व्यंग
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प्रकाशितकोशों से अर्थ
[सम्पादन]शब्दसागर
[सम्पादन]व्यंग ^१ संज्ञा पुं॰ [सं॰ व्यङ्ग]
१. मंडूक । मेंढक ।
२. भावप्रकाश के अनुसार एक प्रकार का क्षुद्र रोग जिसमें क्रोध या परिश्रम आदि के कारण वायु कुपित होने से मुहँ पर छोटी छोटी काली फुंसियाँ या दाने निकल आते हैं ।
३. वह जिसका कोई अंग टूटा हुआ या विकृत हो । लुंजा । विकलांग ।
४. दे॰ 'व्यंग । मुहा॰—व्यंग की बौछार = बहुत से व्यंगभरे वाक्य । व्यंग की बहुत सी बातें । उ॰—किसी ओर से कहीं सभ्य व्यंग की बौछार आती ।—प्रेमघन॰, भा॰ २, पृ॰ २९२ ।
५. एक रत्न लहसुनिया (को॰)
६. लौह । इस्पात (को॰) ।
व्यंग ^२ वि॰
१. शरीररहित ।
२. जो व्यवस्थित न हो । अव्यवस्थित ।
३. चक्रहीन ।
४. लँगड़ा '[को॰] ।