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विनयपिटक

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हिन्दी[सम्पादन]

प्रकाशितकोशों से अर्थ[सम्पादन]

शब्दसागर[सम्पादन]

विनयपिटक संज्ञा पुं॰ [सं॰] आदि बौद्ध शास्त्रों में से एक । विशेष—आदि बौद्ध शास्त्र, जो पाली भाषा में हैं, तीन भागों में विभक्त हैं—विनयपिटक, सुत्रपिटक और अभिधर्मपिटक । ये तीनों 'त्रिपिटक' नाम से प्रसिद्ध हैं । बुद्ध देव ने अपनी शिष्यमंडली को भिक्षु धर्म के जो उपदेश दिए थे, वे ही विनय- पिटक में संगृहीत है । इसके संकलन के संबंध में यह कथा है कि बुद्ध भगवान् तथा सारिपुत्र मौद्लायन आदि प्रधान प्रधान शिष्यो के निवर्णिलाभ करने पर बौद्ध शास्त्र के लुप्त होने का भय हुआ । इससे महाकश्यप ने अजातशत्रु के राजत्वकाल में राजगृह के पास वैभार पर्वत की सप्तपर्णी नाम की गुफा में पाँच सौ स्थविरों को आमंत्रित करके एक बड़ी सभ की, जिसमें उपालि ने बुद्ध द्वारा उपदिष्ट 'विनय' का प्रकाश किया । इसके पीछे एक बार फिर गड़बड़ उपस्थित होने पर वैशाली के वलिकाराम में सभा हुई, जिसमें 'विनय' का फिर संग्रह हुआ । इस प्रकार कई संकलनों के उपरांत अशोक के समय में 'विनय' पूर्ण रूप से संकलित हुआ ।