विरोधन
हिन्दी[सम्पादन]
प्रकाशितकोशों से अर्थ[सम्पादन]
शब्दसागर[सम्पादन]
विरोधन संज्ञा पुं॰ [सं॰] [वि॰ विरोधी, विरोधित, विरोध्य]
१. विरोध करना । बैर करना ।
२. नाश । बरबादी ।
३. नाटक में विमर्ष का एक अंग जो उस समय होता है, जब किसी कारण- वश कार्यध्वंस का उपक्रम (सामान) होता है । जैसे—कुरुक्षेत्र के युद्ध के अंत होने के निकट जब दु्र्योधन बच रहा था, तब भीम का यह प्रतिज्ञा करना कि 'यदि दु्र्योधन को न मारूँगा तो अग्नि में प्रवेश कर जाऊँगा' । सब बात बन जाने पर भी भीम का यह कहना युधिष्ठिर आदि के मन में यह विचार लाया कि यदि दु्र्योधन न मारा गया तो हम सब लोग भी भीम के बिना कैसे रहेंगे ।
४. बाधा । रूकावट (को॰) ।
५. प्रतिरोध । मुकाबिला (को॰) ।
६. परस्पर विरोध । असंगति (को॰) ।
७. कलह (को॰) ।