व्यसन
प्रकाशितकोशों से अर्थ
[सम्पादन]शब्दसागर
[सम्पादन]व्यसन संज्ञा पुं॰ [सं॰]
१. विपत्ति । आफत ।
२. दुःख । कष्ट । तकलीफ ।
३. पतन । गिरना ।
४. विनाश । नष्ट होना ।
५. कोई बुरी या अमंगल बात । वह प्रयत्न जिसका कोई फल न हो ।
६. व्यर्थ का उद्योग ।
७. विषय वासना के प्रति होनेवाला अनुराग । विषयों के प्रति आसक्ति ।
८. दुर्भाग्य । बदकिस्मती ।
९. अयोग्य या असमर्थ होने का भाव ।
१०. वह दोष जो काम या क्रोध आदि विकारों से उत्पन्न हुआ हो । जैसे,—शिकार, जूआ, स्त्रीप्रसंग, नृत्य आदि देखना और गीत आदि सुनना । विशेष—मनु ने व्यसनों की संख्या १८ बतलाई है और उनमें से १० व्यसन कामज तथा ८ क्रोधज कहे हैं । मनु को यह भी आज्ञा है कि राजा को इन सब प्रकार के व्यसनों से बचना चाहिए ।
११. किसी प्रकार का शौक । किसी विषय के प्रति विशेष रुचि या प्रवृत्ति । जैसे—उन्हें केवल लिखने पढ़ने का व्यसन है ।
१२. दूर करना । फेंकना (को॰) ।
१३. विभाजन । पृथक्करण (को॰) ।
१४. सूर्य का अस्त होना या नीचे जाना (को॰) ।
१५. दंड (को॰) ।
१६. वायु । हवा (को॰) ।
१७. एकता । व्यष्टि (को॰) ।
१८. कदाचार । दुराचार । पाप (को॰) ।
१९. उल्लंधन । अतिक्रमण (को॰) ।