विक्षनरी:हिन्दी लघु परिभाषा कोश/श-ष-स-ह
श - -
शंका - (वि.) (तत्.) - इसका प्रवर्तन ईसवी सन से 77/78 वर्ष पहले और विक्रम संवत् से 135 वर्ष बाद हुआ था।
शंका - (स्त्री.) (तत्.) - निश्चय तक न पहुँचने देने वाला तत् व। पर्या. संशय, संदेह doubt
शंकालु [शंका+आलु] - (वि.) (तत्.) - 1. जिसका मन किसी व्यक्ति, वस्तु, गुण, व्यवस्था आदि के प्रति संदेह/शंका करने के स्वभाव वाला हो, संशयी जैसे: शंकालु व्यक्ति कभी शांति को प्राप्त नहीं करता। 2. संदेह करने वाला। शक्की।
शंकु - (पुं.) (तत्.) - 1. वृत्ताकार आधार और निरंतर घटती चौड़ाई वाली भुजाओं से निर्मित आकृति या ठोस पिंड जिसकी भुजाओं के अंतिम सिरे के बिंदु पर जाकर मिल जाते हैं। cone
शंकुधारी वृक्ष - (पुं.) (तत्.) - ऐसे वृक्ष जो ऊपर से नुकीले होते हैं और उनकी चौड़ाई नीचे की ओर क्रमश: बढ़ती जाती है। ऊँचे पर्वतों पर ऐसे वृक्ष पाए जाते हैं जहाँ हिमपात अधिक होता है। शंकु-आकार के कारण बर्फ नीचे फिसल जाती है और वृक्ष सुरक्षित रहते हैं।
शंक्वाकार (शंकु+आकार) - (वि.) (तत्.) - शंकु के आकार का। दे. शंकु।
शंख - (पुं.) (तत्.) - समुद्र में घोंघे की प्रजाति का बड़ा कीड़ा होता है। उसके शरीर पर एक कठोर कवच होता है। इस कवच को शंख कहते हैं। इसकी आकृति अंदर से घुमावदार होने के कारण एक ओर छिद्र होता है, फूँकने पर ध्वनि होती है। पूजन में इसका प्रयोग होता है।
शंखध्वनि - (स्त्री.) (तत्.) - शंख बजाने से होने वाली आवाज। दे. शंख।
शंखनाद - (पुं.) (तत्.) - दे. शंखध्वनि।
शऊर - (अर. शऊर) (तत्.) - 1. काम करने की योग्यता, ढंग। जैसे: उसे तो अपनों से बात करने का भी शऊर नहीं है। सलीका। 2. समझ, बुद्धि। जैसे: शऊर से काम लो।
शक - (पुं.) (तत्.) - 1. नृ. वि. /अति प्राचीन काल में भारत पर आक्रमण करने वाली मध्य एशिया की एक घुमक्कड़ जाति। 2. शक संवत् एक संवत् का नाम जिसे आज भारत में राष्ट्रीय संवत् की मान्यता दी गई है। तु. विक्रम संवत्
शकरकंद [शकर+कंद] - (पुं.) (तत्.) - जमीन के अंदर होने वाला, मूली के आकार का मटमैला या लाल/गुलाबी रंग का मीठे स्वाद वाला एक प्रसिद् ध कंद जिसे भूनकर या उबालकर खाया जाता है।
शकरपारा/शक्करपारा - (पुं.) (फा.(शकरपार:) - वह गोल या चौकोर खाद्य पदार्थ जो मैदे और गुड़/शक्कर से बनता है।
शकुन - (पुं.) (तत्.) - 1. किसी व्यक्ति, वस्तु, पशु-पक्षी, क्रिया, घटना आदि के देखने-सुनने या होने आदि से मिलने वाला लोकमत पर आधारित शुभ-अशुभ का पूर्वानुमान। सगुन। 2. किसी विशेष कार्य के आरंभ में या किसी विशेष यात्रा के प्रारम्भ में दिखाई देने वाले शुभ लक्षण। 3. शुभ मुहूर्त। सगुन। जैसे: प्राय: लोग उत्तम शकुन देखकर कार्य प्रारम्भ करते हैं। विलो. अपशकुन।
शक्कर - (स्त्री.) (तद्.शर्करा) - 1. कच्ची चीनी, खांड जो गन्ने के रस से बनाई जाती है। 2. चीनी, शक्कर (मिल में बनी)। जैसे: सभी प्रकार की मिठाइयाँ शक्कर डालकर बनती हैं।
शक्की - (वि.) (अर.) - शक करने वाला।
शक्ति - (स्त्री.) (तत्.) - सा.अर्थ कार्य करने की क्षमता, ताकत या बल। भौ. ऊर्जा का उपयोग कर कार्य करने की समय-सापेक्ष दर। इसका मात्रक ‘वाट’ है। power
शक्तिपीठ - (पुं.) (तत्.) - वे उपासना स्थल जहाँ विशेष रूप से शक्ति पूजा का प्राधान्य होता है। जैसे: विंध्याचल, कामारव्या आदि। (विंध्येश्वरी)। टि. भारतीय पौराणिक मान्यता के अनुसार भारत में इक्यावन शक्तिपीठ हैं।
शक्तिपूजा - (स्त्री.) (तत्.) - 1. शक्ति अर्थात् देवी, दुर्गा, महाकाली, पार्वती आदि की पूजा/आराधना। जैसे: हम नवरात्रों में शक्ति पूजा करते हैं। 2. विजयादशमी के दिन की जाने वाली शस्त्रपूजा।
शक्तिवर्धक [शक्ति+वर्धक] - (वि.) (तत्.) - शा.अर्थ जो शारीरिक शक्ति को बढ़ाता हो, शक्ति बढ़ाने वाला। सा.अर्थ जो शारीरिक मानसिक श्रम करने, रोगों से बचने तथा कामेच्छा को बढ़ाने का कार्य करे। उदा. कुछ औषधियाँ शक्तिवर्धक होती हैं।
शक्तिशाली - (वि.) (तत्.) - जिसमें शक्ति हो; शक्ति से युक्त, शक्तिसंपन्न। विलो. निर्बल/शक्तिहीन।
शक्तिसंपन्न - (वि.) (तत्.) - 1. जो शक्ति से युक्त हो, बलवान्, शक्तिशाली ताकतवर। 2. ला.अर्थ जो धन-बल, सत्ता आदि के सामर्थ्य से युक्त हो।
शक्तिहीन - (वि.) (तत्.) - जिसमें शक्ति न हो; शक्ति रहित।
शक्तिहीनता - (स्त्री.) (तत्.) - शक्तिहीन होने का भाव।
शक्ल - (स्त्री.) (अर.) - 1. (मुख्य रूप से) चेहरे की बनावट। face, looks 2. किसी भी वस्तु का आकार-प्रकार। पर्या. आकृति।
शक्लसूरत [शकल+सूरत] - (स्त्री.) (अर.) - 1. चेहरे की आकृति/बनावट, रूपाकृति। 2. रंग-रूप, आकार-प्रकार चेहरा-मोहरा, डील-डौल। 3. बाहरी स्वरूप; भाव दिखलाई पड़ने वाले।
शख्स - (पुं.) (अर.) - आदमी, व्यक्ति, जन। person individual
शख्सियत - (स्त्री.) (अर.) - (शख्स=व्यक्ति+इयत) शख्स होने का गुण या भाव। पर्या. व्यक्तित्व। personality
शगल - (पुं.) (अर. शूगल) - 1. खाली समय में किया जाने वाला कोई रुचिकर कार्य। 2. मन-बहलाने के लिए किया जाने वाला कोई कार्य, मनोविनोद। जैसे: मैं तो यह काम धनार्जन के लिए न करके शगल के लिए करता हूँ। 3. काम-धंधा, व्यापार।
शगुन - (पुं.) (तद्.>शकुन) - 1. किसी शुभ अवसर पर धन, वस्त्र, वस्तु अलंकार आदि के रूप दिए जाने की रीति या प्रथा। जैसे: नववधू को हमने पाँच सौ एक रुपए शगुन दिया। 2. वर-कन्या का विवाह निश्चित होने के बाद कन्या पक्ष की ओर से वर-पक्ष को दिया जाने वाला धन वस्त्र आदि। तिलक, लगन, टीका। 3. शुभ मुहूर्त। 4. दे. शकुन।
शज़रा/शजर - (पुं.) (अर.शज्र:) - 1. वृक्ष 2. वंशावली (विशेषकर धर्मगुरुओं का), वंशवृक्ष। 3. पटवारी द्वारा बनाया हुआ खेत का नक्शा। जैसे: तुम्हें अपने खेत की स्थिति का पता ‘शजरा’ देखकर चलेगा।
शत - (वि.) (तत्.) - सौ। पु. सौ की संख्या।
शतक - (पुं.) (तत्.) - 1. एक ही तरह की सौ वस्तुओं का समूह या संग्रह, सैकड़ा जैसे: नीतिशतक, श्रृंगार शतक। 2. क्रिकेट के खेल में सौ रन पूरे करना। जैसे: तेंदुलकर शतकों का शतक लगा चुका है। 3. सौ वर्षों का काल शताब्दी। जैसे: इक्कीसवाँ शतक प्रारंभ हो चुका है। century
शतक - (पुं.) (तत्.) - सौ का समूह। जैसे: नीतिशतक। (खेल>क्रिकेट) बल्लेबाज द्वारा एक ही पारी में 100 या इससे अधिक रन बनाने की संख्या जो उल्लेखनीय मानी जाती है। century
शतदल - (पुं.) (तत्.) - शा.अर्थ सौ दलों (पंखुडि़यों से युक्त) वाला (कमल पुष्प)। सा.अ. बड़े आकार का कमल। पर्या. पद्म, नीरज, सरोज अम्भोज।
शतपद - (पुं.) (तत्.) - शा.अ. सौ पैरों वाला (कीट)। सा.अर्थ वे कीड़े जिनके बहुत से पैर होते हैं। जैसे: कनखजूरा आदि।
शत-प्रतिशत [शत+प्रति+शत] क्रि. - (वि.) (तत्.) - व्यु.अर्थ सौ में से सौ। सा.अर्थ पूरी तरह से, पूर्णत:, संपूर्ण रूप से।
शतरंज - (पुं.) (फा.) - दो व्यक्तियों के बीच हार-जीत का खेल जो सफेद-काले के क्रम से चौंसठ खाने वाले पटल पर सोलह-सोलह (कुल बत्तीस) मोहरों से खेला जाता है।
शताब्द - (पुं.) (तत्.) - दे. शताब्दी।
शताब्दी - (स्त्री.) (तत्.) - [शत+अब्द+ई] शा.अर्थ सौ वर्णों की इकाई; सौ वर्षों की अवधि। 1. किसी सन्, संवत् की एक से लेकर सौ तक की अवधि, शती, शतक। century जैसे: 1901 से 2000 तक की बीसवीं शताब्दी। पर्या. सदी। 2 किसी व्यक्ति के जन्म या संस्था की स्थापना से शुरू कर सौ वर्ष की अवधि पूरी हो जाने पर मनाया जाने वाला समारोह। पर्या. शतवार्षिकी। century
शत्रु - (पुं.) (तत्.) - व्यक्ति/समूह या देश जो अन्य व्यक्ति, समूह या देश के प्रति अपने स्वार्थ की पूर्ति के लिए वैरभाव रखता हो। पर्या. दुश्मन, वैरी। विलो. मित्र।
शत्रुता - (स्त्री.) (तत्.) - शत्रु होने का भाव, शत्रुभाव। पर्या. दुश्मनी, वैर। दे. शत्रु।
शत्रुध्न - (वि.) (तत्.) - 1. शत्रुओं का नाश करने वाला, शत्रुहंता। 2. लक्ष्मण के छोटे भाई का नाम।
शनै:-शनै: क्रि.वि. - (वि.) (तत्.) - धीरे-धीरे।
शपथ - (स्त्री.) (तत्.) - किसी कार्य को करने की मौखिक या लिखित रूप में दृढ़ स्वीकारोक्ति। पर्या. कसम, सौगंध।
शपथ ग्रहण - (पुं.) (तत्.) - शपथ लेना।
शपथ ग्रहण समारोह - (पुं.) (तत्.) - किसी अति महत्त्वपूर्ण व्यक्ति (जैसे-मंत्री/प्रधानमंत्री न्यायाधीश आदि) द्वारा पद-ग्रहण से पहले सर्वोच्य पदाधिकारी (क्रमश: राष्ट्रपति, प्रधान न्यायाधीश आदि) के सम्मुख अपने कार्यकाल के दौरान पद की गरिमा और गोपनीयता बनाए रखने हेतु ईश्वर के नाम पर अथवा सत्यनिष्ठा से ली गई शपथ से संबंधित औपचारिक समारोह/उत्सव।
शपथ-पत्र - (पुं.) (तत्.) - शपथकर्त्ता द्वारा हस्ताक्षरित वह (लिखित) पत्र जिसमें वह यह बताता है कि उल्लिखित सारी बातें उसकी जानकारी के अनुसार पूरी तरह से सही हैं। पर्या. हलफनामा। affidavit
शपथ-भंग - (पुं.) (तत्.) - मौखिक रूप से खाई गई या लिखी गई शपथ का पालन न किया जाना।
शबद - (पुं.) (तत्.>शब्द) - महात्मा कबीर, गुरुनानक आदि संतों की वाणी।
शबनम - (स्त्री.) (फा.) - [शब+नम] (फा.) 1. वह नमी जो रात में फूल-पत्तों पर बूँद की तरह इकट्ठी हो जाती है। ओंस। 2. एक प्रकार का बहुत पतला कपड़ा।
शबनमी - (फा.) - स्त्री . 1. ओंस से बचने के लिए ताना गया कपड़ा। 2. आँसुओं से भरा जैसे: शबनमी आँखें।
शब्द - (पुं.) (तत्.) - शा.अर्थ ध्वनि, आवाज। वाक्-स्वनों/वर्णों के योग से निर्मित और मुख से उच्चरित या लिखित स्वतंत्र और सार्थक इकाई। जैसे: मैं, हम, तुम, बालक, पुस्तक आदि।
शब्दकोश/शब्दकोष - (पुं.) (तत्.) - शा.अर्थ शब्दों का संग्रह। भाषा. वह संदर्भ ग्रंथ जिसमें भाषा-विशेष (स्त्रोत भाषा) के सभी शब्दों का उसी भाषा में या किसी अन्य भाषा (लक्ष्य भाषा) में अर्थ, व्याख्या, परिभाषा के साथ-साथ उच्चारण, व्याकरणिक कोटि, पर्याय, स्त्रोत (व्युत्पति), प्रयोग (उदाहरण) मुहावरे आदि की सूची संग्रहीत हो। dictionary
शब्द-परिवार शब्दों का परिवार। - (दे.) - दे. शब्द।
शब्दभंडार [शब्द+भंडार] - (पुं.) (तत्.) - किसी भाषा के सभी शब्दों का समूह, शब्दकोश। जैसे: हिंदी भाषा का शब्द भंडार बहुत बड़ा है।
शब्द-भेद - (पुं.) (तत्.) - व्या. किसी भी भाषा के शब्दों का प्रकार्य की दृष्टि से संज्ञा, विशेषण, क्रिया, क्रियाविशेषण आदि में किया गया मोटा वर्गीकरण। parts of speech
शब्द-युग्म - (पुं.) (तत्.) - सुनने में लगभग मिलता-जुलता पर अर्थ में भिन्न दो शब्दों का जोड़ा। जैसे: कर्म-क्रम; राज़-राज; चिता-चिंता; डेढ़-ढेर, बार-वार; बूड़ा-बूढ़ा।
शब्द-शक्ति - (स्त्री.) (तत्.) - शा.अर्थ शब्द की शक्ति। काव्यशास्त्र-शब्दों के अर्थ की प्रतीति कराने वाली शक्ति। शब्द-शक्ति के तीन भेद प्रचलित हैं-अभिधा, लक्षणा, व्यंजना।
शब्द-साधन - (पुं.) (तत्.) - व्या. शब्द-निर्माण की प्रक्रिया जिसके अनुसार संज्ञा, क्रिया आदि शब्दों से अन्य शब्द बनाए जाते हैं। जैसे : लडक़ा-लडक़पन, परिवार-पारिवारिक, मीठा-मिठाई, बात-बतियाना आदि-आदि।
शब्दांश [शब्द+अंश] - (पुं.) (तत्.) - शब्द का एक भाग, जैसे: उपसर्ग, प्रत्यय या समासयुक्त पद में एक शब्द।
शब्दाडंबर [शब्द+आडंबर=दिखावा] - (पुं.) (तत्.) - शा.अर्थ शब्दों का दिखावा। सा.अर्थ पांडित्य प्रदर्शन के लिए सरल शब्दों के स्थान पर जटिल शब्दावली का प्रयोग। पर्या. शब्दजाल।
शब्दातीत [शब्द+अतीत] - (वि.) (तत्.) - 1. जो शब्दों से परे हो अर्थात् शब्दों द्वारा जिसे व्यक्त करने में शब्द समर्थ न हों। जैसे: प्रभुकृपा शब्दातीत है। 2. जिसका शब्दों में वर्णन न हो सके। जैसे: उस आतिथ्य का वर्णन शब्दातीत है।
शब्दार्थ [शब्द+अर्थ] - (पुं.) (तत्.) - शब्द का उसी भाषा में या अन्य भाषा/भाषाओं में बताया गया अर्थ। word meanining
शब्दालंकार [शब्द+अलंकार] - (पुं.) (तत्.) - वाक्य में प्रयुक्त शब्दों का ध्वनि, रूप रचना, प्रयोग आदि की दृष्टि से चामत्कारिक प्रयोग। जैसे: ‘कंकन किंकिनि नूपुर धुनि सुनि’…(में अनुप्रास) कनक कनक ते सौ गुनि मादकता अधिकाय….’ ‘में यमक) तथा बेकार-1. बिना काम-धंधे वाला, 2. बिना कार वाला (श्लेष) तुं. अर्थालंकार।
शब्दावली [शब्द+अवली] - (स्त्री.) (तत्.) - शब्दों का भंडार या शब्दों की सूची। जैसे: वैज्ञानिक शब्दावली आयोग। 2. शब्दों का व्यवस्थित क्रम। जैसे: पूर्व प्रधानमंत्री वाजपेयी के भाषण में शब्दावली का सौंदर्य अद्भुत होता था।
शमा - (अर.शमअ) (स्त्री.) - (तत्.) 1. बत्ती, दिया, 2. मोमबत्ती। जैसे: जीवन में ज्ञान की शमा जलानी चाहिए।
शयन - (पुं.) (तत्.) - (लेटकर) सोना, नींद लेना।
शयनकक्ष - (पुं.) (तत्.) - निवास-गृह में परिवार के सदस्यों के सोने के लिए उपयोग में आने वाला कमरा। पर्या. शयनागार। bed room
शयनयान - (पुं.) (तत्.) - रेलगाड़ी आदि का वह आरक्षित डिब्बा जिसमें लोग सोते हुए सफर कर सकते हैं। sleeper
शर - (पुं.) (तत्.) - बाण, तीर।
शरण - (स्त्री.) (तत्.) - 1. रक्षा, आश्रय, घर, मकान। shelter 2. बचाव का साधन, बचाव का स्थान। refugee
शरणस्थल/स्थली - (पुं./स्त्री.) (तत्.) - वह स्थान जहाँ विपत्ति में किसी को शरण या आश्रय मिले।
शरणागत [शरण+आगत] - (वि.) (तत्.) - 1. शरण में आया हुआ। 2. शरण माँगने वाला।
शरणागति - (स्त्री.) (तत्.) - शरणागत होने की स्थिति। दे. शरणागत, शरण।
शरणार्थी [शरण+अर्थी] - (वि.) (तत्.) - शा.अर्थ 1. शरण चाहने वाला। 2. एक स्थान से निष्कासित होने पर दूसरे स्थान पर, आकर बसने वाला या नया बसा हुआ। refjugee
शरत्/शरद् - (स्त्री.) (तत्.) - 1. वर्षा ऋतु के बाद की वह ऋतु जो आश्विन और कार्तिक (सितम्बर-अक्टूबर, नवंबर) महीनों में रहती है। इसमें मौसम सम रहता है। जैसे: शरत् पूर्णिमा 2. वर्ष।
शरद पूर्णिमा [शरद्+पूर्णिमा] - (स्त्री.) (तत्.) - 1. शरद् ऋतु में आश्विन मास की पूर्णिमा तिथि। 2. शरद पूर्णिमा की रात जब चंद्र स्वच्छ, नीले आकाश में अपनी पूरी प्रभा के साथ प्रकाशित होता है। जैसे: शरदपूर्णिमा को ही महर्षि वाल्मीकि का जन्मोत्सव मनाया जाता है।
शरदाकाश - (पुं.) (तत्.) - (शरद् ऋतु का) आकाश जो बादलों से रहित होने के कारण अत्यंत स्वच्छ एवं नीला होता है। जैसे: तारों की छटा तथा चंद्रमा की चाँदनी तो शरदाकाश में ही दर्शनीय हीती है।
शरपत - (स्त्री.) (तत्.) - (शरपन) एक प्रकार की लंबी घास जो पानी में होती है तथा जिस पर आगे की ओर झुके हुए बारीक काँटे होते हैं।
शरबती/शर्बती - (वि.) (अर.>तत्.) - 1. शर्बत के रंग का पीलापन और हरापन लिए हुए कुछ लाल या गुलाबी (रंग)। 2. शर्बत जैसा मीठा और रसभरा। 3. मादक। जैसे: शर्बती आँखें।
शरमाना/शर्माना (शरम/शर्म =ना.धा.) अं. क्रि. - (फा.) - 1. प्राचीन सामाजिक परंपरा के अनुसार बड़े-बूढ़ों के सामने बहू का खुले मुँह सामने आने से हिचकना। 2. किसी अशोभनीय कार्य के हो जाने पर दूसरों को उसकी जानकारी मिल जाने की स्थिति में कर्ता का लज्जित होना। 3. लज्जित होना, लजाना। संकोच करना।
शरमिंदगी/शर्मिंदगी - (स्त्री.) (फा.) - लज्जित होने का भाव। पर्या. लज्जा। दें शरमाना।
शरमिंदा/शर्मिंदा - (वि.) (फा.) - लज्जित। दे. शरमाना।
शरमीला/शर्मीला - (वि.) (अर.) - (वह व्यक्ति) जो शरम/शर्म करे। पर्या. लज्जाशील, संकोची, शर्मानेवाला।
शरशैया - (स्त्री.) (तत्.) - शा.अर्थ तीरों का बिछौना। टि. 1. महाभारत में वर्णित भीष्मपितामह के लिए अर्जुन के तीरों से बना बिछौना जिस पर वे कुरुक्षेत्र के मैदान में घायलावस्था में तब तक लेटे रहे जब तक उन्होंने सूर्य के उत्तरायाण होने तक इच्छामृत्यु का वरण नहीं कर लिया। 2. अति कष्टकर जीवन।
शराफ़त - (स्त्री.) (अर.) - शा.अर्थ शरीफ़ होने का भाव/गुण। सा.अ. 1. दूसरों के साथ सज्जनता व शिष्टता का व्यवहार। जैसे: जब हम उस अधिकारी से मिले, वे बड़ी शराफत से पेश आए। 2. नेकी, भलमनसाहत, सज्जनता। 2. शराफत दिखाकर ही तुम सम्मान पा सकते हो। 3. कुलीनता। 4. सभ्यता, शिष्टता।
शराब - (स्त्री.) (अर.) - पीने पर नशा लाने वाला आसव भभके से वाष्पित होकर ठंडा हुआ द्रव पदार्थ, मद्ध; मदिरा।
शराबखाना - (पुं.) (अर.+फा.) - स्थान जहाँ शराब बिकती हो और बैठकर पी जा सकती हो। पर्या. मदिरालय, मधुशाला।
शराबखोर - (वि./पुं.) (अर.+फा.) - शराब पीने वाला (व्यक्ति)। पर्या. शराबी, मद्धय।
शराबखोरी - (स्त्री.) (अर.+फा.) - शराब पीने की आदत; शराब पीने की क्रिया। पर्या. मद्यपान।
शरारत - (स्त्री.) (अर.) - किसी को तंग या परेशान करने के लिए की गई हरकत। पर्या. शैतानी, नटखटपना, दुष्टता।
शरारती - (वि.) (अर.) - शरारत से संबंधित। पुं. शरारत करने वाला व्यक्ति।
शरीक - (वि.) (अर.) - किसी कार्य में सम्मिलित (होने वाला)। पर्या. शामिल, सम्मिलित।
शरीफा - (पुं.) (तद्.श्रीफल) - 1. उभरे हुए छिलके वाला, मीठे गूदे से युक्त एक गोलाकार मीठा फल जिसमें काले बीज होते हैं। 2. उक्त फल वाला वृक्ष जो सामान्य आकार का (न बहुत छोटा न अधिक बड़ा) और पहाड़ों पर होता है।
शरीर - (पुं.) (तत्.) - जीवधारियों के सभी अंगों का समूह। 2. सभी अंगों/अवयवों समेत प्राणी का दृश्यमान रूप। पर्या. 1. काया, तन, देह, (बॉडी)। वि. (अर.) 1. शैतान। 2. नटखट, पाजी, दुष्ट।
शरीर विज्ञान - (पुं.) (तत्.) - प्राणियों की शरीर रचना और शरीर के अंगों के कार्यों से संबंधित अध्ययन की जीवविज्ञान की एक शाखा। जैसे: ‘शरीर विज्ञान’ physiology का अध्ययन एक चिकित्सक के लिए अत्यंत आवश्यक है।
शर्करा - (स्त्री.) (तत्.) - रसा. मीठा, विलेय, दानेदार कार्बोहाइड्रेट का संग्रह जो गन्ने के रस, चुकंदर के गूदे आदि से प्राप्त होता है। पर्या. शक्कर, चीनी। sugar
शर्तिया - (वि.) (अर.शर्तिय:) - 1. अनिवार्य, निश्चित, लाजिमी। 2. अचूक, पक्का। जैसे: यहाँ दमा का शर्तिया इलाज होता है। 3. शर्तों के अनुसार। जैसे: शर्तिया कुश्ती। क्रि. वि. निश्चयपूर्वक। जैसे: शर्तिया अब वह घर पर ही होगा।
शर्बत/शरबत - (पुं.) (अर.) - 1. शकर घोल कर मीठा किया ठंडा जल जो विशेष रूप से गर्मी के मौसम में पिया जाता है। 2. स्वास्थ्य की दृष्टि से बना वह मीठा औषधीय पेय जो फलों , ओषधियों के रस या बादाम-किसमिस आदि घोटकर बनाया जाता है। जैसे: अनार का शर्बत, अनानास का शर्बत।
शर्बती - (वि.) - 1. शर्बत की तरह मधुर। 2. शर्बत के रंग का-कुछ पीला, कुछ लाल या कुछ गुलाबी। 3. ला.अर्थ सरस, मधुर, प्रिय। जैसे: शर्बती आँखें।
शर्बा - - (जाति नाम) शा.अर्थ पूर्व वाला (तिब्बती भाषा में) तिब्बती भोटियों की एक जाति का नाम।
शर्मनाक - (वि.) (फा.) - (ऐसा कार्य) जिसे करने में या बताने में शर्म हो। पर्या. लज्जाजनक, लज्जास्पद।
शर्मिंदा/शरमिंदा - (वि.) (.फा.शर्मिन्द:) - अनुचित आचरण से लज्जा अनुभव करने वाला। पर्या. लज्जित।
शलजम - (स्त्री.) (फा.) - 1. एक गोलाकार कंद जिसे सब्जी, आचार आदि के रूप में खाया जाता है। पर्या. शलगम।
शलभ - (पुं.) (तत्.) - पतंग, पतिंगा, टिड्डी।
शलाका पुरुष - (पुं.) (तत्.) - किसी कालखंड, देश, स्थान, क्षेत्र आदि का सर्वोच्य स्थिति प्राप्त अत्यंत आदरणीय और महत्वपूर्ण व्यक्ति। जैसे: स्वतंत्रता के शलाका पुरूष महात्मा गाँधी; संस्कृत साहित्य के शलाका पुरूष महाकवि कालिदास।
शलाका - (स्त्री.) (तत्.) - सा.अर्थ सलाई, सींक। इंजी- लकड़ी या धातु का लंबा टुकड़ा जिसका उपयोग रोधक के रूप में किया जाए। जैसे: अर्गला बार, rod
शल्क - (पुं.) (तत्.) - 1. मछली के शरीर पर बने छिलके। (स्केल) 2. प्याज की परत; प्याज का छिलका। 3. वृक्ष की छाल। 4. पपड़ी।
शल्य चिकित्सा - (स्त्री.) (तत्.) - शरीर के अंगों की चीर-फाड़ कर रोगों का इलाज करने की विधि। पर्या. शल्यकार्य। surgery तु. कायचिकित्सा।
शल्यचिकित्सक - (पुं.) (तत्.) - चिकित्सक जो शरीर के अंगों की चीरफाड कर रोग का उपचार करता है। (सर्जन)। तु. कायचिकित्सक।
शल्योपचार [शल्य+उपचार] - (पुं.) (तत्.) - किसी शारीरिक रोग या विकार को शल्य क्रिया द्वारा पूर्णतया ठीक करने की प्रक्रिया। चीरफाड़। operation
शव - (पुं.) (तत्.) - जीवित प्राणी की मृत्यु हो जाने के बाद दाहकर्म करने/दफनाने तक दिखाई पड़ने वाला निष्प्राण शरीर; मृत शरीर। dead body, corprse
शवदाह - (पुं.) (तत्.) - शव (मृत शरीर) को चिता पर जलाने की क्रिया।
शवदाहशाला - (स्त्री.) (तत्.) - बिजली की ज्वाला से (न कि लकड़ी से बनी चिता पर रखकर) मृत शरीर का दाहकर्म करने का स्थल। electric crematorium
शव परिक्षा - (स्त्री.) (तत्.) - किसी मृत व्यक्ति के शरीर की चिकित्सक द्वारा इस दृष्टि से जाँच कि उसकी मृत्यु का वास्तविक कारण क्या था। postmortem, autopsy
शवयात्रा - (स्त्री.) (तत्.) - शव को अर्थी पर लिटाकर अथवा ताबूत में रखकर श्मशान या कब्रगाह तक ले जाने की धर्मानुसार क्रिया।
शशिकांत - (पुं.) (तत्.) - 1. कुमुद का फूल, कुई। 2. चंद्रकांत मणि।
शशिधर [शशि=चंद्रमा+धर=धारण करने वाला] - (वि.) (तत्.) - पुं. शिव, महादेव। जैसे: शशिधर को सभी नमन करते । धन्य सभी जीवन को करते।
शस्त्र - (पुं.) (तत्.) - हाथ में रखकर (न कि फेंककर) लडाई (युद्ध) के समय प्रयोग में लाया जाने वाला हथियार। जैसे: तलवार, बरछी, फरसा आदि। तु. अस्त्र।
शस्त्र विद्या - (स्त्री.) - शस्त्र चलाना सीखने अथवा सिखाने की कला का ज्ञान।
शस्त्र-समर्पण - (पुं.) (तत्.) - 1. हार जाने वाली सेना द्वारा हथियारों का उपयोग रोक देना। 2. हार जाने वाली सेना के नायक द्वारा सेना नायक के समक्ष प्रतीक रूप से शस्त्र रख देने और समर्पण पत्र पर हस्ताक्षर करने की औपचारिक क्रिया।
शस्त्रागार [शस्त्र+आगार=स्थान] - (पुं.) (तत्.) - शस्त्रास्त्र रखने का स्थान, युद्ध सामग्री का भंडारगृह। पर्या. शस्त्रशाला।
शहंशाह/शाहंशाह - (पुं.) (.फा.) - 1. शाहों का शाह, बहुत बड़ा बादशाह। 2. राजाधिराज, सम्राट। उदा. अकबर को शहंशाह कहा जाता था।
शह - (स्त्री.) (तत्.) - 1. अप्रत्यक्ष रूप से किसी को भड़काने का कार्य; बढ़ावा। जैसे: कुछ बालक माँ-बाप की शह पाकर बिगड़ जाते हैं। 2. किश्त (शतरंज के खेल में)। 3. गलत काम के लिए प्रोत्साहन। जैसे: तुम्हारी शह मिलने से वह उससे विवाद कर बैठा।
शहजादा [शाह+जादा=पुत्र] - (पुं.) - (फा. (शाहजाद:) राजा का पुत्र। पर्या. राजपुत्र, युवराज।
शहतीर - (पुं.) (फा.) - 1. लकड़ी का सीधा, लंबा-घनाकार लट् ठा। 2. छत की कड़ी, बीम, धरन।
शहरी - (पुं.) (फा.) - 1. शहर का रहने वाला, जो एक नगर में रहता हो। नागरिक, नगरवासी। नगरीय। 2. शहर या नगर से संबंधित। नागर। जैसे: शहरी तहजीब, शहरी, शिक्षा, शहरी आदतें आदि।
शहरीकरण - (पुं.) (फा.) - 1. शहर के पास के किसी स्थान पर शहर के समान सुविधाओं एवं व्यवस्था का उपलब्ध कराया जाना। 2. शहरनुमा बसावट एवं बिजली, पानी जैसी अन्य व्यवस्थाएँ होना।
शहादत - (स्त्री.) (अर.) - शा.अ. शहीद होने का भाव। सा.अ. 1. जनहित, राष्ट्र-हित, धर्मरक्षार्थ आदि के लिए सर्वस्व न्यौछावर कर देना। 2. बलिदान, कुर्बानी, हुतात्मता। जैसे: भारत की स्वतंत्रता के लिए अनेक राष्ट्रभक्तों ने अपनी शहदत दी।
शहीद - (पुं.) (अर.) - देश, धर्म या समाजहित में अपने पवित्र कर्तव्य का पालन करते हुए बलिदान होने वाला व्यक्ति। जैसे: देश की रक्षा के लिए शहीद होने वालों को हम सादर नमन करते हैं। शहीदी-शहीद से संबंधित। जैसे: शहीदी दिवस।
शांति - (स्त्री.) (तत्.) - 1. मन की वह स्थिति जिसमें व्याकुलता नहीं होती। 2. शोरगुल, मार-पीट, उछल-कूद आदि का अभाव। पर्या. नीरवता, सन्नाटा। 3. युद्ध एवं मार-काट आदि का अभाव। 4. देश या समाज में आंदोलन, उपद्रव, लूटमार, चोरी, झगड़ा इत्यादि न होने की स्थिति। piece 5. ग्रह बाधा/भूतबाधा आदि का अमंगल दूर करने का विधान।
शांतिप्रिय - (वि.) (तत्.) - 1. जिसे शांतिप्रिय हो। 2. जो किसी प्रकार के लड़ाई-झगड़े से दूर रहकर/बचकर अपना जीवन शांतिपूर्वक बिताना चाहता हो। जैसे: हमारा देश शांतिप्रिय है।
शाक - (पुं.) (तत्.) - 1. हरी पत्तियों वाली वनस्पति, साग। 2. तरकारी, माजी-पत्ती, फल, फूल आदि पकाकर खाने योग्य सब्जी। जैसे: पालक, बथुआ, सरसों आदि की पत्तियों से निर्मित साग।
शाकाहार [शाक+आहार] - (पुं.) (तत्.) - 1. वनस्पति जन्य पदार्थों (पत्ती, फल, फूल, जड़ आदि से निर्मित) दूध ये बने पदार्थों एवं अन्न से निर्मित भोजन। 2. माँस, मछली, अंडा आदि छोडक़र अन्य प्राकृतिक। निरामिष भोजन। vegetarian food विलो. मांसाहार।
शाकाहारी-नैतिक - - धार्मिक या स्वास्थ्य संबंधी कारणों से अनाज, फल, साग, दूध आदि से बना भोजन खाने वाला जैसे: उत्सव में आये सभी लोग शाकाहारी हैं। vegetarian
शाक्त - (वि.) (तत्.) - 1. शक्ति संबंधी। 2. वह जो शक्ति (दुर्गा, पार्वती आदि महाशक्ति) की उपासना करता हो। पुं. शाक्त संप्रदाय का साधक।
शागिर्द - (पुं.) (फा.) - 1. शिष्य, चेला। 2. (किसी गुरु का) विद् यार्थी, 3. सेवक,
शागिर्दी - (स्त्री.) (फा.) - शिष्यत्व। जैसे: मैंने गुरु महापात्र की शागिर्दी में शास्त्रीय नृत्य सीखा है।
शातिर - (वि.) (अर.) - 1. (शतरंज आदि का) चालाक खिलाड़ी, जिसकी चालें चालाकी से युक्त होती हैं। जैसे: 1. वह शातिर बदमाश है। 2. वह शातिर राजनीतिज्ञ है।
शादी [शाद-खुश+ई=भावमक-प्रत्यय] - (तत्) (स्त्री.) - (फा.) व्यु. 1. खुशी, आनंद, 2. विवाह।
शान - (स्त्री.) - (अ.) तड़क-भड़क, ठाठ-बाट, भव्यता, प्रतिष्ठा।
शानदार - (वि.) (दे.) - (अ.) शान से युक्त। दे. शान।
शानदार - (वि.) (फा.) - शानवाला; ठाठ-बाट से युक्त, भड़कीला; भव्य; आकर्षक।
शाप - (पुं.) (तत्.) - 1. किसी ऋषि, मुनि, योगी, गुरु या सिद्ध पुरुष अथवा सती स्त्री के द्वारा किसी अपराधी या दुराचारी के आचरण से खिन्न होकर उसके प्रति सहसा मुख से निकाले गए अनिष्टकर वचन। किसी अनिष्ट की कामना से कहा हुआ शब्द या वाक्य। बद्दुआ, अभिशाप। जैसे: दुर्वासा का शंकुतला को शाप। विलो. आशीर्वाद, वरदान।
शापभ्रष्ट - (वि.) (तत्.) - 1. शाप के कारण भटका हुआ या अधोगति को प्राप्त। 2. पीड़ित, व्यथित। जैसे: गंगा स्वर्ग से शापभ्रष्ट होकर पृथ्वी पर आई।
शापमुक्त [शाप+मुक्त] - (वि.) (तत्.) - 1. जो समय आने पर या किसी के द्वारा या किसी उपाय से दिये हुए शाप से मुक्त हो गया हो। 2. अभिशाप से मुक्त। जैसे: शिला रूपा अहल्या श्रीराम जी के चरण स्पर्श मात्र से शापमुक्त होकर नारी रूप हो गई। विलो. शापग्रस्त। दे. शाप।
शाबाश - - [शाद=प्रसन्न+बाश=रहने वाला-फा. प्रत्यय] अव्य (शाद-अर.+बाश-फा.) सराहनात्मक एवं आशीर्वादात्मक शब्द। पर्या. साधु-साधु, धन्य-धन्य।
शाबाशी [शाद=प्रसन्न+बाश=रहने वाला-फा. प्रत्यय +ई हिंदी प्रत्यय] - (स्त्री.) (अर.+फा.) - शा.अर्थ `प्रसन्न रहा’ का भाव। सा अर्थ 1. कोई अच्छा कार्य करने पर प्रोत्साहन हेतु आशीर्वाद का भाव।2. प्रोत्साहन, साधुवाद ।
शाब्दिक [शब्द+इक] - (वि.) (तत्.) - 1. शब्दों से संबंधित; ध्वनि से संबंधित। सपजमतंस 2. शब्दों में कहा जाने वाला। 3. (व्या.) शब्दशास्त्र या व्याकरण के नियमों से संबंधित। 4. (अनुवाद) मूल पाठ के एक-एक शब्द को लेकर किया हुआ (अनुवाद, अर्थ आदि)। जैसे: इस लेख का हिंदी में शाब्दिक अनुवाद कर दिया गया है।
शाम - (स्त्री.) (फा.) - 1. सूरज डूबने का समय। पर्या. संध्या, साँझ। ला.अर्थ अंतिम अवस्था, बुढापा। जैसे: जिंदगी की शाम=जीवन संध्या।
शामत - (स्त्री.) (अर.) - 1. किसी विषम परिस्थिति, किसी भूल या अन्य दोष के कारण आने वाली कोई मुसीबत, दुर्दशा। 2. दुर्भाग्य, विपत्ति; फजीहत। जैसे: यदि उसका ऋण नहीं चुकाया तो शामत आ जाएगी।
शामियाना (फा.शामियान:) - (पुं.) (फा.) - कपड़े से बना, चँदोवा से युक्त, चारों ओर खुला हुआ तम्बू जो किसी भी उत्सव, जनसभा आदि के अवसर पर खुले मैदान में लगाया जाता है। जैसे: विवाहोत्सव के लिए यहाँ एक बड़ा शामियाना लगाया गया है।
शामिल - (वि.) (अर.) - 1. जिसे मिला लिया गया हो। सम्मिलित, शरीफ। जैसे: आज प्रीतिभोज में सभी प्रमुख नेता शामिल थे। 2. संयुक्त, जुडा हुआ। जैसे: भोजन में मक्खन शामिल नहीं है। 3. इक्ट्ठा। जैसे: महँगाई के खिलाफ इस आंदोलन में सभी निवासी शामिल होकर अपना विरोध व्यक्त करें।
शायद क्रि. वि. - (वि.) (फा.) - 1. संभवत:, कदाचित्, हो सकता है। 2. जिस कार्य में निश्चितता न हो, संदेह की संभावना हो। टि. ‘ही’ लगा देने पर नकारात्मकता बढ़ जाती है। जैसे: शायद ही वह परीक्षा दे पाए। (न देने की संभाव्यता अधिक है।)
शायर - (पुं.) (अर.) - (शाइर) शा.अर्थ शेर (कविता) लिखने वाला। सा.अर्थ अरबी, फारसी, उर्दू आदि भाषाओं में कविता लिखने वाला। पर्या. कवि। स्त्री. शाइरा (शायरा)।
शायिका - (स्त्री.) (तत्.) - रेलगाड़ी में रात्रि में सोकर यात्रा करने वाले डिब्बे sleeping coach में यात्री के लिए आरक्षित एक पूरी सुविधापूर्ण, पटरी। sleeper berth
शारदा - (स्त्री.) (तत्.) - 1. ज्ञान और विद् या की अधिष्ठात्री देवी सरस्वती। 2. प्राचीन काल में काश्मीर में प्रचलित एक लिपि का नाम। उदा. वीणापाणि शारदे ज्ञान का भंडार भर दे। टि. पौराणिक मान्यता के अनुसार शरद् ऋतु में जन्म होने के कारण सरस्वती को ‘शारदा’ कहा जाता है।
शारीरिक [शरीर+इक] - (वि.) (तत्.) - 1. शरीर से संबंधित। जैसे: स्वास्थ्य के लिए शारीरिक श्रम आवश्यक है। 2. शरीर में होने वाला जैसे: बालकों के शारीरिक परिवर्तनों को हमें समझना चाहिए।
शाल - (पुं.) (तत्.) - साखू’ नाम का प्रसिद् ध एक लंबा वृक्ष जो प्राय: पर्वतीय क्षेत्रों या वनों में पाया जाता है तथा जिसके सफेद रंग के फूल बसंत ऋतु में खिलते हैं। उदा. पीले शाल की लकड़ी के दरवाजे एवं चौखट आदि मकानों में लगाए जाते हैं।
शाल - (स्त्री.) (फा.) - ऊन के धागों से बनी ओढ़ने की गर्म चादर जिसे ठंड के मौसम में लोग ओढ़ते हैं। दुशाला।
शाला - (स्त्री.) (तत्.) - 1. किसी अच्छे कार्य के लिए बना हुआ स्थान विशेष। जैसे: पाठशाला, कार्यशाला, गोशाला, धर्मशाला आदि। 2. गृह, घर, जगह।
शालीन [शाला+ईन] - (वि.) (तत्.) - व्यु.अर्थ शाला (पाठशाला) से संबंधित अर्थात सुसंस्कृत। सा.अर्थ 1. विनीत, विनम्र। 2. लज्जालु, शर्मीला, संकोची। 3. सुसंस्कृत, आचारवान। 4. धनी, प्रतिष्ठित white collared
शालीनता - (स्त्री.) (तत्.) - शालीन होने का भाव। दे. शालीन।
शावक - (पुं.) (तत्.) - किसी पशु या पक्षी का छोटा बच्चा। जैसे: मृगशावक, सिंहशावक, शुकशावक।
शाश्वत - (वि.) (तत्.) - सदा बना रहने वाला, पर्या. नित्य। जैसे: मृत्यु एक शाश्वत सत्य है। eternal
शासक - (पुं.) (तत्.) - शासन करने वाला, राजा; अधिकारी, हाकिम, दंड देने वाला।
शासनकाल - (पुं.) (तत्.) - किसी सरकार या राजा द्वारा देश/प्रांत आदि के शासन संचालन की कार्यविधि, हुकूमत की समय-अवधि।
शास्त्र-सम्मत - (वि.) (तत्.) - शास्त्रीय वचनों से जिसका समर्थन किया गया हो। जो शास्त्रों में भी कहा गया हो। पर्या. शास्त्रविहित, शास्त्रोक्त।
शास्त्रार्थ (शास्त्र+अर्थ) - (पुं.) (तत्.) - शा.अ. किसी शास्त्र या उसके किसी अंश या विषय के अर्थ या तत् त्व से संबंधित परिज्ञान के लिए विद्वानों के मध्य किया जाने वाला तर्कसंगत ऊहापोह वाद-विवाद। जैसे: आदि शंकराचार्य ने बौद्धों के साथ शास्त्रार्थ कर बौद् ध मत का खंडन किया। 2. स्वामी दयानंद ने विद्वानों के साथ शास्त्रार्थ करके पौराणिक मत का खंडन किया।
शास्त्रीय संगीत - (पुं.) (तत्.) - 1. प्राचीन भारतीय संगीतशास्त्र के सिद् धांतों के अनुरूप गायन- वादन की विशिष्ट शैली। 2. संगीत की भातखण्डे या पलुस्कर द्वारा प्रचारित विशिष्ट शैली। classical music 3. प्रचलित भाषा में हिंदुस्तानी संगीत। तुल. कर्नाटक संगीत-दक्षिण भारत में प्रचलित संत त्यागराज प्रणीत संगीत की विशिष्ट शैली।
शाही [शाह+ई] - (वि.) (फा.) - 1. बादशाहों या राज्य से संबंधित। पर्या. राजकीय, सरकारी। 2. कुंभ पर्व के अवसर पर विशिष्ट साधु-महात्माओं से संबंधित। जैसे: शाही स्नान, शाही यात्रा।
शुक्र - (पुं.) (अर.) - किसी उपकार या सहयोग एवं लाभ के लिए ईश्वर या दूसरे के प्रति कृतज्ञता की अभिव्यक्ति। धन्यवाद, शुक्रिया। जैसे: शुक्र है खुदा का कि दुर्घना होते-होते बची।
शुक्र - (पुं.) (तत्.) - हमारे सौरमंडल का एक ग्रह जो पृथ्वी से सूर्य और चन्द्र के बाद सबसे चमकीला है। (वीनस) 2. सप्ताह के दिनों में विद् यमान बृहस्पतिवार और शनिवार के बीच का वार। 3. राक्षसों के गुरु शुक्राचार्य, 4. पुरुषों का वीर्य।
शुक्रवाहक - (वि./पुं.) (तत्.) - नर जनन तंत्र के आस-पास स्थित वाहिनियों में एक वाहिनी जो शुक्राणुओं को वृषण से बाहर ले जाती है। पर्या. शुक्रवाहिनी (स्त्री), शुक्रवाहिका (स्त्री)
शुक्रवाहिका - (स्त्री.) (तत्.) - वे अनेक छोटी-छोटी नलिकाएँ जिनके द्वारा शुक्राणु वृषण से शुक्रवाहक में पहुँचते हैं। vas efferens
शुक्राणु - (पुं.) (तत्.) - उच्चतर जंतुओं के नर युग्मक जो बहुत सूक्ष्म होते हैं तथा गर्भाशय में जाकर संतानोत्पत्ति का कारण बनते हैं। इन युग्मकों का एक सिर, मध्य भाग और पूँछ होती है।
शुक्रिया - (पुं.) (अर.) - (शुक्रीय:) किसी उपकार के बदले में व्यक्त की जाने वाली कृतज्ञता। पर्या धन्यवाद, आभार, कृतज्ञता। thanks
शुक्ल पक्ष - (पुं.) (तत्.) - भारतीय चांद्रमास की अमावस्या के बाद के पंद्रह (कभी-कभी चौदह या सोलह) दिन जिनमें रात्रि के प्रारंभ से ही चंद्रदर्शन होते है। पूर्णिमा शुक्ल पक्ष का अंतिम दिन होता है। तु. कृष्ण पक्ष।
शुटिंग - (स्त्री.) - (अं.) 1. निशानेबाजी, गोलीबारी। 2. सिनेमा, दूरदर्शन आदि के लिए चित्रीकरण।
शुतुद्री/शतद्रु - (स्त्री.) (तत्.) - एक नदी का प्रसिद् ध प्राचीन नाम वर्तमान सतलज या सतलुज।
शुतुरमुर्ग [शुतुर (ऊँटों) +मुर्ग (पक्षी)] - (पुं.) (फा.) - 1. मजबूत टाँगों वाला, पतली एवं लंबी गर्दन वाला, न उड़ सकने वाला और तेज भागने वाला एक बड़े आकार का पक्षी जो अफ्रीका में पाया जाता है। टि. इसके प्रत्येक पैर में दो-दो अंगुलियाँ होती हैं। 2. ला.अर्थ वास्तविकता को नजर-अंदाज करने वाला। टि. ऐसी अनुश्रुति है कि विपत्ति आने पर शुतुरमुर्ग अपनी गर्दन रेत में छिपा लेता है जिससे उसे कोई देख न ले।
शुद्ध [शुध्+त] - (वि.) (तत्.) - 1. जो पवित्र एवं स्वच्छ हो। जैसे: शुद्ध जल, शुद्ध वस्त्र। (क्लीन) 2. छल-कपट रहित। जैसे : शुद्ध विचार। (फेयर) 3. जिसमें किसी प्रकार की मिलावट या दोष न हो, खालिस। जैसे: शुद्ध दूध, शुद्ध शहद। pure 4. जिसमें किसी प्रकार की त्रुटि या गलती न हो, सही। correct 5. वाणि. जिसमें से व्यय आदि निकाल दिया गया हो। net
शुद्धि - (स्त्री.) (तत्.) - 1. शुद्ध होने का कार्य या भाव, पवित्रता। 2. सफाई, स्वच्छता। 3. अशुद्ध व्यक्ति या वस्तु को शुद् ध करने का संस्कार। जैसे: घर में किसी की मृत्यु होने के बाद पूरे घर की शुद् धि की जाती है। 4. सुधार -कार्य। purification correction
शुदधिपत्र - (पुं.) (तत्.) - 1. पुस्तक के अंत में लगाया जाने वाला वह पृष्ठ जिसमें पुस्तक में छपी अशुद् धियों को पृष्ठ क्रम से उल्लेख करते हुए उनके समक्ष शुद् ध रूप लिखे जाते हैं। 2. समाचारपत्र-पत्रिका आदि में पूर्व प्रकाशित गलत समाचार, तथ्य आदि को ठीक करने वाली प्रकाशित सूचना।शुद्धीकरण क्रिया, निर्मल करना। 2. पवित्र करना। 3. गलतियाँ दूर करना, दोष सुधारना। पुं. तत्. 1. शुद्ध करने की
शुद्र - (पुं.) (तत्.) - 1. आर्यों की वर्णव्यवस्था के अनुसार चार वर्णों में से अंतिम चौथा वर्ण। 2. प्राचीन भारतीय समाज व्यवस्था में वह वर्ग जो बुद् धि, शक्ति या धन के स्थान पर केवल शारीरिक श्रम से ही समाज सेवा कर सकता हो। 3. इस वर्ण या वर्ग का व्यक्ति।
शुबहा - (पुं.) (तत्.) - (अर. शुबह:) 1. संदेह, शक, 2. धोखा, भ्रम। जैसे: किसी विषय में शुबहा होने पर तत् काल उसका निवारण करना चाहिए।
शुभकामना [शुभ+कामना] (=इच्छा] - (स्त्री.) (तत्.) - किसी विशेष दिन, घटना, कार्य इत्यादि के अवसर पर कार्य निर्विध्न पूरा हो जाए इस आशय से व्यक्त की जाने वाली सदिच्छा। पर्या. शुभेच्छा, मंगल कामना। greeting
शुभचिंतक - (पुं.) (तत्.) - 1. भलाई चाहने वाला, शुभाकांक्षी। 2. हितैषी, हितेच्छु। 3. मंगल कामना करने वाला।
शुभाकांक्षी - (वि.) (तत्.) - किसी का शुभ चाहने वाला। जिसे प्राय: माता-पिता, गुरुजनों द्वारा बच्चों या शिष्यों की शुभ चाहते हुए पत्र के अन्त में लिखा जाता है। पर्या. शुभेच्छु, शुभचिंतक। जैसे: तुम्हारा शुभाकांक्षी। ‘क’, ‘ख’, ‘ग’। wellwisher
शुभेक्षण [शुभ+ईक्षणा] - (वि.) (स्त्री.) - (तत्.) 1. सुंदर आँखों वाली, 2. शुभ दृष्टि वाली या जिसकी दृष्टि का प्रभाव मंगल कारक या शुभ हो। जैसे: वह शुभेक्षणा ही नहीं, नासिका सहित उसकी देह यष्टि भी सुंदर एवं आकर्षक थी।
शुभ्र - (वि.) (तत्.) - शा.आ. सफेद रंग से युक्त चमकीला। सा.आ. 1. श्वेत, सफेद, 2. उज्ज्वल, चमकीला। जैसे: शुभ्र हिमालय। शुभ्र वस्त्र।
शुरू - (वि.) (अर.शुरू) - 1. आरंभ, प्रारंभ, इब्तिदा। 2. आदि। विलो. खत्म।
शुरूआत - (स्त्री.) (अर.) - 1. प्रारंभ, आगाज। 2. प्रारंभिक स्थान या समय। जैसे: गणित के अध्ययन की शुरुआत शताब्दियों पूर्व हो चुकी थी। वस्तुत: इसकी शुरुआत भारत से ही हुई है। विलो. समाप्ति, अंत।
शुल्क - (पुं.) (तत्.) - 1. किसी शिक्षा संस्थान द्वारा छात्रों से नियमानुसार लिया जाने वाला धन। जैसे: मासिक शुल्क। 2. किसी वस्तु के उत्पादन/आयात/निर्यात पर सरकार द्वारा लिया जाने वाला कर/टैक्स। duty 3. किसी काम के बदले दी जाने वाली धनराशि। किराया/भाड़ा आदि। rent
शुष्क - (वि.) (तत्.) - 1. सूखा, नीरस। जैसे: रेगिस्तान एक शुष्क प्रदेश है। 2. ला.अर्थ रूखा जो सरस या आनंददायक न हो, आत्मीयता से रहित। जैसे: उसके शुष्क व्यवहार से मुझे आश्चर्य हुआ।
शून्यता - (स्त्री.) (तत्.) - 1. शून्य होने का भाव, खालीपन, रिक्तता (जो पहले था, अब नहीं है) 2. अभाव। जैसे: अनुभवशून्यता। 3. निर्जनता, नीरवता। जैसे: चारों ओर शून्यता पसरी थी।
शूम - (वि.) (फा.) - 1. जो अशुभ एवं अनिष्टकर हो, 2. जिसका दर्शन अशुभ हो, मनहूस। 3. कृपण, कंजूस, मक्खीचूस। जैसे: शूम का धन शौतन खाए। विलो. उदार, शुभ दर्शन।
शूरता - (स्त्री.) (तत्.) - 1. शूर होने की स्थिति/भाव या क्रिया। 2. बहादुरी, शौर्य। जैसे: युद्ध में शूरों की शूरता ही विजय दिलाती है।
शूरवीर [शूर+वीर] - (वि.) (तत्.) - 1. अत्यंत वीर, बहादुर, 2. वीरों में सर्वोत्तम।
शेख - (पुं.) (अर.) - 1. पैगंबर मोहम्मद के वंशज। 2. मुसलमानों के चार वर्गों में से पहला और श्रेष्ठ वर्ग। 3. प्रतिष्ठित, श्रेष्ठ, बुजुर्ग। 4. एक कुलसूचक नाम। जैसे: शेख मुजीबुर्रहमान।
शेखचिल्ली - ([अर.शेख+देश+चिल्ली]) (पुं.) - 1. लोकप्रचलित मूर्खतापूर्ण कहानियों का एक कल्पित महामूर्ख पात्र। 2. ला.अर्थ व्यर्थ बड़े बड़े अव्यावहारिक और असंभव मन्सूबे बाँधने वाला। जैसे: वह शेखचिल्ली की तरह योजनाएँ तो बड़ी से बड़ी बनाता है किंतु करता कुछ नहीं।
शेखर - (पुं.) (तत्.) - 1. पर्वत का शिखर, ऊपरी भाग। 2. मस्तक, माथा। 3. मुकुट, सिर का आभूषण। जैसे: भागवान शिव ऊपर सिर के ऊपर चंद्र धारण किये हुए हैं अत: इनका नाम चंद्रशेखर है। 4. ला.अर्थ प्रमुख, श्रेष्ठ (प्राय: समासांत में प्रयुक्त)। जैसे: कुलशेखर।
शेखीबाज [शेखी-तु.+बाज-फा.प्रत्यय] - (वि.) - 1. बहुत डींग मारने वाला। 2. बहुत हेकड़ी या शान दिखाने वाला।
शेर - (पुं.) (अर.) - ( 1. उर्दू-फारसी की कविता में दो चरणों का एक पद्य। 2. गज़ल के दो चरण।
शेर - (पुं.) (फा.) - बिल्ली जाति का एक बड़ा और भयंकर हिंसक पशु जो जंगल में रहता है। मुहा. शेर और बकरी का एक घाट पर पानी पीना=भेदभाव न होना, बलवान से भय न होना, न्यायपूर्ण राज्य होना।
शेरवानी - (स्त्री.) (.फा.) - एक प्रकार का ‘अंगरखा’ नुमा वस्त्र जो सिला हुआ लम्बे कोट की तरह बंद गले का होता है तथा जो पाजामा के ऊपर पहना जाता है। यह मुसलमानी पोशाक मानी जाती है।
शेष - (वि.) (तत्.) - 1. अवशिष्ट, बचा हुआ। जैसे: कहानी का शेष भाग कल सुनाउँगा। rest 2. उच्छिष्ट जूठा, छोड़ा हुआ। left 3. गणि. घटाने की या भाग की क्रिया के बाद बची हुई (संख्या)। remainder 4. वाणि. बैंक के खाते में बची हुई (राशि) ballance
शेषराशि - (स्त्री.) (तत्.) - [शेष+राशि] 1. वाणि. किसी लेखा account में नाम खाते में खाते से अधिक राशि/पैसा balance 2. अंतिम (तिथि तक) जमा राशि credit/debit balance 3. (गणि.) किसी राशि में व्यकलन या घटाने की क्रिया से प्राप्त फल, बाकी।
शैक्षिक - (वि.) (तत्.) - 1. शिक्षा से संबंधित, अध्ययन संबंधी। जैसे: यहाँ की शैक्षिक व्यवस्था उत्तम है। 2. शिक्षा के गुणों से युक्त, विद्वान्। जैसे: शैक्षिक लोग विनम्र होते हैं।
शैतान - (पुं.) (अर.) - 1. ईसाई, इस्लाम आदि धर्मों की मान्यता के अनुसार ईश्वराज्ञा का उल्लंघन करने से बहिष्कृत हुआ। एक फरिशता जो मनुष्यों को पाप कर्मों की ओर प्रवृत्त करता रहता है। 2. दूसरों को सदा कष्ट देने वाला बहुत बड़ा दुष्ट व्यक्ति। ला.अर्थ उपद्रवी, शरारती। उदा. यह बालक बहुत शैतान है।
शैतानी - (स्त्री.) (अर.) - 1. शैतान के कार्य। दे. – शैतान। 2. दुष्टता, शरारत, उपद्रव।
शैल - (पुं.) (तत्.) - व्यु.अर्थ शिलाओं से बना हुआ। शा.अर्थ 1. पर्वत या पहाड़। 2. (भू.) पृथ्वी की पर्पटी (पपड़ी या ऊपरी सतह) बनाने वाला किसी खनिज पदार्थ से बना प्राकृतिक ठोस पिंड। इसके मुख्य तीन प्रकार हैं आग्नेय शैल, अवसादी शैल और कायांतरित शैल।
शैल चक्र - (पुं.) (तत्.) - शैलों के बनने की चक्रीय विधि। आग्नेय शैलों से अवसादी शैल तथा उनसे कायांतरित शैल तथा पुन: मैग्मा के माध्यम से आग्नेय शैलों में परिवर्तन शैल चक्र का उदा. हैं। इस प्रक्रिया में लाखों या कभी-कभी करोड़ो-वर्ष लग जाते हैं।
शैली - (स्त्री.) (तत्.) - 1. कार्य करने की पद् धति, प्रणाली, रीति आदि। manner 2 वाक्य रचना का विशिष्ट प्रकार, रीति। style 3. कला के क्षेत्र में क्षेत्र, परंपरा आदि के अनुसार प्रस्तुति के विशिष्ट प्रकार। जैसे: मुगल शैली की चित्रकला, कर्नाटक शैली का संगीत आदि। style
श्र - -
श्रद्धांजलि [श्रद्धा+अंजलि] - (स्त्री.) (तत्.) - शा.अर्थ श्रद्धा की अंजलि। अंजलि में फूल लेकर श्रद् धापूर्वक किसी आदरणीय व्यक्ति या देवता पर चढ़ाना। आ.अर्थ. 1. किसी मृत व्यक्ति के शव, चित्र या समाधि पर श्रद् धापूर्वक पुष्प चढ़ाना। 2. किसी मृत व्यक्ति को सादर स्मरण करते हुए शब्दों द्वारा गुणगान करना।
श्रद्धा - (स्त्री.) (तत्.) - (स्वानुभूत न होने पर भी) संस्कारवश या शास्त्रों में पढ़कर अथवा संत-महात्माओं से सुनकर किसी के प्रति पूज्य भाव रखने की भावना।
श्रद्धालु [श्रद्धा+आलु] - (वि.) (तत्.) - श्रद्धा रखने वाला, श्रद्धावान्, श्रद्धायुक।
श्रद्धास्पद - (वि.) (तत्.) - [श्रद्धा+आस्पद] जिसके प्रति श्रद् धा करना उचित हो या जो पूरी तरह श्रद्धा के योग्य हो। श्रद्धेय। जैसे: परम श्रद्धा स्पद अपने गुरूवर को प्रणाम करता हूँ।
श्रम - (पुं.) (तत्.) - 1. शरीर को थकाने वाला काम। labour 2. थकावट, दौड़धूप, पसीना बहाने वाला काम। 3. (अर्थ.) सभी श्रमिकों एवं श्रम के कार्यों का सामूहिक नाम।
श्रमजीवी - (वि.) (तत्.) - अपने परिश्रम के बल पर ही जीवन यापन करने वाला। labour
श्रमण - (पुं.) (तत्.) - 1. बौद्ध संन्यासी। 2. संन्यासी, भक्त, यति, मुनि।
श्रमदान - (पुं.) (तत्.) - जनहित के लिए स्वेच्छा से बिना कोई शुल्क लिए मिलजुल कर कार्य करने का कार्यक्रम। जैसे: गाँव के युवकों ने तालाब की मिट्टी को श्रमदान के द्वारा बाहर निकाला।
श्रमिक - (पुं.) (तत्.) - 1. वह व्यक्ति जो शारीरिक परिश्रम करके अपना पेट पालता हो। 2. वह व्यक्ति जो किसी उद् योग कारखाने या मिल में मजदूरी करता है। मजदूर, मेहनतकश।
श्रवण अस्थिकाएँ - (स्त्री.) (तत्.) - बहु शा.अर्थ सुनने की छोटी-छोटी हड्डियाँ। जीव. कशोरुकियों में कर्ण-पटह झिल्ली का अंडाकार गवाक्ष (खिडक़ी) अथवा आंतरिक कर्णपटह से जोड़ने वाली छोटी-छोटी अस्थियाँ (हड्डियाँ)। auditory ossicles
श्रवण तंत्रिका - (स्त्री.) (तत्.) - जीव. कशेरुकियों की आठवीं कपाल तंत्रिका cronial nerve जो आंतरिक कर्ण से निकले आवेग impulse को मस्तिष्क तक ले जाती हैं और जिससे हमें सुनाई पड़ती है। auditory nerve
श्रव्य - (वि.) (तत्.) - 1. जो सुना जा सके; कर्णगोचर। 2. सुनने योग्य, श्रेष्ठ, उत्तम, प्रशंसा के योग्य।
श्रांत - (वि.) (तत्.) - श्रम के कारण या मार्ग में अधिक दूर तक चलने के कारण थका हुआ। जैसे: वटछाया में विश्राम कर रहा श्रांत पथिक।
श्रांति - (स्त्री.) - 1. थकान, थकावट। 2. थकावट दूर करने हेतु विश्राम। विश्रांति।
श्रावण - (पुं.) (तत्.) - आषाढ़ के बाद और भादों के पहले का महीना, सावन। वह चाँद्रमास जो आषाढ़मास के बाद तथा भाद्रपद (भादो) मास के पूर्व आता है। श्रावणमास की पूर्णिमा के दिन ‘श्रवण’ नक्षत्र में चंद्रमा होता है इसीलिए इसे श्रावण मास कहा जाता है। जैसे: रक्षाबंधन का पर्व श्रावण पूर्णिमा को होता है।
श्री - (स्त्री.) (तत्.) - 1. विष्णुपत्नी लक्ष्मी, कमला। 2. चल और अचल संपत्ति, धन-दौलत। 3. व्यक्ति के नाम के आरंभ में जोड़ा गया आदरसूचक शब्द। श्री जवाहर लाल नेहरू। Mr.
श्रुत - (वि.) (तत्.) - 1. कानों से सुना हुआ। जाना हुआ, ज्ञात। 2. जो परंपरा से सुनते आए हों, प्रसिद् ध विख्यात।
श्रुतलेख - (पुं.) (तत्.) - 1. किसी के द्वारा बोले गए शब्दों/वाक्यों/पद्यांशों आदि को सुनकर लिखने का कार्य। इमला। 2. सुनकर लिखा हुआ लेख। dictation जैसे: आज मेरे हिंदी के श्रुतलेख में कोई अशुद्धि नहीं थी।
श्रृंखला - (स्त्री.) (तत्.) - 1. एक दूसरे से जुड़ी हुई कड़ियों की लंबी जंजीर। 2. साँकल, (दरवाजा बंद करने हेतु)। 3. परंपरा, क्रम, श्रेणी, कतार। 4. कमरबंद, मेखला।
श्रृंगार - (पुं.) (तत्.) - 1. सजने या सजाने की क्रिया, सजावट। 2. शोभा बढाने की वस्तुएँ प्रसाधन सामग्री। 3. ला.अर्थ आकर्षण गुण। जैसे: लज्जा स्त्री का श्रृंगार होता है। 4. (साहि.) काव्य के नौ रसों में से एक।
श्रृंगी - (पुं.) (तत्.) - 1. सींग वाला पशु। 2. सींग का बना हुआ एक प्रकार का बाजा।
श्रेणी - (स्त्री.) (तत्.) - 1. योग्यता, काम आदि के विचार से किया गया विभाग, दरजा। class 2. पंक्ति, कतार। 3. प्राचीन काल में विशिष्ट समुदाय के लिए प्रयुक्त शब्द। जैसे: व्यापारी श्रेणी, शिल्पकार श्रेणी।
श्रेय - (वि.) (तत्.) - 1. अधिक अच्छा, उत्तम, बेहतर। 2. कल्याणकर, मंगलमय। पुं. तत् किसी काम के लिए मिलने वाला यश।
श्रेयस्कर - (वि.) (तत्.) - 1. श्रेय (कल्याण) करने वाला। पर्या. लाभप्रद, लाभकारी, कल्याणकारी। 2. श्रेष्ठ बनाने वाला, उन्नत करने वाला।
श्रेष्ठ - (वि.) (तत्.) - सबसे अच्छा, सर्वोत्कृष्ट।
श्रेष्ठता [श्रेष्ठ+तात्यय] - (स्त्री.) (तत्.) - 1. श्रेष्ठ होने का गुण; अवस्था या भाव; श्रेष्ठत्व। 2. उत्तम। जैसे: क्रिकेट प्रतियोगिता में उसे श्रेष्ठता पुरस्कार मिला है।
श्रोता - (वि.) (तत्.) - 1. सुनने वाला। 2. प्रवचन, भाषण आदि को सुनने वाला वर्ग।
श्लेष - (पुं.) (तत्.) - शा.अर्थ संयोग होना, जुड़ना, सटाव, चिपकना/ चिपकाना। ला.अर्थ एक शब्द या वाक्य के दो या दो से अधिक अर्थों के होने की अवस्था या भाव। 2. शब्दालंकार का एक भेद जिसमें एक शब्द में दो या दो से अधिक अर्थ चिपके रहते हैं। उदा. बहुरि शक्र सम विनबौं तेही। संतत सुरानीक हित जेही। सुर+अनीक – देवसेना। सुरा+नीक-जिसे मदिरा प्रिय है।
श्लोक - (पुं.) (तत्.) - 1. संस्कृत का पद् य। 2. स्तुति, प्रशंसा। टि. संस्कृत में एक विशेष छंद (अनुष्टुभ) का नाम श्लोक है, परंतु आज संस्कृत के सभी पद्यों को श्लोक कहा जाता है, चाहे वह किसी भी छंद में क्यों न हो।
श्वसन अ.क्रि. - (तत्.) - सांस लेना। जीव द्वारा ऑक्सीजन युक्त वायु को शरीर के अंदर लेने तथा कार्बन डाइऑक्साइड युक्त वायु को बाहर निकालने की क्रिया। इस क्रिया के दो प्रकार हैं- अंत: श्वसन और बहि: श्वसन या नि:श्वसन। (योग में इसे पूरक और रेचक कहते हैं)
श्वान - (पुं.) (तत्.) - कुत्ता।
श्वाननिद्रा - (स्त्री.) (तत्.) - शा.अर्थ कुत्ते की नींद। ला.अर्थ ऐसी नींद जो जरा सी आहट/खटका/आवाज होते ही खुल जाए। जैसे: विद्यार्थी की निद्रा श्वाननिद्रा होनी चाहिए।
श्वास - (पुं.) (तत्.) - एक बार ऑक्सीजन युक्त वायु का अंदर ले जाना तथा कार्बन डाइ ऑक्साइड युक्त वायु का बाहर निकालना। (साँस)
श्वासनली - (स्त्री.) (तत्.+तद्(नलिका) - 1. हवा में साँस लेने वाले कशेरूकी प्राणियों में श्वास द्वारा (ग्लॉटिस) से फेफड़ों में खुलने वाली नली, जिससे होकर, वायु आती जाती है। trachea 2. संधियाद प्राणियों में छोटी विशाखित नलिकाएँ जो स्वास रंध्र से वायु को ऊतकों तक ले जाती है। पर्या. वातक। trachea
श्वासरोधी [श्वास+रोधी] - (वि.) (तत्.) - श्वास लेने में अवरोध उत्पन्न करने वाला।
श्वेत - (वि.) (तत्.) - 1. जो सफेद रंग का हो, सफेद, उजला, उज्ज्वल। 2. बिना धब्बे वाला, कलंकरहित। 3. गोरा, गौर। विलो. श्याम। पुं. सफेद रंग या शुक्ल वर्ण। पर्या. गोरा रंग।
श्वेत रक्तता - (स्त्री.) (तत्.) - दे. ल्यूकीमिया।
श्वेत रूधिर कोशिका - (स्त्री.) - शा.अर्थ सफेद रंग की खून की कोशिकाएँ। रुधिर-कोशिका जिसमें श्वसन वर्णक नहीं होता। मानव रूधिर में इनके कई प्रकार पाए जाते हैं। जैसे: मोनोसाइट, लिंफोसाइट, पॉलीमार्फ आदि। white blood cells
श्वेतांबर [श्वेत+अंबर] - (पुं.) (तत्.) - शा.अर्थ श्वेत वस्त्र, सफेद कपड़ा। वि. अ. जैन धर्म का एक संप्रदाय जिसके अनुयायी सफेद वस्त्र धारण करते हैं।
ष - -
षट्कोण - (वि.) (तत्.) - वह ज्यामितीय आकृति जिसमें छह कोण और छह भुजाएँ हो। षड्भुज आकृति।
षष्ठ - (वि.) (तत्.) - छठा।
षष्ठी - (वि.) (तत्.) - छठी। आज षष्ठी तिथि है।
षड्यंत्र - (पुं.) (तत्.) - अपने से बलवान् शत्रु के विरुद् ध की जाने योग्य गुप्त एवं कपटपूर्ण कारवाई या उसकी योजना। पर्या. साजिश (कॉन्स्पिरेसी) टि. संभवत: ज्योतिषशास्त्र के अनुसार कुंडली के छठे घर (शत्रु स्थान) के आधार पर षड्यंत्र (शत्रु के क्रियाकलाप) शब्द बना होगा।
षोडशी [षोडश सोलह+ई] - (स्त्री.) (तत्.) - 1. वह युवती जो अभी सोलह वर्ष की हुई है। 2. नवयौवना। जैसे: उस षोडशी ने संगीत में भी उच्च स्थान प्राप्त किया है।
स - -
संकट - (पुं.) (तत्.) - 1. ऐसा समय या स्थिति जब मनुष्य अत्यंत कष्ट अनुभव करता है। पर्या. आफत, विपत्ति। 2. अचानक आई हुई विपत्ति या उत्तेजनापूर्ण स्थिति crisis उदा मुहा. संकट के समय मंडराना = विपत्तियों से घिर जाने की स्थिति।
संकटकाल [संकट+काल] - (पुं.) (तत्.) - वह समय जिसमें संकट बना रहे। दे. संकट।
संकटापन्न [संकट-आपन्न] - (वि.) (तत्.) - 1. संकट या कष्ट में पड़ा हुआ (व्यक्ति)। 2. संकटपूर्ण (परिस्थिति या कार्य) जैसे: संकटापन्न स्थिति में धैर्य रखना चाहिए। 3. संकटग्रस्त (व्यक्ति) जैसे: संकटापन्न व्यक्ति की सहायता धर्म ही है।
संकर - (वि.) (तत्.) - दो अलग-अलग जातियों या नस्लों आदि के मिश्रण से उत्पन्न। जैसे: संकर गाय-भिन्न नस्ल की गाय और बैल से उत्पन्न गाय। संकर शब्द-भिन्न भाषाओं के शब्दों से बना शब्द। संकर गेहूँ-भिन्न प्रजातियों के कृत्रिम मिश्रण से उत्पन्न गेहूँ। संकर राग-दो रागों को मिलाकर बनाया राग। वर्णसंकर। दे. साँकल। पुं. देश. प्रांतीय बोलियों में शंकर या साँकल (जंजीर) का तद् भव रूप।
संकलन - (पुं.) (तत्.) - 1. संग्रह, एकत्रीकरण। 2. अच्छी-अच्छी बातों या विचारों का विभिन्न ग्रंथों से चयन। 3. चुनी हुए सूक्तियों या अच्छी बातों को इकट् ठा करके बनाया हुआ ग्रंथ या पुस्तक। compilation 4. (गणि.) जोड़ने की क्रिया। addition
संकलित - (वि.) (तत्.) - 1. विशेष दृष्टिकोण से चुना हुआ, जिसका संकलन किया गया हो। उदा. हमारी पाठ्य-पुस्तक में एक पाठ रामायण से संकलित है। 2. लिया हुआ, संगृहीत, एकत्रित। उदा. इस पत्रिका में विविध स्त्रोतों से संकलित कहानियाँ हैं। compiled
संकल्प - - 1. कोई कार्य करने का दृढ़ विचार। 2. कोई धार्मिक कार्य करते समय प्रारंभ में पढ़े जाने वाले मंत्र जिनका अर्थ ‘कार्य पूर्ण करने की दृढ़ता’ होता है। 3. मन में आते-जाते रहने वाले कई प्रकार के विचारों में से वह विचार जिसे मन पकड़ लेता है।
संकल्पना [सं+कल्पना] - (स्त्री.) (तत्.) - व्य.अर्थ सम्यक्=अच्छी तरह या पूरी तरह+कल्पना। सा.अ. 1. किसी बात की समग्र रूप से कल्पना या उसके कारणों और परिणामों की समझ, अवधारणा। 2. किसी बात को नए ढंग से करने या प्रस्तुत करने का विचार या रूपरेखा। 3. किसी कार्य का स्थूल विवरण। 4. किसी विषय में वह मूलभूत धारणा जिसके आधार पर व्यक्ति कार्य की योजना बनाता है। concept
संकल्पबद्ध [संकल्प+बद्ध] - (वि.) (तत्.) - 1. वह, जिसने अपनी दृढ़ इच्छा शक्ति से कोई संकल्प कर रखा हो और जिसके कारण वह कुछ सीमाओं या नियमों में बँध गया हो। 2. दृढ़ निश्चयी।
संकीर्ण - (वि.) (तत्.) - 1. कम चौड़ा, सँकरा। 2. छोटा, 3. तुच्छ सोच वाला, 4. अनुदार। विलो. विशाल (1,2) उदार (3,4)
संकीर्णता [संकीर्ण+ता] - (स्त्री.) (तत्.) - संकीर्ण होने का भाव, सँकरापन। दे. संकीर्ण। विलो. विशालता, उदारता। narrowness narrowmindedness
संकुचित - (वि.) (तत्.) - 1. सिकुड़ा, सिमटा, विलो. प्रसृत। 2. जन-लज्जा से युक्त, हिचक से युक्त, संकोच युक्त, शर्माया हुआ। विलो. विस्तृत। 4. दूसरों के विचारों को स्वीकार न करने वाला, अनुदार। विलो. उदार।
संकुल - (पुं.) (तत्.) - अनेक व्यक्तियों या वस्तुओं का एकत्रित स्वरूप। पर्या. भीड़, झुंड, मजमा; समूह। cluster वि. घना, भरा हुआ, सँकरा; जटिल।
संकेंद्रित [सं+केंद्र+इत] - (वि.) (तत्.) - व्यु.अर्थ एक केंद्र विशेष पर एकत्र किया गया, संचित। 1. किसी विशेष स्थान, विषय या विचार इत्यादि को केंद्र मानकर उसी के चारों ओर किया गया (कार्य, चिंतन इत्यादि) centralized 2. घनीभूत; केंद्रित; घनीकृत, केंद्रीकृत। concentrated
संकेत - (पुं.) (तत्.) - 1. मन की भावनाओं को या इच्छा को प्रकट करने के लिए आँख, हाथ आदि से प्रकट की गई चेष्टा, इशारा। 2. कोई ऐसी बात या क्रिया जो किसी कार्य या घटना की सूचक मानी जाए। जैसे: 1. ठंडी हवा का अचानक चलना वर्षा होने का संकेत है। 2. इस पर्वतीय मार्ग पर मुड़ने व पुल के संकेत पहले से ही दे दिए गए हैं। 3. चिह्न, निशान, पहचान।
संकेतक - (वि./पुं.) (तत्.) - 1. संकेत करने वाला, संकेत-बिंदु, संकेत-स्थल। 2. मार्ग बतलाने वाला। indicator पुं. तत्. संकेत। indication
संकोच - (पुं.) (तत्.) - 1. सिकुड़ने की क्रिया या भाव। 2. नम्रता या हीनभावना के कारण होने वाला झिझक, हिचक। उदा. उसे बड़ों के समक्ष कुछ बोलने में संकोच होता है। 3. न कहने या न करने योग्य काम होने वाली स्थिति के कारण लज्जा।
संकोची - (वि.) (तत्.) - संकोच करने वाला, शरमाने वाला। जैसे: वह बहुत ही संकोची स्वभाव का लडक़ा है।
संक्रमण - (पुं.) (तत्.) - 1. किसी निश्चित दिशा में चलना या बढ़ना। 2. एक अवस्था से दूसरी अवस्था में पहुँचने। transition 3. (आयु.) रोगकारी जीवों का एक स्थान या शरीर से दूसरे स्थान या शरीर में स्थापित होना और रोग के लक्षण उत्पन्न करना। infection 4. (समान.) विचारों, गुणों इत्यादि का सामाजिक क्रांति के माध्यम से एक व्यक्ति या क्षेत्र से अन्य व्यक्तियों, क्षेत्रों आदि में फैलना। 5. (खगोल) संक्रांति। दे. संक्रांति।
संक्रांति - (स्त्री.) (तत्.) - 1. पृथ्वी की परिक्रमण-गति के परिणामस्वरूप सूर्य का अगली राशि में जाता हुआ दिखलाई देना। प्रचलित भाषा में सूर्य का अगली राशि में प्रवेश। 2. वह काल जब सूर्य की संक्रांति होती है। 3. परिवर्तन (परिस्थितियों में) transit। 4. (ज्योतिष) किसी ग्रह का एक राशि से दूसरी राशि में जाना।
संक्रामक रोग - (पुं.) (तद्.) - 1. वातावरण से आने वाले रोगकारी जीवों के संक्रमण के फलस्वरूप प्राणियों में उत्पन्न होने वाली बीमारी। जैसे: जुकाम। desease 2. एक रोगी प्राणी के स्पर्श इत्यादि के माध्यम से दूसरे प्राणी को होने वाली बीमारी, छूत की बीमारी। जैसे: चेचक आदि। infections
संक्रामक - (वि.) (तत्.) - संक्रमण से फैलने वाला। infections दे. संक्रमण।
संक्रिया - (स्त्री.) (तत्.) - 1. किसी विशेष कार्य को करते समय कार्य के छोटे-छोटे भाग (क्रियाएँ), कार्यविधि, पद्धति या स्थिति। जैसे: कृषि में भूमि जोतना, बोना, सींचना, काटना आदि। (एैक्शन) 2. (गणित) प्रश्न का हल निकालते समय जोड़ना, घटाना आदि क्रियाएँ। operation
संक्षारण - (पुं.) (तत्.) - किसी ठोस पदार्थ या धातु का क्षारीय प्रभाव से धीरे-धीरे नष्ट होते जाना। जैसे: नमी के कारण लोहे में जंग लगना। टि. पेंट, वार्निश आदि के लेपन से इसे रोका जा सकता है।
संक्षिप्त - (वि.) (तत्.) - 1. संक्षेप में कहा गया या लिखा गया। विलो. विस्तृत। दे. संक्षेप। 2. कम, थोड़ा, छोटी अवधि का या छोटे आकार जैसे: संक्षिप्त रामायण/महाभारत।
संक्षेप - (पुं.) (तत्.) - 1. थोड़े में कोई बात कहना, 2. कम करना, नाम इत्यादि का छोटा रूप। जैसे: ज. ला. नेहरू। 3. लेख आदि को काट-छाँट कर छोटा किया हुआ रूप, सार। विलो. विस्तार।
संक्षेपण - (पुं.) (तत्.) - 1. किसी भी विषय, वस्तु, घटना आदि को लघु आकार में प्रस्तुत करना। जैसे: इस समय हिंदी पाठों का संक्षेपण कार्य चल रहा है। 2. किसी ग्रंथ निबंध, अनुच्छेद आदि का सभी मुख्य बिंदुओं को सुरक्षित रखते हुए छोटा करना।
संख्या - (स्त्री.) (तत्.) - 1. गिनती, एक, दो, तीन आदि अंक, तादाद, गणना। 2. गिनती के विचार से किसी वस्तु का परिमाण गणना का लिखित रूप। 3. अंकों में लिखी गई कोई परिमेय या अपरिमेय राशि। 4. पूर्णांक, भिन्न या करणी के रूप में अभिव्यक्त राशि या बीजगणितीय व्यंजक।
संख्यावाचक - (वि.) (तत्.) - संख्या का बोध कराने वाला (शब्द), वस्तुओं की गिनती सूचित करने वाला।
संग - (पुं.) (तत्.) - 1. साथ, संगति। उदा. ‘ता ते नाथ संग नहि लीन्हा’ तुलसी रा.च.मा.। 2. मिलन संयोग उदा. केर बेर कौ संग। 3. संसर्ग; मित्रता; संपर्क, संबंध। जैसे: दुष्टों का संग ठीक नहीं। 4. सांसारिक विषयों में असक्ति, अनुराग। पुं. फा. पत्थर। जैसे: संगमर्मर, संग-ए-अस्वद।
संगठन - (पुं.) (दे.) - (त द्.) (संघटन) अलग-अलग भागों को मिलाकर पूर्ण वस्तु तैयार करना। 1. मेल, संयोग। 2. रचना, निर्माण, बनावट। composition 3. सामान्य सामाजिक हित को ध्यान में रखकर कुछ उद् देश्यों की प्राप्ति हेतु काम करने वाला मनुष्यों का समूह। organization दे. संघटन।
संगत1 - (स्त्री.) (तद्.) - (संगति) 1. संगति, साथ, संबंध। जैसे: अच्छे लोगों की संगत से अच्छी बातें सीखने को मिलती हैं। 2. किसी सत्संग या कीर्तन में सम्मिलित होने वाले लोग। उदा. कबिरा संगत साध की कटै कोटि अपराध।
संगत2 - (वि.) (तत्.) - 1. प्रासंगिक, 2. उपयुक्त, उचित, जैसे: भ्रष्टाचार पर आपके विचार पूर्णतया संगत थे।
संग-तराश [संग+तराश] - (वि.) (.फा.) - व्यु.अर्थ संग = पत्थर, तराश (तराशने वाला) स.अर्थ. 1. पत्थर को काटकर या छीलकर या खुरचकर उस पर फूल, बेल, पशु-पक्षी, प्राकृतिक दृश्य आदि उकेरने वाला। 2. पत्थरों को काटने, छीलने वाला उपकरण।
संगम - (पुं.) (तत्.) - 1. किसी विशेष उद् देश्य से व्यक्तियों का एकत्र होना। पर्या. मिलन, मिलाप, मेल। 2. विचारों या विचारधाराओं में परस्पर मेल-जोल के माध्यम से सहमति बनाना या एकमत होना। टि. दक्षिण-भारत में इसी प्रकार संगम-साहित्य का निर्माण हुआ। 3. (भू) दो या दो से अधिक नदियों या समुद्रों का एक स्थान पर मिलना; जैसे: इलाहाबाद (प्रयाग) में गंगा-यमुना और अदृश्य सरस्वती का संगम (त्रिवेणी संगम); कन्याकुमारी में हिंद महासागर, अरब सागर और बंगाल की खाड़ी का संगम। conference
संगमरमर [संग-फा.+मरमर-लै.] - (पुं.) - (संग=पत्थर +मरमर=चमकदार) एक प्रकार का बहुत चिकना, चमकदार, छूने में सुखद परंतु कठोर जो भवन की भव्यता का प्रतीक माना जाता है। प्रसिद् ध इमारत ताजमहल इसी पत्थर से बनी है। (मार्बल)
संगम साहित्य - (पुं.) (तत्.) - तमिल भाषा की प्राचीनतम रचनाओं का संग्रह, जिन्हें तमिलनाडु के मदुरै में तीसरी चौथी शताब्दी में हुए कवियों के संगमों (सम्मेलनों) में संकलित किया गया था। इन रचनाओं का काल आज से लगभग 2300 वर्ष पूर्व का है।
संगिनी - (स्त्री.) (तत्.) - (सामान्यत: पत्नी के लिए प्रयुक्त) संग या साथ निभाने वाली, सहधर्मिणी।
संगी - (पुं.) (तत्.) - 1. वह जो साथ रहे, पर्या. साथी, हमराही। 2. मित्र, बंधु, सखा, दोस्त। 3. पति।
संगीत - (पुं.) (तत्.) - 1. लय, ताल आदि के द्वारा किसी पद् य को सुमधुर रूप में सुनने योग्य करने की कला। 2. नृत्य, संवाद या वातावरण इत्यादि को अधिक प्रभावी बनाने के लिए विभिन्न वाद्ययंत्रों द्वारा उत्पन्न ध्वनियों का समायोजन। music
संगीतकार - (वि./पुं.) (तत्.) - संगीत की स्वर-लिपि तैयार करने वाला। दे. संगीत। musician
संगृहीत - (वि.) (तत्.) - शा.आ. 1. संग्रह या एकत्र किया हुआ, संकलित, जमा किया हुआ। सा.अ. 2. पकड़ा हुआ।
संगोष्ठी [सम्+गोष्ठी] - (स्त्री.) (तत्.) - 1. वह लघु सत्र जिसमें किसी विषय के विशेषज्ञों की उपस्थिति में उससे संबंधित विचार-विमर्श होता है। 2. किसी विषय के विशेषज्ञों की सभा। उदा. आज साहित्यशास्त्र के विद्वानों की संगोष्ठी आयोजित की गई। 3. विश्वविद् यालयों या महाविद्यालय आदि में आयोजित विशेष कक्षा जिसमें किसी विशेष विषय-संबंधी व्याख्यान दिए जाते हैं। सेमिनार, कार्यशाला।
संग्रह - (पुं.) (तत्.) - 1. इकट्ठा या एकत्र करना। 2. संचित वस्तुओं का ढेर संचय। जैसे: डाक टिकट या सिक्कों का संग्रह। 3. किसी कवि की या अनेक कवियों, लेखकों आदि की रचनाओं को एक पुस्तक में संगृहीत करके प्रस्तुत करना। collection
संग्रहणी - (स्त्री.) (तत्.) - अतिसार का एक प्रकार जिसमें पतले दस्त आते हैं। अर्थात् खाई हुई वस्तुएँ बिना पचे दस्त के रूप में बाहर निकल जाती हैं।
संग्रहागार [संग्रह+आगार] - (पुं.) (तत्.) - वह स्थान जहाँ अनेक वस्तुओं का संग्रह किया गया हो। पर्या. भंडार।
संग्रहालय [संग्रह+आलय] - (पुं.) (तत्.) - वह स्थान जहाँ पर ऐतिहासिक, वैज्ञानिक, सांस्कृतिक, धार्मिक इत्यादि महत्व की दुर्लभ वस्तुओं, ग्रंथों, कलाकृतियों, उपकरणों आदि का संग्रह परिरक्षण और प्रदर्शन किया जाता है। (म्यूजियम)। पर्या. अजायबघर।
संग्राम - (पुं.) (तत्.) - दो सेनाओं के बीच होने वाला युद्ध। पर्या. रण-समर।
संग्राहक - (वि.) (तत्.) - शा.अ. एकत्र या जमा करने वाला, संग्रहकारी, संग्रह। सा.अ. 1. जो कलाकृतियों, सिक्कों, डाकटिकटों आदि का शौकिया तौर पर संग्रह करता हो। 2. प्रशा. कर, लगान, शुल्क आदि वसूल करने के लिए नियुक्त अधिकारी। cellector
संघ - (पुं.) (तत्.) - सा.अ. समूह, समुदाय, संगठन, झुंड। 1. समान उद्देश्य के लिए गठित व्यक्तियों, दलों, सभाओं अथवा राज्यों आदि का संगठन, जैसे: मजदूर, संघ, राज्यों का संघ। 2. (धर्म) प्राचीन बौद्ध भिक्षुओं का संगठन या आवास-स्थल, संघाराम। उदा. संघ शरणं गच्छामि। 3. (समाज) किसी जाति, पेशा, व्यवसाय आदि का एकत्रित समाज। association 4. (विधि) राज्यों का समूह जो मिलकर ‘भारत’ कहलाता है। union
संघटक - (पुं.) (तत्.) - 1. किसी वस्तु मिश्रण या संरचना के अंगभूत तत् व। ingredient
संघटन - (पुं.) (तत्.) - 1. दो या अधिक तत् वों, अवयवों या संघटकों को मिलाकर नया पदार्थ बनाने की प्रक्रिया। composition 2. एक ही उद् देश्य से अनेक व्यक्तियों द्वारा बनाई गई संस्था या संगठन organization
संघनन - (पुं.) (तत्.) - किसी भी पदार्थ के अणुओं का घना हो जाना या किया जाना। जैसे: वाष्पकणों का द्रव के रूप में और द्रव का ठोस के रूप में बदलना। विलो. वाष्पन।
संघनित - (वि.) (तत्.) - जिसका संघनन हुआ है या किया गया है। जमा हुआ। उदा. बर्फ जलवाष्प का संघनित रूप है। condensed
संघर्ष - (पुं.) (तत्.) - 1. दो पदार्थों या वस्तुओं में परस्पर घर्षण या रगड़े जाने की क्रिया। 2. अपनी श्रेष्ठता सिद् ध करने के लिए की गई प्रतिस्पर्धा या होड़, प्रतिद्वंद्विता। 3. दो दलों या पक्षों के बीच होने वाला टकराव, मुठभेड़। (स्ट्रगल) 4. विपत्ति या विषम परिस्थितियों से बाहर निकलने के लिए प्रयास effort for existance
संघवाद - (पुं.) (तत्.) - 1. संघ बनाकर रहने की विचारधारा या समूह में रहने की भावना। दे. संघीय शासन। 2. (राज.) ऐसी शासनव्यवस्था जिसमें केंद्रीय सरकार के साथ-साथ विभिन्न राज्यों की अपनी स्वतंत्र, स्वायत्त सरकारें भी होती हैं। जैसे: भारतीय संघवाद। federalism
संचरण - (पुं.) (तत्.) - संचार करने का कार्य या भाव; निश्चित दिशा में चलना, फैलना, transmission
संचरणीय रोग - (दे.) - दे. संचारी रोग।
संचरित - (वि.) (तत्.) - गुण, दोष, रोग, भाव, विचारधारा इत्यादि के संचार से युक्त (व्यक्ति) जैसे: उसके अंदर ईश्वरभक्ति की भावना संचरित हो गई है।
संचार - (पुं.) (तत्.) - 1. चलना, गमन, आगमन जैसे: प्राणों का संचार, बल का संचार, किसी भावना (वीर भावना) का संचार। 2. चलाना। 3. अंदर प्रवेश कर फैलना। जैसे: रगरग में उत्साह का संचार। 4. विभिन्न साधनों, जैसे: टेलीफोन, तार, रेडियो, उपग्रह आदि के माध्यम से समाचार, संदेश, सूचना आदि का प्रसारण या प्रेषण। communication
संचार माध्यम - (पुं.) (तत्.) - सूचना, समाचार, संदेश इत्यादि को एक व्यक्ति द्वारा अन्य व्यक्ति/व्यक्तियों तक पहुँचाने या प्रसारित करने के आधुनिक साधन। जैसे: डाक, तार, टेलीफोन, मोबाइल, कंप्यूटर इत्यादि। media
संचारणीय बीमारी - (दे.) - दे. रोग।
संचालन - (पुं.) (तत्.) - 1. चलाने की क्रिया, परिचालन। 2. कोई काम चलते या होते रहने के लिए किया जाने वाला उद्यम, प्रबंधन या प्रशासन conduct 3. नियंत्रण; निर्देशन। direction
संचित - (वि.) (तत्.) - 1. संचय किया हुआ, इकट्ठा किया हुआ। पर्या. एकत्रित, संगृहीत। 2. कार्यालय, फाइल इत्यादि में नत्थी किया हुआ। filed 3. दर्शन. मनुष्य द्वारा पूर्ण में किए गए अच्छे या बुरे कर्म। पर्या. भाग्य (फल-प्राप्ति से पूर्व)
संजीदगी - (स्त्री.) (.फा.) - 1. शांत स्वभाव, गंभीर। 2. समझदारी। 3. शिष्टता, शालीनता। उदा. उसने सभी प्रश्नों के उत्तर बड़ी संजीदगी से दिए।
संजीदा - (वि.) - (फा.संजीद:) 1. गंभीर और शांत स्वभाव वाला। 2. शिष्ट आचरण वाला। 3. किसी की बात ध्यानपूर्वक सुनने और उस पर विचार करने वाला। (समझदार) उदा. संजीदा व्यक्ति ही इस बात को समझ सकता है।
संजीवनी - (स्त्री.) (तत्.) - सा.अर्थ जीवन देने वाली। पर्या. जीवनदायिनी। पुं. जीवनदायी) वि. अर्थ मृत या मृत प्राय व्यक्ति में जीवन का संचार करने वाली ओषधि या विद्या।
संज्ञा - (स्त्री.) (तत्.) - 1. वह शक्ति जिससे प्राणियों के शारीरिक अंगों में या मन में भावों की अनुभूति लक्षित होती है। 2. चेतना, होश। जैसे: वह व्यक्ति चोट लगने से संज्ञा खोकर गिर पड़ा। 3. (व्याक.) किसी व्यक्ति, वस्तु, भाव आदि का बोधक शब्द। जैसे: श्याम, पर्वत, घोड़ा, दया आदि शब्द संज्ञा है।
संज्ञेय - (वि.) (तत्.) - शा.अ. संज्ञान के योग्य, ध्यान देने योग्य। सा.अ. 1. (वे अपराध अथवा मामले) जिन पर न्यायालय, प्रशासन इत्यादि द्वारा विचार किया जा सके। 2. (वे अपराध) जिन पर पुलिस कार्रवाई कर सके। cognizable
संडास - (पुं.) - (फा.<संदास) मलत्याग या शौच करने का बंद स्थान, पर्या. शौचालय, शौचकूप।
संत - (पुं.) (तत्.) - साधु, संन्यासी, त्यागी पुरुष, विरक्त, शांत चित्त वाला; सज्जन, महात्मा, सात्विक; भक्त, धर्मात्मा व्यक्ति।
संतति - (स्त्री.) (तत्.) - जीव या जीवांग के विभाजन से प्रत्युत्पन्न नवजीव या जीवांग। issue 1. किसी माता-पिता युगल से उत्पन्न नर या मादा बच्चा/बच्चे। पर्या. संतान, औलाद, बाल-बच्चे।
संतप्त - (वि.) (तत्.) - 1. खूब गरम किया हुआ। 2. अत्यंत क्रुद्ध। अत्यधिक आँच पर तपाया हुआ जैसे: लाल हुआ लोहा। 3. अत्यंत दु:खी।
संतरी - (पुं.) (देश.) - रखवाली करने वाला (मुख्य रूप से दरवाजे पर) पर्या. पहरेदार, द्वारपाल, दरबान, प्रहरी।
संतान - (स्त्री.) (तत्.) - सा.अ. पुत्र-पुत्रियाँ, मनुष्य या पशु-पक्षियों के बाल-बच्चे, संतति, औलाद। 2. बाद की पीढ़ी के लोग। 3. प्रजा।
संतुलन [सम्+तुलन] - (पुं.) (तत्.) - शा.अर्थ अच्छी तरह से तौलने की क्रिया या भाव। 1. तुला के दोनों पलड़ों का समान भार वाला हो जाना। 2. दो या दो से अधिक वस्तुओं के आपेक्षिक भार में समानता या बराबरी।
संतुलित - (वि.) (तत्.) - 1. जिसका संतुलन हुआ हो या किया गया हो। 2. उचित, नपा-तुला। जैसे: 1. हमें संतुलित आहार लेना चाहिए। 2. संतुलित वाणी। विलो. असंतुलित।
संतुलित आहार - (पुं.) (तत्.) - प्राणियों, मनुष्यों और पशुओं के लिए ऐसा भोजन या आहार जिसमें कार्बोहाइड्रेट, प्रोटीन, वसा, विटामिन और खनिज लवणों की उचित मात्रा में उपलब्धता हो। पर्या. संतुलित भोजन। balanced diet
संतुष्ट - (वि.) (तत्.) - 1. जिसे संतोष हो गया हो, तृप्त। 2. अपेक्षा और चिंता से मुक्त। 3. प्रसन्न, खुश। 4. अनुकूल अथवा प्रतिकूल अर्थात् हर तरह की परिस्थिति में मन में संतोष का अनुभव करने वाला।
संतुष्टि - (स्त्री.) (तत्.) - 1. संतोष, 2. तृप्ति, प्रसन्नता। जैसे: आज कई दिनों बाद हमें स्वादिष्ट भोजन से पूर्ण संतुष्टि मिली।
संतूर - (पुं.) (अर.) - एक विशेष प्रकार का तंतु वाद् य जिसमें तारों को लकड़ी की छोटी छड़ी से बजाकर स्वर निकाले जाते हैं। Santoor
संतोष - (पुं.) (तत्.) - 1. अच्छा-बुरा जो भी प्राप्त हो जाए उसी में सुख का अनुभव करने की भावना। 2. जी भर जाने का भाव। पर्या. तृप्ति। 3. कोई कामना, अपेक्षा, शिकवा, शिकायत न रह जाना। satisfaction
संत्रास - (पुं.) (तत्.) - भावी अहित या अशुभ की आशंका से मन में व्याप्त बेचैनी, चिंता या पीड़ा। पर्या. डर, भय, पीड़ा, दु:ख, क्लेश।
संदर्भ [सम्+दर्भ] - (पुं.) (तत्.) - 1. पूर्वापर संबंध। 2. किसी घटना के घटित होने से संबंधित बुनियादी जानकारी। 3. किसी वाक्य में आए हुए किसी शब्द का अर्थ निर्धारित करने वाले अन्य शब्द। 4. पुस्तक, लेख आदि में वर्णित प्रसंग, विषय आदि जिसका उल्लेख हो।
संदिग्ध - (वि.) (तत्.) - 1. जिसकी उपयुक्तता, प्रामाणिकता आदि के विषय में पूरा विश्वास न हो। 2. अस्पष्ट। जैसे: वह संदिग्ध अवस्था में देखा गया। पर्या. संदेहास्पद। विलो. असंदिग्ध।
संदूक - (पुं.) (अर.) - कपड़े या अन्य सामान रखने के लिए लकड़ी, लोहा आदि की बनी बड़ी पेटी। बक्सा।
संदूकची - (स्त्री.) (अर.) - बहुत छोटा संदूक।
संदूषण (सम्+दूषण) - (पुं.) (तत्.) - दो वस्तुओं (जिनमें से एक खराब हो और दूसरी अच्छी) के परस्पर मिल जाने या मिला दिए जाने के फलस्वरूप अच्छी वस्तु में आ गया दोष। जैसे: नदी के स्वच्छ जल में गंदे नालों का पानी मिल जाने पर स्वच्छ जल दूषित हो जाता है। तु. अपमिश्रण। संसर्गजन्य दोष, संपर्कगत दोष, संपर्कगत दोष। contamination
संदेश - (पुं.) (तत्.) - 1. कूट संकेतों के माध्यम से प्रेषित कोई भी प्राप्त समाचार या जानकारी। 2. जानकारी जिसे प्राप्तकर्ता कूट खोलकर सही अर्थ में समझ लेता है। message 3. किसी कथा या कहानी के माध्यम से श्रोता को दी जाने वाली सीख या शिक्षा moral 4. एक प्रकार की बंगला मिठाई।
संदेशवाहक [संदेश+वाहक] - (पुं.) (तत्.) - सूचना, संदेश या समाचार लाने-ले जाने वाला। दे. संदेश।
संदेह - (पुं.) (तत्.) - 1. किसी बात या घटना के होने या न होने के बारे में दुविधापूर्ण स्थिति, अनिश्चय की स्थिति, संशय, शंका, शक। 2. एक सादृश्यमूलक अलंकार जिसमें किसी उपमेय के अनेक उपमान दिखाई देने पर भी यह निश्चय नहीं किया जा सकता कि वास्तविक उपमान कौन-सा है। जैसे: यह मुख है या चंद्रमा?
संधि - (स्त्री.) (तत्.) - 1. शरीर में दो हड्डियों के मिलने का स्थान या जोड़। 2. व्या. दो शब्दों या वर्णों का मेल (कुछ निश्चित नियमों के अनुसार)। 3. दो राज्यों, देशों के बीच होने वाली सुलह या समझौता। 4. एक विशेष काल या युग की समाप्ति और नए काल का प्रारंभ। पर्या. संधिकाल, परिवर्तन काल। 5. आयु का वह पड़ाव जब शरीर, मन, भावना आदि में परिवर्तन होने लगता है। जैसे वय:संधि।
संधिवार्ता - (स्त्री.) (तत्.) - किसी विवाद के संदर्भ में निबटारा या सुलह करने के लिए दो या अधिक व्यक्तियों, समूहों, राज्यों, देशों इत्यादि के मध्य होने वाली बातचीत। जैसे: इस समय भारत और पाकिस्तान के मध्य व्यापारिक संधिवार्ता होने जा रही है।
संन्यास [सम्+न्यास] - (पुं.) (तत्.) - 1. पूरी तरह से छोड़ देना, परित्याग करना। जैसे: टैस्ट क्रिकेट से संन्यास ले लेना; सांसारिक विषयों (जैसे ममता-मोह आदि) से पूर्ण वैराग्य। 2. हिंदुओं के चार आश्रमों में से अंतिम, जिसमें विरक्त होकर सब कार्य निष्काम भाव से किए जाते हैं।
संन्यासी - (पुं.) (वि.) - ऐसा व्यक्ति जो घरबार, माया-मोह आदि का स्वेच्छा से त्याग कर चुका हो। हिन्दु मान्यता के अनुसार चौथे आश्रम में प्रविष्ट व्यक्ति। पर्या. साधु, संत। वि. त्याग करने वाला (परित्यागी)
संपत्ति - (स्त्री.) (तत्.) - धन-दौलत और जायदाद आदि जो किसी के अधिकार में हो और जिसे खरीदा-बेचा अथवा हस्तांतरित किया जा सके।
संपदा - (स्त्री.) (तत्.) - 1. धन दौलत, अचल संपत्ति (मकान, ज़मीन, जायदाद) 2. ऐश्वर्य, वैभव, संपन्नता, भंडार। जैसे: देश को प्राकृतिक संपदा का अनुपम वरदान प्राप्त है। विलो. विपदा।
संपन्न - (वि.) (तत्.) - 1. धनवान, दौलतमंद। 2. से युक्त। जैसे: विद्या संपन्न। 3. पूरा किया हुआ, पूर्ण, मुकम्मल। उदा. कार्यक्रम संपन्न होने की घोषणा की गई।
संपन्नता - (स्त्री.) (तत्.) - 1. पूर्ण होने की स्थिति। 2. अमीरी, ऐश्वर्य। दे. संपन्न।
संपरीक्षित [सम्+परीक्षा+इत्] - (वि.) (तत्.) - जिसकी सम्यक्/पूर्ण रूप से परीक्षा हो चुकी हो।
संपर्क - (पुं.) (तत्.) - 1. स्पर्श। उदा. पारस के संपर्क से लोहा सोना बन जाता है। 2. लगाव, संबंध; परस्पर जोड़ना, एक करना link। उदा. भारत की संपर्क भाषा हिंदी है।
संपादक - (पुं.) (तत्.) - 1. किसी कार्य को संपन्न या पूरा करने वाला। 2. किसी समाचार पत्र, पत्रिका या पुस्तक को सभी प्रकार से सुव्यवस्थित कर अर्थात् आवश्यक संशोधन तथा काटछाँट करके प्रकाशित करवाने वाला। aditor जैसे : किसी कहानी संग्रह का संपादक
संपादक - (वि./पुं.) - 1. किसी कार्य को संपन्न करने वाला (व्यक्ति)। 2. किसी पत्र-पत्रिका या प्रसारण केंद्र में दूसरे की रचना को आवश्यकता पड़ने पर सुधारकर प्रकाशन योग्य बनाने वाला व्यक्ति/अधिकारी। 3. किसी साहित्यिक संग्रह विशेष की योजना को कार्य-रूप में परिणत कर प्रकाशन योग्य बनाने वाला जिम्मेदार व्यक्ति।
संपादकीय - (वि.) (तत्.) - संपादक का। 1. पत्र-पत्रिकाओं में वह स्तंभ जिसे संपादक स्वयं लिखता हो। 2. संग्रहों में वे पृष्ठ जिसमें संपादक की ओर से योजना तथा लेखकों के योगदान की चर्चा की जाती है। editorial
संपादन - (पुं.) (तत्.) - 1. किसी प्रकाशन विशेष से संबंधित संपादक का समस्त कार्य। 2. किसी सामयिक पत्र-पत्रिका अथवा संग्रह आदि की रचनाओं को संकलन कर क्रम, पाठ आदि ठीक करके उसे प्रकाशित करवाना। 3. काम को ठीक तरह से पूरा करना। editing
संपूर्ण [सम्+पूर्ण] - (वि.) (तत्.) - 1. ठीक तरह से भरा हुआ। 2. आदि से अंत तक, पूरा का पूरा। 3. पूर्णता को प्राप्त, समाप्त, खत्म।
संपूर्णत: क्रि.वि. - (वि.) (तत्.) - पूर्ण रूप से, पूरी तरह से; कुल मिलाकर।
संप्रदाय - (पुं.) (तत्.) - 1. किसी धर्म को मानने वाले लोगों में विशिष्ट मत के अनुयायियों का समूह। जैसे: मुस्लिम धर्म में शिया या सुन्नी संप्रदाय। 2. किसी विशिष्ट दार्शनिक विचारधारा के मानने वाले लोगों का वर्ग, शाखा। (स्कूल)। जैसे: अद्वैत, विशिष्टाद्वैत, शुद् धाद्वैत आदि। 3. विचारधाराओं में मतभिन्नता रखने वाले लोगों का वर्ग। जैसे : साहित्य में ध्वनि संप्रदाय, रस संप्रदाय आदि।
संप्रभु [सम्+प्रभु] - (वि.) (तत्.) - वह व्यक्ति या व्यक्तियों का समूह जिसमें राज्य की सर्वोच्य शक्ति निहित हो। पर्या. सर्वसत्ताधारी। sovereign
संप्रभुता [सम्+प्रभुता] - (स्त्री.) (तत्.) - संप्रभु होने की स्थिति। sovereignth दे. संप्रभु।
संप्रेषण [सम्+प्रेषण] - (पुं.) (तत्.) - 1. एक स्थान से दूसरे स्थान पर ठीक तरह से भेजा जाना। 2. बोलकर, लिखकर या संकेतों के जरिए विचारों का आदान-प्रदान। 3. वक्ता/लेखक और श्रोता/पाठक के बीच भाषा के माध्यम से विचारों का आदान-प्रदान।
संप्रेषित - (वि.) (तत्.) - 1. जो भेजा गया हो। 2. दूसरे तक पहुँचाए गए (विचार)। जैसे: आप अपने विचारों को संप्रेषित करने में पूरी तरह सक्षम हैं।
संबंध - (पुं.) (तत्.) - 1. किसी के साथ जुड़ाव, योग, बँधना। 2. रिश्ता, नाता। 3. आपसी मेल जोल, घनिष्ठता। जैसे: सभी देशों के साथ हमारे संबंध अच्छे हैं। 4. (व्या.) दो शब्दों के बीच जुड़ाव को सूचित करने वाला तत्व, संबंध कारक। genetic case
संबद्ध - (वि.) (तत्.) - 1. किसी के साथ जुड़ा, मिला या लगा हुआ। 2. किसी प्रकार का संबंध रखने वाला। पर्या. संबंधित
संबल - (पुं.) (तत्.) - 1. वह साधन जिसके भरोसे कोई कार्य किया जाए। 2. सहारा। जैसे: हमें तो इस विषम परिस्थिति में आपके संबल की आवश्यकता है।
संबोधन - (पुं.) (तत्.) - 1. पुकारना, आह् वान करना। 2. वक्ता द्वारा उच्चरित वे शब्द जिन्हें सुनकर श्रोता का ध्यान वक्ता की ओर आकृष्ट होता है। 3. व्याकरण में वह शब्द जिससे किसी को पुकारा जाता है। जैसे: हे राम!
संबोधित - (वि.) (तत्.) - 1. जिसके प्रति संबोधन के शब्द वक्ता द्वारा उच्चरित किए गए हों। 2. जिसका ध्यान आकृष्ट किया गया हो।
संभलना अ.क्रि. - (तद्.]संभरण) - 1. अपने आपको गिरने या फँसने से बचाना। जैसे: मैं उसके षड़यंत्र रचने से पहले ही सँभल गया। 2. सावधान या होशियार होना। 3. रोग मुक्त होकर स्वस्थ्य प्राप्त करना। जैसे: वह इस बीमारी से संभल गया।
संभव - (वि.) (तत्.) - जो घटित हो सके; जो घट सकता हो। पर्या. मुमकिन। possible
संभवत: - (अव्य.) (तत्.) - संभव है कि, शायद, हो सकता है कि, कदाचित्।
संभावना - (स्त्री.) (तत्.) - 1. किसी कार्य, घटना आदि के हो सकने की स्थिति। उदा. आज वर्षा की संभावना है। मुमकिन होना 2. एक अलंकार जिसमें किसी एक बात के होने पर दूसरी बात के आश्रित होने का वर्णन हो। जैसे: यदि आप आ सके तो हमें बड़ी प्रसन्नता होगी।
संभावित - (वि.) (तत्.) - हो सकने की संभावना को प्रकट करने वाला। पर्या.संभाव्य
संभाव्य - (वि.) (तत्.) - 1. जिसकी संभावना हो, जो आने वाले समय में हो सकता है। जैसे: रोबोट के द्वारा खेती करना एक संभाव्य प्रक्रिया है। 2. जो हो सकता हो। जैसे: इस प्रश्न का एक संभाव्य उत्तर है… probable पर्या. संभावित।
संभाषण - (पुं.) (तत्.) - 1. आपस में एक दूसरे से की जाने वाली बातचीत। 2. वार्तालाप। जैसे: किसी भी भाषा को संभाषण के माध्यम से सरलता से सीखा जा सकता है।
संभ्रम - (पुं.) (तत्.) - बेचैनी, घबराहट, उतावली, जल्दबाजी आदि की स्थिति। उदा. संभ्रम के कारण मैं कुछ कर नहीं पाया। confusion
संभ्रांत - (वि.) (तत्.) - सम्मानित, प्रतिष्ठित, लब्धप्रतिष्ठ, विख्यात। जैसे: संभ्रांत परिवार। eleet, distinguish
संयत - (वि.) (तत्.) - 1. संयम से युक्त, जिसने मन और इंद्रियों को वश में कर रखा है। 2. नियंत्रित। जैसे: घोड़ों को लगाम से संयत किया जाता है। 3. क्रमबद्ध, व्यवस्थित। 4. बद्ध, अनुशासित, सधा हुआ
संयत्र - (पुं.) (तत्.) - किसी वस्तु के उत्पादन में प्रयुक्त होने वाली विविध स्थायी संरचनाओं, उपकरणों तथा यंत्रों का समूह। plant
संयम [सम्+यम] - (पुं.) (तत्.) - 1. मन और इंद्रियों को वश/नियंत्रण में रखने का भाव। 2. बुरी बातों या कार्यों से दूर रहना या बचना, परहेज।
संयमित - (वि.) (तत्.) - 1. जिसका संयम किया गया हो। 2. वश में किया हुआ; नियंत्रित। जैसे: वह संयमित वाणी बोलता है। 3. जिसने मन, इंद्रियों पर नियंत्रण किया हुआ है, संयमी।
संयुक्त - (वि.) (तत्.) - 1. मिला हुआ या जुड़ा हुआ। पर्या. संलग्न, संबद्ध (एनेक्स्ड) 2. एकत्र मिला हुआ (मिश्रण) पर्या. मिश्रित compound 3. साझा, एकत्र। जैसे: संयुक्त खाता (ज्वॉयन्ट) 4. (व्या.) ऐसा (वाक्य) जिसमें एक से अधिक (वाक्य) मिले हुए हैं। टि. व्याकरण में संयुक्त वाक्य और मिश्रित वाक्यों की स्वतंत्र परिभाषा है।
संयुक्त परिवार - (पुं.) (तत्.) - ऐसा परिवार जिसमें मुखिया पिता के सभी वयस्क पुत्र और उनके परिवार एक साथ रहते हों तथा उनकी रसोई भी एक साथ बनती हो। joint family विलो. एकल परिवार
संयुक्त प्रांत - (पुं.) (तत्.) - वर्तमान उत्तर प्रदेश और उत्तराखंड राज्य को मिलाकर बने क्षेत्र का पुराना नाम। टि. आज का ‘यू.पी.’ शब्द मूलत: यूनाइटेड प्रॉविन्स (संयुक्त प्रांत) के आद्याक्षरों द्वारा बना है। संयोग से उत्तर प्रदेश के आद्याक्षर भी ये ही हैं।
संयुक्त राष्ट्र - (पुं.) (तत्.) - शा.अर्थ कई राष्ट्रों के समूह की इकाई। अं. विधि विश्व के प्रभत्व संपन्न देशों (राष्ट्रों) की सबसे बड़ी संस्था जो अंतरराष्ट्रीय शांति, सुरक्षा और परस्पर सहयोग के लिए द्वितीय विश्वयुद्ध के बार एक घोषणा पत्र charter पर 50 देशों के प्रतिनिधियों द्वारा हस्ताक्षर करने के फलस्वरूप अस्तित्व में आई। इस समय इसकी सदस्य संख्या 190 से ऊपर पहुँच गई है। इस संस्था का मुख्यालय न्यूयॉर्क में है। united nations तु. राष्ट्रमंडल, राष्ट्रकुल।
संयोग - (पुं.) (तत्.) - 1. किसी घटना, बात या प्रसंग का अचानक घटित होना। उदा. आज आपसे भेंट हो गई-इसे मैं मात्र संयोग मानता हूँ। 2. मिलाप, मेल। विलो. वियोग
संयोगवश क्रि.वि. - (वि.) (तत्.) - शा.अर्थ संयोग के कारण, इत्तफ़ाकन। सा.अर्थ अचानक किसी ऐसी क्रिया, मिलन, घटना आदि का होना जिसकी पहले से कोई योजना न हो परंतु जिसका परिणाम अच्छा ही हो। जैसे: संयोगवश ही आज उनसे मुलाकात हुई।
संयोजक - (पुं.) (तत्.) - 1. जोड़ने या मिलाने वाला। 2. (व्या.) दो शब्दों या वाक्यों को जोड़ने वाला शब्द। जैसे और एवं, तथा conjunctive 3. सभा या संस्था का वह सदस्य जो बैठक आदि बुलाने, व्यवस्था करने या कार्यक्रम संचालित करने का कार्य करता है। convenor
संयोजन - (पुं.) (तत्.) - शा.अर्थ जोड़ने, मिला देने या इकट्ठा करने का भाव। पर्या. किसी बैठक या सभा का आयोजन और संचालन करने का कार्य।
संरक्षक - (पुं.) (तत्.) - (स्त्री. संरक्षिका) सा.अर्थ देख-भाल या रक्षा करने वाला। 2. अपने आश्रय में लेने या रखने वाला। विधि. 1. किसी अवयस्क अथवा अविकसित बुद् धि वाले व्यक्ति के सभी प्रकार के हितों को देखने वाला व्यक्ति। guardian 2. वन. वन संपदा का अनधिकृत दोहन रोकने के लिए नियुक्त अधिकारी। conservator of forest
संरक्षण - (पुं.) (तत्.) - 1. देखरेख/आश्रय में रखते हुए पालन पोषण, शिक्षा दीक्षा आदि। 2. सरकार द् वारा किसी संस्था, उद् योग, व्यवसाय आदि की हिफ़ाजत। 3. रक्षा, हिफाजत, देख-रेख निगरानी। 4. अधिकार, कब्जा। जैसे: यह विवादित क्षेत्र आजकल सरकार के संरक्षण में है।
संरक्षित - (वि.) (तत्.) - 1. सरकार या राज्य द् वारा अथवा किसी अन्य संस्था द्वारा जिसकी देखभाल और सुरक्षा की जिम्मेदारी ली गई हो। 2. जो सँभालकर सुरक्षित और व्यवस्थित तरीके से रखा गया हो।
संरचना - (स्त्री.) (तत्.) - शा.अर्थ सुव्यवस्थित रचना। 1. कई हिस्सों को जोडक़र बनाई गई कोई चीज़। जैसे: कोई मकान, पुल, बाँध आदि। 2. भाषिक इकाइयों (शब्द, पद, पदबंध, उपवाक्य, वाक्य) से निर्मित रचना जिसके सभी अवयवों को किसी सुनिश्चित क्रम में व्यवस्थित किया गया हो। जैसे: हिंदी की वाक्य-संरचना structure।
संलग्न - (वि.) (तत्.) - 1. किसी के साथ लगा हुआ, चिपका हुआ, संबंधित। 2. नत्थी किया हुआ। जैसे: इस आवेदन पत्र के साथ मेरे सभी प्रमाणपत्र संलग्न हैं।
संलयन [सम्+लयन] - (पुं.) (तत्.) - 1. आपस में अच्छी तरह मिल जाना, एक दूसरे में लीन हो जाना। fusion
संवर्ध - (पुं.) (तत्.) - कृत्रिम माध्यमों में उगते-बढ़ते अणु (सूक्ष्म) जीव, ऊतक अथवा कोशिकाओं का समूह। culture
संवर्धन - (पुं.) (तत्.) - जीवों, ऊतकों या कोशिकाओं का कृत्रिम माध्यमों में पोषण करके उनकी वृद् धि अथवा प्रगुणन करने की प्रक्रिया। culture
संवहन [सम्+वहन] - (पुं.) (तत्.) - 1. एक स्थान से दूसरे स्थान पर समुचित रूप से ले जाना। conduction
संवहनी वर्षा - (स्त्री.) (तत्.) - विषुवतीय प्रदेशों में प्राय: प्रतिदिन होने वाली वर्षा टि. सूर्य की सीधी किरणें वातावरण की नमी को सोख लेती हैं और संवहन के माध्यम से उसे ऊँचाई तक पहुँचा देती हैं। यही नमी ठंडी होकर वर्षा का रूप ले लेती है। माध्यम संवहन होने के कारण इसे ‘संवहनी वर्षा’ कहते हैं। अनुकूल परिस्थिति होने पर पृथ्वी के अन्य भागों में भी यह वर्षा हो सकती है। convectional rain
संवाद [सम्+वाद] - (पुं.) (तत्.) - 1. दो या दो से अधिक व्यक्तियों के बीच की बातचीत, वार्तालाप या कथोपकथन। 2. किसी के पास भेजा हुआ अथवा आया हुआ वृत्तांत। 3. समाचार, खबर 4. समाचार पत्रों के लिए भेजे गए समाचार और सूचनाएँ।
संवाद लेखक - (वि./पुं.) (तत्.) - नाटक और सिनेमा इत्यादि के लिए वार्तालाप के वाक्यों की रचना करने वाला।
संवाददाता - (पुं.) (तत्.) - शा.अर्थ संवाद देने वाला, समाचार या संदेश भेजने वाला। वि. अर्थ समाचार पत्र, दूरदर्शन, रेडियो आदि के लिए क्षेत्र विशेष के समाचारों का संग्रह करके उन्हें प्रकाशन/प्रसारण हेतु प्रेषित करने वाला व्यक्ति। correspondent
संवादवाहक - (पुं.) (तत्.) - जिसके माध्यम से संवाद या समाचार या सूचनाएँ एक स्थान से अन्यत्र भेजी जाती हैं। 1. समाचारों को पहुँचाने वाला। 2. समाचारों या सूचनाओं को प्रसारित करने वाले यंत्र।
संविधान [सम्+विधान] - (पुं.) (तत्.) - वह विधान या कानूनों का विधिवत् संग्रह जिसके अनुसार किसी देश, राज्य अथवा संस्थान के कार्य का संचालन होता है। जैसे: भारत का संविधान constitution
संवेदन - (पुं.) (तत्.) - इंद्रियजन्य वह अनुभव जिसका अंतर्निरीक्षण द्वारा अधिक विश्लेषण संभव न हो, ज्ञानेंद्रियों से होने वाला अनुभूति। sensation
संवेदनशील - (वि.) (तत्.) - (व्यक्ति) जिसके मन में संवेदना शीध्र उपजती हो; अनुभूति से शीध्र प्रभावित होने वाला। उदा. मनुष्य संवेदनशील प्राणी है। sensative
संवेदना - (स्त्री.) (तत्.) - 1. इंद्रियों से होने वाली अनुभूति। 2. मन में होने वाली अनुभूति या बोध। 3. किसी दु:खी व्यक्ति के प्रति सहानुभूति का भाव। जैसे: मैं तुम्हारे पिताजी के निधन पर संवेदना व्यक्त करता हूँ।
संवेदनात्मक [संवेदन+आत्मक] - (वि.) (तत्.) - संवेदन से संबंधित, संवेदन परक। दे. संवेदन।
संशय - (पुं.) (तत्.) - अपूर्ण ज्ञान के कारण यह तय नहीं कर पाना कि ‘क्या ठीक है और क्या नहीं’। suspicion, dout तु. संदेह, शंका।
संशयग्रस्त [संशय-ग्रस्त] - (वि.) (तत्.) - जो किसी संशय से ग्रस्त हो; संशय में पड़ा हुआ।
संशोधन [सम्+शोधन] - (पुं.) (तत्.) - 1. ठीक करना, शुद् ध करना, सुधार करना, परिवर्तन करना। 2. कमी या त्रुटि देखकर किया गया छोटा-मोटा सुधार या परिवर्तन।
संश्लेषण - (पुं.) (तत्.) - सा.अर्थ अलग-अलग तत् वों, इकाइयों को मिलाकर, सटाकर या जोड़कर एक करना। रसा. 1. सरलतर पदार्थ से जटिलतर यौगिक पदार्थों का बनना। उदा. हाइड्रोजन और ऑक्सीजन के मेल से पानी का बनना। 2. कृत्रिम रूप से उत्पादन। जैसे: नकली रबड़, पॉलिएस्टर, नॉयलन वस्त्र आदि का निर्माण
संश्लेषित रेश - (पुं.) (तत्.) - पेट्रो. रसायनों के रासायनिक प्रक्रमण से तैयार किए गए कृत्रिम धागे (रेशे) synthic fibres
संसद (संसद्) - (स्त्री.) (तत्.) - 1. प्राचीन अर्थ- 1. सभा 2. न्यायालय (मनु. 8/52) 2. वर्तमान अर्थ- (भारत के संदर्भ में) देश की व्यवस्था को चलाने के लिए विधि (कानून) बनाने वाली/उनमें संशोधन करने वाली सभा विधि निर्मात्री सभा। parliamnet
संसर्ग - (पुं.) (तत्.) - 1. साथ-साथ या बहुत नजदीक। 2. संगति से उत्पन्न लगाव। 3. स्पर्श (शरीर या श्वासवायु इत्यादि का) जैसे: हैजा, चेचक, यक्ष्मा आदि रोग संसर्ग से फैलते हैं।
संसाधन [सम्+साधन] - (पुं.) (तत्.) - 1. किसी उद् देश्य, कार्य या विकास की प्राप्ति का साधन। जैसे : प्राकृतिक संसाधन, मानव संसाधन resourte 2. साधने अर्थात् लंबे समय तक परिरक्षित करने की वैज्ञानिक विधि। processing
संसाधित - (वि.) (तत्.) - लंबे समय तक परिरक्षित रखने के प्रक्रमण से गुजरा हुआ। उदा. संसाधित खाद्य पदार्थ।
संस्करण - (पुं.) (तत्.) - 1. संस्कार, कमी दूर करके सुधारना। 2. किसी पुस्तक या समाचार पत्र, पत्रिका आदि का एक बार में छपने वाला अंक जैसे: सांध्य संस्करण। 3. किसी पुस्तक के अनेक बार छपने वाले सुधरे हुए समूहों का क्रमश: नाम। जैसे: प्रथम/द् वितीय संस्करण, छात्र संस्करण, पुस्तकालय संस्करण आदि edition
संस्कार - (पुं.) (तत्.) - 1. दोष आदि दूर करने का कर्म। 2. हिंदुओं में जन्म से मरण तक मनाए जाने वाले कुछ धार्मिक कृत्य। उदा. षोड़श संस्कार (मुंडन, यज्ञोपवीत, विवाह आदि) 3. पूर्व जन्म के कर्मों के आधार पर मान्य मनुष्यों का जन्मना स्वभाव या कुछ गुण विशेष।
संस्कृत - (वि.) (तत्.) - शा.अर्थ जिसका संस्कार हुआ हो, शुद्ध किया गया। स्त्री. प्राचीन भारत की भारोपीय भाषा परिवार की एक प्रमुख भाषा जिसके दो भेद (वैदिक संस्कृत और लौकिक संस्कृत) हैं तथा जिसका उल्लेख भारत के संविधान की आठवीं अनुसूची में भी है।
संस्कृति - (स्त्री.) (तत्.) - व्यवहारगत विधि-निषेधों की एक ऐसी अमूर्त संहिता जिससे मनुष्य की जीवन-पद् धति का निर्धारण होता है। culture
संस्था - (स्त्री.) (तत्.) - शा.अर्थ. जहाँ ठहरा जा सके (वह स्थान या जगह)। विस्तृत अर्थ में 1. कोई भी संघटित समाज, समूह या वर्ग। जैसे: सामाजिक व्यवस्था, विधि। 2. व्यवस्था विधि जैसे: विवाह एक संस्था है। तु. संस्थान
संस्थापक [संस्थापन+क] - (वि.) (तत्.) - शा.अर्थ संस्थापन करने वाला व्यक्ति। वह प्रथम व्यक्ति जिसने सबसे पहले किसी संस्था, सभा या समाज की स्थापना की हो।
संस्मरण [सम्+स्मरण] - (पुं.) (तत्.) - शा.अर्थ ठीक तरह से याद करना, मन में लाना। अपने बारे में या किसी अन्य व्यक्ति से संबंधित स्मरणीय घटनाओं का कथन या लेखन।
संहार - (पुं.) (तत्.) - 1. नाश, ध्वंस। 2. मार डालना (युद्ध आदि में)
संहिता - (स्त्री.) (तत्.) - सा.अर्थ व्यवस्थित संकलन या संग्रह। 1. विधियों अर्थात् नियमों /कानूनों का संकलन-संग्रह। जैसे: भारतीय दंड संहिता, धर्म संहिता।
सँकरा - (वि.) (तद्.) - जिसकी चौड़ाई कम हो।
सँजोना स.क्रि. - (तद्.संग्रह/सज्जा) - 1. (1) इकट्ठा करना, सँभालना या व्यवस्थित करना। 2. सजाना, अलंकृत करना।
सँडसी - (स्त्री.) (तद्.<संदंश) - एक तरह का आगे गोलाई लिए हुए कैंची-नुमा उपकरण जिससे पकडक़र गरम बटलोई, तसला आदि चूल्हे पर से उठा कर आवश्यकतानुसार अन्यत्र रखे जा सकते हैं।
सँपेरा - (पुं.) (देश.) - 1. साँप पकड़ने वाला। 2. साँप पालने वाला। 3. जीविका के लिए स्थान-स्थान में बीन बजाकर साँपों का प्रदर्शन करने वाला व्यक्ति, मदारी।
सँवरना अ.क्रि. - (देश.) - 1. अपनी सज्जा करना, सजना। जैसे: तुम कहाँ जाने के लिए सँवर रहे हो? 2. स्वयं को सँभालना, सुधारना। जैसे: सँवर जाओ, अभी समय है।
सँवारना अ.क्रि. (प्रेर.) - (देश.) - 1. सजाना, अलंकृत करना। 2. किसी प्रकार की कमी, दोष आदि दूर करके ठीक या अच्छी अवस्था में लाना। जैसे: बालिकाएँ उत्सव में शामिल होने के लिए अपने बालों को सँवार रही हैं।
सकारना - - स.क्रि. 1. हाँ करना। 2. अर्थ. विनिमय पत्र अथवा हुंडी को निर्धारित शर्तों के अनुसार भुगतान के लिए स्वीकार करना। विलो. नकारना।
सकारात्मक [सकार+आत्मक] - (वि.) - (संकर) जो सहमति या स्वीकृति का सूचक हो। जैसे: सकारात्मक सोच। विलो. नकारात्मक।
सकारे क्रि.वि . - (देश.) - सवेरे, तडक़े (सूर्योदय से पूर्व) उदा. अवधेस के दुआरे सकारे गई…….।
सकुचना स.क्रि. - (तद्.<संकुचन) - खिले फूल का सिकुड़ना या मुरझा जाना।
सकुचाना अ.क्रि. - (तद्.(संकोचन) - 1. किसी बात को स्वीकार करने में हिचकिचाना या आगा-पीछा करना।
सकेलना स.क्रि. - (तद्.) - (सं) संकेलयति-संकेल्लइ-सकेलइ-सकेलना) किसी वस्तु, अन्न आदि को इकट् ठा करके रखना, इकट् ठा करना; झाड़-बुहार कर इकट् ठा करना, जमा करना।
सक्रिय - (वि.) (तत्.) - जो काम में लीन या लगा हो, सतत् काम में लगा हुआ। पर्या. कर्मरत, क्रियाशील। जैसे: सक्रिय पूँजी, सक्रिय कार्यकर्त्ता। विलो. निष्क्रिय।
सक्षम - (वि.) (तत्.) - 1. जो क्षमता से युक्त हो, समर्थ। 2. किसी काम के लिए पूर्ण रूप से उपयुक्त एवं सुयोग्य। competent जैसे: आप इस कार्यालय के सक्षम अधिकारी हैं।
सखा - (पुं.) (तत्.) - साथ में रहने वाला, संगी, साथी। पर्या. सहचर, मित्र। स्त्री. सखी, सहेली
सख्त - (वि.) (फा.) - 1. जो नर मन हो, कड़ा/कड़ी कठोर। जैसे: सख्त बिस्तर, सख्त जमीन। hard 2. कठिन, कड़ा/कड़ी जैसे: सख्त कैद strict 3. दया, करुणा आदि से रहित जैसे: सख्त व्यक्ति strict 4. जिसे टाला न जा सके। जैसे: सख्त जरूरत (डायर) 5. गंभीर। जैसे: सख्त बीमारी serious 6. खुरदरा/री जैसे: सख्त आवाज hard
सख्ती - (स्त्री.) (फा.) - कठोर व्यवहार, कठोरता, कड़ापन। विलो. नरमी।
सगा - (वि.) (तद्.>स्वक) - 1. एक ही माता से उत्पन्न भाई या बहन, सहोदर। जैसे: सगा भाई, सगी भाभी। 2. पिताजी या माताजी के सगे। जैसे: सगे चाचा, सगे मामा इत्यादि। 3. अत्यंत निकट जैसे: आप तो हमारे सगे से भी सगे हैं। तुल. चचेरा, ममेरा, फुफेरा इत्यादि।
सगाई [सगा+ई] - (स्त्री.) (तद्.) - 1. सगे होने का भाव, सगापन। 2. किसी से आत्मीयतापूर्ण नाता या रिश्ता। 3. विवाह का निश्चय, मँगनी की रस्म।
सघन - (वि.) (तत्.) - 1. बहुत घना, अविरल। जैसे: सघन वन dense, thick विलो. विरल। 2. गहरा/री। जैसे: सघन खेती intensive विलो. विस्तृत।
सच - (वि./पुं.) (दे.) - दे. सत्य।
सचमुच क्रि.वि. - (वि.) (तत्.+देश.) - 1. सच में, वास्तव में, यथार्थ में। 2. अवश्य, निश्चय (भविष्यत् काल के संदर्भ में) मैं सचमुच जाऊँगा ।
सचाई - (स्त्री.) (तद्.) - दे. सत्य पुं.
सचिव - (पुं.) (तत्.) - 1. (प्रशा) किसी मंत्रालय, विभाग इत्यादि का प्रधान प्रशासनिक अधिकारी। 2. किसी संस्था का वह अधिकारी जो आय-व्यय, पत्राचार आदि की देख-रेख करता हो। 3. राजा का मंत्री (प्राचीन काल में) तुल. निजी सचिव, प्रेस सचिव इत्यादि।
सचेत - (वि.) (तत्.) - 1. सावधान, सतर्क, सजग। उदा. मैंने पहले ही उसे सचेत कर दिया था। alert 2. चेतना से युक्त conscious विलो. अचेत।
सच्चरित्र [सत्+चरित्र] - (वि.) (तत्.) - अच्छे चरित्र या अच्छे चाल-चलन वाला (व्यक्ति) सदाचारी। जैसे: डॉ. कर्ण सिंह सच्चरित्र इंसान हैं। पुं. अच्छा चरित्र। उदा. सच्चरित्र ही मानव को यशस्वी बनाता है।
सच्चा/सच्ची - (वि.) (तत्.) - 1. सच बोलने वाला; जो झूठा न हो। उदा. सच्ची बात। विलो. झूठा/ठी। 2. आत्मीय भाव रखने वाला; कपट न करने वाला। उदा. सच्चा मित्र। 3. असली, जो कृत्रिम न हो। उदा. सच्चा मोती। विलो. नकली।
सच्चाई/सचाई - (स्त्री.) (तद्.) - सच होने का गुण, सच्चापन। उदा. उसकी बात में सचाई है। विलो. झूठ।
सजग - (वि.) (तत्.) - शा.अर्थ जगा हुआ जागरुक। विक. अर्थ. सावधान, सतर्क।
सजना अ.क्रि. - (तद्.(सज्जा) (पुं.) - 1. आकर्षक दिखने के लिए सुंदर वस्त्र एवं आभूषण धारण करना। पर्या. फबना, भला जान पड़ना, उत्तम लगना। 2. युद्ध आदि के लिए तैयार होना। प्रियतम, पति।
सजल [स+जल] - (वि.) (तत्.) - (स्त्री. सजला) 1. जल से भरा हुआ, जल से युक्त, जिसमें पानी हो। 2. आँसुओं से युक्त, जैसे: सजल नेत्र/नयन।
सजा - (स्त्री.) (फा.) - की गई किसी बुराई या अपराध के बदले दिया जाने वाला दंड। 2. न्यायालय द्वारा सुनाया गया दंड।
सजात - (वि.) (तत्.) - एक ही मूल से जन्मा; समान स्त्रोतवाला। उदा. सजात भाषाएँ (हिंदी, पंजाबी, गुजराती, बंगला आदि जो आर्य परिवार की भाषाएँ है।
सजातीय [स+जातीय] - (वि.) (तत्.) - 1. अपनी ही जाति में एक ही जाति में उत्पन्न। उदा. सजातीय विवाह endogamg
सजाना (प्रेर.>सजना) - (तत्.) - 1. वस्तुओं को स्थानोचित इस प्रकार क्रम से रखना जिससे वे देखने में अधिक सुंदर लगें। जैसे: कलाकक्ष में कलाकृतियों को सजाना। 2. सुसज्जित या अलंकृत करना। जैसे: घर को सजाना।
सजावट [सज+आवट] - (स्त्री.) (तत्.+देश.) - 1. सजे हुए होने की अवस्था या भाव। सज्जा, शोभा। जैसे: नाट्यशाला की सजावट देखने योग्य थी।2. किसी स्थान को अलकृंत करने का कार्य।जैसे: वार्षिकोत्सव के अवसर पर सभा भवन की सुंदर सजावट की गई है।
सजावटी - (वि.) (तद्.) - सजावट के काम आने वाला (सामान)। जैसे: सजावटी पौधे।
सजीला [साज+ईला] - (वि.) - (देश) 1. सजधज कर या बनठन कर घूमने फिरने वाला, छैला। 2. सुंदर, आकर्षक दिखने वाला। जैसे: सजीला युवक।
सजीव - (वि.) (तत्.) - 1. जिसमें जीवन या प्राण हो। पर्या. जीवंत, प्राणयुक्त, जानदार। 2. जो दर्शक की आँखों के सामने प्रत्यक्ष रूप से न होकर भी किसी माध्यम से दर्शक के सामने प्रत्यक्ष घटित होता दिखाई दे। जैसे: टीवी के माध्यम से क्रिकेट का प्रसारण। live 3. प्रभावशाली, ओजस्वी जैसे प्रकृति का सजीव वर्णन। विलो. निर्जीव।
सटना अ.क्रि. - (देश.) - 1. आपस में दो वस्तुओं या व्यक्तियों का इस प्रकार मिलना कि दोनों एक साथ एक दूसरे से लगे हुए प्रतीत हों। (चिपकना) 2. पास-पास होना। साथ होना।
सटीक - (वि.) (तत्.) - जिसमें मूल पाठ के साथ-साथ उसकी व्याख्या या टीका भी हो, टीका सहित। 2. बिलकुल ठीक, उपयुक्त। उदा. उसका कथन (पूरी तरह से) सटीक था। apt
सड़सठ - (वि.) (तद्.>सप्तषष्टि) - जो गिनती में साठ से सात अधिक हो। जैसे: हमारे विद्यालय में सड़सठ कक्ष हैं। पुं. साठ और सात की संख्या (67) जैसे: पचास और सत्रह का योग सड़सठ होगा।
सड़ाँध - (स्त्री.) (देश.<सड़न+गंध) - 1. ऐसी दुर्गंध जो किसी सड़ी हुई या सड़ती हुई चीज से निकलती है। 2. घावों, फोड़ों आदि के जहरीले होकर सड़ने पर निकलने वाली दुर्गंध।
सड़ाना (प्रेर.सड़ना) - (तद्>सरण) - सा.अ. किसी वस्तु को सड़ने या विकृत होने की स्थिति में पहुँचा देना। जैसे: उसने आम, जामुन आदि फलों को पैकेट बंद रखकर सड़ा दिया। ला.अ. 2. बहुत बुरी हालत करना। जैसे: तुमने उसके अपराध की सजा दिलवाकर उसे सात वर्ष तक जेल में सड़ाया।
सतत - (वि.) (तत्.) - बिना बीच में रुके लगातार किसी क्रिया का होने या रहने वाला। पर्या. अविच्छिन्न। अव्य. 1. निरंतर, लगातार। उदा. वह प्रात: से सतत अध्ययनरत है। 2. सदा, हमेशा। जैसे: सतत क्रियाशील
सतत पोषणीय विकास - (पुं.) (तत्.) - 1. संसाधनों का उपयोग करना और भविष्य के लिए उनके संरक्षण में संतुलन बनाए रखना। 2. ऐसे संसाधनों का विकास जो भावी पीढ़ी के लिए भी निरंतर उपादेय बने रहें। 3. निरंतर उपादेय तत् वों/संसाधनों का विकास।
सतरंगा/रंगी - (वि.) (तद्.<सात+रंगी) - 1. सात रंगों वाला/ली। जैसे: सतरंगी इंद्रधनुष। 2. कई प्रकार के रंगों वाला, रंगारंग। उदा. सतरंगा (रंगारंग) कार्यक्रम।
सतर्क [स+तर्क] - (वि.) (तत्.) - 1. शा.अर्थ तर्क या युक्ति के साथ, तर्कपूर्ण rational, logical विक. अर्थ- सावधान, सजग, होशियार। alert
सतर्कता - (स्त्री.) (तत्.) - 1. सावधान रहने का भाव; बरती गई सावधानी। alertness 2. प्रशा. कर्मचारियों के व्यवहार और उनकी ईमानदारी पर नज़र रखना और शिकायतें आने पर उनकी छान-बीन करना। vigilance
सतह - (स्त्री.) (अर.) - 1. किसी वस्तु का ऊपरी हिस्सा या तल। उदा. मेज की सतह। 2. वह विस्तार या ऊपर का फैलाव, जिसकी केवल लंबाई-चौड़ाई बताई जाए, गहराई नहीं। जैसे: पानी या जमीन की सतह। पर्या. तल, पृष्ठ (सरफेस; लैबल)
सतही - (वि.) - 1. जिसका संबंध सतह से हो। जैसे: सतही नापजोख। 2. ला.अर्थ हलके स्तर का यानि जिसमें गंभीरता का अभाव हो। जैसे: सतही कार्य, सतही दृष्टिकोण।
सताना स.क्रि. - (तत्.(संतापन) - 1. परेशान करना, पीड़ित करना। 2. दु:ख देना/मानसिक कष्ट पहुँचाना।
सती - (वि.) (तत्.) - पति के अतिरिक्त कभी भी किसी अन्य पुरुष के विषय में विचार न करने वाली (स्त्री) साध्वी, पतिव्रता। जैसे: सती सीता, सती अनसूया आदि। 2. वह (स्त्री) जो पति की मृत्यु के बाद अपने प्राण दे दे। स्त्री. पुराणों के अनुसार दक्ष प्रजापति की पुत्री तथा शिव की पहली पत्नी।
सती प्रथा - (स्त्री.) (तत्.) - प्राचीनकाल में, भारत में प्रचलित ऐसी प्रथा (रीति/नियम) जिसके अनुसार पतिव्रता स्त्री अपने पति की मृत्यु के पश्चात् अपने जीवन को निरर्थक मानते हुए पति के शव के साथ चिता में जलकर अपने प्राण दे देती थी। उदा. उत्तम पतिव्रता-उत्तम के अस बस मन माँहीं। सपनेहुँ आना पुरुष जा नाहीं।। (रा.च.मा.)
सत्/सत - (पुं.) (तत्.) - व्यु.अर्थ ऐसा सत्य या सत्ता जो सार्वकालिक हो। शा.अर्थ 1. सत्य, यथार्थ; श्रेष्ठ, पवित्र। सा.अर्थ 2. सत्यपूर्ण धर्म। 3. मूल तत् त्व। 4. सत्ययुग। 5. किसी चीज में से निकाला हुआ सार, सत्व। विलो. असत्।
सत्कर्म (सत् (अच्छा)+कर्म) - (पुं.) (तत्.) - 1. अच्छा काम या शुभ कर्म। 2. दूसरों की सहायता, अतिथि सत्कार आदि कर्म।
सत्कार - (पुं.) (तत्.) - (घर) आने वाले मेहमान/अतिथि का समुचित आदर, सम्मान या सेवा। पर्या. खातिरदारी।
सत्कार्य - (वि.) (तत्.) - सत्कार के योग्य, सम्मान योग्य। जैसे: अतिथि-सत्कार सत्कार्य ही होता है। पुं. अच्छा काम, सत्कर्म। जैसे: हम सत्कार्य ही करते रहें, यही उचित है।
सत्ता - (स्त्री.) (तत्.) - 1. मूर्त रूप से वर्तमान होने की अवस्था। अस्तित्व, विद्यमानता। 2. सामर्थ्य, शक्ति। विलो. अभाव, अनस्तित्व। उदा. निरीश्वरवादी ईश्वर की सत्ता में विश्वास नहीं करते। 3. वह शक्ति जो किसी पद पर रहने पर प्राप्त होती है, जैसे: सत्ता में आना, राज सत्ता। power पुं. (सात) ताश के किसी भी रंग काक वह पत्ता जिस पर सात बूटियाँ बनी हो।
सत्ताधारी - (वि./पुं.) (तत्.) - (वह व्यक्ति या दल) जिसे किसी प्रकार की सत्ता प्राप्त हो। सत्तावान। दे. सत्ता
सत्तारुढ़ [सत्ता+आरुढ़] - (वि.) (तत्.) - जिसके हाथ में शासन की बागडोर हो या जिसके हाथ में सत्ता हो। शासक। पर्या. सत्तासीन, सत्तावान। विलो. सत्ताच्युत।
सत्य - (वि./पुं.) (वि.) - जैसा देखा, समझा, सुना वैसा का वैसा कह देना। आपकी बात सत्य है। पुं. सत्य की सदा जीत होती है।
सत्याग्रह [सत्य+आग्रह] - (पुं.) (तत्.) - 1. सत्य की रक्षा एवं पालन करने के लिए किया गया विनम्र अनुरोध या हठ। 2. (राज) किसी सत्ता या शासक की अन्यायपूर्ण नीतियों के विरुद्ध किया जाने वाला वह आंदोलन जो अहिंसात्मक तथा असहयोग या आज्ञाभंग के रूप में होता है। जैसे: महात्मा गाँधी ने नमक सत्याग्रह किया था।
सत्यानाश - (पुं.) (तद्.>सत्तानाश) - किसी वस्तु की सत्ता पूरी तरह नष्ट हो जाना। नामोनिशान न रह जाना। पर्या. सर्वनाश, बरबादी, ध्वंस।
सत्यानाशी - (वि.) (तद्.) - धन-सम्पत्ति या किसी अच्छे काम को नष्ट-भ्रष्ट कर देने वाला।
सत्र - (पुं.) (तत्.) - मूल अर्थ यज्ञ आदि का काल जिसमें यज्ञ का अनुष्ठान शुरू होकर समाप्ति तक चलता रहता है। सा.अ. 1. साधुओं या निर्धनों को मुफ्त भोजन की व्यवस्था, अन्नसत्र। पर्या. लंगर, भंडारा, सदावर्त। 2. विधि. संसद अथवा किसी अन्य विधायिका के लगातार कार्यरत रहने की एक अवधि। अधिवेशन। session 3. शिक्षा. किसी पाठ्यचर्या को पूरा करने के लिए निश्चित अवधि। term
सत्व (सत्व) [सत्+त्व] - (पुं.) (तत्.) - 1. होने का भाव सत्ता, अस्तित्व। 2. प्रकृति, मूल तत् व। 3. जीवनी शक्ति, चेतना, प्राण तत् त्व। 5. प्राणधारी जीव।
सदका - (पुं.) (अर.) - 1. व्यक्ति के भावी जीवन की शुभकामना हेतु उसके सिर पर चारों ओर घुमाकर कोई चीज दान करने के लिए उतारना, निछावर। 2. शाब्दिक स्तर पर भी ‘सदके जावाँ’ कहकर उपर्युक्त भावना की आंगिक अभिव्यक्ति।
सदन - (पुं.) (तत्.) - 1. घर, 2. भवन। 2. वह निर्धारित स्थान जिसमें किसी विषय पर विचार करने या नियम, विधान आदि बनाने वाली सभा का अधिवेशन होता है। 3. इस प्रकार का स्थान तथा उसके सदस्य। जैसे: ‘संसद’ में दो सदन होते हैं लोकसभा और राज्यसभा।
सदर - (वि.) (अर.>सद्र) - 1. किसी संस्था का प्रमुख, अध्यक्ष। 2. किसी राज्य का प्रधान शासक। जैसे: सदर ए-रियासत। 3. पद के आधार पर बड़ा। 4. मुख्य या प्रधान। जैसे: सदर बाजार। (मुख्य बाजार)
सदरी - (स्त्री.) (अर.>सद्री) - शरीर के अन्य कपड़ों के ऊपर पहनने का सिला हुआ बिना बाहों वाला वस्त्र। waist coat
सदस्य - (पुं.) (तत्.) - किसी सभा, समाज, संगठन, विधायिका आदि का अंगभूत में सम्मिलित प्रत्येक व्यक्ति। member
सदाचरण [सत्+आचरण] - (पुं.) (तत्.) - 1. व्यक्ति द्वारा किया जाने वाला उत्तम आचरण (व्यवहार)। 2. अच्छा चाल-चलन, उत्तम चरित्र। जैसे: सदाचरण से व्यक्ति महान् बनता है। पर्या. सदाचार। विलो. कदाचरण।
सदाचार (सत्+आचार) - (पुं.) (तत्.) - वह व्यवहार या आचरण जो धार्मिक, नैतिक या सामाजिक दृष्टि से उत्तम तथा अनुकरणीय हो। अच्छा चरित्र। अच्छा चाल चलन। जैसे: सदाचार से ही जीवन को गति मिलती है। विलो. कदाचार।
सदाबहार - (वि.) (तत्.>सदा+फा.बहार) - सा.अ. सदा हरा-भरा रहने वाला (वृक्ष)। ला.अ. हर समय प्रसन्न रहने या दिखने वाला (कोई व्यक्ति)। पुं. एक प्रसिद्ध फूल का पौधा जो हर ऋतु में फूलता है।
सदिच्छा [सत्+इच्छा] - (स्त्री.) (तत्.) - ऐसी इच्छा जो दूसरों की भलाई करने की भावना से मन में उत्पन्न हुई हो या अभिव्यक्त हुई हो। पर्या. शुभकामना।
सदी - (स्त्री.) (तत्.) - किसी विशेष पंचांग (कैलेंडर) के अनुसार सौ वर्ष, शताब्दी, शती, ग्रेगोरियन कैलेंडर के अनुसार। जैसे: बीसवीं सदी (1901 से 2000 ईं. तक) पाँचवी सदी ई. पू. (500-401 ई.पू.)।
सदुपदेश [सत्+उपदेश] - (पुं.) (तत्.) - 1. किसी श्रेष्ठजन द्वारा दिया जाने वाला सुमार्ग पर चलने का उपदेश, उत्तम शिक्षा। 2. अच्छी सलाह। जैसे: गुरुजनों के सदुपदेश से हमारा जीवन सुंदर बन गया।
सद्भाव [सत्+भाव] - (पुं.) (तत्.) - 1. अच्छा भाव, अच्छा आशय, अच्छी नीयत। 2. छल-कपट, द्वेष आदि से रहित विचार/भावना। विलो: दुर्भाव।
सद्भावना - (स्त्री.) (तत्.) - किसी व्यक्ति या समूह के प्रति दूसरे व्यक्ति या समूह द्वारा मनसा, वाचा, कर्मणा व्यक्त या प्रकट की गई अच्छी या शुभ भावना। विलो. सद्भावना।
सद्य: क्रि.वि. - (वि.) (तत्.) - हाल ही में, अभी-अभी, थोड़े समय पहले ही। उदा. सद्य: प्रकाशित पुस्तक, सद्य स्नात महिला।
सधाना - - स.क्रि (सधना+प्रेरणा, सं.-साधयति) सा.अर्थ 1. किसी कार्य के साधने में दूसरे को प्रवृत्त करना। 2. अपना कार्य दूसरे के सक्रिय सहयोग से पूरा कराना। 3. पशु-पक्षी अथवा किसी व्यक्ति को अपने अनुसार कार्य करने के लिए प्रवृत्त, नियंत्रित एवं प्रशिक्षित करना।
सनक - (स्त्री.) (देश.) - 1. असामान्य धुन, प्रवृत्ति या आचरण। 2. किसी बात की अत्यधिक लगन। 3. पागलों जैसी धुन, खब्त। मुहा. सनक आना= पागलों जैसे काम में जुट जाना।
सनकी - (वि.) (देश.) - वह जिसमें सनक हो। दें- सनक
सनद - (स्त्री.) - (अर्.) 1. प्रमाण, सबूत; प्राथमिक कथन certificate 2. प्रमाणपत्र 3. उपाधि का प्रमाणपत्र degree जैसे- बोर्ड छात्र को लब्धांकपत्र देने के बाद ही सनद (परीक्षा का प्रमाणपत्र) देता है।
सनना अक. - (तद्.) - 1. किसी गाढे़ द्रव पदार्थ या बारीक कणों से सराबोर हो जाना, ऐसा लगे कि वह पदार्थ शरीर में सर्वत्र चिपक गया है। जैसे: रक्त से सनना, धूल से सनना आदि। 2. लिप्त होना, सम्मिलित होना। जैसे: इस कृत्य में कई बड़े अधिकारी सने हैं।
सनम - (पुं.) (अर.) - 1. प्रियतम, प्रिय, पति 2. परमात्मा की कल्पित प्रतिमा।
सनसनाना - - अनु अ.क्रि. 1. सन सन जैसी ध्वनि करते हुए हवा का बहना। 2. ‘सन सन’ जैसा शब्द करते हुए बहुत तेजी से दौड़ना, भागना।
सनसनी - (स्त्री.) (फा.) - 1. झुन झुनी, भय हर्षातिरेक आदि के कारण शरीर के संवेदन-सूत्रों का ऐसा स्पदन जिसमें कोई अंग जड़ जैसा होकर सनसन करता-सा जान पड़ता है। 2. किसी आश्चर्यजनक घटना की सूचना मिलने पर समाज में फैलने वाली स्तब्धता, घबराहट, खलबली।
सना - (वि.) (देश.) - 1. सनना क्रिया का भूतकालिक रूप। 2. एक या एक से अधिक पदार्थों से सराबोर। जैसे: धूल से सना 3. गीला किया हुआ। जैसे: 1. दूध-पानी से सना आटा। 2. खून से सने वस्त्र।
सनातन - (वि.) (तत्.) - 1. सदा बना रहने वाला, नित्य, शाश्वत। 2. अनादिकाल से चला आया हुआ। 3. परंपरागत। जैसे: सनातन मान्यता, सनातन धर्म। पुं. परमात्मा।
सन्न - (वि.) (तत्.) - शा.अर्थ बैठा हुआ, गतिहीन। सा.अ.- 1. किसी अवांछित परिणाम या भय से स्तब्ध। 2. आश्चर्यचकित। मुहा. सन्न रह जाना=अवाक़ हो जाना।
सन्नाटा अनु. - (पुं.) - 1. ऐसी स्थिति जिसमें किसी प्रकार का शब्द न सुनाई पड़े, पूर्णत: नि:शब्द या शांत वातावरण, नीरवता, घोर चुप्पी। उदा. चारों ओर घोर सन्नाटा पसरा हुआ था। 2. निर्जनता, चहल-पहल का अभाव।
सन्मार्ग [सत्+मार्ग] - (पुं.) (तत्.) - 1. सज्जनों के द्वारा बताया गया अनुकरणीय मार्ग। उदा. हमें सन्मार्ग पर चलना चाहिए। विलो. कुमार्ग
सपत्नीक - (वि.) (तत्.) - जो पत्नी के साथ हो। जैसे: उसका मित्र उत्सव में सपत्नीक आया था।
सपना - (पुं.) (तद्.स्वप्न) - 1. सोते समय मन की अवचेतन स्थिति में देखे जाने वाले दृश्य। पर्या. स्वप्न। 2. मन की वे कल्पनाएँ जिनके सच होने की संभावना होती है। जैसे- मेरा सपना है कि मैं शिक्षक बनूँ। 3. झूठी आशा। जैसे- कई लोग सपने दिखाकर लूट लेते हैं। मुहा. सपना हो जाना=दुर्लभ हो जाना। सपन देखना/दिखाना=सुखद भविष्य की कल्पना करना।
सपाट - (वि.) (तद्.) - जिसकी सतह लगभग समतल हो; जिसमें ऊँचाई-निचाई न हो। जैसे: सपाट मैदान। ला.अर्थ- जिसमें स्वर के आरोह-अवरोह, भावनाओं के उतार-चढाव, घटनाओं की विलक्षणता अथवा कीमतों की घट-बढ़ का अभाव हो। जैसे: सपाट तान, सपाट कथानक, सपाट विवरण, सपाट दर आदि।
सपूत - (पुं.) (तद्.<सुपुत्र) - 1. वंश की कीर्ति बढाने वाला पुत्र। 2. उत्तम पुत्र, सुपुत्र, योग्य पुत्र। जैसे: सपूत से ही कुल धन्य होता है।
सप्तपदी - (स्त्री.) (तत्.) - विवाह की एक रीति जिसमें वर-वधू द्वारा अग्नि की परिक्रमा करने बे बाद वर इष्ट वचनों की पूर्ति के लिए वधू को पुन: सात पग चलाता है। जिसके बाद वे दोनों पति-पत्नी हो जाते हैं। भाँवर।
सप्तर्षि - (पुं.) (तत्.) - 1. भारतीय मान्यतानुसार सात ऋषियों का समूह (गौतम, भरद्वाज, विश्वामित्र, जमदग्नि, वसिष्ठ, कश्यप और अत्रि) 2. उत्तरी आकाश में स्पष्ट दिखाई पड़ने वाला सात तारों का समूह (तारामंडल) जो रात में ध्रुव तारे को केंद्र बनाकर परिक्रमा करता दिखाई देता है। पर्या. सप्तर्षिमंडल ursa-major
सफ़रनामा [सफ़र+नामा] - (पु.) (दे.) - (अ. फा.) देश- विदेश में पर्यटन करने का विस्तारपूर्वक वर्णन। भ्रमण-कथा, यात्रावृत्तान्त दे. सफ़र
सफल - (वि.) (तत्.) - शा.अर्थ फल (परिणाम) सहित। 1. जिसने कार्य पूर्ण कर लिया हो, कामयाब। 2. जिसके प्रयत्न स्वरूप उद् देश्य की पूर्ति हो गई हो। 3. जिसने परीक्षा उत्तीर्ण कर ली हो। विलो. असफल।
सफलता - (स्त्री.) (तत्.) - सफल होने का भाव, कामयाबी, सिद्धि। दे. सफल विलो. असफलता।
सफा - (पुं.) (वि.) - (अर्.सफ्आ) पुस्तक या किताब का पृष्ठ। जैसे: इस शब्द को पाठ्यपुस्तक ‘ज्ञान राशि’ के सफा 22 में देखें। 1. साफ, स्वच्छ। जैसे: सफा कक्ष, सफा चबूतरा। 2. साफ करने वाला। जैसे: बालसफा पाउडर। 3. खाली जेबकतरे ने उसकी जेब सफा कर दी। क्रि. वि. पूरी तरह से; स्पष्टता से । जैसे: रूपए माँगने पर वह सफा मुकर गया।
सफाचट - (वि.) (अर.<सफा+चट (हि.) - 1. जिसे पूरी तरह साफ कर दिया गया हो। अर्थात् जिस पर लगी हुई या जमी हुई सभी मैल आदि हटा दी गई हों। 2. बिल्कुल साफ/स्वच्छ। जैसे: सफाचट कमरा, सफाचट शिर।
सफेदपोश - (वि.) (फा.) - 1. सफेद वस्त्र पहनने वाला। 2. सभ्य, सज्जन, शिक्षित, कुलीन। जैसे: आजकल बहुत से सफेदपोश अपराधी दिखने लग गए हैं।
सबक - (पुं.) (अर.) - 1. किसी व्यवहार या घटना के अनुभव से मिली सीख या शिक्षा, नसीहत। 2. पाठ, जितना एक दिन में गुरु से पढ़ा जाए।
सबब - (पुं.) (अर.) - कारण, वजह, हेतु। विलो. बेसबब=बिना कारण के, अकारण।
सब्ज - (वि.) (फा.) - 1. हरा (रंग) 2. कच्चा और ताजा (फल, फूल आदि) 3. सुंदर और लहराता हुआ। मुहा. सब्जब़ाग दिखलाना=अपना काम निकालने के लिए या किसी जाल में फँसाने के लिए झूठी उम्मीद जगाना।
सब्जी - (स्त्री.) (फा.) - सब्ज़=हरा+ई 1. मूल अर्थ-धरती पर या मृदा में पैदा होने वाला कोई भी पादप। जैसे- (हरी) घास, हरियाली, वनस्पति आदि 2. वह (हरा) पौधा या उस पर लगा फल जो पका कर भोजन का एक अंग बनता है। vegetable
सब्बल - (पुं.) (फा.) - लोहे का एक उपकरण जो पथरीली जमीन को खोदने या भारी चीजों को उठाने /हटाने में काम आता है।
सब्र - (पुं.) (अर.) - 1. धैर्य जैसे: सब्र करो तुम्हें भी प्रसाद मिलेगा। 2. संतोष जैसे: मुझे तो सूखी रोटी से ही सब्र करना पड़ा।
सब्सिडी - (स्त्री.) - (अं.) 1. एक आर्थिक सहायता जो किसी उत्पादन को बढावा देने के लिए या किसी अन्य सामाजिक हित की दृष्टि से सरकार द्वारा दी जाती हैं। सरकारी आर्थिक मदद, इमदाद।
सभा - (स्त्री.) (तत्.) - किसी प्रयोजन विशेष के लिए खुले मैदान में अथवा बंद भवन में नियत समय पर जमा लोगों का समूह। assembly meeting
सभागार [सभा+आगार] - (पुं.) (तत्.) - वह स्थान या भवन जहाँ पर सभा का कार्यालय हो तथा सभा की बैठकों और सार्वजनिक या रंगमचीय कार्यक्रमों आदि का आयोजन किया जाता है। पर्या. सभागृह।
सभागृह - (पुं.) (तत्.) - वह कमरा जहाँ सभा होनी हो अथवा हुई हो। दे. सभा।
सभापति - (पुं.) (तत्.) - सभा, सम्मेलन, संस्था आदि की अध्यक्षता करके कार्य का नियमन करने वाला प्रमुख व्यक्ति विशेष। दे. सभा।
सभाभवन - (पुं.) (तत्.) - सभा आयोजित करने के लिए निर्मित भवन।
सभामंडप - (पुं.) (तत्.) - 1. वह स्थान जहाँ किसी प्रयोजन से लोग या समाज एकत्रित होते हैं। 2. देवालयों में वह स्थान जहाँ लोग बैठकर भजन या कथाश्रवण या सांस्कृतिक कार्यक्रम देखते एवं सुनते हैं। 3. जनसभा के लिए बनाया गया मंडप।
सभासद - (पुं.) (तत्.) - किसी सभा, संस्था आदि का निर्वाचित या नामित सदस्य जो उसकी कार्यवाही में भाग लेने का अधिकारी हो। पर्या. सदस्य member
सभी (सब+ही) - (वि.) - सब के सब, बिना किसी को छोड़े, प्रत्येक।
सभ्य - (वि.) (तत्.) - शा.अ. सभा के योग्य। सा.अ. शिष्टाचारपूर्ण व्यवहार करने वाला, शिष्ट, विनीत। civilized जैसे: यह सभ्य लोगों का कार्यक्रम है। विलो. असभ्य।
सभ्यता [सभ्य+ता] - (स्त्री.) (तत्.) - 1. मानव जाति के विकास की वह उन्नत अवस्था जिसमें सामाजिक तौर पर सभी लोगों का परस्पर व्यवहार सद् भावनापूर्ण है और जिनका एक मिली- जुली संस्कृति के निर्माण में पूरा योगदान रहता है। 2. किसी भौगोलिक क्षेत्र विशेष के अथवा ऐतिहासिक कालखंड के लोगों के सामाजिक, सांस्कृतिक जीवन और रहन-सहन के तौर तरीके। (सिविलिजेशन)
सम - (वि.) (तत्.) - शा.अ. समान, तुल्य, बराबर। जैसे: समभाग सा.अ. 1. जो उम्र, रूप, गुण, आकार आदि की दृष्टि से बराबर हो। बराबरी वाला। 2. जिसका तल बराबर एक जैसा हो। जैसे: समभूमि 3. (गणित) वह संख्या जो दो से विभाज्य हो। विलो. विषम।
समकक्ष - (वि.) (तत्.) - 1. तुल्य, समान, बराबर 2. बराबरी वाला, जोड़ीदार, स्पर्धा रख सकने वाला। जैसे: तुम्हारे समकक्ष वीणावादक कोई नहीं है। पर्या. समतुल्य।
समकालीन - (वि.) (तत्.) - (भाव. समकालीनता) एक समय में रहने वाला या होने वाला। जैसे: कवि तुलसीदास और रहीम समकालीन माने जाते हैं। पर्या. समकालिक, समसामयिक। समकालीन उत्सव।
समक्ष - (अव्य.) (तत्.) - आँखों के सामने, सम्मुख; प्रत्यक्ष। प्रर्या. आपके समक्ष= के सामने, के सम्मुख
समग्र - (वि.) (तत्.) - (भाव.संज्ञा समग्रतस) सारा, समस्त, आदि से अंत तक जितना हो, वह सब, कुल मिलाकर। प्रर्या. समग्र दृष्टि से विचार करें तो…..।
समग्रता - (स्त्री.) (तत्.) - संपूर्णता का भाव। पर्या. सकलता। दे. समग्र।
समझ - (स्त्री.) (तद्.<संबुद्ध) - 1. अपने ज्ञान और कौशल के अनुप्रयोग की योग्यता। जैसे: आपकी बात मेरी समझ से बाहर है। 2. सूरदार के पद का अर्थ मेरी समझ में पूरी तरह से आ गया। 3. बुद्धि, खयाल, जानकारी, बोध।
समझदार [समझ+दार] - (वि.) - (समझ-तद् +दार फा. प्रत्यय) समझ रखने वाला। पर्या. बुद्धिमान, अकलमंद दे. समझ।
समझदारी [समझदार+ई] - (स्त्री.) (दे.) - समझदार होने की भावना या स्थिति दे. समझदार<समझ
समझना स.क्रि. - (तत्.>संबुद् धिशा.अ.) - विचारपूर्वक जानकारी प्राप्त करना। अन्य अ. 1. किसी बात को अच्छी तरह विचार करके ध्यान में लाना या किसी बात का मनन करना। जैसे: उसने तुम्हारे कथन को ठीक समझा। Understand) 2. किसी समस्या आदि की स्थिति को देखकर उसके संबंध में संपूर्णता से अनुमान या कल्पना करना। जैसे: हम तुम्हारी विकट समस्या को सुनकर समझ गए कि इसके कारक कौन थे। deem
समझाना प्रेर.>समझना - (तद्.) (दे.) - 1. किसी बात को पूरी तरह इस प्रकार स्पष्ट करना जिससे दूसरा व्यक्ति सही ढंग से समझ जाए। 2. किसी को विशेष कार्य करने के लिए या किसी कार्य से रोकने के लिए प्रेरित करना। दे. समझना।
समझौता - (पुं.) (देश.) - लड़ाई, झगड़ा, व्यवहार, लेन-देन आदि के संबंध में विवाद होने पर दो या अधिक व्यक्तियों/पक्षों/दलों द्वारा मिल बैठकर किया जाने वाला निश्चय/निर्णय/निपटारा, करार। जैसे: ज़मीन के विवाद को उन्होनें आपसी समझौते से सुलझा दिया।
समतल [सम+तल] - (वि.) (तत्.) - शा.अ. तल की समता या समानता। जिसकी सतह या तल सपाट हो/ बराबर हों, अर्थात् ऊबड़-खाबड़ न हों। पर्या.- हमवार उदा. समतल मैदान।
समतलक - (पुं.) (तत्.) - कृषि संबंधी एक उपकरण जो खेत या ऊबड़-खाबड़ तथा ऊँची-नीची जमीन को समतल करने के काम आता है। पाटा या पहटा। Leveler दे. समतल।
समता [सम+ता] - (स्त्री.) (तत्.) - सा.अर्थ समान या बराबर होने का भाव। धर्म, मूल वंश, जाति, लिंग, जन्म स्थान आदि के आधार पर नागरिकों के बीच किसी प्रकार का भेदभाव न किए जाने की स्थिति। eqnality
समतापमंडल - (पुं.) (तत्.) - पृथ्वी के वायुमंडल को उसके घटकों, तापमान इत्यादि के आधार पर पाँच परतों में बाँटा गया है। पृथ्वी की सतह से ऊपर की ओर प्रथम परत क्षोभमंडल तथा दूसरी परत ‘समतापमंडल’ कहलाती है जो भूमितल से 11 से 24 किमी ऊँचाई तक मापी जाती है। समतापमंडल में तापमान सम रहता है। Stratosphere
समतापरक [समता+परक] - (वि.) (तत्.) - समभाव, निष्पक्षता, उदारता आदि भावों से युक्त। जैसे: समतापरक समाज। दे. समता
समतुल्य [सम+तुल्य] - (पुं.) (तत्.) - (वे दो या एकाधिक वस्तुएँ) जिनमें तुलना करने पर समता/समानता (या विषमता) दृष्टिगोचर हो।
समतुल्यता - (स्त्री.) (तत्.) - दो वस्तुओं, परिस्थितियों आदि के गुणदोषों की तुलना करने पर उनमें दिखाई पड़ने वाली समानताओं (या विषमताओं) की स्थिति। जैसे: समतुल्यता का सिद्धांत।
समन - (पुं.) - (अं.सम्मन) न्यायालय का वह आदेशपत्र जिसमें किसी को न्यायालय में उपस्थित होने की आज्ञा दी जाती है। जैसे: दहेज मांगने के संबंध में उसे समन मिला है।
समन्वय [सम+अन्वय] - (पुं.) (तत्.) - 1. दो या दो से अधिक वस्तुओं, व्यक्तियों आदि में दिखाई पड़ने वाला या अपेक्षित परस्पर मेल का भाव अर्थात् विरोध या असहमति का अभाव। विभिन्न परिस्थितियों, कार्यों या व्यक्तियों के बीच सामरस्य की स्थापना और ताल-मेल बिठाने की क्रिया। co-ordination
समन्वयक [सम्+अन्वय+क] - (पुं.) (तत्.) - ताल-मेल बिठाने वाला, एकता या एक रूपता लाने वाला, समन्वय स्थापित करने वाला (व्यक्ति) co-ordinator दे. समन्वय।
समन्वयन [सम्+अन्वयन] - (पुं.) (तत्.) - अर्थ. किन्हीं वस्तुओं या व्यक्तियों में परस्पर इस प्रकार तालमेल बनाना कि वे अधिक अच्छी तरह काम कर सकें। शा.अ. तालमेल होने का भाव या क्रिया। सा.अ. 1. नियमित क्रम। 2. तालमेल adjustmnet 3. एक दूसरे के साथ मिलकर परस्पर पूरक होने का भाव। उदा. समुचित शैक्षिक विकास के लिए शिक्षकों एवं छात्रों में समन्वयन होना जरूरी है। co-ordination
समन्वयात्मक [समन्वय+आत्मक] - (वि.) (तत्.) - समन्वय से युक्त, समन्वय की प्रकृति से संबंधित दे. समन्वय।
समन्वित - (वि.) (तत्.) - शा.अर्थ जिसका समन्वय (तालमेल) किया गया हो। सा.अर्थ. 1. स्वाभाविक रूप में क्रमबद् ध। 2. तालमेल या सामंजस्य से युक्त। 3. संयुक्त/किसी के साथ मिला या लगा हुआ। co-ordinate दे. समन्वयन।
समय - (पुं.) (तत्.) - 1. किसी अस्तित्ववान प्राणी, पदार्थ, सत्व आदि की भूत से वर्तमान में, वर्तमान से भविष्य में चल रही अनंत यात्रा का समग्र रूप। पर्या. काल 2. अनंत काल का कोई क्षण या नियत खंड विशेष । जैसे: इसी समय, आधुनिक समय में आदि। 3. घंटों, मिनटों आदि में व्यस्त दिन-रात सूचक आल का कोई क्षण विशेष। जैसे: 1. क्या समय हुआ है? उत्तर- सात बजकर बीस मिनट। 2. तारे कब दिखाई पड़ते हैं/दिखाई नहीं पड़ते हैं? उत्तर- रात के समय (रात में)/ दिन के समय (दिन में) 4. निश्चित कालावधि। उदा. मुझे दो दिन का समय दीजिए। प्रयो. 1. उसका समय आ गया है। (मृत्यु का समय) 2. समय का फेर=अच्छे समय का बुरे में बदलना और बुरे समय का अच्छे में बदलना (निरंतर परिवर्तनशील समय) 3. समय काटना=किसी तरह बिना कुछ सार्थक किए समय बिताना। 4. समय का पक्का= वक्त का पाबंद, नियत समय पर काम करने वाला। 5. (उचित) समय पर। 6. समय से पहले। 7. समय के बाद 8. समय-कुसमय=अच्छा समय और बुरा समय।
समय आना अ.क्रि. - (तत्.+तद्.) (तद्.) - 1. मौत आना। जैसे: जब किसी का समय आ जाता है, तब उसे कोई दवा, वैद्य आदि कोई नहीं मौत से बचा सकते। 2. उचित अवसर मिलना। उदा. समय आने पर हम बता देंगे की हम क्या क्या है।
समय पालन - (पुं.) (तत्.) - समय का पालन। नियत समय पर आना-जाना और काम करना। panctuality
समयबद्ध [समय+बद्ध] - (वि.) (तत्.) - नियत समय में पूरा किया जाने वाला, निश्चित काल में पूरा होने वाला।
समयसाध्य - (वि.) (तत्.) - (समय साध्य) जिस समस्या को सुलझाने में या जिस कार्य को पूरा करने में अधिक समय लगने वाला हो। जैसे: यह कार्य समयसाध्य है, एक दो दिन में पूरा नहीं हो पाएगा।
समय-सारणी [समय+सारणी] - (स्त्री.) (तत्.) - रेलों, बसों आदि के आने-जाने का समय बताने वाली तथा कुछ अन्य सूचनाएँ (जैसे: किराया, दूरी आदि) भी देने वाली पुस्तिका। time-table
समयानुकूल [समय+अनुकूल] - (वि.) (तत्.) - उचित समय पर।
समयाभाव [समय+अभाव] - (पुं.) (तत्.) - नित्य के कार्यों या आवश्यक कार्यों की व्यस्तता की वजह से अन्य कार्यों के करने का समय न होना या न बचना।
समयोचित [समय+उचित] - (वि.) (तत्.) - 1. जो परिस्थिति के अनुसार लाभप्रद या उचित हो। 2. वर्तमान परिस्थिति में उपयोगी। जैसे: समयोचित निर्णय। पर्या. समयानुकूल।
समर - (पुं.) (तत्.) - 1. संग्राम, लड़ाई। जैसे: समर तो वीरों का ही काम है। 2. किसी प्रकार का युद् ध। 2. शास्त्र-समर में पराजित विद् वान ने विजेता का शिष्यत्व स्वीकार कर लिया।
समरसता [सम+रसता] - (स्त्री.) (तत्.) - 1. सदा एक-सा रहना। 2. एकाधिक व्यक्तियों में विचारों की समानता का होना।
समरूप - (वि.) (तत्.) - जो रूप की दृष्टि से एक दूसरे के समान हो। एकरूप, एक सदृश। जैसे: जुड़वाँ बच्चे प्राय: समरूप होते हैं।
समरूपता - ([समरूप+ता]) (तत्.) - समरूप होने का भाव। दे. समरूप।
समर्थ - (वि.) (तत्.) - 1. शक्ति या सामर्थ्य रखने वाला। समरथ (समर्थ) को नहिं दोस गुसाँई 2. किसी कार्य को पूरा कर सकने की पर्याप्त योग्यता रखने वाला। पर्या. योग्य, लायक, काबिल able 3. कानूनी अधिकार प्राप्त संगठन। जैसे: समर्थ न्यायालय।
समर्थक - (वि.) (तत्.) - 1. समर्थन करने वाला जैसे: इस चुनाव में तुम्हारे समर्थकों ने बहुत परिश्रम किया। 2. किसी प्रत्याशी के नाम का अनुमोदन करने वाला, अनुमोदक।
समर्थन - (पुं.) (तत्.) - अनुमोदन, किसी के प्रस्तुत प्रस्ताव, विचार आदि पर अन्य व्यक्ति द् वारा प्रकट की गई अपनी भी सहमति।
समर्थन-मूल्य - (पुं.) - किसानों के हितों की रक्षा के लिए महत्वपूर्ण फसल (जैसे: गेहूँ, मक्का, गन्ना आदि) के अवसर पर सरकार द्वारा घोषित न्यूनतम भाव। टि. यदि मंडी में उसका भाव नीचे चला जाए तो सरकार घोषित मूल्य पर उस फसल को खरीद लेती है। support price
समर्पण - (पुं.) (तत्.) - 1. किसी को आदर के साथ कुछ देना, भेंट करना, अर्पित करना। dedication 2. युद्ध हार जाने पर विजेता पक्ष के सामने हथियार डाल देना। surrender तु. आत्म समर्पण
समर्पित - (वि.) (तत्.) - जिसका समर्पण हुआ या किया गया हो। दे. समर्पण।
समवयस्क - (वि.) (तत्.) - समान आयुवाला, जो आपस में बराबर की उम्र के हों। हम उम्र। जैसे: तुम मेरे समवयस्क हो, पर दिखने में कितने बड़े लगते हो!
समवितरित - (वि.) (तत्.) - शा.अर्थ जो समान रूप से वितरित (बाँटी) की गई हो। (भू.) पारि.अर्थ वर्ष भर समान रूप से होने वाली ऊँची वर्षा। उदा. चाय की पत्तियों की वृद् धि के लिए वर्षभर समवितरित उच्च वर्षा की आवश्यकता होती है।
समष्टि - (स्त्री.) (तत्.) - जितनी इकाइयाँ हों, उन सबका सामूहिक नाम; एक जैसों का समूह या समुच्चय। विलो. व्यष्टि।
समसामयिक - (वि.) (तत्.) - समकालीन।
समस्त - (वि.) (तत्.) - 1. संपूर्ण, सब। जैसे: इस विद्यालय के समस्त छात्र उत्तीर्ण हो गए। 2. जुड़ा हुआ। 3. (व्या.) समासयुक्त (शब्द)। जैसे: हिमालय।
समस्या - (स्त्री.) (तत्.) - कठिनाई पैदा करने वाली बात जो आसानी से समझ में आए; जो आसानी से न सुलझे। पर्या. उलझन। problem
समाकलित [सम्+आक़लित] - (वि.) (तत्.) - सा.अर्थ (जैसे ज़मीन खोदना, सफाई करना, बीज के लिए छिद्र करना, उस में बीज डालना आदि) वह (यंत्र इत्यादि) जो विभिन्न अंग-उपांगों के प्रकार्यों को समेकित रूप में करे। multi functional machine समा.अर्थ 1. एकीकृत 2. एकीभूत 3. अंगांगी के रूप में समन्वित। टि. गणित में समाकलन की विधि भिन्न है।
समाकलित करना स.क्रि. - (तद्.) - एक ही प्रकार के उत्पादन या निर्माण से संबंधित कई प्रकार के कार्यों को एक साथ एक ही स्थान पर निष्पादित करना।
समाचार - (पुं.) (तत्.) - 1. वर्तमान में हुई किसी घटना की खबर, सूचना। तत् काल प्राप्त कोई नया या ताजा वृत्त या हाल। 2. वृत्तान्त, हालचाल। जैसे: तुम्हारी पदोन्नति का समाचार सुनकर मन प्रसन्न हो गया।
समाचार चैनल - (पुं.) - (समाचार-सं+चैनेल-अं.) वह टी.वी. चैनल जो केवल समाचारों का ही प्रसारण करे। news channel
समाचार-पत्र - (पुं.) (तत्.) - विविध प्रकार के समाचारों से युक्त नियमित रूप से प्रकाशित होने वाला वृत्त-पत्र; ‘अखबार’ जैसे: ‘हिंदुस्तान’ (दैनिक), ‘हिंदुस्तान टाइम्स’, ‘जनसत्ता’ आदि।
समाज - (पुं.) (तत्.) - 1. किसी क्षेत्र या भूखंड में मिलजुल कर रहने वाले मनुष्यों का समुदाय जिनकी समान संस्कृति होने से वे अपनी विशिष्ट पहचान रखते हैं। जैसे: अग्रवाल समाज 2. धर्म के आधार पर बने समुदाय; जैसे: मुस्लिम समाज 3. एक ही प्रकार का काम करने वाले लोगों का वर्ग, समूह। जैसे: कृषक समाज, माली समाज, वाल्मीकि समाज 4. किसी विशिष्ट उद्देश्य से स्थापित की हुई सभा/समिति। जैसे: संतसमाज, स्त्री समाज
समाज विज्ञान (समाज+विज्ञान) - (पुं.) (तत्.) - ज्ञान की वह शाखा जिसमें समाज का व्यस्थित और वैज्ञानिक रीति से अध्ययन किया जाता है। तु. सामाजिक विज्ञान
समाजवाद - (पुं.) (तत्.) - राजनीति का वह सिद्धांत जो भूमि और उत्पादन के संसाधनों पर सामाजिक अधिकार पर बल देता है तथा आर्थिक समानता का पोषक है। socialism
समाजवादी - (वि.) - 1. समाजवाद से संबंधित। 2. समाजवाद के सिद् धांतो को मानने वाला। socialist
समाज विरोधी (समाज-विरोधी) - (वि.) (तत्.) - 1. समाज में परस्पर समुदायों के मध्य झगड़ा कराने वाले सामाजिक संपत्ति को तहस-नहस करने वाले तथा समाज में कटुता एवं घृणा फैलाने वाले (लोग)। जैसे: हमें समाजविरोधी तत् वों से हमेशा सावधान रहना चाहिए। 2. सामाजिक मान्यताओं के प्रतिकूल (बातें)।
समाज शास्त्र - (पुं.) (तत्.) - वह शास्त्र जो मनुष्यों के समाज और संस्कृति की उत्पत्ति, विकास, उनके परस्पर संबंधों तथा सामाजिक संस्थाओं आदि का विवेचन करता है। sociology
समाजशास्त्री - (वि.) - समाजशास्त्र का विद्वान।
समाजसेवा [समाज+सेवा] - (स्त्री.) (तत्.) - 1. समाज के सहृदय एवं उदार लोगों के द् वारा समाज के अन्य अपेक्षित व्यक्तियों को अपेक्षित सहायता पहुँचाने की दृष्टि से की जाने वाली सेवा, मदद। 2. समाज के लोगों की सेवा। जैसे: समाजसेवा से कोई व्यक्ति या समुदाय समाज का कृतज्ञ होता है।
समाजीकरण - (पुं.) (तत्.) - 1. समाज के सभी वर्गों के लोगों को सामाजिक दृष्टि से उपयुक्त बनाना 2. सभी को समाज में मिल-जुल कर रहने के उपयुक्त बनाना।
समाज्ञी - (स्त्री.) (तत्.) - 1. सर्वोपरि शासिका, साम्राज्य की रानी। 2. सम्राट की पत्नी। empress
समाधान [सम्+आधान] - (पुं.) (तत्.) - प्राचीन अर्थ-साथ-साथ रखना, मिलाना। आधुनिक अर्थ 1. किसी समस्या के प्रसंग में उठे प्रश्नों का समुचित हल निकालने की प्रक्रिया और तत् संबंधी बताया गया तरीका और सुझाए गए उपाय। solution 2. किसी शंका या संदेह और उठाई गई आपत्ति के निवारण अथवा निराकरण के लिए प्रस्तुत स्पष्टीकरण और आपत्तिकर्ता को उससे मिलने वाली संतुष्टि। removal of a daubty objection
समाधि - (स्त्री.) (तत्.) - 1. ध्यान की वह अंतिम अवस्था जब व्यक्ति संसार के प्रपंचों से दूर आत्म तत् त्व में लीन हो जाता है। 2. योग के आठ अंगों में अंतिम। (यम, नियम, आसन, प्राणायाम, प्रत्याहार, ध्यान, धारणा और समाधि) 3. किसी विषय पर विचार करते हुए चित्त की पूर्ण एकाग्रता की स्थिति। 4. वह स्थान जहाँ किसी संन्यासी या महापुरूष आदि के शव को ज़मीन में गड्ढा खोदकर आसनबद्ध स्थिति में मिट्टी में दबा कर रखा जाता है अथवा उनकी अस्थियों को मिट्टी में दबाया जाता है तथा उनके ऊपर स्मारक बना होता है। जैसे: गाँधी जी की समाधि राजघाट में है।
समाधिस्थ - (वि.) (तत्.) - जो समाधि के स्थित है या जो समाधि लगाए हुए हो। जैसे: यह संत अभी समाधिस्थ हैं, अभी दर्शन नहीं होंगे। दे. समाधि
समान - (वि.) (तत्.) - 1. जो आकार, गुण, मूल्य, शक्ति आदि में बराबर हो। पर्या. सम, बराबर। जैसे: ये दोनों गेंदें समान आकार की हैं। 2. किसी की तुलना रखने वाला। पर्या. तुल्य, सदृश जैसे: गंगाजी अमृत के समान है। 3. पंच प्राणों में एक वायु। इसका कार्य भोजन पचाना है। (अन्य हैं-प्राण, अपान, व्यान, उदान)
समानता [समान+ता] - (स्त्री.) (तत्.) - शा.अर्थ समान होने का भाव, बराबरी। विशेष अर्थ- 1. वह सामाजिक आदर्श जिसके अनुसार बिना किसी भेदभाव के सभी नागरिकों के विकास के समान अवसर और सुविधाएँ उपलब्ध कराने की व्यवस्था हो। equality 2. आकार, गुण, मूल्य, महत्व आदि के विचार से दिखाई पड़ने वाली एक रूपता। similarity
समानांतर [समान+अंतर] - (वि.) (तत्.) - 1. जो समान अंतर पर हो। 2. समान अंतर पर होने वाली कोई क्रिया या कार्य या स्थिति। 3. (गणि.) जो (रेखाएँ) सदा परस्पर समान दूरी पर रहें और बढ़ाए जाने पर भी कभी न मिलें। जैसे: वर्ग या आयत में समाने की भुजाएँ समानांतर होती हैं। पुं समान अंतर। यहाँ से दोनों ग्राम समानांतर पर स्थित हैं।
समाना अ.क्रि. - (तद्.) - रिक्त स्थान में भरना; किसी के अंदर समाविष्ट हो जाना, लीन हो जाना। मुहा. आँखों में/दिल में समाना=अच्छा लगने लगना; प्यार करने लगना।
समानार्थी [समान+अर्थ+ई] - (वि.) (तत्.) - दे. पर्यायवाची।
समापन - (पुं.) (तत्.) - 1. समाप्त करने की क्रिया या भाव। 2. पूरा होने का भाव। जैसे: आज नाट्य प्रतियोगिता का समापन समारोह है। विलो. उद्घाटन, प्रारंभ।
समाप्त - (वि.) (तत्.) - 1. जिसे पूरा कर दिया गया हो, जो पूरा हो चुका हो। मैंने खाना समाप्त कर दिया; जैसे: कार्य समाप्त हो गया। पर्या. खतम। 2. मृत्यु को प्राप्त। उदा. 30 जनवरी 1948 को गाँधी जी की जीवन लीला समाप्त हो गई।
समाप्ति - (स्त्री.) (तत्.) - 1. किसी चल रहे कार्य का पूरा होना। जैसे: खेल/बैठक की समाप्ति। 2. कार्य पूरा होने के लिए बताई गई अवधि की समाप्ति। expiry 3. किसी प्रजाति की समाप्ति। extinction
समायोजन [सम्+आयोजन] - (पुं.) (तत्.) - 1. ठीक ढंग से मिलाते हुए किसी वस्तु को कहीं रखना। समन्वय co-ordination 2. सामंजस्य, ताल-मेल adjustment जैसे: हमने इस धनराशि का ‘वनोत्सव’ कार्यक्रम में समायोजन कर लिया है।
समारोह - (पुं.) (तत्.) - व्यु.अ. घोड़े इत्यादि पर शान से चढ़ना। सा.अ. 1. बहुत धूमधाम से होने वाला उत्सव या कोई बड़ा कार्यक्रम। 2. वह भारी शुभ आयोजन, जिसमें धूमधाम हो। जैसे: आज विद्यालय में ‘गणतंत्र दिवस समारोह’ देखने योग्य था।
समावर्तन - (पुं.) (तत्.) - शा.अ. वापस लौटना, प्रत्यावर्तन सा.अ. 1. अपना विद् याध्ययन/शिक्षा पूर्ण कर लेने के बाद ब्रह् मचारी का गुरूकुल से गृहस्थाश्रम में प्रवेश हेतु घर लौटने के समय किया जाने वाला एक संस्कार। टि. हिंदू संस्कृति के अनुसार सोलह संस्कारों में से एक 2. आजकल विश्वविद्यालयों में स्नातक परीक्षा उत्तीर्ण करने पर होने वाला दीक्षांत भाषण।
समावेश [सम्+आवेश] - (पुं.) (तत्.) - एक वस्तु का दूसरी वस्तु में इस तरह घुल मिल जाना कि उनमें भेद न दिखाई पडे़। incorporation
समावेशित [समावेश+इत] - (वि.) (तत्.) - 1. जिस पदार्थ या तत् व का दूसरे पदार्थ या तत् व में समावेश या अन्तर्भाव हुआ हो। ‘समाविष्ट’ सम्मिलित, अंतर्निहित जैसे: उपहार की राशि को स्वागत/आतिथ्य की राशि में समावेशित किया गया है।
समास - (पुं.) (तत्.) - शा.अ. एकत्रीकरण, योग, संक्षेप। सा.अ. (व्या.) दो या अधिक शब्दों को, जो परस्पर संबंधित हों, मिलाकर एक शब्द बनाने की प्रक्रिया। इसके छह भेद होते हैं- अव्यभीभाव, तत् पुरूष, कर्मधारय, द्विगु, द्वंद्व और बहुव्रीहि। विलो. विग्रह।
समिति - (स्त्री.) (तत्.) - 1. किसी विशेष कार्य के लिए नियुक्त, नामित व्यक्तियों का समूह जिसका कार्यकाल प्राय: सीमित होता है। जैसे: जाँच समिति। कमिटि। 2. सहकार के आधार पर मिलकर काम करने वाले लोगों का समूह। जैसे: सहकारी समिति। society
समीक्षक - (वि.) (तत्.) - किसी कृति की समीक्षा करने वाला (विद्वान) reviewer दे. समीक्षा। critic
समीक्षा - (स्त्री.) (तत्.) - किसी कृति के गुण-दोषों का विद्वान व्यक्ति द्वारा किया गया (संक्षिप्त) विवेचन और उस पर दी गई अपनी। टि. review
समीप क्रिया. - (वि.) (तत्.) - निकट, पास, नजदीक विलो. दूर।
समीपवर्ती - (वि.) (तत्.) - 1. समीप रहने वाला, समीप का, पास वाला, निकटस्थ, नज़दीकी जैसे: यह गाँव के समीपवर्ती विद्यालय में पढ़ता है।
समुदाय - (पुं.) (तत्.) - सा.अर्थ बहुत से लोगों का समूह। जैसे: जनसमुदाय, झुंड, दल; ऐसे लोगों का समूह जो किसी प्रकार्यात्मक संबंध से परस्पर जुडे़ हों और इस तरह अपने को एक इकाई मानते हों। community
समुद्र - (पुं.) (तत्.) - खारे पानी की वह विशाल राशि जो पृथ्वी के स्थल भाग के चारों ओर फैली हुई है। पर्या. सागर, उदधि इत्यादि। ला.अर्थ किसी विषय, ज्ञान, गुण आदि का भंडार जिसके पास हो, वह जैसे: वे तो विद्या के सागर हैं।
समुद्र पोत - (पुं.) (तत्.) - माल ढोने एवं यात्रियों को लाने-ले जाने के काम आने वाला जलयान। पर्या. जहाज़।
समुद्रभृगु - (पुं.) (तत्.) - (पारि.श.भू.) शा.अ. समुद्री जल के ऊपर लगभग उर्ध्वाधर उठे हुए ऊँचे शैलीय तटों को समुद्रभृगु कहते हैं। सा.अर्थ समुद्र के किनारे पर ऊपर उठे ऊँचे शैलीय भाग। cliff
समुन्नत - (वि.) (तत्.) - 1. विशेष रूप से उन्नत। बहुत उन्नति प्राप्त। जैसे: अमेरिका समुन्नत देश है। 2. बहुत ऊँचा जैसे: हिमालय समुन्नत पर्वत है। 3. श्रेष्ठ
समुन्नति - (स्त्री.) (तत्.) - 1. विशेष उन्नति 2. बहुत ऊँचाई 3. श्रेष्ठता
समूचा - (वि.) (तद्.समुच्चय) - 1. जिसके खंड या टुकड़े न किए गए हों। 2. संपूर्ण, पूरा जैसे: देश के समूचे विकास के लिए हम प्रयत्न करें।
समूह - (पुं.) (तत्.) - अनेक वस्तुओं या व्यक्तियों की एकत्रित राशि या व्यवस्थित समुदाय। तु. झुंड।
समूहगान [समूह+गान] - (पुं.) (तत्.) - समूह के रूप में अर्थात् सब लोगों के द्वारा मिलकर गाया जाने वाला गान। जैसे: सभी छात्रों या जनों द्वारा गाई गई सरस्वती वंदना आदि।
समृद्ध - (वि.) (तत्.) - (जिस वस्तु का उल्लेख किया जाए उसकी) मात्रा के अधिक्य से युक्त। जैसे: समृद् साहित्य, समृद्ध परंपरा आदि। पर्या. धनवान, मालदार, भरापूरा, संपन्न।
समृद्धि - (स्त्री.) (तत्.) - जिस वस्तु का उल्लेख किया जाए उसकी मात्रा की आवश्यकता से अधिकता की स्थिति। पर्या. भरापूरा। जैसे: धन-दौलत संबंधी समृद्धि
समृद्धिशाली - (वि.) (तत्.) - दे. समृद्ध 1 और 2
समेकित [सम+एकत्रित] - (वि.) (तत्.) - इकट्ठा करके एक में ही मिलाया हुआ। संयुक्त, संहत
समेटना स.क्रि. - (तद्.) - 1. फैली हुई वस्तु को तह लगाकर उसका दिखाई पड़ने वाला आकार कम करना। जैसे: साड़ी या धोती को समेटना। 2. बिखरी हुई इकाइयों को इकट्ठा कर एक साथ करना। जैसे: कपड़े, कागज-पत्र या पुस्तकें समेटना; पंख समेटना।
समेत क्रि.वि. - (वि.) (तद्.) - के साथ, सहित उदा. वे बाल-बच्चों समेत यात्रा पर निकले।
सम्मत [सम+मत] - (वि.) (तत्.) - कोई काम जो आदर्श व्यवस्था के अनुसार हो या उससे मेल खाता हो। टि. यह विशेषण समस्त पदों में उत्तर पद बनकर जुड़ता है। उदा. धर्मसम्मत, शास्त्र सम्मत, तर्क सम्मत (विचार)।
सम्मति [सम्+मति] - (स्त्री.) (तत्.) - किसी विषय के बारे में अन्य व्यक्ति से माँगे गए विचार। पर्या. सलाह, राय। तु. सहमति।
सम्मान [सम्+मान] - (पुं.) (तत्.) - उम्र, गुण, उपलब्धि आदि के प्रति आदर प्रदर्शित करने के लिए व्यक्ति को दिया जाने वाला मौखिक या लिखित में मान। पद् म श्री , पद् मभूषण, पद् म विभूषण और भारतरत्न सम्मान; सैनिक सम्मान।
सम्मानकर्ता [सम्मान+कर्ता] - (पुं.) (तत्.) - सम्मान करने वाला।
सम्माननीय - (वि.) (तत्.) - सम्मान के योग्य, आदरणीय। दे. सम्मान।
सम्मानित [सम्मान+इत] - (वि.) (तत्.) - 1. जिसका सम्मान किया गया हो। उदा. लतामंगेशकर को ‘भारत-रत्न’ से सम्मानित किया गया। 2. जिसका सभी सम्मान करते हों। उदा. सदन के सम्मानित सदस्य। दे. सम्मान।
सम्मिलन - (पुं.) (तत्.) - 1. दो या अनेक वस्तुओं, व्यक्तियों आदि का मिलना। 2. बहुत अच्छी तरह मेल, मिलाप। 3. एकत्रीकरण सम्मेलन। जैसे: चित्रकूट में राम-भरत का सम्मिलन अद्भुत था।
सम्मिलित - (वि.) (तत्.) - 1. मिला हुआ या मिलाया हुआ, समाविष्ट, मिश्रित। जैसे: आर्थिक सहायता राशि के लिए सामान्य श्रेणी के गरीब बच्चों को भी सम्मिलित किया गया है। 2. एक साथ मिलकर किया हुआ। सामूहिक। जैसे: यह उद्यानों छात्रों के सम्मिलित प्रयास का ही परिणाम है।
सम्मिश्रण [सम्+मिश्रण] - (पुं.) (तत्.) - व्यु.अ कई द्रव्यों को घोंटकर एक साथ इस प्रकार मिलाने की प्रक्रिया या भाव जिन्हें बाद में अलग न किया जा सकें। सा.अर्थ 1. मिलावट/मेल। 2. औषधियों या अन्य को एक में मिला कर अंतिम उत्पाद तैयार करना। जैसे: रोगन बनाने के लिए वार्निश और रंग का सम्मिश्रण composition 3. एक विशिष्ट स्तर प्रदान करने के लिए कई चीजों का मिलाया जाना। चाय की पत्ती इसी प्रकार बनती है।
सम्मुख क्रि.वि. - (वि.) (तत्.) - सामने, समक्ष। जैसे: प्राचार्य के सम्मुख आकर वह विनम्रता से बोला। विलो. विमुख।
सम्मेलन - (पुं.) (तत्.) - [सम्+मेलन] 1. किसी विशेष उद् देश्य से मनुष्यों का एकत्र होना या किया जाना। 2. जमावड़ा, मिलाप, संगम। जैसे: आज विज्ञान भवन में वैज्ञानिकों का एक सम्मेलन हुआ। confrence
सम्मोहन - (पुं.) (तत्.) - शा.आ. मोहित करने की क्रिया का भाव। सा.आ. 1. सम्मोहन वह प्रयोग है जिससे सम्मोहित व्यक्ति, सम्मोहन करने वाले के अनुसार ही होती है। 2. वशीकरण। 3. प्राचीन काल का एक अस्त्र जिसके प्रयोग से शत्रु सेना सम्मोहित हो जाती थी। (हिप्नोटिज्म)
सम्मोहित [सम्+मोहित] - (वि.) (तत्.) - व्यु.अर्थ किसी विशेष आकर्षण के कारण जिसका मन मोह लिया गया हो। सा.अर्थ 1. मुग्ध, वश में किया हुआ। 2. ‘सम्मोहन विधि से वश में किया हुआ। 3. बेहोश किया हुआ। उदा. समुद्री तट पर ठंडी पवन, समुद्री पक्षी एवं लहरों का संगीत, सब कुछ सम्मोहित करने वाला प्रतीत होता है।
सम्यक् - (वि.) (तत्.) - संपूर्ण, विस्तृत। जैसे: 1. सम्यक् ज्ञान theory-comprehensive, all-round 2. उचित, उपयुक्त। सम्यक् दृष्टिकोण (proper) क्रि. वि. (सम्यक् रूपेण) पूर्णतया अच्छी तरह से, ठीक प्रकार से; यथोचित्त ढंग से। properly
सम्राट/सम्राट् - (पुं.) (तत्.) - 1. सर्वोपरि प्रभु, सर्वोच्च शासक। बहुत बड़ा राजा जिसके अधीन अनेक राजा हों या जिसके राज्य का क्षेत्र-विस्तार दूर-दूर तक फैला है। पर्या. महाराजाधिराज, शहंशाह। emperor
सम्हलना/सँभलना अक्रि. - (तद्.<संभरण) - 1. किसी भी कठिन स्थिति, रोग, चोट या व्यवस्था की कमी से बचकर निकलना। 2. किसी सहारे से स्वयं को बचाए रखना। 3. सावधान होना या रहना। जैसे: पुत्र यदि तुम अब भी नहीं सम्हले तो तुम बर्बाद हो जाओगे।
सम्हालना/संभालना प्रेर.<सम्हलना/सँभलना - (तद्.) (दे.) - किसी को सम्हलने के लिए प्रेरणा देना। दे. सम्हलना।
सयाना - (वि.) (तद्.<सज्ञान) - 1. जो अब बालक न होकर आयु से बड़ा हो गया हो अर्थात् समझदार। 2. व्यस्क। 3. बुद्धिमान, चतुर। 4. चालाक धूर्त। जैसे: वह बहुत सयाना है, उसे तुम मूर्ख नहीं बना सकते।
सयानापन [सयाना+पन] - (पुं.) (तद्.) - सयाना’ होने का भाव। दे. सयाना।
सर - (पुं.) (तत्.) - 1. जल 2. तालाब जैसे: पम्पासर। पर्या. तडाग, सरोवर। 3. शिर।
सरकंडा - (पुं.) (तद्.) - सरपत-जाति का एक पौधा जिसमें थोड़ी-थोड़ी दूरी पर गाँठें होती हैं। टि. सरपत एक विशेष प्रकार की घास होती हैं। पहले सरकंडे की कलम बनाकर लकड़ी की पट्टी-तख्ती पर लिखते थे।
सरकना अ.क्रि. - (तद्.<सृ-सर) - जमीन से चिपकते हुए धीरे-धीरे आगे-पीछे या दाहिने-बाएँ बढ़ना। पर्या. रेंगना, खिसकना।
सरकस - (पुं.) - (अं.) कलाबाजों और पशु-पक्षियों आदि का अचरज भरा मनोरंजक कौशल या प्रदर्शन। टि. सरकस शब्द सर्कल से सम्बन्धित है। ऐसा खेल जो कलाकारों द्वारा एक सर्कल (गोलाई) के अंदर खेला जाता था।
सरकाना स.क्रि. - (तद्.) - 1. अपनी जगह पर बैठे हुए को थोड़ा आगे बढ़ाना, जिससे दूसरे को बैठाने का स्थान मिल सके। 2. किसी वस्तु को मूल स्थान से थोड़ा-थोड़ा और धीरे-धीरे हटाना। पर्या. खिसकाना। उदा. पहले मेज को सरकाओ फिर वहाँ कुर्सी रखो। 3. (समय) बिताना। जैसे: जैसे-तैसे समय को सरका रहा हूँ।
सरकार - (स्त्री.) (फा.) - सा.अर्थ 1. शासक, हुकूमत, शासन government 2. शासन-प्रबंध; रियासत; राजसभा। 3. बड़े व्यक्तियों के लिए छोटों द्वारा संबोधन का शब्द।
सरगना - (पुं.) - (फा. सर्गन:) बुरे कर्म करने वालों का प्रमुख, सरदार, मुखिया। जैसे: डाकुओं का सरगना माघो सिंह पकड़ा गया।
सरगम - (पुं.) (देश.) - 1. संगीत में सातों स्वरों का समूह या उनके उतार-चढ़ाव का क्रम। 2. किसी गीत में लगने वाले स्वरों का उच्चारण। 3. स्वरों का लिपिबद्ध रूप। टि. भारतीय शास्त्रीय संगीत के सात स्वरों षड़ज, ऋषभ, गांधार, मध्यम, पंचम, धैवत, निषाद इनके संक्षिप्त नामों स, रे, ग, म, प, ध, नि के प्रथम चार वर्णों से यह शब्द बना है।
सरगर्मी - (स्त्री.) (फा.) - 1. उत्साह 2. आवेश, जोश 3. तत् परता, लगन। जैसे: पुलिस सरगर्मी से आतंकवादी की तलाश कर रही है।
सरताज - (पुं.) (फा.) - 1. मुकुट 2. शिरोमणि 3. श्रेष्ठ (व्यक्ति), प्रमुख, मुख्य जैसे: आप तो गजल गायकों के सरताज है।
सरदार - (पुं.) (फा.) - 1. नायक, स्वामी, अगुआ, नेता। chief, leader 2. सिक्खों के नाम के पहले लगने वाली एक आदर-सूचक उपाधि। स्त्री. सरदारनी
सरपंच [सर+पंच.] - (पुं.) (फा.+तत्.) - पंचो का अध्यक्ष,प्रमुख पंच,पंचायत का मुखिया। जैसे: ग्रामसभा का मुखिया सरपंच होता है।
सरपट - (वि.) (तद्.<सर्पण) - घोड़े की तेज (चाल) जिसमें घोड़ा अगले पैरों को एक साथ फेंकता हुआ दौड़ता है। क्रि. वि. घोड़े की उक्त चाल की तरह तेज या दौड़ते हुए। उदा. वह प्रतियोगिता में सरपट दौड़ा।
सरफ़रोश - (वि.) (फा.) - शा.अर्थ सर/सिर बेचने वाला प्रचलित ला.अर्थ जान की बाज़ी लगा देने वाला, आत्मबलिदान के लिए तैयार।
सरफ़रोशी - (स्त्री.) (फा.) - शा.अर्थ सर/सिर की बिक्री प्रच. ला.अर्थ जान की बाज़ी लगाना, जान देने को तैयार होना, आत्मबलिदान।
सरल - (वि.) (तत्.) - 1. आकार में जो टेढ़ा न हो। सीधा। जैसे: सरल रेखा। विलो. वक्र। 2. जो सीधे स्वभाव का हो, भोला-भाला, निष्कपट। जैसे: वह बहुत सरल व्यक्ति है। 3. ईमानदार, सच्चा, नेक। 4. जिसे करना कठिन न हो। जैसे: यह प्रश्न सरल है। विलो. कठिन। 5. जिसमें जटिलता न हो, सुबोधगम्य। जैसे: सरल कविता।
सरलता - (स्त्री.) (दे.) - निष्कपटता, निश्छलता, सीधापन। दे. सरल।
सरवर - (पुं.) (तद्.<सरोवर) - तालाब, बड़ा, ताल, झील दे. सरोवर।
सरस [स+रस] - (वि.) (तत्.) - 1. रस से भरा हुआ, रसीला। जैसे: सरस आम 2. मधुर भावनाओं से युक्त। जैसे: सरस कविता
सरसर - (स्त्री.) (वि.) - (अनु.) 1. हवा के चलने से उत्पन्न होने वाला शब्द या साँप आदि के रेंगने का शब्द 2. तेज हवा या आँधी। क्रि. ‘सरसर’ की विशेष ध्वनि के साथ।
सरसराहट [सरसर+आहट] - (स्त्री.) - (अनु.) 1. हवा या साँप आदि के चलने का शब्द। 2. ‘सरसर’ की आवाज।
सरसरी - (वि.) (.फा.) - 1. बिना अच्छी तरह विचारा हुआ, लापरवाह, चलताउ 2. मोटे तौर पर होने वाला, जल्दीबाजी में किया हुआ। जैसे: यह समाचार सरसरी निगाह से पढ़ा है।
सरसिज - (पुं.) (तत्.) - व्यु.अ. तालाब में उत्पन्न सा.अ. कमल, पद्म पर्या. नीरज, अम्बुज, सरोरुह।
सरसों - (स्त्री.) ([तत्.>सर्षप]) - एक तिलहन जिसके बीज पीले या गहरे कत्थई रंग के होते हैं तथा फूल पीले रंग के होते हैं। इनका तेल पीले रंग का तथा तीखी गंध वाला होता है।
सरस्वती - (स्त्री.) (तत्.) - 1. विद्या या वाणी की देवी (जो ब्रह्मा की पत्नी मानी जाती हैं और जिनका वाहन हंस है), भारती, वाग्देवी, शारदा। 2. एक पुराकालीन बड़ी नदी।
सरहद - (स्त्री.) (.फा.) - 1. एक ही देश में दो राज्यों की विभाजक रेखा। boundary 2. दो देशों के बीच की विभाजक अंतरराष्ट्रीय सीमा रेखा। frontier
सरहदबंदी - (स्त्री.) (.फा.) - सीमांकन।
सरापा - (पुं.) (.फा.) - व्यु. सिर से पाँव तक, आपादमस्तक, नखशिख। सा.अर्थ पहनने का वह वस्त्र जो पूरे शरीर को ढँक ले।
सराफ़/सर्राफ़ - (पुं.) (अर.) - सोने, चाँदी, रत्नों आदि का व्यापारी।
सराफ़ा/सर्राफ़ा - (पुं.) (अर.सर्राफ़) - 1. सोना-चाँदी रत्न, आभूषणों का व्यापार 2. सर्राफ़ों का बाजार जैसे: मेरे पिता की दूकान सर्राफ़े में है।
सराबोर - (वि.) - (फा.>शराबोर) पूरी तरह भीगा हुआ, गीला, तरबतर जैसे: 1. अचानक आई तेज बारिश में हम सराबोर हो गए। 2. लथपथ जैसे: कीचड़ से सराबोर।
सरासर - (वि.) (.फा.) - 1. पूरी तरह से, बिल्कुल (नकारात्मक अर्थ में) जैसे: यह सरासर झूठ है। 2. साक्षात्, प्रत्यक्ष।
सराहना स.क्रि. - (तद्.) (तद्.>श्लाघन) - प्रोत्साहन या सम्मान व्यक्त करने के लिए मौखिक या लिखित रूप से प्रशंसा करना। सा.अर्थ किसी के अच्छे कार्यों की या गुणों की प्रशंसा/स्तुति। पर्या. बड़ाई, तारीफ।
सरिता - (स्त्री.) (तत्.) - व्यु.अर्थ बहने वाली। भू. वह प्राकृतिक लंबी जलधारा जो अपने स्रोत से प्राय: सुनिश्चित प्रणाल-पथ में बहती हुई किसी अन्य नदी या समुद्र में जा मिलती है। जैसे: यमुना, गंगा।
सरिया - (स्त्री.) (देश.) - लोहे की पतली लंबी छड़ जिसका भवन निर्माण आदि में प्रयोग होता है। पुं. सरकंडा नामक घास की छड़ी।
सरीसृप - (पुं.) (तत्.) - पृथ्वी पर स्थित वह जन्तुवर्ग जो ठंडे रक्तवाला और अंडे देने वाला होता है। इनकी त्वचा कशेरुओं से युक्त होती है। साँप, छिपकली, मगरमच्छ आदि इस श्रेणी में आते हैं। ये सरककर चलने वाले जीव होते हैं। reptiles
सरूर/सुरूर - (पुं.) (.फा.) - 1. हर्ष, खुशी; स्वाद, लज्ज़त 2. किसी नशीली वस्तु के सेवन से आया नशा, खुमारी। जैसे: उस पर भांग का सरूर दिख रहा है।
सरे आम क्रि.वि. - (वि.) (.फा.) - 1. सार्वजनिक रूप से 2. सबके सामने, खुले रूप मे। सरे आम। जैसे: उसे तो बदमाश ने सरेबाजार लूट लिया।
सरेबाजार क्रि.वि. - (वि.) (.फा.) - 1. बीच बाजार में। 2. सबके सामने, खुले रूप में। सरे आम। जैसे: उसे तो बदमाशों ने सरेबाजार लूट लिया।
सरोकार - (पुं.) (.फा.) - 1. लगाव, वास्ता। उदा. मेरा इस मामले से कभी किसी तरह का सरोकार नहीं रहा। conearn 2. परस्पर व्यवहार, प्रयोजन, संबंध। जैसे: साहित्यिक सरोकार
सरोवर - (पुं.) (तत्.) - पानी का विशाल निकाय। तालाब, झील, बड़ा ताल।
सर्जन - (पुं.) (तत्.) - पैदा करने, सृष्टि करने, रचने (रचना करने) का भाव या प्रक्रिया। जैसे: साहित्य सर्जन। पुं (अं.) चीर-फाड़ में निपुण चिकित्सक/डॉक्टर surgeon
सर्जना - (पुं./स्त्री.) (तत्.) - साहि. रचना, काव्यसृष्टि। काल्पनिक कृति।
सर्द - (वि.) (.फा.) - 1. ठंडा, शीतल। जैसे: सर्द मौसम 2. धीमा, सुस्त, शिथिल। जैसे: सर्द मिजाज का इनसान।
सर्पी घर्षण - (पुं.) (तत्.) - गतिमान वस्तु का किसी तल पर रगड़ खाना। टि. ऐसी वस्तु पर बल लगाने में ऊर्जा कम लगती है। उदा. गाड़ी को पहले-दूसरे गीयर से अगले गीयरों में चलाने में अपेक्षाकृत कम ऊर्जा की आवश्यकता होती है, क्योंकि तब सर्पी घर्षण का सिद्धांत काम करता है।
सर्वक्षेत्रीय - (वि.) (तत्.) - संपूर्ण क्षेत्र से संबंधित।
सर्वथा - (अव्य.) (तत्.) - 1. सब प्रकार से, हर तरह से । 2. पूर्णत: बिलकुल (प्राय: नकारात्मक प्रयोग)। उदा. यह बात सर्वथा अशुद्ध है। पर्या. कदापि 3. पूरा, सरासर। जैसे. वह सर्वथा झूठ बोल रहा है।
सर्वदा क्रि.वि. - (वि.) (तत्.) - हमेशा, हरसमय, निरंतर। पर्या. सदा।
सर्वप्रिय - (वि.) (तत्.) - 1. जो सबको प्रिय हो, जो सबको अच्छा लगे। पर्या. लोकप्रिय जैसे: अटलबिहारी सर्वप्रिय राजनेता हैं। 2. जिसे सब प्रिय हों। जैसे: सर्वप्रिय सम्राट् अशोक ने प्रजा के हित के लिए अनेक कार्य किए।
सर्वव्यापक [सर्व+व्यापक] - (वि.) (तत्.) - सभी जगह तथा सभी पदार्थों में हर समय व्याप्त रहने वाला। विश्वव्यापी। उदा. ईश्वर सर्वव्यापक है।
सर्वहारा - (वि.) (तद्.<सर्वहरण) - शा.अ. जिसका सबकुछ हर लिया गया हो। रूढ़ अर्थ 1. समाज का वह निम्नतम आय वर्ग जो सब प्रकार से उपेक्षित एवं शोषित है। 2. श्रमिक वर्ग जो श्रम करने पर भी भूखा-प्यासा है। पर्या. अकिंचन, धनहीन टि. शोषित वर्ग के लिए साम्यवादी विचारधारा द्वारा दिया गया एक विशेष पारिभाषिक शब्द।
सर्वाधिक - (वि.) (तत्.) - सब से अधिक उदा. हमारे देश में सर्वाधिक लोग हिंदी बोलते और समझते हैं।
सर्वाधिकार - (पुं.) (तत्.) - 1. किसी वस्तु के उत्पादन, वितरण, विक्रय आदि के संबंध में सारे अधिकार, पूर्णाधिकार। 2. पूर्ण स्वामित्व 3. अंतिम निर्णय का अधिकार। जैसे: घर के मामलों में दादाजी को सभी प्रकार के निर्णय लेने का सर्वाधिकार प्राप्त है।
सर्विस - (स्त्री.) - (अं.) 1. प्रशा. किसी संस्था या कंपनी आदि द्वारा योग्य लोगों को दी जाने वाली नौकरी। 2. जरूरतमंद लोगों के लिए की जाने वाली आर्थिक या शारीरिक सेवा। 3. भोजन परोसने का कार्य। 4. कार, फ्रिज, टी.वी. आदि यांत्रिक उपकरणों की देखभाल, सफाई एवं मरम्मत करने की क्रिया। 5. सुविधापूर्ण सेवा। जैसे: दिल्ली में बस सर्विस अच्छी है।
सर्वे - (पुं.) - (अं.) 1. किसी बात या तथ्य की पूरी तरह से जाँच-पड़ताल, निरीक्षण, पर्यवलोकन। 2. सर्वांगीण और क्रमानुसार विवेचन, सर्वेक्षण। जैसे: इस उपनगर में मेट्रो लाइन बनाने के लिए सर्वे किया गया।
सर्वेक्षण - (पुं.) (तत्.) - किसी सौंपे गए कार्य विशेष की बारीकी से जाँच-पड़ताल करना और उस पर अपना लिखित अभिमत प्रस्तुत करना। survey
सर्वोच्च [सर्व+उच्च] - (वि.) (तत्.) - शा.अर्थ सबसे ऊँचा। ऊँचाई, प्राधिकार, पद आदि की दृष्टि से सबसे ऊपर का। जैसे: सर्वोच्च शिखर, सर्वोच्च सत्ता, सर्वोच्च न्यायालय। पर्या. उच्चतम।
सर्वोच्च न्यायालय - (पुं.) (तत्.) - प्राधिकार की दृष्टि से ऊपरवाला न्यायालय। मान्य तकनीकी शब्द उच्चतम न्यायालय। supreme court
सर्वोच्चता - (स्त्री.) (तत्.) - सबसे ऊँचा होने का भाव/क्रिया दे. सर्वोच्च।
सर्वोत्तम [सर्व+उत्तम] - (वि.) (तत्.) - सबसे अच्छा, सबसे बढि़या।
सर्वोपरि [सर्व+उपरि] - (वि.) (तत्.) - 1. (ऐसा कोई गुण या विशेषता) जो सबसे ऊपर या सबसे बढ़कर हो। उदा. तुम्हारा गणित ज्ञान सर्वोपरि है। 2. जो सबमें प्रमुख हो, प्रधान उदा. हमारा सर्वोपरि कर्तव्य देश सेवा है। 3. सर्वप्रथम। जैसे: कक्षा में सर्वोपरि प्रमुखता अध्यापक की बात सुनने को देनी चाहिए।
सलवार/शलवार - (स्त्री.) (फा.शलवार) - एक प्रकार की ढीला पायजामा जो विशेषत: उत्तर-पश्चिम भारत में पहना जाता है। टि. मूल रूप में यह अरब देशों का पहनावा है।
सलहज - (स्त्री.) (देश.) - पत्नी के भाई की पत्नी, साले की पत्नी।
सलाख - (तुर्की.) (तद्.<शलाक) - लोहे की छड़, सलाई, शलाका।
सलाद - (पुं.) - (अं.सैलेड) 1. भोजन के साथ खाया जाने वाला सरस खाद्य, जो कच्चे मूल (मूली, गाजर, चुकंदर आदि), सब्जी के विशेष हरे पत्तों (पत्तागोभी आदि) गाजर, टमाटर, नींबू आदि के योग से बना होता है। 2. एक पौधा जिसके पत्ते उक्त रूप में खाए जाते हैं।
सलाम - (पुं.) (अर.) - (दाएं हाथ की हथेली को अंजुली- सी बनाकर हलके-से झुके सर की ओर ले जाकर किया गया) नमस्ते नमस्कार, प्रणाम । मुहा. दूर से सलाम (दूर से तो नमस्कार) =मिलने से बचना
सलामत - (वि.) (अर.) - 1. जीवित 2. स्वरूप, सकुशल 3. नुकसान या मुसीबत से बचा हुआ, सुरक्षित। 4. सुरक्षित स्थिति वाला। जैसे: हम आपको सलामत देखना चाहते हैं।
सलामी - (स्त्री.) (अर.) - 1. सलाम करने की क्रिया या भाव। 2. उच्च पदस्थ व्यक्ति को सैनिकों, सिपाहियों आदि की ओर से सलाम किए जाने का तरीका विशेष। 3. उच्च पदस्थ व्यक्ति के समारोह में उपस्थिति पर बंदूकें, तोपें आदि दाग कर सलामी दिए जाने का तरीका। वि.खेल. पहला खिलाड़ी या पहली जोड़ी जो खेल की शुरूआत करे। जैसे: क्रिकेट में सलामी बल्लेबाज़, सलामी जोड़ी आदि। सै. वि. सलामी देने वाली (टुकड़ी) जैसे: सलामी गारद का निरीक्षण।
सलाह - (स्त्री.) (अर.) - किसी महत्वपूर्ण विषय पर संबंधित व्यक्ति या पक्ष को दूसरे व्यक्ति या पक्ष की ओर से दिया गया परामर्श। पर्या. मशविरा, तजवीज़, राय।
सलाहकार [सलाह+कार] - (पुं.) (अर.+.फा.) - सलाह या राय देने वाला, परामर्शदाता। दे. सलाह।
सलोना - (वि.) (तद्.<सलवण) - शा.अ. ऐसा पदार्थ जो नमकयुक्त हो, नमकीन; सा.अ. कोमल सौंदर्ययुक्त, पर्या. सुंदर, लावण्यमय। उदा. यह सलोना बालक है। स्त्री. सलोनी=सुंदर स्त्री।
सल्तनत - (स्त्री.) (अर.) - मुस्लिम तौर-तरीके का/की, राज्य, बादशाहत, हुकूमत, अमलदारी आदि। उदा. मध्यकाल की दिल्ली सल्तनत।
सवर्ण - (वि.) (तत्.) - शा.अ. 1. एक ही वर्ण या जाति में उत्पन्न लोग जैसे ब्राह्मण के लिए ब्राह्मण, क्षत्रिय के लिए क्षत्रिय सवर्ण होते हैं। इसी प्रकार अन्य वर्ग भी। 2. प्राचीन मान्यता के अनुसार ब्राह्मण, क्षत्रिय, वैश्य ये तीन वर्ण। सा.अर्थ. समान रंग, समान जाति, समान रूप, समान वर्ग का।
सवाँ/साँवा - (पुं.) (तद्.) - एक मोटा और छोटे आकार का अनाज जो खरीफ की फसल में पैदा होता है। ‘कोदों-साँवा’।
सवाक् - (वि.) (तत्.) - शा.अर्थ वाणी के साथ। सा.अर्थ विशेष रूप से जब बोलने वाली फिल्में शुरू हुईं तो उन्हें सवाक् फिल्में कहा गया। तु. टॉकीज=ऐसा स्थान जहाँ बोलने वाली फिल्में दिखाई जाती हों।
सवार - (पुं.) (तद्.<अश्ववार।फा.) - किसी वाहन (पशु, रथ, साइकिल मोटर आदि) पर आरूढ़ (चढ़ा हुआ)। जैसे: घुड़सवार, साइकिल सवार आदि। पर्या. आरोही।
सवारी - (स्त्री.) (तद्./फ़ा) - 1. सवार होने की क्रिया; सवारी करना। जैसे: साइकिल की सवारी। 2. व्यक्ति जो वाहन पर सवार हो जैसे: इस बस में कितनी सवारियाँ हैं? दे. सवार
सवाल - (पुं.) (अर.) - 1. किसी विषय के बारे में पूछी गई बात। पर्या. प्रश्न। 2. माँग।
सवालिया - ([अर.<सवालिय:]) (वि.) - 1. जो सवाल के रूप में हो/प्रश्नात्मक 2. जिसमें कोई बात पूछी गई हो और जिसका उत्तर अपेक्षित हो। 3. माँग भरा, प्रार्थनायुक्त। जैसे: उसने मुझे सवालिया नजरों से देखा।
सविनय [स+विनय] - (वि.) (तत्.) - विनयपूर्वक, विनम्र, शिष्टतापूर्वक उदा.सविनय अवज्ञा आंदोलन जिसका सूत्रपात भारतीय स्वतंत्रता संग्राम के दौरान महात्मा गाँधी के नेतृत्व में 6 अप्रैल 1930 को हुआ।
सशंकित - (वि.) (तत्.) - जो किसी प्रकार की अनिष्ट की आशंका से ग्रस्त हो अथवा जिसे कोई शंका हुई हो। पर्या. भयभीत, भीरु, डरपोक उदा. वहाँ निशाचर रहहिं सशंका। जब ते जारि गयउ कपि लंका।।
सशक्त - (वि.) (तत्.) - 1. जो सभी प्रकार से समर्थ हो। 2. शारीरिक क्षमता, कठिन कार्य करने के लिए अपेक्षित। 3. धनादि के सामर्थ्य से युक्त। पर्या. समर्थ, शक्ति-सम्पन्न, बलवान। उदा. सशक्त व्यक्ति ही निर्बल की सहायता कर सकता है।
सशस्त्र - (वि.) (तत्.) - शस्त्र के साथ, शस्त्र सहित, जिसके पास शस्त्र हो, शस्त्र से सज्जित। जैसे: सशस्त्र बल, सशस्त्र पुलिस।
सशस्त्र बल - (वि.) (तत्.) - देश की जल, स्थल और वायु-तीनों सेनाओं के लिए प्रयुक्त सामूहिक अभिव्यक्ति।
ससुर - (पुं.) (तद्.>श्वसुर) - पत्नी के लिए पति का पिता और पति के लिए पत्नी का पिता। father-in-law
सस्ता - (वि.) (तद्.) - 1. जिसकी कीमत अपेक्षाकृत कम हो, कम मूल्य का। जैसे. पटरी बाजार में माल सस्ता मिलता है। 2. जिसकी गुणवत्ता घटिया हो। घटिया माल। विलो. महँगा।
सस्य कर्तन - (पुं.) (तत्.) - 1. खेतों में बोए गए गेहूँ, धान, ज्वर आदि अन्न को (पक जाने पर) काटना। 2. फसल की कटाई।
सस्वर - (वि.) (तत्.) - स्वर सहित। उदा. कविता का सस्वर पाठ करें।
सस्वर पाठ - (पुं.) (तत्.) - 1. किसी पद्य या काव्य को उतार, चढ़ाव, स्वर, लय, भाव, यति पूर्वक पढ़ना जिससे श्रोता को उसकी पूर्ण रसानुभूति या आनंदानुभूति हो सके। 2. वैदिक मंत्रों का उदात्त-अनुदात्त-स्वरित स्वरों का प्रयोग करते हुए स्पष्ट तथा माधुर्ययुक्त उच्चरण करना।
सह-अस्तित्व - (पुं.) (तत्.) - साथ-साथ होना, साथ-साथ विद् यमान रहना; साथ-साथ जीव जीना।
सहचर - (पुं.) (तत्.) - जो साथ में रहता है या साथ में चलता है। 1. मित्र, संगी, साथी 2. अनुचर, सेवक, पति।
सहचारिणी - (स्त्री.) (तत्.) - साथ में रहने वाली, साथ-साथ जीवनयापन करने वाली, पत्नी, भार्या।
सहचारी - (वि.) (तत्.) - शा.अर्थ. साथ चलने वाला (व्यक्ति) संगी, साथी, सहचर।
सहज - (वि.) (तत्.) - 1. जो स्वाभाविक हो, प्राकृतिक। जैसे: सहज सौंदर्य। 2. जन्मजात गुण-दोष। जैसे: उस आश्रम में मृग और सिंह सहज वैर भूलकर रहते थे। 3. सरल, आसान। जैसे: परीक्षा के प्रश्न सहज थे। विलो. कठिन, असहज।
सहजता - (स्त्री.) (तत्.) - 1. सहज होने का भाव 2. स्वाभाविकता 3. सरलता। दे. सहज।
सहजधारी - (पुं.) (तत्.) - सिक्ख धर्म को मानने वालों का एक पंथ जो सामान्य सिक्ख की भाँति केश धारण नहीं करते।
सहजवृत्ति - (स्त्री.) (तत्.) - किसी संवेग-जन्य उद् दीपन के प्रति एक खास ढंग से प्रतिक्रिया करने का जन्मजात तरीका। पर्या. मूल प्रवृत्ति। instinet
सहजीविता - (स्त्री.) (तत्.) - शा.अर्थ साथ-साथ बिताने का भाव। जीव. वह अवस्था जब दो जीव साथ-साथ रहकर एक-दूसरे से लाभ उठाते हैं। जैसे: कवक और शैवाल मिलकर शैक (शैवाल+कवक) नामक जीव बना देते हैं। symbiosis
सहदायाद - - विधि. एक ही संपत्ति पर एक साथ कई व्यक्तियों का स्वामित्व।
सहन - (पुं.) (तत्.) - सहने की क्रिया या भाव। अर. निवास-स्थान में बने कमरों के सामने, आजू-बाजू, पिछवाड़े या बीच में खुला छोड़ा हुआ स्थान जिसका उपयोग कई तरह से किया जा सकता है। पर्या. आँगन, चौक। court yard
सहन शक्ति - (स्त्री.) (तत्.) - सहन कर सकने का सामर्थ्य, बरदाश्त करने की ताकत। दे. सहिष्णुता, सहनशीलता। tolerance
सहनशील - (वि.) (तत्.) - 1. जो किसी प्रकार कष्ट, दुर्वचन आदि के सहन कर सकता हो। 2. जिसका स्वभाव बरदाश्त करने का हो। पर्या. सहिष्णु, क्षमाशील।
सहनशीलता - (स्त्री.) (तत्.) - व्यक्ति का वह गुण जो प्रतिकूल परिस्थितयों में भी दूसरे के विचारों, भावनाओं, विश्वासों आदि को सहने, मानने या आदर देने के रूप में प्रकट होता है। दे. सहन शक्ति, सहिष्णुता। tolerance
सहना अ.क्रि. - ([तत्.<सहन]) - किसी कष्ट, अनावश्यक भार या किसी के प्रतिकूल स्वभाव का लंबे समय तक अनुभव करने के साथ-साथ न चाहते हुए भी उससे मेल बिठाना, बरदाश्त करना, झेलना। to tolerate
सहपाठी - (पुं.) (तत्.) - कक्षा विशेष में साथ-साथ पढ़ने वाले विद् यार्थी। class-fellow
सहभागी - (वि.) (तत्.) - 1. समान भाव से किसी कार्य में किसी के साथ सम्मिलित होने वाला अथवा किसी कार्य में बराबरी का योगदान करने वाला। 2. वह जो किसी उद्योग/व्यापार में किसी के साथ लगा हुआ हो और उसके हानि-लाभ आदि में समान रूप से भागीदार हो। 3. पैतृक संपत्ति का बराबर का हिस्सेदार।
सहमत - (वि.) (तत्.) - (वह व्यक्ति) जिसका मत दूसरे व्यक्ति के अनुसार हो। एकमत। सम्मत। विलो. असहमत।
सहमति स्त्री - (तत्.) - दो या अधिक व्यक्तियों के विचारों में परस्पर समानता की स्थिति, एक व्यक्ति की राय से दूसे व्यक्ति की राय मिलना। पर्या. मतैक्य। विलो. असहमति।
सहमना अ.क्रि. - (फा.) - (किसी भयानक रूप को देखकर या कठोर वचन सुनकर) अचानक डर जाना या भयभीत हो जाना।
सहयोग - (पुं.) (तत्.) - शा.अर्थ साथ जुड़ना। 1. किसी के काम में मदद करना, सहायता करना। 2. बहुत से लोगों का एक साथ मिलकर कोई काम करने का भाव। पर्या. सहकार। co-operation, coloboration 2. सहायता। aid, help
सहयोगी - (वि.) (पुं.) - सहयोग देने वाला। साथी कार्यकर्ता।
सहयोजन - (पुं.) (तत्.) - साथ में जोड़े जाने या सम्मिलित करने की स्थिति। co-option
सहयोजित - (वि.) (तत्.) - (बाद में) साथ में जोड़ा गया। जैसे: सहयोजित सदस्य।
सहर्ष क्रि.वि. - (वि.) (तत्.) - 1. हर्षसहित 2. प्रसन्नतापूर्वक, हँसी-खुशी।
सहलाना स.क्रि. - (देश.) - 1. मन की कोमल भावना के साथ किसी वस्तु या किसी के अंग पर धीरे-धीरे हाथ या उँगलियाँ फेरना। 2. किसी अंग को हाथ से धीरे-धीरे सहने योग्य स्पर्श करना। 3. हलका-हलका मलना।
सहसा - (अव्य.) (तत्.) - एकदम जल्दी से, अकस्मात्, अचानक, यकायक।
सहस्रों - (वि.) (तत्.) - हजारों, कई हजार।
सहानुभूति - (स्त्री.) (तत्.) - शा.अर्थ साथ-साथ/एक समान होने वाली अनुभूति। जैसे: किसी दुखी व्यक्ति को देखकर उसी के समान खुद भी दुखी होना। पर्या. हमदर्दी।
सहिष्णु - (वि.) (तत्.) - किसी प्रकार के कष्ट, पीड़ा, हानि, आघात आदि भावों को शांतिपूर्वक सहन करने के स्वभाव वाला, बरदाश्त करने वाला । पर्या. सहनशील, क्षमताशील। उदा. वह इतना सहिष्णु है कि अपशब्द सुनकर भी उत्तेजित नहीं होता। tolerant
सहिष्णुता - (स्त्री.) (तत्.) - कष्ट-पीड़ा आदि को सहन कर सकने का गुण, शक्ति। पर्या. सहनशीलता, सहिष्णुत्व। tolerance
सहेजना - - स.क्रि. ऐसी व्यवस्था करना कि सब चीजे़ संख्या, मात्रा, सुरक्षा आदि की दृष्टि से ठीक-ठाक है, सँभाल कर रखना।
सहेली - (स्त्री.) (तद्.) - एक स्त्री के साथ मित्र-भाव से रहने वाली दूसरी स्त्री, सखी।
सांकेतिक - (वि.) (तत्.) - 1. जो धमकी, खतरा, विचारधारा, कार्य इत्यादि के संकेत के रूप में हो। जैसे: सांकेतिक हड़ताल जो कर्मचारियों द्वारा अपनी माँगों के समर्थन में की गई हो। 2. संकेतों से संबंधित। जैसे: सांकेतिक भाषा।
सांख्यिकी - (स्त्री.) (तत्.) - गणि. 1. गणित शास्त्र की वह शाखा जिसमें किसी भी विषय विशेष के संख्यात्मक आँकड़ों का एकत्रण, गणन, विश्लेषण और निर्वचन आदि का अध्ययन करना बताया जाता है। 2. उपर्युक्त प्रकार से एकत्र किए गए आँकड़े। गदूगमे
सांख्यिकीय - (वि.) (तत्.) - गणि. 1. सांख्यिकी विषयक। 2. एकत्रित आँकड़ों से संबंधित। statistic
सांगोपांग [स+अंग+उपांग] - (वि.) (तत्.) - शा.अर्थ सभी अंगों और उपांगों से युक्त, सभी तरह से पूर्ण, संपूर्ण। जैसे: वक्ता ने विषय का सांगोपांग विवेचन प्रस्तुत किया।
सांतराल [स+अंतराल] - (वि.) (तत्.) - 1. अंतराल सहित, कुछ फासले के साथ। 2. पर्याप्त अंतर रखते हुए अक्षर, शब्द, वाक्य आदि लिखना। खुला-खुला लिखना। जैसे: वाक्य रचना में सांतराल शब्दों का प्रयोग भाषा को सहज बनाता है।
सांत्वना पुरस्कार - (पुं.) (तत्.) - प्रथम, द्वितीय या तृतीय कोई स्थान न मिलने के बाद भी योग्य प्रतियोगी को हतोत्साहित न होने देने के लिए दिया जाने वाला विशेष पुरस्कार।
सांत्वना - (स्त्री.) (तत्.) - 1. दुखी व्यक्ति को ढाढ़स बँधाने की क्रिया, धीरज बँधाने का कार्य, तसल्ली। 2. आश्वासन। उदा. परेशान कर्मचारी को सांत्वना देते हुए अधिकारी ने कहा- तुम्हारा काम दो दिनों में हो जाएगा।
सांद्र/सांद्रित - (वि.) (तत्.) - भौ. 1. सटा हुआ, घना, गाढ़ा। concentrate 2. चिकना, चिपचिपा, स्निग्ध।
सांद्रण - (पुं.) (तत्.) - भौ. घना या गाढ़ा होने की क्रिया। concentration
सांद्रता - (स्त्री.) (तत्.) - घना, गाढ़ा या ठोस होने का भाव। concentration
सांद्रित्र - (पुं.) (तत्.) - गाढ़ापन लाने वाला यंत्र concentration
सांप्रदायिक [संप्रदाय+इक] - (वि.) (तत्.) - 1. किसी दार्शनिक मत, संप्रदाय विशेष से संबंध रखने वाला। 2. अपने ही मत, संप्रदाय अथवा धर्म की मान्यताओं को श्रेष्ठ बतलाकर दूसरे मत, संप्रदाय अथवा धर्म में आस्था रखने वालों के बारे में विद्वेष फैलाने और उनसे लड़ाई-झगड़ा करने वाला (व्यक्ति या समुदाय)। जैसे: सांप्रदायिक दंगा। communal
सांप्रदायिकता - (स्त्री.) (तत्.) - (आधुनिक संदर्भ में) अपने ही मत, संप्रदाय अथवा धर्म की मान्यताओं को श्रेष्ठ बतलाकर दूसरे मत, संप्रदाय अथवा धर्म में आस्था रखने वालों के बारे में विद्वेषपूर्ण भावना रखने और उसे फैलाने की प्रवृत्ति। communatiosm
सांभर - (पुं.) (देश.) - 1. भारत का एक बडे़ आकार वाला हिरण जो भूरे रंग का होता है। साँबर। 2. राजस्थान की एक झील जिसके खारे पानी से नमक बनाया जाता है। 3. उक्त नमक। 4. दक्षिण भारत में पकाया जाने वाला सब्जी मिश्रित दाल जैसा व्यंजन। साधारणत: डोसा, इडली एवं वड़ा इसी के साथ खाया जाता है।
सांसद - (पुं.) (तत्.) - संसद के दोनों सदनों में से किसी एक का सदस्य। पर्या. संसद सदस्य।
सांसर्गिक [संसर्ग+इक] - (वि.) - शा.अर्थ संसर्ग के फल स्वरूप (संचरित) होने वाला। आयु. एक व्यक्ति से दूसरे व्यक्ति में प्रत्यक्ष अथवा परोक्ष रूप से संचारित होने की क्षमता रखने वाला (रोग)। contagious disease
सांसारिक - (वि.) (तत्.) - संसार संबधी, लौकिक, ऐहिक; शारीरिक आवश्यकताओं या विषय भोग से संबंधित। जैसे: उन्हें सांसारिक भोगों से विरक्ति हो गई है।
सांस्कृतिक [संस्कृति+ इक] - (वि.) (तत्.) - संस्कृति से संबंध रखने वाला; संस्कृति संबंधी।
साँईं/साँई - ([तद्.<स्वामी]) (पुं.) - 1. स्वामी, मालिक पति। 2. परमात्मा। 3. आदरणीय मुसलमान फकीर। 4. ‘साँईं बाबा’ नामक प्रसिद्ध संत।
साँच - (वि.) (तद्.) - सच्चा। पुं. सच, सत्य। उदा. साँच बराबर तप नहीं, झूठ बराबर पाप।
साँचा - (तद्.<संचक) (पुं.) - 1. वह ढाँचा या उपकरण जिसमें कोई गीली चीज़ डाल कर कोई आकृति दी जाती है। जैसे: मूर्ति का साँचा। 2. कपड़ा, कागज आदि पर फूल आदि बनाने का लकड़ी आदि का ठप्पा। वि. सच्चा, सच बोलने वाला।
साँझ-सकारे क्रि.वि. - (वि.) (तद्.<संध्या+सुकाल) - सुबह-शाम, शाम-सुबह, साँझ-सवेरे।
साँझा - (पुं.) (तद्.) - 1. हिस्सेदारी, भागीदारी। 2. किसी व्यापार, कार्य आदि में एकाधिक लोगों का आपस में मिलकर व्यवस्था करने का समझौता जिसमें लागत और लाभ-हानि आदि का अनुपात पहले से निश्चित कर लिया जाता है। वि. मिला-जुला। जैसे: साँझा-चूल्हा।
साँठ-गाँठ - (स्त्री.) (देश.) - किसी गलत कार्य के लिए लोगों का मेल-मिलाप। पर्या. षड्यंत्र, मिली- भगत। जैसे: कुछ विपक्षी दल आपस में साँठ-गाँठ करके सरकार को अस्थिर करना चाहते हैं।
साँड/साँड़ - ([तद्.<षण्ड]) (पुं.) - गाय का वह वत्स जो बैल की तरह बधिया नहीं किया जाता अपितु गाय से अच्छी संतति उत्पन्न करने के लिए ही उसे स्वच्छंद छोड़ दिया जाता है।
साँय-साँय - (स्त्री.) - (अनुर.) किसी एकांत शांत स्थान में तेज हवा चलने की लगातार होने वाली ‘एक प्रकार की ध्वनि’ या किसी कीड़े आदि की ‘सन-सन’ की आवाज। जैसे: यहाँ काफी देर से साँय-साँय सुनाई पड़ रही है।
साँवला - (वि.) (तद्.>श्यामल) - जिसमें थोड़ा थोड़ा कालापन हो, श्यामलता हो श्यामल। श्याम रंग का। जैसे: साँवला रंग, साँवला बालक। पुं. 1. श्रीकृष्ण, श्याम। 2. पति/प्रेमी।
साँवलापन - (पुं.) (दे.) - साँवला होने की स्थिति या भाव। -साँवला।
साँस - (तद्.<श्वास) (पुं.) - जीव। आयु. जीवित रहने के लिए मुख्यत: नाक और गौणत: मुँह से हवा फेफड़ों तक पहुँचाने और उसे बाहर निकालने की क्रिया-विधि। श्वास, दम। मुहा. साँस उखड़ना= (i) साँस का कुछ समय के लिए रुकना। (ii) मृत्यु से पूर्व श्वास-क्रिया के सहज संचालन में बाधा उपस्थित होना। साँस चढ़ना=बहुत श्रम करने के कारण जोर-जोर से साँस लेना और छोड़ना। साँस छूटना=साँस लेने की क्रिया का समाप्त होना, मृत्यु प्राप्त होना। साँस फूलना=शारीरिक परिश्रम के फलस्वरूप श्वास-प्रक्रिया का सामान्य से अधिक तेज़ हो जाना।
साँसत - (स्त्री.) ([देश.>साँस] ) - 1. बहुत अधिक शारीरिक कष्ट, जिसमें साँस लेना कठिन जैसा हो। 2. ऐसी स्थिति जिससे तुरंत बाहर निकलने की इच्छा (शांति से साँस लेने की इच्छा) हो। 3. झंझट, परेशानी; सजा, दंड। मुहा. जान साँसत में होना=कठिन परिस्थिति में फँस जाना। दे. साँस।
सा - (वि.) (तद्.>सदृश) - 1. समान, तुल्य, जैसा। जैसे: कमल से नेत्र, हिम सा श्वेत, मैंने तुझ सा इंसान नहीं देखा। 2. एक परिमाणसूचक शब्द, जैसे: थोड़ा सा नमक, इतनी सी चीनी, बहुत सा अन्न। 3. प्रश्नवाचक शब्द के साथ निश्चयात्मकता दिखलाने वाला शब्द। कौन सी लडक़ी? पुं. तद् > षड्ज) संगी षड्ज स्वर का चिहन (सरगम में)।
साइत (अरबी<साअत) - (स्त्री.) - 1. शुभ समय, जैसे: तुम अच्छी साइत में आए हो। 2. ज्यों शुभ मुहूर्त। जैसे: आज की साइत में गृह प्रवेश उचित है।
साइलो - (पुं.) - (अं.) बड़े पैमाने पर बीजों के भंडारण हेतु प्रयुक्त आधुनिक साधन। खत्ती, कुठिला। टि. मिट्टी या धातु का बना बडा ढोलनुमापात्र इसके लिए प्रयुक्त किया जाता है। silo
साकार - (वि.) (तत्.) - शा.अर्थ आकार सहित, आकार वाला। 1. जिसका कोई रूप या आकार हो। 2. ईश्वर का अवतार वाला रूप; प्रतिमा के रूप में पूजित ईश्वर। विलो. निराकर।
साक्षर - (वि.) (तत्.) - शा.अ. अक्षर सहित, अक्षर युक्त। सा.अ. जिसने पढ़ना-लिखना सीख लिया है। (अक्षर-ज्ञानवाला) पर्या. पढ़ा-लिखा, शिक्षित।
साक्षात् क्रि.वि. - (वि.) (तत्.) - आँखों के सामने, सम्मुख; प्रत्यक्ष। वि. मूर्तिमान, साकार।
साक्षात्कार - (पुं.) (तत्.) - शा.अर्थ 1. प्रत्यक्ष रूप से यानी आमने-सामने होना; 2. प्रत्यक्ष रूप से भेंट या मुलाकात करना। सा.अ. 1. किसी पद पर चयन के लिए प्रत्याशी से विशेषज्ञों का आमने-सामने बैठकर प्रश्नोत्तर या संवाद स्थापित करना। 2. किसी साहित्यकार की रचना-प्रक्रिया जानने हेतु भेंटकर्ता और लेखक के बीच अथवा विचारक, नेता आदि के बीच प्रश्नावली अथवा साक्षात्कार के माध्यम से चलने वाला गहन संवाद। interview
साक्षी - (पुं.) (तत्.) - व्यक्ति जिसकी उपस्थिति में कोई घटना घटी हो और उसने अपनी आँखों से उसे देखा हो। पर्या. गवाह witness
साक्ष्य - (पुं.) (तत्.) - किसी कथन, आक्षेप आदि को पुष्ट करने वाले तत् व। 2. गवाही यानी आँखों देखी घटना का कथन।
साख - (स्त्री.) (तद्.) - 1. व्यक्ति की प्रतिष्ठा और मान-मर्यादा। 2. लेन-देन के मामले में किसी प्रतिष्ठान की देयताओं को चुका सकने की सामर्थ्य। credit 3. शाखा, डाल/डाली।
साखी - (तद्.<साक्षी) (पुं.) - गवाह जिसने घटना को देखा हो। स्त्री. तद् >माक्षी] 1. गवाही। मुहा. साखी पुकारना = गवाही देना। 2. संतों के नीतिपरक दोहे। जैसे: कबीर की साखी।
सागौन/सागवान - (पुं.) (देश.) - हिमालय की तराई में होने वाला एक प्रकार का बड़ा लंबा वृक्ष जिसके पत्ते बड़े और खुरदरे होते हैं। इसकी लकड़ी सुंदर चिकनी व मजबूत होती है तथा भवन निर्माण के लिए उपयोगी होती है।
साजन - (पुं.) (तद्.>सज्जन।स्वजन) - 1. पति, स्वामी 2. प्रेमी, बालम 3. भला आदमी।
साजना स.क्रि. - (तद्.<सज्ज्) (पुं.) - सजाना, अलंकृत करना, विभूषित करना। दे. साजन।
साज-सज्जा - (स्त्री.) (.फा.सं.) - 1. शोभा, 2. सजाने का सामान। जैसे: आज तो विद्यालय की साज-सज्जा देखते ही बनती थी। टि. इस शब्द में पुनरुक्ति है। साज और सज्जा यहाँ समानार्थी हैं।
साज सिंगार - (पुं.) (फा.+तद्.) - अधिक सुंदर लगने के लिए विविध श्रृंगारिक सामग्री का किया गया उपयोग या सजा संवरा स्वरूप। जैसे: किसी भी उत्सव में महिलाओं का साज-सिंगार देखते ही बनता है।
साज़िश - (स्त्री.) (फा.) - षड्यंत्र, कुचक्र, दुरभिसंधि। किसी को हानि पहुँचाने के लिए की जाने वाली कपटपूर्ण अभिसंधि।
साज़ो-सामान [साज+ओ+सामान] - (पुं.) (फा.) - किसी काम को अंजाम देने के लिए जरूरी सामग्री। equipment
साझा - (पुं.) (तद्.>सहार्ध) - 1. किसी भी व्यवसाय या उद्योग आदि में साझेदारी, हिस्सेदारी, भागीदारी। 2. भाग, हिस्सा। जैसे: उनका मित्र के साथ वस्त्र व्यवसाय में साझा है। दे. साँझा।
साझेदार [साझा+दार] - (पुं.) (तद्.+फा.) - किसी काम को पूरा करने में लगे दो या दो से अधिक व्यक्तियों में से कोई भी। पर्या. हिस्सेदार, भागीदार co-partner, partner
साझेदारी - (स्त्री.) (तद्.+या) - 1. किसी कार्य में (जैसे खेती, व्यापार आदि में) हिस्सेदार होने की स्थिति। 2. खेल (क्रिकेट) बल्लेबाजी कर रहे दोनों बल्लेबाजों में से किसी के आउट होने से पहले दोनों द्वारा मिलकर बनाए गए रनों का योग। पर्या. भागीदारी, हिस्सेदारी co-partnership दे. साझेदार।
साड़ी - ([तद्.>शाटी] ) - स्त्रियों के पहनने की प्राय: चौड़ी किनारे वाली रेशमी या सूती धोती। उदा. जैसे बनारसी साड़ियाँ बहुत प्रसिद्ध हैं। टि. आजकल नायलोन आदि कृत्रिम धागों की साड़ियाँ भी प्रचलित हैं।
साढ़ी - (स्त्री.) (देश.) - उबाले हुए गर्म दूध के ऊपर जमने वाली चिकनी परत, मलाई। जैसे: उसे बिना साढ़ी का दूध पसंद नहीं है।
साढू - (तद्.>श्यालिवोढ) (पुं.) - साली (अर्थात् पत्नी की बहन) का पति। टि. सभी विवाहिता बहनों के पति आपस में एक-दूसरे के लिए ‘साढू’ कहे जाते हैं।
सातत्य - (तत्) (पुं.) - 1. किसी वस्तु या बात के होने या प्रयोग की दृष्टि से निरंतरता 2. शाश्वतता, नित्यता। 3. सदा बना रहने का भाव। उदा. अध्ययन में सातत्य आवश्यक होता है।
सात-पाँच - (पुं.) (तद्.) - 1. कुछ, थोड़ा सा। 2. अल्प भेद/अंतर। लोको. सात पाँच की लाकड़ी, एक जाने का बोझ, अर्थात् कुछ लोगों के थोड़ा-थोड़ा सहयोग करने पर एक व्यक्ति की बड़ी मदद हो जाती है। मुहा. सात-पाँच करना=धोखेबाजी करना, धूर्तता की बातें करना।
सात्विक - (वि.) (तत्.) - सत्त्व गुण से युक्त। पर्या. सतोगुणी, (सत्वगुणी शुद्ध है), सत्वगुण प्रधान। जैसे: सात्विक व्यक्ति शांत तथा दयालु होता है। टि. प्रकृति के तीन गुण कहे गए हैं-सत्व, रजस्, तमस्।
साथरा/साथर - ([तद्.<स्तरण]) (पुं.) - 1. जमीन पर बिछाई जाने वाली कुश की बनी चटाई। 2. बिछौना, बिस्तर।
साथरी - (स्त्री.) - पयार (धान के सूखे पौधे का वह भाग जो बालियों से रहित होता है) या तृण/घास आदि के समूह से बनाया गया बिछौना। उदा. वनवासकाल में राम साथरी पर सोते थे।
साथी - (तद्.<सार्थ) (पुं.) - 1. जो साथ में रहे, संगी, सहचर। 2. मित्र, सहपाठी। 3. लोगों का समूह जो साथ-साथ रहता है। इस समूह में प्रत्येक व्यक्ति एक-दूसरे के साथी कहलाता है।
सादगी - (स्त्री.) - (फा.<साद:) 1. रहन-सहन, वेशभूषा आदि में दिखावा या कृत्रिम साधनों का अभाव। सरलता, भोलापन 2. सादापन, निश्छलता, निष्कपटता। 3. अहंकार का अभाव। जैसे: महात्मा गांधी जी का जीवन अत्यंत सादगीपूर्ण था।
सादा - (वि.) - (फा. साद:) 1. जिसमें किसी प्रकार की मिलावट, कृत्रिमता या आडंबर न हो। जैसे: सादा जीवन उच्च विचार। 2. सीधा, उलझन से रहित, सामान्य, निष्कपट, साफ-साफ। जैसे: सादा सवाल। 3. कोरा। जैसे: सादा कागज।
सादापन - (पुं.) - निश्छलता, आडंबरहीनता।
साध - (स्त्री.) (तद्.<श्रद्धा) - अभीष्ट की प्राप्ति के लिए मन की इच्छा/अभिलाषा उत्कंठा। जैसे: पुत्र के डॉक्टर बन जाने से आज हमारे मन की साध पूरी हुई।
साधक - (वि.) (तत्.) - 1. साधना करने वाला। 2. जो किसी कार्य की सिद्धि में अनुकूल और सहायक हो। 3. योगी, तपस्वी। जैसे: साधक का जीवन तपोमय होता है।
साधन - (पुं.) (तत्.) - 1. किसी कार्य को सिद् ध करने या पूरा करने की क्रिया या भाव। 2. किसी कार्य या बात के बनने या होने का जरिया। 3. कष्ट दूर करने का उपाय। 4. कुछ बनाने का सामान, सामग्री। 5. औजार, उपकरण।
साधन-संपन्न - (वि.) (तत्.) - सभी प्रकार के साधनों से युक्त। पुं. धनवान व्यक्ति।
साधना स.क्रि. - (तद्.<साधन) - 1. सिद्ध करना। पूर्ण करना। जैसे: आपने तो अपना स्वार्थ साध लिया। 2. निश्चित करना। जैसे: सुदिन साधि नृप चलेउ बजाई। 3. नियंत्रण में रखना। जैसे: मन को साधना सहज नहीं है। 4. अभ्यास करना।
साधारण - (वि.) (तत्.) - 1. जिसमें अन्यों की तुलना में कोई विशेषता या अधिकता न हो। 2. जो सामान्य रूप से सब जगह होता या पाया जाता हो। normal 3. मामूली, सर्वसामान्य, महत्त्वहीन । जैसे: वह तो एक साधारण सी घटना थी। usual 4. सरल। जैसे: साधारण प्रश्न ही पूछे गए थे। simple विलो. असाधारण=विशेष।
साधारणत: क्रि.वि. - (वि.) (तत्.) - सामान्य तौर पर, मामूली तौर पर; प्राय:, अक्सर। पर्या. सामान्यत:। जैसे: वह साधरणत: श्वेत परिधान में ही रहते हैं।
साधु - (वि.) (तत्.) - 1. उत्तम, अच्छा; उचित; प्रशंसनीय। जैसे: वह साधु स्वभाव इंसान है। 2. व्याकरण की दृष्टि से शुद्ध। 1. सांसारिक मोह त्याग कर विरक्त जीवन व्यतीत करने वाला व्यक्ति, संत। जैसे: हिमालय में अनेक साधु तपस्या में रत हैं। 2. सज्जन, सदाचारी, उत्तम प्रकृति का मनुष्य। जैसे: साधु जनों की कृपा से ही दीनहीनों का भला होता है। क्रि. वि. शाबाश, बहुत अच्छा, वाह-वाह। जैसे: साधु! साधु क्या स्वर लहरी थी।
साधुवाद - (पुं.) (तत्.) - 1. किसी के को अच्छा काम करने पर खुश होकर उसे ‘साधु-साधु’ अर्थात ‘शाबाश’ या ‘वाह-वाह’ आदि कहना। शाबाशी 2. किसी के अच्छे कार्य को प्रोत्साहन देने हेतु प्रशंसात्मक ध्वनि।
साध्य - (वि.) (तत्.) - 1. जिसका साधन किया जाना हो। सिद्ध करने योग्य। 2. होने योग्य, संभव। जैसे: यह कार्य सहज रूप से साध्य है। 3. जिसे (रोग को) चिकित्सा द्वारा दूर किया जा सकता हो। जैसे: यह साध्य रोग है। विलो.असाध्य पुं. 1. रेखाग. गणित की वह समस्या जिसे प्रमाणपूर्वक सिद्ध किया जाए। प्रमेय proposition 2. व्या.द. वह पदार्थ जिसका अनुमान किया जाता है।
सान - ([तद्.>शाण] ) (स्त्री.) - 1. एक प्रकार का कठोर पत्थर जिस पर चाकू, कैंची, अस्त्रों आदि की धार तेज की जाती है। 2. एक पत्थर जिस पर घिसकर सोने की परीक्षा की जाती है।
सानना स.क्रि. - (तद्.<संधान) - शा.अ. गूँथना। सा.अ. 1. आटा, चूर्ण आदि को पानी या तरल पदार्थ में मिलाकर गीला करना। 2. मिलाना, सम्मिलित करना। 3. किसी को अच्छे काम या बुरे काम में सम्मिलित करना।
सानी - (स्त्री.) (देश.) - गाय, भैंस और बैलों आदि का वह आहार जो खली, बिनौला, चारा आदि को पानी में सानकर खिलाया जाता है। वि. अर. 1. बराबरी का, जोड़ का, तुल्य। 2. दूसरा। जैसे: कार्टून बनाने में तुम्हारा कोई सानी नहीं।
सान्निध्य - (पुं.) (तत्.) - निकट या पास-पास होने का भाव। निकटता, समीपता, साथ-साथ होने की स्थिति। proxinity
सापेक्ष - (वि.) (तत्.) - 1. जिसमें किसी अन्य बात की अपेक्षा हो, आपेक्षिक। 2. किसी की अपेक्षा करने वाला, किसी दूसरे पर आधारित। relative भाव सापेक्षता।
सापेक्षत: - (अव्य.) (तत्.) - सापेक्षता के साथ। दे. सापेक्ष।
साप्ताहिक [सप्ताह+इक] - (वि.) (तत्.) - शा.अर्थ सप्ताह से संबंधित। सा.अर्थ. 1. जो सप्ताह में एक बार हो। जैसे: साप्ताहिक पत्रिका। 2. प्रति सप्ताह होने वाला। जैसे: हमारे यहाँ बैंकों में साप्ताहिक अवकाश सोमवार को होता है। 3. सात दिनों तक चलने वाला। जैसे: साप्ताहिक यज्ञ।
साप्ताहिक बाजार - (पुं.) (तत्.+फ़ा.) - प्रत्येक सप्ताह मे किसी एक निश्चित दिन लाग्ने वाला बाजार,दिन विशेष पर लगने वाला बाजार।
साफ़ - (वि.) (अर.) - 1. बिना मिलावट का, शुद्ध, स्वच्छ। 2. जिसमें किसी प्रकार का मैलापन (अँधेरा) न हो। जैसे: साफ़ आसमान। विलो. गंदा या मैला।
साफ़ सुथरा - (वि.) (देश.) - स्वच्छ और सुंदर, पूर्णत: स्वच्छ। जैसे : विद् यालय साफ सुथरा था। (लाक्ष.) निर्दोष उसका जीवन तो साफ सुथरा है।
साफा - (पुं.) (अर.) - 1. पुरुषों के सिर पर बाँधने की चौडे पन्ने वाली पगड़ी। turban
साबिका - (पुं.) (अर.) - 1. मुलाकात, भेंट। 2. सामना, मुकाबला, वास्ता। 3. संपर्क, व्यावहारिक संबंध, सरोकार। जैसे: उस विद्वान से तुम्हारा कभी साबिका नहीं पड़ा।
साबित - (वि.) (फा.) - 1. प्रमाणित, सिद्ध। जैसे: आपका अपराध तो साबित हो गया। 2. जो टूटा-फूटा न हो, सारा, समूचा, साबुत। जैसे: उड़द की साबित दाल, साबित चने।
साबुत/साबूत - (वि.) (अर.) - दे. साबित।
साबूदाना/सागूदाना (आं.>सैगो+फा) - (पुं.) (अं+ फा.) - सागूवृक्ष के तने के गूदे से तैयार किये हुए दाने, जो सुपाच्य होते हैं तथा पानी या दूध में उबाल कर या अन्य विधियों से खाये जाते हैं।
साभार - (तत्.) (वि.) - क्रि.वि. आभार मानते हुए, कृतज्ञतापूर्वक एहसान मानते हुए, विनम्रतापूर्वक। जैसे: मैं साभार आपका उपहार ग्रहण करता हूँ।
सामंजस्य - (पु.) (तत्.) - 1. वह स्थिति या भावना जिसमें दो पक्षों के बीच परस्पर अनुकूलता की भावना हो। पर्या. मेल, अनुकूलता।
सामंत - (पुं.) (तत्.) - 1. (मध्ययुग में) राजा के अधीनस्थ वह सरदार जिसे स्वयं या उसके पूर्वजों को किसी उल्लेखनीय राजकीय सेवा के बदले कुछ गाँव और उसके राजस्व संबंधी अधिकार प्राप्त हुए हों/थे। feudal, lord
सामंतवाद - (पुं.) (तत्.) - (मध्यकाल में) वह व्यवस्था जिसमें सामंतों को राजा द्वारा प्रदत्त आर्थिक, राजनीतिक और प्रशासनिक अधिकार प्राप्त थे। पर्या. सामंतशाही, सामंती व्यवस्था। feudalism सामंत।
सामतशाही - (स्त्री.) (तत्.+फ़ा.) - प्राचीनकाल में यूरोपीय देशों मे प्रचलित वह राजनैतिक व्यवस्था जिसमें राज्य की समस्त शक्तियों राजा या राजा द्वारा नियुक्त प्रतिनिधि के अधीन होती थीं और ‘राजा’ का पद उत्तराधिकारी के रूप मे उसके पुत्र को मिलता था। दे. सामंतवाद feudalism
सामग्री - (स्त्री.) (तत्.) - व्यु.अर्थ समग्र होने का भाव। सा.अ. 1. वे सारी वस्तुएँ जिनका किसी कार्य के संपादन में उपयोग होता हो। 2. घर-गृहस्थी, संबंधी सारी वस्तुएँ।
सामयिक [समय+इक] - (वि.) (तत्.) - 1. (उल्लिखित) समय विषयक। 2. वर्तमान समय का। जैसे: सामयिक साहित्य, सामयिक विषय current सामयिक चर्चा topical 2. समयानुसार उचित, उपयुक्त या ठीक।
सामर्थ्य - (पुं.) (तत्.) - शा.अ. समर्थ होने का भाव, योग्यता। सा.अ. शक्ति, ताकत, क्षमता। जैसे: आज आपके सामर्थ्य की परीक्षा होगी।
सामवेद - (पुं.) (तत्.) - चार वेदों में से तीसरा वेद। टि. अन्य तीन वेद हैं-ऋग्वेद, यजुर्वेद, अथर्ववेद।
सामवेदी - (पुं.) - सामवेद का अनुयायी विद्वान, सामवेद का ज्ञाता।
सामाजिक [समाज+इक] - (वि.) (तत्.) - 1. समाज से संबंध रखने वाला। जैसे: सामाजिक विषय। समाज का। जैसे: सामाजिक संगठन। 2. ला.अर्थ सभ्य। 3. पुं. प्राचीन अर्थ काव्य का पाठक या श्रोता, नाटक (रूपक) का दर्शक। पर्या. सह्दय।
सामाजिकता - (स्त्री.) (तत्.) - समाज के सर्वमान्य सिद् धांतों अथवा नियमों के अनुसार आचरण करने की भावना।
सामान्य - (वि.) (तत्.) - 1. किसी विशेषता या खासियत से रहित, सामान्य, साधारण, मामूली, औसत दर्जे का। उदा. मेरा मित्र रमेश एक सामान्य व्यक्ति है। 2. जो हर स्थिति, अवस्था तथा समुदाय में समान रूप से दिखाई दे। सार्वजनिक, आम। 3. तुच्छ। जैसे: यह एक सामान्य अपराध है। 4. (दर्शन) वैशेषिक दर्शन के अनुसार छह मूलभूत पदार्थों में से एक।
सामान्यत: - (अव्य.) (तत्.) - 1. सामान्य रूप से, आमतौर पर। 2. जैसा प्राय: होता है।
सामिष - (वि.) (तत्.) - वह (भोजन) जो आमिष (मांस, मछली आदि) से युक्त हो। जैसे: सामिष भोजन हमारे यहाँ नहीं खाया जाता है।
सामुदायिक [समुदाय+इक] - (वि.) (तत्.) - 1. समुदाय से संबंधित 2. समुदाय के सभी लोगों का। 3. समुदाय में होने वाला।
सामुदायिक केंद्र - (पुं.) (तत्.) - 1. वह स्थान/भवन जहाँ समुदाय के सभी लोग किसी उद्देश्य की प्राप्ति के लिए एकत्र होते हैं। 2. वह स्थान जहाँ समाज के लोग किसी समस्या के समाधान मनोरंजन, आपसी संपर्क बनाने या उत्सव आदि मनाने के लिए एकत्र होते हैं। पर्या. समाज-सदन, समाज-भवन, समाज-केन्द्र।
सामूहिक [समूह+इक] - (वि.) (तत्.) - 1. बहुत से लोगों से संबंध रखने वाला। जैसे: सामूहिक जीवन। 2. समूह में (अकेले नहीं) किया गया (कार्य)। जैसे: सामूहिक खेती, सामूहिक योगदान। विलो. वैयक्तिक, एकल।
साम्य - (पुं.) (तत्.) - दे. समता।
साम्राज्य - (पुं.) (तत्.) - शा.अर्थ सम्राट के अधीनस्थ सार्वभौम राज्य। सा.अर्थ वह विस्तृत भू-क्षेत्र अथवा देशों का समूह जिन पर एक ही प्रभुत्वसंपन्न शासक का राज हो। जैसे: गुप्त साम्राज्य, मुगल साम्राज्य, ब्रिटिश (बर्तानवी) साम्राज्य। empire ला.अर्थ किसी क्षेत्र या कार्य विशेष में एक ही व्यक्ति अथवा समूह का विस्तृत अधिकार। जैसे: टाटा/बिरला साम्राज्य (व्यापार क्षेत्र में)
सायबान - (पुं.) (.फा.) - मकान या कमरे के आगे छाया के लिए बनाई गई टीन आदि की छत। (शेड)
साया - (पुं.) (.फा.) - 1. छाया। जैसे: पेड़ का साया शीतल होता है। 2. परछाईं। जैसे: बालक पानी में अपना साया देखकर प्रसन्न हो गया। 3. संगति का प्रभाव। जैसे: जब से तुम पर उनका साया पड़ा है बहुत बदल गए हो। 4. भूत-प्रेत की बाधा। जैसे: उसके व्यवहार में प्रेत का साया नज़र आता है। 5. महिलाओं का साड़ी के नीचे पहनने का वस्त्र, पेटीकोट। 6. आश्रय। मुहा. साया हट जाना-आश्रयहीन हो जाना।
सारंगी - (तद्.<सारंग) (स्त्री.) - (संगी) एक प्रसिद्ध तंतु वाद्य जिसमें कसे हुए संलग्न तारों को गज से रेतकर बजाया जाता है।
सार - (पुं.) (तत्.) - 1. किसी वस्तु का मूल तत् व, सत्व, अर्क, स्वरस। 2. लिखी या कही हुई बात का अति संक्षिप्त रूप या विवरण। 3. तथ्य या गुण। जैसे: उस बात में कोई सार नहीं है। 4. निष्कर्ष, तात्पर्य।
सारणी - (स्त्री.) (तत्.) - 1. सुनिश्चित क्रम में स्तंभवार प्रस्तुत विन्यास (जिनका उपयोग कर संबंधित तथ्यों या आँकडों की जानकारी प्राप्त की जा सकती है।) जैसे: रेलवे की समय-सारणी। table
सारथी - (पुं.) (तत्.) - रथ हाँकने वाला, सूत।
सारस - (पुं.) (तत्.) - हंस की जाति का एक सफेद रंग का सुंदर पक्षी जिसकी टाँगें लम्बी होती हैं तथा वह विशेषत: नदी या तालाब आदि के पास पाया जाता है।
सारहीन - (वि.) (तत्.) - 1. जिसमें कोई उत्तम तत्त्व न हो। नि:सार। पर्या. सारशून्य। जैसे: यह कथा सारहीन है। 2. जिसमें से सार निकाल लिया गया हो। जैसे: सारहीन दूध सपरेटा। toned 3. शुष्क, सूखा। 4. बलहीन, कमज़ोर।
सारांश - (पुं.) (तत्.) - 1. किसी लेख, अनुच्छेद, कथन, भाषण, विषयवस्तु आदि का मुख्य आशय। 2. तात्पर्य, निष्कर्ष, आशय; संक्षेप। abstract जैसे: ‘पर्यावरण’ लेख का सारांश अपने शब्दों में लिखिए।
सारा - (वि.) (देश.) - 1. जितना हो सकता हो, वह सब, समस्त, सकल, अखिल, सम्पूर्ण। जैसे: सारा अन्न, सारे जीव, सारी जनता। 2. प्रारंभ से अंत तक, समग्र, समस्त।
सार्थक - (वि.) (तत्.) - शा.अर्थ अर्थ सहित; जिसका कोई अर्थ हो, अर्थपूर्ण, अर्थयुक्त, उपयोगी, लाभदायक, सफल। जैसे: सार्थक जीवन। significant, fruit ful विलो. निरर्थक।
सार्थकता - (स्त्री.) (तत्.) - सार्थक यानी उपयोगी अथवा लाभदायक होने का भाव। उपयोगिता।
सार्थवाह - (पुं.) (तत्.) - व्यापारियों/सौदागरों की टोली/काफिले का मुखिया; व्यापारी, सौदागर। वह व्यापारी जो काफिला बनाकर अपना माल बेचने के लिए दूर-दूर तक जाता हो। प्राचीन प्रयोग।
सार्वकालिक [सर्वकाल+इक] - (वि.) (तत्.) - 1. जिसका संबंध सभी कालों से हो। 2. हर समय रहने वाला। जैसे: ईश्वर एक सार्वकालिक सत्ता है।
सार्वजनिक [सर्वजन+इक] - (वि.) (तत्.) - शा.अर्थ सर्वजन संबंधी। सा;अ. 1. सब लोगों से संबंध रखने वाला। जैसे : सार्वजनिक समारोह, सार्वजनिक घोषणा। 2. समान रूप से सभी लोगों के उपयोग का। जैसे: सार्वजनिक शौचालय। पर्या. सार्वजनीन।
सार्वजनिक स्थल - (पुं.) (तत्.) - सर्वसाधारण के उपयोग के लिए स्थान; सब लोगों के लिए समान रूप से काम आने वाला मैदान या भवन। उदा. सार्वजनिक स्थल पर शराब पीना अथवा धूमपान करना अपराध है। public place
सार्वदेशिक [सर्वदेश+इक] - (वि.) (तत्.) - सारे देश से संबंध रखने या सारे देश में होने वाला। जैसे: आज पर्यावरण के संबंध में सार्वदेशिक सभा होगी। univercal
सार्वभौम - (वि.) (तत्.) - दे. सार्वभौमिक।
सार्वभौमिक - (वि.) (तत्.) - शा.अर्थ संपूर्ण भूमि से संबंध रखने वाला। जैसे: सार्वभौमिक सत्य। सा.अ. 1. जाति, धर्म, वर्ग, लिंग या शिक्षा के आधार पर भेदभाव के बिना सभी देशों पर लागू होने वाला। जैसे: सार्वभौमिक/सार्वभौम वयस्क मताधिकार। universal 2. स्थानीय, राष्ट्रीय अथवा किसी भी प्रकार के संकुचित विचारों से रहित। comopolition
साल1 - (पुं.) (तत्.) - वनों में होने वाला लंबे और पतले पत्तों वाला एक बड़ा पेड़ तथा जिसके फूलों की सुगंध बहुत मादक होती है। शाल या साखू नामक वृक्ष।
साल2 - (पुं.) (तद्.>शल्य) - 1. सालने का भाव, मानसिक कष्ट या पीड़ा, चुभन। 2. काँटा, नुकीली वस्तु।
साल3 - (पुं.) (.फा.) - वर्ष। जैसे: बालक की उम्र पाँच साल है।
सालगिरह - (स्त्री.) (.फा.) - वर्षगाँठ, बरस-गाँठ; जन्म-दिन। टि. इस शब्द का प्रचलन तब हुआ माना जाता है जब बरस बीत जाने पर रस्सी में गाँठ लगाकर उम्र सूचक वर्षों की संख्या गिनी जाती थी। birth day
सालन - (पुं.) (तद्.स-लवण/फ़ा) - 1. पकी हुई मसालेदार और रसेदार तरकारी। 2. मसाला डालकर पकाया गया कोई रसेदार नमकीन व्यंजन।
सालना स.क्रि. - (तद्.शल्य) - 1. कष्ट देना, दुख पहुँचाना। 2. एक लकड़ी में छेद करके उसमें दूसरी लकड़ी घुसाना। अ.क्रि. मानसिक कष्ट होना, खटकना, मन में कोई बात चुभना।
साला - (पुं.) (तद्.>श्लायक) - 1. पत्नी का भाई। जैसे: शकुनि धृतराष्ट्र का साला था। 2. इस संबंध की सूचक एक प्रकार की गाली। एक अपमानसूचक शब्द। 3. दे. शाला।
सालिसिटर - (पुं.) - (अं.) वह वकील जो प्राय: न्यायालय में उपस्थित न होकर भी मुकदमों की तैयारी करता है। ‘न्यायाभिकर्ता’
सावधान - (वि.) (तत्.) - 1. ध्यानपूर्वक; ध्यान देने वाला, चौकस, सचेत। 2. अव्य. कवायद करते समय तनकर खड़े रहने की स्थिति में आने के लिए अनुदेशक द्वारा दिया गया समादेश।
सावधानी - (स्त्री.) (तत्.) - खतरे या गलती से बचने के लिए सजग/सचेत रहने का भाव। दे. सावधान।
सावन - (पुं.) (तद्.>श्रावण) - 1. भारतीय महीनों में आषाढ़ और भादों के बीच का महीना ‘सावन’। जो बरसात और हरियाली के लिए प्रसिद्ध होता है। श्रावण 2. अंग्रेजी महीनों में प्राय: जुलाई, अगस्त का महीने का काल। टि. सूर्य की परिक्रमा करते समय इन दिनों में पृथ्वी ‘श्रवण’ नामक नक्षत्र की दिशा में होती है। अत: इस मास का नाम ‘श्रावण’ है।
सास - (स्त्री.) (तद्.>श्वश्रू) - पत्नी के लिए पति की माता और पति के लिए पत्नी की माता। टि. स्त्रीलिंग ‘सास’ का पुंल्लिंग ससुर। mother-in-low
साहचर्य - (पुं.) (तत्.) - 1. ‘सहचर’ होने का भाव, सहचरता। 2. किसी के साथ रहने या होने का भाव। संग, साथ। मित्रता जैसे: आपका साहचर्य पाकर हम धन्य हो गए।
साहब - (पुं.) (अर.) - 1. स्वामी, प्रभु, मालिक। 2. एक सम्मानसूचक शब्द। जैसे: गुरु ग्रन्थ साहब। लाट साहब इत्यादि।
साहबजादा - (पुं.) (अर.) - किसी अधिकारी या बड़े आदमी का पुत्र।
साहस - (पुं.) (तत्.) - 1. मन की वह दृढ़ता जो किसी कठिन कार्य को करने में या आत्मरक्षण में प्रवृत्त करती है। पर्या. हिम्मत, दिलेरी courage 2. बलपूर्वक किसी का धन लूटना या युद्ध में प्रवृत्त होना।
साहसिक - (वि.) (तत्.) - दे. साहसी। भाव. साहसिकता।
साहसी - (वि.) (तत्.) - जिसके पास साहस हो। पर्या. हिम्मती, दिलेर। courageous
साहित्य - (पुं.) (तत्.) - व्यु.अर्थ ‘सहित’ होने का भाव। 1. (सीमित अर्थ में) किसी भी भाषा में प्राप्त गद्य अथवा पद् ध संबंधी समस्त रचनात्मक ग्रंथों, लेखों आदि का समूह। उदा. हिंदी साहित्य, तुलसी साहित्य, प्रसाद साहित्य आदि। 2. (विस्तृत अर्थ में) (i). किसी भी उत्पाद से संबंधित वह विस्तृत विवरण जो उसके विज्ञापन के लिए वितरित किया जाता है; (ii) रचनात्मक या सर्जनात्मक साहित्य से इतर किसी भी विषय पर प्रकाशित वह सामग्री जो उससे संबंधित ज्ञानार्जन के लिए प्रस्तुत की जाए। उदा. विज्ञान साहित्य, बौद्ध साहित्य, ज्योतिष साहित्य आदि।
साहित्यकार - (पुं.) (तत्.) - साहित्य की रचना करने वाला। दे. साहित्य।
साही - (स्त्री.) - जंगल में बिल बनाकर रहने वाला एक जंतु जिसके शरीर पर लम्बे काँटे होते हैं। सेई। विशेष-आक्रमण होने पर यह अपने काँटों को खड़ा कर लेता है जिससे शरीर सुरक्षित रह सके। शत्रु काँटे चुभने से भाग जाता है।
साहूकार - (पुं.) (देश.) - 1. ब्याज पर रुपयों के लेने-देने से आजीविका चलाने वाला व्यक्ति, महाजन। 2. धनी व्यक्ति, सेठ। 3. व्यापारी।
सिंकाई - (स्त्री.) (देश.) - 1. सेंकने की क्रिया या भाव। सेंकाई। 1. आग में या आँच पर रखकर किसी वस्तु को गर्म करने का भाव। जैसे: सुबह की बनी पूड़ी, सब्जी आदि को आग में सिंकाई करके खाते हैं। 3. शरीर के सूजे हुए किसी अंग, पैर आदि को गर्म पानी या गर्म कपड़े आदि से गर्म करने का भाव। दे. सेंकना।
सिंघाड़ा - (पुं.) - प्राय: तालाब में पानी के तल पर फैली हुई जालनुमा बेल जिस पर लगने वाले फूल एवं फल। इसके फल तिकोनाकार हरे छिलके से युक्त होते हैं तथा छिलका उतारने पर उनमें से श्वेत रंग की गिरी निकलती है। सिंघाड़े उबालकर भी खाए जाते हैं। इन्हें सुखाकर उनका आटा बनता है जो व्रत इत्यादि में खाया जाता है।
सिंचाई - (स्त्री.) (तद्.सिंचन) - खेतों में खड़ी फसल और पेड़-पौधों को यथासमय निश्चित अंतराल में पानी देने की पद्धति। irrigation
सिंचित - (वि.) (तत्.) - जिसकी सिंचाई हो चुकी हो, सींचा हुआ। दे. सिंचाई।
सिंदूर - (पुं.) (तत्.) - 1. रासायनिक प्रक्रिया द् वारा पारे से तैयार केसरिया रंग का चूर्ण। 2. उपर्युक्त केसरिया रंग का चूर्ण जिससे विवाहिता हिंदू महिलाएँ अपनी माँग भरती हैं। 3. तेल में सना, केसरिया रंग जिसका हनुमान, भैरव आदि की मूर्तियों पर लेपन किया जाता है। vermillion मुहा. सिंदूर उजड़ना-विवाहिता हिंदू स्त्री के पति की मृत्यु हो जाना (जिसके बाद वह अपनी माँग में सिंदूर नहीं भरती)। सिंदूर चढ़ना-कुमारी हिंदू बाला का विवाह होना।
सिंदूरदानी - (स्त्री.) (तत्.) - सिंदूर रखने की डिबिया।
सिंदूरी - (वि.) (तत्.) - सिंदूर के रंग का, पीला मिला लाल।
सिंधु - (पुं.) (तत्.) - तिब्बत से निकलकर आधुनिक भारत के लद्दाख प्रदेश में होती हुई पाकिस्तान के कराची के पास अरब सागर में मिलने वाला नद (बड़ी नदी)। टि. भाषाविद् इसी ‘सिंधु’ से ‘हिन्द’ या ‘इंडस’ India का विकास मानते हैं।
सिंह - (पुं.) (तत्.) - 1. वन में रहने वाला बिल्ली की प्रजाति का अत्यंत बलवान हिंसक जन्तु जिसके नर की गर्दन में बड़े-बड़े घने बाल होते हैं। बबर, केशरी, मृगराज Lion 2. समास युक्त पद के अंत में प्रयुक्त होने से उस वर्ग का सर्वश्रेष्ठ। जैसे: पुरुष सिंह (जो पुरुषों में श्रेष्ठ हो)। 3. (ज्यो.) आकाश में स्थित बारह राशियों में से एक। leo
सिंहनाद - (पुं.) (तत्.) - सा.अर्थ सिंह का गर्जन, शेर की दहाड़। ला.अर्थ युद् ध के अवसर पर सैनिकों की हुंकार। 2. ललकार के स्वर में कही हुई बात।
सिंहावलोकन - (पुं.) (तत्.) - 1. सिंह की तरह पीछे देखते हुए आगे बढ़ना। 2. संक्षेप में पिछली बातों का या बीती घटनाओं का सरसरी दृष्टि से चिंतन करना।
सिंहासन - (पुं.) (तत्.) - शा.अर्थ वह आसन (राजगद् दी) जिसके हत्थों पर सिंह की मुखाकृति बनी होती है। राजाओं के बैठने की गद् दी।
सिकड़ी - (स्त्री.) (तद्.>श्रृंखला) - 1. दरवाज़ा बंद करने के लिए लगाई जाने वाली साँकल। 2. गले में पहनने का एक गहना।
सिकुड़न - (स्त्री.) (तद्.>संकोचन) - 1. ठंड आदि के प्रकोप से या अन्य किसी कारण से किसी पदार्थ या शरीर के अंगों का आयत कुछ कम होना, संकुचन होना। 2. सिमटना। जैसे: अधिक ठंड पड़ने से हाथ-पैर की अंगुलियों में सिकुड़न पड़ जाती है। 2. सिकुड़ने के कारण वस्त्र आदि में पड़ी शिकन या सिलवट। जैसे: इस्तरी करने से कपड़े की सिकुड़न दूर हो जाती है। विलो. फैलना।
सिकुड़ना अ.क्रि. - (तद्.) - धोने पर नए कपड़े की लंबाई चौड़ाई कुछ कम हो जाना; संकुचित होना। विलोम-फैलना।
सिक्का - (पुं.) (अर.) - 1. टकसाल में ढली धात्विक मुद्रा जो क्रय-विक्रय, लेन-देन के काम आती है; रुपया-पैसा। 2. छाप, मुहर। 3. धाक, रोब। 4. पद् धति, तर्ज मुहा. सिक्का जमना या बैठना-किसी व्यक्ति का विशेष प्रभावशाली हो जाना, रोब जमना, आतंक छाना।
सिजदा - (पुं.) (फा. सज्द:) - शा.अर्थ ईश्वर के लिए सिर झुकाना, खुदा के आगे सिर झुकाना। वि. अ. मुसलमानों की उपासना का एक अंग जिसमें माथा, घुटने और पैरों की उँगलियाँ ज़मीन पर लगती हैं। तुल. रुकूअ-इसमें घुटने ज़मीन पर नहीं लगाए जाते। मुस्लिम मत में उपासना (नमाज) के ये दो अंग (सिजदा और रुकूअ) अत्यंत महत्वपूर्ण हैं।
सिटपिटाना अ.क्रि. - (देश.-अनु.) - 1. भयभीत होकर या पोल खुलने से संकोचवश चुप होना। 2. दब जाना, घबरा जाना। 3. असमंजस या दुविधा में पड़ जाना। सकपकाना। मुहा. सिट्टी – पिट्टी गुम हो जाना-सारी हेकड़ी भूल जाना।
सितम - (पुं.) (.फा.) - अत्याचार, जुल्म।
सितमगर - (वि.) (.फा.) - अत्याचार करने वाला, अत्याचारी। जुल्मी।
सितार - (पुं.) (.फा.) - (संगी.) वीणा की तरह का एक वाद्य यंत्र, जिसमें सात तार प्रधान होते हैं तथा सहायता (तड़प) के लिए ग्यारह से तेरह तार होते हैं। वीणा की तुलना में इसमें एक ही तुंबा होता है जिसे नीचे रखकर उसके सहारे वाद्ययंत्र को ऊर्ध्वाधर खड़ाकर बजाया जाता है। तुल. वीणा।
सितारा - (पुं.) (.फा.सितार:) - सा.अ. 1. तारा, नक्षत्र। 2. कपड़ों आदि पर टाँकने में प्रयुक्त चमकीली गोल बिंदी। जैसे: सलमा-सितारा। ला.अर्थ-भाग्य, ग्रहस्थिति। तुल. सलमा = बेलबूटों की कढ़ाई के लिए प्रयुक्त चमकीले (सोने-चांदी के) तार या धागे। मु. सितारा चमकना-भाग्य का उदय होना।
सिद्ध - (वि.) (तत्.) - 1. जिसकी आध्यात्मिक अथवा अन्य कोई योग साधना पूरी हो गई हो। 2. प्रमाणों आदि से पुष्ट। proved पुं. संत, ज्ञानी, योगी, महात्मा saint
सिद्ध करना स.क्रि. - (तद्.) - प्रमाणित करना, किसी कथन को प्रमाण, युक्ति आदि से पुष्ट करना।
सिद्धि - (स्त्री.) (तत्.) - 1. किसी काम के पूर्ण होने की अवस्था/भाव। 2. कार्य में सफलता की प्राप्ति। सफलता। जैसे: वह अपनी कार्य सिद्धि से बहुत ही खुश है। 3. प्रमाणित होने का भाव। 4. हिंदू शास्त्रों में वर्णित आठ सिद्धियाँ-अणिमा (बहुत छोटा हो जाना), महिमा (बहुत बड़ा हो जाना), लघिमा (बहुत हल्का हो जाना), गरिमा (बहुत भारी हो जाना), प्राप्ति (कुछ भी प्राप्त होना), प्राकाम्य (इच्छा पूरी होना), ईशित्व (स्वामी होना), वशित्व (सब कुछ वश में होना)।
सिद्धांत - (पुं.) (तत्.) - 1. धर्म, दर्शन, राजनीति आदि क्षेत्रों के विभिन्न संप्रदायों द्वारा विवेचन के पश्चात् स्वीकृत निष्कर्ष। 2. किसी कर्म को करने अथवा किसी ज्ञान की दिशा में आगे बढ़ने के लिए मार्गदर्शक के रूप में अपनाया गया विचार-बिंदु। principle 3. सा.अर्थ नियम। तु. वाद।
सिद्धांतत : - (अव्य.) (तत्.) - 1. सिद्धांत के अनुसार 2. नियमानुसार।
सिद्धांत वादी - (पुं.) (तत्.) - अपने सिद्धांतों पर अटल रहते हुए आचरण करने वाला व्यक्ति।
सिधारना अ.क्रि. - (देश.) - 1. प्रस्थान करना, जाना (सम्मानपूर्ण भाषा में) जैसे: आप यहाँ से कब सिधारेंगे। 2. मरना (सम्मानजनक भाषा में) जैसे: आज प्रात: दादा जी स्वर्ग सिधार गए। तु. पधारना।
सिनेमा - (पुं.) (वि.) - (अं.) 1. वह स्थान या भवन जहाँ लोग मनोरंजन के लिए चलचित्र या फिल्म देखने के लिए जाते हैं। 2. कलात्मक फिल्म बनाने का व्यापारिक क्षेत्र। 3. चलचित्र, फिल्म। जैसे: भारतीय सिनेमा एक अति लाभकारी उद्योग है। वि. यह ‘cinema’ cinematography का संक्षिप्त रूप है। अब इसे और छोटा किया जा रहा है। जैसे: सिनेतारिका, सिनेजगत इत्यादि।
सिफ़ारशी - (वि.) (.फा.) - 1. सिफारिश से जिसे लाभ हुआ हो। 2. जिसके लिए सिफ़ारिश करने वाले लोग हों। 3. सिफ़ारिश संबंधी।
सिफ़ारिश - (स्त्री.) (.फा.सुफ़ारिश) - 1. किसी बात को मनवाने के लिए किसी योग्य या सक्षम अधिकारी के माध्यम से प्रभावपूर्ण अनुरोध। पैरवी, अनुशंसा। उदा. योग्यता होने पर भी आजकल सिफारिश होना जरूरी है। reommendation 2. किसी अधिकारी से किसी के विषय में कुछ प्रशंसात्मक बातें कहना जिससे उसका हित हो। जैसे: उसने एक ईमानदार, योग्य व कार्यकुशल व्यक्ति की नौकरी के लिए उनसे सिफारिश की है।
सिमटना अ.क्रि. - (देश.) - 1. संकुचित होना, सिकुड़ना, आकार छोटा होना। 2. (आँखों का) मुँदना। 3. शरमाना, लज्जा के कारण सिकुड़ना। 4. विनय अथवा ग्लानि के कारण संकोच करना। 5. भय के कारण अंगों को समेट लेना।
सियार - (पुं.) (तद्.<श्रृगाल) - एक जंगली जानवर जो लगभग कुत्ते के आकार का होता है तथा जिसकी पूँछ बालदार एवं चौड़ी होती है। पर्या. गीदड़।
सियासत - (स्त्री.) (.फा.) - शा.अर्थ व्यवस्था। सा.अर्थ 1. राजनीति, 2. शासन। जैसे: सियासत का काम बहुत पेचीदा होता है।
सिर - (पुं.) (तद्.<शिरस्) - 1. शरीर का सबसे ऊपर का भाग, गर्दन के ऊपर का भाग जिसमें कान, आँख, नाक और खोपड़ी होती है। शिर, मस्तक। 2. मस्तिष्क। 3. (ला.) किसी वस्तु का ऊपरी भाग; चोटी। मुहा. सिर आँखों पर होना- किसी बात को शिरोधार्य करना, माननीय होना। सिर आँखों पर बैठाना- बहुत सम्मान से स्वागत करना। सिर उठाना- किसी के विरोध में खड़े होना। सिर ऊँचा होना- प्रतिष्ठा या सम्मान मिलना। सिर खपाना/मारना- बहुत सोच-विचार करना। सिर चढ़ा- धृष्टतापूर्वक बात करने वाला। सिर नीचा होना- अपमानित होना, लज्जित होना। सिर पर पाँव रखकर भागना- तेजी से भागना।
सिरका - (पुं.) (.फा.) - अंगूर, गन्ना, जामुन आदि के रस का वह रूप जिसमें कई दिनों तक धूप में रखने पर किण्वन द्वारा अम्लीय गुण पैदा हो जाता है और जो अचार आदि खाद्य पदार्थों के लिए परिरक्षक preservative का काम करता है।
सिरजनहार - (पुं.) (तद्.) - सृष्टि रचने वाला, परमात्मा संसार का रचयिता।
सिरफिरा - (वि.) (देश.) - जिसका सिर फिर गया हो अर्थात् विकृत मस्तिष्क वाला। 2. पागलों जैसा: असामान्य व्यवहार करने वाला।
सिरहाना - (पुं.) (देश.) - शा.अ. सिर वाला (भाग) सा.अ. 1. पलंग, चारपाई आदि का उस दिशा वाला भाग जिधर लेटते या सोते समय सिर रखा जाता है। जैसे: अपने से बड़ों या पूज्यजनों को चारपाई या पलंग में सिरहाने की तरफ ही बैठाना चाहिए। 2. तकिया। विलो. पैंताना (पाँवों की तरफ)
सिरा - (पुं.) (तद्.) - 1. लंबाई वाली किसी चीज का किसी भी ओर का शुरुआती या अंतिम हिस्सा, छोर। 2. शुरू का भाग। 3. अंत का भाग। मुहा. सिरे का सबसे अच्छा, उच्चकोटि का।
सिरिंज - (स्त्री.) (अं.) - दे. पिचकारी।
सिर्फ़ क्रि.वि. - (वि.) (अं.) - 1. कोई अन्य नहीं, केवल। जैसे: सिर्फ़ मैं ही जाऊँगा। 2. बस इतना ही, और कुछ नहीं, जैसे: मैं सिर्फ चुप रहूँगा, बोलूँगा कुछ नहीं।
सिल - (पुं.) (तद्.>शिल) - गेहूँ, धान आदि की कटाई के बाद खेत में टूटकर गिरी हुई अन्न या धान्य की बालियाँ या दाने। उदा. खेत में अन्न कटने के बाद कुछ लोग सिल बीनने जाते हैं। स्त्री. तद्. >शिला) 1. पत्थर का एक बड़ा लंबा टुकड़ा, शिला, चट् टान। 2. पत्थर की समतल आयताकार पटिया जिस पर बट्टे से मसाले, दाल, चटनी आदि बाँटे या पीसे जाते हैं।
सिलवट - (स्त्री.) (देश.) - 1. किसी समतल के मुड़ने, दबने आदि के कारण उभरने वाला रेखाकार अंश, सिकुड़न, बल। जैसे: कपड़े पर सिलवटें पड़ी हैं। 2. झुर्रियाँ, जैसे: उसके चेहरे पर सिलवटें पड़ गई हैं।
सिलसिला - (पुं.) (अर.) - क्रम से एक के बाद एक होने वाली एक ही तरह की घटनाओं, क्रियाओं आदि की श्रृंखला। 2. श्रेणी, पंक्ति। 3. व्यवस्था के अनुसार क्रम। जैसे: कुर्सियों को सिलसिले से बिछाना। वि. नम, आर्द्र, सीला-सीला।
सिलसिलेवार क्रि.वि. - (वि.) (अर.+फा.) - क्रमश:, तरतीब या सिलसिले से होने वाला। तरतीबवार, क्रमबद्ध।
सिलिंडर - (पुं.) - (अं.) तरल गैस रखने का गोल, लंबा पात्र । cylinder
सिल्ट - (स्त्री.) - (अं.) नदियों द्वारा पहाड़ों से बहाकर लाई गई मिट्टी। पर्या. गाद।
सिवा(य) - (अव्य.) (फा.) - सामान्यत: ‘के’ के साथ प्रयोग होता है। इसके सिवा, सिवा इसके। सा.अर्थ- 1. अतिरिक्त, अलावा। 2. बिना, बगैर।
सिवान - (पुं.) (तद्.>सीमांत) - गांव, राज्य, देश आदि की सीमा; छोर।
सिसकारी - (स्त्री.) (तद्.>सीत्कार) - 1. जीभ दबाते हुए मुँह से निकाली जाने वाली मध्यम स्वर में सी सी की आवाज या सीटी जैसी ध्वनि। पर्या. सीत्कार। जैसे: बच्चे ठंड लगने पर सिसकारी मारते हैं। 2. हल्के रोने की ध्वनि। सिसकी।
सिसकी - (स्त्री.) - (अनु.) सिसकने का स्वर, दुखभरी कराह से मिश्रित रोने का स्वर या भाव। सुबक-सुबक कर देर तक रोने का भाव।
सिहरना अ.क्रि. - (तद्.>शिशिरण) - 1. ठंड से काँपना। 2. भय से रोमांचित होना या हिचकना, ठिठकना। जैसे: तुम्हारी कठोर वाणी सुनकर वह सिहर गई।
सींक - (स्त्री.) (तद्.>इषीका) - 1. सरकंडा नामक घास की डंडी। 2. घास आदि का पतला डंठल। 3. लंबा पतला तिनका। 4. नाक में पहनने का एक आभूषण जो पतली डंडी जैसा होता है तथा जिसके ऊपरी छोर पर घुंडी बनी होती है।
सींका/छींका/छीका - (पुं.) (देश.) - खाने-पीने की चीजें रखने के लिए तार या रस्सी से बनाया हुआ झोलीनुमा जाल जिसे छत या अन्य ऊँची जगह से लटकाते हैं। सींका, छींका, सिकहर। मुहा.-छींका टूटना-बिना प्रयास के या संयोग से किसी वस्तु का मिल जाना।
सींचना स.क्रि. - (तद्.>सेचन) (दे.) - पौधों, बगीचों, खेतों आदि में पानी देना। दे. सिंचाई।
सी - (वि.) (तद्.<सम) - समान, सदृश। स्त्री. वह शब्द अत्यंत हर्ष, पीड़ा या रसास्वादन के समय मुख से निकलता है। सीत्कार।
सीकर - (पुं.) (तत्.) - 1. जल-कण, पानी की बूँद। 2. वर्षा की फुहार। जैसे: वर्षा की सीकरों से नव पल्लब नहा से रहे हैं। 3. ओस की बूँदें। स्त्री. देश. जंजीर, सीकड़।
सीख - (स्त्री.) (तद्.<शिक्षा) - 1. किसी घटना, उदाहरण आदि के माध्यम से सिखाई जाने वाली कोई हितप्रद बात। शिक्षा, उपदेश। जैसे: हमें महापुरूषों के जीवन से सीख लेनी चाहिए। 2. सलाह, मंत्रणा, परामर्श। 3. शिष्य।
सीख़चा - (पुं.) (फा.) - लोहे की लंबी पतली छड़ जो खिडक़ियों, लोहे के दरवाजों में लगाई जाती हैं, छोटी सलाख।
सीट - - (अं.) 1. बस, रेलगाड़ी, सिनेमाघर आदि में व्यक्ति के बैठने के लिए बना स्थान। पर्या. आसन। 2. निर्वाचित पद। उदा. प्रति दो वर्ष में राज्यसभा की 1/3 सीटें खाली हो जाती हैं। 3. पैंट, पाजामें का वह स्थान जो कूल्हों को ढकता है। पर्या. आसन, पिछवाड़ा। 4. साइकिल की गद्दी। seat
सीड-ड्रिल - (पुं.) - (अ.) बीजों को उचित गहराई तथा उचित दूरी पर बोने के लिए ट्रैक्टर द्वारा संचालित एक आधुनिक उपकरण। seed drill
सीढ़ी - (स्त्री.) (तद्.>श्रेढी) - 1. किसी ऊँचे स्थान पर चढ़ने के लिए वह साधन जिसमें सीमित अंतराल में एक के बाद एक पैर रखने के स्थान बने हों। नसेनी, जीना, पैड़ी। 2. बाँस या लोहे की बनी सीढ़ी में पैर रखने के लिए बने डंडे।
सीताफल - (पुं.) (तत्.) - 1. सब्जी के लिए प्रयुक्त किया जाने वाला, ऊपर से चितकबरा धारीदार बड़े आकार का एक फल विशेष जो ज़मीन पर फैली हुई लताओं पर लगता है। कद्दू, रामकरेला, कुम्हड़ा, काशीफल। 2. शरीफा नामक फल। वि. एक अनुश्रुति के अनुसार शरीफा को बंदर नहीं खाते क्योंकि यह सीताफल होता है।
सीत्कार - (पुं.) (तत्.) - सी सी’ की वह ध्वनि जो अधिक ठंड या आनंद की अनुभूति के कारण सहसा मुँह से निकलती है। जैसे: वह ठंड से काँपता हुआ सीत्कार कर रहा था।
सीध - (स्त्री.) (तद्.) - 1. सीधा होने की दशा/ गुण/भाव। सीधापन, सरलता, सिधाई। जैसे: तुम्हारी सीध का लोग अनुचित फायदा उठाते हैं। 2. (किसी के) ठीक सामने की दिशा या स्थिति। जैसे: इसी सीध में आगे चलकर पत्रालय है। मुहा. नाक की सीध में=ठीक सामने की ओर।
सीधा1 - (वि.) (तद्.) - 1. जिसमें टेढ़ापन न हो। अवक्रता, सरल। जैसे: यह बिल्कुल सीधा मार्ग है। 2. जो ठीक अपने लक्ष्य की ओर अग्रसर हो। जैसे: वह आते ही सीधा काम में जुट जाता है। 3. जिसमें कपट न हो, निश्छल। जैसे: वह अत्यंत सीधा व्यक्ति है। 4. प्रत्यक्ष। जैसे: तुम्हारा उनके परिवार से सीधा संबंध है। 5. दाहिना। जैसे: तुम सीधे हाथ से भोजन करो। मुहा. सीधा करना=किसी को दंड आदि उपायों से अनुकूल बनाना या सही रास्ते में लाना।
सीधा2 - (पुं.) (तद्.> शुद्ध/असिद्ध) - बिना पका भोजन-चावल, आटा, दाल, तेल, घी आदि। जैसे: ब्राह्मण के लिए सीधा निकाल दो।
सीना स.क्रि. - (तद्.>सीवन) (पुं.) - 1. कपड़े, चमड़े, टाट के टुकड़ों या किताब के पन्नों आदि को सूई-धागे या सूजे-डोरी की सहायता से जोड़ना। जैसे: फटी कमीज़ को सीना। 2. फा. छाती, वक्ष:स्थल।
सीप/सीपी - (स्त्री.) (तद्.) - मोती का किश्तीनुमा दो पाटों वाला घर। तु. शंख।
सीमांत प्रदेश - (पुं.) (तत्.) - देश की अंतिम सीमा का हिस्सा या प्रांत, सरहद के प्रांत।
सीमा - (स्त्री.) (तत्.) - 1. किसी गाँव, प्रदेश, देश के चारों ओर के विस्तार की अंतिम रेखा। पर्या. सरहद (बाउंड्री, बार्डर) जैसे: देश की सीमाओं की सुरक्षा अनिवार्य है। 2. नियम या मर्यादा की हद। जैसे: हर बात की एक सीमा होती है। मुहा. 1. सीमा से बाहर होना या जाना, मर्यादा का उल्लंघन करना। सीमा बंद करना-किसी चीज़ या मनुष्यों का आना-जाना बंद कर देना।
सीमाहीन - (वि.) (तत्.) - 1. अनंत दूरी तक फैला हुआ। जिसका अंत न हो, असीम, अनंत। जैसे: आकाश सीमाहीन है। 2. एक के बाद दूसरा, इस प्रकार घटनाओं के निरंतर बढ़ते जाने का गुण।
सीमित - (वि.) (तत्.) - सीमा में बँधा हुआ। 2. जिसका प्रभाव निश्चित सीमा के बाहर न हो। 3. सीमाबद्ध।
सीरम - (पुं.) - (अं.) 1. खून का थक्का बन जाने के बाद शेष द्रव भाग जिसमें प्रतिपिंड तथा कुछ वसाएँ और प्रोटीन बची रह जाती हैं। 2. साँप इत्यादि के जहर को दूर करने के लिए बनाई हुई दवा, जो इंजेक्शन के माध्यम से रोगी को दी जाती है। पर्या. रक्तोद Serum
सीलन - (स्त्री.) (तद्.शीतलन) - छत, दीवार के अंदर पानी घुसने की स्थिति दीवारों आदि में घुसने वाली नमी।
सीलना अ.क्रि. - (देश.<शीतलन) - नमी सोखने की क्रिया। छत, दीवार आदि में नमी आ जाना। सील से प्रभावित होना।
सीलबंद - (पुं.) - (अं+फा.) 1. (गोपनीय पत्र दस्तावेज आदि का वह लिफाफा) जिसे सरकारी या विभागीय मुहर लगाकर अच्छी तरह बंद कर दिया गया हो। 2. (कमरा, दूकान या वस्तुएँ आदि) जिन पर ताला लगाकर इस प्रकार बंद किया गया हो कि सील तोडे़ बिना उसे खोला न जा सके।
सीवर - (पुं.) - (अं.) (जी.) मकानों, सड़कों आदि से वर्ज्य तरल पदार्थ (पानी, मलमूत्र आदि) को ले जाने वाली नाली। तु. गटर Sewer
सीसा - (पुं.) (तद्.<सीसक) - 1. मटमैले रंग की एक भारी पर दुर्बलतम धातु जो अयस्क रूप में मिलती है तथा विद्युत की कुचालक और घर्षण- सह होती है। lead टि. इसे ‘शीशा’ से भिन्न समझें।
सु-अपवाहित - (वि.) (तत्.) - व्यवस्थित प्रणाली के माध्यम से पूरी तरह बहाए गए तरल वर्ज्य पदार्थ जैसे : मलमूत्र आदि)
सुअवसर - (पुं.) (तत्.) - 1. उत्तम अवसर, 2. अनुकूल समय, अच्छा मौका। जैसे: सुअवसर देख विश्वामित्र राम से बोले।
सुआ - (पुं.) (तद्.<सुग्गा<शुक) - 1. लाल रंग की मुड़ी हुई नुकीली चोंच वाला हरे रंग का एक पक्षी। तोता, शुक। 2. पुं. <तद्<सुई<सूची) बोरा आदि सीने की बड़ी सुई। सूजा।
सुकर - (वि.) (तत्.) - 1. जो सरलता या आसानी से किया जा सके। 2. सुगम, सहज, आसान। विलो. दुष्कर।
सुकुमार - (वि.) (तत्.) - कोमल अंगों वाला। पुं. कोमल अंगों वाला बालक।
सुकुमारता - (स्त्री.) (तत्.) - कोमलता का गुण या भाव।
सुकून - (पुं.) (अर.) - 1. शांति, अमन; मन की शांति जैसे: अब दिल को सुकून मिला। 2. आराम-जैसे बीमारी में सुकून होना। 3. संतोष, इत्मीनान, धैर्य, सब्र! उदा. सुकून रखो, सब ठीक हो जाएगा।
सुक्ख - (पुं.) (तद्.) - दे. सुख।
सुख - (पुं.) (तत्.) - व्य.अर्थ मनो. भौतिक और/या मानसिक-दोनों स्तरों पर अनुकूल और प्रिय लगने वाली शरीर और/या मन की स्थिति जिसे हर व्यक्ति भोगने/पाने की इच्छा रखता है। विलो. दु:ख।
सुखद - (वि.) (तत्.) - सुख और आनंद देने वाला; आरामदेह। सुखदायी।
सुख-शांति - (स्त्री.) (तत्.) - 1. सुख और शांति। 2. आत्मिक आनंद की अनुभूति और चैन। सुकून। जैसे: वह सुख-शांति से यहाँ रहते हैं।
सुखाना - - स.क्रि. (हिं. सूखना का प्रेरणा.) 1. गीली चीज़ का गीलापन धूप, आग की सहायता से दूर करना। 2. गीलापन समाप्त करना, शुष्क करना; पोंछना। ला.अ. क्षीण करना; दु:खी करना।
सुगंध [सु+गंध] - (स्त्री.) (तत्.) - शा.अर्थ अच्छी बू (=खुशबू) 1. ऐसी गंध जो अच्छी लगती हो; खुशबू, महक।
सुगंधित - (वि.) (तत्.) - खुशबूदार। दे. सुगंध।
सुगठित - (वि.) (तत्.) - 1. अच्छी तरह गठा हुआ। जैसे: तुम्हारा सुगठित शरीर देखकर हम प्रसन्न हुए। 2. गठे हुए शरीर वाला। 3. सुडौल, सुगढ़। 4. सुसंगठित। जैसे: सुगठित कार्य योजना ही संस्था को लोकप्रिय बना सकती है।
सुगम - (वि.) (तत्.) - 1. जहाँ जाना या पहुँचना हो। 2. सरल, आसान।
सुग्राहिता - (स्त्री.) (तत्.) - आसानी या सुगमता से ग्रहण किए जा सकने का भाव या गुण। पर्या. सुग्राह्यता, सूक्ष्मग्राहिता।
सुग्राही - (वि.) (तत्.) - 1. जिसे आसानी या सुगमता से ग्रहण किया जा सके। पर्या. सूक्ष्मग्राही। 2. तुला की इतनी अधिक संवेदनशील होने की विशेषता कि सूक्ष्म से सूक्ष्म भार के अंतर को भी दर्शा सके।
सुघड़ - (वि.) (तद्.<सुघट) - 1. सुंदर डील-डौल वाला। पर्या. सुडौल। 2. सुंदर, मनोहर। 3. कुशल (कारीगर), दस्तकारी में निपुण। 4. सरलता से बनाया जा सकने वाला।
सुचारु - (वि.) (तत्.) - बहुत सुंदर, अति चारु, मनोहर, अत्यंत खूबसूरत। भाव- सुचारुता।
सुचालक [सु+चालक] - (वि.) (तत्.) - ऊष्मा, विद्युत आदि के संचलन में अच्छी क्षमता रखने वाला (पदार्थ) जैसे: ताँबा (ताम्र) तु. कुचालक।
सुचालक - (वि.) (तत्.) - ऊष्मा, विद्युत आदि के संचालन की क्षमता वाला। जैसे: ताँबा, एलुमिनियम आदि। विलो. कुचालक।
सुजान - (वि.) (तद्.<सुज्ञान) - शा.अर्थ अच्छा ज्ञान/अच्छी जानकारी रखने वाला। 1. बुद्धिमान, चतुर, होशियार। 2. कुशल, निपुण।
सुझाना स.क्रि. - (तद्.) - सूझना का प्रेर. रूप किसी को नई बात/विचार बताना, जिसके ध्यान में कोई बात न आई हो उसे उस बात की जानकारी देना।
सुझाव - (पुं.) (देश.) - 1. सुझाने की क्रिया या भाव। 2. कार्य सिद् धि के लिए जो उपाय व्यक्ति को न सूझा हो उसके विषय में दूसरे व्यक्ति द्वारा बताना। पर्या. परामर्श। suggesation
सुड़कना स.क्रि. - (देश.) - किसी द्रव (औषधि आदि) को नाक के छिद्रों से सुड़-सुड़ ध्वनि के साथ अंदर खींचना।
सुडौल - (वि.) (तत्.+पश्तो) - 1. अच्छे डील-डौल वाला, हृष्ट-पुष्ट। हट्टा-कट्टा। 2. शारीरिक दृष्टि से सुगठित अंग वाला। आनुपातिक आकार के अंगों वाला। विलो. बेडौल।
सुत - (पुं.) (तत्.) - पुत्र, बेटा, तनय। स्त्री. सुता।
सुतली - (स्त्री.) (देश.<सूत <सूत्र) - सा.अ. रुई, पटसन, रेशम आदि की बनी डोरी, जिसका उपयोग किसी चीज़ को बाँधने, चारपाई बुनने आदि में होता है।
सुदर्शन - (वि.) (तत्.) - जो देखने में अच्छा हो। पर्या. प्रियदर्शन। स्त्री. सुदर्शना। पुं. 1. विष्णु का चक्र, शिव। 2. एक ओषधीय पौधा जिसका फूल बड़ा और सफेद रंग का होता है।
सुदूर - (वि.) (तत्.) - किसी उल्लिखित स्थान से अपेक्षाकृत बहुत अधिक दूर। उदा. सुदूर पूर्व।
सुध - (स्त्री.) (तद्.) - दे. सुधि।
सुधरना अ.क्रि - (तद्.) - 1. खराब या बिगड़ी हुई चीज़ का ठीक होना, त्रुटि/दोष-मुक्त होना। 2. बुरे आचरण को छोड़कर अच्छे आचरण/व्यवहार की ओर बढ़ना। जैसे: बच्चों को सुधरना।
सुधा - (स्त्री.) (तत्.) - 1. वह कल्पित पेय जिसे पीकर प्राणी के अमर हो जाने की बात कही जाती है। अमृत, पीयूष। 2. चूना। 3. रस/ 4. जल।
सुधार - (पुं.) (तत्.) - 1. कमी या दोष के दूर करने या होने का भाव। पर्या. दोषमार्जन। 2. कुरीतियों को हटाकर उनके स्थान पर उचित रीतियों की स्थापना। पर्या. संस्कार। 3. संशोधन, परिवर्तन आदि जो उन्नति के लिए हों।
सुधारक - (पुं.) (तत्.) - 1. सुधार करने वाला, दोषों को दूर करने वाला। 2. धार्मिक, सामाजिक आदि क्षेत्रों में सुधार करने वाला। दे. सुधार।
सुधि - (स्त्री.) (तद्.) - 1. स्मृति, याद। 2. होश, चेतना। उदा. सुध-बुध खो देना। 3. खबर या हाल। मुहा. सुधि खोना= भूल जाना। सुधि लेना= याद करना, स्मृति में लाना, हालचाल पूछना। सुधि दिलाना= याद दिलाना। सुधि-भूलना, सुधि- बिसारना= याद न रखना, विस्मृत करना।
सुधी - (स्त्री.) (तत्.) - 1. अच्छी या तीक्ष्ण बुदधि सुबुद् धि। बुद् धिमान्, विद्वान, समझदार। जैसे : इस सभा को सुधीजन सुशोभित कर रहे हैं।
सुबुद् धि। - (पुं.) - बुद् धिमान्, विद्वान, समझदार। जैसे : इस सभा को सुधीजन सुशोभित कर रहे हैं।
सुनसान - (वि.) (तद्.<शून्य स्थान) - जहाँ कोई व्यक्ति न हो। पर्या. निर्जन, वीरान, एकांत। पुं. सन्नाटा।
सुनहरा/सुनहला - (वि.) (देश.) - 1. सोने के रंग का; सोने की तरह चमकीला। 2. कीमती, बहुमूल्य, लाभप्रद। जैसे: सुनहरा अवसर। स्त्री. सुनहरी।
सुनामी (त्सुनामी) - (स्त्री.) - (जापानी) शा.अर्थ बंदरगाह लहर या पोताश्रय तरंग। विशाल, विस्तृत एवं अतिविनाशकारी महासागरीय तरंग जो समुद्र की तलहटी में तीव्र भूकंप आने ज्वालामुखी फटने अथवा भू-स्खलन के कारण लगातार उठती जाती है। जैसे: 26 दिसंबर 24 को हिंद महासागर में उठी सुनामी ने दक्षिण और दक्षिण-पूर्व एशिया में भारी तबाही मचा दी थी। Tsunami
सुनार - (पुं.) (तद्.<स्वर्णकार) - 1. सोने-चाँदी के आभूषण आदि बनाने वाला कारीगर। 2. स्वर्णकार जाति या उसका सदस्य।
सुनारी - (स्त्री.) (तद्.) - सुनारिन। 1. स्वर्णकार की जीविका 2. उसकी कला। जैसे: हमारे पड़ोस में एक सुनार रहता है जो सुनारी का काम करता है।
सुनिश्चित - (तत्.) - भली-भाँति/दृढ़ता के साथ निश्चय किया हुआ, पक्का। विलो. अनिश्चित।
सुन्न - (वि.) (तद्.<शून्य) - ठंड, किसी रासायनिक क्रिया या रोग आदि के कारण संवेदनहीन (शरीर का कोई अंग)। पर्या. चेतना शून्य। जैसे: ठंड से उसके हाथ-पैर सुन्न हो गए।
सुपच - (वि.) (तत्.) - 1. शीघ्र पचने वाला (कोई खाद्य पदार्थ) सुपाच्य। जैसे: ‘खिचड़ी’ एक सुपच आहार है। पुं. तद्. > श्वपच) चांडाल।
सुपात्र - (पुं.) (तत्.) - 1. विद्या-दान, अन्नदान, धनदान देने हेतु या कोई महत्त्वपूर्ण जिम्मेदारी सौंपने के लिए योग्य या उपयुक्त व्यक्ति। अच्छा पात्र। जैसे: हमें सुपात्र को ही दान देना चाहिए। 2. अधिकारी व्यक्ति 3. अच्छा पात्र या बरतन।
सुपारी - (स्त्री.) (तद्.सुप्रिय) - नारियल की जाति का एक ऊँचा वृक्ष जिसके फल छोटे गोलाकार तथा कठोर होते हैं और जिन्हें छोटे टुकड़े करके पान के साथ या स्वतंत्र रूप से भी खाया जाता है। पर्या. पूगीफल। पुं. (फ़ा<सुपार) अपराध की दुनिया में किसी की हत्या का ठेका। जैसे: उसने नेताजी को मारने की सुपारी ली थी।
सुपुत्र - (पुं.) (तत्.) - अच्छे संस्कार व सत्कर्म वाला पुत्र, योग्य पुत्र। पर्या. सपूत। विलो. कुपुत्र।
सुपुर्द - (वि.) (.फा.) - विश्वास के साथ सौंपा हुआ, हवाले। जैसे: यह धनराशि आपके सुपुर्द है।
सुपुर्दगी - (स्त्री.) (.फा.) - सौंपने की क्रिया या भाव।
सुप्त ज्वालामुखी - (पुं.) (तत्.) - भूवि. ज्वालामुखी जिससे पहले कभी लावा निकला था, किंतु अब नहीं निकल रहा है परंतु कभी भी पुन: जाग्रत हो सकता है। दे. ज्वालामुखी। तु. जाग्रत ज्वालामुखी।
सुप्रतिष्ठित - (वि.) (तत्.) - 1. जिसकी बहुत प्रतिष्ठा या सम्मान हो। इज्जतदार। 2. जो बहुत अच्छी तरह स्थापित हो। 3. प्रसिद्ध। जैसे: आप इस क्षेत्र के सुप्रतिष्ठित विधायक है।
सुप्रसिद् ध - (वि.) (तत्.) - जो किसी विशेष गुण या कर्म के कारण बहुत अधिक प्रसिद्ध हो। बहुत मशहूर। जैसे: जयशंकर प्रसाद की ‘कामायनी’ सुप्रसिद्ध रचना है।
सुफल - (पुं.) (तत्.) - 1. किसी अच्छे उद् देश्य से किये गए कार्य का उत्तम फल। अच्छा परिणाम, उपलब्धि। जैसे: तुम्हारी प्रतिष्ठा तुम्हारे द्वारा किए गए उपकारों का सुफल है। 2. साधना का परिणाम, सिद्धि। वि. सुंदर फल वाला, फलदार। जैसे: यह सुफल आम्रवृक्ष है। स्त्री. सुफला।
सुबकना अ.क्रि. - (देश.) - सुनाई पड़ने वाली आवाज़ में बार-बार साँस खींचते-छोड़ते रोना। sohbing
सुबह - (स्त्री.) (अर.) - सूर्योदय का समय। पर्या. सवेरा, प्रात:काल। क्रि. वि. सवेरे, प्रात:, सवेरे के समय।
सुबह-सुबह क्रि.वि. - (वि.) (अर.) - 1. प्रात: काल के समय, तडक़े। 2. बहुत सवेरे।
सुबहान अल्ला (पद) - (अर.) - अरबी भाषा की एक उक्ति जिसका अर्थ है- ‘ईश्वर धन्य हैं।’ प्रचलित पद-‘सुभान अल्ला’। जैसे: आपकी सूरत सुबहान अल्ला।
सुबोध - (वि.) (तत्.) - 1. जो आसानी से सबकी समझ में आ जाए। 2. बोधगम्य, सरल। जैसे: सूरदास के पद अत्यंत सुबोध हैं। विलो. दुर्बोध।
सुभाषी - (वि.) (तत्.) - 1. अच्छा और मीठा बोलने वाला। 2. अवसर के अनुकूल सुंदर ढंग से बोलने वाला। पर्या. मृदुभाषी। स्त्री. सुभाषिणी।
सुमति - (स्त्री.) (तत्.) - 1. अच्छी बुद्धि, सद्बुद्धि। 2. परस्पर सहयोग एवं सद् भावपूर्ण बुद्धि, वैचारिक एकता। उदा. जहाँ सुमति तहँ संपति नाना। वि. 1. सुंदर बुद्धिवाला, सुंदर विचारों वाला; बुद्धिमान्। 2. शीलवान्।
सुमिरन - (पुं.) (तद्.) - दे. स्मरण
सुमिरना/सुमरना स.क्रि. - (तद्.) - 1. स्मरण करना। 2. अपने आराध्य देव आदि का बार-बार नाम जपना।
सुमुखी - (वि./स्त्री.) (तत्.) - सुंदर मुख वाली (स्त्री)।
सुयश - (पुं.) (तत्.) - बहुत यश, अच्छा यश। पर्या. सुकीर्ति, ख्याति, प्रसिद्धि। वि. जिसे बहुत अधिक यश मिला हो। प्रसिद्ध, विख्यात।
सुयोग - (पुं.) (तत्.) - 1. सुंदर/अच्छा योग या काल। 2. सुअवसर। 3. किसी व्यक्ति या वस्तु आदि के साथ योग मिलना। उदा. 1. सुयोग होने पर ही किसी का कार्य सिद्ध होता है। 2. ग्रह भेषज जल पवन पट पाइ कुयोग सुयोग। होहिं कुवस्तु सुवस्तु जग, लखहिं सुलक्ष न लोग।। (तुलसी-रामचरितमानस) वि. कुयोग।
सुयोग्य - (वि.) (तत्.) - 1. बहुत अच्छी योग्यता वाला। जैसे: आपका सुयोग्य पुत्र धन्य है। 2. अपेक्षित गुणों वाला। जैसे: ईश्वर की कृपा से आपकी कन्या के लिए सुयोग्य वर मिल गया। 3. सर्वथा उचित। जैसे: आज का यज्ञ सुयोग्य विद्वानों के द्वारा संपन्न हुआ।
सुरंग - (स्त्री.) (तद्.) - 1. जमीन के नीचे खुदाई करके बनाया गया मार्ग। ternal 2. सैनिक उद्देश्यों से ज़मीन के नीचे विस्फोटक छिपाने के लिए बनाया गया गड्ढा 3. धातु, कोयला आदि प्राप्त करने के लिए खोदी गई ज़मीन, खान, खदान। mine वि. सुंदर रंग वाला, सुंदर।
सुर - (पुं.) (तत्.) - 1. देवता। 2. संगीतोपयोगी मधुर ध्वनि, स्वर; ध्वनि। मु. सुर में सुर मिलाना किसी की हाँ में हाँ मिलाना। नया सुर अलापना-दूसरों से बिल्कुल अलग बात करना।
सुरक्षा - (स्त्री.) (तत्.) - 1. अच्छी तरह से की जाने वाली रक्षा, हिफ़ाजत। 2. पूरी सतर्कता बरतते हुए हानि, क्षति या आपदा से बचे रहने की स्थिति।
सुरक्षात्मक [सुरक्षा+आत्मक] - (वि.) (तत्.) - 1. सुरक्षा संबंधी। 2. सुरक्षा के उद् देश्य से किया जाने वाला (प्रबंध या कार्य)।
सुरक्षित - (वि.) (तत्.) - 1. जिसकी रक्षा के लिए उत्तम प्रबंध किया गया हो। या जिस पर आक्रमण का कोई भय न हो। जैसे: भारत की उत्तरी सीमा पूरी तरह सुरक्षित है। 2. जिसकी सभी तरह से रक्षा की गई हो या की जा रही हो। जैसे: हमारे पास रखे आपके स्वर्णाभूषण पूर्णतया सुरक्षित हैं। 3. जो अच्छी देख रेख में रखा गया हो। जैसे-वह अज्ञात नवजात शिशु उनकी देखरेख वहाँ पूर्ण सुरक्षित है। 4. किसी भय, संकट आदि से रहित। जैसे: उनके यहाँ यह परिवार पूरी तरह सुरक्षित है।
सुरख़ाब - (पुं.) (फा.<सुर्ख़ाब) - चकवा (जलाशय के आस-पास रहने वाला पक्षी विशेष)। मुहा. सुरखाब के पर लगना-श्रेष्ठ समझना (व्यंग्य में) उदा. क्या तुम्हारे सुरखाब के पर लगे हैं?
सुरखी/सुर्खी - (स्त्री.) (फा.) - 1. किसी वस्तु आदि में दिखने वाली लाली, अरुणिमा। उदा. उसके कपोलों में सुरखी प्रकृतिदत्त्त है? 2. किसी लेख या समाचार पत्र में दिये प्रमुख समाचारों के शीर्षक। जैसे: आज के समाचार पत्र की सुर्खियाँ क्या हैं?
सुरबाला - (स्त्री.) (तत्.) - 1. देवकन्या या देवांगना; देवी। 2. अप्सरा। उदा. चाह नहीं मैं सुरबाला के गहनों में गूँथा जाऊँ। (पुष्प की अभिलाषा कविता)
सुरभि - (स्त्री.) (तत्.) - 1. सुगंध, खुशबू, सुवास। 2. गाय/गौ; कामधेनु।
सुरभित - (वि.) - सुगंधित, सुवासित, खुशबूदार। जैसे: सुरभित वातावरण।
सुरमा/सुर्मा - (पुं.) (फा.) - 1. आँखों को स्वस्थ बनाये रखने के लिए उनमें लगाया जाने वाला एक बारीक पिसा हुआ कुछ सफेदी लिए हल्का नीले या काले रंग का विशेष चूर्ण जो एक प्रकार के खनिज पदार्थ को घिसने से प्राप्त होता है। 2. सौंदर्यवृद्धि के लिए आँखों में लगाया जाने वाला उक्त प्रकार का चूर्ण या व्यंजन।
सुरम्य - (वि.) (तत्.) - अति रमणीय, रमणीक, मनोहर, बहुत सुन्दर, दर्शनीय।
सुरसुरी - (स्त्री.) - (अनु.) 1. शरीर के किसी अंग में किसी छोटे कीड़े आदि के रेंगने जैसा अनुभव। 2. हल्की खुजली।
सुरा - (स्त्री.) (तत्.) - मद्य, मदिरा, शराब। जैसे: सुरा स्वास्थ्य और बुद्धि को नष्ट करती है।
सुराख़ - (पुं.) (फा.सूराख़) - किसी वस्तु, भित्ति आदि पर यांत्रिक प्रक्रिया से किया गया छिद्र या छेद। जैसे: कील के सहारे चित्र टाँगने के लिए भित्ति में एक सुराख़ किया गया है।
सुराग - (तु.) (पुं.) - (तु.) 1. अपराध संबंधी खोज के सूत्र। 2. चिह् न, निशान; पता-ठिकाना। तत्. (संगी.) मधुर राग, कर्णप्रिय राग।
सुराही - (स्त्री.) (अर.) - लंबी गरदन और तंग मुख वाला पीने का पानी रखने के लिए मिट्टी का बना बरतन/पात्र (जिसमें पानी ठंडा रहता है)। सुरीला मधुर/मीठे-स्वर वाला।
सुरीलापन [सुरीला+पन] - (पुं.) (देश.) - सुरीला होने का भाव। दे. सुरीला।
सुरूर - (पुं.) (.फा.) - 1. हर्ष, खुशी, स्वाद, लज्ज़त 2. किसी नशीली वस्तु के सेवन से आया नशा, खुमारी। जैसे: उस पर भांग का सरूर दिख रहा है।
सुर्ख - (.फा.) - रक्त वर्ण का, लाल। जैसे: सुर्ख़ पुष्प, सुर्ख़ गाल।
सुर्खिया - (फार.) - शा.अर्थ लाल रंग (की विविधता)। ला.अर्थ 1. समाचार लेख आदि के प्रमुख शीर्षक headings 2. प्रमुख पंक्तियाँ। headlines
सुर्ख़ी - (स्त्री.) - 1. लाली। जैसे: उसके शरमाये चेहरे पर सुर्खी छा जाती है। 2. लाल स्याही। सुर्खी महत्त्वपूर्ण समाचार जैसे: आजकल उनका नाम समाचार पत्र की सुर्खियों में है। टि. पहले मुख्य समाचार मोटे अक्षरों में और लाल स्याही से छापने की प्रथा थी। इसीलिए उन्हें सुर्खी कहा जाने लगा।
सुलगना अ.क्रि. - (देश.) - 1. (लकड़ी आदि का) जलना आग पकड़ना। 2. ला.अर्थ अधिक दु:खी होकर मन-ही-मन कुढ़ना। 2. ईर्ष्या से जलना।
सुलतान - (पुं.) (अर.) - बादशाह, राजा, शासक, नरेश।
सुलूक - (पुं.) (अर.) - किसी के साथ किया जाने वाला व्यवहार/बरताव।
सुलोचना - (वि.) (तत्.) - 1. सुंदर नेत्रों वाली (स्त्री) 2. सुंदर रूप वाली (स्त्री), सुंदरी। स्त्री. मेघनाद की पत्नी जो पतिव्रता तथा अति सुंदरी थी।
सुवासित - (वि.) (तत्.) - 1. सुवास युक्त सुगंधित, खुशबूदार। 2. अच्छे वस्त्रों से युक्त।
सुविचार - (पुं.) (तत्.) - 1. अच्छी तरह बारीकी से किया गया विचार। 2. अच्छा विचार। 3. सोच समझकर किया गया निर्णय। जैसे: आपका तीर्थाटन का सुविचार स्वागत योग्य है।
सुविधा - (स्त्री.) (तत्.) - 1. ऐसी स्थिति जिसके कारण कोई कार्य सरलता से हो सके। पर्या. आसानी, सुभीता, सहूलियत। 2. सुख-संपन्नता; आराम, चैन। 3. ऐसे साधन या उपकरण जो सुविधा प्रदान करें। जैसे: हमारे घर सभी सुविधाएँ उपलब्ध है।
सुव्यवस्थित - (वि.) (तत्.) - बहुत अच्छी तरह से यानी योजनापूर्ण तरीके से अथवा सजाकर रखा हुआ।
सुशिक्षित - (वि.) (तत्.) - अच्छी तरह शिक्षित अथवा (भली-भाँति) शिक्षा प्राप्त किया हुआ। सुशिक्षा प्राप्त, पढ़ा लिखा।
सुशील - (वि.) (तत्.) - 1. उत्तम शील या स्वभाव वाला; अच्छे आचरण या व्यवहार वाला।
सुशोभित - (वि.) (तत्.) - 1. अत्यंत शोभा से युक्त। अतिशोभित, बहुत सुंदर। जैसे: पुष्पों से सुशोभित वाटिका। 2. शोभायमान, विद्यमान। जैसे: कृष्ण के साथ राधा सुशोभित हैं।
सुश्री - (वि.) (तत्.) - 1. अत्यंत शोभायुक्त 2. श्री से युक्त, अति सुन्दर 3. किसी अविवाहिता वयस्क स्त्री के नाम के पहले आदरार्थ प्रयुक्त किया जाने वाला शब्द। जैसे: सुश्री ममता।
सुषमा - (स्त्री.) (तत्.) - बहुत अधिक सुंदरता। नैसर्गिक शोभा। प्राकृतिक सौंदर्य।
सुसंगत - (वि.) (तत्.) - जिसका प्रसंग के साथ स्पष्ट संबंध हो। relevant
सुसंस्कृत - (वि.) (तत्.) - 1. अच्छी तरह शुद्ध किया हुआ। परिमार्जित। 2. अच्छी तरह संस्कार किया हुआ। परिष्कृत। 3. सामाजिक दृष्टि से शिष्ट, सभ्य। जैसे: आप एक सुसंस्कृत व्यक्ति प्रतीत होते हैं।
सुसज्जित - (वि.) (तत्.) - 1. अच्छी तरह सजा हुआ या सजाया हुआ। 2. समस्त आवश्यक उपकरणों से लैस, पूरी तरह तैयार। जैसे: सुसज्जित सेना। 3. सुंदर श्रृंगार किया हुआ। जैसे: सुसज्जित नववधू का चेहरा आभा से चमक रहा था।
सुस्वादु - (वि.) (तत्.) - उत्तम स्वाद वाला (कोई पदार्थ) स्वादिष्ठ, स्वाद युक्त। जैसे: हम सुस्वादु भोजन खाकर तृप्त हो गए।
सुहाग - (पुं.) (तद्.<सौभाग्य) - 1. स्त्री की वह स्थिति जिसमें उसका पति जीवित हो; सधवा रहने की स्थिति। 2. कन्या के विवाह के समय गाए जाने वाले मांगलिक गीत जिनमें उसके दीर्घकाल तक सौभाग्यशालिनी बने रहने की कामना की जाती है।
सुहाना - (तद्.) (तद्.<शोभन्) - स.क्रि. 1. आँखों (और मन को भी) अच्छा या सुंदर लगना, पसंद आना। दे. सुहावना। सुहावना वि. 1. देखने में सुंदर, भला, अच्छा, मनपसंद। जैसे: सुहावना मौसम।
सुहृद्/सुहृत् - (वि.) (तत्.) - 1. अच्छे हृदय वाला। 2. प्रिय, 3. मित्र, सखा, बंधु।
सूँघना स.क्रि - (तद्.<शिड्घन) - 1. नाक से किसी वस्तु, द्रव आदि की गंध को ग्रहण करना या अनुभव करना। जैसे: वह गुलाब के फूलों को सूँघता है। 2. लाक्ष. नाम मात्र भोजन करना। जैसे: तुमने तो भोजन केवल सूँघ लिया, खाया तो है नहीं। मुहा. साँप सूँघ जाना = किसी सत्य या रहस्य को जानने के बाद आवाज़ तक न निकलना।
सूआ - (पुं.) (तद्.>सूची) - 1. लंबी और मोटी सुई जिससे टाट, बोरे आदि सिले जाते हैं। 2. लंबी और बारीक सुई जिससे फूलमालाएँ बनाई जाती है। पुं. (तद्.>शुक) सूआ तोता, शुक।
सूक्त [सु+उक्त] - (वि.) (पुं.) - शा.अर्थ अच्छे ढंग से कहा गया। (तत्.) स्तुतिपरक वैदिक पद्यात्मक कथन। जैसे: पुरुषसूक्त।
सूक्ति (सु+उक्ति) स्त्री - (तत्.) - शा.अर्थ सुंदर उक्ति। अच्छा या चातुर्यपूर्ण कथन। सुभाषित maxim
सूक्ष्मजीव - (पुं.) (तत्.) - शा.अर्थ छोटा जीव। जीव. बहुत ही छोटे आकार वाले जीव जो नंगी आँखों से नहीं देखे जा सकते( केवल सूक्ष्मदर्शी से ही देखे जा सकते हैं, जैसे: विषाणु, जीवाणु, अमीबा आदि microbe, micro-organism
सूक्ष्मदर्शित्र - (पुं.) (तत्.) - यंत्र विशेष जो अत्यंत लघु पदार्थों को आकार में बड़ा करके दिखाता है। पर्या. अणुवीक्षक, सूक्ष्मदर्शक यंत्र, सूक्ष्मदर्शी, खुर्दबीन।
सूक्ष्मदर्शी - (वि.) (तत्.) - दे. सूक्ष्मदर्शित्र।
सूखना अ.कि. - (तद्.) - 1. किसी नम वस्तु की आर्द्रता या नमी नष्ट हो जाना। जैसे: तेज धूप के कारण सभी वस्त्र जल्दी सूख जाएँ। 2. तेज गर्मी के कारण किसी जलाशय के पानी का कम हो जाना। 3. वर्षा के अभाव में फसल का नष्ट हो जाना। 4. ला. रोग, दु:ख या चिन्ता के कारण मनुष्य का कमजोर हो जाना।
सूखा - (वि.) (तद्.<शुष्क) - (स्त्री. सूखी, भा.सं. सूखापन) 1. जिसमें पहले गीलापन था, पर अब गीलापन शेष न रह गया हो। जैसे: सूखा कपड़ा, सूखे हाथ। 2. जिसमें पहले जल प्रवाहित था, किंतु अब जल शेष न रहा हो। जैसे: सूखी नदी। 3. जिसमें अब नमी शेष न रही हो। जैसे: सूखा मौसम (खुश्क मौसम)। 4. जो रसदार न हो। जैसे: सूखी सब्ज़ी। 5. जिसमें हरापन यानी प्राण तत् व शेष न रहा हो। जैसे: सूखा पेड़। 6. जिसका व्यवहार प्राय: कोमल और मधुरता से रहित हो गया हो। जैसे: सूखा आदमी। पुं. . वर्षा के अभाव में कुछ भी पैदावार न होने की स्थिति। पर्या. अनावृष्टि, अकाल draught
सूचक - (वि.) (तत्.) - 1. सूचना देने वाला, संदेशी। 2. समाचार बताने वाला। 3. भेद बताने वाला informer 4. चुगलखोर। 5. शिक्षा शोधार्थी को उपयुक्त सूचना-सामग्री उपलब्ध कराने वाला।
सूचक पत्रक - (पुं.) - शा.अर्थ सूचना देने वाला कार्ड। पुस्त. लगभग 5”×3” के आकार का सादा या लाइनदार कार्ड जिस पर सूची प्रविष्टि अर्थात् पुस्तक की जानकारी अंकित हो। catalogve-card
सूचना प्रौद्योगिकी - (स्त्री.) (तत्.) - कंप्यू सूचना के संसाधन और संचारण में प्रयुक्त विधियों और युक्तियों का सामूहिक नाम। इसमें कंप्यूटर तंत्र, दूर संचार आदि सम्मिलित हैं। informamative technolog
सूचना - (स्त्री.) (तत्.) - 1. वह तथ्य या जानकारी जो किसी को अवगत कराने के लिए कही जाए या लिखित रूप में पहुँचायी जाए। समाचार, ख़बर, इत्तिला। informative, news 2. किसी अधिकारी को किसी घटना या कार्य की दी गई जानकारी। report 3. किसी संस्था या विभाग की ओर से दी गई लिखित रूप में अपेक्षित जानकारी जो सूचना पट्ट में लगाई जाती है। जैसे: प्रवेश सूचना, परीक्षा सूचना, सांस्कृतिक कार्यक्रम की सूचना। नोटिस।
सूचना-सामग्री - (स्त्री.) (तत्.) - सूचनाओं (जानकारियों) से संबंधित सामग्री सूचना (दूरदर्शन, रेडियो, कंप्यूटर तंत्र आदि) से संबंधित सामग्री।
सूची - (स्त्री.) (तत्.) - 1. क्रमबद् ध रूप में दी गई नामावली (भले ही वह पुस्तक के अध्यायों की हो, चाहे कई वस्तुओं की)। पर्या. अनुक्रमणिका, फेहरिस्त index list 2. कपड़ा सीने की सूई।
सूची पत्र - (पुं.) (तत्.) - पुस्तकालयों की ओर से जानकारी हेतु अथवा पुस्तक विक्रेताओं द्वारा बिक्री के लिए उपलब्ध पुस्तकों की तालिका संबंधी प्रकाशित पुस्तिका जिसमें लेखक, विषय, प्रकाशन वर्ष, मूल्य आदि से संबंधित विवरण दिया होता है। catalogue
सूचीबद्ध - (वि.) (दे.) - उल्लेख योग्य सभी प्रमुख बातों को क्रमिक रूप से एकत्रित किया हुआ। दे. सूची।
सूजन - (स्त्री.) (देश.) - शरीर में रोग, विकार, लगी चोट आदि किसी भी कारण से अंग का फूल जाना। पर्या. शोभ।
सूज़ाक - (पुं.) - (फार. सोज़ाक) एक यौन रोग जिसमें जननेंद्रियों में सूजन, जलन, घाव आदि लक्षण होते हैं। पर्या. उपदंश Gonorrhea
सूजी - (स्त्री.) (देश.) - 1. गेहूँ का रवेदार आटा जो हलवा आदि बनाने के काम आता है। 2. सुई।
सूझना अ.क्रि. - (देश.) - 1. दिखाई देना। उदा. घने कोहरे में रास्ता न सूझने के कारण गाड़ी की बत्तियाँ जलानी पड़ती है। 2. ध्यान में आना। उदा. मुझे इसका एक उपाय सूझा है।
सूझबूझ - (स्त्री.) (देश.<सूझना + बूझना (समझना)) - 1. सोचने-समझने की असाधारण शक्ति 2. बुद्धिमत्ता, दूरदर्शिता। 3. कल्पना-शक्ति।
सूत - (पुं.) (तत्.सूत्र) - 1. रुई, ऊन, रेशम आदि का बटा हुआ महीन धागा (जिससे वस्त्र बनता है)। पर्या. धागा, डोरा, सूत्र थ्रेड। 2. प्राचीनकाल की जाति विशेष। जैसे: सूतपुत्र कर्ण।
सूती - (वि.) (देश.) - सूत का (विशेष रूप से कपास की रुई से) बना हुआ, जैसे-सूती वस्त्र। तु. रेशमी।
सूत्र - (पुं.) (तत्.) - 1. कपास, रेशम आदि का तागा। पर्या. डोरा, सूत, तंतु। 2. अति संक्षिप्त रूप में कहा गया वचन या वाक्य 3. बिंदुओं में प्रस्तुत विचार 4. शास्त्रों के सिद्धांतों या नियमों का थोड़े शब्दों में वर्णन जैसे: धर्मसूत्र, व्याकरण-सूत्र आदि। 5. संकेत; गणित का फार्मूला; विधि (कार्यप्रणाली) का संकेत। 6. माध्यम जैसे: विश्वसनीय सूत्रों से पता चला है कि……। 7. जनेऊ; करधनी। 8. व्याख्या अथवा भाष्यापेक्षी संक्षिप्त कथन। जैसे: पाणिनि की अष्टाध्यायी के सूत्र।
सूत्रबद्ध - (वि.) (तत्.) - 1. धागे में पिरोया हुआ। 2. एक क्रम में लगाया हुआ। दे. । व्याख्या रूप में न होकर संक्षिप्त रूप में कथित।
सूदखोर - (पुं.) - (फ़ार.) ऋण देकर ऊँची दर पर ब्याज वसूलने का धंधा करने वाला व्यक्ति, महाजन। usurer
सूदखोरी - (स्त्री.) - अधिक ब्याज वसूलने के लिए ऋण देने की लालसा या प्रवृत्ति। usery
सूना - (वि.) (तद्.<शून्य) - 1. वह स्थान जहाँ पर लोगों का आवागमन या किसी प्रकार की गतिविधि न होती हो। निर्जन, सुनसान। जैसे: सूना महल। 2. प्रिय व्यक्ति या किसी सुंदर वस्तु के अभाव से अप्रिय रिक्तता। जैसे: संतान के बिना आंगन सूना है।
सूप - (पुं.) (तद्.<शूर्प) - अनाज फटकने का एक उपकरण। पुं. (सं.) 1. पकाई हुई दाल का तरल भाग। पर्या. झोल, रसा। 2. तरकारी, फल आदि को पकाकर रसेदार भाग जो प्राय: फैंटा हुआ अर्धतरल उसका पेय।
सूबा - (पुं.) (अर.) - किसी देश का निर्धारित सीमाओं वाला भूक्षेत्र जिसकी अपनी सरकार और अलग से शासनाध्यक्ष होता है। पर्या. प्रांत, प्रदेश।
सूबेदार - (पुं.) (अर. फ़ार.) - 1. राज. किसी सूबे अथवा प्रांत का सर्वोच्च शासक, (भारत के संदर्भ में) राज्यपाल। सैन्य. ओहदे के क्रम में स्थल सेना में मेजर से कनिष्ठ अफ़सर।
सूम - (पुं.) (अर.) - औषधि मसाले के रूप में प्रयुक्त किया जाने वाला एक सफेद कंद। पर्या. लहसुन, लसुन। वि. (देश) कृपण, कंजूस। जैसे: सूम व्यक्ति किसी की मदद नहीं कर सकता।
सूरत - (स्त्री.) (अर.) - 1. शक्ल, रूप, आकृति; चेहरा, मुखाकृति। जैसे: तुम्हारी सूरत को क्या हो गया है। 2. हालत, दशा; परिस्थिति जैसे: मैं हर सूरत में अपना लक्ष्य प्राप्त करूँगा। 3. उपाय, युक्ति-जैसे: अब बचने की क्या सूरत हो सकती है?
सूरमा - (पुं.) (तद्.शौर्यवान्) - युद्ध में बहादुरी से लड़ने वाला योद्धा, वीर बहादुर। जैसे: युद्ध में तो सूरमाओं की ही विजय होती है।
सूर्य - (पुं.) (तत्.) - खगो. वह स्वयं प्रकाशित तारा जो सौर परिवार का केंद्रीय पिंड है और सभी ग्रह जिसकी परिक्रमा करते रहते हैं और उसी से प्रकाश और ऊष्मा ग्रहण करते हैं। टि. हीलियम तथा हाइड्रोजन से बना लगभग पाँच बिलियन वर्ष पुराना यह तारा पृथ्वी से 9 करोड़ 30 लाख मील की माध्य दूरी पर अंतरिक्ष में स्थित है। इसका व्यास 8 लाख 64 हजार मील तथा इसका भार पृथ्वी से 3,32,000 गुणा ज्यादा है और इसका तापमान 5,500 डिग्री से. है।
सूर्यमंडल - (पुं.) (तत्.) - 1. सूर्य और उसकी परिक्रमा करने वाले ग्रहों-उपग्रहों का संपूर्ण समूह। पर्या. सौर परिवार, सौर-जगत। 2. सूर्य का आभा मंडल।
सूली - (स्त्री.) (तद्.<सं.शूल) - 1. प्राणदंड देने की एक बहुत पुरानी पंरपरा, जिसमें अपराधी को लोहे के नुकीले खंभे पर बिठा दिया जाता था, जिससे वह खंभा शरीर में घुस जाए। 2. प्राणदंड। 3. ला. बहुत अधिक कष्ट/पीड़ा की स्थिति। मुहा. सूली चढ़ाना = प्राणदंड देना।
सृजन - (पुं.) (तत्.) - दे. सृष्टि। वि. संस्कृत में शुद्ध शब्द ‘सर्जन’ है।
सृजनशील - (वि.) (तत्.) - दे. सर्जनशील, सर्जनात्मक। वि. सर्जनात्मक रचनात्मक साहित्य कर्म के लगा हुआ; रचनात्मक साहित्य से संबंधित। creative
सृजनात्मक - (वि.) (तत्.) - 1. सृजन से युक्त; नई रचना से युक्त। 2. जो विद् यमान न हो उसे अस्तित्व में लाने वाला।
सृष्टि - (स्त्री.) (तत्.) - 1. संसार, जगत, विश्व जिसमें चर-अचर प्राणी रहते हैं। 2. निर्माण, रचना, नई चीज़ या वस्तु जो तैयार की गई हो। creation
सृष्टि-विज्ञान - (पुं.) (तत्.) - जगत् की रचना के विषय में वैज्ञानिकों का शास्त्र द् वारा किया जाने वाला विश्लेषण व विवेचन।
सेंकना स.क्रि. - (तद्.) - (सं. श्रेषण) 1. आग पर रखकर थोड़ा गरम करना। जैसे: रोटी सेंकना। 2. धूप में बैठकर शरीर गरम करना, तापना। 3. रूई, कपड़ा, पानी आदि गरम करके शरीर के किसी भाग को गरमी पहुँचाना। मुहा. आँख सेकना-सुंदर चीज़ देखकर प्रसन्न होना।
सेंटीग्रेड - (वि.) - (अंग्रे.) शा.अर्थ सौ को आधार बनाकर बनाया गया पैमाना। सा.अर्थ सेंटीग्रेड तापमान जिसमें पानी के उबलने का तापमान 1 डिग्री माना जाता है। टि. डॉ. सेल्सियस द्वारा यह क्रम निर्धारित करने के कारण इस तापक्रम को सेल्सियस भी कहते हैं।
सेंटीमीटर - (पुं.) (वि.) - (अं.) मीटर का सौंवाँ भाग। एक सेंटीमीटर हमारी छोटी उँगली की चौड़ाई के लगभग बराबर होता है। centimetre
सेंत-मेंत अव्यय - (देश.अनुर.) - व्यर्थ का, मुफ़्त का, बिना पैसे खर्च किए। सामान्यत: इसका संज्ञा के रूप में प्रयोग होता है। जैसे: सेंत-मेंत में काम कौन करेगा?
सेंध - (स्त्री.) (तद्.<संधि) - घर की दीवार पर बाहर की ओर से चोरों के द्वारा किया गया वह छेद जिसमें से घुसकर वह घर में चोरी करता है। पर्या. सुरंग, नकाब। जैसे-चोर कल पड़ोसी के घर सेंध लगाकर सारा कीमती सामान ले गए।
सेंधा - (पुं.) (तद्.<सैंधव) - एक प्रकार का खनिज नमक, जो चट्टानों से पत्थर के रूप में मिलता है। यह सिंध और पश्चिमी पंजाब (पाकिस्तान) की खानों से निकलता है। पर्या. सैंधव नमक, लाहौरी नमक।
सेंसर - (पुं.) - (अं.) किसी समाचार (या पुस्तक, नाटक, फिल्म, पत्र आदि) के प्रकाशन पर सरकार द्वारा पूर्णत: या अंशत: प्रतिबंध लगाने की प्रक्रिया। censor
सेंसरशिप - (स्त्री.) (दे.) - (अं.) सेंसर-व्यवस्था, किसी के भाषण वक्तव्य, लेख आदि पर सेंसर लगाने की व्यवस्था। दे. सेंसर।
सेंहुड़/सेहुँड़ - (पुं.) (तद्.<सेहुण्ड) - 1. एक ओषधीय पौधा जिसकी डंडी मोटी तथा कांटों से भरी होती है और पत्ते हरे, कोमल व मोटे होते हैं। पत्ती या तने को तोड़ने से दूध जैसा सफेद, गाढ़ा और लसदार द्रव पदार्थ निकलता है। 2. कैक्टस परिवार का एक कांटेदार पौधा। विशेष-इसके थूहर, नागफनी इत्यादि कई प्रकार हैं तथा इसकी डंडी, पत्ती, दूध आदि भी दवा के काम आते हैं।
सेज - (स्त्री.) (तद्<शय्या) - (सजा हुआ) पलंग, बिछौना, बिस्तर। पर्या. शय्या।
सेटेलाइट - (पुं.) - (अं.) 1. वह छोटा ग्रह जो अपने से बड़े ग्रह की परिक्रमा करता है, उपग्रह। 2. अंतरिक्ष में स्थापित प्रयोगशाला या अन्य व्यवस्था जिसके माध्यम से सूचनाओं का आदान-प्रदान किया जाता है। टेलिविज़न, कंप्यूटर आदि के संचालन में इनकी प्रमुख भूमिका है। कृत्रिम उपग्रह। setellite
सेठ - (पुं.) (तद्.>श्रेष्ठी) - 1. धनी, महाजन। 2. बड़ा व्यापारी या साहूकार। जैसे: नगरों में बड़े-बडे़ सेठ रहते हैं। स्त्री. सेठानी।
सेतु - (पुं.) (तत्.) - 1. नदी आदि पर बनाया गया पुल। 2. पानी के बहाव को रोकने के लिए बुलाया गया बाँध। 3. खेती की मेंड़। 4. दो व्यवस्थाओं में सामंजस्य स्थापित करने वाली तीसरी व्यवस्था, बीच की कड़ी। जैसे: सेतु-पाठ्यक्रम।
सेतुबंध - (पुं.) (तत्.) - 1. पुल, बाँध आदि का निर्माण। 2. दक्षिण भारत में रामेश्वरम् के पास लंका जाने के लिए नल-नील द्वारा बनाया गया पुल।
सेना - (स्त्री.) (तत्.) - शत्रु से अपने देश की रक्षा करने के लिए नियुक्त सिपाहियों/सैनिकों का दल या समूह। पर्या. फौज Army। 2. (स.क्रि.) (तद्.<सेवन) मादा पक्षी द्वारा गरमी पहुँचाने के लिए अपने अंडों पर बैठना ताकि परिपक्व होने पर उनसे बच्चे निकल सकें।
सेनानायक - (पुं.) (तत्.) - सशस्त्र सेना की कमान जिसके हाथ में हो, वह सेना का नायक, सेनापति, सेना का मुखिया। commander
सेनापति - (पुं.) (तत्.) - सेना का प्रमुख अधिकारी; सेना का प्रधान अधिकारी; सेनाथ्यक्ष।
सेलुलोज़ - (पुं.) (दे.) - (अं.) जै.रसा. एक संकर पॉलिसैकेराइड जो वनस्पति तंतुओं का मुख्य घटक है। उदा. कपास। cellulose दे. सेलुलोज।
सेवईं - (स्त्री.) (तद्.<सेविका) - मैदे के पतले सूत के समान एक दूसरे से लिपटे लच्छे (जिसे दूध में पका कर मीठे पकवान की तरह खाया जाता है।)
सेवन - (पुं.) (तत्.) - 1. नियमित रूप से किया जाने वाला कोई प्रयोग, व्यवहार, इस्तेमाल। जैसे: त्रिफला सेवन, औषध सेवन। 2. नियमित रूप से कोई वस्तु खाना या पीना। जैसे: मदिरा सेवन स्वास्थ्य के लिए हानिकारक है। 3. उपभोग। जैसे-विलासितापूर्ण वस्तुओं के सेवन से मानव को कमी तृप्ति नहीं मिलती।
सेवा - (स्त्री.) (तत्.) - शा.अर्थ पूजनीय एवं बड़ों को सुख एवं आनंद देने वाला किया गया कार्य। सा.अर्थ परिचर्या, शुश्रूषा, टहल, खिदमत। 2. जनसेवा का कोई कार्य। जैसे: साहित्य सेवा। 3. वेतन के लिए की गई कृत्ति service। 4. सरकार के विभागीय कार्य-डाकसेवा, बैंकिंग सेवा। 5. शरण, सहारा, आश्रय। जैसे: इसे अपनी सेवा में ले लीजिए।
सेवारत - (वि.) (तत्.) - 1. सेवा कार्य में लगा हुआ; 2. नौकरी में लगा हुआ।
सेवा शुश्रूषा - (स्त्री.) (तत्.) - किसी की सेवा, परिचर्या। टि. शुश्रूषा का शाब्दिक अर्थ है किसी की बात आदरपूर्वक एवं ध्यानपूर्वक सुनने की इच्छा करना एवं तद्नुसार कार्य करना।
सेविका - (स्त्री.) (तत्.) - 1. सेवा करने वाली स्त्री, दासी, नौकरानी। 2. दे. सेवई
सेहत - (स्त्री.) (अर.) - स्वास्थ्य, रोग रहित होने का भाव; तंदुरूस्ती; शरीर की स्वास्थ्य संबंधी दशा।
सेहतमंद - (वि.) (अर.+फा.) - [सेहत+मंद)] 1. जिसका स्वास्थ्य अच्छा हो, 2. स्वस्थ, तंदुरुस्त, ह्रष्ट-पुष्ट। जैसे: हम नियमित व्यायाम से सेहतमंद बने रह सकते है।
सेहरा - (पुं.) (देश.) - 1. विवाह के अवसर पर वर को पहनाने के लिए निर्मित सुंदर फूलों या सुनहले-रूपहले तारों आदि की लडि़याँ। 2. मुकुट, मौर। मुहा. सेहरा बँधना=1. शादी होना, 2. विजयी होना, बड़ी उपलब्धि होना।
सैद्धांतिक - (वि.) (तत्.) - सिद्धांत संबंधी।
सैनिक - (पुं.) (तत्.) - सेवा का योद्धी कार्मिक, सिपाही, फौजी। (वि.) सेना संबंधी, सेना का। जैसे: सैनिक न्यायालय। पर्या. सैन्य।
सैन्य - (वि.) (तत्.) - सेना का, सेना संबंधी।
सैयाँ - (पुं.) (तद्.<स्वामी) - किसी नारी का पति/स्वामी या प्रियतम। लोको. सैयाँ भये कोतवाल अब डर काहे का। पति के उच्च पद प्राप्त करने पर डरने की आवश्यकता नहीं।
सैयाद - (पुं.) (अर.) - पशु-पक्षियों का शिकार करने वाला, शिकारी, बहेलिया, चिड़िया पकड़ने वाला, चिड़ीमार।
सैर - (स्त्री.) (अर.) - घूमना-फिरना, मन बहलाने के उद् देश्य से भ्रमण; बाग-बगीचों में घूमना, प्रात:भ्रमण या भोजनोपरांत भ्रमण।
सैर-सपाटा - (पुं.) (फा.) - मनोरंजन की दृष्टि से इधर-उधर घूमना। सुंदर दृश्य देखने के लिए घूमना-फिरना।
सैलानी - (वि.) - (फ़ार.) जो बहुत अधिक घूमता हो, पर्यटक। सैर-सपाटा करने वाला (व्यक्ति), घूमने-फिरने वाला व्यक्ति, यात्री, घुमक्कड़।
स्मरण - (पुं.) (तत्.) - 1. किसी अनुभव जन्य या सुनी-सुनाई बात को बार-बार ध्यान में लाना या अकस्मात् ऐसी बात का चित्र मन में अंकित हो जाना। 2. किसी बात को देख-सुन कर या पढक़र किसी पूर्वज्ञात बात की ओर ध्यान चला जाना। recalling 3. किसी बात को बार-बार दुहराकर याद करना। पर्या. रटना। विलो. विस्मरण।
स्थल - (पुं.) (तत्.) - स्थान, स्थल। जैसे: दर्शनीय स्थान/स्थल, ऐतिहासिक/पुरातात्विक स्थल, स्थल नक्शा। sight
ह - -
हंगामा - (पुं.) (फा.) - 1. ऐसा उपद्रव या उत्पात जब किसी व्यक्ति द्वारा या कुछ लोगों के द्वारा अपने साथ हुए अन्याय या अपमान, पक्षपात आदि का विरोध पूरे शोर-शाराबे के साथ आक्रोश व्यक्त करते हुए किया जाता है। 2. शोरगुल 3. मारपीट, दंगा। मुहा. हंगामा खड़ा करना, हंगामा मचाना = लड़ाई-झगड़ा करना, हल्ला या शोरगुल मचाना। जैसे: एक महिला यात्री ने अपने साथ हुए दुर्व्यवहार से खिन्न होकर बस में ऐसा हंगामा मचाया कि अधिकारियों को क्षमा माँगनी पड़ी।
हंस - (पुं.) (तत्.) - 1. लंबी और लचकदार गर्दन और जालीदार पंजे से युक्त छोटे पैरों वाला शुभ्र वर्ण का एक जलपक्षी जिसकी आवाज सुरीली होती है। इसकी चलने की पद्धति अत्यंत आकर्षक होती है। 2. ला. शुद्ध आत्मा, जीवात्मा 3. दशनामी संन्यासियों का एक भेद। जैसे: सरस्वती देवी का वाहन ‘हंस’ है। वि. कवि मान्यता के अनुसार हंस मानसरोवर (तिब्बत) में निवास करता है तथा इसके पास दूध और पानी को अलग करने की प्रकृति प्रदत्त शक्ति है। इसीलिए इसे ‘नीर क्षीर विवेकी’ कहा जाता है। मुहा. हंस उड़ जाना = मृत्यु हो जाना।
हंसगति स्त्री [हंस + गति] - (तत्.) - 1. ‘हंस’ पक्षी की तरह सुंदर व धीमी चाल। 2. दर्श. जीवात्मा का ब्रह्म में मिल जाना, ब्रह्मप्राप्ति। उदा. जा छन हंस तजी यह काया। सूरसागर
हँकाना स.क्रि. - (देश.) - 1. आवाज़ लगाना। ज़ोर से पुकारना। 2. हाँक (पुकार) लगवाना। उदा. ज़मींदार ने ट्रैक्टर से अपना खेत हँकाया।
हँसना अ.क्रि - (तद्.) - 1. प्रसन्नता प्रकट होने या करने की वह क्रिया जिसमें नेत्र, होंठ, मुँह तथा दंतपंक्ति भी प्रसन्नता को अभिव्यक्त करते हैं। हर्षध्वनि निकलती है। 2. मुस्कराना, मंद हास्य। 3. ठहाका लगाना, अट्टहास। 4. उपहास करना, मज़ाक उड़ाना।
हँसमुख - (वि.) (तद्.+तत्.) - 1. वह व्यक्ति जो हमेशा खुश दिखता हो। 2. विनोदी स्वभाव का। जैसे: तुम जैसा हँसमुख व्यक्ति वातावरण को प्रसन्न बना देता है।
हँसली - (स्त्री.) (तद्.<अंसली) - 1. गले के नीचे और छाती के ऊपर की गोलाकार दो हडि्डयाँ। 2. स्त्रियों का गले में पहनने का एक विशेष आभूषण। जैसे: पहले स्त्रियाँ गले में चाँदी या सोने की बनी ‘हँसली’ धारण करती थीं।
हँसिया - (पुं.) (देश.) - 1. लोहे से बना एक अर्ध चंद्राकार औजार जिससे खेत की फसल घास, पौधे, सब्जी आदि काटे जाते हैं। 2. दराँती।
हँसी - (स्त्री.) (दे.) - 1. हँसने की क्रिया या भाव। 2. मज़ाक, विनोद, परिहास। जैसे: हँसी उड़ाना = मज़ाक करना। हँसी-खेल होना = किसी कार्य को अत्यंत साधारण, सहज या तुच्छ समझना। हँसी-खेल न होना = अत्यंत कठिन कार्य। उदा. इस नदी को पार करना हँसी खेल नहीं है।
हँसोड़ - (वि.) (देश.) - 1. वह व्यक्ति जो सदा हँसी की बातें करके दूसरों को हँसायें। पर्या. दिल्लगीबाज, मसखरा, ठठोल। 2. बहुत हँसने वाला।
हक - (अर्.) - 1. अधिकार, अख्तियार। 2. कर्तव्य, फर्ज़। 3. पक्ष-जैसे हक में = पक्ष में (मुकदमें का फैसला मेरे हक में हुआ।) मुहा. हक अदा करना = कर्तव्य पूरा करना।
हकदार - (वि./पुं.) (अर. हक + फा. दार) - 1. किसी वस्तु, जायदाद, लाभ आदि में हक या अधिकार रखने वाला; अधिकारी। जैसे: अठारह वर्ष से कम उम्र का व्यक्ति चुनाव में मतदान का हकदार (अधिकारी) नहीं होता।
हकलाना अक.क्रि. - (देश.) - एक वाक्दोष जिसमें व्यक्ति शब्दों का ठीक तरह से उच्चारण करने में कठिनाई अनुभव करता है तथा बीच-बीच में कोई शब्द अटक-अटक कर बोलता है।
हकीकत - (स्त्री.) (तत्) - (अर्.) 1. असल या वास्तविक व या असली बात। 2. सच्चाई, सत्यता, वास्तविकता, यथार्थता, असलियत, तथ्य।
हकीम - (पुं.) - (अ.) यूनानी चिकित्सा पद्धति से चिकित्सा करने वाला वैद्य/चिकित्सक। जैसे: हकीम सभी प्रकार की बीमारियों का इलाज करते हैं।
हक्का-बक्का - (वि.) - [अनु. <हक-बक] 1. बहुत घबराया हुआ। 2. आश्चर्यचकित। उदा. जादूगर के हाथ की सफ़ाई देखकर दर्शक हक्के-बक्के (हक्का-बक्का) रह गए।
हचकोला - (पुं.) (देश.) - 1. ऊबड़-खाबड़ रास्ते या किसी अन्य कारण से किसी भी वाहन पर बैठे हुए व्यक्ति को लगाने वाले हल्के-हल्के धक्के, जिससे व्यक्ति कभी-कभी कुछ उछलने जैसा भी अनुभव करता है। पर्या. धक्का, धचका, झटका। जैसे: ऊँट पर बैठा हुआ आदमी ऊँट की चाल के कारण हचकोला खाता हुआ-सा प्रतीत होता है।
हज - (पुं.) - (अर्.) इस्लाम धर्म के अनुयायियों में प्रचलित वह तीर्थयात्रा जो अरब देश में स्थित ‘मक्का’ में काबे के दर्शन या परिक्रमा के लिए की जाती है। जैसे: भारत से प्रतिवर्ष हजारों मुसलमान हज करने ‘मक्का’ जाते हैं।
हज़म - (वि.) (अर.<हज़्म) - 1. जिस (खाई हुई वस्तु) का पाचन हुआ हो, पचा हुआ। जैसे: सुबह जो खाया वह सब हज़म हो गया। 2. दूसरों से लिया गया परंतु बेईमानी के कारण वापस न किया गया। जैसे: खेल ख़तम पैसा हज़म।
हजरत - (पुं.) (अर.) - 1. एक आदरसूचक संबोधन। महोदय! महानुभाव! श्रीमान। जैसे: हजरत! यहाँ पधारिये। 2. महात्मा, महापुरुष। जैसे: हजरत मुहम्मद साहब।
हजामत - (स्त्री.) - (अ.) शा.अ. हज्जाम (नाई) का काम। सा.अ. 1. सिर और दाढ़ी के बालों को काटने या कटवाने या बनवाने का काम। क्षौर जैसे: मैं नाई की दुकान में हजामत करवा रहा हूँ। 2. किसी को धोखे से या जबरदस्ती लूटा या ठगा जाना। जैसे: दुकानदार ने उस बेचारे की ऐसी हजामत कर डाली कि उसके पास घर जाने तक को पैसे नहीं बचे।
हज्जाम - (पुं.) - (अ.) हजामत बनाने (का व्यवसाय करने) वाला; नाई।
हटना अ.क्रि. - (देश.) - 1. किसी का एक स्थान से दूसरे स्थान को जाना खिसकना, दूर होना, सरकना, स्थान छोड़ना। जैसे: वह इस सीट से हटता ही नहीं। 2. किसी स्वीकृत काम या बात से मुकरना, विमुख होना। जैसे: वह रुपये देने की बात से आज हट गया। 3. दूर होना; खत्म होना। जैसे: एक मुसीबत हटी नहीं कि दूसरी आ गई।
हटाना क्रिया. - (देश.) - किसी स्थान विशेष से वस्तु, व्यक्ति आदि को खिसकाना या दूर करना; किसी व्यक्ति को उसे सौंपे गए काम से अलग करना अथवा पद से उतारना।
हट्टा-कट्टा - (वि.) (तद्.<हृष्ट-काष्ठ) - 1. जो शरीर से पूरी तरह हृष्ट-पुष्ट और काठ की तरह मजबूत भी हो। 2. शक्तिशाली, मोटा-ताजा। जैसे: उसका बेटा तो बहुत ही हट्टा-कट्टा है।
हट्रजन - (दे.) - (कुछ विद्वानों द्वारा प्रयुक्त ‘हाइड्रोजन’) का नवनिर्मित अनुकरणवाची पर्याय। दे. हाइड्रोजन।
हठ - (पुं.) (तत्.) - 1. इंसान की वह प्रवृत्ति जिसमें किसी वस्तु को पाने या काम करने या करवाने के लिए अडिग दुराग्रह हो। पर्या. जिद, अड़, दृढ़ निश्चय, टेक। जैसे: बच्चे किसी वस्तु को पाने के लिए हठ करते हैं। 2 योग की एक विधा, हठयोग।
हठी - (वि.) (तद्.) - हठ करने वाला, दुराग्रही।
हठीला - (वि.) (तद्.) - हठी, जिद्दी, दृढ़ निश्चयी। दे. हठ।
हड़काना सक.क्रि - (देश.) - 1. किसी को अनुचित कार्य के कारण या मनपसंद कार्य न होने से डाँटना। 2. हड़ हड़ की विशेष आगाज के साथ भगाना। 3. धमकाना। जैसे: अपने शरारती बच्चों को हडक़ा कर अच्छा किया।
हड़ताल - (स्त्री.) (देश.) - असंतोष को व्यक्त करने वाला कारखानों या कार्यालयों में कर्मचारियों द्वारा काम बंद कर देने की स्थिति; किसी प्रकार का विरोध प्रकट करने के लिए नियमित कार्य न करना। जैसे: भूख हड़ताल strike
हड़पना स.क्रि. - (देश.) - 1. किसी वस्तु को अनुचित तरीके अपनाकर इस भावना से अधिकार में कर लेना कि उसे उसके मालिक को न लौटाया जाए। 2. मुँह में रखकर जल्दी निगल जाना।
हड़प्पा - (पुं.) (देश.) - सिंध का, वह स्थान जहाँ सिंधु संस्कृति के प्राचीन पुरातात्विक अवशेष प्राप्त हुए थे।
हड़बड़ाना अ.क्रि. - (देश.) - 1. जल्दबाजी करना। 2. घबराना। 3. उतावली के कारण लड़खड़ाना। जैसे: मालिक को अचानक आया देख चोर घर से हड़बड़ाकर भागा।
हड़बड़ाहट - (स्त्री.) (देश.) - हड़बड़ाने की क्रिया या भाव। हड़बड़ी।
हड़बड़ी - (स्त्री.) (देश.) - किसी वस्तु को प्राप्त करने की घबराहट पूर्ण जल्दबाज़ी या उतावलापन। जैसे: काम की हड़बड़ी में उसने दूध में चीनी की जगह नमक डाल दिया।
हड्डी - (स्त्री.) (तद्.>अट्हठि-प्राकृ.>अस्थि-सं.) - कशेरुकीय जीवों में कंकाल निर्मित करने के लिए चूना (कैल्शियम) के लवणों से युक्त सफेद ऊतकों के जमने से बने वे कठोर टुकड़े जो शरीर के अंगों को निश्चित आकृति प्रदान करते हैं। bone मुहा. हड्डी-पसली एक करना=खूब पिटाई करना। हड्डियाँ निकल आना=कमज़ोर हो जाना।
हत - (वि.) (तत्.) - सा.अ. 1. जो मार डाला गया हो। 2. जिसका अस्तित्व मिट गया हो, नष्ट। जैसे: हताश। 2. रहित या हीन। जैसे: हतबुद्धि। 3. जिसे आघात लगा हो।
हतप्रभ - (वि.) (तत्.) - शा.अर्थ (व्यक्ति) जिसके चेहरे की कांति विलुप्त या समाप्तप्राय हो गई हो। उदा. अपने मित्र की अकस्मात् मृत्यु का समाचार पाकर वह हतप्रभ हो गया।
हताश [हत+आशा] - (वि.) (तत्.) - शा.अर्थ जिसकी आशा नष्ट हो गई हो। पर्या. निराश, नाउम्मीद।
हताशा - (स्त्री.) (तत्.) - निराशा, नाउम्मीदी। दे. हताश।
हताहत [हत+आहत] - (वि.) (तत्.) - मारे गए/मरे हुए और घायल। जैसे: कुंभ मेले में अचानक मची भगदड़ में हताहतों की संख्या हजारों में थी।)
हत्था - (पुं.) (तद्.) - किसी भी औज़ार या मशीन का वह हिस्सा जो हाथ (हथेली) में थामा जाता है। handle
हत्या - (स्त्री.) (तत्.) - 1. किसी को मार डालने की क्रिया। 2. वध, कत्ल, ख़ून। चोरों ने घर में घुसकर लूटपाट के साथ बुजुर्गों की हत्या भी कर दी।
हत्याकांड - (पुं.) (तत्.) - 1. एक या अधिक लोगों को मार डालने का कृत्य। 2. हत्या की कोई प्रसिद्ध घटना। जलिया वाला हत्याकांड।
हथकंडा - (पुं.) (तद्.) - 1. चालाकी व छलकपट युक्त हाथ की सफ़ाई। 2. छिपी हुई धूर्ततापूर्ण युक्ति, षड़यंत्र। जैसे: उसने यह जमीन पाने के लिए कई हथकंडे अपनाए।
हथकड़ी - (स्त्री.) ([तद्.<हस्त+कटक] ) - लोहे का विशेष ढंग से बना जंजीर से युक्त वह कड़ा जो पुलिस द्वारा किसी अपराधी के हाथों में पहनाया जाता है ताकि व्यक्ति भाग न सके। मुहा. हथकड़ी डालना = बंदी बनाना।
हथगोला - (पुं.) (तद्.) - एक प्रकार का बारूदी गोला जो शत्रुओं पर हाथ से फेंका जाता है। hand grande जैसे: आजकल तो आतंकवादियों के पास भी हथगोले होते हैं।
हथियाना स.क्रि. (नामधातु) - (देश.) - 1. किसी वस्तु या अधिकार आदि को अपने कब्जे में ले लेना। 2. हाथ से पकड़ना। 3. दूसरे की वस्तु, जमीन, जायदाद आदि पर कुशलता, वाक्यपटुता से या बलपूर्वक कब्ज़ा कर लेना। जैसे: उसने छल से गाँव का हमारा घर भी हथिया लिया।
हथियार - (पुं.) (देश.) - 1. हाथ से पकडक़र चलाये जाने वाले शस्त्र। जैसे: तलवार, गदा, बंदूक, भाला, तीर आदि। 2. औजार, उपकरण instrument 3. अस्त्र-शस्त्र arms जैसे: आजकल युद्ध में एटमी हथियारों का भी प्रयोग होता है। मुहा. 1. हथियार उठाना = युद्ध के लिए तैयार होना। 2. हथियार डालना = शत्रु के सामने समर्पण कर देना।
हथेली - (स्त्री.) (तद्.) - हाथ का कलाई और उँगलियों के बीच वाला लगभग समतल रोम रहित भाग, जो अपनी प्राकृतिक स्थिति में शरीर की ओर रहता है। पर्या. करतल। मुहा. हथेली फैलाना = भिक्षा माँगना। प्राण हथेली पर रखकर = मृत्यु से न डरते हुए; जान जोखिम में डाल कर।
हथौड़ा - (पुं.) (देश.) - धातु, पत्थर, इंर्ट आदि को तोड़ने वाला लोहे का उपकरण (औज़ार)।
हथौड़ी - (स्त्री.) (तद्.) - बहुत छोटे आकार वाला हथौड़ा बहुमूल्य धातु को पीटकर फैलाने या कील आदि ठोकने का काम आती है। दे. हथौड़ा।
हद - (स्त्री.) (अर.) - सीमा। जैसे: हद हो गई। आपने तो हद कर दी।
हनन - (पुं.) (तत्.) - जान से मारना, वध करना, कत्ल करना।
हफ्ता - (पुं.) (फा.) - 1. सात दिन की अवधि। पर्या. सप्ताह। 2. (अनुचित कार्य के लिए) हर हफ्ते या सप्ताह में अदा किया जाने वाला धन 3. बैंक आदि का हफ्तेवार ब्याज।
हमउम्र - (वि.) (फा.) - एक ही आयु वर्ग के (लोग) समवयस्क। समान उम्र वाले।
हमदर्द - (वि.) (फा.) - 1. किसी के दु:ख में सहानुभूति रखने वाला। 2. दु:ख में सहायक। जैसे: आप ही हमारे सच्चे हमदर्द हैं जो सदा हमारे दु:ख में खड़े रहते हैं। sympathiser
हमदर्दी - (स्त्री.) (फा.) - सहानुभूति जो किसी की विपन्नता में प्रकट की जाती है। जैसे: जो दु:ख में हमारे साथ हमदर्दी दिखाता है, वही हमारा सच्चा मित्र। sympathy
हमराह - (वि.) (फा.) - 1. यात्रा में साथ चलने वाला। हमसफर। 2. जीवन की यात्रा में एक ही उद् देश्य से आगे बढ़ने वाले। उदा. 1. आपके जैसा हमराह होने से मुझे कोई चिंता नहीं।
हमला - (पुं.) (अर.) - आक्रमण, धावा, चढ़ाई, चोट।
हमलावर - (पुं.) (अर.) - हमला करने वाला आक्रमणकारी, चढ़ाई करने वाला।
हमवतन - (वि.) (फा.) - 1. जिनका देश समान हो अर्थात् एक ही देश के रहने वाले हों। 2. जो एक ही नगर/ग्राम के रहने वाले हों। जैसे: हिंदी हैं हमवतन हैं हिंदोस्तां हमारा।
हमशक्ल - (वि.) - (फार.) 1. (वह व्यक्ति) जिसकी सूरत किसी दूसरे से बहुत-कुछ मिलती-जुलती हो; एक जैसी शक्ल वाला।
हमाम/हम्माम - (पुं.) (अर.) - 1. भवन के अंदर चारों ओर से बंद वह कक्ष/कमरा जिसमें नहाते हैं। पर्या. स्नानागार। मुहा. हमाम में सब नंगे = बुनियादी तौर पर सबकी बुरी आदतें समान होना।
हमेशा क्रि.वि. - (वि.) - (फार.) काल की सीमा निर्धारित न करने का भाव। पर्या. सदा, सदैव।
हया - (स्त्री.) (अर.) - अनैतिक व अमर्यादित आचरण को रोकने वाली मानसिक प्रवृत्ति लज्जा/शर्म। उदा. नारी की हया तो उत्तम आभूषण है।
हर बार क्रि.वि. - (वि.) - (फार.) प्रत्येक क्रम में; सभी क्रमों में, प्रत्येक बार, हरदफ़ा, हरमर्तबा। जैसे: वह हरबार कक्षा में प्रथम आता है।
हर - (वि.) (पुं.) - (फार.) प्रति, प्रत्येक हरएक=प्रत्येक, हर जगह = प्रत्येक स्थान पर। जैसे: हर दिन = प्रत्येक दिन, हर जगह। 2. तत्. 1. शिवजी, महादेव। 2. गणि. किसी भिन्न में भाग रेखा के नीचे की राशि या संख्या। जैसे: 7/8 में 8 हर है। denominator
हरकत - (स्त्री.) (अर.) - 1. शरीर का हिलना-डुलना; शरीर के किसी भी अंग में दिखाई पड़ने वाली गति या चेष्टा जिससे उसके जीवित होने का प्रभाव मिले। 2. बुरा या अशोभनीय कार्य। जैसे: उसकी हरकतों से मैं परेशान हो गया।
हरकारा - (पुं.) (फा.) - एक जगह से दूसरी जगह संदेश, पत्र (डाक) आदि पहुँचाने वाला। पर्या. संदेशवाहक, पत्रवाहक।
हरगिज़ क्रि.वि. - (वि.) (फा.) - कदापि, कभी, बिलकुल, हर हालत में। टि. सामान्यत: नकारात्मक प्रयोग होता है-हरगिज़ नहीं। उदा. मैं तुम्हारी बात हरगिज़ नहीं मानूँगा।
हरजाना/हर्जाना - (पुं.) (फा.) - किसी का हर्ज या हानि होने पर उसके बदले में दिया जाने वाला धन आदि। पर्या. क्षतिपूर्ति। जैसे: मेरे हुए नुकसान के हरजाने के रूप में पाँच हजार रुपए आपको देने ही होंगे।
हरण - (पुं.) (तत्.) - 1. अनुचित रूप से किसी को अथवा किसी वस्तु को बलपूर्वक छीनकर ले लेना; भगा ले जाना। (गणित) जैसे: सीता हरण, द्रौपदी चीर हरण आदि। 2. गणि. भाग देना
हरना स.क्रि. - (तद्.<हरण) - 1. किसी की वस्तु को बलपूर्वक ले जाना। छीनना, लूटना। जैसे: कुछ लोग उसकी दुकान से सोने के आभूषण बलपूर्वक हर ले गए। 2. अपहरण करना, उठा ले जाना। 3. दूर करना। जैसे: मेरी भवबाधा हरौ राधानागरि सोय। (बिहारी)। 4. आकर्षित करना, लुभाना। जैसे: सूर्योदय का दृश्य मन को हर लेता है।
हरा-भरा - (वि.) (देश.) - 1. (ऐसा स्थान या वृक्ष) जो हरियाली से भरा हुआ हो। यानी, जहाँ बहुत अधिक हरियाली हो। 2. जो सूखा या मुरझाया न हो। greenary
हराम - (वि.) (अर.) - खाने पीने आदि का जो व्यवहार इस्लाम धर्मशास्त्र के अनुसार निषिद्ध हो या त्याज्य हो। पर्या. नाजायाज, वर्जित। जैसे: मुसलमानों के लिए सुअर का मांस हराम है। पुं. 1. पाप कर्म, व्यभिचार। उदा. राम को न जानै ताहि जानिये हराम को। (भारतेन्दु. दोहा 15) मुहा. 1. हराम होना = त्याज्य होना। अन्याय से कमाया धन मेरे लिए हराम है। 2. हराम का माल = बेईमानी से कमाया धन। 3. हराम की खाना = बिना मेहनत किये खाना।
हरामख़ोर - (वि.) (अर.+फार.) - बिना किसी प्रकार का श्रम किये मुफ़्त का खाने वाला। पर्या. मुफ्तखोर, कामचोर।
हरामखोरी - (स्त्री.) - मुफ़्तखोरी, कामचोरी। जैसे: जीवन में हरामखोरी की आदत अच्छी नहीं होती।
हरामी - (वि.) (अर.) - 1. हराम संबंधी, हराम का। दे. हराम। 2. व्यभिचार से उत्पन्न, हरामज़ादा, दोगला, वर्णसंकर। 3. बहुत दुष्ट, अत्यंत नीच, पापी। जैसे: उस हरामी का साथ मत करना।
हरारत - (स्त्री.) (अर.) - 1. ताप, गर्मी। 2. हल्का ज्वर/बुखार। जैसे: अचानक जुकाम होने से शरीर में हरारत हो गई है।
हरि - (पुं.) (तत्.) - 1. सामान्यत: विष्णु का और विशेषत: तीनों देवताओं (विष्णु, शिव, ब्रह्मा) का एक नाम। 2. बंदर।
हरित - (वि.) (तत्.) - 1. हरे रंग वाला, हरा 2. ताजा। जैसे: हरित वस्त्र, हरित शाक। पुं. 1. हरा रंग जैसे: हरित और पीत रंग का मिश्रण है नीला रंग। 2. हरी सब्जी। 3. हरियाली।
हरितलवक - (पुं.) (तत्.) - वन. क्लोरोफि धारी लवक जो प्रकाश संश्लेषण का केंद्र होता है। chloroplast
हरियाली - (स्त्री.) (तद्.) - हरी वनस्पति का विस्तृत समूह।
हरीरा - (पुं.) (अर.) - उबले हुए दूध में सोंठ, गुड़, मेवा आदि मिलाकर बनाया गया स्वादिष्ट ओषधीय पेय।
हरेक - (वि.) - (फार.) प्रत्येक
हर्ज - (पुं.) (अर.) - 1. किसी प्रकार की हानि या नुकसान। जैसे: तुम अपने काम का हर्ज किये बिना वहाँ जाना। 2. काम में पड़ने वाली बाधा या रूकावट।
हर्जाना - (पुं.) (फा.) - वह धन जो किसी हानि की भरपाई के लिए दिया जाए।
हर्ट्ज़ - (पुं.) - (अं.) आविष्कारक के नाम पर रखा गया आवृत्ति का एस आई मात्रक। प्रतीक Hz यह एक सेकंड में नियमित घटना की पुनरावृत्तियों की संख्या है।
हर्बेरियम - (पुं.) - (अंग्रे.) उपचारित जड़ी बूटियों व पौधों का वह व्यवस्थित संग्रह जो उनकी जानकारी देने में सहायक हो। पर्या. वनस्पति संग्रहालय। herbarium
हर्ष - (पुं.) (तत्.) - मनोनुकूल घटना के घटित होने पर मन में प्रकट होने वाला सुखप्रद भाव। पर्या. प्रसन्नता, खुशी, आनंद।
हर्षोन्मत्त - (वि.) (तत्.) - जो हर्ष से पागल हो गया हो। दे. हर्षोन्माद।
हर्षोन्माद [हर्ष+उन्माद] - (पुं.) (तत्.) - खुशी की वह उत्कट स्थिति जिसमें मन और बुद् धि का तालमेल नहीं रह पाता। ecstacy शा.अर्थ हर्ष में सुध-बुध खो देना, खुशी का पागलपन।
हलंत - (वि.) (तत्.) - 1. वह शब्द जिसके अंत में स्वर रहित व्यंजन वर्ण हो। 2. हल ( ) इस चिह्न से युक्त व्यंजनवर्ण। जैसे: विद्युत्, जगत्, महान्।
हल - (पुं.) (तत्.) - 1. कृषि-खेल जोतने का उपकरण। plough 2. पुं. अर. (i) गणि. ज्ञात आँकड़ों, तथ्यों अथवा विधियों की सहायता से अपेक्षित परिणाम प्राप्त करने का प्रक्रम। (ii) किसी समस्या के समाधान के लिए अपनाया गया उपाय। solution
हलका - (वि.) (वि.) - 1. कम वज़न वाला। विलो. भारी 2. जिसका रंग फीका पड़ गया हो। विलो. गहरा। 3. जिसकी गुणवत्ता मानक की तुलना में कम हो। जैसे: हलका कपड़ा। पर्या. घटिया।
हलकापन/हल्कापन - (पुं.) (देश.) - 1. ‘हलका’ होने का गुण/भाव/अवस्था। जैसे: दवा लेने से सिर का भारीपन गया, हलकापन आ गया। 2. ला.अर्थ ओछापन, तुच्छता। गंभीरता का अभाव। उदा. तुम इस शुभ अवसर पर व्यवहार में क्यों हलकापन। हल्कापन दिखा रहे हो।
हलचल - (स्त्री.) (देश.) - 1. मन की शांत स्थिति में पैदा हुई भावना की लहरें। 2. जनसमूह के बीच उठी अशांति और अव्यवस्था की हलकी स्थिति।
हलधर - (पुं.) - शा.अर्थ जो हल धारण करता हो यानी जिनका आयुध हल हो। जैसे: बलराम (श्रीकृष्ण के बड़े भाई) 2. बैल (जिसके कंधे पर हल रखकर खेत जोता जाता है।) 3. हल चला कर खेत जोतने वाला; किसान।
हलफ़ - (पुं.) (अर.) - ईश्वर, सत्य, सद्ग्रंथ आदि को साक्षी करके ली जाने वाली शपथ। पर्या. सौगंध, कसम। जैसे: मैं सत्य का हलफ़ उठाकर कहता हूँ कि यह कार्य मैंने नहीं किया।
हलफ़नामा - (पुं.) (अर.) - लिखित शपथपत्र। affidavit
हलवाई - (पुं.) (अर.) - शा.अ. हलवा बनाने वाला और उसे बेचने वाला व्यक्ति। सा.अर्थ. विविध प्रकार की मिठाइयाँ, पकवान आदि बनाने व बेचने का व्यवसाय करने वाला व्यक्ति। जैसे- बरातों में विविध मिष्ठान व पकवान हलवाई ही बनाते हैं।
हलवाहा - (पुं.) (तद्.) - 1. दूसरों के खेत जोतने वाला व्यक्ति। 2. हल से जोतने वाला, हल चलाने वाला, किसान।
हलाल करना स.क्रि. - (अर.) - 1. धर्मानुसार विधिपूर्वक जायज़ (पवित्र) बनाना। 2. उचित, धन, श्रम आदि देकर जायज़ बनाना। 3. विधिपूर्वक पशु को मारकर खाने योग्य बनाना।
हलाल - (वि.) (अर.) - 1. जो शरीयत या इस्लामी धर्मशास्त्र के अनुसार उचित हो। धर्मानुकूल, जायज। 2. इस्लामी शास्त्रोक्त विधि से पवित्र किया हुआ खाने योग्य पशु। मुहा. हलाल की कमाई = ईमानदारी की कमाई। नमक हलाल = नमक के प्रति ईमानदार।
हलाहल - (पुं.) (तत्.) - 1. वह तीव्र विष जो समुद्र मंथन के समय सर्वप्रथम निकला था। 2. उग्र विष, जहर। उदा. शिव ने संसार को बचाने के लिए हलाहल का पान किया था।
हल्ला - (पुं.) (देश.) - 1. बहुत से लोगों की जोर-जोर से बातचीत तथा लड़ाई-झगड़े के दौरान शोर भरी आवाजें। पर्या. शोरगुल। 2. युद्ध में आक्रमण करते समय ‘हर हर महादेव’ या ‘अल्ला हो अकबर’ की तुमुल ध्वनि। 3. धावा, 4. हमला।
हवस - (स्त्री.) (अर.) - विविध प्रकार के भोगों को पाने या भोगने की न बुझने वाली तीव्र लालसा। पर्या. तृष्णा, कामवासना, इच्छा। जैसे: अमीर लोगों की धन-दौलत पाने की हवस बढ़ती ही रहती है। मुहा. हवस निकालना = अपनी इच्छाएँ तात्कालिक रूप से पूरी करना।
हवा - (स्त्री.) (अर.) - 1. (दर्श.) सृष्टिरचना के पाँच प्रमुख तत्वों में से एक जो समस्त प्राणियों के जीवन के लिए अत्यावश्यक है। उदा. क्षिति जल पावक गगन समीरा। पंच रचित यह अधम शरीरा। (तुलसीदास) पर्या. पवन, समीर, अनिल, वायु। 2. रसा. ऑक्सीजन, नाइट्रोजन आदि गैसों का वह मिश्रण। जो पृथ्वी मंडल को घेरे हुए है और जिसमें प्राणी साँस लेते हैं। ला.अ. 1. संगति या वातावरण का प्रभाव जैसे: इस मुहल्ले की तो हवा ही खराब है। 2. लोक-प्रवाह या फैशन जैसे: पाश्चात्य हवा से युवा वर्ग बिगड़ता जा रहा है। 3. अफवाह जैसे: बम विस्फोट की हवा मिनटों में शहर भर में फैल गई। 4. मौसम जैसे: पहाड़ी क्षेत्रों में हवा बहुत स्वास्थ्यवर्धक होती है। 5. अदृश्य जैसे: देखते देखते वह हवा हो गया। मुहा. 1. हवा का रुख देखना = समय के अनुसार चलना। 2. हवा खाना = सैर करना, घूमना फिरना।
हवाई किला - (पुं.) (अर.) - लाक्ष.अर्थ. कोरी ऊँची काल्पनिक योजना, कल्पनामात्र। जैसे. शेख चिल्ली हवाई किले बनाता था।
हवाई - (वि.) (अर.) - 1. हवा से संबंधित। 2. हवा में चलने (उड़ने) वाला, जैसे: हवाई जहाज़। 3. झूठ या कल्पित, जैसे: हवाई खबर। मुहा. हवाइयाँ उड़ना = चेहरे का रंग उड़ जाना (लज्जा का भाव)।
हवाल - (पुं.) (अर.) - (‘हाल’ का बहुवचन)। 1. हाल; स्थिति, अवस्था, हालत। 2. वृत्तांत, समाचार, खबर, परिस्थिति। जैसे: उनके क्या हाल-हवाल हैं।
हवाला - (पुं.) (अर.) - 1. प्रमाण का उल्लेख। जैसे: इस घटना का हवाला फलाँ पुस्तक में मिलता है। 2. सुपुर्दगी। उदा. मैंने यह काम आपके हवाले कर दिया है। 3. एक पक्ष से पैसे लेकर अनुचित कार्य के लिए दूसरे पक्ष को भुगतान करने का अवैध धंधा।
हवालात - (स्त्री.) (अर.) - हवाल: का बहुवचन) वह स्थान जहाँ अभियुक्त को हिरासत में (सीखंचों वाले कमरे में) बंद रखा जाता है। lock up
हवाले क्रि.वि. - (वि.) (अर.) - किसी के संरक्षण अधिकार या अधीनता में। जैसे: 1. अब तुम्हारे हवाले वतन साथियो। 2. यह सब घर-बार पुत्र के हवाले कर देशाटन के लिए चलो।
हवास - (पुं.) (अर.) - 1. आँख, नाक, कान, जीभ, त्वचा ये। पाँच ज्ञानेद्रियाँ। 2. स्मृति, संवेदना आदि मन की शक्तियाँ। जैसे: तुम होश-हवास में रहो। 3. चेतना, ज्ञान, होश, सुध। मुहा. हवास गुम हो जाना, समझदारी या बुद् धि से काम न कर पाना। होश न रहना। हवास ठिकाने होना। बदहवास = जिसकी बुद्धि काम न कर पा रही हो।
हवेली - (स्त्री.) (अर.) - एक बड़ा और पक्का महलनुमा मकान जिसकी चहार-दीवारी हुई हो। mansion
हशीश - (स्त्री.) (अर.) - भाँग की सूखी पत्तियाँ और डंठल का कोमल भाग जिन्हें नशे के रूप में प्रयोग किया जाता है।
हसरत - (स्त्री.) (अर.<हस्रत) - मन की लालसा, प्रबल इच्छा, साध, सपना। उदा. तुम्हारी हसरतें यहाँ कभी पूरी नहीं होगी। काफी दिनों से आपके दर्शन की हसरत थी जो आज पूरी हो गई। हसरतमंद-लालसावाला, अभिलाषी।
हसीन - (वि.) (अर.) - जो अत्यंत सुंदर हो। रूपवान, खूबसूरत। जैसे: हसीन लडक़े, हसीन प्राकृतिक दृश्य।
हसीन - (वि.) (अर.) - हुस्न (सौंदर्य/सुंदरता) से युक्त (कोई भी व्यक्ति या दृश्य) पर्या. सुंदर। जैसे कश्मीर की हसीन वादियाँ।
हसीना - (स्त्री.) (अर.) - सुंदर स्त्री/महिला।
हस्त - (पुं.) (तत्.) - हाथ, कर, शरीर का एक अवयव, हाथी की सूँड।
हस्तकला - (स्त्री.) (तत्.) - शा.अर्थ हाथ की कला। 1. हाथ से (न कि मशीन से) सुंदर कृतियों की रचनात्मक अभिव्यक्ति। 2. इस तरह से बनाई गई कलापूर्ण वस्तु। handicraft
हस्तक्षेप - (पुं.) (तत्.) - शा.अ. हाथ फेंकना सा.अर्थ 1. किसी काम में अनधिकार चेष्टा करते हुए बाधा डालना या अनावश्यक रूप से टोकना। 2. किसी काम में दखल देना। दखलंदाजी। उदा. कृपया हमारे कार्य में हस्तक्षेप करना बंद करें।
हस्तलिपि - (स्त्री.) (तत्.) - हाथ की लिखावट (यानी जो न तो टंकित हो और न ही मुद्रित), हस्तलेख। hand writing
हस्तलेख - (पुं.) (तत्.) - दे. हस्तलिपि।
हस्तशिल्प - (पुं.) (तत्.) - हाथ की कारीगरी का वह नमूना जिसमें कलात्मक अभिव्यक्ति हुई हो। पर्या. हस्तशिल्प, हस्तकला, दस्तकारी। handicraft
हस्ताक्षर-अभियान - (पुं.) (तत्.) - लक्ष्य प्राप्ति के लिए किसी माँग-पत्र पर असंख्य जनसमुदाय के हस्ताक्षर करवाकर उसे सरकार को प्रस्तुत किए जाने की कार्रवाई।
हस्तामलक [हस्त+आमलक] - (पुं.) (तत्.) - 1. हाथ में या हथेली पर रखा हुआ आँवला। 2. (लाक्ष.) वह बात या कोई वस्तु जो पूर्णतया स्पष्ट या प्रत्यक्ष हो। 3. सहज रूप से लभ्य। उदा. उन्हें व्याकरण का ज्ञान हस्तामलकवत् है।
हस्तिनापुर - (पुं.) (तत्.) - चंद्रवंशी नरेश हस्ती द्वारा निर्मित एक प्राचीन नगर जो महाभारत के अनुसार कौरवों की राजधानी था और वर्तमान दिल्ली से लगभग 56 मील पूर्वोत्तर था।
हस्ती - (पुं.) (तत्.) - हाथी स्त्री. हस्तिनी, हथिनी।) 2. स्त्री. फा. उदा. तुम्हारी क्या हस्ती है जो मुझसे टकराने का साहस किया।
हाँकना सक्रि. - (तद्.<हुंकरण) - 1. खेत में हल चलाना। 2. इकट्ठा हुए पशुओं को डंडे के ज़ोर पर आगे बढ़ने को प्रेरित करना। पशुचालित वाहन को आगे बढ़ाना।
हाँडी - (स्त्री.) (तद्.) - देगची के आकार का मिट्टी का छोटा बरतन, हँडिया। मुहा. काठ की हाँडी = छल, कपट का रूप; चाल। जैसे: काठ की हाँडी बार-बार नहीं चढ़ती। (कोई भी गलत चाल बार-बार नहीं चली जा सकती)।
हाँफना अ.क्रि. - (देश.) - पारि.अर्थ शारीरिक श्रम दौड़ने-चढ़ने आदि के कारण या किसी आकस्मिक भय या रोग के कारण साँस की गति का तेज़ होना।
हाइड्रा - (पुं.) - (अं.) सीलेन्टेरेटा संघ (फाइलम) और हाइड्रोज़ोआ वर्ग (क्लास) का अलवण जल में रहने वाला प्राणी। यह लकडि़यों, पत्थर, पत्तियों आदि पर चिपका रहता है। इसके शरीर में एक गुहा होती है जो मुँह द्वारा ऊपर की ओर खुलती है। इसके मुँह के चारों ओर स्पर्शिकाएँ होती हैं। Hydra
हाइड्रोजन - (पुं.) (तत्.) - (अं.) (रसा.) सबसे हल्का व जो पृथ्वी पर ऑक्सीजन के उचित संयोग से पानी के रूप में प्राप्त होता है। सामान्य अवस्था में यह एक रंगहीन व गंधहीन गैस है।
हाइड्रोजन बम - (पुं.) (तत्.) - हाइड्रोजन के नाभिकों (न कि नाभिकीय विखंडन) के फलस्वरूप निर्मित हल्के हीलियम नाभिकों द्वारा उत्सर्जित ऊर्जा से संहारक शक्ति प्राप्त करने वाला बम। तु. परमाणु बम।
हाउसफुल - (वि.) - (अं.) सिनेमागृह या किसी भी प्रदर्शन कक्ष की स्थिति जब वह कार्यक्रम शुरू होने से पहले ही दर्शकों से पूरी तरह भर जाए और बाद में आने वाले व्यक्तियों के लिए प्रवेश बंद हो जाए।
हाउसबोट - (पुं.) (दे.) - (अं.) हाउसबोट- शिकारा। शिकारा वह नौका जिसमें पर्यटकों के लिए आवासीय व्यवस्था की सुविधा उपलब्ध होती है। शिकारे श्रीनगर (कश्मीर) की डल झील में उपलब्ध हैं।
हाकिम - (पुं.) (अर.) - पारि.अर्थ शासक या बड़ा अधिकारी जिसकी हुकूमत चलती हो।
हाज़मा - (पुं.) (तत्) - (अरबी>हाजि़म:) 1. पेट की भोजन पचाने की क्रियात्मक शक्ति। जैसे: 1. उसका हाज़मा बहुत अच्छा है, उसे कोई उदर विकार नहीं है। 2. ला. किसी विजातीय पदार्थों, वों, जनसमुदाय आदि को आत्मसात् करने की शक्ति/क्षमता। जैसे: भारत देश के सभी धर्ममतानुयायियों, जातियों, भाषाभाषियों को आत्मसात् कर रखा है, अत: निश्चित ही हमारे देश का ‘हाज़मा’ सर्वप्रसिद्ध है।
हाजि़र जवाब - (वि.) - (अर्.) हाजिर है जवाब जिसका यानी किसी भी बात का फौरन (माकूल और मसखरी भरा) जवाब देने वाला (व्यक्ति)। पर्या. प्रत्युत्पन्नमति।
हाजि़र जवाबी - (स्त्री.) (अर.) - किसी भी बात को सुनते ही उस पर माकूल और मसखरी भरी टिप्पणी देने की योग्यता। दे. हाजि़र जवाब।
हाजि़री - (स्त्री.) (अर.) - शा.अ. हाजिर (उपस्थित) होने का भाव। सा.अ. 1. किसी की शारीरिक रूप से उपस्थिति, मौजूदगी। 2. विद् यालयों आदि में कक्षाध्यापक द्वारा कक्षा में छात्रों की तथा कारखानों व कार्यालयों आदि में श्रमिकों/कर्मचारियों आदि की उपस्थिति की उपस्थिति पंजिका में प्रविष्टि। 3. न्यायालय में आदेशानुसार अभियुक्त, गवाह आदि की उपस्थिति। मुहा. हाजिरी बजाना = किसी बड़े आदमी के सम्मुख नियमित रूप से जाते रहना।
हाजी - (पुं.) (अर.) - जो हज़ की यात्रा कर आया हो, वह मुसलमान। वि. अरबी साहित्य में ‘हाजी’ शब्द इस अर्थ में प्राप्त नहीं होता पर फ़ारसी, तुर्की आदि में इसका प्रयोग मिलता है।
हाट - (स्त्री.) (तद्.>हट्ट) - >हट्ट) 1. वह बाजार जो नियमित रूप से सप्ताह में एक दिन निश्चित स्थान जैसे पटरियों पर या खुले मैदान में लगता है। जैसे: हमारे यहाँ शुक्रवार के हाट में सभी प्रकार की वस्तुएँ बिकती हैं। 2. बाजार, दुकान।
हाथ - (पुं.) (तद्.>हस्त) - 1. शरीर का वह अंग जो कंधे से सीधे जुड़ा हुआ अंगुलियों तक होता है। मानव के दो हाथ होते हैं जिनसे किसी वस्तु को पकड़ने, छूने, देने या संकेत आदि कार्य होते हैं। 2. ला.अर्थ किसी घटना, षड़यंत्र, कार्य में किसी की भागीदारी या संबंध। जैसे: कल हुए बाल हत्याकांड में पड़ोसी का हाथ है। द्वारा। जैसे: उसके हाथ मेरी पुस्तक मेज दो। मुहा. हाथ उठाना या चलाना = किसी को मारना। हाथ खाली होना = पास में धन न होना। हाथ पर हाथ धरे बैठे रहना = खाली बैठे रहना। हाथ चढ़ना = वश में आना। हाथ पीले करना = लडक़ी की शादी करना।
हाथापाई - (स्त्री.) (देश.) - 1. हाथों और पैरों से अर्थात् लातें, घूँसे, मुक्के, धक्के मारकर की जाने वाली लड़ाई। 2. मारपीट। जैसे: आज दो वाहनचालकों में हाथापाई होते होते बची।
हाथी - (पुं.) (तद्.) - 1. एक विशालकाय शक्तिशाली मोटा स्तनपायी चौपाया जिसके मुख से निकले हुए दो बड़े दाँत तथा नासिका के रूप में एक लंबी सूँड़ होती है। गज। पर्या. करि, हस्ति, कुंजर। 2. शतरंज का एक मोहरा – रूक rook मुहा. हाथी बाँधना = बहुत खर्च वाला काम करना। हाथी-सा होना = बहुत मोटा होना। सफेद हाथी = ऐसा कोई कार्य जो आकार में इतना बड़ा हो कि उसका संभालना मुश्किल हो और जिससे कुछ प्राप्त भी न हो।
हानि - (स्त्री.) (तत्.) - 1. टूटने-फूटने या अन्य किसी भी कारण से होने वाली क्षति। 2. व्यापार में व्यय की तुलना में आय का कम रह जाना। 3. कोई ऐसी बात जिससे पद-प्रतिष्ठा, सम्मान आदि में कमी आती हो। पर्या. नुकसान, घाटा, क्षति। विलो. लाभ।
हानिकारक - (वि.) (तत्.) - 1. जिसके कारण नुकसान, हानि, घाटा आदि हो। 2. जिसके कारण स्वास्थ्य बिगड़ने की संभावना हो। पर्या. नुकसानदेहक।
हामी - (स्त्री.) (देश.) - हाँ’ करने की क्रिया या भाव; मुहा. हामी भरना-सौंपे गए काम को पूरा करने की तुरंत ‘हाँ’ भर लेना।
हाय - (अव्य.) (तद्.>हा) - अधिक शारीरिक या मानसिक कष्ट होने पर अर्थात् दर्द, शोक, दु:ख की अभिव्यक्ति के लिए सहसा मुख से निकलने वाला शब्द। जैसे: 1. हाय! दर्द से मेरा सिर घूम रहा है। 2. हाय! तुमने यह क्या अनर्थ कर डाला। स्त्री. शाप, दुर्भावना। उदा. दुर्बल को न सताइए, जाकी मोटी हाय। अव्य. (अंग्रे.<हाड़) आजकल प्राय: शिक्षार्थियों में अपने मित्र या सहेली का ध्यान आकर्षित करने के लिए प्रयुक्त किया जाने वाल प्यार भरा शब्द। जैसे: (सुधा अपनी सखी के प्रति) हाय! प्रिया! तुम कैसी हो।
हाय-तौबा [हाय+तौबा] - (स्त्री.) - (अ.) अनिष्ट कार्य होने की पीड़ा और उसका पछतावा। मुहा. हाय-तौबा करना, मचाना-किसी अवांछित घटना या कार्य से अत्यंत दु:खी होकर शोर करना।
हाय-हाय अव्यय - (देश.) - लोगों के द्वारा किसी भ्रष्ट नेता, मंत्री, अधिकारी के खिलाफ प्रयुक्त किया जाने वाला निषेधात्मक नारा। जैसे: सी.एम? हाय हाय!, विधायक हाय हाय! आदि।
हार - (पुं.) (तत्.) - गले में पहनने या पहनाने की फूलों, सोने, चाँदी, मोतियों आदि की सुंदर व आकर्षक माला। जैसे: आज हमारे विद्यालय में शिक्षा मंत्री को पुष्पहार पहनाकर सम्मानित किया गया। स्त्री. तद्. युद्ध, खेल, किसी प्रतियोगिता में प्रतिद्वंद्वी से न जीत सकने की स्थिति या भाव। पराजय। जैसे: क्रिकेट प्रतियोगिता में आस्ट्रेलिया की भारत से हार चकित कर देने वाली थी। विलो. जीत।
हार जीत - (स्त्री.) (तद्.) - 1. जीवन में कभी सफल और कभी असफल होने की स्थिति। 2. किसी प्रतियोगिता में जीत या हार होना। जैसे- हार-जीत तो जीवन में चलती रहती है। मुहा. हार जीत करना = जुआ खेलना।
हारना अ. क. - (तद्.) - 1. युद्ध, खेल, प्रतियोगिता आदि में प्रतिपक्षी से पराजित होना। जैसे: 1. 1971 के भारत-पाकिस्तान युद्ध में पाकिस्तान हार गया था। 2. प्रयत्न करने पर भी लक्ष्यसिद्धि में असफल रहना। 3. विवश होना/लाचार होना। स.क्रि. गँवाना। जैसे: जुएं में हारना।
हारमोनियम - (पुं.) - (अं.) एक संदूकनुमा बाजा जिसमें धौंकनी खींचकर कुंजी पटल की सहायता से तीनों प्रकार के (मंद्र, मध्य, तार सप्तक वाले) स्वर निकाले जाते हैं।
हार्दिक - (वि.) (तत्.) - हृदय संबंधी, दिल से। उदा. पधारिए, आपका हार्दिक स्वागत है।
हार्मोन - (पुं.) - (अं.) अंत:स्रावी ग्रंथियों द्वारा स्रावित ऐसा रासायनिक पदार्थ जो मुख्यत: प्रोटीन अथवा स्टीरॉयड होता है। यह सीधे रुधिर प्रवाह में मिलकर शरीर के विशिष्ट भाग पर विशिष्ट प्रभाव डालता है। Hormone
हार्वेंस्टर - (पुं.) - (अं.) पक जाने पर फसल काटने की मशीन।
हाल - (पुं.) (अर.) - 1. दया, अवस्था, परिस्थिति। जैसे: तुम्हें हर हाल में घर जाना है। 2. समाचार जैसे: आपके हाल कैसे हैं? 3. विवरण/ब्यौरा जैसे: आप अपने जीवन का सारा हाल लिखिए। 4. वर्तमान, मौजूद। अभी हाल में तो ठीक-ठाक हैं।
हालचाल - (पुं.) (अर.+तद्.) - 1. जीवन की वह परिस्थिति जिसका वर्णन या विवरण किसी के पूछने पर बताया जा सके। 2. अवस्था, दशा, स्थति। 3. वृत्तांत, समाचार। जैसे: मित्र! अपने हालचाल सुनाओ
हालाँकि क्रि.वि. - (वि.) - (फार.) यद् यपि, अगरचे।
हालात - (पुं.) (अर.) - (हालत का बहुव. रूप) 1. परिस्थितियाँ, दशा। जैसे: अब युद्ध के पश्चात् देश के हालात सुधरने लगे हैं।
हाव-भाव - (पुं.) (तत्.) - आंगिक और मानसिक चेष्टाएँ। उदा. उसके हाव-भाव से पता चल गया कि वह हमसे खुश नहीं है।
हावी - (वि.) (अर.) - 1. जिसने किसी चीज को नीचा दिखा दिया हो। उदा. इस मैच में बल्ला गेंद पर हावी रहा। 2. जिसने अपनी चतुराई या अन्य गुणों के कारण किसी पर काबू पा रखा हो। मुहा. हावी होना = छा जाना।
हाशिया - (पुं.) (अर.हाशिय:) - 1. साड़ी या चादर का किनारा। 2. (i) पड़ी रेखाओं वाले कागज का छोड़ा गया खाली हिस्सा (जिस पर इबारत लिखी नहीं जाती)।; (ii) छोड़े गए खाली हिस्सों में से खासकर बाँयी ओर का हिस्सा जो खड़ी रेखा से विभाजित दिखाया जाता है। ला.अर्थ समाज का उपेक्षित या मुख्य धारा से कटा वर्ग। margin
हास - (पुं.) (तत्.) - 1. हँसने की क्रिया या भाव, हँसी। 2. विनोद, दिल्लगी, ठठोली। जैसे: जीवन में हास-परिहास तो बहुत जरूरी हैं।
हासिल - (वि.) (अर.) - 1. किसी प्रयत्न से पाया या मिला हुआ। लब्ध, प्राप्त। जैसे: अच्छे बच्चे परिश्रम करके ही अपने लक्ष्य को हासिल करते हैं। 2. लाभ, नफ़; उपज, पैदावार। 3. गणि. जोड़ या गुणा की क्रिया में दहाई का वह अंक जिसे आगे की संख्या में जोड़ा जाना है।
हास्य - (पुं.) (तत्.) - 1. हँसने की क्रिया या भाव। हास। जैसे: उनका हास्य मधुर है। 2. परिहास, मज़ाक। 3. साहि. काव्य के नौ रसों में से एक जिसका स्थायीभाव ‘हास’ है। जैसे: आपकी हास्य रस की कविता सुनकर सभी आनंदित हुए।
हास्यास्पद [हास्य+आस्पद] - (वि.) (तत्.) - 1. जिसे देखकर या सुनकर हँसी आए। हँसी का कारण बनने वाला। 2. बेतुका, बेढंगा, उपहास का पात्र या विषय। जैसे: उनके सभी तर्क प्राय: हास्यास्पद होते हैं।
हाहा - (अव्य.) (तत्.) - 1. पीड़ा या दु:ख व्यक्त करने का शब्द, जैसे: हा हा! मेरा सब कुछ लुट गया। 2. रोने चिल्लाने की आवाज, उदा. हा हा करि सब रोवन लागे। 3. गिड़गिड़ाकर विनती करने का शब्द। उदा. हा हा कंत मानि बिनती यह। (सूरसागर) 4. हँसी की आवाज़।
हाहाकार - (पुं.) (तत्.) - 1. किसी भय, विपत्ति या घोर कष्ट से पीड़ित होने पर जोर-जोर से रोने-चिल्लाने की करुणजनक आवाज। 2. युद् ध में मार-काट से होने वाला कोलाहल। 3. रोना-पीटना। 4. बाज़ार में किसी वस्तु का अभाव होने पर उसे उपलब्ध कराने के लिए चारों ओर से होने वाली जनता की माँग। प्रयो. हाहाकार मचना।
हिंडोला - (पुं.) (तद्.<हिंदोल) - 1. आगे-पीछे, चक्करदार या ऊपर-नीचे आने-जाने वाला वह झूला जिसमें मनोरंजनार्थ लोगों के बैठने के लिए छोटे-छोटे चौखटे बने होते हैं। पर्या. झूला तु. पालना।
हिंद - (पुं.) (फा.) - हिंदुस्तान (हिंदुस्तान), भारत देश।
हिंद महासागर - (पुं.) (.फा.+तत्.) - इंडियन ओशन के लिए प्रयुक्त हिंदी पर्याय जो एशिया के दक्षिणी छोर भारत के दक्षिण में अफ्रीका के पूर्वी तट से लेकर आस्ट्रेलिया के पश्चिमी तट तक फैला है। Indian Ocean
हिंदी स्त्री - (फा.) - 1. हिंदुस्तान के निवासी। उदा. हिंदी है हमवतन हैं हिंदोस्तान हमारा। 2. ‘हिंदी’ भाषा।
हिंदुस्तानी - (वि.) (पुं.) - (फ़ार.<हिंदोस्तानी) हिंदुस्तान का, हिंदुस्तान संबंधी, भारतीय। (फार.) हिंदुस्तान का निवासी, भारतीय स्त्री. (फार.) हिंदुस्तान की भाषा, हिंदी-उर्दू का मिश्रित रूप।
हिंसक - (वि.) (तत्.) - हिंसा करने वाला; हिंसा की मूल प्रवृत्ति रखने वाला (हिंसक पशु)।
हिंसा-मुक्त - (तत्.) - हिंसा कर्म से रहित (क्षेत्र)।
हिंस्र - (वि.) (तत्.) - 1. हिंसा करने वाला, हिंसक। 2. खूँखार, भयानक। जैसे: बाघ, चीता, तेंदुआ आदि हिंस्र पशु हैं जो मनुष्य पर भी आक्रमण कर सकते हैं।
हिचक - (स्त्री.) (तद्.) - किसी काम को करने से पूर्व मन में उत्पन्न होने वाला संकोच। झिझक, आगा-पीछा हिचकिचाहट।
हिचकना अ.क्रि. - (तद्.) - 1. किसी काम को करने में अनिच्छा, असमर्थता, भय, संकोच आदि के कारण तुरंत प्रवृत्त न होना। 2. संकोच करना, झिझकना, हिचकिचाना। जैसे: कुछ भय के कारण वह आपका काम करने में हिचक रहा है। 3. हिचकियाँ लेना।
हिचकिचाहट [हिचकिच+आहट] - (स्त्री.) (तद्.) - 1. किसी काम करने से पहले औचित्य, अनौचित्य, सामर्थ्य, विघ्न आदि की आशंका होने के कारण कुछ रुकने की स्थिति या भाव। 2. भय, अनिच्छा; हिचक; संकोच; असमंजस की स्थिति। जैसे: उसे दूसरे से सहायता माँगने में सदा हिचकिचाहट महसूस होती है।
हिचकी - (स्त्री.) (तद्.) - 1. वह शारीरिक व्यापार जिसमें पेट की वायु किसी बाधा के कारण कुछ रुक-रुककर पर झटके के साथ गले से निकलती है। 2. बहुत अधिक रो लेने के बाद एक साथ तीन चार बार जोर-जोर से साँस लेने की क्रिया।
हिचकोला - (पुं.) (देश.) - रह-रह कर लगने वाला हलका झटका या धक्का। वह धक्का जो गाड़ी चारपाई आदि के हिलाए-डुलाए जाने पर लगे।
हिजड़ा [हीज़+ड़ा प्रत्यय) - (पुं.) (फा.>हीज़) - 1. वह व्यक्ति जो शारीरिक लक्षणों से न पूर्ण रूप से पुरुष हो और न ही स्त्री किंतु स्त्रीवेश में रहता हो। 2. नपुंसक। ला.अर्थ कायर, अक्षम, साहसहीन।
हिजरी - (स्त्री.) (अर.) - अरब देश द्वारा स्वीकृत वह सन्/संवत् जो मुहम्मद साहब के मक्के से मदीना भागने या हिज़रत करने की तिथि 15 जुलाई 622 ई. से प्रारंभ हुआ है और चान्द्र कालगणना पर आधारित है।
हिज्जे - (पुं.) (अर.<हिज्ज:) - 1. किसी शब्द में आये हुए वर्णों (स्वरों और व्यंजनों) की क्रम से अलग-अलग कहना। 2. अक्षरी, वर्तनी। spelling
हित - (पुं.) (तत्.) - 1. कल्याण, मंगल, भलाई, उपकार। 2. लाभ, फायदा। क्रि. वि. के लिए, वास्ते (सामान्यत: कविता में प्रयुक्त)
हितकार/हितकारी - (वि.) (तत्.) - 1. हित या भलाई करने वाला, हितकारक। 2. लाभदायक, फायदेमंद। 3. स्वास्थ्य के लिए अनुकूल। 4. उपकार करने वाला। विलो. अहितकर।
हितैषी [हित+एषी इच्छुक] - (वि.) (तत्.) - (किसी का) हित या भला चाहने वाला। हितचिंतक। पर्या. शुभेच्छु, हितेच्छु।
हिदायत - (अर.) (स्त्री.) - किसी कार्य को सही ढंग से करने के लिए बड़े का छोटे को ब्यौरेवार मार्गदर्शन। पर्या. अनुदेश।
हिनहिनाहट [हिनहिन+आहट] - (स्त्री.) - (अनु.) घोड़े की हिन-हिन जैसी आवाज़।
हिना - (स्त्री.) (अर.) - वह झाड़ीदार पौधा जिसकी पत्तियाँ हरी होती है तथा पीसकर शरीर पर लेप करने से सुंदर लाल रंग पैदा करती है। मेहंदी का पौधा। 2. मेहंदी की पत्तियाँ; मेहंदी की सूखी पत्तियों का चूर्ण।
हिफाज़त - (स्त्री.) (अर.) - (किसी वस्तु को) सम्हाल कर रखना, सुरक्षा, देखरेख। जैसे: कृपया आप अपने सामान की हिफ़ाजत स्वयं करें।
हिमनद - (पुं.) (तत्.) - बहुत धीमी गति से (अदृष्ट जैसी) बहने वाली हिम या बर्फ़ की नदी। पर्या. हिमानी। glacier
हिमनद हिमोढ़ - (पुं.) (तत्.) - हिमनद के प्रवाह से निक्षेपित अवसादों का संचय। पर्या. हिमोढ मोरेन
हिमाचल [हिम+अचल] - (तत्.) - 1. हिम (बर्फ) से आच्छादित ऊँचे शिखरों वाला पर्वत। हिमालय पर्वत। 2. वर्तमान भारत का एक राज्य जिसकी राजधानी ‘शिमला’ है।
हिमानी - (स्त्री.) (तत्.) - दे. हिमनद।
हिमायत - (स्त्री.) (अर.) - किसी का (शब्दों या कार्यों से) पक्ष लेने या तरफ़दारी करने का भाव।
हिमालय [हिम + आलय] - (पुं.) (तत्.) - शा.अर्थ बर्फ का घर। भारत के उत्तर में स्थित पर्वत शृंखला।
हिम्मत - (स्त्री.) (अर.) - पारि.अर्थ किसी कठिन परिस्थिति में भी साहस न छोडक़र कार्य करते रहने का उत्साह। पर्या. 1. साहस, 2. हौसला, 3. जुर्अत। ला.अर्थ धृष्टता, ढीठपन। उदा. तुम्हारी यह हिम्मत जो मेरा मुकाबला करते हो। मुहा. हिम्मत हारना = निराश होकर सौंपे गए कार्य को अधबीच छोड़ देना।
हिय - (पुं.) (तद्.>हृदय) - 1. शरीर का वह मार्मिक अंग जो धडक़न के साथ रक्त का शोधन करके उसे पुन: सारे शरीर में पहुँचाता है। हृदय। 2. भावनात्मक उद्वेग का मुख्य अंग, दिल, मन। उदा. पिय हिय की सिय जाननहारी (तुलसीदास मानस. 2/102)
हिरण्यगर्भ - (वि./पुं.) (तत्.) - शा.अर्थ सोने का गर्भ; सा.अ. सोने जैसे: गर्भ वाला, ब्रह्मा। प्राचीन काल में संपन्न किया जाने वाला एक अनुष्ठान जिसके सफलतापूर्वक संपन्न हो जाने के परिणामस्वरूप जन्मना क्षत्रिय न होते हुए भी याजक को क्षत्रियत्व प्राप्त हो जाना मान लिया जाता था।
हिरासत - (स्त्री.) (अर.) - किसी अभियोग में पुलिस या न्यायालय की निगरानी में रखना; पुलिस/न्यायालय की अभिरक्षा। उदा. अभियुक्त को सात दिन की पुलिस/न्यायालय की हिरासत (=अभिरक्षा) मे भेज दिया गया। custody
हिलाना स.क्रि - (तद्.) - किसी स्थिर हुई वस्तु को अस्थिर करना।
हिलोर - (स्त्री.) (तद्.<हिल्लोल) - पानी की लहर/तरंग। मुहा. हिलोरें लेना=मन में खुशी की तरंगें उठना।
हिसाब - (पुं.) (अर.) - 1. किसी आर्थिक व्यवहार का मौखिक अथवा लिखित विवरण; खरीद-फरोख़्त आदि का ब्यौरा। 2. ‘गणित’ का पर्याय।
हिसाब-किताब - (पुं.) (अर.) - 1. आय-व्यय आदि का लिखित ब्यौरा या लेखा। 2. व्यापारिक लेन-देन या व्यवहार। 3. पद् धति, ढंग, तरीका।
हिस्सा - (पुं.) (अर.<हिस्स:) - 1. संपूर्ण का एक भाग, अंश, अवयव। पर्या. खंड, टुकड़ा, भाग, अंश। 2. उत्तराधिकार के रूप में प्राप्त संपत्ति में व्यक्ति विशेष को मिलने वाला या मिला अंश। अर्थ. किसी कंपनी की पूँजी का वह निर्धारित छोटा भाग जिसे कोई भी व्यक्ति खरीद सकता है और बदले में कंपनी से आनुपातिक लाभ प्राप्त करता है। पर्या. अंश। share
हिस्सेदार [हिस्सा+दार] - (पुं.) (अर.) - 1. वह जिसका किसी प्रकार संपत्ति जमीन आदि में हिस्सा या भाग हो। सहभागी। 2. कोई भाग/अंश या हिस्सा पाने का अधिकारी व्यक्ति।जैसे: वह घर की संपत्ति आधे का हिस्सेदार है।3. व्यवसाय आदि मे साझेदारी। जैसे: हीरा आदि नगों के व्यवसाय मे वह एक तिहाई का हिस्सेदार है।
हिस्सेदार - (स्त्री.) - 1. भागीदारी 2. साझेदारी। share
हींग - (स्त्री.) (तद्.<हिंगु) - विशेष प्रकार के वृक्षों से प्राप्त गोंद जैसा पदार्थ जिसमें बहुत तीव्र गंध होती है और जो दवा तथा भोजनोपयोगी मसाले के काम आता है। जैसे: उड़द की दाल में हींग की छौंक उसे स्वादिष्ट बना देती है।
हीनचालक - (वि.) (तत्.) - दे. कुचालक।
हीनता (भाव.) - (स्त्री.) (तत्.) - 1. किसी गुण, वस्तु, बल आदि से रहित होने का भाव। 2. दूसरों से अपने को कमतर यानी हीन समझने की भावना। जैसे: हीनता की ग्रंथि।
हीमोग्लोबिन - (पुं.) (पुं.) - (अं.) (जंतु वि. कशेरुकियों की लाल रुधिर कणिकाओं में वर्तमान लौह युक्त वर्णक जो ऑक्सीजन की उपस्थिति में लाल (धमनियों में) तथा उसकी अनुपस्थिति में बैंगनी (शिराओं में) होता है।
हीरक जयंती - (स्त्री.) (तत्.) - किसी व्यक्ति; संस्था या महत्त्वपूर्ण कार्य आदि के जन्म। आरंभ होने के 60वें वर्ष में मनाई जाने वाली वर्षगाँठ जिसे बड़ी धूम-धाम से मनाया जाता है। diamond jubilee
हीरा - (पुं.) (तद्.हीरक) - 1. एक प्रकार का बहुमूल्य प्रसिद् ध रत्न जो बहुत चमकदार तथा अत्यंत कठोर होता है। यह प्राय: सफेद रंग का होता है। जैसे: हीरा जडि़त अंगूठी बहुमूल्य है। 2. (ला.) श्रेष्ठ या गुणी व्यक्ति। जैसे: आपका पुत्र तो ‘हीरा’ है। diamond
हील-हुज्जत [हीला+हुज्जत] - (स्त्री.) (अर.) - शा.अ. हील = बहाना, हुज्जत = विवाद। सा.अ. 1. व्यर्थ की तकरार/विवाद। 2. किसी प्रकार का बहाना बना कर उत्पन्न किया गया विवाद। जैसे: हील-हुज्जत किये बिना उसने हमारी बात मान ली।
हीलियम - (पुं.) - (अं.) एक रंगहीन, गंधहीन अक्रिय गैस का नाम जो वायुमंडल की ऊपरी परत में अर्थात् अंतरिक्ष में तैरती रहती है। द्रव रूप में प्राप्त कर निम्न ताप वाले प्रयोगों में काम में लाया जाता है।
हुंडी - (स्त्री.) (देश.) - 1. स्वतंत्रता से पूर्व प्रचलित महाजनी पद् धति के अनुसार किसी महाजन के द्वारा लिखा हुआ वह प्रमाण-पत्र जिसमें यह लिखा होता था कि अमुक धन की ब्याज समेत वापसी इस तिथि तक कर दी जाएगी। (पुराने ढंग का हैंड नोट)। 2. महाजन द्वारा किसी को कोई धनराशि दिलाने के लिए किसी व्यक्ति/महाजन/बैंक के नाम लिखा गया आदेश पत्र। (चेक/ड्राफ्ट/बिल का पुराना रूप)। 3. दक्षिण भारत में मंदिरों में रखा गया विशेष दान पात्र। जैसे: तिरुपति देव स्थानम् में रखी ‘हुंडी’।
हुक - (पुं.) - (अंग्रे.) 1. एक सिरे पर मुड़ी कील। 2. कँटिया जिसमें कोई चीज फँसाई जाती है। hook
हुकुम/हुक्म - (पुं.) (अर.) - आज्ञा; आदेश; इजाज़त।
हुकूमत - (स्त्री.) (अर.) - 1. किसी देश, प्रांत आदि की जनता पर विधिक नियंत्रण या प्राधिकार। पर्या. शासन। उदा. स्वतंत्रता से पूर्व भारत पर अंग्रेज़ों की हुकूमत थी। 2. आदेश पालन करवाने का अधिकार। पर्या. प्रभुत्व। उदा. बस करो। मुझ पर तुम्हारी हुकूमत नहीं चलेगी।
हुक्का - (पुं.) (अर.) - तम्बाकू का धुआँ पीने का वह विशेष उपकरण जिसके ऊपर चिलम तम्बाकू व आग रखी जाती है तथा उसके नीचे पानी भरा पेंदा तथा पास ही एक नली होती है, जिसमें मुँह लगाकर धुआँ पीने का शौक पूरा किया जाता है। पीने के समय पानी के साथ धुएँ का स्पर्श होने के कारण गड़ गड़ की आवाज होती है। जैसे: हुक्का गुड़गुड़ाना। टि. हरियाणा-राजस्थान में आज भी ‘हुक्का’ पीने का रिवाज है। मुहा. हुक्का-पानी छुड़ा देना = सामाजिक रूप से बहिष्कार कर देना।
हुजूर - (पुं.) (अर.) - 1. सम्मान के लिए एक आदरसूचक शब्द। जैसे: हुजूर! क्या सेवा करूँ? 2. किसी बड़े के सामने उपस्थिति। आमना-सामना। 3. राजसभा, न्यायालय, दरबार।
हुजूरी - (स्त्री.) (अर.) - 1. उपस्थिति 2. मौजूदगी 3. सम्मुखता। मुहा. जी हज़ूरी करना = अफ़सरों का चमचा बनना।
हुडक़ना अ.क्रि. - (देश.) - 1. वियोग के कारण विशेष रूप से शिशु का अपने प्रिय व्यक्ति के न मिलने पर दु:खी और मानसिक बेचैनी के कारण रोना, खाना-पीना तक छोड़ देना। 2. भयभीत और चिंतित होना। जैसे: यह शिशु अपनी दादी के लिए कई दिनों से हुडक़ रहा है।
हुड़दंग - (पुं.) (देश.) - 1. शोर करते हुए मौजमस्ती, ऊधम या उछल-कूद। जैसे: होली के दिन लडक़े हुड़दंग मचाते हैं। 2. असभ्यता या अशिष्टता युक्त शोर। जैसे: बच्चे गली में हुड़दंग क्यों मचा रहे हैं? जैसे: हुल्लड़, उपद्रव, उत्पात।
हुनर - (पुं.) - (फ़ार.) 1. किसी कार्य को करने की कला या कौशल विशेष। 2. कारीगरी।
हुनरमंद - (वि./पुं.) (.फा.) - शा.अर्थ हुनर जानने वाला। सा.अर्थ 1. निपुण, कुशल, प्रवीण। 2. कलाकार, कलाविद्। दे. हुनर।
हुबहू - (वि.) (अर.) - 1. बिल्कुल वैसा ही, पूर्णत: एक जैसा। 2. किसी वस्तु, व्यक्ति आदि के जैसा। जैसे: वह हुबहू तुम्हारी शक्ल का है।
हुलस/हुलास - (स्त्री.) (तद्.< हर्षोल्लास) - 1. मनोनुकूल स्थिति में उत्पन्न विशेष आनंद। 2. उत्साह।
हुलिया - (पुं.) (अर.<हुल्य:) - 1. किसी मनुष्य, वस्तु, प्राणी आदि के रूप-रंग वेभाभूषा कद आदि का ऐसा विवरण जिससे उसकी पहचान हो सके। 2. रूप, शक्ल, आकृति, वेशभूषा। जैसे: इंस्पेक्टर ने चोर का हुलिया पूछा। मुहा. हुलिया बिगाड़ना = दुर्दशा करना, रूप बिगड़ना, बहुत मारना।
हुस्न - (पुं.) (अर.) - जिसमें सुंदरता व शोभा की परिपूर्णता हो। पर्या. सौंदर्य, लावण्य।
हूक - (स्त्री.) (तद्.>हिक्का) - 1. किसी पीड़ा, दु:ख आदि की स्थिति में मन में उठने वाली वेदना/कसक का भाव। 2. पेट में अचानक होने वाली पीड़ा/शूल।
हूर - (स्त्री.) (अर.) - 1. मुस्लिम मतानुसार स्वर्ग की अप्सरा या परी। 2. ला.अर्थ बहुत सुंदर लडक़ी या स्त्री।
हृदय - (पुं.) (तत्.) - 1. आयु. छाती के अंदर बाई ओर स्थित एक अवयव जो धौंकनी जैसी क्रिया से रक्त शरीर के सभी अंगों में रक्त को संचरित करता है। पर्या. दिल। 2. विकसित लाक्ष. अर्थ छाती के मध्य भाग में मानी जाने वाली अंतरिंद्रिय जिसमें प्रेम, करुणा, क्रोध, भय आदि भाव उत्पन्न होते हैं। पर्या. अंत:करण, दिल, मन। मुहा. 1. हृदय को चोट पहुँचना; हृदय विदीर्ण होना, हृदय छलनी होना-किसी शोकप्रद घटना को सुन, देखकर मन को इतना आघात लगना कि उत्साह समाप्त हो जाए। 2. हृदय विशाल होना = उदार होना।
हृदय-विदारक - (वि.) (तत्.) - शा.अर्थ हृदय को फाड़ देने वाला; (ऐसा कोई दु:खद समाचार, दुर्घटना आदि जो) हृदय को अत्यधिक कष्ट पहुँचाने वाला (हो)।
हृष्ट-पुष्ट - (वि.) (तत्.) - 1. मोटा ताजा स्वस्थ शरीर वाला, तंदुरुस्त। 2. बलवान, हट्टा-कट्टा, तगड़ा।
हृास - (पुं.) (तत्.) - शा.अर्थ कमी, उतार, घटाव। किसी वस्तु के अपेक्षित गुणों, तत् वों आदि में कमी होना। 2. घिसने, छीजने, नष्ट होने या व्यर्थ जाने की क्रिया या भाव। waist
हेकड़बाज़ - (वि.) (देश.) - हेकड़ी दिखाने वाला (व्यक्ति) दे. हेकड़ी।
हेकड़ी - (स्त्री.) (देश.) - शारीरिक बल अथवा पद-प्रतिष्ठा को प्रदर्शित करने का अशोभनीय व्यवहार, उजड्डपन। उदा. ज्यादा हेकड़ी मत दिखाओ।
हेक्टेयर - (पुं.) - (अं.) भूमि के क्षेत्रफल को मापने की एक इकाई जो लगभग ढाई एकड़ या दस हजार वर्ग मीटर के बराबर होती है।
हेठी - (स्त्री.) (देश.) - अप्रतिष्ठा। (प्रतिष्ठा, मान या इज्जत में, कमी का भाव।
हेतु - (पुं.) (तत्.) - जिस कारण से कोई कार्य किया गया हो। पर्या. कारण, वजह, सबब, उद्देश्य, प्रयोजन।
हेमंत - (पुं.) (तत्.) - 1. भारत में होने वाली छह ऋतुओं में से एक जो शरद् के बाद और शिशिर से पहले अर्थात् मार्गशीर्ष-पौष (अगहन-पूस) महीनों में होती है। अंग्रेजी महीनों में लगभग नवंबर-दिसंबर माह। 2. जाड़े का मौसम। जैसे: हेमंत ऋतु में ही खरीफ़ की फसल तैयार होती है।
हेम - (पुं.) (तत्.) - 1. स्वर्ण, सोना 2. जल, 3. हिम, बर्फ, पाला, 4. ओला।
हेय - (वि.) (तत्.) - 1. जो छोड़ने योग्य हो, त्याज्य हो। 2. तुच्छ, बुरा, खराब।
हेर-फेर - (पुं.) (देश.) - 1. वस्तुओं में या शब्दों आदि में या अन्यत्र किसी प्रकार का आपस में किया गया परिवर्तन, अदल-बदल, उलट-पलट; खरीद-बेच। जैसे: मंत्रिमंडल में आज कुछ हेर-फेर किया गया। 2. घुमाव-फिराव, चक्कर। जैसे: यह सब समय का हेर फेर है। 3. दाँव पेंच, चालबाजी। जैसे: वह हमेशा हेर-फेर ही करता रहता है।
हेरा-फेरी - (स्त्री.) (दे.) - 1. हेर फेर करने का भाव। दे. हेर फेर। 2. चालाकी से हेरफेर करना।
हैंडल - (पुं.) - (अं.) वह हिस्सा जिसे हाथ में थामा जाए यानी जिसे हाथ से नियंत्रित किया जाए। पर्या. मुठिया, दस्ता। जैसे: साइकिल का हैंडल।
हैजा - (पुं.) (अर.<हैज:) - एक घातक और संक्रामक रोग जिसमें उल्टी (कै) होती है और दस्त आते हैं। विशूचिका। जैसे: हैजा से ग्रस्त व्यक्ति को तुरंत चिकित्सक के पास ले जाना चाहिए। cholera
हैपेटाइटिस ए - (पुं.) (दे.) - (अं.) खाद्य पदार्थ द्वारा संचारित एक प्रकार का विषाणुज यकृत शोथ। ज्वर का आना तथा पीलिया रोग हो जाना इसका लक्षण है। hepatitis A दे. यकृतशोथ।
हैरत - (स्त्री.) (अर.) - अचंभा, आश्चर्य, विस्मय।
हैरतअंगेज़ - (वि.) (अर.+.फार.) - आश्चर्यचकित कर देने वाला। (हैरत=आश्चर्य+अंगेज़ = उत्तेजित करने वाला) सरकस (सर्कस) में हमने कई हैरतअंगेज़ कारनामे देखे।
हैरान - (वि.) (अर.) - 1. जो किसी अनपेक्षित घटना को देख-सुन कर हक्का-बक्का रह जाए। पर्या. आश्चर्यचकित, भौंचक्का, स्तब्ध। 2. परेशान, तंग 3. थका हुआ।
हैरानी - (स्त्री.) (अर.) - हैरान होने की बात। दे. हैरान।
हैरो - (पुं.) - (अं.) कृषि. एक दाँतेदार भारी यंत्र जो ट्रैक्टर के पीछे जोडक़र हल चले खेत में ढेलों को तोडक़र मिट्टी के फैलाने के काम आता है।
हैवान - (पुं.) (अर.) - 1. पशु, जानवर। जैसे: बच्चों के साथ ऐसा कठोर व्यवहार करते हैं। तुम इंसान हो या हैवान? 2. ला.अर्थ बुद्धिहीन या असभ्य व्यक्ति।
हैवानियत - (स्त्री.) (अर.) - 1. पशुता, 2. क्रूरता, विवेकहीनता।
हैसियत - (स्त्री.) (अर.) - 1. सामर्थ्य, शक्ति संबंधी अधिकार। जैसे: आपने किस हैसियत से यह काम अपने हाथ में लिया है? capacity। 2. आर्थिक, सामाजिक, राजनीतिक आदि स्तर। उदा. उस व्यक्ति ने अपनी हैसियत दिखाने के लिए बेटी के विवाह में अनाप-शनाप खर्च किया।
हॉकी - (पुं.) - (अं.) 1. दो दलों के बीच बाहर मैदान में खेला जाने वाला वह खेल जिसमें प्रत्येक दल में 11 ग्यारह खिलाड़ी होते हैं तथा आगे से मुड़ी हुई लम्बी स्टिक से एक छोटी गेंद को ढकेलते हुए गोल करने का प्रयत्न करते हैं। अधिक गोल करने वाला दल विजयी घोषित होता है। 2. फील्ड हॉकी एक खेल जो बर्फ में छ: सदस्यों वाले दो दलों में मुड़ी हुई स्टिक और रबड़ की छोटी डिस्क (चकिता/चकती) के साथ खेला जाता है। (बर्फ हॉकी-आइस हॉकी)। hockey
होटल - (पुं.) - (अं.) 1. एक बड़ा भवन जहाँ दूर से आने वाले यात्री या विशेष प्रयोजनवश स्थानीय संभ्रांत लोग अस्थायी तौर पर किराया देकर रहते हैं। यहाँ निश्चित शुल्क देकर भोजन, जलपान आदि की भी सुविधा होती है। 2. यात्री निवास। जैसे: दिल्ली का ‘अशोक होटल’ सुख-सुविधाओं की दृष्टि से विशेष प्रसिद्ध है। Hotel
होड़ - (स्त्री.) (तद्.) - एक-दूसरे से आगे निकल जाने का प्रयत्न। पर्या. प्रतिस्पर्धा या प्रतियोगिता। 2. शर्त।
होड़ा-होड़ी - (स्त्री.) (तद्.) - एक-दूसरे से आगे निकल जाने की प्रतियोगिता की सूचक द्विरुक्ति मूलक शब्द। दे. होड़।
होते-होते क्रि.वि. - (वि./अव्य.) (तद्.) - किसी क्रिया या घटना के होते हुए। जैसे: उसका विवाह संस्कार होते-होते सुबह हो गई। टि. एक ही समय में दो क्रियाओं के होने की स्थिति में गौण क्रिया का यह रूप बनता है। जैसे : ‘जाते-जाते’, ‘करते-करते’ आदि। शब्द अव्यय बन जाता है।
होनहार - (वि.) (देश.) - 1. जो भविष्य में अवश्य होने वाला हो, जो होकर ही रहे, अवश्यंभावी, भिवतव्य। जैसे: होनहार घटना के बारे में कोई नहीं जानता। 2. अच्छे लक्षणों वाला/जिसमें आगे श्रेष्ठ बनने के लक्षण हों। जैसे: 1. होनहार बिरबान के होत चिकने पात। स्त्री. वह बात या घटना जो भविष्य में अवश्य होनी हो। भवितव्यता, होनी।
होना अक्रि. - (तद्.>भवन) - 1. किसी वस्तु की सत्ता, उपस्थिति आदि को सूचित करने वाली मुख्य क्रिया। जैसे: यहाँ गन्ने की खेती होती है। 2. उत्पन्न होना या जन्म होना। जैसे: गाय के बछड़ा हुआ है। पहला रूप छोडक़र दूसरे या नये रूप में आना। जैसे : पतझड़ में वृक्षों के हरे पत्ते पीले हो जाते हैं। किसी कार्य या घटना का प्रत्यक्ष रूप से सामने आना आज उनका आपस में टकराव हो गया।
होनी - (स्त्री.) (देश.) - 1. होने की क्रिया या भाव। 2. अवश्य होने वाली बात या घटना, भावी, भवितव्यता। जैसे: जीवन में होनी तो होकर रहेगी। विलो. अनहोनी 3. उत्पत्ति, जन्म। उदा. वाल्मीकि नारद घटयोनी। निज निज मुखनि कही निज होनी।
होली - - 1. फाल्गुन पूर्णिमा को होलिका-दहन वाला त्योहार। 2. होलिका-दहन से अगले दिन (चैत्र कृष्णा प्रतिपदा को) मनाया जाने वाला रंगों का त्योहार।
होश - (पुं.) - (फ़ार.) इंद्रियजन्य संवेदनशीलता का वह गुण जिसमें बुद्धि और शरीर सहज रूप में कार्य करते रहते हैं। पर्या. चेतना। मुहा. होश उड़ना = कष्ट, भय आदि में काफी घबराहट बढ़ जाने के कारण सुध-बुध भूल जाना। होश में आना = पुन: चेतना प्राप्त कर लेना। होश ठिकाने होना = भ्रम दूर हो जाना; दंड या भय से पछतावा करना।
होशियार - (वि.) - (फ़ार.) जो अपनी आयु के हिसाब से समझने-बूझने लायक हो गया हो।
होशो-हवास (होश और हवास) - (फा.+अर.) (अर.) - होश= 1. ज्ञान कराने वाली मानसिक वृत्ति। 2. जीवित रहने का बोध। हवास=देखने, सुनने, चखने आदि की शक्तियाँ, पंचज्ञानेंद्रियों, मन की शक्तियाँ (कल्पना, विचार, स्मृति) संवेदन की शक्ति, सुध। होश-हवास = संज्ञा (चेतना) और बुद् धि, अक्ल और तमीज।
हो-हल्ला - (पुं.) - (अनु.) हो, हो-हो की आवाज। हल्ला = 1. शोर, 2. कोलाहल। हो-हल्ला (द् विरुक्ति सूचक शब्द) शोरगुल, हुल्लड़।
हौआ - (पुं.) (देश.) - एक कल्पित प्राणी जिसका नाम लेकर बच्चों को डराया जाता है। जैसे: माँ बच्चे से कहती है-घर के बाहर मत जाओ, नहीं तो वहाँ हौवा आ जायेगा।
हौज़ - (पुं.) (अर.) - मुख्यत: नहाने और गौणत: जलक्रीड़ा के लिए बना और चारों ओर से पक्का बँधा पानी का कुंड जैसा जलाशय। 2. मवेशियों के लिए पानी पीने का कुंड, नाँद।
हौदा - (पुं.) (अर.हौद्अ) - पहले राजा-महाराजाओं के परंतु अब सैलानियों के बैठने के लिए हाथी की पीठ पर कसा जाने वाला सजा-सजाया चौखटा।
हौले-हौले - (क्रि.वि.) (वि.) (अर.) - 1. धीरे-धीरे, आहिस्ता आहिस्ता। 2. चुपचाप, बिना शब्द किए।
हौसला - (पुं.) (अर.) - किसी काम को करने का मन में उत्साहपूर्ण साहस। उदा. हौसला बनाए रखोगे तो तुम्हें सफलता अवश्य मिलेगी। मुहा. हौसला पस्त हो जाना= उत्साह और साहस खो देना।
हौसलामंद - (वि.) (अर.) - हौसले वाला। दे. हौसला।
ह्यूमस - (पुं.) - (अं.) मृदा (मिट्टी) में प्राप्त होने वाला जैव पदार्थों का अपघटित अंश (जो उसे उपजाऊ बनाता है)।
ह्यूमस - (पुं.) - (अं.) कृषि मृदा में जैव पदार्थ के अपघटन की प्रक्रिया जिससे ह् यूमस बनता है। humusiow
हृस्व - (पुं.) (तत्.) - शा.अर्थ छोटा, हलका। व्या. स्वरों के उच्चारण के संदर्भ में क्षण भर में उच्चरित ह्रस्व स्वर। जैसे: (अ, इ, उ, ऋ) short
ह्रस्व स्वर - (पुं.) (तद्.) - भाषा. वह स्वर जिसके उच्चारण में अपेक्षाकृत कम समय लगता है। हिंदी में- अ, इ, उ, ऋ, ह्रस्व स्वर हैं; जबकि- आ, ई, ऊ, ए, ऐ, ओ, औ दीर्घ स्वर हैं। short vowel , विलो. दीर्घ स्वर।