वृत्ति
प्रकाशितकोशों से अर्थ
[सम्पादन]शब्दसागर
[सम्पादन]वृत्ति संज्ञा स्त्री॰ [सं॰]
१. वह कार्य जिसके द्वारा जीविकानिर्वाह होता हो । जीविका । रोजी । क्रि॰ प्र॰—करना ।—लगना । होना ।
२. वह धन जो किसी दीन, विधवा या छात्र आदि को बराबर, कुछ निश्चित समय पर उसके सहायतार्थ दिया जाय । उपजीविका । क्रि॰ प्र॰—देना ।—पाना ।—मिलना ।
३. सूत्रा आदि का वह विवरण या व्याख्या जो उनका अर्थ स्पष्ट करने के लिये की जाती है । विशेष—हमारे यहाँ सूत्रा आदि की व्याख्या के वृत्ति, भाष्य, वार्तिक, टीका और टिप्पणी ये पाँच भेद किए गए हैं । इनमें से वृत्ति उस व्याख्या को कहते हैं जो कुछ संक्षिप्त होती है और जिसकी रचना गंभीर होती है ।
४. विवरण । वृत्तांत । हाल ।
५. नाटकों में विषय के विचार से वर्णन करने की शैली । विशेष—यह चार प्रकार की कही गई है और भिन्न भिन्न रसों के लिये उपयुक्त मानी गई है ।जैसे—कौशिको वृत्ति श्रृंगार रस के लिये, सात्वतो वृत्ति वीर रस के लिये, आरभटी वृत्ति रौद्र और वीभत्स रस के लिये और भारती वृत्ति शेष अन्य रसों के लिये । जाहँ अच्छा वेशभूषावली नायिका, बहुत सी स्त्रियों और न्यगीत तथा भोगविलास आदि का वर्णन हो, उसे कौशिकी; जहाँ वीरता, दानशक्ति, दया, सरलता आदि वर्णन हो उसे सात्वती; जहाँ माया, इंद्रजाल, संग्राम, क्रोध आदि का वर्णन हो, उसे आरभटी, और जहाँ संस्कृत बहुल कथोपकथन हो उसे भारती वृत्ति कहते हैं । इन चारों वृत्तियों के भी कई अवांतर भेद माने गए हैं ।
६. व्यवहार ।
७. वह जो किसी दूसरे पर आश्रित या अवलंबित हो । आवेय ।
८. याग के अनुसार वित्त की अवस्था जो पाँच प्रकार की मानी गई है—क्षिप्त, मूड़, विक्षिप्त, एकाग्र और निरुद्ध ।
९. व्यापार । कार्य ।
१०. स्वभाव । प्रकृति ।
११. कर्तव्य ।
१२. सहार करने का एक प्रकार का शस्त्र । उ॰—सारचि माली वृत्ति नाम पुनि अतिमाली नौ ।—पद्माकर (शब्द॰) ।
१३. अस्तित्व । सत्ता ।
१४. टिकना । किसी विशेष स्थिति में होना या रहना (को॰) ।
१५. अवस्था । दशा (को॰) ।
१६. क्रम । प्रणाली (को॰) ।
१७. मजदूरी (को॰) ।
१८. संमानपूर्ण बर्ताव (को॰) ।
१९. चक्कर काटना । मुड़ना (को॰) ।
२०. किसी वृत्त या पहिए की परिधि (को॰) ।
२१. शब्द की शक्ति-अभिधा, लक्षणा और व्यंजना(को॰) ।
२२. विचार करने की प्रक्रिया विचारसरणि (को॰) ।
२३. अनुप्रास अलंकार का एक भेद (को॰) ।
२४. रूद्र की पत्नी (को॰) ।