विक्षनरी:हिन्दी लघु परिभाषा कोश/फ-ब-भ

विक्षनरी से

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फंतासी - (स्त्री.) - (अंग्रेजी शब्द ‘फैंटेसी’ का हिंदी में अनुकूलित रूप) मनोरंजन पर काल्पनिक रचना। जैसे: पंचतंत्र की कथाएँ।

फंदा - (पुं.) (तद्) - (बंध/अर. फंद) 1. किसी को बाँधने या फँसाने के लिए बनाया गया सरकने वाली गाँठ वाला रस्सी आदि का घेरा; जैसे: फाँसी का फंदा। पशु-पक्षियों को पकड़ने के लिए बनाया गया जाल, फाँस।

फँसना - - अ.क्रि. (हिं.फाँस) बंधन में पड़ जाना; उलझना। जैसे: काँटों में फँसना दलदल में फँसना; चंगुल में फँसना आदि।

फक - (वि.) (अर.फक) - फक) जिसकी रंगत बिगड़ गई हो। पर्या. विवर्ण, निष्प्रभ, निस्तेज। उदा. पुलिस को देखते ही उसका चेहरा फक हो गया।

फकत - (वि.) (अर.) - केवल, सिर्फ। उदा. सब सूरते लंगूर, फकत दुम की कसर है।

फकीर - (पुं.) (अर.) - 1. मुलसमान साधु जो भीख माँगकर गुजर-बसर करता है। 2. ला.प्रयोग व्यक्‍ति जिसकी आय का साधन बहुत सीमित हो फिर भी खर्च करने में कोताही न बरते; बहुत ही गरीब व्यक्‍ति।

फक्कड़ - (वि.) - (देश(फाका) 1. निर्धनता की स्थिति के बावजूद भी मस्त रहने वाला मनमानी। 2. चिंता रहति प्रकृति वाला। care-free 2. प्रकृति वाला।

फगुआ - (पुं.) - (देश फाग(फाल्गुन) 1. फाल्गुन मास में होने वाला राग-रंग, होली का त्यौहार, होली, फाग। 2. होली के अवसर पर गाए जाने वाले गीत।

फजीहत - (स्त्री.) (अर.) - अपमान, बदनामी, बेइज्जती; दुर्दशा, दुर्गति की मिलीजुली भावना का सूचक शब्द। उदा. तुम अपनी फजीहत करवाने पर क्यों तुले हो? मुहा. थुक्का फजीहत = दो पक्षों के बीच की ऐसी कहा-सुनी जिसे देख और सुनकर लोगबाग दोनों पक्षों की थू-थू करें और उनकी बदनामी खूब फैल जाए।

फजूल खर्च/फिजूल/फुजूल - (वि.) - (फार.) बहुत अधिक खर्च करने वाला; अनावश्यक खर्च करने वाला, अपव्ययी।

फजूलखर्ची - (स्त्री.) - (फ़ार.) अनावश्यक खर्च करने की आदत या स्वभाव।

फटकना - - स.क्रि. (फटे की आवाज.) सूप आदि से अनुरणन कर ‘फट’-‘फट’ की ध्वनि करते हुए दानों और भूसे या कूड़े को अलग करने की सफाई की क्रिया।

फटकार - (स्त्री.) - 1. किसी वस्तु (जैसे: कपड़े, कोड़े आदि) को हाथ झटककर तेजी से इस तरह हिलाना कि उससे ‘फट’ जैसी आवाज निकले। जैसे: 1. धोबी कपड़े फटकारता है। 2. थोड़ा फटकारना। 2. किसी को लज्जित करने के लिए क्रोध में कही गई बात, झिडक़ी, भर्त्सना।

फटकारना स.क्रि. - (तत्.) (दे.) - 1 फटकार 2. किसी को लज्जित करने के लिए क्रोध में भला-बुरा कहना, किसी को डॉटना। दे. फटकार 1 3. झटका देकर छितराना या खुला रखना, चुटिया। जैसे: बाल फटकारना।

फटना अ.क्रि. - (तद्.) - (स्फटन) किसी वस्तु के सपाट तल में दरार पड़ जाना। विदीर्ण होना। उदा. उसका कुर्ता फट गया; धरती फट गई और सीताजी उसमें समा गई; दूध फट गया; बादल फट गए, दिल फट गया।

फटिक - (पुं.) (तद्.स्फटिक) - संग-मरमर; सफेद पारदर्शी पत्थर। फिटकिरी दे. स्फटिक।

फटीचर - (वि.) (देश.) - फटे-पुराने कपड़े पहने हुए, दीन-हीन हालत वाला। उदा. फटीचर हालत में कहाँ घूमते फिर रहे हो।

फड़कना अ.क्रि. - (देश.) - अनुरणन। रुक-रुक कर कंपित होना, चलायमान होना। जैसे-आँख का फडक़ना; भुजाओं का फडक़ना।

फड़फ़ड़ाना - - अ.क्रि. (‘फड़-फड़’अनुरण.) 1. फड़-फड़ शब्द करना या होना। 2. पंखों को इस प्रकार हिलाना कि ‘फड़-फड़’ की ध्वनि सुनाई पड़े। 3. छटपटाना-किसी समस्या से बच निकलने के लिए बेचैन होना।

फण/फन - (पुं.) (तत्.) - साँप का फन।

फतवा - (पुं.) (अर.) - (खासकर इस्लामी मजहब में) किसी धार्मिक या सामाजिक विषय पर धार्मिक न्यायकर्ता (मौलवी) द्वारा जारी की गई निर्णयात्मक व्यवस्था।

फतह - (स्त्री.) (अर.) - विजय, जीत; सफलता। जैसे: किले को फतह करना। फतह का डंका-जीत की खुशी।

फन - (पुं.) (तद्.फण) - 1. साँप का सिर जब वह फैल जाता है। 2. अर. (फन) (1) गुण, विद् या, कौशल, हुनर। जैसे: 1. फनकार = कलाकार। 2. हरफन मौला = हर काम करने में होशियार।

फफकना - - अ.क्रि. (अनु.) मुख से रुक-रुक विस्फोटक ध्वनि निकालते हुए रोना। उदा. अग्निकांड में सब कुछ स्वाहा हो जाने पर वह महिला फफक-फफक कर रो रही थी।

फफूँद/फफूँदी - (स्त्री.) - (देश) 1. लकड़ी, फल आदि पर बरसात या सीलन के कारण जमने वाली सफेद काई जैसा पदार्थ। टि. ये अति सूक्ष्म जीव होते हैं। पर्या. कवकवृद्धि।

फबती - (स्त्री.) (अर.) - (फबना) 1. ऐसी कोई चुटकी या व्यंग्योक्‍ति जो व्यक्‍ति विशेष पर ठीक-ठीक आरोपित लगे। मुहा. फबती कसना = व्यंग्यपूर्ण बात करना।

फबना अ.क्रि. - (अर.) - सुंदर लगना, मन को सुहावना लगना। उदा. तुम पर यह नया सूट खूब फब रहा है।

फरजी/फर्जी - (वि.) (.फा.) - शा.अर्थ फर्ज किया हुआ, माना हुआ। सा.अर्थ बनावटी, नकली; काल्पनिक। पुं. शतरंज का मोहरा, जिसे वजीर कहते हैं।

फरमाइश - (स्त्री.) (.फा.) - (किसी चीज को लाने या बनवाने के लिए विशेष रूप से प्रयुक्‍त) आज्ञासूचक शब्द। demand

फरमान - (पुं.) (.फा.) - 1. राजा या सरकार का आदेश। 2. वह कागज-पत्र आदि जिस पर उक्‍त आदेश लिखा गया हो। पर्या. राजाज्ञा, राज्यादेश।

फरमाना - - क्रि. (फा. (फरमान) आज्ञा देना, कहना। टि. छोटा व्यक्‍ति बड़े व्यक्‍ति को आदरपूर्वक प्राय: कहता है-(1) फरमाइए। 2. आप क्या फरमा रहे थे?

फरार - (वि.) (.फा.) - 1. किये गये किसी अपराध के दंड के भय से जो भाग गया हो, या ऐसे स्थान पर छिप गया हो जिससे उसका पता ही न चल सके। जैसे: फरार अपराधी। 2. सजा प्राप्‍त या जेल में बंद वह या वे कैदी जो उस सजा से बचने के लिए पुलिस के संरक्षण से किसी तरह भाग निकले हों। जैसे: तिहाड़ जेल से दो कैदी फरार हो गए।

फरियाद - (स्त्री.) (.फा.) - 1. अपने साथ हुए अन्याय, अत्याचार आदि के निवारण के लिए की गई सहायता सूचक प्रार्थना। 2. शिकायत।

फरियादी - (वि./पुं.) (.फा.) - 1. फरियाद करने वाला; प्रार्थी। 2. शिकायतकर्ता।

फरिश्ता - (पुं.) (.फा.) - 1. (मुसलमानों के विश्‍वासानुसार) ईश्‍वर का दूत। पर्या. देवदूत। जो उनकी आज्ञा के अनुसार काम करता हो, जैसे: मौत का फरिश्ता। 2. लोक का कल्याण करने वाला महापुरुष।

फरेब - (पुं.) (.फा.) - किसी विषय में किया गया कपटपूर्ण कार्य। पर्या. चाल, धोखा, कपट, छल।

फरेबी - (वि.) (.फा.) - छल-कपट करने वाला, धोखेबाज, कपटी। उदा. फरेबी लोगों से दूर रहना चाहिए।

फरोख्त - (स्त्री.) (अर.) - किसी वस्तु को बाजार में बेचे जाने की क्रिया जिससे सामान्य स्थिति में मुनाफा हो। पर्या. बिक्री। विलो. खरीद।

फर्क/फरक - (पुं.) (अर.) - 1. भेद, अंतर। उदा. मनुष्य और पशु में फरक है। 2. अलगाव। उदा. घोड़े और गधे में फरक करना कठिन नहीं है।

फर्ज - (पुं.) (अर.) - 1. कर्त्तव्य, जिम्मेदारी, कर्म duty उदा. मैंने अपना फर्ज अदा किया है। विलो. हक। 2. (वास्तविकता न होने के बावजूद) मान लिजिए। जैसे: फर्ज कीजिए आप प्रधानमंत्री हैं। तो आप देश के लिए पहला काम क्या करना चाहेंगे?

फर्जी - (वि.) (फा.) - 1. नकली, कृत्रिम, जाली। जैसे: जाँच में बहुत से फर्जी राशनकार्ड पकड़े गए। 2. माना हुआ कल्पित। पुं. शतरंज के खेल में ‘वजीर’ नामक मोहरा।

फर्नीचर - (पुं.) - (अं.) घर का साजो-सामान। जैसे: मेज, कुर्सी, खाने की मेज, अलमारी आदि-आदि।

फर्राटा - (पुं.) (देश.अनुर.) - फर-फर की ध्वनि करते हुए तेजी से दौड़ने की क्रिया या भाव। जैसे: फर्राटा दौड़, धारावत् प्रवाह। उदा. वह फर्राटे से संस्कृत बोलता हैं।

फर्लांग - (पुं.) - (अं.) ब्रिटिश माप-तौल के अनुसार 22 गज (लगभग 2 मीटर) की लंबाई। टि. आठ फर्लांग = एक मील।

फर्श/फर्शी - (पुं.) (अर.) - 1. किसी कमरे का नीचे वाला समतल भाग जिस पर वहाँ रहने वाले लोग खड़े होते हैं और घर का सामान रखते हैं। floor 2. उपर्युक्‍त समतल भाग पर बिछाया गया कालीन, दरी आदि।

फल - (पुं.) (तत्.) - 1. वन वृक्ष की टहनी पर लगने वाली वह गूदेदार वस्तु जिसे प्राय: खाया जाता है। fruit 2. अच्छा या बुरा परिणाम, नतीजा। result 3. चाकू, छुरी, तलवार आदि का लंबाई में धारदार भाग जो काटने का काम करता है। blade

फलक - (पुं.) (तत्.) - लकड़ी धातु, पत्थर या गत्‍ते की लंबी-चौड़ी पट्टी, पटल जो मढ़ने के काम आती है।

फलदार [फल+दार = वाला] - (वि.) - 1. (वृक्ष) जिस पर फल लगते हैं या लगे हैं। जैसे : फलदार वृक्ष।

फलना अ.क्रि. - (तद्.(फलन) - 1. फलयुक्‍त होना या फल देना। 2. इच्छापूर्ति होना। 3. शुभ परिणाम होना।

फलना-फूलना अ.क्रि. - (तद्.) - निरंतर विकास या उन्नति होते रहना। उदा. पढ़ा-लिखा होने के कारण वह परिवार खूब फल-फूल रहा है।)

फलसफा - (पुं.) (अर.) - ‘फिलोसोफी’ का अरबी पर्याय।

फलस्वरूप [फल+स्वरूप] - (अव्य.) (तत्.) - किसी कार्य के फल परिणाम के रूप में। उदा. उसने चोरी की, फलस्वरूप जेल जाना पड़ा। पर्या. परिणामस्वरूप।

फलाँ/फलाना - (वि.) - (अरं-फलाँ) अमुक, फलाँ। जैसे: मेरा मित्र कहता है कि फलाना आदमी विश्‍वसनीय नहीं है। 2. इस उत्सव में फलाँ-फलाँ नेता आएँगे।

फलाँग - (स्त्री.) (तद्.) - (प्रलंघन) एक जगह से उछलकर दूसरी जगह उतरने तक की दूरी। पर्या. छलाँग।

फलाँगना अक्रि. - (तद्.) - (प्रलंघन) एक जगह से उछलकर आगे कुछ दूरी पर उतरने की क्रिया। तुल. लाँघना = लंबाई के साथ ऊँचाई भी पार करना।

फलाहार [फल+आहार] - (पुं.) (तत्.) - 1. फलों का आहार अर्थात् केवल फल या कंद मूल आदि का भोजन यानी जिसमें अन्‍न से बना खाद्य पदार्थ वर्जित हो। उदा. एकादर्शी के दिन लोग फलाहार लेते हैं।

फली - (स्त्री.) (तद्.) - (प्रा. फालि (सं. फलिन्) पादपों (पेड़-पौधों और लताओं) पर लगने वाला दानों (बीजों) से युक्‍त स्फुटनशील फल जो एक ही स्त्री केसर से परिवर्धित होता है और परिपक्व हो जाने पर दोनों ही सीवनों पर लंबाई दो बराबर भागों में फट जाता है। उदा. मटर की फली। legume, pod

फलीता - (पुं.) (दे.) - ‘पलीता’।

फलीदार - (वि.) ([तद्.+फा.] ) - (पादप) जिस पर फलियाँ लगती हों या लगी हों। फली वाला; फली युक्‍त।

फलोद्यान - (पुं.) (तत्.) - [फल+उद्यान] 1. ऐसा बगीचा जिसमें फलदार वृक्ष अधिक हों। 2. फलों के उत्पादन के लिए लगाया गया उद् यान। 3. फलों का बाग।

फव्वारा/फौवारा/फुहारा - (पुं.) (अर.) - 1. वह उपकरण, जिससे दबाव के कारण पानी ऊपर उछाला जाता है और वह चारों ओर बिखर कर नीचे गिरता है। 2. इस प्रकार उछाले हुए पानी की धार या छींटे। फाउंटेन पर्या. फुहार। जैसे: फव्वारा सिंचाई।

फसल - (स्त्री.) (अर.) - 1. खेती से होने वाली पैदावार, उपज। उदा. इस बार गेहूँ की फसल अच्छी हुई है, पर आम की फसल बिगड़ गई। 2. खेत में खड़े पौधे जिनसे भविष्य में उपज मिलेगी। उदा. तुम्हारे खेत में कौन-सी फसल खड़ी है?

फसल चक्रण - (पुं.) (अर.+तत्.) - शा. अर्थ एक फसल के बाद दूसरी और दूसरी के बाद तीसरी फसल उगाने का उचित क्रम।

फसाद - (पुं.) (अर.) - शांति-भंग की स्थिति उपद्रव/दंगा, सार्वजनिक स्थल पर आपसी लड़ाई झगड़े से पैदा हुई स्‍थिति। उदा. आज बाजार में पुलिस के आने से फसाद होते-होते बचा।

फसादी - (वि.) - दंगा भड़काने वाला (समूह), उपद्रवी।

फहराना स.क्रि. - (तद्.प्रसारण) - किसी कपड़े को एक ओर से हाथ में पकडक़र शेष भाग को हवा की अनुकूल दिशा में लहराना/उड़ाना या उड़ने देना। जैसे: झंडा फहराना।

फाँकना स.क्रि. - (देश.) - दाने या चूर्ण को हथेली में रखकर सीधे मुख में इस तरह से डालना कि वह वस्तु होठों पर न लगे/ न चिपके। मुहा. धूल फाँकना = इस तरह से मारे-मारे फिरना या भटकना कि सारा शरीर धूल-मिट्टी से सन जाए और काम भी इच्छानुकूल पूरा न हो।

फाँदना अक्रि. - (तद्.) (तत्.) - (प्रा. फंद स्पंद) एक स्थान से उछलकर किसी बाधा की ऊँचाई को पार करते हुए दूसरी ओर उतरना। टि. फाँदने में ‘ऊँचाई’ को पार करने का महत्‍व है; न कि उसकी चौड़ाई बताने का (जो कि छलाँग में अपेक्षित है)। जैसे: दीवार लाँघना।

फाँस - (स्त्री.) (तद्.पाश) - 1. रस्सी का बना सरकती गाँठ वाला फंदा जिसमें पक्षियों, पशुओं को फँसाया जाता है। पर्या. फंदा। 2. बाँस आदि का पतला/बारीक नुकीला टुकड़ा जो शरीर में चुभ जाए। 3. मन में चुभने वाली बात। उदा. तुम्हारे मन में कौन-सी फाँस अटकी पड़ी है?

फाँसी - (स्त्री.) (तद्) - (पाश.) मृत्युदंड के कार्यान्वयन का एक तरीका जिसमें सिद्धदोष व्यक्‍ति के गले में फंदा डालकर उसको मृत्युपर्यंत लटका रहने दिया जाता है।

फाका - (पुं.) (अर.) - 1. निराहार रहने/कुछ न खाने की कष्‍टप्रद स्थिति।

फाकाकशी - (स्त्री.) (अर.) - दे. फाका।

फाकामस्त - (वि.) (अर.) - जीवन-निर्वाह के साधनों के नितांत अभाव में भी मस्त रहने वाला; गरीबी की हालत में भी खुश रहने वाला।

फाकामस्ती - (स्त्री.) (फा.) - व्यु.अर्थ फाका करने (यानी खाने को कुछ न मिलने) के बावजूद मस्त रहने ‘फाकेमस्त’ रहने का स्वभाव यानी परवाह न करने की स्थिति। दे. फाकेमस्त।

फाख्ता - (स्त्री.) (अर.) - 1. एक छोटी चिड़िया, पंडुक। मुहा. फाख्ता उड़ाना = गुलछर्रे उड़ाना, मौज करना।

फाग - (पुं.) - (हि. फागुन) 1. होली के त्योहार के अवसर पर गाया जाने वाला गीत। 2. फाल्गुन मास में मनाया जाने वाला रंगों का त्योहार।

फाड़ना स.क्रि. - (तद्.) - (स्फाटना) 1. किसी पूर्ण वस्तु के दो या अधिक (असमान) टुकड़े करना, चीरना। जैसे: 1. कागज/कपड़ा/लकड़ी आदि फाड़ना। 2. दूध में खटाई का अंश डाल कर उसके जलीय एवं ठोस भाग को अलग-अलग करना। 2. (मुँह या आँख को) सामान्य स्थिति से अधिक खोलना। उदा. तुम आँखें फाड़-फाड़ कर मुझे क्यों देख रहे हो? मुँह फाड़कर इस तरह न बैठो, नहीं तो मक्खियाँ मुँह में घुस जाएंगीं।

फानूस - (पुं.) - (फार.) 1. छत से लटकते डंडे के चारों ओर लगे हुए शीशे के गिलास आदि (जो झाड़ की तरह लगते हैं और) जिसमें मोमबत्‍तियाँ, बल्ब आदि जलाए जाते हैं। पर्या. झाड़ फानूस। chandelier

फायदा - (पुं.) (अर.) - लाभ, नफा।

फायदेमंद - (वि.) (अर.) - +फा.) लाभदायक, हितकर; उपयोगी।

फारम - (पुं.) - (अं.) 1. किसी अभिलेख का वह छपा हुआ नमूना जिसमें आवश्यक जानकारी देने के लिए रिक्‍त स्थान बने होते हैं और आवेदक उनकी पूर्ति करके उसे विचारार्थ प्रस्तुत करता है। पर्या. प्रपत्र। 2. फार्म खेती, पशु-पालन आदि के लिए जमीन का बड़ा टुकड़ा, भाग।

फाल - (पुं.) (तद्.) - लोहे की एक मजबूत तिकोनी पत्‍ती जो हल के मुख्य भाग से जुड़ी होती है। यह पत्‍ती मिट्टी को उलटने-पलटने का कार्य करती है।

फावड़ा - (पुं.) (देश.) - मोटी और सख्त लोहे की चद्दर का बना चौड़े आकार का और लकड़ी का हत्था लगा मिट्टी खोदने तथा खोदी हुई मिट्टी को उठाने के काम आने वाला एक उपयोगी उपकरण। उदा. फावड़ा किसानों व श्रमिकों के लिए एक अत्यंत उपयोगी उपकरण है। spade

फासला - (पुं.) (अर.) - दो दत्‍त बिंदुओं/स्थानों के बीच की दूरी।

फासीवादी - (वि./पुं.) (तत्.) - (अं.+ 1. मूल अर्थ में इटली में शासन (1922-43) करने वाले राजनीतिक दल का कोई भी सदस्य। 2. विस्तृत अर्थ में तत् काली इटली की शासन प्रणाली में विश्‍वास करने वाला कोई भी व्यक्‍ति या उसका समर्थक यानी चरम दक्षिण पंथी और उग्र राष्‍ट्रवादी विचारधारा का पोषक कोई राजनीतिक दल या व्यक्‍ति विशेष। fascist

फाहा - (पुं.) (देश.) - 1. तेल, इत्र, मरहम आदि में डुबोया हुआ या भिगोया हुआ रुई या कपड़े का टुकड़ा। 2. घावों की सफाई करने के लिए तीली के ऊपर लिपटा रुई या गॉज का टुकड़ा।

फिकर/फिक्र - (स्त्री.) (अर.) - 1. चिंता, सोच। उदा. (1) आप फिकर (फिक्र) न करे, मैं मुंबई पहुँच जाऊँगा। (2) माँ बच्चे की फिक्र नहीं करेगी तो कौन करेगा? 2. परवाह। उदा. किसी को मेरी फिक्र नहीं है।

फिकरा - (पुं.) - (अर) 1. वाक्य। 2. लाक्ष. व्यंग्योक्‍ति, कटाक्ष, फबती/फब्ती। मुहा. फिकरा कसना=व्यंग्य में कुछ कहना। जैसे: किसी लडक़ी को देखकर, वाह अनारकली/जानेमन आदि कहना।

फिकरेबाज - (वि.) (अर.) - व्यंग्यपूर्ण बातें करने वाला; फबतियाँ कसने वाला।

फ़िक़ा - (पुं.) (अर.) - 1. समुदाय, दल, जमात। 2. पंथ, संप्रदाय, जाति।

फिजूल - (दे.) - फजूल।

फिटकरी/फिटकिरी - (स्त्री.) (तद्.) - (स्फटिका) एक मिश्र खनिज पदार्थ जो सफेद रंग का होता है और दवा, रँगाई आदि के काम में आता है। एलम

फितूर - (पुं.) (अर.) - (फुतूर) 1. मन या दिमाग में रहने वाला कोई दोष या पूर्वाग्रह। जैसे: उसके दिमाग में ऐसा फितूर बैठा है कि वह किसी की बात मानता ही नहीं। 2. दूसरों को तंग करने की करतूत या शरारत। 3. उत्पात, उपद्रव। मुहा. फतूर खड़ा करना = कोई अडंगा उत्पन्न करना।

फिदा - (वि.) (अर.) - पूरी तरह आसक्‍त, मुग्ध। उदा (1) वह तुम पर ऐसा फिदा है कि उसे कोई दूसरा व्यक्‍ति अच्छा ही नहीं लगता। (2) देश पर फिदा लोग अपनी जान भी न्यौछावर कर देते हैं।

फिरंगी - (वि./पुं.) (वि.) - (हिं-फिरंग (फांक) वि. फिरंग देश में उत्पन्न, फिरंग देश में रहने वाला। ला.प्रयो. यूरोप के गौरवर्ण के उन लोगों के लिए प्रयुक्‍त (अपमानसूचक) शब्द जिन्होंने भारत पर (क्रूरतापूर्ण) शासन किया।

फिर - (तद्.) - अर्थ. किसी अन्य समय 1. पुन: दोबारा, दुबारा जैसे: फिर आना again 2. बाद में, अनंतर जैसे: फिर कभी मिलेंगे। 3. बारंबार (फिर-फिर) प्रयोग 1. फिर कभी some other time 2. फिर तो and then, at this 3. फिर-फिर time and again once again 4. फिर भी, yet, still time and again 5. फिर से once again

फ़िरक़ा परस्त - (वि.) (अर.+फा) - सांप्रदायिक, जातिगत भेदभाव में विश्‍वास रखने वाला।

फ़िरक़ापरस्ती - (स्त्री.) (अर.+फा) - सांप्रदायिकता, जातिवाद, दलबंदी। उदा. हमें देश हित में फ़िरक़ा परस्ती से बचना चाहिए।

फिरकी - (स्त्री./वि.) (देश.फिर कना) - घूमने वाला लकड़ी, प्लास्टिक आदि का एक गोल छोटा खिलौना। पर्या. चकई, फिरहरी वि. घूमने वाली जैसे: क्रिकेट में फिरकी गेंद करना spin bowlling

फिरना अ.क्रि. - (देश.[परिभ्रमण) - 1. घूमना, चक्कर खाना, चारों ओर चक्कर लगाना। 2. पीछे की ओर लौटकर आना या किसी ओर मुड़ जाना। 3. अपनी बात से मुकर जाना। मुहा. सिर फिरना=बुद्धि भ्रष्‍ट हो जाना, दिमाग खराब होना।

फिलटर - (पुं.) - (अं.) तरल पदार्थ या गैस को छानने वाला उपकरण जिसके माध्यम से उपयोगी स्वच्छ पदार्थ तो पार चला जाता है और अनुपयोगी पदार्थ ऊपर रह जाता है। छन्‍नी।

फिलहाल/फिलवक्‍त - (वि.) (अव्य.) - क्रि. अभी, इस समय

फ़िल्म - (स्त्री.) - (अं.) 1. कैमरे में लगाई जाने वाली प्रकाश-संवेदी रसायन-लेपित प्लास्टिक की पतली और नरम पट्टी जो फ़ोटो खींचने और चल-चित्र बनाने के काम आती है। 2. सिनेमा या टेलिविज़न के पर्दे पर प्रक्षेपित कथात्मक चित्रमाला जो वेग से चलाए जाने पर सजीव आकार ग्रहण कर लेती है।

फ़िल्मकार - (पुं.) (तत्.) - (अं.+ फ़िल्म/चलचित्र बनाने वाला, फ़िल्म/चलचित्र निर्माता film-producer

फ़िल्म-समारोह - (पुं.) (तत्.) - (अं.+ मेलेनुमा ऐसा आयोजन जिसमें, देश-विदेश में बनी फ़िल्मों का प्रदर्शन किया जाता है और प्रतियोगिता में उच्च श्रेणी प्राप्‍त करने वाली फ़िल्मों को पुरस्कृत किया जाता है।

फिसड्डी - (वि.) (अर.) - (सदा) पीछे रह जाने वाला; सुस्त, काहिल

फिसल पट्टी - (स्त्री.) (देश.) - शा.अर्थ फिसलने के लिए (बनी) पट्टी। खेल. छोटे बच्चों के खेल का एक साधन जो प्राय: विद् यालयों एव उद्यानों में उपलब्ध होता है। उसमें एक ओर से चढ़ने के लिए सीढ़ियाँ होती हैं, और दूसरी ओर ढालदार लोहे की चादर लगी होती है, जिसपर बच्चे फिसल कर मनोरंजन करते हैं।

फिसलना - (स्त्री.) (देश.) - 1. गीले या चिकने तल पर चलते समय पैर आगे-पीछे सरक जाने के कारण संतुलन खोना। 2. लोभ आदि के कारण मन का असंतुलित हो जाना।

फिस्स - (देश.) - गुब्बारे से धीरे-धीरे हवा निकलते समय सुनाई पड़ने वाली आवाज़।

फिस्स - - होना अ.क्रि. सा.अर्थ हवा निकल जाना। ला.अर्थ- निरर्थक या व्यर्थ सिद्ध होना, बेकार जाना। मुहा. टाँय-टाँय फिस्स होना=बहुत बातें होने के बावजूद कुछ भी परिणाम न निकलना।

फीका - (वि.) (तद्.) - 1. (वह पदार्थ) जिसमें आवश्यक नमक या यथेष्‍ट स्वाद, रंग आदि न हो। उदा. फीका दूध, फीकी सब्ज़ी, फीका रंग आदि। 2. कांतिहीन। उदा. धूप पड़ने से दरवाज़े का रंग फीका पड़ गया है। विलो. चटकदार मुहा. चेहरे का रंग फीका पड़ जाना=उदास हो जाना, प्रसन्नता का भाव समाप्‍त हो जाना।

फ़ीता - (पुं.) - (फार.)(पुर्त.) 1. धागे आदि की बुनी गोलाकार या बहुत कम चौड़ी पट्टी जो चीज़ों को बाँधने के काम आती है। जैसे: जूता बाँधने का फ़ीता 2. एक पतली पट्टी जिस पर इंचों या सेन्टी मीटरों के निशान लगे होते हैं किसी वस्तु को नापने के काम आती है।

फुंकार - (स्त्री.) (तद्.) - [फूत्कार) फूँकने से होने वाली ध्वनि, फॅू फॅू की ध्वनि विशेष, फूत्कार फुफकार जैसे: साँप की फुंकार

फुंसी - (स्त्री.) (तद्.) - पनसिका) रक्‍त विकार के कारण त्वचा पर उभरा मवाद युक्‍त छोटा दाना। (बहु. फुंसियाँ)

फुँदना - (पुं.) (देश.) - किसी डोरी या झालर के सिरे पर बनाया गया फूल के आकार का गुच्छा। पर्या. झब्बा।

फुँदनेदार - (वि.) (देश.) - फुँदनों से युक्‍त पर्या.- झब्बेदार दे. फुँदना

फुकनी - (स्त्री.) (देश.) - शा.अर्थ फूँक मारने का उपकरण। गृह लोहे, बाँस आदि की पोली नली जिसमें फूँक मार कर आग को सुलगाने के लिए हवा देते हैं।

फुट - (पुं.) - (अं.) 12 इंच की लंम्बाई विशेष- 12 इंच=1 फुट, 3 फीट=1 गज़ 22 गज़=1 फर्लांग=2 मीटर, 8 फर्लांग=1 मील, 5 फर्लांग= 1 किलोमीटर (वर्तमान माप) टि. बहुवचन-फ़ीट (हिंदी वाक्यों में प्रयुक्‍त होने पर इस बहुवचन रूप का प्रयोग न होकर एकाधिक संख्याओं के लिए एकवचन ‘फुट’ का ही प्रयोग प्रचलित है। जैसे : दस फुट कपड़ा (न कि दस फ़ीट कपड़ा)

फुदकना - - अ.क्रि. (अनु.) बहुत कम लंबाई और उँचाई पर हलके से उछल-उछलकर आगे बढ़ने की क्रिया। जैसे: चिडि़यों का फुदकना।

फुनगी - (स्त्री.) (देश.) - वृक्ष या शाखा का सिरा; शाखा के अंत की कोमल पत्‍तियाँ 1. पतली डाली (शाखा) या दूब का अंतिम सिरा। 2. अंतिम सिरे पर पनपी छोटी-सी कोमल पत्‍ती (नवांकुर)

फुफकारना - (तद्.) - अ.क्रि. (अनु./ [फूत्कार) मूल अर्थ. क्रोधित सर्प के मुख से फू-फू जैसी आवाज़ का निकलना। फूत्कार करना। सा.अर्थ क्रोधावेश में व्यक्‍ति की साँस फूल जाने पर (सर्प जैसी ही) आवाज़ निकलना; गुस्से में ज़ोर-ज़ोर से बोलना।

फुफेरा - (वि.) (देश.) - [फूफा+एरा-प्रत्य.] फूफा या फूफी (बुआ) के नाते से जैसे : फुफेरा भाई स्त्री. फुफेरी बहिन)

फुर/फुर्र - (स्त्री.) - (अनुर.) 1. छोटी चिड़िया के उड़ने पर पंखों से होने वाली ध्वनि। उदा. पास में जाते ही चिडि़या फुर/फुर्र से (तेजी से) उड़ गई। 2. जल्दी/शीध्रता से गायब होना। उदा. मेरे देखते ही देखते चोर फुर्र हो गया।

फुरती/फुर्ती - (स्त्री.) (तद्.स्फूर्ति) - तेज़ी, चुस्ती, शीध्रता। उदा. तुमने इस काम को निपटाने में बहुत फुरती/फुर्ती दिखाई।

फुरतीला/फुर्तीला - (वि.) (तद्.[स्फूर्तिमान) - तेज, चुस्त, स्फूर्तिमान

फुरसत (फुर्सत) - (स्त्री.) (अर.) - काम न रहने के कारण अवकाश का समय, खाली या फालतू समय उदा. आजकल मुझे फुरसत है, आप मेरे यहाँ आ जाएँ। मुहा. फुरसत पाना= 1. छुटकारा पाना 2. खाली समय मिलना।

फुलका - (पुं.) (देश.) - 1. पतली और फूली हुई रोटी, चपाती। 2. फूल की तरह हलका, फूल के समान। जैसे: हलका-फुलका

फुलझरी/फुलझड़ी - (स्त्री.) - [हिं.+फूल+झड़ना] देश. आतिश बाज़ी का एक प्रकार जिसमें रोगन लगी पतली डंडी को जलाने पर फूल जैसी चिनगारियाँ झड़ने (गिरने) लगती हैं।

फुलवारी/फुलवाड़ी - (स्त्री.) - [हिं.+फूल+वाड़ी=काटिका] देशज फूलों के पौधों से युक्‍त छोटा बगीचा पर्या. पुष्पवाटिका

फुलेल - (पुं.) (देश.) - [फूल+तेल] ऐसा तेल जिसमें फूलों की सुगंध आती हो। पर्या. इत्र, अतर। उदा. करि फुलेल को आचमन, मीठो कहत सराहि। रे गंधी मतिमंद तू, अतर दिखावत काहि।।

फुसफुसाना - - स.क्रि. (अनुर.) 1. बहुत ही धीमे स्वर में दूसरे के काम में कुछ कहना ताकि तीसरा कोई सुन न सके। 2. कानाफूसी करना। उदा. तुम दोनों आपस में क्या फुसफुसा रहे हो?

फुसफुसाहट - (स्त्री.) - फुसफुसाने की क्रिया या भाव। कक्षा में पास बैठे दो छात्रों की फुसफुसाहट सुनकर अध्यापिका ने उन्हें पढ़ाई में ध्यान लगाने के लिए (आगाह किया) कहा।

फुसलाना स.क्रि. - (देश.) - मीठी, मधुर बात कह कर या लालच दे कर किसी को कुछ करने के लिए तैयार करना; भुलावा देना; बहकाना जैसे: (रूठे) बच्चे को फुसलाना।

फुहार - (स्त्री.) (देश.) - आकाश से या किसी पानी छिडक़ने के यंत्र से गिरने वाली पानी की बहुत बारीक बूँदों का सिलसिला (की धारा)। हल्‍की वारिस।

फूँकना सक्रि. - - (फूँक) 1. होंठों को थोड़ा खोल कर मुँह से हवा निकालना। 2. शंख, बाँसुरी आदि को फूँक कर बजाना। 3. किसी के कान में गोपनीय ढंग से अपनी बात कहना। 4. फूँक कर चूल्हे आदि में आग प्रज्वलित करना। ला.अर्थ अपनी संपत्‍ति को नष्‍ट कर देना। मुहा. फूँक-फूँक कर पाँव रखना= किसी काम को करते समय बहुत सावधानी बरतना। कान फँकना-किसी को मँत्र देना या शिष्‍य बनाना।

फूट - (स्त्री.) (तद्.[स्फुटन) - 1. परस्पर विरोध की स्थिति; विचारों का न मिलना। जैसे: उनके दल में फूट पड़ गई या आपस में फूट पड़ने के कारण ही हम हार गए। विलो. एका, एकता मुहा. 1. फूट के बीज बोना/फूट डालना=आपस में वैमनस्य पैदा करना। 2. फूट पड़ना= विचारों में मतभेद के फलस्वरूप विरोध की स्थिति पैदा हो जाना।

फूफा - (पुं.) (देश.) - नाते रिश्तेदारी में बुआ के पति या कहें पिता के बहनोई। स्त्री. फूफी=बुआ, पिता की बहिन)

फूल - (पुं.) - तद् (स.फुल्ल) 1. खिली हुई कली पर्या. पुष्प, कुसुम, सुमन आदि। आयु. ऋतुमती स्त्री का रज। वन. पादप का वह अंग जिससे बीज और फल विकसित होता है और आरंभ में जिसकी पंखुड़ियाँ चमकीली और प्राय: रंगीन होती हैं। 2. कान में पहनने का एक गहना जो पुष्प से मिलता-जुलता लगता है। 3. शवदाह के पश्‍चात् बची हुई हड्डियों के टुकड़े, जिन्हें चुनकर गंगा; जल में प्रवाहित कर देने की प्रथा हिंदुओं में प्रचलित है।

फूलझाडू - (पुं.) ([तद्+ देश.]) - सरकंड़े, कांस आदि की सींकों से बना झाडू जिससे महीन धूल बुहारी जाती है।

फूलदान - (पुं.) (तद्+फा.) - शा.अर्थ फूल संग्रह करने का बर्तन। सा.अर्थ फूल और पत्तियो को करीने से सजाकर रखने का मिट्टी,शीशे या धातु का पात्र। flower-vase

फूलना अक्रि. - (तद्.[फुल्ल) (दे.) - 1. पेड़-पौधों में फूल आना, पुष्पित होना, कली का खिलना। 2. मोटा/स्थूलकाय होना। 3. अपनी उपलब्धि पर अति प्रसन्न होना। मुहा. 1. फूल कर कुप्पा होना= अर्थ होना। 2. फूलना-फलना=धन एवं परिवार में वृद्धि होना। 3. फूले न समाना=खुशी से पागल होना।

फूस - (पुं.) - छप्पर बाँधने या ईंधन के काम आने वाले सूखे डंठल। ला.अर्थ निरर्थक वस्तु

फूहड़ - (वि.) - (फार.) 1. जिसे ठीक ढंग से काम करना न आता हो। पर्या. बेढंगा। 2. गंदी और अश्‍लील हरकतें करने वाला। जैसे: फूहड़ गाली

फूहड़पन - (पुं.) (दे.) - (फार.) फूहड़ होने का भाव या स्थिति। दे. फूहड़

फेंकना - - स.क्रि. तद् (संप्रेषण) 1. हाथ को झटका देकर किसी वस्तु को अपने से दूर डालना। जैसे: पत्थर फेंकना। 2. अनुपयोगी समझकर किसी चीज़ को कूडे़दान में गिरा देना। जैसे: केले के छिलके फेंक दो।

फेंटना स.क्रि. - (देश.) - 1. हाथ, उँगली या किसी उपकरण से गाढ़ी वस्तु को बार-बार मथना ताकि वह अच्छी तरह से मिलकर एकाकार हो जाए। 2. ताश के पत्‍तों को दोनों हाथों से इतनी तेज़ी से उलट-पलट कर मिलाना कि प्रतिपक्षी यह न भाँप सके कि कौन-सा पत्‍ता कहाँ होगा। जैसे: पहले ताश के पत्‍तों को अच्छी तरह से फेंट लो और फिर बाँटो।

फेन - (पुं.) (तत्.) - बुलबलों का समूह। दे. झाग

फेफड़ा - (पुं.) (तद्[फुफुस) - वक्षत्वचा (छाती की चमड़ी) के नीचे पसलियों से सुरक्षित और जोड़े में स्थित अंगों में से कोई एक जिससे रीढ़ वाले अधिकतर प्राणी साँस लेते हैं। lungs

फेर - (पुं.) - ([फेरना) 1. चक्कर; उलझन उदा. मैं तुम्हारी बातों के फेर में आ गया। 2. विपत्‍तिसूचक परिवर्तन। उदा. भाग्य का फेर देखो कि वह राजा से रंक बन गया।

फेरना - - स.क्रि. देश. 1. किसी गोलाकार वस्तु को इस तरह से घुमाना कि चक्र पूरा होने पर वही स्थान फिर से आ जाए। जैसे: माला फेरना। 2. लौटाना उदा. उसने दहेज का सामान फेर दिया-यह अच्छा किया। 3. उलटना-पलटना जैसे: तवे पर रोटी को फेरना। 4. किसी वस्तु को विपरीत दिशा में करना। जैसे: मुँह फेरना। मुहा. पानी फेरना=नष्‍ट कर देना।

फेरबदल - (पुं.) - द्विरुक्‍ति (फेरना+बदलना) वर्तमान स्थिति में किया गया परिवर्तन। जैसे: मंत्रिमंडल में इस बार काफी फेर बदल होने वाला है।

फेरा - (पुं.) - देश.(हि.[फेरना) 1. चारों ओर घूमने का भाव, परिक्रमा। जैसे: विवाह के अवसर पर अग्नि के सात फेरे लिए जाते हैं। 2. बार-बार आना-जाना, गश्त। जैसे: पुलिस या चौकीदार का फेरा।

फेरी - (स्त्री.) (दे.) - हि. (फेरा) दे. फेरा

फेरीदार - (पुं.) - (हि.फेरी+फा.दार) वह व्यक्‍ति जो चारों ओर घूम फिर कर सामान बेचता है या किसी महाजन या दुकानदार की तरफ से घूम-घूम कर कर्जदारों से धन वसूलने का काम करता है।

फेरीलगाना - - अ.क्रि. सब ओर घूम फिर कर सामान बेचना या और कोई काम करना।

फेरीवाला - (पुं.) (देश.) - घूम-फिर कर चीजों बेचने वाला।

फेल - (वि.) - (अं.) 1. जो किसी अभीष्‍ट कार्य या योजना को पूरा करने में सफल न हुआ हो, असफल। जैसे: उसकी स्कूल बनाने की योजना फेल हो गई। 2. जो परीक्षा, साक्षात्कार आदि अनुत्‍तीर्ण हो। 3. यांत्रिक गड़बड़ी के कारण किसी कार्य का न होना। जैसे: छपाई मशीन फेल हो जाने से आज पत्रिका नहीं छप सकी।

फेहरिस्त - (स्त्री.) (अर.) - (1) सूची पत्र; (2) सूची।

फैंतासी - (स्त्री.) - (अं. (फैन्टेसी) 1. स्वच्छंद कल्पना। ऐसी कल्पना जिसका कोई आधार नहीं है। 2. (काव्य.) जो कविता, कहानी, नाटक आदि यथार्थ पात्रों या यथार्थ दृश्य योजना पर आधारित न होकर स्वच्छंद कल्पना से युक्‍त होते हैं। जैसे: कवि की इस कविता में फैंतासी के प्रयोग से सौंदर्य बढ़ गया है। 2. कालिदास ने मेघ को दूत बनाकर संस्कृत काव्य में फैंतासी का प्रयोग किया है। fantasy

फैंसी - (वि.) - (अं.) सामान्य से हटकर सुंदर या भडक़दार लगने वाली। जैसे: फैंसी ड्रैस। (Fancy)

फैक्ट्री/फैक्टरी - (स्त्री.) - (अंग्रे.) वह भवन या परिसक जहाँ यंत्रों की सहायता से उपयोगी वस्तुओं का विपुल मात्रा में निर्माण किया जाता है। पर्या. कारखाना, निर्माणशाला-निर्माणी (जैसे: आयुध निर्माणी)

फैन - (पुं.) - (अं.) 1. वह प्रेमी या शौकीन व्यक्‍ति जो किसी प्रसिद्ध गुणी कलाकार, संगीतकार, खिलाड़ी अथवा किसी खेल आदि के प्रति हार्दिक प्रेम या अभिरुचि रखता है। जैसे: 1. ये सब अमिताभ बच्चन के फैन हैं। 2. वह क्रिकेट फैन है। 2. शौकीन। 3. हाथ से डुलाने का पंखा या बिजली से चलने वाला पंखा।

फैलना अ.क्रि. - (तद्(प्रसरण) - वर्ततान स्थिति की तुलना में 1. अधिक जगह घेरना। जैसे: बीमारी फैलाना। 2. आकार में विस्तार होना, जैसे: शरीर का फैलना। 3. चारों तरफ बिखर जाना, जैसे: घर में कूड़ा फैलना। 4. कार्य क्षेत्र की सीमा बढ़ना, जैसे: विदेशों में व्यापार फैलना। पर्या. पसरना।

फैलाना - सक्रि. (प्रेरणार्थक (फैलना) 1. विस्तार करना। 2. इधर-उधर बिखेर देना। 3. प्रचार करना। पर्या. पसारना।

फैलाव - (पुं.) - (हि. फैलाना) फैले हुए होने की अवस्था या भाव। पर्या. विस्तार, प्रसार। उदा. वर्षा से युमना नदी के जल का फैलाव बहुत बढ़ जाता है।

फैशन - (पुं.) - (अं.) समाज में जो स्थायी न रहकर समय-समय पर बदलता रहता है। बनाव-श्रृंगार, रहन-सहन, खान-पान का वह सामयिक ढंग आदि। fashion

फैसला - (पुं.) (अर.) - किसी वाद-विवाद इत्यादि में निर्णायक द्वारा दिया गया निर्णय। पर्या. निर्णय, निबटारा।

फॉल - (स्त्री.) - (अं.) साड़ी के निचले किनारे पर लगभग आधे हिस्से से सिली हुई चार इंची चौड़ी सूती पट्टी जो उसे ठीक से लटकने में और मजबूती के लिए सहायक होती है। Fall.

फोकट - (वि.) (देश.) - 1. जिसमें कुछ भी रस या सार न बचा हो। पर्या. निस्सार। 2. जो मुफ्त में मिला हो; जिसे पाने में खुद को परिश्रम न करना पड़ा हो। जैसे: फोकट का माल।

फोकस - (पुं.) - (अं.) भौ. बिंदु जिस पर किरणें परावर्तन या अपवर्तन के बाद अभिसरण करती हैं या इससे आती हुई प्रतीत होती हैं। focus

फोकसिंग - (पुं.) - (अं.) लक्षित वस्तु का कैमरे से चित्र उतारने के ठीक पहले दूरी निश्‍चित करने की प्रक्रिया ताकि प्रतिबिंब स्पष्‍ट दिखाई पड़े। focussing

फोटक - (वि.) (तद्.) - (स्फोटक) व्यर्थ का या कष्‍टकर (कोई कार्य)। उदा. करद्वि ते फोटक पचि मरहिं (तुलसी रा.च.मा.) दोहा 268 टि. ग्राम्य प्रयोग।

फोटोग्राफी - (स्त्री.) - (अं.) सा.अर्थ फोटो खींचने, छाया चित्र बनाने का कार्य। भौ. तसवीर (फोटो) खींचने की वह कला या विज्ञान जिसमें प्रकाश संवेदनशील पदार्थ से लेपित फिल्म या प्लेट पर उद्भासित वस्तु का प्रतिबिंब लिया जाता है फिर इस चित्र निगेटिव को पुन: उद्भासित कर पेपर पर तसवीर उतारी जाती है। पर्या. छाया चित्रण, छायांकन।

फोटोस्टेट - (स्त्री.) - (अं.) 1. विशेष कागज पर फोटो प्रतिलिपि तैयार करने की मशीन। 2. इस मशीन से तैयार वह प्रतिलिपि जिसमें मूल का यथावत् चित्रण हो जाता है।

फोड़ना स.क्रि. - (तद्.) - (प्रा. फोड़न(स्फोटन) 1. किसी इकाई पर प्रहार कर उसके एकाधिक टुकड़े करना, उदा. उसने घड़ा फोड़ दिया। 2. लालच के बल पर दूसरे पक्ष से कुछ व्यक्‍तियों को अपने दल में मिला लेना। उदा. अमुक पार्टी ने अमुक पार्टी के आठ सदस्यों को फोड़कर विधान सभा में अपना बहुमत सिद् ध कर दिया। 3. व्यर्थ में समय और मेहनत नष्‍ट करना, उदा. उस बेवकूफ को समझाने में तुम अपना सिर क्यों फोड़ रहे हो।

फोड़ा - (पुं.) (तद्.) - (स्फोट) आयु. प्राणियों के शरीर में जैविक संक्रमण हो जाने या चोट के कारण बना घाव जिसमें मवाद भी पड़ गया हो पर्या. व्रण

फ़ोबिया - (पुं.) - (अं.) (चिकि.) एक मनोविकार जिसके होने पर मन में किसी वस्तु आदि के प्रति एक अज्ञात भय बैठ जाता है और रोगी उस वस्तु के पास आते ही व्याकुल हो जाता है। phobia

फ़ौज - (स्त्री.) (अर.) - 1 दे. सेना 2. ला.अर्थ आवश्यकता से अधिक लोगों का समूह। उदा. दो-तीन छात्र आकर अपनी समस्याएँ रखते। छात्रों की फ़ौज लाने की ज़रूरत नहीं थी।

फौज़दार - (पुं.) (अर.) - +फा.) (प्राचीन प्रयोग) स्थल सेना में कनिष्‍ठ अधिकारी का पदनाम।

फौजदारी न्यायालय - (पुं.) - वह अदालत या न्यायालय जिसमें लड़ाई-झगड़े, मारपीट, कत्ल आदि के मुकदमें सुने जाते हैं और अपराधियों को दंडित किया जाता है। क्रिमिनल कोर्ट

फौज़दारी - (स्त्री.) (अर.) - #ERROR!

फ़ौजी - (वि.) - फ़ौज से संबंधित, सेना का। पुं सैनिक (छोटे-बड़े के भेदभाव से रहित सामान्यत: तीनों अंगों और विशेषत: स्थल सेना के वर्दीधारी कर्मचारी/अधिकारी के लिए प्रयुक्‍त शब्द)।

फ़ौरन - (वि.क्रि.) (अर.) - तुरंत, अविलंब, चटपट, तत्क्षण

फ़ौरी - (वि.) (अर.) - 1. तुरंत करने योग्य, फ़ौरन होने योग्य 2. अत्यावश्यक अर्जेन्ट उदा. यह कार्य फ़ौरी है। पर्या. फौरन, त्वरित

फ़ौलाद - (पुं.) (अर.) - लोहे और कार्बन के मिश्रण से बनी कड़ी और बढि़या धातु। पर्या. इस्पात steel

फ़ौलादी - (वि.) ([अर.ई प्रत्यय]) - 1. फौलाद से बना,फौलाद का।2. ला.अर्थ बहुत ही मजबूत। जैसे: फौलादी दिलवाला।

फौवारा/फ़व्वारा - (पुं.) (अर.) - 1. वह शोभाप्रद जलयंत्र जिससे पानी को हवा में ऊपर की ओर तेजी से उछाला जाता है और जल की धाराएँ घने रूप में चारों ओर फैलती और नीचे गिरती हैं। 2. फूलों की क्यारियों में पानी छिडक़कने का डिब्बानुमा यंत्र उदा. उद्यानों में सुंदरता बढ़ाने के लिए ‘फौवारे/फव्वारे’ लगाए जाते हैं। उदा. वृंदावन गार्डन में बिजली की रोशनी में जगमगाते फौवारे देखने के लिए हजारों लोग इकट्ठा होते हैं। 2. पौधों को फौवारे से पानी देना ठीक रहता है ताकि उनकी जड़ें खराब न हों।

फ्यूज - (पुं.) (वि.) - (अं.) वि.इजी. धातु के पतले तार के टुकड़े से बनी एक सुरक्षात्मक युक्‍ति जिसे विद् युत् परिपथ में इस उद् देश्य से लगा दिया जाता है कि यदि नियत स्तर से अधिक विद् युत्-धारा प्रवाहित होने लगे तो वह तार का टुकड़ा पिघलकर टूट जाए और इस तरह विद्युत परिपथ के भंग हो जाने के परिणामस्वरूप आग लगने जैसी दुर्घटना से बचा जा सके।

फ्रस्ट्रेशन - (पुं.) - (अं.) 1. बार-बार प्रयत्‍न करने पर भी किसी लक्ष्य की प्राप्‍ति न होने से उत्पन्न निराशाजन्य भावना। 2. विफलता की हताशा 3. मानसिक कुंठा उदा. आजकल अनेक युवक जीवन में असफल होने से फ्रस्टेशन का शिकार हो रहे हैं। frustration

फ्रिज - (पुं.) - (अं.) घर, अस्पताल, दवाइयों की दूकान आदि में बहुधा प्रयुक्‍त और विद्युत्-शक्‍ति से चलने वाला एक महत्वपूर्ण उपकरण जो उसमें रखे सामान को निम्न ताप पर ठंडा रखता है और इस तरह उसे खराब होने से बचाता है। पर्या. प्रशीतक्। refrigrator

फ्लश - (पुं.) - (अं.) शौचालय साफ़ करने की एक यांत्रिक व्यवस्था जिसमें काफ़ी मात्रा में पानी को एक झटके से बहाकर मल को मुख्य सीवर में प्रवाहित कर दिया जाता है। flush

फ़्लू - (पुं.) - (अं.) शब्द इंफ्लूएंजुआ का संक्षिप्‍त रूप) आयु. एक संचारी रोग जो विषाणु के संक्रमण से फैलता है। इसके सामान्य लक्षण हैं-जुकाम और बुखार।

फ़्लैश - (पुं.) - (अं.) 1. प्राकृतिक रूप से किसी यांत्रिक प्रक्रिया द्वारा उत्पन्न क्षणिक प्रकाश। दीप्‍ति, कौंध, आभा। 2. कैमरे में लगा तेज रोशनी वाला बल्ब जो रात्रि में या कम प्रकाश में भी छायाचित्र/फोटो खींचने में सहायक होता है।

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बंकिम - (वि.) (तत्.) - जो सीधी रेखा में न होकर कहीं से मुड़ा हो। पर्या. टेढ़ा, वक्र।

बंग - (पुं.) (तत्.) - 1. रांगा (एक धातु, यशद (टिन) 2. बंगाल प्रांत (”….द्राविड, उत्कल बंग।” राष्‍ट्रगान)

बंगाल की खाड़ी - (स्त्री.) - श्रीलंका द्वीप से मलय प्राय द् वीप तक की पड़ी रेखा से उत्‍तर में गंगा और ब्रह् मपुत्र के मुहानों तक भारत की पूर्वी तट रेखा और म्यांमार की पश्‍चिमी तट रेखा के बीच त्रिकोणीय आकार में पसरा समुद्री जलक्षेत्र। bay of Bangal

बंजर - (वि.) (तद्<बंध्य प्रा. बंझ) - पैदावार/खेती के लिए अनुपयुक्‍त भूमि, ऊसर भूमि। उदा. बंजरभूमि में घास तक पैदा नहीं होती।

बंटवारा - (पुं.) (देश.<बंटन) - <बंटन) किसी चल या अचल संपत्‍ति का समान या असमान भागों में विभाजन की क्रिया या भाव। पर्या. विभाजन। partition उदा. अंग्रेजों ने हमारे देश को छोड़ते-छोड़ते इसका बंटवारा दो देशों में (भारत और पाकिस्तान) कर दिया।

बंद - (पुं.) (फा.<सं. बंध) - 1. वह वस्तु जिससे कुछ बांधा जाए, जैसे: कमरपेटी, लोहे की पत्‍ती या फीता आदि। 2. रूकावट, रोक। उदा. बंद की वजह से आज दुकानें नहीं खुलेंगी। 3. शरीर का कोई संधिस्थल। उदा. ठंडी हवा से शरीर के सारे बंद खुल रहे हैं। वि. (i) जो खुला न हो=आज विद्यालय बंद है, बंद रास्ता। (ii) पकड़ा हुआ/कैद=जेल में बंद अपराधी। (iii) जिसका आना जाना बंद हो। जैसे: पटरी उखड़ जाने से आज कई रेलगाड़ियाँ बंद कर दी गई हैं।

बंदगाँ - (पुं.) - (फ़ार.) दिल्ली के आरंभिक सुलतानों (विशेषकर इल्तुतमिश) द् वारा सैनिक सेवा के लिए खरीदे गए वे गुलाम जिन्हें प्रशासक, सूबेदार आदि के रूप में नियुक्‍त किया जाता था।

बंदगी - (स्त्री.) - (फ़ार.) 1. पूजा, उपासना, इबादत। जैसे: खुदा की बंदगी। 2. दासता, गुलामी।

बंदगोभी - (स्त्री.) - (फ़ार.बंद+हि.गोभी) एक सब्जी, पत्‍ता गोभी, करमकल्ला। उदा. बंदगोभी के पत्‍तों को सलाद के रूप में भी प्रयोग करते हैं। cabbage

बंदनवार - (स्त्री.) (तद्<वंदनमाला) - फूलों, पत्‍तों या अन्य शोभा की वस्तुओं को माला के आकार में गूँथकर दरवाज़ों के ऊपर बाहर की ओर लगाई जाने वाली झालर। टि. उत्सवों, मंगल अवसरों पर बंदनवार लगाने की परिपाटी है। इससे यह सूचना मिलती है कि यहाँ मंगलकार्य हो रहा है। festoon

बंदर - (पुं.) (तद्<वानर) - कुछ-कुछ मनुष्य जैसी शक्ल, सूरत और आदतों वाला एक पूँछदार, स्तनपायी पशु जो प्राय: पेड़ों या घर की छतों पर रहता है। कपि, वानर।

बंदरगाह - (पुं.) (अर.+.फा.) - (बंदर = समुद्रतट + गाह = स्थान) (1) समुद्र के किनारे का वह क्षेत्र जहाँ जहाज (जलपोत) आकार ठहरते है, और यात्रियो तथा माल को चढ़ाते- उतारते है; (2)इसी क्षेत्र मे बस गया नगर भी। पर्या. पत्तन, पोताश्रय। port

बंदरिया - (स्त्री.) - मादा बंदर। मुहा. बंदर-भभकी या बंदर घुड़की=डराने के लिए धमकी। जैसे: वह तुम्हारी बंदरभभकी से डरने वाला नहीं।

बंदा - (पुं.) (फा.) - 1. दास, सेवक। उदा. मालिक, हम सब तेरे बंदे हैं। 2. मनुष्य, इंसान। जैसे: खुदा का बंदा। उदा. इस काम में छह बंदे लगे हुए हैं।

बंदा-परवर - (पुं.) (फा.) - लोगों की रक्षा करने वाली शक्‍ति, ईश्‍वर।

बंदिश - (स्त्री.) (फा.) - शा.अर्थ बाँधने या बाँधे जाने की क्रिया या भाव। पर्या. बंधन। सा.अर्थ किसी कार्य को करने की मनाही, निषेध या अनिवार्यता। पर्या. रूकावट, प्रतिबंध, मनाही। restriction संगी. गीत, कविता आदि में शब्दों को मात्रा, तुक आदि की दृष्‍टि से बाँधना। पर्या. पेशबंदी।

बंदी1 - (पुं.) - 1. वह व्यक्‍ति जिसे किसी अपराध में सीखचों के पीछे बंद कर दिया गया हो, कैदी, कारावासी। 2. अपने आश्रयदाताओं की काव्यमय स्तुति करने वाला समुदाय। जैसे : बंदीजन bard

बंदी2 - (पुं.) (तद्.<वंदिन्) - 1. राजाओं की शौर्यगाथाओं का वर्णन करने वाला। पर्या. चारण, भाट। जैसे: बंदीजन। 2. पकड़े गए अपराधी। पर्या. कैदी, कारावासी। 3. युद्ध में पकड़े गए शत्रुपक्ष के सैनिक, युद्धबंदी। (i) बंद होने या किए जाने की क्रिया या भाव का सूचक शब्द (समस्त पद उत्‍तरार्ध में प्रयुक्‍त) जैसे: तालाबंदी, नसबंदी। (ii) व्यवस्था में बाँधने का भाव। जैसे-चकबंदी, मेड़बंदी।

बंदी3 - (स्त्री.) (फा.) - 1. घेरने या रूकावट डालने की क्रिया या भाव। जैसे: नाकेबंदी, किलाबंदी। 2. निर्माण या संगठन बनाने की स्थिति। जैसे: गुटबंदी, दलबंदी। 3. कामबंद रखने की स्थिति। जैसे: हमारे यहाँ सोमवार की बंदी होती है।

बंदीखाना - (पुं.) (फा.) - कैदियों को रखने की जगह। पर्या. कैदखाना, कारावास।

बंदीगृह - (पुं.) - कैदियों को बंद रखने के लिए बना कई कोठरियों वाला आवास। पर्या. जेलखाना, कारागार, कारागृह।

बंदोबस्त - (पुं.) (फा.) - 1. प्रबंध, व्यवस्था। उदा. शादी के काम का सारा बंदोबस्त हो चुका है। 2. वह सरकारी प्रबंध जिसमें खेतों की माप, उन पर लगने वाली मालगुज़ारी, लगान आदि की वसूली इत्यादि सम्मिलित है। उदा. इस साल हुए बंदोबस्त में हमारे खेतों का लगान बढ़ गया है।

बंधक - (पुं.) (तत्.) - ऋण लेते समय ऋणदाता के पास संपत्‍ति, जेवर आदि का अस्थायी रूप से रखा जाना। पर्याय रेहन। mortgage

बंधक बनाना - - स.क्रि. गैरकानूनी ढंग से रूपया उगाहने या अन्य माँग मनवाने की नीयत से किसी व्यक्‍ति को अगवा करना और उसे तब तक न छोड़ना जब तक माँगी गई रकम न मिल जाए या किसी तरह की अन्य माँग पूरी कर दी जाए।

बंधक रखना - (दे.) - बंधक।

बंधन - (पुं.) (तत्.) - 1. (i) बाँधने या बँधने की क्रिया या भाव। (ii) जातिप्रथा के बंधन, पारिवारिक बंधन, रूकावट, प्रतिबंध। उदा. आपके आने-जाने पर कोई बंधन नहीं है। 2. जिससे कुछ बाँधा जाए, वह रस्सी आदि। उदा. गाय का बंधन खोल दो, उसे चरने जाना है।

बंधा - (पुं.) (तद्.) - 1. खेत या नहर आदि में निकलते हुए पानी को रोकने के लिए मिट् टी डालकर उस स्थान को भरना। 2. वह लघु जलाशय जहाँ पानी को रोककर इकट्ठा किया गया हो। बाँध। उदाहरण-किसान लोग खेत से बहते हुए पानी को रोकने के लिए बंधा लगाते हैं।

बंधु-बांधव [बंधु+बांधव] - (पुं.) (तत्.) - बहु. व्यु.अर्थ बंधु=भाई+बांधव=नाते-रिश्ते से जुड़े लोग, नातेदार, रिश्तेदार। परिवार में रक्‍तसबंध में जुड़े सभी परिजन, स्वजन, निकट संबंधी, नातेदार, रिश्तेदार।

बँधुआ - (वि.) (देश.<बंधन) - शा.अर्थ जो बंधन (जंजीर, रस्सी आदि) में बंधा हुआ हो। जैसे: बंधुआ कुत्‍ता। सा.अर्थ जिसे बलपूर्वक किसी कार्य को करने के लिए बाध्य किया जाता हो। जैसे: बँधुआ मज़दूर।

बकना अ.क्रि. - (तद्<वल्क्/वक्त्) - 1. लंबे समय तक और बिना रूके निरर्थक बातें बोलते रहना; बकवास करना। उदा. वह बकता रहा और मैं सुनता रहा। 2. अशिष्‍ट ढंग से बोलते रहना। ऊटपटांग बोलना। उदा. वह बड़ी देर से बक रहा है।

बकवाद - (स्त्री.) (देश.) - [बक<बकना+वाद=कथन] देश.-अनुर.) व्यर्थ की बातें, ऊल-जलूल बातें, तर्कहीन बातें।

बकवास - (स्त्री.) (दे.) - बकवाद। टि. द का स में परिवर्तन। उदा. बहुत बकवास कर चुके, अब चुप भी हो जाओ।

बकाया - (वि.) (अर.बकाय) - बकाय) बचा हुआ, शेष, अवशिष्‍ट। पुं. 1. वह धन जो किसी के जिम्मे बाकी रह गया हो, अवशेष। जैसे : अभी 6 मास का महंगाई भत्‍ता बकाया है। arrears 2. शेष ऋण। balance 3. व्यय से शेष धनराशि।

बख़त - (पुं.) (अर.) - (देशज<वक्‍त-अर.)समय, काल। टि. ग्राम्य प्रयोग।

बखान - (पुं.) (तद्<व्याख्यान) - 1. विस्तृत, वर्णन, व्याख्यान। उदा. उसके गुणों का जितना बखन किया जाए उतना ही कम है।

बखिया - (पुं.) - (फा.<बख़्य:) कपड़े की मजबूत खड़ी सिलाई जिसमें पास-पास टांके डाले गए हों और जिसे उधेड़ना सरल न हो। मुहा. बखिया उधेड़ना=किसी का कोई गुप्‍त रहस्य खोल देना, भंडाफोड़ करना। उदा. तुम नहीं मानोगे तो वह तुम्हारी बखिया उधेड़ देगा।

बख़ूबी - (क्रि.वि.) - (फ़ार.) [ब+सहित+खूबी] ख़ूबी के साथ; अच्छी तरह से। उदा. उसने सौंपा गया काम बखूबी पूरा किया।

बखेड़ा - (पुं.) - (बखेरना) 1. व्यर्थ का झंझट, उलझन भरा काम, विवाद। उदा. उसने अपने मित्र के साथ इस तरह का बखेड़ा खड़ा कर दिया कि सुलझाते नहीं बनता। मुहा. बखेड़ा खड़ा करना=झगड़ा खड़ा करना। बखेड़ा मोल लेना=यह जानते हुए भी झंझट पैदा करना कि उसे सुलझाना मुश्किल होगा।

बगल - (स्त्री.) (फा.) - 1. बाहुमूल के नीचे का गड्ढा या खाली जगह। पर्या. काँख। 2. निकट का स्थान। उदा. मेरे घर के बगल में ही डिस्पेंसरी है। मुहा. 1. बगले झांकना=निरूत्‍तर होकर इधर-उधर देखना। 2. बगल में दबाना या धर लेना, कब्जा करना। 3. बगल में मुंह छिपाना, लज्जित होना। उदा. सामने आकर बात करो, बगल में मुँह छिपाए क्यों घूम रहे हो?

बगला/बगुला - (पुं.) (तद्.<बक) - लंबी टांगों वाला, लंबी गरदन वाला और लंबी चोंच वाला एक सफ़ेद या सलेटी रंग का पक्षी जो किसी जलाशय के किनारे चुपचाप खड़ा रहकर मछली देखते ही तेज़ी से उसका शिकार करता है। heron

बगावत - (स्त्री.) (अर.) - 1. बागी होने का भाव। 2. राजसत्‍ता के विरूद्ध किया गया विद्रोह। उदा. झांसी की रानी लक्ष्मीबाई ने अंग्रेजों के विरूद्ध बगावत का झंडा खड़ा किया। mutiny

बगिया - (स्त्री.) (देश.<बाग़- फा.) - छोटे आकार का उद्यान। पर्या. बगीचा। उदा. मेरे घर की बगिया में इन दिनों रंग-बिरंगे फूल खिले हुए हैं।

बगीचा - (पुं.) (फा.) - बाग, छोटा बाग। उदा. हम सुबह-सुबह पड़ोस के बगीचे में सैर करते हैं।

बगुला भगत - (पुं.) - पाखंडी, ढोंगी या कपटी व्यक्‍ति। उदा. वह तो बगुला भगत है, उस पर कदापि विश्‍वास मत करना।

बगैर अव्यय - (अर.) - बिना। उदा. बच्चों के बगैर घर सूना लगता है।

बचकाना - (वि.) - (<बच्चा) शा.अर्थ बच्चों जैसा। सा.अर्थ-नासमझी भरा या परिपक्वता रहित व्यवहार। उदा. तुम्हारी बचकानी आदतें ठीक नहीं है।

बचत - (स्त्री.) - (हिं. बचना/बचाना) सा.अर्थ धन, समय या किसी अन्य वस्तु के उपयोग के बाद जो सहज में बच जाए या जिसे जानबूझकर बचाया जाए। जैसे: समय की बचत, धन की बचत, अनाज की बचत आदि। अर्थ. भविष्य में सार्थक उपयोग के लिए नियमित आय में से एक बारगी या थोड़ा-थोड़ा कर धन बचाते रहने की क्रिया; इस तरह बचाई गई राशि। saving

बचतखाना - (पुं.) (दे.+अर.<खत) - बैंक या डाकघर में ग्राहक द्वारा खोला गया वह खाता जिसमें वह अपनी आय में से बचाई गई धन-राशि को जमा करवाता है और उस पर उसे नियत दर पर ब्याज मिलता है। saving account

बचत योजना - (स्त्री.) (हि.+तत्.) - सरकार या किसी भी अन्य वित्‍तीय संस्था द्वारा जारी वह योजना जो ग्राहकों को अपनी आय में से बचत करने और उसे उसमें जमा कराने अथवा कराते रहने के लिए प्रोत्साहित करती है। saving scheme

बचना क्रि. - (तद्.) - 1. नियत राशि में से कुछ राशि भी खर्च हो जाने के बाद शेष राशि का बचे रह जाना यानी अभी तक उसका खर्च नहीं होना। उदा. सौ रूपयों में से अभी मेरे पास सोलह रू. बचे हुए हैं। 2. पकड़ में न आना। जैसे: चोर बचकर निकल गया। (यानी फिलहाल नहीं पकड़ा गया) 3. दुर्घटना होने पर भी सुरक्षित रहना। उदा. हवाई दुर्घटना होने पर आठ व्यक्‍ति बाल-बाल बच गए।

बचपन - (पुं.) (देश.) - (बच<बच्चा+पन) 1. बाल्यावस्था का भाव। पर्या. लडक़पन। 2. सामान्यत: पाँच वर्ष से तेरह-चौदह वर्ष तक की आयु का काल। पर्या. बाल्यावस्था। तु. शैशवावस्था, युवावस्था आदि। उदारहरण-1. मेरा बचपन इलाहाबाद मे बीता। 2. बचपन के दिन भुला न देना....(गीत)

बचपना - (पुं.) - (<बचपन) शा.अर्थ बचपन में किया जाने वाला स्वाभाविक व्यवहार। सा.अर्थ अधिक उम्र के व्यक्‍ति का बच्चे की तरह नासमझी भरा काम या व्यवहार। उदा. इतना बड़ा हो गया फिर भी इसका बचपना नहीं गया।

बचाना प्रेरणा>बचना - (देश.) - 1. किसी प्रयोग की जाने वाली वस्तु में से कुछ अंश भविष्य के लिए सुरक्षित रखना। जैसे: मासिक वेतन में से कुछ धन बचाये रखना। 2. रक्षा करना। जैसे: भूकंप पीडि़तों को बचाने की क्रिया। 3. किसी मुसीबत, कलह, रोग आदि से अप्रभावित या सुरक्षित रखना या दूर रखना। जैसे: (i) बच्चे को कुसंगति से बचाना। (ii) बच्‍चे को दुर्व्यसन से बचाना।

बचावकक्ष - (पुं.) (तत्.) - वह पक्ष जो अपने ऊपर लगाए गए आरोपों के तर्कपूर्ण जवाब देता है कि उस पर लगे आरोप मिथ्या है यानी वह दोषी नहीं है। विलो. अभियोजन पक्ष।

बछड़ा - (पुं.) (तद्.) - [बछड़ा] (तद्.<वत्स) गाय का बच्चा। स्त्री. -बछिया) तुल-पाड़ा - भैंस का बच्चा। बछेड़ा - घोड़े का बच्चा। पिल्ला - कुत्‍ते का बच्चा। मेमना - बकरी का बच्चा। चूज़ा- मुर्गी का बच्चा।

बजट - (पुं.) - (अं.) सरकार, संस्था, परिवार आदि के आय-व्यय का मासिक या अवधि विशेष के लिए अनुमानित ब्योरा, विवरण। जैसे: देश के वार्षिक बजट में आय-व्यय का लेखा-जोखा प्रस्तुत किया जाता है। टि. आय से व्यय अधिक होने पर सरकारी बजट को ‘घाटे का बजट’ कहते हैं।

बजरी - (स्त्री.) (तद्<वज्री) - पत्थरों को तोडक़र या पीसकर बनाए गए छोटे आकार वाले छोटे-छोटे गोलाकार टुकड़े। उदा. बजरी सडक़ बनाने या भवन आदि की नींव भरने में काम आती है।

बजाज़ - (पुं.) (अर.<बज्ज़ाज़) - कपड़े का व्यापारी, वस्त्र विक्रेता। उदा. इस बजाज की दुकान पर कपड़े ठीक भाव पर मिलते है।

बज़ाना स.क्रि. - (तद्.<वादन) - 1. चोट करके किसी वस्तु से ध्वनि/आवाज उत्पन्न करना। जैसे: थाली बजाना, घड़ियाल बजाना। 2. किसी वाद्ययंत्र से संगीत की ध्वनि उत्पन्न करना। जैसे: तबला बजाना, सारंगी बजाना आदि। मुहा. 1. गाल बजाना=ऊँची-ऊँची बातें करना, गप्पे हांकना। 2. ठोकना बजाना=किसी वस्तु के गुण-दोषों अच्छी तरह से का विचार करना। स.क्रि.(फा. बजाना) अपने से बड़ों के आदेश का पालन करना। जैसे: अपने मालिक का हुक्म बजाना।

बजाय/बजाए - (अव्य.) (फा.) - के स्थान पर, को। उदा. राम के बजाय मोहन को भेज दें।

बटालियन - (स्त्री.) (वि.) - (अं.) सा.अर्थ फौज, सेना की टुकड़ी, पलटन। अर्थ सैन्य सेना की एक बड़ी टुकड़ी जिसमें पाँच सौ से अधिक सैनिक होते हैं और जिसके नायक को कर्नल कहा जाता है। तु. पलटन-वह टुकड़ी जिसमें 10-12 सैनिक होते हैं। इसका नायक ‘कमांडर’ कहलाता है। platoon

बटुआ - (पुं.) (तद्.<वर्तुल) - 1. एक काँसे या पीतल की धातु से बना विशेष प्रकार का बड़ा बर्तन जो नीचे से चौड़ा गोलाकार और ऊपर से कुछ संकरा हेाता है। पर्या. बटला, देगचा। टि. पहले संयुक्‍त परिवार में बटुआ में ही चावल, दाल आदि पकाए जाते हैं। 2. कपड़े/चमड़े आदि से बनी कई खाने वाली छोटी थैली जिसमें लोग रूपए, पैसे या सामान आदि रखते हैं। purse उदा. आजकल प्राय: सभी संभ्रांत लोग आवश्यक धनराशि बटुए में ही रखकर चलते हैं।

बटेर - (स्त्री.) (तद्.<वर्तक) - तीतर की तरह की छोटे पंखों वाली पालतू चिड़िया जो ज्यादातर झाडियों में रहती है तथा अधिक उड़ नहीं पाती। मुहा. आधा तीतर आधा बटेर=किसी भी वस्तु का पूर्ण रूप से न होना, अर्थात् आधा-अधूरा होना।

बटोरना स.क्रि. - (तद्) (तद्<वर्तुलन) - बिखरी हुई वस्तुओं को वर्तुलाकार (गोल आकार के ढेर में) इकट्ठा करना; अपने पास संगृहीत करना। उदा. उसने काफी धन बटोर लिया है।

बटोही - (पुं.) - (<बाट=रास्ता+<आरोही) रास्ता चलने वाला। पर्या. रही, पथिक। उदा. राघव लोचन राम चले तजि बाप को राज बटोहि की नाई।

बट्टा - (पुं.) (देश.) - 1. वह अंडाकार पत्थर जिससे सिल पर मसाला, चटनी आदि पीसे जाते हैं। लोढ़ा। 2. बेचते समय किसी दोषयुक्‍त वस्तु की कीमत में की जाने वाली आंशिक कमी। जैसे: कुछ पिचके बर्तनों पर बीस रूपये बट् टा मिला। 3. वाणि. ऋणराशि में से अग्रिम रूप से काट ली गई ब्याज की राशि जिसे घटाकर ही भुगतानकर्ता अदायगी करता है। 3. कलंक, दोष, दाग। जैसे: इज्जत में बट्टा लगना।

बड़प्पन - (पुं.) (तद्>वट/बृहत) - 1. बड़े होने की स्थिति/गुण/भाव। 2. गौरव, महत्‍ता, बड़ाई, 3. बड़ाई का कार्य। जैसे: आपने मुझ जैसे सामान्य व्यक्‍ति की भी इस विपत्‍ति से रक्षा की, यह आपका बड़प्पन है।

बड़बडाना - - अ.क्रि. (<बड़बड़, अनु.) 1. अस्पष्‍ट स्वर में धीरे-धीरे कुछ न कुछ बोलते रहना। उदा. वह सोते-सोते बड़बड़ाता रहता है। 2. बकवास करना। उदा. तुम कम से बड़बड़ाते जा रहे हो, चुप होने का नाम ही नहीं लेते।

बड़ा - (पुं.) (तद्>वट) - 1. उड़द की दाल की पीठी से बनी गोलाकार टिकिया जो तलकर खाई जाती है या तली हुई टिकिया को दही में डुबोकर कुछ देर बाद खाया जाता है। 2. वि. (<सं.वर्धन) जो आकर-प्रकार की दृष्‍टि से अथवा संपन्नता, अवस्था आदि में अपने आकार में वर्ग के अन्यों की अपेक्षा अधिक बढ़चढक़र हो। जैसे-(i) बड़ा वृक्ष, बड़ी मछली, बड़ा तालाब। (ii) संपन्नता में-वे बड़े आदमी हैं, हम उनकी बराबरी नहीं कर सकते। (iii) पद की दृष्‍टि से पुं. बड़ा बाबू, बड़ा साहब। (iv) योग्यता की दृष्‍टि से, बड़ा, विद् वान। (v) उम्र में बड़ा, बड़ा भाई।

बड़ाई - (स्त्री.) - (<बड़ा) 1. बड़ा होने का भाव। 2. बड़प्पन, 3. प्रशंसा। उदा. (i) उनकी यही बड़ाई है कि वे सभी को अपने यहाँ शरण देते हैं। (ii) आपकी बड़ाई सुनकर मैं आपसे कुछ सहायता पाने हेतु आपके पास आया हूँ। विलो. छोटाई।

बड़ी आँत - (स्त्री.) (तद्.) - दे. ‘बृहदांभ’।

बड़ी/बरी - (स्त्री.) (तद्.<वटी) - उड़द या मूँग की दाल की मसालेदार पीठी से तैयार की जाने वाली गोल टिकिया। उदा. घी तेल में पकाई हुई बड़ी बरी खाने में बहुत स्वादिष्‍ट होती है।

बढ़ई - (पुं.) (तद्<वर्धकि) - लकड़ी को काट-छीलकर सामान बनाने वाला कारीगर, जिसका व्यवसाय लकड़ी से सामान बनाना हो। carpenter

बढ़ना स.क्रि. - (तद्<वर्धन) - 1. आकार, क्षेत्र, सीमा आदि का पहले से अधिक हो जाना। जैसे: बालक का शरीर बढ़ना आदि। 2. संख्या/माखा आदि में पहले से अधिक वृद्धि होना। जैसे: (i) दैनिक मज़दूरी दो सौ से बढक़र ढाई सौ रूपए हो गई। (ii) यमुना में पानी बढ़ रहा है। विलो. घटना।

बढ़ाना-चढ़ाना स.क्रि. - (देश.) - किसी बात को वस्तु के गुण, मूल्य आदि को वास्तविकता से बहुत अधिक बताना। जैसे: सब्जी वाले सब्जियों के दाम बढ़ा-चढ़ाकर बताते हैं।

बढि़या - (वि.) - (<बढ़ना) 1. उत्‍तम, 2. अच्छे किस्म का। जैसे: (i) मेरे छात्रावास में निवास-भोजन आदि की बढ़िया व्यवस्था है। (ii) यहाँ बढि़या चावल का उत्पादन होता है। विलो. घटिया।

बढ़ोतरी - (स्त्री.) - [हि.>बाढ़+उत्‍तर] 1. उन्नति, तरक्की, लाभ, यश, संख्या आदि में उत्‍तरोत्‍तर वृद्धि, बढ़त। उदा. (i) भगवान तुम्हारी कमाई में बढ़ोतरी करे। (ii) भारत की जनसंख्या में बहुत बढ़ोतरी हुई है।

बतंगड़ - (पुं.) - (<बात) साधारण सी बात को बढ़चढकर विकृत और विराकल रूप धारण कर लेना। उदा. तुमने छोटी सी बात का इतना बतंगड़ बना दिया कि वे दोनों आपस में झगड़ पड़े।

बतलाना स.क्रि. - (तद्>वाद) - 1. किसी व्यक्‍ति, वस्तु आदि के बारे में बताना, जानकारी देना। 2. ज्ञान कराया, 3. निर्देश करना।

बतौर - (क्रि.वि.) (अर.) - 1. रीति से, 2. जैसा, सदृश, समान।

बत्‍तख - (स्त्री.) (अर.-बत) - हंस की जाति का एक छोटी टांगों वाला तथा झिल्लीदार पंजों वाला जलपक्षी जिसका रंग सफ़ेद, होता है तथा चोंच आगे से चौड़ी और भोथरापन लिए होती है। यह प्राणी पानी में तैरता रहता है, पर जमीन पर भी चल लेता है, किंतु लंबी दूरी तक उड़ नहीं पाता। उदा. -तालाब में बत्तखे झुंड बनाकर धीरे धीरे तैरती है।

बत्‍ती - (स्त्री.) (तद्<वर्ति) - 1. रूई या सूत से बनी हुई पतली लंबी बाती जिसे तेल या घी के दीपक में डालकर जलाते हैं। 2. किसी गंध द्रव्य, अगर, मोम आदि से बनी हुई लंबी वस्तु या उनसे बनाई जाने वाली बत्‍ती। जैसे: धूपबत्‍ती, अगरबत्‍ती, मोमबत्‍ती आदि। 3. लाक्ष. दिया, दीपक। जैसे: शाम हो गई है, बत्‍ती जला दो।

बदइंतजामी - (स्त्री.) (.फा.) - ऐसी व्यवस्था जो सलीके से न की गई हो। पर्या. दुर्व्यवस्था, कुप्रबंध। उदा. वार्षिकोत्सव में बदइंतजामी देखकर मन बहुत दुखी हुआ।

बदकिस्मत - (वि.) (.फा.+ अर.) - जिसकी किस्मत अच्छी न हो, बुरी तकदीर वाला। पर्या. भाग्यहीन, हतभाग्य। उदा. वह बड़ा बदकिस्मत है कि पढ़ाई में अव्‍वल रहते हुए भी दुर्घटना की वजह से परीक्षा न दे सका

बदकिस्मती - (स्त्री.) - बदकिस्मत (भाग्यहीन) होने की स्थिति का सूचक भाव। उदा. इसे उसकी बदकिस्मती ही कही जाएगी कि वह दुर्घटना की वजह से परीक्षा न दे सका।

बदगुमान - (वि.) (फा.) - जो किसी के बारे में बुरी धारणा रखे।

बदचलन - (वि.) (फा.+ तत्.) - कुमार्ग पर चलने वाला, जिसका चाल-चलन अच्छा न हो। पर्या. दुश्‍चरित्र, व्याभिचारी।

बदचलनी - (स्त्री.) - बदचलन होने की स्थिति का सूचक भाव।

बदज़बान - (वि.) (फा.) - 1. किसी के भी बारे में अनुचित या गंदी बातें कहने वाला। 2. कठोर एवं असभ्य शब्द बोलने वाला। 3. गाली गलौच करने वाला। उदा. उस बदज़बान के मुँह मत लगना।

बदज़बानी - (स्त्री.) - 1. बदज़बान होने का दुर्गुण, 2. गाली गलौच, दुष्‍टतापूर्ण शब्द, कठोर बातें।

बदज़ात - (वि.) (फा.) - + अर. नीच, कमीना, दुष्‍ट।

बदतमीज़ - (वि.) (फा.+अर.) - 1. खराब तमीज़ वाला, जिसे उचित व्यवहार की समझ न हो, शिष्‍टाचार रहित। पर्या. असभ्य, अशिष्‍ट, उद्ं दड। उदा. इस बदतमीज को कोइ्र नहीं समझा सकता।

बदतमीज़ी - (स्त्री.) - अशिष्‍टता, असभ्यता।

बदतर - (वि.) (फा.) - बुरे से बुरा, बहुत खराब। उदाहरण-बीमारी से उसकी जो बदतर हालत बना रखी है, वह देखी नहीं जाती।

बददिमाग - (वि.) (फा.+ अर.) - ज़रा-ज़रा सी बात पर बुरा मान जाने वाला या आपा खो देने वाला; अहंकारी, अभिमानी।

बददुआ - (स्त्री.) (फा.+ अर.) - किसी की अनिष्‍ट की कामना से कहा हुआ शब्द या वाक्य, शाप, अनिष्‍टकारी वचन। उदा. जीवन में किसी गरीब की बद्दुआ मत लेना।

बदन - (पुं.) (अर.) - शरीर, देह, जिस्म। जैसे: बदन टूटना। पुं. (तद्. <बदन) चेहरा, मुख। उदा. ज्यों-ज्यों सुरासा बदन बढ़ावा.....।

बदनसीब - (वि.) (फा.+ अर.) - जिसका भाग्य अत्यंत खराब हो। पर्या. अभागा, बदकिस्मत। उदा. उस बदनसीब को अभी तक नौकरी नहीं मिली।

बदनसीबी - (स्त्री.) - बदकिस्मती। उदा. वह परिवार अभी भी बदनसीबी में जी रहा है।

बदनाम - (वि.) (फा.) - जिसकी पहले प्रतिष्‍ठा रही हो पर अब जिसकी प्रतिष्‍ठा मिट्टी में मिल गई हो, जिसकी अब निंदा की जाती हो। पर्या. कुख्यात। मुहा. बद अच्छा बदनाम बुरा-बुरा काम कर लेना उतना बुरा नहीं माना जाता जितना उसके कर लेने के बाद हुई बदनामी। पर्या. कुख्याति। बदनाम होने की स्थिति का सूचक भाव।

बदबू - (स्त्री.) (फा.) - प्रदूषित गंध सड़ी-गली या विकृत वस्तुओं से निकलने वाली दुर्गंध, सड़नयुक्‍त बुरी गंध। जैसे: पास के गंदे नाले से बहुत बदबू आती है।

बदमिज़ाज़ - (वि.) (फा.+ अर.) - बुरे स्वभाव वाला; चिड़चिड़े स्वभाव वाला, चिड़चिड़ा। विलो. खुशमिज़ाज।

बदमिज़ाजी - (स्त्री.) - दुष्‍ट स्वभाव शीलता, चिड़चिड़ाहट। विलो. खुशमिज़ाजी।

बदरंग - (वि.) (फा.) - 1. जिसका रंग उड़ गया हो, फीका पड़ गया हो या खराब हो गया हो। 2. (ताश) तुरूप के पत्‍ते का अभाव (जिसकी वजह से विपक्षी की चाल को काटा न जा सके।)

बदलना अ.क्रि. - (देश.<बदल-अर.) (अर.) - 1. परिवर्तित हो जाना, स्वरूप में परिवर्तन हो जाना। 2. एक के स्थान पर दूसरे को (व्यक्‍त या वस्तु आदि को रख देना। 3. एक ही व्यक्‍ति का स्थान आदि नया कर देना। स.क्रि. देश. 1. रूप परिवर्तित कर देना। 2. व्यक्‍ति या स्थान परिवर्तित कर देना। 3. एक चीज़ देकर दूसरी लेना।

बदला - (पुं.) - (बदलना) 1. बदलने की क्रिया या भाव। उदा. उसने पड़ोसी को गेहूँ के बदले चावल दिए। 2. जैसे: के साथ तैसा व्यवहार, प्रतिशोध। बुराई का बदला बुराई से चुकाना ठीक नहीं होता।

बदलाव - (पुं.) (अर.<बदलना) - एक स्थान या स्थिति से अन्य स्थान/स्थिति में हुआ या होने वाला परिवर्तन, परिवर्तन, बदली। उदा. पिछले एक दशक से देश की आर्थिक स्थिति में बहुत बदलाव दिखाई पड़ रहा है।

बदली - (स्त्री.) (तद्<वारिदल) - 1. छाए हुए बादल। उदा. आसमान में बदली छाई हुई है, शायद बारिश हो। पुं. बादल। 2. स्त्री. (<बदलना) तबादला, transfer एक व्यक्‍ति के स्थान पर दूसरे को भेजा जाना। पर्या. तबादला, स्थानांतरण। transfer उदा. मेरे भाई की बदली दिल्ली से लखनऊ हो गई है।

बदसूरत - (वि.) (.फा.) - जिसकी शक्ल या चेहरा-मोहरा खराब हो। पर्या. कुरूप। विलो. खूबसूरत।

बदस्तूर क्रि. - (वि.) (.फा.) - दस्तूर (परंपरा/रिवाज़) के अनुसार, जैसा पहले रहा हो, वैसे ही। उदा. वर्षों पूर्व प्रारंभ हुआ नाट्योत्सव यहाँ बदस्तूर जारी है।

बदहवास - (वि.) (.फा.+अर.) - जिसका होश-हवास बुरी अवस्था में पहुँच गया हो यानी खो गया हो; अक्ल मारी जाने के कारण जो बोखला गया हो; हतबुद्धि, उद्विग्न।

बदहवासी - (स्त्री.) (.फा.+अर.) - अक्ल मारी जाने की स्थिति। पर्या. बौखलाहट, उद्विग्नता।

बदा - (वि.) (स्त्री.) - (<बदना) भाग्य में लिखा हुआ। उदा. यदि भाग्य में बदा होगा तो लॉटरी हमारे नाम खुलेगी। (<वदि) चाद्र मास का कृष्णमास, बहुत दिवस। उदा. श्रीकृष्णजन्माष्‍टमी भादो बदीअष्‍टमी को मनाई जाती है। स्त्री. फा. अपकार, बुराई, अहित। उदा. कुछ लोग बदी के बदले भी नेकी करते हैं। विलो. नेकी।

बदौलत - (अव्य.) - (फा.ब+अर. दौलत) कृपा से। उदा. आपकी बदौलत ही मैं यहाँ तक पहुँचा हूँ।

बधाई - (स्त्री.) (तद्<वर्धन) - शा.अर्थ बढ़ने का भाव। पर्या. वृद्धि‍, बढ़त। सा.अर्थ मंगल प्रसंग पर शुभकामना के शब्द। उदा. शर्माजी के घर बेटा पैदा हुआ है, इन्हें बधाई तो दे दो। congratulation

बनमानुष - (पुं.) (तत्.) - वन में रहने वाला मनुष्य की आकृति से मिलता-जुलता बिना पूँछ का बंदर प्रजाति का प्राणी जो दो पैरों से चल लेता है। जैसे: गोरिल्ला, चिंपैंजी।

बनमाली - (वि./पुं.) (तत्.) - 1. वनमाला धारण करने वाले वसुदेव पुत्र श्रीकृष्ण। 2. वन का रक्षक (उपवन में फूल उगाने और उनकी रक्षा करने वाला) माली। उदा. ‘मुझे तोड़ लेना वनमाली उस पथ पर देना तुम फेंक मातृभूमि पर शीश चढ़ाने जिस पथ जाएँ वीर अनेक’।

बनवैया - (वि.) (देश.) - 1. किसी वस्तु का निर्माण करने वाला, बनाने वाला, निर्माता। जैसे: इस संसार का बनवैया तो ईश्‍वर है। 2. बनवाने वाला।

बनाना स.क्रि. - (देश.) - प्रेर.>बनना 1. किसी वस्तु को कोई नया रूप देना। जैसे: सोने से आभूषण बनाना। 2. एक चीज से दूसरी चीज तैयार करना। जैसे: आटे से रोटी बनाना। 3. कोई नई रचना बनाना या निर्माण करना। जैसे: चित्र बनाना, भवन बनाना। मुहा. मूर्ख बनाना-उपहास करना, लाभ उठाना। बना-बनाया-पहले से तैयार। बनावटी-कृत्रिम, नकली, झूठ।

बनावटी - (वि.) (देश.) - जिसमें बनावट हो, कृत्रिम, नकली। दे. बनावट।

बनिस्बत - (अव्य.) (फा.) - की तुलना में, अपेक्षाकृत। उदा. मैं मिठाई की बनिस्बत नमकीन पदार्थ अधिक पसंद करता हूँ।

बनैला - (वि./पूं.) - जंगली, वन्य, वन का। जैसे: वनैल सुअर (जंगली सुअर)

बपौती - (स्त्री.) - (<बाप) शा.अर्थ बाप की संपत्‍ति। सा.अर्थ पिता की संपत्‍ति (पैतृक संपत्‍ति) जो पुत्र को उत्‍तराधिकारी के रूप में प्राप्‍त होती है। प्रयो. मेरी यहाँ बपौती नहीं है जिसकी मैं ही देखभाल करूँ।

बबुआ - (पुं.) (देश.>बाबू) - 1. पुत्र, बालक, बच्चों के लिए बड़ों के द्वारा प्रयुक्‍त किया जाने वाला प्यार भरा संबोधन। प्रयो. ऐ बबुआ! तनिक पानी लै आऊ। 2. कार्यालय में क्लर्क के लिए उपेक्षापूर्ण संबोधन। प्रयो. ई बबुआ कभी काम करके नहीं देता। टि. ग्रामीण प्रयोग।

बबूल - (पुं.) (तद्<बब्बूल) - गोंद उत्सर्जित करने वाला एक वृक्ष जिसके कांटे सफेद और पतले तथा फूल गोल और पीले रंग के होते हैं एवं इसमें लंबी पतली फलियाँ लगती हैं। प्रयो. बबूल की दातून दांतों के लिए बहुत उपयोगी होती है।

बयाँ/बयान - (पुं.) (अर.) - 1. बातचीत, वार्तालाप। 2. चर्चा, जि़क्र, 3. वर्णन, विवरण। जैसे: बयान करना। प्रयो. उस दुर्घटना के समय आपने जो कुछ देखा था, उसे बयान कीजिए। 4. किसी मुकदमे आदि में दोनों पक्षों का कथन। जैसे: बयान देना, बयान दर्ज करवाना। प्रयो. मैंने अदालत में अपना बयान दे दिया है/दर्ज करवा दिया है।

बयाना - (पुं.) (अर.) - बै=बिक्री+फा. अना(प्रत्यय] किसी चीज़ को खरीदने से पहले अथवा किसी काम को शुरू करने से पहले बात पक्की करने हेतु उसके मूल्य या पारिश्रमिक का वह अंश जो विक्रेता अथवा कारीगर को पहले ही दे दिया जाता है। पर्या. अग्रिम, पेशगी। earnest money

बरकरार - (वि.) (फा.+ अर.) - स्थिर, दृढ़ या अचल रहने का भाव। पर्या. कायम। प्रया. मैंने जो वादा किया था, उस पर आज भी बरकरार (कायम) हूँ।

बरख़ास्त - (फा.) - (बरख़्वास्त) 1. जिसे किसी अनुचित व्यवहार या अयोग्यता आदि के कारण नौकरी से हटा दिया गया हो। निष्कासित। प्रयो. रिश्‍वत लेकर काम करने वाले उस कर्मचारी को विभाग ने बरख़ास्त कर दिया। पर्या. पदच्युत, विसर्जित। प्रयो. आज कैप्टेन ने बहुत देर से परेड़ बरख़ास्त की।

बरगलाना स.क्रि. - (देश.) - किसी को अपनी बनावटी बातों से भ्रमित करना या फुसलाना। प्रयो. 1. तुम बच्चों को क्यों बरगला रहे हो, इन्हें खिलौने लाकर दो। 2. मैं तुम्हारे बरगलाने में नहीं आने वाला।

बरतन/बर्तन - (पुं.) - (<बरतना <वर्तन) शा.अर्थ जो बरतने के काम में आए। सा.अर्थ मिट् टी, धातु आदि का बना पात्र जो खासकर खाने-पकाने की चीजें रखने या पकाने के काम आए। पर्या. भांड, पात्र।

बरतना अ.क्रि. - (तद्< सं. वर्तन) - परस्पर व्यवहार करना। प्रयो. सास को अपनी बहू के साथ ठीक से बरतना नहीं आए तो कलह बढ़ती है। 2. काम में लेना, उपयोग करके देखना। प्रयो. इस साबुन को बरत के देखो, तुम्हें पसंद आएगा।

बरताव/बर्ताव - (पुं.) (देश.<वर्तन) - उठने, बैठने, चलने, बात करने इत्यादि का तरीका। पर्या. व्यवहार, सलूक। उदा. पता नहीं क्यों पिछले दिनों मेरे साथ उसका बरताव ठीक नहीं रहा।

बरबस क्रि.वि. - (वि.) (तद्<बल+वश) - 1. बलपूर्वक, जबर्दस्ती। उदा. वह बरबस मेरा हाथ पकडक़र घर ले गया।

बरबाद - (वि.) (.फा.) - 1. पूरी तरह से नष्‍ट हुआ। पर्या. तबाह। उदा. वर्षा न होने से किसानों की सारी फसल बरबाद हो गई। वह बरबाद घूमता रहता है।

बरसात - (स्त्री.) (तद्<बरसना<वर्षा) - 1. समुद्र से उठी भाप को आसमान में संघनित होकर बादलों से धरती पर बूँदों या धाराओं के रूप में गिरना, वह मौसम या ऋतु जब यह क्रिया घटती है। पर्या. वर्षा; वर्षाऋतु। 2. ला.अर्थ-किसी वस्तु का अधिक मात्रा में एक साथ या लगातार गिरना या प्राप्‍त होना। जैसे: फूलों की बरसात, धन की बरसात।

बरसाती [<बरसात] - (वि.) (स्त्री.) - बरसात का, बरसात में होने वाला जैसे बरसाती मेंढक। 1. मोमजामे आदि से बना हुआ वह ऊपरी पहनावा जो बरसात में भीगने से बचाता है। raincoat 2. मकान की छत पर बना हुआ ऊपर से ढका कमरा जहाँ बरसात से बचने के लिए सामान आदि रखा जाता है। 3. कोठियों और भवनों के प्रवेशद्वार पर बना वह ऊपर से ढका स्थल जहाँ मोटरगाड़ी में से सवारियाँ उतरती-चढ़ती हैं। poarch

बरात/बारात - (स्त्री.) (तद्.<वरयात्रा) - विवाह के अवसर पर वरपक्ष के लोगों का समूह जो जुलूस बनाकर विवाह स्थल या मंडप तक पहुँचता है।

बराबरी - (स्त्री.) (.फा.) - 1. किसी वस्तु, व्यक्‍ति आदि के गुण-पद आदि की दृष्‍टि से दूसरे के समान बराबर होने की स्थिति, क्रिया या भाव। 2. समता, समानता, हारजीत का निर्णय न होना equality जैसे: उस दिन कबड्डी प्रतियोगिता में दोनों पक्षों की बराबरी रही। 2. बड़ों से समानता करने की घृष्‍टता। जैसे: (i) वह क्रिकेट में सचिन तेंदूलकर की बराबरी करना चाहता है। (ii) तुम संपन्नता में उसकी बराबरी नहीं कर सकते। जैसे: बड़ों की बराबरी मत करो। 4. मुकाबला करने की भावना।

बरामद - (वि.) (.फा.) - 1. बाहर आया हुआ, सबके सामने प्रकट हुआ, प्राप्‍त। उदा. वहाँ खुदाई में तांबें और सोने के सिक्के बरामद हुए हैं। 2. खोजकर या ढूंढकर लाया गया खोया हुआ माल। उदा. पुलिस ने चोर का सारा माल बरामद कर लिया।

बरामदगी - (स्त्री.) (.फा.) - 1. प्रकट या प्राप्‍त होने का भाव। 2. खोए माल की पुन: प्राप्‍ति।

बरामदा/वरांडा - (पुं.) (.फा.) - 1. मकानों या घरों में आगे या कुछ बाहर निकला हुआ बिना द्वार का छायादार परंतु खुला हवादार छज्जा। 2. दालान, ओसारा।

बरी - (वि.) (.फा.) - किसी बंधन या दंड से छुटकारा पाया हुआ, मुक्‍त। उदा. न्यायाधीश ने उसे सभी दोषों से बरी कर दिया।

बर्खास्तगी - (स्त्री.) (.फा.) - 1. निष्कासन, नौकरी से हटाने की स्थिति, 2. विसर्जन या समाप्‍ति।

बर्तन (बरतन) - (पुं.) (तद्.) - मिट्टी या धातु का पात्र जो विशेष रूप से खाने-पीने की वस्तुएँ रखने के काम आता है। पर्या. भांडा, भांड।

बर्दाश्त/बरदाश्त - (स्त्री.) (.फा.) - 1. किसी बात या व्यवहार को सहन करने की शक्‍ति। पर्या. सहनशक्‍ति, सहनशीलता। उदा. अब बात बर्दाश्त से बाहर हो गई है। 2. सहन। उदा. बर्दाश्त करना ही होगा।

बर्फ़/बरफ़ - (स्त्री.) (.फा.) - रसा. पानी का ठोस रूप जो प्राकृतिक या कृत्रिम रूप से तापक्रम 0oसे. से नीचे हो जाने पर बन जाता है। gce, snow तुल. ओला-वायुमंडल में तापक्रम अत्यंत कम हो जाने के कारण एवं पानी के ठोस रूप धारण कर लेने के कारण वर्षा के रूप में जमीन पर गिरने वाले बर्फ के टुकड़े।

बर्फबारी - (स्त्री.) (.फा.) - 1. आसमान से लगातार भारी मात्रा में बर्फ गिरना, 2. पाला पड़ना। जिससे कुछ समय के लिए जन-जीवन अस्त-व्यस्त हो जाए।

बर्फानी - (वि.) (.फा.) - 1. बर्फ से संबंध रखने वाला/वाली वस्तु, बर्फ जैसा/जैसी ठंडी (चीज), बर्फ से ढका/ढकी। पर्या. बर्फीली। जैसे: बर्फानी मौसम, बर्फानी पहाडि़याँ।

बर्फी - (स्त्री.) (.फा.) - खोए (मावा) का चीनी से तैयार की जाने वाली एक मिठाई जो जमाने के बाद थपिया या माचिस के आकार के सदृश टुकड़ों में होती है। जैसे: खुशी के अवसर पर लोग मित्रों एवं संबंधियों को प्राय: बर्फी ही सप्रेम भेंट करते हैं।

बर्फीला - (वि.) (.फा.) - बर्फ जैसा ठंडा अथवा बर्फ से ढका। स्त्री. बर्फीली।

बर्फीली - (वि.) (.फा.) - बर्फ से ढकी हुई। जैसे: बर्फीली पहाडि़याँ।

बर्बर - (वि.) (तत्.) - असभ्य, क्रूर, या हिंसक (व्यक्‍ति)

बर्बरता - (स्त्री.) (तत्.) - (व्यक्‍ति का) असभ्य, क्रूर अथवा हिसंक व्यवहार, कर्म आदि। जैसे: बर्बरतापूर्ण व्यवहार।

बर्र/बर्रै - (पुं.) (तत्.<वरट) - मधुमक्खी की ही प्रजाति का लाल या पीले रंग का उड़नेवाला कीड़ा जो वैसा ही छोटा छत्‍ता बनाता है पर उसमें मधु इकट्ठा नहीं करता, केवल अंडे देने के लिए उसका उपयोग करता है। मधुमक्खी की ही तरह डंक भी मारता है। पर्या. ततैया।

बल - (पुं.) (तत्.) - 1. वह शक्‍ति जो दूसरे व्यक्‍ति या वस्तु को दबाती, पकड़ कर रखती, फेंकती या चलाती है। पर्या. ताकत। strength, power, might 2. भार उठाने, खींचने या धकेलने की शक्‍ति। भौ. वह प्रभाव जो विरामावस्था को गति में परिवर्तित करता है। फोर्स 3. सेना, फौज। जैसे: सैन्यबल, सीमा सुरक्षा बल। 4. आश्रय, सहारा। जैसे: पीठ के बल लेटना, मुँह के बल गिरना। पुं. तद् <वलय) 1. घुमाव, टेढ़ापन। 2. कपड़े की सिकुड़न, चमड़े की (माथे पर) सिकुड़न, झुर्रियाँ। उदा. वृद् धा वस्था के कारण उसके चेहरे की चमड़ी में बल पड़ गए हैं। 3. लचक, झुकाव। मुहा. बल खाना=लचक कर, लहरा कर, या घुमाव लेते हुए चलना। माथे पर बल पड़ना-क्रोधित होना या चिंता में पड़ना।

बलग़म - (पुं.) (अर.<बलाम) - खाँसने पर नाक और मुंह से निकलने वाला फेंफड़ों में जमा कफ। पर्या. श्‍लेष्मा। उदा. जुकाम होने पर नाक से बलग़म ज्यादा निकलता है।

बलवा - (पुं.) (अर.बल्वा) - भीड़ जनित हिंसक उपद्रव। पर्या.-दंगा, फसाद। प्रयो. बलवे को नियंत्रित करने में भारी संख्या में पुलिसबल लगा हुआ है। 2. सत्‍ता के प्रति विद्रोह, बगावत। प्रयो. सरकार बलवो को दबाने का भरसक प्रयत्‍न कर रही है।

बलवाई - (वि./पुं.) - बलवा करने वाला (जन समूह)। प्रयो. शासन ने बलवाईयों को देखते ही गोली मारने का आदेश पुलिस को दिया है।

बलवान - (वि.) (तद्<बलवान) - बल से युक्‍त। दे. बलशाली।

बलशाली - (वि.) (तत्.) - बलवाला; बलयुक्‍त; बली; ताकतवाला। उदा. भीम बहुत बलशाली था।

बला - (स्त्री.) (अर.) - 1. अचानक उपस्थित हुआ संकट, विपत्‍ति। 2. (प्रेत) बाधा, कष्‍ट। उदा. हे प्रभु! इस आयी हुई बला को समाप्‍त कर दो। मुहा. 1. बला टलना, किसी झंझट या मुसीबत से छुटकारा मिलना। 2. बला मोल लेना, जानबूझकर विपत्‍ति में फँसना।

बलात् - (अव्य.) (तत्.) - बलपूर्वक, जबरदस्ती।

बलात् अपहरण - (पुं.) - बलपूर्वक हरण करना, छीन कर ले जाना। kidnapping, abduction

बलात्कार - (पुं.) (तत्.) - बलपूर्वक यानी ज़ोर-जबर्दस्ती से किया या करवाया जाने वाला काम। 2. किसी स्त्री की इच्छा के विरूद्ध बलपूर्वक किया जाने वाला यौनाचार या संभोग। पर्या. बलात्संग, यौन-दुष्कर्म। rape

बलात्कारी - (वि.) - महिला के साथ जबर्दस्ती यौन-दुष्कर्म करने वाला। rapist

बलि - (पुं.) (तत्.) - 1. किसी देवी या देवता को अर्पित किया जाने वाला नैवेद् या भोग। 2. किसी देवी/देवता को प्रसन्न करने के लिए उसकी मूर्ति आदि के सामने किसी पशु का वध। 3. देश के लिए प्राण-न्यौछावर करना। उदा. अनेक क्रांतिकारियों ने देश की स्वतंत्रता के लिए अपने प्राणों की बलि दे दी।

बलिदान - (पुं.) (तत्.) - 1. उत्‍तम उद् देश्य के लिए प्राण देना। जैसे: देश के स्वतंत्रता के लिए भगत सिंह, राजगुरु और सुखदेव के बलिदान की कथा सुनकर हर भारतवसी का मस्‍तक उनके प्रति श्रद् धा में झुक जाता है। 2. देवी या देवता को प्रसन्न करने के लिए किसी पशु या अन्य वस्तु को काटकर चढ़ाना। पर्या. कुरबानी/कुर्बानी।

बलुई - (वि.) (देश.) - [बालु] जिसमें बालू की मात्रा अधिक हो। जैसे: बलुई मिट्टी (मृत्‍तिका) sandy clay, रेतीला/रेतीली।

बल्ला - (पुं.) (तद्<फलक) - <फलक) 1. लंबा और कुछ मोटा शहतीर, जो छत आदि को आधार देने के लिए प्राय: लगाया जाता है, बड़ी और मोटी बल्ली। 2. काष्‍ठनिर्मित खेल का एक उपकरण जिससे क्रिकेट, बेसबॉल, टेबल टेनिस आदि में गेंद पर प्रहार किया जाता है। मुहा. बल्लियों उछलना-बहुत अधिक खुश होना (जिसके परिणामस्वरूप शरीर में उछलने जैसी हरकत बढ़ जाती है।)

बवंडर - (पुं.) (देश.<वायुमंडल) - 1. बहुत तेज़ आँधी, तूफान। 2. चक्र की तरह घूमती और ऊपर की ओर उठती हवा जिसमें धूल के गुबार घूमते हुए दिखते हैं। पर्या. चक्रवात। मुहा. बवंडर खड़ा करना-शांति स्थिति में तूफान-से हालात पैदा कर देना।

बवाल - (पुं.) (अर.) - 1. अचानक उपस्थित ऐसी समस्या जिसका निराकरण व्यक्‍ति के वश से बाहर हो। उदा. यह कैसा बवाल आ गया। 2. झंझट, परेशानी, जंजाल। उदा. तुम परदेश में किसी बवाल में मत पड़ना। 3. उपद्रव, उदा. तुम सब ने यहाँ क्यों बवाल मचा रखा है।

बस - (स्त्री.) (अव्य.) - (अं.) मोटर चालि लंबी गाड़ी जो प्राय: किराए पर यात्रियों को पूर्व निर्धारित गंतव्य तक ले जाती है। अव्य. फा. अब और अधिक नहीं (चाहिए), इतना भर काफी है; अलम्। उदा. मेरा पेट भर गया, बस अब और कुछ नहीं चाहिए। पुं. (तद्<वश) सामर्थ्य। मुहा. बस चलना-सामर्थ्य शक्‍ति में होना। मेरा बच चला हो तुम्हारी तरक्की हो जाएगी।

बसना अ.क्रि. - (तद्<वसन) - 1. व्यक्‍ति को अपने जीवनयापन के लिए कहीं स्थायी निवास करना। जैसे: मनुष्य ग्राम, नगर, झोपड़ी, महल आदि में बसते हैं। 2. आबाद होना। जैसे: पाकिस्तान से उजड़े लोग भारत में बस गए। 3. कुछ समय के लिए ठहरना। जैसे: वे यात्रा करते हुए काशी में दो दिन बसे। 4. ला.अर्थ मन में रहना/प्रतिष्‍ठित होना। सदा ध्यान में रहना। उदा. ‘राम लखन सीता सहित हृदय बसहूँ सूरभुप। हनुमान चालीसा।

बसर - (पुं.) - (फार.) जीवन की आवश्यकताएँ पूरी करते हुए जीवन बिताने का भाव। पर्या. निर्वाह, गुज़र-बसर। उदा. भयानक महंगाई के कारण गरीबों का किसी तरह गुज़र-बसर हो जाता है।

बसाना - - स;क्रि.. 1. स्थान एवं अन्य सुविधाएँ देकर बसने को प्रेरित करना; 2. बसने का प्रबंध करना। मुहा. -घर बसाना-विवाह करना।

बसेरा - (पुं.) (देश.<वास) - ठहरने या विश्राम करने का स्थान या ठिकाना। जैसे: पक्षियों का बसेरा। 2. अस्थायी आवास। जैसे: रैन बसेरा।

बस्ता - (वि.) (फा.) - शा.अर्थ बँधा हुआ। जैसे: दस्तबस्‍ता: (हाथ बांधे हुए)। पुं. 2. पुस्तकें, बही, कागज आदि के बाँधने का चौकोर वस्त्र। 3. विद्यार्थियों के उपयोग में आने वाला विशेष प्रकार का एक थैला जिसमें भरकर पुस्तकें आदि ले जाई जाती हैं। जैसे: प्राथमिक छात्रों के बस्ते भारी नहीं होने चाहिए। 4. फाईलों का बँधा रूप जैसे: वकील का बस्ता, लेखपाल का बस्ता।

बस्ती - (स्त्री.) (तद्<वसति) - 1. वह स्थान जहाँ कुछ/कई लोग घर बना कर पास-पास रहते हों; बसे हुए मकानों का झुंड (समूह) habitation शा.अर्थ. आबादी उदा­. जंगल खत्‍म हो जाने पर आपको भीलों की बस्ती मिलेगी। 2. बाहर से आकर लोगों ने बसाया नया आवासीय परिसर। colony

बहकना अ.क्रि. - (देश.) - किसी के कहने पर या गलत संगति के कारण गलत बात को मानना या अनुचित आचरण करना। भुलावे में आना उदा. वह कुसंगति के कारण बहक गया है।

बहकाना - - स.क्रि. (<बहकना) प्रेरणार्थक प्रयोग। 1. किसी को अपने स्वार्थवश सही रास्ते से गलत मार्ग में प्रवृत्‍त करना। उदा. कल वह मुझे बहकाकर विद्यालय के बजाय सिनेमाघर ले गया। 2. (बच्‍चों को) बहलाना।

बहना - - अ.क्रि. 1. किसी द्रव या तरल पदार्थ का धारा के रूप में ऊपरी धरातल से नीचे की ओर बहना। 2. हवा का चलना उदा. हवा मंद-मंद बह रही है। 3. प्रवाहित होना। उदा. नदी बहती है।

बहनोई - (पुं.) (तद्<भगिनी पति) - बहन/बहिन का पति, जीजाजी।

बहरहाल क्रि. - (क्रि.वि.) (फा.+ अर.) - फिर भी, तो भी, खैर, अस्तु।

बहलाना - - स.क्रि. (फा. बहाल/हि. बहलना) 1. चिंतित या दु:खी व्यक्‍ति का मन विशेष प्रकार की प्रासंगिक बातें कर दूसरी ओर ले जाना। 2. मनोरंजन या चित्‍त प्रसन्न करने की बातें करना। 3. बातों में लगाकर या कोई प्रिय वस्तु देकर किसी के ध्यान या हठ को भुलावा देने का प्रयत्‍न करना। बहकाना। उदा. माँ ने रोते हुए बालक को कुछ मीठा या मनपसंद खाद्य या वस्‍तु पदार्थ देकर बहलाया।

बहस - (स्त्री.) (अर.) - दो या दो से अधिक व्यक्‍तियों के बीच चल रही ऐसी जोश या क्रोध भरी बातचीत जिसमें हर व्यक्‍ति अपने कथन की पुष्‍टि में या दूसरे की बात का खंडन करने में अपने-अपने तर्क प्रस्तुत करता है। वाद-विवाद।

बहादुर - (वि.) (फा.<बहादुर<तुर्की बहादर) - जो निर्भय होकर युद् ध करे। पर्या. वीर, पराक्रमी, शूर।

बहादुरी - (स्त्री.) (.फा.) - वीर होने का भाव। पर्या. वीरता, शौर्य, पराक्रम। उदा. झांसी की रानी लक्ष्मीबाई की बहादुरी पर हमें गर्व है।

बहाना - (पुं.) (.फा.) - सःक्रि. (बहना का प्रेर. रूप) 1. किसी द्रव पदार्थ को बहने देना। जैसे: खून की नदी बहाना, आँसू बहाना। 2. किसी वस्तु को बहती धारा में डाल देना। जैसे: फूल बहाना। 3. व्यर्थ में व्यय करना, लुटाना। जैसे: पानी की तरह पैसा। 4. काम न करने के लिए या आत्मरक्षा के लिए झूठ बोलना। 5. तुच्छ या झूठा कारण। उदा. बीमारी तो बस बहाना है, वास्तव में वह आना ही नहीं चाहता।

बहार - (स्त्री.) (.फा.) - 1. वसंत ऋतु। उदा. बहार का मौसम आ गया है, इसलिए चारों ओर फूल खिले दिखाई पड़ते हैं। 2. आनंद, मज़ा, लुत्फ़। उदा. लॉटरी क्या निकली, उसके जीवन में बहार आ गई।

बहाल - (वि.) (.फा.+अर.) - पहले वाली हालत में आया हुआ, पूर्ववत। पर्या. पुन:स्थापित। उदा. वह नौकरी से निकाला जा चुका था, पर अब बहाल हो गया है।

बहाली - (स्त्री.) (.फा.+अर.) - पहले वाली स्थिति में आ जाना। पर्या. पुन:स्थापना।

बहाव - (पुं.) - (<बहना+आव प्रत्यय) द्रव की वह गति जो ऊँचाई से नीचे की ओर बढ़ती है। पर्या. प्रवाह। उदा. पहाड़ी इलाके में नदी का बहाव तेज़ होता है, पर मैदानी इलाके में वह धीमा पड़ जाता है।

बहि:क्षेपण - (पुं.) (तत्.) - शा.अर्थ बाहर की ओर फेंकने की क्रिया। आयु. पाचन-तंत्र से बिना पचे हुए तथा अनुपयुक्‍त पदार्थों का बाहर निकल जाना। तु. अंतग्रर्हण।

बहिरंग रोगी - (पुं.) (तत्.) - आयु. रोगी जिसे चिकित्सक अपने परामर्श कक्ष में ही देखकर उपचार के लिए नुस्ख़ा लिख दे। (यानी जिसे अस्पताल में भर्ती करने की आवश्यकता न पड़े) outdoor patient तु. अंतरंग रोगी।

बहिरंग - (वि.) (तत्.) - बाहर का, बाहरी। outdooar) तु. अंतरंग।

बहिर्गमन - (पुं.) (तत्.) - (बहि:गमन) शा.अर्थ बाहर जाना या निकलना। राज. किसी सभा, समाज या सदन की बैठक में चल रही बहस के दौरान दूसरों से अपने विचारों की स्वीकृति न मिलने की स्थिति में रुष्‍ट होकर अपना विरोध जताते हुए सभाभवन आदि से बाहर निकल जाने की स्थिति। walk out तु. बहिष्कार।

बहिष्करण बाहर करना। - (दे.) - तु. ‘बहिष्कार’।

बहिष्कार - (पुं.) (तत्.) - 1. किसी व्यक्‍ति को अपने समाज से बाहर कर देना और उससे सभी संपर्क समाप्‍त कर देना। पर्या. निष्कासन। जैसे: जाति से बहिष्कार/बहिष्करण। 2. किसी विचार, मत, निर्णय या कार्यवाही आदि का विरोध करते हुए उससे स्वयं को अलग कर देना। boycott तु. बहिर्गमन।

बहिष्कृत - (वि.) (दे.) - बाहर किया हुआ। दे. बहिष्कार।

बहीखाता - (पुं.) (देश.) - व्यापारियों की वह पंजिका या पुस्तिका जिसमें लेन-देन, क्रय-विक्रय आदि से संबंधित सब प्रकार के लेखे या हिसाब लिखे जाते हैं। लेखा-बही। account book

बहु - (वि.) (तत्.) - एकाधिक, ज्यादा, अनेक। जैसे: बहुजन हिताय, बहुजन सुखाय। अथवा-‘बहु-विवाह’ प्रथा अर्थात् एक से अधिक विवाह करने का रिवाज़।

बहुकोशिक - (वि.) (तत्.) - एक से अधिक कोशिकाओं वाले जीवों के लिए प्रयोग में आने वाला शब्द। प्रोटोजोआ संघ (फाइलम) को छोडक़र शेष सभी प्राणी इसी कोटि में आते हैं। तु. एककोशिक। multicellular

बहुतायत - (स्त्री.) - (<बहुत<बहु) अधिक मात्रा या संख्या में होने का भाव। पर्या. अधिकता, प्रचुरता। उदा. इस विद्यालय में अध्यापकों की तुलना में अध्यापिकाओं की बहुतायत है।

बहुदलीय - (वि.) (तत्.) - बहुत से दलों से मिलकर बना/बनी। जैसे: बहुदलीय सरकार।

बहुधा क्रि.वि. - (वि.) (तत्.) - 1. अनेक बार, कई बार, बार-बार। 2. प्राय:, अकसर।

बहुपक्षीय - (वि.) (तत्.) - कई पक्षों से संबंधित; दो या दो अधिक पक्षों के बीच होने वाला या हुआ। जैसे: बहुपक्षीय समझौता, बहुपक्षीय करार।

बहुप्रचलित - (वि.) (तत्.) - 1. जो समयानुसार बहुत अधिक प्रचलन में हो। 2. अत्यंत प्रसिद्ध। जैसे: 1. बहुप्रचलित कोई फैशन। 2. बहुप्रचलित कोई नाटक।

बहुभाषी - (वि.) (तत्.) - 1. एकाधिक भाषाओं में संप्रेषण क्षमता रखने वाला (व्यक्‍ति)। 2. (वह समाज) जिसमें एकाधिक भाषाएँ बोली और समझी जा रही हों। टि. पर यह आवश्यक नहीं कि हर व्यक्‍ति उन सभी भाषाओं को जाने ही।

बहुभुज - (वि.) (तत्.) - 1. ज्या. अनेक कोणों और अनेक भुजाओं (प्राय: चार से अधिक) वाली (समतलीय बंद आकृति) polygen

बहुमत - (पुं.) (तत्.) - किसी वर्ग या समूह के अधिकतर यानी कम से कम आधे से अधिक लोगो के विचारों में एकता। उदा. 1. लोकतंत्र में जो दल बहुमत में होता है वह शासन करता है। majority विलो. अल्पमत।

बहुमुखी - (वि.) (तत्.) - शा.अर्थ जिसके बहुत से मुख हों। सा.अर्थ 1. अनेक विषयों का (ज्ञाता) जैसे-बहुमुखी प्रतिभा वाला व्यक्‍ति। 2. एक ही केंद्र से अनेक दिशाओं में जाने वाला। जैसे: नई दिल्ली में राजीव चौक वाला बहुमुखी मार्ग।

बहुमूर्तिदर्शी पुं - (तत्.) - एक-दूसरे से किसी कोण पर रखे दर्पणों द्वारा अनेक प्रतिबिंबों के बनने की विधि। kaleisdoscope

बहुमूल्य - (वि.) (तत्.) - 1. जिसका मूल्य सामान्य से कहीं अधिक हो, अधिक मूल्य का। castly 2. कीमत और दुर्लभ दोनों ही। जैसे: सोना, platinum जैसी बहुमूल्य वस्तुएँ।

बहुरंगा/बहुरंगी - (वि.) (तत्.) - 1. अनेक रंगों वाला/से युक्‍त। उदा. शीशमहल बहुरंगी शीशों से जगमगा रहा था। 2. विविध रूपों, गुणों, विशेषताओं से युक्‍त। उदा. भारतीय संस्कृति बहुरंगी है।

बहुरना अ.क्रि. - (देश.) - (जाने के बाद) वापस आना, लौटना। उदा. तुम्‍हारे अच्छे दिन पुन: बहुरेंगे। टि. ग्रामीण प्रयोग।

बहुराष्‍ट्रीय कंपनी - (स्त्री.) (तत्+अं.) - वह बड़ी कंपनी जिसका व्यवसाय दो या उससे अधिक देशों में फैला हो। multinational company

बहुरि क्रि.वि. - (वि.) (देश.) - (1.) वापस लौटकर। उदा. हनुमत बहुरि राम पहिं आये। (ii) फिर, दुबारा। उदा. औषधि के प्रभाव से वह बहुरि जी उठ्यौ। टि. ग्रामीण प्रयोग।

बहुरि-बहुरि (क्रि.वि.) - (वि.) - बार-बार। वत्स!बहुरि-बहुरि कहियो राम को संदेश। टि. ग्रामीण या काव्य में प्रयोग।

बहुरिया - (स्त्री.) (तद्>वधूटिका) - 1. नई ब्याही बहू, नववधू। उदा. बहुरिया को सब सगुन देहिं। 2. पुत्रवधू। टि. ग्रामीण अचंल का प्रयोग।

बहुरूपिया - (पुं.) (तद्) - 1. वह व्यक्‍ति जो बार-बार अपना रूप बदलकर हमारे सामने आता है। 2. वह कलाकार जो विविध स्वांग धारण कर हमारा मनोरंजन करता है। 3. भाषा, वेश या अपना व्यवहार बदलने में माहिर।

बहुल - (वि.) (तत्.) - तुलनात्मक दृष्‍टि से मात्रा में अधिक/कहीं ज्यादा। उदा. चाँदनी चौक नई दिल्ली की तुलना में जनबहुल क्षेत्र है।

बहुलक् - (पुं.) (तत्.) - 1. कृष्‍णपक्ष 2. अग्‍नि 3. आकाश।

बहुलता - (स्त्री.) (तत्.) - तुलनात्मक दृष्‍टि से बहुत या अधिक होने का भाव। अधिकता, प्रचुरता, बहुतायत। उदा. हमारे देश में भाषाओं, धर्मों, रीति-रिवाजों आदि की बहुलता है।

बहुसंख्यक - (वि.) (तत्.) - 1. तुलनात्मक दृष्‍टि से संख्या में दूसरों से कहीं अधिक। उदा. भारत में हिंदू अन्य धर्मावलंबियों की तुलना में बहुसंख्यक है। 2. शा.अर्थ. संख्‍या में बहुत/अधिक

बहू - (स्त्री.) (तद्<वधू) - 1. नवविवाहिता स्त्री, दुलहिन। 2. पत्‍नी। 3. अगली पीढ़ी के व्यक्‍ति (पुत्र, भतीजा, आदि) की पत्‍नी।

बहेलिया - (पुं.) (देश.) - वह व्यक्‍ति जो चिडि़यों कों पकड़कर बेचने से या उनका शिकार कर अपनी जीविका कमाता है। पर्या. चिड़ीमार, व्याध। प्रयो. बहेलिए ने जाल फैलाकर कबूतरों को पकड़ा।

बाँग - (स्त्री.) (.फा.) - 1. तेज़ और कर्कश ध्वनि, ऊँची आवाज़। जैसे: मुर्गे की बांग। 2. अजान

बाँचना - - स.क्रि. लिखे हुए को बोलकर सुनाना या पढ़ना। प्रयो. सुरेश मेरा लिखा हुआ निबंध बाँच रहा है।

बाँझ - (स्त्री.) (तद्<वंध्या) - वह स्त्री या मादा पशु जिसके किसी शारीरिक दोष के कारण बच्चे नहीं होते। पर्या. वंध्या। उदा. ‘बांझ कि जान प्रसव कइ पीड़ा।’ (तुलसी-रामचरित मानस)

बाँझपन - (पुं.) - बाँझ होने की अवस्था।

बाँटना स.क्रि. - (तद्) - बण्टन) 1. किसी वस्तु, पदार्थ या संपत्‍ति, अधिकार आदि को अनेक भागों में विभाजित करना। अपनी संपत्‍ति को पुत्र-पुत्री आदि में बाँटना।, वितरण करना। जैसे : प्रसाद बाँटना।

बाँदी - (स्त्री.) (.फा.बंदा) - परिचारिका, दासी। प्रयो. पुराने जमाने में राजमहलों में रानियों की सेवा में कई बाँदियाँ तैनात रहती थीं।

बाँदी - (स्त्री.) - (हि. बन्दा) दासी, परिचारिका। उदा. पहले राजमहल में अनेक बाँदियाँ होती थीं।

बाँध - (पुं.) (तद्.) - जिससे बाँधा जाए, बहते पानी को रोकने के लिए बनाई गई कच्ची या पक्की मेंड या दीवार। Dam जैसे: भाखाडा बाँध।

बाँधना स.क्रि. - (तद्.<बंधन) - 1. फैली या बिखरी वस्तुओं को एकत्रित करके कसने या जकड़ने के लिए रस्सी, कपड़ा इत्यादि लपेटकर गाँठ लगाना। 2. किसी अपराधी को रस्सी, हथकड़ी आदि के माध्यम से काबू में करना। 3. नियमों, उपनियमों आदि द्वारा नियंत्रित करना। 4. पुस्तक आदि की जिल्द बनाना। 5. विचारों का स्‍थरिकरण 6. पशु आदि को रस्‍सी या जंजीर से बाँधना जैसे: मनसूबा बॉंधना, खूँटे पर अटकना

बाँस - (पुं.) (तद्.<वंश) - 1. घास की प्रजाति की एक लंबी, गांठदार, प्रसिद्ध वनस्पति। इसे चीरकर इसके पतले हिस्सों से टोकरे, पंखे, सूप इत्यादि उपकरण बनाए जाते हैं। 2. लगभग- सवा तीन गज के बराबर की भूमि या दूरी की माप

बाँसुरी - (पुं.) (तद्.<वंश) - पहले बाँस का बना सातछिद्रों से युक्‍त एक सुषिर वाद्य यंत्र जो मुंह से फूँककर बजाया जाता है। पर्या. मुरली, वंशी, वेणु आदि। जैसे: बांसुरी वादक हरिप्रसाद चौरसिया।

बाँह - (स्त्री.) (तद्<बाहु) - 1. कंधों से दोनों ओर लटका हुआ शरीर का भाग, भुजा। 2. कमीज़ आदि का इसी आकृति वाला भाग। मुहा. 1. बाँह चढ़ाना=कुछ करने के लिए या लड़ने के लिए तैयार हो जाना। 2. बाँह पकड़ना=सहारा देना/अपनाना, विवाह करना।

बाकायदा क्रि. - (क्रि.वि.) (फा.) - (बाकाइद) कायदे से, विधिपूर्वक/नियम पूर्वक। उदा. उसने अपने कार्यक्रम में बाकायदा मुझे पत्र लिखकर बुलाया है। टि. फा. उपसर्ग बा=साथ, सहित और बे=बिना के प्रयोग में सावधानी अपेक्षित है। जैसे: बाकायदा-नियम से और बेकायदा-नियम विरूद्ध।

बाखबर - (वि.) (फा.) - [फा.बा+अर.खबर] शा.अर्थ खबरों के साथ। सा.अर्थ 1. किसी बात से सचेत रहने वाला।, सावधान, सतर्क, होशियार। 2. जानकार, वाकिफ। 3. जिसे हर बात की खबर हो। जैसे-वह पड़ोस में होने वाली हर समस्या से बाखबर है।

बाखरि - (स्त्री.) (देश.) - (हि. बखरी) साधारण रूप से बना हुआ वह घर जिसमें यथासंभव पशुओं के लिए भी स्थान होता है। पर्या. मकान, घर, बखरिया। टि. ग्रामीण प्रयोग, काव्य में प्रयुक्‍त।

बागडोर - (स्त्री.) (तद्.<वल्गा+दोर) - व्यु.अर्थ बाग = लगाम + डोर=रस्सी। टि. घोड़े के मुंह में लगी लोहे की कड़ी बाग कहलाती है और उसमें बँधी रस्सी डोर। सा.अर्थ किसी कार्य को कुशलतापूर्वक चलाने/पूरा करने की जिम्मेदारी। उदा. अकबर की मृत्यु के बाद शासन की बागडोर जहाँगीर के हाथ आई।

बागबान/बागवान - (पुं.) (फा.) - (प्र.) बाग (वाटिका) लगाने और उसकी देखभाल करने वाला। पर्या. उद्यानपाल, माली।

बागवत - (स्त्री.) (अर.) - बागी होने की स्थिति या अवस्था। पर्या. राजद्रोह। उदा. सन 1857 की बगावत में मंगल पांडे और रानी लक्ष्मीबाई का योगदान अविस्मरणीय है।

बागवानी/बागवानी - (स्त्री.) (.फा.) - बगीचे में फल-फूल के पौधे, घास, झाड़ी इत्यादि लगाने और उनकी देखभाल करने की विद्या या शास्त्र। पर्या. उद्यानकृषि। gardening

बागा - (पुं.) (देश.) - बोलियों में प्रयुक्‍त शब्द। अंगरखे की तरह का एक पुराना पहनावा, जो घुटने तक लंबा होता था और जिसमें बाँधने के बंध लगे होते थे। पर्या. जामा।

बागान - (पुं.) (.फा.) - 1. बागों का समूह, बाग का बहुवचन। जैसे: चाय बागान।

बागी क्रि./पुं. - (पुं.) (अर.) - व्यक्‍ति या समूह जो राजसत्‍ता के विरूद्ध विद्रोह (बगावत) करे। पर्या. विद्रोही, राजद्रोही। जैसे: 1857 की बागी फौजी टुकड़ी।

बाज - (पुं.) (अर.) - बहुत तेज़ उड़ने वाला और लंबी नुकीली चोंच वाला एक प्रसिद्ध शिकारी पक्षी। पर्या. श्येन। उदा. ‘चिडि़यों से मैं बाज़ लडाऊँ’। (गुरु गोविंद सिंह) 2. वि. फा. (i) वंचित, रहित। मुहा. बाज आना=जान-बूझकर वंचित रहना या दूर रहना। बाज न आना=छोड़ न पाना। उदा. लगता है, तुम मुझे मूर्ख बनाने से बाज़ न आओगे। (ii) कोई-कोई। उदा. बाज़ लोग ऐसे होते हैं जो देश के लिए मर मिटना जानते हैं। प्रत्य. फा. 3. वाला, व्यसनी, शौकीन। जैसे: बहानेबाज़, पतंगबाज, नशेबाज़।

बाज़ार - (पुं.) (.फा.) - 1. वह स्थान जहाँ प्रयोग आने वाली विविध वस्तुएँ खरीदी जा सकें।, मंडी। मुहा. बाजार गर्म होना=किसी वस्तु या काम की अधिकता होना। बाजार गिरना=भाव कम होना, मंदी होना। बाजार लगाना/तमाम वस्तुओं को इधर-उधर फैलाकर रखना। 2. निश्‍चित साप्‍ताहिक दिन पर लगने वाली दुकानें, हाट, पैठ।

बाजारवाद - (पुं.) (.फा.) - तत् वह आर्थिक सिद् धांत जिसके अनुसार कोई भी लेखन, वस्तु निर्माण आदि का कार्य व्यक्‍ति के हित को ध्यान में रखकर केवल बाजार की दृष्‍टि से ज्यादा से ज्यादा लाभ कमाने के लिए किया जाता है।

बाज़ारू - (वि.) (.फा.बाज़ार) - 1. जो बाज़ार से संबंधित हो, बाज़ार का। 2. जो उत्‍तम प्रकार का न हो, साधारण, घटिया। प्रयो. यहाँ बाज़ारू भाषा में बात मत करो।

बाज़ी - (स्त्री.) (.फा.) - ऐसी शर्त या खेल जिसमें हार-जीत या धन इत्यादि दांव पर लगा हो। उदा. ‘हो जाए एक ताश की बाज़ी’। मुहा. प्राणों की बाज़ी=प्राण रहें या जाएं, परवाह नहीं है इस प्रकार की भावना।

बाजीगर - (पुं.) (.फा.बाज़ीग़र) - 1. वह व्यक्‍ति जो जनता के सामने अपनी कलाबाजियाँ दिखाता है। पर्या. नट। तु. जादूगर।

बाजीगरी - (स्त्री.) (.फा.) - बाजीगर का व्यवसाय या खेल-तमाशा।

बाज़ू - (पुं.) (.फा.) - 1. बाँह, भुजा। प्रयो. देंखें तुम्हारी बाजुओं में कितनी ताकत है। 2. पक्ष, भाग, दिशा। उदा. हमारे विद्यालय के दाहिनी बाजू में अस्पताल है।

बाट - (पुं.) (तद्.वर्त्मन) - मार्ग, रास्ता। उदा. प्राण जाहिं केहि बाट (तुलसी, रामचरितमानस) मुहा. बाट जोहना=किसी की प्रतीक्षा करना।

बाटी - (स्त्री.) (तद्<वटी) - 1. कंडों/उपलों की आग पर सेंककर बनायी जाने वाली एक प्रकार की छोटी, मोटी और गोल रोटी। राजस्थान, मालवा आदि क्षेत्रों में प्रसिद् ध दाल-बाटी एक विशेष पकवान। 2. पूर्वी उत्‍तर प्रदेश में आटे की लोई में सत्तू भरकर बनायी जाने वाली विशेष रोटी जिसे मकुनी भी कहते हैं। बिहार में इसे लिट् ठी कहते हैं जिसे ‘चोखे’ के साथ खाया जाता है।

बाड़ - (स्त्री.) (देश.) - खेत, बाग, पशुघर आदि जानवरों से रक्षा के लिए तार, बांस, थूहर आदि से बना घेरा। प्रयो. सब्जी वाले खेतों एवं फल वाले बागों की रक्षा बाड़ लगाकर ही की जाती है।

बाड़ा - (पुं.) (तद्.<वाट् प्रा. वाड) - चारों ओर से घिरा हुआ कोई भूखंड (जो प्राय: पशुपालन आदि के लिए तथा उनकी सुरक्षा के लिए चारों ओर से घेरा जाता है।)

बाड़ी - (स्त्री.) (तद्<वाटी>वाटिका) - 1. साग-सब्जी या फूल के पौधे उगाने के लिए बनाई गई क्यारियों का समूह। 2. गृह, घर, मंदिर आदि का सूचक बांग्ला से गृहीत शब्द। जैसे: कालीबाड़ी।

बाढ़ - (स्त्री.) (तद्<वृद्धि) - 1. बढ़ने का भाव, वृद्धि , अधिकता। 2. नदी या जलाशय में पानी की आमद बढ़ जाने पर उसका किनारा तोड़/लांघकर जल के चारों ओर फैल जाने और जन-धन, पेड़-पौधों आदि की हानि हो जाने की स्थिति। उदा. अधिक वर्षा होने की वजह से यमुना में बाढ़ आई हुई है। 3. किसी भी बात की अधिकता, भरमार। उदा. आजकल फैशन के वस्त्रों की बाढ़-सी आ गई है।

बाण - (पुं.) (तत्.) - युद्ध या आखेट इत्यादि में प्रयुक्‍त एक अस्त्र, जो सरकंडे की सींक पर नोंकदार लोहे का टुकड़ा लगाकर बनाया जाता है तथा धनुष की सहायता से चलाया जाता है। पर्या. तीर, शर।

बातूनी - (वि.) - (<बात) बहुत बातें करने वाला। पर्या. बकवादी, वाचाल। उदा. वह बहुत बातूनी है, उस पर विश्‍वास मत करना।

बादल - (पुं.) (तद्<वारिद) - सूर्य के ताप से समुद्र के पानी का भाप बनकर आसमान में तैरता वह संघनित रूप जो फिर पानी की बूँदे या धार बनकर पृथ्वी पर बरसता है। पर्या. मेघ, घन, पर्जन्य।

बादामी - (वि.) (.फा.) - (बादाम+ई) 1. बादाम के आकार वाला। जैसे: बादामी आँखें। 2. बादाम के (छिल्के के) रंगवाला। प्रयो. बादामी रंग की गाड़ी, बादामी कागज।

बाधक - (वि.) (तत्.) - जो बाधा या रूकावट उत्पन्न करे। उदा. आप उसकी उन्‍नति में बाधक मत बनें।

बाधा - (स्त्री.) (तत्.) - किसी काम में पैदा हुइ या पैदा की गई रूकावट। पर्या. अड़चन, रोक, विघ्न, व्यवधान।

बाध्य - (वि.) (तत्.) - जो किसी दबाव के कारण कुछ करने या सहने के लिए मज़बूर हो। पर्या. विवश, बेबस, लाचार।

बाध्यता - (स्त्री.) (तत्.) - बाध्य होने का भाव। ऐसा दबाव जिसके कारण कुछ करने या सहने के लिए लाचार/मजबूर हो। पर्या. लाचारी, विवशता, बेबसी।

बानगी - (स्त्री.) (तद्.<वर्णिका) - किसी भी वस्तु या काम का वह अंश जो उसके संपूर्ण स्वरूप को व्यक्‍त करने में समर्थ हो। पर्या. नमूना। उदा. गेहूँ की बानगी लेते आना, पहले उसे देखकर फिर खरीदने की सोचेंगे।

बाना - (पुं.) (पुं.) - (<बनाना) पोशाक, वेशभूषा। उदा. प्रत्येक प्रांत के लोगों का बाना अलग-अलग है। तद् वयन) कपड़ा बुनते समय चौड़ाई के बल में लगा हुआ धागा। तु. ताना।

बानी - (स्त्री.) (तद्.<वाणी) - 1. मुंह से निकलने वाली सार्थक ध्वनि। 2. सरस्वती (वाणी की अधिष्‍ठात्री), 3. साधु-महात्माओं के उपदेश। जैसे: कबीर की बानी, गुरु नानक की बानी।

बाबा - (पुं.) (.फा.) - 1. पिता का पिता, दादा, पितामह। 2. (लाक्ष.) वृद्ध पुरुषों को आदर देने के लिए संबोधन। 3. साधू-संन्‍यासियों का सम्मानपूर्वक संबोधन। जैसे: इस समय कई बाबा भिक्षा के लिए आए हुए हैं। 4. (यूरोपीय भाषा से आगत) छोटा बच्चा।

बाबोदाना - (पुं.) (.फा.) - 1. जल और अन्न या अन्न-जल 2. जीविका, रोज़ी जैसे: जब तक यहाँ का आबोदाना रहेगा, तब तक रहेंगे। मुहा. आबोदाना उठ जाना = किसी स्थान विशेष में जीविका का साधन न रह जाना।

बामशक्कत क्रि.वि. - (वि.) (.फा.) - परिश्रमपूर्वक। उदा. मुजरिम को दो साल की सज़ा बामशक्कत सुनाई गई।

बायलर - (पुं.) - (अं.) पहले रेलगाड़ी में भाप के एंजिन के लिए पानी रखने के लिए लोहे का बड़ा पीपा होता था जो बायलर कहलाता था। ईंधन जलाकर या अब बिजली का उपयोगकर पानी गरम करने वाला कोई भी उपकरण।

बायाँ - (वि.) (तद्<वाम) - पूर्व की ओर मुँह करके खड़े होने पर उत्‍तर दिशा की ओर का अंग। (स्त्री-बाइंर्) दाहिने का उल्टा। जैसे: बायाँ हाथ।

बायोगैस - (स्त्री.) - (अं.) जैविक द्रव्यों के सड़ने पर रासायनिक प्रक्रिया से उत्पन्न गैस, जो मुख्यत: मीथेन और कार्बन-डाईऑक्साइड का मिश्रण होता है। इसका उपयोग मुख्यत: जलाने में होता है।

बारंबार क्रि.वि. - (वि.) (तद्<वारंबार) - बार-बार, पुन:-पुन:।

बारंबारता - (स्त्री.) (तद्<वारंवारता) - बार-बार घटित होने का भाव या प्रक्रम। frequency

बार - (पुं.) (तद्.<वार, द्वार) - 1. द्वार, दरवाज़ा, आश्रय स्थान। जैसे: घर-बार। स्त्री. तद् <वार) दफा, मर्तबा। जैसे: हरबार, बार-बार। 3. (अं.) वह स्थान जहाँ बैठकर शराब पी जा सके। 4. न्यायालय के अहाते में वकीलों के बैठने का स्थान। विशेष-'बालक' या 'बालों' के लिए हिंदी की बोलियों में प्रयुक्‍त शब्द।

बारकोड - (पुं.) - (अं.) (कंप्‍यूटर भाषा) 1. किसी भी विभाग के द्वारा या प्रकाशन विभाग के कंप्‍यूटर द्वारा विविध रेखाओं के माध्यम से किसी कार्ड, फार्म या पुस्तक आदि में अंकित किया गया वह चिह् न जो उसका पूर्ण परिचय दे सकता है। 2. कंप्‍यूटरीकृत, परिचायत्मक विशेष रेखायुक्‍त चिह् न।

बारिश - (स्त्री.) (फा.) - दे. ‘वर्षा’, बरसात।

बारीक - (वि.) (फा.) - 1. महीन, पतला। उदा. बारीक पिसाई; बारीक कपड़ा। fine 2. सूक्ष्म, जो जल्दी समझ में न आ। उदा. ‘कूदना’ और ‘फांदना’ क्रियाओं में अर्थ संबंध बारीक अंतर विचारणीय है।

बारीकी - (स्त्री.) (फा.) - बारीक होने का भाव, पतलापन, सूक्ष्मता। दे. बारीक़।

बाल अपराध - (पुं.) (तत्.) - समा. 10 वर्ष से 18 वर्ष तक की आयु वाले युवा वर्ग द्वारा समाज स्वीकृत नियमों को तोड़ने वाला अपराध। ऐसे अपराधियों को सज़ा न देकर उनके लिए सुधारात्मक उपाय किए जाते हैं। child delinquency

बाल-केंद्रित - (वि.) (तत्.) - (ऐसा कार्यक्रम जिसमें मुख्यत: बालकों को ध्यान में रखा गया हो।

बालटी - (स्त्री.) - (अं.<बकेट) पानी इत्यादि द्रव्य पदार्थ रखने के लिए या भरने के लिए धातु, प्लास्टिक आदि का डोलचीनुमा पात्र। Bucket

बाललीला - (स्त्री.) (तत्.) - 1. बचपन की लीला। प्रयो. कृष्ण की बाललीलाओं का मंचन किया गया। 2. बच्चों का खेल। प्रयो. यह काम मेरे लिए तो बाललीला के समान है।

बालवाड़ी - (स्त्री.) (तद्.<बालवाटी) - शा.अर्थ बच्चों के लिए बनाया गया उद्यान अथवा गृह। सा.अर्थ (शिशुओं) बच्चों के विद्यालयपूर्व शिक्षण के लिए स्थापित संस्था। पर्या. बालवाटिका kindergarden

बालविवाह - (पुं.) (तत्.) - (i) कम उम्र के लडक़े-लडक़ियों के विवाह की (दोषपूर्ण) प्रथा; (ii) इक्कीस वर्ष से कम आयु के लडक़ों तथा अठारह वर्ष से कम आयु वाली लडक़ियों का विवाह सरकार ने गैरकानूनी घोषित कर दिया है। child marriage

बाला - (स्त्री.) (तत्.) - 1. लड़की जो लगभग तेरह वर्ष से सोलह-सत्रह वर्ष तक की आयु वाली हो, किशोरी, 2. कन्या, 3. स्त्री। उदा. चाह नहीं मैं सुर बाला के गहनों में गूंथा जाऊँ। (बाल का स्त्रीलिंग)

बालिग - (पुं.) (अर.) - जो किशोरावस्था पार कर चुका हो अर्थात अठारह साल का हो चुका हो। पर्या. वयस्क। उदा. बालिग लोगों को ही मतदान करने का अधिकार मिला हुआ है। विलो. adult

बालिश्त - (पुं.) (फा.) - एक नाप जो लगभग नौ इंच या 23 सेमी. के बराबर होती है। टि. हथेली को फैलाने पर अँगूठे की नोक से कनिष्‍ठिका (छोटी उंगली) के छोर तक की दूरी। पर्या. बित्‍ता।

बाली - (स्त्री.) (तद्<बल्ली) - 1. कान में पहनने का प्रसिद्ध आभूषण। 2. गेहूँ-जौ की बाल (जिसमें दाने होते हैं)

बालू - (स्त्री.) (तद्.<बालुका) - नदी में निरंतर जलप्रवाह के कारण पत्थरों के अपरदन (टूटने) से बने बारीक कणों का संग्रह जो नदी या समुद्र के किनारे अथवा रेगिस्तान में पाए जाते हैं। पर्या. रेत, सिकता।

बालूटिब्बा - (पुं.) (देश.) - भू. रेगिस्तान में वायु के प्रवाह (आँधी) के कारण एकत्रित रेत जो अस्थायी टीले का रूप ले लेती है। आँधी के कारण रेत के टिब्बे उड़-उड़ कर स्थान बदलते भी रहते हैं। sand dune

बावजूद क्रि.वि. - (वि.) (फा.<बावुजूद) - (के) होते हुए भी, यद्यपि।

बावड़ी - (स्त्री.) (देश.<वापी) - ऐसा कुआँ जिस तक पहुँचने के लिए सीढि़याँ बनी हों। प्रयो. दिल्ली में आज भी पुराने ज़माने की कई बावडि़याँ मिलती हैं।

बावरची ख़ाना - (पुं.) (.फा.) - वह कक्ष या कमरा जहाँ खाना पकाया जाता है, रसोई घर।

बावरची - (पुं.) (.फा.) - खाना पकाने वाला, रसोइया।

बावरा/बावला - (वि.) (तद्<वातुल) - जिसका दिमाग वायु-प्रकोप के कारण विकृत हो गया हो, पागल।

बावलापन - (पुं.) (तद्.) - पागलपन।

बावली - (स्त्री.) (तद्.<वापी) - कुआँ जिस तक पहुँचने के लिए सीढि़याँ बनी हों। दे. ‘बावड़ी’। 2. ‘बावला’ का स्त्रीलिंग रूप वातरोग से ग्रस्त कोई स्त्री, पगली।

बावेला - (पुं.) (.फा.) - किसी अनुचित बात पर एकाधिक लोगों द्वारा किया गया हंगामा। प्रयो. पंक्‍ति तोडक़र आए व्यक्‍ति को रेल-टिकट देने पर दूसरे लोगों ने बावेला मचा दिया।

बाशिंदा - (पुं.) (.फा.) - किसी उल्लिखित स्थान का रहने वाला। पर्या. निवासी। यहाँ के बाशिंदे बड़ी धार्मिक प्रवृत्‍ति के हैं।

बासी - (वि.) (तद्>वासर) - 1. एक दिन पहले का या अधिक समय का पका हुआ भोजन। प्रयो. बासी अन्न मत खाओ। 2. जो नया न हो, पुराना। प्रयो. यह तो बासी समाचार है, ताज़ा नहीं है। 3. जो सूखा या कुम्हलाया हो। प्रयो. बासी फल, बासी फूल। उदा. प्रकृति के यौवन का शृंगार करेंगे कभी न बासी फूल।

बाहुबल - (पुं.) (तत्.) - शा.अर्थ 1. बाहुओं (भुजाओं) की शक्‍ति, शारीरिक शक्‍ति। 2. पराक्रम, वीरता। उदा. रावण ने अपने बाहुबल से इंद्र को जीत लिया था।

बाहुबली - (वि.) (तत्.) - 1. अत्यधिक पराक्रमी। जैसे: बाहुबली भीम। पुं. राज. (आधुनिक प्रयोग) 2. व्यक्‍ति जो अपनी शारीरिक बल का दुरूपयोग करते हुए दूसरों से उनकी इच्छा के विरूद्ध काम करवाते हैं। उदा. कई बाहुबली चुनाव के समय अपनी इच्छानुसार लोगों को मतदान के लिए बाध्य कर देते हैं।

बाहुल्य - (पुं.) (तत्.) - बहुल का भाव (अधिकता) बहुतायत। उदा. इस संस्थान में विदेशी छात्रों का बाहुल्य है।

बाह्य कर्ण - (पुं.) (तत्.) - दे. कर्ण।

बाह्य - (वि.) (तत्.) - बाहरी। विलो. आंतरिक।

बिंदास - (वि./पुं.) - (मरा.) वह (पुरूष या स्त्री) जो मौजमस्ती और खुलेपन निश्‍चित, यानी सभी प्रकार की वर्जनाओं से रहित जीवन जिए।

बिंदी - (स्त्री.) (तद्.<बिन्दु) - 1. शून्य, 2. अनुस्वार का चिह् न (.) जैसे: हंस में अनुस्वार का चिह् न है। 3. स्त्रियों के माथे पर सिंदूर या कुमकुम से लगाई जाने वाली छोटी-सी गोल टिकिया, टिकुली। दे. बिंदु।

बिंदु - (पुं.) (तद्) - 1. पानी या किसी तरह पदार्थ का कण। 2. छोटा गोलाकार चिह् न, बिंदी। 2. अनुस्वार का चिह् न या अनुस्वार। 4. किसी चीज का बहुत छोटा अंश, टुकड़ा। 5. किसी विषय का महत्वपूर्ण अंश। जैसे: विचारणीय बिंदु। 6.(लाक्ष.) किसी बड़ी सत्‍ता के समक्ष या तुलना में अपनी या अन्य की अत्यल्पता। जैसे: राष्‍ट्रकवि दिनकर के कवित्व की तुलना में तो वह सागर के एक बिंदु की तरह हैं।

बिंब - (पुं.) (तत्.) - 1. छाया, प्रतिच्छाया। पर्या. प्रतिबिंब। 2. कल्पना से मन में उठने वाली आकृति या भाव। 3. सूर्य-चंद्र की गोलाकृति/मंडल 4. दर्पण में पड़ने वाला अक्स।

बिकना अ.क्रि. - (तद्<विक्रय) - 1. किसी वस्तु को कुछ धन के बदले में दूसरे के हाथ में जाना, बेचा जाना। जैसे: गेहूँ का बिकना, फलों का बिकना। 2. ला.अर्थ किसी के हाथ बिकना, किसी का दास हो जाना।

बिकाऊ - (वि.) (देश.<विक्रय) - बिकने के योग्य, जो बिकने के लिए उपलब्ध हो; जो खूब बिकता हो। जैसे: बिकाऊ माल।

बिक्री - (स्त्री.) (तद्.<विक्रय) - बेचने की क्रिया या भाव।, विक्रय। उदाहरण-सर्दी के मौसम में ऊनी वस्त्रों की बिक्री बढ़ जाती है। विलो. खरीद।

बिखरना अ.क्रि. - (तद्.विकीर्णन) - जो पहले समूह में हो उसका फैल जाना, तितर-बितर हो जाना। पर्या. छितराना। उदा. 1. डिब्बा गिर जाने से चाय (की पत्‍ती) बिखर गई। 2. सभा समाप्‍त होने पर सभी लोग धीरे-धीरे बिखर गए।

बिखेरना स.क्रि. - (तद्.<विकीर्णन) - (बिखरना का प्रेर.) समूह में उपलब्ध वस्तु को चारों ओर फैलाना, छितरा देना। विलोम. समेटना।

बिगड़ना अ.क्रि. - (तद्.बिगाड़<विकार) - 1. आकार, गुण, स्वरूप आदि में विकृति (खराबी) आ जाना जिसके फलस्वरूप उसकी उपयोगिता, क्रियाशीलता अथवा महत्व अपेक्षाकृत कम हो जाए। उदा. मेरी घड़ी बिगड़ गई है, उसे ठीक कराने जा रहा हूँ। 2. (परिस्थिति) प्रतिकूल हो जाना। 3. गलत रास्ते पर जाना, पथ भ्रष्‍ट होना। प्रयो. लडक़ा बहुत बिगड़ गया है। 5. क्रुद्ध होना।

बिगड़ा - (वि.) - (<बिगड़ना) जो दोषयुक्‍त हो, जिसमें विकार आ जाए। पर्या. खराब। प्रयो. (i) यहाँ का माहौल बिगड़ा हुआ है। (ii) बिगड़े बच्चों को काबू करना आसान नहीं है। (iii) इस बिगड़ी घड़ी को सुधरवा लो।

बिचकना अ.क्रि. - (देश.) (वि.) - खतरे की आशंका भापकर चौकन्ना हो जाना। उदा. माँ के हाथ में छड़ी देकर बच्चा बिचक गया। चौंकने वाला

बिच्छू - (पुं.) (तद्<वृश्‍चिक) - 1. छह पैरों वाला एक छोटा विषैला जंतु जिसकी ऊपर की ओर मुड़ी हुई डंक वाली पूँछ ऊपर उठी होती है तथा उसका दंश बहुत ही कष्‍टप्रद होता है। उदा. बिच्छु के डंक मारने से बहुत जलन एवं पीड़ा होती है। 2. एक तरह की घास।

बिछाना स.क्रि. - (तद्>विस्तरण) - 1. (जमीन आदि पर) किसी वस्तु को दूर तक फैलाना। जैसे-फर्श पर दरी बिछाना, चारपाई/बिस्तर पर चादर बिछाना। 2. बिखेरना, किसी के स्वागत में मार्ग में फूल बिछाना। 3. ला.अर्थ किसी को मारते मारते जमीन पर लिटा देना।

बिछावन - (पुं.) (देश.<विस्तारण) - गद्दा, दरी, चादर, चटाई या कोई कपड़ा इत्यादि जो सोने, बैठने आदि के लिए बिछाया जाए।

बिछुड़ना अ.क्रि. - (तद्.<विच्छेदन) - 1. अपने किसी साथी, संबंधी या प्रियजन से जाने-अनजाने अलग हो जाना जो पीड़ादायक होता है। उदा. भीड़ भरे मेले में बच्चा अपने माँ-बाप से बिछुड़ गया।

बिछोह - (पुं.) (तद्.<बिछड़ना<विच्छेदन) - बिछड़ने या अलग होने का भाव। पर्या. वियोग, जुदाई।

बिछौना - (पुं.) - (<बिछाना) भूमि, चारपाई, तख्त आदि पर बैठने, लेटने के लिए बिछाया जाने वाला वस्त्र, गद्दा आदि। पर्या. बिस्तर, बिछावन। तु. आसन। प्रयो. तुम्हारा बिछौना आंगन में लगा दिया है।

बिजलीघर - (पुं.) (देश.) - वह स्थान या कार्यालय जहाँ विद्युत-उत्पादन किया जाता है या मुख्य बिजलीघर से आने वाली विद्युतधारा को घरों, कारखानों आदि में वितरण की व्यवस्था की जाती है।

बिटुमेन - (पुं.) - (अं.) रसा. ठोस और अर्ध-ठोस हाइड्रोकार्बन का प्राकृतिक मिश्रण जो पेट्रोलियम से निकलता है। इसका उपयोग सडक़ तथा छत बनाने में किया जाता है। 2. भूरे रंग का पेन्ट जिसे एस्फाल्ट तथा शुष्कन तेल drying oil को मिलाकर तैयार किया जाता है। इसका उपयोग कलाकार द्वारा चित्र बनाने में किया जाता है। Bitumen

बिठाना/बैठाना (बैठना का प्रेर.) - (देश.<उपवेशन) - 1. किसी को बैठने की प्रेरणा देना। पर्या. बैठाना। प्रयो. (i) मैं पाँच मिनट में आता हूँ, तब तक मेहमान को बिठाना। (ii) मैं उन्हें गाड़ी में बिठाकर आ रहा हूँ। 2. यथास्थान स्थापित करना। प्रयो. मेरी हड्डी खिसक गई थी, डॉक्टर ने उसे बिठा/बैठा दिया है।

बिडाल - (पुं.) (तत्.) - नर बिल्ली, मार्जार।

बिताना स.क्रि. - (तद्.) - व्यत्ययन) (समय को) व्यतीत करना, (समय) गुजारना, काटना। जैसे: 1. वह आश्रम में अपना समय आनंद से बिता रहा है। 2. वह बेचारा तो मुसीबत में जैसे-तैसे अपना वक्‍त बिता रहा है।

बिना - (अव्य.) (तत्.) - बगैर, जैसे-बिना बुलाए, बिना कारण, बिना मतलब। उदा. वह बिना कहे चला गया है। स्त्री. अर. कारण, आधार। उदा. आप किस बिना पर मुझसे इतनी बहस करते जा रहे हैं।

बिफरना अ.क्रि. - (तद्.<बिस्फालन) - दूसरे की बात को अनुचित या मनोनुकूल न मानते हुए उसके प्रति क्रोध प्रदर्शित करना; भड़कना या नाराज़ होना। उदा. मित्र की कटु व्यंग्योक्‍ति पर वह बुरी तरह बिफर गया।

बियाबान - (पुं.) (.फा.) - 1. जंगल, वन। 2. सुनसान या उजाड़ स्थान, निर्जन स्थान। प्रयो. वहाँ तो बियाबान-सा लगता है।

बियाबान - (वि.) (.फा.) - सुनसान, एकांत, उजाड़, जहाँ बस्ती न हो। जैसे: बियाबान जंगल, बियाबान खंडहर।

बिरयानी - (स्त्री.) (.फा.) - मूल अर्थ। एक प्रकार का पुलाव जिसमें गोश्त डाला जाता है। सा.अर्थ एक प्रकार का हैदराबादी पुलाव जिसमें चावल, सब्जी आदि की अलग-अलग सतहें बनाकर उसे सजाया जाता है।

बिरादरी - (स्त्री.) (.फा.बरादरी) - 1. सभी स्वजनों/बंधुओं का समूह। जैसे: राजपूत बिरादरी, नाई बिरादरी आदि। 2. किसी एक ही धर्म, जाति/उपजाति अथवा समान व्यवसाय वाले लोगों का समूह। जैसे: अध्यापक बिरादरी, सरकारी कर्मचारी बिरादरी।

बिलकुल/बिल्कुल क्रि.वि. - (वि.) - अर.(अं.) पूरी तरह से, नितांत, सर्वक्ष। उदा. मुझे तो वह बिलकुल पागल लगता है।

बिलखना अ.क्रि. - (तद्<विलपन) - व्यु.अर्थ किसी प्रिय के वियोग में बैचेनी भरा रोना जिसमें कभी स्वर की गति तीव्र हो जाती है, तो कभी मंद, विलाप करना।

बिलटी - (स्त्री.) - (अं.बिलेट) रेल से भेजे जाने वाले माल की वह रसीद जिसे दिखलाने पर पाने वाले को वह माल मिलता है।

बिलबिलाना अ.क्रि. - (देश.अनु.) - 1. छोटे कीड़ों का पास-पास लगभग एक ही स्थान पर टेढे-मेढ़े और ऊपर-नीचे होते हुए हिलना-डुलना, रेंगना। (रिगल, रिगलिंग) 2. मन में ही दुखी होना।

बिलांस - (पुं.) (देश.) - लगभग नौ इंच की नाप। प्राय: इसे हथेली फैलाकर नापा जाता है। कनिष्‍ठा के अग्रभाग से अंगूठे के अग्रभाग तक का फैलाव। पर्या. बित्‍ता।

बिलोकना स.क्रि. - (तद्.<बिलोकन) - देखना, ध्यान से देखना। उदा. इनहिं बिलोकत अति अनुरागा….(रामचरित मानस)

बिल्कोर/बिल्लौर - (पुं.) (अर.) - सा.अर्थ एक प्रकार की मणि या सफेद पत्थर जो पारदर्शक होता है। भौ. सिलिका निर्माण एक कठोर पारदर्शी खनिज। पर्या. स्फटिक। crystal

बिवाई - (तद्<विपादिका) (स्त्री.) - एडि़यों की चमड़ी के फटने का रोग जो कष्‍टदायक होता है।

बिस्तर - (पुं.) (.फा.) - सोने के लिए तैयार किया गया गद्दे, तकिए और चादर आदि से युक्‍त स्थान; इन सारी वस्तुओं का सामूहिक नाम भी।, पर्या. बिछौना।

बिस्तरबंद - (पुं.) (.फा.) - कैनवास/चमड़े आदि का बना लंबा थैला जिसमें यात्रा के समय बिस्तर (गद् दा/तकिया/चादर आदि) डाल, लपेट या पेटी से बाँधकर ले जाते हैं। प्रयो. मैनें पर्वतीय यात्रा के लिए अपना बिस्तरबंद तैयार कर लिया है।

बिस्मिल्लाह - (अर.) - 1. कुरान की एक आयत, जिसका अर्थ है-”मैं ईश्‍वर के नाम से आरंभ करता हूँ जो बड़ा दयालु और महा कृपालु है।” इसका प्रयोग किसी कार्य का आरंभ करते समय किया जाता है। 2. किसी कार्य का शुभारंभ।

बिहू - (पुं.) (तद्.<विषु) - 1. असम प्रदेश में मनाया जाने वाला वर्षा के आरंभ का उत्सव। यह उत्सव पंद्रह अप्रैल को मनाया जाता है। 2. इसी अवसर पर किया जाने वाला लोकनृत्य। तु. बैसाखी (पंजाबी), चेटी चंड (सिंध), गुढ़ी पाड़वा (महाराष्‍ट्र), उगादी (कर्नाटक)।

बी.ए. - (पुं.) (तत्) - (अं.) Bachelor of Arts संक्षिप्‍ति 1. त्रिवर्षीय किसी विश्‍वविद् यालय/महाविद् यालय का मानविकी या कला विषय का डिग्री पाठ्यक्रम/स्नातक परीक्षा/ संबंधी उपाधि। 2. कला-स्नातक। bechelor of arts

बीकर - (पुं.) - (अं.) शीशे का बेलनाकार बर्तन जिसका उपयोग विज्ञान की प्रयोगशालाओं में किया जाता है।

बीच-बचाव - (पुं.) (देश.) - दो व्यक्‍तियों या पक्षों के बीच चल रहे झगड़े को समाप्‍त करने के उद्देश्य से किसी तीसरे व्यक्‍ति/पक्ष द्वारा बीच में पड़कर दोनों पक्षों में सुलह कराने का प्रयत्‍न।

बीज - (पुं.) (तत्.) - 1. फूल वाले पौधों या अनाज के डंठलों से प्राप्‍त वे छोटे, कठोर दाने अथवा फलों की वे गुठलियाँ जिनके मिट् टी में दबने और खाद-पानी मिलने के फलस्वरूप वैसे ही नए पौधे उग आते हैं। 2. वन. बीजांड के निषेचन के फलस्वरूप भ्रूण, उसके आवरण तथा प्राय: भणपोष की बनी संरचना जो अंकुरण के पश्‍चात नए पौधों को जन्म देती है। ला.अर्थ मूल कारण (या आरंभिक बात) जो आगे चलकर (बहुत) बड़ा रूप धारण कर लेती है।

बीजक - (पुं.) (तत्.) - 1. माल बेचने वाले (विक्रेता) द्वारा खरीदने वाले (­क्रेता) को भेजी जाने वाली सूची जिसमें माल और भुगतान संबंधी देय राशि का समस्त विवरण दिया गया हो। 2. पुराने जमाने में गाड़ी गई संपत्‍ति के साथ नत्थी सूची और/या उस खजाने तक पहुँचने का कूट नक्शा। invoice

बीजगणित - (पुं.) (तत्.) - गणितशास्त्र की वह शाखा, जिसमें कुछ निश्‍चित संख्याओं के स्थान पर बीज या अक्षरों का प्रयोग किया जाता है और गणितीय संकल्पनाओं को समीकरण के रूप में व्यक्‍त किया जाता है। algebra

बीड़ा - (पुं.) (देश.) - (सं. वीटक) 1. कत्था-चूना-सुपारी के टुकड़े डालकर तिकोना मोडक़र लिपटा हुआ पान। प्रयो. कुछ लोग भोजन के बाद पान का बीड़ा खाते हैं। 2. किसी अत्यंत कठिन कार्य को करने का सार्वजनिक संकल्प। मुहा. बीड़ा उठाना=किसी दु:साध्य कार्य को सिद्ध करने का सार्वजनिक संकल्प। उदा. महात्मा गांधी ने देश को स्वतंत्र कराने का बीड़ा उठाया।

बीन - (स्त्री.) (तद्.<वीणा) - सँपेरों द्वारा बजाया जाने वाला प्रसिद्ध वाद्य जो अपनी विशिष्‍ट ध्वनि के कारण अलग से पहचाना जाता है।

बीनना स.क्रि. - (तद्.<विनयन) - 1. किसी सामग्री में से मिश्रित अपपदार्थ के दानों को हाथ में उठाकर अलग करना। प्रयो. चावलों से पत्थर के कणों को बीनना। 2. बहुत सी बिखरी चीजों को हाथ से उठाकर इकट्ठा करना। जैसे. महुआ बीनना।

बीभत्स - (वि.) (तत्.) - 1. जिसे देखने पर मन में घृणा हो। उदा. बम फटने के बाद वहाँ का दृश्य बड़ा ही बीभत्स था। टि. काव्य के नौ रसों में से एक जिसका स्थायीभाव जुगुप्सा है।

बीमा - (पुं.) (फा.बीम=भय) - ऐसी आर्थिक व्यवस्था जिसमें अपने जीवन, मकान, मशीनरी आदि की सुरक्षा के लिए नियमित समय तक अनुमत है, राशि को संबंधित कंपनी में किस्तों के रूप में जमा करवाते रहना पड़ता है ताकि बीच में यदि उस वस्तु में किसी प्रकार की क्षति हो जाए या बीमाधारी की मृत्यु हो जाए तो उसकी क्षतिपूर्ति करना उस कंपनी की बाध्यता होती है। insurance जैसे: जीवन बीमा, मोटर बीमा, मकान बीमा आदि।

बीमा अभिकर्ता - (पुं.) (फा.बीमा+ तत्. अभिकर्ता) - बीमा+ तत्. अभिकर्ता) वह व्‍यावसायिक मध्‍यस्‍थ जिसके माध्‍यम से बीमा करवाने वाले व्‍यक्‍ति (बीमाधारी) और बीमा करने वाली कंपनी के बीच एक करार होता है और जिसे उसकी सेवा के लिए नियमानुसार कमीशन मिलता है। incuracne agent

बीमाकर्ता - (पुं.) (दे.) - बीमा करने वाली कंपनी। दे. बीमा।

बीमाधारी - (वि./पुं.) (दे.) - व्यक्‍ति जिसके नाम पर बीमा किया गया हो। दे. बीमा।

बीहड़ - (वि.) (तद्.<विकट या भीषण) - ऊँचा-नीचा या ऊबड़खाबड़ निर्जन प्रदेश। जैसे: बीहड़ जंगल। पुं. राजस्थान, मध्यप्रदेश और उत्‍तर प्रदेश में बहने वाली चंबल नदी के किनारों पर स्थित मिट् टी के ऊँचे-नीचे ढूहों से युक्‍त विस्तृत क्षेत्र जो ‘भिंड-मुरैना के बीहड़’ के नाम से प्रसिद् ध है।

बुआ - (स्त्री.) (देश.) - पिता की बहिन, फूफी।

बुआई - (स्त्री.) - बोने की क्रिया जुताई के बाद तैयार खेतों में बीज छिडक़ कर बोने का काम और या इसके लिए दी गई मजदूरी। sowing

बुखार - (पुं.) (अर.) - किसी रोग के कारण शरीर का तापमान सामान्य (37o से. या 98.4o से) से अधिक हो जाने की स्थिति। पर्या. ज्वर, ताप। (फ़ीवर)

बुज़दिल - (वि.) (.फा.) - शा.अर्थ जिसका दिल बकरी की तरह (कमज़ोर) हो। सा.अर्थ कायर, डरपोक। उदा. तुम बुज़दिल इंसान मत बनो।

बुज़दिली - (स्त्री.) (.फा.) - कायरता, डरपोकपन।

बुज़ुर्ग वि - (फा.) - प्रौढ़ावस्था को पार कर गया व्यक्‍ति (स्त्री और पुरूष दोनों ही) पर्या. वृद्ध, बूढ़ा।

बुझना अ.क्रि. - (देश.) - 1. जलती हुई आग या रोशनी का बंद हो जाना या अपने आप ठंडा हो जाना। जैसे: दीपक का बुझना, आग का बुझना आदि। 2. ताप का शांत होना। जैसे: प्यास बुझना। 3. लाक्ष. मानसिक आवेग, उत्साह आदि का समाप्‍त हो जाना। जैसे: दिल का बुझना।

बुदबुदाना अ.क्रि. - (देश.-अनुर.) - 1. ‘बुद्-बुद्’ जैसी ध्वनि निकलना। 2. अस्पष्‍ट ध्वनि में धीरे-धीरे बोलना। (जैसे: स्वत: से ही बोल रहे हों।)

बुदबुदाहट - (स्त्री.) - 1. ‘बुद्-बुद्’ की ध्वनि। 2. अस्पष्‍ट ध्वनि में बोलने का भाव।

बुद्धिमानी - (स्त्री.) - (बुद् धिमान + ई) सोच-समझकर काम करने की स्थिति।

बुद्धिजीवी - (वि.) (तत्.) - (बुद् धि+जीवी) जिसकी आजीविका बुद्धि के बल पर ही चलती हो। जैसे: लेखक, प्राध्यापक, वकील, चिकित्सक आदि।

बुद्धिमान - (वि.) (तत्.) - (बुद् धि+मान) सा.अर्थ (व्यक्‍ति) जो अपना काम सोच-समझकर करता हो। शा.अर्थ बुद्धि वाला। पर्या. अक्लमंद, समझदार।

बुद्धू - (वि.) (तत्.<बुद्धू) - 1. जो किसी बात या अभिप्राय को ठीक से न समझता हो। जैसे-तुम इतनी सी भी बात नहीं समझे, बुद्धु हो। पर्या. मूर्ख, नासमझ।

बुनकर - (वि./पुं.) - (हि.<बुनना) व्यवसाय के रूप में कपड़ा बुनने वाला व्यक्‍ति। पर्या. जुलाहा (वीवर)

बुनकरी - (स्त्री.) (देश.) - बुनकर का पेशा और उसकी कला। दे. बुनकर।

बुनावट - (स्त्री.) - (<बुनना) 1. बुनाई का ढंग texture 2. बुनी गई वस्तु को देखकर या छूकर उसके बारे में मन में बनी अच्छी-बुरी की धारणा।

बुनियाद - (स्त्री.) (.फा.<बुन्याद) - किसी भवन का भूमि में दबा वह हिस्सा या आधार जो उस भवन का सारा भार झेलता है। पर्या. नींव। foundation मुहा. बुनियाद डालना/रखना=शुरू करना। उदा. सभा भवन की बुनियाद प्राचार्य/प्रधानाध्यापक ने डाली/रखी।

बुनियादी - (वि.) (.फा.) - 1. बुनियाद से संबंधित, मूलगत। 2. आरंभिक, शुरूआती। जैसे: बुनियादी शिक्षा basic education

बुरकना - - स.क्रि.(अनु.) किसी महीनचूर्ण को उंगलियों से उठाकर किसी चीज़ पर थोड़ा-थोड़ा फैलाना या बिखेरना। उदा. कटे खीरे पर चुटकी भर नमक बुरक दो।

बुरा-भला - (पुं.) (देश.) - 1. हानि-लाभ। उदा. अपना बुरा-भला खुद सोच लो। 2. गाली-गलौच। उदा. उन्होंने बहुत बुरा-भला कहा, पर मैं चुप रहा।

बुर्ज - (स्त्री.) (अर.) - किले की दीवार पर या मीनार इत्यादि का वह बैठने योग्य ऊँचा स्थान जिसके ऊपर मंडप के आकार की गोल छत भी होती है। किले की बुर्जों पर तोपें भी लगाई जाती थीं।

बुर्जुआ - (वि./पुं.) (वि.) - (फ़ा) मूल अर्थ मध्यम आय वर्ग से संबंधित। (लोग, समाज) विशेष(मार्क्सवादी संदर्भ में) पूँजीपति वर्ग। पर्या. शोषक। वि. सर्वहारा (वर्ग), शोषित (वर्ग)

बुलंद - (वि.) (.फा.<बलंद) - सामान्य से अधिक ऊँचा/ऊँची, उच्च। जैसे: फतहपुर सीकरी का बुलंद दरवाजा, बुलंद आवाज़।

बुलंदी - (स्त्री.) - ऊँचाई। उदा. आजकल उसके सितारे बुलंदी पर हैं।

बुलबुल - (स्त्री.) (.फा.बुल्बुल) - सुरीली आवाज़ में बोलने वाली एक प्रसिद् ध काली छोटी चिडि़या। इसके सिर पर कलंगी जैसे नुकीले त्रिभुजाकार बाल होते हैं तथा पीछे पूंछ के नीचे की ओर लाल रंग का छोटा गोलाकार पंख होता है। ला.अर्थ मधुरगायिका।

बुलबुला - (पुं.) (तद्.<बुदबुद) - 1. तरल पदार्थ के कणों में गैस भर जाने से बना छोटा सा गुब्बारा जो जल्दी ही अपनी पूर्वावस्था में आ जाता है। जैसे: पानी का बुलबुला। पर्या. बुदबुदा। 2. लाक्ष. क्षणभंगुर वस्तु। उदा. मानक जीवन पानी का बुलबुला है। ‘पानी केरा बुदबुदा अस मानुसु की जात’।

बुलवाना - - स.क्रि. (बुलाना की प्रेर. क्रिया) 1. किसी को बोलने के लिए प्रवृत्‍त करना। उदा. अध्यापक ने मुझसे संस्कृत में आत्मपरिचय के पाँच वाक्य बुलवाए। 2. किसी को अपने समीप या किसी कार्यक्रम में भाग लेने के लिए सादर बुलावा भेजना। उदा. संयोजक ने संगीत कार्यक्रम में एक प्रसिद्ध तबलावादक को बुलवाया है।

बुलावा - (पुं.) - (<बुलाना) 1. बुलाने की क्रिया या भाव। पर्या.-निमंत्रण। प्रयो. मुझे एक कार्यक्रम में जाने का बुलावा आया है। उदा. 'चलो बुलावा आया है, माता ने बुलाया है'।

बूँद - (स्त्री.) (तद्.<बिंदु) - पानी या अन्य किसी भी तरल पदार्थ का वह सबसे छोटा अंश जो गिरते समय हवा में गोलाकार हो जाता है। पर्या. बिंदु, कतरा। जैसे: पानी की बूँदें।

बूँदाबाँदी - (स्त्री.) - (<बूँद बूँद) बूँद-बूँद कर हुई हल्की वर्षा, हल्की बूँदों की बरसात। उदा. वर्षा तो समाप्‍त हो गई किंतु अभी बूँदाबांदी जारी है।

बूचड़खाना - (पुं.) - (अं.) (<बूचर(अं.)=कसाई+फा.) वह स्थान जहाँ कसाई गोश्त के लिए जानवरों को काटते हैं। पर्या. कसाईखाना। उदा. बूचड़खाने के आस-पास गीध, कौए आदि मंडराते रहते हैं।

बूझना स.क्रि. - (तद्.<बुध) - 1. समझना, जानना। उदा. उसने जानबूझ कर झूठ बोला। 2. पहेली का उत्‍तर निकालना। जैसे. बूझो तो जानें। उदा. तुम पहेली का उत्‍तर बूझो।

बूट - (पुं.) - (अं.) जूता जोड़ी का एक प्रकार जो दोनों पैरों और टखनों को ढककर चलते समय पैदल चलने वाले व्यक्‍ति को सुरक्षा और सुविधा प्रदान करता है।

बूटा - (पुं.) (तद्.<विटप) - चने का हरा पौधा या हरे ताजे चने के दाने।

बूता - (पुं.) (देश.) - काम करने का सामर्थ्य, शक्‍ति। प्रयो. यह काम उसके बूते से बाहर (का) है। मुहा. अपने बल-बूते पर=स्वयं की शक्‍ति के आधार पर।

बूता - (पुं.) (देश.) - किसी काम को करने की शक्‍ति, सामर्थ्य। उदा. (i) उसका बूता नहीं है कि इसे इंजीनियर बना सके। (ii) तुम्हारे बूते की बात नहीं है उसे समझाना।

बूम - (पुं.) - (अं.) 1. बाजार में किसी वस्तु की बिक्री का अत्यधिक प्रचलन, गूँज, धूम, तेजी। 2. गरम बाजारी, 3. शोर, धड़ाका। उदा. आजकल बाजार में कारों की बूम का दौर चल रहा है।

बृहत् - (वि.) (तत्.) - जो लंबाई, चौड़ाई, ऊँचाई, भार आदि में बहुत बड़ा हो, दीर्घाकार, विशाल।

बृहत्‍तर - (वि.) (तत्.) - तुलना करते समय, अधिक बड़ा, अपेक्षाकृत बड़ा। जैसे: बृहत्‍तर दिल्ली।

बृहदांत्र - (स्त्री.) (तत्.) - बड़ी आँत। प्राणि. कशेरूकियों में छोटी आंत और गुदा के बीच स्थित आहार-नाल का भाग, जो छोटी आंत की अपेक्षा अधिक चौड़ा किंतु लंबाई में छोटा होता है। large intestive

बेअदब - (वि.) (फा.+ अर.) - अदब (सभ्यता, तमीज़) के बिना, जिसमें अदब न हो। पर्या. असभ्य, अशिष्‍ट। प्रयो. वह बेअदब इंसान है।

बेअदबी - (स्त्री.) - असभ्यता, अशिष्‍टता।

बेइंतिहा - (वि.) (.फा.) - जिसकी कोई सीमा न हो, बिना सीमा के, सीमा रहित। पर्या. असीम। जैसे: वह मुझे बेइंतिहा प्यार करता है।

बेइज्जत - (वि.) (.फा.+अर.) - 1. जिसकी इज्जत खराब कर दी गई हो, अपमानित, तिरस्कृत। प्रयो. किसी को तुच्छ स्वार्थ के लिए बेइज्जत करना शिष्‍टता नहीं है। 2. जिसकी प्रतिष्‍ठा ही न हो, प्रतिष्‍ठाहीन, निंदित।

बेइज्जती - (स्त्री.) (फा.+ अर.) - बेइज्ज़त होने या किए जाने का भाव। अपमान, तिरस्कार। 2. निंदा, रूसवाई।

बेईमान - (वि.) (फा.+अर.) - 1. जो ईमान या धर्म के अनुरूप आचरण न करे। पर्या. अधर्मी। 2. छल-कपट भरा आचरण करने वाला। (डिसऑनेस्ट) विलोम-ईमानदार।

बेईमानी - (स्त्री.) (फा.+अर.) - ईमान या धर्म के अनुसार आचरण न करने की स्थिति का सूचक भाव।

बेकद्र - (वि.) (फा.+अर.) - 1. बिना कद्र (आदर) के जिसकी कद्र न हो; बेइज्ज़त, अपमानित। प्रयो. समाज में बेकद्र इंसान की दयनीय स्थिति होती है।

बेकद्री - (स्त्री.) - कद्र न होने की स्थिति या भाव, बेइज्ज़ती; अपमान। प्रयो. उनके घर में बहू की बेकद्री देखकर मुझे दु:ख होता है।

बेकरार - (वि.) (.फा.) - जिसके मन में शांति या चैन न हो; व्याकुल, बेचैन, उद्विग्न। प्रयो. वह तुमसे मिलने को बेकरार है।

बेकरारी - (स्त्री.) - व्याकुलता, बेचैनी, उद्विग्नता।

बेकरी - (स्त्री.) - (अं.) 1. वह स्थान जहाँ बेकिंग (आंच से पकाना) का कार्य होता है। 2. जहाँ डबलरोटी, बिस्कुट आदि बनाने का कारख़ाना और बेचने की दूकान हो।

बेकसूर - (वि.) (.फा.) - जिसने कोई गलती या अपराध न किया हो, निर्दोष, निरपराध। जैसे: उस बेकसूर को इस विवाद में क्यों फंसाया गया?

बेकाबू - (वि.) (.फा.) - जो काबू में न आ सके, जिस पर किसी का वश न हो। पर्या. अनियंत्रित। प्रयो. कुंभ के अवसर पर पहले स्नान करने के लिए भीड़ बेकाबू होने लगी।

बेकार - (वि.) (.फा.) - 1. जो कोई काम न करता हो। पर्या. निकम्मा, निठल्ला। (यूजलैस) 2. निरर्थक, व्यर्थ। उदा. वह इधर-उधर बेकार ही भटकता रहता है। 3. जिसके पास जीविकोपार्जन का कोई साधन न हो। उदा. वह आजकल बेकार है। unemployed

बेकारी - (स्त्री.) (.फा.) - 1. जीवन की वह अवस्था जिसमें जीविकानिर्वाह के लिए मनुष्य के पास कोई काम-धंधा न हो, बेरोजगारी। जैसे: शिक्षा का विकास होने पर आज बेकारी की समस्या अधिक है। unemployment 2. बेकार होने का भाव, फजूल, व्यर्थ। 3. कोई काम न करने का भाव।

बेखटक/बेखटके क्रि.वि. - (वि.) (.फा.) - प्रत्यय+हि.<खटकना) (बे+खटका) बिना-खटक, निस्संकोच, बिना भय के। प्रयो. शिकायत करने के लिए वह बेखटके प्राचार्य के कमरे में घुस गया।

बेखबर - (वि.) (.फा.बे+अर.) - जिसे कोई खबर न हो। पर्या. अनजान, अनभिज्ञ। उदा. कल रात में भूकंप आया पर हम बेखबर सोते रहे। 2. बेपरवाह, वह अपनी जिम्मेदारी से बेखबर है।

बेख़ौफ - (वि.) (.फा.) - बिना डर के, निडर, निडरतापूर्वक। उदा. वह बेखौफ जंगल में घूमता रहा।

बेग़म - (वि.) (फा.+ अर.) - चिंता रहित, जिसे कोई चिंता न हो। पर्या. निश्‍चित।

बेगम - (स्त्री.) - (तुर्की) 1. किसी बादशाह की पत्‍नी। पर्या.-रानी। जैसे: शाहजहां की बेगम ताजमहल। 2. कुलीन या संपन्न घर की महिला। (आदरसूचक संबोधन) जैसे: बेगम साहिबा! पधारिए।

बेगाना - (वि.) (.फा.) - 1. जो अपना नहीं है, गैर, पराया; अपरिचित। प्रयो. तुम तो अपने (स्वजन) हो, फिर बेगाने जैसा व्यवहार क्यों कर रहे हो? विलो. अपना, स्वजन।

बेगार - (स्त्री.) (.फा.) - 1. किसी से जबरदस्ती और बिना मज़दूरी दिए करवाया गया काम। 2. वह काम जो दिल लगाकर न किया जाए। मुहा. बेगार टालना-कार्य न करना। कहावत-बैठे से बेगार भली-कुछ न कुछ करते ही रहना चाहिए। कुछ भी न करने से तो अच्छा है थोड़ा-बहुत काम, चाहे वह मुफ्त ही हो या नाममात्र हो, करते रहना चाहिए।

बेगारी - (स्त्री.) (.फा.) - बेगार में काम करने का सूचक भाव। दे. बेगार।

बेगुनाह - (वि.) (.फा.) - जिसने कोई गुनाह यानी अपराध न किया हो। पर्या. बेकसूर, निरपराध।

बेगुनाही - (स्त्री.) (.फा.) - प्रयो. आखिरकार उसने अपनी बेगुनाही साबित कर ही दी।

बेघर - (वि.) (तद्.(फ़ा+<गृह) - जिसके पास रहने के लिए घर न हो; घर से (अपने देश से) निकल गया या निकाल दिया गया। प्रयो. 1. आगजनी में कई लोग बेघर हो गए। 2. भारत विभाजन के परिणामस्वरूप कई लोग बेघर हो गए।

बेचारा - (वि.) (.फा.) - (i) जिसके लिए कोई अन्य चारा यानी रास्ता न बचा हो; (ii) जिसका वश न चले। पर्या. असहाय, निस्सहाय।

बेचैन - (वि.) (.फा.) - जिसे चैन या मन की शांति प्राप्‍त न हो। पर्या. व्याकुल।

बेचैनी - (स्त्री.) (.फा.) - मानसिक अशांति की स्थिति, व्याकुलता।

बेज़ान - (वि.) (.फा.) - 1. जिसमें प्राण न हो, प्राणहीन, चेतनाशून्य, मृत, मुर्दा। प्रयो. वह घायल होकर बेजान-सा पड़ा था। 2. दुर्बल, कमज़ोर। प्रयो. वह काम तुम्हारे जैसे बेजान आदमी के बस का नहीं है। विलो. जानदार।

बेजुबान - (वि.) (.फा.) - बिना जिह्वा के यानी जो बोल न सकता हो। पर्या. गूंगा, मूक। ला.अर्थ जो अपनी आलोचना/निंदा सुनकर भी चुप रहने वाला हो, निरीह। उदा. वह तो बेचारा बेजुबान है।

बेजोड़ - (वि.) (.फा.जोड़<युग्म) - जिसकी जोड़ (बराबरी का) कोई न हो। पर्या. अतुल्य, अद्वितीय। उदा. उसने बेजोड़ काम कर दिखाया। (यानी जिसे अब तक कोई और न कर सका।)

बेझिझक क्रि.वि. - (वि.) (देश.) - बिना झिझक के। पर्या. निस्संकोच, बेहिचक।

बेटी - (स्त्री.) (पुं.) - (<बटु=बालक) पति-पत्‍नी से जन्मी (या गोद ली हुई भी) मादा संतान। पर्या. पुत्री। बेटा।

बेड़ी - (स्त्री.) (तद्.<वलय) - लोहे के कड़े या जंजीर जिससे अपराधियों के पैरों को जकड़ दिया जाता है ताकि वे भाग न सकें। तु. हथकड़ी। ला.अर्थ किसी प्रकार का बंधन। उदा. क्या करूँ! परिवार की बेड़ी जो पड़ी है।

बेडौल - (वि.) (फा.+देश.) - जिसके अंगों की बनावट या आकार-प्रकार में परस्पर संतुलन न हो। पर्या. कुरूप। उदा. उसका शरीर तो बहुत ही बेडौल है। विलो. सुडौल।

बेढंगा - (वि.) (फा.बे+हिं.ढंग) - शा.अर्थ जिसका ढंग ठीक न हो, खराब ढंग का। सा.अर्थ 1. जो व्यवस्थित न लगे, अव्यवस्थित, जो ठीक क्रम से न रखा गया हो या सजाया न गया हो, क्रमरहित। 2. कुरूप, भद्दा। उदा. कुछ लोगों के काम बेढंगे, बातें बेंढंगी तथा चाल बेढंगी होती है।

बेढब - (वि.) - बिना ढब (ढंग) का। पर्या. बेढंगा, भद्दा, अव्यवस्थित। उदा. तुम्हारा काम पूरी तरह से बेढब है।

बेत - (स्त्री.) (तद्<वेत्र) - जलीय (पानी में उगने वाला) घास जाति का और बांस की तरह का एक पादप (पौधा) जिसमें लचीलेपन का अद् भुत गुण होता है। इसका तना सूखने पर कठोर हो जाता है, पर गीला होते ही पुन: लचीला हो जाता है। टि. बेंत की बारीक पट्टि‍यों से कुर्सी आदि बुनी जाती है।

बेतकल्लुफ - (वि.) (फा.+अर.) - 1. तकल्लुफ यानी दिखावा न करने वाला, किसी बनावट को यानी सीधा साधा, सहज व्यवहार करने वाला। 2. अपने मन की बात साफ-साफ कहने वाला। उदा. मैंने बेतकल्लुफ होकर उच्च अधिकारी से बातें की। क्रि.वि. बिना तकल्लुफ, बेधडक़, निस्संकोच।

बेतकल्लुफी - (स्त्री.) - तकल्लुफ न करने का भाव।

बेतरतीब - (वि.) (फा.+अर.) - 1. जो बिना किसी तरतीब अर्थात क्रम के हो, क्रमरहित; उल्टा-सीधा, अस्त-व्यस्त, अव्यवस्थित। प्रयो. तुमने अलमारी में बेतरतीब ढंग से पुस्तकें रखी हुई हैं।

बेतहाशा अव्यय - (फा.) (फा.+अर.) - 1.बहुत तेजी से। उदा. महंगाई बेतहाशा बढ़ती जा रही है। 2. घबराकर और बिना सोचे-समझे,अंधाधुंध। जैसे: देख लिए जाने पर चोर बेतहाशा भाग खड़ा हुआ।

बेताब - (वि.) (.फा.) - किसी काम को करने के लिए बेचैन। मन को वश में रखने की शक्‍ति। पर्या. बेचैन, व्यग्र, अधीर, बेसब्र, व्याकुल।

बेताबी - (स्त्री.) (.फा.) - काम को करने के लिए बेचैनी की स्थिति। पर्या. बेचैनी, अधीरता, बेसब्री, व्याकुलता।

बेतुका - (वि.) (.फा.+तुक- देश.) - जिसमें कोई तुक या सामंजस्य न हो। पर्या. बेमेल। उदा. तुम जब भी बोलते हो बेतुका ही बोलते हो।

बेदख़ल - (वि.) (.फा.+अर.) - जिसका कब्ज़ा हटा दिया गया हो।

बेदख़ली - (स्त्री.) (.फा.) - (बे+दखल<दख्ल=पहुँच, अधिकार, कब्जा+ई प्रत्यय) बेदखल करने की क्रिया, संपत्‍ति से किसी का अधिकार हटाने का कार्य।

बेनकाब - (वि.) (.फा.) - 1. जो बिना नकाब के हो; जिसका चेहरा ढका न हो। मुहा. बेनकाब करना=रहस्या या भेद को प्रकट करना, असली रूप दिखाना। प्रयो. पुलिस ने बैंक में हेराफेरी करने वाले को बेनकाब कर दिया।

बेपता - (वि.) (फा.+देश.) - 1. जिसका कोई पता न हो। प्रयो. उनके बेपता होने से उन्हें सूचना देना संभव नहीं है। 2. जिस व्यक्‍ति, वस्तु, स्थान आदि का कोई परिचय उपलब्ध न हो जिससे उसकी खोज हो सके या उस तक पहुँचा जा सके। प्रयो. सूनामी आने पर कितने ही लोग बेपता हो गए।

बेपरदा/बेपर्दा - (वि.) - (फा.<बिना) 1. परदे के बना, 2. आवरण से रहित, बिना ढका; नंगा, जो स्पष्‍ट दिखे। पर्या. अनावृत।

बेपरवाह - (वि.) (फा.<बेपर्वा) - जो किसी बात की परवाह न करता हो; लापरवाह; निश्‍चिंत, बेफिक्र।

बेपर्दगी - (स्त्री.) (दे.) - पर्दे के बिना होने की स्थिति; नंगापन। दे. ‘बेपरदा/’बेपर्दा’।

बेफिक्र - (वि.) (फा.+अर. फिक्र) - जिसे कोई फिक्र न हो, निश्‍चिंत। उदा. गृहस्थ जीवन की सारी जिम्मेदारियों से निपटने के बाद वह बेफिक्र है। पर्या. बेपरवाह।

बेफिक्री - (स्त्री.) - निश्‍चिंतता।

बेबस - (वि.) (फा.तद्) - (बे+बस<वश) 1. जिसके वश की बात न हो, पर्या. विवश, लाचार, मज़बूर। उदा. कल ही लौट जाना था पर दुर्घटना हो गई और मुझे यहाँ रूकना पड़ा, क्या करूँ, बेबस था?

बेबसी - (स्त्री.) - मजबूरी क्या करूँ? बेबसी थी इसलिए यहाँ रूकना पड़ा।

बेमन - (वि.) (फा.) - जिसका मन किसी काम मे स्थिर न हो; काम करते हुये जो कुछ और सोच रहा हो, अनमना, एकाग्रता के बिना (क्रि.वि.) जैसे: वह बेमन बैठा हुआ है।

बेमिसाल - (वि.) (फा.+अरबी) - जिसका कोई अन्य उदा. न हो; अनुपम, बेजोड़। प्रयो. तुलसी का ‘रामचरित मानस’ बेमिसाल काव्यग्रंथ है।

बेमुरव्‍वत - (वि.) (फा.+अर.) - 1. जो मुरव्‍वत न करे, शील-संकोच से रहित, लिहाज न करने वाला। प्रयो. वह बड़ा बेमुरव्‍वत है, किसी का कार्य करने वाला नहीं। विलो. मुरव्‍वत।

बेमौके क्रि.वि. - (वि.) (फा.<बेमौका) - उचित अवसर देखे बिना; अनुपयुक्‍त, यानी गलत समय पर। उदा. तुम वहाँ बेमौके ही अपनी बात कहने लगे।

बेमौसम - (वि.) - (फा.बेमौसिम) जिसका मौसम न हो पर घटित हो जाए; बिना मौसम के। उदा. बेमौसम वर्षा ने सबको चकित कर दिया।

बेरहम - (वि.) (फा.) - जो दयारहित हो, निर्दय, निष्‍ठुर। प्रयो. वह बड़ा बेरहम इंसान है, किसी पर दया नहीं करता।

बेरहमी - (स्त्री.) - निर्दयता। प्रयो. उसने उसे बेरहमी से पीटा।

बेलबूटे - (पुं.) - (बहुवचन) (हि. बेल+बूटा) शा.अर्थ लताएँ और पेड़-पौधे। सा.अर्थ कपड़े पर काढ़े गए और दीवारों पर बनाए गए लताओं और पौधों आदि के चित्र। प्रयो. कई महिलाएँ कपड़ों, वस्त्रों पर बेलबूटे काढ़ने के व्यवसाय में लगी हुई हैं।

बेला - (स्त्री.) (दे.<तद्<विचकिल) - 1. चमेली की तरह का सफेद और सुगंधित फूलों वाला एक छोटा पौधा और उसके फूल दोनों ही। जैसे: बेला फूले आधा रात। पर्या. मोगरा, मोतिया।

बेवक्‍त क्रि.वि. - (वि.) (फा.+अर.) - 1. बिना उचित समय के। पर्या. असमय, कुसमय। 2. बिना उचित अवसर के। पर्या. अनवसर, बेमौके। 3. बिना ऋतु के। पर्या. बेमौसम।

बेवफ़ा - (वि.) (फा.+अर.फा.) - जो वफादार न हो, निष्‍ठा रहित, जो एहसान मानने वाला न हो, कृतघ्न। उदा. वह तो बहुत बेवफ़ा निकला।

बेवफ़ाई - (स्त्री.) - कृतघ्नता, दगाबाज़ी। प्रयो. सेवक ने अपने स्वामी के साथ बेवफ़ाई की।

बेशक - (फा.) (वि.क्रि.) - 1. बिना किसी शक, संदेह या शंका के। पर्या. निस्संदेह, जरूर, अवश्य। उदा. आप बेशक न आएँ, आपका काम हो जाएगा।

बेशकीमती - (वि.) (फा.+अर.) - जिसका मूल्य बहुत हो। पर्या. बहुमूल्य, मूल्यवान। उदा. अपना बेशकीमती सामान घर में न छोड़ें, लॉकर में रखें।

बेशरमी - (स्त्री.) (फा.+अर.) - शरम न होने का भाव, निर्लज्जता, बेहयाई। प्रयो. कल उसने सब के सामने जो बेशरमी दिखाई वह अत्यंत निदंनीय है।

बेशुमार - (वि.) (फा.+अर.) - जिसकी गिनती न की जा सके, असंख्‍य, अगणित। उदा. जनसभा में बेशुमार लोग उपस्थित थे।

बेसब्र - (वि.) (दे.) - जिसे धैर्य न हो। पर्या. अधीर। दे. बेसब्री।

बेसब्री - (स्त्री.) (फा.+अर.) - (बे+सब्र+ई) संतोष अथवा धैर्य न होने या रखने का भाव। पर्या. 1. असंतोष, 2. अधीरता, उतावलापन, आतुरता। प्रयो. मैं बड़ी बेसब्री से आपका इंतजार करता रहा। पर आप नहीं आए, इसका खेद है।

बेसिन - (पुं.) - (अं.) 1. भूपृष्‍ठ पर बना गर्तीय क्षेत्र जिसमें पानी इकट्ठा हो सके, जैसे: महासागरों का क्षेत्र, नदियों का क्षेत्र, झील-तालाब आदि के गड्ढे। 2. कृषि-पानी इकट्ठा करने हेतु कूएँ की जगत पर बनाया गया कुंड, जहाँ से पानी नालियों (धोरों) में बहकर खेतों में पहुँचता है। 3. घरों या भोजनालयों में हाथ धोने इत्यादि के लिए लगा गहराई वाला पात्र। पर्या. wash basin

बेसुध - (वि.) (फा.+तद्) - जिसे सुध या होश न हो। पर्या. बेहोश, अचेतन, मूर्छित। उदा. चलती गाड़ी से गिरकर वह बेसुध हो गया।

बेसुर/बेसुरा - (वि.) (फा.) - जो सही स्वर में गाया गया या उच्चरित न हो। बेढंगा गाने वाला। उदा. उसने बेसुरा गाना गया; उसकी आवाज़ बहुत बेसुरी है।

बेस्वाद - (फा.) (फा.+तत्) - किसी खाद्य पदार्थ के मुख में रखने पर खाने वाले को यह लगे कि उसके तैयार होने में कुछ कमी रह गई या कि वह वस्तु उसकी रूचि के अनुकूल नहीं बनी है। पर्या. निस्वाद, फीका। प्रयो. विद्यार्थियों की अक्सर यह शिकायत रहती है कि छात्रावास में बना भोजन प्राय: बेस्वाद होता है।

बेहतर - (वि.) (फा.) - तुलनात्मक दृष्‍टि से अधिक अच्छा, अपेक्षाकृत अच्छा, बढक़र। प्रयो. 1. यह कमीज़ पहले देखी कमीज़ से बेहतर है। 2. बेहतर होगा कि बारिश होने से पहले आप घर पहुँच जाएं।

बेहतरी - (स्त्री.) - भलाई, अच्छाई। प्रयो. भारी बारिश होने वाली है बेहतरी इसी में है कि आप जल्दी घर पहुँच जाएँ।

बेहतरीन - (वि.) (फा.) - सबसे अच्छा, श्रेष्‍ठ, उत्‍तम। उदा. इतनी कमीज़ देखीं, पर मुझे तो यह कमीज़ बेहतरीन लगी।

बेहद - (वि.) (फा.) - जिसकी हद (सीमा) न हो। पर्या. असीम, अपार, बहुत अधिक। प्रयो. आपसे दो साल बाद मिलने की मुझे बेहद खुशी है।

बेहया - (वि.) (फा.+अर.) - जिसे सामाजिक रूप से अकर्म/कुकर्म करने में कोई लज्जा महसूस न हो, निर्लज्ज, बेशर्म। प्रयो. वह इतना बेहया है कि अपने से बड़ों से भी असभ्य तरीके से बात करता है।

बेहयाई - (स्त्री.) (फा.+अर.) - निर्लज्जता, बेशर्मी।

बेहाल - (वि.) (फा.+अर.) - 1. जिसकी हालत (दशा) अच्छी न हो। 2. बेचैन, परेशान, व्याकुल। उदा. जून की गरमी में पैदल चलकर आने से मैं बेहाल हो गया।

बेहाली - (स्त्री.) - हालत या दशा अच्छी न होने की स्थिति। प्रयो. मेरी बेहाली के बारे में न पूछें तो अच्छा होगा।

बेहिसाब - (वि.) (फा.+अर.) - 1. जिसका हिसाब-किताब ठीक से न रखा गया हो। 2. बहुत अधिक, इतना जिसका हिसाब न लगाया जा सके। पर्या. बेहद, अगणित। प्रयो. आजकल मध्यवर्ग के लोग भी शादी-विवाह में बेहिसाब खर्च करने लगे हैं।

बेहूदगी - (स्त्री.) (फा.) - अशिष्‍टता, असभ्यता। प्रयो. उसने सबके सामने मुझसे बेहूदगी से बात की।

बेहूदा - (वि.) (फा.) - जो शिष्‍टता या सभ्यता के मानक पर खरी न उतरे, अशिष्‍ट, असभ्य। जैसे: बेहूदा मज़ाक। प्रयो. आपकी बेहूदा हरकतें मुझे पसंद नहीं हैं।

बेहोश - (वि.) (फा.) - जिसे होश या चेतना न हो। पर्या. अचेतन, मूर्छित, बेसुध। प्रयो. दोपहर की गरमी में उसको पीने को पानी नहीं मिला, जिससे वह बेहोश हो गया।

बेहोशी - (स्त्री.) (फा.) - शरीर की चेतना-हीन स्थिति, मूर्छित होने की स्थिति। पर्या. मूर्छा। प्रयो. बेहोशी की हालत में भी वह बड़बड़ाता रहा।

बैंक - (पुं.) - (अं.) 1. वह सार्वजनिक उपक्रम या प्रतिष्‍ठान जहाँ जमा राशियाँ स्वीकार करने और मांग पर धनराशि प्रदान करने तथा व्यापार-शिक्षा, भवन निर्माण आदि हेतु ऋण प्रदान करने की समुचित व्यवस्था होती है।, अधिकोष। 2. रक्‍त या नेत्र आदि शारीरिक अंगों के संग्रह का स्थान, जहाँ ये अंग दान आदि द्वारा जमा किए जा सकते हैं। तथा जहाँ से चिकित्सीय आवश्यकताओं के लिए इन्हें प्राप्‍त किया जा सकता है। जैसे: ब्लकबैंक, नेत्र बैंक आदि। 3. नदी का किनारा।

बैकुंठ - (पुं.) (तत्.) - 1. भगवान विष्णु का दिव्य धाम, विष्णु लोक। 2. स्वर्ग, कुंठा (निराशा) से रहित स्थान। जैसे: पौराणिक मान्यता के अनुसार पुण्यात्मा लोग मृत्यु के पश्‍चात् बैकुण्ठधाम को जाते हैं।

बैकेलाइट - (पुं.) - (अं.) रसा. रसायनशास्त्री एल.एल.बैकलैंड के नाम पर रखा गया एक कठोर प्लास्टिक जैसा पदार्थ जिसका उपयोग विद्युत-उपकरणों में किया जाता है।

बैटरी - (स्त्री.) - (अं.) 1. वह पात्र या डिब्बी जिसमें प्रयुक्‍त पदार्थों की रासायनिक ऊर्जा को विद्युत प्रवाह में परिवर्तित किया जाता है तथा जो रेडियो, विद्युत उपकरणों व कार आदि के चलाने में उपयोगी होती है। 2. बिजली की बत्‍ती या दो तीन सेलों से जलने वाली टार्च, जिसे प्रकाश के लिए हाथ में पकड़कर इधर-उधर ले जा सकते हैं। battery

बैठक - (स्त्री.) (देश.) - 1. वह स्थान जहाँ गांव के लोग विचार-विमर्श के लिए बैठते हों। पर्या. चौपाल। 2. घर में बैठकर विश्राम करने का प्रमुख स्थान अथवा मेहमानों से मिलने के लिए बिना कमरा। drawing-room 3. किसी विषय पर चर्चा के लिए लोगां के मिलकर बैठने की क्रिया। meeting 4. व्यायाम का एक प्रकार-दंडबैठक।

बैरंग - (वि.) - (<वियरिंग का उच्चरित रूप) ऐसी चिट्ठी अथवा पारसल आदि जिसका महसूल भेजने वाले ने न चुकाया हो और जिसे डाकघर में विरूपति (बदरंग) कर दिया जाता है ताकि वह यह याद रहे कि पाने वाले से दंड सहित महसूल वसूल करना है। मुहा. बैरंग लौटना-बिना काम बने लौटना, विफल होकर लौटना।

बैर - (पुं.) (तद्<बैर) - शत्रुता का भाव, दुश्‍मनी, प्रयो. पुराने राजा-महाराजाओं में आपसी बैर होने की वजह से वे अक्सर लड़ते रहते थे।

बैरक - (स्त्री.) - (अं.) सैनिक छावनियों में एक लंबाई में बने हुए अस्थायी कमरों का समूह, जिनमें फौज के सिपाही रहते हैं। उदा. केंद्रीय सचिवालय के आस-पास द्वितीय महायुद्ध के काल की कई बैर कें हैं जिनमें आज सरकार के दफ़्तर चल रहे हैं।

बैरा - (पुं.) - (अं.>बेअरर) भोजनालय या होटल का कर्मचारी जो ग्राहकों को भोजन परोस कर देता है या पहुँचाता है।

बैरी/वैरी - (वि./पुं.) (तद्<वैरिन) - दुश्मनी रखने वाला। पर्या. शत्रु, दुश्मन।

बैसाखी - (स्त्री.) (तद्<<द्विशाखी) - 1. दो शाखाओं वाला डंडा जिसके सहारे से लंगड़े चलते हैं। 2. स्त्री. तद्. <वैशाखी) वैशाख के महीने में पड़ने वाली सूर्य की संक्रांति। मेष संक्रांति, उक्‍त अवसर पर मनाया जाने वाला त्यौहार, वर्ष के प्रारंभ का त्‍योहार।

बोझ - (पुं.) (देश.) - 1. भारी होने का भाव। पर्या. भार, वजन। 2. कठिन और अनिच्छा से मिलने वाला कार्य। प्रयो. आपने उसे यह काम सौंप तो दिया है पर वह इसे अपने लिए बोझ ही समझता है। मुहा. बोझ उठाना-उत्‍तरदायित्व लेना। बोझ उतरना-मुक्‍त होना।

बोझा - (पुं.) (देश.) - ढोया जाने वाला या लदा हुआ भारी सामान।

बोध - (पुं.) (तत्.) - प्रत्यक्ष ज्ञान, अनुभूति, ध्यान, जानकारी। प्रयो. घर पहुँचने के बाद मुझे बोध हुआ कि मैं अपना छाता तो स्कूल में ही भूल आया हूँ।

बोधकथा - (स्त्री.) (तत्.) - (बोध-कथा) 1. वह कथा जो बालकों या शिक्षार्थियों को ज्ञान-विज्ञान से संबंधित विविध बातों या विषयों का सहज रीति से बोध कराने के लिए लिखी जाती है तथा जिसकी प्रस्तुति सरल, मनोरंजक एवं सुबोधगम्य होती है। विशेष रूप से अच्छी पत्रिकाओं में ऐसी कथाएँ होती है। 2. ऐसी कथा जो आचार व्यवहार आदि का व्यावहारिक संदेश देती है।

बोधगम्य - (वि.) (तत्.) - सरलता से समझ में आ जाने वाला। प्रयो. उसने अंग्रेजी में जो व्याख्यान दिया वह हमारे लिए बोधगम्य था।

बोधगम्यता - (स्त्री.) (तत्.) - सरलता से समझ में आ जाने की स्थिति का सूचक भाव।

बोधन - (पुं.) (तत्.) - जो लिखा हुआ हो उसे पढ़ने के साथ-साथ ही उसके अर्थ को भी समझ लेने की योग्यता। comprehension

बोधप्रश्‍न - (पुं.) (तत्.) - जो लिखा हुआ हो उसे पढ़ने के बाद अध्यापक द्वारा पूछा गया प्रश्‍न जो यह बताए कि विद्यार्थी ने उसे कितना समझा है।

बोना स.क्रि. - (तद् वपन) - 1. नई उपज प्राप्‍त करने के लिए मृदा (धरती की ऊपरी मिट् टी) में बीज डालना ताकि अनूकूल मौसम में खाद-पानी की सहायता से वह पल्लवित होकर वांछित फल दे सके। प्रयो. किसान ने खेत में गेहूँ बोया है। 2. ऐसा काम करना जिसका फल कालांतर में प्रकट हो। प्रयो. जैसा बोओगे वैसा काटोगे। 3. ला.अर्थ किसी काम का आरंभ करना।

बोरा - (पुं.) (देश.) - सन या टाट का बड़ा थैला जिसमें लगभग एक क्विंटल अनाज, दालें, चीनी इत्यादि भरे जाते हैं।

बोरियत - (स्त्री.) - (अं.<बोर) उकताहट, मन न लगने यानी उकता जाने की स्थिति। प्रयो. तुमने जो काम मुझे सौंपा वह बोरियत भरा है।

बोरी - - 1. छोटे आकार वाला बोरा। 2. ‘बोरा’ का ही पर्यायावाची शब्द जिसका प्रयोग स्त्रीलिंग में होता है।

बौखलाना अ.क्रि. - (देश.) - 1. अधिक गुस्से में आकर आत्मनिंयत्रण अथवा मानसिक संतुलन खो देना और परिणामस्वरूप अभद्र व्यवहार करने लगना। प्रयो. जब उसके साथी ने उस पर चोरी का झूठा इल्जाम लगाया तो वह इतना बौखला उठा कि उसने उससे हाथापाई शुरू कर दी।

बौखलाहट - (स्त्री.) - बौखलाने की अवस्था या भाव। उदा. उसने बौखलाहट में उसे कई अपशब्द कहे।

ब्याज - (पुं.) (तत्.) - उधार दिए गए धन पर (मूलधन के) लौटाये जाने तक मिलने वाला नियत दर पर अतिरिक्‍त धन। पर्या. सूद। जैसे: उसने दो प्रतिशत ब्याज की दर से ऋण लिया। अथवा बैंक में जमा धन राशि पर मिलने वाला अतिरिक्‍त धन। प्रयो. बैंक में एक से दो साल तक की सावधि जमा योजना पर 9% वार्षिक ब्याज मिलता है।

ब्याहता - (वि.) (स्त्री.) - [ तद्<विवाहिता] जिस (स्त्री) का विवाह हो गया हो; विवाहित।

ब्योरेवार - (वि.) (तद्.) - हर बात का उल्लेख करते हुए, विस्तारपूर्वक। उदा. कृपया खर्च का ब्यौरेवार विवरण प्रस्तुत करें।

ब्रह्म - (पुं.) (तत्.) - 1. ईश्‍वर, परमात्मा। जैसे: ब्रह् म सत्य है, जगत् मिथ्या है। 2. वेद-ब्रह् मवेत्‍ता 3. ओम्=ओम् इस एकाक्षर नाम का ब्रह् म है। 4. ब्राह् मण।

ब्रह् मांड - (पुं.) (तत्.) - (ब्रह् म+अंड) खगो. संपूर्ण, सुव्यवस्थित, खगोल (अंडाकार दिक्) Cosmos, Universe

ब्रैल पद् धति - (स्त्री.) (तत्.) - (अं.+ शिक्षा दृष्‍टिहीनों के लिए अक्षरों को लिखने या मुद्रण की एक प्रणाली जिसमें अक्षरों को तरह-तरह के उभरे हुए बिंदुओं से प्रकट किया जाता है। दृष्‍टिहीन व्यक्‍ति अपनी अंगुलियों से स्पर्श कर इन्हें पढ़ते हैं। इस पद् धति का नामक रण इसके खोजकर्ता लूईस ब्रैल फ्रांसिसी शिक्षक (1809-52) पर हुआ है।

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भंग - (पुं.) (तत्.) - 1. टूटने, मुड़ने या विभक्‍त होने की क्रिया या भाव। जैसे : धनुषभंग 2. विघ्न, बाधा, रूकावट। जैसे : रंग में भंग होना। 3. ध्वंस, विनाश, समाप्‍ति जैसे : सभा भंग कर दी गई। स्त्री. तत्. 4. एक पौधा जिसकी पत्‍तियाँ नशीली होती हैं। भाँग, विजया।

भंगिमा - (स्त्री.) (तत्.) - 1. शरीर के अंगों (विशेषकर चेहरे और आँखों) की मुद्रा जो मन के किसी भाव को प्रकट करती हो। 2. टेढ़ापन या कुटिलता।

भंडाफोड़ - (वि./पुं.) - शा.अर्थ भाँडा (पात्र) फूटना (फोड़ना) लाक्ष. गुप्‍त रहस्यों या बुरी चालों को सब के सामने प्रकट करने वाला कार्य (कृत्य) (क्रि. भंडाफोड़ करना)=रहस्य खोलना।

भंडार - (पुं.) (तत्.) - [भांडार[भांडागार) 1. कोश/कोष, खजाना उदा. पुस्तकालय ज्ञान का भंडार है। 2. अनाज रखने का कोठा। 3. सामान रखने का कमरा।

भंडार-गृह - (पुं.) (तत्.) - 1. रसद या सामान रखने का कमरा दे.- भंडार

भंडारण - (पुं.) (तत्.) - किसी वस्तु को संग्रहीत और सुरक्षित रखने की विधि। जैसे: खाद्य पदार्थों, फसल-उत्पाद आदि को नमी, कीट, चूहों एवं सूक्ष्म-जीवों से बचाने के लिए जूट के बोरों, धातु के बड़े-बड़े पात्रों या भंडारगृहों/गोदामों में रखना।

भंडारस्थल - (पुं.) (तत्.) - शा.अर्थ भंडार का स्थान दे. ‘भंडार-गृह’।

भंडारी - (पुं.) (तद्.[भांडागारिन्) - 1. भंडार की व्यवस्था एवं देखरेख करने वाला कर्मचारी/अधिकारी। store keeper

भँवर (भ्रमर) - (पुं.) (तद्.) - 1. भौंरा, स्त्री. भौंरी) 2. पानी के बहाव में वह स्थान जहाँ पानी तेज गति से चक्कर खाता हुआ दिखाई पड़ता है। 3. राजस्थान में उस लडक़े के लिए संबोधन जिसके पितामह जीवित हों ‘भँवर’। (पौत्र) मुहा. भँवर जाल में फँसना = संसारचक्र में फँसना।

- (स्त्री.) (देश.) - किसी वस्तु की अधिकता, बहुतायत, प्रचुरता, विपुलता। शा.अर्थ (पूरी तरह से) भर जाने की स्थिति से भी अधिक मात्रा में होने की स्थिति। उदा. उसकी अलमारी में साडि़यों की भरमार है।

भक्‍त - (वि.) (तत्.) - मूल.अर्थ 1. कई भागों में बँटा हुआ। 2. ईश्‍वर की भक्‍ति करने वाला। जैसे: भक्‍त प्रह्लाद 3. (विकसित अर्थ) किसी के प्रति/पूर्ण श्रद्धा और निष्‍ठा रखने वाला व्यक्‍ति। जैसे: देशभक्‍त, गाँधीभक्‍त।

भक्‍तवत्‍सल - (वि.) (तत्.) - अपने भक्तों पर कृपा करने या पूर्ण स्नेह रखने वाला

भक्‍तिभाव - (पुं.) (तत्.) - पूज्य, देवी-देवता या ईश्‍वर के प्रति प्रकट होने वाला विशेष प्रकार का प्रेम भाव। प्रयो. मीराबाई के पदों में कृष्ण के प्रति अनुपम भक्‍तिभाव प्रकट होता है।

भक्षक - (वि.) (तत्.) - 1. खाने वाला 2. ला.अर्थ अपने स्वार्थ के लिए किसी का पूर्णरूप से अहित करने वाला। प्रयो. जब रक्षक ही भक्षक बन जाए तो उसके बारे में क्या कहा जाए।

भक्षण - (पुं.) (तत्.) - 1. दाँतों से तोड़कर/काटकर खाने की क्रिया या भाव। 2. आहार, भोजन जैसे: तिल-भक्षण, फल-भक्षण।

भक्षण - (पुं.) (तत्.) - खाने की क्रिया या भाव। जैसे: मांस-भक्षण

भगदड़ - (स्त्री.) (देश.) - संकट की स्थिति में लोगों का घबराकर सोचे-विचारे बिना इधर-उधर भागना-दौड़ना। प्रयो. आग लगते ही पंडाल में भगदड़ मच गई।

भगवा - (वि.) (देश.) - गेरूए रंग का प्रयो. साधु-संयासी भगवा वस्त्र धारण करते हैं।

भगिनी - (स्त्री.) (तत्.) - बहन, बहिन।

भगीरथ - (पुं.) (तत्.) - 1. अयोध्या के वे प्रसिद् ध सूर्यवंशी राजा जिन्होंने उग्र तपस्या करके ‘स्वर्ग’ से गंगा नदी को पृथ्वी पर अवतरित किया। मुहा. भगीरथ प्रयत्‍न-ऐसा कार्य जो लगभग असंभव या अत्यंत कठिन (दुष्कर) प्रतीत हो पर जिसे पूरा कर लिया जाए।

भगोड़ा - (पुं.) (देश.) - 1. जो किसी डर के कारण अपना कर्तव्य या नौकरी छोडक़र दूसरी जगह चला गया हो। कायर, डरपोक 2. जो कानून या न्यायिक दंड पाने के भय से कहीं भाग गया हो। फरार। प्रयो: चोर के अदालत में हाजिर न होने से न्यायाधीश ने उसे भगोड़ा घोषित कर दिया।

भगोना - (पुं.) (देश.) - धातु का बना चौड़े मुँह वाला और आकार में अपेक्षाकृत बड़ा और ऊँचा पात्र जो पानी या अन्य खाद्य पदार्थों, जैसे: दूध, चावल, आलू इत्यादि उबालने के काम आता है।

भगोने-डोंगे - (पुं.) (देश.) - बहु. रसोईघर में काम आने वाले वे बरतन जिनमें साग-सब्जी पकाई और परोसी जाती है।

भग्न - (वि.) (तत्.) - टूटा हुआ, खंडित जैसे: पुरातात्विक भग्नावशेष (भग्न-अवशेष=टूटे-फूटे बचे हुए टुकड़े)

भग्नावशेष - (पुं.) (तत्.) - बहु. भवनों, मूर्तियों आदि के शेष बचे और खुदाई से मिले वे ऐतिहासिक अध्ययन की दृष्‍टि से महत्‍वपूर्ण टुकड़े या खंडित अंश जो उस स्थान के इतिहास का लेखा-जोखा तैयार करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं।

भजन - (पुं.) (तत्.) - भगवान् या इष्‍टदेव का बार-बार नाम लेना। 2. ऐसा पद् य जिसमें किसी इष्‍ट देव का गुणगान किया गया हो और उनसे कुछ माँगा गया हो। 3. संगीत के साथ उच्च स्वर से उक्‍त पद्यों का गायन। तुल. कीर्तन-उच्च स्वर में आराघ्य की कीर्ति का वर्णन।

भट - (पुं.) (तत्.) - 1. वेतन भोगी सैनिक 2. योद् धा 3. मल्ल, पहलवान

भटकना - - अ.क्रि. 1. उद्देश्य स्पष्‍ट हो फिर भी यदि सही मार्ग की जानकारी न हो तो उसकी प्राप्‍ति के लिए इधर-उधर मारे-मारे फिरने की असफल क्रिया। प्रयो. मेले में बच्चे के खो जाने पर उसे ढूँढने के लिए उसके माता-पिता दिनभर भटकते रहे।

भटकाना - (तद्.) - 1. (प्रेर.क्रि. भटकना) (भ्रष्‍ट-अटन) 1. किसी को भटकने में प्रवृत्‍त करना 2. भ्रम में डालना जैसे: उसने गणित के एक प्रश्‍न में मुझे भटका दिया। 3. गुमराह करना, जानबूझकर गलत रास्ता बतलाना।

भटकाव - (पुं.) (तत्.) - 1. मार्ग भूल जाने पर इधर-उधर मार्ग खोजने की स्थिति। 2. जीवन के लक्ष्य से दूर रहते हुए जीवन बिताने का भाव। 3. अशांत मन से एकाग्र न होते हुए भ्रमित होना 4. सत्य के मार्ग से च्युत होने का भाव। उदा. हम मन के भटकाव से अपने लक्ष्य तक नहीं पहुँच सकते। एकाग्रता आवश्यक है।

भट्ठी - (स्त्री.) - 1. ईंट, मिट् टी, लोहे से निर्मित वह बड़ा चूल्हा जिस पर कारीगर अनेक प्रकार की वस्तुएँ पकाते हैं। प्रयो: हलबाई भट् ठी पर मिठाईयाँ बनाता है। 2. देशी शराब बनाने का स्थान। furnace

भट् ठा - (पुं.) (तद्.) - 1. मिट् टी के बर्तन, ईंट आदि पकाने के लिए की गई विशेष संरचना, आँवा, पजावा। 2. ईंटें बनाने व पकाने का स्थान।

भडक़ - (स्त्री.) (दे.) - (अनु.) भडक़ने का भाव; ऊपरी चमक-दमक दे. ‘भडक़ना’।

भड़कना अ.क्रि. - (देश./अनु.) - 1. नया ईंधन डालने पर एकाएक तेज़ी से जलना उदा. आग भडक़ना 2. क्रोध का उग्र रूप धारण कर लेना, क्रोध भड़कना प्रयो. गाली सुनकर उसका क्रोध और अधिक भड़क गया। किसान के हाथ में लाठी देखकर बैल भड़क उठा।

भड़काना स.क्रि. - (तत्) - आग अथवा क्रोध के भडक़ने में निमित्‍त बनना। उदा. उग्रवादी व अपने अनुयायियों को सरकार के विरूद्ध भडक़ाते रहते हैं। धृतराष्‍ट्र ”यह देवकीनंदन तो अर्जुन को युद्ध करने के लिए भडक़ा रहा है।”

भड़कीला - (वि.) (देश.) - 1. भड़काने वाला, उत्‍तेजित करने वाला 2. चमकदार, चमक-दमक वाला पर्या. भड़कदार, भड़काऊ उदा. आजकल लडक़े-लडक़ियों में भड़कीले कपड़े पहनने का चलन है।

भड़भूँजा - (पुं.) (देश.) - [भाड़+भूँजना] भाड़ में अन्न भूँजने का व्यवसाय करने वाला व्यक्‍ति या जाति भूरजी। जैसे: यह भड़भूँजा सत्तू के लिए चने अच्छी तरह भूँजता है। टि. भाड़ में रेत गरम कर उसकी सहायता से अनाज भूनने का कार्य कुछ जातियाँ परंपरागत रूप से करती हैं। इन्हें भडभूँजा कहते हैं।

भद् द - (स्त्री.) (देश.) - बेइज्जत या अपमानित होने का भाव, बेइज्जती, बदनामी। मुहा. भद् द पिटना-बेइज्जती होना। सबके सामने झूठ की पोल खुलते ही उसकी बहुत भद् द पिटी।

भद् दा - (वि.) (तद्.) - 1. जो देखने में अच्छा न लगे। कुरूप, असुंदर जैसे: उसका चेहरा झुलसने पर बहुत भद्दा हो गया है। 2. बुरा, अश्‍लील प्रयो: सबके सामने वह भद् दे मज़ाक करता था।

भद् दापन - (वि.) (देश.) - अशिष्‍टता, बिना रंग का।

भद्र - (वि.) (तत्.) - अन्यों से सभ्यता, शिष्‍टता का व्यवहार करने वाला। उदा. भद्र पुरूष।

भद्रता - (स्त्री.) (तत्.) - शिष्‍टतापूर्ण व्यवहार की स्थिति।

भनक - (स्त्री.) ([तद्.[भणन]) - मंद ध्वनि अर्थात् गुपचुप बातचीत सुनकर किसी कृत्य के बारे में अनुमानित जानकारी, आभास। 1. उड़ती हुई खबर जिसकी प्रामाणिकता निश्‍चित न हो, आभास होना, भनक लगना, भनक पड़ना। 2. धीमा शब्द, 2. भन+क (अनुकरणात्मक शब्द [भन भन=भौरे की आवाज़) जिस प्रकार लगातार भन-भन ध्वनि सुनकर आसपास भ्रमर कीट होने का आभास हो जाता है उसी प्रकार उड़ती खबरें सुनकर किसी कृत्य की भनक पड़ जाती है।

भनभनाहट - (स्त्री.) (तद्.) - भनभनाने की क्रिया, भाव या ध्वनि

भभकना अ.क्रि. - (देश.) - 1. ज्वाला का (आग का) अचानक तेज़ हो जाना। पर्या. भडक़ना प्रयो. दीपक भभक कर बुझ गया। ला.अर्थ अकस्मात् अत्यधिक क्रोध करना। प्रयो. गाली सुनकर वह भभक उठा।

भभकी - (स्त्री.) - (अनु.) केवल डराने के लिए ऐसी आवाज़ निकालना कि लगे जैसे: बंदर या गीदड़ काटना चाहता है और सुनने वाला कुछ क्षण के लिए डर जाए। मुहा. बंदर भभकी, गीदड़ भभकी। झूठी धमकी।

भयंकर - (वि.) (तत्.) - 1. जिसे देखकर या सुनकर डर लगे, डरावना, भयानक। उदा. भयंकर आकृति, भयंकर सर्दी, भयंकर घटना।

भय - (पुं.) (तत्.) - विपत्‍ति या अनिष्‍ट की आशंका से मन में उठने वाला वह भाव जिससे प्राणी चिंतित और व्याकुल हो जाता है। पर्या. डर, खौफ मुहा. भय खाना=डरना

भयभीत - (वि.) (तत्.) - भीत=डरा हुआ, भय के कारण डरा हुआ। भय ग्रस्त

भयमुक्‍त - (वि.) (तत्.) - जिसका भय समाप्‍त हो चुका हो; जो अब भयभीत न हो यानी पहले था पर अब नहीं है। उदा. मैं भयमुक्‍त जीवन जीना चाहता हूँ। तु. निर्भय/बिना भय के, भयरहित।

भयाक्रांत - (वि.) (तत्.) - जो किसी कारण से बहुत डरा हुआ हो, भयभीत।

भयातुर - (वि.) (तत्.) - डर की वजह से व्याकुल, भय से घबराया हुआ। पर्या. भयाकुल, भयभीत, भयग्रस्त, भयाक्रांत, भयान्वित, भयार्त

भयानक - (वि.) (तत्.) - जो देखते ही देखने वाले के मन में भय पैदा कर दे। पर्या. डरावना, भयंकर, भयावना। पुं. नवरसों में से एक रस ‘भयानक’ जिसका स्थायी भाव ‘भय’ होता है।

भयावह - (वि.) (तत्.) - भय उत्पन्न करने वाला, डरावना, भयावना जैसे: भयावह दृश्य, भयावह स्थिति।

भरण-पोषण - (पुं.) (तत्.) - शा.अर्थ (पेट) भरना और (शरीर का) पोषण करना। 1. व्यक्‍ति (और उसके परिवार) के जीवन-निर्वाह की व्यवस्था 2. जो अपना पालन-पोषण स्वयं न कर सके उसके लिए अभिभावक द्वारा की गई व्यवस्था। maintenance

भरता - (पुं.) (देश.) - 1. बैंगन, आलू आदि को आग पर भूनकर बनाया जाने वाला एक विशेष प्रकार का सालन, सब्जी। जैसे: बैंगन का भरता बहुत स्वादिष्‍ट होता है। 2. (ला.) वह जो दबने आदि से बिलकुल बेकार हो गया हो। प्रयो: लड्डू वजन में दबकर भरता हो गए।

भरती/भर्ती - (स्त्री.) (देश.[भरण) - 1. भरने का भाव, खाली स्थान को भरना। जैसे: भरती का माल। 2. सेना, पुलिस आदि की नौकरी पर लिया जाना। recruitment 3. पढ़ाई के लिए विद्यालय में प्रवेश admittion

भरनी - (स्त्री.) (देश.) - 1. भरने या भरे जाने की क्रिया या भाव। जैसे: खेतों में पानी की भरनी, बीज की भरनी। 2. कर्मफल का भोग। उदा. जैसी करनी वैसी भरनी। 3. जुलाहे का वह उपकरण जिसके द्वारा सूत एक ओर से दूसरी ओर ले जाया जाता है और इस प्रकार कपड़ा बुनता जाता है। 4. जमीन समतल करने का कृषि यंत्र।

भरपाई - (स्त्री.) (देश.) - 1. ऋण या देनदारी की राशि को पूरा-पूरा चुकता कर देने का भाव, देयता का भुगतान। 2. इस प्रकार के चुकारे के प्रमाणस्वरूप दी जाने वाली रसीद। मुहा. भरपाना-संतुष्‍ट हो जाना।

भरपूर - (वि.) (तद्.) - 1. पूरी तरह से भरा हुआ। 2. जितना चाहिए उतना या उससे अधिक। उदा. भरपूर (मात्रा में) भोजन उपलब्ध है। क्रि. वि. पूरी तरह से। प्रयो. पुत्र ने पिता की वृद्धावस्था में भरपूर सेवा की।

भरमार - (स्त्री.) (देश.) - शा.अर्थ. पूरी तरह से भर जाने की स्‍थिति से भी अधिक मात्रा में होने की स्‍थिति किसी वस्‍तु की अधिकता, बहुतायत, प्रचुरता, विपुलता। उदा. उसकी अलमारी में साडि़यों की भरमार है।

भरवाँ - (वि.) (देश.) - मसाले आदि भरकर बना हुआ। जैसे: भरवाँ मिर्च, भरवाँ टमाटर, भरवाँ करैला।

भरसक - (अव्य.) (तद्.) - शा.अर्थ 1. भर सके (यानी हो सके) जितना। 2. पूरी शक्‍ति अर्थात् जितना शक्‍ति हो उतना; यथाशक्‍ति, सामर्थ्य के अनुसार। जैसे: भरसक प्रयास।

भराई - (स्त्री.) (देश.) - 1. किसी गहरे या खाली स्थान में मिट् टी आदि भरने या भराने की क्रिया का भाव। प्रयो. प्लॉट में मिट् टी की भराई। रजाई की भराई। 2. खेतों में गेहूँ। धान आदि में पानी लगाने की प्रक्रिया। प्रयो. धान के खेत में पानी की भराई हो रही है। 3. भरने की मजदूरी।

भरोसा - (पुं.) (तद्.) - 1. किसी कार्य के हो जाने की उम्मीद। (1) विश्‍वास, (2) अवलंब, (3) आश्रय, सहारा। 2. किसी व्यक्‍ति के बारे में यह विश्‍वास कि वह सौंपे गए कार्य को पूरा करने में समर्थ है और उसे अवश्य ही पूरा कर देगा।

भरोसेमंद - (वि.) (देश.फा.) - जिस पर भरोसा किया जा सके। भरोसे के लायक, विश्‍वसनीय।

भर्ता - (पुं.) (तत्.) - 1. भरण-पोषण करने वाला। 2. स्वामी, मालिक, 3. पति।

भर्त्सना - (स्त्री.) (तत्.) - दूसरे व्यक्‍ति की गलती अथवा अनुचित व्यवहार से क्रुद् ध और दु:खी होकर पहले व्यक्‍ति द्वारा उसे कटु शब्दों में कोसने, डाँटने-डपटने, लज्जित करने या धमकी देने का भाव या क्रिया। पर्या. निंदा, लानत।

भर्राना - - अ.क्रि. (अनु.) 1. ‘भर्र-भर्र’ की आवाज होना। 2. किसी कारणवश स्वर का अस्वाभिक रूप से भारी हो जाना।

भला - (वि.) (तद्. भल्ल प्रा. भद्र) - अच्छा; शिष्‍ट, सदाचारी, निर्दोष; प्रयो. शर्माजी भले आदमी हैं। विलो. बुरा। पुं. शुभ कल्याण, अच्छाई, भलाई। जैसे: भगवान सबका भला करे। विलो. बुरा। अव्य. अस्तु, खैर। प्रयो: भला, मैं वहाँ क्यों जाऊँ?

भलाई [भला+ई] - (स्त्री.) (तद्.) - 1. भला, (अच्छा, शुभ) होने का भाव, नेकी। 2. लाभ; उपकार। विलो. बुराई।

भला-बुरा - (पुं.) (देश.) - 1. अनुकूलता-प्रतिकूलता, लाभ-हानि, हित-अहित। प्रयो. भला-बुरा विचारकर ही कोई काम करें। 2. खरा-खोटा। जैसे: उसने उसे बहु: भला-बुरा कहा।

भलीभाँति - (अव्य.) (देश.) - अच्छे प्रकार से, जिस प्रकार होना चाहिए ठीक उसी प्रकार, नियमानुसार, पूरी तरह से।

भले - (पुं.) (तद्.) - 1. भला का बहुवचन। अव्य. 1. खूब, अच्छा। प्रयो. गुप्‍ता जी भले आ गए, महफिल जम गई। 2. चाहे, प्रयो. भले ही भगवान् आ जाएँ, मैं नहीं मानूँगा।

भवजाल [भव+जाल] - (पुं.) (तत्.) - 1. संसार का मोह-माया रूपी जाल जिसमें व्यक्‍ति सारा जीवन फँसा रहता है। 2. संसार रूपी प्रपंच, संसार का झंझट। प्रयो: हम भवजाल में पड़कर परमार्थ चिंतन नहीं कर पाते।

भवदीय सर्व. - (तत्.) (स्त्री.) - ‘आपका’ (प्राय: पत्र के अंत में लेखक के हस्ताक्षर से पहले लिखा जाने वाला आदर व आत्मीयता सूचक शब्द) भवदीया। (‘युवर्स फेथफुल’ के लिए स्थिर किया गया मानक पर्याय)

भवन - (पुं.) (तत्.) - 1. ईंट-चूना/सीमेंट, पत्थर आदि से बनी विस्तृत निर्मिति और विशाल (बनावट) जिसमें लोग रहते या कार्य करते हैं। इमारत (बिल्डिंग) राजभवन; कृषिभवन, विज्ञान भवन।

भवशूल/भक्शूल - (पुं.) (तत्.) - 1. संसार में होने वाले विविध प्रकार के कष्‍ट। 2. संसार में बार-बार होने वाली जन्म एवं मरण की पीड़ा। उदा. ”बिनु हरि भजन भक्शूल काटे नहि कटें”।

भवसागर - (पुं.) (तत्.) - संसार रूपी समुद्र। प्रयो. सत्कर्मों एवं हरि स्मरण से लोग भवसागर को पार कर जाते हैं।

भवानी - (स्त्री.) (तत्.) - भव अर्थात् शिव की भार्या, पत्‍नी, पार्वती, दुर्गा।

भवितव्यता - (स्त्री.) (तत्.) - 1. जो घटना भविष्य में अवश्य ही होने वाली हो। होनी। प्रयो. तुलसी जस भवितव्यता तैसी मिलइ सहाय। 2. किस्मत।

भविष्य - (पुं.) (तत्.) - आने वाला काय (समय) तु. भू – बीता हुआ काल। वर्तमान – वह काल जो चल रहा है।

भविष्यकथन - (पुं.) (तत्.) - व्यक्‍ति के भावी जीवन में क्या होने वाला है-इसके बारे में (ज्योतिषी द्वारा) पहले ही कह देना या कही हुई बात। पर्या. भविष्यवाणी।

भविष्यनिधि - (स्त्री.) (तत्.) - वेतनभोगी कर्मचारियों के वेतन में से प्रतिमास काटी जाने वाली वह राशि जो सेवा काल पूरा हो जाने पर उसे ब्याज सहित लौटाई जाती है ताकि उसका भविष्य सुरक्षित रह सके। provident fund

भविष्यवाणी - (स्त्री.) (तत्.) - भविष्य में घटित होने वाली घटना की पहले से ही सूचना देने वाला कथन। पर्या. भविष्य कथन।

भव्य - (वि.) (तत्.) - 1. देखने में विशाल और सुंदर-भव्य भवन। 2. शानदार-भव्य समारोह।

भव्यता - (स्त्री.) (तत्.) - 1. भव्य होने की अवस्था/भाव। 2. सौंदर्यपूर्ण दिव्यता, शान, गरिमा। 3. उत्कृष्‍टता, विशालता; चकाचौंध। प्रयो. उस विवाहोत्सव की भव्यता दर्शनीय थी।

भस्म - (स्त्री.) (तत्.) - 1. किसी वस्तु के पूरी तरह जल जाने के बाद बची हुई राख। 2. वैद्यक में धातुओं की विशेष क्रियाओं द्वारा फूँककर तैयार की गई राख जो विभिन्न दवाओं में काम आती है। जैसे: स्वर्ण भस्म, मुक्‍ता, भस्म, पारद भस्म। (स.क्रि. भस्म होना-पूरी तरह जलकर राख होना।)

भांड - (पुं.) (तत्.) - मृत्‍तिका (मिट् टी), धातु आदि से बना पात्र या बरतन जिसमें जल या किसी अन्य मात्रात्मक वस्तु का संग्रह किया जाता है।

भांडा - (पुं.) (तत्.<भाण्ड) - बर्तन, आज भांडे माँजने वाली नहीं आई। मुहा. भांडा फूटना = किसी का राज/रहस्य खुलना। प्रयो. अपने आपको पुलिस-अधिकारी कहने वाले का आज भांडा फूट गया।

भाँग - (स्त्री.) (दे.) - ‘भंग’।

भाँजा/भानजा - (पुं.) (तद्.<भागिनेय) - संबंध की दृष्‍टि से बहन का पुत्र, भागिनेय। जैसे: अभिमन्यु श्रीकृष्ण का भांजा था। स्त्री. भाँजी/आनज्ञी बहिन की बेटी। भागिनेयी।

भाँड़-भाँड़ - (पुं.) (तद्.) - वेश-भूषा बदल-बदलकर हास्यपूर्ण अभिनय करके जीविका चलाने वाला व्यक्‍ति। बहुरूपिया। ला.अर्थ वह व्यक्‍ति जिसके पेट में कोई बात न पचती हो और जो बात सुन लेने पर उस बात को सबके सामने कहता-फिरता हो।

भाँति - (स्त्री.) - तरह, प्रकार; रीति, ढंग। उदा. भाँति-भाँति की वस्तुएँ।

भाँपना स.क्रि. - (देश.) - 1. किसी के भावों, विचारों को उसकी शारीरिक चेष्‍टाओं, कथनों, क्रियाओं आदि से बिना बताए समझ लेना। ताड़ना। 2. परिस्थितियों आदि के आधार पर होने वाली घटनाओं का अनुमान कर लेना। प्रयो. उस व्यक्‍ति की हरकतों को देखकर मैंने भाँप लिया था कि वह चोर है।

भाईचारा - (पुं.) (तद्.) - दो व्यक्‍तियों या परिवारों के बीच (भाइयों/बंधु-बांधवों जैसा) आत्मीयता पूर्ण संबंध; सगा भाई न हो फिर भी भाई के समान ही प्रकट अपनत्व। प्रयो. लोगों के बीच जितना भाई-चारा बढ़ेगा उतना ही सामाजिक सामरस्य स्थापित होगा।

भाई-भतीजावाद - (पुं.) (देश.) - राजनैतिक, सामाजिक या सरकारी स्तर पर व्याप्‍त वह अनैतिक प्रवृत्‍ति जिसमें लोग गुण, योग्यता आदि न देखते हुए अपने परिचितों या पारिवारिक/संबंधी जनों को अवसर देते हैं। प्रयो. आजकल देश में सर्वत्र प्रत्येक स्तर पर भाई-भतीजावाद का ही बोलबाला है।

भाई-भतीजावाद - (पुं.) (देश.) - सत्‍तासीन लोगों द्वारा अपने नाते-रिश्तेदारों और मित्रों-परिचितों को उनकी अयोग्यता के बावजूद ऊँचें पदों पर स्थापित करने, ठेके या रियासतें देने की अनुचित प्रथा। nepotism

भाग - (पुं.) (तत्.) - किसी संपूर्ण वस्तु का अलग किया गया या किया जा सकने वाला खंड उदा. पुस्तक का पहला भाग, दूसरा भाग। स.क्रि. भाग लेना 1. भागीदारी वाला-हिस्सा लेना जैसे: नृत्य में भाग लेना 2. गणित की वह क्रिया जिसमें कोई राशि या संख्या कई टुकड़ों में बाँटी जाती है। division तद्. 3. भाग्य, किस्मत-उसके भाग में क्या लिखा है, कौन जाने? भाग खुलना, भाग चमकना, भाग जागना, भाग फूटना

भाग-दौड़ - (स्त्री.) (देश.) - किसी काम के लिए किया जाने वाला वह प्रयत्‍न जो एक ही जगह बैठकर संभव न हो और जिसे पूरा करते समय इधर-उधर काफी भागना-दौड़ना पड़े। पर्या. दौड़-धूप।

भागना अ.क्रि. - ([तद्.[व्रजन)]) - 1. संकट या भय से बचने के लिए दौड़कर निकल जाना या पलायन करना। 2. कर्तव्यपालन से विमुख होकर चले जाना या कर्तव्य से बचना। उदा. काम से भागो मत। मुहा. सिर पर पैर रखकर भागना-बहुत तेज़ी से भागना।

भागफल - (पुं.) (तत्.) - किसी एक राशि या संख्‍या को एक दूसरी राशि या संख्या से भाग देने पर प्राप्‍त होने वाला फल। प्रयो. 21 को 7 से भाग देने पर भागफल 3 प्राप्‍त होता है। quotient

भागीदार - (पुं./वि.) (देश.) - भाग/हिस्से का अधिकारी, हिस्सेदार। partner प्रयो. इस ज़मीन के चार भागीदार हैं।

भागीदारी - (स्त्री.) (तत्.+फा.) - 1. किसी कार्य में किया जाने वाला सहयोग। 2. किसी व्यवसाय में हिस्सेदारी। parternership

भाग्य - (पुं.) (तत्.) - वह दैवी विधान जो पूर्वकर्मों के आधार पर भविष्य में प्राप्‍त होने वाले फलों का निर्णय करता है। पर्या. किस्मत, तकदीर, नसीब। मुहा. भाग्य चमकना-अच्छा होना। भाग्य फूटना-खराब होना।

भाजक - (वि.) (तत्.) - शा.अर्थ बाँटने वाल, विभाग करने वाला। वह संख्या या राशि जिससे किसी अन्य (भाज्य) संख्या या राशि को भाग दिया जाता है। divsion

भाज्य - (पुं.) (तत्.) - जिसके हिस्से किए जा सकें। गणि. वह संख्या जिसको (भाजक संख्या से) भाग देना है। dividend

भाट - (पुं.) (तद्.) - वंशवृत्‍त लिखने वाली एक जाति विशेष या इस जाति का व्यक्‍ति।

भाटक - (तत्.) - भाड़ा, किराया।

भाटा - (पुं.) (देश.) - समुद्र में आये ज्वार का क्रमश: कम होते जाना, समुद्र में लहरों का उतार। टि. सूर्य और चंद्र के गुरुत्वाकर्षण के कारण समुद्र का पानी चढ़ता और उतरता रहता है। पानी के चढ़ने को ‘ज्वार’ और उतरने को ‘भाटा’ कहते हैं।

भाड़ - (पुं.) (तद्. भ्राष्‍ट्र) - सा.अ. विशेष प्रकार की भट्ठी जिसके नीचे आग जलाई जाती है और ऊपर मिट्टी या लोहे के कड़ाह में पड़ी गरम बालू पर कोई अन्न डालकर भूँजा जाता है। ला.अ. वह स्थान जहाँ हर चीज़ जलकर खाक हो जाती है। प्रयो. भाड़ में जाय यह नौकरी। मुहा. भाड़ झोंकना=बेकार समय नष्‍ट करना, झख मारना।

भाड़ा - (पुं.) ([तद्.]भाटक)] ) - किसी दूसरे के स्थान पर रहने, व्यापार करने या आवागमन आदि के लिए दिया जाने वाला किराया। प्रयो. रेल का भाड़ा, ट्रक का भाड़ा, मकान का भाड़ा आदि। मुहा. भाड़े का टट्टू-जो धन लेकर कोई भी उचित या अनुचित कार्य करने को तैयार हो जाए।

भान - (पुं.) (तत्.) - 1. किसी घटना या बात का पहले से ही होने वाला आभास। प्रतीति। जैसे: मुझे तो आपके मित्र के गिरफ्तार होने का भान पहले ही हो गया था। 2. प्रकाश, दीप्‍ति

भानजी - (स्त्री.। ) - भाँजा/ भानजा दे; भांजी/भानजी।

भाना - (तद्.<भावन) - 1. मन को अच्छा लगना; पसंद आना। प्रयो. मुझे मीठा भाता है/कम भाता है। 2. शोभा देना। उदा. उसके शरीर पर हरे रंग की साड़ी भाती है।

भानु - (पुं.) (तत्.) - दे. ‘सूर्य’।

भाप - (स्त्री.) (तद्.<वाष्प) - 1. पानी के उबलने पर उसमें से निकलने वाले सूक्ष्म कणों का गैसीय पुंज जो (धुएँ-सा) उड़ता दिखाई देता है और जिसका उपयोग शक्‍ति के रूप में भी हो सकता है। जैसे: भापचालित इंजन steam 2. भौ. घन या द्रव पदार्थों की वह अवस्था जो अत्यधिक ताप से अन्य रासायनिक क्रियाओं के फलस्वरूप गैसीय कणों के रूप में दिखलाई देती है। वाष्प vapour

भार - (पुं.) (तत्.) - 1. (भौ.) किसी पदार्थ का वह गुरूत्व जिसे तौल के द्वारा जाना जाए। पर्या. तौल, वजन weight 2. बोझ, जो एक स्थान से दूसरे स्थान तक किसी साधन से ले जाया जाए। load, burden 3. किसी कार्य को करने का दायित्व charge 4. बंधक या क़र्ज में रहने का भाव। encumbrance मुहा. भार उठाना-उत्‍तरदायित्व लेना। भार उतरना-उत्‍तरदायित्व से मुक्‍त होना।

भारत - (पुं.) (तत्.) - 1. हमारा प्रसिद्ध देश जिसका नाम राजा भरत के नाम पर पड़ा है। हिमालय से हिंद महासागर तक फैला भू प्रदेश। 2. ‘महाभारत’ ग्रंथ का पहले का नाम। ऐसी मान्यता है कि पहले ‘जय’, बाद में ‘भारत’ और अंत में ‘महाभारत’ नाम से यह ग्रंथ प्रसिद्ध हुआ। 3. (संबोधन के रूप में) हे भरतवंशोद्भव।

भारत रत्‍न - (पुं.) (तत्.) - 1. भारत का रत्‍न 2. कोई विशेष गुण या योग्यता वाला भारत का व्यक्‍ति। 3. भारत सरकार द्वारा दी जाने वाली एक सर्वोच्च नागरिक उपाधि जो अत्यंत उच्च कोटि के विद्वानों, रचनाकारों, समाजसेवियों आदि को सम्मान के रूप में प्रदान की जाती है। जैसे: ‘भारत-रत्‍न’ से विभूषित लता मंगेशकर, जवाहर लाल नेहरू आदि।

भारतीय - (वि.) (तत्.) - 1. भारत देश से संबंधित 2. भारत का निवासी, भारत का नागरिक

भारवाही - (पुं.) (तत्.) - बोझ या भार ढोने वाला। जैसे: टट् टू, कुली (भारिक)

भारिक - (पुं.) (तत्.) - रेलवे स्टेशन, बड़े बस अड्डे आदि पर नियत शुल्क लेकर यात्रियों (मुसाफिरों) का सामान उठाकर यथास्थान रखने वाला कर्मचारी। पर्या. कुली।

भारी - (वि.) ([तद्.[भारिक)]) - 1. जिसमें अधिक बोझ हो, वज़नी, बोझिल, विशाल जैसे : भारी भीड़ 2. जो साधने या सहने के योग्य न हो, असह् य, दूभर, कठिन, विकट। जैसे: भारी विपत्‍ति, भारी कठिनाई, भारी भूल 3. जो कानों को मधुर न लगे, कर्णकटु। जैसे: भारी आवाज़

भारीपन - (पुं.) (देश.) - 1. वजनी (भार युक्‍त, बोझयुक्‍त) होने की स्थिति/भाव। 2. गुरुत्व, वजन।

भाल - (पुं.) (तत्.) - भौहों के ऊपर वाला सिर का वह सामने का भाग जहाँ बाल नहीं उगते। पर्या. ललाट। forehead

भाला - (पुं.) ([तत्.[भल्ल] ) - एक पारंपरिक शस्त्र जो एक लंबे डंडे के आगे तीरनुमा लोहखंड जोड़कर /गढ़कर बनाया जाता है। पर्या. बरछा, शूल।

भाव - (पुं.) (तत्.) - 1. किसी वस्तु के अस्तित्व में आने, रहने या होने की अवस्था। existance 2. मन में उत्पन्न होने वाला कोई विचार, ख्याल idea 3. मतलब, तात्पर्य या अभिप्राय। उदा. कहने का भाव यह है कि (इन्टेन्ट) 4. किसी वस्तु का गुणात्मक तत् व जो उसकी मूल प्रकृति या विशेषता का सूचक होता है 5. किसी चीज़ की बिक्री आदि का प्रचलित या निश्‍चित किया गया मूल्य। rate

भावना - (स्त्री.) (तत्.) - किसी के प्रति मन में उठने वाले (अच्छे या बुरे) विचार या संवेग। जैसे: राष्‍ट्रीय भावना। सद् भावना= अच्छे विचार; दुर्भावना-बुरे विचार

भावनात्मक - (वि.) (तत्.) - भावना संबंधी, भावनाओं से युक्‍त। दे. ‘भावना’

भावपूर्ण - (वि.) (तत्.) - भावनाओं (स्नेह, प्रेम, श्रद् धा आदि) से भरा हुआ।

भावभीना - (वि./पुं.) - भावना से युक्‍त या समाया/भरा हुआ अथवा भीगा हुआ, भावना प्रधान। जैसे: भावभीना स्वागत।

भावभीनी - (वि.) (स्त्री.) - भावना से युक्‍त या भरी हुई विदाई।

भावमुद्रा - (स्त्री.) (तत्.) - शरीर या किसी अंग की वह हरकत जिससे कोई विशेष भावना अभिव्यक्‍त होती हो।

भावविभोर - (वि.) (तत्.+तद्.) - जो भावों (भावनाओं) में लीन/मस्त हो गया हो। भावविह्वल, भावाभिभूत प्रयो. उनका अत्यधिक प्रेम देख मैं भावविभोर हो गया

भावशबलता - (स्त्री.) (तत्.) - (भाव-शबलता (मिश्रण) (काव्य.) 1. अभिव्यक्‍ति का वह प्रकार जिसमें एक ही पद या शब्द या पंक्‍ति से एक के बाद एक विविध भाव प्रकट होते हों। 2. अनेक प्रकार के भावों का मिश्रण

भावानुवाद - (पुं.) (तत्.) - स्रोत भाषा से लक्ष्य भाषा में ऐसा अनुवाद जो शब्दश: न होकर भावों को ध्यान में रखते हुए किया गया हो।

भावार्थ - (पुं.) (तत्.) - ऐसा विवरण या विवेचन जिससे मूल कथन का आशय (भाव) स्पष्‍ट हो जाए।

भावी - (स्त्री.) (तत्.) - भाग्य, तकदीर वि. भविष्य में आने, होने या घटने वाली। जैसे: भावी पीढ़ियाँ।

भावुक - (वि.) (तत्.) - भावना प्रधान (व्यक्‍ति) जो बहुत जल्दी भावों, विशेषत: कोमल-करूण भावों के अधीन हो जाता हो।

भावुकता - (स्त्री.) (तत्.) - 1. भावुक होने की क्रिया, अवस्था या भाव, भावना में बह जाने का भाव, सहृदयता 2. वह मानसिक अवस्था जिसमें मनुष्य की वृत्‍ति कोमलभावों से युक्‍त होती है। जैसे: दे. ‘भावुक’ उसने भावुकतावश उस दुखिया को बहुत-सा धन दे दिया।

भाषा विज्ञान - (पुं.) (तत्.) - वह विद्या शाखा या शास्‍त्र जिसमें सैद् धांतिक स्तर पर भाषा की संरचना, प्रकार्य, अर्थ आदि का वैज्ञानिक अध्ययन किया जाता है। linguistics पर्या. भाषाशास्त्र।

भाषाविद् - (पुं.) (तत्.) - 1. विविध भाषाओं का जानकार यानी एकाधिक भाषाओं पर स्वभाष-भाषी जैसा अधिकार रखने वाला व्यक्‍ति। 2. भाषाविज्ञान के सिद्धांतों का ज्ञाता। linguist तु. दुभाषिया

भाषावैज्ञानिक - (पुं.) (तत्.) - भाषाओं तथा उनके बोले जाने वाले शब्दों की उत्पत्‍ति, विकास, संरचना आदि से संबंधित तथ्यात्मक ज्ञान का अधिकृत विद्वान। उदा. भाषा के रहस्यों को भाषावैज्ञानिक ही बता सकते हैं। lingcuisitc

भिक्षा - (स्त्री.) (तत्.) - 1. माँगने पर मिलने वाली चीज़। पर्या. भीख 2. गरीबों, साधु-संतों, संन्यासियों आदि को जीवन-यापन/भरण-पोषण के लिए गृहस्थों की ओर से दिया जाने वाला/मिलने वाला अन्न-धन आदि। alms तु. दान।

भिक्षाटन - (पुं.) (तत्.) - भिक्षाप्राप्‍ति के लिए घर-घर जाना।

भिक्षापात्र - (पुं.) (तत्.) - भिक्षा/भीख माँगने का बर्तन/कटोरा आदि।

भिक्षु/भिक्षुक - (पुं.) (तत्.) - 1. भीख माँगने वाला व्यक्‍ति (बैगर) 2. संन्यासी, बौद् ध संन्यासी monk, mendieant स्त्री. भिक्षुणी)

भिख - (स्त्री.) (तद्.) - (भीख का समास में=प्रयुक्‍त रूप) 1. दीनतापूर्वक माँगने पर ही मिलने वाला अनाज, पैसा या अन्य कोई वस्तु। पर्या.- खैरात तु. दान।

भिखमंगा - (वि.) (देश.[भिक्षा] - भीख माँगने वाला, भिक्षुक, मँगता।

भिगोना स.क्रि. - (तद्.[अभ्यंजन] - किसी पदार्थ को द्रव में डुबोकर तर करना, गीला करना। ‘भीगना’ का प्रेरणा. रूप मुहा. भिगो-भिगोकर मारना=बुरी तरह से पीटना। टि. कोड़े/रस्सी को यदि पानी में भिगोकर पीटा जाए तो चोट अधिक गहरी होती है।

भिडंत - (स्त्री.) (देश.) - 1. टकराने की क्रिया या भाव, 2. टक्कर, मुठभेड़, लड़ाई। जैसे: कल प्रात: 8 बजे कानपुर के पास दो मालगाडि़यों में भिड़ंत हो गई।

भित्‍ति चित्र - (पुं.) (तत्.) - दीवार पर बनाए गए चित्र। wallpainting, fresco

भिनकना अ.क्रि. - (देश.अनुरण.) - 1. भिन-भिन करना यानी मक्खियों के उड़-उड़ कर बैठने की क्रिया। पर्या. भिनभिनाना (टू बज़) ला.अर्थ (मन में) घृणा उत्पन्न करना-होना; घृणा प्रकट करना।

भिनभिनाना - - अ.क्रि. (अनु.) भिन-भिन जैसी ध्वनि करना।

भिनसार/भिनुसार - (पुं.) (देश.) - सूर्य उदय का या उसके कुछ पहले का काल, प्रात:काल, सवेरा जैसे: कृषक मिनसार से ही काम में जुट जाते हैं।

भिन्न - (वि.) (तत्.) - व्यु.अर्थ टूटा हुआ सा.अर्थ 1. अलग, पृथक, जुदा (क) अलग व्यक्‍ति (अदर) (ख) अलग प्रकार का different (ग) अलग वर्ग का distinct 2. स्त्री. गणि. एक राशि से दूसरी राशि के भागफल को सूचित करने के लिए प्रयुक्‍त संकेत या संख्या जिसमें भाज्य राशि एक रेखा के ऊपर तथा भाजक राशि उसके नीचे लिखी जाती है। उदा. 1/2, 3/5, x/y आदि fraction

भिन्नता - (स्त्री.) (तत्.) - भिन्न होने का भाव पर्या. अलगाव, पार्थक्य।

भिश्ती - (पुं.) [बिहिश्ती] (फा.) - मशक में भरकर पानी ढोने वाला व्यक्‍ति। पर्या. माशकी, सक्का

भिषक् - (पुं.) (तत्.) - भेषज (दवा) देने वाला व्यक्‍ति, चिकित्सक, वैद्य प्रयो. उत्‍तम भिषक वही है जो रोग की सही पहचान करके भेषज देता है।

भींचना स.क्रि. - (देश.) - किसी वस्तु या व्यक्‍ति को कसकर खींचना या दबाना। जैसे: उसने अपने मित्र का गला भींचकर दबा लिया। मुहा. दाँत भींचना=क्रोधित होना। मुट्ठी भींचना-क्रोधित होना या जोश में आना

भीख - (स्त्री.) (तद्.=तत्.-भिक्षा) - दीनतापूर्वक माँगने पर ही मिलने वाला अनाज या अन्‍य कोई वस्‍तु। पर्या. खैरात तु. दान।

भीगना अ.क्रि. - (तद्.)भीजना)अभ्यजन) - पानी या अन्य किसी तरल पदार्थ से तर होना, आर्द्र होना, गीला होना। प्रयो. वह वर्षा से पूरी तरह भीग गया।

भीड़ - (स्त्री.) (देश.) - एक स्थान पर एक साथ बहुत सारे व्यक्‍तियों का अव्यवस्थित रूप से इकट्ठा होना, व्यवस्थाहीन जनसमूह। मुहा. भीड़ करना-बहुत सारी चीजें इकट्ठा कर लेना। भीड़ छँटना-भीड़ का तितर बितर होकर कम हो जाना।

भीड़-भड़क्का - (पुं.) (देश.अनु.) - लोगों का समूह जो उपलब्ध, स्थान की कमी के कारण, ठुसा पड़ा हो और हर व्यक्‍ति अपने लिए जगह बनाने हेतु एक-दूसरे से भिड़ रहा हो यानी धक्का-मुक्की कर रहा हो।

भीड़-भाड़ - (स्त्री.) (देश.) - एक ही स्थान पर बहुत से लोगों का जमाव, जनसमूह, भीड़। पर्या. भीड़ भड़क्का। जैसे बेटा! इस भीड़-भाड़ में खो मत जाना।

भीड़शाही - (स्त्री.) (देश.+.फा.) - लोकतंत्र का वह बिगड़ा रूप जिसमे भीड़ मनोवृत्ति को महत्व दिया जाता है,और तदनुसार अधकचरे सार्वजनिक निर्णय लिए जाते है। mobocracy

भीना - (वि.) (देश.) - भरा हुआ या युक्‍त। जैसे: भावभीना, रसभीना टि. प्राय: समासयुक्‍त पदों में उत्‍तर पद् के रूप में प्रयुक्‍त

भीनी - (वि.) (देश.) - 1. बहुत मंद या हल्की। प्रयो. अगरबत्‍ती से गुलाब की भीनी सुगंध फैल गई है। 2. ओत-प्रोत प्रयो. भाव भीनी कविता सुनकर दिल भर आया।

भीरु - (वि.) (तत्.) - 1. भयभीत रहने वाला; 2. जिसमें साहस न हो। पर्या. डरपोक, कायर विलो. साहसी, बहादुर।

भीरुता - (स्त्री.) (तत्.) - 1. भीरु या डरपोक होने का गुण (अवगुण), कायरता। 2. भय से ग्रस्त होने का भाव जैसे: युद्ध भीरुता से नहीं वीरता से जीते जाते हैं। विलो. वीरता

भीषण - (वि.) (तत्.) - 1. भय उत्पन्न करने वाला। पर्या. भयानक, भयंकर, डरावना। 2. मन और शक्‍ति को कष्‍ट देने वाला। पर्या. दारुण, विकट, घोर जैसे: भीषण गर्मी, भीषण यातना।

भीष्म-प्रतिज्ञा - (स्त्री.) (तत्.) - ऐसी भीषण प्रतिज्ञा जिसका पालन अत्यंत कठिन हो। टि. महाभारत की कथा के अनुसार भीष्म (देवव्रत) ने अपने पिता की प्रसन्नता के लिए आजीवन ब्रह् मचारी रहने की कठोर प्रतिज्ञा की थी। इसीलिए उनका नाम ‘भीष्म’ पड़ा और इस प्रकार की भीषण प्रतिज्ञा को ‘भीष्म प्रतिज्ञा’ कहा जाने लगा।

भुइँ - (स्त्री.) (तद्.<भूमि) - पृथ्‍वी, पृथ्‍वीतल, भूमि।

भुक्खड़ (अड़) - (वि.) (देश.) - जो सदैव भूखा ही हो; जिसे हमेशा भूख लगी रहती हो। पर्या. पेटू, खाऊ, कंगाल।

भुक्‍तभोगी - (वि.) (तत्.) - 1. जो किसी कार्य का अनुभव कर चुका हो। 2. जिसने किसी व्यक्‍ति या वस्तु के संपर्क में रहकर दु:ख झेला हो। प्रयो. मैं तो उनकी संगति का भुक्‍तभोगी हूँ, तुम उनसे बचकर रहना।

भुखमरी - (स्त्री.) (देश.) - शा.अर्थ भूख के कारण मरने की स्थिति। समाज. सामाजिक विषमता या प्राकृतिक आपदा के कारण उत्पन्न ऐसी स्थिति जिसमें समाज के अधिकतर लोगों को पेट भर भोजन न मिल सके।

भुगतना स.क्रि. - (तद्.>भुक्‍ति) - 1. स्वयं के या दूसरों के कर्मों का अप्रिय फल/परिणाम आदि भोगना। 2. अनिच्छित दायित्व को किसी मजबूरी में निभाना। प्रयो. उसे अब यहाँ सगाई का खर्च भी भुगतना पडे़गा।

भुगतान - (पुं.) (देश.<भोग) - शा.अर्थ भुगतने या भोगने का भाव 2. साहूकार से लिए गए ऋण या सामान के मूल्य आदि की अदायगी। paymnet

भुतहा - (वि.) (तत्.+हिन्दी) - एसा (घर,वृक्ष या कोई स्थान) जिसके विषय मे सामान्य लोगो की धारणा यह हो की यहाँ भूत- प्रेतो का निवास है। जैसे: भुतहा महल, भुतही कोठी।

भुनगा - (पुं.) (देश.) - 1. एक प्रकार का बहुत छोटा और उड़ने वाला कीट जो प्राय: फूलों और फलों में रहता है। जैसे: गूलर के फलों के अंदर बहुत भुनगे होते हैं। 2. वर्षा के दिनों में उड़ने वाला बहुत छोटे आकार का कीड़ा। प्रयो. बरसात में तो शाम से ही भुनगे व पतंगे उड़ने लगते हैं। 3. ला.अर्थ अत्यंत क्षुद्र प्राणी।

भुनाना (प्रेर.) - (तद्.>भूर्ज) - 1. भूनने का काम किसी अन्य से कराना। जैसे: वह भड़भूँजे से चना भुना रहा है। 2. अधिक मूल्य के सिक्कों, नोट आदि को छोटे सिक्कों या नोटों में बदलवाना। प्रयो. 1. वह सौ का नोट भुना रहा है। 2. हम बैंक में जाकर अपना चेक भुनाते हैं।

भुरकस/भुरकुस - (पुं.) - (हिं. भुरकना) 1. किसी वस्तु को बुरी तरह कुचलने, कूटने या टूटने से प्राप्‍त स्थिति चकनाचूर होने की स्थिति। प्रयो. शीशा टूटकर भुरकस हो गया।

भुरता/भरता - (पुं.) - (देशं) बैंगन, आलू इत्यादि को भूनकर और कुचलकर बनाया गया तरकारीनुमा, खाद्य पदार्थ।

भुरभुरा - (वि.) - (देश-अनु.) हल्का आघात लगने पर, थोड़ा सा बल लगने से या थोड़ी ऊँचाई से गिर जाने से भी चूर-चूर हो जाने वाला। crisp

भुलक्कड़ पुं/ - (वि.) - (देश) 1. प्राय: किसी बात को या किसी कार्य को भूल जाने के स्वभाव वाला। विस्मरणशील। 2. बहुत जल्दी भूल जाने वाला। प्रयो. उस भुलक्कड़ का कोई भरोसा नहीं है कि कल वह आपका सामान लाएगा ही।

भुवन - (पुं.) (तत्.) - 1. संसार, जगत् प्रयो. इस भुवन में कौन अमर है। 2. लोक-पुराणों के अनुसार स्वर्ग आदि चौदह लोक। 3. स्वर्ग, पृथ्वी, पाताल इन तीन भुवनों में प्रत्येक। (इन तीनों को त्रिभुवन कहते हैं।)

भुहँ - (स्त्री.) (तद्.) - (भूमि) पृथ्वी, पृथ्वीतल, भूमि।

भूंगा - (पुं.) (देश.) - गुजरात के कच्छ क्षेत्र में बसने वाले आदिवासियों का घर। बबूल की लकड़ी, घास, गोबर और मिट् टी से बना गोल आकार का यह घर अंदर से ठंडा रहता है। इसमें छोटी-छोटी खिड़कियाँ भी बनाई जाती हैं जिनसे हवा अंदर आती है। भू भू-गोलक को उत्‍तरी गोलार्ध और दक्षिणी गोलार्ध नामक दो समान भागों में विभाजित करने वाली वह (कल्पित) रेखा जिसे 0º से व्यक्‍त किया जाता है। पर्या. विषुवत् रेखा।

भू-अभिलेख - (पुं.) (तत्.) - ग्राम-नगर आदि में भू-संपत्‍ति के संदर्भ में भूमि की सीमा, माप उसके स्वामित्व आदि का सरकारी लेखा-पत्र। land record प्रयो. हमारे पास गाँव की जमीन का ठीक-ठीक ब्यौरा है जो भू. अभिलेख प्रमाणपत्र में दर्ज है।

भूकंप - (पुं.) (तत्.) - शा.अर्थ पृथ्वी का काँपना। भू-पृथ्वी के अंदर की स्थल मंडलीय प्लेटों के स्थान बदलने के कारण पृथ्वी के ऊपरी तल पर महसूस होने वाला कंपन, जिसके अधिक तीव्र होने पर जन-धन की भारी क्षति होने की संभावना होती है। पर्या. भूचाल। दे. स्थलमंडलीय प्लेट।

भूकंपमापी - (पुं.) (तत्.) - भूकंप का मापन करने वाला उपकरण। दे. भूकंप लेखी।

भूकंपरोधी - (वि.) (तत्.) - ऐसे उपकरण या उपाय जो भूकंप के कारण होने वाली क्षति को रोक सकें या उसके कुप्रभाव को कम कर सकें।

भूकंपलेखी - (पुं.) (तत्.) - वह उपकरण जो भूकंप के कारण पृथ्वी में उत्पन्न होने वाली तरंगों की गति का चित्र प्रस्तुत करे। इसकी माप का पैमाना रिक्टर है। seismograph पर्या. भूकंपमापी।

भूख हड़ताल - (स्त्री.) (तद्.) - शा.अर्थ भूखे रहने के रूप में काम-काज की दूकान पर ताला डालना। सा.अर्थ मालिक/सत्‍ता प्रतिष्‍ठान/सरकार द्वारा किसी माँग को न माने जाने पर माँगकर्ता द्वारा अंतिम हथियार के रूप में अपनाया जाने वाला वह रास्ता जिसमें वह जब तक उसकी माँग न मान ली जाए तब तक अन्न-जल का त्याग करने का निश्‍चय करता है और तदनुसार किसी सार्वजनिक स्थल पर बैठकर अपना वचन निभाता है। पर्या. अनशन। तु. उपवास, व्रत।

भूगोल - (पुं.) (तत्.) - व्यु.अर्थ पृथ्वी का गोला। सा. अर्थ सामाजिक विज्ञानों की वह शाखा जिसमें पृथ्वी के प्राकृतिक, राजनैतिक या सामाजिक दृष्‍टि से किए गए विभागों तथा उनसे संबंधित बातों का अध्ययन किया जाता है।

भूगोलक - (पुं.) (तत्.) - गोलाकार पृथ्वी का कृत्रिम प्रतिरूप जिस पर महाद्वीपों, महासागरों, विभिन्न देशों के नक्शे एवं अक्षांश और देशांतर रेखाएँ आदि बने होते हैं तथा जिसकी सहायता से कक्षा में विद्यार्थियों को भूगोल संबंधी जानकारियों सुविधापूर्वक दी जा सकती है। globe

भूगोलवेत्‍ता - (पुं.) (तत्.) - भूगोल शास्त्र का जानकार। दे. भूगोल।

भूचाल - (पुं.) (तद्.) - शा.अर्थ पृथ्वी का चलना (यानी काँपना या हिलना।) भू. प्राकृतिक कारणों से पृथ्वी के आंतरिक भाग में होने वाली उथल-पुथल से पृथ्वी की सतह का अचानक हिल उठना। पर्या. भूकंप। earthquake

भूत - (पुं.) (तत्.) - व्यु.अर्थ जो हो गया हो। 1. वे मूल तत् व जो सर्वप्रथम उत्पन्न हो चुके हों और जिनसे सृष्‍टि की रचना हुई है। तत् व जैसे: पंच महाभूत-धरती, जल, अग्नि, आकाश और वायु। टि. ऐसी मान्यता है कि सर्वप्रथम आकाश उत्पन्न हुआ, आकाश से वायु, वायु से अग्नि, अग्नि से जल और जल से पृथ्वी तत् त्व पैदा हुआ। 2. प्राणी, जीव। जैसे: भूतनाथ (प्राणियों के स्वामी), भूतदया। 3. पौराणिक मान्यता के अनुसार वह जो मुक्‍ति न होने से प्रेतयोनि को प्राप्‍त होता है और छाया रूप से कष्‍टदायक एवं अमांगलिक कार्य करता है। प्रेत, पिशाच, शैतान। जैसे: भूत-बाधा से ग्रस्त लोग।

भूत - (वि.) (तत्.) - 1. जो हो चुका हो। जैसे: भूतपूर्व। 2. बीता हुआ (समय) जैसे: भूतकाल। मुहा. भूत उतारना-किसी की अकड़ या घमंड नष्‍ट करना। भूत सवार होना-किसी प्रकार की धुन/लगन/पागलपन या आवेश होना।

भूत-पिशाच - (पुं.) (तत्.) - प्रेतयोनि की भयावह एवं कल्पित उग्ररूप धारण करने वाली आत्माएँ जो निर्दोष प्राणियों को सताती है। उदा. ‘भूतपिशाच निकट नहिं आवें, महावीर जब नाम सुनावे।’ (हनुमान चालीसा)

भूतापीय ऊर्जा - (स्त्री.) (तत्.) - पृथ्वी के आंतरिक ताप से उत्पन्न ऊर्जा। टि. पृथ्वी के आंतरिक ताप के कारण पृथ्वी पर कहीं-कहीं गरम जल की धाराएँ सोतों या झरनों के रूप में प्राप्‍त होती हैं जिनका प्रयोग खाना पकाने, नहाने या ऊष्मा प्राप्‍त करने के लिए किया जाता है।

भूनना स.क्रि. - (तद्.भूँजना/भर्जन) - 1. किसी अन्न, सब्जी या औषधि इत्यादि को आग में या अंगारों पर सेंककर पकाना। जैसे: होला भूनना, मक्की का भुट् टा भुनना। कच्चे चने के पौधों को आग में डालकर पकाना, आलू, बैंगन भूनना आदि। 2. गरम बालू/रेत में चने, ज्वार, मक्का आदि में सेंककर पकाना। प्रयो. भड़भूँजा भाड़ में चने भूनता है।

भूना - (वि.) (तद्.) - भुना हुआ। जैसे: भुना बैंगन, भुने चने आदि। दे. भूनना। मुहा. जला-भुना = अत्यधिक क्रुद्ध।

भूप - (पुं.) (तत्.) - धरती की रक्षा और पालन-पोषण करने वाला। राजा पर्या. भूपाल, भूपति। प्रयो. सीता स्वयंवर में परशुराम के आते ही सभी कपटी भूप भयभीत हो गए।

भूपर्पटी - (स्त्री.) (तत्.) - सा.अर्थ पृथ्वी की पपड़ी। शा.अर्थ पृथ्वी की संरचनात्मक तीन परतों में से सतह को छोडक़र सबसे ऊपर वाला ठोस भाग जिसकी मोटाई 30 से 50 किमी के बीच आँकी गई है। विशेष-तीनों परतों में से यह सबसे पतली परत है। crust तु. क्रोड, प्रावार।

भूभाग (भू+भाग) - (पुं.) (तत्.) - अपने नैसर्गिक गुणों वाला विस्तृत भू-क्षेत्र।

भूमंडल - (पुं.) (तत्.) - एक खगोलीय पिंड के रूप में हमारी गोलाकार पृथ्वी जिस पर महाद्वीप, महासागर स्थित हैं तथा जिस पर जीवन उपलब्ध है। पर्या. पृथ्वी globe

भूमंडलीकरण - (पुं.) (तत्.) - पूरे भूमंडल या संसार में किसी वस्तु, विचार आदि को फैलाने और प्रभावित करने की प्रक्रिया। globlization

भूमंडलीय तापन - (पुं.) (तत्.) - विद्युत संयंत्रों तथा मोटरों, गाडि़यों आदि द्वारा कार्बन डाइऑक्साइड आदि पदार्थों के उत्सर्जन के परिणामस्वरूप उत्पन्न ताप का संपूर्ण भूमंडल पर व्याप्‍त हो जाना और पृथ्वी के तापमान में वृद् धि हो जाना। global warming

भूमध्यसागर - (पुं.) (तत्.) - दक्षिणी यूरोप, उत्‍तरी अफ्रीका और पूर्वोत्‍तर एशिया से घिरा हुआ समुद्र जिसकी लंबाई लगभग 3850 कि.मी. और क्षेत्रफल लगभग 30 लाख वर्ग कि.मी. है। mediterranian-sea टि. स्थल भागों से घिरा होने के कारण ‘भूमध्य सागर’ कहा जाता है।

भूमिका - (स्त्री.) (तत्.) - 1. विषय की पूर्व-सूचना; ग्रंथ आदि की प्रस्तावना। पर्या. आमुख introduction 2. नाटक, फिल्मों या अन्य किसी भी क्षेत्र में किसी चरित्र विशेष की हू-ब-हू प्रस्तुति। पर्या. किरदार। role

भूमिगत - (वि.) (तत्.) - व्यु.अर्थ पृथ्वी के अंदर गया हुआ-न दिखाई देने वाला-छिपा हुआ। प्रयो. वृक्ष की जड़ें भूमिगत होती हैं। आधु.अर्थ सत्‍ता की पकड़ से बचने के लिए किसी गुप्‍त स्थान पर छिपा हुआ। प्रयो. ब्रिटिश सरकार से बचने के लिए क्रांतिकारी अकसर भूमिगत हो जाते थे।

भूर-विलास - (पुं.) (तत्.) - भौंहों का मोहक संचालन, भौंहों को नचाना, भौंहें हिलाकर किसी का ध्यान अपनी ओर आकृष्‍ट करना।

भूरा - (वि.) (तद्.बभु्र) - कुछ-कुछ मिट्टी के रंग का, मटमैला, खाकी। जैसे: भूरा बंदर, भूरी गाय।

भूराजस्व - (पुं.) (तत्.) - शा.अर्थ भूमि से प्राप्‍त राजस्व। 1. भूमि से होने वाली सरकारी आय। 2. कृषि योग्य भूमि पर दिया जाने वाला कर। पर्या. लगान।

भूरि - (वि.) (तत्.) - बहुत अधिक, प्रचुर मात्रा में, पुन:-पुन:। जैसे: सभा में अतिथि की भूरि-भूरि प्रशंसा की गई।

भूल - (स्त्री.) (देश.) - 1. स्मरण न रहने की अवस्था या भाव। जैसे: उस सभा में आपको न बुलाने की भूल हो गयी। 2. अज्ञान या भ्रमवश होने वाली कोई गलती। प्रयो. उसने भूल से दाल में नमक की जगह ‘चीनी’ डाल दी। 3. जल्दबाजी या असावधानी से होने वाली गलती या अपराध। प्रयो. वह जल्दबाजी में भूल से अंग्रेजी की जगह गणित की पुस्तक ले आया।

भूल-चूक - (स्त्री.) (देश.) - विस्मरण, भ्रम या गलती से होने वाला कार्य। जैसे: 1. आपकी सेवा में कोई भूल-चूक हुई हो तो क्षमा करना। मुहा. भूल-चूक लेनी-देनी – यदि भूल हुई हो तो लेकर या देकर ठीक हो सकती है।

भूलभुलैया - (स्त्री.) (देश.) - 1. किसी लंबे चौड़े भवन की ऐसी रचना कि अंदर घुसने पर व्यक्‍ति बाहर निकलने का रास्ता भूल जाए और बार-बार एक ही स्थान पर पहुँचता रहे। जैसे: भूलभुलैया में फँसना। 2. इसी प्रकार की रेखाकृति या पेड़-पौधों आदि की रचना। labyrinth

भूला-बिसरा - (वि.) (देश.+तद्.) - वह व्यक्‍ति, घटना इत्यादि जो भुला दिया गया हो या जिसकी याद कभी-कभी ही आती हो। प्रयो. बचपन की भूली-बिसरी यादें तो बहुत हैं।

भूला-भटका - (वि.) (देश.) - 1. जो रास्ता भूलकर इधर-उधर भटक रहा हो, जैसे: भूला-भटका मुसाफिर। 2. ला.अर्थ जीवन के सही लक्ष्य से विमुख या मार्गभ्रष्‍ट। प्रयो. भूले भटके लोग भी कभी-कभी उचित मार्गदर्शन से जीवन को सुखमय बना लेते हैं।

भूले-भटके क्रि.वि. - (वि.) (देश.) - भूलकर या भटककर, अरे महानुभाव! भूल-भटक कर कभी यहाँ आकर हमें भी अपना दर्शन देते रहें।

भूसंपत्‍ति - (स्त्री.) (तत्.) - भूमि के रूप में प्राप्‍त वंशानुगत या खरीदी गई संपत्‍ति। land property

भूसंपदा - (स्त्री.) (तत्.) - भूमि के रूप में संपत्‍ति। land estate

भूसंपर्कण - (पुं.) (तत्.) - दुर्घटना से बचने के लिए विद् युत धारा को भूमि से जोड़ना। earthing

भूसा - (पुं.) (देश.) - गेहूँ, जौ, आदि के छिलके या उनके डंठलों के बारीक टुकड़े जिन्हें पशुओं को चारे के रूप में खिलाया जाता है।

भूसी - (स्त्री.) (देश.) - (भूसा) बारीक भूसा। उदा. ईसबगोल की भूसी (बारीक छिलके)।

भूस्खलन - (पुं.) (तत्.) - पर्वतीय प्रदेशों में जमीन का धँस जाना या खिसक जाना। landslide

भूस्पंद - (पुं.) (तत्.) - पृथ्वी के अंदर होने वाला हलका कंपन। इसे छोटा भूकंप कह सकते हैं।

भूस्वामी - (पुं.) (तत्.) - भूमि का मालिक, जिसके पास भूमि के स्वामित्व का अधिकार हो। land lard

भेंगा - (पुं./वि.) (देश.) - (वह व्यक्‍ति) जिसकी दोनों आँखों की पुतलियाँ अलग-अलग दिशाओं में या टेढ़ी तिरछी दीखती हैं। प्रयो. भेंगा होने के कारण उसका विवाह नही हो पा रहा है।

भेंट - (स्त्री.) - (हि.) 1. मुलाकात। प्रयो. आज मैंने स्वास्थ्य अधिकारी से भेंट कर नगर की स्वास्थ्य संबंधी समस्याओं पर बात की। 2. किसी के सम्मान में या किसी खुशी के अवसर पर किसी को सहर्ष व सप्रेम दिया जाने वाला उपहार। प्रयो. मुख्य अतिथि को शाल एवं एक कलात्मक मूर्ति भेंट की गई। gift, present 3. मंदिर इत्यादि को वस्तु आदि के रूप में दिया जाने वाला दान। जैसे: उसने मंदिर में पंखा भेंट किया। 4. देवी-देवताओं की स्तुति के भजन।

भेंटवार्ता - (स्त्री.) (तत्.) - शा.अर्थ किसी से भेंटकर उससे बातचीत करना। पत्र. किसी/किन्हीं विशिष्‍ट व्यक्‍ति/व्यक्‍तियों से की गई ऐसी बातचीत जिसे बाद में जनसंचार माध्यमों से सर्वसामान्य तक पहुँचाने का प्रयत्‍न किया जाता है। पर्या. साक्षात्कार interview

भेंड़ - (स्त्री.) (तद्.भेड) - बकरी की तरह का एक छोटा चौपाया पशु जिसके शरीर पर ऊनी बाल होते हैं, तथा उसके गाढ़े दूध का भी लोग प्रयोग करते हैं। मेष, गड़र। प्रयो. इस भेड़पालक के पास बहुत भेड़ें है। मुहा. 1. भेंडचाल। बिना कोई विचार किये सभी व्यक्‍तियों का एक के पीछे चल पड़ना, अंधानुकरण की प्रवृत्‍ति, 2. भेडि़या धँसान-अत्यधिक घनी भीड़।

भेजना स.क्रि. - (तद्.) - 1. किसी को किसी विशेष उद् देश्‍य से कहीं जाने के लिए प्रेरित करना। जैसे: पिताजी उसे गाँव भेज रहे हैं। 2. किसी वस्तु को एक स्थान से दूसरे स्थान को रवाना करना, प्रेषण। जैसे: मैंने यहाँ से एक घड़ी डाक द्वारा मित्र के लिए भेजी है।

भेजा - (पुं.) (देश.) - शरीर का वह महत्‍वपूर्ण अंग जिसमें हम वैचारिक चिंतन करते हैं, मस्तिष्क, दिमाग। उदा. इस प्रश्‍न को हल करने में अब मेरा भेजा काम नहीं कर रहा। मुहा. भेजा चाटना/खाना-बहुत देर तक व्यर्थ की बातें करके दिमाग/मस्तिष्क थका देना। उदा. तुम कब से मेरा भेजा चाट रहे हो, मैंने कह दिया कि आज तुम्हारा काम नहीं हो पाएगा। स.क्रि. भेजना क्रिया का भूतकालिक रूप।

भेड़ - (स्त्री.) (तद्.) - बिना सींग वाला चौपाया जो ऊन के लिए पाला जाता है। मुहा. भेड़-चाल

भेड़-चाल - (स्त्री.) (तद्.) - भेड़ों की तरह व्यवहार करना। टि. भेड़ की दो विशेषताएँ हैं-1. एक भेड़ जिधर जाती है अन्य भेड़ें भी उसी दिशा में चल पड़ती हैं। 2. भेड़ सदैव आगे जा रही दो भेड़ों के बीच घुसने का प्रयत्‍न करती है।

भेड़िया - (पुं.) (तद्.) - कुत्‍ते की जाति का एक जंगली खूँखार जानवर जो बस्तियों से छोटे बच्चे, भेड़, बकरी आदि को उठाकर ले जाता है। उदा. भेड़िया खूँखार जानवर होता है। 2. लाक्ष. धूर्त तथा लालची व्यक्‍ति जो हिंसा भी कर सकता है।

भेड़िया-धँसान - (तद्.) - भेड़यों की तरह घुसकर भीड़ करना, भेड़चाल, अंधानुकरण।

भेद - (पुं.) (तत्.) - 1. दो या दो से अधिक व्यक्‍तियों के बीच मनमुटाव पैदा कर देना। जैसे: मित्र-भेद अंतर जैसे: भेद बुद्धि। उदा. बेटा-बेटी के बीच भेद करना अब पुरानी बात हो गई है। 2. छिपी हुई बात, रहस्य। उदा. वह अपना भेद किसी पर भी प्रकट नहीं करता। secret, mystery मुहा. भेद खुलना-छिपी हुई बात का सामने आ जाना, रहस्य प्रकट हो जाना। 3. प्रकार जैसे: संज्ञा के तीन भेद हैं।

भेदक - (वि.) (तत्.) - भेद करने वाला, भेद दिखाने वाला।

भेदन - (पुं.) (तत्.) - 1. छेदने की क्रिया 2. खुल जाना, सामने आ जाना। जैसे: रहस्य भेदन।

भेदना स.क्रि. - (तद्.) - 1. छेद करना 2. छेद करके अंदर घुस जाना। उदा. अभिमन्यु चक्रव्यूह को भेद कर (का भेदन कर) कौरव-योद्धाओं से भिड़ गया।

भेदबुद्धि - (स्त्री.) (तत्.) - समान स्थिति अथवा स्तर की वस्तुओं एवं व्यक्‍तियों में भेदभाव पैदा कर देने वाली बुद् धि या कुशलता।

भेदभाव - (पुं.) (तत्.) - शा.अर्थ अंतर (बनाए रखने) का भाव। 1. समान वस्तुओं तथा व्यक्‍तियों में अंतर करने और उसे बनाए रखने का अनुचित विचार 2. एक ही समूह में से कुछ लोगों के साथ कुछ व्यवहार तो अन्य के साथ कुछ और व्यवहार। discrimination

भेदात्मक - (वि.) (तत्.) - जो भेद पर आधारित हो, भेदभाव-युक्‍त, भेदभाव से पूर्ण, भेदभाव-भरा।

भेदिया - (पुं.) - भेद अर्थात् छिपी हुई बात को खोज निकालने वाला। पर्या. जासूस, गुप्‍तचर spy

भेरी - (स्त्री.) (तत्.) - एक प्रकार का ताल वाद्य, बड़ा ढोल, नगाड़ा। जैसे: युद्ध की सूचना के लिए भेरी बज रही है, रणभेरी।

भेषज - (पुं.) (तत्.) - ओषधि, दवा। drug

भेषजी - (स्त्री.) (तत्.) - स्थान जहाँ औषधियाँ बनाई जाती हैं और दवा विक्रेताओं/औषधालयों को आपूर्ति की जाती है। पर्या. औषध निर्माणी, औषध निर्माणशाला। pharmacy

भेस - (पुं.) (तद्.<वेश) - दूसरों को दिखाने के लिए या अन्य किसी विशिष्‍ट उद्देश्य जैसे: धोखा देना आदि का अनुकरण करते हुए उसी जैसी पहनी हुई वेशभूषा। उदा. रावण ने साधु का भेस धारण कर सीता का हरण किया था।

भैंस - (स्त्री.) - गोजातीय एक मादा दुधारू पशु जिसका दूध गाय के दूध से अधिक गाढ़ा और चिकना होता है।

भैया/भाई - (पुं.) (तत्.<भ्रातृ) - 1. एक ही वंश के माता-पिताओं की संतानों के परस्पर संबंधों को व्यक्‍त करने वाला नरपुरुष (पुत्र)। पर्या. भ्राता, सहोदर 2. चाचा/मामा/फूफा/मौसा का लड़का, भाई (चचेरा, ममेरा, फुफेरा, मौसेरा) 3. लगभग समान उम्र के अपरिचित व्यक्‍ति के लिए आदरसूचक संबोधन शब्द-भैया।

भोंकना स.क्रि. - (देश.) - 1. किसी अपेक्षाकृत मुलायम वस्तु में कोई कठोर और नोंकदार वस्तु बलपूर्वक प्रविष्‍ट करना। 2. किसी नुकीले शस्‍त्र से आक्रमण कर उससे शरीर को भेदना। जैसे: उसने डाकू के पेट में भाला भोंक दिया।

भोंडा - (वि.) (देश.) - 1. जो देखने में या महसूस करने में अप्रिय, भद्दा या बेढंगा हो, कुरूप, बदसूरत। 2. अशिष्‍ट, असभ्य। जैसे: भोंडा स्वरूप, भोंडा व्यवहार।

भोंडापन - (पु.) (देश.) - भद्दापन, अशिष्‍टता।

भोंतरा/भोंथरा - (वि.) (देश.) - जिसकी धार तेज न हो, कुंठित धार वाला (अस्त्र-शस्त्र)। जैसे: भोंतरा खड्ग, चाकू आदि।

भोंदू - (वि.) (देश.) - जो बहुत सरल तथा कम अकल (बुद्धि) वाला हो, बुद्धू, मूर्ख। जैसे: उसे भोंदू समझकर वे लोग अपने साथ यात्रा में नहीं ले गए।

भोंदूपन - (पुं.) (देश.) - भोंदू होने की अवस्था या भाव, अत्यंत सीधापन, मूर्खता। जैसे: इतना सब देखकर भी तुम्हारा भोंदूपन अभी नहीं गया।

भोंपू - (पुं.) (देश.) - 1. फूँककर बजाया जाने वाला एक प्रकार का बाजा। 2. गुब्बारे जैसे रबड़ से बना वह विशेष बाजा जिसके दबाने पर भों-भों की आवाज आती है तथा जो प्राय: राहगीरों को चेतावनी के लिए होता है। अर्थ. 3. पिछलग्गू, चमचा। जैसे: वह तो श्यामदास का भोंपू है, उसी की बातें करता रहता है।

भोग-विलास - (पुं.) (तत्.) - सुखपूर्वक अच्छी-अच्छी चीजों का उपभोग करना। जैसे: भोगविलास का जीवन।

भोज - (पुं.) (तद्.<भूर्ज) - एक वृक्ष जिसकी कागज जैसी छाल पर पहले लिखा जाता था, तंत्र-मंत्र के लिए भी उसका प्रयोग होता है। जैसे: भोजपत्र पर लिखा विशेष मंत्र।

भोज - (पुं.) (तद्.) - किसी अवसर पर सामूहिक रूप से कराया जाने वाला भोजन, दावत, जेवनार। जैसे: आज उनके यहाँ पुत्र जन्मोत्सव पर बहुत बड़े भोज का आयोजन किया गया।

भोजन - (पुं.) (तद्.) - वह खाद् य पदार्थ/सामग्री जो प्राणियों के जीवित रहने का मुख्य आधार है। पर्या. आहार। उदा. वन्य जीव सिंह का भोजन है।

भोजपत्र - (पुं.) (तद्.<भूर्जपत्र) - <भूर्जपत्र) भूर्ज वृक्ष की छाल जिसका प्रयोग प्राचीनकाल में कागज की तरह किया जाता था।

भोर - (स्त्री.) (देश.) - 1. सूर्योदय से कुछ पहले का समय जब प्रकाश की हलकी आभा दिखलाई देती है। टि. इसे ही ब्रह्म-मूहुर्त कहा जाता था।

भोला - (वि.) (देश.) - जो निष्कपट एवं सरल चित्‍त हो, सीधा-साधा जैसे: बच्चे बड़े भोले होते हैं।

भोलानाथ - (पुं.) (देश.+तत्.) - महादेव, शिव जैसे: भोलानाथ तो ओढरदानी है।2.उदा. तुम व्यवहार मे तो सचमुछ भोलानाथ हो।

भोलापन - (पुं.) (देश.) - सरलता, निश्छलता। जैसे: उसमें अभी भी भोलापन झलकता है।

भोला-भाला - (देश.) - (अत्यंत सीधा (व्यक्‍ति) जैसे: वह धूर्त गाँव के भोले-भाले लोगों को ठगता है।

भौंकना/भूँकना अ.क्रि. - (देश.) - 1. कुत्‍ते का भूँ-भूँ या भौं-भौं का जोर से शब्द करना, कुत्‍ते की आवाज जैसे: किसी भिखारी को देखकर कुत्‍ते भौंक रहे हैं। 2. (ला.) ऊँची आवाज में कार्य की बातें बोलते जाना। जैसे: अब बहुत हो गया, भौंकना बंद करो।

भौंचक - (वि.) (देश.) - आश्‍चर्यचकित, भौंचक्का।

भौंह - (स्त्री.) (तद्.<भ्रू) - आँख की ऊपर वाली हड्डी पर उगे हुए बाल/रोएँ जो दूर से काले और वक्र रेखा से दिखते हैं जैसे: भौहों से आँखों की शोभा होती है। मुहा. 1. भौंहें तानना-क्रोध प्रकट करना। 2. भौंहें नचाना-भौंहें चलाकर चंचलता दिखाना। इशारा करना 3. भौंहें सिकोड़ना-अनिच्छा प्रकट करना।

भौगोलिक [भूगोल+इक] - (वि.) (तत्.) - भूगोल से संबंधित। दे. ‘भूगोल- जैसे: भारत की भौगोलिक परिस्थितियों ने ही यहाँ की विशिष्‍ट संस्कृति को जन्म दिया है।

भौतिक - (वि.) (तत्.) - पंचभूतों से संबंध रखने वाला, पंचभूतों से बना हुआ, पार्थिव physical material

भौतिक विज्ञान - (पुं.) (तत्.) - विज्ञान की वह शाखा जिसमें भौतिक पदार्थों के गुणधर्म और अन्‍यान्य क्रियाओं का अध्ययन किया जाता है। physics

भौतिकवाद - (पुं.) (तत्.) - यह विचारधारा कि ईश्‍वर, ब्रह् म इत्यादि शब्द निरर्थक हैं तथा शारीरिक सुख ही सर्वोपरि है और संसार में उपलब्ध समस्त पदार्थ केवल हमारे उपभोग के लिए ही हैं। विलो. अध्यात्मवाद materialism

भौतिकशास्त्र - (पुं.) (तत्.) - दे. ‘भौतिकविज्ञान’।

भौतिकी - (स्त्री.) (तत्.) - दे. भौतिक विज्ञान।

भौम जल - (पुं.) (तत्.) - पृथ्वी के अंदर स्थित जल (कुएँ आदि का) ground water तु. वर्षा जल, नदी जल आदि।

भौरा - (पुं.) (तद्.<भ्रमर) - काले रंग का पंखदार कीड़ा जो फूलों से रस ग्रहण करता है। पर्या. मधुप, भ्रमर, मधुकर।

भ्रमण - (पुं.) (तत्.) - 1. घूमना, फिरना, टहलना आदि। उदा. मैं प्रात:काल ठीक पाँच बजे उपवन में भ्रमण के लिए निकल पड़ता हूँ। 2. यात्रा करना, पर्या. यात्रा, सफ़र जैसे: विश्‍व भ्रमण।

भ्रंश - (पुं.) (तत्.) - सा.अर्थ टूटने, गिरने या बिगड़ने का भाव। जैसे: अपभ्रंश भूवि. भूगर्भीय शक्‍तियों द्वारा भूपर्पटी के स्तरों का फट जाना (विभंजन) अथवा हलकी दरार पड़ना (विदरण) जिसके फलस्वरूप भूकंप आने की संभावना बढ़ जाती है। fault

भ्रंश क्षेत्र - (पुं.) (तत्.) - वह भूभाग जिसमें भूगर्भिक शक्‍तियों के कारण भूपर्पटी के स्तरों के फटने या उनमें दरार आने की आशंका रहती है। fault area

भ्रंशोत्थ [भ्रंश+उत्थ] - (वि.) (तत्.) - किसी बड़े पर्वत से टूटकर गिरा हुआ और ऊर्ध्वाधर स्थिति में खड़ा (भूखंड या छोटा पर्वत)।

भ्रमर - (पुं.) (तत्.) - दे. ‘भौरा’।

भ्रमित [भ्रम+इत] - (वि.) (तत्.) - 1. भ्रम में पड़ा हुआ। उदा. सुदामा द्वारका की भव्यता देखकर भ्रमित हो गया। 2. घूमता हुआ या चक्कर खाता हुआ। उदा. मेरा सिर भ्रमित हो रहा है।

भ्रष्‍ट - (वि.) (तत्.) - 1. जो अपने (सही) रास्ते से विचलित हो गया है, गिरा हुआ, पतित 2. चोरी-छुपे रुपया/धन लेकर नियम विरूद्ध कार्य करने वाला, घूसखोर 3. अनैतिक कार्य करने वाला।

भ्रष्‍टाचार [भ्रष्‍ट+आचार] - (पुं.) (तत्.) - 1. अनैतिक या नियम विरूद्ध आचरण 2. घूसखोरी। दे. ‘भ्रष्‍ट’।

भ्रांत - (वि.) (तत्.) - 1. जिसे भ्रम हुआ हो या जिसे भ्रम में डाला गया हो। जैसे: प्रश्‍न पूछने पर उसने भ्रांत उत्‍तर दिया। 2. घबराया हुआ, परेशान। जैसे: वह भ्रांत मन से बोला। 3. जो मार्ग में भटका हुआ हो।

भ्रांति - (स्त्री.) (तत्.) - भ्रांत होने की स्थिति 1. भ्रम, धोखा illusion उदा. रात में रस्सी भी सर्प की भ्रांति करती है। 2. किसी व्यक्‍ति के मन-मस्तिष्क में दूसरे के बारे में घर कर गई गलत धारणा, गलतफहमी उदा. मेरे बारे में जो भ्रांतियाँ आपके मन में थीं वे शायद अब दूर हो गई होगी।

भ्रामक - (वि.) (तत्.) - भ्रम उत्पन्न करने वाला, धोखे में डालने वाला।

भ्रू - (स्त्री.) (तत्.) - आँख के ठीक ऊपर और ललाट के निचले भाग में बालों वाला चापाकार उभार। पर्या. भौंह। eye-brow

भ्रूण - (पुं.) (तत्.) - प्राणि. निषेचन के बाद परिवर्धनशील आरंभिक अवस्था जो पूर्ण परिवर्धन के उपरांत नवजीव को जन्म देती है। embryo