वि.) (तत्.) - कांति से रहित, बिना चमक वाला।

कांस्य - (पुं.) (तत्.) - ताँबे और जस्ते के मिश्रण से बनी धातु, कांसा। bronze वि. तत्. 1. काँसे का बना हुआ। जैसे: कांस्य पदक। 2. काँसे से संबंधित। कांस्य युग।

कांस्य युग - (पुं.) (तत्.) - वह प्रागैतिहासिक युग जो पाषाण काल के बाद और लौह युग के पूर्व का माना जाता है। इस युग में बरतन, हथियार और औजार कांसे के ही बनते थे। पर्या. ताम्र युग।

काँपना अ.क्रि. - (तद्.[कंपन) - भय, क्रोध या अन्य किसी कारण से भी (जैसे: ठंड से) शरीर का बार-बार हिलना, थरथराना, थर्राना।

काँवड़/काँवर - (स्त्री.) (तद्.[कार्पटिक) - एक लंबे डंडे के दोनों ओर लटकी हुई टोकरियों वालाख् तराजुनुमा साधन, जिसे कंधें पर रखकर तीर्थयात्री श्रावणमास में गंगाजल लाकर शिवलिंग पर चढ़ाते हैं। पर्या. बहँगी।

काँसा - (दे.) - कांस्य।

काई - (स्त्री.) (तद्.[कावार) - जलीय हरी वनस्पति। पर्या. दे. शैवाल algae वन ब्रायोफाइटा कुल के छोटे-छोटे अपुष्पी पादप जो नम दीवारों, पेड़ के तनों आदि पर जमकर हरे मखमल से दीखते हैं। इनमें तने और पत्‍तियों का विभेद तो होता है पर वास्वविक मूल नहीं होता। moss

काका - (पुं.) (देश.) - वि. छोटा। पिता का छोटा भाई, चाचा। स्त्री. ‘काकी)

कागज़ - (पुं.) (अर.) - घास, बाँस इत्यादि की लुग्दी से बना बारीक चादरनुमा पतला पन्ना जिस पर कुछ लिखा या छापा जाए अथवा लपेटने के काम आए। paper मुहा. कागज़ की नाव=कम समय तक चलने वाली या क्षणभगुंर बात। कागज़ काले करना=बेकार की बातें लिखते रहना।

कागज़ी - (पुं.) (अर.) - 1. कागज़ से संबंधित। जैसे: कागज़ी सबूत, कागज़ी कार्यवाही। पुं. कागज़ का व्यापारी। 2. कागज़ की तरह (पतले छिलके वाला) जैसे: कागज़ी बादाम।

कागद - (पुं.) (अर./फा.-कागज़) - दे. कागज़। 2. पत्र letter

काज - (पुं.) (तद्.कार्य) - कार्य, काम, उद्देश्य।

काजल - (पुं.) (तद्.कज्जल) - (घी तेल से जलते) दीपक के धुएँ से पैदा हुई कालिख से बना सुरमा। पर्या. सुरमा।

काजी1 [काज+ई] - (वि.) - काम करने वाला। जैसे: काम-काजी आदमी।

काज़ी2 - (पुं.) (फा.) - मुसलमानों के धार्मिक और नैतिक विवादों में निर्णायक प्राधिकारी। लोको. जब मियां-बीवी राजी तो क्या करेगा काजी।

काट-छाँट [काट+छाँट] - (स्त्री.) (तद्.कर्तन+छर्दन) - 1. निरूपयोगी भाग को काटकर उपयोगी भाग से अलग करना। 2. पहनने के लिए पोशाक सीने से पहले कपड़े को नाप-जोख के अनुसार सही-सही कतरना।

काटना सं/क्रि. - (तद्.[कर्तन) - [कर्तन) 1. किसी धारदार उपकरण से दो या अधिक टुकड़े करना। 2. चबाने के लिए या कष्‍ट देने के लिए अगले दाँतों से टुकड़े करना या क्षति पहुँचाना। 3. लिखे हुए को रद्द करना। 4. एक रेखा के बीच से होते हुए दूसरी रेखा खींचना (जो चार कोण बनाए)। 5. कम करना। जैसे: मजदूरी काटना, वेतन काटना। 6. अन्य प्रयोग- दिन काटना (बिताना), रास्ता काटना (बीच में आ जाना, तय करना), जेल काटना (भोगना), कीड़े द्वारा काटना (डंक मारना), बात काटना (खंडन करना)।

काढ़ना - (स्त्री.) (तद्.कर्षण) - 1. अंदर से बाहर करना, वाहन निकालना। 2. अलग करना, छाँटना। 3. आवरण से बाहर करना, निकालना। 4. कपड़े इत्यादि पर बेल-बूटे बनाना। 5. सँवारना। जैसे: बाल काढ़ना, टीका काढ़ना। 6. अच्छी प्रकार उबालकर गाढ़ा करना, उसका स्वरस प्राप्‍त करना, कढाना। जैसे: मक्खन कढ़ाकर घी काढ़ना।

काढ़ा - (पुं.) (तद्.क्वाथ) - विभिन्न औषधियों को उबालकर कुछ गाढ़ा किया गया रस। पर्या. क्वाथ

कातना स.क्रि. - (तद्..कर्तन) - चरखे, तकली आदि पर ऊन आदि के रेशों को बटकर तागा (धागा) बनाना।

कातर - (वि.) (तत्.) - कातरता के भाव से ग्रस्त जीव। उदा. वध के लिए ले जाए जा रहे पशु की कातर दृष्‍टि मुझसे देखी न गई। दे. कातरता।

कातरता - (स्त्री.) (तत्.) - निराशा, भय और करूणा के मिले जुले भाव को प्रकट करने वाली व्यथा या दु:ख की अवस्था।

कातिल - (वि./पुं.) (अर.) - कत्ल या हत्या करने वाला, मार डालने वाला।

कादंबिनी - (स्त्री.) (तत्.) - आकाश में छाई हुई बादलों की पंक्‍ति; मेघमाला। जैसे: वर्षा ऋतु में नभ में कांदबिनी को देखकर मयूर नृत्य करने लगे।

कान - (पुं.) (तद्.कर्ण) - शरीर की वह इंद्रिय जो ध्वनि को ग्रहण कर मस्तिष्क तक पहुँचती है। पर्या. श्रवणेंद्रिय, श्रोत्र, श्रुति। मुहा. (i) कान उमेठना=किसी को गलती का दंड देना। (ii) कान देना=ध्यान देना। (iii) कान खाना=शोर करना या शिकायतें करना। (अपना) (iv) कान पकड़ना= क्षमा माँगना या भविष्य में वैसा ही कोई काम न करने का निश्‍चय करना। (v) कान पर जूँ न रेंगना=ध्यान न देना। (vi) कानों-कान खबर न होना=दूसरों को पता न लगने देना। (vii) कान का कच्चा होना=किसी की बात पर सहज विश्‍वास कर लेना।

कानन - (पुं.) (तत्.) - 1. उद्यान, वन, जंगल। 2. घर, आवास-स्थान।

काना - (वि.) (तद्.काण) - 1. जो केवल एक आँख से ही देख पाता हो यानी जिसकी दूसरी आँख किसी वजह से दृष्‍टिहीन हो गई हो। 2. सब्जी या फल जिसमें कीड़ा लग गया हो। जैसे: काना बैंगन, कानी भिंडी आदि।

कानाफूसी/कानाबाती - (स्त्री.) (देश.) - दो व्यक्‍तियों के बीच कानों में फुसफुसाकर (धीरे से) बातें करने का कृत्य।

कानी कौड़ी - (स्त्री.) (देश.[काण+कवटी] - न के बराबर धन। उदा. मेरे पल्ले में इस समय कानी कौड़ी भी नहीं है। टि. प्राचीन काल में धन (सिक्के) का सबसे छोटा मात्रक कौड़ी माना जाता था।

कानून - (पुं.) (अर.) - 1. राज्य में व्यवस्था, न्याय, शांति, सुरक्षा आदि से संबंधित नियम। पर्या. राजनियम, विधि। 2. इस प्रकार बनाए गए नियमों का संकलन। पर्या. विधान। मुहा. कानून छाँटना=कुतर्कों के आधार पर बहस करना।

कानूनगो - (पुं.) - [कानून+गो-फा.प्रत्यय] पटवारियों के कागजों की जाँच करने वाला माल विभाग का अधिकारी।

कानूनी [कानून+ई] - (वि.) (अर.) - कानून से संबंधित, कानून के अनुसार। पर्या. विधिसम्मत।

काफिला - (पुं.) (अर.) - यात्रियों का समूह। पर्या. यात्री-दल।

काफी - (वि.) (अर.) - जितना आवश्यक हो उतना, पर्याप्‍त, कॉफी। स्त्री. (अं.) एक प्रसिद् ध पेय जो कोफेआ नामक वंश के उष्णकटिबंधीय पादप (झाड़ी) के भुने बीजों को पीसकर बने पाउडर से तैयार किया जाता है। पर्या. कहवा।

काबा - (पुं.) (अर.) - सऊदी अरब में ‘मक्का’ शहर का एक स्थान जहाँ सारी दुनिया से मुसलमान हज करने जाते हैं।

काबिल - (वि.) (अर.) - किसी कार्य को कुशलतापूर्वक पूरा करने के लिए सर्वथा योग्य, लायक।

काबिलियत - (स्त्री.) (अर.) - योग्यता, लायकपन।

काबू - (पुं.) (अर.) - (तु.) 1. वश, सामर्थ्य । उदा. उसने घोड़े पर काबू पा लिया। 2. अधिकार, अख्‍ति़यार, कब्जा। उदा. ज़मीन काबू में कर लेना।

काम1 - (पुं.) (तद्.कर्म) - कार्य, व्यापार। वह जो किया जाए। जैसे: घर का काम, दफ्तर का काम, कोश का काम।

काम2 - (तत्.) - इच्छा, मनोरथ, कामना task मुहा. काम आना (i) लड़ाई में काम आना जैसे: करगिल की लड़ाई में कई जवान काम आए। (ii) उपयोगी सिद्ध होना। जैसे: जो पुस्तक आपने दी वह मेरे बहुत काम आई। मुहा. (i) काम निकालना- प्रयोजन सिद् ध होना। जैसे: काम निकला और तुम चलते बने। (ii) काम पड़ना- वास्ता पड़ना, उपयोगी होना। जैसे: आए दिन मेरा पुस्तकालय जाने का काम पड़ता ही रहता है।

कामकाज - (पुं.) (तद्.[कर्म+कार्य) - काम-धंधा, आजीविका, व्यापार आदि से संबंधित कार्य, काम-धंधा। टि. द्वित्व शब्द, कर्म और कार्य दोनों ही समानार्थी हैं। अनुरणन के कारण इन्हें साथ-साथ बोलते हैं।

कामगार [काम [सं.कर्म+गार - (फा.) - प्रत्यय=करने वाला/कर्ता] काम करने वाला। पर्या. कार्यकर्ता, कर्मिक। टि. आजकल इस शब्द का प्रयोग ‘मजदूर’ अर्थ में अधिक हो रहा है। worker

कामचलाऊ [काम+चल+आउ] - (वि.) (देश.) - काम चलाने भर का जिससे तात्कालिक काम चल जाए। जैसे: कामचलाऊ सरकार Caretaker Government

कामचोर [काम+चोर] - (वि.) (देश.) - काम से जी चुराने वाला, जो सौंपा गया काम न करना चाहे।

कामदानी - (स्त्री.) (देश.) - 1. रेशमी, सूती या पतले धातु के तारों और सलमे-सितारों से कपड़े पर कढाई करना। 2. इस प्रकार बने हुए बेल-बूटे।

काम-धंधा - (पुं.) ([तद्.[कार्य+धन+धान्य]) - आजीविका के लिए किया जाने वाला कोई सा कार्य। जैसे: व्यापार, नौकरी इत्यादि। पर्या. काम-काज, कारोबार।

काम-धाम - (दे.) - कामकाज।

कामधेनु - (स्त्री.) (तत्.) - पुराणों के अनुसार सभी कामनाओं को पूरा करने वाली गाय।

कामना - (स्त्री.) (तत्.) - मन की इच्छा। पर्या. चाह, ख्वाहिश।

कामयाब - (वि.) (फा.) - जिसका शुरू किया गया काम सफलतापूर्वक पूरा हो गया हो। पर्या. सफल।

कामयाबी - (स्त्री.) (फा.) - शुरू किए गए काम की सफलता पूर्वक पूर्ति। पर्या. सफलता।

कामला - (पुं.) (तत्.) - दे. पीलिया।

काय - (पुं.) (तत्.) - शरीर, काया, तनु, तन। टि. हिंदी में इस शब्द का प्रयोग समस्त पद में ही होता है। जैसे: क्षीणकारय (कमजोर शरीर वाला) काय चिकित्सा शारीरिक चिकित्सा

कायदा - (पुं.) (अर.) - 1. काम करने का व्यवस्थित ढंग और उससे संबद् ध नियमावली भी। विधि, नियम, व्यवस्था, कायदे से रखना, कायदे से करना, कायदे कानून का पालन करना। 2. किसी भाषा के सीखने की पहली पुस्तक। अंग्रेज़ी, उर्दू या हिंदी का कायदा।

कायम - (वि.) (अर.) - दृढ़तापूर्वक निश्‍चित स्थान पर ठहरा हुआ। स्थिर, स्थापित, निर्धारित। उदा. इरादे पर कायम रहना, स्कूल कायम करना, हद कायम करना, राय कायम करना।

कायर - (वि.) (तद्.[कातर] - जोखिम से भरे काम में हाथ डालने से डरने वाला (व्यक्‍ति)। पर्या. डरपोक, भीरू। विलो. साहसी, वीर।

कायल - (वि.) (अर.) - 1. सामने वाले के तर्कों को मान लेने वाला। 2. किसी के गुणों को या श्रेष्‍ठता को स्वीकार करके उसे आदर्श मान लेने वाला। उदा. मैं आपकी वीरता का कायल हूँ। पर्या. प्रशंसक।

कायांतरण [काया+अंतरण] - (पुं.) (तत्.) - शा.अर्थ काया (शरीर)में परिवर्तन। प्राणियों में डिंभक या भ्रूंण के बाद की अवस्था से लेकर वयस्क बनने तक रूप, रचना, आकार आदि के परिवर्तन का क्रम। जैसे: टैडपोल से वयस्क मेंढ्क और प्यूपा से वयस्क तितली बनते समय होने वाला परिवर्तन। metamosphosis

कायांतरित - (वि.) (तत्.) - जिसका कायांतरण हुआ हो। दे. कायांतरण।

कायांतरित शैल - (पुं.) (तत्.) - ऐसी चट्टान जो बहुत अधिक समय बीत जाने पर ताप, दाब या अन्य प्राकृतिक कारणों से रूप बदल चुकी है।

कायाकल्प [काया+कल्प] - (पुं.) (तत्.) - औषधि आदि सेवन कर अथवा प्लास्टिक सर्जरी करवाकर शरीर को फिर से स्वास्थय लाभ कराने या तरूणाई युक्‍त दिखाने की विधि। उदा. उसने अपना कायाकल्प करवा लिया है।

काया पलट - (दे.) - कायांतरण।

कायिक - (वि.) (तत्.) - [काय+इक] काया या देह संबंधी, शरीर से संबंध रखने वाला या शरीर के द्वारा किया जाने वाला या होने वाला। कायिक पाप, कायिक पुण्य।

कार - (स्त्री.) (अं.) - (अं.) 1. तीव्रगति वाला एक लघु मोटर वाहन जो पेट्रोल, सी एन जी, डीजल आदि से चलता है तथा चार या छ: लोग बैठकर यात्रा कर सकते हैं। 2. रेल में प्रयुक्‍त होने वाला ‘कार यान’ जो एक डिब्बे के रूप में होता है। car

कारक - (वि.) (तत्.) - शा.अर्थ करने वाला- (सामाजिक शब्दों में पश्‍चपद के रूम में प्रयुक्‍त)। जैसे: हानिकारक, नलकारक आदि। 1. व्या. संज्ञा या सर्वनाम शब्द का वाक्य के क्रियापद के साथ संबंध बतलाने वाला रूप। जैसे: कर्ताकारक, कर्मकारक आदि। ये छह होते हैं-कर्ता, कर्म, करण, संप्रदान, अपादान और अधिकरण। (केस) टि. परंपरागत व्याकरण में संबंध कारक और संबोधन को भी कारकों के अंतर्गत गिनाया जाता है। 2. किसी परिणाम की सिद् धि में मुख्य योगदान करने वाला कारण। factor

कारगर - (वि.) (फा.) - तुरन्त अनुकूल एवं उत्‍तम प्रभाव दिखाने वाला; असर कारक। उदा. सरकार ने शिक्षा सुधार के कारगर उपाय किए हैं।

कारगुजारी (भाव) - (स्त्री.) (फा.) - 1. मुस्तैदी और होशियारी से पूरा किया गया काम, कर्तव्यपालन। 2. (व्यंग्यमें) दुर्व्‍यवहार। उदा. तुम्हारी कारगुजारी अब मेरी सबझ में आई है।

कारपोरेट जगत - (पुं.) (अं.) - 1. उद्यमों का समूह। 2. विभिन्न उद्यमों से संबंध रखने वाले लोगों का समूह। जैसे: आजकल कारपोरेट जगत का विस्तार बहुत बढ़ गया है।

कारवाँ - (पुं.) (फा.) - मूल अर्थ रेगिस्तान को पार करने वाले लोगों का समूह। सा.अर्थ यात्रियों का दल। पर्या. काफिला। उदा. कारवाँ गुजर गया गुबार देखते रहे।

कारागार [कारा+आगार=घर] - (पुं.) (तत्.) - स्थान जहाँ दंडित अपराधियों को बंद रखा जाए। जेल (prison, जेल)। पर्या. बंदीगृह, जेलखाना, कैदखाना।

कारागृह - (पुं.) (तत्.) - दे. कारागार।

कारावास [कारा+वास] - (पुं.) (तत्.) - 1. कारागार में निरूद् ध (बंद) रखे जाने का दंड़ imprisonment 2. बंदीगृह, जेल, कारागार। (प्रिजन, जेल)

कारिंदा - (पुं.) (फा.) - किसी के अधीन रहकर उसकी ओर से काम करने वाला। पर्या. गुमाश्ता worker agent

कारीगर - (वि./पुं.) (फा.) - मुख्यत: हाथ से और गौणत: अब मशीनों की सहायता से लकड़ी, पत्थर, धातु इत्यादि से सुंदर वस्तुओं का निर्माण करने वाला दक्ष व्यक्‍ति। पर्या. शिल्पी, शिल्पकार। artisan, craftsman

कारीगरी [कारीगर+ई] - (स्त्री.) (फा.) - 1. कारीगर का कला-कौशल। दें. कारीगर।

कार्बनन - (पुं.) (तत्.) [अं+ तत्.) - दें. कार्बनीभवन/करण।

कार्बनिक - (वि.) - [कार्बन+इक] कार्बन से युक्‍त। दें. कार्बन।

कार्बनीभवन/करण - (पुं.) (अं+तत्.) - 1. कार्बनिक पदार्थ से कार्बन बनने की प्रक्रिया; जैसे: मृत वनस्पति का कालांतर में कोयला बन जाना। Carbonization

कार्बोहाइड्रेट - (पुं.) - (अं.) कार्बन, हाइड्रोजन और ऑक्सीजन अणुओं से बना कार्बनिक यौगिक (CH2O) जो ऊर्जा का प्रमुख स्त्रोत है। टि. इसके अपचय से कार्बन डाइ ऑक्साइड, जल और ऊर्जा प्राप्‍त होती है। रासायनिक दृष्‍टि से यह एल्डिहाइडों अथवा कीटोनों का पॉलिहाइड्रॉक्सीव्युत्पन्न यौगिक है। यह संतुलित आहार का एक प्रमुख घटक है। Carbonhydrate

कार्यकर्ता - (पुं.) (तत्.) - शा.अर्थ कार्य करने वाला। सा.अर्थ किसी संस्था के दैनंदिन कार्य निष्पादन के लिए नियुक्‍त या नामित वेतनभोगी या अवैतनिक व्यक्‍ति जो बड़े अधिकारी के मार्गदर्शन में काम करे। worker तु. कर्मचारी।

कार्यकलाप - (पुं.) (तत्.) - बहु. किसी विषय से संबंधित अवश्य करणीय कार्यों का समूह। समस्त कार्यों की श्रृंखला।

कार्यकारिणी (समिति) - (स्त्री.) (तत्.) - किसी भी संस्था के निर्वाचित या नामित पदाधिकारियों का समूह जो उस संस्था के हित, संबर्धन, प्रबंधन व कल्याण के लिए नियमानुसार कार्य करे। पर्या. प्रबंध-समिति। executive managing committee

कार्यकारी - (वि.) (तत्.) - शा.अर्थ कार्य करने वाला। प्रशा. (व्यक्‍ति) जो अपने से ऊपर के रिक्‍त पर का अस्थायी रूप से काम चलाऊ व्यवस्था के तौर पर उत्‍तरदायित्व भी निभा रहा हो। एक्टिंग

कार्यक्षेत्र - (पुं.) (तत्.) - शा.अर्थ कार्य का क्षेत्र यानी काम करने का इलाका। वह स्थान या इलाका जहाँ किसी को उसके अनुरूप कार्य करने हेतु नियुक्‍त किया गया हो। उदा. इस समय मेरा कार्यक्षेत्र जम्मू है।

कार्यनीति - (स्त्री.) (तत्.) - किसी कार्य, योजना या प्रक्रिया का पूर्ति के लिए अपनाया गया व्यवस्थित तरीका या प्रक्रम।

कार्यपालिका [कार्य+पालिका] - (स्त्री.) (तत्.) - राज्य के तीनों अंगों-कार्यपालिका, न्यायपालिका और विधायिका में से एक अंग जो प्रशासनिक व्यवस्था का संचालन करता है। ऐसा करते समय वह विधायिका द्वारा पारित अधिनियमों तथा न्यायपालिका के निर्णयों को कार्यरूप में परिणत करता है। तु. विधायिका, न्यायपालिका।

कार्यवाहक - (वि.) (तत्.) - शा.अर्थ कार्य का वहन करने वाला। प्रशा. किसी पदाधिकारी के अवकाश ले लेने पर या छुट् टी लेकर अन्यत्र चले जाने पर उसके स्थान पर अस्थायी रूप से काम करने के लिए नियुक्‍त officiating

कार्यवाही - (पुं.) (तत्.) - किसी बैठक, सभा-सम्मेलन आदि की कार्यसूची के अनुसार चली समस्त प्रक्रिया (विचार-विमर्श), खंडन-मंडन, निष्कर्षों आदि का लिखित रूप में प्रस्तुत ब्यौरेवार विस्तृत वर्णन। प्रेसिडिंग्स। टि. कार्यवाही और कार्रवाही शब्दों का पर्यायों के रूप में प्रयोग देखा गया है। पारिभाषिक दृष्‍टि से दोनों में भेद किया गया है। तु. कार्रवाई।

कार्य-विवरण [कार्य+विवरण] - (पुं.) (तत्.) - (किसी बैठक या सभा में हुए समस्त) कार्यों का विवरण। proceedings पर्या. कार्यवाही। तु. कार्यवृत्‍त।

कार्यशैली [कार्य+शैली] - (स्त्री.) (तत्.) - कार्य करने की शैली; काम करने का विशेष ढंग या तरीका। उदा. मेरी कार्यशैली उसकी कार्यशैली से पर्याप्‍त भिन्न है।

कार्यस्थिति [कार्य+स्थिति] - (स्त्री.) (तत्.) - कार्य की (पुरातन या अद्यतन) स्थिति। अब तक जो काम हो चुका हो और आगे होना शेष हो, उसकी ब्यौरेवार जानकारी।

कार्यान्वयन [कार्य+अन्वयन] - (पुं.) (तत्.) - किसी नियम, कानून, आदेश, निर्णय, विचार, योजना आदि को व्यवहार में लाने का कार्य।

कार्यान्वित [कार्य+अन्वित] - (वि.) (तत्.) - किसी नियम, कानून, आदेश, निर्णय, विचार, योजना आदि को व्यवहार में परिणत किया गया।

कार्योत्‍तर [कार्य+उत्‍तर] - (वि.) (तत्.) - तात्कालिक आवश्यकतानुसार किसी कार्य को कर लेने के बाद तत् संबंधी शर्तों की पूर्ति या स्वीकृति)। जैसे: कार्योंतर स्वीकृति ex post facto।

कार्रवाई - (स्त्री.) (फा.) - किसी भी कार्य के निष्पादन के लिए अपनाई गई विधिवत् प्रक्रिया। जैसे: अनुशासनिक कार्रवाई, अदालती कार्रवाई। action टि. कार्रवाई और कार्यवाही शब्दों का पर्यायों के रूप में प्रयोग देखा गया है। पारिभाषिक दृष्‍टि से दोनों में भेद किया गया है। तु. कार्यवाही

काल-कवलित [काल+कवलित=चबाया/निगला/खाया हुआ] - (वि.) (तत्.) - व्यु.अर्थ जिसे काल ने अपना ग्रास बना लिया हो। सा.अर्थ मृत।

कालकूट [काल+कूट] - (पुं.) (तत्.) - शा.अर्थ काल रूपी पर्वत का शिखर। ला.अर्थ भयंकर विष जिसके स्पर्शमात्र अथवा रंचमात्र सेवन से मृत्यु निश्‍चित हो। (पुराणानुसार समुद्र-मंथन से निकला हलाहल जिसका शिवजी ने पान कर लिया और वे नीलकंठ कहलाए)

कालक्रम - (पुं.) (तत्.) - घटनाओं या कार्यों आदि का उनके घटित होने के तिथि/काल/क्रम से प्रस्तुत विवरणात्मक व्यवस्था। chronology

काल-निर्धारण [काल+निर्धारण] - (पुं.) (तत्.) - काल का निर्धारण, ऐतिहासिक दृष्‍टिकोण से समय निश्‍चित करना। उदा. आचार्य रामचंद्र शुक्‍त ने हिंदी साहित्य का कालनिर्धारण करते हुए उसे चार खंडों (कालों) में विभाजित किया था। 1. वीरगाथाकाल 2. भक्‍तिकाल 3. रीतिकाल और 4. आधुनिककाल।

कालबेलिया - (पुं.) (देश.) - 1. एक जाति विशेष का व्यक्‍ति जो सर्पों को पकड़ने, उनका ज़हर निकालने अथवा सर्पदंश से पीडि़त व्यक्‍ति का उपचार करने आदि में सिद् ध हस्त होता है 2. एक विशेष प्रकार की राजस्‍थानी नृत्‍य शैली।

कालांश [काल+अंश] - (पुं.) (तत्.) - (काल का अंश) समय का एक भाग period शिक्षा हमारे विद्यालय में प्रतिदिन का अध्ययन-अध्यापन छह कालांशों में बँटा हुआ है।

काला बाज़ार - (पुं.) (तद्.+फ़ा) - 1. अवैध बाज़ार, जिसमें वस्तुएँ वैध कीमत-सीमा से अधिक कीमत पर बेची और खरीदी जाती है। 2. वस्तुओं का वह व्यापार जो निर्धारित नियमों के अनुसार न होकर चोर रास्तों या तरीकों से होता है अथवा जिसे आयकर बचाने के लिए खातों में न दिखाया जाता है। Black market

कालावधि [काल+अवधि] - (स्त्री.) (तत्.) - काल की अवधि। 1. किसी काम को पूरा करने के लिए नियत किया गया कालखंड या समय। time limit 2. एकाधिक घटनाओं या तरीकों के बीच की अवधि। period

कालिख - (स्त्री.) (तद्.) - 1. किसी वस्तु पर जमने वाला धुएँ का अथवा किसी अन्य प्रकार का काला मैल। 2. (ला. अर्थ) अति लज्जाजनक या कलंक लगने वाली बात। मुहा. मुँह पर कालिख पुतना या लगना=काले कारनामे/कारनामों के फलस्वरूप हुई बदनामी के कारण किसी को मुँह दिखाने लायक न रहने की स्थिति।

कालीन 1. - (वि.) (तत्.) - किसी विशेष काल (समय) से संबंध रखने वाला। टि. समस्त पद में यह विशेषण परपद के रूप में प्रयुक्‍त होता है। उदा. मध्यकालीन, समकालीन। 2. पुं. (अ.)- ऊन, सूत आदि का बना मोटा, महँगा फर्श बिछावन जिस में रंग-बिरंगे बेल, बूटे बने रहते हैं। पर्या. गलीचा।

काल्पनिक [कल्पना+इक] - (वि.) (तत्.) - जिसकी केवल कल्पना की गई हो, जिसका कोई वास्तविक आधार न हो। पर्या. मनगढ़ंत emaginary

काशीवास - (पुं.) (तत्.) - शा.अर्थ काशी में रहना, काशी (वाराणसी का प्राचीन नाम) में निवास करना। टि. कहीं-कहीं इस शब्द का प्रयोग लाक्षणिक अर्थ में ‘मृत्यु’ का सूचक ताना जाता है, क्योंकि पौराणिक मान्यता के अनुसार काशी मोक्षदायिनी नगरी मानी जाती रही है।

काश्तकार - ([काश्त +कार तत्. पुं. तत्.]) पुं. (तत्.) - 1. जीविकोपार्जन के रूप में खेती करने वाला व्यक्‍ति। पर्या. किसान, कृषक, खेतिहर। 2. वह खेतिहर जिसने ज़मीदार को लगान देकर उसकी ज़मीन पर खेती करने का अधिकार प्राप्‍त किया है।

काष्‍ठ - (पुं.) (तत्.) - 1. काठ, लकड़ी। 2. ईंधन।

काष्‍ठ-कोयला - (पुं.) (तत्.) - काष्‍ठ का कोयला। लकड़ी के जलकर बुझ जाने के बाद बचा हुआ काले रंग का ठोस अंश जो बाद में भी जलाने के काम आता है। charcoal तु. खनिज कोयला, पत्थर का कोयला। coal

काष्‍ठाश्म [काष्‍ठ=लकड़ी+अश्‍म=पत्थर] पुं . - (तत्.) - लाखों वर्ष पुरानी वह लकड़ी जो दबकर अब पत्थर सी सख्त हो गई है। तु. जीवाश्म।

किट् ट - (पुं.) (तत्.) - दे. rust 1 और 2

किण्वन - (पुं.) (तत्.) - कार्बनिक पदार्थ का किण्व फर्मेन्ट द्वारा उत्प्रेरित मंद विघटन। जैसे: खमीर का उठना। बीयर, वाइन स्पिरिट के उत्पादन में सूक्ष्मीजीवों जैसे: यीस्ट और बैक्टीरिया, द्वारा कार्बनिक पदार्थ, खासकर शर्करा का ऐथिल ऐल्कोहॉल में विघटन। fermentation

किताबी ज्ञान - (पुं.) (तत्.) - [किताबी-अर.+ज्ञान- कोरा पुस्तकीय ज्ञान यानी जिसमें व्यवहार ज्ञान का अभाव हो।

किती - (वि.) (तद्.<कियत् कति) - 1. परिमाण, संख्‍या आदि जानने के लिए प्रश्‍नवाचक शब्‍द उदा. कितना पानी, कितने लोग? कितनी दूरी? 2. बहुत अधिक; अनेक, कई बहुत से। उदा. आजकल कितनी ठंड है (यानि बहुत अधिक); कितने ही लोग ऐसे है जो देर से सोकर उठते हैं (यानि अनेक, कई, बहुत से)

किबला - (पुं.) (अर.) - 1. मुसलमानों का पवित्र धर्म स्थान, काबा। 2. पश्‍चिम दिशा जिधर काबा है या जिधर मुँह करके नमाज़ अदा की जाती है। 3. पिता, पितामह आदि वय:प्राप्‍त पुरुषों के लिए किया जाने वाला संबोधन।

किरण - (स्त्री.) (तत्.) - भौ. 1. प्रकाश अथवा किसी अन्य प्रकार की ऊर्जा के प्रवाह का रैखिक पथ; रोशनी की लकीर। 2. एक ही रेखा में चलने वाले द्रव्य कणों का प्रवाह। जैसे: ऐल्फा किरणें, कैथोड़ किरणे। पर्या. रश्मि, अंशु ray

किरणपुंज - (पुं.) (तत्.) - 1. विकिरण या कणों का एकदिशीय प्रवाह। 2. प्रकाश की किरणों का समूह। beam

किरदार - (पुं.) (फ़ा) - अभिनय का फारसी पयार्यवाची। दे. अभिनय।

किरमिच - (पुं.) (देश.) - चिकना, मोटा कपड़ा जिससे परदे, जूते आदि बनते हैं और जिस पर तैल चित्र बनाए जाते हैं। canvas

किरात - (पुं.) (तत्.) - एक आदिम जाति समूह। मोटे तौर पर ‘भील’ के पर्यायवाची की तरह प्रयुक्‍त।

किराया - (पुं.) (अर.) - किसी संपत्‍ति (मकान, भूमि, वस्तु आदि) को अपने काम में लेने के लिए उसके मालिक को नियमित रूप से दी जाने वाली धनराशि। पर्या. भाड़ा।

किलकारी - (स्त्री.) ([तत्. किलकिता]) - 1. शिशुओं के मुख से निकलने वाली (वाणी के अभाव में) अति हर्ष की अवस्था में ऊँची, अस्पष्‍ट और मधुर ध्वनि।

किला - (पुं.) (अर.) - राजाओं व उनके सैनिकों के रहने के लिए प्रयुक्‍त अत्यंत सुरक्षित एवं विशाल भवन। इसके चारों ओर प्राय: सुरक्षा के लिए खाई भी खुदवा ली जाती थी। जैसे: लाल किला। पर्या. गढ़, कोट। तु. दुर्ग = पहुँचने के लिए दुर्गम किला।

किलेबंदी - (स्त्री.) (फा.) - 1. किसी स्थान को चहारदीवारी, खाइंर आदि से सुरक्षित करना। 2. लड़ाई के लिए किले या मोरचे बनाने का काम। 3. किसी प्रकार के आक्रमण से अपनी रक्षा करने की योजना।

किलो जूल एक हजार जूल किलो जूल कहलाता है। जूल - (पुं.) - (अं.) ब्रिटेन के भौतिकीविद् (1818-89) जे पी जूल Joule के नाम पर आधारित कार्य या ऊर्जा का एकआई (SI) मात्रक। Joule

किलोग्राम - (वि.) (अं.) - (अं.) मीट्रिक प्रणाली के अनुसार वजन नापने की एक तोल जो एक हजार ग्राम के बराबर होती है। वि. 1 अप्रैल 1957 तक भारत में तोल का पैमाना ‘सेर’ था। जो वर्तमान में 933 ग्राम के बराबर होता था। 40 सेर का एक मन हुआ करता था।

किलोमीटर - (वि.) (वि.) - (अं.) वर्तमान मीट्रिक प्रणाली के अनुसार लम्बाई या दूरी की एक माप जो एक हजार मीटर के बराबर होती है। जैसे: दिल्ली से लखनऊ लगभग 5 कि.मीटर है। वि. पहले भारत में दूरी मील में मापी जाती थी जो 1.6 कि.मी. के बराबर होती थी। Kilometre

किलोल/कलोल - (पुं.) ([तद्.<कल्लोल]) - प्रसन्न होने या प्रसन्नता व्यक्‍त करने की क्रिया।

किल्लत - (स्त्री.) (अर.) - सार्वजनिक उपयोग की वस्तु का अभाव या कमी। पर्या. न्यूनता, कमी, तंगी, कठिनता। उदा. गरमी में पानी की किल्लत हो जाती है।

किशोरावस्था [किशोर+अवस्था] - (स्त्री.) (तत्.) - मनुष्य के जीवनकाल में बालपन और प्रौढ़ावस्था के बीच की वह अवस्था जब शरीर में परिवर्तन के फलस्वरूप जनन परिपक्वता आ जाती है। सामान्यत: 13 वर्ष की आयु से 18-19 वर्ष तक की अवस्था किशोरावस्था मानी जाती है। adolescence, teen age

किसान - (पुं.) (तद्.) - खेती को व्यवसाय के रूप में अपनाने वाला व्यक्‍ति। पर्या. कृषक, खेतीहर farmer

किस्म - (स्त्री.) (अर.) - एक ही तरह की वस्तुओं का वर्ग, जो दूसरों से भिन्न हो। 1. प्रकार, भाँति, तरह kind उदा. किस्म-किस्म के लोग। 2. ढंग, तर्ज variety उदा. किस्म-किस्म की बातें।

किस्मत - (स्त्री.) (अर.) - भाग्य, प्रारब्ध, तकदीर, नसीब। जैसे: किस्मत का धनी, किस्मत का फेर; किस्मत वाला=भाग्यवान।

किस्सा - (पुं.) (अर.) - 1. कहानी, कथा, आख्यान 2. वृत्तांत, हाल, समाचार।

कीकर - (पुं.) ([तद्.<किकरा]) - वह काँटेदार वृक्ष जो देशी बबूल की प्रजाति का माना जाता है किंतु उसमें बबूल की तरह गोंद नहीं निकलती तथा आकृति में भी कुछ भिन्नता होती है।

कीचड़ - (पुं.) (तद्.) (<कीच+ड़ (लघुतासूचक प्रत्यय)] - पानी में गंदगी मिल जाने से बनने वाला गाढ़ा मल द्रव्य। पर्या. पंक, कीच mud मुहा. कीचड़ में फँसना (ऐसी परेशानी में पड़ जाना जिससे पार पाना अति कठिन हो) मुहा. कीचड़ उछालना- दोषारोपण करना।

कीट - (पुं.) (तत्.) - सा.अर्थ रेंगने वाला छोटा जीव, कीड़ा। उदा. रेशम का कीड़ा। मुहा. कीड़े पड़ना। जीव. संधिपाद प्राणियों का वर्ग जिनके शरीर में तीन खंड होते हैं-शीर्ष, वक्ष और उदर। insect

कीटनाशक/कीटनाशी - (वि./पुं.) (तत्.) - (रासायनिक पदार्थ या पदार्थों का मिश्रण) जिसका उपयोग हानिकारक कीटों को रोकने या नष्‍ट करने के लिए किया जाता है। insecticide

कीर्तन - (पुं.) (तत्.) - गुणों का बार-बार और लगातार गान करना (विशेष रूप से ईश्‍वर या देवता के गुणों का गान करना)।

कीर्ति - (स्त्री.) (तत्.) - व्यक्‍ति के सद्गुणों के बारे में समाज में प्रचलित प्रसिद् धि। glory reputed वि. अपकीर्ति, निंदा।

कीर्तिगान - (पुं.) (तत्.) - व्यक्‍ति के सद् गुणों का लंबे समय तक बखान करना। glorification

कीर्तिमान - (पुं.) (तत्.) - शा.अर्थ कीर्ति (प्रतिष्‍ठा) का मानक। आधु. अर्थ किसी भी क्षेत्र में अब तक की सर्वश्रेष्‍ठ उपलब्धि। उदा. क्रिकेट में तेंडुलकर ने कई कीर्तिमान स्थापित किए हैं। record

कीश - (पुं.) (तत्.) - वानर जैसे: कीशपति सुग्रीव।

कुँजड़ा - (पुं.) [सं. कुंज+ड़ा (प्रत्य.] - [सं. कुंज+ड़ा (प्रत्य.] 1. तरकारी बेचने वाला। 2. एक जाति जो तरकारी बोने और बेचने का काम करती है। (स्त्री. कुँजडि़न या कुँजड़ी।)

कुंड - (पुं.) (तत्.) - (बरतन) 1. धार्मिक प्रयोजन से निर्मित सीढ़ीदार जलाशय। 2. निर्मित पात्र जिसमें समिधा डालकर हवन किया जाता है।

कुंडल - (पुं.) (तत्.) - 1. कान में पहना जाने वाला गोल आकृति का आभूषण। ear ring 2. लपेटे गए तार या रस्सी का बना गोलाकृति वाला छल्ला। coil 3. बदली के पार दिखाई पड़ने वाला सूर्य या चंद्र के चारों ओर का मंडल। helo

कुआँ - (पुं.) (तद्.) - पानी निकालने के लिए जमीन में खोदा गया गहरा व गोल गड्ढा। पर्या. कूप। तु. बावड़ी। मुहा. (i) कुआँ खोदना- हानि पहुँचाना (ii) कुएँ में गिरना- आफत में पड़ना कुएँ में भाँग पड़ी होना सबकी बुद्धि भ्रमित हो जाना यानी भाँग मिले पानी को पीने से बुद् धि चकरा जाती है।

कुकर - (पुं.) - (अंग्रे.) खाना पकाने का बर्तन। शा.अर्थ ‘कुक’ यानी पकाने वाला। रसोई में प्रयुक्‍त खाना पकाने का वह ढक्कन मय पात्र जिसमें सब्जी, दाल, चावल आदि भाप की सहायता से कम समय में पकाया जा सकते हैं। पर्या. प्रेशर कुकर।

कुकर्म - ([कु + कर्म)) (तत्.) - [कु + कर्म) 1. मानव द्वारा किया जाने वाला वह कार्य जो सामाजिक दृष्‍टि से अमर्यादित तथा छिपकर या विश्‍वासघात कर किया जाए। बुरा काम। पर्या. दुष्कर्म, जघन्य कर्म। जैसे: गरीब को सताना, किसी का धन छीनना, बच्चों का अपहरण, हिंसा आदि कुकर्म अपराध की श्रेणी आते में हैं। 2. पाप कर्म।

कुकर्मी - (वि.) - बुरा काम करने वाला।

कुकुरमुत्‍ता - (पुं.) (तद्.) - शा.अर्थ कूकर (कुत्‍ते) के पेशाब से उत्पन्न पौधा। पर्या. छत्रक। वन. कवक फंगस विशेष का फलन काय। इसमें तना और छातेनुमा टोपी-ये दो अंग होते हैं। इसकी कुछ जातियाँ भोज्य होती हैं और कुछ विषैली। भोज्य छत्रक अब व्यावसायिक रूप में खूब उगाया जाने लगा है। मशरूम

कुकृत्य [कु+कृत्य) - (पुं.) (तत्.) - 1. वह काम जो सामाजिक दृष्‍टि से बुरा माना जाता हो। पर्या. कुकर्म। 2. पापकर्म, कानून की दृष्‍टि से वर्जित कर्म। जैसे : निर्दोष की हिंसा, विश्‍वासघात आदि।

कुक्कुट - (पुं.) (तत्.) - मुख्यत: अंडे और मांस प्राप्‍त करने के लिए पाला जाने वाला मादा और नर पक्षी। पर्या. मुर्गी, मुर्गा फाउल।

कुख्यात - (वि.) (तत्.) - (व्यक्‍ति) जो किसी विशेष दोष या दुराचरण के कारण समाज में प्रसिद्धि प्राप्‍त कर लें। पर्या. बदनाम। विलो. ख्यात (सुख्यात)।

कुख्याति - (स्त्री.) - बुरे कार्य के लिए प्राप्‍त प्रसिद्धि। दे. कुख्यात।

कुचलना स.क्रि. - (तद्.<कूर्च) - किसी वस्तु को किसी भारी चीज से इस तरह दबाना कि वह लगभग पूरी तरह विकृत या नष्‍ट हो जाए। जैसे: किसी को कार से कुचल देना; विद्रोह को कुचल देना।

कुचाल - (स्त्री.) - [कु+चाल<चल] 1. निदंनीय आचरण, शरारतें। उदा. अपने भाई की कुचालों से वह बहुत दु:खी रहता है। 2. छल-कपटपूर्ण व्यवहा।र उदा. अपने विरोधियों की कुचालों से सदा सावधान रहना।

कुचालक1 (कु+चालक) - (वि.) (तत्.) - ऊष्मा, विद्युत आदि के संचलन में कम क्षमता रखने वाला (पदार्थ)। जैसे: लकड़ी सुचालक।

कुचालक2 [कु+चालक] - (वि.) (तत्.) - भौ. उष्‍मा और विद् युत के संचरण को रोकने वाला (पदार्थ) उदा. लोहे की तुलना में लकड़ी कुचालक होती है। विलो. सुचालक।

कुचीपुड़ी’ - (स्त्री.) (देश.) - भारतीय शास्त्रीय नृत्य की एक शैली जिसका उत्स आंध्रप्रदेश के (कुचपुड़ी ग्राम में हुआ था। इसी के कारण इसे ‘कुचीपुड़ी’ कहा जाता है।) तु. की. भरतनाट्यम, कथकली, ओडिसी, मणिपुरी, कत्थक।

कुटिया - (स्त्री.) (तत्.) - घास फूस या बाँस से बना छोटा आवास जिसमें प्राय: न्यूनतम सुविधाएँ उपलब्ध होती हैं तथा ग्राम या नगर से बाहर बनाया जाता है। पर्या. झोंपड़ी, कुटी।

कुटीर उद्योग - (पुं.) (तत्.) - वह उद्योग या धंधे जो अपने घर में बैठकर ही किया जा सकता है जिसके लिए बड़े यंत्रों की आवश्यकता न हो। जैसे : अगरबत्‍ती, दियासिलाई, साबुन, खिलौने आदि का निर्माण कार्य।

कुटुंबी - (वि.) (तत्.) - कुटुंब से संबंध रखने वाला; कुटुंब का। निकट के रिश्तेदार, संबंधी। दे. कुटुंब।

कुटुंबी जन - (पुं.) (तत्.) - बहु. समान पूर्वज की वंशावली से संबंधित एकाधिक पीढ़ी के सदस्यों का वह समूह जो सामान्यत: एक साथ या पास-पास रहते आए हों। (फिर भले ही वे कारण विशेष से भिन्न-भिन्‍न स्थानों पर ही क्यों न रहते हों)। पर्या. परिवार, कुनबा।

कुटुंबीय - ([कुटुंब+ईय]) (तत्.) - जो कुटुंब से संबंधित हो। कुटुंब का। जैसे: उनकी यह कुटुंबकीय प्रथा है। पुं. कुटुंब के लोग या सदस्य। जैसे: आज सारे कुटुंबीय इकट्ठा होंगे।

कुठार - (पुं.) (तत्.) - मुख्य रूप से लकड़ी काटने और विशेष रूप से शत्रु का सिर छेदन करने के लिए प्रयुक्‍त औज़ार। पर्या. कुल्हाड़ा, परशु, फरसा।

कुठाहर - (पुं.) (देश.) - शा.अ. वह स्थान जहाँ जीवन को भय हो। सा.अर्थ 1. दुष्‍टों के मध्य रहने का स्थान, बुरा स्थान। जैसे: कहु लंकेश सहित परिवारा। कुशल कुठाहरेवास तुम्‍हारा पर्या. कुठॉंव-कुठौर।

कुठौर - (पुं.) ([तद्.<कुस्थान] ) - 1. न रहने योग्य अर्थात् बुरा स्थान। 2. अनवसर, बेमौका। 3. मर्म स्थल।

कुढ़ना अ.क्रि. - (देश.) - 1. किसी की उन्नति होते देखकर और उससे अपनी स्थिति की तुलना करते हुए परेशा होना 2. ईर्ष्यावश मन ही मन में जलना या दु:खी होना 3. कष्‍ट या विपत्‍ति में मन ही मन होने वाला दुख।

कुतरना - - स.क्रि. [<सं.कर्त्‍तन] 1. दाँतों से किसी चीज़ को लगातार इस तरह काटते रहना कि उसके बारीक-बारीक टुकड़े हों जाएं। उदा. चूहे ने वस्त्र को कुतर-कुतर कर खराब कर दिया। ला.अर्थ. बीच में से कुछ अंग अपने लिए काट लेना जैसे : मेरे दो हजार रुपए में से प्रकाशक ने दौ सौ रुपए कुतर लिए।

कुतुबनुमा [कुतुब+नुमा] - (पुं.) (फा.) - दिशा को सूचित करने वाला यंत्र जिसकी चुंबकीय सुई उत्‍तर दिशा की ओर ही रहती है। पर्या. दिक्सूचक/दिग्दर्शक यंत्र compass वि. इस यन्‍त्र की चुम्‍बकीय सुई का एक सिरा सदा उत्‍तर दिशा की ओर रहता है।

कुतूहल - (पुं.) (तत्.) - किसी रहस्यमयी या अद् भुत वस्तु या बात को जानने की न दबाई जा सकने वाली इच्छा। पर्या. आश्‍चर्य, अचम्‍भा, कौतुक

कुदरत - (स्त्री.) (अर.) - (i) वह मूल शक्‍ति जिसने इस पांच भौतिक जगत् की रचना की, (ii) ईश्‍वर की शक्‍ति। पर्या. प्रकृति।

कुदरती - (वि.) (अर.) - कुदरत संबंधी। पर्या. सहज, स्वाभाविक, प्राकृतिक। विलो. कृत्रिम।

कुदाल1 - (पुं.) (तत्.) - स्त्री. कुदाली) मिट्टी खोदने के काम आने वाला लोहे का बना औज़ार जिसका अग्रभाग नुकीला होता है।

कुदाल2/कुदाली - (स्त्री.) - ठोस मिट् टी या पथरीली ज़मीन को भुरभुरा करने, खोदने या खरपतवार निकालने का लोहे के मोटे सरिए से बना एक और तीखा और सरल औजार। दूसरी ओर थोड़ा चपटा उपकरण जिसके बीच में लकड़ी का हत्था लगा होता है। hoe तु. फावड़ा।

कुनबा - (पुं.) ([तद्.< कुटुंब] ) - एक ही वंश परंपरा वाले समसामयिक परिवार के लोग। पर्या. कुटुंब, परिवार।

कुपित - (वि.) (तत्.) - जो किसी कारण से क्रुद्ध हो गया हो।

कुपोषण [कु+पोषण] - (पुं.) (तत्.) - (i) अपर्याप्‍त या असंतुलित पोषण जो शारीरिक वृद् धि को कुंठित कर देता है; (ii) शरीर की पुष्‍टि करने वाले हितकारी तत् वों का भोजन के माध्यम से शरीर में पर्याप्‍त मात्रा में न पहुँचना। malnutrition

कुबड़ा - (वि./पुं.) (दे.) - व्यक्‍ति जिसकी कूबड़ निकली हुई हो। दे. कूबड़।

कुमक/कुमुक - (स्त्री.) (तत्.) - सहायता; सैनिक सहायता, सहायता के लिए भेजी गई अतिरिक्‍त सैनिक टुकड़ी।

कुमारामात्य [कुमार+अमात्य] - (पुं.) (तत्.) - प्राचीन काल में राज्य में एक महत्त्वपूर्ण मंत्री का पद जो दंडनायक के अधीन होता था। प्राय: राजपरिवार के लोग रखे जाते थे। जैसे: कवि हरिषेण महारंडनायक के साथ-साथ कुमारामात्य भी थे।

कुम्हारी - (स्त्री.) (देश.) - कुम्हार का धंधा; मिट्टी के बरतन बनाने का काम।

कुरमुरा - (वि.) - [अनु.] (खाद् य पदार्थ) जिसे चबा कर खाते समय ‘कुर-मुर’ जैसी ध्वनि निकलती है।

कुरूप - (वि.) (तत्.) - जो देखने में सुंदर न हो; बेडौल, बदसूरत।

कुरूपता - (स्त्री.) (तत्.) - सुंदरता का अभाव, बदसूरती। बेडौलपन।

कुर्बानी - (स्त्री.) (अर.) - मूल अर्थ किसी महान् उद् देश्य की पूर्ति के लिए किया जाने वाला त्याग, विशेषत: प्राणों का त्याग। पर्या. बलिदान, शहादत। सामान्य अर्थ (देवी देवता को प्रसन्न करने हेतु) की गई पशु-हत्या (जैसे: बकरे या भैंसे का सर कलम कर देने का कृत्य) या यदा-कदा नर हत्या भी।

कुर्सी/कुरसी - (स्त्री.) (अर.) - 1. एक प्रकार की ऊँची चौकी जिसमें पीठ के सहारे के लिए तख्ता आदि लगा हो। chair 2. ला. पद उदा. सभी कुरसी को सलाम करते हैं। 3. वह चबूतरे जैसा भू भाग जिस पर कोई इमारत बनी हो।

कुल नायक - (पुं.) (तत्.) - वह व्यक्‍ति जो अपने कुल का मुखिया हो।

कुल - (पुं.) (तत्.) - समा. एक ही मूल पूर्वज से पीढ़ी-दर-पीढ़ी बढ़ता चला आया समरक्‍त व्यक्‍तियों का समूह। 1. वंश, खानदान। 2. जीव. जीव वर्गीकरण के इकाई जिसका स्थान गण के नीचे और वंश jeans के ऊपर आता है। जैसे: मानव का कुल hominidae विशे. सारा, समस्त। उदा. कुल आय, कुल योग।

कुलबुलाना - - अ.क्रि (अनु. कुलबुल) 1. छोटे-छोटे जीवों, कीड़ों, मछलियों आदि का झुंड में मिलकर हिलना-डोलना या इधर-उधर रेंगना। 2. शरीर को बार-बार हिलाते-डुलाते हुए मन की बेचैनी प्रकट करना।

कुलाँच - (स्त्री.) (दे.) - तु. लंबी कूद। दे. कुलाँचना।

कुलाँचना - - अ.क्रि. छलाँगे मार-मार कर हिरन की दौड़ने की क्रिया। अगले दोनों पैर एक साथ उठाकर लंबी कूद लेते हुए लगातार भागते रहने की क्रिया। जैसे: हिरण का कुलाँचे भरना।

कुलाहल - (दे.) - दे. कोलाहल

कुली - (पुं.) - (तु.) प्राय: रेलवे स्टेशनों, बस अड्डों आदि पर यात्रियों/मुसाफिरों का असबाब ढोने वाला मज़दूर।

कुलीन - (वि.) (तत्.) - व्यु.अर्थ कुल में उत्पन्न; कुल से संबंधित। सा.अर्थ श्रेष्‍ठ कुल (खानदान) से संबंधित या उत्पन्न। noble पर्या. अभिजातवंशीय, अभिजात्य।

कुल्हड़ - (पुं.) ([तद्.<कुल्हर]) - मिट्टी का बना और पका लोहे प्याले नुमा छोटा पात्र जिससे जल, भट्ठा, चाय आदि पिए जाते हैं।

कुल्हाड़ा - (पुं.) ([तद्.<कुठार]) - लोहे का बना तीखे फाल वाला और हत्था लगा भारी औज़ार जिससे पेड़, लकड़ी आदि काटे जाते हैं। axe

कुल्हाड़ी - (स्त्री.) (दे.<कुल्हाड़ा) - पेड़ काटने और लकड़ी चीरने के काम आने वाला वह लोहे का औज़ार जो कुल्हाड़ की तुलना में छोटा होता है।

कुशल - (वि.) (तत्.) - सौंपे गए कार्य को पूरी सावधानी और अपेक्षित योग्यता से संपन्न करने वाला। 1. दक्ष, प्रवीण, चतुर। sklful efficient 2. व्यवहार में चतुर। मंगल, कल्याण, खैरियत (प्राय: कुशल-मंगल साथ-साथ बोला जाता है)। ‍

कुशलक्षेम - (पुं.) (तत्.) - सुखी अथवा स्वस्थ होने रहने का भाव। पर्या. खैरियत, राजी-खुशी। जैसे: कुशल क्षेम पूछना= किसी के भले-चंगे होने के बारे में जानकारी प्राप्‍त करना।

कुशलता - (स्त्री.) (तत्.) - 1. दक्षता 2. कल्याण। दे. कुशल।

कुशाग्र [कुश + अग्र] - (वि.) (तत्.) - मूल अर्थ कुश की नोक जैसा तीक्ष्ण, तेज। उदा. कुशाग्र बुद् धि = तीक्ष्ण (पैनी) बुद्धि वाला।

कुशाग्र-बुद्धि - (वि.) (तत्.) - कुश की नोक जैसी तेज़ या कहें पैनी बृद्धि‍ पर्या. तीव्रबृद्धि‍ तीक्ष्‍णमति।

कुहरा - (पुं.) (तद्.<कूहा) - भूपृष्‍ठ पर संघनित हवा जिसमें जल या तुषार की बूँदें बिखरी रहती हैं और जिनकी वजह से वह अपारदर्शी हो जाती है। fog

कुहासा - (पुं.) (देश.) - 1. हवा में मिले हुए वे ओस के कण/जलकण जो ठंड से जम कर वातावरण में फैल जाते हैं और पारदर्शिता को कम कर देते हैं। पर्या. कुहरा/कोहरा।

कूँची/कूची - (स्त्री.) ([तद्.<कूर्चिका] ) - 1. छोटा बुरुश (तूलिका) जिससे रेखाचित्र में रंग भरा जाता है या लकड़ी पर रंग-रोगन चढ़ाया जाता है। 2. दीवारों पर चूना पोतने या रंग चढ़ाने का बुरुश। 3. ताला खोलने या बंद करने का उपकरण। पर्या. कुंजी की।

कूच - (पुं.) - (तु.) 1. कहीं से यात्रा आरंभ करना। पर्या. प्रस्थान, खानजी। epacture 2. ला.प्रयोग मृत्यु। संसार से कूच कर जाना। सेना की रवानगी। march

कूदना अ.क्रि. - ([तद्.<कूर्दन]) - 1. किसी आधार से उछलकर पुन: उसी आधार पर आ जाना। उदा. बच्चे चारपाई पर उछल रहे हैं। 2. किसी ऊँचे स्थान से जानबूझकर नीचे की ओर गिरना। उदा. वह छत से नीचे कूद गया। मुहा. किसी के बल पर कूदना= किसी बड़े व्यक्‍ति के सहारे से बड़ी-बड़ी बातें करना। 3. उछल-कूद = व्यर्थ की दौड़भाग। तुल. उछलना = पंजे के बल पर अपने स्थान पर ही कूदना। लाँघना, फाँदना = उछल कर किसी बाधा को पार करना।

कूपकी खनन - (पुं.) (तत्.) - 1. अधिक गहराई में स्थित खनिज निक्षेपों तक पहुँचने के लिए बनाए गए गहरे कुएँ नुमा गड्ढे।

कूबड़ - (पुं.) ([तत्.<कूबर]) - ऊँट और आदमी। 1. मुख्यत: ऊँट और गौणत: अन्य पशुओं की पीठ का सामान्य रूप से उभरा हिस्सा। पीठ की हड्डी का इस प्रकार उभार होना जिससे वह टेढ़ी प्रतीत होती है। 2. मनुष्य की पीठ का अपसामान्य रूप से उभरा हिस्सा दिखाई देना जो रोग का लक्षण माना जाता है।

कूलर - (पुं.) - (अं.) शा.अ. ठंडा करने वाला। सा.अ. विद्युत चालित वह विशेष उपकरण जिसके अंदर पानी भरा जाता है तथा चालू करने पर उसके अंदर स्थित पंखुडि़याँ ठंडी तेज हवा बाहर फेंकती हैं। गर्मी के मौसम में इसका प्रयोग किया जाता है। विलो. हीटर। पर्या. शीतल। Cooler

कृंतक दंत - (पुं.) - बहु. शा.अर्थ कुतरने वाले दाँत। प्राणि. स्तनधारी प्राणियों के मुँह में सामने वाले छेनी जैसे दाँत जो भोजन को पकड़ने, काटने और कुतरने के काम आते हैं। मनुष्य में सामने के ऊपर-नीचे चार-दाँत कृंतक दंत कहलाते हैं। incisor teeth

कृंतक - (वि.) (तत्.) - शा.अर्थ कुतरने वाला। पुं. स्तनपोषियों का गण जिसके सदस्यों में कुतरने की क्षमता अधिक होती है। जैसे: चूहे, गिलहरी, गिनीपिग। rodent

कृतघ्न - (वि.) (तत्.) - (व्यक्‍ति) जो अपने हित में दूसरों द्वारा किए गए कार्यों का उपकार न माने; अकृतज्ञ, एहसानफरोमश। विलो. ‘कृतज्ञ’।

कृतघ्नता - (स्त्री.) (तत्.) - अपने हित में दूसरों द्वारा किए गए कार्यों का उपकार न मानना।

कृतज्ञ - (वि.) (तत्.) - (व्यक्‍ति) जो अपने हित में दूसरों द्वारा किए गए कार्यों का उपकार माने; एहसानमंद। विलो. कृतघ्न।

कृतज्ञता - (स्त्री.) (तत्.) - कृतज्ञ होने का भाव। दे. कृतज्ञ।

कृतांत - (वि.) (तत्.) - [कृत + अंत) 1. जो है, उसे समाप्‍त करने वाला। 2. पूरी तरह अंत करने वाला। पुं. प्राणों का अंत करने वाला यमराज। उदा. आवत देखि कृतांत समाना। (तुलसी. मानस)

कृति - (स्त्री.) (तत्.) - 1. किया हुआ काम। 2. कोई रचना जैसे, काव्य, चित्र, मूर्ति आदि। उदा. (i) कामायनी जयशंकर ‘प्रसाद’ की कृति है। (ii) यह कलाकृति बहुत सुन्‍दर है।

कृतिकार - (पुं.) (तत्.) - रचना करने वाला व्यक्‍ति पर्या. लेखक, रचनाकार। कामायनी के कृतिकार जयशंकर ‘प्रसाद’ हैं।

कृत्य - (पुं.) (तत्.) - किया जाने वाला काम, करने योग्य काम। जैसे: दैनिक कृत्य।

कृत्रिम - (वि.) (तत्.) - जो प्राकृतिक रूप से निर्मित न होकर मोटे-तौर पर नकल करके बनाया गया हो। पर्या. बनावटी, नकली। विलो. प्राकृतिक artificial

कृमिकोष - (पुं.) (तत्.) - रेशम के कीट के लार्वा द्वारा बुना गया रेशम के तंतुओं का अंडाकार खोलनुमा गुच्छा, जो मूलत: अंदर स्थित प्यूपा की सुरक्षा के लिए बनाया जाता है। रेशम प्राप्‍त करने के लिए इन्हीं कृमिकोषों का उपयोग किया जाता है। cocoon

कृषक - (पुं.) (तत्.) - हल जोत कर खेती करने वाला; किसान।

कृषि - (स्त्री.) (तत्.) - सीमित अर्थ. ज़मीन में जुताई, बुआई (खाद-बीज डालकर) और सिंचाई करके फसल पैदा करने का काम। पर्या. खेती। विस्तृत अर्थ स्थलीय संसाधनों का इष्‍टतम उपयोग करके खाद्य पदार्थ (फसल, दूध, माँस), रेशा (कपास, सूत, रेशम), ईंधन (जंगल की लकड़ी), मत्स्य पालन, अंगूरों की खेती तथा वाणिज्यिक उपयोग के लिए सब्जियाँ, फल-फूल आदि उगाने से संबंधित मानवीय गतिविधि। पर्या. खेती।

[कृषि पद्धतियाँ [कृषि+पद्धति] - (तत्.) - खेती करने के तरीके।

कृषियंत्र - (पुं.) - बहु. खेती-बाड़ी में काम आने वाले छोटे-छोटे बड़े यंत्र (जैसे: हल, गाड़ी, दराँती, फावड़ा आदि)। पर्या. खेती के औज़ार

कृष्ण पक्ष - (पुं.) (तत्.) - खगो. भारतीय चंद्र मास के अनुसार पूर्णिमा के बाद से अमावस्या तक के पंद्रह दिनों का वह समूह जिसमें सूर्यास्त के बाद चंद्रमा की कलाएँ क्रमश: समयांतर से घटती जाती हैं और अमावस्या को चंद्र दर्शन बिल्कुल नहीं होता।

केंचुआ - (पुं.) (तद्.) - 1. मिट्टी खाने वाला और मिट्टी में ही घर बनाने वाला कीट। 2. आँतों में पलने वाला और मल के साथ निकलने वाला कृमि।

केंद्र - (पुं.) (तत्.) - 1. किसी वृत्‍त के अंदर का वह बिंदु जहाँ से वृत्‍त के प्रत्येक बिंदु की दूरी एक समान हो। 2. वह स्थान (भले ही वह भौगोलिक दृष्‍टि से केंद्र में न हो, पर सत्‍ता की दृष्‍टि से) जहाँ से दूर-दूर तक फैले हुए कार्यों का संचालन किया जाता है। center

केंद्रक - (पुं.) (तत्.) - 1. (ज्या.) किसी ज्यामितीय आकृति में वह बिंदु जिसके निर्देशांक आकृति के सकल निर्देशांकों के माध्यमान होते हैं। centroud (जीव.) कोशिका का लगभग गोलाकार और झिल्ली से घिरा घटक जो कोशिका के कार्यों का नियंत्रण करता है। गुणसूत्र इसी में पाए जाते हैं nucleus

केंद्रक झिल्ली - (स्त्री.) (तत्.+तत्.) - केंद्रक को चारों ओर से घेरे रहने वाली सरंध्र झिल्ली जो इसे कोशिका द्रव्य से अलग करती है तथा कोशिका द्रव्य और केंद्रक के बीच पदार्थों के आवागमन का नियमन करती है। nuclear membrane

केंद्रकावरण [केंद्रक+आवरण] - (पुं.) (तत्.) - दे. केंद्रक झिल्ली।

केंद्रित - (वि.) (तत्.) - एक ही जगह या केंद्र में एकत्रित। 1. केंद्र में स्थित 2. एक जगह लाया हुआ। centraclised

केंद्रीय - (वि.) (तत्.) - 1. केंद्र से संबंधित, केंद्र का/वाला। 2. प्रमुख, सर्वोपरि जैसे: केंद्रीय शासन।

केक - (पुं.) - (अं.) मैदा, चीनी तथा अंडे के योग से बनने वाला भट्टी में सिका हुआ खाद्य पदार्थ।

केरोसिन - (पुं.) - (अं.) पेट्रोलियम से प्राप्‍त हल्का ईंधन-द्रव। पर्या. मिट्टी का तेल।

केश राशि - (स्त्री.) - [केश + राशि] सिर के बाल।

केशसज्जा - (स्त्री.) (तत्.) - बालों को सजाना; बालों को काटकर या बिना काटे विभिन्न रूपों में उन्हें सजाना-सँवारना, जूड़ा इत्यादि बाँधना या उसमें विभिन्न सौंदर्य-प्रसाधन लगाकर उसमें फूल, आभूषण इत्यादि सजाना। पर्या. केश-विन्यास hairdo, hair dressing

केशिका - (स्त्री.) (तत्.) - 1. शिशओं और धमनियों को जोड़ने वाली बहुत ही बारीक तथा एक कोशिकीय वाहिका। इसके द् वारा ऊतकों में सोषण,ऑक्‍सीजन आदि घुले पदार्थों का आना-जाना होता है जैसे: रुधिर कोशिकाएँ, पित्‍त कोशिकाएँ। Capillary टि. कोशिका’ और ‘कोशिकाक’ (cell) में अंतर बनाए रखना आवश्‍यक है। कोशिकाएँ बहु. केपिलरीज़ 2. छोटे रोरुँ जो किसी वस्‍तु के ऊपर हो।

कैंकर - (पुं./अं.) - शा.अर्थ लातानी भाषा के Cancer से उत्पन्न शब्द जिसका अर्थ है ‘केकड़ा’। 1. वन. पेड़-पौधों में होने कवक fungus द्वारा। वाला विनाशकारी रोग। 2. वृक्ष या पौधों के तने पर का खुला घाव। प्राणि. 3. जानवरों के कान में होने वाला अल्सर ulcerous रोग Canker

कैंटीन - (स्त्री.) - (अं.) 1. किसी फैक्ट्री (उद् योगशाला) बड़ी दुकान, कार्यालय या कॉलेज इत्यादि के अंदर बना वह स्थान या कक्ष जहाँ, वहाँ के कर्मचारियों या विद्यार्थियों को भोजन, चाय, जलपान आदि प्रदान करने की व्यवस्था होती है। जैसे: उन्होंने कैंटीन में जाकर चाय पी। स्कूल कैंटीन। 2. एक प्लास्टिक की बोतल जो पानी या अन्य पेय पदार्थ ले जाने के लिए सैनिकों द्वारा प्रयुक्‍त की जाती है।

कैंप - (पुं.) - (अं.) 1. सैनिकों द्वारा बनाए गए अस्थायी आवास। 2. भ्रमण, मनोरंजन, पर्वतारोहण आदि के कार्यक्रमों में बनाए जाने वाले अस्थायी आवास। पर्या. डेरा, खेमा, शिविर।

कैंपफायर - (पुं.) - (अं.) 1. कैंप के बाहर खुले में जलाई जाने वाली आग। 2. कैंप के बाहर जलाई गई आग के चारों ओर घूमते हुए या अन्य प्रकार से किए जाने वाले नृत्य, संगीत आदि मनोरंजन के कार्यक्रम।

कैटरपिलर - (पुं.) (दे.) - (अं.) इल्ली।

कै़द - (स्त्री.) (अर.) - 1. न्यायपालिका द्वारा दंड के रूप में दिया गया कारावास। 2. ला.अर्थ आने-जाने आदि पर लगाई गई रोक, बंधन।

क़ैदख़ाना - (पुं.) ([कैद-अ.+ख़ाना फा.]) - 1. वह सींखचेदार कमरा जहाँ कैद की सज़ा पाने वाले अभियुक्‍तों को बंद रखा जाता है। कारागार, जेल। 2. ला.अर्थ वह कमरा जिसमें से बाहर निकलने की किसी को मनाही कर दी गई हो।

कैदी - (पुं.) (अर.) - वह सज़ायाफ्ता (कैद की सज़ा पाने वाला) मुलजिम (सिद्धदोष व्यक्‍ति) जिसे कारागार में बंद रखा जाता है।

कैधों, किधौं - (तद्.) - अ. 1. ‘या तो’, 2. अथवा 3. या।

कैमरा - (पुं.) - (अं.) फोटो खींचने की मशीन।

कैलिको - (वि.) - (अं.) 1. (ब्रिटेन) सफेद सूती कपड़ा। 2. (अमेरिका) छपाई दार सूती कपड़ा। टि. जब पुर्तगाली भारत आए तो वे केरल स्थित ‘कालीकट’ नामक स्थान से सूती कपड़ा खरीद कर ले गए। तब उसका नाम ‘कैलिको’ रखा गया। बाद में सभी सूती कपड़ों को ‘कैलिको’ कहा जाने लगा।

कैलीग्राफी - (स्त्री.) (दे.) - दे. लेखन कला।

कॉकरोच - (पुं.) (पुं.) - (अं.) डिक्टियोप्टेरा गण के कीटों का नाम। टि. सामान्यतया कॉकरोच पेरीप्लेनेटा अमेरिकाना को कहा जाता है जो अमेरिका से भारत में प्रवेश कर आम हो गया है। या प्राय: घरों में सीवर तथा अँधेरे स्थान में रहता है। पर्या. तिलचट् टा। () यथास्थान- तिलचट्टा (तिल [तेल+चट् टा=चाटने वाला) । दे. कॉकरोच।

कॉपी - (स्त्री.) - (अं.) 1. लिखने की कोरे कागजों की पुस्तिका, उत्‍तर पुस्तिका। 2. प्रतिलिपि, नकल। जैसे: न्यायाधीरा के निर्णय की एक कापी हमें भी चाहिए। 3. किसी पुस्तक की मूल प्रति। जैसे: इस पुस्तक की एक कापी उन्हें भी दें।

कॉर्निया - (पुं.) - (अं.) आँख के आगे का पारदर्शी परदा।

कॉर्निया - (पुं.) - (अं.) 1. कुछ कीटों में प्यूपा की सुरक्षा के लिए रेशम का आवरण जो डिंभक द्वारा निकले स्राव secretion से बनता है। पर्या. कृतिकोश, कोया। 2. केंचुए, मकड़ी आदि में एक से अधिक अंडों की सुरक्षा के लिए थैलीनुमा कठोर आवरण। Cocoon कोकून

कोख - (स्त्री.) ([तद्.<कुक्षि]) - गर्भाशय। मुहा. कोख उजड़ना = संतान का मर जाना।

कोट - (पुं.) ([<तद्. कोट्ट]) - 1. कमीज़ के ऊपर पहना जाने वाला पूरी बाहों और बंद या खुले गले का वस्त्र। 2. पुं. नगर, खेत, बाड़ा आदि के चारों ओर खिंची दीवार। पर्या. गढ़, दुर्ग, पर कोटा।

कोटा - (पुं.) - (अं.) 1. किसी सम्पूर्ण भाग का वह अंश जो किसी के लिए निर्धारित हो। जैसे: राशन का कोटा। 2. राजकीय स्तर पर किसी वर्ग के लिए निश्‍चित किया हुआ वह प्रतिशत हिस्सा जो उसे नौकरी, सुविधा या शिक्षण संस्था में प्रवेश आदि के लिए देय हो। Quota

कोटि - (स्त्री.) - 1. उत्‍तमता अथवा श्रेष्‍ठता को आधार बनाकर निर्मित की गई व्यक्‍तियों या वस्तुओं की अनुक्रमात्मक श्रेणी या वर्ग। पर्या. 1. दर्जा grade जैसे: उत्‍तम कोटि, मध्यम कोटि, निम्न कोटि आदि। 2. एक करोड़ की संख्या। 3. धनुष की नोक, सिरा। 4. ज्या. समकोण त्रिभुज की एक भुजा।

कोठरी/कोठड़ी - (स्त्री.) - [<कोठा<कोष्‍ठ] ऊपर-नीचे और चारों ओर से बंद बहुत छोटा कमरा। जैसे: काल कोठरी।

कोण - (पुं.) (तत्.) - सा.अर्थ कोना (ज्या.) 1. दो सरल रेखाओं की एक-दूसरे के सापेक्ष नति। 2. किसी बिंदु से शुरू होने वाली या उससे होकर जाने वाली दो सरल रेखाओं से बनने वाली आकृति। 3. दो भिन्न दिशाओं से आकर एक बिंदु पर मिलने वाली रेखाओं या धरातलों के बीच का अंतर। angle 4. ज्‍यों. लग्‍न से पाँचवा और नवाँ 5. कोना 6. सारंगी बजाने का उपरकण।

कोदों - ([तद्.<कोद्रक]) (पुं.) - खरीफ़ की फसल का एक मोटा सॉवा जैसा अनाज।

कोमल - (वि.) (तत्.) - जो स्पर्श अथवा व्यवहार में नरम हो। 1. नरम, मुलायम जैसे: कोमल मिट्टी। 2. मधुर जैसे: कोमल हृदय। 3. अपरिपक्व, कच्चा। जैसे: कोमल कली।

कोरा - (वि.) (देश.) - जिसका उपयोग न किया गया हो, यानी। 1. वह (कपड़ा या मिट्टी का बरतन) जो धोया न गया हो। 2. वह (कागज़) जिस पर कुछ लिखा न गया हो। 3. जिस पर रंग न चढ़ा हो। पर्या. सादा। ला.अर्थ. 1. मूर्ख, अनपढ़, 2. धनहीन, दरिद्र, 3. सरल, बेदाग, 4. स्पष्‍ट शब्दों में अस्वीकृति। जैसे: कोरा जवाब। (स्त्री. कोरी)

कोरी - (वि.) (स्त्री.) - (देश.) दे. कोरा।

कोर्ट मार्शल - (पुं.) - (अं.) किसी सैनिक या सैन्य-अधिकारी द्वारा सैनिक-नियमों का गंभीर उल्लंघन किए जाने के आरोप की सुनवाई करने के लिए स्थापित सैनिक-न्यायालय और उसमें चलने वाली समस्त कार्रवाई।

कोलतार - (पुं.) - [< अलकतर:-अद.] पत्थर के कोयले को गलाकर प्राप्‍त किया गया काले रंग का गाढ़ा तरल पदार्थ। प्राय: मजबूती के लिए सडक़ बनाने में इसका प्रयोग होता है। लकड़ी के दरवाज़ों को कीड़े से बचाने के लिए कोलतार का लेप भी किया जाता है।

कोलाज - (पुं.) - (अं.) विभिन्न चपटी वस्तुएँ-यथा-फ़ोटोग्राफ़, अखबार की कतरनें, सूखी पत्‍तियों आदि चिपकाकर बनाई गई कलाकृति इस कलाकृति को गत्‍ते आदि मजबूत आधार पर बनाया जाता है।

कोलाहल - (पुं.) (तत्.) - बहुत से लोगों का एक साथ व्यवस्थाहीन होकर ऊँचे-ऊँचे स्वर में इस तरह बोलना कि अर्थ स्पष्‍ट न हो सके। पर्या. शोर।

कोली - (पुं.) (देश.) - एक हिंदू जाति जिसके सदस्य कपड़े बुनकर निर्वाह करते हैं। पर्या. हिंदू जुलाहा।

कोश - (पुं.) (तत्.) - सा.अर्थ संग्रह, भंडार; आवरण, आच्छादन। 1. संचित धनराशि या बहुमूल्य धातु रत्नों का संचित भंडार। पर्या. खज़ाना। टि. इस अर्थ में अब ‘कोष’ शब्द स्थिर कर दिया गया है। treasury 2. वह ग्रंथ जिसमें शब्दों के अर्थ, परिभाषा, प्रयोग आदि दिए रहते हैं। टि. शब्द कोश का संक्षिप्‍त रूप। पर्या. शब्द कोश dictionary 3. कोई भी ऐसा आगार जिसमें कुछ सुरक्षित रखा जाता है। जैसे: असिकोश (=म्यान)। 4. भारतीय दर्शन के अनुसार वे पाँच कोश जिनसे मानव शरीर की रचना होती है। अन्नमय, प्राणमय, मनोमय, विज्ञानमय तथा आनंदमय।

कोशकार - (वि./पुं.) (तत्.) - शब्द-कोश की रचना करने वाला; वह विशेषज्ञ जो शब्दकोश का निर्माण करे या बनाए।

कोशिका - (स्त्री.) (तत्.) - जीव. शिराओं और धमनियों को जोड़ने वाली बहुत ही बारीक तथा एक कोशिक परत वाली दीवारों की वाहिका। इसके द्वारा ऊतकों में पोषण, ऑक्सीजन आदि घुले पदार्थों का आना-जाना होता है। Capillary टि. ‘केशिका’ और ‘कोशिका’ (Cell) में अंतर बनाए रखना आवश्यक है।

कोशिका झिल्ली - (स्त्री.) (तत्.) - प्राणियों की कोशिका के चारों ओर लिपटी दो परत वाली अर्धपारगम्य झिल्ली। यह अधिकांशत: वसा तथा प्रोटीन अणुओं से बनी होती है। cell membrane

कोशिका द्रव्य - (पुं.) (तत्.) - कोशिका झिल्ली के भीतर और केंद्रक के चारों ओर स्थित जीव द्रव्य। cytoplasm

कोशिका-भित्‍ता - (स्त्री.) (तत्.) - वन. पादपों तथा जीवाणुओं की कोशिकाओं का सबसे बाहरी दृढ़ सुरक्षात्मक आवरण। यह मुख्यत: सेलुलोस का बना होता है तथा पूर्णत: पारगम्य होता है। Cell wall

कोशिका विभाजन - (पुं.) (तत्.) - पूर्व विद्यमान कोशिका से नई कोशिकाएँ बनने की प्रक्रिया। Cell division

कोशित - (वि./पुं.) (तत्.) - दे. pupa।

कोषकक्ष - (पुं.) (तत्.) - बैंक आदि में ग्राहकों से किराया लेकर उनके धन, आभूषण, महत्वपूर्ण प्रलेख आदि बहुमूल्य वस्तुओं को सुरक्षित रखने के लिए बनवाया गया अग्निसह प्रकोष्‍ठों वाला विशेष कमरा। strong room

कोषागार [कोष+आगार<अगार] - (पुं.) (तत्.) - शा.अर्थ कोष (धन-संग्रह) का घर। प्रशा. सार्वजनिक धन के प्रबंधन के लिए बना स्थान और कार्यालय। पर्या. खजाना। treasury तु. कोश।

कोस - (तद्.<क्रोश) (पुं.) - दूरी का एक प्राचीन नाप, जो दो मील या लगभग 3.2 किलोमीटर के बराबर होता है।

कोहनी - (तद्.<कफोणि) (स्त्री.) - बाँह के बीच के जोड़ का पीछे की ओर उभरा तिकोना-सा भाग जहाँ से आगे की ओर मोडक़र उँगलियों से कंधे का स्पर्श हो सकता है।

कोहरा - (दे.) - कुहरा।

कौटुंबिक [कुटुम्ब+इक] - (वि.) (तत्.) - कुटुम्ब संबंधी, कुटुंबका। पारिवारिक जैसे: इस विद्यालय में कौटुंबिक वातावरण देखकर मन मोद से भर जाता है।

कौड़ी - ([तद्.<कपर्दी]) - छोटे समुद्री जीव का लंबाकार और सँकरे मुख वाली सुरक्षा कवच। टि. प्राचीन काल में कौड़ी का प्रयोग आर्थिक मुद्रा के रूप में प्रचलित रहा था। मुहा. (i) कौडि़यों के मोल = बहुत सस्ता; अतितुच्छ (ii) कौड़ी-कौड़ी का हिसाब = पाई-पाई तक का विस्तृत विवरण (iii) दो कौड़ी का = महत्वहीन।

कौतूहल (<कुतूहल) - (पुं.) (तत्) - किसी बात के अज्ञात व को जानने की उत्कट इच्छा।

कौम - (स्त्री.) (अर.) - 1. जाति, विशेषकर जन्मानुसार जाति। उदा. तुम किस कौम के हो? मैं कायस्थ हूँ। 2. ‘राष्‍ट्र’ का पर्याय। जैसे: पाकिस्तान और भारत के विभाजन में ‘दो कौमों’ का सिद् धांत प्रमुख कारण था।

कौर (<कवल) - (पुं.) - 1. भोजन का इतना भर अंश जो एक बार हाथ से उठाकर मुँह में रखा जाए। पर्या. ग्रास, निवाला। मुहा. मुँह का कौर छीनना = रोटी-रोज़ी का साधन समाप्‍त कर देना। 2. [<कुमारी] सिख परिवारों में महिलाओं के प्रथम नाम के बाद जुड़ने वाला (स्त्री सूचक) शब्द। जैसे: कुलदीप कौर।

कौशल - (पुं.) (तत्.) - कोई कार्य बहुत अच्छी तरह और सफाई के साथ करने की कला। पर्या. कुशलता, दक्षता, चतुराई, निपुणता, फ़न। skill

क्रमबद् ध - (वि.) (तत्.) - एक क्रम में बँधा हुआ, सिलसिलेवार।

क्रमबद् धता - (स्त्री.) (तत्.) - एक क्रम में बँधे होने यानी सिलसिलेवार होने की स्थिति। विलो. क्रमभंग।

क्रमभंग (क्रम+भंग) - (पुं.) (तत्.) - चले आ रहे क्रम, परिपाटी, पद् धति आदि का टूटना यानी उसमें आया/आई व्यवधान/रुकावट। विलो. क्रमबद्धता

क्रमश: अ. - (तत्.) - 1. क्रम से, सिलसिलेवार। 2. एक-एक करके, थोड़ा-थोड़ा करके, धीरे-धीरे, थोड़े-थोड़े समय बाद इत्यादि।

क्रमिक (क्रम+इक) - (वि.) (तत्.) - क्रम से आया हुआ, क्रमागत, एक के बाद एक।

क्रय-विक्रय - (पुं.) (तत्.) - खरीदना और बेचना, बाज़ार के माध्यम से खरीदने और बेचने की क्रियाएँ।

क्रांति - (स्त्री.) (तत्.) - 1. वह आमूलचूल परिवर्तन या भारी उलट-फेर जो चलती आ रही स्थिति के स्वरूप को ही बदल दे। जैसे: राजनीतिक क्रांति (स्थापित शासन-व्यवस्था को जबरन उखाड़-फैंक कर नई शासन-व्यवस्था को लागू कर दे); सामाजिक क्रांति (स्पष्‍ट दिखाई पड़ने वाला सामाजिक व्यवस्था में परिवर्तन। जैसे: छुआछूत की समाप्‍ति); आर्थिक क्रांति (औद्योगिक क्रांति) आदि।

क्रांतिकारी - (वि.) (तत्.) - 1. क्रांति करने वाला 2. क्रांति से संबंधित। दे. क्रांति।

क्रिकेट - (पुं.) - अं. खेल (मूलत: इंग्लैंड से आयातित) घास के खुले मैदान में गेंद और बल्ले का खेल जो दो टीमों के (11-11) खिलाडि़यों द्वारा बारी-बारी से खेला जाता है। विरोधी दल के गेंदबाज द्वारा गेंद करने पर बल्लेबाजी करने वाले खिलाड़ी गेंद पर प्रहार कर दोनों ओर लगी गिल्लियों (22 गज की दूरी) के बीच दौड़ते हुए रन लेते हैं आजकल इस खेल के कई प्ररूप हैं। जैसे: test match एक दिवसीय तथा T-20 मैच।

क्रिया - (स्त्री.) (तत्.) - 1. किसी कार्य का होना या किया जाना। पर्या. कार्य। जैसे: शल्य क्रिया। 2. हिलना-डोलना या अन्य किसी भी प्रकार की शारीरिक चेष्टा। 3. व्याकरण शब्द का वह प्रकार जिससे किसी कार्य का होना या करना प्रकट हो। उदा. लड़का पुस्तक पढ़ता है में पढ़ता है। और उसका कोशीय रूप ‘पढ़ना’। 3. किसी की मृत्यु के पश्‍चात् उसके निमित्‍त किए जाने वाले समस्त शास्त्रीय कर्मकांडों में से कोई-सी भी क्रिया। जैसे: अंत्येष्‍टि क्रिया।

क्रियाकलाप - (पुं.) (तत्.) - बहु. किसी विषय से संबंधित अवश्य करणीय क्रियाओं/कार्यों का समूह; समस्त कार्यों/क्रियाएँ की शृंखला। activities

क्रियान्वयन [क्रिया+अन्वयन] - (तत्.) - किसी नियम, कानून, आदेश, निर्णय, विचार, योजना आदि को व्यवहार में लाने का कार्य। पर्या. कार्यान्वयन। किसी चीज को लागू करना।

क्रियान्वित [क्रिया+अन्वित] - (वि.) (तत्.) - किसी नियम, कानून, आदेश, निर्णय, विचार, योजना आदि को व्यवहार में (कार्य/क्रिया रूप में) परिणत किया गया। पर्या. कार्यान्वित।

क्रुद्ध - (वि.) ([तत्.<क्रोध]) - क्रोध से भरा हुआ, क्रोधित। दे. क्रोध।

क्रूर - (वि.) (तत्.) - (ऐसा व्यवहार) जो दूसरे को घोर यातना पहुँचा कर सुख का अनुभव करे या कम-से-कम उसके दु:ख से दुखी न हो; निर्दयी।

क्रूरता - (स्त्री.) (तत्.) - किसी अन्य प्राणी को घोर यातना देकर कर या उसके साथ हिंसक व्यवहार कर खुद सुख का अनुभव करने की या कम-से-कम उसके दु:ख से दुखी न होने की भावना; निर्दयता का व्यवहार।

क्रोड/क्रोड़ - (पुं.) (तत्.) - 1. गोद। 2. कुछ फलों, सब्जियों और कंदों का मध्य भाग। जैसे: गाजर, लौकी, आलू आदि।

क्रोध - (पुं.) (तत्.) - मनोनुकूल कार्य न होने पर तत् काल प्रकट होने वाली अत्यधिक अप्रसन्नतासूचक तीव्र प्रतिक्रिया जो कई रूपों में प्रकट हो सकती है जैसे: आँखों का लाल हो जाना, शरीर का काँपना, चोट पहुँचाना, गाली-गलौज करना, आदि-आदि।

क्रोमोसोम - (अं.) (दे.) - गुणसूत्र।

क्लोन - (पुं.) - (अं.) जीव. अलैंगिक जनन से प्रत्युत्पन्न कोशिका समूह या जीव जो लक्षणों में अपने जन्मदाता से हूबहू मिलता है। जैसे: डौली भेड़ जैव क्लोन का पहला उदाहरण है। टि. इसे एक तरह से ‘कलमी जीव’ कहा जा सकता है।

क्लोनन - ([अं.+संस्कृत प्रत्यय) (दे.) - दे. cloning कोशिकाओं, जीनों अथवा डी.एन.ए. के खंडों से अलैंगिक जनन की प्रक्रिया या पद्धति। टि. यह पद्धति कलम लगाने से मिलती-जुलती है।

क्लोरीनन - ([अं.+संस्कृत प्रत्यय]) (दे.) - दे. क्लोरोनीकरण। क्लोटीनीकरण क्लोरीन से संयोग करना; क्लोरीन के साथ अभिक्रिया करना। जैसे: पानी में क्लोरीन मिलाकर उसे पीने लायक बना देना।

क्लोरोप्लास्ट - (अं.) (दे.) - हरित लवक।

क्लोरोफिल - (अं.) (दे.) - पर्णरहित।

क्वाँर/क्वार [< कुमार] - (पुं.) - आश्‍विन मास के लिए प्रयुक्‍त एक ग्राम्य प्रयोग।

क्ष - -

क्षत - (वि.) (तत्.) - जिसे चोट या हानि पहुँची हो, चोटिल। 2. जो लड़ाई में घायल हुआ हो। पुं. घाव woond

क्षत विक्षत - (वि.) (तत्.) - घायल, चोटिल, बुरी तरह से घायल। उदा. रेल दुर्घटना में कई यात्री क्षत-विक्षत हो गए; युद् ध क्षेत्र में सैनिकों के क्षत-विक्षत शरीर चारों ओर बिखरे पड़े थे।

क्षति - (स्त्री.) (तत्.) - 1. किसी व्‍यक्‍ति या वस्‍तु को जानबूझकर या अनजाने में अथवा-प्राकृतिक प्रकोप की वजह से पहुँची चोट अथवा इंजरी हानि इेमेज आर्थिक नुकसान (लौस)

क्षतिग्रस्त - (वि.) (तत्.) - जिसे चोट पहुँची हो, जिसकी हानि हुई हो, जिसका नुकसान हुआ हो।

क्षतिज - (वि.) (तत्.) - 1. क्षितिज के समांतर; पृथ्‍वी तल के समानांतर; भूमध्‍य रेखा के समानांतर horizantal तु. ऊर्ध्‍वाध। vertical

क्षत्रिय - (पुं.) (तत्.) - हिंदुओं के चार वर्णों के सोपान क्रम में से दूसरा। टि. क्षत्रिय वर्ग के मूल कार्यों में समाज की रक्षा करना, शासन करना, दुष्‍टों को दंड देना आदि था।

क्षमता - (स्त्री.) (तत्.) - किसी काम को करने की योग्यता और सामर्थ्य।

क्षमा - (स्त्री.) (तत्.) - किसी व्यक्‍ति द्वारा हमारे प्रति अपराध, अपमान आदि करने पर उसे दंड देने या दिलाने की, अपने में शक्‍ति होते हुए भी उसे दंड न दिया जाए -इस तरह का मन में उपजा भाव। पर्या. माफ़ी pardon

क्षमादान - (पु.) (तत्.) - शा.अर्थ क्षमा का दान। शा.अर्थ क्षमा किया जाना। pardon दे. क्षमा।

क्षमायाचना - (स्त्री.) (तत्.) - किसी किए हुए अपराध, अपमान, दोष, भूल आदि के लिए खेद प्रकट करते हुए क्षमा कर देने का निवेदन। apology

क्षयरोग - (पु.) (तत्.) - एक संचारी रोग जो जीवाणु माइक्रोबैक्‍टीरिया ट्यूबरकुलोससि के संक्रमण से मुख्‍यत फेफड़ों को प्रभावित करता है। इसके लक्षण हैं- ज्‍वर, खाँसी, थूक में खून आना या छाती में दर्द होना। पर्या. तपेदिक tuberculosis टि. पहले यह रोग दु:साध्‍य था किंतु अब: इसका उपचार संभव है।

क्षरण - (पु.) (तत्.) - रिस रिस कर समाप्‍त होना, धीरे-धीरे क्रमश: क्षीण होते जाना।

क्षार - (पुं.) (तत्.) - सा.अर्थ भस्म या राख। रसा. पदार्थ जो किसी अम्ल के रूप में अभिक्रिया कर लवण बनाता है। alkali तु. अम्ल।

क्षारक - (वि.) (तत्.) - जलाने वाला, दाहक। रसा. 1. वह पदार्थ जो किसी विलयन में H+ आयन अथवा एक प्रोटीन ग्रहण करता है base वह यौगिक जो जल अथवा दूसरे विलायक में घुलने पर OH hydrocil आयन देता है। यह अम्‍लों के साथ अभिक्रिया कर लवण और जल बनाता है।

क्षारीय - (वि.) (तत्.) - क्षार युक्‍त alkaline

क्षितिज - (पुं.) (तत्.) - वह काल्‍पनिक रेखा जहॉं धरती या समुद्र आसमान से मिलते दिखाई पड़ते हैं। horizon

क्षीण - (वि.) (तत्.) - दुबला पतला- जैसे: क्षीणकाय। 2. पतले शरीर वाला। दुबले कमजोर। जैसे: बीमारी के बाद उसकी शक्‍ति बहुत क्षीण हो गई है।

क्षुद्र - (वि.) (तत्.) - 1. बहुत छोटा very small 2. अत्‍यल्‍प (पैटी) 3. महत्‍वहीन। 4. अधम (मीन, लो वेसे) mean

क्षुद्रग्रह - (पुं.) (तत्.) - बहुत छोटा या महत्‍वहीन ग्रह। खगो. मंगल और बृहस्‍पति ग्रहोंके बीच स्‍थित और सूर्य की परिक्रमा करने वाले हजारों छोटे-छोटे asterio ग्रहों में से कोई भी ग्रह।

क्षुब्‍ध - (वि.) (तत्.) - व्‍याकुल, बेचैन, उत्‍तेजित; अशांत, विचलित खफा। दे. क्षोभ। 2. जिसमें जोर-शोर से लहरेंउठ रही हों। जैसे: क्षुब्‍ध-सागर।

क्षेत्र - (पुं.) (तत्.) - कृषि योग्‍य भूमि-पर्या. खेत। 2. भूमि का एक बड़ा टुकड़ा। पर्या. भूखंड। 3. प्रदेश, इलाका area 4. प्राकृतिक, भौगोलिक, राजनैतिक या धार्मिक दृष्‍टि से कोई विशिष्‍ट भूखंड जिसकी कोई विशेषता हो। 5. वैचारिक दृष्‍टि से समान विचारों वाला जनसमूह। उदा. साहित्‍य के क्षेत्र में ऐसी मान्‍यता है कि…………… 6. गणित. आकृति का पृष्‍ठीय विस्‍तार। (ऐरिया)।

क्षेत्रमिति - (स्त्री.) (तत्.) - गणित की वह शाखा जिसमें रेखाओं की लंबाई-चौड़ाई के आधार पर किसी का समतल, आकृति, क्षेत्रफल तथा ठोस पदार्थों का घनफल आदि प्राप्‍त करने के नियमों का विवेचन होता है। पर्या. ठोस ज्‍यामिति। mensurtion

क्षोभ - (पुं.) (तत्.) - मन में व्‍याकुलता पैदा हो जाने की स्‍थिति; मानिसक स्‍तर पर उत्‍पन्‍न व्‍याकुलता या बेचैनी। 2. किसी खगोलीय पिंड की कक्षा में किसी अन्‍य पिंड के आकर्षण से उत्‍पन्‍न विचलन।

क्षोभमंडल - (स्त्री.) (तत्.) - पृथ्‍वी के चारों ओर स्‍थित वायुमंडल की पाँच परतों में से पृथ्‍वी की सतह की ओर से पहली परत। यह वायुमंडल का सबसे सघन भाग है। troposphere टि. अन्‍य परते हैं समतापमंडल, मध्‍य मंडल, अयन मंडल और बहिर्मंडल।

श्रुद्रांत्र - - [क्षुद्र= छोटी+अंत्र=आँत] (शा.अर्थ.) छोटी आँत प्राणि. आहारनाल में आमाशय और वृहदांत्र के अमाशय पदार्थों का अवशोषण, बीच का भाग जहाँ पोषक होता है। पर्या. छोटी आँत। small intestine

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खंड - (पुं.) (तत्.) - 1. किसी इकाई के टूटने पर उससे अलग से साफ दिखाई पड़ने वाले कई हिस्सों या भागों में से एक या कोई भी। part, piece, portion 2. पुं. किसी बड़े ग्रंथ के जिल्द बँधे अलग-अलग भाग। volume 3. वास्तु किसी भवन का वह हिस्सा जो साफ़तौर पर एक अलग-सी इकाई के रूप में दिखाई पड़े। block जैसे: केंद्रीय सचिवालय का उत्‍तरी या दक्षिणी खंड। 4. गणि. आकृति का वह भाग जो किसी रेखा या समतल द्वारा अलग दिखाई पड़ता है। segment 5. प्रशा. विकास कार्य को सुचारू ढंग से चलाने के लिए किए गए जि़ले के भागों में से कोई एक block 6. विधि. किसी अधिनियम, प्रलेख, संधि आदि का स्वत:पूर्ण भाग। close

खंड विकास अधिकारी - (पुं.) (तत्.) - खंड विकास अधिकारी-वह प्रभारी अधिकारी जो किसी जनपद (जि़ले) के वर्गीकृत ग्रामीण क्षेत्र विशेष के विकास एवं निवासियों की अपेक्षाओं को पूरा करने के लिए राज्य सरकार द्वारा नियुक्‍त होता है। block development officer

खंडहर - (पुं.) ([तत्. खंड + दे. हर.]) - सा.अर्थ 1. किसी भवन की उपयुक्‍त देखरेख के अभाव में उसके कुछ हिस्सों के गिर जाने पर शेष बचा भाग। 2. प्राचीन भवनों शिलालेखों आदि के कालकवलित भग्‍नावशेष जिनको आधार बनाकर इतिहासविद् और पुरा तत् ववेत्‍ता तत् कालीन संस्कृति और समाज का अध्ययन कर अपनी-अपनी स्थापनाएँ प्रस्तुत करते हैं। पर्या. ध्वंसावशेष, भग्नावशेष। remains, ruins

खंडित - (वि.) (तत्.) - 1. जिसके टुकड़े हो गए या कर दिए गए हों। जैसे: खंडित भारत। 2. जिसके कुछ हिस्से तोडक़र विकृत कर दिया गया हो। जैसे: खंडित मूर्ति। पर्या. भग्न। विलो. अखंड।

खँगालना स.क्रि. - ([तद्.<क्षालन] ) - मँजे-धुले बरतनों या कपड़ों को पूरी सफ़ाई के लिए एक बार फिर से साफ़ पानी में डालकर हाथ से ऊपर-नीचे करते हुए निकलना। सब कुछ उठा ले जाना।

खगोल - (पुं.) (तत्.) - [ख=आकाश+गोल = गोलाकृति] गोलाकृति वाला आकाश, आकाशमंडल। वह काल्पनिक गोला जिसमें सभी खगोलीय पिंड परिक्रमण करते प्रतीत होते हैं।

खगोलशास्त्र/विज्ञान - (पुं.) (तत्.) - वह शास्त्र या विज्ञान जिसमें आकाश के ग्रहों, नक्षत्रों, पिंडों, उपग्रहों आदि के प्रकाश, दूरी, स्थिति आदि का अध्ययन किया जाता हैं।

खगोलीय पिंड - (पुं.) (तत्.) - पृथ्वी के वायुमंडलीय आवरण से परे आकाश/आसमान में दिखाई देने वाले सभी पिंड। जैसे: सूर्य, चाँद, ग्रह और उनके उपग्रह, उल्काएँ, धूमकेतु, तारे, नीहारिकाएँ आदि। टि. हमारी पृथ्वी भी एक खगोलीय पिंड ही है। पर्या. आकाशीय पिंड।

खच्चर - (पुं.) - (तु.) नर घोड़े और (मादा) गधी की संकर संतान जिससे प्राय: बोझा ढोने का काम लिया जाता है। mule

खज़ांची - (पुं.) (फा.) - 1. किसी सेठ, साहूकार या सरकारी कार्यालय के धन का हिसाब-किताब रखने वाला वेतन भोगी कर्मचारी। पर्या. कोषाध्यक्ष treasurer खज़ाना सा.अर्थ संग्रह, भंडार, कोश/कोष। जैसे: सरकारी खजाना; ज्ञान का खजाना। प्रशा. वह स्थान जहाँ पहले राजाओं, सेठों का और अब सरकारी धन (राजकोष) भावी उपयोग के लिए सुरक्षित रखा जाता है।

खटना अ.क्रि. - ([तद्.< क्षय] ) - किसी कठिन काम को पूरा करने में इतना अधिक परिश्रम करना कि शरीर क्षीण या शिथिल हो जाए; घोर परिश्रम करना (अवमानना सूचक प्रयोग)। उदा. मैं जीवन भर खटता रहा किंतु पूँजी जमा न कर पाया।

खटमिट्ठा - (वि.) - शा.अर्थ खट्टा और मीठा। (किसी फल या गोली का वह स्वाद) जिसमें मीठेपन के साथ-साथ खट् टापन भी महसूस हो। जैसे: खटा मिट्ठा आम, खटमिट्ठी गोली।

खटारा - (वि.) - (अनु.) (बहुत पुरानी मोटर गाड़ी या मशीन जिसके पुर्जे ढीले पड़ गए हों और जो चलते समय खट-खट जैसी अप्रिय ध्वनि करे। जैसे: खटारा गाड़ी, खटारा मशीन।

खड़ाऊँ (< काष्‍ठ पादुका) - (स्त्री.) - पैरों में पहनी जाने वाली काठ के तले वाली खूँटीदार पादुका (चप्पल)। पर्या. पादुका।

खतरनाक - (वि.) (फा.) - ख़तरे से भरा हुआ; हानि पहुँचाने, चोट लगने यहाँ तक कि मृत्यु हो जाने की संभावना से भरी (कोई घटना)। दे. ख़तरा।

ख़तरा - (पुं.) (अर.) - हानि पहुँचने अथवा चोट लगने आदि की आशंका। danger मुहा. खतरा मोल लेना = जान बूझ कर ऐसे कार्य में हाथ डालना जिससे हानि की पूरी संभावना हो।

खदान - (स्त्री.) (अर.) - भू. वि. भूपृष्‍ठ का वह क्षेत्र जहाँ गहरी खुदाई कर भीतर से खनिज पदार्थ निकाले जाते हैं। पर्या. जैसे पत्थर की खदान, खान।

खदेड़ना स.क्रि. - (देश.) - किसी को डरा-धमकाकर या बलपूर्वक दूर भगाना। उदा. हमारी सेना ने शत्रु की सेना को खदेड़ दिया।

खनन - (पुं.) (तत्.) - शा.अर्थ भूमि पृष्‍ठ को खोदना, खुदाई। भूवि. खानों से खनिज पदार्थ (कोयला आदि) खोदने और निकालने की कार्य।

खनिज [खनि+ज] - (पुं.) (तत्.) - शा.अर्थ खोदने की क्रिया से (पैदा हुआ) निकाला गया पदार्थ। भूवि. प्रकृति की अकार्बनिक प्रक्रियाओं द्वारा पृथ्वी के अंदर बनने वाला ठोस, समांगी, क्रिस्टलीय रासायनिक पदार्थ। जैसे: सोना, चांदी, हीरा, कोयला आदि। mineral

खपत [देश<खपना] - (स्त्री.) - शा.अर्थ खपने की प्रक्रिया। 1. वस्तु की उतनी मात्रा, जिनती उपयोग में आई हो। 2. जितना माल बेचा जा सके। उदा. (i) आजकल शहरों में ही नहीं, गाँवों में भी इलैक्ट्रॉनिक वस्तुओं की खपत बढ़ गई है। (ii) आजकल हाथ से बने माल की खपत कम हो गई है।

खपना अ.क्रि. - ([तद्. क्षेपण]) - किसी वस्तु का उपयोग में आना। खपाना स.क्रि. किसी अतिरिक्‍त या खराब वस्तु को यत्‍नपूर्वक काम में लाना या लगाना।

खफ़ा - (अर.) (वि.) - रुष्‍ट, नाराज, क्रुद्ध।

खबर - (स्त्री.) (अर.) - किसी भी स्रोत से प्राप्‍त कोई नई या विशेष जानकारी या सूचना। पर्या. समाचार, पता। मुहा. (i) खबर उड़ना- चर्चा फैलना; (ii) अफवाह उड़ना। खबर लेना – (i) हालचाल पूछना। (ii) (ला.अर्थ) डाँटना, फटकारना यहाँ तक कि दंड भी देना।

खबरदार - (वि.) - सावधान रहने, चेतावनी देने आदि के लिए प्रयुक्‍त शब्द।

खबरिया - (वि.) (पुं.) - [<खबर] वि. (i) खबरों से संबंधित; (ii) खबरें पहुँचाने वाला। जैसे: खबरिया चैनल।

खमा (राजस्थानी < क्षमा) - (स्त्री.) (दे.) - 1 क्षमा। 2. राजाओं, महाराजाओं, ठाकुरों यानी अपने आश्रयदाताओं को लिए जाने वाले वाचिक अभिवादन में प्रयुक्‍त शब्द घणी खमा/खम्मा

खमीर - (पुं.) (अर.ख़मीर) - सा.अर्थ 1. गुंथे हुए आटे आदि में, पर्याप्‍त देर तक पड़े रखने से, पैदा होने वाली खटास और उभार। 2. वह पदार्थ (फफूंद) जिससे यह गुण पैदा होता है। पर्या. खमीरा (लेबन)। वन. ऐस्कोमाइसिटीज़ कुल का एक कवक (फूफँद) जो जाइमेस नामक एंज़ाइम उत्पन्न करता है। yeast

खयाल/ख्याल - (पुं.) (अर.) - 1. सुध-बुध का भाव सूचित करने वाली मन की वृत्‍ती। जैसे : वह अपने ख्याल में ही मगन (मग्न) रहता है। 2. स्मृति, याद। जैसे: कभी-कभी मेरे दिल में ख्याल आता है। 3. ध्यान, सावधानी। जैसे: यात्रा में अपना खयाल सूचना। 4. मत, विचार। जैसे: मेरे खयाल में………….मुहा. खयाली पुलाव-कोरी कल्‍पना । संगी. लोक-संगीत का एक प्रकार। राग/रागिनी का एक विशिष्‍ट स्वरूप। ध्रुपद पद् धति के गायन ने इसे शास्त्रीय रूप दे दिया है। संगीतशास्त्र में छोटा खयाल और बड़ा खयाल ये दो प्रकार प्रचलित हैं।

खरपतवार - (स्त्री.) (देश.) - खर = हानिकारक + पत<पात=पत्‍ते/घासफूस + वार = बढ़ोतरी/वृद् धि) अनचाहे और अनावश्यक रूप से उगने वाले पौधे जो फसल को नुकसान पहुँचाते हैं। पर्या. अपतृण weed

खरपतवारनाशी - (वि.) (दे.) - खरपतवार का नाश करने वाली (औषधि या कीट)। दे. खरपतवार।

खरा - (वि.) ([तद्.< खर] ) - अच्छा, बढि़या, उत्‍तम कोटि का, स्पष्‍ट, विशुद्ध, जिसमें मिलावट न हो; जिसमें बेईमानी न हो। जैसे: खरी कमाई; खरा सोना। विलो. खोटा। मुहा. (i) खरी-खरी सुनाना = स्पष्‍ट बात कहना, चाहे कटु ही क्यों न हो। (ii) खरा सौदा = सच्चा सौदा।

खराद - (स्त्री.) (फा.) - लकड़ी या धातु पिंड को छील कर मनचाहा आकार देने वाला हस्तचालित या विद्युत् चालित मशीनी औज़ार। lathe

खरी-खोटी - (वि.) (स्त्री.) - [हिं.-खरा-खोटा] 1. साफ साफ (स्पष्‍ट) शब्दों में बिना लाग लपेट के दुर्गुणों को बखानते हुए और धमकी भरे शब्दों से युक्‍त। 2. अच्छी और बुरी, भली-बुरी। उदा. आज उसने सबके सामने उस दुकानदार को खूब खरी-खोटी सुनाई।

खरीदना - (स्त्री.) (फा.) - खरीदने की क्रिया। विलो. बेचना।

खरीफ़ - (स्त्री.) (अर.) - वर्षा ऋतु में बोई जाने वाली और शीत ऋतु से पहले वाली फसले। जैसे: धान, मक्का, सोयाबीन, कपास, मूँगफली आदि। तु. रबी।

खरीफ़ फ़सल - (स्त्री.) (अर.) - वह फसल जो आषाढ़-श्रावण (वर्षा ऋतु) में बोई जाती है और कार्तिक अग्रहायण तक काट ली जाती है। (धान, मक्का, बाजरा आदि)

खरोंच - (स्त्री.) ([< खुरचना < तत्. क्षरण]) - काँटे, नाखून या किसी अन्य पैनी चीज़ से त्वचा के छिल जाने पर पड़ा निशान।

खरोष्‍ठी - (स्त्री.) (तत्.) - एक प्राचीन लिपि जो फारसी की तरह दाहिने से बाएं लिखी जाती थी और मौर्यकाल में पश्‍चिमोत्‍तर भारत में (गंधार) प्रचलित थी। पर्या. गांधारी लिपि।

खर्रा - (पुं.) ([देश. अनु.]) - सा.अर्थ (i) लपेटा जा सकने वाला लंबा कागज। (ii) बोलचाल में लिखे गए लंबे पत्र के लिए प्रयुक्‍त अपमानजनक शब्द। (ii) पुराने समय की ऐसी पुस्तक या पत्र जो कपड़े की लंबीपट्टी पर लिखी गई। लिखा गया हो और डंडे पर लपेटी/लपेटा जाता है। scroll

खर्राटा - (पुं.) - (अनु.) पारि.अर्थ. गहरी नींद में किसी की नाक और मुख निकलने वाली खर्र-खर्र की तेज़ आवाज़। मुहा. खर्राटे भरना = गहरी नींद में या बेखबर सोना।

खलनायक [खल = दुष्‍ट + नायक = प्रमुख पात्र] - (पुं.) (तत्.) - (काव्यशास्त्र के अनुसार) साहित्यिक कृति के मुख्य चरित्र का (नायक का) प्रतिद्वंद्वी (दुष्‍ट) पात्र। जैसे: रामायण में रावण एंटी हीरो स्त्री. खलनायिका

खलबली - (स्त्री.) ([देश.<खलबल]) - (दे.) अचानक कोई विपत्‍ति आ जाने पर लोगों में व्याकुलता का होना। शा.अर्थ. 1. हलचल, 2. बेचैनी, 3. घबराहट। उदा. यमुना में आई भीषण बाढ़ से लोगों में खलबली मचना। अचानक किसी विषम स्थिति के उत्पन्न हो जाने पर लोगों में फैली अव्यवस्था, हलचल, भगदड़, शोर, बेचैनी/घबराहट आदि की मिली-जुली स्थिति। commotion

खलिहान/खलियान - (पुं.) (तत्.) - वह खुला स्थान जहाँ काटकर रखी गई फसल से भूसी और दाने अलग किए जाते हैं।

खलीफ़ा - (पुं.) (अर.) - 1. उत्‍तराधिकारी, वारिस, विशेषकर हज़रत मुहम्मद साहब के उत्‍तराधिकारी जो इस्लाम में श्रेष्‍ठ समझे जाते हैं। वि. अर. बहुत चतुर और धूर्त।

खसरा - (पुं.) - 1. आयु. रूबियोला विषाणु के संक्रमण से जाड़ों तथा वसंत ऋतु में सामान्यत: बच्चों में फैलने वाला संचारी रोग। इसके मुख्य लक्षण हैं : शरीर पर लाल रंग के छोटे-छोटे दाने और तेज़ बुखार। measles 2. प्रशा. पटवारी द्वारा तैयार दस्तावेज़ जिसमें खेत का नंबंर, रकबा आदि लिखे जाते हैं।

ख़स्ता - (वि.) (फा.) - 1. पुराना पड़ जाने के परिणामस्वरूप टूट-फूट की स्थिति में पहुँचा हुआ। जैसे: खस्ता मकान। 2. हलके से दबाव के कारण टूटने और बिखर जाने वाला। जैसे: खस्ता पापड, खस्ता कचौड़ी।

खाँचा - (देश.) (पुं.) - खोदकर बनाया गया छेद या बुनकर बनाया गया झब्बा जिसमें कोई चीज़ ठीक से बिठाई जा सके या रखी जा सके। groove niche

खाँचेदार - (जिसमें खाँचा बना हो।) (दे.) - दे. खाँचा।

खाँसता - - क्रि. (अ.क्रि.) बलगम आदि बनने और बढ़ने या किसी अन्य प्रकार की रुकावट के कारण साँस लेते वक्‍त में झटके लगना और मुँह से आवाज़ के साथ हवा निकालना।

खाँसी - (स्त्री.) (तद्.) - कंठद्वार में रुकावट के कारण साँस लेते समय फेफड़ों से हवा आवाज़ के साथ तेज़ी से बाहर निकलने की स्थिति। टि. ऐसी खाँसी सामान्य और रोगसूचक-दोनों प्रकार की हो सकती है। coughing

खाई - (स्त्री.) ([तद्.<खानि]) - 1. पुराने समय में किसी किले नगर आदि के चारों ओर सुरक्षात्मक दृष्‍टि से खोदी जाने वाली नहर। खंदक। 2. खोदा गया वह गड्ढा जिसमें छिपकर सैनिक शत्रुपक्ष पर हमला कर सकें। 3. पहाड़ी क्षेत्र में प्राकृतिक रूप से बना गहरा खड्ड।

खाक - (स्त्री.) (फा.) - 1. मिट्टी, धूल। 2. राख, भस्म। मुहा. (i) ख़ाक छानना – किसी चीज की तलाश में बहुत हैरान होना और मारे-मारे फिरना। (ii) खाक में मिलना = नष्‍ट हो जाना। (iii) खाक फाँकना = गरीबी की स्थिति में गुज़र-बसर करना।

ख़ाका - (पुं.) (फा.) - किसी भवन, मानचित्र आदि का पूर्वरूप या उसकी बाह् य स्थूल मात्र। sketch, map, line-drawing

खाकी - (वि.) (फा.) - 1. मिट्टी (खाक) के रंग का भूरा। 2. बिना सींची हुई भूमि। स्त्री भूरे रंग के कपड़े की पुलिस या सैनिकों आदि की वर्दी। जैसे: खाकी वस्त्र।

भूरा। 2. बिना सींची हुई भूमि। - (स्त्री.) - भूरे रंग के कपड़े की पुलिस या सैनिकों आदि की वर्दी। जैसे : खाकी वस्त्र।

खाट - (पुं.) ([तद्.<खट्वा] ) - चारपाई, खटिया। मुहा. (i) खाट करना – अधिक बीमार होने पर खाट पर ही मलमूत्र आदि का प्रबन्ध होना। (ii) खाट से उतारा जाना – मरने के निकट होना, आसन्त मृत्यु की स्थिति। (iii) खाट से लगना – अधिक बीमार होने से उठने-बैठने में भी परेशानी होना।

खाड़ी - (स्त्री.) ([तद्.< खात] ) - सागर/समुद्र का वह भाग जो तीन ओर से भूमि से घिरा हुआ हो। जैसे: बंगाल की खाड़ी bay

खाता - (पुं.) - वाणि. 1. व्यावसायिक लेन-देन का हिसाब और उसकी बही या रजिस्टर में प्रविष्‍टि। उदा. मैंने बैंक में खाता खुलवा लिया है। account 2. खाता-बही laser

खातिर - (पुं.) - अव्यय. के लिए, निमित्‍त, वास्ते, के समय में। जैसे: उसने तुम्हारे खातिर यह घर दे दिया।

खातिर - (स्त्री.) (अर.) - 1. किसी के स्वागत में किया जाने वाला अतिथ्य। 2. किसी का उत्‍तम भोज्य पदार्थ व सुंदर निवास आदि की सुविधा देकर प्रसन्नता के साथ सत्कार करना। जैसे: खातिरदारी, आवभगत वहाँ कन्या पक्ष ने बारातियों की बड़ी खातिर की।

खातिरदारी - (स्त्री.) (अर.) - आवभगत, आदर-सत्कार hospitality उदा. मेरे भाई की बारात में मेहमानों की खून खातिरदारी हुई।

खाद - (स्त्री.) (फा.) - खेती की जमीन का उपजाऊपन बढ़ाने के लिए काम आने वाला पशुओं का गोबर (जैविक खाद) या अन्य रासायनिक पदार्थ रासायनिक खाद। पर्या. उरर्वक

खाद्य - (तत्.) (वि.) - 1. खाने योग्य, विलो. अखाद् य। पुं. 2. खाने की चीज़, भोजन आदि।

खाद्य धानी - (स्त्री.) (तत्.) - जीवद्रव्य में खाद् यकण के चारों ओर बना तरल युक्‍त अस्थायी अवकाश space जिसमें पाचन क्रिया होती है। जैसे: अमीबा amoeba में।

खाद्य पदार्थ - (पुं.) (तत्.) - खाने योग्य वस्तुएँ।

खाद्य परीक्षण - (पुं.) (तत्.) - खाने-पीने की वस्तुओं को लंबे समय तक सुरक्षित बनाए रखना (की वैज्ञानिक प्रक्रिया)

खाद्य विषाक्‍तन (खाद् य+विषाक्‍त + अर. - (अर.) (तत्.) - शा.अर्थ खाद्य पदार्थों का विषैला हो जाना या किया जाना। रसा. सूक्ष्मी जीवों द्वारा या अन्य कारणों से खाद् य पदार्थों का दूषित या हानिकारक हो जाना या कर दिया जाना।

खाद्यान्‍न (खाद्य + अन्न) - (पुं.) (तत्.) - खाने के काम आने वाला अन्त। टि. आजकल ‘फूड ग्रेन्स’ के शाब्दिक अनुवाद के रूप में ‘खाद्यान्न’ शब्द प्रचलित है अन्यथा इस संकल्पना को प्रकट करने के लिए ‘अन्त’ शब्द ही पर्याप्‍त है।

खानदान - (पुं.) (फा.) - किसी व्यक्‍ति के पिता, पितामह, प्रपितामह आदि पूर्वजों को सामूहिक रूप से संकेतित करने वाला शब्द। पर्या. वंश, कुल तु. परिवार।

खानदानी - (वि.) (फा.) - 1. वंश पंरपरागत, पैतृक। 2. ऊँचे वंश या कुल वाला। जैसे: वह खानदानी व्यक्‍ति है, कोई अनुचित कार्य नहीं करेगा।

खान-पान - (पुं.) (तद्.) - मुख्यत: खाना-पीना; खाने-पीने का ढंग या व्यवहार। गौणत:जीवन यापन की शैली।

खानसामा - (पुं.) (फा.) - वह जो खाना बनाता हो; मुसलमान रसोइया; बावर्ची।

खाना तलाशी - (स्त्री.) (फा.) - किसी खोई हुई या चुराई हुई चीज़ को ढूँढ़ने के लिए संदिग्ध व्यक्‍ति के घर की तलाशी लेने का काम।

खानाबदोश - (वि.) (फा.) - जिसका कोई स्थायी घर बार या ठौर ठिकाना न हो। पुं. इति. घुमंतु दल का सदस्य जो अपने जीवन यापन अथवा पशुओं के लिए चरागाहों की खोज में एक स्थान से दूसरे स्थान पर विचरण करता रहता था। टि. खानाबदोशों का स्थायी घर या निश्‍चित भू क्षेत्र नहीं होता। पर्या. यायावर normad

खामी - (स्त्री.) (फा.) - कमी, खराबी, दोष। उदा. तुम्हारे काम में बहुत-सी खामियाँ दिखाई पड़ रही है।

खामोश - (वि.) (फा.) - लोगों द्वारा बिल्कुल आवाज न करना, चुप, मौन।

खामोशी - (स्त्री.) (फा.) - खामोश होने या रहने की स्थिति, चुप्पी, मौन।

खारा - ([तत्र् < क्षार]) (वि.) - 1. जो नमक के स्वाद वाला हो। 2. जिसमें खरापन हो। पर्या. नमकीन, क्षारीय।

खाली - (वि.) ([अर. ख़ाली] ) - 1. जिसमें कुछ रखा या भरा न हो। जैसे: खाली बर्तन। 2. जिसमें कोई रहता न हो । 3. जिसके पास कोई काम न हो। जैसे: मकान किराए के लिए खाली है। बेरोजगार, ढाल।

ख़ास - (वि.) (अर.) - जो विशिष्‍ट या निजी हो; जो साधारण न हो। विलो. आम।

खासतौर से/खासतौर पर/खासकर क्रि. - (वि.) - विशेष रूप से, विशेषत:।

खासियत - (स्त्री.) (अर.) - विशेषता।

खिंचाव - (पुं.) ([तद्.< कर्षण] ) - 1. खींचने की शक्‍ति; किसी को अपनी ओर आकृष्‍ट करने का कार्य। 2. मांसपेशी की प्राकृतिक स्थिति में आया कोई विकार।

खिताब - (पुं.) (अर.) - श्रेष्‍ठ ज्ञान या उत्कृष्‍ट कार्यों के लिए सरकार की ओर से या विश्‍वविद् यालय आदि के द्वारा दी जाने वाली उपाधि, तमगा, सम्मानपत्र आदि। पर्या. उपाधि, degree

खिताब देना - - स.क्रि. किसी को पदवी देना, उपाधि से अलंकृत करना।

खिदमत - (स्त्री.) (अर.) - उम्र, पद-प्रतिष्‍ठा आदि में बड़े व्यक्‍ति की विनम्रतापूर्वक सेवा करने का अर्थ। उदा. आपकी खिदमत में क्या पेश किया जाए?

खिन्ना [भाव.<खिन्नता] - (वि.) (तत्.) - किसी प्रतिकूल परिस्थिति या दुर्व्यवहार से अप्रसन्न या दु:खी।

खिलखिलाना अ.क्रि. - ([देश.-अनु.]) - खिल-खिल’ जैसी ध्वनि करते हुए हँसना; कली खिलने जैसा खुलकर हँसना; हिलते हुए ज़ोर से हँसना। तुल. हँसना = प्रसन्नतापूर्वक सामान्य ध्वनि करना। मुसकराना = बिना मुँह खोले धीरे-धीरे हँसना। ठहाका लगाना = बहुत ज़ोर की आवाज़ के साथ हँसना।

खिलवाड़ - (स्त्री.) - [<खेल] बच्चों जैसा मनोरंजक अति सामान्य खेल। उदा. मैं तो तुमसे खिलवाड़ कर रहा था। ला.अर्थ-अति सरल काम।

खिलाफ़ - (वि.) (अर.) - (भाव-खिलाफत) (कोई बात या कोई निर्णय) जो अनुकूल न हो। पर्या. विरुद्ध, प्रतिकूल, उलटा। उदा. कल तक तो तुम मेरे पक्ष में हो। अब अचानक खिलाफ कैसे हो गए?

खींचना - - स.क्रि. तद् [प्रा. खंच < कर्षण] 1. किसी वाहन के आगे जुत/जुडकर उसे आगे बढ़ाना। उदा. बैल गाड़ी खींचता है, इंजन रेल को खींचता है। to pull 2. भीतर से बाहर निकालने की क्रिया। उदा. जोश में भरकर उसने म्यान से तलवार खींची, खेत सींचने के लिए आज भी कूओं से पानी खींचा जाता है। 3. कागज या किसी अन्य सतह पर पैंसिल, स्याही आदि से कोई आकृति बनाना। जैसे: रेखा खींचना, 4. पर्दे आदि में पहले से बंद दृश्यावली को खोल देना, केमरे से फोटो खींचना अथवा पहले से दृश्यमान वस्तु को आँखों से ओझल कर देना। जैसे: पर्दा खींचना (खोलना और बंद करना दोनों ही) 5. रुचि लेना बंद कर देना। जैसे: हाथ खींच लेना।

खींचा-तानी/खींच-तान - (स्त्री.) (देश.) - पारि.अर्थ. 1. किसी पद या वस्तु को पाने के लिए अथवा अपने-अपने पक्ष का समर्थन करने के लिए अपने-अपने तर्क प्रस्तुत करते हुए विवाद की स्थिति पैदा करना। 2. किसी विषय या शब्द के सामान्य से अर्थ को शास्त्रीय तर्कों से अधिक जटिल बना देना।

खीज/खीझ - (स्त्री.) (तद्.) - खीजने का भाव। एनोयंस दे. anodyance

खीजना/खीझना - (तद्.) - < प्रा. खिज्जइ < सं. खिद् यते] अ.क्रि. मन ही मन अपनी नाराज़गी जताना जो उस व्यक्‍ति की शारीरिक क्रियाओं से प्रकट हो जाती है।

खुजलाना स.क्रि. - ([तद्.< खर्जन]) - शरीर के अंग में महसूस की जाने वाली, त्वचा संबंधी असहनीय संवेदनशीलता (खुजली) को मिटाने के लिए नाख़ूनों से या किसी अन्य साधन से वहाँ की त्वचा को सहलाना, रगड़ना या खरोंचना। अ.क्रि. खुजली महसूस करना।

खुजली - (स्त्री.) - 1. शारीरिक अंग में महसूस की जाने वाली त्वचा संबंधी असहनीय संवेदनशीलता (जिसका शमन करना आवश्यक हो)। 2. इसी प्रकार का चर्म रोग भी जिसमें त्वचा पर छोटे-छोटे दाने दिखाई पड़ने लगते हैं।

खुद सर्व./क्रि. - (क्रि.वि.) (फा.) - सर्व. 1. स्वयं, आप, उदा. मैं खुद एक पुलिस अधिकारी हूँ। 2. अपने आप, स्वयं की शक्‍ति से। उदा. यह काम तो खुद ही हो जाता।

खुद-ब-खुद - (क्रि.वि.) (फा.) - अपने-आप, आप से आप, स्वत:, खुद।

ख़ुदा - (पुं.) (फा.) - ईश्‍वर, परमात्मा, सर्वशक्‍तिमान। मुहा. खुदा की मार- दैवी प्रकोप, प्राकृतिक आपदा। ख़ुदा-ख़ुदा करके – बड़ी कठिनाई से, केवल भगवान का नाम लेकर या उसकी कृपा से। खुदा खैर करे – ईश्‍वर रक्षा करे, भगवान बचाए। खुदा-न-ख़्वास्ता – ईश्‍वर न करे…..। ख़ुदा हाफिज़ – (किसी से विदाई लेते समय प्रयुक्‍त वाक्य) = ईश्‍वर रक्षा करे।

खुदाई - (स्त्री.) (दे.खोदना) - 1. खोदे जाने की क्रिया या भाव। 2. जमीन की मिट् टी निकालकर गड्ढा या नींव खोदने का काम। 3. खोदे जाने की मज़दूरी।

ख़ुदाई - (वि.) (.फा.ख़ुदाई) - ईश्‍वरीय (शक्‍ति) स्त्री. 1. ईश्‍वर की सृष्‍टि, 2. ईश्‍वर की महिमा, 3. विभूति। लोको. उदा. ख़ुदा की ख़ुदाई एक तरफ़, जोरू का भाई एक तरफ़।

खुदी - (स्त्री.) (.फा.) - मैं-पन। उदा. खुदी को कर बुलंद इतना कि….

खुफिया - (वि.) (अर.) - (ऐसा कार्य) जो प्रकट न किया जाए, अप्रकट, छिपा हुआ, गुप्‍त। जैसे: खुफिया पुलिस, खुफिया विभाग।

ख़ुमार/खुमारी - (पुं./स्त्री.) (अर.) - आँखों में छाया हुआ नींद अथवा शराब आदि का नशा।

खुर - (पुं.) ([तद्.< क्षुर]) - चौपायों के पैरों के नीचे वाला भाग जो पंजों के स्थान पर होता है और सींग की ही तरह कठोर होता है। अधिकतर पशुओं का खुर बीच में से फटा होता है। welven hoof

खुरचना स.क्रि. - (तद्.< क्षुरण) - 1. (बरतन में) चिपकी हुई चीज़ को रगड़कर हटाना। जैसे : कढ़ाई से जले हुए मसाले/दूध को खुरचना। 2. (वृक्ष के) ऊपर की परत को हटाना। जैसे: पेड़ की छाल खुरचना।

खुरदरा - (वि.) (देश.) - पारि.अर्थ स्पर्श करने पर जिसकी सतह चिकनी या समतल न लगकर थोड़ी ऊँची-नीची लगे। वि. चिकना।

खुरपा/खुरपी - (पुं.) (स्त्री.) - [तद्. < क्षुरप] पुं. घास काटने/छीलने का लोहे से बना एक औज़ार। स्त्री. छोटा खुरपा।

खुराक - (स्त्री.) (फा.) - 1. शरीर-रक्षा के लिए व्यक्‍ति (और पशु) द्वारा सामान्यत: ग्रहण किया जाने वाला भोजन या खाना खाद् य पदार्थ (भोजन, दवा आदि) की निर्धारित मात्रा। उदा. दवा की दो खुराक ने ही अपना असर दिखाना शुरू कर दिया। 1. खुराक बढ़ाओ ताकि शरीर में ताकत आए।

खुराफ़ात - (स्त्री.) (अर.) - ऐसी बातें या हरकतें जो अनुचित और बेहूदा हों। टि. यह शब्द मूलत: ‘ख़ुराफ़त’ का बहुवचन है।

खुराफ़ाती - (वि.) (अर.) - वि./पुं. खुराफ़ात करने वाला (व्यक्‍ति), शराती तत्व। दे. खुराफ़ात।

खुला अधिवेशन - (पुं.) - किसी राजनीतिक दल अथवा सांस्कृतिक/शैक्षिक/सामाजिक संगठन का ऐसा सम्मेलन (अधिवेशन) जिसमें प्रवेश पर पाबंदी न हो।

खुला दरबार - (पुं.) - यदा-कदा या निर्धारित दिन के निर्धारित समय में आयोजित ऐसा सम्मेलन जहाँ स्थानीय जनता के बीच मंत्री अथवा पदस्थ अधिकारी उपस्थित होकर शिकायतें सुनता है और तात्कालिक निर्णय सुनाता है।

खुली अदालत स्त्री - (.फा.) (तत्) - 1. सुनवाई कर रहे न्यायालय की वह स्थिति जिसमें वादी, प्रतिवादी, गवा हो आदि के अतिरिक्‍त सामान्य जनता भी उपस्थित रह सके। 2. (यदा-कदा) खुली जगह में चलने वाली न्यायालय संबंधी विभागीय कार्यवाही जहाँ शिकायतें सुनकर काल फैसला दे दिया जाता है। जैसे: बिजली अदालत या टेलीफोन अदालत आदि।

खुलेआम क्रि. - (क्रि.वि.) (फा.) - आम (जनता) के सामने, सबके सामने, सार्वजनिक रूप से।

खुश किस्मत - (वि.) (फा.) - भाग्यशाली। विलो. बंद किस्मत।

खुशकिस्मती - (स्त्री.) (फा.) - भाग्य, सौभाग्य विलो. बदकिस्मती।

खुशनसीब - (वि.) (फा.) - (नसीब=भाग्य) भाग्यशाली।

खुशनसीबी - (स्त्री.) - (फार.) अच्छा भाग्य, सौभाग्य।

खुशबू - (स्त्री.) (फा.) - [खुश = रुचिकर + बू = गंध] गंध जिसे सूँधकर मन खुश हो जाए। विलो. बदबू।

खुशहाल (फ़ा) - (वि.) - हर तरह से, विशेष रूप से आर्थिक स्थिति (हालत) की दृष्‍टि से, सुखी और संपन्न।

खुशहाली - (स्त्री.) (फा.) - हर तरह से, विशेष रूप से आर्थिक स्थिति (हालत) की दृष्‍टि से, सुखी और संपन्न होने की स्थिति।

खुसर-फुसर - (स्त्री.) (दे. अनु.) - दो साथियों के बीच जान बूझकर धीमी आवाज में चल रही ऐसी बातचीत जो दूसरों को सुनाई न पड़ने के उद्देश्य से की जाए।

खूँखार [खूँ < ख़ून + खार < ख़्वार] - (वि.) (फा.) - शा.अर्थ खून पीने वाला। निर्दयता से काम करने वाला वह व्यक्‍ति जिसे किसी की हिंसा करने में रंचमात्र भी संकोच न हो। पर्या. 1. क्रूरकर्मा 2. खूनी 3. हिंसक 4. जालिम। वह प्राणी (पशु या व्यक्‍ति) जो हिंसा करने का अभ्यासी हो या बन जाए। जैसे: खूँखार पशु। विक.अर्थ हिंसक; क्रूर, निर्दयी। उदा. नादिरशाह ने चाँदनी चौक में कत्ले आम का हुक्म देकर अपनी खूँखार आदत का परिचय दिया।

खूनख़राबा - (पुं.) (फा.) - असामाजिक तत् वों द्वारा या शत्रुदल द्वारा किया गया भीषण रक्‍तपात। पर्या. रक्‍तपात; मारकाट; जनसंहार bloodshed, massacre

ख़ूबसूरत - (वि.) (फा.) - शा.अर्थ बढि़या है सूरत जिसकी, अच्छी (दर्शनीय) सूरत वाला। पर्या. रूपवान। वि. बदसूरत।

खूबसूरती - (स्त्री.) (फा.) - सुंदरता, सौंदर्य। विलो. बदसूरती।

खेतिहर - (पुं.) ([तद्.< क्षेत्रधर]) - खेती करने वाला। पर्या. कृषक, किसान।

खेतिहर मज़दूर - (पुं.) - वे भूमिहीन मज़दूर जो भूस्वामियों के खेतों में मज़दूरी करके अपना जीवन-निर्वाह करते हैं। पर्या. कृषि श्रमिक।

खेद - (पुं.) (तत्.) - 1. किसी उचित कार्य के उचित समय में न होने पर मन में होने वाला दु:ख, रंज। 2. कोई अनुचित कार्य कर लेने या वांछित कार्य न कर पाने के कारण होने वाला मानसिक कष्‍ट या पश्‍चात्‍ताप, अफ़सोस, ग्लानि। उदा. 1. मुझे खेद है कि मैं तुम्हारा कार्य नहीं कर सका। 2. खेद है कि मेरे मित्र ने तुम्हें भला-बुरा कहा।

खेप - (स्त्री.) ([तद्.< क्षेप्य]) - 1. वस्तु की उतनी मात्रा जितनी एक बार में ढोकर ले जाई जा सके। 2. एक फेरा।

ख़ैर - (स्त्री.) (अर.) - कुशल, क्षेम, मंगल। तुमने मेरी बात नहीं मानी तो देखना तुम्हारी ख़ैर नहीं। खैर मनाओं कि जब यह हादसा हुआ तब तुम वहाँ नहीं थे। जो हुआ सो ठीक; बस, ऐसा ही जाने दो। पर्या. अस्तु।

खोखला - (वि.) (देश.) - 1. वह जो अंदर से खाली या पोला हो। पर्या. 2. ला.अर्थ जिसमें रस न बचा हो। जैसे: खोखली बातें = 1. सार रहित बातें 2. रसहीन बातें।

खोज - ([तद्.< प्रा.खोज्‍ज] ) (स्त्री.) - 1. ढूँढ़ने या खोजने की क्रिया। पर्या. तलाश 2. जो वस्‍तु पहले से ही होकर जिसकी जानकारी किसी को न रही हो उसे पहली बार ढूँढ निकालना। तु. आविष्‍कार, टि. प्राचीन अर्थ- ‘पैर’ का वह, निशान जो चलने से मिट्टी पर बन जाता है। उसी को देखकर व्‍यक्‍ति या पशु की खोज की जाती थी।

खोजबीन - (स्त्री.) - [< खोजना + < बीनना] खोजना-बीनना। (बड़ी सावधानी से) खोजना और उनमें से उपयोगी बातों का संग्रह करना।

खोना स.क्रि. - ([तद्.< क्षेपण]) - अपनी वस्तु, धन आदि का असावधानी के कारण गिर जाने या निकल जाने की क्रिया। पर्या. गँवाना।

खोपरा - (पुं.) ([तद्.< खर्पर] ) - 1. नारियल की गरी।

खौफ़नाक - (वि.) (फा.) - डरावना, भयानक।

खोमचा - (पुं.) (फा.) - बड़ा थाल या परात जिसमें फेरी वाले मिठाई आदि रखकर बेचते हैं।

खोलना स.क्रि. - (दे.<तत् क्षुड्) (तत्) - बाँधने वाली, जोड़ने वाली, ढकने वाली या रोकने वाली वस्तु को हटाना। शा.अर्थ 1. अवरोध हटाना। 2. अनावृत करना। 3. बंधन हटाना। 4. कलपुर्जे अलग करना। 5. आरंभ करना। जैसे: आवागमन के लिए पुल खोलना। 6. उधेड़ना।

ख्याति - (स्त्री.) (तत्.) - प्रसिद्धि, मशहूरी, शोहरत।

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गंगोत्री - (स्त्री.) (तत्.) - हिमालय में स्थित एक स्थान जहाँ से गंगा निकलती है। गंगा का यह उद्गम स्थल हिंदुओं का एक प्रसिद् ध पवित्र तीर्थ माना जाता है।

गंडासा/गँड़ासा - (पुं.) (देश.) - घास तथा पशुओं का चारा काटने का औज़ार।

गंतव्य - (वि.) (तत्.) - (वह जगह) जहाँ जाना (लक्षित) हो।

गंतव्य स्थल/स्थान - (पुं.) (तत्.) - वह जगह जहाँ जाना लक्षित हो। destination

गंदा - (वि.) (फा.) - 1. जो स्वच्छ न हो, जो साफ-सफाई न रखता हो। पर्या. मैला, मलिन। विलो. साफ, स्वच्छ। 2. जिसमें शुद्धता या पवित्रता न हो। पर्या. अशुद्ध, अपवित्र, घृणित। विलो. स्वच्छ, पवित्र। 3. (बोलचाल में) जिसकी आदतें अच्छी न हो; जो बात न मानता हो आदि। उदा. तुमने मेरी बात नहीं मानी/तुम बहुत शोर मचाते हो-बड़े गंदे बच्चे हो।

गंदी बस्ती - (स्त्री.) (दे.) - (फा. < गंद + तद् < वसति) सा.अर्थ लोगों के रहने की वह बस्ती जो सामान्यत: गंदी (यानी मैली-कुचैली अवस्था में) हो। सा.अर्थ दे. झोंपड़-पट्टी।

गंध - (स्त्री.) (तत्.) - वायु के माध्यम से प्रसरित किसी पदार्थ का वह गुण (घ्राणेंद्रिय), गंध दो प्रकार की होती है-सुगंध और दुर्गंध (बुरी गंध यानी बदबू) (अच्छी गंध यानी खुशबू) ला. अर्थ मुहा. गंध न लगवा किसी बात का बारीकी से ही पता लगाना। उदा. उसने जो किया उसकी किसी को गंध तक न लगी।

गंधर्व - (पुं.) (तत्.) - (पुराणों के अनुसार) अर्धदेवों (गौण देवताओं) का एक वर्ग जो देव लोक के संगीतकार और गायक माने जाते हैं।

गंभीर - (वि.) (तत्.) - 1. बहुत अधिक गहरा जिसकी गहराई की थाह न मिले। उदा. गंभीर समुद्र। 2. अत्यधिक कष्‍टकर 3. जिसके विषय में बहुत सोच विचार आवश्यक हो। उदा. गंभीर स्थिति जैसे: गंभीर समस्या। 3. बहुत कम बोलने वाला और जब भी बोले तब बहुत सोच-विचार कर ही बोले।

गंभीरता - (स्त्री.) (तत्.) - गंभीर होने का भाव। पर्या. गहराई दे. गंभीर।

गँवाना स.क्रि. - (तद्.) - असावधानी के कारण अपनी पूँजी या समय व्यर्थ में खो देना। पर्या. खोना। उदा. धन गँवाना, समय गँवाना।

गगन - (पुं.) (तत्.) - धरती से ऊपर की ओर दिखाई देने वाला नीलापन लिए खुला स्थान। पर्या. आकाश, आसमान, अंबर, अंतरिक्ष।

गज - (पुं.) (तत्.) - हाथी, एक मीटर से छोटा। गज़ पुं. फा. छत्‍तीस इंच या सोलह गिरह की लंबाई का एक माप yardstic 3. पुराने ज़माने में बंदूक भरने के लिए प्रयुक्‍त लोहे की छड़।

गज़ब - (पुं.) (अर.) - 1. कोई विलक्षण बात; आश्‍चर्य की बात। पर्या. अजूबा। 2. दैवी कोप, ईश्‍वरीय कोप। 3. विपत्‍ति, आफ़त।

गजराज - (पुं.) (तत्.) - बड़ा हाथी। पर्या. गजेन्द्र।

गट्ठर - (पुं.) - [< गाँठ] 1. रस्सी से बँधा हुआ सामान। जैसे: लकड़ी का गट्ठर। 2. बड़े कपड़े में लपेटकर और गाँठ लगाकर इकट्ठा किया गया सामान। जैसे: धोबी के कपड़ों का गट्ठर bundle

गट्ठी - (स्त्री.) - [<गाँठ] 1. छोटा गट्ठर। 2. धागों की लच्छी।

गठजोड़ [गठ<गँठ+जोड़] - (पुं.) (तद्.) - दो धागों, रस्सियों या वस्त्रों के पल्लुओं में गाँठ लगाकर बनाया गया जोड़। दे. गठबंधन।

गठबंधन [गठ < गँठ < गाँठ + बंधन] - (पुं.) (तद्) - दो व्यक्‍तियों या दलों द्वारा किसी समय विशेष में मिलकर एक हो जाने की प्रक्रिया या स्थिति। उदा. 1. विवाह के समय विशेष में मिलकर एक हो जाने की प्रक्रिया या स्थिति। उदा. 1. विवाह के समय ग्रंथि बंधन के फलस्वरूप बनी पति-पत्‍नी की जोड़ी। 2. कई राजनीतिक दलों से मिलकर बना संगठन जैसे: कांग्रेस नीत संयुक्‍त प्रगतिशील गठबंधन (सं.प्रग) अथवा भाजपा नीत राष्‍ट्रीय जनतांत्रिक गठबंधन (रा.ज.ग)

गठन - (पुं.) ([तद्.<घटन] ) - 1. किसी संस्था, समिति आदि की रचना, बनावट का वर्तमान स्वरूप। 2. शरीर की बनावट।

गठित - (वि.) - [< गठना < घटन] गठा हुआ। जैसे: नवगठित समिति; सुगठित शरीर।

गठबंधन सरकार - (स्त्री.) - [गठ < गँठ < गाँठ] राज. किसी एक ही राजनीतिक दल का बहुमत न होने पर दो या अधिक राजनीतिक दलों के मिलन से बनी सरकार।

गठित [गठ + इत] - (वि.) (तत्.) - गठा हुआ, (सु) घड़।

गठीला - (वि.) - (हिं. गाँठ + ईला (प्रत्य.) 1. गठा हुआ, कसा हुआ। जैसे: गठीला बदन/शरीर। 2. जिसमें एक से अधिक गाँठें पड़ी हों, गाँठों वाला। जैसे: गठीला धागा।

गड़गड़ाना - - अ.क्रि. (अनु.) ‘गड़’ ‘गड़’ की आवाज़ होना या उत्पन्न करना। उदा. 1. बादलों का गड़गड़ाना। टि. बादल गड़गड़ाते हैं जबकि हुक्का गुड़गुड़ाया जाता है।

गड़गड़ाहट [गड़गड़ + आहट] - (स्त्री.) - गड़गड़’ करने की आवाज़। जैसे: बादलों की गड़गड़ाहट, तालियों की गड़गड़ाहट।

गड़बड़/गड़बड़ी - (स्त्री.) (देश.) - 1. व्यवस्था-भंग, क्रम-भंग उदा. मैंने पुस्तकें ठीक-से रखी थीं। तुमने इन्हें गड़बड़ कर दिया। 2. नियम विरुद् ध कार्य। उदा. तुम्हारे हिसाब में बहुत गड़बड़/गड़बड़ी है।

गड़बड़ करना - - अ.क्रि. नियम विरुद्ध कार्य करना।

गड़बड़-घोटाला - (पुं.) - पुं काम में भारी अव्यवस्था और भ्रष्‍टाचार (नियम विरुद्ध कार्य)-दोनों ही। उदा. मशीनों की खरीद में बहुत गड़बड़-घोटाला हुआ है।

गड़बड़ झाला - (पुं.) - घोर अव्यवस्था। उदा. तुम्हारा काम तुम सँभालो। मैं इस गड़बड़ झाले में नहीं पड़ता। hotch-potch

गडरिया - (पुं.) ([तद्.< गाड्डरिक:]) - < गाड्डरिक:] भेड़-बकरियाँ चराने वाला।

गड्डमड्ड - (वि.) (देश.) - वस्तुओं की अव्यवस्थित रूप से एक-दूसरे में मिल जाने या मिला दिए जाने की स्थिति का वाचक (शब्द)।

गड्ढ़ा - (पुं.) (तद्.) - आसपास की समतल ज़मीन की तुलना में बना गहराई वाला तल या स्थान। पर्या. गर्त। मुहा. गड्ढ़ा खोदना=किसी का बुरा चाहते हुए उसके प्रति कोई अनुचित कार्य करना।

गढ़ - (पुं.) (तत्.) - 1. ऊँची पहाड़ी पर बना परकोटे वाला और सामरिक दृष्‍टि से सुरक्षित आवासीय स्थल। पर्या. दुर्ग, किला। मुहा. गढ़ जीतना। लोफ. प्रयोग-स्थान जहाँ विशेष प्रकार के कार्यों या व्यक्‍तियों का जमावड़ा होता है। पर्या. अड्डा। उदा. 1. यह मुहल्ला बदमाशों/चोरों का गढ़ है। 2. इलाहाबाद कभी साहित्यकारों का गढ़ माना जाता था।

गढ़ना स.क्रि. - (तद्.) - आकार देना, रचना करना, संवारना।

गण - (पुं.) (तत्.) - 1. कर्त्तव्य में समानता रखने वाले व्यक्‍तियों का समूह। पर्या. झुंड, समूह, वर्ग, समुदाय। उदा. लेखकगण, सेवकगण। 2. अनुचरों का छोटा दल। जैसे: शिवजी के गण। 3. (प्राचीन भारत के इतिहास के संदर्भ में) राजनीतिक दृष्‍टि से वह संगठित इकाई जिसमें राजा भी प्रजा द्वारा चुना जाता था। (जैसे: लिच्छवी गण) 4. (आधुनिक संदर्भ में) राजनीतिक दृष्‍टि से संगठित वह इकाई जिसका प्रधान (राज्याध्यक्ष) सीधे जनता द्वारा अथवा जनता के प्रतिनिधियों द्वारा चुना जाता है। 5. (साहित्य में) लघु-गुरू के विचार से तीन-तीन मात्राओं वाले समूह, जैसे: तगण, मगण, जगण आदि। 6. जीव. जीव वर्गीकरण की इकाई जिसका स्थान वर्ग के नीचे और कुल के ऊपर आता है। उदा. स्तनपोषसी mammles वर्ग का नर-वानर primates गण। order

गणतंत्र [गण+तंत्र] - (पुं.) (तत्.) - वह राज्य जिसमें शासन चलाने के लिए जनता अपने प्रतिनिधि चुनती है। repunlic तु. प्रजातंत्र।

गणवेश [गण-वर्ग+वेश=वस्त्र] - (पुं.) (तत्.) - किसी वर्ग विशेष के लोगों के लिए अवसर विशेष पर पहने जाने वाले एक ही प्रकार के वस्त्र। दे. पोशाक।

गणसंघ (गण+संघ) - (पुं.) (तत्.) - गणों का समूह। दे. गण।

गणितज्ञ (गणित+ज्ञ=जानने वाला) - (पुं.) (तत्.) - गणित विषय का मर्मज्ञ/ज्ञाता।

गति - (स्त्री.) (तत्.) - 1. सा.अर्थ किसी वस्तु अथवा व्यक्‍ति की हिलने, डुलने या चलने की क्रिया। उदाहरण-गाड़ी की गति, तीव्र गति, मंदगति। 2. भौ. किसी कण अथवा पिंड की स्थिति में परिवर्तन जो उसके जड़त्व की समाप्‍ति का सूचक है। motion तु. वेग, चाल।

गतिरोध - (पुं.) (तत्.) - गति में पड़ने वाली बाधा। उदा. काम में एक बार गतिरोध आ जाए तो फिर उसे पूरा करना मुश्किल हो जाता है।

गतिरोधक - (वि.) (तत्.) - गति में बाधा डालने वाला। पुं. सडक़ों पर बनाया गया उभार जो इस बात का सूचक है कि वहाँ वाहनों की गति कम कर दी जाए ताकि दुर्घटना की आशंका न रहे। speed braker

गतिविधि [गति+विधि] - (स्त्री.) (तत्.) - कार्य व्यापार आदि का दिखाई पड़ने वाला हर रोज का तरीका, व्यवहार, चाल। उदा. अध्यापक छात्रों की गतिविधियों पर दृष्‍टि जमाए रखता है।

गतिशील - (वि.) (तत्.) - 1. जिसमें गति हो, चलने वाला, चलता हुआ; जो स्थिर न हो। 2. निरंतर आगे बढ़ने वाला; प्रगतिशील।

गतिशीलता [गतिशील+ता] - (स्त्री.) (तत्.) - चलते- फिरते रहने की क्रिया का सूचक/भाव।

गतिसीमा - (स्त्री.) (तत्.) - शा.अर्थ गति की सीमा। किसी वाहन या यन्त्र के चलने स्थानानुसार निर्धारित उच्चतम सीमा। जैसे: 1. भारी वाहन गति सीमा 40 कि.मी. प्रतिघंटा। 2. टाइपराइटर में शब्द टाइप करने की सीमा 200 शब्द प्रतिघंटा।

गतिहीन - (वि.) (तत्.) - जिसमें गति न हो, गतिरहित।

ग़दर - (पुं.) (अर.) - शासन समाप्‍त करने के लिए किया गया सैनिक विद्रोह। पर्या. विप्लव, बगावत, क्रांति। 1857 की क्रांति को हम प्रथम स्वतंत्रता संग्राम कहते हैं तो अंग्रेज इतिहासकारों ने उसे गदर नाम दिया।

गद्गद् - (वि.) (तत्.) - बहुत अधिक प्रसन्नता के आवेग से गला इतना भर जाना कि आवाज़ ठीक से न निकले या अटक-अटक कर निकले। मुहा. गद्ग होना।

गद्दार - (वि.) (अर.) - (व्यक्‍ति) जो अपने देश, समाज, संस्था आदि के विरूद्ध कार्य करे। पर्या. नमकहराम, कृतघ्न, देशद्रोही।

गद्य - (पुं.) (तत्.) - 1. साहित्यलेखन की एक विधा, जिसमें (पद् य की तरह) छंद, लय, तुक आदि पर विशेष विचार नहीं होता है। 2. सामान्य बोलचाल की भाषा। वि. पद्य।

गप-गप/गपागप क्रि. - (वि.) (तत्.) - (गप=निगलने का शब्द) बहुत अधिक मात्रा में तेज़ी से खाने का एक तरीका जिसमें चबाने पर अधिक बल न देते हुए कौर को मुँह में रखने के बाद काल निगल लिया जाता है।

गफ़लत - (स्त्री.) (अर.) - 1. असावधानी, बेपरवाही। उदा. उसकी गफ़लत के कारण मामला बिगड़ गया। 2. भ्रम, मैं इस गफ़लत में था कि तुम सोमवार को दिल्ली पहुँचोगे इसलिए आज (यानी रविवार को) तुम्हें लेने स्टेशन नहीं आया।

गफ़श - (वि.) (अर.) - < गफ़्स] 1. दलदार, मोटे दल का। 2. ऐसा कपडा जो घना बुना हो। पर्या. गाढ़ा मोटा (गफ़)

गभुआर - (वि.) (देश.) - 1. गर्भ से ही प्राप्‍त बालों वाला, जिसका अभी मुंडन संस्कार न हुआ हो। 2. गर्भ से प्राप्‍त बुद् धि वाला, जिसे संसार का ज्ञान न हो। अबोध, नादान, नासमझ, निर्दोष। 3. छोटा बालक, शिशु। उदा. इस गभुआर बालक को न रूलाए।

ग़म - (पुं.) (अर.) - किसी प्रकार के अभाव, असफलता, हानि आदि से उत्पनन पश्‍चाताप। पर्या. दु:ख, शोक, संताप, चिंता। मुहा. ग़म खाना=1. अपमान या पीड़ा को सह लेना। 2. अधीर न होना।

गमछा - (पुं.) - (अंगोछा) भीगे शरीर को पोंछने का वस्त्र। पर्या. अंगोछा। टि. गमछा/अंगोछा प्राय: पतले कपड़े का बना होता है जबकि तौलिया मोटे और रोंएदार कपड़े का।

गरचे - (अव्य.) ([अर.अग़रचे]) - यद्यपि, गोकि।

गरज - (स्त्री.) - (गर्जन) जलभरे बादलों के टकराने से होने वाली आवाज़, बादलों की गड़गड़ाहट; शेर की दहाड़।

ग़रज़ - (स्त्री.) (अर.) - मतलब, प्रयोजन। उदा. तुम अपनी गरज़ से आज यहाँ आए हो। पहले तो यहाँ कभी नहीं आए। अव्य. गरज़ यह कि, सारांश यह कि, मतलब यह कि….

गरजना - - अ.क्रि. (गरज) 1. बादल का गड़गड़ाना। उदा. बादल गरज रहे हैं। 2. शेर का दहाड़ना। 3. गुस्से में आदमी का बहुत कडक़ती आवाज़ में बोलना। उदा. क्यों गरज रहे हो, चुप हो जाओ।

गरदन/गर्दन - (स्त्री.) (फा.) - प्राणियों के सिर और धड़ को जोड़ने वाला लंबोतर अंग। पर्या. गला, ग्रीवा। मुहा. गरदन झुकाना=बात मान लेना, अधीनता स्वीकार करना। गरदन मोड़ना=मार डालने की हद तक तकलीफ देना। गरदन उड़ाना=गला काटकर मार डालना।

गरम/गर्म-धारा - (स्त्री.) - भूगो. महासागरों के नीचे विषुवतीय क्षेत्रों से ध्रुवीय क्षेत्रों की ओर बहने वाली गर्म जल की धारा। (हॉट करेट्स) तु. ठंडी धाराएँ-ध्रुवीय क्षेत्र से विषुवतीय क्षेत्र की ओर बहने वाली धाराएँ।

गरमी/गर्मी - (स्त्री.) (फा.) - गरम होने का भाव। पर्या. उष्णता, ताप। उदा. सूर्य की गरमी, आग की गरमी। ला.अर्थ क्रोध। उदा. गरमी क्यों खा रहे/दिखा रहे हो।

गरारा - (पुं.) ([फा. ग़रार:] ) - मुख में पानी भरकर और मुख ऊपर करके ‘गर-गर’ की आवाज करते हुए कुल्ला करना। जैसे: गले की बीमारी में नमकयुक्‍त उष्ण जल का गरारा करना लाभप्रद होता है।

गरिमा - (स्त्री.) (तत्.) - 1. भारीपन, 2. महत्व, बड़प्पन, महिमा, 3. श्रेष्‍ठता 4. आठ सिद् धियों में से एक सिद् धि जिससे साधक अपने आप को स्वेच्छा से भारी या हल्का कर सकता है।

गरिमामय - (वि.) (तत्.) - स्त्री. गरिमामयी। गरिमा से युक्‍त, गरिमा से पूर्ण। उदा. इस सम्मेलन में राष्‍ट्रपति की गरिमामयी उपस्थिति से हम अपने आपको सौभाग्यशाली मानते हैं।

गरियार - (वि.) ([तद्< गुर] ) - जो काम करने में सुस्त या आलसी हो। जैसे. उस किसान के दो बैलों में से एक बैल बहुत गरियार है, जो खेत जोतने के समय बैठ जाता है। टि. ग्रामीण प्रयोग।

गरीबी रेखा - (स्त्री.) (तत्.) - आय आमदनी के आधार पर सरकार द्वारा स्थिर की गई वह सीमा, जिससे नीचे आने वाले लोग ‘गरीब’ माने जाते हैं। टि. ऐसे गरीब लोगों को सरकार की ओर से कुछ विशेष सुविधाएँ दी जाती हैं।

गर्जन - (पुं.) (तत्.) - ऊँची भारी आवाज़ में बोलना, ऐसी आवाज़ में बोलना जो दूर तक सुनाई। दे. भय उत्पन्न करने वाली आवाज़। मुहा. गर्जन-तर्जन=ज़ोर-ज़ोर से क्रोधपूर्वक बोलना, किसी की ओर इशारा करते हुए या किसी को लक्ष्य करके ज़ोर-ज़ोर से बोलना।

गर्जना - (स्त्री.) (तत्.) - शेर की गर्जना सुनकर बच्चे डर गए।

गर्त - (पुं.) (तत्.) - आसपास की समतल जमीन की तुलना में गहरा स्थल। पर्या. गड्ढ़ा।

गर्तवास [गर्त=गड्ढ़ा+वास=रहना] - (पुं.) (तत्.) - शा.अर्थ गड्ढे में रहना। पुराकाल में बुर्ज़होम (वर्तमान कश्मीर में) के लोगों द्वारा रहने के लिए गड्ढे के अंदर बनाए गए घर। गड्ढे के अंदर जाने के लिए सीढि़याँ भी बनाई जाती थीं।

गर्भ - (पुं.) (तत्.) - 1. मूल अर्थ अंदर का भाग। उदा. मातृ-गर्भ (माँ का गर्भाशय); समुद्र के गर्भ में कई प्रकार की उपयोगी वनस्पतियाँ मिलती हैं; मंदिर का गर्भ-गृह (जिसमें देव प्रतिमा स्थापित होती हैं।) foetus

गर्भगृह - (पुं.) (तत्.) - मंदिर में रखी गई मूर्ति के नीचे, या कभी-कभी के साथ बना कक्ष, जहाँ पुजारी तो पूजा-अर्चना के लिए प्रवेश करता है किंतु सामान्यत: दर्शनार्थियों को वहाँ प्रवेश करने की अनुमति नहीं होती। sanctum sanctorum

गर्भाशय [गर्भ + आशय] - (पुं.) (तत्.) - शा.अर्थ गर्भ विकसित होने का स्थल। जीव. अंडवाहिनी का फूला हुआ अंतिम भाग जिसमें एक या अनेक अंडे या भ्रूण स्थित होते हैं। स्तनियों में यहाँ भ्रूण का परिवर्धन होता है।

गर्भाशय - (पुं.) (तत्.) - स्त्रियों, मादा पशुओं के पेट के अंदर का वह हिस्सा जिसमें जन्म से पहले बच्चा एक निश्‍चित कालावधि तक पलता है। पर्या. बच्चादानी utrass

गर्व - (पुं.) (तत्.) - दूसरों की तुलना में अपने या अपने से संबंद्ध किसी भी वस्तु, व्यक्‍ति, देश आदि की श्रेष्‍ठता की वजह से मन में होने वाली खुशी या संतोष की भावना। उदा. हमें अपने देश पर गर्व है। pride टि. इसे गुण माना जाता है, अवगुण नहीं। 2. किसी के अच्छे गुण, कार्य आदि का स्मरण कर उसके बारे में वक्‍ता के मन में उठने वाली श्रेष्‍ठता की भावना। उदा. (i) हमें अपने देश पर गर्व है। (ii) महाराणा प्रताप/शहीद भगतसिंह आदि का नाम लेते ही हमारा सीना गर्व से फूल जाता है। 3. अहंकार, घमंड, शेखी आदि का सूचक हीनतावाचक शब्द जिससे बचे रहने की सलाह प्राय: दी जाती है।

ग़लत - (वि.) (अर.) - 1. जो ठीक न हो, अशुद्ध। 2. असत्य, मिथ्या। विलो. सही।

गलतफहमी - (स्त्री.) (फा.) - किसी के द्वारा कही अच्छी बात का कुछ और ही अर्थ समझना; बात का मर्म समझने में धोखा होना। (जो प्राय: श्रोता को अनुचित लगता है।)

गलियारा - (पुं.) (देश.) - गली जैसा संकरा, लंबा और सीधा रास्ता। जो (i) आवास में एक कमरे के दरवाजे से दूसरे कमरे में; (ii) रेल के डिब्बे में प्रवेश द्वार से कई बैठने/सोने के कक्षों (खाँचों) में और (iii) दो देशों के बीच आने-जाने वाले मार्ग का सूचक है। corridor

गली - (स्त्री.) (तत्.) - बस्ती का तंग रास्ता। पर्या. कूचा, सरणी lane, street मुहा. गली-गली में मारे-मारे फिरना=इधर-उधर भटकना। तु. सडक़, मार्ग, राजमार्ग।

गलीचा1 - (पुं.) (अर.) - ऊन या सूत से बना भारी कलात्मक और महँगा बिछावन (जो प्राय: बैठक (आधुनिक ड्राइंगरूम) में बिछाया जाता है।) पर्या. कालीन।

गलीचा/ग़लीचा2 - (पुं.) - (तुर्की गलीच:) फर्श पर बिछाने का मोटा व कोमल बिछौना। पर्या. कालीन।

गवाह - (पुं.) (तत्.) - किसी घटना या दावे के प्रामाणिक या अप्रमाणिक होने के साक्ष्य रूप में बयान(गवाही) देने वाला व्यक्‍ति। दे. गवाही।

गवाह - (पुं.) (फा.) - किसी विवाद्य विषय में पक्ष अथवा विपक्ष की ओर से प्रस्तुत व्यक्‍ति जो संबंधित के बारे में अपनी निजी जानकारी या आँखों देखा हाल बताए। पर्या. साक्षी विटनेस

गवाही - (स्त्री.) (फा.) - (अदालत में) किसी घटना या दावे के साक्ष्य रूप में गवाह द्वारा दिया गया बयान। पर्या. साक्ष्य।

गवैया - ([तद्.< गातृक] ) (वि./पुं.) - गाने वाला, गायक।

ग़श - (पुं.) (अर.) - मूर्छा या बेहोशी। जैसे: वह अकस्मात् भयानक दुर्घटना देखकर ग़श खाकर गिर गया।

गहन - (वि.) (तत्.) - 1. जहाँ प्रवेश कठिनाई से हो, घना। जैसे: गहनवन। 2. परिश्रमपूर्वक और गहराई से किया गया, गहरा, गंभीर। जैसे: गहन अध्ययन 3. जिसे समझना कठिन हो, कठिन, दुरूह। जैसे: गहन विषय।

गहमागहमी - (स्त्री.) (देश.) - लोगों का आना-जाना, परस्पर बातें करना, आदि-आदि। जैसे: गहमागहमी भरा माहौल। उदा. शादी की गहमागहमी के माहौल में मैं थोड़ा भी आराम नहीं कर सका। पर्या. चहल-पहल, रौनक।

गहरा - (तद्.) ([वि.< गंभीर]) - 1. जिसकी थाह अधिक हो, ऐसा (पानी); अंदर की ओर फैला हुआ। 2. जिसका विस्तार नीचे की ओर अधिक हो, ऐसा (गड्ढ़ा) मुहा. गहरा आदमी=चतुर, आदमी (जो अपने मन के रहस्य छिपाए) गहरी घुटना/छनना=गहरी मित्रता, घनिष्‍ठ होना। गहरे जाना=किसी बात की गहराई में जाना।

गहराई - (स्त्री.) - 1. ऊपरी तल से भीतरी तल तक की दूरी। उदा. इस तालाब की अधिकतम गहराई 7 फुट है; चार फुट गहराई वाला गड्ढा खोदो। 2. जिसे जानना कठिन हो। उदा. इस व्यक्‍ति के मन की गहराई कोई नहीं भाँप सकता। 3. गहन अध्ययन। उदा. मैंने रामचरित मानस का गहराई से अध्ययन किया है।

गहराना अ.क्रि. - (तद्.) - 1. गहरा होना, 2. घना होते जाना। उदा. आसमान में बादल गहराने लगे हैं।

गह् वर - (वि.) (तत्.) - गहरा और अँधेरा खाईनुमा गडढ़ा जहाँ वस्तुओं को छिपाकर रखा जा सके या छिपकर रहा जा सके। उदा. गुफा, कंदरा, खोह।

गात - (पुं.) ([तद्<गात्र]) - 1. देह, शरीर। 2. शरीर का अंग। जैसे: गंगा स्नान से गात निर्मल हो गया, हृदय हर्ष से भर गया। टि. काव्य में प्रयोग।

गाथा - (स्त्री.) (तत्.) - 1. (हिंदी साहित्य के आरंभिक काल की) वह पद् यात्मक रचना जिसमें वीर नायकों का विस्तृत विवरण प्रभावोत्पादक शैली में गाया जाता था। बैलेड 2. प्राकृत भाषा में एक छंद का नाम। 3. प्रचलित। सा.अर्थ कोई भी कथा, कहानी या वृतांत (उलाहना के रूप में प्रयुक्‍त)। जैसे: तुम यह कौन सी गाथा गाने लगे?

गाद - (स्त्री.) (तत्.) - तरल पदार्थ (पानी, तेल आदि) के नीचे बैठी अथवा उसके बह जाने पर जमा हुई गाढ़ी मैल, तलछट।

गान - (पुं.) (तत्.) - वह जो गाया जा सके; गाई जा सकने वाली काव्य रचना। पर्या. गीत। उदा. राष्‍ट्रगान (टि. भारतीय संदर्भ में राष्‍ट्रगान ‘नेशनल एंथम’ (जन गण मन….) और राष्‍ट्रगीत national song (वंदे मारतम्) में तकनीकी दृष्‍टि से भेद किया जाता है।

गायक - (वि./पुं.) (तत्.) - 1. गायन करने वाला, गाने वाला। 2. गाने की विद्या में निपुण। पर्या. गवैया।

गायन - (पुं.) (तत्.) - 1. गाने की क्रिया या भाव। उदा. भजन गायन। 2. वह रचना जो गाई जा सके या गाई गई हो। पर्या. गाना, गीत, गान।

गायब - (वि.) (अर.) - 1. जो पहले दिखाई दे रहा हो, पर अब नहीं दीखता हो। अदृश्य। 2. जो एकाएक अदृश्य हो गया हो। पर्या. लुप्‍त, अन्तर्धान। जैसे: हमारे देखते-देखते वह कहीं गायब हो गया।

गारा - (पुं.) (देश.) - 1. भवन बनाते समय ईंटो को जोड़ने के लिए प्रयुक्‍त रेत या चूना, मिट् टी आदि का पानी सना लसदार मिश्रण, जिसे ‘मसाला’ भी कहा जाता है। 2. चिकनी काली मिट् टी का पानी सना लसदार कंकड या गांठ रहित मिश्रण जिससे कुम्हार मिट् टी के बर्तन गढ़ता है।

गारी - (स्त्री.) - [ब्रज<गाली] 1. क्रोध में कहे गए दुर्वचन या अश्‍लील वचन। 2. लोकगीतों में हास्य-व्यंग्य प्रधान गारियाँ (गालियाँ) जिनका बुरा नहीं माना जाता।

गॉल्‍जीकाय - (स्त्री.) (अं.+तत्.) - प्राणि. कोशिकाओं में पाई जाने वाली प्रोटीन तथा लिपॉइडकी पटलिकाओं से बनी संरचना या अंगक, जो संभवत: कुछ स्रावों के बनने में योगदान देता है। golgi trodies

गाहन सं.क्रि./ - (पुं.) - कृषि पक जाने पर काटी गई फसल से बीजों/दानों को भूसी से अलग करने की क्रिया। अब यह कार्य थ्रेशर या मशीन द्वारा किया जाता है।

गाहनयंत्र - (पुं.) (दे.) - गाहना।

गाहना - - स.क्रि.(देश) अनाज के डंठलों से दाने अलग करने की क्रिया। थ्रैशिंग

गिड़गिड़ाना अ.क्रि. - (देश.) - अत्यधिक दीनता प्रदर्शित कर अनुनय-विनय करना। उदा. चोर गिड़गिड़ाता रहा किंतु पुलिस ने उसकी एक न सुनी और ले जाकर थाने में बद कर दिया।

गिद्दा - (वि.) (देश.) - पंजाब का एक लोकनृत्य जो प्राय: स्त्रियों द्वारा मांगलिक उत्सवों पर किया जाता है। तु. भांगड़ा।

गिद्ध - (पुं.) (तद्.< गृध्र) - एक बड़े आकार का शिकारी पक्षी जो प्राय: मृत शरीर को खाता है तथा दृष्‍टिशक्‍ति तीक्ष्ण होने के कारण बहुत ऊँचाई से भी अपने शिकार/खाद् य को देख लेता है। vulture

गिरधर - (तद्<गिरिधर) (पु.) - शा.अर्थ वि. पर्वत को धारण करने वाला। बहुव्रीहि समास-गोवर्धन पर्वत धारण करने वाले यानी अपनी उंगली पर उठा लेने वाले श्रीकृष्ण।

गिरफ़्तार - (वि.) (फा.) - 1. जिसे पकड़ लिया गया हो, जिसे सैनिकों या पुलिस द्वारा कब्ज़े में कर लिया गया हो। 2. किसी विपत्‍ति, बीमारी या लत आदि में फंसा हुआ।

गिरफ़्तारी - (स्त्री.) - (फ़ार) गिरफ़्तार किए जाने की क्रिया या स्थिति।

गिरि - (पुं.) (तत्.) - पर्वत, पहाड़। जैसे: मलय गिरि।

गिरोह - (पुं.) (फा.) - लोगों का समूह या झुंड। पर्या. टोली। टि. प्राय: बुरे लोगों की टोली के अर्थ में प्रयुक्‍त।

गिरोहबंदी - (स्त्री.) (फा.) - गिरोह बनाने का कार्य। दे. गिरोह।

गिलट - (पुं.) - [अं.< गिल्ड] 1. एक कम मूल्यवाली धातु (निकल) जो चाँदी जैसी दिखती है और इसलिए चाँदी में इसकी मिलावट भी कर दी जाती है। 2. सोने-चाँदी का मुलम्मा।

गिल्ली-डंडा [गिल्ली+डंडा] - (पुं.) (तद्.) - बच्चों का एक खेल विशेष जिसमें लकड़ी से बनी चार अंगुल की गिल्ली और हाथ भर लंबा डंडा काम आता है।

गीतकार - (वि./पुं.) (तत्.) - गीत लिखने वाला, ऐसा कवि जो गाने योग्य कविताएँ लिखता हो। lyric poet

गुंजन - (पुं.) (तत्.) - पक्षियों और कीट-पंतंगों की समेकित मधुर ध्वनि। जैसे: भौंरों का गुंजन।

गुंजाइश - (स्त्री.) (तत्.) - किसी कार्य के घटित होने के लिए आवश्यक पर्याप्‍त स्थान, समय, धन, सुविधा आदि की स्थिति। उदा. 1. इस सभा भवन में सौ लोगों के बैठने की गुंजाइश है। 2. मेरे लिए इस समय और अधिक खर्च करने के लिए गुंजाइश नहीं है।

गुंडई - (स्त्री.) - (हिं. गुंडा) 1. गुंडा होने की अवस्था या भाव, गुंडापन, गुंडागर्दी। 2. दुष्‍टता, नृशंसता, शरारत। उदा. थोड़ी सी बात को लेकर वे कल गुंडई पर उतर आये।

गुंडा - ([तद्< गुण्डक/गण्डक]) (वि.) - 1. उद्दंड व दुश्चरित्र। 2. परपीडक, 3. बदमाश। उदा. आजकल गुंडों का खौफ सब जगह व्याप्‍त है।

गुंबद - (पुं.) (फा.) - उलटे घड़े के आकार की अर्धगोलाकार छत। जैसे: ताजमहल का गुबंद। (डोम)

गुग्गल - (पुं.) (तत्.) - < गुग्गुल) वृक्ष विशेष का गोंद जिसे सुगंध के लिए जलाते हैं।

गुज़रना अ.क्रि. - (फा.) - 1. बीतना, उदा. समय गुज़रना। 2. (से होकर) निकलना/जाना। उदा. हरिद्वार जाते समय मैं दिल्‍ली स्टेशन होकर गुजरा।

गुज़रना अ.क्रि. - (फा.) - समय बीताना। उदा. इतना समय गुजर गया और पता ही नहीं चला। किसी स्थान से होकर निकलना। उदा. यात्रा पर जाते हुए जब हम तुम्हारे गांव से गुजरेंगे तो थोड़ी देर के लिए वहाँ जरूर रूकेंगे। मुहा. (पर) गुज़रना=विपत्‍ति पड़ना। उदा. मेरे ऊपर क्या गुज़र रही है मैं ही जानता हूँ। गुज़रना/गुज़र जाना=मृत्यु हो जाना। उदा. पिताजी को गुज़रे छह महीने हो गए; लालाजी कल रात गुज़र गए।

गुज़ारना स.क्रि. - (फा.) - 1. बिताना, जैसे: समय गुजारना। 2. (से होकर) निकालना। जैसे-सुई के छेद से धागा गुजारना।

गुज़रना अ.क्रि. - (फा.) - 1. बीतना। उदा. समय गुजरना 2. ( से होकर निकलना/जाना। उदा. हरिद् वार जाते समय मैं दिल्‍ली स्‍टेशन होकर गुज़रा)।

गुज़र-बसर - (पुं.) (फा.) - मूल.अर्थ समय बीतना। सा.अर्थ-जीवन-निर्वाह, गुज़ारा। उदा. महंगाई के दिनों में गरीबों का गुज़र-बसर बड़ी मुश्किल से हो पाता है।

गुज़ारा - (पुं.) (फा.) - 1. भरण-पोषण जीवन-निर्वाह। उदा. तुम नौकरी नहीं करते हो, फिर तुम्हारे परिवार का गुज़ारा कैसे होता है? 2. जीवन-निर्वाह के लिए मिलने वाला धन। उदा. निलंबित होने पर उसे गुज़ारा भत्‍ता मिलने लगा।

गुटनिरपेक्ष - ([तद्<गोष्‍ठ+सं. निरपेक्ष]) (पुं.) - 1. जो किसी विशेष गुट या दल से जुड़ा हुआ न हो तथा विचार करते समय किसी गुट या विशेष विचारधारा से प्रभावित न हो। 2. समान अंतराष्‍ट्रीय उद् देश्यों और हितों वाले कुछ राष्ट्राध्यक्षों की मंडली जो महाशक्‍ति वाले राष्‍ट्रमंडल में शामिल न होकर, स्वतंत्र रूप से काम करती हैं। विशेष-1961 में यूगोस्लाविया में वहाँ के राष्‍ट्रपति टीटो, मिस्र के राष्‍ट्रपति ‘कर्नल नासिर’ तथा भारत के प्रधानमंत्री पं. जवाहर लाल नेहरू ने मिलकर अंतर्राष्‍ट्रीय गुटनिरपेक्ष संगठन बनाया। बाद में अफ्रीका, पाकिस्तान आदि एशियाई देश भी इसमें शामिल हो गए। इसमें भारत की प्रमुख भूमिका थी। ये देश संयुक्‍त राज्य अमेरिका और तत् कालीन सोवियत यूनियन से किसी भी रूप में संबंद्ध नहीं थे।

गुटर-गूँ - ([देश. अनु.]) (स्त्री.) - 1. कबूतर की आवाज़। 2. दो लोगों के बीच परस्पर घुल-मिलकर एकांत में हुई बातचीत। (विशेष रूप से प्रेमालाप)।

गुड़ - ([तद्<गुड]) (पुं.) - ईख या खजूर के रस को पकाकर गाढ़ा किया हुआ मीठे स्वाद वाला ठोस पदार्थ। मुहा. गुड़-गोबर होना/करना=काम का बिगड़ जाना; काम (को) बिगाड़ देना। गूंगे का गुड़=सुखद बात किंतु जिसका वर्णन न किया जा सके।

गुड़गुडाना - - अ.क्रि./स.क्रि. (अनु.) ‘गुड़-गुड़’ जैसी आवाज़ निकलना/निकालना। जैसे: हुक्का गुड़गुड़ाना। तु. गड़गड़ाना।

गुडि़या - (स्त्री.) (देश.) - 1. मनुष्य की आकृति वाला कोई खिलौना जिससे बच्चे खेलते हैं। dall जैसे: गुडि़याघर dalls museum 2. खूब सजी हुई कोई लकड़ी या प्‍लास्‍टिक की लडकी नुमा आकृति। मुहा. गुडि़यों का खेल=बहुत ही सरल काम।

गुण - (पुं.) (तत्.) - किसी में पाई जाने वाली विशेषता जिससे वह सामान्य की अपेक्षा अलग लगे; प्रशंसनीय बात, विशेषता। उदा. लाठी में गुण बहुत है, सदा राखिए संग। विलो. अवगुण, दोष।

गुणक - (पुं.) (तत्.) - गणि. वह संख्या जिससे दूसरी संख्या को गुणा किया जाए। जैसे: 12×4 = 48 में 4 गुणक है। multiplayer

गुणगान (गुण+गान) - (पुं.) (तत्.) - किसी के गुणों का बखान; यानी बार-बार कथन या वर्णन।

गुणज - (पुं.) (तत्.) - गणि. वह संख्या जो किसी पूर्णांक और एक अन्य पूर्णांक का गुणनफल हो। multipal

गुणता - (स्त्री.) (तत्.) - किसी वस्तु की सर्वमान्य कसौटी के अनुरूप होने की स्थिति या भाव। quality

गुणता/गुणवत्‍ता नियंत्रण - (पुं.) (तत्.) - उत्पादन के विभिन्न चरणो में कड़ी जाँच के जरिए वह सुनिश्‍चित करते रहना कि वस्तु पूर्वानिर्धारित मानकों के अनुसार ही तैयार हो रही है। quality control

गुणधर्म [गुण+धर्म] - (पुं.) (तत्.) - किसी व्यक्‍ति, वस्तु या पदार्थ में निहित नैसर्गिक गुण या लक्षण। उदा. ‘विवेक’ मनुष्य का, ‘दहन’ अग्नि का और ‘बहना’ द्रव का गुणधर्म है। property

गुणन - (पुं.) (तत्.) - गणि. वह गणितीय संक्रिया जिसके अनुसार दो अलग-अलग दी गई पूर्णांक संख्याओं में से किसी एक संख्या को दूसरी (अन्य) संख्या के बराबर दोहरा कर परिणाम निकाला जाता है। इसका संक्रिया का चिह्न x है। जैसे: 4×3 = 4+4+4 या 3+3+3+3 multiplaction

गुणनखंड - (पुं.) (तत्.) - गणि. दी गई संख्या को विभाजित करने वाली एकाधिक संख्याओं में कोई एक। जैसे : 12 = 4×3, या 3×4 या 2x2x3 factor

गुणनफल - (पुं.) (तत्.) - गणि. दो या दो से अधिक संख्याओं पर गुणन संक्रिया लागू करने पर प्राप्‍त फल। जैसे : 4×3 = 12, 4x3x2 = 24 आदि। product

गुणवत्‍ता - (स्त्री.) (तत्.) - किसी वस्तु की उत्कृष्‍टता, शुद् धता आदि सर्वमान्य कसौटियों के अनुरूप होने की स्थिति या भाव। पर्या. गुणता। quality

गुणसूत्र - (पुं.) (तत्.) - व्यु.अर्थ गुणों का वहन करने वाला और धागे के आकार वाला पदार्थ। जीव. कोशिका केंद्रकों में विद्यमान सूक्ष्म सघन धागे के समान आनुवांशिकता की वाहक इकाईयाँ। जीव विशेष में इनकी संख्या नियत होती है। chromosome

गुणात्मक [गुण+आत्मक] - (वि.) (तत्.) - 1. गुणों के अनुसार, जैसे: गुणात्मक दृष्‍टिकोण qualititye 2. (गणि.) गुणन की प्रक्रिया वाला, जैसे-गुणात्मक श्रेणी – 1, 2, 4, 8…..। (जीव. वि.) गुणात्मक सूत्र।

गुणानुक्रम [गुण+अनुक्रम] - (पुं.) (तत्.) - गुण, योग्यता, श्रेष्‍ठता आदि के आधार पर प्रथम, द्वितीय, तृतीय आदि स्थानों का निर्धारित क्रम।

गुत्थी [<गुथना] - (स्त्री.) - 1. इकट्ठी हो गई कोई रस्सी, डोरी, धागा आदि जिसे सीधा या अलग-अलग करना कठिन हो रहा हो। पर्या. उलझन। entanglement

गुदगुदा [<गोदना/तद्.<गुर्दगुर्दक] - (तद्.) (वि.) - ऐसे कोमल अंगों वाला जिन्हें छूने या सहलाने मात्र से गुदगुदी का अनुभव हो। दे. गुदगुदी।

गुदगुदी गुदगुदी [<गोदना/गुर्दिका गुर्द] - (दे.) - 1. किसी के कोमल अंगों को छूने या सहलाने मात्र से उसे होने वाला मधुर अनुभव। 2. मधुर स्मृतियों में खो जाने से होने वाला अनुभव। 3. मधुर भविष्य का चिंतन करते समय होने वाली उत्कंठा।

गुदगुदी [<गोदना/गुर्दिका गुर्द] - (स्त्री.) - 1. किसी के कोमल अंगों को छूने या सहलाने मात्र से उसे होने वाला मधुर अनुभव। 2. मधुर स्मृतियों में खो जाने से होने वाला अनुभव। 3. मधुर भविष्य का चिंतन करते समय होने वाली उत्कंठा।

गुदड़ी - ([देश.<क्षुद्र]) (स्त्री.) - फटे-पुराने कपड़ों को सीकर बनाया गया बिछावन या ओढ़न। पर्या. कन्था। मुहा. गुदड़ी का लाल=निर्धन परिवार में जन्मा गुणी बालक।

गुदा - (स्त्री.) (तत्.) - (मलद्वार) आहार नाल के अंतिम भाग, मलाशय (खेतम) का बाहर की ओर खुलने वाला छिद्र जिससे होकर मल बाहर निकलता है। पर्या. मलद्वार। anus

गुप्‍त - (वि.) (तत्.) - छिपा हुआ., जिसे लोग न जानते हों या दूसरे लोगों से छिपाकर किया गया हो जैसे: गुप्‍तधन, गुप्‍तमार्ग, गुप्‍तदान।

गुप्‍तचर [गुप्‍त+चर] - (पुं.) (तत्.) - शा.अर्थ गुप्‍त रूप से यानी छिपकर चलने वाला अर्थात गोपनीय ढंग से कार्य करने वाला। राज. कर्मचारी जो गुप्‍त रूप से किसी बात का पता लगा कर अपने मालिक (या नियोक्‍ता) को सही बात की जानकारी उपलब्ध कराए। पर्या. जासूस। detective sped

गुफ़ा - (स्त्री.) (तत्.) - पहाड़ के अंदर बना प्राकृतिक या किसी सतह के नीचे कृत्रिम रूप से निर्मित लंबाई-चौड़ाई वाला स्थान। जैसे: शेर की गुफ़ा, अजंता-ऐलोरा की गुफाएँ। पर्या. कंदरा।

गुमटी - (तद्.) (स्त्री.) - <गुल्मटिका] 1. लकड़ी, लोहे की चादरों से बनी दरवाजों से युक्‍त वह अस्थायी दूकान जिसे स्थानांतरित किया जा सकता है। पर्या. खोखा। 2. चौकीदार आदि के बैठने का इसी प्रकार का कमरा।

गुमराह - (वि.) (फा.) - शा.अर्थ 1. रास्ते से भटका; गुम हो गई (खो गई) राह। 2. संमर्ग या नीति मार्ग से च्युत।

गुमसुम [गुम=खोया हुआ+सुम=गूंगा-बहरा] - (पुं.) (अर.) - 1. वह व्‍यक्‍ति जो किसी शोक या चिंता या किसी की स्मृति में इतना खो जाए कि कुछ बोल-सुन न सके। 2. शांत, नि:स्तब्ध व्यक्‍ति जो एकांत चिंतन में लगा हो। जैसे: कवि, साहित्यकार आदि।

गुमान - (पुं.) (फा.) - अपने को दूसरों से श्रेष्‍ठ समझने की भावना जिसे प्राय: अनुचित समझा जाता है। पर्या. घमंड, अहंकार।

गुर - (पुं.) (तत्.) - कठिन काम संपन्न करने का सही, संक्षिप्‍त व सरल उपाय या तरीका; युक्‍ति। उदा. अपना काम निकलने के गुर कोई तुमसे सीखे।

गुरु - (पुं.) (तत्.) - 1. मंत्र दीक्षा या ज्ञान का मार्ग बताने वाला व्यक्‍ति। 2. छात्रों को पढ़ाने वाला, शिक्षक, अध्यापक। पर्या. आचार्य, उस्ताद। 3. माता-पिता या बड़ी आयु के लोग। 4. बृहस्पति ग्रह। वि. भारी, वजनी 5. छंद में मात्रा के लिए प्रयुक्‍त “S” गुरु।

गुरुत्व बल [गुरुत्व+बल] - (पुं.) (तत्.) - शा.अर्थ भारीपन की शक्‍ति। भू. पृथ्वी की वह गुरूत्वाकर्षण शक्‍ति जिससे वस्तुएँ आसमान से पृथ्वी की ओर आकृष्‍ट होकर उस पर गिरती हैं। gravitation, gravitational force

गुरुत्वाकर्षण [गुरूत्व+आकर्षण] - (पुं.) (तत्.) - शा.अर्थ (परस्पर) आकर्षित करने का सूचक भाव। 1. खगोलीय पिंडों का वह प्राकृतिक गुणधर्म जिससे वे एक-दूसरे को अपनी ओर आकृष्‍ट करते हैं। 2. पृथ्वी का वह बल जो उसके गुरुत्वीय क्षेत्र में किसी वस्तु को स्वत: अपनी ओर आकृष्‍ट कर लेता है। gravitation

गुरूमंत्र - (पुं.) (तत्.) - 1. वह मंत्र जो गुरु के द्वारा किसी को अपना शिष्य बनाते समय दिया जाता है, इसे प्राय: गुप्‍त रखा जाता है। 2. ला.अर्थ किसी व्यक्‍ति के द्वारा सफलता प्राप्‍ति के लिए या विपत्‍ति से बचाव के लिए बताया गया कोई गोपनीय विशिष्‍ट उपाय। उदा. मैं सत्‍ता प्राप्‍ति का तुम्हें गुरुमंत्र बताता हूँ ध्यान से सुनो।

गुरुमाता - (स्त्री.) (तत्.) - 1. गुरु की पत्‍नी। 2. धार्मिक उपदेश देने वाली महिला जिसे भक्‍तगण माता का दर्जा दे देते है। पर्या. गुरुमाँ।

गुल - (पुं.) (फा.) - 1. फूल, पुष्प। मुहा. गुल खिलाना=(व्यंग्य में) कोई अनोखा काम करना। 2. दीपक की बत्‍ती। मुहा. चिराग गुल करना=दीपक बुझाना।

गुलदस्ता [गुल=फूल+दस्ता=हाथों में रहने वाला] - (पुं.) (फा.) - फूल-पत्‍तियों का बनाया हुआ सुंदर गुच्छा या समूह। पर्या. फूलों का गुच्छा, पुष्पगुच्छ।

गुलदान [गुल=फूल+दान=रखने का पात्र] - (पुं.) (फा.) - वह पात्र जिसमें शोभा के लिए फूल पत्‍तियाँ सजा कर रखे जाते हैं।

गुलशन - (पुं.) - बाग, वाटिका, उद्यान।

गुलिका - (स्त्री.) (तत्.) - 1. फलियों वाले पौधों की जड़ों की ग्रंथियाँ जिसमें नाइट्रोजन को स्थिर करने वाले जीवाणु होते हैं। 2. एक छोटा कंद tuber 3. कंद (ट्यूबर) जैसी प्रतीत होने वाली जड़ जिससे अपस्थानिक मूल (Adventitions root) निकलते रहते हैं। Tubercle, tuberculum

गुल्म - (पुं.) (तत्.) - 1. घने वृक्षों या झाडि़यों का समूह। पर्या. झुरमुट। 2. तिल्ली में होने वाली गांठ (एक रोग) 3. सैनिकों की टुकड़ी विशेष।

गुल्लक - ([तद्.<गोलक]) (स्त्री.) - 1. मूलत: मिट्टी का बना वह गोल और बंदमुख वाला पात्र जिसके सिर से सिक्के डालकर बच्चे पुराने समय में धन संग्रह किया करते हैं। आधुनिक युग में इस पात्र ने प्लास्टिक के खिलौने अथवा टिन के रंग-बिरंगे डिब्बे का रूप ले लिया है। 2. दुकानों में प्रयुक्‍त प्रतिदिन की आय का संग्रह करने वाली छोटी पेटी।

गुल्ली/गिल्ली - ([तद्<गुलिका=गुठली] ) (स्त्री.) - 1. किसी फल की गुठली। 2. लकड़ी के दोनों सिरों पर नुकीला गढ़ा हुआ छोटा टुकड़ा, जिससे ‘गुल्ली-डंडा’ नामक खेल खेला जाता है।

गुसलखाना [गुसल/गुस्ल=स्नान+ख़ाना=घर] - (पुं.) (अर.+फा.) - नहाने का कमरा। पर्या. स्नानघर। bathroom

गुस्सा - (पुं.) (अर.) - किसी के प्रति बहुत अधिक अप्रसन्नता की भावना जो शारीरिक हाव-भावों से प्रकट हो जाती है। पर्या. क्रोध, कोप। मुहा. गुस्सा चढ़ना=क्रोध से आवेश में आना। गुस्सा उतरना/निकलना=क्रोध शांत हो जाना। गुस्सा पीना=संयमपूर्वक क्रोध को दबा लेना।

गुहार - (स्त्री.) (देश.) - अचानक आई किसी मुसीबत से छुटकारा पाने या बचाव के लिए की जाने वाली पुकार। जैसे: घर में डाकुओं के घुसने पर वृद् ध महिला ने रक्षा या बचाव के लिए गुहार लगाई।

गुहय - (वि.) (तत्.) - 1. जो छिपने या छिपाने योग्य हो, गोपनीय। 2. जिसका समझना सरल न हो, गूढ़। 3. छिपा हुआ या छिपाया हुआ, गुप्‍त। जैसे : गुहय अंग, गुह् य बात। 4. रहस्यमय, जैसे : यह विद्या अत्यंत गुह् य है। पुं. शरीर के गुप्‍त अंग, रहस्य।

गूँथना - (तद्<ग्रथन) - स.क्रि. 1. एक-दूसरे के साथ मिलाना। जैसे: बाल गूँथना, चोटी गूँथना। 2. धागे में पिरोकर माला बनाना। जैसे: फूल गूँथना, मोती गूँथना।

गूदा [<गुद्द-फ़ार.] - (पुं.) - पके हुए फल का छिलके और गुठली के बीच का कुछ ठोस पर मुलायम भाग। pulp

गृहकलह - (पुं.) (तत्.) - 1. घर या परिवार के सदस्यों के बीच आपसी लड़ाई-झगड़ा। 2. किसी राजनीतिक दल के गुटों के बीच चल रहा सत्‍ता-संघर्ष।

गृहकार्य (गृह+कार्य) - (पुं.) (तत्.) - 1. घर का काम, घर में किए जाने वाले सारे काम। उदा. यह बालिका गृहकार्य में निपुण है। 2. अध्यापक द्वारा छात्रों को घर में करने के लिए दिया जाने वाला कार्य। उदा. तुम आज गृहकार्य करके क्यों नहीं लाए? home work

गृहनगर - (पुं.) (तत्.) - 1. मूल निवास स्थान।, 2. व्यक्‍ति द्वारा नियमानुसार स्वत: घोषित उस नगर का नाम जहाँ कर्मचारी को उसका नियोजक/विद्यालय आने-जाने के लिए आर्थिक सुविधा प्रदान करता है। home town

गृहपत्‍नी [गृह+पत्‍नी] - (स्त्री.) (तत्.) - घर की मालकिन जो घर के सारे कामों की देखभाल करती है। पर्या. गृहिणी, गृहस्वामिनी।

गृहप्रवेश - (पुं.) (तत्.) - नया घर बन जाने या खरीद लेने के बाद शुभ मुहूर्त में पूजा-पाठ करके पहली बार उसमें निवास करने की रस्म।

गृहयुद्ध (गृह+युद्ध) - (पुं.) (तत्.) - 1. घर की लड़ाई। पर्या. गृहकलह। 2. एक ही देश के विभिन्न समूहों के बीच की आपसी लड़ाई। civil war

गृहस्थ [गृह+स्थ] - (पुं.) (तत्.) - शा.अर्थ घर में स्थित। शा.अर्थ गृहस्थाश्रम मे स्थित व्यक्‍ति; जो घरबार चलाते हुए परिवार का पालन-पोषण करता है। पर्या. घरबारी।

गृहस्थाश्रम [गृहस्थ+आश्रम] - (पुं.) (तत्.) - भारतीय संस्कृति के अनुसार मनुष्य जीवन के चार आश्रमों (ब्रह् मचर्य, गृहस्थ, वानप्रस्थ और संयास) मे से सबसे महत्वपूर्ण दूसरा आश्रम। इस आश्रम में व्यक्‍ति विवाह कर अपने परिवार का पालन-पोषण करता है। अन्य तीनों आश्रम भी किसी-न-किसी रूप में इसी आश्रम पर आश्रित रहते हैं।

गृहस्थी - (स्त्री.) (तत्.) - गृहस्थ जीवन। दे. गृहस्थ।

गृहस्वामिनी - (स्त्री.) (तत्.) - घर की मालकिन।

गृहस्वामी - (पुं.) (तत्.) - 1. घर का मालिक, घर के कागज़ात जिसके नाम पर लिखे गए हों। 2. घर का मुखिया।

गृहिणी - (स्त्री.) (तत्.) - 1. घर की मालकिन; परिवार का पालन-पोषण करने वाली। 2. वह महिला जो कहीं नौकरी न कर केवल घर का कामकाज ही करती हो। house wife

गेट - (पुं.) (अर.) - 1. किसी भवन, ग्राउंड, उद्यान आदि में प्रवेश के लिए लकड़ी या लोहे का बनाया गया विशेष द्वार, फाटक, दरवाजा। जैसे: इस सचिवालय में जाने का गेट उत्‍तर दिशा में है। 2. प्रवेश मार्ग, प्रवेश द्वार। 3. विशेष ऐतिहासिक स्थान। जैसे: इंडिया गेट, दिल्ली गेट आदि।

गेरू - (तद्.< गैरिक) (पुं.) - 1. एक प्रकार की लाल रंग की खनिज मिट् टी जो पहले गाँवों में घर लीपने-पोतने के काम आती थी। 2. हेमाटाइट की एक लाल मटमैली किस्म जो वर्णक के रूप में प्रयोग में लाई जाती है। पर्या. गैरिक।

गैंगरीन - (पुं.) (अर.) - एक रोग जिसमें किसी अंग को रक्‍त-आपूर्ति न हो पाने के कारण या विषाणु संक्रमण के परिणामस्वरूप उस अंग के ऊतक नष्‍ट हो जाते हैं और वह हिस्सा चेतना शून्य हो जाता है। रोग को फैलने से बचाने के लिए उस अंग को काट देना ही उचित उपाय माना जाता है। पर्या. कोथ।

गैर - (वि.) (अर.) - 1. अपने से भिन्न, पराया, दूसरा, अन्य। 2. अपने समाज, बिरादरी, वर्ग आदि से बाहर का। उपसर्ग अर. निषेधसूचक अर्थ देने वाला उपसर्ग। जैसे: गैर हाजि़र, गैरज़रूरी।

गैर आबाद - ([अर.+फा.]) (वि.) - 1. वह इलाका या घर जहाँ कोई रहता न हो। 2. वह खेत जो जोता-बोया न गया हो।

गैर-इंसाफ़ी - ([अर.+अर.]) (अर.) - + स्त्री. न्याय न हो पाने की स्थिति।

गैर-कानूनी - ([अर.+अर.]) (अर.) - + वि. जो विधि सम्मत न हो। उदा. सड़क पर अतिक्रमण गैर कानूनी है।

गैर-जि़म्मेदार - ([अर.+अर.+फा.]) (फा.) - स्त्री. दायित्व-निर्वाह न करने का सूचक भाव।

गैर-जि़म्मेदारी - (अर.) (फा.) - +अर.+ स्त्री. दायित्व-निर्वाह न करने का सूचक भाव।

गैर-सरकारी - (अर.+फा.) (वि.) - जिस पर सरकार का प्रत्यक्ष नियंत्रण न हो; जो सरकार के अधीन न हो। जैसे: गैर-सरकारी सदस्य, गैर-सरकारी संगठन।

गैर हाजि़र - (वि.) (अर.) - जो हाजि़र न हो, अनुपस्थित।

गैर मिलनसार - - (व्यक्‍ति) जिसमें अपने समाज/वर्ग के अन्य सदस्यों से मिलने-जुलने या आत्मीयता बढ़ाने की भावना न्यूनतम हो।

गैर मुनासिब [गैर+मुनासिब=उचित] - (वि.) (अर.) - जो उपयुक्‍त या उचित न हो। पर्या. अनुचित।

गैलन - (वि.) (अर.) - इंग्लैंड की नाप-तौल प्रणाली के अनुसार द्रव पदार्थों की धारिता का एक माप जो मीट्रिक प्रणाली के अनुसार लगभग 4.55 लीटर के बराबर होता है। अमेरिकन मीट्रिक प्रणाली में यह 3.79 लीटर के बराबर माना जाता है। एक गैलन = आठ पिंट।

गैस - (स्त्री.) - (अं.) 1. द्रव्य की हवा जैसी वह अवस्था जिसका अपना कोई निश्‍चित आकार और आयतन नहीं होता, इसलिए ऑक्सीजन गैस, हाइड्रोजन गैस आदि। जैसे: वह जिस प्रकार के पात्र में संचित होती है उसी का आकार और आयतन ग्रहण कर लेती है। 2. ईंधन के रूप में उपलब्ध ज्वलनशील द्रव्य। जैसे: रसोई गैस

गैस लाइटर - (पुं.) (अर.) - गैस जलाने के उपयोग में आने वाला उपकरण।

गॉथ - (पुं.) (अं.) - (अं.) मूल रूप में जर्मनी के निवासी जाति जो तीसरी से पाँचवीं शताब्दी के बीच रोमन साम्राज्य में बस गए थे।

गॉथिक - (वि.) - (अं.) गांथ लोगों से संबंधित। टि. गॉथिक भवननिर्माण कला नुकीले मेहराबदार निर्माण के लिए प्रसिद् ध है। गॉथिक संगीतकला रहस्यमय संगीत देने वाली मानी जाती है। गॉथिक लेखन में टेढ़े नुकीले अक्षर लिखे जाते हैं।

गॉल्जीकाय - (स्त्री.) (अं.+तत्.) - प्राणि-कोशिकाओं में पाई जाने वाली प्रोटीन तथा लिपाइड Lipoid की पटलिकाओं से बनी संरचना या अंगक, जो संभवत: कुछ स्रावों के बनने में योगदान देता है। Golgitrodies

गोंद - (पुं.) (देश.) - कुछ विशेष पेड़ों के तने पर इकट्ठा होने वाला लेसदार स्राव।

गोकि (गोया कि) - (अव्य.) (फा.) - जैसे : कि, मानो, कैंधो (कविता में) उदा. इतना उजाला हो गया, गो कि कई सूरज उग आए हों।

गोठ - ([तद्.< गोष्‍ठ] ) (स्त्री.) - 1. गौएँ बाँधकर रखने का स्थान। पर्या. गोशाला। 2. मिल जुलकर की गई दावत।

गोता - (पुं.) (अर.) - गहरे पानी में शरीर को पूरी तरह डुबोना। पर्या. डुबकी। मुहा. गोता लगाना (कुछ समय के लिए अदृश्य हो जाना)

गोताख़ोर - ([अर.+फा.]) (फा.) - + वि. 1. गहरे पानी में डुबकी लगाने वाला (व्यक्‍ति या पक्षी)। 2. नदी, तालाब आदि में डूबते व्यक्‍ति को बचाने में सिद् धहस्त तैराक। 3. वह खिलाड़ी जो ऊँचाई से पानी में कूदने की प्रतियोगिता में भाग लेता हो।

गोताखोरी - ([अर.+फा.]) (फा.) - + स्त्री. 1. पानी में गोता लगाने की क्रिया। 2. ऊँचाई से पानी में कूद कर गहराई में पहुँचने के बाद तुरंत पानी की सतह पर आने से संबंधित खेलकूद प्रतियोगिता।

गोतिया - ([तद्.< गोत्र]) (वि.) - <1. जो एक ही गोत्र से संबंधित हो, अपने ही गोत्र का। गोती। जैसे : यहाँ पर हमारा गोतिया भाई रहता है। 2. गोत्र संबंधी जैसे: यही हमारी गोतिया परंपरा है।

गोतीत - ([तद्.> गोडतीत]) (वि.) - जिसे इंद्रियों से जाना न जा सके। अगोचर। जैसे: आत्मा और परमात्मा गोतीत हैं।

गोदाम (अंग्रेजी से अनुकूलित गोडाउन<मलय भाषा गोदोंग) - (पुं.) - वह स्थान जहाँ बिक्री योग्य सामान निर्माण के बाद और बाज़ार में भेजे जाने से पहले इकट् ठा करके रखा जाता है। ware house, godown

मालगोदाम - (पुं.) (दे.) - गोदाम।

गोपनीय - (वि.) (तत्.) - छिपाकर रखने या प्रकट न होने देने के लायक confidential

गोपनीयता - (स्त्री.) - छिपाकर रखने या प्रकट न होने का भाव।

गोपाल - (पुं.) (तत्.) - शा.अर्थ गाय पालने वाला; गोपालक। 1. ग्वाला, अहीर। 2. भगवान श्रीकृष्ण का एक नाम।

गोबर - (पुं.) (देश.) - गाय का मल। ला.अर्थ निकृष्‍ट वस्तु; सारहीन तत् व।

गोया - (दे.) - गोकि

गोरखधंधा - (पुं.) (देश.) - 1. बुद्धि के खेल; तारों, लकड़ी के टुकड़ों आदि से बनी पहेलियाँ। 2. कोई उलझन-जिसे सुलझाना कठिन हो। टि. बाबा गोरखनाथ की बातें लोगों को समझ में न आने वाली और अटपटी लगती थीं। इस आधार पर यह शब्द प्रचलित हो गया।

गोरस [गो + रस] - (पुं.) (तत्.) - 1. गौ (गौ = गाय) का दूध या इस दूध से बने पदार्थ। 2. गौ (इंद्रिय) जन्य सुख; भोग-विलास आदि।

गोल - (वि.) (तत्.) - वृत्‍त के आकार वाला। गणि. वह समतल आकृति जिसकी परिधि प्रत्येक बिंदु उसके केंद्र बिंदु से बराबर दूरी पर हो। उदा. चक्र, गेंद, पहिया आदि। मुहा. गोल होना (= बिना बताए गायब हो जाना)। 2. पुं. (अं.) लक्ष्य खेल. फुटबॉल, हॉकी के मैदान का वह चिह् नित स्थल जिसे पार गेंद पहुँचाकर प्रतिपक्षी दल जीत के लिए अधिक अंक अर्जित करना चाहता है।

गोलमाल - ([तत्.+अर.]) (अर.) - + पुं. 1. धन संबंधी हिसाब-किताब के प्रस्तुतीकरण में यह मानते हुए जान-बूझकर की गई गड़बड़ी कि गलती पकड़ी नहीं जा सकेगी। bungling टि. ‘गोलमाल’ और ‘गोलमाल’ में अंतर बनाए रखा जाए।

गोलाबारी (फ़ार. < गोलाबारी) - (स्त्री.) - 1. युद्ध के दौरान शत्रु सेना उपस्करों तथा आधार शिवरों को नष्‍ट करने के उद्देश्य से तोपखाने से की गई गोलों की वर्षा।

गोलार्ध (गोलाद्रर्ध) (गोल रु अर्ध/अद्र्ध) - (पुं.) (तत्.) - शा. अर्थ गोले का आधा भाग। भू. विषुवत् रेखा (भूमध्य रेखा) से दो भागों में विभक्‍त भू-गोलक का कोई-सा भाग। जैसे : उत्‍तरी गोलाद्र्ध, दक्षिणी गोलाद्र्ध hemisphere

गोली - (स्त्री.) (तद्.) - गोल आकार की ठोस छोटी वस्तु या पिंड। उदा. दवाई की गोली, बंदूक की गोली, काँच की गोली।

गोशाला/गौशाला - (स्त्री.) (तत्.) - 1. गायों के बाँधने-दूहने आदि का स्थान। 2. वह विशिष्‍ट स्थान, जहाँ अनाथ गायों के पालन-पोषण की व्‍यवस्‍था की जाती है। 3. वह केंद्र जहाँ व्यावसायिक उपयोग के लिए सामूहिक रूप से गायों का पालन-पोषण किया जाता है।

गौण लैंगिक लक्षण - (बहु.) (तत्.) - बहु. लिंग (लडक़ा, लडक़ी) के भेद को बताने वाले लक्षण जो युवावस्था के प्रारंभ में दिखाई देते हैं। उदा. लडक़ों में दाढ़ी-मूँछ आना; लडक़ियों में स्तनों का विकास होना।

गौर - (वि.) (तत्.) - 1. गोरे रंग का। पर्या. सफ़ेद, श्‍वेत। उदा. गौरवर्ण बालक। 2. पुं. अर. ग़ौर) ध्यान, सोच-विचार। उदा. गौर करना (= ध्यान देना)।

गौरव गाथा - (स्त्री.) (तत्.) - किसी व्यक्‍ति, समाज, देश-काल आदि की स्मरणीय और प्रेरणादायक घटनाओं, कथाओं का प्रशंसापूर्ण कथन या प्रस्तुत विवरण। जैसे: महाराणा प्रताप की गौरवगाथा, मेवाड़ की गौरख-गाथा, प्राचीन भारत की गौरव गाथाएँ।

गौरवशाली [गौरव + शाली] - (वि.) (तत्.) - बड़प्पन या महिमा से युक्‍त। गौरवपूर्ण glorious जैसे: भारत का गौरवशाली इतिहास।

गौरैया/गवरहया - (स्त्री.) (देश.) - मनुष्यों की बस्ती में दिखने वाली एक छोटी चिडि़या। ‘चटक’ नामक पक्षी। पुं. नर गौरेया।

ग्यान - ([देश.<ज्ञान] ) (पुं.) - ज्ञान’ शब्द के उत्‍तर भारतीय उच्चारण को यथावत् वर्तनी में लिखा गया रूप।

ग्रंथ - (पुं.) (तत्.) - 1. व्यु.अर्थ लिखित पन्नों को बाँधकर (गाँठ लगाकर) तैयार की गई बड़ी पुस्तक कोई भी पुस्तक या किताब। पर्या. किताब, पुस्तक। उदा. धर्मग्रंथ, गुरु ग्रंथ साहिब। ग्रंथकार पुं. ग्रंथ (पुस्तक) का रचयिता, पुस्तक का लेखक। दे. ग्रंथन।

ग्रंथि - (स्त्री.) (तत्.) - 1. सा.अर्थ दो या दो से अधिक धागों, रस्सियों आदि को जोड़ने के स्थान पर पड़ी गाँठ। 2. आयु. शरीर का वह गाँठ जैसा अवयव जो विशिष्‍ट रासायनिक यौगिकों जैसे एंजाइम या हार्मोन आदि का स्रवण करते हैं। ग्लैंड। उदा. लार ग्रंथि। 3. मनो. दमित भावनाओं या विचारों का वह परस्पर संबद् ध समूह जो व्यक्‍ति के अपसामान्य व्यवहार या मानसिक स्थिति का द्योतक होता है। जैसे : हीनता की ग्रंथि inferiarity complex

ग्रंथिका - (स्त्री.) (तत्.) - पौधे के किसी अंग का गोल उभरा हुआ भाग। जैसे: मटर की जड़ों की गुलिकाएँ tubercale दे. गुलिका।

ग्रसिका वि/स्त्री. - (स्त्री.) (तत्.) - शा.अर्थ निगलने वाली (नलिका)। आहार नाल में गले वस्तुत: (ग्रसनी और अमाशय के बीच का भाग जो पेशीय आकुंचन फैलने-सिकुड़ने) की वजह से भोजन को अमाशय में भेजता है। पर्या. ग्रासनली oesophagus/esophagus (U.S.)

ग्रह - (पुं.) (तत्.) - वह खगोलीय पिंड जो अपने परिक्रमा पथ पर नियत गति से सूर्य की परिक्रमा करता है। उदा. शनि, बुध, मंगल आदि planets तु. उपग्रह।

ग्रहण - (पुं.) (तत्.) - शा.अर्थ. 1. किसी वस्तु को प्राप्‍त करने पकड़ने, स्वीकार करने अथवा बात या भाव को समझ लेने की क्रिया का भाव। भू. किसी स्थल विशेष से देखने पर परिक्रमा के दौरान एक आकाशीय पिंड के दूसरे आकाशीय पिंड की ओट में आ जाने के कारण उससे आते हुए प्रकाश का कुछ समय के लिए अवरुद्ध हो जाना। उदा. सूर्यग्रहण, चंद्रग्रहण eclipse

ग्रहराज - (पुं.) (तत्.) - सूर्य। (सभी ग्रह सूर्य के चारों ओर घूमते हैं इस कारण)

ग्राम - (पुं.) (तत्.) - 1. गाँव 2. देहात की बस्ती। (अं.) 3. मीट्रिक प्रणाली की एक तौल।

ग्राम भोजक - (वि./पुं.) (तत्.) - (लगभग दो हजार वर्ष पूर्व की व्यवस्था के अनुसार)। गाँव का प्रधान। टि. साधारणतया यह गाँव का सबसे बड़ा भू-स्वामी होता था। इसी कारण यह पद-पैतृक होता था। राजा द्वारा इसे कर वसूलने का अधिकार भी दिया जाता था। कभी-कभी ये न्यायाधीश का काम भी कर लेते थे।

ग्रामसभा - (स्त्री.) (तत्.) - शा.अर्थ गाँव की सभा। राज. लोकतंत्र में विधायिका, न्यायपालिका एवं कार्यपालिका तीनों की प्राथमिक इकाई। ग्राम स्तर पर सभी कार्यों को देखने वाला निर्वाचित निकाय।

ग्राम सेवक - (पुं.) (तत्.) - शा.अर्थ गाँव का सेवक। राज. जिला परिषद् द्वारा नियुक्‍त ग्रामीण स्तर का वेतनभोगी अधिकारी; ग्राम पंचायत का सचिव। टि. ग्रामसेवक गाँव एवं जिला प्रशासन के बीच सेतु का कार्य करता है तथा प्रशासन संबंधी स्थानीय कार्यों की देखभाल करता है। यह अपने कार्यों की सूचना report खंड विकास अधिकारी तक पहुँचाता है।

ग्रामापयोग दातू न दातौन - (स्त्री.) - दाँत. 1. नीम, बबूल आदि की पतली, छोटी, नरम टहनी जिसके एक सिरे को दाढ़ों से कुचलकर और बु्रश-सा बनाकर दाँत साफ करते हैं। । 2. दाँत को साफ करने /माँजने की क्रिया।

ग्रामीण - (वि./पुं.) (तत्.) - ग्राम (गाँव) से संबंधित, गाँव का। पर्या. देहाती। गाँव में निवास करने वाला व्यक्‍ति। पर्या. ग्रामवासी, देहाती।

ग्रामोद्योग [ग्राम + उद्योग] - (पुं.) (तत्.) - गाँव में बनी वस्तुओं को शहरों में होने वाली या अन्यत्र बेचने-खरीदने का व्यवसाय, जिसका मुख्य उद् देश्य है ग्रामीणों को रोज़गार मिलता रहे। village industry

ग्रास-नली - (स्त्री.) (तत्.+ तद्.) - निगलने वाली नलिका। दे. ग्रसिका।

ग्राहक - (वि.) (तत्.) - ग्रहण करने/लेने वाला। पुं. 1. बेची जाने वाली वस्तु का मूल्य चुकाकर प्राप्‍त करने वाला व्यक्‍ति। पर्या. खरीददार/खरीदार custmer buber

ग्राह्य - (वि.) (तत्.) - जो ग्रहण करने या पकड़ने योग्य हो, लेने लायक, स्वीकार्य।

ग्रीज - (स्त्री.) - (अं.) कोई भी चिकना अथवा वसायुक्‍त पदार्थ जो मशीन के पहियों और पुर्जों पर चुपड़ देने पर उस मशीन का परिचालन ठीक तरह से होने लगता है।

ग्रीन हाउस - (पुं.) - (अं.) ऊष्मारोधी दीवारों वाला कमरा जिसकी छत शीशे या पारदर्शी प्लास्टिक की होती है। परिणामस्वरूप सूर्य का प्रकाश कमरे में पहुँच कर वहाँ के तापक्रम को बढ़ा देता है पर ऊष्मा का विकिरण बाहर की ओर बहुत कम हो पाता है। लत: ऐसे कमरे में शीत ऋतु में भी ग्रीष्म ऋतु की सब्जि़याँ और फूल-पत्‍तियाँ उगाई जा सकती हैं।

ग्रीन हाउस प्रभाव - (पुं.) (तत्.) - (अं.+ बढ़ते औद्योगिकीकरण और वनों की निरंतर कटाई के कारण वायुमंडल में कार्बन-डाईऑक्साइड और कुछ अन्य गैसों के अधिकाधिक उत्सर्जन होते रहने की वजह से इसकी बढ़ी मात्रा पृथ्वी पर सौर-ऊर्जा के आने में बाधा डालती है और पृथ्वी की भीतरी ऊष्मा सतह से बाहर अंतरिक्ष में उस अनुपात में आ नहीं पाती जिससे वायुमंडल का ताप-संतुलन बना रहे। फलस्वरूप वायुमंडल का औसत ताप धीरे-धीरे बढ़ जाता है जो प्राकृतिक पर्यावरण के लिए कई प्रकार से हानिकारक है। इसी प्रभाव को ‘ग्रीन हाउस प्रभाव’ कहते हैं। green house effect

ग्रीवा - (स्त्री.) (तत्.) - सिर और धड़ को मिलाने वाला/जोड़ने वाला शरीर का अंग विशेष जो मोटाई में दोनों से अपेक्षाकृत पतला होता है। पर्या. गला, गरदन गर्दन

ग्रीष्म ऋतु [ग्रीष्म + ऋतु] - (स्त्री.) (तत्.) - (भारतीय परंपरा में) वसंत से शुरू होने वाली छह ऋतुओं में से वह ऋतु जिसमें अपेक्षाकृत सबसे अधिक गरमी पड़ती है (और जिसके परिणामस्वरूप अगली ऋतु में वर्षा होती है)।

ग्रेनाइट - (पुं.) - (अं.) एक अंतर्भेदी आग्नेय शैल, जो पिघले हुए मैग्मा के भूपर्पटी के अंदर गहराई में ठंडा होने के कारण निर्मित होता है।

ग्लानि - (स्त्री.) (तत्.) - कुछ बुरा कर गुजरने के बाद मन में उत्पन्न अपराध-बोध की भावना।

ग्लूकोस (ग्लूकोज़) - (पुं.) - (अं.) मोनोसैकेराइट तथा हैक्सोस के रूप में वर्गीकृत कार्बोहाइड्रेट जो अनेक सूक्ष्म जीवों में ऊर्जा प्रदान करता है। पर्या. डैक्सद्रोस, अंगूर शर्कर हैं।

ग्लेशियर - (स्त्री.) - (अं.) पर्वत शिखरों के गर्तों में जमी सीमित विस्तार वाली बर्फ़ की नदी जो धीरे-धीरे खिसकती रहती है। पर्या. हिमनदी, हिमानी।

ग्लोब - (पुं.) - (अं.) 1. पृथ्वी का गोलाकार तल। 2. पृथ्वी का गोलाकार प्रतिरूप जिस पर अक्षांश और देशांतर रेखाओं तथा महासागरों और देशों के नक्शों को अध्ययनार्थ प्रदर्शित किया जाता है। पर्या. भूगोलक।

ग्वाला - (पुं.) ([तद्.< ग्वाल]) - <1. गौएँ पालने तथा दूध-दही बेचने वाली जाति का कोई भी नर सदस्य स्त्री. ग्वालिन)। 2. गाँव की गाय-भैंसों को प्रतिदिन सुबह इक्ठा कर सामूहिक रूप से उन्हें दिन भर जंगल में चराकर संध्या समय उनके मालिकों को सौंप देने का कार्य करने वाला पारिश्रमिक प्राप्‍त जिम्मेदार व्यक्‍ति। पर्या. चरवाहा।

ग्वालिन - (स्त्री.) (तत्.) - ग्वाले की स्त्री या ग्वाल जाति की स्त्री। दे. ग्वाला।

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घंटा - (पुं.) (तत्.) - 1. पीतल या काँसे का बना कनेर के फूल जैसा बड़े आकार का उपकरण जिसे मंदिर, गिरजाघर आदि में बजाया जाता है। (बेल) 2. दिन-रात मिलाकर बने दिन का साठ मिनट के बराबर चौबीसवाँ भाग जिसे घडि़यों में समय-विभाजन का प्रमुख सूचक माना जाता है। आवर 3. विद्यालयों में भिन्न-भिन्न विषयों को पढ़ाने के लिए नियत कालखंड। जैसे: पहला घंटा, दूसरा घंटा आदि period

घंटाघर - ([तत्.+तद्.]) (तद्.) - #ERROR!

घंटी - (स्त्री.) - [घंटा] 1. कनेर के फूल जैसा छोटे आकार का उपकरण जिसे मंदिरों में या घरों में पूजा करते समय बजाया जाता है। 2. कक्षा शुरू होते या समाप्‍त होने अथवा छुट् टी होने की जानकारी देने के लिए संख्या के अनुसार घंटीवादन। जैसे: दो बार घंटी बजने का अर्थ है दूसरा पीररियड शुरू हो रहा है अथवा लंबी घंटी बजने का अर्थ है-छुट् टी हो गई। 3. किसी भी प्रकार का (अन्य) उपकरण जिसे बजाकर लोगों का ध्यान आकृष्‍ट किया जाए। जैसे: दरवाज़े पर लगी घंटी, कार्यालय के कमरे में बजाई जाने वाली घंटी, साइकिल की घंटी, टेलीफ़ोन या मोबाइल की घंटी बजना।

घटक - (पुं.) (तत्.) - किसी रचना में सहायक तत्व; किसी निर्मित वस्तु का कोई भी उल्लेखनीय अंश factor, component

घड़ी स्त्री - ([तद्.< घटी]) - <1. समय सूचक उपकरण जो घंटे-मिनट की सही स्थिति बताए। clock, watch 2. पूरे दिन का साठवाँ भाग, चौबीस मिनट का समय। 3. समय, अवसर मुहा. आखिरी घड़ी = मृत्यु का समय। घड़ी-घड़ी = बार-बार, हर क्षण। घड़ी गिनना = प्रतीक्षा करना। 4. (ग्राम्य प्रयोग) कपड़े आदि की करीने से जमाई गई तह।

घनघनाना - - अ.क्रि. (अनु.) ‘घन-घन’ की या घंटी जैसी ध्वनि करना।

घनत्व - (पुं.) (तत्.) - शा.अर्थ घनापन, घना होने का भाव। 1. भौ. किसी पदार्थ में, कम स्थान में अणुओं का सापेक्षिक रूप से बढ़ जाने का भाव। कणों का पास-पास होना। घना होना। 2. भू. किसी निश्‍चित क्षेत्र में सापेक्षिक रूप में जनसंख्या, घर, जंगल आदि अधिक होने का भाव। इसका माप संख्या/किमी2 माना जाता है। दे. घना। विलो. विरलता। dencity

घना - ([तद्.<सघन]) (स्त्री. घनी) - <वि. 1. बहुत पास-पास सटे पौधों/वृक्षों वाला। जैसे: घना जंगल। 2. बहुत पास-पास बने घरों वाली (बस्ती) घनी बस्ती। 3. तुलनात्मक दृष्‍टि से एक ही स्थान पर भारी संख्या में रहने वाले (लोग)। जैसे: घनी आबादी।

घनी [घन + ई] - (तत्.) (पुं.) - जिसके कण, अंश या अंग परस्पर इस प्रकार सटे हुए हों जिससे कि वह वस्तु समूह न होकर एक ही प्रतीत हो। सघन, गहन। जैसे: घनी आबादी, घनी बस्ती। पुं. घना।

घपला - (पुं.) (देश.) - छिपाकर की गई गड़बड़ी, विशेष रूप से हिसाब-किताब में यह मानते हुए की गई गड़बड़ी कि इसका दूसरे को पता नहीं चलेगा। पर्या. घोटाला bungling, misappropriation

घबराना/घबड़ाना - - अ.क्रि. [देशज < गड़बड़ाना] 1. चित्‍त का अकस्मात् व्याकुल हो जाना। 2. भय या लंबी प्रतीक्षा आदि दु:ख के कारण मन में क्षोभ उत्पन्न होना; मन का अस्थिर हो जाना। 3. विपत्‍ति से बाहर निकलने का मार्ग न दीखना; क्या करें क्या न करें-यह समझ में न आना कि कर्तव्य विमूढ़ हो जाना।

घबराहट/घबड़ाहट - (स्त्री.) (देश.) - घबराने का भाव। दे. घबराना।

घमंड - (पुं.) - अपने बारे में आडंबरपूर्ण और मिथ्या अभिमान की ऐसी भावना जो बड़बोलेपन के रूप में प्रकट होती है और अपनी तुलना में दूसरों को हीन समझती है।

घमंडी - (वि.) (देश.) - तु. अभिमान। घमंड करने वाला। दे. घमंड।

घमासान - (वि.) - (अनु. देशज शब्द) घोर, भयंकर। उदा. घमासान युद् ध। जैसे: राम-रावण के बीच घमासान युद्ध हुआ।

घरेलू [घर + एलू] - (तद्.) (वि.) - 1. घर-गृहस्थी से संबंधित। जैसे: घरेलू सामान domestic 2. घर जैसा। उदा. घरेलू वातावरण homely 3. जो पालतू हों। जैसे: घरेलू पशु। विलो. जंगली।

घरेलू हिंसा [घरेलू + हिंसा] - (स्त्री.) (तद्.) - घर के अंदर यानी पारिवारिक स्तर पर होने वाली हिंसा। जैसे: बच्चों की पिटाई, (पति द्वारा) पत्‍नी की पिटाई आदि।

घरौंदा - (पुं.) - (घर.) 1. (तुच्छता प्रदर्शन हेतु प्रयोग) घर, 2. बच्चों के खेलने के लिए मिट् टी, रेत, कागज़ आदि से बनाए गए घर जैसी आकृति।

घर्षण - (पुं.) (तत्.) - सा.अर्थ घिसने या रगड़ खाने की क्रिया या भाव। भौ. बल जो परस्पर स्पर्श करने वाले दो पृष्ठों की सापेक्ष गति का विरोध करता है। यह बल गति की विपरीत दिशा में लगता है। friction

घसीटना स.क्रि. - ([तद्.<घृष्‍टन]) - किसी वस्तु या व्यक्‍ति को इस तरह खींचना कि वह अनिच्छापूर्वक ज़मीन पर रगड़ खाते हुए खिंचती चली जाए/खिंचता चला जाए।

घाघरा - (पुं.) ([तद्.< घर्घर]) - <1. स्त्रियों का नीचे की ओर बड़े घेर वाला (यानी घंटे नुमा) कमर में पहना जाने वाला एड़ी तक लंबा वस्त्र। 2. सरयू नदी का एक अन्य नाम।

घाट1 - ([तद्.>घट् ट]) (पुं.) - >1. किसी नदी या जलाशय आदि के तट पर नहाने-धोने या नाव पर चढ़ने-उतरने के लिए निश्‍चित स्थान। जैसे: काशी में दशाश्‍वमेघ घाट। 2. पर्वतीय क्षेत्रों के बीच आवागमन का मार्ग या ऊँचा नीचा स्थान घाटी। 3. पहाड़ जैसे: पूर्वी घाट। मुहा. घाट-घाट का पानी पीना अनेक जगहों पर रहकर या भटकते हुए विविध प्रकार के अनुभव प्राप्‍त करना।

घाट2 - (वि.) (तद्.>घृष्‍टन) - किसी वस्तु का अपेक्षा से न्यून या कम होना। न्यून, कम, थोड़ा। जैसे: जब तौलो तब घाट।

घातक - (वि.) (तत्.) - शा.अर्थ घात (प्रहार, चोट) करने वाला। अत्यधिक कष्‍ट या हानि (जिसमें प्राण् गँवाने तक का भय हो) पहुँचाने वाला। उदा. घातक रोग, घातक प्रहार fatal पुं. मार डालने वाला व्यक्‍ति, हत्यारा।

घालमेल - (पुं.) - [< घुलना + मिलना] भिन्न-भिन्न प्रकृति की वस्तुओं या विचारों इत्यादि का इस प्रकार मिल जाना कि बाद में उनमें भेद करना बहुत कठिन हो जाए। पर्या. गड्ड-मड्ड।

घिरनी - (स्त्री.) (तद्.) - 1. कोई दाँतेदार पहिया या ऐसे ही पहियों का समूह जो अपने से बड़े और भारी यंत्र के चालन-बल को हलका कर देता है। 2. दरार पड़ा और अपनी धुरी में अटका पहिया जो रस्सी या पट्टे की सहायता से गतिवर्धक होता है और चालन-बल को सुगम बना देता है। पर्या. चरखी पुली

घिसटना - (तद्.) - < घृष्‍टन] अ.क्रि. 1. जमीन पर रगड़ खाते हुए खिंचे चले जाना, घसीटा जाना। 2. ला.अर्थ अनिच्छापूर्वक विवश होकर किसी के साथ जाना या कुछ काम करना। उदा. अफसरों की सेवा में घिसट रहा हूँ।

घिसापिटा [घिसा+पिटा] - (वि.) (पुं.) - (तद्.) शा.अर्थ घिसा हुआ और पिदा हुआ। स्त्री. वि. घिसी-पिटी (घिसी + पिटी) बहुत दिनों से चली आ रही, पुरानी, पड़ चुकी मरणशील। उदा. घिसी-पिटी परंपराएँ।

घुंडी - (स्त्री.) ([तद्.<ग्रंथि] ) - 1. कोई भी गोलाकार गाँठ (नॉब) 2. कपड़े का बना पुराने जमाने का गोलाकार बटन।

घुँघरू - (पुं.) (तद्.) - पीतल आदि धातु से बने गोल आकार के पोले छोटे-छोटे गोले जिनमें वैसे ही बारीक आकार वाले ठोस दाने भरे होते हैं और जिनके हिलने से मधुर आवाज निकलती है। नृत्यांगनाएँ और नर्तक इन्हें अपने पैरों में पहनते हैं।

घुडक़ना स.क्रि. - (देश.) - 1. ज़ोर से बोलकर क्रोध और धमकी भरे स्वर में डाँटना। उदा. ज्योंही मैं साहब के कमरे में देर से पहुँचा त्यों ही उन्होंने मुझे घुडक़ दिया।

घुडक़ी - (स्त्री.) (देश..) - 1. ऊँची आवाज़ में क्रोध और धमकी भरे स्वर में डाँटने या डराने की क्रिया। जैसे: साहब की घुडक़ी, बंदर-घुडक़ी।

घुड़सवार [घुड़ < घोड़ा + सवार] - (पुं.) (फा.) - वह जो घोड़े पर सवार हो।

घुन्ना - (वि.) (देश.) - किसी के प्रति क्रोध, द्वेष, कटुता आदि भाव मन में ही रखने वाला। अर्थात् उक्‍त भावों को जो व्यक्‍त न करता हो। परंतु मन ही मन बदला लेने की भावना रखता हो। पर्या. चुप्पा। उदा. घुन्ना व्यक्‍ति व्यावहारिक दृष्‍टि से ठीक नहीं होता।

घुन्नाना अ.क्रि. - (देश.) - मन ही मन या हल्की आवाज़ में चिढ़ने कुढ़ने जैसी ध्वनि निकालते रहना। (साथ में तिरछीं नजरों से प्रतिद्वंद्वी को देखते रहना)

घुमंतू - (वि.) (देश.) - इधर-उधर घूमने वाला; स्थायी रूप से एक जगह टिककर इधर-उधर घूमते-फिरते रहने वाला (जन समूह)। जैसे: बंजारी जाति। तु. घुमक्कड़।

घुमक्कड़ - (वि.) (देश.) - बहुत अधिक घूमने वाला (व्यक्‍ति)। टि. पहले इस शब्द का प्रयोग प्राय: अनादरसूचक अर्थ में होता था किंतु अब बहुत अधिक पर्यटनशील व्यक्‍ति के लिए भी इसका प्रयोग होने लगा है। जैसे : राहुल सांकृत्यायन घुमक्कड़ प्रकृति के व्यक्‍ति थे। यहाँ तक कि इन्होंने ‘घुमक्कड़शास्त्र’ नामक पुस्तक की भी रचना की।

घुलनशील - (वि.) - घुल जाने वाला, मिलकर एकाकार हो जाने वाला।

घुलनशीलता - (स्त्री.) ([तद्.<घूर्णनशील] ) - कुछ ठोस या गैसीय पदार्थों का यह गुणधर्म कि जब वे किसी द्रव में मिलाए जाते हैं तो वे उससे एकाकार हो जाते हैं। जैसे: नमक या चीनी आदि।

घुलना-मिलना (घुलना और मिलना) अ.क्रि. - ([तद्.<घूर्णन+मिलन] ) - सा.अर्थ दो पदार्थो का मिलकर एकाकार हो जाना। ला.अर्थ व्यक्‍ति/व्यक्‍तियों का अन्य व्यक्‍ति/व्यक्‍तियों से मेलजोल बढ़ाना। उदा. तुम घर में अकेले बैठे रहते हो। बाहर जाकर दोस्तों से घुला-मिला करो।

घुसपैठ [घुसना+पैठना] - (स्त्री.) - गुप्‍त और अनाधिकृत रूप से कहीं भी घुस कर यानी पहुँचकर वहाँ अपनी (अवैध) कार्रवाई अंजाम देने की प्रवत्‍ति।

घुसपैठिया - (पुं.) (देश.) - घुसपैठ करने वाला, गुप्‍त व अनाधिकृत रूप से कहीं भी घुस जाने वाला (व्‍यक्‍ति)। दे. घुसपैठ

घूँट - (पुं.) (देश.) - एक ही बार में गले के नीचे उतारे जाने वाली पेय पदार्थ की मात्रा। उदा. एक घूँट लेकर तो देखो। तुम यह पेय।

घूरना - ([देश.<घूर्णन]) - स.क्रि. आँखें चौड़ीकर बिना पलक झपकाएँ किसी की ओर लगातार देखते रहना; टकटकी लगाकर ध्यान से देखना; बुरी दृष्‍टि से किसी को देखना; क्रोध से देखना।

घूरा - (तद्.<कूट) (पुं.) - कूड़े-करकट का ढेर। लोको. घूरे के दिन फिरना-बुरे दिनों के बाद अच्छे दिन देखना।

घूर्णन - (पुं.) (तत्.) - सा.अर्थ घूमना, चक्कर लगाना। भौ. किसी पिंड का अपने अक्ष पर (अपनी घुरी पर) चक्कर लगाना। जैसे: पृथ्वी या लट्टू का घूर्णन rotation

घृणा - (स्त्री.) - किसी के प्रति नापसंदगी की तीव्र भावना जो शब्दों या हाव-भावों से व्यक्‍त होती है। पर्या. 1. नफरत, घिन 2. जुगुप्‍सा, ‘वीभत्स’ रस का स्थायी भाव।

घृणित - (वि.) (तत्.) - 1. घृणा के योग्य जैसे: घृणित कार्य। 2. घृणा के साथ जैसे: घृणित नज़रों से देखना। दे. घृणा।

घृत - (पुं.) (तत्.) - मक्खन, मलाई को तपाकर तैयार किया गया चिकना खाद्य पदार्थ। पर्या. घी।

घेरना - ([तद्.< घिरना < ग्रहण]) - <स.क्रि. चारों ओर से घेर कर रोकना, घेरे में लेना। उदा. उसने घर के सामने की खाली जगह को घेर कर वहाँ सब्ज़ी बोना शुरू कर दिया है।

घेरा - (पुं.) (देश.) - किसी वस्तु, आकृति, शब्द/वाक्य, भूखंड आदि को चारों ओर से घेरती कोई खिंची रेखा या बाड़ आदि।

घेराबंदी [घेरा + बंदी] - (स्त्री.) (देश.) - शा.अर्थ घेरे में बाँधना, घेरा डालना। 1. किसी भूखंड को चारों ओर बाड़ लगाकर घेरने की क्रिया। encircle 2. किसी व्यक्‍ति या व्यक्‍ति समूह को संख्या में अधिक लोगों द्वारा घेर कर अपनी उचित-अनुचित माँगें मनवाने के लिए अपनाया जाने वाला एक तरीका। cease 3. किसी स्थान विशेष को चारों ओर से घेर कर जम जाना ताकि उसमें रहने वाले व्यक्‍तियों अथवा वस्तुओं का सहज आवागमन रोक दिया जाए। जैसे: अकबर की सेनाओं द्वारा चित्‍तौड़ के किले की लंबे समय तक घेराबंदी कर दी गई थी जिसके परिणामस्वरूप चित्‍तौड़ का पतन हुआ था। blocked प्रशा. कर्मचारियों द्वारा अपनी माँगों को मनवाने के लिए उच्च अधिकरियों या मिल मालिकों को घेर कर अपना आक्रोश व्यक्‍त करने का एक तरीका।

घेराव - (पुं.) - अपनी माँगें मनवाने के लिए किसी वर्ग विशेष द्वारा संबंधित उच्चाधिकारियों को घेरकर अपना आक्रोश प्रकट करने का एक तरीका।

घोंघा - (पुं.) (वि.) - 1. एक कीड़ा जो शंखनुमा कवच में पैदा होता है। 2. गेहूँ के दाने वाला बाल का कोश मूर्ख, बेवकूफ, खोखला।

घोंसला - (पुं.) (देश.) - पक्षियों द्वारा घास-फूस के तिनकों से बनाया गया अस्थायी आवास जहाँ वे अंडे देते, सेते और उनका लालन-पालन करते हैं। पर्या. नीड़।

घोषणा - (स्त्री.) (तत्.) - किसी विषय विशेष से संबंधित सर्वसाधारण के लिए लिखित या मौखिक रूप में किया गया सूचनात्मक कथन। declaration

घोषणापत्र - (पुं.) (तत्.) - शा.अर्थ (कार्यक्रम) की घोषणा से संबंधित (प्रकाशित) पत्रक। राज. चुनाव-प्रचार के समय सभी (राजनीतिक) दलों द्वारा सार्वजनिक रूप से अपने-अपने कार्यक्रमों की सूचना संबंधी प्रकाशित पत्रक। manefesto

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चंगा - (वि.) (देश.) - 1. स्वस्थ, तंदुरस्त। उदा. कैसे हो? चंगा हूँ। 2. विकार रहित। उदा. मन चंगा तो कठौती में गंगा।

चंगुल - (पुं.) (.फा.) - 1. पक्षियों का पंजा। 2 पंजे की पकड़।

चंचु - (पुं.) (तत्.) - 1. पक्षियों का बाहर की ओर उभरा हड्डी का नुकीला जबड़ा। 2. किसी वस्तु का नुकीला अग्रभाग। पर्या. चोंच।

चंदा - (पुं.) (तद्. चंद्र) - 1. चंद्रमा। 2. गोल आकार की कोई भी चिपटी सी टिकली।

चंदा - (पुं.) (.फा. चंद) - 1. थोड़ी थोड़ी मात्रा में अनेक लोगों से प्राप्‍त सहायता राशि। contribution 2. किसी पत्र-पत्रिका आदि के नियतकालिक शुल्क के एक मुश्त भुगतान की राशि। subscription

चंद्रमा - (.फा. चंद) - पृथ्वी की परिक्रमा करने वाला उपग्रह जो सूर्य के प्रकाश के प्रतिबिंब से रात को उजाला करता है, चंदा। पर्या. चंदा, चाँद, शशि, चंद्र, शशांक।

चंद्रिका - (स्त्री.) (तत्.) - 1. चंद्रमा का शीलत प्रकाश। 2. मोर की पूँछ पर बना गोल चिह्न। पर्या. चाँदनी, ज्योत्‍स्‍ना, कौमुदी, चंद्रप्रभा।

चंपी - (स्त्री.) (देश.) - सिर में तेल की मालिश (विशेष रूप से विशेषज्ञ द्वारा)।

चँवर - (पुं.) (तद्.<चामर) - <चामर) चमरी गाय (सुरा गाय) के पूँछ के बालों का गुच्छा जिसे एक छोटे डंडे में बाँधकर देवाताओं या राजा महाराजाओं के ऊपर डुलाया जाता है। इसे 'चँवर डुलाना' कहते हैं।

चँवरी - (स्त्री.) - सजा-सजाया विवाह-मंडप जिसके नीचे वर-वधु अग्नि की परिक्रमा करते हैं।

चकमक - (वि.) - (तु.) एक विशेष प्रकार का कठोर, कणदार क्रिस्टली पत्थर जिसे रगड़ने या जिस पर चोट करने से चिनगारियाँ निकलती हैं। टि. आदिम काल में इस पत्थर से औज़ार बनाए जाते थे और अग्नि प्रज्वलित करने के लिए इसका उपयोग होता था।। आधुनिक युग में गैस लाइटर और सिगरेट लाइटर में इसके टुकड़े का उपयोग होता है। flint

चकमा - (पुं.) (तद्.(चक्रम्) - धोखा देने का कार्य, भुलावा। जैसे: चकमा देना = धोखा देना; चकमा खाना = धोखा खाना, भुलावे में आना।

चकराना अ.क्रि. - (तद्.चक्र) - (सिर के संदर्भ में) चक्कर खा रहा हो ऐसा महसूस करना। उदा. शा अर्थ- चक्कर खाना, भ्रमित होना, धोखे में पड़ना। ला. अर्थ मुहा. सिर चकराना।

चकला - (पुं.) ([तद्., चक्रलोट] ) - 1. पत्थर, लोहे या लकड़ी इत्यादि से बना गोल पाटा जिस पर बेलन से रोटी, पूरी आदि बेली जाती है। 2. वेश्यालय।

चक्कर - (पुं.) (तद्.(चक्र) - (चक्र) 1. पहिए, लट् टू या गेंद की तरह घूमने वाली गोल वस्तु। 2. गोल घेरा, मंडल, परिधि। 3. गोलाई में घूमने की क्रिया, परिक्रमा rotation 4. पहिए की तरह एक अक्ष के चारों ओर घूमना revolutation 5. सिर घूमने का भाव। मुहा. चक्कर काटना-किसी व्यक्‍ति या वस्तु के चारों ओर बार-बार घूमना, मँडराना। चक्कर खाना-भटकना, हैरान हो जाना। चक्कर में आना, पड़ना, फँसना-किसी धोखे में फँस जाना।

चक्का जाम - (पुं.) (देश. [चक्र=पहिया+जैम. अं.] - शा.अर्थ पहियों का चलना रुक जाना। सा.अर्थ-सरकार के प्रति विरोध प्रकट करने के लिए जबरन वाहनों को सडक़ों पर चलने से रोकना।

चक्र - (पुं.) (तत्.) - सा.अर्थ पहिया इंजी पहिए के आकार का धातु का बना उपकरण जिसकी परिधि पर दाँते बने होते हैं। खेल-खेल-प्रतियोगिता की या गोली चालन की संपूर्ण कालावधि का कई चरणों में बँटा हिस्सा। पर्या. दौर round योग-हठयोग एवं तांत्रिकों के अनुसार मनुष्यदेह में स्थित षट्चक्रों (मूलाधार, स्वाधिष्‍ठान, मणिपूर, अनाहत, विशुद् ध तथा आज्ञा चक्रों) में से कोई भी।

चक्रण - (पुं.) (तत्.) - महासागरों में जल का चक्कर बनाते हुए तेजी से ऊपर उठना।

चक्रवर्ती - (वि.) (तत्.) - सार्वभौम (राजा), ऐसा राजा जिसका शासन दूर-दूर तक फैला हो। जैसे: चक्रवर्ती सम्राट् दशरथ।

चक्रवात [चक्र+वात] - (पुं.) (तत्.) - सा.अर्थ हवा का चक्कर, बवंडर। 1. अत्यंत उग्र रूप धारण कर उठा समुद्री तूफान। 2. उष्णकटिबंधीय सागरों में बनने वाला वह निम्नदाब तंत्र जिसके परिणामस्वरूप समुद्री हवाएँ चारों ओर से निम्न वायुदाब के केंद्र की ओर तेजी से बढ़ती है और तब उससे तेज गति से घूमने वाला चक्र बन जाता है और चक्राकार घूमती वायु समुद्री जल के साथ काफी ऊपर उठने लगती है। cyclone

चटकना अ.क्रि. - (देश.अनुर.) - 1. ‘चट’ की ध्वनि के साथ टूटना। 2. टूटने का चिह्नमात्र बनना। जैसे: बरतन चटक गया है। 3. कलियों का खिलना।

चटखारा/चटकारा - (पुं.) (देश.) - किसी मसालेदार या खट्टी वस्तु का स्वाद लेते समय मुँह से निकली ‘चट’ जैसी ध्वनि।

चटाई - (स्त्री.) (तद्. (चट) - पहले तिनकों, बाँस का खपच्‍चियों आदि से और अब प्लास्टिक की फीतियों से बना आसन या फर्श का बिछावन। mat

चट्टान - (स्त्री.) (देश.) - पत्थर का बड़ा और भारी टुकड़ा जिसे सरलता से हिलाया न जा सके, वृहत् शिला, शैल। rock

चढ़ना अ.क्रि. - (तद्.(उच्चलन) - 1. पहाड़ आदि पर ऊपर की ओर जाना, चढ़ाई या ऊँचाई की ओर जाना। 2. नदी का तल बढ़ना। उदा. नदी में पानी चढ़ रहा है। 3. भाव (दाम) ऊँचा होना। 4. आक्रमण करना। उदा. शिवाजी ने शत्रुसेना पर चढ़ाई कर दी। 5. खाते आदि में लिखा जाना। जैसे: खाते में चढ़ाना। 6. पकाने के लिए बरतन चूल्हे पर रखा जाना। 7. दिन का आगे बढ़ना। उदा. दिन चढ़ आया। 8. घोड़े आदि पर बैठना। उदा. घुड़चढ़ी की रस्म।

चतुरंगिणी - (स्त्री.) (तत्.) - शा.अर्थ चार अंगों वाला (सेना)। सा.अर्थ प्राचीनकाल में हाथी, घोड़ा, रथ और पैदल इन चार अंगों से युक्‍त सेना।

चतुर - (पुं.) (तत्.) - 1. अपने हित को ध्यान में रखते हुए समझदारी से काम करने वाला। व्यवहार कुशल। पर्या. होशियार clever 2. कार्य करने में निपुण। पर्या. कुशल, दक्ष skilled, skillful 3. अनुभव और ज्ञान से युक्‍त। पर्या. मेधावी, तीक्ष्णबुद् धि, बद् धिमान।

चतुराई - (स्त्री.) (दे.) - चतुर होने का भाव। चतुराई जो काम मुझसे नहीं हो सकता था उसे उसने बड़ी चतुराई से पूरा कर दिया।

चपेट - (स्त्री.) (तत्.) - 1. तमाचा, थप्पड़, 2. अकस्मात् आघात या प्रहार के कारण उपस्थित हुआ संकट। मुहा. चपेट में आना। उदा. 1. वह बस की चपेट में आ गया। 2. सारा गाँव बाढ़ की चपेट में आ गया।

चबाना - (तद्.<चर्वण) - स.क्रि. दाँतों से पीसकर महीन करना। ला.अर्थ (डराने-धमकाने वाले अर्थ में) खा जाना। उदा. तुम अपनी आदतों से बाज नहीं आओगे तो मैं तुम्हें कड़वा ही चबाए जाऊँगा। मुहा. चबा-चबाकर बातें करना=वाक्य के शब्दों को रुक-रुक कर अलग-अलग बोलना।

चबूतरा - (पुं.) (तद्.<चतुस्तटक) - जमीन की सतह से ऊँचा उठा हुआ चौकोर या आयताकार बनाया गया बैठने के लिए स्थान।

चमक-दमक - (स्त्री.) (देश.) - [चमक+दमक] 1. प्रकाशित एवं आभायुक्‍त होने का भाव, पर्या. आभा, दीप्‍ति। 2. दिखावा, आडंबर, तडक़-भडक़।

चमकदार - (दे.) - चमकीला।

चमकीला - (वि.) (तद्.) - चमकदार, चमक-दमक से युक्‍त। उदा. अँधेरी रात में चमकीले तारे जगमगाते रहते हैं।

चमत्कार - (पुं.) - असंभव सा दिखने वाला आश्‍चर्यजनक कार्य; अद्भुत कार्य या बात। पर्या. करामात।

चमत्कृत - (वि.) (तत्.) - चमत्कार से प्रभावित। दे. चमत्कार।

चयन - (पुं.) (तत्.) - बहुत-सी वस्तुओं या व्यक्‍तियों में से अपनी आवश्यकता या रुचि के अनुसार कुछ वस्तुओं या व्यक्‍तियों को छाँट कर अलग करना। चुनना। उदा. इस पद पर मेरा चयन संघ लोक सेवा आयोग के माध्यम से हुआ है।

चयन-समिति [चयन+समिति] - (स्त्री.) (तत्.) - शा.अर्थ वयन के लिए गठित विशेषज्ञों का समूह। विशेषज्ञों का वह समूह जो किसी पद आदि के लिए अभ्यार्थियों (उम्मीद् वारों) से साक्षात्कार कर/या अन्य निर्धारित विधि से उपयुक्‍त व्यक्‍ति के नाम का सुझाव संबंधित संस्था को प्रस्तुत करती है। selection committee

चरखा - (पुं.) (.फा.चर्ख)) - चर्ख)) लकड़ी का बना उपकरण जिसकी सहायता से रुई या ऊन को कातकर धागा बनाया जाता है।

चरखी - (स्त्री.) (.फा.) - 1. छोटा चरखा, 2. सूत लपेटने की गिर्री या गराड़ी, 3. गन्ना पेलने का यंत्र।

चरण कमल - (पुं.) (तत्.) - कमल के समान (कोमल) चरण। उदा. चरण कमल बंदौ हरिराई।

चरण - (पुं.) (तत्.) - 1. पैर (विशेष रूप से पूज्य या महान व्यक्‍ति के पैरों (पाँवों) के लिए इस शब्द का प्रयोग किया जाता है। उदा. प्रात:काल उठकर बड़ों के चरण छूने चाहिए। 2. श्‍लोक की एक पंक्‍ति या भाग। 3. काल का चौथाई भाग। उदा. प्रथम चरण, अंतिम चरण। मुहा. चरण छूना, चरणामृत लेना, चरण धोकर पीना।

चरण-चिह्न - (पुं.) (तत्.) - शा.अर्थ चरणों (पैरों) के निशान। ला.अर्थ महान् व्यक्‍तियों के वे महत्त्वपूर्ण कार्य जिनका अनुसरण करना सामान्य व्यक्‍ति का कर्त्‍तव्य माना जाता है।

चरण-पादुका - (स्त्री.) (तत्.) - 1. लकड़ी के खड़ाऊँ, पाँवड़े। 2. किसी साधु-संत के स्मृतिचिह् न के रूप में बने खडाऊँ।

चरम - (वि.) (तत्.) - 1. (वह स्थिति) जिसके ऊपर या आगे कुछ नहीं होता। जैसे: चरम सत्य absolute 2. अंतिम, आखिरी जैसे: चरम लक्ष्य (अल्टीमेट); चरम सीमा farthest, almost चरम अवस्था last

चरमराना - ([देश.-अनुर.]) - अ.क्रि. 1. चर्र-मर्र का शब्द करना। उदा. वर्षा ऋतु में लकड़ी का दरवाजा खोलने पर चरमराता है। 2. इस प्रकार का काल्पनिक शब्द करते हुए हिल जाना। उदा. भूकंप के पहले झटके में ही भवन चरमरा गया।

चरवाहा - [देश.(चरि=प्राणी+वाह] (पुं.) - गाँव के पशुओं को चरागाह/जंगल में ले जाने वाला; पशु चराकर जीविका पार्जन करने वाला।

चरागाह [चरना+गाह= जगह] - (पुं.) (.फा.) - पशुओं के चरने की जगह, सर्वाधिक घास का मैदान।

चरित - (पुं.) (तद्.चरित्र) - जैसे: रामचरित्रमानस। दे. चरित्र।

चरितार्थ [चरित+अर्थ] - (वि.) (तत्.) - जिसने अपना इच्छित प्रयोजन सिद् ध कर लिया है; जिसका अभीष्‍ट उद् देश्य पूरा हो गया है; सही सिद् ध हो जाने वाला; सफल; कार्यान्वित; संपन्न। (चरितार्थ करना। स.क्रि. चरितार्थ होना अ.क्रि.)

चरित्र - (पुं.) (तत्.) - 1. कार्य एवं आचरण-संबंधी सद् गुण। विद्यालय में चरित्र-निर्माण की शिक्षा दी जाती है। 2. वर्णनीय कार्य एंव क्रियाकलाप, जीवन-गाथा। राम का पूरा चरित्र हमें मर्यादा की शिक्षा देता है।

चरित्र हनन - (पुं.) (तत्.) - किसी व्यक्‍ति के चरित्र को निंदनीय और गर्हित ठहराने का हर संभव प्रयास।

चरित्र-चित्रण - (पुं.) (तत्.) - साहित्यिक कृति में आए किसी प्रमुख पात्र के जीवन की विशेषताओं का वर्णन। उदा. ‘बड़े घर की बेटी’ कहानी की नायिका का चरित्र-चित्रण दीजिए।

चरित्र प्रमाणपत्र - (पुं.) (तत्.) - इस आशय का प्रमाणपत्र कि प्रमाण पत्र-प्रदाता की जानकारी एंव विश्‍वास के अनुसार प्रमाणपत्र में उल्लिखित व्यक्‍ति का चरित्र ठीक है।

चर्चा - (स्त्री.) (तत्.) - सामान्य अर्थ-बातचीत; उल्लेख, जिक्र; विचार-विमर्श। किसी विषय विशेष पर दो या दो से अधिक व्यक्‍तियों के बीच हुआ विचार-विमर्श । उदा. सम्मेलन में दो दिनों तक प्रेमचंद के उपन्यासों पर जमकर चर्चा हुई। discussion

चर्चित - (वि.) (तत्.) - 1. जिसके विषय में चर्चा की गई हो; जो चर्चा में हो या जिसका उल्लेख हुआ हो। 2. लेप लगाया हुआ, लेप युक्‍त। जैसे: चंदनचर्चित।

चर्म - (पुं.) (तत्.) - 1. खाल, त्वचा, चमड़ी (शरीर का ऊपरी आवरण)। 2. चमड़ा (मरे हुए पशुओं की खाल जो जूते, बैग आदि बनाने के काम आती है)।

चर्वणक दंत - (पुं.) (तत्.) - स्तनधारी प्राणियों में कई जड़ों वाले सबसे पिछले दाँत जो पीसने-चबाने के काम आते हैं। मनुष्य में सामान्यत: इनकी संख्या 12 (छह ऊपर एवं छह नीचे) होती है। molar teeth

चल संपत्ति - (वि.) - ऐसी संपदा धन-दौलत जो एक स्थान से दूसरे स्थान पर सुविधापूर्वक स्थानांतरित की जा सके। जैसे: रुपए-पैसे, गहने, कपड़े, बरतन आदि। वि. अचलसंपत्‍ति।

चलचित्र - (पुं.) (तत्.) - शा.अर्थ चलते हुए चित्र। सा.अर्थ ‘सिनेमा’ के लिए प्रयुक्‍त शब्द motion, picture, movie

चलन - (पुं.) (तत्.) - मूल अर्थ 1. चलने की क्रिया। 2. रिवाज़, रस्म, प्रथा। उदा. राजस्थान में ‘गणगौर’ पूजा का चलन बहुत है। 3. लगातार चलते रहने वाला व्यवहार। जैसे: मेरे ड्राइविंग लाइसैंस का चलनकाल पंद्रह वर्ष है। runing time 4. फैशन, प्रचार। उदा. आजकल मोबाइल का बड़ा चलन है।

चलनशील - (वि.) (तत्.) - [चलन+शील] 1.जिसका वर्तमान में प्रचलन हो। चलने योग्य। जैसे: चलनशील मुद्रा, चलनशील परिधान। 2. गतिशील, गतियुक्‍त।

चर्वणक - (वि.) (तत्.) - चबाने वाला।

चवन्नी - (स्त्री.) (देश.) - देश में मीट्रिक मुद्रा प्रणाली से पूर्व का चार आने मूल्य का सिक्का। जो रुपए का चौथा भाग होता था। पर्या. चार आना। 1 रुपया=100 पैसे=पुराने 16 आने। 1 अठन्नी=50 पैसे=पुराने 8 आने। 1 चवन्नी=25 पैसे=पुराने 4 आने।

चहक - (स्त्री.) (देश.) - चहकने की क्रिया या भाव; प्रसन्नतापूर्वक बोलने का भाव; चिडि़यों की चहचह की आवाज़। चहकना

चहचहाना अ.क्रि. - (देश.) - पक्षियों की निरंतर चल रही चह-चह जैसी आवाज़। चहकना।

चहचहाहट - (स्त्री.) (देश.) - पक्षियों के सामूहिक रूप से ‘चह’ ‘चह’ ध्वनि करने (चहचहाने) की आवाज़। chirping

चहल-पहल - (स्त्री.) (देश.) - +दूसरा पद अनुकरणनात्मक) 1. खुशी से इधर-उधर घूमते हुए लोगों की भीड़, धूमधाम, वातावरण का सजीव होना। 2. रौनक।

चहार दीवारी [चहार=चार+दीवार+ई] - (स्त्री.) (फा.) - अ.क्रि. (अनु.) पक्षियों द्वारा निरंतर चह- चह जैसी आवाज़ निकालना। ला.अर्थ प्रसन्नता के अतिरेक में जगह-जगह उसकी अभिव्यक्‍ति करना। उदा. लाटरी निकलने पर वह चहकने लगा। शा.अर्थ चार दीवारों वाली। सा.अर्थ किसी शहर, मैदान या भवन आदि की सीमा व्यक्‍त कराने वाली दीवार का अटूट घेरा।

चहेता - (वि.) (देश.चाह) - जो अत्याधिक प्रिय हो। पर्या. लाड़ला, प्रिय।

चाँदनी - (स्त्री.) (देश.[चाँद[चंद्र-सं) - 1. चंद्रमा का प्रकाश, चाँद का उजाला। पर्या. चंद्रिका। 2. बिछाने की बड़ी सी सफेद चादर। स्त्री. तद् [छादनी) 3. ऊपर तानने की सफेद चादर। पर्या. चँदोवा।

चाँद्रमास - (पुं.) (तत्.) - 1. चंद्रमा के भ्रमण का वह काल जिसके दौरान चंद्रमा पृथ्वी का एक चक्कर पूरा कर लेता है, जिसकी अवधि लगभग तीस दिन मानी गई है। 2. पूर्णिमा से पूर्णिमा तक का एक मास। जैसे: आषाढ़ मास की पूर्णिमा से श्रावण मास की पूर्णिमा तक का काल एक चाँद्रमास होता है।

चाक - (पुं.) (तद्.चक्र) - पहिएनुमा (गोल, चक्राकार) पत्थर का गढ़ा हुआ उपकरण जिसे घुमाकर कुम्हार मिट्टी के बर्तन बनाता है।

चाकरी [चाकर+ई] - (स्त्री.) (फा.) - सामान्य रूप से अवैतनिक यानी केवल भरण-पोषण के आधार पर की जाने वाली नौकरी, सेवा, टहल, दासता। उदा. 1. ‘श्याम म्हानै चाकर राखो जी’-मीरा। 2. अजगर करे न चाकरी पंछी करे न काम। दास मलूका कह गए सबके दाता राम।।

चाकू - (पुं.) - (तुर्की.) 1. फल सब्ज़ी आदि काटने का धारदार उपकरण। 2. बड़ी छुरी या छुरा जो हत्या, मार-काट में प्रयोग किया जाए। जैसे: रामपुरी चाकू।

चाक्षुष - (वि.) (तत्.) - 1. चक्षु अर्थात् आँख संबंधी। 2. दिखाई पड़ने वाला। visual

चादर - (स्त्री.) (फा.) - 1. आयताकार कपड़ा जो ओढ़ने या बिछाने के काम आता है। 2. लोहे, शीशे या प्लास्टिक की बनी सपाट परत। 3.स्त्रियों द्वारा ओढ़ी जाने वाली चुन्नी। मुहा. चादर उतारना=अपमानित करना। चादर देखकर पाँव फैलाना=हैसियत के अनुसार काम करना।

चापि - (अव्य.) (तत्.) - अभिव्यक्‍ति [च+अपि] (तत्.) और भी। इसके अतिरिक्‍त यह भी।

चाबुक - (पुं.) (फा.) - लकड़ी की डंडी (हत्थी) में चमड़े की पट् टी या रस्सी लगाकर बनाई हुई ऐसी युक्‍ति जो पशुओं को (विशेषकर घोड़ों को) हाँकने या अपराधियों को दंड देने के काम आता है। पर्या. कोड़ा।

चारण - (पुं.) (तत्.) - देशी नरेशों के दरबार में राजवंश के यश का गान करने वाली जाति का कोई सदस्य।

चारा - (देश.[चरना) (पुं.) - शा.अ. पशुओं को खाने के लिए डाली जाने वाली घास। 1. हिंसक पशुओं का शिकार करते समय उन्हें शिकारगाह की ओर आकृष्‍ट करने के लिए बँधा निरीह पशु (भेड़ बकरी आदि)। 2. दूसरों को फँसाने के लिए दिया जाने वाला प्रलोभन। मुहा. चारा डालना=प्रलोभन देना।

चारू - (वि.) (तत्.) - सुंदर। जो सुंदर लगता हो, मनोहर। उदा. चारू चंद्र की चंचल किरणें…..

चार्जशीट - (पुं.) (दे.) - (अं.) आरोप-पत्र।

चाल - (स्त्री.) (देश.) - सा.अर्थ 1. चलने की क्रिया; चलने का ढंग या तरीका। जैसे: घोड़े की चाल (गैठ) 2. गति। जैसे: मोटर की गति सीमा 60 कि. प्रतिघंटा से अधिक न हो। speed 3.खेल. (शतरंज, ताश आदि) मोहरे को आगे बढाने या पीछे हटाने की क्रिया। जैसे: चाल चलना। move 4. गृह. भीड़भाड वाली सामूहिक आवास व्यव्स्था में कोई कमरा। जैसे: मुबंई में लाखों लोग चालों में रहते हैं। 5. दूसरे को नुकसान पहुँचाने वाला चालाकी भरा सोचा समझा व्यवहार। उदा. तुम्हारी चाल को कौन नहीं जानता? 6. भौं वस्तु विशेष की गति करने की दर। यह दूरी को समय से भाग देने पर प्राप्‍त होती है। speed

चालक - (वि./पुं.) (तत्.) - किसी वाहन को चलाने वाला (व्यक्‍ति)। जैसे: साइकिल चालक, मोटर चालक, वायुयान चालक।

चालमापी - (वि./पुं.) (तत्.) - इंजी. वह उपकरण या यंत्र जिसके द्वारा वाहन आदि की चाल को मापा जाता है या उसके द्वारा तय की गई दूरी का पता लगाया जाता है। speedometer

चाव - (पुं.) - (तद. चाह) संतोष भरी इच्छा, जिसमें उमंग का भाव भरा हो। चाह, रूचि। उदा. एक गरीब और भूखे बच्चे को बड़े चाव से सूखी रोटी का टुकड़ा चबाते देखकर मेरा मन भर आया।

चाह - (स्त्री.) - (वांछा) इच्छा, अभिलाषा। उदा. ‘चाह नहीं मैं सुरबाला के गहनों में गूँथा जाउँ’ (माखनलाल चतुर्वेदी)। लो. जहाँ चाह वहाँ राह-इच्छा हो तो मार्ग निकल ही आता है।

चाहत - (स्त्री.) - [चाह] 1. तीव्र इच्छा, लालसा, मनोकामना। 2. प्रेम, प्यार।

चिंगारी - (स्त्री.) (दे.) - चिनगारी।

चिंघाड़ना अ.क्रि. - (देश.) - सा.अर्थ=हाथी की आवाज़ करना, हाथी की आवाज़। ला.अर्थ गुस्से में ज़ोर से चीखना-चिल्लाना।

चिंतक - (वि./पुं.) (तत्.) - 1. चिंतन करने वाला। दे. चिंतन। 2. चाहने वाला। जैसे: आप मेरे सदा ही शुभ-चिंतक रहे हैं।

चिंतन पुं - (तत्.) - किसी विषय पर यथा समय गंभीरतापूर्वक किया जाने वाला विचार। तु. चिंता।

चिंतनीय - (वि.) (तत्.) - चिंता करने लायक, गंभीर। पर्या. चिंताजनक। उदा. रोगी की स्थिति बहुत चिंतनीय है। दे. चिंता।

चिंता - (स्त्री.) (तत्.) - व्याकुलता, व्यग्रता, बेचैनी, बेताबी। तु. चिंतन।

चिंताग्रस्‍त [चिंता+ग्रस्‍त] - (पुं.) (तत्.) - चिंता से व्‍याकुलता पीड़ित दे. चिंता वि. चिंतामुक्‍त

चिंतामणि - (पुं.) (तत्.) - 1. (भारतीय पुराणानुसार) सभी प्रकार की आवश्यकताओं या इच्छाओं को पूरा करने वाली (काल्पनिक) मणि विशेष। 2. परमात्मा।

चिंतित - (वि./पुं.) (तत्.) - चिंता से ग्रस्त। (i) बेचैन। (ii) सोच में डूबा हुआ। दे. चिंता।

चिंदी - (स्त्री.) (देश.) - कपड़े या कागज़ का छोटा, लम्बा और निरुपयोगी टुकड़ा। मुहा. चिंदी निकालना=निरर्थक तर्क करना। चिंदियाँ उड़ाना=टुकड़े-टुकड़े कर नष्‍ट कर देना।

चिक - (स्त्री.) - (तुर्की. =[चिक़) 1. बाँस या सरकंडे की तीलियों से बना परदा। पर्या. चिलमन।

चिकन गुनिया - (पुं.) - (अफ्री.) आयु. एडीज़ एजिप्‍टी नामक मच्‍छर प्रजाति के काटने से संचरित विषाणुजन्‍य रोग जिससे रोगी को सिरदर्द, ज्‍वर, सूजन, थकान, मिचली, उल्‍टी तथा बदन दर्द जैसी शिकायते हो जाती है। अभी इसका टीका उपलब्‍ध न होने के कारण केबल लक्षणों के आधार पर चिकित्‍सा की जाती है।

चिकन पॉक्स - (स्त्री.) - (अं.) विषाणु से उत्पन्न होने वाला एक तीव्र संक्रामक रोग/तेज बुखार, सिर में दर्द तथा बाद में शरीर पर दाने निकल आना इस रोग का लक्षण है। पर्या. मसूरिका। Chicken pox तु. small pox

चिकित्सक - (पुं.) (तत्.) - रोगग्रस्त व्यक्‍तियों का उपचार करने वाला। पर्या. वैद्ध, हकीम, डॉक्टर।

चिकित्सा - (स्त्री.) (तत्.) - किसी रोगी को इलाज संबंधी सभी कार्यों का सामूहिक नाम। पर्या. उपचार।

चिकित्सा अधिकारी - (पुं.) (तत्.) - 1. चिकित्सा (इलाज) करने वाला विशेषज्ञ। 2. चिकित्सालय का प्रशासनिक अधिकारी।

चिकित्सा-छुट्टी - (स्त्री.) (तत्.+देश.[छूटना) - विद्यार्थी, कर्मचारी आदि के अस्वस्थ होने पर अधिकृत चिकित्सक (डाक्टर) की सलाह पर ली गई छुट्टी। पर्या. चिकित्सा अवकाश।

चिकित्सा पर्यटक - (पुं.) (तत्.) - चिकित्सा के उद्देश्य से दूसरे देशों में पर्यटन करने वाला (जाने वाला बीमार व्यक्‍ति।)

चिकित्‍साविज्ञान - (पुं.) (तत्.) - वह विज्ञान या शास्‍त्र जिसमें विविध प्रकार के लक्षणों तथा उपचार आदि का विवेचन हो। पर्या. आयुर्विज्ञान

चिकित्सीय यंत्र [चिकित्सीय+यंत्र] - (पुं.) (तत्.) - रोगों के उपचार के लिए प्रयोग में लाए जाने वाले उपकरण। चिचियाना अ.क्रि. (अनु.) 1. पक्षियों द्वारा जोर-जोर से चीं चीं की ध्वनि निकालना। 2. चीखना।

चिट्ठी - (स्त्री.) (देश.) - वह कागज जिस पर कोई संदेश, आवेदन आदि लिखकर किसी व्यक्‍ति या संस्था को दस्ती दिया जाता है या डाक द्वारा भेजा जाता है। पर्या. पत्र, खत।

चिढ़ना अ.क्रि. - (तद्.छिद्रति) - छिद्रति) अपने प्रतिद्वंद्वी की प्रशंसा सुनकर या उसकी उन्नति होते देखकर उससे अप्रसन्न होने और आवश्यक हो तो उसके अवगुण गिनाना शुरू करना।

चिढ़ाना [चिढ़ाना का प्रेर.] स.क्रि. - (देश.[चिंतिड़ी=इमली ?) - 1. किसी को उकसाने या उसका मज़ाक उड़ाने के लिए जानबूझकर ऐसा कुछ करना या बोलना जिससे देखने-सुनने वाले को बुरा लगे किंतु करने/कहने वाले को आंनद मिले। मुहा. मुँह चिढ़ाना=नकल उतारते समय अपनी मुखाकृति को भी उसके तदनुरूप करके चिढ़ाना।

चित्‍त/चित - (पुं.) (तत्.) - 1.अंत:करण के चार प्रकारों में से एक जो भावनाओं और आवेगों से संबंधित होता है। अन्य तीन हैं-मन, बुद्धि, अहंकार। 2. सामान्य अर्थ में मन। मुहा. चित्‍त रमना, चित्‍त लगना, चित्‍त उचटना आदि। वि. तत्. चित)। व्यु. अर्थ ढेर किया हुआ, चयन किया हुआ। सा.अर्थ-पीठ के बल लेटा हुआ। विलो. पट या पट्ट।

चित्र - (पुं.) (तत्.) - 1. रेखाओं और रंगों आदि से बनी आकृति, तस्वीर picture 2. किसी वस्तु या व्यक्‍ति की हूबहू अनुकृति photo 3. सजीव और विस्तृत वर्णन illustration

चित्रकथा - (स्त्री.) (तत्.) - चित्रों में माध्यम से लिखी गई कथा। पर्या. कौतुक कथा। टि. इसमें संवाद दिखलाने के लिए बादलों जैसा घेरा बनाकर उसमें संवाद के शब्द लिख दिए जाते हैं तथा आकृति में एक चोंच सी बना दी जाती है जो बोलने वाले की ओर संकेत करती है।

चित्रकला [चित्र+कला] - (स्त्री.) (तत्.) - कागज पर कलम, रंग, कूँची आदि की सहायता से तस्तीर बनाने की कला।

चित्रकार - (पुं.) (तत्.) - चित्र की रचना करने वाला कलाकार, चित्र बनाने वाला और उसमें रंग भरने वाला।

चित्रण - (पुं.) (तत्.) - 1. लंबाई, चौड़ाई तथा गोलाई आदि की विशेषताओं के अनुसार आकृति बनाना; चित्र बनाना, तस्वीर बनाना; वर्णन करना।

चिनगारी - (स्त्री.) - 1. जलती हुई वस्तु से निकलकर बाहर आ रहा आग का छोटा कण। 2. दो कठोर वस्तुओं की रगड़ से उत्पन्न होने वाला आग का कण। (स्फुलिंग) 3. बिजली, (विद् युत) के सतत प्रवाह में किसी बाधावश बाहर की ओर प्रकट होने वाला ध्वनियुक्‍त क्षणिक अग्निकण या प्रकाश-रेखा। स्पार्क

चिपचिपा - (वि.) (देश.(अनु.) - चिपकने जैसा गुण रखने वाला परंतु पूरी तरह चिपकाने वाला नही। जैसे: तैलीय पदार्थ।

चिबिड्डी - (दे.) - स्टापू।

चिमनी - (स्त्री.) - (अं.) 1. रसोई, कारखाने आदि में जल रही आग का धुँआ बाहर निकालने वाली लंबी मीनारनुमा नली। उदा. कारखाने की चिमनी, रसोईघर की चिमनी। 2. मिट्टी के तेल से जलने वाला छोटा दीपक।

चिरंजीवी/चिरजीवी - (वि.) (तत्.) - दीर्घकाल तक जीवित रहने वाला। जैसे: ‘चिरंजीवी भव’ (आशीर्वाद)

चिरपरिचित [चिर+परिचित] - (वि.) (तत्.) - बहुत समय से परिचित, पुराना परिचित। लंबे समय से जानी-पहचानी। उदा. उनकी चिरपरिचित हँसी सबके मन को मोह रही थी।

चिरस्थायी [चिर+स्थायी] - (पुं.) (तत्.) - बहुत लंबे समय तक बने रहने वाला।

चिलचिलाना अ.क्रि. - (देश.) - 1. रह-रहकर चिलक (दर्द) उठना। पर्या. चिलकना। 2. चमकना। प्रयोग-चिलचिलाती धूप=अत्यंत चमकदार और चुभने वाली धूप।

चिलम - (स्त्री.) (फा.) - शंक्वाकार (ऊपर से कटोरी के आकार का और क्रमश: संकरा होता जाता नली-सा) जिसमें आग व तंबाकू (आदि) रखकर ग्रामीण जन और नशेड़ी धूम्रपान करते हैं। मुहा. चिलम भरना=चापलूसी करना, खुशामद करना।

चिह्नित - (वि.) (तत्.) - जिस पर निशान लगा हो।

चिह्न - (पुं.) (तत्.) - किसी की पहचान कराने वाला चिह् न विशेष। पर्या. प्रतीक, निशान, मार्क, साइन। उदा. पदचिह्न।

चीकट - (वि.) (देश.) - (कीचड़) 1. चिकना, तैलीय पुं. (देश.) लसलसी या चिपचिपी मिट्टी, कीचड़।

चीख - (स्त्री.) (देश.<चीत्कार) - पतली परंतु तीव्र आवाज में पीड़ा के कारण चिल्लाने की ध्वनि। ककणापूर्ण चिल्लाहट। आर्तनाद, चीत्कार। मुहा. चीख मारना=बार-बार चीखना। चीख-पुकार=सहायता के लिए चीखना।

चीखना-चिल्लाना अ.क्रि. - (देश.) (देश.) - 1. मुँह से चीख की ध्वनि निकालना। दे. चीख। 2. करुणापूर्ण विलाप करना। 3. सहायता के लिए पुकार लगाना। 4. किसी पर बोलकर क्रोध उतारना।

चीज - (स्त्री.) (फा.) - 1. कोई, वस्तु, द्रव्य, पदार्थ आदि। 2. कोई महत्त्वपूर्ण वस्तु आदि।

चीत्कार - (पुं.) (तत्.) - चीत् (चीं) की ध्वनि के साथ क्रंदन या विलाप की ध्वनि।

चीरना सक्रि. - (तद्.<चीर्ण) - किसी समूची वस्तु को (लकड़ी, वस्त्र, आदि का) किसी तेज धारदार उपकरण से दो फाड़ करना। जैसे: लकड़ी चीरना।

चुंगी - (स्त्री.) (तद्.) - <शुंक-प्रा. (शुल्क<-सं.] दूसरे शहर से आने वाले माल पर नगरपालिका या समकक्ष निकाय द्वारा लगाया जाने वाला यात्रा महसूल या कर।

चुंबक - (पुं.) (तत्.) - शा.अर्थ चूमने वाला। 1. पत्थर या धातु जो लोहे को अपनी ओर खींचती है। 2. लोहे से बना उपकरण जिसमें लोहे को अपनी ओर खींचने का गुण हो। megnet

चुगना - - स.क्रि. (फा.<चुंग) चिडि़यों द्वारा आगे झुकते हुए चोंच से दाना उठाना।

चुग्गा - (पुं.) (देश.) - चिडि़यों को चुगने हेतु डाला जाने वाला चारा (दाने)।

चुनना - - स.क्रि. (तद.<चयन) 1. कई वस्तुओं में से किसी एक अथवा कुछ को उपयोगी मानकर अलग निकाल लेना। 2. निर्वाचन इत्यादि के समय किसी एक व्यक्‍ति प्रतिनिधि रूप में स्वीकार करना। 3. वृक्ष आदि से फूल तोडक़र इकट्ठा करना। 4. अनावश्यक वस्तु को बाहर करना। जैसे: चावल चुनना। 5. दीवार बनाने हेतु ईंटें जोड़ना। मुहा. दीवार में चुनना-मृत्युदंड देने के लिए चारों ओर दीवार खड़ी करना।

चुनरी/चूनरी - (स्त्री.) (देश.) - स्त्रियों के ओढ़ने या देवी को चढ़ाने का लाल रंग का कढ़ाई दार या गोल बूटों वाला कपड़ा।

चुनाव - (पुं.) ([तद्.<चयन] ) - चुनने की क्रिया अथवा भाव। 1. ढ़ेर में से किसी वस्तु को पसंद किया जाना। selection 2. सलैक्शन (पद आदि विषयों में)। 3. कई लोगों में से एक को अनावश्यकतानुसार चुनना। election उदा. वे विधान-सभा का चुना, जीत गए।

चुनौती [चुनना+ओती] - (स्त्री.) (देश.) - (युद्ध के लिए या शास्त्रार्थ के लिए) किसी से अहंकारपूर्वक कहा गया ऐसा कथन तुममें साहस हो तो सामने आओ। challange पर्या. आह् वान, ललकार।

चुप - (वि.) ([तद्.<चुप = चुपचाप चले जाना]) - <चुप = चुपचाप चले जाना] जिसके मुख से शब्द न निकले, मौन, अवाक्।

चुपचाप क्रि. - (वि.) - शांत भाव से, बिना कुछ बोले या कहे-सुने।

चुपचाप क्रि. - (वि.) (दे.) - <चुप) 1. बिना बोले, 2. छिपकर, 3. बिना विरोध किए। मुहा. चुपके से = चुपचाप।

चुपड़ना स.क्रि. - (देश.) - (किसी वस्तु का) लेप लगाना। जैसे: रोटी चुपड़ना = रोटी पर घी लगाना। मुहा. चिकनी-चुपड़ी (बातें करना) खुशामद करना।

चुप्पा - (वि.) (देश.) - (चुप) (व्यक्‍ति) जो स्वभावत: चुप ही रहे, बोले नहीं या कम से कम बोले।

चुप्पी - (स्त्री.) (दे.) - चुप रहने का भाव। मुहा. चुप्पी साधना-लंबे समय तक चुप रहना।

चुभन - ([हि.<चुभना]) - 1. चुभने की क्रिया या भाव। 2. चुभने से होने वाली पीड़ा, तकलीफ। उदा. सुई की चुभन से उसकी उँगली से खून की बूँद निकल आई।

चुभना - - (अ.क्रि.) (अनु.) 1. किसी नुकीली वस्तु का शरीर के किसी भाग में घुसना, गड़ना, धँसना। उदा. मार्ग में नंगे पैर चलते हुए उसके पैर में काँटा का चुभ गया। 2. किसी की कही बात का मन को बुरा लगना। उदा. उसके कड़वे बोल मेरे मन में अब भी चुभ रहे हैं।

चुभाना - - (स.क्रि.) किसी नुकीली वस्तु को किसी के शरीर के किसी भाग में जानबूझ कर इस उद्देश्य से धँसाना कि उसे कष्‍ट पहुँचे।

चुलबुल - (हि. चुलबुलाना) (स्त्री.) - 1. मस्ती आदि के कारण जिसमें चंचलता और नटखटापन हो। पर्या. चंचल, चपल; नटखट। उदा. ‘तुम्हारा बेटा बहुत चुलबुला है। चुलबुली

चुल्लू - (पु.) ([तद्.<चुलुक]) - हथेली में बना गड् ढा़; हथेली के गड् ढ़े में समाया पानी। शा.अर्थ. चुल्लू भर पानी उतना, भर पानी जितना एक बार में चुल्लू में समा सके। मुहा. चुल्लू भर पानी में डूब मरना = लज्जाजनक स्थिति में पड़ना, मुँह दिखाने के योग्य न रहना।

चुसकी [चूसना तद्.चूषण] - (तद्.) (स्त्री.) - 1. कसने के बाद गोला बनाकर और उस पर चाशनी छिड़कर बनी मिठाई, जिसे बच्चे चूसकर खाते हैं। 2. स्वाद लेने के लिए शब्द करते हुए एक बार चूसने का भाव।

चूषण] - (वि.) (फा.) - 1. जो कसा हुआ हो, तंग। उदा. चुस्त कपड़े पहनना आजकल फैशन बन गया है। 2. जिसमें फुर्तीलापन हो, फुर्तीला। जैसे : यह काम उसे सौंप दो। वह बहुत चुस्त है, इसलिए वह इसे जल्दी कर लेगा। smart 3. निपुण/दक्ष-वह अपने कार्य में चुस्त है।

चुस्ती - (स्त्री.) (दे.) - चुस्त अर्थ। 2. जिसमें फुर्तीलापन हो, फुर्तीला। जैसे: यह काम उसे सौंप दो। वह बहुत चुस्त है, इसलिए वह इसे जल्दी कर लेगा। smartness 3. निपुण/दक्ष-वह अपने कार्य में चुस्त है।

चुहल/चुहल-बाजी - (स्त्री.) (देश.अनु.) - हँसी-मजाक, ठट्टा, ठिठोली। उदा. मेरे साथ चुहल मत करो। मुझे चुहलबाजी पसंद नहीं है।

चूंकि अर. - (फा.) - क्योंकि, इसलिए कि, यत:। चूँकि तुम मुझसे बड़े हो, इसलिए मैं तुम्हारा आदर करता हूँ।

चूँ - (स्त्री.) (देश.अनु.) - 1. छोटी चिडि़या की आवाज, 2. बहुत धीमी आवाज। मुहा. चूँ करना = नाममात्र का प्रतिवाद करना। चूँ न करना = कुछ भी न बोलना, मुँह बंद रखना।

चूक - (चूकना) (वि.) - सा.अर्थ 1. भूलने से या गलती करने की स्थिति। पर्या. भूल, गलती error उदा. प्रश्‍न का सही उत्‍तर लिखने में मुझसे चूक हो गई। अर्थ 2. नियम जानते हुए भी अनजाने में होने वाली भूल। 3. समय पर कोई कार्य न कर पाने की स्थिति यानी मैं प्रश्‍न का उत्‍तर नहीं जानता था इसलिए सही उत्‍तर नहीं लिख पाया। उदा. आपकी पीठ मेरी ओर थी। इसलिए आपको पहचानने में मुझसे चूक हो गई।

चूजा - (पुं.) (फा.) - मुर्गी का बच्चा। चिकन

चूड़ी - (स्त्री.) (तद्.चूड़ा) - स्त्रियों की कलाई में पहनने का एक गोलाकार आभूषण जो काँच, लाख, स्वर्ण आदि का बनता है तथा विशेष रूप से शोभा के लिए या सौभाग्यसूचक चिह् न के रूप में धारण किया जाता है। मुहा. चूडि़याँ पहनना = पुरुष होकर भी कायरता का प्रदर्शन करना। उदा. वह तुम्हें पीटता रहा और तुम पिटते रहे। तुमने क्या हाथ में चूडि़याँ पहन रखी थीं?

चूनरी - (स्त्री.) (देश.) - स्त्रियों द्वारा ओढ़ा जाने वाला रंगीन बुंदकीदार वस्त्र।

चूना - (पुं.) (तद्.<चूर्ण) - 1. एक विशेष प्रकार के पत्थर को जलाने से प्राप्‍त अल्कली पदार्थ (क्षार) जिसमें कैल्शियम नामक पदार्थ अत्यधिक मात्रा में पाया जाता है। 2. घरों में सफेदी करने के लिए, कक्षाओं में श्यामपट्ट पर लिखने के लिए या पान में लगाने के लिए प्रयुक्‍त सफेद पदार्थ। अ.क्रि. (तद् <च्‍यवन) बूँद-बूँद करके टपकना।

चूमना स.क्रि - (तद्.<चुंबन) - 1. होठों से मीठी ध्वनिपूर्वक किसी का कोई अंग विशेष रूप से गाल या होंठ। इस प्रकार स्पर्श करना जैसे कि उसका रसपान कर रहे हों; चुम्मा लेना। 2. वात्सल्यभाव का प्रकटीकरण-बड़ों द्वारा बच्चों को चूमना। 3. श्रृंगारिक चेष्‍टाएँ-प्रेमी-प्रेमिका का परस्पर चूमना। जैसे: सिर चूमना, हाथ चूमना, गाल चूमना आदि।

चूर - (वि.) (तद्.<चूर्ण) - 1. तोड़ने, कूटने और फिर पीसने या बाँटने आदि की क्रिया से जो चूर्ण बन गया हो या चूरा हो गया है। जैसे: 1. आँवले का चूर्ण/चूरा, चावल का चूर्ण/चूरा। 2. लाक्ष.अर्थ वे थककर चूर हो गए = थकावट के कारण शिथिल नशे में चूर, मदहोश बेसुध, घमंड में चूर = बहुत अधिक घमंड।

चूरन - (पुं.) (तद्.<चूर्ण) - 1. दे. चूर्ण। 2. स्वादिष्‍ट चटपटे या चटपटे स्वाद वाला पाचक चूर्ण।

चूर्ण - (पुं.) (तत्.) - 1. किसी ठोस वस्तु या पदार्थ का सूखा और बारीक पिसा हुआ रूप। पर्या. चूरा, बुकनी। 2. औषधि के रूप में प्रयुक्‍त पिसी हुई सूखी जड़ी-बूटी।

चूर्णित [चूर्ण +इन्] - (वि.) (तत्.) - चूरा किया गया, बारीक पीसा गया/पिसा हुआ।

चूल्हा - (पुं.) (तद्.) - मिट्टी या लोहे से बना उपकरण जिसमें भोजन पकाने के लिए आग जलाई जाती है।

चूसना स.क्रि. - (तद्.<चूषण) - 1. किसी फल इत्यादि ठोस पदार्थ के रस को मुँह से अंदर की ओर खीचना। 2. ला.अर्थ किसी से निर्दयतापूर्वक धन आदि वसूलना। मुहा. खून चूसना = शोषण करना।

चेक (अं.) - (पुं.) - 1. अवरोध, नियंत्रण 2. किसी चीज या व्‍यक्‍ति की सुरक्षा या स्‍वास्‍थ्‍य की दृष्‍टि से जॉंच, परीक्षण, निरीक्षण जैसे चेक पोस्‍ट, मेडिकल चेक आप check 3. बैंक की हुंडी। किसी बैंक के नाम से लिखा वह बिनिमय पत्र जिस पर देय राशि भरने पर खातेदार के खाता Account से उसे नकद राशि का भुगतान किया जाता है। cheque 4. चेकोस्‍लोवाकिया नामक देश से संबंधित; चेकोस्‍लोवाकिया का निवासी।

चेचक - (स्त्री.) (फा.) - 1. पुराने जमाने की एक जानलेवा बीमारी जिसमें शरीर पर बहुत से छाले निकलते हैं। शरीर और पैर स्थायीतौर पर जिनमें पीव भरा होता है। ठीक होने के बाद ग्रामीण प्रयोग-माता। 2. शीतला रोग-यह दो प्रकार की होती है 1. छोटी चेचक/माता मीजल्स 2. बड़ी चेचक small pox उदा. आजकल छोटे बच्चों को चेचक का टीका लगाया जाता है।

चेतन - (वि.) (तत्.) - 1. जिसमें चेतना या ज्ञान हो, चेतनायुक्‍त। एनिमेट। मनुष्य, पेड़-पौधे आदि चेतन प्राणी हैं। विलो. 1. अचेतन, 2. जड़।

चेतना - (स्त्री.) (तत्.) - 1. चेतन होने का भाव अपने आस-पास के वातावरण के प्रति सजग रहना और तद्नुकूल प्रतिक्रिया करना। पर्या. होश, चैतन्य। 2. बुद्धि, ज्ञान प्राप्‍त करने की शक्‍ति। अ. क्रि. (देश. -चेत-नामधातु) जागरुक होना, सावधान होना।

चेतना केंद - (पुं.) (तत्.) - शा.अ. चेतना जाग्रत करने का केंद्र (स्थान)। 1. अपने सान्निध्य से प्राणी को शक्‍ति का केंद्र। 2. ज्ञान के मूल आधार वाली शक्‍ति का केंद्र।

चेतावनी - (स्त्री.) (देश.(चेतना)) - 1. भूल होने पर पुन: न होने देने हेतु सतर्क रहने की सूचना। 2. कोई अनुचित कार्य या अनुशासन भंग होने पर उसे न दोहराने के लिए दी गई धमकी। 3. संभावित अनिष्‍ट की जानकारी और उससे बचने की सलाह। warning

चेष्‍टा - (स्त्री.) (तत्.) - 1. अंगों को हिलाने की या गति देने की क्रिया। पर्या. हरकत। 2. मन का भाव प्रकट कर देने वाली मुख की या अंगों की स्थिति। 3. प्रयत्‍न, कोशिश। उदा. मैं उसे मनाने की चेष्‍टा कर-कर के हार गया, किन्तु वह नहीं माना।

चेहरा-मोहरा - (पुं.) - (फा.हि.) चेहरे का आकार-प्रकार, मुखाकृति। उदा. वह आदमी चेहरे-मोहरे से तो बड़ा शरीफ लग रहा था किंतु निकला बड़ा छँटा हुआ बदमाश।

चैक1 - (पुं.) - (अं.) 1. अवरोध, नियंत्रण, 2. किसी चीज या व्यक्‍ति की सुरक्षा या स्वास्थ्य की दृष्‍टि से जाँच, परीक्षण, निरीक्षण जैसे: चेकपोस्ट, मेडिकल चेक अप check

चैक2 - (पुं.) - 3. बैंक की हुंडी। ‘चेक’ किसी बैंक के नाम से लिखा हुआ वह विनिमय पत्र है जिस पर देय राशि भरने पर खातेदार के खाता account से उसे नकद राशि का भुगतान किया जाता है। चेक काटने वाला उस पर हस्ताक्षर करता है।

चैक3 - (पुं.) - 1. चेकोस्लोवाकिया नामक देश से संबंधित। 2. चेकोस्लोवाकिया नामक देश से संबंधित निवासी।

चैत्य - (पुं.) (तत्.) - 1. किसी देवी-देवता के नाम पर बनाया गया भवन या चबूतरा। 2. बौद्ध भिक्षुओं के रहने का मठ या विहार। 3. गौतम बुद्ध की मूर्ति।

चैत्र - (पुं.) (तत्.) - महीना भारतीय चांद्रमासों की गणनानुसार, सूर्य की परिक्रमा करते समय चित्रा नक्षत्र की सीध में पृथ्वी के आने के समय वाला महीना, भारतीय गणना के अनुसार पहला महीना।

चैतन्य - (पुं.) (तत्.) - 1. चेतन होने का भाव, चेतनता। 2. परमात्मा, ब्रहम्। 3. प्राण। 4. बंगाल के प्रसिद् ध वैष्णव संत चैतन्य महाप्रभु। उदा. जड़हि करइ चैतन्य (रा. च. मानस तुलसी) दे. चेतनता। विलो. जड़ (पर्वत, पत्थर, लकड़ी आदि।)

चैन - (पुं.) (तद्.चैतन्य) - सुख का काल; मन की शांति, आराम। उदा. जब तक इस काम को पूरा नहीं कर लूँगा, मुझे चैन नहीं मिलेगा। मुहा. चैन की नींद सोना=(काम पूरा हो जाने के बाद) शांत चित्‍त होकर सो जाना।

चोंच - (स्त्री.) (तद्.(चंचु) - प्राणि-पक्षियों का बाहर की ओर उभरा अस्थिमय हनु (जबड़ा) beak

चोंचला/चोचला - (पुं.) (देश.) - किसी को रिझाने/खिझाने (अथवा दिखावा करने) के लिए की गई शारीरिक चेष्‍टा, हावभाव। पर्या. नखरा। जैसे: अमीरों के चोचले अच्छी स्थिति न होने पर भी जरूरत से ज्यादा घर में दिखाने की चीजें लाना।

चोखा - (वि.) (तद्.[चोक्ष) - ग्रामीण प्रयोग: 1.जो विशुद्ध एंव उत्‍तम हो, मिलावटरहित। जैसे: तुम्हारा माला चोखा है। 2. रंग जो बहुत अच्छा और गहरा चढ़ा हुआ हो। जैसे: हर्र लगी न फिटकरी, रंग चोखा आया।

चोगा - (पुं.) - (तु्.) घुटने तक लंबा कुरतेनुमा वस्त्र। पर्या. लबादा।

चोचलेबाज़ - (वि.) - जरूरत से ज्यादा दिखावा करने वाला।

चोचलेबाजी - (स्त्री.) - जरूरत से ज्यादा दिखावा करने की स्थिति।

चोट - (स्त्री.) (तत्.) - 1. किसी के द्वारा या किसी वस्तु का शरीर पर होने वाला ऐसा आघात या प्रहार, जिससे शरीर में पीड़ा उत्पन्न हो। जैसे: लाठी की/तलवार की/पत्थर की। 2. किसी ठोस वस्तु पर भारी उपकरण का आघात। जैसे: हथौड़े से लोहे के सरिया पर चोट।

चोटी - (स्त्री.) - पुरूषों के सिर के केन्द्र वाली बालों की शिखा। पर्या. चुटिया, शिखा। 2. स्त्रियों के सिर के गुँथे हुए बाल जो नीचे की ओर एकाकार होकर लटकते हैं। 3. मुर्गे और अन्य पक्षियों के सिर पर उठे हुए बाल या कलगी। 4. पर्वतमाला का सबसे ऊपरी भाग यानी शिखर।

चोर ताला - (पुं.) - 1. ताला जो सामने से दिखाई न दे या 2. जिसे खोलने की तरकीब आम तालों से भिन्न होकर केवल मालिक को ही मालूम हो।

चोर - (पुं.) (तत्.) - 1. चोरी करने वाला, किसी की वस्तु या धन को चुराने वाला व्यक्‍ति।

चोर बाज़ार - (पुं.) (तद्.+फा.) - 1. बाज़ार जहाँ आयात शुल्क चुकाए बिना चोरी छिपे लाया गया विदेशी सामान बिकता हो। 2. बाज़ार जहाँ नियंत्रित मूल्यवाली वस्तुएँ चोरी छिपे अधिक दाम पर बेची और खरीदी जाती हैं। black market

चोर बाज़ारी - (स्त्री.) (तद्.+फा.) - नियंत्रण मूल्यवाली वस्तुओं अथवा गैरकानूनी ढंग से आयातित वस्तुओं की खरीद-फरोख्त का (पकड़े जाने पर) दंडनीय धंधा।

चोरी - (स्त्री.) - 1. बिना अनुमति के और न लौटाने की नीयत से किसी की चीज़ को चुपके से उठा ले जाने का आपराधिक कृत्य।

चोला - (पुं.) (तद्.[चोलक) - 1. साधुओं, फकीरों और शहीदों आदि का पहनावा/कुर्ता; वस्त्र। उदा. मेरा रंग दे बसंती चोला। (गीत)। 2. धार्मिक रूप से किसी देवी-देवता को अर्पित किए जाने वाले वस्त्र। जैसे : हनुमान जी को चोला चढ़ाना। 3. ला.अर्थ शरीर/देह (आत्मा का वस्त्र)-चोला बदलना।

चोली - ([तद्.<चेलिकार<चोली<तत.] ) (स्त्री.) - <चेलिकार<चोली<तत.] 1. स्‍त्रियों का एक परिधान जो गले से नीचे और पेट के ऊपर पहना जाता है। अंगिया, ब्‍लाउज। 2. स्‍त्रियों का एक आधुनिक परिधान जो वक्ष पर स्‍तनों को कसे रखने के लिए अंदर अर्थात् ब्‍लाउज़ आदि के नीचे पहना जाता है। मुहा. चोली-दामन का साथ-कभी न छूटने वाला घनिष्‍ठ संबंध।

चौंकना अ. - (तद्.[चमत्कृ) - डर के कारण अचानक लगे झटके जैसा महसूस होना। बोलियों में चमकना।

चौंधियाना (चौंधनामधातु) अ.क्रि. (देश.<चमत्+अंधति] - (देश.) - तेज़ रोशनी पड़ने के कारण आँखों का बँद-सा हो जाना और स्पष्‍ट न देख पाना।

चौक - (पुं.) (तद्.<चतुष्क) - 1. चारों ओर से खुली भूमि। 2. नगर, गाँव आदि के बीच का वह खुला स्थान/मैदान जहाँ चारों ओर से कई रास्ते मिलते हों। जैसे: चाँदनी चौक, राजीव चौक। 3. घर के बीच का वह खुला स्थान जिसके ऊपर छाजन न हो। पर्या. आँगन, सहन।

चौकड़ी - (स्त्री.) (तद्.<चतुष्क) - 1. चारक इकाइयों का समूह। जैसे: चांडाल चौकड़ी। 2. ताश का खेल जिसमें चार व्यक्‍ति आमने-सामने वाले को जोड़ीदार बनाकर खेलते हैं। 3. पशुओं द्वारा (विशेषकर हिरण की) चारों पैर एक साथ उठाते हुए लगाई गई लंबी छलांग या दौड़। उदा. हिरण चौकड़ी भरता है। 4. जाँघें और घुटने जमीन पर टेककर बैठने की मुद्रा, पालथी।

चौकन्ना - (वि.) - (चतुष्कर्ण) शा.अर्थ. चार कानों वालो जैसा। ला.अर्थ सावधान, चौकस, सचेत, सर्तक।

चौकस - (वि.) (देश.) - शा.अर्थ. चारों ओर से अच्छी तरह कसा हुआ। 1. पूरी तरह सावधान या तैयार। उदा. चौकस रहना। आजकल चोरियाँ बहुत हो रही हैं। 2. ठीक, दुरूस्त। जैसे: चौकस माल, तोल में चौकस।

चौकसी - (स्त्री.) ([देश. चौ+कस]) - सौंपे गए कार्य के बारे में बरती जाने वाली हर प्रकार की सावधानी; सतर्कता। उदा. पुलिस की चौकसी से कार चोर पकड़े गए।

चौकी - (तद्.[चतुष्की) (स्त्री.) - 1.चार पायों वाला कम ऊँचाई का आसन। 2. नगर सीमा पर स्थित सीमाशुल्क विभाग का कार्यालय जहाँ इस बात का ध्यान रखा जाता है कि बिना चुंगी चुकाए कर योग्य वस्तुएँ लाई-ले जाई न जा सकें। octroi post 3. ऐसा स्थान जहाँ पड़ोसी देश के घुसपैठियों के अवैध प्रवेश को रोकने पर निगरानी रखने के लिए फौज़ या पुलिस के सशस्त्र सैनिक/सिपाही तैनात हों।

चौकीदार - (देश.) (पुं.) - भवन, मुहल्ले आदि की रखवाली करने वाला कर्मचारी, पहरा देने वाला व्यक्‍ति जो प्रवेश द्वार पर तैनात होकर अथवा घूम-फिर कर यह निगरानी रखे कि कोई अवांछिय व्यक्‍ति अवैध रूप से प्रवेश न पा सके। पर्या. पहरेदार, द्वारपाल।

चौकीदारी - (स्त्री.) - 1. रखवाली करने, निगरानी रखने, पहरा देने का व्यवसाय या कार्य। 2. चौकीदार को दिया गया मेहनताना।

चौकोर - (वि.) (तद्.[चतुष्कोण) - शा.अर्थ चार कोनों वाला। जिसकी चारों भुजाएँ या चारों कोने बराबर हों।

चौखट - (तद्.[चतुष्काष्‍ठ) (स्त्री.) - 1. दरवाज़े में किवाड़ों को साधने वाला चार लकडि़यों का ढाँचा। 2. देहरी, देहली, दहलीज।

चौगुना - (तद्.[चतुर्गुण) (वि.) - आधार संख्या या मात्रा को चार बार रखकर जोड़ देने/मिला देने जितना।

चौतरफा [चौ+तरफ़ा] - (वि.) - चार/चारों ओर से होने वाला। जैसे: चौतरफा हमला।

चौथाई - (पुं.) (तत्.[चतुर्थ) - 1. किसी वस्तु या राशि का चौथा भाग, चतुर्थांग। जैसे : वह कृषि से प्राप्‍त लाभांश में चौथाई का मालिक है। 2. किसी वस्तु, क्षेत्र आदि के लिये गए लगभग बराबर चार भागों में से एक भाग।

चौपाई - (स्त्री.) (तद्.[चतुष्पदी) - वह मात्रिक छंद जिसके प्रत्येक चरण में 16 मात्राएँ होती हैं।

चौपाया - (वि.) (तद्.[चतुष्पद) - शा.अर्थ चार पैरों वाला। सा.अर्थ (चार पैरों वाला) उपयोगी पालतू पशु। जैसे: गाय, भैंस, घोड़ा, बकरी आदि। पर्या. मवेशी cattle

चौबारा - (पुं.) (तद्.[चतुद्र्वार) - शा.अर्थ चारों ओर निकासी (दरवाज़े वाला)। छत पर बना कमरा।

चौमासा - (तद्.[चातुर्मास) (पुं.) - 1.वर्षा ऋतु के चार महीने। 2. चार महीनों में होने वाला।

चौराहा/चौरस्ता - (तद्.[चतु:+फा-रराह) (पुं.) - वह केंद्रीय स्थल जहाँ दो चौड़े रास्ते परस्पर एक-दूसरे को काटते हों। टि. जहाँ दो से अधिक सडक़ें एक-दूसरी को काटती हों यानी चार से अधिक सडक़ों के मिलन स्थल को ‘चौराहा’ ही कहा जाता है।

चौसर - (तद्.[चतु:सारि) (पुं.) - खेल जो बिसात पर चार रंग की चार-चार गोटियों से खेला जाता है। गोटी चलने के लिए पाशा फैंका जाता है। पर्या. चौपड़। टि. वर्तमान ‘लूडो’ की तरह का प्राचीन खेल।

च्युत - (तत्.) (वि.) - हटा/हटाया हुआ। गिरा हुआ। जैसे : पदच्युत=पद से हटा हुआ। धर्मच्युत=धर्म से गिरा हुआ, धर्मभ्रष्‍ट।

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छंद - (पुं.) (तद्.(छंदस्) - पद्य रचना के विविध प्रकार जिनसे वे पद् य गेय हो जाते हैं। टि. वर्णों एवं मात्राओं की संख्या के आधार पर छंदों की संख्या बहुत अधिक है। छंदशास्त्र (छंद:शास्त्र) को वेदांग माना गया है।

छंदशास्त्र - (पुं.) (तत्.) - वह शास्त्र जो काव्य में प्रयुक्‍त छंदों के लक्षणों, नियमों और सिद् धांतों का विवेचन करता है।

छँटना अ.क्रि. - (देश.) - 1.कटना या छिन्न-भिन्न होकर नष्‍ट हो जाना। जैसे: बादल छँट गए हैं। 2. चुन लिया जाना। जैसे : छँटे हुए फल टोकरी में रख दो। 3. साफ़ होना। जैसे : चावल छँटे हुए हैं। (साफ़ किए हुए हैं) 4. मोटापा कम होना। जैसे : शरीर कुछ छँट गया है। मुहा. छँटा हुआ=धूर्त, चतुर बदमाश, शातिर।

छँटनी - (स्त्री.) - [छाँटन+ई] प्राय. 1. छाँटने की क्रिया का भाव, छँटाई। उदा. घर के सारे वस्त्रों में से पुराने वस्त्रों की छँटनी कर दी। 2. किसी संस्था/विभाग/कंपनी आदि में से कुछ कार्यकर्ताओं को निकाले जाने या हटाए जाने का काम। उदा. एयर इंडिया के लगभग सौ कर्मचारियों की छँटनी कर दी गई।

छँटा - (वि.) (देश.) - राशि (ढेर) में से छाँट कर निकाली गई चीज। वह इस क्षेत्र का छँटा बदमाश है।

छकना - (तद्.) (तद्(चकन) - जी भरकर खाना; खाकर तृप्‍त हो जाना। 2. नशे में चूर होना। अ.क्रि. (चक्रण) 1. चकराना, परेशान होना। 2. धोखा खाना, मूर्ख बन जाना।

छकाना स. क्रि. - (तद्.) - 1. खिलाकर पूरी तरह संतुष्‍ट करना। जैसे: 1. भोजन छकाना। 2. परास्त करना, इतना परेशान करना कि वह व्यक्‍ति थककर चूर हो जाए। छका मारना, छका डालना।

छछूँदर - (पुं.) (तद्.<छुछंदर:) - चूहे की जाति का दुर्गंध फैलाने वाला एक जंतु जो ‘चिलिक चिलिक’ जैसी आवाज करता है।उदा. छछूँदर की गति दुविधा की स्थिति में होना। टि. कहते हैं कि साँप छछूँदर को चूहा समझकर जब पकड़ लेता है तो उसके लिए छछूँदर को न निगलते बनता है और न छोड़ते बनता है ‘निगले अंधा उगले कोढ़ी।’

छज्जा - (पुं.) (देश.) - दीवार से बाहर निकला हुआ छत का हिस्सा। 1. ढलवाँ छज्जा वर्षा के पानी से निचले भाग की रक्षा करता है और पानी को नीचे दूर बहा देता है; cornice समतल छज्जा धूप और पानी से रक्षा करने के साथ-साथ खड़े होने और सामान रखने के काम भी आता है। balconi

छटपटाना - - अ.क्रि. (देश-अनु.) 1. पीड़ा से व्याकुल होकर हाथ-पैर पटकना या लोट-पोट होना तथा रह-रहकर कराहना इत्यादि। 2. किसी विशेष विचार या भाव इत्यादि के कारण मन ही मन में दु:खी होते रहना। जैसे : वीर सावरकर जेल में रहते हुए भी भारत की स्वतंत्रता के लिए छटपटाते रहते थे। पर्या. बेचैन होना, तु फड़पड़ाना।

छटपटाहट - (स्त्री.) - [अनु./प्रा.चटपट)(छटपट+आहट] 1. छटपटाने की क्रिया/अवस्था/भाव। 2. किसी पीड़ा या बंधन के फलस्वरूप उसे ने सह पाने के कारण मन और शरीर दोनों से प्रकट होने वाली व्यग्रता, बेचैनी। उदा. तीव्र ज्वर से उत्पन्न छटपटाहट के कारण वह सो नहीं पा रहा है।

छटा - (स्त्री.) (तत्.) - देखने में सुंदर लगने और मन को आने वाली आकृति या दृश्यावली। पर्या. छवि। जैसे: उनके विवाहमंडप की छटा दर्शनीय थी। दीपावली के दिन रोशनी में नहाए राष्‍ट्रपति भवन की छटा देखते ही बनती है।

छड़ - (पुं.) (तद्.) - (शर) धातु से बना पतला, लंबा, गोलकाट टुकड़ा। (रॉड, बार)

छड़ी - (स्त्री.) (तद्.) - अपंग या वृद्ध द्वारा सहारे के लिए हाथ में लेकर चलने के काम आने वाला काष्‍ठ (या लौह) दंड। stic

छत - (स्त्री.) (तद्.<छत्र) - पत्थर, कंक्रीट, घास-फूस आदि से ढकी घर की छाजन। पर्या. छाजन, पाटन। 2. ऊपर का ढकने जैसा भाग। 3. ला.अर्थ-रहने का स्थान। पर्या. आश्रय, सहारा। उदा. दिल्ली में छत मिल जाए तो फिर जीवन बसर करना मुश्किल नहीं है।

छतरी - (स्त्री.) [तद्.<छत्री<(छत्र] - 1. धूप और वर्षा से बचने के लिए उपयोग में आने वाला छोटा छाता। 2. राजा-महाराजाओं की मृत्यु के उपरांत उनके दाह-स्थल पर स्मृति-स्वरूप निर्मित्‍त छत्र जैसी संरचना। 3. जिसे लेकर सैनिक या अन्य लोग हवाई जहाज से हवा भर जाने पर गति को नियंत्रित कर देने वाली युक्‍ति छलाँग लगाते हैं। पर्या. हवाई छतरी। parachut 4. मंदिरों आदि के मंडप का ऊपरी गोल भाग।

छत्‍ता - (पुं.) (तद्.) - (छत्र) मधुमक्खियों द्वारा बनाया गया मोम का घर जिसमें वे शहद इकट् ठा करती हैं तथा अंडे भी देती हैं। hive

छत्र-छाया - (स्त्री.) (तत्.) - शा.अर्थ छाते की छाया। 2. ला.अर्थ आश्रय, शरण peronage उदा. आपकी छत्रछाया मुझ पर बनी रहे-यही कामना है।

छद् मादवरण [छद्य +आवरण] - (पुं.) (तत्.) - अपनी रक्षा या परभक्षी प्राणियों का शिकार बनने से बचने के लिए कुछ प्राणियों में पाया जाने वाला स्वांग, छल या पर्यावरण से मिलती-जुलती आकृति या रूप-रंग। camollflage

छनना अ. क्रि. - (तद्.(क्षरण) (दे.) - (क्षरण) 1. किसी चूर्ण (जैसे: आटे) तरल पदार्थ (जैसे: रस) का (छलनी में से इस तरह गुजरना कि कपड़े या अन्य किसी माध्यम से वांछित और अवांछित अंश अलग-अलग हो जाएँ। मुहा. गहरी छनना = गहरी दोस्ती होना। 2. कड़ाही से पूरी आदि बाहर निकलना। दे. छानना।

छप - (स्त्री.) - (अनु.) किसी तरल पदार्थ जैसे पानी में किसी वस्तु का, दबाव पड़ने से उत्पन्न होने वाली हल्की आवाज। उदा. पानी से भरी सडक़ पर चलते समय बच्चे छप-छप की ध्वनि करते चलते हैं। छपाक: पानी में किसी वस्तु के जोर से गिरने के फलस्वरूप उत्पन्न होने वाली भारी आवाज। जब कोई तालाब में कूदता है तो छपाक की आवाज होती है।

छपना अ.क्रि. - (देश.) - किसी मुहर इत्यादि से काग़ज या कपड़े पर अक्षर या चित्र आदि अंकित होना। 2. कागजों पर (मुद्रण) यंत्र की सहायता से किसी लेख, समाचार आदि का अंकन। Printing

छपाई - (स्त्री.) (तत्.) - 1. छपने की क्रिया; 2. उसके लिए दी गई मजदूरी। दे. छपना। Printing

छपाका - (पुं.) - [ध्वन्यात्मक शब्द] पानी में जोर से गिरने की और उससे पानी के फैलने की ध्वनि।

छप्पर - (पुं.) (देश./प्रा. छिप्पीर) - कच्चे मकान या झोंपड़ी की छत में जिसमें छाजन के रूप बाँस, लकड़ी, पत्‍ते, घास-फूस खपरैल आदि का प्रयोग होता है। पर्या. छानी/छान। उदा. वह नये छप्पर के घर में रहता है। मुहा. छप्पर टूट पड़ना = बड़ी विपत्‍ति आना। छप्पर फाडक़र देना = बिना माँगे या अकस्मात् और बहुत अधिक देना।

छबीला [हि. छबि+ईला प्ररम] - (वि.) (पुं.) - 1. जो छवि युक्‍त व सुंदर हो। 2. जो युवक हमेशा सजधज कर सुंदर ढंग से रहता हो।

छबीली - (स्त्री.) (वि.) - उदा. छैल छबीला कृष्ण और छैल छबीली राधा की जोड़ी अनुपम है।

छरहरा - (वि.) (देश.) - शरीरिक संरचना में दुबला-पतला (परंतु (नौजवान) बीमारी के कारण नहीं)

छल - (पुं.) (तत्.) - 1. जो दिखने में कुछ हो, पर वास्तव में कुछ और ही हो। उदा. रावण ने छल से सीता को हर लिया। 2. स्वार्थ पूरा करने के लिए भला आदमी बनने का स्वाँग करने का भाव। पर्या. धूर्तता। froud

छलकना अ. क्रि. - (तद्.<क्षरण) - 1. किसी भरे हुए बर्तन के हिलने से तरल पदार्थ का बाहर गिरना। 2. (आँखों में आँसुओं का) भर आना और अधिकता के कारण बाहर आ जाना। पर्या. छलछलाना।

छल-कपट - (पुं.) (तत्.) - (छल+कपट) छल या धूर्तता का व्यवहार।

छलछलाना अ.क्रि. - (देश.अनुः) - 1. किसी पात्र में भरे हुए पानी आदि का ‘छल-छल’ शब्द करते हुए थोड़ा-थोड़ा करके बाहर गिरना। उदा. चलती गाड़ी में रखे जल से भरे मटके छलछला रहे हैं। आँखें छलछला आना = आँखों में आँसू भर आना और उसमें से आँसू की कुछ बूँदें टपकना। उदा. हर्ष, शोक, पश्‍चात्‍ताप आदि स्थितियों में आँखों में आँसू छलछला पड़ते हैं।

छलनी - (स्त्री.) (तद्.) - (क्षरणी) चूर्ण (जैसे आटा) और तरल पदार्थ (जैसे रस) इत्यादि छानने के लिए प्रयुक्‍त एक उपकरण, पर्या. चलनी। मुहा. छलनी हो जाना = बहुत अधिक छेद हो जाना। छलनी में पानी भरना = व्यर्थ काम करना। कलेजा छलनी होना = अत्यन्त, दुखित हो जाना।

छलाँग - (स्त्री.) (तद्.) - एक स्थान से उछलकर दूसरे स्थान पर अवतरित होना (उतरना) पहुँचना। ऊँची/लंबी कूद। मुहा. छलाँग भरना = उछलते-उछलते बहुत तेजी से भागना।, शेरनी को देखकर हिरन छलाँगें भरता हुआ भाग गया।

छलावा - (पुं.) (देश.) - छल, धोखा; दिखावा जैसे: तुम्हारा यह कार्यक्रम गरीबों के लिए छलावा मात्र है।

छलिया - (पुं.) (तद्.(छली) - वह व्यक्‍ति जो मीठी-मीठी बातें करके, ऊपरी व्यवहार कुशलता दिखाकर प्यार का नाटक करता है किंतु जो प्यार नहीं करता। जैसे: इस छलिया पर विश्‍वास मत करना।

छलिया - (वि.) (दे.) - छली।

छली - (वि.) (तत्.) - छल करने वाला, कपटी, धोखेबाज। उदा. तुम उस छली लडक़े से बचकर रहना, नहीं तो पछताओगे। विलो. निश्छल।

छवि/छबि - (स्त्री.) (तत्.) - देखने में सुंदर लगने और मन को भाने वाली आकृति; छटा। उदा. कश्मीर में प्रकृति की छवि देखते ही बनती है।

छाँटना स.क्रि. - (देश.) - छँटना का प्रे. रूप। 1. काटकर अलग करना जैसे: पौधों को छाँटना। cutting, pruning 2. अच्छी चीजें चुनना to select 3. साफ करना। 4. अपनी योग्यता बढ़ा-चढ़ा कर दिखलाना।

छाँह - (स्त्री.) (तद्.छाया) - 1. वह स्थान जहाँ धूप आने में रूकावट हो, छाया। किसी तल पर प्रकाश के मार्ग में आने के कारण बना किसी का प्रतिबिंब। 2. पेड़ का साया। उदा. पथिक वटवृक्ष की घनी छाँह में बैठकर विश्राम कर रहे हैं।

छाछ - (स्त्री.) (देश.) - दही में पानी मिलाकर और उसे अच्छी तरह मथकर मक्खन निकालने के बाद बचा हुआ पेय पदार्थ। पर्या. तक्र, मट्ठा। उदा. गर्मियों में लू से बचने के लिए छाछ पीना लाभदायक है।

छाज - (पुं.) (तद्.(छाद) - 1. अनाज फटकने के लिए सीकों या बाँस की खपच्चियों आदि से बना हुआ एक उपकरण। पर्या. सूप। उदा. वह छाज से चावल फटक रही है। 2. छज्जा।

छाजन - (स्त्री.) (तद्.(छादन) - (छादन) 1. छाने की क्रिया या भाव। 2. छप्पर। 3. त्वचा का एक रोग eczema

छाता - (पुं.) (तद्.) - वर्षा या धूप से बचने का प्रसिद्ध उपकरण। (स्त्री. छतरी)

छाती - (स्त्री.) (तत्.(छादिन्) - (छादिन्) पेट और गरदन के बीच का दिखाई पड़ने वाला शरीर का चमड़ी से ढक़ा भाग। टि. चमड़ी के नीचे हड्डियों का पिंजरेनुमा भाग जो हृदय, फेफड़े आदि कोमल अंगों को सुरक्षा प्रदान करता है। मुहा. छाती पर मूँग दलना = अत्यधिक कष्‍ट देना। 2. छाती फटना = बहुत दु:ख पहुँचना। 3. छाती पीटना = बहुत शोक व्यक्‍त करना। 4. छाती से लगाना = स्नेह करना। 5. छाती पर पत्थर रखना = जी कड़ा करना।

छात्र - (पुं.) (तत्.) - शा.अर्थ (गुरु की) छतरी के नीचे छत्रछाया में आया हुआ (बालक)। सा.अर्थ जो गुरु से विद् या ग्रहण करता हो। पर्या. शिष्य, विद् यार्थी।

छात्रवृत्‍ति - (स्त्री.) (तत्.) - [छात्र+वृत्‍ति] छात्र को अध्ययन एवं निर्वाह हेतु मिलने वाली आर्थिक सहायता। scholarship

छात्रावास - (पुं.) (तद्.) - [छात्र+आवास] छात्रों के आवास (रहने) के लिए निर्मित भवन। boarding house

छान - (स्त्री.) (तद्.) - (छादन) कच्चे मकान को छाने का घास-फूस का छप्पर। पर्या. छप्पर।

छानना स.क्रि. - (तद्.) (तत्) - (चालन/क्षरण) 1. किसी सूखे चूर्ण या तरल पदार्थ को महीन जाली या कपड़े के आर-पार निकालने की प्रक्रिया (जिससे वांछित और अवांछित वों को अलग किया जा सके।) 2. किसी वस्तु को यथासंभव सभी स्थानों पर ढूँढ़ना। उदा. जंगलों की खाका छानना/

छान-बीन [छानना+बीनना] - (स्त्री.) (देश.) - बारीकी से जाँच-पड़ताल करना, अच्छी तरह खोजकर मामले को सुलझाना।

छाना स. क्रि. (छा जाना) - (तद्.) - 1. किसी वस्तु पर अन्य वस्तु का फैल जाना या पसरना। 2. आच्छादित करना, ढकना।

छाप - (स्त्री.) (तद्.) - 1. छापने के कारण बना हुआ चिह् न। imprint 2. किसी व्यक्‍ति, पुस्तक, घटना आदि का प्रभाव। impression 3. किसी उत्पाद आदि का विशेष चिह् न। (ब्रांड) जैसे: गाय छाप आटा, लाल-किला छाप चावल।

छापना स. क्रि - (तद्.) - 1. स्याही, रंग आदि की सहायता से किसी ठप्पे को दबाकर कागज, कपड़े आदि पर आकृति या अक्षर अंकित करना। 2. मुद्रण, प्रकाशन।

छापा - (पुं.) (देश.) - [छापना) 1. स्याही या रंग लगाकर छपाई के काम आने वाला ठप्पा। 2. ठप्पा लगाने से उभरा चिह् न या चित्र। 3. अपराधियों का पता लगाने के लिए की गई आकस्मिक हमले जैसी कार्रवाई। 4. शत्रुओं पर अचानक किया गया हमला।

छापा - (पुं.) (देश.) - 1. वह साँचा जिसकी सहायता से आकृतियाँ छापी जाती हैं। 2. मुहर, मुद्रा। 3. (सैन्य.) असावधान शत्रु पर अचानक आक्रमण। 4. प्रशा. अवैध कृत्यों पर पुलिस आदि का धावा।

छापाखाना - (पुं.) (तद्.) - [तद्. छापा+खाना] वह कर्मशाला जहाँ पुस्तकें, अखबार आदि की छपाई होती है। पर्या. मुद्रणालय printing press

छापामार [छापा+मार] - (वि.) (देश.) - अचानक आक्रमण से संबंधित। जैसे: छापामार युद्ध।

छाया - (स्त्री.) (तत्.) - प्रकाश की किरणों के बीच में अपारदर्शी वस्तु के आ जाने से उत्पन्न अँधेरा क्षेत्र। shadow

छाल - (स्त्री.) (तद्.<छल्लि) - 1. वृक्ष के तने का कठोर ऊपरी छिलका।

छाला - (पुं.) ([छाला>क्षार] ) - 1. जलने, रगड़ने या रक्‍त विकार आदि के कारण शरीर पर कुछ उभरा हुआ भाग जिसमें गाढ़ा, चिपचिपा द्रव पदार्थ भरा होता है। पर्या. फफोला। 2. (बहुवचन-छाले) गर्म वस्तु खाने या अन्य किसी विकार के कारण मुँह में, जीभ पर या गले में होने वाले दाने।

छावनी - (स्त्री.) (देश.) - शा.अर्थ छप्पर डालकर बनाया गया (अस्थायी) आवास। 1. सैनिकों के पड़ाव के लिए तंबू तानकर बनाया गया (अस्थायी) आवास-स्थल। 2. सैनिकों के लिए बनाई गई बस्ती या विकसित नागरिक क्षेत्र। cantonment, cantt

छि छि/विस्मयादि. - (अव्य.) (देश.) - घृणा, तिरस्कार, जुगुप्सा के अर्थ को सूचित करने वाला शब्द। उदा. छि छि। तुम गंदे हाथों से भोजन परोस रहे हो।

छिछला - (वि.) (देश.) - 1. बकम गहरा। पर्या. उथला। 2. ऐसा (विचार) जिसमें गंभीरता का अभाव हो। पर्या. हलका, तुच्छ, क्षुद्र। 3. तुच्छ विचारों वाला (व्यक्‍ति), निम्न बौद्धिक स्तर वाला। पर्या. अज्ञानी।

छिटकना अ.क्रि. - (तद्.) - 1. किसी वस्‍तु के कणों का इधर-उधर बिखरना। उदा. हाथ में से दाने छिटक कर गिर पडे। 2. फिसलकर या उछलकर दूर जा गिरना। उदा. हाथ से छिटककर पैन दूर जा गिरा। 3. समूह में से अलग हो जाना।

छिड़कना स.क्रि. - (तद्.) - 1. द्रव पदार्थ (जल आदि) के छींटे उछालकर गीला करना। जैसे : क्यारी में पानी छिडक़ना। 2. बारीक या पिसी वस्तु को किसी अन्य वस्तु पर हलके-हलके फैलाना। जैसे : कटे फलों पर नमक छिड़कना।

छिड़काव - (पुं.) (तद्.) - जल या तरल पदार्थ छिडक़ने की क्रिया। उदा. कीटनाशक दवाओं का छिड़काव, जल का छिड़काव।

छिड़काव तंत्र - (पुं.) (देश.) - सिंचाई की एक प्रमुख आधुनिक विधि जिसका उपयोग प्राय: असमतल भूमि पर किया जाता है। इस विधि में जल उँचे उठे पाइपों (नलों) के ऊपरी सिरों पर लगी घूमने वाली चोंच से वर्षा की धार की भांति बाहर निकलतर पौधों पर छिडक़ाव करता है।

छिड़ना अ.क्रि. - (देश.) - किसी बात का प्रारंभ होना। जैसे: लड़ाई छिड़ना, चर्चा छिड़ना, जंग छिड़ना।

छितरना अ.क्रि - (तद्.[क्षिप्‍तीकरण) - (किसी वस्तु का) बिना किसी व्यवस्था के 1. इधर-उधर बिखरना। 2. दूर-दूर फैलाकर रखा जाना। जैसे: घर में कपड़े इधर-उधर छितरे हुए थे।

छितराना स.क्रि. - (तद्.) - 1. किसी चीज को इधर-उधर बिखेरना। 2. तितर-बितर करना, दूर-दूर या विरल करना। जैसे: छत पर पक्षियों के लिए कुछ अन्न कण छितराये गए थे।

छिदना अ.क्रि. - (तद्.) - 1. किसी चीज के चुभने से छिद्र होना। उदा. भाले से शत्रु का सिर छिद गया। 2. छेदा जाना। जैसे: बैल की नाक छिदना। 3. आर-पार छेद होना। जैसे: कान छिदना।

छिद्र - (पुं.) (तत्.) - 1. किसी दीवार, कपड़े इत्यादि में होने वाला ‘शून्य’ स्थान। पर्या. छेद, सूराख। 2. जमीन में होने वाला रास्तेनुमा आकार में छोटा गड्ढा। पर्या. बिल, विवर। 3. मनुष्य स्वभाव में कोई कमी। पर्या. दोष, ऐब, खोट।

छिद्रान्वेषण - (पुं.) (तत्.) - [छिद्र+अन्वेषण] शा.अर्थ. छेद ढूँढना। सा.अर्थ. दूसरे के दोष या त्रुटियाँ ही खोजते रहना (अर्थात् उसके गुणों की ओर ध्यान न देना)। उदा. कुछ लोग दूसरों के छिद्रान्वेषण में ही लगे रहते हैं।

छिद्रान्वेषी - (वि.) (तत्.) - छिद्रान्वेषण करने वाला।

छिनना - - अ.क्रि. [सं.क्षीण-हि.छीनना] किसी वस्तु, अधिकार आदि को उसके प्रयोक्‍ता से अलग कर दिया जाना। जैसे: आवास छिनना, वाहन सुविधा छिनना, अधिकार छिनना आदि।

छिन्‍न-भिन्न - (वि.) (तत्.) - शा.अर्थ. टूटकर अलग हो जाने या बिखर जाने वाला, तितर-बितर, टुकडे़-टुकड़े, नष्‍ट-भ्रष्‍ट। उदा. पुलिस के पहुँचते ही उपद्रवियों की टोली छिन्न-भिन्न हो गई।

छिपकली - (स्त्री.) (देश.) - एक रेंगने वाला (सरीसृप) जंतु, जो प्राय: घरों की दीवारों पर देखा जाता है, जिसके चार पैर होते हैं और जो कीड़े-मकोड़े खाता है। पैरों की विशिष्‍ट स्थिति होने के कारण यह दीवार पर चल सकता है। शत्रु द्वारा आक्रमण होने पर यह अपनी पूँछ गिरा देता है, जिससे शत्रु भ्रमित हो जाता है। बाद में पूँछ पुन: उग जाती है। ऐसा अन्य प्राणियों में नहीं होता। पर्या. गृहगोधिका।

छिपना अ.क्रि. - (तद्.) - ओट या आड़ में हो जाना या चले जाना ताकि दूसरे को दिखाई न पडे़। उदा. सूर्य बादलों की ओट में छिप गया; बच्चा दरवाजे के पीछे छिप गया।

छिपाना स.क्रि. - (तद्.) - छिपना का प्रेर.रूप 1. किसी वस्तु, व्यक्‍ति,आदि को दूसरों की दृष्‍टि से बचाना, सुरक्षित रखना। पर्या. गोपन conceal 2. सार्वजनिक न करना। उदा. लोग काले धन को छिपाने की कोशिश करते हैं।

छिलका - (पुं.) (तद्.) - फल आदि का आवरण जिसे छीलकर जो प्राय: फेंक दिया जाता है। जैसे: आम के छिलके; मूँगफली के छिलके। (प्राय: बहुवचन में प्रयुक्‍त)

छींक - (स्त्री.) (तद्.) - [छिक्का) शरीर का एक व्यापार जिसमें ‘छीं’ शब्द के साथ वायु झटके के साथ नाक से बाहर निकलती है। नथुनों में किसी प्रकार की उत्‍तेजना पैदा हो जाने पर प्राकृतिक रूप से यह क्रिया अनजाने में या न चाहते हुए भी हो जाती है।

छींकना अ.क्रि. - (तद्.)[छिक्कन) (दे.) - छींक निकलने की क्रिया। दे. छींक।

छींका - (पुं.) (तद्.) - प्राय: रस्सी की बनी हुई झूलेनुमा जाली जो छत से उँचाई पर लटकी रहती है और जिस में खाने-पीने की वस्तुएँ रखी जाती हैं ताकि चूहे, बिल्ली तथा बच्चे आदि उस तक न पहुँच सकें।

छींटा - (पुं.) (तद्.) - किसी द्रव की छिटकी हुई बूंदों का समूह। पर्या. जलकण। 2. बूंदों के रूप में हलकी वर्षा। जैसे : शाम को छींटें पड़े थे। 3.छोटे-छोटे चिह्न, दाग। जैसे : कपड़े पर छींटे पड़े हैं।

छींटा-कशी (संकर) [हि.छींटा+फा.कशी] - (स्त्री.) - बुराई करना, व्यंग्य-बाण चलाना।

छीछालेदर - (स्त्री.) (तद्.) - 1. भ्रष्‍टाचार या अनैतिक आचरण के संबंध में रहस्योद् घाटन के बाद सार्वजनिक रूप से व्यक्‍ति की निंदा, बुरी तरह अपमानित करने की स्थिति। उदा. विश्‍वासघात को लेकर उसकी खूब छीछालेदर हुई पर इसका उस पर कोई असर नहीं हुआ।

छीनना स.क्रि. - (देश.) - दूसरे के हाथ/पास से जबरदस्ती किसी वस्तु को खींच लेना। तुल. झपटना।

छीना-झपटी - (स्त्री.) (देश.) - [छीनना-झपटना] एकाधिक (दो या कई) लोगों के बीच किसी वस्तु को छीनने-झपटने की परस्पर क्रिया जिसमें प्राय:किसी को सफलता नहीं मिलती और उस वस्तु के नष्‍ट होने की संभावना अधिक रहती है।

छीलना स.क्रि. - (तद्.) - छिलका उतारना, ऊपरी आवरण उतारना। जैसे: केला छीलकर खाया जाता है। 2. ऊपरी परत खुरचकर सतह को चिकना करना। उदा. बढ़ई ने दरवाजे को छीलकर ठीक कर दिया।

छुआछूत - (स्त्री.) (देश.) - मन में घर कर गई यह भावना कि अमुक व्यक्‍ति को स्पर्श करना चाहिए और अमुक को नहीं। पर्या. अस्पृश्यता। टि. प्राचीनकाल से चली आ रही इस सामाजिक बुराई का प्रचलन बहुत कम हो गया है। अब यह दंडनीय अपराध भी है।

छुई-मुई - (स्त्री.) (देश.) - (छूना+मरना) शा.अर्थ-छूते ही मर जाने की स्थिति। 1. एक छोटा पौधा जिसकी पत्‍तियाँ छूते ही मुरझा जाती है अर्थात् सिकुड़ जाती हैं, फिर कुछ देर बाद पहले वाली स्थिति में आ जाती हैं। पर्या लाजवंती। 2. वि. (लाक्ष.) बहुत लजाने वाली, अति लज्जाशील। उदा. वह तो किसी से बात करने से पहले ही छुई-मुई सी हो जाती है।

छुटकारा - (पुं.) (तद्.) - किसी बंधन विपत्‍ति, परेशानी या कठिनाई से मुक्‍ति। तीन वर्ष बाद अच्छे व्यवहार के कारण उसे जेल से छुटकारा मिल गया।

छुटपुट/छिटपुट - (वि.) (तद्.)(देश.) - 1. कहीं-कहीं या फुटकर रूप से यानी एक साथ या समेकित रूप से नहीं घटित होने वाला। जैसे: छुटपुट वर्षा, छुटपुट काम। पर्या. कहीं-कहीं। 2. गिनती या परिमाण में बहुत थोड़ा या बहुत कम। जैसे: छुटपुट शिकायतें ही आई हैं।

छुटभैया - (पुं.) - (छोटा+भैया) शा.अर्थ छोटा भाई/छोटे भाई की तरह व्यवहार करने वाला यानि अधिकार संपन्न व्यक्‍ति की ‘हाँ’ में ‘हाँ’ मिलाने वाला (व्यक्‍ति)। ला.अर्थ बड़े या अच्छे लोगों की तुलना में छोटा या नगण्य-सा माना जाने वाला मनुष्य। उदा. आजकल समाज में छुटभैया नेताओं की बाढ़ सी आ गई है।

छुट्टा - (वि.) (तद्.) - 1. जो बंधा न हो यानी खुला, अनियंत्रित। जैसे: छुट्टा पशु; 2. खुले (पैसे/रुपये) जैसे: आपके पास सौ रुपए का छुट्टा मिलेगा?

छुट्टी - (स्त्री.) (देश.) - 1. किसी कार्य के बीच में या समाप्‍ति पर मिलने वाला खाली समय। पर्या. अवकाश। 2. काम बंद रखने का दिन। holiday 3. कार्य दिवसों के दौरान कुछ समय या कुछ दिनों के लिए काम से अनुपस्थिति के दिन। leave 4. पद से मुक्‍त किया जाना, पर्या. पदच्युति

छुड़ाना स.क्रि. - (तद्.) - 1. किसी बंधन/विपत्‍ति या उलझन से मुक्‍त कराना। उदा. उसने मुझे गुंडों की गिरफ्त से छुड़ाया । 2. दंड या देय ऋण चुका कर अपनी वस्तु वापस लेना। उदा. मैंने सारा ऋण अदाकर उससे अपना मकान छुड़ा लिया। 3. किसी खराब आदत को दूर करने में मदद करना। जैसे: नशा छुड़ाना, सिगरेट पीने की आदत छुड़ाना। 4. साफ करना=वस्त्रों में लगे धब्बे छुड़ाना।

छुतहा - (वि.) (देश.) - छूत से होने वाला (रोग), संक्रामक। जैसे: चेचक छुतहा रोग है।

छुद्र - (वि.) (तद्.<क्षुद्र) - तुच्छ; नीच; छोटा (क्षुद्र जीव)

छुपना/छिपाना अ. क्रि. - (देश.) - 1. किसी की ओट में हो जाना जिससे वह दूसरे के द्वारा नहीं देखा जा सके। 2. आड़ में होना, दिखाई न देना। उदा. चाँद बादलों में छुप गया। 3. प्रकट न होना। इसका रहस्य छुपा नहीं रह सकेगा। मुहा. छुपा/छिपा रूस्तम=ऐसा जिसके गुण अभी तक छिपे हुए हों।

छुरा - (पुं.) (तद्<क्षुर) - 1. लोहा या अन्य धातु से बना तेज धार वाला बड़ा चाकू, कटार। 2. उस्तरा, जिससे नाई हजामत बनाता है।

छुरी - (स्त्री.) (तद्.) - सब्जी, फल आदि काटने का छोटा औजार, छोटा छुरा, चाकू।

छूट - (स्त्री.) (तद्.) - 1. छूटने की क्रिया या भाव। 2. कोई कार्य करने या न करने की विशेष अनुमति। 3. कर, दंड आदि में की गई आंशिक कमी या पूरी माफी। exemption 4. मूल्य में की गई कमी या कोई रियायत। discount 5. दयापूर्वक दी गई रियायत। concession

छूटना - - अ. क्रि. (देश) 1. बंधन से मुक्‍त होना। जैसे: शरीर छूट गया; चोर जेल से छूट आया। 2. (दाग) साफ होना। जैसे: धोने से कपड़े का मैल छूट जाता है। 3. प्रारंभ होना। जैसे: गाड़ी छूटना, आतिशबाजी छूटना। 4. भूल जाना, रह जाना। जैसे: छाता घर पर छूट गया।

छूना स. क्रि. - (देश.) - किसी को स्पर्श करना।

छूमंतर - (पुं.) (तद्.’छू’+ तत्. मंत्र) - 1. जादू दिखाते समय या झाड़-फूँक करते समय अस्फुट स्वर में मंत्र पाठ कर अंत में ‘छू’ शब्द की मुखर ध्वनि का उच्चारण कर यह प्रदर्शित करना कि अब वस्तु, बीमारी गायब हो जाएगी। 2. क्रि. वि. अदृश्य हो जाना, गायब हो जाना। उदा. दवाई लेते ही उनका रोग छूमंतर हो गया।

छेड़खानी - (स्त्री.) (देश.) - 1. किसी को अनावश्यक तंग/परेशान करने के लिए छेड़ने की क्रिया या भाव, छेड़-छाड़। 2. शरारत। 3. किसी असामाजिक तत् त्व द्वारा या मनोविकार ग्रस्त व्यक्‍ति द्वारा किसी स्त्री के साथ किया गया अमर्यादित आचरण। 4. हँसी-मजाक, नोक-झौंक। उदा. उसके साथ छेड़खानी मत करो।

छेड़छाड़ - (स्त्री.) (देश.) - दे. छेड़खानी।

छेड़ना स.क्रि. - (देश.) - 1. किसी कार्य की शुरूआत करना। उदा. मकान बनाने का काम छेड़ दो तो खत्म होने का नाम ही नहीं लेता। 2. संगीत के वाद् य यंत्र से स्वर निकालना। जैसे: वीणा के तार छेड़ना। 3. चिढ़ाना, मजाक करना, तंग करना। उदा. मुझे अकारण छेड़ा मत करो।

छेद - (पुं.) (तद्.<छिद्र) - दे. छिद्र।

छेना - (पुं.) (तद्.) - फटे हुए दूध का ठोस भाग, पर्या. पनीर। उदा. छेने की मिठाई; रसगुल्ला छेने से बनता है।

छेनी - (स्त्री.) (तद्.) - पत्थर या दीवार आदि काटने के लिए लोहे का बना चपटे मुँह वाला उपकरण। मोटी-कीलनुमा औजार।

छोकरा - (पुं.) (तद्.) - (शावक) लडक़ा, बालक। पर्या. छोरा।

छोकरी - (स्त्री.) (तद्.) - लडक़ी, बालिका। पर्या. छोरी।

छोटा - (वि.) (तद्.) - 1. लंबाई, विस्तार, कद-काठी, आयु, पद, प्रतिष्‍ठा इत्यादि में तुलनात्मक दृष्‍टि से कम। 2. तुच्छ, क्षुद्र, अल्प, लघु। पदबंध-छोटा-मोटा=सामान्य।

छोटापन [छोटा+पन] - (पुं.) (देश.) - छोटा होने का भाव, क्षुद्रता दे. छोटा। वि. बड़प्पन।

छोटी आँत - (स्त्री.) (तद्.) - दे. क्षुद्रांत्र।

छोड़ना स.क्रि. - (देश.) - 1. बंधन मुक्‍त करना। उदा. तोते को छोड़ दो। 2. स्वीकार न करना। उदा. सड़े फल छोड़ दिए गए। 3. प्रस्थान करना। उदा. महात्मा बुद्ध ने घर छोड़ दिया। 4. अलग करना/होना। उदा. संन्यासी परिवार छोड़ देते हैं। कक्षा दस को छोड़कर सभी छात्र पिकनिक मनाने गए। (अलग करके, अतिरिक्‍त, सिवाय)

छोर - (पुं.) (देश.) - किसी भी वस्तु, क्षेत्र आदि का किनारा, सीमा। जैसे: धोती का छोर। धरती का छोर। उदा. उद्यान के छोर पर देवालय है।

छोह - (पुं.) (तद्.<क्षोभ) - प्रेम, स्नेह दया। टि. लोकभाषा में क्रोध, गुस्सा। मुहा. छोह आना=गुस्सा करना। क्यों छोह में आ रहा है?

छौंक - (स्त्री.) (देश.) - गरम घी, तेल में राई, जीरा, हींग आदि डालकर दाल आदि में मिलाना।

छौंकना स.क्रि. - (देश.) - बघारना, तडक़ा देना।

छौना - (पुं.) (तद्.) - किसी पशु का छोटा बच्चा। जैसे : मृगछौना।

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जंकफूड - (पुं.) - (अं.) 1. (अनौपचारिक अर्थ में) बेकार का अथवा अस्वास्थ्यकर खाद् य पदार्थ। 2. डिब्बाबंद अथवा पैकेटों में अपेक्षाकृत अधिक समय तक सुरक्षित रखे जा सकने वाले तले खाद्य पदार्थ। जैसे : चिप्स, बर्गर, पिज्जा आदि। पर्या. fast food

जंग - (पुं.) (फा.) - सा.अर्थ लोह पर लगने वाला मोरचा। rust टि. जंग (मोरचा) और जंग (लड़ाई, युद्ध) में भेद बनाए रखना आवश्यक है।

जंगल - (पुं.) (तत्.) - 1. वह विशाल निर्जन स्थान जहाँ विविध प्रकार के वृक्ष बेतरतीब ढंग से अपने आप उग आए हों तथा उनका पालक कोई न हो। वन, अरण्य। 2. एकांत स्थान। forest मुहा. 1. जंगल जाना-(गाँवों में) शौच के लिए बाहर जाना। 2. जंगल में मंगल होना-किसी निर्जन स्थान में चहल-पहल, रौनक होना।

जंजाल - (पुं.) (तद्.) - कोई भी उलझनपूर्ण वस्तु या स्थिति जो परेशानी का कारण बनती है। पर्या. झंझट, बखेड़ा। मुहा. 1. जी का जंजाल होना। प्रयोग यह नौकरी तो मेरे लिए जी का जंजाल बन गई।

जंजीर - (स्त्री.) (फा.) - 1. धातु से बनी कडि़यों को जोडक़र बनाई गई लड़ी। chain पर्या. श्रृंखला, साँकल। 2. क्रम

जंतर - (पुं.) (तद्.) - 1. धातु निर्मित तांत्रिक यंत्र। जैसे : श्रीयंत्र आदि। 2. खगोल शास्त्र संबंधी जानकारी देने वाले यंत्रों से युक्‍त संरचना। जैसे : दिल्ली और जयपुर स्थित जंतर-मंतर।

जंतु - (पुं.) (तत्.) - गतिशीलता के गुण तथा देखने के अंग से युक्‍त प्रणाली; जानवर animal

जँभाई/जम्हाई - (स्त्री.) (तद्.) - नींद, आलस्य या थकावट के कारण मुँह के खुलने और तनिक हवा oxygen के अंदर खींचने की दिखाई पड़ने वाली क्रिया। पर्या. उबासी।

जकड़ - (स्त्री.) (तद्.) - जकड़ने यानी कसने जैसी क्रिया या भाव। उदा. ठंडे़ जल में स्नान करने से उसका शरीर जकड़ गया।

जकड़ना स.क्रि. - (देश.) - चारों ओर से मज़बूत बंधन में बाँधना; कसकर बाँधना या पकड़ना।

जक़ात - (स्त्री.) (अर.) - 1. इस्‍लाम धर्म के अनुसार अमीरों द्वारा गरीबों को दिया जाने वाला दान-पुण्य, खैरात। 2. कर।

जखीरा - (पुं.) (अर.) - 1. भंडार, ढेर, ख़जाना। 2. एक ही प्रकार की वस्तुओं का समूह। प्रयो. आतंकवादियों के ठिकानों से हथियारों का बहुत बड़ा जखीरा पकड़ा गया।

ज़ख्‍़म - (पुं.) (फा.) - चोट लगने के कारण त्वचा के कटने और वहाँ से रक्‍त बहने वाला घाव। मुहा. जख्म हरा होना/पुराना दु:ख फिर याद आना। जख्म पर नमक छिड़कना-दुखी व्यक्‍ति को और अधिक दुखी करना।

जग - (पुं.) (तद्.) - 1. संसार, दुनिया। 2. संसार के लोग। 3. पुं. (अं.) किसी तरल पदार्थ का संग्रह करने के लिए बना धातु या प्लास्टिक का बेलनाकार या गोल पात्र जिस पर पकडने के लिए हत्था और उँडेलने के लिए चोंच सी बनी होती है।

जगना अ.क्रि. - (तद्.) - 1. नींद छोड़कर उठना, सोते से जागना। 2. सावधान होना। 3. आग का अच्छी तरह जलना। 4. चमकना। 5. होश में आना।

जगमगाना [जगमग] अं.क्रि. - (तद्.) - अपनी या दूसरे की रोशनी से खूब चमकना या दमकना। जैसे : 1. आकाश में तारों का जगमगाना। 2. उत्सव में बिजली की लडि़यों/बल्बों का जगमगाना।

जगह स्त्रीं. - (फा.) - 1. स्थान। 2. गुंजाइश। जैसे: बस में बिल्कुल जगह नहीं है।

जघन्य - (वि.) (तत्.) - अत्याधिक निंदनीय, सबसे बुरा, अधम। जैसे: जघन्य अपराध।

जच्चा - (स्त्री.) (फा.) - वह स्त्री जिसने हाल ही में बच्चे को जन्म दिया हो। पर्या. प्रसूता (स्त्री), सूतिका, प्रजाता।

जज - (पुं.) - (अं.) 1. न्याय विभाग का वह अधिकारी जो न्यायालय में बैठकर मुकदमों को सुनता या उन पर विचार कर निर्णय देता है। न्यायाधीश। 2. किसी प्रतियोगिता, खेल आदि का निर्णय करने वाला निर्णायक।

जज़्ब - (वि.) (अर.) - एक में समाया हुआ।

जज़्बा - (पुं.) (अर.) - 1. भाव, भावना। जज्‍़बात

जटिल - (वि.) (तत्.) - शा.अर्थ जटा से युक्‍त अर्थात् जटा जैसा, पेचीदा। 1. अत्याधिक उलझा हुआ। 2. जिसे सरलता से समझा न जा सके। दुरूह। उदा. बेरोज़गारी एक जटिल समस्या है।

जड़ - (स्त्री.) (तद्.) - 1. वृक्षों का जमीन के नीचे दबा वह भाग जो वहाँ से पोषक तत् व ग्रहण कर वृक्ष को जीवित रखता है)। उदा. पौधों को जड़ से मत उखाड़ो। 2. जिसमें जीवन न हो, निर्जीव, अचेतन।

जड़ता - (स्त्री.) (तत्.) - 1. जड़ अर्थात् निर्जीव होने का भाव, अचेतनता। विलो. चेतनता। 2. मूर्खता, विवेकहीनता।

जडि़त - (वि.) (तद्.) - जिसमें नगीने आदि जड़े हों, जड़ा हुआ, जड़ाऊ ।

जड़ी-बूटी - (स्त्री.) (तद्.) - पेड़-पौधों की जड़ें (और छाल) तथा छोटे आकार की वनस्पतियाँ जो औषधि के रूप में प्रयुक्‍त होती हैं।

जताना स.क्रि. - (तद्.) - 1. किसी व्यक्‍ति या वस्तु के बारे में बतलाना, परिचित कराना। 2. किसी बात की पहले से सूचना देना। उदा. उसने मुझे पहले ही जता दिया था कि आज वहाँ वनोत्सव है।

जथाजोग क्रि.वि. - (वि.) (तद्.) - 1. जिसके साथ जैसा व्यवहार चाहिए वैसा करना, यथायोग्य। 2. अनुरूप व्यवहार। उदा. जथाजोग सबको उपहार देकर सम्मानित करो। टि. सामान्यतया बोलियों या काव्य में प्रयुक्‍त।

जनक - (पुं.) (तत्.) - 1. पैदा करने वाला, जन्म देने वाला, उत्पन्न करने वाला (व्यक्‍ति); पिता (स्त्री जननी)। टि. समास में प्रयुक्‍त जैसे : संतोषजनक

जनगणना - (स्त्री.) - (तत..) शा.अर्थ लोगों की गिनती। प्रशा. (भारत में) प्रति दस वर्ष में की जाने वाली लोगों की गणना जिसमें साक्षरता, शिक्षा, आर्थिक स्थिति, भाषा, जाति, धर्म, भवन, रोजगार आदि कई बातों की जानकारी प्राप्‍त कर उन्हें सूचिबद् ध किया जाता है। इन्ही तथ्यों को आधार बनाकर सरकार द्वारा सामाजिक विकास की भावी योजनाएँ तैयार की जाती हैं। census

जनजाति - (स्त्री.) (तत्.) - जंगलों, पहाड़ों में रहने वाले वे सगोत्र विवाही सामाजिक वर्ग के लोग जो एक ही पूर्वज के वंशज होते हैं और जिनका एक जैसा पेशा और एक जैसा रहन-सहन होता है तथा वे एक ही मुखिया के अधीन संगठित होकर रहते हैं। पर्या. क़बीला tribe

जनता - (स्त्री.) (तत्.) - 1. देश के समस्त निवासी 2. जनसमूह 3. जनसाधारण, जनता।

जनता जनार्दन - (पुं.) (तत्.) - जनतारूपी भगवान। शासकवर्ग के लिए जनता ही भगवान का रूप है। अत: उसे जनता की संतुष्‍टि के लिए कल्याणकारी कार्य करने चाहिए। जनता की कृपा से ही शासक की सत्‍ता चिरस्थायी रह सकती है।

जनन - (पुं.) (तत्.) - 1. जन्म देने की क्रिया का भाव। 2. जीव प्रक्रम, अपने जैसे दूसरे जीव (अर्थात संतान) उत्पन्न करने की प्रक्रिया। reproduction

जननक्षमता - (स्त्री.) (तत्.) - जीवनक्षम होने का भाव; जीवनक्षम युग्मकों अथवा संतति को उत्पन्न करने की क्षमता।

जननांग - (पुं.) (तत्.) - प्राणी के शरीर का वह अंग विशेष जो जनन (संतानोत्पत्‍ति) का कारक हो। जैसे: पुरुष का लिंग, स्त्री की योनि। पर्या. जननेंद्रिय।

जनपद - (पुं.) (तत्.) - सा.अर्थ. मनुष्यों से बसा हुआ स्थान, बस्ती। प्राचीन अर्थ-राज्य जो ‘सिटी स्टेट’ जैसी संकल्पना का वाचक था। जैसे : काशी जनपद, वैशाली जनपद। आधुनिक अर्थ-किसी राज्य का वह भाग जिसके विभाजन की भौगोलिक सीमा निर्धारित हो। जैसे: गौतम बुद्ध नगर जनपद। जिला district का पर्यायवाची।

जन-प्रचलित - (वि.) (तत्.) - जनता (समाज) में प्रचलित (कथा, मान्यता, विश्‍वास आदि)। पर्या. लोक-प्रचलित।

जनश्रुति - (स्त्री.) (तत्.) - जनता के बीच प्रचारित ऐसी खबर जिसका प्रत्यक्षत: कोई पुष्‍ट प्रमाण उपलब्ध न हो। पर्या. किंवंदती।

जनसंख्या - (स्त्री.) (तत्.) - शा.अर्थ लोगों की गिनती। 1. किसी क्षेत्र विशेष में रहने वाले सभी व्यक्‍तियों/मनुष्यों का समुदाय सूचक शब्द। 2. किसी क्षेत्र विशेष में रहने वाले लोगों की कुल संख्या (जो समय-समय पर बदलती या घटती-बढ़ती रहती है)। पर्या. आबादी। population उदा. आजादी के समय भारत की जनसंख्या पैंतीस करोड़ थी।

जनसंख्या विस्फोट - (पुं.) (तत्.) - वह स्थिति जब किसी क्षेत्र विशेष की (देश, राज्य, भू-भाग आदि की) आबादी इष्‍टतम जनसंख्या से बहुत अधिक बढ़ जाए। ऐसी स्थिति में पूरी आबादी का पालन-पोषण उपलब्ध साधनों से नहीं हो पाता।

जनसंघर्ष - (पुं.) (तत्.) - 1. कई लोगों के बीच आपस में हुआ अव्यवस्थित लड़ाई-झगड़ा। उदा. मेले के दौरान लूटपाट के लिए हुए जनसंघर्ष में कई लोगों को चोट आई। 2. लोक हित के लिए दूसरों से हुआ संघर्ष। उदा. महात्मा गाँधी ने अंग्रेजों के खिलाफ जनसंघर्ष का नेतृत्व किया।

जन-संचार माध्यम - (पुं.) (तत्.) - समाचार, सूचनाएँ, विज्ञापन, मनोरंजन इत्यादि से संबंधी जानकारी जन-सामान्य तक पहुँचाने के साधन। जैसे: समाचार पत्र, पत्रिकाएँ, पुस्तकें तथा रेडियो, टी.वी. नेट वर्किंग, केबल्स, डी.टी.एच. आदि। mass media

जनसंपर्क - (पुं.) (तत्.) - 1. सरकार या संस्था विशेष द्वारा जनता से संपर्क साधने की नियम-व्यवस्था; 2. उत्पादक और उपभोक्‍ता के बीच सद् भाव और विश्‍वास उत्पन्न करने के विविध प्रकार। पर्या. लोकसंपर्क।

जनसंपर्क माध्यम - (पुं.) (तत्.) - जनता से संपर्क स्‍थापित करने के विभिन्‍न साधन।

जनसंहार - (पुं.) (तत्.) - सा.अर्थ जनता का विनाश। सा.अर्थ-बड़ी संख्या में जनता का विनाश, किसी जाति/वर्ग को समाप्‍त करने के लिए उसके सदस्‍यों की संघटित रूप से की जाने वाली सामूहिक हत्‍या। पर्या. नर-संहार, कत्ले आम। उदा. जलियाँवाला बाग में भीषण जनसंहार हुआ।

जनहित याचिका - (स्त्री.) (तत्.) - जन साधारण की भलाई से संबंधित किसी मामले के बारे में विचार करने के लिए न्यायालय में दाखिल किया गया आवेदन-पत्र।

जनाब - (पुं.) (अर.) - 1. बड़ों के लिए संबोधन के रूप में प्रयुक्‍त आदर सूचक शब्द। पर्या. महाशय, महोदय sir 2. चौखट 3. दरगाह, आश्रम 4. सम्‍मुख, सामने 5. पार्श्‍व, पहलू।

जनार्दन - (पुं.) (तत्.) - विष्णु, भगवान, ईश्‍वर।

जनून/जुनून - (पुं.) (अर.) - सा.अर्थ पागलपन, उन्माद। विशेष अर्थ किसी मनपसंद या अत्यावश्यक कार्य को पूरा करने में पागलपन की हद तक पहुँचा जोश। जैसे: उस पर घर खरीदने का जनून सवार है।

जन्मदर - (स्त्री.) - (संकर) देश की कुल जनसंख्या के अनुपात में क्षेत्र-विशेष में प्रति वर्ष एक हजार व्यक्‍तियों की तुलना में जन्म लेन वाले (नवजात) शिशुओं की संख्या। birth rate तु. मृत्युदर।

जन्मना - (अव्य.) (तत्.) - 1. जन्म से, 2. जन्म के कारण। उदा. जन्मना जायते शूद्र: संस्कारात् द्विज उच्‍यते। (मनुस्मृति)

जन्मसिद्ध - (वि.) (तत्.) - जिसकी प्राप्‍ति जन्म लेने के साथ ही मान ली जाए। सिद्ध लोकमान्य तिलक ने नारा दिया-स्वतंत्रता हमारा जन्‍मसिद्ध अधिकार है।’

जबरई - (स्त्री.) (फा.) - 1. अपनी सामर्थ्य के दंभ में किसी के साथ उसकी इच्छा के विपरीत किया जाने वाला अन्यायपूर्ण कार्य। बलप्रयोग। 2. अन्याय। 3. ज्यादती, अत्याचार, जबरदस्ती। उदा. उसने जबरई उसके प्लाट पर कब्जा किया हुआ है।

जबरदस्त - (वि.) (.फा.) - शा.अर्थ जिसका हाथ शक्‍तिशाली हो, ताकतवर हाथ वाला। 1. जो बहुत अधिक शक्‍तिशाली या प्रभावशाली हो। तगड़ा, बलवान। उदा. जबरदस्त कारनामा; जबरदस्त भाषण। 2. अत्यधिक, महत्त्वपूर्ण, जबरदस्त प्रश्‍न। 3. भयंकर, बहुत अधिक, कड़ा/कड़ी जबरदस्त गर्मी, जबरदस्त नुकसान।

जबरदस्ती - (स्त्री.) (.फा.) - बल का प्रयोग करते हुए करवाया गया। जैसे: जबरदस्ती का सौदा। काम। उदा. आपकी जबरदस्ती से मुझे बहुत नुकसान हुआ। क्रि. बलपूर्वक।

जबानी/जुबानी - (वि.) (.फा.) - जो केवल जबान से (बोलकर) कहा गया हो, लिखा न गया हो। पर्या. मौखिक। विलो. लिखित। मुहा. जबानी जमाखर्च-वह हिसाब-किताब जो मौखिक रूप से ही बताया गया हो, लिखित रूप में न दिया गया हो। ला.अर्थ केवल दिखाने भर के लिए, वास्तविक रूप में नहीं।

जब्त - (वि.) (अर.) - जब्त किया हुआ। जैसे: जब्त पुस्तक। दे. जब्ती।

जब्ती - (स्त्री.) (अर.) - चोरी-छिपे लाए हुए निषिद्ध माल को पकडक़र उसे सरकारी संपत्‍ति घोषित कर देना।

जमघट - (पुं.) - (संकर) 1. मनुष्यों की भीड़-भाड़, जमावड़ा।

जमना (अ.क्रि.) - (देश.) - 1. तरल पदार्थ का गाढ़ा या ठोस हो जाना। जैसे: दूध का दही जमना, पानी का बर्फ जमना। 2. मजबूती से बने रहना। स्थिर कर लेना। उदा. 1. उसके घर मेहमान तो जम ही गए, टलने का नाम ही नहीं लेते। 3. किसी कार्य का अच्छी तरह संपन्न होना। उदा. आज तो तुम्हारा संगीत खूब जमा।

जमाखोर - (वि.) (पुं.) - नियत मात्रा से अधिक अनाज या किसी वस्तु को अवैध रूप से जमा करने वाला (ताकि अभाव के दिनों में उससे अनुचित लाभ कमाया जा सके)। उदा. जमाखोरों की वजह से बाजार में चीनी का अभाव हो गया है।

जमाखोरी - (स्त्री.) - (संकर) जरुरत से ज्यादा धन, माल, अन्न, फल आदि जमा करने की लोभी प्रकृति।

जमात - (स्त्री.) (अर.) - समान वर्ग के लोगों का समूह जैसे: साधुओं की जमात। सहपाठी विद् यार्थियों की जमात या कक्षा। जैसे: पहली दूसरी नवीं, दसवीं जमात।

जमादार - (पुं.) (अर.+फ़ा.) - किसी कार्यकर्त्ता के सभी लोगो के काम पर निगरानी रखने वाला नायक या मुखिया। जैसे: पुलिस मे, सिपाही जमादार (सिपाही प्रमुख); सेना में सेनिकों की एक टुकड़ी का नायक; मजदूरी का जमादार आदि।

जमादारी - (स्त्री.) (अर.फा.) - जमादार का कार्य या पद।

जमानत - (स्त्री.) (अर.) - 1. जिम्मेदारी। 2. किसी व्यक्‍ति द्वारा लिए गए ऋण के समय पर चुकाए जाने अथवा उसे सौंपे गए दायित्व का समुचित निर्वाह करने के लिए किसी अन्य जिम्मेदार व्यक्‍ति द्वारा मौखिक या लिखित रूप में दिया गया आश्‍वासन। पर्या. प्रतिभूति security, surety

जमाना - (पुं.) (अर.) - 1. काल या युग। पुराने जमाने में लोग बैलगाड़ी में यात्रा करते थे; उस जमाने में रेलें नहीं थीं। सं.क्रि. देश. 1. उत्पन्न करना या उगाना। जैसे: घास जमाना। 2. किसी तरल पदार्थ को ठोस या गाढ़ा बनाना। जैसे: दूध का दही जमाना। 3. दृढ़तापूर्वक स्थिर होना। जैसे: अभी तो इस कार्यालय में पैर जमा रहा हूँ।

जमाव - (पुं.) (देश.) - एक ही स्थान पर जमा या इकट्ठा होने का भाव। जैसे: सड़क पर पानी का जमाव, मैदान में लोगों का जमाव।

जमावड़ा - (पुं.) (देश.) - बहुत से लोगों का किसी उद्देश्य से एक स्थान पर एकत्रित होना। भीड़-भाड़, एकत्रीकरण। जैसे: आज यहाँ संत का प्रवचन सुनने के लिए लोगों का जमावड़ा लगा है।

जमींदार - (पुं.) (.फा.) - जमीन का मालिक (विशेषत: वह व्यक्‍ति जो अपनी जमीन किसानों को लगान पर जोतने के लिए देता है।) पर्या. भू-स्वामी।

जमींदारी प्रथा - (स्त्री.) (.फा.+तत्.) - अर्थव्यवस्था का वह रूप जिसमें जमींदार (भू-स्वामी) स्वयं तो कृषि कार्य नहीं करता किंतु किसानों से काम करवाकर उत्पादित वस्तुओं पर अपना स्वामित्व रखता है।

जमीकंद - (पुं.) (.फा.) - जमीन के अंदर (मृदा के नीचे) पैदा होने वाला फूला हुआ गूदेदार और बिना रेशे का तना या जड़ जिसका उपयोग सब्जी के रूप में होता है।

ज़मीन - (स्त्री.) (.फा.) - 1. धरती, भूमि, पृथ्वी, 2. भूमि का टुकड़ा, खेत। विलो. आसमान। मुहा. 1. जमीन-आसमान एक करना – घोर परिश्रम करना। 2. जमीन-आसमान का अंतर-बहुत अधिक और वह भी स्पष्‍ट अंतर। 3. पैरों के तले से जमीन खिसकना-इतना डर जाना कि होश खो बैठे। 4. जमीन चाटना-जमीन पर मुँह के बल गिरना, धराशायी हो जाना। 5. जमीन पर पाँव न रखना-बहुत अधिक प्रसन्न होना। 6. जमीन में गड़ जाना-इतना अधिक लज्जित होना कि मुँह न उठा/दिखा सके।

जमीनी - (वि.) (.फा.) - 1. जमीन संबंधी, जमीन से संबंधित। 2. ला.अर्थ वास्तविक। जैसे: जमीनी सच्चाई यह है कि……..

जमीर - (पुं.) (अर.) - भले-बुरे का विचार करने वाली अंत:करण की वृत्‍ति, अंतरात्मा।

जम्हाई/जँभाई - (स्त्री.) (तद्.) - नींद या आलस्य के कारण मुँह के खुलने की एक स्वाभाविक क्रिया जिसमें मनुष्य गहरी साँस भरता है।

जयंती - (स्त्री.) (तत्.) - शा.अर्थ जय बोलना, अभिनंदन करना; मंगल कामना करना। सा.अर्थ 1. किसी स्वर्गीय महापुरुष का जन्मदिन, जब उनका विशेष रूप से स्मरण किया जाता है। जैसे: गाँधी जयंती, महाबीर जयंती आदि। 2. किसी महत्त्वपूर्ण संस्था की स्थापना की तिथि को मनाया जाने वाला उत्सव। जैसे : रजत जयंती, स्वर्ण जयंती, हीरक जयंती आदि।

जयघोष - (पुं.) (तत्.) - जीत अथवा सफलता की घोषणा के लिए ऊँची आवाज में नारे लगाना। acclamation

जय-जयकार - (स्त्री.) (तत्.) - 1. किसी की जीत या सफलता की खुशी में किया जाने वाला जयघोष। 2. किसी महापुरुष के जन्मोत्सव या सम्मान में किया जाने वाला जयघोष। जैसे: स्वामी श्रद्धानंद की जय हो। 3. धार्मिक उत्सवों में किया जाने वाला जयघोष।

जरथुष्‍ट्र/जरतुश्‍त - (पुं.) (.फा.) - प्राचीन पारसी धर्म के प्रवर्तक और जंद-अवेस्ता के रचयिता।

ज़रा - (स्त्री.) (तत्.) - 1. शरीर की वह स्‍वाभाविक अवस्‍था जब वह जीर्ण होने लगता है। पर्या. बुढ़ापा, वृद् धावस्‍था 2. बुढ़ापे के कारण उत्‍पन्‍न कमजोरी। वि. (तुर्की) परिमाण में बहुत थोड़ा, कम तनिक। ज़रा-ज़रा-थोड़ा-थोड़ा। ज़रा सा-बहुत कम। क्रि. वि. अनुरोध विशेष कि फलाँ काम करेंगे तो आपको अधिक कष्‍ट नहीं होगा; कृपापूर्वक ज़रा रुकिए, ज़रा ठहरो तो।

जराअत - (स्त्री.) (अर.) - खेती-बाड़ी, कृषि, काश्त।

ज़राअतपेशा - (वि.) (अर.) - खेती-बाड़ी का काम करने वाला किसान, कृषक, काश्तकार।

ज़राअती - (वि.) (अर.) - खेती-बाड़ी से संबंधित। उदा. ज़राअती औजार।

जरायु - (पुं.) (तत्.) - वह झिल्ली जिसमें गर्भ से उत्पन्न होने वाला बच्चा लिपटा रहता है। placenta

जरायुज - (पुं.) (तत्.) - 1. प्राणी जो माता के गर्भ में जरायु में लिपटा हुआ रहे और फिर उसका जन्म हो। 2. वे जंतु जो बच्चे देते हैं। जैसे: स्तनपोषी। दे. जरायु। तु. अंडज, स्वेदज, उद्भिज।

जरिया - (वि.) (तद्.) - रत्‍न जडक़र आभूषण बनाने वाला। जडि़या। पुं. (अर.) 1. किन्हीं दो को परस्पर मिलाने या मेल करने का साधन जैसे: एक संत के जरिये उन दोनों के मतभेद समाप्‍त हो गए। 2. किसी प्राप्‍ति का साधन, उपाय/माध्यम। जैसे: खेती ही उसकी आय का प्रमुख जरिया है।

ज़री - (स्त्री.) (फा.) - सोने, चाँदी के बने वे धागेनुमा पतले तार जिनसे कपड़ों पर बेल-बूटे बनाए जाते हैं; ऐसे तारों से बुना वस्‍त्र। उदा. शादी के मौके पर स्त्रियाँ ज़रीदार साड़ियाँ पहनती हैं।

ज़रीब - (स्त्री.) (.फा.) - पुराने जमाने में जमीन नापने के काम आने वाली जंजीर।

जरूर क्रि. वि. - (वि.) (अर.) - अवश्य, निश्‍चय ही।

जरूरत - (स्त्री.) (अर.) - आवश्यक होने का भाव (जिसके बिना काम चलाना कठिन हो) पर्या. आवश्यकता।

जरूरतमंद - (वि.) (अर.फा.) - 1. जिसे किसी चीज की जरूरत या आवश्यकता हो। 2. जरूरत वाला, आवश्यकता वाला, निर्धन, अकिंचन। उदा. जरूरतमंद व्यक्‍ति को ही ये वस्त्र दिये जाएँ।

जर्जर - (वि.) (तत्.) - जो पुराना हो जाने के कारण बहुत कमजोर हो या किसी काम का न रह गया हो, जीर्ण, पुराना। जैसे: जर्जर शरीर। जर्जर भवन, जर्जर रीति-रिवाज।

जल - (पुं.) (तत्.) - सा.अर्थ पानी; साफ पानी जो पीने के काम आ सके। रसा. रंगहीन, गंधहीन, स्वादहीन पारदर्शी द्रव (तरल पदार्थ) जो हाइड्रोजन के दो अणुओं ओर ऑक्सीजन के एक अणु से मिलकर बनता है। यह द्रव पदार्थ वर्षा के रूप में बादलों से पृथ्वी पर बरसता है। इसकी प्रकृति जमकर हिम बन जाने और उबल कर भाप बन जाने की होती है।

जलकूप - (पुं.) (तत्.) - शा.अर्थ पानी का कुऑ। भू वि. पृथ्वी के गर्भ से प्राकृतिक दाब के कारण जमीन फोड़कर बाहर निकलने वाली जलराशि। पर्या. सोता, चश्मा। तु. नलकूप।

जल-चक्र - (पुं.) (तत्.) - निरंतर चलने वाली वह (अटूट) प्रक्रिया जिसमें पहले समुद्र का पानी भाप (वाष्प) बनकर बादल बनता है, फिर वही बादल पानी बरसाता है और फिर वही पानी नदियों से होता हुआ समुद्र में जा मिलता है। water cycle

जलचाक - (पुं.) (तत्.+तद्.) - 1. वह पंखयुक्‍त पहिया जिसके ऊपर वेग से पानी गिरने से विद् युत शक्‍ति उत्पन्न होती है। दे. जलविद्युत्।

जलडमरूमध्य - (पुं.) (तत्.) - 1. (भू वि. समुद्र का वह संकीर्ण भाग जो दो द्वीपों को अलग करता है या किसी द् वीप को मुख्य भूमि से अलग करता है और जलीय भाग को डमरू की आकृति वाला बना देता है। 2. (भू.) समुद्रों या खाड़ियों आदि को जोड़ने वाली पतली जलधारा। Strair

जलधर - (वि.) (तत्.) - शा.अर्थ जल को धारण करने वाला। पुं. 1. बादल, 2. समुद्र, 3. कोई भी जलाशय। पर्या. जलधि।

जलनिकाय - (पुं.) (तत्.) - शा.अर्थ जल का निकाय यानी समूह। जहाँ जल का संग्रह हो या जल का संग्रह किया गया हो। जैसे: तालाब, पानी की टंकी आदि।

जलप्रदूषण - (पुं.) (तत्.) - पदार्थों के मिल जाने से पानी का दूषित हो जाना जो जीवन के लिए हानिकारक है। दे. प्रदूषण। water polution

जलप्रपात - (पुं.) (तत्.) - शा.अर्थ नदी के पानी का पहाड़ की ऊँचाई से गहरे खड्ड या समतल जमीन पर नीचे गिरना।

जलमंडल - (पुं.) (तत्.) - शा.अर्थ जल का घेरा। भू. भू-पृष्‍ठ पर समुद्रों, झीलों, जलाशयों, नदियों आदि के रूप में प्राप्‍त समस्त जलराशि। hydrosphere

जलमग्न - (वि.) (तत्.) - पानी में डूबा हुआ। उदा. मूल द्वारिका जलमग्न हो गई; जलमग्न टाइटैनिक जहाज की खोज चल रही है।

जलयान - (पुं.) (तत्.) - जल में चलने वाला सवारी या यान। जैसे: नाव, जहाज, स्टीमर आदि।

जलवायविक - (वि.) (तत्.) - 1. जलवायु संबंधी, 2. जलवायु के अनुसार।

जलवायु - (पुं.) (तत्.) - क्षेत्र विशेष की पर्यावरण संबंधी स्‍थितियाँ (गर्मी, सर्दी, वर्षा, तापमान, हवा का दबाव आदि) जिनका प्रभाव वहाँ के जीव जगत् पर पड़ता है। पर्या. आवोहवा

जलवाष्प - (पुं.) (तत्.) - ताप के प्रभाव से जल का भाप में बदला हुआ (परिवर्तित) रूप। water paper

जलविद्युत् - (स्त्री.) (तत्.) - नदी जल या जल प्रपात के वेग से गिरने पर उत्पन्न विद् युत-शक्‍ति। hydro electricity

जलशोधन उपकरण - (पुं.) (तत्.) - अशुद्ध पानी को साफ कर पेय जल के रूप में परिवर्तित करने के लिए उपयोग में लाया जाने वाला यंत्र सा साधन।

जलसा/जल्सा - (पुं.) - (अरं.) 1. किसी संस्था द्वारा आयोजित सार्वजनिक अधिवेशन। पर्या. जन सभा। उदा. आज रामलीला मैदान में किसानों का बहुत बड़ा जलसा आयोजित हुआ। 2. उत्सव या समारोह। जैसे: स्कूल का सालाना जलसा।

जलस्तर - (पुं.) (तत्.) - शा.अर्थ पानी का स्तर, पानी की सतह। 1. समुद्र के जल की सामान्य सतह। उदा. यदि तापमान में यों ही बढ़ोतरी होती रही तो अंटार्कटिका की बर्फ पिघलती रहेगी और समुद्र का जलस्तर बढ़ जाने के कारण कई द् वीप समुद्र के गर्भ में समा जाएँगे। 2. भूमि के गर्भ में जल की सतह। उदा. पिछले दो वर्षों से पर्याप्‍त वर्षा न होने के कारण भूमि के नीचे का जलस्तर काफी नीचे चला गया है।

जलाऊ - (वि.) (दे.जलाना+आऊ प्रत्य.) - जलाने के काम आने वाली; जलने योग्य। जैसे: जलाऊ लकड़ी।

जलापूर्ति - (स्त्री.) (तत्.) - जल की आपूर्ति करने की व्यवस्था; जहाँ जल उपलब्ध न हो, वहाँ जल पहुँचाने का कार्य। water supply

जलावन लकड़ी - (स्त्री.) (तत्.) - मुख्यत: खाना पकाते समय जलाकर उपयोग में लाई जाने वाली लकड़ी।

जलाशय - (पुं.) (तत्.) - भूमि का लंबा-चौड़ा और गहरा स्थान जिसमें वर्षा जल संचित किया जाता है। पर्या. झील।

ज़लील - (वि.) (अर.) - 1. अपमानित, तिरस्कृत, 2. नीच, कमीना। उदा. 1. आज उसने मुझे सबके सामने जलील किया। टि. इसे नुक्‍ते सहित बोलें-लिखें। नुक्‍ते के बिना ‘जलील’ शब्द अरबी में ‘आदरणीय’ का वाचक है।

जलूस/जुलूस - (पुं.) (अर.) - किसी उत्सव, समारोह या प्रदर्शन के अवसर पर गंतव्य की ओर बढ़ने वाले लोगों का समूह।

जलेबी - (स्त्री.) (देश.) - 1. मैदे से बनी एक गोलाकार छल्ले के रूप में बनी मिठाई जिसे पहले घी में तलकर चीनी की चाशनी में डाल दिया जाता है। जिससे उसके अंदर मीठा रस भर जाने से वह मीठे स्वाद वाली हो जाती है। 2. गोल आकार का छल्ला, कुंडलिनी।

जलोढ़ - (वि./पुं) (तत्.) - भूवि. जल के बहाव से ले जाई जाकर कहीं संचित (निक्षिप्‍त) मिट्टी या अव्य पदार्थ। alluvial

जलोढ़ निक्षेप - (पुं.) (तत्.) - जल के बहाव से लाई गई मिट्टी या अन्य किसी पदार्थ का कहीं जमा हो जाना।

जलोढ़मृदा - (स्त्री.) (तत्.) - जल के प्रवाह से बह कर ले जाई गई और कहीं संचित मिट् टी। alluvialsoi

जल्लाद - (पुं.) (अर.) - 1. मृत्युदंड पाए हुए अपराधियों के सरकलम करने वाला या फाँसी पर चढ़ाने वाला पारिश्रमिक भोगी कर्मचारी। ला.अर्थ अत्यंत क्रूर कर्म करने वाला व्यक्‍ति। तु. कसाई।

जवान - (वि./पुं.) (फा.) - 1. युवावस्‍था प्राप्‍त व्‍यक्‍ति। पर्या. युवा, तरुण, युवक 2. सेना का सिपाही, सैनिक soldier

जवाब - (पुं.) (अर.) - 1. किसी प्रश्‍न का उत्‍तर। पर्या. उत्‍तर। answer विलों. सवाल, प्रश्‍न। 2. पत्र का उत्‍तर। reply 3. किसी निम्न पदस्थ अधिकारी/कर्मचारी द्वारा नियमानुसार कार्य न करने पर उच्च अधिकारी द्वारा माँगा गया स्पष्‍टीकरण। explanation 4. नौकरी से अलग करने का कार्य। उदा. कल मैनें नौकर को जवाब दे दिया। 5. दो व्यक्‍तियों का मुकाबला करके किसी एक को अधिक अच्छा घोषित करना। उदा. 1. तुम्हारा कोई जवाब नहीं। 2. उसका कोई जवाब नहीं। मुहा. जवाब तलब करना-कारण पूछना। 2. टके सा जवाब देना-टरका देना, टाल देना। 3. लाजवाब होना आद्वितीय होना।

जवाबदारी - (स्त्री.) (अर.) - उत्‍तर देने की जिम्मेदारी। पर्या. जवाबदेही, उत्‍तरदायित्व, जिम्मेदारी।

जवाबदेह - (वि.) (अर.) - (व्यक्‍ति) जिस पर काम के ठीक तरह से पूरा होने और न होने पर उसका ठीक कारण बताने की पूरी जिम्मेदारी हो। पर्या. उत्‍तरदायी, जिम्मेदार।

जवाहरात - (पुं.) (अर.) - रत्‍नों की राशि या समूह; आभूषण।

जश्‍न - (पुं.) (फा.) - वह उत्सव जो विविध भोज्य पदार्थों और नृत्य-वाद्य संगीत सहित मनाया जाए, समारोह, जलसा। उदा. लोकसभा के लिए जीतकर आए सदस्य के सम्मान में बड़ा जश्‍न मनाया गया।

जस्ता - (पुं.) (तद्.) - एक कठोर, भंगुर, नीलाभ रासायनिक तत्व (धातु) जिसे ताँवे में मिलाकर मिश्रातु पीतल बनाया जाता है। पर्या. यशद zinch

ज़हन - (पुं.) (अर.) - दे. जे़हन।

जहन्नुम - (पुं.) (तत्.) - 1. नरक, दोजख। 2. ला.अर्थ बहुत ही कष्‍ट व दु:खपूर्ण स्थान।

ज़हर - (पुं.) (.फा.) - पदार्थ जिसे खाकर या पीकर मौत हो जाए। पर्या. विष, गरल poison मुहा. 1. जहर उगलना-बहुत कड़वी-कड़वी बातें कहना। 2. जहर की घूँट पीकर रह जाना-बहुत अधिक क्रोध आने पर भी चुप रह जाना; अप्रिय बात सुनकर भी किसी कारणवश कुछ न कहना।

जहाँपनाह - (पुं.) (.फा.) - शा.अर्थ जहान (सारी दुनिया) को पनाह (शरण) देने वाला। सा.अर्थ बादशाहों के लिए प्रयुक्‍त संबोधन।

ज़हीन - (वि.) (अर.) - तीक्ष्ण बुद्धिवाला, बुद्धिमान, समझदार। उदा. आपका बेटा बहुत ज़हीन है।

जाँघ - (स्त्री.) (तद्.) - कमर और घुटने के बीच का मांसल अंग। उदा. भीम ने दुर्योधन की जांघ में गदा मारी थी।

जाँच पड़ताल - (स्त्री.) (देश.) - किसी घटना के बारे में तथ्यों का पता लगाने की कार्रवाई। पर्या. तहकीकात, तफतीश, छानबीन।

जागना (स.क्रि.) - (तद्.) - 1. सोकर उठना, निद्रा त्यागना। 2. सजग या सावधान होना। जैसे: समाज के जागने पर ही भ्रष्‍टाचार दूर होगा। 3. उदित होना। जैसे: तुम्हारा विकास देखकर लगता है कि तुम्हारा भाग्य जाग गया है। विलो. सोना।

जागरण - (पुं.) (तत्.) - 1. रात्रि में भी जागते रहना, न सोने की अवस्था। 2. धर्म इष्‍टदेव, इष्‍टदेवी की पूजा के निमित्‍त रात में परिवार या जनसमूह द्वारा गीत, भजन आदि गाते-बजाते हुए रात्रि व्यतीत करना। जैसे: देवी जागरण (जगराता)। ला.अर्थ पुरानी पड़ गई परंपराओं और रूढ़ियों को त्यागकर समयानुकूल नया मार्ग अपना लेने की स्थिति।

जागरूक - (वि.) (तत्.) - शा.अर्थ. जागता हुआ, जागरणशील, निद्राशून्य। विकसित अर्थ. सदैव कर्म विशेष के प्रसंग में सर्वथा सावधान अर्थात् सतर्क रहने वाला। पर्या. खबरदार, सतर्क, सावधान। vigilant

जागरूकता - (स्त्री.) (तत्.) - 1. जागरूक होने का भाव। 2. अपने कर्तव्य के प्रति बरती गई विशेष सावधानी।

जागीर - (स्त्री.) (फा.) - (मध्‍य युग में) राजाओं द्वारा व्यक्‍ति विशेष को उसकी विशिष्‍ट सेवाओं के लिए प्रदान की गई भूमि या प्रदेश जिसकी प्रशासनिक और वित्‍तीय व्यवस्था का अधिकार उस व्यक्‍ति और उसके वंशजों को प्राप्‍त रहते थे।

जागीरदार - (पुं.) (फा.) - जागीर प्राप्‍त व्यक्‍ति (और उसके वंशज)। दे. जागीर।

जाग्रत - (वि.) (तत्.) - जगता हुआ, जगा हुआ। ला.अर्थ-सावधान।

जाग्रत ज्वालामुखी - (पुं.) (तत्.) - भू वि. ज्वालामुखी जिससे वर्तमान मे भी लावा निकल रहा है। दे. ज्वालामुखी। तु. सुप्‍त ज्वालामुखी।

जागृति स्त्रीं. - (तत्.) (दे.) - 1. जाग्रत होने या रहने की अवस्था या भाव। दे. जागरण ला.अर्थ

जाजम/जाज़िम - (स्त्री.) - (तुर्की.) फर्श पर बिछाने की छपी हुई चादर।

जातक - (पुं.) (तत्.) - 1. नवजात शिशु। 2. वे बौद्ध ग्रंथ जिनमें महात्मा बुद्ध के पूर्वजन्मों की कथाएँ? संगृहीत हैं।

जातक कथा - (स्त्री.) (तत्.) - महात्मा बुद्ध के पूर्वजन्म से संबंधित कहानी।

जात-पाँत - (स्त्री.) (तद्.) - जातियों और उपजातियों से संबंधित वर्गीकरण। उदा. 1. जात-पाँत के चक्कर में इंसानियत को नहीं भूलना चाहिए। 2. जात- पाँत पूछै नहि कोई, हरि को भजे सो हरि का होई।

जाति - - 1. जीव. जीवधारियों में वर्गीकरण की निम्नतम इकाई (जिसका स्थान वंश के बाद आता है)। इसमें ऐसे जीव सम्मिलित हैं जो संरचनात्मक तथा प्रकार्यात्मक functional दृष्‍टि से लगभग समान होते हैं और प्राकृतिक अवस्था में केवल आपस में ही प्रजनन करते हैं। जैसे: मनुष्य जाति, पशु जाति, पुरूष जाति, स्त्री जाति। 2. समा. हिंदुओं में प्रचलित समाज-स्तर पर वह वर्ग-विभाजन जो पहले कर्मानुसार निश्‍चित हुआ था पर कालांतर में जन्म के आधार पर माना जाने लगा। Caste

जातीय - (वि.) (तत्.) - 1. जाति संबंधी, जातिगत। उदा. जातीय भेदभाव उचित नहीं है। 2. सारी जाति समाज या राष्‍ट्र का national टि. बांग्ला भाषा में यही अर्थ प्रचलित है। जैसे: सर्वजातिय उत्‍कर्ष राष्‍ट्रीय भावना है।

जादुई - (वि.) (.फा.) - जादू संबंधी, जादू जैसा लगने वाला, जादू के करतब से उत्पन्न।

जादू - (पुं.) (.फा.) - खासकर हाथ की सफाई और चतुराई का खेल जो दर्शकों को सच जैसा लगे या नज़र आए। ला.अर्थ किसी व्यक्‍ति का वह गुण या व्यवहार जो दूसरे को (भले ही कुछ समय के लिए ही) मोह ले। मुहा. जादू चढ़ना- मोह लिया जाना, प्रभावित होना। जादू उतरना- मोह/प्रभाव समाप्‍त हो जाना।

जादूगर - (पुं.) (.फा.) - जादू के खेल दिखलाने वाला, जादू के खेल को व्यवसाय या वृत्‍ति के रूप में अपनाने वाला व्यक्‍ति magician दे. जादू।

जान - (स्त्री.) (तद्.) - 1. जो बात बुद् धि द्वारा ग्रहण की जाए। पर्या. ज्ञान, जानकारी, परिचय। 2. जिस बात की कल्‍पना मन में की जाए। पर्या. ख्याल, अनुमान।

जानकार - (वि.) (तद्.) - 1. किसी विषय या व्यक्‍ति आदि के बारे में मूलभूत जानकारी (ज्ञान) रखने वाला। पर्या. ज्ञात। जैसे: 1. इतिहास का जानकार-इतिहास का ज्ञाता। 2. वह मेरा जानकार है (यानी मैं उसे जानता हूँ?)।

जानकारी - (स्त्री.) (देश.) - जानकार’ का भाववाचक रूप। पर्या. 1. ज्ञान। 2. परिचय। दे. जानकार।

जान-बूझकर क्रि.वि - (देश.) - 1. सोच-समझकर। 2. अच्छी तरह से जानते और समझते हुए। उदा. 1. वह जानबूझकर यहाँ नहीं आया। 2. मैंने जानबूझकर यह बात कही।

जानवर - (पुं.) (.फा.) - 1. मनुष्य को छोडकर सभी चल प्राणी; पशु, जंतु animal उदा. बाघ, चीता, मृग आदि जंगली जानवर हैं। 2. ला.अर्थ 1. पशुओं के समान आचरण करने वाला व्यक्‍ति, हैवान। 2. मूर्ख व्यक्‍ति जैसे: वह व्यक्‍ति व्यवहार से तो पूरा जानवर है।

जानी - (वि.) (.फा.) - प्राणों का, जान से संबंध रखने वाला। जैसे: जानी दुश्मन- (जान लेने वाला दुश्मन)। जानी दोस्त- (परम मित्र)।

ज़ाम - (पुं.) (.फा.) - 1. शराब पीने का प्याला, कटोरा। उदा. वहाँ तो जाम से जाम टकरा रहे थे। 2. रूका हुआ। उदा. इंजन जाम हो गया। 3. मार्ग-अवरोध। उदा. मायापुरी चौराहे पर घंटों यातायात जाम रहता है। तद्. पहर, प्रहर। जैसे: दिन रात में आठ पहर होते हैं। पहला पहर, दूसरा पहर, तीसरा पहर, चौथा पहर।

जायका - (पुं.) (अर.) - खाने-पीने की चीजों का स्वाद। taste

जायकेदार - (वि.) (अर.) - अच्छे स्वाद वाला, स्वादिष्‍ट tasty विलो. बेजायका।

जायज - (वि.) (अर.) - 1. उचित, मुनासिब, 2. वैध, विधि सम्मत।

जायजा - (पुं.) (अर.<जाइज:) - जाँच-पड़ताल।

जायदाद - (स्त्री.) (.फा.) - भूमि, मकान, धन, सामान आदि अचल और चल संपत्‍ति जिस पर किसी का अधिकार हो। उदा. उसके दादा जी बहुत बड़ी जायदाद के मालिक हैं।

जाया - (स्त्री.) (तत्.) - 1. विवाहिता स्त्री, पत्‍नी। 2. वि. तद्. जो उत्पन्न हुआ हो, पैदा हुआ। 3. वि. /क्रि. वि. नष्‍ट, बरबाद। जैसे: तुम कुसंगति में टी.वी देखकर अपना वक्‍त जाया न करो।

जारी - (वि.) (अर.) - 1. चलता हुआ, प्रचलित। उदा. दस रुपए का नया सिक्का जारी किया गया है। 2. बहता हुआ, प्रवाहित। उदा. घाव से खून जारी है। 3. लागू, चालू, चल रहा। उदा. यह कानून सालों से जारी है। current in force

जाल - (पुं.) (तत्.) - 1. सन, सूत की रस्सी या धागों से बुना हुआ या तारों का जालीदार पट। 2. जो मछलियों, पक्षियों आदि को पकड़ने के काम आता है। अर. 3. किसी को ठगने या फँसा लेने की तरकीब या चालाकीपूर्ण युक्‍ति।

जाली - (स्त्री.) (अर.) - 1. लकड़ी, पत्थर तथा धातु की चादर पर छेद काटकर बनाई गई कलाकृति। 2. बेल-बूटों से कढ़ा वस्त्र; कसीदाकारी। 3. आम या अन्य फलों की गुठली में रेशों का कठोर भाग जिसे सरलता से काटा न जा सके। वि. जो असली न हो। पर्या. नकली, झूठा (दस्तावेज या अन्य पत्र आदि)। विलो. असली।

जालीदार - (वि.) (अर.) - 1. जालीवाला; जाली जैसी रचना वाला। 2. (वह वस्तु) जिसमें जाली पड़ गई हो। दे. जाली।

जासूस - (पुं.) (अर.) - गुप्‍त रूप से किसी अपराध, रहस्य आदि का पता लगाने वाला। पर्या. गुप्‍तचर, भेदिया।

जासूसी - (स्त्री.) (अर.) - जासूस का काम या भाव गुप्‍चरी। वि. जासूसी से संबंधित। उदा. 1. चंद्रकांता संतति जासूसी उपन्यास है। 2. लोगबाग जासूसी उपन्यास बड़े चाव से पढ़ते हैं।

ज़ाहिर - (वि.) (अर.) - ज्ञात, प्रकट, स्पष्‍ट। उदा. यह बात जग जाहिर हो गई।

जाहिल - (वि.) (अर.) - 1. मूर्ख, अज्ञानी, नादान, नासमझ; असभ्य, उद् दंड। 2. अनपढ़, निरक्षर। उदा. वह जाहिल इन्सान है उससे बचना।

जिंदा - (वि.) (फा.) - 1. जिसमें जीवन हो, सजीव; जीवित, जो मरा न हो। 2. प्रफुल्ल। जैसे: जि़ंदा-दिल इंसान। जिदांबाद-जीवित रहे, अमर रहे का नारा। विलो. मुर्दाबाद।

जि़क्र - (पुं.) (अर.) - उल्लेख. चर्चा- प्रसंग वश किसी व्यक्‍ति या वस्तु का जिक्र करना।

जिगर - (पुं.) (फा.) - 1. शरीर का एक आवश्‍यक आंतरिक अंग यकृत liver उदा. अधिक शराब पीने से जिगर खराब हो जाता है। 2. कलेजा, दिल। जैसे: जिगर का टुकड़ा; जिगर थाम कर बैठना।

जिगरी - (वि.) (फा..) - 1. यकृत/जिगर से संबंधित । 2. घनिष्‍ठ, अंतरंग। जैसे: जिगरी दोस्त।

जिजीवषा - (स्त्री.) (तत्.) - जीवित रहने (यानी न मरने की) अपार इच्छा।

जिज्ञासा - (स्त्री.) (तत्.) - अज्ञात तथ्य को जानने और समझने की प्रबल इच्छा।

जिज्ञासु - (वि.) (तत्.) - अज्ञात तथ्य को जानने और समझने की प्रबल इच्छा रखने वाला।

जितेंद्रिय - (वि.) (तत्.) - वह व्यक्‍ति जिसने अपनी इंद्रियों को वश में कर लिया हो।

ज़िद/जिद्द - (स्त्री.) (अर.) - अपनी बात मनवाने के लिए अड़े रहने की स्थिति; किसी बात के लिए अनुचित रूप से अड़ना। पर्या. हठ, दुराग्रह।

जिदांदिली - (स्त्री.) (फा.) - कठिनाई के दिनों में भी प्रसन्न व उत्साहपूर्ण रहने की प्रवृत्‍ति।

जि़दादिल - (वि.) (फा.) - 1. हर स्थिति में सदा प्रसन्न और उत्साहपूर्ण रहने वाला। 2. उल्लासपूर्ण व मनोरंजक बातें करने वाला। हँसमुख, विनोदी। उदा. आपका साथी तो सचमुच जिंदादिल इंसान है। विलो. मुर्दादिल।

जिद्दी - (वि.) (अर.) - (वह व्यक्‍ति) जो जिद करे। पर्या. हठी, दुराग्रही, अडि़यल।

जिम्‍मेदार - (वि.) (अ.+फा.) - जिम्मेदारी महसूस करने वाला। दे. जिम्मेदारी।

जिम्मेदारी - (स्त्री.) (अ.+फा.) - किसी कार्य का जिम्मा (भार)संभालने का भाव। पर्या. दायित्व,कार्यभार

जिरह - (पुं.) (स्त्री.) - (अ.) किसी के कथन सत्यता, असत्‍यता की जाँच करने के लिए उससे की जाने वाली बहस। (.फा.) लोहे की कडि़यों से बना हुआ कवच। जैसे: जिरह बख्तर।

जिराफ़ - (पुं.) (अर.) - अफ्रीका के जंगलों में पाया जाने वाला वह जानवर जिसके शरीर पर धारियाँ होती हैं, ऊँट से भी लंबी गर्दन होती है तथा अगली टाँगें पिछली टाँगों से अधिक लंबी होती हैं।

जिला - (पुं.) (अर.) - प्रशासनिक कार्यों के लिए राज्य/प्रदेश/प्रांत की एक सीमांकित इकाई। पर्या. जनपद। district

ज़िलाधिकारी/ज़िलाधीश - (पुं.) (अर.+तत्.) - जिले का सर्वोच्य प्रशासनिक अधिकारी। collector

जिल्द - (स्त्री.) (अर.) - शा.अर्थ खाल, चमड़ा। 1. पुस्तक की चमड़े से (और अब रेक्सिन से भी) मढ़ी दफ्ती जो पुस्तक को जल्दी फटने से बचाती है। binding 2. ग्रंथमाला का दफ्ती गढा खंड जिसकी स्वतंत्र इकाई के रूप में गिनती होती है। पर्या. खंड। volum जैसे: जिल्द।

जिस्म - (पुं.) (अर.) - शरीर, देह।

जिहाद/जेहाद - (पुं.) (अर.) - अनीति आदि के या धर्म रक्षा के लिए किसी वर्ग या समूह द्वारा किया जाने वाला युद्ध। पर्या. धर्मयुद्ध। crusad।

जिहादी/जेहादी - (वि.) (अर.) - जिहाद संबंधी। जिहाद छेड़ने वाला।

जिह्वा - (स्त्री.) (तत्.) - मुख कोटर में स्थित वह मांसल इंद्रिय जो खाद् य और पेय पदार्थों को निगलने, उनका स्वाद चखने के काम के साथ- साथ भाषा की ध्वनियों के उच्चारण में सहयोग करती है।

जी अव्यय - (तद्.) (पुं.) - पर्या. जीभ। नाम या पद के साथ जोडक़र बोला या लिखा जाने वाला आदरसूचक शब्द। जैसे: 1. प्रधानाचार्य जी, 2. गाँधी जी, पिता जी। तद्. 1. मन, दिल। उदा. जी में आए सो करो। उदा. आज मेरा जी किसी काम में नहीं लग रहा है। मुहा. 1. जी अच्छा होना/अच्छा न होना-तबीयत ठीक/खराब होना। 2. जी चाहना-इच्छा होना। 3. जी काँपना-डरना। 4. जी का जंजाल-परेशानी, झंझट। 5. जी का बोझ हलका होना-परेशानी हो जाने पर खुश होना।

जीत - (स्त्री.) (तद्.) - 1. जीतने की क्रिया या भाव। 2. युद्ध, संघर्ष, प्रतियोगिता आदि में प्राप्‍त सफलता। पर्या. जय, विजय। उदा. 1. पाकिस्तान के साथ हुए युद्ध में हर बार भारत की जीत हुई थी। 2. वाद-विवाद प्रतियोगिता में हमारे विद्यालय की जीत। विलो. हार।

जीन - (पुं.) (दे.) - (अ.) जीव-आनुवंशिकता की सूचक कणात्मक इकाई जिसका सामान्यत: स्थान गुणसूत्र के निश्‍चित बिंदु पर होता है। यह डी.एन.ए. की लड़ी का वह अंश है जो एक एन्जाइम का संश्‍लेषण करता है। पर्या. वंशाणु। दे. आनुवंशिकता।

जीभ - (स्त्री.) (तद्.) - 1. मुँह में स्थित वह ज्ञानेंद्रिय जो रस (मीठा, खट् टा, नमकीन आदि स्वाद) का ज्ञान कराती है तथा कर्मेंद्रिय के रूप में शब्द का उच्चारण करने में सहायक है। पर्या. जिह्वा, जबान, रसना। 2. जीभ के आकार की कोई वस्तु। जैसे: जूते की जीभ। मुहा. जीभ चलना-1. बहुत बोलना, 2. चटोरा होना। जीभ पकड़ना-बोलने न देना।

जीर्णोद् धार पुं . - (तत्.) - पारि. अर्थ-पुराने और टूटे-फूटे भवनों, कुओं, देवालयों तालाबों आदि की मरम्मत या सुधार का कार्य।

जीवंत - (वि.) (तत्.) - जीवित; जीवनी शक्‍ति से युक्‍त जीवन की ऊर्जा से भरपूर सजीव।

जीवंत प्रसारण - (पुं.) (तत्.) - किसी घटना विशेष का उसी समय टीवी के माध्यम से ज्यों-का-त्यों किया जा रहा प्रसारण। पर्या. सजीव प्रसारण live telecast

जीवंतता - (स्त्री.) (तत्.) - जीवित होने अर्थात् जीवनीशक्‍ति से युक्‍त होने का भाव।

जीव - (पुं.) (तत्.) - 1. प्राणियों का वह चेतन तत् व जिसके कारण वे जीवित रहते हैं। sole 2. जिसमें जीवन हो वह प्राणी/वनस्पति। creature

जीव-जंतु - (पुं.) (तत्.) - किसी क्षेत्र या युग विशेष के समस्त जंतु (पशु-पक्षी, कीड़े-मकोड़े आदि)।

जीवट - (पुं.) (देश.) - साहस, हिम्मत, बहादुरी। उदा. उसके जीवट की तारीफ करनी होगी कि उसने अकेले तीन हमलावरों का सामना किया और उन्हें मार भगाया।

जीवद्रव्य - (पुं.) (तत्.) - कोशिका का जीवित पदार्थ protoplasm जिसमें केंद्रक, कोशिका-द्रव्य आदि शामिल हैं।

जीवन - (पुं.) (तत्.) - 1. जीवित रहने या होने का भाव। 2. जन्म से मृत्यु तक का समय। 3. जीवधारियों की समस्त क्रियाओं का सामूहिक नाम। विलो. मरण।

जीवनकाल - (पुं.) (तत्.) - जन्म से मृत्यु तक का समय। दे. जीवन, आयु, उम्र।

जीवनचक्र - (पुं.) (तत्.) - प्राणी. किसी भी जीव की प्रारंभ से लेकर अंत तक के विकास की उत्‍तरोत्‍तर अवस्थाएँ। life cycle

जीवनचर्या - (स्त्री.) (तत्.) - 1. जीवन के प्रतिदिन के कार्यक्रम, आचरण, रहन-सहन आदि।

जीवन-नौका - (स्त्री.) (तत्.) - वह छोटी नौका जो बड़े जहाजों पर इसलिए रखी जाती है कि जब जहाज डूबने लगे तब लोग उस पर सवार होकर अपनी जान की रक्षा कर सकें। life boat ला. प्रयोग एक नौका के समान जीवन। उदा. मेरी जीवन नौका मँझधार में फँसी हुई है।

जीवनपर्यंत क्रि.वि. - (वि.) (तत्.) - 1. संपूर्ण जीवन। 2. जीवित रहने तक। 3. जब तक जीवन रहेगा तब तक पर्या. मृत्युपर्यंत। प्रयो. मैं इस उपकार के लिए तुम्हारा जीवनपर्यंत कृतज्ञ रहूँगा।

जीवनमुक्‍त - (वि.) (तत्.) - दर्श. वह जिसे आध्यात्मिक साधना के कारण जीवन और मृत्यु का ज्ञान हो गया हो और जो बिना किसी आसक्‍ति के जीवन-यापन कर रहा हो।

जीवनवृत्‍त - (पुं.) (तत्.) - 1. जीवन का वृत्‍त यानी विवरण। 2. जिन्दगी भर का संक्षिप्‍त लिखित विवरण। biodata तु. जीवनी। 3. किसी व्यक्‍ति के जन्म से मृत्यु तक की मुख्य-मुख्य घटनाओं, कार्यों आदि का समय-क्रम से सूत्रात्मक वर्णन। उदा. नौकरी के आवेदन के साथ जीवनवृत्‍त भी देना पड़ता है।

जीवन-संगिनी - (स्त्री.) (तत्.) - शा.अर्थ जीवन में साथ निभाने वाली महिला; पत्‍नी, सहधर्मिणी।

जीवनी - (वि.) (तत्.) - जीवनी स्त्री 1. व्यक्‍ति विशेष की जीवन संबंधी घटनाओं का कालक्रमिक विवरण। 2. किसी व्यक्‍ति विशेष की जीवन संबंधी घटनाओं का किसी अन्य व्यक्‍ति द्वारा लिखा हुआ क्रमिक विवरण। पर्या. जीवन-चरित/जीवन चरित्र biography 3. वि. (तत्.) जीवन बनाए रखने वाली। जैसे: जीवनी शक्‍ति।

जीवविज्ञान - (पुं.) (तत्.) - विज्ञान की वह शाखा जिसका संबंध जीवधारियों के अध्ययन से है। biology टि. इसकी एक शाखा को वनस्पति विज्ञान Botony और मनुष्य जंतु पशु-पक्षी आदि प्राणियों से संबंधित दूसरी शाखा को प्राणि विज्ञान या जंतु विज्ञान Zoology कहते हैं।

जीवाणु - (पुं.) (तत्.) - कोशिकीय सूक्ष्मजीवों का एक विशाल वर्ग। इन केंद्रकहीन और पर्णहरित जीवों में जनन क्रिया द्वारा होती है। केंद्रक के स्थान पर क्रोमेटिन पदार्थ व्याप्‍त रहता है। Bacteria टि. अंग्रेजी का बैक्टीरिया शब्द बैक्टीरियम (Bacterium) का बहुवचन है। इन जीवाणुओं का वर्गीकरण आकृति के अनुसार किया जाता है। जैसे: (क) दंडाणु – दंड (rod) जैसा। (ख) गोलाणु (कॉकस) – बिंदु जैसा। (ग) सर्पिलाणु – लहरदार जैसा, आदि।

जीवाश्म - (पुं.) (तत्.) - शा.अर्थ पत्थर रूप में परिवर्तित यानी बदल गया जीव। भू. वि. (अश्म) चट्टानों आदि में युगों तक दबे पुरातन जीवों (पादपों, जंतुओं) के शरीर के पत्थर जैसे कई रूप परिवर्तित अंश अथवा उनके चिह् न जो पुरातन जीवों की कहानी बताते हैं। पर्या. जीवावशेष fossil

जीवाश्मी ईंधन - (पुं.) (तत्.) - जीवों के मृत अवशेषों से लाखों वर्षों के परिवर्तन के बाद प्राप्‍त होने वाला ईंधन। उदा. कोयला, पेट्रोलियम (पदार्थ)

जीविका - (स्त्री.) (तत्.) - वह काम जो जीवन निर्वाह के लिए किया जाए। पर्या. रोजी, वृत्‍ति, पेशा।

जीविकोपार्जन - (पुं.) (तत्.) - 1. जीवन की अनिवार्य आवश्यकताओं की पूर्ति के लिए अर्थ (धन) अर्जित करने का कार्य। 2. जीविका-निर्वाह हेतु धन-अर्जन।

जुआ - (पुं.) (तद्.<द्युत) - 1. रुपये, वस्तु आदि की बाजी (दाँव) लगाकर खेला जाने वाला खेल जिसमें हारे हुए की लगाई हुई धनराशि, वस्तुएँ आदि विजयी पक्ष की संपत्‍ति बन जाती है। पर्या. द् युत क्रीड़ा। उदा. पांडव दुर्योधन से जुएँ में सब कुछ हार गए थे। 2. गाड़ी या हल खींचते समय बैलों के कंधों पर रखा जाने वाला लकड़ी का बना आयताकार उपकरण।

जुएब/जुर्राब - (स्त्री.) - (तुर्की.) घुटनों से नीचे तक पैरों में पहना जाने वाला मोजा।

जुकाम - (पुं.) (अर.) - सरदी-गरमी के योग से होने वाला एक संक्रमणशील रोग जिसमें नाक बहती है और छींके आती हैं। पर्या. प्रतिश्याय common cold

जुगनू/जुगनूँ - (पुं.) (देश.) - एक बरसाती कीड़ा, जिसके रात में उड़ने पर उसकी दुम से रोशनी चमकती है। पर्या. खद्योत।

जुगाड़ - (पुं.) (तद्.<युक्‍ति) - किसी भी प्रकार से (येनकेन प्रकारेण) कार्य सिद् ध करने का प्रयत्‍न। पर्या. जुगत, जोड़-तोड़।

जुगाली - (स्त्री.) (तद्.<उद्गली) - द्विखुरीय (दो खुर वाले) स्तनपायी पशुओं द् वारा निगले गए रेशे वाले पदार्थ (घास/तृण) को थोड़ा-थोड़ा करके गले से निकाल मुँह में लेकर फिर से धीरे-धीरे चबाने की क्रिया। ला. प्रयोग-पुरानी बातों को याद कर उनका बार-बार कथन करना।

जुगुप्सा - (स्त्री.) (तत्.) - गंदगी देखकर मन में पैदा होने वाला घृणा का भाव। टि. काव्य में बीभत्स रस का स्थायी भाव। घृणा; अरुचि

जुझारू - (वि.) (तद्.) - मूल अर्थ परोपकार के लिए युद्ध करके वीरगति को प्राप्‍त होने वाला, जिसकी आगे चलकर पूजा की जाती थी। आधु.अर्थ जी-जान से लड़ने वाला अनुपम वीर/ योद् धा/बहादुर। 2. वि. देश. पूरे उत्साह से युद्ध या संघर्ष करने वाला।

जुटना अ.क्रि. - (देश.) - 1. दो वस्तुओं का एक साथ चिपक जाना। पर्या. जुड़ना। 2. एकत्र होना, इकट्ठा होना। जैसे: रविवार के दिन उद् योग/ मेले में लोग सुबह से ही जुटने लगे। 3. मन लगाकर कार्य करने में लग जाना। उदा. परीक्षा निकट है। पढ़ाई में जुट जाओ।

जुड़वाँ - (वि.) (देश.) - शा.अर्थ जुड़े हुए जैसे जुडवाँ केला। आयु. एक ही माता के गर्भ से कुछ क्षणों के अंतराल से जन्मे दो शिशु। जैसे : जुड़वाँ बच्चे, जुड़वाँ भाई, जुड़वाँ भाई-बहिन, जुड़वाँ बहिनें।

जुड़ाव - (पुं.) (देश.) - 1. जुड़ने का भाव या क्रिया; लगाव, संपर्क।

जुताई - (स्त्री.) (देश.) - 1. फसल उगाने से पहले खेत की मिट् टी को हल या ट्रैक्टर चलाकर/उलटने-पलटने एवं पोला करने का काम। 2. उक्‍त कार्य के लिए दी जाने वाली मजदूरी।

जुर्म - (पुं.) (अर.) - 1. कोई भी कार्य जो कानून की दृष्‍टि से दंडनीय माना जाए, अपराध। उदा. रिश्‍वत देना-लेना कानूनन जुर्म है।

जुर्रत - (स्त्री.) (अर.) - जो काम करना अपेक्षित नहीं हो उसे ढीठ बनकर करने का प्रयत्‍न करना। पर्या. दुस्साहस; धृष्‍टता। उदा. तेरी यह जुर्रत की मेरी बात को टाल जाए।

जुल्म - (पुं.) (अर.) - अपनी सत्‍ता, शक्‍ति, अहंकार या दबंगई के कारण अनावश्यक रूप से किसी व्यक्‍ति या वर्ग को सताना। पर्या. अत्याचार। उदा. अंग्रेजों ने स्वतंत्रता सेनानियों पर कई तरह के जुल्म किए।

जुस्तजू - (स्त्री.) (.फा.) - किसी की अत्यंत चाह भरी बड़ी उत्सुकता से की गई खोज, तलाश। उदा. कब से तेरी जुस्तजू है।

जुहार - (स्त्री.) (तद्.) - 1. उत्‍तर भारत के अधिकांश भागों में क्षत्रियों में प्रचलित एक प्रकार का विशेष अभिवादन या अभिवादन के लिए प्रयुक्‍त किया जाने वाला शब्द विशेष। टि. अधिकांश क्षेत्रों में दशहरे के पर्वोत्सव पर क्षत्रिय लोग परस्पर जुहार या जोहार शब्द का प्रयोग करते हैं।

जुही/जूही - (स्त्री.) (तद्.) - वह पुष्पीय लता जिसके पत्‍ते लघु व गोलाकार तथा फूल पाँच पंखुड़ियों से युक्‍त छोटे, सफेद या पीले व तीव्र सुगंध वाले होते हैं। उदा. जूही रात को फूलती है।

जूँ - (स्त्री.) (तद्.<यूका) - सिर के केशों में पसीने या गंदगी से उत्पन्न हो जाने वाला अत्यंत छोटा कीट। उदा. शेंपू से बाल धोने पर जुएँ मर जाती हैं। लो. कानों पर जूँ न रेंगना-किसी की बात का कोई असर न होना।

जूझना अ.क्रि. - (तद्.) - 1. शारीरिक शक्‍ति का प्रयोग करते हुए लड़ना। 2. लड़ते हुए मर जाना। 3. (ला.) किसी समस्या/विपत्‍ति से शारीरिक/मानसिक रूप से संघर्ष करना। उदा. वह अकेले ही सभी समस्याओं से जूझ रहा है।

जूट - (पुं.) (तत्.) - 1. उलझे हुए घने तथा लंबे बालों की लटों से बँधा हुआ जूड़ा जो साधुओं के सिर पर देखा जा सकता है। पर्या. जटाजूट । 2. एक प्रसिद्ध उष्णकटिबंधीय पौधा जिसके रेशे से रस्सी, बोरी, टाट आदि बनते हैं।

जूठन - (स्त्री.) (तद्.) - घर पर अथवा प्रीतिभोज आदि में व्यक्‍ति या व्यक्‍तियों के द्वारा खाने-पीने से बची हुई वस्तु। 2. उच्छिष्‍ट (भोजन)। ला. 3. जिसमें कोई नवीनता न हो अर्थात् जिसका पहले प्रयोग किया जा चुका हो। जैसे: यह कविता तो महाकवि निराला की जूठन मात्र है।

जूड़ा - (पुं.) (देश.) - 1. एक प्रकार का केश विन्यास जिसमें महिलाएँ सिर के बालों को कंघी से सँवारकर, रस्सी की तरह लपेटकर और गोलाकृति में बाँध लेती हैं। उदा. जूड़ा बाँधने के कई आकार-प्रकार हैं।

जूतम-पैजार/ [हि.जूता+फा.पैजार] - (स्त्री.) - 1. परस्पर लड़ाई का वह प्रकार जिसमें लोग जूतों से मारपीट करें।

जून - (पुं.) (तद्.) - 1. समय, बेला, वक्‍त। उदा. कभी-कभी गरीबों को दो जून की रोटी भी नसीब नहीं होती। 2. पुं. ( अं.) वर्ष का छठा महीना। 3. वि. तद्. बहुत पुराना, जीर्ण।

जूल - (पुं.) - (अं.) भौ. ऊर्जा तथा कार्य का मात्रक, प्रतीक। यह एक न्यूटन बल द्वारा किसी बिंदु को एक मीटर विस्थापित करने के कार्य के बराबर होता है; साथ ही 4.2 कैलोरी के तुल्य होता है।

जेठ - (पुं.) (तद्.<ज्येष्‍ठ) - 1. भारतीय मासों में तीसरा मास जो वैशाख के बाद तथा आषाढ़ मास से पहले आता है। यह घोर गर्मी वाला माह है। उदा. जेठ में तेज धूप के साथ-साथ लू भी चलती है। वि./पुं. पति का बड़ा भाई जैसे धृतराष्‍ट्र कुंती के जेठ थे।

जेबरा क्रॉसिंग - (पुं.) - (अं.) शहरों में चौराहों पर पैदल यात्रियों द्वारा सड़क पार करने के प्रयोजनार्थ काली-सफेद धारियों से रेखांकित स्‍थल ताकि पैदल यात्री वहाँ से सुरक्षित सड़क पार कर सकें।

जेबरा - (पुं.) - (अफ्री.) अफ्रीका में पाया जाने वाला घोड़े की जाति का जंगली जानवर जिसके शरीर पर काले व सफेद रंग की धारियाँ होती हैं। उदा. जेबरा अफ्रीका के जंगलों में पाया जाता है।

जेल - (पुं.) - (अं.) वह स्थान जहाँ दंडित अपराधियों को सजा के तौर पर निश्‍चित समय के लिए बंद रखा जाता हैं। पर्या. जेलखाना, कैदखाना, कारागार, बंदीग्रह। जैसे: दिल्ली में ‘तिहाड़ जेल।

जेलयात्रा - (स्त्री.) (तत्.) - शा.अर्थ जेल (कारागार) की यात्रा। सा.अर्थ सामाजिक राष्‍ट्रीय आदि आंदोलनों के निमित्‍त जेल की यात्रा करना। उदा. स्वतंत्रता आंदोलन के दौरान राष्‍ट्रभक्‍तों ने कई बार जेल यात्राएँ कीं। तुल. कैद।

जेवर - (पुं.) (फा.) - शरीर की शोभा बढ़ाने के लिए धारण किया जाने वाला गहना, आभूषण। बहु. जेवरात

जेहन - (पुं.) (अर.) - 1. बुद्धि, समझ, 2. स्मरण शक्‍ति। उदा. यह बात मेरे जेहन में ही नहीं आई, नहीं तो तुम्हारे कहने से पहले ही मैं यह काम कर देता।

जैव - (वि.) (तत्.) - जीवधारियों का या उनसे संबंधित। पर्या. जैविक। जैसे: जैव विकास। जैसे: जैव संसाधन (पेड़-पौधे, जीव-जंतु)।

जैव-निम्नीकरणीय - (वि.) (तत्.) - सूक्ष्म जीवों द्वारा निर्विषी उपापचयजों metabolites में टूट जाने वाले (पदार्थ) अथवा अजैविक जैव रासायनिक पारस्परिक क्रियाओं से प्रेरित होने वाले (पदार्थ)।

जैवमंडल - (पुं.) (तत्.) - पृथ्वी जल तथा वायुमंडल का वह क्षेत्र जहाँ जीवों का निवास संभव है। biosphee वि. तत्. जीव से संबंधित पर्या. जवै जैविकी से संबंधित।

जैव विकास - (पुं.) (तत्.) - जीवधारियों के क्रमिक उद्भव की संकल्पना, जिसके अनुसार माना जाता है कि आरंभ में सरलतम जीवों का उद् भव हुआ और कालांतर में उन्हीं से जटिल जीवों की उत्पत्‍ति होती गई। Organic evolution

जैविक अवशिष्‍ट - (पुं.) (तत्.) - पेड़-पौधों या जंतुओं का अवशिष्‍ट। दे. अवशिष्‍टि

जैविक कृषि - (स्त्री.) (तत्.) - जिस कृषि कर्म में (रासायनिक खादों के स्थान पर) जैविक खाद और प्राकृतिक पीडक़नाशी का उपयोग किया जाता है। (बायो-अग्रिकल्चर)

जैसे-तैसे क्रि.वि. - (वि.) (तद्.) - किसी न किसी प्रकार से। प्रयो. समय की कमी से उसने जैसे-तैसे सभी प्रश्‍नों के उत्‍तर दे ही दिए।

जोखिम - (स्त्री.) (तद्.) - 1. संकट या विपत्‍ति की संभावना वाली स्थिति। 2. काम करने में होने वाले कष्‍ट तथा काम से होने वाली हानि या खतरा। उदा. 1. मैं इस काम को करने का जोखिम नहीं उठा सकता। (रिस्क) 2. उसकी जान जोखिम में है।

जोट - (पुं.) (तद्.) - दो वस्तुओं का समूह; जोड़ा।

जोटी - (स्त्री.) (तद्.) - 1. एक ही तरह की दो वस्तुएँ। 2. दो वस्तुओं का समूह।

जोड़ा - (पुं.) (तद्.<युतक) - एक ही तरह की दो वस्तुएँ। जैसे-जूतों का जोड़ा pair, जुराबों या दस्तानों का जोड़ा इत्यादि। कुर्ते-पाजामे का जोड़ा। 2. एक ही उपयोग के लिए अलग-अलग प्रकार की वस्तुओं का जोड़ा। 3. पति-पत्‍नी या नर-मादा का जोड़ा। 4. साथ-साथ काम करने वाले या बराबरी वाले दो का समूह। जैसे: बैलों का जोड़ा।

जोत - (स्त्री.) (देश.) - 1. किसान के कब्जे वाला वह भूखंड जिस पर वह खेती (जोतने-बोने) का कार्य करता है। 2. चमड़े की रस्‍सी या पट्टी जिसका एक सिरा पशुओं के गले तथा दूसरा खींची जाने वाली गाड़ी में बँधा हो 3. वह रस्‍सी जिसमें तराजू के पलड़े बँधे रहते हैं। स्त्री. (तद्.<ज्‍योति) देवता के सामने जलाया जाने वाला दीपक या किसी अन्‍य प्रकार का प्रकाश।

जोर - (पुं.) (फा.) - 1. बल, शक्‍ति, ताकत। उदा. इस तरवत को जरा जोर लगाकर उठाओ। 2. वश, नियंत्रण, काबू। उदा. मेरा तो अपने पुत्र पर ही जोर नही है। 3. वृद्धि, प्रबलता, उत्कर्ष। उदा. इस गाँव में शिक्षा का विकास जोरों पर है। 4. तनाव/हानिकारक प्रभाव। उदा. टीवी ज्यादा न देखा करो इससे आँखों पर ज्यादा जोर पड़ता है। 5. जल्दी-जल्दी होना/बढ़ना। उदा. अब वर्षा जोरो पर है।

ज़ोरदार - (वि.) (फा.) - मात्रा और वेग में तुलनात्मक अधिकता। उदा. आज ज़ोरदार बारिश हुई।

जोरू - (स्त्री.) (देश.) - पत्‍नी, बीवी। लोको. जोरू का गुलाम-वह आदमी जो हर काम बीवी/पत्‍नी से पूछकर करता है यानी कोई भी निर्णय स्वतंत्र रूप से नहीं लेता।

जोहड़/जौहड़ - (पुं.) (देश.) - 1. छोटा तालाब। 2. वह गड्ढा जिसमें बरसात का जल भर जाता है।

जोहना स.क्रि - (तद्.) - 1. देखने या ताकने की क्रिया; हाथ से टटोलकर ढूँढ़ने की क्रिया। 2. प्रतीक्षा करना। जैसे: बाट जोहना-रास्ता देखना, प्रतीक्षा करना।

जौहर - (पुं.) (अर.) - 1. रत्‍न, बहुमूल्य पत्थर। उदा. जौहर की पहचान तो जौहरी ही करता है। 2. युद्ध आदि की परिस्थिति में आत्मकौशल या शक्‍ति प्रकट करना। उदा. कारगिल की लड़ाई में हमारे सैनिकों ने अपना जौहर दिखाया। 3. राजस्थान की एक प्रथा जिसके अनुसार राजपूत स्त्रियाँ शत्रु पक्ष की विजय निश्‍चित होने पर अपनी मर्यादा की रक्षा के लिए सामूहिक रूप से चिता में कूदकर प्राण त्याग देती थीं।

जौहरी - (पुं.) (अर.) - रत्‍नों की जाँच करने वाला; रत्‍नों का व्यापारी। वि. किसी भी व्यक्‍ति या वस्तु के गुण-दोषों को पहचानने वाला। पर्या. पारखी।

ज्यादती - (स्त्री.) (अर.) - 1. बहुत ज्यादा होने का भाव अधिकता। 2. अत्याचार, जुल्म। जैसे: तुमने उसके साथ ज्यादती की है। 3. जबरदस्ती।

ज्‍यादा - (वि.) (फा.) - अधिक, बहुत। विलो. कम

ज्यादातर - (वि.) (फा.) - 1. और अधिक। 2. और ज्यादा। 3. ज्यादा से भी ज्यादा। 4. अधिकतर। क्रि. वि. 1. प्राय: 2. बहुधा 3. अक्सर/अकसर।

ज्यामिति [ज्या=रेखा+मिति=मापन/यथार्थ ज्ञान] - (स्त्री.) (तत्.) - गणित की वह शाखा जिसमें पिंडों की नाप, रेखा, कोण, तल आदि के संबंध, गुणधर्म और माप संबंधी नियमों का अध्ययन किया है। पर्या. रेखागणित, geomatry

ज्येष्‍ठ - (वि.) (तत्.) - मूल अर्थ. सबसे बड़ा। सा.अर्थ उम्र या पद में बड़ा senior पुं. तत्. 1. भारतीय पंचांगानुसार बारह महीनों में तीसरा महीना, जेठ 2. पति का बड़ा भाई, जेठ

ज्येष्‍ठाधिकार - (पुं.) (तत्.) - संतानों में सबसे बड़ा होने के कारण मिलने वाला अधिकार। दे. ज्येष्‍ठ।

ज्यों क्रि.वि. - (वि.) (तद्.<यथा) - 1. जिस प्रकार, जिस तरह, जैसे: ज्यों-त्यों-जिस किसी प्रकार से, ज्यों का त्यों-जैसा है ठीक उसी प्रकार। 2. जिस समय, जिस क्षण। ज्यों-ज्यों-जैसे-जैसे, जिस क्रम में। 3. मानो, जैसे। उदा. इतना प्रकाश हो गया ज्यों दिन निकल आया हो।

ज्योति - (स्त्री.) (तत्.) - प्रकाश दीपक की लौ से उत्पन्न प्रकाश। 2. सूर्य/चंद्र की ज्योति। 3. देखने की शक्‍ति। जैसे: आँखों की ज्योति vision स्त्री. तद्. 1. देवता के सामने जलाया जाने वाला दीपक या किसी अन्य प्रकार का प्रकाश। 2. दीपक की लौ उत्‍पन्‍न प्रकाश 3. सूर्य, चंद्र की ज्‍योति 4. देखने की शक्‍ति। जैसे: आँखों की ज्‍योति।

ज्योतिर्विद [ज्‍योतिस्+विद्=जानकार] - (वि.) (तत्.) - ज्‍योतिष शास्‍त्र को जानने वाला; पुं. ज्‍योतिषी।

ज्योतिष - (पुं.) (तत्.) - वह विद्या जिसमें ग्रहों, नक्षत्रों की स्थिति, गति दूरी आदि का अध्ययन किया जाता है। यह दो प्रकार का है- गणित ज्योतिष astronomy तथा फलित ज्योतिष astrology उदा. ज्योतिष को वेद का नेत्र कहा जाता है। पर्या. खगोलशास्त्र।

ज्योतिषी - (पुं.) - ज्योतिष शास्त्र का ज्ञाता, दैवेज्ञ, खगोलशास्त्री।

ज्वलंत - (वि.) (तत्.) - शा.अर्थ 1. जलता या चमकत हुआ, प्रकाशमान। वि. अर्थ 2. स्वत: स्पष्‍ट (जिसे स्पष्‍ट करने की आवश्यकता न हो) जैसे: ज्वलंत उदाहरण (उदा. महाराणा प्रताप का सारा जीवन वीरता का ज्वलंत उदाहरण था)

ज्वलनशील - (वि.) (तत्.) - जो (आसानी से) जल सके, जलने योग्य। उदा. पेट्रोल अत्यंत ज्वलनशील पदार्थ है।

ज्वार-भाटा - (पुं.) (देश.) - भू. वि. चंद्रमा के गुरुत्वाकर्षण के कारण समुद्र के जल का ऊपर उठना (ज्वार) और फिर ऊपर से नीचे उतरना tide।

ज्वारीय ऊर्जा - (स्त्री.) (तत्.) - ज्वार से उत्पन्न ऊर्जा। टि. समुद्र के सँकरे मुँहाने में बाँध के निर्माण से इस ऊर्जा का विदोहन किया जाता है। इसका उपयोग बाँध में स्थापित ‘टरबाइन’ को घुमाने के लिए होता है।

ज्वारीय प्रोत्कर्ष - (पुं.) (तत्.) - चक्रवाती पवनों के वेग से सागर में बहुत ऊँची उठी ज्वारीय तंरगें। जिनके कारण तटीय क्षेत्रों में भयानक तबाही मच जाती है।

ज्वाला - (स्त्री.) (तत्.) - 1. आग की लपट या लौ। पर्या. अग्निशिखा flame 2. विष या ताप के प्रभाव से शरीर में महसूस की जाने वाली गरमी।

ज्वालामुखी - (पुं.) (तत्.) - भूपर्पटी का विवर जिसमें से तप्‍त शैल तथा अन्य पदार्थ बाहर निकलते हैं और बाहर निकले पदार्थों के ठंडे पड़ गए संचय से शंकुवत् पहाड़ी-सी बन जाती है। volcano

ज्ञ - -

ज्ञात - (वि.) (तत्.) - जिसके बारे में सब कुछ मालूम हो; जाना हुआ। पर्या. विदित। विलो. अज्ञात।

ज्ञान - (पुं.) (तत्.) - वस्तुओं को देखने या उनके बारे में समझने, सुनने आदि से उत्पन्न होने वाली मन की धारणा; बोध, जानकारी। knowledge

ज्ञान-विस्फोट - (पुं.) (तत्.) - (आधुनिक युग की) वह स्थिति जिसमें संचार-साधनों के वैश्‍विक प्रसार के फलस्वरूप हर बात की जानकारी क्षण-भर में सारे संसार में फैल जाती है।

ज्ञानी - (वि.) (तत्.) - 1. जिसे ज्ञान हो, ज्ञानवान। 2. जिसने आत्मज्ञान या ब्रह्मज्ञान प्राप्‍त कर लिया है। विलो. अज्ञानी।

ज्ञानेंद्रिय - (स्त्री.) (तत्.) - 1. बाह्य पदार्थों का बोध कराने वाली इंद्रिय। पाँच ज्ञानेद्रियाँ-आँख, नाक, कान, जिह्वा, (रसना) और त्वचा।

ज्ञानार्जन - (पुं.) - गहन अध्ययन के फलस्वरूप संबंधित विषय की पूरी जानकारी अर्जित (प्राप्‍त) करने की प्रक्रिया।

- -

झपटना अ.क्रि. - (देश.) - 1. तेजी से आगे बढ़ना 2. कुछ छीनने या आक्रमण करने के भाव से आगे बढ़ना उदा. बिल्ली चूहे पर झपटी।

झपट्टा - (पुं.) (तद्.) - 1. झपटने की क्रिया या भाव 2. आक्रमण करके किसी वस्‍तु को किसी के हाथ से जबदस्‍ती छीनने की क्रिया। मुहा. झपट् टा मारना-झटका देकर किसी वस्‍तु को ले लेना। पुं. देश. 1. अचानक झपटने की क्षणिक क्रिया। 2. शत्रु को अवसर न देते हुए अचानक तेजी से आक्रमण या छीनने की क्रिया। उदा. चील ने झपट्टा मारा और चुहिया को ले उड़ी।

झब्‍बा - (पुं.) (देश.) - छोटे बच्‍चों का ढीला-ढाला फ्रॉकनुमा पहनावा। पर्या. झबला।

झमेला - (पुं.) (देश.) - 1. ऐसी समस्‍या, जिसके कई पहलू हों और जिसे सुलझाना कठिन कार्य लगे। पर्या. झंझट, बखेड़ा 2. झगड़ा, टंटा।

झरना अ.क्रि. - (तद्.<क्षरण) (दे.) - 1. झड़ना 2. पानी का बूँद-बूँद कर लगातार गिरना। पुं. तद्. <झरण प्रा.<क्षरण) 1. पहाड़ की ऊँचाई से गिरने वाली पानी की प्राकृतिक या कृत्रिम धारा 2. लगातार गिरने वाला पानी का प्रवाह, सोता, चश्‍मा 3. अनाज छानने की बड़ी छलनी। 4. रसोईघर में प्रयुक्‍त बड़ा पोना।

झरोखा - (पुं.) (तद्.) - सूर्य की किरणों (धूप) के कमरे में प्रवेश करने का स्‍थान; जालीदार खिड़की। पर्या. गवाक्ष, वातायन

झलक - (स्त्री.) (तद्.) - 1. किसी भी आकृति का आभास या प्रतिबिंब मात्र 2. क्षण्‍मात्र किसी वस्‍तु के दिखलाई पड़ने की अवस्‍था। 3. चमक, द् युति। मुहा. झलक दिखलाना

झलकना अ.क्रि - (तद्.) - किसी माध्यम (जैसे: जल, बादल या वस्त्रावरण) से होकर किसी दृश्यमान वस्तु का दिखाई पड़ना, चमकना। 2. कुछ-कुछ दिखने का आभास होना, क्षणमात्र के लिए दिखना।

झल्लाना अ.क्रि - (तद्.झल < ज्वाल) - खीझकर या क्रोधित होकर बोलना, क्रोध या गुस्सा करना।

झाँकना अ.क्रि - (देश.) - 1. किसी आड़ के पीछे रहकर चुपके से/गुप्‍त रूप से देखना। 2. रहस्य जानने के लिए कुछ झुककर अंदर की ओर देखना।

झाँकी - (स्त्री.) (देश.) - 1. किसी देवमूर्ति का स्वरूप जिसका भली-भाँति शृंगार किया गया हो। 2. किसी विशेष विषय-वस्तु को ध्यान में रखकर प्रदर्शनार्थ सजाकर प्रस्तुत की गई सचल या अचल आकृति। जैस: छब्बीस जनवरी की झाँकियाँ। 3. किसी विशेष कार्यक्रम का परिचय देने के लिए प्रस्तुत निदर्शन। जैसे: वार्षिकोत्सव की चित्रात्मक झाँकी।

झाँसा - (पुं.) (तद्.<अध्यास) - 1. बड़ी चतुराई (या कपट) भरी बातों में बहकाकर दिया गया धोखा। उदा. मैं उसके झाँसे में आ गया इससे मुझे काफी नुकसान उठाना पड़ा। 2. किसी को चातुर्य भरी बातों से बहा कर फिर अपने वादे से मुकर जाना।

झाड़ - (पुं.) (तद्.<झाट) - 1. पादप का एक प्रकार जो वृक्ष से आकार में छोटा होता है यानी जिसका काष्‍ठिल तना पतला होता है और टहनियाँ जमीन के आसपास से ही फूटने लगती हैं। shrub स्त्री. झाड़ी। 2. छाड़ के आकार की तरह फैला छत से लटकाया जाने वाला दीपाधार, झाडफ़ानूस। 2. स्त्री. (<झाड़ना) 1. झाड़ने की क्रिया या भाव। उदा. सफाई कर्मचारी ने सारे खिडक़ी दरवाजे़ झाड़ दिये। 2. मंत्र से रोग, भूत-प्रेतादि उतारने का काम। तांत्रिक की झाड़ से बच्चे का बुखार ठीक हो गया। 3. डाँट-फटकार। उदा. आज अधिकारी ने विलंब से आने वाले कर्मचारियों को झाड़ पिलाई/लगाई।

झाड़-झंखाड़ - (पुं.) (देश.) - 1. काँटेदार पेड़ों या झाडि़यों का समूह। 2. व्यर्थ के पेड़-पौधे। 3. टूटी-फूटी और रद् दी वस्तुओं का समूह।

झाड़न - (पुं.) (तद्.) - 1. धूल-मिट् टी साफ़ करने के काम आने वाला कपड़ा, झाड़ू या बुरुश। 2. सफाई करने के बाद इकट्ठी हुई धूल मिट् टी।

झाड़ना स.कि. - (तद्.) - 1. किसी वस्तु पर पड़ी हुई धूल इत्यादि झटके से हटाना। जैसे: कपड़े झाड़ना। 2. अपने आपको वास्तविक योग्यता से अधिक प्रदर्शित करना। जैसे: बातें झाड़ना। 3. किसी को खरी-खोटी सुनाना ताकि उसका अहंकार झड़ जाए। जैसे: मैंने उसे खूब झाड़ पिलाई। 4. किसी से धन आदि ऐंठना। जैसे: उसने मुझसे बातों-बातों में ही सौ रुपए झाड़ लिए। 5. प्रेत बाधा इत्यादि दूर करने के लिए मंत्रों का प्रयोग करना।

झाड़ी - (स्त्री.) (तद्.) - 1. छोटे झाड या पौधे 2. छोटे-छोटे पौधों का समूह जो घने रूप में उगते हैं। पर्या. क्षुप

झाड़ीभूमि - (स्त्री.) (तद्.) - वह भूक्षेत्र जहाँ कँटीली झाडि़यों का आधिक्य (की अधिकता) हो।

झाड़ू - (पुं.) (देश.< झाड़ना) - लंबी सीकों या रेशों आदि का बना हुआ उपकरण जिससे ज़मीन, फर्श, दीवार आदि झाड़ते हैं पर्या. कूँचा, बुहारी।

झाबर - (पुं.) (देश.) - 1. वह ज़मीन जो कीचड़ से युक्‍त या दलदली होती है। 2. खादर। 3. बड़ा टोकरा, खाँचा, झाबा। टि. ग्रामीण प्रयोग।

झामर - (पुं.) (देश.) - स्त्रियों के पैरों में पहनने का पायल की तरह का चाँदी का एक आभूषण।

झालर - (स्त्री.) (तद्.<झल्लरी) - 1. लंबी लड़ी 2. किसी चादर। जैसे: साड़ी, परदे, चौखट आदि के किनारे पर शोभा बढ़ाने के लिए लगाई गई लटकने वाली कलात्मक और रंग बिरंगी पट् टी। frill

झिझक - (स्त्री.) (देश.< झझक(ना)) - शर्म या भय आदि के कारण होने वाला संकोच या हिचकिचाहट। मुहा. झिझक खुलना – एक बार कुछ कर गुजरने (जैसे: पानी में कूदना, तैरना, हिंदीतर भाषियों द्वारा सरकारी काम में हिंदी का प्रयोग करने आदि) के बाद दुबारा-तिबारा वैसा ही काम करने में भय या संकोच का दूर हो जाना।

झिडक़ी - (स्त्री.) (देश.) - 1. झिड़कने की क्रिया या भाव। 2. क्रोधपूर्वक कही हुई अपमानजनक कड़वी बात। मुहा. झिड़ेकी खाना – झिड़की सुनना। उदा. कार्य में लापरवाही की वजह से उसे साहब की झिड़की खानी पड़ी।

झिलमिलाना - - अ.क्रि. (अनु.) आधार के हिलने के कारण उससे प्रतिबिंबित प्रकाश का रह-रहकर चमकना। लौ का झिलमिलाना; तारों का झिलमिलाना।

झींगुर - (पुं.) (देश.-अनुरण.) - एक छोटा बरसाती कीड़ा, जो झाड़ पर बैठकर झीं-झीं की ध्वनि करता है। पर्या. झिल्ली।

झील - (स्त्री.) (तद्.) - आकार में बड़ा प्राकृतिक जलाशय जिसमें मुख्यत: वर्षा और नदी-नालों का जल संचित होता रहता है। पर्या. तालाब, सरोवर।

झुंड - (पुं.) (तद्.) - मनुष्यों, पशुओं आदि का समूह। टि. एकवचन में प्रयोग होता है। हिंदी भाषा में अलग-अलग विषयों, प्राणियों, वस्तुओं पर आधारित अनेक समूहवाचक शब्द हैं। जैसे: टोली, जत्था, बेड़ा, रेवड़, गुच्छा, वृंद आदि।

झुँझलाना अ.क्रि - (देश.) - किसी कार्य के बिगड़ जाने के कारण मूलत: स्वयं पर क्रोधित होना परंतु प्रत्यक्ष में दूसरों पर क्रोध उतारना। पर्या. खीझना, चिड़चिड़ाना।

झुकना अ.क्रि - (देश.) - 1. किसी वस्तु की लंबवत स्थिति का किसी दिशा में थोड़ा आगे दिखाई पड़ना। जैसे: मीनार दाहिनी ओर कुछ झुक गई है। bend 2. किसी के प्रति आदर से नतमस्तक होना। 3. मन की प्रवृत्‍ति, लगाव। 4. पक्षपात का भाव। 5. हीन भावना से ग्रस्त होकर समर्पण करना।

झुकाव - (पुं.) (देश.) - 1. झुकने की स्थिति का सूचक। 2. झुकने का परिमाण (अंशों में) दे. झुकना।

झुग्गी - (स्त्री.) (देश.) - दे. झोंपड़ी।

झुटपुटा - (पुं.) (देश.) - सायंकाल का वह समय जब कुछ-कुछ अँधेरा हो तथा कुछ-कुछ उजाला हो और ऐसी स्थिति में स्पष्‍ट दिखाई न दे। twilight टि. उपर्युक्‍त स्थिति सूर्योदय से पहले (तड़के) भी होती है। किंतु भाषा में इस स्थिति के लिए ‘झुटपटे’ का प्रयोग होता नहीं सुना गया।

झुठलाना स.क्रि. - (देश.) - सच्चे को झूठा बताना सच्चाई को मानने से इनकार करना।

झुनझुनी - (स्त्री.) (देश.) - रक्‍त वाहिकाओं में रक्‍त का प्रवाह रुक-सा जाने के कारण हाथ-पैरों में अनुभव की जाने वाली सनसनी; हाथ-पैर सो जाना।

झुरमुट - (पुं.) (तद्.< सं झुंट = झाडि़याँ + मुष्‍ट = घासपात) - पास-पास उगे और एक-दूसरे से सटे छोटे आकार के पादपों (झाड़ियों का समूह)

झुर्री - (स्त्री.) (देश.) - वृद्धावस्था या अन्य कारणों से शरीर की त्वचा पर दिखाई पड़ने वाली सिकुड़न। पर्या. शिकन टि. इस शब्द का प्राय: बहुवचन (झुर्रियाँ) में ही प्रयोग होता है।

झुलसना अ.क्रि. - (तद्.<ज्वलन) - (स.क्रि. झुलसाना) आग के ताप या तेज़ धूप के प्रभाव से त्वचा का हल्का-सा काला पड़ जाना। उदा. 1. खाना पकाते समय उसका हाथ झुलस गया। 2. बाहर झुलसा देने वाली धूप है।

झूठ - (पुं.) (तद्.<जुष्‍ट) - किसी सही या यथार्थ बात की विपरीत स्थिति का सूचक भाव। पर्या. असत्य (कथन)। विलो. सच, सचाई।

झूठन - (स्त्री.) (देश.) - 1. भोजन करने के बाद शेष बचा रह गया या छोड़ दिया गया पदार्थ। पर्या. उच्छिष्‍ट 2. ला.अर्थ (साहित्य) जिसमें कथन तक की मौलिकता या नवीनता न हो और साफ़ तौर पर दूसरे की पुनरावृत्‍ति लगे।

झूठमूठ (क्रि.वि.) - (वि.) - [हि. झूठ + अनुक. मूठ] बिना किसी वास्तविक आधार के झूठ जैसी। उदा. मैंने तो तुम्हें झूठमूठ ही कहा था कि कल स्कूल में छुट्टी है।

झूठा - (वि.) (तद्.) - 1. जो सच न हो। 2. (व्यक्‍ति) जो सच न बोले। 2. पुं. झूठन।

झूम खेती/कृषि - (स्त्री.) (देश.) - परंपरागत कृषि का एक प्रकार जिसमें स्थान बदलकर या उपज बदल-बदल कर खेती की जाती है।

झूमना अ.क्रि. - (देश.< झंप) - 1. बार-बार किसी दिशा में आगे-पीछे या ऊपर-नीचे हिलना। जैसे: तेज हवा के प्रभाव से फसल झूमने लगती है। 2. नशे या मस्ती में अथवा मानसिक विकृति के कारण शरीर का संतुलन खो देना और इस कारण बार-बार हिलना। उदा. शराबी झूमते हुए जा रहा था।

झूमर - (पुं.) (देश.) - 1. स्त्रियों के सिर में माथे में धारण करने का एक गहना। झुमका। 2. एक प्रकार का नृत्य जिसमें ग्रामीण स्त्रियाँ एक दल के रूप में झूमती हुई नृत्य करती हैं। 3. उक्‍त नृत्य पर आधारित गेय गीत।

झूल - (स्त्री.) (देश.< झूला) - शा.अर्थ झूले की तरह लटकने की स्थिति; झूलती हुई वस्तु। रंग-बिरंगा अथवा अलंकृत वस्त्र जो प्राय: शोभा के लिए घोड़ों, बैलों हाथियों की पीठ पर डाला जाता है और जो दाएँ-बाएँ लटकता रहता है।

झूलना अ.क्रि - (तद्.< दोलन) - 1. किसी लटकती वस्तु का एक दिशा से दूसरी दिशा में हिलना डुलना। 2. किसी लटकती वस्तु के सहारे से एक दिशा से दूसरी दिशा के दो छोरों तक बार-बार जाना-आना; पेंग भरना। जैसे: झूला-झूलना। 3. ला.अर्थ विचारों में अस्थिरता का होना और सही निर्णय पर न पहुँच पाना।

झूला - (पुं.) (देश.< झूलना) - वह साधन जिस पर बैठकर झूलते हैं। पर्या. हिंडोला। दे. झूलना।

झेंपना अ.क्रि. - (देश.) - लज्जित होना, शरमाना।

झेलना स.क्रि. - (तद्.<क्ष्वेलन) - 1. सहना, बरदाश्त करना। 2. किसी भार को अपने ऊपर लेना।

झोंकना स.क्रि. - (देश.) - 1. जलाने के लिए किसी वस्तु को आग में बलपूर्वक डालना या फेंकना। 2. किसी खतरे के कार्य में स्वयं को या किसी अन्य को डाल देना। मुहा. भाड़ झोंकना व्यर्थ के कार्य करना।

झोंका - (पुं.) (देश.) - एक तरह का धक्का या झटका जो हिला दे। उदा. वर्षा का एक झोंका आया और सबको गीला कर गया।

झोंपड़पट्टी - (स्त्री.) (देश.) - बहुत ही गरीब और मजदूर वर्ग के लोगों के रहने के लिए पास-पास बनी झोंपड़ियों की प्राय: (अस्वास्थ्य कर) गंदी बस्ती। पर्या. गंदी बस्ती slum

झोंपड़ी - (स्त्री.) (देश.) - कच्ची मिट्टी की छोटी दीवारों वाला घास-फूस का छोटा-सा आवास। पर्या. कुटी, कुटिया, पर्णशाला। पुं. झोपड़ा (i) कुछ बड़ी झोंपड़ी; (ii) विनम्रता सूचक या अवहेलना के अर्थ में किसी भी आवास के लिए प्रयुक्‍त शब्द। जैसे: मैंने भी जनकपुरी में एक झोंपड़ी/झोंपड़ा बना ली/लिया है। विलो. महल।

झोला - (पुं.) (देश.) - कपड़े, टाट इत्यादि से बना थैला जो हाथ में या कंधे पर लटकाया जाता है तथा आवश्यक सामान इसमें रखकर इधर-उधर ले जाया जाता है। स्त्री. झोली – छोटे आकार का झोला) पदबंध झोला छाप झॉक्टर-कम ज्ञान रखने वाले और अपने आपको डॉक्टर कहने वाले लोग (जो कंधे पर दवाइयों का झोला टाँगकर चिकित्सा करते घूमते हैं)।