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वृत्र

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प्रकाशितकोशों से अर्थ

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शब्दसागर

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वृत्र संज्ञा पुं॰ [सं॰]

१. अँधेरा ।

२. मेघ । बादल ।

३. शत्रु । दुश्मन ।

४. पुराणानुसार त्वष्टा के पुत्र एक दानव या असुर का नाम । वृत्रासुर । विशेष—इसे इंद्र ने मारा था । इसी को मारने के लिये दधीचि की हड्डियों का वज्र बनाया गया था । कहते हैं, एक बार इंद्र ने विश्वरूप पुरोहित को मार डाला था । उसके पिता त्वष्टा ऋषि ने इसका बदला चुकाने के लिये यज्ञ करके उसे उत्पन्न किया । जब इसने इंद्र पर आक्रमण किया, तब इंद्र देवताओं सहित इंद्रपुरी में भाग गए । पर अंत में विष्णु की संमति से इंद्र ने दधीचि ऋषि से उनकी हड्डीयाँ माँगीं और उन्हीं हड्डियों का वज्र बनाकर इससे लड़ना आरंभ किया । जब इंद्र नें इसके दोनों हाथ काट डाले, तब यह इंद्र को उनके हाथी ऐरावत सहित निगल गया । तब इंद्र इसका पेट फाड़कर बाहर निकले और इसका सिर काट डाला । देबीभागवत में इसकी कथा विस्तार के साथ दी गई है । वेदों में भी 'वृत्र असुर' का उल्लेख है; पर वहाँ जो कुछ वर्णन मिलता है, उससे आलंकारिक रूप में मेघ और अँधकार आदि के संबंध में ही 'वृत्र' शब्द आया हुआ जान पड़ता है ।

५. एक पर्वत का नाम ।

६. ध्वनि (को॰) ।

७. चक्र (को॰) ।

८. इंद्र (को॰) ।

९. पर्वत । पहाड़ (को॰) ।

१०. पत्थर (को॰) ।

११. धन (को॰) ।

१२. चर्म । चमड़ा (को॰) ।