विषम
प्रकाशितकोशों से अर्थ
[सम्पादन]शब्दसागर
[सम्पादन]विषम ^१ वि॰ [सं॰]
१. जो सम या समान न हो । जो बराबर न हो । असमान ।
२. (वह संख्या) जिसमें दो से भाग देने पर एक बचे । सम या जूस का उल्टा । ताक ।
३. जिसकी मीमांसा सहज में ने हो सके । बहुत कठिन । जैसे,—विषम समस्या ।
४. बहुत तीव्र । बहुत तेज ।
५. भीषण । विकट । जैसे,— विषम विपत्ति । उ॰—करेँ न मेरे पीछे स्वामी विषम कष्ट साहस के काम । यही दुःखिनी सीता का सुख सुखी रहें उसके प्रिय राम ।—साकेत, पृ॰ २८९ ।
६. जो समतल न हो । खुरदरा । ऊबड़ खाबड़ (को॰) ।
७. अनियमित (को॰) ।
८. अगम । दुर्गम (को॰) ।
९. मोटा । स्थूल (को॰) ।
१०. तिरछा । वक्र (को॰) ।
११. पीड़ाप्रद । कष्टदायक (को॰) ।
१२. बहुन मजबूत । उत्कट (को॰) ।
१३. बुरा । प्रतिकूल । विपरीत (को॰) ।
१४. अजीब । विचित्र । अनुपम । (को॰) ।
१५. बेईमान (को॰) ।
१६. विरामशील । विरत (को॰) ।
१७. दुष्ट (को॰) ।
१८. भिन्न (को॰) ।
१९. अनुपयुक्त । अननुकूल (को॰) ।
विषम ^२ संज्ञा पुं॰ [सं॰]
१. संकट । विपत्ति । आफत ।
२. वह वृत्त जिसके चारों चरणों में बराबर बराबर अक्षर न हों, बल्कि कम और ज्यादा अक्षर हों ।
३. एक अर्थालंकार जिसमें दो विरोधी वस्तुओं का संबंध वर्णन किया जाता है या यथायोग्य का अभाव कह जाता है । उ॰—(क) कहाँ मृदुल तल तीय को सिरस प्रसून महान । कहाँ मदन की लाय यह अँव सम दुसह समान । (ख) खड़गलता अति स्याम तें उपजी कीरति सेत ।
४. संगीत में ताल का प्रकार ।
५. पहली, तीसरी, पाँचवीं आदि विषम संख्याओं पर पड़नेवाली राशियाँ ।
६. वैद्यक के अनुसार चार प्रकार की जठराग्नियों में से एक प्रकार की जठराग्नि जो वायु की अधिकता से उत्पन्न होती है । कहते हैं, जब जठराग्नि विषम होती है, तब कभी तो भोजन बहुत अच्छी तरह पच जाता है और कभी बिल्कुल नहीं पचता ।
७. विष्णु का एक नाम ।
८. असमता (को॰)
९. अनोखापन (को॰) ।
१०. दुर्गम स्थान । जैसे,—चट्टान, गड्ढा आदि (को॰) ।
११. कठिन या भयावह स्थिति । कठिनाई । दुर्भाग्य (को॰) ।
विषम विभाजन संज्ञा पुं॰ [सं॰] सपत्ति आदि का असमान विभाजन [को॰] ।
विषम व्यूह संज्ञा पुं॰ [सं॰] एक प्रकार का सैनिक व्यूह । समव्यूह का उलटा व्यूह विशेष दे॰ 'समव्यूह' ।