विपाक

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हिन्दी[सम्पादन]

प्रकाशितकोशों से अर्थ[सम्पादन]

शब्दसागर[सम्पादन]

विपाक संज्ञा पुं॰ [सं॰]

१. परिपक्व होना । पचन । पकना ।

२. पूर्ण दशा को पहुँचना । तैयारी पर आना । चरम उत्कर्ष ।

३. फल । परिणाम ।

४. कर्म का फल । विशेष—योग दर्शन में यह विपाक तीन प्रकार का कहा गया है— जाति (जन्म), आयु और भोग ।

५. खाए हुए भोजन का पेट में पचना । खाद्य द्रव्य की पेट के अंदर रस रूप में परिणति ।

६. दुर्गति । दुर्दशा ।

७. स्वाद । जायका ।

८. पकाना । परिपक्व करना ।

९. मुरझाना । कुम्हलाना (को॰) । यौ॰—विपाककाल=पूर्णता या परिपक्व होने का समय । विपाक- दारुण=जिसका परिणाम दुःखद हो । विपाकदोष=पाचन- क्रिया का दोष या कुप्रभाव । अजीर्ण ।