वृश्चिक
प्रकाशितकोशों से अर्थ
[सम्पादन]शब्दसागर
[सम्पादन]वृश्चिक संज्ञा पुं॰ [सं॰]
१. बिच्छू नामक प्रसिद्ध कीड़ा जिसके डंक में बहुत तेज जहर होता है । विशेष दे॰ 'बिच्छु' ।
२. गोबर में उत्पन्न होनेवाला कीड़ा । शूककीट ।
३. पूनर्नवा । गदहपूरना ।
४. मदन वृक्ष । मैनफल ।
५. वृश्चिकाली या बिच्छू नाम की लता ।
६. ज्योतिष में मेष आदि बारह राशियों में से आठवीं राशि । विशेष—इसके सव तारों से प्रायः बिच्छू का सा आकार बनता है । विशाका नक्षत्र के अंतिम पाद से आरंभ होकर अनुराधा और ज्येष्ठा नक्षत्रों के स्थितिकाल तक यह राशि मानी जाती है । भारतीय फलित ज्योतिष के अनुसार यह राशि शीर्षोदय, श्वेतकर्ण, कफ प्रकृति, जलचर, उत्तर दिशा की अधिपति और अनेक पुत्रों तथा स्त्रियों से युक्त मानी गई है । कहते हैं, इस राशि में जन्म लेनेवाला मनुष्य धन जन से युक्त, भाग्यवान्, खल, राजसेवा, करनेवाला, सदा दूसरों के धन की अभिलाषा करनेवाला, उत्साही और वीर होता है । पर्या॰—सौम्य । अंगना । युग्म । सम । स्थिर । पुष्कर । सरौसृप- जाति । ग्राम्य ।
७. फलित ज्योतिष के अनुसार मेष आदि बारह लग्नों में से आठवाँ लग्न । विशेष—यह वृश्चिक राशि के उदय के समय माना जाता है । कहते हैं, जो बालक इस लग्न में जन्म लेता है, वह बहुत मोटा ताजा, खर्चीला, कुटिल, मातापिता के लिये अनिष्टकर, गंभीर और स्थिर प्रकृतिवाला, उग्र स्वभाव का, विश्वासी, हँसमुख, साहसी, गुरु और मित्रों से शत्रुता रखनेवाला, राजसेवा करनेवाला, दुःखी, दाता, नीच प्रकृति और पित्तरोगी होता है ।
८. अगहन मास जिसमें प्रायः सूर्योदय के समय वृश्चिक राशि का उदय होता है ।
९. कर्कट । केकड़ा (को॰) । १०, गोजर । कनखजूरा (को॰) ।
११. एक कीड़ा जो रोएँदार होता है (को॰) ।