विचित्र
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प्रकाशितकोशों से अर्थ
[सम्पादन]शब्दसागर
[सम्पादन]विचित्र ^२ संज्ञा पुं॰
१. पुराणनुसार रौच्य मनु के एक पुत्र का नाम ।
२. साहित्य में एक प्रकार का अर्थालंकार जो उस समय होता है, जब किसी फल की सिद्धि के लिये किसी प्रकार का उलटा प्रयत्न करने का उल्लेख किया जाता है । उ॰—(क) करिबैकौ उज्वल सुघा सों अभिराम देखो, मन ब्रजवाम रँगती हैं श्याम रंग में (ख) राम कहेउ रिस तजहु मुनीसा । कर कुठार आगे यह सीसा ।—तुलसी (शब्द॰) । (ग) जीवन हित प्रानहिं तजत नवैं ऊँचाई हेत । सुख कारण गुख संग्रहैं बहुधा पुरुष सचेत (शब्द॰) । (घ) क्यौं नहिं गंगा को सुमिरि दरस परस सुख लेत । जाके तट में मरत नर अमर होन के हेत (शब्द॰) ।
३. अनेक रंगों का समूह । विभिन्न रंगों का एकीभवन । (को॰) ।
४. आश्चर्य (को॰) ।