वीज

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हिन्दी[सम्पादन]

प्रकाशितकोशों से अर्थ[सम्पादन]

शब्दसागर[सम्पादन]

वीज संज्ञा पुं॰ [सं॰]

१. मूल कारण ।

२. शुक्र । वीर्य ।

३. तेज । उ॰—मनु पावक मझि वीज आनि अनरगन जग्गिय ।—पृ॰ रा॰, ६१ ।१६७८ ।

४. अन्न आदि का बीज । बीआ ।

५. अंकुर ।

६. फल ।

७. आधार ।

८. निधि । खजाना ।

९. तत्व ।

१०. मूल ।

११. मज्जा ।

१२. तांत्रिकों के अनुसार एक प्रकार के मंत्र जो बडे़ बडे़ मत्रों के मूल तत्व के रूप में माने जाते हैं । प्रत्येक देवी या देवता के लिये ये मंत्र अलग अलग होते हैं । जैसे,—ही, श्री, क्लीं आदि ।

१३. बीजगणित ।