विशेष
प्रकाशितकोशों से अर्थ
[सम्पादन]शब्दसागर
[सम्पादन]विशेष —यह पश्चिम में उदय होता है और एक ही रात को दिखाई देता है । इसकी शिखा पूर्व की ओर होती है । कहते हैं कि इसके उदय होने पर दस वर्ष तक दुर्भिक्ष रहता है ।
विशेष — छाजन में कभी कभी एक सीधी धरन के स्थान पर दो उठी हुई लकड़ियाँ लगाते हैं, जो सिरों के पास एक दूसरी पर आड़ी बाँध दी जाती हैं । यौ॰—कैंची का जंगला =वह जिसमें पतली पतली तीलियाँ एक दूसरी पर तिरछी लगी हों । मुहा॰—कैंची लगाना = दो या अधिक लकड़ियों को कैंची की तरह एक दूसरी के ऊपर तिरछा रखना या बाँधना ।
३. सहारे के लिये धरन के बहुए में लगी हुई दो तिरछी लकड़ियाँ ।
४. कुश्ती का एक पेच, जिसमें प्रतिपक्षी की दोनों टाँगों में अपनी टाँगे फँसाकर उसे गिराते हैं । क्रि॰ प्र॰—बाँधना ।
५. मालखंभ की एक ककसरत जिसमें खिलाड़ी दौड़ता हुआ या उड़कर सीधे बिना मालखंभ को हाथ लगाए, कमरपेटे की रीति से मालखंभ को बांधता है । क्रि॰ प्र॰— बाँधना ।
विशेष ^१ संज्ञा पुं॰ [सं॰]
१. भेद । अंतर । फरक ।
२. प्रकार । तरह । ढंग ।
३. नियम । कायदा ।
४. विचित्रता ।
५. व्यक्ति ।
६. सार । निचोड़ ।
७. तारतम्य । मुनासिब ।
८. वह जो साधारण के अतिरिक्त और उससे अधिक हो । अधिकता । ज्यादती ।
८. अवयव । अंग ।
१०. वस्तु । पदार्थ । चीज ।
११. तिल का पौधा ।
१२. साहित्य में एक प्रकार का अलंकार । विशेष नामक अलंकार ।
विशेष ^२ वि॰
१. असाधरण । असामान्य ।
२. अधिक । प्रचुर ।
विशेष यह चीनी से तैयार की जाती है । चरक के अनुसार यह स्वादिष्ट, सुगंधित, पाचक और वायुरोगनाशक है ।