विक्षनरी:हिन्दी लघु परिभाषा कोश/य-र-ल-व

विक्षनरी से

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यंत्र - (पुं.) (तत्) - 1. वह उपकरण या कल पुर्जों को मिलाकर बनाई गई मशीन जो कोई विशेष कार्य करने या कोई वस्‍तु, कल पुर्जे आदि बनाने के लिए या शक्‍ति उत्‍पन्‍न करने के लिए हो। शा.अ. मशीन, instrument उदा. यह अखबार छापने का यंत्र है 2. (तंत्र) गले या हाथ में बाँधने का ताबीज, पूजा के लिए कागज़ या धातु पर बनाया हुआ कोई रेखाचित्र।

यंत्र-चालित - (वि.) (तत्) - 1. वह (कार्य) जो किसी यंत्र की सहायता से किया गया हो। प्रयो. यंत्रचालित पद्धति से अध्‍यापन नहीं हो सकता कि कक्षा में गए, हाजिरी ली, भाषाण दिया और निकल आए।

यंत्रणा - (स्त्री.) (तत्) - शिकंजे में कसे होने और उससे छूटने का यत्‍न करने जैसा शरीर या मन को होने वाला कष्‍ट। पर्या. घोर दु:ख, तीव्र पीड़ा, अपार वेदना।

यकीन - (पुं.) (अर.) - किसी बात पर किया गया विश्‍वास, भरोसा, एतबार। उदा. मुझे पूरा यकीन है कि इस बार परीक्षा में तुम उच्च स्थान प्राप्‍त करोगे।

यक़ीनन - (वि./अव्य.) (अर.) - निस्संदेह, निश्‍चित ही। प्रयो. यक़ीनन इस समय वह उद्यान से आ गया होगा।

यकृत - (पुं.) (तत्) - 1. शरीर में उदर भाग में दाहिनी ओर स्थित वह थैली जिसकी क्रियाशीलता से खाया हुआ भोजन पचता है, जिगर, लीवर। 2. तापतिल्ली नामक रोग। प्रयो. यकृत हमारे शरीर के पाचन संस्थान का प्रमुख अंग है।

यकृतशोथ - (पुं.) (तत्) - यकृत (जिगर) का जीवाणु या विषाणु से संक्रमित होकर सूज जाना। Hepatitis

यक्ष्मा - (पुं.) (तत्<यक्ष्मन्) - 1. वह रोग जिसके होने से शरीर बिलकुल सूख जाता है। केवल हडि्डयों का ढाँचा दिखाई देता है। 2. क्षय रोग, तपेदिक tuber culosis (T.B.) उदा. यक्ष्मा रोग की प्रारंभिक अवस्था में ही चिकित्सक से परामर्श करना आवश्यक है।

यजमान - (पुं.) (तत्) - वह गृहस्थ व्यक्‍ति जो अपने पुरोहित से अपने निमित्‍त यज्ञ और/या अन्य धार्मिक कृत्य करवाता है, तथा बदले में उसे पारिश्रमिक स्वरूप दान-दक्षिणा आदि देता है। तु. पुरोहित।

यजमानी - (स्त्री.) (दे.) - (यजमान का कार्य, यजमान-वृत्‍ति। दे. यजमान।

यजुर्वेद - (पुं.) (तत्) - चार वेदों में से दूसरा प्रसिद् ध वेद। इसमें यज्ञ-कर्मों के विस्तारपूर्वक विवेचन के साथ यज्ञ विषयक मंत्रों को संगृहीत किया गया है।

यज्ञ - (पुं.) (तत्) - 1. पूजा या उपासना की एक पद् धति या कार्य। 2. प्राचीन काल से प्रचलित आर्यों का एक प्रसिद्ध धार्मिक कृत्य या अनुष्‍ठान जो विशिष्‍ट रूप से हवन के रूप में होता है। 3. बलिदान से संबंधित धार्मिक कृत्य। पर्या. हवन, याग।

यज्ञ मंडप - (पुं.) (तत्) - दे. ‘यज्ञशाता’।

यज्ञशाला - (स्त्री.) (तत्) - (ऋषियों के आश्रमों में अब आर्य समाज मंदिरों में भी) वह निश्‍चित मंडप, जहाँ यज्ञ किए जाते हैं। पर्या. यज्ञमंडप।

यति - (पुं.) (तत्) - 1. संन्‍यासी, साधु। यति स्त्री. 2. कविता की पंक्‍ति में वह स्थान जहाँ पढ़ते समय थोड़ा विराम लिया जाता है। प्रयो. हमें कवितावाचन में लय, गति और यति पर ध्यान देना चाहिए। टि. कविता लेखन में प्राय: इसे अर्धविराम (,) द्वारा सूचित किया जाता है।

यतीम - (पुं./वि.) (वि.) - (अर.) 1. वह कम उम्र वाला व्यक्‍ति जिसका भरण-पोषण करने वाला कोई न हो। 2. वह बालक जिसके पिता की मृत्यु हो गई हो। शा.अर्थ अनाथ, बेसहारा, बेचारा। उदा. कल की दुर्घटना में यह बालक यतीम हो गया।

यतीमख़ाना - (पुं.) (अर.) - निराश्रित व्यक्तियों एवं अनाथ बालको के पालन- पोषण का वह स्थान जो किसी सरकारी या सामाजिक संस्था की देखदेख मे संचालित हो। शा.अर्थ अनाथालय उदा. इस यतिमखाने मे बच्चो की शिक्षा का उत्तम प्रबंध है।

यत्‍न - (पुं.) (तत्.) - किसी भी कार्य को आरंभ से अंत तक पूरा करने का प्रयास या उद्योग। पर्या. कोशिश, प्रयत्‍न।

यत्र-तंत्र - (तत्.) (अव्य.) - यहाँ-वहाँ (सभी जगह); जहाँ-तहाँ (इधर-उधर), जगह-जगह।

यथा क्रि.वि./अव्य. - (वि./अव्य.) (तत्.) - 1. जिस प्रकार, जैसे, ज्यों। यथा राजा तथा प्रजा। 2. अव्य. किसी सिद् धांत के उदाहरण के रूप में प्रयुक्‍त होने वाला, जैसे: यथा नवहिं बुध विद्या पाये। 3. (क्रि. वि. उचित, निश्‍चित, निर्धारित। प्रयो. (i) सब लोग यथा स्थान बैठ जाएँ। (ii) यथा योग्य सबको प्रणाम कहना। 4. जितना, अनुसार प्रयो. (i) यथा संभव मैं कल आऊँगा। (ii) यथाशक्‍ति काम करूँगा।

यथातथ्य - (वि.) (वि.) - (यथा+तथ्य) तथ्य के अनुसार, अनुकूल या अनुरुप अर्थात् ज्यों-का-ज्यों, हू-बहू, जैसे-का-तैसा। उदा. क्रिकेट के आँखों देखे हाल में यथातथ्य वर्णन अनिवार्य है।

यथार्थ - (अव्य.) (तत्.) - जो अपने अर्थ या आशय के अनुसार हो 1. ठीक वैसा, जैसा होना चाहिए। 2. उचित, वाजिब। 3. सच्चा, सत्यतापूर्ण।

यथार्थत: क्रि.वि. - (वि.) (तत्.) - 1. यथार्थ में, वास्तव में सचमुच। 2. पूरी तरह। प्रयो. यह बात यथार्थत: सत्य है।

यथार्थवाद - (तत्.) - 1. ललित साहित्य या कला की एक विचारधारा जिसके अनुसार लेखक को अपनी कृति में जीवन के यथार्थ रूप का ही अंकन करना चाहिए, आदर्श रूप का नहीं। 2. जो बात या पदार्थ वस्तुत: जिस रूप में दिखे उसे उसी रूप में मानने या ग्रहण करने का सिद् धांत। 3. एक दार्शनिक सिद् धांत जिसके अनुसार भौतिक जगत की स्वतंत्र सत्‍ता है और हमें सारा ज्ञान भौतिक तत्त्वों से होता है। विलो. आदर्शवाद। realism

यथार्थवादी - (वि./पुं.) (तत्.) - (वह व्यक्‍ति) जो यथार्थवाद को मानता हो। दे. ‘यथार्थवाद’।

यथाविधि [यथा+विधि] - (अव्य.) (तत्.) - शा.अर्थ जैसी विधि है उसके अनुसार 1. विधि या नियमों का उल्लंघन किए बिना। 2. जैसा होना चाहिए, उसी के अनुसार। पर्या. नियमानुसार।

यथासंभव क्रि.वि. - (वि.) (तत्.) - 1. जितना संभव हो सके। यथाशक्य। प्रयो. वह भी यथासंभव सहायता देगा। 2. संभावना के अनुसार। उदा. यथासंभव सफलता मिलेगी।

यम - (पुं.) (तत्.) - 1. मृत्यु के देवता, यमलोक के स्वामी, यमराज, धर्मराज। 2. जुड़वाँ बच्चे 3. नियंत्रण, आत्मसंयम। 4. (दर्शन) चित्‍त को धर्म में स्थिर करने वाले साधन। (अहिंसा, सत्य, अस्तेय, ब्रह् मचर्य, अपरिग्रह-ये पाँच यम हैं) 5. योग के आठ अंगों में सर्वप्रथम ‘यम’ है।

यमक - (पुं.) (तत्.) - शब्दालंकार का एक भेद जिसमें एक शब्द के बार-बार प्रयोग में आने पर हर बार उसका अर्थ अलग-अलग निकलता है। ”वही शब्द पुनि-पुनि परै, अर्थ और ही और।” उदा. ‘तीन बेर खाती थी वो तीन बेर खाती है’।

यवन - (पुं.) (तत्.) - 1. यूनान देश का निवासी। 2. मुसलमान। स्त्री. यवनी उदा. अंग्रेजों के आने से पहले भारत में यवनों का भी साम्राज्य था। टि. प्राचीन काल में दूसरे देशों से आए यूनानियों या इस्लाम मतानुयायियों को ‘यवन’ कहा जाता था।

यश - (पुं.) ([तत्.<यशस्]) - 1. अच्छे गुणों या कार्यों के कारण होने वाली नामबारी। पर्या. ख्याति, प्रशंसा, कीर्ति। 2. बड़ाई, महिमा। उदा. वह अपने गुरु के यश का वर्णन करते नहीं थकता।

यशस्‍वी - (वि.) (तत्.) - जिसे काफ़ी यश प्राप्‍त हुआ हो। पर्या. कीर्तिशाली, ख्यातिनाम। प्रयो. धर्मराज युधिष्‍ठिर इंद्रप्रस्थ के यशस्‍वी सम्राट् थे।

यह (सर्व./विशे.) - (तद्.>एष) (वि.) - यह एक संकेतवाची सर्वनाम शब्द है जो किसी समीप स्थित व्यक्‍ति, वस्तु आदि के लिए प्रयुक्‍त होता है। जैसे-(i) यह पढ़ रहा है। (ii) यह नदी, गंगा है। (विचार की अभिव्यक्‍ति हेतु) (iii) हमारा कर्तव्य यह है कि ‘हम विद्या पढ़ें।’ संज्ञा या सर्वनाम के पूर्व प्रयुक्‍त होने की स्थिति में ‘यह’ सार्वनामिक विशेषण होता है। प्रयो. (i) यह बालक नाटक देख रहा है। (ii) यह जीवन परमार्थ के लिए है। टि. 1. ‘यह’ में विभक्‍ति लगने पर ‘इस’ रूप बन जाता है। जैसे: इसने (यहने नहीं), इसको, इस छात्र के लिए। 2. ‘यह’ के साथ ‘ही’ लगाने पर ‘यही’ रूप बनता है।

यहाँ क्रि.वि. - (वि.) (तत्.<इह) - इस स्थान पर, इधर इस जगह, इस ओर, स्थान पर। जैसे: (i) यहाँ ही विंध्याचल पर्वत है। (ii) आज मित्र के यहाँ विवाहोत्सव है। विलो. वहाँ टि. ‘यहाँ’ के साथ ‘ही’ लगाने पर ‘यहीं’ रूप बनता है।

या खुदा (पदबंध) - (फा.) - हे ईश्‍वर। प्रयो. या खुदा! तुम्हारा ही सहारा है।

या फिर(यो. अव्य.) - (अव्य.) (देश.) - प्रस्तुत दो विकल्पों में से एक को चुनने के लिए प्रयुक्‍त, या तो, अन्यथा। जैसे: या तो मेरे साथ प्रदर्शनी देखने चलें या फिर उनके साथ नाटक देखने जाएँ।

याक - (पुं.) - (ति.<ग्याग) भारी भरकम बैल की आकृति वाला एक पहाड़ी (मुख्यत: तिब्बती) पशु जो अपने लंबे बालों ऊँचे कंधों, बड़े सींगों और बोझ ढोने की क्षमता के कारण प्रसिद् ध है।

याचक - (वि./पुं.) (तत्.) - माँगने वाला, भिखारी।

याचना - (स्त्री.) (तत्.) - माँग, प्रार्थना।

याचिका - (स्त्री.) (तत्.) - विधि. न्यायालय में प्रस्तुत औपचारिक आवेदन जिसमें आवेदक ने अपने हित में न्यायालय से कुछ माँग की हो। petition

याचिकाकर्ता - (पुं.) (तत्.) - (याचिका+कर्ता) अर्जी या प्रार्थना-पत्र प्रस्तुत करने वाला। 2. न्यायालय में प्रार्थना-पत्र या petition पेश करने वाला व्यक्‍ति। याचिका प्रस्तुत करने वाला आवेदक। दे. ‘याचिका’।

यातना - (स्त्री.) - अत्यधिक शारीरिक कष्‍ट या पीड़ा। tarture

यातायात (यात+आयात) - (पुं.) (तत्.) - 1. एक स्थान से दूसरे स्थान तक आना जाना। 2. एक स्थान से दूसरे स्थान तक व्यक्‍तियों को ले जाने या सामान ढोने की व्यवस्था। जैसे: बस, रेल, हवाई जहाज आदि। transport शा.अर्थ गमनागमन। उदा. दिल्ली में ‘यातायात’ की व्यवस्था उत्‍तम है।

यात्रा - (स्त्री.) (तत्.) - 1. घर से या एक स्थान से दूसरे दूरवर्ती स्थान तक जाने की क्रिया। सफ़र। 2. धार्मिक भावना से तीर्थ या प्रसिद् ध देवस्थान के दर्शन आदि के लिए जाना। तीर्थाटन, तीर्थ यात्रा। 3. यात्रा से संबंधित कोई विशेष उत्सव जैसे: ‘जगन्नाथ रथ यात्रा’। उदा. हमारी कश्मीर की हवाई यात्रा सफल रही।

यात्री - (पुं.) (तत्.) - यात्रा करने वाला व्यक्‍ति जैसे: तीर्थ यात्री, पदयात्री। वि. यात्रा कराने वाला जैसे: यात्री विमान।

यात्री गृह - (पुं.) (तत्.) - वह स्थान जहाँ यात्री या पर्यटक ठहर सकें। विश्राम गृह, धर्मशाला, सराय (लाजिंग हाउस)। अर्थ. यात्री-निवास। उदा. देहरादून में अनेक यात्रीगृह हैं।

याद - (स्त्री.) (.फा.) - 1. बीती घटनाओं को ध्यान में पुन: ले आना। पर्या. 2. किसी वस्‍तु को देखने के बाद उससे संबंधित कई बातों को पुन: स्मरण करना। 3. रटने की क्रिया। उदा. कविता याद करना। 4. भगवान को, किसी व्यक्‍ति को या किसी वस्तु आदि का ध्यान करना। प्रयो. दु:ख में भगवान याद आ जाता है। पर्या. स्मरण।

यादगार - (स्त्री.) (फा.) - किसी की निशानी अथवा चिह् न। पर्या. स्‍मारक, स्‍मृति चिह्न। उदा. शाहजहाँ ने अपनी बेगम की स्‍मृति में यादगार रूप में ताजमहल का निर्माण करवाया।

याददाश्त - (स्त्री.) (फा.) - याद रखने की क्षमता या शक्‍ति, 1. स्मरण-शक्‍ति, स्मृति, 2. संस्मृति।

यामिनी - (स्त्री.) (तत्.) - शा.अ. रात पर्या. रात्रि, निशा।

याम्योत्‍तर रेखा (याम्य+उत्‍तर+रेखा) - (स्त्री.) (तत्.) - याम्य दक्षिण (भारतीय शास्त्रों में दक्षिण दिशा का स्वामी यम को माना जाता है।) भू. पृथ्वी के तल पर दक्षिण ध्रुव से उत्‍तर ध्रुव को जोड़ने वाली काल्पनिक अर्धवृत्‍तात्मक रेखा याम्योत्‍तर रेखा, याम्योत्‍तर वृत्‍त कहलाती है। पर्या. देशांतर रेखा meridian line वृत्‍त।

यायावर - (वि.) (तत्.) - 1. वह व्यक्‍ति जो निरंतर भ्रमणशील रहता हो। पर्या. घुमक्कड़। 2. जिसका निवास निश्‍चित न हो, कहीं भी रह-खा-कमा ले। जैसे: गाड़िया, लुहार, बंजारे आदि। 3. संन्यासी।

यायावरी - (स्त्री.) (तत्.) - 1. यायावर जैसा (घुमक्कड़) जीवन। दे. ‘यायावर’।

यासमीन - (स्त्री.) (.फा.) - 1. चमेली का पौधा। 2. चमेली का सुगंधित फूल जो सुंदर एवं श्‍वेत या पीले रंग का होता है। पर्या. नवमल्लिका, चमेली, मालती।

यीस्ट - (पुं.) - (अं.) वन. ascomycetes कुल का एक कवक जो zymes नामक zymes उत्पन्न करता है। सामान्य भाषा का पर्या. खमीर।

युक्‍ति स्त्री - (तत्.) - किसी समस्या या विषम परिस्थिति से निपटने के लिए निकाला गया उपाय, तरकीब। उदा. तुम्हें मैं परीक्षा में उत्तीर्ण होने की युक्‍ति बताता हूँ। 2. तर्क। मुहा. युक्‍ति लड़ाना-उपाय करना।

युग - (पुं.) (तत्.) - 1. जोड़ा, दो का समूह। 2. एक बड़ा समय। पीढ़ी। काल विशेष। जैसे: प्राचीन युग प्रस्‍तर, युग, लौह युग आदि। 3. पुराणों के अनुसार युग चार होते हैं- सतयुग, त्रेता युग, द्वापर युग, कलियुग।

युगधर्म - (पुं.) (तत्.) - 1. किसी युग की वे विशिष्‍ट बातें या नियम जिनका पालन सभी लोग प्रधान रूप से करते हों और जिसे उस काल में आवश्यक माना जाता है। जैसे: सत्ययुग में ‘तप’ युगधर्म था। 2. समयानुकूल या परिस्थिति के अनुसार कर्तव्य-कर्म।

युग पुरुष - (पुं.) (तत्.) - किसी काल खंड विशेष का अत्यंत महत्वपूर्ण और प्रभावशाली व्यक्‍ति। जैसे: महात्मा गाँधी एक युग पुरु थे।

युग प्रवर्तक - (वि./पु.) (तत्.) - अत्यंत प्रभावशाली वह व्यक्‍ति जिसे किसी काल विशेष की घटनाओं को शुरू कर उसे अपनी अंतिम परिणति तक पहुँचाने का श्रेय दिया जाए। 1. किसी विशेष योगदान, आविष्कार वैचारिक क्रांति से नये युग का प्रारंभ करने वाला। 2. युग प्रेरक। उदा. स्वामी. दयानंद एक युगप्रवर्तक महापुरुष थे। epach-maker

युगांतरकारी - (वि.) (तत्.) - शा.अर्थ जमाने को बदल देने वाला। वि. अ. युग का अर्थात् जीवन के प्रवाह को किसी विशेष योगदान से बदल देने वाला। जैसे: 1. computer आज की युगांतरकारी खोज है। 2. 15 अगस्त 1947 को युगांतरकारी घटना ने देश को परतंत्रता से मुक्‍ति दिलाई।

युग्म - (पुं.) (तत्.) - दो का जोड़ा।

युग्मक - - अगुणित गुणसूत्र संख्या वाली परिपक्व प्रजनन कोशिका। यह अपने समान किंतु विपरीत लिंग वाली अन्य कोशिका के साथ संलयित होकर या मिलकर युग्मज gametic बनाती है। जैसे: अंडाणु तथा शुक्राणु आदि (gamete)

युग्मज वि/पुं. - (पुं.) (तत्.) - दे. युग्मनज।

युग्मन - (पुं.) (तत्.) - शा.अर्थ दो वस्तुओं का मिलन। भौ. दो दोली परिपथों की व्यवस्था जिसमें एक परिपथ की ऊर्जा दूसरे में स्थानांतरित हो जाती है; साथ ही आवृत्‍ति में परिवर्तन हो जाता है। वन. (i) जनन का एक प्रकार जिसमें समान आकृति वाली दो कोशिकाओं का मिलन होता है; (ii) दो समान अंगों का (जैसे, गुणसूत्रों का) जुड़ना। दो युग्मकों के मिलन से बनी कोशिका जो परिवर्धन के उपरांत नवजीव को जन्म देती है। caupling शा.अर्थ युग्मन के फलस्वरूप उत्पन्न।

युद्ध - (पुं.) (तत्.) - दो दलों या देशों के बीच एक दूसरे को हराने के लिए शुरू किया गया प्रभावी सशस्त्र संघर्ष। war

युद्ध गान - (पुं.) (तत्.) - युद्ध शुरू होने से ठीक पहले गाया जाने वाला गाना जिसकी धुन सैनिकों में उत्साह का संचार करती है। was song

युद्ध स्तर - (पुं.) (तत्.) - युद्ध जैसी तैयारी। प्रयो. सुनामी आने पर बाढ़ पीडि़तों की सहायता के लिए युद्ध स्तर पर सहायता भेजी गई।

युद्धध्‍वनित - (वि.) (तत्.) - शा.अर्थ. युद्ध से उत्‍पन्‍न। सा.अर्थ. युद्ध के उपरांत या युद्ध के परिणाम स्‍वरूप उत्‍पन्‍न स्‍थिति।

युद्धनाद - (पुं.) (तत्.) - 1. युद्ध के आरंभ से तत् काल पूर्व दोनों दलों द्वारा किया जाने वाला जयघोष। पर्या. युद्धघोष। battle-cry 2. युद्ध के समय होने वाला कोलाहल या शोर।

युद्धपोत - (पुं.) (तत्.) - अस्त्र शस्त्रों से सज्जित विशाल आकार का समुद्री जहाज़। पर्या. जंगी जहाज battle ship

युवक - (पुं.) (तत्.) - 1. युवावस्था (16-35 आयु तक) से युक्‍त पुरुष, 2. तरुण व्यक्‍ति, जवान। जैसे: आज का युवक प्रगतिशील विचारों का है। स्त्री. युवती। पर्या. जवान, युवा।

युवती - (स्त्री.) (तत्.) - सोलह से पैंतीस वर्ष की आयु की महिला। पुं. युवक।

युवराज - (पुं.) (तत्.) - राजा का वह पुत्र (प्राय: ज्येष्‍ठ पुत्र) जो सिंहासानासीन राजा की मृत्यु के पश्‍चात् राज्य का उत्‍तराधिकारी बने। स्त्री. युवराज्ञी।

युवा - (वि./पुं.) (तत्.<युवन्) - 1. सोलह वर्ष से पैंतीस वर्ष की आयु का आदमी, जिसके शरीर में बल, स्फूर्ति अधिक रहती है। 2. पशुओं में उनकी आयु के अनुसार अधिक बल एवं स्फूर्ति की अवस्था। पर्या. जवान, तरुण, युवक। (स्त्री.) युवती। तु. 1. शिशु (जन्म से चार वर्ष तक) 2. बालक (चार से दस वर्ष तक) 3. किशोर (दस से पंद्रह वर्ष तक) 4. नवयुवक (सोलह से पचीस वर्ष तक) 5. अधेड़ (पैंतीस से साठ वर्ष तक) 6. वृद् ध (साठ वर्ष से ऊपर)

यूकेरियोट्स - (पुं.) - (अं.) 1. ऐसा जीव जिसकी कोशिकाओं की कलाओं के भीतर सम्मिश्र संरचना नहीं होती। 2. सुकेंद्रिकी। eukaryotes तुल. prokaryotes

योग - (पुं.) (तत्.) - 1. दो या अधिक अंकों या राशियों को जोड़ने की संक्रिया addition 2. दो या दो से अधिक राशियों (समूहों/ढेरों) पदार्थों या तत् त्वों का एक होना। 3. पतंजलि द्वारा प्रतिपादित भारतीय दर्शन जिसमें यम, नियम, आसन आदि अष्‍टांग साधना द्वारा चित्‍तवृत्‍ति के निरोध के उपाय तथा आत्मा व परमात्मा की एकता को बताया गया है। शा.अर्थ मेल, मिलना, सहयोग, जोड़। 4. ज्यो. ग्रह-नक्षत्रों की विशिष्‍ट स्थिति।

योग-गुरु - (पुं./वि.) (तत्.) - वह व्यक्‍ति जो पातंजल योगदर्शन का ज्ञाता, अनुभवी तथा दूसरों को भी योग सिखाने में पूर्णतया कुशल हो। जैसे: आजकल योग गुरु बाबा रामदेव योग के प्रचार-प्रसार में संलग्न हैं।

योगदान - (पुं.) (तत्.) - 1. किसी कार्य में सहयोग देना/लेना/करना। 2. कई लोगों द्वारा किए जाने वाले कार्य में किसी के द्वारा किया गया अपने हिस्से का कार्य। उदा. इस कार्य के आयोजन में शर्माजी का योगदान सबसे महत्त्वपूर्ण रहा।

योगसाधना - (स्त्री.) (तत्.) - पातंजल दर्शन में बताए गए योग के आठों अंगों (यम, नियम, आसन, प्राणायाम, प्रत्याहार, धारणा, ध्यान, समाधि) का अनुष्‍ठान, साधना या अभ्यास। उदा. योगसाधना से चित्‍त की एकाग्रता बढ़ती है।

योगासन - (पुं.) (तत्.) - 1. शारीरिक और मानसिक स्वास्थ्य के लिए निर्दिष्‍ट आसन। जैसे-पद् यासन, वज्रासन, मयूरासन, शवासन, ताड़ासन आदि। 2. योग-साधना के लिए बैठने वाले व्यक्‍ति के द्वारा किया जाने वाला आसन या शारीरिक आकृति विशेष। उदा. प्रात: योगासन करना तन और मन के लिए अति लाभकारी है।

योगी - (पुं.) (तत्.) - 1. सुख-दु:ख आदि को एक जैसा मानने वाला व्यक्‍ति, आत्मज्ञानी। 2. योग साधना करने वाला, साधक। जैसे: आज भी अनेक योगी हिमालय में रहते हैं। विलो. भोगी।

योग्य - (वि.) (तत्.) - 1. जिसमें कोई कार्य कर सकने का सामर्थ्य है। able 2. (i) जिसमें कार्य को पूरा कर सकने का अपेक्षित गुण हो; (ii) जिसके प्रति कुछ किया जाना उचित हो। पर्या. अधिकारी, पात्र। warthy 3. अपेक्षित, शैक्षिक या अकादमिक योग्यता संपन्न (व्यक्‍ति)। qualitied 4. किसी कार्यभार को सँभालने की शारीरिक क्षमता रखने वाला। fit 5. उचित, वाजिब उदा. मेरे योग्य सेवा बताइए। may I help you

योग्यता - (स्त्री.) (तत्.) - 1. सौंपे गए कार्य को कर सकने का सामर्थ्य। ability 2. कार्य को अच्छी तरह से करने का गुण। warth 3. शैक्षिक या अकादमिक उपलब्धि। पर्या. अर्हता qualification 4. निर्धारित कार्य करने की शारीरिक क्षमता। fitness 5. कार्य करने में प्रदर्शित निपुणता। merit

योजन - (पुं.) (तत्.) - 1. एक में मिलाने या जोड़ने की क्रिया। 2. दूरी नापने का एक पुराना माप जो चार कोस अर्थात् आठ मील के बराबर होता था। (लगभग 13 कि.मी.) पर्या. 1. जोड़ना, मिलाना 2. एकत्रीकरण। उदा. नीले या पीले रंग के योजन से हरा रंग बनता है।

योजना - (स्त्री.) (तत्.) - 1. किसी कार्य या उद्देश्य को सिद्ध करने के लिए तैयार की गई उपायों की सुविचारित रूपरेखा। plant

योजनाबद्ध - (वि.) (तत्.) - योजनापूर्वक किया गया (कार्य), योजना से बँधा हुआ। नियोजित। 2. रूपरेखा से बद्ध या बँधा हुआ। 2. सुयोजित, planned 3. पूर्व नियोजित। दे. योजना।

योद्धा - (वि./पुं.) (तत्.) - 1. युद् ध करने वाला। 2. युद्ध में कुशल। उदा. महाराणा प्रताप विश्‍व विख्‍यात योद्धा थे।

यौगिक - (वि.) (तत्.) - शा.अर्थ 1. किसी से मिला, सटा या लगा हुआ 2. योग से संबंधित। पुं. भाषा. दो शब्दों के योग या मेल से बना हुआ नया पद जो स्वतंत्र शब्द के रूप में प्रयुक्‍त होता है। जैसे: पत्रोत्‍तर। रसा. दो या अधिक रासायनिक तत्वों के मेल से बना पदार्थ जिसके घटक भौतिक विधियों से पृथक् नहीं किए जा सकते। जैसे: अमोनिया। compound

यौन रोग - (पुं.) (तत्.) - स्त्री-पुरुष के संसर्ग से उत्पन्न रोग या पुरुष या स्त्री की जननेंद्रियों से संबंधित रोग। पर्या. रतिज रोग। उदा. एड्स एक भयंकर यौन रोग है।

यौन शोषण - (पुं.) (तत्.) - बच्चों अथवा स्त्री जाति के साथ मित्रता की आड़ में या विवाह का झांसा देकर या लोभ और भय दिखाकर किया जाने वाला अनैतिक एवं अनुचित व्यवहार। प्रयो. आजकल स्त्रियों के यौन शोषण की घटनाएँ चिंता का विषय है।

यौवन - (पुं.) (तत्.) - 1. युवा/युवती होने का भाव। 2. किशोरावस्था और प्रौढ़ावस्था के बीच की अवस्था (प्राय: 25 से 40 वर्ष तक की अवस्था) पर्या. जवानी, युवावस्था। उदा. स्फूर्ति और बल यौवन के गुण है। मुहा. यौवन ढलना = जवानी का सौंदर्य कम होना।

यौवनागम - (पुं.) (तत्.) - शा.अर्थ यौवन का आना यानी जवानी की शुरुआत। दे. यौवनारंभ।

यौवनारंभ - (पुं.) (तत्.) - सा.अर्थ यौवन का आरंभ यानी बाल्यावस्था समाप्‍त होकर यौवनावस्था आरंभ होने की वय (उम्र) आयु। जीवन का वह काल जिसमें किसी भी लिंग का व्यक्‍ति संतानोत्पत्‍ति के लिए सक्षम हो जाता है। सामान्यत: यह लडक़ों में 13 से 15 वर्ष तथा लडक़ियों में 9 से 16 वर्ष की आयु होती है जब उनके द्वितीयक लैंगिक लक्षण विकसित होने आरंभ हो जाते हैं। पर्या. यौवनागम, वय:संधि। puberty वय:संधि स्त्री. तत्. शा.अर्थ दो उम्रों को जोड़ने वाला काल। दे. यौवनारंभ।

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रंक - (पुं.) (तत्.) - व्यक्‍ति जिसके पास जीवन-यापन के लिए नाममात्र के साधन उपलब्ध हों।, 1. कंगाल, 2. दीन, 3. दरिद्र। ‘आया है जो जाएगा राजा-रंक-फकीर।’ विलो. राजा।

रंगकर्मी - (पुं.) (तत्.) - रंगमंच पर नाटक का अभिनय करने वाले कलाकार। पर्या. मंचकर्मी।

रंगत - (स्त्री.) - 1. किसी रंग की झलक, 2. किसी काम में आने वाला मज़ा या आनंद। 3. असर या प्रभाव। मुहा. रंगत आना=आनंद आना। 2. रंगत चढ़ना=प्रभाव पड़ना। प्रयो. ‘आपकी बातों से तो लगता है कि आप पर दार्शनिकों की रंगत चढ़ चुकी है।’

रंग-बिरंगा - (वि.) - अनेक रंगों से चित्रित, सुंदर।

रंगभूमि - (स्त्री.) (तत्.) - 1. वह शाला जिसमें नाटक, खेल-तमाशे आदि किए जाएँ तथा जहाँ मंच और दर्शकों के बैठने की व्यवस्था हो। 2. युद्ध क्षेत्र के लिए प्रयुक्‍त एक पर्याय। पर्या. नाट्यशाला। theater

रंगमंच - (पुं.) (तत्.) - नाटक खेलने के लिए बना मंच। पर्या. नाट्यमंच।

रंगमात्र - (वि.) (तद्<रंजमात्र/रजमात्र) - ज़रा-सा भी, कण मात्र भी, अत्यंत अल्प मात्रा वाला। पर्या. लेशमात्र।

रंगरलियाँ/रंगरेलियाँ - (स्त्री.) (देश.) - 1. आमोद-प्रमोद 2. मौजमस्ती। मुहा. रंगरेलियाँ मनाना- विलास क्रीड़ाएँ करना, खुशियाँ मनाना।

रंग-रूप - (पुं.) (तत्.) - 1. सुंदर मुखाकृति (नाक, आँख, ओष्‍ठ आदि) तथा सुंदर वर्ण। 2. देखने में सुंदर लगने का गुण। looks, peature प्रयो. उसका रंग-रूप अच्छा होने के कारण उसे नाटक में स्थान मिल गया।

रंगारंग - (वि.) (तत्.) - (देश.<रंग+अनुर.) 1. अनेक रंगों वाला, रंगबिरंगा। 2. विविधताओं से युक्‍त एवं मनोरंजक। जैसे: रंगारंग कार्यक्रम।

रंगीन - (वि.) (फा.) - 1. रंगा हुआ, रंगदार, 2. विलासप्रिय, शौकीन, 3. विनोदप्रिय, चुलबुला, 4. अलंकरों से युक्‍त (काव्यरचना)। प्रयो. मुस्लिम शासक प्राय: रंगीन मिज़ाज वाले हुआ करते थे।

रंगीला - (वि.) (देश.) - वह (व्यक्‍ति) जो कामुक एवं विलासितापूर्ण जीवन जीने की प्रवृत्‍ति वाला हो। पर्या. रंगीन, रसिक। प्रयो. शाहजहाँ को रंग शासक कहा जाता है।

रंगोली - (स्त्री.) (तद्<रंगवल्ली) - सजावट के लिए रंगबिरंगे सूखे चूर्णों से ज़मीन पर या किसी सपाट चबूतरे आदि पर की जाने वाली बेलबूटों से युक्‍त चित्रकारी। टि. यह विधा प्राय: दक्षिण भारत में धार्मिक-सामाजिक अवसरों पर अधिक प्रचलित है। आजकल गीले रंगों, फूलों, पत्तों, अनाज के दानों आदि से भी रंगोली तैयार की जाती है।

रंचमात्र - (वि.) (तद्.<रंचमात्र+रजमात्र) - ज़रा सा भी, कण मात्र भी, अत्‍यंत अल्‍प मात्रा वाला। पर्या. लेशमात्र।

रंज - (पुं.) (.फा.) - 1. तकलीफ, दुख; पीड़ा, दर्द। 2. शाक, ग़म। उदा. 1. आपकी बीमारी की खबर सुनकर बड़ा रंज हुआ। 2. उसके परिवार में मृत्यु होने पर हम रंज गम प्रकट करने उसके घर गए।

रंजक - (वि.) (तत्.) - रंगने वाला (व्यक्‍ति या पदार्थ)। 1. पुं. रंगरेज़, रंगसाज, 2. इंगुर, मेहंदी, महावर आदि।

रंजित - (वि.) (तत्.) - 1. रंगा हुआ; जिस पर रंग चढ़ा या चढ़ाया जाता हो। जैसे: रक्‍त-रंजित। ला.अर्थ प्रेम में पगा हुआ।

रंजिश - (स्त्री.) (फा.) - 1. किसी के प्रति मन में रहने वाला वैमनस्य या अप्रसन्नता। 2. शत्रुता जैसा भाव। शा.अर्थ 1. मनमुटाव, 2. नाराज़गी, 3. अनबन। प्रयो. आजकल आपका भाई मेरे प्रति रंजिश तो रखता ही है।

(रंडी) - (स्त्री.) (तद्<रंडा) - वह स्त्री जो धन लेकर पुरूषों का हर तरह से मनोरंजन करती है। पर्या. वेश्या, वारांगना।

(रंदा) - (पुं.) (तद्<रदन) - एक औज़ार जिससे बढ़ई लकड़ी की खुरदरी सतह को छीलकर चिकनी और मुलायम बनाता है। रंदा मारना=रंदे का प्रयोग करना। plane

रँगना स.क्रि. - (तद्.) - 1. किसी सफेद कपड़े को रंग में डुबोकर उस पर या किसी भी सपाट पृष्‍ठभूमि पर रंग पोतकर रंग चढ़ाना। जैसे: कपड़ा रँगना। मुहा. रंगे हाथ (हाथों) पकड़े जाना=अपराध करते समय ही देख लेना। उदाहरण-कल कार्यालय का एक कर्मचारी रिश्‍वत लेते रंगे हाथ पकड़ा गया।

रँभाना अ.क्रि. - (तद्.) - गाय या भैंस आदि का शब्द करना या बोलना।

रईस - (पुं./वि.) (अर.) - 1. अमीर, धनी, मालदार। 2. सरदार, मुखिया। प्रयो. रईसों को किस बात की चिंता। भाव. रईसी (स्त्री.) अमीरी, धनसंपन्नता, रईस होने की अवस्था या भाव। wealthy

रकम - (स्त्री.) (अर.<रक़म) - 1. कोई संख्या या अंक। (नंबर) 2. धन-संपत्‍ति, रूपया-पैसा wealth 3. धन की राशि amount

रकाबी - (स्त्री.) (फा.) - पैंदेदार और गोल छोटी थाली सा बर्तन। kplate

रक्‍त - (पुं.) (तत्.) - सा.अर्थ नसों में बहने वाला लाल रंग का तरल पदार्थ। तकनीकी अर्थ-धमनियों और शिराओं में संचारित वह लाल रंग का तरल जो शरीर की ऊतकों को oxygen पहुँचाता है और उनसे carbondioxide निकालता है। blood पर्या. 1. खून, 2. लहू, 3. रूधिर, 4. शोणित। वि. 1. रंगा हुआ, 2. लाल रंग का।

रक्‍तचाप - (पुं.) (तत्.) - 1. रक्‍त का नसों पर पड़ने वाला दबाव। 2. एक प्रकार का रोग जिसमें रक्‍त का वेग सामान्य से अधिक या कम हो जाता है। प्रयो. अधिक चिंतातुर लोगों का रक्‍तचाप सामान्य नहीं रहता। blood pressure

रक्‍तदान - (पुं.) (तत्.) - शा.अर्थ रक्‍त या खून का दान। स्वस्थ व्यक्‍ति द्वारा किसी रोगी के लिए खून देना। blood donation

रक्‍तपात - (पुं.) (तत्.) - युद्ध अथवा किसी बड़ी आपसी लड़ाई में अत्यधिक रक्‍त बहने या बहाए जाने का भाव। पर्या. खून-खराबा। प्रयो. कलिंग युद्ध में अत्यधिक रक्‍तपात देखकर अशोक का मन बदल गया।

रक्‍तबैंक - (पुं.) (तत्.+अं.) - संस्था अथवा रक्‍त-संग्रह की सुविधा वाला स्‍थान जहाँ पर द्रव अवस्था में उस रक्‍त का परिरक्षण किया जाता है जिसे स्वस्थ रक्‍तदाता अपने रक्‍त का दान करता है और जहाँ से वह रोगियों को पहुँचाया जाता है। blood bank

रक्‍तमोक्षण/रक्‍त-मोक्ष - (पुं.) (तत्.) - शरीर से रक्‍त का बाहर निकलना या बहना। (आयु.) चिकित्सा की एक विशेष विधि जिसमें शरीर के किसी भी अंग का दूषित रक्‍त शरीर से बाहर निकाल दिया जाता है। जैसे: रक्‍तमोक्षण की प्रक्रिया या प्रयोग किसी अच्छे वैद्य या चिकित्सक की देखरेख में ही होना चाहिए।

रक्‍त/रूधिर वर्ग - (पुं.) (तत्.) - रक्‍त या खून की श्रेणी यथा ‘ए.’, ‘बी’, ओ. आदि। blood group टि. कहीं-कहीं इसे ‘रक्‍त समूह’ भी कहते हैं।

रक्‍तवर्धक - (वि.) (तत्.) - 1. वह (दवा, पदार्थ या खुराक) जो शरीर में खून बढ़ाए। 2. रक्‍त बढ़ाने वाला। प्रयो. आजकल बाजार में अनेक रक्‍तवर्धक औषधियाँ उपलब्ध हैं।

रक्‍तवाहिका - (स्त्री.) (तत्.) - वह धमनी और शिरा जिसमें रक्‍त (खून) प्रवाहित होता है। blood vessel

रक्‍तसंबंध - (पुं.) (तत्.) - एक वंश के लोगों का आपसी संबंध, जैसे: परदादा, दादा, पिता, चाचा, पुत्र, पुत्री आदि। पर्या. ख़ून का रिश्ता। टि. कहीं कहीं मातृपक्ष में भी रक्‍तसंबंध माना जाता है। (जैसे : मामा-भांजे में) blood relation प्रयो. गोद लिये पुत्र के साथ रक्‍तसंबंध नहीं होता।

रक्‍त/रूधिर समूह - (पुं.) (दे.) - ‘रक्‍त/रूधिर वर्ग’।

रक्‍तस्राव - (पुं.) (तत्.) - शरीर के किसी अंग के कट-फट जाने के कारण खून का बहना या निकलना। प्रयो. चोट लगने से सिर से काफी मात्रा में रक्‍तस्राव हो रहा है।

रक्ताभ - (वि.) (तत्.) - 1. रक्‍त की आभा वाला अर्थात् लाल रंग की रंगत या द्युति (चमक) वाला। 2. लाली लिए हुए।

रक्षक - (वि.) (तत्.) - रक्षा करने वाला; पहरा देने वाला।

रक्षा - (स्त्री.) (तत्.) - सा.अर्थ बचाने की क्रिया, रखवाली। सै. वि. अपने देश या किसी क्षेत्र विशेष को शत्रु पक्ष के आक्रमण से बचाने और उसकी सैन्‍य संक्रियाओं को विफल करने की व्यवस्था। defence 2. कलाई पर बाँधा जाने वाला सूत या रेशम का धागा। जैसे: रक्षाबंधन = रक्षा के लिए बाँधना। पर्या. राखी।

रक्षाकवच - (पुं.) (तत्.) - वह साधन या यंत्र जो किसी कष्‍ट, विपत्‍ति, आक्रमण या रोग से बचाव के लिए धारण किया जाता है। शा.अर्थ रक्षा का उपाय। प्रयो. सैनिक युद्ध में रक्षाकवच धारण करते हैं। safe guard

रखना स.क्रि. - ([तद्.<रक्षण]) - 1. किसी वस्तु को संभालकर कहीं स्थापित करना। जैसे: तुम्हारा यह कीमती सामान मैं रख रहा हूँ। 2. किसी वस्तु को किसी आधार/वस्तु/स्थान/व्यक्‍ति आदि पर या किसी वस्तु आदि में धरना या टिकाना। प्रयो. यह सामान अलमारी में रख दो। 3. कोई जिम्मेदारी देना या सौंपना। प्रयो. उसने अपने जन्मोतसव के प्रबंध की जिम्मेदारी अपने मित्रों पर रख दी। 4. प्रस्तुत करना। प्रयो. पानी की समस्या के बारे में उन सभी ने अपने-अपने तर्क रखे। 5. पालन करना। प्रयो. घर में कुत्‍ते रखोगे तो सुरक्षा रहेगी।

रख-रख़ाव - (पुं.) (तद्) - मूर्त संपत्‍ति को उपयोग-क्षम बनाए रखने के लिए उसका समुचित उपयोग करते हुए देखभाल करते रहना और आवश्यकतानुसार मरम्मत की भी व्यवस्था करना। हिफाज़त, देखभाल, अनुरक्षण। maintenance

रखवाना प्रे.क्रि. - ([दे.<रखना] ) - रखने का काम किसी अन्य से कराना। प्रयो. मैनें नौकर से अलमारी में पुस्तकें रखवाईं।

रखवाला - (पुं.) ([देश.<हि रखना] ) - रक्षा, देखरेख या रखवाली करने वाला। पर्या. 1. रक्षक 2. पहरेदार। प्रयो. ईश्‍वर सबका रखवाला है।

रग - (स्त्री.) (फा.) - 1. शरीर की रक्‍तवाहिनी नस, शिरा या नाड़ी। 2. पत्तों में दिखाई देने वाली नसें। प्रयो. हमारी रगों में भी महापुरुषों का खून है। मुहा. 1. रग पहचानना=1. वास्तविकता जानना, 2. रहस्य जानना। उदा. मैं तुम्हारी रग-रग पहचानता हूँ। 2. किसी की दुखती रग पर हाथ रख देना=दुख देने वाली बात का फिर से उल्लेख कर किसी का दु:ख बढ़ाना।

रगड़ खाना (अ.क्रि.) - ([तद्.<घर्षण]) - 1. किसी वस्तु का किसी दूसरी चीज या स्थान आदि से सटकर अनुपयुक्‍त ढंग से घर्षित होना। 2. किसी भी टकराहट से घर्षण होना। उदा. (i) मोटर का ढीला पहिया धरती से रगड़ खाते हुए चलता है। (ii) बार-बार रगड़ खाने से यह घड़ी खराब हो गई है।

रगड़ना स.क्रि. - ([तद्<रदन]) (दे.) - 1. किसी वस्तु के तल पर दूसरी वस्तु को बार-बार दबाकर घिसना। जैसे: सिल पर बादाम रगड़ना। पत्थर पर एड़ी रगड़ने से एड़ी साफ हो जाती है। 2. किसी कार्य को बहुत बार परिश्रम से करना। जैसे: मैंने इस पाठ को पूरी तरह रगड़ डाला है। 3. किसी से बहुत परिश्रम लेना। जैसे: वह नौकरों को खूब रगड़ता है। शा.अर्थ 1. घिसना, 2. पीसना, 3. तंग करना। दे. ‘रगड़ा’।

रगड़ा - (पुं.) (देश.) - 1. शक्‍तिपूर्वक मसलने या घिसने की क्रिया या भाव। 2. लगातार किया जाने वाला बहुत परिश्रम। 3. बहुत समय तक चलते रहने वाला विरोध और बैर। उदा. (i) वह साल भर रगड़ा लगाता रहा पर परीक्षा में पास नहीं हुआ। (ii) आखिर कब तक यह रगड़ा चलता रहेगा। स.क्रि. ‘रगड़ना’ क्रिया का भूतकालिक रूप।

रगड़ाई - (स्त्री.) (देश.) - 1. किसी कार्य को खूब मेहनत से करना। प्रयो. उसने परीक्षा के लिए गणित की खूब रगड़ाई की है। 2. कठोर दंड देने की क्रिया या भाव। जैसे: पुलिस ने चोर की इतनी रगड़ाई की कि वह पुन: चोरी करने का साहस नहीं करेगा।

रचना स.क्रि. - (तद्<रचन) - 1. किसी चीज का निर्माण करना/बनाना। जैसे: ब्रह्मा ने संसार की रचना की। 2. साहित्यिक या कलात्मक कृति तैयार करना/लिखना। उदा. तुमने बहुत- सी कविताएँ रचीं, अब कलात्मक निबंध रचो। 2. सजावट करना/सजाना। जैसे: महिलाओं के हाथों में मेंहदी रच गई।

रचनाकार - (पुं.) (तत्.) - रचना करने वाला यानी बनाने वाला। पर्या. रचयिता, निर्माता।

रचनात्मक - (वि.) (तत्.) - 1. रचना या निर्माण से संबंधित। पर्या. सर्जनात्मक। जैसे: रचनात्मक शैली। 2. जिससे किसी नई बात की रचना होती हो। जैसे: रचनात्मक विकास।

रचनात्मकता - (स्त्री.) (तत्.) - रचनात्मक होने का भाव। दे. ‘रचनात्मक’, ‘रचना’।

रचित - (वि.) (तत्.) - 1. रचा या बनाया हुआ, निर्मित। ताजमहल संगमरमर पत्थरों से रचित है। 2. लिखकर तैयार किया गया। जैसे: जयशंकर प्रसाद द्वारा रचित कामायनी’। 3. सज्जित उदा. यह मणि रचित हार किसका है?

रचयिता - (वि./पुं.) (तत्.) - रचना करने या बनाने वाला। पर्या. रचनाकार, निर्माता। उदा. गोदान के रचयिता प्रेमचंद हैं।

रज - (पुं.) (तत्.<रजस्) - 1. धूल, गर्द। जैसे: गुरूचरणों की रज (धूल)। 2. फूलों का पराग। जैसे: कमल-रज, चरण-रज।

रजत - (पुं.) (तत्.) - सफेद-चमकदार एवं मूल्‍यवान धातु जिससे आभूषण बनते हैं, शा.अर्थ. 1. चाँदी रूपा 2. मोती का हार 3. सफेद रंग।

रजत जयंती - (स्त्री.) (तत्.) - किसी व्यक्‍ति, संस्था आदि या किसी महत्वपूर्ण कार्य के जन्म या आरंभ होने के 25 वर्ष पूरे होने पर मनाई जाने वाली जयंती। पच्चीसवीं वर्षगाँठ। जैसे: आज हमारे विद्यालय की रजतजयंती मनाई जा रही है। silver jubilee

रजनी - (स्त्री.) (तत्.) - 1. रात, रात्रि, निशा।

रजवाड़ा - (पुं.) (तद्) - [राज्यवाड़ा] मध्यकालीन एवं अंगरेजी राज के भारत की देशी रियासतों में से कोई भी; यथा; होल्कर, सिंधिया, जोधपुर आदि के तत् कालीन राज्य। इति. स्वतंत्रतापूर्व के भारत में वह देशी रियासत जिसका अपना राजा होता था और जो कई मामलों में सीधे बर्तानवी हुकुमत के अधीन न होकर स्वतंत्र सत्‍ताधारी होता था। जैसे: जोधपुर रजवाड़ा आदि।

रजस्वला - (वि./स्त्री.) (तत्.) - 1. वह स्त्री जिसका रज निकलता हो। पर्या. ऋतुमती। प्रयो. आजकल खान-पान की वजह से 11-12 वर्ष की आयु में लडक़ियाँ रजस्वला हो जाती हैं। 2. मटमैले पानी वाली बरसाती नदी।

रज़ा - (स्त्री.) (अर.रिज़ा) - 1. इच्छा, मर्जी, 2. अनुमति, 3. स्वीकृति, 4. सहमति। ऊपर वाले की रज़ा से मैं आज खेलने लायक हो गया हूँ।

रजाई - (स्त्री.) (देश.) - एक प्रकार का ओढ़ना जिसमें रूई भरी होती है और जिसे सर्दियों में ओढ़कर सोते हैं। पर्या. लिहाफ, मोटी दुलाई।

रजोदर्शन - (पुं.) (तत्.) - शा.अर्थ रज (गर्भाशय से होने वाले रक्‍तस्राव) का (पहली बार) दिखाई पड़ना/होना। पहली बार मासिक धर्म या ऋतुस्राव के होने का समय जो लड़िकयों में साधारणतया 11 वर्ष से 18 वर्ष तक होता है।

रजोधर्म - (पुं.) (तत्.) - मानव मादा में युवावस्था में गर्भाशय से होने वाला रक्‍तस्राव जो लगभग एक मास के अंतराल से होता है। इस द्रव में अनिषेचित अंड भी बाहर निकल आता है। पर्या. ऋतुस्राव, आर्तव।

रजोनिवृत्‍ति - (स्त्री.) (तत्.) - आयु. स्त्रियों में मासिक धर्म या ऋतुस्राव का रूकना/बंद हो जाना। टि. प्राकृतिक रजोनिवृत्‍ति जीवन के 45 से 50 वर्ष के बीच कभी भी हो सकती है।

रटना स.क्रि. - (तत्.<रटन) - 1. एक ही शब्द या वाक्य को जोर-जोर से बार-बार बोलना। 2. किसी पाठ को बार-बार दुहराना ताकि वह कंठस्थ हो जाए।

रट लगाना - - स.क्रि.(हि. रटना) 1. किसी की स्मृति में उसके नाम, गुण, व्यवहार आदि को बार-बार याद करना। जैसे: मीरा दिन-रात कृष्ण की रट लगाती थी। 2. किसी वस्तु की प्राप्‍ति के लिए बार-बार किसी से कहना। जैसे: बालक साइकिल लेने के लिए रट लगाए हुए है।

रण - (पुं.) (तत्.) - 1. संग्राम, युद्ध। 2. युद्ध क्षेत्र। प्रयो. 1. ‘कहाँ राम रण हतौं पचारी’। (रामचरितमानस) 2. रण बीच चौंकड़ी भर-भर कर चेतक बन गया निराला था।

रणकौशल - (पुं.) (तत्.) - युद्ध में लड़ने की कुशलता; युद्ध की कला।

रणनीति - (स्त्री.) (तत्.) - 1. युद्ध शुरू करने से पूर्व युद्धकर्ता द्वारा शत्रुपक्ष को पराजित करने के उद् देश्‍य से अपनाई जाने वाली योजनाबद् ध तरीके से तैयार की गई नीति। पर्या. युद्ध की नीति। tacties 2. किसी भी कार्य में सफलता पाने के लिए निर्धारित कार्यनीति।

रणभूमि - (स्त्री.) (तत्.) - युद्ध का मैदान; वह भूभाग जहाँ पर सक्रिय रूप से युद्ध लड़ा जा रहा हो।

रतवाँस - (पु.) (तद्.) - रात के समय हाथी, घोड़ों को दिए जाने वाला चारा।

रति - (स्त्री.) (तत्.) - 1. प्रेम, अनुराग।, 2. शोभा, छवि।, 3. जीवों की संभोग क्रिया। उदा. उसकी तो हरिचरणों में रति है। विलो. विरति।

रतौंधी - (स्त्री.) - शा.अर्थ रात में अंधा हो जाना। आयु. रोग जिसमें रात को दिखाई नहीं देता।

रत्ती - (स्त्री.) (तत्.<रक्‍तिका) - 1. तौल की एक इकाई जो एक माशे का आठवाँ भाग होती है। (लगभग एक सेंटीग्राम या एक ग्राम का दसवाँ भाग) या पुराने सुनारों द्वारा प्रयुक्‍त ढाई चावल या आठ जौ या एक घुँघची के बराबर की तौल का मान। 2. गुंजा (घुंघली का दाना) 3. प्रयो. आठ रत्‍ती का एक माशा होता है। मुझे रत्‍ती भर परवाह नहीं है।

रत्‍ती - (स्त्री.) (तद्.<रति) - 1. प्रेम, प्रणय। 2. सौंदर्य, शोभा, छवि।

रत्‍न - (पुं.) (तत्.) - बहुमूल्य चमकीले प्रसिद्ध खनिज पत्थर, या समुद्र से प्राप्‍त चमकीले पदार्थ जिनका प्रयोग आभूषणों में जड़ने या किसी श्रृंगार आदि में किया जाता है। शा.अर्थ मणि, जवाहर। प्रयो. वह रत्‍न जटित मुकुट धारण किए हुए है। ला.अर्थ बहुमूल्य या प्रिय व्यक्‍ति। टि. नवरत्‍न-हीरा, पन्ना, पुखराज, मूँगा, मोती, माणिक्य, नीलम, लहसुनिया और गोमेद।

रत्‍नजटित - (वि.) (तत्.) - हीरे-मोती आदि बहुमूल्य रत्नों से जुड़ा हुआ। जैसे: रत्‍नजटित कंगन/मुकुट आदि।

रत्‍नाकार - (पुं.) (तत्.) - शा.अर्थ रत्‍नों की खान। सा.अर्थ समुद्र/सागर। पर्या. पयोधि, रत्‍ननिधि।

रथ - (पुं.) (तत्.) - दो या चार पहियों वाला एक प्राचीन यान/सवारी गाड़ी जिसे दो या अधिक घोड़े खींचा करते थे। ला.अर्थ शरीर। उदा. राजा दुष्यंत रथ से ऋषि कण्व के आश्रम गए।

रदनक - (वि.) (तत्.) - शा.अर्थ. फाड़ने, चीरने वाला।

रदनक दंत - (पुं.) - (बहु.) स्तनधारी प्राणियों में कृंतक और अग्रचर्वणक के बीच स्थित लंबे, नुकीले दांत। carnivore मांसाहारी पशुओं में ये खासतौर पर बढ़े हुए होते हैं और शिकार एवं मांस को चीरने-फाड़ने का काम करते हैं। मनुष्यों में इनकी संख्या चार (दो ऊपर, दो नीचे) होती हैं। Canine teeth तु. कृंतक दंत, चर्वणक दंत।

रद्द - (वि.) (अर.) - जो पहले लागू था, उसकी वैधता को अब, समाप्‍त कर दिया गया है-ऐसी सूचना। पर्या. खारिज, निरस्त। उदा. न्यायालय ने उसकी अरज़ी रद्द कर दी।

रद्दी - (अर.) - जो किसी काम में न आ सकें, बेकार। पर्या. निरूपयोगी। मुहा. रद्दी के दाम बिकना=बहुत सस्ते में बिकना। उदा. मुझे घर रद्दी के दाम बेचना पड़ा।

रनिवास - (पुं.) (तद्.<राज्ञी) - राजमहल में रानियों के रहने का विशेष भाग। पर्या. अंत:पुर।

रपट - (स्त्री.) (देश.) - रपटने की क्रिया या भाव। देखें, ‘रपटना’।

रपट - (स्त्री.) - (अं<रिपोर्ट) किसी घटना की वह सूचना जो थाने में जाकर लिखाई या किसी अधिकारी को दी जाती है। पर्या. आख्या, रिपोर्ट। उदा. हम थाने में जाकर घर में हुई चोरी की रपट लिखवाते हैं।

रपटना अ.क्रि. - (देश.) - 1. गीली ज़मीन पर या चिकने स्थान पर फिसल कर गिरना और आगे तक सरक जाना। पर्या. फिसलना। प्रयो. वह चलते हुए गीली जमीन पर रपटकर गिर गया।

रफ़ू - (पुं.) (वि.) - (अं.) कटे-फटे कपड़े के छेद की उसी से मिलते-जुलते रंग वाले धागे से हाथ या मशीन द्वारा इस प्रकार सिलाई करना जिससे छेद न दिखाई दे और कपड़ा पूर्ववत् दिखाई दे। प्रयो. हम किसी भी कारण से कपड़े में हुए छेद को रफ़ूगर से रफ़ू कराते हैं। अदृश्य, जैसे: देखते-देखते वह रफू हो गया। darning

रफ़ूचक्कर - (वि.) (अर.तद्.) - एकाएक चंपत,गायब या अदृश्य हो जाने वाला।जैस: वह उसका थैला उठाकर रफूचक्कर हो गया। मुहा. रफूचक्कर होना=किसी स्थान से देखते देखते गायब हो जाना।

रफ़्तार - (स्त्री.) (फा.) - किसी वस्तु की स्थिर स्थिति से आगे बढ़ते रहने की अवस्था जिसे प्राय: मापा जा सकता है। पर्या. गति, चाल। जैसे: 20 किमी. प्र.घंटे की रफतार।

रफ़्ता-रफ़्ता क्रि.वि. - (वि.) (.फा. रफ़्त:) - शा.अर्थ 1. धीरे-धीरे, अहिस्ता-अहिस्ता। 2. क्रमश:। उदा. नाव की गति रफ़्ता-रफ़्ता बढ़ रही थी।

रब - (पुं.) (अर.) - परमेश्‍वर, ईश्‍वर, स्वामी, मालिक। उदा. जो होना था सो हुआ, रब की मर्जी।

रबड़ - (पुं.) - (अं.रबर) वट जाति का एक वृक्ष जिसके दूध को पकाकर और सुखाकर बनाया हुआ एक प्रसिद् ध लचीला पदार्थ जिससे टायर आदि बहुत सी उपयोगी चीजें बनती हैं। प्रयो. पेंसिल से लिखा हुआ रबड़ से मिटाया जा सकता है।

रबड़ी - (स्त्री.) (देश.) - एक प्रसिद्ध मिठाई जो मीठे दूध को औटाकर बनाई जाती है। प्रयो. जलेबी को रबड़ी के साथ खाने का आनंद कुछ और है।

रबी - (स्त्री.) (अर.) - शीत ऋतु में उगाई जाने वाली और वसंत ऋतु में काटी जाने वाली फसलें। जैसे: गेहूँ, चना, मटर, सरसों आदि। तु. खरीफ़।

रब्बा/रब - (पुं.) (अर.रब) - 1. स्वामी, पति, मालिक। 2. परमात्मा, ईश्‍वर, खुदा।

रमज़ान - (पुं.) (अर.) - मुस्लिम मतानुसार इसलामी कैलेंडर का नौवाँ महीना जिसमें मुसलमान दिन भर (सूर्योदय से सूर्यास्त तक) रोज़ा (व्रत) रखते हैं और रात में तरावीह (विशेष नमाज़ जिसमें कुरान पढ़ी जाती है) पढ़ते हैं। टि. रमज़ान के अंत में ईद-उल-फितर (मीठी सेविइयों की ईद) मनाई जाती है।

रमण - (पुं.) (तत्.) - शा.अ. 1. विलास, क्रीडा, आमोद-प्रमोद। 2. विचरण, 3. पति। जैसे: राधारमण। वि. 4. विलास या क्रीडा करने वाला। 5. सुन्दर, 6. प्रिय, 7. मन को सुख देने वाला।

रमणीय - (वि.) (तत्.) - 1. जो देखने में सुन्दर हो। 2. मन को अच्छा लगने वाला, मनोहर। प्रयो.-कश्मीर अत्यंत रमणीय स्थल है।

रमणीयता - (स्त्री.) - सुंदरता।

रमता - (वि.) (तद्.) - निश्‍चिंत घुमने-फिरने वाला। जैसे: अपने तो रमते राम हैं। लोको. रमता जोगी बहता पानी=नदी के पानी की तरह सदा भ्रमण करने वाला।

रमना अ.क्रि. - (तत्.<रमण) - शा.अ. मन का प्रसन्नता के साथ (किसी विषय में) लीन हो जाना। सा.अ. 1. मौज-मस्ती के लिए कहीं जाकर ठहरना या रहना। 2. घूमना-फिरना। 3. व्याप्‍त होना। प्रयो. कुछ लोग प्राकृतिक स्थानों में रमण करते-फिरते हैं।

रमा - (स्त्री.) (तत्.) - 1. लक्ष्मी, 2. धन-संपत्‍ति।

रमाकांत/रमापति - (पुं.) - विष्णु।

रमाना - - 1. मन को लगाना या अनुरक्‍त करना। उदा. तुम्हें खेल के अलावा पढ़ाई में भी मन रमाना चाहिए। 2. शरीर में (भस्म, सिंदूर आदि) लगाना जैसे: भस्म रमाना। 3. वश में करके कहीं अनुरक्‍त करवाना। जैसे: उसका मन खेल में रमा दो। मुहा. धूनी रमाना=साधु की तरह एकाग्र हो जाना।

रम्य - (वि.) (तत्.) - 1. सुंदर, मनोहर। 2. रमणीय। प्रयो. कन्याकुमारी में विवेकानंद का रम्य स्मारक है।

रवा - (पुं.) (तत्.) - किसी भी वस्तु का अत्यंत छोटा भाग, दाना, कण।

रवानगी - (स्त्री.) (.फा.) - रवाना होने या चल पड़ने की क्रिया या भाव, प्रस्थान। दे. ‘रवाना’।

रवाना - (वि.) - (फा.रवान:) 1. जो अपने स्थान से अन्यत्र स्थान के लिए निकल पड़ा हो, 2. अन्यत्र भेजा हुआ (व्यक्‍ति अथवा वस्तु इत्यादि) प्रयो. सीमा की ओर रवाना हुए सैनिक पहुँच गए।

रवि - (पुं.) (तत्.) - सूर्य, दिवाकर, आदित्य। रविवार-सप्‍ताह का प्रथम दिन (ज्योतिष गणना की दृष्‍टि से) आधुनिक प्रयोग में सप्ताह का आखिरी दिन।

रवैया - (पुं.) (अर.<रवीय:) - एक व्यक्‍ति का दूसरे व्यक्‍ति से व्यवहार या सुलूक, ढंग, तरीका, रीति।

रश्क - (पुं.) (.फा.) - ईर्ष्या का भाव, ईर्ष्या का वह प्रकार जिसमें किसी को हानि पहुँचाये बिना ही उसके समान बनने की भावना होती है। जैसे: उसकी समृद्धि‍ देखकर उसके मित्र को भी वैसा बनने का रश्क है।

रश्मि - (स्त्री.) (तत्.) - 1. प्रकाश की किरण। प्रयो. सूर्य रश्मियों से कमलों की शोभा दर्शनीय थी। 2. घोड़े की लगाम, बागडोर।

रस - (पुं.) (तत्.) - 1. किसी पदार्थ का सारभाग/सार तत् त्व। तरल पदार्थ, द्रव। 2. जल। 3. पत्तों, फूलों, फलों आदि को काट कर कूटने या किसी यंत्र आदि में मसलने, पीसने आदि से प्राप्‍त द्रव। जैसे: अंगूर का रस, अनार का रस, गन्ने का रस आदि। 4. साहित्य के नौ-रस श्रृंगार, करूण, हास्य, वीर, रौद्र, भयानक, अद्भुत, वीभत्‍स और शांत रस। 5. आनन्द-परमात्मा ‘रस’ स्वरूप है।

रसगुल्ला - (पुं.) (देश.) - छेने से तैयार की जाने वाली गोलाकार एक प्रकार की बंगाली मिठाई। उदा. उसके जन्मदिन में बच्चों को रसगुल्ले खिलाए गए।

रसद - (स्त्री.) (फा.) - खाद् य सामग्री, खाने-पीने का सामान।

रसभरी - (स्त्री.) (देश.रसभरना) - मकोय नामक एक फल जिसके ऊपर टोपी जैसा आवरण होता है। वि. स्त्री. रस से भरी हुई, मधुर। उदा. उसकी रसभरी बातें सुनकर श्रोता मुग्ध हो गए।

रसमलाई - (स्त्री.) (दे.) - एक मिठाई जो औटे हुए दूध में छैने की टिक्कियाँ (रसगुल्ले जैसा पदार्थ) बनाकर डालने से बनती है। प्रयो. रसमलाई के दूध में केसर डालने से स्वाद ही कुछ और हो जाता है।

रसांकुर - (पुं.) (तत्.) - कशेरूकियों की आंत्र में अंगुलि जैसे प्रवर्ध process जिनसे आंत्र की अवशोषण सतह काफी बढ़ जाती है। Villus

रसातल - (पुं.) (तत्.) - सा.अ. पुराणों के अनुसार पृथ्वी के नीचे के सात लोकों में से एक। ला.अर्थ पतन की दृष्‍टि से बहुत नीचे का स्थान। प्रयो. दुष्कर्मी पुत्र ने अपने कुल की समृद्धि को रसातल में पहुँचा दिया। टि. पृथ्वी के नीचे के सात लोक हैं-अतल, वितल, सुतल, रसातल, तलातल, महातल और पाताल।

रसायन - (पुं.) (तत्.) - 1. विज्ञान की वह शाखा जिसमें द्रव्य के संघटन और ऊर्जा परिवर्तन के कारण उस पर होने वाले रूपांतरणों का अध्ययन किया जाता है। Chemistry 2. आयु. पुष्‍टिकर औषधि या खाद्य पदार्थ। Tonic

रसायनज्ञ - - रसायन विज्ञान शास्त्र का विद्वान/ज्ञाता।

रसायनविज्ञान - (पुं.) (तत्.) - दे. ‘रसायन’।

रसायनशास्त्र - (पुं.) (तत्.) - दे. ‘रसायन’।

रसाल - (पुं.) (तत्.) - रस वाले पदार्थ; आम, कटहल, ईख, गेहूँ। (विशेष रूप से आम के लिए ही प्रयुक्‍त) वि. रसीला, मीठा, मधुर, सरस, स्वादपूर्ण।

रसिक - (पुं.) (तत्.) - 1. सौंदर्य, प्रेम, स्नेह, भक्‍ति आदि कोमल एवं सुमधुर भावों से भरे हृदयवाला, सहृदय। 2. रस या आनंद लेने वाला। प्रयो. आप तो संगीत के अत्यंत रसिक श्रोता हैं। 3. जो सुंदर रहन-सहन के साथ स्त्रियों के प्रति आकर्षित रहता हो।

रसिया - (पुं.) (तद्.<रसिक) - 1. रसिक, प्रेमी। 2. गाने का एक विशेष प्रकार जो ब्रज में फागुन महीने में गाया जाता है।

रसीद - (स्त्री.) (.फा.) - किसी वस्तु के खरीदने, प्राप्‍त होने या पहुँचने के प्रमाण के रूप में लिखा हुआ, प्राप्‍तकर्ता द्वारा, जवाबी दस्तावेज़, पावती। उदा. हम किसी वस्तु के खरीदने पर दुकानदार से उसकी रसीद प्राप्‍त करते हैं।

रसीदी टिकट - (स्त्री.) (.फा.+अं.) - रसीद को कानूनी मान्यता देने हेतु लगाया जानें वाला डाक विभाग का टिकट। टि. आजकल इसका पाँच हजार रूपए और अधिक के लेन-देन पर लगाया जाना आवश्यक है। समय-समय पर इसमें संशोधन होता रहता है। revenue stamp

रसीला - (वि.) - (सं+हिं.-रस) 1. रसभरा, रसयुक्‍त। 2. स्वादिष्‍ट, 3. रसिक स्वभाव वाला। भाव. रसीलापन। जैसे: यह आम बहुत रसीला है, खाकर देंखें।

रसूल - (पुं.) (अर.) - ईशदूत, ईश्‍वर का अवतार, पैगंबर, नबी।

रसूली - (वि.) (अर.) - रसूल-संबंधी, रसूल का, रसूल के द्वारा कहा हुआ या किया हुआ।

रसोइया - (पुं.) (देश.) - रसोई बनाने वाला, वह पुरुष कर्मचारी जो घर या दुकान, रेस्तरां आदि में भोजन बनाता है। cook

रसोईघर - (पुं.) (देश.) - आवासीय व्यवस्था में वह कक्ष या कमरा जहाँ परिवार के लिए भोजन तैयार किया जाता है। (किचन)

रस्ट - (पु.) - (अं.) 1. भौ. लोहे या इस्पात के ऑक्सीकरण से (विशेषकर नमी के कारण) उसके ऊपर बनी लाल-सी या भूरी-सी परत बन जाना। इस प्रकार की अन्य धातुओं पर भी बन सकती है। पर्या. जंग, मोरचा। (rust) 2. वन.-यूरेडिनिओमाइसेटीज वर्ग के कवकों द्वारा उत्पन्न एक रोग जिसके कारण पौधों पर जंग (मोरचा) जैसे: रंगीन धब्बे बन जाते हैं। पर्या. किट् ट, रतुआ। rust

रस्म - (स्त्री.) (अर.) - प्राचीन काल से चले आ रहे रीति-रिवाज/परंपरा।

रस्मो रिवाज़ - (पुं.) (अर.) - बहुत दिनों से चले आ रहे संस्कार संबंधित नियम तथा परिपाटी या रीति-रिवाज जो प्रत्येक कुल, धर्म या देश की पहचान बताते हैं। रस्म=धार्मिक या पारिवारिक परंपरानुसार विधियाँ। रिवाज़=लोक में प्रचलित कार्य करने के विधान। प्रयो. आजकल तो रस्मो-रिवाज का पालन सामान्य या मध्यवर्ग के लोगों में ही देखने को मिलता है।

रस्सा - (पुं.) (तद्.) - सन या मूँज आदि से बनाई गई मोटी लंबी रस्सी।

रस्साकसी/कशी - (स्त्री.) (देश.<रसना+कर्षण) - 1. खेल जिसमें एक ही रस्से को दो पक्ष अपनी-अपनी ओर विपरीत दिशा में खींचते हैं और जो पक्ष दूसरे पक्ष को गिरा देता या अपनी ओर खींच लेता है वह विजयी घोषित कर दिया जाता है। 2. ऐसी स्थिति जब किसी बात को मनवाने के लिए दोनों पक्ष अपनी-अपनी बात पर अड़े रहते हैं और कोई निर्णय नहीं हो पाता। पर्या. खींचतान।

रहट - (पुं.) (तद्.) - कुएँ या किसी गहरी नाली से पानी निकालकर खेतों में सिंचाई करने हेतु प्रयुक्‍त गोलाकार पहिएनुमा उपकरण। इसमें ऐसी डोलचियों की माला पड़ी होती है जो पानी नीचे से भरकर ऊपर खेतों की नाली में जाने के लिए उड़ेलती हैं।

रहन-सहन - (स्त्री.) (तद्.) - समाज में रहने और परस्पर व्यवहार करने का ढंग या तरीका।

रहना अ.क्रि. - (देश.) - 1. किसी स्थान का आश्रय लेकर टिकना, ठहरना। जैसे: 1. वृक्ष पर छत्‍ते का रहना। (ii) वे यहाँ ही रहते हैं। 2. किसी भी दशा/अवस्था में स्थिर होना। जैसे: बिना अन्न-जल के व्रत रहना। 3. नौकरी आदि में स्थिर रहना। उदा. वे इस विद्यालय में दस वर्ष तक प्राचार्य रहे।

रहनुमा - (वि.) (पुं.) - (फा. राहनुमा) सही रास्ता बताने वाला। पर्या. पथ-प्रदर्शक, नेता, अगुवा। ला.अर्थ वह व्यक्‍ति जो जीवन के कल्याण के लिए समाज का पथ-प्रदर्शक या सहायता प्रदान करने वाला हो।

रहनुमाई - (स्त्री.) - मार्गदर्शन, नेतृत्व, सेनापतित्व।

रहबर - (वि.) (फा.) - ‘रहबर’ का छोटा रूप अर्थात ‘राह’ या मार्ग बताने वाला। 1. पथ-प्रदर्शक, 2. रहनुमा, 3. अगुवा, 4. नेता।

रहम - (पुं.) (अर.रह्म) - व्यक्‍ति का वह उदात्‍त गुण जो व्यवहार में क्षमा, कृपा या दया के रूप में व्यक्‍त होता है। पर्या. 1. करुणा, दया, 2. कृपा, अनुग्रह। उदा. स्वामी को चोरी करने वाले बालक पर रहम आ गया और उसने उसे छोड़ दिया।

रहमत - (स्त्री.) (अर.) - 1. कृपा, 2. दया। उदा. ईश्‍वर की रहमत से हम उस दुर्घटना में बाल-बाल बच गए।

रहमदिल - (वि.) (अर.) - 1. कृपा, 2. दया। उदा. ईश्वर की रहमत से हम उस दुर्घटना मे बाल-बाल बच गए।

रहमदिली - (स्त्री.) - दयालुता।

रह-रहकर क्रि.वि. - (वि.) (देश.) - रूक-रूक कर जो लगातार न हो। जैसे: उसके पेट में रह-रह कर दर्द होता है।

रहस्य - (पुं.) (तत्) - व्यु.अर्थ. एकांत की बात। सा.अर्थ छिपाई हुई बात, गुप्‍त बात। पर्या. मर्म, भेद।

रहस्यमय - (वि.) (तत्) - जो रहस्य से पूर्ण या रहस्ययुक्‍त हो अर्थात जिसके कार्य कारण आदि का पता न चले। उदा. आरूषि की हत्या बड़े ही रहस्यमय ढंग से हुई, अभी तक उसका रहस्य अज्ञात है। दे. ‘रहस्य’। mystirious

रहा-सहा - (वि.) (दे. रहना-सहना) - शेष, बाकी बचा हुआ। प्रयो. ज्यादातर संपत्‍ति तो उसने जुए में नष्‍ट कर दी, रही-सही संपत्‍ति मुकदमे में चली गई।

राँगा - (पुं.) (देश.) - सफेद रंग की एक धातु जो कुछ मुलायम होती है। इससे ताँबा और पीतल के बर्तनों पर कलई की जाती है। पर्या. वंश धातु, कलई। tin

राँड़ - (स्त्री.) (तद्.<रण्डा) - 1. जिसका पति गुज़र गया हो। 2. विधवा स्त्री जिसने पुनर्विवाह नहीं किया हो। पर्या. विधवा। टि. सामान्यतया गाली के रूप में प्रयोग जो दुश्‍चला स्त्री के अर्थ में प्रयुक्‍त होता है।

राई - (स्त्री.) (तद्.<राजि:) - छोटी सरसों का एक प्रकार जिसके दाने लाल और काले होते हैं तथा मसाले के रूप में (छौंक लगाने आदि) इसका प्रयोग होता है। ला.अर्थ. 1. बहुत थोड़ी मात्रा या परिमाण। मुहा. (i) नोन-राई उतारना=एक प्रकार का टोना करना। इसमें जिसे नज़र लगी हो उस पर से राई और नमक उतारकर आग में डालते हैं। 2. राई का पर्वत या पहाड़ बनाना या होना=अनावश्यक तूल देना, बहुत छोटी-सी बात को बहुत बड़ा बना देना।

राका - (स्त्री.) (तत्.) - चाँदनी रात, पूर्णिमा की रात्रि, जब चंद्रमा पूरा चमकता है।

राक्षस - (पुं.) (तत्.) - 1. पौराणिक गाथाओं के अनुसार शक्‍तिशाली, विशालकाय तथा भयावह आकृति वाली एक जाति जो मानवजाति के विरूद्ध अत्याचारों एवं क्रूरता के लिए कुख्यात थी। 2. एक विशिष्‍ट योनि जो दैत्य या दानव की तरह ही थी। 2. ला.अर्थ क्रूर व्यक्‍ति, अति दुष्‍ट व्यक्‍ति। टि. कुबेर के कोश के रक्षक होने के कारण, संभवत: इन्हें ‘राक्षस’ कहा गया।

राख - (स्त्री.) (तद्.<रक्षा) - 1. काष्‍ठ आदि के जल जाने पर उसका बचा हुआ वह अंश जो बारीक तथा कुछ काले या भूरे रंग का होता है। जैसे: लकड़ी कोयले या उपले की राख। टि. राख जब अधिक जलकर बिलकुल सफेद रंग की तथा अत्‍यंत बारीक पाउडर जैसी हो जाती है तो उसे ‘भस्म’ कहा जाता है। मुहा. (i) राख डालना=ढक देना, किसी वस्तु को दबा देना। (ii) राख में मिला देना=नष्‍ट कर देना।

राखदान - (पुं.) (तद्+.फा.) - वह पात्र जिसमें हवन आदि की राख डालकर रखी जाती है।

राखदानी - (स्त्री.) (तद्+.फा.) - सिगरेट आदि पीते हुए गुल (राख) गिराने का छोटा-सा पात्र। ashtray

राखी - (स्त्री.) (तद् रक्षा/रक्षी) - रक्षाबंधन पर्व में दाहिने हाथ की कलाई पर बाँधा जाने वाला सूत्र जो विशेष रूप से बहन द्वारा भाई के हाथ में बाँधा जाता है। टि. प्राचीनकाल में पुरोहित यजमान के हाथ में रक्षासूत्र बाँधते थे।

राग - (पुं.) (तत्.) - 1. सांसारिक पदार्थों का मन पर चढ़ा रंग; प्रिय वस्तु या व्यक्‍ति आदि अपने पास ही बनी रहे यह मन का भाव। पर्या. अनुराग। विलो. द्वेष। 2. रंग विशेषकर लाल रंग। उदा. अंगराग=शरीर पर लगाने वाला रंग। 3. संगीत में सात स्वरों के उतार-चढ़ाव की विभिन्न योजनाओं से बनी एक व्यवस्था। मुहा. अपना राग अलापना=अपने ही मन की या पसंद की बात कहते जाना। दूसरा ही राग अलापना=प्रसंग के अतिरिक्‍त दूसरी बात बोलते जाना।

रागिनी - (स्त्री.) (तत्.) - संगीत में किसी राग की पत्‍नी प्रत्येक राग की प्राय: छह रागिनियिाँ मानी गई हैं। टि. ‘राग’ का स्त्रीलिंग रूप है ‘रागिनी’

राज - (पुं.) (तद्<राज्य) - 1. राज्य, शासन उदा. अशोक के राज में……govornment 2. शासन के अधीन आने वाला पूरा क्षेत्र। उदा. अशोक का राज बहुत बड़ा था। 3. शासन का काल। पुं. तद् <राजन्) श्रेष्‍ठ, राजा आदि अर्थों में समस्त पद में प्रयुक्‍त जैसे: काशिराज, प्रयागराज। पुं. फा. 1. 'राजगीर' का संक्षिप्‍त रूप। दे. राजगीर। रहस्य, भेद। उदा. आपकी इस बात में बहुत बड़ा राज छिपा हुआ है।

राजकीय - (वि.) (तत्.) - राजा या राज्य से संबंधित। उदा. राजकीय आज्ञा, राजकीय पद, राजकीय, संपत्‍ति आदि।

राजकुमार - (पुं.) (तत्.) - (राजपुत्र) 1. राजा का पुत्र। 2. ला.अर्थ (राजपुत्रों की तरह) लाड़-प्यार से पाला-पोसा गया पुत्र। स्त्री. राजकुमारी।

राजकोष - (पुं.) (तत्.) - राजा का ख़जाना; सरकारी खज़ाना। treasury, exchequer

राजगद्दी - (स्त्री.) (तद्.+देश.) - 1. राजा के बैठने की कुर्सी, राजसिंहासन। thorn 2. राज्य करने का अधिकार।

राजगीर - (पुं.) (देश.) - चिनाई में कुशल भवन निर्माणकर्ता।

राजगीरी - (स्त्री.) - चिनाई का कार्य, मकान आदि बनाने का काम या व्यवस्था।

राजचिह्न - (पुं.) (तत्.) - राजा द्वारा धारण किये जाने वाले वे विशेष चिह् न जिन्हें राजा के अतिरिक्‍त अन्य कोई धारण करने का अधिकारी नहीं है। राजा के पाँच चिह् न-छत्र, चँवर, सिंहासन, मुकुट, राजदंड।

राजतंत्र - (पुं.) (तत्.) - वह शासन प्रणाली जिसमें राज्य का समस्त शासन-प्रबंध राजा द्वारा संचालित होता है। monarchy तुल. प्रजातंत्र।

राजदंड - (पुं.) (तत्.) - 1. वह दंड जो राजा के पास उसके नृपत्‍य या राजत्व के सूचक चिह् न के रूप में रहता है। 2. राजा या राज्य द्वारा अपराधियों या दोषियों आदि को दिया जाने वाला दंड।

राजदूत - (पुं.) (तत्.) - शा.अर्थ राजा का दूत; राज. शासन द्वारा अन्य राज्य में नियुक्‍त वह उच्चपदस्थ कर्मचारी जो वहाँ अपने देश का प्रतिनिधित्व करता है। ambassador

राजदूतावास - (पुं.) (तत्.) - (अन्य देश के नियुक्‍त) राजदूत और उसके कर्मचारियों का कार्यालय (आवास) embassy

राजद्रोह - (पुं.) (तत्.) - शा.अर्थ (अपने राजा या शासन) शासन के प्रति प्रकट द्रोह। राज. स्थापित सत्‍ता को पलटने के लिए की गई हिंसक कार्यवाई जिसके फलस्वरूप या तो शासक बदल जाए या द्रोह करने वाला स्वयं शासक बन जाए। sedition

राजधर्म - (पुं.) (तत्.) - 1. सुशासन के लिए शास्त्रों में वर्णित नियम। 2. राजा या शासक के समुचित अधिकार एवं कर्तव्य।

राजधानी - (स्त्री.) (तत्.) - राज्य का मुख्य नगर जहाँ से शासन का कार्य चलाया जाता है और जहाँ शासक निवास करता है। शासन का केंद्र।

राजनीति (शास्त्र) - (स्त्री.) (तत्.) - 1. राज्य का शासन चलाने और तदनुसार प्रजा (जनता) का पालन करने की नीति, कला या सिद् धांत; शासनकला। political science 2. (अपमानजनक या अवमूल्यन प्राप्‍त) लाक्षणिक अर्थ, चालबाजी। politics तु. राजनय।

राजनीतिक - (वि.) (तत्.) - राजनीति संबंधी, राजनीति से संबंधित।

राजनीतिज्ञ - (पुं.) (तत्.) - शा.अर्थ राजनीति का जानकार। राज. 1. राजनीति (शास्त्र) का पंडित या अच्छा जानकार। 2. (अवमूल्यन प्राप्‍त अर्थ) राजनीतिक उठापटक में चतुर व्यक्‍ति। politicion तु. राजमर्मज्ञ।

राजपद - (पुं.) (तत्.) - राजा का पद; राज्य का अधिकार।

राजपाट - (पुं.) (तद्.) - दे. राजगद्दी।

राजपूत - (पुं.) (तद्.<राजपुत्र) - व्यु.अर्थ राजा का पुत्र। वि. अर्थ राजस्थान की एक क्षत्रिय जाति जो स्वयं को राजाओं का वंशज मानती है। इसी कारण राजस्थान का प्राचीन नाम ‘राजपूताना’ था।

राजभवन - (पुं.) (तत्.) - शा.अर्थ राजा का निवास। (आधु.अर्थ) भारत के प्रसंग में प्रत्येक राज्य में नियुक्‍त राज्यपाल का (भव्य) आवास। government house तु. राष्‍ट्रपति भवन।

राजभाषा - (पुं.) (तत्.) - शासन की औपचारिक भाषा; शासकीय भाषां उदा. हिंदी भारतसंघ की राजभाषा है। officla language

राजमद - (पुं.) (तत्.) - राज्य का स्वामी बन जाने पर चढ़ने वाला नशा (जिसके फलस्वरूप राजा अच्छे-बुरे कार्यों में भेद नहीं कर पाता तथा प्रजा/अधीनस्थ जनता को तुच्छ समझने लगता है;) उच्चाधिकार का नशा।

राजमर्मज्ञ (मर्म को जानने वाला) - (पुं.) (तत्.) - राज्य की रीति-नीति का मार्गदर्शन करने वाला दूरदर्शी राजनेता। उदा. पंडित नेहरू राजनीतिज्ञ ही नहीं राजमर्मज्ञ भी थे। statesman तु. राजनीतिज्ञ।

राजमहल (राज+महल) - (पुं.) (तद्+अर.) - राजा का निवास-स्थान। पर्या. राज-प्रासाद। (रॉयल पेलेस)

राजमाता - (स्त्री.) (तत्.) - वर्तमान राजा या रानी की जीवित माता (जो पहले अपने (राजा) पति के जीवित रहते रानी/महारानी रही थी) queen mother

राजवैद्य - (पुं.) (तत्.) - राजा की चिकित्सा करने वाला वैद्य।

राजशाही - (स्त्री.) (सं.+.फा.) - राजा द्वारा सर्वाधिकार संपन्न बनकर राज्य चलाने की पद्धति। तु. लोकशाही=जनता द्वारा चलाई गई शासन पद्धति।

राजसी - (वि.) (देश.) - 1. राजाओं जैसा। 2. राजाओं के योग्य, उनके अनुरूप। 3. राजपरंपरा के अनुसार।

राजसूय - - एक यज्ञ जो सम्राट पद के अधिकारी राजा करते थे।

राजस्व - (पुं.) (तत्.) - कर, शुल्क आदि के रूप में राजा या सरकार को होने वाली आय। उदा. सरकार राजस्व का उपयोग राष्‍ट्र एवं जनता के कल्याण के लिए करती है।

राजाज्ञा - (स्त्री.) (तत्.) - 1. राजा का आदेश; राज्य-शासन का आदेश। 2. आदेश जिसका उल्लंघन अपराध माना जाए।

राज़ी - (वि.) (अर.<राज़ी) - सहमत, प्रसन्न, संतुष्‍ट। उदा. हमारे पिताजी इस कार्यक्रम में आने को राज़ी हो गए हैं।

राज़ी - (स्त्री.) (अर.<राज़ी) - 1. सहमति, स्वीकृति, अनुमति। 2. कुशल, क्षेम। सामान्यत: ‘राजी-खुशी’ प्रयोग होता है।

राज़ी-खुशी क्रि.वि. - (वि.) (अर.+फा.) - 1. अच्छी तरह, 2. कुशलपूर्वक, सकुशल। उदा. हमारे यहाँ उत्सव में पधारे सभी अतिथि राज़ीखुशी विदा हो गए।

राज़ीनामा - (पुं.) (अर.राज़ी+फा.नामा) - वह लिखित दस्तावेज़ जो विरोधी पक्षों में परस्पर समझौते के रूप में प्रमाण माना जाता है। पर्या. संधिपत्र, सुलहनामा, सहमति/स्वीकृतिपत्र। agreement उदा. दोनों व्यक्‍तियों ने आपस में समझौता करके राज़ीनामे पर दस्तखत कर दिये।

राजीव - (पुं.) (तत्.) - नीलकमल या कमल।

राज़ीवलोचन - (वि.) - नीलकमल के समान सुंदर नेत्रों वाला।

राज्य - (पुं.) (तत्.) - 1. (व्यापक संकल्पना) राजा या केंद्रीय सत्‍ता द्वारा शासित देश। 2. (सीमित संकल्पना) संघ राज्य की कोई इकाई। जैसे-उत्‍तर प्रदेश, राजस्थान आदि। पर्या. प्रांत state 3. ‘शासन’ का पर्यायवाची शब्द (प्रभुत्वसंपन्न सत्‍ता) rule

राज्यकाल - (पुं.) (तत्.) - राजा के सिंहासनारूढ़ होने से लेकर मृत्युपर्यंत अथवा शासक का पद छोड़ने तक की समयावधि।

राज्यपाल - (पुं.) (तत्.) - भारत के संविधान के अनुसार प्रत्येक राज्य का वह सर्वोच्च पदाधिकारी/ प्राधिकारी जिसकी नियुक्‍ति राष्‍ट्रपति करते हैं तथा जो वहाँ राष्‍ट्रपति का प्रतिनिधि माना जाता है। governor

राज्यसभा - (स्त्री.) (तत्.) - भारतीय संसद का ऊपरी सदन जिसके (अधिकतम) सदस्यों का निर्वाचन संघ के राज्यों की विधानसभाएँ करती हैं तथा कुछ सदस्य बारह (12) विशिष्‍ट क्षेत्रों (साहित्य-कला आदि) राष्‍ट्रपति द्वारा मनोनीत किए जाते हैं। पर्या. ऊपरी सदन upper houe

राज्याभिषेक - (पुं.) (तत्.) - राज. राजा के रूप में प्रथम बार राजसिंहासन पर बैठने/बिठाने की औपचारिक प्रक्रिया। पर्या. राजतिलक। शा.अर्थ राज्य प्राप्‍ति के निमित्‍त की जाने वाली स्नानादि क्रियाएँ, अभिषेक=स्नान। टि. भारतीय शास्त्रों के अनुसार किसी को राजा बनाने से पूर्व राज्य की समस्त नदियों का जल एकत्रित कर उस जल से उसे स्नान कराया जाता था और इस प्रकार पवित्र हुए राजा को पुरोहित तिलक लगाकर सिंहासनारूढ़ करता था।

राडार - (पुं.) - (अं.) अंग्रेजी शब्द ‘radio detection and ranging’ की रोमन वर्तनी के अनुसार सभी शब्दों के आद्यक्षरों से बना संक्षिप्‍त नाम। आकाश (अंतरिक्ष) में वस्तुओं की स्थिति का ज्ञान कराने में सहायक युक्‍ति जिसमें उच्च आवृत्‍ति की रेडियो तरंगों का उपयोग होता है। पर्या. radar

रात - (स्त्री.) (तद्/रात्रि) - सूर्यास्त के बाद से सूर्योदय तक का समय/रात्रि। पर्या. रजनी, निशा, यामिनी। मुहा. 1. रात काटना=किसी की प्रतीक्षा में या परेशानी से किसी प्रकार रात का समय व्यतीत करना। 2. रात-दिन एक करना=बहुत अधिक प्रयत्‍न या परिश्रम करना।

रात की रानी - (स्त्री.) (देश.) - एक पौधा जिसके सुगंधित फूल जो शाम ढलने के बाद रात्रि में खिलते हैं। इसे घरों में भी आरोपित किया जा सकता है। queen of the night

रातोंरात क्रि.वि. - (वि.) (देश.) - रात-रात में ही, उजाला होने से पहले ही। जैसे: उसने रातों-रात उस भवन की चारदीवारी बनवा दी।

रात्रि - (स्त्री.) (तत्.) - पृथ्वी की घूर्णन क्रिया (अपनी कीली पर घूमने) के कारण उसके आधे भाग पर सूर्य की किरणें न पड़ने की स्थिति में होने वाले अंधकार का काल। टि. पूरी पृथ्वी पर एक ही समय रात्रि नहीं हो सकती। पर्या. रात, निशा।

रान - (स्त्री.) (फा.) - दोनों पैरों का ऊपर की ओर कमर से लगा मांसल भाग, जाँघ। Thigh

रामकहानी - (स्त्री.) (देश.) - 1. आपबीती, 2. पूरा या ब्यौरेवार विवरण 3. दु:खड़ा, दु:खकथा। उदा. वह तो आज अपनी रामकहानी ही सुनाता रहा।

रामबाण - (वि.) (तत्.) - वह (औषधि या उपाय) जो तुरंत और निश्‍चित लाभ करे। पर्या. अचूक, अमोघ। उदा. तुम्हारे लिए यह दवा रामबाण है।

रामराज्य - (पुं.) (तत्.) - सा.अर्थ 1. ऐसा आदर्श राज्य जो सब लोगों के लिए अत्यंत सुखदायक हो और जिसमें किसी को किसी बात का कष्‍ट न हो। व्यं.अं. 2. अनुशासनविहीनता के अर्थ में प्रयोग, जैसे: इस कार्यालय में रामराज्य है चाहे जब आओ चाहे जब चले जाओ, कोई बंधन या शासन नहीं है।

रामसर - (पुं.) (देश.) - गन्ने की आकृति वाला एक पौधा जिसके पोर बड़े पतले और शुष्क होते हैं। उनके ऊपर एक छिलका होता है जिसे ‘मूँज’ कहा जाता है। इसे कूटकर एवं बंटकर रस्सियाँ बनायी जाती हैं। पर्या. सरपत। जैसे: प्राचीन समय में बच्चे आठवीं कक्षा तक रामसर (सरपत) की कलम से ही लिखते थे।

राय - (पुं.) (तद्.<राजन्) - 1. राजा, 2. सरकार, 3. बंगालियों में एक वंश-उपाधि, जैसे: राजा राममनोहर राय। स्त्री. फा. 4. विचार, मत। जैसे: लोकपाल बनाने के संबंध में आपकी क्या राय है। 5. परामर्श, सलाह। प्रयो. उसने बुजुर्गों की राय से ही यह काम किया है। पर्या. सम्मति।

रायज़ादा - (पुं.) - (हिं. राय+फा. ज़ादा) राजकुमार, राजपुत्र।

रायता - (पुं.) (देश.) - एक व्यंजन जो दही में घिसा गाजर, बथुआ, खीरे के टुकड़े, बूंदी, अनानास के टुकड़ो आदि में से कुछ मिलाकर छौंक देकर बनाया जाता है। उदा. भोजन के साथ रायता हो तो भोजन रूचिकर हो जाता है।

रार - (स्त्री.) (देश.) - 1. विवाद, तकरार, झगड़ा। 2. हठ। मुहा. रार बढ़ाना-बात बढ़ाना, झगड़ा करना। प्रयो. व्यर्थ में रार बढ़ाना अच्छी बात नहीं हैं।

राल - (स्त्री.) (तत्.) - 1. शाल वृक्ष पर उत्पन्न गोंद। 2. शाल वृक्ष का निर्यास जो सुगंधित धुएँ के लिए जलाया जाता है। टि. हवनसामग्री में इसे मिलाया जाता है।

राव - (पुं.) (तद्.) - राजा, सरदार, राज्य भाटों की उपाधि। जैसे: यदुराव।

राशन - (पुं.) - (अं.<रैशन) 1. खाने-पीने की वस्तुओं या अन्य आवश्यकताओं की सुनिश्‍चित पूर्ति के लिए सरकार द्वारा नियतमात्रा में वस्तुओं की कमी होने की स्थिति में नियत मूल्य और नियत समय पर उपलब्ध कराने हेतु की गई व्यवस्था। 2. खाने का सामान, रसद। उदा. आज उचित दर की दुकान से राशन मिल रहा है।

राशि - (स्त्री.) (तत्.) - 1. पुंज, ढेर। जैसे: खलिहान में अभी अन्नराशि पड़ी है। collection group 2. (गणित) संख्या, बीजगणितीय व्यंजक। 2. क्रान्तिवृत्‍त में स्थित बारह तारा समूहों में से प्रत्येक, मेष आदि बारह राशियाँ होती हैं। सूर्य प्रत्येक राशि में लगभग एक महीने तक रहता है।

राष्‍ट्र - (पुं.) (तत्.) - 1. प्रभुसत्‍ता संपन्न देश जिसकी निश्‍चित भौगोलिक सीमाएँ तो हैं ही, पर जिसके निवासी भावनात्मक और सांस्कृतिक रूप से अवश्य जुड़े हों। 2. राज्य (व्यापक संकल्पना) या देश का पर्याय। nation

राष्‍ट्र-कवि - (पुं.) (तत्.) - राष्‍ट्रीय भावनाओं से ओत-प्रोत काव्य की रचना करने वाले गणयमान्य कवियों में से भी जनता द्वारा (अथवा शासन द्वारा) प्रदत्‍त सम्मानसूचक आलंकारिक पदवी से युक्‍त सर्वाधिक मान्य राष्‍ट्रीय स्तर का कवि। जैसे: राष्‍ट्र कवि मैथिलीशरण गुप्‍त अथवा दिनकर।

राष्‍ट्रकुल - (पुं.) (तत्.) - राज. (कुछ) राष्‍ट्रों (देशों) का कुल। राजते.। तु. राष्‍ट्रमंडल, संयुक्‍त राष्‍ट्र। league of nations

राष्‍ट्रगान - (पुं.) (तत्.) - महत्वपूर्ण राजकीय समारोहों में राष्‍ट्र के प्रति श्रद् धा व्यक्‍त करने के लिए गाया-बजाया जाने वाला गीत। भारत में यह गौरव ‘जन-गण-मन…….’ को प्राप्‍त है। National Anthem तु. राष्‍ट्रगीत।

राष्‍ट्रगीत - (पुं.) (तत्.) - (राष्‍ट्रगान के ही समकक्ष) सम्मान के योग्य गाया-बजाया जाने वाला राष्‍ट्रीय स्तर का गीत। भारत में ‘वंदे मातरम्…….’ को यह प्रतिष्‍ठा प्राप्‍त है। National Song तु. राष्‍ट्रगान।

राष्‍ट्रध्वज - (पुं.) (तत्.) - राष्‍ट्र का झंडा, राष्ट्रीय झंडा। उदा. केसरिया, सफेद और हरी-इन तीन पट्टियों से निर्मित तथा सफेद पट् टी में स्थित अशोक चक्र वाला तिरंगा झंडा। भारत गणराज्य का राष्‍ट्र-ध्वज है। पर्या. राष्‍ट्रीय पताका। National Flag

राष्‍ट्रपति - (पुं.) (तत्.) - 1. भारत गणराज्य का वह अप्रत्यक्ष निर्वाचन प्रणाली से पाँच वर्ष की अवधि के लिए निर्वाचित सर्वोच्च पदाधिकारी जिसके पास राष्‍ट्र के शासन संचालन का संपूर्ण अधिकार होता है। 2. किसी भी गणराज्य का नियतावधि के लिए निर्वाचित राष्ट्राध्यक्ष। President

राष्‍ट्रपति-शासन - (पुं.) (तत्.) - भारत के संदर्भ में किसी भी राज्य में वहाँ की विधानसभा में मंत्रिमंडल का दलीय बहुमत न रह पाने अथवा विधान-सभा के भंग कर दिए जाने की स्थिति में राज्यपाल की संस्तुति पर स्थापित नियतकालीन अस्थाई शासन जिसे वहाँ का राज्यपाल राष्‍ट्रपति के नाम पर कुछ सलाहकारों की मदद से चलाता है। President Rule

राष्‍ट्र-पिता - (पुं.) (तत्.) - शा.अर्थ राष्‍ट्र का पिता। जो पिता की तरह राष्‍ट्र को संरक्षण प्रदान करने वाला, महापुरुष। भारत के संदर्भ में ‘मोहनदास कर्मचंद गाँधी’ यानी महात्मा गाँधी।

राष्‍ट्रभाषा - (पुं.) (तत्.) - बहुभाषाभाषी राष्‍ट्र को एकता की कड़ी में जोड़ने के उद् देश्य से देश की बहुसंख्यक जनता द्वारा बोली और समझी जाने वाली परस्पर विचार-संप्रेषण के लिए स्वेच्छा से मान्य भाषा विशेष। जैसे: राष्‍ट्रभाषा हिंदी।

राष्‍ट्रमंडल - (पुं.) (तत्.) - शा.अर्थ (कुछ) राष्‍ट्रों (देशों) का मंडल (समूह)। राज. उन स्वतंत्र हुए राष्ट्रों का समूह जो पहले बर्तानवी साम्राज्य के अंग थे किंतु अब भी अपने समान हितों के कारण स्वेच्छा से परस्पर जुड़े हुए हैं। Commonwealth Nations तु. राष्‍ट्र कुल, संयुक्‍त राष्‍ट्र।

राष्‍ट्रमंडल खेल - (पुं.) (तत्.+तद्.) - ओलंपिक के ही समान प्रसिद् धि‍ प्राप्‍त राष्‍ट्रमंडल के देशों के बीच खेल-प्रतियोगिताओं का कार्यक्रम जो हर चार सालों के बाद आयोजित होता है। उदा. सन् 2010 में भारत की राजधानी दिल्ली में 10 वें राष्‍ट्रमंडल खेलों का आयोजन हुआ।

राष्‍ट्रवाद - (पुं.) (तत्.) - राष्‍ट्र के हितों को ही सबसे महत्वपूर्ण मानने की विचारधारा; राष्‍ट्रप्रेम की उत्कृष्‍ट भावना। Nationalism

राष्‍ट्रवादी - (वि./पुं.) (तत्.) - राष्‍ट्र को महत्वपूर्ण मानने वाला, राष्‍ट्रभक्‍त, राष्‍ट्र के हितों को ही सबसे महत्वपूर्ण मानने वाला (व्यक्‍ति); राष्‍ट्रप्रेम की उत्कटभावना से परिपूर्ण (व्यक्‍ति)। Nationalist

राष्‍ट्रीय - (वि.) (तत्.) - 1. राष्‍ट्र संबंधी, राष्‍ट्र का। जैसे: राष्‍ट्रीय विचारधारा; 2. जिस पर राष्‍ट्र का (देश की सरकार का) आधिपत्य हो। (राष्‍ट्रीय बैंक)

राष्‍ट्रीय उद्यान - (पुं.) (तत्.) - शा.अर्थ राष्‍ट्रीय स्तर पर बनाया गया उद्यान।, राष्‍ट्रीय स्तर पर वह संरक्षित वन क्षेत्र जिसमें वन्य प्राणी निर्भय होकर विचरण कर सकें। पर्या. अभयारण्य।

राष्‍ट्रीयकरण - (पुं.) (तत्.) - देश के शासन द्वारा किसी भी निजी उद् योग को लोकहित में अपने प्रत्यक्ष नियंत्रण में ले लेने की व्यवस्था। जैसे: सन् 76 में बैंकों का राष्‍ट्रीयकरण कर दिया गया। Nationlisation

राष्‍ट्रीयता - (स्त्री.) (तत्.) - 1. राष्‍ट्रीय होने की मनोवृत्‍ति भाव या गुण। 2. अपने देश या राष्‍ट्र के प्रति उत्कट प्रेम की भावना। उदा. हम जो भी कार्य करें, राष्‍ट्रीयता की भावना से करें। Nationality

रास/रास आना - (पुं.) (.फा.) - अनुकूल होना, ठीक होना।

रासायनिक - (वि.) (तत्.) - रसायन शास्त्र से संबंधित; रसायन विज्ञान का रसायन शास्त्री।

रासायनिक अभिक्रिया - (स्त्री.) (तत्.) - वह प्रक्रम जिसके परिणामस्वरूप किसी पदार्थ की संरचना में परिवर्तन होकर नया पदार्थ बनता है। इस नए पदार्थ में नाभिक तो पुराने ही रहते हैं परंतु इनका विन्यास, परमाणुओं की संख्या, ऊर्जा इत्यादि बदल जाते हैं। chemical reaction

रास्ता - (पुं.) - (फा. रास्त:) 1. किसी गंतव्य स्थल तक जाने का मार्ग, पथ। जैसे: विद्याललय जाने का रास्ता। 2. युक्‍ति, उपाय। जैसे: अन्न की इस कठिन समस्या से मुक्‍ति पाने का एक ही रास्ता है, कठोर परिश्रम से अन्न-उत्पादन। मुहा. 1. रास्ता कटना=गीत गाते हुए या मनोरंजनपूर्ण बातें करते हुए निर्धारित रास्ते को पूरा करना। 2. रास्ता काटना=किसी की गति में बाधा डालना। 3. बिल्ली का रास्ता काटना=अपशकुन होना। 4. रास्ते पर आना=सुधर जाना। 4. रास्ते में कांटे बोना=किसी को हानि पहुँचाना, विघ्न उत्पन्न करना।

राह - (स्त्री.) (फा.) - 1. मार्ग, पथ, रास्ता। 2. दंग, पद्धति। 3. उपाय, तरकीब। मुहा. (i) राह देखना=किसी का इंतजार करना। प्रयो. मैं कितनी देर से आपकी राह देख रहा हूँ। (ii) राह अलग होना=विचारधारा अलग होना, जीवन में चलने के पृथक सिद् धांत होना। प्रयो. आज से हमारी और तुम्हारी राह अलग-अलग होगी।

राहगीर - (पुं.) (.फा.) - रास्ते पर या मार्ग में चलने वाला। पर्या. पथिक, बटोही, मुसाफिर।

राहजनी - (स्त्री.) (.फा.) - रास्ते चलते लोगों को लूटने का अपकृत्य (बुरा काम)। पर्या. बटमारी।

राहत - (स्त्री.) (अर.) - 1. मन का वह भाव जिसमें आनंद की अनुभूति हो। पर्या. सुख, आनंद, चैन। 2. किसी कार्य को विशेष पद् धति से करने से होने वाली सुगमता। पर्या. आसानी। 3. किसी विशेष कारण से मन को प्राप्‍त होने वाला समाधान। पर्या. शांति, सुकून। 4. किसी रोग या दर्द आदि में होने वाली कमी।

राहतकार्य - (पुं.) (अर.+तत्.) - आपदा प्रबंधन का एक तरीका जिसमें अकालग्रस्त लोगों, बाढ़पीडि़तों आदि को रोटी, कपड़ा, मकान से अथवा आर्थिक सहायता देकर उनके पुनर्निमाण में जनता एवं सरकार द्वारा सहयोग दिया जाता है। relief

राही - (पुं.) (.फा.) - राह चलने वाला। पर्या. यात्री, मुसाफिर, पथिक।

रिक्टर पैमाना - (पुं.) (अं.फा.) - भूकंप की शक्‍ति के परिमाण को व्यक्‍त करने के लिए प्रयुक्‍त पैमाना। टि. 1. जर्मन विद्वान रिक्टर के नाम पर इस पैमाने का नाम रखा गया है। 2. रिक्टर पैमाने पर सात से अधिक परिमाण वाला भूकंप अधिक विनाशकारी माना जाता है।

रिक्टर मापनी - (स्त्री.) (अं.+तद्.<मापन) - दे. ‘रिक्टर पैमाना’।

रिक्‍त - (वि.) (तत्.) - 1. खाली, शून्य। उदा. (i) शिक्षा विभाग में निदेशक का पद रिक्‍त है। (ii) यह पात्र रिक्‍त है, इसमें दूध नहीं है। vacant/vacancy 2. निर्धन।

रिक्‍तता - (स्त्री.) (तत्.) - 1. किसी स्थान, पद, पात्र आदि के रिक्‍त या खाली होने की अवस्था या भाव। 2. शून्यता, खालीपन।

रिक्‍तिका - (स्त्री.) (तत्.) - सा.अर्थ रिक्‍ति, किसी संरचना में खाली स्‍थान (1. लैकुवा 2. वैकंसी) 1. वनस्पति के कोशिकीय ऊतकों का वायु-अंतराल। 2. हड्डियों के भीतर मौजूद अनेक सूक्ष्म विवर।

रिक्शा - (पुं.) - (जापानी<जिन-रिकिशा) 1. जापान में प्रचलित दो पहियों की एक छोटी सवारी गाड़ी जिसे मनुष्य दौडक़र खींचता है। टि. पहले कोलकाता में भी इस प्रकार के रिक्शे चलते थे। सरकारी आदेश से इन्हें बंद कर दिया गया है। 2. तीन पहियों वाली छोटी सवारी गाड़ी जिसे मनुष्य साइकिल की तरह चलाता है। जैसै: पड़ोस के पाँचों बालक प्रात: रिक्शा से ही स्कूल जाते हैं।

रिझाना (प्रेर.>रीझना) - (तद्.) (तद्.<रंजन) - किसी को अपने सौंदर्य, गुण, व्यवहार, वैभव आदि के द्वारा आकर्षित करते हुए उसे अपने प्रति अनुरक्‍त करना, मोहित करना।

रिपोर्ट - (स्त्री.) - (अं.) किसी घटना की जानकारी देने के लिए किसी अन्य को भेजी गई हु-ब-हू अथवा सारस्वरूप मौखिक या लिखित सूचना। किसी संस्था के किसी विशेष काल में किए जाने वाले कार्यक्रमों एवं उपलब्धियों का विवरण। पर्या. आख्या, प्रतिवेदन।

रिफ़ाइनरी (अं.) - (दे.) - ‘परिष्‍करिणी’।

रिम-झिम - (स्त्री.) - (अनु.) 1. वर्षा की छोटी-छोटी बूँदों की फुहार। 2. हल्की वर्षा, बूँदा-बांदी। जैसे: आज प्रात: से ही रिम-झिम हो रही है। 2. धीमी वर्षा से उत्पन्न ध्वनि।

रियायत - (स्त्री.) (अर.) - 1. नियमों में किसी प्रकार की छूट देकर, दयापूर्ण व्यवहार करना, नरमी। प्रयो. तुम्हें रियायत पर यह मकान दिया गया है। 2. न्यूनता, कमी। 3. विक्रेता द्वारा ग्राहक के लिए मूल्य में की जाने वाली कमी।

रियायती - (वि.) - रियायत के साथ। उदा. सेल में वस्तुएँ रियायती दामों में मिलती है।

रियासत - (स्त्री.) (अर.) - सा.अर्थ शासन, हुकूमत। इति. मुगलकाल में और बर्तानवी शासन के दौरान भारत के वे वंश-परंपरा से चलते आ रहे राजा-महाराजों के स्वतंत्र राज्य जिन्‍होंने कई मामलों में केंद्रीय सत्‍ता की अधीनता स्वीकार कर ली थी। पर्या. देशी राज्य। (नेटिव स्टेट)

रिरियाना अ.क्रि.(अनु.) - (देश.) - 1. बच्चे की रीं-रीं जैसी ध्वनि करते रहना, धीरे-धीरे रोते ही रहना। 2. दीनता प्रकट करना, गिड़गिड़ाना। प्रयो. तुम दूसरों के आगे क्यों रिरियाते हो? उद्यम करो। 3. ला.अर्थ अस्पष्‍ट, स्त्री आवाज़ में बोलना।

रिवाज़ - (पुं.) (.फा.) - प्राचीन अथवा दीर्घकाल से चलती आ रही सामाजिक धार्मिक आदि परंपराओं को ज्यों-का-त्यों अथवा थोड़े बहुत सामायिक परिवर्तन के साथ निर्वाह करते रहने की प्रक्रिया। पर्या. रीति, प्रथा, चलन। custom

रिश्ता - (फा.>रिश्त:) (पुं.) - 1. दो व्यक्‍तियों, वस्तुओं आदि के बीच का प्रकट संबध। 2. रक्‍त संबंध, नाता।

रिश्तेदार - (पुं.) (फा.) - 1. संबंधी, नातेदार, परिजन। 2. स्वजन, आत्मीयजन।

रिश्तेदारी. - - (फा.>रिश्त:दारी) स्त्री 1. रिश्ता, नातेदारी। 2. संबंध। जैसे: हमें रिश्तेदारी निभानी आनी चाहिए।

रिश्‍वत - (स्त्री.) (अर.) - वह धन या वस्तु आदि जो किसी काम के करने या करवाने के एवज में किसी कार्यालय के कर्मचारी या अधिकारी द्वारा किसी से अनैतिक रूप में लिया जाता है। पर्या. घूस, उत्कोच। उदा. रिश्‍वत लेना या देना दंडनीय अपराध है।

रिश्‍वतखोर - (अर.) (अर. फा.) - वि. रिश्‍वत लेने या खाने वाला, घूसखोर। दे. ‘रिश्‍वत’। उदा. यह अधिकारी तो बड़ा रिश्‍वतखोर है।

रिश्‍वतखोरी - (स्त्री.) - 1. रिश्‍वत लेने का भाव। 2. रिश्‍वत लेने की लत/स्वभाव। उदा. रिश्‍वतखोरी से ही उसने इतनी संपत्‍ति कमाई है।

रिसना अ.क्रि - (तद्>ऋष् धातु) - किसी समतल में अथवा जुड़ी आकृति में छेद हो जाने अथवा झिरी पड़ जाने के फलस्वरूप उस पर फैले द्रव पदार्थ का बूंद-बूंद कर टपकना या हल्की गति से बाहर निकलना।

रिसाव - (पुं.) (तद्.) - रिसने की क्रिया या भाव। दे. ‘रिसना’।

रिहा - (वि.) (.फा.रहा) - 1. बंधन से छूटा हुआ, मुक्‍त। 2. कैद या जेल से छूटा हुआ (कैदी)।

रिहा करना स.क्रि. - (फा.) - मुक्‍त करना, बंधन मुक्‍त करना। स्वेच्छानुसार कहीं भी जाने की छूट देना। उदा. नक्सलियों ने आज सारे बंधकों को रिहा कर दिया।

रिहाइश - (स्त्री.) (फा.) - 1. रहने की क्रिया या भाव। 2. निवास स्थान, आवास। पर्या. निवास। residence

रिहाइशी - (वि.) (फा.) - रहने या निवास करने से संबंधित। residential

रिहाई - (स्त्री.) (फा.) - बंधन से मुक्‍ति, छुटकारा। प्रयो. आज उसकी जमानत पर रिहाई हो जाएगी।

रीझना अ.क्रि. - (तद्<रंजन) - किसी के सौंदर्य, रूप, गुण आदि पर प्रसन्न होकर उस पर अनुरक्‍त हो जाना या मोहित हो जाना। उदा. हम तो ‘कौन रूप गुन आगरि जिहिं गुपाल जू रीझैं’। [सूरसागर 1/464) रिझाना (प्रे.क्रि.) प्रसन्‍न करना]।

रीडर - (पुं./वि.) - (अं.) 1. विश्‍वविद्यालय या महाविद्यालय में शिक्षक का वह विशेष पद जो लेक्चरर या सहायक प्रोफेसर के बाद का तथा प्रोफेसर से पहले का होता है। प्रत्येक विभाग में एक या एक से अधिक रीडर हो सकते हैं। 2. सरकारी आदेश से अब इन्हें भी सहा. प्रोफेसर ही कहा जाता है। 3. प्रवाचक, पाठक। 4. न्यायालयों में न्यायाधीश के समक्ष आवश्यक सामग्री प्रस्तुत करने वाला, पेशकार। Reader

रीढ़ - (स्त्री.) (तद्<रीढक) - 1. प्राणियों के पीठ के बीच की हडि्डयों की वह श्रृंखला जो गर्दन से लेकर कमर तक स्थित होती है। इसी के निचले भाग में पूँछ होती है। (मेरूदंड) ला.अर्थ वह ढाँचा; तत् त्व या अंग जिसके आधार पर कोई चीज मजबूती से खड़ी रह सके। मुख्य आधार। जैसे: आज की युवा पीढ़ी हमारे देश की रीढ़ है। spine

रीति - (स्त्री.) (तत्.) - 1. कोई कार्य करने का ढंग या तरीका। manner 2. कोई कार्य करने का उचित क्रम या विशिष्‍ट पद् धति (कोर्स) 3. परिवार या समाज में चलती आई परिपाटी। पर्या. रिवाज़। उदा. रघुकुल रीति सदा चलि आई।

रीति रिवाज़ - (पुं.बहु.) (तत्.+अर.) - दे. ‘परिपाटी’, प्रथा।

रुकवाना - - (प्रेर.>रोकना) (हिं. रोकना) आधिकारिक तौर पर किसी कार्य को रोकने हेतु राजकर्मचारियों या अन्य को प्रेरित करना। जैसे: मंत्री ने उपयुक्‍त सामग्री के प्रयोग न होने के कारण उस राजमार्ग के निर्माण कार्य को रुकवा दिया।

रुकावट - (स्त्री.) (देश.) - 1. रोकने की क्रिया या भाव। 2. किसी कार्य में आने वाला विघ्न, जिसके कारण कार्य रुक जाए। पर्या. बाधा, विघ्न, अड़चन। obstruction

रुक्ष/रुक्ष - (वि.) (तत्.) - जिसमें चिकनाहट न हो; रूखा, कठोर। (ड्राई) विलो. स्निग्ध। (वह प्रदेश) जहाँ वर्षा न के बराबर होती हो और जहाँ कंटीली झाडि़यों के अतिरिक्‍त हरित वनस्पति का अभाव हो। उदा. वह व्यक्‍ति स्वभाव से बहुत रूक्ष है। harsh, rough

रुख़ - (पुं.) (फा.) - शा.अर्थ 1. मुखाकृति, चेहरा। 2. कपोल 3. मनोभाव 4. कृपादृष्‍टि 5. दिशा। सा.अर्थ 1. चेहरे या आकृति से प्रकट होने वाले मन के भाव। 2. किसी विशिष्‍ट समय पर होने वाली व्यक्‍ति की विचार सरणि। उदा. भाई चुनाव में हवा का रुख़ किस दल की ओर है? मुहा. रुख देखकर बात करना=किसी का मनोभाव या परिस्थिति समझकर उसके अनुसार बात करना।

रुख़सत - (स्त्री.) (अर.) - 1. विदाई, प्रस्थान, 2. वधू की विदाई कार्यक्रम। घर विदा होने वाला। उदा. सभी मेहमान चार बजे रौख़सत हुए। मुहा. रुख़सत लेना-आज्ञा लेकर जाना।

रुखाई - (स्त्री.) (देश.) - 1. रुखा होने का भाव, रूक्षता, रूखापन। 2. खुश्की, शुष्कता। 3. व्यवहार में संकोच या शील का अभाव, कठोरता। उदा. उसके व्यवहार की रुख़ाई देखकर बहुत दु:ख हुआ।

रुग्णता - (स्त्री.) - रुग्ण होने की अवस्था या भाव।

रुचना स.क्रि. - (तत्.) - देखने में/मन को अच्छा लगना, पसंद आना, प्रिय एवं रुचिकर लगना।

रुचि - (स्त्री.) (तत्.) - मन की वह वृत्‍ति जिसके द्वारा चीजों को उपयुक्‍त या अनुपयुक्‍त समझा जाता है। पर्या. पसंद, चाह। जैसे: गणित में कुछ विद् यार्थियों की रुचि कम होती है।

रुचिकर - (वि.) (तत्.) - 1. रुचि करने वाला, रुचिकारक। 2. प्रिय लगने वाला, मोहक। उदा. आज का कार्यक्रम रुचिकर था। 3. भूख जगाने वाला। 4. स्वाद, रसयुक्‍त, ग्राह्य। उदा. घर का भोजन रूचिकर होता है। विलो. अरुचिकर, घृणास्पद।

रुचिपूर्ण - (वि.) (तत्.) - जिसे करने में रुचि बनी रहे, अच्छा लगने वाला। पर्या. रोचक, रुचिकर।

रुचिर - (वि.) (तत्.) - रुचि के अनुकूल, देखने में सुंदर; मन को अच्छा लगने वाला। दे. रुचि।

रुचिरता - (स्त्री.) (तत्.) - रूचिर, मनोरम या सुंदर होने का भाव। पर्या. सुंदरता, मनोरमता, मधुरता।

रुझान - (पुं.) (अर.>रूज्हान) - 1. मन या हृदय का किसी व्यक्‍ति, वस्तु, स्थान, विचारधारा आदि की ओर आकृष्‍ट होने का भाव। पर्या. आकर्षण, झुकाव। 2. मन की प्रवृत्‍ति। पर्या. रूचि, प्रवृत्‍ति।

रुढ़ि - (स्त्री.) (तत्.) - 1. रूढ़ होने का भाव। 2. बहुत दिनों से चली आई हुई प्रथा/रीति या चाल। 3. प्रसिद् धि। 4. समाज में मान्य प्रयोग जैसे: शब्द प्रयोग, वेशभूषा आदि। प्रयो. प्रत्येक समाज में उपासना की भिन्न-भिन्न रूढि़याँ प्रचलित हैं।

रुतबा - (पुं.) (अर.<रुत्ब) - 1. स्थान, पद, श्रेणी, दर्जा। 2. पदवी, ओहदा। 3. श्रेष्‍ठता, महत्‍ता, बड़प्पन। 4. रौब, रईसी।

रुदन - (पुं.) (तद्<रोदन) - 1. शोक की परिस्थिति में दु:ख व्यक्‍त करने के लिए रोना। 2. विलाप करना। उदा. उसका करुण रुदन सुनकर कठोर हृदय वाला दस्यु भी पिघल गया।

रुद्ध - (वि.) (तत्.) - रुका या रोका हुआ, रुँधा हुआ।

रुद्र - (पुं.) (तत्.) - 1. पुराणों में वर्णित गणदेवता जिनकी संख्या ग्यारह मानी गई है। 2. शिव के कई रूपों में से एक रूप जो बहुत ही उग्र भाना जाता है। टि. शिव का एक नाम रुद्र भी है। जैसे: रुद्र-अभिषेक। वि. 1. अत्यंत कष्‍ट देने वाला, 2. भयानक/भयंकर, उग्र, भीषण। उदा. थोड़ी-सी कहासुनी होने पर उसका रुद्र रूप देखकर हम दंग रह गए।

रुधिर - (पुं.) (तत्.) - सा.अर्थ रक्‍त, खून, लहू। प्राणि. वह तरल संयोजी पदार्थ जो शरीर की प्रत्येक कोशिका तक स्वांगीकृत भोजन तथा ऑक्सीजन पहुँचाता है। Blood

रुधिर कणिका - (स्त्री.) (तत्.) - रुधिर के तरल भाग यानी प्लाज़्मा में पाई जाने वाली कोशिकाएँ। जैसे: रक्‍ताणु (एरिथ्रोसाइट), श्‍वेताणु (ल्यूकोसाइट) और बिंबाणु (थ्रॉम्बोसाइट) Blood Corpuscle

रुधिर परिसंचरण - (पुं.) (तत्.) - शरीर के सारे अंगों, कोशिकाओं तक रुधिर (रक्‍त/खून) का पहुँचना।

रुधिर प्रवाह - (पुं.) (तत्.) - दे. रुधिर परिसंचरण।

रुधिर प्लाज़्मा - (पुं.) (तत्.+अं.) - रुधिर कणिकाओं को छोडक़र रुधिर का शेष तरल भाग। दे. प्लाज़्मा। Blood Plasma

रुधिर वर्ग - (पुं.) (तत्.) - रक्‍त या रुधिर के चार प्रमुख प्रकार : ए(A), बी(B), एबी(AB) और ओ (O) जिनका आधार लाल कणिकाओं और प्लाज़्मा में क्रमश: एग्लूटिनोजन और एग्लूटिनिन का होना या न होना है। Blood group

रुधिर वाहिका - (स्त्री.) (तत्.) - रक्‍त/खून को शरीर के सभी अंगों, कोशिकाओं तक पहुँचाने वाली नलिका (नसे) प्राणि. शिरा, धमनी या कोशिका जो रूधिर/रक्‍त(खून) को संचरित करती है। blood vessel

रुलाना [रोना का प्रेर.] सं.क्रि. - (तद्>रोदन) - किसी व्यक्‍ति को रोने के लिए स्थिति में ले आना; ऐसी स्थिति पैदा कर देना ताकि दूसरा व्यक्‍ति रोने लगे।

रुष्‍ट - (वि.) (तत्.) - मनोनुकूल काम न होने पर मध्यस्थ व्यक्‍ति के प्रति रोष (क्रोध) उत्पन्न हो जाने के कारण उससे मुँह मोड़ लेने या अप्रसन्न हो जाने की प्रकट भावना। पर्या. नाराज़ दे. रोष।

रुसवा - (वि.) (.फा.) - 1. जिसका अपयश फैला हो, अपयशी, निंदित। 2. कुख्यात।

रुसवाई - (स्त्री.) - बदनामी, अपयश, लोकनिंदा। उदा. उसके कारनामों से उसकी सब तरफ रूसवाई हो रही है।

रुस्तम - (पुं.) (फा.) - 1. ईरान की पौराणिक गाथाओं का प्रसिद्ध नायक जो पहलवान/योद्धा था। ला.अर्थ. 1. बहुत बड़ा बीर। मुहा. छिपा रुस्तम=वास्तव में बहुत वीर या गुणी जो अब तक अज्ञात था। प्रयो. तुम तो छिपे रुस्तम निकले।

रूँधना स.क्रि. - (तद्<रोधन) - 1. बाहरी सुरक्षा की दृष्‍टि से किसी स्थान को कंटीले पौधों, तारों आदि से घेरकर बाड़ बनाना। 2. बंद करना, रोकना। उदा. क्यारियों को कंटीले पौधों से रूँधा हुआ है।

रूआँसा - (वि.) (तत्.) - रोने जैसा; जो रो रहा हो-ऐसा दिखाई पड़ने वाला (व्यक्‍ति) जैसे: रूँआसा चेहरा।

रूई - (स्त्री.) (देश.) - कपास के फूल के प्राकृतिक रेशे जिनसे सूत और बाद में कपड़ा बनता है। cotton

रूईदार - (वि.) (देश.+.फा.) - रुईवाला, जिसमें रुई भरी हो।

रूकना अ.क्रि. - (तद्.>रोधन) - 1. किसी क्रिया, गति, प्रवाह आदि में किसी प्रकार की रुकावट का होना। 2. कुछ समय के लिए कार्य या गति पूरी तरह बंद हो जाना। जैसे: उसका काम रुक गया। 3. किसी बाधा के कारण अटकना, अवरूद्ध होना। 4. ठहरना, विश्राम करना। जैसे: वे यहाँ थोड़े दिनों के लिए रुकते ही हैं।

रूख़सती - (वि.) - विदा या रवाना हो जाने वाला।

रूखा - (वि.) (तद्>रूक्ष) - 1. नीरस, शुष्क, सूखा। जैसे: रूखा वृक्ष। 2. जो चिकना या स्निग्ध न हो। जैसे: रूखा अन्न। 3. जो व्यवहार में विनम्र, सुशील या संकोची न हो। जैसे: उसका रूखा व्यवहार देख सब चकित थे। मुहा. रूखा-सूखा= 1. बिना घी/तेल का (भोजन) 2. जैसे-तैसे उपलब्ध सामान्य भोजन। उदा. रूखा-सूखा खाई कै ठंडा पानी पीत।

रूखा-सूखा - (वि.) (देश.) - 1. वह (भोजन) जिसमें चिकनाई न पड़ी हो, मसालों और पौष्‍टिकता से रहित हो। 2. सादा (भोजन), सामान्य। ला.अर्थ 3. गरीब के घर का (भोजन)। उदा. आज अनेक लोग रूखा-सूखा भोजन खाकर जीवन बिताते हैं।

रूग्ण - (वि.) (तत्.) - वह (व्यक्‍ति या जीव) जिसे कोई रोग हुआ हो। पर्या. रोगयुक्‍त, रोगी, बीमार। विलो. स्वस्थ। प्रयो. तुम रूग्ण हो, अपेक्षित दवा ले लो।

रूठना अ.क्रि. - (तद्>रूष्‍ट) - किसी अनुचित व्यवहार, मनोनुकूल कार्य या इच्छा पूरी न होने से क्रुद् ध एवं अप्रसन्न होकर एक तरफ चुप होकर बैठना उदासीन हो जाना या बात न करना तथा मनाने पर भी जल्दी खुश न होना। उदा. मनपसंद चीज़ न मिलने पर प्राय: बच्चे रूठ जाते हैं।

रूढ़ - (वि.) (तत्.) - 1. (किसी के ऊपर) चढ़ा हुआ, पर्या. आरूढ़। 2. व्या. रचना (बनावट या व्युत्पत्‍ति) के अनुसार वर्गीकृत हिंदी के वे शब्द जो लोक-प्रचलन के आधार पर ही किसी विशेष अर्थ को प्रकट करते आ रहे हों यानी जिनका अर्थ प्रकृति प्रत्यय के आधार पर सिद्ध न किया जा सके। जैसे: गाड़ी, सेना, पशु, आदमी, शेर आदि। 3. गणि. वह संख्या जो 1 के अतिरिक्‍त किसी अन्य संख्या से पूरी-पूरी विभाजित न होती हो।

रूढि़ग्रस्त - (वि.) - बिना सोचे-समझे अवांछित रुढ़ियो से जकड़ा हुआ। परंपरागत रुढ़ियो का पालन करने वाला।

रूढ़िबद्ध - (वि.) (तत्.) - जो रूढ़ि में बँधा हुआ हो। दे. रूढ़ि ।

रूढ़िवाद - (पुं.) (तत्.) - यह मान्यता कि जो रीति-रिवाज, आचरण-पद् धति, विचार या नियमादि पुराने ज़माने से चले आ रहे हैं वे ही ठीक हैं, उनमें नवीन परिवर्तन लाना उचित नहीं होगा। conservatism

रूढ़िवादी - (वि.) (तत्.) - रूढ़िवाद में विश्‍वास करने वाला या उसका समर्थक। दे. रूढ़िवाद conservative

रूप - (पुं.) (तत्.) - 1. आँखों से दिखने वाले पदार्थों/व्यक्‍तियों की आकृति, शक्ल/सूरत। 2. सौंदर्य, खूबसूरती-ऊषा का रूप अवर्णनीय है। 3. वेशभूषा, हावभाव इत्यादि का सम्मिलित स्वरूप। प्रयो. वह सीता का रूप धारण करके आईर्। उदा. राम को रूप निहारति जानकि कंगन के नग की परछाई।

रूपक - (पुं.) (तत्.) - 1. किसी रूप की प्रतिकृति, मूर्ति, आकृति। 2. वह काव्य (साहित्य) जिसकी प्रस्तुति अभिनय के रूप में हो, नाटक। दृश्यकाव्य। 3. साहित्य में एक अर्थालंकार जिसमें अति समानता के कारण उपमेय और उपमान में अभेद दिखला दिया जाता है। जैसे: मुखचंद्र (मुखरूपी चंद्र) मुख और चंद्र के एक ही होने के वर्णन के कारण रूपक अलंकार है।

रूपरंग - (पुं.) - शक्ल-वेशभूषा। उदा. रूपरंग से तो वह राजकुमारी लगती थी। टि. सामान्यत: रंगरूप शब्द प्रयोग किया जात है।

रूपरेखा - (स्त्री.) (तत्.) - शा.अर्थ किसी रूप (आकृति) की मात्र रेखा से बनाई गई संरचना। पर्या. खाका। 1. किसी कार्य का वह संक्षिप्‍त विवरण जिससे पूरे कार्य का मोटे तौर पर परिचय मिल जाए। outline 2. केवल रेखाओं द्वारा बनाया गया चित्र, जिसमें रंगयोजना की जानी हो। sketch 3. किसी किए जाने वाले कार्य की योजना का (बिंदुओं में) लिखित रूप। plan

रूपवती - (वि.) (तत्.) - (तत्.) सुंदरी, दर्शनीय, खूबसूरत, प्रियदर्शिनी। प्रयो. तुम रूपवान हो और तुम्हारी पत्‍नी भी रूपवती है।

रूपवान - (वि./पुं.) (तत्.) - 1. वह (पुरुष) जो देखने मे बहुत सुंदर हो। 2. सुंदर रूप से युक्‍त, सुंदर, खूबसूरत, दर्शनीय। विलो. कुरूप, बदसूरत।

रूपसिंगार - ([तत्+तद्.]) (तद्.) - पुं. (मुख या शरीर का) सुंदर श्रृंगार। उदा. उस विवाहोत्सव में दुल्हन का रूपसिंगार तो अद्भुत था। makeup of the body/face

रूपहला - (तद्) (वि.) - <रौप्य=चाँदी+हला-प्रत्यय] 1. चाँदी के रंग जैसा। 2. स्वच्छ सफ़ेद और चमकदार। तु. सुनहरा।

रूपातंर/रूपांतरण - (पुं.) (तत्.) - 1. पूर्व स्वरूप, प्रकृति, गुण अथवा स्थिति में हुआ या होने वाला परिवर्तन। जैसे: 1. लकड़ी का जलकर राख हो जाना। 2. ‘यह किताब है’ (निश्‍चयार्थक वाक्य) का ‘क्या यह किताब है?’ (प्रश्‍नवाचक वाक्य) में परिवर्तन। 2. किसी वस्तु का भिन्न रूप में लाया जाना। जैसे: बाँस का भिन्न रूप टोकरी। 3. किसी साहित्यिक रचना, कहानी, कविता, नाटक आदि का भिन्न विधा में रूपातंरण/परिवर्तन। जैसे: कहानी का नाट्य रूपांतर। transfarmation

रू-ब-रू/रूबरू - (क्रि.वि.) (फा.) - आमने-सामने, एक दूसरे के समक्ष। उदा. जैसे ही वे दोनों रूबरू हुए, दोनों ने एक दूसरे को पहचान लिया।

रूमाल - (पुं.) (फा.) - हाथ-मुँह पोंछने के लिए कपड़े का चौकोर टुकड़ा।

रूमेन - (पुं.) - (अं.) जुगाली करने वाले यानी रोमंथी स्तनियों में आमाशय के चार खंडों में से सबसे पहला भाग जहाँ जल्दी-जल्दी खाया गया तथा बिना चबाया गया भोजन कुछ समय के लिए जमा होता है। Rumen

रूलदार (रूल-अं.+दार-.फा.) - (फा.) (वि.) - सामांतर सीधी रेखाओं से युक्‍त (कागज़ आदि)।

रूसी - (स्त्री.) (तद्>रूक्ष) - 1. सिर के चमड़े की परत पर जमा हुआ सूखा मैल जो खुजलाने पर या कंघी करने पर बारीक सफेद छिलकों की तरह छोटे-छोटे कणों में निकलता है। 2. सिर के बालों की एक बीमारी। प्रयो. आजकल रूसी के इलाज के लिए बहुत से तेल व शैपू प्रचलित हैं। dandruf 3. ‘रूस’ देश से संबंधित जैसे रूसी कलाकार। 4. ‘रूस’ की भाषा। russian

रूह - (स्त्री.) (अर.) - 1. आत्मा, 2. प्राण। उदा. यहाँ किसी की रूह भटकती है ऐसी मान्यता है। 2. फूलों से बनाया जाने वाला ‘इत्र’ या सारतत्त्व जैसे. रूह-ए-अफज़ा (प्राण शक्‍ति बढ़ाने वाला सार तत् त्व) मुहा. रूह काँपना-बहुत अधिक डर जाना। आतंकवादियों के कृत्य देखकर तो मेरी रूह काँप गई।

रेंकना - - अ.क्रि. (<सं. रेषण) (अनु.)1. गधे की आवाज़। ला.अ.-2. बहुत भद्दे ढंग से गाना या बोलना। जैसे: क्यों रेंक रहे हो? चुप करके बैठ जाओ।

रेंगना अ.क्रि. - (तद्<रिंगण) - धीरे-धीरे घिसटते हुए आगे सरकना। जैसे: वर्षा के बाद धरती पर केंचुआ रेंग रहा है।

रेखांकित [रेखा+अंकित] - (वि.) (तत्.) - शा.अर्थ जिस (अंश) पर/के नीचे रेखा डाली गई हो। जैसे: रेखांकित शब्दों के अर्थ बताओ।

रेखा स्त्र. - (तत्.) - आकृति जिसमें लंबाई हों किन्तु चौड़ाई (मोटाई) न हो। पर्या. लकीर।

रेखीय - (वि.) (तत्.) - रेखा वाला, रेखा का; रेखा से संबंधित।

रेग - (स्त्री.) (.फा.) - रेत/बालू। जैसे: रेगिस्तान।

रेगमाल - (पुं.) (.फा.) - एक मोटा सख्त कागज़ जिसके एक ओर रेत लगी होती है तथा जिसे रगडक़र लोहा, लकड़ी आदि को चिकना किया जाता है।

रेगिस्तान - (पुं.) (.फा.) - 1. वह क्षेत्र जहाँ कम वर्षा, अत्यधिक उच्च या निम्न तापमान तथा विरल वनस्पति होती है। 2. वनस्पति रहित शुष्कप्रदेश जो बाह्य तापमान के आधार पर ठंडा या गर्म हो जाता है। पर्या. मरुस्थल। उदा. अफ्रीका के बड़े भू-भाग पर फैला ‘सहारा रेगिस्तान’ विश्‍व का सबसे बड़ा रेगिस्तान है। टि. रेगिस्तान में पृथ्वी का जलस्तर अत्यंत नीचा होने के कारण कृषि की कई फसलों की पैदावार नहीं हो पाती।

रेज़गारी/रेजगी - (स्त्री.) - (फा.<रेज़) 1. छोटे मूल्य के सिक्के। प्रयो. रेज़गारी काफी इकट्ठी हो गई है। 2. अधिक मूल्य के सिक्के या करेंसी नोटों के बदले में दिए जाने वाले छोटे सिक्के। उदा. दस रुपए की रेज़गारी देना। पर्या. फुटकर, चिल्लर।

रेज़ि‍डेंट - (अं.) (दे.) - (अं.) सा.अर्थ 1. रहने वाला, निवासी। इति. भारतीय रियासतों में ईस्ट इंडिया कंपनी अथवा ब्रिटिश सरकार नियुक्‍त सर्वोच्च अधिकारी, जो व्यावसायिक कार्यों के अतिरिक्‍त राजनीति और कूटनीतिक मामलों में भी कंपनी अथवा गवर्नर जनरल का प्रतिनिधित्व करता था। दे. ‘रियासत’।

रेजिमेंट - (स्त्री.) - (अं.) सेना की एक सैनिक इकाई ‘एक कर्नल’ के अधीन रहते हुए उसके निर्देशन पर कार्य करती है तथा जिसमें दो या दो से अधिक बटालियनें काम करती हैं।

रेटिना - (पुं.) (दे.) - (अं.) दृष्‍टिपल।

रेड डाटा पुस्तक - - वह पुस्तक जिसमें सभी संकटग्रस्त प्रजातियों (जैसे-पौधों, जीव-जंतुओं आदि) का रिकॉर्ड रखा जाता है।

रेणु - (स्त्री.) (तत्.) - 1. रज, धूल, 2. बालू, रेत, 3. फूल का पराग, 4. बारीक कण, पाउडर, चूर्ण।

रेत - (स्त्री.) (देश.) - 1. नदी-जल के प्रवाह के कारण पत्थरों के चूर-चूर हो जाने की वजह से बने हुए बारीक कणों का समूह; ऐसा भूभाग। पर्या. बालू। 2. रेगिस्तान की पथरीली बारीक मिट्टी जो शुष्कता के कारण या हवा के वेग से बारीक कणों में बदल जाती है और उड़ती हुई स्थान भी बदल देती है।

रेतना स.क्रि. - (देश.) - धातु या लकड़ी को रेती से रगडक़र काटना या ऊपरी सतह को घिसकर चिकना और समतल बनाना। उदा. बढ़ई दरवाजे को रेती से रेतकर तैयार कर रहा है। मुहा. गला रेतना-मार डालना या मृत्यु-तुल्य कष्‍ट देना।

रेती - (स्त्री.) (देश.) - लोहे और रेत से बनी धातु का एक चपटा उपकरण जिसकी सतह खुरदरी होती है तथा जिसे रगड़कर लोहे या लकड़ी की सतह चिकनी की जाती है।

रेफ़री - (पुं.) - (अं.) 1. खेलों की प्रतियोगिता match में नियुक्‍त निर्णायक/मध्यस्थ जिसके निर्देश व निर्णय को मानने को दोनों दल बाध्य होते हैं। 2. वह निर्णायक या मध्यस्थ जिसके नियंत्रण या निर्देशन में दो टीमें कोई खेल खेलती हैं। 3. निर्णायक,, पंच। तुल. अंपायर। refree

रेयॉन - (पुं.) - (अं.) रसा. चमकीला और संश्‍लेषित (यानी कृत्रिम) रेशा जो चिपचिपाहट भरे पदार्थ से तैयार किया जाता है तथा जिसका उपयोग वस्त्र बनाने में किया जाता है।

रेल - (स्त्री.) - (अं.) 1. लोहे/स्टील की बनी विशेष आकार की वह पटरी जिस पर ट्रेन दौड़ती है या चलती है। 2. रेलगाड़ी=जो लोहे की पटरियों पर भाप/बिजली/डीजल आदि से चलती है।

रेलगाड़ी - (स्त्री.) (देश.) - लोहे की पटरी पर भाप, डीजल या बिजली अदि की शक्‍ति से चलने वाला यान। train

रेलना स.क्रि. - (देश.) - 1. पंक्‍ति में या भीड़ में आगे बढ़ने के लिए पीछे के लोगों द्वारा आगे के लोगों को धक्का दिया जाना। रेला देना, धकेलना, ढकेलना। 2. ठूँस- ठूँस कर भरना।

रेला - (पुं.) (देश.) - 1. तेजी व बलपूर्वक सामूहिक रूप में आगे बढ़ने का भाव, तेज प्रवाह। जैसे: पानी का रेला, मनुष्यों का रेला। 2. समूह भीड़ 3. अधिकता। उदा. नेताजी के घर तो मिलने आने वालों का रेला लगा है।

रेलिंग - (स्त्री.) - (अं.) घर के बरामदे, दालान, छत आदि पर या प्राकृतिक दर्शनीय स्थलों, नावों, पानी के जहाजों आदि पर लोहे के सरियों, जालियों, पाइपों आदि से बनी बाड़।

रेवड़ी - (स्त्री.) (देश.) - तिल में शक्कर या गुड़ की चाशनी/शीरा मिलाकर बनाई गई टिकियों या छोटी गोलियों के आकार की प्रसिद् ध मिठाई।

रेशम - (पुं.) (.फा.) - रेशम-कीट के कोणों से निकलने तंतु से बना मुलायम, चमकदार रेशा और उससे बना कपड़ा (वस्त्र)।

रेशम उत्पादन - (पुं.) (फा.+तत्.) - रेशम के कीटों का वाणिज्यिक स्तर पर पालन करने की मानवीय गतिविधि। sericulture दे. कृषि।

रेशमी - (वि.) (फा.) - 1. रेशम से बना (वस्त्र) या बनी (कोई वस्तु)। जैसे: रेशमी साड़ी। 2. रेशम जैसा (मुलायम और चमकदार)। जैसे: रेशमी जुल्फ़ें।

रेशा - (पुं.) (फा.) - महीन तंतु जो पौधों, फलों आदि में पाया जाता है। fibre

रैंच - (पुं.) - (अं.<स्पै.) पशुपालन के लिए बनाया गया पशु फार्म। टि. प्राय: बड़े स्तर पर पालतू पशुओं के प्रजनन एवं संवर्धन के लिए बड़े आकार के भूखंड के चारों ओर बाड़ लगाकर वहाँ पशुओं को पाले जाने की व्यवस्था की जाती है। पर्या. पशु फार्म, मेवशी फार्म हैं।

रैक - (पुं.) - (अं.) लोहे या लकड़ी के फ्रेम से बनी खुली अलमारी जिसमें पुस्तकें, फाइलें, कपड़े, बर्तन या अन्य सामग्री रखने/लटकाने के लिए कई खाने/कालम या खूँटिया आदि होती हैं।

रैन बसेरा - (पुं.) (तद्.) - बाहर से आए हुए मज़दूरों आदि के लिए (जिनके पास रहने के लिए अपना स्थान नहीं है) रात्रि व्यतीत करने के लिए सरकार द्वारा बनाए गए अस्थाई आश्रय-स्थान।

रोंगटा - (पुं.) (तद्.>रोम) - शरीर पर निकलने वाला बहुत पतला और छोटा बाल, रोम। पर्या. रोआँ, रोयाँ। टि. प्राय: बहुवचन में प्रयुक्‍त। बहु. रोंगटे। मुहा. रोंगटे खड़े होना=किसी भयावह दृश्य को देखकर अत्यंत भयभीत होना। जैसे: दो वाहनों की दुर्घटना देखकर सबके रोंगटे खड़े हो गए।

रोआँ/रोयाँ - (पुं.) - मनुष्यों और पशु-पक्षियों के चर्म (चमड़ा) पर उगे हुए छोटे-छोटे और महीन बाल, रोम, लोम, रोआँ या रोयाँ। तु. बाल।

रोक - (स्त्री.) (तद्.>रोध) - किसी अनुचित या अनपेक्षित व्यवहार या आचरण को आधिकारिक रूप से रोकने की क्रिया। बंद करना, निषेध, रुकावट। जैसे: 1. तुम्हें अपनी फ़िजूलखर्ची पर रोक लगानी होगी। 2. यहाँ गंगातट पर वस्त्र धोने पर रोक है।

रोकड़ - (स्त्री.) (देश.) - 1. नकद धन/रकम। cash 2. जमाधन, पूँजी। capital

रोकड़िया - (पुं.) (देश.) - 1. वह व्यक्‍ति जो (व्यापारी की) नकद रोकड़ तथा प्रतिदिन के आय-व्यय को लिखता रहता है तथा उसका ठीक-ठीक हिसाब-किताब रखता है। 2. खजाँची। cashier

रोकथाम - (स्त्री.) (देश.) - किसी अनुचित कार्य, प्रयत्‍न, प्रवृत्‍ति या प्रक्रिया आदि को नियंत्रित करने के लिए किया जाने वाला कार्य। जैसे: महिलाओं के प्रति अपराधों की रोकथाम।

रोकना स.क्रि. - (तद्>रोधन) - 1. किसी को आगे बढ़ने न देना। 2. किसी की गति, क्रिया या संभावित कार्य को न होने देना, रुकावट डालना। जैसे: बात करने से किसी को रोकना। 3. किसी प्राकृतिक या कृत्रिम परिस्थिति आदि को न होने देना। जैसे: विभिन्न उपायों से पोलियो को रोकना।

रॉकेट - (पुं.) - (अं.) द्रुतगामी प्रक्षेप्य पिंड, यान, अस्त्र आदि जो दु्रत दहनी ईंधन द्वारा उत्पन्न गैस से गतिमान (नोदित) होता है।

रोग - (पुं.) (तत्.) - (प्राणि.) शरीर की वह अस्वस्थ अवस्‍था जब किसी अंग विशेष या सभी अंगों की क्रियाओं का संतुलन बिगड़ जाता है। पर्या. बीमारी, व्याधि, मर्ज़।

रोगकारक/रोगजनक - (वि.) (तत्.) - बीमारी पैदा करने वाला या बीमारी बढ़ाने में सहायक (सूक्ष्म जीव); (जीव) जो रोग उत्पन्न करने में सक्षम हों जैसे: जीवाणु, विषाणु, रोगाणु।

रोग़न - (पुं.) (.फा.) - 1. तेल, घी, चर्बी, ग्रीस आदि चिकने, गाढ़े और चिपचिपे द्रव पदार्थ। 2. वह रासायनिक चिकना लेप जो किसी सतह को चमकदार बनाने के लिए उस पर लगाया जाता है। varnish उदा. बादाम रोगन बालों के स्वास्थ्य के लिए उपयुक्‍त है।

रोगवाहक - (वि./पुं.) - शा.अर्थ रोग का वहन करने वाला। व्यष्‍टि जिसमें रोगाणु विशेष आश्रय ग्रहण करे तथा रोग को रोगी से स्वस्थ व्यक्‍ति तक पहुँचाए। जैसे: मलेरिया में मच्छर (मादा ऐनोफि लीज) पादपों के विषाणु रोगों में एफिड। Carrier vector

रोगाणु - (पुं.) (तत्.) - शा.अर्थ रोग के अणु। दूषित अणु जो भोजन, जल, वायु आदि के माध्यम से शरीर में पहुँचकर रोग उत्पन्न करते हैं। प्राणि. अतिसूक्ष्मजीव जैसे कवक, जीवाणु, विषाणु, प्रोटोजोआ आदि जो सामान्यतया रोगकारी होते हैं। microb

रोचक - (वि.) (तत्.) - जो रुचि पैदा करे; जो रुचि के अनुकूल हो; अच्छा लगने वाला।

रोचकता - (स्त्री.) (तत्.) - रोचक होने का भाव या गुण। दे. ‘रोचक’।

रोज़ - (पुं.) (फा.) - दिन। उदा. एक रोज़ वह आएगा ज़रूर। क्रि. वि. प्रतिदिन, नित्य। उदा. वह रोज़ सुबह चार बजे उठ जाता है।

रोज़गार - (पुं.) (फा.) - जीविका के लिए प्रतिदिन किया जाने वाला काम। पर्या. व्यवसाय, धंधा, कारोबार। उदा. लकड़ी की रोज़गार।

रोज़गार कार्यालय - (पुं.) (फा.+तत्.) - वह सरकारी दफ़्तर जो बेराज़गार लोगों से आवेदन प्राप्‍त कर उनके लिए उपयुक्‍त रोज़गार सुलभ करवाने में सहायता करता है। employment office/exchange

रोज़मर्रा क्रि.वि. - (वि.) (फा.+अर.) - नित्य, प्रतिदिन, रोज़ाना। जैसे: रोज़मर्रा का काम। routine

रोज़ा - (पुं.) (फा.) - मुसलमानों द्वारा रमज़ान के महीने में किया जाने वाला उपवास।

रोज़ी - (स्त्री.) (फा.) - शा.अर्थ जीविका। सा.अर्थ 1. दैनिक आजीविका का साधन। 2. एक दिन की मज़दूरी, वेतन आदि। प्रयो. ईश्‍वर की कृपा से जैसे तैसे रोज़ी चल रही है।

रोजी-रोटी - (स्त्री.) (फा.+ तद्.) - जीविका का साधन।

रोजे़दार - (वि.) (फा.) - रमज़ान के महीने में रोज़ा (उपवास) रखने वाला तथा नमाज़ पढ़ने वाला।

रोधिका - (स्त्री.) (तत्.) - शा.अर्थ रोकने वाली। कृ./भू. खेत इत्यादि से पानी और मृदा को बहने से रोकने के लिए बनाई गई मिट्टी आदि की छोटी मेंड़।

रोना अ.क्रि. - (तद्>रोदन) (पुं.) - बहुत दुखी होकर, आँखों से आँसू बहाना, रुदन करना। जैसे: पुत्री के वियोग में माता-पिता रो रहे थे। 1. विलाप, रूदन। 2. कष्‍ट, दु:ख। जैसे: मुझे तो तुम्हारी कहानी पर रोना आता है। वि. रोने वाला, रोने जैसा। मुहा. 1. रोना-धोना=बहुत विलाप करना। 2. अपना रोना रोना=अपने कष्‍टों का वर्णन करना। 3. रोना-पीटना=चिल्लाकर रोना, विलाप करना।

रोपण कृषि - (स्त्री.) (तत्.) - वाणिज्यिक कृषि का एक प्रकार, जिसमें किसी एकल फसल को उगाया जाता है। जैसे: भारत में चाय-बागान, पूर्व एशिया में रबड़ की खेती। टि. इस प्रकार के उपक्रम में कृषि-उत्पाद के प्रसंस्करण एवं बाज़ारीकरण आदि की निकट व्यवस्था अपेक्षित होती है, अत: यह एक खर्चीला उपक्रम भी है।

रोपना - - स.क्रि. (सं.>रोपण) 1. पौधों आदि को एक स्थान से निकालकर दूसरी जगह लगाना। (जैसे-गमले इत्यादि में) 2. बीज डालना। 3. किसी वस्तु को स्थापित करना। ‘नाथ कहऊँ पद रोपि’। (तुलसीदास) प्रयो पर्यावरण की सुरक्षा के लिए वृक्षों का रोपना आवश्यक है।

रोपित - (वि.) (तत्.) - रोपा गया, लगाया हुआ, स्थापित किया हुआ। दे. रोपण।

रोब - (पुं.) - (अ.) अपने शारीरिक/बौद् धिक बल अथवा पद आदि से दूसरों को भयभीत या प्रभावित करने की शक्‍ति। पर्या. धाक, दबदबा। मुहा. रोब दिखाना, रोब जमाना। उदा. अपना रोब किसी और को दिखाना।

रोबदार - (वि.) (अर.) - 1. जिसका दूसरों पर दबदबा हो; प्रतापी, धाक रखने वाला। 2. प्रभावशाली। जैसे: उस व्यक्‍ति का चेहरा तो बड़ा ही रोबदार था। impressive प्रयो. रोबदार व्यक्‍ति के आने से छुटभैये शांत हो गए।

रोबीला (रोब+ईला) - (वि.) (अर.) - जिसमें रोब दिखलाई पड़ता हो, रोब से युक्‍त। पर्या. रोबदार। दे. रोब।

रोबोट - (पुं.) - (अं.) वैज्ञानिक तरीकों से बनाया हुआ एक मानवाकृति यंत्र जो प्राय: मानव की तरह व्यवहार करता है। पर्या. यंत्रमानव।

रोमंथी - (वि./पुं.) (तत्.) - जुगाली करने वाले स्तनियों का सामान्य नाम। टि. हडि्डयों के आधार पर बने सींग होना और आमाशय में चार कक्ष होना तथा ऊपरी कृंतकों (दांतों) और ऊपर-नीचे रदनकों (दांत) का न होना इनके प्रमुख लक्षण हैं। उदा. गाय, भैंस, बकरी, हिरन, ऊँट, जिराफ़ आदि। Ruminants

रोम - (पुं.) (तत्.) - शरीर की त्वचा पर उगने वाले कोमल बाल।, रोआँ, लोम। दे. ‘रोंगटा’।

रोमन - (पुं./स्त्री.) (वि.) - (अं.) 1. रोम से संबंधित। 2. रोम में निवास करने वाला। स्त्री. वह लिपि जिसमें अंग्रेजी, फ्रांसीसी, जर्मन आदि भाषाएँ लिखी जाती हैं।

रोमांच - (पुं.) (तत्.) - आनंद, भय आदि के कारण शरीर के रोएँ खड़े होना। thrill

रोमांचक - (वि.) (तत्.) - रोमांच उत्पन्न करने वाला/वाली। उदा. रोमांचक उपन्यास, रोमांचक कथा। दे. रोमांच। thrilling

रोयाँ - (पुं.) (तद्>रोम) - दे. रोंगटे, रोआँ।

रोली - (स्त्री.) - (<सं. रोचनी) 1. धार्मिक अनुष्‍ठानों या उपासना में तिलक के रूप में लगाया जाने वाला प्रसिद् ध लालरंग का चूर्ण। 2. हल्दी-चूने से बना लाल रंग का पाउडर या चूर्ण।

रोशन - (वि.) (.फा.) - 1. प्रकाशयुक्‍त, दीप्‍त, चमकीला; उज्‍ज्‍वल। 2. जलता हुआ (दीपक)। उदा. विनय ने विद्वान बनकर अपने पिता का नाम रोशन कर दिया।

रोशनदान - (पुं.) (.फा.) - शा.अर्थ रोशनी देने वाला। पुं. कमरे की दीवार के ऊपरी भाग में छोड़ा गया खिडक़ीनुमा खाली स्थान जिसमें से प्रकाश और हवा आ सके। पर्या. गवाक्ष venthole

रोशनी - (स्त्री.) (.फा.) - 1. किसी ग्रह, नक्षत्र, दीपक आदि से आने वाला प्रकाश, उजाला। जैसे: सूर्य की रोशनी, दीपक की रोशनी। 3. ला.अर्थ ज्ञान का प्रकाश। मुहा. (किसी विषय पर) रोशनी डालना-सरल भाषा में विषय का स्पष्‍टीकरण करना।

रोष - (पुं.) (तत्.) - 1. मन में दबा रहने वाला क्रोध। 2. चिढ़, कुढ़न, बैर; विरोध। तु. क्रोध। प्रयो. परशुराम ने रोष में लक्ष्मण की ओर देखा।

रोहित - (वि.) (तत्.) - लाल रंग का। पुं. 1. लाल रंग, लोहित। 2. रक्‍त, खून, 3. कुंकुम, केसर।

रौंदना - - स.क्रि.(<मर्दन) पैरों से कुचलना या दबाना। उदा. कुम्हार पहले मिट् टी को अच्छी तरह से रौंदकर फिर घड़े बनाने के काम में लेता है।

रौद्र - (वि.) (तत्.) - 1. रुद्र संबंधी, रुद्र का। जैसे: रौद्र रूप। किसी अन्याय, अपमान या दुर्व्यवहार से उत्पन्न भयंकर क्रोध से युक्‍त। प्रयो. पड़ोसी के दुर्व्यवहार से खिन्न व्यक्‍ति का रौद्र रूप देखते बनता था। पुं. साहित्य में एक रस जिसका स्थायी भाव ‘क्रोध’ है।

रौनक - (स्त्री.) (अर.) - 1. चमक, दमक। जैसे: मुख की रौनक। 2. शोभा। प्रयो. दीवाली पर बाज़ार की रौनक देखते ही बनती है।

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लंगर - (पुं.) (तद्<लांगल) - <लांगल) 1. लोहे का वह बहुत बड़ा वजनदार काँटा जिसे नाव आदि से बाँधकर नदी या समुद्र तट पर गिरा देने से नाव या समुद्री जहाज, स्टीमर आदि एक ही स्थान पर ठहरे रहते हैं। पुं. फा. 2. किसी स्थान या धामिक स्थान से वितरित किया जाने वाला वह भोजन जो बिना किसी भेदभाव के सभी भक्तों एवं आगंतुकों को प्रदेय हो। 3. बिना किसी शुल्क के पंगत में बैठाकर खिलाने की क्रिया। जैसे: इस गुरूद्वारे में तो प्रतिदिन सभी के लिए लंगर चलता रहता है। 4. उक्‍त कार्य के लिए प्रयुक्‍त भोजनालय।

लंगूर - (पुं.) (तद्.<लाड.मूमिलन) - बंदर प्रजाति का एक बड़ा प्राणी जिसका मुख काले रंग का तथा पूँछ लंबी होती है। पर्या. कपि, वानर।

लंगोट - (पुं.) (तद्<लिंगपट) - कमर पर बाँधा जाने वाला पुरुषों का वह पहनावा या वस्त्र जिससे गुप्‍तांग ढके रहते हैं। इसे प्राय: ब्रह्मचारी, साधु संयासी, पहलवान आदि पहनते हैं।

लंगोटी - (स्त्री.) (तद्) - छोटा लंगोट। मुहा. लंगोटिया यार-बचपन का घनिष्‍ठ साथी।

लंघवत - (अव्य.) (तत्.) - लंब जैसा। दे. ‘लंब’।

लंपट - (वि.) (तत्.) - शा.अ. स्वच्छंद आचरण करने वाला। सा.अ.-स्वेच्छाचारी, व्याभिचारी, कामुक, बदचलन। प्रयो. लंपट व्यक्‍ति समाज को प्रदूषित करते हैं।

लंब - (पुं.) (तत्.) - किसी सरल रेखा के किसी बिंदु से 90o पर खींची गई रेखा। वि. तत् लंबा।

लंबा - (वि.) (तद्<लंब) - 1. लंबाई से युक्‍त। 2. एक ही दिशा में दूर तक फैला हुआ। 3. जब दो अलग-अलग दिशाओ में (जैसे-पूरब-पश्‍चिम और उत्‍तर-दक्षिण में) कोई वस्तु या स्थान फैला हो तो कम लंबाई वाले माप की तुलना में अधिक लंबाई वाला, अधिक लंबा।

लंबाई - (स्त्री.) (तद्<लंब) - दो बिंदुओं के बीच की रेखीय दूरी। (किसी भी दिशा में) तुल. ऊँचाई=दो बिंदुओं के बीच की ऊर्ध्वाकार दूरी। विशेष-लंबाई में सा तत् य होता है पर ऊँचाई में सातत्य आवश्यक नहीं है। चौड़ाई-चौकोर वस्तु का कम लंबाई वाला भाग। टि. वस्त्र में ताना लंबाई में और बाना चौड़ाई में होता है।

लँगड़ा - (वि.) (फा.<लंग) - 1. जिसका (मनुष्य, पशु, पक्षी आदि) पैर टूटा हुआ हो या जो ठीक से चल न पाता हो। 2. पोलियो आदि रोग या किसी दोष के कारण लचक के साथ चलने वाला (कोई व्यक्‍ति आदि) पैरों से अपाहिज। पुं. देश. उत्‍तम प्रकार के आम की एक किस्म।

लकड़दादा - (पुं.) (देश.) - 1. दादा के दादा। पिता के पिता-दादा/पितामह। दादा के पिता-परदादा/ पड़दादा। परदादा के पिता-लकड़दादा/ प्रपितामह। 2. कोई पूवर्ज जो प्राय: 100 वर्ष की अवधि से पूर्व के हों।

लकड़बग्घा - (पुं.) (देश.) - भेड़िए की जाति का एक खूँखार जंगली जानवर जो सामान्य भेडि़ए से बड़ा हेाता है तथा जिसके जबड़े बहुत मज़बूत होते हैं। जैसे: लकड़बग्घा गांव से एक सोते हुए बच्चे को उठाकर ले गया। टि. इसके आगे के पैर सामान्य भेडि़ए से बड़े होते हैं। Hyena

लकड़हारा - (पुं.) (देश.) - लकड़ियाँ काटकर जीवन-निर्वाह करने वाला व्यक्‍ति।

लकड़ी - (स्त्री.) (देश.) - 1. किसी वृक्ष के तने या शाखाओं का ठोस और कठोर भाग जो जलाने या फर्नीचर, खिलौने, उपकरण इत्यादि बनाने के काम आता है। 2. लाठी, छड़ी। 3. ईंधन 4. लंगड़े या अपंग व्यक्‍ति के चलने का सहारा, बैसाखी। मुहा. अंधे की लकड़ी-असर्थ का सहारा। लकड़ी हो जाना-दुर्बल जाना।

लकवा - (पुं.) (अर.) - एक स्नायुजन्य रोग जिसमें शरीर या उसका कोई अंग संवेदनाहीन हो जाता है। पर्या. पक्षाघात। paralysis मुहा. लकवा मारना-अचानक निष्क्रिय हो जाना।

लकीर - (स्त्री.) (तद्<लेखा) - सा.अर्थ 1. रेखा। 2. रेखा जैसा चिह्न। उदा. सांप निकल जाने पर लकीर पीटना। ला.अर्थ प्रथा, रीति, पंरपरा। मुहा. लकीर कर फकीर-पंरपरावादी, बिना सोचे-समझे रूढि़ पर चलने वाला।

लक्ष - (वि.) (तत्.) - एक लाख की संख्या (1,00,000), सौ हजार।

लक्षण - (पुं.) (तत्.) - 1. निशान, 2. कोई ऐसी विशेषता जो किसी की स्पष्‍ट पहचान बताए। 3. आचार, विचार, चरित्र आदि के विशेष गुण। जैसे: इसके लक्षण तो महापुरुषों जैसे हैं। 4. शारीरिक रोगों के सूचक चिह्न। 5. परिभाषा।

लक्षणा - (स्त्री.) (तत्.) - साहि. शब्द का अर्थ सामान्य रूप से न निकल पाने की स्थिति में, लक्षणों आदि के आधार पर अर्थ का बोध कराने वाली (शब्द की) शक्‍ति। जैसे: मेरा घर मुख्य मार्ग पर है। (यहाँ मार्ग पर घर की संभावना नहीं हो सकती अत: उससे जुड़ा अर्थ प्रकट होता है कि घर मुख्य मार्ग के किनारे है।) टि. लक्षणा द्वारा प्रकट अर्थ लक्ष्यार्थ कहलाता है।

लक्षित - (वि.) (तत्.) - 1. जिसे लक्ष्य बनाया गया हो या जिसे ध्यान में रखा गया हो। निर्दिष्‍ट, चिह् नित। जैसे: अधिकारी ने उसको लक्षित करके यह बात कही। 2. दृष्‍ट, अनुभूत। 3. लक्षणा शक्‍ति से ज्ञात होने वाला (अर्थ)।

लक्ष्मण रेखा - (स्त्री.) (तत्.) - शा.अर्थ वनवास के समय लक्ष्मण के द्वारा कुटी के बाहर खींची गई वह रेखा जिसे लांघकर कुटी के अंदर जाने वाला अन्य व्यक्‍ति भस्म हो जाता। ला.अर्थ ऐसी सीमा/मर्यादा, आज्ञा आदि जिसका पालन अनिवार्य है, तथा उसका उल्लंघन अक्षम्य है।

लक्ष्मी - (स्त्री.) (तत्.) - 1. धन, वैभव, संपत्‍ति की देवी। 2. धन-संपत्‍ति, दौलत। ला.अर्थ गृहस्वामिनी, पत्‍नी।

लक्ष्य - (पुं.) (तत्.) - 1. निशाना, जिस पर तीर या गोली चलाई जाती है। 2. उद्देश्य, जिसके लिए कार्य किया जाता है। अंतिम मंजिल goal वि. तत्. जिस पर कोई आक्षेप किया जाता है। target

लक्ष्यार्थ - (पुं.) (तत्.) - किसी शब्द या वाक्य का उसके सामान्य अर्थ से भिन्न वह अर्थ जो उसकी लक्षणा शक्‍ति से प्राप्‍त होता है। जैसे: मेरा घर मुख्य मार्ग पर है। यहाँ लक्ष्यार्थ है-मुख्य मार्ग के किनारे घर है।

लगन - (स्त्री.) (तद्<लग्न) - 1. मन का किसी व्यक्‍ति या कार्य की ओर पूरी तरह लगाव। जैसे: ऐसी लागी लगन मीरा हो गई मग्न। 2. धुन। पुं. शुभ मुहूर्त या समय। जैसे: इस वर्ष जून में कोई लगन नहीं है।

लगभग क्रि.वि. - (वि.) (देश.) - करीब-करीब, अनुमानत:।

लगातार क्रि.वि. - (वि.) (तद्.) - एक के बाद एक, बिना क्रम टूटे। पर्या. निरंतर, बराबर। उदा. लगातार काम करना।

लगान - (पुं.) (देश.) - सरकार को किसानों से मिलने वाला भूमिकर, खेती-बारी की ज़मीन पर लगने वाला कर। शा.अ. भू-राजस्व। जैसे: किसान प्रतिवर्ष खेती की जमीन का निर्धारित लगान सरकार को अदा करते हैं। land revenue

लगाना स.क्रि. - (तद्.) - (लगना का प्रेर. रूप) 1. एक वस्तु के तल/पार्श्‍व पर दूसरी वस्तु का तल रखना, मिलाना या सटाना। जैसे: दीवार पर चित्र लगाना। 2. किसी तल पर तरल पदार्थ को लेपना, पोतना या मलना। जैसे: माथे पर चंदन लगाना, केशों में तेल लगाना आदि। 3. किसी के साथ रखना, काम करना, शामिल होना। प्रयो. उसे मित्र के साथ काम पर लगा दिया है। 4. पेड़-पौधों का रोपना। प्रयो. हमने वाटिका में पेड़-पौधे लगा दिए। 5. टाँकना, चिपकाना। जैसे: बटन लगाना, टिकट लगाना। 6. व्यवस्थानुसार सजाना। जैसे: भोजन की थाली लगाना। टि. इसके अतिरिक्‍त भी ‘लगाना’ क्रिया के बहुत सारे प्रयोग प्रचलित हैं। जैसे: आग लगाना, जुर्माना लगाना, हाजिरी लगाना, चांटा लगाना, कुंडी लगाना, बल्ब लगाना आदि।

लगाम - (स्त्री.) (.फा.) - घोड़े के मुँह में लगाई जाने वाली वह अर्धगोलाकार वस्तु जिसके दोनों ओर रस्से आदि बंधे होते हैं, जो घोड़े पर नियंत्रण रखते हैं। पर्या. रास, बाग। मुहा. 1. जबान पर लगाम देना-नियंत्रित बात बोलना या बुलवाना। 2. जबान पर लगान न होना-वाणी पर नियंत्रण न होना।

लगाव - (पुं.) (तद्.) - 1. लगे होने का भाव, संलग्नता। 2. प्यार भरा संबंध, प्रेम, 3. आकर्षण। उदा. पुत्र से लगाव, खेल से लगाव, पढ़ाई से लगाव।

लग्न - (वि.) (तत्.) - 1. लगा हुआ, चिपका हुआ। 2. आसक्‍त। पुं. ज्यो. 1. किसी समय विशेष पर पूर्वक्षितिज पर स्थित राशि (नक्षत्र समूह) जैसे-राम का जन्म वृष लग्न में हुआ था। अर्थात उस समय पूर्व क्षितिज पर वृष राशि थी। 3. शुभ मुहूर्त।

लघु - (वि.) (तत्.) - 1. जो आकार आदि में सामान्य से छोटा या कम हो। उदा. ‘धरि लघुरूप देखि तै जाई’। 2. हल्का, 3. थोड़ा कम, 4. अल्प, 4. छोटा। विलो. दीर्घ, वृहत्। 3. एक मात्रा का वर्ण। (छंद में), विलो. गुरू।

लघुचित्र - (पुं.) (तत्.) - 1. छोटी तस्वीर। 2. थोड़े समय का चलचित्र। cinema

लघुतम - (वि.) (तत्.) - सबसे छोटा। 22, 11, 17 में से लघुतम संख्या 11 है।

लघुतम/लघुत्‍तम - (वि.) (तत्.) - सबसे छोटा। जैसे-लघुतम/लघुत्‍तम समीपवर्त्य-दो या अधिक संख्याओं को विभाजित करने वाली सबसे छोटी संख्या।

लघुता - (स्त्री.) (तत्.) - शा.अ छोटे होने का भाव। सा.अ हल्कापन, तुच्छता। पर्या. लघुत्व। दे. लघु।

लचक - (स्त्री.) (तद्.) - लचकने का भाव। दे. लचकना।

लचकदार - (वि.) (तद्.) - लचक से युक्‍त। दे. लचक।

लचकना अ.कि. - (तद्.<व्यंचन) - 1. भार या दबाव के कारण हवा में ही बीच में से झुकना। दबाव/भार हटते ही पूर्वस्थिति में आ जाना 2. चलते समय बल खाना, झटके से चलना।

लचर - (वि.) (देश.) - 1. जो टिक न सके, शिथिल, निराधार। 2. क्षीण, दुर्बल, कमज़ोर। जैसे: लचर तर्क।

लचीला - (वि.) (देश.) - 1. जो आसानी या सहजता से झुक या मुड़ सकता हो। लचकदार, नमनीय। flexible

लचीलापन - (पु.) (देश.) - 1. लचीला होने की दशा या भाव। 2. पदार्थों का मुड़ने, झुकने या लचकने का गुण। पर्या. लचक, लचकन।

लच्छा - (पुं.) (देश.) - 1. गुथे हुए सूत या तारों का गुच्छा। जैसे: रेशमी धागों या ऊनी धागों का लच्छा। 2. किसी खाद्य वस्तु के कटे हुए सूत की तरह पतले और लंबे टुकड़े। जैसे: आलू के लच्छे। 3. विशेष रूप से चांदी के तारों से बना वह विशेष आभूषण जिसे प्राय: नारीयाँ अपने पैरों पर पहनती हैं। ला.अ. लच्छेदार भाषण-धाराप्रवाह चिकनी-चुपड़ी बातों से युक्‍त दिया जाने वाला भाषण। जैसे: उसने भ्रष्‍टाचार विषय पर अपना लच्छेदार भाषण दिया।

लच्छेदार - (वि.) (देश.) - 1. (ऐसा खाद्य पदार्थ) जिसमें लच्छे बने हों/लच्छों से युक्‍त। जैसे: लच्छादार रबड़ी। 2. जो एक से निकलकर दूसरी और इसी प्रकार निकलती रहने के कारण देर तक चलने वाली और रोचक हो। (ऐसी बातें आदि) चिकनी-चुपड़ी और मजेदार (बातें) जैसे: उनका भाषण लच्छेदार ही होता है।

लजाना अ.क्रि. (नाम धातु) - (तद्) - किसी अनुचित कार्य करने के बाद लज्जित या शर्मिंदा होना। या उस दोषी व्यक्‍ति को शर्मिंदा करना। प्रयो. चोरी का राज खुलने पर वह बहुत लजा रहा था। टि. लजाना का प्रेर. रूप ‘लजाना’ ही होता है। जैसे: उसकी कोमलता फूलों को भी लजा रही है।

लज़ीज़ - (वि.) (अर.) - बहुत अच्छे स्वाद वाला, अत्यधिक स्वादिष्‍ट, मज़ेदार। उदा. लज़ीज़ व्यंजन।

लज्जा - (स्त्री.) (तत्.) - 1. शील-संकोच का भाव, लजा, शर्म। 2. पश्‍चाताप का भाव। ला.अर्थ मान-मर्यादा, इज्ज़त। उदा. हे प्रभु, मेरी लज्जा (लाज) बचा लो। (निर्लज्ज शब्द से अर्थ अधिक स्पष्‍ट हो जाता है।)

लज्जित - (वि.) (तत्.) - 1. जो किसी के सामने अपनी कमी, अवगुण के कारण या हीन भावना के कारण लज्जा का अनुभव कर रहा हो। लजाया हुआ, शर्मिंदा। जैसे: वह परीक्षा में नकल करते हुए पकड़े जाने पर बहुत लज्जित हुआ।

लट/लटी - (स्त्री.) (तद्<लटवा) - 1. उलझे हुए बाल। 2. घुँघराले बाल जो चेहरे पर आ जाते हैं। ला.अर्थ-उलझे बालों जैसे: अस्त-व्यस्त। उदा. ‘धोती फटी’सी, लटी दुपटी’।

लटकना अ.क्रि. - (देश.) - 1. ऊपर के आधार पर टिके रहने पर भी नीचे की ओर कुछ दूर तक अधर में रहना। प्रयो. आम के वृक्ष से आमों का लटकना। 2. झूलती हुई हालत रहना/झूलना। 3. काम का कुछ समय तक अधूरा पड़ा रहना। प्रयो. बिना रिश्‍वत दिये काम लटक जाता है।

लटका - (पुं.) (देश.) - 1. स्वरों के उतार-चढ़ाव के साथ बातचीत में दिखाए जाने वाले हावभाव। 2. बनावटी कोमल चेष्‍टा और बातचीत। बातचीत का ढंग या अंदाज। जैसे: तुम्हारे लटकों से वह प्रभावित होने वाले नहीं।

लटजीरा - (पुं.) (देश.) - 1. एक पौधा जिसमें जीरे की आकृति के फल लगते हैं। पर्या. चिचड़ा। 2. उक्‍त पौधे के फल।

लटी - (स्त्री.) - (देशज) लट जैसी, उलझी हुई सी। उदा. धोती फटी सी, लटी दुपटी।

लट् ठ - (पुं.) (देश.) - 1. बांस की बड़ी लाठी, डंडा। ला.अर्थ मूर्ख और गंवार जैसे: लट्ठ गंवार। उदा. उस गाँव के सभी लोग लट्ठ लेकर चलते हैं। मुहा. 1. लट्ठ चलना= लाठियों से लड़ाई होना। 2. लट्ठ सा मार देना = उजड्ड भाषा बोलना। कठोर उत्‍तर देना।

लट्टू - (पुं.) (तद्<लट्व) - 1. एक प्रकार का छोटा गोल खिलौना जिसमें रस्सी लपेटकर झटके से जमीन पर फेंकने पर वह कील के बल से तेजी से गोल-गोल घूमने या नाचने लगता है। 2. बिजली का बल्ब। मुहा. लट्टू होना= किसी पर मोहित या मुग्ध होना। जैसे: वह तो तुम्हारा भाषण सुनकर तुम पर लट्टू हो गया है।

लट्ठमार - (वि.) (देश.) - शा.अर्थ लाठी मारने के समान। सा.अर्थ सख्त, कठोर, रूक्ष, रूखा। blunt उसने तो अधिकारी को लट् ठमार जवाब दिया।

लडक़पन - (पुं.) (देश.) - 1. बाल्यावस्था, जैसे: लडक़पन में सभी बच्चे जिद करते हैं। 2. बचपना, प्रयो. इस आयु में भी तुम्हारा लडक़पन नहीं गया। 3. बच्चों जैसी हरकत, बुद्धि की अपरिपक्वता के कारण नासमझी। जैसे: क्या तुम लडक़पन वाली बातें कर रहे हो।

लड़खड़ाना - - अ.क्रि. (अनु.) डमगमाना, अस्थिर, गति से इस प्रकार चलना जैसे गिरने वाले हो। मुहा. जीभ लड़खड़ाना-धारा प्रवाह न बोल पाना।

लड़खड़ाहट - (स्त्री.) - (अनु.) लड़खड़ाने का भाव।

लड़ना अ.क्रि. - (तत्) - 1. ऊँची आवाज में एक दूसरे के विरूद्ध अशब्द बोलना; 2. किसी विषय पर विवाद करना। 3. परस्पर आघात करना, युद्ध करना। जैसे: वे दोनों परस्पर गाली देते हुए मारपीट करके लड़ रहे थे। 4. टकराना या भिड़ना। जैसे: आसाम में दो रेलगाडि़याँ आपस में लड़ गयीं। टि. संस्कृत में लड़ का अर्थ खेलना है। हिंदी तक आते-आते अर्थ में परिवर्तन हो गया है।

लड़ाई - (स्त्री.) (देश.) - वह क्रिया जिसमें दो दल या पक्ष एक-दूसरे पर गलत शब्दों का प्रयोग करते हुए वाणी से हाथ से, या अस्त्र-शस्त्र से वार करते हैं। 1. संग्राम-युदध, 2. मारपीट, झगड़ा-तकरार, 3. वाद-विवाद, बहस। जैसे: आज बच्चों की लड़ाई में कई बच्चे घायल हो गये।

लड़ाकू - (वि.) (देश.) - शा.अ. लड़ने वाला। सा.अ. 1. योद्धा, सैनिक। 2. झगड़ालू, 3. युद् ध में काम आने वाला, जंगी जैसे: लड़ाकू विमान। 4. लड़ने की प्रवृत्‍ति वाला। जैसे-वह औरत बहुत ही लड़ाकू है, सबसे लड़ती रहती है।

लड़ाना स.क्रि. - (देश.) - (लड़ना का प्रेर. रूप) 1. आपस में एक दूसरे का युद् ध कराना। 2. एक-दूसरे में विवाद या तकरार कराना। जैसे: तुम हमारे दोनों पड़ोसियों को मत लड़ाओ। 3. लाड़-प्यार करना। जैसे: लाड़ लड़ाना। 4. हल निकालने के लिए प्रयोग करना। जैसे: बुद्धि लड़ाना।

लड़ी - (स्त्री.) (स्त्री.) - (हिं.लड् का अल्पा.) 1. एक प्रकार की वस्तुओं के एक पंक्‍ति में पिरोए जाने पर बनी माला, कतार, पंक्‍ति। जैसे: फूलों की लड़ी, बल्बों की लड़ी। 2. धागों के गुच्छे का एक धागा। 3. शृंखला, जैसे: उसने तो चुटकुलों की लड़ी छोड़ दी।

लड्डू - (पुं.) (तद्<लड्डुक) - एक गोलाकार मिठाई, जैसे: बेसन के लड्डू, खोए के लड्डू, मेवे के लड्डू। मुहा. 1. मन में लड्डू फूटना=किसी अनुकूल बात या विशेष उपलब्धि की संभावना से मन में बहुत प्रसन्न होना। 2. दोनों हाथों में लड्डू होना, ऐसा सौभाग्यशाली एवं सुखद अवसर प्राप्‍त होना जिसमें सब तरफ से फ़ायदा ही फ़ायदा होने वाला हो।

लत - (स्त्री.) (तद्<लिप्‍त) - बुरी आदत, व्यसन, कुटेव। जैसे-कुछ लोगों को बचपन से ही धूम्रपान करने की लत होती है।

लता - (स्त्री.) (तत्.) - भूमि पर या वृक्ष आदि के सहारे फैलनेवाला बिना तने वाला कोमल पतला पौधा। पर्या. बेल, वल्लरी। जैसे: अंगूर की लता, फूल की लता।

लताड़ - (स्त्री.) (देश.) - शा.अ. लताड़ने की क्रिया या भाव। सा.अ. तीखी, डाँट-फटकार। 2. भर्त्सना, झिडक़ी।

लताड़ना स.क्रि. - (देश.) - शा.अ. पैरों से कुचलना, रौंदना। सा.अ. कठोर शब्दों में डाँटना-फटकारना, झिडक़ना। जैसे: झूठी गवाही देने पर न्यायधीश ने उसे खूब लताड़ा।

लतामंडप - (पुं.) (तत्.) - शा.अ. लताओं का मंडप। दे. मंडप। सा.अ. घर के उद्यान में बैठने के लिए वह स्थान, जो चारों ओर से घनी लताओं द्वारा आवेष्‍टित हो या घिरा हुआ हो, लतागृह। पर्या. लताकुंज, लताभवन।

लतिका - (स्त्री.) (तत्.) - छोटी लता या बेल। 2. (ला.) लता जैसा आभूषण, जैसे-मोती माला।

लतीफा - (पुं.) (अर.<लतीफ़) - 1. ऐसी कोई बात जो चमत्कारपूर्ण और हँसी वाली हो।, चुटकुला। 2. हँसी की अनोखी बात।

लतीफे़बाज - (वि.) (अर.+फा.) - बहुत चुटकुले सुनाने वाला, विनोदी। प्रयो. बीरबल पक्का लतीफे़बाज़ था।

लथपथ - (वि.) (देश.) - 1. भीगी हुआ, तर। जैसे: खून से लथपथ, पसीने से लथपथ। 2. सना हुआ, जैसे: कीचड़ से लथपथ।

लदना अ.क्रि. - (देश.) - लादना। 1. भार या बोझ से युक्‍त होना। 2. किसी वाहन/पशु इत्यादि पर भार रखा जाना। जैसे: टैंपो पर सामान लद रहा है। 3. (ला.अर्थ.) व्यतीत हो जाना। बीत जाना। जैसे: अब अफसरी के दिन लद गए, काम करो।

लदवाना प्रे.क्रि.<लादना - (देश.) - 1. लादने का काम किसी अन्य से कराना। 2. कोई वजन वाली वस्तु किसी के द्वारा किसी ठेला, गधे, ट्रैक्टर आदि पर रखवाना। जैसे: वह ट्रक पर सामान लदवा रहा है।

लपकना अ..क्रि. - (देश.) - 1. तेजी/फुर्ती के साथ सहसा आगे बढ़ना। जैसे: वह अतिथि से मिलने के लिए लपका। 2. झपटना। जैसे: कुत्‍ते का बिल्ली को पकड़ने के लिए लपकना। 3. बिजली का रूक-रूक कर चमकना। जैसे: बादलों से युक्‍त आकाश में बिजली लपक रही है। स.क्रि. किसी वस्तु को ज़मीन पर गिरने से पूर्व हाथों में संभाल लेना। जैसे: गेंद लपकना। catch

लपट - (स्त्री.) (देश.) - 1. आग के ऊपर उठने वाली लौ, शिखा, ज्वाला। 2. गरम हवा का झोंका, लू।

लपलपाना अ.क्रि. - (देश.अनु.लपलप) - साँप आदि जीवों/जानवरों आदि का किसी कारण से अपनी जीभ को लपलप की ध्वनि में बारबार बाहर-अंदर करना। प्रयो. साँप जीभ लपलपाते हुए वातावरण में सूँघता है। 2. लंबी पतली वस्तु का तेजी से हिलना। जैसे: छड़ी का लपलपाना। 3. हिलाई जाती हुई तलवार का चमकना। मुहा. जीभ लपलपाना=किसी चीज़ को खाने की इच्छा होना।

लपेट - (स्त्री.) (देश.) - 1. लपेटने की क्रिया या भाव। 2. लपेटकर डाला हुआ घुमाव या फेरा। जैसे: झंडे की रस्सी को तीन बार लपेट कर बाँध दो। 3. बल, ऐंठन। 4. उलझन, प्रयो. मेरा घर भी आग की लपेट में आ गया।

लपेटना स.क्रि. - (तत्.) - 1. धागे, रस्सी, कपड़े आदि को किसी दूसरी वस्तु के चारों ओर घुमाकर इस प्रकार लगाना कि बीच की वस्तु छिप जाए। उदा. डोरी लपेटना, कपड़ा लपेटना, पट्टी लपेटना। 2. किसी चित्र, कपड़े आदि को गोल तह में समेटना। ला.अर्थ. किसी व्यक्‍ति को अकारण किसी मामले में फँसाना।

लफँगा - (वि.) - (फा.लफंग) 1. लंपट, दुश्‍चरित्र। 2. गुंडा, बदमाश, आवारा।

लफड़ा - (पुं.) - (अ.) व्यु.अर्थ लफ़ लपेटना, तह करना+ड़ा प्रत्यय। सा.अर्थ ऐसा कार्य जिसमें कोई फँस जाए तो बाहर निकलना कठिन हो। पर्या. झमेला।

लब - (पुं.) (.फा.) - 1. होंठ, 2. किसी वस्तु का किनारा, जैसे: लबे सडक़। (सड़क के किनारे)

लबादा - (पुं.) (.फा.<लबाद:) - सरदी में कुर्ते के ऊपर पहनने का लंबा, ढीला-ढाला वस्त्र, रुईदार चोंगा।

लबालब - (वि.) (.फा.) - पूरी तरह से (ऊपरी किनारे तक) भरा हुआ।

लब्ध - (वि.) (तत्.) - जो मिल गया हो। पर्या. प्राप्‍त।

लब्धप्रतिष्‍ठ - (वि.) (तत्.) - (व्यक्‍ति) जिसे प्रतिष्‍ठा मिली हुई हो, यानी अपनी योग्यता के बल पर जिसे अधिकतर लोग आदर देते हों।

लब्धि - (स्त्री.) (तत्.) - वह वस्तु, योग्यता आदि जो परिश्रम के बल पर हुई हो। टि. लब्धि के स्थान पर उपलब्धि शब्द का प्रयोग अधिक होता है। पर्या. प्राप्‍ति, लाभ।

लमहा/लम्हा - (पुं.) - (अ.<लम्ह:) समय का बहुत छोटा भाग, क्षण, पल।

लय - (पुं.) (तत्.) - शा.अर्थ. किसी वस्तु का दूसरी वस्तु में पूरी तरह समा जाना। ‘विलय’। सा.अर्थ 1. विलीन होना, 2. (किसी पदार्थ का) लोप, नाश, 3. संगीत गाने की धुन, 4. चित्‍त की एकाग्रता। प्रयो. सृष्‍टि का अंत में प्रकृति में लय हो जाना है।

ललक - (स्त्री.) (तद्.) - 1. मन का वह भाव जिसमें किसी वस्तु को प्राप्‍त करने, देखने या सुनने आदि की तीव्र इच्छा होती है। पर्या. लालसा, चाह।

ललकार - (स्त्री.) (देश.) - शा.अर्थ ललकारने की क्रिया या भाव। सा.अर्थ 1. बहस, प्रतियोगिता या युद्ध आदि के लिए आह् वान या चुनौती। प्रयो. उसकी ललकार सुनकर सभी कायर भाग खड़े हुए। 2. किसी के विरूद्ध लड़ने के लिए या किसी पर हमला करने के लिए अन्य लोगों द्वारा उत्साहवर्धन।

ललकारना - - स.क्रि. (नाम धातु<ललकार) 1. विरोधी व्यक्‍ति को लड़ने की चुनौती देना। 2. किसी व्यक्‍ति को दूसरे पर आक्रमण के लिए बढ़ावा देना।

ललचाई - (वि.) (स्त्री.) - (तद् <लालच<लालसा) लालच से युक्‍त, लालच से भरी हुई।

ललचाना स.क्रि. - (तद्) - <लालच<लालसा) 1. किसी को कोई प्रिय वस्तु दिखाकर उसे पाने के लिए उत्सुक, व्यग्र या अधीर करना। 2. किसी के मन में लालच उत्पन्न करना, लालायित करना।

ललना - (स्त्री.) (तत्.) - 1. सुंदर स्त्री। 2. स्वेच्छाचारिणी स्त्री।

लला - (पुं.) (देश.<ब्रज, अवधि और बोलियों में) - 1. प्यारा और दुलारा बच्चा। पर्या. लाल। उदा. मेरे लाल। 2. नायक या पति।

ललाट - (पुं.) (तत्.) - 1. भाल, माथा, मस्तक का आगे का भाग। 2. ला.अर्थ. भाग्य या भाग्य के लेख। forehead उदा. जो विधि लिखा ललाट हमरे सो वर पावउ….।

ललित - (वि.) (तत्.) - 1. सुंदर, मनोहर, कोमल। 2. प्रिय, प्यारा। 3. लटका हुआ और हिलता हुआ सा।

लली - (स्त्री.) (देश.<ब्रज बोली) - 1. पुत्री, बेटी 2. लडक़ी, लाडली, बालिका। 3. लडक़ी, बेटी, नायिका के लिए प्यार भरा संबोधन। उदा. ‘झुक जइयो तनिक रघुवीर लली जी अभी छोटी हैं’।

लल्ला/लल्लन - (पुं.) (देश.<देश.) - दे. ‘लाल’/’लला’।

लल्ली - (स्त्री.) (देश.) - दे. ‘लली’।

लल्लो - (स्त्री.) (तद्<ललना) - जिह्वा, जीभ, ज़बान।

लल्लो-चप्पो - (स्त्री.) (देश.) - 1.किसी को प्रसन्न करने के लिए कही जाने वाली चिकनी चुपड़ी बातें। 2. ख़ुशामद, चापलूसी। प्रयो. वह तो अपने काम के लिए लल्लो-चप्पो कर रहा है।

लवंग - (स्त्री.) (तत्.) - एक प्रकार का वनस्पति पदार्थ जिसका प्रयोग औषधि एंव मसाले के रूप में प्रयोग किया जाता है। पर्या. लौंग। टि. लवंग का वृक्ष होता है जिसका फूल प्रयोग में लिया जाता है।

लवण - (पुं.) (तत्.) - व्यु.अर्थ काटना। सा.अर्थ नमक, नोन।

लवाजि़म - (पुं.) (अर.) - (लाजि़म का बहुवचन) आवश्यक वस्तुएँ, किसी कार्य से संबंधित वस्तुएँ, जरूरी सामान।

लशकरी/लश्करी - (वि.) (.फा.) - 1. लशकर (सेना) से संबंधित, जैसे: लशकरी भाषा। 2. वह जो लशकर में काम करता हो।

लश्कर - (पुं.) (फा.) - 1. सैना, फौज। 2. सेना का पड़ाव/छावनी। 3. जहाज पर काम करने वाले सामान्य कर्मचारियों का समूह। उदा. सबै कहावै लसकरी, सब लसकर कहैं पाय। (लसकर-सेना, लसकरी-फौजी)।

लश्कर/लशकर - (पुं.) (.फा.) - 1. सेना, फौज। 2. सैनिक छावनी।

लस्सी - (स्त्री.) (देश.) - 1. गर्मियों का एक विशेष ठंडा पेय जो मथे हुए दही में चीनी या नमक मिलाकर बनाया जाता है। 2. छाछ, मट्ठा। जैसे: वह गर्मी में प्रतिदिन लस्सी पीता है।

लहँगा - (पुं.) (देश.) - स्त्रियों का कमर से नीचे पहनने का एक घेरेदार वस्त्र जो कमर में नाड़े से बाँधा जाता है। किंतु ‘घाघरा’ से भिन्न होता है। (घाघरा का घेरा काफी बड़ा होता है।) जैसे: आजकल उत्सवविशेष में लडक़ियाँ भी लहँगा पहनती हैं।

लहकना - - अ.क्रि. (अनु.) 1. हवा का झोंके से चलना। 2. हवा के झोंके से (पेड़-पौधों का) हिलना-डुलना। 3. आग का जलना, दहकना या चमकना। 4. हल्की रेखा की आकृति में आकाशीय विद् युत का चमकना। तुल. कौधंना। 5. तेजी से लपकना। 6. उत्सुकता से, तेजी से आगे बढ़ना, ललकना।

लहज़ा - (पुं.) - (अर). 1. बोलने का विशेष ढंग (स्वरों के उतार-चढ़ाव या बलाघात में अंतर लाते हुए) 2. बोलने का ऐसा ढंग जो सुनने वाले को मधुर या कटु लगे।

लहरदार - (वि.) (तत्.+.फा.) - शा. अर्थ लहरों से युक्त, लहरवाला। सा. अर्थ जिसमें लहर जैसी धारियाँ हों। प्रर्या. उसके केश लहरदार हैं। लहरदार साड़ी।

लहरें - (स्त्री.) (तत्.) - 1. नदी, समुद्र आदि में वायु, गति आदि के प्रभाव से जल का उठ-उठकर गिरना तथा आगे की ओर बढ़ने की प्रवृत्‍ति, तरंग, मौज। wave 2. उमंग, जोश। 3. मन की मौज, आनंद, हर्ष आदि का आवेग। 4. लहर की आकृति की चाल या रेखा। 5. किसी रोग में दर्द का इसी प्रकार उठना और शांत हो जाना।

लहलहाना अ.क्रि. - (देश.) - 1. हरी पत्‍तियों से युक्‍त या फूल-पत्‍तों से युक्‍त होना। 2. हरा-भरा होना। जैसे: मंद हवा में खेतों को लहलहाते देखकर मन खुश हुआ। 3. ला.अर्थ. प्रसन्नता से भर जाना या प्रफुल्लित होना।

लहसुन - (पुं.) (तद्.<लशुनम्) - एक औषधीय पौधा जिसके पत्‍ते लंबे तथा फूल झुमकेदार सफेद होते है और जड़ में गुच्छेदार सफेद कन्द होता है। उसके दाने मसाले के रूप में तथा दाल-सब्जी छौंकने के काम आते हैं। उदा. लहसुन का सेवन वायुविकार एवं हृदयरोग के लिए बहुत उपयोगी है। garlik पुं. देश. शरीर पर स्थित जन्मजात चिह् न जो मृत्युपर्यंत बना रहता है।

लहसुनिया - (पुं.) (देश.) - 1. एक रत्‍न जिस पर लहसुन जैसी धारियाँ होती हैं तथा इसका रंग धूमिल होता है। इसे ज्योतिष में केतुग्रह का रत्‍न माना गया है। 2. वैदूर्य। cat’s eye

लहुलुहान - (वि.) (देश.लहू<लोहित+अनु.) - 1. चोट लगने के कारण जिसका शरीर खून से तर हो गया हो। 2. खून से लथपथ। पर्या. रक्ताक्‍त।

लहू - (पुं.) (तद्<लोह) - रक्‍त, खून (ब्लड)। मुहा. लहू का प्यासा-प्राण लेने का इच्छुक, घोर शत्रु। 2. लहू-लुहान वि. चोट, आघात आदि के कारण जिसका सारा शरीर खून से भर गया हो।, खून से तर।

लाँघना अ.क्रि. - (तद्.<लड़्घन) - 1. उछलकर पार करना। 2. ऊपर से डाँकना। लंबे कदम रखकर या छलांग लगाकर गड्ढा/नाले आदि को पार करना। जैसे: हनुमानजी ने लंका जाने के लिए समुद्र को लाँघा था। 3. ला.अर्थ अनधिकृत रूप से कोई सीमा/सीमारेखा पार करना। अतिक्रमण। जैसे: तुम अपनी सीमा को लाँघ रहे हो, अब चुप रहो तो अच्छा है।

लांछन - (पुं.) (तत्.) - 1. जीवन में अनुचित आचरण करने का दोष। 2. चिह्न, दाग। 3. दोष, कलंक। जैसे: आज तक मुझ पर कामचोरी का कोई लांछन नहीं लगा।

लाइकेन - (पुं.) - (अं.) शैक/शैवाक (शैवाल तथा कवक से बनी संयुक्‍त संरचना)। lichen

लाइट - (पुं.) - (अं.) 1. वह ज्योति या प्रकाश जिसमें वस्तुएँ देखी जा सकती हैं। यह प्रकाश सूर्य, दीपक और अग्नि आदि से प्राप्‍त होता है। उजाला, रोशनी। 2. बत्ती, जैसे-रोड लाइट। 3. बिजली, जैसे: लाइट अभी अभी गई है। वि. हल्का।

लाइब्रेरी - (स्त्री.) (दे.) - (अं.) ‘पुस्तकालय’।

लाइलाज - (वि.) (अर.) - 1. जिसका कोई इलाज न हो। असाध्य। जैसे: लाइलाज बीमारी। 2. जिस समस्या का कोई प्रतिकार या उपाय न रह गया हो। प्रयो. यह लाइलाज समस्या है।

लाइसेंस - (पुं.) - (अं.) 1. विशेष कार्य को करने के लिए सरकार द्वारा दिया जाने वाला अनुज्ञापत्र या अधिकार पत्र।

लाउडस्पीकर - (पुं.) - (अं.) बिजली की सहायता से चलने वाला यंत्र, जिसकी सहायता से आवाज़ की प्रबलता को बढ़ाकर उसे दूर तक पहुँचाया जा सके। ध्वनिवर्धक (यंत्र) विलो. silencer (ध्वनिशामक यंत्र)

लाक्षणिक - (वि.) (तत्.) - 1. लक्षणों से संबंधित। 2. जिससे लक्षण प्रकट होते हैं। 3. लक्षणों से युक्‍त, प्रतीकात्मक। 4. काव्य. शब्द की लक्षणाशक्‍ति पर आधारित या उससे संबद्ध अर्थ.। जैसे: टोपियाँ जा रही हैं। अर्थात टोपी पहने गाँधीवादी लोग जा रहे हैं। 5. ज्यो. हस्तरेखा, शारीरिक लक्षण या व्यवहार का ज्ञाता।

लाक्षा - (स्त्री.) (तत्.) - लाल रंग का एक प्रसि‍द्ध रसायन, कीट विशेष द्वारा पीपल, पाकड़, बेर आदि वृक्षों की टहनियों पर स्रवित राल जिससे चूडि़याँ आदि अनेक उपयोगी वस्तुएँ बनती हैं। पर्या. लाख, लाह, सील। sealing box

लाक्षागृह - (पुं.) (तत्.) - ज्वलनशील पदार्थों जैसे लाख से तैयार किया गया घर/भवन। जैसे: दुर्योधन ने पांडवों के लिए वार्णावत में एक सुंदर लाक्षागृह बनवाया था ताकि उसमें आग लगाकर उन्हें भस्म किया जा सके।

लाख - (वि.) (तद्<लक्ष) - 1. सौ हजार (100,000) की एक संख्या। 2. बहुत अधिक। उदा. (i) बिना प्रेम फीको सबै लाखन करहु उपाय। (भारतेन्दु काव्यात्मक) (ii) पितुहित भरत कीन्हि जसि करनी। सो मुख लाख जाइ नहिं बरनी। प्रेम सरोवर मुहा. 1. लाख टके की बात-महत्वपूर्ण व सत्य बात। 2. लाखों में खेलना-अत्यधिक धनी होना। स्त्री. तद् <लाक्षा) एक वृक्ष की गोंद जो अत्यंत ज्वलनशील होती है। टि. इसका उपयोग पत्र, महत्वपूर्ण दस्तावेज आदि को सीलबंद करने में किया जाता है। इससे महावर, चूडि़याँ आदि भी बनती हैं। सुनार भी गहने बनाने में इसका उपयोग करते हैं।

लागत - (स्त्री.) (देश.) - 1. किसी वस्तु के बनाने या उसकी तैयारी में लगने वाला खर्च। प्रयो. इस मकान को बनवाने में 5 लाख रू. की लागत आयेगी। 2. बेचने के लिए खरीदी गई या बनाई गई वस्तु पर पूँजी तथा अन्य व्यय मिलाकर कुल खर्च की गई धनराशि। Cost

लागू - (वि.) (तत्.) - 1. जो कहीं लग सके या प्रयोग किया जा सके। जो कहीं चरितार्थ हो सके। जैसे: यह मुहा. यहाँ लागू हो सकता है। applicable 2. किसी नियम का व्यवहार में आने का भाव।

लाचार - (वि.) (.फा.) - 1. जिसका किसी कार्य में कुछ वश न चले। विवश, मजबूर, दीन, असहाय। 2. जो शारीरिक या किसी अन्य असमर्थता के कारण कुछ न कर पा रहा हो, असमर्थ, निरुपाय। मुहा. लाचार करना-किसी कार्य को करने के लिए विवश या बाध्य कर देना।

लाज - (स्त्री.) (तत्.) - 1. वह मनोभाव जो व्यक्‍ति को मान-सम्मान बचाने के लिए अनुचित व्यवहार या कार्य से बचाता है। लज्जा, शर्म। जैसे: लाज न आवत आपको दौरे आयहु साथ। 2. सम्मान, प्रतिष्‍ठा। मुहा. प्रतिष्‍ठा की रक्षा करना। shame पुं. (अं.) ‘छोटा घर’ जो किराये पर निवास के लिए दिया जाता है। जैसे: विद्यार्थी लाज। पुं. तत्. धान की खील, लावा।

लाजवंती - (वि.) (तद्.) - 1. लज्जाशीला (स्त्री) दे. ‘लाज’। 2. छुईमुई नामक पौधा, लजालू। टि. इस पौधे को स्पर्श करते ही यह मुरझा जाता है, इसलिए इसे छुईमुई या लाजवंती कहते हैं। थोड़ी देर बाद यह पुन: पहले रूप में आ जाता है।

लाजवाब - (वि.) (.फा.) - 1. उत्‍तर देने में असमर्थ, निरुत्‍तर। 2. जिसकी जोड़ का अन्य कोई न हो, बेजोड़, अनुपम। 3. जिसका जवाब न हो, निरुत्‍तरित।

लाजि़मी - (वि.) - (अरबी) 1. आवश्यक, अनिवार्य। 2. उचित, मुनासिब।

लाट - (पुं.) (देश.) - ऊँचा और मोटा खंभा। जैसे: अशोक की लाट। 2. मीनार। tower

लाट - (पुं.) - (अं.<लार्ड) स्वामी, मालिक, अधिकारी। जैसे: आप इतने बढ़े लाट साहब हो, जो किसी की नहीं सुनते।

लाठी - (स्त्री.) (देश.) - बांस, लंबा डंडा। जैसे: बूढ़े का सहारा लाठी। मुहा. लाठी का ज़ोर-शारीरिक बल, मारने-पीटने की शक्‍ति। लाठी चलना-लाठी से मारपीट होना।

लाठीचार्ज - (पुं.) (देश.+अं) - पुलिस बल द्वारा भीड़ नियंत्रण के लिए लाठी का प्रयोग। प्रयो. पुलिस ने मेले में लोगों पर लाठीचार्ज किया)।

लाड़ - (पुं.) (तद्<लड़) - छोटे बच्चों के साथ किया जाने वाला आत्मीयतायुक्‍त और स्नेहपूर्ण व्यवहार, दुलार।

लाड-प्यार - (पुं.) (तद्<लड्+प्रिय) - दुलार और प्रेम। जैसे-उन्होंने अपने बच्चों को बड़े लाड-प्यार से पाला।

लाडला - (वि.) (देश.) - लाडला, जिससे लाड़ किया जाए, दुलारा। उदा. लाडला कन्हैया मेरा मोहन मुरली वाला। दे. ‘लाड’।

लात - (स्त्री.) (अर.<लत) - 1. पैर, पाँव leg 2. पैर से किया जाने वाला आघात। kick मुहा. लात खाना-अपमान सहना। लात मारना-तुच्छ समझकर त्याग देना। लातों के भूत-पिटाई के योग्य व्यक्‍ति। लतखोर-मार खाने का आदी।

लादना स.क्रि. - (तद्<लद्दण प्रा.) - 1. किसी आदमी या पालतू जानवर के ऊपर जरूरत से ज्यादा सामान रखना; किसी ऊँची वस्तु पर अधिक मात्रा में वस्तुएँ रखना। जैसे: मेज़ पर पुस्तकें लादना। 2. किसी को उसकी इच्छा के विरूद्ध कार्य करने के लिए विवश करना। 3. किसी को ऐसी जिम्मेदारी देना जो उसकी इच्छा के विरूद्ध हो।

लानत - (स्त्री.) (अर.<लअनत) - किसी के अशोभनीय आचरण पर कही जाने वाली अपमानपूर्ण उक्‍ति, धिक्कार, फटकार। प्रयो. आप बड़ों के साथ कैसा गंदा व्यवहार करते हैं, लानत है आपको।

लाना स.क्रि. - (देश.) - 1. किसी वस्तु या व्यक्‍ति को कहीं से लेना और लेकर दूसरी जगह आना। जैसे: नदी से पानी लाना। 2. सामने ले आना या उपस्थित करना। जैसे: पुलिस द्वारा अपराधी को न्यायालय में लाना।

लापता - (वि.) (तद्.) - जिसका पता न हो; जो खो गया हो। पर्या. अज्ञात।

लापरवाह - (वि.) (अर.+फा.) - शा. अर्थ बिना परवाह के।1. जिसे किसी बात की चिंता न हो। पर्या. निश्चित,बेफिक्र। 2. असावधान। careless

लिपटना अ.क्रि. - (तद्<लिप्) - 1. किसी वस्तु का दूसरी वस्तु से प्रगाढ़ रूप से संलग्न होना, लगना या चिपकना; चिपटना। जैसे: मेरे पैर में मिट् टी लिपट गई। 2. किसी वस्तु का चारों ओर से घूमते हुए कसकर लगना। जैसे: लताएँ वृक्षों से लिपटती हैं। 3. गले लगना/आलिंगन करना। जैसे: पुत्री माँ से लिपट गयी।

लोक - (पुं.) (तत्.) - शा.अर्थ दृश्य (दिखने वाला) जगत। सा.अर्थ 1. वह स्थान जिसका बोध प्राणी को हो या जिसकी कभी उसने कल्पना की हो। जैसे: इंद्रलोक, परलोक। 2. संसार। उदा. सकल लोक सूनौ लागत है। (सूरसागर)। 3. भुवन जैसे: स्वर्गलोक, भूलोक, पाताल लोक। 3. जनता, लोग उदा. लोकलखि बोलिए। (तुलसी) जैसे: लोक-हित।

लोक-चित्र - (पुं.) (तत्.) - लोक में प्रचलित परंपरागत चित्र।

लोकतंत्र - (पुं.) (तत्.) - राज्य की वह प्रणाली जिसमें शासन का अधिकार प्रत्यक्ष या अप्रत्यक्ष रूप से लोक (जनसामान्य) के हाथ में होता है। जनता का शासन। पर्या. जनतंत्र, प्रजातंत्र तु. राजतंत्र।

लोक-नाट्य - (पुं.) (तत्.) - नाटकों की जनसामान्य में प्रचलित वह शैली जो नाटकों की शास्त्रीय परंपरा के सिद् धांतों में बँधी नहीं होती। स्थानीय भाषा, परिवेश एवं शैली के अनुसार किया जाने वाला नाटक। जैसे: रामलीला, रासलीला, नुक्कड़ नाटक, स्वांग आदि।

लोक-परंपरा - (स्त्री.) (तत्.) - वह प्रथा, रिवाज़ जो जन-साधारण में यथावत् रूप से पीढ़ी दर पीढ़ी चले आ रहे हों।

लोकप्रिय - (वि.) (तत्.) - लोगों में प्रिय, समाज में प्रिय, जिससे सबका लगाव हो। पर्या. जनप्रिय। popular

लोकप्रियता - (स्त्री.) (तत्.) - लोकप्रिय होने का भाव। दे. लोकप्रिय।

लोकमंगल - (पुं.) (तत्.) - जन कल्याण। लोगों की भलाई की बातें या कार्य।

लोकमत - (पुं.) (तत्.) - 1. किसी विषय पर लोक या जनता की राय या अधिकांश जनता का मत/विचार। उदा. कहहुँ लोकमत वेदमत यह सि‍द् धांत मिचोरी तुलसी। public opinion 2. लोगों द्वारा दिया गया मत (वोट) जैसे: विधानसभा या लोकसभा के सदस्य चुने जाते हैं। public voting

लोकमानस - (पुं.) (तत्.) - शा.अर्थ जन-समुदाय का मन, हृदय। सा.अ. जन-साधारण के विचार या भावनाएँ।

लोक-लाज - (स्त्री.) (तद्.) - जन-भावना के प्रतिकूल कार्य करने में होने वाली लज्जा, शर्म। लोकाचार या लोक मर्यादा के उल्लंघन का भय।

लोक संगीत - (पुं.) (तत्.) - जनसामान्य में प्रचलित वह परंपरागत संगीत जिसमें गीत के बोल, वाद्य-यंत्र, गायन शैली आदि स्थानीय ही होती है। प्राय: स्थानीय देवता, पर्व, पारिवारिक उत्सव आदि से संबंधित पारंपरिक संगीत। folk music

लोकसभा - (स्त्री.) (तत्.) - भारतीय संसद का वह सदन जिसके सदस्य प्रत्यक्ष रीति से जनता के मतदान द्वारा निर्वाचित होते हैं तु. राज्य सभा।

लोकहित - (पुं.) (तत्.) - लोक-सेवा, लोक कल्याण।

लोकोक्‍ति - (स्त्री.) (तत्.) - लोक भाषा में अधिकता से प्रयुक्‍त कोई ऐसा तथ्य पूर्ण वाक्य जिसमें कोई अनुभव या उपदेश आदि की बात बड़े ही सरल रूप में कही गई हो। कहावत, मसल। जैसे: 1. होनहार बिरवान के होत चीकने पात। 2. समरथ को नहि दोष गुसाईं। 3. नौ दिन चले अढ़ाई कोस। दे. परिशिष्‍ट

लोकोत्‍तर - (वि.) (तत्.) - संसार में होने वाली बातों, पदार्थों से श्रेष्‍ठ, उत्‍तम अलौकिक; विलक्षण, अद्वितीय।

लोच - (स्त्री.) (देश.) - 1. लचीलापन, लचक। जैसे: 1. स्पंज, रबड़ के टुकड़े आदि में लोच होता है। 2. मृदुता। 3. कोमलतापूर्ण सौंदर्य। जैसे: उसमें तो आज भी वही आकर्षण, वही लोच है।

लोचन - (पुं.) (तत्.) - शरीर का वह अवयव जो किसी वस्तु को दिखाने का काम करे। पर्या. आँख, नेत्र, नयन, चक्षु।

लोचना अ.क्रि. - (तत्.) (तत्.) - 1. शोभा देना 2. इच्छा होना 3. ललचना, तरसना (लोचना+प्रेरणार्थक रूप) स.क्रि. 1. चमकाना, शोभा बढ़ाना। 2. रुचि उत्पन्न करना 3. ललचाना 4. विचार करना।

लोटना अ.क्रि. - (देश.) (दे.) - 1. पीठ और पेट के बल इधर उधर लुढक़ने की क्रिया। 2. करवटें बदलते रहना। 3. दे. लेटना।

लोटनिक गति - (स्त्री.) (तत्.) - लुढ़कने के रूप में होने वाली गति। जैसे: पहिए का लुढ़कना या बेलनाकार वस्तु का लुढ़कना। rolling

लोट-पोट - (स्त्री.) - (हिं.) लोटना लोटने या आराम करने की क्रिया। ला.अर्थ. हँसते-हँसते विह् वल हो जाना बहुत अधिक खुश या प्रसन्न होना।

लोटस टैंपल - (पुं.) - (अं.) 1. कमल के आकार का बना वह पवित्र धार्मिक स्थान जो ईरान के एक संत बहाउल्लाह द् वारा चलाए गए बहाई संप्रदाय के अनुयायियों द्वारा नई दिल्ली में स्थापित किया गया है और जहाँ दर्शनार्थी शांत मुद्रा में बैठकर साधना कर सकते हैं। 2. कमल मंदिर।

लोटा [लोट+आ] - (पुं.) (तद्.<लुठ्) - पानी रखने का संकरे मुँह का प्रसिद्ध गोल पात्र। लुढ़क सकने के कारण ‘लोटा’ नाम पड़ा। टि. छोटा पत्र लुटिया कहलाता है। अकं. (तद्.) ‘लोटना’ क्रिया का भूतकाल का रूप।

लोन - (पुं.) - (अं.) ऋण, कर्ज़।

लोन - (पुं.) (तद्.<लवण) - 1. लंबा, नमक 2. लावण्य, सौंदर्य। उदा. मानहुँ लोन जरे पर देई। (तुलसी. रा.च.मा.2/30/5) वि. सामान्यत: काव्य में प्रयुक्‍त।

लोप - (पुं.) (तत्.) - शा.अर्थ 1. न दिखने का भाव या स्थिति। 2. अंतर्धान होने का भाव। 3. अभाव, नाश, क्षय।

लोबान/लोहबान - (पुं.) (अर.) - एक वृक्ष का गोंद जो सुगंधित तथा औषधीय गुणों से युक्‍त होता है। इसे आग में डालने से कीटनाशक सुगंधित धुआँ उठता है। टि. धूप इत्यादि में इसका उपयोग होता है।

लोबिया - (पुं.) (देश.) - मूँग की तरह का एक प्रकार का बेल जैसा पौधा जिसमें लंबी फलियाँ लगती हैं तथा उसके बीजों को अन्य दालों की तरह नमकीन मसाले के साथ पकाकर खाया जाता है।

लोभ - (पुं.) (तत्.) - निर्वाह योग्य वस्तुएँ अपने पास होने पर भी उनका और अधिक संग्रह करने की इच्‍छा।

लोभी - (वि.) (दे.) - लोभ करने वाला। दे. लोभ।

लोमड़ी - (स्त्री.) (तद्.) - (सं.<लोमशा) 1. कुत्‍ते की प्रजाति का, नुकीली नाक, गुच्छेदार पूंछ और घने लाल बालों वाला एक प्रसिद्ध, स्तनपायी जंगली छोटा पशु। 2. (ला.) चलाक स्त्री। विशे. बालकथाओं में इस प्राणी को अत्यंत चालाक और धूर्त प्राणी के रूप में वर्णित किया जाता है।

लोरी - (स्त्री.) (देश.) - एक प्रकार का मधुर गीत जिसे स्त्रियाँ प्राय: अपने बच्चों को सुलाने के लिए गाती हैं।

लोलुप - (वि.) (तत्.) - 1. लोभी, लालची। 2. किसी वस्तु को जल्दी पाने की अत्यधिक इच्छा वाला, अधीर अत्यंत उत्सुक। जैसे: धन-लोलुप, निष्‍ठान्न लोलुप, सत्‍ता-लोलुप आदि।

लोहड़ी - (स्त्री.) - 1. मकर संक्रांति (14 जनवरी) से एक दिन पहले वाले दिन को मनाने का त्योहार, जिसमें रात्रि के प्रारंभ के समय लकड़ी जला कर अग्नि की पूजा करते हैं और लोगों में मक्के के फुल्ले, रेवड़ी, मूंगफली आदि का प्रसाद बाँटते हैं। 2. उक्‍त त्योहार के समय गाये जाने वाला गीत।

लोहा - (पुं.) (तद्.<लौह) - काले रंग की प्रसिद्ध धातु जिसमें हथियार, बरतन, औजार तथा मशीनों के कलपुर्जे बनाए जाते हैं। मुहा. लोहा मानना= आधिपत्य स्वीकार करना। लोहे के चने चबाना= युद्ध में बुरी तरह हारना। लोहा लेना= सामना करना।

लोहार - (पुं.) (तद्.<लौहकार) - लोहे का औज़ार बरतन आदि बनाने वाली एक जाति।

लौटना अ.क्रि. - (देश. उलटना) - 1. कहीं जाकर फिर उसी स्थान पर वापस आना। जैसे: 1. मैं कल ही कश्मीर से लौटा हूँ। 2. पीछे की ओर घूमना, मुड़ना। 2. जब मैं पीछे लौटा, तब देखा कि मित्र भागा आ रहा है। वापसी, पलटकर आना। 3. किसी वस्तु का वापस आ जाना। जैसे: चिट्ठी का लौटना।

लौह - (पुं.) (तत्.) - काले से रंग की एक धातु, जिसके बर्तन, हथियार, यंत्र आदि बनते हैं। पर्या. लोहा।

लौह-कवच - (पुं.) (तत्.) - लोहे का बना कवच (कवच = आत्म रक्षा के लिए धारण किया हुआ साधन, जैसे: लोहे की जाली या आवरण, गवीज, सिद् ध मंत्र आदि।) टि. प्राचीन एवं मध्य काल में युद्ध के समय योद्धा लोग इस कवच को धारण करते थे, जिससे शत्रुओं के आक्रमण से बचा जा सके।

लौह - (तत्) (तत्.) - एक रासायनिक तत् व जिसका प्रतीक एफ-ई तथा परमाणु क्र. 26 है। यह प्राय: अयस्क रूप में पाया जाता है। हीमोग्लोबीन का यह प्रमुख उपघटक है। पर्या. लोहा। iron

लौहस्तंभ - (पुं.) (तत्.) - लोहे का बना स्तंभ = खंभा। (आयरन पिलर)। जैसे: कुतुबमीनार के पास स्थित लौह स्तंभ अति प्राचीन है।

ल्यूकीमिया - (पुं.) - (अं.) (श्‍वेतरक्‍तता/रुधिर कैन्सर) रक्‍त-उत्पादक अंगों का दुर्दम रोग जिसमें रक्‍त में श्‍वेत रक्‍त कोशिकाएँ एवं उनकी पूर्वगामी कोशिकाओं की संख्या बढ़ जाती है। पर्या. श्‍वेत रक्‍तता; रुधिर कैन्सर।

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वंचक - (वि.) (तत्.) - ठगने वाला, ठग, धोखेबाज। दे. वंचना।

वंचना - (स्त्री.) (तत्.) - छलपूर्वक ठगने या धोखा देने का भाव। पर्या. छल, छल-कपट, ठगी, धोखा, धोखबाजी।

वंचित [वंच + इत] - (वि.) (तत्.) - जिसे किसी वस्तु, काम या बात से अलग या दूर रखा गया है। deprieved

वंदन - (पुं.) (तत्.) - 1. प्रणाम, नमस्कार जैसे: हम आपको वंदन करते हैं। 2. स्तुति 3. पूजन।

वंदनवार (बंदनवार) - (स्त्री.) (तत्.< वंदनमाला) - सुन्दर पत्तों, फूलों आदि से निर्मित वह झालर या माला जो मंगल अवसरों पर दरवाजे, मंडप आदि पर बाँधी जाती है। पर्या. तोरण।

वंदना - (स्त्री.) (तत्.) - 1. स्तुति 2. अभिवादन 3. धार्मिक प्रार्थना 4. स्तुतिपरक गीत। जैसे: प्रात: विद्यार्थियों द्वारा की जाने वाली विद्यालयी वंदना (प्रार्थना)।

वंदनीय - (वि.) (तत्.) - जो वंदना करने योग्य हो। दे. वंदना। जैसे: महात्मा गाँधी हमारे लिए वंदनीय है।

वंश - (पुं.) (तत्.) - खानदान या कुल; राजा या शासक के पूर्वजों की पीढि़या। जीन जीव वर्गीकरण की इकाई जिसका स्थान कुल के नीचे और जाति के ऊपर आता है। उदा. मानववंश ‘होमो’। genes

वंशज [वंश+ज=पैदा हुआ] - (स्त्री.) - 1. किसी वंश में पैदा होने वाला व्यक्‍ति, खानदानी। 2. वंश-परंपरा या श्रृंखला का एक हिस्सा। descendent वंशजा)

वंश परंपरा - (स्त्री.) (तत्.) - 1. किसी वंश में उत्पन्न पुरुषों की पहले से लेकर आज तक की संतान श्रृंखला या क्रमिक सूची। 2. वंशानुक्रम। जैसे: रघु की वंश परंपरा में श्रीराम हुए।

वंशवाद - (पुं.) - अपने ही वंश के व्यक्‍तियों को यानी भाई-भतीजों को वरीयता देने की (अनुचित) प्रवृत्‍ति। पर्या. भाई-भतीजावाद। nepotism

वंशवृक्ष - (पुं.) (तत्.) - वृक्ष (और उसकी शाखा-प्रशाखाओं) के रूप में चित्रित वंशावली जिसमें उस वंश के मूल पुरुष से लेकर बाद की पीढि़याँ दर्शाई जाती हैं। pedigree

वंशाणु [वंश +अणु] - (पुं.) (तत्.) - दे. जीन।

वंशानुगत [वंश+अनुगत] - (वि.) (तत्.) - एक पीढ़ी से दूसरी पीढ़ी में चलता आया (लक्षण/रोग) आदि। पर्या. आनुवंशिक।

वंशावली [वंश+अवली] - (स्त्री.) (तत्.) - वंश पुं. (तत्.) = परिवार, खानदान। अवली स्त्री. तत् = पंक्‍ति, श्रेणी, झुंड। किसी वंश के लोगों की कालक्रम के अनुसार बनी हुई सूची। genealogy

वकालत - (स्त्री.) (अर.) - 1. किसी की ओर से तर्कसम्‍मत अनुकूल बातचीत करना, पैरवी। 2. दूतकर्म 3. अदालत में वकील का काम, वकील का पेशा 3. कानून की पढ़ाई। जैसे: मेरे भाई ने वकालत की डिग्री ले ली है।

वकील - - 1. वह विशेषज्ञ जिसने वकालत (कानून) की परीक्षा उत्तीर्ण की हो तथा जो व्यवसाय के तौर पर न्यायालय में किसी पक्ष की ओर से प्रस्तुत होकर मामले की पैरवी करे। advocate 2. जो किसी एक पक्ष का समर्थन करे।

वक्‍त - (पुं.) - (अ.<वक्‍़त) 1. समय। उदा. क्या वक्‍त हुआ है? 2. मौका, अवसर। 3. फुरसत उदा. तुम्हारे यहाँ आने का मुझे वक्‍त ही नहीं मिला। 4. मृत्यु का समय। उदा. हर व्यक्‍ति को वक्‍त आने पर जाना ही पड़ता है। मुहा. वक्‍त की मार पड़ना-कष्‍ट अथवा विपत्‍ति के दिन आ जाना।

वक्‍तव्य - (पुं.) (तत्.) - 1. किसी विषय पर कही गई कोई विशेष बात या किसी के द्वारा विशेष विषय पर की गई कोई चर्चा, कथन, वचन। 2. विशेष रूप से ऐसी बात जो किसी विषय को स्पष्‍ट करने के लिए कही गई हो। statement उदा. पर्यावरण पर आपका वक्‍तव्य प्रभावशाली था।

वक्‍ता - (वि.) (तत्.) - 1. बोलने वाला, वक्‍तव्य देने वाला 2. भाषण देने वाला 3. कथा कहने वाला, कथावाचक। विलो. श्रोता।

वक्‍तृत्व - (पुं.) (तत्.) - 1. वक्‍ता होने की स्थिति/गुण/भाव। 2. उत्‍तम ढंग से बोलने या भाषा देने की योग्यता या ढंग। 3. भाषण, व्याख्यान। जैसे: आज आपके वक्‍तृत्व से सभी खुश थे।

वक्र - (वि.) (तत्.) - 1. टेढ़ा, तिरछा अर्थात् जो सीधा न हो। 2. घुँघराला। उदा. 1. वक्र चन्द्रमहिं न राहू। विलो. ऋजु, सरल। 3. कुछ झुका हुआ, नमित। (ला.) क्रूर, धूर्त या कुटिल।

वक्ष - (पुं.) (तत्.<वक्षस्) - शरीर में कंठ और उदर (पेट) के बीच का भाग। पर्या. छाती, सीना। जैसे-श्रीकृष्ण के वक्ष स्थल में कौस्तुम मणि सुशोभित है।

वक्षस्थल - (पुं.) (तत्.) - दे. वक्ष।

वगैरह/वग़ैरा - (अव्य.) - (अ. <वगैरा) समान प्रकार की अन्य वस्तुओं, बातों को प्रकट करने हेतु प्रयुक्‍त शब्द। पर्या. आदि, इत्यादि। जैसे: क्या तुमने परीक्षा के लिए पेन, पेंसिल, रबड़ वगैरह सब चीजें खरीद लीं?

वचन - (पुं.) (तत्.) - शा.अर्थ. आदमी की सार्थक वाणी या शब्दावली। पर्या. शब्द, वाणी, वादा। ला.अर्थ प्रतिज्ञा, वादा। व्याकरण में एक और अनेक के बोधक शब्द, ‘एकवचन’, ‘बहुवचन’।

वचनबद्ध [वचन + बद्ध] - (वि.) (तत्.) - शा. अर्थ जो वचन से बँधा हुआ हो, सा.अर्थ जिसने वचन दिया हो। जो अपने वचन से मुकरता न हो।

वचनबद्धता [वचनबद्ध + ता भाव. प्रत्य] - (स्त्री.) (तत्.) - अपने वचन के पालन करने में अडिग रहने का भाव। commitment दे. वचनबद्ध। विलो. वादा-खिलाफी।

वज़ह - (स्त्री.) (अर.) - कारण। उदा. कौन-सी वज़ह थी कि आप मेरे यहाँ नहीं आए?

वज़ीफा - (पुं.) - (अरबी >वजीफ:) 1. विद्यार्थी को पढ़ने में सहायता के लिए प्रदान किये जाना वाला धन। छात्रवृत्‍ति। 2. भरण-पोषण आदि की दृष्‍टि से दी जाने वाली आर्थिक सहायता। जैसे: हमारे विद्यालय में सर्वोत्‍तम अंक पाने वाले छात्र को भी वज़ीफा मिलता है 3. मुस्लिम मतानुसार कुरान की आयतों का जप।

वजू - (पुं.) (अर.) - वुज़ू नमाज से पहले हाथ-पाँव और मुँह धो लेने की क्रिया।

वज्र - (पुं.) (तत्.) - 1. इन्द्र का प्रधान शस्त्र जो महर्षि दधीचि की हडि्डयों से निर्मित माना जाता है। 2. आकाश में बिजली चमकने और बादलों की घोर गर्जना के साथ पृथ्वी पर गिरने वाला वह विद् युत प्रवाह जो बहुत घातक सिद् ध होता है। जैसे: आज भारी वर्षा के साथ वज्रपात हुआ। 3. हीरा नामक रत्‍न। वि. [समास में प्रयुक्‍त] बहुत कठोर तीव्र वज्र जैसा। जैसे- वज्रमूर्ख, वज्रहृदय, वज्रलेप आदि।

वज्रपात - (पुं.) (तत्.) - 1. बिजली चमकने के साथ बादलों की बहुत तेज गर्जना के बाद बिजली का पृथ्वी पर गिरना जो बहुत ही भयंकर व घातक होता है। 2. वज्र सा गिरना या भारी विपत्‍ति। 3. सहसा होने वाला कोई बड़ा अनिष्‍ट।

वणिक् - (पुं.) (तत्.) - व्यापार से जीविका कमाने वाला व्यापारी। पर्या. वैश्य, बनिया।

वतन - (पुं.) - (अ.) 1. मूल-स्थान, मूल निवास-स्थान। 2. जन्म-भूमि, मातृभूमि, स्वदेश।

वतन-परस्ती - (स्त्री.) - ‘देशभक्‍ति’।

वत्स - (पुं.) (तत्.) - 1. गाय का बच्चा; बछड़ा 2. पुत्र (संतान) 3. उम्र में काफी छोटे के लिए स्नेहसूचक संबोधन शब्द ‘वत्स’।

वत्सल - (वि.) (तत्.) - 1. पुत्र या संतान का अत्यधिक लाड करने वाला। बालकों से पुत्रवत् प्रेम करने वाला।

वत्सलता - (स्त्री.) (तत्.) - वत्सल होने का भाव या गुण

वत्सला - (वि.) - 1. स्नेहपूर्ण 2. वह (गौ) जिसे बछड़ा या बछिया प्रिय हो।

वध - (पुं.) (तत्.) - किसी मनुष्य या पशु को सोचते समझते हुए किसी विशेष उद् देश्य से मार डालना। जैसे: कसंवध। पर्या. हत्या (हत्या अकारण भी हो सकती है।)

वधू - (स्त्री.) (तत्.) - 1. वह कन्या जिसका विवाह मंडप में हो रहा हो। 2. नवविवाहिता स्त्री, दुलहिन। 3. पुत्र की पत्‍नी। पर्या. बहू जैसे: बहू गणमान्य लोगों ने वधू को आशीर्वाद दिया।

वन - (पुं.) (तत्.) - आवासीय भूमि (नगर, गांव आदि) से दूर वृक्षों से युक्‍त विस्तृत भू-भाग या क्षेत्र। 1. पर्या. जंगल तु. 2. उपवन।

वन-महोत्सव [वन + महोत्सव (महा + उत्सव] - (पुं.) (तत्.) - पर्यावरण को शुद् ध रखने के लिए एवं वनों का विस्तार करने के लिए सरकार की ओर से चलाया जाने वाला विशेष रूप से वर्षा-ऋतु में वन और वृक्ष आदि लगाने का विशेष कार्यक्रम।

वनमानुष - (पुं.) (तद्.) - वानर की एक जाति जो मनुष्‍य की आकृति वाली होती है, गोरिला।

वन रोपण - (पुं.) - शा.अर्थ वन का (यानी पेड़ों का) रोपा जाना। (पर्यावरण सुरक्षा के लिए) खुली ज़मीन पर पेड़ लगाकर उसे वन में बदल लेने की व्यापक क्रिया।

वनवास (वन में वास) - (पुं.) (तत्.) - बस्ती छोडक़र वन (जंगल), में रहना या जीवन-यापन करना। उदा. राम को 14 वर्ष का वनवास मिला।

वनवासी - (वि.) (तत्.) - वन का वासी’, वन या जंगल में रहने वाला। 2. जिसे वनवास दिया गया हो। ‘वनवासी थे राम, राज्य था कानन में भी। सच ही है श्रीमान् भोगते सुख वन में भी।’ पु. तत्. वन या जंगल में रहने वाले लोग या जन (कबीले) जैसे: वनवासी जनजातियाँ। 3. मूँगफली आदि का जमाया हुआ तेल एक चिकना घी जैसा पदार्थ/ वनस्‍पित घी जैसे डालडा आदि।

वनस्पति - (स्त्री.) (तत्.) - 1. सा.अर्थ पेड़-पौधे, बेलें या लताएँ आदि। 2. जीवधारियों के दो मुख्य प्रकारों में से वह प्रकार जिसके सदस्य गतिशील नहीं होते और जिनकी कोशिका में उपलब्ध पर्णहरित chalarophil उनके लिए ‘भोजन’ तैयार करता है।

वनस्पति - - जगत् सजीव जगत् की दो शाखाओं में से एक जिसके अंतर्गत सभी पेड़-पौधे आते हैं। पर्या. पादप जगत् vegetable kingdom flora

वनस्पति-जात (वनस्पति + जात) - (वि.) (तत्.) - ‘वनस्पति यानी वृक्षों एवं लताओं आदि से पैदा होने वाली वस्तुएँ।

वनस्पतिज्ञ - (दे.) - वनस्पति विज्ञान का ज्ञाता (जानकार) यानी विशेषज्ञ। दे. वनस्पति विज्ञान।

वनस्पति विज्ञान - (पुं.) (तत्.) - जीव विज्ञान की वह शाखा जिसमें वनस्पति यानी पेड़-पौधों, लताओं आदि का बहुविध (उत्पत्‍ति स्वरूप, विकास आदि का) अध्ययन किया जाता है। botany तु. प्राणिविज्ञान/जंतु विज्ञान।

वनस्पति संग्रहालय - (पुं.) (तत्.+तत्.) - वह दर्शनीय स्‍थान जहॉं लगभग सभी प्रकार की वनस्‍पतियों का संग्रह होता है। यह प्राय: खुले उद्यान के रूप में होता है। harbarium

वनिता - (स्त्री.) (तत्.) - 1. नारी, स्त्री, तरुणी 2. पत्‍नी 3. प्रेमिका।

वनोन्मूलन - (पुं.) (तत्.) - जंगल या वन को अर्थात् वहाँ के पेड़-पौधों को जान बूझकर अथवा गलत नीतियों का अनुसरण करने के फलस्वरूप उजाड़ देने का (अनुचित) कार्य। deforestation.

वन्यजीव - (पुं.) (तत्.) - वनों में मुक्‍त विचरण करने वाले प्राणी। जैसे: जंगली पशु, पक्षी, सरीसृप आदि।

वफ़ा - (स्त्री.) (तत्.) - निष्‍ठा; कर्तव्यपरायणता; स्वामिभक्‍ति दे वफ़ादार विलो. बेवफ़ाई।

वफ़ादार [वफ़ा + दार] - (वि.) (अ.+फा.) - जो वफ़ा या कर्त्तव्य-पालन करने वाला हो। (व्यक्‍ति या पशु) जो अपने मालिक या मित्र के प्रति कर्तव्य-पालन में निष्‍ठावान रहे और आपत्‍ति में भी उसका साथ न छोड़े। पर्या. स्वामिभक्‍त, निष्‍ठावान, कर्तव्यपरायण। जैसे : कुत्‍ता। विलो. बेवफ़ा।

वफ़ादारी - (स्त्री.) (अ.+फा.) - वफ़ा अ. सा.अर्थ वचन का पालन, निष्‍ठा, कर्तव्य पालन। 1. वफादार होने की भावना। 2. स्वामिभक्‍ति, निष्‍ठा 3. स्वामी या मित्र का तन, मन, धन से साथ देना। 4. कृतज्ञ होने का भाव। पर्या. कृतज्ञता, निष्‍ठा, निर्वाह। विलो. बेवफ़ाई, दग़ाबाज़ी, कृतघ्नता।

वमन - (पुं.) (तत्.) - आमाशय के पदार्थों का मुँह से होकर जबरदस्ती बाहर निकलना यानी उल्टी होना। बाहर निकालने की क्रिया। जैसे: विष-वमन। आयु. उलटी या कै करना। vomitting

वय - (पुं.) (तत्.) - 1. बीता हुआ जीवनकाल, अवस्था, उम्र। 2. युवावस्था का आरंभ या उसकी उम्र। वि. उम्र जन्म से मृत्यु पर्यन्त किसी भी समय तक के काल को कहते हैं पर वय एक विशेष समय तक के काल को कहते हैं। वय शब्द का स्वतंत्र प्रयोग कम होता है, अधिकतर सामाजिक शब्द ही मिलते हैं।

वयस्क - (वि.) (तत्.) - 1. बालिग, 18 साल की उम्र के युवा-युवती। 2. जो निर्धारित वय (उम्र) प्राप्‍त कर चुका हो, अर्थात् जिसमें अपने घर के व्यापार-धंधों को संभालने की बुद् धि हो (सामान्यत: 18 वर्ष)। 3. पूर्णतया विकसित एवं परिपक्व (व्यक्‍ति अथवा जीव)।

वयस्क मताधिकार - (पुं.) (तत्.) - राज. निर्धारित वय प्राप्‍त कर चुके व्यक्‍तियों का बिना किसी भेदभाव के मतदान कर सकने का अधिकार और तत् संबंधी व्यवस्था।

वयोवृद्ध [वयस्/वय:+वृद्ध] - (वि.) (तत्.) - व्यु. अर्थ आयु (वय) में बड़ा (वृद्ध) विक. अर्थ सामान्यत: साठ वर्ष से अधिक आयु वाला व्यक्‍ति। पर्या. वरिष्‍ठ (नागरिक), बूढ़ा senior sitizen

वर - (वि.) (तत्.) - 1. चुनाव की दृष्‍टि से श्रेष्‍ठ उत्‍तम 2. चुने जाने या पसंद किए जाने के योग्य। पुं. 1. कन्या के विवाह के लिए उपयुक्‍त पात्र, नव विवाहिता स्त्री का पति। 2. स्तुति, सेवा, सुकर्म आदि के फलस्वरूप किसी देवता या महापुरुष द् वारा दिया गया आशीर्वचन।

वरक - (पुं.) (अर.वर्क) - 1. पन्‍ना (आगे-पीछे के दोनों पृष्‍ठ) 2. चाँदी या सोने के छोटे से टुकड़े को कूट पीटकर बनाया गया पन्‍ना जिसे पान, मिठाई आदि पर शोभा के लिए लगाया जाता है। कभी-कभी देव मूर्ति पर भी लगाया जाता है।

वरद - (वि.) (तत्.) - 1. वर देने वाला। 2. मनोरथ पूर्ण करने वाला। 3. अभीष्‍ट वस्तु देने वाला।

वरदहस्त - (वि.) (तत्.) - वर देने की हस्तमुद्रा से युक्‍त। वर देने वाला। मुहा. वरदहस्त होना = कृपालु होना। जैसा: मंत्री जी का वरदहस्त होने से उसका कोई कुछ बिगाड़ नहीं सकता।

वरदा - (वि.) (स्त्री.) - 1. वर देने वाली, वरदायिनी 2. सरस्वती।

वरदान [वर+दान] - (पुं.) (तत्.) - वर देना; दिया गया वर। दे. ‘वर’।

वरन् अन्य - (देश.) - बल्कि, अपितु जैसे: विद् या से व्यक्‍ति विद्वान ही नहीं होता वरन् धनवान भी होता है।

वरिष्‍ठ - (वि.) (तत्.) - 1. जो अपने वर्ग में सबसे बड़ा हो। 2. पद में बड़ा या अन्यों से उच्च या ज्येष्‍ठ उदा. श्री सुयश वरिष्‍ठ लेक्चरर हैं। 3. वयोवृद्ध। जैसे: आज यहाँ वरिष्‍ठ नागरिकों को सम्मानित किया गया। विलो. कनिष्‍ठ।

वरिष्‍ठता - (स्त्री.) (तत्.) - वरिष्‍ठ होने की अवस्था या भाव। जैसे: कर्मचारियों की पदोन्नति वरिष्‍ठता सूची के अनुसार होगी। दे. वरिष्‍ठ।

वरीयता - (स्त्री.) - क्रमानुसार, वरिष्‍ठता।

वरुण - (पुं.) (तत्.) - 1. जल या पानी का स्वामी-एक वैदिक देवता। 2. सौर परिवार के दूरस्थ ग्रह ‘neptune’ के लिए प्रयुक्‍त भारतीय पर्याय।

वर्कशाप - (स्त्री.) - (अं.) 1. किसी समसामयिक विषय पर आयोजित की जाने वाली विशेष कार्य योजना/कार्यशाला। जैसे: आज केंद्रीय माध्यमिक शिक्षा बोर्ड के सी.सी.ई. पाठ्यक्रम से संबंधित एक वर्कशाप का आयोजन किया गया। 2. कारखाना।

वर्ग - (पुं.) (तत्.) - सा.अर्थ एक ही प्रकार की वस्तुओं अथवा व्यक्‍तियों का समूह। 1. श्रेणी, 2. दल, 3. विभाग। 1. गणि (i) समान भुजाओं और समान कोणों वाला चतुर्भुज; (ii) किसी राशि को उसी राशि से गुणा करने पर प्राप्‍त फल। square 2. शिक्षा-विद्यालय में पढ़ने वाले छात्रों का विभाजन। जैसे- चौथा वर्ग। पर्या. दर्ज़ा class 3. व्‍याकरण एक स्थान से उच्चरित वर्णों का समूह। जैसे: कवर्ग, चवर्ग आदि। 4. जीव-जीव वर्गीकरण की इकाई जिसका स्थान संघ group के नीचे और गण order के ऊपर आता है। उदा. संधिपादों का कीट वर्ग। class

वर्गीकरण [वर्ग+ई+करण] - (पुं.) (तत्.) - श्रेणी या वर्गों के अनुसार-वस्तुओं को अलग-अलग बाँटना अथवा विभाजित करना और फिर उन्हें उसी क्रम में लगाना। classification

वर्गीकृत - (वि.) (तत्.) - वर्णों के अनुसार बँटा हुआ। विभाजित किया हुआ। जैसे: वर्गीकृत विज्ञापन पत्र-पत्रिकाओं में वैवाहिक, शैक्षिक, आजीविका संबंधी प्रकाशित विज्ञापन।

वर्चस्व - (पुं.) (तत्.) - (< वर्चस्) 1. तेज; शक्‍ति, 2. महत्व, प्रबलता, प्रधानता।

वर्जित - (वि.) (तत्.) - 1. जिसके संबंध में नियमानुसार या आदेशानुसार मनाही की गई हो, त्याज्य, निषिद्ध। जैसे: यहाँ धूम्रपान वर्जित है। 2. त्यागा हुआ या छोड़ा हुआ।

वर्ण - (पुं.) (तत्.) - 1. वस्तुओं के विभिन्न रंगों के (लाल, पीले, हरे और नीले आदि के) भेदों का वाचक शब्द। 2. वस्तुओं को रँगने वाला पदार्थ अर्थात् रंग। 3. शारीरिक रंग के आधार पर किया जाने वाला विभाजन। यथा गौरवर्ण, कृष्ण वर्ण, पीत वर्ण, गोधूम वर्ण आदि। 4. हिन्दुओं में परंपरागत जातिसूचक शब्द। जैसे: वर्ण व्यवस्था। जाति-भेद। 5. भाषाओं की वर्णमाला का पारंपरिक लिपिचिह् न अक्षर जो उच्चरित स्वर (ध्वनि) का दृश्य-प्रतीक है। जैसे- देवनागरी वर्णमाला के क, च, ट आदि वर्ण; रोमन वर्णमाला के a, b, c आदि; यूनानी वर्णमाला के एल्फा, बीटा, गामा के संकेत चिह् न।

वर्णन - (पुं.) (तत्.) - 1. कथन 2. किसी बात का कहकर या लिखकर प्रस्तुत लंबा और ब्योरेवार विवरण। description

वर्णनातीत [वर्णन+अतीत] - (वि.) (तत्.) - जिसका वर्णन न किया जा सके; जो वर्णन से परे हो; जिसका वर्णन किया जाना संभव न हो।

वर्णमाला - (स्त्री.) (तत्.) - किसी भी भाषा की समस्त स्वर-व्यंजन ध्वनियों के चित्रात्मक लिखित रूपों के समूह को ‘वर्णमाला’ कहते हैं। टि. प्रत्येक भाषा में वर्णों की संख्या भिन्न-भिन्न हैं। जैसे: हिन्दी भाषा में 46 वर्ण हैं। अंग्रेजी भाषा में 26 वर्ण हैं। alphabets

वर्णव्यवस्था - (स्त्री.) (तत्.) - प्राचीन भारत की वह सामाजिक व्यवस्था जिसमें समाज गुण और कर्म के अनुसार ब्राह्मण, क्षत्रिय, वैश्य और शूद्र इन चार वर्णों (जातियों) में व्यवस्थित था। प्रत्येक वर्ण के कर्म निर्धारित थे, जिनका पालन प्रत्येक वर्ण के लिए आवश्यक था।

वर्तनी - (स्त्री.) (तत्.) - उच्चरित शब्द का वर्णमाला क्रम में लिखित रूप। पर्या. हिज्जे spelling

वर्तमान - (वि.) (तत्.) - 1. जो इस समय हो या चल रहा हो। existence 2. उपस्थित, विद्यमान present 3. आधुनिक, आज-कल का। 4. व्याकरण में क्रिया का वह काल जिसमें क्रिया घटित हो रही हो। present indefinite या conntinuous

वर्दी/वरदी - (स्त्री.) - (अ.) 1. वह समान प्रकार की वेशभूषा या पहनावा जो किसी विद् यालय के छात्रों के लिए या किसी विशेष विभाग के कर्मचारियों के लिए नियत हो। uniform टि. वर्दी से ही विद्यालय या संबंधित विभाग की पहचान हो जाती है।

वर्ना/वरना - - (अ.) (फा.वर्न:) अन्यथा, नहीं तो। जैसे: आप मेरा सामान दे दीजिए वरना आपको बहुत परेशानी का सामना करना पड़ेगा।

वर्ष - (पुं.) (तत्.) - काल गणना में बारह महीनों का या तीन सौ पैंसठ दिनों का समूह। पर्या. साल, बरस।

वर्षगाँठ - (स्त्री.) (तत्.) - [वर्ष+गाँठ(ग्रन्थि] + तद् प्रति वर्ष आने वाला जन्मदिन, सालगिरह। जैसे: आज मेरे मित्र की वर्षगाँठ धूमधाम से मनाई गई।

वर्षण - (पुं.) (तत्.) - 1. बरसने की क्रिया या भाव। उदा. कृषि हेतु जलवर्षण आवश्यक है। 2. वर्षा होना। पर्याप्‍त जलवर्षण से खेती अच्छी है। 3. वृष्‍टि, आकाश से वर्षा के रूप में गिरना। उदा. जलवर्षण, पुष्पवर्षण। दे. वर्षा।

वर्षा - (स्त्री.) (तत्.) - 1. बरसने की क्रिया या भाव। जैसे: जल वर्षा, पुष्प वर्षा, बम वर्षा आदि। पर्या. वृष्‍टि। 2. वह ऋतु जिसमें जलवर्षा (पानी की बरसात) होती है, यथा सावन, भादों आदि का समय।

वर्षाऋतु - (स्त्री.) (तत्.) - छह ऋतुओं में से एक ऋतु जिसका क्रम ग्रीष्म के बाद आता है और जिसमें आसमान से मेघ पानी बरसाते हैं। बरसात, पावस।

वर्षाकाल [वर्षा+काल] - (पुं.) (तत्.) - 1. बरसात का मौसम, बरसात का समय 2. वर्षा ऋतु। उदा. वर्षाकाल में आकाश मेघाच्छन्न हो जाता है।

वलय - (पुं.) (तत्.) - 1. (गोलाकार) घेरा या मंडल। 2. हाथ में पहनने का कंगन, चूड़ी, छल्ला आदि।

वलित - (वि.) (तत्.) - 1. जो झुका या मुड़ा हुआ हो। गोलाकार घिरा हुआ; लिपटा हुआ; बल खाया हुआ। 2. भू. पर्वत के तीन प्रकारों में से एक ‘वलित पर्वत’ जिनकी सतह ऊबड़-खाबड़ तथा शिखर शंक्वाकार (शंकु आकार वाले) होते हैं। जैसे: हिमालय, आल्प्स बलित पर्वत हैं। अरावली विश्‍व की सबसे प्राचीन वलित पर्वत शृंखला है।

वल्कल - (पुं.) (तत्.) - 1. पेड़ की छाल। 2. पेड़ की वह छाल, जिसे आश्रमवासी तापस एवं तपस्विनी वस्त्र के रूप में पहना करते थे। उदा. 1. वल्कलधारी तपस्वी। 2. वल्कलधारिणी शकुन्तला।

वल्द - (पुं.) (अर.) - (का) पुत्र, बेटा। जैसे: विजय वल्द प्रताप सिंह अर्थात् प्रताप सिंह का पुत्र विजय। son of

वल्दियत - (स्त्री.) (अर.) - 1. माता-पिता के नाम का परिचय। जैसे: उस बेचारे की वल्दियत का पता ही नहीं है।

वल्लभी (विश्‍वविद्यालय) - (स्त्री.) (तत्.) - गुजरात की एक प्राचीन नगरी जहाँ एक प्राचीन विश्‍वविद् यालय स्थापित था।

वश - (पुं.) (तत्.) - 1. किसी को नियंत्रित करने/रखने की शक्‍ति की सीमा। सामर्थ्‍य, काबू जैसे: उसे रोकना तुम्‍हारे वश में नहीं है। 2. अधीनत्‍व, स्‍वामित्‍व, कब्‍जा। जैसे: हाथी अंकुश से वंश में किया जाता है। मुहा. वशीभूत होना/करना= वंश में आ जाना/कर लेना।

वसंत बहार [वसंत+बहार] - (स्त्री.) - (वसंत+बहार) वसंत ऋतु की बहार अर्थात् वसंत की शोभा या रौनक। 1. वसंत ऋतु का आनंद 2. वसंत कालीन सुंदर मौसम। 3. संगीत का एक राग। spring

वसन - (पुं.) (तत्.) - 1. कपड़ा, वस्त्र, परिधान। उदा. कटि पर लिपटा था नवल वसन वैसा ही हल्का बुना नील। (जयशंकर प्रसाद कामायनी) 2. रहना, बसना 3. आवरण।

वसा - (स्त्री.) (तत्.) - जीव. लिपिड़ों का मिश्रण जो सामान्य ताप पर ठोस हो जाते हैं। उदा. घी, मक्खन आदि। fat

वसा अम्ल - (पुं.) (तत्.) - रसा. कार्बनिक एलिफैटिक अम्ल जिसमें प्राय: सीधी शृंखलाएँ और समसंख्यक कार्बन अणु होते हैं। ये वसाओं और तेलों में पाए जाते हैं। (fatty acid)

वसीयत - (स्त्री.) (अर.) - मरने के बाद धन-संपत्‍ति के प्रबंधन के विषय में या वितरण के लिए जीवनकाल में दिया गया अंतिम लिखित निर्देश। जैसे: मेरे मित्र की वसीयत के अनुसार उसकी सारी संपत्‍ति एक ट्रस्ट के नाम कर दी गई है।

वसीयतनामा - (पुं.) (अर.) - कानून सम्‍मत वह लेख या पत्र जिसमें वसीयत के समस्त प्रावधान हों। दे. वसीयत। will

वसुंधरा - (स्त्री.) (तत्.) - शा.अर्थ वसुओं (धन, स्वर्ण आदि) को धारण करने वाली। सा.अर्थ पृथ्वी। पर्या. धरती, वसुधा, वसुमती। सूक्‍ति वीरभोग्या वसुंधरा।

वसुधा [वसु=मूल्यवान धातुएँ और रत्‍न+धा-धारण करने वाला/वाली]। - (स्त्री.) (तत्.) - शा.अर्थ रत्‍नों को अपने गर्भ धारण करने वाली। पृथ्वी, धरती।

वसूलना - (स्त्री.) (अर.<वसूल) - स.क्रि. 1. किसी को सौंपी गई वस्तु या धन को वापस लेना। recovery 2. देय कर आदि को नियमानुसार प्राप्‍त करना। पर्या. समाहरण collection

वसूली - (स्त्री.) (अर.) - 1. लोगों से नियमानुसार अथवा बलपूर्वक प्राप्‍त की जाने वाली कोई वस्तु धनराशि या अन्य प्राप्‍ति। collection 2. दूसरे से अपना धन या वस्तु लेने की क्रिया का भाव, उगाही। recovery

वस्तु - (स्त्री.) (तत्.) - 1. वह जिसका अस्तित्व हो; दिखाई देने वाला वास्तविक पदार्थ। पदार्थ, चीज़। thing, article 2. विवेच्य-विषय जैसे: नाटक की कथा-वस्तु, कथानक। content

वस्तुत: क्रि.वि. - (वि.) (तत्.) - वास्तव में, दरअसल। जैसे: वस्तुत: जीवन नश्‍वर है। in fact, actually

वस्तुनिष्‍ठ - (वि.) (तत्.) - जो वस्तु या पदार्थ से (व्यक्‍ति निरपेक्ष रूप में) संबंधित हो। पर्या. वस्तुपरक प्रश्‍न का उदा. इनमें से कौन एक देश का नाम है-भर; भार; भरत; भारत। इस प्रश्‍न में हल करने वाला कोई भी हो सही उत्‍तर सदैव एक ही होगा अत: यह वस्तुनिष्‍ठ प्रश्‍न है। objective विलो. व्यक्‍तिपरक/निष्‍ठ subjective

वस्तु-विनिमय - (पुं.) (तत्.) - शा.अर्थ वस्तुओं का आदान-प्रदान; वस्तुओं की अदला-बदली। व्यापार की अति प्राचीन व्यवस्था जिसमें मुद्रा का प्रचलन शुरू होने से पहले एक वस्तु के बदले दूसरी वस्तु का लेन-देन होता था। varter

वस्त्र - (पुं.) (तत्.) - 1. ठंड से बचने के लिए या लज्जा ढँकने के लिए ओढ़ने पहनने आदि के काम आने वाली वस्तु या साधन, परिधान, पोशाक। 2. कपड़ा। जैसे: इस दुकान में सूती, रेशमी, खादी तथा ऊनी वस्त्र बने बनाए मिलते हैं।

वस्त्राभूषण [वस्त्र+आभूषण] - (पुं.) (तत्.) - शरीर में पहनने योग्य सुंदर कपड़े और गहने। जैसे: वस्त्राभूषण धारण करके मनुष्य की शोभा बढ़ जाती है।

वहन (करना) - (पुं.) (तत्.) - स.क्रि. 1. खींचकर, ढोकर, लादकर, उठाकर, एक स्थान से दूसरे स्थान पर ले जाने की क्रिया का भाव। 2. सँभालना, भार अपने ऊपर लेना, बोझ उठाना। उदा. पिताजी की मृत्यु के बाद मेरे बड़े भाई ने परिवार के दायित्वों का भली-भाँति वहन किया।

वहम - (पुं.) (अर.<वह्म) - 1. मन में होने वाला भ्रममूलक विचार। 2. भ्रम, धोखा 3. शक, संदेह। जैसे: तुम्हें वहम है कि तुम किसी रोग से ग्रस्त हो।

वहमी - (वि.) (अर.) - 1. वहम करने के स्वभाव वाला। 2. शंकालु, शक्की। दे. वहम।

वहशी - (वि.) (अर.>वह् शी) - 1. आदमियों की संगति या मित्रता से दूर रहने वाला, 2. उजड्ड, असभ्य; जंगली, बर्बर।

वहशीपन - (पुं.) (अर.) - उजड्डपन; पागलों-सा अभद्र व्यवहार, सनक, भय, मानसिक विक्षेप। उदा. उसका वहशीपन देखकर सभी को आश्‍चर्य हुआ।

वांछनीय - (वि.) (तत्.) - जिसे पाने की इच्छा हो; होने या चाहने की इच्छा करने योग्य। जैसे: वांछनीय योग्यता। desirabe तु. अनिवार्य योग्यता। उदा. कक्षा में शांति बनाए रखना वांछनीय है।

वांछनीयता - (स्त्री.) (तत्.) - पाने या चाहने की इच्छा रखने की भावना। desirability वांछित वि. तत्. जिसकी इच्छा की गई हो, इच्छित। उदा. पुस्तकों और कापियों को साफ-सुथरी रखना वांछित है। desired

वांछित - (वि.) (तत्.) - जिसकी इच्छा की गई हो, इच्छित। उदा. पुस्तकों और कापियों को साफ-सुथरी रखना वांछित है। desired

वाइरल - (वि.) - (अंग्रे.) (वाइरल < वाइरस = विषाणु) 1. विषाणु का या उससे सम्बन्धित। 2. ऐसी बीमारी जो विषाणु से पीडि़त होने पर होती है। जैसे: वाइरल fever

वाइरल हिपैटाइटिस - (पुं.) - (अं.) शा.अर्थ विषाणु द्वारा उत्पन्न यकृत+शोथ। आयु. ज्ञात विषाणु, हिपैटाइटिस ए तथा हिपैटाइटिस बी सहित बहुत से विषाणुओं में से किसी एक के द्वारा उत्पन्न सामान्य यकृत शोथ। viral hepatitis दे. यकृत शोथ।

वाकई अ. - (अर.) (अर.>वाकिई) - सचमुच ही वस्तुत:, वास्तव में, इसमें कोई दो राय नहीं (कि)। उदा. वाकई आपने हमारी बड़ी मदद की।

वाक़या - (पुं.) (अर.>वाकिअ:) - 1. घटना, दुर्घटना, 2. वृत्‍तान्त, हाल; खबर, समाचार। जैसे: तुम्हारे साथ जो लूटपाट हुई, वह कब का वाक़या है?

वाकिफ़ - (वि.) (अर.<वाकि़फ़) - जानकार, परिचित, अभिज्ञ। उदा. मैं आपके खानदान से पूरी तरह वाकि़फ़ हूँ।

वाक् - (स्त्री.) (तत्.) - 1. मुँह से निकलने वाली सार्थक ध्वनि, वाणी, बोल; वाक्य। 2. बोलने की इद्रिय 3. वाणी की देवी सरस्वती।

वाक्-तंतु - (पुं.) (तत्.) - गले की वे मांसपेशियाँ जो बोलने में सहायक होती हैं।

वाक्पटु - (वि.) (तत्.) - बातें करने में या बनाने में कुशल या निपुण। जैसे: तुम तो वास्तव में वाकपटु हो।

वाक्य - (पुं.) (तत्.) - व्याकरण के नियमों के अनुसार क्रम से लगा हुआ कर्ता-क्रिया से युक्‍त वह सार्थक शब्द समूह जो कथन का पूरा अभिप्राय व्यक्‍त करता है।

वाक्य विन्यास - (पुं.) (तत्.) - शब्दों/पदों को यथास्थान रखकर वाक्य का गठन या वाक्य रचना तथा तत् संबंधी अध्ययन।

वागीश [वाक्+ईश] - (पुं.) (तत्.) - 1. वाक्पटु व्यक्‍ति, उत्‍तम वक्‍ता। 2. बृहस्पति, 3. कवि, 4. ब्रह्मा।

वाग्देवी [वाक्+देवी] - (स्त्री.) (तत्.) - शा.अ. वाणी की देवी। सा.अ. सरस्वती पर्या. वागीश्‍वरी, शारदा।

वाग्यंत्र [वाक्+यंत्र] - (पुं.) (तत्.) - शा.अर्थ वाणी उत्पन्न करने वाला यंत्र। फेफड़े से लेकर काकल घोषतंत्रियाँ ग्रसनी (फेरिंग्स, फेरिंजियल केविटी), अलिजिह्वा, मुखविवर (बकल केविटी), नासिका विवर आदि शरीर के अंग जो वाक्-स्वनों के उच्चारण में सहायक है। speech/vocal organs

वाग्युद्ध - (पुं.) (तत्.) - 1. दो व्यक्‍तियों या पक्षों में बातचीत के रूप में होने वाली लड़ाई, वाद-विवाद, बहस; गाली-गलौच। 2. ऊँची आवाज़ में कहा-सुनी, जैसे: आज कार्यालय में दो कर्मचारियों में परस्पर खूब वाग्युद्ध हुआ।

वाचक - (वि.) (तत्.) - 1. पढक़र सुनाने वाला, बाँचने वाला। जैसे: कथावाचक (भागवत् पुराण का)। 2. सूचक, बोधक, ज्ञान कराने वाला। जैसे: व्यक्‍तिवाचक संज्ञा।

वाचन - (पुं.) (तत्.) - लिखित अंश को बाँचने या पढ़ने का कौशल, पढ़ना, पाठ करना।

वाचनालय [वाचन + आलय] - (पुं.) (तत्.) - वह स्थान जहाँ लोगों के पढ़ने के लिए पत्र-पत्रिकाएँ, पुस्तकें आदि रखी रहती हैं। लोग वहाँ बैठकर उन्हें पढ़ सकते हैं। जैसे: समुदाय भवन में एक वाचनालय है, जहाँ बैठकर हम समाचार पत्र और पत्रिकाएँ पढ़ते हैं। reading room

वाचाल - (वि.) (तत्.) - 1. बातें करने में पटु। उदा. मूक होंहि वाचाल पंगु चढइँ गिरिवर गहन। 2. बहुत बोलने वाला। बातूनी। 3. व्यर्थ की बातें बोलने वाला। बकवादी। विलो. मूक।

वाचिक - (वि.) (तत्.) - 1. वाणी सम्बन्धी या वाणी से कहा गया। 2. मौखिक, ज़बानी। जैसे: लोकगाथाएँ वाचिक परंपरा से ही हम तक पहुँची है। 3. अभिनय का वह प्रकार जिसमें बातचीत के विशेष ढंग का प्रयोग होता है। oral

वाजिब - (वि.) (अर.) - उचित, मुनासिब। विलो. ग़ैरवाजिब।

वाटिका - (स्त्री.) (तत्.) - 1. फूलों की बगिया, छोटा बाग़, बगीचा। 2. उद्यान। जैसे: इस वाटिका में नाना रंग के फूल खिले हुए हैं।

वाणिज्य - (पुं.) (तत्.>वणिज्) - वणिक् क्रिया (बनिए का काम), व्यापार वृत्‍ति, व्यापार कर्म, सौदागरी। 1. वस्तुओं को उत्पादन से उपभोक्‍ता तक पहुँचाने के क्रम में आने वाली समस्त क्रियाएँ। 2. उपर्युक्‍त समस्त क्रियाओं से संबंधित वैज्ञानिक अध्ययन। commers

वाणिज्यिक - (वि.) (तत्. वणिज् + इक) - वाणिज्य संबंधी वाणिज्य विषयक। commercial

वाणिज्यिक अनाज कृषि - (स्त्री.) (तत्.) - (वाणि. अनाज तद् > अन्‍नद्य कृषि तत्.) ऐसी कृषि जिसमें फसलें वाणिज्यिक उद्देश्य से उगाई जाती हैं। जैसे: गेहूँ, मक्का इत्यादि। टि. वाणिज्यिक अनाज कृषि के प्रमुख क्षेत्र हैं-उत्‍तर अमेरिका, यूरोप और एशिया के शीतोष्ण घास के मैदान।

वाणिज्यिक कृषि - (स्त्री.) (तत्.) - निर्वाह कृषि से भिन्न केवल बाज़ार में बेचकर पैसा कमाने के लिए अपनाया गया खेती का प्रकार। इस प्रकार की कृषि के लिए बड़े-बड़े खेतों farm अधिक पूँजी, मशीनों का उपयोग आदि की आवश्यकता होती है। इसमें फसल उत्पादन और पशुपालन दोनों ही सम्मिलित हैं।

वाणी - (स्त्री.) (तत्.) - मुँह से उच्चरित सार्थक बात। पर्या. वाक् (स्पीच)। 1. किसी सिद्ध पुरुष के सारगर्भित वचन। जैसे: गुरुवाणी।

वात - (पुं.) (तत्.) - 1. वायु, हवा जैसे: शीततल वात के झोकों से वातावरण नम हो रहा है। 2. (आयु.) शरीर में रहने वाले तीन धातुओं में से एक, जिसके कुपित होने से वातजन्य गठिया आदि रोग हो जाते हैं। टि. अन्य दो दोष हैं पित्‍त और कफ।

वातक - (दे.) - श्‍वासनली।

वातानुकूलित [वात + अनुकूलित] - (वि.) (तत्.) - वात = हवा, वायु। 1. जिसके भीतर की हवा का तापमान अपने शरीर के अनुकूल या समस्थिति में रखा गया हो। 2. ताप नियंत्रित। जैसे: वातानुकूलित रेल के डिब्बे, स्थानविशेष या कक्ष आदि। aircondition

वातावरण [वात+आवरण] - (पुं.) (तत्.) - मूल अर्थ 1. हमारी पृथ्वी को चारों ओर से घेरे रहने वाला वायु का आवरण। पर्या. वायुमंडल। उदा. हम जिस वातावरण में रह रहे हैं वह बहुत दूषित हो चुका है। 2. किसी भी व्यक्‍ति, व्यक्‍ति समूह या समाज के आसपास की सारी परिस्थितियाँ या माहौल जो उसके जीवन को प्रभावित करती है।

वात्याचक्र [वात्या + चक्र] - (पुं.) (तत्.) - धूल भरी आँधी का चक्राकार उठने वाला पुंज, बवंडर।

वात्सल्य - (पुं.) (तत्.) - 1. जन्म देने वालों (माता-पिता) का संतान के प्रति होने वाला अपनत्व का भाव। 2. छोटे बच्चों के प्रति होने वाला स्नेहभाव। जैसे: सूरदास ने वात्सल्य भाव के पद रचे हैं।

वाद - (पुं.) (तत्.) - 1. किसी सिद्धांत, पक्ष या तत् व के निर्णय के लिए होने वाला तर्क-वितर्क, शास्त्रार्थ। 2. किसी विषय से संबंधित सिद् धान्तों पर आधारित व्यक्‍तिगत, संस्थागत या समूहगत विचार-पद् धति। जैसे: समाजवाद, गांधीवाद, परमाणुवाद इत्यादि। ism suit । 3. न्यायालय में प्रस्तुत दावा, मुकदमा।

वादक - (पुं.) (तत्.) - 1. (किसी वाद् य यंत्र को) बजाने वाला। जैसे: तबला वादक, सितार वादक आदि। 2. वाद करने वाला, वादी।

वाद-विवाद [वाद+विवाद] - (पुं.) (तत्.) - शा.अर्थ वाद और विवाद। 1. किसी विषय के गुण-दोषों का विचार करते हुए निष्कर्ष तक पहुँचने के लिए होने वाला विचार-विमर्श। (डिस्कशन) 2. किसी विषय के पक्ष और विपक्ष में पूर्व निर्धारित समय सीमा में रहते हुए अपने विचारों को तर्कपूर्ण ढंग से प्रस्तुत करने की प्रतियोगिता। debate

वादा ख़िलाफी [वादा+खिलाफ़ी] - (स्त्री.) (अर.+फा) - 1. वादा करके भूल जाना, 2. वादा तोड़ना, वचनभंग।

वादा/वायदा - (पुं.) (अर.>वाद:) - 1. प्रतिज्ञा, वचन, इकरार। जैसे: नेताजी ने विद्यालय खुलवाकर अपना वादा पूरा किया। (प्रॉमिस) 2. किसी कार्य को करने या किसी बात के सत्‍यासत्‍य होने की स्‍वीकृति इकरारनामा undertaking

वादी1 - (वि.) (तत्) - 1. न्यायालय में कोई वाद या मुकदमा प्रस्तुत करने वाला। मुद् दई, निवेदक। 2. विचार हेतु एक पक्ष प्रस्तुत करने वाला। विलो. प्रतिवादी।

वादी2 - (स्त्री.) (अर.) - 1. घाटी, दो पहाड़ों के बीच का निचला मैदानी भाग जिसमें आबादी बसती है या सिर्फ जंगल होता है। vally 2. नदी तट का मैदान।

वाद्य - (वि.) (तत्) - वादन से संबंधित। पुं. तत् अलग-अलग प्रकार के उपकरण जिनके द्वारा संगीत के स्वर अथवा ताल प्रस्तुत किए जाते हैं। जैसे: तबला (ताल वाद्य), सितार (तंतु वाद्य), बांसुरी (सुषिर वाद्य)। पर्या. बाजा।

वाद्य यंत्र - (पुं.) (तत्) - सुन्दर स्वर उत्पन्न करने वाले और ताल देने वाले संगीत के उपकरण। जैसे-तबला, मृदंग, हारमोनियम, ढोलक, वायलिन आदि। musical instrument

वाद्य संगीत - (पुं.) (तत्.) - वह संगीत जिसमें केवल वाद्ययंत्रों को बजाया जाता है और कंठसंगीत नहीं होता। instrumental music

वानप्रस्थ [वन+प्रस्थ<प्रस्थान] - (पुं.) (तत्.) - आर्यों के चार जीवन-विभागों यानी आश्रमों (ब्रह्मचर्य, गृहस्थ, वानप्रस्थ और संन्यास) में से तीसरा आश्रम जिसमें पचास से पचहत्‍तर वर्ष की उम्र में वन में जाकर जीवन-यापन करने का विधान होता है। 1. उदासी, संन्यासी। 2. महुए का पेड़।

वानप्रस्थी - (पुं.) (तत्.) - वन में जीवन-यापन करने वाला व्यक्‍ति। आधुनिक अर्थ में वह आर्यसमाजी जो गृहस्थाश्रम से संबंध त्यागकर समाज कल्याण के कार्य में लगकर समाज-सेवा और शिक्षण कार्य को अपना लेता है।

वानिकी - (स्त्री.) (तत्.) - विज्ञान की वह शाखा जिसके अंतर्गत भूमि में वनों को लगाना, जंगली पेड़-पौधों का आरोपण तथा उनके संरक्षण की व्यवस्था की जाती है। उदा. मृदा-संरक्षण की दृष्‍टि से वानिकी महत्त्वपूर्ण है। forestery

वापस - (वि.) (फा.) - 1. लौटकर पुन: अपने स्थान पर आया हुआ। (व्यक्‍ति या वस्तु) जैसे हम प्रात: घर से मथुरा जाकर साय वापस घर आ गए। 2. जो (वस्तु, धन आदि) उधार लेने या मांगने के बाद पुन: लौटाया गया हो। जैसे-हमने पुस्तकालय की पुस्तक वापस कर दी।

वापसी - (स्त्री.) (.फा.) - 1. लौटाने या लौटकर आने का भाव। 2. वापस आने या वापस जाने से संबंधित। जैसे: वापसी टिकट कब का है? जैसे: खरीदी पुस्तक की वापसी।

वाम - (वि.) (तत्.) - 1. बायाँ। 2. प्रतिकूल, विरूद्ध-जब होई विधाता बाम। विलो. दक्षिण।

वामन - (वि.) (तत्.) - जिस व्यक्‍ति का शारीरिक कद अपेक्षा से बहुत कम हो। पर्या. बौना, नाटा, ठिंगना। पुं. पुराणों के अनुसार विष्णु का पाँचवा अवतार जिसमें विष्णु ने बटु रूप धारण किया था।

वामपंथ - (पुं.) (तत्.) - सा.अर्थ बायाँ या उलटा रास्ता। वि. अ.-1. किसी विषय में बहुत उग्र विचारधारा रखने वालों का सिद् धांत या वर्ग। 2. तंत्र-साधना की एक पद् धति जिसमें पाँच मकारों (मद्य, मांस, मत्‍स्‍य, मुद्रा और मैथुन) का सेवन होता हैं। यह पद् धति वेदोक्‍त नहीं है। leftwing पर्या. वाममार्ग।

वामपंथी - (वि.) (तत्) - जो वामपंथ के सिद्धांतों से प्रेरित हो या वामपंथ का अनुयायी हो। leftist

वामावर्त [वाम+आवर्त=भंवर, घूमा हुआ] - (वि.) (तत्.) - 1. घड़ी के विपरीत बायीं ओर को घूमता हुआ। (चक्कर के रूप में) 2. बायीं ओर से घूमकर की जाने वाली (परिक्रमा) 3. वह (शंख) जिसका घुमाव बायीं ओर हो। anti-clock wise

वायरस - (पुं.) (दे.) - (अं.) ‘विषाणु’ का अंग्रेजी पर्याय। 1. अति सूक्ष्म जीवाणु जो मानव शरीर या अन्य प्राकृतिक संरचना को प्रभावित करता है। 2. अनधिकृत और अवांछित दोष जो कम्प्यूटर के कार्य में बाधा पहुँचाकर अपनी प्रतिकृति बना लेता है और एक से दूसरे कम्प्यूटर में चला जाता है। दे. विषाणु।

वायलिन - (स्त्री.) - (अं.) सारंगी के समान एक अंग्रेजी तंतु वाद् य।

वायु - (स्त्री.) (तत्.) - पाँच तत्त्वों में से एक।, हवा।

वायुदाब - (पुं.) (तत्+ तद्.) - वायु के भार द्वारा पृथ्वी की सतह पर लगाया गया दाब ‘वायुदाब’ कहलाता है। टि. इसी कारण द्रव पदार्थों का तल समान होता है। air pressuru

वायुमंडल - (पुं.) (तत्.) - शा.अर्थ वायु का घेरा। भू. पृथ्वी को चारों ओर से घेरे हुए हवा का वह घेरा जो पृथ्वी के गुरूत्व के कारण स्थानबद् ध रहता है। यह वायुराशि सूर्य की किरणों के हानिकारक प्रभाव से हमारी रक्षा करती है तथा पृथ्वी के तापमान को रहने योग्य बनाती है। दे. वातावरण। atmosphere

वायुमंडलीय दाब - (पुं.) (तत्.) - पृथ्वी के चारों ओर फैली हुई हवा का दबाव (जिसकी वजह से वह स्थानबद् ध रहती है।)

वायुयान - (पुं.) (तत्.) - आकाश में ऊँचाई पर उड़ने वाला यान, हवाई जहाज। aeroplane

वायुराशि - (स्त्री.) (तत्.) - वायु की वह घनी चादर जो पृथ्वी को चारों ओर से घेरे हुए है।

वायुरोधी सील - (तत्) ([तत्.+अं.]) - वायु (हवा) को बाहर निकलने से रोकने वाली सील या रोक।

वारंट - (पुं.) - (अं.) 1. गिरफ्तारी या घर/कार्यालय आदि की तलाशी हेतु न्यायालय का अधिपत्र। 2. माल, धनराशि, सेवा आदि प्राप्‍त करने का अनुज्ञापक। 3. सैनिकों को यात्रा हेतु दिया गया आधिकारिक प्रपत्र। warrant

वार - (पुं.) (तत्.) - 1. चोट, आघात; हमला। जैसे: उसने शत्रु सैनिक पर तलवार से वार किया। 2. सप्ताह का दिन जैसे: रविवार, सोमवार, मंगलवार आदि। 3. वार, दफ़ा। जैसे: वारंवार, त्रिवार। 4. नदी का किनारा, जैसे-वारपार या पारावार।

वार-2 प्रत्य. - (फा.) - 1. क्रम से, जैसे: सिलसिलेवार। 2. रखने वाला, जैसे: उम्मीदवार। 3. के अनुसार, जैसे: महीनेवार, राज्यवार।

वारदात - (स्त्री.) (अर.) - 1. दुर्घटना, 2. मारपीट, दंगा-फसाद, चोरी इत्यादि। जैसे: आजकल चोरी, डकैती, अगवा करना आदि वारदातें बराबर बढ़ती जा रही है। टि. ‘वरिदात’ शब्‍द अरबी में बहुवचन है (वारिद=घटित होना) परंतु हिंदी में ‘वारदात’ एकवचन में ही प्रयुक्‍त होता है।

वारना स.क्रि. - (तद्>वारण) - किसी वस्तु को किसी के सिर के ऊपर से चारों ओर घुमाकर निछावर करना अर्थात किसी को देना या फेंक देना। विशेष-यह क्रिया विवाह आदि हर्ष के अवसरों पर या किसी टोने-टोटके के रूप में की जाती है।

वारान्यारा - (पुं.) (देश.) - किसी बात या समस्या का पूरी तरह से निपटारा। आर-पार का फैसला। निर्णय, निपटारा। जैसे: अब हमें इस समस्या का वारान्यारा करना ही है। मुहा. वारे-न्यारे करना/होना=1. बहुत लाभ कमाना, 2. समाप्‍त करना/होना।

वारिज [वारि=जल+ज=जन्म लेने वाला] जो जल में उत्पन्न हो। - (पुं.) - 1. कमल, 2. शंख, 3. घोंघा।

वारिस - (वि.) (अर.) - किसी व्यक्‍ति की मृत्यु के बाद उसकी संपत्‍ति का मालिक (स्वामी) बनने वाला व्यक्‍ति, विरासत पाने वाला। पर्या. उत्‍तराधिकारी।

वारीश [वारि(जल)+ईश] - (पुं.) (तत्.) - 1. जल का स्वामी, समुद्र। 2. वरूण देवता।

वारीशकन्या - (स्त्री.) - समुद्रपुत्री, लक्ष्मी देवी।

वार्ता - (स्त्री.) (तत्.) - 1. बातचीत, 2. समाचार, हाल। किसी विषय का बातचीत के माध्यम से संक्षिप्‍त विवेचन, छोटा भाषण। जैसे: आज दूरदर्शन पर पर्यावरण समस्या पर कुछ विद् वानों की वार्ता प्रसारित हुई।

वार्तालाप - (पुं.) (तत्.) - (वार्ता+आलाप) शा.अर्थ बातचीत। सा.अर्थ 1. दो या दो से अधिक व्यक्‍तियों की किसी विषय या समस्या पर बातचीत, संवाद। 2. समझौते की बातचीत। जैसे: दोनों देशों को परस्पर वार्तालाप द् वारा ही किसी समस्या का समाधान करना चाहिए।

वार्निश - (स्त्री.) - (अं.) लकड़ी, लोहे आदि की सतह को चमकदार और मुलायम बनाने के लिए प्रयोग किया जाने वाला घोल जो बरोजा (रेसिन) से बनाया जाता है। ऑयल पेंट में भी इसे मिलाया जाता है। पर्या. रोगन। उदा. वार्निश करने से फर्नीचर चमकने लगता है।

वार्षिक [वर्ष+इक] - (वि.) (तत्.) - 1. प्रतिवर्ष होने वाला या एक वर्ष बाद होने वाला। जैसे: विद्यालय का वार्षिक उत्सव। 2. जो प्रतिवर्ष के हिसाब से हो। जैसे: सावधिक जमा में वरिष्‍ठ नागरिकों के लिए 10% वार्षिक ब्याज देय है। 3. वर्ष भर तक चलने वाला। 4. वर्ष में एक बार।

वार्षिक कैलेण्डर [वार्षिक + कैलेण्डर] - (पुं.) ([तत्.+अंग्रे.]) - कैलेण्डर=अंग्रेजी तिथिपत्र, सूची। वह पत्र या पत्र समूह जिसमें पूरे एक साल के मास, तिथि, वार तथा अवकाश सूची आदि अंकित होते हैं।

वॉल पेपर - (पुं.) - (अं.) वह कागज जो दीवारों को सुसज्जित करने के लिए दीवारों पर चिपकाया जाता है तथा उससे फिर दीवारों में सफेदी करने की जरूरत नहीं होती। सामान्यत: यह कागज मजबूत तथा शोभा की दृष्‍टि से विविध रंग व डिजाइनों का होता है।

वालिद - (पुं.) (अर.>वालिद) - पिता, बाप।

वालिदा - (स्त्री.) (अर.) - माता, जननी।

वाशर - (पुं.) - (अं.) धातु, रबड़, चमड़ा आदि से बना चपटा, गोलाकार छल्ला जो रिसाव को रोकने के लिए नट या ढक्कन के साथ लगाया जाता है। जैसे: फुटबाल का वाशर

वाष्प - (पुं.) (तत्.) - किसी द्रव पदार्थ के गरम होने पर उससे निकलता हुआ गैसीय पदार्थ। पर्या. भाप (वेपर)

वाष्पन (वाष्पण) - (पुं.) (तत्.) - वाष्प (भाप) में परिवर्तित होने की प्रक्रिया। दे. वाष्पीकरण/भवन evaporation

वाष्पित - (वि.) (तत्.) - जिसे भाप देकर गर्म किया गया हो।

वाष्पित्र - (पुं.) (तत्.) - शा.अर्थ (i) वाष्प (भाप) में बदलने वाला यंत्र; (ii) भाप छोड़ने वाला यंत्र। रसा. एक युक्‍ति विशेष जिसका उपयोग नम या विलायक पदार्थों को वाष्पित करने के लिए किया जाता है ताकि इसके फलस्वरूप उसे शुष्क उत्पाद में बदला जा सके। जैसे: दूध को पाउडर में बदलने वाला यंत्र।

वाष्पीकरण/वाष्पीभवन - (पुं.) (तत्.) - वह भौतिक प्रक्रिया जिसमें कोई पदार्थ तरल अवस्था से वाष्प अवस्था में परिवर्तित कर दिया/हो जाता है। जैसे: पानी को/का भाप में बदलना/बदल जाना। evoporation

वाष्पोत्सर्जन [वाष्प+उत्सर्जन] - (पुं.) (तत्.) - शा.अर्थ वाष्प का उत्सर्जन या छोड़ना। (i) वृक्ष या वनस्पति के तने और पत्‍तियों के रंध्रों से जल-वाष्प का बाहर निकलना। (ii) किसी क्षेत्र विशेष मे किसी खास समय के दौरान वहाँ की वनस्पति से भाप बनकर उसमें जलीय अंश या नमी का कम हो जाना।

वास - (स्त्री.) (तत्.) - गंध, महक, सुगंध, खुशबू। उदाहरण-जो भी गंधी दे नहीं तो भी वास सुवास। (ला.अर्थ.) भनक, संकेत। जैसे: पुलिस को भी वास लग गई है कि…… 1. किसी स्थान पर रहना, निवास। जैसे: तीर्थवास, नगरवास, कारावास आदि। 2. स्थान, घर, आवास, निवास। 3. वस्त्र, परिधान।

वासना - (स्त्री.) (तत्.) - 1. वह संस्कार जो अपने पहले के शुभाशुभ कर्मों के कारण अनजाने में मन पर पड़ा हो, जिससे सुख या दु:ख की उत्पत्‍ति होती है। 2. लोभ की भावना, अप्राप्‍त के पाने की इच्छा, कामना। 3. तृष्णा, 4. अज्ञान।

वास्तव - (वि.) (तत्.) - 1. सत्य, यथार्थ। 2. निश्‍चित। 3. असल। 4. सचमुच।

वास्तविकता - (स्त्री.) (तत्.) - 1. वास्तविक या जैसा है वैसा ही होने की स्थिति या भाव, यथार्थता, सच्चाई। fact 2. किसी की वास्तविक वैयक्‍तिक स्थिति तथा उसकी समस्याएँ reality जैसे: यह संस्था बाहर से तो अच्छी दीखती है, पर वास्तविकता तो इसकी और ही है।

वास्ता - (पुं.) (अर.>वासित:) - संबंध, लगाव, सरोकार। जैसे: हमारा तुमसे कोई वास्ता नहीं है। मुहावरा-1. वास्ता पड़ना=काम पड़ना, जैसे मेरा उस चौकीदार से कभी वास्ता नहीं पड़ा। 2. वास्ता देना=सौंगध खाना, जैसे: अल्लाह का वास्ता देकर कहता हूँ कि…….

वास्तु - (पुं.) (तत्.) - शा.अर्थ (मनुष्यों के बसने के लिए) आवास/मकान/भवन आदि बनाने के योग्य स्थान। 1. रहने योग्य स्थान-गृह, घर, मकान, भवन, इमारत आदि। 2. कोई संरचना जिसे ईंट, चूने आदि से बनाया गया हो। भवन, इमारत, पुल आदि।

वास्तुकर्म/रचना - (पुं.) (तत्) - गृह, भवन आदि बनाने का कार्य। भवन-निर्माण।

वास्तुकला - (स्त्री.) (तत्.) - 1. वास्तु या भवन, महल आदि बनाने की कला। पर्या. स्थापत्य, वास्तुशिल्प। 2. ललित कलाओं में से एक। architecture

वास्तुकार - (पुं.) (तत्.) - 1. वास्तुकर्म में प्रवीण या प्रशिक्षित भवन निर्माता।। 2. वास्तु शास्त्र का विशेषज्ञ architect

वास्तुशास्त्र - (पुं.) (तत्.) - (वास्तु (भवन)+शास्त्र) 1. (ज्यो.) वह शास्त्र जो गृहनिर्माण, दुकान निर्माण आदि से संबंधित आवश्यक सूचनाएँ देता है। जैसे: मुख्‍यद्वार पूजाकक्ष, अध्ययनकक्ष आदि कहाँ किस दिशा में बनाए जाने चाहिए। 2. गृहनिर्माण का शास्त्र।

वास्तुशिल्प [वास्तु+शिल्प] शा.अर्थ गृह, भवन इत्यादि बनाने की कला। - (वि.) - अर्थ. भवन निर्माण की वह कला जो भवन, महल, किला, मंदिर आदि के बाह् य एवं आंतरिक संरचना की विविधतापूर्ण विशिष्‍टता के लिए प्रयुक्‍त की जाती है।

वाह - (पुं.) (तत्.) - 1. जल या वायु का बहाव; धारा। 2. खींचने या ढोने वाला, जैसे: भारवाह आदि, वाहक। अव्य. फा. प्रशंसा, आश्‍चर्य, निंदा का भाव व्यक्‍त करने वाला विस्मयादिबोधक शब्द।

वाहक - (वि.) (पुं.) - वहन करने यानी ले जाने या ढोने वाला। ले जाने या ढोने वाले साधन का चालक। जैसे: गाड़ीवान, घुड़सवार, साइकिल चालक, मोटर/बस/रेल ड्राइवर आदि-आदि। दे. वाहन।

वाहन - (पुं.) (तत्.) - शा.अर्थ वहन करने वाला, वहनकर्त्ता। कोई पशु या अन्य साधन जिस पर सवारी करके/कहीं जाने का कार्य किया जाए अथवा जिससे सामान आदि ढोने का काम लिया जाए। पर्या. सवारी (वेहिकल) उदा. घोड़ा, गदहा, रथ, गाड़ी, कार, मोटर साइकिल, साइकिल आदि।

वाहवाह - (पुं.) (.फा.) - बहुत अच्छा, बहुत अच्छा। जैसे-वाह वाह! तुमने क्या गज़ल गायी।

वाहवाही [वाहवाह+ई] - (स्त्री.) (.फा.>वाहवाह) - प्रशंसा की उक्‍ति, लोगों द्वारा की गई प्रशंसा। पर्या. साधुवाद। जैसे: कविसम्मेलन में कवि नीरज ने खूब वाहवाही लूटी।

वाहित - (वि.) (तत्.) - 1. ढोया हुआ, वहन किया हुआ। 2. (कृषि.सि.इंजी.) प्रवाहित, बहाया हुआ, सीवर आदि में विसर्जित। प्रयो. यमुना नित्य वाहित मल से प्रदूषित हो रही है।

विकट - (वि.) (तत्.) - 1. भयंकर या डरावनी शक्ल का। जैसे: हिम मानव विकट जीव जान पड़ता है। 2. जिसे पार करना कठिन हो, या जहाँ पहुँचना मुश्किल हो। जैसे: विकट रास्ता। 3. जिसे सुलझाने में बहुत श्रम करना पड़े या बहुत समय लगे। जैसे: मुझे विकट समस्या या स्‍थिति का सामना करना पड़ा।

विकराल - (वि.) (तत्.) - जो देखने में बहुत ही डरावना हो। भीषण, भयानक, भयावह। जैसे: कुंभकर्ण का विकराल रूप देखकर वानर डर गए।

विकल - (वि.) (तत्.) - 1. जिसका मन अशांत या दुखी हो, बेचैन, व्याकुल, अधीर। उदाहरण-विकल हो सितैं कपि के मारे। तब जानेसि निसिचर संहारे। 2. अंगहीन, दोषयुक्‍त, ठीक से काम न करने वाला। (अंग) जैसे: विकलांग व्यक्‍ति।

विकलांग [विकल=कलाहीन/बेकाम+अंग] - (वि.) (तत्.) - बेकाम हो गए अंग वाला। पुं. (व्यक्‍ति) जिसका कोई अंग बेकाम हो गया हो या अंग-भंग हो गया हो या किसी अंग से रहित या हीन हो या रोग के कारण ठीक से काम न करता हो। आदि। उदा. विकलांगों के प्रति सहानुभूति रखना समाज का कर्त्तव्य है। crippled, handicapped आदि।

विकल्प - (पुं.) (तत्.) - 1. दो या अधिक में से एक का ग्रहण optiom alternative 2. विचार करने का अन्य मार्ग। 3. अनिश्‍चितता की स्थिति, असमंजस। उदा. विकल्प के शिकार मत बनो। विलो. संकल्प।

विकसित - (वि.) (तत्.) - 1. जिसका विकास हो चुका हो या किया गया हो, खिला हुआ। 2. उन्नत। जैसे: विकसित वर्ग या देश। तुल. विकासशील। विलो. अविकसित।

विकार - (पुं.) (तत्.) - 1. किसी वस्तु, व्यक्‍ति आदि के सामान्य स्वरूप, गुण, प्रकृति आदि में हुआ परिवर्तन असंतुलन, दोष या गड़बड़ी। उदा. पेट में विकार उत्पन्न होने से मेरा मन खिन्न बना रहता है।

विकास - (पुं.) (तत्.) - सा.अर्थ 1. किसी विनिर्दिष्‍ट (बताए गए) समय के उत्‍तरवर्ती क्रम में किसी सजीव प्राणी/जीव, विचार, भाषा, साहित्य आदि के आकार-प्रकार, विस्तार आदि में हुई बढ़ोतरी। जैसे: बालक का युवक के रूप में, अंकुर का पादप रूप में, हिंदी का सार्वदेशिक रूप में हुआ विकास। development, growth, evaluation आदि)। तकनीकी अर्थ-जीव 1. मंद परिवर्तनों का क्रम जो एक जाति को दूसरी जाति में परिवर्तित कर देता है। जैसे: ‘कपि’ जैसे: पूर्वजों से ‘मानव’ जाति का उदय। evaluation 2. आर्थिक दृष्‍टि से जीवन स्तर में होने वाली उन्नति। इसी मानदंड पर ‘विकसित’, ‘विकासशील’ और ‘अविकसित’ देशों की संकल्पना स्थिर हुई है।

विकासक्रम [विकास+क्रम] - (पुं.) (तत्.) - विकास का क्रम, आगे बढ़ने का क्रम या अवस्थाएँ, सोपान। दे. विकास।

विकासशील - (वि.) (तत्.) - विकास करता हुआ; विकास के पथ पर अग्रसर। जैसे: भारत की गिनती अब विकासशील देशों में होने लगी है। दे. विकास।

विकिरण - (पुं.) (तत्.) - शा.अर्थ विकीर्ण होने (निकलने/फैलने) का भाव। भौ. 1. विद्युत, चुंबकीय तरंगों ध्वनि तरंगों तथा आयनकारी कणों के रूप में ऊर्जा का उत्सर्जन। उदा. किरणों के माध्यम से सूर्य के प्रकाश और उसके ताप का पृथ्वी तक पहुँचना। 2. नाभिकीय पदार्थों से घातक किरणों का निकलना। radiation

विकिरित - (वि.) (तद्.) - 1. बिखेरी हुई, लाई गई। उदा. विकिरित ऊष्मा। 2. विकिरण से युक्‍त। जैसे: विकिरित प्रदूषण। तुल. विकीर्ण=फैला हुआ, बिखरा हुआ।

विकृत - (वि.) (तत्.) - वि+कृत व्यु.अर्थ किसी कारण से परिवर्तित। सा.अर्थ 1. विकारयुक्‍त, बिगड़ा हुआ। 2. अस्वाभाविक। 3. जो मन या बुद् धि से ठीक व्यवहार न करे। विकृत (मानसिकता वाला) व्यक्‍ति समाज में सम्मान नहीं प्राप्‍त कर सकता।

विकृति - (स्त्री.) (तत्.) - भौ. बलों द्वारा किसी वस्तु का लंबाई, आयतन अथवा आकृति में घटित परिवर्तन। starin सा.अर्थ 1. विकार ग्रस्तता, बिगाड़। 2. खराबी। 3. मन में होने वाला विकार, क्षोभ या परिवर्तन। 4. काम-वासना। 5. वह रूप जो विकार के बाद मिला हो। deformity, change

विकेंद्रीकरण - (पुं.) (तत्.) - 1. (समाज) किसी एक व्यक्‍ति या सत्‍ताप्रमुख के पास स्थित अधिकार/सत्‍ता को जनसुविधा या कार्यप्रणाली की सुविधा की दृष्‍टि से विभिन्न व्यक्‍तियों या इकाईयों में बांट देना। 2. राज. केंद्र के अधिकारों को राज्य या अन्य छोटी इकाईयों में वितरित करने की प्रक्रिया। decentralization

विक्रम - (पुं.) (तत्.) - 1. पराक्रम, रणकौशल, शूरता। जैसे: अंग्रेजों से युद्ध करने में रानी लक्ष्मीबाई का विक्रम प्रशंसनीय था। 2. शक्‍ति, बल। 3. कदम, पग।

विक्रय - (पुं.) (तत्.) - धन के बदले में किसी को कोई वस्तु देना।, बेचना, बिक्री। जैसे: वहाँ पर ऊनी वस्त्रों का विक्रय केंद्र है। sale विलो. क्रय।

विक्रेता - (पुं.) (तत्.) - जो विक्रय का कार्य करता हो, बेचने वाला, बिक्री करने वाला। जैसे: पुस्तक विक्रेता।

विक्षिप्‍त [वि+क्षिप्‍त] - (वि.) (तत्.) - व्यु.अर्थ 1. किसी स्थान पर बिखराया या छितराया हुआ। सा.अर्थ 2. छोड़ा हुआ, त्यागा हुआ। 3. फेंका गया। 4. जिसके मस्तिष्क में किसी प्रकार का विकार हो गया हो, सनकी, पागल, व्यग्र, व्याकुल।

विक्षुब्ध [वि+क्षुब्ध>क्षोभ] - (वि.) (तत्.) - शा.अर्थ विशेष रूप से क्षुब्ध, जिसें किसी कारणवश क्षोभ उत्पन्न हो गया हो। 1. दु:खी, 2. खिन्न। जैसे: विक्षुब्ध मन। agitated विक्षुब्ध सागर trublent

विक्षेप(ण) - (पुं.) (तत्.) - 1. अपने स्थान से इधर-उधर या दूर फेंका जाना। 2. मन का इधर-उधर भटकना अर्थात उसका संयत न रह पाना।

विक्षेपित - (वि.) (तत्.) - 1. अपने स्थान से इधर-उधर या दूर फेंका गया। 2. इधर-उधर भटका हुआ मन।

विक्षोभ - (पुं.) (तत्.) - सा.अर्थ विशेष रूप से पैदा हुई खलबली या व्याकुलता। मन में पैदा हुई उथल-पुथल, घबराहट या व्याकुलता।

विख्यात - (वि.) (तत्.) - विशेष रूप से ख्यात या मशहूर’ पर्या 1. प्रसिद्ध, नामधारी, नामचीन। विलो. कुख्यात।

विगत - (वि.) (तत्.) - 1. जो निकल चुका हो, बीता हुआ। जैसे: विगत वर्षों में इतनी महँगाई नहीं थी। 2. कुछ ही समय पहले का। जैसे: विगत मास में वनोत्सव मनाया गया। 3. निकल गया है जिसमें से (समासयुक्‍त पद में) विगत गौरव=जिसका गौरव नष्‍ट हो गया हो।

विघटक - (वि./पुं.) (तत्.) - विघटन करने वाला कारक (पदार्थ)। Disintegrator दे. विघटन।

विघटन [वि=विपरीत+घटन=संयोजन] - (पुं.) (तत्.) - 1. किसी वस्तु, संस्था या समाज के संयोजक अंगों का इस भांति अलग हो जाना कि वह नष्‍ट होने लगे। disintegration टूट-फूट हो जाना, बिखरजाना, छिन्न-भिन्न हो जाना। 2. किसी अधिवेशन, सभा का कार्यकाल समाप्‍त हो जाने पर उसे भंग कर देना। जैसे: राष्‍ट्रपति/राज्यपाप द्वारा लोकसभा/विधानसभा का विघटन कर नए निर्वाचन का आदेश देना।

विघटित [वि+घटित] - (वि.) (तत्.) - 1. जिसे अलग-अलग विभाजित कर दिया गया हो। जैसे: किसी संस्था को कई भागों में विघटित करना। 2. अलग किया गया, वियोजित। 3. छिन्न-भिन्न, नष्‍ट किया हुआ। जैसे: शत्रु द्वारा विघटित सेना। विलो. संघटित।

विघ्न - (पुं.) (तत्.) - जिस बात या विषय के बीच में आने से काम में रूकावट आ जाए। पर्या. बाधा, अड़चन, कठिनाई।

विचक्षण - (वि.) (तत्.) - 1. किसी विषय पर पूर्ण अधिकार रखने वाला विद् वान। 2. बुद् धिमान्, 3. दूरदर्शी, 4. कुशल, निपुण।

विचरण - (पुं.) (तत्.) - 1. चलना-फिरना, 2. भ्रमण करना, पर्यटन, घूमना-फिरना। वि. तत् पैरों से हीन।

विचरना अ.क्रि. - (तद्.>विचरण) - 1. विचरण करना, इधर-उधर घूमना फिरना, चलना। जैसे: मित्र तुम कहाँ विचरते रहते हो, बहुत दिन बाद मिले हो।

विचलन - (पुं.) (तत्.) - ठीक मार्ग या रास्ता छोडक़र इधर-उधर हो जाना। deviation विचलित होने, पथ-भ्रष्‍ट होने या भटक जाने की स्थिति।

विचलना अ.क्रि. - (तत्) - 1. अपने स्थान से हटकर इधर-उधर होना। 2. घबराना। 3. अपने कर्त्तव्य, संकल्प, प्रतिज्ञा, सिद् धांत आदि से हटना।

विचलित - (वि.) (तत्.) - सही सिद्धांत या ठीक मार्ग से हटा हुआ। जैसे: प्रकाश की रेखाओं का विचलित होना।

विचार - (पुं.) (तत्.) - 1. मन में पैदा होने वाले भाव, बात या ख्याल, तर्क। 2. तर्कपूर्वक सोची हुई बात, निर्णय, निश्‍चयात्मक बोध। 3. विचारपूर्वक बनी धारणा। 4. जाँच, परीक्षण। 5. परस्पर विमर्श।

विचारक [विचार+क=करने वाला] - (पुं.) (तत्.) - किसी विषय पर विचार करने वाला व्यक्‍ति। पर्या. चिंतक।

विचार-गोष्‍ठी - (स्त्री.) (तत्.) - किसी विषय विशेष पर विचारों का आदान-प्रदान करने के लिए आयोजित कार्यक्रम। seminar

विचारण [विचार+न] - (पुं.) (तत्.) - 1. विचार करने की प्रक्रिया, 2. विधि. किसी विवाद के बारे में निश्‍चय पर पहुँचने के लिए न्यायालय द्वारा की गई दोनों पक्षों की सुनवाई। trial

विचारणीय - (वि.) (तत्.) - 1. (वह विषय या बात) जिस पर विचार करना आवश्यक या उचित हो। 2. जो विचार करने योग्य हो या विचार करने के लिए प्रस्तुत किया गया हो। जैसे: स्थानीय पुस्तकालय की व्यवस्था हेतु प्रस्तुत प्रस्ताव विचारणीय है।

विचारधारा - (स्त्री.) (तत्.) - 1. विचारों का वह क्रम जिसे गहरे चिंतन व मनन के पश्‍चात उस विषय के विद् वानों के द्वारा प्रस्तुत किया जाता है। 2. वह निश्‍चित विचार प्रणाली या विचार पद्धति जो किसी व्यक्‍ति संस्था, समाज आदि के द्वारा स्वीकृत की जाती है। जैसे: गाँधीजी की विचारधारा, बौद्धों की विचारधारा आदि।

विचार-विमर्श - (पुं.) (तत्.) - सोच-विचार कर तथ्यों या वास्तविकता का पता लगाना; विचारों का मंथन, विचारों का आदान-प्रदान।

विचाराधीन [विचार+अधीन] - (वि.) (तत्.) - जिसके संबंध में विचार चल रहा हो किंतु अभी निर्णय न हुआ हो। जैसे: यह बिल तो अभी संसद में विचाराधीन है।

विचित्र - (वि.) (तत्.) - 1. रंग-बिरंगा, 2. अनेक प्रकार का, बहुविध।, 3. अजीब, 4. कौतूहलजनक 5. साधारण से अलग।

विचित्रता - (स्त्री.) (तत्.) - 1. आश्‍चर्यजनक, विचित्र या विलक्षण होने की अवस्था या भाव। पर्या. विलक्षणता, अनोखापन। 2. रंग-बिरंगापन। जैसे: भारतीयसंस्कृति की विचित्रता सभी को आकर्षित करती है।

विच्छिन्न - (वि.) (तत्.) - 1. जिसे काटकर अलग कर दिया गया हो। 2. विभक्‍त, अलग, 3. छिन्न-भिन्न, समाप्‍त। विलो. अविच्छिन्न।

विच्छेद - (पुं.) (तत्.) - 1. काटकर या तोडक़र अलग करना या किसी बड़ी चीज़ को तोडक़र टुकड़े-टुकड़े करना या बीच से क्रम टूटना। 2. पृथकता, अलगाव। जैसे: सम्बन्ध-विच्छेद। 3. वर्णों या संधियुक्‍त पदों को अलग-अलग करना। वर्णविच्छेद या संधि-विच्छेद। विलो. संधि।

विजय - (स्त्री.) (तत्.) - द्वंद्व, युद्ध या प्रतियोगिता आदि में किसी को हराकर मिली सफलता। पर्या. जीत।

विजयी [विजय+ई] - (वि.) (तत्.) - 1. विजय प्राप्‍त करने वाला, विजेता। 2. सफलता प्राप्‍त करने वाला। विलो. पराजित।

विजाति - (स्त्री.) (तत्.) - 1. दूसरी या भिन्न जाति, अन्य जाति। 2. भिन्न वर्ग या किस्म। वि. तत् 1. भिन्न जाति का। 2. अन्य वर्ग या किस्म का। पर्या. विजातीय।

विजातीय - (वि.) (तत्.) - 1. भिन्न जाति या वर्ग वाला, जैसे: विजातीय द्रव्य। 2. अलग किस्म का।

विजेता - (वि./पुं.) (तत्.) - जीतने वाला या विजयी हुआ व्यक्‍ति।

विज्ञ - (वि.) (तत्.) - विषय विशेष की जानकारी या ज्ञान रखने वाला व्यक्‍ति। पर्या. जानकार, विद्वान, समझदार (व्यक्‍ति)

विज्ञान - (पुं.) (तत्.) - शा.अर्थ विशेष ज्ञान। वि. अ. 1. किसी विषय का क्रमबद् ध एवं तर्कसंगत ज्ञान। 2. किसी विषय, विशेष रूप से जड़ पदार्थों या लौकिक तत् वों, सिद् धांतों आदि का वह प्रयोगिक तथ्यपूर्ण विवेचन जो एक स्वतंत्र शास्त्र के रूप में हो। जैसे: भौतिक विज्ञान, जीव विज्ञान, खगोल शास्त्र आदि। sciene

विज्ञानवाद [विज्ञान+वाद] - (पुं.) (तत्.) - (बौद्ध) बौद्ध मतानुयायियों में ‘महायान’ संप्रदाय का सिद्धांत जिसके अनुसार संसार के सभी पदार्थ असत्य हैं फिर भी विज्ञान चित् की दृष्‍टि से सत्य है।

विज्ञानवादी - (वि.) - 1. विज्ञानवाद से संबंधित/विज्ञानवाद का। 2. विज्ञानवाद को मानने वाला या अनुयायी।

विज्ञापन - (पुं.) (तत्.) - 1. किसी बात अथवा तथ्य की विशेष जानकारी देना। 2. ऐसा पत्रक, पट इत्यादि जो किसी विषय की विशेष जानकारी दे। प्रचार माध्यमों से किसी विषय की सशुल्क प्रकाशित की गई विशेष जानकारी। 3. व्यावसायिक प्रचार के साधन। advertisement

विटामिन - (पुं.) (तत्) - (अं.) प्रोटीन, कार्बोहाइड्रेट, वसा और खनिज अम्लों को छोडक़र अन्य व जो भोजन के आवश्यक घटक होते हैं और शरीर के सुचारू रूप से काम करने में साधन होते हैं। इनकी कमी शारीरिक दोष पैदा करती है। उदा. विटामिन ‘सी’ आँवला में पाया जाता है जिसकी कमी से स्कर्बी रोग हो जाता है।

विडंबना - (स्त्री.) (तत्.) - 1. किसी की चाल, मुद्राओं आदि की पूरी तरह नकल उतारकर उसे चिढ़ाने या अपमानित करने की क्रिया। 2. छल, 3. हँसी, उपहास। 4. अभीष्‍ट घटना का असमय होना जिससे वह बुरी लगे। जैसे: भाग्य की विडंबना है कि वह दुर्घटना में पंगु हो गया।

वितंडा - (स्त्री.) (तत्.) - 1. किसी विषय के विवेचन में दूसरों के दोष दिखलाते जाना परंतु अपने मत का उल्लेख तक न करना। 2. (न्याय.) ज़ोर-ज़ोर से केवल अपनी बात कहते जाना और दूसरे की बात बिल्कुल न सुनना; निराधार, दोष दिखलाना तथा अपने समर्थन में हल्के और ओछे तर्क देते रहना। निरर्थक तूतू-मैंमैं।

वितंडावाद - (पुं.) (तत्.) - निरर्थक युक्‍ति का सहारा लेकर किया जाने वाला वाद या विवाद।

वितत - (वि.) (तत्.) - 1. फैला हुआ, विस्तृत, लंबा-चौड़ा (क्षेत्र)। 2. खींचा या ताना हुआ। (धनुष आदि) 3. (संगीत.) चमड़े, डोरी आदि से मँढ़ा हुआ (बाजा) जैसे: ढोलक एक वितत वाद्य है। विशेष-ताँत या तार के सहयोग से बजाये जाने वाले वाद् य सितार आदि को तत् वाद्य या तंतु वाद्य कहते हैं। 4. गणितशास्त्र में भिन्न का एक प्रकार- ‘विततभिन्न’ continued fraction

वितरक - (पुं.) (तत्.) - वितरण करने वाला, बांटने वाला। दे. वितरण।

वितरण - (पुं.) (तत्.) - सा.अर्थ किसी वस्तु के एकाधिक व्यक्‍तियों या मदों में बांटने की क्रिया या भाव। distribution

वितरिकाएँ - (स्त्री.) (तत्.) - बहु. सा.अर्थ बंटी हुई। वि. अर्थ नदियों द्वारा लाए गए अवसाद के जमा हो जाने के कारण मुहाने के पास बनी हुई उपधाराएँ। Distributaries

वितरित [वि+तरित] - (वि.) (तत्.) - जिसका वितरण किया गया हो अर्थात बांटा हुआ जैसे: वितरित-अन्न।

वितल - (पुं.) (तत्.) - 1. भारतीय पुराणों के अनुसार पृथ्वी के नीचे स्थित सात लोकों में से दूसरा। 2. (भू. वि. सागर या महासागर में अत्यधिक गहराई पर स्थित निचला तल जहाँ सूर्य का प्रकाश नहीं पहुँच पाता। विशेष-वितल 2200 से 5500 मीटर तक होता है। महासागरों में 2000 मीटर से नीचे स्थित भाग को वितल अम्बुधि कहा जाता है। Abyssal gone

वितान - (पुं.) (तत्.) - 1. फैलाव, विस्‍तार; तानने की क्रिया।2. चँदोवा, बड़ा तंबू या खेमा। 3. यज्ञ। शा.अर्थ तृष्णा

वितृष्णा [वि+तृष्णा] - (स्त्री.) (तत्.) - शा.अर्थ तृष्णा का अभाव, तृष्णा का न होना। सा.अर्थ विरक्‍ति, उसे सांसारिक वस्तुओं से वितृष्णा हो गई है। 2. अरूचि, घृणा। विलो. अनुराग, आसक्‍ति।

वित्‍त - (पुं.) (तत्.) - 1. धन-संपत्‍ति, 2. राज्य, संस्था आदि की आय और व्यय का विभाग, 3. आर्थिक प्रबंध। जैसे: वित्‍त विभाग/वित्‍त मंत्रालय। विशेष-आने वाले वर्ष में होने वाली अनुमानित आय के अनुसार होने वाले व्यय का नियमन करने हेतु बजट का निर्माण इसी विभाग द्वारा किया जाता है। finance

वित्‍तीय - (वि.) (तत्.) - 1. वित्‍त संबंधी, अर्थविषयक, आर्थिक 2. वित्‍त के अनुसार चलने या होने वाला। जैसे: वित्‍तीय वर्ष। (भारत सरकार का वित्तीय वर्ष 1 अप्रैल से 31 मार्च तक का होता है)।

विदर्म - (पुं.) (तत्.) - वर्तमान महाराष्‍ट्र के नागपुर और आसपास के क्षेत्र का पुराना नाम, बरार।

विदा - (स्त्री.) (अर.) - 1. प्रस्थान, गमन। जैसे: विवाह में आये समस्त मेहमान विदा हो गए। 2. किसी स्थान से प्रस्थान करने के लिए आतिथेय, परिवार के वरिष्‍ठ सदस्य या अन्यों की अनुमति। जैसे: दीक्षांत के पश्‍चात शिष्य ने गुरूजी से विदा मांगी।

विदाई - (स्त्री.) (अर.) - 1. विदा होने या करने की क्रिया या भाव। 2. विदा के समय मिलने वाला या दिया जाने वाला धन, उपहार आदि। 3. किसी के विदा होने से पूर्व उसके भावी जीवन के प्रति शुभकामना हेतु सामूहिक कार्यक्रम। जैसे: विदाई समारोह।

विदारक - (वि.) (तत्.) - 1. विदीर्ण करने वाला, चीर देने वाला। जैसे: हृदयविदारक घटना।

विदित - (वि.) (तत्.) - 1. जाना हुआ, ज्ञात। 2. प्रसिद् ध, विख्यात। उदा. धनुही सम त्रिपुरारि धनु, विदित सकल संसार (रामचरित मानस) सर्वविदित वि. जो सबको मालूम हो।

विदुषी - (स्त्री.) (तत्.) - व्यु.अर्थ 1. वह स्त्री जो किसी विद्या में या विषय में पारंगत हो। सा.अर्थ 2. विद्या संपन्‍न स्त्री, पंडिता स्त्री। पुं. विद्वान।

विदूषक - (पुं.) (तत्.) - 1. अपने हावभाव, पहनावा, शारीरिक चेष्‍टा, बातों आदि से लोगों का मनोरंजन करने वाला। मसखरा। 2. संस्कृत नाटकों में इस प्रकार का एक पात्र जो नायक का अंतरंग मित्र होता है। (आजकल चलचित्रों में भी ऐसा पात्र होता है।) comedian

विदेश [वि=पराया+देश] - (पुं.) (तत्.) - वह देश जो अपना नहीं है (यानी पराया देश) विलो. स्वदेश।

विदेशी - (वि.) (तत्.) - जो पराए देश/परदेश का हो जैसे: विदेशी साबुन; अन्य देश का निवासी जैसे: विदेशी अतिथि। पर्या. परदेशी/परदेसी।

विदोहन - (पुं.) (तत्.) - शा.अर्थ दुहने की क्रिया या भाव। 1. प्राकृतिक संसाधनों से अत्यधिक लाभ उठाना। 2. बिना उचित पारिश्रमिक दिए अत्यधिक काम लेना, शोषण।

विद्यमान - (वि.) (तत्.) - जो अस्तित्व में हो, मौजूद, उपस्थित।

विद्या - (स्त्री.) (तत्.) - 1. अध्ययन और शिक्षा से प्राप्‍त होने वाला ज्ञान। 2. वे शास्त्र या विषय जिनमें तत् संबंधी ज्ञान की बातों का विवेचन मिलता है। जैसे: रसायन विद्या , संगीत विद्या, तर्क विद्या आदि। 3. भारतीय मान्यता के अनुसार चौदह विद् याएँ मानी गई हैं-चार वेद, छह वेदांग, धर्मशास्त्र, न्याय, मीमांसा और पुराण। 4. दर्शन के अनुसार आत्मज्ञान ही विद् या है अन्य सभी ज्ञानों को अविद् याही कहा गया है। विलो. अविद्या।

विद्यार्थी (विद्या+अर्थी) - (वि.) (तत्.) - शा.अर्थ विद् या चाहने वाला, विद् या का अभिलाषी। (i) य में शिक्षा प्राप्‍त कर रहा छात्र; (ii) किसी भी विषय का नियमित पाठक। पर्या. छात्र, शिक्षार्थी।

विद्यालय [विद् या+आलय] - (पुं.) (तत्.) - वह भवन जहाँ नियमित रूप से उपस्थित होकर छात्र कक्षाचार शिक्षा अर्जित करते हैं।, पाठशाला (कम उम्र के छात्रों के लिए), विद् यागृह, शिक्षालय, स्कूल।

विद्युत - (पुं.) (तत्.) - ऊर्जा की एक प्रकार की अभिव्यक्‍ति जो आविष्‍ट (आवेशित) कणों के संचालन से पैदा होती है। पर्या.बिजली। electricity, lightning

विद्युत-जनित्र - (पुं.) (तत्.) - 1. बिजली पैदा करने वाला यंत्र या उपकरण। generator

विद्युतदर्शी - (पुं.) (तत्.) - विद्युत आवेश का पता लगाने वाला उपकरण या यंत्र। electroscope

विद्युत धारा - (स्त्री.) (तत्.) - विद्युत-उर्जा stap का प्रवाह। current

विद्युत-प्रवाह - (पुं.) (तत्.) - बिजली की धारा। जैसे: विद्युत प्रवाह तारों के माध्यम से होता है। electric current

विद्युत-लेपन (विद् युल्लेपन) - (पुं.) (तत्.) - किसी पदार्थ पर बिजली की ऊर्जा के द् वारा वांछित धातु को पिघलाकर उसकी परत लगाना या चढ़ाना electroplating

विद्युत विसर्जन - (पुं.) (तत्.) - शा.अर्थ बिजली का छोडा जाना (यानी पैदा होना) आसमान में बादलों में ऋणात्मक एवं धनात्मक आवेशों के मिलने पर पैदा होने वाली चमक (चमकीली धारियाँ) तथा ध्वनि उत्पन्न होने की प्रक्रिया। 2. तडि़त, 2. बिजली कडक़ना, 3. बिजली गिरना।

विद्युत शक्‍ति - (स्त्री.) (तत्.) - बिजली से उत्पन्न शक्‍ति, जिसका उपयोग कर मशीनें आदि चलाई जाती हैं।

विद्वत्‍ता - (स्त्री.) (तत्.) - [विद् वत+ता] 1. विद्वान होने का भाव, 2. पांडित्य, 3. अत्यधिक ज्ञान। पर्या. विद्वत्व वैदुष्य

विद्वत्‍तापूर्ण - (वि.) (तत्.) - 1. पांडित्य के गुणों से संपन्न। 2. विद् या-विनय से युक्‍त/ज्ञानसंपन्न।

विद्वान (विद्वान) - (वि.) (तत्.) - शा.अर्थ जानने वाला, जानकार। विशिष्‍ट ज्ञानवान, अत्यधिक शिक्षित। पर्या. पंडित। पुं. (तत्.) 1. ज्ञानवान व्यक्‍ति, पंडित।

विद्वेष - (पुं.) (तत्.) - 1. विद्वेष भाव, शत्रुता, वैर, दुश्मनी। 2. विरोध, 3. घृणा, जलन।

विद्रोह - (पुं.) (तत्.) - 1. अपनी संस्था, परिवार के प्रति शत्रुतापूर्ण कार्य, द्रोह। 2. दुर्भाग्यवश किया जाने वाला वह भारी उपद्रव जिसका उद्देश्य राज्य को हानि पहुँचाना, उलटना या नष्‍ट करना हो। जैसे: राजद्रोह, देशद्रोह। पर्या. बलवा, बगावत। 3.क्रूर शासन को बदलने के लिए सामूहिक/व्यक्‍तिगत रूप से किया गया द्रोह। पर्या. बगावत, गदर।

विद्रोही - (वि.) (तत्.) - 1. शासन के खिलाफ या किसी अन्याय के विरूद्ध विद्रोह करने वाला। 2. विद्रोहपूर्ण। जैसे: वह शासन के खिलाफ विद्रोही स्वर में बोला। 3. विद्रोह से संबंधित। पुं. विद्रोह करने वाला व्यक्‍ति।

विधना - (स्त्री.) (तत्.) - वह परम शक्‍ति जो संसार का विधान करती है। होनी, भवितव्यता, ऊदृष्‍ट। पुं. (तत्.) विधाता, दैव, परमेश्‍वर।

विधवा [विहीन+धव=प्रति+आ 9 स्त्री प्रत्यय] - (स्त्री.) (तत्.) - वह स्त्री जिसका पति मर चुका हो; वह महिला जिसका पति जीवित न हो। पर्या. बेवा, राँड (अपशब्द के रूप में प्रयुक्‍त) विलो. सधवा।

विधा - (स्त्री.) (तत्.) - 1. किसी भी कार्य को करने की या क्रिया की रीति। ढंग, तरीका, प्रणाली। 2. किस्म, भेद। 3. उपन्यास, नाटक, कविता आदि साहित्य का कोई प्रकार। जैसे: साहित्यक विधाओं के विविध रूप हैं।

विधाता - (वि./पुं.) (तत्.) - निर्माता, स्रष्‍टा, रचने वाला, सृष्‍टिकर्ता (ब्रह् मा; विश्‍वकर्मा) स्त्री. विधात्री।

विधान - (पुं.) (तत्.) - 1. विधि का निर्माण। legislation 2. आयु. स्वास्थ्य में सुधार के लिए बनाई गई सुविचारित योजना जिसमें आहार, औषधि, व्यायाम आदि शामिल होते हैं।

विधान-परिषद् - (स्त्री.) (तत्.) - राज्यों में द्विसदनी, विधानमंडल में उच्च/ऊपरी सदन। legislative council

विधानमंडल - (पुं.) (तत्.) - विधियों का निर्माण और उनमें संशोधन आदि करने के लिए संविधान द्वारा प्राधिकृत, अभिकरण। legirlature

विधानसभा - (स्त्री.) (तत्.) - भारत-संघ के प्रत्येक राज्य में निर्वाचित प्रतिनिधियों की वह सभा जिसे विधान अथवा कानून बनाने का अधिकार प्राप्‍त है।legislative assembly

विधायिका - (स्त्री.) (तत्.) - किसी देश के संविधान द्वारा प्राधिकृत विधि निर्माण करने वाला अंग। जैसे: भारत गणराज्य के संदर्भ में लोकसभा और राज्यसभा; राज्यों के संदर्भ में विधानसभा, विधानपरिषद। legisleture तु. कार्यपालिका, न्यायपालिका।

विधि - (स्त्री.) (तत्.) - 1. किसी काम को करने का ढंग, तरीका, प्रणाली या रीति। 2. प्राचीन अर्थ शास्‍त्रम्‍मत व्यवस्था। 3. आधुनिक अर्थ-वह विधिक व्यवस्था जिसके अनुपालन नागरिक का कर्त्‍तव्य है और उल्लंघन को रोकना न्यायालय का कर्त्तव्य है। (लॉ) पर्या. कानून। 3. भाग्य। उदा. विधि की विडंबना 5. सृष्‍टि का स्वयिता, ब्रह्मा।

विधि-निर्माता - (पुं.) (तत्.) - नियम, कानून या विधि बनाने वाला। दे. विधि।

विधिवत् क्रि.वि. - (वि.) (तत्.) - 1. विधिपूर्वक या नियमानुसार। 2. जिस ढंग से होना चाहिए, उसी ढंग से। जैसे: मैं गीता का विधिवत् पाठ करता हूँ।

विधि-संगत - (वि.) (तत्.) - 1. विधि के अनुरूप या कानून के अनुसार (कानूनन) 2. न्याय संगत। 2. शास्त्रीय विधियों के विधान के अनुरूप।

विधि-सम्मत - (वि.) (तत्.) - विधि या नियम के अनुसार; विधित: मान्य, नियमानुकूल, 2. शास्त्रीय विधियों द् वारा मान्य। दे. विधि संगत।

विधुर - (पुं.) (तत्.) - 1. वह पुरूष जिसकी पत्‍नी मर गई हो। 2. दुखी, व्याकुल।

विधेयक - (पुं.) (तत्.) - संसद, विधानसभा आदि के समक्ष विचारार्थ प्रस्तुत प्रस्ताव का वह प्रारूप (मसौदा/बिल) जो पारित होने के बाद अधिनियम का रूप ले लेता है। bill

विध्वंस - (पुं.) (तत्.) - पूरी तरह से ध्वस्त कर देने का कुकृत्य, सर्वथा नाश, विनाश, बरबादी।

विनत - (वि.) (तत्.) - 1. झुका हुआ 2. नम्र, शिष्‍ट। 2. जिसने किसी के सामने सिर झुका दिया हो, नतमस्तक। विलो. उद्धत।

विनती - (स्त्री.) (तद्<विनति) - 1. किसी के समक्ष किया जाने वाला विनयपूर्ण निवेदन, प्रार्थना। 2. ईश्‍वरीय स्तुति या किसी गुरू, इष्‍टदेव आदि की स्तुति, नम्र निवेदन। हमारी ईश्‍वर से विनती है कि तुम शीघ्र स्वस्थ हो जाओ।

विनम्र [वि+नम्र] - (वि.) (तत्.) - शा.अर्थ विशेष रूप से नम्र; बहुत झुका हुआ। व्यक्‍ति के स्वभाव का वह गुण जिसके अनुसार वह दूसरों के प्रति अपने व्यवहार को उग्र नहीं होने देता। पर्या. विनीत, विनयशील, नम्र।

विनम्रता [वि+नम्रता] - (स्त्री.) (तत्.) - विनम्र या विनीत होने का भाव या अवस्था।

विनय - (स्त्री.) (तत्.) - 1. नम्र होने का यानी अपनी योग्यता को शालीनता से प्रस्तुत करने का भाव। 2. शिष्‍ट, शालीन और विनम्र आचरण की स्थिति। modesty

विनयपूर्वक क्रि.वि. - (वि.) (तत्.) - 1. विनय के साथ, विनम्रतापूर्वक, 2. दीनता पूर्वक। जैसे: आप से विनयपूर्वक प्रार्थना है कि इस निर्धन बालक को नर्सरी कक्षा में प्रवेश देने की कृपा करें।

विनष्‍ट - (वि.) (तत्.) - 1. जो पूरी तरह नष्‍ट हो चुका हो। ध्वस्त। जैसे: प्राचीनकाल में बना यह महल अब विनष्‍ट हो चुका है। 2. बर्बाद। जैसे: दुर्व्यसनों से उसने अपना जीवन विनष्‍ट कर लिया। 3. मृत=विनष्‍ट देह।

विना अव्यय. - (तत्.) - 1. अभाव में, न होने पर, बगैर। जैसे: विना परिश्रम के उत्‍तम फल नहीं मिलता। 2. बिना, 3. अतिरिक्‍त, अलावा। जैसे: तुम्हारे बिना यह कार्य कोई नहीं करेगा।

विनायक - (पुं.) (तत्.) - 1. विशेष गुण संपन्न नायक। 2. गणेश (शिव-पार्वती का पुत्र)

विनाश [वि+नाश] - (पुं.) (तत्.) - 1. इस तरह का नाश कि उसका वैसा ही पुननिर्माण संभव न हो और हो तो भी अत्यंत दुष्कर। 2. अस्तित्व ही न रहना, 3. प्राकृतिक प्रकोप (अतिवृष्‍टि, बाढ़, सूखा, आग तथा भूकंप आदि) के कारण होने वाली भीषण क्षति। उदा. भयानक भूकंप या भीषण बाढ़ के कारण हड़प्पा सभ्यता का विनाश हुआ।

विनाशकारी [विनाश+कारी] - (वि.) (तत्.) - 1. किसी व्यक्‍ति, वस्तु, गुण, आदि का विनाश करने वाला। विनाशी, विनाशक। 2. मार डालने वाला। जैसे: यह विनाशकारी अस्त्र है।

विनाशी - (वि.) (तत्.) - 1. नाश करने वाला, विनाशक। 2. नष्‍ट होने वाला, नश्‍वर। जैसे: यह शरीर तो विनाशी है। 3. बिगाड़ने वाला।

विनिमय - (पुं.) (तत्.) - 1. एक वस्तु के बदले में दूसरी वस्तु देना। परिवर्तन, अदल-बदल barter 2. वह प्रक्रिया जिसके अनुसार दो पक्षों या देशों का आपसी लेन-देन निश्‍चित होता है। intercharge 3. एक देश की मुद्रा का दूसरे देश की मुद्रा में परिवर्तन। exchange जैसे: विनिमय एक व्यावहारिक आर्थिक सिद्धांत है।

विनिर्माण [वि+निर्माण] - (पुं.) (तत्.) - 1. वस्तुओं को बडे़ पैमाने पर और गुणवत्‍ता के साथ बनाने का भाव या क्रिया। manufacture 2. भवन निर्माण, उद् योगों के विस्तार आदि के लिए किया गया निर्माणकार्य।

विनीत - (वि.) (तत्.) - 1. विनय से युक्‍त, विनम्र, 2. शिष्‍ट, सुशील।

विनोइंग - (स्त्री.) - (अं.) ओसाने की क्रिया, ओसाई, फटकना।

विनोद - (पुं.) (तत्.) - 1. वह बात या क्रिया जिसे सुनकर या देखकर मन खुश होता हो। मनोविनोद, मनोरंजन। 2. हास-परिहास, 3. प्रसन्नता।

विन्यास - (पुं.) (तत्.) - 1. सही क्रम से रखना, लगाना या स्थापन। 2. रचना, बनावट, रूपरेखा; काव्य सौंदर्य। जैसे: उपन्यास का वस्तु विन्यास।

विपक्ष - (पुं.) (तत्.) - शा.अर्थ विरोधी या अन्य पक्ष; प्रतिद् वद् वीं। राज. सत्‍तासीन राजनीतिक दल की नीतियों और कार्यकलाप से सहमत न होने या विरोध करने वाला अन्य राजनीतिक दल या कई दलों का समूह। विलो. पक्ष।

विपक्षी - (वि./पुं.) (तत्.) - दूसरे पक्ष का विरोधी पक्ष वाला। (व्‍यक्‍ति या सदस्य)

विपत्‍ति - (स्त्री.) (तत्.) - 1. ऐसी घटना अथवा परिस्थिति जिसके कारण चिंता या हानि की प्रत्यक्ष संभावना बना जाए। पर्या. आपदा, विपदा, संकट, आफ़त, मुसीबत। मुहा. (i) विपत्‍ति का पहाड़ टूटना, (ii) विपत्‍ति झेलना। (iii) विपत्‍ति में पड़ना। (iv) विपत्‍ति मोल लेना।

विपदा - (स्त्री.) (तत्.) - दे. विपत्‍ति। उदा. रहिमन विपदा हू भली जो थोरे दिन होई। हित-अनहित या जगत में, जानि परत सब कोई।

विपदाग्रस्त - (वि.) (तत्.) - (विपदा+ग्रस्त) 1. विपत्‍ति से ग्रस्त या पीडि़त। 2. संकट में पड़ा हुआ। जैसे: अकालपीडि़त किसी भी क्षेत्र को सरकार विपदाग्रस्त घोषित करती है।

विपरीत - (वि.) (तत्.) - ) जैसा होना चाहिए उसका विलोम या उल्टा। उलटा, प्रतिकूल, भिन्न, बेमेल। विलो. अनुकूल।

विपुल - (वि.) (तत्.) - 1. संख्या या परिमाण में बहुत अधिक। जैसे: अनाथों की सहायता के लिए विपुल धनराशि दी। 2. विस्तृत, विशाल, घना।

विप्र - (पुं.) (तत्.) - 1. पढ़ा-लिखा, ब्राह्मण। 2. पुरोहित, 3. मेधावी, विद् वान।

विप्ल - (पुं.) (तत्.) - स्थापित सत्‍ता या सरकार के विरूद्ध खुला विद्रोह। तु. राजद्रोह, विद्रोह।

विफल - (वि.) (तत्.) - 1.फल से रहित, बिना फल का। 2. जो अपने लक्ष्य की प्राप्‍ति में सफल न हुआ हो, असफल। जैसे: वह नदी पार करने में विफल रहा। 3. व्यर्थ, निरर्थक। विलो. सफल।

विफलता - (स्त्री.) (तत्.) - विफल होने की स्थिति या भाव। असफलता।

विभक्‍त - (वि.) (तत्.) - 1. जिसके विभाग किए गए हों, विभाजित, बाँटा हुआ। जैसे: यह मंत्रालय दो भागों में विभक्‍त है, शिक्षा और संस्कृति। 2. अलग किया हुआ। उत्‍तराखंड, उत्‍तर प्रदेश से विभक्‍त हुआ एक स्‍वतंत्र प्रांत। 3. जो अलग हो गया हो। बांग्लादेश, पाकिस्तान से विभक्‍त हो गया।

विभाग - (पुं.) (तत्.) - शा.अर्थ विभाजन, खंड, अंश। distribution, division सा.अर्थ सुविधा या प्रबंध के लिए कार्य का अलग किया हुआ क्षेत्र, महकमा। department 2. किसी संस्था या संगठन के विभिन्न विभाग। जैसे: विश्‍वविद्यालयों में हिंदी विभाग, अंग्रेजी विभाग आदि। 3. कार्यसंचालन की दृष्‍टि से कार्य का छोटी इकाई, एकक। section

विभागाध्यक्ष - (पुं.) (तत्.) - (विभाग+अध्यक्ष) 1. किसी कार्यक्षेत्र या महकमे का अध्यक्ष। 2. किसी विभाग का सर्वोच्च अधिकारी। जैसे: विश्‍वविद्यालय में हिंदी शोधकार्य के लिए हिंदी विभागाध्यक्ष से मिलें। head of the department

विभागीय - (वि.) (तत्.) - (विभाग+ईय प्रत्यय) जो किसी विभाग से संबंधित हो, विभाग का। जैसे: यह विभागीय मामला है।

विभाजन - (पुं.) (तत्.) - 1. अलग-अलग वर्गों में बाँटना। जैसे-कार्य का विभाजन अनुभव के आधार पर किया गया है। 2. (धन संपत्‍ति का) विभाग करना। जैसे: पिता ने अपनी संपत्‍ति का समान विभाजन कर दिया।

विभाजन रेखा - (स्त्री.) (तत्.) - बाँटने या अलग-अलग करने वाली रेखा। जैसे: चीन और भारत के बीच में कल्पित विभाजन रेखा ‘मैक मोहन रेखा’ कहलाती है।

विभाजित - (वि.) (तत्.) - अलग-अलग किया हुआ; बँटा हुआ, बाँटा हुआ। दे. विभाजन।

विभिन्न - (वि.) (तत्.) - 1. तोड़ा हुआ, टुकडे़ किया हुआ, फाड़ा हुआ, छिन्न। 2. मूल से अलग किया हुआ। 3. विविध प्रकार का; विविध बहुत से। जैसे: यहाँ विभिन्न भाषा-भाषी रहते हैं।

विभिन्नता - (स्त्री.) (तत्.) - 1. विभिन्न होने की स्थिति या भाव। 2. अन्तर, भेद। कई प्रकार के होने आदि को व्यक्‍त करने का सूचक भाव। जैसे: भारत में भाषा, धर्म, वेश की विभिन्नता होने पर भी सांस्कृतिक एकता है।

विभूति - (स्त्री.) (तत्.) - 1. अधिकता। 2. ऐश्‍वर्य, धन-संपत्‍ति।, 3. दिव्य शक्‍ति। 4. असाधारण, विशेष गुणों, शक्‍तियों, ऐश्‍वर्य आदि से संपन्न कोई महापुरुष। जैसे: इस देश में महात्मा गांधी, जैसी महान विभूति ने जन्म लिया है। 5. यज्ञ की अवशिष्‍ट राख या भस्म।

विभूषित [वि+भूषित] - (वि.) (तत्.) - 1. गहनों इत्यादि से सजाया हुआ, सुशोभित। पर्या. अलंकृत।

विमर्श - (पुं.) (तत्.) - किसी विषय, वाद आदि पर तर्कतापूर्ण चिंतन, सोच-विचार अथवा तथ्यपरक परीक्षण। 1. विचार 2. विवेचन, 3. आलोचना, समीक्षा, 4. अध्ययन, परीक्षण, 5. तर्कयुक्‍त ज्ञान आदि। deliberation टि. साहित्यिक जगत में आजकल इस शब्द का व्यापक प्रयोग हो रहा है। जैसे: स्त्री विमर्श, दलित विमर्श आदि।

विमाता - (स्त्री.) (तत्.) - 1. पिता की दूसरी पत्‍नी, माता की सौत। 2. सौतेली माँ। जैसे: राम की विमाता कैकेयी थी। step mother

विमान - (पुं.) (तत्.) - 1. आकाश मार्ग में उडक़र चलने वाला विशेष यान, वायुयान, हवाई जहाज। जैसे: पुष्पक विमान। 2. किसी महात्मा या वयोवृद् ध आदि के शव की फूलमालाओं से सजी हुई अर्थी। 3. देवी-देवताओं की पालकी। 4. रथ।

विमुक्‍त - (वि.) (तत्.) - शा.अर्थ छोड़ा हुआ, छुटकारा पाया हुआ। सा.अर्थ 1. जो किसी बंधन, दायित्व या कारागार से मुक्‍त या स्वतंत्र किया गया हो, 2. जिसे किसी आरोप से मुक्‍त कर दिया गया हो, बरी। जैसे: विमुक्‍त कैदी। 3. कार्यभार से मुक्‍त।

विमुक्‍ति - (स्त्री.) (तत्.) - 1. कैदी की जेल से रिहाई या सजा से मुक्‍ति। 2. किसी समस्या, संकट आदि से छुटकारा, मुक्‍ति। 3. किसी नियम, बंधन या किसी जिम्मेदारी से छुटकारा। 4. मुक्‍ति, मोक्ष, जैसे: विमुक्‍ति का मार्ग अत्यंत कठिन है।

विमुख - (वि.) (तत्.) - शा.अर्थ मुँह फेरे हुए, पराड्मुँख। वि. अर्थ अनिच्छुक, उदासीन। indifferent averse

विमुखता - (स्त्री.) (तत्.) - मुँह फेर लेने का भाव यानी इच्छा न होने/रखने की अवस्था; उदासीनता। aversion

विमूढ़ - (वि.) (तत्.) - 1. भ्रम में पड़ा हुआ, मोहग्रस्त। 2. मूर्ख, नासमझ, अज्ञानी। जैसे: कृष्ण ने अर्जुन से कहा तुम अपने कर्तव्य को समझो, विमूढ़ मत बनो।

विमोचन - (पुं.) (तत्.) - शा.अर्थ गाँठ खोलना। किसी प्रतिष्‍ठित व्यक्‍ति के हाथों किसी नव प्रकाशित पुस्तक पर लपेटे गए वस्त्र या पन्नी पर बंधे सूत्र की गाँठ खोलकर उसे उपस्थित जनता के सम्मुख प्रदर्शित करना। इस औपचारिक समारोह के बाद उस पुस्तक की बिक्री प्रारंभ हो जाती है। inaugration तु. उद्धाटन, लोकार्पण। लोकार्पण (लोक+अर्पण) पुं. किसी सार्वजनिक प्रयोजन के लिए निर्मित भवन या सेवा को किसी स्‍थापति विद्ववान अथवा प्रसिद्ध महानुभाव के हाथों शुभारंभ। जैसे: मैट्रो रेल सेवा का लोकार्पण। तु. उद् धाटन, विमोचन।

वियोग - (पुं.) (तत्.) - 1. किसी से अलग होने या बिछुड़ने की क्रिया, अवस्था या भाव। जैसे-मित्र का वियोग असह्य होता है। 2. प्रिय व्यक्‍ति से मिलन न हो पाने की अवस्था, विरह। जैसे-पति के परदेश चले जाने से पत्‍नी उसके वियोग से दु:खी है। विलो. संयोग। 2. (गणित) घटाने की क्रिया। विलो. योग।

विरंजक - (पुं.) (तत्.) - वि. रंग फीका करने वाला, वह रसायन जो वस्तु के रंग को फीका कर देता है, bleaching powder

विरंजन - (पुं.) - रसायन का उपयोग कर किसी वस्तु को रंगहीन करने अथवा सूर्य के प्रकाश से किसी वस्तु के मूल रंग के फीका पड़ने की प्रक्रिया। bleaching

विरक्‍त - (वि.) (तत्.) - शा.अर्थ लालिमा से रहित; बदरंग। (i) सांसारिक राग या लालसा से मुक्‍त, माया के मोहबंधन से मुक्‍त। (ii) जिसकी किसी वस्तु आदि में आसक्‍ति न रही हो। विलो. अनुरक्‍त।

विरक्‍ति/विराग - (स्त्री.) (तत्.) - सांसारिक राग द्वेष से मुक्‍त, मोहबंधन के प्रति उदासीन। वैराग्य, उदासीनता। detechment विलो. अनुरक्‍ति।

विरत - (वि.) (तत्.) - 1. जिसमें लगाव की भावना समाप्‍त हो गई हो, दूर रहने वाला, विमुख। पर्या. विरक्‍त, संन्यासी। विलो. रत। 2. जो कार्य से अलग हो गया हो या जिसने कार्य छोड़ दिया हो। पर्या. निवृत्‍त। retired

विरल - (वि.) (तत्.) - 1. जिसके बीच में अंतराल हो; जो सघन न हो; 1. दूर-दूर स्थित, छितराया हुआ। जैसे: विरल आबादी वाला क्षेत्र। 2. जो बहुतायत में न मिले; कभी-कभी; नहीं के बराबर। पर्या. बिरला, दुर्लभ। जैसे: हीरा एक विरल मणि है।

विरला - (वि.) (तत्<विरल) - जो बहुत कम या केवल कहीं-कहीं मिलता हो, कम मिलने वाला, निराला, दुर्लभ, अनूठा। उदा. महात्मा गांधी जैसा व्यक्‍ति तो कोई विरला ही मिलेगा।

विरह - (पुं.) (तत्.) - (स्त्री. विरहिणी) किसी से विशेषत: अपने आत्मीय से (पति/पत्‍नी, पुत्र आदि से) लंबे समय के लिए अलग होने की स्थिति, जिससे दोनों को कष्‍ट होता हो।, वियोग, जुदाई। sepration form the darling विलो. मिलन।

विराजना अक.क्रि. - (तत्.) - 1. शोभित होना, 2. बैठना (दूसरों के लिए आदरसूचक प्रयोग) 2. उपस्थित होना। जैसे: महाराज सिंहान पर विराज रहे हैं।

विराजमान - (वि.) (दे.) - विराजित, बैठी हुई। जैसे: वाक् देवी देवी सरस्वती, हंस पर विराजमान हैं। दे. विराजना।

विराट (विराट्) - (वि.) (तत्.) - 1. बहुत बड़ा, विशाल। जैसे-विराट आयोजन, विराट सभा।

विराम - (पुं.) (तत्.) - 1. कार्य तथा गति आदि में अल्पकालिक अथवा पूर्णकालिक रूप जानने की स्थिति, ठहराव। (पॉज़, स्टॉप, रेस्ट) 2. वाक्य बोलते समय पदयोजना के अनुसार बीच-बीच में श्‍वास की गति के अनुसार, क्षणिक, रुकावट। 3. किसी टी.वी. कार्यक्रम के बीच-बीच में कई बार आने वाली रिक्‍ति जिसकी पूर्ति विज्ञापनों से होती है। commerical brake

विराम-अवस्था - (स्त्री.) (तत्.) - वह स्थिति जिसमें रुकना पड़े, ठहराव की अवस्था या स्थिति; विश्राम का अवसर।

विरामचिह्न - (पुं.) (तत्.) - वाक्य लिखते समय या मुद्रण के समय प्रयोग किए जाने वाले वर्णोत्‍तर चिह् न जो पद, वाक्यांश के अर्थबोध के अनुसार विराम आदि का निर्देश देते हैं; जैसे: अर्धविराम, पूर्णविराम, प्रश्‍न चिह्न आदि। punctuation marks

विरासत - (स्त्री.) (अर.) - शा.अर्थ वारिस उत्‍तराधिकारी होने का भाव। सा.अर्थ पैतृक वंश परंपरा से प्राप्‍त उत्‍तराधिकार। पर्या. दायाधिकार, रिक्थाधिकार। जैसे: उसे यह जायदाद विरासत में मिली है। वारिस होने के नाते मृतक की संपत्‍ति प्राप्‍त होने का अधिकार। पर्या. उत्‍तराधिकार।

विरासतनामा - (पुं.) (अर.+फ़ा.) - उत्तराधिकारपत्र।

विरुद्ध - (वि.) (तत्.) - जो विरोध में हो; जो अनुकूल न हो, प्रतिकूल, खिलाफ़, के विरूद्ध। उदा. मेरे विरूद्ध

विरोध - (पुं.) (तत्.) - 1. अनुकूल न होने का भाव या स्थिति। पर्या. प्रतिकूलता। 2. किसी कार्य को न होने देने या पूरे हुए काम को उलटने का प्रयत्‍न। opposition 3. व्यक्‍तिगत या सिद्धांतगत शत्रुता का भाव। पर्या. वैर, दुश्मनी। hostality

विरोधाभास [विरोध+आभास] - (पुं.) (तत्.) - विचारों, तर्कों, विचारधाराओं आदि में प्रतीत होने वाला परस्पर विरोध का भाव।

विरोधी - (वि.) (तत्.) - विरोध करने वाला (व्यक्‍ति); प्रतिपक्ष दल का (सदस्य), प्रतिस्पर्धा या होड़ करने वाला। जैसे: दो विरोधी दल आमने सामने है।

विरोधीदल - (पुं.) (तत्.) - 1. किसी व्यक्‍ति, विचारधारा राज.दल आदि के विरोध में आवाज़ उठाने वाला (जनसमूह) 2. विधायिका (लोकसभा, विधानसभा, नगर निगम आदि) में सत्‍तापक्ष के अतिरिक्‍त मान्यता प्राप्‍त अन्य दल। opposition party विपक्षी दल।

विलंब - (पुं.) (तत्.) - नियम या निर्धारित समय के बाद होने वाला (कार्य)। उदा. वह अपने कार्यालय विलंब से पहुँचा। अवधि से अधिक समय लेने वाला कार्य। उदा बहुत विलंब हो गया है, अब तो निकलो।

विलक्षण - (वि.) (तत्.) - शा.अर्थ जिसका लक्षण (कारण, स्वरूप आदि) विशिष्‍ट हो या बताया न जा सके। सा.अर्थ 1. अद् भुत, विचित्र। 2. असाधारण, अद् वितीय; विशेष विशिष्‍ट लक्षणों वाला।

विलक्षणता - (स्त्री.) (तत्.) - विलक्षण होने की भावना। दे. विलक्षण।

विलय - (पुं.) (तत्.) - 1. एक वस्तु का दूसरी वस्तु में मिल जाना, घुल जाना या समा जाना। 2. एक देश, राज्य या दल का पड़ोसी बडे़ देश/राज्य या बड़े दल में मिलकर एक हो जाना अथवा मिलाकर एक कर दिया जाना। merger, विलयन। पुं. तत्. 1. विलीन या घुल-मिल जाने की क्रिया या भाव। 2. इस तरह मिलकर एक हो जाना कि दूसरे का अस्तित्व ही न रहे। dissolution

विलाप - (पुं.) (तत्.) - 1. जोर से चीखकर या रोकर शोक प्रकट करना। 2. रोना, रुदन।

विलायत - (पुं.) - (अरबी) बहुत दूर का देश या समुद्र पार का कोई दूरस्थ देश। जैसे: भारत में इंग्लैंड, अमेरिका, फ्रांस आदि देश विलायत कहे जाते हैं।

विलायती - (वि.) - विलायत का, विलायत से आया हुआ। जैसे : विलायती सामान।

विलास - (पुं.) (तत्.) - 1. ऐश्‍वर्यपूर्ण भोग, सांसारिक सुखसाधन। 2. ऐश, मौज़ का जीवन, विषयभोग से युक्‍त जीवन। 3. स्त्री के कामोत्‍तेजक हाव-भाव। जैसे: भूविलास।

विलासी - (वि.) (तत्.) - 1. सांसारिक सुखों के उपभोग में लगा रहने वाला पुरुष। 2. क्रीड़ाशील, विनोदप्रिय, 3. रसिक, कामी। उदा. बिना परिश्रम से प्राप्‍त धन व्यक्‍ति को विलासी बना देता है।

विलीन - (वि.) (तत्.) - 1. जो किसी पदार्थ में घुल-मिल गया हो। जैसे: दूध में चीनी विलीन हो जाती है। पानी में नमक विलीन हो जाता है। 2. जो (राज्य या देश) अपनी स्वतंत्र सत्‍ता खोकर दूसरे में मिल गया हो। 3. छिपा हुआ। जैसे: पेड़ों के पीछे विलीन सूर्य को किसी ने नहीं देखा। 4. नष्‍ट। जैसे: पुरानी द्वारका समुद्र में विलीन हो चुकी है।

विलुप्‍त - (वि.) (तत्.) - जिसका लोप हो गया हो, जो छिप गया हो, जो खो गया हो। खोया हुआ, लुप्‍त।

विलेयता - (स्त्री.) (तत्.) - (रसा.) किसी द्रव, ठोस या गैसीय पदार्थ की किसी द्रव या गैस में घुल जाने की क्षमता या प्रवृत्‍ति। टि. अलग-अलग द्रवों में पदार्थ की विलेयता अलग अलग हो सकती है। solubility

विलोप - (पुं.) (तत्.) - 1. किसी वस्तु का लोप, गायब या अदृश्य होने का भाव। 2. अभाव, 3. नाश। जैसे: आज प्राचीन परंपराओं का धीरे-धीरे विलोप हो रहा है।

विलोम - (वि.) (तत्.) - 1. विपरीत अर्थ वाला। जैसे: सज्जन-दुर्जन, पुण्य-पाप, शीत-उष्ण। 2. क्रम की दृष्‍टि से ऊपर से नीचे की ओर आने वाला। 3. सामान्यत: परिपाटी के विरूद्ध होने वाला। (कार्य)

विवरण - (पुं.) (तत्.) - 1. विषय विशेष के बारे में व्यवस्थित व्यापक सूचना। statment 2. समझाने के लिए किसी बात का वर्णनात्मक उल्लेख। discription

विवश - (वि.) (तत्.) - जिसे अन्य व्यक्‍ति या परिस्थिति के कारण कोई अनिच्छित कार्य करना पड़े।, लाचार, मज़बूर, बेबस।

विवशता - (स्त्री.) (तत्.) - विवश होने का भाव या स्थिति। दे. विवश।

विवाद - (पुं.) (तत्.) - 1. झगड़ा, कलह। 2. कहासुनी, वाग्युद् ध। 1. जिसे लेकर परस्पर विरोधी दावे हों। dispute 2. एकमत होने का अभाव, परस्पर मतभेद। तु. वाद, प्रतिवाद, प्रवाद।

विवादास्पद [विवाद+आस्पद=आधार] - (वि.) (तत्.) - शा.अर्थ (वह व्यक्‍ति या विषय) जो विवाद, मतांतर या झगड़े का आधार या आश्रय बने। जैसे: विवादास्पद व्यक्‍तित्व, विवादास्पद विषय।

विवाह - (पुं.) (तत्.) - पति-पत्‍नी के रूप में साथ रहने, संतानोत्पत्‍ति करने आदि की कालातीत और सार्वत्रिक प्रथा (अथवा सामाजिक संस्था) (हिंदू धर्म के सोलह संस्कारों में से एक)। पर्या. शादी।

विवाहित - (वि.) (तत्.) - (विवाह+इत) जिसका विवाह हो गया हो, ब्याहा हुआ। जैसे: वह विवाहित पुरूष है। विलो. अविवाहित।

विविध - (वि.) (तत्.) - 1. कई प्रकार के रूप होने की स्थिति। (वेरिएशन) 2. जीव की प्रकृति जो दो जीवों के बिल्कुल समान नहीं होने देती। diversity, अनेकता, विभिन्नता।

विविधता - (स्त्री.) (तत्.) -

विवेक - (पुं.) (तत्.) - 1. बुद्धि की वह शक्‍ति जो दो पदार्थों/वस्तुओं/तथ्यों इत्यादि में अंतर कर सके। उदा. नीरक्षीर विवेक। 2. मिली-जुली या मिलती-जुलती वस्तुओं को गुण-दोष के आधार पर श्रेणीबद् ध या क्रमबद् ध कर सकने का गुण। विश्‍लेषण करने का गुण। 3. विवेचन के आधार पर गहन तत्त्वों को यथायोग्य रूप में ग्रहण करने का गुण। 4. निर्णय करने का गुण।

विवेकपूर्ण [विवेक+पूर्ण] - (वि.) (तत्.) - 1. उचित-अनुचित के विचार से युक्‍त। जैसे: वह सदा विवेकपूर्ण व्यवहार करता है। 2. सत-असत् के ज्ञान से युक्‍त। विवेकपूर्ण कार्य करने वाला कोई विरला ही होता है। 3. जो भले और बुरे के स्पष्‍ट ज्ञान से युक्‍त हो।

विवेकाधीन [विवेक+अधीन] - (वि.) (तत्.) - 1. जो पूर्णत: विवेक पर आधारित हो तथा जिसमें किसी कानून की कोई दृढ़ रेखा न हो। 2. जो अपनी समझ एवं ज्ञान के अनुसार तथा देश, काल तथा पात्र के अनुसार हो। जैसे: विद्यालय की किसी कक्षा में विषयानुसार प्रवेश प्रधानाचार्य के विवेकाधीन होता है।

विशद - (वि.) (तत्.) - शा.अर्थ स्पष्‍ट, स्वच्छ, चमकीला। सा.अर्थ 1. जिसका स्वरूप बड़ा हो। पर्या. विस्तृत, लंबा-चौड़ा। विलो. संक्षिप्‍त, धुँधला, अस्पष्‍ट। 2. जिसमें छोटी-छोटी और सूक्ष्म बातों का भी वर्णन हो, ऐसा।

विशदीकरण - (पुं.) (तत्.) - 1. जो चीज स्पष्‍ट नहीं थी, उसे स्पष्‍ट करना। 2. किसी तथ्य की विस्तृत स्पष्‍टीकरण व्याख्या। जैसे: आज एक समीक्षक ने निराला की कुछ कविताओं का छायावाद के संदर्भ में विशदीकरण किया।

विशारद - (वि.) (तत्.) - 1. किसी विषय का विशेषज्ञ, किसी कार्य में दक्ष, 2. चतुर, निपुण। 3. विद्वान। जैसे: राजनीति-विशारद, शिल्पकाल विशारद।

विशाल - (वि.) (तत्.) - जो आकार-प्रकार में बहुत बड़ा, बहुत ऊँचा, विस्तृत हो। (लंबा-चौड़ा) या भव्य (शानदार) हो। उदा. विशाल भवन, विशाल हृदय। विशाल वृक्ष।

विशालकाय - (वि.) (तत्.) - विशाल लंबी-चौड़ी काया या शरीर वाला। 1. विशालकाय हाथी, विशालकाय ग्रंथ। जैसे: पृथ्वीराज रासो, वंश भास्कर आदि

विशालता - (स्त्री.) (तत्.) - (विशाल+ता प्रत्यय) 1. विशाल होने की अवस्था/गुण/भाव। 2. आकार में किसी क्षेत्र की अधिक लंबा-चौड़ा होने की स्थिति। जैसे: नैमिषारण्य की विशालता अद्भुत है। ला.अर्थ उदारता। तुम्हारे हृदय की विशालता है कि आप सभी के साथ एक जैसा व्यवहार करते हो।

विशिष्‍ट - (वि.) (तत्.) - जिसमें अन्य की तुलना में उल्लेखनीय विशेषता हो। 1. विशेषतायुक्‍त, विशेष; अद् भुत, प्रसदि्ध, असाधारण, प्रमुख।

विशिष्‍टता - (स्त्री.) (दे.) - दे. विशिष्‍ट। विशिष्‍ट होने की स्थिति।

विशेष - (वि.) (तत्.) - सामान्य की तुलना में अधिक अच्छा, बढ़ा-चढ़ा, अधिक जानकारी वाला, अतिरिक्‍त आदि। जैसे: विशेष व्याख्यान, आज कुछ विशेष ठंड/गरमी है; स्पेशल। विशेषज्ञ expert, विशेष कक्षा extra class

विशेषकर क्रि.वि. - (वि.) (तत्+तद्) - (विशेष+कर (के) दे. विशेषत:

विशेषज्ञ (विशेष+ज्ञ) - (वि./पुं.) (तत्.) - शा.अर्थ विशेष जानकार। किसी विषय का विशेष ज्ञान रखने वाला। (विद् वान पुरूष) expert, specialist जैसे: विशेषज्ञ समिति; हृदय विशेषज्ञ।

विशेषज्ञता [विशेषज्ञ+ता] - (स्त्री.) - किसी व्यक्‍ति द्वारा परिश्रमपूर्वक अर्जित विषय-विशेष का ऐसा अनुभवजन्य ज्ञान जो उसकी निजी पहचान बन जाए और अन्य लोग उससे लाभान्वित हों। जैसे: मस्तिष्क की शल्यचिकित्सा संबंधी विशेषज्ञता; प्रवचन की विशेषज्ञता आदि। expertizod specialization

विशेषण - (वि.) (तत्.) - गुण रूप आदि की दृष्‍टि से विशेष्य की विशेषता बताने वाला। जैसे: रक्‍तपुष्प, महाभुज, सुखदजीवन। पुं. (व्या.) वह विकारी शब्द जो संज्ञा या सर्वनाम की विशेषता बताता हो, जैसे: गुणवाचक विशेषण=विशाल तरु। संख्यावाचक विशेषण=पंच पांडव। परिमाणबोधक विशेषण=पाँच किलो चीनी। सार्वनामिक विशेषण=इतना धन, वह व्यक्‍ति।

विशेषत: क्रि.वि./अव्यय - (वि.) (तत्.) - विशेष रूप से, खासतौर पर। जैसे: विशेषत: उन्हें धन्यवाद जिन्होंने विपत्‍ति में हमें अपने यहाँ शरण दी। वे ज्योतिष के विद्वान हैं विशेषत: कुंडली विज्ञान के।

विशेषता - (स्त्री.) (तत्.) - शा.अर्थ विशेष होने का भाव; 1. अन्य की अपेक्षा विशेष या विशिष्‍ट होने की अवस्था या भाव, खूबी, विशिष्‍टता। 2. खसूसियत; विशेषज्ञता। विलो. सामान्य।

विशेष्य - (पुं.) (तत्.) - जिसकी विशेषता बताई जाए। विशेषण द्वारा सूचित संज्ञा। जैसे: मर्यादा पुरुषोत्‍तम राम में ‘राम’ विशेष्य हैं ओर मर्यादा उनकी विशेषता है। वि. (तत्.) विशेषता दिखलाने के योग्य।

विश्राम - (पुं.) (तत्.) - 1. थकावट दूर करने या आराम करने की क्रिया। 2. आरात, मन की शांति, सुख। 3. आराम करने का स्थान। 4. कार्य के मध्य विराम; समाप्‍ति।

विश्‍लेषण [वि+श्‍लेष+न] - (पुं.) (तत्.) - 1. मिले हुए तत्वों, इकाईयों की (अध्ययन के लिए) अलग-अलग पहचान करना। 2. किसी समस्या के समाधान के लिए उसके सभी अंगों-उपांगों को भौतिक या विचार के स्तर पर अलग-अलग कर परीक्षण करने की क्रिया। उदा: व्याकरणिक विश्‍लेषण; रासायनिक विश्‍लेषण आदि। analysis

विश्‍व ऊष्णन - (पुं.) (तत्.) - वातावरण में कार्बन-डाइ-ऑक्साइड की मात्रा बढ़ जाने के कारण पृथ्वी की सतह के औसत तापमान में क्रमश: वृद् धि होना। global warunaing

विश्‍वकोष - (पुं.) (तत्.) - 1. वह विशाल ग्रंथ जिसमें ज्ञान विज्ञान की प्राय: सभी शाखाओं और महत्वपूर्ण विषयों से संबंधित जानकारी विस्तारपूर्वक मिल सके। 2. ज्ञान की किसी विशेष शाखा से संबंधित संपूर्ण जानकारी देने वाला ग्रंथ। जैसे: गणित का विश्‍वकोष। encyclopaedia

विश्‍वजनीन - (वि.) (तत्.) - विश्‍व/संसार के समस्त लोगों से संबंध रखने वाला तथसा उनके लिए हितकर।

विश्‍वभर - (पुं.) (तत्.) - 1. पृथ्वी, उस पर रहने वाले समस्त जीव-जंतु, प्राणी, वनस्पति तथा पृथ्वी से बाहर का संपूर्ण वायुमंडल, सौरमंडल तथा संपूर्ण तारामंडल इन सबका संपूर्णस्वरूप। संपूर्ण सृष्‍टि। पर्या. ब्रह्मांड। cosmos universe 2. किसी भी विषय से संबंधित सभी वस्तुओं का समूह जैसे पुस्तकों का विश्‍व, संगीत का विश्‍व आदि। पर्या. संसार, दुनिया। 3. समस्त, सारा, सार्वलौकिक।

विश्‍वयुद्ध - (पुं.) (तत्.) - ऐसा बड़ा युद्ध जिसमें विश्‍व के कई देश सम्मिलित हों। अभी तक दो विश्‍वयुद् ध प्रथम (1914-1918) द्वितीय (1939-1945ई.) हो चुके हैं।

विश्‍वविख्यात - (वि.) (तत्.) - ऐसा कोई महापुरुष विद् वान, कार्य, स्थान जो श्रेष्‍ठता का रूप समस्त संसार में प्रसिद्ध हो। विश्‍वप्रसिद्ध जैसे: महात्मा गांधी का व्यक्‍तित्व विश्‍वविख्यात है।

विश्‍वविद्यालय - (पुं.) (तत्.) - शिक्षा प्रदान करने की वह विशाल संस्था जिसमें विविध विषयों की उच्चतम शिक्षा दी जाती हो, प्रत्येक विषय पर अनुसंधान कराने की व्यवस्था हो तथा अपने छात्रों को शिक्षा- संबंधी उपाधियाँ देने का अधिकार हो। university जैसे: काशी हिंदू विश्‍वविद्यालय, दिल्ली विश्‍वविद्यालय आदि। विशेष विश्‍वविद्यालयों के नियमन के लिए सरकार ने विश्‍वविद् यालय अनुदान आयोग की स्थापना की है।

विश्‍वव्यापी - (वि.) (तत्.) - जो सारे संसार में व्याप्‍त हो। पर्या. विश्‍वव्यापक। पुं. ईश्‍वर, परमात्मा।

विश्‍वसनीय - (वि.) (तत्.) - 1. विश्‍वास किए जाने के योग्य। 2. जिस पर यकीन, भरोसा या विश्‍वास किया जा सके। frustworthy दे. विश्‍वास।

विश्‍वसनीयता - (स्त्री.) (तत्.) - विश्‍वसनीय होने की स्थिति। trustworthyness

विश्‍वस्त - (वि.) (तत्.) - जिस पर विश्‍वास किया गया है; विश्‍वास के योग्य। उदा. विश्‍वस्त सूत्रों से पता चला है कि……। विलो. अविश्‍वस्‍त

विश्‍वस्तरीय - (वि.) (तत्.) - (विश्‍व+स्तर+ईय प्रत्यय) 1. विश्‍व के स्तर वाला। जैसे: संयुक्‍त राष्‍ट्र संघ विश्‍वस्तरीय संस्था है। 2. विश्‍व में विद्यमान किसी विस्तृत देश, स्थान, वस्तु आदि के श्रेष्‍ठ स्तर के समान। जैसे: ताजमहल विश्‍वस्तरीय स्मारक है।

विश्‍वास - (पुं.) (तत्.) - किसी व्यक्‍ति या वस्तु के सकारात्मक पक्ष के बारे में बनी धारणा पर दृढ़ता से टिका रहना; भरोसा, यकीन। उदा. मुझे पूरा विश्‍वास है कि आप हर संकट की स्थिति में मेरी सहायता करेंगे। trust, confidence, faith

विश्‍वासघात - (पुं.) (तत्.) - 1. अपने ऊपर विश्‍वास करने वाले के प्रति विपरीत आचरण। 2. अपने ऊपर किए गए विश्‍वास को तोड़ना या उसका घात करना। पर्या. नमकहरामी, धोखा, विश्‍वासभंग। विलो. विश्‍वासपात्र, नमकहलाली।

विश्‍वासघात - (पुं.) (तत्.) - विश्‍वास को नष्‍ट कर देने या तोड़ देने का भाव। धोकादेही।

विश्‍वासपात्र - (वि.) (तत्.) - 1. वह जिस पर विश्‍वास किया जा सके। पर्या. विश्‍वस्त, विश्‍वसनीय, विश्‍वासभाजन। विलो. विश्‍वासघाती, दगाबाज़। 2. वह जिसकी योग्यता पर विश्‍वास किया जा सके। पर्या. भरोसेमंद। विलो. अविश्‍वस्त।

विष - (पुं.) (तत्.) - 1. ऐसी कोई वस्तु या पदार्थ जो थोड़ी मात्रा में भी शरीर में पहुँचने पर भयंकर कष्‍टप्रद हो या जिससे व्यक्‍ति की मृत्यु हो जाए। पर्या. ज़हर, गरल। 2. (ला.) कटु बात, विष जैसा प्रभावी। जैसे: क्यों विष उगलते जा रहे हो? चुप भी रहो।

विषधर - (वि.) (तत्.) - विष से युक्‍त, विषैला, ज़हरीला। पुं. सांप, नाग।

विषम - (वि.) (तत्.) - 1. जो समान या समतल न हो। पर्या. ऊँचा-नीचा, ऊबड़खाबड़। 2. बहुत कठिन। उदाहरण-विषम परिस्थिति। 3. भयंकर उदा. विषम युद्ध। 4. गणि. वह (संख्या) जो दो से विभाज्य न हो। यथा-1, 3, 5। विलो. सम।

विषमता - (स्त्री.) (तत्.) - समता न होने का भाव। 1. असमता, असमानता, अंतर। 2. जटिलता, भीषणता। 3. प्रतिकूलता। उदा. चित्र में रंगों की विषमता सौंदर्य बढ़ाती भी है। विलो. समता।

विषयवस्तु - (स्त्री.) (तत्.) - 1. किसी रचना से पूर्व उसके सभी अंगों-पक्षों को ध्यान में रखते हुए बनाई गई रूपरेखा के रूप में आधारभूत तत् व। 2. किसी कृति और वर्णित विषय का संक्षिप्‍त रूप। theme

विषाक्‍त - (वि.) (तत्.) - सा.अर्थ विष से युक्‍त (ज़हरीला) ला.अर्थ दूषित। जैसे: वातावरण विषाक्‍त हो चला था। पर्या. विषैला, जहरीला।

विषाक्‍तन - (पुं.) (तत्.) - किसी पदार्थ या जल इत्यादि में महर मिलान/फैलाना। शा.अर्थ विष या जहर फैलाने की क्रिया। सा.अर्थ पदार्थ को जहरीला बनाना या होना। ला.अर्थ विषभरी बातों से विषैला या दूषित करना।

विषाणु - (पुं.) (तत्.) - 1. विषयुक्‍त अणु। (सूक्ष्मजीव) अति सूक्ष्म संक्रामक रोगाणु जो सजीव और निर्जीव के बीच की कड़ी होते है। ये कोशिकाविहीन होते हुए प्रोटीन के आवरण में न्यूकलीक अम्ल स्वरूप होते हैं। किसी अन्य सजीव कोशिका में रहकर ही कार्यक्षम और जननक्षम होते हैं। उदा. मानव में पीलिया, चेचक, एड्स आदि रोगों के विषाणु का होना। दे. वायरस।

विषाणुज यकृतशोध - (पुं.) (तत्.) - विषाणु हिपैटाइटिस ए वाइरस एवं हिपैटाइटिस बी वाइरस सहित बहुत से विषाणुओं में से एक के द्वारा उत्पन्न सामान्य यकृतशोध नामक रोग। Viral

विषुव वि/पुं. - (पुं.) (तत्.) - सूर्य के विषुवत् रेखा पर पहुँचने का काल। इस समय दिन और रात बराबर होते हैं। ऐसा समय सामान्यत: वर्ष में दो बार-21 मार्च और 22 सितंबर को होता है। 1. सूर्य की परिक्रमा करते समय पृथ्वी के पहुँचने का वह काल या बिंदु जब दिन और रात बराबर हो जाते हैं। ऐसा वर्ष में दो बार होता है-21 मार्च और 22 सितंबर को। टि. भारतीय ज्योतिष के अनुसार वह बिंदु जहाँ से नक्षत्रों की गणना प्रारंभ हेाती है। (अश्‍वीनी नक्षत्र का पहला बिंदु), इसी प्रकार इसके ठीक सामने का दूसरा बिंदु। न बिंदुओं पर सूर्य के दिखने पर दिन रात बराबर होते हैं। उस बिंदु या काल को विषुव कहते है। equinox

विषुवत् रेखा - (स्त्री.) (तत्.) - वह काल्पित रेखा जो धरती तल के पूरे मानचित्र पर पूर्व से पश्‍चिम की ओर ठीक बीचों-बीच गणना के लिए मानी गई है तथा जिसकी माप अक्षांश मानी जाती है। equator

विषुवत् - (वि.) (तत्.) - मध्य में स्थित, बीच का। पुं. विषुव। (विषुव रेखा) विषुवत्।

विषुवत् वृत्‍त - (दे.) - दे. विषुवत् रेखा।

विषैला - (वि.) (देश.) - [विष+एला] विष से युक्‍त, विष से भरा हुआ। पर्या. जहरीला। जैसे: विषैला साँप।

विष्‍ठा - (स्त्री.) (तत्.) - सा.अर्थ मल, मैला। 1. शरीर में भोजन के पच जाने के उपरांत वह अनुपयोगी पदार्थ जो शरीर के निचले भाग (मल द्वार) से बाहर निकाल दिया जाता है। पर्या. मल। ला.अर्थ 2. निकृष्‍ट या त्याज्य वस्तु।

विसंगति [वि+संगति] - (स्त्री.) (तत्.) - 1. किसी वस्तु, प्रसंग, तथ्य, स्वभाव आदि का किसी अन्य संदर्भ में संगत न होने का भाव। जैसे: वैचारिक विसंगति=विचारों का न मिलना। 2. असम्बद् धता, निरंतरता का अभाव। 3. किसी कथन में तारतम्य का न होना। 4. दृष्‍टिकोण की भिन्नता। जैसे: उन दोनों मूल्यांकन पत्रों में विसंगति पाई गई।

विसंगतिमुक्‍त - (वि.) (तत्.) - संगत, तालमेल युक्‍त, समंजस, अनुरूप। विलो. विसंगतियुक्‍त, असंगत।

विसरित परावर्तन - (पुं.) (तत्.) - ऐसा परावर्तन या वह अवस्था जब प्रकाश या ध्वनि की तरंगें किसी वस्तु से बाधित हो जाने के कारण फैल जाती है।, परावर्तित होने के बाद। diffused, reflection

विसर्ग - (पुं.) (तत्.) - 1. त्याग, छोड़ना। 2. व्याकरण में एक ध्वनि चिह् न (:) जो किसी वर्ण के आगे लगाया जाता है और इसका उच्चारण प्राय: ‘अघोष’ ‘ह’ वर्ण की तरह होता है। जैसे: दु:ख, प्राय:, प्रात: आदि।

विसर्ग संधि - (स्त्री.) (तत्.) - (व्याकरण) दो शब्दों की वह संधि जिनमें प्रथम शब्द का अंतिम वर्ण विसर्गयुक्‍त हो तथा विसर्ग के स्थान पर संधि के बाद कोई परिवर्तन हो जाए। जैसे: मन:+तोष=मनस्तोष,पय:+द=पयोद, बहि:+गमन=बहिर्गमन।

विसर्जन - (पुं.) (तत्.) - 1. परित्याग, छोड़ना। जैसे: देशभक्‍तों ने देश की आज़ादी के लिए अपने प्राणों का विसर्जन किया। 2. विदाई। आज दुर्गापूजा के बाद मूर्ति का नदी में विसर्जन किया गया। 3. सभा की या परेड की समाप्‍ति।

विसर्जित - (वि.) (तत्.) - जल विसर्जन/गणपति/मूर्ति विसर्जन। 1. छोड़ी हुई या त्यागी हुई (वस्तु) जैसे: मलमूत्र विसर्जित होना/करना। 2. बिखेरा हुआ, समाप्‍त। उदा. सभा विसर्जित हो गई। 3. जिसमें विद् युत आवेश आदि का कम करना/होना या हट जाना आदि हो गया हो। dissolved 4. जल में प्रवेश कराई हुई (देव प्रतिमा आदि)

विसर्प - (पुं.) (तत्.) - भू.-नदियों के मंदगति से सर्पाकृति में टेढ़े-मेढ़े या घूमकर बहने का घुमावदार मार्ग।

विसूचिका - (स्त्री.) (तत्.) - रोग जिसमें कै (उलटी) और दस्त हो जाता है और पेशाब नहीं उतरता। हैज़ा। (कॉलरा) छोटी आंत से संबंधित एक संक्रामक और कभी-कभी घातक रोग जो जलवाहित जीवाणु से फैलता है और जिसके सामान्य लक्षण बार-बार उल्टी (कै) और दस्त के रूप में प्रकट होते हैं। पर्या. हैज़ा।

विस्तरण - (पुं.) (तत्.) - 1. फैलना, इधर-उधर विस्तार करना। जैसे: भाषा में आता है, क्रिया का विस्तरण ‘आ रहा है’, ‘आ चुका है’, ‘आ गया है’ इत्यादि हो सकता है। extension 2. अनावश्यक रूप से किसी बात को बढ़ाना। expanding

विस्तार - (पुं.) (तत्.) - 1. लंबाई, चौड़ाई, ऊँचाई का फैलाव। 2. किसी भी बात जैसे व्यापार, क्रियाकलाप, समय-सीमा, कार्यकाल आदि का बढ़ना। 3. सीमा। दे. विस्तरण।

विस्तारण - (पुं.) (तत्.) - (विस्तरण का प्रेरणार्थक रूप) शा.अर्थ फैलाने की क्रिया या अवस्था। सा.अर्थ 1. विस्तार करना, फैलाना। 2. कार्यक्षेत्र या काम-काज बढ़ाना। 3. पैर आदि फैलाना। दे. विस्तरण।

विस्तृत - (वि.) (तत्.) - शा.अर्थ बृहत् आकार में अधिक दूरी तक फैला हुआ, बहुत लंबा चौड़ा। सा.अर्थ 1. विस्तार वाला, 2. खुला हुआ, 3. बड़ा, विशाल। 4. प्रचुर, 4. व्याप्‍त। उदा. मेरे घर के सामने एक विस्तृत मैदान है।

विस्थापन - (पुं.) (तत्.) - शा.अर्थ किसी स्थापित या स्थित वस्तु व्यक्‍ति आदि को उसके स्थान से हटाना। सा.अर्थ 1. बलपूर्वक उखाड़ना। 2. बलपूर्वक खाली करना। displacement, dislocation

विस्थापित - (वि.) (तत्.) - 1. अपने स्थान से हटाया हुआ। 2. जो अपने मूल स्थान से बाहर होकर हटाए/निकाले जाकर बसने को विवश हो गए हों। अन्यत्र। तु. शरणार्थी। discolated, displaced

विस्फोट - (पुं.) (तत्.) - वह रासायनिक तत् व में विखंडन के परिणामस्वरूप परिवर्तन जिसमें गर्जन के साथ अत्यंत तीव्रता से विपुल ऊर्जा का मोचन होता है अथवा/तथा आयतन में अपार वृद् धि होती है अर्थात् वह फैल एवं फूट पड़ती है। पर्या. फूटना, फटना। explosion 2. फोड़ा, रसोली।

विस्फोटक - (पुं.) (तत्.) - अचानक ऊर्जा को मुक्‍त करने में समर्थ कोई तत् व या पदार्थ जिससे विपुल आयतन में गैस तथा ऊर्जा प्राप्‍त हो। इसे संपीड़ित करने पर उच्च दाब तरंग विकसित होती है जो ‘स्फोट’ कहलाती है। जैसे-बारूद, नाइट्रोग्लिसरीन, डायनेमाइट, आर.डी. एक्स आदि विस्फोटक पदार्थ। explosive

विस्मय - (पुं.) (तत्.) - किसी के विषय में देखने-सुनने, पढ़ने इत्यादि से होने वाला आश्‍चर्य। पर्या. आश्‍चर्य, अचंभा, अचरज।

विस्मयाभिभूत - (वि.) (तत्.) - (विस्मय+अभिभूत) आश्‍चर्य से अत्यंत प्रभावित तथा वशीभूत।, विशेष रूप से आश्‍चर्यचकित, अत्यंत विस्मित।

विस्मरण [वि+स्मरण] - (पुं.) (तत्.) - स्मरण न होने की अवस्था या भाव। भूल जाना, बिसरना, विस्मृति। विलो. स्मरण।

विस्मित - (वि.) (तत्.) - आश्‍चर्य से भरा हुआ। पर्या. चकित, भौचक्का, हक्का-बक्का।

विस्मृत - (वि.) (तत्.) - 1. जिसका स्मरण न रहा हो, भूला हुआ। जैसे: आपका संदेश मुझे विस्मृत हो गया। 2. भुलाया हुआ।

विस्मृति [वि+स्मृति] - (स्त्री.) (तत्.) - जो बात पहले जानकारी में रही हो उसे भूल जाना। विस्‍मरण। दे. स्मृति। जैसे: आप विस्मृति की नींद से कब जागेंगे।

विहंग - (पुं.) (तत्.) - विह (आकाश)+ग (जाने वाला) 1. आकाश में उड़ने वाला। पर्या. चिड़िया, पक्षी। जैसे: वृक्ष पर विहग कलरव कर रहे हैं। 2. मेघ, 3. बाण।

विहार - (पुं.) (तत्.) - 1. मनोविनोद और सुख प्राप्‍ति के लिए की जाने वाली क्रिया। जैसे: नौकाविहार। जैसे: श्रीकृष्ण वृंदावन में अपने सखा-गोपालों के साथ विहार करते थे। 2. घूमना, टहलना, भ्रमण। 3. बौद्ध भिक्षुओं का मठ, संघाराम। वि. विहारों की अधिकता के कारण ही पाटलिपुत्र के आसपास का क्षेत्र विहार (वर्तमान बिहार) कहलाया।

विहीन - (वि.) (तत्.) - [वि+हीन] किसी गुण, वस्तु आदि से रहित, हीन। विशेष-सामान्यत: शब्द किसी अन्य शब्द के साथ समास के रूप में प्रयुक्‍त होता है। जैसे: विद्याविहीन, धनविहीन।

विह्वल - (वि.) (तत्.) - 1. शोक, भय आदि के कारण व्याकुल, घबड़ाया हुआ, अशांत; हताश। 2. स्नेह, प्रेम की भावना से पिघला हुआ या भावुक। 3. स्नेह, अनुराग के कारण द्रवित।

विुद्वेषपूर्ण - (वि.) (तत्.) - दुर्भावनापूर्ण, शत्रुतापूर्ण। दे. विद्वेष।

वीणा - (स्त्री.) (तत्.) - तारों के कंपन से बजने वाला एक बाजा जिसके दोनों ओर तुंबे होते हैं। यह सितार का मूल रूप माना जाता है। वि. सरस्वती देवी (विद् या की देवी) का वाद् य-यंत्र।

वीणावादक - (वि.) (तत्.) - (वीणा+वादक) 1. वीणा को बजाने वाला। 3. वीणा बजाने में कुशल। उदा. प्रात:कालीन सभा में सरस्वती वंदना वीणावादक के सहयोग से ही होती है।

वीणावादिनी - (स्त्री.) (तत्.) - वीणा बजाने वाली, सरस्वती। दे. वीणा। जैसे: वीणावादिनी वरदे।

वीथि/वीधी - (स्त्री.) (तत्.) - 1. कतार, पंक्‍ति। 2. दोनों ओर वृक्षों से सुसज्जित मार्ग। 3. बाजार-हाट, 4. आकाश में सूर्य-भ्रमण का मार्ग। 5. खेल-एथलेटिक्स, तैराकी, टेनिस, कबड्डी आदि खेलों या क्रियाकलापों में चिह् नित समांतर गलियारा lane

वीथिका - (स्त्री.) (तत्.) - 1. सडक़, गली। दे. वीथी। 2. चित्रो की पंक्‍ति या कतार। 3. चित्रावली सजाने की दीर्घा, दीवार का कम चौड़ी पट् ट। कलावीथिका/वीथी।

वीर - (वि.) (तत्.) - उत्साह या साहस का काम करने वाला। पर्या. बलवान, बहादुर। विलो. कायर। पुं. 1. सैनिक, योद्धा। 2. कुछ स्थानीय भाषाओं/ बोलियों मुख्यत: पंजाबी में भाई, पुत्र आदि के लिए संबोधन। 3. साहित्य के नौ रसों में से एक, जिसका स्थायीभाव उत्साह है। 4. ‘आल्हा’ छंद का दूसरा नाम।

वीरगति - (स्त्री.) (तत्.) - [वीर+गति] शा.अर्थ 1. युद् ध क्षेत्र में वीरतापूर्वक लडक़र मरने पर वीरों को प्राप्‍त होने वाली श्रेष्‍ठ गति अर्थात स्वर्ग की प्राप्‍ति। सा.अर्थ 2. युद् ध करते हुए मृत्यु। जैसे-उनका बहादुर बेटा कारगिल की लड़ाई में वीरगति को प्राप्‍त हुआ।

वीरता - (स्त्री.) (तत्.) - वीर होने का भाव।

वीरांगना [वीर+अंगना=नारी] - (वि./स्त्री.) (तत्.) - वीर महिला। उदा. वीरांगना लक्ष्मीबाई का नाम कौन नहीं जानता।

वीरान - (वि.) (फा.) - 1. जहाँ बस्ती या आबादी न हो, उजाड़। 2. निर्जन (स्थान) 3. शोभारहित (स्थान)। जैसे: सुनामी आने के बाद यह स्थान वीरान हो गया है।

वीरान/वीराना - (पुं.) - (फा. वीरान:) उजाड़ जगह जो बसने लायक न हो या जहाँ किसी प्रकार की कोई आबादी न हो। निर्जन प्रदेश, वन, जंगल, खंडहर। जैसे: तुम तो इस पन के वीराने में ही भटकते रहे।

वीरानी - (स्त्री.) (फा.) - 1. वीरान होने की अवस्था या भाव।, विनाश की स्थिति। दे. वीरान। सूनापन, विनाश की सी स्थिति। जैसे: भूकंप आने के बाद उस महानगर में वीरानी छाई हुई थी।

वीरोचित्‍त [वीर+उचित] - (वि.) (तत्.) - 1. वीरों के लिए शोभा देने योग्य। उदा. युद्ध से भागना वीरोचित कार्य नहीं है। 2. वीरों जैसा। उदा. मेरे साथ वीरोचित व्यवहार हो।

वीर्य - (पुं.) (तत्.) - 1. (आयु.) शरीर के अंदर बनने वाली सातधातुओं में से वह धातु जिससे शरीर में शक्‍ति, तेज और कांति बढ़ती है तथा संतान उत्पन्न करने में सहायक होती है। शुक्र, रेत। 2. पराक्रम, पुरूषत्व, पुंस्त्व, पौरूष। 3. बल, ताकत।

वुट्ज स्टील - (पुं.) - (अं.) दक्षिण भारत में ढालकर बनाया जाने वाला स्टील जो कार्बन की अधिकता के कारण तलवारें आदि बनाने के लिए अधिक उपयोगी माना जाता है। टि. कन्नड़ भाषा के शब्द उक्कु (वुक्कु) तेलुगु शब्द हुक्कु और मलयालम उरुक्कु का अंग्रेजी रूपांतरण-‘वुट्ज़’।

वृक्क - (पुं.) (तत्.) - मानव, पशु-पक्षियों आदि जीवों के पेट के निचले भाग में स्थित वह महत्त्वपूर्ण अंग जो रक्‍त को शुद् ध करके या छानकर अपशिष्‍ठ द्रव को मूत्र के रूप में अलग कर देता है। पर्या. गुरदा/गुर्दा। kidney

वृक्ष - (पुं.) (तत्.) - 1. मोटे और कठोर तने से युक्‍त और सामान्यत: 30 फीट से ऊँचा (वनस्पति) पादप पेड़, दरख्त, तरु। 2. मूल वस्तु और शाखाओं को प्रदर्शित करने वाली शाखा-प्रशाखाओं या वृक्ष की आकृति से साम्य रखने वाली आकृति या आरेख। जैसे: वंश वृक्ष। tree

वृक्षारोपण - (पुं.) (तत्.) - (वृक्ष+आरोपण) शा.अर्थ वृक्ष रोपना। 1. प्रदूषण रोकने आदि के उद् देश्य से सामूहिक रूप से वृक्षों को लगाने का समारोहपूर्वक कार्यक्रम। 2. पर्याप्‍त संख्या में पेड़-पौधे लगाया जाना। जैसे: आज हमारे क्षेत्र में समाज के सहयोग से वृक्षारोपण कार्यक्रम सम्पन्न हुआ।

वृत्‍त - (वि.) (तत्.) - शा.अर्थ 1. गोलाकार जो घटित हो चुका हो। रेखा से घिरा हुआ (क्षेत्र) जिसका प्रत्येक बिंदु उस क्षेत्र के मध्य बिंदु से समान अंतर पर हो। पर्या. गोल, मंडल, सर्किल। 2. शास्त्र सम्मत आचरण या व्यवहार। 3. वृत्‍तांत, कथा 4. चरित्र, आचरण, स्वभाव। 4. छंद।

वृत्‍तचित्र - (पुं.) (तत्.) - विशिष्‍ट कार्य अथवा प्रमुख घटना की विस्तृत जानकारी से युक्‍त लघु फिल्‍म। newreal documentary यथा-महामहिम राष्‍ट्रपति महोदया की रूप यात्रा का वृत्‍त चित्र।

वृत्‍तांत - (पुं.) (तत्.) - शा.अर्थ किसी घटना, वस्तु या स्थिति से संबंधित जानकारी का विस्तृत वर्णन। सा.अर्थ 1. समाचार, हाल, 2. विवरण, 3. कथा।

वृत्‍ति - (स्त्री.) (तत्.) - 1. वह कार्य जिससे व्यक्‍ति अपना जीवन निर्वाह करता हो। पर्या. जीविका, पेशा। 2. जीविका निर्वाह या अध्ययन आदि के सहायतार्थ नियमित रूप से मिलने वाला धन। जैसे: छात्रवृत्‍ति, शोधवृत्‍ति आदि। 3. (चित्‍त की) दशा या प्रवृत्‍ति।

वृथा - (वि.) (तत्.) - व्यर्थ, निरर्थक, बेकार, निष्फल जैसे: जो धन काम न आये, वह वृथा है। क्रि. वि. बिना मतलब के, यूँ ही, तुम यहाँ वृथा घूम रहे हो, घर चलो।

वृद्ध - (वि./पुं.) (तत्.) - 1. साठ/पैंसठ वर्ष की आयु पार कर गया पुरुष; वरिष्‍ठ (पुरुष) नागरिक; बूढ़ा या बुजुर्ग व्यक्‍ति। 2. (तुलना दृष्‍टि से) अधिक योग्यता वाला। जैसे: ज्ञानवृद्ध। वि/ स्त्री. तत्. नागरिक; साठ वर्ष की आयु पार कर गई महिला; वरिष्‍ठ (महिला), बुढ़िया, बुजुर्ग महिला। वयोवृद्धा, महिला।

वृद्धावस्था - (स्त्री.) (तत्.) - साठ पैंसठ वर्ष और उससे अधिक का/की हो जाने की उम्र। पर्या. बुढ़ापा, ज़रा।

वृद्धाश्रम [वृद्ध+आश्रम] - (पुं.) (तत्.) - 1. वृद्ध अर्थात् प्रौढावस्था पार कर चुके बड़ी आयु वाले लोगों की समुचित देखभाल या उनकी समुचित सुरक्षा या व्यवस्था के लिए बनाए गए सुविधापूर्ण निवास स्थान। 2. पारिवारिक सुरक्षा से रहित वृद् ध लोगों के रहने के लिए बनाये गए आश्रम, आश्रय स्थान। जैसे: आजकल कई सामाजिक संगठनों ने भी ‘वद् धाश्रम’ बनवाये हुए हैं।

वृद्धि - (स्त्री.) (तत्.) - 1. गुण, संख्या आदि में बढ़ने या उन्नति का भाव। जैसे: वेतन-वृद्धि) increment आयु में वृद्धि। पर्या. बढ़ना, वर्धन, बढ़ोत्‍तरी। 2. (व्या) संधि करते समय अ, आ का ऐ, औ रूप हो जाना।

वृद्धि हार्मोन - (पुं.) ([तत्.+अं.] ) - पीयूष ग्रंथि के अग्र भाग द्वारा उत्पन्न एक प्रोटीनी हार्मोन। टि. यह हार्मोन वयस्क अवस्था से पूर्व लंबी अस्थियों की लंबाई को बढ़ाता है। इस हार्मोन की कमी से नाटापन (वामनता) होती है और अत्यधिक स्राव से अतिकायता यानी कदे काफी लंबा हो जाता हैं

वृद्धिकारक - (वि./पुं.) (तत्.) - वृद्धि को प्रभावित करने वाला (कोई भी आनुवंशिक या बाह् य कारक) growth factor

वृषण - (पुं.) (तत्.) - शुक्राणुओं को पैदा करने वाली वृषण कोश में स्थित अंडे जैसी संरचना। अंड, फोता testicle

वृषभ - (पुं.) (तत्.) - 1. बैल या साँड़। 2. शिव का वाहन नंदी। 3. (जो) आकाश में स्थित बारह राशियों में से दूसरी राशि, वृष taurs 4. श्रेष्‍ठ (समास में प्रयुक्‍त होने पर)

वृष्‍टि - (स्त्री.) (तत्.) - 1. बादलों से पानी की बूँदों के रूप में होने वाली वर्षा या बरसात। जैसे: आज की दृष्‍टि से फसलें लहरानें लगीं। 2. वर्षा का पानी। 3. (ला.) वर्षा के समान किसी वस्तु का बड़ी संख्या में ऊपर से गिरना, बौछार। जैसे: पुष्पवृष्‍टि, ओलावृष्‍टि आदि। 4. (ला.) किसी क्रिया का लगातार कुछ समय तक होना। जैसे: आशीर्वाद-वृष्‍टि, बधाई-वृष्‍टि। विलो. अनावृष्‍टि।

वृहद/वृहत् - (दे.) - दे. बृहत्।

वेग - (पुं.) (तत्.) - 1. (भौ.) धारा, प्रवाह, शीघ्रता, तेजी, तीव्रता, प्रबल प्रवृत्‍ति, उत्‍तेजना। 2. (विज्ञान) निश्‍चित दिशा में किसी वस्तु (कण या पिंड) की स्थिति में परिवर्तन की समय-सापेक्ष दर। ‘वेलीसिटी’। तुल. गति (मोशन) और चाल speed 3. आयु. मल-मूत्रादि के शरीर से बाहर निकालने की प्रवृत्‍ति (प्रेशर) 4. (दर्शन) न्याय दर्शन के अनुसार चौबीस गुणों में से एक।

वेणी - (स्त्री.) (तत्.) - 1. स्त्रियों के सिर के बालों की गूँथी हुई चोटी। जैसे: लंबे काले बालों की बनी वेणी नागिन जैसे लहरा उठी। 2. बालों के साथ बाँधने के लिए फूलों की माला। टि. दक्षिण भारत में इस प्रकार की वेणियों का अधिक प्रचलन है।

वेणु - (पुं.) (तत्.) - 1. बाँस का वृक्ष, बाँस। 2. बाँसुरी, बंशी, मुरली।

वेतन - (पुं.) (तत्.) - 1. वह निश्‍चित धन जो अनुबंध के अनुसार किसी को निरंतर काम करते रहने पर मासिक या किसी अन्य नियत अवधि के अनुसार मिलता रहता है। तनख़्वाह, पगार (पे, सैलरी।) 2. पारिश्रमिक जैसे: सरकार ने दैनिक मजदूरों का भी वेतन बढ़ा दिया है।

वेतनभोगी - (वि.) (तत्.) - निश्‍चित वेतन लेकर काम करने वाला व्यक्‍ति (कर्मचारी)। वैतनिक कर्मचारी। salarid emplayed

वेत्‍ता - (वि.) (तत्.) - अच्छा ज्ञाता, भली प्रकार/अच्छे प्रकार से जानने वाला, ज्ञाता, अच्छा जानकर; ज्ञानी; जैसे: तत् ववेत्‍ता, शास्त्र-वेत्‍ती। टि. सामान्यत: पद के अंत में प्रयुक्‍त सामासिक शब्द।

वेद - (पुं.) (तत्.) - व्यु.अर्थ ज्ञान सच्चा आध्यात्मिक ज्ञान। सा.अर्थ वे आदिम ग्रंथ जिसमें धर्म, संस्कृति एवं मानव व्यवहार से संबंधित संपूर्ण ज्ञान-विज्ञान वर्णित है। वेद चार हैं-ऋग्वेद, यजुर्वेद, सामवेद तथा अथर्ववेद। पर्या. श्रुति, आगम। टि. विश्‍व के सर्वप्रथम ग्रंथ के रूप में वेदों की प्रसिद्धि है। ऐसी मान्यता है कि वेद लिखे नहीं गए अपितु वेदमंत्रों का ज्ञान कुछ ऋषियों को हुआ जो उन मंत्रों के द्रष्‍टा कहे जाते हैं।

वेदना - (स्त्री.) (तत्.) - 1. शरीर को बहुत ही कष्‍ट पहुँचाने वाली पीड़ा, व्यथा। जैसे: शिरो वेदना। 2. किसी अन्य के कष्‍टों को देखकर सहानुभूतिजन्य पीड़ा का भाव। 3. किसी अपने व्यक्‍ति की अमानवीय भाषा, व्यवहार या कार्य को देखकर अपने मन में होने वाला कष्‍ट।

वेदवाक्य - (पुं.) (तत्.) - शा.अर्थ वेदों से उद् भुत वाक्य। सा.अ. ऐसी प्रामाणिक बात जिसके लिए तर्क की आवश्यकता न हो। आस्था का विषय। जैसे: आपका कथन तो हमारे लिए वेदवाक्य है।

वेदांग (वेद+अंग) - (तत्.) (वि.) - 1. वेद के छ अंग-1. शिक्षा 2. कल्प 3. व्याकरण 4. निरुक्‍त 5. छंद 6. ज्योतिष। 2. अथवा उक्‍त में से प्रत्येक। जैसे-‘शिक्षा’ वेदांग है। वि. वेदों के व्यावहारिक उपयोग के लिए वेदांगों की रचना हुई। उच्चारण-शुद्धता के लिए-शिक्षा और छंद, अर्थों के ज्ञान के लिए व्याकरण और निरुक्‍त तथा मंत्रों के प्रयोग के लिए कल्प और ज्योतिष की रचना हुई।

वेदांती - (पुं.) (तत्.) - 1. वेदांत दर्शन का ज्ञाता। 2. वेदांत दर्शन या अनुयायी या समर्थक। दे. वेदांत।

वेदिका - (स्त्री.) (तत्.) - 1. वह चबूतरा, जिस पर किसी भवन का निर्माण होता है। पर्या. कुरसी। 2. इंर्टों से घेरकर विभिन्न आकृतियों में बनाया हुआ यज्ञकुंड। पर्या. वेदी। 3. यज्ञ, विवाह आदि धार्मिक कृत्यों के लिए बनाया हुआ छायादार मंडप। पर्या. वेदी

वेदी - (स्त्री.) (तत्.) - 1. किसी शुभ या धार्मिक कार्य के लिए बनाया गया ऊँचा छायादार मंडप से युक्‍त चौकोर स्थान। जैसे: विवाह वेदी, यज्ञ वेदी। 2. यज्ञ भूमि में ऊँचे चौकोर चबूतरे पर नवग्रह आदि भिन्न-भिन्न देवताओं के लिए बनाई गई वेदियाँ। जैसे: नवग्रहवेदी, वास्तुदेववेदी, प्रधानवेदी। टि. जानने वाला (प्राय: समासयुक्‍त रूप में प्रयुक्‍त) जैसे: ब्रह्मवेदी, तत् ववेदी।

वेधक - (पुं.) (तत्.) - शा.अर्थ 1. वेध करने या वेधने वाला वयक्‍ति। 2. जो मणियों आदि को बेचकर अपनी जीविका चलाता हो। 3. एक उपकरण जो छिद्र करने के काम आता है। जैसे: 1. कर्ण वेधक (कान छेदने वाला) 2. लक्ष्यवेधक (लक्ष्य बेधने वाला)।

वेधन - (पुं.) (तत्.) - 1. छेद करना जैसे: कर्णवेधन। 2. निशाना लगाना जैसे: लक्ष्यवेधन। 3. जमीन में गड्ढा करना या खोदना जैसे: पेट्रोलियम पदार्थ प्राप्‍त करने के लिए भूमि का वेधन होता है। 4. ग्रह-नक्षत्रों की गतियों का निरीक्षण करना।

वेधशाला [वेध+शाला] - (स्त्री.) (तत्.) - ग्रह-नक्षत्रों की स्थिति और गति का निरीक्षण अथवा आकाशीय घटनाओं का अध्ययन करने के लिए चुना गया एवं यंत्रों से युक्‍त स्थान या प्रयोगशाला।

वेबसाइट - (स्त्री.) - (अं.) किसी व्यक्‍ति, संस्था, कंपनी आदि के अधिकार-क्षेत्र में आने वाले विषय। विषयों से संबंधित नामों/पतों एवं कार्यकलापों से युक्‍त आँकड़ों, सूचनाओं आदि का समुच्चय जो कंप्यूटर के विश्‍वव्यापी जालक्रम network पर उपलब्ध हो। webside

वेल्लला - (पुं.) (देश.) - तमिलनाडु और आसपास के क्षेत्रों में स्थित बड़े जमींदार या भूस्वामी।

वेश - (पुं.) (तत्.) - 1. वस्त्र आदि पहनने का ढंग। 2. पहनने के वस्त्र, पोशाक। 3. रूप बदलने के लिए पहने हुए विशेष वस्त्र। जैसे: रावण साधुवश में भिक्षार्थ सीता के पास गया।

वेशभूषा - (स्त्री.) (तत्.) - (वेश+भूषा (सजावट) 1. किसी देश या भूभाग के लोगों के अथवा जाति विशेष के पहनने के वस्त्र, गहने, सज्जा आदि तथा उन्हें पहनने का ढंग। जैसे: भारतीय वेशभूषा, तिब्बती वेशभूषा, यूरोपीय वेशभूषा, सैनिक वेशभूषा आदि।

वैकल्पिक [विकल्प+इक] - (वि.) (तत्.) - 1. इच्छानुसार चुनने योग्य (ऑप्शनल)। 2. एक या अनेक के स्थान पर उन्हीं में से या बाहर से भी चुनने योग्य। जैसे: यहाँ रहने की व्यवस्था है, पर वैकल्पिक (अन्य/दूसरी) व्यवस्था भी हो सकती है। alternative

वैज्ञानिक - (पुं.) (तत्.) - 1. विज्ञान संबंधी तत् त्वों का ज्ञाता। विज्ञान का ज्ञाता। 2. विज्ञान के क्षेत्र में काम करने वाला/शोध करने वाला। जैसे: भूतपूर्व राष्‍ट्रपति अब्दुल कलाम प्रसिद्ध वैज्ञानिक हैं। वि. 1. विज्ञान से संबंधित। 2. विज्ञान के अनुसार; क्रमबद्ध; नियमानुसार। विलो. अवैज्ञानिक।

वैदिक - (वि.) (तत्.) - 1. वेदों के अनुसार या वेद संबंधी। 2. वेदों के वाक्यों के अनुकूल। 3. वेदों का अनुयायी या वेद विदित कर्म करने वाला। जैसे: आर्य समाज केवल वैदिक पद्धति को मान्यता देता है। पुं. 1. वेदों का विद् वान व्यक्‍ति। 2. वेदोक्‍त कर्मकांड का ज्ञाता एवं पालनकर्ता व्यक्‍ति।

वैदूर्य - (पुं.) (तत्.) - एक अति कठोर रत्‍न, जो हरे, नीले, पीले, गुलाबी अथवा श्‍वेत रंग में मिलता है। लहसुनिया नामक रत्‍न। टि. विदूर पर्वत से प्राप्‍त होने के कारण यह ‘वैदूर्य’ कहलाता है।

वैदेही - (स्त्री.) (तत्.) - 1. विदेह देश की राजकुमारी। 2. विदेहराज जनक की पुत्री सीता। उदा. विधिन लिखा वैदेहि विवाह। (तुलसी-रामचरित मानस बालकाण्ड)

वैद्धक - (पुं.) (तत्.) - वह चिकित्साशास्त्र या चिकित्सा पद्धति जिसमें रोगों की पहचान तथा उनकी चिकित्सा आदि का विवेचन होता है, आयुर्वेद। वि. चरक संहिता, सुश्रुत संहिता आदि प्रसिद्ध वैद्यक ग्रंथ हैं।

वैद्य - (पुं.) (तत्.) - वह चिकित्सक जो भारतीय आयुर्वेद की पद्धति के अनुसार रोगियों की चिकित्सा/इलाज करता है। जैसे: भारतीय वैद्य नाड़ी देखकर रोगी की चिकित्सा करते हैं।

वैध - (वि.) (तत्.) - 1. जो विधि के अनुसार हो। 2. जो कायदे कानून से स्वीकृत हो। पर्या. विधिसम्मत, विधिमान्य। जैसे: 1. केन्द्रीय मा. शि. बोर्ड द्वारा जारी यह प्रमाणपत्र वैध है। (लीगल) विलो. अवैध।

वैधता - (स्त्री.) (तत्.) - 1. वैध होने की अवस्था सीमा या भाव। 2. विधिपरकता। जैसे: इस लाइसेंस की वैधता मार्च 2012 तक है। validity

वैधव्य - (पुं.) (तत्.) - विधवा होने की स्थिति या भाव, विधवापन, रँड़ापा। दे. विधवा।

वैभव - (पुं.) (तत्.) - 1. ऐश्‍वर्य; धनसंपत्‍ति। जैसे: उनका वैभव देखकर हम चकित थे। 2. गौरवशाली पद; महत्‍ता। 3. शान-शौकत।

वैभवपूर्ण - (वि.) (तत्.) - वैभव से युक्‍त। दे. वैभव।

वैभवशाली - (वि.) (तत्.) - सा.अर्थ जिसके पास बहुत अधिक धन-दौलत हो। 1. विभव युक्‍त 2. वैभव-संपन्न। ला.अ. अधिक समर्थ। दे. वैभव।

वैमानिक - (पुं.) (तत्.) - 1. विमान चलाने वाला व्यक्‍ति विमानचालक। 2. विमान पर सवार होकर अंतरिक्ष में उड़ने वाला यात्री। वि. विमान से संबंधित।

वैयक्‍तिक [व्यक्‍ति+इक] - (वि.) (तत्.) - एक ही व्यक्‍ति से संबंधित। व्यक्‍तिगत, (पर्सनल), इंडिविजूअल, प्राइवेट। जैसे: वैयक्‍तिक संबंध, विलो. ‘सामूहिक’।

वैयाकरण - (पुं.) (तत्.) - 1. व्याकरण शास्त्र का ज्ञाता/विद्वान। 2. व्याकरण ग्रन्थ का रचयिता। वि. व्याकरण संबंधी। उदा. नागेश महान वैयाकरण हुए।

वैर - (पुं.) (तत्.) - 1. किसी के साथ होने वाली शत्रुता, दुश्‍मनी। 2. व्यक्‍तिगत विरोध। 3. प्रतिहिंसा, बदला। मुहा. (i) वैर चुकाना या वैर निकालना-शत्रु से बदला लेना। शत्रु को हानि पहुँचाना। (ii) वैर साधना-वैर चुकाना। विलो. प्रीति/प्रेम।

वैरभाव [वैर+भाव] - (पुं.) (तत्.) - शत्रुता की भावना, बदले की भावना, वैमनस्य।

वैराग्य - (पुं.) (तत्.) - 1. सांसारिक विषयभोगों, क्रियाकलापों, पारिवारिक मोह आदि से होने वाली विरक्‍ति। उदासीनता, अनासक्‍ति। 2. राग द्वेष से रहित मन की अवस्था जिसमें व्यक्‍ति का मन अध्यात्म या ईश्‍वर की ओर केंद्रीकृत या प्रवृत्‍त हो जाता है। उदा. आदि शंकराचार्य को जल्दी ही संसार से वैराग्य हो गया था।

वैवाहिक [विवाह+इक] - (वि.) (तत्.) - विवाह संबंधी, विवाह का। जैसे: वैवाहिक कृत्य, वैवाहिक रस्‍मो रिवाज। पुं. विवाह के कारण होने वाला संबंध या कृत्य।

वैश्य - (पुं.) (तत्.) - 1. भारतीय शास्त्रों के अनुसार ब्राह्मणादि चार वर्णों में से तीसरा वर्ण जिसके मुख्य कर्म कृषि, गोरक्षा और वाणिज्य थे। 2. मुख्यत: व्यापार करने वाली जाति।

वैश्‍विक स्वीकार्यता - (स्त्री.) (तत्.) - 1. संपूर्ण विश्‍व में स्वीकार्य होने की अवस्था या भाव। 2. वह विचार या कोई बात जिसे समस्त विश्‍व में स्वीकार किया गया हो या स्वीकार करने योग्य पाया गया हो। जैसे: नारी स्वतंत्रता, मानवाधिकार को वैश्‍विक स्वीकार्यता प्राप्‍त है।

वैषभ्य - (पुं.) (तत्.) - विषमता, असमानता। जैसे: हमारा उनके साथ वैचारिक वैषम्य है। विलो. साम्य।

वैष्णव - (वि.) (तत्.) - सा.अर्थ 1. विष्णु संबंधी, 2. विष्णु का उपासक। पुं. विष्णु के उपासकों का संप्रदाय विशेष। ला.अ. सात्विक आचार-विचार अथवा आहार आदि से युक्‍त जैसे: वैष्णव ढाबा।

व्यंग्य1 - (पुं.) (तत्.) - 1. किसी के अवगुणों को प्रकट करने अथवा उसकी आलोचना करने के निमित्‍त गूढ़ अथवा विपरीत गुणों के वाचक शब्दों में प्रकट किया गया ऐसा चुटीला कथन जो श्रोतावर्ग पर वक्‍ता के निहितार्थ को स्पष्‍ट रूप से प्रकट करने में समर्थ हो। 2. इस भाव से युक्‍त एक प्रकार की साहित्यिक कृति। satire

व्यंग्य2 - (पुं.) (तत्.) - शा.अ. व्यंजना शक्‍ति के माध्यम से व्यक्‍त किया गया वह अर्थ जो प्रस्तुत की जा रही शब्दावली में सीधे-सीधे न निकलता हो। जैसे: घंटी बजना का व्यंग्य अर्थ छुट् टी होना है। सा.अ. चिढ़ाने या नीचा दिखाने के उद्देश्य से कहे गये गूढ़ अर्थ वाले शब्द। पर्या. ताना। बोली।

व्यंग्यकार - (पुं.) (तत्.) - 1. चुटीली बात कहने वाला व्यक्‍ति। 2. व्यंग्य साहित्य की रचना करने वाला लेखक। दे. व्यंग्य

व्यंजन - (पुं.) (तत्.) - शा.अ. ‘व्यक्‍त करने अथवा प्रकट करने की क्रिया या भाव’। सा.अर्थ 1. स्वर की सहायता से उच्चरित वर्ण 2. ऐसे उच्चरित वर्ण जिनके उच्चारण के समय वायु के बाहर आने में स्पर्श या संघर्ष जैसी बाधाएँ होती ही हैं। हिंदी में ‘क्’ स्पर्श व्यंजन और ‘श्’ संघर्षी (ऊष्म) व्यंजन के उदा. हैं। 3. प्रकट करने का भाव, प्रकाशन। 4. चिह् न, निशान 5. तरह-तरह के पके हुए भोजन।

व्यंजना - (स्त्री.) (तत्.) - 1. व्यक्‍त या प्रकट करने अथवा होने की क्रिया या भाव अभिव्यक्‍ति। 2. शब्द शक्‍ति का वह रूप जो अभिधा लक्षणों से भिन्न विशेष अर्थ अर्थात् व्यंग्यार्थ को प्रकट करता है। 3. व्यंग्यार्थ जैसे: मेरा घर गंगातट पर है। (इस वाक्य में शीतलता, पावनता आदि अर्थ भी अभिव्यक्‍त है। अत: यहाँ व्यंजना का प्रयोग है।)

व्‍यक्‍त - (वि.) (तत्.) - कोई भाव/पदार्थ इत्यादि जो ‘प्रगट किया गया’ अथवा ‘सामने लाया गया’। 1. प्रगट 2. स्पष्‍ट, साफ। 3. निर्दिष्‍ट। प्रकटीकृत/प्रदर्शित।

व्यक्‍त करना एक. - (तत्.+हिं.) - मुख्यत: शब्दों द्वारा या अन्य प्रकार से भी अपने भावों और विचारों को प्रकट करना। (एक्सप्रेस करना)

व्यक्‍ति - (पुं.) (तत्.) - 1. हाड-मांस का बना कोई भी आदमी, मनुष्य (स्त्री या पुरुष) person 2. जाति या समूह का कोई एक प्रतिनिधित्व।

व्यक्‍तिगत - (वि.) (तत्.) - व्यक्‍ति विशेष से संबंधित। पर्या. वैयक्‍तिक, निजी। विलो. सामूहिक।

व्यक्‍तित्व [व्यक्‍ति+त्व] - (पुं.) (तत्.) - 1. व्यक्‍ति के गुणों या विशेषताओं का भाव। 2. किसी व्यक्‍ति के निजी गुणों या विशेषताओं का वह समूह जिनके आधार पर उसका मूल्यांकन होता है या उसका आचरण व्यवहार निर्धारित एवं नियंत्रित होता है। पर्या. वैयक्‍तिकता personality individuality

व्यग्र - (वि.) (तत्.) - 1. घबराया हुआ, दुखी, परेशान। जैसे: बच्चों की चोट देखकर मां व्यग्र हो गयी। 2. काम में लगा हुआ, व्यस्त। जैसे: हम काम में इतने व्यग्र थे कि खाने की भी सुध नहीं रही।

व्यग्रता - (स्त्री.) (तत्.) - व्यग्र होने का भाव, दु:ख, कष्‍ट, परेशानी, व्यस्तता। दे. व्यग्र।

व्यतीत - (वि.) (तत्.) - बीता हुआ (समय), बिताया हुआ (समय) जैसे: आपकी प्रतीक्षा में हमारा समय सार्थक व्यतीत हुआ।

व्यथा - (स्त्री.) (तत्.) - 1. घोर मानसिक कष्‍ट। 2. बहुत दु:ख देने वाली बात।

व्यथित - (वि.) (तत्.) - व्यथा (घोर मानसिक कष्‍ट) से ग्रस्त; बहुत दुखी।

व्यय - (पुं.) (तत्.) - 1. कोई वस्तु खरीदने या कोई काम करवाने इत्यादि में लगने वाली धनराशि। पर्या. खर्च विलो. आय। 2. किसी कारण परिमाण में कमी आना, जैसे: शक्‍ति, समय आदि में होने वाला व्यय।

व्यर्थ [वि+अर्थ] - (वि.) (तत्.) - 1. जो अर्थ रहित हो, अर्थात् बिना मतलब वाला। 2. बिना लाभ का 3. निरर्थक। 4. बेकार 5. विफल 6. निष्फल।

व्यवधान - (पुं.) (तत्.) - 1. दृष्‍टि पथ के बीच में आड़ करने वाली कोई वस्तु। पर्दा। 2. बाधा, रुकावट जो प्रगति के बीच आ जाए। जैसे: पदोन्नति में कुछ नियम व्यवधान बन जाए।

व्यवसाय - (पुं.) (तत्.) - 1. आजीविका हेतु किया गया पेशा या काम। occupation-projection 2. व्यापार, धंधा, उद् योग, रोजगार, कारोबार, प्रयास, business प्रयत्‍न।

व्यवसायी [व्यवसाय+ई] - (पुं.) (तत्.) - 1. व्यवसाय करने वाला व्यक्‍ति या संस्था 2. व्यापारी दे. व्यवसाय।

व्यवस्था - (स्त्री.) (तत्.) - 1. वस्तुओं को यथास्थान ठीक ढंग से रखना। 2. किसी काम को ठीक ढंग से करना। arrangement। 3. किसी संस्था का उचित ढंग से प्रबंध करना। management। 4. शास्त्रों या न्यायालय द्वारा निर्धारित नियमों के अनुसार कोई बात बतलाई जाना। ruling

व्यवस्थापक - (पुं.) (तत्.) - शा.अर्थ व्यवस्था करने वाला व्यक्‍ति। 1. किसी संस्था, कारखाने या न्यास की प्रशासनिक व्यवस्था देखने वाला अधिकारी। पर्या. प्रबंधक, संचालक।

व्यवस्था-प्रश्‍न - (पुं.) (तत्.) - (व्यव्सथा-प्रश्‍न) लोकसभा, विधानसभा आदि की बैठक में किसी सदस्य द्वारा उठाई गई नियम से संबंधी कोई आपत्‍ति। औचित्य-प्रश्‍न। point of order

व्यवस्थित - (वि.) (तत्.) - 1. जिसे ठीक तरह से उचित या निर्धारित स्थान और क्रम से रखा या लगाया गया हो। जैसे: यहाँ चित्रों को व्यवस्थित ढंग से लगाया गया है। 2. जो नियमों के अनुसार तथा व्यवस्था से युक्‍त हो। जैसे: यहाँ छात्रों की पढ़ाई व्यवस्थित ढंग से होती है। विलो. अव्यवस्थित।

व्यवहार - (पुं.) (तत्.) - सामाजिक संबंधों के निर्वाह में दो या दो से अधिक व्यक्‍तियों का आपसी बर्ताव behaviour, आचरण conduct 2. बहुत दिनों से चली आ रही प्रथा। practice 3. रुपए-पैसे आदि का लेनदेन। पर्या. सहकारी, महाजनी banking business 4. प्रयोग, उपयोग use।

व्यसन - (पुं.) (तत्.) - सा.अर्थ बुरी लत, आदत या शौक जैसे: शराब पीना उसका व्यसन बन गया है। 2. अच्छे अर्थ में पर्या. दुर्व्यसन। बहुत अधिक आदी हो जाना। जैसे: कविता, कहानी पढ़ते रहना मेरा व्यसन बन चुका है।

व्यस्त - (वि.) (तत्.) - 1. किसी कार्य में तल्लीन या रत रहना।

व्यस्तता - (स्त्री.) (तत्.) - किसी कार्य में तल्लीन या रत रहने की स्थिति, व्यक्‍ति जिस काम में लगा हो उसे छोड़कर अन्य काम के लिए समय न निकाल पाने की स्थिति।

व्याकरण - (पुं.) (तत्.) - वह शास्त्र जिसमें किसी भाषा के शब्दों के प्रकारों और प्रयोग के नियमों का वैज्ञानिक विवेचन होता है। जैसे: पाणिनि की ‘अष्‍टाध्यायी’।

व्याकुल (वि+आकुल) - (वि.) (तत्.) - किसी अप्रिय घटना के घटित हो जाने और उससे उबर न पाने की अवस्था में घबराया हुआ (व्यक्‍ति) जैसे: स्टेशन पहुँचने पर जेब में टिकट नहीं मिला तो वह व्याकुल हो गया।

व्याकुलता - (स्त्री.) (तत्.) - व्याकुल हो जाने की स्थिति।

व्याख्यान - (पुं.) (तत्.) - 1. किसी विषय की व्याख्या करने की क्रिया या भाव। 2. विवेचन, व्याख्या 3. भाषण। जैसे: आज एक अमेरिकी विद्वान ने ‘वदों’ पर अपना व्याख्यान दिया।

व्याधि - (स्त्री.) (तत्.) - शरीर का रोग, बीमारी। जैसे: बुखार, खाँसी आदि।

व्यापक - (वि.) (तत्.) - 1. विस्तृत क्षेत्र में फैला हुआ तथा प्रभाव-सम्पन्न। उदा. ईश्‍वर सर्वव्यापक है। 2. कुछ एक तक सीमित न होकर सभी से संबंध रखने वाला। जैसे: व्यापक दृष्‍टिकोण।

व्यापार - (पुं.) (तत्.) - 1. एक या एकाधिक वस्तुओं (उत्पादों) की खरीद और बिक्री की व्यवस्था। पर्या. जैसे: खाद्य तेलों का व्यापार। trade 2. आर्थिक लाभ से जुड़ा हुआ काम। जैसे: आजकल शिक्षा भी व्यापार बन गई है।

व्यापारिक - (वि.) (तत्.) - व्यापार-विषयक, व्यापार से संबंधित, जैसे: व्यापारिक वार्ता, व्यापारिक संबंध।

व्यापारी - (पुं.) (तत्.) - जीविकोपार्जन के लिए रोजगार या व्यापार के कार्य में लगा व्यक्‍ति। पर्या. व्यवसायी।

व्याप्‍त - (वि.) (तत्.) - 1. महँगाई बढ़ने से जनता में असंतोष व्याप्‍त है। 2. ईश्‍वर घट-घट में व्याप्‍त है।

व्याप्‍ति - (स्त्री.) (तत्.) - व्याप्‍त होने का भाव। दे. व्याप्‍त।

व्यायाम - (पुं.) (तत्.) - 1. शरीर के अंगों को स्वस्थ एवं पुष्‍ट करने के लिए नियमित रूप से किया जाने वाला शारीरिक अभ्यास। 2. शारीरिक कसरत, परिश्रम। exercise जैसे: हमें पूर्ण स्वस्थ रहने के लिए प्रात:काल नियमित रूप से व्यायाम करना चाहिए।

व्यावहारिक (व्यवहार + इक) - (वि.) (तत्.) - 1. व्‍यवहार से संबंधित। विलो. सैद्धांतिक। 2. जो व्यवहार में लाया जा सके। 3. क्रियात्मक, रीतिरिवाज़ या परंपरा के अनुसार practical 4. व्यवहार कुशल। विलो. अव्यावहारिक।

व्यूह - (पुं.) (तत्.) - 1. युद्ध के लिए सैनिकों की एक विशेष रचना जो शत्रु सेना को आगे बढ़ने से रोकने के लिए बनाई गई हो। 2. वायु सेना की स्थापना का विशेष प्रकार। 3. सेना। जैसे: महाभारत में आचार्य द्रोण द्वारा की गई व्यूह रचना अद् भुत थी।

व्योम - (पुं.) (तत्.) - 1. पृथ्वी के चारों ओर व्याप्‍त वह पारदर्शी शून्य तत् व जिसमें से होकर तारों (सूर्य भी एक तारा है।) की किरणें पृथ्वी तक पहुँचती है। 2. आकाश, अंतरिक्ष। पर्या. नभ, गगन, आसमान।

व्रण - (पुं.) (तत्.) - 1. आयु. शरीर में। त्वचा में प्राकृतिक कारणों से उत्पन्न होने वाला घाव। soure, ulcer 2. घाव, फोड़ा।

व्रती [व्रत+ई] - (वि.) (तत्.) - 1. जिसने कोई व्रत धारण किया हो। 2. दृढ़ निश्‍चय करने वाला। 3. उपवास करने वाला; उपवास से संबंधित। पुं. संयासी, ब्रह् मचारी, तपस्वी आदि।