विप्रलम्भ

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हिन्दी[सम्पादन]

प्रकाशितकोशों से अर्थ[सम्पादन]

शब्दसागर[सम्पादन]

विप्रलंभ संज्ञा पुं॰ [सं॰ विप्रलम्भ]

१. अभिलाषित वस्तु की अप्राप्ति । चाही हुई वस्तु का न मिलना ।

२. प्रिय का न मिलना । वियोग । जुदाई । विरह । अमिलन । विशेष—साहित्य में श्रृंगार रस दो प्रकार का कहा गया है— संभोग श्रृंगार विप्रलंभ श्रृंगार । इन्हीं को संयोग और वियोग भी कहते है । विप्रलंभ श्रृंगार में नायक नायिका के विरहजन्य संताप आदि का वर्णन होता है ।

३. अलग होना । विच्छेद ।

४. छल से किसी को किसी लाभ से वंचित करना । धोखा । छल । धूर्तता । वंचना ।

५. विरुद्ध कर्म । बुरा काम ।

६. असहमति । कलह ।