व्यंजना

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हिन्दी[सम्पादन]

प्रकाशितकोशों से अर्थ[सम्पादन]

शब्दसागर[सम्पादन]

व्यंजना संज्ञा स्त्री॰ [सं॰ व्यञ्जना]

१. प्रकट करने की क्रिया ।

२. शब्द की तीन प्रकार की शक्तियों या वृत्तियों में से एक प्रकार की शक्ति या वृत्ति । विशेष—व्यंजना शक्ति द्वारा शब्द या शब्दसमूह के वाच्यार्थ अथवा लक्ष्यार्थ से भिन्न किसी और ही अर्थ का बोध होत ा है । जैसे यदि कोई कहे कि 'तुम्हारे चेहरे' पर पाजीपन झलक रहा है' । दूसरा व्यक्ति कहे कि 'मुझे आज ही जान पड़ा है कि मेरे चेहरे में दर्पण का गुण है' तो इससे यह अर्थ निकलेगा कि तुमने मेरे दर्पण रूपी चेहेरे में अपना प्रतिबिंब देखकर उसमें पाजीपन की झलक पाई है । शब्दों की जिस शक्ति से यह अभिप्राय निकला, वही व्यंजना शक्ति है । इसके शाब्दी और आर्थी ये दो भेद माने गए हैं और इन दोनों भेदों के भी कई उपभेद किए गए हैं ।