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व्यसन

विक्षनरी से

प्रकाशितकोशों से अर्थ

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शब्दसागर

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व्यसन संज्ञा पुं॰ [सं॰]

१. विपत्ति । आफत ।

२. दुःख । कष्ट । तकलीफ ।

३. पतन । गिरना ।

४. विनाश । नष्ट होना ।

५. कोई बुरी या अमंगल बात । वह प्रयत्न जिसका कोई फल न हो ।

६. व्यर्थ का उद्योग ।

७. विषय वासना के प्रति होनेवाला अनुराग । विषयों के प्रति आसक्ति ।

८. दुर्भाग्य । बदकिस्मती ।

९. अयोग्य या असमर्थ होने का भाव ।

१०. वह दोष जो काम या क्रोध आदि विकारों से उत्पन्न हुआ हो । जैसे,—शिकार, जूआ, स्त्रीप्रसंग, नृत्य आदि देखना और गीत आदि सुनना । विशेष—मनु ने व्यसनों की संख्या १८ बतलाई है और उनमें से १० व्यसन कामज तथा ८ क्रोधज कहे हैं । मनु को यह भी आज्ञा है कि राजा को इन सब प्रकार के व्यसनों से बचना चाहिए ।

११. किसी प्रकार का शौक । किसी विषय के प्रति विशेष रुचि या प्रवृत्ति । जैसे—उन्हें केवल लिखने पढ़ने का व्यसन है ।

१२. दूर करना । फेंकना (को॰) ।

१३. विभाजन । पृथक्करण (को॰) ।

१४. सूर्य का अस्त होना या नीचे जाना (को॰) ।

१५. दंड (को॰) ।

१६. वायु । हवा (को॰) ।

१७. एकता । व्यष्टि (को॰) ।

१८. कदाचार । दुराचार । पाप (को॰) ।

१९. उल्लंधन । अतिक्रमण (को॰) ।