विषमज्वर

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हिन्दी[सम्पादन]

प्रकाशितकोशों से अर्थ[सम्पादन]

शब्दसागर[सम्पादन]

विषमज्वर संज्ञा पुं॰ [सं॰]

१. वैद्यक के अनुसार एक प्रकार का ज्वर जो होता तो नित्य है, पर जिसके आने का कोई समय नियत नहीं होता । उ॰—जो ज्वर छोड़ दे और फिर आ जावे उसके विषमज्वर कहते हैं ।—माधव॰, पृ॰ २० । विशेष—इस ज्वर में तापमान भी समान नहीं रहता और नाड़ी की गति भी सदा एक सी नहीं रहती, बराबर बदलती रहती है । इसलिये इसे विषमज्वर कहते हैं । ज्वर का यह रूप किसी साधारण ज्वर के बिगड़ने अथवा पूरी तरह अच्चे न होने पर कुपथ्य करने के कारण होता है । वैद्यक में इसके अनेक भेद कहे गए हैं । जैसे—संतत, सतत, तृतीयक, चतुर्थक आदि ।

२. जाड़ा देकर आनेवाला ज्वर । जूड़ी बुखार ।

३. क्षयी रोग में होनेवाला ज्वर ।