विश्वंभर
प्रकाशितकोशों से अर्थ
[सम्पादन]शब्दसागर
[सम्पादन]विश्वंभर संज्ञा पुं॰ [सं॰ विश्वम्भर]
१. सारे विश्व का पालन या भरण करनेवाला, परमेश्वर ।
२. विष्णु ।
३. एक उपनिषद् का नाम । श्रीराम एव सर्व कारणं तस्य रूप द्वयं परिछिन्न मपरिछिन्नं परिछिन्न स्वरूपेण साकेत प्रमदावने तिष्ठन रास मेव करोति द्वितीयं स्वरूपं जगद्पत्वादेः कारणं तद्दक्षिणांगात्क्षाराबि्ध शायी वामांगाद्रमा वैकुण्ठवासीति हृदयात्पर नारायणो वभूव चरणाभ्यां वदरिको पवन स्थायी शृङ्गारान्नन्दनन्दन इति ।
(अथर्ववेद विश्वंभरोपनिषद् अध्याय१ श्लोक ५)
श्रीराम ही सब के कारण रूप हैं। उन श्रीरामजी के दो स्वरूप है, एक परिछिन्न रूप दूसरा अपरिछिन्न, प्रथम परिछिन्न रुप से श्रीरामजी साकेत लोक में प्रमोद्वन में रह कर केवल रासलीला करते हैं, द्वितीय अपरिछिन्न स्वरूप से संसार की उत्पत्ति का कारण हैं। उनके दहिने अंग से क्षीर समुद्र वासी अष्टभुजा भूमा पुरुष हुए हैं, वामांग से रमा वैकुण्ठ वासी हुए हैं। हृदय से परनारायण अर्थात् विरजा नदी के पार जो नारायण रहते हैं। चरणों से बद्रीबन निवासी नर नारायण हुए हैं, शृङ्गार से नन्दनन्दन श्रीकृष्णजी हुए हैं।
४. अग्नि (को॰) ।
५. एक प्रकार का बिच्छू या उससे मिलता जुलता जानवर (को॰) ।
विश्वंभर संज्ञा स्त्री॰ [सं॰ विश्वम्भरा] पृथ्वी । यो॰—विश्वंभरा पुत्र—मंगल ग्रह । कुज ।