वृक्ष
प्रकाशितकोशों से अर्थ
[सम्पादन]शब्दसागर
[सम्पादन]वृक्ष संज्ञा पुं॰ [सं॰]
१. वनस्पति या उदभिज्ज के अंतर्गत वह बड़ा क्षुप जिसका एक ही मोटा और भारी तना होता है और जो जमीन से प्रायः सीधा ऊपर की ओर जाता है । पेड़ । दरख्त । द्रुम । विटप । विशेष—प्रायः लोग बोलचाल में वृक्ष और क्षुप अथवा वृक्ष और दूसरी छोटी वनस्पतियों में कोई अंतर नहीं रखते और उनमें से अधिकांश को प्रायः वृक्ष ही कहा करते हैं । पर क्षुप और वृक्ष में यह अंतर है कि क्षुप तीन चार हाथ से अधिक ऊँचा नहीं होता; और न उसमें कोई एक मुख्य तना होता है । उसकी जड़ से ही कई जालियाँ निकलकर इधर उधर फैल जाती हैं । परंतु वृक्ष में एक मुख्य और भारी तना होता है जो पहले कुछ ऊँचाई तक सीधा ऊपर की ओर दाता है; और तब उसमें से चारों ओर डालियाँ निकलती हैं । पर फिर भी कुछ बड़े क्षुप ऐसे होते हैं जो अपने आकार प्रकार के कारण ही वृक्ष कहलाते हैं । वृक्ष में कुछ ठोस काठ का रहना भी आवश्यक होता है । पर केले में काठ का कोई अंश न रहने पर भी उसे लोग प्रायः वृक्ष ही कहते हैं । कुछ वृक्ष ऐसे होते हैं जिनके सब पत्ते वसंत ऋतु के आरंभ में झड़ जाते हैं, और तब फिर नए पत्ते निकलते हैं । ऐसे वृक्ष 'पतझड़' वाले वृक्ष कहलाते हैं जिनमें पुराने पक्के पत्तों के गिरने से पहले ही नए पत्ते निकल आते हैं । ऐंसे वृक्ष सदाबहार कहलाते हैं । वृक्षों में प्रायः अनेक प्रकार के फल लगते हैं जिन्हें लोग खाते हैं, और उसकी लकड़ी से तरह तरह की चीजें (जैसे,—मेज, कुरसी, दरवाजा, हल, गाड़ी आदि) बनाई जाती हैं । इनकी पत्तियाँ आदि ओषधि रूप में, रँग निकालने और चमड़ा सिझाने के काम में आती हैं । वृक्ष प्राथः बीजों से और कभी कभी पनीरी के द्वारा उत्पन्न किए जाते हैं । पर्या॰—महीरुह । शाखी । विटपी । पादप । तुर । पलाशी । द्रुप । आगम । स्थिर । नग । अग । कुज । क्षतिरुइ । महीज । शाल ।
२. किसी प्रकार का क्षुप या पौधा अथवा कोई कुछ बड़ी और ऊँची वनस्पति ।
३. वृक्ष से मिलती जुवती वह आकृति जिसमें किसी चीज का मूल अथवा उदगम और उपकी अनेक शाखाएँ प्रशाखाएँ आदि दिखलाई गई हों । वंशवृक्ष ।
४. वृक्ष का तना (को॰) ।
५. कुटज । इंद्रजव (को॰) ।
६. कफन । मृतचीवर (को॰) ।